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Page 1: Mahendrajnu21@gmail - PTSNS Universityptsnsuniversity.ac.in/IImages/OnlineStudy/Hindi/UGC hindi net sllybus all stories.pdfMahendrajnu21@gmail.com िेंक दें .अब भारत

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अनकरमणिका

1 चनदरदव स मरी बात 3

2 दलाईवाली 6

3 एक टोकरी-भर ममटटी 12

4 कानो म कगना 14

5 राजा मनरबमसया 19

6 मिता 36

7 िररनदद 42

8 अमतसर आ गया ह 63

9 चीफ की दावत 73

10 मसकका बदल गया 81

11 इनदिकटर मातादीन चाद िर वयगय 86

12 मार गय ग़लफाम उफफ तीसरी कसम 95

13 लाल िान की बगम 121

14 कोसी का घटवार 135

15 आकाशदीि 148

16 गगरीन-(रोज) 161

17 उसन कहा था 174

18 ईदगाह 185

19 दमनया का सबस अनमोल रतन 192

20 अिना-अिना भागय 198

21 राही 204

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चनदरदव स मरी बात

बग मणिला

सरसवती

भगवान चनदरदव आपक कमलवत कोमल चरणो म इस दासी का अनक बार परणाम आज म आपस दो

चार बात करन की इचछा रखती ह कया मर परशनो का उततर आप परदान करग कीजजए - बड़ी कपा होगी दखो सनी

अनसनी सी मत कर जाना अपन बड़पपन की ओर धयान दना अचछा कहती ह सनो

म सनती ह आप इस आकाश मडल म जचरकाल स वास करत ह कया यह बात सतय ह यजद सतय ह तो म

अनमान करती ह जक इस सजि क साथ ही साथ अवशय आपकी भी सजि हई होगी तब तो आप ढर जदन क परान

बढ़ कह जा सकत ह आप इतन परान ह तो सही पर काम सदा स एक ही और एक ही सथान म करत आत ह यह

कयो कया आपकाजडपारटमणर(महकम) म टासफ़र (बदली) होन का जनयम नही ह कया आपकीगवरमणरपशन भी

नही दती बड़ खद की बात ह यजद आप हमारी नदयायशीलाlsquoगवनटमणरrsquoक जकसी जवभाग मlsquoसजवटसrsquo (नौकरी) करत

होत तो अब तक आपकी बहत कछ पदोनदनजत हो गई होती और ऐसी lsquoपोसरrsquo पर रहकर भारत क जकतन ही सरमय

नगर पवटत जगल और झाजड़यो म भरमण करत अत म इस वदध अवसथा म पशन परापत कर काशी ऐस पनीत और

शाजत - धाम म बठकर हरर नाम समरण करक अपना परलोक बनात यह बड़ी भारी भल हई भगवान चरदव कषमा

कीजजए कषमा कीजजए आप तो अमर ह आपको मतय कहा तब परलोक बनाना कसा ओ हो दवता भी अपनी

जाजत क कस पकषपाती होत ह दखो नlsquoचरदवrsquoको अमत दकर उनदहोन अमर कर जदया - तब यजद मनषय होकर हमार

अगरज़ अपन जाजतवालो का पकषपात कर तो आशचयट ही कया ह अचछा यजद आपको अगरज जाजत की सवा करना

सवीकार हो तो एकlsquoएपलीकशनrsquo (जनवदन पतर) हमार आधजनक भारत परभ लॉडट कज़ईन क पास भज दव आशा ह

जक व आपको आदर पवटक अवशय आहवान करग कयोजक आप अधम भारतवाजसयो क भाजत कषणाग तो ह ही नही

जो आपको अचछी नौकरी दन म उनकी गौराग जाजत कजपत हो उठगी और जिर आप तो एक सयोगय कायटदकष

पररशरमी बहदशी कायटकशल और सरल सवभाव महातमा ह म जवशवास करती ह जक जब लॉडट कज़टन हमार भारत क

सथायी भागय जवधाता बनकर आवग तब आपको जकसी कमीशन का ममबर नही तो जकसी जमशन म भरती करक व

अवशय ही भज दवग कयोजक उनको कजमशन औरजमशन दोनो ही अतयत जपरय ह आपक चरलोक म जो रीजत और

नीजत सजि क आजद काल म परचजलत थ व ही सब अब भी ह पर यहा तो इतना पररवतटन हो गया ह जक भत और

वतटमान म आकाश पाताल का सा अतर हो गया ह म अनमान करती ह जक आपक नतरो की जयोजत भी कछ अवशय

ही मद पड़ गई होगी कयोजक आधजनक भारत सतान लड़कपन स ही चशमा धारण करन लगी ह इस कारण आप

हमार दीन हीन कषीण-परभ भारत को उतनी दर स भलीभाजत न दख सकत होग अतएव आपस सादर कहती ह जक

एक बार कपाकर भारत को दख तो जाइय यदयजप इस बात को जानती ह जक आपको इतना अवकाश कहा - पर

आठव जदन नही तो महीन म एक जदन अथाटत अमावसया को तो आपकोlsquoहॉजलडrsquo (छटटी) अवशय ही रहती ह यजद

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आप उस जदन चाह तो भारत भरमण कर जा सकत ह इस भरमण म आपको जकतन ही नतन दशय दखन को जमलग

जजस सहसा दख कर आपकी बजदध ज़रर चकराजायगी यजद आपस सार जहनददोसतान का भरमण शीघरता क कारण न

हो सक तो कवल राजधानी कलकतता को दख लना तो अवशय ही उजचत ह वहा क कल कारखानो को दखकर

आपको यह अवशय ही कहना पड़गा जक यहा क कारीगर तो जवशवकमाट क भी लड़कदादा जनकल यही कयो आपकी

जपरय सहयोजगनी दाजमनो जो मघो पर आरोहण करक आनद स अठखजलया जकया करती ह वह बचारी भी यहा मनषय

क हाथो का जखलौना हो रही ह भगवान जनशानाथ जजस समय आप अपनी जनमटल चजनदरका को बरोर मघमाला

अथवा पवटतो की ओर स जसनदध क गोद म जा सकत ह उस समय यही नीरद- वासनी जवशवमोजहनी सौदाजमनी अपनी

उजजवल मजतट स आलोक परदान कर रात को जदन बना दती ह आपक दवलोक म जजतन दवता ह उनक वाहन भी

उतन ह - जकसी का गज जकसी का हस जकसी का बल जकसी का चहा इतयाजद पर यहा तो सारा बोझ आपकी

चपला और अजगनदव क माथ मढ़ा गया ह कया बराहमण कया कषजतरय कया वशय कया शर कया चाणडाल सभी क रथो

का वाहन वही हो रही ह हमार शवताग महापरभ गण को जहा पर कछ कजठनाई का सामना आ पड़ा झर

उनदहोनlsquoइलजकटजसरीrsquo (जबजली) को ला परका बस कजठन स कजठन कायट सहज म समपादन कर लत ह और हमार

यहा क उचच जशकषा परापत यवक काठ क पतलो की भाजत मह ताकत रह जात ह जजस वयोमवाजसनी जवदयत दवी को

सपशट तक करन का जकसी वयजि का साहस नही हो सकता वही आज पराय घर म आजशरता नाररयो की भाजत ऐस

दबाव म पड़ी ह जक वह च तक नही कर सकती कया कर बचारी क भागय म जवधाता न दासी - वजतत ही जलखा था

हररपदोदभवा तरलोकयपावनी सरसरी क भी खोर जदन आय ह वह भी अब सथान - सथान मबनदधनगरसत हो रही ह

उसक वकषसथल पर जहा तहा मोर वहदाकारखमभ गाड़ जदए गए ह कलकतता आजद को दखकर आपक दवराज सरनदर

भी कहग जक हमारी अमरावती तो इसक आग जनरी िीकी सी जान पड़ती ह वहा ईडन गाडटन तो पाररजात

पररशोजभत ननददन कानन को भी मात द रहा ह वहा क जवशवजवदयालय क जवशवशरषठ पजडतो की जवशववयाजधनी जवदया को

दखकर वीणापाजण सरसवती दवी भी कहन लग जाएगी जक जनसदह इन जवदया जदगगजो की जवदयाचमतकाररणीह वही

क िोरट जवजलयम क िौजी सामान को दखकर आपक दव सनापजत काजतटकय बाब क भी छकक छर जायग कयोजक

दव सनापजत महाशय दखन म खास बगाली बाब स जचत ह और उनका वाहन भी एक सनददर मयर ह बस इसस

उनक वीरतव का भी पररचय खब जमलता ह वहा कlsquoजमरrsquo (रकसाल) को दखकर जसनदधतनया आपकी जपरय सहोदरा

कमला दवी तथा कबर भी अकचका जायग भगवान चर दव इनदही सब जवशवमयोतपादकअपवट दशयो का अवलोकन

करन क हत आपको सादर जनमजतरत तथा सजवनय आह त करती ह समभव ह जक यहा आन स आपको अनक लाभ

भी हो आप जो अनाजद काल स जनज उजजवल वप म कलक की काजलमा लपन करक कलकी शशाक शशधर

शशलाछन आजद उपाजध - मालाओ स भजित हो रह ह जसनदध तनय होन पर भी जजस काजलमा को आप आज तक

नही धो सक ह वही आजनदम- कलक शायद यहा क जवजञानजवद पजणडतो की चिा स छर जाय जब बमबई म सवगीय

महारानी जवकरोररया दवी की परजतमजतट स काला दाग छड़ान म परोिसर गजजर महाशय िलीभत हए ह तब कया

आपक मख की काजलमा छड़ान म व िलीभत न होग

शायद आप पर यह बात भी अभी तक जवजदत नही हई जक आप और आपक सवामी सयट भगवान पर जब

हमार भमणडल की छाया पड़ती ह तभी आप लोगो पर गरहणलगता ह पर आप का तो अब तक वही पराना जवशवास

बना हआ ह जक जब कजरल गरह राह आपको जनकल जाता ह तभी गरहण होता ह पर ऐसा थोथा जवशवास करना आप

लोगो की भारी भल ह अतः ह दव म जवनय करती ह जक अब आप अपन हरदय स इस भरम को जड़ स उखाड़ कर

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ि क द अब भारत म न तो आपक और न आपक सवामी भवनभासकर सयट महाशय ही क वशधरोका सामराजय ह

और न अब भारत की वह शसय शयामला सवणटपरसता मजतट ही ह अब तो आप लोगो क अजञात एक अनदय दवीप -

वासी परम शजिमान गौराग महापरभ इस सजवशाल भारत-विट का राजय वभव भोग रह ह अब तक मन जजन बातो

का वणटन आपस सथल रप म जकया वह सब इनदही जवदयाजवशारद गौराग परभओ ककपाकराकष का पररणाम ह यो तो

यहा परजत विट पदवीदान क समय जकतन ही राजय जवहीन राजाओ की सजि हआ करती ह पर आपक वशधरो म जो दो

चारराजा महाराजा नाम - मातर क ह भी व काठ क पतलो की भाती ह जस उनदह उनक रकषक नचात ह वस ही व

नाचत ह व इतनी भी जानकारी नही रखत जक उनक राजय म कया हो रहा ह - उनकी परजा दखी ह या सखी

यजद आप कभी भारत - भरमण करन को आय तो अपनlsquoिजमली डॉकररrsquoधनदवनदतरर महाशय को और दवताओ

कlsquoचीि जजसरसrsquoजचतरगपतजी को साथ अवशय लत आए आशा ह जक धनदवनदतरर महाशय यहा क डॉकररो क सजनदनकर

जचजकतसा समबनदधी बहत कछ जशकषा लाभ कर सक ग यजद पलग - महाराज (इशवर न कर ) आपक चनदरलोक या

दवलोक म घस पड़ तो वहा स उनको जनकालना कछ सहज बात न होगी यही जब जचजकतसा शासतर क बड़-बड़

पारदशी उन पर जवजय नही पा सकत तब वहा आपकlsquoदवलोकrsquoम जड़ी - बजरयो क परयोग स कया होगा यहा

कlsquoइजणडयन पीनल कोडrsquoकी धाराओ को दखकर जचतरगपतजी महाराज अपन यहा की दणडजवजध (कानन) को बहत

कछ सधार सकत ह और यजद बोझ न हो तो यहा स व दो चारlsquoराइप राइररrsquoभी खरीद ल जाय जब पलग महाराज

क अपार अनगरह स उनक ऑजिस म कायट की अजधकता होव तब उसस उनकीlsquoराइरसट जबजडगrsquoकlsquoराईरसटrsquoक काम

म बहत ही सजवधा और सहायता पहचगी व लोग दो जदन का काम दो घणर म कर डालग

अचछा अब म आपस जवदा होती ह मन तो आपस इतनी बात कही पर खद ह आपन उनक अनकल या

परजतकल एक बात का भी उततर न जदया परनदत आपक इस मौनावलमब को म सवीकार का सचक समझती ह अचछा

तो मरी पराथटना को कबल करक एक दिा यहा आइएगा जरर - एक बग मजहला

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दलाईवाली 1907

बग मजहला

काशी जी क दशाश वमध घार पर स नान करक एक मनष य बड़ी व यगरता क साथ गोदौजलया की तरि आ रहा

था एक हाथ म एक मली-सी तौजलया म लपरी हई भीगी धोती और दसर म सरती की गोजलयो की कई जडजबया और

सघनी की एक पजड़या थी उस समय जदन क ग यारह बज थ गोदौजलया की बायी तरि जो गली ह उसक भीतर एक

और गली म थोड़ी दर पर एक रर-स परान मकान म वह जा घसा मकान क पहल खण ड म बहत अधरा था पर उपर

की जगह मनष य क वासोपयोगी थी नवागत मनष य धड़धड़ाता हआ ऊपर चढ़ गया वहा एक कोठरी म उसन हाथ की

चीज रख दी और सीता सीता कहकर पकारन लगा

क या ह कहती हई एक दस बरस की बाजलका आ खड़ी हई तब उस परि न कहा सीता जरा अपनी बहन को

बला ला

अच छा कहकर सीता गई और कछ दर म एक नवीना स तरी आकर उपजसथत हई उस दखत ही परि न कहा लो

हम लोगो को तो आज ही जाना होगा

इस बात को सनकर स तरी कछ आश चयटयक त होकर और झझलाकर बोली आज ही जाना होगा यह क यो भला आज

कस जाना हो सकगा ऐसा ही था तो सवर भया स कह दत तम तो जानत हो जक मह स कह जदया बस छटटी हई

लड़की कभी जवदा की होती तो मालम पड़ता आज तो जकसी सरत जाना नही हो सकता

तम आज कहती हो हम तो अभी जाना ह बात यह ह जक आज ही नवलजकशोर कलकतत स आ रह ह आगर स

अपनी नई बह को भी साथ ला रह ह सो उनद होन हम आज ही जान क जलए इसरार जकया ह हम सब लोग मगलसराय

स साथ ही इलाहाबाद चलग उनका तार मझ घर स जनकलत ही जमला इसी स म झर नहा-धोकर लौर आया बस

अब करना ही क या ह कपड़ा-वपड़ा जो कछ हो बाध-बधकर घण र भर म खा-पीकर चली चलो जब हम तम ह जवदा

करान आए ही ह तब कल क बदल आज ही सही

हा यह बात ह नवल जो चाह कराव क या एक ही गाड़ी म न जान स दोस ती म बटटा लग जाएगा अब तो जकसी तरह

रकोग नही जरर ही उनक साथ जाओग पर मर तो नाको दम आ जाएगी

क यो जकस बात स

उनकी हसी स और जकसस हसी-ठटठा भी राह म अच छी लगती ह उनकी हसी मझ नही भाती एक रोज म चौक म

बठी पजड़या काढ़ रही थी जक इतन म न-जान कहा स आकर नवल जच लान लग ए बआ ए बआ दखो तम हारी

बह पजड़या खा रही ह म तो मार सरम क मर गई हा भाभी जी न बात उड़ा दी सही व बोली खान-पहनन क जलए

तो आयी ही ह पर मझ उनकी हसी बहत बरी लगी

बस इसी स तम उनक साथ नही जाना चाहती अच छा चलो म नवल स कह दगा जक यह बचारी कभी रोरी तक तो

खाती ही नही पड़ी क यो खान लगी

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इतना कहकर बशीधर कोठरी क बाहर चल आय और बोल म तम हार भया क पास जाता ह तम रो-रलाकर तयार

हो जाना

इतना सनत ही जानकी दई की आख भर आयी और असाढ़-सावन की ऐसी झड़ी लग गयी

बशीधर इलाहाबाद क रहन वाल ह बनारस म ससराल ह स तरी को जवदा करान आय ह ससराल म एक साल साली

और सास क जसवा और कोई नही ह नवलजकशोर इनक दर क नात म ममर भाई ह पर दोनो म जमतरता का खयाल

अजधक ह दोनो म गहरी जमतरता ह दोनो एक जान दो काजलब ह

उसी जदन बशीधर का जाना जसथर हो गया सीता बहन क सग जान क जलए रोन लगी मा रोती-धोती लड़की की जवदा

की सामगरी इकटठी करन लगी जानकी दई भी रोती ही रोती तयार होन लगी कोई चीज भलन पर धीमी आवाज स मा

को याद भी जदलाती गयी एक बजन पर स रशन जान का समय आया अब गाड़ी या इक का लान कौन जाय

ससरालवालो की अवस था अब आग की सी नही जक दो-चार नौकर-चाकर हर समय बन रह सीता क बाप क न रहन

स काम जबगड़ गया ह पसवाल क यहा नौकर-चाकरो क जसवा और भी दो-चार खशामदी घर रहत ह छछ को कौन

पछ एक कहाररन

ह सो भी इस समय कही गयी ह सालराम की तबीयत अच छी नही व हर घड़ी जबछौन स बात करत ह जतस पर भी

आप कहन लग म ही धीर-धीर जाकर कोई सवारी ल आता ह नजदीक तो ह

बशीधर बोल नही नही तम क यो तकलीि करोग म ही जाता ह जात-जात बशीधर जवचारन लग जक इक क की

सवारी तो भल घर की जसतरयो क बठन लायक नही होती क योजक एक तो इतन ऊ च पर चढ़ना पड़ता ह दसर पराय

परि क सग एक साथ बठना पड़ता ह म एक पालकी गाड़ी ही कर ल उसम सब तरह का आराम रहता ह पर जब

गाड़ी वाल न डढ़ रपया जकराया मागा तब बशीधर न कहा चलो इक का ही सही पहचन स काम कछ नवलजकशोर

तो यहा स साथ ह नही इलाहाबाद म दखा जाएगा

बशीधर इक का ल आय और जो कछ असबाब था इक क पर रखकर आप भी बठ गय जानकी दई बड़ी जवकलता स

रोती हई इक क पर जा बठी पर इस अजसथर ससार म जसथरता कहा यहा कछ भी जसथर नही इक का जस-जस आग

बढ़ता गया वस जानकी की रलाई भी कम होती गयी जसकरौल क स रशन क पास पहचत-पहचत जानकी अपनी

आख अच छी तरह पोछ चकी थी

दोनो चपचाप चल जा रह थ जक अचानक बशीधर की नजर अपनी धोती पर पड़ी और अर एक बात तो हम भल ही

गय कहकर पछता स उठ इक क वाल क कान बचाकर जानकी जी न पछा क या हआ क या कोई जररी चीज भल

आय

नही एक दशी धोती पजहनकर आना था सो भलकर जवलायती ही पजहन आय नवल कटटर स वदशी हए ह न व

बगाजलयो स भी बढ़ गय ह दखग तो दो-चार सनाय जबना न रहग और बात भी ठीक ह नाहक जबलायती चीज मोल

लकर क यो रपय की बरबादी की जाय दशी लन स भी दाम लगगा सही पर रहगा तो दश ही म

जानकी जरा भौह रढ़ी करक बोली ऊ ह धोती तो धोती पजहनन स काम क या यह बरी ह

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इतन म स रशन क कजलयो न आ घरा बशीधर एक कली करक चल इतन म इक कवाल न कहा इधर स जरकर लत

जाइए पल क उस पार तो डयोढ़ दरज का जरकर जमलता ह

बशीधर जिरकर बोल अगर म डयोढ़ दरज का ही जरकर ल तो

इक कवाला चप हो रहा इक क की सवारी दखकर इसन ऐसा कहा यह कहत हए बशीधर आग बढ़ गय यथा-समय

रल पर बठकर बशीधर राजघार पार करक मगलसराय पहच वहा पल लाघकर दसर प लरिामट पर जा बठ आप

नवल स जमलन की खशी म प लरिामट क इस छोर स उस छोर तक रहलत रह दखत-दखत गाड़ी का धआ जदखलाई

पड़ा मसाजिर अपनी-अपनी गठरी सभालन लग रल दवी भी अपनी चाल धीमी करती हई गम भीरता स आ खड़ी

हई बशीधर एक बार चलती गाड़ी ही म शर स आजखर तक दख गय पर नवल का कही पता नही बशीधर जिर सब

गाजड़यो को दोहरा गय तहरा गय भीतर घस-घसकर एक-एक जडब ब को दखा जकत नवल न जमल अत को आप

जखजला उठ और सोचन लग जक मझ तो वसी जचटठी जलखी और आप न आया मझ अच छा उ ल बनाया अच छा

जाएग कहा भर होन पर समझ लगा सबस अजधक सोच तो इस बात का था जक जानकी सनगी तो तान पर ताना

मारगी पर अब सोचन का समय नही रल की बात ठहरी बशीधर झर गय और जानकी को लाकर जनानी गाड़ी म

जबठाया वह पछन लगी नवल की बह कहा ह वह नही आय कोई अरकाव हो गया कहकर आप बगल वाल

कमर म जा बठ जरकर तो डयोढ़ का था पर डयोढ़ दरज का कमरा कलकतत स आनवाल मसाजिरो स भरा था

इसजलए तीसर दरज म बठना पड़ा जजस गाड़ी म बशीधर बठ थ उसक सब कमरो म जमलाकर कल दस-बारह ही स तरी-

परि थ समय पर गाड़ी छरी नवल की बात और न-जान क या अगड़-बगड़ सोचत गाड़ी कई स रशन पार करक

जमरजापर पहची

जमरजापर म परराम की जशकायत शर हई उसन सझाया जक इलाहाबाद पहचन म अभी दरी ह चलन क झझर म

अच छी तरह उसकी पजा जकय जबना ही बशीधर न बनारस छोड़ा था इसजलए आप झर प लरिामट पर उतर और पानी

क बम ब स हाथ-मह धोकर एक खोचवाल स थोड़ी-सी ताजी पजड़या और जमठाई लकर जनराल म बठ आपन उनद ह

जठकान पहचाया पीछ स जानकी की सध आयी सोचा जक पहल पछ ल तब कछ मोल लग क योजक जस तरया नरखर

होती ह व रल पर खाना पसद नही करती पछन पर वही बात हई तब बशीधर लौरकर अपन कमर म आ बठ यजद

व चाहत तो इस समय डयोढ़ म बठ जात क योजक अब भीड़ कम हो गयी थी पर उनद होन कहा थोड़ी दर क जलए कौन

बखड़ा कर

बशीधर अपन कमर म बठ तो दो-एक मसाजिर अजधक दख पड़ आगवालो म स एक उतर भी गया था जो लोग थ

सब तीसर दरज क योग य जान पड़त थ अजधक सभ य कोई थ तो बशीधर ही थ उनक कमर क पास वाल कमर म एक

भल घर की स तरी बठी थी वह बचारी जसर स पर तक ओढ़ जसर झकाए एक हाथ लबा घघर काढ़ कपड़ की गठरी-सी

बनी बठी थी बशीधर न सोचा इनक सग वाल भर परि क आन पर उनक साथ बातचीत करक समय जबतावग एक-

दो करक तीसरी घण री बजी तब वह स तरी कछ अकचकाकर थोड़ा-सा मह खोल जगल क बाहर दखन लगी ज योही

गाड़ी छरी वह मानो काप-सी उठी रल का दना-लना तो हो ही गया था अब उसको जकसी की क या परवा वह

अपनी स वाभाजवक गजत स चलन लगी प लरिामट पर भीड़ भी न थी कवल दो-चार आदमी रल की अजतम जवदाई

तक खड़ थ जब तक स रशन जदखलाई जदया तब तक वह बचारी बाहर ही दखती रही जिर अस पष र स वर स रोन लगी

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उस कमर म तीन-चार परौढ़ा गरामीण जस तरया भी थी एक जो उसक पास ही थी कहन लगी - अर इनकर मनई तो नाही

आइलन हो दखहो रोवल करथईन

दसरी अर दसर गाड़ी म बठा होइह

पहली दर बौरही ई जनानी गाड़ी थड़ ह

दसरी तऊ हो भल तो कह कहकर दसरी भर मजहला स पछन लगी कौन गाव उतरब बरा मीरजपरा चढ़ी हऊ

न इसक जवाब म उसन जो कहा सो वह न सन सकी

तब पहली बोली हर हम पजछला न हम कहा काहा ऊतरब हो आय ईलाहाबास

दसरी ईलाहाबास कौन गाव हौ गोइया

पहली अर नाही जनल पयाग जी जहा मनई मकर नाहाए जाला

दसरी भला पयाग जी काह न जानीथ ल कहक नाही तोहर पच क धरम स चार दाई नहाय चकी हई ऐसो हो

सोमवारी अउर गहन दका दका लाग रहा तउन तोहर काशी जी नाहाय गइ रह

पहली आव जाय क तो सब अऊत जाता बरल बारन िन यह साइत तो जबचारो जवपत म न पड़ल बाजरली ह हम

पचा हइ राजघार जरकस करऊली मोगल क सराय उतरलीह हो द पन चढ़लीह

दसरी ऐस एक दाई हम आवत रह एक जमली औरो मोर सघ रही दकौन जरसनीया पर उकर मजलकवा उतर स जक

जरतइह गजड़या खली अब भइया ऊगरा िाड़-िाड़ नररयाय ए साहब गजड़या खड़ी कर ए साहब गजड़या तनी खड़ी

कर भला गजड़यादजहनाती काह क खड़ी होय

पहली उ महररवा बड़ी उजबक रहल भला कह क जच लाय स रलीऔ कह खड़ी होला

इसकी इस बात पर कल कमर वाल हस पड़ अब जजतन परि-जसतरया थी एक स एक अनोखी बात कहकर अपन-

अपन तजरब बयान करन लगी बीचबीच म उस अकली अबला की जसथजत पर भी दख परकर करती जाती थी

तीसरी स तरी बोली रीक कजसया प ल बाय क नाही ह सहबवा सजन तो कलकतत ताई ल मसजलया लई अर-इहो तो

नाही जक दर स आवत रहल न िरागत क बद उतर लन

चौथी हम तो इनक सग क आदमी क दखबो न जकहो गोइया

तीसरी हम दख रहली हो मजक रोपी जदहल रहलन को

इस तरह उनकी बजसर-पर की बात सनत-सनत बशीधर ऊब उठ तब व उन जसतरयो स कहन लग तम तो नाहक उनद ह

और भी डरा रही हो जरर इलाहाबाद तार गया होगा और दसरी गाड़ी स व भी वहा पहच जाएग म भी इलाहाबाद

ही जा रहा ह मर सग भी जसतरया ह जो ऐसा ही ह तो दसरी गाड़ी क आन तक म स रशन ही पर ठहरा रह गा तम लोगो

म स यजद कोई परयाग उतर तो थोड़ी दर क जलए स रशन पर ठहर जाना इनको अकला छोड़ दना उजचत नही यजद पता

मालम हो जाएगा तो म इनद ह इनक ठहरन क स थान पर भी पहचा दगा

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बशीधर की इन बातो स उन जसतरयो की वाक-धारा दसरी ओर बह चली हा यह बात तो आप भली कही नाही

भइया हम पच काजहक कहस कछ कही अर एक क एक करत न बाय तो दजनया चलत कस बाय इत याजद

जञानगाथा होन लगी कोई-कोई तो उस बचारी को सहारा जमलत दख खश हए और कोई-कोई नाराज भी हए क यो सो

म नही बतला सकती उस गाड़ी म जजतन मनष य थ सभी न इस जविय म कछ-न-कछ कह डाला था जपछल कमर म

कवल एक स तरी जो िरासीसी छीर की दलाई ओढ़ अकली बठी थी कछ नही बोली कभी-कभी घघर क भीतर स

एक आख जनकालकर बशीधर की ओर वह ताक दती थी और सामना हो जान पर जिर मह िर लती थी बशीधर

सोचन लग जक यह क या बात ह दखन म तो यह भल घर की मालम होती ह पर आचरण इसका अच छा नही

गाड़ी इलाहाबाद क पास पहचन को हई बशीधर उस स तरी को धीरज जदलाकर आकाश-पाताल सोचन लग यजद तार

म कोई खबर न आयी होगी तो दसरी गाड़ी तक स रशन पर ही ठहरना पड़गा और जो उसस भी कोई न आया तो क या

कर गा जो हो गाड़ी ननी स छर गयी अब साथ की उन अजशजकषता जसतरयो न जिर मह खोला क भइया जो कह

जबना जरक कस क आवत होय तो ओकर का सजाय होला अर ओका ई नाही चाहत रहा जक महरार क तो बठा

जदहलन अउर अपआ तउन जरक कस लई क चल जदहलन जकसी-जकसी आदमी न तो यहा तक दौड़ मारी की रात

को बशीधर इसक जवर छीनकर रिचक कर हो जाएग उस गाड़ी म एक लाठीवाला भी था उसन ख लमख ला कहा

का बाब जी कछ हमरो साझा

इसकी बात पर बशीधर करोध स लाल हो गय उनद होन इस खब धमकाया उस समय तो वह चप हो गया पर यजद

इलाहाबाद उतरता तो बशीधर स बदला जलय जबना न रहता बशीधर इलाहाबाद म उतर एक बजढ़या को भी वही

उतरना था उसस उनद होन कहा जक उनको भी अपन सग उतार लो जिर उस बजढ़या को उस स तरी क पास जबठाकर

आप जानकी को उतारन गय जानकी स सब हाल कहन पर वह बोली अर जान भी दो जकस बखड़ म पड़ हो पर

बशीधर न न माना जानकी को और उस भर मजहला को एक जठकान जबठाकर आप स रशन मास रर क पास गय

बशीधर क जात ही वह बजढ़या जजस उनदहोन रखवाली क जलए रख छोड़ा था जकसी बहान स भाग गयी अब तो

बशीधर बड़ असमजस म पड़ जरकर क जलए बखड़ा होगा कयोजक वह सतरी ब-जरकर ह लौरकर आय तो जकसी को

न पाया अर य सब कहा गयी यह कहकर चारो तरि दखन लग कही पता नही इस पर बशीधर घबराय आज

कसी बरी साइत म घर स जनकल जक एक क बाद दसरी आित म ि सत चल आ रह ह इतन म अपन सामन उस

ढलाईवाली को आत दखा त ही उन जसतरयो को कही ल गयी ह इतना कहना था जक ढलाई स मह खोलकर

नवलजकशोर जखलजखला उठ

अर यह क या सब तम हारी ही करतत ह अब म समझ गया कसा गजब तमन जकया ह ऐसी हसी मझ नही अच छी

लगती मालम होता जक वह तम हारी ही बह थी अच छा तो व गयी कहा

व लोग तो पालकी गाड़ी म बठी ह तम भी चलो

नही म सब हाल सन लगा तब चलगा हा यह तो कह तम जमरजापर म कहा स आ जनकल

जमरजापर नही म तो कलकतत स बजक मगलसराय स तम हार साथ चला आ रहा ह तम जब मगलसराय म मर

जलए चक कर लगात थ तब म डयोढ़ दज म ऊपरवाल बच पर लर तम हारा तमाशा दख रहा था जिर जमरजापर म जब

तम पर क धध म लग थ म तम हार पास स जनकल गया पर तमन न दखा म तम हारी गाड़ी म जा बठा सोचा जक

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तम हार आन पर परकर होऊ गा जिर थोड़ा और दख ल करत-करत यहा तक नौबत पहची अच छा अब चलो जो

हआा उस माि करो

यह सन बशीधर परसनद न हो गय दोनो जमतरो म बड़ परम स बातचीत होन लगी बशीधर बोल मर ऊपर जो कछ बीती

सो बीती पर वह बचारी जो तम हार-स गनवान क सग पहली ही बार रल स आ रही थी बहत तग हई उस तो तमन

नाहक रलाया बहत ही डर गयी थी

नही जी डर जकस बात का था हम-तम दोनो गाड़ी म न थ

हा पर यजद म स रशन मास रर स इजततला कर दता तो बखड़ा खड़ा हो जाता न

अर तो क या म मर थोड़ ही गया था चार हाथ की दलाई की जबसात ही जकतनी

इसी तरह बातचीत करत-करत दोनो गाड़ी क पास आय दखा तो दोनो जमतर-बधओ म खब हसी हो रही ह जानकी

कह रही थी - अर तम क या जानो इन लोगो की हसी ऐसी ही होती ह हसी म जकसी क पराण भी जनकल जाए तो भी

इनद ह दया न आव

खर दोनो जमतर अपनी-अपनी घरवाली को लकर राजी-खशी घर पहच और मझ भी उनकी यह राम-कहानी जलखन स

छटटी जमली

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एक रोकरी-भर जमटटी (1900)

माधवराव सपर

जकसी शरीमान जमीदार क महल क पास एक गरीब अनाथ जवधवा की झोपड़ी थी जमीदार साहब को अपन

महल का हाता उस झोपड़ी तक बढा ान की इच छा हई जवधवा स बहतरा कहा जक अपनी झोपड़ी हरा ल पर वह तो

कई जमान स वही बसी थी उसका जपरय पजत और इकलौता पतर भी उसी झोपड़ी म मर गया था पतोह भी एक पाच

बरस की कनद या को छोड़कर चल बसी थी अब यही उसकी पोती इस वदधाकाल म एकमातर आधार थी जब उस

अपनी पवटजसथजत की याद आ जाती तो मार दख क िर-िर रोन लगती थी और जबस उसन अपन शरीमान पड़ोसी

की इच छा का हाल सना तब स वह मतपराय हो गई थी उस झोपड़ी म उसका मन लग गया था जक जबना मर वहा स

वह जनकलना नही चाहती थी शरीमान क सब परयत न जनष िल हए तब व अपनी जमीदारी चाल चलन लग बाल की

खाल जनकालन वाल वकीलो की थली गरम कर उनद होन अदालत स झोपड़ी पर अपना कब जा करा जलया और जवधवा

को वहा स जनकाल जदया जबचारी अनाथ तो थी ही पास-पड़ोस म कही जाकर रहन लगी

एक जदन शरीमान उस झोपड़ी क आसपास रहल रह थ और लोगो को काम बतला रह थ जक वह जवधवा हाथ म एक

रोकरी लकर वहा पहची शरीमान न उसको दखत ही अपन नौकरो स कहा जक उस यहा स हरा दो पर वह

जगड़जगड़ाकर बोली महाराज अब तो यह झोपड़ी तम हारी ही हो गई ह म उस लन नही आई ह महाराज कषमा कर तो

एक जवनती ह जमीदार साहब क जसर जहलान पर उसन कहा जब स यह झोपड़ी छरी ह तब स मरी पोती न खाना-

पीना छोड़ जदया ह मन बहत-कछ समझाया पर वह एक नही मानती यही कहा करती ह जक अपन घर चल वही रोरी

खाऊ गी अब मन यह सोचा जक इस झोपड़ी म स एक रोकरी-भर जमटटी लकर उसी का च हा बनाकर रोरी पकाऊ गी

इसस भरोसा ह जक वह रोरी खान लगगी महाराज कपा करक आजञा दीजजए तो इस रोकरी म जमटटी ल आऊ शरीमान

न आजञा द दी

जवधवा झोपड़ी क भीतर गई वहा जात ही उस परानी बातो का स मरण हआ और उसकी आखो स आस की धारा

बहन लगी अपन आतररक दख को जकसी तरह सभालकर उसन अपनी रोकरी जमटटी स भर ली और हाथ स उठाकर

बाहर ल आई जिर हाथ जोड़कर शरीमान स पराथटना करन लगी महाराज कपा करक इस रोकरी को जरा हाथ लगाइए

जजसस जक म उस अपन जसर पर धर ल जमीदार साहब पहल तो बहत नाराज हए पर जब वह बार-बार हाथ जोड़न

लगी और परो पर जगरन लगी तो उनक मन म कछ दया आ गई जकसी नौकर स न कहकर आप ही स वय रोकरी उठान

आग बढ़ ज योही रोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठान लग त योही दखा जक यह काम उनकी शजि क बाहर ह जिर तो

उनद होन अपनी सब ताकत लगाकर रोकरी को उठाना चाहा पर जजस स थान पर रोकरी रखी थी वहा स वह एक हाथ

भी ऊ ची न हई वह लजजजत होकर कहन लग नही यह रोकरी हमस न उठाई जाएगी

यह सनकर जवधवा न कहा महाराज नाराज न हो आपस एक रोकरी-भर जमटटी नही उठाई जाती और इस झोपड़ी म

तो हजारो रोकररया जमटटी पड़ाी ह उसका भार आप जनद म-भर क योकर उठा सक ग आप ही इस बात पर जवचार

कीजजए

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जमीदार साहब धन-मद स गजवटत हो अपना कतटव य भल गए थ पर जवधवा क उपयटक त वचन सनत ही उनकी आख

खल गयी कतकमट का पश चाताप कर उनद होन जवधवा स कषमा मागी और उसकी झोपड़ी वाजपस द दी

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कानो म कगना

राजा राजधकारमण परसाद जसह

1

जकरन तमहार कानो म कया ह

उसक कानो स चचल लर को हराकर कहा - क गना

अर कानो म क गना सचमच दो कगन कानो को घरकर बठ थ

हा तब कहा पहन

जकरन अभी भोरी थी दजनया म जजस भोरी कहत ह वसी भोरी नही उस वन क िलो का भोलापन समझो नवीन

चमन क िलो की भगी नही जवजवध खाद या रस स जजनकी जीजवका ह जनरनदतर कार-छार स जजनका सौनददयट ह जो

दो घड़ी चचल जचकन बाल की भिा ह - दो घड़ी तमहार िलदान की शोभा वन क िल ऐस नही परकजत क हाथो स

लग ह मघो की धारा स बढ़ ह चरल दजि इनदह पाती नही जगदवाय इनदह छती नही यह सरल सनददर सौरभमय जीवन

ह जब जीजवत रह तब चारो तरि अपन पराणधन स हर-भर रह जब समय आया तब अपनी मा की गोद म झड़ पड़

आकाश सवचछ था - नील उदार सनददर पतत शानदत थ सनदधया हो चली थी सनहरी जकरन सदर पवटत की चड़ा स दख

रही थी वह पतली जकरन अपनी मतय-शया स इस शनदय जनजवड़ कानन म कया ढढ़ रही थी कौन कह जकस एकरक

दखती थी कौन जान अपनी लीला-भजम को सनह करना चाहती थी या हमार बाद वहा कया हो रहा ह इस जोहती थी

- म कया बता सक जो हो उसकी उस भगी म आकाकषा अवशय थी म तो खड़ा-खड़ उन बड़ी आखो की जकरन

लरता था आकाश म तारो को दखा या उन जगमग आखो को दखा बात एक ही थी हम दर स तारो क सनददर शनदय

जझकजमक को बार-बार दखत ह लजकन वह ससपनदद जनशचि जयोजत सचमच भावहीन ह या आप-ही-आप अपनी

अनदतर-लहरी स मसत ह इस जानना आसान नही हमारी ऐसी आख कहा जक उनक सहार उस जनगढ़ अनदतर म डबकर

थाह ल

म रसाल की डोली थामकर पास ही खड़ा था वह बालो को हराकर कगन जदखान की भगी पराणो म रह-रहकर उठती

थी जब माखन चरान वाल न गोजपयो क सर क मरक को तोड़कर उनक भीतर जकल को तोड़ डाला या नर-जहा न

अचल स कबतर को उड़ाकर शाहशाह क कठोर हदय की धजजजया उड़ा दी जिर नदी क जकनार बसनदत-बभ रसाल

पलवो की छाया म बठी जकसी अपरप बाजलका की यह सरल जसनगध भजगमा एक मानव-अनदतर पर कयो न दौड़

जकरन इन आखो क सामन परजतजदन आती ही जाती थी कभी आम क जरकोर स आचल भर लाती कभी मौलजसरी क

िलो की माला बना लाती लजकन कभी भी ऐसी बाल-सलभ लीला आखो स होकर हदय तक नही उतरी आज कया

था कौन शभ या अशभ कषण था जक अचानक वह बनली लता मदार माला स भी कही मनोरम दीख पड़ी कौन

जानता था जक चाल स कचाल जान म - हाथो स कगन भलकर कानो म पजहनन म - इतनी माधरी ह दो रक क क गन

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म इतनी शजि ह गोजपयो को कभी सवपन म भी नही झलका था जक बास की बासरी म घघर खोलकर नचा दनवाली

शजि भरी ह

मन चरपर उसक कानो स कगन उतार जलया जिर धीर-धीर उसकी उगजलयो पर चढ़ान लगा न जान उस घड़ी कसी

खलबली थी मह स अचानक जनकल आया -

जकरन आज की यह घरना मझ मरत दम तक न भलगी यह भीतर तक पठ गई

उसकी बड़ी-बड़ी आख और भी बड़ी हो गई मझ चोर-सी लगी म ततकषण योगीशवर की करी की तरि चल जदया

पराण भी उसी समय नही चल जदय यही जवसमय था

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एक जदन था जक इसी दजनया म दजनया स दर रहकर लोग दसरी दजनया का सख उठात थ हररचनददन क पलवो की

छाया भलोक पर कहा जमल लजकन जकसी समय हमार यहा भी ऐस वन थ जजनक वकषो क साय म घड़ी जनवारन क

जलए सवगट स दवता भी उतर आत थ जजस पचवरी का अननदत यौवन दखकर राम की आख भी जखल उठी थी वहा क

जनवाजसयो न कभी अमरतर क िलो की माला नही चाही मनददाजकनी क छीरो की शीतलता नही ढढ़ी ननददनोपवन

का सानी कही वन भी था कपवकष की छाया म शाजनदत अवशय ह लजकन कदम की छजहया कहा जमल सकती

हमारी-तमहारी आखो न कभी ननददनोतसव की लीला नही दखी लजकन इसी भतल पर एक जदन ऐसा उतसव हो चका

ह जजसको दख-दखकर परकजत तथा रजनी छह महीन तक ठगी रही शत-शत दवागनाओ न पाररजात क िलो की

विाट स ननददन कानन को उजाड़ डाला

समय न सब कछ पलर जदया अब ऐस वन नही जहा कषण गोलोक स उतरकर दो घड़ी वशी की रर द ऐस करीर

नही जजनक दशटन स रामचनदर का भी अनदतर परसनदन हो या ऐस मनीश नही जो धमटधरनदधर धमटराज को भी धमट म जशकषा

द यजद एक-दो भल-भरक हो भी तब अभी तक उन पर दजनया का परदा नही उठा - जगनदमाया की माया नही लगी

लजकन व कब तक बच रहग लोक अपन यहा अलौजकक बात कब तक होन दगा भवसागर की जल-तरगो पर जथर

होना कब समभव ह

हिीकश क पास एक सनददर वन ह सनददर नही अपरप सनददर ह वह परमोदवन क जवलास-जनकजो जसा सनददर नही

वरच जचतरकर या पचवरी की मजहमा स मजणडत ह वहा जचकनी चादनी म बठकर कनक घघर की इचछा नही होती

वरच पराणो म एक ऐसी आवश-धारा उठती ह जो कभी अननदत साधना क कल पर पहचाती ह - कभी जीव-जगत क

एक-एक ततव स दौड़ जमलती ह गगा की अननदत गररमा - वन की जनजवड़ योग जनरा वही दख पड़गी कौन कह वहा

जाकर यह चचल जचतत कया चाहता ह - गमभीर अलौजकक आननदद या शानदत सनददर मरण

इसी वन म एक करी बनाकर योगीशवर रहत थ योगीशवर योगीशवर ही थ यददाजप वह भतल ही पर रहत थ तथाजप उनदह

इस लोग का जीव कहना यथाथट नही था उनकी जचततवजतत सरसवती क शरीचरणो म थी या बरहमलोक की अननदत शाजनदत

म जलपरी थी और वह बाजलका - सवगट स एक रजशम उतरकर उस घन जगल म उजला करती जिरती थी वह लौजकक

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मायाबदध जीवन नही था इस बनदधन-रजहत बाधाहीन नाचती जकरनो की लखा कजहए - मानो जनमटि चचल मलय वाय

िल-िल पर डाली-डाली पर डोलती जिरती हो या कोई मजतटमान अमर सगीत बरोकरोक हवा पर या जल की तरग-

भग पर नाच रहा हो म ही वहा इस लोग का परजतजनजध था म ही उनदह उनकी अलौजकक जसथजत स इस जजरल मतयट-

राजय म खीच लाता था

कछ साल स म योगीशवर क यहा आता-जाता था जपता की आजञा थी जक उनक यहा जाकर अपन धमट क सब गरनदथ

पढ़ डालो योगीशवर और बाबा लड़कपन क साथी थ इसीजलए उनकी मझ पर इतनी दया थी जकरन उनकी लड़की

थी उस करीर म एक वही दीपक थी जजस जदन की घरना म जलख आया ह उसी जदन सबर मर अधययन की पणाटहजत

थी और बाबा क कहन पर एक जोड़ा पीतामबर पाच सवणटमराए तथा जकरन क जलए दो कनक-कगन आचायट क

जनकर ल गया था योगीशवर न सब लौरा जदय कवल कगन को जकरन उठा ल गई

वह कया समझकर चप रह गय समय का अदभत चकर ह जजस जदन मन धमटगरनदथ स मह मोड़ा उसी जदन कामदव न

वहा जाकर उनकी जकताब का पहला सिा उलरा

दसर जदन म योगीशवर स जमलन गया वह जकरन को पास जबठा कर न जान कया पढ़ा रह थ उनकी आख गमभीर थी

मझको दखत ही वह उठ पड़ और मर कनदधो पर हाथ रखकर गदगद सवर स बोल - नरनदर अब म चला जकरन तमहार

हवाल ह यह कहकर जकसी की सकोमल उगजलया मर हाथो म रख दी लोचनो क कोन पर दो बद जनकलकर झाक

पड़ी म सहम उठा कया उन पर सब बात जवजदत थी कया उनकी तीवर दजि मरी अनदतर-लहरी तक डब चकी थी वह

ठहर नही चल जदय म कापता रह गया जकरन दखती रह गई

सनदनारा छा गया वन-वाय भी चप हो चली हम दोनो भी चप चल पड़ जकरन मर कनदध पर थी हठात अनदतर स कोई

अकड़कर कह उठा - हाय नरनदर यह कया तम इस वनिल को जकस चमन म ल चल इस बनदधन-जवहीन सवगीय

जीवन को जकस लोकजाल म बाधन चल

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ककड़ी जल म जाकर कोई सथायी जववर नही िोड़ सकती कषण भर जल का समतल भल ही उलर-पलर हो लजकन

इधर-उधर स जलतरग दौड़कर उस जछर का नाम-जनशान भी नही रहन दती जगत की भी यही चाल ह यजद सवगट स

दवनदर भी आकर इस लोक चलाचल म खड़ हो जिर ससार दखत ही दखत उनदह अपना बना लगा इस काली कोठरी

म आकर इसकी काजलमा स बच रह ऐसी शजि अब आकाश-कसम ही समझो दो जदन म राम हाय जानकी हाय

जानकी कहकर वन-वन डोलत जिर दो कषण म यही जवशवाजमतर को भी सवगट स घसीर लाया

जकरन की भी यही अवसथा हई कहा परकजत की जनमटि गोद कहा जगत का जजरल बनदधन-पाश कहा स कहा आ

पड़ी वह अलौजकक भोलापन वह जनसगट उचवास - हाथो-हाथ लर गय उस वनिल की जवमल काजनदत लौजकक

चमन की मायावी मनोहाररता म पररणत हई अब आख उठाकर आकाश स नीरव बातचीत करन का अवसर कहा स

जमल मलयवाय स जमलकर मलयाचल क िलो की पछताछ कयोकर हो

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जब जकशोरी नय साच म ढलकर उतरी उस पहचानना भी कजठन था वह अब लाल चोली हरी साड़ी पहनकर सर

पर जसनददर-रखा सजती और हाथो क कगन कानो की बाली गल की कणठी तथा कमर की करधनी - जदन-जदन उसक

जचतत को नचाय मारती थी जब कभी वह सजधजकर चादनी म कोठ पर उठती और वसनदतवाय उसक आचल स

मोजतया की लपर लाकर मर बरामद म भर दता जिर जकसी मतवाली माधरी या तीवर मजदरा क नश म मरा मजसतषक

घम जाता और म चरपर अपना परम चीतकार िलदार रगीन जचटठी म भरकर जही क हाथ ऊपर भजवाता या बाजार स

दौड़कर करकी गहन वा जवलायती चड़ी खरीद लाता लजकन जो हो - अब भी कभी-कभी उसक परिल वदन पर

उस अलोक-आलोक की छरा पवटजनदम की सखसमजतवत चली आती थी और आख उसी जीवनदत सनददर जझकजमक

का नाज जदखाती थी जब अनदतर परसनदन था जिर बाहरी चिा पर परजतजबमब कयो न पड़

यो ही साल-दो-साल मरादाबाद म कर गय एक जदन मोहन क यहा नाच दखन गया वही जकनदनरी स आख जमली

जमली कया लीन हो गई नवीन यौवन कोजकल-कणठा चतर चचल चिा तथा मायावी चमक - अब जचतत को चलान

क जलए और कया चाजहए जकनदनरी सचमच जकनदनरी ही थी नाचनवाली नही नचानवाली थी पहली बार दखकर उस

इस लोक की सनददरी समझना दसतर था एक लपर जो लगती - जकसी नशा-सी चढ़ जाती यारो न मझ और भी चढ़ा

जदया आख जमलती-जमलती जमल गई हदय को भी साथ-साथ घसीर ल गई

जिर कया था - इतन जदनो की धमटजशकषा शतवतसर की पजय लकषमी बाप-दादो की कल-परजतषठा पतनी स पजवतर-परम

एक-एक करक उस परतीपत वासना-कणड म भसम होन लग अजगन और भी बढ़ती गई जकनदनरी की जचकनी दजि

जचकनी बात घी बरसाती रही घर-बार सब जल उठा म भी जनरनदतर जलन लगा लजकन जयो-जयो जलता गया जलन

की इचछा जलाती रही

पाच महीन कर गय - नशा उतरा नही बनारसी साड़ी पारसी जकर मोती का हार करकी कणटिल - सब कछ लाकर

उस मायाकारी क अलिक-रजजत चरणो पर रख जकरन हमनदत की मालती बनी थी जजस पर एक िल नही - एक

पलव नही घर की वध कया करती जो अननदत सतर स बधा था जो अनत जीवन का सगी था वही हाथो-हाथ पराय

क हाथ जबक गया - जिर य तो दो जदन क चकमकी जखलौन थ इनदह शरीर बदलत कया दर लग जदन भर बहानो की

माला गथ-गथ जकरन क गल म और शाम को मोती की माला उस नाचनवाली क गल म सशक जनलटजज डाल दना -

यही मरा जीवन जनवाटह था एक जदन सारी बात खल गई जकरन पछाड़ खाकर भजम पर जा पड़ी उसकी आखो म

आस न थ मरी आखो म दया न थी

बरसात की रात थी ररमजझम बदो की झड़ी थी चादनी मघो स आख-मदौवल खल रही थी जबजली काल कपार स

बार-बार झाकती थी जकस चचला दखती थी तथा बादल जकस मरोड़ स रह-रहकर जचलात थ - इनदह सोचन का मझ

अवसर नही था म तो जकनदनरी क दरवाज स हताश लौरा था आखो क ऊपर न चादनी थी न बदली थी जतरशक न

सवगट को जात-जात बीच म ही रगकर जकस दख को उठाया - और म तो अपन सवगट क दरवाज पर सर रखकर जनराश

लौरा था - मरी वदना कयो न बड़ी हो

हाय मरी अगजलयो म एक अगठी भी रहती तो उस नजर कर उसक चरणो पर लोरता

घर पर आत ही जही को पकार उठा - जही जकरन क पास कछ भी बचा हो तब िौरन जाकर माग लाओ

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ऊपर स कोई आवाज नही आई कवल सर क ऊपर स एक काला बादल कालानदत चीतकार क जचला उठा मरा

मजसतषक घम गया म ततकषण कोठ पर दौड़ा

सब सनददक झाक जो कछ जमला सब तोड़ डाला लजकन जमला कछ भी नही आलमारी म कवल मकड़ का जाल

था शरगार बकस म एक जछपकली बठी थी उसी दम जकरन पर झपरा

पास जात ही सहम गया वह एक तजकय क सहार जनसहाय जनसपद लरी थी - कवल चाद न जखड़की स होकर उस

गोद म ल रखा था और वाय उस शरीर पर जल स जभगोया पखा झल रही थी मख पर एक अपरप छरा थी कौन

कह कही जीवन की शि रजशम कषण-भर वही अरकी हो आखो म एक जीवन जयोजत थी शायद पराण शरीर स

जनकलकर जकसी आसर स वहा पठ रहा था म जिर पकार उठा - जकरन जकरन तमहार पास कोई गहना भी रहा ह

हा - कषीण कणठ की काकली थी

कहा ह अभी दखन दो

उसन धीर स घघर सरका कर कहा - वही कानो का क गना

सर तजकय स ढल पड़ा - आख भी जझप गई वह जीवनदत रखा कहा चली गई - कया इतन ही क जलए अब तक ठहरी

थी

आख मख पर जा पड़ी - वही कगन थ वस ही कानो को घरकर बठ थ मरी समजत तजड़त वग स नाच उठी दषयनदत न

अगठी पहचान ली भली शकनदतला उस पल याद आ गई लजकन दषयनदत सौभागयशाली थ चकरवती राजा थ - अपनी

पराणजपरया को आकाश-पाताल छानकर ढढ़ जनकाला

मरी जकरन तो इस भतल पर न थी जक जकसी तरह पराण दकर भी पता पाता परलोक स ढढ़ जनकाल - ऐसी शजि इस

दीन-हीन मानव म कहा

चढ़ा नशा उतर पड़ा सारी बात सझ गई - आखो पर की पटटी खल पड़ी लजकन हाय खली भी तो उसी समय जब

जीवन म कवल अनदधकार ही रह गया

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राजा णनरबणसया

कमलशवर

एक राजा जनरबजसया थ मा कहानी सनाया करती थी उनक आसपास ही चार-पाच बचच अपनी मजियो म िल

दबाए कहानी समापत होन पर गौरो पर चढान क जलए उतसक-स बठ जात थ आर का सनददर-सा चौक परा होता उसी

चौक पर जमटटी की छः गौर रखी जाती जजनम स ऊपरवाली क जबजनददया और जसनददर लगता बाकी पाचो नीच दबी

पजा गरहण करती रहती एक ओर दीपक की बाती जसथर-सी जलती रहती और मगल-घर रखा रहता जजस पर रोली

स सजथया बनाया जाता सभी बठ बचचो क मख पर िल चढान की उतावली की जगह कहानी सनन की सहज

जसथरता उभर आती

एक राजा जनरबजसया थ मा सनाया करती थी उनक राज म बडी खशहाली थी सब वरण क लोग अपना-अपना

काम-काज दखत थ कोई दखी नही जदखाई पडता था राजा क एक लकषमी-सी रानी थी चरमा-सी सनददर और राजा

को बहत पयारी राजा राज-काज दखत और सख-स रानी क महल म रहत

मर सामन मर खयालो का राजा था राजा जगपती तब जगपती स मरी दातकारी दोसती थी दोनो जमजडल सकल म

पढन जात दोनो एक-स घर क थ इसजलए बराबरी की जनभती थी म मजटक पास करक एक सकल म नौकर हो गया

और जगपती कसब क ही वकील क यहा महररटर जजस साल जगपती महररटर हआ उसी विट पास क गाव म उसकी

शादी हई पर ऐसी हई जक लोगो न तमाशा बना दना चाहा लडकीवालो का कछ जवशवास था जक शादी क बाद लडकी

की जवदा नही होगी

बयाह हो जाएगा और सातवी भावर तब पडगी जब पहली जवदा की सायत होगी और तभी लडकी अपनी ससराल

जाएगी जगपती की पतनी थोडी-बहत पढी-जलखी थी पर घर की लीक को कौन मर बारात जबना बह क वापस आ

गई और लडकवालो न तय कर जलया जक अब जगपती की शादी कही और कर दी जाएगी चाह कानी-लली स हो

पर वह लडकी अब घर म नही आएगी लजकन साल खतम होत-होत सब ठीक-ठाक हो गया लडकीवालो न मािी

माग ली और जगपती की पतनी अपनी ससराल आ गई

जगपती को जस सब कछ जमल गया और सास न बह की बलाइया लकर घर की सब चाजबया सौप दी गहसथी का

ढग-बार समझा जदया जगपती की मा न जान कब स आस लगाए बठी थी उनदहोन आराम की सास ली पजा-पाठ म

समय करन लगा दोपहररया दसर घरो क आगन म बीतन लगी पर

सास का रोग था उनदह सो एक जदन उनदहोन अपनी अजनदतम घजडया जगनत हए चनददा को पास बलाकर समझाया था -

बरा जगपती बड लाड-पयार का पला ह जब स तमहार ससर नही रह तब स इसक छोर-छोर हठ को परा करती रही

ह अब तम धयान रखना जिर रककर उनदहोन कहा था जगपती जकसी लायक हआ ह तो ररशतदारो की आखो म

करकन लगा ह तमहार बाप न बयाह क वि नादानी की जो तमह जवदा नही जकया मर दशमन दवर-जठो को मौका

जमल गया तमार खडा कर जदया जक अब जवदा करवाना नाक करवाना ह जगपती का बयाह कया हआ उन लोगो की

छाती पर साप लोर गया सोचा घर की इजजत रखन की आड लकर रग म भग कर द अब बरा इस घर की लाज

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तमहारी लाज ह आज को तमहार ससर होत तो भला कहत कहत मा की आखो म आस आ गए और व जगपती

की दखभाल उस सौपकर सदा क जलए मौन हो गई थी

एक अरमान उनक साथ ही चला गया जक जगपती की सनदतान को चार बरस इनदतजार करन क बाद भी व गोद म न

जखला पाई और चनददा न मन म सबर कर जलया था यही सोचकर जक कल-दवता का अश तो उस जीवन-भर पजन को

जमल गया था घर म चारो तरि जस उदारता जबखरी रहती अपनापा बरसता रहता उस लगता जस घर की अधरी

एकानदत कोठररयो म यह शानदत शीतलता ह जो उस भरमा लती ह घर की सब कजणडयो की खनक उसक कानो म बस

गई थी हर दरवाज की चरमराहर पहचान बन गई थी

एक रोज राजा आखर को गए मा सनाती थी राजा आखर को जात थ तो सातव रोज ज़रर महल म लौर आत

थ पर उस दिा जब गए तो सातवा जदन जनकल गया पर राजा नही लौर रानी को बडी जचनदता हई रानी एक मनदतरी

को साथ लकर खोज म जनकली

और इसी बीच जगपती को ररशतदारी की एक शादी म जाना पडा उसक दर ररशत क भाई दयाराम की शादी थी कह

गया था जक दसव जदन जरर वापस आ जाएगा पर छठ जदन ही खबर जमली जक बारात घर लौरन पर दयाराम क घर

डाका पड गया जकसी मखजबर न सारी खबर पहचा दी थी जक लडकीवालो न दयाराम का घर सोन-चादी स पार जदया

हआजखर पशतनी जमीदार की इकलौती लडकी थी घर आए महमान लगभग जवदा हो चक थ दसर रोज जगपती भी

चलनवाला था पर उसी रात डाका पडा जवान आदमी भला खन मानता ह डाकवालो न जब बनददक चलाई तो

सबकी जघगघी बध गई पर जगपती और दयाराम न छाती ठोककर लाजठया उठा ली घर म कोहराम मच गया जफ़र

सनदनारा छा गया डाकवाल बराबर गोजलया दाग रह थ बाहर का दरवाजा रर चका था पर जगपती न जहममत बढात

हए हाक लगाई य हवाई बनददक इन ठल-जपलाई लाजठयो का मकाबला नही कर पाएगी जवानो

पर दरवाज तड-तड ररत रह और अनदत म एक गोली जगपती की जाघ को पार करती जनकल गई दसरी उसकी जाघ

क ऊपर कह म समा कर रह गई

चनददा रोती-कलपती और मनौजतया मानती जब वहा पहची तो जगपती असपताल म था दयाराम क थोडी चोर आई

थी उस असपताल स छटटी जमल गई थी जगपती की दखभाल क जलए वही असपताल म मरीजो क ररशतदारो क जलए

जो कोठररया बनी थी उनदही म चनददा को रकना पडा कसब क असपताल स दयाराम का गाव चार कोस पडता था

दसर-तीसर वहा स आदमी आत-जात रहत जजस सामान की जररत होती पहचा जात

पर धीर-धीर उन लोगो न भी खबर लना छोड जदया एक जदन म ठीक होनवाला घाव तो था नही जाघ की हडडी

चरख गई थी और कह म ऑपरशन स छः इच गहरा घाव था

कसब का असपताल था कमपाउणडर ही मरीजो की दखभाल रखत बडा डॉकरर तो नाम क जलए था या कसब क बड

आदजमयो क जलए छोर लोगो क जलए तो कमपोरर साहब ही ईशवर क अवतार थ मरीजो की दखभाल करनवाल

ररशतदारो की खान-पीन की मजशकलो स लकर मरीज की नबज तक सभालत थ छोरी-सी इमारत म असपताल

आबाद था रोजगयो को जसिट छः-सात खार थी मरीजो क कमर स लगा दवा बनान का कमरा था उसी म एक ओर

एक आरामकसी थी और एक नीची-सी मज उसी कसी पर बडा डॉकरर आकर कभी-कभार बठता था नही तो

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बचनजसह कपाउणडर ही जम रहत असपताल म या तो िौजदारी क शहीद आत या जगर-जगरा क हाथ-पर तोड

लनवाल एक-आध लोग छठ-छमास कोई औरत जदख गई तो दीख गई जस उनदह कभी रोग घरता ही नही था कभी

कोई बीमार पडती तो घरवाल हाल बताक आठ-दस रोज की दवा एक साथ ल जात और जिर उसक जीन-मरन की

खबर तक न जमलती

उस जदन बचनजसह जगपती क घाव की पटटी बदलन आया उसक आन म और पटटी खोलन म कछ ऐसी लापरवाही

थी जस गलत बधी पगडी को ठीक स बाधन क जलए खोल रहा हो चनददा उसकी कसी क पास ही सास रोक खडी

थी वह और रोजगयो स बात करता जा रहा था इधर जमनर-भर को दखता जिर जस अभयसत-स उसक हाथ अपना

काम करन लगत पटटी एक जगह खन स जचपक गई थी जगपती बरी तरह कराह उठा चनददा क मह स चीख जनकल

गई बचनजसह न सतकट होकर दखा तो चनददा मख म धोती का पला खोस अपनी भयातर आवाज दबान की चिा कर

रही थी जगपती एकबारगी मछली-सा तडपकर रह गया बचनजसह की उगजलया थोडी-सी थरथराई जक उसकी बाह

पर रप-स चनददा का आस च पडा

बचनजसह जसहर-सा गया और उसक हाथो की अभयसत जनठराई को जस जकसी मानवीय कोमलता न धीर-स छ जदया

आहो कराहो ददट-भरी चीखो और चरखत शरीर क जजस वातावरण म रहत हए भी वह जबकल अलग रहता था

िोडो को पक आम-सा दबा दता था खाल को आल-सा छील दता था उसक मन स जजस ददट का अहसास उठ गया

था वह उस आज जिर हआ और वह बचच की तरह िक-िककर पटटी को नम करक खोलन लगा चनददा की ओर

धीर-स जनगाह उठाकर दखत हए िसिसाया चच रोगी की जहममत रर जाती ह ऐस

पर जस यह कहत-कहत उसका मन खद अपनी बात स उचर गया यह बपरवाही तो चीख और कराहो की एकरसता

स उस जमली थी रोगी की जहममत बढान की कतटवयजनषठा स नही जब तक वह घाव की मरहम-पटटी करता रहा तब

तक जकनदही दो आखो की करणा उस घर रही

और हाथ धोत समय वह चनददा की उन चजडयो स भरी कलाइयो को बजझझक दखता रहा जो अपनी खशी उसस माग

रही थी चनददा पानी डालती जा रही थी और बचनजसह हाथ धोत-धोत उसकी कलाइयो हथजलयो और परो को

दखता जा रहा था दवाखान की ओर जात हए उसन चनददा को हाथ क इशार स बलाकर कहा जदल छोरा मत करना

जाघ का घाव तो दस रोज म भर जाएगा कह का घाव कछ जदन जरर लगा अचछी स अचछी दवाई दगा दवाइया

तो ऐसी ह जक मद को चगा कर द पर हमार असपताल म नही आती जिर भी

तो जकसी दसर असपताल स नही आ सकती वो दवाइया चनददा न पछा

आ तो सकती ह पर मरीज को अपना पसा खरचना पडता ह उनम बचनजसह न कहा

चनददा चप रह गई तो बचनजसह क मह स अनायास ही जनकल पडा जकसी चीज की जररत हो तो मझ बताना रही

दवाइया सो कही न कही स इनदतजाम करक ला दगा महकम स मगाएग तो आत-अवात महीनो लग जाएग शहर क

डॉकरर स मगवा दगा ताकत की दवाइयो की बडी ज़ररत ह उनदह अचछा दखा जाएगा कहत-कहत वह रक गया

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चनददा स कतजञता भरी नजरो स उस दखा और उस लगा जस आधी म उडत पतत को कोई अरकाव जमल गया हो

आकर वह जगपती की खार स लगकर बठ गई उसकी हथली लकर वह सहलाती रही नाखनो को अपन पोरो स

दबाती रही

धीर-धीर बाहर अधरा बढ चला बचनजसह तल की एक लालरन लाकर मरीज़ो क कमर क एक कोन म रख गया

चनददा न जगपती की कलाई दबात-दबात धीर स कहा कमपाउणडर साहब कह रह थ और इतना कहकर वह

जगपती का धयान आकि करन क जलए चप हो गई

कया कह रह थ जगपती न अनमन सवर म बोला

कछ ताकत की दवाइया तमहार जलए जररी ह

म जानता ह

पर

दखो चनददा चादर क बराबर ही पर िलाए जा सकत ह हमारी औकात इन दवाइयो की नही ह

औकात आदमी की दखी जाती ह जक पस की तम तो

दखा जाएगा

कमपाउणडर साहब इनदतजाम कर दग उनस कह गी म

नही चनददा उधारखात स मरा इलाज नही होगा चाह एक क चार जदन लग जाए

इसम तो

तम नही जानती कजट कोढ का रोग होता ह एक बार लगन स तन तो गलता ही ह मन भी रोगी हो जाता ह

लजकनकहत-कहत वह रक गई

जगपती अपनी बात की रक रखन क जलए दसरी ओर मह घमाकर लरा रहा

और तीसर रोज जगपती क जसरहान कई ताकत की दवाइया रखी थी और चनददा की ठहरन वाली कोठरी म उसक

लरन क जलए एक खार भी पहच गई थी चनददा जब आई तो जगपती क चहर पर मानजसक पीडा की असखय रखाए

उभरी थी जस वह अपनी बीमारी स लडन क अलावा सवय अपनी आतमा स भी लड रहा हो चनददा की नादानी और

सनह स भी उलझ रहा हो और सबस ऊपर सहायता करनवाल की दया स जझ रहा हो

चनददा न दखा तो यह सब सह न पाई उसक जी म आया जक कह द कया आज तक तमन कभी जकसी स उधार पस

नही जलए पर वह तो खद तमन जलए थ और तमह मर सामन सवीकार नही करना पडा था इसीजलए लत जझझक नही

लगी पर आज मर सामन उस सवीकार करत तमहारा झठा पौरि जतलजमलाकर जाग पडा ह पर जगपती क मख पर

जबखरी हई पीडा म जजस आदशट की गहराई थी वह चनददा क मन म चोर की तरह घस गई और बडी सवाभाजवकता स

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उसन माथ पर हाथ िरत हए कहा य दवाइया जकसी की महरबानी नही ह मन हाथ का कडा बचन को द जदया था

उसी म आई ह

मझस पछा तक नही और जगपती न कहा और जस खद मन की कमजोरी को दबा गया - कडा बचन स तो अचछा

था जक बचनजसह की दया ही ओढ ली जाती और उस हका-सा पछतावा भी था जक नाहक वह रौ म बडी-बडी बात

कह जाता ह जञाजनयो की तरह सीख द दता ह

और जब चनददा अधरा होत उठकर अपनी कोठरी म सोन क जलए जान को हई तो कहत-कहत यह बात दबा गई जक

बचनजसह न उसक जलए एक खार का इनदतजाम भी कर जदया ह कमर स जनकली तो सीधी कोठरी म गई और हाथ

का कडा लकर सीध दवाखान की ओर चली गई जहा बचनजसह अकला डॉकरर की कसी पर आराम स राग िलाए

लमप की पीली रोशनी म लरा था जगपती का वयवहार चनददा को लग गया था और यह भी जक वह कयो बचनजसह

का अहसान अभी स लाद ल पजत क जलए जवर की जकतनी औकात ह वह बधडक-सी दवाखान म घस गई जदन

की पहचान क कारण उस कमर की मज-कसी और दवाओ की अलमारी की जसथजत का अनमान था वस कमरा

अधरा ही पडा था कयोजक लमप की रोशनी कवल अपन वतत म अजधक परकाशवान होकर कोनो क अधर को और भी

घनीभत कर रही थी बचनजसह न चनददा को घसत ही पहचान जलया वह उठकर खडा हो गया चनददा न भीतर कदम

तो रख जदया पर सहसा सहम गई जस वह जकसी अधर कए म अपन-आप कद पडी हो ऐसा कआ जो जनरनदतर पतला

होता गया ह और जजसम पानी की गहराई पाताल की पतो तक चली गई हो जजसम पडकर वह नीच धसती चली जा

रही हो नीच अधराएकानदत घरनपाप

बचनजसह अवाक ताकता रह गया और चनददा ऐस वापस लौर पडी जस जकसी काल जपशाच क पजो स मजि जमली

हो बचनजसह क सामन कषण-भर म सारी पररजसथजत कौध गई और उसन वही स बहत सयत आवाज म जबान को

दबात हए जस वाय म सपि धवजनत कर जदया - चनददा वह आवाज इतनी ब-आवाज थी और जनरथटक होत हए भी

इतनी साथटक थी जक उस खामोशी म अथट भर गया चनददा रक गई बचनजसह उसक पास जाकर रक गया

सामन का घना पड सतबध खडा था उसकी काली परछाई की पररजध जस एक बार िलकर उनदह अपन वतत म समर

लती और दसर ही कषण मि कर दती दवाखान का लमप सहसा भभककर रक गया और मरीजो क कमर स एक

कराह की आवाज दर मदान क छो तक जाकर डब गई

चनददा न वस ही नीच ताकत हए अपन को सयत करत हए कहा यह कडा तमह दन आई थी

तो वापस कयो चली जा रही थी

चनददा चप और दो कषण रककर उसन अपन हाथ का सोन का कडा धीर-स उसकी ओर बढा जदया जस दन का साहस

न होत हए भी यह काम आवशयक था बचनजसह न उसकी सारी काया को एक बार दखत हए अपनी आख उसक

जसर पर जमा दी उसक ऊपर पड कपड क पार नरम जचकनाई स भर लमब-लमब बाल थ जजनकी भाप-सी महक

िलती जा रही थी वह धीर-धीर स बोला लाओ

चनददा न कडा उसकी ओर बढा जदया कडा हाथ म लकर वह बोला सनो

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चनददा न परशन-भरी नजर उसकी ओर उठा दी उनम झाकत हए अपन हाथ स उसकी कलाई पकडत हए उसन वह कडा

उसकी कलाई म पहना जदया चनददा चपचाप कोठरी की ओर चल दी और बचनजसह दवाखान की ओर

काजलख बरी तरह बढ गई थी और सामन खड पड की काली परछाई गहरी पड गई थी दोनो लौर गए थ पर जस उस

काजलख म कछ रह गया था छर गया था दवाखान का लमप जो जलत-जलत एक बार भभका था उसम तल न रह

जान क कारण बतती की लौ बीच स िर गई थी उसक ऊपर धए की लकीर बल खाती साप की तरह अधर म जवलीन

हो जाती थी

सबह जब चनददा जगपती क पास पहची और जबसतर ठीक करन लगी तो जगपती को लगा जक चनददा बहत उदास थी

कषण-कषण म चनददा क मख पर अनजगनत भाव आ-जा रह थ जजनम असमजस था पीडा थी और जनरीहता थी कोई

अदशय पाप कर चकन क बाद हदय की गहराई स जकए गए पशचाताप जसी धजमल चमक

रानी मनदतरी क साथ जब जनराश होकर लौरी तो दखा राजा महल म उपजसथत थ उनकी खशी का जठकाना न रहा

मा सनाया करती थी पर राजा को रानी का इस तरह मनदतरी क साथ जाना अचछा नही लगा रानी न राजा को

समझाया जक वह तो कवल राजा क परजत अरर परम क कारण अपन को न रोक सकी राजा-रानी एक-दसर को बहत

चाहत थ दोनो क जदलो म एक बात शल-सी गडती रहती जक उनक कोई सनदतान न थी राजवश का दीपक बझन जा

रहा था सनदतान क अभाव म उनका लोक-परलोक जबगडा जा रहा था और कल की मयाटदा नि होन की शका बढती

जा रही थी

दसर जदन बचनजसह न मरीजो की मरहम-पटटी करत वि बताया था जक उसका तबादला मनपरी क सदर असपताल म

हो गया ह और वह परसो यहा स चला जाएगा जगपती न सना तो उस भला ही लगा आए जदन रोग घर रहत ह

बचनजसह उसक शहर क असपताल म पहचा जा रहा ह तो कछ मदद जमलती ही रहगी आजखर वह ठीक तो होगा ही

और जिर मनपरी क जसवा कहा जाएगा पर दसर ही कषण उसका जदल अकथ भारीपन स भर गया पता नही कयो

चनददा क अजसततव का धयान आत ही उस इस सचना म कछ ऐस नकील कार जदखाई दन लग जो उसक शरीर म

जकसी भी समय चभ सकत थ जरा-सा बखबर होन पर बीध सकत थ और तब उसक सामन आदमी क अजधकार की

लकषमण-रखाए धए की लकीर की तरह कापकर जमरन लगी और मन म छप सनददह क राकषस बाना बदल योगी क रप

म घमन लग

और पनदरह-बीस रोज बाद जब जगपती की हालत सधर गई तो चनददा उस लकर घर लौर आई जगपती चलन-जिरन

लायक हो गया था घर का ताला जब खोला तब रात झक आई थी और जिर उनकी गली म तो शाम स ही अधरा

झरना शर हो जाता था पर गली म आत ही उनदह लगा जस जक वनवास कारकर राजधानी लौर हो नककड पर ही

जमना सनार की कोठरी म सरही जिक रही थी जजसक दराजदार दरवाजो स लालरन की रोशनी की लकीर झाक रही

थी और कचची तमबाक का धआ रधी गली क महान पर बरी तरह भर गया था सामन ही मशीजी अपनी जजगला

खजरया क गङढ म कपपी क मजधदम परकाश म खसरा-खतौनी जबछाए मीजान लगान म मशगल थ जब जगपती क

घर का दरवाजा खडका तो अधर म उसकी चाची न अपन जगल स दखा और वही स बठ-बठ अपन घर क भीतर

ऐलान कर जदया - राजा जनरबजसया असपताल स लौर आए कलमा भी आई ह

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य शबद सनकर घर क अधर बरोठ म घसत ही जगपती हािकर बठ गया झझलाकर चनददा स बोला अधर म कया मर

हाथ-पर तडवाओगी भीतर जाकर लालरन जला लाओ न

तल नही होगा इस वि जरा ऐस ही काम

तमहार कभी कछ नही होगा न तल न कहत-कहत जगपती एकदम चप रह गया और चनददा को लगा जक आज

पहली बार जगपती न उसक वयथट माततव पर इतनी गहरी चोर कर दी जजसकी गहराई की उसन कभी कपना नही की

थी दोनो खामोश जबना एक बात जकए अनददर चल गए

रात क बढत सनदनार म दोनो क सामन दो बात थी जगपती क कानो म जस कोई वयगय स कह रहा था - राजा

जनरबजसया असपताल स आ गए

और चनददा क जदल म यह बात चभ रही थी - तमहार कभी कछ नही होगा और जससकती-जससकती चनददा न जान कब

सो गई पर जगपती की आखो म नीद न आई खार पर पड-पड उसक चारो ओर एक मोहक भयावना-सा जाल िल

गया लर-लर उस लगा जस उसका सवय का आकार बहत कषीण होता-होता जबनदद-सा रह गया पर जबनदद क हाथ थ

पर थ और जदल की धडकन भी कोठरी का घरा-घरा-सा अजधयारा मरमली दीवार और गहन गिाओ-सी

अलमाररया जजनम स बार-बार झाककर दखता था और वह जसहए उठता था जफ़र जस सब कछ तबदील हो गया हो

उस लगा जक उसका आकार बढता जा रहा ह बढता जा रहा ह वह मनषय हआ लमबा-तगडा-तनददरसत परि हआ

उसकी जशराओ म कछ िर पडन क जलए वयाकलता स खौल उठा उसक हाथ शरीर क अनपात स बहत बड ड़रावन

और भयानक हो गए उनक लमब-लमब नाखन जनकल आए वह राकषस हआ दतय हआआजदम बबटर

और बडी तजी स सारा कमरा एकबारगी चककर कार गया जिर सब धीर-धीर जसथर होन लगा और उसकी सास ठीक

होती जान पडी जफ़र जस बहत कोजशश करन पर जघगघी बध जान क बाद उसकी आवाज फ़री चनददा

चनददा की नरम सासो की हकी सरसराहर कमर म जान डालन लगी जगपती अपनी पारी का सहारा लकर झका

कापत पर उसन जमीन पर रख और चनददा की खार क पाए स जसर जरकाकर बठ गया उस लगा जस चनददा की इन

सासो की आवाज म जीवन का सगीत गज रहा ह वह उठा और चनददा क मख पर झक गया उस अधर म आख

गडाए-गडाए जस बहत दर बाद सवय चनददा क मख पर आभा िरकर अपन-आप जबखरन लगी उसक नकश उजजवल

हो उठ और जगपती की आखो को जयोजत जमल गई वह मगध-सा ताकता रहा

चनददा क जबखर बाल जजनम हाल क जनदम बचच क गभआर बालो की-सी महक दध की कचाइध शरीर क रस की-

सी जमठास और सनह-सी जचकनाहर और वह माथा जजस पर बालो क पास तमाम छोर-छोर नरम-नरम-नरम-स रोए-

रशम स और उस पर कभी लगाई गई सदर की जबनददी का हका जमरा हआ-सा आभास ननदह-ननदह जनदवटनददव सोए

पलक और उनकी मासम-सी कारो की तरह बरौजनया और सास म घलकर आती हई वह आतमा की जनषकपर

आवाज की लय फ़ल की पखरी-स पतल-पतल ओठ उन पर पडी अछती रखाए जजनम जसिट दध-सी महक

उसकी आखो क सामन ममता-सी छा गई कवल ममता और उसक मख स असिर शबद जनकल गया बचची

डरत-डरत उसक बालो की एक लर को बड ज़तन स उसन हथली पर रखा और उगली स उस पर जस लकीर खीचन

लगा उस लगा जस कोई जशश उसक अक म आन क जलए छरपराकर जनराश होकर सो गया हो उसन दोनो

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हथजलयो को पसारकर उसक जसर को अपनी सीमा म भर लना चाहा जक कोई कठोर चीज उसकी उगजलयो स रकराई

वह जस होश म आया

बड सहार स उसन चनददा क जसर क नीच ररोला एक रमाल म बधा कछ उसक हाथ म आ गया अपन को सयत

करता वह वही जमीन पर बठ गया उसी अनदधर म उस रमाल को खोला तो जस साप सघ गया चनददा क हाथो क

दोनो सोन क कड उसम जलपर थ

और तब उसक सामन सब सजि धीर-धीर रकड-रकड होकर जबखरन लगी य कड तो चनददा बचकर उसका इलाज

कर रही थी व सब दवाइया और ताकत क रॉजनकउसन तो कहा था य दवाइया जकसी की महरबानी नही ह मन हाथ

क कड बचन को द जदए थ पर उसका गला बरी तरह सख गया जबान जस ताल स जचपककर रह गई उसन चाहा जक

चनददा को झकाझोरकर उठाए पर शरीर की शजि बह-सी गई थी रि पानी हो गया था थोडा सयत हआ उसन व

कड उसी रमाल म लपरकर उसकी खार क कोन पर रख जदए और बडी मजशकल स अपनी खार की पारी पकडकर

लढक गया चनददा झठ बोली पर कयो कड आज तक छपाए रही उसन इतना बडा दराव कयो जकया आजखर कयो

जकसजलए और जगपती का जदल भारी हो गया उस जिर लगा जक उसका शरीर जसमरता जा रहा ह और वह एक

सीक का बना ढाचा रह गया जनतानदत हका जतनक-सा हवा म उडकर भरकन वाल जतनक-सा

उस रात क बाद रोज जगपती सोचता रहा जक चनददा स कड मागकर बच ल और कोई छोरा-मोरा कारोबार ही शर

कर द कयोजक नौकरी छर चकी थी इतन जदन की गरहाजजरी क बाद वकील साहब न दसरा महररटर रख जलया था वह

रोज यही सोचता पर जब चनददा सामन आती तो न जान कसी असहाय-सी उसकी अवसथा हो जाती उस लगता जस

कड मागकर वह चनददा स पतनीतव का पद भी छीन लगा माततव तो भगवान न छीन ही जलया वह सोचता आजखर

चनददा कया रह जाएगी एक सतरी स यजद पतनीतव और माततव छीन जलया गया तो उसक जीवन की साथटकता ही कया

चनददा क साथ वह यह अनदयाय कस कर उसस दसरी आख की रोशनी कस माग ल जिर तो वह जनतानदत अनदधी हो

जाएगी और उन कडो कोमागन क पीछ जजस इजतहास की आतमा नगी हो जाएगी कस वह उस लजजा को सवय ही

उधारकर ढापगा

और वह उनदही खयालो म डबा सबह स शाम तक इधर-उधर काम की रोह म घमता रहता जकसी स उधार ल ल पर

जकस समपजतत पर कया ह उसक पास जजसक आधार पर कोई उस कछ दगा और महल क लोग जो एक-एक पाई

पर जान दत ह कोई चीज खरीदत वि भाव म एक पसा कम जमलन पर मीलो पदल जाकर एक पसा बचात ह एक-

एक पस की मसाल की पजडया बधवाकर गयारह मतटबा पसो का जहसाब जोडकर एकाध पसा उधारकर जमनदनत करत

सौदा घर लात ह गली म कोई खोचवाला िस गया तो दो पस की चीज को लड-झगडकर - चार दान जयादा पान की

नीयत स दो जगह बधवात ह भाव क जरा-स िकट पर घणरो बहस करत ह शाम को सडी-गली तरकाररयो को

जकिायत क कारण लात ह ऐस लोगो स जकस मह स मागकर वह उनकी गरीबी क अहसास पर ठोकर लगाए पर उस

जदन शाम को जब वह घर पहचा तो बरोठ म ही एक साइजकल रखी नजर आई जदमाग पर बहत जोर डालन क बाद

भी वह आगनदतक की कपना न कर पाया भीतरवाल दरवाज पर जब पहचा तो सहसा हसी की आवाज सनकर

जठठक गया उस हसी म एक अजीब-सा उनदमाद था और उसक बाद चनददा का सवर - अब आत ही होग बजठए न दो

जमनर और अपनी आख स दख लीजजए और उनदह समझात जाइए जक अभी तनददरसती इस लायक नही जो जदन-

जदन-भर घमना बदाटशत कर सक

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हा भई कमजोरी इतनी जदी नही जमर सकती खयाल नही करग तो नकसान उठाएग कोई परि-सवर था यह

जगपती असमजस म पड गया वह एकदम भीतर घस जाए इसम कया हजट ह पर जब उसन पर उठाए तो व बाहर

जा रह थ बाहर बरोठ म साइजकल को पकडत ही उस सझ आई वही स जस अनजान बनता बड परयतन स आवाज

को खोलता जचलाया अर चनददा यह साइजकल जकसकी ह कौन महरबान

चनददा उसकी आवाज सनकर कमर स बाहर जनकलकर जस खश-खबरी सना रही थी अपन कमपाउणडर साहब आए

ह खोजत-खोजत आज घर का पता पाए ह तमहार इनदतजार म बठ ह

कौन बचनजसह अचछाअचछा वही तो म कह भला कौन कहता जगपती पास पहचा और बातो म इस तरह

उलझ गया जस सारी पररजसथजत उसन सवीकार कर ली हो बचनजसह जब जिर आन की बात कहकर चला गया तो

चनददा न बहत अपनपन स जगपती क सामन बात शर की जान कस-कस आदमी होत ह

कयो कया हआ कस होत ह आदमी जगपती न पछा

इतनी छोरी जान-पहचान म तम मदो क घर म न रहत घसकर बठ सकत हो तम तो उर परो लौर आओग चनददा

कहकर जगपती क मख पर कछ इजचछत परजतजकरया दख सकन क जलए गहरी जनगाहो स ताकन लगी

जगपती न चनददा की ओर ऐस दखा जस यह बात भी कहन की या पछन की ह जिर बोला बचनजसह अपनी तरह

का आदमी ह अपनी तरह का अकला

होगापर कहत-कहत चनददा रक गई

आड वि काम आन वाला आदमी ह लजकन उसस िायदा उठा सकना जजतना आसान ह उतनामरा मतलब ह

जक जज़सस कछ जलया जाएगा उस जदया भी जाएगा जगपती न आख दीवार पर गडात हए कहा और चनददा उठकर

चली गई

उस जदन क बाद बचनजसह लगभग रोज ही आन-जान लगा जगपती उसक साथ इधर-उधर घमता भी रहता

बचनजसह क साथ वह जब तक रहता अजीब-सी घरन उसक जदल को बाध लती और तभी जीवन की तमाम

जविमताए भी उसकी जनगाहो क सामन उभरन लगती आजखर वह सवय एक आदमी हबकार यह माना जक उसक

सामन पर पालन की कोई इतनी जवकराल समसया नही वह भखो नही मर रहा ह जाड म काप नही रहा ह पर उसक

दो हाथ-पर हशरीर का जपजरा ह जो कछ मागता हकछ और वह सोचता यह कछ कया ह सख शायद हा शायद

नही वह तो दःख म भी जी सकन का आदी ह अभावो म जीजवत रह सकन वाला आशचयटजनक कीडा ह तो जिर

वासना शायद हा शायद नही चनददा का शरीर लकर उसन उस कषजणकता को भी दखा ह तो जिर धनशायद हा

शायद नही उसन धन क जलए अपन को खपाया ह पर वह भी तो उस अदशय पयास को बझा नही पाया तो जिर तो

जिर कया वह कछ कया ह जो उसकी आतमा म नासर-सा ररसता रहता ह अपना उपचार मागता ह शायद काम हा

यही जबकल यही जो उसक जीवन की घजडयो को जनपर सना न छोड जज़सम वह अपनी शजि लगा सक अपना

मन डबो सक अपन को साथटक अनभव कर सक चाह उसम सख हो या दख अरकषा हो या सरकषा शोिण हो या

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पोिणउस जसिट काम चाजहए करन क जलए कछ चाजहए यही तो उसकी परकत आवशयकता ह पहली और आजखरी

माग ह कयोजक वह उस घर म नही पदा हआ जहा जसिट जबान जहलाकर शासन करनवाल होत ह वह उस घर म भी

नही पदा हआ जहा जसिट मागकर जीनवाल होत ह वह उस घर का ह जो जसिट काम करना जानता ह काम ही

जजसकी आस ह जसिट वह काम चाहता ह काम

और एक जदन उसकी काम-धाम की समसया भी हल हो गई तालाब वाल ऊच मदान क दजकषण ओर जगपती की

लकडी की राल खल गई बोडट तक रग गया राल की जमीन पर लकषमी-पजन भी हो गया और हवन भी हआ

लकडी को कोई कमी नही थी गाव स आनवाली गाजडयो को इस कारोबार म पर हए आदजमयो की मदद स मोल-

तोल करवा क वहा जगरवा जदया गया गाठ एक ओर रखी गई चलो का चटटा करीन स लग गया और गदद चीरन क

जलए डाल जदए गए दो-तीन गाजडयो का सौदा करक राल चाल कर दी गई भजवषय म सवय पड खरीदकर करान का

तय जकया गया बडी-बडी सकीम बनी जक जकस तरह जलान की लकडी स बढात-बढात एक जदन इमारती लकडी की

कोठी बनगी चीरन की नई मशीन लगगी कारबार बढ ज़ान पर बचनजसह भी नौकरी छोडकर उसी म लग जाएगा

और उसन महसस जकया जक वह काम म लग गया ह अब चौबीसो घणर उसक सामन काम हउसक समय का उपयोग

ह जदन-भर म वह एक घणर क जलए जकसी का जमतर हो सकता ह कछ दर क जलए वह पजत हो सकता ह पर बाकी

समय जदन और रात क बाकी घणरउन घणरो क अभाव को जसिट उसका अपना काम ही भर सकता ह और अब वह

कामदार था

वह कामदार तो था लजकन जब राल की उस ऊची जमीन पर पड छपपर क नीच तखत पर वह गला रखकर बठता

सामन लग लकजडयो क ढर कर हए पड क तन जडो को लढका हआ दखता तो एक जनरीहता बरबस उसक जदल

को बाधन लगती उस लगता एक वयथट जपशाच का शरीर रकड-रकड करक उसक सामन डाल जदया गया हजिर इन

पर कहाडी चलगी और इनक रश-रश अलग हो जाएग और तब इनकी ठठररयो को सखाकर जकसी पसवाल क हाथ

तक पर तौलकर बच जदया जाएगा और तब उसकी जनगाह सामन खड ताड पर अरक जाती जजसक बड-बड पततो पर

सखट गदटनवाल जगदध पर िडफ़डाकर दर तक खामोश बठ रहत ताड का काला गडरदार तना और उसक सामन ठहरी

हई वाय म जनससहाय कापती भारहीन नीम की पजततया चकराती झडती रहती धल-भरी धरती पर लकडी की

गाजडयोक पजहयो की पडी हई लीक धधली-सी चमक उठती और बगलवाल मगिली क पच की एकरस खरखराती

आवाज कानो म भरन लगती बगलवाली कचची पगडणडी स कोई गजरकर रील क ढलान स तालाब की जनचाई म

उतर जाता जजसक गदल पानी म कडा तरता रहता और सअर कीचड म मह डालकर उस कड को रौदत दोपहर

जसमरती और शाम की धनदध छान लगती तो वह लालरन जलाकर छपपर क खमभ की कील म राग दता और उसक

थोडी ही दर बाद असपतालवाली सडक स बचनजसह एक काल धबब की तरह आता जदखाई पडता गहर पडत अनदधर

म उसका आकार धीर-धीर बढता जाता और जगपती क सामन जब वह आकर खडा होता तो वह उस बहत

जवशाल-सा लगन लगता जजसक सामन उस अपना अजसततव डबता महसस होता

एक-आध जबकरी की बात होती और तब दोनो घर की ओर चल दत घर पहचकर बचनजसह कछ दर जरर रकता

बठता इधर-उधर की बात करता कभी मौका पड ज़ाता तो जगपती और बचनजसह की थाली भी साथ लग जाती

चनददा सामन बठकर दोनो को जखलाती

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बचनजसह बोलता जाता कया तरकारी बनी ह मसाला ऐसा पडा ह जक उसकी भी बहार ह और तरकारी का सवाद भी

न मरा होरलो म या तो मसाला ही मसाला रहगा या जसिट तरकारी ही तरकारी वाह वाह कया बात ह अनददाज की

और चनददा बीच-बीच म रोककर बोलती जाती इनदह तो जब तक दाल म पयाज का भना घी न जमल तब तक पर ही

नही भरता

या - जसरका अगर इनदह जमल जाए तो समझो सब कछ जमल गया पहल मझ जसरका न जान कसा लगता था पर

अब ऐसा जबान पर चढा ह जक या - इनदह कागज-सी पतली रोरी पसनदद ही नही आती अब मझस कोई पतली रोरी

बनान को कह तो बनती ही नही आदत पड गई ह और जिर मन ही नही करता पर चनददा की आख बचनजसह की

थाली पर ही जमी रहती रोरी जनबरी तो रोरी परोस दी दाल खतम नही हई तो भी एक चमचा और परोस दी और

जगपती जसर झकाए खाता रहता जसिट एक जगलास पानी मागता और चनददा चौककर पानी दन स पहल कहती अर

तमन तो कछ जलया भी नही कहत-कहत वह पानी द दती और तब उसक जदल पर गहरी-सी चोर लगती न जान

कयो वह खामोशी की चोर उस बडी पीडा द जाती पर वह अपन को समझा लती कोई महमान तो नही ह माग सकत

थ भख नही होगी

जगपती खाना खाकर राल पर लरन चला जाता कयोजक अभी तक कोई चौकीदार नही जमला था छपपर क नीच

तखत पर जब वह लरता तो अनायास ही उसका जदल भर-भर आता पता नही कौन-कोन स ददट एक-दसर स जमलकर

तरह-तरह की रीस चरख और ऐठन पदा करन लगत कोई एक रग दखती तो वह सहलाता भी जब सभी नस

चरखती हो तो कहा-कहा राहत का अकला हाथ सहलाए

लर-लर उसकी जनगाह ताड क उस ओर बनी पखता कबर पर जम जाती जजसक जसराहन करीला बबल का एकाकी

पड सनदन-सा खडा रहता जजस कबर पर एक पदाटनशीन औरत बड जलहाज स आकर सवर-सवर बला और चमली क

िल चढा जाती घम-घमकर उसक िर लती और माथा रककर कछ कदम उदास-उदास-सी चलकर एकदम तजी स

मडकर जबसाजतयो क महल म खो जाती शाम होत जिर आती एक दीया बारती और अगर की बजततया जलाती

जिर मडत हए ओढनी का पला कनदधो पर डालती तो दीय की लौ कापती कभी कापकर बझ जाती पर उसक कदम

बढ चक होत पहल धीम थक उदास-स और जिर तज सध सामानदय-स और वह जिर उसी महल म खो जाती और

तब रात की तनहाइयो म बबल क कारो क बीच उस साय-साय करत ऊच-नीच मदान म जस उस कबर स कोई रह

जनकलकर जनपर अकली भरकती रहती

तभी ताड पर बठ सखट गदटनवाल जगधद मनह स-सी आवाज म जकलजबला उठत और ताड क पतत भयानकता स

खडबडा उठत जगपती का बदन काप जाता और वह भरकती रह जजनददा रह सकन क जलए जस कबर की इरो म

बबल क साया-तल दबक जाती जगपती अपनी रागो को पर स भीचकर कमबल स मह छपा औधा लर जाता

तडक ही ठक पर लग लकडहार लकडी चीरन आ जात तब जगपती कमबल लपर घर की ओर चला जाता

राजा रोज सवर रहलन जात थ मा सनाया करती थी एक जदन जस ही महल क बाहर जनकलकर आए जक सडक

पर झाड लगानवाली महतरानी उनदह दखत ही अपना झाडपजा परककर माथा पीरन लगी और कहन लगी हाय राम

आज राजा जनरबजसया का मह दखा ह न जान रोरी भी नसीब होगी जक नही न जान कौन-सी जवपत रर पड राजा

को इतना दःख हआ जक उर परो महल को लौर गए मनदतरी को हकम जदया जक उस महतरानी का घर नाज स भर द

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और सब राजसी वसतर उतार राजा उसी कषण जगल की ओर चल गए उसी रात रानी को सपना हआ जक कल की रात

तरी मनोकामना परी करनवाली ह रानी बहत पछता रही थी पर िौरन ही रानी राजा को खोजती-खोजती उस सराय

म पहच गई जहा वह जरक हए थ रानी भस बदलकर सवा करन वाली भजरयाररन बनकर राजा क पास रात म पहची

रातभर उनक साथ रही और सबह राजा क जगन स पहल सराय छोड महल म लौर गई राजा सबह उठकर दसर दश

की ओर चल गए दो ही जदनो म राजा क जनकल जान की खबर राज-भर म िल गई राजा जनकल गए चारो तरि

यही खबर थी

और उस जदन रोल-महल क हर आगन म बरसात क मह की तरह यह खबर बरसकर िल गई जक चनददा क बाल-

बचचा होन वाला ह

नककड पर जमना सनार की कोठरी म जिकती सरही रक गई मशीजी न अपना मीजान लगाना छोड जवसिाररत नतरो

स ताककर खबर सनी बसी जकरानवाल न कए म स आधी गई रससी खीच डोल मन पर परककर सना सदशटन दजी

न मशीन क पजहए को हथली स रगडकर रोककर सना हसराज पजाबी न अपनी नील-लगी मलगजी कमीज की

आसतीन चढात हए सना और जगपती की बवा चाची न औरतो क जमघर म बड जवशवास पर भद-भर सवर म सनाया

- आज छः साल हो गए शादी को न बाल न बचचा न जान जकसका पाप ह उसक पर म और जकसका होगा जसवा

उस मसरणड कमपोरर क न जान कहा स कलचछनी इस महल म आ गई इस गली की तो पशतो स ऐसी मरजाद

रही ह जक गर-मदट औरत की परछाई तब नही दख पाए यहा क मदट तो बस अपन घर की औरतो को जानत ह उनदह तो

पडोसी क घर की जनाजनयो की जगनती तक नही मालम यह कहत-कहत उनका चहरा तमतमा आया और सब

औरत दवलोक की दजवया की तरह गमभीर बनी अपनी पजवतरता की महानता क बोझ स दबी धीर-धीर जखसक गई

सबह यह खबर िलन स पहल जगपती राल पर चला गया था पर सनी उसन भी आज ही थी जदन-भर वह तखत पर

कोन की ओर मह जकए पडा रहा न ठक की लकजडया जचराई न जबकरी की ओर धयान जदया न दोपहर का खाना खान

ही घर गया जब रात अचछी तरह िल गई वह जहसक पश की भाजत उठा उसन अपनी अगजलया चरकाई मिी

बाधकर बाह का जोर दखा तो नस तनी और बाह म कठोर कमपन-सा हआ उसन तीन-चार परी सास खीची और

मजबत कदमो स घर की ओर चल पडा मदान खतम हआ ककड की सडक आईसडक खतम हई गली आई पर

गली क अनदधर म घसत वह सहम गया जस जकसी न अदशय हाथो स उस पकडकर सारा रि जनचोड जलया उसकी

िरी हई शजि की नस पर जहम-शीतल होठ रखकर सारा रस चस जलया और गली क अधर की जहकारत-भरी

काजलख और भी भारी हो गई जजसम घसन स उसकी सास रक जाएगीघर जाएगी

वह पीछ मडा पर रक गया जिर कछ सयत होकर वह चोरो की तरह जनःशबद कदमो स जकसी तरह घर की भीतरी

दहरी तक पहच गया

दाई ओर की रसोईवाली दहलीज म कपपी जरमजरमा रही थी और चनददा असत-वयसत-सी दीवार स जसर रक शायद

आसमान जनहारत-जनहारत सो गई थी कपपी का परकाश उसक आध चहर को उजागर जकए था और आधा चहरा गहन

काजलमा म डबा अदशय था वह खामोशी स खडा ताकता रहा चनददा क चहर पर नारीतव की परौढता आज उस

जदखाई दी चहर की सारी कमनीयता न जान कहा खो गई थी उसका अछतापन न जान कहा लपत हो गया था िला-

िला मख जस रहनी स तोड फ़ल को पानी म डालकर ताजा जकया गया हो जजसकी पखररयो म ररन की सरमई

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रखाए पड गई हो पर भीगन स भारीपन आ गया हो उसक खल पर पर उसकी जनगाह पडी तो सजा-सा लगा एजडया

भरी सजी-सी और नाखनो क पास अजब-सा सखापन जगपती का जदल एक बार मसोस उठा उसन चाहा जक

बढकर उस उठा ल अपन हाथो स उसका परा शरीर छ-छकर सारा कलि पोछ द उस अपनी सासो की अजगन म

तपाकर एक बार जिर पजवतर कर ल और उसकी आखो की गहराई म झाककर कह- दवलोक स जकस शापवश

जनवाटजसत हो तम इधर आ गई चनददा यह शाप तो अजमर था

तभी चनददा न हडबडाकर आख खोली जगपती को सामन दख उस लगा जक वह एकदम नगी हो गई हो अजतशय

लजजजत हो उसन अपन पर समर जलए घरनो स धोती नीच सरकाई और बहत सयत-सी उठकर रसोई क अधर म खो

गई जगपती एकदम हताश हो वही कमर की दहरी पर चौखर स जसर जरका बठ गया नजर कमर म गई तो लगा जक

पराए सवर यहा गज रह ह जजनम चनददा का भी एक ह एक तरि घर क हर कोन स अनदधरा सलाब की तरह बढता आ

रहा थाएक अजीब जनसतबधताअसमजस गजत पर पथभरि शकल पर आकारहीन

खाना खा लत चनददा का सवर कानो म पडा वह अनजान ऐस उठ बठा जस तयार बठा हो उसकी बात की आज

तक उसन अवजञा न की थी खान तो बठ गया पर कौर नीच नही सरक रहा था तभी चनददा न बड सध शबदो म कहा

कल म गाव जाना चाहती ह

जस वह इस सचना स पररजचत था बोला अचछा

चनददा जिर बोली मन बहत पहल घर जचिी डाल दी थी भया कल लन आ रह ह

तो ठीक ह जगपती वस ही डबा-डबा बोला

चनददा का बाध रर गया और वह वही घरनो म मह दबाकर कातर-सी ििक-ििककर रो पडी न उठ सकी न जहल

सकी

जगपती कषण-भर को जवचजलत हआ पर जस जम जान क जलए उसक ओठ िडक और करोध क जवालामखी को

जबरन दबात हए भी वह िर पडा यह सब मझ कया जदखा रही ह बशमट बगरत उस वि नही सोचा था

जबज़बमरी लाश तल

तब तब की बात झठ ह जससजकयो क बीच चनददा का सवर िरा लजकन जब तमन मझ बच जदया

एक भरपर हाथ चनददा की कनपरी पर आग सलगाता पडा और जगपती अपनी हथली दसरी स दबाता खाना छोड

कोठरी म घस गया और रात-भर कणडी चढाए उसी काजलख म घरता रहा दसर जदन चनददा घर छोड अपन गाव चली

गई

जगपती परा जदन और रात राल पर ही कार दता उसी बीरान म तालाब क बगल कबर बबल और ताड क पडोस म

पर मन मदाट हो गया था जबरदसती वह अपन को वही रोक रहता उसका जदल होता कही जनकल जाए पर ऐसी

कमजोरी उसक तन और मन को खोखला कर गई थी जक चाहन पर भी वह जा न पाता जहकारत-भरी नजर सहता पर

वही पडा रहता कािी जदनो बाद जब नही रह गया तो एक जदन जगपती घर पर ताला लगा नजदीक क गाव म

लकडी करान चला गया उस लग रहा था जक अब वह पग हो गया ह जबलकल लगडा एक रगता कीडा जजसक न

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आख ह न कान न मन न इचछा वह उस बाग म पहच गया जहा खरीद पड करन थ दो आरवालो न पतल पड क

तन पर आरा रखा और करट-करट का अबाध शोर शर हो गया दसर पड पर बनदन और शकर की कहाडी बज उठी

और गाव स दर उस बाग म एक लयपणट शोर शर हो गया जड पर कहाडी पडती तो परा पड थराट जाता

करीब क खत की मड पर बठ जगपती का शरीर भी जस काप-काप उठता चनददा न कहा था लजकन जब तमन मझ

बच जदया कया वह ठीक कहती थी कया बचनजसह न राल क जलए जो रपए जदए थ उसका बयाज इधर चकता

हआ कया जसिट वही रपए आग बन गए जजसकी आच म उसकी सहनशीलता जवशवास और आदशट मोम-स जपघल

गए

शकर बाग स लग दड पर स जकसी न आवाज लगाई शकर न कहाडी रोककर वही स हाक लगाई कोन क खत

स लीक बनी ह जरा मड मारकर नघा ला गाडी

जगपती का धयान भग हआ उसन मडकर दड पर आख गडाई दो भसा-गाजडया लकडी भरन क जलए आ पहची थी

शकर न जगपती क पास आकर कहा एक गाडी का भतट तो हो गया बजक डढ काअब इस पतररया पड को न छार

जगपती न उस पड की ओर दखा जजस कारन क जलए शकर न इशारा जकया था पड की शाख हरी पजततयो स भरी

थी वह बोला अर यह तो हरा ह अभी इस छोड दो

हरा होन स कया उखर तो गया ह न िल का न िल का अब कौन इसम िल-िल आएग चार जदन म पतती झरा

जाएगी शकर न पड की ओर दखत हए उसतादी अनददाज स कहा

जसा ठीक समझो तम जगपती न कहा और उठकर मड-मड पकक कए पर पानी पीन चला गया

दोपहर ढलत गाजडया भरकर तयार हई और शहर की ओर रवाना हो गई जगपती को उनक साथ आना पडा गाजडया

लकडी स लदी शहर की ओर चली जा रही थी और जगपती गदटन झकाए कचची सडक की धल म डबा भारी कदमो

स धीर-धीर उनदही की बजती घजणरयो क साथ जनजीव-सा बढता जा रहा था

कई बरस बाद राजा परदस स बहत-सा धन कमाकर गाडी म लादकर अपन दश की ओर लौर मा सनाया करती

थी राजा की गाडी का पजहया महल स कछ दर पतल की झाडी म उलझ गया हर तरह कोजशश की पर पजहया न

जनकला तब एक पजणडत न बताया जक सकर क जदन का जनदमा बालक अगर अपन घर की सपारी लाकर इसम छआ

द तो पजहया जनकल जाएगा वही दो बालक खल रह थ उनदहोन यह सना तो कदकर पहच और कहन लग जक हमारी

पदाइश सकर की ह पर सपारी तब लाएग जब तम आधा धन दन का वादा करो राजा न बात मान ली बालक दौड-

दौड घर गए सपारी लाकर छआ दी जिर घर का रासता बतात आग-आग चल आजखर गाडी महल क सामन उनदहोन

रोक ली

राजा को बडा अचरज हआ जक हमार ही महल म य दो बालक कहा स आ गए भीतर पहच तो रानी खशी स बहाल

हो गई

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पर राजा न पहल उन बालको क बार म पछा तो रानी न कहा जक य दोनो बालक उनदही क राजकमार ह राजा को

जवशवास नही हआ रानी बहत दखी हई

गाजडया जब राल पर आकर लगी और जगपती तखत पर हाथ-पर ढील करक बठ गया तो पगडणडी स गजरत

मशीजी न उसक पास आकर बताया अभी उस जदन वसली म तमहारी ससराल क नजदीक एक गाव म जाना हआ तो

पता लगा जक पनदरह-बीस जदन हए चनददा क लडका हआ ह और जिर जस महल म सनी-सनाई बातो पर पदाट

डालत हए बोल भगवान क राज म दर ह अधर नही जगपती भया

जगपती न सना तो पहल उसन गहरी नजरो स मशीजी को ताका पर वह उनक तीर का जनशाना ठीक-ठीक नही खोज

पाया पर सब कछ सहन करत हए बोला दर और अधर दोनो ह

अधर तो सरासर हजतररया चररततर ह सब बड-बड हार गए ह कहत-कहत मशीजी रक गए पर कछ इस तरह जस

कोई बडी भद-भरी बात ह जजस उनकी गोल होती हई आख समझा दगी जगपती मशीजी की तरि ताकता रह गया

जमनर-भर मनह स-सा मौन छाया रहा उस तोडत हए मशीजी बडी ददट-भरी आवाज म बोल सन तो जलया होगा

तमन

कया कहन को जगपती कह गया पर उस लगा जक अभी मशीजी उस गाव म िली बातो को ही बडी बददी स कह

डालग उसन नाहक पछा

तभी मशीजी न उसकी नाक क पास मह ल जात हए कहा चनददा दसर क घर बठ रही हकोई मदसदन ह वही का पर

बचचा दीवार बन गया ह चाहत तो वो यही ह जक मर जाए तो रासता खल पर रामजी की मजी सना ह बचचा रहत

भी वह चनददा को बठान को तयार ह

जगपती की सास गल म अरककर रह गई बस आख मशीजी क चहर पर पथराई-सी जडी थी

मशीजी बोल अदालत स बचचा तमह जमल सकता ह अब काह का शरम-जलहाज

अपना कहकर जकस मह स माग बाबा हर तरि तो कजट स दबा ह तन स मन स पस स इजजत स जकसक बल पर

दजनया सजोन की कोजशश कर कहत-कहत वह अपन म खो गया

मशीजी वही बठ गए जब रात झक आई तो जगपती क साथ ही मशीजी भी उठ उसक कनदध पर हाथ रख व उस

गली तक लाए अपनी कोठरी आन पर पीठ सहलाकर उनदहोन उस छोड जदया वह गदटन झकाए गली क अधर म उनदही

खयालो म डबा ऐस चलता चला आया जस कछ हआ ही न हो पर कछ ऐसा बोझ था जो न सोचन दता था और न

समझन जब चाची की बठक क पास स गजरन लगा तो सहसा उसक कानो म भनक पडी - आ गए सतयानासी

कलबोरन

उसन जरा नजर उठाकर दखा तो गली की चाची-भौजाइया बठक म जमा थी और चनददा की चचाट जछडी थी पर वह

चपचाप जनकल गया

इतन जदनो बाद ताला खोला और बरोठ क अधर म कछ सझ न पडा तो एकाएक वह रात उसकी आखो क सामन

घम गई जब वह असपताल स चनददा क साथ लौरा था बवा चाची का वह जहर-बझ तीर आ गए राजा जनरबजसया

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असपताल स और आज सतयानासी कलबोरन और सवय उसका वह वाकय जो चनददा को छद गया था तमहार

कभी कछ न होगा और उस रात की जशश चनददा

चनददा का लडका हआ ह वह कछ और जनती आदमी का बचचा न जनती वह और कछ भी जनती ककड-पतथर

वह नारी न बनती बचची ही बनी रहती उस रात की जशश चनददा पर चनददा यह सब कया करन जा रही ह उसक जीत-

जी वह दसर क घर बठन जा रही ह जकतन बड पाप म धकल जदया चनददा को पर उस भी तो कछ सोचना चाजहए

आजखर कया पर मर जीत-जी तो यह सब अचछा नही वह इतनी घणा बदाटशत करक भी जीन को तयार ह या मझ

जलान को वह मझ नीच समझती ह कायरनही तो एक बार खबर तो लती बचचा हआ तो पता लगता पर नही वह

उसका कौन ह कोई भी नही औलाद ही तो वह सनह की धरी ह जो आदमी-औरत क पजहयो को साधकर तन क

दलदल स पार ल जाती ह नही तो हर औरत वशया ह और हर आदमी वासना का कीडा तो कया चनददा औरत नही

रही वह जरर औरत थी पर सवय मन उस नरक म डाल जदया वह बचचा मरा कोई नही पर चनददा तो मरी ह एक

बार उस ल आता जिर यहा रात क मोहक अधर म उसक िल-स अधरो को दखताजनदवटनददव सोई पलको को

जनहारतासासो की दध-सी अछती महक को समर लता

आज का अधरा घर म तल भी नही जो दीया जला ल और जिर जकसक जलए कौन जलाए चनददा क जलए पर उस तो

बच जदया था जसवा चनददा क कौन-सी समपजतत उसक पास थी जजसक आधार पर कोई कजट दता कजट न जमलता तो

यह सब कस चलता काम पड कहा स करत और तब शकर क व शबद उसक कानो म गज गए हरा होन स कया

उखर तो गया ह वह सवय भी तो एक उखरा हआ पड ह न िल का न िल का सब वयथट ही तो ह जो कछ

सोचा उस पर कभी जवशवास न कर पाया चनददा को चाहता रहा पर उसक जदल म चाहत न जगा पाया उस कही स

एक पसा मागन पर डारता रहा पर खद लता रहा और आज वह दसर क घर बठ रही ह उस छोडकर वह अकला ह

हर तरि बोझ ह जजसम उसकी नस-नस कचली जा रही ह रग-रग िर गई ह और वह जकसी तरह ररोल-ररोलकर

भीतर घर म पहचा

रानी अपन कल-दवता क मजनददर म पहची मा सनाया करती थी अपन सतीतव को जसधद करन क जलए उनदहोन घोर

तपसया की राजा दखत रह कल-दवता परसनदन हए और उनदहोन अपनी दवी शजि स दोनो बालको को ततकाल जनदम

जशशओ म बदल जदया रानी की छाजतयो म दध भर आया और उनम स धार िर पडी ज़ो जशशओ क मह म जगरन

लगी राजा को रानी क सतीतव का सबत जमल गया उनदहोन रानी क चरण पकड जलए और कहा जक तम दवी हो य

मर पतर ह और उस जदन स राजा न जिर स राज-काज सभाल जलया

पर उसी रात जगपती अपना सारा कारोबार तयाग अिीम और तल पीकर मर गया कयोजक चनददा क पास कोई दवी

शजि नही थी और जगपती राजा नही बचनजसह कमपाउणडर का कजटदार था

राजा न दो बात की मा सनाती थी एक तो रानी क नाम स उनदहोन बहत बडा मजनददर बनवाया और दसर राज क

नए जसकको पर बड राजकमार का नाम खदवाकर चाल जकया जजसस राज-भर म अपन उततराजधकारी की खबर हो

जाए

जगपती न मरत वि दो परच छोड एक चनददा क नाम दसरा कानन क नाम

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चनददा को उसन जलखा था चनददा मरी अजनदतम चाह यही ह जक तम बचच को लकर चली आनाअभी एक-दो जदन

मरी लाश की दगटजत होगी तब तक तम आ सकोगी चनददा आदमी को पाप नही पशचाताप मारता ह म बहत पहल मर

चका था बचच को लकर जरर चली आना

कानन को उसन जलखा था जकसी न मझ मारा नही हजकसी आदमी न नही म जानता ह जक मर जहर की पहचान

करन क जलए मरा सीना चीरा जाएगा उसम जहर ह मन अिीम नही रपए खाए ह उन रपयो म कजट का जहर था

उसी न मझ मारा ह मरी लाश तब तक न जलाई जाए जब तक चनददा बचच को लकर न आ जाए आग बचच स

जदलवाई जाए बस

मा जब कहानी समापत करती थी तो आसपास बठ बचच िल चढात थ

मरी कहानी भी खतम हो गई पर

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णिता

जञानरजन

उसन अपन जबसतर का अदाज लन क जलए मातर आध पल को जबजली जलाई जबसतर िशट पर जबछ हए थ उसकी

सतरी न सोत-सोत ही बड़बड़ाया आ गए और बचच की तरि करवर लकर चप हो गई लर जान पर उस एक बड़ी

डकार आती मालम पड़ी लजकन उसन डकार ली नही उस लगा जक ऐसा करन स उस चपपी म खलल पड़ जाएगा

जो चारो तरि भरी ह और कािी रात गए ऐसा होना उजचत नही ह

अभी घनशयामनगर क मकानो क लब जसलजसलो क जकनार-जकनार सवारी गाड़ी धड़धड़ाती हई गजरी थोड़ी दर तक

एक बहत साि भागता हआ शोर होता रहा सजदटयो म जब यह गाड़ी गजरती ह

तब लोग एक परहर की खासी नीद ल चक होत ह गजमटयो म साढ़ गयारह का कोई जवशि मतलब नही होता यो उसक

घर म सभी जदी सोया करत जदी खाया और जदी उठा करत ह

आज बहद गमी ह रासत-भर उस जजतन लोग जमल उन सबन उसस गमट और बचन कर दनवाल मौसम की ही बात

की कपड़ो की िजीहत हो गई बदहवासी जचपजचपाहर और थकान ह अभी जब सवारी गाड़ी शोर करती हई गजरी

तो उस ऐसा नही लगा जक नीद लगत-लगत रर गई हो जसा जाड़ो म परायः लगता ह बजक यो लगाजक अगर सोन

की चिा शर नही की गई तो सचमच दर हो जाएगी उसन जमहाई ली पख की हवा बहत गमट थी और वह पराना होन

की वजह स जचढ़ाती-सी आवाज भी कर रहा ह उसको लगा दसर कमरो म भी लोग शायद उसकी ही तरह जमहाइया

ल रह होग लजकन दसर कमरो क पख परान नही ह उसन सोचना बद करक अनदय कमरो की आहर लनी चाही उस

कोई बहत मासम-सी धवजन भी एक-डढ़ जमनर तक नही सनाई दी जो सनदनार म कािी तज होकर आ सकती हो

तभी जपता की चारपाई बाहर चरमराई वह जकसी आहर स उठ होग उनदहोन डारकर उस जबली का रोना चप कराया

जो शर हो गया था जबली थोड़ी दर चप रहकर जिर रोन लगी अब जपता न डड को गच पर कई बार परका और

उस जदशा की तरि खदड़नवाल ढग स दौड़ जजधर स रोना आ रहा था और हटट-हटट जचलाए

जब वह घम-जिरकर लौर रहा था तो जपता अपना जबसतर बाहर लगाकर बठ थ कनखी स उसन उनदह अपनी गजी स

पीठ का पसीना रगड़त हए दखा और बचता हआ वह घर क अदर दाजखल हो गया उस लगा जक जपता को गमी की

वजह स नीद नही आ रही ह लजकन उस इस जसथजत स रोि हआ सब लोग जपता स अदर पख क नीच सोन क जलए

कहा करत ह पर वह जरा भी नही सनत हम कया भोग कि

कछ दर पड़ रहन क बाद वह उठा और उसन उतसकतावश जखड़की स झाका सड़क की बतती छाती पर ह गजमटयो म

यह बहद अखर जाता ह जपता न कई बार करवर बदली जिर शायद चन की उममीद म पारी पर बठ पखा झलन लग

ह पख की डडी स पीठ का वह जहससा खजात ह जहा हाथ की उगजलया जदककत स पहचती ह आकाश और दरखतो

की तरि दखत ह ररलीि पान की जकसी बहत हकी उममीद म जशकायत उगलत ह - बड़ी भयकर गमी ह एक पतता

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भी नही डोलता उनका यह वाकय जो जनतात वयथट ह अभी-अभी बीत कषण म डब गया गमी-बरकरार ह और रहगी

कयोजक यह जाड़-बरसात का मौसम नही ह जपता उठकर घमन लगत ह एक या दो बार घर का चककर चौकीदारो की

तरह होओ करत हए लगात ह ताजक कोई सध-वध न लग सक लौरकर थक सवर म ह ईशवर कहत हए उगली स

माथ का पसीना कारकर जमीन पर चवान लगत ह

बड़ा गजब ह कमर की एक दीवार स जरककर बठ जान पर वह कािी तनाव म सोचन लगा अदर कमरो म पखो क

नीच घर क सभी दसर लोग आराम स पसर ह इस साल जो नया पडसरल खरीदा गया ह वह आगन म दादी अममा क

जलए लगता ह जबजली का मीरर तज चल रहा होगा पस खचट हो रह ह लजकन जपता की रात कि म ही ह लजकन

गजब यह नही ह गजब तो जपता की जजद ह वह दसर का आगरह-अनरोध मान तब न पता नही कयो जपता जीवन की

अजनवायट सजवधाओ स भी जचढ़त ह वह झलान लगा

चौक स आत वि चार आन की जगह तीन आन और तीन आन म तयार होन पर दो आन म चलनवाल ररकश क

जलए जपता घर-घर खड़ रहग धीर-धीर सबक जलए सजवधाए जरात रहग लजकन खद उसम नही या कम स कम

शाजमल होग पहल लोग उनकी कािी जचरौरी जकया करत थ अब लोग हार गए ह जानन लग ह जक जपता क आग

जकसी की चलगी नही

आज तक जकसी न जपता को वाश-बजसन म मह-हाथ धोत नही दखा बाहर जाकर बजगयावाल नल पर ही कला-

दातन करत ह दादा भाई न अपनी पहली तनखवाह म गसलखान म उतसाह क साथ एक खबसरत शावर लगवाया

लजकन जपता को अस स हम सब आगन म धोती को लगोर की तरह बाधकर तल चपड़ बदन पर बारी-बारी पानी

डालत दखत आ रह ह खल म सनान करग जनऊ स छाती और पीठ का मल कारग शर म दादा भाई न सोचा

जपता उसक दवारा शावर लगवान स बहत खश होग और उनदह नई चीज का उतसाह होगा जपता न जब कोई उतसाह

परकर नही जकया तो दादा भाई मन-ही-मन कािी जनराश हो गए एक-दो बार उनदहोन जहममत करक कहा भी आप

अदर आराम स कयो नही नहात तब भी जपता आसानी स उस राल गए

लड़को दवारा बाजार स लाई जबजसकर महग िल जपता कछ भी नही लत कभी लत भी ह तो बहत नाक-भौ

जसकोड़कर उसक बसवाद होन की बात पर शर म ही जोर द दत हए अपनी अमावर गजक और दाल-रोरी क

अलावा दसरो दवारा लाई चीजो की शरषठता स वह कभी परभाजवत नही होत वह अपना हाथ-पाव जानत ह अपना

अजटन और उसी म उनदह सतोि ह व पतर जो जपता क जलए कल का सब मगान और जदली एपोररयम स बजढ़या

धोजतया मगाकर उनदह पहनान का उतसाह रखत थ अब तजी स जपता-जवरोधी होत जा रह ह सखी बचच भी अब गाह-

बगाह मह खोलत ह और करोध उगल दत ह

लदद-लदद बाहर आम क दो सीकरो क लगभग एक साथ जगरन की आवाज आई वह जानता ह जपता आवाज स

सथान साधन की कोजशश करग ररोलत-ररोलत अधर म आम खोजग और खाली गमल म इकटठा करत जाएग

शायद ही रात म एक-दो आम उसक चक जात ह ढढ़न पर नही जमलत जजनको सबह पा जान क सबध म उनदह रात-

भर सदह होता रहगा

दीवार स कािी दर एक ही तरह जरक रहन स उसकी पीठ दखन लगी थी नीच रीढ़ क कमरवाल जहसस म रि की

चतना बहत कम हो गई उसन मरा बदली बाहर जपता न िारक खोलकर सड़क पर लड़त-जचजचयात कततो का

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हड़काया उस यहा बहत खीज हई कई बार कहा महल म हम लोगो का सममान ह चार भल लोग आया-जाया

करत ह आपको अदर सोना चाजहए ढग क कपड़ पहनन चाजहए और चौकीदारो की तरह रात को पहरा दना बहत ही

भददा लगता ह लजकन जपता की अड़ म कभी कोई झोल नही आता उरा-सीधा पता नही कहा जकस दजी स करता-

कमीज जसलवा लत ह रढ़ी जब सदरी क बरन ऊपर-नीच लगा सभा-सोसायरी म चल जाएग घर-भर को बरा

लगता ह

लोगो क बोलन पर जपता कह दत ह आप लोग जाइए न भाई कॉिी हाउस म बजठए झठी वजनरी क जलए बयरा को

जरप दीजजए रहमान क यहा डढ़ रपएवाला बाल कराइए मझ कयो घसीरत ह लोगो का बोलना चरकी भर म धरा

रह जाता ह जपता वस तो चप रहत ह लजकन जब बात-बहस म उनदह खीचा जाता ह तो कािी करारी और जहसातमक

बात कह जात ह उर उनदह घरनवाल हम भाई-बहन-अपराधी बन जात ह कमर स पहल एक भाई जखसकगा जिर

दसरा जिर बहन और जिर तीसरा चपचाप सब खीज-हार जखसकत रहग अदर जिर मा जाएगी और जपता जवजयी

जपता कमर म गीता पढ़न लगग या झोला लकर बाजार सौदा लन चल जाएग

होता हमशा यही ह सब मन म तय करत ह आग स जपता को नही घरग लजकन थोड़ा समय गजरन क बाद जिर

लोगो का मन जपता क जलए उमड़न लगता ह लोगा मौका ढढ़न लगत ह जपता को जकसी परकार अपन साथ

सजवधाओ म थोड़ा बहत शाजमल कर सक पर ऐसा नही हो पाता वह सोचन लगा भख क सामन खात समय

होनवाली वयथा सरीखी जकसी जसथजत म हम रहा करत ह यदयजप अपना खाना हम कभी सथजगत नही करत जिर भी

जपता की असपजि क कारण वयाकल और अधीर तो ह ही

जपता अदभत और जवजचतर ह वह सोचत हए उठा कमर म घमन या जसगरर पी सकन की सजवधा नही थी अनदयथा वह

वसा ही करता उसन सो जान की इचछा की और अपन को असहाय पाया शायद नीद नही आ सकगी यह खयाल

उस घबरानवाला लगा जपता अदभत और जवजचतर ह यह बात वह भल नही रहा था जपछल जाड़ो म वह अपन लोभ

को कचलकर बमजशकल एक कोर का बहतरीन कपड़ा जपता क जलए लाया पहल तो वह उस लन को तयार नही हए

लजकन मा क कािी घड़कन-िड़कन स राजी हो गए और उसी ख दाबाद क जकसी लपर दजी क यहा जसलान चल

जदए सधीर न कहा कपड़ा कीमती ह चजलए एक अचछी जगह म आपका नाप जदलवा द वह ठीक जसएगा मरा

पररजचत भी ह

इस बात पर जपता न कािी जहकारत उगली वह जचढ़ उठ म सबको जानता ह वही मयजनजसपल माकर क छोर-मोर

दजजटयो स काम करात और अपना लबल लगा लत ह साहब लोग मन कलकतत क हाल एडरसन क जसल कोर पहन

ह अपन जमान म जजनक यहा अचछ-खास यरोजपयन लोग कपड़ जसलवात थ य िशन-वशन जजसक आग आप

लोग चककर लगाया करत ह उसक आग पाव की धल ह मझ वयथट पसा नही खचट करना ह जकतना परसपर जवरोधी

तकट जकया जपता न ऐसा वह अपनी जजद को सवोपरर रखन क जलए जकया करत ह जिर सधीर न भी कपड़ा छोड़

जदया जहा चाजहए जसलवाइए या भाड़ म झोक आइए हम कया वह धीम-धीम बदबदाया

ऐ जपता बाहर अकबकाकर उठ पड़ शायद थोड़ी दर पहल जो आम बगीच म जगरा था उसकी आवाज जस अब

सनाई पड़ी हो

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वह जखड़की क बाहर दखन लगा जकजचत जरका-जरका-सा पीठ क पसीन स बजनयाइन जचपक गई थी बहद घरती हई

गमी मन उसका मथा जाता था बीवी पड़ी आराम स सो रही ह इस कछ पता नही शायद जपता की खार खाली थी

वह जगरा आम ररोलन क जलए बजगया म घस होग जपता जकतन जवजचतर ह लब समय स वह कवल दो ही गरथ पढ़त

आ रह ह - यतरवत जनयमवत - रामायण और गीता लब पतीस विो तक अखड - कवल रामायण और गीता उसक

पहल यवाकाल म जो-कछ जजतना-कछ पढ़ा हो उनदहोन उस कभी भयावह कभी सममानजनक और कभी झठ

लगता यह दख-सोचकर जक कोई वयजि कवल दो पसतको म जजदगी क पतीस विट कार सकता ह और कस कार

लता ह

तभी उसका बचचा कनमनाकर रोन लगा उसन तपाक स जखड़की छोड़ी और अपन जबसतर पर झठ-मठ सो गया ऐसा

न हो जक दवा बचच क रोन स उठ पड़ और उस सजदगधावसथा म दख बहत-स बकार परशनो दवारा हलकान करना शर

कर द दवा बचच क मह म सतन द पहल ही-सी बखबर हो गई वह खद जबसतर पर सोता मालम पड़कर भी जागता

रहा सतन चसन की चप-चप आवाज आती रही और थोड़ी दर बाद बद हो गई

उसन तय जकया जक वह दवा क बार म ही कछ सोच अथवा उसक शरीर को छता रह उसन दवा क कह पर हाथ

रख जदया लजकन उस तजनक भी उततजना अपन अदर महसस नही हई उसन थोड़ी दर उततजना की परतीकषा की अपनी

इस हरकत स ऊब होन लगी और मन भी लाजछत करन लगा बाहर जपता सो या जाग रह ह जसा भी हो वह बड़

जबरदसत ह इस समय बाहर रहकर बाहरी होत जा रह ह घर क अदरनी जहससो म लोग आराम स या कम आराम स

जकसी तरह सो तो गए होग वह जविादगरसत हआ और अनभव करन लगा हमार समाज म बड़-बढ़ लोग जस बह -

बजरयो क जनजी जीवन को सवचछद रहन दन क जलए अपना अजधकाश समय बाहर वयतीत जकया करत ह कया जपता

न भी वसा ही करना तो नही शर कर जदया ह उस जपता क बढ़पन का खयाल आन पर जसहरन हई जिर उसन दढ़ता

स सोचा जपता अभी बढ़ नही हए ह उनदह परजतकषण हमार साथ-साथ जीजवत रहना चाजहए भरसक परानी जीवन-

वयवसथा जकतनी कठोर थी उसक मजसतषक म एक जभचाव आ गया जविाद सवोपरर था

उस आखो म हका जल लगन लगा अगर कोई शीत-यदध न होता जपता और पतरो क बीच तो वह उनदह जबरन खीच

क नीच लाकर सला दता लजकन उस लगा जक उसका यवापन एक परजतषठा की जजद कही चराए बठा ह वह इस

परजतषठा क आग कभी बहत मजबर कभी कमजोर हो जाता ह और उस भगत भी रहा ह दरअसल उसका जी अकसर

जचला उठन को हआ ह जपता तम हमारा जनिध करत हो तम ढोगी हो अहकारी-बजर अहकारी लजकन वह कभी

जचलाया नही उसका जचला सकना ममजकन भी नही था वह अनभव करता था उसक सामन जजदगी पड़ी ह और

जपता पर इस तरह जचलान म उसका नकसान हो सकता ह उसको लगा जपता लगातार जवजयी ह कठोर ह तो कया

उनदहोन पतरो क सामन अपन को कभी पसारा नही

लगता ह दीवारो पर भी पसीना चहचहा आया ह खद को छरा भोक दन या दीवार पर जसर परकन या सोती बीवी क

साथ पाजशवक हो जान का ढोग सोचन क बाद भी गमी की बचनी नही करी उसन ईशवर को बदबदाना चाहा लजकन

वसा नही जकया कवल हक-हक हाथ क पजो स जसर क बालो को दबोचकर वह रह गया मौसम की गमी स कही

अजधक परबल जपता ह

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उसक सामन एक घरना मजबती स रग गई उसन घरना को मन म दोहराया वाय-सना म नौकरी करनवाला उसका

कपतान भाई बहन क यजनवजसटरी क खच क जलए दस विट तक पचास रपए महीना भजता रहा था एक बार अकसमात

कपतान भाई होली-अवकाश मनान घर आ गया जपता न उसक हाथ म उसक नाम की बारह सौ रपयोवाली एक

पासबक थमा दी सबको यह बड़ा आकजसमक लगा कपतान भाई को हरत हई और हकी खशी भी जक एकाएक

कािी रपए जमल गए लजकन इस बात स उस दख और पराजय का भान भी हआ उसन अपन को छोरा महसस

जकया दो विट तक बहन क जलए उसन जो थोड़ा-बहत जकया वह सब एक पल म घरकर नगणय हो गया जिर भी वह

अनभव कर रहा था कपतान भाई जयादा सोचत नही जखलाड़ी तबीयत क ह यान की तरह चरकी म धरती छोड़ दत

ह जकतन मसत ह कपतान भाई

उस लगा जपता एक बलद भीमकाय दरवाज की तरह खड़ ह जजसस रकरा-रकराकर हम सब जनहायत जपददी और

दयनीय होत जा रह ह

इस घरना को याद करक और जपता क परजत जखनदन हो जान पर भी उसन चाहा जक वह जखड़की स जपता को अदर

आकर सो रहन क जलए आगरहपवटक कह लजकन वह ऐसा नही कर सका वह असतोि और सहानभजत दोनो क बीच

असतजलत भरकता रहा

न लोकोशड स उठती इजनो की शजरग धवजन न काकरीर की गरडटक पर स होकर आती धमनगज की ओर इकक-दकक

लौरत इकको क घोड़ो की राप न झगड़त कततो की भोक-भाक बस कही उल एकगजत एकवजन और वीभतसता म

बोल रहा ह राजतर म शहर का आभास कछ पलो क जलए मर-सा गया ह उसको उममीद हई जक जकसी भी समय दर या

पास स कोई आवाज अकसमात उठ आएगी घड़ी रनरना जाएगी या जकसी दौड़ती हई टक का तज लबा हानट बज

उठगा और शहर का मरा हआ आभास पनः जीजवत हो जाएगा परा शहर कभी नही सोता या मरता बहत-स सोत

हए जान पड़नवाल भी सजकषपत धवजनयो क साथ या लगभग धवजनहीनता क बीच जग होत ह रात कािी बीत चकी ह

और इस समय यह सब (सोचना) जसवाय सोन क जकतना जनरथटक ह

शायद जपता औघ गए ह करवर बदलन स उतपनदन होनवाली खार की चरमराहर आम ररोलत समय सखी-अधसखी

पजततयो क कचलन की आवाज लाठी की परक मकान क िर क वि की खास-खसार कतत-जबजलयो को

हड़काना-कछ सन नही पड़ रहा ह इस जवचार स जक जपता सो गए होग उस परम शाजत जमली और लगा जक अब वह

भी सो सकगा

शीघर नीद क जलए उसन रकरकी बाधकर पख की तरि दखना शर जकया गमट हवा क बावजद जदन-भर की वयथट

थकान और सोच-जवचार स पसत हो जान की वजह स वह नीद म जचतत हो गया थोड़ समय उपरात वह एकाएक

उचककर उठ बठा उसन चारो तरि कछ दख पान क जलए कछ कषणो तक गड़ हए अधर का घरा हआ यह जक उस

शरीर म एकाएक बहत गमी-सी लगी थी और अजीब-सी सरसराहर हई शायद पसीन स भीगी राग पतनी क बदन स

छ गई थी मह म बरा-सा सवाद भर आया था जकसी बरी बीमारी क कारण अकसर ऐसा हो जाया करता ह उठकर

उसन दो-तीन कल जकए और ढर सारा ठडा पानी जपया इतना सब कछ वह अधनीद म ही करता रहा

आगन स पानी पीकर लौरत समय उसन इतमीनान क जलए जखड़की क बाहर दखा अब तक नीद जो थोड़ी-बहत थी

कािर हो गई जपता सो नही गए ह अथवा कछ सोकर पनः जग हए ह पता नही अभी ही उनदहोन ह राम त ही

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सहारा ह कहकर जमहाई ली ह ऐसा उनदहोन कोई दबकर नही जकया रात क जलहाज स कािी शोर उठात कहा ह

शायद उनदह इतमीनान ह जक घर म सभी लोग जनजशचत रप स सो रह ह

जपता न अपना जबसतरा गोल मोड़कर खार क एक जसर पर कर जलया ह और वही सराही स पयाल म पानी ल-लकर

अपनी खजरया की बाध तर कर रह ह सराही स खार तक और खार स सराही तक बार-बार आत-जात ह बहत बार

ऐसा करन पर खार का बाध तर हआ ह इसक बाद उनदहोन पानी जपया और पनः एक बड़ी आवाजदार जमहाई क साथ

जलपर हए जबसतर का जसरहाना बना जनखरी खजरया पर लर गए तड़का होन म पता नही जकतनी दर थी थोड़ी दर बाद

पखा जमीन पर जगराकर उनका दाया हाथ खजरया की पारी स झलन लगा

चारो तरि धजमल चादनी िलन लगी ह सबह जो दर ह क भरम म पजशचम स पवट की ओर कौव काव-काव करत उड़

वह जखड़की स हरकर जबसतर पर आया अदर हवा वसी ही ल की तरह गमट ह दसर कमर सतबध ह पता नही बाहर

भी उमस और बचनी होगी वह जागत हए सोचन लगा अब जपता जनजशचत रप स सो गए ह शायद

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पररनदद(३० माचट २०१५)

जनमटल वमाट

अधर गजलयार म चलत हए लजतका जठठक गयी दीवार का सहारा लकर उसन लमप की बतती बढ़ा दी सीजढ़यो पर

उसकी छाया एक बडौल करी-िरी आकजत खीचन लगी सात नमबर कमर म लड़जकयो की बातचीत और हसी-

ठहाको का सवर अभी तक आ रहा था लजतका न दरवाजा खरखराया शोर अचानक बद हो गया ldquoकौन ह

लजतका चप खड़ी रही कमर म कछ दर तक घसर-पसर होती रही जिर दरवाज की जचरखनी क खलन का सवर

आया लजतका कमर की दहरी स कछ आग बढ़ी लमप की झपकती लौ म लड़जकयो क चहर जसनमा क परद पर ठहर

हए कलोजअप की भाजत उभरन लग ldquoकमर म अधरा कयो कर रखा ह लजतका क सवर म हकी-सी जझड़की का

आभास था ldquoलमप म तल ही खतम हो गया मडम यह सधा का कमरा था इसजलए उस ही उततर दना पड़ा होसरल

म शायद वह सबस अजधक लोकजपरय थी कयोजक सदा छटटी क समय या रात को जडनर क बाद आस-पास क कमरो म

रहनवाली लड़जकयो का जमघर उसी क कमर म लग जाता था दर तक गप-शप हसी-मजाक चलता रहता ldquoतल क

जलए करीमददीन स कयो नही कहा ldquoजकतनी बार कहा मडम लजकन उस याद रह तब तो

कमर म हसी की िहार एक कोन स दसर कोन तक िल गयी लजतका क कमर म आन स अनशासन की जो घरन

जघर आयी थी वह अचानक बह गयी करीमददीन होसरल का नौकर था उसक आलस और काम म रालमरोल करन

क जकसस होसरल की लड़जकयो म पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल आत थ लजतका को हठात कछ समरण हो आया अधर म

लमप घमात हए चारो ओर जनगाह दौड़ाई कमर म चारो ओर घरा बनाकर व बठी थी- पास-पास एक-दसर स सरकर

सबक चहर पररजचत थ जकनदत लमप क पील मजदधम परकाश म मानो कछ बदल गया था या जस वह उनदह पहली बार

दख रही थी ldquoजली अब तक तम इस बलाक म कया कर रही हो

जली जखड़की क पास पलग क जसरहान बठी थी उसन चपचाप आख नीची कर ली लमप का परकाश चारो ओर स

जसमरकर अब कवल उसक चहर पर जगर रहा था ldquoनाइर रजजसरर पर दसतखत कर जदय ldquoहा मडम ldquoजिर

लजतका का सवर कड़ा हो आया जली सकचाकर जखड़की स बाहर दखन लगी जब स लजतका इस सकल म आयी

ह उसन अनभव जकया ह जक होसरल क इस जनयम का पालन डार-िरकार क बावजद नही होता ldquoमडम कल स

छरटटया शर हो जायगी इसजलए आज रात हम सबन जमलकर और सधा परी बात न कहकर हमनदती की ओर

दखत हए मसकरान लगी ldquoहमनदती क गान का परोगराम ह आप भी कछ दर बजठए न

लजतका को उलझन मालम हई इस समय यहा आकर उसन इनक मज को जकरजकरा कर जदया इस छोर-स-जहल-

सरशन पर रहत उस खासा असाट हो गया लजकन कब समय पतझड़ और गजमटयो का घरा पार कर सदी की छरटटयो की

गोद म जसमर जाता ह उस कभी याद नही रहता चोरो की तरह चपचाप वह दहरी स बाहर को गयी उसक चहर का

तनाव ढ़ीला पड़ गया वह मसकरान लगी ldquoमर सग सनो-िॉल दखन कोई नही ठहरगा ldquoमडम छरटटयो म कया आप

घर नही जा रही ह सब लड़जकयो की आख उस पर जम गयी ldquoअभी कछ पकका नही ह-आई लव द सनो-िॉल

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लजतका को लगा जक यही बात उसन जपछल साल भी कही थी और शायद जपछल स जपछल साल भी उस लगा मानो

लड़जकया उस सनददह की दजि स दख रही ह मानो उनदहोन उसकी बात पर जवशवास नही जकया उसका जसर चकरान

लगा मानो बादलो का सयाह झरमर जकसी अनजान कोन स उठकर उस अपन म डबा लगा वह थोड़ा-सा हसी जिर

धीर-स उसन सर को झरक जदया ldquoजली तमस कछ काम ह अपन बलॉक म जान स पहल मझ जमल लना- वल गड

नाइर लजतका न अपन पीछ दरवाज़ा बद कर जदया

ldquoगड नाइर मडम गड नाइर गड नाइर गजलयार की सीजढ़या न उतरकर लजतका रजलग क सहार खड़ी हो गयी लप

की बतती को नीच घमाकर कोन म रख जदया बाहर धनदध की नीली तह बहत घनी हो चली थी लॉन पर लग हए चीड़

क पततो की सरसराहर हवा क झोको क सग कभी तज कभी धीमी होकर भीतर बह आती थी हवा म सदी का

हका-सा आभास पाकर लजतका क जदमाग म कल स शर होनवाली छरटटयो का धयान भरक आया उसन आख मद

ली उस लगा जक जस उसकी राग बास की लकजड़यो की तरह उसक शरीर स बधी ह जजसकी गाठ धीर-धीर खलती

जा रही ह जसर की चकराहर अभी जमरी नही थी मगर अब जस वह भीतर न होकर बाहर िली हई धनदध का जहससा

बन गयी थी

सीजढ़यो पर बातचीत का सवर सनकर लजतका जस सोत स जगी शॉल को कनदधो पर समरा और लमप उठा जलया डॉ

मकजी जम हयबरट क सग एक अगरजी धन गनगनात हए ऊपर आ रह थ सीजढ़यो पर अधरा था और हयबरट को बार-

बार अपनी छड़ी स रासता ररोलना पड़ता था लजतका न दो-चार सीजढ़या उतरकर लमप को नीच झका जदया ldquoगड

ईवजनग डाकरर गड ईवजनग जम हयबरट ldquoथक य जमस लजतका - हयबरट क सवर म कतजञता का भाव था सीजढ़या

चढ़न स उनकी सास तज हो रही थी और वह दीवार स लग हए हाि रह थ लमप की रोशनी म उनक चहर का

पीलापन कछ ताब क रग जसा हो गया था

ldquoयहा अकली कया कर रही हो जमस लजतका - डाकरर न होठो क भीतर स सीरी बजायी ldquoचजकग करक लौर रही

थी आज इस वि ऊपर कस आना हआ जमसरर हयबरट हयबरट न मसकराकर अपनी छड़ी डाकरर क कनदधो स छला

दी - ldquoइनस पछो यही मझ जबदटसती घसीर लाय ह

ldquoजमस लजतका हम आपको जनमनदतरण दन आ रह थ आज रात मर कमर म एक छोरा-सा-कनदसरट होगा जजसम जम

हयबरट शोपा और चाइकोवसकी क कमपोजीशन बजायग और जिर करीम कॉिी पी जायगी और उसक बाद अगर समय

रहा तो जपछल साल हमन जो गनाह जकय ह उनदह हम सब जमलकर कनदर स करग डाकरर मकजी क चहर पर भारी

मसकान खल गयी ldquoडाकरर मझ माि कर मरी तबीयत कछ ठीक नही ह

ldquoचजलए यह ठीक रहा जिर तो आप वस भी मर पास आती डाकरर न धीर-स लजतका क कधो को पकड़कर अपन

कमर की तरि मोड़ जदया डाकरर मकजी का कमरा बलॉक क दसर जसर पर छत स जड़ा हआ था वह आध बमी थ

जजसक जचहन उनकी थोड़ी दबी हई नाक और छोरी-छोरी चचल आखो स सपि थ बमाट पर जापाजनयो का आकरमण

होन क बाद वह इस छोर स पहाड़ी शहर म आ बस थ पराइवर परजकरस क अलावा वह कानदवनदर सकल म हाईजीन-

जिजजयालोजी भी पढ़ाया करत थ और इसजलए उनको सकल क होसरल म ही एक कमरा रहन क जलए द जदया गया

था कछ लोगो का कहना था जक बमाट स आत हए रासत म उनकी पतनी की मतय हो गयी लजकन इस समबनदध म

जनजशचत रप स कछ नही कहा जा सकता कयोजक डाकरर सवय कभी अपनी पतनी की चचाट नही करत

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बातो क दौरान डाकरर अकसर कहा करत ह - ldquoमरन स पहल म एक दिा बमाट जरर जाऊ गा - और तब एक कषण क

जलए उनकी आखो म एक नमी-सी छा जाती लजतका चाहन पर भी उनस कछ पछ नही पाती उस लगता जक डाकरर

नही चाहत जक कोई अतीत क समबनदध म उनस कछ भी पछ या सहानभजत जदखलाय दसर ही कषण अपनी गमभीरता

को दर ठलत हए वह हस पड़त - एक सखी बझी हई हसी

होम-जसकनस ही एक ऐसी बीमारी ह जजसका इलाज जकसी डाकरर क पास नही ह छत पर मज-कजसटया डाल दी गई

और भीतर कमर म परकोलरर म कॉिी का पानी चढ़ा जदया गया ldquoसना ह अगल दो-तीन विो म यहा पर जबजली का

इनदतजाम हो जायगा -डाकरर न जसपरर लमप जलात हए कहा ldquoयह बात तो जपछल दस सालो स सनन म आ रही ह

अगरजो न भी कोई लमबी-चौड़ी सकीम बनायी थी पता नही उसका कया हआ - हयबरट न कहा वह आराम कसी पर

लरा हआ बाहर लॉन की ओर दख रहा था

लजतका कमर स दो मोमबजततया ल आयी मज क दोनो जसरो पर जरकाकर उनदह जला जदया गया छत का अधरा

मोमबतती की िीकी रोशनी क इदट-जगदट जसमरन लगा एक घनी नीरवता चारो ओर जघरन लगी हवा म चीड़ क वकषो

की साय-साय दर-दर तक िली पहाजड़यो और घाजरयो म सीजरयो की गज-सी छोड़ती जा रही थी ldquoइस बार शायद

बिट जदी जगरगी अभी स हवा म एक सदट खशकी-सी महसस होन लगी ह - डाकरर का जसगार अधर म लाल

जबनददी-सा चमक रहा था ldquoपता नही जमस वड को सपशल सजवटस का गोरखधनदधा कयो पसनदद आता ह छरटटयो म घर

जान स पहल कया यह जररी ह जक लड़जकया िादर एमणड का समटन सन - हयबरट न कहा

डॉकरर को िादर एमणड एक आख नही सहात थ लजतका कसी पर आग झककर पयालो म कॉिी उडलन लगी हर

साल सकल बनदद होन क जदन यही दो परोगराम होत ह - चपल म सपशल सजवटस और उसक बाद जदन म जपकजनक

लजतका को पहला साल याद आया जब डाकरर क सग जपकजनक क बाद वह कलब गयी थी डाकरर बार म बठ थ

बार रम कमाऊ रजीमणर क अिसरो स भरा हआ था कछ दर तक जबजलयडट का खल दखन क बाद जब वह वाजपस

बार की ओर आ रह थ तब उसन दायी ओर कलब की लाइबररी म दखा- मगर उसी समय डाकरर मकजी पीछ स आ

गय थ जमस लजतका यह मजर जगरीश नगी ह जबजलयडट रम स आत हए हसी-ठहाको क बीच वह नाम दब-सा गया

था वह जकसी जकताब क बीच म उगली रखकर लायबररी की जखड़की स बाहर दख रहा था ldquoहलो डाकरर - वह

पीछ मड़ा तब उस कषण

उस कषण न जान कयो लजतका का हाथ काप गया और कॉिी की कछ गमट बद उसकी साड़ी पर छलक आयी अधर म

जकसी न नही दखा जक लजतका क चहर पर एक उनीदा रीतापन जघर आया ह हवा क झोक स मोमबजततयो की लौ

िड़कन लगी छत स भी ऊ ची काठगोदाम जानवाली सड़क पर यपी रोडवज की आजखरी बस डाक लकर जा रही

थी बस की हड लाइरस म आस-पास िली हई झाजड़यो की छायाए घर की दीवार पर सरकती हई गायब होन लगी

ldquoजमस लजतका आप इस साल भी छरटटयो म यही रहगीldquoडाकरर न पछा डाकरर का सवाल हवा म रगा रहा उसी

कषण जपयानो पर शोपा का नोकरनट हयबरट की उगजलयो क नीच स जिसलता हआ धीर-धीर छत क अधर म घलन

लगा-मानो जल पर कोमल सवजपनल उजमटया भवरो का जझलजमलाता जाल बनती हई दर-दर जकनारो तक िलती जा

रही हो लजतका को लगा जक जस कही बहत दर बिट की चोजरयो स पररनददो क झणड नीच अनजान दशो की ओर उड़

जा रह ह इन जदनो अकसर उसन अपन कमर की जखड़की स उनदह दखा ह-धाग म बध चमकील लटटओ की तरह व

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एक लमबी रढ़ी-मढ़ी कतार म उड़ जात ह पहाड़ो की सनसान नीरवता स पर उन जवजचतर शहरो की ओर जहा शायद

वह कभी नही जायगी

लजतका आमट चयर पर ऊ घन लगी डाकरर मकजी का जसगार अधर म चपचाप जल रहा था डाकरर को आशचयट हआ

जक लजतका न जान कया सोच रही ह और लजतका सोच रही थी-कया वह बढ़ी होती जा रही ह उसक सामन सकल की

जपरजसपल जमस वड का चहरा घम गया-पोपला मह आखो क नीच झलती हई मास की थजलया ज़रा-ज़रा सी बात पर

जचढ़ जाना ककट श आवाज म चीखना-सब उस lsquoओडमडrsquo कहकर पकारत ह कछ विो बाद वह भी ह -ब-ह वसी ही

बन जायगीलजतका क समच शरीर म झरझरी-सी दौड़ गयी मानो अनजान म उसन जकसी गलीज वसत को छ जलया

हो उस याद आया कछ महीन पहल अचानक उस हयबरट का परमपतर जमला था - भावक याचना स भरा हआ पतर

जजसम उसन न जान कया कछ जलखा था जो कभी उसकी समझ म नही आया उस हयबरट की इस बचकाना हरकत पर

हसी आयी थी जकनदत भीतर-ही-भीतर परसनदनता भी हई थी उसकी उमर अभी बीती नही ह अब भी वह दसरो को

अपनी ओर आकजिटत कर सकती ह हयबरट का पतर पढ़कर उस करोध नही आया आयी थी कवल ममता वह चाहती

तो उसकी गलतिहमी को दर करन म दर न लगती जकनदत कोई शजि उस रोक रहती ह उसक कारण अपन पर

जवशवास रहता ह अपन सख का भरम मानो हयबरट की गलतिहमी स जड़ा ह

हयबरट ही कयो वह कया जकसी को चाह सकगी उस अनभजत क सग जो अब नही रही जो छाया-सी उस पर मडराती

रहती ह न सवय जमरती ह न उस मजि द पाती ह उस लगा जस बादलो का झरमर जिर उसक मजसतषक पर धीर-धीर

छान लगा ह उसकी राग जिर जनजीव जशजथल-सी हो गयी ह वह झरक स उठ खड़ी हई- ldquoडाकरर माि करना मझ

बहत थकान-सी लग रही हजबना वाकय परा जकय ही वह चली गयी कछ दर तक ररस पर जनसतबधता छायी रही

मोमबजततया बझन लगी थी डाकरर मकजी न जसगार का नया कश जलया - ldquoसब लड़जकया एक-जसी होती ह-बवकि

और सरीमरल हयबरट की उगजलयो का दबाव जपयानो पर ढीला पड़ता गया अजनदतम सरो की जझझकी-सी गज कछ

कषणो तक हवा म जतरती रही

ldquoडाकरर आपको मालम ह जमस लजतका का वयवहार जपछल कछ अस स अजीब-सा लगता ह हयबरट क सवर म

लापरवाही का भाव था वह नही चाहता था जक डाकरर को लजतका क परजत उसकी भावनाओ का आभास-मातर भी

जमल सक जजस कोमल अनभजत को वह इतन समय स सजोता आया ह डाकरर उस हसी क एक ठहाक म

उपहासासपद बना दगा ldquoकया तम जनयजत म जवशवास करत हो हयबरट डाकरर न कहा हयबरट दम रोक परतीकषा करता

रहा वह जानता था जक कोई भी बात कहन स पहल डाकरर को जिलासोिाइज करन की आदत थी डाकरर ररस क

जगल स सरकर खड़ा हो गया िीकी-सी चादनी म चीड़ क पड़ो की छायाए लॉन पर जगर रही थी कभी-कभी कोई

जगन अधर म हरा परकाश जछड़कता हवा म गायब हो जाता था

ldquoम कभी-कभी सोचता ह इनदसान जजनददा जकसजलए रहता ह-कया उस कोई और बहतर काम करन को नही जमला

हजारो मील अपन म क स दर म यहा पड़ा ह - यहा कौन मझ जानता ह यही शायद मर भी जाऊ गा हयबरट कया तमन

कभी महसस जकया ह जक एक अजनबी की हजसयत स परायी जमीन पर मर जाना काफ़ी खौिनाक बात ह

हयबरट जवजसमत-सा डाकरर को दखन लगा उसन पहली बार डॉकरर मकजी क इस पहल को दखा था अपन समबनदध

म वह अकसर चप रहत थ ldquoकोई पीछ नही ह यह बात मझम एक अजीब जकसम की बजिकरी पदा कर दती ह लजकन

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कछ लोगो की मौत अनदत तक पहली बनी रहती ह शायद व जज़नददगी स बहत उममीद लगात थ उस टजजक भी नही

कहा जा सकता कयोजक आजखरी दम तक उनदह मरन का एहसास नही होता ldquoडाकरर आप जकसका जजकर कर रह

ह हयबरट न परशान होकर पछा डाकरर कछ दर तक चपचाप जसगार पीता रहा जिर मड़कर वह मोमबजततयो की

बझती हई लौ को दखन लगा

ldquoतमह मालम ह जकसी समय लजतका जबला नागा कलब जाया करती थी जगरीश नगी स उसका पररचय वही हआ था

कशमीर जान स एक रात पहल उसन मझ सबकछ बता जदया था म अब तक लजतका स उस मलाकात क बार म कछ

नही कह सका ह जकनदत उस रात कौन जानता था जक वह वापस नही लौरगा और अबअब कया िकट पड़ता ह लर

द डड डाई डाकरर की सखी सदट हसी म खोखली-सी शनदयता भरी थी

ldquoकौन जगरीश नगी ldquoकमाऊ रजीमर म कपरन था ldquoडाकरर कया लजतका हयबरट स आग कछ नही कहा गया

उस याद आया वह पतर जो उसन लजतका को भजा था जकतना अथटहीन और उपहासासपद जस उसका एक-एक

शबद उसक जदल को कचोर रहा हो उसन धीर-स जपयानो पर जसर जरका जलया लजतका न उस कयो नही बताया कया

वह इसक योगय भी नही था ldquoलजतका वह तो बचची ह पागल मरनवाल क सग खद थोड़ ही मरा जाता हldquo

कछ दर चप रहकर डाकरर न अपन परशन को जिर दहराया ldquoलजकन हयबरट कया तम जनयजत पर जवशवास करत हो हवा

क हक झोक स मोमबजततया एक बार परजजवजलत होकर बझ गयी ररस पर हयबरट और डाकरर अधर म एक-दसर का

चहरा नही दख पा रह थ जिर भी व एक-दसर की ओर दख रह थ कानदवर सकल स कछ दर मदानो म बहत पहाड़ी

नाल का सवर आ रहा था अब बहत दर बाद कमाऊ रजीमर सणरर का जबगल सनायी जदया तो हयबरट हड़बड़ाकर

खड़ा हो गया ldquoअचछा चलता ह डाकरर गड नाइर

ldquoगड नाइर हयबरटमझ माि करना म जसगार खतम करक उठगा सबह बदली छायी थी लजतका क जखड़की

खोलत ही धनदध का गबबारा-सा भीतर घस आया जस रात-भर दीवार क सहार सरदी म जठठरता हआ वह भीतर आन

की परतीकषा कर रहा हो सकल स ऊपर चपल जानवाली सड़क बादलो म जछप गयी थी कवल चपल का lsquoकरासrsquo धनदध

क परद पर एक-दसर को कारती हई पजसल की रखाओ-सा जदखायी द जाता था

लजतका न जखड़की स आख हराई तो दखा जक करीमददीन चाय की ट जलय खड़ा ह करीमददीन जमजलटी म अदटली रह

चका था इसजलए ट मज पर रखकर lsquoअरनदशनrsquo की मरा म खड़ा हो गया लजतका झरक स उठ बठी सबह स आलस

करक जकतनी बार जागकर वह सो चकी ह अपनी जखजसयाहर जमरान क जलए लजतका न कहा - ldquoबड़ी सदी ह आज

जबसतर छोड़न को जी नही चाहता

ldquoअजी मम साहब अभी कया सरदी आयी ह- बड़ जदनो म दखना कस दात करकरात ह - और करीमददीन अपन

हाथो को बगलो म डाल हए इस तरह जसकड़ गया जस उन जदनो की कपना मातर स उस जाड़ा लगना शर हो गया

हो गज जसर पर दोनो तरि क उसक बाल जखजाब लगान स कतथई रग क भर हो गय थ बात चाह जकसी जविय पर

हो रही हो वह हमशा खीचतान कर उस ऐस कषतर म घसीर लाता था जहा वह बजझझक अपन जवचारो को परकर कर

सक

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ldquoएक दिा तो यहा लगातार इतनी बिट जगरी थी जक भवाली स लकर डाक बगल तक सारी सड़क जाम हो गई इतनी

बिट थी मम साहब जक पड़ो की रहजनया तक जसकड़कर तनो स जलपर गयी थी - जबलकल ऐस और करीमददीन नीच

झककर मगाट-सा बन गया ldquoकब की बात ह लजतका न पछा

ldquoअब यह तो जोड़-जहसाब करक ही पता चलगा मम साहब लजकन इतना याद ह जक उस वि अगरज बहादर यही थ

कणरोनमणर की इमारत पर कौमी झणडा नही लगा था बड़ जबर थ य अगरज दो घणरो म ही सारी सड़क साि करवा

दी उन जदनो एक सीरी बजात ही पचास घोड़वाल जमा हो जात थ अब तो सार शड खाली पड़ ह व लोग अपनी

जखदमत भी करवाना जानत थ अब तो सब उजाड़ हो गया ह करीमददीन उदास भाव स बाहर दखन लगा आज यह

पहली बार नही ह जब लजतका करीमददीन स उन जदनो की बात सन रही ह जब अगरज बहादर न इस सथान को सवगट

बना रखा था ldquoआप छरटटयो म इस साल भी यही रहगी मम साहब ldquoजदखता तो कछ ऐसा ही ह करीमददीन तमह जिर

तग होना पड़गा ldquoकया कहती ह मम साहब आपक रहन स हमारा भी मन लग जाता ह वरना छरटटयो म तो यहा

कतत लोरत ह

ldquoतम जरा जमसतरी स कह दना जक इस कमर की छत की मरममत कर जाय जपछल साल बिट का पानी दरारो स रपकता

रहता थाldquo लजतका को याद आया जक जपछली सजदटयो म जब कभी बिट जगरती थी तो उस पानी स बचन क जलए

रात-भर कमर क कोन म जसमरकर सोना पड़ता था

करीमददीन चाय की ट उठाता हआ बोला - ldquoहयबरट साहब तो शायद कल ही चल जाय कल रात उनकी तबीयत जिर

खराब हो गयी आधी रात क वि मझ जगान आय थ कहत थ छाती म तकलीि ह उनदह यह मौसम रास नही

आता कह रह थ लड़जकयो की बस म वह भी कल ही चल जायग करीमददीन दरवाजा बनदद करक चला गया

लजतका की इचछा हई जक वह हयबरट क कमर म जाकर उनकी तबीयत की पछताछ कर आय जकनदत जिर न जान कयो

सलीपर परो म रग रह और वह जखड़की क बाहर बादलो को उड़ता हआ दखती रही हयबरट का चहरा जब उस दखकर

सहमा-सा दयनीय हो जाता ह तब लगता ह जक वह अपनी मक-जनरीह याचना म उस कोस रहा ह - न वह उसकी

गलतिहमी को दर करन का परयतन कर पाती ह न उस अपनी जववशता की सिाई दन का साहस होता ह उस लगता

ह जक इस जाल स बाहर जनकलन क जलए वह धाग क जजस जसर को पकड़ती ह वह खद एक गाठ बनकर रह जाता ह

बाहर बदाबादी होन लगी थी कमर की जरन की छत खर-खर बोलन लगी लजतका पलग स उठ खड़ी हई जबसतर को

तहाकर जबछाया जिर परो म सलीपरो को घसीरत हए वह बड़ आईन तक आयी और उसक सामन सरल पर बठकर

बालो को खोलन लगी जकत कछ दर तक कघी बालो म ही उलझी रही और वह गमसम हो शीश म अपना चहरा

ताकती रही करीमददीन को यह कहना याद ही नही रहा जक धीर-धीर आग जलान की लकजड़या जमा कर ल इन जदनो

ससत दामो पर सखी लकजड़या जमल जाती ह जपछल साल तो कमरा धए स भर जाता था जजसक कारण क पक पात

जाड़ म भी उस जखड़की खोलकर ही सोना पड़ता था

आईन म लजतका न अपना चहरा दखा - वह मसकरा रही थी जपछल साल अपन कमर की सीलन और ठणड स बचन

क जलए कभी-कभी वह जमस वड क खाली कमर म चोरी-चपक सोन चली जाया करती थी जमस वड का कमरा जबना

आग क भी गमट रहता था उनक गदील सोि पर लरत ही आख लग जाती थी कमरा छरटटयो म खाली पड़ा रहता ह

जकनदत जमस वड स इतना नही होता जक दो महीनो क जलए उसक हवाल कर जाय हर साल कमर म ताला ठोक जाती

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ह वह तो जपछल साल गसलखान म भीतर की साकल दना भल गयी थी जजस लजतका चोर दरवाज क रप म

इसतमाल करती रही थी

पहल साल अकल म उस बड़ा डर-सा लगता था छरटटयो म सार सकल और होसरल क कमर साय-साय करन लगत

ह डर क मार उस जब कभी नीद नही आती थी तब वह करीमददीन को रात म दर तक बातो म उलझाय रखती बातो

म जब खोयी-सी वह सो जाती तब करीमददीन चपचाप लमप बझाकर चला जाता कभी-कभी बीमारी का बहाना

करक वह डाकरर को बलवा भजती थी और बाद म बहत जजद करक दसर कमर म उनका जबसतर लगवा दती

लजतका क कध स बालो का गचछा जनकाला और उस बाहर ि कन क जलए वह जखड़की क पास आ खड़ी हई बाहर

छत की ढलान स बाररश क जल की मोरी-सी धार बराबर लॉन पर जगर रही थी मघाचछनदन आकाश म सरकत हए

बादलो क पीछ पहाजड़यो क झणड कभी उभर आत थ कभी जछप जात थ मानो चलती हई टन स कोई उनदह दख रहा

हो लजतका न जखड़की स जसर बाहर जनकाल जलया - हवा क झोक स उसकी आख जझप गयी उस जजतन काम याद

आत ह उतना ही आलस घना होता जाता ह बस की सीर ररजवट करवान क जलए चपरासी को रपय दन ह जो सामान

होसरल की लड़जकया पीछ छोड़ जा रही ह उनदह गोदाम म रखवाना होगा कभी-कभी तो छोरी कलास की लड़जकयो

क साथ पजकग करवान क काम म भी उस हाथ बराना पड़ता था

वह इन कामो स ऊबती नही धीर-धीर सब जनपरत जात ह कोई गलती इधर-उधर रह जाती ह सो बाद म सधर जाती

ह हर काम म जकचजकच रहती ह परशानी और जदककत होती ह जकनदत दर-सबर इसस छरकारा जमल ही जाता ह

जकनदत जब लड़जकयो की आजखरी बस चली जाती ह तब मन उचार-सा हो जाता ह खाली कॉरीडोर म घमती हई व

कभी इस कमर म जाती ह और कभी उसम वह नही जान पाती जक अपन स कया कर जदल कही भी नही जरक पाता

हमशा भरका-भरका-सा रहता ह

इस सबक बावजद जब कोई सहज भाव म पछ बठता ह ldquoजमस लजतका छरटटयो म आप घर नही जा रही तब वह

कया कह जडग-डाग-जडग सपशल सजवटस क जलए सकल चपल क घर बजन लग थ लजतका न अपना जसर जखड़की

क भीतर कर जलया उसन झरपर साड़ी उतारी और परीकोर म ही कनदध पर तौजलया डाल गसलखान म घस गयी

लफर-राइर लफरलफर

कणरोनमणर जानवाली पककी सड़क पर चार-चार की पजि म कमाऊ रजीमर क जसपाजहयो की एक रकड़ी माचट कर

रही थी िौजी बरो की भारी खरदरी आवाज सकल चपल की दीवारो स रकराकर भीतर lsquoपरयर हालrsquo म गज रही थी

ldquoबलसड आर द मीक िादर एमणड एक-एक शबद चबात हए खखारत सवर म lsquoसमटन आि द माउणरrsquo पढ़ रह थ

ईसा मसीह की मजतट क नीच lsquoकणडलजबरयमrsquo क दोनो ओर मोमबजततया जल रही थी जजनका परकाश आग बचो पर

बठी हई लड़जकयो पर पड़ रहा था जपछली लाइनो की बच अधर म डबी हई थी जहा लड़जकया पराथटना की मरा म

बठी हई जसर झकाय एक-दसर स घसर-पसर कर रही थी जमस वड सकल सीजन क सिलतापवटक समापत हो जान पर

जवदयाजथटयो और सराि सदसयो को बधाई का भािण द चकी थी- और अब िादर क पीछ बठी हई अपन म ही कछ

बड़बड़ा रही थी मानो धीर-धीर िादर को lsquoपरौमरrsquo कर रही हो

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lsquoआमीनrsquo िादर एमणड न बाइबल मज पर रख दी और lsquoपरयर बकrsquo उठा ली हॉल की खामोशी कषण भर क जलए रर

गयी लड़जकयो न खड़ होत हए जान-बझकर बचो को पीछ धकला - बच िशट पर रगड़ खाकर सीरी बजाती हई पीछ

जखसक गयी - हॉल क कोन स हसी िर पड़ी जमस वड का चहरा तन गया माथ पर भकजरया चढ़ गयी जिर

अचानक जनसतबधता छा गयी हॉल क उस घर हए घधलक म िादर का तीखा िरा हआ सवर सनायी दन लगा -

ldquoजीजस सड आई एम द लाइर ऑि द वडट ही दर िालोएथ मी शल नॉर वाक इन डाकट नस बर शल हव द लाइर

ऑि लाइि

डाकरर मखजी न ऊब और उकताहर स भरी जमहाई ली ldquoकब यह जकससा खतम होगा उसन इतन ऊ च सवर म

लजतका स पछा जक वह सकचाकर दसरी ओर दखन लगी सपशल सजवटस क समय डाकरर मकजी क होठो पर

वयगयातमक मसकान खलती रहती और वह धीर-धीर अपनी मछो को खीचता रहता िादर एमणड की वश-भिा

दखकर लजतका क जदल म गदगदी-सी दौड़ गयी जब वह छोरी थी तो अकसर यह बात साचकर जवजसमत हआ करती

थी जक कया पादरी लोग सिद चोग क नीच कछ नही पहनत अगर धोख स वह ऊपर उठ जाय तो

लफरलफरलफर माचट करत हए िौजी बर चपल स दर होत जा रह थ-कवल उनकी गज हवा म शि रह गयी

थी

lsquoजहम नमबर ११७rsquoिादर न पराथटना-पसतक खोलत हए कहा हॉल म परतयक लड़की न डसक पर रखी हई जहम-बक

खोल ली पनदनो क उलरन की खड़खड़ाहर जिसलती हई एक जसर स दसर जसर तक िल गयी आग की बच स

उठकर हयबरट जपयानो क सामन सरल पर बठ गया सगीत जशकषक होन क कारण हर साल सपशल सजवटस क अवसर

पर उस lsquoकॉयरrsquo क सग जपयानो बजाना पड़ता था हयबरट न अपन रमाल स नाक साि की अपनी घबराहर जछपान क

जलए हयबरट हमशा ऐसा ही जकया करता था कनजखयो स हॉल की ओर दखत हए अपन कापत हाथो स जहम-बक

खोली लीड काइणडली लाइर

जपयानो क सर दब जझझकत स जमलन लग घन बालो स ढकी हयबरट की लबी पीली अगलया खलन-जसमरन लगी

lsquoकॉयरrsquo म गानवाली लड़जकयो क सवर एक-दसर स गथकर कोमल जसनगध लहरो म जबध गय लजतका को लगा

उसका जड़ा ढीला पड़ गया ह मानो गरदन क नीच झल रहा ह जमस वड की आख बचा लजतका न चपचाप बालो म

लग जकलपो को कसकर खीच जदया ldquoबड़ा झककी आदमी हसबह मन हयबरट को यहा आन स मना जकया था जिर

भी चला आया - डाकरर न कहा

लजतका को करीमददीन की बात याद हो गयी रात-भर हयबरट को खासी का दौरा पड़ा था कल जान क जलए कह रह

थ लजतका न जसर रढ़ा करक हयबरट क चहर की एक झलक पान की जविल चिा की इतन पीछ स कछ भी दख पाना

असभव था जपयानो पर झका हआ कवल हयबरट का जसर जदखायी दता था

लीड काइणडली लाइर सगीत क सर मानो एक ऊ ची पहाड़ी पर चढ़कर हािती हई सासो को आकाश की अबाध

शनदयता म जबखरत हए नीच उतर रह ह बाररश की मलायम धप चपल क लमब-चकोर शीशो पर जझलजमला रही ह

जजसकी एक महीन चमकीली रखा ईसा मसीह की परजतमा पर जतरछी होकर जगर रही ह मोमबजततयो का धआ धप म

नीली-सी लकीर खीचता हआ हवा म जतरन लगा ह जपयानो क कषजणक lsquoपोजrsquo म लजतका को पततो का पररजचत ममटर

कही दर अनजानी जदशा स आता हआ सनायी द जाता ह एक कषण क जलए एक भरम हआ जक चपल का िीका-सा

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अधरा उस छोर-स lsquoपरयर-हॉलrsquo क चारो कोनो स जसमरता हआ उसक आस-पास जघर आया ह मानो कोई उसकी

आखो पर पटटी बाधकर उस यहा तक ल आया हो और अचानक उसकी आख खोल दी हो उस लगा जक जस

मोमबजततयो क धजमल आलोक म कछ भी ठोस वासतजवक न रहा हो-चपल की छत दीवार डसक पर रखा हआ

डाकरर का सघड़-सडौल हाथ और जपयानो क सर अतीत की धनदध को भदत हए सवय उस धनदध का भाग बनत जा रह

हो

एक पगली-सी समजत एक उदभरानदत भावना-चपल क शीशो क पर पहाड़ी सखी हवा हवा म झकी हई वीजपग जवलोज

की कापती रहजनया परो तल चीड़ क पततो की धीमी-सी जचर-पररजचत खड़खड़ वही पर जगरीश एक हाथ म

जमजलररी का खाकी हर जलय खड़ा ह-चौड़ उठ हए सबल कनदध अपना जसर वहा जरका दो तो जस जसमरकर खो

जायगा चासट बोयर यह नाम उसन रखा था वह झपकर हसन लगा ldquoतमह आमी म जकसन चन जलया मजर बन गय

हो लजकन लड़जकयो स भी गय बीत हो ज़रा-ज़रा-सी बात पर चहरा लाल हो जाता ह यह सब वह कहती नही

जसिट सोचती भर थी सोचा था कभी कह गी वह lsquoकभीrsquo कभी नही आया बरस का लाल िल लाय हो न झठ खाकी

कमीज क जजस जब पर बज जचपक थ उसम स मसा हआ बरस का िल जनकल आया जछः सारा मरझा गया अभी

जखला कहा ह (हाउ कलनदजी) उसक बालो म जगरीश का हाथ उलझ रहा ह-िल कही जरक नही पाता जिर उस जकलप

क नीच ि साकर उसन कहा- दखो

वह मड़ी और इसस पहल जक वह कछ कह पाती जगरीश न अपना जमजलररी का हर धप स उसक जसर पर रख जदया

वह मनदतरमगध-सी वसी ही खड़ी रही उसक जसर पर जगरीश का हर ह-माथ पर छोरी-सी जबनददी ह जबनददी पर उड़त हए

बाल ह जगरीश न उस जबनददी को अपन होठो स छआ ह उसन उसक नग जसर को अपन दोनो हाथो म समर जलया ह -

लजतका

जगरीश न जचढ़ात हए कहा- मन ईरर आि कमाऊ - (उसका यह नाम जगरीश न उस जचढ़ान क जलए रखा था) वह

हसन लगी ldquoलजतका सनो जगरीश का सवर कसा हो गया था ldquoना म कछ भी नही सन रही ldquoलजतका म कछ

महीनो म वाजपस लौर आऊ गा ldquoना म कछ भी नही सन रही जकनदत वह सन रही ह- वह नही जो जगरीश कह रहा

ह जकनदत वह जो नही कहा जा रहा ह जो उसक बाद कभी नही कहा गया लीड काइणडली लाइर

लड़जकयो का सवर जपयानो क सरो म डबा हआ जगर रहा ह उठ रहा ह हयबरट न जसर मोड़कर लजतका को जनजमि भर

दखा आख मद धयानमगना परसतर मजतट-सी वह जसथर जनशचल खड़ी थी कया यह भाव उसक जलए ह कया लजतका न

ऐस कषणो म उस अपना साथी बनाया ह हयबरट न एक गहरी सास ली और उस सास म ढर-सी थकान उमड़ आयी

ldquoदखो जमस वड कसी पर बठ-बठ सो रही ह डाकरर होठो म ही िसिसाया यह डाकरर का पराना मजाक था जक

जमस वड पराथटना करन क बहान आख मद हए नीद की झपजकया लती ह

िादर एमणड न कसी पर िल अपन गाउन को समर जलया और परयर बक बद करक जमस वड क कानो म कछ कहा

जपयानो का सवर करमशः मनदद पड़न लगा हयबरट की अगजलया ढीली पड़न लगी सजवटस क समापत होन स पवट जमस वड

न आडटर पढ़कर सनाया बाररश होन की आशका स आज क कायटकरम म कछ आवशयक पररवतटन करन पड़ थ

जपकजनक क जलए झला दवी क मजनददर जाना समभव नही हो सकगा इसजलए सकल स कछ दर lsquoमीडोजrsquo म ही सब

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लड़जकया नाशत क बाद जमा होगी सब लड़जकयो को दोपहर का lsquoलचrsquo होसरल जकचन स ही ल जाना होगा कवल

शाम की चाय lsquoमीडोजrsquo म बनगी

पहाड़ो की बाररश का कया भरोसा कछ दर पहल धआधार बादल गरज रह थ सारा शहर पानी म भीगा जठठर रहा

था- अब धप म नहाता नीला आकाश धनदध की ओर स बाहर जनकलता हआ िल रहा था लजतका न चपल स बाहर

आत हए दखा-वीजपग जबलोज की भीगी शाखाओ स धप म चमकती हई बाररश की बद रपक रही थी लड़जकया

चपल स बाहर जनकलकर छोर-छोर गचछ बनाकर कॉरीडोर म जमा हो गयी ह नाशत क जलए अभी पौन घणरा पड़ा

था और उनम स अभी कोई भी लड़की होसरल जान क जलए इचछक नही थी छरटटया अभी शर नही हई थी जकनदत

शायद इसीजलए व इन चनदद बच-खच कषणो म अनशासन क भीतर भी मि होन का भरपर आननदद उठा लना चाहती

थी

जमस वड को लड़जकयो का यह गल-गपाड़ा अखरा जकनदत िादर एमणड क सामन वह उनदह डार-िरकार नही सकी

अपनी झझलाहर दबाकर वह मसकरात हए बोली- ldquoकल सब चली जायगी सारा सकल वीरान हो जायगा िादर

एमणड का लमबा ओजपणट चहरा चपल की घरी हई गरमाई स लाल हो उठा था कॉरीडोर क जगल पर अपनी छड़ी

लरकाकर वह बोल - ldquoछरटटयो म पीछ हॉसरल म कौन रहगा ldquoजपछल दो-तीन सालो स जमस लजतका ही रह रही ह

ldquoऔर डाकरर मकजी छरटटयो म कही नही जात ldquoडाकरर तो सदी-गमी यही रहत ह जमस वड न जवसमय स िादर

की ओर दखा वह समझ नही सकी जक िादर न डाकरर का परसग कयो छड़ जदया ह

ldquoडाकरर मकजी छरटटयो म कही नही जात ldquoदो महीन की छरटटयो म बमाट जाना कािी कजठन ह िादर - जमस वड

हसन लगी

ldquoजमस वड पता नही आप कया सोचती ह मझ तो जमस लजतका का होसरल म अकल रहना कछ समझ म नही

आता ldquoलजकन िादर जमस वड न कहा ldquoयह तो कानदवनदर सकल का जनयम ह जक कोई भी रीचर छरटटयो म अपन

खच पर होसरल म रह सकत ह ldquoम जिलहाल सकल क जनयमो की बात नही कर रहा जमस लजतका डाकरर क सग

यहा अकली ही रह जायगी और सच पजछए जमस वड डाकरर क बार म मरी राय कछ बहत अचछी नही ह ldquoिादर

आप कसी बात कर रह ह जमस लजतका बचचा थोड़ ही ह जमस वड को ऐसी आशा नही थी जक िादर एमणड

अपन जदल म ऐसी दजकयानसी भावना को सथान दग

िादर एमणड कछ हतपरभ-स हो गय बात पलरत हए बोल- ldquoजमस वड मरा मतलब यह नही था आप तो जानती ह

जमस लजतका और उस जमजलररी अिसर को लकर एक अचछा-खासा सकणडल बन गया था सकल की बदनामी होन

म कया दर लगती ह ldquoवह बचारा तो अब नही रहा म उस जानती थी िादर ईशवर उसकी आतमा को शाजनदत द जमस

वड न धीर-स अपनी दोनो बाहो स करास जकया

िादर एमणड को जमस वड की मखटता पर इतना अजधक कषोभ हआ जक उनस आग और कछ नही बोला गया डाकरर

मकजी स उनकी कभी नही परती थी इसजलए जमस वड की आखो म वह डाकरर को नीचा जदखाना चाहत थ जकनदत

जमस वड लजतका का रोना ल बठी आग बात बढ़ाना वयथट था उनदहोन छड़ी को जगल स उठाया और ऊपर साि

खल आकाश को दखत हए बोल- ldquoपरोगराम आपन य ही बदला जमस वड अब कया बाररश होगी

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हयबरट जब चपल स बाहर जनकला तो उसकी आख चकाचध-सी हो गई उस लगा जस जकसी न अचानक ढर-सी

चमकीली उबलती हई रोशनी मटठी म भरकर उसकी आखो म झोक दी हो जपयानो क सगीत क सर रई क छई-मई

रशो की भाजत अब तक उसक मजसतषक की थकी-मादी नसो पर िड़िड़ा रह थ वह कािी थक गया था जपयानो

बजान स उसक ििड़ो पर हमशा भारी दबाव पड़ता जदल की धड़कन तज हो जाती थी उस लगता था जक सगीत क

एक नोर को दसर नोर म उतारन क परयतन म वह एक अधरी खाई पार कर रहा ह

आज चपल म मन जो महसस जकया वह जकतना रहसयमय जकतना जवजचतर था हयबरट न सोचा मझ लगा जपयानो का

हर नोर जचरनदतन खामोशी की अधरी खोह स जनकलकर बाहर िली नीली धनदध को कारता तराशता हआ एक भला-

सा अथट खीच लाता ह जगरता हआ हर lsquoपोजrsquo एक छोरी-सी मौत ह मानो घन छायादार वकषो की कापती छायाओ म

कोई पगडणडी गम हो गयी हो एक छोरी-सी मौत जो आनवाल सरो को अपनी बची-खची गजो की सास समजपटत कर

जाती ह जो मर जाती ह जकनदत जमर नही पाती जमरती नही इसजलए मरकर भी जीजवत ह दसर सरो म लय हो जाती

ldquoडाकरर कया मतय ऐस ही आती ह अगर म डाकरर स पछ तो वह हसकर राल दगा मझ लगता ह वह जपछल कछ

जदनो स कोई बात जछपा रहा ह- उसकी हसी म जो सहानभजत का भाव होता ह वह मझ अचछा नही लगता आज

उसन मझ सपशल सजवटस म आन स रोका था - कारण पछन पर वह चप रहा था कौन-सी ऐसी बात ह जजस मझस

कहन म डाकरर कतराता ह शायद म शककी जमजाज होता जा रहा ह और बात कछ भी नही ह

हयबरट न दखा लड़जकयो की कतार सकल स होसरल जानवाली सड़क पर नीच उतरती जा रही ह उजली धप म उनक

रग-जबरग ररबन हकी आसमानी रग की रॉक और सिद पजरया चमक रही ह सीजनयर कजमबरज की कछ लड़जकयो

न चपल की वाजरका क गलाब क िलो को तोड़कर अपन बालो म लगा जलया ह कणरोनमणर क तीन-चार जसपाही

लड़जकयो को दखत हए अशलील मजाक करत हए हस रह ह और कभी-कभी जकसी लड़की की ओर ज़रा झककर

सीरी बजान लगत ह

ldquoहलो जम हयबरट हयबरट न चककर पीछ दखा लजतका एक मोरा-सा रजजसरर बगल म दबाय खड़ी थी ldquoआप अभी

यही ह हयबरट की दजि लजतका पर जरकी रही वह करीम रग की परी बाहो की ऊनी जकर पहन हई थी कमाऊ नी

लड़जकयो की तरह लजतका का चहरा गोल था धप की तपन स पका गहआ रग कही-कही हका-सा गलाबी हो

आया था मानो बहत धोन पर भी गलाल क कछ धबब इधर-उधर जबखर रह गय हो ldquoउन लड़जकयो क नाम नोर करन

थ जो कल जा रही ह सो पीछ रकना पड़ा आप भी तो कल जा रह ह जम हयबरट ldquoअभी तक तो यही इरादा ह यहा

रककर भी कया कर गा आप सकल की ओर जा रही हldquo ldquoचजलए

पककी सड़क पर लड़जकयो की भीड़ जमा थी इसजलए व दोनो पोलो गराउणड का चककर कारती हई पगडणडी स नीच

उतरन लग हवा तज हो चली चीड़ क पतत हर झोक क सग रर-ररकर पगडणडी पर ढर लगात जात थ हयबरट रासता

बनान क जलए अपनी छड़ी स उनदह बहारकर दोनो ओर जबखर दता था लजतका पीछ खड़ी हई दखती रहती थी

अमोड़ा की ओर स आत हए छोर-छोर बादल रशमी रमालो स उड़त हए सरज क मह पर जलपर स जात थ जिर

हवा म बह जनकलत थ इस खल म धप कभी मनदद िीकी-सी पड़ जाती थी कभी अपना उजला आचल खोलकर

समच शहर को अपन म समर लती थी

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लजतका तजनक आग जनकल गयी हयबरट की सास चढ़ गयी थी और वह धीर-धीर हािता हआ पीछ स आ रहा था

जब व पोलोगराउणड क पवजलयन को छोड़कर जसजमटी क दायी और मड तो लजतका हयबरट की परतीकषा करन क जलए

खड़ी हो गयी उस याद आया छरटटयो क जदनो म जब कभी कमर म अकल बठ-बठ उसका मन ऊब जाता था तो वह

अकसर रहलत हए जसजमटी तक चली जाती थी उसस सरी पहाड़ी पर चढ़कर वह बिट म ढक दवदार वकषो को दखा

करती थी जजनकी झकी हई शाखो स रई क गोलो-सी बिट नीच जगरा करती थी नीच बाजार जानवाली सड़क पर

बचच सलज पर जिसला करत थ वह खड़ी-खड़ी बिट म जछपी हई उस सड़क का अनमान लगाया करती थी जो िादर

एमणड क घर स गजरती हई जमजलररी असपताल और डाकघर स होकर चचट की सीजढ़यो तक जाकर गम हो जाती

थी जो मनोरजन एक दगटम पहली को सलझान म होता ह वही लजतका को बिट म खोय रासतो को खोज जनकालन म

होता था

ldquoआप बहत तज चलती ह जमस लजतका - थकान स हयबरट का चहरा कमहला गया था माथ पर पसीन की बद

छलक आयी थी ldquoकल रात आपकी तजबयत कया कछ खराब हो गयी थी ldquoआपन कस जाना कया म असवसथ

दीख रहा ह हयबरट क सवर म हलकी-सी खीज का आभास था सब लोग मरी सहत को लकर कयो बात शर करत

ह उसन सोचा ldquoनही मझ तो पता भी नही चलता वह तो सबह करीमददीन न बातो-ही-बातो म जजकर छड़ जदया था

लजतका कछ अपरजतभ-सी हो आयी ldquoकोई खास बात नही वही पराना ददट शर हो गया था अब जबकल ठीक ह

अपन कथन की पजि क जलए हयबरट छाती सीधी करक तज कदम बढ़ान लगा ldquoडाकरर मकजी को जदखलाया था

ldquoवह सबह आय थ उनकी बात कछ समझ म नही आती हमशा दो बात एक-दसर स उरी कहत ह कहत थ जक

इस बार मझ छह-सात महीन की छटटी लकर आराम करना चाजहए लजकन अगर म ठीक ह तो भला इसकी कया

जररत ह

हयबरट क सवर म वयथा की छाया लजतका स जछपी न रह सकी बात को रालत हए उसन कहा - ldquoआप तो नाहक

जचनदता करत ह जम हयबरट आजकल मौसम बदल रहा ह अचछ भल आदमी तक बीमार हो जात ह हयबरट का

चहरा परसनदनता स दमकन लगा उसन लजतका को धयान स दखा वह अपन जदल का सशय जमरान क जलए जनजशचनदत

हो जाना चाहता था जक कही लजतका उस कवल जदलासा दन क जलए ही तो झठ नही बोल रही ldquoयही तो म सोच रहा

था जमस लजतका डाकरर की सलाह सनकर म डर ही गया भला छह महीन की छटटी लकर म अकला कया कर गा

सकल म तो बचचो क सग मन लगा रहता ह सच पछो तो जदली म य दो महीनो की छरटटया कारना भी दभर हो जाता

ldquoजम हयबरटकल आप जदली जा रह ह लजतका चलत-चलत हठात जठठक गयी सामन पोलो-गराउणड िला था

जजसक दसरी ओर जमजलररी की टक कणरोनमणर की ओर जा रही थी हयबरट को लगा जस लजतका की आख

अधमदी-सी खली रह गयी ह मानो पलको पर एक पराना भला-सा सपना सरक आया ह

ldquoजमहयबरटआप जदली जा रह ह इस बार लजतका न परशन नही दहराया उसक सवर म कवल एक असीम दरी का

भाव जघर आया ldquoबहत असाट पहल म भी जदली गयी थी जम हयबरट तब म बहत छोरी थी न जान जकतन बरस बीत

गय हमारी मौसी का बयाह वही हआ था बहत-सी चीज दखी थी लजकन अब तो सब कछ धधला-सा पड़ गया ह

इतना याद ह जक हम कतब पर चढ़ थ सबस ऊ ची मजजल स हमन नीच झाका था न जान कसा लगा था नीच चलत

हए आदमी चाभी भर हए जखलौनो-स लगत थ हमन ऊपर स उन पर मगिजलया ि की थी लजकन हम बहत जनराश

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हए थ कयोजक उनम स जकसी न हमारी तरि नही दखा शायद मा न मझ डारा था और म जसिट नीच झाकत हए डर

गयी थी सना ह अब तो जदली इतना बदल गया ह जक पहचाना नही जाता

व दोनो जिर चलन लग हवा का वग ढीला पड़न लगा उड़त हए बादल अब ससतान स लग थ उनकी छायाए ननददा

दवी और पचचली की पहाजड़यो पर जगर रही थी सकल क पास पहचत-पहचत चीड़ क पड़ पीछ छर गय कही-कही

खबानी क पड़ो क आस-पास बरस क लाल िल धप म चमक जात थ सकल तक आन म उनदहोन पोलोगराउणड का

लमबा चककर लगा जलया था ldquoजमस लजतका आप कही छरटटयो म जाती कयो नही सजदटयो म तो यहा सब कछ वीरान

हो जाता होगा

ldquoअब मझ यहा अचछा लगता ह लजतका न कहा ldquoपहल साल अकलापन कछ अखरा था अब आदी हो चकी ह

जकरसमस स एक रात पहल कलब म डानदस होता ह लाररी डाली जाती ह और रात को दर तक नाच-गाना होता रहता

ह नय साल क जदन कमाऊ रजीमणर की ओर स परड-गराउणड म कानीवाल जकया जाता ह बिट पर सकजरग होती ह

रग-जबरग गबबारो क नीच िौजी बणड बजता ह िौजी अिसर िनदसी डरस म भाग लत ह हर साल ऐसा ही होता ह

जम हयबरट जिर कछ जदनो बाद जवणरर सपोटस क जलए अगरज रररसर आत ह हर साल म उनस पररजचत होती ह

वाजपस लौरत हए व हमशा वादा करत ह जक अगल साल भी आयग पर म जानती ह जक व नही आयग व भी जानत

ह जक व नही आयग जिर भी हमारी दोसती म कोई अतर नही पड़ता जिरजिर कछ जदनो बाद पहाड़ो पर बिट

जपघलन लगती ह छरटटया खतम होन लगती ह आप सब लोग अपन-अपन घरो स वाजपस लौर आत ह - और जम

हयबरट पता भी नही चलता जक छरटटया कब शर हई थी कब खतम हो गई

लजतका न दखा जक हयबरट उसकी ओर आतजकत भयाकल दजि स दख रहा ह वह जसरजपराकर चप हो गयी उस

लगा मानो वह इतनी दर स पागल-सी अनगटल परलाप कर रही हो ldquoमझ माि करना जम हयबरट कभी-कभी म बचचो

की तरह बातो म बहक जाती ह ldquoजमस लजतका हयबरट न धीर-स कहा वह चलत-चलत रक गया था लजतका

हयबरट क भारी सवर स चौक-सी गयी ldquoकया बात ह जम हयबरट ldquoवह पतर उसक जलए म लजजजत ह उस आप वाजपस

लौरा द समझ ल जक मन उस कभी नही जलखा था

लजतका कछ समझ न सकी जदगभरानदत-सी खड़ी हई हयबरट क पील उजदधगन चहर को दखती रही हयबरट न धीर-स

लजतका क कनदध पर हाथ रख जदया ldquoकल डाकरर न मझ सबकछ बता जदया अगर मझ पहल स मालम होता

तोतो हयबरट हकलान लगा ldquoजम हयबरट जकनदत लजतका स आग कछ भी नही कहा गया उसका चहरा सिद हो

गया था

दोनो चपचाप कछ दर तक सकल क गर क बाहर खड़ रह मीडोजपगडजणडयो पततो छायाओ स जघरा छोरा-सा

दवीप मानो कोई घोसला दो हरी घाजरयो क बीच आ दबा हो भीतर घसत ही जपकजनक क काल आग स झलस हए

पतथर अधजली रहजनया बठन क जलए जबछाय गय परान अखबारो क रकड़ इधर-उधर जबखर हए जदखायी द जात

ह अकसर रररसर जपकजनक क जलए यहा आत ह मीडोज को बीच म कारता हआ रढ़ा-मढ़ा बरसाती नाला बहता ह

जो दर स धप म चमकता हआ सिद ररबन-सा जदखायी दता ह

यही पर काठ क तखतो का बना हआ ररा-सा पल ह जजस पर लड़जकया जहचकोल खात हए चल रही ह

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ldquoडाकरर मकजी आप तो सारा जगल जला दग जमस वड न अपनी ऊ ची एड़ी क सणडल स जलती हई जदयासलाई

को दबा डाला जो डाकरर न जसगार सलगाकर चीड़ क पततो क ढर पर ि क दी थी व नाल स कछ दर हरकर चीड़ क

दो पड़ो स गथी हई छाया क नीच बठ थ उनक सामन एक छोरा-सा रासता नीच पहाड़ी गाव की ओर जाता था जहा

पहाड़ की गोद म शकरपारो क खत एक-दसर क नीच जबछ हए थ दोपहर क सनदनार म भड़-बकररयो क गलो म बधी

हई धजणरयो का सवर हवा म बहता हआ सनायी द जाता था घास पर लर-लर डाकरर जसगार पीत रह ldquoजगल की

आग कभी दखी ह जमस वडएक अलमसत नश की तरह धीर-धीर िलती जाती ह

ldquoआपन कभी दखी ह डाकरर जमस वड न पछा ldquoमझ तो बड़ा डर लगता ह

ldquoबहत साल पहल शहरो को जलत हए दखा था डाकरर लर हए आकाश की ओर ताक रह थ ldquoएक-एक मकान

ताश क पततो की तरह जगरता जाता दभाटगयवश ऐस अवसर दखन म बहत कम आत ह

ldquoआपन कहा दखा डाकरर

ldquoलड़ाई क जदनो म अपन शहर रगन को जलत हए दखा था जमस वड की आतमा को ठस लगी जकनदत जिर भी उनकी

उतसकता शानदत नही हई

ldquoआपका घर कया वह भी जल गया था

डाकरर कछ दर तक चपचाप लरा रहा

ldquoहम उस खाली छोड़कर चल आय थ मालम नही बाद म कया हआ अपन वयजिगत जीवन क समबनदध म कछ भी

कहन म डाकरर को कजठनाई महसस होती ह

ldquoडाकरर कया आप कभी वाजपस बमाट जान की बात नही सोचत डाकरर न अगड़ाई ली और करवर बदलकर औध

मह लर गय उनकी आख मद गई और माथ पर बालो की लर झल आयी

ldquoसोचन स कया होता ह जमस वड जब बमाट म था तब कया कभी सोचा था जक यहा आकर उमर कारनी होगी

ldquoलजकन डाकरर कछ भी कह लो अपन दश का सख कही और नही जमलता यहा तम चाह जकतन विट रह लो अपन

को हमशा अजनबी ही पाओग

डाकरर न जसगार क धए को धीर-धीर हवा म छोड़ जदया- ldquoदरअसल अजनबी तो म वहा भी समझा जाऊ गा जमस वड

इतन विो बाद मझ कौन पहचानगा इस उमर म नय जसर स ररशत जोड़ना कािी जसरददट का काम ह कम-स-कम मर

बस की बात नही ह

ldquoलजकन डाकरर आप कब तक इस पहाड़ी कसब म पड़ रहग इसी दश म रहना ह तो जकसी बड़ शहर म परजकरस शर

कीजजए

ldquoपरजकरस बढ़ान क जलए कहा-कहा भरकता जिर गा जमस वड जहा रहो वही मरीज जमल जात ह यहा आया था

कछ जदनो क जलए जिर मददत हो गयी और जरका रहा जब कभी जी ऊबगा कही चला जाऊ गा जड़ कही नही

जमती तो पीछ भी कछ नही छर जाता मझ अपन बार म कोई गलतिहमी नही ह जमस वड म सखी ह

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जमस वड न डाकरर की बात पर जवशि धयान नही जदया जदल म वह हमशा डाकरर को उचछखल लापरवाह और

सनकी समझती रही ह जकनदत डाकरर क चररतर म उनका जवशवास ह न जान कयो कयोजक डाकरर न जान-अनजान म

उसका कोई परमाण जदया हो यह उनदह याद नही पड़ता

जमस वड न एक ठणडी सास भरी वह हमशा यह सोचती थी जक यजद डाकरर इतना आलसी और लापरवाह न होता

तो अपनी योगयता क बल पर कािी चमक सकता था इसजलए उनदह डाकरर पर करोध भी आता था और दख भी होता

था

जमस वड न अपन बग स ऊन का गोला और सलाइया जनकाली जिर उसक नीच स अखबार म जलपरा हआ चौड़ा

कॉिी का जडबबा उठाया जजसम अणडो की सणडजवच और हमबगटर दब हए थ थमटस स पयालो म कॉिी उडलत हए

जमस वड न कहा - ldquoडाकरर कॉिी ठणडी हो रही ह

डाकरर लर-लर बड़बड़ाया जमस वड न नीच झककर दखा वह कोहनी पर जसर जरकाय सो रहा था ऊपर का होठ

जरा-सा िलकर मड़ गया था मानो जकसी स मजाक करन स पहल मसकरा रहा हो

उसकी अगजलयो म दबा हआ जसगार नीच झका हआ लरक रहा था ldquoमरी मरी वार ड य वाणर वार ड य वाणर

दसर सरणडडट म पढ़नवाली मरी न अपनी चचल चपल आख ऊपर उठायी लड़जकयो का दायरा उस घर हए कभी

पास आता था कभी दर जखचता चला जाता था

ldquoआई वाणर आई वाणर बल दोनो हाथो को हवा म घमात हए मरी जचलायी दायरा पानी की तरह रर गया सब

लड़जकया एक-दसर पर जगरती-पड़ती जकसी नीली वसत को छन क जलए भाग-दौड़ करन लगी लच समापत हो चका

था लड़जकयो क छोर-छोर दल मीडोज म जबखर गय थ ऊ ची कलास की कछ लड़जकया चाय का पानी गमट करन क

जलए पड़ो पर चढ़कर सखी रहजनया तोड़ रही थी

दोपहर की उस घड़ी म मीडोज अलसाया-ऊ घता-सा जान पड़ता था हवा का कोई भला-भरका झोका चीड़ क पतत

खड़खड़ा उठत थ कभी कोई पकषी अपनी ससती जमरान झाजड़यो स उड़कर नाल क जकनार बठ जाता था पानी म जसर

डबोता था जिर ऊबकर हवा म दो-चार जनरददशय चककर कारकर दबारा झाजड़यो म दबक जाता था

जकनदत जगल की खामोशी शायद कभी चप नही रहती गहरी नीद म डबी सपनो-सी कछ आवाज नीरवता क हक

झीन परद पर सलवर जबछा जाती ह मक लहरो-सी हवा म जतरती ह मानो कोई दब पाव झाककर अदशय सकत कर

जाता ह- ldquoदखो म यहा ह लजतका न जली क lsquoबाब हयरrsquo को सहलात हए कहा ldquoतमह कल रात बलाया था

ldquoमडम म गयी थी आप अपन कमर म नही थी लजतका को याद आया जक रात वह डाकरर क कमर क ररस पर दर

तक बठी रही थी और भीतर हयबरट जपयानो पर शोपा का नौकरनट बजा रहा था ldquoजली तमस कछ पछना था उस

लगा वह जली की आखो स अपन को बचा रही ह जली न अपना चहरा ऊपर उठाया उसकी भरी आखो स

कौतहल झाक रहा था

ldquoतम आजिससट मस म जकसी को जानती हो जली न अजनजशचत भाव स जसर जहलाया लजतका कछ दर तक जली को

अपलक घरती रही

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ldquoजली मझ जवशवास ह तम झठ नही बोलोगी कछ कषण पहल जली की आखो म जो कौतहल था वह भय स

