श्रद्भगवद्ग ता प ©क §ट ¡क (संधिधवच्छ §द...

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1 ीमगव᳄ीता पॉकेट बुक (संधिधवछेद, शदानुवाद और संधि ाया सधित) 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 भूधमका ीमद् भगव᳄ीतासपूण धव᳡ म मानवजाधत के धिए ᳰदया आ भारतवण का अमूय उपिार िै। भगव᳄ीता िएक ऐसा शाᳫ िै धजसको सवणशाᳫ धशरोमधकिा गया िै। ऐसी धविि रचना िै , धजसको िी भगवानुवाचकᳱ मायता ा िै। जो मिᳶ वेदास ᳇ारा रधचत िै। गीता 18/75 म बताया िै- ाससादात् ” अाणत् ास कᳱ सता से यि गीता-ान िमको धमिा िै। यि शाᳫ अय शाᳫ कᳱ तरि धसण िमण उपदेश का सािन नि ; अधपतु इसम अयाम के सा-2 राजनैधतक, सामाधजक और धिगत समया का समािान भी छुपा आ िै। अजुणन जो मिाभारत यु के मिानायक ि , यु के मैदान म समया से भयभीत िोकर जीवन और िधिय िमण से धनराश िो गए। उसी कार िम सभी नं वार अजुणन कᳱ भाधत जीवन कᳱ समया म उिझे ए ि ; यᳰक यि जीवन भी एक यु िेि िै। इसधिए आज सामाय मनुय अपने जीवन कᳱ समया से उिझकर ककतणधवमूढ़ िजाता िै अाणत् या करना चाधिए, या नि करना चाधिए- इस संबंि म िी बुिू बन जाता िै और जीवन कᳱ समया से िड़ने कᳱ बजाए, उससे भागने िगता िै। िेᳰकन समया से भागना समया का समािान नि िै। उन समया के समािान के धिए िी भगवान अजुणन के मायम से समत सृध कᳱ मानवजाधत के धिए िी गीता- ान अभी वतणमान समय म दे रिे ि , धजस गीता-ान के धिए यि समझा जाता िै- भगवान ीकृ ने ᳇ापर के अंत म यि गीता-ान ᳰदया िै। परतु गीता म एक भी ऐसा ोक नि िै धजसम बताया िो ᳰक गीता-ान ᳇ापर म ᳰदया िै। जबᳰक गीता 18/66 म बोिा िै- सवणिमाणपᳯरयय मामेकं शरं ज ।अाणत् मठ-पं-सदायाᳰद दैधिक ᳰदखावे वािे सब िम का पᳯरयाग करके , मुझ धनराकार टेज वािे धशव-शंकर कᳱ शर म जा। देखा जाए तो सभी िमण ᳇ापर म मौजूद भी नि े , अभी वतणमान समय म अनेक िमण मठ-पं-सदाय ि। यदा यदा धि िमणय िाधनभणवधत भारत ।गी. 4/7 अाणत् जब िमण कᳱ िाधन िोती िै , अिमण बढ़ता िै , तब म आता ह। िमण कᳱ िाधन अाणत् एकापी भगवान को सवणापी बता देते ि। जैन और वैᳰदक ᳰकया के अनुसार कधियुग के अंत म िी िमण कᳱ िाधन िोती िै ; यᳰक कधियुग-अंत तक अनेक िमण ाधपत िो जाते ि और सब तमोिान बन जाते ि। सवणभूताधन समोिं सगे याधत परतप ॥गीता 7/27 अाणत् सब ाी कपात काि/चतुयुणगांत म सपूण मूढ़ता को पच जाते ि। जगध᳇पᳯरवतणते गीता 9/10 अाणत् मेरी एकमाि अयिता के कार यि संसार धवपरीत गधत अाणत् कधियुगात से आᳰद सतयुगी ऊवणिोक म पᳯरवᳶतत िोता िै। अगर भगवान ीकृ ने ᳇ापर म आकर गीता-ान ᳰदया िै तो संसार का पᳯरवतणन िोना चाधिए; परतु संसार का तो पᳯरवतणन आ नि , मनुय और िी अिमी, कामी, पाखंडी, अधभमानी, ोिी, अिंकारी, पशु के समान आचर करने वािे िो गए और किािीन पापी कधियुग बन गया। वातव म यि सामने खड़े मिाभारत यु के आसार वतणमान समय कᳱ बात िै। भगवान ने आकर कोई ू ि िसा करना नि धसखाया िै। िड़ाई-झगड़ा या मारा-मारी करना- ये असुर के संकार ि। भगवान तो आकर दैवी

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    श्रीमद्भगवद्गीता पॉकेट बकु

    (सधंिधवच्छेद, शब्दानवुाद और सधंिप्त व्याख्या सधित)

    1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18

    भधूमका

    ‘श्रीमद ्भगवद्गीता’ सम्पूर्ण धवश्व में मानवजाधत के धिए ददया हुआ भारतवर्ण का अमूल्य उपिार ि।ै भगवद्गीता

    िी एक ऐसा शास्त्र ि ैधजसको ‘सवणशास्त्र धशरोमधर्’ किा गया ि।ै ऐसी धवििर् रचना िै, धजसको िी ‘भगवानुवाच’

    की मान्यता प्राप्त ि।ै जो मिर्षर् वेदव्यास द्वारा रधचत ि।ै गीता 18/75 में बताया िै- “व्यासप्रसादात्” अर्ाणत ्व्यास

    की प्रसन्नता से यि गीता-ज्ञान िमको धमिा ि।ै यि शास्त्र अन्य शास्त्रों की तरि धसर्ण िमण उपदशे का सािन निीं;

    अधपतु इसमें अध्यात्म के सार्-2 राजनैधतक, सामाधजक और व्यधिगत समस्याओं का समािान भी छुपा हुआ ि।ै

    अजुणन जो मिाभारत युद्ध के मिानायक िैं, युद्ध के मैदान में समस्याओं से भयभीत िोकर जीवन और िधिय िमण स े

    धनराश िो गए। उसी प्रकार िम सभी न ंवार अजुणन की भााँधत जीवन की समस्याओं में उिझे हुए िैं; क्योंदक यि

    जीवन भी एक युद्ध िेि ि।ै इसधिए आज सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं स ेउिझकर कककतणव्यधवमूढ़

    िो जाता ि ैअर्ाणत् क्या करना चाधिए, क्या निीं करना चाधिए- इस संबंि में िी बुद्िू बन जाता ि ैऔर जीवन की

    समस्याओं से िड़ने की बजाए, उससे भागने िगता ि।ै िेदकन समस्याओं से भागना समस्या का समािान निीं ि।ै

    उन समस्याओं के समािान के धिए िी भगवान अजुणन के माध्यम स ेसमस्त सृधि की मानवजाधत के धिए िी गीता-

    ज्ञान अभी वतणमान समय में द ेरि ेिैं, धजस गीता-ज्ञान के धिए यि समझा जाता िै- भगवान श्रीकृष्र् ने द्वापर के

    अंत में यि गीता-ज्ञान ददया ि।ै परन्तु गीता में एक भी ऐसा श्लोक निीं ि ैधजसमें बताया िो दक गीता-ज्ञान द्वापर में

    ददया ि।ै जबदक गीता 18/66 में बोिा िै-

    “सवणिमाणन्पररत्यज्य मामकंे शरर् ं व्रज ।” अर्ाणत् मठ-पंर्-सम्प्रदायादद दधैिक ददखावे वािे सब िमों का

    पररत्याग करके, मुझ धनराकार स्टेज वािे धशव-शंकर की शरर् में जा। दखेा जाए तो सभी िमण द्वापर में मौजूद भी

    निीं र्,े अभी वतणमान समय में अनेक िमण मठ-पंर्-सम्प्रदाय िैं।

    “यदा यदा धि िमणस्य ग्िाधनभणवधत भारत ।” गी. 4/7 अर्ाणत् जब िमण की ग्िाधन िोती िै, अिमण बढ़ता ि,ै तब

    मैं आता हाँ। िमण की ग्िाधन अर्ाणत् एकव्यापी भगवान को सवणव्यापी बता दतेे िैं। जैन और वैददक प्रदकया के अनसुार

    कधियुग के अंत में िी िमण की ग्िाधन िोती ि;ै क्योंदक कधियुग-अंत तक अनेक िमण स्र्ाधपत िो जाते िैं और सब

    तमोप्रिान बन जाते िैं।

    “सवणभतूाधन सम्मोि ंसग ेयाधन्त परन्तप ॥” गीता 7/27 अर्ाणत् सब प्रार्ी कल्पान्त काि/चतुयुणगातं में सम्पूर्ण

    मूढ़ता को पहुाँच जाते िैं।

    “जगधद्वपररवतणत”े गीता 9/10 अर्ाणत् मेरी एकमाि अध्यिता के कारर् यि संसार धवपरीत गधत अर्ाणत् कधियुगान्त

    से आदद सतयुगी ऊध्वणिोक में पररवर्षतत िोता ि।ै अगर भगवान श्रीकृष्र् ने द्वापर में आकर गीता-ज्ञान ददया िै तो संसार

