केंद्र सरकार की हरी झंडी के बाद...

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राष्ट्रीय

केंद्र सरकार की हरी झंडी के बाद रेल नियामक का गठन

5 अप्रैल 2017 को केंद्र सरकार ने एक स्वतंत्र रेल नियामक (Independent Rail Regulator) स्थापित करने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है। यह रेल नियामक यात्री किरायों में कमी एवं बढ़ोतरी के साथ–साथ रेल संचालन के लिये प्रदर्शन मानकों की स्थापना तथा इस क्षेत्र विशेष में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी कार्यों के लिये एक उत्तरदायी तंत्र होगा।

· इस नियामक का नाम ‘रेल विकास प्राधिकरण’ (Rail Development Authority-RDA) होगा।

· इसे 50 करोड़ रुपए की आरंभिक धनराशी के साथ देश की राजधानी दिल्ली में स्थापित किया जाएगा।

· इस नियामक में एक अध्यक्ष के साथ-साथ तीन अन्य सदस्य भी होंगे, जिनका कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा।

· वस्तुतः यह एक स्वतंत्र नियामक तंत्र होगा जिसका अपना एक बजट भी होगा।

· इसके अतिरिक्त इसके अंतर्गत सदस्यों की नियुक्ति करने तथा उन्हें हटाने की एक उचित प्रक्रिया भी सुनिश्चित की जायेगी।

उल्लेखनीय है कि इस नियामक का प्राथमिक कार्य सामाजिक सेवा संबंधी दायित्वों हेतु लागतों के अनुरूप शुल्क का निर्धारित करने की सिफारिश करना तथा इस क्षेत्र विशेष में निजी निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हितधारकों के लिये बेहतर नीतियों का सुझाव देना होगा।

भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग राष्ट्र को समर्पित

· जल्द ही भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग 'चेनानी-नैशारी सुरंग' (9 किलोमीटर लंबी) राष्ट्र को समर्पित कर दी जाएगी।

· एनएच-44 पर बनी यह सुरंग जम्मू को श्रीनगर से जोड़ती है, इस सुरंग के बन जाने से दोनों शहरों के बीच के यात्रा के समय में दो घंटे तक की कमी आएगी।

· यह बर्फ से घिरी ऊपरी सीमाओं को दरकिनार करती है जिससे दोनों शहरों के बीच दूरी 31 किलोमीटर घट जाती है। इससे रोज़ाना करीब 27 लाख रुपए मूल्य के ईंधन की बचत होगी। 

सुरंग की मुख्य विशेषताएँ-

· यह दो निकास/प्रवेश द्वारों वाली एकल मार्ग सुरंग है, जिसका व्यास 5 मीटर है यानी इसकी सतह और छत के बीच 5 मीटर का फासला है।

· इसमें प्रत्येक 300 मीटर के अंतराल पर मुख्य सुरंग को जोड़ने वाले 'क्रॉस पैसेज' के साथ एक समानांतर निकासी वाली सुरंग भी है।

· इसमें एकीकृत यातायात नियंत्रण प्रणाली, निगरानी, वेंटिलेशन, प्रसारण प्रणाली, अग्निशमन प्रणाली के साथ-साथ प्रत्येक 150 मीटर के अंतराल पर एस.ओ.एस. कॉल-बॉक्स जैसी स्मार्ट सुविधाएँ भी हैं।

यह परियोजना 2,500 करोड़ रुपए की लागत से पूरी हुई है।

भारतीय नौसेना के बेड़े से विदाई के लिए तैयार ‘टीयू 142 एम’

· भारतीय नौसेना लम्बी दूरी के समुद्री गश्ती विमान टीयू 142 एम को, राष्ट्र के प्रति इसकी 29 वर्षों की प्रतिबद्ध सेवा के बाद, इसे अवकाश प्रदान करने की तैयारी कर रही है।

· विमान को औपचारिक रूप से 29 मार्च, 2017 को तमिलनाडु में अराक्कोणम स्थित भारत के प्रमुख नौसेना वायु केंद्र आईएनएस राजाली पर आयोजित एक विशेष समारोह में नौसेना अध्यक्ष एडमिरल सुनील लाम्बा, पीवीएसएम, एवीएसएम, एडीसी द्वारा बेड़े से हटाया जाएगा।

· टीयू 142 एम की उत्कृष्ट सेवा के सम्मान में आईएनएस राजाली पर नौसेना अध्यक्ष द्वारा एक टीयू स्टैटिक डिस्प्ले एयरक्राफ्ट का भी उद्घाटन किया जाएगा।

· टीयू 142 एम लांग रेंज मैरीटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट 1998 में पूर्ववर्ती सोवियत संघ से खरीदा गया था और डबोलिम गोआ में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017

· केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति , 2017 को अनुमोदित कर दिया है।

· राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति , 2017 में सभी आयामों - स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का प्रबंधन और वित्त-पोषण करने, विभिन्न क्षेत्रीय कार्रवाई के जरिये रोगों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने,चिकित्सा प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने,मानव संसाधन का विकास करने,चिकित्सा बहुलवाद को प्रोत्साहित करने, बेहतर स्वास्थ्य के लिये अपेक्षित ज्ञान आधार बनाने, वित्तीय सुरक्षा कार्यनीतियाँ बनाने तथा स्वास्थ्य के विनियमन और उत्तरोत्तर आश्वासन के संबंध में स्वास्थ्य प्रणालियों को आकार देने पर विचार करते हुए प्राथमिकताओं का चयन किया गया है।

· इस नीति का उद्देश्य सभी लोगों, विशेषकर अल्पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्द्धन पर बल देते हुए रुग्णता-देखभाल की बजाय आरोग्यता पर ध्यान केन्द्रित करने की अपेक्षा की गई है।

आदित्य नौका: स्वच्छ ऊर्जा के लिये वाईकॉम का नया सत्याग्रह

केरल में कोट्टायम ज़िले के उत्तर-पूर्व में स्थित सत्याग्रह की धरती वाईकॉम ने 12 जनवरी, 2017 को एक बार फिर इतिहास रचा। ध्यातव्य है कि ‘आदित्य’ नाम से भारत की पहली सौर ऊर्जा संचालित नौका सेवा को वाईकॉम तथा थवंक्काडावू के बीच शुरू किया गया है, ‘आदित्य’ नौका का के सम्बन्ध में प्रमुख बिंदु