पररणत होन लगा लजतका न अपनी जकर की जब स एक नीला जलिािा जनकालकर जली की गोद म ि क जदया

ldquoयह जकसकी जचटठी ह

जली न जलिािा उठान क जलए हाथ बढ़ाया जकनदत जिर एक कषण क जलए उसका हाथ कापकर जठठक गया-जलिाि

पर उसका नाम और होसरल का पता जलखा हआ था

ldquoथक य मडम मर भाई का पतर ह वह झासी म रहत ह जली न घबराहर म जलिाि को अपन सकरट की तहो म

जछपा जलया ldquoजली ज़रा मझ जलिािा जदखलाओ लजतका का सवर तीखा ककट श-सा हो आया

जली न अनमन भाव स लजतका को पतर द जदया ldquoतमहार भाई झासी म रहत ह जली इस बार कछ नही बोली

उसकी उदभरानदत उखड़ी-सी आख लजतका को दखती रही ldquoयह कया ह

जली का चहरा सिद िक पड़ गया जलिाि पर कमाऊ रजीमणरल सणरर की महर उसकी ओर घर रही थी ldquoकौन ह

यह लजतका न पछा उसन पहल भी होसरल म उड़ती हई अिवाह सनी थी जक जली को कलब म जकसी जमजलररी

अिसर क सग दखा गया था जकनदत ऐसी अिवाह अकसर उड़ती रहती थी और उसन उन पर जवशवास नही जकया था

ldquoजली तम अभी बहत छोरी हो जली क होठ काप-उसकी आखो म जनरीह याचना का भाव जघर आया

ldquoअचछा अभी जाओ तमस छरटटयो क बाद बात कर गी जली न ललचाई दजि स जलिाि को दखा कछ बोलन को

उदयत हई जिर जबना कछ कह चपचाप वाजपस लौर गयी

लजतका दर तक जली को दखती रही जब तक वह आखो स ओझल नही हो गयी कया म जकसी खसर बजढ़या स

कम ह अपन अभाव का बदला कया म दसरो स ल रही ह

शायद कौन जान शायद जली का यह परथम पररचय हो उस अनभजत स जजस कोई भी लड़की बड़ चाव स

सजोकर सभालकर अपन म जछपाय रहती ह एक अजनवटचनीय सख जो पीड़ा जलय ह पीड़ा और सख को डबोती हई

उमड़त जवर की खमारी जो दोनो को अपन म समो लती ह एक ददट जो आननदद स उपजा ह और पीड़ा दता ह

यही इसी दवदार क नीच उस भी यही लगा था जब जगरीश न पछा था-ldquoतम चप कयो हो वह आख मद सोच रही

थी सोच कहा रही थी जी रही थी उस कषण को जो भय और जवसमय क बीच जभचा था-बहका-सा पागल कषण वह

अभी पीछ मड़गी तो जगरीश की lsquoनवटसrsquo मसकराहर जदखायी द जायगी उस जदन स आज दोपहर तक का अतीत एक

दःसवपन की माजननदद रर जाएगा वही दवदार ह जजस पर उसन अपन बालो क जकलप स जगरीश का नाम जलखा था

पड़ की छाल उतरती नही थी जकलप रर-रर जाता था तब जगरीश न अपन नाम क नीच उसका नाम जलखा था जब

कभी कोई अकषर जबगड़कर ढढ़ा-मढ़ा हो जाता था तब वह हसती थी और जगरीश का कापता हाथ और भी काप

जाता था

लजतका को लगा जक जो वह याद करती ह वही भलना भी चाहती ह लजकन जब सचमच भलन लगती ह तब उस

भय लगता ह जक जस कोई उसकी जकसी चीज को उसक हाथो स छीन जलय जा रहा ह ऐसा कछ जो सदा क जलए

खो जायगा बचपन म जब कभी वह अपन जकसी जखलौन को खो दती थी तो वह गमसम-सी होकर सोचा करती थी

कहा रख जदया मन जब बहत दौड़-धप करन पर ज ाखलौना जमल जाता तो वह बहाना करती जक अभी उस खोज ही

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रही ह जक वह अभी जमला नही ह जजस सथान पर जखलौना रखा होता जान-बझकर उस छोड़कर घर क दसर कोन म

उस खोजन का उपकरम करती तब खोई हई चीज याद रहती इसजलए भलन का भय नही रहता था

आज वह उस बचपन क खल का बहाना कयो नही कर पाती lsquoबहानाrsquoशायद करती ह उस याद करन का बहाना जो

भलता जा रहा हजदन महीन बीत जात ह और वह उलझी रहती ह अनजान म जगरीश का चहरा धधला पड़ता

जाता ह याद वह करती ह जकनदत जस जकसी परानी तसवीर क धल भर शीश को साि कर रही हो अब वसा ददट नही

होता जसिट उसको याद करती ह जो पहल कभी होता था तब उस अपन पर गलाजन होती ह वह जिर जान-बझकर

उस घाव को करदती ह जो भरता जा रहा ह खद-ब-खद उसकी कोजशशो क बावजद भरता जा रहा ह दवदार पर

खद हए अधजमर नाम लजतका की ओर जनसतबध जनरीह भाव स जनहार रह थ मीडोज क घन सनदनार म नाल पार स

खलती हई लड़जकयो की आवाज गज जाती थीवार ड य वाणर वार ड य वाणर

जततजलया झीगर जगनमीडोज पर उतरती हई साझ की छायाओ म पता नही चलता कौन आवाज जकसकी ह

दोपहर क समय जजन आवाजो को अलग-अलग पहचाना जा सकता था अब व एकसवरता की अजवरल धारा म घल

गयी थी घास स अपन परो को पोछता हआ कोई रग रहा ह झाजड़यो क झरमर स परो को िड़िड़ाता हआ झपरकर

कोई ऊपर स उड़ जाता ह जकनदत ऊपर दखो तो कही कछ भी नही ह मीडोज क झरन का गड़गड़ाता सवर जस अधरी

सरग म झपार स टन गजर गयी हो और दर तक उसम सीजरयो और पजहयो की चीतकार गजती रही हो

जपकजनक कछ दर तक और चलती जकनदत बादलो की तह एक-दसर पर चढ़ती जा रही थी जपकजनक का सामान

बरोरा जान लगा मीडोज क चारो ओर जबखरी हई लड़जकया जमस वड क इदट-जगदट जमा होन लगी अपन सग व

अजीबोगरीब चीज बरोर लायी थी कोई जकसी पकषी क रर पख को बालो म लगाय हए थी जकसी न पड़ की रहनी

को चाक स छीलकर छोरी-सी बत बना ली थी ऊ ची कलास की कछ लड़जकयो न अपन-अपन रमालो म नाल स

पकड़ी हई छोरी-छोरी बाजलशत भर की मछजलयो को दबा रखा था जजनदह जमस वड स जछपकर व एक-दसर को जदखा

रही थी

जमस वड लड़जकयो की रोली क सग आग जनकल गयी मीडोज स पककी सड़क तक तीन-चार िलााग की चढ़ाई थी

लजतका हािन लगी डाकरर मकजी सबस पीछ आ रह थ लजतका क पास पहचकर वह जठठक गय डाकरर न दोनो

घरनो को जमीन पर रकत हए जसर झकाकर एजलजाबथयगीन अगरजी म कहा - ldquoमडम आप इतनी परशान कयो नजर

आ रही ह और डाकरर की नारकीय मरा को दखकर लजतका क होठो पर एक थकी-सी ढीली-ढीली मसकराहर

जबखर गयी ldquoपयास क मार गला सख रहा ह और यह चढ़ाई ह जक खतम होन म नही आती

डाकरर न अपन कनदध पर लरकत हए थमटस को उतारकर लजतका क हाथो म दत हए कहा - ldquoथोड़ी-सी कॉफ़ी बची ह

शायद कछ मदद कर सक ldquoजपकजनक म तम कहा रह गय डाकरर कही जदखायी नही जदय ldquoदोपहर भर सोता रहा-

जमस वड क सग मरा मतलब ह जमस वड पास बठी थी ldquoमझ लगता ह जमस वड मझस महबबत करती ह कोई

भी मजाक करत समय डाकरर अपनी मछो क कोनो को चबान लगता ह ldquoकया कहती थी लजतका न थमटस स

कॉिी को मह म उडल जलया ldquoशायद कछ कहती लजकन बदजकसमती स बीच म ही मझ नीद आ गयी मरी जजनददगी

क कछ खबसरत परम-परसग कमबखत इस नीद क कारण अधर रह गय ह

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और इस दौरान म जब दोनो बात कर रह थ उनक पीछ मीडोज और मोरर रोड क सग चढ़ती हई चीड़ और बाज क

वकषो की कतार साझ क जघरत अधर म डबन लगी मानो पराथटना करत हए उनदहोन चपचाप अपन जसर नीच झका जलय

हो इनदही पड़ो क ऊपर बादलो म जगरज का करास कही उलझा पड़ा था उसक नीच पहाड़ो की ढलान पर जबछ हए

खत भागती हई जगलहररयो स लग रह थ जो मानो जकसी की रोह म सतबध जठठक गयी हो ldquoडाकरर जम हयबरट

जपकजनक पर नही आय डाकरर मकजी राचट जलाकर लजतका क आग-आग चल रह थ ldquoमन उनदह मना कर जदया

था ldquoजकसजलए

अधर म परो क नीच दब हए पततो की चरमराहर क अजतररि कछ सनायी नही दता था डॉकरर मकजी न धीर-स

खासा ldquoजपछल कछ जदनो स मझ सदह होता जा रहा ह जक हयबरट की छाती का ददट शायद मामली ददट नही ह

डाकरर थोड़ा-सा हसा जस उस अपनी यह गमभीरता अरजचकर लग रही हो

डाकरर न परतीकषा की शायद लजतका कछ कहगी जकनदत लजतका चपचाप उसक पीछ चल रही थी ldquoयह मरा महज

शक ह शायद म जबकल गलत होऊ जकनदत यह बहतर होगा जक वह अपन एक ििड़ का एकसर करा ल इसस कम-

स-कम कोई भरम तो नही रहगा ldquoआपन जम हयबरट स इसक बार म कछ कहा ह ldquoअभी तक कछ नही कहा हयबरट

जरा-सी बात पर जचजनदतत हो उठता ह इसजलए कभी साहस नही हो पाता डॉकरर को लगा उसक पीछ आत हए

लजतका क परो का सवर सहसा बनदद हो गया ह उनदहोन पीछ मड़कर दखा लजतका बीच सड़क पर अधर म छाया-सी

चपचाप जनशचल खड़ी ह ldquoडाकरर लजतका का सवर भराटया हआ था ldquoकया बात ह जमस लजतका आप रक कयो

गयी ldquoडाकरर-कया जम हयबरट

डाकरर न अपनी राचट की मजदधम रोशनी लजतका पर उठा दीउसन दखा लजतका का चहरा एकदम पीला पड़ गया ह

और वह रह-रहकर पतत-सी काप जाती ह ldquoजमस लजतका कया बात ह आप तो बहत डरी-सी जान पड़ती ह ldquoकछ

नही डाकरर मझमझ कछ याद आ गया था व दोनो जिर चलन लग कछ दर जान पर उनकी आख ऊपर उठ गयी

पजकषयो का एक बड़ा धजमल आकाश म जतरकोण बनाता हआ पहाड़ो क पीछ स उनकी ओर आ रहा था लजतका और

डाकरर जसर उठाकर इन पजकषयो को दखत रह लजतका को याद आया हर साल सदी की छरटटयो स पहल य पररनदद

मदानो की ओर उड़त ह कछ जदनो क जलए बीच क इस पहाड़ी सरशन पर बसरा करत ह परतीकषा करत ह बिट क जदनो

की जब व नीच अजनबी अनजान दशो म उड़ जायग

कया व सब भी परतीकषा कर रह ह वह डाकरर मकजी जम हयबरट लजकन कहा क जलए हम कहा जायग

जकनदत उसका कोई उततर नही जमला-उस अधर म मीडोज क झरन क भतल सवर और चीड़ क पततो की सरसराहर क

अजतररि कछ सनायी नही दता था लजतका हड़बड़ाकर चौक गयी अपनी छड़ी पर झका हआ डाकरर धीर-धीर

सीरी बजा रहा था

ldquoजमस लजतका जदी कीजजए बाररश शर होनवाली ह होसरल पहचत-पहचत जबजली चमकन लगी थी जकनदत

उस रात बाररश दर तक नही हई बादल बरसन भी नही पात थ जक हवा क थपड़ो स धकल जदय जात थ दसर जदन

तड़क ही बस पकड़नी थी इसजलए जडनर क बाद लड़जकया सोन क जलए अपन-अपन कमरो म चली गयी थी

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जब लजतका अपन कमर म गयी तो उस समय कमाऊ रजीमणर सणरर का जबगल बज रहा था उसक कमर म

करीमददीन कोई पहाड़ी धन गनगनाता हआ लमप म गस पमप कर रहा था लजतका उनदही कपड़ो म तजकय को दहरा

करक लर गयी करीमददीन न उड़ती हई जनगाह स लजतका को दखा जिर अपन काम म जर गया ldquoजपकजनक कसी रही

मम साहब ldquoतम कयो नही आय सब लड़जकया तमह पछ रही थी लजतका को लगा जदन-भर की थकान धीर-धीर

उसक शरीर की पसजलयो पर जचपरती जा रही ह अनायास उसकी आख नीद क बोझ स झपकन लगी ldquoम चला

आता तो हयबरट साहब की तीमारदारी कौन करता जदनभर उनक जबसतर स सरा हआ बठा रहा और अब वह गायब हो

गय ह करीमददीन न कनदध पर लरकत हए मच-कचल तौजलय को उतारा और लमप क शीशो की गदट पोछन लगा

लजतका की अधमदी आख खल गयी ldquoकया हयबरट साहब अपन कमर म नही ह ldquoखदा जान इस हालत म कहा

भरक रह ह पानी गमट करन कछ दर क जलए बाहर गया था वाजपस आन पर दखता ह जक कमरा खाली पड़ा ह

करीमददीन बड़बड़ाता हआ बाहर चला गया लजतका न लर-लर पलग क नीच चपपलो को परो स उतार जदया

हयबरट इतनी रात कहा गय जकनदत लजतका की आख जिर झपक गयी जदन-भर की थकान न सब परशाजनयो परशनो पर

कजी लगा दी थी मानो जदन-भर आख-जमचौनी खलत हए उसन अपन कमर म lsquoदययाrsquo को छ जलया था अब वह

सरजकषत थी कमर की चहारदीवारी क भीतर उस कोई नही पकड़ सकता जदन क उजाल म वह गवाह थी मजररम थी

हर चीज का उसस तकाजा था अब इस अकलपन म कोई जगला नही उलाहना नही सब खीचातानी खतम हो गयी ह

जो अपना ह वह जबकल अपना-सा हो गया ह जो अपना नही ह उसका दख नही अपनान की िरसत नही

लजतका न दीवार की ओर मह घमा जलया लमप क िीक आलोक म हवा म कापत परदो की छायाए जहल रही थी

जबजली कड़कन स जखड़जकयो क शीश-चमक-चमक जात थ दरवाज चरखन लगत थ जस कोई बाहर स धीम-धीम

खरखरा रहा हो कॉरीडोर स अपन-अपन कमरो म जाती हई लड़जकयो की हसी बातो क कछ शबद जिर सबकछ

शानदत हो गया जकनदत जिर भी दर तक कचची नीद म वह लमप का धीमा-सा lsquoसी-सीrsquo सवर सनती रही कब वह सवर

भी मौन का भाग बनकर मक हो गया उस पता न चला कछ दर बाद उसको लगा सीजढ़यो स कछ दबी आवाज ऊपर

आ रही ह बीच-बीच म कोई जचला उठता ह और जिर सहसा आवाज धीमी पड़ जाती ह ldquoजमस लजतका जरा

अपना लमप ल आइय - कॉररडोर क जीन स डाकरर मकजी की आवाज आयी थी

कॉरीडोर म अधरा था वह तीन-चार सीजढ़या नीच उतरी लमप नीच जकया सीजढ़यो स सर जगल पर हयबरट न अपना

जसर रख जदया था उसकी एक बाह जगल क नीच लरक रही थी और दसरी डाकरर क कनदध पर झल रही थी जजस

डाकरर न अपन हाथो म जकड़ रखा था ldquoजमस लजतका लमप ज़रा और नीच झका दीजजएहयबरटहयबरट डाकरर

न हयबरट को सहारा दकर ऊपर खीचा हयबरट न अपना चहरा ऊपर जकया जवहसकी की तज ब का झोका लजतका क

सार शरीर को जझझोड़ गया हयबरट की आखो म सखट डोर जखच आय थ कमीज का कालर उलरा हो गया था और

राई की गाठ ढीली होकर नीच जखसक आयी थी लजतका न कापत हाथो स लमप सीजढ़यो पर रख जदया और आप

दीवार क सहार खड़ी हो गयी उसका जसर चकरान लगा था

ldquoइन ए बक लन ऑि द जसरी दयर इज ए गलट ह लवज मी हयबरट जहचजकयो क बीच गनगना उठता था

ldquoहयबरट पलीजपलीज डाकरर न हयबरट क लड़खड़ात शरीर को अपनी मजबत जगरफत म ल जलया

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ldquoजमस लजतका आप लमप लकर आग चजलए लजतका न लमप उठाया दीवार पर उन तीनो की छायाए डगमगान

लगी

ldquoइन ए बक लन ऑि द जसरी दयर इज ए गलट ह लवज मी हयबरट डाकरर मकजी क कनदध पर जसर जरकाय अधरी

सीजढ़यो पर उर-सीध पर रखता चढ़ रहा था

ldquoडाकरर हम कहा ह हयबरट सहसा इतनी जोर स जचलाया जक उसकी लड़खड़ाती आवाज सनसान अधर म

कॉरीडोर की छत स रकराकर दर तक हवा म गजती रही

ldquoहयबरट डाकरर को एकदम हयबरट पर गससा आ गया जिर अपन गसस पर ही उस खीझ-सी हो आयी और वह

हयबरट की पीठ थपथपान लगा ldquoकछ बात नही ह हयबरट जडयर तम जसिट थक गय होldquo हयबरट न अपनी आख डाकरर

पर गड़ा दी उनम एक भयभीत बचच की-सी कातरता झलक रही थी मानो डाकरर क चहर स वह जकसी परशन का उततर

पा लना चाहता हो हयबरट क कमर म पहचकर डाकरर न उस जबसतर पर जलरा जदया हयबरट न जबना जकसी जवरोध क

चपचाप जत-मोज उतरवा जदय जब डाकरर हयबरट की राई उतारन लगा तो हयबरट अपनी कहनी क सहार उठा कछ

दर तक डाकरर को आख िाड़त हए घरता रहा जिर धीर-स उसका हाथ पकड़ जलया ldquoडाकरर कया म मर जाऊ गा

ldquoकसी बात करत हो हयबरट डाकरर न हाथ छड़ाकर धीर-स हयबरट का जसर तजकय पर जरका जदया ldquoगड नाइर हयबरट

ldquoगड नाइर डाकरर हयबरट न करवर बदल ली ldquoगड नाइर जम हयबरट लजतका का सवर जसहर गया जकनदत हयबरट न

कोई उततर नही जदया करवर बदलत ही उस नीद आ गयी थी

कॉरीडोर म वाजपस आकर डाकरर मकजी रजलग क सामन खड़ हो गय हवा क तज झोको स आकाश म िल बादलो

की परत जब कभी इकहरी हो जाती तब उनक पीछ स चादनी बझती हई आग क धए-सी आस-पास की पहाजड़यो पर

िल जाती थी ldquoआपको जम हयबरट कहा जमल लजतका कॉरीडोर क दसर कोन म रजलग पर झकी हई थी ldquoकलब क

बार म उनदह दखा था म न पहचता तो न जान कब तक बठ रहत डाकरर मकजी न जसगरर जलायी उनदह अभी एक-दो

मरीजो क घर जाना था कछ दर तक उनदह राल दन क इराद स वह कॉरीडोर म खड़ रह नीच अपन कवारटर म बठा

हआ करीमददीन माउथ आगटन पर कोई परानी जिमी धन बजा रहा था

ldquoआज जदन भर बादल छाय रह लजकन खलकर बाररश नही हई ldquoजकरसमस तक शायद मौसम ऐसा ही रहगा कछ

दर तक दोनो चपचाप खड रह कॉनदवनदर सकल क बाहर िल लॉन स झीगरो का अनवरत सवर चारो ओर िली

जनसतबधता को और भी अजधक घना बना रहा था कभी-कभी ऊपर मोरर रोड पर जकसी कतत की ररररयाहर सनायी

पड़ा जाती थी ldquoडाकरर कल रात आपन जम हयबरट स कछ कहा था मर बार म ldquoवही जो सब लोग जानत ह और

हयबरट जजस जानना चाजहए था नही जानता था डाकरर न लजतका की ओर दखा वह जड़वत अजवचजलत रजलग पर

झकी हई थी ldquoवस हम सबकी अपनी-अपनी जजद होती ह कोई छोड़ दता ह कोई आजखर तक उसस जचपका रहता

ह डाकरर मकजी अधर म मसकराय उनकी मसकराहर म सखा-सा जवरजि का भाव भरा था ldquoकभी-कभी म सोचता

ह जमस लजतका जकसी चीज को न जानना यजद गलत ह तो जान-बझकर न भल पाना हमशा जोक की तरह उसस

जचपर रहना यह भी गलत ह बमाट स आत हए मरी पतनी की मतय हई थी मझ अपनी जजनददगी बकार-सी लगी थी

आज इस बात को असाट गजर गया और जसा आप दखती ह म जी रहा ह उममीद ह जक कािी असाट और जजऊ गा

जजनददगी कािी जदलचसप लगती ह और यजद उमर की मजबरी न होती तो शायद म दसरी शादी करन म भी न

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जहचकता इसक बावजद कौन कह सकता ह जक म अपनी पतनी स परम नही करता था आज भी करता ह ldquoलजकन

डाकरर लजतका का गला र ध आया था ldquoकया ज ामस लजतका

ldquoडाकरर - सबकछ होन क बावजद वह कया चीज़ ह जो हम चलाय चलती ह हम रकत ह तो भी अपन रल म वह हम

घसीर ल जाती ह लजतका को लगा जक वह जो कहना चाह रही ह कह नही पा रही जस अधर म कछ खो गया ह

जो जमल नही पा रहा शायद कभी नही जमल पायगा ldquoयह तो आपको िादर एमणड ही बता सक ग जमस लजतका

डाकरर की खोखली हसी म उनका पराना सनकीपन उभर आया था ldquoअचछा चलता ह जमस लजतका मझ कािी दर

हो गयी ह डाकरर न जदयासलाई जलाकर घड़ी को दखा ldquoगड नाइर जमस लजतका ldquoगड नाइर डाकरर

डाकरर क जान पर लजतका कछ दर तक अधर म रजलग स सरी खड़ी रही हवा चलन स कॉरीडोर म जमा हआ कहरा

जसहर उठता था शाम को सामान बाधत हए लड़जकयो न अपन-अपन कमर क सामन जो परानी काजपयो अखबारो

और रददी क ढर लगा जदय थ व सब अब अधर कॉरीडोर म हवा क झोको स इधर-उधर जबखरन लग थ

लजतका न लमप उठाया और अपन कमर की ओर जान लगी कॉरीडोर म चलत हए उसन दखा जली क कमर म

परकाश की एक पतली रखा दरवाज क बाहर जखच आयी ह लजतका को कछ याद आया वह कछ कषणो तक सास

रोक जली क कमर क बाहर खड़ी रही कछ दर बाद उसन दरवाजा खरखराया भीतर स कोई आवाज नही आयी

लजतका न दब हाथो स हलका-सा धकका जदया दरवाजा खल गया जली लमप बझाना भल गयी थी लजतका धीर-

धीर दब पाव जली क पलग क पास चली आयी जली का सोता हआ चहरा लमप क िीक आलोक म पीला-सा

दीख रहा था लजतका न अपनी जब स वही नीला जलिािा जनकाला और उस धीर-स जली क तजकय क नीच

दबाकर रख जदया

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अमतसर आ गया ि

भीषम साहनी

गाड़ी क जडबब म बहत मसाजिर नही थ मर सामनवाली सीर पर बठ सरदार जी दर स मझ लाम क जकसस सनात रह

थ वह लाम क जदनो म बमाट की लड़ाई म भाग ल चक थ और बात-बात पर खी-खी करक हसत और गोर िौजजयो

की जखली उड़ात रह थ जडबब म तीन पठान वयापारी भी थ उनम स एक हर रग की पोशाक पहन ऊपरवाली बथट पर

लरा हआ था वह आदमी बड़ा हसमख था और बड़ी दर स मर साथवाली सीर पर बठ एक दबल-स बाब क साथ

उसका मजाक चल रहा था वह दबला बाब पशावर का रहनवाला जान पड़ता था कयोजक जकसी-जकसी वि व

आपस म पशतो म बात करन लगत थ मर सामन दाई ओर कोन म एक बजढ़या मह-जसर ढाप बठा थी और दर स

माला जप रही थी यही कछ लोग रह होग सभव ह दो-एक और मसाजिर भी रह हो पर व सपित मझ याद नही

गाड़ी धीमी रफतार स चली जा रही थी और गाड़ी म बठ मसाजिर बजतया रह थ और बाहर गह क खतो म हकी-

हकी लहररया उठ रही थी और म मन-ही-मन बड़ा खश था कयोजक म जदली म होनवाला सवततरता-जदवस समारोह

दखन जा रहा था

उन जदनो क बार म सोचता ह तो लगता ह हम जकसी झरपर म जी रह ह शायद समय बीत जान पर अतीत का सारा

वयापार ही झरपर म बीता जान पड़ता ह जयो-जयो भजवषय क पर खलत जात ह यह झरपरा और भी गहराता चला

जाता ह

उनदही जदनो पाजकसतान क बनाए जान का ऐलान जकया गया था और लोग तरह-तरह क अनमान लगान लग थ जक

भजवषय म जीवन की रपरखा कसी होगी पर जकसी की भी कपना बहत दर तक नही जा पाती थी मर सामन बठ

सरदार जी बार-बार मझस पछ रह थ जक पाजकसतान बन जान पर जजनदना साजहब बबई म ही रहग या पाजकसतान म जा

कर बस जाएग और मरा हर बार यही जवाब होता - बबई कयो छोड़ग पाजकसतान म आत-जात रहग बबई छोड़ दन

म कया तक ह लाहौर और गरदासपर क बार म भी अनमान लगाए जा रह थ जक कौन-सा शहर जकस ओर जाएगा

जमल बठन क ढग म गप-शप म हसी-मजाक म कोई जवशि अतर नही आया था कछ लोग अपन घर छोड़ कर जा

रह थ जबजक अनदय लोग उनका मजाक उड़ा रह थ कोई नही जानता था जक कौन-सा कदम ठीक होगा और कौन-सा

गलत एक ओर पाजकसतान बन जान का जोश था तो दसरी ओर जहदसतान क आजाद हो जान का जोश जगह-जगह

दग भी हो रह थ और योम-ए-आजादी की तयाररया भी चल रही थी इस पषठभजम म लगता दश आजाद हो जान पर

दग अपन-आप बद हो जाएग वातावरण म इस झरपर म आजादी की सनहरी धल-सी उड़ रही थी और साथ-ही-

साथ अजनशचय भी डोल रहा था और इसी अजनशचय की जसथजत म जकसी-जकसी वि भावी ररशतो की रपरखा झलक द

जाती थी

शायद जहलम का सरशन पीछ छर चका था जब ऊपर वाली बथट पर बठ पठान न एक पोरली खोल ली और उसम स

उबला हआ मास और नान-रोरी क रकड़ जनकाल-जनकाल कर अपन साजथयो को दन लगा जिर वह हसी-मजाक क

बीच मरी बगल म बठ बाब की ओर भी नान का रकड़ा और मास की बोरी बढ़ा कर खान का आगरह करन लगा था -

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का ल बाब ताकत आएगी अम जसा ओ जाएगा बीवी बी तर सात कश रएगी काल दालकोर त दाल काता ए

इसजलए दबला ए

जडबब म लोग हसन लग थ बाब न पशतो म कछ जवाब जदया और जिर मसकराता जसर जहलाता रहा

इस पर दसर पठान न हस कर कहा - ओ जाजलम अमार हाथ स नई लता ए तो अपन हाथ स उठा ल खदा कसम

बकर का गोशत ए और जकसी चीज का नईए

ऊपर बठा पठान चहक कर बोला - ओ खजीर क तम इदर तम कौन दखता ए अम तरी बीवी को नई बोलगा ओ त

अमार साथ बोरी तोड़ अम तर साथ दाल जपएगा

इस पर कहकहा उठा पर दबला-पतला बाब हसता जसर जहलाता रहा और कभी-कभी दो शबद पशतो म भी कह दता

ओ जकतना बरा बात ए अम खाता ए और त अमारा म दखता ए सभी पठान मगन थ

यह इसजलए नही लता जक तमन हाथ नही धोए ह सथलकाय सरदार जी बोल और बोलत ही खी-खी करन लग

अधलरी मरा म बठ सरदार जी की आधी तोद सीर क नीच लरक रही थी - तम अभी सो कर उठ हो और उठत ही

पोरली खोल कर खान लग गए हो इसीजलए बाब जी तमहार हाथ स नही लत और कोई बात नही और सरदार जी न

मरी ओर दख कर आख मारी और जिर खी-खी करन लग

मास नई खाता ए बाब तो जाओ जनाना डबब म बरो इदर कया करता ए जिर कहकहा उठा

डबब म और भी अनक मसाजिर थ लजकन परान मसाजिर यही थ जो सिर शर होन म गाड़ी म बठ थ बाकी

मसाजिर उतरत-चढ़त रह थ परान मसाजिर होन क नात उनम एक तरह की बतकलिी आ गई थी

ओ इदर आ कर बठो तम अमार साथ बरो आओ जाजलम जकससा-खानी की बात करग

तभी जकसी सरशन पर गाड़ी रकी थी और नए मसाजिरो का रला अदर आ गया था बहत-स मसाजिर एक साथ अदर

घसत चल आए थ

कौन-सा सरशन ह जकसी न पछा

वजीराबाद ह शायद मन बाहर की ओर दख कर कहा

गाड़ी वहा थोड़ी दर क जलए खड़ी रही पर छरन स पहल एक छोरी-सी घरना घरी एक आदमी साथ वाल जडबब म

स पानी लन उतरा और नल पर जा कर पानी लोर म भर रहा था तभी वह भाग कर अपन जडबब की ओर लौर आया

छलछलात लोर म स पानी जगर रहा था लजकन जजस ढग स वह भागा था उसी न बहत कछ बता जदया था नल पर

खड़ और लोग भी तीन-चार आदमी रह होग - इधर-उधर अपन-अपन जडबब की ओर भाग गए थ इस तरह घबरा

कर भागत लोगो को म दख चका था दखत-ही-दखत पलरिामट खाली हो गया मगर जडबब क अदर अभी भी हसी-

मजाक चल रहा था

कही कोई गड़बड़ ह मर पास बठ दबल बाब न कहा

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कही कछ था लजकन कया था कोई भी सपि नही जानता था म अनक दग दख चका था इसजलए वातावरण म होन

वाली छोरी-सी तबदील को भी भाप गया था भागत वयजि खराक स बद होत दरवाज घरो की छतो पर खड़ लोग

चपपी और सनदनारा सभी दगो क जचहन थ

तभी जपछल दरवाज की ओर स जो पलरिामट की ओर न खल कर दसरी ओर खलता था हका-सा शोर हआ कोई

मसाजिर अदर घसना चाह रहा था

कहा घसा आ रहा ह नही ह जगह बोल जदया जगह नही ह जकसी न कहा

बद करो जी दरवाजा यो ही मह उठाए घस आत ह आवाज आ रही थी

जजतनी दर कोई मसाजिर जडबब क बाहर खड़ा अदर आन की चिा करता रह अदर बठ मसाजिर उसका जवरोध करत

रहत ह पर एक बार जस-तस वह अदर जा जाए तो जवरोध खतम हो जाता ह और वह मसाजिर जदी ही जडबब की

दजनया का जनवासी बन जाता ह और अगल सरशन पर वही सबस पहल बाहर खड़ मसाजिरो पर जचलान लगता ह -

नही ह जगह अगल जडबब म जाओ घस आत ह

दरवाज पर शोर बढ़ता जा रहा था तभी मल-कचल कपड़ो और लरकती मछो वाला एक आदमी दरवाज म स अदर

घसता जदखाई जदया चीकर मल कपड़ जरर कही हलवाई की दकान करता होगा वह लोगो की जशकायतो-

आवाजो की ओर धयान जदए जबना दरवाज की ओर घम कर बड़ा-सा काल रग का सदक अदर की ओर घसीरन लगा

आ जाओ आ जाओ तम भी चढ़ जाओ वह अपन पीछ जकसी स कह जा रहा था तभी दरवाज म एक पतली

सखी-सी औरत नजर आई और उसस पीछ सोलह-सतरह बरस की सावली-सी एक लड़की अदर आ गई लोग अभी

भी जचलाए जा रह थ सरदार जी को कहो क बल उठ कर बठना पड़ा

बद करो जी दरवाजा जबना पछ चढ़ आत ह अपन बाप का घर समझ रखा ह मत घसन दो जी कया करत हो धकल

दो पीछ और लोग भी जचला रह थ

वह आदमी अपना सामान अदर घसीर जा रहा था और उसकी पतनी और बरी सडास क दरवाज क साथ लग कर

खड़ थ

और कोई जडबबा नही जमला औरत जात को भी यहा उठा लाया ह

वह आदमी पसीन स तर था और हािता हआ सामान अदर घसीर जा रहा था सदक क बाद रजससयो स बधी खार

की पाजरया अदर खीचन लगा

जरकर ह जी मर पास म बजरकर नही ह इस पर जडबब म बठ बहत-स लोग चप हो गए पर बथट पर बठा पठान उचक

कर बोला - जनकल जाओ इदर स दखता नई ए इदर जगा नई ए

और पठान न आव दखा न ताव आग बढ़ कर ऊपर स ही उस मसाजिर क लात जमा दी पर लात उस आदमी को

लगन क बजाए उसकी पतनी क कलज म लगी और वही हाय-हाय करती बठ गई

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उस आदमी क पास मसाजिरो क साथ उलझन क जलए वि नही था वह बराबर अपना सामान अदर घसीर जा रहा

था पर जडबब म मौन छा गया खार की पाजरयो क बाद बड़ी-बड़ी गठररया आई इस पर ऊपर बठ पठान की सहन-

कषमता चक गई जनकालो इस कौन ए य वह जचलाया इस पर दसर पठान न जो नीच की सीर पर बठा था उस

आदमी का सदक दरवाज म स नीच धकल जदया जहा लाल वदीवाला एक कली खड़ा सामान अदर पहचा रहा था

उसकी पतनी क चोर लगन पर कछ मसाजिर चप हो गए थ कवल कोन म बठो बजढ़या करलाए जा रही थी - ए

नकबखतो बठन दो आ जा बरी त मर पास आ जा जस-तस सिर कार लग छोड़ो ब जाजलमो बठन दो

अभीआधा सामान ही अदर आ पाया होगा जब सहसा गाड़ी सरकन लगी

छर गया सामान छर गया वह आदमी बदहवास-सा हो कर जचलाया

जपताजी सामान छर गया सडास क दरवाज क पास खड़ी लड़की जसर स पाव तक काप रही थी और जचलाए जा

रही थी

उतरो नीच उतरो वह आदमी हड़बड़ा कर जचलाया और आग बढ़ कर खार की पाजरया और गठररया बाहर ि कत

हए दरवाज का डडहरा पकड़ कर नीच उतर गया उसक पीछ उसकी वयाकल बरी और जिर उसकी पतनी कलज को

दोनो हाथो स दबाए हाय-हाय करती नीच उतर गई

बहत बरा जकया ह तम लोगो न बहत बरा जकया ह बजढ़या ऊ चा-ऊ चा बोल रही थी -तमहार जदल म ददट मर गया ह

छोरी-सी बचची उसक साथ थी बरहमो तमन बहत बरा जकया ह धकक द कर उतार जदया ह

गाड़ी सन पलरिामट को लाघती आग बढ़ गई जडबब म वयाकल-सी चपपी छा गई बजढ़या न बोलना बद कर जदया था

पठानो का जवरोध कर पान की जहममत नही हई

तभी मरी बगल म बठ दबल बाब न मर बाज पर हाथ रख कर कहा - आग ह दखो आग लगी ह

गाड़ी पलरिामट छोड़ कर आग जनकल आई थी और शहर पीछ छर रहा था तभी शहर की ओर स उठत धए क

बादल और उनम लपलपाती आग क शोल नजर आन लग

दगा हआ ह सरशन पर भी लोग भाग रह थ कही दगा हआ ह

शहर म आग लगी थी बात जडबब-भर क मसाजिरो को पता चल गई और व लपक-लपक कर जखड़जकयो म स आग

का दशय दखन लग

जब गाड़ी शहर छोड़ कर आग बढ़ गई तो जडबब म सनदनारा छा गया मन घम कर जडबब क अदर दखा दबल बाब का

चहरा पीला पड़ गया था और माथ पर पसीन की परत जकसी मद क माथ की तरह चमक रही थी मझ लगा जस

अपनी-अपनी जगह बठ सभी मसाजिरो न अपन आसपास बठ लोगो का जायजा ल जलया ह सरदार जी उठ कर मरी

सीर पर आ बठ नीच वाली सीर पर बठा पठान उठा और अपन दो साथी पठानो क साथ ऊपर वाली बथट पर चढ़

गया यही जकरया शायद रलगाड़ी क अनदय जडबबो म भी चल रही थी जडबब म तनाव आ गया लोगो न बजतयाना बद

कर जदया तीनो-क-तीनो पठान ऊपरवाली बथट पर एक साथ बठ चपचाप नीच की ओर दख जा रह थ सभी

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मसाजिरो की आख पहल स जयादा खली-खली जयादा शजकत-सी लगी यही जसथजत सभवत गाड़ी क सभी जडबबो

म वयापत हो रही थी

कौन-सा सरशन था यह जडबब म जकसी न पछा

वजीराबाद जकसी न उततर जदया

जवाब जमलन पर जडबब म एक और परजतजकरया हई पठानो क मन का तनाव िौरन ढीला पड़ गया जबजक जहद-जसकख

मसाजिरो की चपपी और जयादा गहरी हो गई एक पठान न अपनी वासकर की जब म स नसवार की जडजबया जनकाली

और नाक म नसवार चढ़ान लगा अनदय पठान भी अपनी-अपनी जडजबया जनकाल कर नसवार चढ़ान लग बजढ़या

बराबर माला जप जा रही थी जकसी-जकसी वि उसक बदबदात होठ नजर आत लगता उनम स कोई खोखली-सी

आवाज जनकल रही ह

अगल सरशन पर जब गाड़ी रकी तो वहा भी सनदनारा था कोई पररदा तक नही िड़क रहा था हा एक जभशती पीठ

पर पानी की मशकल लाद पलरिामट लाघ कर आया और मसाजिरो को पानी जपलान लगा

लो जपयो पानी जपयो पानी औरतो क जडबब म स औरतो और बचचो क अनक हाथ बाहर जनकल आए थ

बहत मार-कार हई ह बहत लोग मर ह लगता था वह इस मार-कार म अकला पणय कमान चला आया ह

गाड़ी सरकी तो सहसा जखड़जकयो क पल चढ़ाए जान लग दर-दर तक पजहयो की गड़गड़ाहर क साथ जखड़जकयो

क पल चढ़ान की आवाज आन लगी

जकसी अजञात आशकावश दबला बाब मर पासवाली सीर पर स उठा और दो सीरो क बीच िशट पर लर गया उसका

चहरा अभी भी मद जसा पीला हो रहा था इस पर बथट पर बठा पठान उसकी जठठोली करन लगा - ओ बगरत तम

मदट ए जक औरत ए सीर पर स उर कर नीच लरता ए तम मदट क नाम को बदनाम करता ए वह बोल रहा था और

बार-बार हस जा रहा था जिर वह उसस पशतो म कछ कहन लगा बाब चप बना लरा रहा अनदय सभी मसाजिर चप

थ जडबब का वातावरण बोजझल बना हआ था

ऐस आदमी को अम जडबब म नई बठन दगा ओ बाब अगल सरशन पर उतर जाओ और जनाना डबब म बरो

मगर बाब की हाजजरजवाबी अपन कठ म सख चली थी हकला कर चप हो रहा पर थोड़ी दर बाद वह अपन आप

उठ कर सीर पर जा बठा और दर तक अपन कपड़ो की धल झाड़ता रहा वह कयो उठ कर िशट पर लर गया था

शायद उस डर था जक बाहर स गाड़ी पर पथराव होगा या गोली चलगी शायद इसी कारण जखड़जकयो क पल चढ़ाए

जा रह थ

कछ भी कहना कजठन था ममजकन ह जकसी एक मसाजिर न जकसी कारण स जखड़की का पला चढ़ाया हो उसकी

दखा-दखी जबना सोच-समझ धड़ाधड़ जखड़जकयो क पल चढ़ाए जान लग थ

बोजझल अजनशचत-स वातावरण म सिर करन लगा रात गहरान लगी थी जडबब क मसाजिर सतबध और शजकत जयो-

क-तयो बठ थ कभी गाड़ी की रफतार सहसा रर कर धीमी पड़ जाती तो लोग एक-दसर की ओर दखन लगत कभी

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रासत म ही रक जाती तो जडबब क अदर का सनदनारा और भी गहरा हो उठता कवल पठान जनजशचत बठ थ हा उनदहोन

भी बजतयाना छोड़ जदया था कयोजक उनकी बातचीत म कोई भी शाजमल होन वाला नही था

धीर-धीर पठान ऊ घन लग जबजक अनदय मसाजिर िरी-िरी आखो स शनदय म दख जा रह थ बजढ़या मह-जसर लपर

राग सीर पर चढ़ाए बठा-बठा सो गई थी ऊपरवाली बथट पर एक पठान न अधलर ही कत की जब म स काल

मनको की तसबीह जनकाल ली और उस धीर-धीर हाथ म चलान लगा

जखड़की क बाहर आकाश म चाद जनकल आया और चादनी म बाहर की दजनया और भी अजनजशचत और भी अजधक

रहसयमयी हो उठी जकसी-जकसी वि दर जकसी ओर आग क शोल उठत नजर आत कोई नगर जल रहा था गाड़ी

जकसी वि जचघाड़ती हई आग बढ़न लगती जिर जकसी वि उसकी रफतार धीमी पड़ जाती और मीलो तक धीमी

रफतार स ही चलती रहती

सहसा दबला बाब जखड़की म स बाहर दख कर ऊ ची आवाज म बोला - हरबसपरा जनकल गया ह उसकी आवाज

म उततजना थी वह जस चीख कर बोला था जडबब क सभी लोग उसकी आवाज सन कर चौक गए उसी वि जडबब

क अजधकाश मसाजिरो न मानो उसकी आवाज को ही सन कर करवर बदली

ओ बाब जचलाता कयो ए तसबीह वाला पठान चौक कर बोला - इदर उतरगा तम जजीर खीच अर खी-खी

करक हस जदया जाजहर ह वह हरबसपरा की जसथजत स अथवा उसक नाम स अनजभजञ था

बाब न कोई उततर नही जदया कवल जसर जहला जदया और एक-आध बार पठान की ओर दख कर जिर जखड़की क

बाहर झाकन लगा

डबब म जिर मौन छा गया तभी इजन न सीरी दी और उसकी एकरस रफतार रर गई थोड़ी ही दर बाद खराक-का-सा

शबद भी हआ शायद गाड़ी न लाइन बदली थी बाब न झाक कर उस जदशा म दखा जजस ओर गाड़ी बढ़ी जा रही थी

शहर आ गया ह वह जिर ऊ ची आवाज म जचलाया - अमतसर आ गया ह उसन जिर स कहा और उछल कर

खड़ा हो गया और ऊपर वाली बथट पर लर पठान को सबोजधत करक जचलाया - ओ ब पठान क बचच नीच उतर

तरी मा की नीच उतर तरी उस पठान बनानवाल की म

बाब जचलान लगा और चीख-चीख कर गाजलया बकन लगा था तसबीह वाल पठान न करवर बदली और बाब की

ओर दख कर बोला -ओ कया ए बाब अमको कच बोला

बाब को उततजजत दख कर अनदय मसाजिर भी उठ बठ

नीच उतर तरी म जहद औरत को लात मारता ह हरामजाद तरी उस

ओ बाब बक-बकर नई करो ओ खजीर क तखम गाली मत बको अमन बोल जदया अम तमहारा जबान खीच

लगा

गाली दता ह मादर बाब जचलाया और उछल कर सीर पर चढ़ गया वह जसर स पाव तक काप रहा था

बस-बस सरदार जी बोल - यह लड़न की जगह नही ह थोड़ी दर का सिर बाकी ह आराम स बठो

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तरी म लात न तोड़ तो कहना गाड़ी तर बाप की ह बाब जचलाया

ओ अमन कया बोला सबी लोग उसको जनकालता था अमन बी जनकाला य इदर अमको गाली दता ए अम इसका

जबान खीच लगा

बजढ़या बीच म जिर बोल उठी - व जीण जोगयो अराम नाल बठो व रबब जदए बदयो कछ होश करो

उसक होठ जकसी परत की तरह िड़िड़ाए जा रह थ और उनम स कषीण-सी िसिसाहर सनाई द रही थी

बाब जचलाए जा रहा था - अपन घर म शर बनता था अब बोल तरी म उस पठान बनानवाल की

तभी गाड़ी अमतसर क पलरिामट पर रकी पलरिामट लोगो स खचाखच भरा था पलरिामट पर खड़ लोग झाक-झाक

कर जडबबो क अदर दखन लग बार-बार लोग एक ही सवाल पछ रह थ - पीछ कया हआ ह कहा पर दगा हआ ह

खचाखच भर पलरिामट पर शायद इसी बात की चचाट चल रही थी जक पीछ कया हआ ह पलरिामट पर खड़ दो-तीन

खोमच वालो पर मसाजिर रर पड़ रह थ सभी को सहसा भख और पयास परशान करन लगी थी इसी दौरान तीन-

चार पठान हमार जडबब क बाहर परकर हो गए और जखड़की म स झाक-झाक कर अदर दखन लग अपन पठान

साजथयो पर नजर पड़त ही व उनस पशतो म कछ बोलन लग मन घम कर दखा बाब जडबब म नही था न जान कब

वह जडबब म स जनकल गया था मरा माथा जठनका गसस म वह पागल हआ जा रहा था न जान कया कर बठ पर इस

बीच जडबब क तीनो पठान अपनी-अपनी गठरी उठा कर बाहर जनकल गए और अपन पठान साजथयो क साथ गाड़ी क

अगल जडबब की ओर बढ़ गए जो जवभाजन पहल परतयक जडबब क भीतर होता रहा था अब सारी गाड़ी क सतर पर

होन लगा था

खोमचवालो क इदट-जगदट भीड़ छरन लगी लोग अपन-अपन जडबबो म लौरन लग तभी सहसा एक ओर स मझ वह

बाब आता जदखाई जदया उसका चहरा अभी भी बहत पीला था और माथ पर बालो की लर झल रही थी नजदीक

पहचा तो मन दखा उसन अपन दाए हाथ म लोह की एक छड़ उठा रखी थी जान वह उस कहा जमल गई थी जडबब

म घसत समय उसन छड़ को अपनी पीठ क पीछ कर जलया और मर साथ वाली सीर पर बठन स पहल उसन हौल स

छड़ को सीर क नीच सरका जदया सीर पर बठत ही उसकी आख पठान को दख पान क जलए ऊपर को उठी पर

जडबब म पठानो को न पा कर वह हड़बड़ा कर चारो ओर दखन लगा

जनकल गए हरामी मादर सब-क-सब जनकल गए जिर वह जसरजपरा कर उठ खड़ा हआ जचला कर बोला - तमन

उनदह जान कयो जदया तम सब नामदट हो बजजदल

पर गाड़ी म भीड़ बहत थी बहत-स नए मसाजिर आ गए थ जकसी न उसकी ओर जवशि धयान नही जदया

गाड़ी सरकन लगी तो वह जिर मरी वाली सीर पर आ बठा पर वह बड़ा उततजजत था और बराबर बड़बड़ाए जा रहा

था

धीर-धीर जहचकोल खाती गाड़ी आग बढ़न लगी जडबब म परान मसाजिरो न भरपर पररया खा ली थी और पानी पी

जलया था और गाड़ी उस इलाक म आग बढ़न लगी थी जहा उनक जान-माल को खतरा नही था

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नए मसाजिर बजतया रह थ धीर-धीर गाड़ी जिर समतल गजत स चलन लगी थी कछ ही दर बाद लोग ऊ घन भी लग

थ मगर बाब अभी भी िरी-िरी आखो स सामन की ओर दख जा रहा था बार-बार मझस पछता जक पठान जडबब म

स जनकल कर जकस ओर को गए ह उसक जसर पर जनन सवार था

गाड़ी क जहचकोलो म म खद ऊ घन लगा था जडबब म लर पान क जलए जगह नही थी बठ-बठ ही नीद म मरा जसर

कभी एक ओर को लढ़क जाता कभी दसरी ओर को जकसी-जकसी वि झरक स मरी नीद ररती और मझ सामन की

सीर पर असत-वयसत स पड़ सरदार जी क खराटर सनाई दत अमतसर पहचन क बाद सरदार जी जिर स सामनवाली

सीर पर राग पसार कर लर गए थ जडबब म तरह-तरह की आड़ी-जतरछी मराओ म मसाजिर पड़ थ उनकी बीभतस

मराओ को दख कर लगता जडबबा लाशो स भरा ह पास बठ बाब पर नजर पड़ती तो कभी तो वह जखड़की क बाहर

मह जकए दख रहा होता कभी दीवार स पीठ लगाए तन कर बठा नजर आता

जकसी-जकसी वि गाड़ी जकसी सरशन पर रकती तो पजहयो की गड़गड़ाहर बद होन पर जनसतबधता-सी छा जाती तभी

लगता जस पलरिामट पर कछ जगरा ह या जस कोई मसाजिर गाड़ी म स उतरा ह और म झरक स उठ कर बठ जाता

इसी तरह जब एक बार मरी नीद ररी तो गाड़ी की रफतार धीमी पड़ गई थी और जडबब म अधरा था मन उसी तरह

अधलर जखड़की म स बाहर दखा दर पीछ की ओर जकसी सरशन क जसगनल क लाल कमकम चमक रह थ सपित

गाड़ी कोई सरशन लाघ कर आई थी पर अभी तक उसन रफतार नही पकड़ी थी

जडबब क बाहर मझ धीम-स असिर सवर सनाई जदए दर ही एक धजमल-सा काला पज नजर आया नीद की खमारी म

मरी आख कछ दर तक उस पर लगी रही जिर मन उस समझ पान का जवचार छोड़ जदया जडबब क अदर अधरा था

बजततया बझी हई थी लजकन बाहर लगता था पौ िरन वाली ह

मरी पीठ-पीछ जडबब क बाहर जकसी चीज को खरोचन की-सी आवाज आई मन दरवाज की ओर घम कर दखा

जडबब का दरवाजा बद था मझ जिर स दरवाजा खरोचन की आवाज सनाई दी जिर मन साि-साि सना लाठी स

कोई जडबब का दरवाजा परपरा रहा था मन झाक कर जखड़की क बाहर दखा सचमच एक आदमी जडबब की दो

सीजढ़या चढ़ आया था उसक कध पर एक गठरी झल रही थी और हाथ म लाठी थी और उसन बदरग-स कपड़ पहन

रख थ और उसक दाढ़ी भी थी जिर मरी नजर बाहर नीच की ओर आ गई गाड़ी क साथ-साथ एक औरत भागती

चली आ रही थी नग पाव और उसन दो गठररया उठा रखी थी बोझ क कारण उसस दौड़ा नही जा रहा था जडबब क

पायदान पर खड़ा आदमी बार-बार उसकी ओर मड़ कर दख रहा था और हािता हआ कह जा रहा था - आ जा आ

जा त भी चढ़ आ आ जा

दरवाज पर जिर स लाठी परपरान की आवाज आई - खोलो जी दरवाजा खदा क वासत दरवाजा खोलो

वह आदमी हाि रहा था - खदा क जलए दरवाजा खोलो मर साथ म औरतजात ह गाड़ी जनकल जाएगी

सहसा मन दखा बाब हड़बड़ा कर उठ खड़ा हआ और दरवाज क पास जा कर दरवाज म लगी जखड़की म स मह

बाहर जनकाल कर बोला - कौन ह इधर जगह नही ह

बाहर खड़ा आदमी जिर जगड़जगड़ान लगा - खदा क वासत दरवाजा खोलो गाड़ी जनकल जाएगी

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और वह आदमी जखड़की म स अपना हाथ अदर डाल कर दरवाजा खोल पान क जलए जसरकनी ररोलन लगा

नही ह जगह बोल जदया उतर जाओ गाड़ी पर स बाब जचलाया और उसी कषण लपक कर दरवाजा खोल जदया

या अलाह उस आदमी क असिर-स शबद सनाई जदए दरवाजा खलन पर जस उसन इतमीनान की सास ली हो

और उसी वि मन बाब क हाथ म छड़ चमकत दखा एक ही भरपर वार बाब न उस मसाजिर क जसर पर जकया था म

दखत ही डर गया और मरी राग लरज गई मझ लगा जस छड़ क वार का उस आदमी पर कोई असर नही हआ

उसक दोनो हाथ अभी भी जोर स डडहर को पकड़ हए थ कध पर स लरकती गठरी जखसर कर उसकी कोहनी पर

आ गई थी

तभी सहसा उसक चहर पर लह की दो-तीन धार एक साथ िर पड़ी मझ उसक खल होठ और चमकत दात नजर

आए वह दो-एक बार या अलाह बदबदाया जिर उसक पर लड़खड़ा गए उसकी आखो न बाब की ओर दखा

अधमदी-सी आख जो धीर-धीर जसकड़ती जा रही थी मानो उस पहचानन की कोजशश कर रही हो जक वह कौन ह

और उसस जकस अदावत का बदला ल रहा ह इस बीच अधरा कछ और छन गया था उसक होठ जिर स िड़िड़ाए

और उनम सिद दात जिर स झलक उठ मझ लगा जस वह मसकराया ह पर वासतव म कवल कषय क ही कारण होठो

म बल पड़न लग थ

नीच पररी क साथ-साथ भागती औरत बड़बड़ाए और कोस जा रही थी उस अभी भी मालम नही हो पाया था जक

कया हआ ह वह अभी भी शायद यह समझ रही थी जक गठरी क कारण उसका पजत गाड़ी पर ठीक तरह स चढ़ नही

पा रहा ह जक उसका पर जम नही पा रहा ह वह गाड़ी क साथ-साथ भागती हई अपनी दो गठररयो क बावजद अपन

पजत क पर पकड़-पकड़ कर सीढ़ी पर जरकान की कोजशश कर रही थी

तभी सहसा डडहर स उस आदमी क दोनो हाथ छर गए और वह कर पड़ की भाजत नीच जा जगरा और उसक जगरत

ही औरत न भागना बद कर जदया मानो दोनो का सिर एक साथ ही खतम हो गया हो

बाब अभी भी मर जनकर जडबब क खल दरवाज म बत-का-बत बना खड़ा था लोह की छड़ अभी भी उसक हाथ म

थी मझ लगा जस वह छड़ को ि क दना चाहता ह लजकन उस ि क नही पा रहा उसका हाथ जस उठ नही रहा था

मरी सास अभी भी िली हई थी और जडबब क अजधयार कोन म म जखड़की क साथ सर कर बठा उसकी ओर दख जा

रहा था

जिर वह आदमी खड़-खड़ जहला जकसी अजञात पररणावश वह एक कदम आग बढ़ आया और दरवाज म स बाहर

पीछ की ओर दखन लगा गाड़ी आग जनकलती जा रही थी दर पररी क जकनार अजधयारा पज-सा नजर आ रहा था

बाब का शरीर हरकत म आया एक झरक म उसन छड़ को जडबब क बाहर ि क जदया जिर घम कर जडबब क अदर

दाए-बाए दखन लगा सभी मसाजिर सोए पड़ थ मरी ओर उसकी नजर नही उठी

थोड़ी दर तक वह खड़ा डोलता रहा जिर उसन घम कर दरवाजा बद कर जदया उसन धयान स अपन कपड़ो की ओर

दखा अपन दोनो हाथो की ओर दखा जिर एक-एक करक अपन दोनो हाथो को नाक क पास ल जा कर उनदह सघा

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मानो जानना चाहता हो जक उसक हाथो स खन की ब तो नही आ रही ह जिर वह दब पाव चलता हआ आया और

मरी बगलवाली सीर पर बठ गया

धीर-धीर झरपरा छरन लगा जदन खलन लगा साि-सथरी-सी रोशनी चारो ओर िलन लगी जकसी न जजीर खीच

कर गाड़ी को खड़ा नही जकया था छड़ खा कर जगरी उसकी दह मीलो पीछ छर चकी थी सामन गह क खतो म जिर

स हकी-हकी लहररया उठन लगी थी

सरदार जी बदन खजलात उठ बठ मरी बगल म बठा बाब दोनो हाथ जसर क पीछ रख सामन की ओर दख जा रहा

था रात-भर म उसक चहर पर दाढ़ी क छोर-छोर बाल उग आए थ अपन सामन बठा दख कर सरदार उसक साथ

बजतयान लगा - बड़ जीवर वाल हो बाब दबल-पतल हो पर बड़ गद वाल हो बड़ी जहममत जदखाई ह तमस डर कर

ही व पठान जडबब म स जनकल गए यहा बन रहत तो एक-न-एक की खोपड़ी तम जरर दरसत कर दत और सरदार

जी हसन लग

बाब जवाब म मसकराया - एक वीभतस-सी मसकान और दर तक सरदार जी क चहर की ओर दखता रहा

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चीफ की दावत

भीषम साहनी

आज जमसरर शामनाथ क घर चीि की दावत थी

शामनाथ और उनकी धमटपतनी को पसीना पोछन की िसटत न थी पतनी डरजसग गाउन पहन उलझ हए बालो का जड़ा

बनाए मह पर िली हई सखी और पाउड़र को मल और जमसरर शामनाथ जसगरर पर जसगरर ि कत हए चीजो की

िहररसत हाथ म थाम एक कमर स दसर कमर म आ-जा रह थ

आजखर पाच बजत-बजत तयारी मकममल होन लगी कजसटया मज जतपाइया नपजकन िल सब बरामद म पहच गए

जडरक का इतजाम बठक म कर जदया गया अब घर का िालत सामान अलमाररयो क पीछ और पलगो क नीच

जछपाया जान लगा तभी शामनाथ क सामन सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई मा का कया होगा

इस बात की ओर न उनका और न उनकी कशल गजहणी का धयान गया था जमसरर शामनाथ शरीमती की ओर घम कर

अगरजी म बोल - मा का कया होगा

शरीमती काम करत-करत ठहर गई और थोडी दर तक सोचन क बाद बोली - इनदह जपछवाड़ इनकी सहली क घर भज

दो रात-भर बशक वही रह कल आ जाए

शामनाथ जसगरर मह म रख जसकडी आखो स शरीमती क चहर की ओर दखत हए पल-भर सोचत रह जिर जसर जहला

कर बोल - नही म नही चाहता जक उस बजढ़या का आना-जाना यहा जिर स शर हो पहल ही बड़ी मजशकल स बद

जकया था मा स कह जक जदी ही खाना खा क शाम को ही अपनी कोठरी म चली जाए महमान कही आठ बज

आएग इसस पहल ही अपन काम स जनबर ल

सझाव ठीक था दोनो को पसद आया मगर जिर सहसा शरीमती बोल उठी - जो वह सो गई और नीद म खराटर लन

लगी तो साथ ही तो बरामदा ह जहा लोग खाना खाएग

तो इनदह कह दग जक अदर स दरवाजा बद कर ल म बाहर स ताला लगा दगा या मा को कह दता ह जक अदर जा कर

सोए नही बठी रह और कया

और जो सो गई तो जडनर का कया मालम कब तक चल गयारह-गयारह बज तक तो तम जडरक ही करत रहत हो

शामनाथ कछ खीज उठ हाथ झरकत हए बोल - अचछी-भली यह भाई क पास जा रही थी तमन य ही खद अचछा

बनन क जलए बीच म राग अड़ा दी

वाह तम मा और बर की बातो म म कयो बरी बन तम जानो और वह जान

जमसरर शामनाथ चप रह यह मौका बहस का न था समसया का हल ढढ़न का था उनदहोन घम कर मा की कोठरी की

ओर दखा कोठरी का दरवाजा बरामद म खलता था बरामद की ओर दखत हए झर स बोल - मन सोच जलया ह -

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और उनदही कदमो मा की कोठरी क बाहर जा खड़ हए मा दीवार क साथ एक चौकी पर बठी दपटट म मह-जसर लपर

माला जप रही थी सबह स तयारी होती दखत हए मा का भी जदल धड़क रहा था बर क दफतर का बड़ा साहब घर पर

आ रहा ह सारा काम सभीत स चल जाय

मा आज तम खाना जदी खा लना महमान लोग साढ़ सात बज आ जाएग

मा न धीर स मह पर स दपटटा हराया और बर को दखत हए कहा आज मझ खाना नही खाना ह बरा तम जो जानत

हो मास-मछली बन तो म कछ नही खाती

जस भी हो अपन काम स जदी जनबर लना

अचछा बरा

और मा हम लोग पहल बठक म बठ ग उतनी दर तम यहा बरामद म बठना जिर जब हम यहा आ जाए तो तम

गसलखान क रासत बठक म चली जाना

मा अवाक बर का चहरा दखन लगी जिर धीर स बोली - अचछा बरा

और मा आज जदी सो नही जाना तमहार खराटरो की आवाज दर तक जाती ह

मा लजजजत-सी आवाज म बोली - कया कर बरा मर बस की बात नही ह जब स बीमारी स उठी ह नाक स सास

नही ल सकती

जमसरर शामनाथ न इतजाम तो कर जदया जिर भी उनकी उधड़-बन खतम नही हई जो चीि अचानक उधर आ

जनकला तो आठ-दस महमान होग दसी अिसर उनकी जसतरया होगी कोई भी गसलखान की तरि जा सकता ह

कषोभ और करोध म वह झझलान लग एक कसी को उठा कर बरामद म कोठरी क बाहर रखत हए बोल - आओ मा

इस पर जरा बठो तो

मा माला सभालती पला ठीक करती उठी और धीर स कसी पर आ कर बठ गई

य नही मा राग ऊपर चढ़ा कर नही बठत यह खार नही ह

मा न राग नीच उतार ली

और खदा क वासत नग पाव नही घमना न ही वह खड़ाऊ पहन कर सामन आना जकसी जदन तमहारी यह खड़ाऊ उठा

कर म बाहर ि क दगा

मा चप रही

कपड़ कौन स पहनोगी मा

जो ह वही पहनगी बरा जो कहो पहन ल

जमसरर शामनाथ जसगरर मह म रख जिर अधखली आखो स मा की ओर दखन लग और मा क कपड़ो की सोचन

लग शामनाथ हर बात म तरतीब चाहत थ घर का सब सचालन उनक अपन हाथ म था खजरया कमरो म कहा

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लगाई जाए जबसतर कहा पर जबछ जकस रग क पद लगाए जाए शरीमती कौन-सी साड़ी पहन मज जकस साइज की

हो शामनाथ को जचता थी जक अगर चीि का साकषात मा स हो गया तो कही लजजजत नही होना पड मा को जसर स

पाव तक दखत हए बोल - तम सिद कमीज और सिद सलवार पहन लो मा पहन क आओ तो जरा दख

मा धीर स उठी और अपनी कोठरी म कपड़ पहनन चली गई

यह मा का झमला ही रहगा उनदहोन जिर अगरजी म अपनी सतरी स कहा - कोई ढग की बात हो तो भी कोई कह अगर

कही कोई उरी-सीधी बात हो गई चीि को बरा लगा तो सारा मजा जाता रहगा

मा सिद कमीज और सिद सलवार पहन कर बाहर जनकली छोरा-सा कद सिद कपड़ो म जलपरा छोरा-सा सखा

हआ शरीर धधली आख कवल जसर क आध झड़ हए बाल पल की ओर म जछप पाए थ पहल स कछ ही कम

करप नजर आ रही थी

चलो ठीक ह कोई चजड़या-वजड़या हो तो वह भी पहन लो कोई हजट नही

चजड़या कहा स लाऊ बरा तम तो जानत हो सब जवर तमहारी पढ़ाई म जबक गए

यह वाकय शामनाथ को तीर की तरह लगा जतनक कर बोल - यह कौन-सा राग छड़ जदया मा सीधा कह दो नही ह

जवर बस इसस पढ़ाई-वढ़ाई का कया तअलक ह जो जवर जबका तो कछ बन कर ही आया ह जनरा लडरा तो नही

लौर आया जजतना जदया था उसस दगना ल लना

मरी जीभ जल जाय बरा तमस जवर लगी मर मह स य ही जनकल गया जो होत तो लाख बार पहनती

साढ़ पाच बज चक थ अभी जमसरर शामनाथ को खद भी नहा-धो कर तयार होना था शरीमती कब की अपन कमर म

जा चकी थी शामनाथ जात हए एक बार जिर मा को जहदायत करत गए - मा रोज की तरह गमसम बन क नही बठी

रहना अगर साहब इधर आ जनकल और कोई बात पछ तो ठीक तरह स बात का जवाब दना

म न पढ़ी न जलखी बरा म कया बात कर गी तम कह दना मा अनपढ़ ह कछ जानती-समझती नही वह नही पछगा

सात बजत-बजत मा का जदल धक-धक करन लगा अगर चीि सामन आ गया और उसन कछ पछा तो वह कया

जवाब दगी अगरज को तो दर स ही दख कर घबरा उठती थी यह तो अमरीकी ह न मालम कया पछ म कया कह गी

मा का जी चाहा जक चपचाप जपछवाड़ जवधवा सहली क घर चली जाए मगर बर क हकम को कस राल सकती थी

चपचाप कसी पर स राग लरकाए वही बठी रही

एक कामयाब पारी वह ह जजसम जडरक कामयाबी स चल जाए शामनाथ की पारी सिलता क जशखर चमन लगी

वाताटलाप उसी रौ म बह रहा था जजस रौ म जगलास भर जा रह थ कही कोई रकावर न थी कोई अड़चन न थी

साहब को जवहसकी पसद आई थी ममसाहब को पद पसद आए थ सोिा-कवर का जडजाइन पसद आया था कमर

की सजावर पसद आई थी इसस बढ़ कर कया चाजहए साहब तो जडरक क दसर दौर म ही चरकल और कहाजनया

कहन लग गए थ दफतर म जजतना रोब रखत थ यहा पर उतन ही दोसत-परवर हो रह थ और उनकी सतरी काला गाउन

पहन गल म सिद मोजतयो का हार सर और पाउड़र की महक स ओत-परोत कमर म बठी सभी दसी जसतरयो की

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आराधना का क र बनी हई थी बात-बात पर हसती बात-बात पर जसर जहलाती और शामनाथ की सतरी स तो ऐस बात

कर रही थी जस उनकी परानी सहली हो

और इसी रो म पीत-जपलात साढ़ दस बज गए वि गजरत पता ही न चला

आजखर सब लोग अपन-अपन जगलासो म स आजखरी घर पी कर खाना खान क जलए उठ और बठक स बाहर

जनकल आग-आग शामनाथ रासता जदखात हए पीछ चीि और दसर महमान

बरामद म पहचत ही शामनाथ सहसा जठठक गए जो दशय उनदहोन दखा उसस उनकी राग लड़खड़ा गई और कषण-भर

म सारा नशा जहरन होन लगा बरामद म ऐन कोठरी क बाहर मा अपनी कसी पर जयो-की-तयो बठी थी मगर दोनो पाव

कसी की सीर पर रख हए और जसर दाए स बाए और बाए स दाए झल रहा था और मह म स लगातार गहर खराटरो

की आवाज आ रही थी जब जसर कछ दर क जलए रढ़ा हो कर एक तरि को थम जाता तो खराटर और भी गहर हो

उठत और जिर जब झरक-स नीद ररती तो जसर जिर दाए स बाए झलन लगता पला जसर पर स जखसक आया था

और मा क झर हए बाल आध गज जसर पर असत-वयसत जबखर रह थ

दखत ही शामनाथ करदध हो उठ जी चाहा जक मा को धकका द कर उठा द और उनदह कोठरी म धकल द मगर ऐसा

करना सभव न था चीि और बाकी महमान पास खड़ थ

मा को दखत ही दसी अिसरो की कछ जसतरया हस दी जक इतन म चीि न धीर स कहा - पअर जडयर

मा हड़बड़ा क उठ बठी सामन खड़ इतन लोगो को दख कर ऐसी घबराई जक कछ कहत न बना झर स पला जसर पर

रखती हई खड़ी हो गई और जमीन को दखन लगी उनक पाव लड़खड़ान लग और हाथो की उगजलया थर-थर कापन

लगी

मा तम जाक सो जाओ तम कयो इतनी दर तक जाग रही थी - और जखजसयाई हई नजरो स शामनाथ चीि क मह की

ओर दखन लग

चीि क चहर पर मसकराहर थी वह वही खड़-खड़ बोल नमसत

मा न जझझकत हए अपन म जसमरत हए दोनो हाथ जोड़ मगर एक हाथ दपटट क अदर माला को पकड़ हए था दसरा

बाहर ठीक तरह स नमसत भी न कर पाई शामनाथ इस पर भी जखनदन हो उठ

इतन म चीि न अपना दाया हाथ हाथ जमलान क जलए मा क आग जकया मा और भी घबरा उठी

मा हाथ जमलाओ

पर हाथ कस जमलाती दाए हाथ म तो माला थी घबराहर म मा न बाया हाथ ही साहब क दाए हाथ म रख जदया

शामनाथ जदल ही जदल म जल उठ दसी अिसरो की जसतरया जखलजखला कर हस पडी

य नही मा तम तो जानती हो दाया हाथ जमलाया जाता ह दाया हाथ जमलाओ

मगर तब तक चीि मा का बाया हाथ ही बार-बार जहला कर कह रह थ - हाउ ड य ड

कहो मा म ठीक ह खररयत स ह

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मा कछ बडबड़ाई

मा कहती ह म ठीक ह कहो मा हाउ ड य ड

मा धीर स सकचात हए बोली - हौ ड ड

एक बार जिर कहकहा उठा

वातावरण हका होन लगा साहब न जसथजत सभाल ली थी लोग हसन-चहकन लग थ शामनाथ क मन का कषोभ भी

कछ-कछ कम होन लगा था

साहब अपन हाथ म मा का हाथ अब भी पकड़ हए थ और मा जसकड़ी जा रही थी साहब क मह स शराब की ब आ

रही थी

शामनाथ अगरजी म बोल - मरी मा गाव की रहन वाली ह उमर भर गाव म रही ह इसजलए आपस लजाती ह

साहब इस पर खश नजर आए बोल - सच मझ गाव क लोग बहत पसद ह तब तो तमहारी मा गाव क गीत और

नाच भी जानती होगी चीि खशी स जसर जहलात हए मा को रकरकी बाध दखन लग

मा साहब कहत ह कोई गाना सनाओ कोई पराना गीत तमह तो जकतन ही याद होग

मा धीर स बोली - म कया गाऊ गी बरा मन कब गाया ह

वाह मा महमान का कहा भी कोई रालता ह

साहब न इतना रीझ स कहा ह नही गाओगी तो साहब बरा मानग

म कया गाऊ बरा मझ कया आता ह

वाह कोई बजढ़या रपप सना दो दो पततर अनारा द

दसी अिसर और उनकी जसतरयो न इस सझाव पर ताजलया पीरी मा कभी दीन दजि स बर क चहर को दखती कभी

पास खड़ी बह क चहर को

इतन म बर न गभीर आदश-भर जलहाज म कहा - मा

इसक बाद हा या ना सवाल ही न उठता था मा बठ गई और कषीण दबटल लरजती आवाज म एक पराना जववाह का

गीत गान लगी -

हररया नी माए हररया नी भण

हररया त भागी भररया ह

दसी जसतरया जखलजखला क हस उठी तीन पजिया गा क मा चप हो गई

बरामदा ताजलयो स गज उठा साहब ताजलया पीरना बद ही न करत थ शामनाथ की खीज परसनदनता और गवट म बदल

उठी थी मा न पारी म नया रग भर जदया था

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ताजलया थमन पर साहब बोल - पजाब क गावो की दसतकारी कया ह

शामनाथ खशी म झम रह थ बोल - ओ बहत कछ - साहब म आपको एक सर उन चीजो का भर कर गा आप

उनदह दख कर खश होग

मगर साहब न जसर जहला कर अगरजी म जिर पछा - नही म दकानो की चीज नही मागता पजाजबयो क घरो म कया

बनता ह औरत खद कया बनाती ह

शामनाथ कछ सोचत हए बोल - लड़जकया गजड़या बनाती ह और िलकाररया बनाती ह

िलकारी कया

शामनाथ िलकारी का मतलब समझान की असिल चिा करन क बाद मा को बोल - कयो मा कोई परानी िलकारी

घर म ह

मा चपचाप अदर गई और अपनी परानी िलकारी उठा लाई

साहब बड़ी रजच स िलकारी दखन लग परानी िलकारी थी जगह-जगह स उसक ताग रर रह थ और कपड़ा िरन

लगा था साहब की रजच को दख कर शामनाथ बोल - यह िरी हई ह साहब म आपको नई बनवा दगा मा बना

दगी कयो मा साहब को िलकारी बहत पसद ह इनदह ऐसी ही एक िलकारी बना दोगी न

मा चप रही जिर डरत-डरत धीर स बोली - अब मरी नजर कहा ह बरा बढ़ी आख कया दखगी

मगर मा का वाकय बीच म ही तोड़त हए शामनाथ साहब को बोल - वह जरर बना दगी आप उस दख कर खश होग

साहब न जसर जहलाया धनदयवाद जकया और हक-हक झमत हए खान की मज की ओर बढ़ गए बाकी महमान भी

उनक पीछ-पीछ हो जलए

जब महमान बठ गए और मा पर स सबकी आख हर गई तो मा धीर स कसी पर स उठी और सबस नजर बचाती हई

अपनी कोठरी म चली गई

मगर कोठरी म बठन की दर थी जक आखो म छल-छल आस बहन लग वह दपटट स बार-बार उनदह पोछती पर वह

बार-बार उमड़ आत जस बरसो का बाध तोड़ कर उमड़ आए हो मा न बहतरा जदल को समझाया हाथ जोड़ भगवान

का नाम जलया बर क जचराय होन की पराथटना की बार-बार आख बद की मगर आस बरसात क पानी की तरह जस

थमन म ही न आत थ

आधी रात का वि होगा महमान खाना खा कर एक-एक करक जा चक थ मा दीवार स सर कर बठी आख िाड़

दीवार को दख जा रही थी घर क वातावरण म तनाव ढीला पड़ चका था महल की जनसतबधता शामनाथ क घर भी

छा चकी थी कवल रसोई म पलरो क खनकन की आवाज आ रही थी तभी सहसा मा की कोठरी का दरवाजा जोर स

खरकन लगा

मा दरवाजा खोलो

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मा का जदल बठ गया हड़बड़ा कर उठ बठी कया मझस जिर कोई भल हो गई मा जकतनी दर स अपन आपको कोस

रही थी जक कयो उनदह नीद आ गई कयो वह ऊ घन लगी कया बर न अभी तक कषमा नही जकया मा उठी और कापत

हाथो स दरवाजा खोल जदया

दरवाज खलत ही शामनाथ झमत हए आग बढ़ आए और मा को आजलगन म भर जलया

ओ अममी तमन तो आज रग ला जदया साहब तमस इतना खश हआ जक कया कह ओ अममी अममी

मा की छोरी-सी काया जसमर कर बर क आजलगन म जछप गई मा की आखो म जिर आस आ गए उनदह पोछती हई

धीर स बोली - बरा तम मझ हररदवार भज दो म कब स कह रही ह

शामनाथ का झमना सहसा बद हो गया और उनकी पशानी पर जिर तनाव क बल पड़न लग उनकी बाह मा क शरीर

पर स हर आई

कया कहा मा यह कौन-सा राग तमन जिर छड़ जदया

शामनाथ का करोध बढ़न लगा था बोलत गए - तम मझ बदनाम करना चाहती हो ताजक दजनया कह जक बरा मा को

अपन पास नही रख सकता

नही बरा अब तम अपनी बह क साथ जसा मन चाह रहो मन अपना खा-पहन जलया अब यहा कया कर गी जो

थोड़ जदन जजदगानी क बाकी ह भगवान का नाम लगी तम मझ हररदवार भज दो

तम चली जाओगी तो िलकारी कौन बनाएगा साहब स तमहार सामन ही िलकारी दन का इकरार जकया ह

मरी आख अब नही ह बरा जो िलकारी बना सक तम कही और स बनवा लो बनी-बनाई ल लो

मा तम मझ धोखा दक य चली जाओगी मरा बनता काम जबगाड़ोगी जानती नही साहब खश होगा तो मझ तरककी

जमलगी

मा चप हो गई जिर बर क मह की ओर दखती हई बोली - कया तरी तरककी होगी कया साहब तरी तरककी कर दगा

कया उसन कछ कहा ह

कहा नही मगर दखती नही जकतना खश गया ह कहता था जब तरी मा िलकारी बनाना शर करगी तो म दखन

आऊ गा जक कस बनाती ह जो साहब खश हो गया तो मझ इसस बड़ी नौकरी भी जमल सकती ह म बड़ा अिसर बन

सकता ह

मा क चहर का रग बदलन लगा धीर-धीर उनका झररटयो-भरा मह जखलन लगा आखो म हकी-हकी चमक आन

लगी

तो तरी तरककी होगी बरा

तरककी य ही हो जाएगी साहब को खश रखगा तो कछ करगा वरना उसकी जखदमत करनवाल और थोड़ ह

तो म बना दगी बरा जस बन पड़गा बना दगी

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और मा जदल ही जदल म जिर बर क उजजवल भजवषय की कामनाए करन लगी और जमसरर शामनाथ अब सो जाओ

मा कहत हए तजनक लड़खड़ात हए अपन कमर की ओर घम गए

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णसकका बदल गया

कषणा सोबती

खददर की चादर ओढ़ हाथ म माला जलए शाहनी जब दररया क जकनार पहची तो पौ िर रही थी दर-दर आसमान क

परद पर लाजलमा िलती जा रही थी शाहनी न कपड़ उतारकर एक ओर रकख और शरीराम शरीराम करती पानी म हो

ली अजजल भरकर सयट दवता को नमसकार जकया अपनी उनीदी आखो पर छीर जदय और पानी स जलपर गयी

चनाब का पानी आज भी पहल-सा ही सदट था लहर लहरो को चम रही थी वह दर सामन काशमीर की पहाजड़यो स

बिट जपघल रही थी उछल-उछल आत पानी क भवरो स रकराकर कगार जगर रह थ लजकन दर-दर तक जबछी रत

आज न जान कयो खामोश लगती थी शाहनी न कपड़ पहन इधर-उधर दखा कही जकसी की परछाई तक न थी पर

नीच रत म अगजणत पावो क जनशान थ वह कछ सहम-सी उठी

आज इस परभात की मीठी नीरवता म न जान कयो कछ भयावना-सा लग रहा ह वह जपछल पचास विो स यहा नहाती

आ रही ह जकतना लमबा अरसा ह शाहनी सोचती ह एक जदन इसी दजनया क जकनार वह दलजहन बनकर उतरी थी

और आजआज शाहजी नही उसका वह पढ़ा-जलखा लड़का नही आज वह अकली ह शाहजी की लमबी-चौड़ी

हवली म अकली ह पर नहीयह कया सोच रही ह वह सवर-सवर अभी भी दजनयादारी स मन नही जिरा उसका

शाहनी न लमबी सास ली और शरी राम शरी राम करती बाजर क खतो स होती घर की राह ली कही-कही जलप-पत

आगनो पर स धआ उठ रहा था रनरनबलो की घजरया बज उठती ह जिर भीजिर भी कछ बधा-बधा-सा लग रहा

ह जममीवाला कआ भी आज नही चल रहा य शाहजी की ही असाजमया ह शाहनी न नजर उठायी यह मीलो िल

खत अपन ही ह भरी-भरायी नई िसल को दखकर शाहनी जकसी अपनतव क मोह म भीग गयी यह सब शाहजी की

बरकत ह दर-दर गावो तक िली हई जमीन जमीनो म कए सब अपन ह साल म तीन िसल जमीन तो सोना

उगलती ह शाहनी कए की ओर बढ़ी आवाज दी शर शर हसना हसना

शरा शाहनी का सवर पहचानता ह वह न पहचानगा अपनी मा जना क मरन क बाद वह शाहनी क पास ही पलकर

बड़ा हआ उसन पास पड़ा गडासा शराल क ढर क नीच सरका जदया हाथ म हकका पकड़कर बोलाऐ हसना-

सना शाहनी की आवाज उस कस जहला गयी ह अभी तो वह सोच रहा था जक उस शाहनी की ऊची हवली की

अधरी कोठरी म पड़ी सोन-चादी की सनददकजचया उठाकरजक तभी शर शर शरा गसस स भर गया जकस पर

जनकाल अपना करोध शाहनी पर चीखकर बोलाऐ मर गयी ए एबब तन मौत द

हसना आरवाली कनाली एक ओर रख जदी-जदी बाजहर जनकल आयी ऐ आयी आ कयो छावल (सबह-सबह)

तड़पना ए

अब तक शाहनी नजदीक पहच चकी थी शर की तजी सन चकी थी पयार स बोली हसना यह वि लड़न का ह

वह पागल ह तो त ही जजगरा कर जलया कर

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जजगरा हसना न मान भर सवर म कहाशाहनी लड़का आजखर लड़का ही ह कभी शर स भी पछा ह जक मह अधर

ही कयो गाजलया बरसाई ह इसन शाहनी न लाड़ स हसना की पीठ पर हाथ िरा हसकर बोलीपगली मझ तो लड़क

स बह पयारी ह शर

हा शाहनी

मालम होता ह रात को कलवाल क लोग आय ह यहा शाहनी न गमभीर सवर म कहा

शर न जरा रककर घबराकर कहा नही शाहनी शर क उततर की अनसनी कर शाहनी जरा जचजनदतत सवर स बोली

जो कछ भी हो रहा ह अचछा नही शर आज शाहजी होत तो शायद कछ बीच-बचाव करत पर शाहनी कहत-

कहत रक गयी आज कया हो रहा ह शाहनी को लगा जस जी भर-भर आ रहा ह शाहजी को जबछड़ कई साल बीत

गय परपर आज कछ जपघल रहा ह शायद जपछली समजतयाआसओ को रोकन क परयतन म उसन हसना की ओर

दखा और हक-स हस पड़ी और शरा सोच ही रहा ह कया कह रही ह शाहनी आज आज शाहनी कया कोई भी

कछ नही कर सकता यह होक रहगा कयो न हो हमार ही भाई-बनददो स सद ल-लकर शाहजी सोन की बोररया तोला

करत थ परजतजहसा की आग शर की आखो म उतर आयी गड़ास की याद हो आयी शाहनी की ओर दखानही-नही

शरा इन जपछल जदनो म तीस-चालीस कतल कर चका ह परपर वह ऐसा नीच नहीसामन बठी शाहनी नही शाहनी क

हाथ उसकी आखो म तर गय वह सजदटयो की रात कभी-कभी शाहजी की डार खाक वह हवली म पड़ा रहता था

और जिर लालरन की रोशनी म वह दखता ह शाहनी क ममता भर हाथ दध का करोरा थाम हए शर-शर उठ पी

ल शर न शाहनी क झररटया पड़ मह की ओर दखा तो शाहनी धीर स मसकरा रही थी शरा जवचजलत हो गया आजखर

शाहनी न कया जबगाड़ा ह हमारा शाहजी की बात शाहजी क साथ गयी वह शाहनी को जरर बचाएगा लजकन कल

रात वाला मशवरा वह कस मान गया था जिरोज की बात सब कछ ठीक हो जाएगासामान बार जलया जाएगा

शाहनी चलो तमह घर तक छोड़ आऊ

शाहनी उठ खड़ी हई जकसी गहरी सोच म चलती हई शाहनी क पीछ-पीछ मजबत कदम उठाता शरा चल रहा ह

शजकत-सा-इधर उधर दखता जा रहा ह अपन साजथयो की बात उसक कानो म गज रही ह पर कया होगा शाहनी को

मारकर

शाहनी

हा शर

शरा चाहता ह जक जसर पर आन वाल खतर की बात कछ तो शाहनी को बता द मगर वह कस कह

शाहनी

शाहनी न जसर ऊचा जकया आसमान धए स भर गया था शर

शरा जानता ह यह आग ह जबलपर म आज आग लगनी थी लग गयी शाहनी कछ न कह सकी उसक नात ररशत

सब वही ह

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हवली आ गयी शाहनी न शनदय मन स डयोढ़ी म कदम रकखा शरा कब लौर गया उस कछ पता नही दबटल-सी दह

और अकली जबना जकसी सहार क न जान कब तक वही पड़ी रही शाहनी दपहर आयी और चली गयी हवली

खली पड़ी ह आज शाहनी नही उठ पा रही जस उसका अजधकार आज सवय ही उसस छर रहा ह शाहजी क घर

की मालजकनलजकन नही आज मोह नही हर रहा मानो पतथर हो गयी हो पड़-पड़ साझ हो गयी पर उठन की बात

जिर भी नही सोच पा रही अचानक रसली की आवाज सनकर चौक उठी

शाहनी-शाहनी सनो टक आती ह लन

टक शााहनी इसक जसवाय और कछ न कह सकी हाथो न एक-दसर को थाम जलया बात की बात म खबर गाव

भर म िल गयी बीबी न अपन जवकत कणठ स कहाशाहनी आज तक कभी ऐसा न हआ न कभी सना गजब हो

गया अधर पड़ गया

शाहनी मजतटवत वही खड़ी रही नवाब बीबी न सनह-सनी उदासी स कहाशाहनी हमन तो कभी न सोचा था

शाहनी कया कह जक उसीन ऐसा सोचा था नीच स परवारी बग और जलदार की बातचीत सनाई दी शाहनी समझी

जक वि आन पहचा मशीन की तरह नीच उतरी पर डयोढ़ी न लाघ सकी जकसी गहरी बहत गहरी आवाज स

पछाकौन कौन ह वहा

कौन नही ह आज वहा सारा गाव ह जो उसक इशार पर नाचता था कभी उसकी असाजमया ह जजनदह उसन अपन

नात-ररशतो स कभी कम नही समझा लजकन नही आज उसका कोई नही आज वह अकली ह यह भीड़ की भीड़

उनम कलवाल क जार वह कया सबह ही न समझ गयी थी

बग परवारी और मसीत क म ला इसमाइल न जान कया सोचा शाहनी क जनकर आ खड़ हए बग आज शाहनी की

ओर दख नही पा रहा धीर स जरा गला साि करत हए कहाशाहनी रबब न एही मजर सी

शाहनी क कदम डोल गय चककर आया और दीवार क साथ लग गयी इसी जदन क जलए छोड़ गय थ शाहजी उस

बजान-सी शाहनी की ओर दखकर बग सोच रहा ह कया गजर रही ह शाहनी पर मगर कया हो सकता ह जसकका

बदल गया ह

शाहनी का घर स जनकलना छोरी-सी बात नही गाव का गाव खड़ा ह हवली क दरवाज स लकर उस दार तक जजस

शाहजी न अपन पतर की शादी म बनवा जदया था तब स लकर आज तक सब िसल सब मशजवर यही होत रह ह

इस बड़ी हवली को लर लन की बात भी यही सोची गयी थी यह नही जक शाहनी कछ न जानती हो वह जानकर भी

अनजान बनी रही उसन कभी बर नही जाना जकसी का बरा नही जकया लजकन बढ़ी शाहनी यह नही जानती जक

जसकका बदल गया ह

दर हो रही थी थानदार दाऊद खा जरा अकड़कर आग आया और डयोढ़ी पर खड़ी जड़ जनजीव छाया को दखकर

जठठक गया वही शाहनी ह जजसक शाहजी उसक जलए दररया क जकनार खम लगवा जदया करत थ यह तो वही

शाहनी ह जजसन उसकी मगतर को सोन क कनिल जदय थ मह जदखाई म अभी उसी जदन जब वह लीग क

जसलजसल म आया था तो उसन उददडता स कहा थाशाहनी भागोवाल मसीत बनगी तीन सौ रपया दना पड़गा

शाहनी न अपन उसी सरल सवभाव स तीन सौ रपय जदय थ और आज

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शाहनी डयोढ़ी क जनकर जाकर बोलादर हो रही ह शाहनी (धीर स) कछ साथ रखना हो तो रख लो कछ साथ

बाध जलया ह सोना-चादी

शाहनी असिर सवर स बोलीसोना-चादी जरा ठहरकर सादगी स कहासोना-चादी बचचा वह सब तम लोगो क

जलए ह मरा सोना तो एक-एक जमीन म जबछा ह

दाऊद खा लजजजत-सा हो गया शाहनी तम अकली हो अपन पास कछ होना जररी ह कछ नकदी ही रख लो वि

का कछ पता नही

वि शाहनी अपनी गीली आखो स हस पड़ी दाऊद खा इसस अचछा वि दखन क जलए कया म जजनददा रह गी

जकसी गहरी वदना और जतरसकार स कह जदया शाहनी न

दाऊद खा जनरततर ह साहस कर बोलाशाहनी कछ नकदी जररी ह

नही बचचा मझ इस घर सशाहनी का गला रध गयानकदी पयारी नही यहा की नकदी यही रहगी

शरा आन खड़ा गजरा जक हो ना हो कछ मार रहा ह शाहनी स खा साजहब दर हो रही ह

शाहनी चौक पड़ी दरमर घर म मझ दर आसओ की भवर म न जान कहा स जवरोह उमड़ पड़ा म परखो क इस बड़

घर की रानी और यह मर ही अनदन पर पल हएनही यह सब कछ नही ठीक हदर हो रही हपर नही शाहनी रो-रोकर

नही शान स जनकलगी इस परखो क घर स मान स लाघगी यह दहरी जजस पर एक जदन वह रानी बनकर आ खड़ी हई

थी अपन लड़खड़ात कदमो को सभालकर शाहनी न दपटट स आख पोछी और डयोढ़ी स बाहर हो गयी बडी-बजढ़या

रो पड़ी जकसकी तलना हो सकती थी इसक साथ खदा न सब कछ जदया था मगरमगर जदन बदल वि बदल

शाहनी न दपटट स जसर ढापकर अपनी धधली आखो म स हवली को अजनदतम बार दखा शाहजी क मरन क बाद भी

जजस कल की अमानत को उसन सहजकर रखा आज वह उस धोखा द गयी शाहनी न दोनो हाथ जोड़ जलए यही

अजनदतम दशटन था यही अजनदतम परणाम था शाहनी की आख जिर कभी इस ऊची हवली को न दखी पाएगी पयार न

जोर मारासोचा एक बार घम-जिर कर परा घर कयो न दख आयी म जी छोरा हो रहा ह पर जजनक सामन हमशा बड़ी

बनी रही ह उनक सामन वह छोरी न होगी इतना ही ठीक ह बस हो चका जसर झकाया डयोढ़ी क आग कलवध की

आखो स जनकलकर कछ बनदद च पड़ी शाहनी चल दीऊचा-सा भवन पीछ खड़ा रह गया दाऊद खा शरा परवारी

जलदार और छोर-बड़ बचच बढ़-मदट औरत सब पीछ-पीछ

टक अब तक भर चकी थी शाहनी अपन को खीच रही थी गाववालो क गलो म जस धआ उठ रहा ह शर खनी शर

का जदल रर रहा ह दाऊद खा न आग बढ़कर टक का दरवाजा खोला शाहनी बढ़ी इसमाइल न आग बढ़कर भारी

आवाज स कहा शाहनी कछ कह जाओ तमहार मह स जनकली असीस झठ नही हो सकती और अपन साि स

आखो का पानी पोछ जलया शाहनी न उठती हई जहचकी को रोककर रध-रध स कहा रबब तहान सलामत रकख

बचचा खजशया बकश

वह छोरा-सा जनसमह रो जदया जरा भी जदल म मल नही शाहनी क और हमहम शाहनी को नही रख सक शर न

बढ़कर शाहनी क पाव छए शाहनी कोई कछ कर नही सका राज भी पलर गया शाहनी न कापता हआ हाथ शर क

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जसर पर रकखा और रक-रककर कहातन भाग जगण चनदना (ओ चाद तर भागय जाग) दाऊद खा न हाथ का सकत

जकया कछ बड़ी-बजढ़या शाहनी क गल लगी और टक चल पड़ी

अनदन-जल उठ गया वह हवली नई बठक ऊचा चौबारा बड़ा पसार एक-एक करक घम रह ह शाहनी की आखो म

कछ पता नहीटक चल जदया ह या वह सवय चल रही ह आख बरस रही ह दाऊद खा जवचजलत होकर दख रहा ह

इस बढ़ी शाहनी को कहा जाएगी अब वह

शाहनी मन म मल न लाना कछ कर सकत तो उठा न रखत वकत ही ऐसा ह राज पलर गया ह जसकका बदल गया

रात को शाहनी जब क प म पहचकर जमीन पर पड़ी तो लर-लर आहत मन स सोचा राज पलर गया हजसकका कया

बदलगा वह तो म वही छोड़ आयी

और शाहजी की शाहनी की आख और भी गीली हो गयी

आसपास क हर-हर खतो स जघर गावो म रात खन बरसा रही थी

शायद राज पलरा भी खा रहा था और जसकका बदल रहा था

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इनदिकटर मातादीन चाद िर वयगय

(हररशकर परसाई)

वजञाजनक कहत ह चाद पर जीवन नही ह

सीजनयर पजलस इसपकरर मातादीन (जडपारटमर म एम डी साब) कहत ह- वजञाजनक झठ बोलत ह वहा हमार जस ही

मनषय की आबादी ह

जवजञान न हमशा इनदसपकरर मातादीन स मात खाई ह जिगर जपरर जवशिजञ कहता रहता ह- छर पर पाए गए जनशान

मलजजम की अगजलयो क नही ह पर मातादीन उस सजा जदला ही दत ह

मातादीन कहत ह य वजञाजनक कस का परा इनदवसरीगशन नही करत उनदहोन चाद का उजला जहससा दखा और कह

जदया वहा जीवन नही ह म चाद का अधरा जहससा दख कर आया ह वहा मनषय जाजत ह

यह बात सही ह कयोजक अधर पकष क मातादीन माजहर मान जात ह

पछा जाएगा इसपकरर मातादीन चाद पर कयो गए थ रररसर की हजसयत स या जकसी िरार अपराधी को पकड़न

नही व भारत की तरफ़ स सासकजतक आदान-परदान क अतगटत गए थ चाद सरकार न भारत सरकार को जलखा था-

यो हमारी सभयता बहत आग बढ़ी ह पर हमारी पजलस म पयाटपत सकषमता नही ह वह अपराधी का पता लगान और

उस सजा जदलान म अकसर सिल नही होती सना ह आपक यहा रामराज ह महरबानी करक जकसी पजलस अिसर

को भज जो हमारी पजलस को जशजकषत कर द

गहमतरी न सजचव स कहा- जकसी आई जी को भज दो

सजचव न कहा- नही सर आई जी नही भजा जा सकता परोरोकॉल का सवाल ह चाद हमारा एक कषर उपगरह

ह आई जी क रक क आदमी को नही भजग जकसी सीजनयर इसपकरर को भज दता ह

तय जकया गया जक हजारो मामलो क इनदवजसरगजरग ऑजिसर सीजनयर इसपकरर मातादीन को भज जदया जाय

चाद की सरकार को जलख जदया गया जक आप मातादीन को लन क जलए पथवी-यान भज दीजजय

पजलस मतरी न मातादीन को बलाकर कहा- तम भारतीय पजलस की उजजवल परपरा क दत की हजसयत स जा रह

हो ऐसा काम करना जक सार अतररकष म जडपारटमर की ऐसी जय-जयकार हो जक पीएम (परधानमनदतरी) को भी सनाई

पड़ जाए

मातादीन की यातरा का जदन आ गया एक यान अतररकष अडड पर उतरा मातादीन सबस जवदा लकर यान की

तरफ़ बढ़ व धीर-धीर कहत जा रह थ lsquoपरजवजस नगर कीज सब काजा हरदय राजख कौसलपर राजाrsquo

यान क पास पहचकर मातादीन न मशी अबदल गिर को पकारा- lsquoमशीrsquo

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गिर न एड़ी जमलाकर सयर िरकारा बोला- जी पकरसा

एि आई आर रख दी ह

जी पकरसा

और रोजनामच का नमना

जी पकरसा

व यान म बठन लग हवलदार बलभददर को बलाकर कहा- हमार घर म जचकी क बखत अपन खरला (पतनी)

को मदद क जलए भज दना

बलभददर न कहा- जी पकरसा

गिर न कहा ndash आप बजिकर रह पकरसा म अपन मकान (पतनी) को भी भज दगा जखदमत क जलए

मातादीन न यान क चालक स पछा ndash डराइजवग लाइसस ह

जी ह साहब

और गाड़ी म बतती ठीक ह

जी ठीक ह

मातादीन न कहा सब ठीकठाक होना चाजहए वरना हरामजाद का बीच अतररकष म चालान कर दगा

चनदरमा स आय चालक न कहा- हमार यहा आदमी स इस तरह नही बोलत

मातादीन न कहा- जानता ह ब तमहारी पजलस कमज़ोर ह अभी म उस ठीक करता ह

मातादीन यान म कदम रख ही रह थ जक हवलदार रामसजीवन भागता हआ आया बोला- पकरसा एसपी

साहब क घर म स कह ह जक चाद स एड़ी चमकान का पतथर लत आना

मातादीन खश हए बोल- कह दना बाई साब स ज़रर लता आऊगा

व यान म बठ और यान उड़ चला पथवी क वायमडल स यान बाहर जनकला ही था जक मातादीन न चालक स

कहा- अब हॉनट कयो नही बजाता

चालक न जवाब जदया- आसपास लाखो मील म कछ नही ह

मातादीन न डारा- मगर रल इज रल हॉनट बजाता चल

चालक अतररकष म हॉनट बजाता हआ यान को चाद पर उतार लाया अतररकष अडड पर पजलस अजधकारी

मातादीन क सवागत क जलए खड़ थ मातादीन रोब स उतर और उन अिसरो क कनदधो पर नजर डाली वहा जकसी क

सरार नही थ िीत भी जकसी क नही लग थ जलहाज़ा मातादीन न एड़ी जमलाना और हाथ उठाना ज़ररी नही समझा

जिर उनदहोन सोचा म यहा इसपकरर की हजसयत स नही सलाहकार की हजसयत स आया ह

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मातादीन को व लोग लाइन म ल गए और एक अचछ बगल म उनदह जरका जदया

एक जदन आराम करन क बाद मातादीन न काम शर कर जदया पहल उनदहोन पजलस लाइन का मलाहज़ा जकया

शाम को उनदहोन आईजी स कहा- आपक यहा पजलस लाइन म हनमानजी का मजदर नही ह हमार रामराज म

पजलस लाइन म हनमानजी ह

आईजी न कहा- हनमान कौन थ- हम नही जानत

मातादीन न कहा- हनमान का दशटन हर कतटवयपरायण पजलसवाल क जलए ज़ररी ह हनमान सगरीव क यहा

सपशल बराच म थ उनदहोन सीता माता का पता लगाया थाrsquoएबडकशनrsquoका मामला था- दिा 362 हनमानजी न रावण

को सजा वही द दी उसकी परॉपरी म आग लगा दी पजलस को यह अजधकार होना चाजहए जक अपराधी को पकड़ा

और वही सज़ा द दी अदालत म जान का झझर नही मगर यह जससरम अभी हमार रामराज म भी चाल नही हआ ह

हनमानजी क काम स भगवान राम बहत खश हए व उनदह अयोधया ल आए और lsquoरौन डयरीrsquo म तनात कर जदया

वही हनमान हमार अराधय दव ह म उनकी िोरो लता आया ह उसपर स मजतटया बनवाइए और हर पजलस लाइन म

सथाजपत करवाइए

थोड़ ही जदनो म चाद की हर पजलस लाइन म हनमानजी सथाजपत हो गए

मातादीनजी उन कारणो का अधययन कर रह थ जजनस पजलस लापरवाह और अलाल हो गयी ह वह अपराधो

पर धयान नही दती कोई कारण नही जमल रहा था एकाएक उनकी बजदध म एक चमक आईउनदहोन मशी स कहा- ज़रा

तनखा का रजजसरर बताओ

तनखा का रजजसरर दखा तो सब समझ गए कारण पकड़ म आ गया

शाम को उनदहोन पजलस मतरी स कहा म समझ गया जक आपकी पजलस मसतद कयो नही ह आप इतनी बड़ी

तनखवाह दत ह इसीजलए जसपाही को पाच सौ थानदार को हज़ार- य कया मज़ाक ह आजखर पजलस अपराधी को

कयो पकड़ हमार यहा जसपाही को सौ और इसपकरर को दो सौ दत ह तो व चौबीस घर जमट की तलाश करत ह आप

तनखवाह फ़ौरन घराइए

पजलस मतरी न कहा- मगर यह तो अनदयाय होगा अचछा वतन नही जमलगा तो व काम ही कयो करग

मातादीन न कहा- इसम कोई अनदयाय नही ह आप दखग जक पहली घरी हई तनखा जमलत ही आपकी पजलस

की मनोवजत म कराजतकारी पररवतटन हो जाएगा

पजलस मतरी न तनखवाह घरा दी और 2-3 महीनो म सचमच बहत िकट आ गया पजलस एकदम मसतद हो गई

सोत स एकदम जाग गई चारो तरफ़ नज़र रखन लगी अपराजधयो की दजनया म घबड़ाहर छा गई पजलस मतरी न

तमाम थानो क ररकॉडट बला कर दख पहल स कई गन अजधक कस रजजसरर हए थ उनदहोन मातादीन स कहा- म

आपकी सझ की तारीफ़ करता ह आपन कराजत कर दी पर यह हआ जकस तरह

मातादीन न समझाया-बात बहत मामली हकम तनखा दोग तो मलाजज़म की गजर नही होगी सौ रपयो म

जसपाही बचचो को नही पाल सकता दो सौ म इसपकरर ठाठ-बार नही मनरन कर सकता उस ऊपरी आमदनी करनी

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ही पड़गी और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़गा गरज़ जक वह अपराधो पर नज़र रखगा

सचत कतटवयपरायण और मसतद हो जाएगा हमार रामराज क सवचछ और सकषम परशासन का यही रहसय ह

चरलोक म इस चमतकार की खबर फ़ल गयी लोग मातादीन को दखन आन लग जक वह आदमी कसा ह

जो तनखा कम करक सकषमता ला दता ह पजलस क लोग भी खश थ व कहत- गर आप इधर न पधारत तो हम सभी

कोरी तनखा स ही गजर करत रहत सरकार भी खश थी जक मनाि का बजर बनन वाला था

आधी समसया हल हो गई पजलस अपराधी पकड़न लगी थी अब मामल की जाच-जवजध म सधार करना रह

गया था अपराधी को पकड़न क बाद उस सजा जदलाना मातादीन इतज़ार कर रह थ जक कोई बड़ा कस हो जाए तो

नमन क तौर पर उसका इनदवजसरगशन कर बताए

एक जदन आपसी मारपीर म एक आदमी मारा गया मातादीन कोतवाली म आकर बठ गए और बोल- नमन क

जलए इस कस का lsquoइनदवजसरगशनrsquo म करता ह आप लोग सीजखए यह कतल का कस ह कतल क कस म lsquoएजवडसrsquo

बहत पकका होना चाजहए

कोतवाल न कहा- पहल काजतल का पता लगाया जाएगा तभी तो एजवडस इकिा जकया जायगा

मातादीन न कहा- नही उलर मत चलो पहल एजवडस दखो कया कही खन जमला जकसी क कपड़ो पर या और

कही

एक इसपकरर न कहा- हा मारनवाल तो भाग गए थ मतक सड़क पर बहोश पड़ा था एक भला आदमी वहा

रहता ह उसन उठाकर असपताल भजा उस भल आदमी क कपड़ो पर खन क दाग लग गए ह

मातादीन न कहा- उस फ़ौरन जगरफतार करो

कोतवाल न कहा- मगर उसन तो मरत हए आदमी की मदद की थी

मातादीन न कहा- वह सब ठीक ह पर तम खन क दाग ढढन और कहा जाओग जो एजवडस जमल रहा ह उस तो

कबज़ म करो

वह भला आदमी पकड़कर बलवा जलया गया उसन कहा- मन तो मरत आदमी को असपताल जभजवाया था मरा

कया कसर ह

चाद की पजलस उसकी बात स एकदम परभाजवत हई मातादीन परभाजवत नही हए सारा पजलस महकमा उतसक था

जक अब मातादीन कया तकट जनकालत ह

मातादीन न उसस कहा- पर तम झगड की जगह गए कयो

उसन जवाब जदया- म झगड़ की जगह नही गया मरा वहा मकान ह झगड़ा मर मकान क सामन हआ

अब जिर मातादीन की परजतभा की परीकषा थी सारा महकमा उतसक दख रहा था

मातादीन न कहा- मकान तो ठीक ह पर म पछता ह झगड़ की जगह जाना ही कयो

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इस तकट का कोई ज़वाब नही था वह बार-बार कहता- म झगड़ की जगह नही गया मरा वही मकान ह

मातादीन उस जवाब दत- सो ठीक ह पर झगड़ की जगह जाना ही कयो इस तकट -परणाली स पजलस क लोग

बहत परभाजवत हए

अब मातादीनजी न इनदवजसरगशन का जसदधात समझाया-

दखो आदमी मारा गया ह तो यह पकका ह जकसी न उस ज़रर मारा कोई काजतल हजकसी को सज़ा होनी ह

सवाल ह- जकसको सज़ा होनी ह पजलस क जलए यह सवाल इतना महततव नही रखता जजतना यह सवाल जक जमट

जकस पर साजबत हो सकता ह या जकस पर साजबत होना चाजहए कतल हआ ह तो जकसी मनषय को सज़ा होगी ही

मारनवाल को होती ह या बकसर को ndash यह अपन सोचन की बात नही ह मनषय-मनषय सब बराबर ह सबम उसी

परमातमा का अश ह हम भदभाव नही करत यह पजलस का मानवतावाद ह

दसरा सवाल ह जकस पर जमट साजबत होना चाजहए इसका जनणटय इन बातो स होगा- (1) कया वह आदमी

पजलस क रासत म आता ह (2) कया उस सज़ा जदलान स ऊपर क लोग खश होग

मातादीन को बताया गया जक वह आदमी भला ह पर पजलस अनदयाय कर तो जवरोध करता ह जहा तक ऊपर

क लोगो का सवाल ह- वह वतटमान सरकार की जवरोधी राजनीजत वाला ह

मातादीन न रजबल ठोककर कहा- िसरट कलास कस पकका एजवडस और ऊपर का सपोरट

एक इसपकरर न कहा- पर हमार गल यह बात नही उतरती ह जक एक जनरपराध-भल आदमी को सजा जदलाई

जाए

मातादीन न समझाया- दखो म समझा चका ह जक सबम उसी ईशवर का अश ह सज़ा इस हो या काजतल को

िासी पर तो ईशवर ही चढ़गा न जिर तमह कपड़ो पर खन जमल रहा ह इस छोड़कर तम कहा खन ढढत जिरोग तम

तो भरो एि आई आर

मातादीन जी न एिआईआर भरवा दी lsquoबखत ज़ररत क जलएrsquo जगह खाली छड़वा दी

दसर जदन पजलस कोतवाल न कहा- गरदव हमारी तो बड़ी आित ह तमाम भल आदमी आत ह और कहत ह

उस बचार बकसर को कयो िसा रह हो ऐसा तो चरलोक म कभी नही हआ बताइय हम कया जवाब द हम तो

बहत शजमादा ह

मातादीन न कोतवाल स कहा- घबड़ाओ मत शर-शर म इस काम म आदमी को शमट आती ह आग तमह

बकसर को छोड़न म शमट आएगी हर चीज़ का जवाब ह अब आपक पास जो आए उसस कह दो हम जानत ह वह

जनदोि ह पर हम कया कर यह सब ऊपर स हो रहा ह

कोतवाल न कहा- तब व एसपी क पास जाएग

मातादीन बोल- एसपी भी कह द जक ऊपर स हो रहा ह

तब व आईजी क पास जशकायत करग

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आईजी भी कह जक सब ऊपर स हो रहा ह

तब व लोग पजलस मतरी क पास पहचग

पजलस मतरी भी कहग- भया म कया कर यह ऊपर स हो रहा ह

तो व परधानमतरी क पास जाएग

परधानमतरी भी कह जक म जानता ह वह जनदोि ह पर यह ऊपर स हो रहा ह

कोतवाल न कहा- तब वhellip

मातादीन न कहा- तब कया तब व जकसक पास जाएग भगवान क पास न मगर भगवान स पछकर कौन

लौर सका ह

कोतवाल चप रह गया वह इस महान परजतभा स चमतकत था

मातादीन न कहा- एक महावरा lsquoऊपर स हो रहा हrsquo हमार दश म पचचीस सालो स सरकारो को बचा रहा ह

तम इस सीख लो

कस की तयारी होन लगी मातादीन न कहा- अब 4-6 चशमदीद गवाह लाओ

कोतवाल- चशमदीद गवाह कस जमलग जब जकसी न उस मारत दखा ही नही तो चशमदीद गवाह कोई कस

होगा

मातादीन न जसर ठोक जलया जकन बवकिो क बीच िसा जदया गवनटमर न इनदह तो ए-बी-सी-डी भी नही

आती

झलाकर कहा- चशमदीद गवाह जकस कहत ह जानत हो चशमदीद गवाह वह नही ह जो दख- बजक वह ह

जो कह जक मन दखा

कोतवाल न कहा- ऐसा कोई कयो कहगा

मातादीन न कहा- कहगा समझ म नही आता कस जडपारटमर चलात हो अर चशमदीद गवाहो की जलसर

पजलस क पास पहल स रहती ह जहा ज़ररत हई उनदह चशमदीद बना जदया हमार यहा ऐस आदमी ह जो साल म 3-4

सौ वारदातो क चशमदीद गवाह होत ह हमारी अदालत भी मान लती ह जक इस आदमी म कोई दवी शजि ह जजसस

जान लता ह जक अमक जगह वारदात होन वाली ह और वहा पहल स पहच जाता ह म तमह चशमदीद गवाह बनाकर

दता ह 8-10 उठाईगीरो को बलाओ जो चोरी मारपीर गडागदी करत हो जआ जखलात हो या शराब उतारत हो

दसर जदन शहर क 8-10 नवरतन कोतवाली म हाजजर थ उनदह दखकर मातादीन गदगद हो गए बहत जदन हो गए

थ ऐस लोगो को दख बड़ा सना-सना लग रहा था

मातादीन का परम उमड़ पड़ा उनस कहा- तम लोगो न उस आदमी को लाठी स मारत दखा था न

व बोल- नही दखा साब हम वहा थ ही नही

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मातादीन जानत थ यह पहला मौका ह जिर उनदहोन कहा- वहा नही थ यह मन माना पर लाठी मारत दखा तो

था

उन लोगो को लगा जक यह पागल आदमी ह तभी ऐसी उरपराग बात कहता ह व हसन लग

मातादीन न कहा- हसो मत जवाब दो

व बोल- जब थ ही नही तो कस दखा

मातादीन न गराटकर दखा कहा- कस दखा सो बताता ह तम लोग जो काम करत हो- सब इधर दज़ट ह हर

एक को कम स कम दस साल जल म डाला जा सकता ह तम य काम आग भी करना चाहत हो या जल जाना चाहत

हो

व घबड़ाकर बोल ndash साब हम जल नही जाना चाहत

मातादीन न कहा- ठीक तो तमन उस आदमी को लाठी मारत दखा दखा न

व बोल- दखा साब वह आदमी घर स जनकला और जो लाठी मारना शर जकया तो वह बचारा बहोश होकर

सड़क पर जगर पड़ा

मातादीन न कहा- ठीक ह आग भी ऐसी वारदात दखोग

व बोल- साब जो आप कहग सो दखग

कोतवाल इस चमतकार स थोड़ी दर को बहोश हो गया होश आया तो मातादीन क चरणो पर जगर पड़ा

मातादीन न कहा- हरो काम करन दो

कोतवाल पावो स जलपर गया कहन लगा- म जीवन भर इन शरीचरणो म पड़ा रहना चाहता ह

मातादीन न आग की सारी कायटपरणाली तय कर दी एिआईआर बदलना बीच म पनदन डालना रोजनामचा

बदलना गवाहो को तोड़ना ndash सब जसखा जदया

उस आदमी को बीस साल की सज़ा हो गई

चाद की पजलस जशजकषत हो चकी थी धड़ाधड़ कस बनन लग और सज़ा होन लगी चाद की सरकार बहत

खश थी पजलस की ऐसी मसतदी भारत सरकार क सहयोग का नतीजा था चाद की ससद न एक धनदयवाद का परसताव

पास जकया

एक जदन मातादीनजी का सावटजजनक अजभनदन जकया गया व िलो स लद खली जीप पर बठ थ आसपास

जय-जयकार करत हजारो लोग व हाथ जोड़कर अपन गहमतरी की सराइल म जवाब द रह थ

जज़दगी म पहली बार ऐसा कर रह थ इसजलए थोड़ा अरपरा लग रहा था छबबीस साल पहल पजलस म भरती

होत वि जकसन सोचा था जक एक जदन दसर लोक म उनका ऐसा अजभनदन होगा व पछताए- अचछा होता जक इस

मौक क जलए करता रोपी और धोती ल आत

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भारत क पजलस मतरी रलीजवजन पर बठ यह दशय दख रह थ और सोच रह थ मरी सदभावना यातरा क जलए

वातावरण बन गया

कछ महीन जनकल गए

एक जदन चाद की ससद का जवशि अजधवशन बलाया गया बहत तफ़ान खड़ा हआ गपत अजधवशन था

इसजलए ररपोरट परकाजशत नही हई पर ससद की दीवारो स रकराकर कछ शबद बाहर आए

सदसय गसस स जचला रह थ-

कोई बीमार बाप का इलाज नही कराता

डबत बचचो को कोई नही बचाता

जलत मकान की आग कोई नही बझाता

आदमी जानवर स बदतर हो गया सरकार फ़ौरन इसतीफ़ा द

दसर जदन चाद क परधानमतरी न मातादीन को बलाया मातादीन न दखा ndash व एकदम बढ़ हो गए थ लगा य

कई रात सोए नही ह

रआस होकर परधानमतरी न कहा- मातादीनजी हम आपक और भारत सरकार क बहत आभारी ह अब आप

कल दश वापस लौर जाइय

मातादीन न कहा- म तो lsquoरमटrsquo खतम करक ही जाऊ गा

परधानमतरी न कहा- आप बाकी lsquoरमटrsquo का वतन ल जाइय- डबल ल जाइए जतबल ल जाइय

मातादीन न कहा- हमारा जसदधात ह हम पसा नही काम पयारा ह

आजखर चाद क परधानमतरी न भारत क परधानमतरी को एक गपत पतर जलखा

चौथ जदन मातादीनजी को वापस लौरन क जलए अपन आईजी का आडटर जमल गया

उनदहोन एसपी साहब क घर क जलए एड़ी चमकान का पतथर यान म रखा और चाद स जवदा हो गए

उनदह जात दख पजलसवाल रो पड़

बहत अरस तक यह रहसय बना रहा जक आजखर चाद म ऐसा कया हो गया जक मातादीनजी को इस तरह

एकदम लौरना पड़ा चाद क परधान मतरी न भारत क परधान मतरी को कया जलखा था

एक जदन वह पतर खल ही गया उसम जलखा था-

इसपकरर मातादीन की सवाए हम परदान करन क जलए अनक धनदयवाद पर अब आप उनदह फ़ौरन बला ल

हम भारत को जमतरदश समझत थ पर आपन हमार साथ शतरवत वयवहार जकया ह हम भोल लोगो स आपन

जवशवासघात जकया ह

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आपक मातादीनजी न हमारी पजलस को जसा कर जदया ह उसक नतीज़ य हए ह

कोई आदमी जकसी मरत हए आदमी क पास नही जाता इस डर स जक वह कतल क मामल म िसा जदया

जाएगा बरा बीमार बाप की सवा नही करता वह डरता ह बाप मर गया तो उस पर कही हतया का आरोप नही लगा

जदया जाए घर जलत रहत ह और कोई बझान नही जाता- डरता ह जक कही उसपर आग लगान का जमट कायम न कर

जदया जाए बचच नदी म डबत रहत ह और कोई उनदह नही बचाता इस डर स जक उस पर बचचो को डबान का आरोप

न लग जाए सार मानवीय सबध समापत हो रह ह मातादीनजी न हमारी आधी ससकजत नि कर दी ह अगर व यहा रह

तो परी ससकजत नि कर दग उनदह फ़ौरन रामराज म बला जलया जाए

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मार गय ग़लफाम उफफ तीसरी कसम

िणीशवरनाथ रण

जहरामन गाड़ीवान की पीठ म गदगदी लगती ह

जपछल बीस साल स गाड़ी हाकता ह जहरामन बलगाड़ी सीमा क उस पार मोरग राज नपाल स धान और लकड़ी ढो

चका ह कटोल क जमान म चोरबाजारी का माल इस पार स उस पार पहचाया ह लजकन कभी तो ऐसी गदगदी नही

लगी पीठ म

कटोल का जमाना जहरामन कभी भल सकता ह उस जमान को एक बार चार खप सीमर और कपड़ की गाठो स भरी

गाड़ी जोगबानी म जवरारनगर पहचन क बाद जहरामन का कलजा पोखता हो गया था िारजबसगज का हर चोर-

वयापारी उसको पकका गाड़ीवान मानता उसक बलो की बड़ाई बड़ी गददी क बड़ सठ जी खद करत अपनी भािा म

गाड़ी पकड़ी गई पाचवी बार सीमा क इस पार तराई म

महाजन का मनीम उसी की गाड़ी पर गाठो क बीच चककी-मककी लगा कर जछपा हआ था दारोगा साहब की डढ़

हाथ लबी चोरबतती की रोशनी जकतनी तज होती ह जहरामन जानता ह एक घर क जलए आदमी अधा हो जाता ह एक

छरक भी पड़ जाए आखो पर रोशनी क साथ कड़कती हई आवाज - ऐ-य गाड़ी रोको साल गोली मार दग

बीसो गाजड़या एक साथ कचकचा कर रक गई जहरामन न पहल ही कहा था यह बीस जविावगा दारोगा साहब

उसकी गाड़ी म दबक हए मनीम जी पर रोशनी डाल कर जपशाची हसी हस - हा-हा-हा मनीम जी-ई-ई-ई ही-ही-ही

ऐ-य साला गाड़ीवान मह कया दखता ह र-ए-ए कबल हराओ इस बोर क मह पर स हाथ की छोरी लाठी स मनीम

जी क पर म खोचा मारत हए कहा था इस बोर को स-ससाला

बहत परानी अखज-अदावत होगी दारोगा साहब और मनीम जी म नही तो उतना रपया कबलन पर भी पजलस-

दरोगा का मन न डोल भला चार हजार तो गाड़ी पर बठा ही द रहा ह लाठी स दसरी बार खोचा मारा दारोगा न पाच

हजार जिर खोचा - उतरो पहल

मनीम को गाड़ी स नीच उतार कर दारोगा न उसकी आखो पर रोशनी डाल दी जिर दो जसपाजहयो क साथ सड़क स

बीस-पचचीस रससी दर झाड़ी क पास ल गए गाड़ीवान और गाजड़यो पर पाच-पाच बदकवाल जसपाजहयो का पहरा

जहरामन समझ गया इस बार जनसतार नही जल जहरामन को जल का डर नही लजकन उसक बल न जान जकतन

जदनो तक जबना चारा-पानी क सरकारी िारक म पड़ रहग - भख-पयास जिर नीलाम हो जाएग भया और भौजी को

वह मह नही जदखा सकगा कभी नीलाम की बोली उसक कानो क पास गज गई - एक-दो-तीन दारोगा और मनीम

म बात पर नही रही थी शायद

जहरामन की गाड़ी क पास तनात जसपाही न अपनी भािा म दसर जसपाही स धीमी आवाज म पछा का हो मामला

गोल होखी का जिर खनी-तबाक दन क बहान उस जसपाही क पास चला गया

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एक-दो-तीन तीन-चार गाजड़यो की आड़ जहरामन न िसला कर जलया उसन धीर-स अपन बलो क गल की रजससया

खोल ली गाड़ी पर बठ-बठ दोनो को जड़वा बाध जदया बल समझ गए उनदह कया करना ह जहरामन उतरा जती हई

गाड़ी म बास की जरकरी लगा कर बलो क कधो को बलाग जकया दोनो क कानो क पास गदगदी लगा दी और मन-

ही-मन बोला चलो भयन जान बचगी तो ऐसी-ऐसी सगगड़ गाड़ी बहत जमलगी एक-दो-तीन नौ-दो-गयारह

गाजड़यो की आड़ म सड़क क जकनार दर तक घनी झाड़ी िली हई थी दम साध कर तीनो पराजणयो न झाड़ी को पार

जकया - बखरक बआहर जिर एक ल दो ल - दलकी चाल दोनो बल सीना तान कर जिर तराई क घन जगलो म

घस गए राह सघत नदी-नाला पार करत हए भाग पछ उठा कर पीछ-पीछ जहरामन रात-भर भागत रह थ तीनो जन

घर पहच कर दो जदन तक बसध पड़ा रहा जहरामन होश म आत ही उसन कान पकड़ कर कसम खाई थी - अब कभी

ऐसी चीजो की लदनी नही लादग चोरबाजारी का माल तोबा तोबा पता नही मनीम जी का कया हआ भगवान

जान उसकी सगगड़ गाड़ी का कया हआ असली इसपात लोह की धरी थी दोनो पजहए तो नही एक पजहया एकदम

नया था गाड़ी म रगीन डोररयो क ि दन बड़ जतन स गथ गए थ

दो कसम खाई ह उसन एक चोरबाजारी का माल नही लादग दसरी - बास अपन हर भाड़दार स वह पहल ही पछ

लता ह - चोरी- चमारीवाली चीज तो नही और बास बास लादन क जलए पचास रपए भी द कोई जहरामन की

गाड़ी नही जमलगी दसर की गाड़ी दख

बास लदी हई गाड़ी गाड़ी स चार हाथ आग बास का अगआ जनकला रहता ह और पीछ की ओर चार हाथ जपछआ

काब क बाहर रहती ह गाड़ी हमशा सो बकाबवाली लदनी और खरजहया शहरवाली बात जतस पर बास का अगआ

पकड़ कर चलनवाला भाड़दार का महाभकआ नौकर लड़की-सकल की ओर दखन लगा बस मोड़ पर घोड़ागाड़ी स

रककर हो गई जब तक जहरामन बलो की रससी खीच तब तक घोड़ागाड़ी की छतरी बास क अगआ म ि स गई

घोड़ा-गाड़ीवाल न तड़ातड़ चाबक मारत हए गाली दी थी बास की लदनी ही नही जहरामन न खरजहया शहर की

लदनी भी छोड़ दी और जब िारजबसगज स मोरग का भाड़ा ढोना शर जकया तो गाड़ी ही पार कई विो तक जहरामन

न बलो को आधीदारी पर जोता आधा भाड़ा गाड़ीवाल का और आधा बलवाल का जहसस गाड़ीवानी करो मफत

आधीदारी की कमाई स बलो क ही पर नही भरत जपछल साल ही उसन अपनी गाड़ी बनवाई ह

दवी मया भला कर उस सरकस-कपनी क बाघ का जपछल साल इसी मल म बाघगाड़ी को ढोनवाल दोनो घोड़ मर

गए चपानगर स िारजबसगज मला आन क समय सरकस-कपनी क मनजर न गाड़ीवान-पटटी म ऐलान करक कहा -

सौ रपया भाड़ा जमलगा एक-दो गाड़ीवान राजी हए लजकन उनक बल बाघगाड़ी स दस हाथ दर ही डर स जडकरन

लग - बा-आ रससी तड़ा कर भाग जहरामन न अपन बलो की पीठ सहलात हए कहा दखो भयन ऐसा मौका जिर

हाथ न आएगा यही ह मौका अपनी गाड़ी बनवान का नही तो जिर आधदारी अर जपजड़ म बद बाघ का कया डर

मोरग की तराई म दहाड़त हइ बाघो को दख चक हो जिर पीठ पर म तो ह

गाड़ीवानो क दल म ताजलया परपरा उठी थी एक साथ सभी की लाज रख ली जहरामन क बलो न हमक कर आग

बढ़ गए और बाघगाड़ी म जर गए - एक-एक करक जसिट दाजहन बल न जतन क बाद ढर-सा पशाब जकया जहरामन

न दो जदन तक नाक स कपड़ की पटटी नही खोली थी बड़ी गददी क बड सठ जी की तरह नकबधन लगाए जबना बघाइन

गध बरदासत नही कर सकता कोई

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बाघगाड़ी की गाड़ीवानी की ह जहरामन न कभी ऐसी गदगदी नही लगी पीठ म आज रह-रह कर उसकी गाड़ी म चपा

का िल महक उठता ह पीठ म गदगदी लगन पर वह अगोछ स पीठ झाड़ लता ह

जहरामन को लगता ह दो विट स चपानगर मल की भगवती मया उस पर परसनदन ह जपछल साल बाघगाड़ी जर गई

नकद एक सौ रपए भाड़ क अलावा बताद चाह-जबसकर और रासत-भर बदर-भाल और जोकर का तमाशा दखा सो

िोकर म

और इस बार यह जनानी सवारी औरत ह या चपा का िल जब स गाड़ी मह-मह महक रही ह

कचची सड़क क एक छोर-स खडड म गाड़ी का दाजहना पजहया बमौक जहचकोला खा गया जहरामन की गाड़ी स एक

हकी जसस की आवाज आई जहरामन न दाजहन बल को दआली स पीरत हए कहा साला कया समझता ह बोर

की लदनी ह कया

अहा मारो मत

अनदखी औरत की आवाज न जहरामन को अचरज म डाल जदया बचचो की बोली जसी महीन िनजगलासी बोली

मथरामोहन नौरकी कपनी म लला बननवाली हीराबाई का नाम जकसन नही सना होगा भला लजकन जहरामन की बात

जनराली ह उसन सात साल तक लगातार मलो की लदनी लादी ह कभी नौरकी-जथयरर या बायसकोप जसनमा नही

दखा लला या हीराबाई का नाम भी उसन नही सना कभी दखन की कया बात सो मला ररन क परह जदन पहल

आधी रात की बला म काली ओढ़नी म जलपरी औरत को दख कर उसक मन म खरका अवशय लगा था बकसा

ढोनवाल नौकर स गाड़ी-भाड़ा म मोल-मोलाई करन की कोजशश की तो ओढ़नीवाली न जसर जहला कर मना कर

जदया जहरामन न गाड़ी जोतत हए नौकर स पछा कयो भया कोई चोरी चमारी का माल-वाल तो नही जहरामन को

जिर अचरज हआ बकसा ढोनवाल आदमी न हाथ क इशार स गाड़ी हाकन को कहा और अधर म गायब हो गया

जहरामन को मल म तबाक बचनवाली बढ़ी की काली साड़ी की याद आई थी

ऐस म कोई कया गाड़ी हाक

एक तो पीठ म गदगदी लग रही ह दसर रह-रह कर चपा का िल जखल जाता ह उसकी गाड़ी म बलो को डारो तो

इस-जबस करन लगती ह उसकी सवारी उसकी सवारी औरत अकली तबाक बचनवाली बढ़ी नही आवाज सनन

क बाद वह बार-बार मड़ कर रपपर म एक नजर डाल दता ह अगोछ स पीठ झाड़ता ह भगवान जान कया जलखा ह

इस बार उसकी जकसमत म गाड़ी जब परब की ओर मड़ी एक रकड़ा चादनी उसकी गाड़ी म समा गई सवारी की

नाक पर एक जगन जगमगा उठा जहरामन को सबकछ रहसयमय - अजगत-अजगत - लग रहा ह सामन चपानगर स

जसजधया गाव तक िला हआ मदान कही डाजकन-जपशाजचन तो नही

जहरामन की सवारी न करवर ली चादनी पर मखड़ पर पड़ी तो जहरामन चीखत-चीखत रक गया - अर बाप ई तो परी

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परी की आख खल गई जहरामन न सामन सड़क की ओर मह कर जलया और बलो को जररकारी दी वह जीभ को

ताल स सरा कर जर-जर-जर-जर आवाज जनकालता ह जहरामन की जीभ न जान कब स सख कर लकड़ी-जसी हो गई

थी

भया तमहारा नाम कया ह

ह -ब-ह िनजगलास जहरामन क रोम-रोम बज उठ मह स बोली नही जनकली उसक दोनो बल भी कान खड़ करक

इस बोली को परखत ह

मरा नाम नाम मरा ह जहरामन

उसकी सवारी मसकराती ह मसकराहर म खशब ह

तब तो मीता कह गी भया नही - मरा नाम भी हीरा ह

इसस जहरामन को परतीत नही मदट और औरत क नाम म िकट होता ह

हा जी मरा नाम भी हीराबाई ह

कहा जहरामन और कहा हीराबाई बहत िकट ह

जहरामन न अपन बलो को जझड़की दी - कान चजनया कर गप सनन स ही तीस कोस मजजल करगी कया इस बाए नार

क पर म शतानी भरी ह जहरामन न बाए बल को दआली की हकी झड़प दी

मारो मत धीर धीर चलन दो जदी कया ह

जहरामन क सामन सवाल उपजसथत हआ वह कया कह कर गप कर हीराबाई स तोह कह या अहा उसकी भािा म

बड़ो को अहा अथाटत आप कह कर सबोजधत जकया जाता ह कचराही बोली म दो-चार सवाल-जवाब चल सकता

ह जदल-खोल गप तो गाव की बोली म ही की जा सकती ह जकसी स

आजसन-काजतक क भोर म छा जानवाल कहास स जहरामन को परानी जचढ़ ह बहत बार वह सड़क भल कर भरक

चका ह जकत आज क भोर क इस घन कहास म भी वह मगन ह नदी क जकनार धन-खतो स िल हए धान क पौधो

की पवजनया गध आती ह पवट-पावन क जदन गाव म ऐसी ही सगध िली रहती ह उसकी गाड़ी म जिर चपा का िल

जखला उस िल म एक परी बठी ह ज भगवती

जहरामन न आख की कनजखयो स दखा उसकी सवारी मीता हीराबाई की आख गजर-गजर उसको हर रही ह

जहरामन क मन म कोई अजानी राजगनी बज उठी सारी दह जसरजसरा रही ह बोला बल को मारत ह तो आपको बहत

बरा लगता ह

हीराबाई न परख जलया जहरामन सचमच हीरा ह

चालीस साल का हटटा-कटटा काला-कलरा दहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपन बलो क जसवाय दजनया की

जकसी और बात म जवशि जदलचसपी नही लता घर म बड़ा भाई ह खती करता ह बाल-बचचवाला आदमी ह

जहरामन भाई स बढ़ कर भाभी की इजजत करता ह भाभी स डरता भी ह जहरामन की भी शादी हई थी बचपन म ही

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गौन क पहल ही दलजहन मर गई जहरामन को अपनी दलजहन का चहरा याद नही दसरी शादी दसरी शादी न करन

क अनक कारण ह भाभी की जजद कमारी लड़की स ही जहरामन की शादी करवाएगी कमारी का मतलब हआ पाच-

सात साल की लड़की कौन मानता ह सरधा-कानन कोई लड़कीवाला दोबयाह को अपनी लड़की गरज म पड़न पर

ही द सकता ह भाभी उसकी तीन-सतत करक बठी ह सो बठी ह भाभी क आग भया की भी नही चलती अब

जहरामन न तय कर जलया ह शादी नही करगा कौन बलाय मोल लन जाए बयाह करक जिर गाड़ीवानी कया करगा

कोई और सब कछ छर जाए गाड़ीवानी नही छोड़ सकता जहरामन

हीराबाई न जहरामन क जसा जनशछल आदमी बहत कम दखा ह पछा आपका घर कौन जजला म पड़ता ह कानपर

नाम सनत ही जो उसकी हसी छरी तो बल भड़क उठ जहरामन हसत समय जसर नीचा कर लता ह हसी बद होन पर

उसन कहा वाह र कानपर तब तो नाकपर भी होगा और जब हीराबाई न कहा जक नाकपर भी ह तो वह हसत-हसत

दहरा हो गया

वाह र दजनया कया-कया नाम होता ह कानपर नाकपर जहरामन न हीराबाई क कान क िल को गौर स दखा नाक

की नकछजव क नग दख कर जसहर उठा - लह की बद

जहरामन न हीराबई का नाम नही सना कभी नौरकी कपनी की औरत को वह बाईजी नही समझता ह कपनी म

काम करनवाली औरतो को वह दख चका ह सरकस कपनी की मालजकन अपनी दोनो जवान बजरयो क साथ

बाघगाड़ी क पास आती थी बाघ को चारा-पानी दती थी पयार भी करती थी खब जहरामन क बलो को भी

डबलरोरी-जबसकर जखलाया था बड़ी बरी न

जहरामन होजशयार ह कहासा छरत ही अपनी चादर स रपपर म परदा कर जदया -बस दो घरा उसक बाद रासता चलना

मजशकल ह काजतक की सबह की धल आप बदाटसत न कर सजकएगा कजरी नदी क जकनार तगजछया क पास गाड़ी

लगा दग दपहररया कार कर

सामन स आती हई गाड़ी को दर स ही दख कर वह सतकट हो गया लीक और बलो पर धयान लगा कर बठ गया राह

कारत हए गाड़ीवान न पछा मला रर रहा ह कया भाई

जहरामन न जवाब जदया वह मल की बात नही जानता उसकी गाड़ी पर जबदागी (नहर या ससराल जाती हई लड़की)

ह न जान जकस गाव का नाम बता जदया जहरामन न

छतापर-पचीरा कहा ह

कही हो यह ल कर आप कया कररएगा जहरामन अपनी चतराई पर हसा परदा डाल दन पर भी पीठ म गदगदी

लगती ह

जहरामन परद क छद स दखता ह हीराबाई एक जदयासलाई की जडबबी क बराबर आईन म अपन दात दख रही ह

मदनपर मल म एक बार बलो को ननदही-जचतती कौजड़यो की माला खरीद दी थी जहरामन न छोरी-छोरी ननदही-ननदही

कौजड़यो की पात

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तगजछया क तीनो पड़ दर स ही जदखलाई पड़त ह जहरामन न परद को जरा सरकात हए कहा दजखए यही ह तगजछया

दो पड़ जरामासी बड़ ह और एक उस िल का कया नाम ह आपक करत पर जसा िल छपा हआ ह वसा ही खब

महकता ह दो कोस दर तक गध जाती ह उस िल को खमीरा तबाक म डाल कर पीत भी ह लोग

और उस अमराई की आड़ स कई मकान जदखाई पड़त ह वहा कोई गाव ह या मजदर

जहरामन न बीड़ी सलगान क पहल पछा बीड़ी पीए आपको गध तो नही लगगी वही ह नामलगर डयोढ़ी जजस

राजा क मल स हम लोग आ रह ह उसी का जदयाद-गोजतया ह जा र जमाना

जहरामन न जा र जमाना कह कर बात को चाशनी म डाल जदया हीराबाई न रपपर क परद को जतरछ खोस जदया

हीराबाई की दतपजि

कौन जमाना ठडडी पर हाथ रख कर सागरह बोली

नामलगर डयोढ़ी का जमाना कया था और कया-स-कया हो गया

जहरामन गप रसान का भद जानता ह हीराबाई बोली तमन दखा था वह जमाना

दखा नही सना ह राज कस गया बड़ी हिवाली कहानी ह सनत ह घर म दवता न जनदम ल जलया कजहए भला

दवता आजखर दवता ह ह या नही इदरासन छोड़ कर जमरतभवन म जनदम ल ल तो उसका तज कस समहाल सकता ह

कोई सरजमखी िल की तरह माथ क पास तज जखला रहता लजकन नजर का िर जकसी न नही पहचाना एक बार

उपलन म लार साहब मय लारनी क हवागाड़ी स आए थ लार न भी नही पहचाना आजखर लरनी न सरजमखी

तज दखत ही बोल उठी - ए मन राजा साहब सनो यह आदमी का बचचा नही ह दवता ह

जहरामन न लारनी की बोली की नकल उतारत समय खब डम-िर-लर जकया हीराबाई जदल खोल कर हसी हसत

समय उसकी सारी दह दलकती ह

हीराबाई न अपनी ओढ़नी ठीक कर ली तब जहरामन को लगा जक लगा जक

तब उसक बाद कया हआ मीता

इसस कथा सनन का बड़ा सौक ह आपको लजकन काला आदमी राजा कया महाराजा भी हो जाए रहगा काला

आदमी ही साहब क जस अजककल कहा स पाएगा हस कर बात उड़ा दी सभी न तब रानी को बार-बार सपना दन

लगा दवता सवा नही कर सकत तो जान दो नही रहग तमहार यहा इसक बाद दवता का खल शर हआ सबस

पहल दोनो दतार हाथी मर जिर घोड़ा जिर परपराग

परपराग कया ह

जहरामन का मन पल-पल म बदल रहा ह मन म सतरगा छाता धीर-धीर जखल रहा ह उसको लगता ह उसकी गाड़ी

पर दवकल की औरत सवार ह दवता आजखर दवता ह

परपराग धन-दौलत माल-मवसी सब साि दवता इदरासन चला गया

हीराबाई न ओझल होत हए मजदर क क गर की ओर दख कर लबी सास ली

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लजकन दवता न जात-जात कहा इस राज म कभी एक छोड़ कर दो बरा नही होगा धन हम अपन साथ ल जा रह ह

गन छोड़ जात ह दवता क साथ सभी दव-दवी चल गए जसिट सरोसती मया रह गई उसी का मजदर ह

दसी घोड़ पर पार क बोझ लाद हए बजनयो को आत दख कर जहरामन न रपपर क परद को जगरा जदया बलो को

ललकार कर जबदजसया नाच का बदनागीत गान लगा -

ज मया सरोसती अरजी करत बानी

हमरा पर होख सहाई ह मया हमरा पर होख सहाई

घोड़लदद बजनयो स जहरामन न हलस कर पछा कया भाव परआ खरीदत ह महाजन

लगड़ घोड़वाल बजनए न बरगमनी जवाब जदया - नीच सताइस-अठाइस ऊपर तीस जसा माल वसा भाव

जवान बजनय न पछा मल का कया हालचाल ह भाई कौन नौरकी कपनी का खल हो रहा ह रौता कपनी या

मथरामोहन

मल का हाल मलावाला जान जहरामन न जिर छतापर-पचीरा का नाम जलया

सरज दो बास ऊपर आ गया था जहरामन अपन बलो स बात करन लगा - एक कोस जमीन जरा दम बाध कर चलो

पयास की बला हो गई न याद ह उस बार तगजछया क पास सरकस कपनी क जोकर और बदर नचानवाला साहब म

झगड़ा हो गया था जोकरवा ठीक बदर की तरह दात जकरजकरा कर जकजकरयान लगा था न जान जकस-जकस दस-

मलक क आदमी आत ह

जहरामन न जिर परद क छद स दखा हीराबई एक कागज क रकड़ पर आख गड़ा कर बठी ह जहरामन का मन आज

हक सर म बधा ह उसको तरह-तरह क गीतो की याद आती ह बीस-पचचीस साल पहल जबदजसया बलवाही

छोकरा-नाचनवाल एक-स-एक गजल खमरा गात थ अब तो भोपा म भोप-भोप करक कौन गीत गात ह लोग जा र

जमाना छोकरा-नाच क गीत की याद आई जहरामन को -

सजनवा बरी हो ग य हमारो सजनवा

अर जचजठया हो त सब कोई बाच जचजठया हो तो

हाय करमवा होय करमवा

गाड़ी की बली पर उगजलयो स ताल द कर गीत को कार जदया जहरामन न छोकरा-नाच क मनवा नरवा का मह

हीराबाई-जसा ही था कहा चला गया वह जमाना हर महीन गाव म नाचनवाल आत थ जहरामन न छोकरा-नाच

क चलत अपनी भाभी की न जान जकतनी बोली-ठोली सनी थी भाई न घर स जनकल जान को कहा था

आज जहरामन पर मा सरोसती सहाय ह लगता ह हीराबाई बोली वाह जकतना बजढ़या गात हो तम

जहरामन का मह लाल हो गया वह जसर नीचा कर क हसन लगा

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आज तगजछया पर रहनवाल महावीर सवामी भी सहाय ह जहरामन पर तगजछया क नीच एक भी गाड़ी नही हमशा

गाड़ी और गाड़ीवानो की भीड़ लगी रहती ह यहा जसिट एक साइजकलवाला बठ कर ससता रहा ह महावीर सवामी को

समर कर जहरामन न गाड़ी रोकी हीराबाई परदा हरान लगी जहरामन न पहली बार आखो स बात की हीराबाई स -

साइजकलवाला इधर ही रकरकी लगा कर दख रहा ह

बलो को खोलन क पहल बास की जरकरी लगा कर गाड़ी को जरका जदया जिर साइजकलवाल की ओर बार-बार घरत

हए पछा कहा जाना ह मला कहा स आना हो रहा ह जबसनपर स बस इतनी ही दर म थसथसा कर थक गए -

जा र जवानी

साइजकलवाला दबला-पतला नौजवान जमनजमना कर कछ बोला और बीड़ी सलगा कर उठ खड़ा हआ जहरामन

दजनया-भर की जनगाह स बचा कर रखना चाहता ह हीराबाई को उसन चारो ओर नजर दौड़ा कर दख जलया - कही

कोई गाड़ी या घोड़ा नही

कजरी नदी की दबली-पतली धारा तगजछया क पास आ कर परब की ओर मड़ गई ह हीराबाई पानी म बठी हई भसो

और उनकी पीठ पर बठ हए बगलो को दखती रही

जहरामन बोला जाइए घार पर मह-हाथ धो आइए

हीराबाई गाड़ी स नीच उतरी जहरामन का कलजा धड़क उठा नही नही पाव सीध ह रढ़ नही लजकन तलवा

इतना लाल कयो ह हीराबाई घार की ओर चली गई गाव की बह -बरी की तरह जसर नीचा कर क धीर-धीर कौन

कहगा जक कपनी की औरत ह औरत नही लड़की शायद कमारी ही ह

जहरामन जरकरी पर जरकी गाड़ी पर बठ गया उसन रपपर म झाक कर दखा एक बार इधर-उधर दख कर हीराबाई क

तजकए पर हाथ रख जदया जिर तजकए पर कहनी डाल कर झक गया झकता गया खशब उसकी दह म समा गई

तजकए क जगलाि पर कढ़ िलो को उगजलयो स छ कर उसन सघा हाय र हाय इतनी सगध जहरामन को लगा एक

साथ पाच जचलम गाजा ि क कर वह उठा ह हीराबाई क छोर आईन म उसन अपना मह दखा आख उसकी इतनी

लाल कयो ह

हीराबाई लौर कर आई तो उसन हस कर कहा अब आप गाड़ी का पहरा दीजजए म आता ह तरत

जहरामन न अपना सिरी झोली स सहजी हई गजी जनकाली गमछा झाड़ कर कध पर जलया और हाथ म बालरी

लरका कर चला उसक बलो न बारी-बारी स हक-हक करक कछ कहा जहरामन न जात-जात उलर कर कहा

हाहा पयास सभी को लगी ह लौर कर आता ह तो घास दगा बदमासी मत करो

बलो न कान जहलाए

नहा-धो कर कब लौरा जहरामन हीराबाई को नही मालम कजरी की धारा को दखत-दखत उसकी आखो म रात की

उचरी हई नीद लौर आई थी जहरामन पास क गाव स जलपान क जलए दही-चड़ा-चीनी ल आया ह

उजठए नीद तोजड़ए दो मटठी जलपान कर लीजजए

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हीराबाई आख खोल कर अचरज म पड़ गई एक हाथ म जमटटी क नए बरतन म दही कल क पतत दसर हाथ म

बालरी-भर पानी आखो म आतमीयतापणट अनरोध

इतनी चीज कहा स ल आए

इस गाव का दही नामी ह चाह तो िारजबसगज जा कर ही पाइएगा

जहरामन की दह की गदगदी जमर गई हीराबाई न कहा तम भी पततल जबछाओ कयो तम नही खाओग तो समर

कर रख लो अपनी झोली म म भी नही खाऊ गी

इसस जहरामन लजा कर बोला अचछी बात आप खा लीजजए पहल

पहल-पीछ कया तम भी बठो

जहरामन का जी जड़ा गया हीराबाई न अपन हाथ स उसका पततल जबछा जदया पानी छीर जदया चड़ा जनकाल कर

जदया इसस धनदन ह धनदन ह जहरामन न दखा भगवती मया भोग लगा रही ह लाल होठो पर गोरस का परस

पहाड़ी तोत को दध-भात खात दखा ह

जदन ढल गया

रपपर म सोई हीराबाई और जमीन पर दरी जबछा कर सोए जहरामन की नीद एक ही साथ खली मल की ओर

जानवाली गाजड़या तगजछया क पास रकी ह बचच कचर-पचर कर रह ह

जहरामन हड़बड़ा कर उठा रपपर क अदर झाक कर इशार स कहा - जदन ढल गया गाड़ी म बलो को जोतत समय

उसन गाड़ीवानो क सवालो का कोई जवाब नही जदया गाड़ी हाकत हए बोला जसरपर बाजार क इसजपताल की

डागडरनी ह रोगी दखन जा रही ह पास ही कड़मागाम

हीराबाई छततापर-पचीरा का नाम भल गई गाड़ी जब कछ दर आग बढ़ आई तो उसन हस कर पछा पततापर-छपीरा

हसत-हसत पर म बल पड़ जाए जहरामन क - पततापर-छपीरा हा-हा व लोग छततापर-पचीरा क ही गाड़ीवान थ उनस

कस कहता ही-ही-ही

हीराबाई मसकराती हई गाव की ओर दखन लगी

सड़क तगजछया गाव क बीच स जनकलती ह गाव क बचचो न परदवाली गाड़ी दखी और ताजलया बजा-बजा कर ररी

हई पजिया दहरान लग -

लाली-लाली डोजलया म

लाली र दलजहजनया

पान खाए

जहरामन हसा दलजहजनया लाली-लाली डोजलया दलजहजनया पान खाती ह दलहा की पगड़ी म मह पोछती ह

ओ दलजहजनया तगजछया गाव क बचचो को याद रखना लौरती बर गड़ का लडड लती आइयो लाख बररस तरा

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हलहा जीए जकतन जदनो का हौसला परा हआ ह जहरामन का ऐस जकतन सपन दख ह उसन वह अपनी दलजहन

को ल कर लौर रहा ह हर गाव क बचच ताजलया बजा कर गा रह ह हर आगन स झाक कर दख रही ह औरत मदट

लोग पछत ह कहा की गाड़ी ह कहा जाएगी उसकी दलजहन डोली का परदा थोड़ा सरका कर दखती ह और भी

जकतन सपन

गाव स बाहर जनकल कर उसन कनजखयो स रपपर क अदर दखा हीराबाई कछ सोच रही ह जहरामन भी जकसी सोच म

पड़ गया थोड़ी दर क बाद वह गनगनान लगा-

सजन र झठ मजत बोलो खदा क पास जाना ह

नही हाथी नही घोड़ा नही गाड़ी -

वहा पदल ही जाना ह सजन र

हीराबाई न पछा कयो मीता तमहारी अपनी बोली म कोई गीत नही कया

जहरामन अब बखरक हीराबाई की आखो म आख डाल कर बात करता ह कपनी की औरत भी ऐसी होती ह

सरकस कपनी की मालजकन मम थी लजकन हीराबाई गाव की बोली म गीत सनना चाहती ह वह खल कर

मसकराया - गाव की बोली आप समजझएगा

ह -ऊ -ऊ हीराबाई न गदटन जहलाई कान क झमक जहल गए

जहरामन कछ दर तक बलो को हाकता रहा चपचाप जिर बोला गीत जरर ही सजनएगा नही माजनएगा इसस इतना

सौक गाव का गीत सनन का ह आपको तब लीक छोड़ानी होगी चाल रासत म कस गीत गा सकता ह कोई

जहरामन न बाए बल की रससी खीच कर दाजहन को लीक स बाहर जकया और बोला हररपर हो कर नही जाएग तब

चाल लीक को कारत दख कर जहरामन की गाड़ी क पीछवाल गाड़ीवान न जचला कर पछा काह हो गाड़ीवान लीक

छोड़ कर बलीक कहा उधर

जहरामन न हवा म दआली घमात हए जवाब जदया - कहा ह बलीकी वह सड़क नननपर तो नही जाएगी जिर अपन-

आप बड़बड़ाया इस मलक क लोगो की यही आदत बरी ह राह चलत एक सौ जजरह करग अर भाई तमको जाना

ह जाओ दहाती भचच सब

नननपर की सड़क पर गाड़ी ला कर जहरामन न बलो की रससी ढीली कर दी बलो न दलकी चाल छोड़ कर कदमचाल

पकड़ी

हीराबाई न दखा सचमच नननपर की सड़क बड़ी सनी ह जहरामन उसकी आखो की बोली समझता ह - घबरान की

बात नही यह सड़क भी िारजबसगज जाएगी राह-घार क लोग बहत अचछ ह एक घड़ी रात तक हम लोग पहच

जाएग

हीराबाई को िारजबसगज पहचन की जदी नही जहरामन पर उसको इतना भरोसा हो गया जक डर-भय की कोई बात

नही उठती ह मन म जहरामन न पहल जी-भर मसकरा जलया कौन गीत गाए वह हीराबाई को गीत और कथा दोनो का

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शौक ह इसस महआ घरवाररन वह बोला अचछा जब आपको इतना सौक ह तो सजनए महआ घरवाररन का

गीत इसम गीत भी ह कथा भी ह

जकतन जदनो क बाद भगवती न यह हौसला भी परा कर जदया ज भगवती आज जहरामन अपन मन को खलास कर

लगा वह हीराबाई की थमी हई मसकराहर को दखता रहा

सजनए आज भी परमार नदी म महआ घरवाररन क कई परान घार ह इसी मलक की थी महआ थी तो घरवाररन

लजकन सौ सतवती म एक थी उसका बाप दार-ताड़ी पी कर जदन-रात बहोश पड़ा रहता उसकी सौतली मा साचछात

राकसनी बहत बड़ी नजर-चालक रात म गाजा-दार-अिीम चरा कर बचनवाल स ल कर तरह-तरह क लोगो स

उसकी जान-पहचान थी सबस घटटा-भर हल-मल महआ कमारी थी लजकन काम करात-करात उसकी हडडी

जनकाल दी थी राकसनी न जवान हो गई कही शादी-बयाह की बात भी नही चलाई एक रात की बात सजनए

जहरामन न धीर-धीर गनगना कर गला साि जकया -

ह अ-अ-अ- सावना-भादवा क - र- उमड़ल नजदया -ग-म-म-यो-ओ-ओ

मयो ग रजन भयावजन-ह-ए-ए-ए

तड़का-तड़क-धड़क करज-आ-आ मोरा

जक हमह ज बार-नानदही र-ए-ए

ओ मा सावन-भादो की उमड़ी हई नदी भयावनी रात जबजली कड़कती ह म बारी-कवारी ननदही बचची मरा कलजा

धड़कता ह अकली कस जाऊ घार पर सो भी परदशी राही-बरोही क पर म तल लगान क जलए सत-मा न अपनी

बजजर-जकवाड़ी बद कर ली आसमान म मघ हड़बड़ा उठ और हरहरा कर बरसा होन लगी महआ रोन लगी अपनी

मा को याद करक आज उसकी मा रहती तो ऐस दरजदन म कलज स सरा कर रखती अपनी महआ बरी को ग मइया

इसी जदन क जलए यही जदखान क जलए तमन कोख म रखा था महआ अपनी मा पर गससाई - कयो वह अकली मर

गई जी-भर कर कोसती हई बोली

जहरामन न लकषय जकया हीराबाई तजकए पर कहनी गड़ा कर गीत म मगन एकरक उसकी ओर दख रही ह खोई हई

सरत कसी भोली लगती ह

जहरामन न गल म क पक पी पदा की -

ह -ऊ -ऊ -र डाइजनया मयो मोरी-ई-ई

नोनवा चराई काह नाजह मारजल सौरी-घर-अ-अ

एजह जदनवा खाजतर जछनरो जधया

तह पोसजल जक नन-दध उगरन

जहरामन न दम लत हए पछा भाखा भी समझती ह कछ या खाली गीत ही सनती ह

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हीरा बोली समझती ह उगरन मान उबरन - जो दह म लगात ह

जहरामन न जवजसमत हो कर कहा इसस सो रोन-धोन स कया होए सौदागर न परा दाम चका जदया था महआ का

बाल पकड़ कर घसीरता हआ नाव पर चढ़ा और माझी को हकम जदया नाव खोलो पाल बाधो पालवाली नाव

परवाली जचजड़या की तरह उड़ चली रात-भर महआ रोती-छरपराती रही सौदागर क नौकरो न बहत डराया-धमकाया

- चप रहो नही तो उठा कर पानी म ि क दग बस महआ को बात सझ गई भोर का तारा मघ की आड़ स जरा बाहर

आया जिर जछप गया इधर महआ भी छपाक स कद पड़ी पानी म सौदागर का एक नौकर महआ को दखत ही

मोजहत हो गया था महआ की पीठ पर वह भी कदा उलरी धारा म तरना खल नही सो भी भरी भादो की नदी म

महआ असल घरवाररन की बरी थी मछली भी भला थकती ह पानी म सिरी मछली-जसी िरिराती पानी चीरती

भागी चली जा रही ह और उसक पीछ सौदागर का नौकर पकार-पकार कर कहता ह - महआ जरा थमो तमको

पकड़न नही आ रहा तमहारा साथी ह जजदगी-भर साथ रहग हम लोग लजकन

जहरामन का बहत जपरय गीत ह यह महआ घरवाररन गात समय उसक सामन सावन-भादो की नदी उमड़न लगती ह

अमावसया की रात और घन बादलो म रह-रह कर जबजली चमक उठती ह उसी चमक म लहरो स लड़ती हई बारी-

कमारी महआ की झलक उस जमल जाती ह सिरी मछली की चाल और तज हो जाती ह उसको लगता ह वह खद

सौदागर का नौकर ह महआ कोई बात नही सनती परतीत करती नही उलर कर दखती भी नही और वह थक गया

ह तरत-तरत

इस बार लगता ह महआ न अपन को पकड़ा जदया खद ही पकड़ म आ गई ह उसन महआ को छ जलया ह पा जलया

ह उसकी थकन दर हो गई ह परह-बीस साल तक उमड़ी हई नदी की उलरी धारा म तरत हए उसक मन को जकनारा

जमल गया ह आनद क आस कोई भी रोक नही मानत

उसन हीराबाई स अपनी गीली आख चरान की कोजशश की जकत हीरा तो उसक मन म बठी न जान कब स सब कछ

दख रही थी जहरामन न अपनी कापती हई बोली को काब म ला कर बलो को जझड़की दी - इस गीत म न जान कया ह

जक सनत ही दोनो थसथसा जात ह लगता ह सौ मन बोझ लाद जदया जकसी न

हीराबाई लबी सास लती ह जहरामन क अग-अग म उमग समा जाती ह

तम तो उसताद हो मीता

इसस

आजसन-काजतक का सरज दो बास जदन रहत ही कमहला जाता ह सरज डबन स पहल ही नननपर पहचना ह जहरामन

अपन बलो को समझा रहा ह - कदम खोल कर और कलजा बाध कर चलो ए जछ जछ बढ़क भयन ल-ल-ल-

ए ह -य

नननपर तक वह अपन बलो को ललकारता रहा हर ललकार क पहल वह अपन बलो को बीती हई बातो की याद

जदलाता - याद नही चौधरी की बरी की बरात म जकतनी गाजड़या थी सबको कस मात जकया था हा वह कदम

जनकालो ल-ल-ल नननपर स िारजबसगज तीन कोस दो घर और

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नननपर क हार पर आजकल चाय भी जबकन लगी ह जहरामन अपन लोर म चाय भर कर ल आया कपनी की

औरत जानता ह वह सारा जदन घड़ी घड़ी भर म चाय पीती रहती ह चाय ह या जान

हीरा हसत-हसत लोर-पोर हो रही ह - अर तमस जकसन कह जदया जक कवार आदमी को चाय नही पीनी चाजहए

जहरामन लजा गया कया बोल वह लाज की बात लजकन वह भोग चका ह एक बार सरकस कपनी की मम क

हाथ की चाय पी कर उसन दख जलया ह बडी गमट तासीर

पीजजए गर जी हीरा हसी

इसस

नननपर हार पर ही दीया-बाती जल चकी थी जहरामन न अपना सिरी लालरन जला कर जपछवा म लरका जदया

आजकल शहर स पाच कोस दर क गाववाल भी अपन को शहर समझन लग ह जबना रोशनी की गाड़ी को पकड़

कर चालान कर दत ह बारह बखड़ा

आप मझ गर जी मत कजहए

तम मर उसताद हो हमार शासतर म जलखा हआ ह एक अचछर जसखानवाला भी गर और एक राग जसखानवाला भी

उसताद

इसस सासतर-परान भी जानती ह मन कया जसखाया म कया

हीरा हस कर गनगनान लगी - ह-अ-अ-अ- सावना-भादवा क-र

जहरामन अचरज क मार गगा हो गया इसस इतना तज जहन ह -ब-ह महआ घरवाररन

गाड़ी सीताधार की एक सखी धारा की उतराई पर गड़गड़ा कर नीच की ओर उतरी हीराबाई न जहरामन का कधा धर

जलया एक हाथ स बहत दर तक जहरामन क कध पर उसकी उगजलया पड़ी रही जहरामन न नजर जिरा कर कध पर

क जरत करन की कोजशश की कई बार गाड़ी चढ़ाई पर पहची तो हीरा की ढीली उगजलया जिर तन गई

सामन िारजबसगज शहर की रोशनी जझलजमला रही ह शहर स कछ दर हर कर मल की रोशनी रपपर म लरक

लालरन की रोशनी म छाया नाचती ह आसपास डबडबाई आखो स हर रोशनी सरजमखी िल की तरह जदखाई

पड़ती ह

िारजबसगज तो जहरामन का घर-दआर ह

न जान जकतनी बार वह िारजबसगज आया ह मल की लदनी लादी ह जकसी औरत क साथ हा एक बार उसकी

भाभी जजस साल आई थी गौन म इसी तरह जतरपाल स गाड़ी को चारो ओर स घर कर बासा बनाया गया था

जहरामन अपनी गाड़ी को जतरपाल स घर रहा ह गाड़ीवान-पटटी म सबह होत ही रौता नौरकी कपनी क मनजर स बात

करक भरती हो जाएगी हीराबाई परसो मला खल रहा ह इस बार मल म पालचटटी खब जमी ह बस एक रात

आज रात-भर जहरामन की गाड़ी म रहगी वह जहरामन की गाड़ी म नही घर म

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कहा की गाड़ी ह कौन जहरामन जकस मल स जकस चीज की लदनी ह

गाव-समाज क गाड़ीवान एक-दसर को खोज कर आसपास गाड़ी लगा कर बासा डालत ह अपन गाव क

लालमोहर धनदनीराम और पलरदास वगरह गाड़ीवानो क दल को दख कर जहरामन अचकचा गया उधर पलरदास

रपपर म झाक कर भड़का मानो बाघ पर नजर पड़ गई जहरामन न इशार स सभी को चप जकया जिर गाड़ी की ओर

कनखी मार कर िसिसाया - चप कपनी की औरत ह नौरकी कपनी की

कपनी की -ई-ई-ई

एक नही अब चार जहरामन चारो न अचरज स एक-दसर को दखा कपनी नाम म जकतना असर ह जहरामन न लकषय

जकया तीनो एक साथ सरक-दम हो गए लालमोहर न जरा दर हर कर बजतयान की इचछा परकर की इशार स ही

जहरामन न रपपर की ओर मह करक कहा होजरल तो नही खला होगा कोई हलवाई क यहा स पककी ल आव

जहरामन जरा इधर सनो म कछ नही खाऊ गी अभी लो तम खा आओ

कया ह पसा इसस पसा द कर जहरामन न कभी िारजबसगज म कचची-पककी नही खाई उसक गाव क इतन

गाड़ीवान ह जकस जदन क जलए वह छ नही सकता पसा उसन हीराबाई स कहा बकार मला-बाजार म हजजत मत

कीजजए पसा रजखए मौका पा कर लालमोहर भी रपपर क करीब आ गया उसन सलाम करत हए कहा चार आदमी

क भात म दो आदमी खसी स खा सकत ह बासा पर भात चढा हआ ह ह-ह-ह हम लोग एकजह गाव क ह गौवा-

जगराजमन क रहत होजरल और हलवाई क यहा खाएगा जहरामन

जहरामन न लालमोहर का हाथ रीप जदया - बसी भचर-भचर मत बको

गाड़ी स चार रससी दर जात-जात धनदनीराम न अपन कलबलात हए जदल की बात खोल दी - इसस तम भी खब हो

जहरामन उस साल कपनी का बाघ इस बार कपनी की जनानी

जहरामन न दबी आवाज म कहा भाई र यह हम लोगो क मलक की जनाना नही जक लरपर बोली सन कर भी चप रह

जाए एक तो पजचछम की औरत जतस पर कपनी की

धनदनीराम न अपनी शका परकर की - लजकन कपनी म तो सनत ह पतररया रहती ह

धत सभी न एक साथ उसको दरदरा जदया कसा आदमी ह पतररया रहगी कपनी म भला दखो इसकी बजदध सना

ह दखा तो नही ह कभी

धनदनीराम न अपनी गलती मान ली पलरदास को बात सझी - जहरामन भाई जनाना जात अकली रहगी गाड़ी पर

कछ भी हो जनाना आजखर जनाना ही ह कोई जररत ही पड़ जाए

यह बात सभी को अचछी लगी जहरामन न कहा बात ठीक ह पलर तम लौर जाओ गाड़ी क पास ही रहना और

दखो गपशप जरा होजशयारी स करना हा

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जहरामन की दह स अतर-गलाब की खशब जनकलती ह जहरामन करमसाड़ ह उस बार महीनो तक उसकी दह स

बघाइन गध नही गई लालमोहर न जहरामन की गमछी सघ ली - ए-ह

जहरामन चलत-चलत रक गया - कया कर लालमोहर भाई जरा कहो तो बड़ी जजदद करती ह कहती ह नौरकी

दखना ही होगा

िोकर म ही

और गाव नही पहचगी यह बात

जहरामन बोला नही जी एक रात नौरकी दख कर जजदगी-भर बोली-ठोली कौन सन दसी मगी जवलायती चाल

धनदनीराम न पछा िोकर म दखन पर भी तमहारी भौजाई बात सनाएगी

लालमोहर क बासा क बगल म एक लकड़ी की दकान लाद कर आए हए गाड़ीवानो का बासा ह बासा क मीर-

गाड़ीवान जमयाजान बढ़ न सिरी गड़गड़ी पीत हए पछा कयो भाई मीनाबाजार की लदनी लाद कर कौन आया ह

मीनाबाजार मीनाबाजार तो पतररया-पटटी को कहत ह कया बोलता ह यह बढ़ा जमया लालमोहर न जहरामन क

कान म िसिसा कर कहा तमहारी दह मह-मह-महकती ह सच

लहसनवा लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान ह उमर म सबस छोरा ह पहली बार आया ह तो कया बाब-बबआइनो क

यहा बचपन स नौकरी कर चका ह वह रह-रह कर वातावरण म कछ सघता ह नाक जसकोड़ कर जहरामन न दखा

लहसनवा का चहरा तमतम गया ह कौन आ रहा ह धड़धड़ाता हआ - कौन पलरदास कया ह

पलरदास आ कर खड़ा हो गया चपचाप उसका मह भी तमतमाया हआ था जहरामन न पछा कया हआ बोलत कयो

नही

कया जवाब द पलरदास जहरामन न उसको चतावनी द दी थी गपशप होजशयारी स करना वह चपचाप गाड़ी की

आसनी पर जा कर बठ गया जहरामन की जगह पर हीराबाई न पछा तम भी जहरामन क साथ हो पलरदास न गरदन

जहला कर हामी भरी हीराबाई जिर लर गई चहरा-मोहरा और बोली-बानी दख-सन कर पलरदास का कलजा

कापन लगा न जान कयो हा रामलीला म जसया सकमारी इसी तरह थकी लरी हई थी ज जसयावर रामचर की ज

पलरदास क मन म ज-जकार होन लगा वह दास-वसनव ह कीतटजनया ह थकी हई सीता महारानी क चरण रीपन

की इचछा परकर की उसन हाथ की उगजलयो क इशार स मानो हारमोजनयम की परररयो पर नचा रहा हो हीराबाई

तमक कर बठ गई - अर पागल ह कया जाओ भागो

पलरदास को लगा गससाई हई कपनी की औरत की आखो स जचनगारी जनकल रही ह - छरक-छरक वह भागा

पलरदास कया जवाब द वह मला स भी भागन का उपाय सोच रहा ह बोला कछ नही हमको वयापारी जमल गया

अभी ही रीसन जा कर माल लादना ह भात म तो अभी दर ह म लौर आता ह तब तक

खात समय धनदनीराम और लहसनवा न पलरदास की रोकरी-भर जनदा की छोरा आदमी ह कमीना ह पस-पस का

जहसाब जोड़ता ह खान-पीन क बाद लालमोहर क दल न अपना बासा तोड़ जदया धनदनी और लहसनवा गाड़ी जोत

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कर जहरामन क बासा पर चल गाड़ी की लीक धर कर जहरामन न चलत-चलत रक कर लालमोहर स कहा जरा मर

इस कध को सघो तो सघ कर दखो न

लालमोहर न कधा सघ कर आख मद ली मह स असिर शबद जनकला - ए - ह

जहरामन न कहा जरा-सा हाथ रखन पर इतनी खशब समझ लालमोहर न जहरामन का हाथ पकड़ जलया - कध पर

हाथ रखा था सच सनो जहरामन नौरकी दखन का ऐसा मौका जिर कभी हाथ नही लगगा हा

तम भी दखोग लालमोहर की बततीसी चौराह की रोशनी म जझलजमला उठी

बासा पर पहच कर जहरामन न दखा रपपर क पास खड़ा बजतया रहा ह कोई हीराबाई स धनदनी और लहसनवा न एक

ही साथ कहा कहा रह गए पीछ बहत दर स खोज रही ह कपनी

जहरामन न रपपर क पास जा कर दखा - अर यह तो वही बकसा ढोनवाला नौकर जो चपानगर मल म हीराबाई को

गाड़ी पर जबठा कर अधर म गायब हो गया था

आ गए जहरामन अचछी बात इधर आओ यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दजचछना पचचीस-पचचीस

पचास

जहरामन को लगा जकसी न आसमान स धकल कर धरती पर जगरा जदया जकसी न कयो इस बकसा ढोनवाल आदमी न

कहा स आ गया उसकी जीभ पर आई हई बात जीभ पर ही रह गई इसस दजचछना वह चपचाप खड़ा रहा

हीराबाई बोली लो पकड़ो और सनो कल सबह रौता कपनी म आ कर मझस भर करना पास बनवा दगी बोलत

कयो नही

लालमोहर न कहा इलाम-बकसीस द रही ह मालजकन ल लो जहरामन जहरामन न कर कर लालमोहर की ओर दखा

बोलन का जरा भी ढग नही इस लालमोहरा को

धनदनीराम की सवगतोजि सभी न सनी हीराबाई न भी - गाड़ी-बल छोड़ कर नौरकी कस दख सकता ह कोई गाड़ीवान

मल म

जहरामन न रपया लत हए कहा कया बोलग उसन हसन की चिा की कपनी की औरत कपनी म जा रही ह जहरामन

का कया बकसा ढोनवाला रासता जदखाता हआ आग बढ़ा - इधर स हीराबाई जात-जात रक गई जहरामन क बलो

को सबोजधत करक बोली अचछा म चली भयन

बलो न भया शबद पर कान जहलाए

भा-इ-यो आज रात जद रौता सगीत कपनी क सरज पर गलबदन दजखए गलबदन आपको यह जान कर खशी होगी

जक मथरामोहन कपनी की मशह र एकटस जमस हीरादवी जजसकी एक-एक अदा पर हजार जान जिदा ह इस बार हमारी

कपनी म आ गई ह याद रजखए आज की रात जमस हीरादवी गलबदन

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नौरकीवालो क इस एलान स मल की हर पटटी म सरगमी िल रही ह हीराबाई जमस हीरादवी लला गलबदन

जिजलम एकटस को मात करती ह

तरी बाकी अदा पर म खद ह जिदा

तरी चाहत को जदलबर बया कया कर

यही खवाजहश ह जक इ-इ-इ त मझको दखा कर

और जदलोजान म तमको दखा कर

जकरट-रट-रट-रट कडड़ड़ड़डड़ड़रट-ई-घन-घन-धड़ाम

हर आदमी का जदल नगाड़ा हो गया ह

लालमोहर दौड़ता-हािता बासा पर आया - ऐ ऐ जहरामन यहा कया बठ हो चल कर दखो ज-जकार हो रहा ह मय

बाजा-गाजा छापी-िाहरम क साथ हीराबाई की ज-ज कर रहा ह

जहरामन हड़बड़ा कर उठा लहसनवा न कहा धनदनी काका तम बासा पर रहो म भी दख आऊ

धनदनी की बात कौन सनता ह तीनो जन नौरकी कपनी की एलाजनया पारी क पीछ-पीछ चलन लग हर नककड़ पर

रक कर बाजा बद कर क एलान जकया जाना ह एलान क हर शबद पर जहरामन पलक उठता ह हीराबाई का नाम

नाम क साथ अदा-जिदा वगरह सन कर उसन लालमोहर की पीठ थपथपा दी - धनदन ह धनदन ह ह या नही

लालमोहर न कहा अब बोलो अब भी नौरकी नही दखोग सबह स ही धनदनीराम और लालमोहर समझा रह थ

समझा कर हार चक थ - कपनी म जा कर भर कर आओ जात-जात परजसस कर गई ह लजकन जहरामन की बस एक

बात - धतत कौन भर करन जाए कपनी की औरत कपनी म गई अब उसस कया लना-दना चीनदहगी भी नही

वह मन-ही-मन रठा हआ था एलान सनन क बाद उसन लालमोहर स कहा जरर दखना चाजहए कयो लालमोहर

दोनो आपस म सलाह करक रौता कपनी की ओर चल खम क पास पहच कर जहरामन न लालमोहर को इशारा

जकया पछताछ करन का भार लालमोहर क जसर लालमोहर कचराही बोलना जानता ह लालमोहर न एक काल

कोरवाल स कहा बाब साहब जरा सजनए तो

काल कोरवाल न नाक-भौ चढ़ा कर कहा - कया ह इधर कयो

लालमोहर की कचराही बोली गड़बड़ा गई - तवर दख कर बोला गलगल नही-नही बल-बल नही

जहरामन न झर-स समहाल जदया - हीरादवी जकधर रहती ह बता सकत ह उस आदमी की आख हठात लाल हो गई

सामन खड़ नपाली जसपाही को पकार कर कहा इन लोगो को कयो आन जदया इधर

जहरामन वही िनजगलासी आवाज जकधर स आई खम क परद को हरा कर हीराबाई न बलाया - यहा आ जाओ

अदर दखो बहादर इसको पहचान लो यह मरा जहरामन ह समझ

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नपाली दरबान जहरामन की ओर दख कर जरा मसकराया और चला गया काल कोरवाल स जा कर कहा हीराबाई

का आदमी ह नही रोकन बोला

लालमोहर पान ल आया नपाली दरबान क जलए - खाया जाए

इसस एक नही पाच पास चारो अठजनया बोली जक जब तक मल म हो रोज रात म आ कर दखना सबका खयाल

रखती ह बोली जक तमहार और साथी ह सभी क जलए पास ल जाओ कपनी की औरतो की बात जनराली होती ह ह

या नही

लालमोहर न लाल कागज क रकड़ो को छ कर दखा - पा-स वाह र जहरामन भाई लजकन पाच पास ल कर कया

होगा पलरदास तो जिर पलर कर आया ही नही ह अभी तक

जहरामन न कहा जान दो अभाग को तकदीर म जलखा नही हा पहल गरकसम खानी होगी सभी को जक गाव-घर

म यह बात एक पछी भी न जान पाए

लालमोहर न उततजजत हो कर कहा कौन साला बोलगा गाव म जा कर पलरा न अगर बदनामी की तो दसरी बार स

जिर साथ नही लाऊ गा

जहरामन न अपनी थली आज हीराबाई क जजमम रख दी ह मल का कया जठकाना जकसम-जकसम क पाजकरकार लोग

हर साल आत ह अपन साथी-सजगयो का भी कया भरोसा हीराबाई मान गई जहरामन क कपड़ की काली थली को

उसन अपन चमड़ क बकस म बद कर जदया बकस क ऊपर भी कपड़ का खोल और अदर भी झलमल रशमी असतर

मन का मान-अजभमान दर हो गया

लालमोहर और धनदनीराम न जमल कर जहरामन की बजदध की तारीि की उसक भागय को सराहा बार-बार उसक भाई

और भाभी की जनदा की दबी जबान स जहरामन क जसा हीरा भाई जमला ह इसीजलए कोई दसरा भाई होता तो

लहसनवा का मह लरका हआ ह एलान सनत-सनत न जान कहा चला गया जक घड़ी-भर साझ होन क बाद लौरा ह

लालमोहर न एक माजलकाना जझड़की दी ह गाली क साथ - सोहदा कही का

धनदनीराम न च ह पर जखचड़ी चढ़ात हए कहा पहल यह िसला कर लो जक गाड़ी क पास कौन रहगा

रहगा कौन यह लहसनवा कहा जाएगा

लहसनवा रो पड़ा - ऐ-ए-ए माजलक हाथ जोड़त ह एकको झलक बस एक झलक

जहरामन न उदारतापवटक कहा lsquoअचछा-अचछा एक झलक कयो एक घरा दखना म आ जाऊ गाlsquo

नौरकी शर होन क दो घर पहल ही नगाड़ा बजना शर हो जाता ह और नगाड़ा शर होत ही लोग पजतगो की तरह

ररन लगत ह जरकरघर क पास भीड़ दख कर जहरामन को बड़ी हसी आई ndashlsquoलालमोहर उधर दख कसी

धककमधककी कर रह ह लोगrsquo

जहरामन भायrsquo

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lsquoकौन पलरदास कहा की लदनी लाद आएrsquoलालमोहर न पराए गाव क आदमी की तरह पछा

पलरदास न हाथ मलत हए मािी मागी ndashlsquoकसरबार ह जो सजा दो तम लोग सब मजर ह लजकन सचची बात कह

जक जसया सकमारीlsquo

जहरामन क मन का परइन नगाड़ क ताल पर जवकजसत हो चका ह बोला lsquoदखो पलरा यह मत समझना जक गाव-घर

की जनाना ह दखो तमहार जलए भी पास जदया ह पास ल लो अपना तमासा दखोlsquo

लालमोहर न कहा lsquoलजकन एक सतट पर पास जमलगा बीच-बीच म लहसनवा को भीlsquo

पलरदास को कछ बतान की जररत नही वह लहसनवा स बातचीत कर आया ह अभी

लालमोहर न दसरी शतट सामन रखी ndashlsquoगाव म अगर यह बात मालम हई जकसी तरहrsquo

lsquoराम-रामrsquoदात स जीभ को कारत हए कहा पलरदास न

पलरदास न बताया ndashlsquoअठजनया िारक इधर हrsquoिारक पर खड़ दरबान न हाथ स पास ल कर उनक चहर को बारी-

बारी स दखा बोला lsquoयह तो पास ह कहा स जमलाrsquo

अब लालमोहर की कचराही बोली सन कोई उसक तवर दख कर दरबान घबरा गया ndashlsquoजमलगा कहा स अपनी

कपनी स पछ लीजजए जा कर चार ही नही दजखए एक और हlsquoजब स पाचवा पास जनकाल कर जदखाया लालमोहर

एक रपयावाल िारक पर नपाली दरबान खड़ा था जहरामन न पकार कर कहा lsquoए जसपाही दाज सबह को ही

पहचनवा जदया और अभी भल गएrsquo

नपाली दरबान बोला lsquoहीराबाई का आदमी ह सब जान दो पास ह तो जिर काह को रोकता हrsquo

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अठजनया दजाट

तीनो न lsquoकपड़घरrsquoको अदर स पहली बार दखा सामन करसी-बचवाल दज ह परद पर राम-बन-गमन की तसवीर ह

पलरदास पहचान गया उसन हाथ जोड़ कर नमसकार जकया परद पर अजकत रामजसया सकमारी और लखनलला को

lsquoज हो ज होrsquoपलरदास की आख भर आई

जहरामन न कहा lsquoलालमोहर छापी सभी खड़ ह या चल रह हrsquo

लालमोहर अपन बगल म बठ दशटको स जान-पहचान कर चका ह उसन कहा lsquoखला अभी परदा क भीतर ह अभी

जजमनका द रहा ह लोग जमान क जलएlsquo

पलरदास ढोलक बजाना जानता ह इसजलए नगाड़ क ताल पर गरदन जहलाता ह और जदयासलाई पर ताल कारता ह

बीड़ी आदान-परदान करक जहरामन न भी एकाध जान-पहचान कर ली लालमोहर क पररजचत आदमी न चादर स दह

ढकत हए कहा lsquoनाच शर होन म अभी दर ह तब तक एक नीद ल ल सब दजाट स अचछा अठजनया दजाट सबस

पीछ सबस ऊ ची जगह पर ह जमीन पर गरम पआल ह-ह करसी-बच पर बठ कर इस सरदी क मौसम म तमासा

दखनवाल अभी घच-घच कर उठ ग चाह पीनlsquo

उस आदमी न अपन सगी स कहा lsquoखला शर होन पर जगा दना नही-नही खला शर होन पर नही जहररया जब सरज

पर उतर हमको जगा दनाlsquo

जहरामन क कलज म जरा आच लगी जहररया बड़ा लरपजरया आदमी मालम पड़ता ह उसन लालमोहर को आख

क इशार स कहा lsquoइस आदमी स बजतयान की जररत नहीlsquo

घन-घन-घन-धड़ाम परदा उठ गया ह-ए ह-ए हीराबाई शर म ही उतर गई सरज पर कपड़घर खचमखच भर गया

ह जहरामन का मह अचरज म खल गया लालमोहर को न जान कयो ऐसी हसी आ रही ह हीराबाई क गीत क हर पद

पर वह हसता ह बवजह

गलबदन दरबार लगा कर बठी ह एलान कर रही ह जो आदमी तखतहजारा बना कर ला दगा महमागी चीज इनाम म

दी जाएगी अजी ह कोई ऐसा िनकार तो हो जाए तयार बना कर लाए तखतहजारा-आ जकड़जकड़-जकररट-

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अलबतत नाचती ह कया गला ह मालम ह यह आदमी कहता ह जक हीराबाई पान-बीड़ी जसगरर-जदाट कछ नही

खाती ठीक कहता ह बड़ी नमवाली रडी ह कौन कहता ह जक रडी ह दात म जमससी कहा ह पौडर स दात धो लती

होगी हरजगज नही कौन आदमी ह बात की बबात करता ह कपनी की औरत को पतररया कहता ह तमको बात

कयो लगी कौन ह रडी का भड़वा मारो साल को मारो तरी

हो-हल क बीच जहरामन की आवाज कपड़घर को िाड़ रही ह ndashlsquoआओ एक-एक की गरदन उतार लगlsquo

लालमोहर दलाली स परापर पीरता जा रहा ह सामन क लोगो को पलरदास एक आदमी की छाती पर सवार ह ndash

lsquoसाला जसया सकमारी को गाली दता ह सो भी मसलमान हो करrsquo

धनदनीराम शर स ही चप था मारपीर शर होत ही वह कपड़घर स जनकल कर बाहर भागा

काल कोरवाल नौरकी क मनजर नपाली जसपाही क साथ दौड़ आए दारोगा साहब न हरर स पीर-पार शर की हरर

खा कर लालमोहर जतलजमला उठा कचराही बोली म भािण दन लगा ndashlsquoदारोगा साहब मारत ह माररए कोई हजट

नही लजकन यह पास दख लीजजए एक पास पाजकर म भी ह दख सकत ह हजर जरकर नही पास तब हम लोगो

क सामन कपनी की औरत को कोई बरी बात कर तो कस छोड़ दगrsquo

कपनी क मनजर की समझ म आ गई सारी बात उसन दारोगा को समझाया ndashlsquoहजर म समझ गया यह सारी बदमाशी

मथरामोहन कपनीवालो की ह तमाश म झगड़ा खड़ा करक कपनी को बदनाम नही हजर इन लोगो को छोड़

दीजजए हीराबाई क आदमी ह बचारी की जान खतर म ह हजर स कहा था नrsquo

हीराबाई का नाम सनत ही दारोगा न तीनो को छोड़ जदया लजकन तीनो की दआली छीन ली गई मनजर न तीनो को

एक रपएवाल दरज म करसी पर जबठाया ndashlsquoआप लोग यही बजठए पान जभजवा दता ह lsquoकपड़घर शात हआ और

हीराबाई सरज पर लौर आई

नगाड़ा जिर घनघना उठा

थोड़ी दर बाद तीनो को एक ही साथ धनदनीराम का खयाल हआ ndash अर धनदनीराम कहा गया

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lsquoमाजलक ओ माजलकrsquoलहसनवा कपड़घर स बाहर जचला कर पकार रहा ह lsquoओ लालमोहर मा-जल-कrsquo

लालमोहर न तारसवर म जवाब जदया ndashlsquoइधर स उधर स एकरजकया िारक सlsquoसभी दशटको न लालमोहर की ओर

मड़ कर दखा लहसनवा को नपाली जसपाही लालमोहर क पास ल आया लालमोहर न जब स पास जनकाल कर

जदखा जदया लहसनवा न आत ही पछा lsquoमाजलक कौन आदमी कया बोल रहा था बोजलए तो जरा चहरा जदखला

दीजजए उसकी एक झलकrsquo

लोगो न लहसनवा की चौड़ी और सपार छाती दखी जाड़ क मौसम म भी खाली दह चल-चारी क साथ ह य

लोग

लालमोहर न लहसनवा को शात जकया

तीनो-चारो स मत पछ कोई नौरकी म कया दखा जकससा कस याद रह जहरामन को लगता था हीराबाई शर स ही

उसी की ओर रकरकी लगा कर दख रही ह गा रही ह नाच रही ह लालमोहर को लगता था हीराबाई उसी की ओर

दखती ह वह समझ गई ह जहरामन स भी जयादा पावरवाला आदमी ह लालमोहर पलरदास जकससा समझता ह

जकससा और कया होगा रमन की ही बात वही राम वही सीता वही लखनलाल और वही रावन जसया सकमारी

को राम जी स छीनन क जलए रावन तरह-तरह का रप धर कर आता ह राम और सीता भी रप बदल लत ह यहा भी

तखत-हजारा बनानवाला माली का बरा राम ह गलबदन जमया सकमारी ह माली क लड़क का दोसत लखनलला ह

और सलतान ह रावन धनदनीराम को बखार ह तज लहसनवा को सबस अचछा जोकर का पारट लगा ह जचरया

तोहक लक ना जइव नरहर क बजररया वह उस जोकर स दोसती लगाना चाहता ह नही लगावगा दोसती जोकर

साहब

जहरामन को एक गीत की आधी कड़ी हाथ लगी ह ndashlsquoमार गए गलिामrsquoकौन था यह गलिाम हीराबाई रोती हई गा

रही थी ndashlsquoअजी हा मर गए गलिामrsquoजरजड़जड़जड़ बचारा गलिाम

तीनो को दआली वापस दत हए पजलस क जसपाही न कहा lsquoलाठी-दआली ल कर नाच दखन आत होrsquo

दसर जदन मल-भर म यह बात िल गई ndash मथरामोहन कपनी स भाग कर आई ह हीराबाई इसजलए इस बार

मथरामोहन कपनी नही आई ह उसक गड आए ह हीराबाई भी कम नही बड़ी खलाड़ औरत ह तरह-तरह दहाती

लठत पाल रही ह वाह मरी जान भी कह तो कोई मजाल ह

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दस जदन जदन-रात

जदन-भर भाड़ा ढोता जहरामन शाम होत ही नौरकी का नगाड़ा बजन लगता नगाड़ की आवाज सनत ही हीराबाई की

पकार कानो क पास मडरान लगती ndash भया मीता जहरामन उसताद गर जी हमशा कोई-न-कोई बाजा उसक मन

क कोन म बजता रहता जदन-भर कभी हारमोजनयम कभी नगाड़ा कभी ढोलक और कभी हीराबाई की पजनी उनदही

साजो की गत पर जहरामन उठता-बठता चलता-जिरता नौरकी कपनी क मनजर स ल कर परदा खीचनवाल तक

उसको पहचानत ह हीराबाई का आदमी ह

पलरदास हर रात नौरकी शर होन क समय शरदधापवटक सरज को नमसकार करता हाथ जोड़ कर लालमोहर एक जदन

अपनी कचराही बोली सनान गया था हीराबाई को हीराबाई न पहचाना ही नही तब स उसका जदल छोरा हो गया ह

उसका नौकर लहसनवा उसक हाथ स जनकल गया ह नौरकी कपनी म भती हो गया ह जोकर स उसकी दोसती हो गई

ह जदन-भर पानी भरता ह कपड़ धोता ह कहता ह गाव म कया ह जो जाएग लालमोहर उदास रहता ह धनदनीराम घर

चला गया ह बीमार हो कर

जहरामन आज सबह स तीन बार लदनी लाद कर सरशन आ चका ह आज न जान कयो उसको अपनी भौजाई की याद

आ रही ह धनदनीराम न कछ कह तो नही जदया ह बखार की झोक म यही जकतना अरर-परर बक रहा था ndash

गलबदन तखत-हजारा लहसनवा मौज म ह जदन-भर हीराबाई को दखता होगा कल कह रहा था जहरामन माजलक

तमहार अकबाल स खब मौज म ह हीराबाई की साड़ी धोन क बाद कठौत का पानी अततरगलाब हो जाता ह उसम

अपनी गमछी डबा कर छोड़ दता ह लो सघोग हर रात जकसी-न-जकसी क मह स सनता ह वह ndash हीराबाई रडी ह

जकतन लोगो स लड़ वह जबना दख ही लोग कस कोई बात बोलत ह राजा को भी लोग पीठ-पीछ गाली दत ह

आज वह हीराबाई स जमल कर कहगा नौरकी कपनी म रहन स बहत बदनाम करत ह लोग सरकस कपनी म कयो

नही काम करती सबक सामन नाचती ह जहरामन का कलजा दप-दप जलता रहता ह उस समय सरकस कपनी म

बाघ को उसक पास जान की जहममत कौन करगा सरजकषत रहगी हीराबाई जकधर की गाड़ी आ रही ह

lsquoजहरामन ए जहरामन भायrsquoलालमोहर की बोली सन कर जहरामन न गरदन मोड़ कर दखा कया लाद कर लाया ह

लालमोहर

lsquoतमको ढढ़ रही ह हीराबाई इजसरसन पर जा रही हlsquoएक ही सास म सना गया लालमोहर की गाड़ी पर ही आई ह

मल स

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lsquoजा रही ह कहा हीराबाई रलगाड़ी स जा रही हrsquo

जहरामन न गाड़ी खोल दी मालगदाम क चौकीदार स कहा lsquoभया जरा गाड़ी-बल दखत रजहए आ रह हlsquo

lsquoउसतादrsquoजनाना मसाजिरखान क िारक क पास हीराबाई ओढ़नी स मह-हाथ ढक कर खड़ी थी थली बढ़ाती हई

बोली lsquoलो ह भगवान भर हो गई चलो म तो उममीद खो चकी थी तमस अब भर नही हो सकगी म जा रही ह

गर जीrsquo

बकसा ढोनवाला आदमी आज कोर-पतलन पहन कर बाबसाहब बन गया ह माजलको की तरह कजलयो को हकम द

रहा ह ndashlsquoजनाना दजाट म चढ़ाना अचछाrsquo

जहरामन हाथ म थली ल कर चपचाप खड़ा रहा करत क अदर स थली जनकाल कर दी ह हीराबाई न जचजड़या की दह

की तरह गमट ह थली

lsquoगाड़ी आ रही हlsquoबकसा ढोनवाल न मह बनात हए हीराबाई की ओर दखा उसक चहर का भाव सपि ह ndash इतना

जयादा कया ह

हीराबाई चचल हो गई बोली lsquoजहरामन इधर आओ अदर म जिर लौर कर जा रही ह मथरामोहन कपनी म अपन

दश की कपनी ह वनली मला आओग नrsquo

हीराबाई न जहरामन क कध पर हाथ रखा hellipइस बार दाजहन कध पर जिर अपनी थली स रपया जनकालत हए बोली

lsquoएक गरम चादर खरीद लनाlsquo

जहरामन की बोली िरी इतनी दर क बाद ndashlsquoइसस हरदम रपया-पसा रजखए रपया कया करग चादरrsquo

हीराबाई का हाथ रक गया उसन जहरामन क चहर को गौर स दखा जिर बोली lsquoतमहारा जी बहत छोरा हो गया ह

कयो मीता महआ घरवाररन को सौदागर न खरीद जो जलया ह गर जीrsquo

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गला भर आया हीराबाई का बकसा ढोनवाल न बाहर स आवाज दी ndashlsquoगाड़ी आ गईlsquoजहरामन कमर स बाहर जनकल

आया बकसा ढोनवाल न नौरकी क जोकर जसा मह बना कर कहा lsquoलारिारम स बाहर भागो जबना जरकर क

पकड़गा तो तीन महीन की हवाlsquo

जहरामन चपचाप िारक स बाहर जा कर खड़ा हो गया रीसन की बात रलव का राज नही तो इस बकसा ढोनवाल

का मह सीधा कर दता जहरामन

हीराबाई ठीक सामनवाली कोठरी म चढ़ी इसस इतना रान गाड़ी म बठ कर भी जहरामन की ओर दख रही ह रकर-

रकर लालमोहर को दख कर जी जल उठता ह हमशा पीछ-पीछ हरदम जहससादारी सझती ह

गाड़ी न सीरी दी जहरामन को लगा उसक अदर स कोई आवाज जनकल कर सीरी क साथ ऊपर की ओर चली गई ndash

क-ऊ-ऊ इ-सस

-छी-ई-ई-छकक गाड़ी जहली जहरामन न अपन दाजहन पर क अगठ को बाए पर की एड़ी स कचल जलया कलज की

धड़कन ठीक हो गई हीराबाई हाथ की बगनी सािी स चहरा पोछती ह सािी जहला कर इशारा करती ह अब

जाओ आजखरी जडबबा गजरा पलरिामट खाली सब खाली खोखल मालगाड़ी क जडबब दजनया ही खाली हो गई

मानो जहरामन अपनी गाड़ी क पास लौर आया

जहरामन न लालमोहर स पछा lsquoतम कब तक लौर रह हो गावrsquo

लालमोहर बोला lsquoअभी गाव जा कर कया कर ग यहा तो भाड़ा कमान का मौका ह हीराबाई चली गई मला अब

ररगाlsquo

- lsquoअचछी बात कोई समाद दना ह घरrsquo

लालमोहर न जहरामन को समझान की कोजशश की लजकन जहरामन न अपनी गाड़ी गाव की ओर जानवाली सड़क की

ओर मोड़ दी अब मल म कया धरा ह खोखला मला

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रलव लाइन की बगल स बलगाड़ी की कचची सड़क गई ह दर तक जहरामन कभी रल पर नही चढ़ा ह उसक मन म

जिर परानी लालसा झाकी रलगाड़ी पर सवार हो कर गीत गात हए जगरनाथ-धाम जान की लालसा उलर कर अपन

खाली रपपर की ओर दखन की जहममत नही होती ह पीठ म आज भी गदगदी लगती ह आज भी रह-रह कर चपा का

िल जखल उठता ह उसकी गाड़ी म एक गीत की ररी कड़ी पर नगाड़ का ताल कर जाता ह बार-बार

उसन उलर कर दखा बोर भी नही बास भी नही बाघ भी नही ndash परी दवी मीता हीरादवी महआ घरवाररन ndash

को-ई नही मर हए महतो की गगी आवाज मखर होना चाहती ह जहरामन क होठ जहल रह ह शायद वह तीसरी कसम

खा रहा ह ndash कपनी की औरत की लदनी

जहरामन न हठात अपन दोनो बलो को जझड़की दी दआली स मारत हए बोला lsquoरलव लाइन की ओर उलर-उलर कर

कया दखत होrsquoदोनो बलो न कदम खोल कर चाल पकड़ी जहरामन गनगनान लगा ndashlsquoअजी हा मार गए गलिामrsquo

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लाल िान की बगम

िणीशवरनाथ रण

कयो जबरज की मा नाच दखन नही जाएगी कया

जबरज की मा शकरकद उबाल कर बठी मन-ही-मन कढ़ रही थी अपन आगन म सात साल का लड़का जबरज

शकरकद क बदल तमाच खा कर आगन म लोर-पोर कर सारी दह म जमटटी मल रहा था चजपया क जसर भी चड़ल

मडरा रही ह आध-आगन धप रहत जो गई ह सहआन की दकान छोवा-गड़ लान सो अभी तक नही लौरी दीया-

बाती की बला हो गई आए आज लौरक जरा बागड़ बकर की दह म ककरमाछी लगी थी इसजलए बचारा बागड़

रह-रह कर कद-िाद कर रहा था जबरज की मा बागड़ पर मन का गससा उतारन का बहाना ढढ़ कर जनकाल चकी थी

जपछवाड़ की जमचट की िली गाछ बागड़ क जसवा और जकसन कलवा जकया होगा बागड़ को मारन क जलए वह

जमटटी का छोरा ढला उठा चकी थी जक पड़ोजसन मखनी िआ की पकार सनाई पड़ी - कयो जबरज की मा नाच दखन

नही जाएगी कया

जबरज की मा क आग नाथ और पीछ पगजहया न हो तब न िआ

गरम गसस म बझी नकीली बात िआ की दह म धस गई और जबरज क मा न हाथ क ढल को पास ही ि क जदया -

बचार बागड़ को ककरमाछी परशान कर रही ह आ-हा आय आय हरट-र-र आय-आय

जबरज न लर-ही-लर बागड़ को एक डडा लगा जदया जबरज की मा की इचछा हई जक जा कर उसी डड स जबरज का

भत भगा द जकत नीम क पास खड़ी पनभरजनयो की जखलजखलाहर सन कर रक गई बोली ठहर तर बपपा न बड़ा

हथछटटा बना जदया ह तझ बड़ा हाथ चलता ह लोगो पर ठहर

मखनी िआ नीम क पास झकी कमर स घड़ा उतार कर पानी भर कर लौरती पनभरजनयो म जबरज की मा की बहकी

हई बात का इसाि करा रही थी - जरा दखो तो इस जबरज की मा को चार मन पार(जर)का पसा कया हआ ह धरती

पर पाव ही नही पड़त जनसाि करो खद अपन मह स आठ जदन पहल स ही गाव की गली-गली म बोलती जिरी ह

हा इस बार जबरज क बपपा न कहा ह बलगाड़ी पर जबठा कर बलरामपर का नाच जदखा लाऊ गा बल अब अपन घर

ह तो हजार गाड़ी मगनी जमल जाएगी सो मन अभी रोक जदया नाच दखनवाली सब तो औन-पौन कर तयार हो रही

ह रसोई-पानी कर रह ह मर मह म आग लग कयो म रोकन गई सनती हो कया जवाब जदया जबरज की मा न

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मखनी िआ न अपन पोपल मह क होठो को एक ओर मोड़ कर ऐठती हई बोली जनकाली - अर-र-हा-हा जब-र-र-

जज की मया क आग नाथ औ-रट पीछ पगजहया ना हो तब ना-आ-आ

जगी की पतोह जबरज की मा स नही डरती वह जरा गला खोल कर ही कहती ह िआ-आ सरब जसततलजमटरी (सव

सरलमर) क हाजकम क बासा पर िलछाप जकनारीवाली साड़ी पहन क त भी भरा की भरी चढ़ाती तो तमहार नाम स

भी द-तीन बीघा धनहर जमीन का पचाट कर जाता जिर तमहार घर भी आज दस मन सोनाबग पार होता जोड़ा बल

खरीदता जिर आग नाथ और पीछ सकड़ो पगजहया झलती

जगी की पतोह महजोर ह रलव सरशन क पास की लड़की ह तीन ही महीन हए गौन की नई बह हो कर आई ह और

सार कमाटरोली की सभी झगड़ाल सासो स एकाध मोरचा ल चकी ह उसका ससर जगी दागी चोर ह सी-जकलासी ह

उसका खसम रगी कमाटरोली का नामी लठत इसीजलए हमशा सीग खजाती जिरती जगी की पतोह

जबरज की मा क आगन म जगी की पतोह की गला-खोल बोली गलल की गोजलयो की तरह दनदनाती हई आई थी

जबरज क मा न एक तीखा जवाब खोज कर जनकाला लजकन मन मसोस कर रह गई गोबर की ढरी म कौन ढला

ि क

जीभ क झाल को गल म उतार कर जबरज की मा न अपनी बरी चजपया को आवाज दी - अरी चजपया-या-या आज

लौर तो तरी मड़ी मरोड़ कर च ह म झोकती ह जदन-जदन बचाल होती जाती ह गाव म तो अब ठठर-बसकोप का

गीत गानवाली पतररया-पतोह सब आन लगी ह कही बठक बाज न मरजलया सीख रही होगी ह-र-जा-ई-ई अरी

चजपया-या-या

जगी की पतोह न जबरज की मा की बोली का सवाद ल कर कमर पर घड़ को सभाला और मरक कर बोली चल

जदजदया चल इस महल म लाल पान की बगम बसती ह नही जानती दोपहर-जदन और चौपहर-रात जबजली की

बतती भक-भक कर जलती ह

भक-भक जबजली-बतती की बात सन कर न जान कयो सभी जखलजखला कर हस पड़ी िआ की ररी हई दत-पजियो

क बीच स एक मीठी गाली जनकली - शतान की नानी

जबरज की मा की आखो पर मानो जकसी न तज राचट की रोशनी डाल कर चौजधया जदया भक-भक जबजली-बतती

तीन साल पहल सव क प क बाद गाव की जलनडाही औरतो न एक कहानी गढ़ क िलाई थी चजपया की मा क

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आगन म रात-भर जबजली-बतती भकभकाती थी चजपया की मा क आगन म नाकवाल जत की छाप घोड़ की राप की

तरह जलो जलो और जलो चजपया की मा क आगन म चादी-जस पार सखत दख कर जलनवाली सब औरत

खजलहान पर सोनोली धान क बोझो को दख कर बगन का भताट हो जाएगी

जमटटी क बरतन स रपकत हए छोवा-गड़ को उगजलयो स चारती हई चजपया आई और मा क तमाच खा कर चीख पड़ी

- मझ कयो मारती ह-ए-ए-ए सहआइन जदी स सौदा नही दती ह-ए-ए-ए-ए

सहआइन जदी सौदा नही दती की नानी एक सहआइन की दकान पर मोती झरत ह जो जड़ गाड़ कर बठी हई थी

