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Page 1: History of Haryana

हरि�याणा का इतिहास | History of Haryana  (म्हारा हरिरयाणा)  51  

Author:म्हा�ा हरि�याणा संकलन

भारतीय गणतन्त्र में, एक अलग राज्य के रूप में, हरिरयाणा की स्थापना यद्यपिप 1 नवम्बर, 1966 को हुई, पिकन्तु एक पिवशि$ष्ट ऐपितहाशि'क एवं 'ांस्कृपितक इकाई के रूप में हरिरयाणा का अस्तिस्तत्व प्राचीन काल 'े मान्य रहा है। यह राज्य आदि4काल 'े ही भारतीय 'ंस्कृपित और 'भ्यता की धुरी रहा है। मनु के अनु'ार इ' प्र4े$ का अस्तिस्तत्व 4ेवताओं 'े हुआ था, इ'शिलए इ'े 'ब्रह्मवत<' का नाम दि4या गया था।हरिरयाणा के पिवषय में वैदि4क 'ापिहत्य में अनेक उल्लेख मिमलते हैं। इ' प्र4े$ में की गई खु4ाईयों 'े यह ज्ञात होता है पिक सि'ंधु घाटी 'भ्यता और मोहनजो4ड़ों 'ंस्कृपित का पिवका' यहीं पर हुआ था।$ास्त्र-वेत्तओं, पुराण-रचमियताओं एवं पिवचारकों ने लम्बे 'मय तक इ' ब्रह्मर्षिषं प्र4े$ की मनोरम गो4 में बैठकर ज्ञान का प्र'ार अनेक धम<-ग्रन्थ शिलखकर पिकया। उन्होने '4ा मां 'रस्वती और पावन ब्रह्मवत< का गुणगान अपनी रचनाओं में पिकया।इ' राज्य को ब्रह्मवत< तथा ब्रह्मर्षिषं प्र4े$ के अपितरिरक्त ' ब्रह्म की उत्तरवे4ी' के नाम 'े भी पुकारा गया। इ' राज्य को आदि4 'ृमिष्ट का जन्म-स्थान भी माना जाता है। यह भी मान्यता है पिक मानव जापित की उत्पत्तित्त जिजन वैवस्तु मनु 'े हुई, वे इ'ी प्र4े$ के राजा थे। ष्अवन्तिन्त 'ुन्4री कथाष् में इन्हें स्थाण्वीश्वर पिनवा'ी कहा गया है। पुरातत्वेत्ताओं के अनु'ार आदै्यपितहाशि'क कालीन-प्राग्हड़प्पा, हड़प्पा, परवत[ हड़प्पा आदि4 अनेक 'ंस्कृपितयों के अनेक प्रमाण हरिरयाणा के वणावली, 'ी'वाल, कुणाल, मिमजा<पुर, 4ौलतपुर और भगवानपुरा आदि4 स्थानों के उत्खननों 'े प्राप्त हुए हैं।भरतवं$ी 'ु4ा' ने इ' प्र4े$ 'े ही अपना पिवजय अत्तिभयान प्रारम्भ पिकया और आय^ की $शिक्त को 'ंगदिठत पिकया। यही भरतवं$ी आय< 4ेखते-4ेखते 'ुदूर पूव< और 4त्तिaण में अपनी $शिक्त को बढ़ाते गये। उन्ही वीर भरतवंशि$यों के नाम पर ही तो आगे चल कर पूरे राष्ट्र का नाम 'भरत' पड़ा।महाभारत-काल 'े $ताब्दिe4यों पव< आय<वं$ी कुरूओं ने यही पर कृपिष-युग का प्रारम्भ पिकया। पौरात्तिणक कथाओं के अनु'ार उन्होने आदि4रूपा माँ 'रस्वती के 48 को' के उपजाऊ प्र4े$ को पहले-पहल कृपिष योग्य बनाया। इ'शिलए तो उ' 48 को' की कृपिष-योग्य धरती को कुरूओं के नाम पर कुरूaेत्र कहा गया जो पिक आज तक भी भारतीय 'ंस्कृपित का पपिवत्र प्र4े$ माना जाता है।बहुत बा4 तक 'रस्वती और गंगा के बीच बहुत बडे़ भू-भाग को 'कुरू प्र4े$' के नाम 'े जाना जाता रहा। महाभारत का पिवश्व-प्रशि'द्व युद्व कुरूaेत्र में लड़ा गया। इ'ी युद्ध के $ंखना4ों के स्वरों के बीच 'े एक अद्भतु स्वर उभरा। वह स्वर था युगपुरूष भगवान कृष्ण का, जिजन्होने गीता का उप4े$ यहीं पर दि4या था, गीता जो भारतीय 'ंस्कृपित के बीच मंत्र के रूप में '4ा-'4ा के शिलए अमर हो गई।