    का पररवतणन िोना चाधिए; परन्तु संसार का तो पररवतणन हुआ निीं, मनुष्य और िी अिमी, कामी, पाखंडी, अधभमानी,

    क्रोिी, अिंकारी, पशुओं के समान आचरर् करने वािे िो गए और किािीन पापी कधियुग बन गया।

    वास्तव में यि सामने खड़ ेमिाभारत युद्ध के आसार वतणमान समय की बात ि।ै भगवान न ेआकर कोई स्र्िू

    हिसा करना निीं धसखाया ि।ै िड़ाई-झगड़ा या मारा-मारी करना- ये असुरों के संस्कार िैं। भगवान तो आकर दवैी

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    राज्य स्र्ापन करते िैं, दवेता िड़ते निीं िैं। जो कौरव और पाण्डवों का युद्ध बताया ि,ै वो अभी मौजूद िैं; क्योंदक

    शास्त्रों में जो भी नाम िैं, सभी काम के आिार पर िैं। जैसे अच्छे या बुरे काम दकए िैं वैसे नाम पड़ गए िैं; क्योंदक

    दधुनया नाम को स्मरर् करती ि।ै जसैे ‘राम’ नाम पड़ा ि-ै “रम्यत ेयोधगनो यधस्मन ्इधत राम:।” अर्ाणत् योगी िोग

    धजसमें रमर् करत ेिैं, उसका नाम ि ै ‘राम’। ऐसे िी ‘रावर्’–“रावयते िोकान ्इधत रावर्।” अर्ाणत् जो िोगों को

    रुिाता ि,ै वो रावर् ि।ै उसी प्रकार कौरव सम्प्रदाय िृतराष्ट्र और उसके कुकमी पुि दयुोिन-दुुःशासन, जो सत्य िमण

    के नाशक िैं और उनको समर्णन दनेे वािे बड़े-2 गुरु द्रोर्ाचायण, भीष्मधपतामि-जैसे सन्यासी िैं और उनके धवपरीत

    असत्य का सवणर्ा धवरोि करने वािे सत्य िमण के स्र्ापक पांडु बाप के पांडव बच्चे युधिधिर-अजुणन आदद भी िैं जो

    भगवान का आश्रय िेने वािे िैं। यि कोई एक-एक व्यधित्व की बात निीं ि,ै अधपतु ऐसे आचरर् करने वािे प्रत्येक

    मनुष्यमाि की बात ि।ै

    इस समय िी ऐसे पंूजीवादी िृतराष्ट्र (धजसन ेअन्याय पूवणक राष्ट्र की िन-सम्पधि िड़प िी) गवमेण्ट के नुमाइन्द े

    बनकर बैठे िैं, िज़ारों का प्रॉपटी टैक्स िगवाते िैं। धजनको समाज का रिक िोना चाधिए, वो िी पुधिस अधिकारी

    ‘भिक’ बनकर जनता को प्रताधड़त कर रि ेिैं। न्याय व्यवस्र्ा अन्याय व्यवस्र्ा में बदि गई। पििे राजाओं के राज्य

    में िमण के अनुसार न्याय दकया जाता र्ा, धबना दकसी वकीि की सिायता के तुरंत धनर्णय भी धमिता र्ा; िेदकन

    आज धवदधेशओं के द्वारा बनाए गए कोटण में न्याय की अपेिा करते-2 प्रार् भी चिे जाएाँ, तो भी न्याय निीं धमिता

    ि।ै इसधिए आज कई सच्चे िोग िैं, जो जेि में पड़ ेरिते िैं और अपरािी गद्दीनशीन बनकर बैठे िैं। जैसे (दिु युद्ध

    करन ेवािे) दयुोिन, दशुासन िार्-पााँव चिाते िैं, बाहुबि चिाते िैं, ऐसे-2 िैं, खराब काम करत ेिैं। जो अपन े

    अधिकार का दरुुपयोग कर रि ेिैं। कोई एक द्रौपदी की बात निीं िै, अनेकों द्रौपदी समान कन्या-माताओं पर रोज़

    अत्याचार दकया जाता ि।ै धजस भारतवर्ण में नाररयों की पूजा की जाती र्ी, उसी भारत में आज नाररयों पर पशुओं

    के समान अत्याचार दकया जाता ि।ै कानून की कोई रोकर्ाम निीं ि ैऔर ऐसी भ्रि इधन्द्रयों का दरुाचरर् करान े

    वािी गवमेण्ट को सियोग दनेे वाि ेऔर बदिे में मानमतणबा िेन ेवािे िैं- द्रोर्ाचायण और भीष्मधपतामि-जैस ेबड़-े

    2 संन्यासी। जो अपने को धशवोऽिम् किते िैं और (वास्तधवक ‘God is one’) भगवान से बेमुख करा दतेे िैं। स्वय ं

    की पूजा कराते िैं, अपने को श्री-2 1008 या 108 की शे्रितम संगठन रूपी मािा के जगतगुरु का टाइटि िकेर,

    एकव्यापी भगवान को सवणव्यापी बताकर सबसे बड़ा अिमण करते िैं और जनता को भ्रधमत दकए हुए िैं। इन सब

    अिर्षमयों और इनके द्वारा रै्िाए अिमण का नाश करने के धिए िी भगवान इस कधियगुांत की सृधि पर आते िैं और

    गीता-ज्ञान भीष्मधपतामि-जैसे पधवि सन्याधसयों को, धवद्वान-पंधडतों जैसे द्रोर् या कृपाचायों जैसे वेतनभोधगयों को

    निीं, अजुणन-जैसे गृिस्र्ी को दतेे िैं। ऐसों की भी प्रत्यि ररिसणि/शूटटग कराने वािी िैं ब्रह्माकुमारीज़। जो िगातार

    सत्य को दबाने के धिए करोड़ों रुपये सरकारी अर्सरों और मीधडया वािों को द ेरिी िैं और अपना अल्पकािीन

    मान-मतणबा बनाए रखना चािती िैं। धजनके इन्िीं कमों के कारर्, धजन ब्रह्मा बाबा (दादा िेखराज) को भगवान

    मानती िैं, उनकी िी बेअदबी करती िैं और उसके बताए रास्ते पर न चिकर, उनका िी मुाँि बंद कर दतेी िैं और

    ब्रह्मा बाबा भी मौन रिकर ठीक उसीतरि समर्णन कर दतेे िैं, जैस ेिृतराष्ट्र न ेदयुोिन-दुुःशासन का दकया र्ा। इसी

    कारर् आज ससंार में ब्रह्मा के न मंददर िैं, न मूर्षत और न िी िोग याद करत ेिैं। इन्िीं कौरव संप्रदाय का मुकाबिा

    5 उाँगधियों के मुट्ठी भर पाण्डव, ‘आध्याधत्मक धवश्वधवद्यािय(AIVV)’ के रूप में कर रि े िैं। धजस आध्याधत्मक

    धवश्वधवद्यािय के सदक्रय सियोधगयों को समाप्त करने के धिए सन 1976 से िी ब्रह्माकुमारीज़ िगातार प्रयासरत िैं,

    एक के बाद एक िमिे कराए जा रि ेिैं, सरासर कई झूठे आरोप िगाने पर भी सर्िता निीं धमिी, तो माि िाख

    रुपयों से बन ेAIVV कधम्पिा U.P. के िाखा भवन में जसै ेआग िी िगवा दी। ऐसे िी AIVV ददल्िी-85 में रि रिी

    200-250 कन्या-माताओं के धनवासस्र्ान को ददल्िी नगर धनगम वािों के द्वारा 2-2 बार पूरा िी तुड़वान ेका

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    भरसक प्रयास दकया गया, तादक वो सभी बेघर िो जाएाँ और भाग जाएाँ। ऐसे िी id/age पू्रर् ददखाने के बावजूद

    भी 48 बाधिग कन्याओं को धमधडयाज़ द्वारा भी नाबाधिग बताकर सरकारी तबक्कों द्वारा िी 4 माि बंिक बना धिया

    गया। ऐसे अनेकों अपराि िैं, धजनको भारतीय प्रजातंि के कानून का जामा पिनाया गया ि।ै दर्र भी AIVV युधिधिर

    जैसा युद्ध में आदद से िकेर अंत तक धस्र्र रिता ि,ै छोड़कर भागता निीं; क्योंदक किा ि-ै “जाको राखे साईंया, मार

    सके न कोय। बाि न बााँका कर सके, जो जग वैरी िोए।।” गीता में िी बताया- “नासतो धवद्यत ेभावो नाभावो धवद्यत े

    सत: ।” (2/16) सत्य पाण्डवों की मुट्ठी भर शधि-सेना का कभी धवनाश निीं िोगा और कामचिाऊ झूठी प्रजापरस्त

    भ्रिाचारी सरकार और ब्रह्माकुमारीज़ की अिौधिधर्यों सनेा का अधस्तत्व भी निीं रिगेा। मिाभारत युद्ध के अंत में

