सुन सािहबा सुन, िमलेिन्ल धुन · का खर्ष...

Post on 21-Aug-2020

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  • विदेश यात्ा को लेकर बढ़ता आकर्षण हमें अपने इर्षगिर्ष भी गरख रहा है, लेगकन ररजर्ष बैंक के ताजा आंकड़ों ने बाकायरा इसकी पुष्टि कर री है। इन आंकड़ों के मुतागबक इस साल जून महीने में ही रेशरागसयों ने 59.6 करोड़ डॉलर (करीब 4000 करोड़ रुपये) गररेश यात्ा पर खर्ष गकए हैं जो गपछले साल इसी महीने गकए िए खर्ष का तकरीबन डेढ़ िुना है। गतमागहयों के गहसाब से रेखें तो इस साल की पहली गतमाही (अप्ैल

    से जून) में गररेश यात्ाओं पर रेशरागसयों का खर्ष 159.4 करोड़ डॉलर (करीब 11300 करोड़ रुपये) रज्ष गकया िया, जो गपछले साल की इसी अरगि में मात् 100 करोड़ डॉलर (करीब 7000 करोड़ रुपये) था। ररड्ड टिूररजम ऑि्षनाइजेशन के आंकड़े भी भारतीयों की बढ़ती घुमककड़ी पर मोहर लिाते हैं। इन आंकड़ों के मुतागबक 2017 में गररेश यात्ा पर जाने राले भारतीयों की संखया मात् 2.4 करोड़ थी जो इस साल 5 करोड़ हो जाएिी। अभी

    सौ-डेढ़ सौ साल पहले तक भारतीय समाज का एक बड़ा गहससा समुद्र पार जाने को िम्षहागन के रूप में रेखता था। ऐसे समाज के लोि आज अिर रुगनया में कहीं भी मौज करते गरख जाते हैं तो अनय बातों के अलारा इसे भारतीयों के बढ़े हुए आतमगरशरास का सबूत भी माना जाना रागहए। बाहर की रुगनया अब हमें पराई और अपनी पहुंर से रूर नहीं लिती। इससे आिे िौर करने की बात अिर कुछ है तो यह गक गररेश यात्ाओं के इस बढ़ते क्ेज के पीछे गसर्फ रुगनया रेखने की मंशा है, या अपने रेश के पय्षटिन गिकानों को लेकर उपेक्ा और गहकारत का भार भी इसमें कोई भूगमका गनभा रहा है। गररेश यात्ा हमारे यहां सोशल सटिेटिस से जुड़ िई है, इसगलए बहुत संभर है गक रेश के अरंर शानरार प्ाकृगतक रृशयों का आनंर लेने के बजाय जैसे-तैसे गररेश हो आने और इस तरह समाज में अपनी नाक ऊंरी करने की भारना भी इसके पीछे सगक्य हो। यह अकारण नहीं है गक प्िानमंत्ी नरेंद्र मोरी ने इस बार लालगकले से गरए िए अपने ऐगतहागसक भारण में रेशरागसयों से रेश के अरंर के रमणीक सथानों में घूमने, रहां बार-बार जाने का आग्रह गकया। यह यार करना जरूरी है गक ररींद्रनाथ टिैिोर से लेकर महातमा िांिी और जराहरलाल नेहरू तक हमारे रेश की तमाम गरभूगतयों ने रुगनया के अलि-अलि गहससों में जाकर उनकी खूगबयां रेखने और उनसे सीख लेने में कभी कोताही नहीं बरती। लगेकन उनकी इस सगक्यता के पीछे कोई आतमहीनता नहीं थी, इसगलए बाहर से सीखे हुए सबक बार में उनहोंने अपने समाज पर आजमाए और इस क्म में रुगनया पर अपनी अलि छाप छोड़ी। तातपय्ष यह गक गररेश घूमने हम जरूर जाएं लेगकन हो सके तो इस गरक् के साथ गक हमारी अपनी जिहें भी रुगनया के रेखने लायक कैसे बनें।