महाभारत-काल के बा4 एक अंधा युग $ुरू हुआ जिज'के ऐपितहाशि'क यथाथ< का ओर-छोर नहीं मिमलता। परन्तु इ' aेत्र के आय<कुल अपनी आय< परम्पराओं को अaुण्ण रखते हुए बाहर के आक्रांताओं 'े टकराते रहे। पुरा कुरू-प्र4े$ गणों और जनप4ों में बंटा हुआ था। कोई राजा नहीं होता था। गणामिधपपित का चुनाव बहुमत 'े होता था। उ'े गणपपित की उपामिध 4ी जाती थी, 'ेनापपित का चुनाव हुआ करता था, जिज'े 'इन्दु' कहा जाता था। कालांतर तक यह राज-व्यवस्था चलती रही। इन गणों और जनप4ों ने '4ैव तलवार के बल पर अपने गौरव को बनाए रखा।आय<काल 'े ही यहाँ के जनमानव ने गण-परम्परा को बेह4 प्यार पिकया था। गांव के एक 'मूल को वे जनप4 कहते थै। जनप4 की $ा'न-व्यवस्था ग्रामों 'े चुने गये प्रपितपिनमिध 'ंभालते थे। इ'ी प्रकार कई जनप4 मिमलकर अपना एक 'गण' स्थापिपत करते थे। 'गण' एक 'ुव्यवस्थिस्थत राजनैपितक ईकाई का रूप लेता था। 'गण'भा' की स्थापना जनप4ों द्वारा भेजे गये '4स्यों 'े 'म्पन्न होती थी।यह भी 4ेखा गया है पिक इ' तरह के कई 'गण' मिमलकर अपना एक 'ंघ बनाया करते थ,े जिज'े गण-'ंघ के रूप में जाना जाता था। यौधेय काल में इ'ी तरह कई गणराज्यों के 'ंगठन 'े एक पिव$ाल 'गण-'ंघ' बनाया गया था जो $तुद्रु 'े लेकर गंगा तक के भूभाग पर राज्य करता था।राज्य-प्रबन्ध की यह व्यवस्था केवल मात्र राजनीपितक नहीं थी, 'ामाजिजक जीवन में भी इ' व्यवस्थाने महत्वपूण< स्थान ले शिलया था। यही कारण था पिक पूरे 4े$ में जब गणराज्यों की यह परम्परा 'ाम्राज्यवा4ी $शिक्तयों के 4बाव 'े 'माप्त हो गई तब भी हरिरयाणा प्र4े$ के जनमान' ने इ'े 'हेजे रखा।इ' प्र4े$ की महानगरी दि4ल्ली ने अनेक 'ाम्राज्यों के उत्थान-पतन 4ेखे परन्तु यहां के जन-जीवन में उन 'ब राजनैपितक परिरवत<नों का बहुत अमिधक प्रभाव नहीं पड़ा क्योंपिक अपनी आन्तरिरक-'ामाजिजक व्यवस्था में कभी भी

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इन लोगों ने बाह्म हस्तaेप 'हन नहीं कया।इनकी गण-परम्परा को $ा'कों ने भी '4ा मान्यता 4ी। हष<काल 'े लेकर मुगल-काल के अंत तक हरिरयाणा की 'व^च्च पंचायत की $ा'न की ओर 'े महत्व दि4या जाता रहा। 'व<$ाप पंचायत के पुराने 4स्तावेजों 'े पता चलता है पिक मुगल $ा'कों की ओर 'ेे 'व<खाप पंचायत के प्रमुख को 'वजीर' की प4वी 4ी जाती थी और पंचायत के फै'लों को पूरी मान्यता मिमलती थी। मुगल-काल में जनप4ों का स्थान खापों ने और गणों का स्थान 'व<खाप पंचायतों ने ले शिलया था। 'व<खाप पंचायत की 'त्ता को 'तलुज 'े गंगा तक मान्यता प्राप्त रही है।इ' प्र4े$ में रोमन और ग्रीक गण-परम्पराओं 'े भी कहीं अमिधक 'ुव्यवस्थिस्थत गण-व्यवस्था रही है।