सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm...

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1 ईरीय स देश सवधमवपरियय मेक शिण ज।। 18/66 कलिय ग के अ त म ही सब धमम और धमलिताएँ होते ह। अभी उन सब बाि का बाि, ीम सोि आया हुआ है , जो गीता का स देश दे रहा है। सतय ग (नई द नयम) आने मली है। कनलय ग (प िमनी द नयम) जमने मली है। भगमन समकमि आयम ह आ है। लि का लिता सबको एक साथ, एक सू म बाँधने के लिए आया हुआ है। लि का लिता लिनाथको िहचानगे तो सारी द लनया एक सू म बँध जाएगी। ऐडम/आदम/आलददेि/आलदनाथ के ऱि म हर धमम लजसकी मायता है , िह जब सारी द लनया के लि धम को एक सू म बाँधने के लिए आता है , उसी समय का गायन है- लहद , लिम-लसख-ईसाई, सब आिस म भाई-2, एक िरमलिता की स तान ह। गीतम कम भगमन कलमओ बधमयमन कृण+चर म नह, कलमतीत मन-स यव समकमि-ननिमकमि कम ेल नशबमबम नल ग-ऱप है। सय का लिभाि होता है लक िह लजतना तटलथ होता है उतना ही स िदनशीि भी। ठीक उसी तरह से शद ककठोरता म सय के ममम को , उसके भाि को और लिषय की ग भीरता को समझने का अलधक यास लकया जाए, यही हमारा न लनिेदन है। ीमगिीता, एक ऐसा अनोखा शा जो मानि-जीिन के लिए अमूय है , ऐसी एकमेि लििण रचना लजसे भगिानुिाचकी मायता ा है। िेदयास ारा स कलित इस रचना का भूतकाि म भी बहुत महि रहा है , तो ितमान म भी काफी िोकलय है। भारतीय स लकृ लत के ही नह; अलितु अ तरामरीय लतर िर भी अनेक लिान, ि लडत, तििालदय को आकलषमत करने म ीमगिीता सिमेस लथान िर ही है। आज लजतनी टीकाएँ ीमगिीता िर की गई ह , इतनी टीकाएँ कदालचत् ही लकसी शा िर की गई हगी और सबसे अचरज करने िािी बात यह है लक एक टीका द सरी टीका को काटने िािी भी है। इसके िात् भी गीता की िोकलयता कम नह हुई; ितु या ीमगिीता िालति म इतनी महान है ? मानि को ईर से जोड़ने का सामयम रखने िािी गीता या आज मानि को मानिता से जोड़ िाई? ितमान िीढ़ी को िुरातन स लकृ लतय से सचने म , यथाथम धालमक स िदनाओ एि लिचार से िोलषत करने म या ीमगिीता सफि हो ि? अनेक धमम एि धममशा के आड बर म चि रहे मनुय सलहत अय जीि के रिात की उरालधकारी या समलत धममशा की माई-बाि ीमगिीता नह है ? इस कार की कई बात सदैि ीमगिीता के सामयम िर लच

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Page 1: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

1

ईशवरीय सदश

सरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज 1866

कलियग क अत म ही सब धमम और धममलिताए होत ह

अभी उन सब बािो का बाि सपरीम सोि आया हआ ह

जो गीता का सदश द रहा ह

सतयग (नई दननयम) आन रमली ह

कनलयग (पिमनी दननयम) जमन रमली ह

भगरमन समकमि र आयम हआ ह

लिशव का लिता सबको एक साथ एक सतर म बाधन क लिए आया हआ ह

लिशव का लिता lsquoलिशवनाथrsquo को िहचानग तो सारी दलनया एक सतर म बध जाएगी

ऐडमआदमआलददिआलदनाथ क रि म हर धमम म लजसकी मानयता ह

िह जब सारी दलनया क लिशव धमो को एक सतर म बाधन क लिए आता ह

उसी समय का गायन ह- लहनद मललिम-लसकख-ईसाई

सब आिस म भाई-2 एक िरमलिता की सतान ह

गीतम कम भगरमन कलमओ र बनधमयरमन कषण+चनर रमा नही कलमतीत जञमन-सयव

समकमि-ननिमकमि कम रल नशरबमबम नलग-रप ह

सतय का लिभाि होता ह लक िह लजतना तटलथ होता ह उतना ही सिदनशीि भी ठीक उसी तरह स शबदो की

कठोरता म सतय क ममम को उसक भाि को और लिषय की गभीरता को समझन का अलधक परयास लकया जाए यही हमारा

नमर लनिदन ह

शरीमदभगिदगीता एक ऐसा अनोखा शासतर जो मानि-जीिन क लिए अमलय ह ऐसी एकमि लििकषण रचना लजस

lsquoभगिानिाचrsquo की मानयता परापत ह िदवयास दवारा सकलित इस रचना का भतकाि म भी बहत महति रहा ह तो ितममान

म भी काफी िोकलपरय ह भारतीय सलकलत क ही नही अलित अतरामषटरीय लतर िर भी अनक लिदवान िलडत ततििालदयो

को आकलषमत करन म शरीमदभगिदगीता सिमशरषठ लथान िर ही ह आज लजतनी टीकाए शरीमदभगिदगीता िर की गई ह इतनी

टीकाए कदालचत ही लकसी शासतर िर की गई होगी और सबस अचरज करन िािी बात यह ह लक एक टीका दसरी टीका

को काटन िािी भी ह इसक िशचात भी गीता की िोकलपरयता कम नही हई िरत कया शरीमदभगिदगीता िालति म इतनी

महान ह मानि को ईशवर स जोड़न का सामरथयम रखन िािी गीता कया आज मानि को मानिता स जोड़ िाई ितममान िीढ़ी

को िरातन सलकलतयो स सीचन म यथाथम धालममक सिदनाओ एि लिचारो स िोलषत करन म कया शरीमदभगिदगीता सफि हो

िाई अनक धमम एि धममशासतरो क आडबर म चि रह मनषटयो सलहत अनय जीिो क रकतिात की उततरालधकारी कया समलत

धममशासतरो की माई-बाि शरीमदभगिदगीता नही ह इस परकार की कई बात सदि शरीमदभगिदगीता क सामरथयम िर परशनलचहन

2

िगाती ह लिषादयोग स मोकषसनयासयोग तक की मानिीय जीिन की यातरा लजस गीता क अधयायो म समाई हई ह आज

परतीत होता ह लक उसी गीता न समलत ससार को लिषाद क समदर म िाकर खड़ा कर लदया ह

गीता परमी एि अनयालययो क लिए यह लिीकार करना कलठन होगा यलद उनस समाज क ितममान ललथलत का कारण

िछा जाए तो कदालचत ि अनय धमो ि उनक परणताओ को दोषी ठहराए या लफर िाशचातय सलकलत एि लिजञान को लजममदार

मान िरत हमारी सनातन सलकलत हम उननलत की सीढ़ी लिाधयाय अथामत लिलचतन की अनमलत दती ह न लक ितन की जड़

िरलचतन की इसलिए अनय धमम अथिा िाशचातय सलकलत एि लिजञान को दोषी मानन स ििम हम हमारी सलकलतयो क सामरथयम

का लिशलषण करना होगा हम ितममान शरीमदभगिदगीता क मानिीय अधययन एि टीकाओ म दोष ढढ़ना होगा कयोलक मि

ितन का कारण इनही मानिीय टीकाओ म लछिा हआ ह आइए गीता की लनषटफिता को जानन का परयास करत ह -

गीता एक सरि और सहज कलिता ह तो साथ ही रहलयो स भरी िहिी भी गीता क परतयक अधयाय म योग जड़ा

ह- भलकतयोग साखययोग जञानयोग कममयोग इतयालद योग का अथम ही ह- यकत होना जड़ना िरत लकसस गीता म ही एक

शबद आया ह 1lsquolsquoमनमनाभिrsquorsquo अथामत lsquoमर मन म समा जानाrsquo इसका सरि अथम यह हआ लक ईशवर स योगयकत होकर

ही परतयक अधयाय का अधययन करना अलनिायम ह तब ही सही रि स गीता िर लिशलषण सभि ह इसलिए परतयक अधयाय

क नाम म lsquoयोगrsquo शबद जड़ा ह िरत lsquoमनमनाभिrsquo का अथम यही िर समापत नही होता गीता म ही आया ह- 2lsquolsquoइलियो स

परबि मन ह और मन स परबि बलि और बलि स परबि बलिमानो की बलि िह ईशवर हrsquorsquo जब ईशवर को इलिय मन एि

बलि स िर और शरषठ माना गया ह तो ईशवर क मन म समा जान िािी बात का कया मतिब ह जब तक यह बात लिषट न

हो तब तक हम गीता का अधययन कस कर

ईशवर स योग िगान क लिए सबस महतििणम बात ह- ईशवर को जानना लबना जान लकसी स हम यकत कस हो सकत ह हम लजतना ईशवर को जान िाएग उतना ही हमारा उनस योग िगता जाएगा इसलिए गीता म भी आया ह-

3lsquolsquoयोग और जञान को बाि बलि अिग-2 समझत ह िलडतजन नहीrsquorsquo लकनत कया हम ईशवर को यथाथम रि स जान सक

ह तो इसक लिए गीता म आया ह लक 4lsquolsquoईशवर को न दिगण जानत ह न दानिrsquorsquo 5

lsquolsquoईशवर का िररचय ईशवर क

लसिाय कोई द नही सकताrsquorsquo अथामत लकसी भी मनषटय की टीका ईशवर क सचच लिरि का िररचय द ही नही सकती और

जो गीता की टीकाए ईशवर का सतय िररचय द नही सकती िह सचची गीता की टीकाए थोड़ ही ह िह तो झठी अथिा

खलडत गीता की टीकाए ही मानी जाएगी तो लफर गीता की जो इतनी टीकाए हई ह और इसक आधार िर िोगो दवारा जो

अनसरण हो रहा ह इसका कया मतिब ह य टीकाए हम लकस ओर ि जा रही ह ज़रर झठी दलनया म ि जा रही ह

ईशवर का िररचय जब लिय ईशवर ही द सकता ह तो उनह ही इस सलषट म अितररत होना होगा और अितररत होकर

अिना िररचय दना होगा यह लिय ईशवर का िररचय ही सचची गीता कही जाएगी इसलिए गीता लिय भगिानिाच कही

गई ह लकनत लिडमबना यह ह लक गीता क भािाथम को लजन टीकाओ दवारा जाना और माना जा रहा ह िह तो सब

मनषटयोिाच ह

गीता क गभम म धालममक राजनलतक सामालजक एि वयलकतगत जीिन क समाधानो का रहलय लछिा हआ ह लकनत

मनषटयो दवारा की गई िजनीय गीता की टीकाओ क लिशलषण स जो लनकिा िह समि-मथन क हिाहि लिष समान

1 मनमना भि मदभकतः मदयाजी माम नमलकर 934 1865

2 इलनियालण िरालण आहः इलनियभयः िरम मनः मनसः त िरा बलिः यः बिः िरतः त सः 342

3 साखययोगौ िथक बािाः परिदलनत न िलडडताः 54

4 न लह त भगिन वयलकतम लिदः दिाः न दानिाः 1014

5 लियम एि आतमना आतमानम ितथ तिम िरषोततम 1015

3

वयलभचार एि भरषटाचार स भरा किि सासाररक ितन मातर ही ह लजस परकार दध स भरी मटकी म अश मातर भी लिष िड़

जाए तो िह मटकी िरी-की-िरी लिषिी हो जाती ह ठीक उसी परकार गीता असिी दध की भरी हई मटकी ह लजसम

लिलभनन मानिीय टीकाओ का लिष भर चका ह कयोलक मनषटयमातर लिय ही लिषय-लिकारो का चतनय ितिा ह और

िरमलिता िरमातमा क िरमाथम भाि स रची शरीमदभगिदगीता का मनषटयो दवारा लकया गया लिशलषण भगिानिाच गीता क

महातमय को भग करता ह कयोलक हर 6मनषटय लिाथी ही होता ह (लि+शरीर रिी रथ) भि गीता रिी साधन लकतना

भी िलितर हो लकनत लिकारी साधक की लिारथ स भरी साधना इसी िलितर गीता को अिनी टीकाओ दवारा समाज क लिए

अलभशाि बना दती ह यही हआ ह और अभी भी हो रहा ह इसीलिए समलत मानि समाज लिकारो क ितन क गतम म जा रहा ह य टीकाए ही बहत बड़ा अधमम ह और इसी अधमम को लमटान क लिए िरमलिता अितररत होत ह

अिना िररचय दन अथामत गीता को यथाथम समझान हत जब िरमलिता इस सलषट म आत ह तो कया हमारी और

आिकी तरह लथि गभम म िककर जनम ित ह कया भरषट इलियो क लिकारी कतय स उतिनन होत ह इसी बात को लिषट करत

हए गीता म कई बार आया ह लक 7lsquolsquoिरमलिता िरमातमा का जनम और कमम लदवय हrsquorsquo (गीता 49) अथामत िरमलिता

िरमातमा अजनमा ह तो लफर अजनमा िरमलिता का इस सलषट म अितररत होना कस सभि हो सकता ह इसक लिए भी

गीता म आया ह लक 8lsquolsquoिरमलिता जानन दखन तथा परिश करन योगय हrsquorsquo (1154) यलद लनराकार आतमाओ का बाि

जयोलतलबद की भालत अणोः अणीयासम (अण स भी अण) ह तो उनह अिशय लकसी एक मानिीय मकरमर शरीरधारी म ही

परिश करना िड़गा और िचततिो स बन लकसी शरीर म आना होगा अब अजनमा िरमलिता को यलद इस परकार स अितररत

होना िड़ तो य किि परिशता स ही सभि ह इसलिए उनह परिश करन योगय भी कहा ह उनह लकसी मनषटय तन

आदमऐडमआलददि शकरआलदनाथ कह जान िाि मनषटय-आतमा म परिश करना िड़ अथामत 9lsquolsquoअजनमा िरमलिता इस

सलषट म आकर जनम-मरण क चकर म आन िाि लनलसदह लकसी लिशष मनषटय-तन का आधार िकर उसम परिश कर अिन

अधीन रख िाटम बजात हrsquorsquo िरमलिता इसी वयलकतति दवारा अथामत िरबरहम यानी लतरमलतम लशि की अवयकत-मलतम (अवयकतमलतमना

94) दवारा रची गई नई बराहमण सो दिता सलषट की लथािना िरानी बराहमणो की सलषट का लिनाश और नई सलषट की िािना का

कायम करत ह और इसी साकार लिरि सगण क मन म समा जान को ही lsquoमनमनाभिrsquo कहा जाता ह यही सारी मनषटय-सलषट

का िह क ि लबनद ह जो गीता को योगय एि अयोगय लसि करता ह इसी बात िर गीता की टीकाओ क खलडत होन का

आधार जड़ा ह अथामत गीता म आए समलत दोषो की शरआत इसी तरथय को न समझन क कारण हई ह कस

मनमनाभि क उिरोकत अथम को न मानन और न जानन स जो भयकर भि मानिीय टीकाकारो दवारा हई ह िह लनमन

परकार स ह -

पिरनपतम पिरमतरम सरववयमपी ह यम एकवयमपी - अितार का अथम ही ह- ऊिर (गीता 156) स नीच उतरना या आना अथामत िरमलिता का अितरण यही बताता ह लक िरमलिता कही ऊिर स इस मानिीय सलषट िर आत ह इसस लिषट

हो जाता ह लक िरमलिता इस ससार म नही रहत तो सिमवयािी कस हए गीता म भी आया ह लक 10

lsquolsquoिरमलिता उस

िरमधाम का रहन िािा ह लजस न सयम न चि और न ही अलगन परकालशत करती हrsquorsquo जब िरमलिता िरमधामिासी ह तो

सिमवयािी कस हो सकत ह िरत गीता की समलत मानिीय टीकाए िरमलिता को सिमवयािी ही घोलषत करती ह अब इसका

6 सर नर मलन सबकी यह रीलत लिारथ िाग कर सब परीलत

7 जनम कमम च म लदवयम एिम यः िलतत तततितः तयकतिा दहम िनः जनम न एलत माम एलत सः अजमन 49

8 जञातम िषटम च तततिन परिषटम च िरति 1154

9 अजः अलि सन अवययातमा भतानाम ईशवरः अलि सन परकलतम लिाम अलधषठाय समभिालम आतममायया 46

10 न तत भासयत सयमः न शशाकः न िािकः यत गतिा न लनितमनत तत धाम िरमम मम 156

4

कारण कया ह गीता क ही शलोको क कछ बसमझी क अनलतक अथो को उठाकर िरमलिता की सिमवयािकता िािी टीका

की गई ह इनम सबस अलधक भि की गई ह समलत लिभलतयोग क अधयाय को समझन म जस इस अधयाय म कहा गया ह लक 11

नलदयो म गगा ह िशओ म लसह ह आलदतयो म लिषटण ह इतयालद इनह िढ़ ऐसा परतीत होता ह जस िरमलिता

िरमातमा लभनन-2 योलनयो की शरलणयो क रि म अिनी उिललथलत को बता रह ह लकनत यह समझ भि मातर ही ह इस भि

को गभीरता स समझन का परयास करत ह -

सिमपरथम lsquoलिभलतrsquo शबद को जानन का परयास करत ह लिभलत का सलकत अथम ह- लि(लिशष) + भलत(जनम) अथामत

लिशष रि स जनम िन िािा जब जनम ही लिशष ह तो लिषट ह लक िह किि िरमलिता की ही बात ह जो अजनमा होत हए िरकाया परिश कर लदवय अिौलकक जनम ित ह बाकी सभी का जनम तो साधारण शारीररक परलकरया क तौर िर होता

ह तो उसम लिशष कया ह और जब लिशष नही ह तो लिभलत कस ह तो लिभलत सिमवयािी कस हो सकता ह

दसरी बात हम यह समझना ह लक लभनन-2 शरणी की योलनयो को ही भगिान का अिना रि कहा गया ह सभी

िरमलिता िरमातमा नही ह जस- िरमातमा को नलदयो म गगा बताया ह तो इसस लिषट ह लक अनय नलदयो को िरमातमा नही

माना गया ह आलदतयो म लिषटण बताया ह तो इसका तातियम ह लक अनय दिताए िरमातमा रि नही ह शसतरधाररयो म राम

यलद िरमातमा ह तो अनय शसतरधारी कोई भी िरमातमा नही ह इसी परकार जो सिमशरषठ ह उस ही िरमातमा का रि माना गया

ह यहा िर िरमातमा की सिमवयािकता की बात तो खाररज हो जाती ह लकनत िरमातमा लफर भी अनकवयािी लसि हो रह

ह जो लक गित ही ह इसक लिए गीता म आया ह- 12lsquolsquoजो भी कोई ऐशवयमिान शलकतिान शरषठ बलिमान ह उसको

मर अथामत िरमलिता िरमातमा क तज क अश स उतिनन हआ जानrsquorsquo तज क अश स उतिनन होन का कया अथम ह लजस

परकार लकसी सदर बलिषठ बलिमान वयलकत को अिन समान ितर परापत हो तो यही कहा जाता ह लक ितर को यह तज अिन

लिता स परापत ह उसी वयलकत क अनक बचच होन िर भी उसकी लज़ममदारी उठाकर उसक सिनो को िरा करन िाि उसको

गौरिालनित करन िाि ितर को ही िह अिना मानता ह अिना रि समझता ह िरत इसस कया लिता और ितर को एक ही

माना जाएगा कया लिता का और ितर का अिना-2 वयलकतगत अललतति नही रहता ठीक इसी परकार इन लिभलतयो का भी

अथम ह जो कोई भी लनराकार िरमलिता िरमातमा क साकार वयलकतति स मनमनाभि की ललथलत परापत करता ह उस िरमलिता

िरमातमा क योग रिी तज का िह परभाि िरषाथम अनसार नबरिार परापत होता ह लजसस िह शरषठ ऊच और महान लसि

होता ह यह जो आधयालतमक परतयकषता रिी जनम होता ह िह लिशष जनम अथामत लिभलत माना जाता ह लिभलतया सभी

िरमलिता िरमातमा क आतमा रिी बचच ह िरत उन सभी मनषटय-आतमाओ को िरमातमा समझना- यह मखमतािणम भि ह

एक और उदाहरण स इस गभीर लिषय को समझन की चषटा करत ह जस जड़ सयम सतत अिनी ऊजाम को रोशनी

एि गमी क रि म लिशव-कलयाण हत दता रहता ह इस सौर ऊजाम स हम बटरी को उसकी कषमता अनसार चाजम कर अिन

कायम म िगा सकत ह इस कारण यलद कोई बटरी को ही lsquoसयमrsquo कहन िग तो उस कया कहग अिशय मखम ही कहग

लिभलतयो को समझन म यही भि हई ह कई आतमा रिी बटरीज़ अिनी यथासभि योगशलकत चतयमगी क अत म साकार

म आए लनराकार िरमलिता िरमातमा रिी चतनय जञान शलकत-सयम स मनमनाभि होकर अिन भीतर भी नबरिार िरषाथम अनसार भर िती ह और जो अलधकालधक योगशलकत को भर िाती ह उनह यहा िर लिभलत कहा गया ह इसी भाि को लिषट

रि स समझान क लिए समिणम जञानाजमन करन िाि अजमन को समझात हए भगिान कहत ह लक 13ldquoमर अनक लिभलतयो

को जानन स कया परयोजन म इस समिणम जगत को अिन एक अश दवारा लटका करक ललथत ह rdquo अथामत एक ही िह

जयोलतलबनद रि लशिलिग शरीरधारी आतमा ह लजसक (आतमा+शरीर) दवारा समलत जड़-जगम जगत को लटकाकर

11 अधयाय-10 क शलोक 21 स 38 दख

12 यत यत लिभलतमत सततिम शरीमत ऊलजमतम एि िा तत तत एि अिगचछ तिम मम तजोऽशसमभिम 1041

13 अथिा बहना एतन लकम जञातन ति अजमन लिषटभय अहम इदम कतलनम एकाशन ललथतः जगत 1042

5

िरमलिता अिन िरमधाम म ललथत ह साकार म आए िरमलिता िरमातमा लिरि की यही यादयोग कही जान िािी याद

की शलकत ही िालति म समलत आतमाओ म वयापत होती ह सभी क अदर समलत जड़-जगम जगत म िरमलिता िरमातमा क

उस साकार लिरि की नबरिार याद समाई हई होती ह इस कारण ही गीता म बताया ह लक 14

lsquolsquoिरमातमा सभी भतो क

हदय अथामत मन म ललथत हrsquorsquo िरत इस बात को भी िणम तरह स लनरथमक रि म उठाकर िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी

मान लिया गया जो लक बड़-त-बड़ा झठ ह

इस लिभलतयोग क लिषय स मनषटय सिमवयािी रिी लिष को ही उतिनन करगा यह सिमजञ िरमलिता िरमातमा तो

जानत ही थ इसलिए लिभलतयोग नामक 10ि अधयाय स ििम ही 9ि अधयाय म िरमातमा की सिमवयािकता की बात को

िहि स ही खाररज कर लदया ह इसम बताया गया ह लक 15lsquolsquoसमलत भत िरमातमा म ललथत ह िरत िरमातमा उन भतो

म नही हrsquorsquo इसस यह लसि होता ह लक जो भी लिभलतयो सलहत अनय भतपराणी ह उनम िरमातमा वयापत नही ह इसी जञान

को समलत लिदयाओ म और लिदयाओ की गोिनीयता म lsquoराजाrsquo कहा गया ह कदालचत इसलिए ही इस 9ि अधयाय का नाम

भी lsquoराजलिदयाराजगहययोगrsquo रखा गया ह इतना ही नही िरत िरमलिता की सिमवयािकता िािी बात को खाररज करन िाि

इस जञान को 16lsquolsquoधमामनकि सहज एि अलिनाशी भी बताया गया हrsquorsquo lsquoपरतयकषािगमrsquo कहत हए यह भी लसि कर

लदया लक यह जञान िरमलिता िरमातमा क परतयकष लिरि दवारा ही जाना जाता ह इसलिए इस िर शरिा न रखकर िरमलिता

को सिमवयािी मानन िाि को िरमातमा कभी भी परतयकष रि स परापत नही हो सकत ह बललक ि और ही अधोगलत म जात

ह इतना तक लिषट बताया गया ह अथामत िरमातमा को सिमवयािी समझना ही समलत ससार की दगमलत का कारण ह यह

मि रि स लिषट हो चका ह यही बड़-स-बड़ा अधमम ह

पिरमतरम कम एकवयमपी सररप कौन - िरमलिता सिमवयािी नही ह यह बात तो लिषट हो गई लकनत िरमलिता का

एकवयािी लिरि कौन ह यह भी तो जानना ह िस तो समलत ससार साकार भगिान क रि म गीता जञानदाता शरीकषटण

को मानता ह इसलिए एकवयािी लिरि कौन- यह परशन थोड़ा-सा लिलचतर िगता ह िरत कया िालति म शरीकषटण िरमातमा

का लिरि ह कया शरीकषटण न ही शरीमदभगिदगीता का जञान समलत ससार को लदया था या लफर िरमलिता क सिमवयािी िाि

अजञान की भालत शरी कषटण को गीता जञानदाता समझना एक बड़ी भि तो नही आइए इस लिषय को भी समझन का परयास

करत ह -

माना जाता ह लक आज स 5000 िषम ििम दवािरयग क अत म शरी कषटण न महाभारत यि क समय अजमन को गीता-

जञान लदया था िरत कयो इसका उततर दत हए गीता म आया ह लक जब-2 सिमम की गिालन होती ह अधमम की अलत होती

ह तब साध-सतो की रकषा करन दराचाररयो का लिनाश करन एि समिणम धमम की लथािना करन म आता ह िलकन कया

िालति म अधमम का दराचाररयो का लिनाश हआ कया समिणम सतय सनातन धमम की लथािना हई कया साध-सतो की

रकषा हई आज क लहसाब स यह बहत बड़ा परशन ह लजसका उततर दन म समलत तथाकलथत लहनद िररिार असमथम ह कयोलक

अधमम और दराचाररयो का आज कलियग म और भी अलधक बोिबािा ह िस भी अधमम की अलत तो कलियग क अत

म होती ह न लक दवािरयग म अथामत िरमलिता का िालतलिक अितरण परतयकष रि स कलियग अत म ही होता ह इतना ही नही कछ और भी ऐसी बात ह लजनका समाधान लिषट रि स नही हो िा रहा िहिी बात तो यह ह लक शासतरो म कहा

गया ह लक सतयग-तरतायग स किाए लगरत-2 दवािरयग क अत तक किि 8 स भी कम किाए शष रह जाती ह तो उस

दवािर यग म 16 किा समिणम शरी कषटण को कस लदखाया गया ह दसरी बात जहा गीता म एक तरफ आया ह लक

14 अहम आतमा गडाकश सिमभताशयललथतः 1020

15 मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

16 राजलिदया राजगहयम िलितरम इदम उततमम परतयकषािगमम धमयमम ससखम कतमम अवययम 92

6

17

lsquolsquoलिशव म दो परकार की सलषट होती ह- एक दिताओ की और दसरी असरो कीrsquorsquo िही दसरी ओर यह भी आया ह लक

18

lsquolsquoमरी एकमातर अधयकषता क कारण स ही परकलत समलत जगत को lsquoलििररितमतrsquo अथामत लििरीत लदशा म िररिलतमत

करती हrsquorsquo इसका सीधा अथम ह लक इस ससार का कािचकर सतयग-तरतायग स दवािरयग-कलियग की लगरती लदशा म

अथामत दिताई-सलषट स आसरी-सलषट की ओर परकलत क गणो क आधार स घमता ह लकनत िरमलिता की अधयकषता म

परकलत इस तरह स लििरीत लदशा म िररिलतमत हो ऊिर उठ जाती ह लक नए यग सतयग आलद का ही आरभ होता ह अथामत

दिी-सलषट क लनमामण हत ही िरमलिता िरमातमा lsquoहलिनिी गॉडफादरrsquo इस सलषट म आत ह यह िरमलिता िरमातमा क

