रामचिरतमानस - lakshmi...

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रामचिरतमानस - 1 - लंकाकांड Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org गोवामी तुलसीदास िवरिचत रामचिरतमानस लंकाकाड

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  • रामचिरतमानस - 1 - लंकाकांड

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    गोस्वामी तलुसीदास िवरिचत

    रामचिरतमानस

    लंकाकाण्ड

    http://www.swargarohan.org/Ramayana/Ramcharitmanas.htm

  • रामचिरतमानस - 2 - लंकाकांड

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    ीगणेशाय नमः

    ीरामचिरतमानस ष सोपान

    लंकाकाण्ड

    ोक

    रामं कामािरसेव्यं भवभयहरणं कालम ेभिसंहं योगीन् ं ज्ञानगम्यं गुणिनिधमिजतं िनगुर्णं िनिवर्कारम। मायातीतं सुरेशं खलवधिनरतं वनृ्दैकदेवं वन्दे कन्दावदातं सरिसजनयनं देवमुव शरूपम ॥ १ ॥

    शंखेन् ाभमतीवसुन्दरतनंु शादर्लचमार्म्बरं ू कालव्यालकरालभषूणधरं गंगाशशांकि यम। काशीशं किलकल्मषौघशमनं कल्याणकल्प मं ु नौमीड्यं िगिरजापितं गुणिनिधं कन्दपर्हं शङ्करम ॥ २ ॥

    यो ददाित सतां शम्भुः कैवल्यमिप दलर्भम। ु खलानां दण्डकृ ोऽसौ शङ्करः श ं तनोतु मे ॥ ३ ॥

    दोहा

    लव िनमेष परमानु जगु बरष कलप सर चंड। भजिस न मन तेिह राम को कालु जासु कोदंड ॥

    सोरठा िसंधु बचन सिुन राम सिचव बोिल भु अस कहेउ। अब िबलंबु केिह काम करह सेतु उतरै कटकु ॥ु

    सनुह भानुकुल केतु जामवंत कर जोिर कह।ु नाथ नाम तव सेतु नर चिढ़ भव सागर तिरिहं ॥

  • रामचिरतमानस - 3 - लंकाकांड

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    यह लघु जलिध तरत कित बारा। अस सिुन पुिन कह पवनकुमारा ॥ भु ताप बड़वानल भारी। सोषेउ थम पयोिनिध बारी ॥ १ ॥ तब िरपु नारी रुदन जल धारा। भरेउ बहोिर भयउ तेिहं खारा ॥ सिुन अित उकुित पवनसुत केरी। हरषे किप रघुपित तन हेरी ॥ २ ॥ जामवंत बोले दोउ भाई। नल नीलिह सब कथा सुनाई ॥ राम ताप सुिमिर मन माहीं। करह सेतु यास कछ नाहीं ॥ ु ु ३ ॥ बोिल िलए किप िनकर बहोरी। सकल सुनह िबनती ु कछ मोरी ॥ ु राम चरन पंकज उर धरह। कौतुक एक भालु किप करह ॥ू ू ४ ॥ धावहु मकर् ट िबकट बरूथा। आनह िबटप िगिरन्ह के जूथा ॥ ु सिुन किप भालु चले किर हहा। जयू रघुबीर ताप समूहा ॥ ५ ॥

    दोहा

    अित उतंग िगिर पादप लीलिहं लेिहं उठाइ। आिन देिहं नल नीलिह रचिहं ते सेतु बनाइ ॥ १ ॥

    सैल िबसाल आिन किप देहीं। कंदक इव नल नील तेु लेहीं ॥ देिख सेतु अित संुदर रचना। िबहिस कृपािनिध बोले बचना ॥ १ ॥ परम रम्य उ म यह धरनी। मिहमा अिमत जाइ निहं बरनी ॥ किरहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना ॥ २ ॥ सिुन कपीस बह दत पठाए। मुिनबर सकल ु ू बोिल लै आए ॥ िलंग थािप िबिधवत किर पूजा। िसव समान ि य मोिह न दजा ॥ ू ३ ॥ िसव ोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहँ मोिह न पावाु ॥ सकंर िबमुख भगित चह मोरी। सो नारकी मढ़ू मित थोरी ॥ ४ ॥

    दोहा

    सकंर ि य मम ोही िसव ोही मम दास। ते नर करिह कलप भिर धोर नरक महँ बास ॥ ु २ ॥

    जे रामेस्वर दरसनु किरहिहं। ते तनु तिज मम लोक िसधिरहिहं ॥ जो गंगाजलु आिन चढ़ाइिह। सो साजजु्य मिु नर पाइिह ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 4 - लंकाकांड

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    होइ अकाम जो छल तिज सेइिह। भगित मोिर तेिह संकर देइिह ॥ मम कृत सेतु जो दरसनु किरही। सो िबनु म भवसागर तिरही ॥ २ ॥ राम बचन सब के िजय भाए। मुिनबर िनज िनज आ म आए ॥ िगिरजा रघुपित कै यह रीती। सतंत करिहं नत पर ीती ॥ ३ ॥ बाँधा सेतु नील नल नागर। राम कृपाँ जसु भयउ उजागर ॥ बूड़िहं आनिह बोरिहं जेई। भए उपल बोिहत सम तेई ॥ ४ ॥ मिहमा यह न जलिध कइ बरनी। पाहन गुन न किपन्ह कइ करनी ॥५॥

    दोहरा

    ी रघुबीर ताप ते िसंधु तरे पाषान। ते मितमंद जे राम तिज भजिहं जाइ भु आन ॥ ३ ॥

    बाँिध सेतु अित सुदृढ़ बनावा। देिख कृपािनिध के मन भावा ॥ चली सेन कछ बरिन नु जाई। गजर्िहं मकर् ट भट समुदाई ॥ १ ॥ सेतुबंध िढग चिढ़ रघुराई। िचतव कृपाल िसंधु बहताईु ॥ देखन कहँ भु करुना कंदा। गट भए सब जलचर बृंदा ॥ ु २ ॥ मकर न नाना झष ब्याला। सत जोजन तन परम िबसाला ॥ अइसेउ एक ितन्हिह जे खाहीं। एकन्ह कें डर तेिप डेराहीं ॥ ३ ॥ भुिह िबलोकिहं टरिहं न टारे। मन हरिषत सब भए सुखारे ॥ ितन्ह की ओट न देिखअ बारी। मगन भए हिर रूप िनहारी ॥ ४ ॥ चला कटकु भु आयसु पाई। को किह सक किप दल िबपुलाई ॥ ५ ॥

    दोहरा

    सेतुबंध भइ भीर अित किप नभ पंथ उड़ािहं। अपर जलचरिन्ह ऊपर चिढ़ चिढ़ पारिह जािहं ॥ ४ ॥

    अस कौतुक िबलोिक ौ भाई। िबहँिस चले कृपाल रघुराई ॥ सेन सिहत उतरे रघुबीरा। किह न जाइ किप जूथप भीरा ॥ १ ॥ िसंध ु पार भ ु डेरा कीन्हा। सकल किपन्ह कहँ आयसु दीन्हा ॥ु खाह जाइ फल मूल सहुाए। सुनत भाल ुकिप जहँ तहँ धाए ॥ु २ ॥

  • रामचिरतमानस - 5 - लंकाकांड

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    सब तरु फरे राम िहत लागी। िरतु अरु कुिरतु काल गित त्यागी ॥ खािहं मधुर फल बटप हलाविहं। लंका सन्मुख िसखर चलाविहं ॥ ३ ॥ जहँ कहँ िफरत िनसाु चर पाविहं। घेिर सकल बहु नाच नचाविहं ॥ दसनिन्ह कािट नािसका काना। किह भु सुजसु देिहं तब जाना ॥ ४ ॥ िजन्ह कर नासा कान िनपाता। ितन्ह रावनिह कही सब बाता ॥ सनुत वन बािरिध बंधाना। दस मुख बोिल उठा अकुलाना ॥ ५ ॥

    दोहा

    बांध्यो बनिनिध नीरिनिध जलिध िसंधु बारीस। सत्य तोयिनिध कंपित उदिध पयोिध नदीस ॥ ५ ॥