    दुविया देखें मगरतेजी से बढ़ रहा है गररेश यात्ाओं का खर्ष

    देसी नहीं, इंटरनैशनल टूर

    ऑफ िद �ैक

    चंद्रभूषण

    पािी के बार ेमें हम इतना जानत ेहैं गक कुछ और जानन ेकी गकस ेपड़ी ह?ै लेगकन रजै्ागनकों की भगर्यराणी है गक मौजरूा सरी की ही गकसी तारीख में रगुनया के गलए पानी पटे्ोगलयम स ेजयारा महतरपणू्ष हो जाएिा, सो गरलरसपी मर-मर कर गजरंा हो जा रही ह।ै हकीकत यह है गक रगुनया में पानी की कोई कमी नहीं ह,ै लगेकन उसका गजतना गहससा सीि ेकाम में लाया जा सकता था, रह लिभि सारा का सारा लाया जा रकुा है। िरती का 97 रीसरी पानी समदु्री ह,ै गजस ेखार ेस ेमीिा बनाना अिर कभी ससता हो सका तो भी उसकी मात्ा सीगमत होिी। बरे 3 रीसरी का 70 प्गतशत ध्रुीय इलाकों या गलेगशयरों में ह,ै गजसपर हाथ लिाना गरनाश का एकसीलरटेिर रबान ेजैसा ही होिा। बडे़ पैमान ेपर रखेें तो पानी की रलु्षभता का हाल यह ह ैगक पथृरी के सार ेपड़ोसी गपडंों रदं्रमा, शकु्, मिंल और बिु पर यह या तो गसर ेस ेनरारर है, या कहीं अरशरे रूप में ह ैभी तो मौजरूा टेिक्ॉलजी स ेबारटिी भर पानी जटुिान ेमें भी शायर भारत के जीडीपी गजतनी रकम खर्ष करनी पड़ जाए। जम्षनी की मयंुसटिर यूगनरगस्षटिी के शोिकता्ष हाल में मॉगलबडेनम आइसोटिोपस पर काम करके इस नतीजे पर पहंुर ेहैं गक सौरमडंल के बाकी रट्ानी ग्रहों की तरह पथृरी के गलए भी पानी कोई प्ाकृगतक रसत ुनहीं ह।ै इसकी सराभागरक उपषसथगत बहृसपगत या उसस ेरूर के ग्रहों पर ही मानी जा सकती ह।ै पृथरी बनने के 10 करोड़ साल बार उसी तरर स ेआए गजस गपंड की टिककर स ेरदं्रमा की सषृ्टि हईु, िरती का सारा पानी उसी की रने है। सो, बात पानी की हो तो जरा सभंल के!

    यह पािी हमारा िहीं

    नवभारत टाइमस । नई ददलली। शदनवार, 17 अगसत 2019

    संवाद

    हजरत विजामुद्ीि सटेिशन स ेबाहर गनकल कर मैं ररंि रोड पर आया था। इदं्रप्सथ मटे्ो सटेिशन जान े के गलए सरारी का इतंजार करन ेलिा। आसमान काल ेबारलों से गघरा हुआ था। खुश था गक गररली की सड़ी िममी से सामना नहीं होिा। मंुबई जसैा ही रील होिा। लेगकन अिल ेही पल गरमाि में सराल कौंिा गक गररली में मुबंई को महससू करन ेकी इचछा कयों? गजस शहर में ररषों गबताया और गजसने सखु-रखु में साथ गनभाया, आज उसके साथ ररशते में पराएपन का बशेम्ष-भार कयों आ िया? अपनी शगमिंरिी की झेंप गमटिा ही रहा था गक अरानक तजे बाररश शुरू हो िई। बाररश के कारण हर आरमी इिर-उिर भािने लिा। मैं भी भािा। रुटिपाथ पर रैली रकुानों में गसर छुपान ेके बजाए फलाई ओरर के नीरे रला िया।

    रखेा, रहा ंजसै ेएक बसती बसी हईु ह।ै र ेखानाबरोश थे या िारं स ेपलायन कर रोजी-रोजिार की तलाश में आने राल ेलोि- नहीं पता। लगेकन कई प्रशेों का गमला-जलुा माहौल था। उस छत के नीर ेकुछ औरतें बगेरक् खाना बना रही थीं और कुछ िप-शप में मशिलू थीं। कई मर्ष गरन में ही नींर ल ेरह ेथ,े कुछ बाररश स ेबरन ेआए लोिों की उपषसथगत के बारजरू ‘पत्ी’ को पयार करन ेमें वयसत थ।े रखेन ेरालों की एक ही गटिपपणी थी गक इतनी गनल्षज्जता कहा ंस ेआती ह ैइन लोिों में, जबगक यहा ंबच् ेभी मौजरू हैं? मरेे मन में एक गजज्ासा परैा हुई और बिल में खडे़ सज्जन से पूछा गक य ेलोि गरन में सो रह ेहैं तो काम कब

