मूर्ति कला

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मरू्ति�� कला

ब्रज डि�स्कवरी एक ज्ञानकोशयहां जाए:ं भ्रमण, खोज

राजकीय संग्रहालय, मथुराGovt. Museum, Mathura

मूर्ति�� कला : मूर्ति� कला 2 : मूर्ति� कला 3 : मूर्ति� कला 4 : मूर्ति� कला 5 : मूर्ति� कला 6

मूर्ति�� कला / संग्रहालय / Sculptures / Museum

कलाकृति�यों की प्राप्ति�� और उनका संग्रहमथुरा की कलाकृडि�यों में पत्थर की प्रडि�माओं �था प्राचीन वास्�ुखण्�ों के अडि�रिरक्त मिमट्टी के खिखलौनों का भी समावेश हो�ा है। इन सबका प्रमुख प्राप्ति9� स्थान मथुरा शहर और उसके आसपास का के्षत्र है। व�@मान मथुरा शहर को देखने से स्पष्ट हो�ा है डिक यह सारा नगर टीलों पर बसा है। इसके आसपास भी लगभग 10 मील के परिरसर में अनेक टीले हैं। इनमें से अमिGक�र टीलों के गभ@ से माथुरी कला की अत्युच्च कोटिट की कलाकृडि�यां प्रकाश में आयी हैं।

कंकाली टीला, भू�ेश्वर टीला, जेल टीला, स9�र्तिL टीला आटिद ऐसे ही महत्त्व के स्थान हैं। इन टीलों के अडि�रिरक्त कई कंुओं ने भी अपने उदरों में मूर्ति� यों को आश्रय दे रखा है। मुसलमानों के आक्रमण के समय डिवनाश के �र से बहुGा मूर्ति� यों को उनमें फें क टिदया जा�ा था। इसी प्रकार यमुना के बीच से अनेक प्रकार की प्रडि�माए ंप्रा9� हुई हैं। महत्त्व की बा� �ो यह है डिक जहां कुLाण और गु9� काल में अनेक डिवशाल डिवहार, स्�ूप, मन्दिVदर �था भवन डिवद्यमान थ,े वहां उनमें से अब एक भी अवशिशष्ट नहीं है, सबके सब Gराशायी होकर पृथ्वी के गभ@ में समा गये हैं।

ति�षय सूची

[शि[पाए]ं 1 कलाकृडि�यों की प्राप्ति9� और उनका संग्रह 2 प्रथम मूर्ति� 3 जनरल कनिन घम 4 ऍफ़ एस ग्राउज 5 संग्रहालय 6 पुराना संग्रहालय 7 प्रारम्भ से कुLाण काल 8 कुLाण काल 9 कुLाणकला की डिवशेL�ाएं

10 टीका - टिट9पणी

प्रथम मूर्ति��माथुरीकला की मूर्ति� के प्रथम दश@न और उसकी पहचान सन् 1836 में हुई। आजकल यह कलकत्ते के संग्रहालय में है। उस समय उसे सायलेनस के नाम से पहचाना गया था। वस्�ु�: यह आसवपान का दृश्य है। इसके बाद सन् 1853 में जनरल कनिन घम ने कटरा केशवदेव से कई मूर्ति� यां व लेख प्रा9� डिकये। उVहोंने पुन: सन् 1862 में इसी स्थान से गु9� संव� 230 (सन् 549-50) में बनी हुई यशा डिवहार में स्थाडिप� सवाeगसुVदर बुद्ध की मूर्ति� खोज डिनकाली। यह इस समय लखनऊ के संग्रहालय में है। इसी बीच सन् 1860 में कलक्टर की कचहरी के डिनमा@ण के शिलए जमालपुर टीले को सम�ल बनाया गया जहां डिकसी समय दमिGकण@ नाग का मंटिदर व हुडिवष्क डिवहार था। इस खुदाई से मूर्ति� यां, शिशलापट्ट, स्�म्भ, वेटिदकास्�म्भ, स्�म्भाGार आटिद के रूप में मथुरा-कला का भण्�ार प्रा9� हुआ। इसी स्थान से इस संग्रहालय में प्रर्दिद श� सवlत्कृष्ट गु9�कालीन बुद्ध मूर्ति� भी मिमली। सन् 1869 में श्री भगवानलाल इVद्राजी को गांGार कला की स्त्रीमूर्ति� और सुप्रशिसद्ध सिस हशीL@ मिमला।