मध्य युग में उत्तर-पस्थि}चम 'े आक्रांताओं का तांता-'ा बंध गया। आक्रांता सि'ंधु-प्र4े$ में, पिबना पिक'ी अवरोध के घु' आते थ ेपरन्तु जब वे कुरू-प्र4े$ के योद्धाओं 'े टकराते तो उनका 'ामना नहीं कर पाते थे।बौद्ध-काल के प्रारम्भ में भी इ' प्र4े$ में यौधेयगण के $शिक्त$ाली 'ंगठन कापता चलता है। शि'कन्4र ने व्या' न4ी को पार करने का 'ाह' इ'ीशिलए तो नहीं पिकया था पिक व्या' के इ' पार मगधों औ यौधयों की $शिक्त 'े वह अच्छी तरह 'े परिरशिचत हो चुका था। वह जानता था पिक यौधयगण के पिवकट $ूरवीरों 'े मुकाबला करना आ'ान नहीं है। बाहर की $शिक्तयों 'े टकराने वाले इन योद्धाओं ने भारत के सि'ंहद्वार के पहरे4ारों के रूप में पीदिढ़यों तक पहरा दि4या। इ'शिलए तो 'तलुज 'े इ' पार को ही भारत का सि'ंहद्वार कहा जाने लगा।यौधेय-काल में इ' उपजाऊ हरी-भरी धरती को बहुधान्यक-प्र4े$ की 'ंज्ञा भी 4ी गई।प्राचीन हरिरयाणा की 'बल गण-परम्परा के फलस्वरूप ही यहां के लोग '4ा जनवा4ी बने रहे और कालांतर में उन्होने हर उ' 'ाम्राज्यवा4ी $शिक्त 'े टक्कर ली जिजन्होने भी उनकी जनवा4ी व्यवस्था में हस्तaेव पिकया। 'न् 1857 का जन-पिवद्रोह भी उ'ी आस्था का प्रतीक था।उत्तर भारत की बौद्धकालीन राजनैपितक व्यवस्था पर जो नई खोजें हुईं उनकी वजह 'े इपितहा' का एक अंधकारमय अध्याय प्रका$ में आया है। बौद्धकाल के आरम्भ में 'ोलह महाजनप4ों की चचा< बौद्ध 'ापिहत्य में पिबस्तारपूव<क हुई है। इनमें कुरू,पांचाल, 'ूर'ेन, अवंती, वज्जी, कौ$ल, अंग, मल्ल, चैत्य, वत्', मगध, मत्स्य, अस्'क, गंधार, कम्बोज और का$ी का उल्लेख हुआ है। आधुपिनक हरिरयाणा के भाग उ' 'मय कुरू और पांचाल महाजनप4ों के भाग थे।प्राचीन शि'क्कों, मोहरों, ठप्पों, मुद्राओं, शि$लालेखों तथा अन्य ऐपितहाशि'क प्रमाणों के आधार पर पता चलता है पिक योग्य $शिक्त का उ4य ई'ा पूव< की चौथी $ताe4ी में हुआ और उ'ने पूरे एक हजार वष< तक इ' भू-भाग पर अपना आमिधपत्य बनाये रखा।यौधेयों के शि'क्के 'तलुज और यमुना के पूरे भू-भाग के अनेकों स्थानों 'े प्राप्त हुए हैं। आचाय< भगवान4ेव ने रोहतक के खोखरा कोट तथा कई अन्य स्थानों 'े यौधेय काल की बहुमूल्य 'ामग्री जुटाई है।यौधेय गणराज्य ने कालान्तर में एक $शिक्त$ाली गण-'ंघ का रूप ले शिलया था, जिज'के अन्तग<त अनेक गणों की $शिक्त जुड़ गई थी। यौधेय गण'ंघ के मु}य गण थ-ै यौधेय, आजु<नायन मालव, अग्रेय तथा भद्र। आजु<नायन गणराज्य आधुपिनक भरतपुर और अलवर aेत्रों पर आधारिरत था तथा मालव गणराज्य पहले पंजाब के आधुपिनक मालवा aेत्र में स्थिस्थत था परन्तु इण्डोग्रीक आक्रमणों के कारण मालव राजपूताना aेत्र चले गये। जयपुर aेत्र में मालवनगर नामक प्राचीन स्थानउनकी राजधानी थी। अग्रेय गण की राजधानी आज का अग्रोहा था। एक मत के अनु'ार यहां के गणपपित एवं गणाध्यa को 'अग्र'ेन' की उपमिध 'े अलंकृत पिकया जाता था। अग्रेय अपनी 'माजवा4ी व्यवस्था के शिलए प्रशि'द्ध थे। अग्रेय $e4 कालांतर में अग्रवाल हो गया लगता है। जहाँ प्राचीन-काल में अग्रोहा अपनी 'मृजिद्ध और पिवका' के शिलए प्रशि'द्ध था वहाँ आज भी अग्रवाल जापित अपना पिवका' अग्रेहा 'े मानती है।