    धवजय तो पांडवों की िी िोती ि;ै क्योंदक गीता 18/78 में बताया ि-ै “यि योगशे्वर: कृष्र्ो यि पार्ो िनिुणर: । ति

    श्रीर्षवजयो भधूतर्ध्ुणवा नीधतमणधतमणम ॥” अर्ाणत ्जिााँ भगवान िो और अजुणन िो, विीं धवजय धनधित ि।ै तो यि 5000

    वर्ीय चतुयुणगी ड्रामा में कधियुगान्त की ररिसणि चि रिी ि।ै धवधियम शेक्सधपयर ने भी किा- “यि धवश्व एक

    रंगमंच ि”ै और सभी आत्माएाँ धभन्न-2 पाि िैं, उनका आत्मिोक से प्रवेश और प्रस्र्ान िोता ि।ै 4 सीन की चतुयुणगी

    पर सभी पाटणिारी अपना-2 पाटण बजा रि ेिैं। िम सभी एक्टसण िैं और डायरेक्टर सदा धशव (ज्योधत) परद ेके पीछे

    ि ैजो ददखाई निीं दतेा ि।ै वो िी गीता-ज्ञानदाता ि;ै क्योंदक वो धनराकार ि,ै जन्म-मरर् से न्यारा ि;ै इसधिए गीता

    में उसको अजन्मा, अकताण, अभोिा बताया ि।ै कृष्र् के धिए अजन्मा, अकताण, अभोिा निीं किेंग;े क्योंदक उनका

    तो जन्म भी िोता ि,ै कमण करते ददखाया भी ि,ै सामान्य मनुष्यों की तरि जीवन के सभी सुखों को भोगते हुए ददखाया

    ि ैऔर गीता तो पििे धनराकारवादी रचना र्ी, बाद में कृष्र् उपासकों ने उसमें कृष्र् का नाम डाि ददया ि ैजो बात

    दशेी-धवदशेी धवद्वानों न ेभी बताई ि।ै वो धनराकार भगवान (सदाधशव ज्योधत) अजुणन के (मुकरणर शरीर रूपी) रर् में

    िी आकर प्रवेश करके गीता-ज्ञान दतेे िैं, कोई स्र्ूि रर् की बात निीं ि।ै कठोपधनर्द ् में बोिा िै- आत्मान ंरधर्न ं

    धवधद्ध शरीरं रर्मवे च। बहुद्ध त ुसारहर् धवधद्ध मनुः प्रग्रिमवे च। इधन्द्रयाधर् ियानाहुुः ….1.3.3.4

    आत्मा को रर्ी समझ और शरीर को रर् समझ, बुधद्ध को सारर्ी समझ और मन को िगाम समझ, इधन्द्रयों को

    घोड़ ेसमझ। वो धनराकार गीता-ज्ञानदाता अजुणन के साकार शरीर रूपी रर् में प्रवेश करता ि।ै

    गी. 10/2- “न म ेधवद:ु सरुगर्ा: प्रभव ंन मिर्णय: ।” मेरे उत्कृि जन्म को न सतयुगी दवे और न द्वापरयुगी

    मिान ऋधर्जन िी जानत ेिैं, जबदक कृष्र् के जन्म तो सामान्य मनुष्यों को भी ज्ञात िै- सामान्य रूप स ेमाता के गभण

    से जन्म हुआ र्ा; परन्तु भगवान तो अगभाण ि;ै क्योंदक वो परकाया प्रवेश करता ि।ै (गी. 11/54 “प्रविुे”ं) अर्ाणत

    प्रवेश करके ज्ञान का बीज डािता ि।ै गी. 14/3 “मम योधनमणिद्ब्रह्म तधस्मन्गभभं दिाम्यिम ्।” मेरी योधन रूपी माता

    मित ् (परमब्रह्म) ि,ै धजसमें आकर मैं आत्म-ज्ञान का बीज डािता हाँ, मिाधवनाश के समय मनुष्य-सृधि वृि के

    बीज/बाप(अजुणन/आदम) की दिे रूपा परमब्रह्मा में पड़ ेउस बीज से सब प्राधर्यों की नं. वार उत्पधि िोती ि।ै धजस

    गभण के बारे में अन्य शास्त्रों में ऋधर्-मुधन भी उसे सच्चा-2 ‘धिरण्य गभण’ किते िैं। इस शब्द का प्रर्मत: उल्िेख ऋग्वेद

    में आया ि,ै जो अंडाकार ज्योधत के समान ि,ै धजसस ेसृधि की उत्पधि हुई ि।ै गी. 9/7 “सवणभतूाधन कौन्तये प्रकृहत

    याधन्त माधमकाम ् । कल्पिय े पनुस्ताधन कल्पादौ धवसजृाम्यिम ् ॥” ि े कंुती-पुि! कल्पांतकाि में सब प्रार्ी मेरी

    धनराकारी स्टेज िारर् करने वािी इसी प्रकृि शरीर रूपी कृधत (शंकर) के अव्यि ज्योधतर्बबद ुआधत्मक भाव को पात े

    िैं और कल्प के आददकाि से मैं उन्िें दर्र स ेसृधि के धिए आत्मिोक स ेन.ं वार छोड़ दतेा हाँ। गी. 2/17 “अधवनाधश

    त ुतधद्वधद्ध यने सवणधमद ंततम ्। धवनाशमव्ययस्यास्य न कधित्कतुणमिणधत ॥” धजस मनुष्य-सृधि के बीज-रूप आदम या

    आदददवे/शंकर के द्वारा यि सम्पूर्ण धवश्व धवस्तार को पाया िै, उसको तो अधवनाशी जान। इस अव्यय पुरुर् शंकर का

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    धवनाश करन ेके धिए कोई भी समर्ण निीं ि।ै जबदक कृष्र् को तो एक बधििय ेने तीर मारा और उनकी मृत्यु िो गई।

    गी. 11/32 में बोिा ि-ै ‘कािोऽधस्म’ अर्ाणत् मैं काि हाँ। जो स्वयं कािों का काि मिाकाि िै, उसको कोई काि खा

    निीं सकता ि।ै वो िी एकमाि मिाकाि सबको मन्मनाभव मन्ि से अपने बुधद्धरूपी पेट में खा जाता िै; इसीधिए न

    उनका जन्म ददखाया ि,ै न िी मृत्यु। वो िी िीरो आत्मा सृधि रंगमंच पर साकार में भी शाश्वत सत्य िै, धजसको ‘

    सत्यम् धशवम् सुन्दरम्’ किा जाता ि।ै धजसके अमोघवीयण धशवहिग स्वरूप की पूजा पै्रधक्टकि कामजीते जगत्जीत के

    आिार पर सबस ेजास्ती की जाती ि।ै दशे-धवदशे में उसकी िी हिगमूर्षत धमिी ि,ै धसर्ण नाम अिग द ेददए िैं। धिन्द ू

    में ‘आदददवे’, दक्रधियन्स ‘एडम’, मुसिमान ‘आदम’ और जैधनयों में ‘आददनार्’ किा जाता ि।ै गी. 4/1 में बताया िै-

    “इम ंधववस्वत ेयोग ंप्रोिवानिमव्ययम ्।” मैंने यि अधवनाशी ज्ञान सबसे पििे सूयण को ददया, धजसको ‘धववस्वत’

    किा ि;ै क्योंदक धनराकार ज्ञान की रोशनी सबसे पििे साकार को दतेा िै, उसके द्वारा दर्र समस्त संसार को धमिती

    ि;ै िदेकन उस परमधपता धशव समान गुप्त पाटणिारी को कोई पिचान निीं पाते िैं। गी. 9/11 “अवजानधन्त मा ंमढूा

    मानरु्ीं तनमुाधश्रतम ्।”

    मूखण िोग मानवीय शरीर का आिार िेने वािे मुझ ऊाँ ची धस्र्धत समान कैिाशीवासी िीरो की अवज्ञा करते िैं।

    वो मूखण प्राधर्यों के ईश्वर-समान रूप को निीं पिचान पाते िैंl इन सभी तथ्यों पर गौर करेंगे और गीता के श्लोकों का

    ध्यानपूवणक अध्ययन करने से आपको यि ज्ञात िोगा दक मिाभारत युद्ध अभी शुरू िोन ेवािा ि ैऔर गीता-ज्ञान भी

    भगवान के द्वारा ददया जा रिा ि।ै िर 5000 वर्ण में कधियुग के अंत में उसी मुकरणर रर्िारी साकार आदददवे में

    प्रवेश करके गीता-ज्ञान द ेरि ेिैं, कधियुग का अंत करके सतयुग की स्र्ापना कर रि ेिैंl

    यि सृधि काि धसर्ण 5000 वर्ण का ि,ै परन्तु सािू, संत, पंधडत, संन्याधसयों न ेिाखों वर्ण बता ददया, तादक

    उसका कोई धिसाब पूछ न सके।

    यि सत्य और असत्य की िड़ाई ‘ब्रह्माकुमारीज़ धवश्वधवद्यािय’ और ‘आध्याधत्मक धवश्वधवद्यािय’ के बीच चि