एकवयािी लिरि की अधयकषता म परकलत का lsquoलििररितमतrsquo लिरि ह यलद िरमलिता का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह

और यलद उनहोन दवािरयग क अत म गीता-जञान लदया तो बाद म िररणाम कया लनकिा और भी 19lsquolsquoअलधक िाखडी

घमडी अलभमानी कामी करोधी एि अजञानी आसरी सिलतत स परिि हआ िािी-अधमी कलियग आयाrsquorsquo यह तो

lsquoजगलदविररितमतrsquo नही हआ अथामत यहा िर यह लिषट हो जाता ह लक दवािर क अत म न तो गीता-जञान लदया गया था और

न ही िरमलिता िरमातमा का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह लकनत यह सतय ह लक इस परकार की भरालतयो स आसरी-सलषट

का लनमामण अिशय होता ह लजस आज हम सब दख रह ह

गीता म आया ह लक lsquolsquoिरमलिता िरमातमा क एकवयािी लिरि न समलत ससार को 20योग की दो लनषठाए िा

परणालिया बताई ह- जञालनयो को जञानयोग(साखय योग) और कालममक योलगयो को कममयोगrsquorsquo जञानयोग का अथम ह- िरी तरह

स कमो को तयागकर अिनी आतमा को लनराकारी-लनगमण ललथलत म लटकाकर िरमलिता िरमातमा क मन की लनःसकलिी

अिलथा म लिय को िीन करना और कममयोग का अथम ही ह- अिन कमो को िरमलिता िरमातमा की याद म रहत हए

उसक कममफि को बलि स तयागना शरी कषटण क जीिन म कही भी इन लनषठाओ का अनभि नही होता न ही उनका योग

म तलिीन रहन िािा दषटात शासतर म कोई ह और न ही कममयोगी क लिरि म लनषटकमम ललथलत को परापत कोई यादगार ह

लकनत शासतरो म एक ऐसा लिरि ह जो दोनो ही लनषठा को लिषट रि स लसि करता ह िह ह lsquoमहादि शकरrsquo समलत कमो

को तयाग कर अिन दहभान को राख बनाय (भलम लििटा) लिय को परकलत स लभनन मानत हए लनगमण लनराकार लनरजन

िरमलिता जयोलतलबद लशि म एक रि होन का (सबस ऊच किाश ििमत शखिा म) अभयास करत हए शकर को जञानयोग

अिलथा म आरढ़ होत हए तो सभी जानत और मानत ही ह इतना ही नही लकनत कममयोग क दलषटकोण स दखा जाए तो

भी कई दषटात परापत होत ह सागर-मथन क समय जब गिालन रिी अजञानता का सार ससार को हिचि म िान िािा

हिाहि लिष लनकिा तो उस िीन का सामरथयम लकसी म नही था लिषटण एि बरहमा म भी नही किि महादि शकर ही थ

लजनहोन अिना कतमवय समझ लिषिान लकया था उस लिष का अलनशचय रिी मतय का फि भी उनह परापत नही हआ कयोलक

ि कममयोगी बन लनषटकमम ललथलत को परापत कर चक थ गीता म भी शलोक आया ह- 21lsquolsquoलजसम म-िन का भाि न हो और

लजसकी बलि कमो म लिपत नही होती िह समलत ससार का नाश करन िर भी लकसी को नही मारता ह और न ही उस िर

मारन का दोष िगता हrsquorsquo अब लिनाश का िाटम भी शकर का ही ह लजसका उनह कोई दोष भी नही िगता इसस लसि हो

जाता ह लक दोनो ही योग लनषठा म महादि शकर स शरषठ और लसिहलत कोई भी नही इसलिए िालति म किि महादि

शकर या सनातन धमम क लथािक सनतकमार को ही lsquoयोगीराजयोगशवरrsquo और जञानशवर कहा जाना चालहए लकनत शरी कषटण

क भकतो की अधशरिा न लबना लकसी चाररतरय-परमाण क शरी कषटण को भी योगशवर मान लिया ह िस भी कहा ह लक 17 दवौ भतसगौ िोक अललमन दि आसर एि च 166

18 मया अधयकषण परकलतः सयत सचराचरम हतना अनन कौनतय जगत लििररितमत 910

19 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

20 िोक अललमन लदवलिधा लनषठा िरा परोकता मया अनघ जञानयोगन साखयानाम कममयोगन योलगनाम 33

21 यलय न अहकतः भािः बलिः यलय न लिपयत हतिा अलि स इमान िोकान न हलनत न लनबधयत 1817

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 2: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

2

िगाती ह लिषादयोग स मोकषसनयासयोग तक की मानिीय जीिन की यातरा लजस गीता क अधयायो म समाई हई ह आज

परतीत होता ह लक उसी गीता न समलत ससार को लिषाद क समदर म िाकर खड़ा कर लदया ह

गीता परमी एि अनयालययो क लिए यह लिीकार करना कलठन होगा यलद उनस समाज क ितममान ललथलत का कारण

िछा जाए तो कदालचत ि अनय धमो ि उनक परणताओ को दोषी ठहराए या लफर िाशचातय सलकलत एि लिजञान को लजममदार

मान िरत हमारी सनातन सलकलत हम उननलत की सीढ़ी लिाधयाय अथामत लिलचतन की अनमलत दती ह न लक ितन की जड़

िरलचतन की इसलिए अनय धमम अथिा िाशचातय सलकलत एि लिजञान को दोषी मानन स ििम हम हमारी सलकलतयो क सामरथयम

का लिशलषण करना होगा हम ितममान शरीमदभगिदगीता क मानिीय अधययन एि टीकाओ म दोष ढढ़ना होगा कयोलक मि

ितन का कारण इनही मानिीय टीकाओ म लछिा हआ ह आइए गीता की लनषटफिता को जानन का परयास करत ह -

गीता एक सरि और सहज कलिता ह तो साथ ही रहलयो स भरी िहिी भी गीता क परतयक अधयाय म योग जड़ा

ह- भलकतयोग साखययोग जञानयोग कममयोग इतयालद योग का अथम ही ह- यकत होना जड़ना िरत लकसस गीता म ही एक

शबद आया ह 1lsquolsquoमनमनाभिrsquorsquo अथामत lsquoमर मन म समा जानाrsquo इसका सरि अथम यह हआ लक ईशवर स योगयकत होकर

ही परतयक अधयाय का अधययन करना अलनिायम ह तब ही सही रि स गीता िर लिशलषण सभि ह इसलिए परतयक अधयाय

क नाम म lsquoयोगrsquo शबद जड़ा ह िरत lsquoमनमनाभिrsquo का अथम यही िर समापत नही होता गीता म ही आया ह- 2lsquolsquoइलियो स

परबि मन ह और मन स परबि बलि और बलि स परबि बलिमानो की बलि िह ईशवर हrsquorsquo जब ईशवर को इलिय मन एि

बलि स िर और शरषठ माना गया ह तो ईशवर क मन म समा जान िािी बात का कया मतिब ह जब तक यह बात लिषट न

हो तब तक हम गीता का अधययन कस कर

ईशवर स योग िगान क लिए सबस महतििणम बात ह- ईशवर को जानना लबना जान लकसी स हम यकत कस हो सकत ह हम लजतना ईशवर को जान िाएग उतना ही हमारा उनस योग िगता जाएगा इसलिए गीता म भी आया ह-

3lsquolsquoयोग और जञान को बाि बलि अिग-2 समझत ह िलडतजन नहीrsquorsquo लकनत कया हम ईशवर को यथाथम रि स जान सक

ह तो इसक लिए गीता म आया ह लक 4lsquolsquoईशवर को न दिगण जानत ह न दानिrsquorsquo 5

lsquolsquoईशवर का िररचय ईशवर क

लसिाय कोई द नही सकताrsquorsquo अथामत लकसी भी मनषटय की टीका ईशवर क सचच लिरि का िररचय द ही नही सकती और

जो गीता की टीकाए ईशवर का सतय िररचय द नही सकती िह सचची गीता की टीकाए थोड़ ही ह िह तो झठी अथिा

खलडत गीता की टीकाए ही मानी जाएगी तो लफर गीता की जो इतनी टीकाए हई ह और इसक आधार िर िोगो दवारा जो

अनसरण हो रहा ह इसका कया मतिब ह य टीकाए हम लकस ओर ि जा रही ह ज़रर झठी दलनया म ि जा रही ह

ईशवर का िररचय जब लिय ईशवर ही द सकता ह तो उनह ही इस सलषट म अितररत होना होगा और अितररत होकर

अिना िररचय दना होगा यह लिय ईशवर का िररचय ही सचची गीता कही जाएगी इसलिए गीता लिय भगिानिाच कही

गई ह लकनत लिडमबना यह ह लक गीता क भािाथम को लजन टीकाओ दवारा जाना और माना जा रहा ह िह तो सब

मनषटयोिाच ह

गीता क गभम म धालममक राजनलतक सामालजक एि वयलकतगत जीिन क समाधानो का रहलय लछिा हआ ह लकनत

मनषटयो दवारा की गई िजनीय गीता की टीकाओ क लिशलषण स जो लनकिा िह समि-मथन क हिाहि लिष समान

1 मनमना भि मदभकतः मदयाजी माम नमलकर 934 1865

2 इलनियालण िरालण आहः इलनियभयः िरम मनः मनसः त िरा बलिः यः बिः िरतः त सः 342

3 साखययोगौ िथक बािाः परिदलनत न िलडडताः 54

4 न लह त भगिन वयलकतम लिदः दिाः न दानिाः 1014

5 लियम एि आतमना आतमानम ितथ तिम िरषोततम 1015

3

वयलभचार एि भरषटाचार स भरा किि सासाररक ितन मातर ही ह लजस परकार दध स भरी मटकी म अश मातर भी लिष िड़

जाए तो िह मटकी िरी-की-िरी लिषिी हो जाती ह ठीक उसी परकार गीता असिी दध की भरी हई मटकी ह लजसम

लिलभनन मानिीय टीकाओ का लिष भर चका ह कयोलक मनषटयमातर लिय ही लिषय-लिकारो का चतनय ितिा ह और

िरमलिता िरमातमा क िरमाथम भाि स रची शरीमदभगिदगीता का मनषटयो दवारा लकया गया लिशलषण भगिानिाच गीता क

महातमय को भग करता ह कयोलक हर 6मनषटय लिाथी ही होता ह (लि+शरीर रिी रथ) भि गीता रिी साधन लकतना

भी िलितर हो लकनत लिकारी साधक की लिारथ स भरी साधना इसी िलितर गीता को अिनी टीकाओ दवारा समाज क लिए

अलभशाि बना दती ह यही हआ ह और अभी भी हो रहा ह इसीलिए समलत मानि समाज लिकारो क ितन क गतम म जा रहा ह य टीकाए ही बहत बड़ा अधमम ह और इसी अधमम को लमटान क लिए िरमलिता अितररत होत ह

अिना िररचय दन अथामत गीता को यथाथम समझान हत जब िरमलिता इस सलषट म आत ह तो कया हमारी और

आिकी तरह लथि गभम म िककर जनम ित ह कया भरषट इलियो क लिकारी कतय स उतिनन होत ह इसी बात को लिषट करत

हए गीता म कई बार आया ह लक 7lsquolsquoिरमलिता िरमातमा का जनम और कमम लदवय हrsquorsquo (गीता 49) अथामत िरमलिता

िरमातमा अजनमा ह तो लफर अजनमा िरमलिता का इस सलषट म अितररत होना कस सभि हो सकता ह इसक लिए भी

गीता म आया ह लक 8lsquolsquoिरमलिता जानन दखन तथा परिश करन योगय हrsquorsquo (1154) यलद लनराकार आतमाओ का बाि

जयोलतलबद की भालत अणोः अणीयासम (अण स भी अण) ह तो उनह अिशय लकसी एक मानिीय मकरमर शरीरधारी म ही

परिश करना िड़गा और िचततिो स बन लकसी शरीर म आना होगा अब अजनमा िरमलिता को यलद इस परकार स अितररत

होना िड़ तो य किि परिशता स ही सभि ह इसलिए उनह परिश करन योगय भी कहा ह उनह लकसी मनषटय तन

आदमऐडमआलददि शकरआलदनाथ कह जान िाि मनषटय-आतमा म परिश करना िड़ अथामत 9lsquolsquoअजनमा िरमलिता इस

सलषट म आकर जनम-मरण क चकर म आन िाि लनलसदह लकसी लिशष मनषटय-तन का आधार िकर उसम परिश कर अिन

अधीन रख िाटम बजात हrsquorsquo िरमलिता इसी वयलकतति दवारा अथामत िरबरहम यानी लतरमलतम लशि की अवयकत-मलतम (अवयकतमलतमना

94) दवारा रची गई नई बराहमण सो दिता सलषट की लथािना िरानी बराहमणो की सलषट का लिनाश और नई सलषट की िािना का

कायम करत ह और इसी साकार लिरि सगण क मन म समा जान को ही lsquoमनमनाभिrsquo कहा जाता ह यही सारी मनषटय-सलषट

का िह क ि लबनद ह जो गीता को योगय एि अयोगय लसि करता ह इसी बात िर गीता की टीकाओ क खलडत होन का

आधार जड़ा ह अथामत गीता म आए समलत दोषो की शरआत इसी तरथय को न समझन क कारण हई ह कस

मनमनाभि क उिरोकत अथम को न मानन और न जानन स जो भयकर भि मानिीय टीकाकारो दवारा हई ह िह लनमन

परकार स ह -

पिरनपतम पिरमतरम सरववयमपी ह यम एकवयमपी - अितार का अथम ही ह- ऊिर (गीता 156) स नीच उतरना या आना अथामत िरमलिता का अितरण यही बताता ह लक िरमलिता कही ऊिर स इस मानिीय सलषट िर आत ह इसस लिषट

हो जाता ह लक िरमलिता इस ससार म नही रहत तो सिमवयािी कस हए गीता म भी आया ह लक 10

lsquolsquoिरमलिता उस

िरमधाम का रहन िािा ह लजस न सयम न चि और न ही अलगन परकालशत करती हrsquorsquo जब िरमलिता िरमधामिासी ह तो

सिमवयािी कस हो सकत ह िरत गीता की समलत मानिीय टीकाए िरमलिता को सिमवयािी ही घोलषत करती ह अब इसका

6 सर नर मलन सबकी यह रीलत लिारथ िाग कर सब परीलत

7 जनम कमम च म लदवयम एिम यः िलतत तततितः तयकतिा दहम िनः जनम न एलत माम एलत सः अजमन 49

8 जञातम िषटम च तततिन परिषटम च िरति 1154

9 अजः अलि सन अवययातमा भतानाम ईशवरः अलि सन परकलतम लिाम अलधषठाय समभिालम आतममायया 46

10 न तत भासयत सयमः न शशाकः न िािकः यत गतिा न लनितमनत तत धाम िरमम मम 156

4

कारण कया ह गीता क ही शलोको क कछ बसमझी क अनलतक अथो को उठाकर िरमलिता की सिमवयािकता िािी टीका

की गई ह इनम सबस अलधक भि की गई ह समलत लिभलतयोग क अधयाय को समझन म जस इस अधयाय म कहा गया ह लक 11

नलदयो म गगा ह िशओ म लसह ह आलदतयो म लिषटण ह इतयालद इनह िढ़ ऐसा परतीत होता ह जस िरमलिता

िरमातमा लभनन-2 योलनयो की शरलणयो क रि म अिनी उिललथलत को बता रह ह लकनत यह समझ भि मातर ही ह इस भि

को गभीरता स समझन का परयास करत ह -

सिमपरथम lsquoलिभलतrsquo शबद को जानन का परयास करत ह लिभलत का सलकत अथम ह- लि(लिशष) + भलत(जनम) अथामत

लिशष रि स जनम िन िािा जब जनम ही लिशष ह तो लिषट ह लक िह किि िरमलिता की ही बात ह जो अजनमा होत हए िरकाया परिश कर लदवय अिौलकक जनम ित ह बाकी सभी का जनम तो साधारण शारीररक परलकरया क तौर िर होता

ह तो उसम लिशष कया ह और जब लिशष नही ह तो लिभलत कस ह तो लिभलत सिमवयािी कस हो सकता ह

दसरी बात हम यह समझना ह लक लभनन-2 शरणी की योलनयो को ही भगिान का अिना रि कहा गया ह सभी

िरमलिता िरमातमा नही ह जस- िरमातमा को नलदयो म गगा बताया ह तो इसस लिषट ह लक अनय नलदयो को िरमातमा नही

माना गया ह आलदतयो म लिषटण बताया ह तो इसका तातियम ह लक अनय दिताए िरमातमा रि नही ह शसतरधाररयो म राम

यलद िरमातमा ह तो अनय शसतरधारी कोई भी िरमातमा नही ह इसी परकार जो सिमशरषठ ह उस ही िरमातमा का रि माना गया

ह यहा िर िरमातमा की सिमवयािकता की बात तो खाररज हो जाती ह लकनत िरमातमा लफर भी अनकवयािी लसि हो रह

ह जो लक गित ही ह इसक लिए गीता म आया ह- 12lsquolsquoजो भी कोई ऐशवयमिान शलकतिान शरषठ बलिमान ह उसको

मर अथामत िरमलिता िरमातमा क तज क अश स उतिनन हआ जानrsquorsquo तज क अश स उतिनन होन का कया अथम ह लजस

परकार लकसी सदर बलिषठ बलिमान वयलकत को अिन समान ितर परापत हो तो यही कहा जाता ह लक ितर को यह तज अिन

लिता स परापत ह उसी वयलकत क अनक बचच होन िर भी उसकी लज़ममदारी उठाकर उसक सिनो को िरा करन िाि उसको

गौरिालनित करन िाि ितर को ही िह अिना मानता ह अिना रि समझता ह िरत इसस कया लिता और ितर को एक ही

माना जाएगा कया लिता का और ितर का अिना-2 वयलकतगत अललतति नही रहता ठीक इसी परकार इन लिभलतयो का भी

अथम ह जो कोई भी लनराकार िरमलिता िरमातमा क साकार वयलकतति स मनमनाभि की ललथलत परापत करता ह उस िरमलिता

िरमातमा क योग रिी तज का िह परभाि िरषाथम अनसार नबरिार परापत होता ह लजसस िह शरषठ ऊच और महान लसि

होता ह यह जो आधयालतमक परतयकषता रिी जनम होता ह िह लिशष जनम अथामत लिभलत माना जाता ह लिभलतया सभी

िरमलिता िरमातमा क आतमा रिी बचच ह िरत उन सभी मनषटय-आतमाओ को िरमातमा समझना- यह मखमतािणम भि ह

एक और उदाहरण स इस गभीर लिषय को समझन की चषटा करत ह जस जड़ सयम सतत अिनी ऊजाम को रोशनी

एि गमी क रि म लिशव-कलयाण हत दता रहता ह इस सौर ऊजाम स हम बटरी को उसकी कषमता अनसार चाजम कर अिन

कायम म िगा सकत ह इस कारण यलद कोई बटरी को ही lsquoसयमrsquo कहन िग तो उस कया कहग अिशय मखम ही कहग

लिभलतयो को समझन म यही भि हई ह कई आतमा रिी बटरीज़ अिनी यथासभि योगशलकत चतयमगी क अत म साकार

म आए लनराकार िरमलिता िरमातमा रिी चतनय जञान शलकत-सयम स मनमनाभि होकर अिन भीतर भी नबरिार िरषाथम अनसार भर िती ह और जो अलधकालधक योगशलकत को भर िाती ह उनह यहा िर लिभलत कहा गया ह इसी भाि को लिषट

रि स समझान क लिए समिणम जञानाजमन करन िाि अजमन को समझात हए भगिान कहत ह लक 13ldquoमर अनक लिभलतयो

को जानन स कया परयोजन म इस समिणम जगत को अिन एक अश दवारा लटका करक ललथत ह rdquo अथामत एक ही िह

जयोलतलबनद रि लशिलिग शरीरधारी आतमा ह लजसक (आतमा+शरीर) दवारा समलत जड़-जगम जगत को लटकाकर

11 अधयाय-10 क शलोक 21 स 38 दख

12 यत यत लिभलतमत सततिम शरीमत ऊलजमतम एि िा तत तत एि अिगचछ तिम मम तजोऽशसमभिम 1041

13 अथिा बहना एतन लकम जञातन ति अजमन लिषटभय अहम इदम कतलनम एकाशन ललथतः जगत 1042

5

िरमलिता अिन िरमधाम म ललथत ह साकार म आए िरमलिता िरमातमा लिरि की यही यादयोग कही जान िािी याद

की शलकत ही िालति म समलत आतमाओ म वयापत होती ह सभी क अदर समलत जड़-जगम जगत म िरमलिता िरमातमा क

उस साकार लिरि की नबरिार याद समाई हई होती ह इस कारण ही गीता म बताया ह लक 14

lsquolsquoिरमातमा सभी भतो क

हदय अथामत मन म ललथत हrsquorsquo िरत इस बात को भी िणम तरह स लनरथमक रि म उठाकर िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी

मान लिया गया जो लक बड़-त-बड़ा झठ ह

इस लिभलतयोग क लिषय स मनषटय सिमवयािी रिी लिष को ही उतिनन करगा यह सिमजञ िरमलिता िरमातमा तो

जानत ही थ इसलिए लिभलतयोग नामक 10ि अधयाय स ििम ही 9ि अधयाय म िरमातमा की सिमवयािकता की बात को

िहि स ही खाररज कर लदया ह इसम बताया गया ह लक 15lsquolsquoसमलत भत िरमातमा म ललथत ह िरत िरमातमा उन भतो

म नही हrsquorsquo इसस यह लसि होता ह लक जो भी लिभलतयो सलहत अनय भतपराणी ह उनम िरमातमा वयापत नही ह इसी जञान

को समलत लिदयाओ म और लिदयाओ की गोिनीयता म lsquoराजाrsquo कहा गया ह कदालचत इसलिए ही इस 9ि अधयाय का नाम

भी lsquoराजलिदयाराजगहययोगrsquo रखा गया ह इतना ही नही िरत िरमलिता की सिमवयािकता िािी बात को खाररज करन िाि

इस जञान को 16lsquolsquoधमामनकि सहज एि अलिनाशी भी बताया गया हrsquorsquo lsquoपरतयकषािगमrsquo कहत हए यह भी लसि कर

लदया लक यह जञान िरमलिता िरमातमा क परतयकष लिरि दवारा ही जाना जाता ह इसलिए इस िर शरिा न रखकर िरमलिता

को सिमवयािी मानन िाि को िरमातमा कभी भी परतयकष रि स परापत नही हो सकत ह बललक ि और ही अधोगलत म जात

ह इतना तक लिषट बताया गया ह अथामत िरमातमा को सिमवयािी समझना ही समलत ससार की दगमलत का कारण ह यह

मि रि स लिषट हो चका ह यही बड़-स-बड़ा अधमम ह

पिरमतरम कम एकवयमपी सररप कौन - िरमलिता सिमवयािी नही ह यह बात तो लिषट हो गई लकनत िरमलिता का

एकवयािी लिरि कौन ह यह भी तो जानना ह िस तो समलत ससार साकार भगिान क रि म गीता जञानदाता शरीकषटण

को मानता ह इसलिए एकवयािी लिरि कौन- यह परशन थोड़ा-सा लिलचतर िगता ह िरत कया िालति म शरीकषटण िरमातमा

का लिरि ह कया शरीकषटण न ही शरीमदभगिदगीता का जञान समलत ससार को लदया था या लफर िरमलिता क सिमवयािी िाि

अजञान की भालत शरी कषटण को गीता जञानदाता समझना एक बड़ी भि तो नही आइए इस लिषय को भी समझन का परयास

करत ह -

माना जाता ह लक आज स 5000 िषम ििम दवािरयग क अत म शरी कषटण न महाभारत यि क समय अजमन को गीता-

जञान लदया था िरत कयो इसका उततर दत हए गीता म आया ह लक जब-2 सिमम की गिालन होती ह अधमम की अलत होती

ह तब साध-सतो की रकषा करन दराचाररयो का लिनाश करन एि समिणम धमम की लथािना करन म आता ह िलकन कया

िालति म अधमम का दराचाररयो का लिनाश हआ कया समिणम सतय सनातन धमम की लथािना हई कया साध-सतो की

रकषा हई आज क लहसाब स यह बहत बड़ा परशन ह लजसका उततर दन म समलत तथाकलथत लहनद िररिार असमथम ह कयोलक

अधमम और दराचाररयो का आज कलियग म और भी अलधक बोिबािा ह िस भी अधमम की अलत तो कलियग क अत

म होती ह न लक दवािरयग म अथामत िरमलिता का िालतलिक अितरण परतयकष रि स कलियग अत म ही होता ह इतना ही नही कछ और भी ऐसी बात ह लजनका समाधान लिषट रि स नही हो िा रहा िहिी बात तो यह ह लक शासतरो म कहा

गया ह लक सतयग-तरतायग स किाए लगरत-2 दवािरयग क अत तक किि 8 स भी कम किाए शष रह जाती ह तो उस

दवािर यग म 16 किा समिणम शरी कषटण को कस लदखाया गया ह दसरी बात जहा गीता म एक तरफ आया ह लक

14 अहम आतमा गडाकश सिमभताशयललथतः 1020

15 मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

16 राजलिदया राजगहयम िलितरम इदम उततमम परतयकषािगमम धमयमम ससखम कतमम अवययम 92

6

17

lsquolsquoलिशव म दो परकार की सलषट होती ह- एक दिताओ की और दसरी असरो कीrsquorsquo िही दसरी ओर यह भी आया ह लक

18

lsquolsquoमरी एकमातर अधयकषता क कारण स ही परकलत समलत जगत को lsquoलििररितमतrsquo अथामत लििरीत लदशा म िररिलतमत

करती हrsquorsquo इसका सीधा अथम ह लक इस ससार का कािचकर सतयग-तरतायग स दवािरयग-कलियग की लगरती लदशा म

अथामत दिताई-सलषट स आसरी-सलषट की ओर परकलत क गणो क आधार स घमता ह लकनत िरमलिता की अधयकषता म

परकलत इस तरह स लििरीत लदशा म िररिलतमत हो ऊिर उठ जाती ह लक नए यग सतयग आलद का ही आरभ होता ह अथामत

दिी-सलषट क लनमामण हत ही िरमलिता िरमातमा lsquoहलिनिी गॉडफादरrsquo इस सलषट म आत ह यह िरमलिता िरमातमा क

एकवयािी लिरि की अधयकषता म परकलत का lsquoलििररितमतrsquo लिरि ह यलद िरमलिता का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह

और यलद उनहोन दवािरयग क अत म गीता-जञान लदया तो बाद म िररणाम कया लनकिा और भी 19lsquolsquoअलधक िाखडी

घमडी अलभमानी कामी करोधी एि अजञानी आसरी सिलतत स परिि हआ िािी-अधमी कलियग आयाrsquorsquo यह तो

lsquoजगलदविररितमतrsquo नही हआ अथामत यहा िर यह लिषट हो जाता ह लक दवािर क अत म न तो गीता-जञान लदया गया था और

न ही िरमलिता िरमातमा का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह लकनत यह सतय ह लक इस परकार की भरालतयो स आसरी-सलषट

का लनमामण अिशय होता ह लजस आज हम सब दख रह ह

गीता म आया ह लक lsquolsquoिरमलिता िरमातमा क एकवयािी लिरि न समलत ससार को 20योग की दो लनषठाए िा

परणालिया बताई ह- जञालनयो को जञानयोग(साखय योग) और कालममक योलगयो को कममयोगrsquorsquo जञानयोग का अथम ह- िरी तरह

स कमो को तयागकर अिनी आतमा को लनराकारी-लनगमण ललथलत म लटकाकर िरमलिता िरमातमा क मन की लनःसकलिी

अिलथा म लिय को िीन करना और कममयोग का अथम ही ह- अिन कमो को िरमलिता िरमातमा की याद म रहत हए

उसक कममफि को बलि स तयागना शरी कषटण क जीिन म कही भी इन लनषठाओ का अनभि नही होता न ही उनका योग