बोल गल पर लात द कर कला तोड़ दगी हरजाई जो जिर कभी बाज न मरजलया गात सना चाल सीखन जाती ह

रीशन की छोकररयो स

जबरज क मा न चप हो कर अपनी आवाज अदाजी जक उसकी बात जगी क झोपड़ तक साि-साि पहच गई होगी

जबरज बीती हई बातो को भल कर उठ खड़ा हआ था और धल झाड़त हए बरतन स रपकत गड़ को ललचाई जनगाह

स दखन लगा था दीदी क साथ वह भी दकान जाता तो दीदी उस भी गड़ चराती जरर वह शकरकद क लोभ म

रहा और मागन पर मा न शकरकद क बदल

ए मया एक अगली गड़ द द जबरज न तलहथी िलाई - द ना मया एक रतती भर

एक रतती कयो उठाक बरतन को ि क आती ह जपछवाड़ म जाक चारना नही बनगी मीठी रोरी मीठी रोरी खान

का मह होता ह जबरज की मा न उबल शकरकद का सप रोती हई चजपया क सामन रखत हए कहा बठक जछलक

उतार नही तो अभी

दस साल की चजपया जानती ह शकरकद छीलत समय कम-स-कम बारह बार मा उस बाल पकड़ कर झकझोरगी

छोरी-छोरी खोर जनकाल कर गाजलया दगी - पाव िलाक कयो बठी ह उस तरह बलजी चजपया मा क गसस को

जानती ह

जबरज न इस मौक पर थोड़ी-सी खशामद करक दखा - मया म भी बठ कर शकरकद छील

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नही मा न जझड़की दी एक शकरकद छीलगा और तीन पर म जाक जसदध की बह स कहो एक घर क जलए कड़ाही

माग कर ल गई तो जिर लौरान का नाम नही जा जदी

मह लरका कर आगन स जनकलत-जनकलत जबरज न शकरकद और गड़ पर जनगाह दौड़ाई चजपया न अपन झबर कश

की ओर स मा की ओर दखा और नजर बचा कर चपक स जबरज की ओर एक शकरकद ि क जदया जबरज भागा

सरज भगवान डब गए दीया-बतती की बला हो गई अभी तक गाड़ी

चजपया बीच म ही बोल उठी - कोयरीरोल म जकसी न गाड़ी नही दी मया बपपा बोल मा स कहना सब ठीक-ठाक

करक तयार रह मलदजहयारोली क जमयाजान की गाड़ी लान जा रहा ह

सनत ही जबरज की मा का चहरा उतर गया लगा छात की कमानी उतर गई घोड़ स अचानक कोयरीरोल म जकसी न

गाड़ी मगनी नही दी तब जमल चकी गाड़ी जब अपन गाव क लोगो की आख म पानी नही तो मलदजहयारोली क

जमयाजान की गाड़ी का कया भरोसा न तीन म न तरह म कया होगा शकरकद छील कर रख द उठा क यह मदट

नाच जदखाएगा बलगाड़ी पर चढ़ कर नाच जदखान ल जाएगा चढ़ चकी बलगाड़ी पर दख चकी जी-भर नाच

पदल जानवाली सब पहच कर परानी हो चकी होगी

जबरज छोरी कड़ाही जसर पर औधा कर वापस आया - दख जदजदया मलररी रोपी इस पर दस लाठी मारन पर भी

कछ नही होता

चजपया चपचाप बठी रही कछ बोली नही जरा-सी मसकराई भी नही जबरज न समझ जलया मया का गससा अभी

उतरा नही ह पर तौर स

मढ़या क अदर स बागड़ को बाहर भगाती हई जबरज की मा बड़बड़ाई - कल ही पचकौड़ी कसाई क हवाल करती ह

राकस तझ हर चीज म मह लगाएगा चजपया बाध द बागड़ को खोल द गल की घरी हमशा रनर-रनर मझ जरा

नही सहाता ह

रनर-रनर सनत ही जबरज को सड़क स जाती हई बलगाजड़यो की याद हो आई - अभी बबआनरोल की गाजड़या नाच

दखन जा रही थी झनर-झनर बलो की झमकी तमन स

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बसी बक-बक मत करो बागड़ क गल स झमकी खोलती बोली चजपया

चजपयाडाल द च ह म पानी बपपा आव तो कहना जक अपन उड़नजहाज पर चढ़ कर नाच दख आए मझ नाच

दखन का सौख नही मझ जगयो मत कोई मरा माथा दख रहा ह

मढ़या क ओसार पर जबरज न जिसजिसा क पछा कयो जदजदया नाच म उड़नजहाज भी उड़गा

चराई पर कथरी ओढ़ कर बठती हई चजपया न जबरज को चपचाप अपन पास बठन का इशारा जकया मफत म मार

खाएगा बचारा

जबरज न बहन की कथरी म जहससा बारत हए चककी-मककी लगाई जाड़ क समय इस तरह घरन पर ठडडी रख कर

चककी-जमककी लगाना सीख चका ह वह उसन चजपया क कान क पास मह ल जा कर कहा हम लोग नाच दखन

नही जाएग गाव म एक पछी भी नही ह सब चल गए

चजपया को जतल-भर भी भरोसा नही सझा तारा डब रहा ह बपपा अभी तक गाड़ी ल कर नही लौर एक महीना पहल

स ही मया कहती थी बलरामपर क नाच क जदन मीठी रोरी बनगी चजपया छीर की साड़ी पहनगी जबरज पर पहनगा

बलगाड़ी पर चढ़ कर-

चजपया की भीगी पलको पर एक बद आस आ गया

जबरज का भी जदल भर आया उसन मन-ही-मन म इमली पर रहनवाल जजनबाबा को एक बगन कबला गाछ का

सबस पहला बगन उसन खद जजस पौध को रोपा ह जदी स गाड़ी ल कर बपपा को भज दो जजनबाबा

मढ़या क अदर जबरज की मा चराई पर पड़ी करवर ल रही थी उह पहल स जकसी बात का मनसबा नही बाधना

चाजहए जकसी को भगवान न मनसबा तोड़ जदया उसको सबस पहल भगवान स पछना ह यह जकस चक का िल द

रह हो भोला बाबा अपन जानत उसन जकसी दवता-जपततर की मान-मनौती बाकी नही रखी सव क समय जमीन क

जलए जजतनी मनौजतया की थी ठीक ही तो महाबीर जी का रोर तो बाकी ही ह हाय र दव भल-चक माि करो

महाबीर बाबा मनौती दनी करक चढ़ाएगी जबरज की मा

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जबरज की मा क मन म रह-रह कर जगी की पतोह की बात चभती ह भक-भक जबजली-बतती चोरी-चमारी

करनवाली की बरी-पतोह जलगी नही पाच बीघा जमीन कया हाजसल की ह जबरज क बपपा न गाव की भाईखौजकयो

की आखो म जकरजकरी पड़ गई ह खत म पार लगा दख कर गाव क लोगो की छाती िरन लगी धरती िोड़ कर पार

लगा ह बसाखी बादलो की तरह उमड़त आ रह ह पार क पौध तो अलान तो िलान इतनी आखो की धार भला

िसल सह जहा परह मन पार होना चाजहए जसिट दस मन पार कारा पर तौल क ओजन हआ भगत क यहा

इसम जलन की कया बात ह भला जबरज क बपपा न तो पहल ही कमाटरोली क एक-एक आदमी को समझा क

कहा जजदगी-भर मजदरी करत रह जाओग सव का समय हो रहा ह लाठी कड़ी करो तो दो-चार बीघ जमीन हाजसल

कर सकत हो सो गाव की जकसी पतखौकी का भतार सव क समय बाबसाहब क जखलाि खासा भी नही जबरज

क बपपा को कम सहना पड़ा ह बाबसाहब गसस स सरकस नाच क बाघ की तरह हमड़त रह गए उनका बड़ा बरा घर

म आग लगान की धमकी दकर गया आजखर बाबसाहब न अपन सबस छोर लड़क को भजा जबरज की मा को

मौसी कहक पकारा - यह जमीन बाब जी न मर नाम स खरीदी थी मरी पढ़ाई-जलखाई उसी जमीन की उपज स

चलती ह और भी जकतनी बात खब मोहना जानता ह उतता जरा-सा लड़का जमीदार का बरा ह जक

चजपया जबरज सो गया कया यहा आ जा जबरज अदर त भी आ जा चजपया भला आदमी आए तो एक बार

आज

जबरज क साथ चजपया अदर चली गई

जढबरी बझा द बपपा बलाए तो जवाब मत दना खपचची जगरा द

भला आदमी र भला आदमी मह दखो जरा इस मदट का जबरज की मा जदन-रात मझा न दती रहती तो ल चक थ

जमीन रोज आ कर माथा पकड़ क बठ जाए मझ जमीन नही लनी ह जबरज की मा मजरी ही अचछीजवाब दती

थी जबरज की मा खब सोच-समझक छोड़ दो जब तमहारा कलजा ही जसथर नही होता ह तो कया होगा जोर-जमीन

जोर क नही तो जकसी और क

जबरज क बाप पर बहत तजी स गससा चढ़ता ह चढ़ता ही जाता ह जबरज की मा का भाग ही खराब ह जो ऐसा

गोबरगणश घरवाला उस जमला कौन-सा सौख-मौज जदया ह उसक मदट न कोह क बल की तरह खर कर सारी उमर

कार दी इसक यहा कभी एक पस की जलबी भी ला कर दी ह उसक खसम न पार का दाम भगत क यहा स ल

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कर बाहर-ही-बाहर बल-हररा चल गए जबरज की मा को एक बार नमरी लोर दखन भी नही जदया आख स बल

खरीद लाए उसी जदन स गाव म जढढोरा पीरन लग जबरज की मा इस बार बलगाड़ी पर चढ़ कर जाएगी नाच दखन

दसर की गाड़ी क भरोस नाच जदखाएगा

अत म उस अपन-आप पर करोध हो आया वह खद भी कछ कम नही उसकी जीभ म आग लग बलगाड़ी पर चढ़

कर नाच दखन की लालसा जकसी कसमय म उसक मह स जनकली थी भगवान जान जिर आज सबह स दोपहर तक

जकसी-न-जकसी बहान उसन अठारह बार बलगाड़ी पर नाच दखन की चचाट छड़ी ह लो खब दखो नाच कथरी क

नीच दशाल का सपना कल भोर पानी भरन क जलए जब जाएगी पतली जीभवाली पतररया सब हसती आएगी

हसती जाएगी सभी जलत ह उसस हा भगवान दाढ़ीजार भी दो बचचो की मा हो कर भी वह जस-की-तस ह

उसका घरवाला उसकी बात म रहता ह वह बालो म गरी का तल डालती ह उसकी अपनी जमीन ह ह जकसी क

पास एक घर जमीन भी अपन इस गाव म जलग नही तीन बीघ म धान लगा हआ ह अगहनी लोगो की जबखदीठ स

बच तब तो

बाहर बलो की घजरया सनाई पड़ी तीनो सतकट हो गए उतकणट होकर सनत रह

अपन ही बलो की घरी ह कयो री चजपया

चजपया और जबरज न पराय एक ही साथ कहा ह -ऊ -ऊ

चप जबरज की मा न जिसजिसा कर कहा शायद गाड़ी भी ह घड़घड़ाती ह न

ह -ऊ -ऊ दोनो न जिर हकारी भरी

चप गाड़ी नही ह त चपक स रटटी म छद करक दख तो आ चपी भागक आ चपक-चपक

चजपया जबली की तरह हौल-हौल पाव स रटटी क छद स झाक आई - हा मया गाड़ी भी ह

जबरज हड़बड़ा कर उठ बठा उसकी मा न उसका हाथ पकड़ कर सला जदया - बोल मत

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चजपया भी गदड़ी क नीच घस गई

बाहर बलगाड़ी खोलन की आवाज हई जबरज क बाप न बलो को जोर स डारा - हा-हा आ गए घर घर आन क

जलए छाती िरी जाती थी

जबरज की मा ताड़ गई जरर मलदजहयारोली म गाज की जचलम चढ़ रही थी आवाज तो बड़ी खनखनाती हई जनकल

रही ह

चजपया-ह बाहर स पकार कर कहा उसक बाप न बलो को घास द द चजपया-ह

अदर स कोई जवाब नही आया चजपया क बाप न आगन म आ कर दखा तो न रोशनी न जचराग न च ह म आग

बात कया ह नाच दखन उतावली हो कर पदल ही चली गई कया

जबरज क गल म खसखसाहर हई और उसन रोकन की परी कोजशश भी की लजकन खासी जब शर हई तो पर पाच

जमनर तक वह खासता रहा

जबरज बरा जबरजमोहन जबरज क बाप न पचकार कर बलाया मया गसस क मार सो गई कया अर अभी तो लोग

जा ही रह ह

जबरज की मा क मन म आया जक कस कर जवाब द नही दखना ह नाच लौरा दो गाड़ी

चजपया-ह उठती कयो नही ल धान की पचसीस रख द धान की बाजलयो का छोरा झबबा झोपड़ क ओसर पर रख

कर उसन कहा दीया बालो

जबरज की मा उठ कर ओसार पर आई - डढ़ पहर रात को गाड़ी लान की कया जररत थी नाच तो अब खतम हो रहा

होगा

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जढबरी की रोशनी म धान की बाजलयो का रग दखत ही जबरज की मा क मन का सब मल दर हो गया धानी रग

उसकी आखो स उतर कर रोम-रोम म घल गया

नाच अभी शर भी नही हआ होगा अभी-अभी बलमपर क बाब की सपनी गाड़ी मोहनपर होजरल-बगला स हाजकम

साहब को लान गई ह इस साल आजखरी नाच ह पचसीस रटटी म खोस द अपन खत का ह

अपन खत का हलसती हई जबरज की मा न पछा पक गय धान

नही दस जदन म अगहन चढ़त-चढ़त लाल हो कर झक जाएगी सार खत की बाजलया मलदजहयारोली पर जा रहा

था अपन खत म धान दख कर आख जड़ा गई सच कहता ह पचसीस तोड़त समय उगजलया काप रही थी मरी

जबरज न धान की एक बाली स एक धान ल कर मह म डाल जलया और उसकी मा न एक हकी डार दी - कसा

लककड़ ह त र इन दशमनो क मार कोई नम-धरम बच

कया हआ डारती कयो ह

नवानदन क पहल ही नया धान जठा जदया दखत नही

अरइन लोगो का सब कछ माि ह जचरई-चरमन ह यह लोग दोनो क मह म नवानदन क पहल नया अनदन न पड़

इसक बाद चजपया न भी धान की बाली स दो धान लकर दातो-तल दबाए - ओ मया इतना मीठा चावल

और गमकता भी ह न जदजदया जबरज न जिर मह म धान जलया

रोरी-पोरी तयार कर चकी कया जबरज क बाप न मसकराकर पछा

नही मान-भर सर म बोली जबरज की मा जान का ठीक-जठकाना नही और रोरी बनाती

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वाह खब हो तम लोगजजसक पास बल ह उस गाड़ी मगनी नही जमलगी भला गाड़ीवालो को भी कभी बल की

जररत होगी पछगा तब कोयरीरोलावालो स ल जदी स रोरी बना ल

दर नही होगी

अर रोकरी भर रोरी तो त पलक मारत बना दती ह पाच रोजरया बनान म जकतनी दर लगगी

अब जबरज की मा क होठो पर मसकराहर खल कर जखलन लगी उसन नजर बचा कर दखा जबरज का बपपा उसकी

ओर एकरक जनहार रहा ह चजपया और जबरज न होत तो मन की बात हस कर खोलन म दर न लगती चजपया और

जबरज न एक-दसर को दखा और खशी स उनक चहर जगमगा उठ - मया बकार गससा हो रही थी न

चपी जरा घलसार म खड़ी हो कर मखनी िआ को आवाज द तो

ऐ ि-आ-आ सनती हो िआ-आ मया बला रही ह

िआ न कोई जवाब नही जदया जकत उसकी बड़बड़ाहर सपि सनाई पड़ी - हा अब िआ को कयो गहारती ह सार

रोल म बस एक िआ ही तो जबना नाथ-पगजहयावाली ह

अरी िआ जबरज की मा न हस कर जवाब जदया उस समय बरा मान गई थी कया नाथ-पगजहयावाल को आ कर

दखो दोपहर रात म गाड़ी लकर आया ह आ जाओ िआ म मीठी रोरी पकाना नही जानती

िआ काखती-खासती आई - इसी क घड़ी-पहर जदन रहत ही पछ रही थी जक नाच दखन जाएगी कया कहती तो म

पहल स ही अपनी अगीठी यहा सलगा जाती

जबरज की मा न िआ को अगीठी जदखला दी और कहा घर म अनाज-दाना वगरह तो कछ ह नही एक बागड़ ह

और कछ बरतन-बासन सो रात-भर क जलए यहा तबाक रख जाती ह अपना हकका ल आई हो न िआ

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िआ को तबाक जमल जाए तो रात-भर कया पाच रात बठ कर जाग सकती ह िआ न अधर म ररोल कर तबाक का

अदाज जकया ओ-हो हाथ खोल कर तबाक रखा ह जबरज की मा न और एक वह ह सहआइन राम कहो उस

रात को अिीम की गोली की तरह एक मरर-भर तबाक रख कर चली गई गलाब-बाग मल और कह गई जक जडबबी-

भर तबाक ह

जबरज की मा च हा सलगान लगी चजपया न शकरकद को मसल कर गोल बनाए और जबरज जसर पर कड़ाही औधा

कर अपन बाप को जदखलान लगा - मलररी रोपी इस पर दस लाठी मारन पर भी कछ नही होगा

सभी ठठा कर हस पड़ जबरज की मा हस कर बोली ताख पर तीन-चार मोर शकरकद ह द द जबरज को चजपया

बचारा शाम स ही

बचारा मत कहो मया खब सचारा ह अब चजपया चहकन लगी तम कया जानो कथरी क नीच मह कयो चल रहा था

बाब साहब का

ही-ही-ही

जबरज क रर दध क दातो की िाक स बोली जनकली जबलक-मारजरन म पाच शकरकद खा जलया हा-हा-हा

सभी जिर ठठा कर हस पड़ जबरज की मा न िआ का मन रखन क जलए पछा एक कनवा गड़ ह आधा द िआ

िआ न गदगद हो कर कहा अरी शकरकद तो खद मीठा होता ह उतना कयो डालगी

जब तक दोनो बल दाना-घास खा कर एक-दसर की दह को जीभ स चार जबरज की मा तयार हो गई चजपया न छीर

की साड़ी पहनी और जबरज बरन क अभाव म पर पर परसन की डोरी बधवान लगा

जबरज क मा न आगन स जनकल गाव की ओर कान लगा कर सनन की चिा की - उह इतनी दर तक भला पदल

जानवाल रक रहग

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पजणटमा का चाद जसर पर आ गया ह जबरज की मा न असली रपा का मगजरकका पहना ह आज पहली बार जबरज

क बपपा को हो कया गया ह गाड़ी जोतता कयो नही मह की ओर एकरक दख रहा ह मानो नाच की लाल पान की

गाड़ी पर बठत ही जबरज की मा की दह म एक अजीब गदगदी लगन लगी उसन बास की बली को पकड़ कर कहा

गाड़ी पर अभी बहोत जगह ह जरा दाजहनी सड़क स गाड़ी हाकना

बल जब दौड़न लग और पजहया जब च-च करक घरघरान लगा तो जबरज स नही रहा गया - उड़नजहाज की तरह

उड़ाओ बपपा

गाड़ी जगी क जपछवाड़ पहची जबरज की मा न कहा जरा जगी स पछो न उसकी पतोह नाच दखन चली गई कया

गाड़ी क रकत ही जगी क झोपड़ स आती हई रोन की आवाज सपि हो गई जबरज क बपपा न पछा अर जगी भाई

काह कनदन-रोहर हो रहा ह आगन म

जगी घर ताप रहा था बोला कया पछत हो रगी बलरामपर स लौरा नही पतोजहया नाच दखन कस जाए आसरा

दखत-दखत उधर गाव की सभी औरत चली गई

अरी रीशनवाली तो रोती ह काह जबरज की मा न पकार कर कहा आ जा झर स कपड़ा पहन कर सारी गाड़ी पड़ी

हई ह बचारी आ जा जदी

बगल क झोपड़ स राध की बरी सनरी न कहा काकी गाड़ी म जगह ह म भी जाऊ गी

बास की झाड़ी क उस पार लरना खवास का घर ह उसकी बह भी नही गई ह जगलर का झमकी-कड़ा पहन कर

झमकती आ रही ह

आ जा जो बाकी रह गई ह सब आ जाए जदी

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जगी की पतोह लरना की बीवी और राध की बरी सनरी तीनो गाड़ी क पास आई बल न जपछला पर ि का जबरज क

बाप न एक भददी गाली दी - साला लताड़ मार कर लगड़ी बनाएगा पतोह को

सभी ठठा कर हस पड़ जबरज क बाप न घघर म झकी दोनो पतोह ओ को दखा उस अपन खत की झकी हई बाजलयो

की याद आ गई

जगी की पतोह का गौना तीन ही मास पहल हआ ह गौन की रगीन साड़ी स कड़व तल और लठवा-जसदर की गध आ

रही ह जबरज की मा को अपन गौन की याद आई उसन कपड़ की गठरी स तीन मीठी रोजरया जनकाल कर कहा खा

ल एक-एक करक जसमराह क सरकारी कप म पानी पी लना

गाड़ी गाव स बाहर हो कर धान क खतो क बगल स जान लगी चादनी काजतक की खतो स धान क झरत िलो

की गध आती ह बास की झाड़ी म कही ददधी की लता िली ह जगी की पतोह न एक बीड़ी सलगा कर जबरज की मा

की ओर बढ़ाई जबरज की मा को अचानक याद आई चजपया सनरी लरना की बीवी और जगी की पतोह य चारो ही

गाव म बसकोप का गीत गाना जानती ह खब

गाड़ी की लीक धनखतो क बीच हो कर गई चारो ओर गौन की साड़ी की खसखसाहर-जसी आवाज होती ह

जबरज की मा क माथ क मगजरकक पर चादनी जछरकती ह

अचछा अब एक बसकोप का गीत गा तो चजपया डरती ह काह जहा भल जाओगी बगल म मासररनी बठी ही

दोनो पतोहओ न तो नही जकत चजपया और सनरी न खखार कर गला साि जकया

जबरज क बाप न बलो को ललकारा - चल भया और जरा जोर स गा र चजपया नही तो म बलो को धीर-धीर

चलन को कह गा

जगी की पतोह न चजपया क कान क पास घघर ल जा कर कछ कहा और चजपया न धीम स शर जकया - चदा की

चादनी

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जबरज को गोद म ल कर बठी उसकी मा की इचछा हई जक वह भी साथ-साथ गीत गाए जबरज की मा न जगी की

पतोह को दखा धीर-धीर गनगना रही ह वह भी जकतनी पयारी पतोह ह गौन की साड़ी स एक खास जकसम की गध

जनकलती ह ठीक ही तो कहा ह उसन जबरज की मा बगम ह लाल पान की बगम यह तो कोई बरी बात नही हा

वह सचमच लाल पान की बगम ह

जबरज की मा न अपनी नाक पर दोनो आखो को क जरत करन की चिा करक अपन रप की झाकी ली लाला साड़ी की

जझलजमल जकनारी मगजरकका पर चाद जबरज की मा क मन म अब और कोई लालसा नही उस नीद आ रही ह

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कोसी का घटवार

शखर जोशी

अभी खपपर म एक-चौथाई स भी अजधक गह शि था खपपर म हाथ डालकर उसन वयथट ही उलरा-पलरा और

चककी क पारो क वतत म िल हए आर को झाडकर एक ढर बना जदया बाहर आत-आत उसन जिर एक बार और

खपपर म झाककर दखा जस यह जानन क जलए जक इतनी दर म जकतनी जपसाई हो चकी ह परत अदर की जमकदार म

कोई जवशि अतर नही आया था खसस-खसस की धवजन क साथ अतयत धीमी गजत स ऊपर का पार चल रहा था घर

का परवशदवार बहत कम ऊचा था खब नीच तक झककर वह बाहर जनकला सर क बालो और बाहो पर आर की एक

हलकी सिद पतट बठ गई थी

खभ का सहारा लकर वह बदबदाया lsquorsquoजा ससाला सबह स अब तक दस पसरी भी नही हआ सरज कहा का कहा

चला गया ह कसी अनहोनी बातrsquorsquo

बात अनहोनी तो ह ही जठ बीत रहा ह आकाश म कही बादलो का नाम-जनशान ही नही अनदय विो अब तक लोगो

की धान-रोपाई परी हो जाती थी पर इस साल नदी-नाल सब सख पड ह खतो की जसचाई तो दरजकनार बीज की

कयाररया सखी जा रही ह छोर नाल-गलो क जकनार क घर महीनो स बद ह कोसी क जकनार ह गसाई का यह घर

पर इसकी भी चाल ऐसी जक लदद घोड की चाल को मात दती ह

चककी क जनचल खड म जछचछर-जछचछर की आवाज क साथ पानी को कारती हई मथानी चल रही थी जकतनी

धीमी आवाज अचछ खात-पीत गवालो क घर म दही की मथानी इसस जयादा शोर करती ह इसी मथानी का वह शोर

होता था जक आदमी को अपनी बात नही सनाई दती और अब तो भल नदी पार कोई बोल तो बात यहा सनाई द

जाय

छपप छपप छपप परानी िौजी पर को घरनो तक मोडकर गसाई पानी की गल क अदर चलन लगा कही कोई

सराख-जनकास हो तो बद कर द एक बद पानी भी बाहर न जाए बद-बद की कीमत ह इन जदनो परायः आधा िलाग

चलकर वह बाध पर पहचा नदी की परी चौडाई को घरकर पानी का बहाव घर की गल की ओर मोड जदया गया था

जकनार की जमटटी-घास लकर उसन बाध म एक-दो सथान पर जनकास बद जकया और जिर गल क जकनार-जकनार

चलकर घर पर आ गया

अदर जाकर उसन जिर पारो क वतत म िल हए आर को बहारकर ढरी म जमला जदया खपपर म अभी थोडा-बहत गह

शि था वह उठकर बाहर आया

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दर रासत पर एक आदमी सर पर जपसान रख उसकी ओर जा रहा था गसाई न उसकी सजवधा का खयाल कर वही स

आवाज द दी lsquorsquoह हो यहा लबर दर म आएगा दो जदन का जपसान अभी जमा ह ऊपर उमदजसह क घर म दख लोlsquorsquo

उस वयजि न मडन स पहल एक बार और परयतन जकया खब ऊच सवर म पकारकर वह बोलाrsquorsquoजररी ह जी पहल

हमारा लबर नही लगा दोगrsquorsquo

गसाई होठो-ही-होठो म मसकराया ससाला कस चीखता ह जस घर की आवाज इतनी हो जक म सन न सक कछ कम

ऊची आवाज म उसन हाथ जहलाकर उततर द जदया lsquorsquoयहा जररी का भी बाप रखा ह जी तम ऊपर चल जाओrsquorsquo

वह आदमी लौर गया

जमहल की छाव म बठकर गसाई न लकडी क जलत कद को खोदकर जचलम सलगाई और गड-गड करता धआ

उडाता रहा

खससर-खससर चककी का पार चल रहा था

जकर-जकर-जकर-जकर खपपर स दान जगरानवाली जचजडया पार पर रकरा रही थी

जछचछर-जछचछर की आवाज क साथ मथानी पानी को कार रही थी और कही कोई आवाज नही कोसी क बहाव म

भी कोई धवजन नही रती-पाथरो क बीच म रखन-रखन पतथर भी अपना सर उठाए आकाश को जनहार रह थ दोपहरी

ढलन पर भी इतनी तज धप कही जचरया भी नही बोलती जकसी पराणी का जपरय-अजपरय सवर नही

सखी नदी क जकनार बठा गसाई सोचन लगा कयो उस वयजि को लौरा जदया लौर तो वह जाता ही घर क अदर

रचच पड जपसान क थलो को दखकर दो-चार कषण की बातचीत का आसरा ही होता

कभी-कभी गसाई को यह अकलापन कारन लगता ह सखी नदी क जकनार का यह अकलापन नही जजदगी-भर साथ

दन क जलए जो अकलापन उसक दवार पर धरना दकर बठ गया ह वही जजस अपना कह सक ऐस जकसी पराणी का

सवर उसक जलए नही पालत कतत-जबली का सवर भी नही कया जठकाना ऐस माजलक का जजसका घर-दवार नही

बीबी-बचच नही खान-पीन का जठकाना नही

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घरनो तक उठी हई परानी िौजी पर क मोड को गसाई न खोला गल म चलत हए थोडा भाग भीग गया था पर इस

गमी म उस भीगी पर की यह शीतलता अचछी लगी पर की सलवरो को ठीक करत-करत गसाई न हकक की नली स

मह हराया उसक होठो म बाए कोन पर हलकी-सी मसकान उभर आई बीती बातो की याद गसाई सोचन लगा इसी

पर की बदौलत यह अकलापन उस जमला ह नही याद करन को मन नही करता परानीबहत परानी बात वह भल

गया ह पर हवालदार साहब की पर की बात उस नही भलती

ऐसी ही िौजी पर पहनकर हवालदार धरमजसह आया था लॉनदडरी की धली नोकदार करीजवाली पर वसी ही पर

पहनन की महतवाकाकषा लकर गसाई िौज म गया था पर िौज स लौरा तो पर क साथ-साथ जजदगी का अकलापन

भी उसक साथ आ गया

पर क साथ और भी जकतनी समजतया सबधद ह उस बार की छरटटयो की बात

कौन महीना हा बसाख ही था सर पर करास खखरी क करसर वाली काली जकशतीनमा रोपी को जतरछा रखकर

िौजी वदी वह पहली बार एनअल-लीव पर घर आया तो चीड वन की आग की तरह खबर इधर-उधर िल गई थी

बचच-बढ सभी उसस जमलन आए थ चाचा का गोठ एकदम भर गया था ठसाठसस जबसतर की नई एकदम साि

जगमग लाल-नीली धाररयोवाली दरी आगन म जबछानी पडी थी लोगो को जबठान क जलए खब याद ह आगन का

गोबर दरी म लग गया था बचच-बढ सभी आए थ जसिट चना-गड या हदवानी क तबाक का लोभ ही नही था कल

क शमील गसाई को इस नए रप म दखन का कौतहल भी था पर गसाई की आख उस भीड म जजस खोज रही थी

वह वहा नही थी

नाला पार क अपन गाव स भस क करया को खोजन क बहान दसर जदन लछमा आई थी पर गसाई उस जदन उसस

जमल न सका गाव क छोकर ही गसाई की जान को बवाल हो गए थ बढढ नरजसह परधान उन जदनो ठीक ही कहत थ

आजकल गसाई को दखकर सोबजनया का लडका भी अपनी िरी घर की रोपी को जतरछी पहनन लग गया ह जदन-

रात जबली क बचचो की तरह छोकर उसक पीछ लग रहत थ जसगरर-बीडी या गपशप क लोभ म

एक जदन बडी मजशकल स मौका जमला था उस लछमा को पात-पतल क जलए जगल जात दखकर वह छोकरो स

काकड क जशकार का बहाना बनाकर अकल जगल को चल जदया था गाव की सीमा स बहत दर कािल क पड क

नीच गसाई क घरन पर सर रखकर लरी-लरी लछमा कािल खा रही थी पक गदराए गहर लाल-लाल कािल

खल-खल म कािलो की छीना-झपरी करत गसाई न लछमा की मिी भीच दी थी रप-रप कािलो का गाढा लाल

रस उसकी पर पर जगर गया था लछमा न कहा था lsquorsquoइस यही रख जाना मरी परी बाह की कती इसम स जनकल

आएगीlsquorsquoवह जखलजखलाकर अपनी बात पर सवय ही हस दी थी

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परानी बात ndash कया कहा था गसाई न याद नही पडता तर जलए मखमल की कती ला दगा मरी सवा या कछ ऐसा

ही

पर लछमा को मखमल की कती जकसन पहनाई होगी ndash पहाडी पार क रमवा न जो तरी-जनसाण लकर उस बयाहन

आया था

lsquorsquoजजसक आग-पीछ भाई-बजहन नही माई-बाप नही परदश म बदक की नोक पर जान रखनवाल को छोकरी कस द द

हमrsquorsquoलछमा क बाप न कहा था

उसका मन जानन क जलए गसाई न रढ-जतरछ बात चलवाई थी

उसी साल मगजसर की एक ठडी उदास शाम को गसाई की यजनर क जसपाही जकसनजसह न कवारटर-मासरर सरोर क

सामन खड-खड उसस कहा था lsquorsquoहमार गाव क रामजसह न जजद की तभी छरटटया बढानी पडी ऌस साल उसकी

शादी थी खब अचछी औरत जमली ह यार शकल-सरत भी खब हएकदम पराखा बडी हसमख ह तमन तो दखा ही

होगा तमहार गाव क नजदीक की ही ह लछमा-लछमा कछ ऐसा ही नाम हlsquorsquo

गसाई को याद नही पडता कौन-सा बहाना बनाकर वह जकसनजसह क पास स चला आया था रम-ड थ उस जदन

हमशा आधा पग लनवाला गसाई उस जदन पशी करवाई थी ndash मलररया जपरकॉशन न करन क अपराध म सोचत-

सोचत गसाई बदबदाया lsquorsquoससाल एडजरनदरrsquorsquo

गसाई सोचन लगा उस साल छरटटयो म घर स जबदा होन स एक जदन पहल वह मौका जनकालकर लछमा स जमला था

lsquorsquoगगनाथजय की कसम जसा तम कहोग म वसा ही करगीrsquorsquoआखो म आस भरकर लछमा न कहा था

विो स वह सोचता आया ह कभी लछमा स भर होगी तो वह अवशय कहगा जक वह गगनाथ का जागर लगाकर

परायजशचत जरर कर ल दवी-दवताओ की झठी कसम खाकर उनदह नाराज करन स कया लाभ जजस पर भी गगनाथ का

कोप हआ वह कभी िल-िल नही पाया पर लछमा स कब भर होगी यह वह नही जानता लडकपन स सगी-साथी

नौकरी-चाकरी क जलए मदानो म चल गए ह गाव की ओर जान का उसका मन नही होता लछमा क बार म जकसी स

पछना उस अचछा नही लगता

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जजतन जदन नौकरी रही वह पलरकर अपन गाव नही आया एक सरशन स दसर सरशन का वालजरयरी टासिर

लनवालो की जलसर म नायक गसाईजसह का नाम ऊपर आता रहा ndash लगातार परह साल तक

जपछल बसाख म ही वह गाव लौरा परह साल बाद ररजवट म आन पर काल बालो को लकर गया था जखचडी बाल

लकर लौरा लछमा का हठ उस अकला बना गया

आज इस अकलपन म कोई होता जजस गसाई अपनी जजदगी की जकताब पढकर सनाता शबद-शबद अकषर-अकषर

जकतना दखा जकतना सना और जकतना अनभव जकया ह उसन

पर नदी जकनार यह तपती रत पनचककी की खरर-परर और जमहल की छाया म ठडी जचलम को जनषपरयोजन

गडगडाता गसाई और चारो ओर अनदय कोई नही एकदम जनजटन जनसतबध सनसान ndash

एकाएक गसाई का धयान ररा

सामन पहाडी क बीच की पगडड़ी स सर पर बोझा जलए एक नारी आकजत उसी ओर चली आ रही थी गसाई न सोचा

वही स आवाज दकर उस लौरा द कोसी न जचकन काई लग पतथरो पर कजठनाई स चलकर उस वहा तक आकर

कवल जनराश लौर जान को कयो वह बाधय कर दर स जचला-जचलाकर जपसान सवीकार करवान की लोगो की

आदत स वह तग आ चका था इस कारण आवाज दन को उसका मन नही हआ वह आकजत अब तक पगडडी

छोडकर नदी क मागट म आ पहची थी

चककी की बदलती आवाज को पहचानकर गसाई घर क अदर चला गया खपपर का अनाज समापत हो चका था

खपपर म एक कम अनदनवाल थल को उलरकर उसन अनदन का जनकास रोकन क जलए काठ की जचजडयो को उलरा कर

जदया जकर-जकर का सवर बद हो गया वह जदी-जदी आर को थल म भरन लगा घर क अदर मथानी की

जछचछर-जछचछर की आवाज भी अपकषाकत कम सनाई द रही थी कवल चककी ऊपरवाल पार की जघसरती हई

घरघराहर का हका-धीमा सगीत चल रहा था तभी गसाई न सना अपनी पीठ क पीछ घर क दवार पर इस सगीत स

भी मधर एक नारी का कठसवर lsquorsquoकब बारी आएगी जी रात की रोरी क जलए भी घर म आरा नही हlsquorsquo

सर पर जपसान रख एक सतरी उसस यह पछ रही थी गसाई को उसका सवर पररजचत-सा लगा चौककर उसन पीछ

मडकर दखा कपड म जपसान ढीला बधा होन क कारण बोझ का एक जसरा उसक मख क आग आ गया था गसाई

उस ठीक स नही दख पाया लजकन तब भी उसका मन जस आशजकत हो उठा अपनी शका का समाधान करन क

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जलए वह बाहर आन को मडा लजकन तभी जिर अदर जाकर जपसान क थलो को इधर-उधर रखन लगा काठ की

जचजडया जकर-जकर बोल रही थी और उसी गजत क साथ गसाई को अपन हदय की धडकन का आभास हो रहा था

घर क छोर कमर म चारो ओर जपस हए अनदय का चणट िल रहा था जो अब तक गसाई क पर शरीर पर छा गया था

इस कजतरम सिदी क कारण वह वधद-सा जदखाई द रहा था सतरी न उस नही पहचाना

उसन दबारा व ही शबद दहराए वह अब भी तज धप म बोझा सर पर रख हए गसाई का उततर पान को आतर थी

शायद नकारातमक उततर जमलन पर वह उलर पाव लौरकर जकसी अनदय चककी का सहारा लती

दसरी बार क परशन को गसाई न राल पाया उततर दना ही पडा lsquorsquoयहा पहल ही रीला लगा ह दर तो होगी हीlsquorsquoउसन

दब-दब सवर म कह जदया

सतरी न जकसी परकार की अननय-जवनय नही की शाम क आर का परबध करन क जलए वह दसरी चककी का सहारा लन

को लौर पडी

गसाई झककर घर स बाहर जनकला मडत समय सतरी की एक झलक दखकर उसका सदह जवशवास म बदल गया था

हताश-सा वह कछ कषणो तक उस जात हए दखता रहा और जिर अपन हाथो तथा जसर पर जगर हए आर को झाडकर

एक-दो कदम आग बढा उसक अदर की जकसी अजञात शजि न जस उस वापस जाती हई उस सतरी को बलान को

बाधय कर जदया आवाज दकर उस बला लन को उसन मह खोला परत आवाज न द सका एक जझझक एक

असमथटता थी जो उसका मह बद कर रही थी वह सतरी नदी तक पहच चकी थी गसाई क अतर म तीवर उथल-पथल

मच गई इस बार आवग इतना तीवर था जक वह सवय को नही रोक पाया लडखडाती आवाज म उसन पकारा

lsquorsquoलछमाrsquorsquo

घबराहर क कारण वह पर जोर स आवाज नही द पाया था सतरी न यह आवाज नही सनी इस बार गसाई न सवसथ

होकर पनः पकारा lsquorsquoलछमाrsquorsquo

लछमा न पीछ मडकर दखा मायक म उस सभी इसी नाम स पकारत थ यह सबोधन उसक जलए सवाभाजवक था परत

उस शका शायद यह थी जक चककीवाला एक बार जपसान सवीकार न करन पर भी दबारा उस बला रहा ह या उस

कवल भरम हआ ह उसन वही स पछा lsquorsquoमझ पकार रह ह जी

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गसाई न सयत सवर म कहा lsquorsquoहा ल आ हो जाएगाlsquorsquo

लछमा कषण-भर रकी और जिर घर की ओर लौर आई

अचानक साकषातकार होन का मौका न दन की इचछा स गसाई वयसतता का परदशटन करता हआ जमहल की छाह म

चला गया

लछमा जपसान का थला घर क अदर रख आई बाहर जनकलकर उसन आचल क कोर स मह पोछा तज धप म चलन

क कारण उसका मह लाल हो गया था जकसी पड की छाया म जवशराम करन की इचछा स उसन इधर-उधर दखा

जमहल क पड की छाया म घर की ओर पीठ जकए गसाई बठा हआ था जनकर सथान म दाजडम क एक पड की छाह

को छोडकर अनदय कोई बठन लायक सथान नही था वह उसी ओर चलन लगी

गसाई की उदारता क कारण ॠणी-सी होकर ही जस उसन जनकर आत-आत कहा lsquorsquoतमहार बाल-बचच जीत रह

घरवारजी बडा उपकार का काम कर जदया तमन ऊपर क घर म भी जान जकतनी दर म लबर जमलताlsquorsquo

अजाज सतजत क परजत जदए गए आशीवटचनो को गसाई न मन-ही-मन जवनोद क रप म गरहण जकया इस कारण उसकी

मानजसक उथल-पथल कछ कम हो गई लछमा उसकी ओर दख इसस पवट ही उसन कहा lsquorsquoजीत रह तर बाल-बचच

लछमा मायक कब आईrsquorsquo

गसाई न अतर म घमडती आधी को रोककर यह परशन इतन सयत सवर म जकया जस वह भी अनदय दस आदजमयो की

तरह लछमा क जलए एक साधारण वयजि हो

दाजडम की छाया म पात-पतल झाडकर बठत लछमा न शजकत दजि स गसाई की ओर दखा कोसी की सखी धार

अचानक जल-पलाजवत होकर बहन लगती तो भी लछमा को इतना आशचयट न होता जजतना अपन सथान स कवल

चार कदम की दरी पर गसाई को इस रप म दखन पर हआ जवसमय स आख िाडकर वह उस दख जा रही थी जस

अब भी उस जवशवास न हो रहा हो जक जो वयजि उसक सममख बठा ह वह उसका पवट-पररजचत गसाई ही ह

lsquorsquoतमrsquorsquoजान लछमा कया कहना चाहती थी शि शबद उसक कठ म ही रह गए

lsquorsquoहा जपछल साल परन स लौर आया था वि कारन क जलए यह घर लगवा जलयाlsquorsquoगसाई न ही पछा lsquorsquoबाल-

बचच ठीक हrsquorsquo

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आख जमीन पर जरकाए गरदन जहलाकर सकत स ही उसन बचचो की कशलता की सचना द दी जमीन पर जगर एक

दाजडम क िल को हाथो म लकर लछमा उसकी पखजडयो को एक-एक कर जनरददशय तोडन लगी और गसाई पतली

सीक लकर आग को करदता रहा

बातो का करम बनाए रखन क जलए गसाई न पछा lsquorsquoत अभी और जकतन जदन मायक ठहरनवाली हrsquorsquo

अब लछमा क जलए अपन को रोकना असभव हो गया रप-रप-रप वह सर नीचा जकए आस जगरान लगी जससजकयो

क साथ-साथ उसक उठत-जगरत कधो को गसाई दखता रहा उस यह नही सझ रहा था जक वह जकन शबदो म अपनी

सहानभजत परकर कर

इतनी दर बाद सहसा गसाई का धयान लछमा क शरीर की ओर गया उसक गल म चरऊ (सहाग-जचहन) नही था

हतपरभ-सा गसाई उस दखता रहा अपनी वयावहाररक अजञानता पर उस बहद झझलाहर हो रही थी

आज अचानक लछमा स भर हो जान पर वह उन सब बातो को भल गया जजनदह वह कहना चाहता था इन कषणो म

वह कवल-मातर शरोता बनकर रह जाना चाहता था गसाई की सहानभजतपणट दजि पाकर लछमा आस पोछती हई

अपना दखडा रोन लगी lsquorsquoजजसका भगवान नही होता उसका कोई नही होता जठ-जठानी स जकसी तरह जपड छडाकर

यहा मा की बीमारी म आई थी वह भी मझ छोडकर चली गई एक अभागा मझ रोन को रह गया ह उसी क जलए

जीना पड रहा ह नही तो पर पर पतथर बाधकर कही डब मरती जजाल करताlsquorsquo

lsquorsquoयहा काका-काकी क साथ रह रही होrsquorsquoगसाई न पछा

lsquorsquoमजशकल पडन पर कोई जकसी का नही होता जी बाबा की जायदाद पर उनकी आख लगी ह सोचत ह कही म हक

न जमा ल मन साि-साि कह जदया मझ जकसी का कछ लना-दना नही जगलात का लीसा ढो-ढोकर अपनी गजर

कर लगी जकसी की आख का कारा बनकर नही रह गीlsquorsquo

गसाई न जकसी परकार की मौजखक सवदना नही परकर की कवल सहानभजतपणट दजि स उस दखता-भर रहा दाजडम क

वकष स पीठ जरकार लछमा घरन मोडकर बठी थी गसाई सोचन लगा परह-सोलह साल जकसी की जजदगी म अतर

लान क जलए कम नही होत समय का यह अतराल लछमा क चहर पर भी एक छाप छोड गया था पर उस लगा उस

छाप क नीच वह आज भी परह विट पहल की लछमा को दख रहा ह

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lsquorsquoजकतनी तज धप ह इस सालrsquorsquoलछमा का सवर उसक कानो म पडा परसग बदलन क जलए ही जस लछमा न यह

बात जान-बझकर कही हो

और अचानक उसका धयान उस ओर चला गया जहा लछमा बठी थी दाजडम की िली-िली अधढकी डालो स

छनकर धप उसक शरीर पर पड रही थी सरज की एक पतली जकरन न जान कब स लछमा क माथ पर जगरी हई एक

लर को सनहरी रगीनी म डबा रही थी गसाई एकरक उस दखता रहा

lsquorsquoदोपहर तो बीत चकी होगीrsquorsquoलछमा न परशन जकया तो गसाई का धयान ररा lsquorsquoहा अब तो दो बजनवाल होगrsquorsquoउसन

कहा lsquorsquoउधर धप लग रही हो तो इधर आ जा छाव मlsquorsquoकहता हआ गसाई एक जमहाई लकर अपन सथान स उठ गया

lsquorsquoनही यही ठीक हrsquorsquoकहकर लछमा न गसाई की ओर दखा लजकन वह अपनी बात कहन क साथ ही दसरी ओर

दखन लगा था

घर म कछ दर पहल डाला हआ जपसान समाजपत पर था नबर पर रख हए जपसान की जगह उसन जाकर जदी-जदी

लछमा का अनाज खपपर म खाली कर जदया

धीर-धीर चलकर गसाई गल क जकनार तक गया अपनी अजली स भर-भरकर उसन पानी जपया और जिर पास ही

एक बजर घर क अदर जाकर पीतल और अलमजनयम क कछ बतटन लकर आग क जनकर लौर आया

आस-पास पडी हई सखी लकजडयो को बरोरकर उसन आग सलगाई और एक काजलख पती बरलोई म पानी रखकर

जात-जात लछमा की ओर मह कर कह गया lsquorsquoचाय का रम भी हो रहा ह पानी उबल जाय तो पतती डाल दना

पजडया म पडी हlsquorsquo

लछमा न उततर नही जदया वह उस नदी की ओर जानवाली पगडडी पर जाता हआ दखती रही

सडक जकनार की दकान स दध लकर लौरत-लौरत गसाई को कािी समय लग गया था वापस आन पर उसन दखा

एक छः-सात विट का बचचा लछमा की दह स सरकर बठा हआ ह

बचच का पररचय दन की इचछा स जस लछमा न कहा lsquorsquoइस छोकर को घडी-भर क जलए भी चन नही जमलता जान

कस पछता-खोजता मरी जान खान को यहा भी पहच गया हlsquorsquo

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गसाई न लकषय जकया जक बचचा बार-बार उसकी दजि बचाकर मा स जकसी चीज क जलए जजद कर रहा ह एक बार

झझलाकर लछमा न उस जझडक जदया lsquorsquoचप रह अभी लौरकर घर जाएग इतनी-सी दर म कयो मरा जा रहा हrsquorsquo

चाय क पानी म दध डालकर गसाई जिर उसी बजर घर म गया एक थाली म आरा लकर वह गल क जकनार बठा-

बठा उस गथन लगा जमहल क पड की ओर आत समय उसन साथ म दो-एक बतटन और ल जलए

लछमा न बरलोई म दध-चीनी डालकर चाय तयार कर दी थी एक जगलास एक एनमल का मग और एक

अलमजनयमक मसजरन म गसाई न चाय डालकर आपस म बार ली और पतथरो स बन बढग च ह क पास बठकर

रोजरया बनान का उपकरम करन लगा

हाथ का चाय का जगलास जमीन पर जरकाकर लछमा उठी आर की थाली अपनी ओर जखसकाकर उसन सवय रोरी

पका दन की इचछा ऐस सवर म परकर की जक गसाई ना न कह सका वह खडा-खडा उस रोरी पकात हए दखता रहा

गोल-गोल जडजबया-सरीखी रोजरया च ह म जखलन लगी विो बाद गसाई न ऐसी रोजरया दखी थी जो अजनजशचत

आकार की िौजी लगर की चपाजतयो या सवय उसक हाथ स बनी बडौल रोजरयो स एकदम जभनदन थी आर की लोई

बनात समय लछमा क छोर-छोर हाथ बडी तजी स घम रह थ कलाई म पहन हए चादी क कड ज़ब कभी आपस म

रकरा जाततो खन-खन का एक अतयत मधर सवर जनकलता चककी क पार पर रकरानवाली काठ की जचजडयो का

सवर जकतना नीरस हो सकता ह यह गसाई न आज पहली बार अनभव जकया

जकसी काम स वह बजर घर की ओर गया और बडी दर तक खाली बतटन-जडबबो को उठाता-रखता रहा

वह लौरकर आया तो लछमा रोरी बनाकर बतटनो को समर चकी थी और अब आर म सन हाथो को धो रही थी

गसाई न बचच की ओर दखा वह दोनो हाथो म चाय का मग थाम रकरकी लगाकर गसाई को दख जा रहा था

लछमा न आगरह क सवर म कहा lsquorsquoचाय क साथ खानी हो तो खा लो जिर ठडी हो जाएगीlsquorsquo

lsquorsquoम तो अपन रम स ही खाऊगा यह तो बचच क जलए rsquorsquoसपि कहन म उस जझझक महसस हो रही थी जस बचच क

सबध म जचजतत होन की उसकी चिा अनजधकार हो

lsquorsquoन-न जी वह तो अभी घर स खाकर ही आ रहा ह म रोजरया बनाकर रख आई थीrsquorsquoअतयत सकोच क साथ लछमा

न आपजतत परकर कर दी

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lsquorsquoअऽऽ यो ही कहती ह कहा रखी थी रोजरया घर मrsquorsquoबचच न रआसी आवाज म वासतजवक वयजि की बत सन रहा

था और रोजरयो को दखकर उसका सयम ढीला पड गया था

lsquorsquoचपrsquorsquoआख तररकर लछमा न उस डार जदया बचच क इस कथन स उसकी जसथजत हासयासपद हो गई थी इस कारण

लजजा स उसका मह आरि हो उठा

lsquorsquoबचचा ह भख लग आई होगी डारन स कया िायदाrsquorsquoगसाई न बचच का पकष लकर दो रोजरया उसकी ओर बढा

दी परत मा की अनमजत क जबना उनदह सवीकारन का साहस बचच को नही हो रहा था वह ललचाई दजि स कभी

रोजरयो की ओर कभी मा की ओर दख लता था

गसाई क बार-बार आगरह करन पर भी बचचा रोजरया लन म सकोच करता रहा तो लछमा न उस जझडक जदया lsquorsquoमर

अब ल कयो नही लता जहा जाएगा वही अपन लचछन जदखाएगाrsquorsquo

इसस पहल जक बचचा रोना शर कर द गसाई न रोजरयो क ऊपर एक रकडा गड का रखकर बचच क हाथो म जदया

भरी-भरी आखो स इस अनोख जमतर को दखकर बचचा चपचाप रोरी खान लगा और गसाई कौतकपणट दजि स उसक

जहलत हए होठो को दखता रहा

इस छोर-स परसग क कारण वातावरण म एक तनाव-सा आ गया था जजस गसाई और लछमा दोनो ही अनभव कर रह

सवय भी एक रोरी को चाय म डबाकर खात-खात गसाई न जस इस तनाव को कम करन की कोजशश म ही मसकराकर

कहा lsquorsquoलोग ठीक ही कहत ह औरत क हाथ की बनी रोजरयो म सवाद ही दसरा होता हlsquorsquo

लछमा न करण दजि स उसकी ओर दखा गसाई हो-होकर खोखली हसी हस रहा था

lsquorsquoकछ साग-सबजी होती तो बचारा एक-आधी रोरी और खा लताlsquorsquoगसाई न बचच की ओर दखकर अपनी जववशता

परकर की

lsquorsquoऐसी ही खान-पीनवाल की तकदीर लकर पदा हआ होता तो मर भाग कयो पडता दो जदन स घर म तल-नमक नही

ह आज थोड पस जमल हआज ल जाऊगी कछ सौदाlsquorsquo

हाथ स अपनी जब ररोलत हए गसाई न सकोचपणट सवर म कहा lsquorsquoलछमाrsquorsquo

लछमा न जजजञासा स उसकी ओर दखा गसाई न जब स एक नोर जनकालकर उसकी ओर बढात हए कहा lsquorsquoल काम

चलान क जलए यह रख लमर पास अभी और ह परसो दफतर स मनीआडटर आया थाlsquorsquo

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lsquorsquoनही-नही जी काम तो चल ही रहा ह म इस मतलब स थोड कह रही थी यह तो बात चली थी तो मन

कहाrsquorsquoकहकर लछमा न सहायता लन स इनदकार कर जदया

गसाई को लछमा का यह वयवहार अचछा नही लगा रखी आवाज म वह बोला lsquorsquoदःख-तकलीि क वि ही आदमी

आदमी क काम नही आया तो बकार ह ससाला जकतना कमाया जकतना िका हमन इस जजदगी म ह कोई जहसाब

पर कया िायदा जकसी क काम नही आया इसम अहसान की कया बात ह पसा तो जमटटी ह ससाला जकसी क काम

नही आया तो जमटटी एकदम जमटटीrsquorsquo

परनदत गसाई क इस तकट क बावजद भी लछमा अडी रही बचच क सर पर हाथ िरत हए उसन दाशटजनक गभीरता स

कहा lsquorsquoगगनाथ दाजहन रह तो भल-बर जदन जनभ ही जात ह जी पर का कया ह घर क खपपर की तरह जजतना डालो

कम हो जाय अपन-पराय परम स हस-बोल द तो वह बहत ह जदन कारन क जलएlsquorsquo

गसाई न गौर स लछमा क मख की ओर दखा विो पहल उठ हए जवार और तिान का वहा कोई जचहन शि नही था

अब वह सागर जस सीमाओ म बधकर शात हो चका था

रपया लन क जलए लछमा स अजधक आगरह करन का उसका साहस नही हआ पर गहर असतोि क कारण बझा-

बझा-सा वह धीमी चाल स चलकर वहा स हर गया सहसा उसकी चाल तज हो गई और घर क अदर जाकर उसन

एक बार शजकत दजि स बाहर की ओर दखा लछमा उस ओर पीठ जकए बठी थी उसन जदी-जदी अपन नीजी

आर क रीन स दो-ढाई सर क करीब आरा जनकालकर लछमा क आर म जमला जदया और सतोि की एक सास लकर

वह हाथ झाडता हआ बाहर आकर बाध की ओर दखन लगा ऊपर बाध पर जकसी को घमत हए दखकर उसन हाक

दी शायद खत की जसचाई क जलए कोई पानी तोडना चाहता था

बाध की ओर जान स पहल वह एक बार लछमा क जनकर गया जपसान जपस जान की सचना उस दकर वापस लौरत

हए जिर जठठककर खडा हो गया मन की बात कहन म जस उस जझझक हो रही हो अरक-अरककर वह बोला

lsquorsquoलछमा lsquorsquo

लछमा न जसर उठाकर उसकी ओर दखा गसाई को चपचाप अपनी ओर दखत हए पाकर उस सकोच होन लगा वह

न जान कया कहना चाहता हइस बात की आशका स उसक मह का रग अचानक िीका होन लगा पर गसाई न

जझझकत हए कवल इतना ही कहा lsquorsquoकभी चार पस जड ज़ाए तो गगनाथ का जागर लगाकर भल-चक की मािी माग

लना पत-पररवारवालो को दवी-दवता क कोप स बचा रहना चाजहएlsquorsquoलछमा की बात सनन क जलए वह नही रका

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पानी तोडनवाल खजतहार स झगडा जनपराकर कछ दर बाद लौरत हए उसन दखा सामनवाल पहाड की पगडडी पर

सर पर आरा जलए लछमा अपन बचच क साथ धीर-धीर चली जा रही थी वह उनदह पहाडी क मोड तक पहचन तक

रकरकी बाध दखता रहा

घर क अदर काठ की जचजडया अब भी जकर-जकर आवाज कर रही थी चककी का पार जखससर-जखससर चल रहा था

और मथानी की पानी कारन की आवाज आ रही थी और कही कोई सवर नही सब सनसान जनसतबध

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आकाशदीि

जयशकर lsquoपरसादrsquo

ldquoबदीrsquorsquo

lsquorsquoकया ह सोन दोlsquorsquo

lsquorsquoमि होना चाहत होrsquorsquo

lsquorsquoअभी नही जनरा खलन पर चप रहोlsquorsquo

lsquorsquoजिर अवसर न जमलगाlsquorsquo

lsquorsquoबडा शीत ह कही स एक कबल डालकर कोई शीत स मि करताlsquorsquo

lsquorsquoआधी की सभावना ह यही एक अवसर ह आज मर बधन जशजथल हlsquorsquo

lsquorsquoतो कया तम भी बदी होrsquorsquo

lsquorsquoहा धीर बोलो इस नाव पर कवल दस नाजवक और परहरी हlsquorsquo

lsquorsquoशसतर जमलगाrsquorsquo

lsquorsquoजमल जाएगा पोत स सबदध रजज कार सकोगrsquorsquo

lsquorsquoहाlsquorsquo

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समर म जहलोर उठन लगी दोनो बदी आपस म रकरान लग पहल बदी न अपन को सवततर कर जलया दसर का बधन

खोलन का परयतन करन लगा लहरो क धकक एक-दसर को सपशट स पलजकत कर रह थ मजि की आशा-सनह का

असभाजवत आजलगन दोनो ही अधकार म मि हो गए दसर बदी न हिाटजतरक स उसको गल स लगा जलया सहसा

उस बदी न कहा-lsquorsquoयह कया तम सतरी होrsquorsquo

lsquorsquoकया सतरी होना कोई पाप हrsquorsquondashअपन को अलग करत हए सतरी न कहा

lsquorsquoशसतर कहा ह ndash तमहारा नामrsquorsquo

lsquorsquoचपाlsquorsquo

तारक-खजचत नील अबर और समर क अवकाश म पवन ऊधम मचा रहा था अधकार स जमलकर पवन दि हो रहा

था समर म आदोलन था नौका लहरो म जवकल थी सतरी सतकट ता स लढकन लगी एक मतवाल नाजवक क शरीर स

रकराती हई सावधानी स उसका कपाण जनकालकर जिर लढकत हए बनददी क समीप पहच गई सहसा पोत स पथ-

परदशटक न जचलाकर कहा ndashlsquorsquoआधीrsquorsquo

आपजतत-सचक तयट बजन लगा सब सावधान होन लग बदी यवक उसी तरह पडा रहा जकसी न रससी पकडी कोई

पाल खोल रहा था पर यवक बदी ढलककर उस रजज क पास पहचा जो पोत स सलगन थी तार ढक गए तरग

उदवजलत हई समर गरजन लगा भीिण आधी जपशाजचनी क समान नाव को अपन हाथो म लकर कदक-करीडा और

अटटहास करन लगी

एक झरक क साथ ही नाव सवततर थी उस सकर म भी दोनो बदी जखलजखला कर हस पड आधी क हाहाकार म उस

कोई न सन सका

अनत जलजनजध म उिा का मधर आलोक िर उठा सनहली जकरणो और लहरो की कोमल सजि मसकरान लगी

सागर शात था नाजवको न दखा पोत का पता नही बदी मि ह

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नायक न कहा ndashlsquorsquoबधगपत तमको मि जकसन जकयाrsquorsquo

कपाण जदखाकर बधगपत न कहा ndashlsquorsquoइसनlsquorsquo

नायक न कहा ndashlsquorsquoतो तमह जिर बदी बनाऊ गाlsquorsquo

lsquorsquoजकसक जलए पोताधयकष मजणभर अतल जल म होगा ndash नायक अब इस नौका का सवामी म ह lsquorsquo

lsquorsquoतम जलदसय बधगपत कदाजप नहीlsquorsquondashचौककर नायक न कहा और अपना कपाण ररोलन लगा चपा न इसक

पहल उस पर अजधकार कर जलया था वह करोध स उछल पडा

lsquorsquoतो तम दवदवयदध क जलए परसतत हो जाओ जो जवजयी होगा वह सवामी होगाlsquorsquondashइतना कहकर बधगपत न कपाण दन

का सकत जकया चपा न कपाण नायक क हाथ म द जदया

भीिण घात-परजतघात आरभ हआ दोनो कशल दोनो तवररत गजतवाल थ बडी जनपणता स बधगपत न अपना कपाण

दातो स पकड़कर अपन दोनो हाथ सवततर कर जलए चपा भय और जवसमय स दखन लगी नाजवक परसनदन हो गए परत

बधगपत न लाघव स नायक का कपाणवाला हाथ पकड़ जलया और जवकर हकार स दसरा हाथ कजर म डाल उस जगरा

जदया दसर ही कषण परभात की जकरणो म बधगपत का जवजयी कपाण उसक हाथो म चमक उठा नायक की कातर

आख पराण-जभकषा मागन लगी

बधगपत न कहा ndashlsquorsquoबोलो अब सवीकार ह जक नहीrsquorsquo

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lsquorsquoम अनचर ह वरणदव की शपथ म जवशवासघात नही कर गाlsquorsquoबधगपत न उस छोड़ जदया

चपा न यवक जलदसय क समीप आकर उसक कषतो को अपनी जसनगध दजि और कोमल करो स वदना-जवहीन कर

जदया बधगपत क सगजठत शरीर पर रि-जबद जवजय-जतलक कर रह थ

जवशराम लकर बधगपत न पछाrsquorsquoहम लोग कहा होगrsquorsquo

lsquorsquoबालीदवीप स बहत दर सभवतः एक नवीन दवीप क पास जजसम अभी हम लोगो का बहत कम आना-जाना होता ह

जसहल क वजणको का वहा पराधानदय हlsquorsquo

lsquorsquoजकतन जदनो म हम लोग वहा पहचगrsquorsquo

lsquorsquoअनकल पवन जमलन पर दो जदन म तब तक क जलए खादय का अभाव न होगाlsquorsquo

सहसा नायक न नाजवको को डाड़ लगान की आजञा दी और सवय पतवार पकड़कर बठ गया बधगपत क पछन पर

उसन कहा ndashlsquorsquoयहा एक जलमगन शलखड ह सावधान न रहन स नाव रकरान का भय हlsquorsquo

lsquorsquoतमह इन लोगो न बदी कयो बनायाrsquorsquo

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lsquorsquoवाजणक मजणभर की पाप-वासना नlsquorsquo

lsquorsquoतमहारा घर कहा हrsquorsquo

lsquorsquoजाहनवी क तर पर चपा-नगरी की एक कषजतरय बाजलका ह जपता इसी मजणभर क यहा परहरी का काम करत थ माता

का दहावसान हो जान पर म भी जपता क साथ नाव पर ही रहन लगी आठ बरस स समर ही मरा घर ह तमहार

आकरमण क समय मर जपता न ही सात दसयओ को मारकर जल-समाजध ली एक मास हआ म इस नील नभ क नीच

नील जलजनजध क ऊपर एक भयानक अनतता म जनससहाय ह -अनाथ ह मजणभर न मझस एक जदन घजणत परसताव

जकया मन उस गाजलया सनाई उसी जदन स बदी बना दी गईlsquorsquondashचपा रोि स जल रही थी

lsquorsquoम भी तामरजलजपत का एक कषजतरय ह चपा परत दभाटगय स जलदसय बनकर जीवन जबताता ह अब तम कया करोगीrsquorsquo

lsquorsquoम अपन अदि को अजनजदटि ही रहन दगी वह जहा ल जाएlsquorsquondashचपा की आख जनससीम परदश म जनरददशय थी जकसी

आकाकषा क लाल डोर न थ धवल अपागो म बालको क सदश जवशवास था हतया-वयवसायी दसय भी उस दखकर

काप गया उसक मन म एक सभरमपणट शरधदा यौवन की पहली लहरो को जगान लगी समर-वकष पर जवलबमयी राग-

रजजत सधया जथरकन लगी चपा क असयत कतल उसकी पीठ पर जबखर थ ददाटनदत दसय न दखा अपनी मजहमा म

अलौजकक एक तरण बाजलका वह जवसमय स अपन हदय को ररोलन लगा उस एक नई वसत का पता चला वह

थी ndash कोमलता

उसी समय नायक न कहा ndashlsquorsquoहम लोग दवीप क पास पहच गएlsquorsquo

बला स नाव रकराई चपा जनभीकता स कद पडी माझी भी उतर बधगपत न कहा ndashlsquorsquoजब इसका कोई नाम नही ह तो

हम लोग इस चपा-दवीप कहगlsquorsquo

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चपा हस पडी

पाच बरस बाद ndash

शरद क धवल नकषतर नील गगन म झलमला रह थ चर की उजजवल जवजय पर अतररकष म शरदलकषमी न आशीवाटद

क िलो और खीलो को जबखर जदया

चपा क एक उचचसौध पर बठी हई तरणी चपा दीपक जला रही थी

बड यतन स अभररक की मजिा म दीप धर कर उसन अपनी सकमार ऊ गजलयो स डोरी खीची वह दीपाधार ऊपर

चढन लगा भोली-भोली आख उस ऊपर चढत हिट स दख रही थी डोरी धीर-धीर खीची गई चपा की कामना थी जक

उसका आकाशदीप नकषतरो स जहलजमल जाए जकत वसा होना असभव था उसन आशाभरी आख जिरा ली

सामन जल-राशी का रजत शरगार था वरण बाजलकाओ क जलए लहरो स हीर

और नीलम की करीडा शल-मालाए बन रही थी ndash और व मायाजवनी छलनाए ndash

अपनी हसी का कलनाद छोड़कर जछप जाती थी दर-दर स धीवरो का

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वशी-झनकार उनक सगीत-सा मखररत होता था चपा न दखा जक तरल सकल जलराजश म उसक कदील का परजतजबब

असतवयसत था वह अपनी पणटता क जलए सकड़ो चककर कारता था वह अनमनी होकर उठ खडी हई जकसी को

पास न दखकर पकारा ndashlsquorsquoजयाrsquorsquo

एक शयामा यवती सामन आकर खडी हई वह जगली थी नील नभोमडल ndash स मख म शदध नकषतरो की पजि क समान

उसक दात हसत ही रहत वह चपा को रानी कहती बधगपत की आजञा थी

lsquorsquoमहानाजवक कब तक आयग बाहर पछो तोlsquorsquoचपा न कहा जया चली गई

दरागत पवन चपा क अचल म जवशराम लना चाहता था उसक हदय म गदगदी हो रही थी आज न जान कयो वह

बसध थी एक दीघटकाय दढ परि न उसकी पीठ पर हाथ रख चमतकत कर जदया उसन जिर कर कहा ndashlsquorsquoबधगपतrsquorsquo

lsquorsquoबावली हो कया यहा बठी हई अभी तक दीप जला रही हो तमह यह काम करना हrsquorsquo

lsquorsquoकषीरजनजधशायी अनत की परसनदनता क जलए कया दाजसयो स आकाशदीप जलवाऊ rsquorsquo

lsquorsquoहसी आती ह तम जकसको दीप जलाकर पथ जदखलाना चाहती हो उसको जजसको तमन भगवान मान जलया हrsquorsquo

lsquorsquoहा वह भी कभी भरकत ह भलत ह नही तो बधगपत को इतना ऐशवयट कयो दतrsquorsquo

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lsquorsquoतो बरा कया हआ इस दवीप की अधीशवरी चपारानीrsquorsquo

lsquorsquoमझ इस बदीगह स मि करो अब तो बाली जावा और समातरा का वाजणजय कवल तमहार ही अजधकार म ह

महानाजवक परत मझ उन जदनो की समजत सहावनी लगती ह जब तमहार पास एक ही नाव थी और चपा क उपकल म

पणय लाद कर हम लोग सखी जीवन जबतात थ ndash इस जल म अगजणत बार हम लोगो की तरी आलोकमय परभात म

ताररकाओ की मधर जयोजत म ndash जथरकती थी बधगपत उस जवजन अनत म जब माझी सो जात थ दीपक बझ जात थ

हम-तम पररशरम स थककर पालो म शरीर लपरकर एक-दसर का मह कयो दखत थ वह नकषतरो की मधर छाया lsquorsquo

lsquorsquoतो चपा अब उसस भी अचछ ढग स हम लोग जवचर सकत ह तम मरी पराणदातरी हो मरी सवटसव होlsquorsquo

lsquorsquoनही ndash नही तमन दसयवजतत छोड़ दी परत हदय वसा ही अकरण सतषण और जवलनशील ह तम भगवान क नाम

पर हसी उडात हो मर आकाशदीप पर वयग कर रह हो नाजवक उस परचड आधी म परकाश की एक-एक जकरण क

जलए हम लोग जकतन वयाकल थ मझ समरण ह जब म छोरी थी मर जपता नौकरी पर समर म जात थ ndash मरी माता

जमटटी का दीपक बास की जपरारी म भागीरथी क तर पर बास क साथ ऊ च राग दती थी उस समय वह पराथटना करती

ndashlsquorsquoभगवान मर पथ-भरि नाजवक को अधकार म ठीक पथ पर ल चलनाlsquorsquoऔर जब मर जपता बरसो पर लौरत तो

कहत ndashlsquorsquoसाधवी तरी पराथटना स भगवान न सकरो म मरी रकषा की हlsquorsquoवह गदगद हो जाती मरी मा आह नाजवक यह

उसी की पणय-समजत ह मर जपता वीर जपता की मतय क जनषठर कारण जल-दसय हर जाओlsquorsquondashसहसा चपा का मख

करोध स भीिण होकर रग बदलन लगा महानाजवक न कभी यह रप न दखा था वह ठठाकर हस पडा

lsquorsquoयह कया चपा तम असवसथ हो जाओगी सो रहोlsquorsquondashकहता हआ चला गया चपा मिी बाध उनदमाजदनी-सी घमती

रही

जनजटन समर क उपकल म वला स रकरा कर लहर जबखर जाती थी पजशचम का पजथक थक गया था उसका मख

पीला पड़ गया अपनी शात गभीर हलचल म जलजनजध जवचार म जनमगन था वह जस परकाश की उनदमजलन जकरणो स

जवरि था

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चपा और जया धीर-धीर उस तर पर आकर खडी हो गई तरग स उठत हए पवन न उनक वसन को असत-वयसत कर

जदया जया क सकत स एक छोरी-सी नौका आई दोनो क उस पर बठत ही नाजवक उतर गया जया नाव खन लगी

चपा मगध-सी समर क उदास वातावरण म अपन को जमजशरत कर दना चाहती थी

lsquorsquoइतना जल इतनी शीतलता हदय की पयास न बझी पी सक गी नही तो जस वला म चोर खाकर जसध जचला

उठता ह उसी क समान रोदन कर

या जलत हए सवणट-गोलक सदश अनत जल म डबकर बझ जाऊ rsquorsquondashचपा क दखत-दखत पीडा और जवलन स

आरि जबब धीर-धीर जसध म चौथाई-आधा जिर सपणट जवलीन हो गया एक दीघट जनशवास लकर चपा न मह िर

जलया दखा तो महानाजवक का बजरा उसक पास ह बधगपत न झककर हाथ बढाया चपा उसक सहार बजर पर चढ

गईदोनो पास-पास बठ गए

lsquorsquoइतनी छोरी नाव पर इधर घमना ठीक नही पास ही वह जलमगन शलखड ह कही नाव रकरा जाती या ऊपर चढ

ज़ाती चपा तोrsquorsquo

lsquorsquoअचछा होता बधगपत जल म बदी होना कठोर पराचीरो स तो अचछा हlsquorsquo

lsquorsquoआह चपा तम जकतनी जनदटय हो बधगपत को आजञा दकर दखो तो वह कया नही कर सकता जो तमहार जलए नए

दवीप की सजि कर सकता ह नई परजा खोज सकता ह नए राजय बना सकता ह उसकी परीकषा लकर दखो तो कहो

चपा वह कपाण स अपना हदय-जपड जनकाल अपन हाथो अतल जल म जवसजटन कर दlsquorsquondashमहानाजवक ndash जजसक

नाम स बाली जावा और चपा का आकाश गजता था पवन थराटता था ndash घरनो क बल चपा क सामन छलछलाई

आखो स बठा था

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सामन शलमाला की चोरी पर हररयाली म जवसतत जल-दश म नील जपगल सधया परकजत की सहदय कपना जवशराम

की शीतल छाया सवपनलोक का सजन करन लगीउस मोजहनी क रहसयपणट नीलजाल का कहक सिर हो उठा जस

मजदरा स सारा अतररकष जसि हो गया सजि नील कमलो म भर उठी उस सौरभ स पागल चपा न बधगपत क दोनो हाथ

पकड़ जलए वहा एक आजलगन हआ जस जकषजतज म आकाश और जसध का जकत उस परररभ म सहसा चतनदय होकर

चपा न अपनी कचकी स एक कपाण जनकाल जलया

lsquorsquoबधगपत आज म अपन परजतशोध का कपाण अतल जल म डबा दती ह हदय न छल जकया बार-बार धोखा

जदयाrsquorsquondashचमककर वह कपाण समर का हदय वधता हआ जवलीन हो गया

lsquorsquoतो आज स म जवशवास कर कषमा कर जदया गयाrsquorsquondashआशचयट-कजपत कठ स महानाजवक न पछा

lsquorsquoजवशवास कदाजप नही बधगपत जब म अपन हदय पर जवशवास नही कर सकी उसी न धोखा जदया तब म कस कह

म तमह घणा करती ह जिर भी तमहार जलए मर सकती ह अधर ह जलदसय तमह पयार करती ह lsquorsquondashचपा रो पडी

वह सवपनो की रगीन सधया तम स अपनी आख बद करन लगी थी दीघट जनशवास लकर महानाजवक न कहा ndashlsquorsquoइस

जीवन की पणयतम घडी की समजत म एक परकाश-गह बनाऊगा चपा यही उस पहाडी पर सभव ह जक मर जीवन की

धधली सधया उसस आलोकपणट हो जाएrsquorsquo

चपा क दसर भाग म एक मनोरम शलमाला थी वह बहत दर तक जसध-जल म जनमगन थी सागर का चचल जल उस

पर उछलता हआ उस जछपाए था आज उसी शलमाला पर चपा क आजद-जनवाजसयो का समारोह था उन सबो न

चपा को वनदवी-सा सजाया था तामरजलजपत क बहत-स सजनक नाजवको की शरणी म वन-कसम-जवभजिता चपा

जशजवकारढ़ होकर जा रही थी

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शल क एक ऊ च जशखर पर चपा क नाजवको को सावधान करन क जलए सदढ दीप-सतभ बनवाया गया था आज

उसी का महोतसव ह बधगपत सतभ क दवार पर खडा था जशजवका स सहायता दकर चपा को उसन उतारा दोनो न

भीतर पदापटण जकया था जक बासरी और ढोल बजन लग पजियो म कसम-भिण स सजी वन-बालाए िल उछालती

हई नाचन लगी

दीप-सतभ की ऊपरी जखडकी स यह दखती हई चपा न जया स पछा ndashlsquorsquoयह कया ह जया इतनी बाजलकाए कहा स

बरोर लाईrsquorsquo

lsquorsquoआज रानी का बयाह ह नrsquorsquondashकहकर जया न हस जदया

बधगपत जवसतत जलजनजध की ओर दख रहा था उस झकझोरकर चपा न पछा ndashlsquorsquoकया यह सच हrsquorsquo

lsquorsquoयजद तमहारी इचछा हो तो यह सच भी हो सकता ह चपा जकतन विो स म जवालामखी को अपनी छाती म दबाए

ह lsquorsquo

lsquorsquoचप रहो महानाजवक कया मझ जनससहाय और कगाल जानकर तमन आज सब परजतशोध लना चाहाrsquorsquo

lsquorsquoम तमहार जपता का घातक नही ह चपा वह एक दसर दसय क शसतर स मरrsquorsquo

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lsquorsquoयजद म इसका जवशवास कर सकती बधगपत वह जदन जकतना सदर होता वह कषण जकतना सपहणीय आह तम इस

जनषठरता म भी जकतन महान होतrsquorsquo

जया नीच चली गई थी सतभ क सकीणट परकोषठ म बधगपत और चपा एकात म एक-दसर क सामन बठ थ

बधगपत न चपा क पर पकड़ जलए उचवजसत शबदो म वह कहन लगा ndashlsquorsquoचपा हम लोग जनदमभजम- भारतविट स

जकतनी दर इन जनरीह पराजणयो म इर और शची क समान पजजत ह समरण होता ह वह दाशटजनको का दश वह मजहमा

की परजतमा मझ वह समजत जनतय आकजिटत करती ह परत म कयो नही जाता जानती हो इतना महतव परापत करन पर

भी म कगाल ह मरा पतथर-सा हदय एक जदन सहसा तमहार सपशट स चरकात मजण ही तरह रजवत हआ

lsquorsquoचपा म ईशवर को नही मानता म पाप को नही मानता म दया को नही समझ सकता म उस लोक म जवशवास नही

करता पर मझ अपन हदय क एक दबटल अश पर शरधदा हो चली ह तम न जान कस एक बहकी हई ताररका क समान

मर शनदय म उजदत हो गई हो आलोक की एक कोमल रखा इस जनजवड़तम म मसकरान लगी पश-बल और धन क

उपासक क मन म जकसी शात और एकात कामना की हसी जखलजखलान लगी पर म न हस सका

lsquorsquoचलोगी चपा पोतवाजहनी पर असखय धनराजश लादकर राजरानी-सी जनदमभजम क अक म आज हमारा पररणय हो

कल ही हम लोग भारत क जलए परसथान कर महानाजवक बधगपत की आजञा जसध की लहर मानती ह व सवय उस

पोत-पज को दजकषण पवन क समान भारत म पहचा दगी आह चपा चलोlsquorsquo

चपा न उसक हाथ पकड़ जलए जकसी आकजसमक झरक न एक पलभर क जलए दोनो क अधरो को जमला जदया

सहसा चतनदय होकर चपा न कहा ndashlsquorsquoबधगपत मर जलए सब भजम जमटटी ह सब जल तरल ह सब पवन शीतल ह कोई

जवशि आकाकषा हदय म अजगन क समान परजवजलत नही सब जमलाकर मर जलए एक शनदय ह जपरय नाजवक तम

सवदश लौर जाओ जवभवो का सख भोगन क जलए और मझ छोड़ दो इन जनरीह भोल-भाल परजणयो क दख की

सहानभजत और सवा क जलएlsquorsquo

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lsquorsquoतब म अवशय चला जाऊ गा चपा यहा रहकर म अपन हदय पर अजधकार रख सक ndash इसम सदह ह आह उन

लहरो म मरा जवनाश हो जाएlsquorsquondashमहानाजवक क उचवास म जवकलता थी जिर उसन पछा ndashlsquorsquoतम अकली यहा कया

करोगीrsquorsquo

lsquorsquoपहल जवचार था जक कभी-कभी इस दीप-सतभ पर स आलोक जलाकर अपन जपता की समाजध का इस जल स

अनदविण कर गी जकनदत दखती ह मझ भी इसी म जलना होगा जस आकाशदीपlsquorsquo

एक जदन सवणट-रहसय क परभात म चपा न अपन दीप-सतभ पर स दखा ndash सामजरक नावो की एक शरणी चमपा का

उपकल छोड़कर पजशचम-उततर की ओर महाजल-वयाल क समान सतरण कर रही ह उसकी आखो स आस बहन लग

यह जकतनी ही शताजबदयो पहल की कथा ह चपा आजीवन उस दीप-सतभ म आलोक जलाती रही जकत उसक बाद

भी बहत जदन दवीपजनवासी उस माया-ममता और सनह-सवा की दवी की समाजध-सदश पजा करत थ

एक जदन काल क कठोर हाथो न उस भी अपनी चचलता स जगरा जदया

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गगरीन-(रोज)

(डलहौजी मई 1934) अजञय

दोपहर म उस सन आगन म पर रखत हए मझ ऐसा जान पड़ा मानो उस पर जकसी शाप की छाया मडरा रही हो उसक

वातावरण म कछ ऐसा अकथय असपशय जकनदत जिर भी बोझल और परकमपमय और घना-सा िल रहा था

मरी आहर सनत ही मालती बाहर जनकली मझ दखकर पहचानकर उसकी मरझायी हई मख-मरा तजनक स मीठ

जवसमय स जागी-सी और जिर पवटवत हो गयी उसन कहा lsquolsquoआ जाओrsquorsquo और जबना उततर की परतीकषा जकय भीतर की

ओर चली म भी उसक पीछ हो जलया

भीतर पहचकर मन पछा lsquoव यहा नही हrsquorsquo

lsquolsquoअभी आय नही दफतर म ह थोड़ी दर म आ जाएग कोई डढ़-दो बज आया करत हrsquorsquo

lsquolsquoकब क गय हए हrsquorsquo

lsquolsquoसवर उठत ही चल जात हrsquorsquo

lsquolsquoम lsquoह rsquo कर पछन को हआ lsquolsquoऔर तम इतनी दर कया करती होrsquorsquo पर जिर सोचा lsquoआत ही एकाएक परशन ठीक नही

ह म कमर क चारो ओर दखन लगा

मालती एक पखा उठा लायी और मझ हवा करन लगी मन आपजतत करत हए कहा lsquolsquoनही मझ नही चाजहएrsquorsquo पर

वह नही मानी बोलीlsquolsquoवाह चाजहए कस नही इतनी धप म तो आय हो यहा तोrsquorsquo

मन कहा lsquolsquoअचछा लाओ मझ द दोrsquorsquo

वह शायद lsquoनाrsquo करनवाली थी पर तभी दसर कमर स जशश क रोन की आवाज़ सनकर उसन चपचाप पखा मझ द

जदया और घरनो पर हाथ रककर एक थकी हई lsquoहहrsquo करक उठी और भीतर चली गयी

म उसक जात हए दबल शरीर को दखकर सोचता रहा ndash यह कया ह यह कसी छाया-सी इस घर पर छायी हई ह

मालती मरी दर क ररशत की बहन ह जकनदत उस सखी कहना ही उजचत ह कयोजक हमारा परसपर समबनदध सखय का ही

रहा ह हम बचपन स इकटठ खल ह इकटठ लड़ और जपर ह और हमारी पढ़ाई भी बहत-सी इकटठ ही हई थी और हमार

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वयवहार म सदा सखय की सवचछा और सवचछनददता रही ह वह कभी भराततव क या बड़-छोरपन क बनदधनो म नही

जघरा

म आज कोई चार विट बाद उस दखना आया ह जब मन उस इसस पवट दखा था तब वह लड़की ही थी अब वह

जववाजहता ह एक बचच की मा भी ह इसस कोई पररवतटन उसम आया होगा और यजद आया होगा तो कया यह मन

अभी तक सोचा नही था जकनदत अब उसकी पीठ की ओर दखता हआ म सोच रहा था यह कसी छाया इस घर पर

छायी हई ह और जवशितया मालती पर

मालती बचच को लकर लौर आयी और जिर मझस कछ दर नीच जबछी हई दरी पर बठ गयी मन अपनी करसी

घमाकर कछ उसकी ओर उनदमख होकर पछा lsquolsquoइसका नाम कया हrsquorsquo

मालती न बचच की ओर दखत हए उततर जदया lsquolsquoनाम तो कोई जनजशचत नही जकया वस जररी कहत हrsquorsquo

मन उस बलाया lsquolsquoजररी रीरी आ जाrsquorsquo पर वह अपनी बड़ी-बड़ी आखो स मरी ओर दखता हआ अपनी मा स जचपर

गया और रआसा-सा होकर कहन लगा lsquolsquoउह-उह-उह-ऊrsquorsquo

मालती न जिर उसकी ओर एक नज़र दखा और जिर बाहर आगन की ओर दखन लगी

काफ़ी दर मौन रहा थोड़ी दर तक तो वह मौन आकजसमक ही था जजसम म परतीकषा म था जक मालती कछ पछ जकनदत

उसक बाद एकाएक मझ धयान हआ मालती न कोई बात ही नही की यह भी नही पछा जक म कसा ह कस आया

ह चप बठी ह कया जववाह क दो विट म ही वह बीत जदन भल गयी या अब मझ दर-इस जवशि अनदतर पर-रखना

चाहती ह कयोजक वह जनबाटध सवचछनददता अब तो नही हो सकती पर जिर भी ऐसा मौन जसा अजनबी स भी नही

होना चाजहए

मन कछ जखनदन-सा होकर दसरी ओर दखत हए कहा lsquolsquoजान पड़ता ह तमह मर आन स जवशि परसनदनता नही हई-rsquorsquo

उसन एकाएक चौककर कहा lsquolsquoह rsquorsquo

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यह lsquoह rsquo परशन-सचक था जकनदत इसजलए नही जक मालती न मरी बात सनी नही थी lsquoकवल जवसमय क कारण इसजलए

मन अपनी बात दहरायी नही चप बठ रहा मालती कछ बोली ही नही तब थोड़ी दर बाद मन उसकी ओर दखा वह

एकरक मरी ओर दख रही थी जकनदत मर उधर उनदमख होत ही उसन आख नीची कर ली जिर भी मन दखा उन आखो

म कछ जवजचतर-सा भाव था मानो मालती क भीतर कही कछ चिा कर रहा हो जकसी बीती हई बात को याद करन

की जकसी जबखर हए वायमडल को पनः जगाकर गजतमान करन की जकसी रर हए वयवहार-तनदत को पनरजजीजवत

करन की और चिा म सिल न हो रहा हो वस जस दर स परयोग म न लाय हए अग को वयजि एकाएक उठान लग

और पाय जक वह उठता ही नही ह जचरजवसमजत म मानो मर गया ह उतन कषीण बल स (यदयजप वह सारा परापय बल ह)

उठ नही सकता मझ ऐसा जान पड़ा मानो जकसी जीजवत पराणी क गल म जकसी मत जनदत का तौक डाल जदया गया

हो वह उस उतारकर ि कना चाह पर उतार न पाय

तभी जकसी न जकवाड़ खरखराय मन मालती की ओर दखा पर वह जहली नही जब जकवाड़ दसरी बार खरखराय

गय तब वह जशश को अलग करक उठी और जकवाड़ खोलन गयी

व यानी मालती क पजत आय मन उनदह पहली बार दखा था यदयजप फ़ोरो स उनदह पहचानता था पररचय हआ

मालती खाना तयार करन आगन म चली गयी और हम दोनो भीतर बठकर बातचीत करन लग उनकी नौकरी क बार

म उनक जीवन क बार म उस सथान क बार म और ऐस अनदय जवियो क बार म जो पहल पररचय पर उठा करत ह

एक तरह का सवरकषातमक कवच बनकर

मालती क पजत का नाम ह महशवर वह एक पहाड़ी गाव म सरकारी जडसपनदसरी क डॉकरर ह उसी हजसयत स इन

कवारटरो म रहत ह परातःकाल सात बज जडसपनदसरी चल जात ह और डढ़ या दो बज लौरत ह उसक बाद दोपहर-भर

छटटी रहती ह कवल शाम को एक-दो घर जिर चककर लगान क जलए जात ह जडसपनदसरी क साथ क छोर-स

असपताल म पड़ हए रोजगयो को दखन और अनदय ज़ररी जहदायत करन उनका जीवन भी जबलकल एक जनजदटि ढर

पर चलता ह जनतय वही काम उसी परकार क मरीज वही जहदायत वही नसख वही दवाइया वह सवय उकताय हए ह

और इसीजलए और साथ ही इस भयकर गरमी क कारण वह अपन फ़रसत क समय म भी ससत ही रहत ह

मालती हम दोनो क जलए खाना ल आयी मन पछा lsquolsquoतम नही खोओगी या खा चकीrsquorsquo

महशवर बोल कछ हसकर lsquolsquoवह पीछ खाया करती हrsquorsquo पजत ढाई बज खाना खान आत ह इसजलए पतनी तीन बज

तक भखी बठी रहगी

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महशवर खाना आरमभ करत हए मरी ओर दखकर बोल lsquolsquoआपको तो खान का मज़ा कया ही आयगा ऐस बवकत खा

रह हrsquorsquo

मन उततर जदया lsquolsquoवाह दर स खान पर तो और अचछा लगता ह भख बढ़ी हई होती ह पर शायद मालती बजहन को

कि होगाrsquorsquo

मालती रोककर बोली lsquolsquoऊ ह मर जलए तो यह नयी बात नही ह रोज़ ही ऐसा होता हrsquorsquo

मालती बचच को गोद म जलय हए थी बचचा रो रहा था पर उसकी ओर कोई भी धयान नही द रहा था

मन कहा lsquolsquoयह रोता कयो हrsquorsquo

मालती बोली lsquolsquoहो ही गया ह जचड़जचड़ा-सा हमशा ही ऐसा रहता हrsquorsquo

जिर बचच को डारकर कहा lsquolsquoचपकरrsquorsquo जजसस वह और भी रोन लगा मालती न भजम पर बठा जदया और बोली

lsquolsquoअचछा ल रो लrsquorsquo और रोरी लन आगन की ओर चली गयी

जब हमन भोजन समापत जकया तब तीन बजन वाल थ महशवर न बताया जक उनदह आज जदी असपताल जाना ह यहा

एक-दो जचनदताजनक कस आय हए ह जजनका ऑपरशन करना पड़गा दो की शायद राग कारनी पड़ गगरीन हो गया

ह थोड़ी ही दर म वह चल गय मालती जकवाड़ बनदद कर आयी और मर पास बठन ही लगी थी जक मन कहा lsquolsquoअब

खाना तो खा लो म उतनी दर जररी स खलता ह rsquorsquo

वह बोली lsquolsquoखा लगी मर खान की कौन बात हrsquorsquo जकनदत चली गयी म जररी को हाथ म लकर झलान लगा जजसस

वह कछ दर क जलए शानदत हो गया

दरशायद असपताल म ही तीन खड़क एकाएक म चौका मन सना मालती वही आगन म बठी अपन-आप ही एक

लमबी-सी थकी हई सास क साथ कह रही ह lsquolsquoतीन बज गयrsquorsquo मानो बड़ी तपसया क बाद कोई कायट समपनदन हो गया

हो

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थोड़ी ही दर म मालती जिर आ गयी मन पछा lsquolsquoतमहार जलए कछ बचा भी था सब-कछ तोrsquorsquo

lsquolsquoबहत थाrsquorsquo

lsquolsquoहा बहत था भाजी तो सारी म ही खा गया था वहा बचा कछ होगा नही यो ही रौब तो न जमाओ जक बहत थाrsquorsquo

मन हसकर कहा

मालती मानो जकसी और जविय की बात कहती हई बोली lsquolsquoयहा सबज़ी-वबज़ी तो कछ होती ही नही कोई आता-

जाता ह तो नीच स मगा लत ह मझ आय पनदरह जदन हए ह जो सबज़ी साथ लाय थ वही अभी बरती जा रही ह

मन पछा lsquolsquoनौकर कोई नही हrsquorsquo

lsquolsquoकोई ठीक जमला नही शायद एक-दो जदन म हो जाएrsquorsquo

lsquolsquoबरतन भी तमही माजती होrsquorsquo

lsquolsquoऔर कौनrsquorsquo कहकर मालती कषण-भर आगन म जाकर लौर आयी

मन पछा lsquolsquoकहा गयी थीrsquorsquo

lsquolsquoआज पानी ही नही ह बरतन कस मजगrsquorsquo

lsquolsquoकयो पानी को कया हआrsquorsquo

lsquolsquoरोज़ ही होता ह कभी वकत पर तो आता नही आज शाम को सात बज आएगा तब बरतन मजगrsquorsquo

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lsquolsquoचलो तमह सात बज तक छटटी हईrsquorsquo कहत हए म मन-ही-मन सोचन लगा lsquoअब इस रात क गयारह बज तक काम

करना पड़गा छटटी कया खाक हईrsquo

यही उसन कहा मर पास कोई उततर नही था पर मरी सहायता जररी न की एकाएक जिर रोन लगा और मालती क

पास जान की चिा करन लगा मन उस द जदया

थोड़ी दर जिर मौन रहा मन जब स अपनी नोरबक जनकाली और जपछल जदनो क जलख हए नोर दखन लगा तब

मालती को याद आया जक उसन मर आन का कारण तो पछा नही और बोली lsquolsquoयहा आय कसrsquorsquo

मन कहा ही तो lsquolsquoअचछा अब याद आया तमस जमलन आया था और कया करनrsquorsquo

lsquolsquoतो दो-एक जदन रहोग नrsquorsquo

lsquolsquoनही कल चला जाऊ गा ज़ररी जाना हrsquorsquo

मालती कछ नही बोली कछ जखनदन सी हो गयी म जिर नोरबक की तरफ़ दखन लगा

थोड़ी दर बाद मझ भी धयान हआ म आया तो ह मालती स जमलन जकनदत यहा वह बात करन को बठी ह और म पढ़

रहा ह पर बात भी कया की जाय मझ ऐसा लग रहा था जक इस घर पर जो छाया जघरी हई ह वह अजञात रहकर भी

मानो मझ भी वश म कर रही ह म भी वसा ही नीरस जनजीव-सा हो रहा ह जस-हा जस यह घर जस मालती

मन पछा lsquolsquoतम कछ पढ़ती-जलखती नहीrsquorsquo म चारो और दखन लगा जक कही जकताब दीख पड़

lsquolsquoयहाrsquorsquo कहकर मालती थोड़ा-सा हस दी वह हसी कह रही थी lsquoयहा पढ़न को ह कयाrsquo

मन कहा lsquolsquoअचछा म वापस जाकर ज़रर कछ पसतक भजगाrsquorsquo और वाताटलाप जिर समापत हो गया

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थोड़ी दर बाद मालती न जिर पछा lsquolsquoआय कस हो लारी मrsquorsquo

lsquolsquoपदलrsquorsquo

lsquolsquoइतनी दर बड़ी जहममत कीrsquorsquo

lsquolsquoआजखर तमस जमलन आया ह rsquorsquo

lsquolsquoऐस ही आय होrsquorsquo

lsquolsquoनही कली पीछ आ रहा ह सामान लकर मन सोचा जबसतरा ल ही चलrsquorsquo

lsquolsquoअचछा जकया यहा तो बसrsquorsquo कहकर मालती चप रह गयी जिर बोली lsquolsquoतब तम थक होग लर जाओrsquorsquo

lsquolsquoनही जबलकल नही थकाrsquorsquo

lsquolsquoरहन भी दो थक नही भला थक हrsquorsquo

lsquolsquoऔर तम कया करोगीrsquorsquo

lsquolsquoम बरतन माज रखती ह पानी आएगा तो धल जाएगrsquorsquo

मन कहा lsquolsquoवाहrsquorsquo कयोजक और कोई बात मझ सझी नही

थोड़ी दर म मालती उठी और चली गयी जररी को साथ लकर तब म भी लर गया और छत की ओर दखन लगा

मर जवचारो क साथ आगन स आती हई बरतनो क जघसन की खन-खन धवजन जमलकर एक जवजचतर एक-सवर उतपनदन

करन लगी जजसक कारण मर अग धीर-धीर ढील पड़न लग म ऊ घन लगा

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एकाएक वह एक-सवर रर गया ndash मौन हो गया इसस मरी तनदरा भी ररी म उस मौन म सनन लगा

चार खड़क रह थ और इसी का पहला घरा सनकर मालती रक गयी थी वही तीन बजवाली बात मन जिर दखी

अबकी बार उगर रप म मन सना मालती एक जबलकल अनजचछक अनभजतहीन नीरस यनदतरवत ndash वह भी थक हए

यनदतर क स सवर म कह रही ह lsquolsquoचार बज गयrsquorsquo मानो इस अनजचछक समय को जगनन म ही उसका मशीन-त य जीवन

बीतता हो वस ही जस मोरर का सपीडो मीरर यनदतरवत फ़ासला नापता जाता ह और यनदतरवत जवशरानदत सवर म कहता

ह (जकसस) जक मन अपन अजमत शनदयपथ का इतना अश तय कर जलया न जान कब कस मझ नीद आ गयी

तब छह कभी क बज चक थ जब जकसी क आन की आहर स मरी नीद खली और मन दखा जक महशवर लौर आय ह

और उनक साथ ही जबसतर जलय हए मरा कली म मह धोन को पानी मागन को ही था जक मझ याद आया पानी नही

होगा मन हाथो स मह पोछत-पोछत महशवर स पछा lsquolsquoआपन बड़ी दर कीrsquorsquo

उनदहोन जकजचत गलाजन-भर सवर म कहा lsquolsquoहा आज वह गगरीन का आपरशन करना ही पड़ा एक कर आया ह दसर

को एमबलनदस म बड़ असपताल जभजवा जदया हrsquorsquo

मन पछाrsquorsquo गगरीन कस हो गयाrsquorsquo

lsquolsquoएक कारा चभा था उसी स हो गया बड़ लापरवाह लोग होत ह यहा कrsquorsquo

मन पछा lsquolsquoयहा आपको कस अचछ जमल जात ह आय क जलहाज स नही डॉकररी क अभयास क जलएrsquorsquo

बोल lsquolsquoहा जमल ही जात ह यही गगरीन हर दसर-चौथ जदन एक कस आ जाता ह नीच बड़ असपतालो म भीrsquorsquo

मालती आगन स ही सन रही थी अब आ गयी lsquolsquoबोली lsquolsquoहा कस बनात दर कया लगती ह कारा चभा था इस पर

राग कारनी पड़ यह भी कोई डॉकररी ह हर दसर जदन जकसी की राग जकसी की बाह कार आत ह इसी का नाम ह

अचछा अभयासrsquorsquo

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महशवर हस बोल lsquolsquoन कार तो उसकी जान गवाएrsquorsquo

lsquolsquoहा पहल तो दजनया म कार ही नही होत होग आज तक तो सना नही था जक कारो क चभन स मर जात हrsquorsquo

महशवर न उततर नही जदया मसकरा जदय मालती मरी ओर दखकर बोली lsquolsquoऐस ही होत ह डॉकरर सरकारी असपताल

ह न कया परवाह ह म तो रोज़ ही ऐसी बात सनती ह अब कोई मर-मर जाए तो खयाल ही नही होता पहल तो रात-

रात-भर नीद नही आया करती थीrsquorsquo

तभी आगन म खल हए नल न कहा ndash जरप जरप जरप-जरप-जरप-जरप

मालती न कहा lsquolsquoपानीrsquorsquo और उठकर चली गयी खनखनाहर स हमन जाना बरतन धोए जान लग ह

जररी महशवर की रागो क सहार खड़ा मरी ओर दख रहा था अब एकाएक उनदह छोड़कर मालती की ओर जखसकता

हआ चला महशवर न कहा lsquolsquoउधर मत जाrsquorsquo और उस गोद म उठा जलया वह मचलन और जचला-जचलाकर रोन

लगा

महशवर बोल lsquolsquoअब रो-रोकर सो जाएगा तभी घर म चन होगीrsquorsquo

मन पछा lsquolsquoआप लोग भीतर ही सोत ह गरमी तो बहत होती हrsquorsquo

lsquolsquoहोन को तो मचछर भी बहत होत ह पर यह लोह क पलग उठाकर बाहर कौन ल जाय अब क नीच जाएग तो

चारपाइया ल आएगrsquorsquo जिर कछ रककर बोल lsquolsquoआज तो बाहर ही सोएग आपक आन का इतना लाभ ही होगाrsquorsquo

जररी अभी तक रोता ही जा रहा था महशवर न उस एक पलग पर जबठा जदया और पलग बाहर खीचन लग मन कहा

lsquolsquoम मदद करता ह rsquorsquo और दसरी ओर स पलग उठाकर जनकलवा जदय

अब हम तीनो महशवर जररी और म दो पलगो पर बठ गय और वाताटलाप क जलए उपयि जविय न पाकर उस कमी

को छपान क जलए जररी स खलन लग बाहर आकर वह कछ चप हो गया था जकनदत बीच-बीच म जस एकाएक कोई

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भला हआ कततटवय याद करक रो उठता या और जिर एकदम चप हो जाता था और कभी-कभी हम हस पड़त थ या

महशवर उसक बार म कछ बात कह दत थ

मालती बरतन धो चकी थी जब वह उनदह लकर आगन क एक ओर रसोई क छपपर की ओर चली तब महशवर न

कहा lsquolsquoथोड़-स आम लाया ह वह भी धो लनाrsquorsquo

lsquolsquoकहा हrsquorsquo

lsquolsquoअगीठी पर रख ह कागज़ म जलपर हएrsquorsquo

मालती न भीतर जाकर आम उठाय और अपन आचल म डाल जलय जजस कागज़ म व जलपर हए थ वह जकसी परान

अखबार का रकड़ा था मालती चलती-चलती सनदधया क उस कषण परकाश म उसी को पढ़ती जा रही थी वह नल क

पास जाकर खड़ी उस पढ़ती रही जब दोनो ओर पढ़ चकी तब एक लमबी सास लकर उस ि ककर आम धोन लगी

मझ एकाएक याद आयाबहत जदनो की बात थी जब हम अभी सकल म भरती हए ही थ जब हमारा सबस बड़ा

सख सबस बड़ी जवजय थी हाजज़री हो चकन क बाद चोरी स कलास स जनकल भागना और सकल स कछ दरी पर

आम क बगीच म पड़ो पर चढ़कर कचची आजमया तोड़-तोड़ खाना मझ याद आया कभी जब म भाग आता और

मालती नही आ पाती थी तब म भी जखनदन-मन लौर आया करता था

मालती कछ नही पढ़ती थी उसक माता-जपता तग थ एक जदन उसक जपता न उस एक पसतक लाकर दी और कहा जक

इसक बीस पज रोज़ पढ़ा करो हफत भर बाद म दख जक इस समापत कर चकी हो नही तो मार-मार कर चमड़ी उधड़

दगा मालती न चपचाप जकताब ल ली पर कया उसन पढ़ी वह जनतय ही उसक दस पनदन बीस पज िाड़ कर ि क

दती अपन खल म जकसी भाजत फ़कट न पड़न दती जब आठव जदन उसक जपता न पछा lsquolsquoजकताब समापत कर लीrsquorsquo

तो उततर जदयाlsquolsquoहा कर लीrsquorsquo जपता न कहा lsquolsquoलाओ म परशन पछगा तो चप खड़ी रही जपता न कहा तो उदधत सवर

म बोली lsquolsquoजकताब मन िाड़ कर ि क दी ह म नही पढ़ गीrsquorsquo

उसक बाद वह बहत जपरी पर वह अलग बात ह इस समय म यही सोच रहा था जक वह उदधत और चचल मालती

आज जकतनी सीधी हो गयी ह जकतनी शानदत और एक अखबार क रकड़ को तरसती ह यह कया यह

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तभी महशवर न पछा lsquolsquoरोरी कब बनगीrsquorsquo

lsquolsquoबस अभी बनाती ह rsquorsquo

पर अबकी बार जब मालती रसोई की ओर चली तब जररी की कततटवय-भावना बहत जवसतीणट हो गयी वह मालती की

ओर हाथ बढ़ा कर रोन लगा और नही माना मालती उस भी गोद म लकर चली गयी रसोई म बठ कर एक हाथ स

उस थपकन और दसर स कई छोर-छोर जडबब उठाकर अपन सामन रखन लगी

और हम दोनो चपचाप राजतर की और भोजन की और एक-दसर क कछ कहन की और न जान जकस-जकस नदयनता

की पजतट की परतीकषा करन लग

हम भोजन कर चक थ और जबसतरो पर लर गय थ और जररी सो गया था मालती पलग क एक ओर मोमजामा

जबछाकर उस उस पर जलरा गयी थी वह सो गया था पर नीद म कभी-कभी चौक उठता था एक बार तो उठकर बठ

भी गया था पर तरनदत ही लर गया

मन महशवर स पछा lsquolsquoआप तो थक होग सो जाइयrsquorsquo

वह बोल lsquolsquoथक तो आप अजधक होग अठारह मील पदल चल कर आय हrsquorsquo जकनदत उनक सवर न मानो जोड़

जदया थका तो म भी ह rsquorsquo

म चप रहा थोड़ी दर म जकसी अपर सजञा न मझ बताया वह ऊ घ रह ह

तब लगभग साढ़ दस बज थ मालती भोजन कर रही थी

म थोड़ी दर मालती की ओर दखता रहा वह जकसी जवचार म ndash यदयजप बहत गहर जवचार म नही लीन हई धीर-धीर

खाना खा रही थी जिर म इधर-उधर जखसक कर पर आराम स होकर आकाश की ओर दखन लगा

पजणटमा थी आकाश अनभर था

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मन दखा-उस सरकारी कवारटर की जदन म अतयनदत शषक और नीरस लगन वाली सलर की छत भी चादनी म चमक रही

ह अतयनदत शीतलता और जसनगधता स छलक रही ह मानो चजनदरका उन पर स बहती हई आ रही हो झर रही हो

मन दखा पवन म चीड़ क वकष गरमी स सख कर मरमल हए चीड़ क वकष धीर-धीर गा रह हो कोई राग जो

कोमल ह जकनदत करण नही अशाजनदतमय ह जकनदत उदवगमय नही

मन दखा परकाश स धधल नील आकाश क तर पर जो चमगादड़ नीरव उड़ान स चककर कार रह ह व भी सनददर

दीखत ह

मन दखा ndash जदन-भर की तपन अशाजनदत थकान दाह पहाड़ो म स भाप स उठकर वातावरण म खोय जा रह ह जजस

गरहण करन क जलए पवटत-जशशओ न अपनी चीड़ वकषरपी भजाए आकाश की ओर बढ़ा रखी ह

पर यह सब मन ही दखा अकल मन महशवर ऊ घ रह थ और मालती उस समय भोजन स जनवतत होकर दही जमान क

जलए जमटटी का बरतन गरम पानी स धो रही थी और कह रही थीlsquolsquoअभी छटटी हई जाती हrsquorsquo और मर कहन पर ही

जक lsquolsquoगयारह बजन वाल हrsquorsquo धीर स जसर जहलाकर जता रही थी जक रोज़ ही इतन बज जात ह मालती न वह सब-

कछ नही दखा मालती का जीवन अपनी रोज़ की जनयत गजत स बहा जा रहा था और एक चनदरमा की चजनदरका क

जलए एक ससार क जलए रकन को तयार नही था

चादनी म जशश कसा लगता ह इस अलस जजजञासा स मन जररी की ओर दखा और वह एकाएक मानो जकसी

शशवोजचत वामता स उठा और जखसक कर पलग स नीच जगर पड़ा और जचला-जचला कर रोन लगा महशवर न

चौककर कहा ndash lsquolsquoकया हआrsquorsquo म झपर कर उस उठान दौड़ा मालती रसोई स बाहर जनकल आयी मन उस lsquoखरrsquo

शबद को याद करक धीर स करणा-भर सवर म कहा lsquolsquoचोर बहत लग गयी बचार कrsquorsquo

यह सब मानो एक ही कषण म एक ही जकरया की गजत म हो गया

मालती न रोत हए जशश को मझस लन क जलए हाथ बढ़ात हए कहा lsquolsquoइसक चोर लगती ही रहती ह रोज़ ही जगर

पड़ता हrsquorsquo

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एक छोर कषण-भर क जलए म सतबध हो गया जिर एकाएक मर मन न मर समच अजसततव न जवरोह क सवर म कहा ndash

मर मन न भीतर ही बाहर एक शबद भी नही जनकला ndash lsquolsquoमा यवती मा यह तमहार हदय को कया हो गया ह जो तम

अपन एकमातर बचच क जगरन पर ऐसी बात कह सकती हो ndash और यह अभी जब तमहारा सारा जीवन तमहार आग

हrsquorsquo

और तब एकाएक मन जाना जक वह भावना जमथया नही ह मन दखा जक सचमच उस करमब म कोई गहरी भयकर

छाया घर कर गयी ह उनक जीवन क इस पहल ही यौवन म घन की तरह लग गयी ह उसका इतना अजभनदन अग हो

गयी ह जक व उस पहचानत ही नही उसी की पररजध म जघर हए चल जा रह ह इतना ही नही मन उस छाया को दख

भी जलया

इतनी दर म पवटवत शाजनदत हो गयी थी महशवर जिर लर कर ऊ घ रह थ जररी मालती क लर हए शरीर स जचपर कर

चप हो गया था यदयजप कभी एक-आध जससकी उसक छोर-स शरीर को जहला दती थी म भी अनभव करन लगा था

जक जबसतर अचछा-सा लग रहा ह मालती चपचाप ऊपर आकाश म दख रही थी जकनदत कया चजनदरका को या तारो

को

तभी गयारह का घरा बजा मन अपनी भारी हो रही पलक उठा कर अकसमात जकसी असपि परतीकषा स मालती की

ओर दखा गयारह क पहल घर की खड़कन क साथ ही मालती की छाती एकाएक ििोल की भाजत उठी और धीर-

धीर बठन लगी और घरा-धवजन क कमपन क साथ ही मक हो जानवाली आवाज़ म उसन कहा lsquolsquoगयारह बज गयrsquorsquo

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उसन किा था

चरधर शमाट गलरी

बड़-बड़ शहरो क इकक-गाड़ीवालो की जबान क कोड़ो स जजनकी पीठ जछल गई ह और कान पक गए ह उनस

हमारी पराथटना ह जक अमतसर क बबकारटवालो की बोली का मरहम लगाव जब बड़-बड़ शहरो की चौड़ी सड़को पर

घोड़ की पीठ चाबक स धनत हए इककवाल कभी घोड़ की नानी स अपना जनकर-सबध जसथर करत ह कभी राह

चलत पदलो की आखो क न होन पर तरस खात ह कभी उनक परो की अगजलयो क पोरो को चीथ कर अपन-ही को

सताया हआ बतात ह और ससार-भर की गलाजन जनराशा और कषोभ क अवतार बन नाक की सीध चल जात ह तब

अमतसर म उनकी जबरादरीवाल तग चककरदार गजलयो म हर-एक लडढीवाल क जलए ठहर कर सबर का समर उमड़ा

कर बचो खालसा जी हरो भाई जी ठहरना भाई आन दो लाला जी हरो बाछा कहत हए सिद ि रो खचचरो और

बततको गनदन और खोमच और भारवालो क जगल म स राह खत ह कया मजाल ह जक जी और साहब जबना सन

जकसी को हरना पड़ यह बात नही जक उनकी जीभ चलती नही पर मीठी छरी की तरह महीन मार करती हई यजद

कोई बजढ़या बार-बार जचतौनी दन पर भी लीक स नही हरती तो उनकी बचनावली क य नमन ह - हर जा जीण

जोजगए हर जा करमावाजलए हर जा पतता पयाररए बच जा लबी वाजलए समजि म इनक अथट ह जक त जीन योगय ह

त भागयोवाली ह पतरो को पयारी ह लबी उमर तर सामन ह त कयो मर पजहए क नीच आना चाहती ह बच जा

ऐस बबकारटवालो क बीच म हो कर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दकान पर आ जमल उसक बालो

और इसक ढील सथन स जान पड़ता था जक दोनो जसख ह वह अपन मामा क कश धोन क जलए दही लन आया था

और यह रसोई क जलए बजड़या दकानदार एक परदसी स गथ रहा था जो सर-भर गील पापड़ो की गडडी को जगन

जबना हरता न था

तर घर कहा ह

मगर म और तर

माझ म यहा कहा रहती ह

अतरजसह की बठक म व मर मामा होत ह

म भी मामा क यहा आया ह उनका घर गर बजार म ह

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इतन म दकानदार जनबरा और इनका सौदा दन लगा सौदा ल कर दोनो साथ-साथ चल कछ दर जा कर लड़क न

मसकरा कर पछा - तरी कड़माई हो गई इस पर लड़की कछ आख चढ़ा कर धत कह कर दौड़ गई और लड़का मह

दखता रह गया

दसर-तीसर जदन सबजीवाल क यहा दधवाल क यहा अकसमात दोनो जमल जात महीना-भर यही हाल रहा दो-तीन

बार लड़क न जिर पछा तरी कड़माई हो गई और उततर म वही धत जमला एक जदन जब जिर लड़क न वस ही हसी

म जचढ़ान क जलए पछा तो लड़की लड़क की सभावना क जवरदध बोली - हा हो गई

कब

कल दखत नही यह रशम स कढ़ा हआ साल लड़की भाग गई लड़क न घर की राह ली रासत म एक लड़क को

मोरी म ढकल जदया एक छावड़ीवाल की जदन-भर की कमाई खोई एक कतत पर पतथर मारा और एक गोभीवाल क

ठल म दध उड़ल जदया सामन नहा कर आती हई जकसी वषणवी स रकरा कर अध की उपाजध पाई तब कही घर

पहचा

2

राम-राम यह भी कोई लड़ाई ह जदन-रात खदको म बठ हडजडया अकड़ गई लजधयाना स दस गना जाड़ा और मह

और बरि ऊपर स जपडजलयो तक कीचड़ म धस हए ह जमीन कही जदखती नही - घर-दो-घर म कान क परद

िाड़नवाल धमाक क साथ सारी खदक जहल जाती ह और सौ-सौ गज धरती उछल पड़ती ह इस गबी गोल स बच तो

कोई लड़ नगरकोर का जलजला सना था यहा जदन म पचीस जलजल होत ह जो कही खदक स बाहर सािा या

कहनी जनकल गई तो चराक स गोली लगती ह न मालम बईमान जमटटी म लर हए ह या घास की पजततयो म जछप रहत

लहनाजसह और तीन जदन ह चार तो खदक म जबता ही जदए परसो ररलीि आ जाएगी और जिर सात जदन की छटटी

अपन हाथो झरका कर ग और पर-भर खा कर सो रहग उसी जिरगी मम क बाग म - मखमल का-सा हरा घास ह

िल और दध की विाट कर दती ह लाख कहत ह दाम नही लती कहती ह तम राजा हो मर म क को बचान आए

हो

चार जदन तक एक पलक नीद नही जमली जबना िर घोड़ा जबगड़ता ह और जबना लड़ जसपाही मझ तो सगीन चढ़ा कर

माचट का हकम जमल जाय जिर सात जरमनो को अकला मार कर न लौर तो मझ दरबार साहब की दहली पर मतथा

रकना नसीब न हो पाजी कही क कलो क घोड़ - सगीन दखत ही मह िाड़ दत ह और पर पकड़न लगत ह यो

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अधर म तीस-तीस मन का गोला ि कत ह उस जदन धावा जकया था - चार मील तक एक जमटन नही छोडा था पीछ

जनरल न हर जान का कमान जदया नही तो -

नही तो सीध बजलटन पहच जात कयो सबदार हजाराजसह न मसकरा कर कहा -लड़ाई क मामल जमादार या नायक

क चलाए नही चलत बड़ अिसर दर की सोचत ह तीन सौ मील का सामना ह एक तरि बढ़ गए तो कया होगा

सबदार जी सच ह लहनजसह बोला - पर कर कया हडजडयो-हडजडयो म तो जाड़ा धस गया ह सयट जनकलता नही

और खाई म दोनो तरि स चब की बावजलयो क स सोत झर रह ह एक धावा हो जाय तो गरमी आ जाय

उदमी उठ जसगड़ी म कोल डाल वजीरा तम चार जन बालजरया ल कर खाई का पानी बाहर ि को महाजसह शाम

हो गई ह खाई क दरवाज का पहरा बदल ल - यह कहत हए सबदार सारी खदक म चककर लगान लग

वजीराजसह पलरन का जवदिक था बारी म गदला पानी भर कर खाई क बाहर ि कता हआ बोला - म पाधा बन

गया ह करो जमटनी क बादशाह का तपटण इस पर सब जखलजखला पड़ और उदासी क बादल िर गए

लहनाजसह न दसरी बारी भर कर उसक हाथ म द कर कहा - अपनी बाड़ी क खरबजो म पानी दो ऐसा खाद का

पानी पजाब-भर म नही जमलगा

हा दश कया ह सवगट ह म तो लड़ाई क बाद सरकार स दस घमा जमीन यहा माग लगा और िलो क बर लगाऊ गा

लाड़ी होरा को भी यहा बला लोग या वही दध जपलानवाली िरगी मम -

चप कर यहावालो को शरम नही

दश-दश की चाल ह आज तक म उस समझा न सका जक जसख तबाख नही पीत वह जसगरर दन म हठ करती ह

ओठो म लगाना चाहती हऔर म पीछ हरता ह तो समझती ह जक राजा बरा मान गया अब मर म क क जलए लड़गा

नही

अचछा अब बोधजसह कसा ह

अचछा ह

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जस म जानता ही न होऊ रात-भर तम अपन कबल उस उढ़ात हो और आप जसगड़ी क सहार गजर करत हो उसक

पहर पर आप पहरा द आत हो अपन सख लकड़ी क तखतो पर उस सलात हो आप कीचड़ म पड़ रहत हो कही तम

न माद पड़ जाना जाड़ा कया ह मौत ह और जनमोजनया स मरनवालो को मरबब नही जमला करत

मरा डर मत करो म तो बलल की खडड क जकनार मर गा भाई कीरतजसह की गोदी पर मरा जसर होगा और मर हाथ

क लगाए हए आगन क आम क पड़ की छाया होगी

वजीराजसह न तयोरी चढ़ा कर कहा - कया मरन-मारन की बात लगाई ह मर जमटनी और तरक हा भाइयो कस -

जदली शहर त जपशोर न जाजदए

कर लणा लौगा दा बपार मजड़ए

कर लणा नाड़दा सौदा अजड़ए -

(ओय) लाणा चराका कदए न

कदद बणाया व मजदार गोररए

हण लाणा चराका कदए न

कौन जानता था जक दाजढ़योवाल घरबारी जसख ऐसा लचचो का गीत गाएग पर सारी खदक इस गीत स गज उठी और

जसपाही जिर ताज हो गए मानो चार जदन स सोत और मौज ही करत रह हो

3

दोपहर रात गई ह अधरा ह सनदनारा छाया हआ ह बोधाजसह खाली जबसकरो क तीन जरनो पर अपन दोनो कबल

जबछा कर और लहनाजसह क दो कबल और एक बरानकोर ओढ़ कर सो रहा ह लहनाजसह पहर पर खड़ा हआ ह

एक आख खाई क मह पर ह और एक बोधाजसह क दबल शरीर पर बोधाजसह कराहा

कयो बोधा भाई कया ह

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पानी जपला दो

लहनाजसह न करोरा उसक मह स लगा कर पछा - कहो कस हो पानी पी कर बोधा बोला - क पनी छर रही ह रोम-

रोम म तार दौड़ रह ह दात बज रह ह

अचछा मरी जरसी पहन लो

और तम

मर पास जसगड़ी ह और मझ गमी लगती ह पसीना आ रहा ह

ना म नही पहनता चार जदन स तम मर जलए -

हा याद आई मर पास दसरी गरम जरसी ह आज सबर ही आई ह जवलायत स बन-बन कर भज रही ह मम गर

उनका भला कर यो कह कर लहना अपना कोर उतार कर जरसी उतारन लगा

सच कहत हो

और नही झठ यो कह कर नाही करत बोधा को उसन जबरदसती जरसी पहना दी और आप खाकी कोर और जीन

का करता भर पहन-कर पहर पर आ खड़ा हआ मम की जरसी की कथा कवल कथा थी

आधा घरा बीता इतन म खाई क मह स आवाज आई - सबदार हजाराजसह

कौन लपरन साहब हकम हजर - कह कर सबदार तन कर िौजी सलाम करक सामन हआ

दखो इसी दम धावा करना होगा मील भर की दरी पर परब क कोन म एक जमटन खाई ह उसम पचास स जयादा

जमटन नही ह इन पड़ो क नीच-नीच दो खत कार कर रासता ह तीन-चार घमाव ह जहा मोड़ ह वहा परह जवान खड़

कर आया ह तम यहा दस आदमी छोड़ कर सब को साथ ल उनस जा जमलो खदक छीन कर वही जब तक दसरा

हकम न जमल डर रहो हम यहा रहगा

जो हकम

चपचाप सब तयार हो गए बोधा भी कबल उतार कर चलन लगा तब लहनाजसह न उस रोका लहनाजसह आग हआ

तो बोधा क बाप सबदार न उगली स बोधा की ओर इशारा जकया लहनाजसह समझ कर चप हो गया पीछ दस

आदमी कौन रह इस पर बड़ी हजजत हई कोई रहना न चाहता था समझा-बझा कर सबदार न माचट जकया लपरन

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साहब लहना की जसगड़ी क पास मह िर कर खड़ हो गए और जब स जसगरर जनकाल कर सलगान लग दस जमनर

बाद उनदहोन लहना की ओर हाथ बढा कर कहा - लो तम भी जपयो

आख मारत-मारत लहनाजसह सब समझ गया मह का भाव जछपा कर बोला - लाओ साहब हाथ आग करत ही

उसन जसगड़ी क उजाल म साहब का मह दखा बाल दख तब उसका माथा ठनका लपरन साहब क परटटयो वाल

बाल एक जदन म ही कहा उड़ गए और उनकी जगह कजदयो स कर बाल कहा स आ गए शायद साहब शराब जपए

हए ह और उनदह बाल करवान का मौका जमल गया ह लहनाजसह न जाचना चाहा लपरन साहब पाच विट स उसकी

रजजमर म थ

कयो साहब हमलोग जहदसतान कब जाएग

लड़ाई खतम होन पर कयो कया यह दश पसद नही

नही साहब जशकार क व मज यहा कहा याद ह पारसाल नकली लड़ाई क पीछ हम आप जगाधरी जजल म जशकार

करन गए थ -

हा हा -

वही जब आप खोत पर सवार थ और और आपका खानसामा अबद ला रासत क एक मजदर म जल चढ़ान को रह

गया था बशक पाजी कही का - सामन स वह नील गाय जनकली जक ऐसी बड़ी मन कभी न दखी थी और आपकी

एक गोली कध म लगी और पटठ म जनकली ऐस अिसर क साथ जशकार खलन म मजा ह कयो साहब जशमल स

तयार होकर उस नील गाय का जसर आ गया था न आपन कहा था जक रजमर की मस म लगाएग

हा पर मन वह जवलायत भज जदया -

ऐस बड़-बड़ सीग दो-दो िर क तो होग

हा लहनाजसह दो िर चार इच क थ तमन जसगरर नही जपया

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पीता ह साहब जदयासलाई ल आता ह - कह कर लहनाजसह खदक म घसा अब उस सदह नही रहा था उसन झरपर

जनशचय कर जलया जक कया करना चाजहए

अधर म जकसी सोनवाल स वह रकराया

कौन वजीराजसह

हा कयो लहना कया कयामत आ गई जरा तो आख लगन दी होती

4

होश म आओ कयामत आई ह और लपरन साहब की वदी पहन कर आई ह

कया

लपरन साहब या तो मार गए ह या कद हो गए ह उनकी वदी पहन कर यह कोई जमटन आया ह सबदार न इसका मह

नही दखा मन दखा और बात की ह सौहरा साि उदट बोलता ह पर जकताबी उदट और मझ पीन को जसगरर जदया ह

तो अब

अब मार गए धोखा ह सबदार होरा कीचड़ म चककर कारत जिरग और यहा खाई पर धावा होगा उठो एक काम

करो परन क परो क जनशान दखत-दखत दौड़ जाओ अभी बहत दर न गए होग

सबदार स कहो एकदम लौर आए खदक की बात झठ ह चल जाओ खदक क पीछ स जनकल जाओ पतता तक न

खड़क दर मत करो

हकम तो यह ह जक यही -

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ऐसी तसी हकम की मरा हकम - जमादार लहनाजसह जो इस वि यहा सब स बड़ा अिसर ह उसका हकम ह म

लपरन साहब की खबर लता ह

पर यहा तो तम आठ ह

आठ नही दस लाख एक-एक अकाजलया जसख सवा लाख क बराबर होता ह चल जाओ

लौर कर खाई क महान पर लहनाजसह दीवार स जचपक गया उसन दखा जक लपरन साहब न जब स बल क बराबर

तीन गोल जनकाल तीनो को जगह-जगह खदक की दीवारो म घसड़ जदया और तीनो म एक तार सा बाध जदया तार

क आग सत की एक गतथी थी जजस जसगड़ी क पास रखा बाहर की तरि जा कर एक जदयासलाई जला कर गतथी पर

रखन -

इतन म जबजली की तरह दोनो हाथो स उरी बदक को उठा कर लहनाजसह न साहब की कहनी पर तान कर द मारा

धमाक क साथ साहब क हाथ स जदयासलाई जगर पड़ी लहनाजसह न एक कदा साहब की गदटन पर मारा और साहब

ऑख मीन गौटट कहत हए जचतत हो गए लहनाजसह न तीनो गोल बीन कर खदक क बाहर ि क और साहब को

घसीर कर जसगड़ी क पास जलराया जबो की तलाशी ली तीन-चार जलिाि और एक डायरी जनकाल कर उनदह अपनी

जब क हवाल जकया

साहब की मछाट हरी लहनाजसह हस कर बोला - कयो लपरन साहब जमजाज कसा ह आज मन बहत बात सीखी

यह सीखा जक जसख जसगरर पीत ह यह सीखा जक जगाधरी क जजल म नीलगाए होती ह और उनक दो िर चार इच

क सीग होत ह यह सीखा जक मसलमान खानसामा मजतटयो पर जल चढ़ात ह और लपरन साहब खोत पर चढ़त ह

पर यह तो कहो ऐसी साि उदट कहा स सीख आए हमार लपरन साहब तो जबन डम क पाच लफज भी नही बोला

करत थ

लहना न पतलन क जबो की तलाशी नही ली थी साहब न मानो जाड़ स बचन क जलए दोनो हाथ जबो म डाल

लहनाजसह कहता गया - चालाक तो बड़ हो पर माझ का लहना इतन बरस लपरन साहब क साथ रहा ह उस चकमा

दन क जलए चार आख चाजहए तीन महीन हए एक तरकी मौलवी मर गाव आया था औरतो को बचच होन क

ताबीज बारता था और बचचो को दवाई दता था चौधरी क बड़ क नीच मजा जबछा कर हकका पीता रहता था और

कहता था जक जमटनीवाल बड़ पजडत ह वद पढ़-पढ़ कर उसम स जवमान चलान की जवदया जान गए ह गौ को नही

मारत जहदसतान म आ जाएग तो गोहतया बद कर दग मडी क बजनयो को बहकाता जक डाकखान स रपया जनकाल

लो सरकार का राजय जानवाला ह डाक-बाब पोह राम भी डर गया था मन म लाजी की दाढ़ी मड़ दी थी और

गाव स बाहर जनकाल कर कहा था जक जो मर गाव म अब पर रकखा तो -

साहब की जब म स जपसतौल चला और लहना की जाघ म गोली लगी इधर लहना की हनरी माजरटन क दो िायरो न

साहब की कपाल-जकरया कर दी धड़ाका सन कर सब दौड़ आए

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बोधा जचलया - कया ह

लहनाजसह न उस यह कह कर सला जदया जक एक हड़का हआ कतता आया था मार जदया और औरो स सब हाल कह

जदया सब बदक ल कर तयार हो गए लहना न सािा िाड़ कर घाव क दोनो तरि परटटया कस कर बाधी घाव मास

म ही था परटटयो क कसन स लह जनकलना बद हो गया

इतन म सततर जमटन जचला कर खाई म घस पड़ जसकखो की बदको की बाढ़ न पहल धाव को रोका दसर को रोका

पर यहा थ आठ (लहनाजसह तक-तक कर मार रहा था - वह खड़ा था और और लर हए थ) और व सततर अपन

मदाट भाइयो क शरीर पर चढ़ कर जमटन आग घस आत थ थोड स जमजनरो म व - अचानक आवाज आई वाह गरजी

की ितह वाह गरजी का खालसा और धड़ाधड़ बदको क िायर जमटनो की पीठ पर पड़न लग ऐन मौक पर जमटन

दो चककी क पारो क बीच म आ गए पीछ स सबदार हजाराजसह क जवान आग बरसात थ और सामन लहनाजसह क

साजथयो क सगीन चल रह थ पास आन पर पीछवालो न भी सगीन जपरोना शर कर जदया

एक जकलकारी और - अकाल जसकखा दी िौज आई वाह गरजी दी ितह वाह गरजी दा खालसा सत शरी

अकालपरख और लड़ाई खतम हो गई जतरसठ जमटन या तो खत रह थ या कराह रह थ जसकखो म परह क पराण

गए सबदार क दाजहन कध म स गोली आरपार जनकल गई लहनाजसह की पसली म एक गोली लगी उसन घाव को

खदक की गीली मटटी स पर जलया और बाकी का सािा कस कर कमरबद की तरह लपर जलया जकसी को खबर न

हई जक लहना को दसरा घाव - भारी घाव लगा ह

लड़ाई क समय चाद जनकल आया था ऐसा चाद जजसक परकाश स ससकत-कजवयो का जदया हआ कषयी नाम साथटक

होता ह और हवा ऐसी चल रही थी जसी वाणभटट की भािा म दतवीणोपदशाचायट कहलाती वजीराजसह कह रहा

था जक कस मन-मन भर रास की भजम मर बरो स जचपक रही थी जब म दौडा-दौडा सबदार क पीछ गया था सबदार

लहनाजसह स सारा हाल सन और कागजात पा कर व उसकी तरत-बजदध को सराह रह थ और कह रह थ जक त न होता

तो आज सब मार जात

इस लड़ाई की आवाज तीन मील दाजहनी ओर की खाईवालो न सन ली थी उनदहोन पीछ रलीिोन कर जदया था वहा

स झरपर दो डाकरर और दो बीमार ढोन की गाजड़या चली जो कोई डढ़ घर क अदर-अदर आ पहची िीड

असपताल नजदीक था सबह होत-होत वहा पहच जाएग इसजलए मामली पटटी बाध कर एक गाड़ी म घायल जलराए

गए और दसरी म लाश रकखी गई सबदार न लहनाजसह की जाघ म पटटी बधवानी चाही पर उसन यह कह कर राल

जदया जक थोड़ा घाव ह सबर दखा जाएगा बोधाजसह जवर म बराट रहा था वह गाड़ी म जलराया गया लहना को छोड़

कर सबदार जात नही थ यह दख लहना न कहा - तमह बोधा की कसम ह और सबदारनीजी की सौगध ह जो इस

गाड़ी म न चल जाओ

और तम

मर जलए वहा पहच कर गाड़ी भज दना और जमटन मरदो क जलए भी तो गाजड़या आती होगी मरा हाल बरा नही ह

दखत नही म खड़ा ह वजीराजसह मर पास ह ही

अचछा पर -

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बोधा गाड़ी पर लर गया भला आप भी चढ़ जाओ सजनए तो सबदारनी होरा को जचिी जलखो तो मरा मतथा रकना

जलख दना और जब घर जाओ तो कह दना जक मझस जो उसन कहा था वह मन कर जदया

गाजड़या चल पड़ी थी सबदार न चढ़त-चढ़त लहना का हाथ पकड़ कर कहा - तन मर और बोधा क पराण बचाए ह

जलखना कसा साथ ही घर चलग अपनी सबदारनी को त ही कह दना उसन कया कहा था

अब आप गाड़ी पर चढ़ जाओ मन जो कहा वह जलख दना और कह भी दना

गाड़ी क जात लहना लर गया वजीरा पानी जपला द और मरा कमरबद खोल द तर हो रहा ह

5

मतय क कछ समय पहल समजत बहत साि हो जाती ह जनदम-भर की घरनाए एक-एक करक सामन आती ह सार

दशयो क रग साि होत ह समय की धध जबकल उन पर स हर जाती ह

लहनाजसह बारह विट का ह अमतसर म मामा क यहा आया हआ ह दहीवाल क यहा सबजीवाल क यहा हर कही

उस एक आठ विट की लड़की जमल जाती ह जब वह पछता ह तरी कड़माई हो गई तब धत कह कर वह भाग जाती

ह एक जदन उसन वस ही पछा तो उसन कहा - हा कल हो गई दखत नही यह रशम क िलोवाला साल सनत ही

लहनाजसह को दःख हआ करोध हआ कयो हआ

वजीराजसह पानी जपला द

पचीस विट बीत गए अब लहनाजसह न 77 रिस म जमादार हो गया ह उस आठ विट की कनदया का धयान ही न रहा

न-मालम वह कभी जमली थी या नही सात जदन की छटटी ल कर जमीन क मकदम की परवी करन वह अपन घर गया

वहा रजजमर क अिसर की जचिी जमली जक िौज लाम पर जाती ह िौरन चल आओ साथ ही सबदार हजाराजसह

की जचिी जमली जक म और बोधाजसह भी लाम पर जात ह लौरत हए हमार घर होत जाना साथ ही चलग सबदार

का गाव रासत म पड़ता था और सबदार उस बहत चाहता था लहनाजसह सबदार क यहा पहचा

जब चलन लग तब सबदार बढ म स जनकल कर आया बोला - लहना सबदारनी तमको जानती ह बलाती ह जा

जमल आ लहनाजसह भीतर पहचा सबदारनी मझ जानती ह कब स रजजमर क कवारटरो म तो कभी सबदार क घर

क लोग रह नही दरवाज पर जा कर मतथा रकना कहा असीस सनी लहनाजसह चप

मझ पहचाना

नही

तरी कड़माई हो गई - धत - कल हो गई - दखत नही रशमी बरोवाला साल -अमतसर म -

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भावो की रकराहर स मछाट खली करवर बदली पसली का घाव बह जनकला

वजीरा पानी जपला - उसन कहा था

सवपन चल रहा ह सबदारनी कह रही ह - मन तर को आत ही पहचान जलया एक काम कहती ह मर तो भाग िर

गए सरकार न बहादरी का जखताब जदया ह लायलपर म जमीन दी ह आज नमक-हलाली का मौका आया ह पर

सरकार न हम तीजमयो की एक घघररया परन कयो न बना दी जो म भी सबदारजी क साथ चली जाती एक बरा ह

िौज म भती हए उस एक ही बरस हआ उसक पीछ चार और हए पर एक भी नही जजया सबदारनी रोन लगी अब

दोनो जात ह मर भाग तमह याद ह एक जदन तागवाल का घोड़ा दहीवाल की दकान क पास जबगड़ गया था तमन

उस जदन मर पराण बचाए थ आप घोड़ की लातो म चल गए थ और मझ उठा कर दकान क तखत पर खड़ा कर जदया

था ऐस ही इन दोनो को बचाना यह मरी जभकषा ह तमहार आग आचल पसारती ह

रोती-रोती सबदारनी ओबरी म चली गई लहना भी आस पोछता हआ बाहर आया

वजीराजसह पानी जपला -उसन कहा था

लहना का जसर अपनी गोद म रकख वजीराजसह बठा ह जब मागता ह तब पानी जपला दता ह आध घर तक लहना

चप रहा जिर बोला - कौन कीरतजसह

वजीरा न कछ समझ कर कहा - हा

भइया मझ और ऊ चा कर ल अपन पटट पर मरा जसर रख ल वजीरा न वस ही जकया

हा अब ठीक ह पानी जपला द बस अब क हाड़ म यह आम खब िलगा चचा-भतीजा दोनो यही बठ कर आम

खाना जजतना बड़ा तरा भतीजा ह उतना ही यह आम ह जजस महीन उसका जनदम हआ था उसी महीन म मन इस

लगाया था वजीराजसह क आस रप-रप रपक रह थ

कछ जदन पीछ लोगो न अखबारो म पढा -

रास और बलजजयम - 68 वी सची - मदान म घावो स मरा - न 77 जसख राइिस जमादार लहनाजसह

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ईदगाि

मशी परमचद

रमजान क पर तीस रोजो क बाद ईद आई ह जकतना मनोहर जकतना सहावना परभाव ह वकषो पर अजीब हररयाली ह

खतो म कछ अजीब रौनक ह आसमान पर कछ अजीब लाजलमा ह आज का सयट दखो जकतना पयारा जकतना

शीतल ह यानी ससार को ईद की बधाई द रहा ह गॉव म जकतनी हलचल ह ईदगाह जान की तयाररया हो रही ह

जकसी क करत म बरन नही ह पड़ोस क घर म सई-धागा लन दौड़ा जा रहा ह जकसी क जत कड़ हो गए ह उनम तल

डालन क जलए तली क घर पर भागा जाता ह जदी-जदी बलो को सानी-पानी द द ईदगाह स लौरत-लौरत दोपहर

हो जाएगी तीन कोस का पदल रासता जिर सकड़ो आदजमयो स जमलना-भरना दोपहर क पहल लौरना असभव ह

लड़क सबस जयादा परसनदन ह जकसी न एक रोजा रखा ह वह भी दोपहर तक जकसी न वह भी नही लजकन ईदगाह

जान की खशी उनक जहसस की चीज ह रोज बड़-बढ़ो क जलए होग इनक जलए तो ईद ह रोज ईद का नाम ररत थ

आज वह आ गई अब जदी पड़ी ह जक लोग ईदगाह कयो नही चलत इनदह गहसथी जचताओ स कया परयोजन सवयो

क जलए दध और शककर घर म ह या नही इनकी बला स य तो सवया खाएग वह कया जान जक अबबाजान कयो

बदहवास चौधरी कायमअली क घर दौड़ जा रह ह उनदह कया खबर जक चौधरी आख बदल ल तो यह सारी ईद महरटम

हो जाए उनकी अपनी जबो म तो कबर का धन भरा हआ ह बार-बार जब स अपना खजाना जनकालकर जगनत ह

और खश होकर जिर रख लत ह महमद जगनता ह एक-दो दस-बारह उसक पास बारह पस ह मोहनजसन क पास

एक दो तीन आठ नौ परह पस ह इनदही अनजगनती पसो म अनजगनती चीज लाएग- जखलौन जमठाइया जबगल गद

और जान कया-कया और सबस जयादा परसनदन ह हाजमद वह चार-पाच साल का गरीब सरत दबला-पतला लड़का

जजसका बाप गत विट हज की भर हो गया और मा न जान कयो पीली होती-होती एक जदन मर गई जकसी को पता कया

बीमारी ह कहती तो कौन सनन वाला था जदल पर जो कछ बीतती थी वह जदल म ही सहती थी ओर जब न सहा

गया तो ससार स जवदा हो गई अब हाजमद अपनी बढ़ी दादी अमीना की गोद म सोता ह और उतना ही परसनदन ह

उसक अबबाजान रपय कमान गए ह बहत-सी थजलया लकर आएग अममीजान अलहा जमया क घर स उसक जलए

बड़ी अचछी-अचछी चीज लान गई ह इसजलए हाजमद परसनदन ह आशा तो बड़ी चीज ह और जिर बचचो की आशा

उनकी कपना तो राई का पवटत बना लती ह हाजमद क पाव म जत नही ह जसर पर एक परानी-धरानी रोपी ह

जजसका गोरा काला पड़ गया ह जिर भी वह परसनदन ह जब उसक अबबाजान थजलया और अममीजान जनयमत लकर

आएगी तो वह जदल स अरमान जनकाल लगा तब दखगा मोहजसन नर और सममी कहा स उतन पस जनकालग

अभाजगन अमीना अपनी कोठरी म बठी रो रही ह आज ईद का जदन उसक घर म दाना नही आज आजबद होता तो

कया इसी तरह ईद आती ओर चली जाती इस अधकार और जनराशा म वह डबी जा रही ह जकसन बलाया था इस

जनगोड़ी ईद को इस घर म उसका काम नही लजकन हाजमद उस जकसी क मरन-जीन क कया मतल उसक अदर

परकाश ह बाहर आशा जवपजतत अपना सारा दलबल लकर आए हाजमद की आनद-भरी जचतबन उसका जवधवस कर

दगी हाजमद भीतर जाकर दादी स कहता ह-तम डरना नही अममा म सबस पहल आऊगा जबकल न डरना अमीना

का जदल कचोर रहा ह गाव क बचच अपन-अपन बाप क साथ जा रह ह हाजमद का बाप अमीना क जसवा और कौन

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ह उस कस अकल मल जान द उस भीड़-भाड़ स बचचा कही खो जाए तो कया हो नही अमीना उस यो न जान

दगी ननदही-सी जान तीन कोस चलगा कस पर म छाल पड़ जाएग जत भी तो नही ह वह थोड़ी-थोड़ी दर पर उस

गोद म ल लती लजकन यहा सवया कौन पकाएगा पस होत तो लौरत-लोरत सब सामगरी जमा करक चरपर बना

लती यहा तो घरो चीज जमा करत लगग माग का ही तो भरोसा ठहरा उस जदन िहीमन क कपड़ जसल थ आठ

आन पस जमल थ उस उठनदनी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद क जलए लजकन कल गवालन जसर

पर सवार हो गई तो कया करती हाजमद क जलए कछ नही ह तो दो पस का दध तो चाजहए ही अब तो कल दो आन

पस बच रह ह तीन पस हाजमद की जब म पाच अमीना क बरव म यही तो जबसात ह और ईद का तयौहार अला

ही बड़ा पर लगाए धोबन और नाइन और महतरानी और चजड़हाररन सभी तो आएगी सभी को सवया चाजहए और

थोड़ा जकसी को आखो नही लगता जकस-जकस स मह चराएगी और मह कयो चराए साल-भर का तयोहार ह जजदगी

खररयत स रह उनकी तकदीर भी तो उसी क साथ ह बचच को खदा सलामत रख य जदन भी कर जाएग गाव स

मला चला और बचचो क साथ हाजमद भी जा रहा था कभी सबक सब दौड़कर आग जनकल जात जिर जकसी पड़ क

नीच खड़ होकर साथ वालो का इतजार करत यह लोग कयो इतना धीर-धीर चल रह ह हाजमद क परो म तो जस पर

लग गए ह वह कभी थक सकता ह शहर का दामन आ गया सड़क क दोनो ओर अमीरो क बगीच ह पककी

चारदीवारी बनी हई ह पड़ो म आम और लीजचया लगी हई ह कभी-कभी कोई लड़का ककड़ी उठाकर आम पर

जनशान लगाता ह माली अदर स गाली दता हआ जनकलता ह लड़क वहा स एक िलाग पर ह खब हस रह ह

माली को कसा उल बनाया ह बड़ी-बड़ी इमारत आन लगी यह अदालत ह यह कालज ह यह कलब घर ह इतन

बड़ कालज म जकतन लड़क पढ़त होग सब लड़क नही ह जी बड़-बड़ आदमी ह सच उनकी बड़ी-बड़ी मछ ह

इतन बड़ हो गए अभी तक पढ़त जात ह न जान कब तक पढ़ग ओर कया करग इतना पढ़कर हाजमद क मदरस म

दो-तीन बड़-बड़ लड़क ह जबकल तीन कौड़ी क रोज मार खात ह काम स जी चरान वाल इस जगह भी उसी तरह

क लोग होग ओर कया कलब-घर म जाद होता ह सना ह यहा मदो की खोपजड़या दौड़ती ह और बड़-बड़ तमाश

होत ह पर जकसी को अदर नही जान दत और वहा शाम को साहब लोग खलत ह बड़-बड़ आदमी खलत ह मछो-

दाढ़ी वाल और मम भी खलती ह सच हमारी अममा को यह द दो कया नाम ह बर तो उस पकड़ ही न सक घमात

ही लढ़क जाए महमद न कहा- हमारी अममीजान का तो हाथ कापन लग अला कसम मोहजसन बोल- चलो मनो

आरा पीस डालती ह जरा-सा बर पकड़ लगी तो हाथ कापन लगग सौकड़ो घड़ पानी रोज जनकालती ह पाच घड़

तो तरी भस पी जाती ह जकसी मम को एक घड़ा पानी भरना पड़ तो आखो तक अधरी आ जाए महमद- लजकन

दौड़ती तो नही उछल-कद तो नही सकती मोहजसन- हॉ उछल-कद तो नही सकती लजकन उस जदन मरी गाय खल

गई थी और चौधरी क खत म जा पड़ी थी अममा इतना तज दौड़ी जक म उनदह न पा सका सच आग चल हलवाइयो

की दकान शर हई आज खब सजी हई थी इतनी जमठाइया कौन खाता दखो न एक-एक दकान पर मनो होगी सना

ह रात को जजनदनात आकर खरीद ल जात ह अबबा कहत थ जक आधी रात को एक आदमी हर दकान पर जाता ह

और जजतना माल बचा होता ह वह तलवा लता ह और सचमच क रपय दता ह जबकल ऐस ही रपय हाजमद को

यकीन न आया- ऐस रपय जजनदनात को कहा स जमल जाएगी मोहजसन न कहा- जजनदनात को रपय की कया कमी जजस

खजान म चाह चल जाए लोह क दरवाज तक उनदह नही रोक सकत जनाब आप ह जकस िर म हीर-जवाहरात तक

उनक पास रहत ह जजसस खश हो गए उस रोकरो जवाहरात द जदए अभी यही बठ ह पाच जमनर म कलकतता पहच

जाए हाजमद न जिर पछा- जजनदनात बहत बड़-बड़ होत ह मोहजसन- एक-एक जसर आसमान क बराबर होता ह जी

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जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका जसर आसमान स जा लग मगर चाह तो एक लोर म घस जाए हाजमद- लोग उनदह

कस खश करत होग कोई मझ यह मतर बता द तो एक जजनन को खश कर ल मोहजसन- अब यह तो न जानता

लजकन चौधरी साहब क काब म बहत-स जजनदनात ह कोई चीज चोरी जाए चौधरी साहब उसका पता लगा दग ओर

चोर का नाम बता दग जमराती का बछवा उस जदन खो गया था तीन जदन हरान हए कही न जमला तब झख मारकर

चौधरी क पास गए चौधरी न तरनदत बता जदया मवशीखान म ह और वही जमला जजनदनात आकर उनदह सार जहान की

खबर द जात ह अब उसकी समझ म आ गया जक चौधरी क पास कयो इतना धन ह और कयो उनका इतना सममान ह

आग चल यह पजलस लाइन ह यही सब काजनसजरजबल कवायद करत ह ररन िाय िो रात को बचार घम-घमकर

पहरा दत ह नही चोररया हो जाए मोहजसन न परजतवाद जकया- यह काजनसजरजबल पहरा दत ह तभी तम बहत जानत

हो अजी हजरत यह चोरी करत ह शहर क जजतन चोर-डाक ह सब इनस महल म जाकर lsquoजागत रहो जात

रहोrsquoपकारत ह तभी इन लोगो क पास इतन रपय आत ह मर माम एक थान म काजनसजरजबल ह बरस रपया महीना

पात ह लजकन पचास रपय घर भजत ह अला कसम मन एक बार पछा था जक माम आप इतन रपय कहा स पात

ह हसकर कहन लग- बरा अलाह दता ह जिर आप ही बोल- हम लोग चाह तो एक जदन म लाखो मार लाए हम

तो इतना ही लत ह जजसम अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए हाजमद न पछा- यह लोग चोरी करवात ह

तो कोई इनदह पकड़ता नही मोहजसन उसकी नादानी पर दया जदखाकर बोला अर पागल इनदह कौन पकड़गा

पकड़न वाल तो यह लोग खद ह लजकन अलाह इनदह सजा भी खब दता ह हराम का माल हराम म जाता ह थोड़

ही जदन हए माम क घर म आग लग गई सारी लई-पजी जल गई एक बरतन तक न बचा कई जदन पड़ क नीच सोए

अला कसम पड़ क नीच जिरन जान कहा स एक सौ कजट लाए तो बरतन-भाड़ आए हाजमद- एक सौ तो पचास स

जयादा होत ह lsquoकहा पचास कहा एक सौ पचास एक थली-भर होता ह सौ तो दो थजलयो म भी न आए अब बसती

घनी होन लगी ईदगाह जान वालो की रोजलया नजर आन लगी एक स एक भड़कील वसतर पहन हए कोई इकक-ताग

पर सवार कोई मोरर पर सभी इतर म बस सभी क जदलो म उमग गरामीणो का यह छोरा-सा दल अपनी जवपनदनता स

बखबर सतोि ओर धयट म मगन चला जा रहा था बचचो क जलए नगर की सभी चीज अनोखी थी जजस चीज की

ओर ताकत ताकत ही रह जात और पीछ स आनट की आवाज होन पर भी न चतत हाजमद तो मोरर क नीच जात-

जात बचा सहसा ईदगाह नजर आई ऊपर इमली क घन वकषो की छाया ह नाच पकका िशट ह जजस पर जाजम

जढछा हआ ह और रोजदारो की पजिया एक क पीछ एक न जान कहा वक चली गई ह पककी जगत क नीच तक

जहा जाजम भी नही ह नए आन वाल आकर पीछ की कतार म खड़ हो जात ह आग जगह नही ह यहा कोई धन

और पद नही दखता इसलाम की जनगाह म सब बराबर ह इन गरामीणो न भी वज जकया ओर जपछली पजि म खड़ हो

गए जकतना सनददर सचालन ह जकतनी सनददर वयवसथा लाखो जसर एक साथ जसजद म झक जात ह जिर सबक सब

एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ झकत ह और एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ

झकत ह और एक साथ खड़ हो जात ह कई बार यही जकरया होती ह जस जबजली की लाखो बजततया एक साथ परदीपत

हो और एक साथ बझ जाए और यही गरम चलता रह जकतना अपवट दशय था जजसकी सामजहक जकरयाए जवसतार

और अनतता हदय को शरदधा गवट और आतमानद स भर दती थी मानो भराततव का एक सतर इन समसत आतमाओ को

एक लड़ी म जपरोए हए ह नमाज खतम हो गई लोग आपस म गल जमल रह ह तब जमठाई और जखलौन की दकान पर

धावा होता ह गरामीणो का यह दल इस जविय म बालको स कम उतसाही नही ह यह दखो जहडोला ह एक पसा दकर

चढ़ जाओ कभी आसमान पर जात हए मालम होग कभी जमीन पर जगरत हए यह चखी ह लकड़ी क हाथी घोड़

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ऊ र छड़ो म लरक हए ह एक पसा दकर बठ जाओ और पचचीस चककरो का मजा लो महमद और मोहजसन ओर

नर ओर सममी इन घोड़ो ओर ऊरो पर बठत ह हाजमद दर खड़ा ह तीन ही पस तो उसक पास ह अपन कोि का एक

जतहाई जरा-सा चककर खान क जलए नही द सकता सब चजखटयो स उतरत ह अब जखलौन लग अधर दकानो की

कतार लगी हई ह तरह-तरह क जखलौन ह- जसपाही और गजररया राज ओर वकी जभशती और धोजबन और साध

वाह जकतत सनददर जखलोन ह अब बोला ही चाहत ह महमद जसपाही लता ह खाकी वदी और लाल पगड़ीवाला

कध पर बदक रख हए मालम होता ह अभी कवायद जकए चला आ रहा ह मोहजसन को जभशती पसद आया कमर

झकी हई ह ऊपर मशक रख हए ह मशक का मह एक हाथ स पकड़ हए ह जकतना परसनदन ह शायद कोई गीत गा रहा

ह बस मशक स पानी अड़ला ही चाहता ह नर को वकील स परम ह कसी जवदवतता ह उसक मख पर काला चोगा

नीच सिद अचकन अचकन क सामन की जब म घड़ी सनहरी जजीर एक हाथ म कानन का पौथा जलए हए मालम

होता ह अभी जकसी अदालत स जजरह या बहस जकए चल आ रह ह यह सब दो-दो पस क जखलौन ह हाजमद क

पास कल तीन पस ह इतन महग जखलौन वह कस ल जखलौना कही हाथ स छर पड़ तो चर-चर हो जाए जरा पानी

पड़ तो सारा रग घल जाए ऐस जखलौन लकर वह कया करगा जकस काम क मोहजसन कहता ह- मरा जभशती रोज

पानी द जाएगा साझ-सबर महमद- और मरा जसपाही घर का पहरा दगा कोई चोर आएगा तो िौरन बदक स िर कर

दगा नर- ओर मरा वकील खब मकदमा लड़गा सममी- ओर मरी धोजबन रोज कपड़ धोएगी हाजमद जखलौनो की

जनदा करता ह- जमटटी ही क तो ह जगर तो चकनाचर हो जाए लजकन ललचाई हई आखो स जखलौनो को दख रहा ह

और चाहता ह जक जरा दर क जलए उनदह हाथ म ल सकता उसक हाथ अनायास ही लपकत ह लजकन लड़क इतन

तयागी नही होत ह जवशिकर जब अभी नया शौक ह हाजमद ललचता रह जाता ह जखलौन क बाद जमठाइया आती

ह जकसी न रवजड़या ली ह जकसी न गलाबजामन जकसी न सोहन हलवा मज स खा रह ह हाजमद जबरादरी स पथक

ह अभाग क पास तीन पस ह कयो नही कछ लकर खाता ललचाई आखो स सबक ओर दखता ह मोहजसन कहता

ह- हाजमद रवड़ी ल जा जकतनी खशबदार ह हाजमद को सदह हआ य कवल करर जवनोद ह मोहजसन इतना उदार नही

ह लजकन यह जानकर भी वह उसक पास जाता ह मोहजसन दोन स एक रवड़ी जनकालकर हाजमद की ओर बढ़ाता ह

हाजमद हाथ िलाता ह मोहजसन रवड़ी अपन मह म रख लता ह महमद नर ओर सममी खब ताजलया बजा-बजाकर

हसत ह हाजमद जखजसया जाता ह मोहजसन- अचछा अबकी जरर दग हाजमद अलाह कसम ल जा हाजमद- रख

रहो कया मर पास पस नही ह सममी- तीन ही पस तो ह तीन पस म कया-कया लोग महमद- हमस गलाबजामन ल

जाओ हाजमद मोहजमन बदमाश ह हाजमद- जमठाई कौन बड़ी नमत ह जकताब म इसकी जकतनी बराइया जलखी ह

मोहजसन- लजकन जदन म कह रह होग जक जमल तो खा ल अपन पस कयो नही जनकालत महमद- इस समझत ह

इसकी चालाकी जब हमार सार पस खचट हो जाएग तो हम ललचा-ललचाकर खाएगा जमठाइयो क बाद कछ दकान

लोह की चीजो की कछ जगलर और कछ नकली गहनो की लड़को क जलए यहा कोई आकिटण न था व सब आग

बढ़ जात ह हाजमद लोह की दकान पर रक जात ह कई जचमर रख हए थ उस खयाल आया दादी क पास जचमरा

नही ह तब स रोजरया उतारती ह तो हाथ जल जाता ह अगर वह जचमरा ल जाकर दादी को द द तो वह जकतना

परसनदन होगी जिर उनकी ऊगजलया कभी न जलगी घर म एक काम की चीज हो जाएगी जखलौन स कया िायदा

वयथट म पस खराब होत ह जरा दर ही तो खशी होती ह जिर तो जखलौन को कोई आख उठाकर नही दखता यह तो

घर पहचत-पहचत रर-िर बराबर हो जाएग जचमरा जकतन काम की चीज ह रोजरया तव स उतार लो च ह म सक

लो कोई आग मागन आए तो चरपर च ह स आग जनकालकर उस द दो अममा बचारी को कहा िरसत ह जक

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बाजार आए और इतन पस ही कहा जमलत ह रोज हाथ जला लती ह हाजमद क साथी आग बढ़ गए ह सबील पर

सबक सब शबटत पी रह ह दखो सब कतन लालची ह इतनी जमठाइया ली मझ जकसी न एक भी न दी उस पर कहत

ह मर साथ खलो मरा यह काम करो अब अगर जकसी न कोई काम करन को कहा तो पछगा खाए जमठाइया आप

मह सड़गा िोड़-िजनदसया जनकलगी आप ही जबान चरोरी हो जाएगी तब घर स पस चराएग और मार खाएग

जकताब म झठी बात थोड़ ही जलखी ह मरी जबान कयो खराब होगी अममा जचमरा दखत ही दौड़कर मर हाथ स ल

लगी और कहगी- मरा बचचा अममा क जलए जचमरा लाया ह जकतना अचछा लड़का ह इन लोगो क जखलौन पर

कौन इनदह दआए दगा बड़ो का दआए सीध अलाह क दरबार म पहचती ह और तरत सनी जाती ह म भी इनस

जमजाज कयो सह म गरीब सही जकसी स कछ मागन तो नही जात आजखर अबबाजान कभी न कभी आएग अममा

भी आएगी ही जिर इन लोगो स पछगा जकतन जखलौन लोग एक-एक को रोकररयो जखलौन द और जदखा ह जक

दोसतो क साथ इस तरह का सलक जकया जात ह यह नही जक एक पस की रवजड़या ली तो जचढ़ा-जचढ़ाकर खान लग

सबक सब हसग जक हाजमद न जचमरा जलया ह हस मरी बला स उसन दकानदार स पछा- यह जचमरा जकतन का ह

दकानदार न उसकी ओर दखा और कोई आदमी साथ न दखकर कहा- तमहार काम का नही ह जी lsquoजबकाऊ ह जक

नहीrsquolsquoजबकाऊ कयो नही ह और यहा कयो लाद लाए हrsquolsquoतो बतात कयो नही क पस का हrsquolsquoछ पस लगगlsquoहाजमद

का जदल बठ गया lsquoठीक-ठीक पॉ च पस लगग लना हो लो नही चलत बनोlsquoहाजमद न कलजा मजबत करक कहा

तीन पस लोग यह कहता हआ व आग बढ़ गया जक दकानदार की घड़जकया न सन लजकन दकानदार न घड़जकया

नही दी बलाकर जचमरा द जदया हाजमद न उस इस तरह कध पर रखा मानो बदक ह और शान स अकड़ता हआ

सजगयो क पास आया जरा सन सबक सब कया-कया आलोचनाए करत ह मोहजसन न हसकर कहा- यह जचमरा कयो

लाया पगल इस कया करगा हाजमद न जचमर को जमीन पर परकर कहा- जरा अपना जभशती जमीन पर जगरा दो सारी

पसजलया चर-चर हो जाए बचा की महमद बोला- तो यह जचमरा कोई जखलौना ह हाजमद- जखलौना कयो नही ह

अभी कनदध पर रखा बदक हो गई हाथ म ल जलया िकीरो का जचमरा हो गया चाह तो इसस मजीर का काम ल

सकता ह एक जचमरा जमा द तो तम लोगो क सार जखलौनो की जान जनकल जाए तमहार जखलौन जकतना ही जोर

लगाए मर जचमर का बाल भी बाका नही कर सकत मरा बहादर शर ह जचमरा सममी न खजरी ली थी परभाजवत

होकर बोला- मरी खजरी स बदलोग दो आन की ह हाजमद न खजरी की ओर उपकषा स दखा- मरा जचमरा चाह तो

तमहारी खजरी का पर िाड़ डाल बस एक चमड़ की जझली लगा दी ढब-ढब बोलन लगी जरा-सा पानी लग जाए

तो खतम हो जाए मरा बहादर जचमरा आग म पानी म आधी म तिान म बराबर डरा खड़ा रहगा जचमर न सभी को

मोजहत कर जलया अब पस जकसक पास धर ह जिर मल स दर जनकल आए ह नौ कब क बज गए धप तज हो रही

ह घर पहचन की जदी हो रही ह बाप स जजद भी कर तो जचमरा नही जमल सकता हाजमद ह बड़ा चालाक

इसीजलए बदमाश न अपन पस बचा रख थ अब बालको क दो दल हो गए ह मोहजसन महमद सममी और नर एक

तरि ह हाजमद अकला दसरी तरि शासतरथट हो रहा ह सममी तो जवधमी हा गया दसर पकष स जा जमला लजकन

मोहजसन महमद और नर भी हाजमद स एक-एक दो-दो साल बड़ होन पर भी हाजमद क आघातो स आतजकत हो उठ

ह उसक पास नदयाय का बल ह और नीजत की शजि एक ओर जमटटी ह दसरी ओर लोहा जो इस वि अपन को

िौलाद कह रहा ह वह अजय ह घातक ह अगर कोई शर आ जाए जमया जभशती क छकक छर जाए जो जमया

जसपाही जमटटी की बदक छोड़कर भाग वकील साहब की नानी मर जाए चोग म मह जछपाकर जमीन पर लर जाए

मगर यह जचमरा यह बहादर यह रसतम-जहद लपककर शर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आख जनकाल

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लगा मोहजसन न एड़ी-चोरी का जोर लगाकर कहा- अचछा पानी तो नही भर सकता हाजमद न जचमर को सीधा

खड़ा करक कहा- जभशती को एक डार बताएगा तो दौड़ा हआ पानी लाकर उसक दवार पर जछड़कन लगगा मोहजसन

परासत हो गया पर महमद न कमक पहचाई- अगर बचा पकड़ जाए तो अदालम म बध-बध जिरग तब तो वकील

साहब क परो पड़ोग हाजमद इस परबल तकट का जवाब न द सका उसन पछा- हम पकड़न कौन आएगा नर न

अकड़कर कहा- यह जसपाही बदकवाला हाजमद न मह जचढ़ाकर कहा- यह बचार हम बहादर रसतम-जहद को

पकड़ग अचछा लाओ अभी जरा कशती हो जाए इसकी सरत दखकर दर स भागग पकड़ग कया बचार मोहजसन को

एक नई चोर सझ गई- तमहार जचमर का मह रोज आग म जलगा उसन समझा था जक हाजमद लाजवाब हो जाएगा

लजकन यह बात न हई हाजमद न तरत जवाब जदया- आग म बहादर ही कदत ह जनाब तमहार यह वकील जसपाही

और जभशती लजडयो की तरह घर म घस जाएग आग म वह काम ह जो यह रसतम-जहनदद ही कर सकता ह महमद न

एक जोर लगाया-वकील साहब करसी-मज पर बठग तमहारा जचमरा तो बावरचीखान म जमीन पर पड़ा रहन क जसवा

और कया कर सकता ह इस तकट न सममी और नर को भी सजी कर जदया जकतन जठकान की बात कही ह पटठ न

जचमरा बावरचीखान म पड़ा रहन क जसवा और कया कर सकता ह हाजमद को कोई िड़कता हआ जवाब न सझा तो

उसन धाधली शर की- मरा जचमरा बावरचीखान म नही रहगा वकील साहब कसी पर बठ ग तो जाकर उनदह जमीन

पर परक दगा और उनका कानन उनक पर म डाल दगा बात कछ बनी नही खाल गाली-गलौज थी लजकन कानन

को पर म डालनवाली बात छा गई ऐसी छा गई जक तीनो सरमा मह ताकत रह गए मानो कोई धलचा कान-कौआ

जकसी गडवाल कनकौए को कार गया हो कानन मह स बाहर जनकलन वाली चीज ह उसको पर क अदर डाल जदया

जाना बतकी-सी बात होन पर भी कछ नयापन रखती ह हाजमद न मदान मार जलया उसका जचमरा रसतम-जहनदद ह

अब इसम मोहजसन महमद नर सममी जकसी को भी आपजतत नही हो सकती जवजता को हारनवालो स जो सतकार

जमलना सवभाजवक ह वह हाजमद को भी जमल औरो न तीन-तीन चार-चार आन पस खचट जकए पर कोई काम की

चीज न ल सक हाजमद न तीन पस म रग जमा जलया सच ही तो ह जखलौनो का कया भरोसा रर-िर जाएगी हाजमद

का जचमरा तो बना रहगा बरसो सजध की शत तय होन लगी मोहजसन न कहा- जरा अपना जचमरा दो हम भी दख

तम हमार जभशती लकर दखो महमद और नर न भी अपन-अपन जखलौन पश जकए हाजमद को इन शतो को मानन म

कोई आपजतत न थी जचमरा बारी-बारी स सबक हाथ म गया और उनक जखलौन बारी-बारी स हाजमद क हाथ म

आए जकतन खबसरत जखलौन ह हाजमद न हारन वालो क ऑस पोछ- म तमह जचढ़ा रहा था सच यह जचमरा भला

इन जखलौनो की कया बराबर करगा मालम होता ह अब बोल अब बोल लजकन मोहजसन की पारी को इस जदलास

स सतोि नही होता जचमर का जसका खब बठ गया ह जचपका हआ जरकर अब पानी स नही छर रहा ह मोहजसन-

लजकन इन जखलौनो क जलए कोई हम दआ तो न दगा महमद- दआ को जलए जिरत हो उर मार न पड़ अममा

जरर कहगी जक मल म यही जमटटी क जखलौन जमल हाजमद को सवीकार करना पड़ा जक जखलौनो को दखकर जकसी

की मा इतनी खश न होगी जजतनी दादी जचमर को दखकर होगी तीन पसो ही म तो उस सब-कछ करना था ओर उन

पसो क इस उपायो पर पछताव की जबकल जररत न थी जिर अब तो जचमरा रसतम-जहनदद ह ओर सभी जखलौनो

का बादशाह रासत म महमद को भख लगी उसक बाप न कल खान को जदए महमद न कवल हाजमद को साझी

बनाया उसक अनदय जमतर मह ताकत रह गए यह उस जचमर का परसाद था गयारह बज गाव म हलचल मच गई

मलवाल आ गए मोहजसन की छोरी बहन दौड़कर जभशती उसक हाथ स छीन जलया और मार खशी क जा उछली तो

जमया जभशती नीच आ रह और सरलोक जसधार इस पर भाई-बहन म मार-पीर हई दानो खब रोए उसकी अममा यह

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शोर सनकर जबगड़ी और दोनो को ऊपर स दो-दो चार और लगाए जमया नर क वकील का अत उनक परजतषठानकल

इसस जयादा गौरवमय हआ वकील जमीन पर या ताक पर हो नही बठ सकता उसकी मयाटदा का जवचार तो करना ही

होगा दीवार म खजरया गाड़ी गई उन पर लकड़ी का एक पररा रखा गया परर पर कागज का कालीन जबदाया गया

वकील साहब राजा भोज की भाजत जसहासन पर जवराज नर न उनदह पखा झलना शर जकया आदालतो म खर की

ररटटया और जबजली क पख रहत ह कया यहा मामली पखा भी न हो कानन की गमी जदमाग पर चढ़ जाएगी जक नही

बास का पखा आया ओर नर हवा करन लग मालम नही पख की हवा स या पख की चोर स वकील साहब

सवगटलोक स मतयलोक म आ रह और उनका मारी का चोला मारी म जमल गया जिर बड़ जोर-शोर स मातम हआ

और वकील साहब की अजसथ घर पर डाल दी गई अब रहा महमद का जसपाही उस चरपर गाव का पहरा दन का

चाजट जमल गया लजकन पजलस का जसपाही कोई साधारण वयजि तो नही जो अपन परो चल वह पालकी पर चलगा

एक रोकरी आई उसम कछ लाल रग क िर-परान जचथड़ जबछाए गए जजसम जसपाही साहब आराम स लर नर न

यह रोकरी उठाई और अपन दवार का चककर लगान लग उनक दोनो छोर भाई जसपाही की तरह lsquoछोनवाल जागत

लहोrsquoपकारत चलत ह मगर रात तो अधरी होनी चाजहए नर को ठोकर लग जाती ह रोकरी उसक हाथ स छरकर जगर

पड़ती ह और जमया जसपाही अपनी बनददक जलय जमीन पर आ जात ह और उनकी एक राग म जवकार आ जाता ह

महमद को आज जञात हआ जक वह अचछा डाकरर ह उसको ऐसा मरहम जमला गया ह जजसस वह ररी राग को

आनन-िानन जोड़ सकता ह कवल गलर का दध चाजहए गलर का दध आता ह राग जावब द दती ह शय-जकरया

असिल हई तब उसकी दसरी राग भी तोड़ दी जाती ह अब कम-स-कम एक जगह आराम स बठ तो सकता ह एक

राग स तो न चल सकता था न बठ सकता था अब वह जसपाही सनदयासी हो गया ह अपनी जगह पर बठा-बठा पहरा

दता ह कभी-कभी दवता भी बन जाता ह उसक जसर का झालरदार सािा खरच जदया गया ह अब उसका जजतना

रपातर चाहो कर सकत हो कभी-कभी तो उसस बार का काम भी जलया जाता ह अब जमया हाजमद का हाल सजनए

अमीना उसकी आवाज सनत ही दौड़ी और उस गोद म उठाकर पयार करन लगी सहसा उसक हाथ म जचमरा दखकर

वह चौकी lsquoयह जचमरा कहॉ थाrsquolsquoमन मल स जलया हlsquolsquoक पस मrsquolsquoतीन पस जदयlsquoअमीना न छाती पीर ली यह

कसा बसमझ लड़का ह जक दोपहर हआ कछ खाया न जपया लाया कया जचमरा lsquoसार मल म तझ और कोई चीज न

जमली जो यह लोह का जचमरा उठा लायाrsquoहाजमद न अपराधी-भाव स कहा- तमहारी उगजलयॉ तव स जल जाती थी

इसजलए मन इस जलया बजढ़या का करोध तरनदत सनह म बदल गया और सनह भी वह नही जो परगभ होता ह और

अपनी सारी कसक शबदो म जबखर दता ह यह मक सनह था खब ठोस रस और सवाद स भरा हआ बचच म जकतना

वयाग जकतना सदभाव और जकतना जववक ह दसरो को जखलौन लत और जमठाई खात दखकर इसका मन जकतना

ललचाया होगा इतना जबत इसस हआ कस वहा भी इस अपनी बजढ़या दादी की याद बनी रही अमीना का मन

गदगद हो गया और अब एक बड़ी जवजचतर बात हई हाजमद क इस जचमर स भी जवजचतर बचच हाजमद न बढ़ हाजमद

का पारट खला था बजढ़या अमीना बाजलका अमीना बन गई वह रोन लगी दामन िलाकर हाजमद को दआए दती

जाती थी और आस की बड़ी-बड़ी बद जगराती जाती थी हाजमद इसका रहसय कया समझता

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दणनया का सबस अनमोल रतन

परमचद

जदलजफ़गार एक क रील पड़ क नीच दामन चाक जकय बठा हआ खन क आस बहा रहा था वह सौनददयट की दवी यानी

मलका जदलफ़रब का सचचा और जान दन वाला परमी था उन परजमयो म नही जो इतर-िलल म बसकर और शानदार

कपड़ो स सजकर आजशक क वश म माशजकयत का दम भरत ह बजक उन सीध-साद भोल-भाल जफ़दाइयो म जो

जगल और पहाड़ो स सर रकरात ह और फ़ररयाद मचात जिरत ह जदलफ़रब न उसस कहा था जक अगर त मरा सचचा

परमी ह तो जा और दजनया की सबस अनमोल चीज़ लकर मर दरबार म आ तब म तझ अपनी गलामी म कबल

कर गी अगर तझ वह चीज़ न जमल तो खबरदार इधर रख न करना वनाट सली पर जखचवा दगी जदलजफ़गार को

अपनी भावनाओ क परदशटन का जशकव-जशकायत का परजमका क सौनददयट-दशटन का तजनक भी अवसर न जदया गया

जदलफ़रब न जयो ही यह फ़सला सनाया उसक चोबदारो न गरीब जदलजफ़गार को धकक दकर बाहर जनकाल जदया

और आज तीन जदन स यह आफ़त का मारा आदमी उसी क रील पड़ क नीच उसी भयानक मदान म बठा हआ सोच

रहा ह जक कया कर दजनया की सबस अनमोल चीज़ मझको जमलगी नाममजकन और वह ह कया कार का

खजाना आब हयात खसरो का ताज जाम-जम तखतताऊस परवज़ की दौलत नही यह चीज़ हरजगज़ नही

दजनया म ज़रर इनस भी महगी इनस भी अनमोल चीज़ मौजद ह मगर वह कया ह कहा ह कस जमलगी या खदा

मरी मजशकल कयोकर आसान होगी

जदलजफ़गार इनदही खयालो म चककर खा रहा था और अकल कछ काम न करती थी मनीर शामी को हाजतम-सा

मददगार जमल गया ऐ काश कोई मरा भी मददगार हो जाता ऐ काश मझ भी उस चीज़ का जो दजनया की सबस

बशकीमत चीज़ ह नाम बतला जदया जाता बला स वह चीज़ हाथ न आती मगर मझ इतना तो मालम हो जाता जक

वह जकस जकसम की चीज़ ह म घड़ बराबर मोती की खोज म जा सकता ह म समनददर का गीत पतथर का जदल मौत

की आवाज़ और इनस भी जयादा बजनशान चीज़ो की तलाश म कमर कस सकता ह मगर दजनया की सबस अनमोल

चीज़ यह मरी कपना की उड़ान स बहत ऊपर ह

आसमान पर तार जनकल आय थ जदलजफ़गार यकायक खदा का नाम लकर उठा और एक तरि को चल खड़ा हआ

भखा-पयासा नग बदन थकन स चर वह बरसो वीरानो और आबाजदयो की खाक छानता जिरा तलव कारो स

छलनी हो गय शरीर म हडजडया ही हडजडया जदखायी दन लगी मगर वह चीज़ जो दजनया की सबस बश-कीमत चीज़

थी न जमली और न उसका कछ जनशान जमला

एक रोज़ वह भलता-भरकता एक मदान म जा जनकला जहा हजारो आदमी गोल बाध खड़ थ बीच म कई अमाम

और चोग वाल दजढयल काजी अफ़सरी शान स बठ हए आपस म कछ सलाह-मशजवरा कर रह थ और इस जमात स

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ज़रा दर पर एक सली खड़ी थी जदलजफ़गार कछ तो कमजोरी की वजह स कछ यहा की कजियत दखन क इराद स

जठठक गया कया दखता ह जक कई लोग नगी तलवार जलय एक कदी को जजसक हाथ-पर म ज़जीर थी पकड़ चल

आ रह ह सली क पास पहचकर सब जसपाही रक गय और कदी की हथकजडया बजडया सब उतार ली गयी इस

अभाग आदमी का दामन सकड़ो बगनाहो क खन क छीरो स रगीन था और उसका जदल नकी क खयाल और रहम

की आवाज़ स ज़रा भी पररजचत न था उस काला चोर कहत थ जसपाजहयो न उस सली क तखत पर खड़ा कर जदया

मौत की िासी उसकी गदटन म डाल दी और जलादो न तखता खीचन का इरादा जकया जक वह अभागा मजररम

चीखकर बोला-खदा क वासत मझ एक पल क जलए िासी स उतार दो ताजक अपन जदल की आजखरी आरज जनकाल

ल यह सनत ही चारो तरि सनदनारा छा गया लोग अचमभ म आकर ताकन लग काजजयो न एक मरन वाल आदमी

की अजतम याचना को रदद करना उजचत न समझा और बदनसीब पापी काला चोर ज़रा दर क जलए िासी स उतार

जलया गया

इसी भीड़ म एक खबसरत भोला-भोला लडका एक छड़ी पर सवार होकर अपन परो पर उछल-उछल फ़जी घोड़ा

दौड़ा रहा था और अपनी सादगी की दजनया म ऐसा मगन था जक जस वह इस वि सचमच जकसी अरबी घोड़ का

शहसवार ह उसका चहरा उस सचची खशी स कमल की तरह जखला हआ था जो चनदद जदनो क जलए बचपन ही म

हाजसल होती ह और जजसकी याद हमको मरत दम तक नही भलती उसका जदल अभी तक पाप की गदट और धल स

अछता था और मासजमयत उस अपनी गोद म जखला रही थी

बदनसीब काला चोर िासी स उतरा हज़ारो आख उस पर गड़ी हई थी वह उस लड़क क पास आया और उस गोद म

उठाकर पयार करन लगा उस इस वि वह ज़माना याद आया जब वह खद ऐसा ही भोला-भाला ऐसा ही खश-व-

खरटम और दजनया की गनददजगयो स ऐसा ही पाक साफ़ था मा गोजदयो म जखलाती थी बाप बलाए लता था और सारा

कनबा जान नदयोछावर करता था आह काल चोर क जदल पर इस वकत बीत हए जदनो की याद का इतना असर हआ

जक उसकी आखो स जजनदहोन दम तोड़ती हई लाशो को तड़पत दखा और न झपकी आस का एक कतरा रपक पड़ा

जदलजफ़गार न लपककर उस अनमोल मोती को हाथ म ल जलया और उसक जदल न कहा-बशक यह दजनया की सबस

अनमोल चीज़ ह जजस पर तखत ताऊस और जामजम और आब हयात और ज़र परवज़ सब नदयोछावर ह

इस खयाल स खश होता कामयाबी की उममीद म सरमसत जदलजफ़गार अपनी माशका जदलफ़रब क शहर मीनोसवाद

को चला मगर जयो-जयो मजजल तय होती जाती थी उसका जदल बठ जाता था जक कही उस चीज़ की जजस म दजनया

की सबस बशकीमत चीज़ समझता ह जदलफ़रब की आखो म कर न हई तो म िासी पर चढ़ा जदया जाऊ गा और इस

दजनया स नामराद जाऊ गा लजकन जो हो सो हो अब तो जकसमत-आज़माई ह आजखरकार पहाड़ और दररया तय

करत शहर मीनोसवाद म आ पहचा और जदलफ़रब की डयोढ़ी पर जाकर जवनती की जक थकान स ररा हआ

जदलजफ़गार खदा क फ़ज़ल स हकम की तामील करक आया ह और आपक कदम चमना चाहता ह जदलफ़रब न

फ़ौरन अपन सामन बला भजा और एक सनहर परद की ओर स फ़रमाइश की जक वह अनमोल चीज़ पश करो

जदलजफ़गार न आशा और भय की एक जवजचतर मनजसथजत म वह बद पश की और उसकी सारी कजफ़यत बहत

परअसर लफज़ो म बयान की जदलफ़रब न परी कहानी बहत गौर स सनी और वह भर हाथ म लकर ज़रा दर तक गौर

करन क बाद बोली-जदलजफ़गार बशक तन दजनया की एक बशकीमत चीज़ ढढ़ जनकाली तरी जहममत और तरी

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सझबझ की दाद दती ह मगर यह दजनया की सबस बशकीमत चीज़ नही इसजलए त यहा स जा और जिर कोजशश

कर शायद अब की तर हाथ वह मोती लग और तरी जकसमत म मरी गलामी जलखी हो जसा जक मन पहल ही बतला

जदया था म तझ िासी पर चढ़वा सकती ह मगर म तरी जाबखशी करती ह इसजलए जक तझम वह गण मौजद ह जो म

अपन परमी म दखना चाहती ह और मझ यकीन ह जक त जरर कभी-न-कभी कामयाब होगा

नाकाम और नामराद जदलजफ़गार इस माशकाना इनायत स ज़रा जदलर होकर बोला-ऐ जदल की रानी बड़ी मददत क बाद

तरी डयोढ़ी पर सजदा करना नसीब होता ह जिर खदा जान ऐस जदन कब आएग कया त अपन जान दन वाल

आजशक क बर हाल पर तरस न खाएगी और कया अपन रप की एक झलक जदखाकर इस जलत हए जदलजफ़गार को

आन वाली सजखतयो क झलन की ताकत न दगी तरी एक मसत जनगाह क नश स चर होकर म वह कर सकता ह जो

आज तक जकसी स न बन पड़ा हो

जदलफ़रब आजशक की यह चाव-भरी बात सनकर गससा हो गयी और हकम जदया जक इस दीवान को खड़-खड़ दरबार

स जनकाल दो चोबदार न फ़ौरन गरीब जदलजफ़गार को धकक दकर यार क कच स बाहर जनकाल जदया

कछ दर तक तो जदलजफ़गार अपनी जनषठर परजमका की इस कठोरता पर आस बहाता रहा और सोचन लगा जक कहा

जाऊ मददतो रासत नापन और जगलो म भरकन क बाद आस की यह बद जमली थी अब ऐसी कौन-सी चीज ह

जजसकी कीमत इस आबदार मोती स जयादा हो हज़रत जखजर तमन जसकनददर को आबहयात क कए का रासता

जदखाया था कया मरी बाह न पकड़ोग जसकनददर सारी दजनया का माजलक था म तो एक बघरबार मसाजफ़र ह तमन

जकतनी ही डबती जकजशतया जकनार लगायी ह मझ गरीब का बड़ा भी पार करो ऐ आलीमकाम जजबरील कछ तमही

इस नीमजान दखी आजशक पर तरस खाओ तम खदा क एक खास दरबारी हो कया मरी मजशकल आसान न करोग

गरज़ यह जक जदलजफ़गार न बहत फ़ररयाद मचायी मगर उसका हाथ पकडऩ क जलए कोई सामन न आया आजखर

जनराश होकर वह पागलो की तरह दबारा एक तरफ़ को चल खड़ा हआ

जदलजफ़गार न परब स पजचछम तक और उततर स दजकखन तक जकतन ही जगलो और वीरानो की खाक छानी कभी

बजफ़ट सतानी चोजरयो पर सोया कभी डरावनी घाजरयो म भरकता जिरा मगर जजस चीज़ की धन थी वह न जमली यहा

तक जक उसका शरीर हडजडयो का एक ढाचा रह गया

एक रोज वह शाम क वि जकसी नदी क जकनार खसताहाल पड़ा हआ था बखदी क नश स चौका तो कया दखता ह

जक चनददन की एक जचता बनी हई ह और उस पर एक यवती सहाग क जोड़ पहन सोलहो जसगार जकय बठी हई ह

उसकी जाघ पर उसक पयार पजत का सर ह हज़ारो आदमी गोल बाध खड़ ह और िलो की बरखा कर रह ह

यकायक जचता म स खद-ब-खद एक लपर उठी सती का चहरा उस वि एक पजवतर भाव स आलोजकत हो रहा था

जचता की पजवतर लपर उसक गल स जलपर गयी और दम-क-दम म वह िल-सा शरीर राख का ढर हो गया परजमका न

अपन को परमी पर नदयोछावर कर जदया और दो परजमयो क सचच पजवतर अमर परम की अजनदतम लीला आख स ओझल

हो गयी जब सब लोग अपन घरो को लौर तो जदलजफ़गार चपक स उठा और अपन चाक-दामन करत म यह राख का

ढर समर जलया और इस मटठी भर राख को दजनया की सबस अनमोल चीज़ समझता हआ सिलता क नश म चर यार

क कच की तरि चला अबकी जयो-जयो वह अपनी मजजल क करीब आता था उसकी जहममत बढ़ती जाती थी कोई

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उसक जदल म बठा हआ कह रहा था-अबकी तरी जीत ह और इस खयाल न उसक जदल को जो-जो सपन जदखाए

उनकी चचाट वयथट ह आजखकार वह शहर मीनोसवाद म दाजखल हआ और जदलफ़रब की ऊ ची डयोढ़ी पर जाकर

खबर दी जक जदलजफ़गार सखट-र होकर लौरा ह और हजर क सामन आना चाहता ह जदलफ़रब न जाबाज़ आजशक

को फ़ौरन दरबार म बलाया और उस चीज क जलए जो दजनया की सबस बशकीमत चीज़ थी हाथ िला जदया

जदलजफ़गार न जहममत करक उसकी चादी जसी कलाई को चम जलया और मिी भर राख को उसकी हथली म रखकर

सारी कजफ़यत जदल को जपघला दन वाल लफजो म कह सनायी और सनददर परजमका क होठो स अपनी जकसमत का

मबारक फ़सला सनन क जलए इनदतज़ार करन लगा जदलफ़रब न उस मिी भर राख को आखो स लगा जलया और कछ

दर तक जवचारो क सागर म डब रहन क बाद बोली-ऐ जान जनछावर करन वाल आजशक जदलजफ़गार बशक यह राख

जो त लाया ह जजसम लोह को सोना कर दन की जसफ़त ह दजनया की बहत बशकीमत चीज़ ह और म सचच जदल स

तरी एहसानमनदद ह जक तन ऐसी अनमोल भर मझ दी मगर दजनया म इसस भी जयादा अनमोल कोई चीज़ ह जा उस

तलाश कर और तब मर पास आ म तहजदल स दआ करती ह जक खदा तझ कामयाब कर यह कहकर वह सनहर

परद स बाहर आयी और माशकाना अदा स अपन रप का जलवा जदखाकर जिर नजरो स ओझल हो गयी एक

जबजली थी जक कौधी और जिर बादलो क परद म जछप गयी अभी जदलजफ़गार क होश-हवास जठकान पर न आन

पाय थ जक चोबदार न मलायजमयत स उसका हाथ पकडकर यार क कच स उसको जनकाल जदया और जिर तीसरी बार

वह परम का पजारी जनराशा क अथाह समनददर म गोता खान लगा

जदलजफ़गार का जहयाव छर गया उस यकीन हो गया जक म दजनया म इसी तरह नाशाद और नामराद मर जान क जलए

पदा जकया गया था और अब इसक जसवा और कोई चारा नही जक जकसी पहाड़ पर चढकर नीच कद पड़ ताजक

माशक क ज मो की फ़ररयाद करन क जलए एक हडडी भी बाकी न रह वह दीवान की तरह उठा और जगरता-पड़ता

एक गगनचमबी पहाड़ की चोरी पर जा पहचा जकसी और समय वह ऐस ऊ च पहाड़ पर चढऩ का साहस न कर

सकता था मगर इस वकत जान दन क जोश म उस वह पहाड़ एक मामली रकरी स जयादा ऊ चा न नजर आया करीब

था जक वह नीच कद पड़ जक हर-हर कपड़ पहन हए और हरा अमामा बाध एक बजगट एक हाथ म तसबीह और दसर

हाथ म लाठी जलय बरामद हए और जहममत बढ़ान वाल सवर म बोल-जदलजफ़गार नादान जदलजफ़गार यह कया

बज़जदलो जसी हरकत ह त महबबत का दावा करता ह और तझ इतनी भी खबर नही जक मजबत इरादा महबबत क

रासत की पहली मजज़ल ह मदट बन और यो जहममत न हार परब की तरफ़ एक दश ह जजसका नाम जहनददोसतान ह वहा

जा और तरी आरज परी होगी

यह कहकर हज़रत जखजर गायब हो गय जदलजफ़गार न शजकरय की नमाज अदा की और ताज़ा हौसल ताज़ा जोश और

अलौजकक सहायता का सहारा पाकर खश-खश पहाड़ स उतरा और जहनददोसतान की तरि चल पड़ा

मददतो तक कारो स भर हए जगलो आग बरसान वाल रजगसतानो कजठन घाजरयो और अलघय पवटतो को तय करन क

बाद जदलजफ़गार जहनदद की पाक सरज़मीन म दाजखल हआ और एक ठणड पानी क सोत म सफ़र की तकलीि धोकर

थकान क मार नदी क जकनार लर गया शाम होत-होत वह एक चजरयल मदान म पहचा जहा बशमार अधमरी और

बजान लाश जबना कफ़न क पड़ी हई थी चील-कौए और वहशी दररनदद मर पड़ हए थ और सारा मदान खन स लाल

हो रहा था यह डरावना दशय दखत ही जदलजफ़गार का जी दहल गया या खदा जकस मसीबत म जान ि सी मरन

वालो का कराहना जससकना और एजडया रगडकर जान दना दररनददो का हडजडयो को नोचना और गोशत क लोथड़ो

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को लकर भागना ऐसा हौलनाक सीन जदलजफ़गार न कभी न दखा था यकायक उस खयाल आया यह लड़ाई का

मदान ह और यह लाश सरमा जसपाजहयो की ह इतन म करीब स कराहन की आवाज़ आयी जदलजफ़गार उस तरफ़

जिरा तो दखा जक एक लमबा-तड़गा आदमी जजसका मदाटना चहरा जान जनकालन की कमज़ोरी स पीला हो गया ह

ज़मीन पर सर झकाय पड़ा हआ ह सीन स खन का िौववारा जारी ह मगर आबदार तलवार की मठ पज स अलग

नही हई जदलजफ़गार न एक चीथड़ा लकर घाव क मह पर रख जदया ताजक खन रक जाए और बोला-ऐ जवामदट त

कौन ह जवामदट न यह सनकर आख खोली और वीरो की तरह बोला-कया त नही जानता म कौन ह कया तन आज

इस तलवार की कार नही दखी म अपनी मा का बरा और भारत का सपत ह यह कहत-कहत उसकी तयोररयो पर

बल पड़ गय पीला चहरा गसस स लाल हो गया और आबदार शमशीर जिर अपना जौहर जदखान क जलए चमक

उठी जदलजफ़गार समझ गया जक यह इस वि मझ दशमन समझ रहा ह नरमी स बोला-ऐ जवामदट म तरा दशमन नही

ह अपन वतन स जनकला हआ एक गरीब मसाजफ़र ह इधर भलता-भरकता आ जनकला बराय महरबानी मझस यहा

की कल कजफ़यत बयान कर

यह सनत ही घायल जसपाही बहत मीठ सवर म बोला-अगर त मसाजफ़र ह तो आ मर खन स तर पहल म बठ जा

कयोजक यही दो अगल ज़मीन ह जो मर पास बाकी रह गयी ह और जो जसवाय मौत क कोई नही छीन सकता

अफ़सोस ह जक त यहा ऐस वकत म आया जब हम तरा आजतथय-सतकार करन क योगय नही हमार बाप-दादा का दश

आज हमार हाथ स जनकल गया और इस वि हम बवतन ह मगर (पहल बदलकर) हमन हमलावर दशमन को बता

जदया जक राजपत अपन दश क जलए कसी बहादरी स जान दता ह यह आस-पास जो लाश त दख रहा ह यह उन

लोगो की ह जो इस तलवार क घार उतर ह (मसकराकर) और गोया जक म बवतन ह मगर गनीमत ह जक दशमन की

ज़मीन पर मर रहा ह (सीन क घाव स चीथड़ा जनकालकर) कया तन यह मरहम रख जदया खन जनकलन द इस रोकन

स कया फ़ायदा कया म अपन ही दश म गलामी करन क जलए जज़नददा रह नही ऐसी जज़नददगी स मर जाना अचछा

इसस अचछी मौत ममजकन नही

जवामदट की आवाज़ मजदधम हो गयी अग ढील पड़ गय खन इतना जयादा बहा जक खद-ब-खद बनदद हो गया रह-

रहकर एकाध बद रपक पड़ता था आजखरकार सारा शरीर बदम हो गया जदल की हरकत बनदद हो गयी और आख मद

गयी जदलजफ़गार न समझा अब काम तमाम हो गया जक मरन वाल न धीम स कहा-भारतमाता की जय और उसक

सीन स खन का आजखरी कतरा जनकल पड़ा एक सचच दशपरमी और दशभि न दशभजि का हक अदा कर जदया

जदलजफ़गार पर इस दशय का बहत गहरा असर पड़ा और उसक जदल न कहा बशक दजनया म खन क इस कतर स

जयादा अनमोल चीज कोई नही हो सकती उसन फ़ौरन उस खन की बद को जजसक आग यमन का लाल भी हच ह

हाथ म ल जलया और इस जदलर राजपत की बहादरी पर हरत करता हआ अपन वतन की तरफ़ रवाना हआ और

सजखतया झलता आजखरकार बहत जदनो क बाद रप की रानी मलका जदलफ़रब की डयोढ़ी पर जा पहचा और पगाम

जदया जक जदलजफ़गार सखटर और कामयाब होकर लौरा ह और दरबार म हाजज़र होना चाहता ह जदलफ़रब न उस

फ़ौरन हाजज़र होन का हकम जदया खद हसब मामल सनहर परद की ओर म बठी और बोली-जदलजफ़गार अबकी त

बहत जदनो क बाद वापस आया ह ला दजनया की सबस बशकीमत चीज कहा ह

जदलजफ़गार न महदी-रची हथजलयो को चमत हए खन का वह कतरा उस पर रख जदया और उसकी परी कजफ़यत

परजोश लहज म कह सनायी वह खामोश भी न होन पाया था जक यकायक वह सनहरा परदा हर गया और

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जदलजफ़गार क सामन हसन का एक दरबार सजा हआ नज़र आया जजसकी एक-एक नाज़नीन जलखा स बढकर थी

जदलफ़रब बड़ी शान क साथ सनहरी मसनद पर सशोजभत हो रही थी जदलजफ़गार हसन का यह जतलसम दखकर

अचमभ म पड़ गया और जचतरजलजखत-सा खड़ा रहा जक जदलफ़रब मसनद स उठी और कई कदम आग बढकर उसस

जलपर गयी गानवाजलयो न खशी क गान शर जकय दरबाररयो न जदलजफ़गार को नज़र भर की और चाद-सरज को

बड़ी इजजत क साथ मसनद पर बठा जदया जब वह लभावना गीत बनदद हआ तो जदलफ़रब खड़ी हो गयी और हाथ

जोडकर जदलजफ़गार स बोली-ऐ जाजनसार आजशक जदलजफ़गार मरी दआए बर आयी और खदा न मरी सन ली और

तझ कामयाब व सखटर जकया आज स त मरा माजलक ह और म तरी लौडी

यह कहकर उसन एक रतनजजरत मजिा मगायी और उसम स एक तखती जनकाली जजस पर सनहर अकषरो म जलखा

हआ था-

lsquoखन का वह आजखरी कतरा जो वतन की जहफ़ाजत म जगर दजनया की सबस अनमोल चीज़ हrsquo

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अिना-अिना भागय

जनर कमार

बहत कछ जनरददशय घम चकन पर हम सड़क क जकनार की एक बच पर बठ गए ननीताल की सधया धीर-धीर उतर

रही थी रई क रश-स भाप-स बादल हमार जसरो को छ-छकर बरोक-रोक घम रह थ हक परकाश और अजधयारी स

रगकर कभी व नील दीखत कभी सिद और जिर दर म अरण पड़ जात व जस हमार साथ खलना चाह रह थ

पीछ हमार पोलो वाला मदान िला था सामन अगरजो का एक परमोदगह था जहा सहावना रसीला बाजा बज रहा था

और पाशवट म था वही सरमय अनपम ननीताल

ताल म जकजशतया अपन सिद पाल उड़ाती हई एक-दो अगरज याजतरयो को लकर इधर स उधर और उधर स इधर खल

रही थी कही कछ अगरज एक-एक दवी सामन परजतसथाजपत कर अपनी सई-सी शकल की डोजगयो को मानो शतट

बाधकर सरपर दौड़ा रह थ कही जकनार पर कछ साहब अपनी बसी डाल सधयट एकागर एकसथ एकजनषठ मछली-

जचनदतन कर रह थ पीछ पोलो-लान म बचच जकलकाररया मारत हए हॉकी खल रह थ

शोर मार-पीर गाली-गलौच भी जस खल का ही अश था इस तमाम खल को उतन कषणो का उददशय बना व बालक

अपना सारा मन सारी दह समगर बल और समची जवधा लगाकर मानो खतम कर दना चाहत थ उनदह आग की जचनदता

न थी बीत का खयाल न था व शदध ततकाल क पराणी थ व शबद की समपणट सचचाई क साथ जीजवत थ

सड़क पर स नर-नाररयो का अजवरल परवाह आ रहा था और जा रहा था उसका न ओर था न छोर यह परवाह कहा जा

रहा था और कहा स आ रहा था कौन बता सकता ह सब उमर क सब तरह क लोग उसम थ मानो मनषयता क

नमनो का बाजार सजकर सामन स इठलाता जनकला चला जा रहा हो

अजधकार-गवट म तन अगरज उसम थ और जचथड़ो स सज घोड़ो की बाग थाम व पहाड़ी उसम थ जजनदहोन अपनी

परजतषठा और सममान को कचलकर शनदय बना जलया ह और जो बड़ी ततपरता स दम जहलाना सीख गए ह

भागत खलत हसत शरारत करत लाल-लाल अगरज बचच थ और पीली-पीली आख िाड़ जपता की उगली

पकड़कर चलत हए अपन जहनददसतानी नौजनहाल भी थ अगरज जपता थ जो अपन बचचो क साथ भाग रह थ हस रह

थ और खल रह थ उधर भारतीय जपतदव भी थ जो बजगी को अपन चारो तरि लपर धन-सपनदनता क लकषणो का

परदटशन करत हए चल रह थ

अगरज रमजणया थी जो धीर-धीर नही चलती थी तज चलती थी उनदह न चलन म थकावर आती थी न हसन म मौत

आती थी कसरत क नाम पर घोड़ पर भी बठ सकती थी और घोड़ क साथ ही साथ जरा जी होत ही जकसी-जकसी

जहनददसतानी पर कोड़ भी िरकार सकती थी व दो-दो तीन-तीन चार-चार की रोजलयो म जनशक जनरापद इस परवाह

म मानो अपन सथान को जानती हई सड़क पर चली जा रही थी

उधर हमारी भारत की कललकषमी सड़क क जबकल जकनार दामन बचाती और सभालती हई साड़ी की कई तहो म

जसमर-जसमरकर लोक-लाज सतरीतव और भारतीय गररमा क आदशट को अपन पररविनो म जछपाकर सहमी-सहमी

धरती म आख गाड़ कदम-कदम बढ़ रही थी

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इसक साथ ही भारतीयता का एक और नमना था अपन कालपन को खरच-खरचकर बहा दन की इचछा करनवाला

अगरजीदा परिोततम भी थ जो नजरवो को दखकर मह िर लत थ और अगरज को दखकर आख जबछा दत थ और दम

जहलान लगत थ वस व अकड़कर चलत थ-मानो भारतभजम को इसी अकड़ क साथ कचल-कचलकर चलन का उनदह

अजधकार जमला ह

घणर क घणर सरक गए अधकार गाढ़ा हो गया बादल सिद होकर जम गए मनषयो का वह ताता एक-एक कर कषीण

हो गया अब इकका-दकका आदमी सड़क पर छतरी लगाकर जनकल रहा था हम वही क वही बठ थ सदी-सी मालम

हई हमार ओवरकोर भीग गए थ पीछ जिरकर दखा यह लाल बिट की चादर की तरह जबकल सतबध और सनदन

पड़ा था

सब सनदनारा था तलीलाल की जबजली की रोशजनया दीप-माजलका-सी जगमगा रही थी वह जगमगाहर दो मील

तक िल हए परकजत क जलदपटण पर परजतजबजमबत हो रही थी और दपटण का कापता हआ लहर लता हआ वह जल

परजतजबमबो को सौगना हजारगना करक उनक परकाश को मानो एकतर और पजीभत करक वयापत कर रहा था पहाड़ो

क जसर पर की रोशनाईया तारो-सी जान पड़ती थी

हमार दखत-दखत एक घन पद न आकर इन सबको ढक जदया रोशजनया मानो मर गई जगमगाहर लपत हो गई व

काल-काल भत-स पहाड़ भी इस सिद पद क पीछ जछप गए पास की वसत भी न दीखन लगी मानो यह घनीभत

परलय था सब कछ इस घनी गहरी सिदी म दब गया एक शभर महासागर न िलकर ससकजत क सार अजसततव को

डबो जदया ऊपर-नीच चारो तरि वह जनभदय सिद शनदयता ही िली हई थी

ऐसा घना कहरा हमन कभी न दखा था वह रप-रप रपक रहा था मागट अब जबकल जनजटन-चप था वह परवाह न

जान जकन घोसलो म जा जछपा था उस वहदाकार शभर शनदय म कही स गयारह बार रन-रन हो उठा जस कही दर कबर

म स आवाज आ रही हो हम अपन-अपन होरलो क जलए चल जदए रासत म दो जमतरो का होरल जमला दोनो वकील

जमतर छटटी लकर चल गए हम दोनो आग बढ़ हमारा होरल आग था

ताल क जकनार-जकनार हम चल जा रह थ हमार ओवरकोर तर हो गए थ बाररश नही मालम होती थी पर वहा तो

ऊपर-नीच हवा स कण-कण म बाररश थी सदी इतनी थी जक सोचा कोर पर एक कमबल और होता तो अचछा होता