    िनज िबकलता िबचािर बहोरी। िबहँिस गयउ ह किर भय भोरी ॥ मदंोदरीं सुन्यो भु आयो। कौतुकहीं पाथोिध बँधायो ॥ १ ॥ कर गिह पितिह भवन िनज आनी। बोली परम मनोहर बानी ॥ चरन नाइ िसरु अंचलु रोपा। सनुह बचन िपय पिरहिरु कोपा ॥ २ ॥ नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुिध बल सिकअ जीित जाही सों ॥ तुम्हिह रघुपितिह अंतर कैसा। खल ु ख ोत िदनकरिह जैसा ॥ ३ ॥ अितबल मधु कैटभ जेिहं मारे। महाबीर िदितसतु संघारे ॥ जेिहं बिल बाँिध सहजभुज मारा। सोइ अवतरेउ हरन मिह भारा ॥ ४ ॥ तासु िबरोध न कीिजअ नाथा। काल करम िजव जाकें हाथा ॥

    दोहरा

    रामिह सौिप जानकी नाइ कमल पद माथ। सतु कहँ राज समिपर् बन जाइ भिजअ रघुनाथ ॥ ु ६ ॥

    नाथ दीनदयाल रघुराई। बाघउ सनमुख गएँ न खाई ॥ चािहअ करन सो सब किर बीते। तुम्ह सरु असुर चराचर जीते ॥ १ ॥ सतं कहिहं अिस नीित दसानन। चौथेंपन जाइिह नपृ कानन ॥ तासु भजन कीिजअ तहँ भतार्। जो कतार् पालक संहतार् ॥ २ ॥ सोइ रघुवीर नत अनुरागी। भजह नाथ ममता सब त्यागी ॥ ु

  • रामचिरतमानस - 6 - लंकाकांड

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    मिुनबर जतनु करिहं जेिह लागी। भूप राज ुतिज होिहं िबरागी ॥ ३ ॥ सोइ कोसलधीस रघुराया। आयउ करन तोिह पर दाया ॥ जौं िपय मानह मोर िसखावन। सुजु सु होइ ितहँ पुर अित पावन ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    अस किह नयन नीर भिर गिह पद कंिपत गात। नाथ भजह रघुनाथिह अचल होइ अिहवात ॥ ु ७ ॥

    तब रावन मयसतुा उठाई। कहै लाग खल िनज भुताई ॥ सनुु तै ि या बथृा भय माना। जग जोधा को मोिह समाना ॥ १ ॥ बरुन कुबेर पवन जम काला। भजु बल िजतेउँ सकल िदगपाला ॥ देव दनुज नर सब बस मोरें। कवन हेतु उपजा भय तोरें ॥ २ ॥ नाना िबिध तेिह कहेिस बुझाई। सभाँ बहोिर बैठ सो जाई ॥ मदंोदरीं हदयँ अस जाना। काल बस्य उपजा अिभमाना ॥ ३ ॥ सभाँ आइ मिं न्ह तेंिह बूझा। करब कवन िबिध िरपु सैं जूझा ॥ कहिहं सिचव सुनु िनिसचर नाहा। बार बार भु पूछह काहा ॥ ु ४ ॥ कहह कवन भय किरअ िबचारा। नर किप भालु अहार हमारा ॥ ु ५ ॥

    दोहा

    सब के बचन वन सुिन कह हस्त कर जोिर। िनित िबरोध न किरअ भ ु मि ंन्ह मित अित थोिर ॥ ८ ॥

    कहिहं सिचव सठ ठकुरसोहाती। नाथ न पूर आव एिह भाँती ॥ बािरिध नािघ एक किप आवा। तासु चिरत मन महँ सबु गावा ॥ ु १ ॥ छधा न रही तुम्हिह तब काह। जारत नगरु कस न धिरु ू खाह ॥ ू सनुत नीक आगें दख पावा। सिचवन अस मत भुिह सुनावा ॥ ु २ ॥ जेिहं बारीस बँधायउ हेला। उतरेउ सेन समेत सुबेला ॥ सो भनु मनुज खाब हम भाई। बचन कहिहं सब गाल फुलाई ॥ ३ ॥ तात बचन मम सुनु अित आदर। जिन मन गुनह मोिह किर कादर ॥ ु ि य बानी जे सुनिहं जे कहहीं। ऐसे नर िनकाय जग अहहीं ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 7 - लंकाकांड

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    बचन परम िहत सुनत कठोरे। सुनिहं जे कहिहं ते नर भ ु थोरे ॥ थम बसीठ पठउ सुनु नीती। सीता देइ करह पुिन ीती ॥ ु ५ ॥

    दोहा

    नािर पाइ िफिर जािहं जौं तौ न बढ़ाइअ रािर। नािहं त सन्मखु समर मिह तात किरअ हिठ मािर ॥ ९ ॥

    यह मत जौं मानह भु मोरा। उभय कार सुजसु जग तोरा ॥ ु सतु सन कह दसकंठ िरसाई। अिस मित सठ केिहं तोिह िसखाई ॥ १ ॥ अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई ॥ सिुन िपतु िगरा परुष अित घोरा। चला भवन किह बचन कठोरा ॥ २ ॥ िहत मत तोिह न लागत कैसें। काल िबबस कहँ भेषज जसैें ॥ ु सधं्या समय जािन दससीसा। भवन चलेउ िनरखत भुज बीसा ॥ ३ ॥ लकंा िसखर उपर आगारा। अित िबिच तहँ होइ अखारा ॥ बैठ जाइ तेही मंिदर रावन। लागे िकंनर गुन गन गावन ॥ ४ ॥ बाजिहं ताल पखाउज बीना। नतृ्य करिहं अपछरा बीना ॥ ५ ॥

    दोहा

    सनुासीर सत सिरस सो संतत करइ िबलास। परम बल िरपु सीस पर त िप सोच न ास ॥ १० ॥

    इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सिहत अित भीरा ॥ िसखर एक उतंग अित देखी। परम रम्य सम सु िबसेषी ॥ १ ॥ तहँ तरु िकसलय सुमन सुहाए। लिछमन रिच िनज हाथ डसाए ॥ ता पर रूिचर मदृल मगृछाला। तेहीं आसान आसीन कृपाला ॥ु २ ॥ भु कृत सीस कपीस उछंगा। बाम दिहन िदिस चाप िनषंगा ॥ दहँ कर कमल सुधारत बाना। कह लंकेस मंु ु लिग काना ॥ ३ ॥ बड़भागी अंगद हनुमाना। चरन कमल चापत िबिध नाना ॥ भु पाछें लिछमन बीरासन। किट िनषंग कर बान सरासन ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 8 - लंकाकांड

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    दोहरा एिह िबिध कृपा रूप गुन धाम रामु आसीन। धन्य ते नर एिहं ध्यान जे रहत सदा लयलीन ॥ ११(क) ॥

    पूरब िदसा िबलोिक भु देखा उिदत मयंक। कहत सबिह देखह सिसिह मगृपित सिरस असंक ॥ ु ११(ख) ॥

    पूरब िदिस िगिरगुहा िनवासी। परम ताप तेज बल रासी ॥ म नाग तम कंुभ िबदारी। सिस केसरी गगन बन चारी ॥ १ ॥ िबथरेु नभ मकुुताहल तारा। िनिस सुदंरी केर िसंगारा ॥ कह भु सिस महुँ मेचकताई। कहह काह िनज िनज मित भाई ॥ ु २ ॥ कह सग़ुीव सनुह रघुराई। सिस महँ गट भूिमु ु कै झाँई ॥ मारेउ राह सिसिह कह कोई। उर महँ परी स्यामता सोई ॥ ु ३ ॥ कोउ कह जब िबिध रित मुख कीन्हा। सार भाग सिस कर हिर लीन्हा ॥ िछ सो गट इंद उर माहीं। तेिह मगु देिखअ नभ पिरछाहीं ॥ ४ ॥ भु कह गरल बंधु सिस केरा। अित ि य िनज उर दीन्ह बसेरा ॥ िबष संजुत कर िनकर पसारी। जारत िबरहवंत नर नारी ॥ ५ ॥

    दोहरा

    कह हनुमंत सनुह भु सिसु तुम्हारा ि य दास। तव मूरित िबधु उर बसित सोइ स्यामता अभास ॥ १२(क) ॥

    नवान्हपारायण सातवाँ िव ाम

    पवन तनय के बचन सुिन िबहँसे रामु सजुान। दिच्छन िदिस अवलोिक भु बोले कृपा िनधान ॥ १२(ख) ॥