· सामान्य दिनों में सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली यह नौका 5-6 घंटे की यात्रा करने में सक्षम है।

· उल्लेखनीय है कि 20वीं शताब्दी की शुरुआत के दौरान (1925 से 1930 के बीच) वाईकॉम को सत्याग्रह आयोजन स्थल के रूप में जाना जाता था, जिसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को वाईकॉम मंदिर तक मुक्त आवाजाही प्रदान करना था।

· 9 मार्च, 1925 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा भी सत्याग्रह आन्दोलन के लिये वाईकॉम तक पहुँचने हेतु वाईकॉम नौका घाट का प्रयोग किया गया था।

· ‘आदित्य‘ भारत की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संचालित नौका है, जिसकी क्षमता 75 सीटों की है।

· ध्यातव्य है कि यह नौका 20 मीटर लंबी और 7 मीटर बीम के साथ 3.7 मीटर ऊँची है।

· इसकी एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसका निर्माण लकड़ी और इस्पात की जगह फाइबर से किया गया है।

· नाव की छत पर 78 सोलर पैनल लगाए गए हैं। सोलर पैनल को 20 किलोवाट की 2 इलेक्ट्रिक मोटरों के साथ जोड़ा गया है।

· इसके अतिरिक्त नाव में 700 किलोग्राम की लीथियम आईएन बैटरी लगाई गई है, जिसकी क्षमता 50 किलोवाट की है।

· नौका के ढाँचे को इस तरह से विकसित किया गया है कि रफ्तार 7.5 नॉटिकल/घंटा तक पहुँच सकती है।

भारतीय नौसेना की ‘तारिणी’

18 फरवरी, 2017 की शाम को आईएनएस मंडोवी बोट पूल पर आयोजित होने वाले समारोह में  दूसरी सागर नौका ‘तारिणी’ ( INSV Tarini) को भारतीय नौसेना में शामिल किया जा रहा है । 

समुद्री नौवहन गतिविधियों और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सेना ने विश्व के पहले भारतीय महिला परिनौसंचालन अभियान की परिकल्पना की है। 

· आईएनएसवी तारिणी में 6 सूट हैं। नवनिर्मित आईएनएसवी तारिणी के ट्रायल 30 जनवरी, 2017 को सफलतापूर्वक संपन्न हो गए थे।

· तारिणी में कुल छह पाल लगे हैं जो इसे मुश्किल से मुश्किल हालात में भी सफर तय करने की ताकत देते हैं। 

· ध्यातव्य है कि ‘महादेई’ के बाद 'तारिणी' भारतीय नौसेना की गहरे समंदर में उतर सकने वाली दूसरी सेलबोट अर्थात नौकायन पोत है।

· इसकी तकनीक विकसित करने में महादेई को चलाने का अनुभव खासा काम आया है।

· पिछले साल मार्च में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने तारिणी के निर्माण को प्रारंभ किया था।

· ये नौकायन पोत तय सीमा से पहले बनकर तैयार हुआ है और इसे प्रधानमंत्री के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के लिए उपलब्धि माना जा रहा है।

· इस नौका का डिजाइन ओडिसा के गंजम जिले के प्रसिद्ध तारा तारिणी मंदिर से प्रेरित है।

· ‘तारिणी’ शब्द का अर्थ होता है ‘नौका’ और संस्कृत में इसका मतलब होता है ‘तारने वाली’।

शादियों में फिजूलखर्ची रोकने के लिये विधेयक

गौरतलब है कि शादी-विवाह में फिजूलखर्ची रोकने, मेहमानों की संख्या सीमित करने और समारोह के दौरान परोसे जाने वाले व्यंजनों को सीमित करने के मकसद से एक निजी विधेयक लोक सभा में पेश किया जाएगा। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि जो लोग शादी-ब्याह में 5 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च करते हैं, वे गरीब परिवार की लड़कियों के विवाह में योगदान करेंगे।

विधेयक से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु 

‘द मैरिज बिल 2016’ (अनिवार्य पंजीकरण और बेवज़ह खर्च रोकथाम ) को लोक सभा के आगामी सत्र में निजी विधेयक के रूप में रखा जा सकता है। इस विधेयक का उद्देश्य शादियों पर होने वाले बेवज़ह खर्च को रोकना है और सादगीपूर्ण शादियों को प्रोत्साहित करना है।

· विदित हो कि कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने इस विधेयक को आगे बढ़ाया है, जिसमें शादी पर होने वाले खर्च, मेहमानों को परोसे जाने वाले व्यंजन और मेहमानों की कुल संख्या पर भी बात की गई है।

· विधेयक के अनुसार अगर कोई परिवार शादी पर पाँच लाख से अधिक की राशि खर्च करना चाहता है तो उस परिवार को इसकी घोषणा सरकार के सामने करनी होगी और उस राशि का 10 फीसदी हिस्सा संबंधित कल्याण कोष में देना होगा। ये कल्याण कोष सरकार की ओर से गरीब परिवारों की मदद के लिये बनाए जाएंगे।

· विधेयक के मुताबिक अगर इसे लागू किया जाता है तो हर शादी का पंजीकरण 60 दिनों के भीतर करना अनिवार्य हो जाएगा। इसके अलावा सरकार मेहमान, रिश्तेदार-नातेदारों की संख्या के साथ-साथ शादी और रिसेप्शन पर परोसे जाने वाले व्यंजनों की भी सीमा तय कर सकती है ताकि भोजन की बर्बादी को रोका जा सके।

क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है यह विधेयक?

· शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची आजकल एक परम्परा सी बन गई है जो कि सामाजिक और आर्थिक दोनों ही दृष्टि से एक अवांछनीय कृत्य है।

· सामाजिक तौर पर देखा जाए तो लोगों में शादियों में बेवज़ह खर्च की इस प्रवृत्ति का अनुसरण करने की आदत सी हो गई है। वे खर्च के मामले में एक-दूसरे से होड़ करते हैं, मानो धन-बल प्रदर्शन का ओलंपिक चल रहा हो।

· लोग, शादियों पर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं, नतीजन गरीब परिवारों पर अधिक खर्च करने का सामाजिक दबाव बढ़ता है।

· वहीं आर्थिक तौर पर देखा जाए तो ऐसी शादियों से अर्थव्यवस्था पर बेवज़ह का भार पड़ता है, जहाँ सीमित संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इस पर रोक लगाने की ज़रूरत है।

निष्कर्ष 

अब तक तो सामाजिक जागरूकता के माध्यम से ही लोगों को इस बात के लिये प्रेरित किया जाता था कि वे शादियों में बेवजह का खर्च न करें, और इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं लेकिन एक बड़ा तबका यह दलील देता था कि शादियों में अपनी मर्ज़ी के अनुसार खर्च करना उनका व्यक्तिगत अधिकार है। सच्चाई यह है कि उपयुक्त प्रावधानों के अभाव में उनकी इस दलील को स्वीकार करना ही पड़ता था। यदि यह विधेयक कानून का रूप ले लेता है तो निश्चित ही यह एक बहुत बड़ा सुधार होगा।

इसरो ने किया चमत्कार भेजे 104 उपग्रह

अपनी 39वीं उड़ान में इतिहास रचते हुए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने आज एक ही रॉकेट के माध्यम से रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण करके इतिहास रच दिया है।

· अब तक एक साथ इतने उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किसी भी देश ने नहीं किया है।

· ध्रुवीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी37 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सबसे पहले काटरेसैट-2 श्रेणी के एक उपग्रह को कक्षा में प्रवेश कराया और इसके बाद शेष 103 नैनो उपग्रहों को भी 30 मिनट के अन्दर प्रवेश करा दिया।

· इस अभियान में भेजे गए 104 उपग्रहों में से तीन भारत के हैं, जबकि बाक़ी के 101 सैटेलाइट्स इज़राइल(1 उपग्रह), कज़ाख़्स्तान(1 उपग्रह), नीदरलैंड(1 उपग्रह), स्विटज़रलैंड(1 उपग्रह), यूएई(1 उपग्रह) और अमरीका(96 उपग्रह) के हैं।

· इससे पहले एक अंतरिक्ष अभियान में इतने उपग्रह एक साथ नहीं छोड़े गए हैं। इससे पहले अब तक किसी एक अभियान में सबसे ज़्यादा उपग्रह भेजने का विश्व रिकॉर्ड रूस के नाम था, जिसने 2014 में एक अभियान में 37 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा था।

· जिन देशों के उपग्रहों को इसरो ने प्रक्षेपित किया है, उनमें अमेरिका और इज़रायल के भी उपग्रह शामिल हैं, यह इस बात का द्योतक है कि उपग्रह प्रक्षेपण बाज़ार में भारत तेजी से अपनी जगह बना रहा है।

आंध्रप्रदेश में राष्ट्रीय महिला संसद का शुभारंभ

10 फरवरी, 2017 को आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती में प्रदेश की विधानसभा द्वारा गठित की गई तीन दिवसीय राष्ट्रीय महिला संसद (National Women’s Parliament - NWP) का शुभारंभ किया गया। इस संसद का शीर्षक- “महिलाओं का सशक्तीकरण-लोकतंत्र का सुदृणीकरण” (Empowering Women -Strengthening Democracy) रखा गया है।  

राष्ट्रीय महिला संसद से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

· राष्ट्रीय महिला संसद का उद्देश्य समाज के सभी स्तरों पर महिलाओं के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है।

· राष्ट्रीय महिला संसद का एक उद्देश्य महिला सशक्तिकरण के लिये नए विचारों, अवधारणाओं, संकल्पनाओं और विचारधाराओं को उजागर करने के साथ-साथ उनमें आत्मविश्वास को बढ़ाना है। 

· राष्ट्रीय महिला संसद में ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला प्रतीक’ (International Woman Icon of the World) के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में 12 युवा पुरस्कार प्राप्तकर्ता महिलाओं को भी सम्मानित किया जाएगा।

·  इस संसद के कुल सात पूर्ण सत्र आयोजितय किये जाएंगे। इन सत्रों में निम्नलिखित विषयों जैसे- महिला सशक्तीकरण में सामाजिक एवं राजनीतिक चुनौतियों, महिलाओं की स्थिति और निर्णय करने की क्षमता, अपनी पहचान और भविष्य के सन्दर्भ में उनके दृष्टिकोण आदि पर विचार-विमर्श किया जाएगा। 

· यह आशा की जा रही है कि भारत तथा विदेशों से 91 महिला सांसद, 401 विधायक, 300 सामाजिक व कॉर्पोरेट क्षेत्र की महिलाएँ भी इस राष्ट्रीय महिला संसद में उपस्थित होंगी।

· यह निर्वाचिका सभा विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं जैसे राजनीति, कला एवं संस्कृति, खेल, शिक्षा, उद्यम, मीडिया, सिनेमा, न्यायपालिका और सामाजिक क्षेत्र की महिलाओं के लिये उनकी शिक्षा तथा महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण के क्षेत्र में शोध करने के लिये एक साझा मंच उपलब्ध कराएगी।

जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

· जल्लीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। इस खेल में बैलों के सींगों में सिक्के या नोट फँसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें।

· पिछले कुछ सालों को छोड़ दें तो तमिलनाडु में यह खेल बिना किसी विरोध के आयोजित होता रहा है। तकरीबन 400 साल पुरानी परंपरा वाले इस आयोजन में हर साल लोगों के गंभीर रूप से घायल होने, यहाँ तक कि मरने की खबरें भी आती रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से पशु कल्याण कार्यकर्ता इस खेल में बैलों के साथ होने वाली बर्बरता पर सवाल उठा रहे थे।

· वर्ष 2006 में पशु कल्याण कार्यकर्ताओं द्वारा इस खेल पर प्रतिबंध लगवाने के लिये मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में एक याचिका दायर की गई थी

· इस कानून के बाद दुर्घटनाओं में काफी हद तक कमी आई लेकिन पशु कल्याण कार्यकर्ताओं की मांग तब भी जारी रही कि खेल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। यह मामला मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। इसी बीच 2011 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके बैलों को उन पशुओं की श्रेणी से निकाल दिया जिन्हें मनोरंजन के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।

· फलस्वरूप इसके विरोध में जल्लीकट्टू समर्थकों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। इन सभी मामलों पर आखिरी फैसला मई 2014 में आया जिसके आधार पर इस खेल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।