म तलिीन रहन िािा दषटात शासतर म कोई ह और न ही कममयोगी क लिरि म लनषटकमम ललथलत को परापत कोई यादगार ह

लकनत शासतरो म एक ऐसा लिरि ह जो दोनो ही लनषठा को लिषट रि स लसि करता ह िह ह lsquoमहादि शकरrsquo समलत कमो

को तयाग कर अिन दहभान को राख बनाय (भलम लििटा) लिय को परकलत स लभनन मानत हए लनगमण लनराकार लनरजन

िरमलिता जयोलतलबद लशि म एक रि होन का (सबस ऊच किाश ििमत शखिा म) अभयास करत हए शकर को जञानयोग

अिलथा म आरढ़ होत हए तो सभी जानत और मानत ही ह इतना ही नही लकनत कममयोग क दलषटकोण स दखा जाए तो

भी कई दषटात परापत होत ह सागर-मथन क समय जब गिालन रिी अजञानता का सार ससार को हिचि म िान िािा

हिाहि लिष लनकिा तो उस िीन का सामरथयम लकसी म नही था लिषटण एि बरहमा म भी नही किि महादि शकर ही थ

लजनहोन अिना कतमवय समझ लिषिान लकया था उस लिष का अलनशचय रिी मतय का फि भी उनह परापत नही हआ कयोलक

ि कममयोगी बन लनषटकमम ललथलत को परापत कर चक थ गीता म भी शलोक आया ह- 21lsquolsquoलजसम म-िन का भाि न हो और

लजसकी बलि कमो म लिपत नही होती िह समलत ससार का नाश करन िर भी लकसी को नही मारता ह और न ही उस िर

मारन का दोष िगता हrsquorsquo अब लिनाश का िाटम भी शकर का ही ह लजसका उनह कोई दोष भी नही िगता इसस लसि हो

जाता ह लक दोनो ही योग लनषठा म महादि शकर स शरषठ और लसिहलत कोई भी नही इसलिए िालति म किि महादि

शकर या सनातन धमम क लथािक सनतकमार को ही lsquoयोगीराजयोगशवरrsquo और जञानशवर कहा जाना चालहए लकनत शरी कषटण

क भकतो की अधशरिा न लबना लकसी चाररतरय-परमाण क शरी कषटण को भी योगशवर मान लिया ह िस भी कहा ह लक 17 दवौ भतसगौ िोक अललमन दि आसर एि च 166

18 मया अधयकषण परकलतः सयत सचराचरम हतना अनन कौनतय जगत लििररितमत 910

19 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

20 िोक अललमन लदवलिधा लनषठा िरा परोकता मया अनघ जञानयोगन साखयानाम कममयोगन योलगनाम 33

21 यलय न अहकतः भािः बलिः यलय न लिपयत हतिा अलि स इमान िोकान न हलनत न लनबधयत 1817

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 3: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

3

वयलभचार एि भरषटाचार स भरा किि सासाररक ितन मातर ही ह लजस परकार दध स भरी मटकी म अश मातर भी लिष िड़

जाए तो िह मटकी िरी-की-िरी लिषिी हो जाती ह ठीक उसी परकार गीता असिी दध की भरी हई मटकी ह लजसम

लिलभनन मानिीय टीकाओ का लिष भर चका ह कयोलक मनषटयमातर लिय ही लिषय-लिकारो का चतनय ितिा ह और

िरमलिता िरमातमा क िरमाथम भाि स रची शरीमदभगिदगीता का मनषटयो दवारा लकया गया लिशलषण भगिानिाच गीता क

महातमय को भग करता ह कयोलक हर 6मनषटय लिाथी ही होता ह (लि+शरीर रिी रथ) भि गीता रिी साधन लकतना

भी िलितर हो लकनत लिकारी साधक की लिारथ स भरी साधना इसी िलितर गीता को अिनी टीकाओ दवारा समाज क लिए

अलभशाि बना दती ह यही हआ ह और अभी भी हो रहा ह इसीलिए समलत मानि समाज लिकारो क ितन क गतम म जा रहा ह य टीकाए ही बहत बड़ा अधमम ह और इसी अधमम को लमटान क लिए िरमलिता अितररत होत ह

अिना िररचय दन अथामत गीता को यथाथम समझान हत जब िरमलिता इस सलषट म आत ह तो कया हमारी और

आिकी तरह लथि गभम म िककर जनम ित ह कया भरषट इलियो क लिकारी कतय स उतिनन होत ह इसी बात को लिषट करत

हए गीता म कई बार आया ह लक 7lsquolsquoिरमलिता िरमातमा का जनम और कमम लदवय हrsquorsquo (गीता 49) अथामत िरमलिता

िरमातमा अजनमा ह तो लफर अजनमा िरमलिता का इस सलषट म अितररत होना कस सभि हो सकता ह इसक लिए भी

गीता म आया ह लक 8lsquolsquoिरमलिता जानन दखन तथा परिश करन योगय हrsquorsquo (1154) यलद लनराकार आतमाओ का बाि

जयोलतलबद की भालत अणोः अणीयासम (अण स भी अण) ह तो उनह अिशय लकसी एक मानिीय मकरमर शरीरधारी म ही

परिश करना िड़गा और िचततिो स बन लकसी शरीर म आना होगा अब अजनमा िरमलिता को यलद इस परकार स अितररत

होना िड़ तो य किि परिशता स ही सभि ह इसलिए उनह परिश करन योगय भी कहा ह उनह लकसी मनषटय तन

आदमऐडमआलददि शकरआलदनाथ कह जान िाि मनषटय-आतमा म परिश करना िड़ अथामत 9lsquolsquoअजनमा िरमलिता इस

सलषट म आकर जनम-मरण क चकर म आन िाि लनलसदह लकसी लिशष मनषटय-तन का आधार िकर उसम परिश कर अिन

अधीन रख िाटम बजात हrsquorsquo िरमलिता इसी वयलकतति दवारा अथामत िरबरहम यानी लतरमलतम लशि की अवयकत-मलतम (अवयकतमलतमना

94) दवारा रची गई नई बराहमण सो दिता सलषट की लथािना िरानी बराहमणो की सलषट का लिनाश और नई सलषट की िािना का

कायम करत ह और इसी साकार लिरि सगण क मन म समा जान को ही lsquoमनमनाभिrsquo कहा जाता ह यही सारी मनषटय-सलषट

का िह क ि लबनद ह जो गीता को योगय एि अयोगय लसि करता ह इसी बात िर गीता की टीकाओ क खलडत होन का

आधार जड़ा ह अथामत गीता म आए समलत दोषो की शरआत इसी तरथय को न समझन क कारण हई ह कस

मनमनाभि क उिरोकत अथम को न मानन और न जानन स जो भयकर भि मानिीय टीकाकारो दवारा हई ह िह लनमन

परकार स ह -

पिरनपतम पिरमतरम सरववयमपी ह यम एकवयमपी - अितार का अथम ही ह- ऊिर (गीता 156) स नीच उतरना या आना अथामत िरमलिता का अितरण यही बताता ह लक िरमलिता कही ऊिर स इस मानिीय सलषट िर आत ह इसस लिषट

हो जाता ह लक िरमलिता इस ससार म नही रहत तो सिमवयािी कस हए गीता म भी आया ह लक 10

lsquolsquoिरमलिता उस

िरमधाम का रहन िािा ह लजस न सयम न चि और न ही अलगन परकालशत करती हrsquorsquo जब िरमलिता िरमधामिासी ह तो

सिमवयािी कस हो सकत ह िरत गीता की समलत मानिीय टीकाए िरमलिता को सिमवयािी ही घोलषत करती ह अब इसका

6 सर नर मलन सबकी यह रीलत लिारथ िाग कर सब परीलत

7 जनम कमम च म लदवयम एिम यः िलतत तततितः तयकतिा दहम िनः जनम न एलत माम एलत सः अजमन 49

8 जञातम िषटम च तततिन परिषटम च िरति 1154

9 अजः अलि सन अवययातमा भतानाम ईशवरः अलि सन परकलतम लिाम अलधषठाय समभिालम आतममायया 46

10 न तत भासयत सयमः न शशाकः न िािकः यत गतिा न लनितमनत तत धाम िरमम मम 156

4

कारण कया ह गीता क ही शलोको क कछ बसमझी क अनलतक अथो को उठाकर िरमलिता की सिमवयािकता िािी टीका

की गई ह इनम सबस अलधक भि की गई ह समलत लिभलतयोग क अधयाय को समझन म जस इस अधयाय म कहा गया ह लक 11

नलदयो म गगा ह िशओ म लसह ह आलदतयो म लिषटण ह इतयालद इनह िढ़ ऐसा परतीत होता ह जस िरमलिता

िरमातमा लभनन-2 योलनयो की शरलणयो क रि म अिनी उिललथलत को बता रह ह लकनत यह समझ भि मातर ही ह इस भि

को गभीरता स समझन का परयास करत ह -

सिमपरथम lsquoलिभलतrsquo शबद को जानन का परयास करत ह लिभलत का सलकत अथम ह- लि(लिशष) + भलत(जनम) अथामत

लिशष रि स जनम िन िािा जब जनम ही लिशष ह तो लिषट ह लक िह किि िरमलिता की ही बात ह जो अजनमा होत हए िरकाया परिश कर लदवय अिौलकक जनम ित ह बाकी सभी का जनम तो साधारण शारीररक परलकरया क तौर िर होता

ह तो उसम लिशष कया ह और जब लिशष नही ह तो लिभलत कस ह तो लिभलत सिमवयािी कस हो सकता ह

दसरी बात हम यह समझना ह लक लभनन-2 शरणी की योलनयो को ही भगिान का अिना रि कहा गया ह सभी

िरमलिता िरमातमा नही ह जस- िरमातमा को नलदयो म गगा बताया ह तो इसस लिषट ह लक अनय नलदयो को िरमातमा नही

माना गया ह आलदतयो म लिषटण बताया ह तो इसका तातियम ह लक अनय दिताए िरमातमा रि नही ह शसतरधाररयो म राम

यलद िरमातमा ह तो अनय शसतरधारी कोई भी िरमातमा नही ह इसी परकार जो सिमशरषठ ह उस ही िरमातमा का रि माना गया

ह यहा िर िरमातमा की सिमवयािकता की बात तो खाररज हो जाती ह लकनत िरमातमा लफर भी अनकवयािी लसि हो रह

ह जो लक गित ही ह इसक लिए गीता म आया ह- 12lsquolsquoजो भी कोई ऐशवयमिान शलकतिान शरषठ बलिमान ह उसको

मर अथामत िरमलिता िरमातमा क तज क अश स उतिनन हआ जानrsquorsquo तज क अश स उतिनन होन का कया अथम ह लजस

परकार लकसी सदर बलिषठ बलिमान वयलकत को अिन समान ितर परापत हो तो यही कहा जाता ह लक ितर को यह तज अिन

लिता स परापत ह उसी वयलकत क अनक बचच होन िर भी उसकी लज़ममदारी उठाकर उसक सिनो को िरा करन िाि उसको

गौरिालनित करन िाि ितर को ही िह अिना मानता ह अिना रि समझता ह िरत इसस कया लिता और ितर को एक ही

माना जाएगा कया लिता का और ितर का अिना-2 वयलकतगत अललतति नही रहता ठीक इसी परकार इन लिभलतयो का भी

अथम ह जो कोई भी लनराकार िरमलिता िरमातमा क साकार वयलकतति स मनमनाभि की ललथलत परापत करता ह उस िरमलिता

िरमातमा क योग रिी तज का िह परभाि िरषाथम अनसार नबरिार परापत होता ह लजसस िह शरषठ ऊच और महान लसि

होता ह यह जो आधयालतमक परतयकषता रिी जनम होता ह िह लिशष जनम अथामत लिभलत माना जाता ह लिभलतया सभी

िरमलिता िरमातमा क आतमा रिी बचच ह िरत उन सभी मनषटय-आतमाओ को िरमातमा समझना- यह मखमतािणम भि ह

एक और उदाहरण स इस गभीर लिषय को समझन की चषटा करत ह जस जड़ सयम सतत अिनी ऊजाम को रोशनी

एि गमी क रि म लिशव-कलयाण हत दता रहता ह इस सौर ऊजाम स हम बटरी को उसकी कषमता अनसार चाजम कर अिन

कायम म िगा सकत ह इस कारण यलद कोई बटरी को ही lsquoसयमrsquo कहन िग तो उस कया कहग अिशय मखम ही कहग

लिभलतयो को समझन म यही भि हई ह कई आतमा रिी बटरीज़ अिनी यथासभि योगशलकत चतयमगी क अत म साकार

म आए लनराकार िरमलिता िरमातमा रिी चतनय जञान शलकत-सयम स मनमनाभि होकर अिन भीतर भी नबरिार िरषाथम अनसार भर िती ह और जो अलधकालधक योगशलकत को भर िाती ह उनह यहा िर लिभलत कहा गया ह इसी भाि को लिषट

रि स समझान क लिए समिणम जञानाजमन करन िाि अजमन को समझात हए भगिान कहत ह लक 13ldquoमर अनक लिभलतयो

को जानन स कया परयोजन म इस समिणम जगत को अिन एक अश दवारा लटका करक ललथत ह rdquo अथामत एक ही िह

जयोलतलबनद रि लशिलिग शरीरधारी आतमा ह लजसक (आतमा+शरीर) दवारा समलत जड़-जगम जगत को लटकाकर

11 अधयाय-10 क शलोक 21 स 38 दख

12 यत यत लिभलतमत सततिम शरीमत ऊलजमतम एि िा तत तत एि अिगचछ तिम मम तजोऽशसमभिम 1041

13 अथिा बहना एतन लकम जञातन ति अजमन लिषटभय अहम इदम कतलनम एकाशन ललथतः जगत 1042

5

िरमलिता अिन िरमधाम म ललथत ह साकार म आए िरमलिता िरमातमा लिरि की यही यादयोग कही जान िािी याद

की शलकत ही िालति म समलत आतमाओ म वयापत होती ह सभी क अदर समलत जड़-जगम जगत म िरमलिता िरमातमा क

उस साकार लिरि की नबरिार याद समाई हई होती ह इस कारण ही गीता म बताया ह लक 14

lsquolsquoिरमातमा सभी भतो क

हदय अथामत मन म ललथत हrsquorsquo िरत इस बात को भी िणम तरह स लनरथमक रि म उठाकर िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी

मान लिया गया जो लक बड़-त-बड़ा झठ ह

इस लिभलतयोग क लिषय स मनषटय सिमवयािी रिी लिष को ही उतिनन करगा यह सिमजञ िरमलिता िरमातमा तो

जानत ही थ इसलिए लिभलतयोग नामक 10ि अधयाय स ििम ही 9ि अधयाय म िरमातमा की सिमवयािकता की बात को

िहि स ही खाररज कर लदया ह इसम बताया गया ह लक 15lsquolsquoसमलत भत िरमातमा म ललथत ह िरत िरमातमा उन भतो

म नही हrsquorsquo इसस यह लसि होता ह लक जो भी लिभलतयो सलहत अनय भतपराणी ह उनम िरमातमा वयापत नही ह इसी जञान

को समलत लिदयाओ म और लिदयाओ की गोिनीयता म lsquoराजाrsquo कहा गया ह कदालचत इसलिए ही इस 9ि अधयाय का नाम

भी lsquoराजलिदयाराजगहययोगrsquo रखा गया ह इतना ही नही िरत िरमलिता की सिमवयािकता िािी बात को खाररज करन िाि

इस जञान को 16lsquolsquoधमामनकि सहज एि अलिनाशी भी बताया गया हrsquorsquo lsquoपरतयकषािगमrsquo कहत हए यह भी लसि कर

लदया लक यह जञान िरमलिता िरमातमा क परतयकष लिरि दवारा ही जाना जाता ह इसलिए इस िर शरिा न रखकर िरमलिता

को सिमवयािी मानन िाि को िरमातमा कभी भी परतयकष रि स परापत नही हो सकत ह बललक ि और ही अधोगलत म जात

ह इतना तक लिषट बताया गया ह अथामत िरमातमा को सिमवयािी समझना ही समलत ससार की दगमलत का कारण ह यह

मि रि स लिषट हो चका ह यही बड़-स-बड़ा अधमम ह

पिरमतरम कम एकवयमपी सररप कौन - िरमलिता सिमवयािी नही ह यह बात तो लिषट हो गई लकनत िरमलिता का

एकवयािी लिरि कौन ह यह भी तो जानना ह िस तो समलत ससार साकार भगिान क रि म गीता जञानदाता शरीकषटण

को मानता ह इसलिए एकवयािी लिरि कौन- यह परशन थोड़ा-सा लिलचतर िगता ह िरत कया िालति म शरीकषटण िरमातमा

का लिरि ह कया शरीकषटण न ही शरीमदभगिदगीता का जञान समलत ससार को लदया था या लफर िरमलिता क सिमवयािी िाि

अजञान की भालत शरी कषटण को गीता जञानदाता समझना एक बड़ी भि तो नही आइए इस लिषय को भी समझन का परयास

करत ह -

माना जाता ह लक आज स 5000 िषम ििम दवािरयग क अत म शरी कषटण न महाभारत यि क समय अजमन को गीता-

जञान लदया था िरत कयो इसका उततर दत हए गीता म आया ह लक जब-2 सिमम की गिालन होती ह अधमम की अलत होती

ह तब साध-सतो की रकषा करन दराचाररयो का लिनाश करन एि समिणम धमम की लथािना करन म आता ह िलकन कया

िालति म अधमम का दराचाररयो का लिनाश हआ कया समिणम सतय सनातन धमम की लथािना हई कया साध-सतो की

रकषा हई आज क लहसाब स यह बहत बड़ा परशन ह लजसका उततर दन म समलत तथाकलथत लहनद िररिार असमथम ह कयोलक

अधमम और दराचाररयो का आज कलियग म और भी अलधक बोिबािा ह िस भी अधमम की अलत तो कलियग क अत

म होती ह न लक दवािरयग म अथामत िरमलिता का िालतलिक अितरण परतयकष रि स कलियग अत म ही होता ह इतना ही नही कछ और भी ऐसी बात ह लजनका समाधान लिषट रि स नही हो िा रहा िहिी बात तो यह ह लक शासतरो म कहा

गया ह लक सतयग-तरतायग स किाए लगरत-2 दवािरयग क अत तक किि 8 स भी कम किाए शष रह जाती ह तो उस

दवािर यग म 16 किा समिणम शरी कषटण को कस लदखाया गया ह दसरी बात जहा गीता म एक तरफ आया ह लक

14 अहम आतमा गडाकश सिमभताशयललथतः 1020

15 मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

16 राजलिदया राजगहयम िलितरम इदम उततमम परतयकषािगमम धमयमम ससखम कतमम अवययम 92

6

17

lsquolsquoलिशव म दो परकार की सलषट होती ह- एक दिताओ की और दसरी असरो कीrsquorsquo िही दसरी ओर यह भी आया ह लक

18

lsquolsquoमरी एकमातर अधयकषता क कारण स ही परकलत समलत जगत को lsquoलििररितमतrsquo अथामत लििरीत लदशा म िररिलतमत

करती हrsquorsquo इसका सीधा अथम ह लक इस ससार का कािचकर सतयग-तरतायग स दवािरयग-कलियग की लगरती लदशा म

अथामत दिताई-सलषट स आसरी-सलषट की ओर परकलत क गणो क आधार स घमता ह लकनत िरमलिता की अधयकषता म

परकलत इस तरह स लििरीत लदशा म िररिलतमत हो ऊिर उठ जाती ह लक नए यग सतयग आलद का ही आरभ होता ह अथामत

दिी-सलषट क लनमामण हत ही िरमलिता िरमातमा lsquoहलिनिी गॉडफादरrsquo इस सलषट म आत ह यह िरमलिता िरमातमा क

एकवयािी लिरि की अधयकषता म परकलत का lsquoलििररितमतrsquo लिरि ह यलद िरमलिता का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह

और यलद उनहोन दवािरयग क अत म गीता-जञान लदया तो बाद म िररणाम कया लनकिा और भी 19lsquolsquoअलधक िाखडी

घमडी अलभमानी कामी करोधी एि अजञानी आसरी सिलतत स परिि हआ िािी-अधमी कलियग आयाrsquorsquo यह तो

lsquoजगलदविररितमतrsquo नही हआ अथामत यहा िर यह लिषट हो जाता ह लक दवािर क अत म न तो गीता-जञान लदया गया था और

न ही िरमलिता िरमातमा का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह लकनत यह सतय ह लक इस परकार की भरालतयो स आसरी-सलषट

का लनमामण अिशय होता ह लजस आज हम सब दख रह ह

गीता म आया ह लक lsquolsquoिरमलिता िरमातमा क एकवयािी लिरि न समलत ससार को 20योग की दो लनषठाए िा

परणालिया बताई ह- जञालनयो को जञानयोग(साखय योग) और कालममक योलगयो को कममयोगrsquorsquo जञानयोग का अथम ह- िरी तरह

स कमो को तयागकर अिनी आतमा को लनराकारी-लनगमण ललथलत म लटकाकर िरमलिता िरमातमा क मन की लनःसकलिी

अिलथा म लिय को िीन करना और कममयोग का अथम ही ह- अिन कमो को िरमलिता िरमातमा की याद म रहत हए

उसक कममफि को बलि स तयागना शरी कषटण क जीिन म कही भी इन लनषठाओ का अनभि नही होता न ही उनका योग

म तलिीन रहन िािा दषटात शासतर म कोई ह और न ही कममयोगी क लिरि म लनषटकमम ललथलत को परापत कोई यादगार ह

लकनत शासतरो म एक ऐसा लिरि ह जो दोनो ही लनषठा को लिषट रि स लसि करता ह िह ह lsquoमहादि शकरrsquo समलत कमो

को तयाग कर अिन दहभान को राख बनाय (भलम लििटा) लिय को परकलत स लभनन मानत हए लनगमण लनराकार लनरजन

िरमलिता जयोलतलबद लशि म एक रि होन का (सबस ऊच किाश ििमत शखिा म) अभयास करत हए शकर को जञानयोग

अिलथा म आरढ़ होत हए तो सभी जानत और मानत ही ह इतना ही नही लकनत कममयोग क दलषटकोण स दखा जाए तो

भी कई दषटात परापत होत ह सागर-मथन क समय जब गिालन रिी अजञानता का सार ससार को हिचि म िान िािा

हिाहि लिष लनकिा तो उस िीन का सामरथयम लकसी म नही था लिषटण एि बरहमा म भी नही किि महादि शकर ही थ

लजनहोन अिना कतमवय समझ लिषिान लकया था उस लिष का अलनशचय रिी मतय का फि भी उनह परापत नही हआ कयोलक

ि कममयोगी बन लनषटकमम ललथलत को परापत कर चक थ गीता म भी शलोक आया ह- 21lsquolsquoलजसम म-िन का भाि न हो और

लजसकी बलि कमो म लिपत नही होती िह समलत ससार का नाश करन िर भी लकसी को नही मारता ह और न ही उस िर

मारन का दोष िगता हrsquorsquo अब लिनाश का िाटम भी शकर का ही ह लजसका उनह कोई दोष भी नही िगता इसस लसि हो

जाता ह लक दोनो ही योग लनषठा म महादि शकर स शरषठ और लसिहलत कोई भी नही इसलिए िालति म किि महादि

शकर या सनातन धमम क लथािक सनतकमार को ही lsquoयोगीराजयोगशवरrsquo और जञानशवर कहा जाना चालहए लकनत शरी कषटण

क भकतो की अधशरिा न लबना लकसी चाररतरय-परमाण क शरी कषटण को भी योगशवर मान लिया ह िस भी कहा ह लक 17 दवौ भतसगौ िोक अललमन दि आसर एि च 166

18 मया अधयकषण परकलतः सयत सचराचरम हतना अनन कौनतय जगत लििररितमत 910

19 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

20 िोक अललमन लदवलिधा लनषठा िरा परोकता मया अनघ जञानयोगन साखयानाम कममयोगन योलगनाम 33

21 यलय न अहकतः भािः बलिः यलय न लिपयत हतिा अलि स इमान िोकान न हलनत न लनबधयत 1817

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 4: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

4

कारण कया ह गीता क ही शलोको क कछ बसमझी क अनलतक अथो को उठाकर िरमलिता की सिमवयािकता िािी टीका

की गई ह इनम सबस अलधक भि की गई ह समलत लिभलतयोग क अधयाय को समझन म जस इस अधयाय म कहा गया ह लक 11

नलदयो म गगा ह िशओ म लसह ह आलदतयो म लिषटण ह इतयालद इनह िढ़ ऐसा परतीत होता ह जस िरमलिता

िरमातमा लभनन-2 योलनयो की शरलणयो क रि म अिनी उिललथलत को बता रह ह लकनत यह समझ भि मातर ही ह इस भि

को गभीरता स समझन का परयास करत ह -

सिमपरथम lsquoलिभलतrsquo शबद को जानन का परयास करत ह लिभलत का सलकत अथम ह- लि(लिशष) + भलत(जनम) अथामत

लिशष रि स जनम िन िािा जब जनम ही लिशष ह तो लिषट ह लक िह किि िरमलिता की ही बात ह जो अजनमा होत हए िरकाया परिश कर लदवय अिौलकक जनम ित ह बाकी सभी का जनम तो साधारण शारीररक परलकरया क तौर िर होता

ह तो उसम लिशष कया ह और जब लिशष नही ह तो लिभलत कस ह तो लिभलत सिमवयािी कस हो सकता ह

दसरी बात हम यह समझना ह लक लभनन-2 शरणी की योलनयो को ही भगिान का अिना रि कहा गया ह सभी

िरमलिता िरमातमा नही ह जस- िरमातमा को नलदयो म गगा बताया ह तो इसस लिषट ह लक अनय नलदयो को िरमातमा नही

माना गया ह आलदतयो म लिषटण बताया ह तो इसका तातियम ह लक अनय दिताए िरमातमा रि नही ह शसतरधाररयो म राम

यलद िरमातमा ह तो अनय शसतरधारी कोई भी िरमातमा नही ह इसी परकार जो सिमशरषठ ह उस ही िरमातमा का रि माना गया

ह यहा िर िरमातमा की सिमवयािकता की बात तो खाररज हो जाती ह लकनत िरमातमा लफर भी अनकवयािी लसि हो रह

ह जो लक गित ही ह इसक लिए गीता म आया ह- 12lsquolsquoजो भी कोई ऐशवयमिान शलकतिान शरषठ बलिमान ह उसको

मर अथामत िरमलिता िरमातमा क तज क अश स उतिनन हआ जानrsquorsquo तज क अश स उतिनन होन का कया अथम ह लजस

परकार लकसी सदर बलिषठ बलिमान वयलकत को अिन समान ितर परापत हो तो यही कहा जाता ह लक ितर को यह तज अिन

लिता स परापत ह उसी वयलकत क अनक बचच होन िर भी उसकी लज़ममदारी उठाकर उसक सिनो को िरा करन िाि उसको

गौरिालनित करन िाि ितर को ही िह अिना मानता ह अिना रि समझता ह िरत इसस कया लिता और ितर को एक ही

माना जाएगा कया लिता का और ितर का अिना-2 वयलकतगत अललतति नही रहता ठीक इसी परकार इन लिभलतयो का भी

अथम ह जो कोई भी लनराकार िरमलिता िरमातमा क साकार वयलकतति स मनमनाभि की ललथलत परापत करता ह उस िरमलिता

िरमातमा क योग रिी तज का िह परभाि िरषाथम अनसार नबरिार परापत होता ह लजसस िह शरषठ ऊच और महान लसि

होता ह यह जो आधयालतमक परतयकषता रिी जनम होता ह िह लिशष जनम अथामत लिभलत माना जाता ह लिभलतया सभी

िरमलिता िरमातमा क आतमा रिी बचच ह िरत उन सभी मनषटय-आतमाओ को िरमातमा समझना- यह मखमतािणम भि ह

एक और उदाहरण स इस गभीर लिषय को समझन की चषटा करत ह जस जड़ सयम सतत अिनी ऊजाम को रोशनी