    देखु िबभीषन दिच्छन आसा। घन घंमड दािमिन िबलासा ॥ मधुर मधुर गरजइ घन घोरा। होइ बिृ जिन उपल कठोरा ॥ १ ॥ कहत िबभीषन सनुह कृपाला। होइ न तिड़त न बािरद माला ॥ ु

  • रामचिरतमानस - 9 - लंकाकांड

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    लकंा िसखर उपर आगारा। तहँ दसकंघर देख अखारा ॥ २ ॥ छ मेघडंबर िसर धारी। सोइ जनु जलद घटा अित कारी ॥ मदंोदरी वन ताटंका। सोइ भु जनु दािमनी दमंका ॥ ३ ॥ बाजिहं ताल मदंृग अनूपा। सोइ रव मधुर सनुहु सुरभूपा ॥ भु मुसुकान समुिझ अिभमाना। चाप चढ़ाइ बान संधाना ॥ ४ ॥

    दोहरा

    छ मुकुट ताटंक तब हते एकहीं बान। सबकें देखत मिह परे मरमु न कोऊ जान ॥ १३(क) ॥

    अस कौतुक किर राम सर िबसेउ आइ िनषंग। रावन सभा ससंक सब देिख महा रसभगं ॥ १३(ख) ॥

    कंप न भूिम न मरुत िबसेषा। अ स कछ नयन न देखा ॥ु सोचिहं सब िनज हृदय मझारी। असगुन भयउ भयंकर भारी ॥ १ ॥ दसमुख देिख सभा भय पाई। िबहिस बचन कह जगुुित बनाई ॥ िसरउ िगरे सतंत सुभ जाही। मकुुट परे कस असगुन ताही ॥ २ ॥ सयन करह िनज िनज गहृ जाई। गवनेु भवन सकल िसर नाई ॥ मदंोदरी सोच उर बसेऊ। जब ते वनपूर मिह खसेऊ ॥ ३ ॥ सजल नयन कह जुग कर जोरी। सनुह ानपित िबनती मोरी ॥ु कंत राम िबरोध पिरहरह। जािन मनुज जिनू हठ मन धरह ॥ ू ४ ॥

    दोहा

    िबस्वरुप रघुबंस मिन करह बचन िबस्वास।ुु लोक कल्पना बेद कर अंग अंग ित जास ु ॥ १४ ॥

    पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अगँ अँग िब ामा ॥ भकुृिट िबलास भयंकर काला। नयन िदवाकर कच घन माला ॥ १ ॥ जास ु ान अिस्वनीकुमारा। िनिस अरु िदवस िनमेष अपारा ॥ वन िदसा दस बेद बखानी। मारुत स्वास िनगम िनज बानी ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 10 - लंकाकांड

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    अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाह िदगपाला ॥ु आनन अनल अंबुपित जीहा। उतपित पालन लय समीहा ॥ ३ ॥ रोम रािज अ ादस भारा। अिस्थ सैल सिरता नस जारा ॥ उदर उदिध अधगो जातना। जगमय भ ु का बह कलपना ॥ु ४ ॥

    दोहरा

    अहंकार िसव बुि अज मन सिस िच महान। मनुज बास सचराचर रुप राम भगवान ॥ १५ क ॥

    अस िबचािर सुनु ानपित भु सन बयरु िबहाइ। ीित करह रघुबीर पद मम अिहवात न जाइ ॥ ु १५ ख ॥

    िबहँसा नािर बचन सुिन काना। अहो मोह मिहमा बलवाना ॥ नािर सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं ॥ १ ॥ साहस अनतृ चपलता माया। भय अिबबेक असौच अदाया ॥ िरपु कर रुप सकल तैं गावा। अित िबसाल भय मोिह सनुावा ॥ २ ॥ सो सब ि या सहज बस मोरें। समुिझ परा साद अब तोरें ॥ जािनउँ ि या तोिर चतुराई। एिह िबिध कहह मोिर भुताई ॥ु ३ ॥ तव बतकही गूढ़ मगृलोचिन। समुझत सुखद सुनत भय मोचिन ॥ मदंोदिर मन महँ अस ठयऊ। िपयिह काल बस मित म भयऊ ॥ु ४ ॥

    दोहा

    एिह िबिध करत िबनोद बह ात गट दसकंध। ु सहज असंक लंकपित सभाँ गयउ मद अंध ॥ १६(क) ॥

    सोरठा

    फूलह फरइ न बेत जदिप सुधा बरषिहं जलद। मरूुख हृदयँ न चेत जौं गुर िमलिहं िबरंिच सम ॥ १६(ख) ॥

    इहाँ ात जागे रघुराई। पूछा मत सब सिचव बोलाई ॥

  • रामचिरतमानस - 11 - लंकाकांड

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    कहह बेिग का किरअ उपाई। जामवंत कह पद िसरु नाई ॥ु १ ॥ सनुु सबर्ग्य सकल उर बासी। बुिध बल तेज धमर् गुन रासी ॥ मं कहउँ िनज मित अनुसारा। दत पठाइअ बािलकुमारा ॥ ू २ ॥ नीक मं सब के मन माना। अंगद सन कह कृपािनधाना ॥ बािलतनय बुिध बल गुन धामा। लंका जाह तात मम कामा ॥ ु ३ ॥ बहत बुझाइ तुम्हिह का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ ॥ ु काजु हमार तासु िहत होई। िरपु सन करेह बतकही सोई ॥ ु ४ ॥

    सोरठा

    भु अग्या धिर सीस चरन बंिद अंगद उठेउ। सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा पर करह ॥ ु १७(क) ॥

    स्वयं िस सब काज नाथ मोिह आदरु िदयउ। अस िबचािर जुबराज तन पुलिकत हरिषत िहयउ ॥ १७(ख) ॥

    बंिद चरन उर धिर भुताई। अगंद चलेउ सबिह िसरु नाई ॥ भु ताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बािलसुत बंका ॥ १ ॥ पुर पैठत रावन कर बेटा। खेलत रहा सो होइ गै भैंटा ॥ बातिहं बात करष बिढ़ आई। जुगल अतुल बल पुिन तरुनाई ॥ २ ॥ तेिह अंगद कहँ लात उठाई। गिहु पद पटकेउ भूिम भवाँई ॥ िनिसचर िनकर देिख भट भारी। जहँ तहँ चले न सकिहं पुकारी ॥ ३ ॥ एक एक सन मरमु न कहहीं। समुिझ तासु बध चपु किर रहहीं ॥ भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा किप लंका जेहीं जारी ॥ ४ ॥ अब धौं कहा किरिह करतारा। अित सभीत सब करिहं िबचारा ॥ िबनु पूछें मगु देिहं िदखाई। जेिह िबलोक सोइ जाइ सुखाई ॥ ५ ॥

    दोहा

    गयउ सभा दरबार तब सिुमिर राम पद कंज। िसंह ठविन इत उत िचतव धीर बीर बल पुंज ॥ १८ ॥

  • रामचिरतमानस - 12 - लंकाकांड

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    तुरत िनसाचर एक पठावा। समाचार रावनिह जनावा ॥ सनुत िबहँिस बोला दससीसा। आनह बोिल कहाँ कर कीसा ॥ ु १ ॥ आयसु पाइ दत बह धाए। किपकंुजरिह बोिल लै आए ॥ ू ु अंगद दीख दसानन बैंसें। सिहत ान कज्जलिगिर जैसें ॥ २ ॥ भजुा िबटप िसर सृगं समाना। रोमावली लता जनु नाना ॥ मुख नािसका नयन अरु काना। िगिर कंदरा खोह अनुमाना ॥ ३ ॥ गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बािलतनय अितबल बाँकुरा ॥ उठे सभासद किप कहँ देखी। रावन उर भा ौध िबसेषी ॥ ु ४ ॥

    दोहरा

    जथा म गज जूथ महँ पंचानन चिल जाइ। ु राम ताप सिुमिर मन बैठ सभाँ िसरु नाइ ॥ १९ ॥

    कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दत दसकंू धर ॥ मम जनकिह तोिह रही िमताई। तव िहत कारन आयउँ भाई ॥ १ ॥ उ म कुल पुलिस्त कर नाती। िसव िबरंिच पूजेह बह भाँती ॥ु ु बर पायह कीन्हेह सब काजा। जीतेह लोकपाल सब राजा ॥ु ु ु २ ॥ नपृ अिभमान मोह बस िकंबा। हिर आिनह सीता जगदंबा ॥ ु अब सुभ कहा सुनह तुम्ह मोरा। सब अपराु ध छिमिह भु तोरा ॥ ३ ॥ दसन गहह तनृ कंठ कुठारी। पिरजन सिहत संग िनज नारी ॥ ु सादर जनकसतुा किर आगें। एिह िबिध चलह सकल भय त्यागें ॥ु ४ ॥