रासत म ताल क जबलकल जकनार पर बच पड़ी थी म जी म बचन हो रहा था झरपर होरल पहचकर इन भीग कपड़ो

स छटटी पा गरम जबसतर म जछपकर सोना चाहता था पर साथ क जमतरो की सनक कब उठगी कब थमगी-इसका पता न

था और वह कसी कया होगी-इसका भी कछ अनददाज न था उनदहोन कहा-rdquoआओ जरा यहा बठ rdquo

हम उस चत कहर म रात क ठीक एक बज तालाब क जकनार उस भीगी बिट -सी ठडी हो रही लोह की बच पर बठ

गए

पाच दस पनदरह जमनर हो गए जमतर क उठन का इरादा न मालम हआ मन जखजसयाकर कहा-

rdquoचजलए भीrdquo

rdquoअर जरा बठो भीrdquo

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हाथ पकड़कर जरा बठन क जलए जब इस जोर स बठा जलया गया तो और चारा न रहा- लाचार बठ रहना पड़ा सनक

स छरकारा आसान न था और यह जरा बठना जरा न था बहत था

चपचाप बठ तग हो रहा था कढ़ रहा था जक जमतर अचानक बोल-

rdquoदखोhellip वह कया हrdquo

मन दखा-कहर की सिदी म कछ ही हाथ दर स एक काली-सी सरत हमारी तरि बढ़ी आ रही थी मन कहा- rdquoहोगा

कोईrdquo

तीन गज की दरी स दीख पड़ा एक लड़का जसर क बड़-बड़ बालो को खजलाता चला आ रहा ह नग पर ह नगा

जसर एक मली-सी कमीज लरकाए ह पर उसक न जान कहा पड़ रह ह और वह न जान कहा जा रहा ह- कहा जाना

चाहता ह उसक कदमो म जस कोई न अगला ह न जपछला ह न दाया ह न बाया ह

पास ही चगी की लालरन क छोर-स परकाशवतत म दखा-कोई दस बरस का होगा गोर रग का ह पर मल स काला पड़

गया ह आख अचछी बड़ी पर रखी ह माथा जस अभी स झररटया खा गया ह वह हम न दख पाया वह जस कछ भी

नही दख रहा था न नीच की धरती न ऊपर चारो तरि िला हआ कहरा न सामन का तालाब और न बाकी दजनया

वह बस अपन जवकर वतटमान को दख रहा था

जमतर न आवाज दी-rdquoएrdquo

उसन जस जागकर दखा और पास आ गया

rdquoत कहा जा रहा हrdquo

उसन अपनी सनी आख िाड़ दी

rdquoदजनया सो गई त ही कयो घम रहा हrdquo

बालक मौन-मक जिर भी बोलता हआ चहरा लकर खड़ा रहा

rdquoकहा सोएगाrdquo

rdquoयही कहीrdquo

rdquoकल कहा सोया थाrdquo

rdquoदकान परrdquo

rdquoआज वहा कयो नहीrdquo

rdquoनौकरी स हरा जदयाrdquo

rdquoकया नौकरी थीrdquo

rdquoसब काम एक रपया और जठा खानाrdquo

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rdquoजिर नौकरी करगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoबाहर चलगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoआज कया खाना खायाrdquo

rdquoकछ नहीrdquo

rdquoअब खाना जमलगाrdquo

rdquoनही जमलगाrdquo

lsquoयो ही सो जाएगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoकहाrdquo

rdquoयही कहीrdquo

rdquoइनदही कपड़ो मrdquo

बालक जिर आखो स बोलकर मक खड़ा रहा आख मानो बोलती थी-यह भी कसा मखट परशन

rdquoमा-बाप हrdquo

rdquoहrdquo

rdquoकहाrdquo

rdquoपनदरह कोस दर गाव मrdquo

rdquoत भाग आयाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoकयोrdquo

rdquoमर कई छोर भाई-बजहन ह-सो भाग आया वहा काम नही रोरी नही बाप भखा रहता था और मारता था मा भखी

रहती थी और रोती थी सो भाग आया एक साथी और था उसी गाव का मझस बड़ा था दोनो साथ यहा आए वह

अब नही ह

rdquoकहा गयाrdquo

rdquoमर गयाrdquo

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rdquoमर गयाrdquo

rdquoमर गयाrdquo

rdquoहा साहब न मारा मर गयाrdquo

rdquoअचछा हमार साथ चलrdquo

वह साथ चल जदया लौरकर हम वकील दोसतो क होरल म पहच

rdquoवकील साहबrdquo

वकील लोग होरल क ऊपर क कमर स उतरकर आए कशमीरी दोशाला लपर थ मोज-चढ़ परो म चपपल थी सवर म

हकी-सी झझलाहर थी कछ लापरवाही थी

rdquoआ-हा जिर आप कजहएrdquo

rdquoआपको नौकर की जररत थी न दजखए यह लड़का हrdquo

rdquoकहा स ल आए इस आप जानत हrdquo

rdquoजानता ह -यह बईमान नही हो सकताrdquo

rdquoअजी य पहाड़ी बड़ शतान होत ह बचच-बचच म गल जछप रहत ह आप भी कया अजीब ह उठा लाए कही स-लो

जी यह नौकर लोrdquo

rdquoमाजनए तो यह लड़का अचछा जनकलगाrdquo

rdquoआप भीhellip जी बस खब ह ऐर-गर को नौकर बना जलया जाए अगल जदन वह न जान कया-कया लकर चमपत हो

जाएrdquo

rdquoआप मानत ही नही म कया करrsquo

rdquoमान कया खाक आप भीhellip जी अचछा मजाक करत हhellip अचछा अब हम सोन जात हrdquo और व चार रपय रोज

क जकराय वाल कमर म सजी मसहरी पर सोन झरपर चल गए

वकील साहब क चल जान पर होरल क बाहर आकर जमतर न अपनी जब म हाथ डालकर कछ ररोला पर झर कछ

जनराश भाव स हाथ बाहर कर मरी ओर दखन लग

rdquoकया हrdquo

rdquoइस खान क जलए कछ-दना चाहता थाrdquo अगरजी म जमतर न कहा-rdquoमगर दस-दस क नोर हrdquo

rdquoनोर ही शायद मर पास ह दखrdquo

सचमच मर पाजकर म भी नोर ही थ हम जिर अगरजी म बोलन लग लड़क क दात बीच-बीच म करकरा उठत थ

कड़ाक की सदी थी

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जमतर न पछा-rdquoतबrdquo

मन कहा-rdquoदस का नोर ही द दोrdquo सकपकाकर जमतर मरा मह दखन लग-rdquoअर यार बजर जबगड़ जाएगा हदय म

जजतनी दया ह पास म उतन पस तो नही हrdquo

rdquoतो जान दो यह दया ही इस जमान म बहत हrdquo मन कहा जमतर चप रह जस कछ सोचत रह जिर लड़क स बोल-

rdquoअब आज तो कछ नही हो सकता कल जमलना वह lsquoहोरल डी पबrsquo जानता ह वही कल दस बज जमलगाrdquo

rdquoहा कछ काम दग हजरrdquo

rdquoहा हा ढढ दगाrdquo

rdquoतो जाऊrdquo

rdquoहाrdquo ठडी सास खीचकर जमतर न कहा-rdquoकहा सोएगाrdquo

rdquoयही कही बच पर पड़ क नीच जकसी दकान की भटठी मrdquo

बालक जिर उसी परत-गजत स एक ओर बढ़ा और कहर म जमल गया हम भी होरल की ओर बढ़ हवा तीखी थी-

हमार कोरो को पार कर बदन म तीर-सी लगती थी

जसकड़त हए जमतर न कहा-rdquoभयानक शीत ह उसक पास कम-बहत कम

कपड़helliprdquo

rdquoयह ससार ह यारrdquo मन सवाथट की जिलासिी सनाई-rdquoचलो पहल जबसतर म गमट हो लो जिर जकसी और की जचनदता

करनाrdquo

उदास होकर जमतर न कहा-rdquoसवाथट-जो कहो लाचारी कहो जनषठरता कहो या बहयाईrdquo

दसर जदन ननीताल- सवगट क जकसी काल गलाम पश क दलार का वह बरा- वह बालक जनजशचत समय पर हमार

lsquoहोरल डी पबrsquo म नही आया हम अपनी ननीताल की सर खशी-खशी खतम कर चलन को हए उस लड़क की आस

लगात बठ रहन की जररत हमन न समझी

मोरर म सवार होत ही थ जक यह समाचार जमला जक जपछली रात एक पहाड़ी बालक सड़क क जकनार पड़ क नीच

जठठरकर मर गया

मरन क जलए उस वही जगह वही दस बरस की उमर और वही काल जचथड़ो की कमीज जमली आदजमयो की दजनया न

बस यही उपहार उसक पास छोड़ा था

पर बतान वालो न बताया जक गरीब क मह पर छाती मटठी और परो पर बरि की हकी-सी चादर जचपक गई थी

मानो दजनया की बहयाई ढकन क जलए परकजत न शव क जलए सिद और ठणड किन का परबनदध कर जदया था

सब सना और सोचा अपना-अपना भागय

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रािी

सभराकमारी चौहान

-तरा नाम कया ह

- राही

- तझ जकस अपराध म सज़ा हई

- चोरी की थी सरकार

- चोरी कया चराया था

- नाज की गठरी

- जकतना नाज था

- होगा पाच-छः सर

- और सज़ा जकतन जदन की ह

- साल भर की

- तो तन चोरी कयो की मज़दरी करती तब भी तो जदन भर म तीन-चार आन पस जमल जात

- हम मज़दरी नही जमलती सरकार हमारी जाजत मागरोरी ह हम कवल मागत-खात ह

- और भीख न जमल तो

- तो जिर चोरी करत ह उस जदन घर म खान को नही था बचच भख स तड़प रह थ बाजार म बहत दर तक मागा

बोझा ढोन क जलए रोकरा लकर भी बठी रही पर कछ न जमला सामन जकसीका बचचा रो रहा था उस दखकर मझ

अपन भख बचचो की याद आ गई वही पर जकसी की नाज की गठरी रखी हई थी उस लकर भागी ही थी जक

पजलसवाल न पकड़ जलया

अजनता न एक ठडी सास ली बोली - जिर तन कहा नही जक बचच भख थ इसजलए चोरी की सभव ह इस बात स

मजजसटर कम सज़ा दता

- हम गरीबो की कोई नही सनता सरकार बचच आय थ कचहरी म मन सब-कछ कहा पर जकसी न नही सना

राही न कहा

- अब तर बचच जकसक पास ह उनका बाप ह अजनता न पछा

राही की आखो म आस आ गए वह बोली उनका बाप मर गया सरकार

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जल म उस मारा था और वही असपताल म वह मर गया अब बचचो का कोई नही ह

ldquoतो तर बचचो का बाप भी जल म ही मरा वह कयो जल आया था rdquo अजनता न परशन जकया

- उस तो जबना कसर क ही पकड़ जलया था सरकार राही न कहा - ताड़ी पीन को गया था दो-चार दोसत भाई उसक

साथ थ मर घरवाल का एक वि पजलसवाल स झगड़ा हो गया था उसी का बदला उसन जलया 109 म उसका

चालान करक साल भर की सज़ा जदला दी वही वह मर गया

अनीता न एक दीधट जनःशवास क साथ कहा अचछा जा अपना काम कर राही चली गई

अनीता सतयागरह करक जल आई थी पजहल उस lsquoबीrsquoकलास जदया था जिर उसक घरवालो न जलखा-पढ़ी करक उस

lsquoएrsquoकलास जदलवा जदया

अनीता क सामन आज एक परशन था वह सोच रही थी जक दश की दरररता और इन जनरीह गरीबो क किो को दर

करन का कोई उपाय नही ह हम सभी परमातमा की सतान ह एक ही दश क जनवासी कम-स-कम हम सबको खान

पजहनन का समान अजधकार ह ही जिर यह कया बात ह जक कछ लोग तो बहत आराम स रहत ह और कछ लोग पर

क अनदन क जलए चोरी करत ह उसक बाद जवचारक की अदरदजशटता क कारण या सरकारी वकील क चातयटपणट

जजरह क कारण छोर - छोर बचचो की माताय जल भज दी जाती ह उनक बचच भखो मरन क जलए छोड़ जदय जात

ह एक ओर तो यह कदी ह जो जल आकर सचमच जल जीवन क कि उठाती ह और दसरी ओर ह हम लोग जो

अपनी दशभजि और तयाग का जढढोरा पीरत हए जल आत ह हम आमतौर स दसर कजदयो क मकाजबल म अचछा

बरताव जमलता ह जिरभी हम सतोि नही होता हम जल आकर lsquoएrsquoऔर lsquoबीrsquoकलास क जलए झगड़त ह जल आकर

ही हम कौन-सा बड़ा तयाग कर दत ह जल म हम कौन-सा कि रहता ह जसवा इसक जक हमार माथ पर नततव की

सील लग जाती ह हम बड़ अजभमान स कहत ह lsquoयह हमारी चौथी जल यातरा ह lsquoयह हमारी पाचवी जल यातरा

हrsquoऔर अपनी जल यातरा क जकसस बार-बार सना-सनाकर आतमगौरव अनभव करत ह तातपयट यह जक हम जजतन

बार जल जा चक होत ह उतनी ही सीढ़ी हम दशभजि और तयाग स दसरो स ऊपर उठ जात ह और इसक बल पर

जल स छरन क बाद कागरस को राजकीय सतता जमलत ही हम जमजनसरर सथाजनक ससथाओ क ममबर और कया कया

हो जात ह

अनीता सोच रही थी - कल तक जो खददर भी न पजहनत थ बात-बात पर कागरस का मजाक उड़ात थ कागरस क हाथो

म थोड़ी शजि आत ही व कागरस भि बन गए खददर पजहनन लग यहा तक जक जल म भी जदखाई पड़न लग

वासतव म यह दशभजि ह या सतताभजि

अनीता क जवचारो का ताता लगा हआ था वह दाशटजनक हो रही थी उस अनभव हआ जस कोई भीतर-ही-भीतर

उस कार रहा हो अनीता की जवचारावजल अनीता को ही खाय जा रही थी उसी बार-बार यह लग रहा था जक

उसकी दशभजि सचची दशभजि नही वरन मज़ाक ह उस आतमगलाजन हई और साथ-ही-साथ आतमानभजत भी

अनीता की आतमा बोल उठी - वासतव म सचची दशभजि तो इन गरीबो क कि- जनवारण म ह य कोई दसर नही

हमारी ही भारतमाता की सतान ह इन हज़ारो लाखो भख-नग भाई-बजहनो की यजद हम कछ भी सवा कर सक थोड़ा

भी कि-जनवारण कर सक तो सचमच हमन अपन दश की कछ सवा की हमारा वासतजवक दश तो दहातो म ही ह

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जकसानो की ददटशा स हम सभी थोड़-बहत पररजचत ह पर इन गरीबो क पास न घर ह न दवार अजशकषा और अजञान

का इतना गहरा पदाट इनकी आखो पर ह जक होश सभालत ही माता पतरी को और सास बह को चोरी की जशकषा दती ह

और उनका यह जवशवास ह जक चोरी करना और भीख मागना ही उनका काम ह इसस अचछा जीवन जबतान की वह

कपना ही नही कर सकत आज यहा डरा डाल क रह तो कल दसरी जगह चोरी की बच तो बच नही तो जिर

साल दो साल क जलए जल कया मानव जीवन का यही लकषय ह लकषय ह भी अथवा नही यजद नही ह तो

जवचारादशट की उचच सतह पर जरक हए हमार जन-नायको और यग-परिो की हम कया आवशयकता इजतहास धमट-

दशटन जञान-जवजञान का कोई अथट नही होता पर जीवन का लकषय ह अवशय ह ससार की मगमरीजचका म हम लकषय

को भल जात ह सतह क ऊपर तक पहच पानवाली कछक महान आतमाओ को छोड़कर सारा जान-समदाय ससार म

अपन को खोया हआ पाता ह कततटवयाकततटवय का उस धयान नही सतयासतय की समझ नही अनदयथा मानवीयता स

बढ़कर कौन-सा मानव धमट ह पजतत मानवता को जीवन-दान दन की अपकषा भी कोई महततर पणय ह राही जसी

भोली-भाली जकनदत गमराह आतमाओ क कयाण की साधना जीवन की साधना होनी चाजहए सतयागरही की यह

परथम परजतजञा कयो न हो दशभजि का यही मापदड कयो न बन अनीता जदन भर इनदही जवचारो म डबी रही शाम को

भी वह इसी परकार कछ सोचत-सोचत सो गई

रात म उसन सपना दखा जक जल स छरकार वह इनदही मागरोरी लोगो क गाव म पहच गई ह वहा उसन एक छोरा-सा

आशरम खोल जदया ह उसी आशरम म एक तरि छोर-छोर बचच पढ़त ह और जसतरया सत कारती ह दसरी तरफ़ मदट

कपड़ा बनत ह और रई धनकत ह शाम को रोज़ उनदह धाजमटक पसतक पढ़कर सनाई जाती ह और दश म कहा कया

हो रहा ह यह सरल भािा म समझाया जाता ह वही भीख मागन और चोरी करनवाल आदशट गरामवासी हो चल ह

रहन क जलए उनदहोन छोर-छोर घर बना जलए ह राही क अनाथ बचचो को अनीता अपन साथ रखन लगी ह अनीता

यही सख-सवपन दख रही थी रात म वह दर स सोई थी सबह सात बज तक उसकी नीद न खल पाई अचानक सतरी

जलर न आकर उस जगा जदया और बोली - आप घर जान क जलए तयार हो जाइए आपक जपता बीमार ह आप

जबना शतट छोड़ी जा रही ह

अनीता अपन सवपन को सचचाई म पररवजतटत करन की एक मधर कपना ल घर चली गई

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अनकरमणिका

1 चनदरदव स मरी बात 3

2 दलाईवाली 6

3 एक टोकरी-भर ममटटी 12

4 कानो म कगना 14

5 राजा मनरबमसया 19

6 मिता 36

7 िररनदद 42

8 अमतसर आ गया ह 63

9 चीफ की दावत 73

10 मसकका बदल गया 81

11 इनदिकटर मातादीन चाद िर वयगय 86

12 मार गय ग़लफाम उफफ तीसरी कसम 95

13 लाल िान की बगम 121

14 कोसी का घटवार 135

15 आकाशदीि 148

16 गगरीन-(रोज) 161

17 उसन कहा था 174

18 ईदगाह 185

19 दमनया का सबस अनमोल रतन 192

20 अिना-अिना भागय 198

21 राही 204

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चनदरदव स मरी बात

बग मणिला

सरसवती

भगवान चनदरदव आपक कमलवत कोमल चरणो म इस दासी का अनक बार परणाम आज म आपस दो

चार बात करन की इचछा रखती ह कया मर परशनो का उततर आप परदान करग कीजजए - बड़ी कपा होगी दखो सनी

अनसनी सी मत कर जाना अपन बड़पपन की ओर धयान दना अचछा कहती ह सनो

म सनती ह आप इस आकाश मडल म जचरकाल स वास करत ह कया यह बात सतय ह यजद सतय ह तो म

अनमान करती ह जक इस सजि क साथ ही साथ अवशय आपकी भी सजि हई होगी तब तो आप ढर जदन क परान

बढ़ कह जा सकत ह आप इतन परान ह तो सही पर काम सदा स एक ही और एक ही सथान म करत आत ह यह

कयो कया आपकाजडपारटमणर(महकम) म टासफ़र (बदली) होन का जनयम नही ह कया आपकीगवरमणरपशन भी

नही दती बड़ खद की बात ह यजद आप हमारी नदयायशीलाlsquoगवनटमणरrsquoक जकसी जवभाग मlsquoसजवटसrsquo (नौकरी) करत

होत तो अब तक आपकी बहत कछ पदोनदनजत हो गई होती और ऐसी lsquoपोसरrsquo पर रहकर भारत क जकतन ही सरमय

नगर पवटत जगल और झाजड़यो म भरमण करत अत म इस वदध अवसथा म पशन परापत कर काशी ऐस पनीत और

शाजत - धाम म बठकर हरर नाम समरण करक अपना परलोक बनात यह बड़ी भारी भल हई भगवान चरदव कषमा

कीजजए कषमा कीजजए आप तो अमर ह आपको मतय कहा तब परलोक बनाना कसा ओ हो दवता भी अपनी

जाजत क कस पकषपाती होत ह दखो नlsquoचरदवrsquoको अमत दकर उनदहोन अमर कर जदया - तब यजद मनषय होकर हमार

अगरज़ अपन जाजतवालो का पकषपात कर तो आशचयट ही कया ह अचछा यजद आपको अगरज जाजत की सवा करना

सवीकार हो तो एकlsquoएपलीकशनrsquo (जनवदन पतर) हमार आधजनक भारत परभ लॉडट कज़ईन क पास भज दव आशा ह

जक व आपको आदर पवटक अवशय आहवान करग कयोजक आप अधम भारतवाजसयो क भाजत कषणाग तो ह ही नही

जो आपको अचछी नौकरी दन म उनकी गौराग जाजत कजपत हो उठगी और जिर आप तो एक सयोगय कायटदकष

पररशरमी बहदशी कायटकशल और सरल सवभाव महातमा ह म जवशवास करती ह जक जब लॉडट कज़टन हमार भारत क

सथायी भागय जवधाता बनकर आवग तब आपको जकसी कमीशन का ममबर नही तो जकसी जमशन म भरती करक व

अवशय ही भज दवग कयोजक उनको कजमशन औरजमशन दोनो ही अतयत जपरय ह आपक चरलोक म जो रीजत और

नीजत सजि क आजद काल म परचजलत थ व ही सब अब भी ह पर यहा तो इतना पररवतटन हो गया ह जक भत और

वतटमान म आकाश पाताल का सा अतर हो गया ह म अनमान करती ह जक आपक नतरो की जयोजत भी कछ अवशय

ही मद पड़ गई होगी कयोजक आधजनक भारत सतान लड़कपन स ही चशमा धारण करन लगी ह इस कारण आप

हमार दीन हीन कषीण-परभ भारत को उतनी दर स भलीभाजत न दख सकत होग अतएव आपस सादर कहती ह जक

एक बार कपाकर भारत को दख तो जाइय यदयजप इस बात को जानती ह जक आपको इतना अवकाश कहा - पर

आठव जदन नही तो महीन म एक जदन अथाटत अमावसया को तो आपकोlsquoहॉजलडrsquo (छटटी) अवशय ही रहती ह यजद

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आप उस जदन चाह तो भारत भरमण कर जा सकत ह इस भरमण म आपको जकतन ही नतन दशय दखन को जमलग

जजस सहसा दख कर आपकी बजदध ज़रर चकराजायगी यजद आपस सार जहनददोसतान का भरमण शीघरता क कारण न

हो सक तो कवल राजधानी कलकतता को दख लना तो अवशय ही उजचत ह वहा क कल कारखानो को दखकर

आपको यह अवशय ही कहना पड़गा जक यहा क कारीगर तो जवशवकमाट क भी लड़कदादा जनकल यही कयो आपकी

जपरय सहयोजगनी दाजमनो जो मघो पर आरोहण करक आनद स अठखजलया जकया करती ह वह बचारी भी यहा मनषय

क हाथो का जखलौना हो रही ह भगवान जनशानाथ जजस समय आप अपनी जनमटल चजनदरका को बरोर मघमाला

अथवा पवटतो की ओर स जसनदध क गोद म जा सकत ह उस समय यही नीरद- वासनी जवशवमोजहनी सौदाजमनी अपनी

उजजवल मजतट स आलोक परदान कर रात को जदन बना दती ह आपक दवलोक म जजतन दवता ह उनक वाहन भी

उतन ह - जकसी का गज जकसी का हस जकसी का बल जकसी का चहा इतयाजद पर यहा तो सारा बोझ आपकी

चपला और अजगनदव क माथ मढ़ा गया ह कया बराहमण कया कषजतरय कया वशय कया शर कया चाणडाल सभी क रथो

का वाहन वही हो रही ह हमार शवताग महापरभ गण को जहा पर कछ कजठनाई का सामना आ पड़ा झर

उनदहोनlsquoइलजकटजसरीrsquo (जबजली) को ला परका बस कजठन स कजठन कायट सहज म समपादन कर लत ह और हमार

यहा क उचच जशकषा परापत यवक काठ क पतलो की भाजत मह ताकत रह जात ह जजस वयोमवाजसनी जवदयत दवी को

सपशट तक करन का जकसी वयजि का साहस नही हो सकता वही आज पराय घर म आजशरता नाररयो की भाजत ऐस

दबाव म पड़ी ह जक वह च तक नही कर सकती कया कर बचारी क भागय म जवधाता न दासी - वजतत ही जलखा था

हररपदोदभवा तरलोकयपावनी सरसरी क भी खोर जदन आय ह वह भी अब सथान - सथान मबनदधनगरसत हो रही ह

उसक वकषसथल पर जहा तहा मोर वहदाकारखमभ गाड़ जदए गए ह कलकतता आजद को दखकर आपक दवराज सरनदर

भी कहग जक हमारी अमरावती तो इसक आग जनरी िीकी सी जान पड़ती ह वहा ईडन गाडटन तो पाररजात

पररशोजभत ननददन कानन को भी मात द रहा ह वहा क जवशवजवदयालय क जवशवशरषठ पजडतो की जवशववयाजधनी जवदया को

दखकर वीणापाजण सरसवती दवी भी कहन लग जाएगी जक जनसदह इन जवदया जदगगजो की जवदयाचमतकाररणीह वही

क िोरट जवजलयम क िौजी सामान को दखकर आपक दव सनापजत काजतटकय बाब क भी छकक छर जायग कयोजक

दव सनापजत महाशय दखन म खास बगाली बाब स जचत ह और उनका वाहन भी एक सनददर मयर ह बस इसस

उनक वीरतव का भी पररचय खब जमलता ह वहा कlsquoजमरrsquo (रकसाल) को दखकर जसनदधतनया आपकी जपरय सहोदरा

कमला दवी तथा कबर भी अकचका जायग भगवान चर दव इनदही सब जवशवमयोतपादकअपवट दशयो का अवलोकन

करन क हत आपको सादर जनमजतरत तथा सजवनय आह त करती ह समभव ह जक यहा आन स आपको अनक लाभ

भी हो आप जो अनाजद काल स जनज उजजवल वप म कलक की काजलमा लपन करक कलकी शशाक शशधर

शशलाछन आजद उपाजध - मालाओ स भजित हो रह ह जसनदध तनय होन पर भी जजस काजलमा को आप आज तक

नही धो सक ह वही आजनदम- कलक शायद यहा क जवजञानजवद पजणडतो की चिा स छर जाय जब बमबई म सवगीय

महारानी जवकरोररया दवी की परजतमजतट स काला दाग छड़ान म परोिसर गजजर महाशय िलीभत हए ह तब कया

आपक मख की काजलमा छड़ान म व िलीभत न होग

शायद आप पर यह बात भी अभी तक जवजदत नही हई जक आप और आपक सवामी सयट भगवान पर जब

हमार भमणडल की छाया पड़ती ह तभी आप लोगो पर गरहणलगता ह पर आप का तो अब तक वही पराना जवशवास

बना हआ ह जक जब कजरल गरह राह आपको जनकल जाता ह तभी गरहण होता ह पर ऐसा थोथा जवशवास करना आप

लोगो की भारी भल ह अतः ह दव म जवनय करती ह जक अब आप अपन हरदय स इस भरम को जड़ स उखाड़ कर

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ि क द अब भारत म न तो आपक और न आपक सवामी भवनभासकर सयट महाशय ही क वशधरोका सामराजय ह

और न अब भारत की वह शसय शयामला सवणटपरसता मजतट ही ह अब तो आप लोगो क अजञात एक अनदय दवीप -

वासी परम शजिमान गौराग महापरभ इस सजवशाल भारत-विट का राजय वभव भोग रह ह अब तक मन जजन बातो

का वणटन आपस सथल रप म जकया वह सब इनदही जवदयाजवशारद गौराग परभओ ककपाकराकष का पररणाम ह यो तो

यहा परजत विट पदवीदान क समय जकतन ही राजय जवहीन राजाओ की सजि हआ करती ह पर आपक वशधरो म जो दो

चारराजा महाराजा नाम - मातर क ह भी व काठ क पतलो की भाती ह जस उनदह उनक रकषक नचात ह वस ही व

नाचत ह व इतनी भी जानकारी नही रखत जक उनक राजय म कया हो रहा ह - उनकी परजा दखी ह या सखी

यजद आप कभी भारत - भरमण करन को आय तो अपनlsquoिजमली डॉकररrsquoधनदवनदतरर महाशय को और दवताओ

कlsquoचीि जजसरसrsquoजचतरगपतजी को साथ अवशय लत आए आशा ह जक धनदवनदतरर महाशय यहा क डॉकररो क सजनदनकर

जचजकतसा समबनदधी बहत कछ जशकषा लाभ कर सक ग यजद पलग - महाराज (इशवर न कर ) आपक चनदरलोक या

दवलोक म घस पड़ तो वहा स उनको जनकालना कछ सहज बात न होगी यही जब जचजकतसा शासतर क बड़-बड़

पारदशी उन पर जवजय नही पा सकत तब वहा आपकlsquoदवलोकrsquoम जड़ी - बजरयो क परयोग स कया होगा यहा

कlsquoइजणडयन पीनल कोडrsquoकी धाराओ को दखकर जचतरगपतजी महाराज अपन यहा की दणडजवजध (कानन) को बहत

कछ सधार सकत ह और यजद बोझ न हो तो यहा स व दो चारlsquoराइप राइररrsquoभी खरीद ल जाय जब पलग महाराज

क अपार अनगरह स उनक ऑजिस म कायट की अजधकता होव तब उसस उनकीlsquoराइरसट जबजडगrsquoकlsquoराईरसटrsquoक काम

म बहत ही सजवधा और सहायता पहचगी व लोग दो जदन का काम दो घणर म कर डालग

अचछा अब म आपस जवदा होती ह मन तो आपस इतनी बात कही पर खद ह आपन उनक अनकल या

परजतकल एक बात का भी उततर न जदया परनदत आपक इस मौनावलमब को म सवीकार का सचक समझती ह अचछा

तो मरी पराथटना को कबल करक एक दिा यहा आइएगा जरर - एक बग मजहला

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दलाईवाली 1907

बग मजहला

काशी जी क दशाश वमध घार पर स नान करक एक मनष य बड़ी व यगरता क साथ गोदौजलया की तरि आ रहा

था एक हाथ म एक मली-सी तौजलया म लपरी हई भीगी धोती और दसर म सरती की गोजलयो की कई जडजबया और

सघनी की एक पजड़या थी उस समय जदन क ग यारह बज थ गोदौजलया की बायी तरि जो गली ह उसक भीतर एक

और गली म थोड़ी दर पर एक रर-स परान मकान म वह जा घसा मकान क पहल खण ड म बहत अधरा था पर उपर

की जगह मनष य क वासोपयोगी थी नवागत मनष य धड़धड़ाता हआ ऊपर चढ़ गया वहा एक कोठरी म उसन हाथ की

चीज रख दी और सीता सीता कहकर पकारन लगा

क या ह कहती हई एक दस बरस की बाजलका आ खड़ी हई तब उस परि न कहा सीता जरा अपनी बहन को

बला ला

अच छा कहकर सीता गई और कछ दर म एक नवीना स तरी आकर उपजसथत हई उस दखत ही परि न कहा लो

हम लोगो को तो आज ही जाना होगा

इस बात को सनकर स तरी कछ आश चयटयक त होकर और झझलाकर बोली आज ही जाना होगा यह क यो भला आज

कस जाना हो सकगा ऐसा ही था तो सवर भया स कह दत तम तो जानत हो जक मह स कह जदया बस छटटी हई

लड़की कभी जवदा की होती तो मालम पड़ता आज तो जकसी सरत जाना नही हो सकता

तम आज कहती हो हम तो अभी जाना ह बात यह ह जक आज ही नवलजकशोर कलकतत स आ रह ह आगर स

अपनी नई बह को भी साथ ला रह ह सो उनद होन हम आज ही जान क जलए इसरार जकया ह हम सब लोग मगलसराय

स साथ ही इलाहाबाद चलग उनका तार मझ घर स जनकलत ही जमला इसी स म झर नहा-धोकर लौर आया बस

अब करना ही क या ह कपड़ा-वपड़ा जो कछ हो बाध-बधकर घण र भर म खा-पीकर चली चलो जब हम तम ह जवदा

करान आए ही ह तब कल क बदल आज ही सही

हा यह बात ह नवल जो चाह कराव क या एक ही गाड़ी म न जान स दोस ती म बटटा लग जाएगा अब तो जकसी तरह

रकोग नही जरर ही उनक साथ जाओग पर मर तो नाको दम आ जाएगी

क यो जकस बात स

उनकी हसी स और जकसस हसी-ठटठा भी राह म अच छी लगती ह उनकी हसी मझ नही भाती एक रोज म चौक म

बठी पजड़या काढ़ रही थी जक इतन म न-जान कहा स आकर नवल जच लान लग ए बआ ए बआ दखो तम हारी

बह पजड़या खा रही ह म तो मार सरम क मर गई हा भाभी जी न बात उड़ा दी सही व बोली खान-पहनन क जलए

तो आयी ही ह पर मझ उनकी हसी बहत बरी लगी

बस इसी स तम उनक साथ नही जाना चाहती अच छा चलो म नवल स कह दगा जक यह बचारी कभी रोरी तक तो

खाती ही नही पड़ी क यो खान लगी

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इतना कहकर बशीधर कोठरी क बाहर चल आय और बोल म तम हार भया क पास जाता ह तम रो-रलाकर तयार

हो जाना

इतना सनत ही जानकी दई की आख भर आयी और असाढ़-सावन की ऐसी झड़ी लग गयी

बशीधर इलाहाबाद क रहन वाल ह बनारस म ससराल ह स तरी को जवदा करान आय ह ससराल म एक साल साली

और सास क जसवा और कोई नही ह नवलजकशोर इनक दर क नात म ममर भाई ह पर दोनो म जमतरता का खयाल

अजधक ह दोनो म गहरी जमतरता ह दोनो एक जान दो काजलब ह

उसी जदन बशीधर का जाना जसथर हो गया सीता बहन क सग जान क जलए रोन लगी मा रोती-धोती लड़की की जवदा

की सामगरी इकटठी करन लगी जानकी दई भी रोती ही रोती तयार होन लगी कोई चीज भलन पर धीमी आवाज स मा

को याद भी जदलाती गयी एक बजन पर स रशन जान का समय आया अब गाड़ी या इक का लान कौन जाय

ससरालवालो की अवस था अब आग की सी नही जक दो-चार नौकर-चाकर हर समय बन रह सीता क बाप क न रहन

स काम जबगड़ गया ह पसवाल क यहा नौकर-चाकरो क जसवा और भी दो-चार खशामदी घर रहत ह छछ को कौन

पछ एक कहाररन

ह सो भी इस समय कही गयी ह सालराम की तबीयत अच छी नही व हर घड़ी जबछौन स बात करत ह जतस पर भी

आप कहन लग म ही धीर-धीर जाकर कोई सवारी ल आता ह नजदीक तो ह

बशीधर बोल नही नही तम क यो तकलीि करोग म ही जाता ह जात-जात बशीधर जवचारन लग जक इक क की

सवारी तो भल घर की जसतरयो क बठन लायक नही होती क योजक एक तो इतन ऊ च पर चढ़ना पड़ता ह दसर पराय

परि क सग एक साथ बठना पड़ता ह म एक पालकी गाड़ी ही कर ल उसम सब तरह का आराम रहता ह पर जब

गाड़ी वाल न डढ़ रपया जकराया मागा तब बशीधर न कहा चलो इक का ही सही पहचन स काम कछ नवलजकशोर

तो यहा स साथ ह नही इलाहाबाद म दखा जाएगा

बशीधर इक का ल आय और जो कछ असबाब था इक क पर रखकर आप भी बठ गय जानकी दई बड़ी जवकलता स

रोती हई इक क पर जा बठी पर इस अजसथर ससार म जसथरता कहा यहा कछ भी जसथर नही इक का जस-जस आग

बढ़ता गया वस जानकी की रलाई भी कम होती गयी जसकरौल क स रशन क पास पहचत-पहचत जानकी अपनी

आख अच छी तरह पोछ चकी थी

दोनो चपचाप चल जा रह थ जक अचानक बशीधर की नजर अपनी धोती पर पड़ी और अर एक बात तो हम भल ही

गय कहकर पछता स उठ इक क वाल क कान बचाकर जानकी जी न पछा क या हआ क या कोई जररी चीज भल

आय

नही एक दशी धोती पजहनकर आना था सो भलकर जवलायती ही पजहन आय नवल कटटर स वदशी हए ह न व

बगाजलयो स भी बढ़ गय ह दखग तो दो-चार सनाय जबना न रहग और बात भी ठीक ह नाहक जबलायती चीज मोल

लकर क यो रपय की बरबादी की जाय दशी लन स भी दाम लगगा सही पर रहगा तो दश ही म

जानकी जरा भौह रढ़ी करक बोली ऊ ह धोती तो धोती पजहनन स काम क या यह बरी ह

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इतन म स रशन क कजलयो न आ घरा बशीधर एक कली करक चल इतन म इक कवाल न कहा इधर स जरकर लत

जाइए पल क उस पार तो डयोढ़ दरज का जरकर जमलता ह

बशीधर जिरकर बोल अगर म डयोढ़ दरज का ही जरकर ल तो

इक कवाला चप हो रहा इक क की सवारी दखकर इसन ऐसा कहा यह कहत हए बशीधर आग बढ़ गय यथा-समय

रल पर बठकर बशीधर राजघार पार करक मगलसराय पहच वहा पल लाघकर दसर प लरिामट पर जा बठ आप

नवल स जमलन की खशी म प लरिामट क इस छोर स उस छोर तक रहलत रह दखत-दखत गाड़ी का धआ जदखलाई

पड़ा मसाजिर अपनी-अपनी गठरी सभालन लग रल दवी भी अपनी चाल धीमी करती हई गम भीरता स आ खड़ी

हई बशीधर एक बार चलती गाड़ी ही म शर स आजखर तक दख गय पर नवल का कही पता नही बशीधर जिर सब

गाजड़यो को दोहरा गय तहरा गय भीतर घस-घसकर एक-एक जडब ब को दखा जकत नवल न जमल अत को आप

जखजला उठ और सोचन लग जक मझ तो वसी जचटठी जलखी और आप न आया मझ अच छा उ ल बनाया अच छा

जाएग कहा भर होन पर समझ लगा सबस अजधक सोच तो इस बात का था जक जानकी सनगी तो तान पर ताना

मारगी पर अब सोचन का समय नही रल की बात ठहरी बशीधर झर गय और जानकी को लाकर जनानी गाड़ी म

जबठाया वह पछन लगी नवल की बह कहा ह वह नही आय कोई अरकाव हो गया कहकर आप बगल वाल

कमर म जा बठ जरकर तो डयोढ़ का था पर डयोढ़ दरज का कमरा कलकतत स आनवाल मसाजिरो स भरा था

इसजलए तीसर दरज म बठना पड़ा जजस गाड़ी म बशीधर बठ थ उसक सब कमरो म जमलाकर कल दस-बारह ही स तरी-

परि थ समय पर गाड़ी छरी नवल की बात और न-जान क या अगड़-बगड़ सोचत गाड़ी कई स रशन पार करक

जमरजापर पहची

जमरजापर म परराम की जशकायत शर हई उसन सझाया जक इलाहाबाद पहचन म अभी दरी ह चलन क झझर म

अच छी तरह उसकी पजा जकय जबना ही बशीधर न बनारस छोड़ा था इसजलए आप झर प लरिामट पर उतर और पानी

क बम ब स हाथ-मह धोकर एक खोचवाल स थोड़ी-सी ताजी पजड़या और जमठाई लकर जनराल म बठ आपन उनद ह

जठकान पहचाया पीछ स जानकी की सध आयी सोचा जक पहल पछ ल तब कछ मोल लग क योजक जस तरया नरखर

होती ह व रल पर खाना पसद नही करती पछन पर वही बात हई तब बशीधर लौरकर अपन कमर म आ बठ यजद

व चाहत तो इस समय डयोढ़ म बठ जात क योजक अब भीड़ कम हो गयी थी पर उनद होन कहा थोड़ी दर क जलए कौन

बखड़ा कर

बशीधर अपन कमर म बठ तो दो-एक मसाजिर अजधक दख पड़ आगवालो म स एक उतर भी गया था जो लोग थ

सब तीसर दरज क योग य जान पड़त थ अजधक सभ य कोई थ तो बशीधर ही थ उनक कमर क पास वाल कमर म एक

भल घर की स तरी बठी थी वह बचारी जसर स पर तक ओढ़ जसर झकाए एक हाथ लबा घघर काढ़ कपड़ की गठरी-सी

बनी बठी थी बशीधर न सोचा इनक सग वाल भर परि क आन पर उनक साथ बातचीत करक समय जबतावग एक-

दो करक तीसरी घण री बजी तब वह स तरी कछ अकचकाकर थोड़ा-सा मह खोल जगल क बाहर दखन लगी ज योही

गाड़ी छरी वह मानो काप-सी उठी रल का दना-लना तो हो ही गया था अब उसको जकसी की क या परवा वह

अपनी स वाभाजवक गजत स चलन लगी प लरिामट पर भीड़ भी न थी कवल दो-चार आदमी रल की अजतम जवदाई

तक खड़ थ जब तक स रशन जदखलाई जदया तब तक वह बचारी बाहर ही दखती रही जिर अस पष र स वर स रोन लगी

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उस कमर म तीन-चार परौढ़ा गरामीण जस तरया भी थी एक जो उसक पास ही थी कहन लगी - अर इनकर मनई तो नाही

आइलन हो दखहो रोवल करथईन

दसरी अर दसर गाड़ी म बठा होइह

पहली दर बौरही ई जनानी गाड़ी थड़ ह

दसरी तऊ हो भल तो कह कहकर दसरी भर मजहला स पछन लगी कौन गाव उतरब बरा मीरजपरा चढ़ी हऊ

न इसक जवाब म उसन जो कहा सो वह न सन सकी

तब पहली बोली हर हम पजछला न हम कहा काहा ऊतरब हो आय ईलाहाबास

दसरी ईलाहाबास कौन गाव हौ गोइया

पहली अर नाही जनल पयाग जी जहा मनई मकर नाहाए जाला

दसरी भला पयाग जी काह न जानीथ ल कहक नाही तोहर पच क धरम स चार दाई नहाय चकी हई ऐसो हो

सोमवारी अउर गहन दका दका लाग रहा तउन तोहर काशी जी नाहाय गइ रह

पहली आव जाय क तो सब अऊत जाता बरल बारन िन यह साइत तो जबचारो जवपत म न पड़ल बाजरली ह हम

पचा हइ राजघार जरकस करऊली मोगल क सराय उतरलीह हो द पन चढ़लीह

दसरी ऐस एक दाई हम आवत रह एक जमली औरो मोर सघ रही दकौन जरसनीया पर उकर मजलकवा उतर स जक

जरतइह गजड़या खली अब भइया ऊगरा िाड़-िाड़ नररयाय ए साहब गजड़या खड़ी कर ए साहब गजड़या तनी खड़ी

कर भला गजड़यादजहनाती काह क खड़ी होय

पहली उ महररवा बड़ी उजबक रहल भला कह क जच लाय स रलीऔ कह खड़ी होला

इसकी इस बात पर कल कमर वाल हस पड़ अब जजतन परि-जसतरया थी एक स एक अनोखी बात कहकर अपन-

अपन तजरब बयान करन लगी बीचबीच म उस अकली अबला की जसथजत पर भी दख परकर करती जाती थी

तीसरी स तरी बोली रीक कजसया प ल बाय क नाही ह सहबवा सजन तो कलकतत ताई ल मसजलया लई अर-इहो तो

नाही जक दर स आवत रहल न िरागत क बद उतर लन

चौथी हम तो इनक सग क आदमी क दखबो न जकहो गोइया

तीसरी हम दख रहली हो मजक रोपी जदहल रहलन को

इस तरह उनकी बजसर-पर की बात सनत-सनत बशीधर ऊब उठ तब व उन जसतरयो स कहन लग तम तो नाहक उनद ह

और भी डरा रही हो जरर इलाहाबाद तार गया होगा और दसरी गाड़ी स व भी वहा पहच जाएग म भी इलाहाबाद

ही जा रहा ह मर सग भी जसतरया ह जो ऐसा ही ह तो दसरी गाड़ी क आन तक म स रशन ही पर ठहरा रह गा तम लोगो

म स यजद कोई परयाग उतर तो थोड़ी दर क जलए स रशन पर ठहर जाना इनको अकला छोड़ दना उजचत नही यजद पता

मालम हो जाएगा तो म इनद ह इनक ठहरन क स थान पर भी पहचा दगा

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बशीधर की इन बातो स उन जसतरयो की वाक-धारा दसरी ओर बह चली हा यह बात तो आप भली कही नाही

भइया हम पच काजहक कहस कछ कही अर एक क एक करत न बाय तो दजनया चलत कस बाय इत याजद

जञानगाथा होन लगी कोई-कोई तो उस बचारी को सहारा जमलत दख खश हए और कोई-कोई नाराज भी हए क यो सो

म नही बतला सकती उस गाड़ी म जजतन मनष य थ सभी न इस जविय म कछ-न-कछ कह डाला था जपछल कमर म

कवल एक स तरी जो िरासीसी छीर की दलाई ओढ़ अकली बठी थी कछ नही बोली कभी-कभी घघर क भीतर स

एक आख जनकालकर बशीधर की ओर वह ताक दती थी और सामना हो जान पर जिर मह िर लती थी बशीधर

सोचन लग जक यह क या बात ह दखन म तो यह भल घर की मालम होती ह पर आचरण इसका अच छा नही

गाड़ी इलाहाबाद क पास पहचन को हई बशीधर उस स तरी को धीरज जदलाकर आकाश-पाताल सोचन लग यजद तार

म कोई खबर न आयी होगी तो दसरी गाड़ी तक स रशन पर ही ठहरना पड़गा और जो उसस भी कोई न आया तो क या

कर गा जो हो गाड़ी ननी स छर गयी अब साथ की उन अजशजकषता जसतरयो न जिर मह खोला क भइया जो कह

जबना जरक कस क आवत होय तो ओकर का सजाय होला अर ओका ई नाही चाहत रहा जक महरार क तो बठा

जदहलन अउर अपआ तउन जरक कस लई क चल जदहलन जकसी-जकसी आदमी न तो यहा तक दौड़ मारी की रात

को बशीधर इसक जवर छीनकर रिचक कर हो जाएग उस गाड़ी म एक लाठीवाला भी था उसन ख लमख ला कहा

का बाब जी कछ हमरो साझा

इसकी बात पर बशीधर करोध स लाल हो गय उनद होन इस खब धमकाया उस समय तो वह चप हो गया पर यजद

इलाहाबाद उतरता तो बशीधर स बदला जलय जबना न रहता बशीधर इलाहाबाद म उतर एक बजढ़या को भी वही

उतरना था उसस उनद होन कहा जक उनको भी अपन सग उतार लो जिर उस बजढ़या को उस स तरी क पास जबठाकर

आप जानकी को उतारन गय जानकी स सब हाल कहन पर वह बोली अर जान भी दो जकस बखड़ म पड़ हो पर

बशीधर न न माना जानकी को और उस भर मजहला को एक जठकान जबठाकर आप स रशन मास रर क पास गय

बशीधर क जात ही वह बजढ़या जजस उनदहोन रखवाली क जलए रख छोड़ा था जकसी बहान स भाग गयी अब तो

बशीधर बड़ असमजस म पड़ जरकर क जलए बखड़ा होगा कयोजक वह सतरी ब-जरकर ह लौरकर आय तो जकसी को

न पाया अर य सब कहा गयी यह कहकर चारो तरि दखन लग कही पता नही इस पर बशीधर घबराय आज

कसी बरी साइत म घर स जनकल जक एक क बाद दसरी आित म ि सत चल आ रह ह इतन म अपन सामन उस

ढलाईवाली को आत दखा त ही उन जसतरयो को कही ल गयी ह इतना कहना था जक ढलाई स मह खोलकर

नवलजकशोर जखलजखला उठ

अर यह क या सब तम हारी ही करतत ह अब म समझ गया कसा गजब तमन जकया ह ऐसी हसी मझ नही अच छी

लगती मालम होता जक वह तम हारी ही बह थी अच छा तो व गयी कहा

व लोग तो पालकी गाड़ी म बठी ह तम भी चलो

नही म सब हाल सन लगा तब चलगा हा यह तो कह तम जमरजापर म कहा स आ जनकल

जमरजापर नही म तो कलकतत स बजक मगलसराय स तम हार साथ चला आ रहा ह तम जब मगलसराय म मर

जलए चक कर लगात थ तब म डयोढ़ दज म ऊपरवाल बच पर लर तम हारा तमाशा दख रहा था जिर जमरजापर म जब

तम पर क धध म लग थ म तम हार पास स जनकल गया पर तमन न दखा म तम हारी गाड़ी म जा बठा सोचा जक

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तम हार आन पर परकर होऊ गा जिर थोड़ा और दख ल करत-करत यहा तक नौबत पहची अच छा अब चलो जो

हआा उस माि करो

यह सन बशीधर परसनद न हो गय दोनो जमतरो म बड़ परम स बातचीत होन लगी बशीधर बोल मर ऊपर जो कछ बीती

सो बीती पर वह बचारी जो तम हार-स गनवान क सग पहली ही बार रल स आ रही थी बहत तग हई उस तो तमन

नाहक रलाया बहत ही डर गयी थी

नही जी डर जकस बात का था हम-तम दोनो गाड़ी म न थ

हा पर यजद म स रशन मास रर स इजततला कर दता तो बखड़ा खड़ा हो जाता न

अर तो क या म मर थोड़ ही गया था चार हाथ की दलाई की जबसात ही जकतनी

इसी तरह बातचीत करत-करत दोनो गाड़ी क पास आय दखा तो दोनो जमतर-बधओ म खब हसी हो रही ह जानकी

कह रही थी - अर तम क या जानो इन लोगो की हसी ऐसी ही होती ह हसी म जकसी क पराण भी जनकल जाए तो भी

इनद ह दया न आव

खर दोनो जमतर अपनी-अपनी घरवाली को लकर राजी-खशी घर पहच और मझ भी उनकी यह राम-कहानी जलखन स

छटटी जमली

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एक रोकरी-भर जमटटी (1900)

माधवराव सपर

जकसी शरीमान जमीदार क महल क पास एक गरीब अनाथ जवधवा की झोपड़ी थी जमीदार साहब को अपन

महल का हाता उस झोपड़ी तक बढा ान की इच छा हई जवधवा स बहतरा कहा जक अपनी झोपड़ी हरा ल पर वह तो

कई जमान स वही बसी थी उसका जपरय पजत और इकलौता पतर भी उसी झोपड़ी म मर गया था पतोह भी एक पाच

बरस की कनद या को छोड़कर चल बसी थी अब यही उसकी पोती इस वदधाकाल म एकमातर आधार थी जब उस

अपनी पवटजसथजत की याद आ जाती तो मार दख क िर-िर रोन लगती थी और जबस उसन अपन शरीमान पड़ोसी

की इच छा का हाल सना तब स वह मतपराय हो गई थी उस झोपड़ी म उसका मन लग गया था जक जबना मर वहा स

वह जनकलना नही चाहती थी शरीमान क सब परयत न जनष िल हए तब व अपनी जमीदारी चाल चलन लग बाल की

खाल जनकालन वाल वकीलो की थली गरम कर उनद होन अदालत स झोपड़ी पर अपना कब जा करा जलया और जवधवा

को वहा स जनकाल जदया जबचारी अनाथ तो थी ही पास-पड़ोस म कही जाकर रहन लगी

एक जदन शरीमान उस झोपड़ी क आसपास रहल रह थ और लोगो को काम बतला रह थ जक वह जवधवा हाथ म एक

रोकरी लकर वहा पहची शरीमान न उसको दखत ही अपन नौकरो स कहा जक उस यहा स हरा दो पर वह

जगड़जगड़ाकर बोली महाराज अब तो यह झोपड़ी तम हारी ही हो गई ह म उस लन नही आई ह महाराज कषमा कर तो

एक जवनती ह जमीदार साहब क जसर जहलान पर उसन कहा जब स यह झोपड़ी छरी ह तब स मरी पोती न खाना-

पीना छोड़ जदया ह मन बहत-कछ समझाया पर वह एक नही मानती यही कहा करती ह जक अपन घर चल वही रोरी

खाऊ गी अब मन यह सोचा जक इस झोपड़ी म स एक रोकरी-भर जमटटी लकर उसी का च हा बनाकर रोरी पकाऊ गी

इसस भरोसा ह जक वह रोरी खान लगगी महाराज कपा करक आजञा दीजजए तो इस रोकरी म जमटटी ल आऊ शरीमान

न आजञा द दी

जवधवा झोपड़ी क भीतर गई वहा जात ही उस परानी बातो का स मरण हआ और उसकी आखो स आस की धारा

बहन लगी अपन आतररक दख को जकसी तरह सभालकर उसन अपनी रोकरी जमटटी स भर ली और हाथ स उठाकर

बाहर ल आई जिर हाथ जोड़कर शरीमान स पराथटना करन लगी महाराज कपा करक इस रोकरी को जरा हाथ लगाइए

जजसस जक म उस अपन जसर पर धर ल जमीदार साहब पहल तो बहत नाराज हए पर जब वह बार-बार हाथ जोड़न

लगी और परो पर जगरन लगी तो उनक मन म कछ दया आ गई जकसी नौकर स न कहकर आप ही स वय रोकरी उठान

आग बढ़ ज योही रोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठान लग त योही दखा जक यह काम उनकी शजि क बाहर ह जिर तो

उनद होन अपनी सब ताकत लगाकर रोकरी को उठाना चाहा पर जजस स थान पर रोकरी रखी थी वहा स वह एक हाथ

भी ऊ ची न हई वह लजजजत होकर कहन लग नही यह रोकरी हमस न उठाई जाएगी

यह सनकर जवधवा न कहा महाराज नाराज न हो आपस एक रोकरी-भर जमटटी नही उठाई जाती और इस झोपड़ी म

तो हजारो रोकररया जमटटी पड़ाी ह उसका भार आप जनद म-भर क योकर उठा सक ग आप ही इस बात पर जवचार

कीजजए

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जमीदार साहब धन-मद स गजवटत हो अपना कतटव य भल गए थ पर जवधवा क उपयटक त वचन सनत ही उनकी आख

खल गयी कतकमट का पश चाताप कर उनद होन जवधवा स कषमा मागी और उसकी झोपड़ी वाजपस द दी

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कानो म कगना

राजा राजधकारमण परसाद जसह

1

जकरन तमहार कानो म कया ह

उसक कानो स चचल लर को हराकर कहा - क गना

अर कानो म क गना सचमच दो कगन कानो को घरकर बठ थ

हा तब कहा पहन

जकरन अभी भोरी थी दजनया म जजस भोरी कहत ह वसी भोरी नही उस वन क िलो का भोलापन समझो नवीन

चमन क िलो की भगी नही जवजवध खाद या रस स जजनकी जीजवका ह जनरनदतर कार-छार स जजनका सौनददयट ह जो

दो घड़ी चचल जचकन बाल की भिा ह - दो घड़ी तमहार िलदान की शोभा वन क िल ऐस नही परकजत क हाथो स

लग ह मघो की धारा स बढ़ ह चरल दजि इनदह पाती नही जगदवाय इनदह छती नही यह सरल सनददर सौरभमय जीवन

ह जब जीजवत रह तब चारो तरि अपन पराणधन स हर-भर रह जब समय आया तब अपनी मा की गोद म झड़ पड़

आकाश सवचछ था - नील उदार सनददर पतत शानदत थ सनदधया हो चली थी सनहरी जकरन सदर पवटत की चड़ा स दख

रही थी वह पतली जकरन अपनी मतय-शया स इस शनदय जनजवड़ कानन म कया ढढ़ रही थी कौन कह जकस एकरक

दखती थी कौन जान अपनी लीला-भजम को सनह करना चाहती थी या हमार बाद वहा कया हो रहा ह इस जोहती थी

- म कया बता सक जो हो उसकी उस भगी म आकाकषा अवशय थी म तो खड़ा-खड़ उन बड़ी आखो की जकरन

लरता था आकाश म तारो को दखा या उन जगमग आखो को दखा बात एक ही थी हम दर स तारो क सनददर शनदय

जझकजमक को बार-बार दखत ह लजकन वह ससपनदद जनशचि जयोजत सचमच भावहीन ह या आप-ही-आप अपनी

अनदतर-लहरी स मसत ह इस जानना आसान नही हमारी ऐसी आख कहा जक उनक सहार उस जनगढ़ अनदतर म डबकर

थाह ल

म रसाल की डोली थामकर पास ही खड़ा था वह बालो को हराकर कगन जदखान की भगी पराणो म रह-रहकर उठती

थी जब माखन चरान वाल न गोजपयो क सर क मरक को तोड़कर उनक भीतर जकल को तोड़ डाला या नर-जहा न

अचल स कबतर को उड़ाकर शाहशाह क कठोर हदय की धजजजया उड़ा दी जिर नदी क जकनार बसनदत-बभ रसाल

पलवो की छाया म बठी जकसी अपरप बाजलका की यह सरल जसनगध भजगमा एक मानव-अनदतर पर कयो न दौड़

जकरन इन आखो क सामन परजतजदन आती ही जाती थी कभी आम क जरकोर स आचल भर लाती कभी मौलजसरी क

िलो की माला बना लाती लजकन कभी भी ऐसी बाल-सलभ लीला आखो स होकर हदय तक नही उतरी आज कया

था कौन शभ या अशभ कषण था जक अचानक वह बनली लता मदार माला स भी कही मनोरम दीख पड़ी कौन

जानता था जक चाल स कचाल जान म - हाथो स कगन भलकर कानो म पजहनन म - इतनी माधरी ह दो रक क क गन

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म इतनी शजि ह गोजपयो को कभी सवपन म भी नही झलका था जक बास की बासरी म घघर खोलकर नचा दनवाली

शजि भरी ह

मन चरपर उसक कानो स कगन उतार जलया जिर धीर-धीर उसकी उगजलयो पर चढ़ान लगा न जान उस घड़ी कसी

खलबली थी मह स अचानक जनकल आया -

जकरन आज की यह घरना मझ मरत दम तक न भलगी यह भीतर तक पठ गई

उसकी बड़ी-बड़ी आख और भी बड़ी हो गई मझ चोर-सी लगी म ततकषण योगीशवर की करी की तरि चल जदया

पराण भी उसी समय नही चल जदय यही जवसमय था

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एक जदन था जक इसी दजनया म दजनया स दर रहकर लोग दसरी दजनया का सख उठात थ हररचनददन क पलवो की

छाया भलोक पर कहा जमल लजकन जकसी समय हमार यहा भी ऐस वन थ जजनक वकषो क साय म घड़ी जनवारन क

जलए सवगट स दवता भी उतर आत थ जजस पचवरी का अननदत यौवन दखकर राम की आख भी जखल उठी थी वहा क

जनवाजसयो न कभी अमरतर क िलो की माला नही चाही मनददाजकनी क छीरो की शीतलता नही ढढ़ी ननददनोपवन

का सानी कही वन भी था कपवकष की छाया म शाजनदत अवशय ह लजकन कदम की छजहया कहा जमल सकती

हमारी-तमहारी आखो न कभी ननददनोतसव की लीला नही दखी लजकन इसी भतल पर एक जदन ऐसा उतसव हो चका

ह जजसको दख-दखकर परकजत तथा रजनी छह महीन तक ठगी रही शत-शत दवागनाओ न पाररजात क िलो की

विाट स ननददन कानन को उजाड़ डाला

समय न सब कछ पलर जदया अब ऐस वन नही जहा कषण गोलोक स उतरकर दो घड़ी वशी की रर द ऐस करीर

नही जजनक दशटन स रामचनदर का भी अनदतर परसनदन हो या ऐस मनीश नही जो धमटधरनदधर धमटराज को भी धमट म जशकषा

द यजद एक-दो भल-भरक हो भी तब अभी तक उन पर दजनया का परदा नही उठा - जगनदमाया की माया नही लगी

लजकन व कब तक बच रहग लोक अपन यहा अलौजकक बात कब तक होन दगा भवसागर की जल-तरगो पर जथर

होना कब समभव ह

हिीकश क पास एक सनददर वन ह सनददर नही अपरप सनददर ह वह परमोदवन क जवलास-जनकजो जसा सनददर नही

वरच जचतरकर या पचवरी की मजहमा स मजणडत ह वहा जचकनी चादनी म बठकर कनक घघर की इचछा नही होती

वरच पराणो म एक ऐसी आवश-धारा उठती ह जो कभी अननदत साधना क कल पर पहचाती ह - कभी जीव-जगत क

एक-एक ततव स दौड़ जमलती ह गगा की अननदत गररमा - वन की जनजवड़ योग जनरा वही दख पड़गी कौन कह वहा

जाकर यह चचल जचतत कया चाहता ह - गमभीर अलौजकक आननदद या शानदत सनददर मरण

इसी वन म एक करी बनाकर योगीशवर रहत थ योगीशवर योगीशवर ही थ यददाजप वह भतल ही पर रहत थ तथाजप उनदह

इस लोग का जीव कहना यथाथट नही था उनकी जचततवजतत सरसवती क शरीचरणो म थी या बरहमलोक की अननदत शाजनदत

म जलपरी थी और वह बाजलका - सवगट स एक रजशम उतरकर उस घन जगल म उजला करती जिरती थी वह लौजकक

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मायाबदध जीवन नही था इस बनदधन-रजहत बाधाहीन नाचती जकरनो की लखा कजहए - मानो जनमटि चचल मलय वाय

िल-िल पर डाली-डाली पर डोलती जिरती हो या कोई मजतटमान अमर सगीत बरोकरोक हवा पर या जल की तरग-

भग पर नाच रहा हो म ही वहा इस लोग का परजतजनजध था म ही उनदह उनकी अलौजकक जसथजत स इस जजरल मतयट-

राजय म खीच लाता था

कछ साल स म योगीशवर क यहा आता-जाता था जपता की आजञा थी जक उनक यहा जाकर अपन धमट क सब गरनदथ

पढ़ डालो योगीशवर और बाबा लड़कपन क साथी थ इसीजलए उनकी मझ पर इतनी दया थी जकरन उनकी लड़की

थी उस करीर म एक वही दीपक थी जजस जदन की घरना म जलख आया ह उसी जदन सबर मर अधययन की पणाटहजत

थी और बाबा क कहन पर एक जोड़ा पीतामबर पाच सवणटमराए तथा जकरन क जलए दो कनक-कगन आचायट क

जनकर ल गया था योगीशवर न सब लौरा जदय कवल कगन को जकरन उठा ल गई

वह कया समझकर चप रह गय समय का अदभत चकर ह जजस जदन मन धमटगरनदथ स मह मोड़ा उसी जदन कामदव न

वहा जाकर उनकी जकताब का पहला सिा उलरा

दसर जदन म योगीशवर स जमलन गया वह जकरन को पास जबठा कर न जान कया पढ़ा रह थ उनकी आख गमभीर थी

मझको दखत ही वह उठ पड़ और मर कनदधो पर हाथ रखकर गदगद सवर स बोल - नरनदर अब म चला जकरन तमहार

हवाल ह यह कहकर जकसी की सकोमल उगजलया मर हाथो म रख दी लोचनो क कोन पर दो बद जनकलकर झाक

पड़ी म सहम उठा कया उन पर सब बात जवजदत थी कया उनकी तीवर दजि मरी अनदतर-लहरी तक डब चकी थी वह

ठहर नही चल जदय म कापता रह गया जकरन दखती रह गई

सनदनारा छा गया वन-वाय भी चप हो चली हम दोनो भी चप चल पड़ जकरन मर कनदध पर थी हठात अनदतर स कोई

अकड़कर कह उठा - हाय नरनदर यह कया तम इस वनिल को जकस चमन म ल चल इस बनदधन-जवहीन सवगीय

जीवन को जकस लोकजाल म बाधन चल

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ककड़ी जल म जाकर कोई सथायी जववर नही िोड़ सकती कषण भर जल का समतल भल ही उलर-पलर हो लजकन

इधर-उधर स जलतरग दौड़कर उस जछर का नाम-जनशान भी नही रहन दती जगत की भी यही चाल ह यजद सवगट स

दवनदर भी आकर इस लोक चलाचल म खड़ हो जिर ससार दखत ही दखत उनदह अपना बना लगा इस काली कोठरी

म आकर इसकी काजलमा स बच रह ऐसी शजि अब आकाश-कसम ही समझो दो जदन म राम हाय जानकी हाय

जानकी कहकर वन-वन डोलत जिर दो कषण म यही जवशवाजमतर को भी सवगट स घसीर लाया

जकरन की भी यही अवसथा हई कहा परकजत की जनमटि गोद कहा जगत का जजरल बनदधन-पाश कहा स कहा आ

पड़ी वह अलौजकक भोलापन वह जनसगट उचवास - हाथो-हाथ लर गय उस वनिल की जवमल काजनदत लौजकक

चमन की मायावी मनोहाररता म पररणत हई अब आख उठाकर आकाश स नीरव बातचीत करन का अवसर कहा स

जमल मलयवाय स जमलकर मलयाचल क िलो की पछताछ कयोकर हो

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जब जकशोरी नय साच म ढलकर उतरी उस पहचानना भी कजठन था वह अब लाल चोली हरी साड़ी पहनकर सर

पर जसनददर-रखा सजती और हाथो क कगन कानो की बाली गल की कणठी तथा कमर की करधनी - जदन-जदन उसक

जचतत को नचाय मारती थी जब कभी वह सजधजकर चादनी म कोठ पर उठती और वसनदतवाय उसक आचल स

मोजतया की लपर लाकर मर बरामद म भर दता जिर जकसी मतवाली माधरी या तीवर मजदरा क नश म मरा मजसतषक

घम जाता और म चरपर अपना परम चीतकार िलदार रगीन जचटठी म भरकर जही क हाथ ऊपर भजवाता या बाजार स

दौड़कर करकी गहन वा जवलायती चड़ी खरीद लाता लजकन जो हो - अब भी कभी-कभी उसक परिल वदन पर

उस अलोक-आलोक की छरा पवटजनदम की सखसमजतवत चली आती थी और आख उसी जीवनदत सनददर जझकजमक

का नाज जदखाती थी जब अनदतर परसनदन था जिर बाहरी चिा पर परजतजबमब कयो न पड़

यो ही साल-दो-साल मरादाबाद म कर गय एक जदन मोहन क यहा नाच दखन गया वही जकनदनरी स आख जमली

जमली कया लीन हो गई नवीन यौवन कोजकल-कणठा चतर चचल चिा तथा मायावी चमक - अब जचतत को चलान

क जलए और कया चाजहए जकनदनरी सचमच जकनदनरी ही थी नाचनवाली नही नचानवाली थी पहली बार दखकर उस

इस लोक की सनददरी समझना दसतर था एक लपर जो लगती - जकसी नशा-सी चढ़ जाती यारो न मझ और भी चढ़ा

जदया आख जमलती-जमलती जमल गई हदय को भी साथ-साथ घसीर ल गई

जिर कया था - इतन जदनो की धमटजशकषा शतवतसर की पजय लकषमी बाप-दादो की कल-परजतषठा पतनी स पजवतर-परम

एक-एक करक उस परतीपत वासना-कणड म भसम होन लग अजगन और भी बढ़ती गई जकनदनरी की जचकनी दजि

जचकनी बात घी बरसाती रही घर-बार सब जल उठा म भी जनरनदतर जलन लगा लजकन जयो-जयो जलता गया जलन

की इचछा जलाती रही

पाच महीन कर गय - नशा उतरा नही बनारसी साड़ी पारसी जकर मोती का हार करकी कणटिल - सब कछ लाकर

उस मायाकारी क अलिक-रजजत चरणो पर रख जकरन हमनदत की मालती बनी थी जजस पर एक िल नही - एक

पलव नही घर की वध कया करती जो अननदत सतर स बधा था जो अनत जीवन का सगी था वही हाथो-हाथ पराय

क हाथ जबक गया - जिर य तो दो जदन क चकमकी जखलौन थ इनदह शरीर बदलत कया दर लग जदन भर बहानो की

माला गथ-गथ जकरन क गल म और शाम को मोती की माला उस नाचनवाली क गल म सशक जनलटजज डाल दना -

यही मरा जीवन जनवाटह था एक जदन सारी बात खल गई जकरन पछाड़ खाकर भजम पर जा पड़ी उसकी आखो म

आस न थ मरी आखो म दया न थी

बरसात की रात थी ररमजझम बदो की झड़ी थी चादनी मघो स आख-मदौवल खल रही थी जबजली काल कपार स

बार-बार झाकती थी जकस चचला दखती थी तथा बादल जकस मरोड़ स रह-रहकर जचलात थ - इनदह सोचन का मझ

अवसर नही था म तो जकनदनरी क दरवाज स हताश लौरा था आखो क ऊपर न चादनी थी न बदली थी जतरशक न

सवगट को जात-जात बीच म ही रगकर जकस दख को उठाया - और म तो अपन सवगट क दरवाज पर सर रखकर जनराश

लौरा था - मरी वदना कयो न बड़ी हो

हाय मरी अगजलयो म एक अगठी भी रहती तो उस नजर कर उसक चरणो पर लोरता

घर पर आत ही जही को पकार उठा - जही जकरन क पास कछ भी बचा हो तब िौरन जाकर माग लाओ

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ऊपर स कोई आवाज नही आई कवल सर क ऊपर स एक काला बादल कालानदत चीतकार क जचला उठा मरा

मजसतषक घम गया म ततकषण कोठ पर दौड़ा

सब सनददक झाक जो कछ जमला सब तोड़ डाला लजकन जमला कछ भी नही आलमारी म कवल मकड़ का जाल

था शरगार बकस म एक जछपकली बठी थी उसी दम जकरन पर झपरा

पास जात ही सहम गया वह एक तजकय क सहार जनसहाय जनसपद लरी थी - कवल चाद न जखड़की स होकर उस

गोद म ल रखा था और वाय उस शरीर पर जल स जभगोया पखा झल रही थी मख पर एक अपरप छरा थी कौन

कह कही जीवन की शि रजशम कषण-भर वही अरकी हो आखो म एक जीवन जयोजत थी शायद पराण शरीर स

जनकलकर जकसी आसर स वहा पठ रहा था म जिर पकार उठा - जकरन जकरन तमहार पास कोई गहना भी रहा ह

हा - कषीण कणठ की काकली थी

कहा ह अभी दखन दो

उसन धीर स घघर सरका कर कहा - वही कानो का क गना

सर तजकय स ढल पड़ा - आख भी जझप गई वह जीवनदत रखा कहा चली गई - कया इतन ही क जलए अब तक ठहरी

थी

आख मख पर जा पड़ी - वही कगन थ वस ही कानो को घरकर बठ थ मरी समजत तजड़त वग स नाच उठी दषयनदत न

अगठी पहचान ली भली शकनदतला उस पल याद आ गई लजकन दषयनदत सौभागयशाली थ चकरवती राजा थ - अपनी

पराणजपरया को आकाश-पाताल छानकर ढढ़ जनकाला

मरी जकरन तो इस भतल पर न थी जक जकसी तरह पराण दकर भी पता पाता परलोक स ढढ़ जनकाल - ऐसी शजि इस

दीन-हीन मानव म कहा

चढ़ा नशा उतर पड़ा सारी बात सझ गई - आखो पर की पटटी खल पड़ी लजकन हाय खली भी तो उसी समय जब

जीवन म कवल अनदधकार ही रह गया

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राजा णनरबणसया

कमलशवर

एक राजा जनरबजसया थ मा कहानी सनाया करती थी उनक आसपास ही चार-पाच बचच अपनी मजियो म िल

दबाए कहानी समापत होन पर गौरो पर चढान क जलए उतसक-स बठ जात थ आर का सनददर-सा चौक परा होता उसी

चौक पर जमटटी की छः गौर रखी जाती जजनम स ऊपरवाली क जबजनददया और जसनददर लगता बाकी पाचो नीच दबी

पजा गरहण करती रहती एक ओर दीपक की बाती जसथर-सी जलती रहती और मगल-घर रखा रहता जजस पर रोली

स सजथया बनाया जाता सभी बठ बचचो क मख पर िल चढान की उतावली की जगह कहानी सनन की सहज

जसथरता उभर आती

एक राजा जनरबजसया थ मा सनाया करती थी उनक राज म बडी खशहाली थी सब वरण क लोग अपना-अपना

काम-काज दखत थ कोई दखी नही जदखाई पडता था राजा क एक लकषमी-सी रानी थी चरमा-सी सनददर और राजा

को बहत पयारी राजा राज-काज दखत और सख-स रानी क महल म रहत

मर सामन मर खयालो का राजा था राजा जगपती तब जगपती स मरी दातकारी दोसती थी दोनो जमजडल सकल म

पढन जात दोनो एक-स घर क थ इसजलए बराबरी की जनभती थी म मजटक पास करक एक सकल म नौकर हो गया

और जगपती कसब क ही वकील क यहा महररटर जजस साल जगपती महररटर हआ उसी विट पास क गाव म उसकी

शादी हई पर ऐसी हई जक लोगो न तमाशा बना दना चाहा लडकीवालो का कछ जवशवास था जक शादी क बाद लडकी

की जवदा नही होगी

बयाह हो जाएगा और सातवी भावर तब पडगी जब पहली जवदा की सायत होगी और तभी लडकी अपनी ससराल

जाएगी जगपती की पतनी थोडी-बहत पढी-जलखी थी पर घर की लीक को कौन मर बारात जबना बह क वापस आ

गई और लडकवालो न तय कर जलया जक अब जगपती की शादी कही और कर दी जाएगी चाह कानी-लली स हो

पर वह लडकी अब घर म नही आएगी लजकन साल खतम होत-होत सब ठीक-ठाक हो गया लडकीवालो न मािी

माग ली और जगपती की पतनी अपनी ससराल आ गई

जगपती को जस सब कछ जमल गया और सास न बह की बलाइया लकर घर की सब चाजबया सौप दी गहसथी का

ढग-बार समझा जदया जगपती की मा न जान कब स आस लगाए बठी थी उनदहोन आराम की सास ली पजा-पाठ म

समय करन लगा दोपहररया दसर घरो क आगन म बीतन लगी पर

सास का रोग था उनदह सो एक जदन उनदहोन अपनी अजनदतम घजडया जगनत हए चनददा को पास बलाकर समझाया था -

बरा जगपती बड लाड-पयार का पला ह जब स तमहार ससर नही रह तब स इसक छोर-छोर हठ को परा करती रही

ह अब तम धयान रखना जिर रककर उनदहोन कहा था जगपती जकसी लायक हआ ह तो ररशतदारो की आखो म

करकन लगा ह तमहार बाप न बयाह क वि नादानी की जो तमह जवदा नही जकया मर दशमन दवर-जठो को मौका

जमल गया तमार खडा कर जदया जक अब जवदा करवाना नाक करवाना ह जगपती का बयाह कया हआ उन लोगो की

छाती पर साप लोर गया सोचा घर की इजजत रखन की आड लकर रग म भग कर द अब बरा इस घर की लाज

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तमहारी लाज ह आज को तमहार ससर होत तो भला कहत कहत मा की आखो म आस आ गए और व जगपती

की दखभाल उस सौपकर सदा क जलए मौन हो गई थी

एक अरमान उनक साथ ही चला गया जक जगपती की सनदतान को चार बरस इनदतजार करन क बाद भी व गोद म न

जखला पाई और चनददा न मन म सबर कर जलया था यही सोचकर जक कल-दवता का अश तो उस जीवन-भर पजन को

जमल गया था घर म चारो तरि जस उदारता जबखरी रहती अपनापा बरसता रहता उस लगता जस घर की अधरी

एकानदत कोठररयो म यह शानदत शीतलता ह जो उस भरमा लती ह घर की सब कजणडयो की खनक उसक कानो म बस

गई थी हर दरवाज की चरमराहर पहचान बन गई थी

एक रोज राजा आखर को गए मा सनाती थी राजा आखर को जात थ तो सातव रोज ज़रर महल म लौर आत

थ पर उस दिा जब गए तो सातवा जदन जनकल गया पर राजा नही लौर रानी को बडी जचनदता हई रानी एक मनदतरी

को साथ लकर खोज म जनकली

और इसी बीच जगपती को ररशतदारी की एक शादी म जाना पडा उसक दर ररशत क भाई दयाराम की शादी थी कह

गया था जक दसव जदन जरर वापस आ जाएगा पर छठ जदन ही खबर जमली जक बारात घर लौरन पर दयाराम क घर

डाका पड गया जकसी मखजबर न सारी खबर पहचा दी थी जक लडकीवालो न दयाराम का घर सोन-चादी स पार जदया

हआजखर पशतनी जमीदार की इकलौती लडकी थी घर आए महमान लगभग जवदा हो चक थ दसर रोज जगपती भी

चलनवाला था पर उसी रात डाका पडा जवान आदमी भला खन मानता ह डाकवालो न जब बनददक चलाई तो

सबकी जघगघी बध गई पर जगपती और दयाराम न छाती ठोककर लाजठया उठा ली घर म कोहराम मच गया जफ़र

सनदनारा छा गया डाकवाल बराबर गोजलया दाग रह थ बाहर का दरवाजा रर चका था पर जगपती न जहममत बढात

हए हाक लगाई य हवाई बनददक इन ठल-जपलाई लाजठयो का मकाबला नही कर पाएगी जवानो

पर दरवाज तड-तड ररत रह और अनदत म एक गोली जगपती की जाघ को पार करती जनकल गई दसरी उसकी जाघ

क ऊपर कह म समा कर रह गई

चनददा रोती-कलपती और मनौजतया मानती जब वहा पहची तो जगपती असपताल म था दयाराम क थोडी चोर आई

थी उस असपताल स छटटी जमल गई थी जगपती की दखभाल क जलए वही असपताल म मरीजो क ररशतदारो क जलए

जो कोठररया बनी थी उनदही म चनददा को रकना पडा कसब क असपताल स दयाराम का गाव चार कोस पडता था

दसर-तीसर वहा स आदमी आत-जात रहत जजस सामान की जररत होती पहचा जात

पर धीर-धीर उन लोगो न भी खबर लना छोड जदया एक जदन म ठीक होनवाला घाव तो था नही जाघ की हडडी

चरख गई थी और कह म ऑपरशन स छः इच गहरा घाव था

कसब का असपताल था कमपाउणडर ही मरीजो की दखभाल रखत बडा डॉकरर तो नाम क जलए था या कसब क बड

आदजमयो क जलए छोर लोगो क जलए तो कमपोरर साहब ही ईशवर क अवतार थ मरीजो की दखभाल करनवाल

ररशतदारो की खान-पीन की मजशकलो स लकर मरीज की नबज तक सभालत थ छोरी-सी इमारत म असपताल

आबाद था रोजगयो को जसिट छः-सात खार थी मरीजो क कमर स लगा दवा बनान का कमरा था उसी म एक ओर

एक आरामकसी थी और एक नीची-सी मज उसी कसी पर बडा डॉकरर आकर कभी-कभार बठता था नही तो

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बचनजसह कपाउणडर ही जम रहत असपताल म या तो िौजदारी क शहीद आत या जगर-जगरा क हाथ-पर तोड

लनवाल एक-आध लोग छठ-छमास कोई औरत जदख गई तो दीख गई जस उनदह कभी रोग घरता ही नही था कभी

कोई बीमार पडती तो घरवाल हाल बताक आठ-दस रोज की दवा एक साथ ल जात और जिर उसक जीन-मरन की

खबर तक न जमलती

उस जदन बचनजसह जगपती क घाव की पटटी बदलन आया उसक आन म और पटटी खोलन म कछ ऐसी लापरवाही

थी जस गलत बधी पगडी को ठीक स बाधन क जलए खोल रहा हो चनददा उसकी कसी क पास ही सास रोक खडी

थी वह और रोजगयो स बात करता जा रहा था इधर जमनर-भर को दखता जिर जस अभयसत-स उसक हाथ अपना

काम करन लगत पटटी एक जगह खन स जचपक गई थी जगपती बरी तरह कराह उठा चनददा क मह स चीख जनकल

गई बचनजसह न सतकट होकर दखा तो चनददा मख म धोती का पला खोस अपनी भयातर आवाज दबान की चिा कर

रही थी जगपती एकबारगी मछली-सा तडपकर रह गया बचनजसह की उगजलया थोडी-सी थरथराई जक उसकी बाह

पर रप-स चनददा का आस च पडा

बचनजसह जसहर-सा गया और उसक हाथो की अभयसत जनठराई को जस जकसी मानवीय कोमलता न धीर-स छ जदया

आहो कराहो ददट-भरी चीखो और चरखत शरीर क जजस वातावरण म रहत हए भी वह जबकल अलग रहता था

िोडो को पक आम-सा दबा दता था खाल को आल-सा छील दता था उसक मन स जजस ददट का अहसास उठ गया

था वह उस आज जिर हआ और वह बचच की तरह िक-िककर पटटी को नम करक खोलन लगा चनददा की ओर

धीर-स जनगाह उठाकर दखत हए िसिसाया चच रोगी की जहममत रर जाती ह ऐस

पर जस यह कहत-कहत उसका मन खद अपनी बात स उचर गया यह बपरवाही तो चीख और कराहो की एकरसता

स उस जमली थी रोगी की जहममत बढान की कतटवयजनषठा स नही जब तक वह घाव की मरहम-पटटी करता रहा तब

तक जकनदही दो आखो की करणा उस घर रही

और हाथ धोत समय वह चनददा की उन चजडयो स भरी कलाइयो को बजझझक दखता रहा जो अपनी खशी उसस माग

रही थी चनददा पानी डालती जा रही थी और बचनजसह हाथ धोत-धोत उसकी कलाइयो हथजलयो और परो को

दखता जा रहा था दवाखान की ओर जात हए उसन चनददा को हाथ क इशार स बलाकर कहा जदल छोरा मत करना

जाघ का घाव तो दस रोज म भर जाएगा कह का घाव कछ जदन जरर लगा अचछी स अचछी दवाई दगा दवाइया

तो ऐसी ह जक मद को चगा कर द पर हमार असपताल म नही आती जिर भी

तो जकसी दसर असपताल स नही आ सकती वो दवाइया चनददा न पछा

आ तो सकती ह पर मरीज को अपना पसा खरचना पडता ह उनम बचनजसह न कहा

चनददा चप रह गई तो बचनजसह क मह स अनायास ही जनकल पडा जकसी चीज की जररत हो तो मझ बताना रही

दवाइया सो कही न कही स इनदतजाम करक ला दगा महकम स मगाएग तो आत-अवात महीनो लग जाएग शहर क

डॉकरर स मगवा दगा ताकत की दवाइयो की बडी ज़ररत ह उनदह अचछा दखा जाएगा कहत-कहत वह रक गया

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चनददा स कतजञता भरी नजरो स उस दखा और उस लगा जस आधी म उडत पतत को कोई अरकाव जमल गया हो

आकर वह जगपती की खार स लगकर बठ गई उसकी हथली लकर वह सहलाती रही नाखनो को अपन पोरो स

दबाती रही

धीर-धीर बाहर अधरा बढ चला बचनजसह तल की एक लालरन लाकर मरीज़ो क कमर क एक कोन म रख गया

चनददा न जगपती की कलाई दबात-दबात धीर स कहा कमपाउणडर साहब कह रह थ और इतना कहकर वह

जगपती का धयान आकि करन क जलए चप हो गई

कया कह रह थ जगपती न अनमन सवर म बोला

कछ ताकत की दवाइया तमहार जलए जररी ह

म जानता ह

पर

दखो चनददा चादर क बराबर ही पर िलाए जा सकत ह हमारी औकात इन दवाइयो की नही ह

औकात आदमी की दखी जाती ह जक पस की तम तो

दखा जाएगा

कमपाउणडर साहब इनदतजाम कर दग उनस कह गी म

नही चनददा उधारखात स मरा इलाज नही होगा चाह एक क चार जदन लग जाए

इसम तो

तम नही जानती कजट कोढ का रोग होता ह एक बार लगन स तन तो गलता ही ह मन भी रोगी हो जाता ह

लजकनकहत-कहत वह रक गई

जगपती अपनी बात की रक रखन क जलए दसरी ओर मह घमाकर लरा रहा

और तीसर रोज जगपती क जसरहान कई ताकत की दवाइया रखी थी और चनददा की ठहरन वाली कोठरी म उसक

लरन क जलए एक खार भी पहच गई थी चनददा जब आई तो जगपती क चहर पर मानजसक पीडा की असखय रखाए

उभरी थी जस वह अपनी बीमारी स लडन क अलावा सवय अपनी आतमा स भी लड रहा हो चनददा की नादानी और

सनह स भी उलझ रहा हो और सबस ऊपर सहायता करनवाल की दया स जझ रहा हो

चनददा न दखा तो यह सब सह न पाई उसक जी म आया जक कह द कया आज तक तमन कभी जकसी स उधार पस

नही जलए पर वह तो खद तमन जलए थ और तमह मर सामन सवीकार नही करना पडा था इसीजलए लत जझझक नही

लगी पर आज मर सामन उस सवीकार करत तमहारा झठा पौरि जतलजमलाकर जाग पडा ह पर जगपती क मख पर

जबखरी हई पीडा म जजस आदशट की गहराई थी वह चनददा क मन म चोर की तरह घस गई और बडी सवाभाजवकता स

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उसन माथ पर हाथ िरत हए कहा य दवाइया जकसी की महरबानी नही ह मन हाथ का कडा बचन को द जदया था

उसी म आई ह

मझस पछा तक नही और जगपती न कहा और जस खद मन की कमजोरी को दबा गया - कडा बचन स तो अचछा

था जक बचनजसह की दया ही ओढ ली जाती और उस हका-सा पछतावा भी था जक नाहक वह रौ म बडी-बडी बात

कह जाता ह जञाजनयो की तरह सीख द दता ह

और जब चनददा अधरा होत उठकर अपनी कोठरी म सोन क जलए जान को हई तो कहत-कहत यह बात दबा गई जक

बचनजसह न उसक जलए एक खार का इनदतजाम भी कर जदया ह कमर स जनकली तो सीधी कोठरी म गई और हाथ

का कडा लकर सीध दवाखान की ओर चली गई जहा बचनजसह अकला डॉकरर की कसी पर आराम स राग िलाए

लमप की पीली रोशनी म लरा था जगपती का वयवहार चनददा को लग गया था और यह भी जक वह कयो बचनजसह

का अहसान अभी स लाद ल पजत क जलए जवर की जकतनी औकात ह वह बधडक-सी दवाखान म घस गई जदन

की पहचान क कारण उस कमर की मज-कसी और दवाओ की अलमारी की जसथजत का अनमान था वस कमरा

अधरा ही पडा था कयोजक लमप की रोशनी कवल अपन वतत म अजधक परकाशवान होकर कोनो क अधर को और भी

घनीभत कर रही थी बचनजसह न चनददा को घसत ही पहचान जलया वह उठकर खडा हो गया चनददा न भीतर कदम

तो रख जदया पर सहसा सहम गई जस वह जकसी अधर कए म अपन-आप कद पडी हो ऐसा कआ जो जनरनदतर पतला

होता गया ह और जजसम पानी की गहराई पाताल की पतो तक चली गई हो जजसम पडकर वह नीच धसती चली जा

रही हो नीच अधराएकानदत घरनपाप

बचनजसह अवाक ताकता रह गया और चनददा ऐस वापस लौर पडी जस जकसी काल जपशाच क पजो स मजि जमली

हो बचनजसह क सामन कषण-भर म सारी पररजसथजत कौध गई और उसन वही स बहत सयत आवाज म जबान को

दबात हए जस वाय म सपि धवजनत कर जदया - चनददा वह आवाज इतनी ब-आवाज थी और जनरथटक होत हए भी

इतनी साथटक थी जक उस खामोशी म अथट भर गया चनददा रक गई बचनजसह उसक पास जाकर रक गया

सामन का घना पड सतबध खडा था उसकी काली परछाई की पररजध जस एक बार िलकर उनदह अपन वतत म समर

लती और दसर ही कषण मि कर दती दवाखान का लमप सहसा भभककर रक गया और मरीजो क कमर स एक

कराह की आवाज दर मदान क छो तक जाकर डब गई

चनददा न वस ही नीच ताकत हए अपन को सयत करत हए कहा यह कडा तमह दन आई थी

तो वापस कयो चली जा रही थी

चनददा चप और दो कषण रककर उसन अपन हाथ का सोन का कडा धीर-स उसकी ओर बढा जदया जस दन का साहस

न होत हए भी यह काम आवशयक था बचनजसह न उसकी सारी काया को एक बार दखत हए अपनी आख उसक

जसर पर जमा दी उसक ऊपर पड कपड क पार नरम जचकनाई स भर लमब-लमब बाल थ जजनकी भाप-सी महक

िलती जा रही थी वह धीर-धीर स बोला लाओ

चनददा न कडा उसकी ओर बढा जदया कडा हाथ म लकर वह बोला सनो

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चनददा न परशन-भरी नजर उसकी ओर उठा दी उनम झाकत हए अपन हाथ स उसकी कलाई पकडत हए उसन वह कडा

उसकी कलाई म पहना जदया चनददा चपचाप कोठरी की ओर चल दी और बचनजसह दवाखान की ओर

काजलख बरी तरह बढ गई थी और सामन खड पड की काली परछाई गहरी पड गई थी दोनो लौर गए थ पर जस उस

काजलख म कछ रह गया था छर गया था दवाखान का लमप जो जलत-जलत एक बार भभका था उसम तल न रह

जान क कारण बतती की लौ बीच स िर गई थी उसक ऊपर धए की लकीर बल खाती साप की तरह अधर म जवलीन

हो जाती थी

सबह जब चनददा जगपती क पास पहची और जबसतर ठीक करन लगी तो जगपती को लगा जक चनददा बहत उदास थी

कषण-कषण म चनददा क मख पर अनजगनत भाव आ-जा रह थ जजनम असमजस था पीडा थी और जनरीहता थी कोई

अदशय पाप कर चकन क बाद हदय की गहराई स जकए गए पशचाताप जसी धजमल चमक

रानी मनदतरी क साथ जब जनराश होकर लौरी तो दखा राजा महल म उपजसथत थ उनकी खशी का जठकाना न रहा

मा सनाया करती थी पर राजा को रानी का इस तरह मनदतरी क साथ जाना अचछा नही लगा रानी न राजा को

समझाया जक वह तो कवल राजा क परजत अरर परम क कारण अपन को न रोक सकी राजा-रानी एक-दसर को बहत

चाहत थ दोनो क जदलो म एक बात शल-सी गडती रहती जक उनक कोई सनदतान न थी राजवश का दीपक बझन जा

रहा था सनदतान क अभाव म उनका लोक-परलोक जबगडा जा रहा था और कल की मयाटदा नि होन की शका बढती

जा रही थी

दसर जदन बचनजसह न मरीजो की मरहम-पटटी करत वि बताया था जक उसका तबादला मनपरी क सदर असपताल म

हो गया ह और वह परसो यहा स चला जाएगा जगपती न सना तो उस भला ही लगा आए जदन रोग घर रहत ह

बचनजसह उसक शहर क असपताल म पहचा जा रहा ह तो कछ मदद जमलती ही रहगी आजखर वह ठीक तो होगा ही

और जिर मनपरी क जसवा कहा जाएगा पर दसर ही कषण उसका जदल अकथ भारीपन स भर गया पता नही कयो

चनददा क अजसततव का धयान आत ही उस इस सचना म कछ ऐस नकील कार जदखाई दन लग जो उसक शरीर म

जकसी भी समय चभ सकत थ जरा-सा बखबर होन पर बीध सकत थ और तब उसक सामन आदमी क अजधकार की

लकषमण-रखाए धए की लकीर की तरह कापकर जमरन लगी और मन म छप सनददह क राकषस बाना बदल योगी क रप

म घमन लग

और पनदरह-बीस रोज बाद जब जगपती की हालत सधर गई तो चनददा उस लकर घर लौर आई जगपती चलन-जिरन

लायक हो गया था घर का ताला जब खोला तब रात झक आई थी और जिर उनकी गली म तो शाम स ही अधरा

झरना शर हो जाता था पर गली म आत ही उनदह लगा जस जक वनवास कारकर राजधानी लौर हो नककड पर ही

जमना सनार की कोठरी म सरही जिक रही थी जजसक दराजदार दरवाजो स लालरन की रोशनी की लकीर झाक रही

थी और कचची तमबाक का धआ रधी गली क महान पर बरी तरह भर गया था सामन ही मशीजी अपनी जजगला

खजरया क गङढ म कपपी क मजधदम परकाश म खसरा-खतौनी जबछाए मीजान लगान म मशगल थ जब जगपती क

घर का दरवाजा खडका तो अधर म उसकी चाची न अपन जगल स दखा और वही स बठ-बठ अपन घर क भीतर

ऐलान कर जदया - राजा जनरबजसया असपताल स लौर आए कलमा भी आई ह

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य शबद सनकर घर क अधर बरोठ म घसत ही जगपती हािकर बठ गया झझलाकर चनददा स बोला अधर म कया मर

हाथ-पर तडवाओगी भीतर जाकर लालरन जला लाओ न

तल नही होगा इस वि जरा ऐस ही काम

तमहार कभी कछ नही होगा न तल न कहत-कहत जगपती एकदम चप रह गया और चनददा को लगा जक आज

पहली बार जगपती न उसक वयथट माततव पर इतनी गहरी चोर कर दी जजसकी गहराई की उसन कभी कपना नही की

थी दोनो खामोश जबना एक बात जकए अनददर चल गए

रात क बढत सनदनार म दोनो क सामन दो बात थी जगपती क कानो म जस कोई वयगय स कह रहा था - राजा

जनरबजसया असपताल स आ गए

और चनददा क जदल म यह बात चभ रही थी - तमहार कभी कछ नही होगा और जससकती-जससकती चनददा न जान कब

सो गई पर जगपती की आखो म नीद न आई खार पर पड-पड उसक चारो ओर एक मोहक भयावना-सा जाल िल

गया लर-लर उस लगा जस उसका सवय का आकार बहत कषीण होता-होता जबनदद-सा रह गया पर जबनदद क हाथ थ

पर थ और जदल की धडकन भी कोठरी का घरा-घरा-सा अजधयारा मरमली दीवार और गहन गिाओ-सी

अलमाररया जजनम स बार-बार झाककर दखता था और वह जसहए उठता था जफ़र जस सब कछ तबदील हो गया हो

उस लगा जक उसका आकार बढता जा रहा ह बढता जा रहा ह वह मनषय हआ लमबा-तगडा-तनददरसत परि हआ

उसकी जशराओ म कछ िर पडन क जलए वयाकलता स खौल उठा उसक हाथ शरीर क अनपात स बहत बड ड़रावन

और भयानक हो गए उनक लमब-लमब नाखन जनकल आए वह राकषस हआ दतय हआआजदम बबटर

और बडी तजी स सारा कमरा एकबारगी चककर कार गया जिर सब धीर-धीर जसथर होन लगा और उसकी सास ठीक

होती जान पडी जफ़र जस बहत कोजशश करन पर जघगघी बध जान क बाद उसकी आवाज फ़री चनददा

चनददा की नरम सासो की हकी सरसराहर कमर म जान डालन लगी जगपती अपनी पारी का सहारा लकर झका

कापत पर उसन जमीन पर रख और चनददा की खार क पाए स जसर जरकाकर बठ गया उस लगा जस चनददा की इन

सासो की आवाज म जीवन का सगीत गज रहा ह वह उठा और चनददा क मख पर झक गया उस अधर म आख

गडाए-गडाए जस बहत दर बाद सवय चनददा क मख पर आभा िरकर अपन-आप जबखरन लगी उसक नकश उजजवल

हो उठ और जगपती की आखो को जयोजत जमल गई वह मगध-सा ताकता रहा

चनददा क जबखर बाल जजनम हाल क जनदम बचच क गभआर बालो की-सी महक दध की कचाइध शरीर क रस की-

सी जमठास और सनह-सी जचकनाहर और वह माथा जजस पर बालो क पास तमाम छोर-छोर नरम-नरम-नरम-स रोए-

रशम स और उस पर कभी लगाई गई सदर की जबनददी का हका जमरा हआ-सा आभास ननदह-ननदह जनदवटनददव सोए

पलक और उनकी मासम-सी कारो की तरह बरौजनया और सास म घलकर आती हई वह आतमा की जनषकपर

आवाज की लय फ़ल की पखरी-स पतल-पतल ओठ उन पर पडी अछती रखाए जजनम जसिट दध-सी महक

उसकी आखो क सामन ममता-सी छा गई कवल ममता और उसक मख स असिर शबद जनकल गया बचची

डरत-डरत उसक बालो की एक लर को बड ज़तन स उसन हथली पर रखा और उगली स उस पर जस लकीर खीचन

लगा उस लगा जस कोई जशश उसक अक म आन क जलए छरपराकर जनराश होकर सो गया हो उसन दोनो

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हथजलयो को पसारकर उसक जसर को अपनी सीमा म भर लना चाहा जक कोई कठोर चीज उसकी उगजलयो स रकराई

वह जस होश म आया

बड सहार स उसन चनददा क जसर क नीच ररोला एक रमाल म बधा कछ उसक हाथ म आ गया अपन को सयत

करता वह वही जमीन पर बठ गया उसी अनदधर म उस रमाल को खोला तो जस साप सघ गया चनददा क हाथो क

दोनो सोन क कड उसम जलपर थ

और तब उसक सामन सब सजि धीर-धीर रकड-रकड होकर जबखरन लगी य कड तो चनददा बचकर उसका इलाज

कर रही थी व सब दवाइया और ताकत क रॉजनकउसन तो कहा था य दवाइया जकसी की महरबानी नही ह मन हाथ

क कड बचन को द जदए थ पर उसका गला बरी तरह सख गया जबान जस ताल स जचपककर रह गई उसन चाहा जक

चनददा को झकाझोरकर उठाए पर शरीर की शजि बह-सी गई थी रि पानी हो गया था थोडा सयत हआ उसन व

कड उसी रमाल म लपरकर उसकी खार क कोन पर रख जदए और बडी मजशकल स अपनी खार की पारी पकडकर

लढक गया चनददा झठ बोली पर कयो कड आज तक छपाए रही उसन इतना बडा दराव कयो जकया आजखर कयो

जकसजलए और जगपती का जदल भारी हो गया उस जिर लगा जक उसका शरीर जसमरता जा रहा ह और वह एक

सीक का बना ढाचा रह गया जनतानदत हका जतनक-सा हवा म उडकर भरकन वाल जतनक-सा

उस रात क बाद रोज जगपती सोचता रहा जक चनददा स कड मागकर बच ल और कोई छोरा-मोरा कारोबार ही शर

कर द कयोजक नौकरी छर चकी थी इतन जदन की गरहाजजरी क बाद वकील साहब न दसरा महररटर रख जलया था वह

रोज यही सोचता पर जब चनददा सामन आती तो न जान कसी असहाय-सी उसकी अवसथा हो जाती उस लगता जस

कड मागकर वह चनददा स पतनीतव का पद भी छीन लगा माततव तो भगवान न छीन ही जलया वह सोचता आजखर

चनददा कया रह जाएगी एक सतरी स यजद पतनीतव और माततव छीन जलया गया तो उसक जीवन की साथटकता ही कया

चनददा क साथ वह यह अनदयाय कस कर उसस दसरी आख की रोशनी कस माग ल जिर तो वह जनतानदत अनदधी हो

जाएगी और उन कडो कोमागन क पीछ जजस इजतहास की आतमा नगी हो जाएगी कस वह उस लजजा को सवय ही

उधारकर ढापगा

और वह उनदही खयालो म डबा सबह स शाम तक इधर-उधर काम की रोह म घमता रहता जकसी स उधार ल ल पर

जकस समपजतत पर कया ह उसक पास जजसक आधार पर कोई उस कछ दगा और महल क लोग जो एक-एक पाई

पर जान दत ह कोई चीज खरीदत वि भाव म एक पसा कम जमलन पर मीलो पदल जाकर एक पसा बचात ह एक-

एक पस की मसाल की पजडया बधवाकर गयारह मतटबा पसो का जहसाब जोडकर एकाध पसा उधारकर जमनदनत करत

सौदा घर लात ह गली म कोई खोचवाला िस गया तो दो पस की चीज को लड-झगडकर - चार दान जयादा पान की

नीयत स दो जगह बधवात ह भाव क जरा-स िकट पर घणरो बहस करत ह शाम को सडी-गली तरकाररयो को

जकिायत क कारण लात ह ऐस लोगो स जकस मह स मागकर वह उनकी गरीबी क अहसास पर ठोकर लगाए पर उस

जदन शाम को जब वह घर पहचा तो बरोठ म ही एक साइजकल रखी नजर आई जदमाग पर बहत जोर डालन क बाद

भी वह आगनदतक की कपना न कर पाया भीतरवाल दरवाज पर जब पहचा तो सहसा हसी की आवाज सनकर

जठठक गया उस हसी म एक अजीब-सा उनदमाद था और उसक बाद चनददा का सवर - अब आत ही होग बजठए न दो

जमनर और अपनी आख स दख लीजजए और उनदह समझात जाइए जक अभी तनददरसती इस लायक नही जो जदन-

जदन-भर घमना बदाटशत कर सक

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हा भई कमजोरी इतनी जदी नही जमर सकती खयाल नही करग तो नकसान उठाएग कोई परि-सवर था यह

जगपती असमजस म पड गया वह एकदम भीतर घस जाए इसम कया हजट ह पर जब उसन पर उठाए तो व बाहर

जा रह थ बाहर बरोठ म साइजकल को पकडत ही उस सझ आई वही स जस अनजान बनता बड परयतन स आवाज

को खोलता जचलाया अर चनददा यह साइजकल जकसकी ह कौन महरबान

चनददा उसकी आवाज सनकर कमर स बाहर जनकलकर जस खश-खबरी सना रही थी अपन कमपाउणडर साहब आए

ह खोजत-खोजत आज घर का पता पाए ह तमहार इनदतजार म बठ ह

कौन बचनजसह अचछाअचछा वही तो म कह भला कौन कहता जगपती पास पहचा और बातो म इस तरह

उलझ गया जस सारी पररजसथजत उसन सवीकार कर ली हो बचनजसह जब जिर आन की बात कहकर चला गया तो

चनददा न बहत अपनपन स जगपती क सामन बात शर की जान कस-कस आदमी होत ह

कयो कया हआ कस होत ह आदमी जगपती न पछा

इतनी छोरी जान-पहचान म तम मदो क घर म न रहत घसकर बठ सकत हो तम तो उर परो लौर आओग चनददा

कहकर जगपती क मख पर कछ इजचछत परजतजकरया दख सकन क जलए गहरी जनगाहो स ताकन लगी

जगपती न चनददा की ओर ऐस दखा जस यह बात भी कहन की या पछन की ह जिर बोला बचनजसह अपनी तरह

का आदमी ह अपनी तरह का अकला

होगापर कहत-कहत चनददा रक गई

आड वि काम आन वाला आदमी ह लजकन उसस िायदा उठा सकना जजतना आसान ह उतनामरा मतलब ह

जक जज़सस कछ जलया जाएगा उस जदया भी जाएगा जगपती न आख दीवार पर गडात हए कहा और चनददा उठकर

चली गई

उस जदन क बाद बचनजसह लगभग रोज ही आन-जान लगा जगपती उसक साथ इधर-उधर घमता भी रहता

बचनजसह क साथ वह जब तक रहता अजीब-सी घरन उसक जदल को बाध लती और तभी जीवन की तमाम

जविमताए भी उसकी जनगाहो क सामन उभरन लगती आजखर वह सवय एक आदमी हबकार यह माना जक उसक

सामन पर पालन की कोई इतनी जवकराल समसया नही वह भखो नही मर रहा ह जाड म काप नही रहा ह पर उसक

दो हाथ-पर हशरीर का जपजरा ह जो कछ मागता हकछ और वह सोचता यह कछ कया ह सख शायद हा शायद

नही वह तो दःख म भी जी सकन का आदी ह अभावो म जीजवत रह सकन वाला आशचयटजनक कीडा ह तो जिर

वासना शायद हा शायद नही चनददा का शरीर लकर उसन उस कषजणकता को भी दखा ह तो जिर धनशायद हा

शायद नही उसन धन क जलए अपन को खपाया ह पर वह भी तो उस अदशय पयास को बझा नही पाया तो जिर तो

जिर कया वह कछ कया ह जो उसकी आतमा म नासर-सा ररसता रहता ह अपना उपचार मागता ह शायद काम हा

यही जबकल यही जो उसक जीवन की घजडयो को जनपर सना न छोड जज़सम वह अपनी शजि लगा सक अपना

मन डबो सक अपन को साथटक अनभव कर सक चाह उसम सख हो या दख अरकषा हो या सरकषा शोिण हो या

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पोिणउस जसिट काम चाजहए करन क जलए कछ चाजहए यही तो उसकी परकत आवशयकता ह पहली और आजखरी

माग ह कयोजक वह उस घर म नही पदा हआ जहा जसिट जबान जहलाकर शासन करनवाल होत ह वह उस घर म भी

नही पदा हआ जहा जसिट मागकर जीनवाल होत ह वह उस घर का ह जो जसिट काम करना जानता ह काम ही

जजसकी आस ह जसिट वह काम चाहता ह काम

और एक जदन उसकी काम-धाम की समसया भी हल हो गई तालाब वाल ऊच मदान क दजकषण ओर जगपती की

लकडी की राल खल गई बोडट तक रग गया राल की जमीन पर लकषमी-पजन भी हो गया और हवन भी हआ

लकडी को कोई कमी नही थी गाव स आनवाली गाजडयो को इस कारोबार म पर हए आदजमयो की मदद स मोल-

तोल करवा क वहा जगरवा जदया गया गाठ एक ओर रखी गई चलो का चटटा करीन स लग गया और गदद चीरन क

जलए डाल जदए गए दो-तीन गाजडयो का सौदा करक राल चाल कर दी गई भजवषय म सवय पड खरीदकर करान का

तय जकया गया बडी-बडी सकीम बनी जक जकस तरह जलान की लकडी स बढात-बढात एक जदन इमारती लकडी की

कोठी बनगी चीरन की नई मशीन लगगी कारबार बढ ज़ान पर बचनजसह भी नौकरी छोडकर उसी म लग जाएगा

और उसन महसस जकया जक वह काम म लग गया ह अब चौबीसो घणर उसक सामन काम हउसक समय का उपयोग

ह जदन-भर म वह एक घणर क जलए जकसी का जमतर हो सकता ह कछ दर क जलए वह पजत हो सकता ह पर बाकी

समय जदन और रात क बाकी घणरउन घणरो क अभाव को जसिट उसका अपना काम ही भर सकता ह और अब वह

कामदार था

वह कामदार तो था लजकन जब राल की उस ऊची जमीन पर पड छपपर क नीच तखत पर वह गला रखकर बठता

सामन लग लकजडयो क ढर कर हए पड क तन जडो को लढका हआ दखता तो एक जनरीहता बरबस उसक जदल

को बाधन लगती उस लगता एक वयथट जपशाच का शरीर रकड-रकड करक उसक सामन डाल जदया गया हजिर इन

पर कहाडी चलगी और इनक रश-रश अलग हो जाएग और तब इनकी ठठररयो को सखाकर जकसी पसवाल क हाथ

तक पर तौलकर बच जदया जाएगा और तब उसकी जनगाह सामन खड ताड पर अरक जाती जजसक बड-बड पततो पर

सखट गदटनवाल जगदध पर िडफ़डाकर दर तक खामोश बठ रहत ताड का काला गडरदार तना और उसक सामन ठहरी

हई वाय म जनससहाय कापती भारहीन नीम की पजततया चकराती झडती रहती धल-भरी धरती पर लकडी की

गाजडयोक पजहयो की पडी हई लीक धधली-सी चमक उठती और बगलवाल मगिली क पच की एकरस खरखराती

आवाज कानो म भरन लगती बगलवाली कचची पगडणडी स कोई गजरकर रील क ढलान स तालाब की जनचाई म

उतर जाता जजसक गदल पानी म कडा तरता रहता और सअर कीचड म मह डालकर उस कड को रौदत दोपहर

जसमरती और शाम की धनदध छान लगती तो वह लालरन जलाकर छपपर क खमभ की कील म राग दता और उसक

थोडी ही दर बाद असपतालवाली सडक स बचनजसह एक काल धबब की तरह आता जदखाई पडता गहर पडत अनदधर

म उसका आकार धीर-धीर बढता जाता और जगपती क सामन जब वह आकर खडा होता तो वह उस बहत

जवशाल-सा लगन लगता जजसक सामन उस अपना अजसततव डबता महसस होता

एक-आध जबकरी की बात होती और तब दोनो घर की ओर चल दत घर पहचकर बचनजसह कछ दर जरर रकता

बठता इधर-उधर की बात करता कभी मौका पड ज़ाता तो जगपती और बचनजसह की थाली भी साथ लग जाती

चनददा सामन बठकर दोनो को जखलाती

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बचनजसह बोलता जाता कया तरकारी बनी ह मसाला ऐसा पडा ह जक उसकी भी बहार ह और तरकारी का सवाद भी

न मरा होरलो म या तो मसाला ही मसाला रहगा या जसिट तरकारी ही तरकारी वाह वाह कया बात ह अनददाज की

और चनददा बीच-बीच म रोककर बोलती जाती इनदह तो जब तक दाल म पयाज का भना घी न जमल तब तक पर ही

नही भरता

या - जसरका अगर इनदह जमल जाए तो समझो सब कछ जमल गया पहल मझ जसरका न जान कसा लगता था पर

अब ऐसा जबान पर चढा ह जक या - इनदह कागज-सी पतली रोरी पसनदद ही नही आती अब मझस कोई पतली रोरी

बनान को कह तो बनती ही नही आदत पड गई ह और जिर मन ही नही करता पर चनददा की आख बचनजसह की

थाली पर ही जमी रहती रोरी जनबरी तो रोरी परोस दी दाल खतम नही हई तो भी एक चमचा और परोस दी और

जगपती जसर झकाए खाता रहता जसिट एक जगलास पानी मागता और चनददा चौककर पानी दन स पहल कहती अर

तमन तो कछ जलया भी नही कहत-कहत वह पानी द दती और तब उसक जदल पर गहरी-सी चोर लगती न जान

कयो वह खामोशी की चोर उस बडी पीडा द जाती पर वह अपन को समझा लती कोई महमान तो नही ह माग सकत

थ भख नही होगी

जगपती खाना खाकर राल पर लरन चला जाता कयोजक अभी तक कोई चौकीदार नही जमला था छपपर क नीच

तखत पर जब वह लरता तो अनायास ही उसका जदल भर-भर आता पता नही कौन-कोन स ददट एक-दसर स जमलकर

तरह-तरह की रीस चरख और ऐठन पदा करन लगत कोई एक रग दखती तो वह सहलाता भी जब सभी नस

चरखती हो तो कहा-कहा राहत का अकला हाथ सहलाए

लर-लर उसकी जनगाह ताड क उस ओर बनी पखता कबर पर जम जाती जजसक जसराहन करीला बबल का एकाकी

पड सनदन-सा खडा रहता जजस कबर पर एक पदाटनशीन औरत बड जलहाज स आकर सवर-सवर बला और चमली क

िल चढा जाती घम-घमकर उसक िर लती और माथा रककर कछ कदम उदास-उदास-सी चलकर एकदम तजी स

मडकर जबसाजतयो क महल म खो जाती शाम होत जिर आती एक दीया बारती और अगर की बजततया जलाती

जिर मडत हए ओढनी का पला कनदधो पर डालती तो दीय की लौ कापती कभी कापकर बझ जाती पर उसक कदम

बढ चक होत पहल धीम थक उदास-स और जिर तज सध सामानदय-स और वह जिर उसी महल म खो जाती और

तब रात की तनहाइयो म बबल क कारो क बीच उस साय-साय करत ऊच-नीच मदान म जस उस कबर स कोई रह

जनकलकर जनपर अकली भरकती रहती

तभी ताड पर बठ सखट गदटनवाल जगधद मनह स-सी आवाज म जकलजबला उठत और ताड क पतत भयानकता स

खडबडा उठत जगपती का बदन काप जाता और वह भरकती रह जजनददा रह सकन क जलए जस कबर की इरो म

बबल क साया-तल दबक जाती जगपती अपनी रागो को पर स भीचकर कमबल स मह छपा औधा लर जाता

तडक ही ठक पर लग लकडहार लकडी चीरन आ जात तब जगपती कमबल लपर घर की ओर चला जाता

राजा रोज सवर रहलन जात थ मा सनाया करती थी एक जदन जस ही महल क बाहर जनकलकर आए जक सडक

पर झाड लगानवाली महतरानी उनदह दखत ही अपना झाडपजा परककर माथा पीरन लगी और कहन लगी हाय राम

आज राजा जनरबजसया का मह दखा ह न जान रोरी भी नसीब होगी जक नही न जान कौन-सी जवपत रर पड राजा

को इतना दःख हआ जक उर परो महल को लौर गए मनदतरी को हकम जदया जक उस महतरानी का घर नाज स भर द

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और सब राजसी वसतर उतार राजा उसी कषण जगल की ओर चल गए उसी रात रानी को सपना हआ जक कल की रात

तरी मनोकामना परी करनवाली ह रानी बहत पछता रही थी पर िौरन ही रानी राजा को खोजती-खोजती उस सराय

म पहच गई जहा वह जरक हए थ रानी भस बदलकर सवा करन वाली भजरयाररन बनकर राजा क पास रात म पहची

रातभर उनक साथ रही और सबह राजा क जगन स पहल सराय छोड महल म लौर गई राजा सबह उठकर दसर दश

की ओर चल गए दो ही जदनो म राजा क जनकल जान की खबर राज-भर म िल गई राजा जनकल गए चारो तरि

यही खबर थी

और उस जदन रोल-महल क हर आगन म बरसात क मह की तरह यह खबर बरसकर िल गई जक चनददा क बाल-

बचचा होन वाला ह

नककड पर जमना सनार की कोठरी म जिकती सरही रक गई मशीजी न अपना मीजान लगाना छोड जवसिाररत नतरो

स ताककर खबर सनी बसी जकरानवाल न कए म स आधी गई रससी खीच डोल मन पर परककर सना सदशटन दजी

न मशीन क पजहए को हथली स रगडकर रोककर सना हसराज पजाबी न अपनी नील-लगी मलगजी कमीज की

आसतीन चढात हए सना और जगपती की बवा चाची न औरतो क जमघर म बड जवशवास पर भद-भर सवर म सनाया

- आज छः साल हो गए शादी को न बाल न बचचा न जान जकसका पाप ह उसक पर म और जकसका होगा जसवा

उस मसरणड कमपोरर क न जान कहा स कलचछनी इस महल म आ गई इस गली की तो पशतो स ऐसी मरजाद

रही ह जक गर-मदट औरत की परछाई तब नही दख पाए यहा क मदट तो बस अपन घर की औरतो को जानत ह उनदह तो

पडोसी क घर की जनाजनयो की जगनती तक नही मालम यह कहत-कहत उनका चहरा तमतमा आया और सब

औरत दवलोक की दजवया की तरह गमभीर बनी अपनी पजवतरता की महानता क बोझ स दबी धीर-धीर जखसक गई

सबह यह खबर िलन स पहल जगपती राल पर चला गया था पर सनी उसन भी आज ही थी जदन-भर वह तखत पर

कोन की ओर मह जकए पडा रहा न ठक की लकजडया जचराई न जबकरी की ओर धयान जदया न दोपहर का खाना खान

ही घर गया जब रात अचछी तरह िल गई वह जहसक पश की भाजत उठा उसन अपनी अगजलया चरकाई मिी

बाधकर बाह का जोर दखा तो नस तनी और बाह म कठोर कमपन-सा हआ उसन तीन-चार परी सास खीची और

मजबत कदमो स घर की ओर चल पडा मदान खतम हआ ककड की सडक आईसडक खतम हई गली आई पर

गली क अनदधर म घसत वह सहम गया जस जकसी न अदशय हाथो स उस पकडकर सारा रि जनचोड जलया उसकी

िरी हई शजि की नस पर जहम-शीतल होठ रखकर सारा रस चस जलया और गली क अधर की जहकारत-भरी

काजलख और भी भारी हो गई जजसम घसन स उसकी सास रक जाएगीघर जाएगी

वह पीछ मडा पर रक गया जिर कछ सयत होकर वह चोरो की तरह जनःशबद कदमो स जकसी तरह घर की भीतरी

दहरी तक पहच गया

दाई ओर की रसोईवाली दहलीज म कपपी जरमजरमा रही थी और चनददा असत-वयसत-सी दीवार स जसर रक शायद

आसमान जनहारत-जनहारत सो गई थी कपपी का परकाश उसक आध चहर को उजागर जकए था और आधा चहरा गहन

काजलमा म डबा अदशय था वह खामोशी स खडा ताकता रहा चनददा क चहर पर नारीतव की परौढता आज उस

जदखाई दी चहर की सारी कमनीयता न जान कहा खो गई थी उसका अछतापन न जान कहा लपत हो गया था िला-

िला मख जस रहनी स तोड फ़ल को पानी म डालकर ताजा जकया गया हो जजसकी पखररयो म ररन की सरमई

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रखाए पड गई हो पर भीगन स भारीपन आ गया हो उसक खल पर पर उसकी जनगाह पडी तो सजा-सा लगा एजडया

भरी सजी-सी और नाखनो क पास अजब-सा सखापन जगपती का जदल एक बार मसोस उठा उसन चाहा जक

बढकर उस उठा ल अपन हाथो स उसका परा शरीर छ-छकर सारा कलि पोछ द उस अपनी सासो की अजगन म

तपाकर एक बार जिर पजवतर कर ल और उसकी आखो की गहराई म झाककर कह- दवलोक स जकस शापवश

जनवाटजसत हो तम इधर आ गई चनददा यह शाप तो अजमर था

तभी चनददा न हडबडाकर आख खोली जगपती को सामन दख उस लगा जक वह एकदम नगी हो गई हो अजतशय

लजजजत हो उसन अपन पर समर जलए घरनो स धोती नीच सरकाई और बहत सयत-सी उठकर रसोई क अधर म खो

गई जगपती एकदम हताश हो वही कमर की दहरी पर चौखर स जसर जरका बठ गया नजर कमर म गई तो लगा जक

पराए सवर यहा गज रह ह जजनम चनददा का भी एक ह एक तरि घर क हर कोन स अनदधरा सलाब की तरह बढता आ

रहा थाएक अजीब जनसतबधताअसमजस गजत पर पथभरि शकल पर आकारहीन

खाना खा लत चनददा का सवर कानो म पडा वह अनजान ऐस उठ बठा जस तयार बठा हो उसकी बात की आज

तक उसन अवजञा न की थी खान तो बठ गया पर कौर नीच नही सरक रहा था तभी चनददा न बड सध शबदो म कहा

कल म गाव जाना चाहती ह

जस वह इस सचना स पररजचत था बोला अचछा

चनददा जिर बोली मन बहत पहल घर जचिी डाल दी थी भया कल लन आ रह ह

तो ठीक ह जगपती वस ही डबा-डबा बोला

चनददा का बाध रर गया और वह वही घरनो म मह दबाकर कातर-सी ििक-ििककर रो पडी न उठ सकी न जहल

सकी

जगपती कषण-भर को जवचजलत हआ पर जस जम जान क जलए उसक ओठ िडक और करोध क जवालामखी को

जबरन दबात हए भी वह िर पडा यह सब मझ कया जदखा रही ह बशमट बगरत उस वि नही सोचा था

जबज़बमरी लाश तल

तब तब की बात झठ ह जससजकयो क बीच चनददा का सवर िरा लजकन जब तमन मझ बच जदया

एक भरपर हाथ चनददा की कनपरी पर आग सलगाता पडा और जगपती अपनी हथली दसरी स दबाता खाना छोड

कोठरी म घस गया और रात-भर कणडी चढाए उसी काजलख म घरता रहा दसर जदन चनददा घर छोड अपन गाव चली

गई

जगपती परा जदन और रात राल पर ही कार दता उसी बीरान म तालाब क बगल कबर बबल और ताड क पडोस म

पर मन मदाट हो गया था जबरदसती वह अपन को वही रोक रहता उसका जदल होता कही जनकल जाए पर ऐसी

कमजोरी उसक तन और मन को खोखला कर गई थी जक चाहन पर भी वह जा न पाता जहकारत-भरी नजर सहता पर

वही पडा रहता कािी जदनो बाद जब नही रह गया तो एक जदन जगपती घर पर ताला लगा नजदीक क गाव म

लकडी करान चला गया उस लग रहा था जक अब वह पग हो गया ह जबलकल लगडा एक रगता कीडा जजसक न

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आख ह न कान न मन न इचछा वह उस बाग म पहच गया जहा खरीद पड करन थ दो आरवालो न पतल पड क

तन पर आरा रखा और करट-करट का अबाध शोर शर हो गया दसर पड पर बनदन और शकर की कहाडी बज उठी

और गाव स दर उस बाग म एक लयपणट शोर शर हो गया जड पर कहाडी पडती तो परा पड थराट जाता

करीब क खत की मड पर बठ जगपती का शरीर भी जस काप-काप उठता चनददा न कहा था लजकन जब तमन मझ

बच जदया कया वह ठीक कहती थी कया बचनजसह न राल क जलए जो रपए जदए थ उसका बयाज इधर चकता

हआ कया जसिट वही रपए आग बन गए जजसकी आच म उसकी सहनशीलता जवशवास और आदशट मोम-स जपघल

गए

शकर बाग स लग दड पर स जकसी न आवाज लगाई शकर न कहाडी रोककर वही स हाक लगाई कोन क खत

स लीक बनी ह जरा मड मारकर नघा ला गाडी

जगपती का धयान भग हआ उसन मडकर दड पर आख गडाई दो भसा-गाजडया लकडी भरन क जलए आ पहची थी

शकर न जगपती क पास आकर कहा एक गाडी का भतट तो हो गया बजक डढ काअब इस पतररया पड को न छार

जगपती न उस पड की ओर दखा जजस कारन क जलए शकर न इशारा जकया था पड की शाख हरी पजततयो स भरी

थी वह बोला अर यह तो हरा ह अभी इस छोड दो

हरा होन स कया उखर तो गया ह न िल का न िल का अब कौन इसम िल-िल आएग चार जदन म पतती झरा

जाएगी शकर न पड की ओर दखत हए उसतादी अनददाज स कहा

जसा ठीक समझो तम जगपती न कहा और उठकर मड-मड पकक कए पर पानी पीन चला गया

दोपहर ढलत गाजडया भरकर तयार हई और शहर की ओर रवाना हो गई जगपती को उनक साथ आना पडा गाजडया

लकडी स लदी शहर की ओर चली जा रही थी और जगपती गदटन झकाए कचची सडक की धल म डबा भारी कदमो

स धीर-धीर उनदही की बजती घजणरयो क साथ जनजीव-सा बढता जा रहा था

कई बरस बाद राजा परदस स बहत-सा धन कमाकर गाडी म लादकर अपन दश की ओर लौर मा सनाया करती

थी राजा की गाडी का पजहया महल स कछ दर पतल की झाडी म उलझ गया हर तरह कोजशश की पर पजहया न

जनकला तब एक पजणडत न बताया जक सकर क जदन का जनदमा बालक अगर अपन घर की सपारी लाकर इसम छआ

द तो पजहया जनकल जाएगा वही दो बालक खल रह थ उनदहोन यह सना तो कदकर पहच और कहन लग जक हमारी

पदाइश सकर की ह पर सपारी तब लाएग जब तम आधा धन दन का वादा करो राजा न बात मान ली बालक दौड-

दौड घर गए सपारी लाकर छआ दी जिर घर का रासता बतात आग-आग चल आजखर गाडी महल क सामन उनदहोन

रोक ली

राजा को बडा अचरज हआ जक हमार ही महल म य दो बालक कहा स आ गए भीतर पहच तो रानी खशी स बहाल

हो गई

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पर राजा न पहल उन बालको क बार म पछा तो रानी न कहा जक य दोनो बालक उनदही क राजकमार ह राजा को

जवशवास नही हआ रानी बहत दखी हई

गाजडया जब राल पर आकर लगी और जगपती तखत पर हाथ-पर ढील करक बठ गया तो पगडणडी स गजरत

मशीजी न उसक पास आकर बताया अभी उस जदन वसली म तमहारी ससराल क नजदीक एक गाव म जाना हआ तो

पता लगा जक पनदरह-बीस जदन हए चनददा क लडका हआ ह और जिर जस महल म सनी-सनाई बातो पर पदाट

डालत हए बोल भगवान क राज म दर ह अधर नही जगपती भया

जगपती न सना तो पहल उसन गहरी नजरो स मशीजी को ताका पर वह उनक तीर का जनशाना ठीक-ठीक नही खोज

पाया पर सब कछ सहन करत हए बोला दर और अधर दोनो ह

अधर तो सरासर हजतररया चररततर ह सब बड-बड हार गए ह कहत-कहत मशीजी रक गए पर कछ इस तरह जस

कोई बडी भद-भरी बात ह जजस उनकी गोल होती हई आख समझा दगी जगपती मशीजी की तरि ताकता रह गया

जमनर-भर मनह स-सा मौन छाया रहा उस तोडत हए मशीजी बडी ददट-भरी आवाज म बोल सन तो जलया होगा

तमन

कया कहन को जगपती कह गया पर उस लगा जक अभी मशीजी उस गाव म िली बातो को ही बडी बददी स कह

डालग उसन नाहक पछा

तभी मशीजी न उसकी नाक क पास मह ल जात हए कहा चनददा दसर क घर बठ रही हकोई मदसदन ह वही का पर

बचचा दीवार बन गया ह चाहत तो वो यही ह जक मर जाए तो रासता खल पर रामजी की मजी सना ह बचचा रहत

भी वह चनददा को बठान को तयार ह

जगपती की सास गल म अरककर रह गई बस आख मशीजी क चहर पर पथराई-सी जडी थी

मशीजी बोल अदालत स बचचा तमह जमल सकता ह अब काह का शरम-जलहाज

अपना कहकर जकस मह स माग बाबा हर तरि तो कजट स दबा ह तन स मन स पस स इजजत स जकसक बल पर

दजनया सजोन की कोजशश कर कहत-कहत वह अपन म खो गया

मशीजी वही बठ गए जब रात झक आई तो जगपती क साथ ही मशीजी भी उठ उसक कनदध पर हाथ रख व उस

गली तक लाए अपनी कोठरी आन पर पीठ सहलाकर उनदहोन उस छोड जदया वह गदटन झकाए गली क अधर म उनदही

खयालो म डबा ऐस चलता चला आया जस कछ हआ ही न हो पर कछ ऐसा बोझ था जो न सोचन दता था और न

समझन जब चाची की बठक क पास स गजरन लगा तो सहसा उसक कानो म भनक पडी - आ गए सतयानासी

कलबोरन

उसन जरा नजर उठाकर दखा तो गली की चाची-भौजाइया बठक म जमा थी और चनददा की चचाट जछडी थी पर वह

चपचाप जनकल गया

इतन जदनो बाद ताला खोला और बरोठ क अधर म कछ सझ न पडा तो एकाएक वह रात उसकी आखो क सामन

घम गई जब वह असपताल स चनददा क साथ लौरा था बवा चाची का वह जहर-बझ तीर आ गए राजा जनरबजसया

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असपताल स और आज सतयानासी कलबोरन और सवय उसका वह वाकय जो चनददा को छद गया था तमहार

कभी कछ न होगा और उस रात की जशश चनददा

चनददा का लडका हआ ह वह कछ और जनती आदमी का बचचा न जनती वह और कछ भी जनती ककड-पतथर

वह नारी न बनती बचची ही बनी रहती उस रात की जशश चनददा पर चनददा यह सब कया करन जा रही ह उसक जीत-

जी वह दसर क घर बठन जा रही ह जकतन बड पाप म धकल जदया चनददा को पर उस भी तो कछ सोचना चाजहए

आजखर कया पर मर जीत-जी तो यह सब अचछा नही वह इतनी घणा बदाटशत करक भी जीन को तयार ह या मझ

जलान को वह मझ नीच समझती ह कायरनही तो एक बार खबर तो लती बचचा हआ तो पता लगता पर नही वह

उसका कौन ह कोई भी नही औलाद ही तो वह सनह की धरी ह जो आदमी-औरत क पजहयो को साधकर तन क

दलदल स पार ल जाती ह नही तो हर औरत वशया ह और हर आदमी वासना का कीडा तो कया चनददा औरत नही

रही वह जरर औरत थी पर सवय मन उस नरक म डाल जदया वह बचचा मरा कोई नही पर चनददा तो मरी ह एक

बार उस ल आता जिर यहा रात क मोहक अधर म उसक िल-स अधरो को दखताजनदवटनददव सोई पलको को

जनहारतासासो की दध-सी अछती महक को समर लता

आज का अधरा घर म तल भी नही जो दीया जला ल और जिर जकसक जलए कौन जलाए चनददा क जलए पर उस तो

बच जदया था जसवा चनददा क कौन-सी समपजतत उसक पास थी जजसक आधार पर कोई कजट दता कजट न जमलता तो

यह सब कस चलता काम पड कहा स करत और तब शकर क व शबद उसक कानो म गज गए हरा होन स कया

उखर तो गया ह वह सवय भी तो एक उखरा हआ पड ह न िल का न िल का सब वयथट ही तो ह जो कछ

सोचा उस पर कभी जवशवास न कर पाया चनददा को चाहता रहा पर उसक जदल म चाहत न जगा पाया उस कही स

एक पसा मागन पर डारता रहा पर खद लता रहा और आज वह दसर क घर बठ रही ह उस छोडकर वह अकला ह

हर तरि बोझ ह जजसम उसकी नस-नस कचली जा रही ह रग-रग िर गई ह और वह जकसी तरह ररोल-ररोलकर

भीतर घर म पहचा

रानी अपन कल-दवता क मजनददर म पहची मा सनाया करती थी अपन सतीतव को जसधद करन क जलए उनदहोन घोर

तपसया की राजा दखत रह कल-दवता परसनदन हए और उनदहोन अपनी दवी शजि स दोनो बालको को ततकाल जनदम

जशशओ म बदल जदया रानी की छाजतयो म दध भर आया और उनम स धार िर पडी ज़ो जशशओ क मह म जगरन

लगी राजा को रानी क सतीतव का सबत जमल गया उनदहोन रानी क चरण पकड जलए और कहा जक तम दवी हो य

मर पतर ह और उस जदन स राजा न जिर स राज-काज सभाल जलया

पर उसी रात जगपती अपना सारा कारोबार तयाग अिीम और तल पीकर मर गया कयोजक चनददा क पास कोई दवी

शजि नही थी और जगपती राजा नही बचनजसह कमपाउणडर का कजटदार था

राजा न दो बात की मा सनाती थी एक तो रानी क नाम स उनदहोन बहत बडा मजनददर बनवाया और दसर राज क

नए जसकको पर बड राजकमार का नाम खदवाकर चाल जकया जजसस राज-भर म अपन उततराजधकारी की खबर हो

जाए

जगपती न मरत वि दो परच छोड एक चनददा क नाम दसरा कानन क नाम

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चनददा को उसन जलखा था चनददा मरी अजनदतम चाह यही ह जक तम बचच को लकर चली आनाअभी एक-दो जदन

मरी लाश की दगटजत होगी तब तक तम आ सकोगी चनददा आदमी को पाप नही पशचाताप मारता ह म बहत पहल मर

चका था बचच को लकर जरर चली आना

कानन को उसन जलखा था जकसी न मझ मारा नही हजकसी आदमी न नही म जानता ह जक मर जहर की पहचान

करन क जलए मरा सीना चीरा जाएगा उसम जहर ह मन अिीम नही रपए खाए ह उन रपयो म कजट का जहर था

उसी न मझ मारा ह मरी लाश तब तक न जलाई जाए जब तक चनददा बचच को लकर न आ जाए आग बचच स

जदलवाई जाए बस

मा जब कहानी समापत करती थी तो आसपास बठ बचच िल चढात थ

मरी कहानी भी खतम हो गई पर

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णिता

जञानरजन

उसन अपन जबसतर का अदाज लन क जलए मातर आध पल को जबजली जलाई जबसतर िशट पर जबछ हए थ उसकी

सतरी न सोत-सोत ही बड़बड़ाया आ गए और बचच की तरि करवर लकर चप हो गई लर जान पर उस एक बड़ी

डकार आती मालम पड़ी लजकन उसन डकार ली नही उस लगा जक ऐसा करन स उस चपपी म खलल पड़ जाएगा

जो चारो तरि भरी ह और कािी रात गए ऐसा होना उजचत नही ह

अभी घनशयामनगर क मकानो क लब जसलजसलो क जकनार-जकनार सवारी गाड़ी धड़धड़ाती हई गजरी थोड़ी दर तक

एक बहत साि भागता हआ शोर होता रहा सजदटयो म जब यह गाड़ी गजरती ह

तब लोग एक परहर की खासी नीद ल चक होत ह गजमटयो म साढ़ गयारह का कोई जवशि मतलब नही होता यो उसक

घर म सभी जदी सोया करत जदी खाया और जदी उठा करत ह

आज बहद गमी ह रासत-भर उस जजतन लोग जमल उन सबन उसस गमट और बचन कर दनवाल मौसम की ही बात

की कपड़ो की िजीहत हो गई बदहवासी जचपजचपाहर और थकान ह अभी जब सवारी गाड़ी शोर करती हई गजरी

तो उस ऐसा नही लगा जक नीद लगत-लगत रर गई हो जसा जाड़ो म परायः लगता ह बजक यो लगाजक अगर सोन

की चिा शर नही की गई तो सचमच दर हो जाएगी उसन जमहाई ली पख की हवा बहत गमट थी और वह पराना होन

की वजह स जचढ़ाती-सी आवाज भी कर रहा ह उसको लगा दसर कमरो म भी लोग शायद उसकी ही तरह जमहाइया

ल रह होग लजकन दसर कमरो क पख परान नही ह उसन सोचना बद करक अनदय कमरो की आहर लनी चाही उस

कोई बहत मासम-सी धवजन भी एक-डढ़ जमनर तक नही सनाई दी जो सनदनार म कािी तज होकर आ सकती हो

तभी जपता की चारपाई बाहर चरमराई वह जकसी आहर स उठ होग उनदहोन डारकर उस जबली का रोना चप कराया

जो शर हो गया था जबली थोड़ी दर चप रहकर जिर रोन लगी अब जपता न डड को गच पर कई बार परका और

उस जदशा की तरि खदड़नवाल ढग स दौड़ जजधर स रोना आ रहा था और हटट-हटट जचलाए

जब वह घम-जिरकर लौर रहा था तो जपता अपना जबसतर बाहर लगाकर बठ थ कनखी स उसन उनदह अपनी गजी स

पीठ का पसीना रगड़त हए दखा और बचता हआ वह घर क अदर दाजखल हो गया उस लगा जक जपता को गमी की

वजह स नीद नही आ रही ह लजकन उस इस जसथजत स रोि हआ सब लोग जपता स अदर पख क नीच सोन क जलए

कहा करत ह पर वह जरा भी नही सनत हम कया भोग कि

कछ दर पड़ रहन क बाद वह उठा और उसन उतसकतावश जखड़की स झाका सड़क की बतती छाती पर ह गजमटयो म

यह बहद अखर जाता ह जपता न कई बार करवर बदली जिर शायद चन की उममीद म पारी पर बठ पखा झलन लग

ह पख की डडी स पीठ का वह जहससा खजात ह जहा हाथ की उगजलया जदककत स पहचती ह आकाश और दरखतो

की तरि दखत ह ररलीि पान की जकसी बहत हकी उममीद म जशकायत उगलत ह - बड़ी भयकर गमी ह एक पतता

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भी नही डोलता उनका यह वाकय जो जनतात वयथट ह अभी-अभी बीत कषण म डब गया गमी-बरकरार ह और रहगी

कयोजक यह जाड़-बरसात का मौसम नही ह जपता उठकर घमन लगत ह एक या दो बार घर का चककर चौकीदारो की

तरह होओ करत हए लगात ह ताजक कोई सध-वध न लग सक लौरकर थक सवर म ह ईशवर कहत हए उगली स

माथ का पसीना कारकर जमीन पर चवान लगत ह

बड़ा गजब ह कमर की एक दीवार स जरककर बठ जान पर वह कािी तनाव म सोचन लगा अदर कमरो म पखो क

नीच घर क सभी दसर लोग आराम स पसर ह इस साल जो नया पडसरल खरीदा गया ह वह आगन म दादी अममा क

जलए लगता ह जबजली का मीरर तज चल रहा होगा पस खचट हो रह ह लजकन जपता की रात कि म ही ह लजकन

गजब यह नही ह गजब तो जपता की जजद ह वह दसर का आगरह-अनरोध मान तब न पता नही कयो जपता जीवन की

अजनवायट सजवधाओ स भी जचढ़त ह वह झलान लगा

चौक स आत वि चार आन की जगह तीन आन और तीन आन म तयार होन पर दो आन म चलनवाल ररकश क

जलए जपता घर-घर खड़ रहग धीर-धीर सबक जलए सजवधाए जरात रहग लजकन खद उसम नही या कम स कम

शाजमल होग पहल लोग उनकी कािी जचरौरी जकया करत थ अब लोग हार गए ह जानन लग ह जक जपता क आग

जकसी की चलगी नही

आज तक जकसी न जपता को वाश-बजसन म मह-हाथ धोत नही दखा बाहर जाकर बजगयावाल नल पर ही कला-

दातन करत ह दादा भाई न अपनी पहली तनखवाह म गसलखान म उतसाह क साथ एक खबसरत शावर लगवाया

लजकन जपता को अस स हम सब आगन म धोती को लगोर की तरह बाधकर तल चपड़ बदन पर बारी-बारी पानी

डालत दखत आ रह ह खल म सनान करग जनऊ स छाती और पीठ का मल कारग शर म दादा भाई न सोचा

जपता उसक दवारा शावर लगवान स बहत खश होग और उनदह नई चीज का उतसाह होगा जपता न जब कोई उतसाह

परकर नही जकया तो दादा भाई मन-ही-मन कािी जनराश हो गए एक-दो बार उनदहोन जहममत करक कहा भी आप

अदर आराम स कयो नही नहात तब भी जपता आसानी स उस राल गए

लड़को दवारा बाजार स लाई जबजसकर महग िल जपता कछ भी नही लत कभी लत भी ह तो बहत नाक-भौ

जसकोड़कर उसक बसवाद होन की बात पर शर म ही जोर द दत हए अपनी अमावर गजक और दाल-रोरी क

अलावा दसरो दवारा लाई चीजो की शरषठता स वह कभी परभाजवत नही होत वह अपना हाथ-पाव जानत ह अपना

अजटन और उसी म उनदह सतोि ह व पतर जो जपता क जलए कल का सब मगान और जदली एपोररयम स बजढ़या

धोजतया मगाकर उनदह पहनान का उतसाह रखत थ अब तजी स जपता-जवरोधी होत जा रह ह सखी बचच भी अब गाह-

बगाह मह खोलत ह और करोध उगल दत ह

लदद-लदद बाहर आम क दो सीकरो क लगभग एक साथ जगरन की आवाज आई वह जानता ह जपता आवाज स

सथान साधन की कोजशश करग ररोलत-ररोलत अधर म आम खोजग और खाली गमल म इकटठा करत जाएग

शायद ही रात म एक-दो आम उसक चक जात ह ढढ़न पर नही जमलत जजनको सबह पा जान क सबध म उनदह रात-

भर सदह होता रहगा

दीवार स कािी दर एक ही तरह जरक रहन स उसकी पीठ दखन लगी थी नीच रीढ़ क कमरवाल जहसस म रि की

चतना बहत कम हो गई उसन मरा बदली बाहर जपता न िारक खोलकर सड़क पर लड़त-जचजचयात कततो का

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हड़काया उस यहा बहत खीज हई कई बार कहा महल म हम लोगो का सममान ह चार भल लोग आया-जाया

करत ह आपको अदर सोना चाजहए ढग क कपड़ पहनन चाजहए और चौकीदारो की तरह रात को पहरा दना बहत ही

भददा लगता ह लजकन जपता की अड़ म कभी कोई झोल नही आता उरा-सीधा पता नही कहा जकस दजी स करता-

कमीज जसलवा लत ह रढ़ी जब सदरी क बरन ऊपर-नीच लगा सभा-सोसायरी म चल जाएग घर-भर को बरा

लगता ह

लोगो क बोलन पर जपता कह दत ह आप लोग जाइए न भाई कॉिी हाउस म बजठए झठी वजनरी क जलए बयरा को

जरप दीजजए रहमान क यहा डढ़ रपएवाला बाल कराइए मझ कयो घसीरत ह लोगो का बोलना चरकी भर म धरा

रह जाता ह जपता वस तो चप रहत ह लजकन जब बात-बहस म उनदह खीचा जाता ह तो कािी करारी और जहसातमक

बात कह जात ह उर उनदह घरनवाल हम भाई-बहन-अपराधी बन जात ह कमर स पहल एक भाई जखसकगा जिर

दसरा जिर बहन और जिर तीसरा चपचाप सब खीज-हार जखसकत रहग अदर जिर मा जाएगी और जपता जवजयी

जपता कमर म गीता पढ़न लगग या झोला लकर बाजार सौदा लन चल जाएग

होता हमशा यही ह सब मन म तय करत ह आग स जपता को नही घरग लजकन थोड़ा समय गजरन क बाद जिर

लोगो का मन जपता क जलए उमड़न लगता ह लोगा मौका ढढ़न लगत ह जपता को जकसी परकार अपन साथ

सजवधाओ म थोड़ा बहत शाजमल कर सक पर ऐसा नही हो पाता वह सोचन लगा भख क सामन खात समय

होनवाली वयथा सरीखी जकसी जसथजत म हम रहा करत ह यदयजप अपना खाना हम कभी सथजगत नही करत जिर भी

जपता की असपजि क कारण वयाकल और अधीर तो ह ही

जपता अदभत और जवजचतर ह वह सोचत हए उठा कमर म घमन या जसगरर पी सकन की सजवधा नही थी अनदयथा वह

वसा ही करता उसन सो जान की इचछा की और अपन को असहाय पाया शायद नीद नही आ सकगी यह खयाल

उस घबरानवाला लगा जपता अदभत और जवजचतर ह यह बात वह भल नही रहा था जपछल जाड़ो म वह अपन लोभ

को कचलकर बमजशकल एक कोर का बहतरीन कपड़ा जपता क जलए लाया पहल तो वह उस लन को तयार नही हए

लजकन मा क कािी घड़कन-िड़कन स राजी हो गए और उसी ख दाबाद क जकसी लपर दजी क यहा जसलान चल

जदए सधीर न कहा कपड़ा कीमती ह चजलए एक अचछी जगह म आपका नाप जदलवा द वह ठीक जसएगा मरा

पररजचत भी ह

इस बात पर जपता न कािी जहकारत उगली वह जचढ़ उठ म सबको जानता ह वही मयजनजसपल माकर क छोर-मोर

दजजटयो स काम करात और अपना लबल लगा लत ह साहब लोग मन कलकतत क हाल एडरसन क जसल कोर पहन

ह अपन जमान म जजनक यहा अचछ-खास यरोजपयन लोग कपड़ जसलवात थ य िशन-वशन जजसक आग आप

लोग चककर लगाया करत ह उसक आग पाव की धल ह मझ वयथट पसा नही खचट करना ह जकतना परसपर जवरोधी

तकट जकया जपता न ऐसा वह अपनी जजद को सवोपरर रखन क जलए जकया करत ह जिर सधीर न भी कपड़ा छोड़

जदया जहा चाजहए जसलवाइए या भाड़ म झोक आइए हम कया वह धीम-धीम बदबदाया

ऐ जपता बाहर अकबकाकर उठ पड़ शायद थोड़ी दर पहल जो आम बगीच म जगरा था उसकी आवाज जस अब

सनाई पड़ी हो

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वह जखड़की क बाहर दखन लगा जकजचत जरका-जरका-सा पीठ क पसीन स बजनयाइन जचपक गई थी बहद घरती हई

गमी मन उसका मथा जाता था बीवी पड़ी आराम स सो रही ह इस कछ पता नही शायद जपता की खार खाली थी

वह जगरा आम ररोलन क जलए बजगया म घस होग जपता जकतन जवजचतर ह लब समय स वह कवल दो ही गरथ पढ़त

आ रह ह - यतरवत जनयमवत - रामायण और गीता लब पतीस विो तक अखड - कवल रामायण और गीता उसक

पहल यवाकाल म जो-कछ जजतना-कछ पढ़ा हो उनदहोन उस कभी भयावह कभी सममानजनक और कभी झठ

लगता यह दख-सोचकर जक कोई वयजि कवल दो पसतको म जजदगी क पतीस विट कार सकता ह और कस कार

लता ह

तभी उसका बचचा कनमनाकर रोन लगा उसन तपाक स जखड़की छोड़ी और अपन जबसतर पर झठ-मठ सो गया ऐसा

न हो जक दवा बचच क रोन स उठ पड़ और उस सजदगधावसथा म दख बहत-स बकार परशनो दवारा हलकान करना शर

कर द दवा बचच क मह म सतन द पहल ही-सी बखबर हो गई वह खद जबसतर पर सोता मालम पड़कर भी जागता

रहा सतन चसन की चप-चप आवाज आती रही और थोड़ी दर बाद बद हो गई

उसन तय जकया जक वह दवा क बार म ही कछ सोच अथवा उसक शरीर को छता रह उसन दवा क कह पर हाथ

रख जदया लजकन उस तजनक भी उततजना अपन अदर महसस नही हई उसन थोड़ी दर उततजना की परतीकषा की अपनी

इस हरकत स ऊब होन लगी और मन भी लाजछत करन लगा बाहर जपता सो या जाग रह ह जसा भी हो वह बड़

जबरदसत ह इस समय बाहर रहकर बाहरी होत जा रह ह घर क अदरनी जहससो म लोग आराम स या कम आराम स

जकसी तरह सो तो गए होग वह जविादगरसत हआ और अनभव करन लगा हमार समाज म बड़-बढ़ लोग जस बह -

बजरयो क जनजी जीवन को सवचछद रहन दन क जलए अपना अजधकाश समय बाहर वयतीत जकया करत ह कया जपता

न भी वसा ही करना तो नही शर कर जदया ह उस जपता क बढ़पन का खयाल आन पर जसहरन हई जिर उसन दढ़ता

स सोचा जपता अभी बढ़ नही हए ह उनदह परजतकषण हमार साथ-साथ जीजवत रहना चाजहए भरसक परानी जीवन-

वयवसथा जकतनी कठोर थी उसक मजसतषक म एक जभचाव आ गया जविाद सवोपरर था

उस आखो म हका जल लगन लगा अगर कोई शीत-यदध न होता जपता और पतरो क बीच तो वह उनदह जबरन खीच

क नीच लाकर सला दता लजकन उस लगा जक उसका यवापन एक परजतषठा की जजद कही चराए बठा ह वह इस

परजतषठा क आग कभी बहत मजबर कभी कमजोर हो जाता ह और उस भगत भी रहा ह दरअसल उसका जी अकसर

जचला उठन को हआ ह जपता तम हमारा जनिध करत हो तम ढोगी हो अहकारी-बजर अहकारी लजकन वह कभी

जचलाया नही उसका जचला सकना ममजकन भी नही था वह अनभव करता था उसक सामन जजदगी पड़ी ह और

जपता पर इस तरह जचलान म उसका नकसान हो सकता ह उसको लगा जपता लगातार जवजयी ह कठोर ह तो कया

उनदहोन पतरो क सामन अपन को कभी पसारा नही

लगता ह दीवारो पर भी पसीना चहचहा आया ह खद को छरा भोक दन या दीवार पर जसर परकन या सोती बीवी क

साथ पाजशवक हो जान का ढोग सोचन क बाद भी गमी की बचनी नही करी उसन ईशवर को बदबदाना चाहा लजकन

वसा नही जकया कवल हक-हक हाथ क पजो स जसर क बालो को दबोचकर वह रह गया मौसम की गमी स कही

अजधक परबल जपता ह

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उसक सामन एक घरना मजबती स रग गई उसन घरना को मन म दोहराया वाय-सना म नौकरी करनवाला उसका

कपतान भाई बहन क यजनवजसटरी क खच क जलए दस विट तक पचास रपए महीना भजता रहा था एक बार अकसमात

कपतान भाई होली-अवकाश मनान घर आ गया जपता न उसक हाथ म उसक नाम की बारह सौ रपयोवाली एक

पासबक थमा दी सबको यह बड़ा आकजसमक लगा कपतान भाई को हरत हई और हकी खशी भी जक एकाएक

कािी रपए जमल गए लजकन इस बात स उस दख और पराजय का भान भी हआ उसन अपन को छोरा महसस

जकया दो विट तक बहन क जलए उसन जो थोड़ा-बहत जकया वह सब एक पल म घरकर नगणय हो गया जिर भी वह

अनभव कर रहा था कपतान भाई जयादा सोचत नही जखलाड़ी तबीयत क ह यान की तरह चरकी म धरती छोड़ दत

ह जकतन मसत ह कपतान भाई

उस लगा जपता एक बलद भीमकाय दरवाज की तरह खड़ ह जजसस रकरा-रकराकर हम सब जनहायत जपददी और

दयनीय होत जा रह ह

इस घरना को याद करक और जपता क परजत जखनदन हो जान पर भी उसन चाहा जक वह जखड़की स जपता को अदर

आकर सो रहन क जलए आगरहपवटक कह लजकन वह ऐसा नही कर सका वह असतोि और सहानभजत दोनो क बीच

असतजलत भरकता रहा

न लोकोशड स उठती इजनो की शजरग धवजन न काकरीर की गरडटक पर स होकर आती धमनगज की ओर इकक-दकक

लौरत इकको क घोड़ो की राप न झगड़त कततो की भोक-भाक बस कही उल एकगजत एकवजन और वीभतसता म

बोल रहा ह राजतर म शहर का आभास कछ पलो क जलए मर-सा गया ह उसको उममीद हई जक जकसी भी समय दर या

पास स कोई आवाज अकसमात उठ आएगी घड़ी रनरना जाएगी या जकसी दौड़ती हई टक का तज लबा हानट बज

उठगा और शहर का मरा हआ आभास पनः जीजवत हो जाएगा परा शहर कभी नही सोता या मरता बहत-स सोत

हए जान पड़नवाल भी सजकषपत धवजनयो क साथ या लगभग धवजनहीनता क बीच जग होत ह रात कािी बीत चकी ह

और इस समय यह सब (सोचना) जसवाय सोन क जकतना जनरथटक ह

शायद जपता औघ गए ह करवर बदलन स उतपनदन होनवाली खार की चरमराहर आम ररोलत समय सखी-अधसखी

पजततयो क कचलन की आवाज लाठी की परक मकान क िर क वि की खास-खसार कतत-जबजलयो को

हड़काना-कछ सन नही पड़ रहा ह इस जवचार स जक जपता सो गए होग उस परम शाजत जमली और लगा जक अब वह

भी सो सकगा

शीघर नीद क जलए उसन रकरकी बाधकर पख की तरि दखना शर जकया गमट हवा क बावजद जदन-भर की वयथट

थकान और सोच-जवचार स पसत हो जान की वजह स वह नीद म जचतत हो गया थोड़ समय उपरात वह एकाएक

उचककर उठ बठा उसन चारो तरि कछ दख पान क जलए कछ कषणो तक गड़ हए अधर का घरा हआ यह जक उस

शरीर म एकाएक बहत गमी-सी लगी थी और अजीब-सी सरसराहर हई शायद पसीन स भीगी राग पतनी क बदन स

छ गई थी मह म बरा-सा सवाद भर आया था जकसी बरी बीमारी क कारण अकसर ऐसा हो जाया करता ह उठकर

उसन दो-तीन कल जकए और ढर सारा ठडा पानी जपया इतना सब कछ वह अधनीद म ही करता रहा

आगन स पानी पीकर लौरत समय उसन इतमीनान क जलए जखड़की क बाहर दखा अब तक नीद जो थोड़ी-बहत थी

कािर हो गई जपता सो नही गए ह अथवा कछ सोकर पनः जग हए ह पता नही अभी ही उनदहोन ह राम त ही

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सहारा ह कहकर जमहाई ली ह ऐसा उनदहोन कोई दबकर नही जकया रात क जलहाज स कािी शोर उठात कहा ह

शायद उनदह इतमीनान ह जक घर म सभी लोग जनजशचत रप स सो रह ह

जपता न अपना जबसतरा गोल मोड़कर खार क एक जसर पर कर जलया ह और वही सराही स पयाल म पानी ल-लकर

अपनी खजरया की बाध तर कर रह ह सराही स खार तक और खार स सराही तक बार-बार आत-जात ह बहत बार

ऐसा करन पर खार का बाध तर हआ ह इसक बाद उनदहोन पानी जपया और पनः एक बड़ी आवाजदार जमहाई क साथ

जलपर हए जबसतर का जसरहाना बना जनखरी खजरया पर लर गए तड़का होन म पता नही जकतनी दर थी थोड़ी दर बाद

पखा जमीन पर जगराकर उनका दाया हाथ खजरया की पारी स झलन लगा

चारो तरि धजमल चादनी िलन लगी ह सबह जो दर ह क भरम म पजशचम स पवट की ओर कौव काव-काव करत उड़

वह जखड़की स हरकर जबसतर पर आया अदर हवा वसी ही ल की तरह गमट ह दसर कमर सतबध ह पता नही बाहर

भी उमस और बचनी होगी वह जागत हए सोचन लगा अब जपता जनजशचत रप स सो गए ह शायद

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पररनदद(३० माचट २०१५)

जनमटल वमाट

अधर गजलयार म चलत हए लजतका जठठक गयी दीवार का सहारा लकर उसन लमप की बतती बढ़ा दी सीजढ़यो पर

उसकी छाया एक बडौल करी-िरी आकजत खीचन लगी सात नमबर कमर म लड़जकयो की बातचीत और हसी-

ठहाको का सवर अभी तक आ रहा था लजतका न दरवाजा खरखराया शोर अचानक बद हो गया ldquoकौन ह

लजतका चप खड़ी रही कमर म कछ दर तक घसर-पसर होती रही जिर दरवाज की जचरखनी क खलन का सवर

आया लजतका कमर की दहरी स कछ आग बढ़ी लमप की झपकती लौ म लड़जकयो क चहर जसनमा क परद पर ठहर

हए कलोजअप की भाजत उभरन लग ldquoकमर म अधरा कयो कर रखा ह लजतका क सवर म हकी-सी जझड़की का

आभास था ldquoलमप म तल ही खतम हो गया मडम यह सधा का कमरा था इसजलए उस ही उततर दना पड़ा होसरल

म शायद वह सबस अजधक लोकजपरय थी कयोजक सदा छटटी क समय या रात को जडनर क बाद आस-पास क कमरो म

रहनवाली लड़जकयो का जमघर उसी क कमर म लग जाता था दर तक गप-शप हसी-मजाक चलता रहता ldquoतल क

जलए करीमददीन स कयो नही कहा ldquoजकतनी बार कहा मडम लजकन उस याद रह तब तो

कमर म हसी की िहार एक कोन स दसर कोन तक िल गयी लजतका क कमर म आन स अनशासन की जो घरन

जघर आयी थी वह अचानक बह गयी करीमददीन होसरल का नौकर था उसक आलस और काम म रालमरोल करन

क जकसस होसरल की लड़जकयो म पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल आत थ लजतका को हठात कछ समरण हो आया अधर म

लमप घमात हए चारो ओर जनगाह दौड़ाई कमर म चारो ओर घरा बनाकर व बठी थी- पास-पास एक-दसर स सरकर

सबक चहर पररजचत थ जकनदत लमप क पील मजदधम परकाश म मानो कछ बदल गया था या जस वह उनदह पहली बार

दख रही थी ldquoजली अब तक तम इस बलाक म कया कर रही हो

जली जखड़की क पास पलग क जसरहान बठी थी उसन चपचाप आख नीची कर ली लमप का परकाश चारो ओर स

जसमरकर अब कवल उसक चहर पर जगर रहा था ldquoनाइर रजजसरर पर दसतखत कर जदय ldquoहा मडम ldquoजिर

लजतका का सवर कड़ा हो आया जली सकचाकर जखड़की स बाहर दखन लगी जब स लजतका इस सकल म आयी

ह उसन अनभव जकया ह जक होसरल क इस जनयम का पालन डार-िरकार क बावजद नही होता ldquoमडम कल स

छरटटया शर हो जायगी इसजलए आज रात हम सबन जमलकर और सधा परी बात न कहकर हमनदती की ओर

दखत हए मसकरान लगी ldquoहमनदती क गान का परोगराम ह आप भी कछ दर बजठए न

लजतका को उलझन मालम हई इस समय यहा आकर उसन इनक मज को जकरजकरा कर जदया इस छोर-स-जहल-

सरशन पर रहत उस खासा असाट हो गया लजकन कब समय पतझड़ और गजमटयो का घरा पार कर सदी की छरटटयो की

गोद म जसमर जाता ह उस कभी याद नही रहता चोरो की तरह चपचाप वह दहरी स बाहर को गयी उसक चहर का

तनाव ढ़ीला पड़ गया वह मसकरान लगी ldquoमर सग सनो-िॉल दखन कोई नही ठहरगा ldquoमडम छरटटयो म कया आप

घर नही जा रही ह सब लड़जकयो की आख उस पर जम गयी ldquoअभी कछ पकका नही ह-आई लव द सनो-िॉल

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लजतका को लगा जक यही बात उसन जपछल साल भी कही थी और शायद जपछल स जपछल साल भी उस लगा मानो

लड़जकया उस सनददह की दजि स दख रही ह मानो उनदहोन उसकी बात पर जवशवास नही जकया उसका जसर चकरान

लगा मानो बादलो का सयाह झरमर जकसी अनजान कोन स उठकर उस अपन म डबा लगा वह थोड़ा-सा हसी जिर

धीर-स उसन सर को झरक जदया ldquoजली तमस कछ काम ह अपन बलॉक म जान स पहल मझ जमल लना- वल गड

नाइर लजतका न अपन पीछ दरवाज़ा बद कर जदया

ldquoगड नाइर मडम गड नाइर गड नाइर गजलयार की सीजढ़या न उतरकर लजतका रजलग क सहार खड़ी हो गयी लप

की बतती को नीच घमाकर कोन म रख जदया बाहर धनदध की नीली तह बहत घनी हो चली थी लॉन पर लग हए चीड़

क पततो की सरसराहर हवा क झोको क सग कभी तज कभी धीमी होकर भीतर बह आती थी हवा म सदी का

हका-सा आभास पाकर लजतका क जदमाग म कल स शर होनवाली छरटटयो का धयान भरक आया उसन आख मद

ली उस लगा जक जस उसकी राग बास की लकजड़यो की तरह उसक शरीर स बधी ह जजसकी गाठ धीर-धीर खलती

जा रही ह जसर की चकराहर अभी जमरी नही थी मगर अब जस वह भीतर न होकर बाहर िली हई धनदध का जहससा

बन गयी थी

सीजढ़यो पर बातचीत का सवर सनकर लजतका जस सोत स जगी शॉल को कनदधो पर समरा और लमप उठा जलया डॉ

मकजी जम हयबरट क सग एक अगरजी धन गनगनात हए ऊपर आ रह थ सीजढ़यो पर अधरा था और हयबरट को बार-

बार अपनी छड़ी स रासता ररोलना पड़ता था लजतका न दो-चार सीजढ़या उतरकर लमप को नीच झका जदया ldquoगड

ईवजनग डाकरर गड ईवजनग जम हयबरट ldquoथक य जमस लजतका - हयबरट क सवर म कतजञता का भाव था सीजढ़या

चढ़न स उनकी सास तज हो रही थी और वह दीवार स लग हए हाि रह थ लमप की रोशनी म उनक चहर का

पीलापन कछ ताब क रग जसा हो गया था

ldquoयहा अकली कया कर रही हो जमस लजतका - डाकरर न होठो क भीतर स सीरी बजायी ldquoचजकग करक लौर रही

थी आज इस वि ऊपर कस आना हआ जमसरर हयबरट हयबरट न मसकराकर अपनी छड़ी डाकरर क कनदधो स छला

दी - ldquoइनस पछो यही मझ जबदटसती घसीर लाय ह

ldquoजमस लजतका हम आपको जनमनदतरण दन आ रह थ आज रात मर कमर म एक छोरा-सा-कनदसरट होगा जजसम जम

हयबरट शोपा और चाइकोवसकी क कमपोजीशन बजायग और जिर करीम कॉिी पी जायगी और उसक बाद अगर समय

रहा तो जपछल साल हमन जो गनाह जकय ह उनदह हम सब जमलकर कनदर स करग डाकरर मकजी क चहर पर भारी

मसकान खल गयी ldquoडाकरर मझ माि कर मरी तबीयत कछ ठीक नही ह

ldquoचजलए यह ठीक रहा जिर तो आप वस भी मर पास आती डाकरर न धीर-स लजतका क कधो को पकड़कर अपन

कमर की तरि मोड़ जदया डाकरर मकजी का कमरा बलॉक क दसर जसर पर छत स जड़ा हआ था वह आध बमी थ

जजसक जचहन उनकी थोड़ी दबी हई नाक और छोरी-छोरी चचल आखो स सपि थ बमाट पर जापाजनयो का आकरमण

होन क बाद वह इस छोर स पहाड़ी शहर म आ बस थ पराइवर परजकरस क अलावा वह कानदवनदर सकल म हाईजीन-

जिजजयालोजी भी पढ़ाया करत थ और इसजलए उनको सकल क होसरल म ही एक कमरा रहन क जलए द जदया गया

था कछ लोगो का कहना था जक बमाट स आत हए रासत म उनकी पतनी की मतय हो गयी लजकन इस समबनदध म

जनजशचत रप स कछ नही कहा जा सकता कयोजक डाकरर सवय कभी अपनी पतनी की चचाट नही करत

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बातो क दौरान डाकरर अकसर कहा करत ह - ldquoमरन स पहल म एक दिा बमाट जरर जाऊ गा - और तब एक कषण क

जलए उनकी आखो म एक नमी-सी छा जाती लजतका चाहन पर भी उनस कछ पछ नही पाती उस लगता जक डाकरर

नही चाहत जक कोई अतीत क समबनदध म उनस कछ भी पछ या सहानभजत जदखलाय दसर ही कषण अपनी गमभीरता

को दर ठलत हए वह हस पड़त - एक सखी बझी हई हसी

होम-जसकनस ही एक ऐसी बीमारी ह जजसका इलाज जकसी डाकरर क पास नही ह छत पर मज-कजसटया डाल दी गई

और भीतर कमर म परकोलरर म कॉिी का पानी चढ़ा जदया गया ldquoसना ह अगल दो-तीन विो म यहा पर जबजली का

इनदतजाम हो जायगा -डाकरर न जसपरर लमप जलात हए कहा ldquoयह बात तो जपछल दस सालो स सनन म आ रही ह

अगरजो न भी कोई लमबी-चौड़ी सकीम बनायी थी पता नही उसका कया हआ - हयबरट न कहा वह आराम कसी पर

लरा हआ बाहर लॉन की ओर दख रहा था

लजतका कमर स दो मोमबजततया ल आयी मज क दोनो जसरो पर जरकाकर उनदह जला जदया गया छत का अधरा

मोमबतती की िीकी रोशनी क इदट-जगदट जसमरन लगा एक घनी नीरवता चारो ओर जघरन लगी हवा म चीड़ क वकषो

की साय-साय दर-दर तक िली पहाजड़यो और घाजरयो म सीजरयो की गज-सी छोड़ती जा रही थी ldquoइस बार शायद

बिट जदी जगरगी अभी स हवा म एक सदट खशकी-सी महसस होन लगी ह - डाकरर का जसगार अधर म लाल

जबनददी-सा चमक रहा था ldquoपता नही जमस वड को सपशल सजवटस का गोरखधनदधा कयो पसनदद आता ह छरटटयो म घर

जान स पहल कया यह जररी ह जक लड़जकया िादर एमणड का समटन सन - हयबरट न कहा

डॉकरर को िादर एमणड एक आख नही सहात थ लजतका कसी पर आग झककर पयालो म कॉिी उडलन लगी हर

साल सकल बनदद होन क जदन यही दो परोगराम होत ह - चपल म सपशल सजवटस और उसक बाद जदन म जपकजनक

लजतका को पहला साल याद आया जब डाकरर क सग जपकजनक क बाद वह कलब गयी थी डाकरर बार म बठ थ

बार रम कमाऊ रजीमणर क अिसरो स भरा हआ था कछ दर तक जबजलयडट का खल दखन क बाद जब वह वाजपस

बार की ओर आ रह थ तब उसन दायी ओर कलब की लाइबररी म दखा- मगर उसी समय डाकरर मकजी पीछ स आ

गय थ जमस लजतका यह मजर जगरीश नगी ह जबजलयडट रम स आत हए हसी-ठहाको क बीच वह नाम दब-सा गया

था वह जकसी जकताब क बीच म उगली रखकर लायबररी की जखड़की स बाहर दख रहा था ldquoहलो डाकरर - वह

पीछ मड़ा तब उस कषण

उस कषण न जान कयो लजतका का हाथ काप गया और कॉिी की कछ गमट बद उसकी साड़ी पर छलक आयी अधर म

जकसी न नही दखा जक लजतका क चहर पर एक उनीदा रीतापन जघर आया ह हवा क झोक स मोमबजततयो की लौ

िड़कन लगी छत स भी ऊ ची काठगोदाम जानवाली सड़क पर यपी रोडवज की आजखरी बस डाक लकर जा रही

थी बस की हड लाइरस म आस-पास िली हई झाजड़यो की छायाए घर की दीवार पर सरकती हई गायब होन लगी

ldquoजमस लजतका आप इस साल भी छरटटयो म यही रहगीldquoडाकरर न पछा डाकरर का सवाल हवा म रगा रहा उसी

कषण जपयानो पर शोपा का नोकरनट हयबरट की उगजलयो क नीच स जिसलता हआ धीर-धीर छत क अधर म घलन

लगा-मानो जल पर कोमल सवजपनल उजमटया भवरो का जझलजमलाता जाल बनती हई दर-दर जकनारो तक िलती जा

रही हो लजतका को लगा जक जस कही बहत दर बिट की चोजरयो स पररनददो क झणड नीच अनजान दशो की ओर उड़

जा रह ह इन जदनो अकसर उसन अपन कमर की जखड़की स उनदह दखा ह-धाग म बध चमकील लटटओ की तरह व

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एक लमबी रढ़ी-मढ़ी कतार म उड़ जात ह पहाड़ो की सनसान नीरवता स पर उन जवजचतर शहरो की ओर जहा शायद

वह कभी नही जायगी

लजतका आमट चयर पर ऊ घन लगी डाकरर मकजी का जसगार अधर म चपचाप जल रहा था डाकरर को आशचयट हआ

जक लजतका न जान कया सोच रही ह और लजतका सोच रही थी-कया वह बढ़ी होती जा रही ह उसक सामन सकल की

जपरजसपल जमस वड का चहरा घम गया-पोपला मह आखो क नीच झलती हई मास की थजलया ज़रा-ज़रा सी बात पर

जचढ़ जाना ककट श आवाज म चीखना-सब उस lsquoओडमडrsquo कहकर पकारत ह कछ विो बाद वह भी ह -ब-ह वसी ही

बन जायगीलजतका क समच शरीर म झरझरी-सी दौड़ गयी मानो अनजान म उसन जकसी गलीज वसत को छ जलया

हो उस याद आया कछ महीन पहल अचानक उस हयबरट का परमपतर जमला था - भावक याचना स भरा हआ पतर

जजसम उसन न जान कया कछ जलखा था जो कभी उसकी समझ म नही आया उस हयबरट की इस बचकाना हरकत पर

हसी आयी थी जकनदत भीतर-ही-भीतर परसनदनता भी हई थी उसकी उमर अभी बीती नही ह अब भी वह दसरो को

अपनी ओर आकजिटत कर सकती ह हयबरट का पतर पढ़कर उस करोध नही आया आयी थी कवल ममता वह चाहती

तो उसकी गलतिहमी को दर करन म दर न लगती जकनदत कोई शजि उस रोक रहती ह उसक कारण अपन पर

जवशवास रहता ह अपन सख का भरम मानो हयबरट की गलतिहमी स जड़ा ह

हयबरट ही कयो वह कया जकसी को चाह सकगी उस अनभजत क सग जो अब नही रही जो छाया-सी उस पर मडराती

रहती ह न सवय जमरती ह न उस मजि द पाती ह उस लगा जस बादलो का झरमर जिर उसक मजसतषक पर धीर-धीर

छान लगा ह उसकी राग जिर जनजीव जशजथल-सी हो गयी ह वह झरक स उठ खड़ी हई- ldquoडाकरर माि करना मझ

बहत थकान-सी लग रही हजबना वाकय परा जकय ही वह चली गयी कछ दर तक ररस पर जनसतबधता छायी रही

मोमबजततया बझन लगी थी डाकरर मकजी न जसगार का नया कश जलया - ldquoसब लड़जकया एक-जसी होती ह-बवकि

और सरीमरल हयबरट की उगजलयो का दबाव जपयानो पर ढीला पड़ता गया अजनदतम सरो की जझझकी-सी गज कछ

कषणो तक हवा म जतरती रही

ldquoडाकरर आपको मालम ह जमस लजतका का वयवहार जपछल कछ अस स अजीब-सा लगता ह हयबरट क सवर म

लापरवाही का भाव था वह नही चाहता था जक डाकरर को लजतका क परजत उसकी भावनाओ का आभास-मातर भी

जमल सक जजस कोमल अनभजत को वह इतन समय स सजोता आया ह डाकरर उस हसी क एक ठहाक म

उपहासासपद बना दगा ldquoकया तम जनयजत म जवशवास करत हो हयबरट डाकरर न कहा हयबरट दम रोक परतीकषा करता

रहा वह जानता था जक कोई भी बात कहन स पहल डाकरर को जिलासोिाइज करन की आदत थी डाकरर ररस क

जगल स सरकर खड़ा हो गया िीकी-सी चादनी म चीड़ क पड़ो की छायाए लॉन पर जगर रही थी कभी-कभी कोई

जगन अधर म हरा परकाश जछड़कता हवा म गायब हो जाता था

ldquoम कभी-कभी सोचता ह इनदसान जजनददा जकसजलए रहता ह-कया उस कोई और बहतर काम करन को नही जमला

हजारो मील अपन म क स दर म यहा पड़ा ह - यहा कौन मझ जानता ह यही शायद मर भी जाऊ गा हयबरट कया तमन

कभी महसस जकया ह जक एक अजनबी की हजसयत स परायी जमीन पर मर जाना काफ़ी खौिनाक बात ह

हयबरट जवजसमत-सा डाकरर को दखन लगा उसन पहली बार डॉकरर मकजी क इस पहल को दखा था अपन समबनदध

म वह अकसर चप रहत थ ldquoकोई पीछ नही ह यह बात मझम एक अजीब जकसम की बजिकरी पदा कर दती ह लजकन

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कछ लोगो की मौत अनदत तक पहली बनी रहती ह शायद व जज़नददगी स बहत उममीद लगात थ उस टजजक भी नही

कहा जा सकता कयोजक आजखरी दम तक उनदह मरन का एहसास नही होता ldquoडाकरर आप जकसका जजकर कर रह

ह हयबरट न परशान होकर पछा डाकरर कछ दर तक चपचाप जसगार पीता रहा जिर मड़कर वह मोमबजततयो की

बझती हई लौ को दखन लगा

ldquoतमह मालम ह जकसी समय लजतका जबला नागा कलब जाया करती थी जगरीश नगी स उसका पररचय वही हआ था

कशमीर जान स एक रात पहल उसन मझ सबकछ बता जदया था म अब तक लजतका स उस मलाकात क बार म कछ

नही कह सका ह जकनदत उस रात कौन जानता था जक वह वापस नही लौरगा और अबअब कया िकट पड़ता ह लर

द डड डाई डाकरर की सखी सदट हसी म खोखली-सी शनदयता भरी थी

ldquoकौन जगरीश नगी ldquoकमाऊ रजीमर म कपरन था ldquoडाकरर कया लजतका हयबरट स आग कछ नही कहा गया

उस याद आया वह पतर जो उसन लजतका को भजा था जकतना अथटहीन और उपहासासपद जस उसका एक-एक

शबद उसक जदल को कचोर रहा हो उसन धीर-स जपयानो पर जसर जरका जलया लजतका न उस कयो नही बताया कया

वह इसक योगय भी नही था ldquoलजतका वह तो बचची ह पागल मरनवाल क सग खद थोड़ ही मरा जाता हldquo

कछ दर चप रहकर डाकरर न अपन परशन को जिर दहराया ldquoलजकन हयबरट कया तम जनयजत पर जवशवास करत हो हवा

क हक झोक स मोमबजततया एक बार परजजवजलत होकर बझ गयी ररस पर हयबरट और डाकरर अधर म एक-दसर का

चहरा नही दख पा रह थ जिर भी व एक-दसर की ओर दख रह थ कानदवर सकल स कछ दर मदानो म बहत पहाड़ी

नाल का सवर आ रहा था अब बहत दर बाद कमाऊ रजीमर सणरर का जबगल सनायी जदया तो हयबरट हड़बड़ाकर

खड़ा हो गया ldquoअचछा चलता ह डाकरर गड नाइर

ldquoगड नाइर हयबरटमझ माि करना म जसगार खतम करक उठगा सबह बदली छायी थी लजतका क जखड़की

खोलत ही धनदध का गबबारा-सा भीतर घस आया जस रात-भर दीवार क सहार सरदी म जठठरता हआ वह भीतर आन

की परतीकषा कर रहा हो सकल स ऊपर चपल जानवाली सड़क बादलो म जछप गयी थी कवल चपल का lsquoकरासrsquo धनदध

क परद पर एक-दसर को कारती हई पजसल की रखाओ-सा जदखायी द जाता था

लजतका न जखड़की स आख हराई तो दखा जक करीमददीन चाय की ट जलय खड़ा ह करीमददीन जमजलटी म अदटली रह

चका था इसजलए ट मज पर रखकर lsquoअरनदशनrsquo की मरा म खड़ा हो गया लजतका झरक स उठ बठी सबह स आलस

करक जकतनी बार जागकर वह सो चकी ह अपनी जखजसयाहर जमरान क जलए लजतका न कहा - ldquoबड़ी सदी ह आज

जबसतर छोड़न को जी नही चाहता

ldquoअजी मम साहब अभी कया सरदी आयी ह- बड़ जदनो म दखना कस दात करकरात ह - और करीमददीन अपन

हाथो को बगलो म डाल हए इस तरह जसकड़ गया जस उन जदनो की कपना मातर स उस जाड़ा लगना शर हो गया

हो गज जसर पर दोनो तरि क उसक बाल जखजाब लगान स कतथई रग क भर हो गय थ बात चाह जकसी जविय पर

हो रही हो वह हमशा खीचतान कर उस ऐस कषतर म घसीर लाता था जहा वह बजझझक अपन जवचारो को परकर कर

सक

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ldquoएक दिा तो यहा लगातार इतनी बिट जगरी थी जक भवाली स लकर डाक बगल तक सारी सड़क जाम हो गई इतनी

बिट थी मम साहब जक पड़ो की रहजनया तक जसकड़कर तनो स जलपर गयी थी - जबलकल ऐस और करीमददीन नीच

झककर मगाट-सा बन गया ldquoकब की बात ह लजतका न पछा

ldquoअब यह तो जोड़-जहसाब करक ही पता चलगा मम साहब लजकन इतना याद ह जक उस वि अगरज बहादर यही थ

कणरोनमणर की इमारत पर कौमी झणडा नही लगा था बड़ जबर थ य अगरज दो घणरो म ही सारी सड़क साि करवा

दी उन जदनो एक सीरी बजात ही पचास घोड़वाल जमा हो जात थ अब तो सार शड खाली पड़ ह व लोग अपनी

जखदमत भी करवाना जानत थ अब तो सब उजाड़ हो गया ह करीमददीन उदास भाव स बाहर दखन लगा आज यह

पहली बार नही ह जब लजतका करीमददीन स उन जदनो की बात सन रही ह जब अगरज बहादर न इस सथान को सवगट

बना रखा था ldquoआप छरटटयो म इस साल भी यही रहगी मम साहब ldquoजदखता तो कछ ऐसा ही ह करीमददीन तमह जिर

तग होना पड़गा ldquoकया कहती ह मम साहब आपक रहन स हमारा भी मन लग जाता ह वरना छरटटयो म तो यहा

कतत लोरत ह

ldquoतम जरा जमसतरी स कह दना जक इस कमर की छत की मरममत कर जाय जपछल साल बिट का पानी दरारो स रपकता

रहता थाldquo लजतका को याद आया जक जपछली सजदटयो म जब कभी बिट जगरती थी तो उस पानी स बचन क जलए

रात-भर कमर क कोन म जसमरकर सोना पड़ता था

करीमददीन चाय की ट उठाता हआ बोला - ldquoहयबरट साहब तो शायद कल ही चल जाय कल रात उनकी तबीयत जिर

खराब हो गयी आधी रात क वि मझ जगान आय थ कहत थ छाती म तकलीि ह उनदह यह मौसम रास नही

आता कह रह थ लड़जकयो की बस म वह भी कल ही चल जायग करीमददीन दरवाजा बनदद करक चला गया

लजतका की इचछा हई जक वह हयबरट क कमर म जाकर उनकी तबीयत की पछताछ कर आय जकनदत जिर न जान कयो

सलीपर परो म रग रह और वह जखड़की क बाहर बादलो को उड़ता हआ दखती रही हयबरट का चहरा जब उस दखकर

सहमा-सा दयनीय हो जाता ह तब लगता ह जक वह अपनी मक-जनरीह याचना म उस कोस रहा ह - न वह उसकी

गलतिहमी को दर करन का परयतन कर पाती ह न उस अपनी जववशता की सिाई दन का साहस होता ह उस लगता

ह जक इस जाल स बाहर जनकलन क जलए वह धाग क जजस जसर को पकड़ती ह वह खद एक गाठ बनकर रह जाता ह

बाहर बदाबादी होन लगी थी कमर की जरन की छत खर-खर बोलन लगी लजतका पलग स उठ खड़ी हई जबसतर को

तहाकर जबछाया जिर परो म सलीपरो को घसीरत हए वह बड़ आईन तक आयी और उसक सामन सरल पर बठकर

बालो को खोलन लगी जकत कछ दर तक कघी बालो म ही उलझी रही और वह गमसम हो शीश म अपना चहरा

ताकती रही करीमददीन को यह कहना याद ही नही रहा जक धीर-धीर आग जलान की लकजड़या जमा कर ल इन जदनो

ससत दामो पर सखी लकजड़या जमल जाती ह जपछल साल तो कमरा धए स भर जाता था जजसक कारण क पक पात

जाड़ म भी उस जखड़की खोलकर ही सोना पड़ता था

आईन म लजतका न अपना चहरा दखा - वह मसकरा रही थी जपछल साल अपन कमर की सीलन और ठणड स बचन

क जलए कभी-कभी वह जमस वड क खाली कमर म चोरी-चपक सोन चली जाया करती थी जमस वड का कमरा जबना

आग क भी गमट रहता था उनक गदील सोि पर लरत ही आख लग जाती थी कमरा छरटटयो म खाली पड़ा रहता ह

जकनदत जमस वड स इतना नही होता जक दो महीनो क जलए उसक हवाल कर जाय हर साल कमर म ताला ठोक जाती

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ह वह तो जपछल साल गसलखान म भीतर की साकल दना भल गयी थी जजस लजतका चोर दरवाज क रप म

इसतमाल करती रही थी

पहल साल अकल म उस बड़ा डर-सा लगता था छरटटयो म सार सकल और होसरल क कमर साय-साय करन लगत

ह डर क मार उस जब कभी नीद नही आती थी तब वह करीमददीन को रात म दर तक बातो म उलझाय रखती बातो

म जब खोयी-सी वह सो जाती तब करीमददीन चपचाप लमप बझाकर चला जाता कभी-कभी बीमारी का बहाना

करक वह डाकरर को बलवा भजती थी और बाद म बहत जजद करक दसर कमर म उनका जबसतर लगवा दती

लजतका क कध स बालो का गचछा जनकाला और उस बाहर ि कन क जलए वह जखड़की क पास आ खड़ी हई बाहर

छत की ढलान स बाररश क जल की मोरी-सी धार बराबर लॉन पर जगर रही थी मघाचछनदन आकाश म सरकत हए

बादलो क पीछ पहाजड़यो क झणड कभी उभर आत थ कभी जछप जात थ मानो चलती हई टन स कोई उनदह दख रहा

हो लजतका न जखड़की स जसर बाहर जनकाल जलया - हवा क झोक स उसकी आख जझप गयी उस जजतन काम याद

आत ह उतना ही आलस घना होता जाता ह बस की सीर ररजवट करवान क जलए चपरासी को रपय दन ह जो सामान

होसरल की लड़जकया पीछ छोड़ जा रही ह उनदह गोदाम म रखवाना होगा कभी-कभी तो छोरी कलास की लड़जकयो

क साथ पजकग करवान क काम म भी उस हाथ बराना पड़ता था

वह इन कामो स ऊबती नही धीर-धीर सब जनपरत जात ह कोई गलती इधर-उधर रह जाती ह सो बाद म सधर जाती

ह हर काम म जकचजकच रहती ह परशानी और जदककत होती ह जकनदत दर-सबर इसस छरकारा जमल ही जाता ह

जकनदत जब लड़जकयो की आजखरी बस चली जाती ह तब मन उचार-सा हो जाता ह खाली कॉरीडोर म घमती हई व

कभी इस कमर म जाती ह और कभी उसम वह नही जान पाती जक अपन स कया कर जदल कही भी नही जरक पाता

हमशा भरका-भरका-सा रहता ह

इस सबक बावजद जब कोई सहज भाव म पछ बठता ह ldquoजमस लजतका छरटटयो म आप घर नही जा रही तब वह

कया कह जडग-डाग-जडग सपशल सजवटस क जलए सकल चपल क घर बजन लग थ लजतका न अपना जसर जखड़की

क भीतर कर जलया उसन झरपर साड़ी उतारी और परीकोर म ही कनदध पर तौजलया डाल गसलखान म घस गयी

लफर-राइर लफरलफर

कणरोनमणर जानवाली पककी सड़क पर चार-चार की पजि म कमाऊ रजीमर क जसपाजहयो की एक रकड़ी माचट कर

रही थी िौजी बरो की भारी खरदरी आवाज सकल चपल की दीवारो स रकराकर भीतर lsquoपरयर हालrsquo म गज रही थी

ldquoबलसड आर द मीक िादर एमणड एक-एक शबद चबात हए खखारत सवर म lsquoसमटन आि द माउणरrsquo पढ़ रह थ

ईसा मसीह की मजतट क नीच lsquoकणडलजबरयमrsquo क दोनो ओर मोमबजततया जल रही थी जजनका परकाश आग बचो पर

बठी हई लड़जकयो पर पड़ रहा था जपछली लाइनो की बच अधर म डबी हई थी जहा लड़जकया पराथटना की मरा म

बठी हई जसर झकाय एक-दसर स घसर-पसर कर रही थी जमस वड सकल सीजन क सिलतापवटक समापत हो जान पर

जवदयाजथटयो और सराि सदसयो को बधाई का भािण द चकी थी- और अब िादर क पीछ बठी हई अपन म ही कछ

बड़बड़ा रही थी मानो धीर-धीर िादर को lsquoपरौमरrsquo कर रही हो

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lsquoआमीनrsquo िादर एमणड न बाइबल मज पर रख दी और lsquoपरयर बकrsquo उठा ली हॉल की खामोशी कषण भर क जलए रर

गयी लड़जकयो न खड़ होत हए जान-बझकर बचो को पीछ धकला - बच िशट पर रगड़ खाकर सीरी बजाती हई पीछ

जखसक गयी - हॉल क कोन स हसी िर पड़ी जमस वड का चहरा तन गया माथ पर भकजरया चढ़ गयी जिर

अचानक जनसतबधता छा गयी हॉल क उस घर हए घधलक म िादर का तीखा िरा हआ सवर सनायी दन लगा -

ldquoजीजस सड आई एम द लाइर ऑि द वडट ही दर िालोएथ मी शल नॉर वाक इन डाकट नस बर शल हव द लाइर

ऑि लाइि

डाकरर मखजी न ऊब और उकताहर स भरी जमहाई ली ldquoकब यह जकससा खतम होगा उसन इतन ऊ च सवर म

लजतका स पछा जक वह सकचाकर दसरी ओर दखन लगी सपशल सजवटस क समय डाकरर मकजी क होठो पर

वयगयातमक मसकान खलती रहती और वह धीर-धीर अपनी मछो को खीचता रहता िादर एमणड की वश-भिा

दखकर लजतका क जदल म गदगदी-सी दौड़ गयी जब वह छोरी थी तो अकसर यह बात साचकर जवजसमत हआ करती

थी जक कया पादरी लोग सिद चोग क नीच कछ नही पहनत अगर धोख स वह ऊपर उठ जाय तो

लफरलफरलफर माचट करत हए िौजी बर चपल स दर होत जा रह थ-कवल उनकी गज हवा म शि रह गयी

थी

lsquoजहम नमबर ११७rsquoिादर न पराथटना-पसतक खोलत हए कहा हॉल म परतयक लड़की न डसक पर रखी हई जहम-बक

खोल ली पनदनो क उलरन की खड़खड़ाहर जिसलती हई एक जसर स दसर जसर तक िल गयी आग की बच स

उठकर हयबरट जपयानो क सामन सरल पर बठ गया सगीत जशकषक होन क कारण हर साल सपशल सजवटस क अवसर

पर उस lsquoकॉयरrsquo क सग जपयानो बजाना पड़ता था हयबरट न अपन रमाल स नाक साि की अपनी घबराहर जछपान क

जलए हयबरट हमशा ऐसा ही जकया करता था कनजखयो स हॉल की ओर दखत हए अपन कापत हाथो स जहम-बक

खोली लीड काइणडली लाइर

जपयानो क सर दब जझझकत स जमलन लग घन बालो स ढकी हयबरट की लबी पीली अगलया खलन-जसमरन लगी

lsquoकॉयरrsquo म गानवाली लड़जकयो क सवर एक-दसर स गथकर कोमल जसनगध लहरो म जबध गय लजतका को लगा

उसका जड़ा ढीला पड़ गया ह मानो गरदन क नीच झल रहा ह जमस वड की आख बचा लजतका न चपचाप बालो म

लग जकलपो को कसकर खीच जदया ldquoबड़ा झककी आदमी हसबह मन हयबरट को यहा आन स मना जकया था जिर

भी चला आया - डाकरर न कहा

लजतका को करीमददीन की बात याद हो गयी रात-भर हयबरट को खासी का दौरा पड़ा था कल जान क जलए कह रह

थ लजतका न जसर रढ़ा करक हयबरट क चहर की एक झलक पान की जविल चिा की इतन पीछ स कछ भी दख पाना

असभव था जपयानो पर झका हआ कवल हयबरट का जसर जदखायी दता था

लीड काइणडली लाइर सगीत क सर मानो एक ऊ ची पहाड़ी पर चढ़कर हािती हई सासो को आकाश की अबाध

शनदयता म जबखरत हए नीच उतर रह ह बाररश की मलायम धप चपल क लमब-चकोर शीशो पर जझलजमला रही ह

जजसकी एक महीन चमकीली रखा ईसा मसीह की परजतमा पर जतरछी होकर जगर रही ह मोमबजततयो का धआ धप म

नीली-सी लकीर खीचता हआ हवा म जतरन लगा ह जपयानो क कषजणक lsquoपोजrsquo म लजतका को पततो का पररजचत ममटर

कही दर अनजानी जदशा स आता हआ सनायी द जाता ह एक कषण क जलए एक भरम हआ जक चपल का िीका-सा

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अधरा उस छोर-स lsquoपरयर-हॉलrsquo क चारो कोनो स जसमरता हआ उसक आस-पास जघर आया ह मानो कोई उसकी

आखो पर पटटी बाधकर उस यहा तक ल आया हो और अचानक उसकी आख खोल दी हो उस लगा जक जस

मोमबजततयो क धजमल आलोक म कछ भी ठोस वासतजवक न रहा हो-चपल की छत दीवार डसक पर रखा हआ

डाकरर का सघड़-सडौल हाथ और जपयानो क सर अतीत की धनदध को भदत हए सवय उस धनदध का भाग बनत जा रह

हो

एक पगली-सी समजत एक उदभरानदत भावना-चपल क शीशो क पर पहाड़ी सखी हवा हवा म झकी हई वीजपग जवलोज

की कापती रहजनया परो तल चीड़ क पततो की धीमी-सी जचर-पररजचत खड़खड़ वही पर जगरीश एक हाथ म

जमजलररी का खाकी हर जलय खड़ा ह-चौड़ उठ हए सबल कनदध अपना जसर वहा जरका दो तो जस जसमरकर खो

जायगा चासट बोयर यह नाम उसन रखा था वह झपकर हसन लगा ldquoतमह आमी म जकसन चन जलया मजर बन गय

हो लजकन लड़जकयो स भी गय बीत हो ज़रा-ज़रा-सी बात पर चहरा लाल हो जाता ह यह सब वह कहती नही

जसिट सोचती भर थी सोचा था कभी कह गी वह lsquoकभीrsquo कभी नही आया बरस का लाल िल लाय हो न झठ खाकी

कमीज क जजस जब पर बज जचपक थ उसम स मसा हआ बरस का िल जनकल आया जछः सारा मरझा गया अभी

जखला कहा ह (हाउ कलनदजी) उसक बालो म जगरीश का हाथ उलझ रहा ह-िल कही जरक नही पाता जिर उस जकलप

क नीच ि साकर उसन कहा- दखो

वह मड़ी और इसस पहल जक वह कछ कह पाती जगरीश न अपना जमजलररी का हर धप स उसक जसर पर रख जदया

वह मनदतरमगध-सी वसी ही खड़ी रही उसक जसर पर जगरीश का हर ह-माथ पर छोरी-सी जबनददी ह जबनददी पर उड़त हए

बाल ह जगरीश न उस जबनददी को अपन होठो स छआ ह उसन उसक नग जसर को अपन दोनो हाथो म समर जलया ह -

लजतका

जगरीश न जचढ़ात हए कहा- मन ईरर आि कमाऊ - (उसका यह नाम जगरीश न उस जचढ़ान क जलए रखा था) वह

हसन लगी ldquoलजतका सनो जगरीश का सवर कसा हो गया था ldquoना म कछ भी नही सन रही ldquoलजतका म कछ

महीनो म वाजपस लौर आऊ गा ldquoना म कछ भी नही सन रही जकनदत वह सन रही ह- वह नही जो जगरीश कह रहा

ह जकनदत वह जो नही कहा जा रहा ह जो उसक बाद कभी नही कहा गया लीड काइणडली लाइर

लड़जकयो का सवर जपयानो क सरो म डबा हआ जगर रहा ह उठ रहा ह हयबरट न जसर मोड़कर लजतका को जनजमि भर

दखा आख मद धयानमगना परसतर मजतट-सी वह जसथर जनशचल खड़ी थी कया यह भाव उसक जलए ह कया लजतका न

ऐस कषणो म उस अपना साथी बनाया ह हयबरट न एक गहरी सास ली और उस सास म ढर-सी थकान उमड़ आयी

ldquoदखो जमस वड कसी पर बठ-बठ सो रही ह डाकरर होठो म ही िसिसाया यह डाकरर का पराना मजाक था जक

जमस वड पराथटना करन क बहान आख मद हए नीद की झपजकया लती ह

िादर एमणड न कसी पर िल अपन गाउन को समर जलया और परयर बक बद करक जमस वड क कानो म कछ कहा

जपयानो का सवर करमशः मनदद पड़न लगा हयबरट की अगजलया ढीली पड़न लगी सजवटस क समापत होन स पवट जमस वड

न आडटर पढ़कर सनाया बाररश होन की आशका स आज क कायटकरम म कछ आवशयक पररवतटन करन पड़ थ

जपकजनक क जलए झला दवी क मजनददर जाना समभव नही हो सकगा इसजलए सकल स कछ दर lsquoमीडोजrsquo म ही सब

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लड़जकया नाशत क बाद जमा होगी सब लड़जकयो को दोपहर का lsquoलचrsquo होसरल जकचन स ही ल जाना होगा कवल

शाम की चाय lsquoमीडोजrsquo म बनगी

पहाड़ो की बाररश का कया भरोसा कछ दर पहल धआधार बादल गरज रह थ सारा शहर पानी म भीगा जठठर रहा

था- अब धप म नहाता नीला आकाश धनदध की ओर स बाहर जनकलता हआ िल रहा था लजतका न चपल स बाहर

आत हए दखा-वीजपग जबलोज की भीगी शाखाओ स धप म चमकती हई बाररश की बद रपक रही थी लड़जकया

चपल स बाहर जनकलकर छोर-छोर गचछ बनाकर कॉरीडोर म जमा हो गयी ह नाशत क जलए अभी पौन घणरा पड़ा

था और उनम स अभी कोई भी लड़की होसरल जान क जलए इचछक नही थी छरटटया अभी शर नही हई थी जकनदत

शायद इसीजलए व इन चनदद बच-खच कषणो म अनशासन क भीतर भी मि होन का भरपर आननदद उठा लना चाहती

थी

जमस वड को लड़जकयो का यह गल-गपाड़ा अखरा जकनदत िादर एमणड क सामन वह उनदह डार-िरकार नही सकी

अपनी झझलाहर दबाकर वह मसकरात हए बोली- ldquoकल सब चली जायगी सारा सकल वीरान हो जायगा िादर

एमणड का लमबा ओजपणट चहरा चपल की घरी हई गरमाई स लाल हो उठा था कॉरीडोर क जगल पर अपनी छड़ी

लरकाकर वह बोल - ldquoछरटटयो म पीछ हॉसरल म कौन रहगा ldquoजपछल दो-तीन सालो स जमस लजतका ही रह रही ह

ldquoऔर डाकरर मकजी छरटटयो म कही नही जात ldquoडाकरर तो सदी-गमी यही रहत ह जमस वड न जवसमय स िादर

की ओर दखा वह समझ नही सकी जक िादर न डाकरर का परसग कयो छड़ जदया ह

ldquoडाकरर मकजी छरटटयो म कही नही जात ldquoदो महीन की छरटटयो म बमाट जाना कािी कजठन ह िादर - जमस वड

हसन लगी

ldquoजमस वड पता नही आप कया सोचती ह मझ तो जमस लजतका का होसरल म अकल रहना कछ समझ म नही

आता ldquoलजकन िादर जमस वड न कहा ldquoयह तो कानदवनदर सकल का जनयम ह जक कोई भी रीचर छरटटयो म अपन

खच पर होसरल म रह सकत ह ldquoम जिलहाल सकल क जनयमो की बात नही कर रहा जमस लजतका डाकरर क सग

यहा अकली ही रह जायगी और सच पजछए जमस वड डाकरर क बार म मरी राय कछ बहत अचछी नही ह ldquoिादर

आप कसी बात कर रह ह जमस लजतका बचचा थोड़ ही ह जमस वड को ऐसी आशा नही थी जक िादर एमणड

अपन जदल म ऐसी दजकयानसी भावना को सथान दग

िादर एमणड कछ हतपरभ-स हो गय बात पलरत हए बोल- ldquoजमस वड मरा मतलब यह नही था आप तो जानती ह

जमस लजतका और उस जमजलररी अिसर को लकर एक अचछा-खासा सकणडल बन गया था सकल की बदनामी होन

म कया दर लगती ह ldquoवह बचारा तो अब नही रहा म उस जानती थी िादर ईशवर उसकी आतमा को शाजनदत द जमस

वड न धीर-स अपनी दोनो बाहो स करास जकया

िादर एमणड को जमस वड की मखटता पर इतना अजधक कषोभ हआ जक उनस आग और कछ नही बोला गया डाकरर

मकजी स उनकी कभी नही परती थी इसजलए जमस वड की आखो म वह डाकरर को नीचा जदखाना चाहत थ जकनदत

जमस वड लजतका का रोना ल बठी आग बात बढ़ाना वयथट था उनदहोन छड़ी को जगल स उठाया और ऊपर साि

खल आकाश को दखत हए बोल- ldquoपरोगराम आपन य ही बदला जमस वड अब कया बाररश होगी

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हयबरट जब चपल स बाहर जनकला तो उसकी आख चकाचध-सी हो गई उस लगा जस जकसी न अचानक ढर-सी

चमकीली उबलती हई रोशनी मटठी म भरकर उसकी आखो म झोक दी हो जपयानो क सगीत क सर रई क छई-मई

रशो की भाजत अब तक उसक मजसतषक की थकी-मादी नसो पर िड़िड़ा रह थ वह कािी थक गया था जपयानो

बजान स उसक ििड़ो पर हमशा भारी दबाव पड़ता जदल की धड़कन तज हो जाती थी उस लगता था जक सगीत क

एक नोर को दसर नोर म उतारन क परयतन म वह एक अधरी खाई पार कर रहा ह

आज चपल म मन जो महसस जकया वह जकतना रहसयमय जकतना जवजचतर था हयबरट न सोचा मझ लगा जपयानो का

हर नोर जचरनदतन खामोशी की अधरी खोह स जनकलकर बाहर िली नीली धनदध को कारता तराशता हआ एक भला-

सा अथट खीच लाता ह जगरता हआ हर lsquoपोजrsquo एक छोरी-सी मौत ह मानो घन छायादार वकषो की कापती छायाओ म

कोई पगडणडी गम हो गयी हो एक छोरी-सी मौत जो आनवाल सरो को अपनी बची-खची गजो की सास समजपटत कर

जाती ह जो मर जाती ह जकनदत जमर नही पाती जमरती नही इसजलए मरकर भी जीजवत ह दसर सरो म लय हो जाती

ldquoडाकरर कया मतय ऐस ही आती ह अगर म डाकरर स पछ तो वह हसकर राल दगा मझ लगता ह वह जपछल कछ

जदनो स कोई बात जछपा रहा ह- उसकी हसी म जो सहानभजत का भाव होता ह वह मझ अचछा नही लगता आज

उसन मझ सपशल सजवटस म आन स रोका था - कारण पछन पर वह चप रहा था कौन-सी ऐसी बात ह जजस मझस

कहन म डाकरर कतराता ह शायद म शककी जमजाज होता जा रहा ह और बात कछ भी नही ह

हयबरट न दखा लड़जकयो की कतार सकल स होसरल जानवाली सड़क पर नीच उतरती जा रही ह उजली धप म उनक

रग-जबरग ररबन हकी आसमानी रग की रॉक और सिद पजरया चमक रही ह सीजनयर कजमबरज की कछ लड़जकयो

न चपल की वाजरका क गलाब क िलो को तोड़कर अपन बालो म लगा जलया ह कणरोनमणर क तीन-चार जसपाही

लड़जकयो को दखत हए अशलील मजाक करत हए हस रह ह और कभी-कभी जकसी लड़की की ओर ज़रा झककर

सीरी बजान लगत ह

ldquoहलो जम हयबरट हयबरट न चककर पीछ दखा लजतका एक मोरा-सा रजजसरर बगल म दबाय खड़ी थी ldquoआप अभी

यही ह हयबरट की दजि लजतका पर जरकी रही वह करीम रग की परी बाहो की ऊनी जकर पहन हई थी कमाऊ नी

लड़जकयो की तरह लजतका का चहरा गोल था धप की तपन स पका गहआ रग कही-कही हका-सा गलाबी हो