मौय<काल में भी यौधेय पूरी तरह $शिक्त 'म्पन्न रहे और उनका बहुधान्यक प्र4े$ अपनी 'मुपिद्व के शिलए भारत में प्रशि'द्ध रहा जबपिक 4े$ के अन्य गण लगभग ध्वस्त हो चुके थ े।गुप्तकाल में आकर यौधयों का गुप्त 'म्राटों 'े 'ंघष< चला। पहले के गुप्त $ा'कों ने यौधयों को केवल उनकी प्रभु'त्ता स्वीकारने तक को राजी करने का प्रया' पिकया पिकन्तु यौधये जिजनहे अपने गणराज्य पर गव< था पिक'ी भी रूप में 'ाम्राज्यवा4ी प्रभुत्व स्वीकारने को तैयार नहीं हुए। परन्तु यह स्थिस्थपित चन्द्रगुप्त पिवक्रमादि4त्य के 'मय में ब4ल गई। 'म्राट पिवक्रमादि4त्य ने यौधय को मदिटयामेट करने का 'ंकल्प पिकया और एक धारणा के अनु'ार 4ोनों $शिक्तयों में लगभग चैथाई $ताe4ी तक घोर 'ंघष< चला और अंत में उ' पिव$ाल 'ामा्रज्यवा4ी $शिक्त ने 4े$ की 'म्भवतः अन्तिन्तम गण-$शिक्त को ध्वस्त कर दि4या।यौधेय काल में ये प्र4े$ 'बहुधान्यक' प्र4े$ के नाम 'े जाना जाता था। मूर्षितंकला, हस्तकला और लशिलत कलाओं के शिलए यौधेय पूरे प्र4े$ में प्रशि'द्ध थे। रोहतक के ढ़ोलवा4क धुर उज्जैन तक पहुँचकर प्रशि'द्ध प्राप्त करते थे।

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मल्लयुद्ध और युद्ध-कौ$ल में उनका जवाब नहीं था। वे जहाँ पिवकट यौद्धा थ ेवहाँ जीवन वाले पिक'ान भी थे। यह गव< की बात है पिक पूरे एक हजार वष< तक इ' गणराज्य ने भारत के इपितहा' में अपूव< प्रशि'द्ध प्राप्त की और अपने प्र4े$ को गणतन्त्रात्मक राजनैपितक व्यवस्था के अधीन चरम पिवका' तक पहुंचाया।हष<काल में भी यह पूरा प्र4े$ अनेक जनप4ों में बंटा था। इ' काल में जनप4ों और गणों की यह परम्परा यहां राजनैपितक व्यवस्था का आधार बनी रही । राजा हष<बध<न के पूव<जों ने श्रीकंठ जनप4 'े ही अपनी $शिक्त 'ंगदिठत की थी। हष< के पिपता प्रभाकर वध<न ने स्थाण्वीश्वर (थानेश्वर) में बैठकर ही एक $शिक्त$ाली 'ाम्राज्य की $शिक्त को बढ़ाया था। उन्होंने हूणों की बढ़ती हुई $शिक्त पर जोर4ार प्रहार करके उन्हें भारत 'े भगा दि4या। गुप्तों और गांधारों की $शिक्त को नष्ट करके वद्ध<नों ने उत्तर भारत के 'भी भू-भागों पर अपना अमिधपत्य स्थापिपत कर शिलया। वद्ध<न वं$ का 'ब'े प्रतापी $ा'क हष<वध<न था, जिजन्होने एक पिव$ाल 'ाम्राज्य की स्थापना की। हरिरयाणा प्र4े$ का वह एक गौरव युग था। चीनी त्तिभaु हेृन'ांग ने हष< की राजधानी स्थाण्वीश्वर (थानेश्वर) के वैभव और 'मृजिद्ध का 'ुन्4र शिचत्रण पिकया है। बाणभट्ट ने अपने 'हष<चरिरत' नामक ग्रन्थ में उ' 'मय के हरिरयाणा प्र4े$ के जन-जीवन और 'ांस्कृपितक-परम्पराओं का व्यापक वण<न पिकया है।