एि गमी क रि म लिशव-कलयाण हत दता रहता ह इस सौर ऊजाम स हम बटरी को उसकी कषमता अनसार चाजम कर अिन

कायम म िगा सकत ह इस कारण यलद कोई बटरी को ही lsquoसयमrsquo कहन िग तो उस कया कहग अिशय मखम ही कहग

लिभलतयो को समझन म यही भि हई ह कई आतमा रिी बटरीज़ अिनी यथासभि योगशलकत चतयमगी क अत म साकार

म आए लनराकार िरमलिता िरमातमा रिी चतनय जञान शलकत-सयम स मनमनाभि होकर अिन भीतर भी नबरिार िरषाथम अनसार भर िती ह और जो अलधकालधक योगशलकत को भर िाती ह उनह यहा िर लिभलत कहा गया ह इसी भाि को लिषट

रि स समझान क लिए समिणम जञानाजमन करन िाि अजमन को समझात हए भगिान कहत ह लक 13ldquoमर अनक लिभलतयो

को जानन स कया परयोजन म इस समिणम जगत को अिन एक अश दवारा लटका करक ललथत ह rdquo अथामत एक ही िह

जयोलतलबनद रि लशिलिग शरीरधारी आतमा ह लजसक (आतमा+शरीर) दवारा समलत जड़-जगम जगत को लटकाकर

11 अधयाय-10 क शलोक 21 स 38 दख

12 यत यत लिभलतमत सततिम शरीमत ऊलजमतम एि िा तत तत एि अिगचछ तिम मम तजोऽशसमभिम 1041

13 अथिा बहना एतन लकम जञातन ति अजमन लिषटभय अहम इदम कतलनम एकाशन ललथतः जगत 1042

5

िरमलिता अिन िरमधाम म ललथत ह साकार म आए िरमलिता िरमातमा लिरि की यही यादयोग कही जान िािी याद

की शलकत ही िालति म समलत आतमाओ म वयापत होती ह सभी क अदर समलत जड़-जगम जगत म िरमलिता िरमातमा क

उस साकार लिरि की नबरिार याद समाई हई होती ह इस कारण ही गीता म बताया ह लक 14

lsquolsquoिरमातमा सभी भतो क

हदय अथामत मन म ललथत हrsquorsquo िरत इस बात को भी िणम तरह स लनरथमक रि म उठाकर िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी

मान लिया गया जो लक बड़-त-बड़ा झठ ह

इस लिभलतयोग क लिषय स मनषटय सिमवयािी रिी लिष को ही उतिनन करगा यह सिमजञ िरमलिता िरमातमा तो

जानत ही थ इसलिए लिभलतयोग नामक 10ि अधयाय स ििम ही 9ि अधयाय म िरमातमा की सिमवयािकता की बात को

िहि स ही खाररज कर लदया ह इसम बताया गया ह लक 15lsquolsquoसमलत भत िरमातमा म ललथत ह िरत िरमातमा उन भतो

म नही हrsquorsquo इसस यह लसि होता ह लक जो भी लिभलतयो सलहत अनय भतपराणी ह उनम िरमातमा वयापत नही ह इसी जञान

को समलत लिदयाओ म और लिदयाओ की गोिनीयता म lsquoराजाrsquo कहा गया ह कदालचत इसलिए ही इस 9ि अधयाय का नाम

भी lsquoराजलिदयाराजगहययोगrsquo रखा गया ह इतना ही नही िरत िरमलिता की सिमवयािकता िािी बात को खाररज करन िाि

इस जञान को 16lsquolsquoधमामनकि सहज एि अलिनाशी भी बताया गया हrsquorsquo lsquoपरतयकषािगमrsquo कहत हए यह भी लसि कर

लदया लक यह जञान िरमलिता िरमातमा क परतयकष लिरि दवारा ही जाना जाता ह इसलिए इस िर शरिा न रखकर िरमलिता

को सिमवयािी मानन िाि को िरमातमा कभी भी परतयकष रि स परापत नही हो सकत ह बललक ि और ही अधोगलत म जात

ह इतना तक लिषट बताया गया ह अथामत िरमातमा को सिमवयािी समझना ही समलत ससार की दगमलत का कारण ह यह

मि रि स लिषट हो चका ह यही बड़-स-बड़ा अधमम ह

पिरमतरम कम एकवयमपी सररप कौन - िरमलिता सिमवयािी नही ह यह बात तो लिषट हो गई लकनत िरमलिता का

एकवयािी लिरि कौन ह यह भी तो जानना ह िस तो समलत ससार साकार भगिान क रि म गीता जञानदाता शरीकषटण

को मानता ह इसलिए एकवयािी लिरि कौन- यह परशन थोड़ा-सा लिलचतर िगता ह िरत कया िालति म शरीकषटण िरमातमा

का लिरि ह कया शरीकषटण न ही शरीमदभगिदगीता का जञान समलत ससार को लदया था या लफर िरमलिता क सिमवयािी िाि

अजञान की भालत शरी कषटण को गीता जञानदाता समझना एक बड़ी भि तो नही आइए इस लिषय को भी समझन का परयास

करत ह -

माना जाता ह लक आज स 5000 िषम ििम दवािरयग क अत म शरी कषटण न महाभारत यि क समय अजमन को गीता-

जञान लदया था िरत कयो इसका उततर दत हए गीता म आया ह लक जब-2 सिमम की गिालन होती ह अधमम की अलत होती

ह तब साध-सतो की रकषा करन दराचाररयो का लिनाश करन एि समिणम धमम की लथािना करन म आता ह िलकन कया

िालति म अधमम का दराचाररयो का लिनाश हआ कया समिणम सतय सनातन धमम की लथािना हई कया साध-सतो की

रकषा हई आज क लहसाब स यह बहत बड़ा परशन ह लजसका उततर दन म समलत तथाकलथत लहनद िररिार असमथम ह कयोलक

अधमम और दराचाररयो का आज कलियग म और भी अलधक बोिबािा ह िस भी अधमम की अलत तो कलियग क अत

म होती ह न लक दवािरयग म अथामत िरमलिता का िालतलिक अितरण परतयकष रि स कलियग अत म ही होता ह इतना ही नही कछ और भी ऐसी बात ह लजनका समाधान लिषट रि स नही हो िा रहा िहिी बात तो यह ह लक शासतरो म कहा

गया ह लक सतयग-तरतायग स किाए लगरत-2 दवािरयग क अत तक किि 8 स भी कम किाए शष रह जाती ह तो उस

दवािर यग म 16 किा समिणम शरी कषटण को कस लदखाया गया ह दसरी बात जहा गीता म एक तरफ आया ह लक

14 अहम आतमा गडाकश सिमभताशयललथतः 1020

15 मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

16 राजलिदया राजगहयम िलितरम इदम उततमम परतयकषािगमम धमयमम ससखम कतमम अवययम 92

6

17

lsquolsquoलिशव म दो परकार की सलषट होती ह- एक दिताओ की और दसरी असरो कीrsquorsquo िही दसरी ओर यह भी आया ह लक

18

lsquolsquoमरी एकमातर अधयकषता क कारण स ही परकलत समलत जगत को lsquoलििररितमतrsquo अथामत लििरीत लदशा म िररिलतमत

करती हrsquorsquo इसका सीधा अथम ह लक इस ससार का कािचकर सतयग-तरतायग स दवािरयग-कलियग की लगरती लदशा म

अथामत दिताई-सलषट स आसरी-सलषट की ओर परकलत क गणो क आधार स घमता ह लकनत िरमलिता की अधयकषता म

परकलत इस तरह स लििरीत लदशा म िररिलतमत हो ऊिर उठ जाती ह लक नए यग सतयग आलद का ही आरभ होता ह अथामत

दिी-सलषट क लनमामण हत ही िरमलिता िरमातमा lsquoहलिनिी गॉडफादरrsquo इस सलषट म आत ह यह िरमलिता िरमातमा क

एकवयािी लिरि की अधयकषता म परकलत का lsquoलििररितमतrsquo लिरि ह यलद िरमलिता का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह

और यलद उनहोन दवािरयग क अत म गीता-जञान लदया तो बाद म िररणाम कया लनकिा और भी 19lsquolsquoअलधक िाखडी

घमडी अलभमानी कामी करोधी एि अजञानी आसरी सिलतत स परिि हआ िािी-अधमी कलियग आयाrsquorsquo यह तो

lsquoजगलदविररितमतrsquo नही हआ अथामत यहा िर यह लिषट हो जाता ह लक दवािर क अत म न तो गीता-जञान लदया गया था और

न ही िरमलिता िरमातमा का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह लकनत यह सतय ह लक इस परकार की भरालतयो स आसरी-सलषट

का लनमामण अिशय होता ह लजस आज हम सब दख रह ह

गीता म आया ह लक lsquolsquoिरमलिता िरमातमा क एकवयािी लिरि न समलत ससार को 20योग की दो लनषठाए िा

परणालिया बताई ह- जञालनयो को जञानयोग(साखय योग) और कालममक योलगयो को कममयोगrsquorsquo जञानयोग का अथम ह- िरी तरह

स कमो को तयागकर अिनी आतमा को लनराकारी-लनगमण ललथलत म लटकाकर िरमलिता िरमातमा क मन की लनःसकलिी

अिलथा म लिय को िीन करना और कममयोग का अथम ही ह- अिन कमो को िरमलिता िरमातमा की याद म रहत हए

उसक कममफि को बलि स तयागना शरी कषटण क जीिन म कही भी इन लनषठाओ का अनभि नही होता न ही उनका योग

म तलिीन रहन िािा दषटात शासतर म कोई ह और न ही कममयोगी क लिरि म लनषटकमम ललथलत को परापत कोई यादगार ह

लकनत शासतरो म एक ऐसा लिरि ह जो दोनो ही लनषठा को लिषट रि स लसि करता ह िह ह lsquoमहादि शकरrsquo समलत कमो

को तयाग कर अिन दहभान को राख बनाय (भलम लििटा) लिय को परकलत स लभनन मानत हए लनगमण लनराकार लनरजन

िरमलिता जयोलतलबद लशि म एक रि होन का (सबस ऊच किाश ििमत शखिा म) अभयास करत हए शकर को जञानयोग

अिलथा म आरढ़ होत हए तो सभी जानत और मानत ही ह इतना ही नही लकनत कममयोग क दलषटकोण स दखा जाए तो

भी कई दषटात परापत होत ह सागर-मथन क समय जब गिालन रिी अजञानता का सार ससार को हिचि म िान िािा

हिाहि लिष लनकिा तो उस िीन का सामरथयम लकसी म नही था लिषटण एि बरहमा म भी नही किि महादि शकर ही थ

लजनहोन अिना कतमवय समझ लिषिान लकया था उस लिष का अलनशचय रिी मतय का फि भी उनह परापत नही हआ कयोलक

ि कममयोगी बन लनषटकमम ललथलत को परापत कर चक थ गीता म भी शलोक आया ह- 21lsquolsquoलजसम म-िन का भाि न हो और

लजसकी बलि कमो म लिपत नही होती िह समलत ससार का नाश करन िर भी लकसी को नही मारता ह और न ही उस िर

मारन का दोष िगता हrsquorsquo अब लिनाश का िाटम भी शकर का ही ह लजसका उनह कोई दोष भी नही िगता इसस लसि हो

जाता ह लक दोनो ही योग लनषठा म महादि शकर स शरषठ और लसिहलत कोई भी नही इसलिए िालति म किि महादि

शकर या सनातन धमम क लथािक सनतकमार को ही lsquoयोगीराजयोगशवरrsquo और जञानशवर कहा जाना चालहए लकनत शरी कषटण

क भकतो की अधशरिा न लबना लकसी चाररतरय-परमाण क शरी कषटण को भी योगशवर मान लिया ह िस भी कहा ह लक 17 दवौ भतसगौ िोक अललमन दि आसर एि च 166

18 मया अधयकषण परकलतः सयत सचराचरम हतना अनन कौनतय जगत लििररितमत 910

19 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

20 िोक अललमन लदवलिधा लनषठा िरा परोकता मया अनघ जञानयोगन साखयानाम कममयोगन योलगनाम 33

21 यलय न अहकतः भािः बलिः यलय न लिपयत हतिा अलि स इमान िोकान न हलनत न लनबधयत 1817

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 5: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

5

िरमलिता अिन िरमधाम म ललथत ह साकार म आए िरमलिता िरमातमा लिरि की यही यादयोग कही जान िािी याद

की शलकत ही िालति म समलत आतमाओ म वयापत होती ह सभी क अदर समलत जड़-जगम जगत म िरमलिता िरमातमा क

उस साकार लिरि की नबरिार याद समाई हई होती ह इस कारण ही गीता म बताया ह लक 14

lsquolsquoिरमातमा सभी भतो क

हदय अथामत मन म ललथत हrsquorsquo िरत इस बात को भी िणम तरह स लनरथमक रि म उठाकर िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी

मान लिया गया जो लक बड़-त-बड़ा झठ ह

इस लिभलतयोग क लिषय स मनषटय सिमवयािी रिी लिष को ही उतिनन करगा यह सिमजञ िरमलिता िरमातमा तो

जानत ही थ इसलिए लिभलतयोग नामक 10ि अधयाय स ििम ही 9ि अधयाय म िरमातमा की सिमवयािकता की बात को

िहि स ही खाररज कर लदया ह इसम बताया गया ह लक 15lsquolsquoसमलत भत िरमातमा म ललथत ह िरत िरमातमा उन भतो

म नही हrsquorsquo इसस यह लसि होता ह लक जो भी लिभलतयो सलहत अनय भतपराणी ह उनम िरमातमा वयापत नही ह इसी जञान

को समलत लिदयाओ म और लिदयाओ की गोिनीयता म lsquoराजाrsquo कहा गया ह कदालचत इसलिए ही इस 9ि अधयाय का नाम

भी lsquoराजलिदयाराजगहययोगrsquo रखा गया ह इतना ही नही िरत िरमलिता की सिमवयािकता िािी बात को खाररज करन िाि

इस जञान को 16lsquolsquoधमामनकि सहज एि अलिनाशी भी बताया गया हrsquorsquo lsquoपरतयकषािगमrsquo कहत हए यह भी लसि कर

लदया लक यह जञान िरमलिता िरमातमा क परतयकष लिरि दवारा ही जाना जाता ह इसलिए इस िर शरिा न रखकर िरमलिता

को सिमवयािी मानन िाि को िरमातमा कभी भी परतयकष रि स परापत नही हो सकत ह बललक ि और ही अधोगलत म जात

ह इतना तक लिषट बताया गया ह अथामत िरमातमा को सिमवयािी समझना ही समलत ससार की दगमलत का कारण ह यह

मि रि स लिषट हो चका ह यही बड़-स-बड़ा अधमम ह

पिरमतरम कम एकवयमपी सररप कौन - िरमलिता सिमवयािी नही ह यह बात तो लिषट हो गई लकनत िरमलिता का

एकवयािी लिरि कौन ह यह भी तो जानना ह िस तो समलत ससार साकार भगिान क रि म गीता जञानदाता शरीकषटण

को मानता ह इसलिए एकवयािी लिरि कौन- यह परशन थोड़ा-सा लिलचतर िगता ह िरत कया िालति म शरीकषटण िरमातमा

का लिरि ह कया शरीकषटण न ही शरीमदभगिदगीता का जञान समलत ससार को लदया था या लफर िरमलिता क सिमवयािी िाि

अजञान की भालत शरी कषटण को गीता जञानदाता समझना एक बड़ी भि तो नही आइए इस लिषय को भी समझन का परयास

करत ह -

माना जाता ह लक आज स 5000 िषम ििम दवािरयग क अत म शरी कषटण न महाभारत यि क समय अजमन को गीता-

जञान लदया था िरत कयो इसका उततर दत हए गीता म आया ह लक जब-2 सिमम की गिालन होती ह अधमम की अलत होती

ह तब साध-सतो की रकषा करन दराचाररयो का लिनाश करन एि समिणम धमम की लथािना करन म आता ह िलकन कया

िालति म अधमम का दराचाररयो का लिनाश हआ कया समिणम सतय सनातन धमम की लथािना हई कया साध-सतो की

रकषा हई आज क लहसाब स यह बहत बड़ा परशन ह लजसका उततर दन म समलत तथाकलथत लहनद िररिार असमथम ह कयोलक

अधमम और दराचाररयो का आज कलियग म और भी अलधक बोिबािा ह िस भी अधमम की अलत तो कलियग क अत

म होती ह न लक दवािरयग म अथामत िरमलिता का िालतलिक अितरण परतयकष रि स कलियग अत म ही होता ह इतना ही नही कछ और भी ऐसी बात ह लजनका समाधान लिषट रि स नही हो िा रहा िहिी बात तो यह ह लक शासतरो म कहा

गया ह लक सतयग-तरतायग स किाए लगरत-2 दवािरयग क अत तक किि 8 स भी कम किाए शष रह जाती ह तो उस

दवािर यग म 16 किा समिणम शरी कषटण को कस लदखाया गया ह दसरी बात जहा गीता म एक तरफ आया ह लक

14 अहम आतमा गडाकश सिमभताशयललथतः 1020

15 मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

16 राजलिदया राजगहयम िलितरम इदम उततमम परतयकषािगमम धमयमम ससखम कतमम अवययम 92

6

17

lsquolsquoलिशव म दो परकार की सलषट होती ह- एक दिताओ की और दसरी असरो कीrsquorsquo िही दसरी ओर यह भी आया ह लक

18

lsquolsquoमरी एकमातर अधयकषता क कारण स ही परकलत समलत जगत को lsquoलििररितमतrsquo अथामत लििरीत लदशा म िररिलतमत

करती हrsquorsquo इसका सीधा अथम ह लक इस ससार का कािचकर सतयग-तरतायग स दवािरयग-कलियग की लगरती लदशा म

अथामत दिताई-सलषट स आसरी-सलषट की ओर परकलत क गणो क आधार स घमता ह लकनत िरमलिता की अधयकषता म

परकलत इस तरह स लििरीत लदशा म िररिलतमत हो ऊिर उठ जाती ह लक नए यग सतयग आलद का ही आरभ होता ह अथामत

दिी-सलषट क लनमामण हत ही िरमलिता िरमातमा lsquoहलिनिी गॉडफादरrsquo इस सलषट म आत ह यह िरमलिता िरमातमा क

एकवयािी लिरि की अधयकषता म परकलत का lsquoलििररितमतrsquo लिरि ह यलद िरमलिता का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह

और यलद उनहोन दवािरयग क अत म गीता-जञान लदया तो बाद म िररणाम कया लनकिा और भी 19lsquolsquoअलधक िाखडी

घमडी अलभमानी कामी करोधी एि अजञानी आसरी सिलतत स परिि हआ िािी-अधमी कलियग आयाrsquorsquo यह तो

lsquoजगलदविररितमतrsquo नही हआ अथामत यहा िर यह लिषट हो जाता ह लक दवािर क अत म न तो गीता-जञान लदया गया था और

न ही िरमलिता िरमातमा का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह लकनत यह सतय ह लक इस परकार की भरालतयो स आसरी-सलषट

का लनमामण अिशय होता ह लजस आज हम सब दख रह ह

गीता म आया ह लक lsquolsquoिरमलिता िरमातमा क एकवयािी लिरि न समलत ससार को 20योग की दो लनषठाए िा

परणालिया बताई ह- जञालनयो को जञानयोग(साखय योग) और कालममक योलगयो को कममयोगrsquorsquo जञानयोग का अथम ह- िरी तरह

स कमो को तयागकर अिनी आतमा को लनराकारी-लनगमण ललथलत म लटकाकर िरमलिता िरमातमा क मन की लनःसकलिी

अिलथा म लिय को िीन करना और कममयोग का अथम ही ह- अिन कमो को िरमलिता िरमातमा की याद म रहत हए

उसक कममफि को बलि स तयागना शरी कषटण क जीिन म कही भी इन लनषठाओ का अनभि नही होता न ही उनका योग

म तलिीन रहन िािा दषटात शासतर म कोई ह और न ही कममयोगी क लिरि म लनषटकमम ललथलत को परापत कोई यादगार ह

लकनत शासतरो म एक ऐसा लिरि ह जो दोनो ही लनषठा को लिषट रि स लसि करता ह िह ह lsquoमहादि शकरrsquo समलत कमो

को तयाग कर अिन दहभान को राख बनाय (भलम लििटा) लिय को परकलत स लभनन मानत हए लनगमण लनराकार लनरजन

िरमलिता जयोलतलबद लशि म एक रि होन का (सबस ऊच किाश ििमत शखिा म) अभयास करत हए शकर को जञानयोग

अिलथा म आरढ़ होत हए तो सभी जानत और मानत ही ह इतना ही नही लकनत कममयोग क दलषटकोण स दखा जाए तो

भी कई दषटात परापत होत ह सागर-मथन क समय जब गिालन रिी अजञानता का सार ससार को हिचि म िान िािा

हिाहि लिष लनकिा तो उस िीन का सामरथयम लकसी म नही था लिषटण एि बरहमा म भी नही किि महादि शकर ही थ

लजनहोन अिना कतमवय समझ लिषिान लकया था उस लिष का अलनशचय रिी मतय का फि भी उनह परापत नही हआ कयोलक

ि कममयोगी बन लनषटकमम ललथलत को परापत कर चक थ गीता म भी शलोक आया ह- 21lsquolsquoलजसम म-िन का भाि न हो और

लजसकी बलि कमो म लिपत नही होती िह समलत ससार का नाश करन िर भी लकसी को नही मारता ह और न ही उस िर

मारन का दोष िगता हrsquorsquo अब लिनाश का िाटम भी शकर का ही ह लजसका उनह कोई दोष भी नही िगता इसस लसि हो

जाता ह लक दोनो ही योग लनषठा म महादि शकर स शरषठ और लसिहलत कोई भी नही इसलिए िालति म किि महादि

शकर या सनातन धमम क लथािक सनतकमार को ही lsquoयोगीराजयोगशवरrsquo और जञानशवर कहा जाना चालहए लकनत शरी कषटण

क भकतो की अधशरिा न लबना लकसी चाररतरय-परमाण क शरी कषटण को भी योगशवर मान लिया ह िस भी कहा ह लक 17 दवौ भतसगौ िोक अललमन दि आसर एि च 166

18 मया अधयकषण परकलतः सयत सचराचरम हतना अनन कौनतय जगत लििररितमत 910

19 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

20 िोक अललमन लदवलिधा लनषठा िरा परोकता मया अनघ जञानयोगन साखयानाम कममयोगन योलगनाम 33

21 यलय न अहकतः भािः बलिः यलय न लिपयत हतिा अलि स इमान िोकान न हलनत न लनबधयत 1817

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 6: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

6

17

lsquolsquoलिशव म दो परकार की सलषट होती ह- एक दिताओ की और दसरी असरो कीrsquorsquo िही दसरी ओर यह भी आया ह लक

18

lsquolsquoमरी एकमातर अधयकषता क कारण स ही परकलत समलत जगत को lsquoलििररितमतrsquo अथामत लििरीत लदशा म िररिलतमत

करती हrsquorsquo इसका सीधा अथम ह लक इस ससार का कािचकर सतयग-तरतायग स दवािरयग-कलियग की लगरती लदशा म

अथामत दिताई-सलषट स आसरी-सलषट की ओर परकलत क गणो क आधार स घमता ह लकनत िरमलिता की अधयकषता म

परकलत इस तरह स लििरीत लदशा म िररिलतमत हो ऊिर उठ जाती ह लक नए यग सतयग आलद का ही आरभ होता ह अथामत

दिी-सलषट क लनमामण हत ही िरमलिता िरमातमा lsquoहलिनिी गॉडफादरrsquo इस सलषट म आत ह यह िरमलिता िरमातमा क

एकवयािी लिरि की अधयकषता म परकलत का lsquoलििररितमतrsquo लिरि ह यलद िरमलिता का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह

और यलद उनहोन दवािरयग क अत म गीता-जञान लदया तो बाद म िररणाम कया लनकिा और भी 19lsquolsquoअलधक िाखडी

घमडी अलभमानी कामी करोधी एि अजञानी आसरी सिलतत स परिि हआ िािी-अधमी कलियग आयाrsquorsquo यह तो

lsquoजगलदविररितमतrsquo नही हआ अथामत यहा िर यह लिषट हो जाता ह लक दवािर क अत म न तो गीता-जञान लदया गया था और

न ही िरमलिता िरमातमा का एकवयािी लिरि शरी कषटण ह लकनत यह सतय ह लक इस परकार की भरालतयो स आसरी-सलषट

का लनमामण अिशय होता ह लजस आज हम सब दख रह ह

गीता म आया ह लक lsquolsquoिरमलिता िरमातमा क एकवयािी लिरि न समलत ससार को 20योग की दो लनषठाए िा

परणालिया बताई ह- जञालनयो को जञानयोग(साखय योग) और कालममक योलगयो को कममयोगrsquorsquo जञानयोग का अथम ह- िरी तरह

स कमो को तयागकर अिनी आतमा को लनराकारी-लनगमण ललथलत म लटकाकर िरमलिता िरमातमा क मन की लनःसकलिी

अिलथा म लिय को िीन करना और कममयोग का अथम ही ह- अिन कमो को िरमलिता िरमातमा की याद म रहत हए

उसक कममफि को बलि स तयागना शरी कषटण क जीिन म कही भी इन लनषठाओ का अनभि नही होता न ही उनका योग

म तलिीन रहन िािा दषटात शासतर म कोई ह और न ही कममयोगी क लिरि म लनषटकमम ललथलत को परापत कोई यादगार ह

लकनत शासतरो म एक ऐसा लिरि ह जो दोनो ही लनषठा को लिषट रि स लसि करता ह िह ह lsquoमहादि शकरrsquo समलत कमो

को तयाग कर अिन दहभान को राख बनाय (भलम लििटा) लिय को परकलत स लभनन मानत हए लनगमण लनराकार लनरजन

िरमलिता जयोलतलबद लशि म एक रि होन का (सबस ऊच किाश ििमत शखिा म) अभयास करत हए शकर को जञानयोग

अिलथा म आरढ़ होत हए तो सभी जानत और मानत ही ह इतना ही नही लकनत कममयोग क दलषटकोण स दखा जाए तो

भी कई दषटात परापत होत ह सागर-मथन क समय जब गिालन रिी अजञानता का सार ससार को हिचि म िान िािा

हिाहि लिष लनकिा तो उस िीन का सामरथयम लकसी म नही था लिषटण एि बरहमा म भी नही किि महादि शकर ही थ

लजनहोन अिना कतमवय समझ लिषिान लकया था उस लिष का अलनशचय रिी मतय का फि भी उनह परापत नही हआ कयोलक

ि कममयोगी बन लनषटकमम ललथलत को परापत कर चक थ गीता म भी शलोक आया ह- 21lsquolsquoलजसम म-िन का भाि न हो और

लजसकी बलि कमो म लिपत नही होती िह समलत ससार का नाश करन िर भी लकसी को नही मारता ह और न ही उस िर

मारन का दोष िगता हrsquorsquo अब लिनाश का िाटम भी शकर का ही ह लजसका उनह कोई दोष भी नही िगता इसस लसि हो

जाता ह लक दोनो ही योग लनषठा म महादि शकर स शरषठ और लसिहलत कोई भी नही इसलिए िालति म किि महादि

शकर या सनातन धमम क लथािक सनतकमार को ही lsquoयोगीराजयोगशवरrsquo और जञानशवर कहा जाना चालहए लकनत शरी कषटण

क भकतो की अधशरिा न लबना लकसी चाररतरय-परमाण क शरी कषटण को भी योगशवर मान लिया ह िस भी कहा ह लक 17 दवौ भतसगौ िोक अललमन दि आसर एि च 166

18 मया अधयकषण परकलतः सयत सचराचरम हतना अनन कौनतय जगत लििररितमत 910

19 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

20 िोक अललमन लदवलिधा लनषठा िरा परोकता मया अनघ जञानयोगन साखयानाम कममयोगन योलगनाम 33