    करत े होंि?े खाना-खरा्ष कहा ं स े रलता होिा? उनका सीिा जराब आया गक काम कया करिेा, रात में रोरी-रकारी करता होिा इसगलए गरन में सो रहा है। यह बात उस ‘बसती’ की एक औरत को रभु िई। उसन ेआखंें तररे कर रखेा और कहा गक ‘हम लोि न तो रोरी-रकारी करत े हैं

    और न कोई भीख मािंता ह।ै उिर रगेखए, हमारे बच्े रौराह-ेरुटिपाथों पर भीित ेहएु भी कुछ न कुछ बरे रहे हैं। हम लोि भी आसपास के घरों में सार-सराई और रौका-बत्षन करत े हैं।’ साथ राल ेसज्जन न े टिोका, ‘मैं तो मरषों की बात कर रहा था।’ इस सराल पर उस औरत न ेअपनी नजर रसूरी तरर रेर ली। बस इतना ही कहा गक गजस ेबिेै-गबिाए खान-ेपीन ेकी आरत हो िई हो, रह काम कया करिेा?

    उसके कह ेका मतलब समझन ेकी कोगशश कर ही रहा था गक एक रीख िूजंी। एक औरत गबसतर स ेभािन ेकी कोगशश कर रही थी। उसका मर्ष था गक जबर्षसती अपनी ओर खींर रहा था। अजीब नजारा बन िया। ‘बसती’ के लोिों में कोई हलरल नहीं हुई। रोनों सत्ी-परुुर िरंी-िरंी िागलयों की नमुाइश करन ेलि।े मर्ष न ेजब िुसस ेमें ताबड़तोड़ हाथ-परै रलाया तो औरत रंुरकार उिी। कया-कया नहीं कहा, गनिरला, कामरोर, नशडे़ी...। मलेै-कुरलैे कपड़ों में गलपटिा रह मर्ष अपमान से गतलगमला उिा और गररलाकर कहा, ‘इसी गनिरले न ेतमुहें िौर-गिकाना गरया ह,ै सड़क स ेउिाकर गबसतर पर गबिाया, ररना लोि नोर कर खा जात।े हमन ेतो पूरी छूटि री गक तमुको जो करना हो करो, जैस ेभी पसै ेकमाना हो कमाओ। रात में कहां-कहां जाती हो, हमन ेकभी पछूा कया?’ रह औरत रोने लिी थी। मैं अराक खड़ा गररली स ेअपन ेसंबिं को भलू िया और सोरन ेलिा गक रुटिपाथ पर उपज ेइन रोनों के इस ररशते को कौन सा नाम गरया जा सकता ह?ै

    चलते-चलते...इस साल जनू-जलुाई में जसैी आग बरसी, वसैी कभी नहीं बरसी थी। नशैनल ओशननक एडं एटमॉस फ्ेररक एडनमननसट्रेशन कफे मतुानबक दज्ज इनतहास कफे सबस ेज्ादा गम्ज इन दो महीनों में अलासका, पश्चिमी कनाडा और मध् रूस जसै ेबहेद ठंडरे इलाकों में भी लोगों को कपडरे उतारने पड गए। इस दौरान पूरी धरती का तापमान सामान् औसत वशै्वक तापमान स े0.95 नडग्ी स.े ज्ादा रहा। इससे पहल े2016 की जलुाई सबस ेज्ादा गम्ज थी, जब तापमान सामान् औसत स ेमहज 0.03 नडग्ी स.े ही ज्ादा था।

    फुटपाथ की वजंदगी में ररशते

    www.nbt.in

    आनंद भारती

    खुद अपनी

    अांख से

    आए हैं महेमान : आडा हो, दतरछा हो, टेढा हो या बाकंा हो, मेहमान तो महेमान ह।ै य ेमरे ेमहेमान हैं, इसदलए मैं इनके बार ेमें थोडा भी उलटा-सीधा सनुना पसदं नहीं करूंगी। अगर कुछ कहना ही है तो इनकी तारीफ में कुछ कदहए। तारीफ दकसी की भी की जा सकती ह।ै दकसी एक चीज को पकदडए और वहीं स ेशरु हो जाइए। तारीफ एक कला ह।ै

    कैमरा बोलता है खास बात

    हमारे फिलमकारों को भारत इतना भद्ा लगता ह ैफक शफूिंग के फलए वे फवदेश भागत ेहैं। अभी सरकारी नारे सनुकर इनहें देश याद आन ेलगा ह।ै

    - वदंशका

    मोदी सर न े2014 में सवच्छ भारत की शरुूआत की थी और ‘टॉ्लटे एक पे्म कथा’ 2017 में आई थी। चिदं्र्ान पर 2015 स ेकाम हो रहा ह ैऔर हमन े‘नमशन मगंल’ की शूनटंग नदसंबर 2018 में शरुू की। सब इत्े् ाक की बात ह।ै