जनरल कनिन�घमजनरल कनिन घम ने सन् 1871 में पुन: मथुरा यात्रा की और इस समय उVहोंने दो अVय टीलों की, कंकाली टीले और चौबारा टीले की खुदाई कराई। कटरा केशवदेव से दक्षिक्षण में लगभग आGे मील के अV�र पर बसे हुए कंकाली टीले ने मानों मथुरा कला का डिवशाल भण्�ार ही खोल टिदया। जहां कभी जैनों का प्रशिसद्ध स्�ूप, बौद्ध स्�ूप था। कनिन घम साहब ने यहाँ से कडिनष्क के राज्य-संव� 5 से लेकर वासुदेव के राज्य संवत्सर 18 �क की अक्षिभशिलखिख� प्रडि�माए ंहस्�ग� कीं। चौबारा टीला वस्�ु�: 12 टीलों का एक समूह है जहां पर कभी बौद्धों के स्�ूप थे। यहीं के एक टीले से सोने का बना एक Gा�ु-करण्�क भी मिमला था। कनिन घम को एक दूसरे स्�ूप से एक और Gा�ू-करण्�क मिमला जो इस समय कलकत्ते के संग्रहालय में है।

ऍफ़ एस ग्राउज

ऍफ़ एस ग्राउज

क्षिभक्षु यशटिदन्न द्वारा डिनर्मिम � स्थाडिप� बुद्ध प्रडि�मा, मथुराBuddha

ग्राउज ने सन् 1872 में डिनकटस्थ पाशिलखेड़ा नामक स्थान से यहाँ की दूसरी महत्त्वपूण@ प्रडि�मा आसवपायी कुबेर को प्रा9� डिकया था। सन् 1888 से 91 �क �ाक्टर फ्यूहरर ने लगा�ार कंकाली टीले की खुदाई कराई। पहले ही वL@ में 737 से अमिGक मूर्ति� यां मिमलीं जो लखनऊ के राज्य संग्रहालय में भेज दी गयीं। सन् 1836 के बाद सन् 1909 �क डिफर मथुरा की मूर्ति� यों को एकडित्र� करने का कोई उल्लेखीनय प्रयास नहीं हुआ। सन् 1909 में रायबहादुर पं. राGाकृष्ण ने मथुरा शहर और गांव में डिबखरी हुई अनेक मूर्ति� यों को एकडित्र� डिकया। फरवरी सन् 1912 में उVहोंने माँट गांव के टोकरी या इटागुरी टीले की खुदाई कराई और कुLाण सम्राट वेम , कडिनष्क और चष्टन की मूर्ति� यों को अVयाVय प्रडि�माओं के साथ प्रा9� डिकया। सन् 1915 में नगर के और आसपास के गांव के कई कुए ंसाफ डिकये गये और उनमें से लगभग 600 मूर्ति� यां मिमलीं न्दिजनमें से अमिGक�र ब्राह्मण Gम@ से सम्बन्धि�� हैं। कुLाण कलाकृडि�यों के इस संग्रह में मथुरा के पास से बहने वाली यमुना नदी का भी योगदान कम नहीं है। ईसवी सन की प्रथम श�ी के यूप स्�म्भों से लेकर आज �क उसके उदर से डिक�नी ही बहुमूल्य कलाकृडि�यां प्रकाश में आयी हैं।

