भारतीय कला और स्ापतय में मौययोत्तर...

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सा पूर द सरी शताबदी के बाद अनेक शासक ने वरशाल मौ र सााजर म अलग-अलग विसस पर अपना वनण सावपत कर वलरा। इनम उर भारत म और मधर भारत के कु छ विसस म श ग, कणर, कुशाण और गुत शासक ने अपना आविपतर जमा वलरा तो दवणी ता पवमी भारत म सातरािन, इराकुओ , अभीर और राकाटक ने अपना रसर सावपत कर वलरा। स रोगरश, ईसा पूर द सरी शताबदी म सनातन िम के दो मुखर स दार—रैषणर िम और शै र िम—का भी उदर िुआ। भारत म ईसा पूर द सरी शताबदी के ऐसे अनेक सल ि वजनका उलेख करना वरषर की वषट से उपरुत िोगा। मूवतकला के कुछ उतकषट उदािरण (नमूने) वरवदशा, भरिुत (मधर देश), बोिगरा (वबिार), जगयरपेट (आ देश), मु रा (उर देश), ख डवगरर-उदरवग(ओवडशा), भज (पुणे के वनकट) और पारनी (नागपु र के वनकट), मिाराष म पाए गए ि। भरहुत भरिुत म पाई गइ� मूवत राँ मौर कालीन र औरवणी की वतमाओ की तरि दीराका(ल बी) ि। वतमाओ के आरतन के वनमाण म कम उभार िै लेवकन रैवखकता का धरान रखा गरा िै। आकवतराँ व की सति से जरादा उभरी नि ि। आखरानातमक उभार म तीन आराम का म एक ओर झ के िुए पररेर के सा दशारा गरा िै। आखरान म सपषटत: मुखर-मुखर रटनाओ के ुनार से ब गई िै। भरिुत म आखरान फलक अपेाकत कम पा के सा वदखाए गए ि, लेवकन जर-जर समर आगे बता जाता िै, किानी के मुखर पा के अलारा अर पा भी व की पररवि म कट िोने लगते ि। कभी-कभी एक भौगोवलक सान पर अविक रटनाएँ व की परवि म एक सा ववत की गई ि, जबवक कि-कि एक रटना को स पूण व म ववत वकरा गरा िै। मूवतकार ारा उपलबि सान का अविकतम उपरोग वकरा गरा िै। आखरान/कानक म र ता रववणर के जुडे िुए िा की ता अकेली आकवतर म िा को पटा और छाती से लगा िुआ वदखारा गरा िै। लेवकन कुछ मामल म, खासतौर पर बाद राले समर म, िा को सिज प म छाती से आगे बा िुआ वदखारा गरा िै। इन उदािरण से रि सपषट िोता िै वक कलावशवलपर को, जोवक सामूविक सतर पर काम करते े, उतकीणन की वरवि को समझना वकतना री िोता ा। ार भ म, सति को तैरार करना मुख कार िोता ा और उसके बाद मानर शरीर ता अर प को उके रा रा बनारा जाता भारतीय कला और सापतय म मौयर कालीन व याँ यणी, भरहुत 4

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Page 1: भारतीय कला और स्ापतय में मौययोत्तर कालीन प्रवृत्त्तयाँupsc11.com/wp-content/uploads/2018/12/khfa104.pdf ·

ईसा परव दसरी शताबदी क बाद अनक शासको न वरशाल मौरव सामाजर म अलग-अलग विससो पर अपना वनरतरण सावपत कर वलरा। इनम उततर भारत म और

मधर भारत क कछ विससो म शग, कणर, कशाण और गपत शासको न अपना आविपतर जमा वलरा तो दवषिणी ता पव‍चिमी भारत म सातरािनो, इकराकओ, अभीरो और राकाटको न अपना रचिवसर सावपत कर वलरा। सरोगरश, ईसा परव दसरी शताबदी म सनातन िमव क दो मखर सपरदारो—रषणर िमव और शर िमव—का भी उदर िआ। भारत म ईसा परव दसरी शताबदी क ऐस अनक सल ि वजनका उललख करना वरषर की दवषट स उपरकत िोगा। मवतवकला क कछ उतकक षट उदािरण (नमन) वरवदशा, भरित (मधर परदश), बोिगरा (वबिार), जगयरपट (आन‍धर परदश), मरा (उततर परदश), खडवगरर-उदरवगरर (ओवडशा), भज (पण क वनकट) और पारनी (नागपर क वनकट), मिाराषटर म पाए गए ि।

भरहतभरित म पाई गइ� मवतवरा मौरव कालीन रषि और रवषिणी की परवतमाओ की तरि दीरावकार (लबी) ि। परवतमाओ क आरतन क वनमावण म कम उभार ि लवकन रवखकता का धरान रखा गरा ि। आकक वतरा वचितर की सति स जरादा उभरी निी ि। आखरानातमक उभार म तीन आरामो का भरम एक ओर झक िए पररपरकर क सा दशावरा गरा ि। आखरान म सपषटत: मखर-मखर रटनाओ क चिनार स बढ गई ि। भरित म आखरान फलक अपषिाकक त कम पातरो क सा वदखाए गए ि, लवकन जरो-जरो समर आग बढता जाता ि, किानी क मखर पातरो क अलारा अन‍र पातर भी वचितर की पररवि म परकट िोन लगत ि। कभी-कभी एक भौगोवलक सान पर अविक रटनाए वचितर की पररवि म एक सा वचिवतरत की गई ि, जबवक किी-किी एक रटना को सपणव वचितर म वचिवतरत वकरा गरा ि।

मवतवकारो दारा उपलबि सान का अविकतम उपरोग वकरा गरा ि। आखरान/कानक म रषि ता रवषिवणरो क जड िए िा की ता अकली आकक वतरो म िाो को चिपटा और छाती स लगा िआ वदखारा गरा ि। लवकन कछ मामलो म, खासतौर पर बाद राल समर म, िाो को सिज रप म छाती स आग बढा िआ वदखारा गरा ि। इन उदािरणो स रि सपषट िोता ि वक कलावशवलपरो को, जोवक सामविक सतर पर काम करत , उतकीणवन की वरवि को समझना वकतना जररी िोता ा। परारभ म, सति को तरार करना परमख कारव िोता ा और उसक बाद मानर शरीर ता अन‍र रपो को उकरा रा बनारा जाता

भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया

यकषिणी, भरहत

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भारतीय कला का पररचय28

ा। वचितर की सति क वछछल उतकीणवन क कारण िाो और परो को बािर वनकला िआ वदखाना सभर निी ा, इसीवलए िाो को जडा िआ और परो को बढा िआ वदखारा गरा ि। शरीर जरादातर कडा ता तना िआ वदखाई पडता ि और भजाए र पर शरीर क सा-सा वचिपक िए स वदखाए गए ि। वकन‍त आग चिलकर ऐसी द‍र परसतवत म सशोिन कर वदरा गरा। आकक वतरो का उतकीणवन गिरा िोन लगा और आरतन बढ गरा वजसस मनषरो ता जानररो क शरीर का परवतरपण असली जसा िोन लगा। भरित, बोिगरा, साचिी सतप-2 और जगयरपट म पाई गई मवतवरा इस शली क अचछ उदािरण ि।

भरित की आखरान उदकवतरो (ररलीफ) स रि सपषट परकट िोता ि वक कलावशलपी अपनी वचितरातमक भाषा क माधरम स वकतन अविक परभारशाली ढग स अपनी किावनरा कि सकत । एक ऐसी िी आखरान उदकवत म वसदा व गौतम की माता मिारानी मारादरी क एक सरपन की रटना को वदखारा गरा ि। इसम मिारानी की आकक वत को लटी अरसा म और एक िाी को ऊपर स उतरकर मिारानी मारादरी की कोख (गभावशर) की ओर बढत िए वदखारा गरा ि। दसरी ओर, जातक काओ का वचितरण बड सरल तरीक स वकरा गरा ि। उनम का क भौगोवलक सल क अनसार रटनाओ को परसतत वकरा गरा ि, जस—रर जातक म बोविसतर विरन को एक आदमी की जान बचिान क वलए उस अपनी पीठ पर ल जात िए वदखारा गरा ि। इसी वचितर म एक अन‍र रटना म एक राजा को अपनी सना क सा खडा िआ वदखारा गरा ि। राजा विरन पर तीर छोडन िी राला ि और वजस आदमी की विरन न रषिा की ी, उस भी राजा क सा खड िए अपनी अगली स विरन की ओर इशारा करत िए वदखारा गरा ि। का क अनसार, आदमी न बचिाए जान क बाद विरन को रचिन वदरा ा वक रि वकसी भी वरवकत को उसकी पिचिान निी