    दोहा

    नतपाल रघुबंसमिन ािह ािह अब मोिह। आरत िगरा सुनत भु अभय करैगो तोिह ॥ २० ॥

    रे किपपोत बोल ु संभारी। मूढ़ न जानेिह मोिह सरुारी ॥ कह िनज नाम जनक कर भाई। केिह नातें मािनऐ िमताई ॥ु १ ॥ अंगद नाम बािल कर बेटा। तासों कबहँ भई ही भेटा ॥ु अंगद बचन सुनत सकुचाना। रहा बािल बानर मैं जाना ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 13 - लंकाकांड

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    अंगद तहीं बािल कर बालक। उपजेह बंस अनल कुल घालक ॥ ु गभर् न गयह ब्यथर् तुम्हु जायह। िनज मुख तापस दत कहायह ॥ु ुू ३ ॥ अब कह कुसल बािल कहँ अहई। िबहँिस बचन तब अगंदु कहई ॥ िदन दस गएँ बािल पिहं जाई। बूझेह कुसल सखा उर लाई ॥ु ४ ॥ राम िबरोध कुसल जिस होई। सो सब तोिह सुनाइिह सोई ॥ सनुु सठ भेद होइ मन ताकें । ीरघुबीर हृदय निहं जाकें ॥ ५ ॥

    दोहा

    हम कुल घालक सत्य तुम्ह कुल पालक दससीस। अंधउ बिधर न अस कहिहं नयन कान तव बीस ॥ २१।

    िसव िबरंिच सुर मुिन समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई ॥ तासु दतू होइ हम कुल बोरा। अइिसहँ मित उर िबहर न तोरा ॥ु १ ॥ सिुन कठोर बानी किप केरी। कहत दसानन नयन तरेरी ॥ खल तव किठन बचन सब सहऊँ। नीित धमर् मैं जानत अहऊँ ॥ २ ॥ कह किप धमर्सीलता तोरी। हमहँ सनुी कृत पर ि य चोरी ॥ ु देखी नयन दत रखवारी। बूिड़ न मरहू ु धमर् तधारी ॥ ३ ॥ कान नाक िबनु भिगिन िनहारी। छमा कीिन्ह तुम्ह धमर् िबचारी ॥ धमर्सीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहँ बड़भागी ॥ु ४ ॥

    दोहरा

    जिन जल्पिस जड़ जंतु किप सठ िबलोकु मम बाह।ु लोकपाल बल िबपुल सिस सन हेतु सब राह ॥ ु २२(क) ॥

    पुिन नभ सर मम कर िनकर कमलिन्ह पर किर बास। सोभत भयउ मराल इव संभु सिहत कैलास ॥ २२(ख) ॥

    तुम्हरे कटक माझ सुनु अगंद। मो सन िभिरिह कवन जोधा बद ॥ तव भु नािर िबरहँ बलहीना। अनुज तासु दख दखी मलीना ॥ु ु १ ॥ तुम्ह सु ीव कूल म दोऊ। अनुज हमार भीरु अित सोऊ ॥ु

  • रामचिरतमानस - 14 - लंकाकांड

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    जामवंत मं ी अित बूढ़ा। सो िक होइ अब समरारूढ़ा ॥ २ ॥ िसिल्प कमर् जानिहं नल नीला। है किप एक महा बलसीला ॥ आवा थम नगरु जेंिहं जारा। सनुत बचन कह बािलकुमारा ॥ ३ ॥ सत्य बचन कह िनिसचर नाहा। साँचेहँ कीस कीन्ह पुर दाहा ॥ ु ु रावन नगर अल्प किप दहई। सिुन अस बचन सत्य को कहई ॥ ४ ॥ जो अित सुभट सराहेह रावन। सो सु ीव केर लघु धावन ॥ ु चलइ बहत सो बीर न होई। पठवा खबिर लेन हम सोई ॥ ु ५ ॥

    दोहा

    सत्य नगरु किप जारेउ िबनु भु आयसु पाइ। िफिर न गयउ सु ीव पिहं तेिहं भय रहा लुकाइ ॥ २३(क) ॥

    सत्य कहिह दसकंठ सब मोिह न सुिन कछ कोह।ु कोउ न हमारें कटक अस तो सन लरत जो सोह ॥ २३(ख) ॥

    ीित िबरोध समान सन किरअ नीित अिस आिह। जौं मगृपित बध मेड़किन्ह भल िक कहइ कोउ तािह ॥ु २३(ग) ॥

    ज िप लघुता राम कहँ तोिह बधें बड़ दोष। ु तदिप किठन दसकंठ सनुु छ जाित कर रोष ॥ २३(घ) ॥

    ब उि धनु बचन सर हृदय दहेउ िरपु कीस। ितउ र सड़िसन्ह मनहँ काढ़त भट दससीस ॥ ु २३(ङ) ॥

    हँिस बोलेउ दसमौिल तब किप कर बड़ गुन एक। जो ितपालइ तास ु िहत करइ उपाय अनेक ॥ २३(छ) ॥

    धन्य कीस जो िनज भु काजा। जहँ तहँ नाचइ पिरहिर लाजा ॥ नािच कूिद किर लोग िरझाई। पित िहत करइ धमर् िनपुनाई ॥ १ ॥ अंगद स्वािमभ तव जाती। भु गुन कस न कहिस एिह भाँती ॥ मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कट रटिन करउँ निहं काना ॥ु २ ॥

  • रामचिरतमानस - 15 - लंकाकांड

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    कह किप तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसतु मोिह सनुाई ॥ बन िबधिंस सुत बिध पुर जारा। तदिप न तेिहं कछ कृत अपकारा ॥ ु ३ ॥ सोइ िबचािर तव कृित सुहाई। दसकंधर मैं कीिन्ह िढठाई ॥ देखेउँ आइ जो कछ किप भाषा। तुम्हरें लाज न रोषु न माखा ॥ ४ ॥ जौं अिस मित िपतु खाए कीसा। किह अस बचन हँसा दससीसा ॥ िपतिह खाइ खातेउँ पुिन तोही। अबहीं समुिझ परा कछ मोही ॥ ु ५ ॥ बािल िबमल जस भाजन जानी। हतउँ न तोिह अधम अिभमानी ॥ कह रावन रावन जग केते। मैं िनज वन सुने सुनु जेते ॥ ु ६ ॥ बिलिह िजतन एक गयउ पताला। राखेउ बाँिध िससनु्ह हयसाला ॥ खेलिहं बालक मारिहं जाई। दया लािग बिल दीन्ह छोड़ाई ॥ ७ ॥ एक बहोिर सहसभुज देखा। धाइ धरा िजिम जतंु िबसेषा ॥ कौतुक लािग भवन लै आवा। सो पुलिस्त मिुन जाइ छोड़ावा ॥ ८ ॥

    दोहा

    एक कहत मोिह सकुच अित रहा बािल की काँख। इन्ह महँ रावन तैं कवन सत्य बदिह तिज माख ॥ ु २४ ॥

    सनुु सठ सोइ रावन बलसीला। हरिगिर जान जासु भुज लीला ॥ जान उमापित जासु सुराई। पूजेउँ जेिह िसर सुमन चढ़ाई ॥ १ ॥ िसर सरोज िनज करिन्ह उतारी। पूजेउँ अिमत बार ि पुरारी ॥ भजु िब म जानिहं िदगपाला। सठ अजहँ िजन्ह कें उर साला ॥ ू २ ॥ जानिहं िदग्गज उर किठनाई। जब जब िभरउँ जाइ बिरआई ॥ िजन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टटे ॥ ू ३ ॥ जासु चलत डोलित इिम धरनी। चढ़त म गज िजिम लघु तरनी ॥ सोइ रावन जग िबिदत तापी। सुनेिह न वन अलीक लापी ॥ ४ ॥

    दोहा

    तेिह रावन कहँ लघु कहिस नर कर करिस बखान। रे किप बबर्र खबर् खल अब जाना तव ग्यान ॥ २५ ॥