    रिी ि।ै यिी ररिसणि का समय ि।ै जो आत्मा अभी जैसा पाटण बजाएगी, वो शूटटग में वैसा िी 5000 वर्ण के ड्रामा में

    नूाँि िोगा। युद्ध की शुरूआत में युधिधिर ने किा र्ा- इस िमण-अिमण के युद्ध में सभी अपना-2 मागण चुन सकते िैं, उसी

    प्रकार अभी स्वयं भगवान आकर बता रि ेिैं- चाि ेतो कौरवों (तर्ाकधर्त ब्रह्माकुमारीज़) के तरर् जाएाँ या भगवान

    की छिछाया में पाण्डवों (आध्याधत्मक धवश्वधवद्यािय) के तरर् आ जाएाँ; क्योंदक िर आत्मा स्वतंि ि,ै जीवात्मा िी

    अपना धमि ि ैऔर अपना शिु िै, अपने कल्यार् और अकल्यार् का रै्सिा स्वयं कर सकते िैं। िेदकन उस भगवान

    के बताए रास्ते पर पूरा चिने वािे युधिधिर-जैसे पाण्डव िी स्वगण में जाते िैं। जो िमणयुद्ध से पीछे निीं िटते िैं, चाि े

    सारा ससंार ग्िाधन करे, दर्र भी दीये और तूर्ान की िड़ाई में टक्कर िेते िैं; पर सत्य का मागण निीं छोड़ते िैं, सदा

    स्वगण जाने के अधिकारी बन जाते िैं।

    भधवष्यवार्ी –

    कधल्क परुार् :- स्वतंिता के बाद भारत में एक ऐसे मिापुरुर् का उदय िोगा जो वैज्ञाधनकों का भी वैज्ञाधनक िोगा।

    वि आत्मा और परमात्मा के रिस्य को प्रगट करेगा। आत्मज्ञान उसकी दने िोगी। उसकी वेश-भूर्ा सािारर् िोगी।

    उसका स्वास्थ्य बािकों जसैा, योद्धाओं की तरि सािसी, अधश्वनी कुमारों की तरि वीर युवा व सुन्दर, शास्त्रों का

    प्रकाण्ड पधण्डत व मानवतावादी िोगा।

    एण्डरसन(अमरेरका):- अरब राष्ट्रों सधित मुधस्िम बहुि राज्यों में आपसी क्रांधतयााँ और भीर्र् रिपात िोंगे। इस

    बीच भारतवर्ण में जन्मे मिापुरुर् का प्रभाव व प्रधतिा बढ़ेगी। यि व्यधि इधतिास का सवणशे्रि मसीिा िोगा। वि एक

    मानवीय संधविान का धनमाणर् करेगा, धजसमें सारे ससंार की एक भार्ा, एक संघीय राज्य, एक सवोच्च न्यायपाधिका,

    एक झण्ड ेकी रूप-रेखा िोगी।

  • 5

    ग्ररेाडण क्राईस े(िॉिैंड):- भारत दशे में एक ऐसे मिापुरुर् का जन्म हुआ ि ैजो धवश्व कल्यार् की योजनाएाँ बनाएगा।

    जिूबर्ण:- संसार के सबस ेसमर्ण व्यधि का अवतरर् िो चुका ि।ै वि सारी दधुनया को बदि दगेा। उसकी आध्याधत्मक

    क्रांधत सारे धवश्व में छा जाएगी।...... एक ओर संघर्ण िोंगे, दसूरी ओर एक नई िार्षमक क्रांधत उठ खड़ी िोगी जो

    आत्मा और परमात्मा के नए-2 रिस्य को प्रगट करेगी। .....वि मिापुरुर् 1962 स ेपूवण जन्म िे चुका ि।ै उसके

    अनुयायी एक समर्ण संस्र्ा के रूप में प्रगट िोंगे और िीरे-2 सारे धवश्व में अपना प्रभाव जमा िेंगे। असंभव ददखने

    वािे कायण को भी वे िोग उस मिापुरुर् की कृपा स ेबड़ी सरिता से संपन्न करेंगे।

    प्रोरे्सर कीरो:- भारत का अभ्युदय एक सवोच्च शधि के रूप में िो जाएगा; पर उसके धिए उसे बहुत कठोर संघर्ण

    करने पड़ेंगे। दखेने में यि धस्र्धत अत्यंत किदायक िोगी; पर इस दशे में एक र्ररश्ता आएगा जो िज़ारों छोटे-2

    िोगों को इकट्ठा करके उनमें इतनी आध्याधत्मक शधि भर दगेा दक वे िोग बड़-े2 बुधद्धजीधवयों की मान्यता धमथ्या

    धसद्ध कर देंगे।

    गोपीनार् शास्त्री:- अवतारी मिापुरुर् द्वारा जबरदस्त वचैाररक क्रांधत िोगी धजसके र्िस्वरूप धशिर् पद्धधत बदि

    जाएगी .....वतणमान धशिा प्रर्ािी केवि पेट भरने तक िी सीधमत ि।ै .....कधर्त आत्मज्ञानिीन बुधद्धजीधवयों से

    िोगों की घृर्ा िोगी। ....भारतवर्ण का एक ऐसा िार्षमक संगठन नेतृत्व करेगा धजसका मागणदशणक स्वयं भगवान ्

    िोगा। िार्षमक आश्रम जन जागृधत के कें द्र बनकर कायण करेंगे।

    शास्त्रों में सभी नाम काम के आिार स ेिैं, जसै ेयिााँ कुछ व्याख्याएाँ दी िैं :-

    अददधत अददधत-न दीयते खण्यते ब्रित्वात् इधत्यददधत अर्ाणत् जो खंधडत निीं की जाती। ‘भारतमाता’ तस्याुः पुिी

    भारती-सरस्वती वा। कुन्ती {कंु (भूहम दिें वा)+उनधि+धझच्+ङीर््} कुधन्तभोज की पुिी।

    अनन्त:ं नाधस्त अंतुः गुर्ानामस्य-धजसके गुर्ों का अंत निीं ि ैअर्ाणत् मिादवे। {जैसेुः11/37}

    अयणमन-् अर्य्यभं -शे्रि ंधममीते मा+कधनन-सूयण। {जैसेुः10/29} {सदा धडटैच चैतन्य ज्ञान-सूयण धशवज्योधत}

    अश्वत्र्-ं न अश्वधिरं धतिधत सृधिवृि। (बंदर जैसा) चंचि मन रूपी अश्व तो िनुमान / पीपि ि।ै {जैसेुः15/1}

    भीष्म-

    धपतामि भीष्म का अर्ण-भयंकर, जो सपण की भााँधत भयंकर धवर्ैिा शास्त्रीय ज्ञान उगिते िों। धपतामि (1/11-12)-

    अर्ाणत् कधियुग अंत के उन भयंकर बाबाओं या सािुओं को भीष्मधपतामि किेंगे, जो ‘परमात्मा सवणव्यापी’ का

    उल्टा ज्ञान सुनाकर खास भारत और आम सारे धवश्व के िोगों की बुधद्ध को भटका दतेे िैं। िद-बेिद के कांग्रेसी

    कौरवों, नेताओं और पंूजीवादी िृतराष्ट्रों द्वारा परबाबा की तरि उनका बहुत सम्मान दकया जाता ि।ै प्रजा से

    वोट और दर्र नोट भी िेना िै ना!

    ब्रह्म- बृंिधत विणते बिृ+ंमधनन्-जो बड़/ेवृद्ध रूप में माननीय ि-ै परमब्रह्म। {जैसेुः-3/15}

    दवे- दीव्यधत आनंदने क्रीडती वा अर्ाणत् आनंद स ेजो खेि धखिाता ि ैवि-दवेता। {जैसेुः11/14}

    िने-ु िीयते पीयते वत्सैुःिेट्+नु+इच्च-बच्चों के द्वारा धजसका (ज्ञान)दिू धपया जाता ि।ै {जैसेुः10/28}

    ितृराष्ट्र- िृतं राष्ट्र ंयेन सुः (सबसे बड़-े2 पूाँजीपधत, धजन्िोंने चािाकी से गरीबों की िन-सम्पधि नोटों से वोटों की

    राजनीधत द्वारा िड़प िी िो)।

    द्रोर्ाचायण- कधियुग-अंतकाि के िुरंिर पधण्डत-धवद्वान-आचायण, धजनका उत्पधि स्र्ान ि ैद्रोर्ुः=किशुः। (धमट्टी

    का) द्रोर्+ अच् अर्ाणत् शास्त्रीय ज्ञान रूपी दिेभान की धमट्टी से बनी बुधद्ध का अज्ञान किश।

    दुुः+योिन- 5 स्टार िोटिों आदद में भ्रिाचारी कामेधन्द्रय का दिु यदु्ध करने-कराने वाि ेकधियगुी राजनीधतक

    नेताएाँ, जो चुनाव काि में व्यधिगत ग्िाधन स ेभरे जिरीि ेिमण, राज्य, जाधत और भार्ा भेदी धनष्र्ि