महारानी माया का सवपन, भरहतजातक, भरहत

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 29

बताएगा लवकन जब राजा विरन की पिचिान बतान राल को परसकार दन की रोषणा करता ि तो रि आदमी अपन रचिनो स वफर जाता ि और राजा को उसी जगल म ल जाता ि, जिा विरन न उसकी जान बचिाई ी। ऐसी जातक काए सतपो को अलकक त करन क वलए उपरोग म लाई गइ� ि। रि जान लना भी वदलचिसप िोगा वक वरवभन‍न परदशो म जरो-जरो सतपो का वनमावण बढता गरा, उनकी शवलरो म भी अतर आन लग। ईसा परव पिली और दसरी शतावबदरो की सभी परष परवतमाओ म कश सजजा को ग िए वदखारा गरा ि। कछ मवतवरो म तो रि सब जगि एक-सी पाई जाती ि। भरित म पाई गइ� कछ मवतवरा आज भारतीर सगरिालर, कोलकाता म सरवषित रखी दखी जा सकती ि।

साची का सततपमवतवकला क वरकास क अगल चिरण को साचिी क सतप-1, मरा और आधर परदश क गटर वजल क रन‍गी सान पर पाई जान राली मवतवरो म दखा जा सकता ि। रि चिरण शलीगत परगवत की दवषट स उललखनीर ि। साचिी क सतप-1 म ऊपर और नीचि दो परदवषिणा प ि। इसक चिार तोरण ि जो सदरता स सज िए ि। इन तोरणो पर बद क जीरन की रटनाओ और जातक काओ क अनक परसगो को परसतत वकरा गरा ि। परवतमाओ का सरोजन अविक उभारदार ि और सपणव अतराल म भरा िआ ि। िार-भार और शारीररक मदाओ का परसततीकरण सराभावरक ि और शरीर क अग-परतरग म कोई कठोरता निी वदखाई दती। वसर काफी उठ िए ि। बािरी रखाओ की कठोरता/अनमरता कम िो गई ि। आकक वतरो को गवत द दी गई ि। आखरान म वरसतार आ गरा ि। उकरन की तकनीक भरित की तलना

छतरी

हकममिका

अणड

मधी

वकिका

परिकषिणा पथ

तोरण

सततप-1 की योजना, साची

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भारतीय कला का पररचय30

म अविक उन‍नत परतीत िोती ि। बद को परतीको क रप म परसतत वकरा जाना अब भी जारी रिा। साचिी क सतप-1 म आखरान अविक वरसतकत कर वदए गए ि, वकन‍त सरपन परसग का परसततीकरण मिारानी को लटी अरसा म और ऊपर स उतरत िए िाी क वचितरण दारा बित िी सरल तरीक स वकरा गरा ि। कछ ऐवतिावसक आखरानो, जस वक कशीनगर की रराबदी, बद का कवपलरसत भरमण, अशोक दारा रामगराम सतप क दशवन आवद को परावपत वरसतार क सा परसतत वकरा गरा ि। मरा म पाई गई इस काल की परवतमाओ म भी ऐसी िी वरशषताए पाई जाती ि, िालावक उनक रपाकक वतक रानी अगो-परतरगो क परसततीकरण म कछ अतर ि।

मथरा, सारनाथ एव गाधारईसा की पिली शताबदी म और उसक बाद, उततर भारत म गािार (अब पावकसतान म) र मरा और दवषिण भारत म रन‍गी (आधर परदश) कला उतपादन क मितरपणव क द बन गए। मरा और गािार म बद क परतीकातमक रप को मानर रप वमल गरा। गािार की मवतवकला की परपरा म बवकटररा, पाव वरा और सरर गािार की सानीर परपरा का सगम िो गरा। मरा की मवतवकला की सानीर परपरा इतनी परबल िो गई वक रि उततरी भारत क अन‍र भागो म भी फल गई। इसका सबस बवढरा उदािरण ि पजाब म सरोल सल पर पाई गइ� सतप की मवतवरा। मरा म बद की परवतमाए रषिो की आरवभक मवतवरो जसी बनी ि, लवकन गािार म पाई गइ� बद की परवतमाओ म रनानी शली की वरशषताए पाई जाती ि। मरा म आरवभक जन ती �करो और समाटो, वरशषकर कवनषक की वबना वसर राली मवतवरा एर वचितर भी पाए गए ि।

रषणर परवतमाए (मखर रप स वरषण और उनक वरवभन‍न रपो की परवतमाए) और शर परवतमाए (मखर रप स उनक वलगो और मखवलगो की परवतमाए) भी मरा म पाई गई ि, लवकन सखरा की दवषट स बद की परवतमाए अविक पाई गई ि। धरान रि वक वरषण और वशर की परवतमाए उनक आरिो (चिकर और वतरशल) क सा परसतत की गई ि। बडी परवतमाओ क उतकीणवन म वरशालता वदखाई गई ि। आकक वतरो का वरसतार वचितर की पररवि स बािर वदखारा गरा ि। चििर गोल ि और उन पर मसकान दशावरी गई ि। मवतवरो क आरतन का भारीपन कम कर वदरा गरा ि, उनम मासलता वदखाई दती

उतकीणमि आककतया, सततप-1, साची

जगल का भाग, सगोल

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 31

ि। शरीर क रसतर सपषट दवषट-गोचिर िोत ि और र बाए किो को ढक िए ि। इस काल म,

बद, रषि, रवषिणी, शर और रषणर दरी-दरताओ की परवतमाए और मानर मवतवरा भी

बडी सखरा म बनाई गइ�। ईसा की दसरी शताबदी म, मरा म, परवतमाओ म वरषरासवकत

क वदकता आ गई, गोलाई बढ गई और र अविक मासल िो गइ�। ईसा की चिौी शताबदी

म भी रि पररकवतत जारी रिी, लवकन चिौी शताबदी क अवतम दशको म वरशालता और

मासलता म और कमी कर दी गई और मासलता म अविक कसार आ गरा। इनम कम ओढ

गए रसतरो को दशावरा गरा ि। इसक बाद ईसा की पाचिरी और छठी शताबदी म रसतरो को

परवतमाओ क पररमाण/आकार म िी शावमल कर वदरा गरा। बद की परवतमाओ म रसतरो

की पारद‍रता सपषटत: दवषट-गोचिर िोती ि। इस अरवि म, उततर भारत म मवतवकला क दो

मितरपणव सपरदारो (ररानो) का उदर िआ, वजनका उललख करना जररी ि। मवतवकला

का परपरागत क द मरा तो कला क उतपादन का मखर क द बना िी रिा, उसक सा िी

सारना और कौशामबी भी कला उतपादन क मितरपणव क दो क रप म उभर आए। सारना

म पाई जान राली बौद परवतमाओ म दोनो किो को रसतर स ढका िआ वदखारा गरा ि।

बोकधसतव, गाधार, पाचवी-छठी शताबिी ईसवीधयानसथ बदध, गाधार, तीसरी-चौथी शताबिी ईसवी

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भारतीय कला का पररचय32

वसर क चिारो ओर आभामडल बना िआ ि वजसम अलकरण (सजारट) बित कम वकरा िआ ि जबवक मरा म बद की मवतवरो म ओढन क रसतर की कई ति वदखाई गई ि और वसर क चिारो ओर क आभामडल को अतरविक सजारा गरा ि। इन आरवभक परवतमाओ की वरशषताओ का अधररन करन क वलए इन‍ि मरा, सारना, राराणसी, नरी वदलली, चिन‍नई, अमरारती आवद क सगरिालरो म दखा जा सकता ि।

गगा की राटी स बािर क सलो पर वसत कछ मितरपणव सतपो म स एक गजरात म दरवनमोरी का सतप ि। पररतती शतावबदरो म बित कम बदलार आरा ि, अलबतता परवतमाए छरिर रा पतल रप म वदखाई गई ि और रसतरो की पारदवशवता परमख सौदरावनभवत बनी रिी ि।

दकषिण भारतीय बौदध समारकआधर परदश क रगी षितर म अनक सतप सल ि, जस—जगयरपट, अमरारती, भटीपरोलरो, नागाजवनकोडा, गोली आवद। अमरारती म एक मिाचितर ि वजसम अनक परवतमाए ी, जो अब चिन‍नई सगरिालर, अमरारती सल क सगरिालर, नरी वदलली क राषटरीर सगरिालर और लदन क वरिवटश मरवजरम म सरवषित रखी िई ि। साचिी क सतप की तरि अमरारती क सतप म भी परदवषिणा प ि जो रवदका स ढका िआ ि और रवदका पर अनक आखरानातमक परवतमाए वनरवपत की गई ि। गमबदी सतप का ढाचिा (सरचिना) उभारदार सतप परवतमाओ क चिौको स ढका िआ ि; रि उसकी खास वरशषता ि। अमरारती सतप का तोरण समर की मार को निी झल सका और गारब िो गरा ि। बद क जीरन की रटनाए और जातक काओ क परसग वचिवतरत ि। िालावक अमरारती क सतप म ईसा