संग्रहालयमथुरा का यह डिवशाल संग्रह देश के और डिवदेश के अनेक संग्रहालयों में बंट चुका है। यहाँ की सामग्री लखनऊ के राज्य संग्रहालय में, कलकत्ते के भार�ीय संग्रहालय में, बम्बई और वाराणसी के संग्रहालयों में �था डिवदेशों में मुख्य�: अमेरिरका के बोस्टन संग्रहालय में, पेरिरस व जरुिरख के संग्रहालयों व लVदन के डिब्रटिटश संग्रहालय में प्रदर्शिश � है। परV�ु इसका सबसे बड़ा भाग मथुरा संग्रहालय में सुरक्षिक्ष� है। इसके अडि�रिरक्त कडि�पय व्यशिक्तग� संग्रहों मे भी मथुरा की कलाकृडि�यां हैं। मथुरा का यह संग्रहालय यहाँ के �त्कालीन न्दि�लाGीश श्री ग्राउज द्वारा सन् 1874 में स्थाडिप� डिकया गया था।

पुराना संग्रहालय

राजकीय जैन संग्रहालय, मथुराJain Museum, Mathura

प्रारम्भ में यह संग्रहालय स्थानीय �हसील के पास एक [ोटे भवन में रखा गया था। कु[ परिरव�@नों के बाद सन् 1881 में उसे जन�ा के शिलए खोल टिदया गया। सन् 1900 में संग्रहालय का प्रब� नगरपाशिलका के हाथ में टिदया गया। इसके पांच वL@ बाद �त्कालीन पुरा�त्त्व अमिGकारी �ा. ज.े पी. एच. फोगल के द्वारा इस संग्रहालय की मूडि�यों का वग�करण डिकया गया और सन् 1910 में एक डिवस्�ृ� सूची प्रकाशिश� की गई। इस काय@ से संग्रहालय का महत्त्व शासन की दृमिष्ट में बढ़ गया और सन् 1912 में इसका सारा प्रब� राज्य सरकार ने अपने हाथ में ले शिलया। सन् 1908 से रायबहादुर पं. राGाकृष्ण यहाँ के प्रथम सहायक संग्रहाध्यक्ष के रूप में डिनयुक्त हुए, बाद में वे अवै�डिनक संग्रहाध्यक्ष हो गये। अब संग्रहालय की उन्नडि� होने लगी, न्दिजसमें �त्कालीन पुरा�त्त्व डिनदेशक सर जॉन माश@ल और रायबहादुर दयाराम साहनी का बहु� बड़ा हाथ था सन् 1929 में प्रदेशीय शासन ने एक लाख [त्तीस ह�ार रुपया लगाकर स्थानीय �ैन्धि�यर पाक@ में संग्रहालय का सम्मुख भाग बनवाया और सन् 1930 में यह जन�ा के शिलए खोला गया। इसके बाद डिब्रटिटश शासन काल में यहाँ कोई नवीन परिरव@�न नहीं हुआ।

भार� का शासन सूत्र सन् 1947 में जब अपने हाथ में आया �ब से अमिGकारिरयों का ध्यान इस सांस्कृडि�क �ीथ@ की उन्नडि� की ओर भी गया। डिद्व�ीय पंचवL�य योजना में इसकी उन्नडि� के शिलए अलग Gनराशिश की व्यवस्था की गयी और काय@ भी प्रारम्भ हुआ। सन् 1958 से काय@ की गडि� �ीव्र हुई। पुराने भवन की [� का नवीनीकरण हुआ और साथ ही साथ सन् 1930 का अGूरा बना हुआ भवन पूरा डिकया गया। व�@मान स्थिस्थडि� में अष्टकोण आकार का एक सुVदर भवन उद्यान के बीच स्थिस्थ� है। इनमें 34 फीट चौड़ी सुदीघ@ दरीची बनाई गई है और प्रत्येक कोण पर एक [ोटा Lट्कोण कक्ष भी बना है। शीघ्र ही मथुरा कला का यह डिवशाल संग्रह पूरे वैभव के साथ सुयोग्य वैज्ञाडिनक उपकरणों की सहाय�ा से यहाँ प्रदर्शिश � होगा। शासन इससे आगे बढ़ने की इच्छा रख�ा है और परिरस्थिस्थडि� के अनुरूप इस संग्रहालय में व्याख्यान कक्ष, गं्रथालय, दश@कों का डिवश्राम स्थान आटिद की