‘स्वच्छ भारत मिशन’ : आगे की राह

भूमिका

गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में साफ-सफाई और स्वच्छता से संबंधित एक प्रण के तहत अपना शौचालय खुद साफ करने का निर्णय लिया था। गांधीजी के साफ-सफाई से संबंधित इन्हीं आदर्शों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्तूबर 2014 को ‘स्वच्छ भारत मिशन ‘ की शुरुआत की जो महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के दृष्टिकोण की ओर बढ़ा एक और कदम है। 

प्रमुख बिंदु 

· इस मिशन (जो केंद्र सरकार के विशालतम स्वच्छता कार्यक्रम का हिस्सा है) को शहरी तथा ग्रामीण मिशन के रूप में विभाजित किया गया है। 

· इस मिशन का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्तूबर, 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना है।

· स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) की कमान शहरी विकास मंत्रालय को दी गई है और 4041 वैधानिक कस्बों में रहने वाले 377 लाख व्यक्तियों तक स्वच्छता हेतु घर में शौचालय की सुविधा प्रदान करने का काम सौंपा गया है। 

· इसमें पाँच वर्षों में करीब 62009 करोड़ रुपए के व्यय का अनुमान है, जिसमें केन्द्र सरकार 14623 करोड़ रुपए की राशि सहायता के तौर पर उपलब्ध कराएगी। 

· इस मिशन के अंतर्गत 1.04 करोड़ घरों को लाना है जिसके तहत 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना तथा सभी शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा मुहैया करना है।

शहरी मिशन

· शहरी मिशन के तहत खुले में शौच को समाप्त करना, अस्वास्थ्यकर शौचालयों को फ्लश शौचालयों में परिवर्तित करना और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा का विकास करना है। 

· इस मिशन के तहत लोगों को खुले में शौच के हानिकारक प्रभावों, बिखरे कचरे से पर्यावरण को होने वाले खतरों आदि के बारे में शिक्षित कर उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने पर विशेष ज़ोर दिया जाता है। 

· इन उद्देश्यों को पूरा करने में शहरी स्थानीय निकायों का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है, साथ ही इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी ली जा सकती है।           

ग्रामीण मिशन 

· ग्रामीण मिशन, जिसे स्वच्छ भारत (ग्रामीण) के नाम से जाना जाता है, का उद्देश्य 2 अक्तूबर, 2019 तक सभी ग्राम पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त करना है। 

· इस मिशन की सफलता के लिये गाँवों में व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी से क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना भी शामिल है।

· ग्रामीण मिशन के तहत 1 अक्तूबर, 2014 से 1 अगस्त, 2016 तक 210.09 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है। 

· इसी अवधि में स्वच्छता का दायरा 42.05 प्रतिशत से बढ़कर 53.60 प्रतिशत तक पहुँच गया है।

· गाँव के स्कूलों में गन्दगी और मैले की स्थिति को देखते हुए, इस कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं के साथ शौचालयों के निर्माण पर विशेष ज़ोर दिया जाता है। 

· सभी ग्राम पंचायतों में आंगनबाड़ी शौचालय और ठोस तथा तरल कचरे का प्रबंधन इस मिशन की प्रमुख विषय-वस्तु है। 

· नोडल एजेंसियाँ ग्राम पंचायत और घरेलू स्तर पर शौचालय के निर्माण और उपयोग की निगरानी करेंगी।

· ग्रामीण मिशन के तहत 134000 करोड़ की लागत से 11.11 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है।

· व्यक्तिगत घरेलू शौचालय के प्रावधान के तहत, बीपीएल और एपीएल वर्ग के ग्रामीणों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रत्येक शौचालय के लिये क्रमश: 9000 और 3000 का प्रोत्साहन, निर्माण और उपयोग के बाद दिया जाता है। 

· उत्तर-पूर्व के राज्यों, जम्मू-कश्मीर तथा विशेष श्रेणी के क्षेत्रों के लिये यह प्रोत्साहन राशि क्रमश: 10800 और 1200 है।

स्वच्छ भारत मिशन के 6 प्रमुख घटक हैं-

1- व्यक्तिगत घरेलू शौचालय2- सामुदायिक शौचालय3- सार्वजनिक शौचालय4- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन5- सूचना और शिक्षित संचार (आईईसी) और सार्वजनिक जागरूकता6- क्षमता निर्माण  

कार्यान्वयन की नियमित रूप से समीक्षा की जा रही है, परिणाम उम्मीद से अधिक हैं। आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014-15 में 5854987 शौचालयों का निर्माण किया गया, जबकि लक्ष्य 50 लाख शौचालयों का ही था। इसमें निर्धारित लक्ष्य के 117 प्रतिशत तक सफलता हासिल हुई है। 2015-16 में 127.41 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है जो निर्धारित लक्ष्य से 120 लाख ज़्यादा है। 2016-17 में लक्ष्य ₹1.5 करोड़ रखा गया और इसमें 1 अगस्त, 2016 तक 3319451 शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया गया है तथा बाकी के लिये भी तेज़ी से काम चल रहा है।

निष्कर्ष 

इस सफाई अभियान से संबंधित राज्य स्तरीय कार्यशालाओं द्वारा अलग-अलग राज्यों में कार्य किया जा रहा है। केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय उसके प्रतिनिधियों के राज्यों का दौरा करने और समन्वय बैठकों में भाग लेने से बढ़ा है। यह जिलाधिकारियों, सीईओ, जिला पंचायत तथा जिला पंचायत के अध्यक्षों के संयुक्त प्रयासों का प्रतिफल है। हालाँकि,  स्वच्छता की कार्यप्रणाली में क्या व्यावहारिक परिवर्तन हुआ है, अंततः यही मायने रखता है। किन्तु, फिर भी हम कह सकते हैं कि स्वच्छ भारत मिशन सही रास्ते पर अग्रसर है। निश्चित ही,  यह शुरुआत सरकार द्वारा संचालित बहुत से कार्यक्रमों व योजनाओं को समाहित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है । 

केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी

सन्दर्भ

10,000 करोड़ रुपए की लागत वाली केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को पर्यावरण मंजूरी के लिये हरी झंडी मिल गई है। गौरतलब है कि इस परियोजना को हरी झंडी तब मिली है जब सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय प्राधिकार समिति, मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व पर इस परियोजना के प्रतिकूल प्रभावों की जाँचकर  रही है और प्रभावों के न्यूनीकरण के उपायों पर विचार कर रही है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