सततप की बाहरी िीवार पर उतकीणमिन, अमरावती सततप पटल, अमरावती, कदवतीय शताबिी ईसवी

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 33

परव तीन शतावबदरो क वनमावण कारव दवषट-गोचिर िोत ि, लवकन इसका सरवोततम वरकास ईसा की पिली और दसरी शताबदी म िआ। साचिी की तरि, इस सतप म भी पिल चिरण म बद की परवतमाए ढोल क चिौको और कई अन‍र सानो पर उकरी गई ि। सरोजन क भीतरी अतराल म आकक वतरो को नाना रपो, मदाओ, आसनो, जस—सामन स, पीछ स, आग स और एक तरफ स वदखारा गरा ि।

परवतमाओ क चििरो पर तरि-तरि क गभीर िार-भार दखन को वमलत ि। आकक वतरा पतली ि, उनम गवत और शरीर म तीन भवगमाए (वतरभग रप म) वदखाई गई ि। साचिी की परवतमाओ की तलना म इन परवतमाअो का सरोजन अविक जवटल ि। रवखकता म लोचि आ गरा ि और परवतमाओ म दशावई गई गवतशीलता वन‍चिलता को दर कर दती ि। उभारदार परवतमाओ (उदकवतरो) म तीन-आरामी अतराल को तरार करन का वरचिार उभर िए आरतन, कोणीर शरीर और जवटल अवतवरावपत क रप म काराववन‍रत वकरा गरा ि। वकन‍त रप की सपषटता पर अविक धरान वदरा गरा ि, भल िी आखरान म उसका आकार और भवमका कसी भी रिी िो। आखरानो का वचितरण बितारत स वकरा गरा ि। इन आखरानो स बद क जीरन की रटनाओ और जातक काओ क परसगो को परसतत वकरा गरा ि। वफर भी उनम ऐस अनक जातक द‍र पाए जात ि वजनको परी तरि पिचिाना निी जा सका ि। जन‍म की रटना क परसततीकरण म मिारानी मारादरी को शयरा पर लट िए वदखारा गरा ि; उनक चिारो ओर दावसरा खडी ि और सरोजन क ऊपरी भाग म एक छोट स िाी को वदखारा गरा ि। रि मिारानी मारादरी क सरपन का परसततीकरण ि। एक अन‍र उदकवत म बद क जन‍म स समबवित चिार रटनाए वदखाई गई ि; इसस रि पता चिलता ि वक आखरानो को नाना रपो म वचिवतरत वकरा जाता ा।

फलक, नागाजमिनकोडा

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भारतीय कला का पररचय34

ईसा की तीसरी शताबदी म नागाजवनकोडा और गोली की परवतमाओ म आकक वतरो की अनपरावणत गवत कम िो जाती ि। अमरारती की उद भकत परवतमाओ की तलना म नागाजवनकोडा और गोली क कलाकारो न कारा की उभरी िई सतिो का परभार उतपन‍न करन म सफलता पाई, जो सराभावरक ि और उसका अवभन‍न अग वदखाई दती ि। अमरारती, नागाजवनकोडा और गटापलली (आधर परदश) म बद की सरततर परवतमाए भी पाई जाती ि। गटापलली म, चिटान म काटी गई एक गफा ि जो एलर क पास वसत ि। रिा छोट गजपकषठीर (बिकोणीर) ता रकतताकार चितर कषि ईसा परव दसरी शताबदी म खोदकर बनाए गए । एक अन‍र मितरपणव सल जिा पर चिटानो को काटकर सतप बनाए गए , वरशाखापटनम क पास अनाकपलली ि। अब तक खदाई म वमला सबस बडा सतप सन‍नवत (जनपद गलबगव, कनावटक) म ि। रिा एक ऐसा भी सतप ि वजस अमरारती क सतप की तरि उभारदार परवतमाओ स सजारा गरा ि।

बडी सखरा म सतपो क वनमावण का अ व रि निी िोता वक रिा सरचिनातमक मवदर, वरिार रा चितर निी बनाए जात । िमार पास इस सबि म साकर तो ि पर कोई सरचिनातमक चितर रा वरिार आज तक बचिा निी ि। कछ मितरपणव सरचिनातमक वरिारो म साचिी क गजपकषठाकार (Appsidal) चितर का उललख वकरा जा सकता ि। रि रिा का मवदर सखरा 18 ि, जोवक एक सािारण दरालर ि वजसम आग सतभ बन ि और पीछ एक बडा कषि बना ि। इसी परकार गटापलली क सरचिनातमक मवदर भी उललखनीर ि।

बद की परवतमाओ क सा-सा अन‍र बौद परवतमाए, जस—अरलोवकत‍रर, पदमपावण, रजरपावण, अवमताभ और मतरर जस बोविसतरो की परवतमाए भी बनाई जान लगी। वकन‍त बौद िमव की रजररान शाखा क उदर क सा, बोविसतरो की कछ ऐसी परवतमाए भी जोडी जान लगी वजनक दारा बौद िमव क जनवित क िावमवक वसदातो क परचिार क वलए कवतपर सदगणो का मानरीकरण करक परवतमा क रप म परसतत वकरा गरा ा।

पक‍चम भारतीय गफाएपव‍चिमी भारत म बित-सी बौद गफाए ि जो ईसा परव दसरी शताबदी और उसक बाद की बताई जाती ि। इनम रासतकला क मखरत: तीन रप वमलत ि—(i) गजपकषठीर मिराबी छत

अधतरी कनकममित गफा, कनहरी चतय कषि, कालामि

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 35

राल चितर कषि (जो अजता, पीतलखोडा, भज म पाए जात ि); (ii) गजपकषठीर मिराबी छत राल सतभिीन कषि (जो मिाराषटर क ाना-नादसर म वमलत ि); और (iii) सपाट छत राल चितषकोणीर कषि वजसक पीछ की ओर एक रकतताकर छोटा कषि िोता ि (जसा वक मिाराषटर क कोवडराइट म पारा गरा)। चितर क वरशाल कषि म अदव-रकतताकार चितर चिाप (मिराब) की परिानता िोती ी। सामन का विससा खला िोता ा वजसका मोिरा लकडी का बना िोता ा, और कछ मामलो म वबना वखडकी राल मिराब पाए जात ि जसा वक कोवडराइट म भी दखा गरा ि। सभी चितर गफाओ म पीछ की ओर सतप बनाना आम बात ी।

ईसा परव पिली शताबदी म, गजपकषठीर मिराबी छत राल सतप की मानक रोजना (नकश) म कछ परररतवन वकए गए, वजसक अतगवत बड कषि को आरताकार बना वदरा गरा, जसा वक अजता की गफा स. 9 म दखन को वमलता ि और मोिर क रप म एक पतर की परदी लगा दी गई। ऐसा वनमावण बदसा, नावसक, कालाव, कन‍िरी म भी पारा जाता ि। अनक गफा सलो म पिल मानक वकसम क चितर कषि पररतती काल क भी पाए जात ि। कालाव म, चिटानो को काटकर सबस बडा कषि बनारा गरा ा। गफा की रोजना म पिल दो खभो राला खला सिन ि, रषाव स बचिान क वलए एक पतर की परदी दीरार ि, वफर एक बरामदा, मोिर क रप म पतर की परदी दीरार, एक खभ पर वटकी गजपकषठीर छत राला चितर कषि और अत म पीछ की ओर सतप बना ि। कालाव चितर कषि (मडप) को मनषरो ता जानररो की आकक वतरो स सजारा गरा ि। र भारी और वचितर क अतराल म चिलती िई वदखाई दती ि। कन‍िरी की गफा स. 3 म कालाव क चितर कषि की रोजना का कछ और वरशद (वरसतकत) रप वदखाई दता ि। इस गफा क भीतरी भाग का सपणव वनमावण कारव एक सा निी वकरा गरा ा इसवलए इसम समर-समर पर सपन‍न वकए गए कारव की परगवत की झलक सपषट वदखाई दती ि। आग चिलकर चितषकोणीर चिपटी छत राली शली को सबस अचछा वडजाइन समझा जान लगा और रिी वडजाइन वरापक रप स अनक सानो पर पारा जाता ि।

जिा तक वरिारो का सराल ि, र सभी गफा सलो पर खोद गए ि। वरिारो की वनमावण रोजना (नकश) म एक बरामदा, बडा कषि और इस कषि की दीरारो क चिारो ओर परकोषठ िोत ि। कछ मितरपणव