  • 6

    और व्यर्ण भार्र्बाज़ी के बॉम्ब बरसा कर बकेायद ेबनी प्रजातंि सरकार में अपने ऊाँ चे-2 तबक्कों में

    बैठे धनरीि प्रजा का शोर्र् करते और कराते िैं।

    गाण्डीव- गाधण्ड ग्रधन्र्रस्यरधस्त-वज्र की गांठ से बना हुआ िचीिी देि का पुरुर्ार्ण रूपी िनुर्, जो सोम, वरुर् और

    अधि के पास भी रिा र्ा। धभन्न-2 िमण-खण्डों में बटे कााँटों के संसार जंगि रूप खांडववन का संिार करने के

    धिए इसका धनमाणर् हुआ र्ा और दवे-रधित र्ा। {जैसेुः-1/30}

    हृर्ीकेश- ज्ञानेधन्द्रयों रूपी घोड़ों के स्वामी। {जैसेुः-1/15, 2/9}

    ईश्वरुः- ईश+वरच्-मिादवे, कामदवे, चैतन्यात्मा। {जैसेुः-4/6, 15/8} {कामधवकार अंदर ि।ै}

    जनादणन- जनैुः+अद्यणते-याच्यते पुरुर्ार्ण िाभाय-परमेश्वर। {जैसेुः-1/36} {अवढरदानी मिादवे}

    जयद्रर्- जयत्+रर्ुः अर्ाणत् धजसका धवशािकाय धविमी-धवदेशी देि रूपी रर् िी जय पाता िो। {जैसेुः11/34}

    कौन्तये- कुन्त्याुः अपत्यं अर्ाणत् कंुती पुि अजुणन। {जैसेुः-1/27, 2/14} {कंु दिे ं(भान)ं दारयधत}

    केशव- केशाुः प्रशस्ताुः सन्त्यस्य-धजसके ज्ञान के केश रै्िे हुए िैं अर्ाणत् मिादवे। {जैसेुः1/31}

    कृष्र्- कर्णत्यरीन्-कर्णधत+अरीन मिाप्रभाव शक्त्या अर्ाणत् जो शधि के मिाप्रभाव से धवकारों रूपी शिुओं की हखचाई

    करता ि।ै {जैसेुः-1/28, 5/1} {आत्मधस्र्धत वािों का आकृिकताण धिनेिी मिादेव}

    कौरव- (कुधत्सतं रवं यस्य) कौ+रव अर्ाणत् कौओं की तरि कुधत्सत व्यर्ण भार्र्बाज़ी का सरासर झूठा शोरगुि

    करन े वािे (कांग्रेसी), धजन्िोंने िमणिीन िमण+धनुः+अपेि सरकार बनाकर आचार-धवचार, आिार-

    व्यविार का 5 स्टार िोटिों में सवणर्ा त्याग कर ददया और धजन्िोंने अवतररत परमात्मा को जानने पर

    भी, मानने स ेसार् इन्कार कर ददया ि;ै जैस े(रावयत ेिोकान)् अर्ाणत् िोगों को रुिाने वाि,े (‘पंधडत

    सोइ जोइ गाि बजावा’) वािे रावर् जैसी बोि-2 की भार्र्बाज़ी बहुत करत ेिैं।

    मिसुदून- मिु-जैसे मीठे कामधवकार रूपी दतै्य को मारने वािे कामनार् धशव, मिु/शराब, तमोगुर् से पैदा हुआ

    दतै्य। {जैसेुः-1/35, 2/1}

    मंि- मन््यते, गुपं्त पररभाष्यते-गुप्त बातचीत, भार्र्ादद। {जैसेुः-9/16}

    नकुि- नाधस्त कुिं यस्य-जो न पांडव कुि के िैं, न कौरव यादव कुि के, कभी इिर और कभी उिर; इन्िोंने पधिम

    ददशा {धवदधेशयों} पर धवजय पाई र्ी और अत्यन्त सुंदर सुडौि ह्रिपुि िैं। {जैसेुः1/16}

    नारद- नारं परमात्मधवर्यकं ज्ञान ददाधत-परमात्म धवर्यक नार=ज्ञान देने वािा अर्ाणत् नारद। {जैसेुः10/13}

    पंड- पंडयधत संचयधत-इकट्ठा करता ि।ै ज्ञान-िन की बात ि।ै {अजन्मा/अगभाण िोने स ेअखूट ज्ञान भंडारी धशव

    का बड़ा बच्चा मिादवे जो भगवान निीं, बड़-ेते-बड़ा दवे ि।ै}

    पाण्डव- भगवान को जानने, मानने और आदशेानुसार चिने वािे परमात्मा पंडा/पांडु के र्ोड़े से पुि अर्ाणत्

    कधियुग-अंत के संगमयुग में मुधि-जीवन्मुधििाम का रास्ता बताने वािे पण्डा/पांडु धशवबाबा के पुि

    पांडव। धजनमें युधि+धस्र्र जैसे पांडव भी िैं जो जीते जी स्वगण में जाते िैं ।

    पार्ण- पृधर्व्याुः ईश्वरुः-पृथ्वी का शासनकताण- धवश्वधवजयी अजुणन (धवश्वनार्)। {जैसेुः-1/25, 2/3}

    सिदवे- सि दीव्यधत, क्रीड़ती वा-जो परमात्मा के सार् िी खेिते िैं या दवेसियोगी िैं। {जैसेुः-1/16}

    शाश्वत-ं सदाकाि रिने वािा। {जैसेुः-2/20, 18/62} {तीनों काि में सदा रिन ेवािा मिादवे/आदम।}

    वाष्र्ये- वृधष्र् वंश से उत्पन्न अर्ाणत् ज्ञाधनयों के कुि से उत्पन्न-वृधष्र् का अर्ण ि-ैज्ञानवर्ाण करने वािा मेघ;

    वरुर्वंशी वाष्रे्य। {जैसेुः-1/41, 3/36}

  • 7

    वासदुवे- िन-सम्पधि दाता परमात्मा वसुदेव अर्ाणत् ज्ञानिन/वसु दाता धशवपुि मिादेव। {जैसेुः-7/19, 10/37}

    धवभुं- धव=धवशेर् रूप से+भूभवन ंवा-धवराट रूप में, धवशेर् रूप से प्रगट िोता ि।ै {जैसेुः-10/12}

    धवभधूत- धवधविं भवधत सृधिुः+अनया-धजससे धवशेर् प्रकार की सृधि उत्पन्न िोती ि।ै अधतमानवशधि, समृधद्ध

    व्यास {धव+आस्} -जो जीवन में ज्ञानमंर्नार्ण धवशेर् रूप से बैठता ि।ै {जैसेुः-18/75}

    यातयाम-ं गतुः उपभोगकािो यस्य तं-धजसका उपभोग काि समाप्त िो चुका ि।ै {जैसेुः-17/10}

    यधुिधिर- युधिुः+धस्र्रुः-िमणयुद्ध में धस्र्र रिने वािा परंब्रह्म, जो पांडवों में सबसे प्रिान िैं और िमणराज कि ेजात े

    िैं। {जैसेुः-1/16}

    अध्याय-1

    ितृराष्ट्र उवाच-िमणििे ेकुरुििे ेसमवतेा ययुतु्सवुः। मामकाुः पाण्डवािवै दकमकुवणतसञ्जय।। 1/1

    ितृराष्ट्र उवाच सजंय {िृत+राष्ट्र-धजसने पण्डा धशव अर्ाणत ्पाण्डु के पााँच उगधियों में गन्य अल्पसंख्यक 5 पाण्डवों

    की राज्य-संपधि को नोटों स ेवोटों वािी बेकायद ेप्रजातिं सरकार द्वारा िर धिया ि,ै ऐस े

    अन्याय से एकधित हुए िन, पद, मान-मतणब ेऔर जनबि के मद में अज्ञानान्िकार में पूरे िी

    अंिे हुए पंूजीवादी} ितृराष्ट्र न ेकिा- ि ेसजंय! {सं+जय}

    िमणििे ेकुरुििे े {इस तमोगुर्ी तामसी कधियुग-अंत में चि रि ेहिद-ूमुधस्िमादद ‘‘सवणिमाणन् पररत्यज्य’’ (गीता 18-

    66) के अनुसार ढेरों साम्प्रदाधयक} िमों के यदु्धििे में {और उन िमों के आिार पर आडम्बररत}

    कमणकाण्डों के कमणििे में, {उन मठ-पंर्-संप्रदायों के धवशाि रूप में}

    समवतेा ययुतु्सवुः एकधित हुए {बाहुबि & तामसी बुधद्ध की हिसा पर उतारु} युद्ध के धिए उत्कंरठत

    मामकाुः पांडवािवै दकमकुवणत मरेे और पाण्डु के पुिों {कौरव और पाण्डवों} न ेक्या दकया?

