goverdhanvasi-saanvrelal

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क स रस द , दश न मन अिभलाष | लोक ममथ रटण, ज सदन िनज बास || याम वरण िगरवरधरण, गोपीजन िचचोर | जराजक वर िजय म बसो , दर न दकशोर || ीगोवध नवासी सा वर लाल त म िबन रो न जाय, जराज लड लािडल हो . म िबन रो न जाय || क िचत सकायकलाल, दर वदन दखाय | लोचन तलफमीन य लाल, पल िछन कप िवहाय हो || सक वर ब धान सो लाल, मोहन व बजाय | रत स हाई बा िधकन क मध र मध र वर गाय हो || रिसक रसीली बोलनी लाल, ि गर चढ़ ग या ब लाय | ग ब लाई ध मरी न कऊ िच ट र स नाय हो || ि परी जा दवस त लाल , तब त नह आन | रजनी नद न आवही मोह िवसय भोजन पान हो || दश न को न ना तप लाल, बचन स नन को कान | ि मलव को िहयरो तप िजय कजीवनाणहो || मन अिभलाषा ह रही लाल, लगत न नयन िनम | ईक टक द आवतोयारो , नागर नटवर भ ख हो || रण शिश म ख द खकलाल िच चोो वाही ठोर | प स धारसपानकलाल सादर च चकोर हो || लोक लाज क ल व द क लाल छा ो सकल िवव | कमल किल रिवयबढलाल, ण ण ीत िवश ष हो || ममथ कोटक वारन लाल द खत डगमगी चाल | वती जन मन फ दना लाल, ज नयन िवशाल हो || यह रट लागी लािडल लाल, चातक मोर |

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