गफा स. 3, नाकसक

चतय, गफा स.12, भज

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भारतीय कला का पररचय36

वरिार गफाए अजता की गफा स. 12, रदसा की गफा स. 11, नावसक की गफा स. 3, 10 और 17 ि। आरभ की अनक वरिार गफाओ क भीतर स चितर क मिराबो और गफा क परकोषठ दारो पर रवदका वडजाइनो स सजारा गरा ि। बाद म इस तरि की सजारट को छोड वदरा गरा। नावसक की गफा स. 3, 10 और 17 म मोिर की वडजाइन म एक अलग उपलवबि िई। नावसक की वरिार गफाओ म सामन क सतभो क रट-आिार और रट-शीषव पर मानर आकक वतरा उकरी गई ि। ऐसी िी एक अन‍र गफा जन‍नार (मिाराषटर) म भी खोदी िई ि जो आम जनता म गणशलनी क नाम स परवसद ि करोवक इसम गणश जी की परवतमा सावपत की िई ि। आग चिलकर इस वरिार क कषि क पीछ एक सतप भी जोड वदरा गरा वजसस रि एक चितर-वरिार िो गरा। ईसा की चिौी और पाचिरी शताबदी क सतपो म बद की परवतमाए सलगन की गई ि। जन‍नार (मिाराषटर) म खदी िई गफाओ का सबस बडा समि ि। नगर की पिावडरो क चिारो ओर 200 स भी जरादा गफाए खदी िई ि, जबवक मबई क पास कन‍िरी म ऐसी 108 गफाए ि। गफा सलो म सबस मितरपणव सल ि—अजता, पीतलखोडा, एलोरा, नावसक, भज, जन‍नार, कालाव, कन‍िरी की गफाए। अजता, एलोरा और कन‍िरी आज भी फल-फल रिी ि।

अजतासबस परवसद गफा सल अजता ि। रि मिाराषटर राजर क औरगाबाद वजल म वसत ि और रिा भसारल/जलगार और औरगाबाद क रासत स पिचिा जा सकता ि। अजता म कल 26 गफाए ि। इनम स चिार गफाए चितर गफाए ि, वजनका समर परारवभक चिरण रानी ईसा परव दसरी और पिली शताबदी (गफा स. 10 र 9) और पररतती चिरण रानी ईसा की पाचिरी शताबदी (गफा स. 19 र 26) ि। इसम बड-बड चितर-वरिार ि और र परवतमाओ ता वचितरो स अलकक त ि। अजता िी एक ऐसा उदािरण ि, जिा ईसा परव पिली शताबदी और ईसा की पाचिरी शताबदी क वचितर पाए जात ि। अजता और पव‍चिमी दककन की गफाओ क काल क बार म वनव‍चित रप स कछ निी किा जा सकता करोवक उनक वशलालखो म काल-वतव का उललख निी वमलता।

अजता की गफाओ का कवहगम दशय

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 37

गफा स. 10, 9, 12 र 13 आरवभक चिरण की ि, गफा स. 11, 15 र 6 ऊपरी ता वनचिली, और गफा स. 7 ईसा की पाचिरी शताबदी क उततररतती दशको स पिल की ि। बाकी सभी गफाए पाचिरी शताबदी क पररतती दशको स ईसा की छठी शताबदी क परवरतती दशको क बीचि खोदी गई ि। चितर गफा स. 19 और 26 वरसतकत रप स उतकीणव की गई ि। उनका मोिरा बद और बोविसतरो की आकक वतरो स सजारा गरा ि। र गजपकषठीर तिखानदार छत राली वकसम की ि। गफा स. 26 बित बडी ि और भीतर का सपणव बडा कषि (मडप) बद की अनक परवतमाओ स उकरा गरा ि और उनम सबस बडी परवतमा मिापररवनरावण की ि। शष सभी गफाए वरिार-चितर वकसम की ि। उनम खमभो राला बरामदा, खमभो राला मडप और दीरार क सा-सा परकोषठ बन ि। पीछ की दीरार पर बद का मखर पजा-गकि ि। अजता म पजा सल की परवतमाए आकार की दवषट स बडी ि और आग बढन की ऊजाव क सा परदवशवत की गई ि। कछ वरिार गफाओ का कारव अभी तक अपणव ि, जस—गफा स. 5, 14, 23 और 24। अजता क मितरपणव सरषिको म बरािदर (गफा स. 16 का सरषिक) जो राकाटक नरश िररसन का परिानमतरी ा, उपदगपत (गफा स. 17–20 का सरषिक) जो उस षितर का सानीर शासक और राकाटक नरश िररसन का सामत ा ता बदभद (गफा स. 26 का सरषिक)

गफा सखया 2 क बरामि म उतकीकणमित मतकतमि फलक, अजता

बदध, यशोधरा एव राहल का कचतर,

गफा सखया 17, अजता

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भारतीय कला का पररचय38

और मरादास (गफा स. 4 का सरषिक) क नाम उललखनीर ि। गफा स. 1, 2, 16 और 17 म अनक वचितर आज भी शष ि।

वचितरो म अनक शली/परकारगत अतर पाए जात ि। ईसा की पाचिरी शताबदी क अजता वचितरो म बािर की ओर परषिप वदखलारा गरा ि, रखाए अतरत सपषट ि और उनम परावपत लरबदता दखन को वमलती ि। शरीर का रग बािरी रखा क सा वमल गरा ि वजसस वचितर का आरतन फला िआ परतीत िोता ि। आकक वतरा पव‍चिमी भारत की परवतमाओ की तरि भारी ि।

पिल चिरण म बनी गफाओ, वरशषकर गफा सखरा 9 एर 10 म भी वचितर पार जात ि। र ईसा परव परम शताबदी की ि। इन वचितरो म रखाए पनी ि, रग सीवमत ि। इन गफाओ म अाकक वतरा सराभावरक रप स वबना बढा-चिढा कर अलकक त वकए िए रगी ि।

अपसरा, गफा सखया 17, अजता

कचकतरत छत, गफा सखया 10, अजता

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 39

भौगोवलक सान क अनसार रटनाओ को समिबद वकरा गरा ि। सतिो म षिवतज तरीक स आकक वतरो का वनरोजन वकरा गरा ि। भौगौवलक वसवत को रासत क बािरी विससो स पक क कर वदखारा गरा ि। साचिी की मवतवकला स समानता स रि सपषट िोता ि वक वकस परकार समसामवरक मवतवकला एर वचितरकला की परवकररा सा-सा चिल रिी ी। पगडी की आग की गाठ उसी परकार स आकक वतरो म वदखाई गई ि, वजस परकार मवतवरो म वदखाई गई ि। तावप पगवडरो क कछ अलग परकार भी वचिवतरत ि।

दसर चिरण क वचितरो का अधररन गफा सखरा 10 ता 9 की दीरारो र सतभ पर बन वचितरो स वकरा जा सकता ि। बद की र आकक वतरा पाचिरी शताबदी ईसरी क वचितरो स वभन‍न ि। वचितरकला क षितर म इस परकार की गवतवरविरो को िावमवक आर‍रकताओ क आिार पर समझा जाना चिाविए। गफाओ का वनमावण एर वचितरकला की गवतवरविरा सा-सा एक िी समर म िई ी। अगल चिरण क वचितर मखरत: गफा सखरा 16, 17, 1 और 2 म दख जा सकत ि। इसका रि अ व निी ि वक अन‍र गफाओ म वचितर वनमावण निी िआ। रसतत: परतरक खोदी गई गफा म वचितर बनार गए परत उनम स कछ िी शष रि गए। इन गफा वचितरो म परतीकातमक रगतीकरण पारा जाता ि। रि भी दखा गरा ि वक इन वचितरो म तरचिा क वलए वरवभन‍न रगो, जस—भरा, पीलापन वलए िए भरा, िररत, पील आवद का पररोग वकरा गरा ि जो वभन‍न परकार की जनसखरा का परवतवनवितर करता ि। गफा सखरा 16 और 17 क वचितरो म सटीक और शालीन रगातमक

कचतर, गफा सखया 9, अजता

महाजनक जातक फलक का कहससा,गफा सखया 1, अजता

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भारतीय कला का पररचय40

गणो का पररोग िआ ि। इनम गफा की मवतवरो क समान भारीपन निी ि। आकक वतरो क रमार लरातमक ि। भर रग की मोटी रखाओ स उभार परदवशवत वकरा गरा ि। रखाए जोरदार और शवकतशाली ि। आकक वत सरोजनो म वरवशषट चिमक दन का पररास वकरा गरा ि।

गफा सखरा 1 एर 2 क वचितर सलीक स बन िए एर सराभावरक ि जो गफा की मवतवरो स सामजसर रखत ि। रासत का सरोजन सामान‍र ि और आकक वतरो को वतर-आरामी बनान ित एर वरशष परभार लान क वलए गोलाकार सरोजन का पररोग वकरा गरा ि। अिव वनवमवत, लबी आख बनारी गई ि। वचितरकारो क वरवभन‍न समिो दारा वनवमवत वचितरो की वभन‍नता का पता उनकी परतीकातमकता एर शलीगत वरशषताओ स चिलता ि। सराभावरक भवगमाए एर बढा-चिढा कर न बनाए गए चििरो का पररोग वरवशषट रप स वकरा गरा ि।