    सजंय उवाच-दषृ््वा त ुपाण्डवानीकं व्यढंू दयुोिनुः तदा। आचायभं उपसङ्गम्य राजा वचन ंअब्रवीत।्। 1/2

    व्यढंू पांडवानीकं दषृ््वा त ुतदा व्यिूाकार {व्यवधस्र्त और धनयंधित} पाडंवों की सनेा को दखेकर तो

    राजा दयुोिनुः आचायभं {भ्रिाचारी दिुयुद्धकताण} दयुोिन न े{पधण्डत-धवद्वान} आचायण द्रोर् के

    उपसगंम्य वचन ंअब्रवीत ् पास जाकर {बड़ ेगवण से एक राजा की तरि अपने गुरु से यि} वचन बोिा-

    पश्य एता ंपाण्डुपिुार्ा ंआचायण मितीं चमू।ं व्यढूा ंद्रपुदपिुेर् तव धशष्यरे् िीमता।। 1/3

    आचायण तव िीमता आचायण! {धवकारी मानवधनर्षमत ढेर शास्त्रों का प्राचायण} अपन ेबधुद्धमान

    धशष्यरे् द्रपुदपिुेर् व्यढूा ंपाडुंपिुार्ा ं धशष्य द्रपुदपुि िृिद्युम्न द्वारा व्यिूरूप में सजाई गई पाण्डु-पिुों की

    एता ंमितीं चमू ंपश्य इस {र्ोड़ ेसमय में धनर्षमत} धवशाि {पवणताकार} सनेा को दधेखए।

    अि शरूा मिषे्वासा भीमाजुणनसमा यधुि। ययुिुानो धवराटि द्रपुदि मिारर्ुः।।1/4

    अि यधुि यिााँ {इस पाण्डवीय सेना में िृिद्युम्न िी निीं, बधल्क} युद्ध में {सभी कौरवों-कीचकों में}

    भीमाजुणनसमा मिषे्वासा {भयंकरकमी} भीम और अजुणन के समान मिािनिुाणरी {गदािारी & शस्त्रिारी},

    शरूा ययुिुानो शरूवीर {सत्यार्ण युद्धकताण सत्य ना0 जैसा सदा युद्ध-इच्छा वािा सात्यदक} ययुिुान

    च धवराटुः और {सृधि-वृि के धद्वदिीय बीज धवष्रु् जैसा मत्स्यदशे का राजा} धवराट

  • 8

    च मिारर्ुः द्रपुदुः तर्ा {द्रौपदीयज्ञकुण्ड का धनमाणता} मिारर्ी द्रपुद ि।ै {जैस ेउसका ऊाँ च पद पििे िी रु्ध्व िो?}

    ििृकेतुुः चदेकतानुः काधशराजि वीयणवान।् परुुधजत ्कुधन्तभोजि शबै्यि नरपङु्गवुः।। 1/5

    ििृकेतिु चदेकतानि वीयणवान ् ििृकेत ुऔर चदेकतान तर्ा बिवान ्{अमोघवीयण शंकर की नगरी}

    काधशराजुः पुरुधजत ्कुधन्तभोजुः काशी का राजा, {अनेक नगरों का धवजेता} पुरुधजत,् {यदवुंशी} कुधन्तभोज

    च नरपुगंवुः शबै्युः और मनषु्यों में श्रेि {धशव भगवान का पुि पुरुर्ोिम जैसे} शबै्य {िैं}।

    यिुामन्युि धवक्रान्त उिमौजाि वीयणवान।् सौभद्रो द्रौपदयेाि सवण एव मिारर्ाुः।। 1/6

    धवक्रान्त यिुामन्यिु वीयणवान ् {युद्धकिा में माननीय मिापराक्रमी} धवक्रमी यिुामन्य ुतर्ा वीयणवान

    उिमौजाुः सौभद्रो {उिम ओज वािे} उिमौजा, {रुद्र-भधगनी} सभुद्रा का पिु {अधभमन्यु}

    द्रौपदयेाि सवण एव मिारर्ाुः और द्रौपदी के {पााँचों} पुि-{य}े सब िी {िार्ी पर सवार जैस}े मिारर्ी िैं।

    अस्माकं त ुधवधशिा य ेताधन्नबोि धद्वजोिम। नायका मम सनै्यस्य सञ्ज्ज्ञार्भं तान्ब्रवीधम त।े। 1/7

    धद्वजोिम त्वस्माकं य ेधवधशिा ि ेधद्वजन्मा ब्राह्मर्ों में उिम! दर्र िमारे जो धवधशि {योद्धा िैं},

    ताधन्नबोि मम सनै्यस्य नायका उन्िें {भी आप} जान िीधजए। {वे} मरेी कौरव सनेा के नायक {िैं}।

    तान ्त ेसजं्ञार्भं ब्रवीधम उन्िें आपके पररज्ञानार्ण बताता हाँ; {धपतामि के बाद आप िी मिारर्ी िैं।}

    भवान ्भीष्मि कर्णि कृपि सधमधतञ्जयुः। अश्वत्र्ामा धवकर्णि सौमदधिस्तर्वै च।। 1/8

    भवान ्च भीष्मुः आप {स्वयं आचायण िैं िी} और भीष्मधपतामि

    च कर्णुः तर्ा कर्ण {जो सबसे पििे और ज़्यादा भी ज्ञान सुनता-सुनाता ि ैऔर ज्ञान-सूयण धशव रूपी सारर्ी

    की तरि पण्डा बाप का सबस ेबड़ा पुि िमण जैसा भी साधबत िो जाता ि।ै बाप का नाम भी अधि+रर्

    अर्ाणत् शरीर रूपी रर् का अधििाता सारर्ी ज्ञान-सूयणधशव।}

    च सधमहतजयुः और {आदद ना0 की तरि सारे संसार में एकमाि सदा यदु्ध में धवजयी} सधमहतजय,

    कृपुः च तर्ा एव {कुरू-राजपररवार में धनस्वार्ण (?) सेवा वािे} कृपाचायण, और उसी तरि {आपका धप्रय पुि}

    अश्वत्र्ामा {मन रूपी सपणमधर् का प्राप्तकताण} अश्वत्र्ामा, {दयुोिन के सामने िी कटािकताण और}

    धवकर्णि {चापिूस कर्ण की भााँधत द:ुशासन के भी धवपरीत स्वभाव वािा} धवकर्ण और

    सौमदधिुः {ज्ञानचंद्र कृष्र् उर्ण सतयुगी ना0 की पीढ़ी के ना0 में प्रवधि भूरर-2 प्रशंसनीय मिात्मा बुद्ध िी}

    सोमदि-पौि भूररश्रवा ि।ै {इस बात के संज्ञानार्ण AIVV-कोसण अधनवायण िै।}

    अन्य ेच बिवुः शरूाुः मदर् ेत्यिजीधवताुः। नानाशस्त्रप्रिरर्ाुः सव ेयदु्धधवशारदाुः।। 1/9

    अन्य ेच बिवुः शरूा मदर् ेजीधवताुः और भी अनके शरूवीर {जो धवशेर् रूप से} मरेे धिए अपन ेजीवन का

    त्यि सव ेनानाशस्त्र- त्याग करन ेवाि े{िैं}। {वे} सभी अनके {ज्ञान, अज्ञान}-शस्त्रों स े

    प्रिरर्ाुः यदु्धधवशारदाुः प्रिार करन ेवाि े{िैं तर्ा झूठे हिसक}-यदु्धकिा में धनपरु् {िैं}।

    अपयाणप्त ंतत ्अस्माकं बि ंभीष्माधभरधित।ं पयाणप्त ंत ुइद ंएतरे्ा ंबि ंभीमाधभरधित।ं। 1/10

    भीष्माधभरधित ंतत ्अस्माकं बि ं {समाज व सरकार में मिासम्माननीय} भीष्म स ेरधित वि िमारी सनेा

    अपयाणप्त ंत ुइद ंभीमाधभरधित ं अपार ि,ै जबदक {भेधड़ए जैस ेखदसू & रािसी वृधि के} भीम द्वारा रधित

  • 9

    एतरे्ा ंबि ंपयाणप्त ं इन {पाण्डुवों} की {अल्पसंख्यक} सनेा सीधमत ि।ै {अतुः जीत धनधित ि।ै}

    अयनरे् ुच सवरे् ुयर्ाभागमवधस्र्ताुः। भीष्ममेवाधभरिन्त ुभवन्तुः सवण एव धि।। 1/11

    च भवन्तुः सवण एव इसधिए आप सभी िोग {जो प्रजातंि राज्य के शासक िैं,}

    यर्ाभाग ंसवरे् ु अपन-े2 धवभागों के अनसुार, सब {पैदि-अश्व-गज-रर्ादद के अधिकाररयों जैस}े

    अयनरे् ुअवधस्र्ताुः धि मोचों पर डटे रिकर, धनुःसन्दिे {जन-िन-वैभव-बाहुबि द्वारा अन्याय से भी}

    भीष्म ंएव अधभरिन्त ु सब ओर स ेभीष्म की िी रिा करें; क्योंदक वोटदाता प्रजाजनों में इन संन्याधसयों का बहुत मान-

    सम्मान ि।ै {निीं तो पंूजीपधत िृतराष्ट्रों द्वारा चिाई गई ------ बेकायद ेप्रजातंि सरकार िम