    - अक्षय कुमार, ऐकटर

    प्रसतुफत: इला

    वजह जो भी हो, पददे पर भारतीय माहौल और भारत के लोगों का अच्ा काम फदखना बडी बात ह।ै आरोप तो फकसी पर भी मढा जा सकता ह।ै

    - द्ंरस

    क्या सरकयारी हो ग्या ह ैबॉलिवडु

    AFP

    हिंदी और डोगरी साहित्य की प्रख्यात लेहिका और कवह्यत्ी पद्ा सचदवे अपनी बेबाकी के हलए जानी जाती िैं। पररस्थिहत्यों से िार न मानन े वाली पद्ा पद्श्ी, सोहव्यत लैंड नेिरू पुर्कार और सर्वती सममान सहित अनके पुर्कारों से सममाहनत िो चुकी िैं। ‘मेरी कहवता मेरे गीत’ के हलए उनिें साहित्य अकादमी पुर्कार भी हमल चुका ि।ै उनके हलिे चार डोगरी गीतों को लता मंगेशकर न ेगा्या िै। वि लता जी पर एक हकताब भी हलि चुकी िैं हजसका नाम ि-ै ‘ऐसा किा ंसे लाऊं’। पद्ा सचदवे से सधं्या रयानी न ेबातचीत की िै। प्र्तुत िैं प्रमुि अशं :

    n आप लोकगीत गावयका स ेकिवयत्ी कैस ेबिीं?मैं बरपन स ेही डोिरी िीत िाती थी। कोई िीत ऐसा भी

    होता था जो खूब रलन में रहता था, तो उसमें मैं रपुके से अपना छंर जोड़ रतेी थी और लोिों को पता भी नहीं रलता था। मैं बरपन स ेही ढोलक खूब बजाती थी, जबगक मैंने गकसी से सीखा नहीं था। जब मैं सककूल में थी तो प्ाथ्षना भी गलखी थी, गजस ेहम लोि सककूल में रोज िाते थ।े यह बात गसर्फ मरेी एक सहेली जानती थी, जो अब इस रगुनया में नहीं ह।ै सातरीं-आिरीं कलास स ेही मैंने गहरंी में गलखना शुरू कर गरया था। गरर गकसी ने बताया गक डोिरी में गलखो, कयोंगक डोिरी में कोई लड़की नहीं गलखती ह।ै रगेडयो राले मरेा डोिरी का िीत ररकॉड्ड करके ले जात ेथे। जब रगेडयो पर बजता था तो लोि सनुकर मरेी मा ंको बतात ेथ।े मरेी मां बहतु खुश होती थीं।

    n कैसा लगता ह ै जब आपको आधुविक डोगरी भाषा की मा ंकहा जाता ह?ै

    मरेी एक पसुतक डोिरी िीत की ह।ै रस साल पहल ेगकसी न ेजब मझु ेयह बात कही थी तब मैंन ेउस ेजबार गरया था गक अब मझु ेइस कागबल बनना पडे़िा। अब तो लोकिीत िमु होते जा रह ेहैं, कयोंगक युराओं को उसमें रुगर ही नहीं है।

    n डोगरी ससंककृवत के सरंक्षण के वलए सरकार से आप कया चाहती हैं?

    अब तो लोि शारी-बयाह में भी नहीं िाते हैं। बस डीजे बजाकर थोड़ा सा नार लेते हैं, लेगकन उसमें औरतों का नारना मझेु बड़ा बरुा लिता ह।ै पहले तो एक महीने स ेही घर में िाना-बजाना शुरू हो जाता था। सरकार कुछ नहीं कर सकती ह।ै उसे तो अपनी कुगस्षया ंबरानी ह।ै

    n इि वदिों लोग अपिी मातृभाषा में बात करिे से कतराि ेलगे हैं। इसके बारे में कया कहेंगी?