इन परवतमाओ क वरषर बद क जीरन की रटनाए, जातक और अरदान काओ क परसग ि। कछ वचितर, जस—वसिल अरदान, मिाजनक जातक और वरिरपवडत जातक क परसग गफा की सपणव दीरार को ढक िए ि। रि उललखनीर ि वक छदत जातक की का आरवभक काल की गफा स. 10 पर वरसतारपरवक वचिवतरत की गई ि और वभन‍न-वभन‍न रटनाओ को अनक भौगोवलक सलो क अनसार एक सा रखा गरा ि, जस वक जगल म रवटत रटनाओ को राजमिल म रवटत रटनाओ स अलग वदखारा गरा ि। गफा स. 10 म छदत का द‍र परी तरि पाली पाठ का अनसरण करता ि, जबवक गफा स. 17 म रिी परसग वभन‍न रप म वचिवतरत वकरा गरा ि। तावप, रि दषटवर ि वक पदमपावण और रजरपावण की आकक वतरा अजता म आम ि और अनक गफाओ म पाई जाती ि

बठ हए बदध, चतय कषि,गफा सखया 10, एलोरा

परागण, कलाश मकिर, गफा सखया 16, एलोरा

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 41

पाचिरी शताबदी स लकर गरारिरी शताबदी तक क तीन वभन‍न-वभन‍न िममो क मठ/िमव भरन एक सा पाए जात ि। इसक अलारा रि अनक शवलरो क सगम क रप म भी बजोड ि। एलोरा और औरगाबाद की गफाए दो िममो, वरशष रप स बौद िमव और रिाहमण िमव क बीचि चिल रि अतरो को दशावती ि। रिा बािर बौद गफाए ि, जिा बौद िमव क रजररान सपरदार की अनक परवतमाए, जस—तारा, मिामररी, अषिोभर, अरलोवकत‍रर, मतरर, अवमताभ आवद की परवतमाए परसतत की गई ि। बौद गफाए आकार की दवषट स काफी बडी ि और उनम एक दो, रिा तक वक तीन मवजल ि। उनक सतभ वरशालकार ि। अजता म भी दो मवजली गफाए खदी िई ि, मगर एलोरा म तीन मवजली गफा बनाना रिा की वरशष उपलवबि किी जा सकती ि। ऐसी गफाओ पर पलासटर और रग-रोगन वकरा गरा ा। अविषठाता बद की परवतमाए आकार म बडी ि और पदमपावण ता रजरपावण की परवतमाए आमतौर पर उनक अगरषिक क रप म बनाई गई ि। गफा स 12, जोवक एक वतमवजली गफा

गजासर वध, गफा सखया 15, एलोरा

लवकन र गफा स. 1 म सरवोततम रीवत स सरवषित ि। गफा स. 2 की कछ आकक वतरा रन‍गी की परवतमाओ स सबि रखती ि जबवक दसरी ओर, कछ परवतमाओ क वनरपण म वरदभव की मवतवकला का परभार भी दवषट-गोचिर िोता ि।

एलोराऔरगाबाद वजल म एक अन‍र मितरपणव गफा सल ि एलोरा। रि अजता स 100 वकलोमीटर की दरी पर वसत ि और रिा बौद, रिाहमण र जन तीनो तरि की 34 गफाए ि। दश म कलाओ क इवतिास की दवषट स रिी एक ऐसा अनपम सल ि जिा ईसा की

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भारतीय कला का पररचय42

ि, उसम तारा, अरलोवकत‍रर मानषी बदो और ररोचिन, अषिोभर, रतनसभर, अवमताभ, अमोरवसवद, रजरसतर और रजरराज की परवतमाए उपलबि ि। दसरी ओर रिाहमण िमव की तो एक िी दो मवजली गफा रानी गफा स. 14 ि। सतभो क वडजाइन बौद गफाओ म बनन शर िए और जब र वरकवसत िोत-िोत नौरी शताबदी की जन गफाओ म पिचि तो र अतरत अलकक त िो गए और उनक सजजातमक रप म भारी उभार आ गरा।

रिाहमवणक गफा स 13–28 म अनक परवतमाए पाई जाती ि। उनम स कई गफाए शर िमव को समवपवत ि परत उनम वशर और वरषण ता पौरावणक काओ क अनसार उनक अरतारो की परवतमाए परसतत की गई ि। शर का-परसगो म कलाश परवत को उठाए िए रारण, अिकासर रि, कलराण-सदर जस परसग सान-सान पर वचिवतरत वकए गए ि जबवक रषणर का-परसगो म वरषण क वरवभन‍न अरतारो को दशावरा गरा ि। एलोरा की परवतमाए अवतवरशाल ि, उनका आरतन बािर वनकला िआ ि जो वचितर की पररवि म गिराई उतपन‍न करता ि। परवतमाए भारी ि और उनम मवतवकला का शानदार परदशवन वकरा गरा ि। एलोरा म अनक कलाकार वभन‍न-वभन‍न सलो, जस—वरदभव (मिाराषटर), कनावटक, तवमलनाड आवद स आए और उन‍िोन परवतमाओ को उकरा ा। इसवलए मवतवकला की शवलरो की दवषट स भारत म इस अनक शवलरो का सगम सान किा जा सकता ि। गफा स. 16 को कलाश लनी किा जाता ि। रिा करल एक अकली गफा को काटकर एक शल मवदर बनारा गरा ि। इस रासतर म कलाकारो की एक अनपम उपलवबि किा जा सकता ि, इस पर अगल अधरार म भी चिचिाव की जाएगी। मितरपणव शर गफाओ म गफा स. 29 और 21 उललखनीर ि। गफा स. 29 की रोजना मखर रप स एवलफ टा जसी िी ि। गफा स. 29, 21, 17, 14, और 16 की मवतव कलातमक वरशषता वरशालता, समारकीरता और वचितर म परदवशवत गवतशीलता की दवषट स आ‍चिरवजनक ि।

एक अन‍र उललखनीर गफा सल बार ि। बाद वभवतत-वचितरा राली बार गफाए मधर परदश क िार वजला मखरालर स 97 वक.मी. की दरी पर वसत ि। र गफाए पराकक वतक निी ि, अवपत चिटानो को काटकर बनारी गई ि। र पराचिीन समर म सातरािन काल म बनारी गइ� ी। अजन‍ता जसी बार गफाओ का वनमावण कशल वशलपकारो दारा सीि बलए पतर पर वकरा गरा ि वजसका मख बरानी नामक मासमी नदी की तरफ ि। आज, मल नौ गफाओ म स करल पाचि गफाए बचिी ि वजसम स सभी वभषिओ क वरिार रा चितषकोण राल वरशाम सान ि। इनम लर कषिो क पीछ चितर अावत परा वना कषि िोता ि। इन पाचि गफाओ म सबस मितरपणव गफा स. 4 ि, वजस आमतौर पर रगमिल क नाम स जाना जाता ि जिा दीरार और छत पर वचितर अभी भी वदखाई दत ि। गफा सखरा 2, 3, 5 एर 7 म भी दीरारो और छतो पर वभवतत-वचितरो को दखा जा सकता ि। इसम लाल-भर रग क पतर क वकरवकर स तरार मोट पलसतर स इन दीरारो और छतो को बनारा गरा ा। इनम सबस सन‍दर वचितरो म स कछ गफा सखरा 4 क बरामद की दीरारो पर ि। भारतीर शासतरीर कला को और अविक िावन न िो इसवलए 1982 म इन वचितरो को गरावलरर क परातावतरक सगरिालर म पनःसावपत वकरा गरा वजन‍ि रिा दखा जा सकता ि।

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 43

एकलफ टा एव अनय सथलमबई क पास वसत एवलफ टा गफाए शर िमव स सबवित ि। र गफाए एलोरा की समकालीन ि और इनकी परवतमाओ म शरीर का पतलापन वनतात गिर और िलक परभारो क सा दवषट-गोचिर िोता ि।

चिटानो म काटी गई गफाओ की परपरा दककन म जारी रिी। र गफाए मिाराषटर म िी निी बवलक कनावटक म चिालकर राजाओ क सरषिण म मखर रप स बादामी र ऐिोली म ता आन‍धर परदश क वरजरराडा षितर म और तवमलनाड म पललर राजाओ क सरषिण म मखरत: मिाबलीपरम म पाई जाती ि। दश म ईसा की छठी शताबदी क बाद कला इवतिास का वरकास राजनीवतक सतर पर अविक िआ जबवक इसस पिल क ऐवतिावसक कालो म रि जनता क सामविक सरषिण म अविक फला-फला ा।

रिा वमटी की छोटी-छोटी आकक वतरो का उललख कर दना भी समीचिीन िोगा जो दश भर म सान-सान पर पाई गई ि। उनस रि परकट िोता ि वक पतर की िावमवक मवतवकला की परपरा क सा-सा समानातर रप स सरततर सानीर परपरा भी चिलती रिी ी। पकी वमटी की अनक परवतमाए वभन‍न-वभन‍न छोट-बड आकारो म सरवतर पाई गई ि वजसस उनकी लोकवपररता का पता चिलता ि। उनम स कछ वखलौन ि, कछ छोटी-छोटी िावमवक आकक वतरा ि और कछ वर‍रास क आिार पर कषटो ता पीडाओ क वनरारण क वलए बनाई गइ� लर मवतवरा ि।