आया था मानो बहत धोन पर भी गलाल क कछ धबब इधर-उधर जबखर रह गय हो ldquoउन लड़जकयो क नाम नोर करन

थ जो कल जा रही ह सो पीछ रकना पड़ा आप भी तो कल जा रह ह जम हयबरट ldquoअभी तक तो यही इरादा ह यहा

रककर भी कया कर गा आप सकल की ओर जा रही हldquo ldquoचजलए

पककी सड़क पर लड़जकयो की भीड़ जमा थी इसजलए व दोनो पोलो गराउणड का चककर कारती हई पगडणडी स नीच

उतरन लग हवा तज हो चली चीड़ क पतत हर झोक क सग रर-ररकर पगडणडी पर ढर लगात जात थ हयबरट रासता

बनान क जलए अपनी छड़ी स उनदह बहारकर दोनो ओर जबखर दता था लजतका पीछ खड़ी हई दखती रहती थी

अमोड़ा की ओर स आत हए छोर-छोर बादल रशमी रमालो स उड़त हए सरज क मह पर जलपर स जात थ जिर

हवा म बह जनकलत थ इस खल म धप कभी मनदद िीकी-सी पड़ जाती थी कभी अपना उजला आचल खोलकर

समच शहर को अपन म समर लती थी

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लजतका तजनक आग जनकल गयी हयबरट की सास चढ़ गयी थी और वह धीर-धीर हािता हआ पीछ स आ रहा था

जब व पोलोगराउणड क पवजलयन को छोड़कर जसजमटी क दायी और मड तो लजतका हयबरट की परतीकषा करन क जलए

खड़ी हो गयी उस याद आया छरटटयो क जदनो म जब कभी कमर म अकल बठ-बठ उसका मन ऊब जाता था तो वह

अकसर रहलत हए जसजमटी तक चली जाती थी उसस सरी पहाड़ी पर चढ़कर वह बिट म ढक दवदार वकषो को दखा

करती थी जजनकी झकी हई शाखो स रई क गोलो-सी बिट नीच जगरा करती थी नीच बाजार जानवाली सड़क पर

बचच सलज पर जिसला करत थ वह खड़ी-खड़ी बिट म जछपी हई उस सड़क का अनमान लगाया करती थी जो िादर

एमणड क घर स गजरती हई जमजलररी असपताल और डाकघर स होकर चचट की सीजढ़यो तक जाकर गम हो जाती

थी जो मनोरजन एक दगटम पहली को सलझान म होता ह वही लजतका को बिट म खोय रासतो को खोज जनकालन म

होता था

ldquoआप बहत तज चलती ह जमस लजतका - थकान स हयबरट का चहरा कमहला गया था माथ पर पसीन की बद

छलक आयी थी ldquoकल रात आपकी तजबयत कया कछ खराब हो गयी थी ldquoआपन कस जाना कया म असवसथ

दीख रहा ह हयबरट क सवर म हलकी-सी खीज का आभास था सब लोग मरी सहत को लकर कयो बात शर करत

ह उसन सोचा ldquoनही मझ तो पता भी नही चलता वह तो सबह करीमददीन न बातो-ही-बातो म जजकर छड़ जदया था

लजतका कछ अपरजतभ-सी हो आयी ldquoकोई खास बात नही वही पराना ददट शर हो गया था अब जबकल ठीक ह

अपन कथन की पजि क जलए हयबरट छाती सीधी करक तज कदम बढ़ान लगा ldquoडाकरर मकजी को जदखलाया था

ldquoवह सबह आय थ उनकी बात कछ समझ म नही आती हमशा दो बात एक-दसर स उरी कहत ह कहत थ जक

इस बार मझ छह-सात महीन की छटटी लकर आराम करना चाजहए लजकन अगर म ठीक ह तो भला इसकी कया

जररत ह

हयबरट क सवर म वयथा की छाया लजतका स जछपी न रह सकी बात को रालत हए उसन कहा - ldquoआप तो नाहक

जचनदता करत ह जम हयबरट आजकल मौसम बदल रहा ह अचछ भल आदमी तक बीमार हो जात ह हयबरट का

चहरा परसनदनता स दमकन लगा उसन लजतका को धयान स दखा वह अपन जदल का सशय जमरान क जलए जनजशचनदत

हो जाना चाहता था जक कही लजतका उस कवल जदलासा दन क जलए ही तो झठ नही बोल रही ldquoयही तो म सोच रहा

था जमस लजतका डाकरर की सलाह सनकर म डर ही गया भला छह महीन की छटटी लकर म अकला कया कर गा

सकल म तो बचचो क सग मन लगा रहता ह सच पछो तो जदली म य दो महीनो की छरटटया कारना भी दभर हो जाता

ldquoजम हयबरटकल आप जदली जा रह ह लजतका चलत-चलत हठात जठठक गयी सामन पोलो-गराउणड िला था

जजसक दसरी ओर जमजलररी की टक कणरोनमणर की ओर जा रही थी हयबरट को लगा जस लजतका की आख

अधमदी-सी खली रह गयी ह मानो पलको पर एक पराना भला-सा सपना सरक आया ह

ldquoजमहयबरटआप जदली जा रह ह इस बार लजतका न परशन नही दहराया उसक सवर म कवल एक असीम दरी का

भाव जघर आया ldquoबहत असाट पहल म भी जदली गयी थी जम हयबरट तब म बहत छोरी थी न जान जकतन बरस बीत

गय हमारी मौसी का बयाह वही हआ था बहत-सी चीज दखी थी लजकन अब तो सब कछ धधला-सा पड़ गया ह

इतना याद ह जक हम कतब पर चढ़ थ सबस ऊ ची मजजल स हमन नीच झाका था न जान कसा लगा था नीच चलत

हए आदमी चाभी भर हए जखलौनो-स लगत थ हमन ऊपर स उन पर मगिजलया ि की थी लजकन हम बहत जनराश

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हए थ कयोजक उनम स जकसी न हमारी तरि नही दखा शायद मा न मझ डारा था और म जसिट नीच झाकत हए डर

गयी थी सना ह अब तो जदली इतना बदल गया ह जक पहचाना नही जाता

व दोनो जिर चलन लग हवा का वग ढीला पड़न लगा उड़त हए बादल अब ससतान स लग थ उनकी छायाए ननददा

दवी और पचचली की पहाजड़यो पर जगर रही थी सकल क पास पहचत-पहचत चीड़ क पड़ पीछ छर गय कही-कही

खबानी क पड़ो क आस-पास बरस क लाल िल धप म चमक जात थ सकल तक आन म उनदहोन पोलोगराउणड का

लमबा चककर लगा जलया था ldquoजमस लजतका आप कही छरटटयो म जाती कयो नही सजदटयो म तो यहा सब कछ वीरान

हो जाता होगा

ldquoअब मझ यहा अचछा लगता ह लजतका न कहा ldquoपहल साल अकलापन कछ अखरा था अब आदी हो चकी ह

जकरसमस स एक रात पहल कलब म डानदस होता ह लाररी डाली जाती ह और रात को दर तक नाच-गाना होता रहता

ह नय साल क जदन कमाऊ रजीमणर की ओर स परड-गराउणड म कानीवाल जकया जाता ह बिट पर सकजरग होती ह

रग-जबरग गबबारो क नीच िौजी बणड बजता ह िौजी अिसर िनदसी डरस म भाग लत ह हर साल ऐसा ही होता ह

जम हयबरट जिर कछ जदनो बाद जवणरर सपोटस क जलए अगरज रररसर आत ह हर साल म उनस पररजचत होती ह

वाजपस लौरत हए व हमशा वादा करत ह जक अगल साल भी आयग पर म जानती ह जक व नही आयग व भी जानत

ह जक व नही आयग जिर भी हमारी दोसती म कोई अतर नही पड़ता जिरजिर कछ जदनो बाद पहाड़ो पर बिट

जपघलन लगती ह छरटटया खतम होन लगती ह आप सब लोग अपन-अपन घरो स वाजपस लौर आत ह - और जम

हयबरट पता भी नही चलता जक छरटटया कब शर हई थी कब खतम हो गई

लजतका न दखा जक हयबरट उसकी ओर आतजकत भयाकल दजि स दख रहा ह वह जसरजपराकर चप हो गयी उस

लगा मानो वह इतनी दर स पागल-सी अनगटल परलाप कर रही हो ldquoमझ माि करना जम हयबरट कभी-कभी म बचचो

की तरह बातो म बहक जाती ह ldquoजमस लजतका हयबरट न धीर-स कहा वह चलत-चलत रक गया था लजतका

हयबरट क भारी सवर स चौक-सी गयी ldquoकया बात ह जम हयबरट ldquoवह पतर उसक जलए म लजजजत ह उस आप वाजपस

लौरा द समझ ल जक मन उस कभी नही जलखा था

लजतका कछ समझ न सकी जदगभरानदत-सी खड़ी हई हयबरट क पील उजदधगन चहर को दखती रही हयबरट न धीर-स

लजतका क कनदध पर हाथ रख जदया ldquoकल डाकरर न मझ सबकछ बता जदया अगर मझ पहल स मालम होता

तोतो हयबरट हकलान लगा ldquoजम हयबरट जकनदत लजतका स आग कछ भी नही कहा गया उसका चहरा सिद हो

गया था

दोनो चपचाप कछ दर तक सकल क गर क बाहर खड़ रह मीडोजपगडजणडयो पततो छायाओ स जघरा छोरा-सा

दवीप मानो कोई घोसला दो हरी घाजरयो क बीच आ दबा हो भीतर घसत ही जपकजनक क काल आग स झलस हए

पतथर अधजली रहजनया बठन क जलए जबछाय गय परान अखबारो क रकड़ इधर-उधर जबखर हए जदखायी द जात

ह अकसर रररसर जपकजनक क जलए यहा आत ह मीडोज को बीच म कारता हआ रढ़ा-मढ़ा बरसाती नाला बहता ह

जो दर स धप म चमकता हआ सिद ररबन-सा जदखायी दता ह

यही पर काठ क तखतो का बना हआ ररा-सा पल ह जजस पर लड़जकया जहचकोल खात हए चल रही ह

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ldquoडाकरर मकजी आप तो सारा जगल जला दग जमस वड न अपनी ऊ ची एड़ी क सणडल स जलती हई जदयासलाई

को दबा डाला जो डाकरर न जसगार सलगाकर चीड़ क पततो क ढर पर ि क दी थी व नाल स कछ दर हरकर चीड़ क

दो पड़ो स गथी हई छाया क नीच बठ थ उनक सामन एक छोरा-सा रासता नीच पहाड़ी गाव की ओर जाता था जहा

पहाड़ की गोद म शकरपारो क खत एक-दसर क नीच जबछ हए थ दोपहर क सनदनार म भड़-बकररयो क गलो म बधी

हई धजणरयो का सवर हवा म बहता हआ सनायी द जाता था घास पर लर-लर डाकरर जसगार पीत रह ldquoजगल की

आग कभी दखी ह जमस वडएक अलमसत नश की तरह धीर-धीर िलती जाती ह

ldquoआपन कभी दखी ह डाकरर जमस वड न पछा ldquoमझ तो बड़ा डर लगता ह

ldquoबहत साल पहल शहरो को जलत हए दखा था डाकरर लर हए आकाश की ओर ताक रह थ ldquoएक-एक मकान

ताश क पततो की तरह जगरता जाता दभाटगयवश ऐस अवसर दखन म बहत कम आत ह

ldquoआपन कहा दखा डाकरर

ldquoलड़ाई क जदनो म अपन शहर रगन को जलत हए दखा था जमस वड की आतमा को ठस लगी जकनदत जिर भी उनकी

उतसकता शानदत नही हई

ldquoआपका घर कया वह भी जल गया था

डाकरर कछ दर तक चपचाप लरा रहा

ldquoहम उस खाली छोड़कर चल आय थ मालम नही बाद म कया हआ अपन वयजिगत जीवन क समबनदध म कछ भी

कहन म डाकरर को कजठनाई महसस होती ह

ldquoडाकरर कया आप कभी वाजपस बमाट जान की बात नही सोचत डाकरर न अगड़ाई ली और करवर बदलकर औध

मह लर गय उनकी आख मद गई और माथ पर बालो की लर झल आयी

ldquoसोचन स कया होता ह जमस वड जब बमाट म था तब कया कभी सोचा था जक यहा आकर उमर कारनी होगी

ldquoलजकन डाकरर कछ भी कह लो अपन दश का सख कही और नही जमलता यहा तम चाह जकतन विट रह लो अपन

को हमशा अजनबी ही पाओग

डाकरर न जसगार क धए को धीर-धीर हवा म छोड़ जदया- ldquoदरअसल अजनबी तो म वहा भी समझा जाऊ गा जमस वड

इतन विो बाद मझ कौन पहचानगा इस उमर म नय जसर स ररशत जोड़ना कािी जसरददट का काम ह कम-स-कम मर

बस की बात नही ह

ldquoलजकन डाकरर आप कब तक इस पहाड़ी कसब म पड़ रहग इसी दश म रहना ह तो जकसी बड़ शहर म परजकरस शर

कीजजए

ldquoपरजकरस बढ़ान क जलए कहा-कहा भरकता जिर गा जमस वड जहा रहो वही मरीज जमल जात ह यहा आया था

कछ जदनो क जलए जिर मददत हो गयी और जरका रहा जब कभी जी ऊबगा कही चला जाऊ गा जड़ कही नही

जमती तो पीछ भी कछ नही छर जाता मझ अपन बार म कोई गलतिहमी नही ह जमस वड म सखी ह

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जमस वड न डाकरर की बात पर जवशि धयान नही जदया जदल म वह हमशा डाकरर को उचछखल लापरवाह और

सनकी समझती रही ह जकनदत डाकरर क चररतर म उनका जवशवास ह न जान कयो कयोजक डाकरर न जान-अनजान म

उसका कोई परमाण जदया हो यह उनदह याद नही पड़ता

जमस वड न एक ठणडी सास भरी वह हमशा यह सोचती थी जक यजद डाकरर इतना आलसी और लापरवाह न होता

तो अपनी योगयता क बल पर कािी चमक सकता था इसजलए उनदह डाकरर पर करोध भी आता था और दख भी होता

था

जमस वड न अपन बग स ऊन का गोला और सलाइया जनकाली जिर उसक नीच स अखबार म जलपरा हआ चौड़ा

कॉिी का जडबबा उठाया जजसम अणडो की सणडजवच और हमबगटर दब हए थ थमटस स पयालो म कॉिी उडलत हए

जमस वड न कहा - ldquoडाकरर कॉिी ठणडी हो रही ह

डाकरर लर-लर बड़बड़ाया जमस वड न नीच झककर दखा वह कोहनी पर जसर जरकाय सो रहा था ऊपर का होठ

जरा-सा िलकर मड़ गया था मानो जकसी स मजाक करन स पहल मसकरा रहा हो

उसकी अगजलयो म दबा हआ जसगार नीच झका हआ लरक रहा था ldquoमरी मरी वार ड य वाणर वार ड य वाणर

दसर सरणडडट म पढ़नवाली मरी न अपनी चचल चपल आख ऊपर उठायी लड़जकयो का दायरा उस घर हए कभी

पास आता था कभी दर जखचता चला जाता था

ldquoआई वाणर आई वाणर बल दोनो हाथो को हवा म घमात हए मरी जचलायी दायरा पानी की तरह रर गया सब

लड़जकया एक-दसर पर जगरती-पड़ती जकसी नीली वसत को छन क जलए भाग-दौड़ करन लगी लच समापत हो चका

था लड़जकयो क छोर-छोर दल मीडोज म जबखर गय थ ऊ ची कलास की कछ लड़जकया चाय का पानी गमट करन क

जलए पड़ो पर चढ़कर सखी रहजनया तोड़ रही थी

दोपहर की उस घड़ी म मीडोज अलसाया-ऊ घता-सा जान पड़ता था हवा का कोई भला-भरका झोका चीड़ क पतत

खड़खड़ा उठत थ कभी कोई पकषी अपनी ससती जमरान झाजड़यो स उड़कर नाल क जकनार बठ जाता था पानी म जसर

डबोता था जिर ऊबकर हवा म दो-चार जनरददशय चककर कारकर दबारा झाजड़यो म दबक जाता था

जकनदत जगल की खामोशी शायद कभी चप नही रहती गहरी नीद म डबी सपनो-सी कछ आवाज नीरवता क हक

झीन परद पर सलवर जबछा जाती ह मक लहरो-सी हवा म जतरती ह मानो कोई दब पाव झाककर अदशय सकत कर

जाता ह- ldquoदखो म यहा ह लजतका न जली क lsquoबाब हयरrsquo को सहलात हए कहा ldquoतमह कल रात बलाया था

ldquoमडम म गयी थी आप अपन कमर म नही थी लजतका को याद आया जक रात वह डाकरर क कमर क ररस पर दर

तक बठी रही थी और भीतर हयबरट जपयानो पर शोपा का नौकरनट बजा रहा था ldquoजली तमस कछ पछना था उस

लगा वह जली की आखो स अपन को बचा रही ह जली न अपना चहरा ऊपर उठाया उसकी भरी आखो स

कौतहल झाक रहा था

ldquoतम आजिससट मस म जकसी को जानती हो जली न अजनजशचत भाव स जसर जहलाया लजतका कछ दर तक जली को

अपलक घरती रही

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ldquoजली मझ जवशवास ह तम झठ नही बोलोगी कछ कषण पहल जली की आखो म जो कौतहल था वह भय स

पररणत होन लगा लजतका न अपनी जकर की जब स एक नीला जलिािा जनकालकर जली की गोद म ि क जदया

ldquoयह जकसकी जचटठी ह

जली न जलिािा उठान क जलए हाथ बढ़ाया जकनदत जिर एक कषण क जलए उसका हाथ कापकर जठठक गया-जलिाि

पर उसका नाम और होसरल का पता जलखा हआ था

ldquoथक य मडम मर भाई का पतर ह वह झासी म रहत ह जली न घबराहर म जलिाि को अपन सकरट की तहो म

जछपा जलया ldquoजली ज़रा मझ जलिािा जदखलाओ लजतका का सवर तीखा ककट श-सा हो आया

जली न अनमन भाव स लजतका को पतर द जदया ldquoतमहार भाई झासी म रहत ह जली इस बार कछ नही बोली

उसकी उदभरानदत उखड़ी-सी आख लजतका को दखती रही ldquoयह कया ह

जली का चहरा सिद िक पड़ गया जलिाि पर कमाऊ रजीमणरल सणरर की महर उसकी ओर घर रही थी ldquoकौन ह

यह लजतका न पछा उसन पहल भी होसरल म उड़ती हई अिवाह सनी थी जक जली को कलब म जकसी जमजलररी

अिसर क सग दखा गया था जकनदत ऐसी अिवाह अकसर उड़ती रहती थी और उसन उन पर जवशवास नही जकया था

ldquoजली तम अभी बहत छोरी हो जली क होठ काप-उसकी आखो म जनरीह याचना का भाव जघर आया

ldquoअचछा अभी जाओ तमस छरटटयो क बाद बात कर गी जली न ललचाई दजि स जलिाि को दखा कछ बोलन को

उदयत हई जिर जबना कछ कह चपचाप वाजपस लौर गयी

लजतका दर तक जली को दखती रही जब तक वह आखो स ओझल नही हो गयी कया म जकसी खसर बजढ़या स

कम ह अपन अभाव का बदला कया म दसरो स ल रही ह

शायद कौन जान शायद जली का यह परथम पररचय हो उस अनभजत स जजस कोई भी लड़की बड़ चाव स

सजोकर सभालकर अपन म जछपाय रहती ह एक अजनवटचनीय सख जो पीड़ा जलय ह पीड़ा और सख को डबोती हई

उमड़त जवर की खमारी जो दोनो को अपन म समो लती ह एक ददट जो आननदद स उपजा ह और पीड़ा दता ह

यही इसी दवदार क नीच उस भी यही लगा था जब जगरीश न पछा था-ldquoतम चप कयो हो वह आख मद सोच रही

थी सोच कहा रही थी जी रही थी उस कषण को जो भय और जवसमय क बीच जभचा था-बहका-सा पागल कषण वह

अभी पीछ मड़गी तो जगरीश की lsquoनवटसrsquo मसकराहर जदखायी द जायगी उस जदन स आज दोपहर तक का अतीत एक

दःसवपन की माजननदद रर जाएगा वही दवदार ह जजस पर उसन अपन बालो क जकलप स जगरीश का नाम जलखा था

पड़ की छाल उतरती नही थी जकलप रर-रर जाता था तब जगरीश न अपन नाम क नीच उसका नाम जलखा था जब

कभी कोई अकषर जबगड़कर ढढ़ा-मढ़ा हो जाता था तब वह हसती थी और जगरीश का कापता हाथ और भी काप

जाता था

लजतका को लगा जक जो वह याद करती ह वही भलना भी चाहती ह लजकन जब सचमच भलन लगती ह तब उस

भय लगता ह जक जस कोई उसकी जकसी चीज को उसक हाथो स छीन जलय जा रहा ह ऐसा कछ जो सदा क जलए

खो जायगा बचपन म जब कभी वह अपन जकसी जखलौन को खो दती थी तो वह गमसम-सी होकर सोचा करती थी

कहा रख जदया मन जब बहत दौड़-धप करन पर ज ाखलौना जमल जाता तो वह बहाना करती जक अभी उस खोज ही

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रही ह जक वह अभी जमला नही ह जजस सथान पर जखलौना रखा होता जान-बझकर उस छोड़कर घर क दसर कोन म

उस खोजन का उपकरम करती तब खोई हई चीज याद रहती इसजलए भलन का भय नही रहता था

आज वह उस बचपन क खल का बहाना कयो नही कर पाती lsquoबहानाrsquoशायद करती ह उस याद करन का बहाना जो

भलता जा रहा हजदन महीन बीत जात ह और वह उलझी रहती ह अनजान म जगरीश का चहरा धधला पड़ता

जाता ह याद वह करती ह जकनदत जस जकसी परानी तसवीर क धल भर शीश को साि कर रही हो अब वसा ददट नही

होता जसिट उसको याद करती ह जो पहल कभी होता था तब उस अपन पर गलाजन होती ह वह जिर जान-बझकर

उस घाव को करदती ह जो भरता जा रहा ह खद-ब-खद उसकी कोजशशो क बावजद भरता जा रहा ह दवदार पर

खद हए अधजमर नाम लजतका की ओर जनसतबध जनरीह भाव स जनहार रह थ मीडोज क घन सनदनार म नाल पार स

खलती हई लड़जकयो की आवाज गज जाती थीवार ड य वाणर वार ड य वाणर

जततजलया झीगर जगनमीडोज पर उतरती हई साझ की छायाओ म पता नही चलता कौन आवाज जकसकी ह

दोपहर क समय जजन आवाजो को अलग-अलग पहचाना जा सकता था अब व एकसवरता की अजवरल धारा म घल

गयी थी घास स अपन परो को पोछता हआ कोई रग रहा ह झाजड़यो क झरमर स परो को िड़िड़ाता हआ झपरकर

कोई ऊपर स उड़ जाता ह जकनदत ऊपर दखो तो कही कछ भी नही ह मीडोज क झरन का गड़गड़ाता सवर जस अधरी

सरग म झपार स टन गजर गयी हो और दर तक उसम सीजरयो और पजहयो की चीतकार गजती रही हो

जपकजनक कछ दर तक और चलती जकनदत बादलो की तह एक-दसर पर चढ़ती जा रही थी जपकजनक का सामान

बरोरा जान लगा मीडोज क चारो ओर जबखरी हई लड़जकया जमस वड क इदट-जगदट जमा होन लगी अपन सग व

अजीबोगरीब चीज बरोर लायी थी कोई जकसी पकषी क रर पख को बालो म लगाय हए थी जकसी न पड़ की रहनी

को चाक स छीलकर छोरी-सी बत बना ली थी ऊ ची कलास की कछ लड़जकयो न अपन-अपन रमालो म नाल स

पकड़ी हई छोरी-छोरी बाजलशत भर की मछजलयो को दबा रखा था जजनदह जमस वड स जछपकर व एक-दसर को जदखा

रही थी

जमस वड लड़जकयो की रोली क सग आग जनकल गयी मीडोज स पककी सड़क तक तीन-चार िलााग की चढ़ाई थी

लजतका हािन लगी डाकरर मकजी सबस पीछ आ रह थ लजतका क पास पहचकर वह जठठक गय डाकरर न दोनो

घरनो को जमीन पर रकत हए जसर झकाकर एजलजाबथयगीन अगरजी म कहा - ldquoमडम आप इतनी परशान कयो नजर

आ रही ह और डाकरर की नारकीय मरा को दखकर लजतका क होठो पर एक थकी-सी ढीली-ढीली मसकराहर

जबखर गयी ldquoपयास क मार गला सख रहा ह और यह चढ़ाई ह जक खतम होन म नही आती

डाकरर न अपन कनदध पर लरकत हए थमटस को उतारकर लजतका क हाथो म दत हए कहा - ldquoथोड़ी-सी कॉफ़ी बची ह

शायद कछ मदद कर सक ldquoजपकजनक म तम कहा रह गय डाकरर कही जदखायी नही जदय ldquoदोपहर भर सोता रहा-

जमस वड क सग मरा मतलब ह जमस वड पास बठी थी ldquoमझ लगता ह जमस वड मझस महबबत करती ह कोई

भी मजाक करत समय डाकरर अपनी मछो क कोनो को चबान लगता ह ldquoकया कहती थी लजतका न थमटस स

कॉिी को मह म उडल जलया ldquoशायद कछ कहती लजकन बदजकसमती स बीच म ही मझ नीद आ गयी मरी जजनददगी

क कछ खबसरत परम-परसग कमबखत इस नीद क कारण अधर रह गय ह

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और इस दौरान म जब दोनो बात कर रह थ उनक पीछ मीडोज और मोरर रोड क सग चढ़ती हई चीड़ और बाज क

वकषो की कतार साझ क जघरत अधर म डबन लगी मानो पराथटना करत हए उनदहोन चपचाप अपन जसर नीच झका जलय

हो इनदही पड़ो क ऊपर बादलो म जगरज का करास कही उलझा पड़ा था उसक नीच पहाड़ो की ढलान पर जबछ हए

खत भागती हई जगलहररयो स लग रह थ जो मानो जकसी की रोह म सतबध जठठक गयी हो ldquoडाकरर जम हयबरट

जपकजनक पर नही आय डाकरर मकजी राचट जलाकर लजतका क आग-आग चल रह थ ldquoमन उनदह मना कर जदया

था ldquoजकसजलए

अधर म परो क नीच दब हए पततो की चरमराहर क अजतररि कछ सनायी नही दता था डॉकरर मकजी न धीर-स

खासा ldquoजपछल कछ जदनो स मझ सदह होता जा रहा ह जक हयबरट की छाती का ददट शायद मामली ददट नही ह

डाकरर थोड़ा-सा हसा जस उस अपनी यह गमभीरता अरजचकर लग रही हो

डाकरर न परतीकषा की शायद लजतका कछ कहगी जकनदत लजतका चपचाप उसक पीछ चल रही थी ldquoयह मरा महज

शक ह शायद म जबकल गलत होऊ जकनदत यह बहतर होगा जक वह अपन एक ििड़ का एकसर करा ल इसस कम-

स-कम कोई भरम तो नही रहगा ldquoआपन जम हयबरट स इसक बार म कछ कहा ह ldquoअभी तक कछ नही कहा हयबरट

जरा-सी बात पर जचजनदतत हो उठता ह इसजलए कभी साहस नही हो पाता डॉकरर को लगा उसक पीछ आत हए

लजतका क परो का सवर सहसा बनदद हो गया ह उनदहोन पीछ मड़कर दखा लजतका बीच सड़क पर अधर म छाया-सी

चपचाप जनशचल खड़ी ह ldquoडाकरर लजतका का सवर भराटया हआ था ldquoकया बात ह जमस लजतका आप रक कयो

गयी ldquoडाकरर-कया जम हयबरट

डाकरर न अपनी राचट की मजदधम रोशनी लजतका पर उठा दीउसन दखा लजतका का चहरा एकदम पीला पड़ गया ह

और वह रह-रहकर पतत-सी काप जाती ह ldquoजमस लजतका कया बात ह आप तो बहत डरी-सी जान पड़ती ह ldquoकछ

नही डाकरर मझमझ कछ याद आ गया था व दोनो जिर चलन लग कछ दर जान पर उनकी आख ऊपर उठ गयी

पजकषयो का एक बड़ा धजमल आकाश म जतरकोण बनाता हआ पहाड़ो क पीछ स उनकी ओर आ रहा था लजतका और

डाकरर जसर उठाकर इन पजकषयो को दखत रह लजतका को याद आया हर साल सदी की छरटटयो स पहल य पररनदद

मदानो की ओर उड़त ह कछ जदनो क जलए बीच क इस पहाड़ी सरशन पर बसरा करत ह परतीकषा करत ह बिट क जदनो

की जब व नीच अजनबी अनजान दशो म उड़ जायग

कया व सब भी परतीकषा कर रह ह वह डाकरर मकजी जम हयबरट लजकन कहा क जलए हम कहा जायग

जकनदत उसका कोई उततर नही जमला-उस अधर म मीडोज क झरन क भतल सवर और चीड़ क पततो की सरसराहर क

अजतररि कछ सनायी नही दता था लजतका हड़बड़ाकर चौक गयी अपनी छड़ी पर झका हआ डाकरर धीर-धीर

सीरी बजा रहा था

ldquoजमस लजतका जदी कीजजए बाररश शर होनवाली ह होसरल पहचत-पहचत जबजली चमकन लगी थी जकनदत

उस रात बाररश दर तक नही हई बादल बरसन भी नही पात थ जक हवा क थपड़ो स धकल जदय जात थ दसर जदन

तड़क ही बस पकड़नी थी इसजलए जडनर क बाद लड़जकया सोन क जलए अपन-अपन कमरो म चली गयी थी

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जब लजतका अपन कमर म गयी तो उस समय कमाऊ रजीमणर सणरर का जबगल बज रहा था उसक कमर म

करीमददीन कोई पहाड़ी धन गनगनाता हआ लमप म गस पमप कर रहा था लजतका उनदही कपड़ो म तजकय को दहरा

करक लर गयी करीमददीन न उड़ती हई जनगाह स लजतका को दखा जिर अपन काम म जर गया ldquoजपकजनक कसी रही

मम साहब ldquoतम कयो नही आय सब लड़जकया तमह पछ रही थी लजतका को लगा जदन-भर की थकान धीर-धीर

उसक शरीर की पसजलयो पर जचपरती जा रही ह अनायास उसकी आख नीद क बोझ स झपकन लगी ldquoम चला

आता तो हयबरट साहब की तीमारदारी कौन करता जदनभर उनक जबसतर स सरा हआ बठा रहा और अब वह गायब हो

गय ह करीमददीन न कनदध पर लरकत हए मच-कचल तौजलय को उतारा और लमप क शीशो की गदट पोछन लगा

लजतका की अधमदी आख खल गयी ldquoकया हयबरट साहब अपन कमर म नही ह ldquoखदा जान इस हालत म कहा

भरक रह ह पानी गमट करन कछ दर क जलए बाहर गया था वाजपस आन पर दखता ह जक कमरा खाली पड़ा ह

करीमददीन बड़बड़ाता हआ बाहर चला गया लजतका न लर-लर पलग क नीच चपपलो को परो स उतार जदया

हयबरट इतनी रात कहा गय जकनदत लजतका की आख जिर झपक गयी जदन-भर की थकान न सब परशाजनयो परशनो पर

कजी लगा दी थी मानो जदन-भर आख-जमचौनी खलत हए उसन अपन कमर म lsquoदययाrsquo को छ जलया था अब वह

सरजकषत थी कमर की चहारदीवारी क भीतर उस कोई नही पकड़ सकता जदन क उजाल म वह गवाह थी मजररम थी

हर चीज का उसस तकाजा था अब इस अकलपन म कोई जगला नही उलाहना नही सब खीचातानी खतम हो गयी ह

जो अपना ह वह जबकल अपना-सा हो गया ह जो अपना नही ह उसका दख नही अपनान की िरसत नही

लजतका न दीवार की ओर मह घमा जलया लमप क िीक आलोक म हवा म कापत परदो की छायाए जहल रही थी

जबजली कड़कन स जखड़जकयो क शीश-चमक-चमक जात थ दरवाज चरखन लगत थ जस कोई बाहर स धीम-धीम

खरखरा रहा हो कॉरीडोर स अपन-अपन कमरो म जाती हई लड़जकयो की हसी बातो क कछ शबद जिर सबकछ

शानदत हो गया जकनदत जिर भी दर तक कचची नीद म वह लमप का धीमा-सा lsquoसी-सीrsquo सवर सनती रही कब वह सवर

भी मौन का भाग बनकर मक हो गया उस पता न चला कछ दर बाद उसको लगा सीजढ़यो स कछ दबी आवाज ऊपर

आ रही ह बीच-बीच म कोई जचला उठता ह और जिर सहसा आवाज धीमी पड़ जाती ह ldquoजमस लजतका जरा

अपना लमप ल आइय - कॉररडोर क जीन स डाकरर मकजी की आवाज आयी थी

कॉरीडोर म अधरा था वह तीन-चार सीजढ़या नीच उतरी लमप नीच जकया सीजढ़यो स सर जगल पर हयबरट न अपना

जसर रख जदया था उसकी एक बाह जगल क नीच लरक रही थी और दसरी डाकरर क कनदध पर झल रही थी जजस

डाकरर न अपन हाथो म जकड़ रखा था ldquoजमस लजतका लमप ज़रा और नीच झका दीजजएहयबरटहयबरट डाकरर

न हयबरट को सहारा दकर ऊपर खीचा हयबरट न अपना चहरा ऊपर जकया जवहसकी की तज ब का झोका लजतका क

सार शरीर को जझझोड़ गया हयबरट की आखो म सखट डोर जखच आय थ कमीज का कालर उलरा हो गया था और

राई की गाठ ढीली होकर नीच जखसक आयी थी लजतका न कापत हाथो स लमप सीजढ़यो पर रख जदया और आप

दीवार क सहार खड़ी हो गयी उसका जसर चकरान लगा था

ldquoइन ए बक लन ऑि द जसरी दयर इज ए गलट ह लवज मी हयबरट जहचजकयो क बीच गनगना उठता था

ldquoहयबरट पलीजपलीज डाकरर न हयबरट क लड़खड़ात शरीर को अपनी मजबत जगरफत म ल जलया

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ldquoजमस लजतका आप लमप लकर आग चजलए लजतका न लमप उठाया दीवार पर उन तीनो की छायाए डगमगान

लगी

ldquoइन ए बक लन ऑि द जसरी दयर इज ए गलट ह लवज मी हयबरट डाकरर मकजी क कनदध पर जसर जरकाय अधरी

सीजढ़यो पर उर-सीध पर रखता चढ़ रहा था

ldquoडाकरर हम कहा ह हयबरट सहसा इतनी जोर स जचलाया जक उसकी लड़खड़ाती आवाज सनसान अधर म

कॉरीडोर की छत स रकराकर दर तक हवा म गजती रही

ldquoहयबरट डाकरर को एकदम हयबरट पर गससा आ गया जिर अपन गसस पर ही उस खीझ-सी हो आयी और वह

हयबरट की पीठ थपथपान लगा ldquoकछ बात नही ह हयबरट जडयर तम जसिट थक गय होldquo हयबरट न अपनी आख डाकरर

पर गड़ा दी उनम एक भयभीत बचच की-सी कातरता झलक रही थी मानो डाकरर क चहर स वह जकसी परशन का उततर

पा लना चाहता हो हयबरट क कमर म पहचकर डाकरर न उस जबसतर पर जलरा जदया हयबरट न जबना जकसी जवरोध क

चपचाप जत-मोज उतरवा जदय जब डाकरर हयबरट की राई उतारन लगा तो हयबरट अपनी कहनी क सहार उठा कछ

दर तक डाकरर को आख िाड़त हए घरता रहा जिर धीर-स उसका हाथ पकड़ जलया ldquoडाकरर कया म मर जाऊ गा

ldquoकसी बात करत हो हयबरट डाकरर न हाथ छड़ाकर धीर-स हयबरट का जसर तजकय पर जरका जदया ldquoगड नाइर हयबरट

ldquoगड नाइर डाकरर हयबरट न करवर बदल ली ldquoगड नाइर जम हयबरट लजतका का सवर जसहर गया जकनदत हयबरट न

कोई उततर नही जदया करवर बदलत ही उस नीद आ गयी थी

कॉरीडोर म वाजपस आकर डाकरर मकजी रजलग क सामन खड़ हो गय हवा क तज झोको स आकाश म िल बादलो

की परत जब कभी इकहरी हो जाती तब उनक पीछ स चादनी बझती हई आग क धए-सी आस-पास की पहाजड़यो पर

िल जाती थी ldquoआपको जम हयबरट कहा जमल लजतका कॉरीडोर क दसर कोन म रजलग पर झकी हई थी ldquoकलब क

बार म उनदह दखा था म न पहचता तो न जान कब तक बठ रहत डाकरर मकजी न जसगरर जलायी उनदह अभी एक-दो

मरीजो क घर जाना था कछ दर तक उनदह राल दन क इराद स वह कॉरीडोर म खड़ रह नीच अपन कवारटर म बठा

हआ करीमददीन माउथ आगटन पर कोई परानी जिमी धन बजा रहा था

ldquoआज जदन भर बादल छाय रह लजकन खलकर बाररश नही हई ldquoजकरसमस तक शायद मौसम ऐसा ही रहगा कछ

दर तक दोनो चपचाप खड रह कॉनदवनदर सकल क बाहर िल लॉन स झीगरो का अनवरत सवर चारो ओर िली

जनसतबधता को और भी अजधक घना बना रहा था कभी-कभी ऊपर मोरर रोड पर जकसी कतत की ररररयाहर सनायी

पड़ा जाती थी ldquoडाकरर कल रात आपन जम हयबरट स कछ कहा था मर बार म ldquoवही जो सब लोग जानत ह और

हयबरट जजस जानना चाजहए था नही जानता था डाकरर न लजतका की ओर दखा वह जड़वत अजवचजलत रजलग पर

झकी हई थी ldquoवस हम सबकी अपनी-अपनी जजद होती ह कोई छोड़ दता ह कोई आजखर तक उसस जचपका रहता

ह डाकरर मकजी अधर म मसकराय उनकी मसकराहर म सखा-सा जवरजि का भाव भरा था ldquoकभी-कभी म सोचता

ह जमस लजतका जकसी चीज को न जानना यजद गलत ह तो जान-बझकर न भल पाना हमशा जोक की तरह उसस

जचपर रहना यह भी गलत ह बमाट स आत हए मरी पतनी की मतय हई थी मझ अपनी जजनददगी बकार-सी लगी थी

आज इस बात को असाट गजर गया और जसा आप दखती ह म जी रहा ह उममीद ह जक कािी असाट और जजऊ गा

जजनददगी कािी जदलचसप लगती ह और यजद उमर की मजबरी न होती तो शायद म दसरी शादी करन म भी न

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जहचकता इसक बावजद कौन कह सकता ह जक म अपनी पतनी स परम नही करता था आज भी करता ह ldquoलजकन

डाकरर लजतका का गला र ध आया था ldquoकया ज ामस लजतका

ldquoडाकरर - सबकछ होन क बावजद वह कया चीज़ ह जो हम चलाय चलती ह हम रकत ह तो भी अपन रल म वह हम

घसीर ल जाती ह लजतका को लगा जक वह जो कहना चाह रही ह कह नही पा रही जस अधर म कछ खो गया ह

जो जमल नही पा रहा शायद कभी नही जमल पायगा ldquoयह तो आपको िादर एमणड ही बता सक ग जमस लजतका

डाकरर की खोखली हसी म उनका पराना सनकीपन उभर आया था ldquoअचछा चलता ह जमस लजतका मझ कािी दर

हो गयी ह डाकरर न जदयासलाई जलाकर घड़ी को दखा ldquoगड नाइर जमस लजतका ldquoगड नाइर डाकरर

डाकरर क जान पर लजतका कछ दर तक अधर म रजलग स सरी खड़ी रही हवा चलन स कॉरीडोर म जमा हआ कहरा

जसहर उठता था शाम को सामान बाधत हए लड़जकयो न अपन-अपन कमर क सामन जो परानी काजपयो अखबारो

और रददी क ढर लगा जदय थ व सब अब अधर कॉरीडोर म हवा क झोको स इधर-उधर जबखरन लग थ

लजतका न लमप उठाया और अपन कमर की ओर जान लगी कॉरीडोर म चलत हए उसन दखा जली क कमर म

परकाश की एक पतली रखा दरवाज क बाहर जखच आयी ह लजतका को कछ याद आया वह कछ कषणो तक सास

रोक जली क कमर क बाहर खड़ी रही कछ दर बाद उसन दरवाजा खरखराया भीतर स कोई आवाज नही आयी

लजतका न दब हाथो स हलका-सा धकका जदया दरवाजा खल गया जली लमप बझाना भल गयी थी लजतका धीर-

धीर दब पाव जली क पलग क पास चली आयी जली का सोता हआ चहरा लमप क िीक आलोक म पीला-सा

दीख रहा था लजतका न अपनी जब स वही नीला जलिािा जनकाला और उस धीर-स जली क तजकय क नीच

दबाकर रख जदया

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अमतसर आ गया ि

भीषम साहनी

गाड़ी क जडबब म बहत मसाजिर नही थ मर सामनवाली सीर पर बठ सरदार जी दर स मझ लाम क जकसस सनात रह

थ वह लाम क जदनो म बमाट की लड़ाई म भाग ल चक थ और बात-बात पर खी-खी करक हसत और गोर िौजजयो

की जखली उड़ात रह थ जडबब म तीन पठान वयापारी भी थ उनम स एक हर रग की पोशाक पहन ऊपरवाली बथट पर

लरा हआ था वह आदमी बड़ा हसमख था और बड़ी दर स मर साथवाली सीर पर बठ एक दबल-स बाब क साथ

उसका मजाक चल रहा था वह दबला बाब पशावर का रहनवाला जान पड़ता था कयोजक जकसी-जकसी वि व

आपस म पशतो म बात करन लगत थ मर सामन दाई ओर कोन म एक बजढ़या मह-जसर ढाप बठा थी और दर स

माला जप रही थी यही कछ लोग रह होग सभव ह दो-एक और मसाजिर भी रह हो पर व सपित मझ याद नही

गाड़ी धीमी रफतार स चली जा रही थी और गाड़ी म बठ मसाजिर बजतया रह थ और बाहर गह क खतो म हकी-

हकी लहररया उठ रही थी और म मन-ही-मन बड़ा खश था कयोजक म जदली म होनवाला सवततरता-जदवस समारोह

दखन जा रहा था

उन जदनो क बार म सोचता ह तो लगता ह हम जकसी झरपर म जी रह ह शायद समय बीत जान पर अतीत का सारा

वयापार ही झरपर म बीता जान पड़ता ह जयो-जयो भजवषय क पर खलत जात ह यह झरपरा और भी गहराता चला

जाता ह

उनदही जदनो पाजकसतान क बनाए जान का ऐलान जकया गया था और लोग तरह-तरह क अनमान लगान लग थ जक

भजवषय म जीवन की रपरखा कसी होगी पर जकसी की भी कपना बहत दर तक नही जा पाती थी मर सामन बठ

सरदार जी बार-बार मझस पछ रह थ जक पाजकसतान बन जान पर जजनदना साजहब बबई म ही रहग या पाजकसतान म जा

कर बस जाएग और मरा हर बार यही जवाब होता - बबई कयो छोड़ग पाजकसतान म आत-जात रहग बबई छोड़ दन

म कया तक ह लाहौर और गरदासपर क बार म भी अनमान लगाए जा रह थ जक कौन-सा शहर जकस ओर जाएगा

जमल बठन क ढग म गप-शप म हसी-मजाक म कोई जवशि अतर नही आया था कछ लोग अपन घर छोड़ कर जा

रह थ जबजक अनदय लोग उनका मजाक उड़ा रह थ कोई नही जानता था जक कौन-सा कदम ठीक होगा और कौन-सा

गलत एक ओर पाजकसतान बन जान का जोश था तो दसरी ओर जहदसतान क आजाद हो जान का जोश जगह-जगह

दग भी हो रह थ और योम-ए-आजादी की तयाररया भी चल रही थी इस पषठभजम म लगता दश आजाद हो जान पर

दग अपन-आप बद हो जाएग वातावरण म इस झरपर म आजादी की सनहरी धल-सी उड़ रही थी और साथ-ही-

साथ अजनशचय भी डोल रहा था और इसी अजनशचय की जसथजत म जकसी-जकसी वि भावी ररशतो की रपरखा झलक द

जाती थी

शायद जहलम का सरशन पीछ छर चका था जब ऊपर वाली बथट पर बठ पठान न एक पोरली खोल ली और उसम स

उबला हआ मास और नान-रोरी क रकड़ जनकाल-जनकाल कर अपन साजथयो को दन लगा जिर वह हसी-मजाक क

बीच मरी बगल म बठ बाब की ओर भी नान का रकड़ा और मास की बोरी बढ़ा कर खान का आगरह करन लगा था -

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का ल बाब ताकत आएगी अम जसा ओ जाएगा बीवी बी तर सात कश रएगी काल दालकोर त दाल काता ए

इसजलए दबला ए

जडबब म लोग हसन लग थ बाब न पशतो म कछ जवाब जदया और जिर मसकराता जसर जहलाता रहा

इस पर दसर पठान न हस कर कहा - ओ जाजलम अमार हाथ स नई लता ए तो अपन हाथ स उठा ल खदा कसम

बकर का गोशत ए और जकसी चीज का नईए

ऊपर बठा पठान चहक कर बोला - ओ खजीर क तम इदर तम कौन दखता ए अम तरी बीवी को नई बोलगा ओ त

अमार साथ बोरी तोड़ अम तर साथ दाल जपएगा

इस पर कहकहा उठा पर दबला-पतला बाब हसता जसर जहलाता रहा और कभी-कभी दो शबद पशतो म भी कह दता

ओ जकतना बरा बात ए अम खाता ए और त अमारा म दखता ए सभी पठान मगन थ

यह इसजलए नही लता जक तमन हाथ नही धोए ह सथलकाय सरदार जी बोल और बोलत ही खी-खी करन लग

अधलरी मरा म बठ सरदार जी की आधी तोद सीर क नीच लरक रही थी - तम अभी सो कर उठ हो और उठत ही

पोरली खोल कर खान लग गए हो इसीजलए बाब जी तमहार हाथ स नही लत और कोई बात नही और सरदार जी न

मरी ओर दख कर आख मारी और जिर खी-खी करन लग

मास नई खाता ए बाब तो जाओ जनाना डबब म बरो इदर कया करता ए जिर कहकहा उठा

डबब म और भी अनक मसाजिर थ लजकन परान मसाजिर यही थ जो सिर शर होन म गाड़ी म बठ थ बाकी

मसाजिर उतरत-चढ़त रह थ परान मसाजिर होन क नात उनम एक तरह की बतकलिी आ गई थी

ओ इदर आ कर बठो तम अमार साथ बरो आओ जाजलम जकससा-खानी की बात करग

तभी जकसी सरशन पर गाड़ी रकी थी और नए मसाजिरो का रला अदर आ गया था बहत-स मसाजिर एक साथ अदर

घसत चल आए थ

कौन-सा सरशन ह जकसी न पछा

वजीराबाद ह शायद मन बाहर की ओर दख कर कहा

गाड़ी वहा थोड़ी दर क जलए खड़ी रही पर छरन स पहल एक छोरी-सी घरना घरी एक आदमी साथ वाल जडबब म

स पानी लन उतरा और नल पर जा कर पानी लोर म भर रहा था तभी वह भाग कर अपन जडबब की ओर लौर आया

छलछलात लोर म स पानी जगर रहा था लजकन जजस ढग स वह भागा था उसी न बहत कछ बता जदया था नल पर

खड़ और लोग भी तीन-चार आदमी रह होग - इधर-उधर अपन-अपन जडबब की ओर भाग गए थ इस तरह घबरा

कर भागत लोगो को म दख चका था दखत-ही-दखत पलरिामट खाली हो गया मगर जडबब क अदर अभी भी हसी-

मजाक चल रहा था

कही कोई गड़बड़ ह मर पास बठ दबल बाब न कहा

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कही कछ था लजकन कया था कोई भी सपि नही जानता था म अनक दग दख चका था इसजलए वातावरण म होन

वाली छोरी-सी तबदील को भी भाप गया था भागत वयजि खराक स बद होत दरवाज घरो की छतो पर खड़ लोग

चपपी और सनदनारा सभी दगो क जचहन थ

तभी जपछल दरवाज की ओर स जो पलरिामट की ओर न खल कर दसरी ओर खलता था हका-सा शोर हआ कोई

मसाजिर अदर घसना चाह रहा था

कहा घसा आ रहा ह नही ह जगह बोल जदया जगह नही ह जकसी न कहा

बद करो जी दरवाजा यो ही मह उठाए घस आत ह आवाज आ रही थी

जजतनी दर कोई मसाजिर जडबब क बाहर खड़ा अदर आन की चिा करता रह अदर बठ मसाजिर उसका जवरोध करत

रहत ह पर एक बार जस-तस वह अदर जा जाए तो जवरोध खतम हो जाता ह और वह मसाजिर जदी ही जडबब की

दजनया का जनवासी बन जाता ह और अगल सरशन पर वही सबस पहल बाहर खड़ मसाजिरो पर जचलान लगता ह -

नही ह जगह अगल जडबब म जाओ घस आत ह

दरवाज पर शोर बढ़ता जा रहा था तभी मल-कचल कपड़ो और लरकती मछो वाला एक आदमी दरवाज म स अदर

घसता जदखाई जदया चीकर मल कपड़ जरर कही हलवाई की दकान करता होगा वह लोगो की जशकायतो-

आवाजो की ओर धयान जदए जबना दरवाज की ओर घम कर बड़ा-सा काल रग का सदक अदर की ओर घसीरन लगा

आ जाओ आ जाओ तम भी चढ़ जाओ वह अपन पीछ जकसी स कह जा रहा था तभी दरवाज म एक पतली

सखी-सी औरत नजर आई और उसस पीछ सोलह-सतरह बरस की सावली-सी एक लड़की अदर आ गई लोग अभी

भी जचलाए जा रह थ सरदार जी को कहो क बल उठ कर बठना पड़ा

बद करो जी दरवाजा जबना पछ चढ़ आत ह अपन बाप का घर समझ रखा ह मत घसन दो जी कया करत हो धकल

दो पीछ और लोग भी जचला रह थ

वह आदमी अपना सामान अदर घसीर जा रहा था और उसकी पतनी और बरी सडास क दरवाज क साथ लग कर

खड़ थ

और कोई जडबबा नही जमला औरत जात को भी यहा उठा लाया ह

वह आदमी पसीन स तर था और हािता हआ सामान अदर घसीर जा रहा था सदक क बाद रजससयो स बधी खार

की पाजरया अदर खीचन लगा

जरकर ह जी मर पास म बजरकर नही ह इस पर जडबब म बठ बहत-स लोग चप हो गए पर बथट पर बठा पठान उचक

कर बोला - जनकल जाओ इदर स दखता नई ए इदर जगा नई ए

और पठान न आव दखा न ताव आग बढ़ कर ऊपर स ही उस मसाजिर क लात जमा दी पर लात उस आदमी को

लगन क बजाए उसकी पतनी क कलज म लगी और वही हाय-हाय करती बठ गई

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उस आदमी क पास मसाजिरो क साथ उलझन क जलए वि नही था वह बराबर अपना सामान अदर घसीर जा रहा

था पर जडबब म मौन छा गया खार की पाजरयो क बाद बड़ी-बड़ी गठररया आई इस पर ऊपर बठ पठान की सहन-

कषमता चक गई जनकालो इस कौन ए य वह जचलाया इस पर दसर पठान न जो नीच की सीर पर बठा था उस

आदमी का सदक दरवाज म स नीच धकल जदया जहा लाल वदीवाला एक कली खड़ा सामान अदर पहचा रहा था

उसकी पतनी क चोर लगन पर कछ मसाजिर चप हो गए थ कवल कोन म बठो बजढ़या करलाए जा रही थी - ए

नकबखतो बठन दो आ जा बरी त मर पास आ जा जस-तस सिर कार लग छोड़ो ब जाजलमो बठन दो

अभीआधा सामान ही अदर आ पाया होगा जब सहसा गाड़ी सरकन लगी

छर गया सामान छर गया वह आदमी बदहवास-सा हो कर जचलाया

जपताजी सामान छर गया सडास क दरवाज क पास खड़ी लड़की जसर स पाव तक काप रही थी और जचलाए जा

रही थी

उतरो नीच उतरो वह आदमी हड़बड़ा कर जचलाया और आग बढ़ कर खार की पाजरया और गठररया बाहर ि कत

हए दरवाज का डडहरा पकड़ कर नीच उतर गया उसक पीछ उसकी वयाकल बरी और जिर उसकी पतनी कलज को

दोनो हाथो स दबाए हाय-हाय करती नीच उतर गई

बहत बरा जकया ह तम लोगो न बहत बरा जकया ह बजढ़या ऊ चा-ऊ चा बोल रही थी -तमहार जदल म ददट मर गया ह

छोरी-सी बचची उसक साथ थी बरहमो तमन बहत बरा जकया ह धकक द कर उतार जदया ह

गाड़ी सन पलरिामट को लाघती आग बढ़ गई जडबब म वयाकल-सी चपपी छा गई बजढ़या न बोलना बद कर जदया था

पठानो का जवरोध कर पान की जहममत नही हई

तभी मरी बगल म बठ दबल बाब न मर बाज पर हाथ रख कर कहा - आग ह दखो आग लगी ह

गाड़ी पलरिामट छोड़ कर आग जनकल आई थी और शहर पीछ छर रहा था तभी शहर की ओर स उठत धए क

बादल और उनम लपलपाती आग क शोल नजर आन लग

दगा हआ ह सरशन पर भी लोग भाग रह थ कही दगा हआ ह

शहर म आग लगी थी बात जडबब-भर क मसाजिरो को पता चल गई और व लपक-लपक कर जखड़जकयो म स आग

का दशय दखन लग

जब गाड़ी शहर छोड़ कर आग बढ़ गई तो जडबब म सनदनारा छा गया मन घम कर जडबब क अदर दखा दबल बाब का

चहरा पीला पड़ गया था और माथ पर पसीन की परत जकसी मद क माथ की तरह चमक रही थी मझ लगा जस

अपनी-अपनी जगह बठ सभी मसाजिरो न अपन आसपास बठ लोगो का जायजा ल जलया ह सरदार जी उठ कर मरी

सीर पर आ बठ नीच वाली सीर पर बठा पठान उठा और अपन दो साथी पठानो क साथ ऊपर वाली बथट पर चढ़

गया यही जकरया शायद रलगाड़ी क अनदय जडबबो म भी चल रही थी जडबब म तनाव आ गया लोगो न बजतयाना बद

कर जदया तीनो-क-तीनो पठान ऊपरवाली बथट पर एक साथ बठ चपचाप नीच की ओर दख जा रह थ सभी

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मसाजिरो की आख पहल स जयादा खली-खली जयादा शजकत-सी लगी यही जसथजत सभवत गाड़ी क सभी जडबबो

म वयापत हो रही थी

कौन-सा सरशन था यह जडबब म जकसी न पछा

वजीराबाद जकसी न उततर जदया

जवाब जमलन पर जडबब म एक और परजतजकरया हई पठानो क मन का तनाव िौरन ढीला पड़ गया जबजक जहद-जसकख

मसाजिरो की चपपी और जयादा गहरी हो गई एक पठान न अपनी वासकर की जब म स नसवार की जडजबया जनकाली

और नाक म नसवार चढ़ान लगा अनदय पठान भी अपनी-अपनी जडजबया जनकाल कर नसवार चढ़ान लग बजढ़या

बराबर माला जप जा रही थी जकसी-जकसी वि उसक बदबदात होठ नजर आत लगता उनम स कोई खोखली-सी

आवाज जनकल रही ह

अगल सरशन पर जब गाड़ी रकी तो वहा भी सनदनारा था कोई पररदा तक नही िड़क रहा था हा एक जभशती पीठ

पर पानी की मशकल लाद पलरिामट लाघ कर आया और मसाजिरो को पानी जपलान लगा

लो जपयो पानी जपयो पानी औरतो क जडबब म स औरतो और बचचो क अनक हाथ बाहर जनकल आए थ

बहत मार-कार हई ह बहत लोग मर ह लगता था वह इस मार-कार म अकला पणय कमान चला आया ह

गाड़ी सरकी तो सहसा जखड़जकयो क पल चढ़ाए जान लग दर-दर तक पजहयो की गड़गड़ाहर क साथ जखड़जकयो

क पल चढ़ान की आवाज आन लगी

जकसी अजञात आशकावश दबला बाब मर पासवाली सीर पर स उठा और दो सीरो क बीच िशट पर लर गया उसका

चहरा अभी भी मद जसा पीला हो रहा था इस पर बथट पर बठा पठान उसकी जठठोली करन लगा - ओ बगरत तम

मदट ए जक औरत ए सीर पर स उर कर नीच लरता ए तम मदट क नाम को बदनाम करता ए वह बोल रहा था और

बार-बार हस जा रहा था जिर वह उसस पशतो म कछ कहन लगा बाब चप बना लरा रहा अनदय सभी मसाजिर चप

थ जडबब का वातावरण बोजझल बना हआ था

ऐस आदमी को अम जडबब म नई बठन दगा ओ बाब अगल सरशन पर उतर जाओ और जनाना डबब म बरो

मगर बाब की हाजजरजवाबी अपन कठ म सख चली थी हकला कर चप हो रहा पर थोड़ी दर बाद वह अपन आप

उठ कर सीर पर जा बठा और दर तक अपन कपड़ो की धल झाड़ता रहा वह कयो उठ कर िशट पर लर गया था

शायद उस डर था जक बाहर स गाड़ी पर पथराव होगा या गोली चलगी शायद इसी कारण जखड़जकयो क पल चढ़ाए

जा रह थ

कछ भी कहना कजठन था ममजकन ह जकसी एक मसाजिर न जकसी कारण स जखड़की का पला चढ़ाया हो उसकी

दखा-दखी जबना सोच-समझ धड़ाधड़ जखड़जकयो क पल चढ़ाए जान लग थ

बोजझल अजनशचत-स वातावरण म सिर करन लगा रात गहरान लगी थी जडबब क मसाजिर सतबध और शजकत जयो-

क-तयो बठ थ कभी गाड़ी की रफतार सहसा रर कर धीमी पड़ जाती तो लोग एक-दसर की ओर दखन लगत कभी

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रासत म ही रक जाती तो जडबब क अदर का सनदनारा और भी गहरा हो उठता कवल पठान जनजशचत बठ थ हा उनदहोन

भी बजतयाना छोड़ जदया था कयोजक उनकी बातचीत म कोई भी शाजमल होन वाला नही था

धीर-धीर पठान ऊ घन लग जबजक अनदय मसाजिर िरी-िरी आखो स शनदय म दख जा रह थ बजढ़या मह-जसर लपर

राग सीर पर चढ़ाए बठा-बठा सो गई थी ऊपरवाली बथट पर एक पठान न अधलर ही कत की जब म स काल

मनको की तसबीह जनकाल ली और उस धीर-धीर हाथ म चलान लगा

जखड़की क बाहर आकाश म चाद जनकल आया और चादनी म बाहर की दजनया और भी अजनजशचत और भी अजधक

रहसयमयी हो उठी जकसी-जकसी वि दर जकसी ओर आग क शोल उठत नजर आत कोई नगर जल रहा था गाड़ी

जकसी वि जचघाड़ती हई आग बढ़न लगती जिर जकसी वि उसकी रफतार धीमी पड़ जाती और मीलो तक धीमी

रफतार स ही चलती रहती

सहसा दबला बाब जखड़की म स बाहर दख कर ऊ ची आवाज म बोला - हरबसपरा जनकल गया ह उसकी आवाज

म उततजना थी वह जस चीख कर बोला था जडबब क सभी लोग उसकी आवाज सन कर चौक गए उसी वि जडबब

क अजधकाश मसाजिरो न मानो उसकी आवाज को ही सन कर करवर बदली

ओ बाब जचलाता कयो ए तसबीह वाला पठान चौक कर बोला - इदर उतरगा तम जजीर खीच अर खी-खी

करक हस जदया जाजहर ह वह हरबसपरा की जसथजत स अथवा उसक नाम स अनजभजञ था

बाब न कोई उततर नही जदया कवल जसर जहला जदया और एक-आध बार पठान की ओर दख कर जिर जखड़की क

बाहर झाकन लगा

डबब म जिर मौन छा गया तभी इजन न सीरी दी और उसकी एकरस रफतार रर गई थोड़ी ही दर बाद खराक-का-सा

शबद भी हआ शायद गाड़ी न लाइन बदली थी बाब न झाक कर उस जदशा म दखा जजस ओर गाड़ी बढ़ी जा रही थी

शहर आ गया ह वह जिर ऊ ची आवाज म जचलाया - अमतसर आ गया ह उसन जिर स कहा और उछल कर

खड़ा हो गया और ऊपर वाली बथट पर लर पठान को सबोजधत करक जचलाया - ओ ब पठान क बचच नीच उतर

तरी मा की नीच उतर तरी उस पठान बनानवाल की म

बाब जचलान लगा और चीख-चीख कर गाजलया बकन लगा था तसबीह वाल पठान न करवर बदली और बाब की

ओर दख कर बोला -ओ कया ए बाब अमको कच बोला

बाब को उततजजत दख कर अनदय मसाजिर भी उठ बठ

नीच उतर तरी म जहद औरत को लात मारता ह हरामजाद तरी उस

ओ बाब बक-बकर नई करो ओ खजीर क तखम गाली मत बको अमन बोल जदया अम तमहारा जबान खीच

लगा

गाली दता ह मादर बाब जचलाया और उछल कर सीर पर चढ़ गया वह जसर स पाव तक काप रहा था

बस-बस सरदार जी बोल - यह लड़न की जगह नही ह थोड़ी दर का सिर बाकी ह आराम स बठो

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तरी म लात न तोड़ तो कहना गाड़ी तर बाप की ह बाब जचलाया

ओ अमन कया बोला सबी लोग उसको जनकालता था अमन बी जनकाला य इदर अमको गाली दता ए अम इसका

जबान खीच लगा

बजढ़या बीच म जिर बोल उठी - व जीण जोगयो अराम नाल बठो व रबब जदए बदयो कछ होश करो

उसक होठ जकसी परत की तरह िड़िड़ाए जा रह थ और उनम स कषीण-सी िसिसाहर सनाई द रही थी

बाब जचलाए जा रहा था - अपन घर म शर बनता था अब बोल तरी म उस पठान बनानवाल की

तभी गाड़ी अमतसर क पलरिामट पर रकी पलरिामट लोगो स खचाखच भरा था पलरिामट पर खड़ लोग झाक-झाक

कर जडबबो क अदर दखन लग बार-बार लोग एक ही सवाल पछ रह थ - पीछ कया हआ ह कहा पर दगा हआ ह

खचाखच भर पलरिामट पर शायद इसी बात की चचाट चल रही थी जक पीछ कया हआ ह पलरिामट पर खड़ दो-तीन

खोमच वालो पर मसाजिर रर पड़ रह थ सभी को सहसा भख और पयास परशान करन लगी थी इसी दौरान तीन-

चार पठान हमार जडबब क बाहर परकर हो गए और जखड़की म स झाक-झाक कर अदर दखन लग अपन पठान

साजथयो पर नजर पड़त ही व उनस पशतो म कछ बोलन लग मन घम कर दखा बाब जडबब म नही था न जान कब

वह जडबब म स जनकल गया था मरा माथा जठनका गसस म वह पागल हआ जा रहा था न जान कया कर बठ पर इस

बीच जडबब क तीनो पठान अपनी-अपनी गठरी उठा कर बाहर जनकल गए और अपन पठान साजथयो क साथ गाड़ी क

अगल जडबब की ओर बढ़ गए जो जवभाजन पहल परतयक जडबब क भीतर होता रहा था अब सारी गाड़ी क सतर पर

होन लगा था

खोमचवालो क इदट-जगदट भीड़ छरन लगी लोग अपन-अपन जडबबो म लौरन लग तभी सहसा एक ओर स मझ वह

बाब आता जदखाई जदया उसका चहरा अभी भी बहत पीला था और माथ पर बालो की लर झल रही थी नजदीक

पहचा तो मन दखा उसन अपन दाए हाथ म लोह की एक छड़ उठा रखी थी जान वह उस कहा जमल गई थी जडबब

म घसत समय उसन छड़ को अपनी पीठ क पीछ कर जलया और मर साथ वाली सीर पर बठन स पहल उसन हौल स

छड़ को सीर क नीच सरका जदया सीर पर बठत ही उसकी आख पठान को दख पान क जलए ऊपर को उठी पर

जडबब म पठानो को न पा कर वह हड़बड़ा कर चारो ओर दखन लगा

जनकल गए हरामी मादर सब-क-सब जनकल गए जिर वह जसरजपरा कर उठ खड़ा हआ जचला कर बोला - तमन

उनदह जान कयो जदया तम सब नामदट हो बजजदल

पर गाड़ी म भीड़ बहत थी बहत-स नए मसाजिर आ गए थ जकसी न उसकी ओर जवशि धयान नही जदया

गाड़ी सरकन लगी तो वह जिर मरी वाली सीर पर आ बठा पर वह बड़ा उततजजत था और बराबर बड़बड़ाए जा रहा

था

धीर-धीर जहचकोल खाती गाड़ी आग बढ़न लगी जडबब म परान मसाजिरो न भरपर पररया खा ली थी और पानी पी

जलया था और गाड़ी उस इलाक म आग बढ़न लगी थी जहा उनक जान-माल को खतरा नही था

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नए मसाजिर बजतया रह थ धीर-धीर गाड़ी जिर समतल गजत स चलन लगी थी कछ ही दर बाद लोग ऊ घन भी लग

थ मगर बाब अभी भी िरी-िरी आखो स सामन की ओर दख जा रहा था बार-बार मझस पछता जक पठान जडबब म

स जनकल कर जकस ओर को गए ह उसक जसर पर जनन सवार था

गाड़ी क जहचकोलो म म खद ऊ घन लगा था जडबब म लर पान क जलए जगह नही थी बठ-बठ ही नीद म मरा जसर

कभी एक ओर को लढ़क जाता कभी दसरी ओर को जकसी-जकसी वि झरक स मरी नीद ररती और मझ सामन की

सीर पर असत-वयसत स पड़ सरदार जी क खराटर सनाई दत अमतसर पहचन क बाद सरदार जी जिर स सामनवाली

सीर पर राग पसार कर लर गए थ जडबब म तरह-तरह की आड़ी-जतरछी मराओ म मसाजिर पड़ थ उनकी बीभतस

मराओ को दख कर लगता जडबबा लाशो स भरा ह पास बठ बाब पर नजर पड़ती तो कभी तो वह जखड़की क बाहर

मह जकए दख रहा होता कभी दीवार स पीठ लगाए तन कर बठा नजर आता

जकसी-जकसी वि गाड़ी जकसी सरशन पर रकती तो पजहयो की गड़गड़ाहर बद होन पर जनसतबधता-सी छा जाती तभी

लगता जस पलरिामट पर कछ जगरा ह या जस कोई मसाजिर गाड़ी म स उतरा ह और म झरक स उठ कर बठ जाता

इसी तरह जब एक बार मरी नीद ररी तो गाड़ी की रफतार धीमी पड़ गई थी और जडबब म अधरा था मन उसी तरह

अधलर जखड़की म स बाहर दखा दर पीछ की ओर जकसी सरशन क जसगनल क लाल कमकम चमक रह थ सपित

गाड़ी कोई सरशन लाघ कर आई थी पर अभी तक उसन रफतार नही पकड़ी थी

जडबब क बाहर मझ धीम-स असिर सवर सनाई जदए दर ही एक धजमल-सा काला पज नजर आया नीद की खमारी म

मरी आख कछ दर तक उस पर लगी रही जिर मन उस समझ पान का जवचार छोड़ जदया जडबब क अदर अधरा था

बजततया बझी हई थी लजकन बाहर लगता था पौ िरन वाली ह

मरी पीठ-पीछ जडबब क बाहर जकसी चीज को खरोचन की-सी आवाज आई मन दरवाज की ओर घम कर दखा

जडबब का दरवाजा बद था मझ जिर स दरवाजा खरोचन की आवाज सनाई दी जिर मन साि-साि सना लाठी स

कोई जडबब का दरवाजा परपरा रहा था मन झाक कर जखड़की क बाहर दखा सचमच एक आदमी जडबब की दो

सीजढ़या चढ़ आया था उसक कध पर एक गठरी झल रही थी और हाथ म लाठी थी और उसन बदरग-स कपड़ पहन

रख थ और उसक दाढ़ी भी थी जिर मरी नजर बाहर नीच की ओर आ गई गाड़ी क साथ-साथ एक औरत भागती

चली आ रही थी नग पाव और उसन दो गठररया उठा रखी थी बोझ क कारण उसस दौड़ा नही जा रहा था जडबब क

पायदान पर खड़ा आदमी बार-बार उसकी ओर मड़ कर दख रहा था और हािता हआ कह जा रहा था - आ जा आ

जा त भी चढ़ आ आ जा

दरवाज पर जिर स लाठी परपरान की आवाज आई - खोलो जी दरवाजा खदा क वासत दरवाजा खोलो

वह आदमी हाि रहा था - खदा क जलए दरवाजा खोलो मर साथ म औरतजात ह गाड़ी जनकल जाएगी

सहसा मन दखा बाब हड़बड़ा कर उठ खड़ा हआ और दरवाज क पास जा कर दरवाज म लगी जखड़की म स मह

बाहर जनकाल कर बोला - कौन ह इधर जगह नही ह

बाहर खड़ा आदमी जिर जगड़जगड़ान लगा - खदा क वासत दरवाजा खोलो गाड़ी जनकल जाएगी

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और वह आदमी जखड़की म स अपना हाथ अदर डाल कर दरवाजा खोल पान क जलए जसरकनी ररोलन लगा

नही ह जगह बोल जदया उतर जाओ गाड़ी पर स बाब जचलाया और उसी कषण लपक कर दरवाजा खोल जदया

या अलाह उस आदमी क असिर-स शबद सनाई जदए दरवाजा खलन पर जस उसन इतमीनान की सास ली हो

और उसी वि मन बाब क हाथ म छड़ चमकत दखा एक ही भरपर वार बाब न उस मसाजिर क जसर पर जकया था म

दखत ही डर गया और मरी राग लरज गई मझ लगा जस छड़ क वार का उस आदमी पर कोई असर नही हआ

उसक दोनो हाथ अभी भी जोर स डडहर को पकड़ हए थ कध पर स लरकती गठरी जखसर कर उसकी कोहनी पर

आ गई थी

तभी सहसा उसक चहर पर लह की दो-तीन धार एक साथ िर पड़ी मझ उसक खल होठ और चमकत दात नजर

आए वह दो-एक बार या अलाह बदबदाया जिर उसक पर लड़खड़ा गए उसकी आखो न बाब की ओर दखा

अधमदी-सी आख जो धीर-धीर जसकड़ती जा रही थी मानो उस पहचानन की कोजशश कर रही हो जक वह कौन ह

और उसस जकस अदावत का बदला ल रहा ह इस बीच अधरा कछ और छन गया था उसक होठ जिर स िड़िड़ाए

और उनम सिद दात जिर स झलक उठ मझ लगा जस वह मसकराया ह पर वासतव म कवल कषय क ही कारण होठो

म बल पड़न लग थ

नीच पररी क साथ-साथ भागती औरत बड़बड़ाए और कोस जा रही थी उस अभी भी मालम नही हो पाया था जक

कया हआ ह वह अभी भी शायद यह समझ रही थी जक गठरी क कारण उसका पजत गाड़ी पर ठीक तरह स चढ़ नही

पा रहा ह जक उसका पर जम नही पा रहा ह वह गाड़ी क साथ-साथ भागती हई अपनी दो गठररयो क बावजद अपन

पजत क पर पकड़-पकड़ कर सीढ़ी पर जरकान की कोजशश कर रही थी

तभी सहसा डडहर स उस आदमी क दोनो हाथ छर गए और वह कर पड़ की भाजत नीच जा जगरा और उसक जगरत

ही औरत न भागना बद कर जदया मानो दोनो का सिर एक साथ ही खतम हो गया हो

बाब अभी भी मर जनकर जडबब क खल दरवाज म बत-का-बत बना खड़ा था लोह की छड़ अभी भी उसक हाथ म

थी मझ लगा जस वह छड़ को ि क दना चाहता ह लजकन उस ि क नही पा रहा उसका हाथ जस उठ नही रहा था

मरी सास अभी भी िली हई थी और जडबब क अजधयार कोन म म जखड़की क साथ सर कर बठा उसकी ओर दख जा

रहा था

जिर वह आदमी खड़-खड़ जहला जकसी अजञात पररणावश वह एक कदम आग बढ़ आया और दरवाज म स बाहर

पीछ की ओर दखन लगा गाड़ी आग जनकलती जा रही थी दर पररी क जकनार अजधयारा पज-सा नजर आ रहा था

बाब का शरीर हरकत म आया एक झरक म उसन छड़ को जडबब क बाहर ि क जदया जिर घम कर जडबब क अदर

दाए-बाए दखन लगा सभी मसाजिर सोए पड़ थ मरी ओर उसकी नजर नही उठी

थोड़ी दर तक वह खड़ा डोलता रहा जिर उसन घम कर दरवाजा बद कर जदया उसन धयान स अपन कपड़ो की ओर

दखा अपन दोनो हाथो की ओर दखा जिर एक-एक करक अपन दोनो हाथो को नाक क पास ल जा कर उनदह सघा

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मानो जानना चाहता हो जक उसक हाथो स खन की ब तो नही आ रही ह जिर वह दब पाव चलता हआ आया और

मरी बगलवाली सीर पर बठ गया

धीर-धीर झरपरा छरन लगा जदन खलन लगा साि-सथरी-सी रोशनी चारो ओर िलन लगी जकसी न जजीर खीच

कर गाड़ी को खड़ा नही जकया था छड़ खा कर जगरी उसकी दह मीलो पीछ छर चकी थी सामन गह क खतो म जिर

स हकी-हकी लहररया उठन लगी थी

सरदार जी बदन खजलात उठ बठ मरी बगल म बठा बाब दोनो हाथ जसर क पीछ रख सामन की ओर दख जा रहा

था रात-भर म उसक चहर पर दाढ़ी क छोर-छोर बाल उग आए थ अपन सामन बठा दख कर सरदार उसक साथ

बजतयान लगा - बड़ जीवर वाल हो बाब दबल-पतल हो पर बड़ गद वाल हो बड़ी जहममत जदखाई ह तमस डर कर

ही व पठान जडबब म स जनकल गए यहा बन रहत तो एक-न-एक की खोपड़ी तम जरर दरसत कर दत और सरदार

जी हसन लग

बाब जवाब म मसकराया - एक वीभतस-सी मसकान और दर तक सरदार जी क चहर की ओर दखता रहा

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चीफ की दावत

भीषम साहनी

आज जमसरर शामनाथ क घर चीि की दावत थी

शामनाथ और उनकी धमटपतनी को पसीना पोछन की िसटत न थी पतनी डरजसग गाउन पहन उलझ हए बालो का जड़ा

बनाए मह पर िली हई सखी और पाउड़र को मल और जमसरर शामनाथ जसगरर पर जसगरर ि कत हए चीजो की

िहररसत हाथ म थाम एक कमर स दसर कमर म आ-जा रह थ

आजखर पाच बजत-बजत तयारी मकममल होन लगी कजसटया मज जतपाइया नपजकन िल सब बरामद म पहच गए

जडरक का इतजाम बठक म कर जदया गया अब घर का िालत सामान अलमाररयो क पीछ और पलगो क नीच

जछपाया जान लगा तभी शामनाथ क सामन सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई मा का कया होगा

इस बात की ओर न उनका और न उनकी कशल गजहणी का धयान गया था जमसरर शामनाथ शरीमती की ओर घम कर

अगरजी म बोल - मा का कया होगा

शरीमती काम करत-करत ठहर गई और थोडी दर तक सोचन क बाद बोली - इनदह जपछवाड़ इनकी सहली क घर भज

दो रात-भर बशक वही रह कल आ जाए

शामनाथ जसगरर मह म रख जसकडी आखो स शरीमती क चहर की ओर दखत हए पल-भर सोचत रह जिर जसर जहला

कर बोल - नही म नही चाहता जक उस बजढ़या का आना-जाना यहा जिर स शर हो पहल ही बड़ी मजशकल स बद

जकया था मा स कह जक जदी ही खाना खा क शाम को ही अपनी कोठरी म चली जाए महमान कही आठ बज

आएग इसस पहल ही अपन काम स जनबर ल

सझाव ठीक था दोनो को पसद आया मगर जिर सहसा शरीमती बोल उठी - जो वह सो गई और नीद म खराटर लन

लगी तो साथ ही तो बरामदा ह जहा लोग खाना खाएग

तो इनदह कह दग जक अदर स दरवाजा बद कर ल म बाहर स ताला लगा दगा या मा को कह दता ह जक अदर जा कर

सोए नही बठी रह और कया

और जो सो गई तो जडनर का कया मालम कब तक चल गयारह-गयारह बज तक तो तम जडरक ही करत रहत हो

शामनाथ कछ खीज उठ हाथ झरकत हए बोल - अचछी-भली यह भाई क पास जा रही थी तमन य ही खद अचछा

बनन क जलए बीच म राग अड़ा दी

वाह तम मा और बर की बातो म म कयो बरी बन तम जानो और वह जान

जमसरर शामनाथ चप रह यह मौका बहस का न था समसया का हल ढढ़न का था उनदहोन घम कर मा की कोठरी की

ओर दखा कोठरी का दरवाजा बरामद म खलता था बरामद की ओर दखत हए झर स बोल - मन सोच जलया ह -

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और उनदही कदमो मा की कोठरी क बाहर जा खड़ हए मा दीवार क साथ एक चौकी पर बठी दपटट म मह-जसर लपर

माला जप रही थी सबह स तयारी होती दखत हए मा का भी जदल धड़क रहा था बर क दफतर का बड़ा साहब घर पर

आ रहा ह सारा काम सभीत स चल जाय

मा आज तम खाना जदी खा लना महमान लोग साढ़ सात बज आ जाएग

मा न धीर स मह पर स दपटटा हराया और बर को दखत हए कहा आज मझ खाना नही खाना ह बरा तम जो जानत

हो मास-मछली बन तो म कछ नही खाती

जस भी हो अपन काम स जदी जनबर लना

अचछा बरा

और मा हम लोग पहल बठक म बठ ग उतनी दर तम यहा बरामद म बठना जिर जब हम यहा आ जाए तो तम

गसलखान क रासत बठक म चली जाना

मा अवाक बर का चहरा दखन लगी जिर धीर स बोली - अचछा बरा

और मा आज जदी सो नही जाना तमहार खराटरो की आवाज दर तक जाती ह

मा लजजजत-सी आवाज म बोली - कया कर बरा मर बस की बात नही ह जब स बीमारी स उठी ह नाक स सास

नही ल सकती

जमसरर शामनाथ न इतजाम तो कर जदया जिर भी उनकी उधड़-बन खतम नही हई जो चीि अचानक उधर आ

जनकला तो आठ-दस महमान होग दसी अिसर उनकी जसतरया होगी कोई भी गसलखान की तरि जा सकता ह

कषोभ और करोध म वह झझलान लग एक कसी को उठा कर बरामद म कोठरी क बाहर रखत हए बोल - आओ मा

इस पर जरा बठो तो

मा माला सभालती पला ठीक करती उठी और धीर स कसी पर आ कर बठ गई

य नही मा राग ऊपर चढ़ा कर नही बठत यह खार नही ह

मा न राग नीच उतार ली

और खदा क वासत नग पाव नही घमना न ही वह खड़ाऊ पहन कर सामन आना जकसी जदन तमहारी यह खड़ाऊ उठा

कर म बाहर ि क दगा

मा चप रही

कपड़ कौन स पहनोगी मा

जो ह वही पहनगी बरा जो कहो पहन ल

जमसरर शामनाथ जसगरर मह म रख जिर अधखली आखो स मा की ओर दखन लग और मा क कपड़ो की सोचन

लग शामनाथ हर बात म तरतीब चाहत थ घर का सब सचालन उनक अपन हाथ म था खजरया कमरो म कहा

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लगाई जाए जबसतर कहा पर जबछ जकस रग क पद लगाए जाए शरीमती कौन-सी साड़ी पहन मज जकस साइज की

हो शामनाथ को जचता थी जक अगर चीि का साकषात मा स हो गया तो कही लजजजत नही होना पड मा को जसर स

पाव तक दखत हए बोल - तम सिद कमीज और सिद सलवार पहन लो मा पहन क आओ तो जरा दख

मा धीर स उठी और अपनी कोठरी म कपड़ पहनन चली गई

यह मा का झमला ही रहगा उनदहोन जिर अगरजी म अपनी सतरी स कहा - कोई ढग की बात हो तो भी कोई कह अगर

कही कोई उरी-सीधी बात हो गई चीि को बरा लगा तो सारा मजा जाता रहगा

मा सिद कमीज और सिद सलवार पहन कर बाहर जनकली छोरा-सा कद सिद कपड़ो म जलपरा छोरा-सा सखा

हआ शरीर धधली आख कवल जसर क आध झड़ हए बाल पल की ओर म जछप पाए थ पहल स कछ ही कम

करप नजर आ रही थी

चलो ठीक ह कोई चजड़या-वजड़या हो तो वह भी पहन लो कोई हजट नही

चजड़या कहा स लाऊ बरा तम तो जानत हो सब जवर तमहारी पढ़ाई म जबक गए

यह वाकय शामनाथ को तीर की तरह लगा जतनक कर बोल - यह कौन-सा राग छड़ जदया मा सीधा कह दो नही ह

जवर बस इसस पढ़ाई-वढ़ाई का कया तअलक ह जो जवर जबका तो कछ बन कर ही आया ह जनरा लडरा तो नही

लौर आया जजतना जदया था उसस दगना ल लना

मरी जीभ जल जाय बरा तमस जवर लगी मर मह स य ही जनकल गया जो होत तो लाख बार पहनती

साढ़ पाच बज चक थ अभी जमसरर शामनाथ को खद भी नहा-धो कर तयार होना था शरीमती कब की अपन कमर म

जा चकी थी शामनाथ जात हए एक बार जिर मा को जहदायत करत गए - मा रोज की तरह गमसम बन क नही बठी

रहना अगर साहब इधर आ जनकल और कोई बात पछ तो ठीक तरह स बात का जवाब दना

म न पढ़ी न जलखी बरा म कया बात कर गी तम कह दना मा अनपढ़ ह कछ जानती-समझती नही वह नही पछगा

सात बजत-बजत मा का जदल धक-धक करन लगा अगर चीि सामन आ गया और उसन कछ पछा तो वह कया

जवाब दगी अगरज को तो दर स ही दख कर घबरा उठती थी यह तो अमरीकी ह न मालम कया पछ म कया कह गी

मा का जी चाहा जक चपचाप जपछवाड़ जवधवा सहली क घर चली जाए मगर बर क हकम को कस राल सकती थी

चपचाप कसी पर स राग लरकाए वही बठी रही

एक कामयाब पारी वह ह जजसम जडरक कामयाबी स चल जाए शामनाथ की पारी सिलता क जशखर चमन लगी

वाताटलाप उसी रौ म बह रहा था जजस रौ म जगलास भर जा रह थ कही कोई रकावर न थी कोई अड़चन न थी

साहब को जवहसकी पसद आई थी ममसाहब को पद पसद आए थ सोिा-कवर का जडजाइन पसद आया था कमर

की सजावर पसद आई थी इसस बढ़ कर कया चाजहए साहब तो जडरक क दसर दौर म ही चरकल और कहाजनया

कहन लग गए थ दफतर म जजतना रोब रखत थ यहा पर उतन ही दोसत-परवर हो रह थ और उनकी सतरी काला गाउन

पहन गल म सिद मोजतयो का हार सर और पाउड़र की महक स ओत-परोत कमर म बठी सभी दसी जसतरयो की

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आराधना का क र बनी हई थी बात-बात पर हसती बात-बात पर जसर जहलाती और शामनाथ की सतरी स तो ऐस बात

कर रही थी जस उनकी परानी सहली हो

और इसी रो म पीत-जपलात साढ़ दस बज गए वि गजरत पता ही न चला

आजखर सब लोग अपन-अपन जगलासो म स आजखरी घर पी कर खाना खान क जलए उठ और बठक स बाहर

जनकल आग-आग शामनाथ रासता जदखात हए पीछ चीि और दसर महमान

बरामद म पहचत ही शामनाथ सहसा जठठक गए जो दशय उनदहोन दखा उसस उनकी राग लड़खड़ा गई और कषण-भर

म सारा नशा जहरन होन लगा बरामद म ऐन कोठरी क बाहर मा अपनी कसी पर जयो-की-तयो बठी थी मगर दोनो पाव

कसी की सीर पर रख हए और जसर दाए स बाए और बाए स दाए झल रहा था और मह म स लगातार गहर खराटरो

की आवाज आ रही थी जब जसर कछ दर क जलए रढ़ा हो कर एक तरि को थम जाता तो खराटर और भी गहर हो

उठत और जिर जब झरक-स नीद ररती तो जसर जिर दाए स बाए झलन लगता पला जसर पर स जखसक आया था

और मा क झर हए बाल आध गज जसर पर असत-वयसत जबखर रह थ

दखत ही शामनाथ करदध हो उठ जी चाहा जक मा को धकका द कर उठा द और उनदह कोठरी म धकल द मगर ऐसा

करना सभव न था चीि और बाकी महमान पास खड़ थ

मा को दखत ही दसी अिसरो की कछ जसतरया हस दी जक इतन म चीि न धीर स कहा - पअर जडयर

मा हड़बड़ा क उठ बठी सामन खड़ इतन लोगो को दख कर ऐसी घबराई जक कछ कहत न बना झर स पला जसर पर

रखती हई खड़ी हो गई और जमीन को दखन लगी उनक पाव लड़खड़ान लग और हाथो की उगजलया थर-थर कापन

लगी

मा तम जाक सो जाओ तम कयो इतनी दर तक जाग रही थी - और जखजसयाई हई नजरो स शामनाथ चीि क मह की

ओर दखन लग

चीि क चहर पर मसकराहर थी वह वही खड़-खड़ बोल नमसत

मा न जझझकत हए अपन म जसमरत हए दोनो हाथ जोड़ मगर एक हाथ दपटट क अदर माला को पकड़ हए था दसरा

बाहर ठीक तरह स नमसत भी न कर पाई शामनाथ इस पर भी जखनदन हो उठ

इतन म चीि न अपना दाया हाथ हाथ जमलान क जलए मा क आग जकया मा और भी घबरा उठी

मा हाथ जमलाओ

पर हाथ कस जमलाती दाए हाथ म तो माला थी घबराहर म मा न बाया हाथ ही साहब क दाए हाथ म रख जदया

शामनाथ जदल ही जदल म जल उठ दसी अिसरो की जसतरया जखलजखला कर हस पडी

य नही मा तम तो जानती हो दाया हाथ जमलाया जाता ह दाया हाथ जमलाओ

मगर तब तक चीि मा का बाया हाथ ही बार-बार जहला कर कह रह थ - हाउ ड य ड

कहो मा म ठीक ह खररयत स ह

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मा कछ बडबड़ाई

मा कहती ह म ठीक ह कहो मा हाउ ड य ड

मा धीर स सकचात हए बोली - हौ ड ड

एक बार जिर कहकहा उठा

वातावरण हका होन लगा साहब न जसथजत सभाल ली थी लोग हसन-चहकन लग थ शामनाथ क मन का कषोभ भी

कछ-कछ कम होन लगा था

साहब अपन हाथ म मा का हाथ अब भी पकड़ हए थ और मा जसकड़ी जा रही थी साहब क मह स शराब की ब आ

रही थी

शामनाथ अगरजी म बोल - मरी मा गाव की रहन वाली ह उमर भर गाव म रही ह इसजलए आपस लजाती ह

साहब इस पर खश नजर आए बोल - सच मझ गाव क लोग बहत पसद ह तब तो तमहारी मा गाव क गीत और

नाच भी जानती होगी चीि खशी स जसर जहलात हए मा को रकरकी बाध दखन लग

मा साहब कहत ह कोई गाना सनाओ कोई पराना गीत तमह तो जकतन ही याद होग

मा धीर स बोली - म कया गाऊ गी बरा मन कब गाया ह

वाह मा महमान का कहा भी कोई रालता ह

साहब न इतना रीझ स कहा ह नही गाओगी तो साहब बरा मानग

म कया गाऊ बरा मझ कया आता ह

वाह कोई बजढ़या रपप सना दो दो पततर अनारा द

दसी अिसर और उनकी जसतरयो न इस सझाव पर ताजलया पीरी मा कभी दीन दजि स बर क चहर को दखती कभी

पास खड़ी बह क चहर को

इतन म बर न गभीर आदश-भर जलहाज म कहा - मा

इसक बाद हा या ना सवाल ही न उठता था मा बठ गई और कषीण दबटल लरजती आवाज म एक पराना जववाह का

गीत गान लगी -

हररया नी माए हररया नी भण

हररया त भागी भररया ह

दसी जसतरया जखलजखला क हस उठी तीन पजिया गा क मा चप हो गई

बरामदा ताजलयो स गज उठा साहब ताजलया पीरना बद ही न करत थ शामनाथ की खीज परसनदनता और गवट म बदल

उठी थी मा न पारी म नया रग भर जदया था

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ताजलया थमन पर साहब बोल - पजाब क गावो की दसतकारी कया ह

शामनाथ खशी म झम रह थ बोल - ओ बहत कछ - साहब म आपको एक सर उन चीजो का भर कर गा आप

उनदह दख कर खश होग

मगर साहब न जसर जहला कर अगरजी म जिर पछा - नही म दकानो की चीज नही मागता पजाजबयो क घरो म कया

बनता ह औरत खद कया बनाती ह

शामनाथ कछ सोचत हए बोल - लड़जकया गजड़या बनाती ह और िलकाररया बनाती ह

िलकारी कया

शामनाथ िलकारी का मतलब समझान की असिल चिा करन क बाद मा को बोल - कयो मा कोई परानी िलकारी

घर म ह

मा चपचाप अदर गई और अपनी परानी िलकारी उठा लाई

साहब बड़ी रजच स िलकारी दखन लग परानी िलकारी थी जगह-जगह स उसक ताग रर रह थ और कपड़ा िरन

लगा था साहब की रजच को दख कर शामनाथ बोल - यह िरी हई ह साहब म आपको नई बनवा दगा मा बना

दगी कयो मा साहब को िलकारी बहत पसद ह इनदह ऐसी ही एक िलकारी बना दोगी न

मा चप रही जिर डरत-डरत धीर स बोली - अब मरी नजर कहा ह बरा बढ़ी आख कया दखगी

मगर मा का वाकय बीच म ही तोड़त हए शामनाथ साहब को बोल - वह जरर बना दगी आप उस दख कर खश होग

साहब न जसर जहलाया धनदयवाद जकया और हक-हक झमत हए खान की मज की ओर बढ़ गए बाकी महमान भी

उनक पीछ-पीछ हो जलए

जब महमान बठ गए और मा पर स सबकी आख हर गई तो मा धीर स कसी पर स उठी और सबस नजर बचाती हई

अपनी कोठरी म चली गई

मगर कोठरी म बठन की दर थी जक आखो म छल-छल आस बहन लग वह दपटट स बार-बार उनदह पोछती पर वह

बार-बार उमड़ आत जस बरसो का बाध तोड़ कर उमड़ आए हो मा न बहतरा जदल को समझाया हाथ जोड़ भगवान

का नाम जलया बर क जचराय होन की पराथटना की बार-बार आख बद की मगर आस बरसात क पानी की तरह जस

थमन म ही न आत थ

आधी रात का वि होगा महमान खाना खा कर एक-एक करक जा चक थ मा दीवार स सर कर बठी आख िाड़

दीवार को दख जा रही थी घर क वातावरण म तनाव ढीला पड़ चका था महल की जनसतबधता शामनाथ क घर भी

छा चकी थी कवल रसोई म पलरो क खनकन की आवाज आ रही थी तभी सहसा मा की कोठरी का दरवाजा जोर स

खरकन लगा

मा दरवाजा खोलो

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मा का जदल बठ गया हड़बड़ा कर उठ बठी कया मझस जिर कोई भल हो गई मा जकतनी दर स अपन आपको कोस

रही थी जक कयो उनदह नीद आ गई कयो वह ऊ घन लगी कया बर न अभी तक कषमा नही जकया मा उठी और कापत

हाथो स दरवाजा खोल जदया

दरवाज खलत ही शामनाथ झमत हए आग बढ़ आए और मा को आजलगन म भर जलया

ओ अममी तमन तो आज रग ला जदया साहब तमस इतना खश हआ जक कया कह ओ अममी अममी

मा की छोरी-सी काया जसमर कर बर क आजलगन म जछप गई मा की आखो म जिर आस आ गए उनदह पोछती हई

धीर स बोली - बरा तम मझ हररदवार भज दो म कब स कह रही ह

शामनाथ का झमना सहसा बद हो गया और उनकी पशानी पर जिर तनाव क बल पड़न लग उनकी बाह मा क शरीर

पर स हर आई

कया कहा मा यह कौन-सा राग तमन जिर छड़ जदया

शामनाथ का करोध बढ़न लगा था बोलत गए - तम मझ बदनाम करना चाहती हो ताजक दजनया कह जक बरा मा को

अपन पास नही रख सकता

नही बरा अब तम अपनी बह क साथ जसा मन चाह रहो मन अपना खा-पहन जलया अब यहा कया कर गी जो

थोड़ जदन जजदगानी क बाकी ह भगवान का नाम लगी तम मझ हररदवार भज दो

तम चली जाओगी तो िलकारी कौन बनाएगा साहब स तमहार सामन ही िलकारी दन का इकरार जकया ह

मरी आख अब नही ह बरा जो िलकारी बना सक तम कही और स बनवा लो बनी-बनाई ल लो

मा तम मझ धोखा दक य चली जाओगी मरा बनता काम जबगाड़ोगी जानती नही साहब खश होगा तो मझ तरककी

जमलगी

मा चप हो गई जिर बर क मह की ओर दखती हई बोली - कया तरी तरककी होगी कया साहब तरी तरककी कर दगा

कया उसन कछ कहा ह

कहा नही मगर दखती नही जकतना खश गया ह कहता था जब तरी मा िलकारी बनाना शर करगी तो म दखन

आऊ गा जक कस बनाती ह जो साहब खश हो गया तो मझ इसस बड़ी नौकरी भी जमल सकती ह म बड़ा अिसर बन

सकता ह

मा क चहर का रग बदलन लगा धीर-धीर उनका झररटयो-भरा मह जखलन लगा आखो म हकी-हकी चमक आन

लगी

तो तरी तरककी होगी बरा

तरककी य ही हो जाएगी साहब को खश रखगा तो कछ करगा वरना उसकी जखदमत करनवाल और थोड़ ह

तो म बना दगी बरा जस बन पड़गा बना दगी

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और मा जदल ही जदल म जिर बर क उजजवल भजवषय की कामनाए करन लगी और जमसरर शामनाथ अब सो जाओ

मा कहत हए तजनक लड़खड़ात हए अपन कमर की ओर घम गए

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णसकका बदल गया

कषणा सोबती

खददर की चादर ओढ़ हाथ म माला जलए शाहनी जब दररया क जकनार पहची तो पौ िर रही थी दर-दर आसमान क

परद पर लाजलमा िलती जा रही थी शाहनी न कपड़ उतारकर एक ओर रकख और शरीराम शरीराम करती पानी म हो

ली अजजल भरकर सयट दवता को नमसकार जकया अपनी उनीदी आखो पर छीर जदय और पानी स जलपर गयी

चनाब का पानी आज भी पहल-सा ही सदट था लहर लहरो को चम रही थी वह दर सामन काशमीर की पहाजड़यो स

बिट जपघल रही थी उछल-उछल आत पानी क भवरो स रकराकर कगार जगर रह थ लजकन दर-दर तक जबछी रत

आज न जान कयो खामोश लगती थी शाहनी न कपड़ पहन इधर-उधर दखा कही जकसी की परछाई तक न थी पर

नीच रत म अगजणत पावो क जनशान थ वह कछ सहम-सी उठी

आज इस परभात की मीठी नीरवता म न जान कयो कछ भयावना-सा लग रहा ह वह जपछल पचास विो स यहा नहाती

आ रही ह जकतना लमबा अरसा ह शाहनी सोचती ह एक जदन इसी दजनया क जकनार वह दलजहन बनकर उतरी थी

और आजआज शाहजी नही उसका वह पढ़ा-जलखा लड़का नही आज वह अकली ह शाहजी की लमबी-चौड़ी

हवली म अकली ह पर नहीयह कया सोच रही ह वह सवर-सवर अभी भी दजनयादारी स मन नही जिरा उसका

शाहनी न लमबी सास ली और शरी राम शरी राम करती बाजर क खतो स होती घर की राह ली कही-कही जलप-पत

आगनो पर स धआ उठ रहा था रनरनबलो की घजरया बज उठती ह जिर भीजिर भी कछ बधा-बधा-सा लग रहा

ह जममीवाला कआ भी आज नही चल रहा य शाहजी की ही असाजमया ह शाहनी न नजर उठायी यह मीलो िल

खत अपन ही ह भरी-भरायी नई िसल को दखकर शाहनी जकसी अपनतव क मोह म भीग गयी यह सब शाहजी की

बरकत ह दर-दर गावो तक िली हई जमीन जमीनो म कए सब अपन ह साल म तीन िसल जमीन तो सोना

उगलती ह शाहनी कए की ओर बढ़ी आवाज दी शर शर हसना हसना

शरा शाहनी का सवर पहचानता ह वह न पहचानगा अपनी मा जना क मरन क बाद वह शाहनी क पास ही पलकर

बड़ा हआ उसन पास पड़ा गडासा शराल क ढर क नीच सरका जदया हाथ म हकका पकड़कर बोलाऐ हसना-

सना शाहनी की आवाज उस कस जहला गयी ह अभी तो वह सोच रहा था जक उस शाहनी की ऊची हवली की

अधरी कोठरी म पड़ी सोन-चादी की सनददकजचया उठाकरजक तभी शर शर शरा गसस स भर गया जकस पर

जनकाल अपना करोध शाहनी पर चीखकर बोलाऐ मर गयी ए एबब तन मौत द

हसना आरवाली कनाली एक ओर रख जदी-जदी बाजहर जनकल आयी ऐ आयी आ कयो छावल (सबह-सबह)

तड़पना ए

अब तक शाहनी नजदीक पहच चकी थी शर की तजी सन चकी थी पयार स बोली हसना यह वि लड़न का ह

वह पागल ह तो त ही जजगरा कर जलया कर

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जजगरा हसना न मान भर सवर म कहाशाहनी लड़का आजखर लड़का ही ह कभी शर स भी पछा ह जक मह अधर

ही कयो गाजलया बरसाई ह इसन शाहनी न लाड़ स हसना की पीठ पर हाथ िरा हसकर बोलीपगली मझ तो लड़क

स बह पयारी ह शर

हा शाहनी

मालम होता ह रात को कलवाल क लोग आय ह यहा शाहनी न गमभीर सवर म कहा

शर न जरा रककर घबराकर कहा नही शाहनी शर क उततर की अनसनी कर शाहनी जरा जचजनदतत सवर स बोली

जो कछ भी हो रहा ह अचछा नही शर आज शाहजी होत तो शायद कछ बीच-बचाव करत पर शाहनी कहत-

कहत रक गयी आज कया हो रहा ह शाहनी को लगा जस जी भर-भर आ रहा ह शाहजी को जबछड़ कई साल बीत

गय परपर आज कछ जपघल रहा ह शायद जपछली समजतयाआसओ को रोकन क परयतन म उसन हसना की ओर

दखा और हक-स हस पड़ी और शरा सोच ही रहा ह कया कह रही ह शाहनी आज आज शाहनी कया कोई भी

कछ नही कर सकता यह होक रहगा कयो न हो हमार ही भाई-बनददो स सद ल-लकर शाहजी सोन की बोररया तोला

करत थ परजतजहसा की आग शर की आखो म उतर आयी गड़ास की याद हो आयी शाहनी की ओर दखानही-नही

शरा इन जपछल जदनो म तीस-चालीस कतल कर चका ह परपर वह ऐसा नीच नहीसामन बठी शाहनी नही शाहनी क

हाथ उसकी आखो म तर गय वह सजदटयो की रात कभी-कभी शाहजी की डार खाक वह हवली म पड़ा रहता था

और जिर लालरन की रोशनी म वह दखता ह शाहनी क ममता भर हाथ दध का करोरा थाम हए शर-शर उठ पी

ल शर न शाहनी क झररटया पड़ मह की ओर दखा तो शाहनी धीर स मसकरा रही थी शरा जवचजलत हो गया आजखर

शाहनी न कया जबगाड़ा ह हमारा शाहजी की बात शाहजी क साथ गयी वह शाहनी को जरर बचाएगा लजकन कल

रात वाला मशवरा वह कस मान गया था जिरोज की बात सब कछ ठीक हो जाएगासामान बार जलया जाएगा

शाहनी चलो तमह घर तक छोड़ आऊ

शाहनी उठ खड़ी हई जकसी गहरी सोच म चलती हई शाहनी क पीछ-पीछ मजबत कदम उठाता शरा चल रहा ह

शजकत-सा-इधर उधर दखता जा रहा ह अपन साजथयो की बात उसक कानो म गज रही ह पर कया होगा शाहनी को

मारकर

शाहनी

हा शर

शरा चाहता ह जक जसर पर आन वाल खतर की बात कछ तो शाहनी को बता द मगर वह कस कह

शाहनी

शाहनी न जसर ऊचा जकया आसमान धए स भर गया था शर

शरा जानता ह यह आग ह जबलपर म आज आग लगनी थी लग गयी शाहनी कछ न कह सकी उसक नात ररशत

सब वही ह

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हवली आ गयी शाहनी न शनदय मन स डयोढ़ी म कदम रकखा शरा कब लौर गया उस कछ पता नही दबटल-सी दह

और अकली जबना जकसी सहार क न जान कब तक वही पड़ी रही शाहनी दपहर आयी और चली गयी हवली

खली पड़ी ह आज शाहनी नही उठ पा रही जस उसका अजधकार आज सवय ही उसस छर रहा ह शाहजी क घर

की मालजकनलजकन नही आज मोह नही हर रहा मानो पतथर हो गयी हो पड़-पड़ साझ हो गयी पर उठन की बात

जिर भी नही सोच पा रही अचानक रसली की आवाज सनकर चौक उठी

शाहनी-शाहनी सनो टक आती ह लन

टक शााहनी इसक जसवाय और कछ न कह सकी हाथो न एक-दसर को थाम जलया बात की बात म खबर गाव

भर म िल गयी बीबी न अपन जवकत कणठ स कहाशाहनी आज तक कभी ऐसा न हआ न कभी सना गजब हो

गया अधर पड़ गया

शाहनी मजतटवत वही खड़ी रही नवाब बीबी न सनह-सनी उदासी स कहाशाहनी हमन तो कभी न सोचा था

शाहनी कया कह जक उसीन ऐसा सोचा था नीच स परवारी बग और जलदार की बातचीत सनाई दी शाहनी समझी

जक वि आन पहचा मशीन की तरह नीच उतरी पर डयोढ़ी न लाघ सकी जकसी गहरी बहत गहरी आवाज स

पछाकौन कौन ह वहा

कौन नही ह आज वहा सारा गाव ह जो उसक इशार पर नाचता था कभी उसकी असाजमया ह जजनदह उसन अपन

नात-ररशतो स कभी कम नही समझा लजकन नही आज उसका कोई नही आज वह अकली ह यह भीड़ की भीड़

उनम कलवाल क जार वह कया सबह ही न समझ गयी थी

बग परवारी और मसीत क म ला इसमाइल न जान कया सोचा शाहनी क जनकर आ खड़ हए बग आज शाहनी की

ओर दख नही पा रहा धीर स जरा गला साि करत हए कहाशाहनी रबब न एही मजर सी

शाहनी क कदम डोल गय चककर आया और दीवार क साथ लग गयी इसी जदन क जलए छोड़ गय थ शाहजी उस

बजान-सी शाहनी की ओर दखकर बग सोच रहा ह कया गजर रही ह शाहनी पर मगर कया हो सकता ह जसकका

बदल गया ह

शाहनी का घर स जनकलना छोरी-सी बात नही गाव का गाव खड़ा ह हवली क दरवाज स लकर उस दार तक जजस

शाहजी न अपन पतर की शादी म बनवा जदया था तब स लकर आज तक सब िसल सब मशजवर यही होत रह ह

इस बड़ी हवली को लर लन की बात भी यही सोची गयी थी यह नही जक शाहनी कछ न जानती हो वह जानकर भी

अनजान बनी रही उसन कभी बर नही जाना जकसी का बरा नही जकया लजकन बढ़ी शाहनी यह नही जानती जक

जसकका बदल गया ह

दर हो रही थी थानदार दाऊद खा जरा अकड़कर आग आया और डयोढ़ी पर खड़ी जड़ जनजीव छाया को दखकर

जठठक गया वही शाहनी ह जजसक शाहजी उसक जलए दररया क जकनार खम लगवा जदया करत थ यह तो वही

शाहनी ह जजसन उसकी मगतर को सोन क कनिल जदय थ मह जदखाई म अभी उसी जदन जब वह लीग क

जसलजसल म आया था तो उसन उददडता स कहा थाशाहनी भागोवाल मसीत बनगी तीन सौ रपया दना पड़गा

शाहनी न अपन उसी सरल सवभाव स तीन सौ रपय जदय थ और आज

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शाहनी डयोढ़ी क जनकर जाकर बोलादर हो रही ह शाहनी (धीर स) कछ साथ रखना हो तो रख लो कछ साथ

बाध जलया ह सोना-चादी

शाहनी असिर सवर स बोलीसोना-चादी जरा ठहरकर सादगी स कहासोना-चादी बचचा वह सब तम लोगो क

जलए ह मरा सोना तो एक-एक जमीन म जबछा ह

दाऊद खा लजजजत-सा हो गया शाहनी तम अकली हो अपन पास कछ होना जररी ह कछ नकदी ही रख लो वि

का कछ पता नही

वि शाहनी अपनी गीली आखो स हस पड़ी दाऊद खा इसस अचछा वि दखन क जलए कया म जजनददा रह गी

जकसी गहरी वदना और जतरसकार स कह जदया शाहनी न

दाऊद खा जनरततर ह साहस कर बोलाशाहनी कछ नकदी जररी ह

नही बचचा मझ इस घर सशाहनी का गला रध गयानकदी पयारी नही यहा की नकदी यही रहगी

शरा आन खड़ा गजरा जक हो ना हो कछ मार रहा ह शाहनी स खा साजहब दर हो रही ह

शाहनी चौक पड़ी दरमर घर म मझ दर आसओ की भवर म न जान कहा स जवरोह उमड़ पड़ा म परखो क इस बड़

घर की रानी और यह मर ही अनदन पर पल हएनही यह सब कछ नही ठीक हदर हो रही हपर नही शाहनी रो-रोकर

नही शान स जनकलगी इस परखो क घर स मान स लाघगी यह दहरी जजस पर एक जदन वह रानी बनकर आ खड़ी हई

थी अपन लड़खड़ात कदमो को सभालकर शाहनी न दपटट स आख पोछी और डयोढ़ी स बाहर हो गयी बडी-बजढ़या

रो पड़ी जकसकी तलना हो सकती थी इसक साथ खदा न सब कछ जदया था मगरमगर जदन बदल वि बदल

शाहनी न दपटट स जसर ढापकर अपनी धधली आखो म स हवली को अजनदतम बार दखा शाहजी क मरन क बाद भी

जजस कल की अमानत को उसन सहजकर रखा आज वह उस धोखा द गयी शाहनी न दोनो हाथ जोड़ जलए यही

अजनदतम दशटन था यही अजनदतम परणाम था शाहनी की आख जिर कभी इस ऊची हवली को न दखी पाएगी पयार न

जोर मारासोचा एक बार घम-जिर कर परा घर कयो न दख आयी म जी छोरा हो रहा ह पर जजनक सामन हमशा बड़ी

बनी रही ह उनक सामन वह छोरी न होगी इतना ही ठीक ह बस हो चका जसर झकाया डयोढ़ी क आग कलवध की

आखो स जनकलकर कछ बनदद च पड़ी शाहनी चल दीऊचा-सा भवन पीछ खड़ा रह गया दाऊद खा शरा परवारी

जलदार और छोर-बड़ बचच बढ़-मदट औरत सब पीछ-पीछ

टक अब तक भर चकी थी शाहनी अपन को खीच रही थी गाववालो क गलो म जस धआ उठ रहा ह शर खनी शर

का जदल रर रहा ह दाऊद खा न आग बढ़कर टक का दरवाजा खोला शाहनी बढ़ी इसमाइल न आग बढ़कर भारी

आवाज स कहा शाहनी कछ कह जाओ तमहार मह स जनकली असीस झठ नही हो सकती और अपन साि स

आखो का पानी पोछ जलया शाहनी न उठती हई जहचकी को रोककर रध-रध स कहा रबब तहान सलामत रकख

बचचा खजशया बकश

वह छोरा-सा जनसमह रो जदया जरा भी जदल म मल नही शाहनी क और हमहम शाहनी को नही रख सक शर न

बढ़कर शाहनी क पाव छए शाहनी कोई कछ कर नही सका राज भी पलर गया शाहनी न कापता हआ हाथ शर क

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जसर पर रकखा और रक-रककर कहातन भाग जगण चनदना (ओ चाद तर भागय जाग) दाऊद खा न हाथ का सकत

जकया कछ बड़ी-बजढ़या शाहनी क गल लगी और टक चल पड़ी

अनदन-जल उठ गया वह हवली नई बठक ऊचा चौबारा बड़ा पसार एक-एक करक घम रह ह शाहनी की आखो म

कछ पता नहीटक चल जदया ह या वह सवय चल रही ह आख बरस रही ह दाऊद खा जवचजलत होकर दख रहा ह

इस बढ़ी शाहनी को कहा जाएगी अब वह

शाहनी मन म मल न लाना कछ कर सकत तो उठा न रखत वकत ही ऐसा ह राज पलर गया ह जसकका बदल गया

रात को शाहनी जब क प म पहचकर जमीन पर पड़ी तो लर-लर आहत मन स सोचा राज पलर गया हजसकका कया

बदलगा वह तो म वही छोड़ आयी

और शाहजी की शाहनी की आख और भी गीली हो गयी

आसपास क हर-हर खतो स जघर गावो म रात खन बरसा रही थी

शायद राज पलरा भी खा रहा था और जसकका बदल रहा था

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इनदिकटर मातादीन चाद िर वयगय

(हररशकर परसाई)

वजञाजनक कहत ह चाद पर जीवन नही ह

सीजनयर पजलस इसपकरर मातादीन (जडपारटमर म एम डी साब) कहत ह- वजञाजनक झठ बोलत ह वहा हमार जस ही

मनषय की आबादी ह

जवजञान न हमशा इनदसपकरर मातादीन स मात खाई ह जिगर जपरर जवशिजञ कहता रहता ह- छर पर पाए गए जनशान

मलजजम की अगजलयो क नही ह पर मातादीन उस सजा जदला ही दत ह

मातादीन कहत ह य वजञाजनक कस का परा इनदवसरीगशन नही करत उनदहोन चाद का उजला जहससा दखा और कह

जदया वहा जीवन नही ह म चाद का अधरा जहससा दख कर आया ह वहा मनषय जाजत ह

यह बात सही ह कयोजक अधर पकष क मातादीन माजहर मान जात ह

पछा जाएगा इसपकरर मातादीन चाद पर कयो गए थ रररसर की हजसयत स या जकसी िरार अपराधी को पकड़न

नही व भारत की तरफ़ स सासकजतक आदान-परदान क अतगटत गए थ चाद सरकार न भारत सरकार को जलखा था-

यो हमारी सभयता बहत आग बढ़ी ह पर हमारी पजलस म पयाटपत सकषमता नही ह वह अपराधी का पता लगान और

उस सजा जदलान म अकसर सिल नही होती सना ह आपक यहा रामराज ह महरबानी करक जकसी पजलस अिसर

को भज जो हमारी पजलस को जशजकषत कर द

गहमतरी न सजचव स कहा- जकसी आई जी को भज दो

सजचव न कहा- नही सर आई जी नही भजा जा सकता परोरोकॉल का सवाल ह चाद हमारा एक कषर उपगरह

ह आई जी क रक क आदमी को नही भजग जकसी सीजनयर इसपकरर को भज दता ह

तय जकया गया जक हजारो मामलो क इनदवजसरगजरग ऑजिसर सीजनयर इसपकरर मातादीन को भज जदया जाय

चाद की सरकार को जलख जदया गया जक आप मातादीन को लन क जलए पथवी-यान भज दीजजय

पजलस मतरी न मातादीन को बलाकर कहा- तम भारतीय पजलस की उजजवल परपरा क दत की हजसयत स जा रह

हो ऐसा काम करना जक सार अतररकष म जडपारटमर की ऐसी जय-जयकार हो जक पीएम (परधानमनदतरी) को भी सनाई

पड़ जाए

मातादीन की यातरा का जदन आ गया एक यान अतररकष अडड पर उतरा मातादीन सबस जवदा लकर यान की

तरफ़ बढ़ व धीर-धीर कहत जा रह थ lsquoपरजवजस नगर कीज सब काजा हरदय राजख कौसलपर राजाrsquo

यान क पास पहचकर मातादीन न मशी अबदल गिर को पकारा- lsquoमशीrsquo

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गिर न एड़ी जमलाकर सयर िरकारा बोला- जी पकरसा

एि आई आर रख दी ह

जी पकरसा

और रोजनामच का नमना

जी पकरसा

व यान म बठन लग हवलदार बलभददर को बलाकर कहा- हमार घर म जचकी क बखत अपन खरला (पतनी)

को मदद क जलए भज दना

बलभददर न कहा- जी पकरसा

गिर न कहा ndash आप बजिकर रह पकरसा म अपन मकान (पतनी) को भी भज दगा जखदमत क जलए

मातादीन न यान क चालक स पछा ndash डराइजवग लाइसस ह

जी ह साहब

और गाड़ी म बतती ठीक ह

जी ठीक ह

मातादीन न कहा सब ठीकठाक होना चाजहए वरना हरामजाद का बीच अतररकष म चालान कर दगा

चनदरमा स आय चालक न कहा- हमार यहा आदमी स इस तरह नही बोलत

मातादीन न कहा- जानता ह ब तमहारी पजलस कमज़ोर ह अभी म उस ठीक करता ह

मातादीन यान म कदम रख ही रह थ जक हवलदार रामसजीवन भागता हआ आया बोला- पकरसा एसपी

साहब क घर म स कह ह जक चाद स एड़ी चमकान का पतथर लत आना

मातादीन खश हए बोल- कह दना बाई साब स ज़रर लता आऊगा

व यान म बठ और यान उड़ चला पथवी क वायमडल स यान बाहर जनकला ही था जक मातादीन न चालक स

कहा- अब हॉनट कयो नही बजाता

चालक न जवाब जदया- आसपास लाखो मील म कछ नही ह

मातादीन न डारा- मगर रल इज रल हॉनट बजाता चल

चालक अतररकष म हॉनट बजाता हआ यान को चाद पर उतार लाया अतररकष अडड पर पजलस अजधकारी

मातादीन क सवागत क जलए खड़ थ मातादीन रोब स उतर और उन अिसरो क कनदधो पर नजर डाली वहा जकसी क

सरार नही थ िीत भी जकसी क नही लग थ जलहाज़ा मातादीन न एड़ी जमलाना और हाथ उठाना ज़ररी नही समझा

जिर उनदहोन सोचा म यहा इसपकरर की हजसयत स नही सलाहकार की हजसयत स आया ह

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मातादीन को व लोग लाइन म ल गए और एक अचछ बगल म उनदह जरका जदया

एक जदन आराम करन क बाद मातादीन न काम शर कर जदया पहल उनदहोन पजलस लाइन का मलाहज़ा जकया

शाम को उनदहोन आईजी स कहा- आपक यहा पजलस लाइन म हनमानजी का मजदर नही ह हमार रामराज म

पजलस लाइन म हनमानजी ह

आईजी न कहा- हनमान कौन थ- हम नही जानत

मातादीन न कहा- हनमान का दशटन हर कतटवयपरायण पजलसवाल क जलए ज़ररी ह हनमान सगरीव क यहा

सपशल बराच म थ उनदहोन सीता माता का पता लगाया थाrsquoएबडकशनrsquoका मामला था- दिा 362 हनमानजी न रावण

को सजा वही द दी उसकी परॉपरी म आग लगा दी पजलस को यह अजधकार होना चाजहए जक अपराधी को पकड़ा

और वही सज़ा द दी अदालत म जान का झझर नही मगर यह जससरम अभी हमार रामराज म भी चाल नही हआ ह

हनमानजी क काम स भगवान राम बहत खश हए व उनदह अयोधया ल आए और lsquoरौन डयरीrsquo म तनात कर जदया

वही हनमान हमार अराधय दव ह म उनकी िोरो लता आया ह उसपर स मजतटया बनवाइए और हर पजलस लाइन म

सथाजपत करवाइए

थोड़ ही जदनो म चाद की हर पजलस लाइन म हनमानजी सथाजपत हो गए

मातादीनजी उन कारणो का अधययन कर रह थ जजनस पजलस लापरवाह और अलाल हो गयी ह वह अपराधो

पर धयान नही दती कोई कारण नही जमल रहा था एकाएक उनकी बजदध म एक चमक आईउनदहोन मशी स कहा- ज़रा

तनखा का रजजसरर बताओ

तनखा का रजजसरर दखा तो सब समझ गए कारण पकड़ म आ गया

शाम को उनदहोन पजलस मतरी स कहा म समझ गया जक आपकी पजलस मसतद कयो नही ह आप इतनी बड़ी

तनखवाह दत ह इसीजलए जसपाही को पाच सौ थानदार को हज़ार- य कया मज़ाक ह आजखर पजलस अपराधी को

कयो पकड़ हमार यहा जसपाही को सौ और इसपकरर को दो सौ दत ह तो व चौबीस घर जमट की तलाश करत ह आप

तनखवाह फ़ौरन घराइए

पजलस मतरी न कहा- मगर यह तो अनदयाय होगा अचछा वतन नही जमलगा तो व काम ही कयो करग

मातादीन न कहा- इसम कोई अनदयाय नही ह आप दखग जक पहली घरी हई तनखा जमलत ही आपकी पजलस

की मनोवजत म कराजतकारी पररवतटन हो जाएगा

पजलस मतरी न तनखवाह घरा दी और 2-3 महीनो म सचमच बहत िकट आ गया पजलस एकदम मसतद हो गई

सोत स एकदम जाग गई चारो तरफ़ नज़र रखन लगी अपराजधयो की दजनया म घबड़ाहर छा गई पजलस मतरी न

तमाम थानो क ररकॉडट बला कर दख पहल स कई गन अजधक कस रजजसरर हए थ उनदहोन मातादीन स कहा- म

आपकी सझ की तारीफ़ करता ह आपन कराजत कर दी पर यह हआ जकस तरह

मातादीन न समझाया-बात बहत मामली हकम तनखा दोग तो मलाजज़म की गजर नही होगी सौ रपयो म

जसपाही बचचो को नही पाल सकता दो सौ म इसपकरर ठाठ-बार नही मनरन कर सकता उस ऊपरी आमदनी करनी

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ही पड़गी और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़गा गरज़ जक वह अपराधो पर नज़र रखगा

सचत कतटवयपरायण और मसतद हो जाएगा हमार रामराज क सवचछ और सकषम परशासन का यही रहसय ह

चरलोक म इस चमतकार की खबर फ़ल गयी लोग मातादीन को दखन आन लग जक वह आदमी कसा ह

जो तनखा कम करक सकषमता ला दता ह पजलस क लोग भी खश थ व कहत- गर आप इधर न पधारत तो हम सभी

कोरी तनखा स ही गजर करत रहत सरकार भी खश थी जक मनाि का बजर बनन वाला था

आधी समसया हल हो गई पजलस अपराधी पकड़न लगी थी अब मामल की जाच-जवजध म सधार करना रह

गया था अपराधी को पकड़न क बाद उस सजा जदलाना मातादीन इतज़ार कर रह थ जक कोई बड़ा कस हो जाए तो

नमन क तौर पर उसका इनदवजसरगशन कर बताए

एक जदन आपसी मारपीर म एक आदमी मारा गया मातादीन कोतवाली म आकर बठ गए और बोल- नमन क

जलए इस कस का lsquoइनदवजसरगशनrsquo म करता ह आप लोग सीजखए यह कतल का कस ह कतल क कस म lsquoएजवडसrsquo

बहत पकका होना चाजहए

कोतवाल न कहा- पहल काजतल का पता लगाया जाएगा तभी तो एजवडस इकिा जकया जायगा

मातादीन न कहा- नही उलर मत चलो पहल एजवडस दखो कया कही खन जमला जकसी क कपड़ो पर या और

कही

एक इसपकरर न कहा- हा मारनवाल तो भाग गए थ मतक सड़क पर बहोश पड़ा था एक भला आदमी वहा

रहता ह उसन उठाकर असपताल भजा उस भल आदमी क कपड़ो पर खन क दाग लग गए ह

मातादीन न कहा- उस फ़ौरन जगरफतार करो

कोतवाल न कहा- मगर उसन तो मरत हए आदमी की मदद की थी

मातादीन न कहा- वह सब ठीक ह पर तम खन क दाग ढढन और कहा जाओग जो एजवडस जमल रहा ह उस तो

कबज़ म करो

वह भला आदमी पकड़कर बलवा जलया गया उसन कहा- मन तो मरत आदमी को असपताल जभजवाया था मरा

कया कसर ह

चाद की पजलस उसकी बात स एकदम परभाजवत हई मातादीन परभाजवत नही हए सारा पजलस महकमा उतसक था

जक अब मातादीन कया तकट जनकालत ह

मातादीन न उसस कहा- पर तम झगड की जगह गए कयो

उसन जवाब जदया- म झगड़ की जगह नही गया मरा वहा मकान ह झगड़ा मर मकान क सामन हआ

अब जिर मातादीन की परजतभा की परीकषा थी सारा महकमा उतसक दख रहा था

मातादीन न कहा- मकान तो ठीक ह पर म पछता ह झगड़ की जगह जाना ही कयो

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इस तकट का कोई ज़वाब नही था वह बार-बार कहता- म झगड़ की जगह नही गया मरा वही मकान ह

मातादीन उस जवाब दत- सो ठीक ह पर झगड़ की जगह जाना ही कयो इस तकट -परणाली स पजलस क लोग

बहत परभाजवत हए

अब मातादीनजी न इनदवजसरगशन का जसदधात समझाया-

दखो आदमी मारा गया ह तो यह पकका ह जकसी न उस ज़रर मारा कोई काजतल हजकसी को सज़ा होनी ह

सवाल ह- जकसको सज़ा होनी ह पजलस क जलए यह सवाल इतना महततव नही रखता जजतना यह सवाल जक जमट

जकस पर साजबत हो सकता ह या जकस पर साजबत होना चाजहए कतल हआ ह तो जकसी मनषय को सज़ा होगी ही

मारनवाल को होती ह या बकसर को ndash यह अपन सोचन की बात नही ह मनषय-मनषय सब बराबर ह सबम उसी

परमातमा का अश ह हम भदभाव नही करत यह पजलस का मानवतावाद ह

दसरा सवाल ह जकस पर जमट साजबत होना चाजहए इसका जनणटय इन बातो स होगा- (1) कया वह आदमी

पजलस क रासत म आता ह (2) कया उस सज़ा जदलान स ऊपर क लोग खश होग

मातादीन को बताया गया जक वह आदमी भला ह पर पजलस अनदयाय कर तो जवरोध करता ह जहा तक ऊपर

क लोगो का सवाल ह- वह वतटमान सरकार की जवरोधी राजनीजत वाला ह

मातादीन न रजबल ठोककर कहा- िसरट कलास कस पकका एजवडस और ऊपर का सपोरट

एक इसपकरर न कहा- पर हमार गल यह बात नही उतरती ह जक एक जनरपराध-भल आदमी को सजा जदलाई

जाए

मातादीन न समझाया- दखो म समझा चका ह जक सबम उसी ईशवर का अश ह सज़ा इस हो या काजतल को

िासी पर तो ईशवर ही चढ़गा न जिर तमह कपड़ो पर खन जमल रहा ह इस छोड़कर तम कहा खन ढढत जिरोग तम

तो भरो एि आई आर

मातादीन जी न एिआईआर भरवा दी lsquoबखत ज़ररत क जलएrsquo जगह खाली छड़वा दी

दसर जदन पजलस कोतवाल न कहा- गरदव हमारी तो बड़ी आित ह तमाम भल आदमी आत ह और कहत ह

उस बचार बकसर को कयो िसा रह हो ऐसा तो चरलोक म कभी नही हआ बताइय हम कया जवाब द हम तो

बहत शजमादा ह

मातादीन न कोतवाल स कहा- घबड़ाओ मत शर-शर म इस काम म आदमी को शमट आती ह आग तमह

बकसर को छोड़न म शमट आएगी हर चीज़ का जवाब ह अब आपक पास जो आए उसस कह दो हम जानत ह वह

जनदोि ह पर हम कया कर यह सब ऊपर स हो रहा ह

कोतवाल न कहा- तब व एसपी क पास जाएग

मातादीन बोल- एसपी भी कह द जक ऊपर स हो रहा ह

तब व आईजी क पास जशकायत करग

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आईजी भी कह जक सब ऊपर स हो रहा ह

तब व लोग पजलस मतरी क पास पहचग

पजलस मतरी भी कहग- भया म कया कर यह ऊपर स हो रहा ह

तो व परधानमतरी क पास जाएग

परधानमतरी भी कह जक म जानता ह वह जनदोि ह पर यह ऊपर स हो रहा ह

कोतवाल न कहा- तब वhellip

मातादीन न कहा- तब कया तब व जकसक पास जाएग भगवान क पास न मगर भगवान स पछकर कौन

लौर सका ह

कोतवाल चप रह गया वह इस महान परजतभा स चमतकत था

मातादीन न कहा- एक महावरा lsquoऊपर स हो रहा हrsquo हमार दश म पचचीस सालो स सरकारो को बचा रहा ह

तम इस सीख लो

कस की तयारी होन लगी मातादीन न कहा- अब 4-6 चशमदीद गवाह लाओ

कोतवाल- चशमदीद गवाह कस जमलग जब जकसी न उस मारत दखा ही नही तो चशमदीद गवाह कोई कस

होगा

मातादीन न जसर ठोक जलया जकन बवकिो क बीच िसा जदया गवनटमर न इनदह तो ए-बी-सी-डी भी नही

आती

झलाकर कहा- चशमदीद गवाह जकस कहत ह जानत हो चशमदीद गवाह वह नही ह जो दख- बजक वह ह

जो कह जक मन दखा

कोतवाल न कहा- ऐसा कोई कयो कहगा

मातादीन न कहा- कहगा समझ म नही आता कस जडपारटमर चलात हो अर चशमदीद गवाहो की जलसर

पजलस क पास पहल स रहती ह जहा ज़ररत हई उनदह चशमदीद बना जदया हमार यहा ऐस आदमी ह जो साल म 3-4

सौ वारदातो क चशमदीद गवाह होत ह हमारी अदालत भी मान लती ह जक इस आदमी म कोई दवी शजि ह जजसस

जान लता ह जक अमक जगह वारदात होन वाली ह और वहा पहल स पहच जाता ह म तमह चशमदीद गवाह बनाकर

दता ह 8-10 उठाईगीरो को बलाओ जो चोरी मारपीर गडागदी करत हो जआ जखलात हो या शराब उतारत हो

दसर जदन शहर क 8-10 नवरतन कोतवाली म हाजजर थ उनदह दखकर मातादीन गदगद हो गए बहत जदन हो गए

थ ऐस लोगो को दख बड़ा सना-सना लग रहा था

मातादीन का परम उमड़ पड़ा उनस कहा- तम लोगो न उस आदमी को लाठी स मारत दखा था न

व बोल- नही दखा साब हम वहा थ ही नही

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मातादीन जानत थ यह पहला मौका ह जिर उनदहोन कहा- वहा नही थ यह मन माना पर लाठी मारत दखा तो

था

उन लोगो को लगा जक यह पागल आदमी ह तभी ऐसी उरपराग बात कहता ह व हसन लग

मातादीन न कहा- हसो मत जवाब दो

व बोल- जब थ ही नही तो कस दखा

मातादीन न गराटकर दखा कहा- कस दखा सो बताता ह तम लोग जो काम करत हो- सब इधर दज़ट ह हर

एक को कम स कम दस साल जल म डाला जा सकता ह तम य काम आग भी करना चाहत हो या जल जाना चाहत

हो

व घबड़ाकर बोल ndash साब हम जल नही जाना चाहत

मातादीन न कहा- ठीक तो तमन उस आदमी को लाठी मारत दखा दखा न

व बोल- दखा साब वह आदमी घर स जनकला और जो लाठी मारना शर जकया तो वह बचारा बहोश होकर

सड़क पर जगर पड़ा

मातादीन न कहा- ठीक ह आग भी ऐसी वारदात दखोग

व बोल- साब जो आप कहग सो दखग

कोतवाल इस चमतकार स थोड़ी दर को बहोश हो गया होश आया तो मातादीन क चरणो पर जगर पड़ा

मातादीन न कहा- हरो काम करन दो

कोतवाल पावो स जलपर गया कहन लगा- म जीवन भर इन शरीचरणो म पड़ा रहना चाहता ह

मातादीन न आग की सारी कायटपरणाली तय कर दी एिआईआर बदलना बीच म पनदन डालना रोजनामचा

बदलना गवाहो को तोड़ना ndash सब जसखा जदया

उस आदमी को बीस साल की सज़ा हो गई

चाद की पजलस जशजकषत हो चकी थी धड़ाधड़ कस बनन लग और सज़ा होन लगी चाद की सरकार बहत

खश थी पजलस की ऐसी मसतदी भारत सरकार क सहयोग का नतीजा था चाद की ससद न एक धनदयवाद का परसताव

पास जकया

एक जदन मातादीनजी का सावटजजनक अजभनदन जकया गया व िलो स लद खली जीप पर बठ थ आसपास

जय-जयकार करत हजारो लोग व हाथ जोड़कर अपन गहमतरी की सराइल म जवाब द रह थ

जज़दगी म पहली बार ऐसा कर रह थ इसजलए थोड़ा अरपरा लग रहा था छबबीस साल पहल पजलस म भरती

होत वि जकसन सोचा था जक एक जदन दसर लोक म उनका ऐसा अजभनदन होगा व पछताए- अचछा होता जक इस

मौक क जलए करता रोपी और धोती ल आत

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भारत क पजलस मतरी रलीजवजन पर बठ यह दशय दख रह थ और सोच रह थ मरी सदभावना यातरा क जलए

वातावरण बन गया

कछ महीन जनकल गए

एक जदन चाद की ससद का जवशि अजधवशन बलाया गया बहत तफ़ान खड़ा हआ गपत अजधवशन था

इसजलए ररपोरट परकाजशत नही हई पर ससद की दीवारो स रकराकर कछ शबद बाहर आए

सदसय गसस स जचला रह थ-

कोई बीमार बाप का इलाज नही कराता

डबत बचचो को कोई नही बचाता

जलत मकान की आग कोई नही बझाता

आदमी जानवर स बदतर हो गया सरकार फ़ौरन इसतीफ़ा द

दसर जदन चाद क परधानमतरी न मातादीन को बलाया मातादीन न दखा ndash व एकदम बढ़ हो गए थ लगा य

कई रात सोए नही ह

रआस होकर परधानमतरी न कहा- मातादीनजी हम आपक और भारत सरकार क बहत आभारी ह अब आप

कल दश वापस लौर जाइय

मातादीन न कहा- म तो lsquoरमटrsquo खतम करक ही जाऊ गा

परधानमतरी न कहा- आप बाकी lsquoरमटrsquo का वतन ल जाइय- डबल ल जाइए जतबल ल जाइय

मातादीन न कहा- हमारा जसदधात ह हम पसा नही काम पयारा ह

आजखर चाद क परधानमतरी न भारत क परधानमतरी को एक गपत पतर जलखा

चौथ जदन मातादीनजी को वापस लौरन क जलए अपन आईजी का आडटर जमल गया

उनदहोन एसपी साहब क घर क जलए एड़ी चमकान का पतथर यान म रखा और चाद स जवदा हो गए

उनदह जात दख पजलसवाल रो पड़

बहत अरस तक यह रहसय बना रहा जक आजखर चाद म ऐसा कया हो गया जक मातादीनजी को इस तरह

एकदम लौरना पड़ा चाद क परधान मतरी न भारत क परधान मतरी को कया जलखा था

एक जदन वह पतर खल ही गया उसम जलखा था-

इसपकरर मातादीन की सवाए हम परदान करन क जलए अनक धनदयवाद पर अब आप उनदह फ़ौरन बला ल

हम भारत को जमतरदश समझत थ पर आपन हमार साथ शतरवत वयवहार जकया ह हम भोल लोगो स आपन

जवशवासघात जकया ह

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आपक मातादीनजी न हमारी पजलस को जसा कर जदया ह उसक नतीज़ य हए ह

कोई आदमी जकसी मरत हए आदमी क पास नही जाता इस डर स जक वह कतल क मामल म िसा जदया

जाएगा बरा बीमार बाप की सवा नही करता वह डरता ह बाप मर गया तो उस पर कही हतया का आरोप नही लगा

जदया जाए घर जलत रहत ह और कोई बझान नही जाता- डरता ह जक कही उसपर आग लगान का जमट कायम न कर

जदया जाए बचच नदी म डबत रहत ह और कोई उनदह नही बचाता इस डर स जक उस पर बचचो को डबान का आरोप

न लग जाए सार मानवीय सबध समापत हो रह ह मातादीनजी न हमारी आधी ससकजत नि कर दी ह अगर व यहा रह

तो परी ससकजत नि कर दग उनदह फ़ौरन रामराज म बला जलया जाए

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मार गय ग़लफाम उफफ तीसरी कसम

िणीशवरनाथ रण

जहरामन गाड़ीवान की पीठ म गदगदी लगती ह

जपछल बीस साल स गाड़ी हाकता ह जहरामन बलगाड़ी सीमा क उस पार मोरग राज नपाल स धान और लकड़ी ढो

चका ह कटोल क जमान म चोरबाजारी का माल इस पार स उस पार पहचाया ह लजकन कभी तो ऐसी गदगदी नही

लगी पीठ म

कटोल का जमाना जहरामन कभी भल सकता ह उस जमान को एक बार चार खप सीमर और कपड़ की गाठो स भरी

गाड़ी जोगबानी म जवरारनगर पहचन क बाद जहरामन का कलजा पोखता हो गया था िारजबसगज का हर चोर-

वयापारी उसको पकका गाड़ीवान मानता उसक बलो की बड़ाई बड़ी गददी क बड़ सठ जी खद करत अपनी भािा म

गाड़ी पकड़ी गई पाचवी बार सीमा क इस पार तराई म

महाजन का मनीम उसी की गाड़ी पर गाठो क बीच चककी-मककी लगा कर जछपा हआ था दारोगा साहब की डढ़

हाथ लबी चोरबतती की रोशनी जकतनी तज होती ह जहरामन जानता ह एक घर क जलए आदमी अधा हो जाता ह एक

छरक भी पड़ जाए आखो पर रोशनी क साथ कड़कती हई आवाज - ऐ-य गाड़ी रोको साल गोली मार दग

बीसो गाजड़या एक साथ कचकचा कर रक गई जहरामन न पहल ही कहा था यह बीस जविावगा दारोगा साहब

उसकी गाड़ी म दबक हए मनीम जी पर रोशनी डाल कर जपशाची हसी हस - हा-हा-हा मनीम जी-ई-ई-ई ही-ही-ही

ऐ-य साला गाड़ीवान मह कया दखता ह र-ए-ए कबल हराओ इस बोर क मह पर स हाथ की छोरी लाठी स मनीम

जी क पर म खोचा मारत हए कहा था इस बोर को स-ससाला

बहत परानी अखज-अदावत होगी दारोगा साहब और मनीम जी म नही तो उतना रपया कबलन पर भी पजलस-

दरोगा का मन न डोल भला चार हजार तो गाड़ी पर बठा ही द रहा ह लाठी स दसरी बार खोचा मारा दारोगा न पाच

हजार जिर खोचा - उतरो पहल

मनीम को गाड़ी स नीच उतार कर दारोगा न उसकी आखो पर रोशनी डाल दी जिर दो जसपाजहयो क साथ सड़क स

बीस-पचचीस रससी दर झाड़ी क पास ल गए गाड़ीवान और गाजड़यो पर पाच-पाच बदकवाल जसपाजहयो का पहरा

जहरामन समझ गया इस बार जनसतार नही जल जहरामन को जल का डर नही लजकन उसक बल न जान जकतन

जदनो तक जबना चारा-पानी क सरकारी िारक म पड़ रहग - भख-पयास जिर नीलाम हो जाएग भया और भौजी को

वह मह नही जदखा सकगा कभी नीलाम की बोली उसक कानो क पास गज गई - एक-दो-तीन दारोगा और मनीम

म बात पर नही रही थी शायद

जहरामन की गाड़ी क पास तनात जसपाही न अपनी भािा म दसर जसपाही स धीमी आवाज म पछा का हो मामला

गोल होखी का जिर खनी-तबाक दन क बहान उस जसपाही क पास चला गया

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एक-दो-तीन तीन-चार गाजड़यो की आड़ जहरामन न िसला कर जलया उसन धीर-स अपन बलो क गल की रजससया

खोल ली गाड़ी पर बठ-बठ दोनो को जड़वा बाध जदया बल समझ गए उनदह कया करना ह जहरामन उतरा जती हई

गाड़ी म बास की जरकरी लगा कर बलो क कधो को बलाग जकया दोनो क कानो क पास गदगदी लगा दी और मन-

ही-मन बोला चलो भयन जान बचगी तो ऐसी-ऐसी सगगड़ गाड़ी बहत जमलगी एक-दो-तीन नौ-दो-गयारह

गाजड़यो की आड़ म सड़क क जकनार दर तक घनी झाड़ी िली हई थी दम साध कर तीनो पराजणयो न झाड़ी को पार

जकया - बखरक बआहर जिर एक ल दो ल - दलकी चाल दोनो बल सीना तान कर जिर तराई क घन जगलो म

घस गए राह सघत नदी-नाला पार करत हए भाग पछ उठा कर पीछ-पीछ जहरामन रात-भर भागत रह थ तीनो जन

घर पहच कर दो जदन तक बसध पड़ा रहा जहरामन होश म आत ही उसन कान पकड़ कर कसम खाई थी - अब कभी

ऐसी चीजो की लदनी नही लादग चोरबाजारी का माल तोबा तोबा पता नही मनीम जी का कया हआ भगवान

जान उसकी सगगड़ गाड़ी का कया हआ असली इसपात लोह की धरी थी दोनो पजहए तो नही एक पजहया एकदम

नया था गाड़ी म रगीन डोररयो क ि दन बड़ जतन स गथ गए थ

दो कसम खाई ह उसन एक चोरबाजारी का माल नही लादग दसरी - बास अपन हर भाड़दार स वह पहल ही पछ

लता ह - चोरी- चमारीवाली चीज तो नही और बास बास लादन क जलए पचास रपए भी द कोई जहरामन की

गाड़ी नही जमलगी दसर की गाड़ी दख

बास लदी हई गाड़ी गाड़ी स चार हाथ आग बास का अगआ जनकला रहता ह और पीछ की ओर चार हाथ जपछआ

काब क बाहर रहती ह गाड़ी हमशा सो बकाबवाली लदनी और खरजहया शहरवाली बात जतस पर बास का अगआ

पकड़ कर चलनवाला भाड़दार का महाभकआ नौकर लड़की-सकल की ओर दखन लगा बस मोड़ पर घोड़ागाड़ी स

रककर हो गई जब तक जहरामन बलो की रससी खीच तब तक घोड़ागाड़ी की छतरी बास क अगआ म ि स गई

घोड़ा-गाड़ीवाल न तड़ातड़ चाबक मारत हए गाली दी थी बास की लदनी ही नही जहरामन न खरजहया शहर की

लदनी भी छोड़ दी और जब िारजबसगज स मोरग का भाड़ा ढोना शर जकया तो गाड़ी ही पार कई विो तक जहरामन

न बलो को आधीदारी पर जोता आधा भाड़ा गाड़ीवाल का और आधा बलवाल का जहसस गाड़ीवानी करो मफत

आधीदारी की कमाई स बलो क ही पर नही भरत जपछल साल ही उसन अपनी गाड़ी बनवाई ह

दवी मया भला कर उस सरकस-कपनी क बाघ का जपछल साल इसी मल म बाघगाड़ी को ढोनवाल दोनो घोड़ मर

गए चपानगर स िारजबसगज मला आन क समय सरकस-कपनी क मनजर न गाड़ीवान-पटटी म ऐलान करक कहा -

सौ रपया भाड़ा जमलगा एक-दो गाड़ीवान राजी हए लजकन उनक बल बाघगाड़ी स दस हाथ दर ही डर स जडकरन

लग - बा-आ रससी तड़ा कर भाग जहरामन न अपन बलो की पीठ सहलात हए कहा दखो भयन ऐसा मौका जिर

हाथ न आएगा यही ह मौका अपनी गाड़ी बनवान का नही तो जिर आधदारी अर जपजड़ म बद बाघ का कया डर

मोरग की तराई म दहाड़त हइ बाघो को दख चक हो जिर पीठ पर म तो ह

गाड़ीवानो क दल म ताजलया परपरा उठी थी एक साथ सभी की लाज रख ली जहरामन क बलो न हमक कर आग

बढ़ गए और बाघगाड़ी म जर गए - एक-एक करक जसिट दाजहन बल न जतन क बाद ढर-सा पशाब जकया जहरामन

न दो जदन तक नाक स कपड़ की पटटी नही खोली थी बड़ी गददी क बड सठ जी की तरह नकबधन लगाए जबना बघाइन

गध बरदासत नही कर सकता कोई

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बाघगाड़ी की गाड़ीवानी की ह जहरामन न कभी ऐसी गदगदी नही लगी पीठ म आज रह-रह कर उसकी गाड़ी म चपा

का िल महक उठता ह पीठ म गदगदी लगन पर वह अगोछ स पीठ झाड़ लता ह

जहरामन को लगता ह दो विट स चपानगर मल की भगवती मया उस पर परसनदन ह जपछल साल बाघगाड़ी जर गई

नकद एक सौ रपए भाड़ क अलावा बताद चाह-जबसकर और रासत-भर बदर-भाल और जोकर का तमाशा दखा सो

िोकर म

और इस बार यह जनानी सवारी औरत ह या चपा का िल जब स गाड़ी मह-मह महक रही ह

कचची सड़क क एक छोर-स खडड म गाड़ी का दाजहना पजहया बमौक जहचकोला खा गया जहरामन की गाड़ी स एक

हकी जसस की आवाज आई जहरामन न दाजहन बल को दआली स पीरत हए कहा साला कया समझता ह बोर

की लदनी ह कया

अहा मारो मत

अनदखी औरत की आवाज न जहरामन को अचरज म डाल जदया बचचो की बोली जसी महीन िनजगलासी बोली

मथरामोहन नौरकी कपनी म लला बननवाली हीराबाई का नाम जकसन नही सना होगा भला लजकन जहरामन की बात

जनराली ह उसन सात साल तक लगातार मलो की लदनी लादी ह कभी नौरकी-जथयरर या बायसकोप जसनमा नही

दखा लला या हीराबाई का नाम भी उसन नही सना कभी दखन की कया बात सो मला ररन क परह जदन पहल

आधी रात की बला म काली ओढ़नी म जलपरी औरत को दख कर उसक मन म खरका अवशय लगा था बकसा

ढोनवाल नौकर स गाड़ी-भाड़ा म मोल-मोलाई करन की कोजशश की तो ओढ़नीवाली न जसर जहला कर मना कर

जदया जहरामन न गाड़ी जोतत हए नौकर स पछा कयो भया कोई चोरी चमारी का माल-वाल तो नही जहरामन को

जिर अचरज हआ बकसा ढोनवाल आदमी न हाथ क इशार स गाड़ी हाकन को कहा और अधर म गायब हो गया

जहरामन को मल म तबाक बचनवाली बढ़ी की काली साड़ी की याद आई थी

ऐस म कोई कया गाड़ी हाक

एक तो पीठ म गदगदी लग रही ह दसर रह-रह कर चपा का िल जखल जाता ह उसकी गाड़ी म बलो को डारो तो

इस-जबस करन लगती ह उसकी सवारी उसकी सवारी औरत अकली तबाक बचनवाली बढ़ी नही आवाज सनन

क बाद वह बार-बार मड़ कर रपपर म एक नजर डाल दता ह अगोछ स पीठ झाड़ता ह भगवान जान कया जलखा ह

इस बार उसकी जकसमत म गाड़ी जब परब की ओर मड़ी एक रकड़ा चादनी उसकी गाड़ी म समा गई सवारी की

नाक पर एक जगन जगमगा उठा जहरामन को सबकछ रहसयमय - अजगत-अजगत - लग रहा ह सामन चपानगर स

जसजधया गाव तक िला हआ मदान कही डाजकन-जपशाजचन तो नही

जहरामन की सवारी न करवर ली चादनी पर मखड़ पर पड़ी तो जहरामन चीखत-चीखत रक गया - अर बाप ई तो परी

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परी की आख खल गई जहरामन न सामन सड़क की ओर मह कर जलया और बलो को जररकारी दी वह जीभ को

ताल स सरा कर जर-जर-जर-जर आवाज जनकालता ह जहरामन की जीभ न जान कब स सख कर लकड़ी-जसी हो गई

थी

भया तमहारा नाम कया ह

ह -ब-ह िनजगलास जहरामन क रोम-रोम बज उठ मह स बोली नही जनकली उसक दोनो बल भी कान खड़ करक

इस बोली को परखत ह

मरा नाम नाम मरा ह जहरामन

उसकी सवारी मसकराती ह मसकराहर म खशब ह

तब तो मीता कह गी भया नही - मरा नाम भी हीरा ह

इसस जहरामन को परतीत नही मदट और औरत क नाम म िकट होता ह

हा जी मरा नाम भी हीराबाई ह

कहा जहरामन और कहा हीराबाई बहत िकट ह

जहरामन न अपन बलो को जझड़की दी - कान चजनया कर गप सनन स ही तीस कोस मजजल करगी कया इस बाए नार

क पर म शतानी भरी ह जहरामन न बाए बल को दआली की हकी झड़प दी

मारो मत धीर धीर चलन दो जदी कया ह

जहरामन क सामन सवाल उपजसथत हआ वह कया कह कर गप कर हीराबाई स तोह कह या अहा उसकी भािा म

बड़ो को अहा अथाटत आप कह कर सबोजधत जकया जाता ह कचराही बोली म दो-चार सवाल-जवाब चल सकता

ह जदल-खोल गप तो गाव की बोली म ही की जा सकती ह जकसी स

आजसन-काजतक क भोर म छा जानवाल कहास स जहरामन को परानी जचढ़ ह बहत बार वह सड़क भल कर भरक

चका ह जकत आज क भोर क इस घन कहास म भी वह मगन ह नदी क जकनार धन-खतो स िल हए धान क पौधो

की पवजनया गध आती ह पवट-पावन क जदन गाव म ऐसी ही सगध िली रहती ह उसकी गाड़ी म जिर चपा का िल

जखला उस िल म एक परी बठी ह ज भगवती

जहरामन न आख की कनजखयो स दखा उसकी सवारी मीता हीराबाई की आख गजर-गजर उसको हर रही ह

जहरामन क मन म कोई अजानी राजगनी बज उठी सारी दह जसरजसरा रही ह बोला बल को मारत ह तो आपको बहत

बरा लगता ह

हीराबाई न परख जलया जहरामन सचमच हीरा ह

चालीस साल का हटटा-कटटा काला-कलरा दहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपन बलो क जसवाय दजनया की

जकसी और बात म जवशि जदलचसपी नही लता घर म बड़ा भाई ह खती करता ह बाल-बचचवाला आदमी ह

जहरामन भाई स बढ़ कर भाभी की इजजत करता ह भाभी स डरता भी ह जहरामन की भी शादी हई थी बचपन म ही

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गौन क पहल ही दलजहन मर गई जहरामन को अपनी दलजहन का चहरा याद नही दसरी शादी दसरी शादी न करन

क अनक कारण ह भाभी की जजद कमारी लड़की स ही जहरामन की शादी करवाएगी कमारी का मतलब हआ पाच-

सात साल की लड़की कौन मानता ह सरधा-कानन कोई लड़कीवाला दोबयाह को अपनी लड़की गरज म पड़न पर

ही द सकता ह भाभी उसकी तीन-सतत करक बठी ह सो बठी ह भाभी क आग भया की भी नही चलती अब

जहरामन न तय कर जलया ह शादी नही करगा कौन बलाय मोल लन जाए बयाह करक जिर गाड़ीवानी कया करगा

कोई और सब कछ छर जाए गाड़ीवानी नही छोड़ सकता जहरामन

हीराबाई न जहरामन क जसा जनशछल आदमी बहत कम दखा ह पछा आपका घर कौन जजला म पड़ता ह कानपर

नाम सनत ही जो उसकी हसी छरी तो बल भड़क उठ जहरामन हसत समय जसर नीचा कर लता ह हसी बद होन पर

उसन कहा वाह र कानपर तब तो नाकपर भी होगा और जब हीराबाई न कहा जक नाकपर भी ह तो वह हसत-हसत

दहरा हो गया

वाह र दजनया कया-कया नाम होता ह कानपर नाकपर जहरामन न हीराबाई क कान क िल को गौर स दखा नाक

की नकछजव क नग दख कर जसहर उठा - लह की बद

जहरामन न हीराबई का नाम नही सना कभी नौरकी कपनी की औरत को वह बाईजी नही समझता ह कपनी म

काम करनवाली औरतो को वह दख चका ह सरकस कपनी की मालजकन अपनी दोनो जवान बजरयो क साथ

बाघगाड़ी क पास आती थी बाघ को चारा-पानी दती थी पयार भी करती थी खब जहरामन क बलो को भी

डबलरोरी-जबसकर जखलाया था बड़ी बरी न

जहरामन होजशयार ह कहासा छरत ही अपनी चादर स रपपर म परदा कर जदया -बस दो घरा उसक बाद रासता चलना

मजशकल ह काजतक की सबह की धल आप बदाटसत न कर सजकएगा कजरी नदी क जकनार तगजछया क पास गाड़ी

लगा दग दपहररया कार कर

सामन स आती हई गाड़ी को दर स ही दख कर वह सतकट हो गया लीक और बलो पर धयान लगा कर बठ गया राह

कारत हए गाड़ीवान न पछा मला रर रहा ह कया भाई

जहरामन न जवाब जदया वह मल की बात नही जानता उसकी गाड़ी पर जबदागी (नहर या ससराल जाती हई लड़की)

ह न जान जकस गाव का नाम बता जदया जहरामन न

छतापर-पचीरा कहा ह

कही हो यह ल कर आप कया कररएगा जहरामन अपनी चतराई पर हसा परदा डाल दन पर भी पीठ म गदगदी

लगती ह

जहरामन परद क छद स दखता ह हीराबाई एक जदयासलाई की जडबबी क बराबर आईन म अपन दात दख रही ह

मदनपर मल म एक बार बलो को ननदही-जचतती कौजड़यो की माला खरीद दी थी जहरामन न छोरी-छोरी ननदही-ननदही

कौजड़यो की पात

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तगजछया क तीनो पड़ दर स ही जदखलाई पड़त ह जहरामन न परद को जरा सरकात हए कहा दजखए यही ह तगजछया

दो पड़ जरामासी बड़ ह और एक उस िल का कया नाम ह आपक करत पर जसा िल छपा हआ ह वसा ही खब

महकता ह दो कोस दर तक गध जाती ह उस िल को खमीरा तबाक म डाल कर पीत भी ह लोग

और उस अमराई की आड़ स कई मकान जदखाई पड़त ह वहा कोई गाव ह या मजदर

जहरामन न बीड़ी सलगान क पहल पछा बीड़ी पीए आपको गध तो नही लगगी वही ह नामलगर डयोढ़ी जजस

राजा क मल स हम लोग आ रह ह उसी का जदयाद-गोजतया ह जा र जमाना

जहरामन न जा र जमाना कह कर बात को चाशनी म डाल जदया हीराबाई न रपपर क परद को जतरछ खोस जदया

हीराबाई की दतपजि

कौन जमाना ठडडी पर हाथ रख कर सागरह बोली

नामलगर डयोढ़ी का जमाना कया था और कया-स-कया हो गया

जहरामन गप रसान का भद जानता ह हीराबाई बोली तमन दखा था वह जमाना

दखा नही सना ह राज कस गया बड़ी हिवाली कहानी ह सनत ह घर म दवता न जनदम ल जलया कजहए भला

दवता आजखर दवता ह ह या नही इदरासन छोड़ कर जमरतभवन म जनदम ल ल तो उसका तज कस समहाल सकता ह

कोई सरजमखी िल की तरह माथ क पास तज जखला रहता लजकन नजर का िर जकसी न नही पहचाना एक बार

उपलन म लार साहब मय लारनी क हवागाड़ी स आए थ लार न भी नही पहचाना आजखर लरनी न सरजमखी

तज दखत ही बोल उठी - ए मन राजा साहब सनो यह आदमी का बचचा नही ह दवता ह

जहरामन न लारनी की बोली की नकल उतारत समय खब डम-िर-लर जकया हीराबाई जदल खोल कर हसी हसत

समय उसकी सारी दह दलकती ह

हीराबाई न अपनी ओढ़नी ठीक कर ली तब जहरामन को लगा जक लगा जक

तब उसक बाद कया हआ मीता

इसस कथा सनन का बड़ा सौक ह आपको लजकन काला आदमी राजा कया महाराजा भी हो जाए रहगा काला

आदमी ही साहब क जस अजककल कहा स पाएगा हस कर बात उड़ा दी सभी न तब रानी को बार-बार सपना दन

लगा दवता सवा नही कर सकत तो जान दो नही रहग तमहार यहा इसक बाद दवता का खल शर हआ सबस

पहल दोनो दतार हाथी मर जिर घोड़ा जिर परपराग

परपराग कया ह

जहरामन का मन पल-पल म बदल रहा ह मन म सतरगा छाता धीर-धीर जखल रहा ह उसको लगता ह उसकी गाड़ी

पर दवकल की औरत सवार ह दवता आजखर दवता ह

परपराग धन-दौलत माल-मवसी सब साि दवता इदरासन चला गया

हीराबाई न ओझल होत हए मजदर क क गर की ओर दख कर लबी सास ली

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लजकन दवता न जात-जात कहा इस राज म कभी एक छोड़ कर दो बरा नही होगा धन हम अपन साथ ल जा रह ह

गन छोड़ जात ह दवता क साथ सभी दव-दवी चल गए जसिट सरोसती मया रह गई उसी का मजदर ह

दसी घोड़ पर पार क बोझ लाद हए बजनयो को आत दख कर जहरामन न रपपर क परद को जगरा जदया बलो को

ललकार कर जबदजसया नाच का बदनागीत गान लगा -

ज मया सरोसती अरजी करत बानी

हमरा पर होख सहाई ह मया हमरा पर होख सहाई

घोड़लदद बजनयो स जहरामन न हलस कर पछा कया भाव परआ खरीदत ह महाजन

लगड़ घोड़वाल बजनए न बरगमनी जवाब जदया - नीच सताइस-अठाइस ऊपर तीस जसा माल वसा भाव

जवान बजनय न पछा मल का कया हालचाल ह भाई कौन नौरकी कपनी का खल हो रहा ह रौता कपनी या

मथरामोहन

मल का हाल मलावाला जान जहरामन न जिर छतापर-पचीरा का नाम जलया

सरज दो बास ऊपर आ गया था जहरामन अपन बलो स बात करन लगा - एक कोस जमीन जरा दम बाध कर चलो

पयास की बला हो गई न याद ह उस बार तगजछया क पास सरकस कपनी क जोकर और बदर नचानवाला साहब म

झगड़ा हो गया था जोकरवा ठीक बदर की तरह दात जकरजकरा कर जकजकरयान लगा था न जान जकस-जकस दस-

मलक क आदमी आत ह

जहरामन न जिर परद क छद स दखा हीराबई एक कागज क रकड़ पर आख गड़ा कर बठी ह जहरामन का मन आज

हक सर म बधा ह उसको तरह-तरह क गीतो की याद आती ह बीस-पचचीस साल पहल जबदजसया बलवाही

छोकरा-नाचनवाल एक-स-एक गजल खमरा गात थ अब तो भोपा म भोप-भोप करक कौन गीत गात ह लोग जा र

जमाना छोकरा-नाच क गीत की याद आई जहरामन को -

सजनवा बरी हो ग य हमारो सजनवा

अर जचजठया हो त सब कोई बाच जचजठया हो तो

हाय करमवा होय करमवा

गाड़ी की बली पर उगजलयो स ताल द कर गीत को कार जदया जहरामन न छोकरा-नाच क मनवा नरवा का मह

हीराबाई-जसा ही था कहा चला गया वह जमाना हर महीन गाव म नाचनवाल आत थ जहरामन न छोकरा-नाच

क चलत अपनी भाभी की न जान जकतनी बोली-ठोली सनी थी भाई न घर स जनकल जान को कहा था

आज जहरामन पर मा सरोसती सहाय ह लगता ह हीराबाई बोली वाह जकतना बजढ़या गात हो तम

जहरामन का मह लाल हो गया वह जसर नीचा कर क हसन लगा

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आज तगजछया पर रहनवाल महावीर सवामी भी सहाय ह जहरामन पर तगजछया क नीच एक भी गाड़ी नही हमशा

गाड़ी और गाड़ीवानो की भीड़ लगी रहती ह यहा जसिट एक साइजकलवाला बठ कर ससता रहा ह महावीर सवामी को

समर कर जहरामन न गाड़ी रोकी हीराबाई परदा हरान लगी जहरामन न पहली बार आखो स बात की हीराबाई स -

साइजकलवाला इधर ही रकरकी लगा कर दख रहा ह

बलो को खोलन क पहल बास की जरकरी लगा कर गाड़ी को जरका जदया जिर साइजकलवाल की ओर बार-बार घरत

हए पछा कहा जाना ह मला कहा स आना हो रहा ह जबसनपर स बस इतनी ही दर म थसथसा कर थक गए -

जा र जवानी

साइजकलवाला दबला-पतला नौजवान जमनजमना कर कछ बोला और बीड़ी सलगा कर उठ खड़ा हआ जहरामन

दजनया-भर की जनगाह स बचा कर रखना चाहता ह हीराबाई को उसन चारो ओर नजर दौड़ा कर दख जलया - कही

कोई गाड़ी या घोड़ा नही

कजरी नदी की दबली-पतली धारा तगजछया क पास आ कर परब की ओर मड़ गई ह हीराबाई पानी म बठी हई भसो

और उनकी पीठ पर बठ हए बगलो को दखती रही

जहरामन बोला जाइए घार पर मह-हाथ धो आइए

हीराबाई गाड़ी स नीच उतरी जहरामन का कलजा धड़क उठा नही नही पाव सीध ह रढ़ नही लजकन तलवा

इतना लाल कयो ह हीराबाई घार की ओर चली गई गाव की बह -बरी की तरह जसर नीचा कर क धीर-धीर कौन

कहगा जक कपनी की औरत ह औरत नही लड़की शायद कमारी ही ह

जहरामन जरकरी पर जरकी गाड़ी पर बठ गया उसन रपपर म झाक कर दखा एक बार इधर-उधर दख कर हीराबाई क

तजकए पर हाथ रख जदया जिर तजकए पर कहनी डाल कर झक गया झकता गया खशब उसकी दह म समा गई

तजकए क जगलाि पर कढ़ िलो को उगजलयो स छ कर उसन सघा हाय र हाय इतनी सगध जहरामन को लगा एक

साथ पाच जचलम गाजा ि क कर वह उठा ह हीराबाई क छोर आईन म उसन अपना मह दखा आख उसकी इतनी

लाल कयो ह

हीराबाई लौर कर आई तो उसन हस कर कहा अब आप गाड़ी का पहरा दीजजए म आता ह तरत

जहरामन न अपना सिरी झोली स सहजी हई गजी जनकाली गमछा झाड़ कर कध पर जलया और हाथ म बालरी

लरका कर चला उसक बलो न बारी-बारी स हक-हक करक कछ कहा जहरामन न जात-जात उलर कर कहा

हाहा पयास सभी को लगी ह लौर कर आता ह तो घास दगा बदमासी मत करो

बलो न कान जहलाए

नहा-धो कर कब लौरा जहरामन हीराबाई को नही मालम कजरी की धारा को दखत-दखत उसकी आखो म रात की

उचरी हई नीद लौर आई थी जहरामन पास क गाव स जलपान क जलए दही-चड़ा-चीनी ल आया ह

उजठए नीद तोजड़ए दो मटठी जलपान कर लीजजए

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हीराबाई आख खोल कर अचरज म पड़ गई एक हाथ म जमटटी क नए बरतन म दही कल क पतत दसर हाथ म

बालरी-भर पानी आखो म आतमीयतापणट अनरोध

इतनी चीज कहा स ल आए

इस गाव का दही नामी ह चाह तो िारजबसगज जा कर ही पाइएगा

जहरामन की दह की गदगदी जमर गई हीराबाई न कहा तम भी पततल जबछाओ कयो तम नही खाओग तो समर

कर रख लो अपनी झोली म म भी नही खाऊ गी

इसस जहरामन लजा कर बोला अचछी बात आप खा लीजजए पहल

पहल-पीछ कया तम भी बठो

जहरामन का जी जड़ा गया हीराबाई न अपन हाथ स उसका पततल जबछा जदया पानी छीर जदया चड़ा जनकाल कर

जदया इसस धनदन ह धनदन ह जहरामन न दखा भगवती मया भोग लगा रही ह लाल होठो पर गोरस का परस

पहाड़ी तोत को दध-भात खात दखा ह

जदन ढल गया

रपपर म सोई हीराबाई और जमीन पर दरी जबछा कर सोए जहरामन की नीद एक ही साथ खली मल की ओर

जानवाली गाजड़या तगजछया क पास रकी ह बचच कचर-पचर कर रह ह

जहरामन हड़बड़ा कर उठा रपपर क अदर झाक कर इशार स कहा - जदन ढल गया गाड़ी म बलो को जोतत समय

उसन गाड़ीवानो क सवालो का कोई जवाब नही जदया गाड़ी हाकत हए बोला जसरपर बाजार क इसजपताल की

डागडरनी ह रोगी दखन जा रही ह पास ही कड़मागाम

हीराबाई छततापर-पचीरा का नाम भल गई गाड़ी जब कछ दर आग बढ़ आई तो उसन हस कर पछा पततापर-छपीरा

हसत-हसत पर म बल पड़ जाए जहरामन क - पततापर-छपीरा हा-हा व लोग छततापर-पचीरा क ही गाड़ीवान थ उनस

कस कहता ही-ही-ही

हीराबाई मसकराती हई गाव की ओर दखन लगी

सड़क तगजछया गाव क बीच स जनकलती ह गाव क बचचो न परदवाली गाड़ी दखी और ताजलया बजा-बजा कर ररी

हई पजिया दहरान लग -

लाली-लाली डोजलया म

लाली र दलजहजनया

पान खाए

जहरामन हसा दलजहजनया लाली-लाली डोजलया दलजहजनया पान खाती ह दलहा की पगड़ी म मह पोछती ह

ओ दलजहजनया तगजछया गाव क बचचो को याद रखना लौरती बर गड़ का लडड लती आइयो लाख बररस तरा

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हलहा जीए जकतन जदनो का हौसला परा हआ ह जहरामन का ऐस जकतन सपन दख ह उसन वह अपनी दलजहन

को ल कर लौर रहा ह हर गाव क बचच ताजलया बजा कर गा रह ह हर आगन स झाक कर दख रही ह औरत मदट

लोग पछत ह कहा की गाड़ी ह कहा जाएगी उसकी दलजहन डोली का परदा थोड़ा सरका कर दखती ह और भी

जकतन सपन

गाव स बाहर जनकल कर उसन कनजखयो स रपपर क अदर दखा हीराबाई कछ सोच रही ह जहरामन भी जकसी सोच म

पड़ गया थोड़ी दर क बाद वह गनगनान लगा-

सजन र झठ मजत बोलो खदा क पास जाना ह

नही हाथी नही घोड़ा नही गाड़ी -

वहा पदल ही जाना ह सजन र

हीराबाई न पछा कयो मीता तमहारी अपनी बोली म कोई गीत नही कया

जहरामन अब बखरक हीराबाई की आखो म आख डाल कर बात करता ह कपनी की औरत भी ऐसी होती ह

सरकस कपनी की मालजकन मम थी लजकन हीराबाई गाव की बोली म गीत सनना चाहती ह वह खल कर

मसकराया - गाव की बोली आप समजझएगा

ह -ऊ -ऊ हीराबाई न गदटन जहलाई कान क झमक जहल गए

जहरामन कछ दर तक बलो को हाकता रहा चपचाप जिर बोला गीत जरर ही सजनएगा नही माजनएगा इसस इतना

सौक गाव का गीत सनन का ह आपको तब लीक छोड़ानी होगी चाल रासत म कस गीत गा सकता ह कोई

जहरामन न बाए बल की रससी खीच कर दाजहन को लीक स बाहर जकया और बोला हररपर हो कर नही जाएग तब

चाल लीक को कारत दख कर जहरामन की गाड़ी क पीछवाल गाड़ीवान न जचला कर पछा काह हो गाड़ीवान लीक

छोड़ कर बलीक कहा उधर

जहरामन न हवा म दआली घमात हए जवाब जदया - कहा ह बलीकी वह सड़क नननपर तो नही जाएगी जिर अपन-

आप बड़बड़ाया इस मलक क लोगो की यही आदत बरी ह राह चलत एक सौ जजरह करग अर भाई तमको जाना

ह जाओ दहाती भचच सब

नननपर की सड़क पर गाड़ी ला कर जहरामन न बलो की रससी ढीली कर दी बलो न दलकी चाल छोड़ कर कदमचाल

पकड़ी

हीराबाई न दखा सचमच नननपर की सड़क बड़ी सनी ह जहरामन उसकी आखो की बोली समझता ह - घबरान की

बात नही यह सड़क भी िारजबसगज जाएगी राह-घार क लोग बहत अचछ ह एक घड़ी रात तक हम लोग पहच

जाएग

हीराबाई को िारजबसगज पहचन की जदी नही जहरामन पर उसको इतना भरोसा हो गया जक डर-भय की कोई बात

नही उठती ह मन म जहरामन न पहल जी-भर मसकरा जलया कौन गीत गाए वह हीराबाई को गीत और कथा दोनो का

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शौक ह इसस महआ घरवाररन वह बोला अचछा जब आपको इतना सौक ह तो सजनए महआ घरवाररन का

गीत इसम गीत भी ह कथा भी ह

जकतन जदनो क बाद भगवती न यह हौसला भी परा कर जदया ज भगवती आज जहरामन अपन मन को खलास कर

लगा वह हीराबाई की थमी हई मसकराहर को दखता रहा

सजनए आज भी परमार नदी म महआ घरवाररन क कई परान घार ह इसी मलक की थी महआ थी तो घरवाररन

लजकन सौ सतवती म एक थी उसका बाप दार-ताड़ी पी कर जदन-रात बहोश पड़ा रहता उसकी सौतली मा साचछात

राकसनी बहत बड़ी नजर-चालक रात म गाजा-दार-अिीम चरा कर बचनवाल स ल कर तरह-तरह क लोगो स

उसकी जान-पहचान थी सबस घटटा-भर हल-मल महआ कमारी थी लजकन काम करात-करात उसकी हडडी

जनकाल दी थी राकसनी न जवान हो गई कही शादी-बयाह की बात भी नही चलाई एक रात की बात सजनए

जहरामन न धीर-धीर गनगना कर गला साि जकया -

ह अ-अ-अ- सावना-भादवा क - र- उमड़ल नजदया -ग-म-म-यो-ओ-ओ

मयो ग रजन भयावजन-ह-ए-ए-ए

तड़का-तड़क-धड़क करज-आ-आ मोरा

जक हमह ज बार-नानदही र-ए-ए

ओ मा सावन-भादो की उमड़ी हई नदी भयावनी रात जबजली कड़कती ह म बारी-कवारी ननदही बचची मरा कलजा

धड़कता ह अकली कस जाऊ घार पर सो भी परदशी राही-बरोही क पर म तल लगान क जलए सत-मा न अपनी

बजजर-जकवाड़ी बद कर ली आसमान म मघ हड़बड़ा उठ और हरहरा कर बरसा होन लगी महआ रोन लगी अपनी

मा को याद करक आज उसकी मा रहती तो ऐस दरजदन म कलज स सरा कर रखती अपनी महआ बरी को ग मइया

इसी जदन क जलए यही जदखान क जलए तमन कोख म रखा था महआ अपनी मा पर गससाई - कयो वह अकली मर

गई जी-भर कर कोसती हई बोली

जहरामन न लकषय जकया हीराबाई तजकए पर कहनी गड़ा कर गीत म मगन एकरक उसकी ओर दख रही ह खोई हई

सरत कसी भोली लगती ह

जहरामन न गल म क पक पी पदा की -

ह -ऊ -ऊ -र डाइजनया मयो मोरी-ई-ई

नोनवा चराई काह नाजह मारजल सौरी-घर-अ-अ

एजह जदनवा खाजतर जछनरो जधया

तह पोसजल जक नन-दध उगरन

जहरामन न दम लत हए पछा भाखा भी समझती ह कछ या खाली गीत ही सनती ह

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हीरा बोली समझती ह उगरन मान उबरन - जो दह म लगात ह

जहरामन न जवजसमत हो कर कहा इसस सो रोन-धोन स कया होए सौदागर न परा दाम चका जदया था महआ का

बाल पकड़ कर घसीरता हआ नाव पर चढ़ा और माझी को हकम जदया नाव खोलो पाल बाधो पालवाली नाव

परवाली जचजड़या की तरह उड़ चली रात-भर महआ रोती-छरपराती रही सौदागर क नौकरो न बहत डराया-धमकाया

- चप रहो नही तो उठा कर पानी म ि क दग बस महआ को बात सझ गई भोर का तारा मघ की आड़ स जरा बाहर

आया जिर जछप गया इधर महआ भी छपाक स कद पड़ी पानी म सौदागर का एक नौकर महआ को दखत ही

मोजहत हो गया था महआ की पीठ पर वह भी कदा उलरी धारा म तरना खल नही सो भी भरी भादो की नदी म

महआ असल घरवाररन की बरी थी मछली भी भला थकती ह पानी म सिरी मछली-जसी िरिराती पानी चीरती

भागी चली जा रही ह और उसक पीछ सौदागर का नौकर पकार-पकार कर कहता ह - महआ जरा थमो तमको

पकड़न नही आ रहा तमहारा साथी ह जजदगी-भर साथ रहग हम लोग लजकन

जहरामन का बहत जपरय गीत ह यह महआ घरवाररन गात समय उसक सामन सावन-भादो की नदी उमड़न लगती ह

अमावसया की रात और घन बादलो म रह-रह कर जबजली चमक उठती ह उसी चमक म लहरो स लड़ती हई बारी-

कमारी महआ की झलक उस जमल जाती ह सिरी मछली की चाल और तज हो जाती ह उसको लगता ह वह खद

सौदागर का नौकर ह महआ कोई बात नही सनती परतीत करती नही उलर कर दखती भी नही और वह थक गया

ह तरत-तरत

इस बार लगता ह महआ न अपन को पकड़ा जदया खद ही पकड़ म आ गई ह उसन महआ को छ जलया ह पा जलया

ह उसकी थकन दर हो गई ह परह-बीस साल तक उमड़ी हई नदी की उलरी धारा म तरत हए उसक मन को जकनारा

जमल गया ह आनद क आस कोई भी रोक नही मानत

उसन हीराबाई स अपनी गीली आख चरान की कोजशश की जकत हीरा तो उसक मन म बठी न जान कब स सब कछ

दख रही थी जहरामन न अपनी कापती हई बोली को काब म ला कर बलो को जझड़की दी - इस गीत म न जान कया ह

जक सनत ही दोनो थसथसा जात ह लगता ह सौ मन बोझ लाद जदया जकसी न

हीराबाई लबी सास लती ह जहरामन क अग-अग म उमग समा जाती ह

तम तो उसताद हो मीता

इसस

आजसन-काजतक का सरज दो बास जदन रहत ही कमहला जाता ह सरज डबन स पहल ही नननपर पहचना ह जहरामन

अपन बलो को समझा रहा ह - कदम खोल कर और कलजा बाध कर चलो ए जछ जछ बढ़क भयन ल-ल-ल-

ए ह -य

नननपर तक वह अपन बलो को ललकारता रहा हर ललकार क पहल वह अपन बलो को बीती हई बातो की याद

जदलाता - याद नही चौधरी की बरी की बरात म जकतनी गाजड़या थी सबको कस मात जकया था हा वह कदम

जनकालो ल-ल-ल नननपर स िारजबसगज तीन कोस दो घर और

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नननपर क हार पर आजकल चाय भी जबकन लगी ह जहरामन अपन लोर म चाय भर कर ल आया कपनी की

औरत जानता ह वह सारा जदन घड़ी घड़ी भर म चाय पीती रहती ह चाय ह या जान

हीरा हसत-हसत लोर-पोर हो रही ह - अर तमस जकसन कह जदया जक कवार आदमी को चाय नही पीनी चाजहए

जहरामन लजा गया कया बोल वह लाज की बात लजकन वह भोग चका ह एक बार सरकस कपनी की मम क

हाथ की चाय पी कर उसन दख जलया ह बडी गमट तासीर

पीजजए गर जी हीरा हसी

इसस

नननपर हार पर ही दीया-बाती जल चकी थी जहरामन न अपना सिरी लालरन जला कर जपछवा म लरका जदया

आजकल शहर स पाच कोस दर क गाववाल भी अपन को शहर समझन लग ह जबना रोशनी की गाड़ी को पकड़

कर चालान कर दत ह बारह बखड़ा

आप मझ गर जी मत कजहए

तम मर उसताद हो हमार शासतर म जलखा हआ ह एक अचछर जसखानवाला भी गर और एक राग जसखानवाला भी

उसताद

इसस सासतर-परान भी जानती ह मन कया जसखाया म कया

हीरा हस कर गनगनान लगी - ह-अ-अ-अ- सावना-भादवा क-र

जहरामन अचरज क मार गगा हो गया इसस इतना तज जहन ह -ब-ह महआ घरवाररन

गाड़ी सीताधार की एक सखी धारा की उतराई पर गड़गड़ा कर नीच की ओर उतरी हीराबाई न जहरामन का कधा धर

जलया एक हाथ स बहत दर तक जहरामन क कध पर उसकी उगजलया पड़ी रही जहरामन न नजर जिरा कर कध पर

क जरत करन की कोजशश की कई बार गाड़ी चढ़ाई पर पहची तो हीरा की ढीली उगजलया जिर तन गई

सामन िारजबसगज शहर की रोशनी जझलजमला रही ह शहर स कछ दर हर कर मल की रोशनी रपपर म लरक

लालरन की रोशनी म छाया नाचती ह आसपास डबडबाई आखो स हर रोशनी सरजमखी िल की तरह जदखाई

पड़ती ह

िारजबसगज तो जहरामन का घर-दआर ह

न जान जकतनी बार वह िारजबसगज आया ह मल की लदनी लादी ह जकसी औरत क साथ हा एक बार उसकी

भाभी जजस साल आई थी गौन म इसी तरह जतरपाल स गाड़ी को चारो ओर स घर कर बासा बनाया गया था

जहरामन अपनी गाड़ी को जतरपाल स घर रहा ह गाड़ीवान-पटटी म सबह होत ही रौता नौरकी कपनी क मनजर स बात

करक भरती हो जाएगी हीराबाई परसो मला खल रहा ह इस बार मल म पालचटटी खब जमी ह बस एक रात

आज रात-भर जहरामन की गाड़ी म रहगी वह जहरामन की गाड़ी म नही घर म

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कहा की गाड़ी ह कौन जहरामन जकस मल स जकस चीज की लदनी ह

गाव-समाज क गाड़ीवान एक-दसर को खोज कर आसपास गाड़ी लगा कर बासा डालत ह अपन गाव क

लालमोहर धनदनीराम और पलरदास वगरह गाड़ीवानो क दल को दख कर जहरामन अचकचा गया उधर पलरदास

रपपर म झाक कर भड़का मानो बाघ पर नजर पड़ गई जहरामन न इशार स सभी को चप जकया जिर गाड़ी की ओर

कनखी मार कर िसिसाया - चप कपनी की औरत ह नौरकी कपनी की

कपनी की -ई-ई-ई

एक नही अब चार जहरामन चारो न अचरज स एक-दसर को दखा कपनी नाम म जकतना असर ह जहरामन न लकषय

जकया तीनो एक साथ सरक-दम हो गए लालमोहर न जरा दर हर कर बजतयान की इचछा परकर की इशार स ही

जहरामन न रपपर की ओर मह करक कहा होजरल तो नही खला होगा कोई हलवाई क यहा स पककी ल आव

जहरामन जरा इधर सनो म कछ नही खाऊ गी अभी लो तम खा आओ

कया ह पसा इसस पसा द कर जहरामन न कभी िारजबसगज म कचची-पककी नही खाई उसक गाव क इतन

गाड़ीवान ह जकस जदन क जलए वह छ नही सकता पसा उसन हीराबाई स कहा बकार मला-बाजार म हजजत मत

कीजजए पसा रजखए मौका पा कर लालमोहर भी रपपर क करीब आ गया उसन सलाम करत हए कहा चार आदमी

क भात म दो आदमी खसी स खा सकत ह बासा पर भात चढा हआ ह ह-ह-ह हम लोग एकजह गाव क ह गौवा-

जगराजमन क रहत होजरल और हलवाई क यहा खाएगा जहरामन

जहरामन न लालमोहर का हाथ रीप जदया - बसी भचर-भचर मत बको

गाड़ी स चार रससी दर जात-जात धनदनीराम न अपन कलबलात हए जदल की बात खोल दी - इसस तम भी खब हो

जहरामन उस साल कपनी का बाघ इस बार कपनी की जनानी

जहरामन न दबी आवाज म कहा भाई र यह हम लोगो क मलक की जनाना नही जक लरपर बोली सन कर भी चप रह

जाए एक तो पजचछम की औरत जतस पर कपनी की

धनदनीराम न अपनी शका परकर की - लजकन कपनी म तो सनत ह पतररया रहती ह

धत सभी न एक साथ उसको दरदरा जदया कसा आदमी ह पतररया रहगी कपनी म भला दखो इसकी बजदध सना

ह दखा तो नही ह कभी

धनदनीराम न अपनी गलती मान ली पलरदास को बात सझी - जहरामन भाई जनाना जात अकली रहगी गाड़ी पर

कछ भी हो जनाना आजखर जनाना ही ह कोई जररत ही पड़ जाए

यह बात सभी को अचछी लगी जहरामन न कहा बात ठीक ह पलर तम लौर जाओ गाड़ी क पास ही रहना और

दखो गपशप जरा होजशयारी स करना हा

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जहरामन की दह स अतर-गलाब की खशब जनकलती ह जहरामन करमसाड़ ह उस बार महीनो तक उसकी दह स

बघाइन गध नही गई लालमोहर न जहरामन की गमछी सघ ली - ए-ह

जहरामन चलत-चलत रक गया - कया कर लालमोहर भाई जरा कहो तो बड़ी जजदद करती ह कहती ह नौरकी

दखना ही होगा

िोकर म ही

और गाव नही पहचगी यह बात

जहरामन बोला नही जी एक रात नौरकी दख कर जजदगी-भर बोली-ठोली कौन सन दसी मगी जवलायती चाल

धनदनीराम न पछा िोकर म दखन पर भी तमहारी भौजाई बात सनाएगी

लालमोहर क बासा क बगल म एक लकड़ी की दकान लाद कर आए हए गाड़ीवानो का बासा ह बासा क मीर-

गाड़ीवान जमयाजान बढ़ न सिरी गड़गड़ी पीत हए पछा कयो भाई मीनाबाजार की लदनी लाद कर कौन आया ह

मीनाबाजार मीनाबाजार तो पतररया-पटटी को कहत ह कया बोलता ह यह बढ़ा जमया लालमोहर न जहरामन क

कान म िसिसा कर कहा तमहारी दह मह-मह-महकती ह सच

लहसनवा लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान ह उमर म सबस छोरा ह पहली बार आया ह तो कया बाब-बबआइनो क

यहा बचपन स नौकरी कर चका ह वह रह-रह कर वातावरण म कछ सघता ह नाक जसकोड़ कर जहरामन न दखा

लहसनवा का चहरा तमतम गया ह कौन आ रहा ह धड़धड़ाता हआ - कौन पलरदास कया ह

पलरदास आ कर खड़ा हो गया चपचाप उसका मह भी तमतमाया हआ था जहरामन न पछा कया हआ बोलत कयो

नही

कया जवाब द पलरदास जहरामन न उसको चतावनी द दी थी गपशप होजशयारी स करना वह चपचाप गाड़ी की

आसनी पर जा कर बठ गया जहरामन की जगह पर हीराबाई न पछा तम भी जहरामन क साथ हो पलरदास न गरदन

जहला कर हामी भरी हीराबाई जिर लर गई चहरा-मोहरा और बोली-बानी दख-सन कर पलरदास का कलजा

कापन लगा न जान कयो हा रामलीला म जसया सकमारी इसी तरह थकी लरी हई थी ज जसयावर रामचर की ज

पलरदास क मन म ज-जकार होन लगा वह दास-वसनव ह कीतटजनया ह थकी हई सीता महारानी क चरण रीपन

की इचछा परकर की उसन हाथ की उगजलयो क इशार स मानो हारमोजनयम की परररयो पर नचा रहा हो हीराबाई

तमक कर बठ गई - अर पागल ह कया जाओ भागो

पलरदास को लगा गससाई हई कपनी की औरत की आखो स जचनगारी जनकल रही ह - छरक-छरक वह भागा

पलरदास कया जवाब द वह मला स भी भागन का उपाय सोच रहा ह बोला कछ नही हमको वयापारी जमल गया

अभी ही रीसन जा कर माल लादना ह भात म तो अभी दर ह म लौर आता ह तब तक

खात समय धनदनीराम और लहसनवा न पलरदास की रोकरी-भर जनदा की छोरा आदमी ह कमीना ह पस-पस का

जहसाब जोड़ता ह खान-पीन क बाद लालमोहर क दल न अपना बासा तोड़ जदया धनदनी और लहसनवा गाड़ी जोत

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कर जहरामन क बासा पर चल गाड़ी की लीक धर कर जहरामन न चलत-चलत रक कर लालमोहर स कहा जरा मर

इस कध को सघो तो सघ कर दखो न

लालमोहर न कधा सघ कर आख मद ली मह स असिर शबद जनकला - ए - ह

जहरामन न कहा जरा-सा हाथ रखन पर इतनी खशब समझ लालमोहर न जहरामन का हाथ पकड़ जलया - कध पर

हाथ रखा था सच सनो जहरामन नौरकी दखन का ऐसा मौका जिर कभी हाथ नही लगगा हा

तम भी दखोग लालमोहर की बततीसी चौराह की रोशनी म जझलजमला उठी

बासा पर पहच कर जहरामन न दखा रपपर क पास खड़ा बजतया रहा ह कोई हीराबाई स धनदनी और लहसनवा न एक

ही साथ कहा कहा रह गए पीछ बहत दर स खोज रही ह कपनी

जहरामन न रपपर क पास जा कर दखा - अर यह तो वही बकसा ढोनवाला नौकर जो चपानगर मल म हीराबाई को

गाड़ी पर जबठा कर अधर म गायब हो गया था

आ गए जहरामन अचछी बात इधर आओ यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दजचछना पचचीस-पचचीस

पचास

जहरामन को लगा जकसी न आसमान स धकल कर धरती पर जगरा जदया जकसी न कयो इस बकसा ढोनवाल आदमी न

कहा स आ गया उसकी जीभ पर आई हई बात जीभ पर ही रह गई इसस दजचछना वह चपचाप खड़ा रहा

हीराबाई बोली लो पकड़ो और सनो कल सबह रौता कपनी म आ कर मझस भर करना पास बनवा दगी बोलत

कयो नही

लालमोहर न कहा इलाम-बकसीस द रही ह मालजकन ल लो जहरामन जहरामन न कर कर लालमोहर की ओर दखा

बोलन का जरा भी ढग नही इस लालमोहरा को

धनदनीराम की सवगतोजि सभी न सनी हीराबाई न भी - गाड़ी-बल छोड़ कर नौरकी कस दख सकता ह कोई गाड़ीवान

मल म

जहरामन न रपया लत हए कहा कया बोलग उसन हसन की चिा की कपनी की औरत कपनी म जा रही ह जहरामन

का कया बकसा ढोनवाला रासता जदखाता हआ आग बढ़ा - इधर स हीराबाई जात-जात रक गई जहरामन क बलो

को सबोजधत करक बोली अचछा म चली भयन

बलो न भया शबद पर कान जहलाए

भा-इ-यो आज रात जद रौता सगीत कपनी क सरज पर गलबदन दजखए गलबदन आपको यह जान कर खशी होगी

जक मथरामोहन कपनी की मशह र एकटस जमस हीरादवी जजसकी एक-एक अदा पर हजार जान जिदा ह इस बार हमारी

कपनी म आ गई ह याद रजखए आज की रात जमस हीरादवी गलबदन

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नौरकीवालो क इस एलान स मल की हर पटटी म सरगमी िल रही ह हीराबाई जमस हीरादवी लला गलबदन

जिजलम एकटस को मात करती ह

तरी बाकी अदा पर म खद ह जिदा

तरी चाहत को जदलबर बया कया कर

यही खवाजहश ह जक इ-इ-इ त मझको दखा कर

और जदलोजान म तमको दखा कर

जकरट-रट-रट-रट कडड़ड़ड़डड़ड़रट-ई-घन-घन-धड़ाम

हर आदमी का जदल नगाड़ा हो गया ह

लालमोहर दौड़ता-हािता बासा पर आया - ऐ ऐ जहरामन यहा कया बठ हो चल कर दखो ज-जकार हो रहा ह मय

बाजा-गाजा छापी-िाहरम क साथ हीराबाई की ज-ज कर रहा ह

जहरामन हड़बड़ा कर उठा लहसनवा न कहा धनदनी काका तम बासा पर रहो म भी दख आऊ

धनदनी की बात कौन सनता ह तीनो जन नौरकी कपनी की एलाजनया पारी क पीछ-पीछ चलन लग हर नककड़ पर

रक कर बाजा बद कर क एलान जकया जाना ह एलान क हर शबद पर जहरामन पलक उठता ह हीराबाई का नाम

नाम क साथ अदा-जिदा वगरह सन कर उसन लालमोहर की पीठ थपथपा दी - धनदन ह धनदन ह ह या नही

लालमोहर न कहा अब बोलो अब भी नौरकी नही दखोग सबह स ही धनदनीराम और लालमोहर समझा रह थ

समझा कर हार चक थ - कपनी म जा कर भर कर आओ जात-जात परजसस कर गई ह लजकन जहरामन की बस एक

बात - धतत कौन भर करन जाए कपनी की औरत कपनी म गई अब उसस कया लना-दना चीनदहगी भी नही

वह मन-ही-मन रठा हआ था एलान सनन क बाद उसन लालमोहर स कहा जरर दखना चाजहए कयो लालमोहर

दोनो आपस म सलाह करक रौता कपनी की ओर चल खम क पास पहच कर जहरामन न लालमोहर को इशारा

जकया पछताछ करन का भार लालमोहर क जसर लालमोहर कचराही बोलना जानता ह लालमोहर न एक काल

कोरवाल स कहा बाब साहब जरा सजनए तो

काल कोरवाल न नाक-भौ चढ़ा कर कहा - कया ह इधर कयो

लालमोहर की कचराही बोली गड़बड़ा गई - तवर दख कर बोला गलगल नही-नही बल-बल नही

जहरामन न झर-स समहाल जदया - हीरादवी जकधर रहती ह बता सकत ह उस आदमी की आख हठात लाल हो गई

सामन खड़ नपाली जसपाही को पकार कर कहा इन लोगो को कयो आन जदया इधर

जहरामन वही िनजगलासी आवाज जकधर स आई खम क परद को हरा कर हीराबाई न बलाया - यहा आ जाओ

अदर दखो बहादर इसको पहचान लो यह मरा जहरामन ह समझ

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नपाली दरबान जहरामन की ओर दख कर जरा मसकराया और चला गया काल कोरवाल स जा कर कहा हीराबाई

का आदमी ह नही रोकन बोला

लालमोहर पान ल आया नपाली दरबान क जलए - खाया जाए

इसस एक नही पाच पास चारो अठजनया बोली जक जब तक मल म हो रोज रात म आ कर दखना सबका खयाल

रखती ह बोली जक तमहार और साथी ह सभी क जलए पास ल जाओ कपनी की औरतो की बात जनराली होती ह ह

या नही

लालमोहर न लाल कागज क रकड़ो को छ कर दखा - पा-स वाह र जहरामन भाई लजकन पाच पास ल कर कया

होगा पलरदास तो जिर पलर कर आया ही नही ह अभी तक

जहरामन न कहा जान दो अभाग को तकदीर म जलखा नही हा पहल गरकसम खानी होगी सभी को जक गाव-घर

म यह बात एक पछी भी न जान पाए

लालमोहर न उततजजत हो कर कहा कौन साला बोलगा गाव म जा कर पलरा न अगर बदनामी की तो दसरी बार स

जिर साथ नही लाऊ गा

जहरामन न अपनी थली आज हीराबाई क जजमम रख दी ह मल का कया जठकाना जकसम-जकसम क पाजकरकार लोग

हर साल आत ह अपन साथी-सजगयो का भी कया भरोसा हीराबाई मान गई जहरामन क कपड़ की काली थली को

उसन अपन चमड़ क बकस म बद कर जदया बकस क ऊपर भी कपड़ का खोल और अदर भी झलमल रशमी असतर

मन का मान-अजभमान दर हो गया

लालमोहर और धनदनीराम न जमल कर जहरामन की बजदध की तारीि की उसक भागय को सराहा बार-बार उसक भाई

और भाभी की जनदा की दबी जबान स जहरामन क जसा हीरा भाई जमला ह इसीजलए कोई दसरा भाई होता तो

लहसनवा का मह लरका हआ ह एलान सनत-सनत न जान कहा चला गया जक घड़ी-भर साझ होन क बाद लौरा ह

लालमोहर न एक माजलकाना जझड़की दी ह गाली क साथ - सोहदा कही का

धनदनीराम न च ह पर जखचड़ी चढ़ात हए कहा पहल यह िसला कर लो जक गाड़ी क पास कौन रहगा

रहगा कौन यह लहसनवा कहा जाएगा

लहसनवा रो पड़ा - ऐ-ए-ए माजलक हाथ जोड़त ह एकको झलक बस एक झलक

जहरामन न उदारतापवटक कहा lsquoअचछा-अचछा एक झलक कयो एक घरा दखना म आ जाऊ गाlsquo

नौरकी शर होन क दो घर पहल ही नगाड़ा बजना शर हो जाता ह और नगाड़ा शर होत ही लोग पजतगो की तरह

ररन लगत ह जरकरघर क पास भीड़ दख कर जहरामन को बड़ी हसी आई ndashlsquoलालमोहर उधर दख कसी

धककमधककी कर रह ह लोगrsquo

जहरामन भायrsquo

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lsquoकौन पलरदास कहा की लदनी लाद आएrsquoलालमोहर न पराए गाव क आदमी की तरह पछा

पलरदास न हाथ मलत हए मािी मागी ndashlsquoकसरबार ह जो सजा दो तम लोग सब मजर ह लजकन सचची बात कह

जक जसया सकमारीlsquo

जहरामन क मन का परइन नगाड़ क ताल पर जवकजसत हो चका ह बोला lsquoदखो पलरा यह मत समझना जक गाव-घर

की जनाना ह दखो तमहार जलए भी पास जदया ह पास ल लो अपना तमासा दखोlsquo

लालमोहर न कहा lsquoलजकन एक सतट पर पास जमलगा बीच-बीच म लहसनवा को भीlsquo

पलरदास को कछ बतान की जररत नही वह लहसनवा स बातचीत कर आया ह अभी

लालमोहर न दसरी शतट सामन रखी ndashlsquoगाव म अगर यह बात मालम हई जकसी तरहrsquo

lsquoराम-रामrsquoदात स जीभ को कारत हए कहा पलरदास न

पलरदास न बताया ndashlsquoअठजनया िारक इधर हrsquoिारक पर खड़ दरबान न हाथ स पास ल कर उनक चहर को बारी-

बारी स दखा बोला lsquoयह तो पास ह कहा स जमलाrsquo

अब लालमोहर की कचराही बोली सन कोई उसक तवर दख कर दरबान घबरा गया ndashlsquoजमलगा कहा स अपनी

कपनी स पछ लीजजए जा कर चार ही नही दजखए एक और हlsquoजब स पाचवा पास जनकाल कर जदखाया लालमोहर

एक रपयावाल िारक पर नपाली दरबान खड़ा था जहरामन न पकार कर कहा lsquoए जसपाही दाज सबह को ही

पहचनवा जदया और अभी भल गएrsquo

नपाली दरबान बोला lsquoहीराबाई का आदमी ह सब जान दो पास ह तो जिर काह को रोकता हrsquo

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अठजनया दजाट

तीनो न lsquoकपड़घरrsquoको अदर स पहली बार दखा सामन करसी-बचवाल दज ह परद पर राम-बन-गमन की तसवीर ह

पलरदास पहचान गया उसन हाथ जोड़ कर नमसकार जकया परद पर अजकत रामजसया सकमारी और लखनलला को

lsquoज हो ज होrsquoपलरदास की आख भर आई

जहरामन न कहा lsquoलालमोहर छापी सभी खड़ ह या चल रह हrsquo

लालमोहर अपन बगल म बठ दशटको स जान-पहचान कर चका ह उसन कहा lsquoखला अभी परदा क भीतर ह अभी

जजमनका द रहा ह लोग जमान क जलएlsquo

पलरदास ढोलक बजाना जानता ह इसजलए नगाड़ क ताल पर गरदन जहलाता ह और जदयासलाई पर ताल कारता ह

बीड़ी आदान-परदान करक जहरामन न भी एकाध जान-पहचान कर ली लालमोहर क पररजचत आदमी न चादर स दह

ढकत हए कहा lsquoनाच शर होन म अभी दर ह तब तक एक नीद ल ल सब दजाट स अचछा अठजनया दजाट सबस

पीछ सबस ऊ ची जगह पर ह जमीन पर गरम पआल ह-ह करसी-बच पर बठ कर इस सरदी क मौसम म तमासा

दखनवाल अभी घच-घच कर उठ ग चाह पीनlsquo

उस आदमी न अपन सगी स कहा lsquoखला शर होन पर जगा दना नही-नही खला शर होन पर नही जहररया जब सरज

पर उतर हमको जगा दनाlsquo

जहरामन क कलज म जरा आच लगी जहररया बड़ा लरपजरया आदमी मालम पड़ता ह उसन लालमोहर को आख

क इशार स कहा lsquoइस आदमी स बजतयान की जररत नहीlsquo

घन-घन-घन-धड़ाम परदा उठ गया ह-ए ह-ए हीराबाई शर म ही उतर गई सरज पर कपड़घर खचमखच भर गया

ह जहरामन का मह अचरज म खल गया लालमोहर को न जान कयो ऐसी हसी आ रही ह हीराबाई क गीत क हर पद

पर वह हसता ह बवजह

गलबदन दरबार लगा कर बठी ह एलान कर रही ह जो आदमी तखतहजारा बना कर ला दगा महमागी चीज इनाम म

दी जाएगी अजी ह कोई ऐसा िनकार तो हो जाए तयार बना कर लाए तखतहजारा-आ जकड़जकड़-जकररट-

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अलबतत नाचती ह कया गला ह मालम ह यह आदमी कहता ह जक हीराबाई पान-बीड़ी जसगरर-जदाट कछ नही

खाती ठीक कहता ह बड़ी नमवाली रडी ह कौन कहता ह जक रडी ह दात म जमससी कहा ह पौडर स दात धो लती

होगी हरजगज नही कौन आदमी ह बात की बबात करता ह कपनी की औरत को पतररया कहता ह तमको बात

कयो लगी कौन ह रडी का भड़वा मारो साल को मारो तरी

हो-हल क बीच जहरामन की आवाज कपड़घर को िाड़ रही ह ndashlsquoआओ एक-एक की गरदन उतार लगlsquo

लालमोहर दलाली स परापर पीरता जा रहा ह सामन क लोगो को पलरदास एक आदमी की छाती पर सवार ह ndash

lsquoसाला जसया सकमारी को गाली दता ह सो भी मसलमान हो करrsquo

धनदनीराम शर स ही चप था मारपीर शर होत ही वह कपड़घर स जनकल कर बाहर भागा

काल कोरवाल नौरकी क मनजर नपाली जसपाही क साथ दौड़ आए दारोगा साहब न हरर स पीर-पार शर की हरर

खा कर लालमोहर जतलजमला उठा कचराही बोली म भािण दन लगा ndashlsquoदारोगा साहब मारत ह माररए कोई हजट

नही लजकन यह पास दख लीजजए एक पास पाजकर म भी ह दख सकत ह हजर जरकर नही पास तब हम लोगो

क सामन कपनी की औरत को कोई बरी बात कर तो कस छोड़ दगrsquo

कपनी क मनजर की समझ म आ गई सारी बात उसन दारोगा को समझाया ndashlsquoहजर म समझ गया यह सारी बदमाशी

मथरामोहन कपनीवालो की ह तमाश म झगड़ा खड़ा करक कपनी को बदनाम नही हजर इन लोगो को छोड़

दीजजए हीराबाई क आदमी ह बचारी की जान खतर म ह हजर स कहा था नrsquo

हीराबाई का नाम सनत ही दारोगा न तीनो को छोड़ जदया लजकन तीनो की दआली छीन ली गई मनजर न तीनो को

एक रपएवाल दरज म करसी पर जबठाया ndashlsquoआप लोग यही बजठए पान जभजवा दता ह lsquoकपड़घर शात हआ और

हीराबाई सरज पर लौर आई

नगाड़ा जिर घनघना उठा

थोड़ी दर बाद तीनो को एक ही साथ धनदनीराम का खयाल हआ ndash अर धनदनीराम कहा गया

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lsquoमाजलक ओ माजलकrsquoलहसनवा कपड़घर स बाहर जचला कर पकार रहा ह lsquoओ लालमोहर मा-जल-कrsquo

लालमोहर न तारसवर म जवाब जदया ndashlsquoइधर स उधर स एकरजकया िारक सlsquoसभी दशटको न लालमोहर की ओर

मड़ कर दखा लहसनवा को नपाली जसपाही लालमोहर क पास ल आया लालमोहर न जब स पास जनकाल कर

जदखा जदया लहसनवा न आत ही पछा lsquoमाजलक कौन आदमी कया बोल रहा था बोजलए तो जरा चहरा जदखला