21 यलय न अहकतः भािः बलिः यलय न लिपयत हतिा अलि स इमान िोकान न हलनत न लनबधयत 1817

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 7: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

7

22

lsquolsquoअतकाि म जो िरमातमा को लसमर िह उनही को परापत होता हrsquorsquo इसी की यादगार म मानि-जीिन क अत क िशचात

जब शारीररक अलतम लकरया करन मोकषधाम िा शमशान जात ह िहा िर भी लशिाियो म योगशवर महादि शकर की परलतमा

ही होती ह शरी कषटण की नही

िरमलिता जब एकवयािी लिरि म िरकाया परिश करत ह तो िह साकार लिरि भी अिन-आि को इस परकार स

लनराकारी लटज म तयार करता ह लक िरमलिता िरमातमा का सगण रि भगिान बन जाता ह और लनगमण िरमलिता को अिन

सगण रि स ससार म परतयकष करता ह इसी क बार म गीता म आया ह लक 23lsquolsquoलजसका जञान दवारा अजञान नषट हो गया

ह िह जञान-परकाश क अखट भडार लशि िरमशवर को सयम की तरह परकालशत करता हrsquorsquo अब अजञान आता कस ह तो

इसक लिए बताया गया ह लक 24

lsquolsquoलजस परकार अलगन धए स ढक जाती ह ठीक उसी परकार आतमा क अदर क जञान को

काम-करोध का अजञान ढक िता हrsquorsquo यह अजञान आतमा और िरमलिता समबलनधत जञान को और िरमलिता क एकवयािी

लिरि क लिशष जञान-लिजञान 25दोनो को ही (मन-बलि क लमलत स) नषट कर दता ह इसलिए गीता म इस

26काम-

लिकार रिी अजञान को नषट करन क लिए परररत लकया ह अब ऐसा कौन-सा लिरि ह जो शासतरो म काम-लिकार कामदि

को भलम करता हआ लदखाया ह िह महादि शकर ह न लक शरी कषटण अथामत महादि शकर ही िरमलिता का साकार

एकवयािी लिरि ह जो अिन अदर क काम-लिकार रिी अजञान को अिन भीतर क जञान-योग क तीसर नतर को खोि भलम

करता ह इसी िलितर लनषटकाम शकर क लिरि दवारा लनगमण िरमलिता सगण रि म परतयकष होत ह कयोलक लनयम यह ह लक

जो लजतना लनराकारी होगा िह उतना ही लनलिमकारी सलषट का लनमामण कर सकता ह िरमलिता िरमातमा लिरि शकर दवारा

ही (जगलदविररितमत रि म) दिी-सलषट का लनमामण होता ह काम-लिकार को िकर शरी कषटण की ऐसी कोई मलहमा नही ह

और न उनकी लनराकारी अिलथा म लटकन िािी कोई यादगार ह इसलिए शरी कषटण लकसी भी परकार स लनगमण िरमलिता

का सगण रि हो नही सकता और न ही शरीकषटण नई सतयगी दलनया लथािन करन क लनलमतत बनत ह

lsquoयोगrsquo का अथम ह- मनमनाभि लजसका लिषटीकरण िहि ही हमन समझ लिया अब िरमलिता लजस साकार मनषटय

म िरकाया परिश करत ह उस लिरि क बार म गीता म आया ह लक 27

lsquolsquoयह ससार रिी िकष उलट अशवतथ िकष समान

ह लजसका अलिनाशी बीज और मि lsquoऊधिमrsquo अथामत ऊिर की ओर ह और लिलतार lsquoअधःrsquo अथामत नीच की ओरrsquorsquo तो

कया इसका मतिब यह ह लक बीज और मि लिरि लनराकार लशि िरमलिता ऊधिम िरमधाम म ललथत होकर समलत अधः

ससार को लिलताररत करता ह नही िरमलिता लनराकार लनगमण और लनरजन ह लकत य समलत साकार ससार परकलत क तीनो गणो (सत रज तम) म बधायमान ह जस बीज होता ह िस ही िकष उतिनन होता ह िस ही फि परापत होता ह तो

लतरगणमयी ससार रिी िकष का बीज कया तीनो गणो म आन िािा नही होगा इसी बात को समझात हए गीता क 7ि

अधयाय म आया ह लक 28lsquolsquoतीनो गणो की उतिलतत मझस लशि+शकर स ही हई ह लकनत म लशि उनम नही ह िरनत

ि मझम (लशि+शकर म) हrsquorsquo यहा िर लिषट रि स समझना ह लक lsquoमझसrsquo lsquoमझमrsquo एि lsquoमrsquo शबद लकस भाि स कहा

गया ह लनराकार लशि िरमलिता और साकार लिरि योगीराज शकर की एकवयािी रि परिलतत म दो शलकतया ह- lsquoमझस

परकलत की उतिलततrsquo और lsquoमझम परकलत का होनाrsquo- य दोनो ही शलकतया साकार मलतमरि शकर म लनराकार की परिलतत क 22 अनतकाि च माम एि लमरन मकतिा कििरम यः परयालत स मदभािम यालत न अललत अतर सशयः 85

23 जञानन त तत अजञानम यषाम नालशतम आतमनः तषाम आलदतयित जञानम परकाशयलत ततिरम 516

24 आित जञानम एतन जञालननः लनतयिररणा कामरिण कौनतय दषटिरण अनिन च 339

25 िापमानम परजलह लह एनम जञानलिजञाननाशनम 341

26 जलह शतर महाबाहो कामरि दरासदम 343

27 ऊधिममिम अधःशाखम अशवतथम पराहः अवययम छनदालस यलय िणामलन यः तम िद स िदलित 151

28 य च एि सालततिका भािा राजसाः तामसाः च य मतत एि इलत तान लिलि न त अहम तष त मलय 712

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 8: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

8

लिए िाग होती ह िही िरमलिता लशि क अललतति को लनगमण बतान हत lsquoम उनम नही ह rsquo इस परकार स लिषट भी लकया

गया ह िालति म यह समझना थोड़ा-सा जलटि ह कयोलक आतमा को जानना और िरमलिता लशि को जानना इस जञान

कहत ह लकनत िरमलिता लशि को लिशष लकसी एक साकार लिरि दवारा जानना किि जञान नही अलित लिशष जञान

लिजञान कहा जाता ह कयोलक इसम लिशष रि स यकत होना िड़ता ह जहा िलडडतो क दलषटकोण स जञान और योग लभनन

नही होत िही लिशष जञान क साथ लिशष योग जड़ा होता ह कदालचत इसलिए इस 7ि अधयाय का नाम lsquoजञानलिजञानयोगrsquo

रखा गया ह अब इसस लिषट हो जाता ह लक साकार शकर म लनराकार लशि जयोलतलबिद की परिलतत ही िालति म इस ससार

रिी िकष का बीज लिरि मि कारण ह अब इस बीज लिरि क परलत गीता म एक शबद आया ह lsquoअवयकतमलतमनाrsquo मलतम

कहा ही जाता ह साकार लिरि को और उसक िहि lsquoअवयकतrsquo लिशषण स यह लिषट कराया लक जो साकार लिरि ह िह

िरषाथम की लनरतर आलतमक लटज रि सिननता परापत कर िरमलिता समान सगण रि म अथामत वयकत म रहत भी अवयकत रि म परतयकष होता ह इसी 29

lsquolsquoअवयकतमलतम दवारा समलत ससार लिलतार को परापत हआ ह लजनका अश इस अवयकत-

मलतम म तो ह लकनत अवयकतमलतम म परिश िरमलिता लशि अमतम का िास समलत िकष म नही हrsquorsquo यही िर िरमलिता का िरा और अिरा परकलत का भद भी लिषट हो जाता ह िरमलिता का एकवयािी साकार मनषटय रि हीरो िाटमधारी िरमातमा की

अिरा अथामत भौलतक रि स जानन-िहचानन िािी लनमन लतर की िचततिो स बनी शारीररक जड़ परकलत ह और िही

साकार लिरि जब अिन अजञान को नषट कर लनगमण िरमलिता लशि को सगण रि म परतयकष करन िािा बन जाता ह तो

िह अवयकत मलतम रि म िरमलिता की िरा परकलत कहिाता ह 30lsquolsquoसमलत ससार इस दो परकार की परकलत स ही उतिनन

हआ हrsquorsquo इसी िरा परकलत क बार म गीता म आया ह लक 31

lsquolsquoिरमलिता लशि की योलन रिी माता िरबरहम (तिमि माता) ह लजसम ि बीज बोत ह और समलत जड़-चतनय ससार को उतिनन करत हrsquorsquo अब यलद िरा एि अिरा परकलत

दोनो की बात कर तो शरी कषटण की कोई यादगार लिरि शासतरो म नही ह लकनत िाच महाभत एि मन बलि अहकार क

अषटयकत म समलत (दस)इलियो एि उनक (िाच)लिषयो सलहत अिरा परकलत क रि म शकर का यादगार ह और इन सभी

(तईस)भदो स ऊच और लभनन जो शकर का िरमलिता क साथ एकातम होन का लिरि ह उस िरा परकलत का जयोलतलबद

लिरि हीरा का सोमनाथ म यादगार था गोिशवरम म इसी रि की िजा लिय शरी कषटण दवारा भी करत हए लदखाया गया ह इसस लिषट होता ह लक समलत ससार का मि कारण िरमलिता का साकार िरमातमा लिरि शकर का एकवयािी रि ह

और शरी कषटण भी उनही लशि+शकर क उिासक ह

गीता म कहा ह- 32दो परकार क िरष अथामत आतमा ह- एक कषर और दसरा अकषर साकार म िाटम बजान

िािी समलत भोगी आतमाए जो लतरगणो की माया म कषररत होती रहती ह ि सब lsquoकषरrsquo कही जाती ह िरमलिता लशि जो

लतरगण स िर सदि लनरजन-लनगमण ह लजनका जञान कभी भी कषररत नही होता और जो सबस ऊिर िरमधाम (गीता 156) म

ललथत ह उनह ही lsquoअकषरrsquo कहा गया ह लकनत इन समलत कषर म स उततम कोई बनता ह लजस lsquoिरषोततमrsquo कहा जाता ह

यह िरषोततम इसलिए सिमशरषठ ह कयोलक यह कषररत दलनया म रहत हए िरषोततम सगमयगी शलटग काि म अकषर ललथलत म

ललथत हो कषर और अकषर दोनो क लिए माधयम बनता ह इस ससार क लिए सदगर रि म दिाि बन िरमलिता लशि स

लमिान का काम करता ह लबना इस िरषोततम क न तो अकषर िरमलिता लशि कछ कर सकता ह और न कषर आतमाए कछ

29 मया ततम इदम सिमम जगत अवयकतमलतमना मतलथालन सिमभतालन न च अहम तष अिललथतः 94

30 एतदयोनीलन भतालन सिामलण इलत उिधारय 76

31 मम योलनः महत बरहम तललमन गभमम दधालम अहम समभिः सिमभतानाम ततः भिलत भारत 143

सिमयोलनष कौनतय मतमयः समभिलनत याः तासाम बरहम महत योलनः अहम बीजपरदः लिता 144

32 दवौ इमौ िरषौ िोक कषरः च अकषरः एि च कषरः सिामलण भतालन कटलथः अकषरः उचयत 1516

उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 9: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

9

कर सकती ह इसलिए इन कषर (मतयिोक म) तीनो िोको को िरषोततम अलधकार म िता ह इसी िरषोततम को समलत मनषटय-आतमाओ म िरम और शरषठ होन कारण lsquoिरम+आतमाrsquo (गीता 1517) कहा जाता ह यह िरमातमा लिरि शरी कषटण

का नही ह कयोलक िरषोततम िरमातमा को गीता म 33lsquoअवयय ईशवरrsquo इस शबद स सबोलधत लकया ह lsquoअवययrsquo का अथम

ही ह- अलिनाशी शरी कषटण को कभी भी अलिनाशी नही कहा जा सकता गीता म तो लिषट आया ह लक 34

lsquolsquoलजस

अलिनाशी स यह समलत ससार लिलतत ह उस ि सगमयगी अवयय िरष अथामत िरषोततम िरमातमा का लिनाश करन का

सामरथयम लकसी म नही हrsquorsquo लकनत शासतरो म परखयात ह लक लकसी बहलिय क तीर िगन स शरी कषटण की मतय हो गई थी

अथामत ि भी कषररत होन िाि िरषो की शरणी म ह अवयय िरमातमा नही ह यह िरषोततम िरमातमा लिरि िालति म शकर

ही ह जो मतय स भी िर हो जाता ह गीता म भी आया ह- 35lsquolsquoलजनका मन समानता म ललथर ह उनहोन यहा मतयिोक

रिी ससार को ही जीत लिया हrsquorsquo जो मतय को जीत िता ह िही औरो को भी अमरति(दिति) परदान कर सकता ह जो

ससार का लिनाश कर सकता ह उसी म ससार को उतिनन करन का सामरथयम भी होता ह इसलिए िरमातमा दवारा ही सलषट का

सजन एि परिय सभि ह गीता म भी आया ह लक 36

lsquolsquoिरान कलि क अत म समलत भत अथामत कषर पराणी अवयय

िरमातमा क जयोलतलििग बीजरि अिलथा को परापत करत ह और नए कलि क आलद म अिन-2 लिभाि अनसार उनह लफर

स सलषट क लिए नए शि रि स िरम बरहम िरमातमा छोड़त हrsquorsquo अत म समलत ससार शरी कषटण सलहत इसी िरमलिता

िरमातमा क एकवयािी िरमशवर लशिशकर लिरि स मनमनाभि होकर अिनी-2 अिलथा को िा ित ह इसी की यादगार म

मलदरो म लनह क धाग क बधन म रहन िाि अनक सालिगरामो क बीच म लनबिधन लशिलिग को लदखाया जाता ह कलि क अत म

37समलत ससार क नषट होन िर भी िह अवयय िरमातमा लिरि लशिशकर का नाश नही होता और

कलि क आलद म सभी क उतिनन होन का मि कारण होन स उनका जनम भी कोई नही जानता इसलिए गीता म लिषट आया

ह लक 38lsquolsquoमझ अजनमा अनालद एि महश समझन िािा समलत िािो स मकत हो जाता हrsquorsquo यहा िर भी िाि हरता

मलकतदाता शरी कषटण को नही अलित महान ईश- महश अथामत िरमातमा लिरि महादि शकर को ही कहा ह

िदो म lsquoभगिानrsquo िदनाम अननय रि स किि भगिान रि क लिए परयोग लकया ह यजिद का शरी रि शलोक िदो

क भगिान क रि म रि की िदना स आरमभ होता ह इसक अनसार lsquoओम नमो भगित रिायrsquo लजसका अथम ह lsquoरि जो

लक भगिान (ईशवर की िरम मलतम) ह को नमनrsquo बाकी सभी दिता लजनह भगिान की उिालध लमिी उनहोन िह उिालध िराणो स परापत की न लक िदो स िालति म बाद क गरथो (िराणो) म नारद और वयास को भी इस उिालध स अिकत लकया

गया अतः बाद क गरथो म बोिचाि की भाषा म यह उिालध सबक लिए परयोग की जान िगी भगिान लिषटण क नामो का

उलिख करन िाि मतर जस- lsquoओम नमो भगित िासदिायrsquo आलद िौरालणक ह न लक िलदक िदो म किि भगिान रि

(लशि) ही भगिान ह और चलक भगिदगीता िदो और उिलनषदो का सार ह यह हमार लिए ियामपत इशारा ह लक भगिान रि

ही गीता जञानदाता ह इस जञान का आरमभ ही lsquoअलिनाशी रि-जञान-यजञrsquo स होता ह

गीता म आए lsquoकषटणrsquo शबद की मलहमा िालति म िरमलिता िरमातमा लशि की ही ह अब परशन उठता ह लक यलद

शरी कषटण िरमातमा लिरि गीता जञानदाता नही ह तो गीता म जगह-2 lsquoकषटणrsquo नाम कयो लिया गया ह हम जानत ह लक

गीता कोई साधारण नही अलित िरमलिता िरमातमा का रचा गीत िा कलिता ह कलिता को कलि लजस परकार स अिकत 33 उततमः िरषः त अनयः िरमातमा इलत उदाहतः यः िोकतरयम आलिशय लबभलतम अवययः ईशवरः 1517

34 अलिनालश त तत लिलि यन सिमम इदम ततम लिनाशम अवययलय अलय न कलशचत कतमम अहमलत 217

35 इह एि तः लजतः सगमः यषाम सामय ललथतम मनः 519

36 सिमभतालन कौनतय परकलतम यालनत मालमकाम कलिकषय िनः तालन कलिादौ लिसजालम अहम 97

37 िरः तलमात त भािः अनयः अवयकतः अवयकतात सनातनः यः स सिष भतष नशयतस न लिनशयलत 820

38 यः माम अजम अनालदम च िलतत िोकमहशवरम असमढः स मतयष सिमिािः परमचयत 103

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 10: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

10

करता ह जो भाि भरता ह िह साधारण नही होता ठीक इसी परकार िरमलिता िरमातमा दवारा रलचत इस कलिता म भी बहत

ऐसी भािनाए ह लजस अिकत शबदो म कहा गया ह जहा lsquoकषटणrsquo नाम आ रहा ह िह िालति म गणिाचक शबद ह कषटण

का अथम कािा या आकलषमत करन िािा ह य दोनो ही अथम किि िरमलिता िरमातमा लिरि महादि शकर क लिए ही

िाग होत ह- लतरगणमयी परकलत क बीच कलियग-अत क समय तक भी साकार म रहन क कारण कािा लिरि ह समलत

ससार को भतपरालणयो को दि हो या असर या कोई भी िगम क हो सभी क इषट मान जात ह महादि शकर को शासतरो म

समलत सनयालसयो क जीिन को आकलषमत करन िािा पररणा-सतरोत माना ह तो समलत िररिार (ितनी िािमती ितर गणश-

कालतमकय भकत नदी एि अनय रिगण) सलहत गहलथ धमम क सचािक रि म भी परिलतत मागम िािो दवारा सिमशरषठ आकषमण

ही मान गए ह शरी कषटण क परलत सनयालसयो का कोई लिशष आकषमण नही दखा जाता और शरी कषटण क परलत न लकसी असर

का आकषमण शासतरो म लदखाया गया ह इसलिए lsquoकषटणrsquo शबद गणिाचक ही माना जाएगा

इसी कषटण को िकर अजमन क भरम को 11ि अधयाय म आए एक अनय दषटात स भी समझन का परयास करत ह-

िरमलिता िरमातमा क लिशवरि का दशमन करत हए जब अजमन भयभीत हआ तब िह समझ नही िाया लक िह लिराट लिरि

ह कौन इसी सदभम म उसन भयभीत लिर स हाथ जोड़त हए िरमलिता िरमातमा की लतलत कर उनह जानन की लजजञासा स

िछा लक 39lsquolsquoलिकराि रि म परितत आि कौन हो म समझ नही िा रहा किया अिना िररचय दrsquorsquo यहा िर अचरज

की बात ह लक जो अब तक क समलत गीता अधयाय म कषटण-लिषटण नाम स उलिख करत हए अिनी लजजञासा शात करन

का परयास कर रहा था उस अजमन को िालतलिकता का बोध होत हए यह लिषट हो रहा था लक िरमातमा लिरि शरी कषटण

नही ह बललक कोई और ह अनयथा यह परशन िछन का कया अलभपराय और अजमन की इसी लजजञासा को शात करत हए

िरमातमा न कहा लक lsquoकािोऽललमrsquo (अधयाय-11 शलोक-32) अथामत म काि ह यह तो हम सब जानत ह लक कािो का

काि महाकाि कहा गया ह और महाकाि यह महादि शकर का ही उगररि माना जाता ह अथामत यहा िर भी लिषट होता ह लक गीता जञानदाता िरमलिता लशि का एकवयािी लिरि महादि शकर ही ह न लक शरी कषटण

lsquoकषणrsquo शबद को लकि एक औि तकव को सरझन कम परयमस कित ह -

िरमातमा जब अिन काि लिरि का िररचय द दत ह तब अजमन अिनी भि को लिीकार करत हए कहता ह लक

40ldquoह कषटण ह यादि ह सखा- इस परकार जो कछ लतरलकारििमक कहा हो उसक लिए जगत स नयार िरमलिता िरमातमा

आि स म कषमा मागता ह rdquo अवयय िरमातमा लिरि महादि शकर को कषर िरष शरी कषटण समझकर सबोलधत करन क

लतरलकारििमक कतय की आतमगिालन होन स अजमन न यह कषमायाचना की लकनत बलिमान नर कह जान िाि अजमन न

दबारा अधयाय-17 क परथम शलोक म lsquoकषटणrsquo शबद स िरमातमा को सबोलधत लकया ह इसस यह लसि होता ह लक lsquoकषटणrsquo

शबद नामिाचक नही ह अलित समलत ससार को आकलषमत करन िाि गण को अलभवयकत करत हए िरमातमा लिरि

महादि शकर को सबोलधत लकया गया ह अनयथा अजमन दवारा कषमा मागन का कया अलभपराय

लचतर क साथ-2 चररतर क सबध म भी शासतरो म शरी कषटण एि महादि शकर क बीच बहत बड़ा अतर ह दवतिादी

भलकतमागम म शरी कषटण का चररतर लनयमो का उलिघन एि मयामदाओ को तोड़ता हआ लदखाया ह अलधक-स-अलधक उनकी

मलहमा बालय एि लकशोर अिलथा की लदखाई गई ह और इस रि म सदि उनकी अनशासनहीनता ही लिषट लदखाई िड़ती

ह चोरो की भालत मटकी फोड़ माखन िटना और उस अिन सखाओ सलहत खा जाना गोलियो क कामो म बाधा डािना

जस- िानी स भरी मटलकयो को फोड़ना उनक घर म बध गाय क बछड़ो को खोिना इतयालद शासतरो म लदखाया गया ह लक

39 आखयालह म कः भिान उगररिः नमः अलत त दििर परसीद लिजञातम इचछालम भितम आदयम न लह परजानालम ति

परिलततम 1131

40 परसभम यत उकतम ह कषटण ह यादि ह सख इलत1141 तत कषामय तिाम अहम अपरमयम 1142

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 11: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

11

शरी कषटण क इस चररतर को िकर समलत गोकि िरशान था और कई बार उनक दवारा यशोदा और ननद क समकष लशकायत

भी की गई थी गीता म भी आया ह लक 41

lsquolsquoजो िोग न ससार को िरशान करत ह और न ही ससार स िरशान होत ह

ि िरमलिता िरमातमा को लपरय हrsquorsquo लकनत शासतरो म आए शरी कषटण क चररतर इस िर खर उतरत नही लदखत यलद इस कषटण

का बचिना मानकर भि भी जाए तो भी यिा अिलथा म उनकी इस परकार की मलहमा शासतरो म कछ कम लिखयात नही ह

अथमिाचक गोलियो क िसतरो को नहात समय चराना अनक िलतनया रखना इतयालद अब गीता म आया ह लक 42

ldquoशरषठ

िरषो क कमो का सभी अनसरण करत हrsquorsquo शासतरो म लजस रि म शरी कषटण क चररतर की मलहमा की गई ह कया िह चररतर

सामानय िोगो क अनसरण करन जसा ह कदालि नही लकनत लिडमबना यही ह लक गीता जञानदाता शरी कषटण को मानन स

सामानय िोगो न इसी चररतर का अनसरण लकया और आज समलत मानिीय समाज दलषतपरदलषत हो चका ह (अलधक

जानकारी हत lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo दख)

लनगमण-लनरजन िरमलिता लशि को सिमवयािी मानना एि सगण रि म शरी कषटण को िरमातमा मानना ही शरीमदभगिदगीता म की गई सबस बड़ी भि ह इसी भि न आज समलत ससार को अमानिीय असर रि म खड़ा कर लदया ह

नशर-शकि र अति एर सभी धरो र एकवयमपी नशरनलग सररप की रमनयतम - यह तो हमन जान लिया लक

िरमातमा सगण रि म महादि शकर ही एकवयािी लिरि ह लकनत लनगमण लनरजन िरमलिता का एकवयािी लिरि म जो

नाम लिशवपरखयात होता ह िह ह lsquoलशिrsquo लशि का अथम ह ही सदा शभ िा कलयाणकारी और िरमलिता लशि अिन साकार आधार शकर स लभनन ही ह यह लशि सदि शकर स बड़ एि अलधक िजनीय मान गए ह इसलिए उनका नाम िहि लिया

जाता ह जस- िरमलिता िरमातमा कहत ह न लक िरमातमा िरमलिता लशि-शकर कहत ह न लक शकर-लशि लशि की

परिशता क िशचात साकार लिरि शकर सहज राजयोग क अभयास दवारा अिन दह क भान को इस तरह स भि कर लनराकार

अिलथा बना िता ह लक िारदलशमत रि म अततः सदा शभ लशि ही अनभि होता ह इसी कारण लशि और शकर म भद

नही लकया जा सका और दोनो को एक ही माना गया यही लशि-शकर क एकातम होन का लिरि जयोलत-लिग की यादगार रि म परखयात ह इस शारीररक लिग क बीच म जो लबदी लदखाई जाती ह िह लनगमण िरमलिता लशि की ही लनरतर याद

अथामत कममयोग की यादगार ह इसलिए इस लशिलिग ही कहा जाता ह न लक शकरलिग यह लनराकार लटज लशिलिग ही

समलत धमो म मानय ह और िजनीय भी

िालति म एकवयािी िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क अवयकत अमतम जयोलतलबमनद लिरि को ही लिीकारा गया

ह उनका िालतलिक लिरि तो अण स भी अणतम ह जो आखो स भी न लदखाई दन क कारण लनराकार कहा जाता ह

िलदक िरमिरा म िजा करन की सलिधा क लिए ही अलत सकषमतम जयोलतलबिद लशि का बड़ा आकार लशिलिग साकारी सो

लनराकारी लिरि बनाया गया ह िद-िराण-उिलनषदो स िकर आज तक मलदरो म भी उसी लिग आकार अमतम (लजसकी

लकसी पराणी जसी मलतम न हो) लशि की मलहमा का सबस अलधक गायन ह कयोलक यही उनका सचचा लिरि ह लसध नदी

की घाटी म भी लिग मलतमयो की ही सखया सबस अलधक िाई गई ह महाभारत म भी सलषट क आलद म जब कछ नही था

तब 43बड़ा-सा अडड रि क परकट होन की बात आई ह जो सभी का बीज ह

ऋगिद (116446) म ह ldquoएको सत लिपरः बहधा िदलनतrdquo लजसका अथम ह ldquoएक ही सत(बराहमण) ह लजनह

जञानीजन अनक तरह बतात हrdquo समची मानि सलकलत क आदयलनमामता िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि

जयोलत लशिलिग को आज भी लिशव क सभी धमामििमबी मानत ह यह दी िोग उस lsquoजहोिाrsquo नामक अलगन मानत ह लजसका

41 यलमात न उलदवजत िोकः िोकात न उलदवजत च यः हषाममषमभयोदवगः मकतः यः स च म लपरयः 1215

42 यत यत आचरलत शरषठः तत तत एि इतरः जनः स यत परमाणम करत िोकः तत अनितमत 321

43 बहदडडमभदक परजञाना बीजमवययम29 (महाभारत आलदििम परथम अधयाय)

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 12: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

12

साकषातकार मसा को हआ था यह लदयो का लचहन ह lsquorsquo यह भी िालति म लशिलिग का ही लिरि ह कयोलक यह लचहन

एक चशक lsquorsquo और दसरा फ़िक lsquorsquo- इन 2 लचहनो को लमिान स बना ह य चशक और फ़िक और कछ नही बललक

लशि लदखाया गया बड़ा रिलिग िरमबरहम अथामत लशि की महदबरहम योलन रिी माता ह और उस िर ललथत जयोलतरि बीज बोन िाि लिता क रि म ह साकार लिरि शकर जब लशि समान समिणम बन जात ह तब ि भी अलगनतति की भालत िलितर एि परकालशत हो जात ह उनकी शलकत कभी नीच नही अलित अलगन की भालत सदि ऊधिम की ओर ही अगरसर होती