पतववी भारत की गफा परमपरापव‍चिमी भारत क समान, परती भारत म भी वरशषकर आन‍धर परदश और ओवडशा क तटीर षितरो म बौद गफाओ का वनमावण िआ। आन‍धर परदश म एलर वजल म वसत गटापलली इनम स एक परमख सल ि। मठो की सरचिना क सा पिाडो म गफाओ का वनमावण िआ

एकलफ टा गफा दवार

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भारतीय कला का पररचय44

ि। समभरत: रि एक ऐसा वरशष सल ि जिा सतप, वरिार एर गफाओ का एक सान पर वनमावण िआ ि। गटापलली क चितर की गफा गोलाकार ि एर पररश दार चितर क रप म बना ि। पव‍चिमी भारत की अन‍र गफाओ की तलना म र गफाए छोटी ि। वरिार गफाओ का वनमावण अविक सखरा म िआ ि। अविक छोटी िोन क बारजद मखर वरिार गफाए बािर स चितर तोरणो स सजी ि। र गफाए आरताकार ि वजनकी छत मिराबदार ि, जो वबना बड कषि क एक मवजली रा दो मवजली ि। इनका वनमावण ईसा परव दसरी शताबदी म िआ ा। इसक बाद क काल म कछ वरिार गफाओ का वनमावण िआ। गटापलली क अवतररकत रामपरमपललम एक अन‍र मितरपणव सल ि, जिा पिाडी क ऊपर चिटान

उियकगरर-खडकगरर गफा, भवनशवर क समीप

बरामिा, उियकगरर-खडकगरर

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भारतीय कला और सापतय म मौययोततर कालीन परवतततया 45

अभयास1. साचिी क सतप सखरा 1 की भौवतक एर सौदरव वरवशषटताओ का रणवन कर।2. पाचिरी एर छठी शताबदी ईसरी म उततर भारत मवतवकला की शलीगत पररकवततरो का

वर‍लषण कर।3. भारत क वरवभन‍न भागो म गफा आशरो स एलोरा क एका‍म मवदर तक रासतकला का वरकास

वकस परकार िआ?4. अजता क वभवतत-वचितर करो वरखरात ि?

को काटकर एक छोट सत प का वनमावण िआ ि। वरशाखापटनम (आधर परदश) क समीप अनकापलली म गफाओ का वनमावण िआ और चिौी-पाचिरी शताबदी ईसरी म पिाडी क ऊपर चिटान काटकर एक बडा-सा सतप बनारा गरा। रि एक ऐसा वरवशषट सल ि जिा चिटान काटकर दश क सबस बड सतप का वनमावण िआ। इस पिाडी क चिारो ओर पजा करन क वलए अनक सतपो का वनमावण वकरा गरा।

ओवडशा म भी चिटान काटकर गफा बनान की परमपरा रिी। खडवगवर-उदरवगवर इसक सबस आरवभक उदािरण ि जो भरन‍रर क समीप वसत ि। र गफाए फली िई ि वजनम खाररल जन राजाओ क वशलालख पाए जात ि। वशलालखो क अनसार, र गफाए जन मवनरो क वलए ी। इनम स कई मातर एक कषि की बनी ि। कछ गफाओ को बडी चिटानो म पश का आकार दकर बनारा गरा ि। बडी गफाओ म आग सतभो की कडी बनाकर बरामद क वपछल भाग म कषिो का वनमावण वकरा गरा ि। इन कषिो क पररश का ऊपरी भाग चितर तोरणो और आज भी परचिवलत सानीर लोक गााओ क सदभव स ससवजजत ि।

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सततप

स. 1

, साच

ीभारतीर कला का पररचिर46

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भोपा

ल (म

धर पर

दश) स

लगभ

ग 50

वकल

ोमीट

र की द

री पर

वसत

साचि

ी रनस

को द

ारा र

ोवषत

एक वर

‍र

िरोि

र/वरर

ासत

सल

ि। र

िा अ

नक छ

ोट-ब

ड सत

प ि

वजनम

स त

ीन म

खर ि

अा

वत सत

प स .

1, स

तप स

. 2

और स

तप स

. 3। ऐ

सा म

ाना ज

ाता ि

वक सत

प स .

1 म

बद

क अ

रशष

ि; सत

प स .

2 म

उनस

कम

परवसद

उन

10

अिवत

ो क अ

रशष

ि जो

तीन

अल

ग-अ

लग

पीवढ

रो क

, उ

नक न

ाम उ

नकी अ

रशष

पवटक

ाओ प

र वल

ख ि

ए ि

और स

तप स

. 3 म

सारर

पतत औ

र मिा

मौगग

लार

न क

अरश

ष रख

ि।

सतप

स . 1

जो न

ककाश

ी क वल

ए परव

सद ि

, सतप

रास

तकल

ा का ए

क उ

तककषट

उदा

िरण

ि। अ

पन म

रप

म रि

सतप

एक इ

�टो क

ा छोट

ा ढाचि

ा ा ज

ो आग

चिलक

र बडा

बना

वदरा

गरा

और प

तर,

रवदक

ा और

तोरण

(दार)

स स

सवजज

त क

र वदर

ा गरा

। अश

ोक वस

ि श

ीषव स

तभ, ए

क वश

लाल

ख क

सा

इस

सतप

दवषि

ण क

ी ओर प

ारा ज

ाता ि

, वजस

स पत

ा चिल

ता ि

वक स

ाचिी म

मठी

र एर

कल

ातमक

वकररा

कल

ाप क

क र

प म

गवतव

रवि

कस

परारभ

िई।

सबस

पिल

दवषि

ण क

ी ओर पर

रश द

ार बन

ारा ग

रा, उ

सक ब

ाद अ

न‍र

दार ब

न। स

तप क

चिारो

ओर पर

दवषि

णा प

भी

ि, ऐ

सा पर

दवषि

णा प

इस

ी सल

पर प

ारा ज

ाता ि

और क

िी

निी।

सतप

क चि

ारो द

ार सर

र बद

क ज

ीरन

की व

रवभन‍

न रट

नाओ

और म

ितरप

णव रट

ना-स

लो प

र अश

ोक

क ज

ान क

बार

म ऐव

तिावस

क आ

खरान

ो स स

बवित

द‍र

ो स प

री तर

ि सज

िए

ि। ब

द क

ो परती

कातम

रप

स ख

ाली व

स िास

न, प

द, छ

तर, स

तप आ

वद क

सा

वदख

ारा ग

रा ि

। चिारो

वदश

ाओ म

तोरण

बन

ि ए ि

। इन

की श

वलरो

म अ

तर प

ारा ज

ाता ि

वजसस

रि

अनम

ान ल

गारा

जा स

कता

ि वक

इनक

वनमा

वण क

ा समर

ईस

ा परव

पिल

ी शता

बदी औ

र उस

क ब

ाद क

ा ि। स

तप स

. 1 स

बस प

राना स

तप ि

लवक

न सत

प स .

2 क

ी रव

दका प

र जो आ

क कवत

रा उ

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गई ि

, र स

तप स

. 1 स

पिल

की ि

। जात

क इ

न आ

खरान

ो क म

ितरप

णव अ

ग ि।

रसस

ात ज

ातक

, शम

जातक

, मिा

कवर

जात

क, छ

न‍द ज

ातक

उन

मितर

पणव ज

ातक

ो म स

ि ज

ो सतप

तोरण

ो और स

तभो प

र वचिव

तरत वक

ए गए

ि। स

ाचिी स

तपो प

र पाई

जान

राल

ी आक क

वतरा

, आरा

म म

छोटी

िो

त ि ए

भी म

वतवक

ला क

ी कश

लता

दश

ावती ि

। उनम

शरीर

क अ

ग-परत

रग क

ा जो र

पाक क

वतक

वचितरण

वकरा

गर

ा ि, र

ो गिर

ाई औ

र आरा

म दो

नो ि

ी दवषट

रो स

अतर

त सर

ाभावर

क ि

। सरो

जन भ

ीड-भ

ाड भ

रा ि

और

आक क

वतरो

की प

रसपर

वरावप

त स

जो

ोडा ख

ाली स

ान

बचि ज

ाता ि

, उसक

ा रिा

पणव

अभा

र ि।

मदा

तमक

मो

डो स

शरीर

की ग

वत द

शावर

ी गई

ि। उ

नकी ि

लचिल

म स

रचिना

तमक

समर

सता औ

र अवभ

न‍नता

दख

न क

ो वम

लती

ि। स

तभो प

र सरषि

क आ

क कवत

रा ि

और श

ालमव

जका (

पड क

ी शाख

ा पक

ड ि ए

सतरी)