  • रामचिरतमानस - 16 - लंकाकांड

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    सिुन अगंद सकोप कह बानी। बोलु सँभािर अधम अिभमानी ॥ सहसबाह भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा ॥ु १ ॥ जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नपृ अगिनत बह बारा ॥ ु तासु गबर् जेिह देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा ॥ २ ॥ राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुिन गंगा ॥ पसु सरुधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा ॥ ३ ॥ बैनतेय खग अिह सहसानन। िचंतामिन पुिन उपल दसानन ॥ सनुु मितमंद लोक बैकंुठा। लाभ िक रघुपित भगित अकंुठा ॥ ४ ॥

    दोहरा

    सेन सिहत तब मान मिथ बन उजािर पुर जािर ॥ कस रे सठ हनुमान किप गयउ जो तव सुत मािर ॥ २६ ॥

    सनुु रावन पिरहिर चतुराई। भजिस न कृपािसंधु रघुराई ॥ जौ खल भएिस राम कर ोही। रु सक रािख न तोही ॥ १ ॥ मढ़ू बथृा जिन मारिस गाला। राम बयर अस होइिह हाला ॥ तव िसर िनकर किपन्ह के आगें। पिरहिहं धरिन राम सर लागें ॥ २ ॥ ते तव िसर कंदक सम नाना। खेलहिहंु भालु कीस चौगाना ॥ जबिहं समर कोपिह रघुनायक। छिटहिहं अित कराल बह सायक ॥ु ु ३ ॥ तब िक चिलिह अस गाल तुम्हारा। अस िबचािर भजु राम उदारा ॥ सनुत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घतृ परा ॥ ४ ॥

    दोहरा

    कंुभकरन अस बंधु मम सतु िस स ािर। मोर परा म निहं सुनेिह िजतेउँ चराचर झािर ॥ २७ ॥

    सठ साखामगृ जोिर सहाई। बाँधा िसंधु इहइ भतुाई ॥ नाघिहं खग अनेक बारीसा। सूर न होिहं ते सुनु सब कीसा ॥ १ ॥ मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बह सुर नर सूरा ॥ ु बीस पयोिध अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइिह पारा ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 17 - लंकाकांड

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    िदगपालन्ह मैं नीर भरावा। भपू सुजस खल मोिह सुनावा ॥ जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुिन पुिन कहिस जासु गुन गाथा ॥ ३ ॥ तौ बसीठ पठवत केिह काजा। िरपु सन ीित करत निहं लाजा ॥ हरिगिर मथन िनरखु मम बाह। पुिन सठ किप िनज भुिह सराह ॥ू ू ४ ॥

    दोहा

    सरू कवन रावन सिरस स्वकर कािट जेिहं सीस। हने ु अनल अित हरष बह बार सािख गौरीस ॥ ु २८ ॥

    जरत िबलोकेउँ जबिहं कपाला। िबिध के िलखे अंक िनज भाला ॥ नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जािन िबिध िगरा असाँची ॥ १ ॥ सोउ मन समुिझ ास निहं मोरें। िलखा िबरंिच जरठ मित भोरें ॥ आन बीर बल सठ मम आगें। पुिन पुिन कहिस लाज पित त्यागे ॥ २ ॥ कह अगंद सलज्ज जग माहीं। रावन तोिह समान कोउ नाहीं ॥ लाजवंत तव सहज सुभाऊ। िनज मुख िनज गुन कहिस न काऊ ॥ ३ ॥ िसर अरु सैल कथा िचत रही। ताते बार बीस तैं कही ॥ सो भुजबल राखेउ उर घाली। जीतेह सहसबाह बिल बाली ॥ु ु ४ ॥ सनुु मितमंद देिह अब पूरा। काटें सीस िक होइअ सूरा ॥ इं जािल कह किहअ न बीरा। काटइ िनज कर सकल सरीरा ॥ु ५ ॥

    दोहरा

    जरिहं पतंग मोह बस भार बहिहं खर बृंद। ते निहं सूर कहाविहं समुिझ देखु मितमंद ॥ २९ ॥

    अब जिन बतबढ़ाव खल करही। सुनु मम बचन मान पिरहरही ॥ दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस िबचािर रघुबीष पठायउँ ॥ १ ॥ बार बार अस कहइ कृपाला। निहं गजािर जस ु बधें सकृाला ॥ मन महँ समुिझ बचनु भु केरे। सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे ॥ २ ॥ नािहं त किर मुख भंजन तोरा। लै जातेउँ सीतिह बरजोरा ॥ जानेउँ तव बल अधम सुरारी। सूनें हिर आिनिह परनारी ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 18 - लंकाकांड

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    तैं िनिसचर पित गबर् बहता। ू मैं रघुपित सेवक कर दता ॥ ू जौं न राम अपमानिह डरउँ। तोिह देखत अस कौतुक करऊँ ॥ ४ ॥

    दोहरा

    तोिह पटिक मिह सेन हित चौपट किर तव गाउँ। तव जुबितन्ह समेत सठ जनकसुतिह लै जाउँ ॥ ३० ॥

    जौ अस करौं तदिप न बड़ाई। मुएिह बधें निहं कछ मनुसाई ॥ु कौल कामबस कृिपन िबमढ़ूा। अित दिर अजसी अित बूढ़ा ॥ १ ॥ सदा रोगबस संतत ोधी। िबष्नु िबमूख िुत सतं िबरोधी ॥ तनु पोषक िनंदक अघ खानी। जीवन सव सम चौदह ानी ॥ २ ॥ अस िबचािर खल बधउँ न तोही। अब जिन िरस उपजाविस मोही ॥ सिुन सकोप कह िनिसचर नाथा। अधर दसन दिस मीजत हाथा ॥ ३ ॥ रे किप अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात बिड़ कहसी ॥ कट जल्पिस जड़ किप बल जाकें । बल ताप बुिध तेज न ताकें ॥ु ४ ॥

    दोहरा

    अगुन अमान जािन तेिह दीन्ह िपता बनबास। सो दख अरु जुबती िबरह पुिन िनिस िदन मम ास ॥ ु ३१(क) ॥

    िजन्ह के बल कर गबर् तोिह अइसे मनुज अनेक। खाहीं िनसाचर िदवस िनिस मूढ़ समुझु तिज टेक ॥ ३१(ख) ॥

    जब तेिहं कीन्ह राम कै िनंदा। ोधवंत अित भयउ किपंदा ॥ हिर हर िनंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना ॥ १ ॥ कटकटान किपकंुजर भारी। दह भुजदंडु ु तमिक मिह मारी ॥ डोलत धरिन सभासद खसे। चले भािज भय मारुत से ॥ २ ॥ िगरत सँभािर उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अित संुदर ॥ कछ तेिहं लै िनज िसरिन्ह सवँारे। कछ अंगदु ु भु पास पबारे ॥ ३ ॥ आवत मुकुट देिख किप भागे। िदनहीं लूक परन िबिध लागे ॥

  • रामचिरतमानस - 19 - लंकाकांड

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    की रावन किर कोप चलाए। कुिलस चािर आवत अित धाए ॥ ४ ॥ कह भु हँिस जिन हृदयँ डेराह। लूक नू असिन केतु निहं राह ॥ ू ए िकरीट दसकंधर केरे। आवत बािलतनय के ेरे ॥ ५ ॥

    दोहा

    तरिक पवनसतु कर गहे आिन धरे भु पास। कौतुक देखिहं भालु किप िदनकर सिरस कास ॥ ३२(क) ॥

    उहाँ सकोिप दसानन सब सन कहत िरसाइ। धरह किपिह धिर मारह सुिन अंगदु ु मुसुकाइ ॥ ३२(ख) ॥

    एिह िबिध बेिग सूभट सब धावह। खाह भालु किप जहँ जहँ पावह ॥ु ु ु मकर् टहीन करह मिह जाई। िजअत धरह तापस ौ भाई ॥ ु ु १ ॥ पुिन सकोप बोलेउ जुबराजा। गाल बजावत तोिह न लाजा ॥ मरु गर कािट िनलज कुलघाती। बल िबलोिक िबहरित निहं छाती ॥ २ ॥ रे ि य चोर कुमारग गामी। खल मल रािस मंदमित कामी ॥ सन्यपात जल्पिस दबार्दा। भएिसु कालबस खल मनुजादा ॥ ३ ॥ याको फलु पाविहगो आगें। बानर भालु चपेटिन्ह लागें ॥ राम ुमनुज बोलत अिस बानी। िगरिहं न तव रसना अिभमानी ॥ ४ ॥ िगिरहिहं रसना संसय नाहीं। िसरिन्ह समेत समर मिह माहीं ॥ ५ ॥