हष<काल में जनप4ों का स्वरूप ज्यों का त्यों बना रहा। 'म्राट् ने कभी यहाँ की आन्तरिरक व्यवस्था में हस्तaप नहीं पिकया। गाँव के एक 'मूह को प्र$ा'न की 'ारी व्यवस्था की जिजम्मे4ारी ग्रामीण मुब्दिखयाओं के ऊपर रही।'म्राट हष<वध<न की मृत्यु के पश्चात् यहां का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। लगातार बाहरी आक्रमण होते रहे। परन्तु यहां के लोगों ने अपनी $शिक्त 'े आन्तरिरक 'ामाजिजक व्यवस्था को बनाये रखा।1014 ई. में महमू4 गजनवी ने थानेश्वर पर आक्रमण करके चक्रतीथ< स्वामिमन की मूर्षितं तथा अनेक मजिन्4रों को नष्ट-भ्रष्ट पिकया। हरिरयाणा के तोमर $ा'क ने गजनपिवयों को भगाने के शिलए अन्य भारतीय $ा'कों 'े 'हायता मांगी पिकन्तु पिक'ी ने भी उ'की 'हायता नहीं की। अतः ग्यारहवीं $ताe4ी में हरिरयाणा के तोमर $ा'कां को गजनवी वं$, काश्मीर के लोहार $ा'क तथा राजस्थान के चैहार (चाहमान) $ा'कों के घोर पिवरोध का 'ामना करना पड़ा। तोमर $ा'कों के $ा'नकाल में हरिरयाणा में व्यापार, कला तथा 'ंस्कृपित ने बहुत उन्नपित की जिज'की जानकारी हमें 4'वी $ताe4ी में शिलब्दिखत 'ोम4ेव के ग्रन्थ 'य$स्तिस्तलक चम्पू' 'े मिमलती है।बारहवीं $ताe4ी में चैहान $ा'क अण^राजा (1331-51) ने हरिरयाणा प्र4े$ पर आक्रमण कर तोमरों को पराजिजत कर दि4या। दि4ल्ली तथा हरिरयाणा पर 1156 में बी'ल4ेव या पिवग्रहराज षष्ठ ने पिवजय प्राप्त कर तोमरों 'े दि4ल्ली और हां'ी हस्तगत कर शिलयेे। इ' पिवजय ने चैहानों को भारत की 'व^च्च $शिक्त बना दि4या क्योंपिक तोमरों के अधीन दि4ल्ली व हरिरयाणा पर अमिधकार अब्दिखल भारतीय प्रपितष्ठा का 'ूचक बन गया था।प्रकार बाहरवीं $ताe4ी में हरिरयाणा पर चैहानों का प्रभुत्व स्थापिपत हो गया। उ' 'मय दि4ल्ली राजनीपितक पिक्रया-कलापों का केन्द्र था। दि4ल्ली पर भी चैहानों का प्रभुत्व स्थापिपत हो गया था। 1191 में दि4ल्ली के चैहान $ा'क पृृथ्वीराज चैहान ने मुहम्म4 गोरी को परास्त पिकया था, पिकन्तु 1192 में वह मुहम्म4 गोरी के हाथों पराजिजत होकर मारा गया। इ' प्रकार दि4ल्ली के 'ाथ-'ाथ हरिरयाणा प्र4े$ पर भी मुस्थिस्लम आक्रमणकारिरयों का अमिधकार स्थापिपत हो गया।'न् 1206 में मुहम्म4 गोरी की म ृृत्यु के बा4 उ'के क गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में गुलाम वं$ की नींव डाली। 1265 में गुलाम वं$ के $ा'क बलबन ने यहां $शिक्त$ाली मेंवों की $शिक्त को कुचलने का पूण< प्रया' पिकया। 'न् 1290 में गुलामवं$ के पतन के पश्चात् ब्दिखलज वं$ का उ4य हुआ। अलाउद्दीन जो पिक 'ब'े प्रशि'द्ध ब्दिखलजी $ा'क था, तुगलक वं$ का प्रारम्भ हुआ। पिफरोज तुगलक नामक तुगलक $ा'क ने पिह'ार जिजले में फतेहाबा4 नामक एक नगर अपने पुत्र फतेह खाँ के नाम पर ब'ाया। उ'ने सि'ंचाई के शिलए नहरें बनवाईं।