स्व�ंत्र व्यवस्था की जा रही है। इसके अडि�रिरक्त कला पे्रमिमयों की सुडिवGा के शिलए मथुरा कला की प्रडि�कृडि�यां और [ायाशिचत्रों को लाग� मूल्य पर देने की व�@मान व्यवस्था में भी अमिGक सुडिवGाए ंदेने की योजना है।

प्रारम्भ से कुषाण काल

महाक्षत्रप राजुल की अग्रमडिहLी महाराज्ञी कम्बोन्दिजका प्राप्ति9� स्थान-स9�ऋडिL टीला, मथुरा , गा�ार कला, राजकीय संग्रहालय, मथुराQueen Kambojika

यह आश्चय@ का डिवLय है डिक मथुरा से मौय@काल की उत्कृष्ट पाLाणकला का कोई भी उदाहरण अब �क प्रा9� नहीं हुआ है। मौय@काल का एक लेखांडिक� स्�ंभ अजु@नपुरा टीले से मिमला भी था पर अब इसका भी प�ा नहीं है।

चीनी यात्री हुएनसांग के लेखानुसार यहाँ पर अशोक के बनवाये हुये कु[ स्�ूप 7 वीं श�ाब्दी में डिवद्यमान थे। परV�ु आज हमें इनके डिवLय में कु[ भी ज्ञान नहीं है। लोक-कला की दृमिष्ट से देखा जाय �ो मथुरा और उसके आसपास के भाग में इसके मौय@कालीन नमूने डिवद्यमान हैं। लोक-कला की ये मूर्ति� यां यक्षों की हैं। यक्षपूजा �त्कालीन लोकGम@ का एक अक्षिभन्न अंग थी। संस्कृ�, पाली और प्राकृ� साडिहत्य यक्षपूजा के उल्लेखों से भरा पड़ा है। पुराणों के अनुसार यक्षों का काय@ पाडिपयों को डिवघ्न करना, उVहें दुग@डि� देना और साथ ही साथ अपने के्षत्र का संरक्षण करना था।* मथुरा से इस प्रकार के यक्ष और यक्षक्षिणयों की [ह प्रडि�माए ंमिमल चुकी हैं, [1] न्दिजनमें सबसे महत्त्वपूण@ परखम नामक गांव से मिमली हुई अक्षिभशिलखिख� यक्ष-मूर्ति� है। Gो�ी और दुपट्टा पहने हुये सू्थलकाय माक्षिणभद्र यक्ष खडे़ हैं। इस यक्ष का पूजन उस समय बड़ा ही लोकडिप्रय था। इसकी एक बड़ी प्रडि�मा मध्यप्रदेश के पवाया गांव से भी मिमली है, जो इस समय ग्वाशिलयर के संग्रहालय में है। मथुरा की यक्षप्रडि�मा भार�ीय कला जग�् में परखम यक्ष के नाम से प्रशिसद्ध है। शारीरिरक बल और सामथ्य@ की अक्षिभव्यंजक प्राचीनकाल की ये यक्षप्रडि�माए ंकेवल लोक कला के उदाहरण की नहीं अडिप�ु उत्तर-काल में डिनर्मिम � बोमिGसत्त्व, डिवष्णु, कुबेर, नाग आटिद देवप्रडि�माओं के डिनमा@ण की पे्ररिरकाए ंभी हैं।