दीजजए उसकी एक झलकrsquo

लोगो न लहसनवा की चौड़ी और सपार छाती दखी जाड़ क मौसम म भी खाली दह चल-चारी क साथ ह य

लोग

लालमोहर न लहसनवा को शात जकया

तीनो-चारो स मत पछ कोई नौरकी म कया दखा जकससा कस याद रह जहरामन को लगता था हीराबाई शर स ही

उसी की ओर रकरकी लगा कर दख रही ह गा रही ह नाच रही ह लालमोहर को लगता था हीराबाई उसी की ओर

दखती ह वह समझ गई ह जहरामन स भी जयादा पावरवाला आदमी ह लालमोहर पलरदास जकससा समझता ह

जकससा और कया होगा रमन की ही बात वही राम वही सीता वही लखनलाल और वही रावन जसया सकमारी

को राम जी स छीनन क जलए रावन तरह-तरह का रप धर कर आता ह राम और सीता भी रप बदल लत ह यहा भी

तखत-हजारा बनानवाला माली का बरा राम ह गलबदन जमया सकमारी ह माली क लड़क का दोसत लखनलला ह

और सलतान ह रावन धनदनीराम को बखार ह तज लहसनवा को सबस अचछा जोकर का पारट लगा ह जचरया

तोहक लक ना जइव नरहर क बजररया वह उस जोकर स दोसती लगाना चाहता ह नही लगावगा दोसती जोकर

साहब

जहरामन को एक गीत की आधी कड़ी हाथ लगी ह ndashlsquoमार गए गलिामrsquoकौन था यह गलिाम हीराबाई रोती हई गा

रही थी ndashlsquoअजी हा मर गए गलिामrsquoजरजड़जड़जड़ बचारा गलिाम

तीनो को दआली वापस दत हए पजलस क जसपाही न कहा lsquoलाठी-दआली ल कर नाच दखन आत होrsquo

दसर जदन मल-भर म यह बात िल गई ndash मथरामोहन कपनी स भाग कर आई ह हीराबाई इसजलए इस बार

मथरामोहन कपनी नही आई ह उसक गड आए ह हीराबाई भी कम नही बड़ी खलाड़ औरत ह तरह-तरह दहाती

लठत पाल रही ह वाह मरी जान भी कह तो कोई मजाल ह

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दस जदन जदन-रात

जदन-भर भाड़ा ढोता जहरामन शाम होत ही नौरकी का नगाड़ा बजन लगता नगाड़ की आवाज सनत ही हीराबाई की

पकार कानो क पास मडरान लगती ndash भया मीता जहरामन उसताद गर जी हमशा कोई-न-कोई बाजा उसक मन

क कोन म बजता रहता जदन-भर कभी हारमोजनयम कभी नगाड़ा कभी ढोलक और कभी हीराबाई की पजनी उनदही

साजो की गत पर जहरामन उठता-बठता चलता-जिरता नौरकी कपनी क मनजर स ल कर परदा खीचनवाल तक

उसको पहचानत ह हीराबाई का आदमी ह

पलरदास हर रात नौरकी शर होन क समय शरदधापवटक सरज को नमसकार करता हाथ जोड़ कर लालमोहर एक जदन

अपनी कचराही बोली सनान गया था हीराबाई को हीराबाई न पहचाना ही नही तब स उसका जदल छोरा हो गया ह

उसका नौकर लहसनवा उसक हाथ स जनकल गया ह नौरकी कपनी म भती हो गया ह जोकर स उसकी दोसती हो गई

ह जदन-भर पानी भरता ह कपड़ धोता ह कहता ह गाव म कया ह जो जाएग लालमोहर उदास रहता ह धनदनीराम घर

चला गया ह बीमार हो कर

जहरामन आज सबह स तीन बार लदनी लाद कर सरशन आ चका ह आज न जान कयो उसको अपनी भौजाई की याद

आ रही ह धनदनीराम न कछ कह तो नही जदया ह बखार की झोक म यही जकतना अरर-परर बक रहा था ndash

गलबदन तखत-हजारा लहसनवा मौज म ह जदन-भर हीराबाई को दखता होगा कल कह रहा था जहरामन माजलक

तमहार अकबाल स खब मौज म ह हीराबाई की साड़ी धोन क बाद कठौत का पानी अततरगलाब हो जाता ह उसम

अपनी गमछी डबा कर छोड़ दता ह लो सघोग हर रात जकसी-न-जकसी क मह स सनता ह वह ndash हीराबाई रडी ह

जकतन लोगो स लड़ वह जबना दख ही लोग कस कोई बात बोलत ह राजा को भी लोग पीठ-पीछ गाली दत ह

आज वह हीराबाई स जमल कर कहगा नौरकी कपनी म रहन स बहत बदनाम करत ह लोग सरकस कपनी म कयो

नही काम करती सबक सामन नाचती ह जहरामन का कलजा दप-दप जलता रहता ह उस समय सरकस कपनी म

बाघ को उसक पास जान की जहममत कौन करगा सरजकषत रहगी हीराबाई जकधर की गाड़ी आ रही ह

lsquoजहरामन ए जहरामन भायrsquoलालमोहर की बोली सन कर जहरामन न गरदन मोड़ कर दखा कया लाद कर लाया ह

लालमोहर

lsquoतमको ढढ़ रही ह हीराबाई इजसरसन पर जा रही हlsquoएक ही सास म सना गया लालमोहर की गाड़ी पर ही आई ह

मल स

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lsquoजा रही ह कहा हीराबाई रलगाड़ी स जा रही हrsquo

जहरामन न गाड़ी खोल दी मालगदाम क चौकीदार स कहा lsquoभया जरा गाड़ी-बल दखत रजहए आ रह हlsquo

lsquoउसतादrsquoजनाना मसाजिरखान क िारक क पास हीराबाई ओढ़नी स मह-हाथ ढक कर खड़ी थी थली बढ़ाती हई

बोली lsquoलो ह भगवान भर हो गई चलो म तो उममीद खो चकी थी तमस अब भर नही हो सकगी म जा रही ह

गर जीrsquo

बकसा ढोनवाला आदमी आज कोर-पतलन पहन कर बाबसाहब बन गया ह माजलको की तरह कजलयो को हकम द

रहा ह ndashlsquoजनाना दजाट म चढ़ाना अचछाrsquo

जहरामन हाथ म थली ल कर चपचाप खड़ा रहा करत क अदर स थली जनकाल कर दी ह हीराबाई न जचजड़या की दह

की तरह गमट ह थली

lsquoगाड़ी आ रही हlsquoबकसा ढोनवाल न मह बनात हए हीराबाई की ओर दखा उसक चहर का भाव सपि ह ndash इतना

जयादा कया ह

हीराबाई चचल हो गई बोली lsquoजहरामन इधर आओ अदर म जिर लौर कर जा रही ह मथरामोहन कपनी म अपन

दश की कपनी ह वनली मला आओग नrsquo

हीराबाई न जहरामन क कध पर हाथ रखा hellipइस बार दाजहन कध पर जिर अपनी थली स रपया जनकालत हए बोली

lsquoएक गरम चादर खरीद लनाlsquo

जहरामन की बोली िरी इतनी दर क बाद ndashlsquoइसस हरदम रपया-पसा रजखए रपया कया करग चादरrsquo

हीराबाई का हाथ रक गया उसन जहरामन क चहर को गौर स दखा जिर बोली lsquoतमहारा जी बहत छोरा हो गया ह

कयो मीता महआ घरवाररन को सौदागर न खरीद जो जलया ह गर जीrsquo

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गला भर आया हीराबाई का बकसा ढोनवाल न बाहर स आवाज दी ndashlsquoगाड़ी आ गईlsquoजहरामन कमर स बाहर जनकल

आया बकसा ढोनवाल न नौरकी क जोकर जसा मह बना कर कहा lsquoलारिारम स बाहर भागो जबना जरकर क

पकड़गा तो तीन महीन की हवाlsquo

जहरामन चपचाप िारक स बाहर जा कर खड़ा हो गया रीसन की बात रलव का राज नही तो इस बकसा ढोनवाल

का मह सीधा कर दता जहरामन

हीराबाई ठीक सामनवाली कोठरी म चढ़ी इसस इतना रान गाड़ी म बठ कर भी जहरामन की ओर दख रही ह रकर-

रकर लालमोहर को दख कर जी जल उठता ह हमशा पीछ-पीछ हरदम जहससादारी सझती ह

गाड़ी न सीरी दी जहरामन को लगा उसक अदर स कोई आवाज जनकल कर सीरी क साथ ऊपर की ओर चली गई ndash

क-ऊ-ऊ इ-सस

-छी-ई-ई-छकक गाड़ी जहली जहरामन न अपन दाजहन पर क अगठ को बाए पर की एड़ी स कचल जलया कलज की

धड़कन ठीक हो गई हीराबाई हाथ की बगनी सािी स चहरा पोछती ह सािी जहला कर इशारा करती ह अब

जाओ आजखरी जडबबा गजरा पलरिामट खाली सब खाली खोखल मालगाड़ी क जडबब दजनया ही खाली हो गई

मानो जहरामन अपनी गाड़ी क पास लौर आया

जहरामन न लालमोहर स पछा lsquoतम कब तक लौर रह हो गावrsquo

लालमोहर बोला lsquoअभी गाव जा कर कया कर ग यहा तो भाड़ा कमान का मौका ह हीराबाई चली गई मला अब

ररगाlsquo

- lsquoअचछी बात कोई समाद दना ह घरrsquo

लालमोहर न जहरामन को समझान की कोजशश की लजकन जहरामन न अपनी गाड़ी गाव की ओर जानवाली सड़क की

ओर मोड़ दी अब मल म कया धरा ह खोखला मला

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रलव लाइन की बगल स बलगाड़ी की कचची सड़क गई ह दर तक जहरामन कभी रल पर नही चढ़ा ह उसक मन म

जिर परानी लालसा झाकी रलगाड़ी पर सवार हो कर गीत गात हए जगरनाथ-धाम जान की लालसा उलर कर अपन

खाली रपपर की ओर दखन की जहममत नही होती ह पीठ म आज भी गदगदी लगती ह आज भी रह-रह कर चपा का

िल जखल उठता ह उसकी गाड़ी म एक गीत की ररी कड़ी पर नगाड़ का ताल कर जाता ह बार-बार

उसन उलर कर दखा बोर भी नही बास भी नही बाघ भी नही ndash परी दवी मीता हीरादवी महआ घरवाररन ndash

को-ई नही मर हए महतो की गगी आवाज मखर होना चाहती ह जहरामन क होठ जहल रह ह शायद वह तीसरी कसम

खा रहा ह ndash कपनी की औरत की लदनी

जहरामन न हठात अपन दोनो बलो को जझड़की दी दआली स मारत हए बोला lsquoरलव लाइन की ओर उलर-उलर कर

कया दखत होrsquoदोनो बलो न कदम खोल कर चाल पकड़ी जहरामन गनगनान लगा ndashlsquoअजी हा मार गए गलिामrsquo

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लाल िान की बगम

िणीशवरनाथ रण

कयो जबरज की मा नाच दखन नही जाएगी कया

जबरज की मा शकरकद उबाल कर बठी मन-ही-मन कढ़ रही थी अपन आगन म सात साल का लड़का जबरज

शकरकद क बदल तमाच खा कर आगन म लोर-पोर कर सारी दह म जमटटी मल रहा था चजपया क जसर भी चड़ल

मडरा रही ह आध-आगन धप रहत जो गई ह सहआन की दकान छोवा-गड़ लान सो अभी तक नही लौरी दीया-

बाती की बला हो गई आए आज लौरक जरा बागड़ बकर की दह म ककरमाछी लगी थी इसजलए बचारा बागड़

रह-रह कर कद-िाद कर रहा था जबरज की मा बागड़ पर मन का गससा उतारन का बहाना ढढ़ कर जनकाल चकी थी

जपछवाड़ की जमचट की िली गाछ बागड़ क जसवा और जकसन कलवा जकया होगा बागड़ को मारन क जलए वह

जमटटी का छोरा ढला उठा चकी थी जक पड़ोजसन मखनी िआ की पकार सनाई पड़ी - कयो जबरज की मा नाच दखन

नही जाएगी कया

जबरज की मा क आग नाथ और पीछ पगजहया न हो तब न िआ

गरम गसस म बझी नकीली बात िआ की दह म धस गई और जबरज क मा न हाथ क ढल को पास ही ि क जदया -

बचार बागड़ को ककरमाछी परशान कर रही ह आ-हा आय आय हरट-र-र आय-आय

जबरज न लर-ही-लर बागड़ को एक डडा लगा जदया जबरज की मा की इचछा हई जक जा कर उसी डड स जबरज का

भत भगा द जकत नीम क पास खड़ी पनभरजनयो की जखलजखलाहर सन कर रक गई बोली ठहर तर बपपा न बड़ा

हथछटटा बना जदया ह तझ बड़ा हाथ चलता ह लोगो पर ठहर

मखनी िआ नीम क पास झकी कमर स घड़ा उतार कर पानी भर कर लौरती पनभरजनयो म जबरज की मा की बहकी

हई बात का इसाि करा रही थी - जरा दखो तो इस जबरज की मा को चार मन पार(जर)का पसा कया हआ ह धरती

पर पाव ही नही पड़त जनसाि करो खद अपन मह स आठ जदन पहल स ही गाव की गली-गली म बोलती जिरी ह

हा इस बार जबरज क बपपा न कहा ह बलगाड़ी पर जबठा कर बलरामपर का नाच जदखा लाऊ गा बल अब अपन घर

ह तो हजार गाड़ी मगनी जमल जाएगी सो मन अभी रोक जदया नाच दखनवाली सब तो औन-पौन कर तयार हो रही

ह रसोई-पानी कर रह ह मर मह म आग लग कयो म रोकन गई सनती हो कया जवाब जदया जबरज की मा न

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मखनी िआ न अपन पोपल मह क होठो को एक ओर मोड़ कर ऐठती हई बोली जनकाली - अर-र-हा-हा जब-र-र-

जज की मया क आग नाथ औ-रट पीछ पगजहया ना हो तब ना-आ-आ

जगी की पतोह जबरज की मा स नही डरती वह जरा गला खोल कर ही कहती ह िआ-आ सरब जसततलजमटरी (सव

सरलमर) क हाजकम क बासा पर िलछाप जकनारीवाली साड़ी पहन क त भी भरा की भरी चढ़ाती तो तमहार नाम स

भी द-तीन बीघा धनहर जमीन का पचाट कर जाता जिर तमहार घर भी आज दस मन सोनाबग पार होता जोड़ा बल

खरीदता जिर आग नाथ और पीछ सकड़ो पगजहया झलती

जगी की पतोह महजोर ह रलव सरशन क पास की लड़की ह तीन ही महीन हए गौन की नई बह हो कर आई ह और

सार कमाटरोली की सभी झगड़ाल सासो स एकाध मोरचा ल चकी ह उसका ससर जगी दागी चोर ह सी-जकलासी ह

उसका खसम रगी कमाटरोली का नामी लठत इसीजलए हमशा सीग खजाती जिरती जगी की पतोह

जबरज की मा क आगन म जगी की पतोह की गला-खोल बोली गलल की गोजलयो की तरह दनदनाती हई आई थी

जबरज क मा न एक तीखा जवाब खोज कर जनकाला लजकन मन मसोस कर रह गई गोबर की ढरी म कौन ढला

ि क

जीभ क झाल को गल म उतार कर जबरज की मा न अपनी बरी चजपया को आवाज दी - अरी चजपया-या-या आज

लौर तो तरी मड़ी मरोड़ कर च ह म झोकती ह जदन-जदन बचाल होती जाती ह गाव म तो अब ठठर-बसकोप का

गीत गानवाली पतररया-पतोह सब आन लगी ह कही बठक बाज न मरजलया सीख रही होगी ह-र-जा-ई-ई अरी

चजपया-या-या

जगी की पतोह न जबरज की मा की बोली का सवाद ल कर कमर पर घड़ को सभाला और मरक कर बोली चल

जदजदया चल इस महल म लाल पान की बगम बसती ह नही जानती दोपहर-जदन और चौपहर-रात जबजली की

बतती भक-भक कर जलती ह

भक-भक जबजली-बतती की बात सन कर न जान कयो सभी जखलजखला कर हस पड़ी िआ की ररी हई दत-पजियो

क बीच स एक मीठी गाली जनकली - शतान की नानी

जबरज की मा की आखो पर मानो जकसी न तज राचट की रोशनी डाल कर चौजधया जदया भक-भक जबजली-बतती

तीन साल पहल सव क प क बाद गाव की जलनडाही औरतो न एक कहानी गढ़ क िलाई थी चजपया की मा क

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आगन म रात-भर जबजली-बतती भकभकाती थी चजपया की मा क आगन म नाकवाल जत की छाप घोड़ की राप की

तरह जलो जलो और जलो चजपया की मा क आगन म चादी-जस पार सखत दख कर जलनवाली सब औरत

खजलहान पर सोनोली धान क बोझो को दख कर बगन का भताट हो जाएगी

जमटटी क बरतन स रपकत हए छोवा-गड़ को उगजलयो स चारती हई चजपया आई और मा क तमाच खा कर चीख पड़ी

- मझ कयो मारती ह-ए-ए-ए सहआइन जदी स सौदा नही दती ह-ए-ए-ए-ए

सहआइन जदी सौदा नही दती की नानी एक सहआइन की दकान पर मोती झरत ह जो जड़ गाड़ कर बठी हई थी

बोल गल पर लात द कर कला तोड़ दगी हरजाई जो जिर कभी बाज न मरजलया गात सना चाल सीखन जाती ह

रीशन की छोकररयो स

जबरज क मा न चप हो कर अपनी आवाज अदाजी जक उसकी बात जगी क झोपड़ तक साि-साि पहच गई होगी

जबरज बीती हई बातो को भल कर उठ खड़ा हआ था और धल झाड़त हए बरतन स रपकत गड़ को ललचाई जनगाह

स दखन लगा था दीदी क साथ वह भी दकान जाता तो दीदी उस भी गड़ चराती जरर वह शकरकद क लोभ म

रहा और मागन पर मा न शकरकद क बदल

ए मया एक अगली गड़ द द जबरज न तलहथी िलाई - द ना मया एक रतती भर

एक रतती कयो उठाक बरतन को ि क आती ह जपछवाड़ म जाक चारना नही बनगी मीठी रोरी मीठी रोरी खान

का मह होता ह जबरज की मा न उबल शकरकद का सप रोती हई चजपया क सामन रखत हए कहा बठक जछलक

उतार नही तो अभी

दस साल की चजपया जानती ह शकरकद छीलत समय कम-स-कम बारह बार मा उस बाल पकड़ कर झकझोरगी

छोरी-छोरी खोर जनकाल कर गाजलया दगी - पाव िलाक कयो बठी ह उस तरह बलजी चजपया मा क गसस को

जानती ह

जबरज न इस मौक पर थोड़ी-सी खशामद करक दखा - मया म भी बठ कर शकरकद छील

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नही मा न जझड़की दी एक शकरकद छीलगा और तीन पर म जाक जसदध की बह स कहो एक घर क जलए कड़ाही

माग कर ल गई तो जिर लौरान का नाम नही जा जदी

मह लरका कर आगन स जनकलत-जनकलत जबरज न शकरकद और गड़ पर जनगाह दौड़ाई चजपया न अपन झबर कश

की ओर स मा की ओर दखा और नजर बचा कर चपक स जबरज की ओर एक शकरकद ि क जदया जबरज भागा

सरज भगवान डब गए दीया-बतती की बला हो गई अभी तक गाड़ी

चजपया बीच म ही बोल उठी - कोयरीरोल म जकसी न गाड़ी नही दी मया बपपा बोल मा स कहना सब ठीक-ठाक

करक तयार रह मलदजहयारोली क जमयाजान की गाड़ी लान जा रहा ह

सनत ही जबरज की मा का चहरा उतर गया लगा छात की कमानी उतर गई घोड़ स अचानक कोयरीरोल म जकसी न

गाड़ी मगनी नही दी तब जमल चकी गाड़ी जब अपन गाव क लोगो की आख म पानी नही तो मलदजहयारोली क

जमयाजान की गाड़ी का कया भरोसा न तीन म न तरह म कया होगा शकरकद छील कर रख द उठा क यह मदट

नाच जदखाएगा बलगाड़ी पर चढ़ कर नाच जदखान ल जाएगा चढ़ चकी बलगाड़ी पर दख चकी जी-भर नाच

पदल जानवाली सब पहच कर परानी हो चकी होगी

जबरज छोरी कड़ाही जसर पर औधा कर वापस आया - दख जदजदया मलररी रोपी इस पर दस लाठी मारन पर भी

कछ नही होता

चजपया चपचाप बठी रही कछ बोली नही जरा-सी मसकराई भी नही जबरज न समझ जलया मया का गससा अभी

उतरा नही ह पर तौर स

मढ़या क अदर स बागड़ को बाहर भगाती हई जबरज की मा बड़बड़ाई - कल ही पचकौड़ी कसाई क हवाल करती ह

राकस तझ हर चीज म मह लगाएगा चजपया बाध द बागड़ को खोल द गल की घरी हमशा रनर-रनर मझ जरा

नही सहाता ह

रनर-रनर सनत ही जबरज को सड़क स जाती हई बलगाजड़यो की याद हो आई - अभी बबआनरोल की गाजड़या नाच

दखन जा रही थी झनर-झनर बलो की झमकी तमन स

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बसी बक-बक मत करो बागड़ क गल स झमकी खोलती बोली चजपया

चजपयाडाल द च ह म पानी बपपा आव तो कहना जक अपन उड़नजहाज पर चढ़ कर नाच दख आए मझ नाच

दखन का सौख नही मझ जगयो मत कोई मरा माथा दख रहा ह

मढ़या क ओसार पर जबरज न जिसजिसा क पछा कयो जदजदया नाच म उड़नजहाज भी उड़गा

चराई पर कथरी ओढ़ कर बठती हई चजपया न जबरज को चपचाप अपन पास बठन का इशारा जकया मफत म मार

खाएगा बचारा

जबरज न बहन की कथरी म जहससा बारत हए चककी-मककी लगाई जाड़ क समय इस तरह घरन पर ठडडी रख कर

चककी-जमककी लगाना सीख चका ह वह उसन चजपया क कान क पास मह ल जा कर कहा हम लोग नाच दखन

नही जाएग गाव म एक पछी भी नही ह सब चल गए

चजपया को जतल-भर भी भरोसा नही सझा तारा डब रहा ह बपपा अभी तक गाड़ी ल कर नही लौर एक महीना पहल

स ही मया कहती थी बलरामपर क नाच क जदन मीठी रोरी बनगी चजपया छीर की साड़ी पहनगी जबरज पर पहनगा

बलगाड़ी पर चढ़ कर-

चजपया की भीगी पलको पर एक बद आस आ गया

जबरज का भी जदल भर आया उसन मन-ही-मन म इमली पर रहनवाल जजनबाबा को एक बगन कबला गाछ का

सबस पहला बगन उसन खद जजस पौध को रोपा ह जदी स गाड़ी ल कर बपपा को भज दो जजनबाबा

मढ़या क अदर जबरज की मा चराई पर पड़ी करवर ल रही थी उह पहल स जकसी बात का मनसबा नही बाधना

चाजहए जकसी को भगवान न मनसबा तोड़ जदया उसको सबस पहल भगवान स पछना ह यह जकस चक का िल द

रह हो भोला बाबा अपन जानत उसन जकसी दवता-जपततर की मान-मनौती बाकी नही रखी सव क समय जमीन क

जलए जजतनी मनौजतया की थी ठीक ही तो महाबीर जी का रोर तो बाकी ही ह हाय र दव भल-चक माि करो

महाबीर बाबा मनौती दनी करक चढ़ाएगी जबरज की मा

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जबरज की मा क मन म रह-रह कर जगी की पतोह की बात चभती ह भक-भक जबजली-बतती चोरी-चमारी

करनवाली की बरी-पतोह जलगी नही पाच बीघा जमीन कया हाजसल की ह जबरज क बपपा न गाव की भाईखौजकयो

की आखो म जकरजकरी पड़ गई ह खत म पार लगा दख कर गाव क लोगो की छाती िरन लगी धरती िोड़ कर पार

लगा ह बसाखी बादलो की तरह उमड़त आ रह ह पार क पौध तो अलान तो िलान इतनी आखो की धार भला

िसल सह जहा परह मन पार होना चाजहए जसिट दस मन पार कारा पर तौल क ओजन हआ भगत क यहा

इसम जलन की कया बात ह भला जबरज क बपपा न तो पहल ही कमाटरोली क एक-एक आदमी को समझा क

कहा जजदगी-भर मजदरी करत रह जाओग सव का समय हो रहा ह लाठी कड़ी करो तो दो-चार बीघ जमीन हाजसल

कर सकत हो सो गाव की जकसी पतखौकी का भतार सव क समय बाबसाहब क जखलाि खासा भी नही जबरज

क बपपा को कम सहना पड़ा ह बाबसाहब गसस स सरकस नाच क बाघ की तरह हमड़त रह गए उनका बड़ा बरा घर

म आग लगान की धमकी दकर गया आजखर बाबसाहब न अपन सबस छोर लड़क को भजा जबरज की मा को

मौसी कहक पकारा - यह जमीन बाब जी न मर नाम स खरीदी थी मरी पढ़ाई-जलखाई उसी जमीन की उपज स

चलती ह और भी जकतनी बात खब मोहना जानता ह उतता जरा-सा लड़का जमीदार का बरा ह जक

चजपया जबरज सो गया कया यहा आ जा जबरज अदर त भी आ जा चजपया भला आदमी आए तो एक बार

आज

जबरज क साथ चजपया अदर चली गई

जढबरी बझा द बपपा बलाए तो जवाब मत दना खपचची जगरा द

भला आदमी र भला आदमी मह दखो जरा इस मदट का जबरज की मा जदन-रात मझा न दती रहती तो ल चक थ

जमीन रोज आ कर माथा पकड़ क बठ जाए मझ जमीन नही लनी ह जबरज की मा मजरी ही अचछीजवाब दती

थी जबरज की मा खब सोच-समझक छोड़ दो जब तमहारा कलजा ही जसथर नही होता ह तो कया होगा जोर-जमीन

जोर क नही तो जकसी और क

जबरज क बाप पर बहत तजी स गससा चढ़ता ह चढ़ता ही जाता ह जबरज की मा का भाग ही खराब ह जो ऐसा

गोबरगणश घरवाला उस जमला कौन-सा सौख-मौज जदया ह उसक मदट न कोह क बल की तरह खर कर सारी उमर

कार दी इसक यहा कभी एक पस की जलबी भी ला कर दी ह उसक खसम न पार का दाम भगत क यहा स ल

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कर बाहर-ही-बाहर बल-हररा चल गए जबरज की मा को एक बार नमरी लोर दखन भी नही जदया आख स बल

खरीद लाए उसी जदन स गाव म जढढोरा पीरन लग जबरज की मा इस बार बलगाड़ी पर चढ़ कर जाएगी नाच दखन

दसर की गाड़ी क भरोस नाच जदखाएगा

अत म उस अपन-आप पर करोध हो आया वह खद भी कछ कम नही उसकी जीभ म आग लग बलगाड़ी पर चढ़

कर नाच दखन की लालसा जकसी कसमय म उसक मह स जनकली थी भगवान जान जिर आज सबह स दोपहर तक

जकसी-न-जकसी बहान उसन अठारह बार बलगाड़ी पर नाच दखन की चचाट छड़ी ह लो खब दखो नाच कथरी क

नीच दशाल का सपना कल भोर पानी भरन क जलए जब जाएगी पतली जीभवाली पतररया सब हसती आएगी

हसती जाएगी सभी जलत ह उसस हा भगवान दाढ़ीजार भी दो बचचो की मा हो कर भी वह जस-की-तस ह

उसका घरवाला उसकी बात म रहता ह वह बालो म गरी का तल डालती ह उसकी अपनी जमीन ह ह जकसी क

पास एक घर जमीन भी अपन इस गाव म जलग नही तीन बीघ म धान लगा हआ ह अगहनी लोगो की जबखदीठ स

बच तब तो

बाहर बलो की घजरया सनाई पड़ी तीनो सतकट हो गए उतकणट होकर सनत रह

अपन ही बलो की घरी ह कयो री चजपया

चजपया और जबरज न पराय एक ही साथ कहा ह -ऊ -ऊ

चप जबरज की मा न जिसजिसा कर कहा शायद गाड़ी भी ह घड़घड़ाती ह न

ह -ऊ -ऊ दोनो न जिर हकारी भरी

चप गाड़ी नही ह त चपक स रटटी म छद करक दख तो आ चपी भागक आ चपक-चपक

चजपया जबली की तरह हौल-हौल पाव स रटटी क छद स झाक आई - हा मया गाड़ी भी ह

जबरज हड़बड़ा कर उठ बठा उसकी मा न उसका हाथ पकड़ कर सला जदया - बोल मत

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चजपया भी गदड़ी क नीच घस गई

बाहर बलगाड़ी खोलन की आवाज हई जबरज क बाप न बलो को जोर स डारा - हा-हा आ गए घर घर आन क

जलए छाती िरी जाती थी

जबरज की मा ताड़ गई जरर मलदजहयारोली म गाज की जचलम चढ़ रही थी आवाज तो बड़ी खनखनाती हई जनकल

रही ह

चजपया-ह बाहर स पकार कर कहा उसक बाप न बलो को घास द द चजपया-ह

अदर स कोई जवाब नही आया चजपया क बाप न आगन म आ कर दखा तो न रोशनी न जचराग न च ह म आग

बात कया ह नाच दखन उतावली हो कर पदल ही चली गई कया

जबरज क गल म खसखसाहर हई और उसन रोकन की परी कोजशश भी की लजकन खासी जब शर हई तो पर पाच

जमनर तक वह खासता रहा

जबरज बरा जबरजमोहन जबरज क बाप न पचकार कर बलाया मया गसस क मार सो गई कया अर अभी तो लोग

जा ही रह ह

जबरज की मा क मन म आया जक कस कर जवाब द नही दखना ह नाच लौरा दो गाड़ी

चजपया-ह उठती कयो नही ल धान की पचसीस रख द धान की बाजलयो का छोरा झबबा झोपड़ क ओसर पर रख

कर उसन कहा दीया बालो

जबरज की मा उठ कर ओसार पर आई - डढ़ पहर रात को गाड़ी लान की कया जररत थी नाच तो अब खतम हो रहा

होगा

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जढबरी की रोशनी म धान की बाजलयो का रग दखत ही जबरज की मा क मन का सब मल दर हो गया धानी रग

उसकी आखो स उतर कर रोम-रोम म घल गया

नाच अभी शर भी नही हआ होगा अभी-अभी बलमपर क बाब की सपनी गाड़ी मोहनपर होजरल-बगला स हाजकम

साहब को लान गई ह इस साल आजखरी नाच ह पचसीस रटटी म खोस द अपन खत का ह

अपन खत का हलसती हई जबरज की मा न पछा पक गय धान

नही दस जदन म अगहन चढ़त-चढ़त लाल हो कर झक जाएगी सार खत की बाजलया मलदजहयारोली पर जा रहा

था अपन खत म धान दख कर आख जड़ा गई सच कहता ह पचसीस तोड़त समय उगजलया काप रही थी मरी

जबरज न धान की एक बाली स एक धान ल कर मह म डाल जलया और उसकी मा न एक हकी डार दी - कसा

लककड़ ह त र इन दशमनो क मार कोई नम-धरम बच

कया हआ डारती कयो ह

नवानदन क पहल ही नया धान जठा जदया दखत नही

अरइन लोगो का सब कछ माि ह जचरई-चरमन ह यह लोग दोनो क मह म नवानदन क पहल नया अनदन न पड़

इसक बाद चजपया न भी धान की बाली स दो धान लकर दातो-तल दबाए - ओ मया इतना मीठा चावल

और गमकता भी ह न जदजदया जबरज न जिर मह म धान जलया

रोरी-पोरी तयार कर चकी कया जबरज क बाप न मसकराकर पछा

नही मान-भर सर म बोली जबरज की मा जान का ठीक-जठकाना नही और रोरी बनाती

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वाह खब हो तम लोगजजसक पास बल ह उस गाड़ी मगनी नही जमलगी भला गाड़ीवालो को भी कभी बल की

जररत होगी पछगा तब कोयरीरोलावालो स ल जदी स रोरी बना ल

दर नही होगी

अर रोकरी भर रोरी तो त पलक मारत बना दती ह पाच रोजरया बनान म जकतनी दर लगगी

अब जबरज की मा क होठो पर मसकराहर खल कर जखलन लगी उसन नजर बचा कर दखा जबरज का बपपा उसकी

ओर एकरक जनहार रहा ह चजपया और जबरज न होत तो मन की बात हस कर खोलन म दर न लगती चजपया और

जबरज न एक-दसर को दखा और खशी स उनक चहर जगमगा उठ - मया बकार गससा हो रही थी न

चपी जरा घलसार म खड़ी हो कर मखनी िआ को आवाज द तो

ऐ ि-आ-आ सनती हो िआ-आ मया बला रही ह

िआ न कोई जवाब नही जदया जकत उसकी बड़बड़ाहर सपि सनाई पड़ी - हा अब िआ को कयो गहारती ह सार

रोल म बस एक िआ ही तो जबना नाथ-पगजहयावाली ह

अरी िआ जबरज की मा न हस कर जवाब जदया उस समय बरा मान गई थी कया नाथ-पगजहयावाल को आ कर

दखो दोपहर रात म गाड़ी लकर आया ह आ जाओ िआ म मीठी रोरी पकाना नही जानती

िआ काखती-खासती आई - इसी क घड़ी-पहर जदन रहत ही पछ रही थी जक नाच दखन जाएगी कया कहती तो म

पहल स ही अपनी अगीठी यहा सलगा जाती

जबरज की मा न िआ को अगीठी जदखला दी और कहा घर म अनाज-दाना वगरह तो कछ ह नही एक बागड़ ह

और कछ बरतन-बासन सो रात-भर क जलए यहा तबाक रख जाती ह अपना हकका ल आई हो न िआ

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िआ को तबाक जमल जाए तो रात-भर कया पाच रात बठ कर जाग सकती ह िआ न अधर म ररोल कर तबाक का

अदाज जकया ओ-हो हाथ खोल कर तबाक रखा ह जबरज की मा न और एक वह ह सहआइन राम कहो उस

रात को अिीम की गोली की तरह एक मरर-भर तबाक रख कर चली गई गलाब-बाग मल और कह गई जक जडबबी-

भर तबाक ह

जबरज की मा च हा सलगान लगी चजपया न शकरकद को मसल कर गोल बनाए और जबरज जसर पर कड़ाही औधा

कर अपन बाप को जदखलान लगा - मलररी रोपी इस पर दस लाठी मारन पर भी कछ नही होगा

सभी ठठा कर हस पड़ जबरज की मा हस कर बोली ताख पर तीन-चार मोर शकरकद ह द द जबरज को चजपया

बचारा शाम स ही

बचारा मत कहो मया खब सचारा ह अब चजपया चहकन लगी तम कया जानो कथरी क नीच मह कयो चल रहा था

बाब साहब का

ही-ही-ही

जबरज क रर दध क दातो की िाक स बोली जनकली जबलक-मारजरन म पाच शकरकद खा जलया हा-हा-हा

सभी जिर ठठा कर हस पड़ जबरज की मा न िआ का मन रखन क जलए पछा एक कनवा गड़ ह आधा द िआ

िआ न गदगद हो कर कहा अरी शकरकद तो खद मीठा होता ह उतना कयो डालगी

जब तक दोनो बल दाना-घास खा कर एक-दसर की दह को जीभ स चार जबरज की मा तयार हो गई चजपया न छीर

की साड़ी पहनी और जबरज बरन क अभाव म पर पर परसन की डोरी बधवान लगा

जबरज क मा न आगन स जनकल गाव की ओर कान लगा कर सनन की चिा की - उह इतनी दर तक भला पदल

जानवाल रक रहग

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पजणटमा का चाद जसर पर आ गया ह जबरज की मा न असली रपा का मगजरकका पहना ह आज पहली बार जबरज

क बपपा को हो कया गया ह गाड़ी जोतता कयो नही मह की ओर एकरक दख रहा ह मानो नाच की लाल पान की

गाड़ी पर बठत ही जबरज की मा की दह म एक अजीब गदगदी लगन लगी उसन बास की बली को पकड़ कर कहा

गाड़ी पर अभी बहोत जगह ह जरा दाजहनी सड़क स गाड़ी हाकना

बल जब दौड़न लग और पजहया जब च-च करक घरघरान लगा तो जबरज स नही रहा गया - उड़नजहाज की तरह

उड़ाओ बपपा

गाड़ी जगी क जपछवाड़ पहची जबरज की मा न कहा जरा जगी स पछो न उसकी पतोह नाच दखन चली गई कया

गाड़ी क रकत ही जगी क झोपड़ स आती हई रोन की आवाज सपि हो गई जबरज क बपपा न पछा अर जगी भाई

काह कनदन-रोहर हो रहा ह आगन म

जगी घर ताप रहा था बोला कया पछत हो रगी बलरामपर स लौरा नही पतोजहया नाच दखन कस जाए आसरा

दखत-दखत उधर गाव की सभी औरत चली गई

अरी रीशनवाली तो रोती ह काह जबरज की मा न पकार कर कहा आ जा झर स कपड़ा पहन कर सारी गाड़ी पड़ी

हई ह बचारी आ जा जदी

बगल क झोपड़ स राध की बरी सनरी न कहा काकी गाड़ी म जगह ह म भी जाऊ गी

बास की झाड़ी क उस पार लरना खवास का घर ह उसकी बह भी नही गई ह जगलर का झमकी-कड़ा पहन कर

झमकती आ रही ह

आ जा जो बाकी रह गई ह सब आ जाए जदी

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जगी की पतोह लरना की बीवी और राध की बरी सनरी तीनो गाड़ी क पास आई बल न जपछला पर ि का जबरज क

बाप न एक भददी गाली दी - साला लताड़ मार कर लगड़ी बनाएगा पतोह को

सभी ठठा कर हस पड़ जबरज क बाप न घघर म झकी दोनो पतोह ओ को दखा उस अपन खत की झकी हई बाजलयो

की याद आ गई

जगी की पतोह का गौना तीन ही मास पहल हआ ह गौन की रगीन साड़ी स कड़व तल और लठवा-जसदर की गध आ

रही ह जबरज की मा को अपन गौन की याद आई उसन कपड़ की गठरी स तीन मीठी रोजरया जनकाल कर कहा खा

ल एक-एक करक जसमराह क सरकारी कप म पानी पी लना

गाड़ी गाव स बाहर हो कर धान क खतो क बगल स जान लगी चादनी काजतक की खतो स धान क झरत िलो

की गध आती ह बास की झाड़ी म कही ददधी की लता िली ह जगी की पतोह न एक बीड़ी सलगा कर जबरज की मा

की ओर बढ़ाई जबरज की मा को अचानक याद आई चजपया सनरी लरना की बीवी और जगी की पतोह य चारो ही

गाव म बसकोप का गीत गाना जानती ह खब

गाड़ी की लीक धनखतो क बीच हो कर गई चारो ओर गौन की साड़ी की खसखसाहर-जसी आवाज होती ह

जबरज की मा क माथ क मगजरकक पर चादनी जछरकती ह

अचछा अब एक बसकोप का गीत गा तो चजपया डरती ह काह जहा भल जाओगी बगल म मासररनी बठी ही

दोनो पतोहओ न तो नही जकत चजपया और सनरी न खखार कर गला साि जकया

जबरज क बाप न बलो को ललकारा - चल भया और जरा जोर स गा र चजपया नही तो म बलो को धीर-धीर

चलन को कह गा

जगी की पतोह न चजपया क कान क पास घघर ल जा कर कछ कहा और चजपया न धीम स शर जकया - चदा की

चादनी

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जबरज को गोद म ल कर बठी उसकी मा की इचछा हई जक वह भी साथ-साथ गीत गाए जबरज की मा न जगी की

पतोह को दखा धीर-धीर गनगना रही ह वह भी जकतनी पयारी पतोह ह गौन की साड़ी स एक खास जकसम की गध

जनकलती ह ठीक ही तो कहा ह उसन जबरज की मा बगम ह लाल पान की बगम यह तो कोई बरी बात नही हा

वह सचमच लाल पान की बगम ह

जबरज की मा न अपनी नाक पर दोनो आखो को क जरत करन की चिा करक अपन रप की झाकी ली लाला साड़ी की

जझलजमल जकनारी मगजरकका पर चाद जबरज की मा क मन म अब और कोई लालसा नही उस नीद आ रही ह

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कोसी का घटवार

शखर जोशी

अभी खपपर म एक-चौथाई स भी अजधक गह शि था खपपर म हाथ डालकर उसन वयथट ही उलरा-पलरा और

चककी क पारो क वतत म िल हए आर को झाडकर एक ढर बना जदया बाहर आत-आत उसन जिर एक बार और

खपपर म झाककर दखा जस यह जानन क जलए जक इतनी दर म जकतनी जपसाई हो चकी ह परत अदर की जमकदार म

कोई जवशि अतर नही आया था खसस-खसस की धवजन क साथ अतयत धीमी गजत स ऊपर का पार चल रहा था घर

का परवशदवार बहत कम ऊचा था खब नीच तक झककर वह बाहर जनकला सर क बालो और बाहो पर आर की एक

हलकी सिद पतट बठ गई थी

खभ का सहारा लकर वह बदबदाया lsquorsquoजा ससाला सबह स अब तक दस पसरी भी नही हआ सरज कहा का कहा

चला गया ह कसी अनहोनी बातrsquorsquo

बात अनहोनी तो ह ही जठ बीत रहा ह आकाश म कही बादलो का नाम-जनशान ही नही अनदय विो अब तक लोगो

की धान-रोपाई परी हो जाती थी पर इस साल नदी-नाल सब सख पड ह खतो की जसचाई तो दरजकनार बीज की

कयाररया सखी जा रही ह छोर नाल-गलो क जकनार क घर महीनो स बद ह कोसी क जकनार ह गसाई का यह घर

पर इसकी भी चाल ऐसी जक लदद घोड की चाल को मात दती ह

चककी क जनचल खड म जछचछर-जछचछर की आवाज क साथ पानी को कारती हई मथानी चल रही थी जकतनी

धीमी आवाज अचछ खात-पीत गवालो क घर म दही की मथानी इसस जयादा शोर करती ह इसी मथानी का वह शोर

होता था जक आदमी को अपनी बात नही सनाई दती और अब तो भल नदी पार कोई बोल तो बात यहा सनाई द

जाय

छपप छपप छपप परानी िौजी पर को घरनो तक मोडकर गसाई पानी की गल क अदर चलन लगा कही कोई

सराख-जनकास हो तो बद कर द एक बद पानी भी बाहर न जाए बद-बद की कीमत ह इन जदनो परायः आधा िलाग

चलकर वह बाध पर पहचा नदी की परी चौडाई को घरकर पानी का बहाव घर की गल की ओर मोड जदया गया था

जकनार की जमटटी-घास लकर उसन बाध म एक-दो सथान पर जनकास बद जकया और जिर गल क जकनार-जकनार

चलकर घर पर आ गया

अदर जाकर उसन जिर पारो क वतत म िल हए आर को बहारकर ढरी म जमला जदया खपपर म अभी थोडा-बहत गह

शि था वह उठकर बाहर आया

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दर रासत पर एक आदमी सर पर जपसान रख उसकी ओर जा रहा था गसाई न उसकी सजवधा का खयाल कर वही स

आवाज द दी lsquorsquoह हो यहा लबर दर म आएगा दो जदन का जपसान अभी जमा ह ऊपर उमदजसह क घर म दख लोlsquorsquo

उस वयजि न मडन स पहल एक बार और परयतन जकया खब ऊच सवर म पकारकर वह बोलाrsquorsquoजररी ह जी पहल

हमारा लबर नही लगा दोगrsquorsquo

गसाई होठो-ही-होठो म मसकराया ससाला कस चीखता ह जस घर की आवाज इतनी हो जक म सन न सक कछ कम

ऊची आवाज म उसन हाथ जहलाकर उततर द जदया lsquorsquoयहा जररी का भी बाप रखा ह जी तम ऊपर चल जाओrsquorsquo

वह आदमी लौर गया

जमहल की छाव म बठकर गसाई न लकडी क जलत कद को खोदकर जचलम सलगाई और गड-गड करता धआ

उडाता रहा

खससर-खससर चककी का पार चल रहा था

जकर-जकर-जकर-जकर खपपर स दान जगरानवाली जचजडया पार पर रकरा रही थी

जछचछर-जछचछर की आवाज क साथ मथानी पानी को कार रही थी और कही कोई आवाज नही कोसी क बहाव म

भी कोई धवजन नही रती-पाथरो क बीच म रखन-रखन पतथर भी अपना सर उठाए आकाश को जनहार रह थ दोपहरी

ढलन पर भी इतनी तज धप कही जचरया भी नही बोलती जकसी पराणी का जपरय-अजपरय सवर नही

सखी नदी क जकनार बठा गसाई सोचन लगा कयो उस वयजि को लौरा जदया लौर तो वह जाता ही घर क अदर

रचच पड जपसान क थलो को दखकर दो-चार कषण की बातचीत का आसरा ही होता

कभी-कभी गसाई को यह अकलापन कारन लगता ह सखी नदी क जकनार का यह अकलापन नही जजदगी-भर साथ

दन क जलए जो अकलापन उसक दवार पर धरना दकर बठ गया ह वही जजस अपना कह सक ऐस जकसी पराणी का

सवर उसक जलए नही पालत कतत-जबली का सवर भी नही कया जठकाना ऐस माजलक का जजसका घर-दवार नही

बीबी-बचच नही खान-पीन का जठकाना नही

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घरनो तक उठी हई परानी िौजी पर क मोड को गसाई न खोला गल म चलत हए थोडा भाग भीग गया था पर इस

गमी म उस भीगी पर की यह शीतलता अचछी लगी पर की सलवरो को ठीक करत-करत गसाई न हकक की नली स

मह हराया उसक होठो म बाए कोन पर हलकी-सी मसकान उभर आई बीती बातो की याद गसाई सोचन लगा इसी

पर की बदौलत यह अकलापन उस जमला ह नही याद करन को मन नही करता परानीबहत परानी बात वह भल

गया ह पर हवालदार साहब की पर की बात उस नही भलती

ऐसी ही िौजी पर पहनकर हवालदार धरमजसह आया था लॉनदडरी की धली नोकदार करीजवाली पर वसी ही पर

पहनन की महतवाकाकषा लकर गसाई िौज म गया था पर िौज स लौरा तो पर क साथ-साथ जजदगी का अकलापन

भी उसक साथ आ गया

पर क साथ और भी जकतनी समजतया सबधद ह उस बार की छरटटयो की बात

कौन महीना हा बसाख ही था सर पर करास खखरी क करसर वाली काली जकशतीनमा रोपी को जतरछा रखकर

िौजी वदी वह पहली बार एनअल-लीव पर घर आया तो चीड वन की आग की तरह खबर इधर-उधर िल गई थी

बचच-बढ सभी उसस जमलन आए थ चाचा का गोठ एकदम भर गया था ठसाठसस जबसतर की नई एकदम साि

जगमग लाल-नीली धाररयोवाली दरी आगन म जबछानी पडी थी लोगो को जबठान क जलए खब याद ह आगन का

गोबर दरी म लग गया था बचच-बढ सभी आए थ जसिट चना-गड या हदवानी क तबाक का लोभ ही नही था कल

क शमील गसाई को इस नए रप म दखन का कौतहल भी था पर गसाई की आख उस भीड म जजस खोज रही थी

वह वहा नही थी

नाला पार क अपन गाव स भस क करया को खोजन क बहान दसर जदन लछमा आई थी पर गसाई उस जदन उसस

जमल न सका गाव क छोकर ही गसाई की जान को बवाल हो गए थ बढढ नरजसह परधान उन जदनो ठीक ही कहत थ

आजकल गसाई को दखकर सोबजनया का लडका भी अपनी िरी घर की रोपी को जतरछी पहनन लग गया ह जदन-

रात जबली क बचचो की तरह छोकर उसक पीछ लग रहत थ जसगरर-बीडी या गपशप क लोभ म

एक जदन बडी मजशकल स मौका जमला था उस लछमा को पात-पतल क जलए जगल जात दखकर वह छोकरो स

काकड क जशकार का बहाना बनाकर अकल जगल को चल जदया था गाव की सीमा स बहत दर कािल क पड क

नीच गसाई क घरन पर सर रखकर लरी-लरी लछमा कािल खा रही थी पक गदराए गहर लाल-लाल कािल

खल-खल म कािलो की छीना-झपरी करत गसाई न लछमा की मिी भीच दी थी रप-रप कािलो का गाढा लाल

रस उसकी पर पर जगर गया था लछमा न कहा था lsquorsquoइस यही रख जाना मरी परी बाह की कती इसम स जनकल

आएगीlsquorsquoवह जखलजखलाकर अपनी बात पर सवय ही हस दी थी

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परानी बात ndash कया कहा था गसाई न याद नही पडता तर जलए मखमल की कती ला दगा मरी सवा या कछ ऐसा

ही

पर लछमा को मखमल की कती जकसन पहनाई होगी ndash पहाडी पार क रमवा न जो तरी-जनसाण लकर उस बयाहन

आया था

lsquorsquoजजसक आग-पीछ भाई-बजहन नही माई-बाप नही परदश म बदक की नोक पर जान रखनवाल को छोकरी कस द द

हमrsquorsquoलछमा क बाप न कहा था

उसका मन जानन क जलए गसाई न रढ-जतरछ बात चलवाई थी

उसी साल मगजसर की एक ठडी उदास शाम को गसाई की यजनर क जसपाही जकसनजसह न कवारटर-मासरर सरोर क

सामन खड-खड उसस कहा था lsquorsquoहमार गाव क रामजसह न जजद की तभी छरटटया बढानी पडी ऌस साल उसकी

शादी थी खब अचछी औरत जमली ह यार शकल-सरत भी खब हएकदम पराखा बडी हसमख ह तमन तो दखा ही

होगा तमहार गाव क नजदीक की ही ह लछमा-लछमा कछ ऐसा ही नाम हlsquorsquo

गसाई को याद नही पडता कौन-सा बहाना बनाकर वह जकसनजसह क पास स चला आया था रम-ड थ उस जदन

हमशा आधा पग लनवाला गसाई उस जदन पशी करवाई थी ndash मलररया जपरकॉशन न करन क अपराध म सोचत-

सोचत गसाई बदबदाया lsquorsquoससाल एडजरनदरrsquorsquo

गसाई सोचन लगा उस साल छरटटयो म घर स जबदा होन स एक जदन पहल वह मौका जनकालकर लछमा स जमला था

lsquorsquoगगनाथजय की कसम जसा तम कहोग म वसा ही करगीrsquorsquoआखो म आस भरकर लछमा न कहा था

विो स वह सोचता आया ह कभी लछमा स भर होगी तो वह अवशय कहगा जक वह गगनाथ का जागर लगाकर

परायजशचत जरर कर ल दवी-दवताओ की झठी कसम खाकर उनदह नाराज करन स कया लाभ जजस पर भी गगनाथ का

कोप हआ वह कभी िल-िल नही पाया पर लछमा स कब भर होगी यह वह नही जानता लडकपन स सगी-साथी

नौकरी-चाकरी क जलए मदानो म चल गए ह गाव की ओर जान का उसका मन नही होता लछमा क बार म जकसी स

पछना उस अचछा नही लगता

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जजतन जदन नौकरी रही वह पलरकर अपन गाव नही आया एक सरशन स दसर सरशन का वालजरयरी टासिर

लनवालो की जलसर म नायक गसाईजसह का नाम ऊपर आता रहा ndash लगातार परह साल तक

जपछल बसाख म ही वह गाव लौरा परह साल बाद ररजवट म आन पर काल बालो को लकर गया था जखचडी बाल

लकर लौरा लछमा का हठ उस अकला बना गया

आज इस अकलपन म कोई होता जजस गसाई अपनी जजदगी की जकताब पढकर सनाता शबद-शबद अकषर-अकषर

जकतना दखा जकतना सना और जकतना अनभव जकया ह उसन

पर नदी जकनार यह तपती रत पनचककी की खरर-परर और जमहल की छाया म ठडी जचलम को जनषपरयोजन

गडगडाता गसाई और चारो ओर अनदय कोई नही एकदम जनजटन जनसतबध सनसान ndash

एकाएक गसाई का धयान ररा

सामन पहाडी क बीच की पगडड़ी स सर पर बोझा जलए एक नारी आकजत उसी ओर चली आ रही थी गसाई न सोचा

वही स आवाज दकर उस लौरा द कोसी न जचकन काई लग पतथरो पर कजठनाई स चलकर उस वहा तक आकर

कवल जनराश लौर जान को कयो वह बाधय कर दर स जचला-जचलाकर जपसान सवीकार करवान की लोगो की

आदत स वह तग आ चका था इस कारण आवाज दन को उसका मन नही हआ वह आकजत अब तक पगडडी

छोडकर नदी क मागट म आ पहची थी

चककी की बदलती आवाज को पहचानकर गसाई घर क अदर चला गया खपपर का अनाज समापत हो चका था

खपपर म एक कम अनदनवाल थल को उलरकर उसन अनदन का जनकास रोकन क जलए काठ की जचजडयो को उलरा कर

जदया जकर-जकर का सवर बद हो गया वह जदी-जदी आर को थल म भरन लगा घर क अदर मथानी की

जछचछर-जछचछर की आवाज भी अपकषाकत कम सनाई द रही थी कवल चककी ऊपरवाल पार की जघसरती हई

घरघराहर का हका-धीमा सगीत चल रहा था तभी गसाई न सना अपनी पीठ क पीछ घर क दवार पर इस सगीत स

भी मधर एक नारी का कठसवर lsquorsquoकब बारी आएगी जी रात की रोरी क जलए भी घर म आरा नही हlsquorsquo

सर पर जपसान रख एक सतरी उसस यह पछ रही थी गसाई को उसका सवर पररजचत-सा लगा चौककर उसन पीछ

मडकर दखा कपड म जपसान ढीला बधा होन क कारण बोझ का एक जसरा उसक मख क आग आ गया था गसाई

उस ठीक स नही दख पाया लजकन तब भी उसका मन जस आशजकत हो उठा अपनी शका का समाधान करन क

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जलए वह बाहर आन को मडा लजकन तभी जिर अदर जाकर जपसान क थलो को इधर-उधर रखन लगा काठ की

जचजडया जकर-जकर बोल रही थी और उसी गजत क साथ गसाई को अपन हदय की धडकन का आभास हो रहा था

घर क छोर कमर म चारो ओर जपस हए अनदय का चणट िल रहा था जो अब तक गसाई क पर शरीर पर छा गया था

इस कजतरम सिदी क कारण वह वधद-सा जदखाई द रहा था सतरी न उस नही पहचाना

उसन दबारा व ही शबद दहराए वह अब भी तज धप म बोझा सर पर रख हए गसाई का उततर पान को आतर थी

शायद नकारातमक उततर जमलन पर वह उलर पाव लौरकर जकसी अनदय चककी का सहारा लती

दसरी बार क परशन को गसाई न राल पाया उततर दना ही पडा lsquorsquoयहा पहल ही रीला लगा ह दर तो होगी हीlsquorsquoउसन

दब-दब सवर म कह जदया

सतरी न जकसी परकार की अननय-जवनय नही की शाम क आर का परबध करन क जलए वह दसरी चककी का सहारा लन

को लौर पडी

गसाई झककर घर स बाहर जनकला मडत समय सतरी की एक झलक दखकर उसका सदह जवशवास म बदल गया था

हताश-सा वह कछ कषणो तक उस जात हए दखता रहा और जिर अपन हाथो तथा जसर पर जगर हए आर को झाडकर

एक-दो कदम आग बढा उसक अदर की जकसी अजञात शजि न जस उस वापस जाती हई उस सतरी को बलान को

बाधय कर जदया आवाज दकर उस बला लन को उसन मह खोला परत आवाज न द सका एक जझझक एक

असमथटता थी जो उसका मह बद कर रही थी वह सतरी नदी तक पहच चकी थी गसाई क अतर म तीवर उथल-पथल

मच गई इस बार आवग इतना तीवर था जक वह सवय को नही रोक पाया लडखडाती आवाज म उसन पकारा

lsquorsquoलछमाrsquorsquo

घबराहर क कारण वह पर जोर स आवाज नही द पाया था सतरी न यह आवाज नही सनी इस बार गसाई न सवसथ

होकर पनः पकारा lsquorsquoलछमाrsquorsquo

लछमा न पीछ मडकर दखा मायक म उस सभी इसी नाम स पकारत थ यह सबोधन उसक जलए सवाभाजवक था परत

उस शका शायद यह थी जक चककीवाला एक बार जपसान सवीकार न करन पर भी दबारा उस बला रहा ह या उस

कवल भरम हआ ह उसन वही स पछा lsquorsquoमझ पकार रह ह जी

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गसाई न सयत सवर म कहा lsquorsquoहा ल आ हो जाएगाlsquorsquo

लछमा कषण-भर रकी और जिर घर की ओर लौर आई

अचानक साकषातकार होन का मौका न दन की इचछा स गसाई वयसतता का परदशटन करता हआ जमहल की छाह म

चला गया

लछमा जपसान का थला घर क अदर रख आई बाहर जनकलकर उसन आचल क कोर स मह पोछा तज धप म चलन

क कारण उसका मह लाल हो गया था जकसी पड की छाया म जवशराम करन की इचछा स उसन इधर-उधर दखा

जमहल क पड की छाया म घर की ओर पीठ जकए गसाई बठा हआ था जनकर सथान म दाजडम क एक पड की छाह

को छोडकर अनदय कोई बठन लायक सथान नही था वह उसी ओर चलन लगी

गसाई की उदारता क कारण ॠणी-सी होकर ही जस उसन जनकर आत-आत कहा lsquorsquoतमहार बाल-बचच जीत रह

घरवारजी बडा उपकार का काम कर जदया तमन ऊपर क घर म भी जान जकतनी दर म लबर जमलताlsquorsquo

अजाज सतजत क परजत जदए गए आशीवटचनो को गसाई न मन-ही-मन जवनोद क रप म गरहण जकया इस कारण उसकी

मानजसक उथल-पथल कछ कम हो गई लछमा उसकी ओर दख इसस पवट ही उसन कहा lsquorsquoजीत रह तर बाल-बचच

लछमा मायक कब आईrsquorsquo

गसाई न अतर म घमडती आधी को रोककर यह परशन इतन सयत सवर म जकया जस वह भी अनदय दस आदजमयो की

तरह लछमा क जलए एक साधारण वयजि हो

दाजडम की छाया म पात-पतल झाडकर बठत लछमा न शजकत दजि स गसाई की ओर दखा कोसी की सखी धार

अचानक जल-पलाजवत होकर बहन लगती तो भी लछमा को इतना आशचयट न होता जजतना अपन सथान स कवल

चार कदम की दरी पर गसाई को इस रप म दखन पर हआ जवसमय स आख िाडकर वह उस दख जा रही थी जस

अब भी उस जवशवास न हो रहा हो जक जो वयजि उसक सममख बठा ह वह उसका पवट-पररजचत गसाई ही ह

lsquorsquoतमrsquorsquoजान लछमा कया कहना चाहती थी शि शबद उसक कठ म ही रह गए

lsquorsquoहा जपछल साल परन स लौर आया था वि कारन क जलए यह घर लगवा जलयाlsquorsquoगसाई न ही पछा lsquorsquoबाल-

बचच ठीक हrsquorsquo

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आख जमीन पर जरकाए गरदन जहलाकर सकत स ही उसन बचचो की कशलता की सचना द दी जमीन पर जगर एक

दाजडम क िल को हाथो म लकर लछमा उसकी पखजडयो को एक-एक कर जनरददशय तोडन लगी और गसाई पतली

सीक लकर आग को करदता रहा

बातो का करम बनाए रखन क जलए गसाई न पछा lsquorsquoत अभी और जकतन जदन मायक ठहरनवाली हrsquorsquo

अब लछमा क जलए अपन को रोकना असभव हो गया रप-रप-रप वह सर नीचा जकए आस जगरान लगी जससजकयो

क साथ-साथ उसक उठत-जगरत कधो को गसाई दखता रहा उस यह नही सझ रहा था जक वह जकन शबदो म अपनी

सहानभजत परकर कर

इतनी दर बाद सहसा गसाई का धयान लछमा क शरीर की ओर गया उसक गल म चरऊ (सहाग-जचहन) नही था

हतपरभ-सा गसाई उस दखता रहा अपनी वयावहाररक अजञानता पर उस बहद झझलाहर हो रही थी

आज अचानक लछमा स भर हो जान पर वह उन सब बातो को भल गया जजनदह वह कहना चाहता था इन कषणो म

वह कवल-मातर शरोता बनकर रह जाना चाहता था गसाई की सहानभजतपणट दजि पाकर लछमा आस पोछती हई

अपना दखडा रोन लगी lsquorsquoजजसका भगवान नही होता उसका कोई नही होता जठ-जठानी स जकसी तरह जपड छडाकर

यहा मा की बीमारी म आई थी वह भी मझ छोडकर चली गई एक अभागा मझ रोन को रह गया ह उसी क जलए

जीना पड रहा ह नही तो पर पर पतथर बाधकर कही डब मरती जजाल करताlsquorsquo

lsquorsquoयहा काका-काकी क साथ रह रही होrsquorsquoगसाई न पछा

lsquorsquoमजशकल पडन पर कोई जकसी का नही होता जी बाबा की जायदाद पर उनकी आख लगी ह सोचत ह कही म हक

न जमा ल मन साि-साि कह जदया मझ जकसी का कछ लना-दना नही जगलात का लीसा ढो-ढोकर अपनी गजर

कर लगी जकसी की आख का कारा बनकर नही रह गीlsquorsquo

गसाई न जकसी परकार की मौजखक सवदना नही परकर की कवल सहानभजतपणट दजि स उस दखता-भर रहा दाजडम क

वकष स पीठ जरकार लछमा घरन मोडकर बठी थी गसाई सोचन लगा परह-सोलह साल जकसी की जजदगी म अतर

लान क जलए कम नही होत समय का यह अतराल लछमा क चहर पर भी एक छाप छोड गया था पर उस लगा उस

छाप क नीच वह आज भी परह विट पहल की लछमा को दख रहा ह

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lsquorsquoजकतनी तज धप ह इस सालrsquorsquoलछमा का सवर उसक कानो म पडा परसग बदलन क जलए ही जस लछमा न यह

बात जान-बझकर कही हो

और अचानक उसका धयान उस ओर चला गया जहा लछमा बठी थी दाजडम की िली-िली अधढकी डालो स

छनकर धप उसक शरीर पर पड रही थी सरज की एक पतली जकरन न जान कब स लछमा क माथ पर जगरी हई एक

लर को सनहरी रगीनी म डबा रही थी गसाई एकरक उस दखता रहा

lsquorsquoदोपहर तो बीत चकी होगीrsquorsquoलछमा न परशन जकया तो गसाई का धयान ररा lsquorsquoहा अब तो दो बजनवाल होगrsquorsquoउसन

कहा lsquorsquoउधर धप लग रही हो तो इधर आ जा छाव मlsquorsquoकहता हआ गसाई एक जमहाई लकर अपन सथान स उठ गया

lsquorsquoनही यही ठीक हrsquorsquoकहकर लछमा न गसाई की ओर दखा लजकन वह अपनी बात कहन क साथ ही दसरी ओर

दखन लगा था

घर म कछ दर पहल डाला हआ जपसान समाजपत पर था नबर पर रख हए जपसान की जगह उसन जाकर जदी-जदी

लछमा का अनाज खपपर म खाली कर जदया

धीर-धीर चलकर गसाई गल क जकनार तक गया अपनी अजली स भर-भरकर उसन पानी जपया और जिर पास ही

एक बजर घर क अदर जाकर पीतल और अलमजनयम क कछ बतटन लकर आग क जनकर लौर आया

आस-पास पडी हई सखी लकजडयो को बरोरकर उसन आग सलगाई और एक काजलख पती बरलोई म पानी रखकर

जात-जात लछमा की ओर मह कर कह गया lsquorsquoचाय का रम भी हो रहा ह पानी उबल जाय तो पतती डाल दना

पजडया म पडी हlsquorsquo

लछमा न उततर नही जदया वह उस नदी की ओर जानवाली पगडडी पर जाता हआ दखती रही

सडक जकनार की दकान स दध लकर लौरत-लौरत गसाई को कािी समय लग गया था वापस आन पर उसन दखा

एक छः-सात विट का बचचा लछमा की दह स सरकर बठा हआ ह

बचच का पररचय दन की इचछा स जस लछमा न कहा lsquorsquoइस छोकर को घडी-भर क जलए भी चन नही जमलता जान

कस पछता-खोजता मरी जान खान को यहा भी पहच गया हlsquorsquo

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गसाई न लकषय जकया जक बचचा बार-बार उसकी दजि बचाकर मा स जकसी चीज क जलए जजद कर रहा ह एक बार

झझलाकर लछमा न उस जझडक जदया lsquorsquoचप रह अभी लौरकर घर जाएग इतनी-सी दर म कयो मरा जा रहा हrsquorsquo

चाय क पानी म दध डालकर गसाई जिर उसी बजर घर म गया एक थाली म आरा लकर वह गल क जकनार बठा-

बठा उस गथन लगा जमहल क पड की ओर आत समय उसन साथ म दो-एक बतटन और ल जलए

लछमा न बरलोई म दध-चीनी डालकर चाय तयार कर दी थी एक जगलास एक एनमल का मग और एक

अलमजनयमक मसजरन म गसाई न चाय डालकर आपस म बार ली और पतथरो स बन बढग च ह क पास बठकर

रोजरया बनान का उपकरम करन लगा

हाथ का चाय का जगलास जमीन पर जरकाकर लछमा उठी आर की थाली अपनी ओर जखसकाकर उसन सवय रोरी

पका दन की इचछा ऐस सवर म परकर की जक गसाई ना न कह सका वह खडा-खडा उस रोरी पकात हए दखता रहा

गोल-गोल जडजबया-सरीखी रोजरया च ह म जखलन लगी विो बाद गसाई न ऐसी रोजरया दखी थी जो अजनजशचत

आकार की िौजी लगर की चपाजतयो या सवय उसक हाथ स बनी बडौल रोजरयो स एकदम जभनदन थी आर की लोई

बनात समय लछमा क छोर-छोर हाथ बडी तजी स घम रह थ कलाई म पहन हए चादी क कड ज़ब कभी आपस म

रकरा जाततो खन-खन का एक अतयत मधर सवर जनकलता चककी क पार पर रकरानवाली काठ की जचजडयो का

सवर जकतना नीरस हो सकता ह यह गसाई न आज पहली बार अनभव जकया

जकसी काम स वह बजर घर की ओर गया और बडी दर तक खाली बतटन-जडबबो को उठाता-रखता रहा

वह लौरकर आया तो लछमा रोरी बनाकर बतटनो को समर चकी थी और अब आर म सन हाथो को धो रही थी

गसाई न बचच की ओर दखा वह दोनो हाथो म चाय का मग थाम रकरकी लगाकर गसाई को दख जा रहा था

लछमा न आगरह क सवर म कहा lsquorsquoचाय क साथ खानी हो तो खा लो जिर ठडी हो जाएगीlsquorsquo

lsquorsquoम तो अपन रम स ही खाऊगा यह तो बचच क जलए rsquorsquoसपि कहन म उस जझझक महसस हो रही थी जस बचच क

सबध म जचजतत होन की उसकी चिा अनजधकार हो

lsquorsquoन-न जी वह तो अभी घर स खाकर ही आ रहा ह म रोजरया बनाकर रख आई थीrsquorsquoअतयत सकोच क साथ लछमा

न आपजतत परकर कर दी

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lsquorsquoअऽऽ यो ही कहती ह कहा रखी थी रोजरया घर मrsquorsquoबचच न रआसी आवाज म वासतजवक वयजि की बत सन रहा

था और रोजरयो को दखकर उसका सयम ढीला पड गया था

lsquorsquoचपrsquorsquoआख तररकर लछमा न उस डार जदया बचच क इस कथन स उसकी जसथजत हासयासपद हो गई थी इस कारण

लजजा स उसका मह आरि हो उठा

lsquorsquoबचचा ह भख लग आई होगी डारन स कया िायदाrsquorsquoगसाई न बचच का पकष लकर दो रोजरया उसकी ओर बढा

दी परत मा की अनमजत क जबना उनदह सवीकारन का साहस बचच को नही हो रहा था वह ललचाई दजि स कभी

रोजरयो की ओर कभी मा की ओर दख लता था

गसाई क बार-बार आगरह करन पर भी बचचा रोजरया लन म सकोच करता रहा तो लछमा न उस जझडक जदया lsquorsquoमर

अब ल कयो नही लता जहा जाएगा वही अपन लचछन जदखाएगाrsquorsquo

इसस पहल जक बचचा रोना शर कर द गसाई न रोजरयो क ऊपर एक रकडा गड का रखकर बचच क हाथो म जदया

भरी-भरी आखो स इस अनोख जमतर को दखकर बचचा चपचाप रोरी खान लगा और गसाई कौतकपणट दजि स उसक

जहलत हए होठो को दखता रहा

इस छोर-स परसग क कारण वातावरण म एक तनाव-सा आ गया था जजस गसाई और लछमा दोनो ही अनभव कर रह

सवय भी एक रोरी को चाय म डबाकर खात-खात गसाई न जस इस तनाव को कम करन की कोजशश म ही मसकराकर

कहा lsquorsquoलोग ठीक ही कहत ह औरत क हाथ की बनी रोजरयो म सवाद ही दसरा होता हlsquorsquo

लछमा न करण दजि स उसकी ओर दखा गसाई हो-होकर खोखली हसी हस रहा था

lsquorsquoकछ साग-सबजी होती तो बचारा एक-आधी रोरी और खा लताlsquorsquoगसाई न बचच की ओर दखकर अपनी जववशता

परकर की

lsquorsquoऐसी ही खान-पीनवाल की तकदीर लकर पदा हआ होता तो मर भाग कयो पडता दो जदन स घर म तल-नमक नही

ह आज थोड पस जमल हआज ल जाऊगी कछ सौदाlsquorsquo

हाथ स अपनी जब ररोलत हए गसाई न सकोचपणट सवर म कहा lsquorsquoलछमाrsquorsquo

लछमा न जजजञासा स उसकी ओर दखा गसाई न जब स एक नोर जनकालकर उसकी ओर बढात हए कहा lsquorsquoल काम

चलान क जलए यह रख लमर पास अभी और ह परसो दफतर स मनीआडटर आया थाlsquorsquo

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lsquorsquoनही-नही जी काम तो चल ही रहा ह म इस मतलब स थोड कह रही थी यह तो बात चली थी तो मन

कहाrsquorsquoकहकर लछमा न सहायता लन स इनदकार कर जदया

गसाई को लछमा का यह वयवहार अचछा नही लगा रखी आवाज म वह बोला lsquorsquoदःख-तकलीि क वि ही आदमी

आदमी क काम नही आया तो बकार ह ससाला जकतना कमाया जकतना िका हमन इस जजदगी म ह कोई जहसाब

पर कया िायदा जकसी क काम नही आया इसम अहसान की कया बात ह पसा तो जमटटी ह ससाला जकसी क काम

नही आया तो जमटटी एकदम जमटटीrsquorsquo

परनदत गसाई क इस तकट क बावजद भी लछमा अडी रही बचच क सर पर हाथ िरत हए उसन दाशटजनक गभीरता स

कहा lsquorsquoगगनाथ दाजहन रह तो भल-बर जदन जनभ ही जात ह जी पर का कया ह घर क खपपर की तरह जजतना डालो

कम हो जाय अपन-पराय परम स हस-बोल द तो वह बहत ह जदन कारन क जलएlsquorsquo

गसाई न गौर स लछमा क मख की ओर दखा विो पहल उठ हए जवार और तिान का वहा कोई जचहन शि नही था

अब वह सागर जस सीमाओ म बधकर शात हो चका था

रपया लन क जलए लछमा स अजधक आगरह करन का उसका साहस नही हआ पर गहर असतोि क कारण बझा-

बझा-सा वह धीमी चाल स चलकर वहा स हर गया सहसा उसकी चाल तज हो गई और घर क अदर जाकर उसन

एक बार शजकत दजि स बाहर की ओर दखा लछमा उस ओर पीठ जकए बठी थी उसन जदी-जदी अपन नीजी

आर क रीन स दो-ढाई सर क करीब आरा जनकालकर लछमा क आर म जमला जदया और सतोि की एक सास लकर

वह हाथ झाडता हआ बाहर आकर बाध की ओर दखन लगा ऊपर बाध पर जकसी को घमत हए दखकर उसन हाक

दी शायद खत की जसचाई क जलए कोई पानी तोडना चाहता था

बाध की ओर जान स पहल वह एक बार लछमा क जनकर गया जपसान जपस जान की सचना उस दकर वापस लौरत

हए जिर जठठककर खडा हो गया मन की बात कहन म जस उस जझझक हो रही हो अरक-अरककर वह बोला

lsquorsquoलछमा lsquorsquo

लछमा न जसर उठाकर उसकी ओर दखा गसाई को चपचाप अपनी ओर दखत हए पाकर उस सकोच होन लगा वह

न जान कया कहना चाहता हइस बात की आशका स उसक मह का रग अचानक िीका होन लगा पर गसाई न

जझझकत हए कवल इतना ही कहा lsquorsquoकभी चार पस जड ज़ाए तो गगनाथ का जागर लगाकर भल-चक की मािी माग

लना पत-पररवारवालो को दवी-दवता क कोप स बचा रहना चाजहएlsquorsquoलछमा की बात सनन क जलए वह नही रका

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पानी तोडनवाल खजतहार स झगडा जनपराकर कछ दर बाद लौरत हए उसन दखा सामनवाल पहाड की पगडडी पर

सर पर आरा जलए लछमा अपन बचच क साथ धीर-धीर चली जा रही थी वह उनदह पहाडी क मोड तक पहचन तक

रकरकी बाध दखता रहा

घर क अदर काठ की जचजडया अब भी जकर-जकर आवाज कर रही थी चककी का पार जखससर-जखससर चल रहा था

और मथानी की पानी कारन की आवाज आ रही थी और कही कोई सवर नही सब सनसान जनसतबध

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आकाशदीि

जयशकर lsquoपरसादrsquo

ldquoबदीrsquorsquo

lsquorsquoकया ह सोन दोlsquorsquo

lsquorsquoमि होना चाहत होrsquorsquo

lsquorsquoअभी नही जनरा खलन पर चप रहोlsquorsquo

lsquorsquoजिर अवसर न जमलगाlsquorsquo

lsquorsquoबडा शीत ह कही स एक कबल डालकर कोई शीत स मि करताlsquorsquo

lsquorsquoआधी की सभावना ह यही एक अवसर ह आज मर बधन जशजथल हlsquorsquo

lsquorsquoतो कया तम भी बदी होrsquorsquo

lsquorsquoहा धीर बोलो इस नाव पर कवल दस नाजवक और परहरी हlsquorsquo

lsquorsquoशसतर जमलगाrsquorsquo

lsquorsquoजमल जाएगा पोत स सबदध रजज कार सकोगrsquorsquo

lsquorsquoहाlsquorsquo

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समर म जहलोर उठन लगी दोनो बदी आपस म रकरान लग पहल बदी न अपन को सवततर कर जलया दसर का बधन

खोलन का परयतन करन लगा लहरो क धकक एक-दसर को सपशट स पलजकत कर रह थ मजि की आशा-सनह का

असभाजवत आजलगन दोनो ही अधकार म मि हो गए दसर बदी न हिाटजतरक स उसको गल स लगा जलया सहसा

उस बदी न कहा-lsquorsquoयह कया तम सतरी होrsquorsquo

lsquorsquoकया सतरी होना कोई पाप हrsquorsquondashअपन को अलग करत हए सतरी न कहा

lsquorsquoशसतर कहा ह ndash तमहारा नामrsquorsquo

lsquorsquoचपाlsquorsquo

तारक-खजचत नील अबर और समर क अवकाश म पवन ऊधम मचा रहा था अधकार स जमलकर पवन दि हो रहा

था समर म आदोलन था नौका लहरो म जवकल थी सतरी सतकट ता स लढकन लगी एक मतवाल नाजवक क शरीर स

रकराती हई सावधानी स उसका कपाण जनकालकर जिर लढकत हए बनददी क समीप पहच गई सहसा पोत स पथ-

परदशटक न जचलाकर कहा ndashlsquorsquoआधीrsquorsquo

आपजतत-सचक तयट बजन लगा सब सावधान होन लग बदी यवक उसी तरह पडा रहा जकसी न रससी पकडी कोई

पाल खोल रहा था पर यवक बदी ढलककर उस रजज क पास पहचा जो पोत स सलगन थी तार ढक गए तरग

उदवजलत हई समर गरजन लगा भीिण आधी जपशाजचनी क समान नाव को अपन हाथो म लकर कदक-करीडा और

अटटहास करन लगी

एक झरक क साथ ही नाव सवततर थी उस सकर म भी दोनो बदी जखलजखला कर हस पड आधी क हाहाकार म उस

कोई न सन सका

अनत जलजनजध म उिा का मधर आलोक िर उठा सनहली जकरणो और लहरो की कोमल सजि मसकरान लगी

सागर शात था नाजवको न दखा पोत का पता नही बदी मि ह

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नायक न कहा ndashlsquorsquoबधगपत तमको मि जकसन जकयाrsquorsquo

कपाण जदखाकर बधगपत न कहा ndashlsquorsquoइसनlsquorsquo

नायक न कहा ndashlsquorsquoतो तमह जिर बदी बनाऊ गाlsquorsquo

lsquorsquoजकसक जलए पोताधयकष मजणभर अतल जल म होगा ndash नायक अब इस नौका का सवामी म ह lsquorsquo

lsquorsquoतम जलदसय बधगपत कदाजप नहीlsquorsquondashचौककर नायक न कहा और अपना कपाण ररोलन लगा चपा न इसक

पहल उस पर अजधकार कर जलया था वह करोध स उछल पडा

lsquorsquoतो तम दवदवयदध क जलए परसतत हो जाओ जो जवजयी होगा वह सवामी होगाlsquorsquondashइतना कहकर बधगपत न कपाण दन

का सकत जकया चपा न कपाण नायक क हाथ म द जदया

भीिण घात-परजतघात आरभ हआ दोनो कशल दोनो तवररत गजतवाल थ बडी जनपणता स बधगपत न अपना कपाण

दातो स पकड़कर अपन दोनो हाथ सवततर कर जलए चपा भय और जवसमय स दखन लगी नाजवक परसनदन हो गए परत

बधगपत न लाघव स नायक का कपाणवाला हाथ पकड़ जलया और जवकर हकार स दसरा हाथ कजर म डाल उस जगरा

जदया दसर ही कषण परभात की जकरणो म बधगपत का जवजयी कपाण उसक हाथो म चमक उठा नायक की कातर

आख पराण-जभकषा मागन लगी

बधगपत न कहा ndashlsquorsquoबोलो अब सवीकार ह जक नहीrsquorsquo

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lsquorsquoम अनचर ह वरणदव की शपथ म जवशवासघात नही कर गाlsquorsquoबधगपत न उस छोड़ जदया

चपा न यवक जलदसय क समीप आकर उसक कषतो को अपनी जसनगध दजि और कोमल करो स वदना-जवहीन कर

जदया बधगपत क सगजठत शरीर पर रि-जबद जवजय-जतलक कर रह थ

जवशराम लकर बधगपत न पछाrsquorsquoहम लोग कहा होगrsquorsquo

lsquorsquoबालीदवीप स बहत दर सभवतः एक नवीन दवीप क पास जजसम अभी हम लोगो का बहत कम आना-जाना होता ह

जसहल क वजणको का वहा पराधानदय हlsquorsquo

lsquorsquoजकतन जदनो म हम लोग वहा पहचगrsquorsquo

lsquorsquoअनकल पवन जमलन पर दो जदन म तब तक क जलए खादय का अभाव न होगाlsquorsquo

सहसा नायक न नाजवको को डाड़ लगान की आजञा दी और सवय पतवार पकड़कर बठ गया बधगपत क पछन पर

उसन कहा ndashlsquorsquoयहा एक जलमगन शलखड ह सावधान न रहन स नाव रकरान का भय हlsquorsquo

lsquorsquoतमह इन लोगो न बदी कयो बनायाrsquorsquo

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lsquorsquoवाजणक मजणभर की पाप-वासना नlsquorsquo

lsquorsquoतमहारा घर कहा हrsquorsquo

lsquorsquoजाहनवी क तर पर चपा-नगरी की एक कषजतरय बाजलका ह जपता इसी मजणभर क यहा परहरी का काम करत थ माता

का दहावसान हो जान पर म भी जपता क साथ नाव पर ही रहन लगी आठ बरस स समर ही मरा घर ह तमहार

आकरमण क समय मर जपता न ही सात दसयओ को मारकर जल-समाजध ली एक मास हआ म इस नील नभ क नीच

नील जलजनजध क ऊपर एक भयानक अनतता म जनससहाय ह -अनाथ ह मजणभर न मझस एक जदन घजणत परसताव

जकया मन उस गाजलया सनाई उसी जदन स बदी बना दी गईlsquorsquondashचपा रोि स जल रही थी

lsquorsquoम भी तामरजलजपत का एक कषजतरय ह चपा परत दभाटगय स जलदसय बनकर जीवन जबताता ह अब तम कया करोगीrsquorsquo

lsquorsquoम अपन अदि को अजनजदटि ही रहन दगी वह जहा ल जाएlsquorsquondashचपा की आख जनससीम परदश म जनरददशय थी जकसी

आकाकषा क लाल डोर न थ धवल अपागो म बालको क सदश जवशवास था हतया-वयवसायी दसय भी उस दखकर

काप गया उसक मन म एक सभरमपणट शरधदा यौवन की पहली लहरो को जगान लगी समर-वकष पर जवलबमयी राग-

रजजत सधया जथरकन लगी चपा क असयत कतल उसकी पीठ पर जबखर थ ददाटनदत दसय न दखा अपनी मजहमा म

अलौजकक एक तरण बाजलका वह जवसमय स अपन हदय को ररोलन लगा उस एक नई वसत का पता चला वह

थी ndash कोमलता

उसी समय नायक न कहा ndashlsquorsquoहम लोग दवीप क पास पहच गएlsquorsquo

बला स नाव रकराई चपा जनभीकता स कद पडी माझी भी उतर बधगपत न कहा ndashlsquorsquoजब इसका कोई नाम नही ह तो

हम लोग इस चपा-दवीप कहगlsquorsquo

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चपा हस पडी

पाच बरस बाद ndash

शरद क धवल नकषतर नील गगन म झलमला रह थ चर की उजजवल जवजय पर अतररकष म शरदलकषमी न आशीवाटद

क िलो और खीलो को जबखर जदया

चपा क एक उचचसौध पर बठी हई तरणी चपा दीपक जला रही थी

बड यतन स अभररक की मजिा म दीप धर कर उसन अपनी सकमार ऊ गजलयो स डोरी खीची वह दीपाधार ऊपर

चढन लगा भोली-भोली आख उस ऊपर चढत हिट स दख रही थी डोरी धीर-धीर खीची गई चपा की कामना थी जक

उसका आकाशदीप नकषतरो स जहलजमल जाए जकत वसा होना असभव था उसन आशाभरी आख जिरा ली

सामन जल-राशी का रजत शरगार था वरण बाजलकाओ क जलए लहरो स हीर

और नीलम की करीडा शल-मालाए बन रही थी ndash और व मायाजवनी छलनाए ndash

अपनी हसी का कलनाद छोड़कर जछप जाती थी दर-दर स धीवरो का

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वशी-झनकार उनक सगीत-सा मखररत होता था चपा न दखा जक तरल सकल जलराजश म उसक कदील का परजतजबब

असतवयसत था वह अपनी पणटता क जलए सकड़ो चककर कारता था वह अनमनी होकर उठ खडी हई जकसी को

पास न दखकर पकारा ndashlsquorsquoजयाrsquorsquo

एक शयामा यवती सामन आकर खडी हई वह जगली थी नील नभोमडल ndash स मख म शदध नकषतरो की पजि क समान

उसक दात हसत ही रहत वह चपा को रानी कहती बधगपत की आजञा थी

lsquorsquoमहानाजवक कब तक आयग बाहर पछो तोlsquorsquoचपा न कहा जया चली गई

दरागत पवन चपा क अचल म जवशराम लना चाहता था उसक हदय म गदगदी हो रही थी आज न जान कयो वह

बसध थी एक दीघटकाय दढ परि न उसकी पीठ पर हाथ रख चमतकत कर जदया उसन जिर कर कहा ndashlsquorsquoबधगपतrsquorsquo

lsquorsquoबावली हो कया यहा बठी हई अभी तक दीप जला रही हो तमह यह काम करना हrsquorsquo

lsquorsquoकषीरजनजधशायी अनत की परसनदनता क जलए कया दाजसयो स आकाशदीप जलवाऊ rsquorsquo

lsquorsquoहसी आती ह तम जकसको दीप जलाकर पथ जदखलाना चाहती हो उसको जजसको तमन भगवान मान जलया हrsquorsquo

lsquorsquoहा वह भी कभी भरकत ह भलत ह नही तो बधगपत को इतना ऐशवयट कयो दतrsquorsquo

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lsquorsquoतो बरा कया हआ इस दवीप की अधीशवरी चपारानीrsquorsquo

lsquorsquoमझ इस बदीगह स मि करो अब तो बाली जावा और समातरा का वाजणजय कवल तमहार ही अजधकार म ह

महानाजवक परत मझ उन जदनो की समजत सहावनी लगती ह जब तमहार पास एक ही नाव थी और चपा क उपकल म

पणय लाद कर हम लोग सखी जीवन जबतात थ ndash इस जल म अगजणत बार हम लोगो की तरी आलोकमय परभात म

ताररकाओ की मधर जयोजत म ndash जथरकती थी बधगपत उस जवजन अनत म जब माझी सो जात थ दीपक बझ जात थ

हम-तम पररशरम स थककर पालो म शरीर लपरकर एक-दसर का मह कयो दखत थ वह नकषतरो की मधर छाया lsquorsquo

lsquorsquoतो चपा अब उसस भी अचछ ढग स हम लोग जवचर सकत ह तम मरी पराणदातरी हो मरी सवटसव होlsquorsquo

lsquorsquoनही ndash नही तमन दसयवजतत छोड़ दी परत हदय वसा ही अकरण सतषण और जवलनशील ह तम भगवान क नाम

पर हसी उडात हो मर आकाशदीप पर वयग कर रह हो नाजवक उस परचड आधी म परकाश की एक-एक जकरण क

जलए हम लोग जकतन वयाकल थ मझ समरण ह जब म छोरी थी मर जपता नौकरी पर समर म जात थ ndash मरी माता

जमटटी का दीपक बास की जपरारी म भागीरथी क तर पर बास क साथ ऊ च राग दती थी उस समय वह पराथटना करती

ndashlsquorsquoभगवान मर पथ-भरि नाजवक को अधकार म ठीक पथ पर ल चलनाlsquorsquoऔर जब मर जपता बरसो पर लौरत तो

कहत ndashlsquorsquoसाधवी तरी पराथटना स भगवान न सकरो म मरी रकषा की हlsquorsquoवह गदगद हो जाती मरी मा आह नाजवक यह

उसी की पणय-समजत ह मर जपता वीर जपता की मतय क जनषठर कारण जल-दसय हर जाओlsquorsquondashसहसा चपा का मख

करोध स भीिण होकर रग बदलन लगा महानाजवक न कभी यह रप न दखा था वह ठठाकर हस पडा

lsquorsquoयह कया चपा तम असवसथ हो जाओगी सो रहोlsquorsquondashकहता हआ चला गया चपा मिी बाध उनदमाजदनी-सी घमती

रही

जनजटन समर क उपकल म वला स रकरा कर लहर जबखर जाती थी पजशचम का पजथक थक गया था उसका मख

पीला पड़ गया अपनी शात गभीर हलचल म जलजनजध जवचार म जनमगन था वह जस परकाश की उनदमजलन जकरणो स

जवरि था

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चपा और जया धीर-धीर उस तर पर आकर खडी हो गई तरग स उठत हए पवन न उनक वसन को असत-वयसत कर

जदया जया क सकत स एक छोरी-सी नौका आई दोनो क उस पर बठत ही नाजवक उतर गया जया नाव खन लगी

चपा मगध-सी समर क उदास वातावरण म अपन को जमजशरत कर दना चाहती थी

lsquorsquoइतना जल इतनी शीतलता हदय की पयास न बझी पी सक गी नही तो जस वला म चोर खाकर जसध जचला

उठता ह उसी क समान रोदन कर

या जलत हए सवणट-गोलक सदश अनत जल म डबकर बझ जाऊ rsquorsquondashचपा क दखत-दखत पीडा और जवलन स

आरि जबब धीर-धीर जसध म चौथाई-आधा जिर सपणट जवलीन हो गया एक दीघट जनशवास लकर चपा न मह िर

जलया दखा तो महानाजवक का बजरा उसक पास ह बधगपत न झककर हाथ बढाया चपा उसक सहार बजर पर चढ

गईदोनो पास-पास बठ गए

lsquorsquoइतनी छोरी नाव पर इधर घमना ठीक नही पास ही वह जलमगन शलखड ह कही नाव रकरा जाती या ऊपर चढ

ज़ाती चपा तोrsquorsquo

lsquorsquoअचछा होता बधगपत जल म बदी होना कठोर पराचीरो स तो अचछा हlsquorsquo

lsquorsquoआह चपा तम जकतनी जनदटय हो बधगपत को आजञा दकर दखो तो वह कया नही कर सकता जो तमहार जलए नए

दवीप की सजि कर सकता ह नई परजा खोज सकता ह नए राजय बना सकता ह उसकी परीकषा लकर दखो तो कहो

चपा वह कपाण स अपना हदय-जपड जनकाल अपन हाथो अतल जल म जवसजटन कर दlsquorsquondashमहानाजवक ndash जजसक

नाम स बाली जावा और चपा का आकाश गजता था पवन थराटता था ndash घरनो क बल चपा क सामन छलछलाई

आखो स बठा था

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सामन शलमाला की चोरी पर हररयाली म जवसतत जल-दश म नील जपगल सधया परकजत की सहदय कपना जवशराम

की शीतल छाया सवपनलोक का सजन करन लगीउस मोजहनी क रहसयपणट नीलजाल का कहक सिर हो उठा जस

मजदरा स सारा अतररकष जसि हो गया सजि नील कमलो म भर उठी उस सौरभ स पागल चपा न बधगपत क दोनो हाथ

पकड़ जलए वहा एक आजलगन हआ जस जकषजतज म आकाश और जसध का जकत उस परररभ म सहसा चतनदय होकर

चपा न अपनी कचकी स एक कपाण जनकाल जलया

lsquorsquoबधगपत आज म अपन परजतशोध का कपाण अतल जल म डबा दती ह हदय न छल जकया बार-बार धोखा

जदयाrsquorsquondashचमककर वह कपाण समर का हदय वधता हआ जवलीन हो गया

lsquorsquoतो आज स म जवशवास कर कषमा कर जदया गयाrsquorsquondashआशचयट-कजपत कठ स महानाजवक न पछा

lsquorsquoजवशवास कदाजप नही बधगपत जब म अपन हदय पर जवशवास नही कर सकी उसी न धोखा जदया तब म कस कह

म तमह घणा करती ह जिर भी तमहार जलए मर सकती ह अधर ह जलदसय तमह पयार करती ह lsquorsquondashचपा रो पडी

वह सवपनो की रगीन सधया तम स अपनी आख बद करन लगी थी दीघट जनशवास लकर महानाजवक न कहा ndashlsquorsquoइस

जीवन की पणयतम घडी की समजत म एक परकाश-गह बनाऊगा चपा यही उस पहाडी पर सभव ह जक मर जीवन की

धधली सधया उसस आलोकपणट हो जाएrsquorsquo

चपा क दसर भाग म एक मनोरम शलमाला थी वह बहत दर तक जसध-जल म जनमगन थी सागर का चचल जल उस

पर उछलता हआ उस जछपाए था आज उसी शलमाला पर चपा क आजद-जनवाजसयो का समारोह था उन सबो न

चपा को वनदवी-सा सजाया था तामरजलजपत क बहत-स सजनक नाजवको की शरणी म वन-कसम-जवभजिता चपा

जशजवकारढ़ होकर जा रही थी

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शल क एक ऊ च जशखर पर चपा क नाजवको को सावधान करन क जलए सदढ दीप-सतभ बनवाया गया था आज

उसी का महोतसव ह बधगपत सतभ क दवार पर खडा था जशजवका स सहायता दकर चपा को उसन उतारा दोनो न

भीतर पदापटण जकया था जक बासरी और ढोल बजन लग पजियो म कसम-भिण स सजी वन-बालाए िल उछालती

हई नाचन लगी

दीप-सतभ की ऊपरी जखडकी स यह दखती हई चपा न जया स पछा ndashlsquorsquoयह कया ह जया इतनी बाजलकाए कहा स

बरोर लाईrsquorsquo

lsquorsquoआज रानी का बयाह ह नrsquorsquondashकहकर जया न हस जदया

बधगपत जवसतत जलजनजध की ओर दख रहा था उस झकझोरकर चपा न पछा ndashlsquorsquoकया यह सच हrsquorsquo

lsquorsquoयजद तमहारी इचछा हो तो यह सच भी हो सकता ह चपा जकतन विो स म जवालामखी को अपनी छाती म दबाए

ह lsquorsquo

lsquorsquoचप रहो महानाजवक कया मझ जनससहाय और कगाल जानकर तमन आज सब परजतशोध लना चाहाrsquorsquo

lsquorsquoम तमहार जपता का घातक नही ह चपा वह एक दसर दसय क शसतर स मरrsquorsquo

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lsquorsquoयजद म इसका जवशवास कर सकती बधगपत वह जदन जकतना सदर होता वह कषण जकतना सपहणीय आह तम इस

जनषठरता म भी जकतन महान होतrsquorsquo

जया नीच चली गई थी सतभ क सकीणट परकोषठ म बधगपत और चपा एकात म एक-दसर क सामन बठ थ

बधगपत न चपा क पर पकड़ जलए उचवजसत शबदो म वह कहन लगा ndashlsquorsquoचपा हम लोग जनदमभजम- भारतविट स

जकतनी दर इन जनरीह पराजणयो म इर और शची क समान पजजत ह समरण होता ह वह दाशटजनको का दश वह मजहमा

की परजतमा मझ वह समजत जनतय आकजिटत करती ह परत म कयो नही जाता जानती हो इतना महतव परापत करन पर

भी म कगाल ह मरा पतथर-सा हदय एक जदन सहसा तमहार सपशट स चरकात मजण ही तरह रजवत हआ

lsquorsquoचपा म ईशवर को नही मानता म पाप को नही मानता म दया को नही समझ सकता म उस लोक म जवशवास नही

करता पर मझ अपन हदय क एक दबटल अश पर शरधदा हो चली ह तम न जान कस एक बहकी हई ताररका क समान

मर शनदय म उजदत हो गई हो आलोक की एक कोमल रखा इस जनजवड़तम म मसकरान लगी पश-बल और धन क

उपासक क मन म जकसी शात और एकात कामना की हसी जखलजखलान लगी पर म न हस सका

lsquorsquoचलोगी चपा पोतवाजहनी पर असखय धनराजश लादकर राजरानी-सी जनदमभजम क अक म आज हमारा पररणय हो

कल ही हम लोग भारत क जलए परसथान कर महानाजवक बधगपत की आजञा जसध की लहर मानती ह व सवय उस

पोत-पज को दजकषण पवन क समान भारत म पहचा दगी आह चपा चलोlsquorsquo

चपा न उसक हाथ पकड़ जलए जकसी आकजसमक झरक न एक पलभर क जलए दोनो क अधरो को जमला जदया

सहसा चतनदय होकर चपा न कहा ndashlsquorsquoबधगपत मर जलए सब भजम जमटटी ह सब जल तरल ह सब पवन शीतल ह कोई

जवशि आकाकषा हदय म अजगन क समान परजवजलत नही सब जमलाकर मर जलए एक शनदय ह जपरय नाजवक तम

सवदश लौर जाओ जवभवो का सख भोगन क जलए और मझ छोड़ दो इन जनरीह भोल-भाल परजणयो क दख की

सहानभजत और सवा क जलएlsquorsquo

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lsquorsquoतब म अवशय चला जाऊ गा चपा यहा रहकर म अपन हदय पर अजधकार रख सक ndash इसम सदह ह आह उन

लहरो म मरा जवनाश हो जाएlsquorsquondashमहानाजवक क उचवास म जवकलता थी जिर उसन पछा ndashlsquorsquoतम अकली यहा कया

करोगीrsquorsquo

lsquorsquoपहल जवचार था जक कभी-कभी इस दीप-सतभ पर स आलोक जलाकर अपन जपता की समाजध का इस जल स

अनदविण कर गी जकनदत दखती ह मझ भी इसी म जलना होगा जस आकाशदीपlsquorsquo

एक जदन सवणट-रहसय क परभात म चपा न अपन दीप-सतभ पर स दखा ndash सामजरक नावो की एक शरणी चमपा का

उपकल छोड़कर पजशचम-उततर की ओर महाजल-वयाल क समान सतरण कर रही ह उसकी आखो स आस बहन लग

यह जकतनी ही शताजबदयो पहल की कथा ह चपा आजीवन उस दीप-सतभ म आलोक जलाती रही जकत उसक बाद

भी बहत जदन दवीपजनवासी उस माया-ममता और सनह-सवा की दवी की समाजध-सदश पजा करत थ

एक जदन काल क कठोर हाथो न उस भी अपनी चचलता स जगरा जदया

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गगरीन-(रोज)

(डलहौजी मई 1934) अजञय

दोपहर म उस सन आगन म पर रखत हए मझ ऐसा जान पड़ा मानो उस पर जकसी शाप की छाया मडरा रही हो उसक

वातावरण म कछ ऐसा अकथय असपशय जकनदत जिर भी बोझल और परकमपमय और घना-सा िल रहा था

मरी आहर सनत ही मालती बाहर जनकली मझ दखकर पहचानकर उसकी मरझायी हई मख-मरा तजनक स मीठ

जवसमय स जागी-सी और जिर पवटवत हो गयी उसन कहा lsquolsquoआ जाओrsquorsquo और जबना उततर की परतीकषा जकय भीतर की

ओर चली म भी उसक पीछ हो जलया

भीतर पहचकर मन पछा lsquoव यहा नही हrsquorsquo

lsquolsquoअभी आय नही दफतर म ह थोड़ी दर म आ जाएग कोई डढ़-दो बज आया करत हrsquorsquo

lsquolsquoकब क गय हए हrsquorsquo

lsquolsquoसवर उठत ही चल जात हrsquorsquo

lsquolsquoम lsquoह rsquo कर पछन को हआ lsquolsquoऔर तम इतनी दर कया करती होrsquorsquo पर जिर सोचा lsquoआत ही एकाएक परशन ठीक नही

ह म कमर क चारो ओर दखन लगा

मालती एक पखा उठा लायी और मझ हवा करन लगी मन आपजतत करत हए कहा lsquolsquoनही मझ नही चाजहएrsquorsquo पर

वह नही मानी बोलीlsquolsquoवाह चाजहए कस नही इतनी धप म तो आय हो यहा तोrsquorsquo

मन कहा lsquolsquoअचछा लाओ मझ द दोrsquorsquo

वह शायद lsquoनाrsquo करनवाली थी पर तभी दसर कमर स जशश क रोन की आवाज़ सनकर उसन चपचाप पखा मझ द

जदया और घरनो पर हाथ रककर एक थकी हई lsquoहहrsquo करक उठी और भीतर चली गयी

म उसक जात हए दबल शरीर को दखकर सोचता रहा ndash यह कया ह यह कसी छाया-सी इस घर पर छायी हई ह

मालती मरी दर क ररशत की बहन ह जकनदत उस सखी कहना ही उजचत ह कयोजक हमारा परसपर समबनदध सखय का ही

रहा ह हम बचपन स इकटठ खल ह इकटठ लड़ और जपर ह और हमारी पढ़ाई भी बहत-सी इकटठ ही हई थी और हमार

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वयवहार म सदा सखय की सवचछा और सवचछनददता रही ह वह कभी भराततव क या बड़-छोरपन क बनदधनो म नही

जघरा

म आज कोई चार विट बाद उस दखना आया ह जब मन उस इसस पवट दखा था तब वह लड़की ही थी अब वह

जववाजहता ह एक बचच की मा भी ह इसस कोई पररवतटन उसम आया होगा और यजद आया होगा तो कया यह मन

अभी तक सोचा नही था जकनदत अब उसकी पीठ की ओर दखता हआ म सोच रहा था यह कसी छाया इस घर पर

छायी हई ह और जवशितया मालती पर

मालती बचच को लकर लौर आयी और जिर मझस कछ दर नीच जबछी हई दरी पर बठ गयी मन अपनी करसी

घमाकर कछ उसकी ओर उनदमख होकर पछा lsquolsquoइसका नाम कया हrsquorsquo

मालती न बचच की ओर दखत हए उततर जदया lsquolsquoनाम तो कोई जनजशचत नही जकया वस जररी कहत हrsquorsquo

मन उस बलाया lsquolsquoजररी रीरी आ जाrsquorsquo पर वह अपनी बड़ी-बड़ी आखो स मरी ओर दखता हआ अपनी मा स जचपर

गया और रआसा-सा होकर कहन लगा lsquolsquoउह-उह-उह-ऊrsquorsquo

मालती न जिर उसकी ओर एक नज़र दखा और जिर बाहर आगन की ओर दखन लगी

काफ़ी दर मौन रहा थोड़ी दर तक तो वह मौन आकजसमक ही था जजसम म परतीकषा म था जक मालती कछ पछ जकनदत

उसक बाद एकाएक मझ धयान हआ मालती न कोई बात ही नही की यह भी नही पछा जक म कसा ह कस आया

ह चप बठी ह कया जववाह क दो विट म ही वह बीत जदन भल गयी या अब मझ दर-इस जवशि अनदतर पर-रखना

चाहती ह कयोजक वह जनबाटध सवचछनददता अब तो नही हो सकती पर जिर भी ऐसा मौन जसा अजनबी स भी नही

होना चाजहए

मन कछ जखनदन-सा होकर दसरी ओर दखत हए कहा lsquolsquoजान पड़ता ह तमह मर आन स जवशि परसनदनता नही हई-rsquorsquo

उसन एकाएक चौककर कहा lsquolsquoह rsquorsquo

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यह lsquoह rsquo परशन-सचक था जकनदत इसजलए नही जक मालती न मरी बात सनी नही थी lsquoकवल जवसमय क कारण इसजलए

मन अपनी बात दहरायी नही चप बठ रहा मालती कछ बोली ही नही तब थोड़ी दर बाद मन उसकी ओर दखा वह

एकरक मरी ओर दख रही थी जकनदत मर उधर उनदमख होत ही उसन आख नीची कर ली जिर भी मन दखा उन आखो

म कछ जवजचतर-सा भाव था मानो मालती क भीतर कही कछ चिा कर रहा हो जकसी बीती हई बात को याद करन

की जकसी जबखर हए वायमडल को पनः जगाकर गजतमान करन की जकसी रर हए वयवहार-तनदत को पनरजजीजवत

करन की और चिा म सिल न हो रहा हो वस जस दर स परयोग म न लाय हए अग को वयजि एकाएक उठान लग

और पाय जक वह उठता ही नही ह जचरजवसमजत म मानो मर गया ह उतन कषीण बल स (यदयजप वह सारा परापय बल ह)

उठ नही सकता मझ ऐसा जान पड़ा मानो जकसी जीजवत पराणी क गल म जकसी मत जनदत का तौक डाल जदया गया

हो वह उस उतारकर ि कना चाह पर उतार न पाय

तभी जकसी न जकवाड़ खरखराय मन मालती की ओर दखा पर वह जहली नही जब जकवाड़ दसरी बार खरखराय

गय तब वह जशश को अलग करक उठी और जकवाड़ खोलन गयी

व यानी मालती क पजत आय मन उनदह पहली बार दखा था यदयजप फ़ोरो स उनदह पहचानता था पररचय हआ

मालती खाना तयार करन आगन म चली गयी और हम दोनो भीतर बठकर बातचीत करन लग उनकी नौकरी क बार

म उनक जीवन क बार म उस सथान क बार म और ऐस अनदय जवियो क बार म जो पहल पररचय पर उठा करत ह

एक तरह का सवरकषातमक कवच बनकर

मालती क पजत का नाम ह महशवर वह एक पहाड़ी गाव म सरकारी जडसपनदसरी क डॉकरर ह उसी हजसयत स इन

कवारटरो म रहत ह परातःकाल सात बज जडसपनदसरी चल जात ह और डढ़ या दो बज लौरत ह उसक बाद दोपहर-भर

छटटी रहती ह कवल शाम को एक-दो घर जिर चककर लगान क जलए जात ह जडसपनदसरी क साथ क छोर-स

असपताल म पड़ हए रोजगयो को दखन और अनदय ज़ररी जहदायत करन उनका जीवन भी जबलकल एक जनजदटि ढर

पर चलता ह जनतय वही काम उसी परकार क मरीज वही जहदायत वही नसख वही दवाइया वह सवय उकताय हए ह

और इसीजलए और साथ ही इस भयकर गरमी क कारण वह अपन फ़रसत क समय म भी ससत ही रहत ह

मालती हम दोनो क जलए खाना ल आयी मन पछा lsquolsquoतम नही खोओगी या खा चकीrsquorsquo

महशवर बोल कछ हसकर lsquolsquoवह पीछ खाया करती हrsquorsquo पजत ढाई बज खाना खान आत ह इसजलए पतनी तीन बज

तक भखी बठी रहगी

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महशवर खाना आरमभ करत हए मरी ओर दखकर बोल lsquolsquoआपको तो खान का मज़ा कया ही आयगा ऐस बवकत खा

रह हrsquorsquo

मन उततर जदया lsquolsquoवाह दर स खान पर तो और अचछा लगता ह भख बढ़ी हई होती ह पर शायद मालती बजहन को

कि होगाrsquorsquo

मालती रोककर बोली lsquolsquoऊ ह मर जलए तो यह नयी बात नही ह रोज़ ही ऐसा होता हrsquorsquo

मालती बचच को गोद म जलय हए थी बचचा रो रहा था पर उसकी ओर कोई भी धयान नही द रहा था

मन कहा lsquolsquoयह रोता कयो हrsquorsquo

मालती बोली lsquolsquoहो ही गया ह जचड़जचड़ा-सा हमशा ही ऐसा रहता हrsquorsquo

जिर बचच को डारकर कहा lsquolsquoचपकरrsquorsquo जजसस वह और भी रोन लगा मालती न भजम पर बठा जदया और बोली

lsquolsquoअचछा ल रो लrsquorsquo और रोरी लन आगन की ओर चली गयी

जब हमन भोजन समापत जकया तब तीन बजन वाल थ महशवर न बताया जक उनदह आज जदी असपताल जाना ह यहा

एक-दो जचनदताजनक कस आय हए ह जजनका ऑपरशन करना पड़गा दो की शायद राग कारनी पड़ गगरीन हो गया

ह थोड़ी ही दर म वह चल गय मालती जकवाड़ बनदद कर आयी और मर पास बठन ही लगी थी जक मन कहा lsquolsquoअब

खाना तो खा लो म उतनी दर जररी स खलता ह rsquorsquo

वह बोली lsquolsquoखा लगी मर खान की कौन बात हrsquorsquo जकनदत चली गयी म जररी को हाथ म लकर झलान लगा जजसस

वह कछ दर क जलए शानदत हो गया

दरशायद असपताल म ही तीन खड़क एकाएक म चौका मन सना मालती वही आगन म बठी अपन-आप ही एक

लमबी-सी थकी हई सास क साथ कह रही ह lsquolsquoतीन बज गयrsquorsquo मानो बड़ी तपसया क बाद कोई कायट समपनदन हो गया

हो

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थोड़ी ही दर म मालती जिर आ गयी मन पछा lsquolsquoतमहार जलए कछ बचा भी था सब-कछ तोrsquorsquo

lsquolsquoबहत थाrsquorsquo

lsquolsquoहा बहत था भाजी तो सारी म ही खा गया था वहा बचा कछ होगा नही यो ही रौब तो न जमाओ जक बहत थाrsquorsquo

मन हसकर कहा

मालती मानो जकसी और जविय की बात कहती हई बोली lsquolsquoयहा सबज़ी-वबज़ी तो कछ होती ही नही कोई आता-

जाता ह तो नीच स मगा लत ह मझ आय पनदरह जदन हए ह जो सबज़ी साथ लाय थ वही अभी बरती जा रही ह

मन पछा lsquolsquoनौकर कोई नही हrsquorsquo

lsquolsquoकोई ठीक जमला नही शायद एक-दो जदन म हो जाएrsquorsquo

lsquolsquoबरतन भी तमही माजती होrsquorsquo

lsquolsquoऔर कौनrsquorsquo कहकर मालती कषण-भर आगन म जाकर लौर आयी

मन पछा lsquolsquoकहा गयी थीrsquorsquo

lsquolsquoआज पानी ही नही ह बरतन कस मजगrsquorsquo

lsquolsquoकयो पानी को कया हआrsquorsquo

lsquolsquoरोज़ ही होता ह कभी वकत पर तो आता नही आज शाम को सात बज आएगा तब बरतन मजगrsquorsquo

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lsquolsquoचलो तमह सात बज तक छटटी हईrsquorsquo कहत हए म मन-ही-मन सोचन लगा lsquoअब इस रात क गयारह बज तक काम

करना पड़गा छटटी कया खाक हईrsquo

यही उसन कहा मर पास कोई उततर नही था पर मरी सहायता जररी न की एकाएक जिर रोन लगा और मालती क

पास जान की चिा करन लगा मन उस द जदया

थोड़ी दर जिर मौन रहा मन जब स अपनी नोरबक जनकाली और जपछल जदनो क जलख हए नोर दखन लगा तब

मालती को याद आया जक उसन मर आन का कारण तो पछा नही और बोली lsquolsquoयहा आय कसrsquorsquo

मन कहा ही तो lsquolsquoअचछा अब याद आया तमस जमलन आया था और कया करनrsquorsquo

lsquolsquoतो दो-एक जदन रहोग नrsquorsquo

lsquolsquoनही कल चला जाऊ गा ज़ररी जाना हrsquorsquo

मालती कछ नही बोली कछ जखनदन सी हो गयी म जिर नोरबक की तरफ़ दखन लगा

थोड़ी दर बाद मझ भी धयान हआ म आया तो ह मालती स जमलन जकनदत यहा वह बात करन को बठी ह और म पढ़

रहा ह पर बात भी कया की जाय मझ ऐसा लग रहा था जक इस घर पर जो छाया जघरी हई ह वह अजञात रहकर भी

मानो मझ भी वश म कर रही ह म भी वसा ही नीरस जनजीव-सा हो रहा ह जस-हा जस यह घर जस मालती

मन पछा lsquolsquoतम कछ पढ़ती-जलखती नहीrsquorsquo म चारो और दखन लगा जक कही जकताब दीख पड़

lsquolsquoयहाrsquorsquo कहकर मालती थोड़ा-सा हस दी वह हसी कह रही थी lsquoयहा पढ़न को ह कयाrsquo

मन कहा lsquolsquoअचछा म वापस जाकर ज़रर कछ पसतक भजगाrsquorsquo और वाताटलाप जिर समापत हो गया

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थोड़ी दर बाद मालती न जिर पछा lsquolsquoआय कस हो लारी मrsquorsquo

lsquolsquoपदलrsquorsquo

lsquolsquoइतनी दर बड़ी जहममत कीrsquorsquo

lsquolsquoआजखर तमस जमलन आया ह rsquorsquo

lsquolsquoऐस ही आय होrsquorsquo

lsquolsquoनही कली पीछ आ रहा ह सामान लकर मन सोचा जबसतरा ल ही चलrsquorsquo

lsquolsquoअचछा जकया यहा तो बसrsquorsquo कहकर मालती चप रह गयी जिर बोली lsquolsquoतब तम थक होग लर जाओrsquorsquo

lsquolsquoनही जबलकल नही थकाrsquorsquo

lsquolsquoरहन भी दो थक नही भला थक हrsquorsquo

lsquolsquoऔर तम कया करोगीrsquorsquo

lsquolsquoम बरतन माज रखती ह पानी आएगा तो धल जाएगrsquorsquo

मन कहा lsquolsquoवाहrsquorsquo कयोजक और कोई बात मझ सझी नही

थोड़ी दर म मालती उठी और चली गयी जररी को साथ लकर तब म भी लर गया और छत की ओर दखन लगा

मर जवचारो क साथ आगन स आती हई बरतनो क जघसन की खन-खन धवजन जमलकर एक जवजचतर एक-सवर उतपनदन

करन लगी जजसक कारण मर अग धीर-धीर ढील पड़न लग म ऊ घन लगा

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एकाएक वह एक-सवर रर गया ndash मौन हो गया इसस मरी तनदरा भी ररी म उस मौन म सनन लगा

चार खड़क रह थ और इसी का पहला घरा सनकर मालती रक गयी थी वही तीन बजवाली बात मन जिर दखी

अबकी बार उगर रप म मन सना मालती एक जबलकल अनजचछक अनभजतहीन नीरस यनदतरवत ndash वह भी थक हए

यनदतर क स सवर म कह रही ह lsquolsquoचार बज गयrsquorsquo मानो इस अनजचछक समय को जगनन म ही उसका मशीन-त य जीवन

बीतता हो वस ही जस मोरर का सपीडो मीरर यनदतरवत फ़ासला नापता जाता ह और यनदतरवत जवशरानदत सवर म कहता

ह (जकसस) जक मन अपन अजमत शनदयपथ का इतना अश तय कर जलया न जान कब कस मझ नीद आ गयी

तब छह कभी क बज चक थ जब जकसी क आन की आहर स मरी नीद खली और मन दखा जक महशवर लौर आय ह

और उनक साथ ही जबसतर जलय हए मरा कली म मह धोन को पानी मागन को ही था जक मझ याद आया पानी नही

होगा मन हाथो स मह पोछत-पोछत महशवर स पछा lsquolsquoआपन बड़ी दर कीrsquorsquo

उनदहोन जकजचत गलाजन-भर सवर म कहा lsquolsquoहा आज वह गगरीन का आपरशन करना ही पड़ा एक कर आया ह दसर

को एमबलनदस म बड़ असपताल जभजवा जदया हrsquorsquo

मन पछाrsquorsquo गगरीन कस हो गयाrsquorsquo

lsquolsquoएक कारा चभा था उसी स हो गया बड़ लापरवाह लोग होत ह यहा कrsquorsquo

मन पछा lsquolsquoयहा आपको कस अचछ जमल जात ह आय क जलहाज स नही डॉकररी क अभयास क जलएrsquorsquo

बोल lsquolsquoहा जमल ही जात ह यही गगरीन हर दसर-चौथ जदन एक कस आ जाता ह नीच बड़ असपतालो म भीrsquorsquo

मालती आगन स ही सन रही थी अब आ गयी lsquolsquoबोली lsquolsquoहा कस बनात दर कया लगती ह कारा चभा था इस पर

राग कारनी पड़ यह भी कोई डॉकररी ह हर दसर जदन जकसी की राग जकसी की बाह कार आत ह इसी का नाम ह

अचछा अभयासrsquorsquo

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महशवर हस बोल lsquolsquoन कार तो उसकी जान गवाएrsquorsquo

lsquolsquoहा पहल तो दजनया म कार ही नही होत होग आज तक तो सना नही था जक कारो क चभन स मर जात हrsquorsquo

महशवर न उततर नही जदया मसकरा जदय मालती मरी ओर दखकर बोली lsquolsquoऐस ही होत ह डॉकरर सरकारी असपताल

ह न कया परवाह ह म तो रोज़ ही ऐसी बात सनती ह अब कोई मर-मर जाए तो खयाल ही नही होता पहल तो रात-

रात-भर नीद नही आया करती थीrsquorsquo

तभी आगन म खल हए नल न कहा ndash जरप जरप जरप-जरप-जरप-जरप

मालती न कहा lsquolsquoपानीrsquorsquo और उठकर चली गयी खनखनाहर स हमन जाना बरतन धोए जान लग ह

जररी महशवर की रागो क सहार खड़ा मरी ओर दख रहा था अब एकाएक उनदह छोड़कर मालती की ओर जखसकता

हआ चला महशवर न कहा lsquolsquoउधर मत जाrsquorsquo और उस गोद म उठा जलया वह मचलन और जचला-जचलाकर रोन

लगा

महशवर बोल lsquolsquoअब रो-रोकर सो जाएगा तभी घर म चन होगीrsquorsquo

मन पछा lsquolsquoआप लोग भीतर ही सोत ह गरमी तो बहत होती हrsquorsquo

lsquolsquoहोन को तो मचछर भी बहत होत ह पर यह लोह क पलग उठाकर बाहर कौन ल जाय अब क नीच जाएग तो

चारपाइया ल आएगrsquorsquo जिर कछ रककर बोल lsquolsquoआज तो बाहर ही सोएग आपक आन का इतना लाभ ही होगाrsquorsquo

जररी अभी तक रोता ही जा रहा था महशवर न उस एक पलग पर जबठा जदया और पलग बाहर खीचन लग मन कहा

lsquolsquoम मदद करता ह rsquorsquo और दसरी ओर स पलग उठाकर जनकलवा जदय

अब हम तीनो महशवर जररी और म दो पलगो पर बठ गय और वाताटलाप क जलए उपयि जविय न पाकर उस कमी

को छपान क जलए जररी स खलन लग बाहर आकर वह कछ चप हो गया था जकनदत बीच-बीच म जस एकाएक कोई

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भला हआ कततटवय याद करक रो उठता या और जिर एकदम चप हो जाता था और कभी-कभी हम हस पड़त थ या

महशवर उसक बार म कछ बात कह दत थ

मालती बरतन धो चकी थी जब वह उनदह लकर आगन क एक ओर रसोई क छपपर की ओर चली तब महशवर न

कहा lsquolsquoथोड़-स आम लाया ह वह भी धो लनाrsquorsquo

lsquolsquoकहा हrsquorsquo

lsquolsquoअगीठी पर रख ह कागज़ म जलपर हएrsquorsquo

मालती न भीतर जाकर आम उठाय और अपन आचल म डाल जलय जजस कागज़ म व जलपर हए थ वह जकसी परान

अखबार का रकड़ा था मालती चलती-चलती सनदधया क उस कषण परकाश म उसी को पढ़ती जा रही थी वह नल क

पास जाकर खड़ी उस पढ़ती रही जब दोनो ओर पढ़ चकी तब एक लमबी सास लकर उस ि ककर आम धोन लगी

मझ एकाएक याद आयाबहत जदनो की बात थी जब हम अभी सकल म भरती हए ही थ जब हमारा सबस बड़ा

सख सबस बड़ी जवजय थी हाजज़री हो चकन क बाद चोरी स कलास स जनकल भागना और सकल स कछ दरी पर

आम क बगीच म पड़ो पर चढ़कर कचची आजमया तोड़-तोड़ खाना मझ याद आया कभी जब म भाग आता और

मालती नही आ पाती थी तब म भी जखनदन-मन लौर आया करता था

मालती कछ नही पढ़ती थी उसक माता-जपता तग थ एक जदन उसक जपता न उस एक पसतक लाकर दी और कहा जक

इसक बीस पज रोज़ पढ़ा करो हफत भर बाद म दख जक इस समापत कर चकी हो नही तो मार-मार कर चमड़ी उधड़

दगा मालती न चपचाप जकताब ल ली पर कया उसन पढ़ी वह जनतय ही उसक दस पनदन बीस पज िाड़ कर ि क

दती अपन खल म जकसी भाजत फ़कट न पड़न दती जब आठव जदन उसक जपता न पछा lsquolsquoजकताब समापत कर लीrsquorsquo

तो उततर जदयाlsquolsquoहा कर लीrsquorsquo जपता न कहा lsquolsquoलाओ म परशन पछगा तो चप खड़ी रही जपता न कहा तो उदधत सवर

म बोली lsquolsquoजकताब मन िाड़ कर ि क दी ह म नही पढ़ गीrsquorsquo

उसक बाद वह बहत जपरी पर वह अलग बात ह इस समय म यही सोच रहा था जक वह उदधत और चचल मालती

आज जकतनी सीधी हो गयी ह जकतनी शानदत और एक अखबार क रकड़ को तरसती ह यह कया यह

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तभी महशवर न पछा lsquolsquoरोरी कब बनगीrsquorsquo

lsquolsquoबस अभी बनाती ह rsquorsquo

पर अबकी बार जब मालती रसोई की ओर चली तब जररी की कततटवय-भावना बहत जवसतीणट हो गयी वह मालती की

ओर हाथ बढ़ा कर रोन लगा और नही माना मालती उस भी गोद म लकर चली गयी रसोई म बठ कर एक हाथ स

उस थपकन और दसर स कई छोर-छोर जडबब उठाकर अपन सामन रखन लगी

और हम दोनो चपचाप राजतर की और भोजन की और एक-दसर क कछ कहन की और न जान जकस-जकस नदयनता

की पजतट की परतीकषा करन लग

हम भोजन कर चक थ और जबसतरो पर लर गय थ और जररी सो गया था मालती पलग क एक ओर मोमजामा

जबछाकर उस उस पर जलरा गयी थी वह सो गया था पर नीद म कभी-कभी चौक उठता था एक बार तो उठकर बठ

भी गया था पर तरनदत ही लर गया

मन महशवर स पछा lsquolsquoआप तो थक होग सो जाइयrsquorsquo

वह बोल lsquolsquoथक तो आप अजधक होग अठारह मील पदल चल कर आय हrsquorsquo जकनदत उनक सवर न मानो जोड़

जदया थका तो म भी ह rsquorsquo

म चप रहा थोड़ी दर म जकसी अपर सजञा न मझ बताया वह ऊ घ रह ह

तब लगभग साढ़ दस बज थ मालती भोजन कर रही थी

म थोड़ी दर मालती की ओर दखता रहा वह जकसी जवचार म ndash यदयजप बहत गहर जवचार म नही लीन हई धीर-धीर

खाना खा रही थी जिर म इधर-उधर जखसक कर पर आराम स होकर आकाश की ओर दखन लगा

पजणटमा थी आकाश अनभर था

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मन दखा-उस सरकारी कवारटर की जदन म अतयनदत शषक और नीरस लगन वाली सलर की छत भी चादनी म चमक रही

ह अतयनदत शीतलता और जसनगधता स छलक रही ह मानो चजनदरका उन पर स बहती हई आ रही हो झर रही हो

मन दखा पवन म चीड़ क वकष गरमी स सख कर मरमल हए चीड़ क वकष धीर-धीर गा रह हो कोई राग जो

कोमल ह जकनदत करण नही अशाजनदतमय ह जकनदत उदवगमय नही

मन दखा परकाश स धधल नील आकाश क तर पर जो चमगादड़ नीरव उड़ान स चककर कार रह ह व भी सनददर

दीखत ह

मन दखा ndash जदन-भर की तपन अशाजनदत थकान दाह पहाड़ो म स भाप स उठकर वातावरण म खोय जा रह ह जजस

गरहण करन क जलए पवटत-जशशओ न अपनी चीड़ वकषरपी भजाए आकाश की ओर बढ़ा रखी ह

पर यह सब मन ही दखा अकल मन महशवर ऊ घ रह थ और मालती उस समय भोजन स जनवतत होकर दही जमान क

जलए जमटटी का बरतन गरम पानी स धो रही थी और कह रही थीlsquolsquoअभी छटटी हई जाती हrsquorsquo और मर कहन पर ही

जक lsquolsquoगयारह बजन वाल हrsquorsquo धीर स जसर जहलाकर जता रही थी जक रोज़ ही इतन बज जात ह मालती न वह सब-

कछ नही दखा मालती का जीवन अपनी रोज़ की जनयत गजत स बहा जा रहा था और एक चनदरमा की चजनदरका क

जलए एक ससार क जलए रकन को तयार नही था

चादनी म जशश कसा लगता ह इस अलस जजजञासा स मन जररी की ओर दखा और वह एकाएक मानो जकसी

शशवोजचत वामता स उठा और जखसक कर पलग स नीच जगर पड़ा और जचला-जचला कर रोन लगा महशवर न

चौककर कहा ndash lsquolsquoकया हआrsquorsquo म झपर कर उस उठान दौड़ा मालती रसोई स बाहर जनकल आयी मन उस lsquoखरrsquo

शबद को याद करक धीर स करणा-भर सवर म कहा lsquolsquoचोर बहत लग गयी बचार कrsquorsquo

यह सब मानो एक ही कषण म एक ही जकरया की गजत म हो गया

मालती न रोत हए जशश को मझस लन क जलए हाथ बढ़ात हए कहा lsquolsquoइसक चोर लगती ही रहती ह रोज़ ही जगर

पड़ता हrsquorsquo

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एक छोर कषण-भर क जलए म सतबध हो गया जिर एकाएक मर मन न मर समच अजसततव न जवरोह क सवर म कहा ndash

मर मन न भीतर ही बाहर एक शबद भी नही जनकला ndash lsquolsquoमा यवती मा यह तमहार हदय को कया हो गया ह जो तम

अपन एकमातर बचच क जगरन पर ऐसी बात कह सकती हो ndash और यह अभी जब तमहारा सारा जीवन तमहार आग

हrsquorsquo

और तब एकाएक मन जाना जक वह भावना जमथया नही ह मन दखा जक सचमच उस करमब म कोई गहरी भयकर

छाया घर कर गयी ह उनक जीवन क इस पहल ही यौवन म घन की तरह लग गयी ह उसका इतना अजभनदन अग हो

गयी ह जक व उस पहचानत ही नही उसी की पररजध म जघर हए चल जा रह ह इतना ही नही मन उस छाया को दख

भी जलया

इतनी दर म पवटवत शाजनदत हो गयी थी महशवर जिर लर कर ऊ घ रह थ जररी मालती क लर हए शरीर स जचपर कर

चप हो गया था यदयजप कभी एक-आध जससकी उसक छोर-स शरीर को जहला दती थी म भी अनभव करन लगा था

जक जबसतर अचछा-सा लग रहा ह मालती चपचाप ऊपर आकाश म दख रही थी जकनदत कया चजनदरका को या तारो

को

तभी गयारह का घरा बजा मन अपनी भारी हो रही पलक उठा कर अकसमात जकसी असपि परतीकषा स मालती की

ओर दखा गयारह क पहल घर की खड़कन क साथ ही मालती की छाती एकाएक ििोल की भाजत उठी और धीर-

धीर बठन लगी और घरा-धवजन क कमपन क साथ ही मक हो जानवाली आवाज़ म उसन कहा lsquolsquoगयारह बज गयrsquorsquo

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उसन किा था

चरधर शमाट गलरी

बड़-बड़ शहरो क इकक-गाड़ीवालो की जबान क कोड़ो स जजनकी पीठ जछल गई ह और कान पक गए ह उनस

हमारी पराथटना ह जक अमतसर क बबकारटवालो की बोली का मरहम लगाव जब बड़-बड़ शहरो की चौड़ी सड़को पर

घोड़ की पीठ चाबक स धनत हए इककवाल कभी घोड़ की नानी स अपना जनकर-सबध जसथर करत ह कभी राह

चलत पदलो की आखो क न होन पर तरस खात ह कभी उनक परो की अगजलयो क पोरो को चीथ कर अपन-ही को

सताया हआ बतात ह और ससार-भर की गलाजन जनराशा और कषोभ क अवतार बन नाक की सीध चल जात ह तब

अमतसर म उनकी जबरादरीवाल तग चककरदार गजलयो म हर-एक लडढीवाल क जलए ठहर कर सबर का समर उमड़ा

कर बचो खालसा जी हरो भाई जी ठहरना भाई आन दो लाला जी हरो बाछा कहत हए सिद ि रो खचचरो और

बततको गनदन और खोमच और भारवालो क जगल म स राह खत ह कया मजाल ह जक जी और साहब जबना सन

जकसी को हरना पड़ यह बात नही जक उनकी जीभ चलती नही पर मीठी छरी की तरह महीन मार करती हई यजद

कोई बजढ़या बार-बार जचतौनी दन पर भी लीक स नही हरती तो उनकी बचनावली क य नमन ह - हर जा जीण

जोजगए हर जा करमावाजलए हर जा पतता पयाररए बच जा लबी वाजलए समजि म इनक अथट ह जक त जीन योगय ह

त भागयोवाली ह पतरो को पयारी ह लबी उमर तर सामन ह त कयो मर पजहए क नीच आना चाहती ह बच जा

ऐस बबकारटवालो क बीच म हो कर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दकान पर आ जमल उसक बालो

और इसक ढील सथन स जान पड़ता था जक दोनो जसख ह वह अपन मामा क कश धोन क जलए दही लन आया था

और यह रसोई क जलए बजड़या दकानदार एक परदसी स गथ रहा था जो सर-भर गील पापड़ो की गडडी को जगन

जबना हरता न था

तर घर कहा ह

मगर म और तर

माझ म यहा कहा रहती ह

अतरजसह की बठक म व मर मामा होत ह

म भी मामा क यहा आया ह उनका घर गर बजार म ह

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इतन म दकानदार जनबरा और इनका सौदा दन लगा सौदा ल कर दोनो साथ-साथ चल कछ दर जा कर लड़क न

मसकरा कर पछा - तरी कड़माई हो गई इस पर लड़की कछ आख चढ़ा कर धत कह कर दौड़ गई और लड़का मह

दखता रह गया

दसर-तीसर जदन सबजीवाल क यहा दधवाल क यहा अकसमात दोनो जमल जात महीना-भर यही हाल रहा दो-तीन

बार लड़क न जिर पछा तरी कड़माई हो गई और उततर म वही धत जमला एक जदन जब जिर लड़क न वस ही हसी

म जचढ़ान क जलए पछा तो लड़की लड़क की सभावना क जवरदध बोली - हा हो गई

कब

कल दखत नही यह रशम स कढ़ा हआ साल लड़की भाग गई लड़क न घर की राह ली रासत म एक लड़क को

मोरी म ढकल जदया एक छावड़ीवाल की जदन-भर की कमाई खोई एक कतत पर पतथर मारा और एक गोभीवाल क

ठल म दध उड़ल जदया सामन नहा कर आती हई जकसी वषणवी स रकरा कर अध की उपाजध पाई तब कही घर

पहचा

2

राम-राम यह भी कोई लड़ाई ह जदन-रात खदको म बठ हडजडया अकड़ गई लजधयाना स दस गना जाड़ा और मह

और बरि ऊपर स जपडजलयो तक कीचड़ म धस हए ह जमीन कही जदखती नही - घर-दो-घर म कान क परद

िाड़नवाल धमाक क साथ सारी खदक जहल जाती ह और सौ-सौ गज धरती उछल पड़ती ह इस गबी गोल स बच तो

कोई लड़ नगरकोर का जलजला सना था यहा जदन म पचीस जलजल होत ह जो कही खदक स बाहर सािा या

कहनी जनकल गई तो चराक स गोली लगती ह न मालम बईमान जमटटी म लर हए ह या घास की पजततयो म जछप रहत

लहनाजसह और तीन जदन ह चार तो खदक म जबता ही जदए परसो ररलीि आ जाएगी और जिर सात जदन की छटटी

अपन हाथो झरका कर ग और पर-भर खा कर सो रहग उसी जिरगी मम क बाग म - मखमल का-सा हरा घास ह

िल और दध की विाट कर दती ह लाख कहत ह दाम नही लती कहती ह तम राजा हो मर म क को बचान आए

हो

चार जदन तक एक पलक नीद नही जमली जबना िर घोड़ा जबगड़ता ह और जबना लड़ जसपाही मझ तो सगीन चढ़ा कर

माचट का हकम जमल जाय जिर सात जरमनो को अकला मार कर न लौर तो मझ दरबार साहब की दहली पर मतथा

रकना नसीब न हो पाजी कही क कलो क घोड़ - सगीन दखत ही मह िाड़ दत ह और पर पकड़न लगत ह यो

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अधर म तीस-तीस मन का गोला ि कत ह उस जदन धावा जकया था - चार मील तक एक जमटन नही छोडा था पीछ

जनरल न हर जान का कमान जदया नही तो -

नही तो सीध बजलटन पहच जात कयो सबदार हजाराजसह न मसकरा कर कहा -लड़ाई क मामल जमादार या नायक

क चलाए नही चलत बड़ अिसर दर की सोचत ह तीन सौ मील का सामना ह एक तरि बढ़ गए तो कया होगा

सबदार जी सच ह लहनजसह बोला - पर कर कया हडजडयो-हडजडयो म तो जाड़ा धस गया ह सयट जनकलता नही

और खाई म दोनो तरि स चब की बावजलयो क स सोत झर रह ह एक धावा हो जाय तो गरमी आ जाय

उदमी उठ जसगड़ी म कोल डाल वजीरा तम चार जन बालजरया ल कर खाई का पानी बाहर ि को महाजसह शाम

हो गई ह खाई क दरवाज का पहरा बदल ल - यह कहत हए सबदार सारी खदक म चककर लगान लग

वजीराजसह पलरन का जवदिक था बारी म गदला पानी भर कर खाई क बाहर ि कता हआ बोला - म पाधा बन

गया ह करो जमटनी क बादशाह का तपटण इस पर सब जखलजखला पड़ और उदासी क बादल िर गए

लहनाजसह न दसरी बारी भर कर उसक हाथ म द कर कहा - अपनी बाड़ी क खरबजो म पानी दो ऐसा खाद का

पानी पजाब-भर म नही जमलगा

हा दश कया ह सवगट ह म तो लड़ाई क बाद सरकार स दस घमा जमीन यहा माग लगा और िलो क बर लगाऊ गा

लाड़ी होरा को भी यहा बला लोग या वही दध जपलानवाली िरगी मम -

चप कर यहावालो को शरम नही

दश-दश की चाल ह आज तक म उस समझा न सका जक जसख तबाख नही पीत वह जसगरर दन म हठ करती ह

ओठो म लगाना चाहती हऔर म पीछ हरता ह तो समझती ह जक राजा बरा मान गया अब मर म क क जलए लड़गा

नही

अचछा अब बोधजसह कसा ह

अचछा ह

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जस म जानता ही न होऊ रात-भर तम अपन कबल उस उढ़ात हो और आप जसगड़ी क सहार गजर करत हो उसक

पहर पर आप पहरा द आत हो अपन सख लकड़ी क तखतो पर उस सलात हो आप कीचड़ म पड़ रहत हो कही तम

न माद पड़ जाना जाड़ा कया ह मौत ह और जनमोजनया स मरनवालो को मरबब नही जमला करत

मरा डर मत करो म तो बलल की खडड क जकनार मर गा भाई कीरतजसह की गोदी पर मरा जसर होगा और मर हाथ

क लगाए हए आगन क आम क पड़ की छाया होगी

वजीराजसह न तयोरी चढ़ा कर कहा - कया मरन-मारन की बात लगाई ह मर जमटनी और तरक हा भाइयो कस -

जदली शहर त जपशोर न जाजदए

कर लणा लौगा दा बपार मजड़ए

कर लणा नाड़दा सौदा अजड़ए -

(ओय) लाणा चराका कदए न

कदद बणाया व मजदार गोररए

हण लाणा चराका कदए न

कौन जानता था जक दाजढ़योवाल घरबारी जसख ऐसा लचचो का गीत गाएग पर सारी खदक इस गीत स गज उठी और

जसपाही जिर ताज हो गए मानो चार जदन स सोत और मौज ही करत रह हो

3

दोपहर रात गई ह अधरा ह सनदनारा छाया हआ ह बोधाजसह खाली जबसकरो क तीन जरनो पर अपन दोनो कबल

जबछा कर और लहनाजसह क दो कबल और एक बरानकोर ओढ़ कर सो रहा ह लहनाजसह पहर पर खड़ा हआ ह

एक आख खाई क मह पर ह और एक बोधाजसह क दबल शरीर पर बोधाजसह कराहा

कयो बोधा भाई कया ह

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पानी जपला दो

लहनाजसह न करोरा उसक मह स लगा कर पछा - कहो कस हो पानी पी कर बोधा बोला - क पनी छर रही ह रोम-

रोम म तार दौड़ रह ह दात बज रह ह

अचछा मरी जरसी पहन लो

और तम

मर पास जसगड़ी ह और मझ गमी लगती ह पसीना आ रहा ह

ना म नही पहनता चार जदन स तम मर जलए -

हा याद आई मर पास दसरी गरम जरसी ह आज सबर ही आई ह जवलायत स बन-बन कर भज रही ह मम गर

उनका भला कर यो कह कर लहना अपना कोर उतार कर जरसी उतारन लगा

सच कहत हो

और नही झठ यो कह कर नाही करत बोधा को उसन जबरदसती जरसी पहना दी और आप खाकी कोर और जीन

का करता भर पहन-कर पहर पर आ खड़ा हआ मम की जरसी की कथा कवल कथा थी

आधा घरा बीता इतन म खाई क मह स आवाज आई - सबदार हजाराजसह

कौन लपरन साहब हकम हजर - कह कर सबदार तन कर िौजी सलाम करक सामन हआ

दखो इसी दम धावा करना होगा मील भर की दरी पर परब क कोन म एक जमटन खाई ह उसम पचास स जयादा

जमटन नही ह इन पड़ो क नीच-नीच दो खत कार कर रासता ह तीन-चार घमाव ह जहा मोड़ ह वहा परह जवान खड़

कर आया ह तम यहा दस आदमी छोड़ कर सब को साथ ल उनस जा जमलो खदक छीन कर वही जब तक दसरा

हकम न जमल डर रहो हम यहा रहगा

जो हकम

चपचाप सब तयार हो गए बोधा भी कबल उतार कर चलन लगा तब लहनाजसह न उस रोका लहनाजसह आग हआ

तो बोधा क बाप सबदार न उगली स बोधा की ओर इशारा जकया लहनाजसह समझ कर चप हो गया पीछ दस

आदमी कौन रह इस पर बड़ी हजजत हई कोई रहना न चाहता था समझा-बझा कर सबदार न माचट जकया लपरन

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साहब लहना की जसगड़ी क पास मह िर कर खड़ हो गए और जब स जसगरर जनकाल कर सलगान लग दस जमनर

बाद उनदहोन लहना की ओर हाथ बढा कर कहा - लो तम भी जपयो

आख मारत-मारत लहनाजसह सब समझ गया मह का भाव जछपा कर बोला - लाओ साहब हाथ आग करत ही

उसन जसगड़ी क उजाल म साहब का मह दखा बाल दख तब उसका माथा ठनका लपरन साहब क परटटयो वाल

बाल एक जदन म ही कहा उड़ गए और उनकी जगह कजदयो स कर बाल कहा स आ गए शायद साहब शराब जपए

हए ह और उनदह बाल करवान का मौका जमल गया ह लहनाजसह न जाचना चाहा लपरन साहब पाच विट स उसकी

रजजमर म थ

कयो साहब हमलोग जहदसतान कब जाएग

लड़ाई खतम होन पर कयो कया यह दश पसद नही

नही साहब जशकार क व मज यहा कहा याद ह पारसाल नकली लड़ाई क पीछ हम आप जगाधरी जजल म जशकार

करन गए थ -

हा हा -

वही जब आप खोत पर सवार थ और और आपका खानसामा अबद ला रासत क एक मजदर म जल चढ़ान को रह

गया था बशक पाजी कही का - सामन स वह नील गाय जनकली जक ऐसी बड़ी मन कभी न दखी थी और आपकी

एक गोली कध म लगी और पटठ म जनकली ऐस अिसर क साथ जशकार खलन म मजा ह कयो साहब जशमल स

तयार होकर उस नील गाय का जसर आ गया था न आपन कहा था जक रजमर की मस म लगाएग

हा पर मन वह जवलायत भज जदया -

ऐस बड़-बड़ सीग दो-दो िर क तो होग

हा लहनाजसह दो िर चार इच क थ तमन जसगरर नही जपया

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पीता ह साहब जदयासलाई ल आता ह - कह कर लहनाजसह खदक म घसा अब उस सदह नही रहा था उसन झरपर

जनशचय कर जलया जक कया करना चाजहए

अधर म जकसी सोनवाल स वह रकराया

कौन वजीराजसह

हा कयो लहना कया कयामत आ गई जरा तो आख लगन दी होती

4

होश म आओ कयामत आई ह और लपरन साहब की वदी पहन कर आई ह

कया

लपरन साहब या तो मार गए ह या कद हो गए ह उनकी वदी पहन कर यह कोई जमटन आया ह सबदार न इसका मह

नही दखा मन दखा और बात की ह सौहरा साि उदट बोलता ह पर जकताबी उदट और मझ पीन को जसगरर जदया ह

तो अब

अब मार गए धोखा ह सबदार होरा कीचड़ म चककर कारत जिरग और यहा खाई पर धावा होगा उठो एक काम

करो परन क परो क जनशान दखत-दखत दौड़ जाओ अभी बहत दर न गए होग

सबदार स कहो एकदम लौर आए खदक की बात झठ ह चल जाओ खदक क पीछ स जनकल जाओ पतता तक न

खड़क दर मत करो

हकम तो यह ह जक यही -

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ऐसी तसी हकम की मरा हकम - जमादार लहनाजसह जो इस वि यहा सब स बड़ा अिसर ह उसका हकम ह म

लपरन साहब की खबर लता ह

पर यहा तो तम आठ ह

आठ नही दस लाख एक-एक अकाजलया जसख सवा लाख क बराबर होता ह चल जाओ

लौर कर खाई क महान पर लहनाजसह दीवार स जचपक गया उसन दखा जक लपरन साहब न जब स बल क बराबर

तीन गोल जनकाल तीनो को जगह-जगह खदक की दीवारो म घसड़ जदया और तीनो म एक तार सा बाध जदया तार

क आग सत की एक गतथी थी जजस जसगड़ी क पास रखा बाहर की तरि जा कर एक जदयासलाई जला कर गतथी पर

रखन -

इतन म जबजली की तरह दोनो हाथो स उरी बदक को उठा कर लहनाजसह न साहब की कहनी पर तान कर द मारा

धमाक क साथ साहब क हाथ स जदयासलाई जगर पड़ी लहनाजसह न एक कदा साहब की गदटन पर मारा और साहब

ऑख मीन गौटट कहत हए जचतत हो गए लहनाजसह न तीनो गोल बीन कर खदक क बाहर ि क और साहब को

घसीर कर जसगड़ी क पास जलराया जबो की तलाशी ली तीन-चार जलिाि और एक डायरी जनकाल कर उनदह अपनी

जब क हवाल जकया

साहब की मछाट हरी लहनाजसह हस कर बोला - कयो लपरन साहब जमजाज कसा ह आज मन बहत बात सीखी

यह सीखा जक जसख जसगरर पीत ह यह सीखा जक जगाधरी क जजल म नीलगाए होती ह और उनक दो िर चार इच

क सीग होत ह यह सीखा जक मसलमान खानसामा मजतटयो पर जल चढ़ात ह और लपरन साहब खोत पर चढ़त ह

पर यह तो कहो ऐसी साि उदट कहा स सीख आए हमार लपरन साहब तो जबन डम क पाच लफज भी नही बोला

करत थ

लहना न पतलन क जबो की तलाशी नही ली थी साहब न मानो जाड़ स बचन क जलए दोनो हाथ जबो म डाल

लहनाजसह कहता गया - चालाक तो बड़ हो पर माझ का लहना इतन बरस लपरन साहब क साथ रहा ह उस चकमा

दन क जलए चार आख चाजहए तीन महीन हए एक तरकी मौलवी मर गाव आया था औरतो को बचच होन क

ताबीज बारता था और बचचो को दवाई दता था चौधरी क बड़ क नीच मजा जबछा कर हकका पीता रहता था और

कहता था जक जमटनीवाल बड़ पजडत ह वद पढ़-पढ़ कर उसम स जवमान चलान की जवदया जान गए ह गौ को नही

मारत जहदसतान म आ जाएग तो गोहतया बद कर दग मडी क बजनयो को बहकाता जक डाकखान स रपया जनकाल

लो सरकार का राजय जानवाला ह डाक-बाब पोह राम भी डर गया था मन म लाजी की दाढ़ी मड़ दी थी और

गाव स बाहर जनकाल कर कहा था जक जो मर गाव म अब पर रकखा तो -

साहब की जब म स जपसतौल चला और लहना की जाघ म गोली लगी इधर लहना की हनरी माजरटन क दो िायरो न

साहब की कपाल-जकरया कर दी धड़ाका सन कर सब दौड़ आए

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बोधा जचलया - कया ह

लहनाजसह न उस यह कह कर सला जदया जक एक हड़का हआ कतता आया था मार जदया और औरो स सब हाल कह

जदया सब बदक ल कर तयार हो गए लहना न सािा िाड़ कर घाव क दोनो तरि परटटया कस कर बाधी घाव मास

म ही था परटटयो क कसन स लह जनकलना बद हो गया

इतन म सततर जमटन जचला कर खाई म घस पड़ जसकखो की बदको की बाढ़ न पहल धाव को रोका दसर को रोका

पर यहा थ आठ (लहनाजसह तक-तक कर मार रहा था - वह खड़ा था और और लर हए थ) और व सततर अपन

मदाट भाइयो क शरीर पर चढ़ कर जमटन आग घस आत थ थोड स जमजनरो म व - अचानक आवाज आई वाह गरजी

की ितह वाह गरजी का खालसा और धड़ाधड़ बदको क िायर जमटनो की पीठ पर पड़न लग ऐन मौक पर जमटन

दो चककी क पारो क बीच म आ गए पीछ स सबदार हजाराजसह क जवान आग बरसात थ और सामन लहनाजसह क

साजथयो क सगीन चल रह थ पास आन पर पीछवालो न भी सगीन जपरोना शर कर जदया

एक जकलकारी और - अकाल जसकखा दी िौज आई वाह गरजी दी ितह वाह गरजी दा खालसा सत शरी

अकालपरख और लड़ाई खतम हो गई जतरसठ जमटन या तो खत रह थ या कराह रह थ जसकखो म परह क पराण

गए सबदार क दाजहन कध म स गोली आरपार जनकल गई लहनाजसह की पसली म एक गोली लगी उसन घाव को

खदक की गीली मटटी स पर जलया और बाकी का सािा कस कर कमरबद की तरह लपर जलया जकसी को खबर न

हई जक लहना को दसरा घाव - भारी घाव लगा ह

लड़ाई क समय चाद जनकल आया था ऐसा चाद जजसक परकाश स ससकत-कजवयो का जदया हआ कषयी नाम साथटक

होता ह और हवा ऐसी चल रही थी जसी वाणभटट की भािा म दतवीणोपदशाचायट कहलाती वजीराजसह कह रहा

था जक कस मन-मन भर रास की भजम मर बरो स जचपक रही थी जब म दौडा-दौडा सबदार क पीछ गया था सबदार

लहनाजसह स सारा हाल सन और कागजात पा कर व उसकी तरत-बजदध को सराह रह थ और कह रह थ जक त न होता

तो आज सब मार जात

इस लड़ाई की आवाज तीन मील दाजहनी ओर की खाईवालो न सन ली थी उनदहोन पीछ रलीिोन कर जदया था वहा

स झरपर दो डाकरर और दो बीमार ढोन की गाजड़या चली जो कोई डढ़ घर क अदर-अदर आ पहची िीड

असपताल नजदीक था सबह होत-होत वहा पहच जाएग इसजलए मामली पटटी बाध कर एक गाड़ी म घायल जलराए

गए और दसरी म लाश रकखी गई सबदार न लहनाजसह की जाघ म पटटी बधवानी चाही पर उसन यह कह कर राल

जदया जक थोड़ा घाव ह सबर दखा जाएगा बोधाजसह जवर म बराट रहा था वह गाड़ी म जलराया गया लहना को छोड़

कर सबदार जात नही थ यह दख लहना न कहा - तमह बोधा की कसम ह और सबदारनीजी की सौगध ह जो इस

गाड़ी म न चल जाओ

और तम

मर जलए वहा पहच कर गाड़ी भज दना और जमटन मरदो क जलए भी तो गाजड़या आती होगी मरा हाल बरा नही ह

दखत नही म खड़ा ह वजीराजसह मर पास ह ही

अचछा पर -

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बोधा गाड़ी पर लर गया भला आप भी चढ़ जाओ सजनए तो सबदारनी होरा को जचिी जलखो तो मरा मतथा रकना

जलख दना और जब घर जाओ तो कह दना जक मझस जो उसन कहा था वह मन कर जदया

गाजड़या चल पड़ी थी सबदार न चढ़त-चढ़त लहना का हाथ पकड़ कर कहा - तन मर और बोधा क पराण बचाए ह

जलखना कसा साथ ही घर चलग अपनी सबदारनी को त ही कह दना उसन कया कहा था

अब आप गाड़ी पर चढ़ जाओ मन जो कहा वह जलख दना और कह भी दना

गाड़ी क जात लहना लर गया वजीरा पानी जपला द और मरा कमरबद खोल द तर हो रहा ह

5

मतय क कछ समय पहल समजत बहत साि हो जाती ह जनदम-भर की घरनाए एक-एक करक सामन आती ह सार

दशयो क रग साि होत ह समय की धध जबकल उन पर स हर जाती ह

लहनाजसह बारह विट का ह अमतसर म मामा क यहा आया हआ ह दहीवाल क यहा सबजीवाल क यहा हर कही

उस एक आठ विट की लड़की जमल जाती ह जब वह पछता ह तरी कड़माई हो गई तब धत कह कर वह भाग जाती

ह एक जदन उसन वस ही पछा तो उसन कहा - हा कल हो गई दखत नही यह रशम क िलोवाला साल सनत ही

लहनाजसह को दःख हआ करोध हआ कयो हआ

वजीराजसह पानी जपला द

पचीस विट बीत गए अब लहनाजसह न 77 रिस म जमादार हो गया ह उस आठ विट की कनदया का धयान ही न रहा

न-मालम वह कभी जमली थी या नही सात जदन की छटटी ल कर जमीन क मकदम की परवी करन वह अपन घर गया

वहा रजजमर क अिसर की जचिी जमली जक िौज लाम पर जाती ह िौरन चल आओ साथ ही सबदार हजाराजसह

की जचिी जमली जक म और बोधाजसह भी लाम पर जात ह लौरत हए हमार घर होत जाना साथ ही चलग सबदार

का गाव रासत म पड़ता था और सबदार उस बहत चाहता था लहनाजसह सबदार क यहा पहचा

जब चलन लग तब सबदार बढ म स जनकल कर आया बोला - लहना सबदारनी तमको जानती ह बलाती ह जा

जमल आ लहनाजसह भीतर पहचा सबदारनी मझ जानती ह कब स रजजमर क कवारटरो म तो कभी सबदार क घर

क लोग रह नही दरवाज पर जा कर मतथा रकना कहा असीस सनी लहनाजसह चप

मझ पहचाना

नही

तरी कड़माई हो गई - धत - कल हो गई - दखत नही रशमी बरोवाला साल -अमतसर म -

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भावो की रकराहर स मछाट खली करवर बदली पसली का घाव बह जनकला

वजीरा पानी जपला - उसन कहा था

सवपन चल रहा ह सबदारनी कह रही ह - मन तर को आत ही पहचान जलया एक काम कहती ह मर तो भाग िर

गए सरकार न बहादरी का जखताब जदया ह लायलपर म जमीन दी ह आज नमक-हलाली का मौका आया ह पर

सरकार न हम तीजमयो की एक घघररया परन कयो न बना दी जो म भी सबदारजी क साथ चली जाती एक बरा ह

िौज म भती हए उस एक ही बरस हआ उसक पीछ चार और हए पर एक भी नही जजया सबदारनी रोन लगी अब

दोनो जात ह मर भाग तमह याद ह एक जदन तागवाल का घोड़ा दहीवाल की दकान क पास जबगड़ गया था तमन

उस जदन मर पराण बचाए थ आप घोड़ की लातो म चल गए थ और मझ उठा कर दकान क तखत पर खड़ा कर जदया

था ऐस ही इन दोनो को बचाना यह मरी जभकषा ह तमहार आग आचल पसारती ह

रोती-रोती सबदारनी ओबरी म चली गई लहना भी आस पोछता हआ बाहर आया

वजीराजसह पानी जपला -उसन कहा था

लहना का जसर अपनी गोद म रकख वजीराजसह बठा ह जब मागता ह तब पानी जपला दता ह आध घर तक लहना

चप रहा जिर बोला - कौन कीरतजसह

वजीरा न कछ समझ कर कहा - हा

भइया मझ और ऊ चा कर ल अपन पटट पर मरा जसर रख ल वजीरा न वस ही जकया

हा अब ठीक ह पानी जपला द बस अब क हाड़ म यह आम खब िलगा चचा-भतीजा दोनो यही बठ कर आम

खाना जजतना बड़ा तरा भतीजा ह उतना ही यह आम ह जजस महीन उसका जनदम हआ था उसी महीन म मन इस

लगाया था वजीराजसह क आस रप-रप रपक रह थ

कछ जदन पीछ लोगो न अखबारो म पढा -

रास और बलजजयम - 68 वी सची - मदान म घावो स मरा - न 77 जसख राइिस जमादार लहनाजसह

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ईदगाि

मशी परमचद

रमजान क पर तीस रोजो क बाद ईद आई ह जकतना मनोहर जकतना सहावना परभाव ह वकषो पर अजीब हररयाली ह

खतो म कछ अजीब रौनक ह आसमान पर कछ अजीब लाजलमा ह आज का सयट दखो जकतना पयारा जकतना

शीतल ह यानी ससार को ईद की बधाई द रहा ह गॉव म जकतनी हलचल ह ईदगाह जान की तयाररया हो रही ह

जकसी क करत म बरन नही ह पड़ोस क घर म सई-धागा लन दौड़ा जा रहा ह जकसी क जत कड़ हो गए ह उनम तल

डालन क जलए तली क घर पर भागा जाता ह जदी-जदी बलो को सानी-पानी द द ईदगाह स लौरत-लौरत दोपहर

हो जाएगी तीन कोस का पदल रासता जिर सकड़ो आदजमयो स जमलना-भरना दोपहर क पहल लौरना असभव ह

लड़क सबस जयादा परसनदन ह जकसी न एक रोजा रखा ह वह भी दोपहर तक जकसी न वह भी नही लजकन ईदगाह

जान की खशी उनक जहसस की चीज ह रोज बड़-बढ़ो क जलए होग इनक जलए तो ईद ह रोज ईद का नाम ररत थ

आज वह आ गई अब जदी पड़ी ह जक लोग ईदगाह कयो नही चलत इनदह गहसथी जचताओ स कया परयोजन सवयो

क जलए दध और शककर घर म ह या नही इनकी बला स य तो सवया खाएग वह कया जान जक अबबाजान कयो

बदहवास चौधरी कायमअली क घर दौड़ जा रह ह उनदह कया खबर जक चौधरी आख बदल ल तो यह सारी ईद महरटम

हो जाए उनकी अपनी जबो म तो कबर का धन भरा हआ ह बार-बार जब स अपना खजाना जनकालकर जगनत ह

और खश होकर जिर रख लत ह महमद जगनता ह एक-दो दस-बारह उसक पास बारह पस ह मोहनजसन क पास

एक दो तीन आठ नौ परह पस ह इनदही अनजगनती पसो म अनजगनती चीज लाएग- जखलौन जमठाइया जबगल गद

और जान कया-कया और सबस जयादा परसनदन ह हाजमद वह चार-पाच साल का गरीब सरत दबला-पतला लड़का

जजसका बाप गत विट हज की भर हो गया और मा न जान कयो पीली होती-होती एक जदन मर गई जकसी को पता कया

बीमारी ह कहती तो कौन सनन वाला था जदल पर जो कछ बीतती थी वह जदल म ही सहती थी ओर जब न सहा

गया तो ससार स जवदा हो गई अब हाजमद अपनी बढ़ी दादी अमीना की गोद म सोता ह और उतना ही परसनदन ह

उसक अबबाजान रपय कमान गए ह बहत-सी थजलया लकर आएग अममीजान अलहा जमया क घर स उसक जलए

बड़ी अचछी-अचछी चीज लान गई ह इसजलए हाजमद परसनदन ह आशा तो बड़ी चीज ह और जिर बचचो की आशा

उनकी कपना तो राई का पवटत बना लती ह हाजमद क पाव म जत नही ह जसर पर एक परानी-धरानी रोपी ह

जजसका गोरा काला पड़ गया ह जिर भी वह परसनदन ह जब उसक अबबाजान थजलया और अममीजान जनयमत लकर

आएगी तो वह जदल स अरमान जनकाल लगा तब दखगा मोहजसन नर और सममी कहा स उतन पस जनकालग

अभाजगन अमीना अपनी कोठरी म बठी रो रही ह आज ईद का जदन उसक घर म दाना नही आज आजबद होता तो

कया इसी तरह ईद आती ओर चली जाती इस अधकार और जनराशा म वह डबी जा रही ह जकसन बलाया था इस

जनगोड़ी ईद को इस घर म उसका काम नही लजकन हाजमद उस जकसी क मरन-जीन क कया मतल उसक अदर

परकाश ह बाहर आशा जवपजतत अपना सारा दलबल लकर आए हाजमद की आनद-भरी जचतबन उसका जवधवस कर

दगी हाजमद भीतर जाकर दादी स कहता ह-तम डरना नही अममा म सबस पहल आऊगा जबकल न डरना अमीना

का जदल कचोर रहा ह गाव क बचच अपन-अपन बाप क साथ जा रह ह हाजमद का बाप अमीना क जसवा और कौन

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ह उस कस अकल मल जान द उस भीड़-भाड़ स बचचा कही खो जाए तो कया हो नही अमीना उस यो न जान

दगी ननदही-सी जान तीन कोस चलगा कस पर म छाल पड़ जाएग जत भी तो नही ह वह थोड़ी-थोड़ी दर पर उस

गोद म ल लती लजकन यहा सवया कौन पकाएगा पस होत तो लौरत-लोरत सब सामगरी जमा करक चरपर बना

लती यहा तो घरो चीज जमा करत लगग माग का ही तो भरोसा ठहरा उस जदन िहीमन क कपड़ जसल थ आठ

आन पस जमल थ उस उठनदनी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद क जलए लजकन कल गवालन जसर

पर सवार हो गई तो कया करती हाजमद क जलए कछ नही ह तो दो पस का दध तो चाजहए ही अब तो कल दो आन

पस बच रह ह तीन पस हाजमद की जब म पाच अमीना क बरव म यही तो जबसात ह और ईद का तयौहार अला

ही बड़ा पर लगाए धोबन और नाइन और महतरानी और चजड़हाररन सभी तो आएगी सभी को सवया चाजहए और

थोड़ा जकसी को आखो नही लगता जकस-जकस स मह चराएगी और मह कयो चराए साल-भर का तयोहार ह जजदगी

खररयत स रह उनकी तकदीर भी तो उसी क साथ ह बचच को खदा सलामत रख य जदन भी कर जाएग गाव स

मला चला और बचचो क साथ हाजमद भी जा रहा था कभी सबक सब दौड़कर आग जनकल जात जिर जकसी पड़ क

नीच खड़ होकर साथ वालो का इतजार करत यह लोग कयो इतना धीर-धीर चल रह ह हाजमद क परो म तो जस पर

लग गए ह वह कभी थक सकता ह शहर का दामन आ गया सड़क क दोनो ओर अमीरो क बगीच ह पककी

चारदीवारी बनी हई ह पड़ो म आम और लीजचया लगी हई ह कभी-कभी कोई लड़का ककड़ी उठाकर आम पर

जनशान लगाता ह माली अदर स गाली दता हआ जनकलता ह लड़क वहा स एक िलाग पर ह खब हस रह ह

माली को कसा उल बनाया ह बड़ी-बड़ी इमारत आन लगी यह अदालत ह यह कालज ह यह कलब घर ह इतन

बड़ कालज म जकतन लड़क पढ़त होग सब लड़क नही ह जी बड़-बड़ आदमी ह सच उनकी बड़ी-बड़ी मछ ह

इतन बड़ हो गए अभी तक पढ़त जात ह न जान कब तक पढ़ग ओर कया करग इतना पढ़कर हाजमद क मदरस म

दो-तीन बड़-बड़ लड़क ह जबकल तीन कौड़ी क रोज मार खात ह काम स जी चरान वाल इस जगह भी उसी तरह

क लोग होग ओर कया कलब-घर म जाद होता ह सना ह यहा मदो की खोपजड़या दौड़ती ह और बड़-बड़ तमाश

होत ह पर जकसी को अदर नही जान दत और वहा शाम को साहब लोग खलत ह बड़-बड़ आदमी खलत ह मछो-

दाढ़ी वाल और मम भी खलती ह सच हमारी अममा को यह द दो कया नाम ह बर तो उस पकड़ ही न सक घमात

ही लढ़क जाए महमद न कहा- हमारी अममीजान का तो हाथ कापन लग अला कसम मोहजसन बोल- चलो मनो

आरा पीस डालती ह जरा-सा बर पकड़ लगी तो हाथ कापन लगग सौकड़ो घड़ पानी रोज जनकालती ह पाच घड़

तो तरी भस पी जाती ह जकसी मम को एक घड़ा पानी भरना पड़ तो आखो तक अधरी आ जाए महमद- लजकन

दौड़ती तो नही उछल-कद तो नही सकती मोहजसन- हॉ उछल-कद तो नही सकती लजकन उस जदन मरी गाय खल

गई थी और चौधरी क खत म जा पड़ी थी अममा इतना तज दौड़ी जक म उनदह न पा सका सच आग चल हलवाइयो

की दकान शर हई आज खब सजी हई थी इतनी जमठाइया कौन खाता दखो न एक-एक दकान पर मनो होगी सना

ह रात को जजनदनात आकर खरीद ल जात ह अबबा कहत थ जक आधी रात को एक आदमी हर दकान पर जाता ह

और जजतना माल बचा होता ह वह तलवा लता ह और सचमच क रपय दता ह जबकल ऐस ही रपय हाजमद को

यकीन न आया- ऐस रपय जजनदनात को कहा स जमल जाएगी मोहजसन न कहा- जजनदनात को रपय की कया कमी जजस

खजान म चाह चल जाए लोह क दरवाज तक उनदह नही रोक सकत जनाब आप ह जकस िर म हीर-जवाहरात तक

उनक पास रहत ह जजसस खश हो गए उस रोकरो जवाहरात द जदए अभी यही बठ ह पाच जमनर म कलकतता पहच

जाए हाजमद न जिर पछा- जजनदनात बहत बड़-बड़ होत ह मोहजसन- एक-एक जसर आसमान क बराबर होता ह जी

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जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका जसर आसमान स जा लग मगर चाह तो एक लोर म घस जाए हाजमद- लोग उनदह

कस खश करत होग कोई मझ यह मतर बता द तो एक जजनन को खश कर ल मोहजसन- अब यह तो न जानता

लजकन चौधरी साहब क काब म बहत-स जजनदनात ह कोई चीज चोरी जाए चौधरी साहब उसका पता लगा दग ओर

चोर का नाम बता दग जमराती का बछवा उस जदन खो गया था तीन जदन हरान हए कही न जमला तब झख मारकर

चौधरी क पास गए चौधरी न तरनदत बता जदया मवशीखान म ह और वही जमला जजनदनात आकर उनदह सार जहान की

खबर द जात ह अब उसकी समझ म आ गया जक चौधरी क पास कयो इतना धन ह और कयो उनका इतना सममान ह

आग चल यह पजलस लाइन ह यही सब काजनसजरजबल कवायद करत ह ररन िाय िो रात को बचार घम-घमकर

पहरा दत ह नही चोररया हो जाए मोहजसन न परजतवाद जकया- यह काजनसजरजबल पहरा दत ह तभी तम बहत जानत

हो अजी हजरत यह चोरी करत ह शहर क जजतन चोर-डाक ह सब इनस महल म जाकर lsquoजागत रहो जात

रहोrsquoपकारत ह तभी इन लोगो क पास इतन रपय आत ह मर माम एक थान म काजनसजरजबल ह बरस रपया महीना

पात ह लजकन पचास रपय घर भजत ह अला कसम मन एक बार पछा था जक माम आप इतन रपय कहा स पात

ह हसकर कहन लग- बरा अलाह दता ह जिर आप ही बोल- हम लोग चाह तो एक जदन म लाखो मार लाए हम

तो इतना ही लत ह जजसम अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए हाजमद न पछा- यह लोग चोरी करवात ह

तो कोई इनदह पकड़ता नही मोहजसन उसकी नादानी पर दया जदखाकर बोला अर पागल इनदह कौन पकड़गा

पकड़न वाल तो यह लोग खद ह लजकन अलाह इनदह सजा भी खब दता ह हराम का माल हराम म जाता ह थोड़

ही जदन हए माम क घर म आग लग गई सारी लई-पजी जल गई एक बरतन तक न बचा कई जदन पड़ क नीच सोए

अला कसम पड़ क नीच जिरन जान कहा स एक सौ कजट लाए तो बरतन-भाड़ आए हाजमद- एक सौ तो पचास स

जयादा होत ह lsquoकहा पचास कहा एक सौ पचास एक थली-भर होता ह सौ तो दो थजलयो म भी न आए अब बसती

घनी होन लगी ईदगाह जान वालो की रोजलया नजर आन लगी एक स एक भड़कील वसतर पहन हए कोई इकक-ताग

पर सवार कोई मोरर पर सभी इतर म बस सभी क जदलो म उमग गरामीणो का यह छोरा-सा दल अपनी जवपनदनता स

बखबर सतोि ओर धयट म मगन चला जा रहा था बचचो क जलए नगर की सभी चीज अनोखी थी जजस चीज की

ओर ताकत ताकत ही रह जात और पीछ स आनट की आवाज होन पर भी न चतत हाजमद तो मोरर क नीच जात-

जात बचा सहसा ईदगाह नजर आई ऊपर इमली क घन वकषो की छाया ह नाच पकका िशट ह जजस पर जाजम

जढछा हआ ह और रोजदारो की पजिया एक क पीछ एक न जान कहा वक चली गई ह पककी जगत क नीच तक

जहा जाजम भी नही ह नए आन वाल आकर पीछ की कतार म खड़ हो जात ह आग जगह नही ह यहा कोई धन

और पद नही दखता इसलाम की जनगाह म सब बराबर ह इन गरामीणो न भी वज जकया ओर जपछली पजि म खड़ हो

गए जकतना सनददर सचालन ह जकतनी सनददर वयवसथा लाखो जसर एक साथ जसजद म झक जात ह जिर सबक सब

एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ झकत ह और एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ

झकत ह और एक साथ खड़ हो जात ह कई बार यही जकरया होती ह जस जबजली की लाखो बजततया एक साथ परदीपत

हो और एक साथ बझ जाए और यही गरम चलता रह जकतना अपवट दशय था जजसकी सामजहक जकरयाए जवसतार

और अनतता हदय को शरदधा गवट और आतमानद स भर दती थी मानो भराततव का एक सतर इन समसत आतमाओ को

एक लड़ी म जपरोए हए ह नमाज खतम हो गई लोग आपस म गल जमल रह ह तब जमठाई और जखलौन की दकान पर

धावा होता ह गरामीणो का यह दल इस जविय म बालको स कम उतसाही नही ह यह दखो जहडोला ह एक पसा दकर

चढ़ जाओ कभी आसमान पर जात हए मालम होग कभी जमीन पर जगरत हए यह चखी ह लकड़ी क हाथी घोड़

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ऊ र छड़ो म लरक हए ह एक पसा दकर बठ जाओ और पचचीस चककरो का मजा लो महमद और मोहजसन ओर

नर ओर सममी इन घोड़ो ओर ऊरो पर बठत ह हाजमद दर खड़ा ह तीन ही पस तो उसक पास ह अपन कोि का एक

जतहाई जरा-सा चककर खान क जलए नही द सकता सब चजखटयो स उतरत ह अब जखलौन लग अधर दकानो की

कतार लगी हई ह तरह-तरह क जखलौन ह- जसपाही और गजररया राज ओर वकी जभशती और धोजबन और साध

वाह जकतत सनददर जखलोन ह अब बोला ही चाहत ह महमद जसपाही लता ह खाकी वदी और लाल पगड़ीवाला

कध पर बदक रख हए मालम होता ह अभी कवायद जकए चला आ रहा ह मोहजसन को जभशती पसद आया कमर

झकी हई ह ऊपर मशक रख हए ह मशक का मह एक हाथ स पकड़ हए ह जकतना परसनदन ह शायद कोई गीत गा रहा

ह बस मशक स पानी अड़ला ही चाहता ह नर को वकील स परम ह कसी जवदवतता ह उसक मख पर काला चोगा

नीच सिद अचकन अचकन क सामन की जब म घड़ी सनहरी जजीर एक हाथ म कानन का पौथा जलए हए मालम

होता ह अभी जकसी अदालत स जजरह या बहस जकए चल आ रह ह यह सब दो-दो पस क जखलौन ह हाजमद क

पास कल तीन पस ह इतन महग जखलौन वह कस ल जखलौना कही हाथ स छर पड़ तो चर-चर हो जाए जरा पानी

पड़ तो सारा रग घल जाए ऐस जखलौन लकर वह कया करगा जकस काम क मोहजसन कहता ह- मरा जभशती रोज

पानी द जाएगा साझ-सबर महमद- और मरा जसपाही घर का पहरा दगा कोई चोर आएगा तो िौरन बदक स िर कर

दगा नर- ओर मरा वकील खब मकदमा लड़गा सममी- ओर मरी धोजबन रोज कपड़ धोएगी हाजमद जखलौनो की

जनदा करता ह- जमटटी ही क तो ह जगर तो चकनाचर हो जाए लजकन ललचाई हई आखो स जखलौनो को दख रहा ह

और चाहता ह जक जरा दर क जलए उनदह हाथ म ल सकता उसक हाथ अनायास ही लपकत ह लजकन लड़क इतन

तयागी नही होत ह जवशिकर जब अभी नया शौक ह हाजमद ललचता रह जाता ह जखलौन क बाद जमठाइया आती

ह जकसी न रवजड़या ली ह जकसी न गलाबजामन जकसी न सोहन हलवा मज स खा रह ह हाजमद जबरादरी स पथक

ह अभाग क पास तीन पस ह कयो नही कछ लकर खाता ललचाई आखो स सबक ओर दखता ह मोहजसन कहता

ह- हाजमद रवड़ी ल जा जकतनी खशबदार ह हाजमद को सदह हआ य कवल करर जवनोद ह मोहजसन इतना उदार नही

ह लजकन यह जानकर भी वह उसक पास जाता ह मोहजसन दोन स एक रवड़ी जनकालकर हाजमद की ओर बढ़ाता ह

हाजमद हाथ िलाता ह मोहजसन रवड़ी अपन मह म रख लता ह महमद नर ओर सममी खब ताजलया बजा-बजाकर

हसत ह हाजमद जखजसया जाता ह मोहजसन- अचछा अबकी जरर दग हाजमद अलाह कसम ल जा हाजमद- रख

रहो कया मर पास पस नही ह सममी- तीन ही पस तो ह तीन पस म कया-कया लोग महमद- हमस गलाबजामन ल

जाओ हाजमद मोहजमन बदमाश ह हाजमद- जमठाई कौन बड़ी नमत ह जकताब म इसकी जकतनी बराइया जलखी ह

मोहजसन- लजकन जदन म कह रह होग जक जमल तो खा ल अपन पस कयो नही जनकालत महमद- इस समझत ह

इसकी चालाकी जब हमार सार पस खचट हो जाएग तो हम ललचा-ललचाकर खाएगा जमठाइयो क बाद कछ दकान

लोह की चीजो की कछ जगलर और कछ नकली गहनो की लड़को क जलए यहा कोई आकिटण न था व सब आग

बढ़ जात ह हाजमद लोह की दकान पर रक जात ह कई जचमर रख हए थ उस खयाल आया दादी क पास जचमरा

नही ह तब स रोजरया उतारती ह तो हाथ जल जाता ह अगर वह जचमरा ल जाकर दादी को द द तो वह जकतना

परसनदन होगी जिर उनकी ऊगजलया कभी न जलगी घर म एक काम की चीज हो जाएगी जखलौन स कया िायदा

वयथट म पस खराब होत ह जरा दर ही तो खशी होती ह जिर तो जखलौन को कोई आख उठाकर नही दखता यह तो

घर पहचत-पहचत रर-िर बराबर हो जाएग जचमरा जकतन काम की चीज ह रोजरया तव स उतार लो च ह म सक

लो कोई आग मागन आए तो चरपर च ह स आग जनकालकर उस द दो अममा बचारी को कहा िरसत ह जक

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बाजार आए और इतन पस ही कहा जमलत ह रोज हाथ जला लती ह हाजमद क साथी आग बढ़ गए ह सबील पर

सबक सब शबटत पी रह ह दखो सब कतन लालची ह इतनी जमठाइया ली मझ जकसी न एक भी न दी उस पर कहत

ह मर साथ खलो मरा यह काम करो अब अगर जकसी न कोई काम करन को कहा तो पछगा खाए जमठाइया आप

मह सड़गा िोड़-िजनदसया जनकलगी आप ही जबान चरोरी हो जाएगी तब घर स पस चराएग और मार खाएग

जकताब म झठी बात थोड़ ही जलखी ह मरी जबान कयो खराब होगी अममा जचमरा दखत ही दौड़कर मर हाथ स ल

लगी और कहगी- मरा बचचा अममा क जलए जचमरा लाया ह जकतना अचछा लड़का ह इन लोगो क जखलौन पर

कौन इनदह दआए दगा बड़ो का दआए सीध अलाह क दरबार म पहचती ह और तरत सनी जाती ह म भी इनस

जमजाज कयो सह म गरीब सही जकसी स कछ मागन तो नही जात आजखर अबबाजान कभी न कभी आएग अममा

भी आएगी ही जिर इन लोगो स पछगा जकतन जखलौन लोग एक-एक को रोकररयो जखलौन द और जदखा ह जक

दोसतो क साथ इस तरह का सलक जकया जात ह यह नही जक एक पस की रवजड़या ली तो जचढ़ा-जचढ़ाकर खान लग

सबक सब हसग जक हाजमद न जचमरा जलया ह हस मरी बला स उसन दकानदार स पछा- यह जचमरा जकतन का ह

दकानदार न उसकी ओर दखा और कोई आदमी साथ न दखकर कहा- तमहार काम का नही ह जी lsquoजबकाऊ ह जक

नहीrsquolsquoजबकाऊ कयो नही ह और यहा कयो लाद लाए हrsquolsquoतो बतात कयो नही क पस का हrsquolsquoछ पस लगगlsquoहाजमद

का जदल बठ गया lsquoठीक-ठीक पॉ च पस लगग लना हो लो नही चलत बनोlsquoहाजमद न कलजा मजबत करक कहा

तीन पस लोग यह कहता हआ व आग बढ़ गया जक दकानदार की घड़जकया न सन लजकन दकानदार न घड़जकया

नही दी बलाकर जचमरा द जदया हाजमद न उस इस तरह कध पर रखा मानो बदक ह और शान स अकड़ता हआ

सजगयो क पास आया जरा सन सबक सब कया-कया आलोचनाए करत ह मोहजसन न हसकर कहा- यह जचमरा कयो

लाया पगल इस कया करगा हाजमद न जचमर को जमीन पर परकर कहा- जरा अपना जभशती जमीन पर जगरा दो सारी

पसजलया चर-चर हो जाए बचा की महमद बोला- तो यह जचमरा कोई जखलौना ह हाजमद- जखलौना कयो नही ह

अभी कनदध पर रखा बदक हो गई हाथ म ल जलया िकीरो का जचमरा हो गया चाह तो इसस मजीर का काम ल

सकता ह एक जचमरा जमा द तो तम लोगो क सार जखलौनो की जान जनकल जाए तमहार जखलौन जकतना ही जोर

लगाए मर जचमर का बाल भी बाका नही कर सकत मरा बहादर शर ह जचमरा सममी न खजरी ली थी परभाजवत

होकर बोला- मरी खजरी स बदलोग दो आन की ह हाजमद न खजरी की ओर उपकषा स दखा- मरा जचमरा चाह तो

तमहारी खजरी का पर िाड़ डाल बस एक चमड़ की जझली लगा दी ढब-ढब बोलन लगी जरा-सा पानी लग जाए

तो खतम हो जाए मरा बहादर जचमरा आग म पानी म आधी म तिान म बराबर डरा खड़ा रहगा जचमर न सभी को

मोजहत कर जलया अब पस जकसक पास धर ह जिर मल स दर जनकल आए ह नौ कब क बज गए धप तज हो रही

ह घर पहचन की जदी हो रही ह बाप स जजद भी कर तो जचमरा नही जमल सकता हाजमद ह बड़ा चालाक

इसीजलए बदमाश न अपन पस बचा रख थ अब बालको क दो दल हो गए ह मोहजसन महमद सममी और नर एक

तरि ह हाजमद अकला दसरी तरि शासतरथट हो रहा ह सममी तो जवधमी हा गया दसर पकष स जा जमला लजकन

मोहजसन महमद और नर भी हाजमद स एक-एक दो-दो साल बड़ होन पर भी हाजमद क आघातो स आतजकत हो उठ

ह उसक पास नदयाय का बल ह और नीजत की शजि एक ओर जमटटी ह दसरी ओर लोहा जो इस वि अपन को

िौलाद कह रहा ह वह अजय ह घातक ह अगर कोई शर आ जाए जमया जभशती क छकक छर जाए जो जमया

जसपाही जमटटी की बदक छोड़कर भाग वकील साहब की नानी मर जाए चोग म मह जछपाकर जमीन पर लर जाए

मगर यह जचमरा यह बहादर यह रसतम-जहद लपककर शर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आख जनकाल

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लगा मोहजसन न एड़ी-चोरी का जोर लगाकर कहा- अचछा पानी तो नही भर सकता हाजमद न जचमर को सीधा

खड़ा करक कहा- जभशती को एक डार बताएगा तो दौड़ा हआ पानी लाकर उसक दवार पर जछड़कन लगगा मोहजसन

परासत हो गया पर महमद न कमक पहचाई- अगर बचा पकड़ जाए तो अदालम म बध-बध जिरग तब तो वकील

साहब क परो पड़ोग हाजमद इस परबल तकट का जवाब न द सका उसन पछा- हम पकड़न कौन आएगा नर न

अकड़कर कहा- यह जसपाही बदकवाला हाजमद न मह जचढ़ाकर कहा- यह बचार हम बहादर रसतम-जहद को

पकड़ग अचछा लाओ अभी जरा कशती हो जाए इसकी सरत दखकर दर स भागग पकड़ग कया बचार मोहजसन को

एक नई चोर सझ गई- तमहार जचमर का मह रोज आग म जलगा उसन समझा था जक हाजमद लाजवाब हो जाएगा

लजकन यह बात न हई हाजमद न तरत जवाब जदया- आग म बहादर ही कदत ह जनाब तमहार यह वकील जसपाही

और जभशती लजडयो की तरह घर म घस जाएग आग म वह काम ह जो यह रसतम-जहनदद ही कर सकता ह महमद न

एक जोर लगाया-वकील साहब करसी-मज पर बठग तमहारा जचमरा तो बावरचीखान म जमीन पर पड़ा रहन क जसवा

और कया कर सकता ह इस तकट न सममी और नर को भी सजी कर जदया जकतन जठकान की बात कही ह पटठ न

जचमरा बावरचीखान म पड़ा रहन क जसवा और कया कर सकता ह हाजमद को कोई िड़कता हआ जवाब न सझा तो

उसन धाधली शर की- मरा जचमरा बावरचीखान म नही रहगा वकील साहब कसी पर बठ ग तो जाकर उनदह जमीन

पर परक दगा और उनका कानन उनक पर म डाल दगा बात कछ बनी नही खाल गाली-गलौज थी लजकन कानन

को पर म डालनवाली बात छा गई ऐसी छा गई जक तीनो सरमा मह ताकत रह गए मानो कोई धलचा कान-कौआ

जकसी गडवाल कनकौए को कार गया हो कानन मह स बाहर जनकलन वाली चीज ह उसको पर क अदर डाल जदया

जाना बतकी-सी बात होन पर भी कछ नयापन रखती ह हाजमद न मदान मार जलया उसका जचमरा रसतम-जहनदद ह

अब इसम मोहजसन महमद नर सममी जकसी को भी आपजतत नही हो सकती जवजता को हारनवालो स जो सतकार

जमलना सवभाजवक ह वह हाजमद को भी जमल औरो न तीन-तीन चार-चार आन पस खचट जकए पर कोई काम की

चीज न ल सक हाजमद न तीन पस म रग जमा जलया सच ही तो ह जखलौनो का कया भरोसा रर-िर जाएगी हाजमद

का जचमरा तो बना रहगा बरसो सजध की शत तय होन लगी मोहजसन न कहा- जरा अपना जचमरा दो हम भी दख

तम हमार जभशती लकर दखो महमद और नर न भी अपन-अपन जखलौन पश जकए हाजमद को इन शतो को मानन म

कोई आपजतत न थी जचमरा बारी-बारी स सबक हाथ म गया और उनक जखलौन बारी-बारी स हाजमद क हाथ म

आए जकतन खबसरत जखलौन ह हाजमद न हारन वालो क ऑस पोछ- म तमह जचढ़ा रहा था सच यह जचमरा भला

इन जखलौनो की कया बराबर करगा मालम होता ह अब बोल अब बोल लजकन मोहजसन की पारी को इस जदलास

स सतोि नही होता जचमर का जसका खब बठ गया ह जचपका हआ जरकर अब पानी स नही छर रहा ह मोहजसन-

लजकन इन जखलौनो क जलए कोई हम दआ तो न दगा महमद- दआ को जलए जिरत हो उर मार न पड़ अममा

जरर कहगी जक मल म यही जमटटी क जखलौन जमल हाजमद को सवीकार करना पड़ा जक जखलौनो को दखकर जकसी

की मा इतनी खश न होगी जजतनी दादी जचमर को दखकर होगी तीन पसो ही म तो उस सब-कछ करना था ओर उन

पसो क इस उपायो पर पछताव की जबकल जररत न थी जिर अब तो जचमरा रसतम-जहनदद ह ओर सभी जखलौनो

का बादशाह रासत म महमद को भख लगी उसक बाप न कल खान को जदए महमद न कवल हाजमद को साझी

बनाया उसक अनदय जमतर मह ताकत रह गए यह उस जचमर का परसाद था गयारह बज गाव म हलचल मच गई

मलवाल आ गए मोहजसन की छोरी बहन दौड़कर जभशती उसक हाथ स छीन जलया और मार खशी क जा उछली तो

जमया जभशती नीच आ रह और सरलोक जसधार इस पर भाई-बहन म मार-पीर हई दानो खब रोए उसकी अममा यह

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शोर सनकर जबगड़ी और दोनो को ऊपर स दो-दो चार और लगाए जमया नर क वकील का अत उनक परजतषठानकल

इसस जयादा गौरवमय हआ वकील जमीन पर या ताक पर हो नही बठ सकता उसकी मयाटदा का जवचार तो करना ही

होगा दीवार म खजरया गाड़ी गई उन पर लकड़ी का एक पररा रखा गया परर पर कागज का कालीन जबदाया गया

वकील साहब राजा भोज की भाजत जसहासन पर जवराज नर न उनदह पखा झलना शर जकया आदालतो म खर की

ररटटया और जबजली क पख रहत ह कया यहा मामली पखा भी न हो कानन की गमी जदमाग पर चढ़ जाएगी जक नही

बास का पखा आया ओर नर हवा करन लग मालम नही पख की हवा स या पख की चोर स वकील साहब

सवगटलोक स मतयलोक म आ रह और उनका मारी का चोला मारी म जमल गया जिर बड़ जोर-शोर स मातम हआ

और वकील साहब की अजसथ घर पर डाल दी गई अब रहा महमद का जसपाही उस चरपर गाव का पहरा दन का

चाजट जमल गया लजकन पजलस का जसपाही कोई साधारण वयजि तो नही जो अपन परो चल वह पालकी पर चलगा

एक रोकरी आई उसम कछ लाल रग क िर-परान जचथड़ जबछाए गए जजसम जसपाही साहब आराम स लर नर न

यह रोकरी उठाई और अपन दवार का चककर लगान लग उनक दोनो छोर भाई जसपाही की तरह lsquoछोनवाल जागत

लहोrsquoपकारत चलत ह मगर रात तो अधरी होनी चाजहए नर को ठोकर लग जाती ह रोकरी उसक हाथ स छरकर जगर

पड़ती ह और जमया जसपाही अपनी बनददक जलय जमीन पर आ जात ह और उनकी एक राग म जवकार आ जाता ह

महमद को आज जञात हआ जक वह अचछा डाकरर ह उसको ऐसा मरहम जमला गया ह जजसस वह ररी राग को

आनन-िानन जोड़ सकता ह कवल गलर का दध चाजहए गलर का दध आता ह राग जावब द दती ह शय-जकरया

असिल हई तब उसकी दसरी राग भी तोड़ दी जाती ह अब कम-स-कम एक जगह आराम स बठ तो सकता ह एक

राग स तो न चल सकता था न बठ सकता था अब वह जसपाही सनदयासी हो गया ह अपनी जगह पर बठा-बठा पहरा

दता ह कभी-कभी दवता भी बन जाता ह उसक जसर का झालरदार सािा खरच जदया गया ह अब उसका जजतना

रपातर चाहो कर सकत हो कभी-कभी तो उसस बार का काम भी जलया जाता ह अब जमया हाजमद का हाल सजनए

अमीना उसकी आवाज सनत ही दौड़ी और उस गोद म उठाकर पयार करन लगी सहसा उसक हाथ म जचमरा दखकर

वह चौकी lsquoयह जचमरा कहॉ थाrsquolsquoमन मल स जलया हlsquolsquoक पस मrsquolsquoतीन पस जदयlsquoअमीना न छाती पीर ली यह

कसा बसमझ लड़का ह जक दोपहर हआ कछ खाया न जपया लाया कया जचमरा lsquoसार मल म तझ और कोई चीज न

जमली जो यह लोह का जचमरा उठा लायाrsquoहाजमद न अपराधी-भाव स कहा- तमहारी उगजलयॉ तव स जल जाती थी

इसजलए मन इस जलया बजढ़या का करोध तरनदत सनह म बदल गया और सनह भी वह नही जो परगभ होता ह और

अपनी सारी कसक शबदो म जबखर दता ह यह मक सनह था खब ठोस रस और सवाद स भरा हआ बचच म जकतना

वयाग जकतना सदभाव और जकतना जववक ह दसरो को जखलौन लत और जमठाई खात दखकर इसका मन जकतना

ललचाया होगा इतना जबत इसस हआ कस वहा भी इस अपनी बजढ़या दादी की याद बनी रही अमीना का मन

गदगद हो गया और अब एक बड़ी जवजचतर बात हई हाजमद क इस जचमर स भी जवजचतर बचच हाजमद न बढ़ हाजमद

का पारट खला था बजढ़या अमीना बाजलका अमीना बन गई वह रोन लगी दामन िलाकर हाजमद को दआए दती

जाती थी और आस की बड़ी-बड़ी बद जगराती जाती थी हाजमद इसका रहसय कया समझता

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दणनया का सबस अनमोल रतन

परमचद

जदलजफ़गार एक क रील पड़ क नीच दामन चाक जकय बठा हआ खन क आस बहा रहा था वह सौनददयट की दवी यानी

मलका जदलफ़रब का सचचा और जान दन वाला परमी था उन परजमयो म नही जो इतर-िलल म बसकर और शानदार

कपड़ो स सजकर आजशक क वश म माशजकयत का दम भरत ह बजक उन सीध-साद भोल-भाल जफ़दाइयो म जो

जगल और पहाड़ो स सर रकरात ह और फ़ररयाद मचात जिरत ह जदलफ़रब न उसस कहा था जक अगर त मरा सचचा

परमी ह तो जा और दजनया की सबस अनमोल चीज़ लकर मर दरबार म आ तब म तझ अपनी गलामी म कबल

कर गी अगर तझ वह चीज़ न जमल तो खबरदार इधर रख न करना वनाट सली पर जखचवा दगी जदलजफ़गार को

अपनी भावनाओ क परदशटन का जशकव-जशकायत का परजमका क सौनददयट-दशटन का तजनक भी अवसर न जदया गया

जदलफ़रब न जयो ही यह फ़सला सनाया उसक चोबदारो न गरीब जदलजफ़गार को धकक दकर बाहर जनकाल जदया

और आज तीन जदन स यह आफ़त का मारा आदमी उसी क रील पड़ क नीच उसी भयानक मदान म बठा हआ सोच

रहा ह जक कया कर दजनया की सबस अनमोल चीज़ मझको जमलगी नाममजकन और वह ह कया कार का

खजाना आब हयात खसरो का ताज जाम-जम तखतताऊस परवज़ की दौलत नही यह चीज़ हरजगज़ नही

दजनया म ज़रर इनस भी महगी इनस भी अनमोल चीज़ मौजद ह मगर वह कया ह कहा ह कस जमलगी या खदा

मरी मजशकल कयोकर आसान होगी

जदलजफ़गार इनदही खयालो म चककर खा रहा था और अकल कछ काम न करती थी मनीर शामी को हाजतम-सा

मददगार जमल गया ऐ काश कोई मरा भी मददगार हो जाता ऐ काश मझ भी उस चीज़ का जो दजनया की सबस

बशकीमत चीज़ ह नाम बतला जदया जाता बला स वह चीज़ हाथ न आती मगर मझ इतना तो मालम हो जाता जक

वह जकस जकसम की चीज़ ह म घड़ बराबर मोती की खोज म जा सकता ह म समनददर का गीत पतथर का जदल मौत

की आवाज़ और इनस भी जयादा बजनशान चीज़ो की तलाश म कमर कस सकता ह मगर दजनया की सबस अनमोल

चीज़ यह मरी कपना की उड़ान स बहत ऊपर ह

आसमान पर तार जनकल आय थ जदलजफ़गार यकायक खदा का नाम लकर उठा और एक तरि को चल खड़ा हआ

भखा-पयासा नग बदन थकन स चर वह बरसो वीरानो और आबाजदयो की खाक छानता जिरा तलव कारो स

छलनी हो गय शरीर म हडजडया ही हडजडया जदखायी दन लगी मगर वह चीज़ जो दजनया की सबस बश-कीमत चीज़

थी न जमली और न उसका कछ जनशान जमला

एक रोज़ वह भलता-भरकता एक मदान म जा जनकला जहा हजारो आदमी गोल बाध खड़ थ बीच म कई अमाम

और चोग वाल दजढयल काजी अफ़सरी शान स बठ हए आपस म कछ सलाह-मशजवरा कर रह थ और इस जमात स

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ज़रा दर पर एक सली खड़ी थी जदलजफ़गार कछ तो कमजोरी की वजह स कछ यहा की कजियत दखन क इराद स

जठठक गया कया दखता ह जक कई लोग नगी तलवार जलय एक कदी को जजसक हाथ-पर म ज़जीर थी पकड़ चल

आ रह ह सली क पास पहचकर सब जसपाही रक गय और कदी की हथकजडया बजडया सब उतार ली गयी इस

अभाग आदमी का दामन सकड़ो बगनाहो क खन क छीरो स रगीन था और उसका जदल नकी क खयाल और रहम

की आवाज़ स ज़रा भी पररजचत न था उस काला चोर कहत थ जसपाजहयो न उस सली क तखत पर खड़ा कर जदया

मौत की िासी उसकी गदटन म डाल दी और जलादो न तखता खीचन का इरादा जकया जक वह अभागा मजररम

चीखकर बोला-खदा क वासत मझ एक पल क जलए िासी स उतार दो ताजक अपन जदल की आजखरी आरज जनकाल

ल यह सनत ही चारो तरि सनदनारा छा गया लोग अचमभ म आकर ताकन लग काजजयो न एक मरन वाल आदमी

की अजतम याचना को रदद करना उजचत न समझा और बदनसीब पापी काला चोर ज़रा दर क जलए िासी स उतार

जलया गया

इसी भीड़ म एक खबसरत भोला-भोला लडका एक छड़ी पर सवार होकर अपन परो पर उछल-उछल फ़जी घोड़ा

दौड़ा रहा था और अपनी सादगी की दजनया म ऐसा मगन था जक जस वह इस वि सचमच जकसी अरबी घोड़ का

शहसवार ह उसका चहरा उस सचची खशी स कमल की तरह जखला हआ था जो चनदद जदनो क जलए बचपन ही म

हाजसल होती ह और जजसकी याद हमको मरत दम तक नही भलती उसका जदल अभी तक पाप की गदट और धल स

अछता था और मासजमयत उस अपनी गोद म जखला रही थी

बदनसीब काला चोर िासी स उतरा हज़ारो आख उस पर गड़ी हई थी वह उस लड़क क पास आया और उस गोद म

उठाकर पयार करन लगा उस इस वि वह ज़माना याद आया जब वह खद ऐसा ही भोला-भाला ऐसा ही खश-व-

खरटम और दजनया की गनददजगयो स ऐसा ही पाक साफ़ था मा गोजदयो म जखलाती थी बाप बलाए लता था और सारा

कनबा जान नदयोछावर करता था आह काल चोर क जदल पर इस वकत बीत हए जदनो की याद का इतना असर हआ

जक उसकी आखो स जजनदहोन दम तोड़ती हई लाशो को तड़पत दखा और न झपकी आस का एक कतरा रपक पड़ा

जदलजफ़गार न लपककर उस अनमोल मोती को हाथ म ल जलया और उसक जदल न कहा-बशक यह दजनया की सबस

अनमोल चीज़ ह जजस पर तखत ताऊस और जामजम और आब हयात और ज़र परवज़ सब नदयोछावर ह

इस खयाल स खश होता कामयाबी की उममीद म सरमसत जदलजफ़गार अपनी माशका जदलफ़रब क शहर मीनोसवाद

को चला मगर जयो-जयो मजजल तय होती जाती थी उसका जदल बठ जाता था जक कही उस चीज़ की जजस म दजनया

की सबस बशकीमत चीज़ समझता ह जदलफ़रब की आखो म कर न हई तो म िासी पर चढ़ा जदया जाऊ गा और इस

दजनया स नामराद जाऊ गा लजकन जो हो सो हो अब तो जकसमत-आज़माई ह आजखरकार पहाड़ और दररया तय

करत शहर मीनोसवाद म आ पहचा और जदलफ़रब की डयोढ़ी पर जाकर जवनती की जक थकान स ररा हआ

जदलजफ़गार खदा क फ़ज़ल स हकम की तामील करक आया ह और आपक कदम चमना चाहता ह जदलफ़रब न

फ़ौरन अपन सामन बला भजा और एक सनहर परद की ओर स फ़रमाइश की जक वह अनमोल चीज़ पश करो

जदलजफ़गार न आशा और भय की एक जवजचतर मनजसथजत म वह बद पश की और उसकी सारी कजफ़यत बहत

परअसर लफज़ो म बयान की जदलफ़रब न परी कहानी बहत गौर स सनी और वह भर हाथ म लकर ज़रा दर तक गौर

करन क बाद बोली-जदलजफ़गार बशक तन दजनया की एक बशकीमत चीज़ ढढ़ जनकाली तरी जहममत और तरी

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सझबझ की दाद दती ह मगर यह दजनया की सबस बशकीमत चीज़ नही इसजलए त यहा स जा और जिर कोजशश

कर शायद अब की तर हाथ वह मोती लग और तरी जकसमत म मरी गलामी जलखी हो जसा जक मन पहल ही बतला

जदया था म तझ िासी पर चढ़वा सकती ह मगर म तरी जाबखशी करती ह इसजलए जक तझम वह गण मौजद ह जो म

अपन परमी म दखना चाहती ह और मझ यकीन ह जक त जरर कभी-न-कभी कामयाब होगा

नाकाम और नामराद जदलजफ़गार इस माशकाना इनायत स ज़रा जदलर होकर बोला-ऐ जदल की रानी बड़ी मददत क बाद

तरी डयोढ़ी पर सजदा करना नसीब होता ह जिर खदा जान ऐस जदन कब आएग कया त अपन जान दन वाल

आजशक क बर हाल पर तरस न खाएगी और कया अपन रप की एक झलक जदखाकर इस जलत हए जदलजफ़गार को

आन वाली सजखतयो क झलन की ताकत न दगी तरी एक मसत जनगाह क नश स चर होकर म वह कर सकता ह जो

आज तक जकसी स न बन पड़ा हो

जदलफ़रब आजशक की यह चाव-भरी बात सनकर गससा हो गयी और हकम जदया जक इस दीवान को खड़-खड़ दरबार

स जनकाल दो चोबदार न फ़ौरन गरीब जदलजफ़गार को धकक दकर यार क कच स बाहर जनकाल जदया

कछ दर तक तो जदलजफ़गार अपनी जनषठर परजमका की इस कठोरता पर आस बहाता रहा और सोचन लगा जक कहा

जाऊ मददतो रासत नापन और जगलो म भरकन क बाद आस की यह बद जमली थी अब ऐसी कौन-सी चीज ह

जजसकी कीमत इस आबदार मोती स जयादा हो हज़रत जखजर तमन जसकनददर को आबहयात क कए का रासता

जदखाया था कया मरी बाह न पकड़ोग जसकनददर सारी दजनया का माजलक था म तो एक बघरबार मसाजफ़र ह तमन

जकतनी ही डबती जकजशतया जकनार लगायी ह मझ गरीब का बड़ा भी पार करो ऐ आलीमकाम जजबरील कछ तमही

इस नीमजान दखी आजशक पर तरस खाओ तम खदा क एक खास दरबारी हो कया मरी मजशकल आसान न करोग

गरज़ यह जक जदलजफ़गार न बहत फ़ररयाद मचायी मगर उसका हाथ पकडऩ क जलए कोई सामन न आया आजखर

जनराश होकर वह पागलो की तरह दबारा एक तरफ़ को चल खड़ा हआ

जदलजफ़गार न परब स पजचछम तक और उततर स दजकखन तक जकतन ही जगलो और वीरानो की खाक छानी कभी

बजफ़ट सतानी चोजरयो पर सोया कभी डरावनी घाजरयो म भरकता जिरा मगर जजस चीज़ की धन थी वह न जमली यहा

तक जक उसका शरीर हडजडयो का एक ढाचा रह गया

एक रोज वह शाम क वि जकसी नदी क जकनार खसताहाल पड़ा हआ था बखदी क नश स चौका तो कया दखता ह

जक चनददन की एक जचता बनी हई ह और उस पर एक यवती सहाग क जोड़ पहन सोलहो जसगार जकय बठी हई ह

उसकी जाघ पर उसक पयार पजत का सर ह हज़ारो आदमी गोल बाध खड़ ह और िलो की बरखा कर रह ह

यकायक जचता म स खद-ब-खद एक लपर उठी सती का चहरा उस वि एक पजवतर भाव स आलोजकत हो रहा था

जचता की पजवतर लपर उसक गल स जलपर गयी और दम-क-दम म वह िल-सा शरीर राख का ढर हो गया परजमका न

अपन को परमी पर नदयोछावर कर जदया और दो परजमयो क सचच पजवतर अमर परम की अजनदतम लीला आख स ओझल

हो गयी जब सब लोग अपन घरो को लौर तो जदलजफ़गार चपक स उठा और अपन चाक-दामन करत म यह राख का

ढर समर जलया और इस मटठी भर राख को दजनया की सबस अनमोल चीज़ समझता हआ सिलता क नश म चर यार

क कच की तरि चला अबकी जयो-जयो वह अपनी मजजल क करीब आता था उसकी जहममत बढ़ती जाती थी कोई

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उसक जदल म बठा हआ कह रहा था-अबकी तरी जीत ह और इस खयाल न उसक जदल को जो-जो सपन जदखाए