1398 में तैमूर ने भारत पर आक्रमण पिकया। तैमूर पिवजयी होकर घग्घर न4ी के 'ाथ-'ाथ हरिरयाणा में प्रपिवष्ट हुआ। तैमूर ने आने की 'ूचना पाते ही शि'र'ा के पिहन्दु अपने घरों को छोड़कर भाग गये। यहां 'े बहुत 'ी 'म्पत्तित्त तैमूर के हाथ लगी। शि'र'ा के पश्चात्ृ् तैमूर ने फतेहाबा4 पर आक्रमण पिकया तथा वहाँ तैमूर के 'ैपिनकों ने बड़ी बेरहमी 'े लोगों को कत्ल पिकया। पिह'ार, करनाल, कैथल, अ'न्ध, तुगलकपुर तथा 'ालवान आदि4 को नष्ट-भ्रष्ट करने के बा4 तैमूर पानीपत पहुँचा जहाँ पर तैमूर ने खून लूट-पाल की।तैमूर के भारत 'े जाने के पश्चात् फैली अराजकता का हरिरयाणावाशि'यों ने पूरा लाभ उठाया। तैमूर द्वारा बनाये गये 'ैय्य4ों में 'ामा्रज्य को पुनज[पिवत करने की न तो इच्छा थी और न ही उनके इतनी योग्यता ही थी। 'ैय्य4ों के पश्चात् लो4ी वं$ का $ा'न प्रारम्भ हुआ। 1517 ई. में शि'कन्4र लो4ी के पश्चात् इब्रापिहम लो4ी दि4ल्ली की गद्दी पर बैठा।तत्कालीन 'मय में हरिरयाणा में ह'न खाँ मेवाती, जलाल खाँ तथा मोहन सि'ंह मंढार की रिर'ायतं ेृं 'वा<मिधक प्रशि'द्ध थींृै। इनमें भी ह'न खाँ मेवाती 'ब'े $शिक्त$ाली $ा'क था। उ'के राज्य में गुड़गांव जिजले का मेवात

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aेत्र, महेन्द्रगढ़ का नारनौल, कानोंड का कुछ aेत्र तथा राजस्थान में अलवर के आ'पा' का बहुत बड़ा भू-भाग $ामिमल था। उ'के पा' 10000 मेवापितयों की 'ेना थी। 4ेहली के $ा'क उ'की वीरता 'े प्रभापिवत थे। मेवाड़ के महाराणा 'ंग्राम सि'ंह ने उ'की अत्तिभन्न मिमत्रता थी। 1526-27 में जब बाबर ने भारत पर आक्रमण पिकया तब ह'न खाँ की खानवा के युद्ध में मृत्यु हो गई। जलाल खां तावडू के परगने का $ा'क था और जापित 'े खानजा4ा था। वह ह'न खाँ मेवाती को अपना बड़ा भाई मानता था। उ'के पा' भी मेवों की एक बड़ी 'ेना थी। इ'शिलए $ाही 'ेना 'े उ'की टक्कर होती रहती थी। जलाल खाँ बड़ा कला-पे्रमी था। उ'ने 'ोहना व तावडू में कई इमारतों का पिनमा<ण करवाया। जलाल खाँ का अन्त गुमनामी की अवस्था में हुआ। मोहन सि'ंह मंढ़ार की रिरया'त कैथल के परगने मंढ़ार में थी। वह बड़ा वीर और लोकपिप्रय था। इ' वीर राजपूत ने लम्बे 'मय तक बाबर 'े मुकाबला पिकया।प्रथम मुगल $ा'क बाबर ने भारत पर कई बार आक्रमण पिकये क्योंपिक तत्कालीन 'मय में राजनीपितक दृमिष्ट 'े भारत की स्थिस्थपित बड़ी 4यनीय थी। 