· विदित हो कि इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना अंतर्गत कुल 5,258 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है जिसमें पन्ना रिज़र्व की 4141 हेक्टेयर भूमि शामिल है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल अगस्त में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी थी और पिछले ही साल 30 दिसम्बर को पर्यावरण वन्य एवं मंत्रालय की नदी घाटी और जल विद्युत परियोजनाओं के लिये विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति द्वारा मंजूरी के लिये सिफारिश की गई थी।

· इसी बीच 2 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट की प्राधिकार समिति ने पर्यावरण वन्य एवं मंत्रालय से कहा था कि वह इस बात की जाँच करना चाहती कि पन्ना टाइगर रिज़र्व में(विशेष रूप से नदी पारिस्थितिकी तंत्र के संबंध में) इस परियोजना के प्रतिकूल प्रभावों के न्यूनीकरण के लिये क्या किया जा रहा है।

· ध्यातव्य है कि पर्यावरण वन्य एवं मंत्रालय ने इस परियोजना से संबंधित दस्तावेज़ प्राधिकार समिति को तब सौंपा था जब पिछले सप्ताह राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी थी। यदि प्राधिकार समिति राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के फ़ैसले से संतुष्ट नहीं होती है तो वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है।

केन-बेतवा परियोजना की लागत अब 18,000 करोड़

· गौरतलब है कि केंद्र सरकार की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना की लागत 9,393 करोड़ रुपये से बढ़कर अब 18,000 करोड़ रुपये होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। विदित हो कि इस परियोजना से वन्यजीवों के पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान की आशंका है और इसके न्यूनीकरण के लिये इस वन्यभूमि को मोड़ना होगा, इस परियोजना के लिये वन्य जीवन, वन और पर्यावरण से संबंधित अलग-अलग स्वतंत्र समितियों द्वारा मंजूरी आवश्यक होगी और ऐसी सम्भावना है कि प्रत्येक समिति अपने प्रभाव आकलन के हिसाब से इस परियोजना की लागत तय करेगी।

· इस परियोजना से जुड़े हुए विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास आदि की मूल्य की लागत का फिर से आकलन करने पर लागत में वृद्धि अवश्य होगी क्योंकि परियोजना की अनुमानित लागत वर्ष 2008-09 के आँकड़ों पर आधारित है और वर्तमान समय में कुल लागत 18,000 करोड़ रुपये तक की हो सकती है।

परियोजना की मुख्य विशेषता

ज्ञात हो कि इस परियोजना की मुख्य विशेषता 230 किलोमीटर लंबी नहर और विभिन्न बैराज और बाँधों की एक श्रृंखला का निर्माण है जो केन और बेतवा नदियों को आपस में जोड़ेंगे। इस उपक्रम से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में 6.35 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलों की सिंचाई सुलभ हो जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 30 लाख गैर-सरकारी संगठनों के ऑडिट का आदेश

सन्दर्भ

वार्षिक लेखा-जोखा न देने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को सिर्फ काली सूची में डालने को अपर्याप्त बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को ऐसे एनजीओ के खिलाफ दीवानी और आपराधिक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही, शीर्ष अदालत ने सरकार को देश भर के करीब 32 लाख गैर-संगठनों के खातों की ऑडिट करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, न्यायालय ने सरकार से ऑडिट रिपोर्ट पेश करने के लिये भी कहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

मुख्य न्यायमूर्ति जे.ए.स खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा सार्वजनिक कोष की अनियमितता में शामिल होने और वार्षिक लेखा-जोखा न देने वाले एनजीओ को सिर्फ काली सूची में डालना पर्याप्त नहीं है। पीठ ने सरकार को ऐसे एनजीओ के खिलाफ कोष की अनियमितता और रकम की वसूली की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

· पीठ ने कहा कि गैर-सरकारी संगठनों को मिलने वाला फंड वास्तव में आम लोगों का पैसा होता है, लिहाजा इसके दुरुपयोग की इजाज़त कतई नहीं दी जा सकती, अतः प्रत्येक एनजीओ को अपना वार्षिक लेखा-जोखा देना ज़रूरी है।

· न्यायालय ने एनजीओ को मिलने वाले सरकारी फंड की निगरानी के लिये प्रभावी तंत्र न बनाने पर केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई है। गौरतलब है कि इस समय देश भर में करीब 33 लाख एनजीओ हैं, जिनमें से केवल तीन लाख एनजीओ ने ही अपना ऑडिटेड लेखा-जोखा सरकार के पास जमा किया है।

· न्यायालय ने सरकार से यह भी कहा कि एनजीओ की मान्यता के लिये वह नियम बनाए तथा उनके एकाउंट्स आदि का प्रबंधन करने के लिये दिशानिर्देश तय करे और न्यायालय को इसकी जानकारी दे।

· गौरतलब है कि एनजीओ के ऑडिट की निगरानी के लिये देश में अभी तक किसी भी तंत्र का गठन नहीं किया गया है।

20 वर्षों में पहली बार हरियाणा में लिंगानुपात 900 अंकों के स्तर पर पहुँचा

पृष्ठभूमि

जनवरी 2015 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा के पानीपत ज़िले में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक अत्यंत महत्त्वाकांक्षी अभियान “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” (Beti Bachao, Beti Padhao-B3P) का शुभारंभ किया था। दरअसल, हरियाणा हमेशा से अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता तथा विषम लिंगानुपात के जाना जाता रहा है, लेकिन इस अभियान के आरंभ होने के ठीक दो वर्षों के बाद हरियाणा का लिंगानुपात का स्तर वर्ष 2015 के 876 से बढ़कर वर्ष 2016 में 900 तक पहुँच गया है। 

प्रमुख बिंदु 

· प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान के शुभारंभ के लिये हरियाणा को चुने जाने का प्रमुख कारण देश में सबसे कम लिंगानुपात वाले इस राज्य में लिंगानुपात के स्तर में सुधार लाना था।

· ध्यातव्य है कि दिसंबर 2016 में हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात (sex ratioat birth) 914 दर्ज किया गया है।

· स्पष्ट है कि यह एतिहासिक बदलाव, अवैध रूप से की जाने वाली लिंग-जाँच एवं कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध प्रभावी नियम-कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करके ही संभव हो सका है।  