    सोरठा

    सो नर क्यों दसकंध बािल बध्यो जेिहं एक सर। बीसहँ लोचनु अंध िधग तव जन्म कुजाित जड़ ॥ ३३(क) ॥

    तब सोिनत की प्यास तिृषत राम सायक िनकर। तजउँ तोिह तेिह ास कट जल्पक िनिसचर अधम ॥ ु ३३(ख) ॥

    म ै तव दसन तोिरबे लायक। आयस ु मोिह न दीन्ह रघुनायक ॥ अिस िरस होित दसउ मुख तोरौं। लंका गिह समु महँ बोरौं ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 20 - लंकाकांड

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    गूलिर फल समान तव लंका। बसह मध्य तुम्ह जतुं असंका ॥ ु मैं बानर फल खात न बारा। आयसु दीन्ह न राम उदारा ॥ २ ॥ जुगित सुनत रावन मुसुकाई। मूढ़ िसिखिह कहँ बहतु झुठाई ॥ बािल न कबहँ गाल अस मारा। िमिल तपिसन्ह तैं भएिस लबारा ॥ ु ३ ॥ साँचेहँ मैंु लबार भुज बीहा। जौं न उपािरउँ तव दस जीहा ॥ समुिझ राम ताप किप कोपा। सभा माझ पन किर पद रोपा ॥ ४ ॥ जौं मम चरन सकिस सठ टारी। िफरिहं राम ु सीता मैं हारी ॥ सनुह सुभटु सब कह दससीसा। पद गिह धरिन पछारह कीसा ॥ ु ५ ॥ इं जीत आिदक बलवाना। हरिष उठे जहँ तहँ भट नाना ॥ झपटिहं किर बल िबपुल उपाई। पद न टरइ बैठिहं िसरु नाई ॥ ६ ॥ पुिन उिठ झपटहीं सरु आराती। टरइ न कीस चरन एिह भाँती ॥ पुरुष कुजोगी िजिम उरगारी। मोह िबटप निहं सकिहं उपारी ॥ ७ ॥

    दोहरा

    कोिटन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ। झपटिहं टरै न किप चरन पुिन बैठिहं िसर नाइ ॥ ३४(क) ॥

    भिूम न छाँडत किप चरन देखत िरपु मद भाग ॥ कोिट िबघ्न ते सतं कर मन िजिम नीित न त्याग ॥ ३४(ख) ॥

    किप बल देिख सकल िहयँ हारे। उठा आपु किप कें परचारे ॥ गहत चरन कह बािलकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा ॥ १ ॥ गहिस न राम चरन सठ जाई। सनुत िफरा मन अित सकुचाई ॥ भयउ तेजहत ी सब गई। मध्य िदवस िजिम सिस सोहई ॥ २ ॥ िसंघासन बैठेउ िसर नाई। मानहँ संपित सकल गँवाई ॥ ु जगदातमा ानपित रामा। तासु िबमुख िकिम लह िब ामा ॥ ३ ॥ उमा राम की भकुृिट िबलासा। होइ िबस्व पुिन पावइ नासा ॥ तनृ ते कुिलस कुिलस तनृ करई। तासु दत पन कह िकिम टरई ॥ ू ु ४ ॥ पुिन किप कही नीित िबिध नाना। मान न तािह कालु िनअराना ॥

  • रामचिरतमानस - 21 - लंकाकांड

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    िरपु मद मिथ भु सुजसु सुनायो। यह किह चल्यो बािल नपृ जायो ॥५ ॥ हतौं न खेत खेलाइ खेलाई। तोिह अबिहं का करौं बड़ाई ॥ थमिहं तासु तनय किप मारा। सो सुिन रावन भयउ दखारा ॥ु ६ ॥ जातुधान अंगद पन देखी। भय ब्याकुल सब भए िबसेषी ॥

    दोहा

    िरपु बल धरिष हरिष किप बािलतनय बल पंुज। पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज ॥ ३५(क) ॥

    साँझ जािन दसकंधर भवन गयउ िबलखाइ। मदंोदरी रावनिह बहिर कहा समुझाइ ॥ ु (ख) ॥

    कंत समुिझ मन तजह कुमितही। सोह न समर तुम्हिहु रघुपितही ॥ रामानुज लघु रेख खचाई। सोउ निहं नाघेह अिस मनुसाई ॥ु १ ॥ िपय तुम्ह तािह िजतब सं ामा। जाके दत केर यहू कामा ॥ कौतुक िसंधु नाघी तव लंका। आयउ किप केहरी असकंा ॥ २ ॥ रखवारे हित िबिपन उजारा। देखत तोिह अच्छ तेिहं मारा ॥ जािर सकल पुर कीन्हेिस छारा। कहाँ रहा बल गबर् तुम्हारा ॥ ३ ॥ अब पित मषृा गाल जिन मारह। मोर कहाु कछ हृदयँ िबचारह ॥ ु ु पित रघुपितिह नपृित जिन मानह। अग जगनाथ अतुल बल जानह ॥ु ु ४॥ बान ताप जान मारीचा। तासु कहा निहं मानेिह नीचा ॥ जनक सभाँ अगिनत भूपाला। रहे तुम्हउ बल अतुल िबसाला ॥ ५ ॥ भिंज धनुष जानकी िबआही। तब सं ाम िजतेह िकन ताही ॥ु सरुपित सुत जानइ बल थोरा। राखा िजअत आँिख गिह फोरा ॥ ६ ॥ सपूनखा कै गित तुम्ह देखी। तदिप हृदयँ निहं लाज िबषेषी ॥

    दोहा

    बिध िबराध खर दषनिह लीँलाँ हत्यो कबंध। ू बािल एक सर मारयो तेिह जानह दसकंध ॥ ु ३६ ॥

  • रामचिरतमानस - 22 - लंकाकांड

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    जेिहं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे भु दल सिहत सुबेला ॥ कारुनीक िदनकर कुल केतू। दत पठायउ तव िहत हेतू ॥ ू १ ॥ सभा माझ जेिहं तव बल मथा। किर बरूथ महँ मगृपित जथा ॥ ु अंगद हनुमत अनुचर जाके। रन बाँकुरे बीर अित बाँके ॥ २ ॥ तेिह कहँ िपय पुिन पुिन नर कहह। मुधा मान ममता मद बहह ॥ू ू अहह कंत कृत राम िबरोधा। काल िबबस मन उपज न बोधा ॥ ३ ॥ काल दंड गिह काह न मारा। हरइ धमर् बलु बुि िबचारा ॥ िनकट काल जेिह आवत साईं। तेिह म होइ तुम्हािरिह नाईं ॥ ४ ॥

    दोहा

    दइ सुत मरे दहेउ पुर अजहँ पूर िपय देह।ु ु ु कृपािसंधु रघुनाथ भिज नाथ िबमल जसु लेहु ॥ ३७ ॥

    नािर बचन सिुन िबिसख समाना। सभाँ गयउ उिठ होत िबहाना ॥ बैठ जाइ िसंघासन फूली। अित अिभमान ास सब भूली ॥ १ ॥ इहाँ राम अंगदिह बोलावा। आइ चरन पंकज िसरु नावा ॥ अित आदर सपीप बैठारी। बोले िबहँिस कृपाल खरारी ॥ २ ॥ बािलतनय कौतुक अित मोही। तात सत्य कह पूछउँ तोही ॥ु रावनु जातुधान कुल टीका। भुज बल अतुल जासु जग लीका ॥ ३ ॥ तासु मुकुट तुम्ह चािर चलाए। कहह तात कवनी िबिध पाए ॥ ु सनुु सबर्ग्य नत सुखकारी। मुकुट न होिहं भपू गुन चारी ॥ ४ ॥ साम दान अरु दंड िबभेदा। नपृ उर बसिहं नाथ कह बेदा ॥ नीित धमर् के चरन सुहाए। अस िजयँ जािन नाथ पिहं आए ॥ ५ ॥

    दोहा

    धमर्हीन भु पद िबमुख काल िबबस दससीस। तेिह पिरहिर गुन आए सनुह कोसलाधीस ॥ ु ३८(((क) ॥

    परम चतुरता वन सिुन िबहँसे रामु उदार। समाचार पुिन सब कहे गढ़ के बािलकुमार ॥ ३८(ख) ॥