    अिर्षमयों के िार्ों से धनकि जाएगी और सािात् भगवान द्वारा गीता-ज्ञान से धसखाए राजयोग

    द्वारा इधतिास प्रधसद्ध जन्म-जन्मांतर के राजाओं का राज्य जल्दी िी दर्र से आ जाएगा।}

    तस्य सञ्जनयन ्िर्भं कुरुवदृ्धुः धपतामिुः। हसिनाद ंधवनद्य उच्चुैः शङ्ख ंदध्मौ प्रतापवान।्। 1/12

    तस्य िर्भं सजंनयन ्कुरुवदृ्धुः उस {दयुोिन} को िर्ण उत्पन्न करात ेहुए, कौरवों में वयोवदृ्ध {सम्माननीय}

    प्रतापवान ्धपतामिुः उच्चुैः धवनद्य प्रतापी धपतामि भीष्म न ेजोर स े {िाउडस्पीकर की आवाज़ द्वारा ज्ञान-सूयण के

    प्रकाश को ढकने वािे बादिों-जैसा} गरजकर, {हिसा करने वाि}े

    हसिनाद ं {जानवरों की दधुनया में} शरे-जसैी दिाड़ मारत ेहुए, {अपन ेजगद्गुरु के नशे में}

    शंख ंदध्मौ {भगवान सवणव्यापी की दीघणकािीन अज्ञानता का मुख रूपी} शखं बजाया।

    ततुः शङ्खाि भयेणि पर्वानकगोमखुाुः। सिसा एव अभ्यिन्यन्त स शब्दुः तमुिुुः अभवत।्। 1/13

    ततुः शंखाि भयेणुः तब {अनेक प्रकार के तुंड-े2 मधतर्षभन्ना मुखों वािे ज्ञान}-शंख और भरेरयााँ

    पर्वानक च गोमखुाुः ढोि, नगाड़ ेऔर रर्हसगा {जैसे ज्ञान-अज्ञान के बाज,े समाचार-पि-पधिकाएाँ, रेधडयो,

    टी0वी0 चैनल्स आदद मीधडया, समाज और सरकार के िोगों की आवाज़ें}

    सिसवैाभ्यिन्यन्त सुः तमुिुुः शब्दोऽभवत ् अचानक िी िोन ेिगीं। उनका बड़ा भारी शोरगिु िोन ेिगा।

    ततुः श्वतेुैः ियुैः यिेु मिधत स्यन्दन ेधस्र्तौ। मािवुः पाण्डविवै ददव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुुः।।1/14

    ततुः श्वतेुैः ियुैः यिेु मिधत तब 4 श्वतेाश्वों के मनरूप {संगरठत चतुमुणखी ब्रह्मा} स ेयिु मिान

    स्यन्दन ेधस्र्तौ मािवुः च {शरीर रूपी} रर् में बठेै हुए माता पावणती-पधत {धशवबाबा} और

    पाण्डवुः एव ददव्यौ शखंौ प्रदध्मतुुः पाण्डव अजुणन न ेभी {अपने} ददव्य {मुख रूपी} शंख बजाए।

    पाञ्चजन्य ंहृर्ीकेशो दवेदि ंिनञ्जयुः। पौण्ड्र ंदध्मौ मिाशङ्ख ंभीमकमाण वकृोदरुः।। 1/15

    अनन्तधवजय ंराजा कुन्तीपिुो यधुिधिरुः। नकुिुः सिदवेि सघुोर्मधर्पषु्पकौ।।1/16

    हृर्ीकेशो पाचंजन्य ं इधन्द्रयों के स्वामी {अमोघवीयण धशवबाबा} न े{पंचजन+ञ्ज्य (दिानो)} पाचंजन्य,

    िनजंयुः दवेदि ं ज्ञानिनजतेा {िोन ेसे योगबि द्वारा धवश्वधवजेता अजुणन} न ेइंद्रदवे-प्रदि ‘दवेदि’,

    वकृोदरुः भीमकमाण {सैकड़ों कौरवों-कीचकों-रािसों के अकेि ेित्यारे} भयकंर कमण करन ेवाि े{और} भेधड़ए

    जैसे {खदसू} पेट वाि ेभीम न े{मिाधवनाशकारी व्याघ्र की दिाड़ में}

    पौण्ड्र ंमिाशखं ंकुन्तीपिुो पौण्ड्र नामक मिाशखं, कंुती माता के पिु {जो अहिसावादी िमणयोद्धा र्े, उन}

  • 10

    राजा यधुिधिरुः अनन्तधवजय ं {सत्यवादी मुख वािे} राजा यधुिधिर न े{सदा धवजयदाता} अनन्तधवजय,

    नकुिुः {मिाधवर्ैिे व्यधभचारी धवदधेशयों प्रधत न्यौिा-जैसे} नकुि {जो न दशेी, न धवदशेी रि}े

    च सिदवेुः और {नानक-जसैे सदा दवेात्माओं के सियोगी & ह्यूमन गौशािा रिक} सिदवे न े

    सघुोर्ा {क्रमशुः मनरूप अश्वों का वशकताण तर्ा गजगोर जैसी घोर्र्ा-जैसा} सघुोर् {और}

    मधर्पुष्पकौ दध्मौ {आत्मा रूपी मधर् जैसी गुरुद्वारी वार्ी बोिन ेवािा मुख रूपी} मधर्पुष्पक {शंख} बजाए।

    काश्यि परमषे्वासुः धशखण्डी च मिारर्ुः। ििृद्यमु्नो धवराटि सात्यदकिापराधजतुः।। 1/17

    द्रपुदो द्रौपदयेाि सवणशुः पधृर्वीपत।े सौभद्रि मिाबाहुुः शङ्खान ्दध्मुुः परृ्क्परृ्क्।। 1/18

    परमषे्वासुः काश्यि {दधैिक पुरुर्ार्ण रूपी} बड़ा िनरु् िारर् करन ेवाि ेकाधशराज न ेऔर {ऐसे िी}

    मिारर्ुः {दिेांकारी िार्ी-जैसी मिाकािी रूपा} मिारर्ी {चोटी की बीजरूपा ब्राह्मर्ी सो रुद्रार्ी}

    धशखण्डी च ििृद्यमु्नो धशखण्डी न ेएव ं{ढीठ और धनिणज्ज पांडवों का सेनापधत} ििृद्युम्न न,े

    धवराटि अपराधजतुः {धवष्रु्रूप जैसा} धवराट एव ं{दकसी से पराधजत न िोने वािा} अपराधजत,

    सात्यदकि द्रपुदो द्रौपदयेाि {सदा सत्य के सार्ी} सात्यदक ने तर्ा {धनधित िी र्ध्ुव पद पाने वािे कांधपल्य

    नगर के राजा, जो धमिद्रोिी भी र्ा, उस} द्रपुद न ेऔर द्रौपदी के पााँचों पिुों ने

    मिाबाहुुः सौभद्रि

    पृधर्वीपत ेसवणशुः एवं मिाबाहु सभुद्रापिु {जो अपने मामा तर्ा अिौदकक बाप को िेकर बड़ा

    अधभमानी र्ा ऐस}े अधभमन्यु न,े ि ेिरर्ीश्वर! चारों ओर {की ददशाओं में}

    परृ्क्-2 शंखान ्दध्मुुः अिग-2 {प्रकार के ईश्वरीय ज्ञान के धमधश्रत मुख रूपी} शंख बजाए।

    स घोर्ो िातणराष्ट्रार्ा ंहृदयाधन व्यदारयत।् नभि पधृर्वीं चवै तमुिुो व्यननुादयन।्। 1/19

    स घोर्ो नभि पधृर्वीं तमुिुो व्यननुादयन ् उस {ज्ञान-}घोर् स ेआकाश* और* पथृ्वी जोर स ेगूाँजन ेिग,े

    चवै िातणराष्ट्रार्ा ं और {पूाँजीवादी} ितृराष्ट्र-पुिों {कााँग्रेसी-कौरवीय नतेाओं} के

    हृदयाधन व्यदारयत ् हृदय िी धवदीर्ण िो गए। {और इसीधिए ढेरों के िाटणरे्ि िो गए।}

    *{आकाशवार्ी कें द्र और वेबसाइ्स} *{रेधडयोज़, टैपरेकॉर्डसण, टी.बीज़, िाउडस्पीकसण आदद}

    अर् व्यवधस्र्तान ्दषृ््वा िातणराष्ट्रान ्कधपध्वजुः। प्रविृ ेशस्त्रसम्पात ेिनुुः उद्यम्य पाण्डवुः।। 1/20

    अर् कधपध्वजुः तब {िनुमान/कधप की चंचि धवजय-पताका से धचधह्नत रर् वाि}े कधपध्वज

    पाण्डवुः िातणराष्ट्रान ् पाण्डव-अजुणन न ेितृराष्ट्र-पिु {कौरवीय नेताओं} को {िड़बड़ी में आकर},

    व्यवधस्र्तान ्दषृ््वा प्रविृ े धवशरे् रूप स ेसधज्जत {और} प्रविृ हुआ दखेकर, {ज्ञान-योग-िारर्ा के}