बहुआयामी रणनीति

· गौरतलब है कि राज्य के सभी ज़िलों एवं संबंधित सरकारी विभागों की मज़बूत इच्छा शक्ति तथा समन्वित राजनैतिक प्रयासों के बलबूते ही इस लक्ष्य को साधा जा सका है। 

· इस अभियान की निगरानी के लिये मुख्यमंत्री कार्यालाय द्वारा एक विशेष बीबीबीपी सेल (special B3P cell) निर्मित की गई है।

· साथ ही, मुख्यमंत्री द्वारा प्रत्येक माह राज्य के सभी उपायुक्तों (Deputy Commissioners) के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम की प्रगति की जानकारी ली गई।

· इसके अतिरिक्त, मुख्यमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव द्वारा एक सामाजिक मीडिया समूह का संचालन भी किया गया। इस समूह के गठन का उद्देश्य, उक्त कार्यक्रम से संबंधित सभी प्रकार की सूचनाओं को साझा करना और इसके लिये युग्मित रूप से आवश्यक सार्थक प्रयासों को क्रियान्वित करना था। 

· इस मीडिया समूह ने न केवल राज्य के सभी ज़िलों को कार्यक्रम से संबंधित अनुभवों को साझा करने के लिये एक मंच प्रदान किया, बल्कि सभी ज़िलों के मध्य एक स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को भी जन्म दिया। इसका परिणाम राज्य में लिंगानुपात के स्तर में बढ़ोतरी के रूप में देखने को मिला है। 

संबंधित कानून का क्रियान्वयन 

· कार्यक्रम की रणनीति के एक हिस्से के रूप में राज्य द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही करते हुए गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 [Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques  (PCPNDT) Act, 1994] तथा मेडिकल टर्मिनल ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम (Medical Terminal of Pregnancy Act -MTP) के अंतर्गत वर्णित प्रावधानों के सख्त कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया गया।

· इसका परिणाम यह हुआ कि कार्यक्रम आरंभ शुरू होने के महज़ 5 महीने के समयांतराल में यानी मई 2015 तक केवल हरियाणा में लिंग जाँच के तकरीबन 391 मामले दर्ज किये गए और 1000 से अधिक दोषियों को गिरफ्तार भी किया गया।

· यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि लिंग जाँच के कुछ मामलों में डॉक्टर, सहयोगी स्टाफ तथा नीम हकीम भी अवैध रूप से शामिल पाए गए, जबकि कुछ मामलों में बड़े-बड़े राजनेता भी इसमें शामिल पाए गए। 

· गौरतलब है की गर्भावस्था के शुरुआती चार महीनों में ही अधिकतर लिंग आधारित गर्भपात संचालित किये जाते हैं। 

ध्यातव्य है कि इस कार्यक्रम के सफल संचालन हेतु नियमित रूप से बैठकें आयोजित की गईं, नुक्कड़ नाटकों का आयोजन करने के साथ-साथ शहरों एवं गाँवों में रैलियाँ एवं सभाओं का भी सफल आयोजन किया गया।

चुनौतियाँ: हालाँकि, वर्तमान में इस कार्यक्रम के सफल संचालन में हरियाणा के समीप दिल्ली, राजस्थान, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में अवैध रूप से पनपते अल्ट्रासाउंड केंद्र (ultrasound centres) मुख्य चुनौती बनकर उभर रहे हैं।

· इस संबंध में हरियाणा सरकार द्वारा पिछले एक वर्ष में 74 अंतर्राज्यीय छापे (तकरीबन 37 अकेले उत्तर प्रदेश में) भी मारे गए हैं। 

मनरेगा के लिये आधार की अनिवार्यता

पृष्ठभूमि

1 अप्रैल, 2017 से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme -MGNREGS) के अंतर्गत एक वर्ष में 100 दिन के कार्य के लिये केवल उन्ही कामगारों को पंजीकृत किया जाएगा जिनके पास आधार कार्ड मौजूद है। अब, मनरेगा के तहत पंजीकृत होने के लिये व्यक्ति के पास आधार नम्बर होना अनिवार्य है। 

प्रमुख बिंदु

· केन्द्रीय सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ऐसे लोग जिनका इस योजना के अंतर्गत पंजीयन हुआ है, उन्हें इस वर्ष 31 मार्च तक आधार अथवा नामांकन प्रक्रिया का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। 

· हालाँकि, आधार कार्ड प्राप्त होने तक राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, मतदाता पहचान-पत्र, फोटो सहित किसान पासबुक, मनरेगा के अंतर्गत जारी किये जाने वाले रोज़गार कार्ड तथा किसी राजपत्रित अधिकारी अथवा तहसीलदार द्वारा जारी किये गए किसी अन्य प्रमाण-पत्र को भी मनरेगा के तहत प्राप्त होने वाले लाभों के सन्दर्भ में पहचान-पत्र के तौर पर स्वीकार किया जाएगा।

· ऐसे लोग जिन्होंने आधार हेतु नामांकन किया है, वे बारह अंकीय विशिष्ट पहचान संख्या (12-digit unique identification number) की अपनी नामांकन स्लिप अथवा आवेदन की एक कॉपी को भी पहचान के तौर पर प्रस्तुत कर सकते हैं। यह बारह अंकीय विशिष्ट पहचान संख्या देश में कहीं भी पहचान और पते के प्रमाण के रूप में कार्य करेगी।

· हाल ही में भारत सरकार ने आधार अधिनियम, 2016 की धारा 7 को लागू किया है, जिसके अंतर्गत यह शासनादेश जारी किया गया है कि जब केंद्र सरकार, भारत की संचित निधि से कोई सब्सिडी, लाभ अथवा सेवा प्रदान करती है, तो लाभ प्राप्तकर्ता से आधार के प्रमाणीकरण का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिये कह सकती है। 

· विदित हो कि मनरेगा के लिये किया जाने वाला व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होता है। वर्तमान में (वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिये) मनरेगा के तहत कुल 38,500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।

· स्पष्ट है कि मनरेगा के तहत आधार कार्ड को अनिवार्य बनाए जाने से सब्सिडी के रिसाव को रोकने तथा यह सुनिश्चित करने में कि इस योजना के तहत प्रदत्त लाभ उचित व्यक्ति तक पहुँच पा रहे हैं अथवा नहीं, की खोजबीन करने एवं आधार से संबद्ध प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना के सटीक कार्यान्वयन में सफलता प्राप्त होने की आशा व्यक्त की जा रही है। 