'म्पूण< 4े$ छोटे-छोटे राज्यों में पिवभक्त था जो आप' में लड़ते रहते थे। वह पिबना पिक'ी पिवरोध के हरिरयाणा की ऊपरी 'ीमाओं तक बढ़ आया। यहाँ के पानीपत नामक स्थान पर बाबर और दि4ल्ली के $ा'क इब्रापिहम लो4ी का ऐपितहाशि'क युद्ध हुआ जिज'में इब्रापिहम लो4ी की पराजय हुई पानीपत की पिवजय के पश्चात् बाबर ने बड़ी 'रलता 'े दि4ल्ली पर अमिधकार कर शिलया। प्र$ा'न चलाने के शिलए बाबन ने हरिरयाणा को चार भागों में बांट दि4या। बाबर की मृत्यु के पश्चात् उ'के उत्तरामिधकारी (पुत्र) हुमायूँ के $ा'न काल में यहां का प्र$ा'न यथावत बना रहा। 1504 में इ' प्र4े$ को 'र4ार $ेर$ाह 'ूरी ने हुमायूं 'े छीन शिलया। $ेर$ाह ने हरिरयाणा की $ा'न-व्यवस्था में पिव$ेष-रूशिच ली और उ'ने हरिरयाणा केपिक'ानों की स्थिस्थपित को उत्तम बनाने के शिलए अनेक 'ुधार पिकये। $ेर$ाह की मृत्यु के पश्चात् हुमायंृू ने 1555 में अपने खोये हुये राज्य पर पुनः अमिधकार कर शिलया। हुमायंृू के पश्चात् उ'का पुत्र अकबर गद्दी पर बैठा उ' 'मय रिरवाड़ी में हेमचन्द्र (हेमू) का $ा'न था, जो पिक अकबर का 'ब'े प्रबल $त्रु था। हेमू ने 22 लड़ाइयां लड़ी थीं और उनमें 'े एक में भी वह पराजिजत नहीं हुआ था।हेमू ने $ाही छत्र के नीचे बैठ कर अपने आपको दि4ल्ली का $ा'क घोपिषत कर दि4या था। जिज'के परिरणामस्वरूप अकबर और हेमू के बीच 1556 में पानीपत का पिद्वतीय युद्ध हुआ जिज'में हेमू की पराजय हुई। अकबर ने $ा'न को 'ुव्यवस्थिस्थत ढंग 'े चलाने के शिलए अपने राज्य को 15 'ूबों में बांट दि4या।मुगल $ा'क $ाहजहाँ ने अपने $ा'नकाल के 4ौरान हरिरयाणा की $ा'न-व्यवस्था में परिरवत<न पिकये। मुगल $ा'क औरंगजेब ने अपने $ा'नकाल में पिहन्दुओं पर भीषण अत्याचार पिकये। उ'ने हरिरयाणा की जनता पर कमरतोड़ कर लगा दि4ये। परिरणामस्वरूप उ'े नारनौल के 'तनामिमयों के प्रबल पिवरोध का 'ामना करना पड़ा। 'तनामिमयों के 'ंघष< के बा4 में भीषण रूप धारण कर शिलया तथा 3 माच<, 1707 में औरंगजेन की मृत्यु के पश्चात् हरिरयाणा 'े मुगलों का अमिधपत्य धीरे-धीरे 'माप्त हो गया।'न् 1750 में मराठों ने दि4ल्ली पर आक्रमण पिकया। परन्तु उन्हें 'फलता तीन वष< बा4 मल्हारराव होल्कर के पुत्र खाण्डेराव के दि4ल्ली आक्रमण 'े मिमली। मुगल 'मा्रट्अहम4$ाह और उ'का प्रधानमंत्री इन्तजाम-उ-4ौला उ'का पिवरोध करने की aमता नहीं रखतें थें।1754 में आलमगीर (मराठों द्वारा बनाया गया $ा'क) ने मराठों के प्रपित कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्हे हरिरयाणा का पपिवत्र स्थान कुरूaेत्र प्र4ान पिकया। 1756-57 तक मराठे हरिरयाणा पर पूण< रूप 'े छाये रहे।हरिरयाणा पर अमिधकार करने के उपरान्त मराठे और आगे बढे़ और उन्होंने पंजाब पर भी अमिधकार कर शिलया। मराठों द्वारा पंजाब पर कeजा करने के परिरणामस्वरूप मराठों और अहम4$ाह अe4ाली के बीच पानीपत (हरिरयाणा) का ती'रा युद्ध हुआ । इ' युद्ध में अe4ाली की पिवजय हुई परन्तु वह उ' पिवजय का लाभ नहीं उठा 'का क्योंपिक उ'की अनुपस्थिस्थपित में उ'के अपने 4े$ में पिवद्रोह हो गया। अe4ाली ने अपने 4े$ लौटते 'मय हरिरयाणा का