    मातृभारा मा ंकी तरह होती ह।ै आजकल कोई भी मां अपने बचे् को लोरी िाकर नहीं सुलाती ह।ै रह तो अपने

    बच् ेको आया पर छोड़ रतेी हैं। सत्ीतर रारं पर लि िया है। इसगलए आज बचे् अपनी मात ृजबान भलू िए हैं। ऐसे लोि अपना अषसततर खतम कर रह ेहैं। सभी को अपनी-अपनी मातृभारा जाननी रागहए, कयोंगक यह बहतु जरूरी ह।ै

    n आजकल के और पहल ेके सावहतय में कया अतंर पाती हैं? कया वहदंी लेखकों की ससथवत सुधरी ह?ै

    अपने तरीके स ेउनकी षसथगत और भारा रोनों सिुरी ह।ै नए लेखकों की कुछ कहागनया ंबहतु अचछी होती हैं और कुछ कहागनयों में कोई गसर-परै नहीं होता है। सब िोल-माल कर रते ेहैं। इन गरनों लड़गकया ंबहतु अचछा गलख रही हैं। डोिरी में कृ्णा कुमारी बहतु अचछा गलख रही हैं। पहले की सागहतय की बात ही अलि ह।ै

    n आपकी पहली पुसतक ‘मेरी कविता मेर ेगीत’ की प्रसताििा वदिकर जी ि े वलखी थी। उसके बार ेमें बताएं?

    मैं गयारहरीं में पढ़ती थी तो गरनकर जी श्ीनिर आए थे। हम लोि सककूल स ेबाहर िए थे। रहां हमन ेरखेा गक एक तरर र ेबैिे हैं और बीर में पानी बह रहा ह।ै मैंन ेरहीं से उनको प्णाम गकया। उनहोंन ेरखेा नहीं तो मझु ेिुससा आ िया और मैंन ेमन में कहा गक आप कगर हैं तो मैं भी करगयत्ी हू।ं मरेी पहली गकताब छपी तो प्सतारना आप ही गलखेंि।े हालागंक मैंन ेगकताब गलखन ेके बारे में कभी नहीं सोरा था।

    n लता जी पर वकताब वलखि े की प्ररेणा कैसे वमली। आपके डोगरी गीतों को भी उनहोंिे

    गाया ह।ैउनस ेमरेा घरले ूसबंिं है। मैं उनको रीरी

    बोलती हू।ं मैंन ेउनके ऊपर कारी गलखा ह।ै कोई ऐसी पत्-पगत्का नहीं थी, गजसमें उन

    पर न छपा हो। उनहोंन ेमरे ेरार डोिरी िीत भी िाए हैं। र ेबहतु कम बोलती हैं और झिू बोलने

    राल ेको नापसरं करती हैं। मैंन ेउनकी एक हजार ररकॉगडिंि अटिैंड की ह।ै उसी बीर मझु ेलिा गक इन पर एक गकताब गलखनी रागहए। जब मरेी गकताब परूी हो िई तो मैंने उनहें री थी, लगेकन गकताब गलखन ेके बारे में मैंने उनस ेकुछ नहीं पछूा था। उनके बार ेमें जो मैंन ेमहससू गकया, रही गलखा।

    n अपि ेसमकालीि लखेकों में आप वकसे पढ़िा पसंद करती हैं और कयों?

    जहां तक कगरता का सराल ह ैतो मैं गरनकर, बच्न और महाररेी को पढ़ना बहतु पसंर करती हंू। उरू्ष शायरी मैं बहतु पसरं करती हू।ं िद्य में जब पढ़ना होता ह ैतो गशरानी को पढ़ती हू।ं इसके अलारा महारेरी और अमतृलाल नािर को पढ़ना बहतु अचछा लिता ह।ै

    n कई िामचीि सावहतयकारों से आपके संबधं बड़े ही मधुर थ।े उसके बार ेमें बताए?ं

    अमतृा जी परूी तरह लखेक थीं। मैं अकसर उनके घर जाया करती थी। गलखने के अलारा मैंन ेउनहें कभी कुछ और करते नहीं रखेा। जबगक पु् पा भारती को पूण्षतया समगप्षत पत्ी के रूप में रखेा ह।ै िीत गलखते हएु मझेु 20 साल हो िए थ,े लगेकन मैं िद्य नहीं गलखती थी। िम्षरीर भारती भी लखेकों को झटि पहरान लते े थ।े मरेी पहली कहानी और पहला साक्ातकार भी िम्षयिु में ही छपा था।

    इि वदिों लड़वकया ंबहुत अच्ा वलख रही हैंअमतृा जी परूी तरह लखेक थीं। मैं अकसर उनकफे घर जा्ा करती थी। नलखन ेकफे अलावा मैंन ेउनहें कभी कु्छ और करत ेनहीं दखेा। जबनक पषुपा भारती को परू्जत्ा समनप्जत पत्ी कफे रूप में दखेा ह।ै गीत नलखत ेहुए मझु े20 साल हो गए थे, लनेकन मैं गद्य नहीं नलखती थी। धम्जवीर भारती भी लखेकों को झट पहचिान लतेे थे