शंुग और शक क्षत्रप काल में पहुंच�े-पहुंच�े मथुरा को कला-केVद्र का रूप प्रा9� हो गया। जैनों का देवडिनर्मिम � स्�ूप, जो आज के कंकाली टीले पर खड़ा था। उस काल में डिवद्यमान था [2]। इस समय के �ीन लेख, न्दिजनका सम्ब� जैन Gम@ से है, अब �क मथुरा से मिमल चुके हैं * दशम सग@, 58 में। यहाँ से इस काल की कई कलाकृडि�यां भी प्रा9� हो चुकी हैं न्दिजनमें बोमिGसत्त्व की डिवशाल प्रडि�मा (लखनऊ संग्रहालय, बी 12 बी,), अमोडिहनी का शिशलापट्ट (लखनऊ संग्रहालय, ज.े1), कई वेटिदका स्�म्भ न्दिजनमें से कु[ पर जा�क कथाएं �था यक्षक्षिणयों की प्रडि�माए ंउत्कीण@ हैं, प्रमुख हैं।

इस समय की कलाकृडि�यों को देखने से प�ा चल�ा है डिक इस कला पर भरहू� और साँची की डिवशुद्ध भार�ीय कला का प्रभाव स्पष्ट है।* शंुगकालीन मथुरा कला की डिनम्नांडिक� डिवशेL�ाए ंडिगनाई जा सक�ी हैं :

1. मूर्ति� यां अमिGक गहरी व उभारदार न होकर चपटी हैं। उनका चौ�रफा अंकन भी मथुरा कला का वैशिशष्ट्य है, जो परखम यक्ष प्रडि�मा से ही मिमलने लग�ा है।

2. स्त्री और पुरुLों की मूर्ति� यों में अलंकारों का बाहुल्य है। 3. वस्त्रों में [रहरापन न होकर एक प्रकार का भारीपन है। 4. भाव प्रदश@न की और कोई ध्यान नहीं टिदया गया है, अ�: शाप्तिV�, गाम्भीय@, कु�ूहल, प्रसन्न�ा, वैदुष्य

आटिद भावों का इन मूर्ति� यों के मुखों पर सव@था अभाव है। 5. इस काल की मानव मूर्ति� यों में बहुGा आंखों की पु�शिलयां नहीं बनाई गई हैं। 6. न्धिस्त्रयों के केशसंभार बहुGा, पुष्पमालाओं, मक्षिणमालाओं �था कीम�ी वस्त्रों से सुशोक्षिभ� रह�े हैं। 7. पुरुLों की पगडिड़यां भी डिवशेL प्रकार की हो�ी हैं। बहुGा वे दोनों ओर फूली हुई टिदखलाई पड़�ी हैं और

बीच में एक बड़ी-सी फुल्लेदार कलगी से सुशोक्षिभ� रह�ी हैं। कानों के पास पगड़ी के बाहर झांकने वाले केश भी खू़ब टिदखालाई पड़�े हैं।

8. इस काल की सबसे बड़ी डिवशेL�ा यह है डिक बौद्ध Gम@ से सम्बन्धि�� मूर्ति� यों में बुद्ध की मूर्ति� नहीं बनाई जा�ी थी। उसके स्थान पर प्र�ीकों का उपयोग डिकया जा�ा था न्दिजनमें क्षिभक्षापात्र, वज्रासन, उष्णीश या पगड़ी, डित्ररत्न, बोमिGवृक्ष आटिद मुख्य हैं। इस सम्ब� में एक ज्ञा�व्य बा� यह भी है डिक मथुरा कला में प्रभामण्�ल का उपयोग प्र�ीक रूप में डिकया गया है जो अVयत्र नहीं टिदखलाई पड़�ा।* मथुरा कला की शंुगकालीन कालकृडि�यों में वैष्णव और शैव मूर्ति� यां भी मिमली हैं, न्दिजनमें बलराम *, सिल गाकृडि� शिशव और पंचबाण कामदेव डिवशेL रूप से उल्लेखनीय हैं।