ह अलगन की भालत उतिलतत भरण और परिय तीनो का सामरथयम िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि म होता

ह यही कारण ह लक यह दी िोग जहोिा अथामत अलगन की िजा करत ह लहनद शासतरो की मानयता अनसार शतिथ बराहमण म 44

lsquoअलगन ही रि हrsquo lsquoजो रि ह िही अलगन हrsquo इतयालद इस परकार स मरदगणो दवारा अलगन की लतलत की गई ह शकि

यजिद म भी 45अलगन क भि सिम ईशान उगर िशिलत आलद रि क ही अिर नाम लगनाए गए ह अथिमिद म भी

46रि को अलगन कहकर नमन लकया गया ह इस परकार रि लशि-शकर ही अलगन ह और यही यह लदयो क लिए िजनीय

भी

बाइबि क अनसार 47िरमशवर जयोलत लिरि ह भारत म भी लशिलिग को जयोलतलििगम कहा जाता ह इतना

ही नही िरत बाइबि म िरमशवर को सतय लिरि 48सतय का ईशवर भी बताया ह लहनद शासतरो म किि

49िरमलिता

िरमातमा लशि लिरि को ही सतयम-लशिम-सदरम कहा गया ह अथामत ईसाइयो म ईसा मसीह को लजस काठ क करॉस िर

चढ़ाया गया था उस lsquorsquo लचहन को काफी िलितर मानत ह यह लचहन िालति म एक िड़ lsquo-rsquo और एक खड़ lsquorsquo डड स बनाया

गया ह यह िड़ा और खड़ा लचहन मात-लिता का ही कमबाइड लिरि ह िलदक िरिरा अनसार जब यजञालद रचन क लिए

अलगन को उतिनन लकया जाता था तो दो िकड़ी को आिस म लघसा जाता था इसम एक िड़ी हई िकड़ी क आधार को

माता और खड़ी िकड़ी लजसस घषमण कर अलगन उतिनन की जाती थी उस आधय को लिता की सजञा दी गई ह यह िही

मात-लिता यकत लशि-शकर लिरि लशिलिग का ही यादगार ह

गरनानक (जो लसकखो क गर थ) न lsquoऊ लनरकारrsquo lsquoसतगर अकाि बहनामrsquo lsquoअकािमतमrsquo कहकर उसी लनराकार

लिरि का सकत लदया ह िालति म िरमलिता िरमातमा सतयम-लशिम-सदरम ही सदगर ह lsquoअकािमतमrsquo का अथम ह जो मतम

44 अलगन ि रिःrsquo (शतिथ बराहमण 313) lsquoयो ि रिः सोऽलगनःrsquo (शतिथ बराहमण 52413)

45 अलगन ॐ हदयनालशन ॐ हदयअगनण िशिलत कतलनहदयन भि यकना शिि मतलनाभयामीशान मनयना महादिमनतः

िशमवयनोगर(यजिद 389)

46 तलम रिाय नमोऽलतिगनय (अथिमिद 787)

47 This then is the message which we have heard of Him and declare unto you that God is light

and in Him is no darkness at all (हमन य सदश उसक बार म सना ह और आिको बताया ह लक भगिान िाइट

ह और उसम अधकार ह ही नही) (Bible New Testament 1 John 15 ) 48 Into Thine hand I commit my spirit Thou hast redeemed me O LORD God of truth आिक हाथो

मन अिन आतमा को सौिा ह आिन मरा उिार लकया ह- ह सचचाई क ईशवर (Bible Old Testament Psalms

315)

49 राम और नारायण दोनो क इषट तो िरमलिता िरमातमा लशि-शकर ही ह जहा राम की लशि उिासना रामशवर म आज भी

यादगार क रि म ह िही नारायण को लिदशमन-चकर की परालपत भी लशि स ही हई ह यह शासतरो म लिषट उलिख ह इसलिए

इनह भी लशिोिासक होन कारण lsquoसतयrsquo की सजञा दी गई ह जस- राम नाम सतय ह सतयनारायण इतयालद भी उसी क नाम

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 13: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

13

अथामत साकार लिरि म होत हए भी मतय को जीत चका ह लहनद शासतरो क अनसार अकाि किि शकर महाकाि को

ही माना गया ह lsquoबहनामrsquo की सजञा उस ही दी जा सकती ह लजनक बह रि भी हो जो अरि ह उनह अनक नाम कस लदया जा सकता ह कयोलक नाम काम क आधार िर होता ह और काम साकार शरीर रि म ही होता ह लहनद शासतरो म

50लशि-शकर क 11 रि लिरि म एक lsquoबहरिrsquo भी कहा गया ह अथामत यह लसि हो जाता ह लक हर परकार स

गरनानक दवारा िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क लनराकार लिरि की लतलत की गई ह

जािान म कछ बौि िोग आज भी गोि लचकन चमकीि ितथर को दलषट क सममख कर अिना लचतत ललथर करत

ह शकर को भी जब योग म आरढ़ होत हए लदखाया ह तो उनक आग लशिलिग का लिगरह रि लदखाया जाता ह इनही

का अनसरण जािान म बौलियो दवारा लकया जा रहा ह

रालतर म चयिन अथिा अितरण करन िाि उस िरमलिता िरमातमा एकवयािी लशि-शकर लिरि क लिए लहदओ

म महालशिरालतर का गायन ह तो मललिमो की धममिलतक करानशरीफ म भी कहा गया ह- 51lsquoऔर(ह िगबर) तमको

कया मािम रात को आन िािा कया ह (िह) चमकता हआ तारा हrsquo आज भी मसिमान िोग जब हज करन जात ह

तब काबा क 52गोि काि ितथर(सग-ए-असिद) का चबन लकए लबना उनकी हज यातरा िरी नही मानी जाती जहा

ितथर की िजा िलजमत ह िहा िर इस परकार क गोि ितथर को चमन की परथा हरान करन िािी बात ही ह िालति म यह

ितथर भी लशिलिग का ही यादगार ह असिद का सलकत शबद ह- अशवत अशवत कहा जाता ह जो सफद न हो अथामत जो

कािा ह लजस खदा का लजकर मसिमान करत ह उस जब चमकन िािा तारा माना गया ह जो परकालशत रहता ह तो

सफद क बदि काि ितथर को चमन क िीछ कया कारण ह यह कािा ितथर िालति म िरमलिता लशि क साकार आधार

लिरि लिग का यादगार ह जो इस कािी करततो िािी कलियगी रिी दलनया क बीच अिना िाटम बजाता ह जब तक

इस साकार लिरि (लजदा शलखसयत) का सग नही करत तब तक िरमलिता िरमातमा लशि(खदा) की परालपत(बरकत और

आिा नसीब) नही होती इसी क यादगार म सग-ए-असिद काि लशिलिग रिी ितथर का चबन करत ह अनयथा लनगमण

खदा को अिना पयार कस जता सकत ह साकार दवारा ही तो यह सभि ह एक और बात यह ह लक मसिमानो म चि और

तार क इस lsquorsquo लचहन का बहत महति ह िालति म यह कोई और नही बललक िरमलिता लशि क िरमातमा लिरि शकर

का ही यादगार ह लजसम उनका साकार लिरि अवयकत हो जान क कारण अदशय ह लकनत उनकी परतयकषता का परमाण दत

हए उनक मलतक िर लिराजमान अधम चिमा और उनम परिश जयोलतलबमनद लशि को ही महति द रह ह इस परकार सभी धमो

म िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी अवयकत लिरि का ही गायन और िजन अिनी-2 परथा अनसार ह

अब परशन यह उठता ह लक जब सब धमो म एक ही साकार म लनराकार िरमातमा लिरि लशिलिग क बार म ही

बताया गया ह तो इतन सार धमो की कया आिशयकता इतन सार तीथमलथानो का कया परयोजन इन बातो को गभीर रि

स समझना अलनिायम ह धमम का अथम ह- धारणा िालति म लकसी सलकलत-सभयता को मन म धारण करना ही धमम बन

जाता ह यलद लकसी सलकलत-सभयता क परलत मतभद ह तो िह हमारा धमम नही हो सकता इसस लिषट ह लक सनातन सलकलत

म कछ ऐसी कमी ह लजस कारण अनक सलकलतयो को जनम िना िड़ा य कमी और मतभद ितममान साकार शरीकषटण की

शरीमदभगिदगीता स ही उतिनन हए ह गीता म शरी कषटण का नाम डािन स िरमलिता िरमातमा लशि-शकर का एकवयािी

लिरि समलत िोगो स गपत हो गया गीता म उलिख लकए हए िरमातमा क लनराकार-लनलिमकार-लनरहकार लिरि की िलषट

50 हरशच बहरिशच तरयमबकशचािरालजतः िषाकलिशच शमभशच किदी रितलतथा मगवयाधशच शिमशच किािी च लिशामित एकादशत कलथता रिालसतरभिनशवराः (हररिश 135152)

51 करान 86 सरए ताररक 23

52 कई इलतहासकारो का मानना ह लक सारा-का-सारा काबा िालति म लशि का मलदर ही था इस िर कई तकम सगत एि रोचक डॉकयमटरी बनी हई ह जो यटयब चनि स अथिा गगि स परापत की जा सकती ह

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 14: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

14

शरी कषटण स कदालि हो नही सकती इसस लनराकार उिासको की भािनाए लहि गई और यही उनक मतभद का मखय कारण बना इसी मतभद स उनहोन सलषट क आलदकाि म िरमलिता िरमातमा स मनमनाभि होकर अिनी आतमा म यथाशलकत जो

तज भरा था उसी तज स उनहोन अिना अिग धमम बना डािा कई महममद जस लनराकारिादी इतन उगर हो गए लक जब

साकार म लनराकार लिरि की सही िहचान नही लमिी तो उनहोन समलत साकार लचतरो को ही खलडत करना आरभ कर

लदया उस िरमातमा लिरि की कछ-2 लमलतयो को अिन धमम म अिनी भाषा स परतयकष करन का परयास लकया ह लजसक

बार म हमन ऊिर जान लिया ह लजसन अिनी अिग धमम की नीि रखी उसी नाम को िकर धमम का नाम भी िड़ा जस-

ईसा मसीह स ईसाई धमम िगबर महममद स मललिम धमम इतयालद जो इनक तज स आकलषमत हए उनहोन उस धमम को

लिीकार कर लिया अब य अनक धमम आिस म िड़त रहत ह कारण कया हआ शरीमदभगिदगीता म शरी कषटण नाम डािन

स यह अनथम हआ शरीमदभगिदगीता म आया ह लक 53lsquolsquoतीनो गणो स परितत लिषयी-लिकारी मनषटयो दवारा अकररत अनय

(बौिी ईसाई मललिम आलद) धमो की शाखाए ऊिर-नीच की ओर फिी हई ह और उनक अनयालययो की कममकाडो म

बधन िािी अनक िरमिराओ रिी जड़ भी नीच की ओर फिी हई हrsquorsquo यहा िर लिषट कर लदया ह लक मानिी सलषट-िकष म

सभी धमो की शाखाए ऊधिमगामी (िरमलिता िरमातमा क अललतति रि लशिलिग को उजागर करता हआ सलषट-िकष का

मखय तना) और अधः (लिषय-लिकारी मानिी धारणा स दलषत िरमातमा क अललतति को खलडत करती हई) दोनो ही ओर

फिी ह इसलिए लिलतार को परापत हए 54

lsquolsquoससार रिी िकष म उस सार बीज-रि आतमा आदम को िकड़ना चालहए जो

समलत चर-अचर का भी मि कारण हrsquorsquo िह बीज कोई (शासतर परलसि िीिि क ितत म अगठा चसता) शरी कषटण नही

अलित िरमलिता लशि का साकार िरमातमा लिरि शकर ही ह लजनकी यादगार हर धमो म सलषट क आलद कारण आलदिरष

रि म मानी जाती ह जस- लहनदओ म आलददि मसिमानो म आदम ईसाइयो म ऐडम जलनयो म आलदनाथ इतयालद

आशचयमजनक समानता भर नामो स उलिख लकया गया ह

िालति म अनय धमो क सभी लथािक लिशष रि स लनगमण-लनराकार को मानन िाि एक परकार क सनयासी ह य

सभी लनराकारिादी तो ह लकनत लनराकार की असिी िररभाषा स अनलभजञ ह इस बात को समझन क लिए हम महाभारत

क सबस महतििणम दषटात को समझना अतयािशयक ह िह ह अजमन क रथ म लिराजमान शरी भगिान कठोिलनषद म आया

ह लक 55lsquolsquoयह शरीर ही रथ ह और शरीर का मालिक आतमा रथी ह िरमिरष लशि की लनणमय-शलकत बलि सारथी ह

तो रथी की सकलि-शलकत मन िगाम ह लजसस समलत इलियो रिी घोड़ जड़ हrsquorsquo िालति म महाभारत म परलसि अजमन

का रथ भी इसी आधार स एक साधारण मनषटय-तन ही ह इस मनषटय-तन म अजमन िाटमधारी की आतमा तो ह ही लकनत

बलिमानो की बलि लतरकािदशी िरमलिता लशि जब इस सलषट म आत ह तो इसी अजमन क शरीर रिी रथ म परिश करत ह

अजमन भी समिणम रि स अिनी लनणमय-शलकत बलि को उसी लशि सारथी को सौि कर समलत इलियो क लिामी अिन मन रिी िगाम िरमलिता लशि को सौिकर उनह अिन शरीर रिी रथ म सारथी का लथान दता ह यह अवयलभचारी समिमण लसिाय जञानिान अजमन क कोई भी करन म समथम नही ह इसलिए िरमलिता लशि क इस मकरमर रथ की आतमा को ईशवरीय

जञान दवारा सदभागय अलजमत करन िािा अजमन कहा गया ह गीता म भी आया ह- 56lsquolsquoजो मझको समिणम शरिा स याद

करता ह िह मझम ह और म उसम ह rsquorsquo गीता म कई जगह िर 57अजमन को अिना लपरय भी बताया गया ह यही अजमन

लफर जञान और योग दोनो का लमशर िरषाथम करत हए lsquoशकरrsquo कहिाता ह और शकर बनत हए लशि समान ललथलत को भी

53 अधः च ऊधिमम परसताः तलय शाखा गणपरििा लिषयपरिािाः अधः च मिालन अनसततालन कमामनबनधीलन मनषटयिोक 152

54 ततः िदम तत िररमालगमतवयम यललमन गताः न लनितमलनत भयः तम एि च आदयम िरषम परिदय यतः परिलततः परसता िराणी 154

55 आतमान रलथन लिलि शरीर रथमि च बलि त सारलथ लिलि मनः परगरहमि च इलनियालण हयानाहःिलदक सालहतय

(कठोिलनषद 133-4)

56 य भजलनत त माम भकतया मलय त तष च अलि अहम 929

57 इषटः अलस म दढम 1864

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 15: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

15

तीवर िरषाथम स परापत कर िता ह इसी की यादगार लशिलिग माना जाता ह लजसक एकवयािी लिरि का िररचय दत हए

गीता म लिषट कह लदया ह लक 58lsquolsquoमझ अलधभत अलधदि एि अलधयजञ सलहत जो जानता ह िह िालति म मझको

योगयकत होकर जानता हrsquorsquo59अलधभत का अथम ही ह- कषर भाि बरहमा स कषटण चनिमा और अलधदि का अथम ह- िरष

अथामत शरीर रिी िरी म शयन या आराम करन िािी आतमा लिषटण = आलद ना0 लिनाशी ितनशीि भाि स भर अजमन

क साकार रथ (कलियग म परापत अजमन का अलनतम चौरासीि जनम का तामसी िलतत तन) सलहत िरमलिता िरमातमा को

जानना ही अलधभत सलहत जानना ह और जब अजमन की आतमा जञान एि योग क िरषाथी रि शकर बन 60आतमा म

ही आनलदत रहती ह तो इस भौलतक भाि स ऊिर की ओर उठी अिलथा म ललथत शकर सलहत िरमलिता लशि को जानना

ही अलधदि सलहत जानना ह गीता म अलधयजञ का अथम िरमलिता िरमातमा न lsquoअहमिrsquo कहत हए लिय को ही lsquoअलधयजञrsquo

कहा िालति म यजञ क रचलयता यजञलिता और उसक रकषक यजञिलत को ही अलधयजञ कहा जाता ह लकनत जहा गीता म एक

ओर 61यजञ की उतिलतत को बरहम क दवारा लनलहत लकए हए कमम बताए ह तो िही दसरी ओर

62परजािलत दवारा यजञ की

लथािना को भी लिषट लकया ह इन दोनो स यह लिषट हो जाता ह लक परजािलत ही िरबरहम लिरि ह यजञ सलहत परजा को जनम

दत हए परजालिता बरहमा (lsquoलहरडयगभमrsquo िरम बरहम) यजञलिता भी ह तो यजञ सलहत परजा की रकषा करन िािा परजािलतयजञिलत

भी ह लकनत 63िरमबरहम को अकषर स उतिनन बताया गया ह अथामत परजालिता बरहमा रिी अजमन म िरमलिता लशि परिश

कर अलिनाशी अशवमध रि गीता-जञान-यजञ की लथािना हत कमम करत ह यह रि लिरि ही अलधयजञ ह यह एक ही अजमन

क शरीर दवारा होता ह इसलिए लिषट रि स कहा गया लक 59lsquoअलधयजञः अतर दहrsquo- इस परजालिता बरहमा रिी अजमन क शरीर

म lsquoमrsquo (िरमलिता लशि) ह लकसी और शरीर म नही बललक किि lsquoइसrsquo शरीर म लजसको 59lsquoदहभता िरrsquo दहधाररयो म शरषठ नाम स उलिख लकया गया ह इतन लिषट रि स कहन क िशचात भी लिकारी मनषटयो न इस बात को मखमतािणम रि स

उठात हए समलत मानिीय शरीर म अलधयजञ का लनिास मान िरमलिता िरमातमा को सिमवयािी बना लदया अब िलतत मनषटय तन(अलधभत) सलहत आलतमक ललथलत क ऊची अिलथा म ललथत आकारी शकर(अलधदि) सलहत और उसस भी

िर लनराकार िरम बरहम (परजालिता बरहमा रिी अजमन म परिश लनराकार िरमलिता लशि अलधयजञ) सलहत िरमलिता िरमातमा

को जानना ह और य सब अलधभत-अलधदि-अलधयजञ एक अजमन म ही वयापत ह अथामत िरमलिता िरमातमा एकवयािी ह न

लक सिमवयािी यह एक ही साकार लिरि िरषाथम कर 64साकार म रहत हए लनराकार अिलथा म ललथत हो जाता ह

इलियो क रहत हए उसका भान नही रहता भोगत हए भी लनिि रहता ह इसी कारण अलधदि शकर को लशि स लमिा लदया

जाता ह और दोनो लशि-शकर एक मान जात ह लकनत मनषटयो न सभी आतमाओ को िरमलिता िरमातमा समझ सिमवयािी

बना लदया एक तो शरी कषटण का नाम डािकर गीता म गफित कर दी गई और ऊिर स सभी मठाधीश िीठाधीश धममगर

अिन को लशिोऽहम बनाकर बठ गए न दिी-सलषट कोई िा िाया और न आसरी-सलषट को कोई रोक िाया तो ऐस म

लकसकी आलथा बनी रहगी िालति म आललतक स नाललतक की ओर जाना ही दिी-सलषट स आसरी-सलषट की ओर जाना

ह गीता जञानदाता शरीकषटण और िरमलिता िरमातमा सिमवयािी-जसी वयथम और अनगमि बातो स साकार म लनराकार िरमलिता

िरमातमा का एकवयािी सचचा लिरि लशि-शकर का लिषटीकरण नही लमि िाता अब लजस िरमातमा का िररचय ही नही

58 सालधभतालधदिम माम सालधयजञम च य लिदः परयाणकाि अलि च माम त लिदः यकतचतसः 730

59 अलधभतम कषरः भािः िरषः च अलधदितम अलधयजञः अहम एि अतर दह दहभताम िर 84

60 आतमलन तषटयलत 620 सखम आतयलनतकम यत तत बलिगराहयम अतीलनियम 621

61 यजञः कममसमदभिः 314 कमम बरहमोदभिम लिलि315

62 सहयजञाः परजाः सषटिा िरा उिाच परजािलतः310

63 बरहम अकषरसमदभिम 315 अकषर बरहम िरम

64 सिलनियगणाभासम सिलनियलििलजमतम असकतम सिमभत च एि लनगमणम गणभोकत च 1314

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 16: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

16

िह नाललतक ही तो ठहरा इसस समलत लनराकारिालदयो न सीध ही लनगमण को लबना साकार लचतर क ही याद करना आरभ

लकया और जो लचतर सलहत योग िगाए उनहोन भी गित लचतर शरी कषटण का आधार लिया य दोनो ही िालति म नाललतक

ही ह

ननगवण रप र यमद किन स उततर सगण रप र यमद किनम ह - गीता म आया ह लक 65lsquolsquoदहधाररयो क लिए

लनराकार ललथलत िाना दःखदायी हrsquorsquo और 66सगण रि म याद करन को lsquoशरषठ योगrsquo माना गया ह सगण रि म याद

करना सहज भी ह लजस कारण लनरतर भी हो सकता ह और गीता म कहा गया ह लक 67

lsquolsquoजो कमम सहज ह िह दोषयकत

होन िर भी अिशय करना चालहए कयोलक दोष तो सभी असहज एि कलठन कायो म भी हrsquorsquo अथामत सगण रि म

सहजताििमक याद करना नही तयागना चालहए गीतानसार 68आसरी लिभाि िाि िरष कया करना चालहए और कया

नही करना चालहए इस जञान को नही जानत इसलिए ि न िलितर रह िात ह न शरषठ आचरण कर िात ह और न सतय को

जान िात ह इसस यह लसि होता ह लक 16 किाओ म बधायमान गित साकार लचतर शरी कषटण रिी कषररत चनि स योग

िगान स या लफर किि किातीत लनगमण रि म योग िगान स कोई भी चररतरिान नही बन सकता बललक और भी अलधक

करर लनदमयी और कठोर हो जात ह 69कठोरता- यह असर का िकषण ह जो कठोर होकर सहजता का मागम छोड़ दःखदायी

मागम िर चित ह ि परसनन हो ही नही सकत जब 70परसनन ही नही होग तो दःखो स मकत हो शीघरतम ललथर बलि बन

नही सकत और न ही अपरसनन आतमा 71िरमलिता िरमातमा लिरि को कभी यथाथम रि स जान िाती ह तो अततः

परापत कया हआ कछ भी नही

दःख एर सरसयमओ कम कमिण एर ननरमिण - िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क सचच लिरि लशिलिग को न जानन क कारण ही समाज म नाना परकार क दःख उतिनन हए और उसका लनिारण न लमिन स ही दगमलत हई ह सिमपरथम

गीता म कह जान क िशचात भी काम को महाशतर नही समझा गया कामिासना ही सलषट का कारण रि 72lsquoकामहतकमrsquo

मानन िग lsquoकामोिभोगिरमाrsquo अथामत कामिासना का भोग ही िरम िरषाथम ह ऐसा मान अबिाओ िर अतयाचार करन

िग इतना ही नही मानिता को िालछत करत हए बाि बटी को भाई बहन को लशकषक लशषटया को परदलषत करन िग हर

परकार स लसतरया परदलषत होती रही और समाज िरी तरह स जानिर समान 73िणमसकर परजा स भरता रहा यह िणमसकर

परजा ही लबचछ-लटडन की भालत समलत समाज को लिारथ हत 74दःख दन का ही कायम करती ह उनम िोभ इस परकार

बढ़ जाता ह लक धन-सिलतत खान-िान िलत िभि आलद सब-कछ िटत जात ह अमीर अमीर बनता जाता ह और गरीब

गरीब बनता जाता ह िचभतो स लनलममत भौलतक लिजञान की शलकत स अनक परकार क अनलतक परकलतलिहीन परयोग करत

हए परकलत को भी समिणम रि स दलषत कर लदया जाता ह िानी हिा लमटटी अनन आलद सब लिषिा हो जाता ह अिनी

65 किशः अलधकतरः तषाम अवयकतासकतचतसाम अवयकता लह गलतः दःखम दहिलदभः अिापयत 125

66 मलय आिशय मनः य माम लनतययकता उिासत शरिया िरया उिताः त म यकततमा मताः 122

67 सहजम कमम कौनतय सदोषम अलि न तयजत सिामरमभा लह दोषण धमन अलगनः इि आिताः 1848

68 परिलततम च लनिलततम च जना न लिदः आसराः न शौचम न अलि च आचारः न सतयम तष लिदयत 167

69 दमभः दिमः अलभमानः च करोधः िारषटयम एि च अजञानम च अलभजातलय िाथम समिदम आसरीम 164

70 परसननचतसः लह आश बलिः ियमिलतषठत 265

71 भकतया माम अलभजानालत यािान यः च अललम तततितः ततः माम तततितः जञातिा लिशत तदननतरम 1855

72 शरीमदभगिदगीता अधयाय 168 + 1611

73 सतरीष दषटास िाषटणय जायत िणमसकरः 141

74 सकरः नरकाय एि किघनानाम किलय च 142

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 17: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

17

कामनाओ की तलपत करत-2 lsquoकामष-करोधषrsquo बन जात ह करोध का रि इतना बढ़ जाता ह लक अिनी इचछा का लिरोध

करन िाि 75सभी को अिना दशमन समझ हतयाए करत ह मार अहकार क िरी तरह स नाललतक हो जात ह और इसी

अजञानता स परररत हो ऐटम बमिरमाण बम का लनमामण कर 76समलत ससार को नषट करन क लिए ततिर हो जात ह

(अलधक जानकारी क लिए lsquoखलडत गीता स उतिनन समलयाए एि उनका समाधानrsquo िढ़)

भगिान की रची हई सदर िरथिी माता को ठीक स न सभािन क कारण समिणम रि स 77रौरि नकम बनान क

िशचात इस नकम स बाहर लनकि नया घर बनान हत अनय गरहो का चककर िगात रहत ह ऐस मनषटयो को मखम महामखम

अजञानी असरराकषस नही तो कया कह इस कलियग का अत ही तो कहग कया यह अधमम की अलत नही हई

History Repeats Itself (इलतहास लिय को दोहराता ह) क तरथयानसार 5000 िषम ििम का महाभारी महाभारत

गह-यि का समय दबारा आ चका ह जहा एक ओर ििी दशो म िरानी रीलत-ररिाज़ िरिरा की आड़ म धमम क नाम िर

घरि यि भड़क रह ह और जहा िलशचमी दश अिनी बलि क बि स लिजञान की मदद स अहकार म चर एक-दसर क

अललतति को लमटान की धमलकया द रह ह िही िर 78अिन िचनानसार अजमन और अजमन समान(unknown

warriors-गपत िाडिीय योिाए) दिी सिदा िािो को इकटठा कर रकषा करन और इन उिरोकत समलत समलयाओ एि दःखो

को रि दन िाि असर सिदा िािो का नाश करन और एक धमम एक राजय एक दश एक भाषा को समलिमत दिी-सलषट

का लनमामण करन हत िरमलिता िरमातमा लशि इन दो यगो अथामत कलियग क अत और सतयग क आलदकािीन िरषोततम

सगम म भारत की िािन भलम म अजमन रिी रथ िर अितररत हो चक ह और गपत रि स अिना कायम कर रह ह अब इस

नई दलनया म जान हत हम िलतत स िािन बन समलत िािो स मकत होना होगा और इसक लिए गीता म आया ह-

lsquolsquoसरवधरमवनपरितयजय रमरक शिण वरज अह तरम सरवपमपभयो रोकषनयषयमनर रम शचःrsquorsquo (अधयमय-18 शलोक-

66) सभी लहनद मललिम लसकख ईसाई आलद दलहक धमो को तयाग कर उस अितररत एकवयािी लिरि साकार म लनराकार

लशि-शकर की शरण म जाना ह िरमलिता िरमातमा लशि-शकर क एकवयािी लिरि दवारा गीता-जञान परदान लकया जा रहा