    पद्ा सचदेव

    सप्ाह का इंटरव्यू

    गैलरीसूक्म और विराट

    हरिटेन की रॉ्यल फटॉग्रहफक सोसा्यटी दुहन्या के सबसे बडे फटॉग्रफी कंपटीशन आ्योहजत करती िै। इसी सीरीज में सोसा्यटी ने साइंस

    फटॉग्रफर ऑफ द ई्यर अवॉरस्स की घोषणा की िै। इस कंपटीशन में हवजेता त्वीरें 7 अकटटूबर को लंदन साइंस म्ययूहज्यम में प्रदहश्सत की जाएंगी। सोसा्यटी ने अभी अवॉड्ड के हलए शॉट्डहल्ट की गई त्वीरें

    जारी की िैं। देहिए कुछ त्वीरें

    कीडा अनोखा : यह िबुरलेै की बारागसिंा प्जागत ह।ै रटिॉग्ररर गरकटिर गसकोरा न ेमाइक्ोसकोप स ेइस पर रोशनी डाली और पांर िनुा जमू गलया, तब यह उभरा।

    रगंीन धोखा : साबुन के बलुबलु ेखरु को अलि-अलि साइजों में पैक करत ेहैं, जो रजै्ागनकों के गलए ररसर्ष का गररय ह।ै इनहीं की तसरीर गकम कॉकस ने खींरी।

    िसतारों का झोंका : नपेाल में गहमालय पर िोसाइकंुड झील ह।ै इसी झील पर एक रात जब आकाशिंिा उतर रही थी, तभी यहेने सामुरंको न ेषकलक कर गरया।

    आजकल समाज और अथ्षवयरसथा के संरभ्ष में एक शबर बार-बार आ रहा है- गमलेगनयरस। इसका आशय उस पीढ़ी स ेह,ै जो 1990 स े2000 के बीर परैा हईु। यानी 20 से 30 रर्ष के नौजरान। य े जीरन के अहम पड़ार पर हैं और य ेही रशे के भारी कण्षिार हैं। रशे और समाज को बनान,े उसका

    भगर्य तय करन ेकी गजममरेारी इनहीं पर ह।ै यह अकारण नहीं ह ैगक रशे की हर राजनीगतक पाटिमी इनके मन-गमजाज को पढ़ना राहती ह।ै परूा गबजनसे जित भी इनहें टिटिोलने में लिा ह।ै आए गरन तमाम सरवे एजेंगसया ं इनके बीर सरवेक्ण कर रही हैं। रे जानन ेको उतसकु हैं गक भारत के गमलेगनयरस रशे और समाज के बार ेमें कया सोरत ेहैं? रे कैसा जीरन जीत ेहैं। उनका खानपान और आरतें कया हैं?

    हाल के कुछ सर्षक्णों पर नजर डाले तो इनके बार ेमें बहतु कुछ पता रलता ह।ै गमलगेनयल पीढ़ी की सोर और उपभोि की आरतें गपछली सारी पीगढ़यों स ेबहतु अलि हैं। यह जीरन का परूा मजा लने ेराली जनेरशेन ह,ै जो रत्षमान में जीना राहती ह।ै भगर्य उसके गलए जयारा महतरपणू्ष नहीं है। इस पीढ़ी को अपना मकान नहीं रागहए। न ही कार खरीरन ेमें उसकी कोई रुगर ह।ै गकसी रीज का मागलक होना उसके गलए बड़ी बात नहीं। अहम ह ैउस रीज का सगुरिाजनक उपभोि। रह फलटैि या िाड़ी बकु करान े के बजाय छुगट्यों का मजा लने ेके गलए घमूना-गररना राहती ह।ै इस पीढ़ी के लोि टूिररजम पर िीक-िाक खर्ष कर रह ेहैं। ऑगरस या कहीं और जान ेके गलए उनहें ऐप के जररए कैब बलुा लनेा जयारा मरुीर लिता ह।ै िाड़ी खरीरकर उसकी मेंगटिनेंस और पागक्फि के झझंटि में य ेनहीं रंसना राहत।े