· ध्यातव्य है कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Tranfer - DBT) योजना का प्रमुख लक्ष्य, कल्याणकारी योजनाओं के तहत होने वाली गड़बड़ी को रोकना है। दरअसल, डीबीटी के तहत कल्याणकारी योजनाओं से संबद्ध सभी लाभार्थियों के बैंक खाते में प्रत्यक्ष लाभ (धन) को हस्तांतरित कर दिया जाता है। 

· कुछ समय पहले ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation - EPFO) के तकरीबन 50 लाख पेंशनभोगियों तथा चार करोड़ ग्राहकों के लिये आधार संख्या अथवा प्रमाण को उपलब्ध कराना अनिवार्य बनाया गया है।

तेलंगाना और असम “उदय” योजना में शामिल

3 जनवरी, 2017 को तेलंगाना और असम ने “उदय” (Ujwal Discom Assurance Yojna - UDAY) योजना के समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। इन राज्यों के साथ ही तमिलनाडु ने भी 6 जनवरी, 2017 को इस योजना में शामिल होने के लिये सहमति दे दी है। अब, 9 जनवरी को तमिलनाडु विद्युत वितरण कंपनी TANGENDCO द्वारा समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाने हैं। उपर्युक्त राज्यों के इस योजना में शामिल हो जाने से इस के अंतर्गत शामिल राज्यों की कुल संख्या 21 हो जाएगी।  तमिलनाडु के योजना में  शामिल हो जाने से अब इस योजना के अंतर्गत शामिल सभी राज्य कुल डिस्कॉम ऋण का  90% ऋण चुकता करेंगे।

· नवीन और न्वीकरानीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार, इस योजना में शामिल किये जाने पर तेलंगाना और असम को क्रमशः लगभग 6116 करोड़ और 1663 करोड़ रुपए का लाभ होगा। वस्तुतः इस योजना का मुख्य लक्ष्य राज्य द्वारा संचालित विद्युत वितरण कंपनियों के कार्य-निष्पादन को बेहतर बनाना है।

· उदय योजना के तहत तेलंगाना सरकार को कुल डिस्कॉम ऋण 11,897 करोड़ में से  8923 करोड़ वहन करना होगा।

· असम सरकार को कुल डिस्कॉम ऋण 1510 करोड़ में से 928 करोड़ वहन करना होगा (जैसा कि उदय योजना में उल्लिखित है कि योजना के अंतर्गत शामिल राज्य सरकार को 30 सितम्बर, 2015 तक के  अपने बकाया डिस्कॉम ऋण का 75 % वहन करना  होगा )।

· तमिलनाडु सरकार विद्युत वितरण कंपनी के कुल बकाया ऋण 80,000 करोड़ के 75% का भुगतान करेगी।  

· इससे तेलंगाना और असम को प्रतिवर्ष ब्याज भुगतान में क्रमशः 387 करोड़ और 37 करोड़ रुपए की बचत होगी।

· भविष्य में लिये गए  ऋण पर इन राज्यों के लिये  ब्याज दर में कटौती का प्रावधान किया  गया है ।

· तेलंगाना के सन्दर्भ में, यदि वह समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक हानि (AT&C)  और संचार हानि (transmission loss) में उसे दी गई समयावधि में क्रमशः 9.95% और 3% कटौती करने में कामयाब होता है, तो उसे 1476 करोड़ के अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी। इसी तरह, यदि असम क्रमशः 15% और 3.4% कटौती करने में कामयाब होता है तो उसे 669 करोड़ प्राप्त होंगे।

· सरकार ने डिस्कॉम के कार्य में पारदर्शिता लाने के लिये उदय पोर्टल और मोबाइल एप भी लॉन्च किया  है।  

उदय योजना 

· 5 नवम्बर, 2015 को शुरू की गई यह भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसका लक्ष्य भारत की विद्युत् वितरण कंपनियों का आर्थिक पुनरुत्थान करना तथा विद्युत वितरण की समस्या का  सतत् और स्थायी हल सुनिश्चित करना है। योजना के अनुसार, राज्य सरकारों को डिस्कॉम के पुराने क़र्ज़ को अपने ऊपर लेना है, यानी इस योजना के तहत डिस्कॉम के घाटे  को राज्य सरकार ही वहन करेगी।

· केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2015-16 और 2016-17 के अंतर्गत संबंधित राज्य के होने वाले राजकोषीय घाटे में डिस्कॉम के उस पुराने ऋण को शामिल नहीं करेगी जिसे राज्य सरकार द्वारा योजनानुसार वहन किया जाना है। भारत में वितरण प्रणाली के उचित रूप में कार्य न कर पाने के कारण वितरण कंपनियाँ  3.8 लाख करोड़  रुपए के घाटे के साथ लगभग 4.3 लाख करोड़ के क़र्ज़ में हैं। जब तक डिस्कॉम ब्यापक रूप से व सस्ती दरों पर विद्युत उर्जा देने में सफल नहीं हो जाता है, तब तक ऊर्जा क्षेत्र में अत्मनिर्भरता, गॉंवों में 100% विद्युतीकरण 24×7  बिजली  और स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया  जा सकता है ।

· उदय योजना का मुख्य लक्ष्य परिचालन कौशल  में सुधार  करते हुए बिजली की लागत में कमी लाना है।

पृथ्वी-2 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण

ओडिशा में बालासोर जिले के चांदीपुर समेकित परीक्षण रेंज (आईटीआर) से पृथ्वी-2 मिसाइल का 21 नवंबर को सफल परीक्षण किया गया। रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित पृथ्वी-2 मिसाइल का प्रक्षेपण परिसर-3 से एक मोबाइल लॉन्चर से किया गया। इस मिसाइल के इसी प्रकार के दो परीक्षण 12 अक्टूबर, 2009 को भी किए गए थे, जो कि सफल रहे थे। विदित हो कि इसे 2003 में भारतीय सेना में शामिल किया जा चुका है।प्रमुख विशेषताएँ

· यह पहली मिसाइल है जिसे डीआरडीओ ने 'इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम' के तहत तैयार किया था।

· यह बैलिस्टिक मिसाइल सतह से सतह पर 350 किलोमीटर तक निशाना साध सकती है।

· यह अपने साथ 500 से 1000 किलोग्राम का भार ले जाने में सक्षम है।

· इसे तरल और ठोस दोनों तरह के  ईंधन से संचालित किया जा सकता है।

· यह मिसाइल परंपरागत और परमाणु, दोनों तरह के हथियार ले जाने में सक्षम है।

· यह मिसाइल 8.56 मीटर लंबी,1.1 मीटर चौड़ी है.