ह यह िही सचची गीता ह जो सिमशासतरमयी कही जाती ह यह गीता िरम िलितर समलत ससार को मलकत-जीिनमलकत दन

िािी ह जो समलत धमम िािो का उिार कर समलत धमो की माई-बाि कहिाई जाती ह अब यह दोज़ख हि नारकीय

कलियग की आसरी दलनया खतम होकर नई जननत िराडाइज़ सतयगी दलनया आ रही ह lsquoिसधि कटबकमrsquo लथालित हो

रहा ह

सरसत दरी सपदम रमलो क नलए ईशविीय सदश -

िरमलिता िरमातमा लशि भगिानिाच- ldquoलपरय ितसो 5000 िषम ििम महाभारत क समय मन ही अलिनाशी जञान सनाया था लजसका यादगार शासतर शरीमदभगिदगीता गाया जाता ह िरत भारतिालसयो की सबस बड़ी भि यही ह लक

सिमशासतरमयी लशरोमणी शरीमदभगिदगीता िर मझ जञान-सागर गीता जञानदाता लदवय चकष लिधाता िलतत-िािन जनम-मरण

रलहत सदा मकत सभी धमम िािो क गलत-सदगलत दाता िरमलिता िरमातमा लशि का नाम बदि 84 जनम िन िाि सिमगण

समिनन सोिह किा समिणम सतोपरधान सतयग आलद क राजकमार 16 किा सिणम दिता (न लक किातीत भगिान) शरी

कषटण+चनि (लजसन इस गीता माता दवारा यह िद िाया ह) का नाम लिखकर भगिदगीता को ही खडन कर लदया ह इस कारण

ही भारतिासी मर स योग भरषट हो धमम भरषट कमम भरषट िलतत कगाि दःखी बन गए ह

75 असौ मया हतः शतरः हलनषटय च अिरान अलि ईशवरः अहम अहम भोगी लसिः अहम बििान सखी 1614

76 एताम दलषटम अिषटभय नषटातमानः अलिबियः परभिलनत उगरकमामणः कषयाय जगतः अलहताः 169

77 लतरलिधम नरकलय इदम दवारम नाशनम आतमनः कामः करोधः तथा िोभः तलमात एतत तरयम तयजत 1621

78 िररतराणाय साधनाम लिनाशाय च दषटकताम धममसलथािनाथामय समभिालम यग-2 48

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 18: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

18

यलद भारत क लिदवान आचायम िलडत यह भि न करत तो सलषट क सभी धमम िाि शरीमदभगिदगीता को मझ

लनिामणधाम ि जान िाि िड (Liberator amp Guide) िरमलपरय िरमलिता लशि क महािाकय समझ लकतन परम और शरिा

स अिना धममशासतर समझ िढ़त और भारत को मझ िरमलिता की जनमभलम (Godrsquos Birth Place) समझ इसको सिोततम

तीथमलथान मानतrdquo

गीतम एर रहमभमित र आई कछ बमत नजनह गलत सरझम गयम ह -

bull कौरि यादि और िाडि लकसी वयलकत क लथि िश का नाम नही अलित गणिाचक नाम ह इसलिए महाभारत

कावय (महाभारत अनकरमलणकाििम परथम अधयाय 110-111) म इनह िकष एि उसक अग क रि म दशामया ह उदा

दयोधन को काम-करोधमय तो यलधलषठर को धमममय िकष बताया ह bull महाभारत यि क बार म जो लहसक रकतिाती यि परलसि ह िह िालति म कौरि एि यादि रिी बर लिकारी

गणो (काम करोध िोभ मोह अहकार आलद) िर जञान एि योग दवारा अलहसक रि स मायािी यि कर जीतन की बात ह जहा आज क साध-सत-महातमाए भी लहसा को मना करत ह िहा िरमलिता िरमातमा कस लहसा कर सकत ह मि

रि म यह आतररक-मानलसक लिकारो का दवदवयि ह जो मनषटय-सलषट रिी िकष क बीज आदमभारतअजमन स लनकि

कर लिशाि िट िकष बनकर अततः समापत हो जाता ह और महाभारी महाभारत क रि म लिखयात हो जाता ह

bull महलषम वयास दवारा रलचत महाभारत गरथ क बार म इलतहासकारो का लभनन-2 दलषटकोण ह भगिान दवारा गीता का

उचचारण करना और वयास दवारा सकिन करना यह तरथय इलतहासकारो दवारा लििादालिद माना जाता ह

bull शरी कषटण जहा गीता का भगिान माना जाता ह और दसरी ओर मा क गभम स जनम िन िािा सनदीिन गर स

लशकषा िन िािा मतय को परापत होन िािा लदखाया गया ह तो िह अगभाम अजनमा अभोकता अकताम अमतम अलचनतय

लनगमण लनराकार लनरहकार अकािमतम लतरकािदशी सिमजञ गीता जञानदाता िरमातमा लशि लिरि कस हो सकता ह

bull महाभारत िहि किि 8800 शलोको (महाभारत अनकरमलणका ििम परथम अधयाय 81) का छोटा ही गरथ था

लकनत उसम लफर कई और शलोको को लमिाकर अततः 1 िाख शलोको िािा बन गया इसस यह लिषट ह लक कािातर म

महाभारत की सतयता एि शिता ििम समान नही रह िाई यही बात गीता क लिए भी िाग होती ह बािी दवीि स एक गीता

उििबध हई ह जो किि 70 शलोको की ह इस सबस पराचीन गीता माना जा रहा ह ितममान महाभारत की भालत ही

कदालचत 70 स 700 शलोकी गीता बन गई यलद इस गीता की पराचीनता समिणम रि स परमालणत न हो तो भी नज़रअदाज

नही लकया जा सकता

bull जहा गीता म lsquoसभिालम यग-यगrsquo का अथम हर यग म भगिान क अितरण िािी बात आ रही ह िह िालति म

दोनो- कलियग और सतयग क बीच म आन िािी बात ह अनयथा कया िािी कलियग िान क लिए भगिान दवािरयग क

अत म आत ह दसरी बात पराचीन 70 शलोकी गीता की बात कर तो lsquoसभिालम यग-यगrsquo शलोक उसम ह ही नही कदालचत

इस बाद म जोड़ लदया गया हो

bull गीता म जहा कषटण िा लिषटण का लिराट रि माना ह िालति म िह रि लशि का ही लिराट रि ह इसका परमाण

लिषट होता ह महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक 56 स िकर 100) स जहा िर नारायण

को रि का भकत बताया ह तो कषटण को भी रि स उतिनन हआ (शलोक-95) बताया ह इसम नारायण को रि लशि क

लिशवरि का दशमन होता ह लजस कारण lsquoलिशवशवरrsquo का उलिख आया ह कदालचत यही कारण ह लक गीता म भी

lsquoलिशवरिदशमनयोगrsquo नाम लदया ह

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 19: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

19

bull जहा गीता म िालति म यि करन िािा लिराट रि को माना गया ह और अजमन को किि लनलमतत

(शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-33) इसका लिषटीकरण महाभारत क िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-202

शलोक 4 स 148) म जहा अजमन यि क समय लकसी तजलिी िरष दवारा सबको मारता हआ दख रहा था िही वयास को

िछन िर ि लशि रि लिरि ही ह इसका जञान परापत हआ

bull जहा lsquoआलददिrsquo शबद को अलधकतर कषटण भकत लिषटण िा नारायण क लिए िाग करत ह िही िर महाभारत क

िोण ििम क नारायणासतरमोकष ििम (अधयाय-201 शलोक-72) म नारायण रि क लिशवरि की लतलत करत हए lsquoिरडय

आलददिrsquo स सबोलधत लकया ह गीता म भी अजमन को जब लिराट रि का जञान परापत होता ह तो उनहोन भी lsquoतिमालददि

िरषः िराणrsquo (शरीमदभगिदगीता अधयाय-11 शलोक-38) कहत हए गीता जञानदाता िरमलिता िरमातमा लशि-शकर की ही

िदना की ह

bull सबस अचरज की बात ह लक समलत महाभारत म जब-2 कषटण न लकसी को कछ कहा ह तो उस कषटण उिाच

िासदि बभाष कशि कथयलत नाम स लिषट उलिख लकया ह और जब गीता की बात आई ह तो कषटण उिाच न कहत हए

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा ह इतना ही नही भकत नारायण और लशि-रि क बीच क िातामिाि म भी रि की िाताम को

lsquoशरीभगिानिाचrsquo कहा गया ह इसस लिषट हो जाता ह लक महलषम वयास न जब भी शरीभगिान उिाच कहा ह उनकी बलि म

लिषट िरमातमा लशि-रि ही थ न लक उनक उिासक शरी कषटण अथिा नारायण

कररमनसमि उललख नकए हए गीतम शलोको कम शबदमरव -

(1) रनरनम भर रदभकतः रदयमजी रम नरसकर 934 1865

त रनरनमः (मर म मन िगान िािा) रदयमजी (मरा यजञ रि ईशवरीय सिा रिी कमम करन िािा) रदभकतः और (मझ

भजन िािा) भर (बन) रम (मर परलत) नरसकर (शरिा स झक जा)

(2) इननरयमनण पिमनण आहः इननरयभयः पिर रनः रनसः त पिम बनधः यः बधः पितः त सः 342

आहः (कहा जाता ह लक) इननरयमनण पिमनण (इलनिया बड़ी परबि ह) रनः (मन) इननरयभयः (इलनियो स) पिर (बड़ा

ह) बनधः रनसः त पिम (बलि मन स भी बड़ी ह) त (लकत) यः (जो) बधः (बलि स) पितः सः (बड़ा ह िह िरमातमा

ह) बलिमानो की बलि िरमातमा

(3) समखययोगौ परक बमलमः पररदननत न पनडितमः 54

समखययोगौ (किि जञान और कममयोग-य दोनो) परक (अिग ह) ऐसा बमलमः (बाि बलि अथामत कचची बलि

िाि) पररदननत (कहत ह) न पनडितमः (िलडडतजन नही कहत) एक (एक का) अनप (भी) समयक (भिी परकार)

आनसरतः (आसरा िन िािा) उभयोः फल (दोनो का फि) नरनदत (िाता ह)

(4) न नह त भगरन वयनकतर नरदः दरमः न दमनरमः 1014

नह (कयोलक) भगरन (ह भगिन) त (आिक) वयनकत (वयकत साकारी भाि शकर को) न दरमः (न दिता) नरदः (जानत

ह) न दमनरमः (न दानि)

(5) सरयर एर आतरनम आतरमनर रतर तरर परषोततर 1015

तरर (आि) सरय (लिय) एर (ही) आतरनमतरमन (अिन दवारा अिन यथाथम लिरि को) रतर (जानत ह) (भगिान क

लसिाय भगिान का िररचय कोई द ही नही सकता)

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 20: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

20

(7) जनर करव च र नदवयर एरर यः रनतत तततरतः तयकततरम दहर पनः जनर न एनत रमर एनत सः अजवन 49

अजवन (ह सदभागय का अजमन करन िाि अजमन) एर (इस परकार) र (मर) नदवय (लदवय) जनर (जनम) अथामत लिलशषट

िरकाया परिश च (और) करव (लदवय कायो को) यः (जो) तततरतः (सतय रि म) रनतत (जान िता ह) सः (िह) दह

(शरीर को) तयकततरम (तयाग कर) इस कलियगी दःखी ससार म पनजवनर (लफर स जनम) न एनत (नही िता) रमर एनत

(मझ अवयकतमलतम लशिलिग को परापत होता ह) (8) जञमतर रषटर च तततरन पररषटर च पितप 1154

त (लकत) पितप (कामालदक शतरओ को तिान िाि) अजवन (ह अजमन) अननययम (अवयलभचारी) भकततयम (भािना क

दवारा) अह (म) एरनरधः (इस भालत समिणम रि म) जञमत (जानन-िहचानन) रषट तीसर जञान नतर स (साकषातकार करन)

च (और) तततरन (ततिििमक) िचततिो स बन शरीर की गहराई तक पररषट (परिश िान क) च (भी) शकतयः (योगय ह )

(9) अजः अनप सन अवययमतरम भतमनमर ईशविः अनप सन परकनतर सरमर अनधमय समभरमनर आतररमययम 46

अवययमतरम (अकषय अथामत लजस आतमा की शलकत का कभी कषरण न हो िह म िरमलिता लशि) अजः (अजनमा) सन

(होत हए) अनप (भी) और भतमनम (परालणयो का) ईशविः (शरषठतम शासनकताम) सन (होत हए) अनप (भी) सरम (अिन)

परकनत (परकषट जञानयकत रचना िरमबरहम का) अनधमय (आधार िकर) आतररमययम (आतमशलकत स) समभरमनर

(लदवय जनम िता ह )

(10) न तत भमसयत सयवः न शशमकः न पमरकः यत गतरम न ननरतवनत तत धमर पिरर रर 156

तत (उस िरमिद को) न सयो (न सयम) न शशमको (न चनिमा) और न पमरकः (न अलगन) भमसयत (परकालशत

करती ह) यत (लजस धाम को) गतरम (जाकर) न ननरतवनत दःखी ससार म (िािस नही िौटत) तत (िह) रर

(मरा) पिर धमर (िरमधाम ह)

(12) यत यत नरभनतरत सततरर शरीरत ऊनजवतर एर रम तत तत एर अरगचछ तरर रर तजोऽशसमभरर 1041

रम (अथिा) यदयत एर (जो भी कोई) सततर (पराणी) नरभनतरत (ऐशवयमिान) शरीरत (शरषठ बलियकत) ऊनजवत (शलकतिान

ह) तततदर (उस ही) तर (त) रर (मर) तजोऽशसमभरर (योग रिी तज क अश स उतिनन हआ) अरगचछ (जान)

(13) अररम बहनम एतन नकर जञमतन तर अजवन नरषटभय अहर इदर कतसनर एकमशन नसरतः जगत 1042

अररम (अथिा) अजवन (ह अजमन) तर (तझ) एतन (इतना) बहनम (बहत) जञमतन (जानन स) नक (कया परयोजन ह)

अह (म जयोलतलबमनद लशि) इद (इस) कतसन (समिणम) जगत (जगत को) अिनी योगशलकत क एकमशन (एक अश

दवारा) नरषटभय (लटका करक) िरमधाम म नसरतः (ललथत ह )

(14) अहर आतरम गिमकश सरवभतमशयनसरतः 1020

गिमकश (ह लनिा को जीतन िाि) अहरमतरम जयोलतलबमनद लशि-शकर (म आतमा) सरवभतमशयनसरतः (सब परालणयो

की आधार रिा योगशलकत म ललथत ह ) च (और) इसी यौलगक शलकत रि म भतमनम (सब परालणयो की) आनदः (उतिलतत)

रधय (ललथलत) च (और) अनतः (लिनाश) च (भी) अह एर (म ही ह )

(15) रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

अतः सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम) न

अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह (जस बीज म सारा िकष ललथत ह)

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 21: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

21

(16) िमजनरदयम िमजगहयर पनरतरर इदर उततरर परतयकषमरगरर धमयवर ससखर कतवर अवययर 92

इद (यह ईशवरीय जञान) िमजनरदयम (राजाओ की लिदया ह) िमजगहय (राजाई का रहलय ह) पनरतर (िलितर ह) उततर

(सिोततम जञान ह) परतयकषमरगर (परतयकष अथामत साकषात ईशवर दवारा जाना जाता ह) धमय (धमामनकि ह) कत

(िािन करन क लिए) ससख (अतयत सहज ह) और अवययर (अलिनाशी भी ह)

(17) दवौ भतसगौ लोक अनसरन दर आसि एर च 166

पमरव (ह िरथिीिलत) अनसरन (इस) लोक (ससार म) भतसगौ (परालणयो की सलषट) दवौ (दो परकार की) एर (ही ह)-दरः

(सत-तरतायगी दिताओ की) च (और) आसिः (दवतिादी दवािर-कलियगी असरो की)

(18) रयम अधयकषण परकनतः सयत सचिमचिर हतनम अनन कौनतय जगत नरपरिरतवत 910

कौनतय (ह कनती ितर) कलिालदकाि म रयमधयकषण (मरी अधयकषता म अथामत दखरख म) परकनतः (परकषट रचना

िरबरहम) सचिमचि (जड़-चतन रि लिलणमम सगमयगी शि जगत को) सयत (िदा करती ह) अनन (इस एक) ही हतनम

(कारण स) जगत (यह अधोमखी जगत) नरपरिरतवत (लििरीत गलत स सतयगी ऊधिमिोक म िररिलतमत होता ह)

उलटी सीढ़ी की चाढ़ी

(19) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(20) लोक अनसरन नदवनरधम ननम पिम परोकतम रयम अनघ जञमनयोगन समखयमनमर करवयोगन योनगनमर 33

अनघ (ह िाि रलहत अजमन) पिम (सलषट क आलद िरषोततम सगम म) रयम (मन) अनसरन लोक (इस िोक म)

नदवनरधम (दो परकार की) ननम (परणािी) परोकतम (कही थी) जञमनयोगन (जञान-योग दवारा) समखयमनम (जञालनयो की) अथामत

कलििमलन जस मनन-लचतनशीि िरषो क लिए जञानयोग और योनगनमर (योगीजनो क लिए) करवयोगन (कममयोग

दवारा) मागम बताया था

(21) यसय न अहकतः भमरः बनधः यसय न नलपयत हतरम अनप स इरमन लोकमन न हननत न ननबधयत 1817

यसय (लजस जञानी को) अहकतः (lsquoमन लकया हrsquo ऐसा) भमरः (भाि) न (नही ह) यसय (लजसकी) बनधः (बलि) न

नलपयत (कमम म लिपत नही होती) सः (िह) इरमन (इन) लोकमन (िोगो को) हतरम (मारकर) अनप (भी) न हननत

(नही मारता) और न ननबधयत (न बधनयकत होता ह)

(22) अनतकमल च रमर एर सरिन रकततरम कलरिर यः परयमनत स रदभमरर यमनत न अनसत अतर सशयः 85

यः (जो) अनतकमल (कलिानतकाि म) च (भी) रम (मझ लशि-शकर को) एर (ही) सरिन (याद करता हआ) कलरि

(शरीर को) रकततरम (छोड़कर) परयमनत (परबि रहानी यातरा करता ह) सः (िह योगी) रदभमर (मर ईशति अथामत

लिशवनाथ क भाि को) यमनत (िाता ह) अतर (इस लिषय म) सशयः (सदह) न अनसत (नही ह)

(23) जञमनन त तत अजञमनर यषमर नमनशतर आतरनः तषमर आनदतयरत जञमनर परकमशयनत ततपिर 516

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 22: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

22

त (लकत) जञमनन एकवयािी क (जञान दवारा) यषम (लजनका) आतरनः (आतमा समबधी) तत (िह) अजञमन नमनशत

(अजञान नषट हो गया ह) तषम (उनका) तत जञमन (िह जञान) पिर (िरमशवर को) आनदतयरत (सयम की तरह) परकमशयनत

(परतयकष करता ह) सन शोज़ फादर

(24) आरत जञमनर एतन जञमनननः ननतयररिणम कमररपण कौनतय दषपिण अनलन च 339

कौनतय (ह कनती माता क ितर) जञमनननः (जञानी िरष का) ननतयररिणम (लनतय शतर जसा) च (तथा) दषपिण (कभी िलतम

न होन िािी) एतन (इस) कमररपण (कामलिकार रिी) अनलन (अलगन स) जञमन (जञान) आरतर (ढका रहता ह)

(25) पमपरमनर परजनह नह एनर जञमननरजञमननमशनर 341

जञमन+नरजञमननमशन (जञान और योग का नाश करन िाि) एन (इस) पमपरमन (िािी काम लिकार को) नह परजनह (अिशय

तयाग द)

(26) जनह शतर रहमबमहो कमररप दिमसदर 343

रहमबमहो (ह दीघमबाह) त दिमसदर (कलठनाई स हाथ आन िाि) इस कमररप (काम लिकार रिी) शतर (शतर

को) जनह (मार डाि)

(27) ऊधरवरलर अधःशमखर अशवतरर परमहः अवययर छनदमनस यसय पणमवनन यः तर रद स रदनरत 151

ऊधरवरल (मनषटय सलषट क बीजरि परजालिता बरहमा स उतिनन बराहमण धमम की ऊिर जान िािी जड़ो िाि) अधःशमखर

अधोमखी बरहमा की (ितनोनमखी अनकानक धमो की शाखाओ िाि) तथा छनदमनस (िदालद) यसय (लजसक)

पणमवनन (ितत ह) ऐस अशवतर लचरकाि तक ललथत रहन िाि मानिीय सलषट रिी (अशवतथ िकष को) ऋलषयो न

अवयय (अलिनाशी) परमहः (बताया ह) यः (जो) त (उस) रद (जानता ह) सः (िह) रदनरत (िदो का जञाता ह)

(28) य च एर समनततरकम भमरम िमजसमः तमरसमः च य रतत एर इनत तमन नरनध न त अहर तष त रनय 712

च (और) एर (भी) य (जो) करमशः समनततरकमः (सालतिक) िमजसमः (राजसी) च (और) तमरसमः (तामसी) भमरमः

(भाि-सकलि-लिकलिालद ह) तमन (उनको) सतयग स कलियग तक क ितनोनमखी कािकरम म रततः (मर मानिीय

सलषट क बीजरि स) एर (ही) उतिनन हआ इनत (ऐसा) नरनध (जान) अह (म) तष (उनम) न (नही ह ) त (लकनत) त

(ि) भाि अिन मि शि लिरि म रनय (मर साकार मनषटय-सलषट क बीज परजालिता म ह)

(29) रयम ततर इदर सरवर जगत अवयकतरनतवनम रतसरमनन सरवभतमनन न च अहर तष अरनसरतः 94

रयम (मर) अवयकतरनतवनम (अलत सकषम होन स परगट न होन िाि लनराकारी जयोलतलबिद की लिलताररत बीजरि साकार

लिगमलतम क दवारा) इद (यह) सर (सारा) जगत (जगत) सकषम बीज स िकष की भालत ततर (लिलतत हआ ह) अतः

सरवभतमनन (सभी पराणी) रतसरमनन (मझ अवयकत बीजरि लशिलिग म ललथत ह) च लकनत अह (म) तष (उनम)

न अरनसरतः (ललथत नही ह ) अथामत सिमवयािी नही ह

(30) एतदयोनीनन भतमनन सरमवनण इनत उपधमिय 76

सरमवनण भतमनन (सब पराणी) एतदयोनीनन (इस दो परकार की परकलत स ही जनम ह) इनत (ऐसा) उपधमिय (त जान ि)

और अह (म) कतसनसय (समलत) जगतः (जगत का) परभरः (उतिलततकताम) तरम परलयः (और लिनाशकताम ह )

(31) रर योननः रहत बरहम तनसरन गभवर दधमनर अहर समभरः सरवभतमनमर ततः भरनत भमित 143

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 23: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

23

भमित (ह अजमन) रहदबरहम मकरमर रथ रिी (महतति अथिा िरमबरहम) रर (मरी) योननः (योलन ह) अह (म) तनसरन

(उसम) महालिनाश क समय गभ (समलत जयोलतलबद आतमाओ क जञान का गभम) दधमनर (डािता ह ) ततः (उसस)

सरवभतमनम (सब परालणयो की) समभरः (उतिलतत) भरनत (होती ह)

सरवयोननष कौनतय रतवयः समभरननत यमः तमसमर बरहम रहत योननः अहर बीजपरदः नपतम 1

कौनतय (ह कनतीितर अजमन) सरवयोननष (सब योलनयो म) यमः (जो) रतवयः (दह की आकलतया) समभरननत (उतिनन

होती ह) तमसम (उन सबकी) योननः (योलन रिा माता) रहत बरहम (महतति मकरमर रथ रिी िर बरहम ह) और अह (म

लशि) बीजपरदः (जयोलतलबद आतमाओ का जञानिीयम रिी बीज डािन िािा) नपतम (लिता ह )

(32) दवौ इरौ परषौ लोक कषिः च अकषिः एर च कषिः सरमवनण भतमनन कटसरः अकषिः उचयत 1516

लोक (िोक म) इरौ (य) दवौ (दो) एर (ही) परषौ (िरष ह)-कषिः (नाशिान) च (और) अकषि (अलिनाशी) सरमवनण

(सब) भतमनन (पराकलतक भत) कषिः (नाशिान ह) च (और) कटसरः (िरमधाम रिी ऊच लशखर िर रहन िािी) अकषिः

(अलिनाशी-आतमा) उचयत (कही जाती ह)

(33) उततरः परषः त अनयः पिरमतरम इनत उदमहतः यः लोकतरयर आनरशय नबभनतव अवययः ईशविः 1517

त (लकत) अनयः (इन दोनो स लभनन) उततरः (सिोततम) परषः (आतमा) पिरमतरम (हीरो िाटमधारी िरमातमा) इनत (इस

परकार) उदमहतः (कहा जाता ह) यः (जो) अवययः (कषयरलहत) ईशविः (ईशवर) योगशलकत दवारा लोकतरय (तीनो िोको

को) आनरशय (अलधकार म िकर) नबभनतव (धारण करता ह)

(34) अनरनमनश त तत नरनध यन सरवर इदर ततर नरनमशर अवययसय असय न कनित कतवर अहवनत 217

यन (लजस मनषटय सलषट क बीज-रि आदम या आलददि शकर क दवारा) इद (यह) सर (समिणम) लिशव ततर (लिलतार

को परापत हआ ह) तत त (उसको तो) अनरनमनश नरनध (अलिनाशी जान) असय (इस) अवययसय (अवयय िरष शकर

का) नरनमश कत (लिनाश करन क लिए) कनित (कोई भी) न अहवनत (समथम नही ह)

(35) इह एर तः नजतः सगवः यषमर सममय नसरतर रनः 519

यषम (लजनका) रनः (मन) सममय एक लशि बाि की सतान आतमा-2 भाई-2 की (समानता म) नसरत (ललथर ह) तः

(उनहोन) इह (ससार म) एर (ही) सगवः (जनम-मतय रि ससार को) नजतः (जीत लिया ह) नह (कयोलक) बरहम (बरहमतति)

ननदोष (दोष-िािरलहत) और सर (समान ह) तसरमत (इसलिए) त बरहमनण नसरतमः (ि बरहमतति म ही ललथर ह)

(36) सरवभतमनन कौनतय परकनतर यमननत रमनरकमर कलपकषय पनः तमनन कलपमदौ नरसजमनर अहर 97

कौनतय (ह कनती ितर) कलपकषय (कलिानतकाि म) सरवभतमनन (सब पराणी) रमनरकम (मरी) परकनत (लनराकारी लटज

धारण करन िािी परकषट शरीर रिी कलत शकर क अवयकत जयोलतलबमनद आलतमक भाि को) यमननत (िात ह) और

कलपमदौ (कलि क आलद काि स) अह (म) तमनन (उनह) पनः (लफर स) नरसजमनर (सलषट क लिए छोड़ दता ह )

(37) पिः तसरमत त भमरः अनयः अवयकतः अवयकतमत सनमतनः यः स सरष भतष नशयतस न नरनशयनत 820

तसरमत (उस) अवयकतमत (अवयकत भतगराम स) त (भी) पिः (बढ़कर) यः (जो) अवयकतः (अपरगट) और सनमतनः

(लनतय) अनयः (दसरा) भमरः (भाि) अथामत बीज-रि आतमभाि ह सः (िह) सरष भतष (सब परालणयो म) नशयतस

वयकत लिरि क (नषट होन िर) भी न नरनशयनत (नषट नही होता)

(38) यः रमर अजर अनमनदर च रनतत लोकरहशविर असरढः स रतयष सरवपमपः पररचयत 103

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 24: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

24

यः (जो जञानी) रम (मझको) अज (अजनमा) अनमनद (अनालद) च (और) लोकरहशवि (शालतधाम सखधाम और

दखधाम तीनो िोको का महान ईशवर) रनतत (जानता ह) स (िह) रतयष (मनषटयो म) असरढः (मोहरलहत हआ)

सरवपमपः (सब िािो स) पररचयत (िणम मकत हो जाता ह)