    शस्त्रसम्पात ेिनुुः उद्यम्य {ज्ञान}-शस्त्र चिान ेके समय {अपना दधैिक पुरुर्ार्ण रूपी} िनरु् उठा धिया।

    हृर्ीकेश ंतदा वाक्यधमदमाि मिीपत।े

    अजुणन उवाच:-सनेयोरुभयोमणध्य ेरर् ंस्र्ापय मऽेच्यतु।। 1/21

    मिीपत ेतदा हृर्ीकेश ं ि ेराजन!् उस समय {मुकरणर रर् द्वारा प्रमाधर्त} परमपधवि धशवबाबा स े

    वाक्यधमदमाि अच्यतु म ेरर् ं यि वाक्य किा- ि ेअमोघ वीयण {ि ेधशवबाबा}! मरेे {शरीर रूपी} रर् को

    उभयोुः सनेयोुः मध्य ेस्र्ापय दोनों सनेाओं के मध्य में {इस तरि गुप्तरूप से सरुिापूवणक} खड़ा करो,

  • 11

    यावत ्एतान ्धनरीिऽेि ंयोद्िकुामानवधस्र्तान।् कैमणया सि योद्धव्यमधस्मन ्रर्समदु्यम।े। 1/22

    यावत ्अि ंएतान ्धनरीि े जिााँ स ेमैं {सियोधगयों सधित} इन {िोगों} को धनरीिर् कर सकूाँ {दक}

    योद्िकुामान ्अवधस्र्तान ्कैुः सि {ज्ञान-}यदु्ध के धिए उत्सकुतापूवणक खड़े हुए दकन {धवरोधियों के} सार्

    मया अधस्मन ्रर्समदु्यम ेयोद्धव्य ं मुझ ेइस {िमण-अिमण अर्वा सत्य-असत्य के} यदु्ध में िड़ना ि।ै

    योत्स्यमानानविेऽेि ंय ेएतऽेि समागताुः। िातणराष्ट्रस्य दबुुणद्धुेः यदु्ध ेधप्रयधचकीर्णवुः।। 1/23

    य ेएत ेअि यदु्ध ेदबुुणद्धुेः जो य ेराजा िोग यिााँ {सत्य-असत्य के} यदु्ध में दिुबधुद्ध वाि े

    िातणराष्ट्रस्य धप्रयधचकीर्णवुः दयुोिन का धप्रय {कल्यार्} करन ेकी इच्छा वाि े{कधियुग के अंत में}

    समागताुः योत्स्यमानान ्अि ंअविे े एकधित हुए िैं, {उन सभी िमों के इन} योद्धाओं को मैं दखेूाँ तो।

    सजंय उवाच-एव ंउिो हृर्ीकेशो गुडाकेशने भारत। सनेयोरुभयोमणध्य ेस्र्ापधयत्वा रर्ोिमं।।1/24

    भारत ि ेभरतवशंी, {भौधतकवादी धवनाशी िन-संपधि के पंूजीवादी} राजा ितृराष्ट्र!

    गुडाकेशने एवम ्उिो धनद्रा को जीतन ेवाि ेज्ञानिनाजणनकताण अजुणन के ऐसी {उत्साि की बात} किन ेपर

    हृर्ीकेशो उभयोुः सनेयोुः इंदद्रयों पर सदा धवजयी {धशवबाबा ने} दोनों {उिरी दवैी & दधिर्ी आसरुी} सनेाओं के

    मध्य ेरर्ोिम ंस्र्ापधयत्वा बीच में {अजुणन का धशवप्रधवि मुकरणर} श्रिे {शरीर रूपी} रर् स्र्ाधपत दकया।

    भीष्मद्रोर्प्रमखुतुः सवरे्ा ंच मिीधिता।ं उवाच पार्ण पश्य एतान ्समवतेान ्कुरून ्इधत।।1/25

    च भीष्मद्रोर्प्रमखुतुः सवरे्ा ंमिीधिता ंइधत और भीष्म-द्रोर् जसै ेमखु्य-2 सब राजाओं के सामन ेऐस े

    उवाच पार्ण! समवतेान ् किा- ि ेपथृ्वी के प्रर्म राजा {आदम/अजुणन पृथ्वीपधत पृर्ु}! एकि हुए

    एतान ्कुरून ्पश्य इन {रामराज्य के बिाने रावर्राज्य िाने वाि ेकमाणधभमानी} कौरवों को दखेो।

    ति अपश्यत ्धस्र्तान ्पार्णुः धपतनॄर् धपतामिान।् आचायाणन ्मातिुान ्भ्रातनॄ ्पिुान ्पौिान ्सखीन ्तर्ा।।1/26

    श्वशरुान ्सहुृदिवै सनेयोरुभयोरधप।

    धस्र्तान ्धपतनॄ ्अर् खड़ ेहुए धपतपृि के {आसुरी िमों के बीज} पवूणजों को, उसी तरि {धवपि में}

    धपतामिानाचायाणन्पिुान ्मातिुान्भ्रातनॄ ् प्रधपता रूप बाबाओं को, धवद्वानाचायों, पुिों, मामाओं, भाइयों,

    पौिान्सखीन ्श्वशरुाञ्च तर्ा सहुृदुः पौिों, धमिों, श्वशरुों और उसी तरि सग-ेसम्बधन्ियों को

    अप्यवे उभयोुः सनेयोुः धस्र्तान ्ति अपश्यत ् भी स्पितुः दोनों सनेाओं के बीच धस्र्त हुआ विााँ दखेा।

    तान ्समीक्ष्य स कौन्तयेुः सवाणन ्बन्िनू ्अवधस्र्तान।्। 1/27

    कृपया परया आधविो धवर्ीदन ्इदम ्अब्रवीत।्

    स कौन्तयेुः अवधस्र्तान ्तान ्सवाणन ् वि कुन्ती माता का पिु {िमणयुद्ध िते}ु तयैार खड़ ेहुए उन सब

    बन्िनू ्समीक्ष्य परया कृपया सबंधन्ियों की समीिा करके, {सम्बधन्ियों के मोि में} बड़ी करुर्ा स े

    आधविो धवर्ीदन ्इदमब्रवीत ् भरकर, {उनके धवनाश की स्मृधत आते िी} धवर्ाद करत ेहुए यि बोिा-

    अजुणन उवाच- दषृ््वा इमम ्स्वजनम ्कृष्र् ययुतु्समु ्समुपधस्र्तम।्। 1/28

    सीदधन्त मम गािाधर् मखु ंच पररशुष्यधत। वपेर्ुि शरीरे म ेरोमिर्णि जायत।े। 1/29

    कृष्र् इम ंसमपुधस्र्त ंस्वजन ं ि ेआकर्णर्मतूण {धशवबाबा}! इन सामन ेखड़ ेहुए {दधैिक} सग-ेसबंधंियों को

  • 12

    ययुतु्सु ंदषृ््वा मम गािाधर् यदु्ध करन ेके धिए उत्सकु दखेकर मरेे अगं {दधैिक िगाव के कारर्}

    सीदधन्त च मखु ंपररशषु्यधत च म े धशधर्ि िो रि ेिैं और मखु अत्यन्त सखू रिा ि ैतर्ा {धनराशा से} मरेे

    शरीरे वपेर्ुि रोमिर्णुः जायत े शरीर में कम्प और रोंगटे खड़ ेिो रि ेिैं। {जैसे आत्मबि िीर् िो गया ि।ै}

    गाण्डीव ंस्रसंत ेिस्तात्त्वक्चवै पररदह्यत।े न च शक्नोधम अवस्र्ातु ंभ्रमतीव च म ेमनुः।।1/30

    धनधमिाधन च पश्याधम धवपरीताधन केशव।

    केशव गाण्डीवम ् ि ेब्रह्मा के स्वामी {धिमूर्षत धशव बाबा}! गाडंीव {नामक दधैिक पुरुर्ार्ण का} िनरु्

    िस्तात ्स्रसंत ेच त्वक् एव {बुधद्ध रूपी} िार् स ेधगरा जा रिा ि ैतर्ा {बुखार आने जसैी} त्वचा भी

    पररदह्यत ेच अवस्र्ातु ंच सब ओर स े{मानों} दिक रिी ि ैऔर {इतना धशधर्ि हाँ दक} खड़ ेरिन ेमें भी

    न शक्नोधम म ेमनुः भ्रमतीव च अशि हाँ। मरेा {कककतणव्यधवमूढ़ बना} मन चकरा-सा रिा ि ैऔर

    धवपरीताधन धनधमिाधन पश्याधम {ऐसा मोिान्िकार दक} धवपरीत {र्िसूचक} शकुन {मैं} दखे रिा हाँ।

    न च श्रयेुः अनपुश्याधम ित्वा स्वजनम ्आिव।े। 1/31

    न काङ्ि ेधवजय ंकृष्र् न च राज्य ंसखुाधन च।

    आिव ेस्वजन ं िमणयुद्ध में {धविर्षमयों में कन्वटण हुए} अपन ेसग-ेसबंधंियों को {धिन्द-ूमुधस्िम