कुषाण काल

यक्षYakshaप्राप्ति9� स्थान-परखम, मथुरा , राजकीय संग्रहालय, मथुरा

न्दिजस प्रकार साडिहत्य समाज का दप@ण हो�ा है उसी प्रकार कला में समाज और साडिहत्य दोनों अंश�: प्रडि�डिबन्धिम्ब� रह�े हैं। मथुरा के इडि�हास में यहाँ की जन�ा शक क्षत्रपों के समय सव@प्रथम डिवदेशी संपक@ में आयी। परV�ु उनकी अपेक्षा उस पर कुLाण शासन का प्रभाव अमिGक शिचरस्थायी रूप से पड़ा। इस समय यहाँ के कलाकारों को अपनी जीडिवका के शिलए डिवदेशिशयों का ही आश्रय ढंूढ़ना पड़ा होगा। इVहीं कारणों से कडिव के समान कलाकार की [ेनी में भी कुLाण प्रभाव झलकने लगा। नवीन संस्कृडि� नवीन शासक और नवीन पर�राओं के साथ नवीन डिवचारों का प्रादु@भाव हुआ न्दिजसने एक नवीन कला शैली को जVम टिदया जो मथुरा कला अथवा कुLाणकला [3]के नाम से प्रशिसद्ध हुई।

कुLाण सम्राट कडिनष्क, हुडिवष्क और वासुदेव का शासनकाल माथुरी कला का स्वण@युग था। इस समय इस शैली ने पया@9� समृन्दिद्ध और पूण@�ा प्रा9� की। यद्यडिप यहाँ की पर�रा का मूल भरहू� और सांची की डिवशुद्ध भार�ीय Gारा है �थाडिप इसका अपना महत्त्व यह है डिक यहाँ प्राचीन पृष्ठभूमिम पर नवीन डिवचारों से पे्ररिर� कलाकारों की [ेनी ने एक ऐसी शैली को जVम टिदया जो आगे चलकर अपनी डिवशेL�ाओं के कारण भार�ीय कला की एक स्व�Vत्र और महत्त्वपूण@ शैली बन गई। इस कला ने अंकनीय डिवLयों का चुनाव भी पूण@ सडिहष्णु�ा से डिकया। इसके पुजारिरयों ने डिवष्णु, शिशव, दुगा@, कुबेर, सूय@ आटिद के साथ-साथ बुद्ध और �ीथeकरों की भी समान रूप से अच@ना की। इन कलाकृडि�यों को डिनम्नांडिक� वग� में बांटा जा सक�ा है :

जैन �ीथeकर प्रडि�माए।ं आयागपट्ट। बुद्ध व बोमिGसत्त्व प्रडि�माए।ं ब्राह्मण Gम@ की मूर्ति� यां। यक्ष, यक्षिक्षणी, नाग आटिद मूर्ति� यां �था मटिदरापान के दृश्य। कथाओं से अंडिक� शिशलापट्ट। वेटिदका स्�ंभ, सूशिचकाए,ं �ोरण, द्वारस्�भं जाशिलयाँ आटिद। कुLाण शासकों की प्रडि�माए।ं

कुषाणकला की ति�शेष�ाएंइस कला की डिवशेL�ाए ंसंके्षप में डिनम्नांडिक� हैं :

1. डिवडिवG रूपों में मानव का सफल शिचत्रण। 2. मूर्ति� यों के अंकन में परिरष्कार। 3. लम्बी कथाओं के अंकन में नवीन�ाए।ं 4. प्राचीन और नवीन अक्षिभप्रायों की मGुर मिमलावट। 5. गांGार कला का प्रभाव। 6. बुद्ध, �ीथeकर एवं ब्राह्मण Gम@ की बहुसंख्यक मूर्ति� यों का प्रादुभा@व। 7. व्यशिक्त-डिवशेL की मूर्ति� यों का डिनमा@ण।

टीका-टिट�पणी यह लेख: "मथुरा की मूर्ति�� कला" (1965) लेखक:- श्री नील कण्ठ पुरुषोत्तम जोशी