(39) आखयमनह र कः भरमन उगररपः नरः असत त दररि परसीद

नरजञमतर इचछमनर भरतर आदयर न नह परजमनमनर तर पररनततर 1131

दररि (ह दिताओ म शरषठ महादि) र (मझ) आखयमनह (बताइए) लक उगररपः (ऐस भयकर रि िाि) भरमन

(आि) कः (कौन ह) त (आिको) नरः (परणाम) असत (ह) परसीद (परसनन हो जाइए) भरनत (आिक) आदय

(आलदकािीन रि को) नरजञमत (जानना) इचछमनर (चाहता ह ) नह (कयोलक) तर (आिक) पररनतत (लकरयाकिाि को) न

परजमनमनर (म नही जानता ह )

(40) lsquoपरसभर यत उकतर ह कषण ह यमदर ह सख इनत 1141

lsquoह कषण ह यमदर ह सखrsquo (lsquoह आतमाओ को आकषट करन िाि लशि ह लिदशी बनकर आए यदिशी यादि ह

सदा साथ रहन िाि सखाrsquo) इनत (इस परकार) यत (जो कछ) परसभ (लतरलकारििमक) उकत (कहा हो)

तत कषमरय तरमर अहर अपररयर 1142

तत (उसक लिए) अचयत (ह अवयकत भाि अथामत ऊची लटज स कभी भी लिचलित न होन िाि) अपररय (जगत स नयार

लशिबाबा) तरम (आिस) अह (म) कषमरय (कषमा मागता ह )

(41) यसरमत न उनदवजत लोकः लोकमत न उनदवजत च यः हषमवरषवभयोदवगः रकतः यः स च र नपरयः 1215

यसरमत (लजसस) लोकः (ससार) न उनदवजत (िरशान नही होता) च यः (और जो) लोकमत (ससार स) न उनदवजत

(िरशान नही होता) च (और) यः (जो) हषमवरषवभयोदवगः (आननद करोध भय और लचताओ स) रकतः (मकत ह)-सः (िह

िरष) र (मझ) नपरयः (लपरय ह)

(42) यत यत आचिनत शरः तत तत एर इतिः जनः स यत पररमणर करत लोकः तत अनरतवत 321

शरः (उततम िरष) यत-यत (जो-2) आचिनत (आचरण करता ह) तत-तत एर (िसा ही) इतिः (दसर सामानय) जनः

(िोग) भी करत ह सः (िह) उततम िरष यत (लजस) पररमण (परमालणत कायम को) करत (करता ह) लोकः

सामानय (िोग) तत (उस कायम का) ही अनरतवत (अनसरण करत ह)

(53) अधः च ऊधरवर परसतमः तसय शमखम गणपररधम नरषयपररमलमः

अधः च रलमनन अनसततमनन करमवनबनधीनन रनषयलोक 152

तसय (उस सलषट िकष की) गणपररधमः (सति रज तम-तीनो गणो दवारा करमशः बढ़न िािी) और नरषयपररमलमः

(लिषय लिकार रिी लिधमी टहलनयो या अकरो िािी) शमखमः (शाखाए) अधः (नीच) साकारी मनषटय िोक म च

(तथा) ऊधर (ऊिर) लिगमिोक म परसतमः (फिी हई ह) च (लकत) करमवनबधीनन (कमो को बाधन िािी) रलमनन

(िराइटी धमम रिी जड़) अधः (नीच) रनषयलोक (मनषटयिोक म) अनसततमनन (फिी हई ह)

(54) ततः पदर तत परिरमनगवतवयर यनसरन गतमः न ननरतवननत भयः

तर एर च आदयर परषर परपदय यतः पररनततः परसतम पिमणी 15

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 25: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

25

ततः सगमयगी बराहमण धमम क (उस िोक स) तत (उस) पद (िरम िद लिषटणिोक को) परिरमनगवतवय (खोजना

चालहए अथामत जानना चालहए) यनसरन (लजसम) गतमः (गए हए) भयः (िनः) न ननरतवननत इस दःखी ससार म (नही

िौटत) च (और) तरर (उसी) आदय (आलद) परष (िरष लशि क) साकार रि-आलददि अधमनारीशवर महादि की

परपदय (शरण िना चालहए) यतः (लजसस) इस साकारी सलषट िकष की पिमणी (िरानी) आलद सनातन दिी-दिता धमम

की पररनततः (परलकरया) परसतम (परसाररत हई ह)

(55) आतरमन िनरन नरनध शिीि िररर च बनध त समिनर नरनध रनः परगरहरर च इननरयमनण हयमनमहः

रनदक समनहतय (कठोपननषद 133-)

परतयक वयलकत इस भौलतक शरीर रिी रथ िर आरढ़ ह और बलि इसका सारथी ह मन िगाम ह तथा इलनिया घोड़ ह

(56) य भजननत त रमर भकततयम रनय त तष च अनप अहर 929

त (लकत) य (जो) रम (मझको) भकततयम (शरिाििमक) भजननत (याद करत ह) त रनय (ि मझम ह) च (और) तष (उनम)

अह (म) अनप (भी) ह बाकी म (माया रािण)

(57) इषटः अनस र दढर 1864

कयोलक त र (मरा) दढ (अतयनत) इषटः (लपरय) अनस (ह)

(58) समनधभतमनधदरर रमर समनधयजञर च य नरदः परयमणकमल अनप च रमर त नरदः यकतचतसः 730

य (जो बराहमण) रम (मझ) समनधभतमनधदर (परालणयो और दिताओ क अलधषठाता सलहत) च (और) समनधयजञ (रि

जञान यजञ क अलधिलत परजालिता बरहमा सलहत) नरदः (जानत ह) त (ि) यकतचतसः (योगयकत मन-बलि िाि) अनप

(भी) परयमणकमल (कलिानत म बरहमिोक जान क समय) रम (मझको) च (ही) नरदः (जान जात ह)

(59) अनधभतर कषिः भमरः परषः च अनधदरतर अनधयजञः अहर एर अतर दह दहभतमर रि 84

दहभतम रि (ह दहधाररयो म शरषठ) परजालिता बरहमा रिी अजमन कषिो (नाशिान या ितनशीि) भमरः (भाि) अनधभत

(अलधभत भतो का अलधषठाता बरहमा ह) च (और) परषः (शरीर रिी िरी म आराम स शयन अथामत शालत परापत करन

िािी आतमा) अनधदरतर (अलधदि रिी िरम िरष लिषटण ह) अतर (इस) सगमयगी परथम बराहमण क दह (शरीर

म) अनधयजञो (तयाग रिी यजञ सिा का अलधिलत-िरमलिता लशि) अह (म) एर (ही ह )

(60) आतरनन तषयनत 620

आतरनन एर (आतमा म ही) तषयनत (आनलनदत होता ह)

सखर आतयननतकर यत तत बनधगरमहयर अतीननरयर 621

बनधगरमहय (बलि दवारा गरहण करन योगय) यत (जो) अतीननरय (इलनियो स िर का) आतयननतक (उतकषटतम) सख (सख ह)

(61) यजञः करवसरदभरः 314

यजञः (यजञ) करवसरदभरः (कममयोग स उतिनन हआ ह)

करव बरहमोदभरर नरनध315

करव (सालतिक कमम को) बरहमोदभर (बरहमा स उतिनन हआ) नरनध (जान)

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

Page 26: सतयnग (न7 दnननयम) 5नtर्मलm हu। कनलयnग (पnिमनm दnननयम ... written materials/books... · है- भलक्तयोग,

26

(62) सहयजञमः परजमः सषटरम पिम उरमच परजमपनतः310

पिम (सलषट क आलद म) सहयजञमः (रि जञान यजञ सलहत) परजमः (मानसी परजा को) सषटरम (उतिनन करक) परजमपनतः

(परजालिता बरहमा न) उस परजा स उरमच (कहा)

(63) बरहम अकषिसरदभरर 315

बरहम (बरहमा) अकषिसरदभरर (अकषर िरमशवर सदालशि-शकर स उतिनन हआ ह)

(64) सरननरयगणमभमसर सरननरयनररनजवतर असकतर सरवभत च एर ननगवणर गणभोकत च 1314

मकरमर रथ म परिश करन िर सरननरयगणमभमस (लजस लशिशकर म सब इलनियो क गणो का आभास होता ह)

लफर भी सरननरयनररनजवत (सब इलनियो स रलहत ह) असकत (अनासकत) च एर (होन िर भी) सरवभत (सबका भरण-

िोषण करन िािा ह) च (और) ननगवण (परकलत क सत-रज-तम तीन गणो स रलहत ह) लफर भी गणभोकत (उनका

उिभोग करन िािा ह)

(65) कतलशः अनधकतिः तषमर अवयकतमसकतचतसमर अवयकतम नह गनतः दःखर दहरनदभः अरमपयत 125

अवयकतमसकतचतसम (अवयकत सकषम जयोलतलबद लिरि म आसकत हए लचतत िाि) तषम (उन योलगयो को) कतलशः

(कलठनाई) अनधकतिः (अलधक होती ह) नह (कयोलक) दहरनदभः (दहधाररयो क दवारा) अवयकतम (लनराकारी) गनतः (गलत

अथामत ललथलत) दःख (दःखििमक) अरमपयत (परापत होती ह)

(66) रनय आरशय रनः य रमर ननतययकतम उपमसत शरधयम पियम उपतमः त र यकततरम रतमः 122

य (जो) रनय (मझम) रनः (मन को) आरशय (ललथर करक) ननतययकतमः (सदा योगयकत हए) पियम (िरम) शरधयम

(शरिा स) उपतमः (भरकर) रम (मझ) साकार शकर म लनराकार लशि को उपमसत (याद करत ह) त (ि) र (मर)

यकततरमः (सब योलगयो म शरषठतम) रतमः (मान गए ह)

(67) सहजर करव कौनतय सदोषर अनप न तयजत सरमविमभम नह दोषण धरन अननः इर आरतमः 1848

कौनतय (ह कनती ितर) सहज (सहज) करव (कमम) सदोष (दोषयकत हो) अनप (तो भी) न तयजत (नही तयागना चलहए)

नह (कयोलक) धरन (धए स) अननः (अलगन की) इर (तरह) सरमविमभमः (सभी सासाररक कमम) दोषण (दोष स)

आरतमः (ढक हए ह)

(68) पररनततर च ननरनततर च जनम न नरदः आसिमः न शौचर न अनप च आचमिः न सतयर तष नरदयत 167

आसिमः (आसरी गणो िाि) जनमः (मनषटय) पररनतत (करन योगय कमम) च ननरनतत (और तयागन योगय कमम को) च (भी)

न नरदः (नही जानत) तष (उनम) न शौच (न शिता) न आचमिः (न सदाचार) च (और) सतय (सतय) अनप (भी) न

नरदयत (नही होता)

(69) दमभः दपवः अनभरमनः च करोधः पमरषयर एर च अजञमनर च अनभजमतसय पमरव समपदर आसिीर 164

पमरव (ह िरथिी क राजा) दभः (िाखड) दपवः (धन-िररिार का घमड) च (और) अनभरमनः (अलभमान) च (तथा)

करोधः (करोध) पमरषय (कठोरता) च एर (और उसी तरह) अजञमन (बसमझी)-य अिगण आसिी सपद (राकषसी

समिलतत क साथ) अनभजमतसय (जनम िन िािो क ह)

(70) परसननचतसः नह आश बनधः पयवरनतत 265

27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

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शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

30

भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

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27

परसननचतसः (परसननलचतत हलषमतमख वयलकत की) बनधः (बलि) आश (शीघर) ही पयवरनतत (भिी-भालत ललथर हो

जाती ह) हलषमतमखता

(71) भकततयम रमर अनभजमनमनत यमरमन यः च अनसर तततरतः ततः रमर तततरतः जञमतरम नरशत तदननतिर 1855

ततः (ततिशचात) िह बराहमण उस भकततयम (ईशवरीय भलकत-भािना दवारा) म यः (जो) च (और) यमरमन (जसा) अनसर

(ह ) िसा ही रम (मझको) तततरतः (यथाथम रीलत स) अनभजमनमनत (भिी-भालत जान जाता ह) और रमर (मझको)

तततरतः (यथाथमतः) जञमतरम (समझकर) तदननति (बाद म) अवयकतमलतम लशिलिग म नरशत (परिश करता ह)

(73) सतरीष दषटमस रमषणय जमयत रणवसकिः 141

सतरीष दषटमस (लसतरयो क दलषत होन िर) रमषणय (ह िलषटण-जञालनयो क िश म उतिनन) रणवसकिः (वयलभचार स उतिनन

हई परजा) जमयत (उतिनन होती ह)

(74) सकिः निकमय एर कलघनमनमर कलसय च 142

सकिः (िणम सकर परजा) कलसय (कि की) च (और) कलघनमनम (किनाशको की) निकमय (अधोगलत क लिए) एर

(ही) होती ह

(75) असौ रयम हतः शतरः हननषय च अपिमन अनप ईशविः अहर अहर भोगी नसधः अहर बलरमन सखी 1614

रयम (मन) असौ (इस) शतरः (दशमन को) हतः (मार लिया ह) च (और) भलिषटय म अपिमन (दसर शतरओ को) अनप

(भी) हननषय (मार िगा) अह (म) ईशविः (समथम अथामत ऐशवयमिान ह ) अह (म) भोगी (उिभोग करन िािा ह ) अह (म)

नसधः (सफि ह ) बलरमन सखी (बििान और सखी ह )

(76) एतमर दनषटर अरषटभय नषटमतरमनः अलपबधयः परभरननत उगरकरमवणः कषयमय जगतः अनहतमः 169

एतम (ऐस) दनषट (दलषटकोण का) अरषटभय (आशरय िकर) नषटमतरमनः (नषट हए लिभाि िाि) अलपबधयः (कषिबलि)

और उगरकरमवणः (करर कमम करन िाि िोग) जगतः (जगत क) अनहतमः (बरी बनकर) कषयमय (उसका महालिनाश

करन क लिए) परभरननत (उतिनन होत ह) जगत को लमरथया बतान िाि जगत क बरी ह

(77) नतरनरधर निकसय इदर दवमिर नमशनर आतरनः कमरः करोधः तरम लोभः तसरमत एतत तरयर तयजत 1621

कमरः करोधः (काम करोध) तरम लोभः (तथा िोभ)-इद (य) आतरनः (आतमा का) नमशन (नाश करन िाि) निकसय

(नरक क) नतरनरध (तीन परकार क) दवमि (दवार ह) तसरमत (इसलिए) एतत (इन) तरय (तीनो को) तयजत (तयाग दना चालहए)

(78) परितरमणमय समधनमर नरनमशमय च दषकतमर धरवससरमपनमरमवय समभरमनर यग यग 48

म समधनम (साध-सनतो की) परितरमणमय (रकषा क लिए) दषकतम (दराचाररयो क) नरनमशमय (लिनाश क लिए) च

(और) धरवससरमपनमरमवय सत(धमम की सिणम लथािना क लिए) यग-यग (दो यगो कलियग और सतयग क

सलधकाि म) समभरमनर (जनम िता ह )

28

खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

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भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

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खनित गीतम स उतपनन सरसयमएा एर सरमधमन

मनषटय एक सामालजक पराणी ह अथामत परतयक मनषटय की गलतलिलध िर समाज को परभालित करती ह िरनत आज

मनषटय अिन शरीर रिी रथ अथामत लि क रथ क परलत सोचत-2 लिाथी बन चका ह अिन लिाथम क कारण ही मनषटयो न

समाज को इस लतर िर िा खड़ा लकया ह लक परतयक मनषटय आज दःखो एि रोगो स िीलड़त ह

िरनत यगो-2 स चि रही अधशरिा यकत भलकत स लिकारी मानिलनलममत िद-शासतरो क लनरनतर अभयास स एि िरानी सलकलत क रीलत-ररिाज़ो का जयो-का-तयो अनकरण करन क िशचात भी समाज की तो दगमलत ही हो रही ह शोषण भी

हो रहा ह तो इसका कारण कया

समाज का शोषण मनषटय की महान भि का परलतफि ह और िह भि ह- कषटण को गीता का भगिान मानना एि

भगिान को सिमवयािी मानना

कस

भरषटमचमिः- िरमलिता िरमातमा ही आकर हम आधयालतमकता का िररचय करात ह लजसस हम हमार लि अथामत आतमा

का बोध होता ह इसक िहि हम लिय को शरीर ही समझत थ आतमा मि रि स शरषठ और अलिनाशी होती ह और शरीर

लिनाशी और भरषट होता जाता ह मन म उतिनन हए सकलि एि मत यलद आतमा क परलत हो तो िह शरषठ कहा जाएगा शरीर

क परलत हो तो भरषट कहा जाएगा इनही मतो का अनकरण एि आचरण करन स शरषठाचार तथा भरषटाचार का जनम होता ह

शरीर हत उतिनन हई मन की कामनाए तथा िोभ ही भरषटाचार को जनम दता ह

िरनत भयकर कट सतय तो यह ह लक गीता म कषटण का नाम डािन स तथा ईशवर को सिमवयािी करन स भरषटाचार

को लिलताररत रि का परोतसाहन लमिा

जस

गीता म काम लिकार को lsquoमहाशतरrsquo की सजञा दी गई ह िरनत दलनया िाि इस बात को लिीकार नही करत कयोलक

गीता क तथाकलथत रचलयता-कषटण को 8 िटरालनया एि 16108 गोलिया और उनक बचच भी शासतरो म परलसि ह खलडत

अथामत कषटण की गीता का अनकरण करन स मनषटय भरषट इलनियो को लनयलतरत न कर कामलििास क भोग को भोगत रह

यलद गीता का रचलयता लशि-शकर भोिनाथ को मानत तो ससार काम महाशतर िािी बात को सहज लिीकार करता कयोलक

शकर तो अमोघ िीयम एि कामदि को भलम करन िाि रि म परलसि ह

गीता म जनम-मरण क चककर म आन िाि कषटण का नाम डािन स तथा कषटण को भगिान मानन स िरमातमा

को भी सिमवयािी कर लदया और हर मनषटय अिन को लशिोऽहम समझ बठ गया िरनत मनषटय होत तो लिकारी ही ह ना

(िदाइश भी लिकार स ही ह) और िह अिनी लिकारी बलि स उतिनन हई लिकारी मत को भी लशि मत मान अनकरण करन

िगा लिकारी एि भरषट मत का आचरण करत-2 िरी दलनया िरा समाज भरषटाचारी हो गया

बढ़ती जनसखयमः- बढ़ता भरषटाचार अथामत भरषट इलियो का आचरण ही बढ़ती जनसखया का मि कारण ह गीता म कषटण

का नाम डािन स उततरोततर लिकारी होत हए मनषटयो न कषटण को ही अिना आदशम तथा पररणालतोतर मान लिया कषटण तो

शासतरो म रासिीिा क लिए मशह र ह इसस मनषटय भी काम-िासना क रासिीिा म अिना जीिन वयतीत करन िगा काम

लिकार िर लनयतरण न होन स मनषटयो की जनसखया आज इस लतर िर िहची ह लक मनषटय आज चाह कर भी जनसखया िर

लनयतरण नही िा सकता जो लक हर दश की एक सामालजक समलया बन चकी ह िररिार लनयोजन जसी योजनाओ का

लनरतर परयास करन क बािजद सरकार बढ़ती जनसखया िर काब िान म असमथम ह यलद मनषटय गीता का भगिान लशि-

29

शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

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भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

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शकर को ही जानत और मानत होत तो काम को महाशतर मान मनषटय काम लिकार को तयागता जो लक बढ़ती जनसखया

का मि कारण ह लशि-शकर की गीता ही असि िररिार लनयोजक योजना ह इसक अलतररकत और कोई मागम नही ह

नमिी कम अनमदिः- नर बलििादी होता ह और नारी भािनािादी होती ह अनक यगो स नाररयो िर अतयाचार एि शोषण

होत आए ह इककीसिी सदी आन िर भी नाररयो क जीिन म कोई लिशष िररितमन नही हआ और लजनह हम िररितमन

समझ रह ह िह लसफम ऊिरी लदखािा ह िरनत िालतलिक सतय तो यही ह लक नारी जात आज भी तन-मन-धन स अबिा

ही ह बचची स िकर िि माता भी लिय को इस िर समाज म असरलकषत ही अनभि करती ह इसका कारण भी खलडत

गीता ही ह गीता म कषटण का नाम डािन स कषटण का चररतर ही सामन आता ह कषटण समान आकषमक िलत एि कषटण

समान दिार बचच की चाह म बािरी हो अिन िलत तथा बचचो की कठितिी बनकर रह जाती ह अिन िलत को िरमशवर मान उनकी लिकारी मतो को ईशवरीय मत समझकर चिन स और भी दगमलत हई लजनको गर बनाया िह भी िरष लजनहोन

नारी को lsquolsquoनकम का दवारrsquorsquo कहा लजसस परतयक नारी क लिालभमान को लमटान का लघनौना परयास लकया गया

यलद गीता का भगिान लशि-शकर को मानत तो शकर म शलकत का परमाण रि lsquoअधमनारीशवरrsquo का गायन ह जो लक

नर-नारी क समानता का परतीक ह नारी को भी समान परलतषठािान सलकलत क अनकि अभय जीिन जीन का अलधकार

परापत होता

कषटण का अनकरण करन स िरष अनक लसतरयो को रखन िग लसतरयो को भोगलििास का रि मानन िग कया यह

एक नारी का लतरलकार नही ह कया उनकी भािनाओ का उिहास नही लकया जा रहा यलद मनषटय गीता क रचलयता लशि-

शकर का अनकरण करता तो शकर समान एक ितनीवरत जीिन जगता एक नारी सदा बरहमचारी

आतकरमदः- आतकिाद लसफम आिसी भदभाि तथा मन-मटाि का िररणाम नही ह िरनत यह भी खलडत गीता स उतिनन

हई एक िीड़ा ह गीता म साकार कषटण का नाम डािन स लनराकार उिासक गीता की अिहिना करन िग उिहास करन

िग इसस अनक मतो एि अनक धमो तथा सलकलतयो का लनमामण हआ अनक भाषाओ स अनक परानतो एि अनक राजयो

का लनमामण हआ एकता क शि एि िलितर लथान को अनकता रिी राह न गरस लिया एक अखडड समिणम महान भारत

लिभालजत होकर अनक टकड़ो म खडड-2 हो गया और अिन धमम परानत राजय एि राजयभाषा को महान जतान की होड़ म

मानिता को भिकर मनषटय इस तरह का भयानक आतक मचान िगा लक दोषी-लनदोषी सभी तरलत होन िग आज सभी

िाद-लििादो म सबस गभीर एि लिलफोटक लिरि आतकिाद का ह यलद गीता का भगिान लनराकार लशि-शकर को मानत

तो अनकता का जनम ही नही होता कयोलक लनराकार लबद आतमा को दशामता नगन शकर का गायन हर धमो म ह- लहनदओ

म lsquoआलददिrsquo जलनयो म lsquoआलदनाथrsquo मसिमानो म lsquoआदमrsquo ईसाईयो म lsquoएडमrsquo इतयालद लिरिो म यलद ऐसा होता तो

आज सभी धमम िाि गीता को ही सिमशासतरमयी लशरोमलण क रि म अिना धममगरनथ मानत एि अनकरण करत िरनत

खलडडत गीता स भारत सलहत िरा लिशव दवतिादी दवािर 2500 िषम स खडड-2 हो गया और इसक लििरीत अखडड गीता

ही सलषट को lsquoिसधि कटमबrsquo का लिरि लदिाती ह तो आतकिाद जस अलभशाि का अनत भी अखड गीता स ही सलनलशचत

शष इतना ही नही िरनत इनक उिरानत अनक समलयाओ की उतिलतत खलडडत गीता स होती ह जस- गरीबी एि

बरोज़गारी लजसस चोरी-चकारी जस अभि कमो का आगमन होता ह वयलभचार िलतत िशयािय का रि धारण कर परतयकष

एि अपरतयकष रि स गनदगी तथा बीमाररयो को लिलताररत रि परदान करती ह इन सभी सामालजक समलयाओ का लनमामण

इसी कषटण की खलडडत गीता की एकज भि स हआ ह यलद गीता का भगिान अथामत गीता क रचलयता लशि-शकर क

परतयकष-परितत लिरि को समझकर मानकर उनक बताए हए मागम िर चि तो हम लिय क ही नही िरनत समलत मानि

जात तथा समलत लिशव क सदगलत का कारण बन सकत ह अनयथा लनयलत तो अटि ह ही

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भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत

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भलिषटयिालणया

(यहमा उन लोगो की भनरषयरमनणयो कम रणवन नकयम गयम ह नजनकी भनरषयरमनणयमा आज तक सही समनबत हई)-

bull कनलक पिमण- लिततरता क बाद भारत म एक ऐस महािरष का उदय होगा जो िजञालनको का भी िजञालनक होगा िह

आतमा और िरमातमा क रहलय को परगट करगा आतमजञान उसकी दन होगी उसकी िश-भषा साधारण होगी उसका

लिालरथय बािको जसा योिाओ की तरह साहसी अलशवनी कमारो की तरह िीर यिा ि सनदर शासतरो का परकाडड िलडडत

ि मानितािादी होगा उसका लिता ही उस योग साधना की ओर परररत करगा 36 िषम की आय म िह योग की उचच

भलमका म परिश करगा

bull एडििसन(अररिकम)- अरब राषटरो सलहत मललिम बहि राजयो म आिसी करालतया और भीषण रकतिात होग इस बीच

भारतिषम म जनम महािरष का परभाि ि परलतषठा बढ़गी यह वयलकत इलतहास का सिमशरषठ मसीहा होगा िह एक मानिीय

सलिधान का लनमामण करगा लजसस सार ससार की एक भाषा एक सघीय राजय एक सिोचच नयायिालिका एक झडड की

रि-रखा होगी(अथामत दवािरयगी दवतिाद खतम)

bull गरिमिव करमईस(हॉलि)- भारत दश म एक ऐस महािरष का जनम हआ ह जो लिशव कलयाण की योजनाए बनाएगा

bull जलबणव- ससार क सबस समथम वयलकत का अितरण हो चका ह िह सारी दलनया को बदि दगा उसकी आधयालतमक

करालत सार लिशव म छा जाएगी एक ओर सघषम होग दसरी ओर एक नई धालममक करालत उठ खड़ी होगी जो आतमा और

िरमातमा क नए-2 रहलय को परगट करगी िह महािरष 1962 स ििम जनम ि चका ह उसक अनयायी एक समथम

सलथा क रि म परगट होग और धीर-2 सार लिशव म अिना परभाि जमा िग असभि लदखन िाि कायम को भी ि िोग उस

महािरष की किा स बड़ी सरिता स सिनन करग

bull परोफसि कीिो- भारत का अभयदय एक सिोचच शलकत क रि म हो जाएगा िर उसक लिए उस बहत कठोर सघषम करन

िड़ग दखन म यह ललथलत अतयत कषटदायक होगी िर इस दश म एक फररशता आएगा जो हज़ारो छोट-2 िोगो को इकटठा

करक उनम इतनी आधयालतमक शलकत भर दगा लक ि िोग बड़-2 बलिजीलियो की मानयता लमरथया लसि कर दग

bull गोपीनमर शमसतरी- अितारी महािरष दवारा जबरदलत िचाररक करालत होगी लजसक फिलिरि लशकषण ििलत बदि

जाएगी और ऐसी लशकषा का आलिषटकार होगा जो वयलकत को जीिन जीन की किा परदान करगी जबलक ितममान लशकषा

परणािी किि िट भरन तक ही सीलमत ह कलथत आतमजञानहीन बलिजीलियो स िोगो की घणा होगी और भगभम

लिदया रसायन शासतर यतर लिदया खलनज धात चमबक लिदया आलद क नए कषतरो का और लिजञान का लिलतार होगा लजसका

नतति भारतिषम का एक ऐसा धालममक सगठन करगा लजसका मागमदशमक लिय भगिान होगा धालममक आशरम जन जागलत क

कनि बनकर कायम करग

ओर शमनत