उनकी चचाट वयथट ह आजखकार वह शहर मीनोसवाद म दाजखल हआ और जदलफ़रब की ऊ ची डयोढ़ी पर जाकर

खबर दी जक जदलजफ़गार सखट-र होकर लौरा ह और हजर क सामन आना चाहता ह जदलफ़रब न जाबाज़ आजशक

को फ़ौरन दरबार म बलाया और उस चीज क जलए जो दजनया की सबस बशकीमत चीज़ थी हाथ िला जदया

जदलजफ़गार न जहममत करक उसकी चादी जसी कलाई को चम जलया और मिी भर राख को उसकी हथली म रखकर

सारी कजफ़यत जदल को जपघला दन वाल लफजो म कह सनायी और सनददर परजमका क होठो स अपनी जकसमत का

मबारक फ़सला सनन क जलए इनदतज़ार करन लगा जदलफ़रब न उस मिी भर राख को आखो स लगा जलया और कछ

दर तक जवचारो क सागर म डब रहन क बाद बोली-ऐ जान जनछावर करन वाल आजशक जदलजफ़गार बशक यह राख

जो त लाया ह जजसम लोह को सोना कर दन की जसफ़त ह दजनया की बहत बशकीमत चीज़ ह और म सचच जदल स

तरी एहसानमनदद ह जक तन ऐसी अनमोल भर मझ दी मगर दजनया म इसस भी जयादा अनमोल कोई चीज़ ह जा उस

तलाश कर और तब मर पास आ म तहजदल स दआ करती ह जक खदा तझ कामयाब कर यह कहकर वह सनहर

परद स बाहर आयी और माशकाना अदा स अपन रप का जलवा जदखाकर जिर नजरो स ओझल हो गयी एक

जबजली थी जक कौधी और जिर बादलो क परद म जछप गयी अभी जदलजफ़गार क होश-हवास जठकान पर न आन

पाय थ जक चोबदार न मलायजमयत स उसका हाथ पकडकर यार क कच स उसको जनकाल जदया और जिर तीसरी बार

वह परम का पजारी जनराशा क अथाह समनददर म गोता खान लगा

जदलजफ़गार का जहयाव छर गया उस यकीन हो गया जक म दजनया म इसी तरह नाशाद और नामराद मर जान क जलए

पदा जकया गया था और अब इसक जसवा और कोई चारा नही जक जकसी पहाड़ पर चढकर नीच कद पड़ ताजक

माशक क ज मो की फ़ररयाद करन क जलए एक हडडी भी बाकी न रह वह दीवान की तरह उठा और जगरता-पड़ता

एक गगनचमबी पहाड़ की चोरी पर जा पहचा जकसी और समय वह ऐस ऊ च पहाड़ पर चढऩ का साहस न कर

सकता था मगर इस वकत जान दन क जोश म उस वह पहाड़ एक मामली रकरी स जयादा ऊ चा न नजर आया करीब

था जक वह नीच कद पड़ जक हर-हर कपड़ पहन हए और हरा अमामा बाध एक बजगट एक हाथ म तसबीह और दसर

हाथ म लाठी जलय बरामद हए और जहममत बढ़ान वाल सवर म बोल-जदलजफ़गार नादान जदलजफ़गार यह कया

बज़जदलो जसी हरकत ह त महबबत का दावा करता ह और तझ इतनी भी खबर नही जक मजबत इरादा महबबत क

रासत की पहली मजज़ल ह मदट बन और यो जहममत न हार परब की तरफ़ एक दश ह जजसका नाम जहनददोसतान ह वहा

जा और तरी आरज परी होगी

यह कहकर हज़रत जखजर गायब हो गय जदलजफ़गार न शजकरय की नमाज अदा की और ताज़ा हौसल ताज़ा जोश और

अलौजकक सहायता का सहारा पाकर खश-खश पहाड़ स उतरा और जहनददोसतान की तरि चल पड़ा

मददतो तक कारो स भर हए जगलो आग बरसान वाल रजगसतानो कजठन घाजरयो और अलघय पवटतो को तय करन क

बाद जदलजफ़गार जहनदद की पाक सरज़मीन म दाजखल हआ और एक ठणड पानी क सोत म सफ़र की तकलीि धोकर

थकान क मार नदी क जकनार लर गया शाम होत-होत वह एक चजरयल मदान म पहचा जहा बशमार अधमरी और

बजान लाश जबना कफ़न क पड़ी हई थी चील-कौए और वहशी दररनदद मर पड़ हए थ और सारा मदान खन स लाल

हो रहा था यह डरावना दशय दखत ही जदलजफ़गार का जी दहल गया या खदा जकस मसीबत म जान ि सी मरन

वालो का कराहना जससकना और एजडया रगडकर जान दना दररनददो का हडजडयो को नोचना और गोशत क लोथड़ो

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को लकर भागना ऐसा हौलनाक सीन जदलजफ़गार न कभी न दखा था यकायक उस खयाल आया यह लड़ाई का

मदान ह और यह लाश सरमा जसपाजहयो की ह इतन म करीब स कराहन की आवाज़ आयी जदलजफ़गार उस तरफ़

जिरा तो दखा जक एक लमबा-तड़गा आदमी जजसका मदाटना चहरा जान जनकालन की कमज़ोरी स पीला हो गया ह

ज़मीन पर सर झकाय पड़ा हआ ह सीन स खन का िौववारा जारी ह मगर आबदार तलवार की मठ पज स अलग

नही हई जदलजफ़गार न एक चीथड़ा लकर घाव क मह पर रख जदया ताजक खन रक जाए और बोला-ऐ जवामदट त

कौन ह जवामदट न यह सनकर आख खोली और वीरो की तरह बोला-कया त नही जानता म कौन ह कया तन आज

इस तलवार की कार नही दखी म अपनी मा का बरा और भारत का सपत ह यह कहत-कहत उसकी तयोररयो पर

बल पड़ गय पीला चहरा गसस स लाल हो गया और आबदार शमशीर जिर अपना जौहर जदखान क जलए चमक

उठी जदलजफ़गार समझ गया जक यह इस वि मझ दशमन समझ रहा ह नरमी स बोला-ऐ जवामदट म तरा दशमन नही

ह अपन वतन स जनकला हआ एक गरीब मसाजफ़र ह इधर भलता-भरकता आ जनकला बराय महरबानी मझस यहा

की कल कजफ़यत बयान कर

यह सनत ही घायल जसपाही बहत मीठ सवर म बोला-अगर त मसाजफ़र ह तो आ मर खन स तर पहल म बठ जा

कयोजक यही दो अगल ज़मीन ह जो मर पास बाकी रह गयी ह और जो जसवाय मौत क कोई नही छीन सकता

अफ़सोस ह जक त यहा ऐस वकत म आया जब हम तरा आजतथय-सतकार करन क योगय नही हमार बाप-दादा का दश

आज हमार हाथ स जनकल गया और इस वि हम बवतन ह मगर (पहल बदलकर) हमन हमलावर दशमन को बता

जदया जक राजपत अपन दश क जलए कसी बहादरी स जान दता ह यह आस-पास जो लाश त दख रहा ह यह उन

लोगो की ह जो इस तलवार क घार उतर ह (मसकराकर) और गोया जक म बवतन ह मगर गनीमत ह जक दशमन की

ज़मीन पर मर रहा ह (सीन क घाव स चीथड़ा जनकालकर) कया तन यह मरहम रख जदया खन जनकलन द इस रोकन

स कया फ़ायदा कया म अपन ही दश म गलामी करन क जलए जज़नददा रह नही ऐसी जज़नददगी स मर जाना अचछा

इसस अचछी मौत ममजकन नही

जवामदट की आवाज़ मजदधम हो गयी अग ढील पड़ गय खन इतना जयादा बहा जक खद-ब-खद बनदद हो गया रह-

रहकर एकाध बद रपक पड़ता था आजखरकार सारा शरीर बदम हो गया जदल की हरकत बनदद हो गयी और आख मद

गयी जदलजफ़गार न समझा अब काम तमाम हो गया जक मरन वाल न धीम स कहा-भारतमाता की जय और उसक

सीन स खन का आजखरी कतरा जनकल पड़ा एक सचच दशपरमी और दशभि न दशभजि का हक अदा कर जदया

जदलजफ़गार पर इस दशय का बहत गहरा असर पड़ा और उसक जदल न कहा बशक दजनया म खन क इस कतर स

जयादा अनमोल चीज कोई नही हो सकती उसन फ़ौरन उस खन की बद को जजसक आग यमन का लाल भी हच ह

हाथ म ल जलया और इस जदलर राजपत की बहादरी पर हरत करता हआ अपन वतन की तरफ़ रवाना हआ और

सजखतया झलता आजखरकार बहत जदनो क बाद रप की रानी मलका जदलफ़रब की डयोढ़ी पर जा पहचा और पगाम

जदया जक जदलजफ़गार सखटर और कामयाब होकर लौरा ह और दरबार म हाजज़र होना चाहता ह जदलफ़रब न उस

फ़ौरन हाजज़र होन का हकम जदया खद हसब मामल सनहर परद की ओर म बठी और बोली-जदलजफ़गार अबकी त

बहत जदनो क बाद वापस आया ह ला दजनया की सबस बशकीमत चीज कहा ह

जदलजफ़गार न महदी-रची हथजलयो को चमत हए खन का वह कतरा उस पर रख जदया और उसकी परी कजफ़यत

परजोश लहज म कह सनायी वह खामोश भी न होन पाया था जक यकायक वह सनहरा परदा हर गया और

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जदलजफ़गार क सामन हसन का एक दरबार सजा हआ नज़र आया जजसकी एक-एक नाज़नीन जलखा स बढकर थी

जदलफ़रब बड़ी शान क साथ सनहरी मसनद पर सशोजभत हो रही थी जदलजफ़गार हसन का यह जतलसम दखकर

अचमभ म पड़ गया और जचतरजलजखत-सा खड़ा रहा जक जदलफ़रब मसनद स उठी और कई कदम आग बढकर उसस

जलपर गयी गानवाजलयो न खशी क गान शर जकय दरबाररयो न जदलजफ़गार को नज़र भर की और चाद-सरज को

बड़ी इजजत क साथ मसनद पर बठा जदया जब वह लभावना गीत बनदद हआ तो जदलफ़रब खड़ी हो गयी और हाथ

जोडकर जदलजफ़गार स बोली-ऐ जाजनसार आजशक जदलजफ़गार मरी दआए बर आयी और खदा न मरी सन ली और

तझ कामयाब व सखटर जकया आज स त मरा माजलक ह और म तरी लौडी

यह कहकर उसन एक रतनजजरत मजिा मगायी और उसम स एक तखती जनकाली जजस पर सनहर अकषरो म जलखा

हआ था-

lsquoखन का वह आजखरी कतरा जो वतन की जहफ़ाजत म जगर दजनया की सबस अनमोल चीज़ हrsquo

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अिना-अिना भागय

जनर कमार

बहत कछ जनरददशय घम चकन पर हम सड़क क जकनार की एक बच पर बठ गए ननीताल की सधया धीर-धीर उतर

रही थी रई क रश-स भाप-स बादल हमार जसरो को छ-छकर बरोक-रोक घम रह थ हक परकाश और अजधयारी स

रगकर कभी व नील दीखत कभी सिद और जिर दर म अरण पड़ जात व जस हमार साथ खलना चाह रह थ

पीछ हमार पोलो वाला मदान िला था सामन अगरजो का एक परमोदगह था जहा सहावना रसीला बाजा बज रहा था

और पाशवट म था वही सरमय अनपम ननीताल

ताल म जकजशतया अपन सिद पाल उड़ाती हई एक-दो अगरज याजतरयो को लकर इधर स उधर और उधर स इधर खल

रही थी कही कछ अगरज एक-एक दवी सामन परजतसथाजपत कर अपनी सई-सी शकल की डोजगयो को मानो शतट

बाधकर सरपर दौड़ा रह थ कही जकनार पर कछ साहब अपनी बसी डाल सधयट एकागर एकसथ एकजनषठ मछली-

जचनदतन कर रह थ पीछ पोलो-लान म बचच जकलकाररया मारत हए हॉकी खल रह थ

शोर मार-पीर गाली-गलौच भी जस खल का ही अश था इस तमाम खल को उतन कषणो का उददशय बना व बालक

अपना सारा मन सारी दह समगर बल और समची जवधा लगाकर मानो खतम कर दना चाहत थ उनदह आग की जचनदता

न थी बीत का खयाल न था व शदध ततकाल क पराणी थ व शबद की समपणट सचचाई क साथ जीजवत थ

सड़क पर स नर-नाररयो का अजवरल परवाह आ रहा था और जा रहा था उसका न ओर था न छोर यह परवाह कहा जा

रहा था और कहा स आ रहा था कौन बता सकता ह सब उमर क सब तरह क लोग उसम थ मानो मनषयता क

नमनो का बाजार सजकर सामन स इठलाता जनकला चला जा रहा हो

अजधकार-गवट म तन अगरज उसम थ और जचथड़ो स सज घोड़ो की बाग थाम व पहाड़ी उसम थ जजनदहोन अपनी

परजतषठा और सममान को कचलकर शनदय बना जलया ह और जो बड़ी ततपरता स दम जहलाना सीख गए ह

भागत खलत हसत शरारत करत लाल-लाल अगरज बचच थ और पीली-पीली आख िाड़ जपता की उगली

पकड़कर चलत हए अपन जहनददसतानी नौजनहाल भी थ अगरज जपता थ जो अपन बचचो क साथ भाग रह थ हस रह

थ और खल रह थ उधर भारतीय जपतदव भी थ जो बजगी को अपन चारो तरि लपर धन-सपनदनता क लकषणो का

परदटशन करत हए चल रह थ

अगरज रमजणया थी जो धीर-धीर नही चलती थी तज चलती थी उनदह न चलन म थकावर आती थी न हसन म मौत

आती थी कसरत क नाम पर घोड़ पर भी बठ सकती थी और घोड़ क साथ ही साथ जरा जी होत ही जकसी-जकसी

जहनददसतानी पर कोड़ भी िरकार सकती थी व दो-दो तीन-तीन चार-चार की रोजलयो म जनशक जनरापद इस परवाह

म मानो अपन सथान को जानती हई सड़क पर चली जा रही थी

उधर हमारी भारत की कललकषमी सड़क क जबकल जकनार दामन बचाती और सभालती हई साड़ी की कई तहो म

जसमर-जसमरकर लोक-लाज सतरीतव और भारतीय गररमा क आदशट को अपन पररविनो म जछपाकर सहमी-सहमी

धरती म आख गाड़ कदम-कदम बढ़ रही थी

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इसक साथ ही भारतीयता का एक और नमना था अपन कालपन को खरच-खरचकर बहा दन की इचछा करनवाला

अगरजीदा परिोततम भी थ जो नजरवो को दखकर मह िर लत थ और अगरज को दखकर आख जबछा दत थ और दम

जहलान लगत थ वस व अकड़कर चलत थ-मानो भारतभजम को इसी अकड़ क साथ कचल-कचलकर चलन का उनदह

अजधकार जमला ह

घणर क घणर सरक गए अधकार गाढ़ा हो गया बादल सिद होकर जम गए मनषयो का वह ताता एक-एक कर कषीण

हो गया अब इकका-दकका आदमी सड़क पर छतरी लगाकर जनकल रहा था हम वही क वही बठ थ सदी-सी मालम

हई हमार ओवरकोर भीग गए थ पीछ जिरकर दखा यह लाल बिट की चादर की तरह जबकल सतबध और सनदन

पड़ा था

सब सनदनारा था तलीलाल की जबजली की रोशजनया दीप-माजलका-सी जगमगा रही थी वह जगमगाहर दो मील

तक िल हए परकजत क जलदपटण पर परजतजबजमबत हो रही थी और दपटण का कापता हआ लहर लता हआ वह जल

परजतजबमबो को सौगना हजारगना करक उनक परकाश को मानो एकतर और पजीभत करक वयापत कर रहा था पहाड़ो

क जसर पर की रोशनाईया तारो-सी जान पड़ती थी

हमार दखत-दखत एक घन पद न आकर इन सबको ढक जदया रोशजनया मानो मर गई जगमगाहर लपत हो गई व

काल-काल भत-स पहाड़ भी इस सिद पद क पीछ जछप गए पास की वसत भी न दीखन लगी मानो यह घनीभत

परलय था सब कछ इस घनी गहरी सिदी म दब गया एक शभर महासागर न िलकर ससकजत क सार अजसततव को

डबो जदया ऊपर-नीच चारो तरि वह जनभदय सिद शनदयता ही िली हई थी

ऐसा घना कहरा हमन कभी न दखा था वह रप-रप रपक रहा था मागट अब जबकल जनजटन-चप था वह परवाह न

जान जकन घोसलो म जा जछपा था उस वहदाकार शभर शनदय म कही स गयारह बार रन-रन हो उठा जस कही दर कबर

म स आवाज आ रही हो हम अपन-अपन होरलो क जलए चल जदए रासत म दो जमतरो का होरल जमला दोनो वकील

जमतर छटटी लकर चल गए हम दोनो आग बढ़ हमारा होरल आग था

ताल क जकनार-जकनार हम चल जा रह थ हमार ओवरकोर तर हो गए थ बाररश नही मालम होती थी पर वहा तो

ऊपर-नीच हवा स कण-कण म बाररश थी सदी इतनी थी जक सोचा कोर पर एक कमबल और होता तो अचछा होता

रासत म ताल क जबलकल जकनार पर बच पड़ी थी म जी म बचन हो रहा था झरपर होरल पहचकर इन भीग कपड़ो

स छटटी पा गरम जबसतर म जछपकर सोना चाहता था पर साथ क जमतरो की सनक कब उठगी कब थमगी-इसका पता न

था और वह कसी कया होगी-इसका भी कछ अनददाज न था उनदहोन कहा-rdquoआओ जरा यहा बठ rdquo

हम उस चत कहर म रात क ठीक एक बज तालाब क जकनार उस भीगी बिट -सी ठडी हो रही लोह की बच पर बठ

गए

पाच दस पनदरह जमनर हो गए जमतर क उठन का इरादा न मालम हआ मन जखजसयाकर कहा-

rdquoचजलए भीrdquo

rdquoअर जरा बठो भीrdquo

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हाथ पकड़कर जरा बठन क जलए जब इस जोर स बठा जलया गया तो और चारा न रहा- लाचार बठ रहना पड़ा सनक

स छरकारा आसान न था और यह जरा बठना जरा न था बहत था

चपचाप बठ तग हो रहा था कढ़ रहा था जक जमतर अचानक बोल-

rdquoदखोhellip वह कया हrdquo

मन दखा-कहर की सिदी म कछ ही हाथ दर स एक काली-सी सरत हमारी तरि बढ़ी आ रही थी मन कहा- rdquoहोगा

कोईrdquo

तीन गज की दरी स दीख पड़ा एक लड़का जसर क बड़-बड़ बालो को खजलाता चला आ रहा ह नग पर ह नगा

जसर एक मली-सी कमीज लरकाए ह पर उसक न जान कहा पड़ रह ह और वह न जान कहा जा रहा ह- कहा जाना

चाहता ह उसक कदमो म जस कोई न अगला ह न जपछला ह न दाया ह न बाया ह

पास ही चगी की लालरन क छोर-स परकाशवतत म दखा-कोई दस बरस का होगा गोर रग का ह पर मल स काला पड़

गया ह आख अचछी बड़ी पर रखी ह माथा जस अभी स झररटया खा गया ह वह हम न दख पाया वह जस कछ भी

नही दख रहा था न नीच की धरती न ऊपर चारो तरि िला हआ कहरा न सामन का तालाब और न बाकी दजनया

वह बस अपन जवकर वतटमान को दख रहा था

जमतर न आवाज दी-rdquoएrdquo

उसन जस जागकर दखा और पास आ गया

rdquoत कहा जा रहा हrdquo

उसन अपनी सनी आख िाड़ दी

rdquoदजनया सो गई त ही कयो घम रहा हrdquo

बालक मौन-मक जिर भी बोलता हआ चहरा लकर खड़ा रहा

rdquoकहा सोएगाrdquo

rdquoयही कहीrdquo

rdquoकल कहा सोया थाrdquo

rdquoदकान परrdquo

rdquoआज वहा कयो नहीrdquo

rdquoनौकरी स हरा जदयाrdquo

rdquoकया नौकरी थीrdquo

rdquoसब काम एक रपया और जठा खानाrdquo

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rdquoजिर नौकरी करगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoबाहर चलगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoआज कया खाना खायाrdquo

rdquoकछ नहीrdquo

rdquoअब खाना जमलगाrdquo

rdquoनही जमलगाrdquo

lsquoयो ही सो जाएगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoकहाrdquo

rdquoयही कहीrdquo

rdquoइनदही कपड़ो मrdquo

बालक जिर आखो स बोलकर मक खड़ा रहा आख मानो बोलती थी-यह भी कसा मखट परशन

rdquoमा-बाप हrdquo

rdquoहrdquo

rdquoकहाrdquo

rdquoपनदरह कोस दर गाव मrdquo

rdquoत भाग आयाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoकयोrdquo

rdquoमर कई छोर भाई-बजहन ह-सो भाग आया वहा काम नही रोरी नही बाप भखा रहता था और मारता था मा भखी

रहती थी और रोती थी सो भाग आया एक साथी और था उसी गाव का मझस बड़ा था दोनो साथ यहा आए वह

अब नही ह

rdquoकहा गयाrdquo

rdquoमर गयाrdquo

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rdquoमर गयाrdquo

rdquoमर गयाrdquo

rdquoहा साहब न मारा मर गयाrdquo

rdquoअचछा हमार साथ चलrdquo

वह साथ चल जदया लौरकर हम वकील दोसतो क होरल म पहच

rdquoवकील साहबrdquo

वकील लोग होरल क ऊपर क कमर स उतरकर आए कशमीरी दोशाला लपर थ मोज-चढ़ परो म चपपल थी सवर म

हकी-सी झझलाहर थी कछ लापरवाही थी

rdquoआ-हा जिर आप कजहएrdquo

rdquoआपको नौकर की जररत थी न दजखए यह लड़का हrdquo

rdquoकहा स ल आए इस आप जानत हrdquo

rdquoजानता ह -यह बईमान नही हो सकताrdquo

rdquoअजी य पहाड़ी बड़ शतान होत ह बचच-बचच म गल जछप रहत ह आप भी कया अजीब ह उठा लाए कही स-लो

जी यह नौकर लोrdquo

rdquoमाजनए तो यह लड़का अचछा जनकलगाrdquo

rdquoआप भीhellip जी बस खब ह ऐर-गर को नौकर बना जलया जाए अगल जदन वह न जान कया-कया लकर चमपत हो

जाएrdquo

rdquoआप मानत ही नही म कया करrsquo

rdquoमान कया खाक आप भीhellip जी अचछा मजाक करत हhellip अचछा अब हम सोन जात हrdquo और व चार रपय रोज

क जकराय वाल कमर म सजी मसहरी पर सोन झरपर चल गए

वकील साहब क चल जान पर होरल क बाहर आकर जमतर न अपनी जब म हाथ डालकर कछ ररोला पर झर कछ

जनराश भाव स हाथ बाहर कर मरी ओर दखन लग

rdquoकया हrdquo

rdquoइस खान क जलए कछ-दना चाहता थाrdquo अगरजी म जमतर न कहा-rdquoमगर दस-दस क नोर हrdquo

rdquoनोर ही शायद मर पास ह दखrdquo

सचमच मर पाजकर म भी नोर ही थ हम जिर अगरजी म बोलन लग लड़क क दात बीच-बीच म करकरा उठत थ

कड़ाक की सदी थी

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जमतर न पछा-rdquoतबrdquo

मन कहा-rdquoदस का नोर ही द दोrdquo सकपकाकर जमतर मरा मह दखन लग-rdquoअर यार बजर जबगड़ जाएगा हदय म

जजतनी दया ह पास म उतन पस तो नही हrdquo

rdquoतो जान दो यह दया ही इस जमान म बहत हrdquo मन कहा जमतर चप रह जस कछ सोचत रह जिर लड़क स बोल-

rdquoअब आज तो कछ नही हो सकता कल जमलना वह lsquoहोरल डी पबrsquo जानता ह वही कल दस बज जमलगाrdquo

rdquoहा कछ काम दग हजरrdquo

rdquoहा हा ढढ दगाrdquo

rdquoतो जाऊrdquo

rdquoहाrdquo ठडी सास खीचकर जमतर न कहा-rdquoकहा सोएगाrdquo

rdquoयही कही बच पर पड़ क नीच जकसी दकान की भटठी मrdquo

बालक जिर उसी परत-गजत स एक ओर बढ़ा और कहर म जमल गया हम भी होरल की ओर बढ़ हवा तीखी थी-

हमार कोरो को पार कर बदन म तीर-सी लगती थी

जसकड़त हए जमतर न कहा-rdquoभयानक शीत ह उसक पास कम-बहत कम

कपड़helliprdquo

rdquoयह ससार ह यारrdquo मन सवाथट की जिलासिी सनाई-rdquoचलो पहल जबसतर म गमट हो लो जिर जकसी और की जचनदता

करनाrdquo

उदास होकर जमतर न कहा-rdquoसवाथट-जो कहो लाचारी कहो जनषठरता कहो या बहयाईrdquo

दसर जदन ननीताल- सवगट क जकसी काल गलाम पश क दलार का वह बरा- वह बालक जनजशचत समय पर हमार

lsquoहोरल डी पबrsquo म नही आया हम अपनी ननीताल की सर खशी-खशी खतम कर चलन को हए उस लड़क की आस

लगात बठ रहन की जररत हमन न समझी

मोरर म सवार होत ही थ जक यह समाचार जमला जक जपछली रात एक पहाड़ी बालक सड़क क जकनार पड़ क नीच

जठठरकर मर गया

मरन क जलए उस वही जगह वही दस बरस की उमर और वही काल जचथड़ो की कमीज जमली आदजमयो की दजनया न

बस यही उपहार उसक पास छोड़ा था

पर बतान वालो न बताया जक गरीब क मह पर छाती मटठी और परो पर बरि की हकी-सी चादर जचपक गई थी

मानो दजनया की बहयाई ढकन क जलए परकजत न शव क जलए सिद और ठणड किन का परबनदध कर जदया था

सब सना और सोचा अपना-अपना भागय

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रािी

सभराकमारी चौहान

-तरा नाम कया ह

- राही

- तझ जकस अपराध म सज़ा हई

- चोरी की थी सरकार

- चोरी कया चराया था

- नाज की गठरी

- जकतना नाज था

- होगा पाच-छः सर

- और सज़ा जकतन जदन की ह

- साल भर की

- तो तन चोरी कयो की मज़दरी करती तब भी तो जदन भर म तीन-चार आन पस जमल जात

- हम मज़दरी नही जमलती सरकार हमारी जाजत मागरोरी ह हम कवल मागत-खात ह

- और भीख न जमल तो

- तो जिर चोरी करत ह उस जदन घर म खान को नही था बचच भख स तड़प रह थ बाजार म बहत दर तक मागा

बोझा ढोन क जलए रोकरा लकर भी बठी रही पर कछ न जमला सामन जकसीका बचचा रो रहा था उस दखकर मझ

अपन भख बचचो की याद आ गई वही पर जकसी की नाज की गठरी रखी हई थी उस लकर भागी ही थी जक

पजलसवाल न पकड़ जलया

अजनता न एक ठडी सास ली बोली - जिर तन कहा नही जक बचच भख थ इसजलए चोरी की सभव ह इस बात स

मजजसटर कम सज़ा दता

- हम गरीबो की कोई नही सनता सरकार बचच आय थ कचहरी म मन सब-कछ कहा पर जकसी न नही सना

राही न कहा

- अब तर बचच जकसक पास ह उनका बाप ह अजनता न पछा

राही की आखो म आस आ गए वह बोली उनका बाप मर गया सरकार

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जल म उस मारा था और वही असपताल म वह मर गया अब बचचो का कोई नही ह

ldquoतो तर बचचो का बाप भी जल म ही मरा वह कयो जल आया था rdquo अजनता न परशन जकया

- उस तो जबना कसर क ही पकड़ जलया था सरकार राही न कहा - ताड़ी पीन को गया था दो-चार दोसत भाई उसक

साथ थ मर घरवाल का एक वि पजलसवाल स झगड़ा हो गया था उसी का बदला उसन जलया 109 म उसका

चालान करक साल भर की सज़ा जदला दी वही वह मर गया

अनीता न एक दीधट जनःशवास क साथ कहा अचछा जा अपना काम कर राही चली गई

अनीता सतयागरह करक जल आई थी पजहल उस lsquoबीrsquoकलास जदया था जिर उसक घरवालो न जलखा-पढ़ी करक उस

lsquoएrsquoकलास जदलवा जदया

अनीता क सामन आज एक परशन था वह सोच रही थी जक दश की दरररता और इन जनरीह गरीबो क किो को दर

करन का कोई उपाय नही ह हम सभी परमातमा की सतान ह एक ही दश क जनवासी कम-स-कम हम सबको खान

पजहनन का समान अजधकार ह ही जिर यह कया बात ह जक कछ लोग तो बहत आराम स रहत ह और कछ लोग पर

क अनदन क जलए चोरी करत ह उसक बाद जवचारक की अदरदजशटता क कारण या सरकारी वकील क चातयटपणट

जजरह क कारण छोर - छोर बचचो की माताय जल भज दी जाती ह उनक बचच भखो मरन क जलए छोड़ जदय जात

ह एक ओर तो यह कदी ह जो जल आकर सचमच जल जीवन क कि उठाती ह और दसरी ओर ह हम लोग जो

अपनी दशभजि और तयाग का जढढोरा पीरत हए जल आत ह हम आमतौर स दसर कजदयो क मकाजबल म अचछा

बरताव जमलता ह जिरभी हम सतोि नही होता हम जल आकर lsquoएrsquoऔर lsquoबीrsquoकलास क जलए झगड़त ह जल आकर

ही हम कौन-सा बड़ा तयाग कर दत ह जल म हम कौन-सा कि रहता ह जसवा इसक जक हमार माथ पर नततव की

सील लग जाती ह हम बड़ अजभमान स कहत ह lsquoयह हमारी चौथी जल यातरा ह lsquoयह हमारी पाचवी जल यातरा

हrsquoऔर अपनी जल यातरा क जकसस बार-बार सना-सनाकर आतमगौरव अनभव करत ह तातपयट यह जक हम जजतन

बार जल जा चक होत ह उतनी ही सीढ़ी हम दशभजि और तयाग स दसरो स ऊपर उठ जात ह और इसक बल पर

जल स छरन क बाद कागरस को राजकीय सतता जमलत ही हम जमजनसरर सथाजनक ससथाओ क ममबर और कया कया

हो जात ह

अनीता सोच रही थी - कल तक जो खददर भी न पजहनत थ बात-बात पर कागरस का मजाक उड़ात थ कागरस क हाथो

म थोड़ी शजि आत ही व कागरस भि बन गए खददर पजहनन लग यहा तक जक जल म भी जदखाई पड़न लग

वासतव म यह दशभजि ह या सतताभजि

अनीता क जवचारो का ताता लगा हआ था वह दाशटजनक हो रही थी उस अनभव हआ जस कोई भीतर-ही-भीतर

उस कार रहा हो अनीता की जवचारावजल अनीता को ही खाय जा रही थी उसी बार-बार यह लग रहा था जक

उसकी दशभजि सचची दशभजि नही वरन मज़ाक ह उस आतमगलाजन हई और साथ-ही-साथ आतमानभजत भी

अनीता की आतमा बोल उठी - वासतव म सचची दशभजि तो इन गरीबो क कि- जनवारण म ह य कोई दसर नही

हमारी ही भारतमाता की सतान ह इन हज़ारो लाखो भख-नग भाई-बजहनो की यजद हम कछ भी सवा कर सक थोड़ा

भी कि-जनवारण कर सक तो सचमच हमन अपन दश की कछ सवा की हमारा वासतजवक दश तो दहातो म ही ह

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जकसानो की ददटशा स हम सभी थोड़-बहत पररजचत ह पर इन गरीबो क पास न घर ह न दवार अजशकषा और अजञान

का इतना गहरा पदाट इनकी आखो पर ह जक होश सभालत ही माता पतरी को और सास बह को चोरी की जशकषा दती ह

और उनका यह जवशवास ह जक चोरी करना और भीख मागना ही उनका काम ह इसस अचछा जीवन जबतान की वह

कपना ही नही कर सकत आज यहा डरा डाल क रह तो कल दसरी जगह चोरी की बच तो बच नही तो जिर

साल दो साल क जलए जल कया मानव जीवन का यही लकषय ह लकषय ह भी अथवा नही यजद नही ह तो

जवचारादशट की उचच सतह पर जरक हए हमार जन-नायको और यग-परिो की हम कया आवशयकता इजतहास धमट-

दशटन जञान-जवजञान का कोई अथट नही होता पर जीवन का लकषय ह अवशय ह ससार की मगमरीजचका म हम लकषय

को भल जात ह सतह क ऊपर तक पहच पानवाली कछक महान आतमाओ को छोड़कर सारा जान-समदाय ससार म

अपन को खोया हआ पाता ह कततटवयाकततटवय का उस धयान नही सतयासतय की समझ नही अनदयथा मानवीयता स

बढ़कर कौन-सा मानव धमट ह पजतत मानवता को जीवन-दान दन की अपकषा भी कोई महततर पणय ह राही जसी

भोली-भाली जकनदत गमराह आतमाओ क कयाण की साधना जीवन की साधना होनी चाजहए सतयागरही की यह

परथम परजतजञा कयो न हो दशभजि का यही मापदड कयो न बन अनीता जदन भर इनदही जवचारो म डबी रही शाम को

भी वह इसी परकार कछ सोचत-सोचत सो गई

रात म उसन सपना दखा जक जल स छरकार वह इनदही मागरोरी लोगो क गाव म पहच गई ह वहा उसन एक छोरा-सा

आशरम खोल जदया ह उसी आशरम म एक तरि छोर-छोर बचच पढ़त ह और जसतरया सत कारती ह दसरी तरफ़ मदट

कपड़ा बनत ह और रई धनकत ह शाम को रोज़ उनदह धाजमटक पसतक पढ़कर सनाई जाती ह और दश म कहा कया

हो रहा ह यह सरल भािा म समझाया जाता ह वही भीख मागन और चोरी करनवाल आदशट गरामवासी हो चल ह

रहन क जलए उनदहोन छोर-छोर घर बना जलए ह राही क अनाथ बचचो को अनीता अपन साथ रखन लगी ह अनीता

यही सख-सवपन दख रही थी रात म वह दर स सोई थी सबह सात बज तक उसकी नीद न खल पाई अचानक सतरी

जलर न आकर उस जगा जदया और बोली - आप घर जान क जलए तयार हो जाइए आपक जपता बीमार ह आप

जबना शतट छोड़ी जा रही ह

अनीता अपन सवपन को सचचाई म पररवजतटत करन की एक मधर कपना ल घर चली गई

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चनदरदव स मरी बात

बग मणिला

सरसवती

भगवान चनदरदव आपक कमलवत कोमल चरणो म इस दासी का अनक बार परणाम आज म आपस दो

चार बात करन की इचछा रखती ह कया मर परशनो का उततर आप परदान करग कीजजए - बड़ी कपा होगी दखो सनी

अनसनी सी मत कर जाना अपन बड़पपन की ओर धयान दना अचछा कहती ह सनो

म सनती ह आप इस आकाश मडल म जचरकाल स वास करत ह कया यह बात सतय ह यजद सतय ह तो म

अनमान करती ह जक इस सजि क साथ ही साथ अवशय आपकी भी सजि हई होगी तब तो आप ढर जदन क परान

बढ़ कह जा सकत ह आप इतन परान ह तो सही पर काम सदा स एक ही और एक ही सथान म करत आत ह यह

कयो कया आपकाजडपारटमणर(महकम) म टासफ़र (बदली) होन का जनयम नही ह कया आपकीगवरमणरपशन भी

नही दती बड़ खद की बात ह यजद आप हमारी नदयायशीलाlsquoगवनटमणरrsquoक जकसी जवभाग मlsquoसजवटसrsquo (नौकरी) करत

होत तो अब तक आपकी बहत कछ पदोनदनजत हो गई होती और ऐसी lsquoपोसरrsquo पर रहकर भारत क जकतन ही सरमय

नगर पवटत जगल और झाजड़यो म भरमण करत अत म इस वदध अवसथा म पशन परापत कर काशी ऐस पनीत और

शाजत - धाम म बठकर हरर नाम समरण करक अपना परलोक बनात यह बड़ी भारी भल हई भगवान चरदव कषमा

कीजजए कषमा कीजजए आप तो अमर ह आपको मतय कहा तब परलोक बनाना कसा ओ हो दवता भी अपनी

जाजत क कस पकषपाती होत ह दखो नlsquoचरदवrsquoको अमत दकर उनदहोन अमर कर जदया - तब यजद मनषय होकर हमार

अगरज़ अपन जाजतवालो का पकषपात कर तो आशचयट ही कया ह अचछा यजद आपको अगरज जाजत की सवा करना

सवीकार हो तो एकlsquoएपलीकशनrsquo (जनवदन पतर) हमार आधजनक भारत परभ लॉडट कज़ईन क पास भज दव आशा ह

जक व आपको आदर पवटक अवशय आहवान करग कयोजक आप अधम भारतवाजसयो क भाजत कषणाग तो ह ही नही

जो आपको अचछी नौकरी दन म उनकी गौराग जाजत कजपत हो उठगी और जिर आप तो एक सयोगय कायटदकष

पररशरमी बहदशी कायटकशल और सरल सवभाव महातमा ह म जवशवास करती ह जक जब लॉडट कज़टन हमार भारत क

सथायी भागय जवधाता बनकर आवग तब आपको जकसी कमीशन का ममबर नही तो जकसी जमशन म भरती करक व

अवशय ही भज दवग कयोजक उनको कजमशन औरजमशन दोनो ही अतयत जपरय ह आपक चरलोक म जो रीजत और

नीजत सजि क आजद काल म परचजलत थ व ही सब अब भी ह पर यहा तो इतना पररवतटन हो गया ह जक भत और

वतटमान म आकाश पाताल का सा अतर हो गया ह म अनमान करती ह जक आपक नतरो की जयोजत भी कछ अवशय

ही मद पड़ गई होगी कयोजक आधजनक भारत सतान लड़कपन स ही चशमा धारण करन लगी ह इस कारण आप

हमार दीन हीन कषीण-परभ भारत को उतनी दर स भलीभाजत न दख सकत होग अतएव आपस सादर कहती ह जक

एक बार कपाकर भारत को दख तो जाइय यदयजप इस बात को जानती ह जक आपको इतना अवकाश कहा - पर

आठव जदन नही तो महीन म एक जदन अथाटत अमावसया को तो आपकोlsquoहॉजलडrsquo (छटटी) अवशय ही रहती ह यजद

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आप उस जदन चाह तो भारत भरमण कर जा सकत ह इस भरमण म आपको जकतन ही नतन दशय दखन को जमलग

जजस सहसा दख कर आपकी बजदध ज़रर चकराजायगी यजद आपस सार जहनददोसतान का भरमण शीघरता क कारण न

हो सक तो कवल राजधानी कलकतता को दख लना तो अवशय ही उजचत ह वहा क कल कारखानो को दखकर

आपको यह अवशय ही कहना पड़गा जक यहा क कारीगर तो जवशवकमाट क भी लड़कदादा जनकल यही कयो आपकी

जपरय सहयोजगनी दाजमनो जो मघो पर आरोहण करक आनद स अठखजलया जकया करती ह वह बचारी भी यहा मनषय

क हाथो का जखलौना हो रही ह भगवान जनशानाथ जजस समय आप अपनी जनमटल चजनदरका को बरोर मघमाला

अथवा पवटतो की ओर स जसनदध क गोद म जा सकत ह उस समय यही नीरद- वासनी जवशवमोजहनी सौदाजमनी अपनी

उजजवल मजतट स आलोक परदान कर रात को जदन बना दती ह आपक दवलोक म जजतन दवता ह उनक वाहन भी

उतन ह - जकसी का गज जकसी का हस जकसी का बल जकसी का चहा इतयाजद पर यहा तो सारा बोझ आपकी

चपला और अजगनदव क माथ मढ़ा गया ह कया बराहमण कया कषजतरय कया वशय कया शर कया चाणडाल सभी क रथो

का वाहन वही हो रही ह हमार शवताग महापरभ गण को जहा पर कछ कजठनाई का सामना आ पड़ा झर

उनदहोनlsquoइलजकटजसरीrsquo (जबजली) को ला परका बस कजठन स कजठन कायट सहज म समपादन कर लत ह और हमार

यहा क उचच जशकषा परापत यवक काठ क पतलो की भाजत मह ताकत रह जात ह जजस वयोमवाजसनी जवदयत दवी को

सपशट तक करन का जकसी वयजि का साहस नही हो सकता वही आज पराय घर म आजशरता नाररयो की भाजत ऐस

दबाव म पड़ी ह जक वह च तक नही कर सकती कया कर बचारी क भागय म जवधाता न दासी - वजतत ही जलखा था

हररपदोदभवा तरलोकयपावनी सरसरी क भी खोर जदन आय ह वह भी अब सथान - सथान मबनदधनगरसत हो रही ह

उसक वकषसथल पर जहा तहा मोर वहदाकारखमभ गाड़ जदए गए ह कलकतता आजद को दखकर आपक दवराज सरनदर

भी कहग जक हमारी अमरावती तो इसक आग जनरी िीकी सी जान पड़ती ह वहा ईडन गाडटन तो पाररजात

पररशोजभत ननददन कानन को भी मात द रहा ह वहा क जवशवजवदयालय क जवशवशरषठ पजडतो की जवशववयाजधनी जवदया को

दखकर वीणापाजण सरसवती दवी भी कहन लग जाएगी जक जनसदह इन जवदया जदगगजो की जवदयाचमतकाररणीह वही

क िोरट जवजलयम क िौजी सामान को दखकर आपक दव सनापजत काजतटकय बाब क भी छकक छर जायग कयोजक

दव सनापजत महाशय दखन म खास बगाली बाब स जचत ह और उनका वाहन भी एक सनददर मयर ह बस इसस

उनक वीरतव का भी पररचय खब जमलता ह वहा कlsquoजमरrsquo (रकसाल) को दखकर जसनदधतनया आपकी जपरय सहोदरा

कमला दवी तथा कबर भी अकचका जायग भगवान चर दव इनदही सब जवशवमयोतपादकअपवट दशयो का अवलोकन

करन क हत आपको सादर जनमजतरत तथा सजवनय आह त करती ह समभव ह जक यहा आन स आपको अनक लाभ

भी हो आप जो अनाजद काल स जनज उजजवल वप म कलक की काजलमा लपन करक कलकी शशाक शशधर

शशलाछन आजद उपाजध - मालाओ स भजित हो रह ह जसनदध तनय होन पर भी जजस काजलमा को आप आज तक

नही धो सक ह वही आजनदम- कलक शायद यहा क जवजञानजवद पजणडतो की चिा स छर जाय जब बमबई म सवगीय

महारानी जवकरोररया दवी की परजतमजतट स काला दाग छड़ान म परोिसर गजजर महाशय िलीभत हए ह तब कया

आपक मख की काजलमा छड़ान म व िलीभत न होग

शायद आप पर यह बात भी अभी तक जवजदत नही हई जक आप और आपक सवामी सयट भगवान पर जब

हमार भमणडल की छाया पड़ती ह तभी आप लोगो पर गरहणलगता ह पर आप का तो अब तक वही पराना जवशवास

बना हआ ह जक जब कजरल गरह राह आपको जनकल जाता ह तभी गरहण होता ह पर ऐसा थोथा जवशवास करना आप

लोगो की भारी भल ह अतः ह दव म जवनय करती ह जक अब आप अपन हरदय स इस भरम को जड़ स उखाड़ कर

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ि क द अब भारत म न तो आपक और न आपक सवामी भवनभासकर सयट महाशय ही क वशधरोका सामराजय ह

और न अब भारत की वह शसय शयामला सवणटपरसता मजतट ही ह अब तो आप लोगो क अजञात एक अनदय दवीप -

वासी परम शजिमान गौराग महापरभ इस सजवशाल भारत-विट का राजय वभव भोग रह ह अब तक मन जजन बातो

का वणटन आपस सथल रप म जकया वह सब इनदही जवदयाजवशारद गौराग परभओ ककपाकराकष का पररणाम ह यो तो

यहा परजत विट पदवीदान क समय जकतन ही राजय जवहीन राजाओ की सजि हआ करती ह पर आपक वशधरो म जो दो

चारराजा महाराजा नाम - मातर क ह भी व काठ क पतलो की भाती ह जस उनदह उनक रकषक नचात ह वस ही व

नाचत ह व इतनी भी जानकारी नही रखत जक उनक राजय म कया हो रहा ह - उनकी परजा दखी ह या सखी

यजद आप कभी भारत - भरमण करन को आय तो अपनlsquoिजमली डॉकररrsquoधनदवनदतरर महाशय को और दवताओ

कlsquoचीि जजसरसrsquoजचतरगपतजी को साथ अवशय लत आए आशा ह जक धनदवनदतरर महाशय यहा क डॉकररो क सजनदनकर

जचजकतसा समबनदधी बहत कछ जशकषा लाभ कर सक ग यजद पलग - महाराज (इशवर न कर ) आपक चनदरलोक या

दवलोक म घस पड़ तो वहा स उनको जनकालना कछ सहज बात न होगी यही जब जचजकतसा शासतर क बड़-बड़

पारदशी उन पर जवजय नही पा सकत तब वहा आपकlsquoदवलोकrsquoम जड़ी - बजरयो क परयोग स कया होगा यहा

कlsquoइजणडयन पीनल कोडrsquoकी धाराओ को दखकर जचतरगपतजी महाराज अपन यहा की दणडजवजध (कानन) को बहत

कछ सधार सकत ह और यजद बोझ न हो तो यहा स व दो चारlsquoराइप राइररrsquoभी खरीद ल जाय जब पलग महाराज

क अपार अनगरह स उनक ऑजिस म कायट की अजधकता होव तब उसस उनकीlsquoराइरसट जबजडगrsquoकlsquoराईरसटrsquoक काम

म बहत ही सजवधा और सहायता पहचगी व लोग दो जदन का काम दो घणर म कर डालग

अचछा अब म आपस जवदा होती ह मन तो आपस इतनी बात कही पर खद ह आपन उनक अनकल या

परजतकल एक बात का भी उततर न जदया परनदत आपक इस मौनावलमब को म सवीकार का सचक समझती ह अचछा

तो मरी पराथटना को कबल करक एक दिा यहा आइएगा जरर - एक बग मजहला

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दलाईवाली 1907

बग मजहला

काशी जी क दशाश वमध घार पर स नान करक एक मनष य बड़ी व यगरता क साथ गोदौजलया की तरि आ रहा

था एक हाथ म एक मली-सी तौजलया म लपरी हई भीगी धोती और दसर म सरती की गोजलयो की कई जडजबया और

सघनी की एक पजड़या थी उस समय जदन क ग यारह बज थ गोदौजलया की बायी तरि जो गली ह उसक भीतर एक

और गली म थोड़ी दर पर एक रर-स परान मकान म वह जा घसा मकान क पहल खण ड म बहत अधरा था पर उपर

की जगह मनष य क वासोपयोगी थी नवागत मनष य धड़धड़ाता हआ ऊपर चढ़ गया वहा एक कोठरी म उसन हाथ की

चीज रख दी और सीता सीता कहकर पकारन लगा

क या ह कहती हई एक दस बरस की बाजलका आ खड़ी हई तब उस परि न कहा सीता जरा अपनी बहन को

बला ला

अच छा कहकर सीता गई और कछ दर म एक नवीना स तरी आकर उपजसथत हई उस दखत ही परि न कहा लो

हम लोगो को तो आज ही जाना होगा

इस बात को सनकर स तरी कछ आश चयटयक त होकर और झझलाकर बोली आज ही जाना होगा यह क यो भला आज

कस जाना हो सकगा ऐसा ही था तो सवर भया स कह दत तम तो जानत हो जक मह स कह जदया बस छटटी हई

लड़की कभी जवदा की होती तो मालम पड़ता आज तो जकसी सरत जाना नही हो सकता

तम आज कहती हो हम तो अभी जाना ह बात यह ह जक आज ही नवलजकशोर कलकतत स आ रह ह आगर स

अपनी नई बह को भी साथ ला रह ह सो उनद होन हम आज ही जान क जलए इसरार जकया ह हम सब लोग मगलसराय

स साथ ही इलाहाबाद चलग उनका तार मझ घर स जनकलत ही जमला इसी स म झर नहा-धोकर लौर आया बस

अब करना ही क या ह कपड़ा-वपड़ा जो कछ हो बाध-बधकर घण र भर म खा-पीकर चली चलो जब हम तम ह जवदा

करान आए ही ह तब कल क बदल आज ही सही

हा यह बात ह नवल जो चाह कराव क या एक ही गाड़ी म न जान स दोस ती म बटटा लग जाएगा अब तो जकसी तरह

रकोग नही जरर ही उनक साथ जाओग पर मर तो नाको दम आ जाएगी

क यो जकस बात स

उनकी हसी स और जकसस हसी-ठटठा भी राह म अच छी लगती ह उनकी हसी मझ नही भाती एक रोज म चौक म

बठी पजड़या काढ़ रही थी जक इतन म न-जान कहा स आकर नवल जच लान लग ए बआ ए बआ दखो तम हारी

बह पजड़या खा रही ह म तो मार सरम क मर गई हा भाभी जी न बात उड़ा दी सही व बोली खान-पहनन क जलए

तो आयी ही ह पर मझ उनकी हसी बहत बरी लगी

बस इसी स तम उनक साथ नही जाना चाहती अच छा चलो म नवल स कह दगा जक यह बचारी कभी रोरी तक तो

खाती ही नही पड़ी क यो खान लगी

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इतना कहकर बशीधर कोठरी क बाहर चल आय और बोल म तम हार भया क पास जाता ह तम रो-रलाकर तयार

हो जाना

इतना सनत ही जानकी दई की आख भर आयी और असाढ़-सावन की ऐसी झड़ी लग गयी

बशीधर इलाहाबाद क रहन वाल ह बनारस म ससराल ह स तरी को जवदा करान आय ह ससराल म एक साल साली

और सास क जसवा और कोई नही ह नवलजकशोर इनक दर क नात म ममर भाई ह पर दोनो म जमतरता का खयाल

अजधक ह दोनो म गहरी जमतरता ह दोनो एक जान दो काजलब ह

उसी जदन बशीधर का जाना जसथर हो गया सीता बहन क सग जान क जलए रोन लगी मा रोती-धोती लड़की की जवदा

की सामगरी इकटठी करन लगी जानकी दई भी रोती ही रोती तयार होन लगी कोई चीज भलन पर धीमी आवाज स मा

को याद भी जदलाती गयी एक बजन पर स रशन जान का समय आया अब गाड़ी या इक का लान कौन जाय

ससरालवालो की अवस था अब आग की सी नही जक दो-चार नौकर-चाकर हर समय बन रह सीता क बाप क न रहन

स काम जबगड़ गया ह पसवाल क यहा नौकर-चाकरो क जसवा और भी दो-चार खशामदी घर रहत ह छछ को कौन

पछ एक कहाररन

ह सो भी इस समय कही गयी ह सालराम की तबीयत अच छी नही व हर घड़ी जबछौन स बात करत ह जतस पर भी

आप कहन लग म ही धीर-धीर जाकर कोई सवारी ल आता ह नजदीक तो ह

बशीधर बोल नही नही तम क यो तकलीि करोग म ही जाता ह जात-जात बशीधर जवचारन लग जक इक क की

सवारी तो भल घर की जसतरयो क बठन लायक नही होती क योजक एक तो इतन ऊ च पर चढ़ना पड़ता ह दसर पराय

परि क सग एक साथ बठना पड़ता ह म एक पालकी गाड़ी ही कर ल उसम सब तरह का आराम रहता ह पर जब

गाड़ी वाल न डढ़ रपया जकराया मागा तब बशीधर न कहा चलो इक का ही सही पहचन स काम कछ नवलजकशोर

तो यहा स साथ ह नही इलाहाबाद म दखा जाएगा

बशीधर इक का ल आय और जो कछ असबाब था इक क पर रखकर आप भी बठ गय जानकी दई बड़ी जवकलता स

रोती हई इक क पर जा बठी पर इस अजसथर ससार म जसथरता कहा यहा कछ भी जसथर नही इक का जस-जस आग

बढ़ता गया वस जानकी की रलाई भी कम होती गयी जसकरौल क स रशन क पास पहचत-पहचत जानकी अपनी

आख अच छी तरह पोछ चकी थी

दोनो चपचाप चल जा रह थ जक अचानक बशीधर की नजर अपनी धोती पर पड़ी और अर एक बात तो हम भल ही

गय कहकर पछता स उठ इक क वाल क कान बचाकर जानकी जी न पछा क या हआ क या कोई जररी चीज भल

आय

नही एक दशी धोती पजहनकर आना था सो भलकर जवलायती ही पजहन आय नवल कटटर स वदशी हए ह न व

बगाजलयो स भी बढ़ गय ह दखग तो दो-चार सनाय जबना न रहग और बात भी ठीक ह नाहक जबलायती चीज मोल

लकर क यो रपय की बरबादी की जाय दशी लन स भी दाम लगगा सही पर रहगा तो दश ही म

जानकी जरा भौह रढ़ी करक बोली ऊ ह धोती तो धोती पजहनन स काम क या यह बरी ह

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इतन म स रशन क कजलयो न आ घरा बशीधर एक कली करक चल इतन म इक कवाल न कहा इधर स जरकर लत

जाइए पल क उस पार तो डयोढ़ दरज का जरकर जमलता ह

बशीधर जिरकर बोल अगर म डयोढ़ दरज का ही जरकर ल तो

इक कवाला चप हो रहा इक क की सवारी दखकर इसन ऐसा कहा यह कहत हए बशीधर आग बढ़ गय यथा-समय

रल पर बठकर बशीधर राजघार पार करक मगलसराय पहच वहा पल लाघकर दसर प लरिामट पर जा बठ आप

नवल स जमलन की खशी म प लरिामट क इस छोर स उस छोर तक रहलत रह दखत-दखत गाड़ी का धआ जदखलाई

पड़ा मसाजिर अपनी-अपनी गठरी सभालन लग रल दवी भी अपनी चाल धीमी करती हई गम भीरता स आ खड़ी

हई बशीधर एक बार चलती गाड़ी ही म शर स आजखर तक दख गय पर नवल का कही पता नही बशीधर जिर सब

गाजड़यो को दोहरा गय तहरा गय भीतर घस-घसकर एक-एक जडब ब को दखा जकत नवल न जमल अत को आप

जखजला उठ और सोचन लग जक मझ तो वसी जचटठी जलखी और आप न आया मझ अच छा उ ल बनाया अच छा

जाएग कहा भर होन पर समझ लगा सबस अजधक सोच तो इस बात का था जक जानकी सनगी तो तान पर ताना

मारगी पर अब सोचन का समय नही रल की बात ठहरी बशीधर झर गय और जानकी को लाकर जनानी गाड़ी म

जबठाया वह पछन लगी नवल की बह कहा ह वह नही आय कोई अरकाव हो गया कहकर आप बगल वाल

कमर म जा बठ जरकर तो डयोढ़ का था पर डयोढ़ दरज का कमरा कलकतत स आनवाल मसाजिरो स भरा था

इसजलए तीसर दरज म बठना पड़ा जजस गाड़ी म बशीधर बठ थ उसक सब कमरो म जमलाकर कल दस-बारह ही स तरी-

परि थ समय पर गाड़ी छरी नवल की बात और न-जान क या अगड़-बगड़ सोचत गाड़ी कई स रशन पार करक

जमरजापर पहची

जमरजापर म परराम की जशकायत शर हई उसन सझाया जक इलाहाबाद पहचन म अभी दरी ह चलन क झझर म

अच छी तरह उसकी पजा जकय जबना ही बशीधर न बनारस छोड़ा था इसजलए आप झर प लरिामट पर उतर और पानी

क बम ब स हाथ-मह धोकर एक खोचवाल स थोड़ी-सी ताजी पजड़या और जमठाई लकर जनराल म बठ आपन उनद ह

जठकान पहचाया पीछ स जानकी की सध आयी सोचा जक पहल पछ ल तब कछ मोल लग क योजक जस तरया नरखर

होती ह व रल पर खाना पसद नही करती पछन पर वही बात हई तब बशीधर लौरकर अपन कमर म आ बठ यजद

व चाहत तो इस समय डयोढ़ म बठ जात क योजक अब भीड़ कम हो गयी थी पर उनद होन कहा थोड़ी दर क जलए कौन

बखड़ा कर

बशीधर अपन कमर म बठ तो दो-एक मसाजिर अजधक दख पड़ आगवालो म स एक उतर भी गया था जो लोग थ

सब तीसर दरज क योग य जान पड़त थ अजधक सभ य कोई थ तो बशीधर ही थ उनक कमर क पास वाल कमर म एक

भल घर की स तरी बठी थी वह बचारी जसर स पर तक ओढ़ जसर झकाए एक हाथ लबा घघर काढ़ कपड़ की गठरी-सी

बनी बठी थी बशीधर न सोचा इनक सग वाल भर परि क आन पर उनक साथ बातचीत करक समय जबतावग एक-

दो करक तीसरी घण री बजी तब वह स तरी कछ अकचकाकर थोड़ा-सा मह खोल जगल क बाहर दखन लगी ज योही

गाड़ी छरी वह मानो काप-सी उठी रल का दना-लना तो हो ही गया था अब उसको जकसी की क या परवा वह

अपनी स वाभाजवक गजत स चलन लगी प लरिामट पर भीड़ भी न थी कवल दो-चार आदमी रल की अजतम जवदाई

तक खड़ थ जब तक स रशन जदखलाई जदया तब तक वह बचारी बाहर ही दखती रही जिर अस पष र स वर स रोन लगी

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उस कमर म तीन-चार परौढ़ा गरामीण जस तरया भी थी एक जो उसक पास ही थी कहन लगी - अर इनकर मनई तो नाही

आइलन हो दखहो रोवल करथईन

दसरी अर दसर गाड़ी म बठा होइह

पहली दर बौरही ई जनानी गाड़ी थड़ ह

दसरी तऊ हो भल तो कह कहकर दसरी भर मजहला स पछन लगी कौन गाव उतरब बरा मीरजपरा चढ़ी हऊ

न इसक जवाब म उसन जो कहा सो वह न सन सकी

तब पहली बोली हर हम पजछला न हम कहा काहा ऊतरब हो आय ईलाहाबास

दसरी ईलाहाबास कौन गाव हौ गोइया

पहली अर नाही जनल पयाग जी जहा मनई मकर नाहाए जाला

दसरी भला पयाग जी काह न जानीथ ल कहक नाही तोहर पच क धरम स चार दाई नहाय चकी हई ऐसो हो

सोमवारी अउर गहन दका दका लाग रहा तउन तोहर काशी जी नाहाय गइ रह

पहली आव जाय क तो सब अऊत जाता बरल बारन िन यह साइत तो जबचारो जवपत म न पड़ल बाजरली ह हम

पचा हइ राजघार जरकस करऊली मोगल क सराय उतरलीह हो द पन चढ़लीह

दसरी ऐस एक दाई हम आवत रह एक जमली औरो मोर सघ रही दकौन जरसनीया पर उकर मजलकवा उतर स जक

जरतइह गजड़या खली अब भइया ऊगरा िाड़-िाड़ नररयाय ए साहब गजड़या खड़ी कर ए साहब गजड़या तनी खड़ी

कर भला गजड़यादजहनाती काह क खड़ी होय

पहली उ महररवा बड़ी उजबक रहल भला कह क जच लाय स रलीऔ कह खड़ी होला

इसकी इस बात पर कल कमर वाल हस पड़ अब जजतन परि-जसतरया थी एक स एक अनोखी बात कहकर अपन-

अपन तजरब बयान करन लगी बीचबीच म उस अकली अबला की जसथजत पर भी दख परकर करती जाती थी

तीसरी स तरी बोली रीक कजसया प ल बाय क नाही ह सहबवा सजन तो कलकतत ताई ल मसजलया लई अर-इहो तो

नाही जक दर स आवत रहल न िरागत क बद उतर लन

चौथी हम तो इनक सग क आदमी क दखबो न जकहो गोइया

तीसरी हम दख रहली हो मजक रोपी जदहल रहलन को

इस तरह उनकी बजसर-पर की बात सनत-सनत बशीधर ऊब उठ तब व उन जसतरयो स कहन लग तम तो नाहक उनद ह

और भी डरा रही हो जरर इलाहाबाद तार गया होगा और दसरी गाड़ी स व भी वहा पहच जाएग म भी इलाहाबाद

ही जा रहा ह मर सग भी जसतरया ह जो ऐसा ही ह तो दसरी गाड़ी क आन तक म स रशन ही पर ठहरा रह गा तम लोगो

म स यजद कोई परयाग उतर तो थोड़ी दर क जलए स रशन पर ठहर जाना इनको अकला छोड़ दना उजचत नही यजद पता

मालम हो जाएगा तो म इनद ह इनक ठहरन क स थान पर भी पहचा दगा

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बशीधर की इन बातो स उन जसतरयो की वाक-धारा दसरी ओर बह चली हा यह बात तो आप भली कही नाही

भइया हम पच काजहक कहस कछ कही अर एक क एक करत न बाय तो दजनया चलत कस बाय इत याजद

जञानगाथा होन लगी कोई-कोई तो उस बचारी को सहारा जमलत दख खश हए और कोई-कोई नाराज भी हए क यो सो

म नही बतला सकती उस गाड़ी म जजतन मनष य थ सभी न इस जविय म कछ-न-कछ कह डाला था जपछल कमर म

कवल एक स तरी जो िरासीसी छीर की दलाई ओढ़ अकली बठी थी कछ नही बोली कभी-कभी घघर क भीतर स

एक आख जनकालकर बशीधर की ओर वह ताक दती थी और सामना हो जान पर जिर मह िर लती थी बशीधर

सोचन लग जक यह क या बात ह दखन म तो यह भल घर की मालम होती ह पर आचरण इसका अच छा नही

गाड़ी इलाहाबाद क पास पहचन को हई बशीधर उस स तरी को धीरज जदलाकर आकाश-पाताल सोचन लग यजद तार

म कोई खबर न आयी होगी तो दसरी गाड़ी तक स रशन पर ही ठहरना पड़गा और जो उसस भी कोई न आया तो क या

कर गा जो हो गाड़ी ननी स छर गयी अब साथ की उन अजशजकषता जसतरयो न जिर मह खोला क भइया जो कह

जबना जरक कस क आवत होय तो ओकर का सजाय होला अर ओका ई नाही चाहत रहा जक महरार क तो बठा

जदहलन अउर अपआ तउन जरक कस लई क चल जदहलन जकसी-जकसी आदमी न तो यहा तक दौड़ मारी की रात

को बशीधर इसक जवर छीनकर रिचक कर हो जाएग उस गाड़ी म एक लाठीवाला भी था उसन ख लमख ला कहा

का बाब जी कछ हमरो साझा

इसकी बात पर बशीधर करोध स लाल हो गय उनद होन इस खब धमकाया उस समय तो वह चप हो गया पर यजद

इलाहाबाद उतरता तो बशीधर स बदला जलय जबना न रहता बशीधर इलाहाबाद म उतर एक बजढ़या को भी वही

उतरना था उसस उनद होन कहा जक उनको भी अपन सग उतार लो जिर उस बजढ़या को उस स तरी क पास जबठाकर

आप जानकी को उतारन गय जानकी स सब हाल कहन पर वह बोली अर जान भी दो जकस बखड़ म पड़ हो पर

बशीधर न न माना जानकी को और उस भर मजहला को एक जठकान जबठाकर आप स रशन मास रर क पास गय

बशीधर क जात ही वह बजढ़या जजस उनदहोन रखवाली क जलए रख छोड़ा था जकसी बहान स भाग गयी अब तो

बशीधर बड़ असमजस म पड़ जरकर क जलए बखड़ा होगा कयोजक वह सतरी ब-जरकर ह लौरकर आय तो जकसी को

न पाया अर य सब कहा गयी यह कहकर चारो तरि दखन लग कही पता नही इस पर बशीधर घबराय आज

कसी बरी साइत म घर स जनकल जक एक क बाद दसरी आित म ि सत चल आ रह ह इतन म अपन सामन उस

ढलाईवाली को आत दखा त ही उन जसतरयो को कही ल गयी ह इतना कहना था जक ढलाई स मह खोलकर

नवलजकशोर जखलजखला उठ

अर यह क या सब तम हारी ही करतत ह अब म समझ गया कसा गजब तमन जकया ह ऐसी हसी मझ नही अच छी

लगती मालम होता जक वह तम हारी ही बह थी अच छा तो व गयी कहा

व लोग तो पालकी गाड़ी म बठी ह तम भी चलो

नही म सब हाल सन लगा तब चलगा हा यह तो कह तम जमरजापर म कहा स आ जनकल

जमरजापर नही म तो कलकतत स बजक मगलसराय स तम हार साथ चला आ रहा ह तम जब मगलसराय म मर

जलए चक कर लगात थ तब म डयोढ़ दज म ऊपरवाल बच पर लर तम हारा तमाशा दख रहा था जिर जमरजापर म जब

तम पर क धध म लग थ म तम हार पास स जनकल गया पर तमन न दखा म तम हारी गाड़ी म जा बठा सोचा जक

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तम हार आन पर परकर होऊ गा जिर थोड़ा और दख ल करत-करत यहा तक नौबत पहची अच छा अब चलो जो

हआा उस माि करो

यह सन बशीधर परसनद न हो गय दोनो जमतरो म बड़ परम स बातचीत होन लगी बशीधर बोल मर ऊपर जो कछ बीती

सो बीती पर वह बचारी जो तम हार-स गनवान क सग पहली ही बार रल स आ रही थी बहत तग हई उस तो तमन

नाहक रलाया बहत ही डर गयी थी

नही जी डर जकस बात का था हम-तम दोनो गाड़ी म न थ

हा पर यजद म स रशन मास रर स इजततला कर दता तो बखड़ा खड़ा हो जाता न

अर तो क या म मर थोड़ ही गया था चार हाथ की दलाई की जबसात ही जकतनी

इसी तरह बातचीत करत-करत दोनो गाड़ी क पास आय दखा तो दोनो जमतर-बधओ म खब हसी हो रही ह जानकी

कह रही थी - अर तम क या जानो इन लोगो की हसी ऐसी ही होती ह हसी म जकसी क पराण भी जनकल जाए तो भी

इनद ह दया न आव

खर दोनो जमतर अपनी-अपनी घरवाली को लकर राजी-खशी घर पहच और मझ भी उनकी यह राम-कहानी जलखन स

छटटी जमली

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एक रोकरी-भर जमटटी (1900)

माधवराव सपर

जकसी शरीमान जमीदार क महल क पास एक गरीब अनाथ जवधवा की झोपड़ी थी जमीदार साहब को अपन

महल का हाता उस झोपड़ी तक बढा ान की इच छा हई जवधवा स बहतरा कहा जक अपनी झोपड़ी हरा ल पर वह तो

कई जमान स वही बसी थी उसका जपरय पजत और इकलौता पतर भी उसी झोपड़ी म मर गया था पतोह भी एक पाच

बरस की कनद या को छोड़कर चल बसी थी अब यही उसकी पोती इस वदधाकाल म एकमातर आधार थी जब उस

अपनी पवटजसथजत की याद आ जाती तो मार दख क िर-िर रोन लगती थी और जबस उसन अपन शरीमान पड़ोसी

की इच छा का हाल सना तब स वह मतपराय हो गई थी उस झोपड़ी म उसका मन लग गया था जक जबना मर वहा स

वह जनकलना नही चाहती थी शरीमान क सब परयत न जनष िल हए तब व अपनी जमीदारी चाल चलन लग बाल की

खाल जनकालन वाल वकीलो की थली गरम कर उनद होन अदालत स झोपड़ी पर अपना कब जा करा जलया और जवधवा

को वहा स जनकाल जदया जबचारी अनाथ तो थी ही पास-पड़ोस म कही जाकर रहन लगी

एक जदन शरीमान उस झोपड़ी क आसपास रहल रह थ और लोगो को काम बतला रह थ जक वह जवधवा हाथ म एक

रोकरी लकर वहा पहची शरीमान न उसको दखत ही अपन नौकरो स कहा जक उस यहा स हरा दो पर वह

जगड़जगड़ाकर बोली महाराज अब तो यह झोपड़ी तम हारी ही हो गई ह म उस लन नही आई ह महाराज कषमा कर तो

एक जवनती ह जमीदार साहब क जसर जहलान पर उसन कहा जब स यह झोपड़ी छरी ह तब स मरी पोती न खाना-

पीना छोड़ जदया ह मन बहत-कछ समझाया पर वह एक नही मानती यही कहा करती ह जक अपन घर चल वही रोरी

खाऊ गी अब मन यह सोचा जक इस झोपड़ी म स एक रोकरी-भर जमटटी लकर उसी का च हा बनाकर रोरी पकाऊ गी

इसस भरोसा ह जक वह रोरी खान लगगी महाराज कपा करक आजञा दीजजए तो इस रोकरी म जमटटी ल आऊ शरीमान

न आजञा द दी

जवधवा झोपड़ी क भीतर गई वहा जात ही उस परानी बातो का स मरण हआ और उसकी आखो स आस की धारा

बहन लगी अपन आतररक दख को जकसी तरह सभालकर उसन अपनी रोकरी जमटटी स भर ली और हाथ स उठाकर

बाहर ल आई जिर हाथ जोड़कर शरीमान स पराथटना करन लगी महाराज कपा करक इस रोकरी को जरा हाथ लगाइए

जजसस जक म उस अपन जसर पर धर ल जमीदार साहब पहल तो बहत नाराज हए पर जब वह बार-बार हाथ जोड़न

लगी और परो पर जगरन लगी तो उनक मन म कछ दया आ गई जकसी नौकर स न कहकर आप ही स वय रोकरी उठान

आग बढ़ ज योही रोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठान लग त योही दखा जक यह काम उनकी शजि क बाहर ह जिर तो

उनद होन अपनी सब ताकत लगाकर रोकरी को उठाना चाहा पर जजस स थान पर रोकरी रखी थी वहा स वह एक हाथ

भी ऊ ची न हई वह लजजजत होकर कहन लग नही यह रोकरी हमस न उठाई जाएगी

यह सनकर जवधवा न कहा महाराज नाराज न हो आपस एक रोकरी-भर जमटटी नही उठाई जाती और इस झोपड़ी म

तो हजारो रोकररया जमटटी पड़ाी ह उसका भार आप जनद म-भर क योकर उठा सक ग आप ही इस बात पर जवचार

कीजजए

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जमीदार साहब धन-मद स गजवटत हो अपना कतटव य भल गए थ पर जवधवा क उपयटक त वचन सनत ही उनकी आख

खल गयी कतकमट का पश चाताप कर उनद होन जवधवा स कषमा मागी और उसकी झोपड़ी वाजपस द दी

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कानो म कगना

राजा राजधकारमण परसाद जसह

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जकरन तमहार कानो म कया ह

उसक कानो स चचल लर को हराकर कहा - क गना

अर कानो म क गना सचमच दो कगन कानो को घरकर बठ थ

हा तब कहा पहन

जकरन अभी भोरी थी दजनया म जजस भोरी कहत ह वसी भोरी नही उस वन क िलो का भोलापन समझो नवीन

चमन क िलो की भगी नही जवजवध खाद या रस स जजनकी जीजवका ह जनरनदतर कार-छार स जजनका सौनददयट ह जो

दो घड़ी चचल जचकन बाल की भिा ह - दो घड़ी तमहार िलदान की शोभा वन क िल ऐस नही परकजत क हाथो स

लग ह मघो की धारा स बढ़ ह चरल दजि इनदह पाती नही जगदवाय इनदह छती नही यह सरल सनददर सौरभमय जीवन

ह जब जीजवत रह तब चारो तरि अपन पराणधन स हर-भर रह जब समय आया तब अपनी मा की गोद म झड़ पड़

आकाश सवचछ था - नील उदार सनददर पतत शानदत थ सनदधया हो चली थी सनहरी जकरन सदर पवटत की चड़ा स दख

रही थी वह पतली जकरन अपनी मतय-शया स इस शनदय जनजवड़ कानन म कया ढढ़ रही थी कौन कह जकस एकरक

दखती थी कौन जान अपनी लीला-भजम को सनह करना चाहती थी या हमार बाद वहा कया हो रहा ह इस जोहती थी

- म कया बता सक जो हो उसकी उस भगी म आकाकषा अवशय थी म तो खड़ा-खड़ उन बड़ी आखो की जकरन

लरता था आकाश म तारो को दखा या उन जगमग आखो को दखा बात एक ही थी हम दर स तारो क सनददर शनदय

जझकजमक को बार-बार दखत ह लजकन वह ससपनदद जनशचि जयोजत सचमच भावहीन ह या आप-ही-आप अपनी

अनदतर-लहरी स मसत ह इस जानना आसान नही हमारी ऐसी आख कहा जक उनक सहार उस जनगढ़ अनदतर म डबकर

थाह ल

म रसाल की डोली थामकर पास ही खड़ा था वह बालो को हराकर कगन जदखान की भगी पराणो म रह-रहकर उठती

थी जब माखन चरान वाल न गोजपयो क सर क मरक को तोड़कर उनक भीतर जकल को तोड़ डाला या नर-जहा न

अचल स कबतर को उड़ाकर शाहशाह क कठोर हदय की धजजजया उड़ा दी जिर नदी क जकनार बसनदत-बभ रसाल

पलवो की छाया म बठी जकसी अपरप बाजलका की यह सरल जसनगध भजगमा एक मानव-अनदतर पर कयो न दौड़

जकरन इन आखो क सामन परजतजदन आती ही जाती थी कभी आम क जरकोर स आचल भर लाती कभी मौलजसरी क

िलो की माला बना लाती लजकन कभी भी ऐसी बाल-सलभ लीला आखो स होकर हदय तक नही उतरी आज कया

था कौन शभ या अशभ कषण था जक अचानक वह बनली लता मदार माला स भी कही मनोरम दीख पड़ी कौन

जानता था जक चाल स कचाल जान म - हाथो स कगन भलकर कानो म पजहनन म - इतनी माधरी ह दो रक क क गन

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म इतनी शजि ह गोजपयो को कभी सवपन म भी नही झलका था जक बास की बासरी म घघर खोलकर नचा दनवाली

शजि भरी ह

मन चरपर उसक कानो स कगन उतार जलया जिर धीर-धीर उसकी उगजलयो पर चढ़ान लगा न जान उस घड़ी कसी

खलबली थी मह स अचानक जनकल आया -

जकरन आज की यह घरना मझ मरत दम तक न भलगी यह भीतर तक पठ गई

उसकी बड़ी-बड़ी आख और भी बड़ी हो गई मझ चोर-सी लगी म ततकषण योगीशवर की करी की तरि चल जदया

पराण भी उसी समय नही चल जदय यही जवसमय था

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एक जदन था जक इसी दजनया म दजनया स दर रहकर लोग दसरी दजनया का सख उठात थ हररचनददन क पलवो की

छाया भलोक पर कहा जमल लजकन जकसी समय हमार यहा भी ऐस वन थ जजनक वकषो क साय म घड़ी जनवारन क

जलए सवगट स दवता भी उतर आत थ जजस पचवरी का अननदत यौवन दखकर राम की आख भी जखल उठी थी वहा क

जनवाजसयो न कभी अमरतर क िलो की माला नही चाही मनददाजकनी क छीरो की शीतलता नही ढढ़ी ननददनोपवन

का सानी कही वन भी था कपवकष की छाया म शाजनदत अवशय ह लजकन कदम की छजहया कहा जमल सकती

हमारी-तमहारी आखो न कभी ननददनोतसव की लीला नही दखी लजकन इसी भतल पर एक जदन ऐसा उतसव हो चका

ह जजसको दख-दखकर परकजत तथा रजनी छह महीन तक ठगी रही शत-शत दवागनाओ न पाररजात क िलो की

विाट स ननददन कानन को उजाड़ डाला

समय न सब कछ पलर जदया अब ऐस वन नही जहा कषण गोलोक स उतरकर दो घड़ी वशी की रर द ऐस करीर

नही जजनक दशटन स रामचनदर का भी अनदतर परसनदन हो या ऐस मनीश नही जो धमटधरनदधर धमटराज को भी धमट म जशकषा

द यजद एक-दो भल-भरक हो भी तब अभी तक उन पर दजनया का परदा नही उठा - जगनदमाया की माया नही लगी

लजकन व कब तक बच रहग लोक अपन यहा अलौजकक बात कब तक होन दगा भवसागर की जल-तरगो पर जथर

होना कब समभव ह

हिीकश क पास एक सनददर वन ह सनददर नही अपरप सनददर ह वह परमोदवन क जवलास-जनकजो जसा सनददर नही

वरच जचतरकर या पचवरी की मजहमा स मजणडत ह वहा जचकनी चादनी म बठकर कनक घघर की इचछा नही होती

वरच पराणो म एक ऐसी आवश-धारा उठती ह जो कभी अननदत साधना क कल पर पहचाती ह - कभी जीव-जगत क

एक-एक ततव स दौड़ जमलती ह गगा की अननदत गररमा - वन की जनजवड़ योग जनरा वही दख पड़गी कौन कह वहा

जाकर यह चचल जचतत कया चाहता ह - गमभीर अलौजकक आननदद या शानदत सनददर मरण

इसी वन म एक करी बनाकर योगीशवर रहत थ योगीशवर योगीशवर ही थ यददाजप वह भतल ही पर रहत थ तथाजप उनदह

इस लोग का जीव कहना यथाथट नही था उनकी जचततवजतत सरसवती क शरीचरणो म थी या बरहमलोक की अननदत शाजनदत

म जलपरी थी और वह बाजलका - सवगट स एक रजशम उतरकर उस घन जगल म उजला करती जिरती थी वह लौजकक

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मायाबदध जीवन नही था इस बनदधन-रजहत बाधाहीन नाचती जकरनो की लखा कजहए - मानो जनमटि चचल मलय वाय

िल-िल पर डाली-डाली पर डोलती जिरती हो या कोई मजतटमान अमर सगीत बरोकरोक हवा पर या जल की तरग-

भग पर नाच रहा हो म ही वहा इस लोग का परजतजनजध था म ही उनदह उनकी अलौजकक जसथजत स इस जजरल मतयट-

राजय म खीच लाता था

कछ साल स म योगीशवर क यहा आता-जाता था जपता की आजञा थी जक उनक यहा जाकर अपन धमट क सब गरनदथ

पढ़ डालो योगीशवर और बाबा लड़कपन क साथी थ इसीजलए उनकी मझ पर इतनी दया थी जकरन उनकी लड़की

थी उस करीर म एक वही दीपक थी जजस जदन की घरना म जलख आया ह उसी जदन सबर मर अधययन की पणाटहजत

थी और बाबा क कहन पर एक जोड़ा पीतामबर पाच सवणटमराए तथा जकरन क जलए दो कनक-कगन आचायट क

जनकर ल गया था योगीशवर न सब लौरा जदय कवल कगन को जकरन उठा ल गई

वह कया समझकर चप रह गय समय का अदभत चकर ह जजस जदन मन धमटगरनदथ स मह मोड़ा उसी जदन कामदव न

वहा जाकर उनकी जकताब का पहला सिा उलरा

दसर जदन म योगीशवर स जमलन गया वह जकरन को पास जबठा कर न जान कया पढ़ा रह थ उनकी आख गमभीर थी

मझको दखत ही वह उठ पड़ और मर कनदधो पर हाथ रखकर गदगद सवर स बोल - नरनदर अब म चला जकरन तमहार

हवाल ह यह कहकर जकसी की सकोमल उगजलया मर हाथो म रख दी लोचनो क कोन पर दो बद जनकलकर झाक

पड़ी म सहम उठा कया उन पर सब बात जवजदत थी कया उनकी तीवर दजि मरी अनदतर-लहरी तक डब चकी थी वह

ठहर नही चल जदय म कापता रह गया जकरन दखती रह गई

सनदनारा छा गया वन-वाय भी चप हो चली हम दोनो भी चप चल पड़ जकरन मर कनदध पर थी हठात अनदतर स कोई

अकड़कर कह उठा - हाय नरनदर यह कया तम इस वनिल को जकस चमन म ल चल इस बनदधन-जवहीन सवगीय

जीवन को जकस लोकजाल म बाधन चल

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ककड़ी जल म जाकर कोई सथायी जववर नही िोड़ सकती कषण भर जल का समतल भल ही उलर-पलर हो लजकन

इधर-उधर स जलतरग दौड़कर उस जछर का नाम-जनशान भी नही रहन दती जगत की भी यही चाल ह यजद सवगट स

दवनदर भी आकर इस लोक चलाचल म खड़ हो जिर ससार दखत ही दखत उनदह अपना बना लगा इस काली कोठरी

म आकर इसकी काजलमा स बच रह ऐसी शजि अब आकाश-कसम ही समझो दो जदन म राम हाय जानकी हाय

जानकी कहकर वन-वन डोलत जिर दो कषण म यही जवशवाजमतर को भी सवगट स घसीर लाया

जकरन की भी यही अवसथा हई कहा परकजत की जनमटि गोद कहा जगत का जजरल बनदधन-पाश कहा स कहा आ

पड़ी वह अलौजकक भोलापन वह जनसगट उचवास - हाथो-हाथ लर गय उस वनिल की जवमल काजनदत लौजकक

चमन की मायावी मनोहाररता म पररणत हई अब आख उठाकर आकाश स नीरव बातचीत करन का अवसर कहा स

जमल मलयवाय स जमलकर मलयाचल क िलो की पछताछ कयोकर हो

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जब जकशोरी नय साच म ढलकर उतरी उस पहचानना भी कजठन था वह अब लाल चोली हरी साड़ी पहनकर सर

पर जसनददर-रखा सजती और हाथो क कगन कानो की बाली गल की कणठी तथा कमर की करधनी - जदन-जदन उसक

जचतत को नचाय मारती थी जब कभी वह सजधजकर चादनी म कोठ पर उठती और वसनदतवाय उसक आचल स

मोजतया की लपर लाकर मर बरामद म भर दता जिर जकसी मतवाली माधरी या तीवर मजदरा क नश म मरा मजसतषक

घम जाता और म चरपर अपना परम चीतकार िलदार रगीन जचटठी म भरकर जही क हाथ ऊपर भजवाता या बाजार स

दौड़कर करकी गहन वा जवलायती चड़ी खरीद लाता लजकन जो हो - अब भी कभी-कभी उसक परिल वदन पर

उस अलोक-आलोक की छरा पवटजनदम की सखसमजतवत चली आती थी और आख उसी जीवनदत सनददर जझकजमक

का नाज जदखाती थी जब अनदतर परसनदन था जिर बाहरी चिा पर परजतजबमब कयो न पड़

यो ही साल-दो-साल मरादाबाद म कर गय एक जदन मोहन क यहा नाच दखन गया वही जकनदनरी स आख जमली

जमली कया लीन हो गई नवीन यौवन कोजकल-कणठा चतर चचल चिा तथा मायावी चमक - अब जचतत को चलान

क जलए और कया चाजहए जकनदनरी सचमच जकनदनरी ही थी नाचनवाली नही नचानवाली थी पहली बार दखकर उस

इस लोक की सनददरी समझना दसतर था एक लपर जो लगती - जकसी नशा-सी चढ़ जाती यारो न मझ और भी चढ़ा

जदया आख जमलती-जमलती जमल गई हदय को भी साथ-साथ घसीर ल गई

जिर कया था - इतन जदनो की धमटजशकषा शतवतसर की पजय लकषमी बाप-दादो की कल-परजतषठा पतनी स पजवतर-परम

एक-एक करक उस परतीपत वासना-कणड म भसम होन लग अजगन और भी बढ़ती गई जकनदनरी की जचकनी दजि

जचकनी बात घी बरसाती रही घर-बार सब जल उठा म भी जनरनदतर जलन लगा लजकन जयो-जयो जलता गया जलन

की इचछा जलाती रही

पाच महीन कर गय - नशा उतरा नही बनारसी साड़ी पारसी जकर मोती का हार करकी कणटिल - सब कछ लाकर

उस मायाकारी क अलिक-रजजत चरणो पर रख जकरन हमनदत की मालती बनी थी जजस पर एक िल नही - एक

पलव नही घर की वध कया करती जो अननदत सतर स बधा था जो अनत जीवन का सगी था वही हाथो-हाथ पराय

क हाथ जबक गया - जिर य तो दो जदन क चकमकी जखलौन थ इनदह शरीर बदलत कया दर लग जदन भर बहानो की

माला गथ-गथ जकरन क गल म और शाम को मोती की माला उस नाचनवाली क गल म सशक जनलटजज डाल दना -

यही मरा जीवन जनवाटह था एक जदन सारी बात खल गई जकरन पछाड़ खाकर भजम पर जा पड़ी उसकी आखो म

आस न थ मरी आखो म दया न थी

बरसात की रात थी ररमजझम बदो की झड़ी थी चादनी मघो स आख-मदौवल खल रही थी जबजली काल कपार स

बार-बार झाकती थी जकस चचला दखती थी तथा बादल जकस मरोड़ स रह-रहकर जचलात थ - इनदह सोचन का मझ

अवसर नही था म तो जकनदनरी क दरवाज स हताश लौरा था आखो क ऊपर न चादनी थी न बदली थी जतरशक न

सवगट को जात-जात बीच म ही रगकर जकस दख को उठाया - और म तो अपन सवगट क दरवाज पर सर रखकर जनराश

लौरा था - मरी वदना कयो न बड़ी हो

हाय मरी अगजलयो म एक अगठी भी रहती तो उस नजर कर उसक चरणो पर लोरता

घर पर आत ही जही को पकार उठा - जही जकरन क पास कछ भी बचा हो तब िौरन जाकर माग लाओ

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ऊपर स कोई आवाज नही आई कवल सर क ऊपर स एक काला बादल कालानदत चीतकार क जचला उठा मरा

मजसतषक घम गया म ततकषण कोठ पर दौड़ा

सब सनददक झाक जो कछ जमला सब तोड़ डाला लजकन जमला कछ भी नही आलमारी म कवल मकड़ का जाल

था शरगार बकस म एक जछपकली बठी थी उसी दम जकरन पर झपरा

पास जात ही सहम गया वह एक तजकय क सहार जनसहाय जनसपद लरी थी - कवल चाद न जखड़की स होकर उस

गोद म ल रखा था और वाय उस शरीर पर जल स जभगोया पखा झल रही थी मख पर एक अपरप छरा थी कौन

कह कही जीवन की शि रजशम कषण-भर वही अरकी हो आखो म एक जीवन जयोजत थी शायद पराण शरीर स

जनकलकर जकसी आसर स वहा पठ रहा था म जिर पकार उठा - जकरन जकरन तमहार पास कोई गहना भी रहा ह

हा - कषीण कणठ की काकली थी

कहा ह अभी दखन दो

उसन धीर स घघर सरका कर कहा - वही कानो का क गना

सर तजकय स ढल पड़ा - आख भी जझप गई वह जीवनदत रखा कहा चली गई - कया इतन ही क जलए अब तक ठहरी

थी

आख मख पर जा पड़ी - वही कगन थ वस ही कानो को घरकर बठ थ मरी समजत तजड़त वग स नाच उठी दषयनदत न

अगठी पहचान ली भली शकनदतला उस पल याद आ गई लजकन दषयनदत सौभागयशाली थ चकरवती राजा थ - अपनी

पराणजपरया को आकाश-पाताल छानकर ढढ़ जनकाला

मरी जकरन तो इस भतल पर न थी जक जकसी तरह पराण दकर भी पता पाता परलोक स ढढ़ जनकाल - ऐसी शजि इस

दीन-हीन मानव म कहा

चढ़ा नशा उतर पड़ा सारी बात सझ गई - आखो पर की पटटी खल पड़ी लजकन हाय खली भी तो उसी समय जब

जीवन म कवल अनदधकार ही रह गया

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राजा णनरबणसया

कमलशवर

एक राजा जनरबजसया थ मा कहानी सनाया करती थी उनक आसपास ही चार-पाच बचच अपनी मजियो म िल

दबाए कहानी समापत होन पर गौरो पर चढान क जलए उतसक-स बठ जात थ आर का सनददर-सा चौक परा होता उसी

चौक पर जमटटी की छः गौर रखी जाती जजनम स ऊपरवाली क जबजनददया और जसनददर लगता बाकी पाचो नीच दबी

पजा गरहण करती रहती एक ओर दीपक की बाती जसथर-सी जलती रहती और मगल-घर रखा रहता जजस पर रोली

स सजथया बनाया जाता सभी बठ बचचो क मख पर िल चढान की उतावली की जगह कहानी सनन की सहज

जसथरता उभर आती

एक राजा जनरबजसया थ मा सनाया करती थी उनक राज म बडी खशहाली थी सब वरण क लोग अपना-अपना

काम-काज दखत थ कोई दखी नही जदखाई पडता था राजा क एक लकषमी-सी रानी थी चरमा-सी सनददर और राजा

को बहत पयारी राजा राज-काज दखत और सख-स रानी क महल म रहत

मर सामन मर खयालो का राजा था राजा जगपती तब जगपती स मरी दातकारी दोसती थी दोनो जमजडल सकल म

पढन जात दोनो एक-स घर क थ इसजलए बराबरी की जनभती थी म मजटक पास करक एक सकल म नौकर हो गया

और जगपती कसब क ही वकील क यहा महररटर जजस साल जगपती महररटर हआ उसी विट पास क गाव म उसकी

शादी हई पर ऐसी हई जक लोगो न तमाशा बना दना चाहा लडकीवालो का कछ जवशवास था जक शादी क बाद लडकी

की जवदा नही होगी

बयाह हो जाएगा और सातवी भावर तब पडगी जब पहली जवदा की सायत होगी और तभी लडकी अपनी ससराल

जाएगी जगपती की पतनी थोडी-बहत पढी-जलखी थी पर घर की लीक को कौन मर बारात जबना बह क वापस आ

गई और लडकवालो न तय कर जलया जक अब जगपती की शादी कही और कर दी जाएगी चाह कानी-लली स हो

पर वह लडकी अब घर म नही आएगी लजकन साल खतम होत-होत सब ठीक-ठाक हो गया लडकीवालो न मािी

माग ली और जगपती की पतनी अपनी ससराल आ गई

जगपती को जस सब कछ जमल गया और सास न बह की बलाइया लकर घर की सब चाजबया सौप दी गहसथी का

ढग-बार समझा जदया जगपती की मा न जान कब स आस लगाए बठी थी उनदहोन आराम की सास ली पजा-पाठ म

समय करन लगा दोपहररया दसर घरो क आगन म बीतन लगी पर

सास का रोग था उनदह सो एक जदन उनदहोन अपनी अजनदतम घजडया जगनत हए चनददा को पास बलाकर समझाया था -

बरा जगपती बड लाड-पयार का पला ह जब स तमहार ससर नही रह तब स इसक छोर-छोर हठ को परा करती रही

ह अब तम धयान रखना जिर रककर उनदहोन कहा था जगपती जकसी लायक हआ ह तो ररशतदारो की आखो म

करकन लगा ह तमहार बाप न बयाह क वि नादानी की जो तमह जवदा नही जकया मर दशमन दवर-जठो को मौका

जमल गया तमार खडा कर जदया जक अब जवदा करवाना नाक करवाना ह जगपती का बयाह कया हआ उन लोगो की

छाती पर साप लोर गया सोचा घर की इजजत रखन की आड लकर रग म भग कर द अब बरा इस घर की लाज

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तमहारी लाज ह आज को तमहार ससर होत तो भला कहत कहत मा की आखो म आस आ गए और व जगपती

की दखभाल उस सौपकर सदा क जलए मौन हो गई थी

एक अरमान उनक साथ ही चला गया जक जगपती की सनदतान को चार बरस इनदतजार करन क बाद भी व गोद म न

जखला पाई और चनददा न मन म सबर कर जलया था यही सोचकर जक कल-दवता का अश तो उस जीवन-भर पजन को

जमल गया था घर म चारो तरि जस उदारता जबखरी रहती अपनापा बरसता रहता उस लगता जस घर की अधरी

एकानदत कोठररयो म यह शानदत शीतलता ह जो उस भरमा लती ह घर की सब कजणडयो की खनक उसक कानो म बस

गई थी हर दरवाज की चरमराहर पहचान बन गई थी

एक रोज राजा आखर को गए मा सनाती थी राजा आखर को जात थ तो सातव रोज ज़रर महल म लौर आत

थ पर उस दिा जब गए तो सातवा जदन जनकल गया पर राजा नही लौर रानी को बडी जचनदता हई रानी एक मनदतरी

को साथ लकर खोज म जनकली

और इसी बीच जगपती को ररशतदारी की एक शादी म जाना पडा उसक दर ररशत क भाई दयाराम की शादी थी कह

गया था जक दसव जदन जरर वापस आ जाएगा पर छठ जदन ही खबर जमली जक बारात घर लौरन पर दयाराम क घर

डाका पड गया जकसी मखजबर न सारी खबर पहचा दी थी जक लडकीवालो न दयाराम का घर सोन-चादी स पार जदया

हआजखर पशतनी जमीदार की इकलौती लडकी थी घर आए महमान लगभग जवदा हो चक थ दसर रोज जगपती भी

चलनवाला था पर उसी रात डाका पडा जवान आदमी भला खन मानता ह डाकवालो न जब बनददक चलाई तो

सबकी जघगघी बध गई पर जगपती और दयाराम न छाती ठोककर लाजठया उठा ली घर म कोहराम मच गया जफ़र

सनदनारा छा गया डाकवाल बराबर गोजलया दाग रह थ बाहर का दरवाजा रर चका था पर जगपती न जहममत बढात

हए हाक लगाई य हवाई बनददक इन ठल-जपलाई लाजठयो का मकाबला नही कर पाएगी जवानो

पर दरवाज तड-तड ररत रह और अनदत म एक गोली जगपती की जाघ को पार करती जनकल गई दसरी उसकी जाघ

क ऊपर कह म समा कर रह गई

चनददा रोती-कलपती और मनौजतया मानती जब वहा पहची तो जगपती असपताल म था दयाराम क थोडी चोर आई

थी उस असपताल स छटटी जमल गई थी जगपती की दखभाल क जलए वही असपताल म मरीजो क ररशतदारो क जलए

जो कोठररया बनी थी उनदही म चनददा को रकना पडा कसब क असपताल स दयाराम का गाव चार कोस पडता था

दसर-तीसर वहा स आदमी आत-जात रहत जजस सामान की जररत होती पहचा जात

पर धीर-धीर उन लोगो न भी खबर लना छोड जदया एक जदन म ठीक होनवाला घाव तो था नही जाघ की हडडी

चरख गई थी और कह म ऑपरशन स छः इच गहरा घाव था

कसब का असपताल था कमपाउणडर ही मरीजो की दखभाल रखत बडा डॉकरर तो नाम क जलए था या कसब क बड

आदजमयो क जलए छोर लोगो क जलए तो कमपोरर साहब ही ईशवर क अवतार थ मरीजो की दखभाल करनवाल

ररशतदारो की खान-पीन की मजशकलो स लकर मरीज की नबज तक सभालत थ छोरी-सी इमारत म असपताल

आबाद था रोजगयो को जसिट छः-सात खार थी मरीजो क कमर स लगा दवा बनान का कमरा था उसी म एक ओर

एक आरामकसी थी और एक नीची-सी मज उसी कसी पर बडा डॉकरर आकर कभी-कभार बठता था नही तो

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बचनजसह कपाउणडर ही जम रहत असपताल म या तो िौजदारी क शहीद आत या जगर-जगरा क हाथ-पर तोड

लनवाल एक-आध लोग छठ-छमास कोई औरत जदख गई तो दीख गई जस उनदह कभी रोग घरता ही नही था कभी

कोई बीमार पडती तो घरवाल हाल बताक आठ-दस रोज की दवा एक साथ ल जात और जिर उसक जीन-मरन की

खबर तक न जमलती

उस जदन बचनजसह जगपती क घाव की पटटी बदलन आया उसक आन म और पटटी खोलन म कछ ऐसी लापरवाही

थी जस गलत बधी पगडी को ठीक स बाधन क जलए खोल रहा हो चनददा उसकी कसी क पास ही सास रोक खडी

थी वह और रोजगयो स बात करता जा रहा था इधर जमनर-भर को दखता जिर जस अभयसत-स उसक हाथ अपना

काम करन लगत पटटी एक जगह खन स जचपक गई थी जगपती बरी तरह कराह उठा चनददा क मह स चीख जनकल

गई बचनजसह न सतकट होकर दखा तो चनददा मख म धोती का पला खोस अपनी भयातर आवाज दबान की चिा कर

रही थी जगपती एकबारगी मछली-सा तडपकर रह गया बचनजसह की उगजलया थोडी-सी थरथराई जक उसकी बाह

पर रप-स चनददा का आस च पडा

बचनजसह जसहर-सा गया और उसक हाथो की अभयसत जनठराई को जस जकसी मानवीय कोमलता न धीर-स छ जदया

आहो कराहो ददट-भरी चीखो और चरखत शरीर क जजस वातावरण म रहत हए भी वह जबकल अलग रहता था

िोडो को पक आम-सा दबा दता था खाल को आल-सा छील दता था उसक मन स जजस ददट का अहसास उठ गया

था वह उस आज जिर हआ और वह बचच की तरह िक-िककर पटटी को नम करक खोलन लगा चनददा की ओर

धीर-स जनगाह उठाकर दखत हए िसिसाया चच रोगी की जहममत रर जाती ह ऐस

पर जस यह कहत-कहत उसका मन खद अपनी बात स उचर गया यह बपरवाही तो चीख और कराहो की एकरसता

स उस जमली थी रोगी की जहममत बढान की कतटवयजनषठा स नही जब तक वह घाव की मरहम-पटटी करता रहा तब

तक जकनदही दो आखो की करणा उस घर रही

और हाथ धोत समय वह चनददा की उन चजडयो स भरी कलाइयो को बजझझक दखता रहा जो अपनी खशी उसस माग

रही थी चनददा पानी डालती जा रही थी और बचनजसह हाथ धोत-धोत उसकी कलाइयो हथजलयो और परो को

दखता जा रहा था दवाखान की ओर जात हए उसन चनददा को हाथ क इशार स बलाकर कहा जदल छोरा मत करना

जाघ का घाव तो दस रोज म भर जाएगा कह का घाव कछ जदन जरर लगा अचछी स अचछी दवाई दगा दवाइया

तो ऐसी ह जक मद को चगा कर द पर हमार असपताल म नही आती जिर भी

तो जकसी दसर असपताल स नही आ सकती वो दवाइया चनददा न पछा

आ तो सकती ह पर मरीज को अपना पसा खरचना पडता ह उनम बचनजसह न कहा

चनददा चप रह गई तो बचनजसह क मह स अनायास ही जनकल पडा जकसी चीज की जररत हो तो मझ बताना रही

दवाइया सो कही न कही स इनदतजाम करक ला दगा महकम स मगाएग तो आत-अवात महीनो लग जाएग शहर क

डॉकरर स मगवा दगा ताकत की दवाइयो की बडी ज़ररत ह उनदह अचछा दखा जाएगा कहत-कहत वह रक गया

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चनददा स कतजञता भरी नजरो स उस दखा और उस लगा जस आधी म उडत पतत को कोई अरकाव जमल गया हो

आकर वह जगपती की खार स लगकर बठ गई उसकी हथली लकर वह सहलाती रही नाखनो को अपन पोरो स

दबाती रही

धीर-धीर बाहर अधरा बढ चला बचनजसह तल की एक लालरन लाकर मरीज़ो क कमर क एक कोन म रख गया

चनददा न जगपती की कलाई दबात-दबात धीर स कहा कमपाउणडर साहब कह रह थ और इतना कहकर वह

जगपती का धयान आकि करन क जलए चप हो गई

कया कह रह थ जगपती न अनमन सवर म बोला

कछ ताकत की दवाइया तमहार जलए जररी ह

म जानता ह

पर

दखो चनददा चादर क बराबर ही पर िलाए जा सकत ह हमारी औकात इन दवाइयो की नही ह

औकात आदमी की दखी जाती ह जक पस की तम तो

दखा जाएगा

कमपाउणडर साहब इनदतजाम कर दग उनस कह गी म

नही चनददा उधारखात स मरा इलाज नही होगा चाह एक क चार जदन लग जाए

इसम तो

तम नही जानती कजट कोढ का रोग होता ह एक बार लगन स तन तो गलता ही ह मन भी रोगी हो जाता ह

लजकनकहत-कहत वह रक गई

जगपती अपनी बात की रक रखन क जलए दसरी ओर मह घमाकर लरा रहा

और तीसर रोज जगपती क जसरहान कई ताकत की दवाइया रखी थी और चनददा की ठहरन वाली कोठरी म उसक

लरन क जलए एक खार भी पहच गई थी चनददा जब आई तो जगपती क चहर पर मानजसक पीडा की असखय रखाए

उभरी थी जस वह अपनी बीमारी स लडन क अलावा सवय अपनी आतमा स भी लड रहा हो चनददा की नादानी और

सनह स भी उलझ रहा हो और सबस ऊपर सहायता करनवाल की दया स जझ रहा हो

चनददा न दखा तो यह सब सह न पाई उसक जी म आया जक कह द कया आज तक तमन कभी जकसी स उधार पस

नही जलए पर वह तो खद तमन जलए थ और तमह मर सामन सवीकार नही करना पडा था इसीजलए लत जझझक नही

लगी पर आज मर सामन उस सवीकार करत तमहारा झठा पौरि जतलजमलाकर जाग पडा ह पर जगपती क मख पर

जबखरी हई पीडा म जजस आदशट की गहराई थी वह चनददा क मन म चोर की तरह घस गई और बडी सवाभाजवकता स

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उसन माथ पर हाथ िरत हए कहा य दवाइया जकसी की महरबानी नही ह मन हाथ का कडा बचन को द जदया था

उसी म आई ह

मझस पछा तक नही और जगपती न कहा और जस खद मन की कमजोरी को दबा गया - कडा बचन स तो अचछा

था जक बचनजसह की दया ही ओढ ली जाती और उस हका-सा पछतावा भी था जक नाहक वह रौ म बडी-बडी बात

कह जाता ह जञाजनयो की तरह सीख द दता ह

और जब चनददा अधरा होत उठकर अपनी कोठरी म सोन क जलए जान को हई तो कहत-कहत यह बात दबा गई जक

बचनजसह न उसक जलए एक खार का इनदतजाम भी कर जदया ह कमर स जनकली तो सीधी कोठरी म गई और हाथ

का कडा लकर सीध दवाखान की ओर चली गई जहा बचनजसह अकला डॉकरर की कसी पर आराम स राग िलाए

लमप की पीली रोशनी म लरा था जगपती का वयवहार चनददा को लग गया था और यह भी जक वह कयो बचनजसह

का अहसान अभी स लाद ल पजत क जलए जवर की जकतनी औकात ह वह बधडक-सी दवाखान म घस गई जदन

की पहचान क कारण उस कमर की मज-कसी और दवाओ की अलमारी की जसथजत का अनमान था वस कमरा

अधरा ही पडा था कयोजक लमप की रोशनी कवल अपन वतत म अजधक परकाशवान होकर कोनो क अधर को और भी

घनीभत कर रही थी बचनजसह न चनददा को घसत ही पहचान जलया वह उठकर खडा हो गया चनददा न भीतर कदम

तो रख जदया पर सहसा सहम गई जस वह जकसी अधर कए म अपन-आप कद पडी हो ऐसा कआ जो जनरनदतर पतला

होता गया ह और जजसम पानी की गहराई पाताल की पतो तक चली गई हो जजसम पडकर वह नीच धसती चली जा

रही हो नीच अधराएकानदत घरनपाप

बचनजसह अवाक ताकता रह गया और चनददा ऐस वापस लौर पडी जस जकसी काल जपशाच क पजो स मजि जमली

हो बचनजसह क सामन कषण-भर म सारी पररजसथजत कौध गई और उसन वही स बहत सयत आवाज म जबान को

दबात हए जस वाय म सपि धवजनत कर जदया - चनददा वह आवाज इतनी ब-आवाज थी और जनरथटक होत हए भी

इतनी साथटक थी जक उस खामोशी म अथट भर गया चनददा रक गई बचनजसह उसक पास जाकर रक गया

सामन का घना पड सतबध खडा था उसकी काली परछाई की पररजध जस एक बार िलकर उनदह अपन वतत म समर

लती और दसर ही कषण मि कर दती दवाखान का लमप सहसा भभककर रक गया और मरीजो क कमर स एक

कराह की आवाज दर मदान क छो तक जाकर डब गई

चनददा न वस ही नीच ताकत हए अपन को सयत करत हए कहा यह कडा तमह दन आई थी

तो वापस कयो चली जा रही थी

चनददा चप और दो कषण रककर उसन अपन हाथ का सोन का कडा धीर-स उसकी ओर बढा जदया जस दन का साहस

न होत हए भी यह काम आवशयक था बचनजसह न उसकी सारी काया को एक बार दखत हए अपनी आख उसक

जसर पर जमा दी उसक ऊपर पड कपड क पार नरम जचकनाई स भर लमब-लमब बाल थ जजनकी भाप-सी महक

िलती जा रही थी वह धीर-धीर स बोला लाओ

चनददा न कडा उसकी ओर बढा जदया कडा हाथ म लकर वह बोला सनो

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चनददा न परशन-भरी नजर उसकी ओर उठा दी उनम झाकत हए अपन हाथ स उसकी कलाई पकडत हए उसन वह कडा

उसकी कलाई म पहना जदया चनददा चपचाप कोठरी की ओर चल दी और बचनजसह दवाखान की ओर

काजलख बरी तरह बढ गई थी और सामन खड पड की काली परछाई गहरी पड गई थी दोनो लौर गए थ पर जस उस

काजलख म कछ रह गया था छर गया था दवाखान का लमप जो जलत-जलत एक बार भभका था उसम तल न रह

जान क कारण बतती की लौ बीच स िर गई थी उसक ऊपर धए की लकीर बल खाती साप की तरह अधर म जवलीन

हो जाती थी

सबह जब चनददा जगपती क पास पहची और जबसतर ठीक करन लगी तो जगपती को लगा जक चनददा बहत उदास थी

कषण-कषण म चनददा क मख पर अनजगनत भाव आ-जा रह थ जजनम असमजस था पीडा थी और जनरीहता थी कोई

अदशय पाप कर चकन क बाद हदय की गहराई स जकए गए पशचाताप जसी धजमल चमक

रानी मनदतरी क साथ जब जनराश होकर लौरी तो दखा राजा महल म उपजसथत थ उनकी खशी का जठकाना न रहा

मा सनाया करती थी पर राजा को रानी का इस तरह मनदतरी क साथ जाना अचछा नही लगा रानी न राजा को

समझाया जक वह तो कवल राजा क परजत अरर परम क कारण अपन को न रोक सकी राजा-रानी एक-दसर को बहत

चाहत थ दोनो क जदलो म एक बात शल-सी गडती रहती जक उनक कोई सनदतान न थी राजवश का दीपक बझन जा

रहा था सनदतान क अभाव म उनका लोक-परलोक जबगडा जा रहा था और कल की मयाटदा नि होन की शका बढती

जा रही थी

दसर जदन बचनजसह न मरीजो की मरहम-पटटी करत वि बताया था जक उसका तबादला मनपरी क सदर असपताल म

हो गया ह और वह परसो यहा स चला जाएगा जगपती न सना तो उस भला ही लगा आए जदन रोग घर रहत ह

बचनजसह उसक शहर क असपताल म पहचा जा रहा ह तो कछ मदद जमलती ही रहगी आजखर वह ठीक तो होगा ही

और जिर मनपरी क जसवा कहा जाएगा पर दसर ही कषण उसका जदल अकथ भारीपन स भर गया पता नही कयो

चनददा क अजसततव का धयान आत ही उस इस सचना म कछ ऐस नकील कार जदखाई दन लग जो उसक शरीर म

जकसी भी समय चभ सकत थ जरा-सा बखबर होन पर बीध सकत थ और तब उसक सामन आदमी क अजधकार की

लकषमण-रखाए धए की लकीर की तरह कापकर जमरन लगी और मन म छप सनददह क राकषस बाना बदल योगी क रप

म घमन लग

और पनदरह-बीस रोज बाद जब जगपती की हालत सधर गई तो चनददा उस लकर घर लौर आई जगपती चलन-जिरन

लायक हो गया था घर का ताला जब खोला तब रात झक आई थी और जिर उनकी गली म तो शाम स ही अधरा

झरना शर हो जाता था पर गली म आत ही उनदह लगा जस जक वनवास कारकर राजधानी लौर हो नककड पर ही

जमना सनार की कोठरी म सरही जिक रही थी जजसक दराजदार दरवाजो स लालरन की रोशनी की लकीर झाक रही

थी और कचची तमबाक का धआ रधी गली क महान पर बरी तरह भर गया था सामन ही मशीजी अपनी जजगला

खजरया क गङढ म कपपी क मजधदम परकाश म खसरा-खतौनी जबछाए मीजान लगान म मशगल थ जब जगपती क

घर का दरवाजा खडका तो अधर म उसकी चाची न अपन जगल स दखा और वही स बठ-बठ अपन घर क भीतर

ऐलान कर जदया - राजा जनरबजसया असपताल स लौर आए कलमा भी आई ह

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य शबद सनकर घर क अधर बरोठ म घसत ही जगपती हािकर बठ गया झझलाकर चनददा स बोला अधर म कया मर

हाथ-पर तडवाओगी भीतर जाकर लालरन जला लाओ न

तल नही होगा इस वि जरा ऐस ही काम

तमहार कभी कछ नही होगा न तल न कहत-कहत जगपती एकदम चप रह गया और चनददा को लगा जक आज

पहली बार जगपती न उसक वयथट माततव पर इतनी गहरी चोर कर दी जजसकी गहराई की उसन कभी कपना नही की

थी दोनो खामोश जबना एक बात जकए अनददर चल गए

रात क बढत सनदनार म दोनो क सामन दो बात थी जगपती क कानो म जस कोई वयगय स कह रहा था - राजा

जनरबजसया असपताल स आ गए

और चनददा क जदल म यह बात चभ रही थी - तमहार कभी कछ नही होगा और जससकती-जससकती चनददा न जान कब

सो गई पर जगपती की आखो म नीद न आई खार पर पड-पड उसक चारो ओर एक मोहक भयावना-सा जाल िल

गया लर-लर उस लगा जस उसका सवय का आकार बहत कषीण होता-होता जबनदद-सा रह गया पर जबनदद क हाथ थ

पर थ और जदल की धडकन भी कोठरी का घरा-घरा-सा अजधयारा मरमली दीवार और गहन गिाओ-सी

अलमाररया जजनम स बार-बार झाककर दखता था और वह जसहए उठता था जफ़र जस सब कछ तबदील हो गया हो

उस लगा जक उसका आकार बढता जा रहा ह बढता जा रहा ह वह मनषय हआ लमबा-तगडा-तनददरसत परि हआ

उसकी जशराओ म कछ िर पडन क जलए वयाकलता स खौल उठा उसक हाथ शरीर क अनपात स बहत बड ड़रावन

और भयानक हो गए उनक लमब-लमब नाखन जनकल आए वह राकषस हआ दतय हआआजदम बबटर

और बडी तजी स सारा कमरा एकबारगी चककर कार गया जिर सब धीर-धीर जसथर होन लगा और उसकी सास ठीक

होती जान पडी जफ़र जस बहत कोजशश करन पर जघगघी बध जान क बाद उसकी आवाज फ़री चनददा

चनददा की नरम सासो की हकी सरसराहर कमर म जान डालन लगी जगपती अपनी पारी का सहारा लकर झका

कापत पर उसन जमीन पर रख और चनददा की खार क पाए स जसर जरकाकर बठ गया उस लगा जस चनददा की इन

सासो की आवाज म जीवन का सगीत गज रहा ह वह उठा और चनददा क मख पर झक गया उस अधर म आख

गडाए-गडाए जस बहत दर बाद सवय चनददा क मख पर आभा िरकर अपन-आप जबखरन लगी उसक नकश उजजवल

हो उठ और जगपती की आखो को जयोजत जमल गई वह मगध-सा ताकता रहा

चनददा क जबखर बाल जजनम हाल क जनदम बचच क गभआर बालो की-सी महक दध की कचाइध शरीर क रस की-

सी जमठास और सनह-सी जचकनाहर और वह माथा जजस पर बालो क पास तमाम छोर-छोर नरम-नरम-नरम-स रोए-

रशम स और उस पर कभी लगाई गई सदर की जबनददी का हका जमरा हआ-सा आभास ननदह-ननदह जनदवटनददव सोए

पलक और उनकी मासम-सी कारो की तरह बरौजनया और सास म घलकर आती हई वह आतमा की जनषकपर

आवाज की लय फ़ल की पखरी-स पतल-पतल ओठ उन पर पडी अछती रखाए जजनम जसिट दध-सी महक

उसकी आखो क सामन ममता-सी छा गई कवल ममता और उसक मख स असिर शबद जनकल गया बचची

डरत-डरत उसक बालो की एक लर को बड ज़तन स उसन हथली पर रखा और उगली स उस पर जस लकीर खीचन

लगा उस लगा जस कोई जशश उसक अक म आन क जलए छरपराकर जनराश होकर सो गया हो उसन दोनो

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हथजलयो को पसारकर उसक जसर को अपनी सीमा म भर लना चाहा जक कोई कठोर चीज उसकी उगजलयो स रकराई

वह जस होश म आया

बड सहार स उसन चनददा क जसर क नीच ररोला एक रमाल म बधा कछ उसक हाथ म आ गया अपन को सयत

करता वह वही जमीन पर बठ गया उसी अनदधर म उस रमाल को खोला तो जस साप सघ गया चनददा क हाथो क

दोनो सोन क कड उसम जलपर थ

और तब उसक सामन सब सजि धीर-धीर रकड-रकड होकर जबखरन लगी य कड तो चनददा बचकर उसका इलाज

कर रही थी व सब दवाइया और ताकत क रॉजनकउसन तो कहा था य दवाइया जकसी की महरबानी नही ह मन हाथ

क कड बचन को द जदए थ पर उसका गला बरी तरह सख गया जबान जस ताल स जचपककर रह गई उसन चाहा जक

चनददा को झकाझोरकर उठाए पर शरीर की शजि बह-सी गई थी रि पानी हो गया था थोडा सयत हआ उसन व

कड उसी रमाल म लपरकर उसकी खार क कोन पर रख जदए और बडी मजशकल स अपनी खार की पारी पकडकर

लढक गया चनददा झठ बोली पर कयो कड आज तक छपाए रही उसन इतना बडा दराव कयो जकया आजखर कयो

जकसजलए और जगपती का जदल भारी हो गया उस जिर लगा जक उसका शरीर जसमरता जा रहा ह और वह एक

सीक का बना ढाचा रह गया जनतानदत हका जतनक-सा हवा म उडकर भरकन वाल जतनक-सा

उस रात क बाद रोज जगपती सोचता रहा जक चनददा स कड मागकर बच ल और कोई छोरा-मोरा कारोबार ही शर

कर द कयोजक नौकरी छर चकी थी इतन जदन की गरहाजजरी क बाद वकील साहब न दसरा महररटर रख जलया था वह

रोज यही सोचता पर जब चनददा सामन आती तो न जान कसी असहाय-सी उसकी अवसथा हो जाती उस लगता जस

कड मागकर वह चनददा स पतनीतव का पद भी छीन लगा माततव तो भगवान न छीन ही जलया वह सोचता आजखर

चनददा कया रह जाएगी एक सतरी स यजद पतनीतव और माततव छीन जलया गया तो उसक जीवन की साथटकता ही कया

चनददा क साथ वह यह अनदयाय कस कर उसस दसरी आख की रोशनी कस माग ल जिर तो वह जनतानदत अनदधी हो

जाएगी और उन कडो कोमागन क पीछ जजस इजतहास की आतमा नगी हो जाएगी कस वह उस लजजा को सवय ही

उधारकर ढापगा

और वह उनदही खयालो म डबा सबह स शाम तक इधर-उधर काम की रोह म घमता रहता जकसी स उधार ल ल पर

जकस समपजतत पर कया ह उसक पास जजसक आधार पर कोई उस कछ दगा और महल क लोग जो एक-एक पाई

पर जान दत ह कोई चीज खरीदत वि भाव म एक पसा कम जमलन पर मीलो पदल जाकर एक पसा बचात ह एक-

एक पस की मसाल की पजडया बधवाकर गयारह मतटबा पसो का जहसाब जोडकर एकाध पसा उधारकर जमनदनत करत

सौदा घर लात ह गली म कोई खोचवाला िस गया तो दो पस की चीज को लड-झगडकर - चार दान जयादा पान की

नीयत स दो जगह बधवात ह भाव क जरा-स िकट पर घणरो बहस करत ह शाम को सडी-गली तरकाररयो को

जकिायत क कारण लात ह ऐस लोगो स जकस मह स मागकर वह उनकी गरीबी क अहसास पर ठोकर लगाए पर उस

जदन शाम को जब वह घर पहचा तो बरोठ म ही एक साइजकल रखी नजर आई जदमाग पर बहत जोर डालन क बाद

भी वह आगनदतक की कपना न कर पाया भीतरवाल दरवाज पर जब पहचा तो सहसा हसी की आवाज सनकर

जठठक गया उस हसी म एक अजीब-सा उनदमाद था और उसक बाद चनददा का सवर - अब आत ही होग बजठए न दो

जमनर और अपनी आख स दख लीजजए और उनदह समझात जाइए जक अभी तनददरसती इस लायक नही जो जदन-

जदन-भर घमना बदाटशत कर सक

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हा भई कमजोरी इतनी जदी नही जमर सकती खयाल नही करग तो नकसान उठाएग कोई परि-सवर था यह

जगपती असमजस म पड गया वह एकदम भीतर घस जाए इसम कया हजट ह पर जब उसन पर उठाए तो व बाहर

जा रह थ बाहर बरोठ म साइजकल को पकडत ही उस सझ आई वही स जस अनजान बनता बड परयतन स आवाज

को खोलता जचलाया अर चनददा यह साइजकल जकसकी ह कौन महरबान

चनददा उसकी आवाज सनकर कमर स बाहर जनकलकर जस खश-खबरी सना रही थी अपन कमपाउणडर साहब आए

ह खोजत-खोजत आज घर का पता पाए ह तमहार इनदतजार म बठ ह

कौन बचनजसह अचछाअचछा वही तो म कह भला कौन कहता जगपती पास पहचा और बातो म इस तरह

उलझ गया जस सारी पररजसथजत उसन सवीकार कर ली हो बचनजसह जब जिर आन की बात कहकर चला गया तो

चनददा न बहत अपनपन स जगपती क सामन बात शर की जान कस-कस आदमी होत ह

कयो कया हआ कस होत ह आदमी जगपती न पछा

इतनी छोरी जान-पहचान म तम मदो क घर म न रहत घसकर बठ सकत हो तम तो उर परो लौर आओग चनददा

कहकर जगपती क मख पर कछ इजचछत परजतजकरया दख सकन क जलए गहरी जनगाहो स ताकन लगी

जगपती न चनददा की ओर ऐस दखा जस यह बात भी कहन की या पछन की ह जिर बोला बचनजसह अपनी तरह

का आदमी ह अपनी तरह का अकला

होगापर कहत-कहत चनददा रक गई

आड वि काम आन वाला आदमी ह लजकन उसस िायदा उठा सकना जजतना आसान ह उतनामरा मतलब ह

जक जज़सस कछ जलया जाएगा उस जदया भी जाएगा जगपती न आख दीवार पर गडात हए कहा और चनददा उठकर

चली गई

उस जदन क बाद बचनजसह लगभग रोज ही आन-जान लगा जगपती उसक साथ इधर-उधर घमता भी रहता

बचनजसह क साथ वह जब तक रहता अजीब-सी घरन उसक जदल को बाध लती और तभी जीवन की तमाम

जविमताए भी उसकी जनगाहो क सामन उभरन लगती आजखर वह सवय एक आदमी हबकार यह माना जक उसक

सामन पर पालन की कोई इतनी जवकराल समसया नही वह भखो नही मर रहा ह जाड म काप नही रहा ह पर उसक

दो हाथ-पर हशरीर का जपजरा ह जो कछ मागता हकछ और वह सोचता यह कछ कया ह सख शायद हा शायद

नही वह तो दःख म भी जी सकन का आदी ह अभावो म जीजवत रह सकन वाला आशचयटजनक कीडा ह तो जिर

वासना शायद हा शायद नही चनददा का शरीर लकर उसन उस कषजणकता को भी दखा ह तो जिर धनशायद हा

शायद नही उसन धन क जलए अपन को खपाया ह पर वह भी तो उस अदशय पयास को बझा नही पाया तो जिर तो

जिर कया वह कछ कया ह जो उसकी आतमा म नासर-सा ररसता रहता ह अपना उपचार मागता ह शायद काम हा

यही जबकल यही जो उसक जीवन की घजडयो को जनपर सना न छोड जज़सम वह अपनी शजि लगा सक अपना

मन डबो सक अपन को साथटक अनभव कर सक चाह उसम सख हो या दख अरकषा हो या सरकषा शोिण हो या

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पोिणउस जसिट काम चाजहए करन क जलए कछ चाजहए यही तो उसकी परकत आवशयकता ह पहली और आजखरी

माग ह कयोजक वह उस घर म नही पदा हआ जहा जसिट जबान जहलाकर शासन करनवाल होत ह वह उस घर म भी

नही पदा हआ जहा जसिट मागकर जीनवाल होत ह वह उस घर का ह जो जसिट काम करना जानता ह काम ही

जजसकी आस ह जसिट वह काम चाहता ह काम

और एक जदन उसकी काम-धाम की समसया भी हल हो गई तालाब वाल ऊच मदान क दजकषण ओर जगपती की

लकडी की राल खल गई बोडट तक रग गया राल की जमीन पर लकषमी-पजन भी हो गया और हवन भी हआ

लकडी को कोई कमी नही थी गाव स आनवाली गाजडयो को इस कारोबार म पर हए आदजमयो की मदद स मोल-

तोल करवा क वहा जगरवा जदया गया गाठ एक ओर रखी गई चलो का चटटा करीन स लग गया और गदद चीरन क

जलए डाल जदए गए दो-तीन गाजडयो का सौदा करक राल चाल कर दी गई भजवषय म सवय पड खरीदकर करान का

तय जकया गया बडी-बडी सकीम बनी जक जकस तरह जलान की लकडी स बढात-बढात एक जदन इमारती लकडी की

कोठी बनगी चीरन की नई मशीन लगगी कारबार बढ ज़ान पर बचनजसह भी नौकरी छोडकर उसी म लग जाएगा

और उसन महसस जकया जक वह काम म लग गया ह अब चौबीसो घणर उसक सामन काम हउसक समय का उपयोग

ह जदन-भर म वह एक घणर क जलए जकसी का जमतर हो सकता ह कछ दर क जलए वह पजत हो सकता ह पर बाकी

समय जदन और रात क बाकी घणरउन घणरो क अभाव को जसिट उसका अपना काम ही भर सकता ह और अब वह

कामदार था

वह कामदार तो था लजकन जब राल की उस ऊची जमीन पर पड छपपर क नीच तखत पर वह गला रखकर बठता

सामन लग लकजडयो क ढर कर हए पड क तन जडो को लढका हआ दखता तो एक जनरीहता बरबस उसक जदल

को बाधन लगती उस लगता एक वयथट जपशाच का शरीर रकड-रकड करक उसक सामन डाल जदया गया हजिर इन

पर कहाडी चलगी और इनक रश-रश अलग हो जाएग और तब इनकी ठठररयो को सखाकर जकसी पसवाल क हाथ

तक पर तौलकर बच जदया जाएगा और तब उसकी जनगाह सामन खड ताड पर अरक जाती जजसक बड-बड पततो पर

सखट गदटनवाल जगदध पर िडफ़डाकर दर तक खामोश बठ रहत ताड का काला गडरदार तना और उसक सामन ठहरी

हई वाय म जनससहाय कापती भारहीन नीम की पजततया चकराती झडती रहती धल-भरी धरती पर लकडी की

गाजडयोक पजहयो की पडी हई लीक धधली-सी चमक उठती और बगलवाल मगिली क पच की एकरस खरखराती

आवाज कानो म भरन लगती बगलवाली कचची पगडणडी स कोई गजरकर रील क ढलान स तालाब की जनचाई म

उतर जाता जजसक गदल पानी म कडा तरता रहता और सअर कीचड म मह डालकर उस कड को रौदत दोपहर

जसमरती और शाम की धनदध छान लगती तो वह लालरन जलाकर छपपर क खमभ की कील म राग दता और उसक

थोडी ही दर बाद असपतालवाली सडक स बचनजसह एक काल धबब की तरह आता जदखाई पडता गहर पडत अनदधर

म उसका आकार धीर-धीर बढता जाता और जगपती क सामन जब वह आकर खडा होता तो वह उस बहत

जवशाल-सा लगन लगता जजसक सामन उस अपना अजसततव डबता महसस होता

एक-आध जबकरी की बात होती और तब दोनो घर की ओर चल दत घर पहचकर बचनजसह कछ दर जरर रकता

बठता इधर-उधर की बात करता कभी मौका पड ज़ाता तो जगपती और बचनजसह की थाली भी साथ लग जाती

चनददा सामन बठकर दोनो को जखलाती

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बचनजसह बोलता जाता कया तरकारी बनी ह मसाला ऐसा पडा ह जक उसकी भी बहार ह और तरकारी का सवाद भी

न मरा होरलो म या तो मसाला ही मसाला रहगा या जसिट तरकारी ही तरकारी वाह वाह कया बात ह अनददाज की

और चनददा बीच-बीच म रोककर बोलती जाती इनदह तो जब तक दाल म पयाज का भना घी न जमल तब तक पर ही

नही भरता

या - जसरका अगर इनदह जमल जाए तो समझो सब कछ जमल गया पहल मझ जसरका न जान कसा लगता था पर

अब ऐसा जबान पर चढा ह जक या - इनदह कागज-सी पतली रोरी पसनदद ही नही आती अब मझस कोई पतली रोरी

बनान को कह तो बनती ही नही आदत पड गई ह और जिर मन ही नही करता पर चनददा की आख बचनजसह की

थाली पर ही जमी रहती रोरी जनबरी तो रोरी परोस दी दाल खतम नही हई तो भी एक चमचा और परोस दी और

जगपती जसर झकाए खाता रहता जसिट एक जगलास पानी मागता और चनददा चौककर पानी दन स पहल कहती अर

तमन तो कछ जलया भी नही कहत-कहत वह पानी द दती और तब उसक जदल पर गहरी-सी चोर लगती न जान

कयो वह खामोशी की चोर उस बडी पीडा द जाती पर वह अपन को समझा लती कोई महमान तो नही ह माग सकत

थ भख नही होगी

जगपती खाना खाकर राल पर लरन चला जाता कयोजक अभी तक कोई चौकीदार नही जमला था छपपर क नीच

तखत पर जब वह लरता तो अनायास ही उसका जदल भर-भर आता पता नही कौन-कोन स ददट एक-दसर स जमलकर

तरह-तरह की रीस चरख और ऐठन पदा करन लगत कोई एक रग दखती तो वह सहलाता भी जब सभी नस

चरखती हो तो कहा-कहा राहत का अकला हाथ सहलाए

लर-लर उसकी जनगाह ताड क उस ओर बनी पखता कबर पर जम जाती जजसक जसराहन करीला बबल का एकाकी

पड सनदन-सा खडा रहता जजस कबर पर एक पदाटनशीन औरत बड जलहाज स आकर सवर-सवर बला और चमली क

िल चढा जाती घम-घमकर उसक िर लती और माथा रककर कछ कदम उदास-उदास-सी चलकर एकदम तजी स

मडकर जबसाजतयो क महल म खो जाती शाम होत जिर आती एक दीया बारती और अगर की बजततया जलाती

जिर मडत हए ओढनी का पला कनदधो पर डालती तो दीय की लौ कापती कभी कापकर बझ जाती पर उसक कदम

बढ चक होत पहल धीम थक उदास-स और जिर तज सध सामानदय-स और वह जिर उसी महल म खो जाती और

तब रात की तनहाइयो म बबल क कारो क बीच उस साय-साय करत ऊच-नीच मदान म जस उस कबर स कोई रह

जनकलकर जनपर अकली भरकती रहती

तभी ताड पर बठ सखट गदटनवाल जगधद मनह स-सी आवाज म जकलजबला उठत और ताड क पतत भयानकता स

खडबडा उठत जगपती का बदन काप जाता और वह भरकती रह जजनददा रह सकन क जलए जस कबर की इरो म

बबल क साया-तल दबक जाती जगपती अपनी रागो को पर स भीचकर कमबल स मह छपा औधा लर जाता

तडक ही ठक पर लग लकडहार लकडी चीरन आ जात तब जगपती कमबल लपर घर की ओर चला जाता

राजा रोज सवर रहलन जात थ मा सनाया करती थी एक जदन जस ही महल क बाहर जनकलकर आए जक सडक

पर झाड लगानवाली महतरानी उनदह दखत ही अपना झाडपजा परककर माथा पीरन लगी और कहन लगी हाय राम

आज राजा जनरबजसया का मह दखा ह न जान रोरी भी नसीब होगी जक नही न जान कौन-सी जवपत रर पड राजा

को इतना दःख हआ जक उर परो महल को लौर गए मनदतरी को हकम जदया जक उस महतरानी का घर नाज स भर द

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और सब राजसी वसतर उतार राजा उसी कषण जगल की ओर चल गए उसी रात रानी को सपना हआ जक कल की रात

तरी मनोकामना परी करनवाली ह रानी बहत पछता रही थी पर िौरन ही रानी राजा को खोजती-खोजती उस सराय

म पहच गई जहा वह जरक हए थ रानी भस बदलकर सवा करन वाली भजरयाररन बनकर राजा क पास रात म पहची

रातभर उनक साथ रही और सबह राजा क जगन स पहल सराय छोड महल म लौर गई राजा सबह उठकर दसर दश

की ओर चल गए दो ही जदनो म राजा क जनकल जान की खबर राज-भर म िल गई राजा जनकल गए चारो तरि

यही खबर थी

और उस जदन रोल-महल क हर आगन म बरसात क मह की तरह यह खबर बरसकर िल गई जक चनददा क बाल-

बचचा होन वाला ह

नककड पर जमना सनार की कोठरी म जिकती सरही रक गई मशीजी न अपना मीजान लगाना छोड जवसिाररत नतरो

स ताककर खबर सनी बसी जकरानवाल न कए म स आधी गई रससी खीच डोल मन पर परककर सना सदशटन दजी

न मशीन क पजहए को हथली स रगडकर रोककर सना हसराज पजाबी न अपनी नील-लगी मलगजी कमीज की

आसतीन चढात हए सना और जगपती की बवा चाची न औरतो क जमघर म बड जवशवास पर भद-भर सवर म सनाया

- आज छः साल हो गए शादी को न बाल न बचचा न जान जकसका पाप ह उसक पर म और जकसका होगा जसवा

उस मसरणड कमपोरर क न जान कहा स कलचछनी इस महल म आ गई इस गली की तो पशतो स ऐसी मरजाद

रही ह जक गर-मदट औरत की परछाई तब नही दख पाए यहा क मदट तो बस अपन घर की औरतो को जानत ह उनदह तो

पडोसी क घर की जनाजनयो की जगनती तक नही मालम यह कहत-कहत उनका चहरा तमतमा आया और सब

औरत दवलोक की दजवया की तरह गमभीर बनी अपनी पजवतरता की महानता क बोझ स दबी धीर-धीर जखसक गई

सबह यह खबर िलन स पहल जगपती राल पर चला गया था पर सनी उसन भी आज ही थी जदन-भर वह तखत पर

कोन की ओर मह जकए पडा रहा न ठक की लकजडया जचराई न जबकरी की ओर धयान जदया न दोपहर का खाना खान

ही घर गया जब रात अचछी तरह िल गई वह जहसक पश की भाजत उठा उसन अपनी अगजलया चरकाई मिी

बाधकर बाह का जोर दखा तो नस तनी और बाह म कठोर कमपन-सा हआ उसन तीन-चार परी सास खीची और

मजबत कदमो स घर की ओर चल पडा मदान खतम हआ ककड की सडक आईसडक खतम हई गली आई पर

गली क अनदधर म घसत वह सहम गया जस जकसी न अदशय हाथो स उस पकडकर सारा रि जनचोड जलया उसकी

िरी हई शजि की नस पर जहम-शीतल होठ रखकर सारा रस चस जलया और गली क अधर की जहकारत-भरी

काजलख और भी भारी हो गई जजसम घसन स उसकी सास रक जाएगीघर जाएगी

वह पीछ मडा पर रक गया जिर कछ सयत होकर वह चोरो की तरह जनःशबद कदमो स जकसी तरह घर की भीतरी

दहरी तक पहच गया

दाई ओर की रसोईवाली दहलीज म कपपी जरमजरमा रही थी और चनददा असत-वयसत-सी दीवार स जसर रक शायद

आसमान जनहारत-जनहारत सो गई थी कपपी का परकाश उसक आध चहर को उजागर जकए था और आधा चहरा गहन

काजलमा म डबा अदशय था वह खामोशी स खडा ताकता रहा चनददा क चहर पर नारीतव की परौढता आज उस

जदखाई दी चहर की सारी कमनीयता न जान कहा खो गई थी उसका अछतापन न जान कहा लपत हो गया था िला-

िला मख जस रहनी स तोड फ़ल को पानी म डालकर ताजा जकया गया हो जजसकी पखररयो म ररन की सरमई

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रखाए पड गई हो पर भीगन स भारीपन आ गया हो उसक खल पर पर उसकी जनगाह पडी तो सजा-सा लगा एजडया

भरी सजी-सी और नाखनो क पास अजब-सा सखापन जगपती का जदल एक बार मसोस उठा उसन चाहा जक

बढकर उस उठा ल अपन हाथो स उसका परा शरीर छ-छकर सारा कलि पोछ द उस अपनी सासो की अजगन म

तपाकर एक बार जिर पजवतर कर ल और उसकी आखो की गहराई म झाककर कह- दवलोक स जकस शापवश

जनवाटजसत हो तम इधर आ गई चनददा यह शाप तो अजमर था

तभी चनददा न हडबडाकर आख खोली जगपती को सामन दख उस लगा जक वह एकदम नगी हो गई हो अजतशय

लजजजत हो उसन अपन पर समर जलए घरनो स धोती नीच सरकाई और बहत सयत-सी उठकर रसोई क अधर म खो

गई जगपती एकदम हताश हो वही कमर की दहरी पर चौखर स जसर जरका बठ गया नजर कमर म गई तो लगा जक

पराए सवर यहा गज रह ह जजनम चनददा का भी एक ह एक तरि घर क हर कोन स अनदधरा सलाब की तरह बढता आ

रहा थाएक अजीब जनसतबधताअसमजस गजत पर पथभरि शकल पर आकारहीन

खाना खा लत चनददा का सवर कानो म पडा वह अनजान ऐस उठ बठा जस तयार बठा हो उसकी बात की आज

तक उसन अवजञा न की थी खान तो बठ गया पर कौर नीच नही सरक रहा था तभी चनददा न बड सध शबदो म कहा

कल म गाव जाना चाहती ह

जस वह इस सचना स पररजचत था बोला अचछा

चनददा जिर बोली मन बहत पहल घर जचिी डाल दी थी भया कल लन आ रह ह

तो ठीक ह जगपती वस ही डबा-डबा बोला

चनददा का बाध रर गया और वह वही घरनो म मह दबाकर कातर-सी ििक-ििककर रो पडी न उठ सकी न जहल

सकी

जगपती कषण-भर को जवचजलत हआ पर जस जम जान क जलए उसक ओठ िडक और करोध क जवालामखी को

जबरन दबात हए भी वह िर पडा यह सब मझ कया जदखा रही ह बशमट बगरत उस वि नही सोचा था

जबज़बमरी लाश तल

तब तब की बात झठ ह जससजकयो क बीच चनददा का सवर िरा लजकन जब तमन मझ बच जदया

एक भरपर हाथ चनददा की कनपरी पर आग सलगाता पडा और जगपती अपनी हथली दसरी स दबाता खाना छोड

कोठरी म घस गया और रात-भर कणडी चढाए उसी काजलख म घरता रहा दसर जदन चनददा घर छोड अपन गाव चली

गई

जगपती परा जदन और रात राल पर ही कार दता उसी बीरान म तालाब क बगल कबर बबल और ताड क पडोस म

पर मन मदाट हो गया था जबरदसती वह अपन को वही रोक रहता उसका जदल होता कही जनकल जाए पर ऐसी

कमजोरी उसक तन और मन को खोखला कर गई थी जक चाहन पर भी वह जा न पाता जहकारत-भरी नजर सहता पर

वही पडा रहता कािी जदनो बाद जब नही रह गया तो एक जदन जगपती घर पर ताला लगा नजदीक क गाव म

लकडी करान चला गया उस लग रहा था जक अब वह पग हो गया ह जबलकल लगडा एक रगता कीडा जजसक न

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आख ह न कान न मन न इचछा वह उस बाग म पहच गया जहा खरीद पड करन थ दो आरवालो न पतल पड क

तन पर आरा रखा और करट-करट का अबाध शोर शर हो गया दसर पड पर बनदन और शकर की कहाडी बज उठी

और गाव स दर उस बाग म एक लयपणट शोर शर हो गया जड पर कहाडी पडती तो परा पड थराट जाता

करीब क खत की मड पर बठ जगपती का शरीर भी जस काप-काप उठता चनददा न कहा था लजकन जब तमन मझ

बच जदया कया वह ठीक कहती थी कया बचनजसह न राल क जलए जो रपए जदए थ उसका बयाज इधर चकता

हआ कया जसिट वही रपए आग बन गए जजसकी आच म उसकी सहनशीलता जवशवास और आदशट मोम-स जपघल

गए

शकर बाग स लग दड पर स जकसी न आवाज लगाई शकर न कहाडी रोककर वही स हाक लगाई कोन क खत

स लीक बनी ह जरा मड मारकर नघा ला गाडी

जगपती का धयान भग हआ उसन मडकर दड पर आख गडाई दो भसा-गाजडया लकडी भरन क जलए आ पहची थी

शकर न जगपती क पास आकर कहा एक गाडी का भतट तो हो गया बजक डढ काअब इस पतररया पड को न छार

जगपती न उस पड की ओर दखा जजस कारन क जलए शकर न इशारा जकया था पड की शाख हरी पजततयो स भरी

थी वह बोला अर यह तो हरा ह अभी इस छोड दो

हरा होन स कया उखर तो गया ह न िल का न िल का अब कौन इसम िल-िल आएग चार जदन म पतती झरा

जाएगी शकर न पड की ओर दखत हए उसतादी अनददाज स कहा

जसा ठीक समझो तम जगपती न कहा और उठकर मड-मड पकक कए पर पानी पीन चला गया

दोपहर ढलत गाजडया भरकर तयार हई और शहर की ओर रवाना हो गई जगपती को उनक साथ आना पडा गाजडया

लकडी स लदी शहर की ओर चली जा रही थी और जगपती गदटन झकाए कचची सडक की धल म डबा भारी कदमो

स धीर-धीर उनदही की बजती घजणरयो क साथ जनजीव-सा बढता जा रहा था

कई बरस बाद राजा परदस स बहत-सा धन कमाकर गाडी म लादकर अपन दश की ओर लौर मा सनाया करती

थी राजा की गाडी का पजहया महल स कछ दर पतल की झाडी म उलझ गया हर तरह कोजशश की पर पजहया न

जनकला तब एक पजणडत न बताया जक सकर क जदन का जनदमा बालक अगर अपन घर की सपारी लाकर इसम छआ

द तो पजहया जनकल जाएगा वही दो बालक खल रह थ उनदहोन यह सना तो कदकर पहच और कहन लग जक हमारी

पदाइश सकर की ह पर सपारी तब लाएग जब तम आधा धन दन का वादा करो राजा न बात मान ली बालक दौड-

दौड घर गए सपारी लाकर छआ दी जिर घर का रासता बतात आग-आग चल आजखर गाडी महल क सामन उनदहोन

रोक ली

राजा को बडा अचरज हआ जक हमार ही महल म य दो बालक कहा स आ गए भीतर पहच तो रानी खशी स बहाल

हो गई

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पर राजा न पहल उन बालको क बार म पछा तो रानी न कहा जक य दोनो बालक उनदही क राजकमार ह राजा को

जवशवास नही हआ रानी बहत दखी हई

गाजडया जब राल पर आकर लगी और जगपती तखत पर हाथ-पर ढील करक बठ गया तो पगडणडी स गजरत

मशीजी न उसक पास आकर बताया अभी उस जदन वसली म तमहारी ससराल क नजदीक एक गाव म जाना हआ तो

पता लगा जक पनदरह-बीस जदन हए चनददा क लडका हआ ह और जिर जस महल म सनी-सनाई बातो पर पदाट

डालत हए बोल भगवान क राज म दर ह अधर नही जगपती भया

जगपती न सना तो पहल उसन गहरी नजरो स मशीजी को ताका पर वह उनक तीर का जनशाना ठीक-ठीक नही खोज

पाया पर सब कछ सहन करत हए बोला दर और अधर दोनो ह

अधर तो सरासर हजतररया चररततर ह सब बड-बड हार गए ह कहत-कहत मशीजी रक गए पर कछ इस तरह जस

कोई बडी भद-भरी बात ह जजस उनकी गोल होती हई आख समझा दगी जगपती मशीजी की तरि ताकता रह गया

जमनर-भर मनह स-सा मौन छाया रहा उस तोडत हए मशीजी बडी ददट-भरी आवाज म बोल सन तो जलया होगा

तमन

कया कहन को जगपती कह गया पर उस लगा जक अभी मशीजी उस गाव म िली बातो को ही बडी बददी स कह

डालग उसन नाहक पछा

तभी मशीजी न उसकी नाक क पास मह ल जात हए कहा चनददा दसर क घर बठ रही हकोई मदसदन ह वही का पर

बचचा दीवार बन गया ह चाहत तो वो यही ह जक मर जाए तो रासता खल पर रामजी की मजी सना ह बचचा रहत

भी वह चनददा को बठान को तयार ह

जगपती की सास गल म अरककर रह गई बस आख मशीजी क चहर पर पथराई-सी जडी थी

मशीजी बोल अदालत स बचचा तमह जमल सकता ह अब काह का शरम-जलहाज

अपना कहकर जकस मह स माग बाबा हर तरि तो कजट स दबा ह तन स मन स पस स इजजत स जकसक बल पर

दजनया सजोन की कोजशश कर कहत-कहत वह अपन म खो गया

मशीजी वही बठ गए जब रात झक आई तो जगपती क साथ ही मशीजी भी उठ उसक कनदध पर हाथ रख व उस

गली तक लाए अपनी कोठरी आन पर पीठ सहलाकर उनदहोन उस छोड जदया वह गदटन झकाए गली क अधर म उनदही

खयालो म डबा ऐस चलता चला आया जस कछ हआ ही न हो पर कछ ऐसा बोझ था जो न सोचन दता था और न

समझन जब चाची की बठक क पास स गजरन लगा तो सहसा उसक कानो म भनक पडी - आ गए सतयानासी

कलबोरन

उसन जरा नजर उठाकर दखा तो गली की चाची-भौजाइया बठक म जमा थी और चनददा की चचाट जछडी थी पर वह

चपचाप जनकल गया

इतन जदनो बाद ताला खोला और बरोठ क अधर म कछ सझ न पडा तो एकाएक वह रात उसकी आखो क सामन

घम गई जब वह असपताल स चनददा क साथ लौरा था बवा चाची का वह जहर-बझ तीर आ गए राजा जनरबजसया

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असपताल स और आज सतयानासी कलबोरन और सवय उसका वह वाकय जो चनददा को छद गया था तमहार

कभी कछ न होगा और उस रात की जशश चनददा

चनददा का लडका हआ ह वह कछ और जनती आदमी का बचचा न जनती वह और कछ भी जनती ककड-पतथर

वह नारी न बनती बचची ही बनी रहती उस रात की जशश चनददा पर चनददा यह सब कया करन जा रही ह उसक जीत-

जी वह दसर क घर बठन जा रही ह जकतन बड पाप म धकल जदया चनददा को पर उस भी तो कछ सोचना चाजहए

आजखर कया पर मर जीत-जी तो यह सब अचछा नही वह इतनी घणा बदाटशत करक भी जीन को तयार ह या मझ

जलान को वह मझ नीच समझती ह कायरनही तो एक बार खबर तो लती बचचा हआ तो पता लगता पर नही वह

उसका कौन ह कोई भी नही औलाद ही तो वह सनह की धरी ह जो आदमी-औरत क पजहयो को साधकर तन क

दलदल स पार ल जाती ह नही तो हर औरत वशया ह और हर आदमी वासना का कीडा तो कया चनददा औरत नही

रही वह जरर औरत थी पर सवय मन उस नरक म डाल जदया वह बचचा मरा कोई नही पर चनददा तो मरी ह एक

बार उस ल आता जिर यहा रात क मोहक अधर म उसक िल-स अधरो को दखताजनदवटनददव सोई पलको को

जनहारतासासो की दध-सी अछती महक को समर लता

आज का अधरा घर म तल भी नही जो दीया जला ल और जिर जकसक जलए कौन जलाए चनददा क जलए पर उस तो

बच जदया था जसवा चनददा क कौन-सी समपजतत उसक पास थी जजसक आधार पर कोई कजट दता कजट न जमलता तो

यह सब कस चलता काम पड कहा स करत और तब शकर क व शबद उसक कानो म गज गए हरा होन स कया

उखर तो गया ह वह सवय भी तो एक उखरा हआ पड ह न िल का न िल का सब वयथट ही तो ह जो कछ

सोचा उस पर कभी जवशवास न कर पाया चनददा को चाहता रहा पर उसक जदल म चाहत न जगा पाया उस कही स

एक पसा मागन पर डारता रहा पर खद लता रहा और आज वह दसर क घर बठ रही ह उस छोडकर वह अकला ह

हर तरि बोझ ह जजसम उसकी नस-नस कचली जा रही ह रग-रग िर गई ह और वह जकसी तरह ररोल-ररोलकर

भीतर घर म पहचा

रानी अपन कल-दवता क मजनददर म पहची मा सनाया करती थी अपन सतीतव को जसधद करन क जलए उनदहोन घोर

तपसया की राजा दखत रह कल-दवता परसनदन हए और उनदहोन अपनी दवी शजि स दोनो बालको को ततकाल जनदम

जशशओ म बदल जदया रानी की छाजतयो म दध भर आया और उनम स धार िर पडी ज़ो जशशओ क मह म जगरन

लगी राजा को रानी क सतीतव का सबत जमल गया उनदहोन रानी क चरण पकड जलए और कहा जक तम दवी हो य

मर पतर ह और उस जदन स राजा न जिर स राज-काज सभाल जलया

पर उसी रात जगपती अपना सारा कारोबार तयाग अिीम और तल पीकर मर गया कयोजक चनददा क पास कोई दवी

शजि नही थी और जगपती राजा नही बचनजसह कमपाउणडर का कजटदार था

राजा न दो बात की मा सनाती थी एक तो रानी क नाम स उनदहोन बहत बडा मजनददर बनवाया और दसर राज क

नए जसकको पर बड राजकमार का नाम खदवाकर चाल जकया जजसस राज-भर म अपन उततराजधकारी की खबर हो

जाए

जगपती न मरत वि दो परच छोड एक चनददा क नाम दसरा कानन क नाम

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चनददा को उसन जलखा था चनददा मरी अजनदतम चाह यही ह जक तम बचच को लकर चली आनाअभी एक-दो जदन

मरी लाश की दगटजत होगी तब तक तम आ सकोगी चनददा आदमी को पाप नही पशचाताप मारता ह म बहत पहल मर

चका था बचच को लकर जरर चली आना

कानन को उसन जलखा था जकसी न मझ मारा नही हजकसी आदमी न नही म जानता ह जक मर जहर की पहचान

करन क जलए मरा सीना चीरा जाएगा उसम जहर ह मन अिीम नही रपए खाए ह उन रपयो म कजट का जहर था

उसी न मझ मारा ह मरी लाश तब तक न जलाई जाए जब तक चनददा बचच को लकर न आ जाए आग बचच स

जदलवाई जाए बस

मा जब कहानी समापत करती थी तो आसपास बठ बचच िल चढात थ

मरी कहानी भी खतम हो गई पर

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णिता

जञानरजन

उसन अपन जबसतर का अदाज लन क जलए मातर आध पल को जबजली जलाई जबसतर िशट पर जबछ हए थ उसकी

सतरी न सोत-सोत ही बड़बड़ाया आ गए और बचच की तरि करवर लकर चप हो गई लर जान पर उस एक बड़ी

डकार आती मालम पड़ी लजकन उसन डकार ली नही उस लगा जक ऐसा करन स उस चपपी म खलल पड़ जाएगा

जो चारो तरि भरी ह और कािी रात गए ऐसा होना उजचत नही ह

अभी घनशयामनगर क मकानो क लब जसलजसलो क जकनार-जकनार सवारी गाड़ी धड़धड़ाती हई गजरी थोड़ी दर तक

एक बहत साि भागता हआ शोर होता रहा सजदटयो म जब यह गाड़ी गजरती ह

तब लोग एक परहर की खासी नीद ल चक होत ह गजमटयो म साढ़ गयारह का कोई जवशि मतलब नही होता यो उसक

घर म सभी जदी सोया करत जदी खाया और जदी उठा करत ह

आज बहद गमी ह रासत-भर उस जजतन लोग जमल उन सबन उसस गमट और बचन कर दनवाल मौसम की ही बात

की कपड़ो की िजीहत हो गई बदहवासी जचपजचपाहर और थकान ह अभी जब सवारी गाड़ी शोर करती हई गजरी

तो उस ऐसा नही लगा जक नीद लगत-लगत रर गई हो जसा जाड़ो म परायः लगता ह बजक यो लगाजक अगर सोन

की चिा शर नही की गई तो सचमच दर हो जाएगी उसन जमहाई ली पख की हवा बहत गमट थी और वह पराना होन

की वजह स जचढ़ाती-सी आवाज भी कर रहा ह उसको लगा दसर कमरो म भी लोग शायद उसकी ही तरह जमहाइया

ल रह होग लजकन दसर कमरो क पख परान नही ह उसन सोचना बद करक अनदय कमरो की आहर लनी चाही उस

कोई बहत मासम-सी धवजन भी एक-डढ़ जमनर तक नही सनाई दी जो सनदनार म कािी तज होकर आ सकती हो

तभी जपता की चारपाई बाहर चरमराई वह जकसी आहर स उठ होग उनदहोन डारकर उस जबली का रोना चप कराया

जो शर हो गया था जबली थोड़ी दर चप रहकर जिर रोन लगी अब जपता न डड को गच पर कई बार परका और

उस जदशा की तरि खदड़नवाल ढग स दौड़ जजधर स रोना आ रहा था और हटट-हटट जचलाए

जब वह घम-जिरकर लौर रहा था तो जपता अपना जबसतर बाहर लगाकर बठ थ कनखी स उसन उनदह अपनी गजी स

पीठ का पसीना रगड़त हए दखा और बचता हआ वह घर क अदर दाजखल हो गया उस लगा जक जपता को गमी की

वजह स नीद नही आ रही ह लजकन उस इस जसथजत स रोि हआ सब लोग जपता स अदर पख क नीच सोन क जलए

कहा करत ह पर वह जरा भी नही सनत हम कया भोग कि

कछ दर पड़ रहन क बाद वह उठा और उसन उतसकतावश जखड़की स झाका सड़क की बतती छाती पर ह गजमटयो म

यह बहद अखर जाता ह जपता न कई बार करवर बदली जिर शायद चन की उममीद म पारी पर बठ पखा झलन लग

ह पख की डडी स पीठ का वह जहससा खजात ह जहा हाथ की उगजलया जदककत स पहचती ह आकाश और दरखतो

की तरि दखत ह ररलीि पान की जकसी बहत हकी उममीद म जशकायत उगलत ह - बड़ी भयकर गमी ह एक पतता

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भी नही डोलता उनका यह वाकय जो जनतात वयथट ह अभी-अभी बीत कषण म डब गया गमी-बरकरार ह और रहगी

कयोजक यह जाड़-बरसात का मौसम नही ह जपता उठकर घमन लगत ह एक या दो बार घर का चककर चौकीदारो की

तरह होओ करत हए लगात ह ताजक कोई सध-वध न लग सक लौरकर थक सवर म ह ईशवर कहत हए उगली स

माथ का पसीना कारकर जमीन पर चवान लगत ह

बड़ा गजब ह कमर की एक दीवार स जरककर बठ जान पर वह कािी तनाव म सोचन लगा अदर कमरो म पखो क

नीच घर क सभी दसर लोग आराम स पसर ह इस साल जो नया पडसरल खरीदा गया ह वह आगन म दादी अममा क

जलए लगता ह जबजली का मीरर तज चल रहा होगा पस खचट हो रह ह लजकन जपता की रात कि म ही ह लजकन

गजब यह नही ह गजब तो जपता की जजद ह वह दसर का आगरह-अनरोध मान तब न पता नही कयो जपता जीवन की

अजनवायट सजवधाओ स भी जचढ़त ह वह झलान लगा

चौक स आत वि चार आन की जगह तीन आन और तीन आन म तयार होन पर दो आन म चलनवाल ररकश क

जलए जपता घर-घर खड़ रहग धीर-धीर सबक जलए सजवधाए जरात रहग लजकन खद उसम नही या कम स कम

शाजमल होग पहल लोग उनकी कािी जचरौरी जकया करत थ अब लोग हार गए ह जानन लग ह जक जपता क आग

जकसी की चलगी नही

आज तक जकसी न जपता को वाश-बजसन म मह-हाथ धोत नही दखा बाहर जाकर बजगयावाल नल पर ही कला-

दातन करत ह दादा भाई न अपनी पहली तनखवाह म गसलखान म उतसाह क साथ एक खबसरत शावर लगवाया

लजकन जपता को अस स हम सब आगन म धोती को लगोर की तरह बाधकर तल चपड़ बदन पर बारी-बारी पानी

डालत दखत आ रह ह खल म सनान करग जनऊ स छाती और पीठ का मल कारग शर म दादा भाई न सोचा

जपता उसक दवारा शावर लगवान स बहत खश होग और उनदह नई चीज का उतसाह होगा जपता न जब कोई उतसाह

परकर नही जकया तो दादा भाई मन-ही-मन कािी जनराश हो गए एक-दो बार उनदहोन जहममत करक कहा भी आप

अदर आराम स कयो नही नहात तब भी जपता आसानी स उस राल गए

लड़को दवारा बाजार स लाई जबजसकर महग िल जपता कछ भी नही लत कभी लत भी ह तो बहत नाक-भौ

जसकोड़कर उसक बसवाद होन की बात पर शर म ही जोर द दत हए अपनी अमावर गजक और दाल-रोरी क

अलावा दसरो दवारा लाई चीजो की शरषठता स वह कभी परभाजवत नही होत वह अपना हाथ-पाव जानत ह अपना

अजटन और उसी म उनदह सतोि ह व पतर जो जपता क जलए कल का सब मगान और जदली एपोररयम स बजढ़या

धोजतया मगाकर उनदह पहनान का उतसाह रखत थ अब तजी स जपता-जवरोधी होत जा रह ह सखी बचच भी अब गाह-

बगाह मह खोलत ह और करोध उगल दत ह

लदद-लदद बाहर आम क दो सीकरो क लगभग एक साथ जगरन की आवाज आई वह जानता ह जपता आवाज स

सथान साधन की कोजशश करग ररोलत-ररोलत अधर म आम खोजग और खाली गमल म इकटठा करत जाएग

शायद ही रात म एक-दो आम उसक चक जात ह ढढ़न पर नही जमलत जजनको सबह पा जान क सबध म उनदह रात-

भर सदह होता रहगा

दीवार स कािी दर एक ही तरह जरक रहन स उसकी पीठ दखन लगी थी नीच रीढ़ क कमरवाल जहसस म रि की

चतना बहत कम हो गई उसन मरा बदली बाहर जपता न िारक खोलकर सड़क पर लड़त-जचजचयात कततो का

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हड़काया उस यहा बहत खीज हई कई बार कहा महल म हम लोगो का सममान ह चार भल लोग आया-जाया

करत ह आपको अदर सोना चाजहए ढग क कपड़ पहनन चाजहए और चौकीदारो की तरह रात को पहरा दना बहत ही

भददा लगता ह लजकन जपता की अड़ म कभी कोई झोल नही आता उरा-सीधा पता नही कहा जकस दजी स करता-

कमीज जसलवा लत ह रढ़ी जब सदरी क बरन ऊपर-नीच लगा सभा-सोसायरी म चल जाएग घर-भर को बरा

लगता ह

लोगो क बोलन पर जपता कह दत ह आप लोग जाइए न भाई कॉिी हाउस म बजठए झठी वजनरी क जलए बयरा को

जरप दीजजए रहमान क यहा डढ़ रपएवाला बाल कराइए मझ कयो घसीरत ह लोगो का बोलना चरकी भर म धरा

रह जाता ह जपता वस तो चप रहत ह लजकन जब बात-बहस म उनदह खीचा जाता ह तो कािी करारी और जहसातमक

बात कह जात ह उर उनदह घरनवाल हम भाई-बहन-अपराधी बन जात ह कमर स पहल एक भाई जखसकगा जिर

दसरा जिर बहन और जिर तीसरा चपचाप सब खीज-हार जखसकत रहग अदर जिर मा जाएगी और जपता जवजयी

जपता कमर म गीता पढ़न लगग या झोला लकर बाजार सौदा लन चल जाएग

होता हमशा यही ह सब मन म तय करत ह आग स जपता को नही घरग लजकन थोड़ा समय गजरन क बाद जिर

लोगो का मन जपता क जलए उमड़न लगता ह लोगा मौका ढढ़न लगत ह जपता को जकसी परकार अपन साथ

सजवधाओ म थोड़ा बहत शाजमल कर सक पर ऐसा नही हो पाता वह सोचन लगा भख क सामन खात समय

होनवाली वयथा सरीखी जकसी जसथजत म हम रहा करत ह यदयजप अपना खाना हम कभी सथजगत नही करत जिर भी

जपता की असपजि क कारण वयाकल और अधीर तो ह ही

जपता अदभत और जवजचतर ह वह सोचत हए उठा कमर म घमन या जसगरर पी सकन की सजवधा नही थी अनदयथा वह

वसा ही करता उसन सो जान की इचछा की और अपन को असहाय पाया शायद नीद नही आ सकगी यह खयाल

उस घबरानवाला लगा जपता अदभत और जवजचतर ह यह बात वह भल नही रहा था जपछल जाड़ो म वह अपन लोभ

को कचलकर बमजशकल एक कोर का बहतरीन कपड़ा जपता क जलए लाया पहल तो वह उस लन को तयार नही हए

लजकन मा क कािी घड़कन-िड़कन स राजी हो गए और उसी ख दाबाद क जकसी लपर दजी क यहा जसलान चल

जदए सधीर न कहा कपड़ा कीमती ह चजलए एक अचछी जगह म आपका नाप जदलवा द वह ठीक जसएगा मरा

पररजचत भी ह

इस बात पर जपता न कािी जहकारत उगली वह जचढ़ उठ म सबको जानता ह वही मयजनजसपल माकर क छोर-मोर

दजजटयो स काम करात और अपना लबल लगा लत ह साहब लोग मन कलकतत क हाल एडरसन क जसल कोर पहन

ह अपन जमान म जजनक यहा अचछ-खास यरोजपयन लोग कपड़ जसलवात थ य िशन-वशन जजसक आग आप

लोग चककर लगाया करत ह उसक आग पाव की धल ह मझ वयथट पसा नही खचट करना ह जकतना परसपर जवरोधी

तकट जकया जपता न ऐसा वह अपनी जजद को सवोपरर रखन क जलए जकया करत ह जिर सधीर न भी कपड़ा छोड़

जदया जहा चाजहए जसलवाइए या भाड़ म झोक आइए हम कया वह धीम-धीम बदबदाया

ऐ जपता बाहर अकबकाकर उठ पड़ शायद थोड़ी दर पहल जो आम बगीच म जगरा था उसकी आवाज जस अब

सनाई पड़ी हो

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वह जखड़की क बाहर दखन लगा जकजचत जरका-जरका-सा पीठ क पसीन स बजनयाइन जचपक गई थी बहद घरती हई

गमी मन उसका मथा जाता था बीवी पड़ी आराम स सो रही ह इस कछ पता नही शायद जपता की खार खाली थी

वह जगरा आम ररोलन क जलए बजगया म घस होग जपता जकतन जवजचतर ह लब समय स वह कवल दो ही गरथ पढ़त

आ रह ह - यतरवत जनयमवत - रामायण और गीता लब पतीस विो तक अखड - कवल रामायण और गीता उसक

पहल यवाकाल म जो-कछ जजतना-कछ पढ़ा हो उनदहोन उस कभी भयावह कभी सममानजनक और कभी झठ

लगता यह दख-सोचकर जक कोई वयजि कवल दो पसतको म जजदगी क पतीस विट कार सकता ह और कस कार

लता ह

तभी उसका बचचा कनमनाकर रोन लगा उसन तपाक स जखड़की छोड़ी और अपन जबसतर पर झठ-मठ सो गया ऐसा

न हो जक दवा बचच क रोन स उठ पड़ और उस सजदगधावसथा म दख बहत-स बकार परशनो दवारा हलकान करना शर

कर द दवा बचच क मह म सतन द पहल ही-सी बखबर हो गई वह खद जबसतर पर सोता मालम पड़कर भी जागता

रहा सतन चसन की चप-चप आवाज आती रही और थोड़ी दर बाद बद हो गई

उसन तय जकया जक वह दवा क बार म ही कछ सोच अथवा उसक शरीर को छता रह उसन दवा क कह पर हाथ

रख जदया लजकन उस तजनक भी उततजना अपन अदर महसस नही हई उसन थोड़ी दर उततजना की परतीकषा की अपनी

इस हरकत स ऊब होन लगी और मन भी लाजछत करन लगा बाहर जपता सो या जाग रह ह जसा भी हो वह बड़

जबरदसत ह इस समय बाहर रहकर बाहरी होत जा रह ह घर क अदरनी जहससो म लोग आराम स या कम आराम स

जकसी तरह सो तो गए होग वह जविादगरसत हआ और अनभव करन लगा हमार समाज म बड़-बढ़ लोग जस बह -

बजरयो क जनजी जीवन को सवचछद रहन दन क जलए अपना अजधकाश समय बाहर वयतीत जकया करत ह कया जपता

न भी वसा ही करना तो नही शर कर जदया ह उस जपता क बढ़पन का खयाल आन पर जसहरन हई जिर उसन दढ़ता

स सोचा जपता अभी बढ़ नही हए ह उनदह परजतकषण हमार साथ-साथ जीजवत रहना चाजहए भरसक परानी जीवन-

वयवसथा जकतनी कठोर थी उसक मजसतषक म एक जभचाव आ गया जविाद सवोपरर था

उस आखो म हका जल लगन लगा अगर कोई शीत-यदध न होता जपता और पतरो क बीच तो वह उनदह जबरन खीच

क नीच लाकर सला दता लजकन उस लगा जक उसका यवापन एक परजतषठा की जजद कही चराए बठा ह वह इस

परजतषठा क आग कभी बहत मजबर कभी कमजोर हो जाता ह और उस भगत भी रहा ह दरअसल उसका जी अकसर

जचला उठन को हआ ह जपता तम हमारा जनिध करत हो तम ढोगी हो अहकारी-बजर अहकारी लजकन वह कभी

जचलाया नही उसका जचला सकना ममजकन भी नही था वह अनभव करता था उसक सामन जजदगी पड़ी ह और

जपता पर इस तरह जचलान म उसका नकसान हो सकता ह उसको लगा जपता लगातार जवजयी ह कठोर ह तो कया

उनदहोन पतरो क सामन अपन को कभी पसारा नही

लगता ह दीवारो पर भी पसीना चहचहा आया ह खद को छरा भोक दन या दीवार पर जसर परकन या सोती बीवी क

साथ पाजशवक हो जान का ढोग सोचन क बाद भी गमी की बचनी नही करी उसन ईशवर को बदबदाना चाहा लजकन

वसा नही जकया कवल हक-हक हाथ क पजो स जसर क बालो को दबोचकर वह रह गया मौसम की गमी स कही

अजधक परबल जपता ह

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उसक सामन एक घरना मजबती स रग गई उसन घरना को मन म दोहराया वाय-सना म नौकरी करनवाला उसका

कपतान भाई बहन क यजनवजसटरी क खच क जलए दस विट तक पचास रपए महीना भजता रहा था एक बार अकसमात

कपतान भाई होली-अवकाश मनान घर आ गया जपता न उसक हाथ म उसक नाम की बारह सौ रपयोवाली एक

पासबक थमा दी सबको यह बड़ा आकजसमक लगा कपतान भाई को हरत हई और हकी खशी भी जक एकाएक

कािी रपए जमल गए लजकन इस बात स उस दख और पराजय का भान भी हआ उसन अपन को छोरा महसस

जकया दो विट तक बहन क जलए उसन जो थोड़ा-बहत जकया वह सब एक पल म घरकर नगणय हो गया जिर भी वह

अनभव कर रहा था कपतान भाई जयादा सोचत नही जखलाड़ी तबीयत क ह यान की तरह चरकी म धरती छोड़ दत

ह जकतन मसत ह कपतान भाई

उस लगा जपता एक बलद भीमकाय दरवाज की तरह खड़ ह जजसस रकरा-रकराकर हम सब जनहायत जपददी और

दयनीय होत जा रह ह

इस घरना को याद करक और जपता क परजत जखनदन हो जान पर भी उसन चाहा जक वह जखड़की स जपता को अदर

आकर सो रहन क जलए आगरहपवटक कह लजकन वह ऐसा नही कर सका वह असतोि और सहानभजत दोनो क बीच

असतजलत भरकता रहा

न लोकोशड स उठती इजनो की शजरग धवजन न काकरीर की गरडटक पर स होकर आती धमनगज की ओर इकक-दकक

लौरत इकको क घोड़ो की राप न झगड़त कततो की भोक-भाक बस कही उल एकगजत एकवजन और वीभतसता म

बोल रहा ह राजतर म शहर का आभास कछ पलो क जलए मर-सा गया ह उसको उममीद हई जक जकसी भी समय दर या

पास स कोई आवाज अकसमात उठ आएगी घड़ी रनरना जाएगी या जकसी दौड़ती हई टक का तज लबा हानट बज

उठगा और शहर का मरा हआ आभास पनः जीजवत हो जाएगा परा शहर कभी नही सोता या मरता बहत-स सोत

हए जान पड़नवाल भी सजकषपत धवजनयो क साथ या लगभग धवजनहीनता क बीच जग होत ह रात कािी बीत चकी ह

और इस समय यह सब (सोचना) जसवाय सोन क जकतना जनरथटक ह

शायद जपता औघ गए ह करवर बदलन स उतपनदन होनवाली खार की चरमराहर आम ररोलत समय सखी-अधसखी

पजततयो क कचलन की आवाज लाठी की परक मकान क िर क वि की खास-खसार कतत-जबजलयो को

हड़काना-कछ सन नही पड़ रहा ह इस जवचार स जक जपता सो गए होग उस परम शाजत जमली और लगा जक अब वह

भी सो सकगा

शीघर नीद क जलए उसन रकरकी बाधकर पख की तरि दखना शर जकया गमट हवा क बावजद जदन-भर की वयथट

थकान और सोच-जवचार स पसत हो जान की वजह स वह नीद म जचतत हो गया थोड़ समय उपरात वह एकाएक

उचककर उठ बठा उसन चारो तरि कछ दख पान क जलए कछ कषणो तक गड़ हए अधर का घरा हआ यह जक उस

शरीर म एकाएक बहत गमी-सी लगी थी और अजीब-सी सरसराहर हई शायद पसीन स भीगी राग पतनी क बदन स

छ गई थी मह म बरा-सा सवाद भर आया था जकसी बरी बीमारी क कारण अकसर ऐसा हो जाया करता ह उठकर

उसन दो-तीन कल जकए और ढर सारा ठडा पानी जपया इतना सब कछ वह अधनीद म ही करता रहा

आगन स पानी पीकर लौरत समय उसन इतमीनान क जलए जखड़की क बाहर दखा अब तक नीद जो थोड़ी-बहत थी

कािर हो गई जपता सो नही गए ह अथवा कछ सोकर पनः जग हए ह पता नही अभी ही उनदहोन ह राम त ही

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सहारा ह कहकर जमहाई ली ह ऐसा उनदहोन कोई दबकर नही जकया रात क जलहाज स कािी शोर उठात कहा ह

शायद उनदह इतमीनान ह जक घर म सभी लोग जनजशचत रप स सो रह ह

जपता न अपना जबसतरा गोल मोड़कर खार क एक जसर पर कर जलया ह और वही सराही स पयाल म पानी ल-लकर

अपनी खजरया की बाध तर कर रह ह सराही स खार तक और खार स सराही तक बार-बार आत-जात ह बहत बार

ऐसा करन पर खार का बाध तर हआ ह इसक बाद उनदहोन पानी जपया और पनः एक बड़ी आवाजदार जमहाई क साथ

जलपर हए जबसतर का जसरहाना बना जनखरी खजरया पर लर गए तड़का होन म पता नही जकतनी दर थी थोड़ी दर बाद

पखा जमीन पर जगराकर उनका दाया हाथ खजरया की पारी स झलन लगा

चारो तरि धजमल चादनी िलन लगी ह सबह जो दर ह क भरम म पजशचम स पवट की ओर कौव काव-काव करत उड़

वह जखड़की स हरकर जबसतर पर आया अदर हवा वसी ही ल की तरह गमट ह दसर कमर सतबध ह पता नही बाहर

भी उमस और बचनी होगी वह जागत हए सोचन लगा अब जपता जनजशचत रप स सो गए ह शायद

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पररनदद(३० माचट २०१५)

जनमटल वमाट

अधर गजलयार म चलत हए लजतका जठठक गयी दीवार का सहारा लकर उसन लमप की बतती बढ़ा दी सीजढ़यो पर

उसकी छाया एक बडौल करी-िरी आकजत खीचन लगी सात नमबर कमर म लड़जकयो की बातचीत और हसी-

ठहाको का सवर अभी तक आ रहा था लजतका न दरवाजा खरखराया शोर अचानक बद हो गया ldquoकौन ह

लजतका चप खड़ी रही कमर म कछ दर तक घसर-पसर होती रही जिर दरवाज की जचरखनी क खलन का सवर

आया लजतका कमर की दहरी स कछ आग बढ़ी लमप की झपकती लौ म लड़जकयो क चहर जसनमा क परद पर ठहर

हए कलोजअप की भाजत उभरन लग ldquoकमर म अधरा कयो कर रखा ह लजतका क सवर म हकी-सी जझड़की का

आभास था ldquoलमप म तल ही खतम हो गया मडम यह सधा का कमरा था इसजलए उस ही उततर दना पड़ा होसरल

म शायद वह सबस अजधक लोकजपरय थी कयोजक सदा छटटी क समय या रात को जडनर क बाद आस-पास क कमरो म

रहनवाली लड़जकयो का जमघर उसी क कमर म लग जाता था दर तक गप-शप हसी-मजाक चलता रहता ldquoतल क

जलए करीमददीन स कयो नही कहा ldquoजकतनी बार कहा मडम लजकन उस याद रह तब तो

कमर म हसी की िहार एक कोन स दसर कोन तक िल गयी लजतका क कमर म आन स अनशासन की जो घरन

जघर आयी थी वह अचानक बह गयी करीमददीन होसरल का नौकर था उसक आलस और काम म रालमरोल करन

क जकसस होसरल की लड़जकयो म पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल आत थ लजतका को हठात कछ समरण हो आया अधर म

लमप घमात हए चारो ओर जनगाह दौड़ाई कमर म चारो ओर घरा बनाकर व बठी थी- पास-पास एक-दसर स सरकर

सबक चहर पररजचत थ जकनदत लमप क पील मजदधम परकाश म मानो कछ बदल गया था या जस वह उनदह पहली बार

दख रही थी ldquoजली अब तक तम इस बलाक म कया कर रही हो

जली जखड़की क पास पलग क जसरहान बठी थी उसन चपचाप आख नीची कर ली लमप का परकाश चारो ओर स

जसमरकर अब कवल उसक चहर पर जगर रहा था ldquoनाइर रजजसरर पर दसतखत कर जदय ldquoहा मडम ldquoजिर

लजतका का सवर कड़ा हो आया जली सकचाकर जखड़की स बाहर दखन लगी जब स लजतका इस सकल म आयी

ह उसन अनभव जकया ह जक होसरल क इस जनयम का पालन डार-िरकार क बावजद नही होता ldquoमडम कल स

छरटटया शर हो जायगी इसजलए आज रात हम सबन जमलकर और सधा परी बात न कहकर हमनदती की ओर

दखत हए मसकरान लगी ldquoहमनदती क गान का परोगराम ह आप भी कछ दर बजठए न

लजतका को उलझन मालम हई इस समय यहा आकर उसन इनक मज को जकरजकरा कर जदया इस छोर-स-जहल-

सरशन पर रहत उस खासा असाट हो गया लजकन कब समय पतझड़ और गजमटयो का घरा पार कर सदी की छरटटयो की

गोद म जसमर जाता ह उस कभी याद नही रहता चोरो की तरह चपचाप वह दहरी स बाहर को गयी उसक चहर का

तनाव ढ़ीला पड़ गया वह मसकरान लगी ldquoमर सग सनो-िॉल दखन कोई नही ठहरगा ldquoमडम छरटटयो म कया आप

घर नही जा रही ह सब लड़जकयो की आख उस पर जम गयी ldquoअभी कछ पकका नही ह-आई लव द सनो-िॉल

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लजतका को लगा जक यही बात उसन जपछल साल भी कही थी और शायद जपछल स जपछल साल भी उस लगा मानो

लड़जकया उस सनददह की दजि स दख रही ह मानो उनदहोन उसकी बात पर जवशवास नही जकया उसका जसर चकरान

लगा मानो बादलो का सयाह झरमर जकसी अनजान कोन स उठकर उस अपन म डबा लगा वह थोड़ा-सा हसी जिर

धीर-स उसन सर को झरक जदया ldquoजली तमस कछ काम ह अपन बलॉक म जान स पहल मझ जमल लना- वल गड

नाइर लजतका न अपन पीछ दरवाज़ा बद कर जदया

ldquoगड नाइर मडम गड नाइर गड नाइर गजलयार की सीजढ़या न उतरकर लजतका रजलग क सहार खड़ी हो गयी लप

की बतती को नीच घमाकर कोन म रख जदया बाहर धनदध की नीली तह बहत घनी हो चली थी लॉन पर लग हए चीड़

क पततो की सरसराहर हवा क झोको क सग कभी तज कभी धीमी होकर भीतर बह आती थी हवा म सदी का

हका-सा आभास पाकर लजतका क जदमाग म कल स शर होनवाली छरटटयो का धयान भरक आया उसन आख मद

ली उस लगा जक जस उसकी राग बास की लकजड़यो की तरह उसक शरीर स बधी ह जजसकी गाठ धीर-धीर खलती

जा रही ह जसर की चकराहर अभी जमरी नही थी मगर अब जस वह भीतर न होकर बाहर िली हई धनदध का जहससा

बन गयी थी

सीजढ़यो पर बातचीत का सवर सनकर लजतका जस सोत स जगी शॉल को कनदधो पर समरा और लमप उठा जलया डॉ

मकजी जम हयबरट क सग एक अगरजी धन गनगनात हए ऊपर आ रह थ सीजढ़यो पर अधरा था और हयबरट को बार-

बार अपनी छड़ी स रासता ररोलना पड़ता था लजतका न दो-चार सीजढ़या उतरकर लमप को नीच झका जदया ldquoगड

ईवजनग डाकरर गड ईवजनग जम हयबरट ldquoथक य जमस लजतका - हयबरट क सवर म कतजञता का भाव था सीजढ़या

चढ़न स उनकी सास तज हो रही थी और वह दीवार स लग हए हाि रह थ लमप की रोशनी म उनक चहर का

पीलापन कछ ताब क रग जसा हो गया था

ldquoयहा अकली कया कर रही हो जमस लजतका - डाकरर न होठो क भीतर स सीरी बजायी ldquoचजकग करक लौर रही

थी आज इस वि ऊपर कस आना हआ जमसरर हयबरट हयबरट न मसकराकर अपनी छड़ी डाकरर क कनदधो स छला

दी - ldquoइनस पछो यही मझ जबदटसती घसीर लाय ह

ldquoजमस लजतका हम आपको जनमनदतरण दन आ रह थ आज रात मर कमर म एक छोरा-सा-कनदसरट होगा जजसम जम

हयबरट शोपा और चाइकोवसकी क कमपोजीशन बजायग और जिर करीम कॉिी पी जायगी और उसक बाद अगर समय

रहा तो जपछल साल हमन जो गनाह जकय ह उनदह हम सब जमलकर कनदर स करग डाकरर मकजी क चहर पर भारी

मसकान खल गयी ldquoडाकरर मझ माि कर मरी तबीयत कछ ठीक नही ह

ldquoचजलए यह ठीक रहा जिर तो आप वस भी मर पास आती डाकरर न धीर-स लजतका क कधो को पकड़कर अपन

कमर की तरि मोड़ जदया डाकरर मकजी का कमरा बलॉक क दसर जसर पर छत स जड़ा हआ था वह आध बमी थ

जजसक जचहन उनकी थोड़ी दबी हई नाक और छोरी-छोरी चचल आखो स सपि थ बमाट पर जापाजनयो का आकरमण

होन क बाद वह इस छोर स पहाड़ी शहर म आ बस थ पराइवर परजकरस क अलावा वह कानदवनदर सकल म हाईजीन-

जिजजयालोजी भी पढ़ाया करत थ और इसजलए उनको सकल क होसरल म ही एक कमरा रहन क जलए द जदया गया

था कछ लोगो का कहना था जक बमाट स आत हए रासत म उनकी पतनी की मतय हो गयी लजकन इस समबनदध म

जनजशचत रप स कछ नही कहा जा सकता कयोजक डाकरर सवय कभी अपनी पतनी की चचाट नही करत

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बातो क दौरान डाकरर अकसर कहा करत ह - ldquoमरन स पहल म एक दिा बमाट जरर जाऊ गा - और तब एक कषण क

जलए उनकी आखो म एक नमी-सी छा जाती लजतका चाहन पर भी उनस कछ पछ नही पाती उस लगता जक डाकरर

नही चाहत जक कोई अतीत क समबनदध म उनस कछ भी पछ या सहानभजत जदखलाय दसर ही कषण अपनी गमभीरता

को दर ठलत हए वह हस पड़त - एक सखी बझी हई हसी

होम-जसकनस ही एक ऐसी बीमारी ह जजसका इलाज जकसी डाकरर क पास नही ह छत पर मज-कजसटया डाल दी गई

और भीतर कमर म परकोलरर म कॉिी का पानी चढ़ा जदया गया ldquoसना ह अगल दो-तीन विो म यहा पर जबजली का

इनदतजाम हो जायगा -डाकरर न जसपरर लमप जलात हए कहा ldquoयह बात तो जपछल दस सालो स सनन म आ रही ह

अगरजो न भी कोई लमबी-चौड़ी सकीम बनायी थी पता नही उसका कया हआ - हयबरट न कहा वह आराम कसी पर

लरा हआ बाहर लॉन की ओर दख रहा था

लजतका कमर स दो मोमबजततया ल आयी मज क दोनो जसरो पर जरकाकर उनदह जला जदया गया छत का अधरा

मोमबतती की िीकी रोशनी क इदट-जगदट जसमरन लगा एक घनी नीरवता चारो ओर जघरन लगी हवा म चीड़ क वकषो

की साय-साय दर-दर तक िली पहाजड़यो और घाजरयो म सीजरयो की गज-सी छोड़ती जा रही थी ldquoइस बार शायद

बिट जदी जगरगी अभी स हवा म एक सदट खशकी-सी महसस होन लगी ह - डाकरर का जसगार अधर म लाल

जबनददी-सा चमक रहा था ldquoपता नही जमस वड को सपशल सजवटस का गोरखधनदधा कयो पसनदद आता ह छरटटयो म घर

जान स पहल कया यह जररी ह जक लड़जकया िादर एमणड का समटन सन - हयबरट न कहा

डॉकरर को िादर एमणड एक आख नही सहात थ लजतका कसी पर आग झककर पयालो म कॉिी उडलन लगी हर

साल सकल बनदद होन क जदन यही दो परोगराम होत ह - चपल म सपशल सजवटस और उसक बाद जदन म जपकजनक

लजतका को पहला साल याद आया जब डाकरर क सग जपकजनक क बाद वह कलब गयी थी डाकरर बार म बठ थ

बार रम कमाऊ रजीमणर क अिसरो स भरा हआ था कछ दर तक जबजलयडट का खल दखन क बाद जब वह वाजपस

बार की ओर आ रह थ तब उसन दायी ओर कलब की लाइबररी म दखा- मगर उसी समय डाकरर मकजी पीछ स आ

गय थ जमस लजतका यह मजर जगरीश नगी ह जबजलयडट रम स आत हए हसी-ठहाको क बीच वह नाम दब-सा गया

था वह जकसी जकताब क बीच म उगली रखकर लायबररी की जखड़की स बाहर दख रहा था ldquoहलो डाकरर - वह

पीछ मड़ा तब उस कषण

उस कषण न जान कयो लजतका का हाथ काप गया और कॉिी की कछ गमट बद उसकी साड़ी पर छलक आयी अधर म

जकसी न नही दखा जक लजतका क चहर पर एक उनीदा रीतापन जघर आया ह हवा क झोक स मोमबजततयो की लौ

िड़कन लगी छत स भी ऊ ची काठगोदाम जानवाली सड़क पर यपी रोडवज की आजखरी बस डाक लकर जा रही

थी बस की हड लाइरस म आस-पास िली हई झाजड़यो की छायाए घर की दीवार पर सरकती हई गायब होन लगी

ldquoजमस लजतका आप इस साल भी छरटटयो म यही रहगीldquoडाकरर न पछा डाकरर का सवाल हवा म रगा रहा उसी

कषण जपयानो पर शोपा का नोकरनट हयबरट की उगजलयो क नीच स जिसलता हआ धीर-धीर छत क अधर म घलन

लगा-मानो जल पर कोमल सवजपनल उजमटया भवरो का जझलजमलाता जाल बनती हई दर-दर जकनारो तक िलती जा

रही हो लजतका को लगा जक जस कही बहत दर बिट की चोजरयो स पररनददो क झणड नीच अनजान दशो की ओर उड़

जा रह ह इन जदनो अकसर उसन अपन कमर की जखड़की स उनदह दखा ह-धाग म बध चमकील लटटओ की तरह व

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एक लमबी रढ़ी-मढ़ी कतार म उड़ जात ह पहाड़ो की सनसान नीरवता स पर उन जवजचतर शहरो की ओर जहा शायद

वह कभी नही जायगी

लजतका आमट चयर पर ऊ घन लगी डाकरर मकजी का जसगार अधर म चपचाप जल रहा था डाकरर को आशचयट हआ

जक लजतका न जान कया सोच रही ह और लजतका सोच रही थी-कया वह बढ़ी होती जा रही ह उसक सामन सकल की

जपरजसपल जमस वड का चहरा घम गया-पोपला मह आखो क नीच झलती हई मास की थजलया ज़रा-ज़रा सी बात पर

जचढ़ जाना ककट श आवाज म चीखना-सब उस lsquoओडमडrsquo कहकर पकारत ह कछ विो बाद वह भी ह -ब-ह वसी ही

बन जायगीलजतका क समच शरीर म झरझरी-सी दौड़ गयी मानो अनजान म उसन जकसी गलीज वसत को छ जलया

हो उस याद आया कछ महीन पहल अचानक उस हयबरट का परमपतर जमला था - भावक याचना स भरा हआ पतर

जजसम उसन न जान कया कछ जलखा था जो कभी उसकी समझ म नही आया उस हयबरट की इस बचकाना हरकत पर

हसी आयी थी जकनदत भीतर-ही-भीतर परसनदनता भी हई थी उसकी उमर अभी बीती नही ह अब भी वह दसरो को

अपनी ओर आकजिटत कर सकती ह हयबरट का पतर पढ़कर उस करोध नही आया आयी थी कवल ममता वह चाहती

तो उसकी गलतिहमी को दर करन म दर न लगती जकनदत कोई शजि उस रोक रहती ह उसक कारण अपन पर

जवशवास रहता ह अपन सख का भरम मानो हयबरट की गलतिहमी स जड़ा ह

हयबरट ही कयो वह कया जकसी को चाह सकगी उस अनभजत क सग जो अब नही रही जो छाया-सी उस पर मडराती

रहती ह न सवय जमरती ह न उस मजि द पाती ह उस लगा जस बादलो का झरमर जिर उसक मजसतषक पर धीर-धीर

छान लगा ह उसकी राग जिर जनजीव जशजथल-सी हो गयी ह वह झरक स उठ खड़ी हई- ldquoडाकरर माि करना मझ

बहत थकान-सी लग रही हजबना वाकय परा जकय ही वह चली गयी कछ दर तक ररस पर जनसतबधता छायी रही

मोमबजततया बझन लगी थी डाकरर मकजी न जसगार का नया कश जलया - ldquoसब लड़जकया एक-जसी होती ह-बवकि

और सरीमरल हयबरट की उगजलयो का दबाव जपयानो पर ढीला पड़ता गया अजनदतम सरो की जझझकी-सी गज कछ

कषणो तक हवा म जतरती रही

ldquoडाकरर आपको मालम ह जमस लजतका का वयवहार जपछल कछ अस स अजीब-सा लगता ह हयबरट क सवर म

लापरवाही का भाव था वह नही चाहता था जक डाकरर को लजतका क परजत उसकी भावनाओ का आभास-मातर भी

जमल सक जजस कोमल अनभजत को वह इतन समय स सजोता आया ह डाकरर उस हसी क एक ठहाक म

उपहासासपद बना दगा ldquoकया तम जनयजत म जवशवास करत हो हयबरट डाकरर न कहा हयबरट दम रोक परतीकषा करता

रहा वह जानता था जक कोई भी बात कहन स पहल डाकरर को जिलासोिाइज करन की आदत थी डाकरर ररस क

जगल स सरकर खड़ा हो गया िीकी-सी चादनी म चीड़ क पड़ो की छायाए लॉन पर जगर रही थी कभी-कभी कोई

जगन अधर म हरा परकाश जछड़कता हवा म गायब हो जाता था

ldquoम कभी-कभी सोचता ह इनदसान जजनददा जकसजलए रहता ह-कया उस कोई और बहतर काम करन को नही जमला

हजारो मील अपन म क स दर म यहा पड़ा ह - यहा कौन मझ जानता ह यही शायद मर भी जाऊ गा हयबरट कया तमन

कभी महसस जकया ह जक एक अजनबी की हजसयत स परायी जमीन पर मर जाना काफ़ी खौिनाक बात ह

हयबरट जवजसमत-सा डाकरर को दखन लगा उसन पहली बार डॉकरर मकजी क इस पहल को दखा था अपन समबनदध

म वह अकसर चप रहत थ ldquoकोई पीछ नही ह यह बात मझम एक अजीब जकसम की बजिकरी पदा कर दती ह लजकन

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कछ लोगो की मौत अनदत तक पहली बनी रहती ह शायद व जज़नददगी स बहत उममीद लगात थ उस टजजक भी नही

कहा जा सकता कयोजक आजखरी दम तक उनदह मरन का एहसास नही होता ldquoडाकरर आप जकसका जजकर कर रह

ह हयबरट न परशान होकर पछा डाकरर कछ दर तक चपचाप जसगार पीता रहा जिर मड़कर वह मोमबजततयो की

बझती हई लौ को दखन लगा

ldquoतमह मालम ह जकसी समय लजतका जबला नागा कलब जाया करती थी जगरीश नगी स उसका पररचय वही हआ था

कशमीर जान स एक रात पहल उसन मझ सबकछ बता जदया था म अब तक लजतका स उस मलाकात क बार म कछ

नही कह सका ह जकनदत उस रात कौन जानता था जक वह वापस नही लौरगा और अबअब कया िकट पड़ता ह लर

द डड डाई डाकरर की सखी सदट हसी म खोखली-सी शनदयता भरी थी

ldquoकौन जगरीश नगी ldquoकमाऊ रजीमर म कपरन था ldquoडाकरर कया लजतका हयबरट स आग कछ नही कहा गया

उस याद आया वह पतर जो उसन लजतका को भजा था जकतना अथटहीन और उपहासासपद जस उसका एक-एक

शबद उसक जदल को कचोर रहा हो उसन धीर-स जपयानो पर जसर जरका जलया लजतका न उस कयो नही बताया कया

वह इसक योगय भी नही था ldquoलजतका वह तो बचची ह पागल मरनवाल क सग खद थोड़ ही मरा जाता हldquo

कछ दर चप रहकर डाकरर न अपन परशन को जिर दहराया ldquoलजकन हयबरट कया तम जनयजत पर जवशवास करत हो हवा

क हक झोक स मोमबजततया एक बार परजजवजलत होकर बझ गयी ररस पर हयबरट और डाकरर अधर म एक-दसर का

चहरा नही दख पा रह थ जिर भी व एक-दसर की ओर दख रह थ कानदवर सकल स कछ दर मदानो म बहत पहाड़ी

नाल का सवर आ रहा था अब बहत दर बाद कमाऊ रजीमर सणरर का जबगल सनायी जदया तो हयबरट हड़बड़ाकर

खड़ा हो गया ldquoअचछा चलता ह डाकरर गड नाइर

ldquoगड नाइर हयबरटमझ माि करना म जसगार खतम करक उठगा सबह बदली छायी थी लजतका क जखड़की

खोलत ही धनदध का गबबारा-सा भीतर घस आया जस रात-भर दीवार क सहार सरदी म जठठरता हआ वह भीतर आन

की परतीकषा कर रहा हो सकल स ऊपर चपल जानवाली सड़क बादलो म जछप गयी थी कवल चपल का lsquoकरासrsquo धनदध

क परद पर एक-दसर को कारती हई पजसल की रखाओ-सा जदखायी द जाता था

लजतका न जखड़की स आख हराई तो दखा जक करीमददीन चाय की ट जलय खड़ा ह करीमददीन जमजलटी म अदटली रह

चका था इसजलए ट मज पर रखकर lsquoअरनदशनrsquo की मरा म खड़ा हो गया लजतका झरक स उठ बठी सबह स आलस

करक जकतनी बार जागकर वह सो चकी ह अपनी जखजसयाहर जमरान क जलए लजतका न कहा - ldquoबड़ी सदी ह आज

जबसतर छोड़न को जी नही चाहता

ldquoअजी मम साहब अभी कया सरदी आयी ह- बड़ जदनो म दखना कस दात करकरात ह - और करीमददीन अपन

हाथो को बगलो म डाल हए इस तरह जसकड़ गया जस उन जदनो की कपना मातर स उस जाड़ा लगना शर हो गया

हो गज जसर पर दोनो तरि क उसक बाल जखजाब लगान स कतथई रग क भर हो गय थ बात चाह जकसी जविय पर

हो रही हो वह हमशा खीचतान कर उस ऐस कषतर म घसीर लाता था जहा वह बजझझक अपन जवचारो को परकर कर

सक

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ldquoएक दिा तो यहा लगातार इतनी बिट जगरी थी जक भवाली स लकर डाक बगल तक सारी सड़क जाम हो गई इतनी

बिट थी मम साहब जक पड़ो की रहजनया तक जसकड़कर तनो स जलपर गयी थी - जबलकल ऐस और करीमददीन नीच

झककर मगाट-सा बन गया ldquoकब की बात ह लजतका न पछा

ldquoअब यह तो जोड़-जहसाब करक ही पता चलगा मम साहब लजकन इतना याद ह जक उस वि अगरज बहादर यही थ

कणरोनमणर की इमारत पर कौमी झणडा नही लगा था बड़ जबर थ य अगरज दो घणरो म ही सारी सड़क साि करवा

दी उन जदनो एक सीरी बजात ही पचास घोड़वाल जमा हो जात थ अब तो सार शड खाली पड़ ह व लोग अपनी

जखदमत भी करवाना जानत थ अब तो सब उजाड़ हो गया ह करीमददीन उदास भाव स बाहर दखन लगा आज यह

पहली बार नही ह जब लजतका करीमददीन स उन जदनो की बात सन रही ह जब अगरज बहादर न इस सथान को सवगट

बना रखा था ldquoआप छरटटयो म इस साल भी यही रहगी मम साहब ldquoजदखता तो कछ ऐसा ही ह करीमददीन तमह जिर

तग होना पड़गा ldquoकया कहती ह मम साहब आपक रहन स हमारा भी मन लग जाता ह वरना छरटटयो म तो यहा

कतत लोरत ह

ldquoतम जरा जमसतरी स कह दना जक इस कमर की छत की मरममत कर जाय जपछल साल बिट का पानी दरारो स रपकता

रहता थाldquo लजतका को याद आया जक जपछली सजदटयो म जब कभी बिट जगरती थी तो उस पानी स बचन क जलए

रात-भर कमर क कोन म जसमरकर सोना पड़ता था

करीमददीन चाय की ट उठाता हआ बोला - ldquoहयबरट साहब तो शायद कल ही चल जाय कल रात उनकी तबीयत जिर

खराब हो गयी आधी रात क वि मझ जगान आय थ कहत थ छाती म तकलीि ह उनदह यह मौसम रास नही

आता कह रह थ लड़जकयो की बस म वह भी कल ही चल जायग करीमददीन दरवाजा बनदद करक चला गया

लजतका की इचछा हई जक वह हयबरट क कमर म जाकर उनकी तबीयत की पछताछ कर आय जकनदत जिर न जान कयो

सलीपर परो म रग रह और वह जखड़की क बाहर बादलो को उड़ता हआ दखती रही हयबरट का चहरा जब उस दखकर

सहमा-सा दयनीय हो जाता ह तब लगता ह जक वह अपनी मक-जनरीह याचना म उस कोस रहा ह - न वह उसकी

गलतिहमी को दर करन का परयतन कर पाती ह न उस अपनी जववशता की सिाई दन का साहस होता ह उस लगता

ह जक इस जाल स बाहर जनकलन क जलए वह धाग क जजस जसर को पकड़ती ह वह खद एक गाठ बनकर रह जाता ह

बाहर बदाबादी होन लगी थी कमर की जरन की छत खर-खर बोलन लगी लजतका पलग स उठ खड़ी हई जबसतर को

तहाकर जबछाया जिर परो म सलीपरो को घसीरत हए वह बड़ आईन तक आयी और उसक सामन सरल पर बठकर

बालो को खोलन लगी जकत कछ दर तक कघी बालो म ही उलझी रही और वह गमसम हो शीश म अपना चहरा

ताकती रही करीमददीन को यह कहना याद ही नही रहा जक धीर-धीर आग जलान की लकजड़या जमा कर ल इन जदनो

ससत दामो पर सखी लकजड़या जमल जाती ह जपछल साल तो कमरा धए स भर जाता था जजसक कारण क पक पात

जाड़ म भी उस जखड़की खोलकर ही सोना पड़ता था

आईन म लजतका न अपना चहरा दखा - वह मसकरा रही थी जपछल साल अपन कमर की सीलन और ठणड स बचन

क जलए कभी-कभी वह जमस वड क खाली कमर म चोरी-चपक सोन चली जाया करती थी जमस वड का कमरा जबना

आग क भी गमट रहता था उनक गदील सोि पर लरत ही आख लग जाती थी कमरा छरटटयो म खाली पड़ा रहता ह

जकनदत जमस वड स इतना नही होता जक दो महीनो क जलए उसक हवाल कर जाय हर साल कमर म ताला ठोक जाती

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ह वह तो जपछल साल गसलखान म भीतर की साकल दना भल गयी थी जजस लजतका चोर दरवाज क रप म

इसतमाल करती रही थी

पहल साल अकल म उस बड़ा डर-सा लगता था छरटटयो म सार सकल और होसरल क कमर साय-साय करन लगत

ह डर क मार उस जब कभी नीद नही आती थी तब वह करीमददीन को रात म दर तक बातो म उलझाय रखती बातो

म जब खोयी-सी वह सो जाती तब करीमददीन चपचाप लमप बझाकर चला जाता कभी-कभी बीमारी का बहाना

करक वह डाकरर को बलवा भजती थी और बाद म बहत जजद करक दसर कमर म उनका जबसतर लगवा दती

लजतका क कध स बालो का गचछा जनकाला और उस बाहर ि कन क जलए वह जखड़की क पास आ खड़ी हई बाहर

छत की ढलान स बाररश क जल की मोरी-सी धार बराबर लॉन पर जगर रही थी मघाचछनदन आकाश म सरकत हए

बादलो क पीछ पहाजड़यो क झणड कभी उभर आत थ कभी जछप जात थ मानो चलती हई टन स कोई उनदह दख रहा

हो लजतका न जखड़की स जसर बाहर जनकाल जलया - हवा क झोक स उसकी आख जझप गयी उस जजतन काम याद

आत ह उतना ही आलस घना होता जाता ह बस की सीर ररजवट करवान क जलए चपरासी को रपय दन ह जो सामान

होसरल की लड़जकया पीछ छोड़ जा रही ह उनदह गोदाम म रखवाना होगा कभी-कभी तो छोरी कलास की लड़जकयो

क साथ पजकग करवान क काम म भी उस हाथ बराना पड़ता था

वह इन कामो स ऊबती नही धीर-धीर सब जनपरत जात ह कोई गलती इधर-उधर रह जाती ह सो बाद म सधर जाती

ह हर काम म जकचजकच रहती ह परशानी और जदककत होती ह जकनदत दर-सबर इसस छरकारा जमल ही जाता ह

जकनदत जब लड़जकयो की आजखरी बस चली जाती ह तब मन उचार-सा हो जाता ह खाली कॉरीडोर म घमती हई व

कभी इस कमर म जाती ह और कभी उसम वह नही जान पाती जक अपन स कया कर जदल कही भी नही जरक पाता

हमशा भरका-भरका-सा रहता ह

इस सबक बावजद जब कोई सहज भाव म पछ बठता ह ldquoजमस लजतका छरटटयो म आप घर नही जा रही तब वह

कया कह जडग-डाग-जडग सपशल सजवटस क जलए सकल चपल क घर बजन लग थ लजतका न अपना जसर जखड़की

क भीतर कर जलया उसन झरपर साड़ी उतारी और परीकोर म ही कनदध पर तौजलया डाल गसलखान म घस गयी

लफर-राइर लफरलफर

कणरोनमणर जानवाली पककी सड़क पर चार-चार की पजि म कमाऊ रजीमर क जसपाजहयो की एक रकड़ी माचट कर

रही थी िौजी बरो की भारी खरदरी आवाज सकल चपल की दीवारो स रकराकर भीतर lsquoपरयर हालrsquo म गज रही थी

ldquoबलसड आर द मीक िादर एमणड एक-एक शबद चबात हए खखारत सवर म lsquoसमटन आि द माउणरrsquo पढ़ रह थ

ईसा मसीह की मजतट क नीच lsquoकणडलजबरयमrsquo क दोनो ओर मोमबजततया जल रही थी जजनका परकाश आग बचो पर

बठी हई लड़जकयो पर पड़ रहा था जपछली लाइनो की बच अधर म डबी हई थी जहा लड़जकया पराथटना की मरा म