· इसका वजन 4,600 किलोग्राम है.

· यह मिसाइल 43.5 किमी की ऊंचाई तक उड़ान भर सकती है।

स्वदेशी ड्रोन रुस्तम-2 का पहला परीक्षण सफल

चर्चा का विषय: देश के सबसे बड़े मानव रहित युद्धक विमान (Unmanned Combat Aerial Vehicle-UCAV) रुस्तम-2 का पहला परीक्षण सफलरक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने देश के सबसे बड़े मानव रहित लड़ाकू विमान रुस्तम-2 का पहला सफल परीक्षण पूरा कर लिया है। हाल ही में बेंगलूरु से लगभग 200 किलोमीटर दूर चित्रदुर्ग जिले के चल्लकेरे स्थित साइंस सिटी में यह परीक्षण किया गया जो कि सभी मानदंडों पर खरा उतरा।

· चित्रदुर्ग में बनाई गई एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज मानवरहित यानों और मानव विमानों के परीक्षण के लिए नवविकसित उड़ान परीक्षण स्थल है।

रुस्तम-2 का विकास  

· रुस्तम-2 का विकास डीआरडीओ की अनुषंगी इकाई वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (Aeronautical Development Establishment-ADE) ने किया है।

· रूस्तम-2 परियोजना में डीआरडीओ के साथ भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स भी शामिल हैं।

· मध्यम ऊंचाई पर लंबे समय तक उड़ान भरने वाले इस टोही विमान का पहला उड़ान परीक्षण हालांकि, 2013 में ही करने की समय सीमा निर्धारित की गई थी, लेकिन यह लगभग 3 साल की देरी से पहली बार आसमान की ऊंचाइयों को छू सका। 

· भारतीय सशस्त्र बल मानव रहित लड़ाकू वाहनों के लिए अन्य देशों पर निर्भर हैं और इस संदर्भ में इजरायली कंपनी के साथ समझौता भी हुआ है।

· भारत इसके साथ ही अमेरिका का प्रचलित प्रिडेटर्स ड्रोन खरीदने पर भी विचार कर रहा है। 

रुस्तम-2 की विशेषताएं    

· रुस्तम-2 में उड़ान भरने और लैंड करने के लिए स्वचालित प्रणाली है और यह विश्व के समकालीन ड्रोन विमानों की तुलना में कहीं बेहतर है।

· इस विमान में अन्य महत्वपूर्ण चीजों के अलावा सिंथेटिक अपर्चर राडार, मेरीटाइम पेट्रोल राडार व टक्कर रोधी प्रणाली भी है।

· यह दुश्मनों के इलाके की टोह लेने से लेकर लक्ष्य की पहचान करने उसे भेदने में सक्षम है।

· रुस्तम-2 के एयरफ्रेम का वजन वर्ष 2015 के अंत तक 2400 किलोग्राम था जिसे घटाकर 1700 करने की चुनौती है।

· यह कम ऊंचाई पर उड़ते हुए दुश्मन को निशाना बना सकता है।

· इस विमान के पंख 20 मीटर के हैं और अन्य विमानों के विपरीत इसे उड़ान भरने के लिए केवल हवाई पट्टी की जरूरत होगी।

· यह 24-30 घंटों की लगातार उड़ान भर सकता है।

· यह 500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है और दुश्मन की नजर में भी नहीं आता।

· ये टोही व निगरानी क्षमता के साथ-साथ लक्ष्य पर सटीक मार करने में भी सक्षम है और इसकी रेंज करीब 250 किलोमीटर है. 

· सिंथेटिक अपर्चर राडार होने के कारण यह बादलों के पार भी देख सकता है और 30 हजार फीट ऊंचाई पर आसानी से उड़ान भर सकता है.

· यूएवी में सेंसर फ्यूजन होता है जो विभिन्न सेंसरों की जानकारी एकत्र करता है।

· अमेरिका और इजरायल इस तकनीक के विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते है।

सतलुज-यमुना संपर्क नहर पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय हरियाणा के पक्ष में

सतलुज यमुना संपर्क (Sutlej-Yamuna Link-SYL) नहर मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 10 नवंबर को सुनाए फैसले में कहा कि किसी राज्य सरकार को राज्यों के बीच के जल-बंटवारा समझौते को रद्द करने का अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के रेफरेंस पर दी गई राय में कहा कि जल बंटवारा समझौता रद्द करने वाला पंजाब का कानून 2004 असंवैधानिक है। 

· पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि मुकदमे और समझौते में पक्षकार राज्य एकतरफा कानून पारित कर समझौता और सर्वोच्च न्यायालय का फैसला रद्द नहीं कर सकता। पंजाब ने ऐसा करके अपनी विधायी शक्तियों का अतिक्रमण किया है।

न्यायमूर्ति ए.आर. दवे, पी.सी. घोष, शिव कीर्ति सिंह, आदर्श कुमार गोयल व अमिताव राय की संविधान पीठ ने पंजाब के टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 की संवैधानिकता के बारे में राष्ट्रपति की ओर से भेजे गये रेफरेंस का जवाब देते हुए अपनी यह राय दी। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 22 जुलाई 2004 को सर्वोच्च न्यायालय को रेफरेंस भेज कर निम्नलिखित चार कानूनी सवालों पर राय मांगी थी। 

राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए चार प्रश्न 

1. क्या पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 व उसके प्रावधान संवैधानिक हैं? 

2. क्या पंजाब के इस कानून के प्रावधान अंतर राज्यीय जल विवाद कानून 1956 की धारा 14 और पंजाब पुनर्गठन कानून 1966 की धारा 78 तथा केंद्र सरकार की 24 मार्च 1976 की अधिसूचना के अनुकूल हैं?

3. क्या रावी ब्यास नदी के जल बंटवारे संबंधी 31 दिसंबर 1981 के समझौते को रद करने वाला और पंजाब को दायित्व से मुक्त करने वाला पंजाब का यह 2004 