उत्तरी भाग (अम्बाला,जीं4, कुरूaेत्र, करनाल जिजले को) 'रपिहन्4 के गव<नर जैनखां के 4लों ने मिमलकर 'रपिहन्4 के दुरा<नी गव<नर गेन खां, पर आक्रमण कर दि4या। दुरा<नी गव<नर ने शि'खों का मुकाबला पिकया परन्तु अन्त में वह शि'खों के हाथों पराजिजत हुआ और मारा गया। जैन खां 'े शि'खों को एक बड़ा aेत्र प्रापत हुआ यह aेत्र पूव< में यमुना न4ी 'े लेकर पत्तिश्चम में बहाबलपुर राज्य तक तथा उत्तर में 'तलुज न4ी 'े लेकर 4त्तिaण में पिह'ार और रोहतक तक पिवस्तृत था। इ'के बा4 भी शि'खों ने हरिरयाणा प्र4े$ पर कई बार आक्रमण पिकये।1787 में आयरलैण्ड में दिटप्परेरी नामक स्थान का पिनवा'ी जाज< टॉमन दि4ल्ली आया और बेगम 'मरू की 'ेना में भत[ हो गया। 'ेना में भत[ होने के बा4 धीरे-धीरे तरक्की करते हुए उ'ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने का पिनश्चय पिकया। हां'ी के दुग< का टॉम' ने राजधानी बनाया तथा कुछ 'मय बा4 उ'ने अपने राज्य का पिवस्तार करना आरम्भ पिकया। उ' 'मय शि'ख उ'का मुकाबला करने में लगे हुए थ,े तभी अव'र 4ेख टॉम' ने जीं4 पर

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आक्रमण कर अमिधकार कर शिलया। परन्तु शि'ख 'र4ार बोगेन ने टॉम' का पीछा करते हुए उ'े हां'ी में घेर शिलया और अन्त में 23 शि'तम्बर, 1801 में टॉम' ने आत्म'मप<ण कर दि4या। 1802 ई. में बहरामपुर नामक स्थान पर टाॅम' की मृत्यु हो गई।'न् 1708 में लाड< वेलेजली कम्पनी का गव<नर जनरल बनकर भारत आया और उ'ने आते ही अपनी पिवस्तार-वा4ी योजना बनाई । 30 शि'तम्बर, 1803 को 'ज[अज<न की 'न्धिन्ध के अनु'ार 4ौलतराव शि'न्धिन्धया ने अंग्रेजों को अपनी अमिधकृत स्थानों के 'ाथ-'ाथ हरिरयाणा को भी प्र4ान कर दि4या। हरिरयाणा में गुड़गांव के मेव, अहीर और गूजरों ने, रोहतक के जाटों और रांघड़ों ने, पिह'ार के पिवश्नोई और जाटों ने, करनाल व कुरूaेत्र के राजपूत, रोड़, 'ैनी और शि'खों ने, पिब्रदिट$ तथा उनके द्वारा पिनयुक्त पिकये गये स्थानीय 'र4ारों का लम्बे 'मय तक कड़ा पिवरोध पिकया। पिकन्तु अन्त में 1809-10 में 'मस्त हरिरयाणा पर अंग्रेजों का अमिधकार स्थापिपत हो गया।1857 की जनक्रान्तिन्त में हरिरयाणा के $ूरवीरों ने महत्पूण< भाग शिलया पिकन्तु अंग्रजों ने इ' क्रांपित को बड़ी बब<तापूव<क 4बा दि4या और झज्जर व बहादुरगढ़ के नवाबों, बल्लभगढ़ वे रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम के राज्य छीन शिलए। पिफर ये राज्य या तो पिब्रदिट$ 'ामा्रज्य में मिमला शिलये गये या नाभा, जी4 व पदिटयाला के $ा'कों को 'ौंप दि4ये गये।इ'के बा4 हरिरयाणा पंजाब राज्य का एक प्रान्त बना दि4या गया।1 नवम्बर, 1966 को आधुपिनक हरिरयाणा राज्य अस्तिस्तत्व में आया।   [म्हारा हरिरयाणा]

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