    िोरडमनै सकैस न े2017 में गमलगेनयरस पर एक सटिडी ररपोटि्ड जारी की, गजसके मतुागबक हम तजेी स े शयेररंि इकॉनमी की तरर बढ़ रह ेहैं। 25 साल बार कार शयेर करना एक आम रलन बन जाएिा और कार खरीरना असािारण बात हो जाएिी। रक्फपलसे तो अभी ही शयेर गकए जा रह ेहैं, खासकर सटिाटि्डअपस के बीर। एक ही कमर ेमें रो कंपगनयों के रफतर, गरन में कोई और रात में कोई और! इसी तरह गकराय ेके मकान में रहना गमलगेनयरस के गलए कोई गरतंा की बात नहीं। यह पीढ़ी मानकर रलती ह ैगक आज इस शहर में हैं, कल गकसी और शहर में रह सकत ेहैं। शहर ही कयों, मरुक भी कोई और हो सकता ह।ै सबस ेबड़ी बात यह गक मा-ंबाप के साथ रहन ेमें भी उनहें कोई प्ॉबलम नहीं ह।ै इसका एक बड़ा कारण यह ह ैगक जयारातर गमलगेनयरस इकलौत ेहैं या जयारा स ेजयारा उनका कोई एक सहोरर ह-ै भाई या बहन। ऐस ेमें मा-ंबाप स ेउनका जुड़ार कहीं जयारा ह।ै मा-ंबाप भी राहत ेहैं गक बचे् साथ रहें। लगेकन अपने

    जीरन में र ेसरततं्ता को सबसे जयारा महतर रतेे हैं, गलहाजा अकसर परैटंस को ही इनके अनसुार रलना पड़ता ह।ै

    सरततं्ता गमलगेनयरस के गलए इतनी जयारा महतरपूण्ष ह ै गक इनहें नौकरी का सथागयतर उबाऊ लिता ह ैऔर ये असथायी नौकरी या फ्ीलांगसंि को जयारा बेहतर मानते हैं। गरिटेिन षसथत ऑनलाइन माककेटि ररसर्ष रम्ष यिूोर और गमटंि के एक सरवेक्ण के अनसुार भारत के जयारातर गमलेगनयरस फ्ीलागंसंि पसरं करत ेहैं। डेलॉयटि के अंतररा्ट्ीय सरवे में भी यही बात उभरकर आई थी। उसमें भारत के 94 रीसरी गमलगेनयरस न े फ्ीलागंसिं को बेसटि ऑपशन बताया था। मगणपाल गलोबल एजकेुशन द्ारा की िई सटिडी भी यही कहती ह।ै आज कई भारतीय नौजरान रबे एंड मोबाइल गडरलेपमेंटि, रेब गडजाइगनिं, डेटिा एंट्ी, इटंिरनटेि ररसर्ष, अकाउंगटंिि और कंसरटिेंसी के क्ते् में फ्ीलांगसिं कर रह ेहैं। कई यरुाओं ने मोटिी तनखराह राली नौकरी छोड़कर अपना सटिाटि्ड-अप शरुू गकया ह।ै

    गमलगेनयल पीढ़ी न गसर्फ सपन ेरखेती ह ैबषरक उसे सर करन ेके गलए खबू महेनत भी करती ह।ै रह अपनी जरूरतों के गलए रूसरों का मुहं रखेन ेके बजाय सारे इतंजाम खरु ही करन ेमें यकीन रखती ह।ै अपनी शारी तक के गलए पैसे जटुिान ेमें उस ेसकंोर नहीं होता। गडगजटिल लेंगडंि पलैटिरॉम्ष

    ‘इगंडयालेंडस’ के अनसुार रशे के यरुा सबसे जयारा लोन अपनी शारी के गलए लेते हैं। 2018-19 में इस आय ुरि्ष के 20 प्गतशत नौजरानों न े शारी के गलए ऋण गलया। इसके बार पय्षटिन यानी घूमन-ेगररन ेका नबंर आता ह,ै गजसके गलए 19 रीसरी लोन गलए िए। 11 रीसरी न ेअपना सटिाटि्ड-अप शरुू करन ेके गलए लोन गलया और 7 प्गतशत न ेलाइरसटिाइल से जडु़ी रीजें जटुिान ेके गलए कज्ष मांिा। यरुाओं के लोन की मात्ा साल रर साल बढ़ती ही जा रही ह।ै