1. ↑ वासुदेवशरण अग्रवाल, Pre-Kushana Art of Mathura, TUPHS.,भाग 6,खण्ड़ 2,पृष्ठ 89।1. परखम से प्रा9� यक्ष - स . स .00 सी . 1 ।2. बरोद ्से प्रा9� यक्ष - स . स .00 सी .23 ।3. मनसादेवी यक्षिक्षणी ।4. नोह यक्ष - भर�पुर के पास ।5. पलवल यक्ष - लखनऊ संग्रहालय संख्या ओ . 107 ।6. श्री रत्नचVद्र अग्रवाल द्वारा नोह से प्रा9� नवीन [ोटा सा यक्ष ।

2. ↑ कृष्णदत्त बाजपेयी,मथुरा का देवडिनर्मिम � बौद्ध स्�ूप, श्री महावीर स्मृडि�गं्रथ,खण्ड़ 1,1848-49, पृ. 188-91। नीलकण्ठ पुरुLोत्तम जोशी, जैन स्�ूप और पुरा�त्व,वही,पृ. 183-87।

3. ↑ श्री कीफर ने प्रडि�पाटिद� डिकया है,डिवस्�ृ� अथ@ में इस पद में कला की उन सभी शैशिलयों का समावेश होगा जो सोडिवय� �ुर्तिक स्�ान से सारनाथ( उत्तर प्रदेश ) �क फैले हुए डिवशाल कुLाण साम्राज्य में प्रचशिल� थी। इस अथ@ में बल्ख की कला ,गांGार की यूनानी बौद्ध कला, शिसरकप (�क्षशिशला) की कुLाणकला �था मथुरा की कुLाणकला का बोG होगा। - देखिखये सी.एम.कीफर, Kushana Art and the Historical Effigies of Mat and Surkh Kotal,माग@, खण्� 15,संख्या 2,पृ.44।

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o वृVदावन > वृVदावन बांके डिबहारी मन्दिVदर गोडिवVद देव जी

मदन मोहन जी इस्कॉन मन्दिVदर रंग नाथ जी कात्यायनी पीठ राGावल्लभ जी का मन्दिVदर शाह डिबहारी जी मन्दिVदर केशी घाट डिनमिGवन दावानल कुण्�

o गोवG@न > गोवG@न दानघाटी मानसी गंगा ( मुखारनिव द ) ज�ीपुरा हरिरदेव जी मंटिदर कुसुम सरोवर राGाकुण्� श्याम कुण्� उद्धव कुण्�

o बरसाना > बरसाना राGा रानी मंटिदर

o नVदगाँव > नVदगाँव नVद जी मंटिदर

o महावन > महावन ब्रह्माण्� घाट

o बलदेव > बलदेव बलदेव मन्दिVदर

o गोकुल साडिहत्य>

o संस्कृ� साडिहत्य o वेद >

वेद वेद का स्वरूप वेद का शास्त्रीय स्वरूप वेदों का रचना काल

o उपडिनLद > उपडिनLद अक्षमाशिलकोपडिनLद अद्वय�ारकोपडिनLद अक्षिक्ष उपडिनLद

आरूणकोपडिनLद अथव@शिशर उपडिनLद

o ब्राह्मण साडिहत्य > ब्राह्मण साडिहत्य ऐ�रेय ब्राह्मण शांखायन ब्राह्मण श�पथ ब्राह्मण �ैक्षित्तरीय ब्राह्मण गोपथ ब्राह्मण �ाण्ड्य ब्राह्मण L�निव श ब्राह्मण सामडिवGान ब्राह्मण आL य ब्राह्मण देव�ाध्याय ब्राह्मण उपडिनLद ब्राह्मण संडिह�ोपडिनLद ब्राह्मण वंश ब्राह्मण जमैिमनीय ब्राह्मण जमैिमनीयाL य ब्राह्मण

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