  • रामचिरतमानस - 23 - लंकाकांड

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    िरपु के समाचार जब पाए। राम सिचव सब िनकट बोलाए ॥ लकंा बाँके चािर दआरा।ु केिह िबिध लािगअ करह िबचारा ॥ ु १ ॥ तब कपीस िरच्छेस िबभीषन। सुिमिर हृदयँ िदनकर कुल भषून ॥ किर िबचार ितन्ह मं दृढ़ावा। चािर अनी किप कटकु बनावा ॥ २ ॥ जथाजोग सेनापित कीन्हे। जूथप सकल बोिल तब लीन्हे ॥ भु ताप किह सब समुझाए। सुिन किप िसंघनाद किर धाए ॥ ३ ॥ हरिषत राम चरन िसर नाविहं। गिह िगिर िसखर बीर सब धाविहं ॥ गजर्िहं तजर्िहं भालु कपीसा। जय रघुबीर कोसलाधीसा ॥ ४ ॥ जानत परम दगर् अित लंका। भ ु तापु किप चले असकंा ॥ घटाटोप किर चहँ िदिस घेरी। मुखिहं िनसान बजावहीं भेरी ॥ ु ५ ॥

    दोहा

    जयित राम जय लिछमन जय कपीस सु ीव। गजर्िहं िसंघनाद किप भालु महा बल सींव ॥ ३९ ॥

    लकंाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अित अहँकारी ॥ देखह बनरन्ह केिर िढठाई। िबहँिसु िनसाचर सेन बोलाई ॥ १ ॥ आए कीस काल के ेरे। छधावंत सब िनिसचर मेरे ॥ ु अस किह अट्टहास सठ कीन्हा। गहृ बैठे अहार िबिध दीन्हा ॥ २ ॥ सुभट सकल चािरहँ िदिस जाह। धिरु ू धिर भालु कीस सब खाह ॥ ू उमा रावनिह अस अिभमाना। िजिम िटिट्टभ खग सूत उताना ॥ ३ ॥ चले िनसाचर आयसु मागी। गिह कर िभंिडपाल बर साँगी ॥ तोमर मगु्दर परसु चंडा। सुल कृपान पिरघ िगिरखंडा ॥ ४ ॥ िजिम अरुनोपल िनकर िनहारी। धाविहं सठ खग मांस अहारी ॥ चोंच भंग दख ितन्हिह न सूझा। ितिम धाए मनुजाद अबूझा ॥ु ५ ॥

    दोहरा

    नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर। कोट कँगूरिन्ह चिढ़ गए कोिट कोिट रनधीर ॥ ४० ॥

  • रामचिरतमानस - 24 - लंकाकांड

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    कोट कँगूरिन्ह सोहिहं कैसे। मेरु के सृगंिन जनु घन बैसे ॥ बाजिहं ढोल िनसान जुझाऊ। सुिन धिुन होइ भटिन्ह मन चाऊ ॥ १ ॥ बाजिहं भेिर नफीिर अपारा। सुिन कादर उर जािहं दरारा ॥ देिखन्ह जाइ किपन्ह के ठट्टा। अित िबसाल तनु भाल ुसुभट्टा ॥ २ ॥ धाविहं गनिहं न अवघट घाटा। पबर्त फोिर करिहं गिह बाटा ॥ कटकटािहं कोिटन्ह भट गजर्िहं। दसन ओठ काटिहं अित तजर्िहं ॥ ३ ॥ उत रावन इत राम दोहाई। जयित जयित जय परी लराई ॥ िनिसचर िसखर समूह ढहाविहं। कूिद धरिहं किप फेिर चलाविहं ॥ ४ ॥

    छंद

    धिर कुधर खंड चंड ककर् ट भालु गढ़ पर डारहीं। झपटिहं चरन गिह पटिक मिह भिज चलत बहिर पचारहीं ॥ ु अित तरल तरुन ताप तरपिहं तमिक गढ़ चिढ़ चिढ़ गए। किप भालु चिढ़ मंिदरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए ॥

    दोहा

    एकु एकु िनिसचर गिह पुिन किप चले पराइ। ऊपर आपु हेठ भट िगरिहं धरिन पर आइ ॥ ४१ ॥

    राम ताप बल किपजूथा। मदर्िहं िनिसचर सुभट बरूथा ॥ चढ़े दगर् पुिन जहँ तहँ बानर। जय रघुबीरु ताप िदवाकर ॥ १ ॥ चले िनसाचर िनकर पराई। बल पवन िजिम घन समुदाई ॥ हाहाकार भयउ पुर भारी। रोविहं बालक आतुर नारी ॥ २ ॥ सब िमिल देिहं रावनिह गारी। राज करत एिहं मतृ्यु हँकारी ॥ िनज दल िबचल सुनी तेिहं काना। फेिर सुभट लंकेस िरसाना ॥ ३ ॥ जो रन िबमुख सुना मैं काना। सो मैं हतब कराल कृपाना ॥ सबर्सु खाइ भोग किर नाना। समर भिूम भए बल्लभ ाना ॥ ४ ॥ उ बचन सुिन सकल डेराने। चले ोध किर सुभट लजाने ॥ सन्मुख मरन बीर कै सोभा। तब ितन्ह तजा ान कर लोभा ॥ ५ ॥

  • रामचिरतमानस - 25 - लंकाकांड

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    दोहरा बह आयुध धर सुभट सब िभरिहंु पचािर पचािर। ब्याकुल िकए भालु किप पिरघ ि सूलिन्ह मारी ॥ ४२ ॥

    भय आतुर किप भागन लागे। ज िप उमा जीितहिहं आगे ॥ कोउ कह कहँ अंगद हनुमतंा। कहँ नल नील दिबदु बलवंता ॥ १ ॥ िनज दल िबकल सनुा हनुमाना। पिच्छम ार रहा बलवाना ॥ मेघनाद तहँ करइ लराई। टट न ार परम किठनाई ॥ ू २ ॥ पवनतनय मन भा अित ोधा। गजउ बल काल सम जोधा ॥ कूिद लंक गढ़ ऊपर आवा। गिह िगिर मेघनाद कहँ धावा ॥ ु ३ ॥ भजेंउ रथ सारथी िनपाता। तािह हृदय महँ मारेिस लाता ॥ ु दसरें सतू िबकल तेिह जाना। स्यंदन घािल तुरत गहृु आना ॥ ४ ॥

    दोहा

    अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल। रन बाँकुरा बािलसतु तरिक चढ़ेउ किप खेल ॥ ४३ ॥

    जु िबरु ु ौ बंदर। राम ताप सुिमिर उर अतंर ॥ रावन भवन चढ़े ौ धाई। करिह कोसलाधीस दोहाई ॥ १ ॥ कलस सिहत गिह भवनु ढहावा। देिख िनसाचरपित भय पावा ॥ नािर बृंद कर पीटिहं छाती। अब दइ किप आए उतपाती ॥ ु २ ॥ किपलीला किर ितन्हिह डेराविहं। रामचं कर सुजसु सुनाविहं ॥ पुिन कर गिह कंचन के खंभा। कहेिन्ह किरअ उतपात अरंभा ॥ ३ ॥ गिजर् परे िरपु कटक मझारी। लागे मद भुज बल भारी ॥ काहिह लातु चपेटिन्ह केह। भजह न रामिह सो फल लेह ॥ ू ु ू ४ ॥

    दोहा

    एक एक सों मदर्िहं तोिर चलाविहं मंुड। रावन आगें परिहं ते जनु फूटिहं दिध कंुड ॥ ४४ ॥

  • रामचिरतमानस - 26 - लंकाकांड

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    महा महा मुिखआ जे पाविहं। ते पद गिह भु पास चलाविहं ॥ कहइ िबभीषनु ितन्ह के नामा। देिहं राम ितन्हह िनजू धामा ॥ १ ॥ खल मनुजाद ि जािमष भोगी। पाविहं गित जो जाचत जोगी ॥ उमा राम मदृिचतु करुनाकर। बयर भाव सुिमरत मोिह िनिसचर ॥ २ ॥ देिहं परम गित सो िजयँ जानी। अस कृपाल को कहह भवानी ॥ ु अस भु सुिन न भजिहं म त्यागी। नर मितमंद ते परम अभागी ॥३॥ अंगद अरु हनुमंत बेसा। कीन्ह दगर् अस कह अवधेसा ॥ ु लकंाँ ौ किप सोहिहं कैसें। मथिह िसंधु दइ मंदर जैसें ॥ ु ४ ॥