    इस पीढ़ी न े तकनीक के बीर ही आखंें खोली हैं। सेलरोन के जररए पूरी रुगनया उसकी उंिगलयों पर रहती ह।ै मॉि्षन सटैिनली की एक ररपोटि्ड के अनसुार रह गरन ररू नहीं जब गमलेगनयल पीढ़ी के बीर समाटि्डरोन की मौजरिूी 100 रीसरी होिी और सारे नौजरान खान,े खरीरारी करन,े गटिकटि बुक करान ेके गलए ऐपस का इसतेमाल करेंिे। यह पीढ़ी अचछे सरासथय के गलए भारी खर्ष करन ेका इरारा रखती ह।ै एक शोि के मतुागबक 36 रीसरी भारतीय गमलेगनयरस के समाटि्डरोन में गरटिनसे ऐप हैं। 45 पससेंटि राहते हैं गक र ेहर हाल में सरसथ रहें। 60 प्गतशत समोगकंि के गखलार हैं और 21 प्गतशत शराब के। गमलेगनयरस पया्षररण और समाज को लेकर जािरूक हैं। 2017 के डेलॉइटि गमलेगनयरस सरवे के अनुसार जापान और यरूोप की तुलना में अगिक भारतीय यरुाओं न ेकहा गक अपनी गजरंिी में र ेअपन ेगपता की तुलना में जयारा खशु रहेंिे। ररअसल आज की जनेरेशन पर गपछली पीढ़ी गजतना रबार नहीं ह।ै यह असुरक्ा बोि से मुकत ह।ै इस पीढ़ी के नौजरानों के मां-बाप न ेइनके गलए जीरन की बुगनयारी रीजें पहले ही जटुिा रखी हैं, इसगलए य ेगकसी भी तरह का जोगखम लेन ेमें सक्म हैं।

    ्ह पीढी न नस ््फ सपन ेदखेती ह ैबश्क उनहें सचि करन ेकफे नलए भरपरू महेनत भी करती ह।ै दसूरों का मुहं दखेन ेकफे बजा् सार ेइतंजाम वह खदु ही करती है

    एिसीआर ससथत एक प्राइिेट यूवििवससिटी का िजारा

    सनु सािहबा सनु, िमलेिन्ल धनुनाइंटीज में जनमी पीढी रहन-सहन का एक न्ा नजरर्ा साथ लाई है

    संजय कुंदि

    Ashwani Nagpal

    खेती से बढेगी आतमदनभ्भरता16 अगसत का संपारकीय ‘बड़े हौसलों की उड़ान’ पढ़ा। प्िानमंत्ी ने सरततं्ता गररस पर कई बड़ी घोरणाएं कीं और रेश के नािररकों को आशरसत भी गकया। इस मौके पर उनहोंने कहा गक रुगनया में लड़ाई और युद्ध के तरीके बरल रहे हैं और हमें इस बरलार के साथ रलना है। तीनों सेनाओं को हर पररषसथगत के गलए तैयार करने पर उनहोंने खास जोर गरया। रेश के गकसानों से सरकार उनकी आय रोिुनी करने की बात करती है तो गकसानों को अचछा लिता है, परंतु इसके साथ ही गकसानों की गजममेरारी बढ़ जाती है। उनहें इस बात पर धयान रेना रागहए गक खेती छोड़कर आय के रूसरे सािनों की तरर रे कयों जा रहे हैं। खेती को एक सरल वयरसाय के रूप में हमें रोबारा गरकगसत करना ही होिा, तभी भारत की अथ्षवयरसथा मजबूत होिी। हालागंक सरकार को मौजरूा मंरी और बेरोजिारी को गबना गकसी गरलंब के सिुारने पर जोर रेना रागहए। एक बात और है गक गडगजटिल लेन-रेन से आज रेश में राकई मजबूत वयरसथा बन रही है। इसमें सभी की सहज भािीरारी से ही इस क्ेत् में क्ांगत आ पाएिी।

    बाल गोविंद, नोएडा

    सडकों पर आयोजनों की पाबंदीउत्तर प्रदेश में सड़क पर गकसी भी प्कार के िागम्षक आयोजन पर पाबरंी लिा री िई है। यह सरकार का प्शंसनीय करम है। रेखा जाता है गक सड़कों को घेरकर जािरण या अनय िागम्षक काय्षक्म आयोगजत गकए जाते हैं। इससे आने-जाने रालों को गरककत का सामना करना पड़ता है। सड़कों पर नमाज और आरती को लेकर अलीिढ़ और मेरि से यह शुरुआत की िई है। कई बार रेखा िया है गक ऐसे आयोजनों से सड़कों पर जाम लि जाता है। इस रौरान कुछ असामागजक ततर सगक्य हो जाते हैं, गजसका खगमयाजा आमजन और प्शासन को भुितना पड़ता है। बरेजह माहौल िम्ष हो जाता है। इन सब बातों को धयान में रखते हुए राजय की जनता को आिे बढ़कर इस रैसले का सराित करना रागहए और इसे सरल बनाने में अपना योिरान रेना रागहए। यह वयरसथा रेश में शांगत और अमन कायम रखने का बहुत बड़ा प्योि सागबत होिी।

    बृजेश श्ीिासति, िागजयाबार

    रीडस्स मेल

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