की आ

क कवत

रा

आरत

न क

परसत

तीक

रण म

बजो

ड ि।

सतप

स खरा

2 क

ी पिल

राल

ी परवत

माओ

जसी

कठो

रता इ

नम वद

खाई

नि

ी दती

। परतर

क त

ोरण म

दो स

ीि ख

ड सत

भ औ

र उनक

ी चिोट

ी पर त

ीन आ

डी द

वडक

ाए ि

। परतर

क आ

डी

दवडक

ा आग

स पी

छ तक

वभन‍न

-वभन‍न

परवत

मा वर

षरो स

अल

क कत

ि। न

ीचि क

ी दवड

का स

भी आ

ग तक

बढी

िई

आडी

दवड

का प

र शाल

मवजक

ाओ क

ी आक क

वतरा

बनी

िई

ि।

भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 47

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पदासन म बदध, कटरा टीला, मरा

भारतीर कला का पररचिर48

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आरवभक ऐवतिावसक काल म मरा मवतव उतपादन का एक वरशाल

क द ा और रिा स कई मवतवरा वमली ि। कशाण काल तक की जो

परानी मवतवरा वमली ि, उनम मरा स वमली मवतवरो की सखरा भी

काफी अविक ि। मरा म मवतव बनान का तरीका अलग वकसम का

ा इसवलए रिा पाई गई मवतवरा दश क अन‍र भागो म बनी मवतवरो स

वभन‍न ि। कटरा टील स वमली बद की परवतमा ईसा की दसरी शताबदी

की ि। इसम बद को दो सिारक बोविसतरो क सा वदखारा गरा ि।

बद पदमासन म (पाली भरकर) बठ िए ि और उनका दाविना िा

अभर मदा म कि क सतर स कछ ऊपर उठा िआ और बारा िा

बाइ� जार पर रखा िआ वदखारा गरा ि। ऊषणीर रानी कश गरव को

वसर पर सीिा उठा िआ वदखारा गरा ि। मरा की मवतवरा इस काल

स िलक आरतन और मासल शरीर क सा बनाई गई ि, कि चिौड ि।

सरवत (पोशाक) एक िी कि को ढकती ि और उस खासतौर स बाए

िा स ढकत िए वदखारा गरा ि जबवक सरवत का सरततर भाग जो

रषिसल को ढक िए ि शरीर क िड तक िी रखा गरा ि। बद वसिासन

पर वरराजमान वदखाए गए ि। सा की आकक वतरो को पदमपावण और

रजरपावण बोविसतरो क रप म पिचिाना जाता ि करोवक एक क िा

म पदम (कमल) और दसर क िा म रजर ि और र मकट पिन िए बद की दोनो ओर वसत ि। बद क वसर क चिारो ओर जो

परभामडल वदखारा गरा ि रि बित बडा ि और सक वदक रकतत म सरल जरावमतीर आकक वतरा वदखाई गई ि। परभामडल क

ऊपर कोणीर रप स उडती िई दो आकक वतरा वदखाई गई ि। र वचितर की सीमा क भीतर काफी गवत दशावती ि। आकक वतरो म

परव की कठोरता क सान पर नमरता आ गरी वजसन उन‍ि अविक पाव वर रप द वदरा। शरीर क मोडो को इतनी सकोमलता

क सा उकरा गरा ि वक मानो रि नारी आकक वत िो। रिी मरा क मवतवकारो दारा वनवमवत परष और सतरी आकक वतरो का

वरवशषट अतर दशावती ि। पदमासन लगाकर सीि बठ िए बद की परवतमा ररकत सान म गवत उतपन‍न करती ि। चििरा मासल

कपोलो क सा गोल ि। पट को कछ आग वनकला िआ वदखारा गरा ि लवकन रि वनरवतरत ि। रि जातवर ि वक मरा म

कशाण काल की परवतमाओ क अनक नमन वमल ि परन‍त रि मवतव पररतती कालो म बद की परवतमा क वरकास को समझन

की दवषट स बित मितरपणव ि।

भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 49

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बदधमख की परततमा, तकषतिला

भारतीर कला का पररचिर50

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आज क पावकसतान क पराचिीन गािार षितर म वसत तषिवशला स परापत बद की

परवतमा ईसा की दसरी शताबदी क कशाण काल की ि। रि परवतमा गािार काल

म वरकवसत अनक वचितरातमक पररपावटरो का वमला-जला रप ि। परवतमा क

सररप म कई रनानी-रोमन ततर पाए जात ि। बद क शीषव म अनक रनानी

वकसम क ततर ि जो समर क सा वरकवसत िए ि। बद क ररराल

कश रन ि और वसर को तज और रखीर परत स ढक िए ि। मसतक

समतल ि और उसम बडी-बडी पतवलरो राली आख अिवमचिी

वदखाई गई ि। चििरा और कपोल भारत क अन‍र भागो म पाई

गइ� परवतमाओ की तरि गोल निी ि। गािार षितर की आकक वतरो

म कछ भारीपन वदखाई दता ि। कान और वरशष रप स उनक

लटक िए भाग (ललरी) लब ि। रप क परसततीकरण म रवखकता

ि और बािरी रखाए तीखी ि। सति समतल ि। आकक वत बित

भारावभवरजक ि। परकाश और अिर क पारसपररक परभार

पर परावपत धरान वदरा गरा ि वजसक वलए नतर-कोटरो को

मोडकर तलो और नाक क तलो का उपरोग वकरा गरा ि।

परशातता की अवभवरवकत आकषवण का क द वबद बन गरी ि।

मखमडल परवतरपण वतर-आरावमता की सराभावरकता बढा

रिा ि। एकमवनराई, पाव वराई और बवकटरराई परमपराओ की

वरवभन‍न वरशषताओ का सानीर परपरा क सा सवममलन

गािार शली की एक परमख वरशषता ि। गािार शली की

परवतमाओ म रनानी-रोमन परपरा क रपाकक वतक लषिण पाए जात ि परत उनम

अगो-परतरगो का परसततीकरण कछ ऐसा भी ि वजस परी तरि रनानी-रोमन निी

किा जा सकता। अनक बद ता अन‍र परवतमाओ क वरकास क सोत उनकी

वरवशषट पव‍चिमी एर परती शली म दख जा सकत ि। रि भी उललखनीर ि वक

भारत का पव‍चिमोततर भाग जो पावकसतान म चिला गरा ि, आदय-ऐवतिावसक

काल स िी लगातार बसा िआ रिा ि। एवतिावसक काल म भी रि सदा आबाद

रिा। गािार षितर स बडी सखरा म मवतवरा पाई गई ि। र मवतवरा बद और

बोविसतरो की ि और उनम बद क जीरन की रटनाओ ता जातक काओ

का परसततीकरण वकरा गरा ि।

भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 51

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आसनस बदध, सारना

भारतीर कला का पररचिर52

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बद की रि परवतमा ईसा की पाचिरी शताबदी क उततरादव की ि जो सारना स वमली ी और अब सारना क सलीर सगरिालर म सरवषित ि। रि चिनार क बलआ पतर स बनी िई ि। इसम बद को पदमासन लगाए िए वसिासन पर वरराजमान वदखारा गरा ि। रि िममचिकरपररतवन क परसग का परवतरपण ि, जसा वक वसिासन पर बठी िई अन‍र आकक वतरो म दखा जा सकता ि। बीचि म एक छातर और दो विरण मानर आकक वतरो क सा वदखाए गए ि। इस परकार इस एवतिावसक रटना को परसतत वकरा गरा ि।

बद की रि परवतमा सारना शली की परवतमाओ का एक उततम उदािरण ि। शरीर पतला और सतवलत ि, लवकन कछ लबा वदखारा गरा ि। बाहम रखाए सकोमल और अतरत लरबद ि। वचितर क सान म द‍र सतलन बनान क वलए मडी िई टागो को सीिा वदखारा गरा ि। अग-रसतर शरीर स वलपटा िआ ि और एकीकक त आरतन का परभार उतपन‍न करन क वलए पारदशती ि। चििरा गोल ि, आख आिी वमचिी ि। नीचि का िोठ आग बढा िआ ि। कषाण काल की मरा स परापत पिल राली परवतमाओ की तलना म कपोलो की गोलाई कम िो गई ि। िा िममचिकरपररतवन की मदा म छाती स नीचि रख वदखाए गए ि। गदवन कछ लबी ि। इस पर दो कटी रखाए ि जो बलन (मोड) की सचिक ि। ऊषणीर गोलाकार ररराल कशो स बना ि। पराचिीन भारत म मवतवकारो का उद‍र सदर बद को एक ऐस मिामानर क रप म परसतत करना ा वजन‍िोन वनरावण रानी करोि एर रकणा स छटकारा परापत कर वलरा ा। वसिासन क पकषठभाग को एक सक वदक रकतत म वभन‍न-वभन‍न फलो और बलो क नमनो स अतरत अलकक त वदखारा गरा ि। परभामडल का क दीर भाग सादा-समतल ि, रिा कोई सजजा निी की गई ि। इसस परभामडल दखन म बित परभारशाली बन गरा ि। परभामडल क भीतर और वसिासन की पीठ पर की गई सजारट कलावशलपी की सरदनशीलता और वरशष सजजा क चिरन की सचिक ि। इस काल की सारना बद की परवतमाए सति और आरतन दोनो क परसत तीकरण म परावपत कामलता दशावती ि। अगरसतर की पारदवशवता शरीर का विससा बन गई ि। ऐसा पररषकार आन म काफी समर लगा िोगा और र लषिण आग भी जारी रि।