    दोहरा

    भजु बल िरपु दल दलमिल देिख िदवस कर अंत। कूदे जुगल िबगत म आए जहँ भगवंत ॥ ४५ ॥

    भु पद कमल सीस ितन्ह नाए। देिख सुभट रघुपित मन भाए ॥ राम कृपा किर जुगल िनहारे। भए िबगत म परम सुखारे ॥ १ ॥ गए जािन अंगद हनुमाना। िफरे भालु मकर् ट भट नाना ॥ जातुधान दोष बल पाई। धाए किर दससीस दोहाई ॥ २ ॥ िनिसचर अनी देिख किप िफरे। जहँ तहँ कटकटाइ भट िभरे ॥ ौ दल बल पचािर पचारी। लरत सुभट निहं मानिहं हारी ॥ ३ ॥ महाबीर िनिसचर सब कारे। नाना बरन बलीमुख भारे ॥ सबल जुगल दल समबल जोधा। कौतुक करत लरत किर ोधा ॥ ४ ॥ ािबट सरद पयोद घनेरे। लरत मनहँ ु मारुत के ेरे ॥ अिनप अकंपन अरु अितकाया। िबचलत सेन कीिन्ह इन्ह माया ॥ ५ ॥ भयउ िनिमष महँ अित अँिधयारा। बिृ होइ रुिधरोपल छारा ॥ ६ ॥

    दोहरा

    देिख िनिबड़ तम दसहँ िदिस किपदल भयउ खभार। ु एकिह एक न देखई जहँ तहँ करिहं पुकार ॥ ४६ ॥

    सकल मरमु रघुनायक जाना। िलए बोिल अंगद हनुमाना ॥

  • रामचिरतमानस - 27 - लंकाकांड

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    समाचार सब किह समुझाए। सुनत कोिप किपकंुजर धाए ॥ १ ॥ पुिन कृपाल हँिस चाप चढ़ावा। पावक सायक सपिद चलावा ॥ भयउ कास कतहँ तमु नाहीं। ग्यान उदयँ िजिम संसय जाहीं ॥ २ ॥ भाल ु बलीमुख पाइ कासा। धाए हरष िबगत म ासा ॥ हनूमान अगंद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे ॥ ३ ॥ भागत पट पटकिहं धिर धरनी। करिहं भालु किप अ त करनी ॥ ु गिह पद डारिहं सागर माहीं। मकर उरग झष धिर धिर खाहीं ॥ ४ ॥

    दोहरा

    कछ मारे कछ घायल कछ गढ़ चढ़े पराइ। ु ु ु गजर्िहं भालु बलीमुख िरपु दल बल िबचलाइ ॥ ४७ ॥

    िनसा जािन किप चािरउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी ॥ राम कृपा किर िचतवा सबही। भए िबगत म बानर तबही ॥ १ ॥ उहाँ दसानन सिचव हँकारे। सब सन कहेिस सुभट जे मारे ॥ आधा कटकु किपन्ह संघारा। कहह बेिग का किरअ िबचारा ॥ ु २ ॥ माल्यवंत अित जरठ िनसाचर। रावन मातु िपता मं ी बर ॥ बोला बचन नीित अित पावन। सुनह तात कछ मोर िसखावन ॥ु ु ३ ॥ जब ते तुम्ह सीता हिर आनी। असगुन होिहं न जािहं बखानी ॥ बेद पुरान जास ु जसु गायो। राम िबमुख काहँ न सुख पायो ॥ु ४ ॥

    दोहरा

    िहरन्याच्छ ाता सिहत मधु कैटभ बलवान। जेिह मारे सोइ अवतरेउ कृपािसंधु भगवान ॥ ४८(क) ॥

    मासपारायण, पचीसवाँ िव ाम

    कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध। िसव िबरंिच जेिह सेविहं तासों कवन िबरोध ॥ ४८(ख) ॥

  • रामचिरतमानस - 28 - लंकाकांड

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    पिरहिर बयरु देह बैदेही। भजह कृपािनिध परम सनेही ॥ ु ु ताके बचन बान सम लागे। किरआ महु किर जािह अभागे ॥ १ ॥ बूढ़ भएिस न त मरतेउँ तोही। अब जिन नयन देखाविस मोही ॥ तेिह अपने मन अस अनुमाना। बध्यो चहत एिह कृपािनधाना ॥ २ ॥ सो उिठ गयउ कहत दबार्दा। तब सकोप बोलेउु घननादा ॥ कौतुक ात देिखअह मोरा। किरहउँ बहत कहौं का थोरा ॥ ु ु ३ ॥ सिुन सुत बचन भरोसा आवा। ीित समेत अंक बैठावा ॥ करत िबचार भयउ िभनुसारा। लागे किप पुिन चहूँ दआराु ॥ ४ ॥ कोिप किपन्ह दघर्ट गढ़ घेरा। नगर कोलाहलु भयउ घनेरा ॥ु ु िबिबधायुध धर िनिसचर धाए। गढ़ ते पबर्त िसखर ढहाए ॥ ५ ॥

    छंद

    ढाहे महीधर िसखर कोिटन्ह िबिबध िबिध गोला चले। घहरात िजिम पिबपात गजर्त जनु लय के बादले ॥ मकर् ट िबकट भट जुटत कटत न लटत तन जजर्र भए। गिह सैल तेिह गढ़ पर चलाविहं जहँ सो तहँ िनिसचर हए ॥

    दोहरा

    मेघनाद सुिन वन अस गढ़ पुिन छेंका आइ।ु उतय बीर दगर् तें सन्मुख चल्यो बजाइ ॥ ु ४९ ॥

    कहँ कोसलाधीस ौ ाता। धन्वी सकल लोक िबख्याता ॥ कहँ नल नील दिबद सु ीवा।ु अंगद हनूमतं बल सींवा ॥ १ ॥ कहाँ िबभीषनु ाता ोही। आजु सबिह हिठ मारउँ ओही ॥ अस किह किठन बान संधाने। अितसय ोध वन लिग ताने ॥ २ ॥ सर समहु सो छाड़ै लागा। जनु सपच्छ धाविहं बह नागा ॥ ु जहँ तहँ परत देिखअिहं बानर। सन्मुख होइ न सके तेिह अवसर ॥ ३ ॥ जहँ तहँ भािग चले किप रीछा। िबसरी सबिह जु कै ईछा ॥ सो किप भालु न रन महँ देखा। कीन्हेिस जेिह न ान अवसेषा ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 29 - लंकाकांड

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    दोहा दस दस सर सब मारेिस परे भूिम किप बीर। िसंहनाद किर गजार् मेघनाद बल धीर ॥ ५० ॥

    देिख पवनसुत कटक िबहाला। ोधवंत जनु धायउ काला ॥ महासैल एक तुरत उपारा। अित िरस मेघनाद पर डारा ॥ १ ॥ आवत देिख गयउ नभ सोई। रथ सारथी तुरग सब खोई ॥ बार बार पचार हनुमाना। िनकट न आव मरमु सो जाना ॥ २ ॥ रघुपित िनकट गयउ घननादा। नाना भाँित करेिस दबार्दा ॥ ु अ स आयुध सब डारे। कौतुकहीं भु कािट िनवारे ॥ ३ ॥ देिख ताप मूढ़ िखिसआना। करै लाग माया िबिध नाना ॥ िजिम कोउ करै गरुड़ सैं खेला। डरपावै गिह स्वल्प सपेला ॥ ४ ॥

    दोहा

    जासु बल माया बल िसव िबरंिच बड़ छोट। तािह िदखावइ िनिसचर िनज माया मित खोट ॥ ५१ ॥

    नभ चिढ़ बरष िबपुल अंगारा। मिह ते गट होिहं जलधारा ॥ नाना भाँित िपसाच िपसाची। मारु काट धिुनु बोलिहं नाची ॥ १ ॥ िब ा पूय रुिधर कच हाड़ा। बरषइ कबहँ उपल बह छाड़ा ॥ ु ु बरिष धूिर कीन्हेिस अँिधआरा। सूझ न आपन हाथ पसारा ॥ २ ॥ किप अकुलाने माया देखें। सब कर मरन बना एिह लेखें ॥ कौतुक देिख राम मुसुकाने। भए सभीत सकल किप जाने ॥ ३ ॥ एक बान काटी सब माया। िजिम िदनकर हर ित