सारना म खडी मदा राल बद की और भी बित-सी मवतवरा वमली ि वजनका रसतर पारदशती वदखारा गरा ि, गवत एक समान ि ता उन‍ि िमवरावजका सतप क चिारो ओर अलग-अलग उकरा गरा ि और र सारना क सगरिालर म रखी िई ि। इनम स कछ तो अकल बद की ि और कछ म बद को बोविसतर पदमपावण और रजरपावण क सा दशावरा गरा ि।

भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 53

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पदमपाकण बोकधसतवअजता, गफा स. 1

भारतीर कला का पररचिर54

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रि वचितर अजता की गफा सखरा 1 म पजागकि स पिल वसत आतररक बड कषि की वपछली दीरार पर वचिवतरत ि। इनम बोविसतर को एक पदम (कमल) पकड िए वदखारा गरा ि। उनक कन‍ि बड ि। शरीर म तीन मोड ि वजनस वचितर म गवत उतपन‍न िई वदखाई दती ि। परवतरपण सकोमल ि, बािरी रखाए शरीर क आरतन म वरलीन परती त िोती ि वजसस वतरआरावमता का परभार उतपन‍न िोता ि। बोविसतर एक बडा मकट पिन िए ि वजसम वरसतकत वचितरकारी दवषटगोचिर िोती ि। वसर ोडा-सा बाइ� ओर झका ि। आख आिी वमचिी ि और कछ लबी बनाई गरी ि। नाक तीखी और सीिी ि। चििर क सभी उभर िए विससो पर िलका रग वकरा गरा ि वजसका उद‍र वतर-आरावमता का परभार उतपन‍न करना ि। मनको राल िार म भी ऐसी िी वरशषता पाई जाती ि। चिौड और फल िए कि शरीर म भारीपन उतपन‍न करत ि, िड का भाग अपषिाकक त गोलाकार ि। रखाए कोमल और लरबद ि और शरीर की परररखा को दशावती ि। दाविन िा म एक कमल पषप ि और बारा िा खाली जगि पर बढा िआ ि। बोविसतर क चिारो ओर अन‍र कई छोटी-छोटी आकक वतरा बनी ि।

बािर की ओर वनकल िए रगीन खड (बललॉक) वचितर क आराम म गिराई का परभार उतपन‍न करत ि। बोविसतर का आग की ओर कछ वनकला िआ दारा िा आकक वत को अविक ठोस और परभारी रप स गिन बनाता ि। िड भाग क ऊपर का िागा आराम दशावन राली शडाकार रखाओ क सा वदखारा गरा ि। शरीर क परतरक भाग क वचितरण पर परा धरान वदरा गरा ि। िलक लाल, भर, िसर, िर और नील रगो का परराग वकरा गरा ि। नाक का उभार, िोठो का कटा िआ कोना, आग बढा िआ वनचिला िोठ और छोटी ठडडी, सब वमलकर आकक वत की रचिना म ठोसपन (एकरपता) का परभार लान म रोगदान द रि ि। गफा स 1 क वचितर अचछी वकसम क ि और उन‍ि ठीक स रखा गरा ि। अजता क वचितरो म कछ परकारातमक और शलीगत वरवभन‍नताए दखी जा सकती ि, वजनस एसा परतीत िोता ि वक अजता की गफाओ म कई शतावबदरो क दौरान कला-वशवलपरो की वभन‍न-वभन‍न शवणरो न वचितरण का कारव वकरा ा।

पदमपावण की उपरवकत आकक वत क दसरी ओर रजरपावण बोविसतर को वचिवतरत वकरा गरा ि। रजरपावण दाविन िा म रजर वलए िए और वसर पर मकट पिन िए ि। इस आकक वत म भी रो सब वचितरातमक वरशषताए पाई जाती ि जो ऊपर पदमपावण क बार म बताई गई ि, जस—मिाजनक जातक, उमग जातक आवद। मिाजनक जातक की का सपणव दीरार पर वचिवतरत की िई ि और रि सबस बडा आखरान वचितर ि। ऐसा परतीत िोता ि वक पदमपावण और रजरपावण ता बोविसतरो क वचितरो को इस पवरतर सल क अवभरषिक क रप म वचिवतरत वकरा गरा ि। अजता की अन‍र गफाओ म भी ऐस िी पदमपावण और रजरपावण क वचितर सरवोततम वचितर मान जात ि।

भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 55

गफा सखया 2, अजता

महाजनक जातक क कचतरगफा सखया 1, अजता

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मार तवजय, अजता, गफा स. 26

भारतीर कला का पररचिर56

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मार वरजर का वरषर अजता की कई गफाओ म वचिवतरत वकरा गरा ि। रिी एक मवतवकलातमक परवतरपण ि वजस अजता की गफा सखरा 26 की दाविनी दीरार पर परसतत वकरा गरा ि। रि मवतव बद की मिापररवनबबाण की वरशाल परवतमा क पास म बनाई गई ि। मवतव फलक म बद की आकक वत को बीचि म मार की पतरी और सना स वररा िआ वदखारा गरा ि। रि रटना बद क जानोदर का विससा ि। इसम वसदा व क उस मानवसक सषिोभ की वसवत का मानरीकरण वकरा गरा ि वजसस िोकर बद को बदतर-परावपत (जानोदर) क समर गजरना पडा ा। मार काम रावन इचछा का दयोतक ि। आखरान क अनसार, बद और मार क बीचि सराद िोता ि और बद को अपन दाविन िा स िरती की ओर अपनी उदारता क परवत एक साषिी क रप म इशारा करत िए वदखारा गरा ि। रि उभरा िआ परवतमा फलक अतरत जीरत ि और अजता की अवतपररपकर मवतवकला का उदािरण ि। रि रचिना अनक छोटी-बडी परवतमाओ क सा परसतत की गई ि। आकक वत क दाविन ओर मार को अपनी वरशाल सना क सा आत िए वदखारा गरा ि। उसकी सना म तरि-तरि क आदमी िी निी बवलक वरकक त चििरो राल अनक जानरर भी ि। वनचिल आिार म सगीतकारो क सा नाचिती िई आकक वतरो की कमर आग वनकली िई वदखाई गई ि। एक नाचिती िई आकक वत न अपन िा ो को नकतर की मदा म आग बढा रखा ि। बाइ� ओर वनचिल वसर पर मार की परवतमा को रि सोचित िए वदखारा गरा ि वक वसदा व (बद) को कस वरचिवलत वकरा जाए। फलक क आि विसस म मार की सना को बद की ओर बढत िए वदखारा गरा ि, जबवक फलक क वनचिल आि विसस म मार की सना को बद की आरािना करक रापस लौटत िए वदखारा गरा ि। बीचि म बद पदमासन लगाकर वरराजमान ि और उनक पीछ एक रनी पवततरो राला रकषि वदखारा गरा ि। मार क सवनको क चििर की कछ वरशषताए वरदभव शली की परवतमाओ की वरशषताओ स वमलती-जलती ि। अजता की गफाओ म कलावशवलपरो की वभन‍न-वभन‍न शवणरो न काम वकरा ा इसवलए रिा की शलीगत वरशषताओ क अरलोकन स रि अनमान लगारा जा सकता ि वक अमक परवतमा अमक शली क वशवलपरो दारा बनाई गई िोगी। िालावक अजता की गफाओ म और भी कई बडी परवतमाए ि जो खासतौर पर पजा कषि म और अगरभाग की दीरारो पर ि परन‍त परवतमाओ का एसा जवटल वरन‍रास बजोड ि। दसरी ओर वचिवतरत फलको म भी अनक वरन‍रास म एसी िी जवटलताए दखन को वमलती ि। एक फलक म नाचिती िई आकक वतरो का ऐसा िी वरन‍रास औरगाबाद की गफाओ म भी दखा जा सकता ि।

भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 57

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एतल

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ततिभारतीर कला का पररचिर58

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भारतीर कला और सापतर म मौरवोततर कालीन पररकवततरा 59

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क.ख.ग.

घ.

ङ. च.

भारतीय तभततत तचतर परपरा

क. अनत, अनतपिमनाभ मकिर, कसरगोडख. वाराह को मारत हय कशव—ककराताजमिनीय

परकरण, लपाषिी मकिरग. चोल नरश राजराज एव राज ककव करवरिवर,

तजावर, गयारहवी शताबिीघ. कतरपरासर वध करत हए कशव, तजावर ङ. रावण वध करत हए राम, रामायणपटट,

म�नचरी महलच. शासत, पदमनाभपरम, थककल