बठी हई जसर झकाय एक-दसर स घसर-पसर कर रही थी जमस वड सकल सीजन क सिलतापवटक समापत हो जान पर

जवदयाजथटयो और सराि सदसयो को बधाई का भािण द चकी थी- और अब िादर क पीछ बठी हई अपन म ही कछ

बड़बड़ा रही थी मानो धीर-धीर िादर को lsquoपरौमरrsquo कर रही हो

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lsquoआमीनrsquo िादर एमणड न बाइबल मज पर रख दी और lsquoपरयर बकrsquo उठा ली हॉल की खामोशी कषण भर क जलए रर

गयी लड़जकयो न खड़ होत हए जान-बझकर बचो को पीछ धकला - बच िशट पर रगड़ खाकर सीरी बजाती हई पीछ

जखसक गयी - हॉल क कोन स हसी िर पड़ी जमस वड का चहरा तन गया माथ पर भकजरया चढ़ गयी जिर

अचानक जनसतबधता छा गयी हॉल क उस घर हए घधलक म िादर का तीखा िरा हआ सवर सनायी दन लगा -

ldquoजीजस सड आई एम द लाइर ऑि द वडट ही दर िालोएथ मी शल नॉर वाक इन डाकट नस बर शल हव द लाइर

ऑि लाइि

डाकरर मखजी न ऊब और उकताहर स भरी जमहाई ली ldquoकब यह जकससा खतम होगा उसन इतन ऊ च सवर म

लजतका स पछा जक वह सकचाकर दसरी ओर दखन लगी सपशल सजवटस क समय डाकरर मकजी क होठो पर

वयगयातमक मसकान खलती रहती और वह धीर-धीर अपनी मछो को खीचता रहता िादर एमणड की वश-भिा

दखकर लजतका क जदल म गदगदी-सी दौड़ गयी जब वह छोरी थी तो अकसर यह बात साचकर जवजसमत हआ करती

थी जक कया पादरी लोग सिद चोग क नीच कछ नही पहनत अगर धोख स वह ऊपर उठ जाय तो

लफरलफरलफर माचट करत हए िौजी बर चपल स दर होत जा रह थ-कवल उनकी गज हवा म शि रह गयी

थी

lsquoजहम नमबर ११७rsquoिादर न पराथटना-पसतक खोलत हए कहा हॉल म परतयक लड़की न डसक पर रखी हई जहम-बक

खोल ली पनदनो क उलरन की खड़खड़ाहर जिसलती हई एक जसर स दसर जसर तक िल गयी आग की बच स

उठकर हयबरट जपयानो क सामन सरल पर बठ गया सगीत जशकषक होन क कारण हर साल सपशल सजवटस क अवसर

पर उस lsquoकॉयरrsquo क सग जपयानो बजाना पड़ता था हयबरट न अपन रमाल स नाक साि की अपनी घबराहर जछपान क

जलए हयबरट हमशा ऐसा ही जकया करता था कनजखयो स हॉल की ओर दखत हए अपन कापत हाथो स जहम-बक

खोली लीड काइणडली लाइर

जपयानो क सर दब जझझकत स जमलन लग घन बालो स ढकी हयबरट की लबी पीली अगलया खलन-जसमरन लगी

lsquoकॉयरrsquo म गानवाली लड़जकयो क सवर एक-दसर स गथकर कोमल जसनगध लहरो म जबध गय लजतका को लगा

उसका जड़ा ढीला पड़ गया ह मानो गरदन क नीच झल रहा ह जमस वड की आख बचा लजतका न चपचाप बालो म

लग जकलपो को कसकर खीच जदया ldquoबड़ा झककी आदमी हसबह मन हयबरट को यहा आन स मना जकया था जिर

भी चला आया - डाकरर न कहा

लजतका को करीमददीन की बात याद हो गयी रात-भर हयबरट को खासी का दौरा पड़ा था कल जान क जलए कह रह

थ लजतका न जसर रढ़ा करक हयबरट क चहर की एक झलक पान की जविल चिा की इतन पीछ स कछ भी दख पाना

असभव था जपयानो पर झका हआ कवल हयबरट का जसर जदखायी दता था

लीड काइणडली लाइर सगीत क सर मानो एक ऊ ची पहाड़ी पर चढ़कर हािती हई सासो को आकाश की अबाध

शनदयता म जबखरत हए नीच उतर रह ह बाररश की मलायम धप चपल क लमब-चकोर शीशो पर जझलजमला रही ह

जजसकी एक महीन चमकीली रखा ईसा मसीह की परजतमा पर जतरछी होकर जगर रही ह मोमबजततयो का धआ धप म

नीली-सी लकीर खीचता हआ हवा म जतरन लगा ह जपयानो क कषजणक lsquoपोजrsquo म लजतका को पततो का पररजचत ममटर

कही दर अनजानी जदशा स आता हआ सनायी द जाता ह एक कषण क जलए एक भरम हआ जक चपल का िीका-सा

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अधरा उस छोर-स lsquoपरयर-हॉलrsquo क चारो कोनो स जसमरता हआ उसक आस-पास जघर आया ह मानो कोई उसकी

आखो पर पटटी बाधकर उस यहा तक ल आया हो और अचानक उसकी आख खोल दी हो उस लगा जक जस

मोमबजततयो क धजमल आलोक म कछ भी ठोस वासतजवक न रहा हो-चपल की छत दीवार डसक पर रखा हआ

डाकरर का सघड़-सडौल हाथ और जपयानो क सर अतीत की धनदध को भदत हए सवय उस धनदध का भाग बनत जा रह

हो

एक पगली-सी समजत एक उदभरानदत भावना-चपल क शीशो क पर पहाड़ी सखी हवा हवा म झकी हई वीजपग जवलोज

की कापती रहजनया परो तल चीड़ क पततो की धीमी-सी जचर-पररजचत खड़खड़ वही पर जगरीश एक हाथ म

जमजलररी का खाकी हर जलय खड़ा ह-चौड़ उठ हए सबल कनदध अपना जसर वहा जरका दो तो जस जसमरकर खो

जायगा चासट बोयर यह नाम उसन रखा था वह झपकर हसन लगा ldquoतमह आमी म जकसन चन जलया मजर बन गय

हो लजकन लड़जकयो स भी गय बीत हो ज़रा-ज़रा-सी बात पर चहरा लाल हो जाता ह यह सब वह कहती नही

जसिट सोचती भर थी सोचा था कभी कह गी वह lsquoकभीrsquo कभी नही आया बरस का लाल िल लाय हो न झठ खाकी

कमीज क जजस जब पर बज जचपक थ उसम स मसा हआ बरस का िल जनकल आया जछः सारा मरझा गया अभी

जखला कहा ह (हाउ कलनदजी) उसक बालो म जगरीश का हाथ उलझ रहा ह-िल कही जरक नही पाता जिर उस जकलप

क नीच ि साकर उसन कहा- दखो

वह मड़ी और इसस पहल जक वह कछ कह पाती जगरीश न अपना जमजलररी का हर धप स उसक जसर पर रख जदया

वह मनदतरमगध-सी वसी ही खड़ी रही उसक जसर पर जगरीश का हर ह-माथ पर छोरी-सी जबनददी ह जबनददी पर उड़त हए

बाल ह जगरीश न उस जबनददी को अपन होठो स छआ ह उसन उसक नग जसर को अपन दोनो हाथो म समर जलया ह -

लजतका

जगरीश न जचढ़ात हए कहा- मन ईरर आि कमाऊ - (उसका यह नाम जगरीश न उस जचढ़ान क जलए रखा था) वह

हसन लगी ldquoलजतका सनो जगरीश का सवर कसा हो गया था ldquoना म कछ भी नही सन रही ldquoलजतका म कछ

महीनो म वाजपस लौर आऊ गा ldquoना म कछ भी नही सन रही जकनदत वह सन रही ह- वह नही जो जगरीश कह रहा

ह जकनदत वह जो नही कहा जा रहा ह जो उसक बाद कभी नही कहा गया लीड काइणडली लाइर

लड़जकयो का सवर जपयानो क सरो म डबा हआ जगर रहा ह उठ रहा ह हयबरट न जसर मोड़कर लजतका को जनजमि भर

दखा आख मद धयानमगना परसतर मजतट-सी वह जसथर जनशचल खड़ी थी कया यह भाव उसक जलए ह कया लजतका न

ऐस कषणो म उस अपना साथी बनाया ह हयबरट न एक गहरी सास ली और उस सास म ढर-सी थकान उमड़ आयी

ldquoदखो जमस वड कसी पर बठ-बठ सो रही ह डाकरर होठो म ही िसिसाया यह डाकरर का पराना मजाक था जक

जमस वड पराथटना करन क बहान आख मद हए नीद की झपजकया लती ह

िादर एमणड न कसी पर िल अपन गाउन को समर जलया और परयर बक बद करक जमस वड क कानो म कछ कहा

जपयानो का सवर करमशः मनदद पड़न लगा हयबरट की अगजलया ढीली पड़न लगी सजवटस क समापत होन स पवट जमस वड

न आडटर पढ़कर सनाया बाररश होन की आशका स आज क कायटकरम म कछ आवशयक पररवतटन करन पड़ थ

जपकजनक क जलए झला दवी क मजनददर जाना समभव नही हो सकगा इसजलए सकल स कछ दर lsquoमीडोजrsquo म ही सब

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लड़जकया नाशत क बाद जमा होगी सब लड़जकयो को दोपहर का lsquoलचrsquo होसरल जकचन स ही ल जाना होगा कवल

शाम की चाय lsquoमीडोजrsquo म बनगी

पहाड़ो की बाररश का कया भरोसा कछ दर पहल धआधार बादल गरज रह थ सारा शहर पानी म भीगा जठठर रहा

था- अब धप म नहाता नीला आकाश धनदध की ओर स बाहर जनकलता हआ िल रहा था लजतका न चपल स बाहर

आत हए दखा-वीजपग जबलोज की भीगी शाखाओ स धप म चमकती हई बाररश की बद रपक रही थी लड़जकया

चपल स बाहर जनकलकर छोर-छोर गचछ बनाकर कॉरीडोर म जमा हो गयी ह नाशत क जलए अभी पौन घणरा पड़ा

था और उनम स अभी कोई भी लड़की होसरल जान क जलए इचछक नही थी छरटटया अभी शर नही हई थी जकनदत

शायद इसीजलए व इन चनदद बच-खच कषणो म अनशासन क भीतर भी मि होन का भरपर आननदद उठा लना चाहती

थी

जमस वड को लड़जकयो का यह गल-गपाड़ा अखरा जकनदत िादर एमणड क सामन वह उनदह डार-िरकार नही सकी

अपनी झझलाहर दबाकर वह मसकरात हए बोली- ldquoकल सब चली जायगी सारा सकल वीरान हो जायगा िादर

एमणड का लमबा ओजपणट चहरा चपल की घरी हई गरमाई स लाल हो उठा था कॉरीडोर क जगल पर अपनी छड़ी

लरकाकर वह बोल - ldquoछरटटयो म पीछ हॉसरल म कौन रहगा ldquoजपछल दो-तीन सालो स जमस लजतका ही रह रही ह

ldquoऔर डाकरर मकजी छरटटयो म कही नही जात ldquoडाकरर तो सदी-गमी यही रहत ह जमस वड न जवसमय स िादर

की ओर दखा वह समझ नही सकी जक िादर न डाकरर का परसग कयो छड़ जदया ह

ldquoडाकरर मकजी छरटटयो म कही नही जात ldquoदो महीन की छरटटयो म बमाट जाना कािी कजठन ह िादर - जमस वड

हसन लगी

ldquoजमस वड पता नही आप कया सोचती ह मझ तो जमस लजतका का होसरल म अकल रहना कछ समझ म नही

आता ldquoलजकन िादर जमस वड न कहा ldquoयह तो कानदवनदर सकल का जनयम ह जक कोई भी रीचर छरटटयो म अपन

खच पर होसरल म रह सकत ह ldquoम जिलहाल सकल क जनयमो की बात नही कर रहा जमस लजतका डाकरर क सग

यहा अकली ही रह जायगी और सच पजछए जमस वड डाकरर क बार म मरी राय कछ बहत अचछी नही ह ldquoिादर

आप कसी बात कर रह ह जमस लजतका बचचा थोड़ ही ह जमस वड को ऐसी आशा नही थी जक िादर एमणड

अपन जदल म ऐसी दजकयानसी भावना को सथान दग

िादर एमणड कछ हतपरभ-स हो गय बात पलरत हए बोल- ldquoजमस वड मरा मतलब यह नही था आप तो जानती ह

जमस लजतका और उस जमजलररी अिसर को लकर एक अचछा-खासा सकणडल बन गया था सकल की बदनामी होन

म कया दर लगती ह ldquoवह बचारा तो अब नही रहा म उस जानती थी िादर ईशवर उसकी आतमा को शाजनदत द जमस

वड न धीर-स अपनी दोनो बाहो स करास जकया

िादर एमणड को जमस वड की मखटता पर इतना अजधक कषोभ हआ जक उनस आग और कछ नही बोला गया डाकरर

मकजी स उनकी कभी नही परती थी इसजलए जमस वड की आखो म वह डाकरर को नीचा जदखाना चाहत थ जकनदत

जमस वड लजतका का रोना ल बठी आग बात बढ़ाना वयथट था उनदहोन छड़ी को जगल स उठाया और ऊपर साि

खल आकाश को दखत हए बोल- ldquoपरोगराम आपन य ही बदला जमस वड अब कया बाररश होगी

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हयबरट जब चपल स बाहर जनकला तो उसकी आख चकाचध-सी हो गई उस लगा जस जकसी न अचानक ढर-सी

चमकीली उबलती हई रोशनी मटठी म भरकर उसकी आखो म झोक दी हो जपयानो क सगीत क सर रई क छई-मई

रशो की भाजत अब तक उसक मजसतषक की थकी-मादी नसो पर िड़िड़ा रह थ वह कािी थक गया था जपयानो

बजान स उसक ििड़ो पर हमशा भारी दबाव पड़ता जदल की धड़कन तज हो जाती थी उस लगता था जक सगीत क

एक नोर को दसर नोर म उतारन क परयतन म वह एक अधरी खाई पार कर रहा ह

आज चपल म मन जो महसस जकया वह जकतना रहसयमय जकतना जवजचतर था हयबरट न सोचा मझ लगा जपयानो का

हर नोर जचरनदतन खामोशी की अधरी खोह स जनकलकर बाहर िली नीली धनदध को कारता तराशता हआ एक भला-

सा अथट खीच लाता ह जगरता हआ हर lsquoपोजrsquo एक छोरी-सी मौत ह मानो घन छायादार वकषो की कापती छायाओ म

कोई पगडणडी गम हो गयी हो एक छोरी-सी मौत जो आनवाल सरो को अपनी बची-खची गजो की सास समजपटत कर

जाती ह जो मर जाती ह जकनदत जमर नही पाती जमरती नही इसजलए मरकर भी जीजवत ह दसर सरो म लय हो जाती

ldquoडाकरर कया मतय ऐस ही आती ह अगर म डाकरर स पछ तो वह हसकर राल दगा मझ लगता ह वह जपछल कछ

जदनो स कोई बात जछपा रहा ह- उसकी हसी म जो सहानभजत का भाव होता ह वह मझ अचछा नही लगता आज

उसन मझ सपशल सजवटस म आन स रोका था - कारण पछन पर वह चप रहा था कौन-सी ऐसी बात ह जजस मझस

कहन म डाकरर कतराता ह शायद म शककी जमजाज होता जा रहा ह और बात कछ भी नही ह

हयबरट न दखा लड़जकयो की कतार सकल स होसरल जानवाली सड़क पर नीच उतरती जा रही ह उजली धप म उनक

रग-जबरग ररबन हकी आसमानी रग की रॉक और सिद पजरया चमक रही ह सीजनयर कजमबरज की कछ लड़जकयो

न चपल की वाजरका क गलाब क िलो को तोड़कर अपन बालो म लगा जलया ह कणरोनमणर क तीन-चार जसपाही

लड़जकयो को दखत हए अशलील मजाक करत हए हस रह ह और कभी-कभी जकसी लड़की की ओर ज़रा झककर

सीरी बजान लगत ह

ldquoहलो जम हयबरट हयबरट न चककर पीछ दखा लजतका एक मोरा-सा रजजसरर बगल म दबाय खड़ी थी ldquoआप अभी

यही ह हयबरट की दजि लजतका पर जरकी रही वह करीम रग की परी बाहो की ऊनी जकर पहन हई थी कमाऊ नी

लड़जकयो की तरह लजतका का चहरा गोल था धप की तपन स पका गहआ रग कही-कही हका-सा गलाबी हो

आया था मानो बहत धोन पर भी गलाल क कछ धबब इधर-उधर जबखर रह गय हो ldquoउन लड़जकयो क नाम नोर करन

थ जो कल जा रही ह सो पीछ रकना पड़ा आप भी तो कल जा रह ह जम हयबरट ldquoअभी तक तो यही इरादा ह यहा

रककर भी कया कर गा आप सकल की ओर जा रही हldquo ldquoचजलए

पककी सड़क पर लड़जकयो की भीड़ जमा थी इसजलए व दोनो पोलो गराउणड का चककर कारती हई पगडणडी स नीच

उतरन लग हवा तज हो चली चीड़ क पतत हर झोक क सग रर-ररकर पगडणडी पर ढर लगात जात थ हयबरट रासता

बनान क जलए अपनी छड़ी स उनदह बहारकर दोनो ओर जबखर दता था लजतका पीछ खड़ी हई दखती रहती थी

अमोड़ा की ओर स आत हए छोर-छोर बादल रशमी रमालो स उड़त हए सरज क मह पर जलपर स जात थ जिर

हवा म बह जनकलत थ इस खल म धप कभी मनदद िीकी-सी पड़ जाती थी कभी अपना उजला आचल खोलकर

समच शहर को अपन म समर लती थी

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लजतका तजनक आग जनकल गयी हयबरट की सास चढ़ गयी थी और वह धीर-धीर हािता हआ पीछ स आ रहा था

जब व पोलोगराउणड क पवजलयन को छोड़कर जसजमटी क दायी और मड तो लजतका हयबरट की परतीकषा करन क जलए

खड़ी हो गयी उस याद आया छरटटयो क जदनो म जब कभी कमर म अकल बठ-बठ उसका मन ऊब जाता था तो वह

अकसर रहलत हए जसजमटी तक चली जाती थी उसस सरी पहाड़ी पर चढ़कर वह बिट म ढक दवदार वकषो को दखा

करती थी जजनकी झकी हई शाखो स रई क गोलो-सी बिट नीच जगरा करती थी नीच बाजार जानवाली सड़क पर

बचच सलज पर जिसला करत थ वह खड़ी-खड़ी बिट म जछपी हई उस सड़क का अनमान लगाया करती थी जो िादर

एमणड क घर स गजरती हई जमजलररी असपताल और डाकघर स होकर चचट की सीजढ़यो तक जाकर गम हो जाती

थी जो मनोरजन एक दगटम पहली को सलझान म होता ह वही लजतका को बिट म खोय रासतो को खोज जनकालन म

होता था

ldquoआप बहत तज चलती ह जमस लजतका - थकान स हयबरट का चहरा कमहला गया था माथ पर पसीन की बद

छलक आयी थी ldquoकल रात आपकी तजबयत कया कछ खराब हो गयी थी ldquoआपन कस जाना कया म असवसथ

दीख रहा ह हयबरट क सवर म हलकी-सी खीज का आभास था सब लोग मरी सहत को लकर कयो बात शर करत

ह उसन सोचा ldquoनही मझ तो पता भी नही चलता वह तो सबह करीमददीन न बातो-ही-बातो म जजकर छड़ जदया था

लजतका कछ अपरजतभ-सी हो आयी ldquoकोई खास बात नही वही पराना ददट शर हो गया था अब जबकल ठीक ह

अपन कथन की पजि क जलए हयबरट छाती सीधी करक तज कदम बढ़ान लगा ldquoडाकरर मकजी को जदखलाया था

ldquoवह सबह आय थ उनकी बात कछ समझ म नही आती हमशा दो बात एक-दसर स उरी कहत ह कहत थ जक

इस बार मझ छह-सात महीन की छटटी लकर आराम करना चाजहए लजकन अगर म ठीक ह तो भला इसकी कया

जररत ह

हयबरट क सवर म वयथा की छाया लजतका स जछपी न रह सकी बात को रालत हए उसन कहा - ldquoआप तो नाहक

जचनदता करत ह जम हयबरट आजकल मौसम बदल रहा ह अचछ भल आदमी तक बीमार हो जात ह हयबरट का

चहरा परसनदनता स दमकन लगा उसन लजतका को धयान स दखा वह अपन जदल का सशय जमरान क जलए जनजशचनदत

हो जाना चाहता था जक कही लजतका उस कवल जदलासा दन क जलए ही तो झठ नही बोल रही ldquoयही तो म सोच रहा

था जमस लजतका डाकरर की सलाह सनकर म डर ही गया भला छह महीन की छटटी लकर म अकला कया कर गा

सकल म तो बचचो क सग मन लगा रहता ह सच पछो तो जदली म य दो महीनो की छरटटया कारना भी दभर हो जाता

ldquoजम हयबरटकल आप जदली जा रह ह लजतका चलत-चलत हठात जठठक गयी सामन पोलो-गराउणड िला था

जजसक दसरी ओर जमजलररी की टक कणरोनमणर की ओर जा रही थी हयबरट को लगा जस लजतका की आख

अधमदी-सी खली रह गयी ह मानो पलको पर एक पराना भला-सा सपना सरक आया ह

ldquoजमहयबरटआप जदली जा रह ह इस बार लजतका न परशन नही दहराया उसक सवर म कवल एक असीम दरी का

भाव जघर आया ldquoबहत असाट पहल म भी जदली गयी थी जम हयबरट तब म बहत छोरी थी न जान जकतन बरस बीत

गय हमारी मौसी का बयाह वही हआ था बहत-सी चीज दखी थी लजकन अब तो सब कछ धधला-सा पड़ गया ह

इतना याद ह जक हम कतब पर चढ़ थ सबस ऊ ची मजजल स हमन नीच झाका था न जान कसा लगा था नीच चलत

हए आदमी चाभी भर हए जखलौनो-स लगत थ हमन ऊपर स उन पर मगिजलया ि की थी लजकन हम बहत जनराश

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हए थ कयोजक उनम स जकसी न हमारी तरि नही दखा शायद मा न मझ डारा था और म जसिट नीच झाकत हए डर

गयी थी सना ह अब तो जदली इतना बदल गया ह जक पहचाना नही जाता

व दोनो जिर चलन लग हवा का वग ढीला पड़न लगा उड़त हए बादल अब ससतान स लग थ उनकी छायाए ननददा

दवी और पचचली की पहाजड़यो पर जगर रही थी सकल क पास पहचत-पहचत चीड़ क पड़ पीछ छर गय कही-कही

खबानी क पड़ो क आस-पास बरस क लाल िल धप म चमक जात थ सकल तक आन म उनदहोन पोलोगराउणड का

लमबा चककर लगा जलया था ldquoजमस लजतका आप कही छरटटयो म जाती कयो नही सजदटयो म तो यहा सब कछ वीरान

हो जाता होगा

ldquoअब मझ यहा अचछा लगता ह लजतका न कहा ldquoपहल साल अकलापन कछ अखरा था अब आदी हो चकी ह

जकरसमस स एक रात पहल कलब म डानदस होता ह लाररी डाली जाती ह और रात को दर तक नाच-गाना होता रहता

ह नय साल क जदन कमाऊ रजीमणर की ओर स परड-गराउणड म कानीवाल जकया जाता ह बिट पर सकजरग होती ह

रग-जबरग गबबारो क नीच िौजी बणड बजता ह िौजी अिसर िनदसी डरस म भाग लत ह हर साल ऐसा ही होता ह

जम हयबरट जिर कछ जदनो बाद जवणरर सपोटस क जलए अगरज रररसर आत ह हर साल म उनस पररजचत होती ह

वाजपस लौरत हए व हमशा वादा करत ह जक अगल साल भी आयग पर म जानती ह जक व नही आयग व भी जानत

ह जक व नही आयग जिर भी हमारी दोसती म कोई अतर नही पड़ता जिरजिर कछ जदनो बाद पहाड़ो पर बिट

जपघलन लगती ह छरटटया खतम होन लगती ह आप सब लोग अपन-अपन घरो स वाजपस लौर आत ह - और जम

हयबरट पता भी नही चलता जक छरटटया कब शर हई थी कब खतम हो गई

लजतका न दखा जक हयबरट उसकी ओर आतजकत भयाकल दजि स दख रहा ह वह जसरजपराकर चप हो गयी उस

लगा मानो वह इतनी दर स पागल-सी अनगटल परलाप कर रही हो ldquoमझ माि करना जम हयबरट कभी-कभी म बचचो

की तरह बातो म बहक जाती ह ldquoजमस लजतका हयबरट न धीर-स कहा वह चलत-चलत रक गया था लजतका

हयबरट क भारी सवर स चौक-सी गयी ldquoकया बात ह जम हयबरट ldquoवह पतर उसक जलए म लजजजत ह उस आप वाजपस

लौरा द समझ ल जक मन उस कभी नही जलखा था

लजतका कछ समझ न सकी जदगभरानदत-सी खड़ी हई हयबरट क पील उजदधगन चहर को दखती रही हयबरट न धीर-स

लजतका क कनदध पर हाथ रख जदया ldquoकल डाकरर न मझ सबकछ बता जदया अगर मझ पहल स मालम होता

तोतो हयबरट हकलान लगा ldquoजम हयबरट जकनदत लजतका स आग कछ भी नही कहा गया उसका चहरा सिद हो

गया था

दोनो चपचाप कछ दर तक सकल क गर क बाहर खड़ रह मीडोजपगडजणडयो पततो छायाओ स जघरा छोरा-सा

दवीप मानो कोई घोसला दो हरी घाजरयो क बीच आ दबा हो भीतर घसत ही जपकजनक क काल आग स झलस हए

पतथर अधजली रहजनया बठन क जलए जबछाय गय परान अखबारो क रकड़ इधर-उधर जबखर हए जदखायी द जात

ह अकसर रररसर जपकजनक क जलए यहा आत ह मीडोज को बीच म कारता हआ रढ़ा-मढ़ा बरसाती नाला बहता ह

जो दर स धप म चमकता हआ सिद ररबन-सा जदखायी दता ह

यही पर काठ क तखतो का बना हआ ररा-सा पल ह जजस पर लड़जकया जहचकोल खात हए चल रही ह

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ldquoडाकरर मकजी आप तो सारा जगल जला दग जमस वड न अपनी ऊ ची एड़ी क सणडल स जलती हई जदयासलाई

को दबा डाला जो डाकरर न जसगार सलगाकर चीड़ क पततो क ढर पर ि क दी थी व नाल स कछ दर हरकर चीड़ क

दो पड़ो स गथी हई छाया क नीच बठ थ उनक सामन एक छोरा-सा रासता नीच पहाड़ी गाव की ओर जाता था जहा

पहाड़ की गोद म शकरपारो क खत एक-दसर क नीच जबछ हए थ दोपहर क सनदनार म भड़-बकररयो क गलो म बधी

हई धजणरयो का सवर हवा म बहता हआ सनायी द जाता था घास पर लर-लर डाकरर जसगार पीत रह ldquoजगल की

आग कभी दखी ह जमस वडएक अलमसत नश की तरह धीर-धीर िलती जाती ह

ldquoआपन कभी दखी ह डाकरर जमस वड न पछा ldquoमझ तो बड़ा डर लगता ह

ldquoबहत साल पहल शहरो को जलत हए दखा था डाकरर लर हए आकाश की ओर ताक रह थ ldquoएक-एक मकान

ताश क पततो की तरह जगरता जाता दभाटगयवश ऐस अवसर दखन म बहत कम आत ह

ldquoआपन कहा दखा डाकरर

ldquoलड़ाई क जदनो म अपन शहर रगन को जलत हए दखा था जमस वड की आतमा को ठस लगी जकनदत जिर भी उनकी

उतसकता शानदत नही हई

ldquoआपका घर कया वह भी जल गया था

डाकरर कछ दर तक चपचाप लरा रहा

ldquoहम उस खाली छोड़कर चल आय थ मालम नही बाद म कया हआ अपन वयजिगत जीवन क समबनदध म कछ भी

कहन म डाकरर को कजठनाई महसस होती ह

ldquoडाकरर कया आप कभी वाजपस बमाट जान की बात नही सोचत डाकरर न अगड़ाई ली और करवर बदलकर औध

मह लर गय उनकी आख मद गई और माथ पर बालो की लर झल आयी

ldquoसोचन स कया होता ह जमस वड जब बमाट म था तब कया कभी सोचा था जक यहा आकर उमर कारनी होगी

ldquoलजकन डाकरर कछ भी कह लो अपन दश का सख कही और नही जमलता यहा तम चाह जकतन विट रह लो अपन

को हमशा अजनबी ही पाओग

डाकरर न जसगार क धए को धीर-धीर हवा म छोड़ जदया- ldquoदरअसल अजनबी तो म वहा भी समझा जाऊ गा जमस वड

इतन विो बाद मझ कौन पहचानगा इस उमर म नय जसर स ररशत जोड़ना कािी जसरददट का काम ह कम-स-कम मर

बस की बात नही ह

ldquoलजकन डाकरर आप कब तक इस पहाड़ी कसब म पड़ रहग इसी दश म रहना ह तो जकसी बड़ शहर म परजकरस शर

कीजजए

ldquoपरजकरस बढ़ान क जलए कहा-कहा भरकता जिर गा जमस वड जहा रहो वही मरीज जमल जात ह यहा आया था

कछ जदनो क जलए जिर मददत हो गयी और जरका रहा जब कभी जी ऊबगा कही चला जाऊ गा जड़ कही नही

जमती तो पीछ भी कछ नही छर जाता मझ अपन बार म कोई गलतिहमी नही ह जमस वड म सखी ह

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जमस वड न डाकरर की बात पर जवशि धयान नही जदया जदल म वह हमशा डाकरर को उचछखल लापरवाह और

सनकी समझती रही ह जकनदत डाकरर क चररतर म उनका जवशवास ह न जान कयो कयोजक डाकरर न जान-अनजान म

उसका कोई परमाण जदया हो यह उनदह याद नही पड़ता

जमस वड न एक ठणडी सास भरी वह हमशा यह सोचती थी जक यजद डाकरर इतना आलसी और लापरवाह न होता

तो अपनी योगयता क बल पर कािी चमक सकता था इसजलए उनदह डाकरर पर करोध भी आता था और दख भी होता

था

जमस वड न अपन बग स ऊन का गोला और सलाइया जनकाली जिर उसक नीच स अखबार म जलपरा हआ चौड़ा

कॉिी का जडबबा उठाया जजसम अणडो की सणडजवच और हमबगटर दब हए थ थमटस स पयालो म कॉिी उडलत हए

जमस वड न कहा - ldquoडाकरर कॉिी ठणडी हो रही ह

डाकरर लर-लर बड़बड़ाया जमस वड न नीच झककर दखा वह कोहनी पर जसर जरकाय सो रहा था ऊपर का होठ

जरा-सा िलकर मड़ गया था मानो जकसी स मजाक करन स पहल मसकरा रहा हो

उसकी अगजलयो म दबा हआ जसगार नीच झका हआ लरक रहा था ldquoमरी मरी वार ड य वाणर वार ड य वाणर

दसर सरणडडट म पढ़नवाली मरी न अपनी चचल चपल आख ऊपर उठायी लड़जकयो का दायरा उस घर हए कभी

पास आता था कभी दर जखचता चला जाता था

ldquoआई वाणर आई वाणर बल दोनो हाथो को हवा म घमात हए मरी जचलायी दायरा पानी की तरह रर गया सब

लड़जकया एक-दसर पर जगरती-पड़ती जकसी नीली वसत को छन क जलए भाग-दौड़ करन लगी लच समापत हो चका

था लड़जकयो क छोर-छोर दल मीडोज म जबखर गय थ ऊ ची कलास की कछ लड़जकया चाय का पानी गमट करन क

जलए पड़ो पर चढ़कर सखी रहजनया तोड़ रही थी

दोपहर की उस घड़ी म मीडोज अलसाया-ऊ घता-सा जान पड़ता था हवा का कोई भला-भरका झोका चीड़ क पतत

खड़खड़ा उठत थ कभी कोई पकषी अपनी ससती जमरान झाजड़यो स उड़कर नाल क जकनार बठ जाता था पानी म जसर

डबोता था जिर ऊबकर हवा म दो-चार जनरददशय चककर कारकर दबारा झाजड़यो म दबक जाता था

जकनदत जगल की खामोशी शायद कभी चप नही रहती गहरी नीद म डबी सपनो-सी कछ आवाज नीरवता क हक

झीन परद पर सलवर जबछा जाती ह मक लहरो-सी हवा म जतरती ह मानो कोई दब पाव झाककर अदशय सकत कर

जाता ह- ldquoदखो म यहा ह लजतका न जली क lsquoबाब हयरrsquo को सहलात हए कहा ldquoतमह कल रात बलाया था

ldquoमडम म गयी थी आप अपन कमर म नही थी लजतका को याद आया जक रात वह डाकरर क कमर क ररस पर दर

तक बठी रही थी और भीतर हयबरट जपयानो पर शोपा का नौकरनट बजा रहा था ldquoजली तमस कछ पछना था उस

लगा वह जली की आखो स अपन को बचा रही ह जली न अपना चहरा ऊपर उठाया उसकी भरी आखो स

कौतहल झाक रहा था

ldquoतम आजिससट मस म जकसी को जानती हो जली न अजनजशचत भाव स जसर जहलाया लजतका कछ दर तक जली को

अपलक घरती रही

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ldquoजली मझ जवशवास ह तम झठ नही बोलोगी कछ कषण पहल जली की आखो म जो कौतहल था वह भय स

पररणत होन लगा लजतका न अपनी जकर की जब स एक नीला जलिािा जनकालकर जली की गोद म ि क जदया

ldquoयह जकसकी जचटठी ह

जली न जलिािा उठान क जलए हाथ बढ़ाया जकनदत जिर एक कषण क जलए उसका हाथ कापकर जठठक गया-जलिाि

पर उसका नाम और होसरल का पता जलखा हआ था

ldquoथक य मडम मर भाई का पतर ह वह झासी म रहत ह जली न घबराहर म जलिाि को अपन सकरट की तहो म

जछपा जलया ldquoजली ज़रा मझ जलिािा जदखलाओ लजतका का सवर तीखा ककट श-सा हो आया

जली न अनमन भाव स लजतका को पतर द जदया ldquoतमहार भाई झासी म रहत ह जली इस बार कछ नही बोली

उसकी उदभरानदत उखड़ी-सी आख लजतका को दखती रही ldquoयह कया ह

जली का चहरा सिद िक पड़ गया जलिाि पर कमाऊ रजीमणरल सणरर की महर उसकी ओर घर रही थी ldquoकौन ह

यह लजतका न पछा उसन पहल भी होसरल म उड़ती हई अिवाह सनी थी जक जली को कलब म जकसी जमजलररी

अिसर क सग दखा गया था जकनदत ऐसी अिवाह अकसर उड़ती रहती थी और उसन उन पर जवशवास नही जकया था

ldquoजली तम अभी बहत छोरी हो जली क होठ काप-उसकी आखो म जनरीह याचना का भाव जघर आया

ldquoअचछा अभी जाओ तमस छरटटयो क बाद बात कर गी जली न ललचाई दजि स जलिाि को दखा कछ बोलन को

उदयत हई जिर जबना कछ कह चपचाप वाजपस लौर गयी

लजतका दर तक जली को दखती रही जब तक वह आखो स ओझल नही हो गयी कया म जकसी खसर बजढ़या स

कम ह अपन अभाव का बदला कया म दसरो स ल रही ह

शायद कौन जान शायद जली का यह परथम पररचय हो उस अनभजत स जजस कोई भी लड़की बड़ चाव स

सजोकर सभालकर अपन म जछपाय रहती ह एक अजनवटचनीय सख जो पीड़ा जलय ह पीड़ा और सख को डबोती हई

उमड़त जवर की खमारी जो दोनो को अपन म समो लती ह एक ददट जो आननदद स उपजा ह और पीड़ा दता ह

यही इसी दवदार क नीच उस भी यही लगा था जब जगरीश न पछा था-ldquoतम चप कयो हो वह आख मद सोच रही

थी सोच कहा रही थी जी रही थी उस कषण को जो भय और जवसमय क बीच जभचा था-बहका-सा पागल कषण वह

अभी पीछ मड़गी तो जगरीश की lsquoनवटसrsquo मसकराहर जदखायी द जायगी उस जदन स आज दोपहर तक का अतीत एक

दःसवपन की माजननदद रर जाएगा वही दवदार ह जजस पर उसन अपन बालो क जकलप स जगरीश का नाम जलखा था

पड़ की छाल उतरती नही थी जकलप रर-रर जाता था तब जगरीश न अपन नाम क नीच उसका नाम जलखा था जब

कभी कोई अकषर जबगड़कर ढढ़ा-मढ़ा हो जाता था तब वह हसती थी और जगरीश का कापता हाथ और भी काप

जाता था

लजतका को लगा जक जो वह याद करती ह वही भलना भी चाहती ह लजकन जब सचमच भलन लगती ह तब उस

भय लगता ह जक जस कोई उसकी जकसी चीज को उसक हाथो स छीन जलय जा रहा ह ऐसा कछ जो सदा क जलए

खो जायगा बचपन म जब कभी वह अपन जकसी जखलौन को खो दती थी तो वह गमसम-सी होकर सोचा करती थी

कहा रख जदया मन जब बहत दौड़-धप करन पर ज ाखलौना जमल जाता तो वह बहाना करती जक अभी उस खोज ही

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रही ह जक वह अभी जमला नही ह जजस सथान पर जखलौना रखा होता जान-बझकर उस छोड़कर घर क दसर कोन म

उस खोजन का उपकरम करती तब खोई हई चीज याद रहती इसजलए भलन का भय नही रहता था

आज वह उस बचपन क खल का बहाना कयो नही कर पाती lsquoबहानाrsquoशायद करती ह उस याद करन का बहाना जो

भलता जा रहा हजदन महीन बीत जात ह और वह उलझी रहती ह अनजान म जगरीश का चहरा धधला पड़ता

जाता ह याद वह करती ह जकनदत जस जकसी परानी तसवीर क धल भर शीश को साि कर रही हो अब वसा ददट नही

होता जसिट उसको याद करती ह जो पहल कभी होता था तब उस अपन पर गलाजन होती ह वह जिर जान-बझकर

उस घाव को करदती ह जो भरता जा रहा ह खद-ब-खद उसकी कोजशशो क बावजद भरता जा रहा ह दवदार पर

खद हए अधजमर नाम लजतका की ओर जनसतबध जनरीह भाव स जनहार रह थ मीडोज क घन सनदनार म नाल पार स

खलती हई लड़जकयो की आवाज गज जाती थीवार ड य वाणर वार ड य वाणर

जततजलया झीगर जगनमीडोज पर उतरती हई साझ की छायाओ म पता नही चलता कौन आवाज जकसकी ह

दोपहर क समय जजन आवाजो को अलग-अलग पहचाना जा सकता था अब व एकसवरता की अजवरल धारा म घल

गयी थी घास स अपन परो को पोछता हआ कोई रग रहा ह झाजड़यो क झरमर स परो को िड़िड़ाता हआ झपरकर

कोई ऊपर स उड़ जाता ह जकनदत ऊपर दखो तो कही कछ भी नही ह मीडोज क झरन का गड़गड़ाता सवर जस अधरी

सरग म झपार स टन गजर गयी हो और दर तक उसम सीजरयो और पजहयो की चीतकार गजती रही हो

जपकजनक कछ दर तक और चलती जकनदत बादलो की तह एक-दसर पर चढ़ती जा रही थी जपकजनक का सामान

बरोरा जान लगा मीडोज क चारो ओर जबखरी हई लड़जकया जमस वड क इदट-जगदट जमा होन लगी अपन सग व

अजीबोगरीब चीज बरोर लायी थी कोई जकसी पकषी क रर पख को बालो म लगाय हए थी जकसी न पड़ की रहनी

को चाक स छीलकर छोरी-सी बत बना ली थी ऊ ची कलास की कछ लड़जकयो न अपन-अपन रमालो म नाल स

पकड़ी हई छोरी-छोरी बाजलशत भर की मछजलयो को दबा रखा था जजनदह जमस वड स जछपकर व एक-दसर को जदखा

रही थी

जमस वड लड़जकयो की रोली क सग आग जनकल गयी मीडोज स पककी सड़क तक तीन-चार िलााग की चढ़ाई थी

लजतका हािन लगी डाकरर मकजी सबस पीछ आ रह थ लजतका क पास पहचकर वह जठठक गय डाकरर न दोनो

घरनो को जमीन पर रकत हए जसर झकाकर एजलजाबथयगीन अगरजी म कहा - ldquoमडम आप इतनी परशान कयो नजर

आ रही ह और डाकरर की नारकीय मरा को दखकर लजतका क होठो पर एक थकी-सी ढीली-ढीली मसकराहर

जबखर गयी ldquoपयास क मार गला सख रहा ह और यह चढ़ाई ह जक खतम होन म नही आती

डाकरर न अपन कनदध पर लरकत हए थमटस को उतारकर लजतका क हाथो म दत हए कहा - ldquoथोड़ी-सी कॉफ़ी बची ह

शायद कछ मदद कर सक ldquoजपकजनक म तम कहा रह गय डाकरर कही जदखायी नही जदय ldquoदोपहर भर सोता रहा-

जमस वड क सग मरा मतलब ह जमस वड पास बठी थी ldquoमझ लगता ह जमस वड मझस महबबत करती ह कोई

भी मजाक करत समय डाकरर अपनी मछो क कोनो को चबान लगता ह ldquoकया कहती थी लजतका न थमटस स

कॉिी को मह म उडल जलया ldquoशायद कछ कहती लजकन बदजकसमती स बीच म ही मझ नीद आ गयी मरी जजनददगी

क कछ खबसरत परम-परसग कमबखत इस नीद क कारण अधर रह गय ह

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और इस दौरान म जब दोनो बात कर रह थ उनक पीछ मीडोज और मोरर रोड क सग चढ़ती हई चीड़ और बाज क

वकषो की कतार साझ क जघरत अधर म डबन लगी मानो पराथटना करत हए उनदहोन चपचाप अपन जसर नीच झका जलय

हो इनदही पड़ो क ऊपर बादलो म जगरज का करास कही उलझा पड़ा था उसक नीच पहाड़ो की ढलान पर जबछ हए

खत भागती हई जगलहररयो स लग रह थ जो मानो जकसी की रोह म सतबध जठठक गयी हो ldquoडाकरर जम हयबरट

जपकजनक पर नही आय डाकरर मकजी राचट जलाकर लजतका क आग-आग चल रह थ ldquoमन उनदह मना कर जदया

था ldquoजकसजलए

अधर म परो क नीच दब हए पततो की चरमराहर क अजतररि कछ सनायी नही दता था डॉकरर मकजी न धीर-स

खासा ldquoजपछल कछ जदनो स मझ सदह होता जा रहा ह जक हयबरट की छाती का ददट शायद मामली ददट नही ह

डाकरर थोड़ा-सा हसा जस उस अपनी यह गमभीरता अरजचकर लग रही हो

डाकरर न परतीकषा की शायद लजतका कछ कहगी जकनदत लजतका चपचाप उसक पीछ चल रही थी ldquoयह मरा महज

शक ह शायद म जबकल गलत होऊ जकनदत यह बहतर होगा जक वह अपन एक ििड़ का एकसर करा ल इसस कम-

स-कम कोई भरम तो नही रहगा ldquoआपन जम हयबरट स इसक बार म कछ कहा ह ldquoअभी तक कछ नही कहा हयबरट

जरा-सी बात पर जचजनदतत हो उठता ह इसजलए कभी साहस नही हो पाता डॉकरर को लगा उसक पीछ आत हए

लजतका क परो का सवर सहसा बनदद हो गया ह उनदहोन पीछ मड़कर दखा लजतका बीच सड़क पर अधर म छाया-सी

चपचाप जनशचल खड़ी ह ldquoडाकरर लजतका का सवर भराटया हआ था ldquoकया बात ह जमस लजतका आप रक कयो

गयी ldquoडाकरर-कया जम हयबरट

डाकरर न अपनी राचट की मजदधम रोशनी लजतका पर उठा दीउसन दखा लजतका का चहरा एकदम पीला पड़ गया ह

और वह रह-रहकर पतत-सी काप जाती ह ldquoजमस लजतका कया बात ह आप तो बहत डरी-सी जान पड़ती ह ldquoकछ

नही डाकरर मझमझ कछ याद आ गया था व दोनो जिर चलन लग कछ दर जान पर उनकी आख ऊपर उठ गयी

पजकषयो का एक बड़ा धजमल आकाश म जतरकोण बनाता हआ पहाड़ो क पीछ स उनकी ओर आ रहा था लजतका और

डाकरर जसर उठाकर इन पजकषयो को दखत रह लजतका को याद आया हर साल सदी की छरटटयो स पहल य पररनदद

मदानो की ओर उड़त ह कछ जदनो क जलए बीच क इस पहाड़ी सरशन पर बसरा करत ह परतीकषा करत ह बिट क जदनो

की जब व नीच अजनबी अनजान दशो म उड़ जायग

कया व सब भी परतीकषा कर रह ह वह डाकरर मकजी जम हयबरट लजकन कहा क जलए हम कहा जायग

जकनदत उसका कोई उततर नही जमला-उस अधर म मीडोज क झरन क भतल सवर और चीड़ क पततो की सरसराहर क

अजतररि कछ सनायी नही दता था लजतका हड़बड़ाकर चौक गयी अपनी छड़ी पर झका हआ डाकरर धीर-धीर

सीरी बजा रहा था

ldquoजमस लजतका जदी कीजजए बाररश शर होनवाली ह होसरल पहचत-पहचत जबजली चमकन लगी थी जकनदत

उस रात बाररश दर तक नही हई बादल बरसन भी नही पात थ जक हवा क थपड़ो स धकल जदय जात थ दसर जदन

तड़क ही बस पकड़नी थी इसजलए जडनर क बाद लड़जकया सोन क जलए अपन-अपन कमरो म चली गयी थी

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जब लजतका अपन कमर म गयी तो उस समय कमाऊ रजीमणर सणरर का जबगल बज रहा था उसक कमर म

करीमददीन कोई पहाड़ी धन गनगनाता हआ लमप म गस पमप कर रहा था लजतका उनदही कपड़ो म तजकय को दहरा

करक लर गयी करीमददीन न उड़ती हई जनगाह स लजतका को दखा जिर अपन काम म जर गया ldquoजपकजनक कसी रही

मम साहब ldquoतम कयो नही आय सब लड़जकया तमह पछ रही थी लजतका को लगा जदन-भर की थकान धीर-धीर

उसक शरीर की पसजलयो पर जचपरती जा रही ह अनायास उसकी आख नीद क बोझ स झपकन लगी ldquoम चला

आता तो हयबरट साहब की तीमारदारी कौन करता जदनभर उनक जबसतर स सरा हआ बठा रहा और अब वह गायब हो

गय ह करीमददीन न कनदध पर लरकत हए मच-कचल तौजलय को उतारा और लमप क शीशो की गदट पोछन लगा

लजतका की अधमदी आख खल गयी ldquoकया हयबरट साहब अपन कमर म नही ह ldquoखदा जान इस हालत म कहा

भरक रह ह पानी गमट करन कछ दर क जलए बाहर गया था वाजपस आन पर दखता ह जक कमरा खाली पड़ा ह

करीमददीन बड़बड़ाता हआ बाहर चला गया लजतका न लर-लर पलग क नीच चपपलो को परो स उतार जदया

हयबरट इतनी रात कहा गय जकनदत लजतका की आख जिर झपक गयी जदन-भर की थकान न सब परशाजनयो परशनो पर

कजी लगा दी थी मानो जदन-भर आख-जमचौनी खलत हए उसन अपन कमर म lsquoदययाrsquo को छ जलया था अब वह

सरजकषत थी कमर की चहारदीवारी क भीतर उस कोई नही पकड़ सकता जदन क उजाल म वह गवाह थी मजररम थी

हर चीज का उसस तकाजा था अब इस अकलपन म कोई जगला नही उलाहना नही सब खीचातानी खतम हो गयी ह

जो अपना ह वह जबकल अपना-सा हो गया ह जो अपना नही ह उसका दख नही अपनान की िरसत नही

लजतका न दीवार की ओर मह घमा जलया लमप क िीक आलोक म हवा म कापत परदो की छायाए जहल रही थी

जबजली कड़कन स जखड़जकयो क शीश-चमक-चमक जात थ दरवाज चरखन लगत थ जस कोई बाहर स धीम-धीम

खरखरा रहा हो कॉरीडोर स अपन-अपन कमरो म जाती हई लड़जकयो की हसी बातो क कछ शबद जिर सबकछ

शानदत हो गया जकनदत जिर भी दर तक कचची नीद म वह लमप का धीमा-सा lsquoसी-सीrsquo सवर सनती रही कब वह सवर

भी मौन का भाग बनकर मक हो गया उस पता न चला कछ दर बाद उसको लगा सीजढ़यो स कछ दबी आवाज ऊपर

आ रही ह बीच-बीच म कोई जचला उठता ह और जिर सहसा आवाज धीमी पड़ जाती ह ldquoजमस लजतका जरा

अपना लमप ल आइय - कॉररडोर क जीन स डाकरर मकजी की आवाज आयी थी

कॉरीडोर म अधरा था वह तीन-चार सीजढ़या नीच उतरी लमप नीच जकया सीजढ़यो स सर जगल पर हयबरट न अपना

जसर रख जदया था उसकी एक बाह जगल क नीच लरक रही थी और दसरी डाकरर क कनदध पर झल रही थी जजस

डाकरर न अपन हाथो म जकड़ रखा था ldquoजमस लजतका लमप ज़रा और नीच झका दीजजएहयबरटहयबरट डाकरर

न हयबरट को सहारा दकर ऊपर खीचा हयबरट न अपना चहरा ऊपर जकया जवहसकी की तज ब का झोका लजतका क

सार शरीर को जझझोड़ गया हयबरट की आखो म सखट डोर जखच आय थ कमीज का कालर उलरा हो गया था और

राई की गाठ ढीली होकर नीच जखसक आयी थी लजतका न कापत हाथो स लमप सीजढ़यो पर रख जदया और आप

दीवार क सहार खड़ी हो गयी उसका जसर चकरान लगा था

ldquoइन ए बक लन ऑि द जसरी दयर इज ए गलट ह लवज मी हयबरट जहचजकयो क बीच गनगना उठता था

ldquoहयबरट पलीजपलीज डाकरर न हयबरट क लड़खड़ात शरीर को अपनी मजबत जगरफत म ल जलया

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ldquoजमस लजतका आप लमप लकर आग चजलए लजतका न लमप उठाया दीवार पर उन तीनो की छायाए डगमगान

लगी

ldquoइन ए बक लन ऑि द जसरी दयर इज ए गलट ह लवज मी हयबरट डाकरर मकजी क कनदध पर जसर जरकाय अधरी

सीजढ़यो पर उर-सीध पर रखता चढ़ रहा था

ldquoडाकरर हम कहा ह हयबरट सहसा इतनी जोर स जचलाया जक उसकी लड़खड़ाती आवाज सनसान अधर म

कॉरीडोर की छत स रकराकर दर तक हवा म गजती रही

ldquoहयबरट डाकरर को एकदम हयबरट पर गससा आ गया जिर अपन गसस पर ही उस खीझ-सी हो आयी और वह

हयबरट की पीठ थपथपान लगा ldquoकछ बात नही ह हयबरट जडयर तम जसिट थक गय होldquo हयबरट न अपनी आख डाकरर

पर गड़ा दी उनम एक भयभीत बचच की-सी कातरता झलक रही थी मानो डाकरर क चहर स वह जकसी परशन का उततर

पा लना चाहता हो हयबरट क कमर म पहचकर डाकरर न उस जबसतर पर जलरा जदया हयबरट न जबना जकसी जवरोध क

चपचाप जत-मोज उतरवा जदय जब डाकरर हयबरट की राई उतारन लगा तो हयबरट अपनी कहनी क सहार उठा कछ

दर तक डाकरर को आख िाड़त हए घरता रहा जिर धीर-स उसका हाथ पकड़ जलया ldquoडाकरर कया म मर जाऊ गा

ldquoकसी बात करत हो हयबरट डाकरर न हाथ छड़ाकर धीर-स हयबरट का जसर तजकय पर जरका जदया ldquoगड नाइर हयबरट

ldquoगड नाइर डाकरर हयबरट न करवर बदल ली ldquoगड नाइर जम हयबरट लजतका का सवर जसहर गया जकनदत हयबरट न

कोई उततर नही जदया करवर बदलत ही उस नीद आ गयी थी

कॉरीडोर म वाजपस आकर डाकरर मकजी रजलग क सामन खड़ हो गय हवा क तज झोको स आकाश म िल बादलो

की परत जब कभी इकहरी हो जाती तब उनक पीछ स चादनी बझती हई आग क धए-सी आस-पास की पहाजड़यो पर

िल जाती थी ldquoआपको जम हयबरट कहा जमल लजतका कॉरीडोर क दसर कोन म रजलग पर झकी हई थी ldquoकलब क

बार म उनदह दखा था म न पहचता तो न जान कब तक बठ रहत डाकरर मकजी न जसगरर जलायी उनदह अभी एक-दो

मरीजो क घर जाना था कछ दर तक उनदह राल दन क इराद स वह कॉरीडोर म खड़ रह नीच अपन कवारटर म बठा

हआ करीमददीन माउथ आगटन पर कोई परानी जिमी धन बजा रहा था

ldquoआज जदन भर बादल छाय रह लजकन खलकर बाररश नही हई ldquoजकरसमस तक शायद मौसम ऐसा ही रहगा कछ

दर तक दोनो चपचाप खड रह कॉनदवनदर सकल क बाहर िल लॉन स झीगरो का अनवरत सवर चारो ओर िली

जनसतबधता को और भी अजधक घना बना रहा था कभी-कभी ऊपर मोरर रोड पर जकसी कतत की ररररयाहर सनायी

पड़ा जाती थी ldquoडाकरर कल रात आपन जम हयबरट स कछ कहा था मर बार म ldquoवही जो सब लोग जानत ह और

हयबरट जजस जानना चाजहए था नही जानता था डाकरर न लजतका की ओर दखा वह जड़वत अजवचजलत रजलग पर

झकी हई थी ldquoवस हम सबकी अपनी-अपनी जजद होती ह कोई छोड़ दता ह कोई आजखर तक उसस जचपका रहता

ह डाकरर मकजी अधर म मसकराय उनकी मसकराहर म सखा-सा जवरजि का भाव भरा था ldquoकभी-कभी म सोचता

ह जमस लजतका जकसी चीज को न जानना यजद गलत ह तो जान-बझकर न भल पाना हमशा जोक की तरह उसस

जचपर रहना यह भी गलत ह बमाट स आत हए मरी पतनी की मतय हई थी मझ अपनी जजनददगी बकार-सी लगी थी

आज इस बात को असाट गजर गया और जसा आप दखती ह म जी रहा ह उममीद ह जक कािी असाट और जजऊ गा

जजनददगी कािी जदलचसप लगती ह और यजद उमर की मजबरी न होती तो शायद म दसरी शादी करन म भी न

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जहचकता इसक बावजद कौन कह सकता ह जक म अपनी पतनी स परम नही करता था आज भी करता ह ldquoलजकन

डाकरर लजतका का गला र ध आया था ldquoकया ज ामस लजतका

ldquoडाकरर - सबकछ होन क बावजद वह कया चीज़ ह जो हम चलाय चलती ह हम रकत ह तो भी अपन रल म वह हम

घसीर ल जाती ह लजतका को लगा जक वह जो कहना चाह रही ह कह नही पा रही जस अधर म कछ खो गया ह

जो जमल नही पा रहा शायद कभी नही जमल पायगा ldquoयह तो आपको िादर एमणड ही बता सक ग जमस लजतका

डाकरर की खोखली हसी म उनका पराना सनकीपन उभर आया था ldquoअचछा चलता ह जमस लजतका मझ कािी दर

हो गयी ह डाकरर न जदयासलाई जलाकर घड़ी को दखा ldquoगड नाइर जमस लजतका ldquoगड नाइर डाकरर

डाकरर क जान पर लजतका कछ दर तक अधर म रजलग स सरी खड़ी रही हवा चलन स कॉरीडोर म जमा हआ कहरा

जसहर उठता था शाम को सामान बाधत हए लड़जकयो न अपन-अपन कमर क सामन जो परानी काजपयो अखबारो

और रददी क ढर लगा जदय थ व सब अब अधर कॉरीडोर म हवा क झोको स इधर-उधर जबखरन लग थ

लजतका न लमप उठाया और अपन कमर की ओर जान लगी कॉरीडोर म चलत हए उसन दखा जली क कमर म

परकाश की एक पतली रखा दरवाज क बाहर जखच आयी ह लजतका को कछ याद आया वह कछ कषणो तक सास

रोक जली क कमर क बाहर खड़ी रही कछ दर बाद उसन दरवाजा खरखराया भीतर स कोई आवाज नही आयी

लजतका न दब हाथो स हलका-सा धकका जदया दरवाजा खल गया जली लमप बझाना भल गयी थी लजतका धीर-

धीर दब पाव जली क पलग क पास चली आयी जली का सोता हआ चहरा लमप क िीक आलोक म पीला-सा

दीख रहा था लजतका न अपनी जब स वही नीला जलिािा जनकाला और उस धीर-स जली क तजकय क नीच

दबाकर रख जदया

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अमतसर आ गया ि

भीषम साहनी

गाड़ी क जडबब म बहत मसाजिर नही थ मर सामनवाली सीर पर बठ सरदार जी दर स मझ लाम क जकसस सनात रह

थ वह लाम क जदनो म बमाट की लड़ाई म भाग ल चक थ और बात-बात पर खी-खी करक हसत और गोर िौजजयो

की जखली उड़ात रह थ जडबब म तीन पठान वयापारी भी थ उनम स एक हर रग की पोशाक पहन ऊपरवाली बथट पर

लरा हआ था वह आदमी बड़ा हसमख था और बड़ी दर स मर साथवाली सीर पर बठ एक दबल-स बाब क साथ

उसका मजाक चल रहा था वह दबला बाब पशावर का रहनवाला जान पड़ता था कयोजक जकसी-जकसी वि व

आपस म पशतो म बात करन लगत थ मर सामन दाई ओर कोन म एक बजढ़या मह-जसर ढाप बठा थी और दर स

माला जप रही थी यही कछ लोग रह होग सभव ह दो-एक और मसाजिर भी रह हो पर व सपित मझ याद नही

गाड़ी धीमी रफतार स चली जा रही थी और गाड़ी म बठ मसाजिर बजतया रह थ और बाहर गह क खतो म हकी-

हकी लहररया उठ रही थी और म मन-ही-मन बड़ा खश था कयोजक म जदली म होनवाला सवततरता-जदवस समारोह

दखन जा रहा था

उन जदनो क बार म सोचता ह तो लगता ह हम जकसी झरपर म जी रह ह शायद समय बीत जान पर अतीत का सारा

वयापार ही झरपर म बीता जान पड़ता ह जयो-जयो भजवषय क पर खलत जात ह यह झरपरा और भी गहराता चला

जाता ह

उनदही जदनो पाजकसतान क बनाए जान का ऐलान जकया गया था और लोग तरह-तरह क अनमान लगान लग थ जक

भजवषय म जीवन की रपरखा कसी होगी पर जकसी की भी कपना बहत दर तक नही जा पाती थी मर सामन बठ

सरदार जी बार-बार मझस पछ रह थ जक पाजकसतान बन जान पर जजनदना साजहब बबई म ही रहग या पाजकसतान म जा

कर बस जाएग और मरा हर बार यही जवाब होता - बबई कयो छोड़ग पाजकसतान म आत-जात रहग बबई छोड़ दन

म कया तक ह लाहौर और गरदासपर क बार म भी अनमान लगाए जा रह थ जक कौन-सा शहर जकस ओर जाएगा

जमल बठन क ढग म गप-शप म हसी-मजाक म कोई जवशि अतर नही आया था कछ लोग अपन घर छोड़ कर जा

रह थ जबजक अनदय लोग उनका मजाक उड़ा रह थ कोई नही जानता था जक कौन-सा कदम ठीक होगा और कौन-सा

गलत एक ओर पाजकसतान बन जान का जोश था तो दसरी ओर जहदसतान क आजाद हो जान का जोश जगह-जगह

दग भी हो रह थ और योम-ए-आजादी की तयाररया भी चल रही थी इस पषठभजम म लगता दश आजाद हो जान पर

दग अपन-आप बद हो जाएग वातावरण म इस झरपर म आजादी की सनहरी धल-सी उड़ रही थी और साथ-ही-

साथ अजनशचय भी डोल रहा था और इसी अजनशचय की जसथजत म जकसी-जकसी वि भावी ररशतो की रपरखा झलक द

जाती थी

शायद जहलम का सरशन पीछ छर चका था जब ऊपर वाली बथट पर बठ पठान न एक पोरली खोल ली और उसम स

उबला हआ मास और नान-रोरी क रकड़ जनकाल-जनकाल कर अपन साजथयो को दन लगा जिर वह हसी-मजाक क

बीच मरी बगल म बठ बाब की ओर भी नान का रकड़ा और मास की बोरी बढ़ा कर खान का आगरह करन लगा था -

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का ल बाब ताकत आएगी अम जसा ओ जाएगा बीवी बी तर सात कश रएगी काल दालकोर त दाल काता ए

इसजलए दबला ए

जडबब म लोग हसन लग थ बाब न पशतो म कछ जवाब जदया और जिर मसकराता जसर जहलाता रहा

इस पर दसर पठान न हस कर कहा - ओ जाजलम अमार हाथ स नई लता ए तो अपन हाथ स उठा ल खदा कसम

बकर का गोशत ए और जकसी चीज का नईए

ऊपर बठा पठान चहक कर बोला - ओ खजीर क तम इदर तम कौन दखता ए अम तरी बीवी को नई बोलगा ओ त

अमार साथ बोरी तोड़ अम तर साथ दाल जपएगा

इस पर कहकहा उठा पर दबला-पतला बाब हसता जसर जहलाता रहा और कभी-कभी दो शबद पशतो म भी कह दता

ओ जकतना बरा बात ए अम खाता ए और त अमारा म दखता ए सभी पठान मगन थ

यह इसजलए नही लता जक तमन हाथ नही धोए ह सथलकाय सरदार जी बोल और बोलत ही खी-खी करन लग

अधलरी मरा म बठ सरदार जी की आधी तोद सीर क नीच लरक रही थी - तम अभी सो कर उठ हो और उठत ही

पोरली खोल कर खान लग गए हो इसीजलए बाब जी तमहार हाथ स नही लत और कोई बात नही और सरदार जी न

मरी ओर दख कर आख मारी और जिर खी-खी करन लग

मास नई खाता ए बाब तो जाओ जनाना डबब म बरो इदर कया करता ए जिर कहकहा उठा

डबब म और भी अनक मसाजिर थ लजकन परान मसाजिर यही थ जो सिर शर होन म गाड़ी म बठ थ बाकी

मसाजिर उतरत-चढ़त रह थ परान मसाजिर होन क नात उनम एक तरह की बतकलिी आ गई थी

ओ इदर आ कर बठो तम अमार साथ बरो आओ जाजलम जकससा-खानी की बात करग

तभी जकसी सरशन पर गाड़ी रकी थी और नए मसाजिरो का रला अदर आ गया था बहत-स मसाजिर एक साथ अदर

घसत चल आए थ

कौन-सा सरशन ह जकसी न पछा

वजीराबाद ह शायद मन बाहर की ओर दख कर कहा

गाड़ी वहा थोड़ी दर क जलए खड़ी रही पर छरन स पहल एक छोरी-सी घरना घरी एक आदमी साथ वाल जडबब म

स पानी लन उतरा और नल पर जा कर पानी लोर म भर रहा था तभी वह भाग कर अपन जडबब की ओर लौर आया

छलछलात लोर म स पानी जगर रहा था लजकन जजस ढग स वह भागा था उसी न बहत कछ बता जदया था नल पर

खड़ और लोग भी तीन-चार आदमी रह होग - इधर-उधर अपन-अपन जडबब की ओर भाग गए थ इस तरह घबरा

कर भागत लोगो को म दख चका था दखत-ही-दखत पलरिामट खाली हो गया मगर जडबब क अदर अभी भी हसी-

मजाक चल रहा था

कही कोई गड़बड़ ह मर पास बठ दबल बाब न कहा

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कही कछ था लजकन कया था कोई भी सपि नही जानता था म अनक दग दख चका था इसजलए वातावरण म होन

वाली छोरी-सी तबदील को भी भाप गया था भागत वयजि खराक स बद होत दरवाज घरो की छतो पर खड़ लोग

चपपी और सनदनारा सभी दगो क जचहन थ

तभी जपछल दरवाज की ओर स जो पलरिामट की ओर न खल कर दसरी ओर खलता था हका-सा शोर हआ कोई

मसाजिर अदर घसना चाह रहा था

कहा घसा आ रहा ह नही ह जगह बोल जदया जगह नही ह जकसी न कहा

बद करो जी दरवाजा यो ही मह उठाए घस आत ह आवाज आ रही थी

जजतनी दर कोई मसाजिर जडबब क बाहर खड़ा अदर आन की चिा करता रह अदर बठ मसाजिर उसका जवरोध करत

रहत ह पर एक बार जस-तस वह अदर जा जाए तो जवरोध खतम हो जाता ह और वह मसाजिर जदी ही जडबब की

दजनया का जनवासी बन जाता ह और अगल सरशन पर वही सबस पहल बाहर खड़ मसाजिरो पर जचलान लगता ह -

नही ह जगह अगल जडबब म जाओ घस आत ह

दरवाज पर शोर बढ़ता जा रहा था तभी मल-कचल कपड़ो और लरकती मछो वाला एक आदमी दरवाज म स अदर

घसता जदखाई जदया चीकर मल कपड़ जरर कही हलवाई की दकान करता होगा वह लोगो की जशकायतो-

आवाजो की ओर धयान जदए जबना दरवाज की ओर घम कर बड़ा-सा काल रग का सदक अदर की ओर घसीरन लगा

आ जाओ आ जाओ तम भी चढ़ जाओ वह अपन पीछ जकसी स कह जा रहा था तभी दरवाज म एक पतली

सखी-सी औरत नजर आई और उसस पीछ सोलह-सतरह बरस की सावली-सी एक लड़की अदर आ गई लोग अभी

भी जचलाए जा रह थ सरदार जी को कहो क बल उठ कर बठना पड़ा

बद करो जी दरवाजा जबना पछ चढ़ आत ह अपन बाप का घर समझ रखा ह मत घसन दो जी कया करत हो धकल

दो पीछ और लोग भी जचला रह थ

वह आदमी अपना सामान अदर घसीर जा रहा था और उसकी पतनी और बरी सडास क दरवाज क साथ लग कर

खड़ थ

और कोई जडबबा नही जमला औरत जात को भी यहा उठा लाया ह

वह आदमी पसीन स तर था और हािता हआ सामान अदर घसीर जा रहा था सदक क बाद रजससयो स बधी खार

की पाजरया अदर खीचन लगा

जरकर ह जी मर पास म बजरकर नही ह इस पर जडबब म बठ बहत-स लोग चप हो गए पर बथट पर बठा पठान उचक

कर बोला - जनकल जाओ इदर स दखता नई ए इदर जगा नई ए

और पठान न आव दखा न ताव आग बढ़ कर ऊपर स ही उस मसाजिर क लात जमा दी पर लात उस आदमी को

लगन क बजाए उसकी पतनी क कलज म लगी और वही हाय-हाय करती बठ गई

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उस आदमी क पास मसाजिरो क साथ उलझन क जलए वि नही था वह बराबर अपना सामान अदर घसीर जा रहा

था पर जडबब म मौन छा गया खार की पाजरयो क बाद बड़ी-बड़ी गठररया आई इस पर ऊपर बठ पठान की सहन-

कषमता चक गई जनकालो इस कौन ए य वह जचलाया इस पर दसर पठान न जो नीच की सीर पर बठा था उस

आदमी का सदक दरवाज म स नीच धकल जदया जहा लाल वदीवाला एक कली खड़ा सामान अदर पहचा रहा था

उसकी पतनी क चोर लगन पर कछ मसाजिर चप हो गए थ कवल कोन म बठो बजढ़या करलाए जा रही थी - ए

नकबखतो बठन दो आ जा बरी त मर पास आ जा जस-तस सिर कार लग छोड़ो ब जाजलमो बठन दो

अभीआधा सामान ही अदर आ पाया होगा जब सहसा गाड़ी सरकन लगी

छर गया सामान छर गया वह आदमी बदहवास-सा हो कर जचलाया

जपताजी सामान छर गया सडास क दरवाज क पास खड़ी लड़की जसर स पाव तक काप रही थी और जचलाए जा

रही थी

उतरो नीच उतरो वह आदमी हड़बड़ा कर जचलाया और आग बढ़ कर खार की पाजरया और गठररया बाहर ि कत

हए दरवाज का डडहरा पकड़ कर नीच उतर गया उसक पीछ उसकी वयाकल बरी और जिर उसकी पतनी कलज को

दोनो हाथो स दबाए हाय-हाय करती नीच उतर गई

बहत बरा जकया ह तम लोगो न बहत बरा जकया ह बजढ़या ऊ चा-ऊ चा बोल रही थी -तमहार जदल म ददट मर गया ह

छोरी-सी बचची उसक साथ थी बरहमो तमन बहत बरा जकया ह धकक द कर उतार जदया ह

गाड़ी सन पलरिामट को लाघती आग बढ़ गई जडबब म वयाकल-सी चपपी छा गई बजढ़या न बोलना बद कर जदया था

पठानो का जवरोध कर पान की जहममत नही हई

तभी मरी बगल म बठ दबल बाब न मर बाज पर हाथ रख कर कहा - आग ह दखो आग लगी ह

गाड़ी पलरिामट छोड़ कर आग जनकल आई थी और शहर पीछ छर रहा था तभी शहर की ओर स उठत धए क

बादल और उनम लपलपाती आग क शोल नजर आन लग

दगा हआ ह सरशन पर भी लोग भाग रह थ कही दगा हआ ह

शहर म आग लगी थी बात जडबब-भर क मसाजिरो को पता चल गई और व लपक-लपक कर जखड़जकयो म स आग

का दशय दखन लग

जब गाड़ी शहर छोड़ कर आग बढ़ गई तो जडबब म सनदनारा छा गया मन घम कर जडबब क अदर दखा दबल बाब का

चहरा पीला पड़ गया था और माथ पर पसीन की परत जकसी मद क माथ की तरह चमक रही थी मझ लगा जस

अपनी-अपनी जगह बठ सभी मसाजिरो न अपन आसपास बठ लोगो का जायजा ल जलया ह सरदार जी उठ कर मरी

सीर पर आ बठ नीच वाली सीर पर बठा पठान उठा और अपन दो साथी पठानो क साथ ऊपर वाली बथट पर चढ़

गया यही जकरया शायद रलगाड़ी क अनदय जडबबो म भी चल रही थी जडबब म तनाव आ गया लोगो न बजतयाना बद

कर जदया तीनो-क-तीनो पठान ऊपरवाली बथट पर एक साथ बठ चपचाप नीच की ओर दख जा रह थ सभी

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मसाजिरो की आख पहल स जयादा खली-खली जयादा शजकत-सी लगी यही जसथजत सभवत गाड़ी क सभी जडबबो

म वयापत हो रही थी

कौन-सा सरशन था यह जडबब म जकसी न पछा

वजीराबाद जकसी न उततर जदया

जवाब जमलन पर जडबब म एक और परजतजकरया हई पठानो क मन का तनाव िौरन ढीला पड़ गया जबजक जहद-जसकख

मसाजिरो की चपपी और जयादा गहरी हो गई एक पठान न अपनी वासकर की जब म स नसवार की जडजबया जनकाली

और नाक म नसवार चढ़ान लगा अनदय पठान भी अपनी-अपनी जडजबया जनकाल कर नसवार चढ़ान लग बजढ़या

बराबर माला जप जा रही थी जकसी-जकसी वि उसक बदबदात होठ नजर आत लगता उनम स कोई खोखली-सी

आवाज जनकल रही ह

अगल सरशन पर जब गाड़ी रकी तो वहा भी सनदनारा था कोई पररदा तक नही िड़क रहा था हा एक जभशती पीठ

पर पानी की मशकल लाद पलरिामट लाघ कर आया और मसाजिरो को पानी जपलान लगा

लो जपयो पानी जपयो पानी औरतो क जडबब म स औरतो और बचचो क अनक हाथ बाहर जनकल आए थ

बहत मार-कार हई ह बहत लोग मर ह लगता था वह इस मार-कार म अकला पणय कमान चला आया ह

गाड़ी सरकी तो सहसा जखड़जकयो क पल चढ़ाए जान लग दर-दर तक पजहयो की गड़गड़ाहर क साथ जखड़जकयो

क पल चढ़ान की आवाज आन लगी

जकसी अजञात आशकावश दबला बाब मर पासवाली सीर पर स उठा और दो सीरो क बीच िशट पर लर गया उसका

चहरा अभी भी मद जसा पीला हो रहा था इस पर बथट पर बठा पठान उसकी जठठोली करन लगा - ओ बगरत तम

मदट ए जक औरत ए सीर पर स उर कर नीच लरता ए तम मदट क नाम को बदनाम करता ए वह बोल रहा था और

बार-बार हस जा रहा था जिर वह उसस पशतो म कछ कहन लगा बाब चप बना लरा रहा अनदय सभी मसाजिर चप

थ जडबब का वातावरण बोजझल बना हआ था

ऐस आदमी को अम जडबब म नई बठन दगा ओ बाब अगल सरशन पर उतर जाओ और जनाना डबब म बरो

मगर बाब की हाजजरजवाबी अपन कठ म सख चली थी हकला कर चप हो रहा पर थोड़ी दर बाद वह अपन आप

उठ कर सीर पर जा बठा और दर तक अपन कपड़ो की धल झाड़ता रहा वह कयो उठ कर िशट पर लर गया था

शायद उस डर था जक बाहर स गाड़ी पर पथराव होगा या गोली चलगी शायद इसी कारण जखड़जकयो क पल चढ़ाए

जा रह थ

कछ भी कहना कजठन था ममजकन ह जकसी एक मसाजिर न जकसी कारण स जखड़की का पला चढ़ाया हो उसकी

दखा-दखी जबना सोच-समझ धड़ाधड़ जखड़जकयो क पल चढ़ाए जान लग थ

बोजझल अजनशचत-स वातावरण म सिर करन लगा रात गहरान लगी थी जडबब क मसाजिर सतबध और शजकत जयो-

क-तयो बठ थ कभी गाड़ी की रफतार सहसा रर कर धीमी पड़ जाती तो लोग एक-दसर की ओर दखन लगत कभी

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रासत म ही रक जाती तो जडबब क अदर का सनदनारा और भी गहरा हो उठता कवल पठान जनजशचत बठ थ हा उनदहोन

भी बजतयाना छोड़ जदया था कयोजक उनकी बातचीत म कोई भी शाजमल होन वाला नही था

धीर-धीर पठान ऊ घन लग जबजक अनदय मसाजिर िरी-िरी आखो स शनदय म दख जा रह थ बजढ़या मह-जसर लपर

राग सीर पर चढ़ाए बठा-बठा सो गई थी ऊपरवाली बथट पर एक पठान न अधलर ही कत की जब म स काल

मनको की तसबीह जनकाल ली और उस धीर-धीर हाथ म चलान लगा

जखड़की क बाहर आकाश म चाद जनकल आया और चादनी म बाहर की दजनया और भी अजनजशचत और भी अजधक

रहसयमयी हो उठी जकसी-जकसी वि दर जकसी ओर आग क शोल उठत नजर आत कोई नगर जल रहा था गाड़ी

जकसी वि जचघाड़ती हई आग बढ़न लगती जिर जकसी वि उसकी रफतार धीमी पड़ जाती और मीलो तक धीमी

रफतार स ही चलती रहती

सहसा दबला बाब जखड़की म स बाहर दख कर ऊ ची आवाज म बोला - हरबसपरा जनकल गया ह उसकी आवाज

म उततजना थी वह जस चीख कर बोला था जडबब क सभी लोग उसकी आवाज सन कर चौक गए उसी वि जडबब

क अजधकाश मसाजिरो न मानो उसकी आवाज को ही सन कर करवर बदली

ओ बाब जचलाता कयो ए तसबीह वाला पठान चौक कर बोला - इदर उतरगा तम जजीर खीच अर खी-खी

करक हस जदया जाजहर ह वह हरबसपरा की जसथजत स अथवा उसक नाम स अनजभजञ था

बाब न कोई उततर नही जदया कवल जसर जहला जदया और एक-आध बार पठान की ओर दख कर जिर जखड़की क

बाहर झाकन लगा

डबब म जिर मौन छा गया तभी इजन न सीरी दी और उसकी एकरस रफतार रर गई थोड़ी ही दर बाद खराक-का-सा

शबद भी हआ शायद गाड़ी न लाइन बदली थी बाब न झाक कर उस जदशा म दखा जजस ओर गाड़ी बढ़ी जा रही थी

शहर आ गया ह वह जिर ऊ ची आवाज म जचलाया - अमतसर आ गया ह उसन जिर स कहा और उछल कर

खड़ा हो गया और ऊपर वाली बथट पर लर पठान को सबोजधत करक जचलाया - ओ ब पठान क बचच नीच उतर

तरी मा की नीच उतर तरी उस पठान बनानवाल की म

बाब जचलान लगा और चीख-चीख कर गाजलया बकन लगा था तसबीह वाल पठान न करवर बदली और बाब की

ओर दख कर बोला -ओ कया ए बाब अमको कच बोला

बाब को उततजजत दख कर अनदय मसाजिर भी उठ बठ

नीच उतर तरी म जहद औरत को लात मारता ह हरामजाद तरी उस

ओ बाब बक-बकर नई करो ओ खजीर क तखम गाली मत बको अमन बोल जदया अम तमहारा जबान खीच

लगा

गाली दता ह मादर बाब जचलाया और उछल कर सीर पर चढ़ गया वह जसर स पाव तक काप रहा था

बस-बस सरदार जी बोल - यह लड़न की जगह नही ह थोड़ी दर का सिर बाकी ह आराम स बठो

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तरी म लात न तोड़ तो कहना गाड़ी तर बाप की ह बाब जचलाया

ओ अमन कया बोला सबी लोग उसको जनकालता था अमन बी जनकाला य इदर अमको गाली दता ए अम इसका

जबान खीच लगा

बजढ़या बीच म जिर बोल उठी - व जीण जोगयो अराम नाल बठो व रबब जदए बदयो कछ होश करो

उसक होठ जकसी परत की तरह िड़िड़ाए जा रह थ और उनम स कषीण-सी िसिसाहर सनाई द रही थी

बाब जचलाए जा रहा था - अपन घर म शर बनता था अब बोल तरी म उस पठान बनानवाल की

तभी गाड़ी अमतसर क पलरिामट पर रकी पलरिामट लोगो स खचाखच भरा था पलरिामट पर खड़ लोग झाक-झाक

कर जडबबो क अदर दखन लग बार-बार लोग एक ही सवाल पछ रह थ - पीछ कया हआ ह कहा पर दगा हआ ह

खचाखच भर पलरिामट पर शायद इसी बात की चचाट चल रही थी जक पीछ कया हआ ह पलरिामट पर खड़ दो-तीन

खोमच वालो पर मसाजिर रर पड़ रह थ सभी को सहसा भख और पयास परशान करन लगी थी इसी दौरान तीन-

चार पठान हमार जडबब क बाहर परकर हो गए और जखड़की म स झाक-झाक कर अदर दखन लग अपन पठान

साजथयो पर नजर पड़त ही व उनस पशतो म कछ बोलन लग मन घम कर दखा बाब जडबब म नही था न जान कब

वह जडबब म स जनकल गया था मरा माथा जठनका गसस म वह पागल हआ जा रहा था न जान कया कर बठ पर इस

बीच जडबब क तीनो पठान अपनी-अपनी गठरी उठा कर बाहर जनकल गए और अपन पठान साजथयो क साथ गाड़ी क

अगल जडबब की ओर बढ़ गए जो जवभाजन पहल परतयक जडबब क भीतर होता रहा था अब सारी गाड़ी क सतर पर

होन लगा था

खोमचवालो क इदट-जगदट भीड़ छरन लगी लोग अपन-अपन जडबबो म लौरन लग तभी सहसा एक ओर स मझ वह

बाब आता जदखाई जदया उसका चहरा अभी भी बहत पीला था और माथ पर बालो की लर झल रही थी नजदीक

पहचा तो मन दखा उसन अपन दाए हाथ म लोह की एक छड़ उठा रखी थी जान वह उस कहा जमल गई थी जडबब

म घसत समय उसन छड़ को अपनी पीठ क पीछ कर जलया और मर साथ वाली सीर पर बठन स पहल उसन हौल स

छड़ को सीर क नीच सरका जदया सीर पर बठत ही उसकी आख पठान को दख पान क जलए ऊपर को उठी पर

जडबब म पठानो को न पा कर वह हड़बड़ा कर चारो ओर दखन लगा

जनकल गए हरामी मादर सब-क-सब जनकल गए जिर वह जसरजपरा कर उठ खड़ा हआ जचला कर बोला - तमन

उनदह जान कयो जदया तम सब नामदट हो बजजदल

पर गाड़ी म भीड़ बहत थी बहत-स नए मसाजिर आ गए थ जकसी न उसकी ओर जवशि धयान नही जदया

गाड़ी सरकन लगी तो वह जिर मरी वाली सीर पर आ बठा पर वह बड़ा उततजजत था और बराबर बड़बड़ाए जा रहा

था

धीर-धीर जहचकोल खाती गाड़ी आग बढ़न लगी जडबब म परान मसाजिरो न भरपर पररया खा ली थी और पानी पी

जलया था और गाड़ी उस इलाक म आग बढ़न लगी थी जहा उनक जान-माल को खतरा नही था

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नए मसाजिर बजतया रह थ धीर-धीर गाड़ी जिर समतल गजत स चलन लगी थी कछ ही दर बाद लोग ऊ घन भी लग

थ मगर बाब अभी भी िरी-िरी आखो स सामन की ओर दख जा रहा था बार-बार मझस पछता जक पठान जडबब म

स जनकल कर जकस ओर को गए ह उसक जसर पर जनन सवार था

गाड़ी क जहचकोलो म म खद ऊ घन लगा था जडबब म लर पान क जलए जगह नही थी बठ-बठ ही नीद म मरा जसर

कभी एक ओर को लढ़क जाता कभी दसरी ओर को जकसी-जकसी वि झरक स मरी नीद ररती और मझ सामन की

सीर पर असत-वयसत स पड़ सरदार जी क खराटर सनाई दत अमतसर पहचन क बाद सरदार जी जिर स सामनवाली

सीर पर राग पसार कर लर गए थ जडबब म तरह-तरह की आड़ी-जतरछी मराओ म मसाजिर पड़ थ उनकी बीभतस

मराओ को दख कर लगता जडबबा लाशो स भरा ह पास बठ बाब पर नजर पड़ती तो कभी तो वह जखड़की क बाहर

मह जकए दख रहा होता कभी दीवार स पीठ लगाए तन कर बठा नजर आता

जकसी-जकसी वि गाड़ी जकसी सरशन पर रकती तो पजहयो की गड़गड़ाहर बद होन पर जनसतबधता-सी छा जाती तभी

लगता जस पलरिामट पर कछ जगरा ह या जस कोई मसाजिर गाड़ी म स उतरा ह और म झरक स उठ कर बठ जाता

इसी तरह जब एक बार मरी नीद ररी तो गाड़ी की रफतार धीमी पड़ गई थी और जडबब म अधरा था मन उसी तरह

अधलर जखड़की म स बाहर दखा दर पीछ की ओर जकसी सरशन क जसगनल क लाल कमकम चमक रह थ सपित

गाड़ी कोई सरशन लाघ कर आई थी पर अभी तक उसन रफतार नही पकड़ी थी

जडबब क बाहर मझ धीम-स असिर सवर सनाई जदए दर ही एक धजमल-सा काला पज नजर आया नीद की खमारी म

मरी आख कछ दर तक उस पर लगी रही जिर मन उस समझ पान का जवचार छोड़ जदया जडबब क अदर अधरा था

बजततया बझी हई थी लजकन बाहर लगता था पौ िरन वाली ह

मरी पीठ-पीछ जडबब क बाहर जकसी चीज को खरोचन की-सी आवाज आई मन दरवाज की ओर घम कर दखा

जडबब का दरवाजा बद था मझ जिर स दरवाजा खरोचन की आवाज सनाई दी जिर मन साि-साि सना लाठी स

कोई जडबब का दरवाजा परपरा रहा था मन झाक कर जखड़की क बाहर दखा सचमच एक आदमी जडबब की दो

सीजढ़या चढ़ आया था उसक कध पर एक गठरी झल रही थी और हाथ म लाठी थी और उसन बदरग-स कपड़ पहन

रख थ और उसक दाढ़ी भी थी जिर मरी नजर बाहर नीच की ओर आ गई गाड़ी क साथ-साथ एक औरत भागती

चली आ रही थी नग पाव और उसन दो गठररया उठा रखी थी बोझ क कारण उसस दौड़ा नही जा रहा था जडबब क

पायदान पर खड़ा आदमी बार-बार उसकी ओर मड़ कर दख रहा था और हािता हआ कह जा रहा था - आ जा आ

जा त भी चढ़ आ आ जा

दरवाज पर जिर स लाठी परपरान की आवाज आई - खोलो जी दरवाजा खदा क वासत दरवाजा खोलो

वह आदमी हाि रहा था - खदा क जलए दरवाजा खोलो मर साथ म औरतजात ह गाड़ी जनकल जाएगी

सहसा मन दखा बाब हड़बड़ा कर उठ खड़ा हआ और दरवाज क पास जा कर दरवाज म लगी जखड़की म स मह

बाहर जनकाल कर बोला - कौन ह इधर जगह नही ह

बाहर खड़ा आदमी जिर जगड़जगड़ान लगा - खदा क वासत दरवाजा खोलो गाड़ी जनकल जाएगी

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और वह आदमी जखड़की म स अपना हाथ अदर डाल कर दरवाजा खोल पान क जलए जसरकनी ररोलन लगा

नही ह जगह बोल जदया उतर जाओ गाड़ी पर स बाब जचलाया और उसी कषण लपक कर दरवाजा खोल जदया

या अलाह उस आदमी क असिर-स शबद सनाई जदए दरवाजा खलन पर जस उसन इतमीनान की सास ली हो

और उसी वि मन बाब क हाथ म छड़ चमकत दखा एक ही भरपर वार बाब न उस मसाजिर क जसर पर जकया था म

दखत ही डर गया और मरी राग लरज गई मझ लगा जस छड़ क वार का उस आदमी पर कोई असर नही हआ

उसक दोनो हाथ अभी भी जोर स डडहर को पकड़ हए थ कध पर स लरकती गठरी जखसर कर उसकी कोहनी पर

आ गई थी

तभी सहसा उसक चहर पर लह की दो-तीन धार एक साथ िर पड़ी मझ उसक खल होठ और चमकत दात नजर

आए वह दो-एक बार या अलाह बदबदाया जिर उसक पर लड़खड़ा गए उसकी आखो न बाब की ओर दखा

अधमदी-सी आख जो धीर-धीर जसकड़ती जा रही थी मानो उस पहचानन की कोजशश कर रही हो जक वह कौन ह

और उसस जकस अदावत का बदला ल रहा ह इस बीच अधरा कछ और छन गया था उसक होठ जिर स िड़िड़ाए

और उनम सिद दात जिर स झलक उठ मझ लगा जस वह मसकराया ह पर वासतव म कवल कषय क ही कारण होठो

म बल पड़न लग थ

नीच पररी क साथ-साथ भागती औरत बड़बड़ाए और कोस जा रही थी उस अभी भी मालम नही हो पाया था जक

कया हआ ह वह अभी भी शायद यह समझ रही थी जक गठरी क कारण उसका पजत गाड़ी पर ठीक तरह स चढ़ नही

पा रहा ह जक उसका पर जम नही पा रहा ह वह गाड़ी क साथ-साथ भागती हई अपनी दो गठररयो क बावजद अपन

पजत क पर पकड़-पकड़ कर सीढ़ी पर जरकान की कोजशश कर रही थी

तभी सहसा डडहर स उस आदमी क दोनो हाथ छर गए और वह कर पड़ की भाजत नीच जा जगरा और उसक जगरत

ही औरत न भागना बद कर जदया मानो दोनो का सिर एक साथ ही खतम हो गया हो

बाब अभी भी मर जनकर जडबब क खल दरवाज म बत-का-बत बना खड़ा था लोह की छड़ अभी भी उसक हाथ म

थी मझ लगा जस वह छड़ को ि क दना चाहता ह लजकन उस ि क नही पा रहा उसका हाथ जस उठ नही रहा था

मरी सास अभी भी िली हई थी और जडबब क अजधयार कोन म म जखड़की क साथ सर कर बठा उसकी ओर दख जा

रहा था

जिर वह आदमी खड़-खड़ जहला जकसी अजञात पररणावश वह एक कदम आग बढ़ आया और दरवाज म स बाहर

पीछ की ओर दखन लगा गाड़ी आग जनकलती जा रही थी दर पररी क जकनार अजधयारा पज-सा नजर आ रहा था

बाब का शरीर हरकत म आया एक झरक म उसन छड़ को जडबब क बाहर ि क जदया जिर घम कर जडबब क अदर

दाए-बाए दखन लगा सभी मसाजिर सोए पड़ थ मरी ओर उसकी नजर नही उठी

थोड़ी दर तक वह खड़ा डोलता रहा जिर उसन घम कर दरवाजा बद कर जदया उसन धयान स अपन कपड़ो की ओर

दखा अपन दोनो हाथो की ओर दखा जिर एक-एक करक अपन दोनो हाथो को नाक क पास ल जा कर उनदह सघा

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मानो जानना चाहता हो जक उसक हाथो स खन की ब तो नही आ रही ह जिर वह दब पाव चलता हआ आया और

मरी बगलवाली सीर पर बठ गया

धीर-धीर झरपरा छरन लगा जदन खलन लगा साि-सथरी-सी रोशनी चारो ओर िलन लगी जकसी न जजीर खीच

कर गाड़ी को खड़ा नही जकया था छड़ खा कर जगरी उसकी दह मीलो पीछ छर चकी थी सामन गह क खतो म जिर

स हकी-हकी लहररया उठन लगी थी

सरदार जी बदन खजलात उठ बठ मरी बगल म बठा बाब दोनो हाथ जसर क पीछ रख सामन की ओर दख जा रहा

था रात-भर म उसक चहर पर दाढ़ी क छोर-छोर बाल उग आए थ अपन सामन बठा दख कर सरदार उसक साथ

बजतयान लगा - बड़ जीवर वाल हो बाब दबल-पतल हो पर बड़ गद वाल हो बड़ी जहममत जदखाई ह तमस डर कर

ही व पठान जडबब म स जनकल गए यहा बन रहत तो एक-न-एक की खोपड़ी तम जरर दरसत कर दत और सरदार

जी हसन लग

बाब जवाब म मसकराया - एक वीभतस-सी मसकान और दर तक सरदार जी क चहर की ओर दखता रहा

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चीफ की दावत

भीषम साहनी

आज जमसरर शामनाथ क घर चीि की दावत थी

शामनाथ और उनकी धमटपतनी को पसीना पोछन की िसटत न थी पतनी डरजसग गाउन पहन उलझ हए बालो का जड़ा

बनाए मह पर िली हई सखी और पाउड़र को मल और जमसरर शामनाथ जसगरर पर जसगरर ि कत हए चीजो की

िहररसत हाथ म थाम एक कमर स दसर कमर म आ-जा रह थ

आजखर पाच बजत-बजत तयारी मकममल होन लगी कजसटया मज जतपाइया नपजकन िल सब बरामद म पहच गए

जडरक का इतजाम बठक म कर जदया गया अब घर का िालत सामान अलमाररयो क पीछ और पलगो क नीच

जछपाया जान लगा तभी शामनाथ क सामन सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई मा का कया होगा

इस बात की ओर न उनका और न उनकी कशल गजहणी का धयान गया था जमसरर शामनाथ शरीमती की ओर घम कर

अगरजी म बोल - मा का कया होगा

शरीमती काम करत-करत ठहर गई और थोडी दर तक सोचन क बाद बोली - इनदह जपछवाड़ इनकी सहली क घर भज

दो रात-भर बशक वही रह कल आ जाए

शामनाथ जसगरर मह म रख जसकडी आखो स शरीमती क चहर की ओर दखत हए पल-भर सोचत रह जिर जसर जहला

कर बोल - नही म नही चाहता जक उस बजढ़या का आना-जाना यहा जिर स शर हो पहल ही बड़ी मजशकल स बद

जकया था मा स कह जक जदी ही खाना खा क शाम को ही अपनी कोठरी म चली जाए महमान कही आठ बज

आएग इसस पहल ही अपन काम स जनबर ल

सझाव ठीक था दोनो को पसद आया मगर जिर सहसा शरीमती बोल उठी - जो वह सो गई और नीद म खराटर लन

लगी तो साथ ही तो बरामदा ह जहा लोग खाना खाएग

तो इनदह कह दग जक अदर स दरवाजा बद कर ल म बाहर स ताला लगा दगा या मा को कह दता ह जक अदर जा कर

सोए नही बठी रह और कया

और जो सो गई तो जडनर का कया मालम कब तक चल गयारह-गयारह बज तक तो तम जडरक ही करत रहत हो

शामनाथ कछ खीज उठ हाथ झरकत हए बोल - अचछी-भली यह भाई क पास जा रही थी तमन य ही खद अचछा

बनन क जलए बीच म राग अड़ा दी

वाह तम मा और बर की बातो म म कयो बरी बन तम जानो और वह जान

जमसरर शामनाथ चप रह यह मौका बहस का न था समसया का हल ढढ़न का था उनदहोन घम कर मा की कोठरी की

ओर दखा कोठरी का दरवाजा बरामद म खलता था बरामद की ओर दखत हए झर स बोल - मन सोच जलया ह -

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और उनदही कदमो मा की कोठरी क बाहर जा खड़ हए मा दीवार क साथ एक चौकी पर बठी दपटट म मह-जसर लपर

माला जप रही थी सबह स तयारी होती दखत हए मा का भी जदल धड़क रहा था बर क दफतर का बड़ा साहब घर पर

आ रहा ह सारा काम सभीत स चल जाय

मा आज तम खाना जदी खा लना महमान लोग साढ़ सात बज आ जाएग

मा न धीर स मह पर स दपटटा हराया और बर को दखत हए कहा आज मझ खाना नही खाना ह बरा तम जो जानत

हो मास-मछली बन तो म कछ नही खाती

जस भी हो अपन काम स जदी जनबर लना

अचछा बरा

और मा हम लोग पहल बठक म बठ ग उतनी दर तम यहा बरामद म बठना जिर जब हम यहा आ जाए तो तम

गसलखान क रासत बठक म चली जाना

मा अवाक बर का चहरा दखन लगी जिर धीर स बोली - अचछा बरा

और मा आज जदी सो नही जाना तमहार खराटरो की आवाज दर तक जाती ह

मा लजजजत-सी आवाज म बोली - कया कर बरा मर बस की बात नही ह जब स बीमारी स उठी ह नाक स सास

नही ल सकती

जमसरर शामनाथ न इतजाम तो कर जदया जिर भी उनकी उधड़-बन खतम नही हई जो चीि अचानक उधर आ

जनकला तो आठ-दस महमान होग दसी अिसर उनकी जसतरया होगी कोई भी गसलखान की तरि जा सकता ह

कषोभ और करोध म वह झझलान लग एक कसी को उठा कर बरामद म कोठरी क बाहर रखत हए बोल - आओ मा

इस पर जरा बठो तो

मा माला सभालती पला ठीक करती उठी और धीर स कसी पर आ कर बठ गई

य नही मा राग ऊपर चढ़ा कर नही बठत यह खार नही ह

मा न राग नीच उतार ली

और खदा क वासत नग पाव नही घमना न ही वह खड़ाऊ पहन कर सामन आना जकसी जदन तमहारी यह खड़ाऊ उठा

कर म बाहर ि क दगा

मा चप रही

कपड़ कौन स पहनोगी मा

जो ह वही पहनगी बरा जो कहो पहन ल

जमसरर शामनाथ जसगरर मह म रख जिर अधखली आखो स मा की ओर दखन लग और मा क कपड़ो की सोचन

लग शामनाथ हर बात म तरतीब चाहत थ घर का सब सचालन उनक अपन हाथ म था खजरया कमरो म कहा

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लगाई जाए जबसतर कहा पर जबछ जकस रग क पद लगाए जाए शरीमती कौन-सी साड़ी पहन मज जकस साइज की

हो शामनाथ को जचता थी जक अगर चीि का साकषात मा स हो गया तो कही लजजजत नही होना पड मा को जसर स

पाव तक दखत हए बोल - तम सिद कमीज और सिद सलवार पहन लो मा पहन क आओ तो जरा दख

मा धीर स उठी और अपनी कोठरी म कपड़ पहनन चली गई

यह मा का झमला ही रहगा उनदहोन जिर अगरजी म अपनी सतरी स कहा - कोई ढग की बात हो तो भी कोई कह अगर

कही कोई उरी-सीधी बात हो गई चीि को बरा लगा तो सारा मजा जाता रहगा

मा सिद कमीज और सिद सलवार पहन कर बाहर जनकली छोरा-सा कद सिद कपड़ो म जलपरा छोरा-सा सखा

हआ शरीर धधली आख कवल जसर क आध झड़ हए बाल पल की ओर म जछप पाए थ पहल स कछ ही कम

करप नजर आ रही थी

चलो ठीक ह कोई चजड़या-वजड़या हो तो वह भी पहन लो कोई हजट नही

चजड़या कहा स लाऊ बरा तम तो जानत हो सब जवर तमहारी पढ़ाई म जबक गए

यह वाकय शामनाथ को तीर की तरह लगा जतनक कर बोल - यह कौन-सा राग छड़ जदया मा सीधा कह दो नही ह

जवर बस इसस पढ़ाई-वढ़ाई का कया तअलक ह जो जवर जबका तो कछ बन कर ही आया ह जनरा लडरा तो नही

लौर आया जजतना जदया था उसस दगना ल लना

मरी जीभ जल जाय बरा तमस जवर लगी मर मह स य ही जनकल गया जो होत तो लाख बार पहनती

साढ़ पाच बज चक थ अभी जमसरर शामनाथ को खद भी नहा-धो कर तयार होना था शरीमती कब की अपन कमर म

जा चकी थी शामनाथ जात हए एक बार जिर मा को जहदायत करत गए - मा रोज की तरह गमसम बन क नही बठी

रहना अगर साहब इधर आ जनकल और कोई बात पछ तो ठीक तरह स बात का जवाब दना

म न पढ़ी न जलखी बरा म कया बात कर गी तम कह दना मा अनपढ़ ह कछ जानती-समझती नही वह नही पछगा

सात बजत-बजत मा का जदल धक-धक करन लगा अगर चीि सामन आ गया और उसन कछ पछा तो वह कया

जवाब दगी अगरज को तो दर स ही दख कर घबरा उठती थी यह तो अमरीकी ह न मालम कया पछ म कया कह गी

मा का जी चाहा जक चपचाप जपछवाड़ जवधवा सहली क घर चली जाए मगर बर क हकम को कस राल सकती थी

चपचाप कसी पर स राग लरकाए वही बठी रही

एक कामयाब पारी वह ह जजसम जडरक कामयाबी स चल जाए शामनाथ की पारी सिलता क जशखर चमन लगी

वाताटलाप उसी रौ म बह रहा था जजस रौ म जगलास भर जा रह थ कही कोई रकावर न थी कोई अड़चन न थी

साहब को जवहसकी पसद आई थी ममसाहब को पद पसद आए थ सोिा-कवर का जडजाइन पसद आया था कमर

की सजावर पसद आई थी इसस बढ़ कर कया चाजहए साहब तो जडरक क दसर दौर म ही चरकल और कहाजनया

कहन लग गए थ दफतर म जजतना रोब रखत थ यहा पर उतन ही दोसत-परवर हो रह थ और उनकी सतरी काला गाउन

पहन गल म सिद मोजतयो का हार सर और पाउड़र की महक स ओत-परोत कमर म बठी सभी दसी जसतरयो की

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आराधना का क र बनी हई थी बात-बात पर हसती बात-बात पर जसर जहलाती और शामनाथ की सतरी स तो ऐस बात

कर रही थी जस उनकी परानी सहली हो

और इसी रो म पीत-जपलात साढ़ दस बज गए वि गजरत पता ही न चला

आजखर सब लोग अपन-अपन जगलासो म स आजखरी घर पी कर खाना खान क जलए उठ और बठक स बाहर

जनकल आग-आग शामनाथ रासता जदखात हए पीछ चीि और दसर महमान

बरामद म पहचत ही शामनाथ सहसा जठठक गए जो दशय उनदहोन दखा उसस उनकी राग लड़खड़ा गई और कषण-भर

म सारा नशा जहरन होन लगा बरामद म ऐन कोठरी क बाहर मा अपनी कसी पर जयो-की-तयो बठी थी मगर दोनो पाव

कसी की सीर पर रख हए और जसर दाए स बाए और बाए स दाए झल रहा था और मह म स लगातार गहर खराटरो

की आवाज आ रही थी जब जसर कछ दर क जलए रढ़ा हो कर एक तरि को थम जाता तो खराटर और भी गहर हो

उठत और जिर जब झरक-स नीद ररती तो जसर जिर दाए स बाए झलन लगता पला जसर पर स जखसक आया था

और मा क झर हए बाल आध गज जसर पर असत-वयसत जबखर रह थ

दखत ही शामनाथ करदध हो उठ जी चाहा जक मा को धकका द कर उठा द और उनदह कोठरी म धकल द मगर ऐसा

करना सभव न था चीि और बाकी महमान पास खड़ थ

मा को दखत ही दसी अिसरो की कछ जसतरया हस दी जक इतन म चीि न धीर स कहा - पअर जडयर

मा हड़बड़ा क उठ बठी सामन खड़ इतन लोगो को दख कर ऐसी घबराई जक कछ कहत न बना झर स पला जसर पर

रखती हई खड़ी हो गई और जमीन को दखन लगी उनक पाव लड़खड़ान लग और हाथो की उगजलया थर-थर कापन

लगी

मा तम जाक सो जाओ तम कयो इतनी दर तक जाग रही थी - और जखजसयाई हई नजरो स शामनाथ चीि क मह की

ओर दखन लग

चीि क चहर पर मसकराहर थी वह वही खड़-खड़ बोल नमसत

मा न जझझकत हए अपन म जसमरत हए दोनो हाथ जोड़ मगर एक हाथ दपटट क अदर माला को पकड़ हए था दसरा

बाहर ठीक तरह स नमसत भी न कर पाई शामनाथ इस पर भी जखनदन हो उठ

इतन म चीि न अपना दाया हाथ हाथ जमलान क जलए मा क आग जकया मा और भी घबरा उठी

मा हाथ जमलाओ

पर हाथ कस जमलाती दाए हाथ म तो माला थी घबराहर म मा न बाया हाथ ही साहब क दाए हाथ म रख जदया

शामनाथ जदल ही जदल म जल उठ दसी अिसरो की जसतरया जखलजखला कर हस पडी

य नही मा तम तो जानती हो दाया हाथ जमलाया जाता ह दाया हाथ जमलाओ

मगर तब तक चीि मा का बाया हाथ ही बार-बार जहला कर कह रह थ - हाउ ड य ड

कहो मा म ठीक ह खररयत स ह

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मा कछ बडबड़ाई

मा कहती ह म ठीक ह कहो मा हाउ ड य ड

मा धीर स सकचात हए बोली - हौ ड ड

एक बार जिर कहकहा उठा

वातावरण हका होन लगा साहब न जसथजत सभाल ली थी लोग हसन-चहकन लग थ शामनाथ क मन का कषोभ भी

कछ-कछ कम होन लगा था

साहब अपन हाथ म मा का हाथ अब भी पकड़ हए थ और मा जसकड़ी जा रही थी साहब क मह स शराब की ब आ

रही थी

शामनाथ अगरजी म बोल - मरी मा गाव की रहन वाली ह उमर भर गाव म रही ह इसजलए आपस लजाती ह

साहब इस पर खश नजर आए बोल - सच मझ गाव क लोग बहत पसद ह तब तो तमहारी मा गाव क गीत और

नाच भी जानती होगी चीि खशी स जसर जहलात हए मा को रकरकी बाध दखन लग

मा साहब कहत ह कोई गाना सनाओ कोई पराना गीत तमह तो जकतन ही याद होग

मा धीर स बोली - म कया गाऊ गी बरा मन कब गाया ह

वाह मा महमान का कहा भी कोई रालता ह

साहब न इतना रीझ स कहा ह नही गाओगी तो साहब बरा मानग

म कया गाऊ बरा मझ कया आता ह

वाह कोई बजढ़या रपप सना दो दो पततर अनारा द

दसी अिसर और उनकी जसतरयो न इस सझाव पर ताजलया पीरी मा कभी दीन दजि स बर क चहर को दखती कभी

पास खड़ी बह क चहर को

इतन म बर न गभीर आदश-भर जलहाज म कहा - मा

इसक बाद हा या ना सवाल ही न उठता था मा बठ गई और कषीण दबटल लरजती आवाज म एक पराना जववाह का

गीत गान लगी -

हररया नी माए हररया नी भण

हररया त भागी भररया ह

दसी जसतरया जखलजखला क हस उठी तीन पजिया गा क मा चप हो गई

बरामदा ताजलयो स गज उठा साहब ताजलया पीरना बद ही न करत थ शामनाथ की खीज परसनदनता और गवट म बदल

उठी थी मा न पारी म नया रग भर जदया था

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ताजलया थमन पर साहब बोल - पजाब क गावो की दसतकारी कया ह

शामनाथ खशी म झम रह थ बोल - ओ बहत कछ - साहब म आपको एक सर उन चीजो का भर कर गा आप

उनदह दख कर खश होग

मगर साहब न जसर जहला कर अगरजी म जिर पछा - नही म दकानो की चीज नही मागता पजाजबयो क घरो म कया

बनता ह औरत खद कया बनाती ह

शामनाथ कछ सोचत हए बोल - लड़जकया गजड़या बनाती ह और िलकाररया बनाती ह

िलकारी कया

शामनाथ िलकारी का मतलब समझान की असिल चिा करन क बाद मा को बोल - कयो मा कोई परानी िलकारी

घर म ह

मा चपचाप अदर गई और अपनी परानी िलकारी उठा लाई

साहब बड़ी रजच स िलकारी दखन लग परानी िलकारी थी जगह-जगह स उसक ताग रर रह थ और कपड़ा िरन

लगा था साहब की रजच को दख कर शामनाथ बोल - यह िरी हई ह साहब म आपको नई बनवा दगा मा बना

दगी कयो मा साहब को िलकारी बहत पसद ह इनदह ऐसी ही एक िलकारी बना दोगी न

मा चप रही जिर डरत-डरत धीर स बोली - अब मरी नजर कहा ह बरा बढ़ी आख कया दखगी

मगर मा का वाकय बीच म ही तोड़त हए शामनाथ साहब को बोल - वह जरर बना दगी आप उस दख कर खश होग

साहब न जसर जहलाया धनदयवाद जकया और हक-हक झमत हए खान की मज की ओर बढ़ गए बाकी महमान भी

उनक पीछ-पीछ हो जलए

जब महमान बठ गए और मा पर स सबकी आख हर गई तो मा धीर स कसी पर स उठी और सबस नजर बचाती हई

अपनी कोठरी म चली गई

मगर कोठरी म बठन की दर थी जक आखो म छल-छल आस बहन लग वह दपटट स बार-बार उनदह पोछती पर वह

बार-बार उमड़ आत जस बरसो का बाध तोड़ कर उमड़ आए हो मा न बहतरा जदल को समझाया हाथ जोड़ भगवान

का नाम जलया बर क जचराय होन की पराथटना की बार-बार आख बद की मगर आस बरसात क पानी की तरह जस

थमन म ही न आत थ

आधी रात का वि होगा महमान खाना खा कर एक-एक करक जा चक थ मा दीवार स सर कर बठी आख िाड़

दीवार को दख जा रही थी घर क वातावरण म तनाव ढीला पड़ चका था महल की जनसतबधता शामनाथ क घर भी

छा चकी थी कवल रसोई म पलरो क खनकन की आवाज आ रही थी तभी सहसा मा की कोठरी का दरवाजा जोर स

खरकन लगा

मा दरवाजा खोलो

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मा का जदल बठ गया हड़बड़ा कर उठ बठी कया मझस जिर कोई भल हो गई मा जकतनी दर स अपन आपको कोस

रही थी जक कयो उनदह नीद आ गई कयो वह ऊ घन लगी कया बर न अभी तक कषमा नही जकया मा उठी और कापत

हाथो स दरवाजा खोल जदया

दरवाज खलत ही शामनाथ झमत हए आग बढ़ आए और मा को आजलगन म भर जलया

ओ अममी तमन तो आज रग ला जदया साहब तमस इतना खश हआ जक कया कह ओ अममी अममी

मा की छोरी-सी काया जसमर कर बर क आजलगन म जछप गई मा की आखो म जिर आस आ गए उनदह पोछती हई

धीर स बोली - बरा तम मझ हररदवार भज दो म कब स कह रही ह

शामनाथ का झमना सहसा बद हो गया और उनकी पशानी पर जिर तनाव क बल पड़न लग उनकी बाह मा क शरीर

पर स हर आई

कया कहा मा यह कौन-सा राग तमन जिर छड़ जदया

शामनाथ का करोध बढ़न लगा था बोलत गए - तम मझ बदनाम करना चाहती हो ताजक दजनया कह जक बरा मा को

अपन पास नही रख सकता

नही बरा अब तम अपनी बह क साथ जसा मन चाह रहो मन अपना खा-पहन जलया अब यहा कया कर गी जो

थोड़ जदन जजदगानी क बाकी ह भगवान का नाम लगी तम मझ हररदवार भज दो

तम चली जाओगी तो िलकारी कौन बनाएगा साहब स तमहार सामन ही िलकारी दन का इकरार जकया ह

मरी आख अब नही ह बरा जो िलकारी बना सक तम कही और स बनवा लो बनी-बनाई ल लो

मा तम मझ धोखा दक य चली जाओगी मरा बनता काम जबगाड़ोगी जानती नही साहब खश होगा तो मझ तरककी

जमलगी

मा चप हो गई जिर बर क मह की ओर दखती हई बोली - कया तरी तरककी होगी कया साहब तरी तरककी कर दगा

कया उसन कछ कहा ह

कहा नही मगर दखती नही जकतना खश गया ह कहता था जब तरी मा िलकारी बनाना शर करगी तो म दखन

आऊ गा जक कस बनाती ह जो साहब खश हो गया तो मझ इसस बड़ी नौकरी भी जमल सकती ह म बड़ा अिसर बन

सकता ह

मा क चहर का रग बदलन लगा धीर-धीर उनका झररटयो-भरा मह जखलन लगा आखो म हकी-हकी चमक आन

लगी

तो तरी तरककी होगी बरा

तरककी य ही हो जाएगी साहब को खश रखगा तो कछ करगा वरना उसकी जखदमत करनवाल और थोड़ ह

तो म बना दगी बरा जस बन पड़गा बना दगी

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और मा जदल ही जदल म जिर बर क उजजवल भजवषय की कामनाए करन लगी और जमसरर शामनाथ अब सो जाओ

मा कहत हए तजनक लड़खड़ात हए अपन कमर की ओर घम गए

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णसकका बदल गया

कषणा सोबती

खददर की चादर ओढ़ हाथ म माला जलए शाहनी जब दररया क जकनार पहची तो पौ िर रही थी दर-दर आसमान क

परद पर लाजलमा िलती जा रही थी शाहनी न कपड़ उतारकर एक ओर रकख और शरीराम शरीराम करती पानी म हो

ली अजजल भरकर सयट दवता को नमसकार जकया अपनी उनीदी आखो पर छीर जदय और पानी स जलपर गयी

चनाब का पानी आज भी पहल-सा ही सदट था लहर लहरो को चम रही थी वह दर सामन काशमीर की पहाजड़यो स

बिट जपघल रही थी उछल-उछल आत पानी क भवरो स रकराकर कगार जगर रह थ लजकन दर-दर तक जबछी रत

आज न जान कयो खामोश लगती थी शाहनी न कपड़ पहन इधर-उधर दखा कही जकसी की परछाई तक न थी पर

नीच रत म अगजणत पावो क जनशान थ वह कछ सहम-सी उठी

आज इस परभात की मीठी नीरवता म न जान कयो कछ भयावना-सा लग रहा ह वह जपछल पचास विो स यहा नहाती

आ रही ह जकतना लमबा अरसा ह शाहनी सोचती ह एक जदन इसी दजनया क जकनार वह दलजहन बनकर उतरी थी

और आजआज शाहजी नही उसका वह पढ़ा-जलखा लड़का नही आज वह अकली ह शाहजी की लमबी-चौड़ी

हवली म अकली ह पर नहीयह कया सोच रही ह वह सवर-सवर अभी भी दजनयादारी स मन नही जिरा उसका

शाहनी न लमबी सास ली और शरी राम शरी राम करती बाजर क खतो स होती घर की राह ली कही-कही जलप-पत

आगनो पर स धआ उठ रहा था रनरनबलो की घजरया बज उठती ह जिर भीजिर भी कछ बधा-बधा-सा लग रहा

ह जममीवाला कआ भी आज नही चल रहा य शाहजी की ही असाजमया ह शाहनी न नजर उठायी यह मीलो िल

खत अपन ही ह भरी-भरायी नई िसल को दखकर शाहनी जकसी अपनतव क मोह म भीग गयी यह सब शाहजी की

बरकत ह दर-दर गावो तक िली हई जमीन जमीनो म कए सब अपन ह साल म तीन िसल जमीन तो सोना

उगलती ह शाहनी कए की ओर बढ़ी आवाज दी शर शर हसना हसना

शरा शाहनी का सवर पहचानता ह वह न पहचानगा अपनी मा जना क मरन क बाद वह शाहनी क पास ही पलकर

बड़ा हआ उसन पास पड़ा गडासा शराल क ढर क नीच सरका जदया हाथ म हकका पकड़कर बोलाऐ हसना-

सना शाहनी की आवाज उस कस जहला गयी ह अभी तो वह सोच रहा था जक उस शाहनी की ऊची हवली की

अधरी कोठरी म पड़ी सोन-चादी की सनददकजचया उठाकरजक तभी शर शर शरा गसस स भर गया जकस पर

जनकाल अपना करोध शाहनी पर चीखकर बोलाऐ मर गयी ए एबब तन मौत द

हसना आरवाली कनाली एक ओर रख जदी-जदी बाजहर जनकल आयी ऐ आयी आ कयो छावल (सबह-सबह)

तड़पना ए

अब तक शाहनी नजदीक पहच चकी थी शर की तजी सन चकी थी पयार स बोली हसना यह वि लड़न का ह

वह पागल ह तो त ही जजगरा कर जलया कर

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जजगरा हसना न मान भर सवर म कहाशाहनी लड़का आजखर लड़का ही ह कभी शर स भी पछा ह जक मह अधर

ही कयो गाजलया बरसाई ह इसन शाहनी न लाड़ स हसना की पीठ पर हाथ िरा हसकर बोलीपगली मझ तो लड़क

स बह पयारी ह शर

हा शाहनी

मालम होता ह रात को कलवाल क लोग आय ह यहा शाहनी न गमभीर सवर म कहा

शर न जरा रककर घबराकर कहा नही शाहनी शर क उततर की अनसनी कर शाहनी जरा जचजनदतत सवर स बोली

जो कछ भी हो रहा ह अचछा नही शर आज शाहजी होत तो शायद कछ बीच-बचाव करत पर शाहनी कहत-

कहत रक गयी आज कया हो रहा ह शाहनी को लगा जस जी भर-भर आ रहा ह शाहजी को जबछड़ कई साल बीत

गय परपर आज कछ जपघल रहा ह शायद जपछली समजतयाआसओ को रोकन क परयतन म उसन हसना की ओर

दखा और हक-स हस पड़ी और शरा सोच ही रहा ह कया कह रही ह शाहनी आज आज शाहनी कया कोई भी

कछ नही कर सकता यह होक रहगा कयो न हो हमार ही भाई-बनददो स सद ल-लकर शाहजी सोन की बोररया तोला

करत थ परजतजहसा की आग शर की आखो म उतर आयी गड़ास की याद हो आयी शाहनी की ओर दखानही-नही

शरा इन जपछल जदनो म तीस-चालीस कतल कर चका ह परपर वह ऐसा नीच नहीसामन बठी शाहनी नही शाहनी क

हाथ उसकी आखो म तर गय वह सजदटयो की रात कभी-कभी शाहजी की डार खाक वह हवली म पड़ा रहता था

और जिर लालरन की रोशनी म वह दखता ह शाहनी क ममता भर हाथ दध का करोरा थाम हए शर-शर उठ पी

ल शर न शाहनी क झररटया पड़ मह की ओर दखा तो शाहनी धीर स मसकरा रही थी शरा जवचजलत हो गया आजखर

शाहनी न कया जबगाड़ा ह हमारा शाहजी की बात शाहजी क साथ गयी वह शाहनी को जरर बचाएगा लजकन कल

रात वाला मशवरा वह कस मान गया था जिरोज की बात सब कछ ठीक हो जाएगासामान बार जलया जाएगा

शाहनी चलो तमह घर तक छोड़ आऊ

शाहनी उठ खड़ी हई जकसी गहरी सोच म चलती हई शाहनी क पीछ-पीछ मजबत कदम उठाता शरा चल रहा ह

शजकत-सा-इधर उधर दखता जा रहा ह अपन साजथयो की बात उसक कानो म गज रही ह पर कया होगा शाहनी को

मारकर

शाहनी

हा शर

शरा चाहता ह जक जसर पर आन वाल खतर की बात कछ तो शाहनी को बता द मगर वह कस कह

शाहनी

शाहनी न जसर ऊचा जकया आसमान धए स भर गया था शर

शरा जानता ह यह आग ह जबलपर म आज आग लगनी थी लग गयी शाहनी कछ न कह सकी उसक नात ररशत

सब वही ह

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हवली आ गयी शाहनी न शनदय मन स डयोढ़ी म कदम रकखा शरा कब लौर गया उस कछ पता नही दबटल-सी दह

और अकली जबना जकसी सहार क न जान कब तक वही पड़ी रही शाहनी दपहर आयी और चली गयी हवली

खली पड़ी ह आज शाहनी नही उठ पा रही जस उसका अजधकार आज सवय ही उसस छर रहा ह शाहजी क घर

की मालजकनलजकन नही आज मोह नही हर रहा मानो पतथर हो गयी हो पड़-पड़ साझ हो गयी पर उठन की बात

जिर भी नही सोच पा रही अचानक रसली की आवाज सनकर चौक उठी

शाहनी-शाहनी सनो टक आती ह लन

टक शााहनी इसक जसवाय और कछ न कह सकी हाथो न एक-दसर को थाम जलया बात की बात म खबर गाव

भर म िल गयी बीबी न अपन जवकत कणठ स कहाशाहनी आज तक कभी ऐसा न हआ न कभी सना गजब हो

गया अधर पड़ गया

शाहनी मजतटवत वही खड़ी रही नवाब बीबी न सनह-सनी उदासी स कहाशाहनी हमन तो कभी न सोचा था

शाहनी कया कह जक उसीन ऐसा सोचा था नीच स परवारी बग और जलदार की बातचीत सनाई दी शाहनी समझी

जक वि आन पहचा मशीन की तरह नीच उतरी पर डयोढ़ी न लाघ सकी जकसी गहरी बहत गहरी आवाज स

पछाकौन कौन ह वहा

कौन नही ह आज वहा सारा गाव ह जो उसक इशार पर नाचता था कभी उसकी असाजमया ह जजनदह उसन अपन

नात-ररशतो स कभी कम नही समझा लजकन नही आज उसका कोई नही आज वह अकली ह यह भीड़ की भीड़

उनम कलवाल क जार वह कया सबह ही न समझ गयी थी

बग परवारी और मसीत क म ला इसमाइल न जान कया सोचा शाहनी क जनकर आ खड़ हए बग आज शाहनी की

ओर दख नही पा रहा धीर स जरा गला साि करत हए कहाशाहनी रबब न एही मजर सी

शाहनी क कदम डोल गय चककर आया और दीवार क साथ लग गयी इसी जदन क जलए छोड़ गय थ शाहजी उस

बजान-सी शाहनी की ओर दखकर बग सोच रहा ह कया गजर रही ह शाहनी पर मगर कया हो सकता ह जसकका

बदल गया ह

शाहनी का घर स जनकलना छोरी-सी बात नही गाव का गाव खड़ा ह हवली क दरवाज स लकर उस दार तक जजस

शाहजी न अपन पतर की शादी म बनवा जदया था तब स लकर आज तक सब िसल सब मशजवर यही होत रह ह

इस बड़ी हवली को लर लन की बात भी यही सोची गयी थी यह नही जक शाहनी कछ न जानती हो वह जानकर भी

अनजान बनी रही उसन कभी बर नही जाना जकसी का बरा नही जकया लजकन बढ़ी शाहनी यह नही जानती जक

जसकका बदल गया ह

दर हो रही थी थानदार दाऊद खा जरा अकड़कर आग आया और डयोढ़ी पर खड़ी जड़ जनजीव छाया को दखकर

जठठक गया वही शाहनी ह जजसक शाहजी उसक जलए दररया क जकनार खम लगवा जदया करत थ यह तो वही

शाहनी ह जजसन उसकी मगतर को सोन क कनिल जदय थ मह जदखाई म अभी उसी जदन जब वह लीग क

जसलजसल म आया था तो उसन उददडता स कहा थाशाहनी भागोवाल मसीत बनगी तीन सौ रपया दना पड़गा

शाहनी न अपन उसी सरल सवभाव स तीन सौ रपय जदय थ और आज

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शाहनी डयोढ़ी क जनकर जाकर बोलादर हो रही ह शाहनी (धीर स) कछ साथ रखना हो तो रख लो कछ साथ

बाध जलया ह सोना-चादी

शाहनी असिर सवर स बोलीसोना-चादी जरा ठहरकर सादगी स कहासोना-चादी बचचा वह सब तम लोगो क

जलए ह मरा सोना तो एक-एक जमीन म जबछा ह

दाऊद खा लजजजत-सा हो गया शाहनी तम अकली हो अपन पास कछ होना जररी ह कछ नकदी ही रख लो वि

का कछ पता नही

वि शाहनी अपनी गीली आखो स हस पड़ी दाऊद खा इसस अचछा वि दखन क जलए कया म जजनददा रह गी

जकसी गहरी वदना और जतरसकार स कह जदया शाहनी न

दाऊद खा जनरततर ह साहस कर बोलाशाहनी कछ नकदी जररी ह

नही बचचा मझ इस घर सशाहनी का गला रध गयानकदी पयारी नही यहा की नकदी यही रहगी

शरा आन खड़ा गजरा जक हो ना हो कछ मार रहा ह शाहनी स खा साजहब दर हो रही ह

शाहनी चौक पड़ी दरमर घर म मझ दर आसओ की भवर म न जान कहा स जवरोह उमड़ पड़ा म परखो क इस बड़

घर की रानी और यह मर ही अनदन पर पल हएनही यह सब कछ नही ठीक हदर हो रही हपर नही शाहनी रो-रोकर

नही शान स जनकलगी इस परखो क घर स मान स लाघगी यह दहरी जजस पर एक जदन वह रानी बनकर आ खड़ी हई

थी अपन लड़खड़ात कदमो को सभालकर शाहनी न दपटट स आख पोछी और डयोढ़ी स बाहर हो गयी बडी-बजढ़या

रो पड़ी जकसकी तलना हो सकती थी इसक साथ खदा न सब कछ जदया था मगरमगर जदन बदल वि बदल

शाहनी न दपटट स जसर ढापकर अपनी धधली आखो म स हवली को अजनदतम बार दखा शाहजी क मरन क बाद भी

जजस कल की अमानत को उसन सहजकर रखा आज वह उस धोखा द गयी शाहनी न दोनो हाथ जोड़ जलए यही

अजनदतम दशटन था यही अजनदतम परणाम था शाहनी की आख जिर कभी इस ऊची हवली को न दखी पाएगी पयार न

जोर मारासोचा एक बार घम-जिर कर परा घर कयो न दख आयी म जी छोरा हो रहा ह पर जजनक सामन हमशा बड़ी

बनी रही ह उनक सामन वह छोरी न होगी इतना ही ठीक ह बस हो चका जसर झकाया डयोढ़ी क आग कलवध की

आखो स जनकलकर कछ बनदद च पड़ी शाहनी चल दीऊचा-सा भवन पीछ खड़ा रह गया दाऊद खा शरा परवारी

जलदार और छोर-बड़ बचच बढ़-मदट औरत सब पीछ-पीछ

टक अब तक भर चकी थी शाहनी अपन को खीच रही थी गाववालो क गलो म जस धआ उठ रहा ह शर खनी शर

का जदल रर रहा ह दाऊद खा न आग बढ़कर टक का दरवाजा खोला शाहनी बढ़ी इसमाइल न आग बढ़कर भारी

आवाज स कहा शाहनी कछ कह जाओ तमहार मह स जनकली असीस झठ नही हो सकती और अपन साि स

आखो का पानी पोछ जलया शाहनी न उठती हई जहचकी को रोककर रध-रध स कहा रबब तहान सलामत रकख

बचचा खजशया बकश

वह छोरा-सा जनसमह रो जदया जरा भी जदल म मल नही शाहनी क और हमहम शाहनी को नही रख सक शर न

बढ़कर शाहनी क पाव छए शाहनी कोई कछ कर नही सका राज भी पलर गया शाहनी न कापता हआ हाथ शर क

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जसर पर रकखा और रक-रककर कहातन भाग जगण चनदना (ओ चाद तर भागय जाग) दाऊद खा न हाथ का सकत

जकया कछ बड़ी-बजढ़या शाहनी क गल लगी और टक चल पड़ी

अनदन-जल उठ गया वह हवली नई बठक ऊचा चौबारा बड़ा पसार एक-एक करक घम रह ह शाहनी की आखो म

कछ पता नहीटक चल जदया ह या वह सवय चल रही ह आख बरस रही ह दाऊद खा जवचजलत होकर दख रहा ह

इस बढ़ी शाहनी को कहा जाएगी अब वह

शाहनी मन म मल न लाना कछ कर सकत तो उठा न रखत वकत ही ऐसा ह राज पलर गया ह जसकका बदल गया

रात को शाहनी जब क प म पहचकर जमीन पर पड़ी तो लर-लर आहत मन स सोचा राज पलर गया हजसकका कया

बदलगा वह तो म वही छोड़ आयी

और शाहजी की शाहनी की आख और भी गीली हो गयी

आसपास क हर-हर खतो स जघर गावो म रात खन बरसा रही थी

शायद राज पलरा भी खा रहा था और जसकका बदल रहा था

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इनदिकटर मातादीन चाद िर वयगय

(हररशकर परसाई)

वजञाजनक कहत ह चाद पर जीवन नही ह

सीजनयर पजलस इसपकरर मातादीन (जडपारटमर म एम डी साब) कहत ह- वजञाजनक झठ बोलत ह वहा हमार जस ही

मनषय की आबादी ह

जवजञान न हमशा इनदसपकरर मातादीन स मात खाई ह जिगर जपरर जवशिजञ कहता रहता ह- छर पर पाए गए जनशान

मलजजम की अगजलयो क नही ह पर मातादीन उस सजा जदला ही दत ह

मातादीन कहत ह य वजञाजनक कस का परा इनदवसरीगशन नही करत उनदहोन चाद का उजला जहससा दखा और कह

जदया वहा जीवन नही ह म चाद का अधरा जहससा दख कर आया ह वहा मनषय जाजत ह

यह बात सही ह कयोजक अधर पकष क मातादीन माजहर मान जात ह

पछा जाएगा इसपकरर मातादीन चाद पर कयो गए थ रररसर की हजसयत स या जकसी िरार अपराधी को पकड़न

नही व भारत की तरफ़ स सासकजतक आदान-परदान क अतगटत गए थ चाद सरकार न भारत सरकार को जलखा था-

यो हमारी सभयता बहत आग बढ़ी ह पर हमारी पजलस म पयाटपत सकषमता नही ह वह अपराधी का पता लगान और

उस सजा जदलान म अकसर सिल नही होती सना ह आपक यहा रामराज ह महरबानी करक जकसी पजलस अिसर

को भज जो हमारी पजलस को जशजकषत कर द

गहमतरी न सजचव स कहा- जकसी आई जी को भज दो

सजचव न कहा- नही सर आई जी नही भजा जा सकता परोरोकॉल का सवाल ह चाद हमारा एक कषर उपगरह

ह आई जी क रक क आदमी को नही भजग जकसी सीजनयर इसपकरर को भज दता ह

तय जकया गया जक हजारो मामलो क इनदवजसरगजरग ऑजिसर सीजनयर इसपकरर मातादीन को भज जदया जाय

चाद की सरकार को जलख जदया गया जक आप मातादीन को लन क जलए पथवी-यान भज दीजजय

पजलस मतरी न मातादीन को बलाकर कहा- तम भारतीय पजलस की उजजवल परपरा क दत की हजसयत स जा रह

हो ऐसा काम करना जक सार अतररकष म जडपारटमर की ऐसी जय-जयकार हो जक पीएम (परधानमनदतरी) को भी सनाई

पड़ जाए

मातादीन की यातरा का जदन आ गया एक यान अतररकष अडड पर उतरा मातादीन सबस जवदा लकर यान की

तरफ़ बढ़ व धीर-धीर कहत जा रह थ lsquoपरजवजस नगर कीज सब काजा हरदय राजख कौसलपर राजाrsquo

यान क पास पहचकर मातादीन न मशी अबदल गिर को पकारा- lsquoमशीrsquo

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गिर न एड़ी जमलाकर सयर िरकारा बोला- जी पकरसा

एि आई आर रख दी ह

जी पकरसा

और रोजनामच का नमना

जी पकरसा

व यान म बठन लग हवलदार बलभददर को बलाकर कहा- हमार घर म जचकी क बखत अपन खरला (पतनी)

को मदद क जलए भज दना

बलभददर न कहा- जी पकरसा

गिर न कहा ndash आप बजिकर रह पकरसा म अपन मकान (पतनी) को भी भज दगा जखदमत क जलए

मातादीन न यान क चालक स पछा ndash डराइजवग लाइसस ह

जी ह साहब

और गाड़ी म बतती ठीक ह

जी ठीक ह

मातादीन न कहा सब ठीकठाक होना चाजहए वरना हरामजाद का बीच अतररकष म चालान कर दगा

चनदरमा स आय चालक न कहा- हमार यहा आदमी स इस तरह नही बोलत

मातादीन न कहा- जानता ह ब तमहारी पजलस कमज़ोर ह अभी म उस ठीक करता ह

मातादीन यान म कदम रख ही रह थ जक हवलदार रामसजीवन भागता हआ आया बोला- पकरसा एसपी

साहब क घर म स कह ह जक चाद स एड़ी चमकान का पतथर लत आना

मातादीन खश हए बोल- कह दना बाई साब स ज़रर लता आऊगा

व यान म बठ और यान उड़ चला पथवी क वायमडल स यान बाहर जनकला ही था जक मातादीन न चालक स

कहा- अब हॉनट कयो नही बजाता

चालक न जवाब जदया- आसपास लाखो मील म कछ नही ह

मातादीन न डारा- मगर रल इज रल हॉनट बजाता चल

चालक अतररकष म हॉनट बजाता हआ यान को चाद पर उतार लाया अतररकष अडड पर पजलस अजधकारी

मातादीन क सवागत क जलए खड़ थ मातादीन रोब स उतर और उन अिसरो क कनदधो पर नजर डाली वहा जकसी क

सरार नही थ िीत भी जकसी क नही लग थ जलहाज़ा मातादीन न एड़ी जमलाना और हाथ उठाना ज़ररी नही समझा

जिर उनदहोन सोचा म यहा इसपकरर की हजसयत स नही सलाहकार की हजसयत स आया ह

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मातादीन को व लोग लाइन म ल गए और एक अचछ बगल म उनदह जरका जदया

एक जदन आराम करन क बाद मातादीन न काम शर कर जदया पहल उनदहोन पजलस लाइन का मलाहज़ा जकया

शाम को उनदहोन आईजी स कहा- आपक यहा पजलस लाइन म हनमानजी का मजदर नही ह हमार रामराज म

पजलस लाइन म हनमानजी ह

आईजी न कहा- हनमान कौन थ- हम नही जानत

मातादीन न कहा- हनमान का दशटन हर कतटवयपरायण पजलसवाल क जलए ज़ररी ह हनमान सगरीव क यहा

सपशल बराच म थ उनदहोन सीता माता का पता लगाया थाrsquoएबडकशनrsquoका मामला था- दिा 362 हनमानजी न रावण

को सजा वही द दी उसकी परॉपरी म आग लगा दी पजलस को यह अजधकार होना चाजहए जक अपराधी को पकड़ा

और वही सज़ा द दी अदालत म जान का झझर नही मगर यह जससरम अभी हमार रामराज म भी चाल नही हआ ह

हनमानजी क काम स भगवान राम बहत खश हए व उनदह अयोधया ल आए और lsquoरौन डयरीrsquo म तनात कर जदया

वही हनमान हमार अराधय दव ह म उनकी िोरो लता आया ह उसपर स मजतटया बनवाइए और हर पजलस लाइन म

सथाजपत करवाइए

थोड़ ही जदनो म चाद की हर पजलस लाइन म हनमानजी सथाजपत हो गए

मातादीनजी उन कारणो का अधययन कर रह थ जजनस पजलस लापरवाह और अलाल हो गयी ह वह अपराधो

पर धयान नही दती कोई कारण नही जमल रहा था एकाएक उनकी बजदध म एक चमक आईउनदहोन मशी स कहा- ज़रा

तनखा का रजजसरर बताओ

तनखा का रजजसरर दखा तो सब समझ गए कारण पकड़ म आ गया

शाम को उनदहोन पजलस मतरी स कहा म समझ गया जक आपकी पजलस मसतद कयो नही ह आप इतनी बड़ी

तनखवाह दत ह इसीजलए जसपाही को पाच सौ थानदार को हज़ार- य कया मज़ाक ह आजखर पजलस अपराधी को

कयो पकड़ हमार यहा जसपाही को सौ और इसपकरर को दो सौ दत ह तो व चौबीस घर जमट की तलाश करत ह आप

तनखवाह फ़ौरन घराइए

पजलस मतरी न कहा- मगर यह तो अनदयाय होगा अचछा वतन नही जमलगा तो व काम ही कयो करग

मातादीन न कहा- इसम कोई अनदयाय नही ह आप दखग जक पहली घरी हई तनखा जमलत ही आपकी पजलस

की मनोवजत म कराजतकारी पररवतटन हो जाएगा

पजलस मतरी न तनखवाह घरा दी और 2-3 महीनो म सचमच बहत िकट आ गया पजलस एकदम मसतद हो गई

सोत स एकदम जाग गई चारो तरफ़ नज़र रखन लगी अपराजधयो की दजनया म घबड़ाहर छा गई पजलस मतरी न

तमाम थानो क ररकॉडट बला कर दख पहल स कई गन अजधक कस रजजसरर हए थ उनदहोन मातादीन स कहा- म

आपकी सझ की तारीफ़ करता ह आपन कराजत कर दी पर यह हआ जकस तरह

मातादीन न समझाया-बात बहत मामली हकम तनखा दोग तो मलाजज़म की गजर नही होगी सौ रपयो म

जसपाही बचचो को नही पाल सकता दो सौ म इसपकरर ठाठ-बार नही मनरन कर सकता उस ऊपरी आमदनी करनी

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ही पड़गी और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़गा गरज़ जक वह अपराधो पर नज़र रखगा

सचत कतटवयपरायण और मसतद हो जाएगा हमार रामराज क सवचछ और सकषम परशासन का यही रहसय ह

चरलोक म इस चमतकार की खबर फ़ल गयी लोग मातादीन को दखन आन लग जक वह आदमी कसा ह

जो तनखा कम करक सकषमता ला दता ह पजलस क लोग भी खश थ व कहत- गर आप इधर न पधारत तो हम सभी

कोरी तनखा स ही गजर करत रहत सरकार भी खश थी जक मनाि का बजर बनन वाला था

आधी समसया हल हो गई पजलस अपराधी पकड़न लगी थी अब मामल की जाच-जवजध म सधार करना रह

गया था अपराधी को पकड़न क बाद उस सजा जदलाना मातादीन इतज़ार कर रह थ जक कोई बड़ा कस हो जाए तो

नमन क तौर पर उसका इनदवजसरगशन कर बताए

एक जदन आपसी मारपीर म एक आदमी मारा गया मातादीन कोतवाली म आकर बठ गए और बोल- नमन क

जलए इस कस का lsquoइनदवजसरगशनrsquo म करता ह आप लोग सीजखए यह कतल का कस ह कतल क कस म lsquoएजवडसrsquo

बहत पकका होना चाजहए

कोतवाल न कहा- पहल काजतल का पता लगाया जाएगा तभी तो एजवडस इकिा जकया जायगा

मातादीन न कहा- नही उलर मत चलो पहल एजवडस दखो कया कही खन जमला जकसी क कपड़ो पर या और

कही

एक इसपकरर न कहा- हा मारनवाल तो भाग गए थ मतक सड़क पर बहोश पड़ा था एक भला आदमी वहा

रहता ह उसन उठाकर असपताल भजा उस भल आदमी क कपड़ो पर खन क दाग लग गए ह

मातादीन न कहा- उस फ़ौरन जगरफतार करो

कोतवाल न कहा- मगर उसन तो मरत हए आदमी की मदद की थी

मातादीन न कहा- वह सब ठीक ह पर तम खन क दाग ढढन और कहा जाओग जो एजवडस जमल रहा ह उस तो

कबज़ म करो

वह भला आदमी पकड़कर बलवा जलया गया उसन कहा- मन तो मरत आदमी को असपताल जभजवाया था मरा

कया कसर ह

चाद की पजलस उसकी बात स एकदम परभाजवत हई मातादीन परभाजवत नही हए सारा पजलस महकमा उतसक था

जक अब मातादीन कया तकट जनकालत ह

मातादीन न उसस कहा- पर तम झगड की जगह गए कयो

उसन जवाब जदया- म झगड़ की जगह नही गया मरा वहा मकान ह झगड़ा मर मकान क सामन हआ

अब जिर मातादीन की परजतभा की परीकषा थी सारा महकमा उतसक दख रहा था

मातादीन न कहा- मकान तो ठीक ह पर म पछता ह झगड़ की जगह जाना ही कयो

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इस तकट का कोई ज़वाब नही था वह बार-बार कहता- म झगड़ की जगह नही गया मरा वही मकान ह

मातादीन उस जवाब दत- सो ठीक ह पर झगड़ की जगह जाना ही कयो इस तकट -परणाली स पजलस क लोग

बहत परभाजवत हए

अब मातादीनजी न इनदवजसरगशन का जसदधात समझाया-

दखो आदमी मारा गया ह तो यह पकका ह जकसी न उस ज़रर मारा कोई काजतल हजकसी को सज़ा होनी ह

सवाल ह- जकसको सज़ा होनी ह पजलस क जलए यह सवाल इतना महततव नही रखता जजतना यह सवाल जक जमट

जकस पर साजबत हो सकता ह या जकस पर साजबत होना चाजहए कतल हआ ह तो जकसी मनषय को सज़ा होगी ही

मारनवाल को होती ह या बकसर को ndash यह अपन सोचन की बात नही ह मनषय-मनषय सब बराबर ह सबम उसी

परमातमा का अश ह हम भदभाव नही करत यह पजलस का मानवतावाद ह

दसरा सवाल ह जकस पर जमट साजबत होना चाजहए इसका जनणटय इन बातो स होगा- (1) कया वह आदमी

पजलस क रासत म आता ह (2) कया उस सज़ा जदलान स ऊपर क लोग खश होग

मातादीन को बताया गया जक वह आदमी भला ह पर पजलस अनदयाय कर तो जवरोध करता ह जहा तक ऊपर

क लोगो का सवाल ह- वह वतटमान सरकार की जवरोधी राजनीजत वाला ह

मातादीन न रजबल ठोककर कहा- िसरट कलास कस पकका एजवडस और ऊपर का सपोरट

एक इसपकरर न कहा- पर हमार गल यह बात नही उतरती ह जक एक जनरपराध-भल आदमी को सजा जदलाई

जाए

मातादीन न समझाया- दखो म समझा चका ह जक सबम उसी ईशवर का अश ह सज़ा इस हो या काजतल को

िासी पर तो ईशवर ही चढ़गा न जिर तमह कपड़ो पर खन जमल रहा ह इस छोड़कर तम कहा खन ढढत जिरोग तम

तो भरो एि आई आर

मातादीन जी न एिआईआर भरवा दी lsquoबखत ज़ररत क जलएrsquo जगह खाली छड़वा दी

दसर जदन पजलस कोतवाल न कहा- गरदव हमारी तो बड़ी आित ह तमाम भल आदमी आत ह और कहत ह

उस बचार बकसर को कयो िसा रह हो ऐसा तो चरलोक म कभी नही हआ बताइय हम कया जवाब द हम तो

बहत शजमादा ह

मातादीन न कोतवाल स कहा- घबड़ाओ मत शर-शर म इस काम म आदमी को शमट आती ह आग तमह

बकसर को छोड़न म शमट आएगी हर चीज़ का जवाब ह अब आपक पास जो आए उसस कह दो हम जानत ह वह

जनदोि ह पर हम कया कर यह सब ऊपर स हो रहा ह

कोतवाल न कहा- तब व एसपी क पास जाएग

मातादीन बोल- एसपी भी कह द जक ऊपर स हो रहा ह

तब व आईजी क पास जशकायत करग

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आईजी भी कह जक सब ऊपर स हो रहा ह

तब व लोग पजलस मतरी क पास पहचग

पजलस मतरी भी कहग- भया म कया कर यह ऊपर स हो रहा ह

तो व परधानमतरी क पास जाएग

परधानमतरी भी कह जक म जानता ह वह जनदोि ह पर यह ऊपर स हो रहा ह

कोतवाल न कहा- तब वhellip

मातादीन न कहा- तब कया तब व जकसक पास जाएग भगवान क पास न मगर भगवान स पछकर कौन

लौर सका ह

कोतवाल चप रह गया वह इस महान परजतभा स चमतकत था

मातादीन न कहा- एक महावरा lsquoऊपर स हो रहा हrsquo हमार दश म पचचीस सालो स सरकारो को बचा रहा ह

तम इस सीख लो

कस की तयारी होन लगी मातादीन न कहा- अब 4-6 चशमदीद गवाह लाओ

कोतवाल- चशमदीद गवाह कस जमलग जब जकसी न उस मारत दखा ही नही तो चशमदीद गवाह कोई कस

होगा

मातादीन न जसर ठोक जलया जकन बवकिो क बीच िसा जदया गवनटमर न इनदह तो ए-बी-सी-डी भी नही

आती

झलाकर कहा- चशमदीद गवाह जकस कहत ह जानत हो चशमदीद गवाह वह नही ह जो दख- बजक वह ह

जो कह जक मन दखा

कोतवाल न कहा- ऐसा कोई कयो कहगा

मातादीन न कहा- कहगा समझ म नही आता कस जडपारटमर चलात हो अर चशमदीद गवाहो की जलसर

पजलस क पास पहल स रहती ह जहा ज़ररत हई उनदह चशमदीद बना जदया हमार यहा ऐस आदमी ह जो साल म 3-4

सौ वारदातो क चशमदीद गवाह होत ह हमारी अदालत भी मान लती ह जक इस आदमी म कोई दवी शजि ह जजसस

जान लता ह जक अमक जगह वारदात होन वाली ह और वहा पहल स पहच जाता ह म तमह चशमदीद गवाह बनाकर

दता ह 8-10 उठाईगीरो को बलाओ जो चोरी मारपीर गडागदी करत हो जआ जखलात हो या शराब उतारत हो

दसर जदन शहर क 8-10 नवरतन कोतवाली म हाजजर थ उनदह दखकर मातादीन गदगद हो गए बहत जदन हो गए

थ ऐस लोगो को दख बड़ा सना-सना लग रहा था

मातादीन का परम उमड़ पड़ा उनस कहा- तम लोगो न उस आदमी को लाठी स मारत दखा था न

व बोल- नही दखा साब हम वहा थ ही नही

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मातादीन जानत थ यह पहला मौका ह जिर उनदहोन कहा- वहा नही थ यह मन माना पर लाठी मारत दखा तो

था

उन लोगो को लगा जक यह पागल आदमी ह तभी ऐसी उरपराग बात कहता ह व हसन लग

मातादीन न कहा- हसो मत जवाब दो

व बोल- जब थ ही नही तो कस दखा

मातादीन न गराटकर दखा कहा- कस दखा सो बताता ह तम लोग जो काम करत हो- सब इधर दज़ट ह हर

एक को कम स कम दस साल जल म डाला जा सकता ह तम य काम आग भी करना चाहत हो या जल जाना चाहत

हो

व घबड़ाकर बोल ndash साब हम जल नही जाना चाहत

मातादीन न कहा- ठीक तो तमन उस आदमी को लाठी मारत दखा दखा न

व बोल- दखा साब वह आदमी घर स जनकला और जो लाठी मारना शर जकया तो वह बचारा बहोश होकर

सड़क पर जगर पड़ा

मातादीन न कहा- ठीक ह आग भी ऐसी वारदात दखोग

व बोल- साब जो आप कहग सो दखग

कोतवाल इस चमतकार स थोड़ी दर को बहोश हो गया होश आया तो मातादीन क चरणो पर जगर पड़ा

मातादीन न कहा- हरो काम करन दो

कोतवाल पावो स जलपर गया कहन लगा- म जीवन भर इन शरीचरणो म पड़ा रहना चाहता ह

मातादीन न आग की सारी कायटपरणाली तय कर दी एिआईआर बदलना बीच म पनदन डालना रोजनामचा

बदलना गवाहो को तोड़ना ndash सब जसखा जदया

उस आदमी को बीस साल की सज़ा हो गई

चाद की पजलस जशजकषत हो चकी थी धड़ाधड़ कस बनन लग और सज़ा होन लगी चाद की सरकार बहत

खश थी पजलस की ऐसी मसतदी भारत सरकार क सहयोग का नतीजा था चाद की ससद न एक धनदयवाद का परसताव

पास जकया

एक जदन मातादीनजी का सावटजजनक अजभनदन जकया गया व िलो स लद खली जीप पर बठ थ आसपास

जय-जयकार करत हजारो लोग व हाथ जोड़कर अपन गहमतरी की सराइल म जवाब द रह थ

जज़दगी म पहली बार ऐसा कर रह थ इसजलए थोड़ा अरपरा लग रहा था छबबीस साल पहल पजलस म भरती

होत वि जकसन सोचा था जक एक जदन दसर लोक म उनका ऐसा अजभनदन होगा व पछताए- अचछा होता जक इस

मौक क जलए करता रोपी और धोती ल आत

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भारत क पजलस मतरी रलीजवजन पर बठ यह दशय दख रह थ और सोच रह थ मरी सदभावना यातरा क जलए

वातावरण बन गया

कछ महीन जनकल गए

एक जदन चाद की ससद का जवशि अजधवशन बलाया गया बहत तफ़ान खड़ा हआ गपत अजधवशन था

इसजलए ररपोरट परकाजशत नही हई पर ससद की दीवारो स रकराकर कछ शबद बाहर आए

सदसय गसस स जचला रह थ-

कोई बीमार बाप का इलाज नही कराता

डबत बचचो को कोई नही बचाता

जलत मकान की आग कोई नही बझाता

आदमी जानवर स बदतर हो गया सरकार फ़ौरन इसतीफ़ा द

दसर जदन चाद क परधानमतरी न मातादीन को बलाया मातादीन न दखा ndash व एकदम बढ़ हो गए थ लगा य

कई रात सोए नही ह

रआस होकर परधानमतरी न कहा- मातादीनजी हम आपक और भारत सरकार क बहत आभारी ह अब आप

कल दश वापस लौर जाइय

मातादीन न कहा- म तो lsquoरमटrsquo खतम करक ही जाऊ गा

परधानमतरी न कहा- आप बाकी lsquoरमटrsquo का वतन ल जाइय- डबल ल जाइए जतबल ल जाइय

मातादीन न कहा- हमारा जसदधात ह हम पसा नही काम पयारा ह

आजखर चाद क परधानमतरी न भारत क परधानमतरी को एक गपत पतर जलखा

चौथ जदन मातादीनजी को वापस लौरन क जलए अपन आईजी का आडटर जमल गया

उनदहोन एसपी साहब क घर क जलए एड़ी चमकान का पतथर यान म रखा और चाद स जवदा हो गए

उनदह जात दख पजलसवाल रो पड़

बहत अरस तक यह रहसय बना रहा जक आजखर चाद म ऐसा कया हो गया जक मातादीनजी को इस तरह

एकदम लौरना पड़ा चाद क परधान मतरी न भारत क परधान मतरी को कया जलखा था

एक जदन वह पतर खल ही गया उसम जलखा था-

इसपकरर मातादीन की सवाए हम परदान करन क जलए अनक धनदयवाद पर अब आप उनदह फ़ौरन बला ल

हम भारत को जमतरदश समझत थ पर आपन हमार साथ शतरवत वयवहार जकया ह हम भोल लोगो स आपन

जवशवासघात जकया ह

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आपक मातादीनजी न हमारी पजलस को जसा कर जदया ह उसक नतीज़ य हए ह

कोई आदमी जकसी मरत हए आदमी क पास नही जाता इस डर स जक वह कतल क मामल म िसा जदया

जाएगा बरा बीमार बाप की सवा नही करता वह डरता ह बाप मर गया तो उस पर कही हतया का आरोप नही लगा

जदया जाए घर जलत रहत ह और कोई बझान नही जाता- डरता ह जक कही उसपर आग लगान का जमट कायम न कर

जदया जाए बचच नदी म डबत रहत ह और कोई उनदह नही बचाता इस डर स जक उस पर बचचो को डबान का आरोप

न लग जाए सार मानवीय सबध समापत हो रह ह मातादीनजी न हमारी आधी ससकजत नि कर दी ह अगर व यहा रह

तो परी ससकजत नि कर दग उनदह फ़ौरन रामराज म बला जलया जाए

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मार गय ग़लफाम उफफ तीसरी कसम

िणीशवरनाथ रण

जहरामन गाड़ीवान की पीठ म गदगदी लगती ह

जपछल बीस साल स गाड़ी हाकता ह जहरामन बलगाड़ी सीमा क उस पार मोरग राज नपाल स धान और लकड़ी ढो

चका ह कटोल क जमान म चोरबाजारी का माल इस पार स उस पार पहचाया ह लजकन कभी तो ऐसी गदगदी नही

लगी पीठ म

कटोल का जमाना जहरामन कभी भल सकता ह उस जमान को एक बार चार खप सीमर और कपड़ की गाठो स भरी

गाड़ी जोगबानी म जवरारनगर पहचन क बाद जहरामन का कलजा पोखता हो गया था िारजबसगज का हर चोर-

वयापारी उसको पकका गाड़ीवान मानता उसक बलो की बड़ाई बड़ी गददी क बड़ सठ जी खद करत अपनी भािा म

गाड़ी पकड़ी गई पाचवी बार सीमा क इस पार तराई म

महाजन का मनीम उसी की गाड़ी पर गाठो क बीच चककी-मककी लगा कर जछपा हआ था दारोगा साहब की डढ़

हाथ लबी चोरबतती की रोशनी जकतनी तज होती ह जहरामन जानता ह एक घर क जलए आदमी अधा हो जाता ह एक

छरक भी पड़ जाए आखो पर रोशनी क साथ कड़कती हई आवाज - ऐ-य गाड़ी रोको साल गोली मार दग

बीसो गाजड़या एक साथ कचकचा कर रक गई जहरामन न पहल ही कहा था यह बीस जविावगा दारोगा साहब

उसकी गाड़ी म दबक हए मनीम जी पर रोशनी डाल कर जपशाची हसी हस - हा-हा-हा मनीम जी-ई-ई-ई ही-ही-ही

ऐ-य साला गाड़ीवान मह कया दखता ह र-ए-ए कबल हराओ इस बोर क मह पर स हाथ की छोरी लाठी स मनीम

जी क पर म खोचा मारत हए कहा था इस बोर को स-ससाला

बहत परानी अखज-अदावत होगी दारोगा साहब और मनीम जी म नही तो उतना रपया कबलन पर भी पजलस-

दरोगा का मन न डोल भला चार हजार तो गाड़ी पर बठा ही द रहा ह लाठी स दसरी बार खोचा मारा दारोगा न पाच

हजार जिर खोचा - उतरो पहल

मनीम को गाड़ी स नीच उतार कर दारोगा न उसकी आखो पर रोशनी डाल दी जिर दो जसपाजहयो क साथ सड़क स

बीस-पचचीस रससी दर झाड़ी क पास ल गए गाड़ीवान और गाजड़यो पर पाच-पाच बदकवाल जसपाजहयो का पहरा

जहरामन समझ गया इस बार जनसतार नही जल जहरामन को जल का डर नही लजकन उसक बल न जान जकतन

जदनो तक जबना चारा-पानी क सरकारी िारक म पड़ रहग - भख-पयास जिर नीलाम हो जाएग भया और भौजी को

वह मह नही जदखा सकगा कभी नीलाम की बोली उसक कानो क पास गज गई - एक-दो-तीन दारोगा और मनीम

म बात पर नही रही थी शायद

जहरामन की गाड़ी क पास तनात जसपाही न अपनी भािा म दसर जसपाही स धीमी आवाज म पछा का हो मामला

गोल होखी का जिर खनी-तबाक दन क बहान उस जसपाही क पास चला गया

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एक-दो-तीन तीन-चार गाजड़यो की आड़ जहरामन न िसला कर जलया उसन धीर-स अपन बलो क गल की रजससया

खोल ली गाड़ी पर बठ-बठ दोनो को जड़वा बाध जदया बल समझ गए उनदह कया करना ह जहरामन उतरा जती हई

गाड़ी म बास की जरकरी लगा कर बलो क कधो को बलाग जकया दोनो क कानो क पास गदगदी लगा दी और मन-

ही-मन बोला चलो भयन जान बचगी तो ऐसी-ऐसी सगगड़ गाड़ी बहत जमलगी एक-दो-तीन नौ-दो-गयारह

गाजड़यो की आड़ म सड़क क जकनार दर तक घनी झाड़ी िली हई थी दम साध कर तीनो पराजणयो न झाड़ी को पार

जकया - बखरक बआहर जिर एक ल दो ल - दलकी चाल दोनो बल सीना तान कर जिर तराई क घन जगलो म

घस गए राह सघत नदी-नाला पार करत हए भाग पछ उठा कर पीछ-पीछ जहरामन रात-भर भागत रह थ तीनो जन

घर पहच कर दो जदन तक बसध पड़ा रहा जहरामन होश म आत ही उसन कान पकड़ कर कसम खाई थी - अब कभी

ऐसी चीजो की लदनी नही लादग चोरबाजारी का माल तोबा तोबा पता नही मनीम जी का कया हआ भगवान

जान उसकी सगगड़ गाड़ी का कया हआ असली इसपात लोह की धरी थी दोनो पजहए तो नही एक पजहया एकदम

नया था गाड़ी म रगीन डोररयो क ि दन बड़ जतन स गथ गए थ

दो कसम खाई ह उसन एक चोरबाजारी का माल नही लादग दसरी - बास अपन हर भाड़दार स वह पहल ही पछ

लता ह - चोरी- चमारीवाली चीज तो नही और बास बास लादन क जलए पचास रपए भी द कोई जहरामन की

गाड़ी नही जमलगी दसर की गाड़ी दख

बास लदी हई गाड़ी गाड़ी स चार हाथ आग बास का अगआ जनकला रहता ह और पीछ की ओर चार हाथ जपछआ

काब क बाहर रहती ह गाड़ी हमशा सो बकाबवाली लदनी और खरजहया शहरवाली बात जतस पर बास का अगआ

पकड़ कर चलनवाला भाड़दार का महाभकआ नौकर लड़की-सकल की ओर दखन लगा बस मोड़ पर घोड़ागाड़ी स

रककर हो गई जब तक जहरामन बलो की रससी खीच तब तक घोड़ागाड़ी की छतरी बास क अगआ म ि स गई

घोड़ा-गाड़ीवाल न तड़ातड़ चाबक मारत हए गाली दी थी बास की लदनी ही नही जहरामन न खरजहया शहर की

लदनी भी छोड़ दी और जब िारजबसगज स मोरग का भाड़ा ढोना शर जकया तो गाड़ी ही पार कई विो तक जहरामन

न बलो को आधीदारी पर जोता आधा भाड़ा गाड़ीवाल का और आधा बलवाल का जहसस गाड़ीवानी करो मफत

आधीदारी की कमाई स बलो क ही पर नही भरत जपछल साल ही उसन अपनी गाड़ी बनवाई ह

दवी मया भला कर उस सरकस-कपनी क बाघ का जपछल साल इसी मल म बाघगाड़ी को ढोनवाल दोनो घोड़ मर

गए चपानगर स िारजबसगज मला आन क समय सरकस-कपनी क मनजर न गाड़ीवान-पटटी म ऐलान करक कहा -

सौ रपया भाड़ा जमलगा एक-दो गाड़ीवान राजी हए लजकन उनक बल बाघगाड़ी स दस हाथ दर ही डर स जडकरन

लग - बा-आ रससी तड़ा कर भाग जहरामन न अपन बलो की पीठ सहलात हए कहा दखो भयन ऐसा मौका जिर

हाथ न आएगा यही ह मौका अपनी गाड़ी बनवान का नही तो जिर आधदारी अर जपजड़ म बद बाघ का कया डर

मोरग की तराई म दहाड़त हइ बाघो को दख चक हो जिर पीठ पर म तो ह

गाड़ीवानो क दल म ताजलया परपरा उठी थी एक साथ सभी की लाज रख ली जहरामन क बलो न हमक कर आग

बढ़ गए और बाघगाड़ी म जर गए - एक-एक करक जसिट दाजहन बल न जतन क बाद ढर-सा पशाब जकया जहरामन

न दो जदन तक नाक स कपड़ की पटटी नही खोली थी बड़ी गददी क बड सठ जी की तरह नकबधन लगाए जबना बघाइन

गध बरदासत नही कर सकता कोई

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बाघगाड़ी की गाड़ीवानी की ह जहरामन न कभी ऐसी गदगदी नही लगी पीठ म आज रह-रह कर उसकी गाड़ी म चपा

का िल महक उठता ह पीठ म गदगदी लगन पर वह अगोछ स पीठ झाड़ लता ह

जहरामन को लगता ह दो विट स चपानगर मल की भगवती मया उस पर परसनदन ह जपछल साल बाघगाड़ी जर गई

नकद एक सौ रपए भाड़ क अलावा बताद चाह-जबसकर और रासत-भर बदर-भाल और जोकर का तमाशा दखा सो

िोकर म

और इस बार यह जनानी सवारी औरत ह या चपा का िल जब स गाड़ी मह-मह महक रही ह

कचची सड़क क एक छोर-स खडड म गाड़ी का दाजहना पजहया बमौक जहचकोला खा गया जहरामन की गाड़ी स एक

हकी जसस की आवाज आई जहरामन न दाजहन बल को दआली स पीरत हए कहा साला कया समझता ह बोर

की लदनी ह कया

अहा मारो मत

अनदखी औरत की आवाज न जहरामन को अचरज म डाल जदया बचचो की बोली जसी महीन िनजगलासी बोली

मथरामोहन नौरकी कपनी म लला बननवाली हीराबाई का नाम जकसन नही सना होगा भला लजकन जहरामन की बात

जनराली ह उसन सात साल तक लगातार मलो की लदनी लादी ह कभी नौरकी-जथयरर या बायसकोप जसनमा नही

दखा लला या हीराबाई का नाम भी उसन नही सना कभी दखन की कया बात सो मला ररन क परह जदन पहल

आधी रात की बला म काली ओढ़नी म जलपरी औरत को दख कर उसक मन म खरका अवशय लगा था बकसा

ढोनवाल नौकर स गाड़ी-भाड़ा म मोल-मोलाई करन की कोजशश की तो ओढ़नीवाली न जसर जहला कर मना कर

जदया जहरामन न गाड़ी जोतत हए नौकर स पछा कयो भया कोई चोरी चमारी का माल-वाल तो नही जहरामन को

जिर अचरज हआ बकसा ढोनवाल आदमी न हाथ क इशार स गाड़ी हाकन को कहा और अधर म गायब हो गया

जहरामन को मल म तबाक बचनवाली बढ़ी की काली साड़ी की याद आई थी

ऐस म कोई कया गाड़ी हाक

एक तो पीठ म गदगदी लग रही ह दसर रह-रह कर चपा का िल जखल जाता ह उसकी गाड़ी म बलो को डारो तो

इस-जबस करन लगती ह उसकी सवारी उसकी सवारी औरत अकली तबाक बचनवाली बढ़ी नही आवाज सनन

क बाद वह बार-बार मड़ कर रपपर म एक नजर डाल दता ह अगोछ स पीठ झाड़ता ह भगवान जान कया जलखा ह

इस बार उसकी जकसमत म गाड़ी जब परब की ओर मड़ी एक रकड़ा चादनी उसकी गाड़ी म समा गई सवारी की

नाक पर एक जगन जगमगा उठा जहरामन को सबकछ रहसयमय - अजगत-अजगत - लग रहा ह सामन चपानगर स

जसजधया गाव तक िला हआ मदान कही डाजकन-जपशाजचन तो नही

जहरामन की सवारी न करवर ली चादनी पर मखड़ पर पड़ी तो जहरामन चीखत-चीखत रक गया - अर बाप ई तो परी

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परी की आख खल गई जहरामन न सामन सड़क की ओर मह कर जलया और बलो को जररकारी दी वह जीभ को

ताल स सरा कर जर-जर-जर-जर आवाज जनकालता ह जहरामन की जीभ न जान कब स सख कर लकड़ी-जसी हो गई

थी

भया तमहारा नाम कया ह

ह -ब-ह िनजगलास जहरामन क रोम-रोम बज उठ मह स बोली नही जनकली उसक दोनो बल भी कान खड़ करक

इस बोली को परखत ह

मरा नाम नाम मरा ह जहरामन

उसकी सवारी मसकराती ह मसकराहर म खशब ह

तब तो मीता कह गी भया नही - मरा नाम भी हीरा ह

इसस जहरामन को परतीत नही मदट और औरत क नाम म िकट होता ह

हा जी मरा नाम भी हीराबाई ह

कहा जहरामन और कहा हीराबाई बहत िकट ह

जहरामन न अपन बलो को जझड़की दी - कान चजनया कर गप सनन स ही तीस कोस मजजल करगी कया इस बाए नार

क पर म शतानी भरी ह जहरामन न बाए बल को दआली की हकी झड़प दी

मारो मत धीर धीर चलन दो जदी कया ह

जहरामन क सामन सवाल उपजसथत हआ वह कया कह कर गप कर हीराबाई स तोह कह या अहा उसकी भािा म

बड़ो को अहा अथाटत आप कह कर सबोजधत जकया जाता ह कचराही बोली म दो-चार सवाल-जवाब चल सकता

ह जदल-खोल गप तो गाव की बोली म ही की जा सकती ह जकसी स

आजसन-काजतक क भोर म छा जानवाल कहास स जहरामन को परानी जचढ़ ह बहत बार वह सड़क भल कर भरक

चका ह जकत आज क भोर क इस घन कहास म भी वह मगन ह नदी क जकनार धन-खतो स िल हए धान क पौधो

की पवजनया गध आती ह पवट-पावन क जदन गाव म ऐसी ही सगध िली रहती ह उसकी गाड़ी म जिर चपा का िल

जखला उस िल म एक परी बठी ह ज भगवती

जहरामन न आख की कनजखयो स दखा उसकी सवारी मीता हीराबाई की आख गजर-गजर उसको हर रही ह

जहरामन क मन म कोई अजानी राजगनी बज उठी सारी दह जसरजसरा रही ह बोला बल को मारत ह तो आपको बहत

बरा लगता ह

हीराबाई न परख जलया जहरामन सचमच हीरा ह

चालीस साल का हटटा-कटटा काला-कलरा दहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपन बलो क जसवाय दजनया की

जकसी और बात म जवशि जदलचसपी नही लता घर म बड़ा भाई ह खती करता ह बाल-बचचवाला आदमी ह

जहरामन भाई स बढ़ कर भाभी की इजजत करता ह भाभी स डरता भी ह जहरामन की भी शादी हई थी बचपन म ही

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गौन क पहल ही दलजहन मर गई जहरामन को अपनी दलजहन का चहरा याद नही दसरी शादी दसरी शादी न करन

क अनक कारण ह भाभी की जजद कमारी लड़की स ही जहरामन की शादी करवाएगी कमारी का मतलब हआ पाच-

सात साल की लड़की कौन मानता ह सरधा-कानन कोई लड़कीवाला दोबयाह को अपनी लड़की गरज म पड़न पर

ही द सकता ह भाभी उसकी तीन-सतत करक बठी ह सो बठी ह भाभी क आग भया की भी नही चलती अब

जहरामन न तय कर जलया ह शादी नही करगा कौन बलाय मोल लन जाए बयाह करक जिर गाड़ीवानी कया करगा

कोई और सब कछ छर जाए गाड़ीवानी नही छोड़ सकता जहरामन

हीराबाई न जहरामन क जसा जनशछल आदमी बहत कम दखा ह पछा आपका घर कौन जजला म पड़ता ह कानपर

नाम सनत ही जो उसकी हसी छरी तो बल भड़क उठ जहरामन हसत समय जसर नीचा कर लता ह हसी बद होन पर

उसन कहा वाह र कानपर तब तो नाकपर भी होगा और जब हीराबाई न कहा जक नाकपर भी ह तो वह हसत-हसत

दहरा हो गया

वाह र दजनया कया-कया नाम होता ह कानपर नाकपर जहरामन न हीराबाई क कान क िल को गौर स दखा नाक

की नकछजव क नग दख कर जसहर उठा - लह की बद

जहरामन न हीराबई का नाम नही सना कभी नौरकी कपनी की औरत को वह बाईजी नही समझता ह कपनी म

काम करनवाली औरतो को वह दख चका ह सरकस कपनी की मालजकन अपनी दोनो जवान बजरयो क साथ

बाघगाड़ी क पास आती थी बाघ को चारा-पानी दती थी पयार भी करती थी खब जहरामन क बलो को भी

डबलरोरी-जबसकर जखलाया था बड़ी बरी न

जहरामन होजशयार ह कहासा छरत ही अपनी चादर स रपपर म परदा कर जदया -बस दो घरा उसक बाद रासता चलना

मजशकल ह काजतक की सबह की धल आप बदाटसत न कर सजकएगा कजरी नदी क जकनार तगजछया क पास गाड़ी

लगा दग दपहररया कार कर

सामन स आती हई गाड़ी को दर स ही दख कर वह सतकट हो गया लीक और बलो पर धयान लगा कर बठ गया राह

कारत हए गाड़ीवान न पछा मला रर रहा ह कया भाई

जहरामन न जवाब जदया वह मल की बात नही जानता उसकी गाड़ी पर जबदागी (नहर या ससराल जाती हई लड़की)

ह न जान जकस गाव का नाम बता जदया जहरामन न

छतापर-पचीरा कहा ह

कही हो यह ल कर आप कया कररएगा जहरामन अपनी चतराई पर हसा परदा डाल दन पर भी पीठ म गदगदी

लगती ह

जहरामन परद क छद स दखता ह हीराबाई एक जदयासलाई की जडबबी क बराबर आईन म अपन दात दख रही ह

मदनपर मल म एक बार बलो को ननदही-जचतती कौजड़यो की माला खरीद दी थी जहरामन न छोरी-छोरी ननदही-ननदही

कौजड़यो की पात

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तगजछया क तीनो पड़ दर स ही जदखलाई पड़त ह जहरामन न परद को जरा सरकात हए कहा दजखए यही ह तगजछया

दो पड़ जरामासी बड़ ह और एक उस िल का कया नाम ह आपक करत पर जसा िल छपा हआ ह वसा ही खब

महकता ह दो कोस दर तक गध जाती ह उस िल को खमीरा तबाक म डाल कर पीत भी ह लोग

और उस अमराई की आड़ स कई मकान जदखाई पड़त ह वहा कोई गाव ह या मजदर

जहरामन न बीड़ी सलगान क पहल पछा बीड़ी पीए आपको गध तो नही लगगी वही ह नामलगर डयोढ़ी जजस

राजा क मल स हम लोग आ रह ह उसी का जदयाद-गोजतया ह जा र जमाना

जहरामन न जा र जमाना कह कर बात को चाशनी म डाल जदया हीराबाई न रपपर क परद को जतरछ खोस जदया

हीराबाई की दतपजि

कौन जमाना ठडडी पर हाथ रख कर सागरह बोली

नामलगर डयोढ़ी का जमाना कया था और कया-स-कया हो गया

जहरामन गप रसान का भद जानता ह हीराबाई बोली तमन दखा था वह जमाना

दखा नही सना ह राज कस गया बड़ी हिवाली कहानी ह सनत ह घर म दवता न जनदम ल जलया कजहए भला

दवता आजखर दवता ह ह या नही इदरासन छोड़ कर जमरतभवन म जनदम ल ल तो उसका तज कस समहाल सकता ह

कोई सरजमखी िल की तरह माथ क पास तज जखला रहता लजकन नजर का िर जकसी न नही पहचाना एक बार

उपलन म लार साहब मय लारनी क हवागाड़ी स आए थ लार न भी नही पहचाना आजखर लरनी न सरजमखी

तज दखत ही बोल उठी - ए मन राजा साहब सनो यह आदमी का बचचा नही ह दवता ह

जहरामन न लारनी की बोली की नकल उतारत समय खब डम-िर-लर जकया हीराबाई जदल खोल कर हसी हसत

समय उसकी सारी दह दलकती ह

हीराबाई न अपनी ओढ़नी ठीक कर ली तब जहरामन को लगा जक लगा जक

तब उसक बाद कया हआ मीता

इसस कथा सनन का बड़ा सौक ह आपको लजकन काला आदमी राजा कया महाराजा भी हो जाए रहगा काला

आदमी ही साहब क जस अजककल कहा स पाएगा हस कर बात उड़ा दी सभी न तब रानी को बार-बार सपना दन

लगा दवता सवा नही कर सकत तो जान दो नही रहग तमहार यहा इसक बाद दवता का खल शर हआ सबस

पहल दोनो दतार हाथी मर जिर घोड़ा जिर परपराग

परपराग कया ह

जहरामन का मन पल-पल म बदल रहा ह मन म सतरगा छाता धीर-धीर जखल रहा ह उसको लगता ह उसकी गाड़ी

पर दवकल की औरत सवार ह दवता आजखर दवता ह

परपराग धन-दौलत माल-मवसी सब साि दवता इदरासन चला गया

हीराबाई न ओझल होत हए मजदर क क गर की ओर दख कर लबी सास ली

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लजकन दवता न जात-जात कहा इस राज म कभी एक छोड़ कर दो बरा नही होगा धन हम अपन साथ ल जा रह ह

गन छोड़ जात ह दवता क साथ सभी दव-दवी चल गए जसिट सरोसती मया रह गई उसी का मजदर ह

दसी घोड़ पर पार क बोझ लाद हए बजनयो को आत दख कर जहरामन न रपपर क परद को जगरा जदया बलो को

ललकार कर जबदजसया नाच का बदनागीत गान लगा -

ज मया सरोसती अरजी करत बानी

हमरा पर होख सहाई ह मया हमरा पर होख सहाई

घोड़लदद बजनयो स जहरामन न हलस कर पछा कया भाव परआ खरीदत ह महाजन

लगड़ घोड़वाल बजनए न बरगमनी जवाब जदया - नीच सताइस-अठाइस ऊपर तीस जसा माल वसा भाव

जवान बजनय न पछा मल का कया हालचाल ह भाई कौन नौरकी कपनी का खल हो रहा ह रौता कपनी या

मथरामोहन

मल का हाल मलावाला जान जहरामन न जिर छतापर-पचीरा का नाम जलया

सरज दो बास ऊपर आ गया था जहरामन अपन बलो स बात करन लगा - एक कोस जमीन जरा दम बाध कर चलो

पयास की बला हो गई न याद ह उस बार तगजछया क पास सरकस कपनी क जोकर और बदर नचानवाला साहब म

झगड़ा हो गया था जोकरवा ठीक बदर की तरह दात जकरजकरा कर जकजकरयान लगा था न जान जकस-जकस दस-

मलक क आदमी आत ह

जहरामन न जिर परद क छद स दखा हीराबई एक कागज क रकड़ पर आख गड़ा कर बठी ह जहरामन का मन आज

हक सर म बधा ह उसको तरह-तरह क गीतो की याद आती ह बीस-पचचीस साल पहल जबदजसया बलवाही

छोकरा-नाचनवाल एक-स-एक गजल खमरा गात थ अब तो भोपा म भोप-भोप करक कौन गीत गात ह लोग जा र

जमाना छोकरा-नाच क गीत की याद आई जहरामन को -

सजनवा बरी हो ग य हमारो सजनवा

अर जचजठया हो त सब कोई बाच जचजठया हो तो

हाय करमवा होय करमवा

गाड़ी की बली पर उगजलयो स ताल द कर गीत को कार जदया जहरामन न छोकरा-नाच क मनवा नरवा का मह

हीराबाई-जसा ही था कहा चला गया वह जमाना हर महीन गाव म नाचनवाल आत थ जहरामन न छोकरा-नाच

क चलत अपनी भाभी की न जान जकतनी बोली-ठोली सनी थी भाई न घर स जनकल जान को कहा था

आज जहरामन पर मा सरोसती सहाय ह लगता ह हीराबाई बोली वाह जकतना बजढ़या गात हो तम

जहरामन का मह लाल हो गया वह जसर नीचा कर क हसन लगा

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आज तगजछया पर रहनवाल महावीर सवामी भी सहाय ह जहरामन पर तगजछया क नीच एक भी गाड़ी नही हमशा

गाड़ी और गाड़ीवानो की भीड़ लगी रहती ह यहा जसिट एक साइजकलवाला बठ कर ससता रहा ह महावीर सवामी को

समर कर जहरामन न गाड़ी रोकी हीराबाई परदा हरान लगी जहरामन न पहली बार आखो स बात की हीराबाई स -

साइजकलवाला इधर ही रकरकी लगा कर दख रहा ह

बलो को खोलन क पहल बास की जरकरी लगा कर गाड़ी को जरका जदया जिर साइजकलवाल की ओर बार-बार घरत

हए पछा कहा जाना ह मला कहा स आना हो रहा ह जबसनपर स बस इतनी ही दर म थसथसा कर थक गए -

जा र जवानी

साइजकलवाला दबला-पतला नौजवान जमनजमना कर कछ बोला और बीड़ी सलगा कर उठ खड़ा हआ जहरामन

दजनया-भर की जनगाह स बचा कर रखना चाहता ह हीराबाई को उसन चारो ओर नजर दौड़ा कर दख जलया - कही

कोई गाड़ी या घोड़ा नही

कजरी नदी की दबली-पतली धारा तगजछया क पास आ कर परब की ओर मड़ गई ह हीराबाई पानी म बठी हई भसो

और उनकी पीठ पर बठ हए बगलो को दखती रही

जहरामन बोला जाइए घार पर मह-हाथ धो आइए

हीराबाई गाड़ी स नीच उतरी जहरामन का कलजा धड़क उठा नही नही पाव सीध ह रढ़ नही लजकन तलवा

इतना लाल कयो ह हीराबाई घार की ओर चली गई गाव की बह -बरी की तरह जसर नीचा कर क धीर-धीर कौन

कहगा जक कपनी की औरत ह औरत नही लड़की शायद कमारी ही ह

जहरामन जरकरी पर जरकी गाड़ी पर बठ गया उसन रपपर म झाक कर दखा एक बार इधर-उधर दख कर हीराबाई क

तजकए पर हाथ रख जदया जिर तजकए पर कहनी डाल कर झक गया झकता गया खशब उसकी दह म समा गई

तजकए क जगलाि पर कढ़ िलो को उगजलयो स छ कर उसन सघा हाय र हाय इतनी सगध जहरामन को लगा एक

साथ पाच जचलम गाजा ि क कर वह उठा ह हीराबाई क छोर आईन म उसन अपना मह दखा आख उसकी इतनी

लाल कयो ह

हीराबाई लौर कर आई तो उसन हस कर कहा अब आप गाड़ी का पहरा दीजजए म आता ह तरत

जहरामन न अपना सिरी झोली स सहजी हई गजी जनकाली गमछा झाड़ कर कध पर जलया और हाथ म बालरी

लरका कर चला उसक बलो न बारी-बारी स हक-हक करक कछ कहा जहरामन न जात-जात उलर कर कहा

हाहा पयास सभी को लगी ह लौर कर आता ह तो घास दगा बदमासी मत करो

बलो न कान जहलाए

नहा-धो कर कब लौरा जहरामन हीराबाई को नही मालम कजरी की धारा को दखत-दखत उसकी आखो म रात की

उचरी हई नीद लौर आई थी जहरामन पास क गाव स जलपान क जलए दही-चड़ा-चीनी ल आया ह

उजठए नीद तोजड़ए दो मटठी जलपान कर लीजजए

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हीराबाई आख खोल कर अचरज म पड़ गई एक हाथ म जमटटी क नए बरतन म दही कल क पतत दसर हाथ म

बालरी-भर पानी आखो म आतमीयतापणट अनरोध

इतनी चीज कहा स ल आए

इस गाव का दही नामी ह चाह तो िारजबसगज जा कर ही पाइएगा

जहरामन की दह की गदगदी जमर गई हीराबाई न कहा तम भी पततल जबछाओ कयो तम नही खाओग तो समर

कर रख लो अपनी झोली म म भी नही खाऊ गी

इसस जहरामन लजा कर बोला अचछी बात आप खा लीजजए पहल

पहल-पीछ कया तम भी बठो

जहरामन का जी जड़ा गया हीराबाई न अपन हाथ स उसका पततल जबछा जदया पानी छीर जदया चड़ा जनकाल कर

जदया इसस धनदन ह धनदन ह जहरामन न दखा भगवती मया भोग लगा रही ह लाल होठो पर गोरस का परस

पहाड़ी तोत को दध-भात खात दखा ह

जदन ढल गया

रपपर म सोई हीराबाई और जमीन पर दरी जबछा कर सोए जहरामन की नीद एक ही साथ खली मल की ओर

जानवाली गाजड़या तगजछया क पास रकी ह बचच कचर-पचर कर रह ह

जहरामन हड़बड़ा कर उठा रपपर क अदर झाक कर इशार स कहा - जदन ढल गया गाड़ी म बलो को जोतत समय

उसन गाड़ीवानो क सवालो का कोई जवाब नही जदया गाड़ी हाकत हए बोला जसरपर बाजार क इसजपताल की

डागडरनी ह रोगी दखन जा रही ह पास ही कड़मागाम

हीराबाई छततापर-पचीरा का नाम भल गई गाड़ी जब कछ दर आग बढ़ आई तो उसन हस कर पछा पततापर-छपीरा

हसत-हसत पर म बल पड़ जाए जहरामन क - पततापर-छपीरा हा-हा व लोग छततापर-पचीरा क ही गाड़ीवान थ उनस

कस कहता ही-ही-ही

हीराबाई मसकराती हई गाव की ओर दखन लगी

सड़क तगजछया गाव क बीच स जनकलती ह गाव क बचचो न परदवाली गाड़ी दखी और ताजलया बजा-बजा कर ररी

हई पजिया दहरान लग -

लाली-लाली डोजलया म

लाली र दलजहजनया

पान खाए

जहरामन हसा दलजहजनया लाली-लाली डोजलया दलजहजनया पान खाती ह दलहा की पगड़ी म मह पोछती ह

ओ दलजहजनया तगजछया गाव क बचचो को याद रखना लौरती बर गड़ का लडड लती आइयो लाख बररस तरा

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हलहा जीए जकतन जदनो का हौसला परा हआ ह जहरामन का ऐस जकतन सपन दख ह उसन वह अपनी दलजहन

को ल कर लौर रहा ह हर गाव क बचच ताजलया बजा कर गा रह ह हर आगन स झाक कर दख रही ह औरत मदट

लोग पछत ह कहा की गाड़ी ह कहा जाएगी उसकी दलजहन डोली का परदा थोड़ा सरका कर दखती ह और भी

जकतन सपन

गाव स बाहर जनकल कर उसन कनजखयो स रपपर क अदर दखा हीराबाई कछ सोच रही ह जहरामन भी जकसी सोच म

पड़ गया थोड़ी दर क बाद वह गनगनान लगा-

सजन र झठ मजत बोलो खदा क पास जाना ह

नही हाथी नही घोड़ा नही गाड़ी -

वहा पदल ही जाना ह सजन र

हीराबाई न पछा कयो मीता तमहारी अपनी बोली म कोई गीत नही कया

जहरामन अब बखरक हीराबाई की आखो म आख डाल कर बात करता ह कपनी की औरत भी ऐसी होती ह

सरकस कपनी की मालजकन मम थी लजकन हीराबाई गाव की बोली म गीत सनना चाहती ह वह खल कर

मसकराया - गाव की बोली आप समजझएगा

ह -ऊ -ऊ हीराबाई न गदटन जहलाई कान क झमक जहल गए

जहरामन कछ दर तक बलो को हाकता रहा चपचाप जिर बोला गीत जरर ही सजनएगा नही माजनएगा इसस इतना

सौक गाव का गीत सनन का ह आपको तब लीक छोड़ानी होगी चाल रासत म कस गीत गा सकता ह कोई

जहरामन न बाए बल की रससी खीच कर दाजहन को लीक स बाहर जकया और बोला हररपर हो कर नही जाएग तब

चाल लीक को कारत दख कर जहरामन की गाड़ी क पीछवाल गाड़ीवान न जचला कर पछा काह हो गाड़ीवान लीक

छोड़ कर बलीक कहा उधर

जहरामन न हवा म दआली घमात हए जवाब जदया - कहा ह बलीकी वह सड़क नननपर तो नही जाएगी जिर अपन-

आप बड़बड़ाया इस मलक क लोगो की यही आदत बरी ह राह चलत एक सौ जजरह करग अर भाई तमको जाना

ह जाओ दहाती भचच सब

नननपर की सड़क पर गाड़ी ला कर जहरामन न बलो की रससी ढीली कर दी बलो न दलकी चाल छोड़ कर कदमचाल

पकड़ी

हीराबाई न दखा सचमच नननपर की सड़क बड़ी सनी ह जहरामन उसकी आखो की बोली समझता ह - घबरान की

बात नही यह सड़क भी िारजबसगज जाएगी राह-घार क लोग बहत अचछ ह एक घड़ी रात तक हम लोग पहच

जाएग

हीराबाई को िारजबसगज पहचन की जदी नही जहरामन पर उसको इतना भरोसा हो गया जक डर-भय की कोई बात

नही उठती ह मन म जहरामन न पहल जी-भर मसकरा जलया कौन गीत गाए वह हीराबाई को गीत और कथा दोनो का

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शौक ह इसस महआ घरवाररन वह बोला अचछा जब आपको इतना सौक ह तो सजनए महआ घरवाररन का

गीत इसम गीत भी ह कथा भी ह

जकतन जदनो क बाद भगवती न यह हौसला भी परा कर जदया ज भगवती आज जहरामन अपन मन को खलास कर

लगा वह हीराबाई की थमी हई मसकराहर को दखता रहा

सजनए आज भी परमार नदी म महआ घरवाररन क कई परान घार ह इसी मलक की थी महआ थी तो घरवाररन

लजकन सौ सतवती म एक थी उसका बाप दार-ताड़ी पी कर जदन-रात बहोश पड़ा रहता उसकी सौतली मा साचछात

राकसनी बहत बड़ी नजर-चालक रात म गाजा-दार-अिीम चरा कर बचनवाल स ल कर तरह-तरह क लोगो स

उसकी जान-पहचान थी सबस घटटा-भर हल-मल महआ कमारी थी लजकन काम करात-करात उसकी हडडी

जनकाल दी थी राकसनी न जवान हो गई कही शादी-बयाह की बात भी नही चलाई एक रात की बात सजनए

जहरामन न धीर-धीर गनगना कर गला साि जकया -

ह अ-अ-अ- सावना-भादवा क - र- उमड़ल नजदया -ग-म-म-यो-ओ-ओ

मयो ग रजन भयावजन-ह-ए-ए-ए

तड़का-तड़क-धड़क करज-आ-आ मोरा

जक हमह ज बार-नानदही र-ए-ए

ओ मा सावन-भादो की उमड़ी हई नदी भयावनी रात जबजली कड़कती ह म बारी-कवारी ननदही बचची मरा कलजा

धड़कता ह अकली कस जाऊ घार पर सो भी परदशी राही-बरोही क पर म तल लगान क जलए सत-मा न अपनी

बजजर-जकवाड़ी बद कर ली आसमान म मघ हड़बड़ा उठ और हरहरा कर बरसा होन लगी महआ रोन लगी अपनी

मा को याद करक आज उसकी मा रहती तो ऐस दरजदन म कलज स सरा कर रखती अपनी महआ बरी को ग मइया

इसी जदन क जलए यही जदखान क जलए तमन कोख म रखा था महआ अपनी मा पर गससाई - कयो वह अकली मर

गई जी-भर कर कोसती हई बोली

जहरामन न लकषय जकया हीराबाई तजकए पर कहनी गड़ा कर गीत म मगन एकरक उसकी ओर दख रही ह खोई हई

सरत कसी भोली लगती ह

जहरामन न गल म क पक पी पदा की -

ह -ऊ -ऊ -र डाइजनया मयो मोरी-ई-ई

नोनवा चराई काह नाजह मारजल सौरी-घर-अ-अ

एजह जदनवा खाजतर जछनरो जधया

तह पोसजल जक नन-दध उगरन

जहरामन न दम लत हए पछा भाखा भी समझती ह कछ या खाली गीत ही सनती ह

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हीरा बोली समझती ह उगरन मान उबरन - जो दह म लगात ह

जहरामन न जवजसमत हो कर कहा इसस सो रोन-धोन स कया होए सौदागर न परा दाम चका जदया था महआ का

बाल पकड़ कर घसीरता हआ नाव पर चढ़ा और माझी को हकम जदया नाव खोलो पाल बाधो पालवाली नाव

परवाली जचजड़या की तरह उड़ चली रात-भर महआ रोती-छरपराती रही सौदागर क नौकरो न बहत डराया-धमकाया

- चप रहो नही तो उठा कर पानी म ि क दग बस महआ को बात सझ गई भोर का तारा मघ की आड़ स जरा बाहर

आया जिर जछप गया इधर महआ भी छपाक स कद पड़ी पानी म सौदागर का एक नौकर महआ को दखत ही

मोजहत हो गया था महआ की पीठ पर वह भी कदा उलरी धारा म तरना खल नही सो भी भरी भादो की नदी म

महआ असल घरवाररन की बरी थी मछली भी भला थकती ह पानी म सिरी मछली-जसी िरिराती पानी चीरती

भागी चली जा रही ह और उसक पीछ सौदागर का नौकर पकार-पकार कर कहता ह - महआ जरा थमो तमको

पकड़न नही आ रहा तमहारा साथी ह जजदगी-भर साथ रहग हम लोग लजकन

जहरामन का बहत जपरय गीत ह यह महआ घरवाररन गात समय उसक सामन सावन-भादो की नदी उमड़न लगती ह

अमावसया की रात और घन बादलो म रह-रह कर जबजली चमक उठती ह उसी चमक म लहरो स लड़ती हई बारी-

कमारी महआ की झलक उस जमल जाती ह सिरी मछली की चाल और तज हो जाती ह उसको लगता ह वह खद

सौदागर का नौकर ह महआ कोई बात नही सनती परतीत करती नही उलर कर दखती भी नही और वह थक गया

ह तरत-तरत

इस बार लगता ह महआ न अपन को पकड़ा जदया खद ही पकड़ म आ गई ह उसन महआ को छ जलया ह पा जलया

ह उसकी थकन दर हो गई ह परह-बीस साल तक उमड़ी हई नदी की उलरी धारा म तरत हए उसक मन को जकनारा

जमल गया ह आनद क आस कोई भी रोक नही मानत

उसन हीराबाई स अपनी गीली आख चरान की कोजशश की जकत हीरा तो उसक मन म बठी न जान कब स सब कछ

दख रही थी जहरामन न अपनी कापती हई बोली को काब म ला कर बलो को जझड़की दी - इस गीत म न जान कया ह

जक सनत ही दोनो थसथसा जात ह लगता ह सौ मन बोझ लाद जदया जकसी न

हीराबाई लबी सास लती ह जहरामन क अग-अग म उमग समा जाती ह

तम तो उसताद हो मीता

इसस

आजसन-काजतक का सरज दो बास जदन रहत ही कमहला जाता ह सरज डबन स पहल ही नननपर पहचना ह जहरामन

अपन बलो को समझा रहा ह - कदम खोल कर और कलजा बाध कर चलो ए जछ जछ बढ़क भयन ल-ल-ल-

ए ह -य

नननपर तक वह अपन बलो को ललकारता रहा हर ललकार क पहल वह अपन बलो को बीती हई बातो की याद

जदलाता - याद नही चौधरी की बरी की बरात म जकतनी गाजड़या थी सबको कस मात जकया था हा वह कदम

जनकालो ल-ल-ल नननपर स िारजबसगज तीन कोस दो घर और

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नननपर क हार पर आजकल चाय भी जबकन लगी ह जहरामन अपन लोर म चाय भर कर ल आया कपनी की

औरत जानता ह वह सारा जदन घड़ी घड़ी भर म चाय पीती रहती ह चाय ह या जान

हीरा हसत-हसत लोर-पोर हो रही ह - अर तमस जकसन कह जदया जक कवार आदमी को चाय नही पीनी चाजहए

जहरामन लजा गया कया बोल वह लाज की बात लजकन वह भोग चका ह एक बार सरकस कपनी की मम क

हाथ की चाय पी कर उसन दख जलया ह बडी गमट तासीर

पीजजए गर जी हीरा हसी

इसस

नननपर हार पर ही दीया-बाती जल चकी थी जहरामन न अपना सिरी लालरन जला कर जपछवा म लरका जदया

आजकल शहर स पाच कोस दर क गाववाल भी अपन को शहर समझन लग ह जबना रोशनी की गाड़ी को पकड़

कर चालान कर दत ह बारह बखड़ा

आप मझ गर जी मत कजहए

तम मर उसताद हो हमार शासतर म जलखा हआ ह एक अचछर जसखानवाला भी गर और एक राग जसखानवाला भी

उसताद

इसस सासतर-परान भी जानती ह मन कया जसखाया म कया

हीरा हस कर गनगनान लगी - ह-अ-अ-अ- सावना-भादवा क-र

जहरामन अचरज क मार गगा हो गया इसस इतना तज जहन ह -ब-ह महआ घरवाररन

गाड़ी सीताधार की एक सखी धारा की उतराई पर गड़गड़ा कर नीच की ओर उतरी हीराबाई न जहरामन का कधा धर

जलया एक हाथ स बहत दर तक जहरामन क कध पर उसकी उगजलया पड़ी रही जहरामन न नजर जिरा कर कध पर

क जरत करन की कोजशश की कई बार गाड़ी चढ़ाई पर पहची तो हीरा की ढीली उगजलया जिर तन गई

सामन िारजबसगज शहर की रोशनी जझलजमला रही ह शहर स कछ दर हर कर मल की रोशनी रपपर म लरक

लालरन की रोशनी म छाया नाचती ह आसपास डबडबाई आखो स हर रोशनी सरजमखी िल की तरह जदखाई

पड़ती ह

िारजबसगज तो जहरामन का घर-दआर ह

न जान जकतनी बार वह िारजबसगज आया ह मल की लदनी लादी ह जकसी औरत क साथ हा एक बार उसकी

भाभी जजस साल आई थी गौन म इसी तरह जतरपाल स गाड़ी को चारो ओर स घर कर बासा बनाया गया था

जहरामन अपनी गाड़ी को जतरपाल स घर रहा ह गाड़ीवान-पटटी म सबह होत ही रौता नौरकी कपनी क मनजर स बात

करक भरती हो जाएगी हीराबाई परसो मला खल रहा ह इस बार मल म पालचटटी खब जमी ह बस एक रात

आज रात-भर जहरामन की गाड़ी म रहगी वह जहरामन की गाड़ी म नही घर म

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कहा की गाड़ी ह कौन जहरामन जकस मल स जकस चीज की लदनी ह

गाव-समाज क गाड़ीवान एक-दसर को खोज कर आसपास गाड़ी लगा कर बासा डालत ह अपन गाव क

लालमोहर धनदनीराम और पलरदास वगरह गाड़ीवानो क दल को दख कर जहरामन अचकचा गया उधर पलरदास

रपपर म झाक कर भड़का मानो बाघ पर नजर पड़ गई जहरामन न इशार स सभी को चप जकया जिर गाड़ी की ओर

कनखी मार कर िसिसाया - चप कपनी की औरत ह नौरकी कपनी की

कपनी की -ई-ई-ई

एक नही अब चार जहरामन चारो न अचरज स एक-दसर को दखा कपनी नाम म जकतना असर ह जहरामन न लकषय

जकया तीनो एक साथ सरक-दम हो गए लालमोहर न जरा दर हर कर बजतयान की इचछा परकर की इशार स ही

जहरामन न रपपर की ओर मह करक कहा होजरल तो नही खला होगा कोई हलवाई क यहा स पककी ल आव

जहरामन जरा इधर सनो म कछ नही खाऊ गी अभी लो तम खा आओ

कया ह पसा इसस पसा द कर जहरामन न कभी िारजबसगज म कचची-पककी नही खाई उसक गाव क इतन

गाड़ीवान ह जकस जदन क जलए वह छ नही सकता पसा उसन हीराबाई स कहा बकार मला-बाजार म हजजत मत

कीजजए पसा रजखए मौका पा कर लालमोहर भी रपपर क करीब आ गया उसन सलाम करत हए कहा चार आदमी

क भात म दो आदमी खसी स खा सकत ह बासा पर भात चढा हआ ह ह-ह-ह हम लोग एकजह गाव क ह गौवा-

जगराजमन क रहत होजरल और हलवाई क यहा खाएगा जहरामन

जहरामन न लालमोहर का हाथ रीप जदया - बसी भचर-भचर मत बको

गाड़ी स चार रससी दर जात-जात धनदनीराम न अपन कलबलात हए जदल की बात खोल दी - इसस तम भी खब हो

जहरामन उस साल कपनी का बाघ इस बार कपनी की जनानी

जहरामन न दबी आवाज म कहा भाई र यह हम लोगो क मलक की जनाना नही जक लरपर बोली सन कर भी चप रह

जाए एक तो पजचछम की औरत जतस पर कपनी की

धनदनीराम न अपनी शका परकर की - लजकन कपनी म तो सनत ह पतररया रहती ह

धत सभी न एक साथ उसको दरदरा जदया कसा आदमी ह पतररया रहगी कपनी म भला दखो इसकी बजदध सना

ह दखा तो नही ह कभी

धनदनीराम न अपनी गलती मान ली पलरदास को बात सझी - जहरामन भाई जनाना जात अकली रहगी गाड़ी पर

कछ भी हो जनाना आजखर जनाना ही ह कोई जररत ही पड़ जाए

यह बात सभी को अचछी लगी जहरामन न कहा बात ठीक ह पलर तम लौर जाओ गाड़ी क पास ही रहना और

दखो गपशप जरा होजशयारी स करना हा

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जहरामन की दह स अतर-गलाब की खशब जनकलती ह जहरामन करमसाड़ ह उस बार महीनो तक उसकी दह स

बघाइन गध नही गई लालमोहर न जहरामन की गमछी सघ ली - ए-ह

जहरामन चलत-चलत रक गया - कया कर लालमोहर भाई जरा कहो तो बड़ी जजदद करती ह कहती ह नौरकी

दखना ही होगा

िोकर म ही

और गाव नही पहचगी यह बात

जहरामन बोला नही जी एक रात नौरकी दख कर जजदगी-भर बोली-ठोली कौन सन दसी मगी जवलायती चाल

धनदनीराम न पछा िोकर म दखन पर भी तमहारी भौजाई बात सनाएगी

लालमोहर क बासा क बगल म एक लकड़ी की दकान लाद कर आए हए गाड़ीवानो का बासा ह बासा क मीर-

गाड़ीवान जमयाजान बढ़ न सिरी गड़गड़ी पीत हए पछा कयो भाई मीनाबाजार की लदनी लाद कर कौन आया ह

मीनाबाजार मीनाबाजार तो पतररया-पटटी को कहत ह कया बोलता ह यह बढ़ा जमया लालमोहर न जहरामन क

कान म िसिसा कर कहा तमहारी दह मह-मह-महकती ह सच

लहसनवा लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान ह उमर म सबस छोरा ह पहली बार आया ह तो कया बाब-बबआइनो क

यहा बचपन स नौकरी कर चका ह वह रह-रह कर वातावरण म कछ सघता ह नाक जसकोड़ कर जहरामन न दखा

लहसनवा का चहरा तमतम गया ह कौन आ रहा ह धड़धड़ाता हआ - कौन पलरदास कया ह

पलरदास आ कर खड़ा हो गया चपचाप उसका मह भी तमतमाया हआ था जहरामन न पछा कया हआ बोलत कयो

नही

कया जवाब द पलरदास जहरामन न उसको चतावनी द दी थी गपशप होजशयारी स करना वह चपचाप गाड़ी की

आसनी पर जा कर बठ गया जहरामन की जगह पर हीराबाई न पछा तम भी जहरामन क साथ हो पलरदास न गरदन

जहला कर हामी भरी हीराबाई जिर लर गई चहरा-मोहरा और बोली-बानी दख-सन कर पलरदास का कलजा

कापन लगा न जान कयो हा रामलीला म जसया सकमारी इसी तरह थकी लरी हई थी ज जसयावर रामचर की ज

पलरदास क मन म ज-जकार होन लगा वह दास-वसनव ह कीतटजनया ह थकी हई सीता महारानी क चरण रीपन

की इचछा परकर की उसन हाथ की उगजलयो क इशार स मानो हारमोजनयम की परररयो पर नचा रहा हो हीराबाई

तमक कर बठ गई - अर पागल ह कया जाओ भागो

पलरदास को लगा गससाई हई कपनी की औरत की आखो स जचनगारी जनकल रही ह - छरक-छरक वह भागा

पलरदास कया जवाब द वह मला स भी भागन का उपाय सोच रहा ह बोला कछ नही हमको वयापारी जमल गया

अभी ही रीसन जा कर माल लादना ह भात म तो अभी दर ह म लौर आता ह तब तक

खात समय धनदनीराम और लहसनवा न पलरदास की रोकरी-भर जनदा की छोरा आदमी ह कमीना ह पस-पस का

जहसाब जोड़ता ह खान-पीन क बाद लालमोहर क दल न अपना बासा तोड़ जदया धनदनी और लहसनवा गाड़ी जोत

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कर जहरामन क बासा पर चल गाड़ी की लीक धर कर जहरामन न चलत-चलत रक कर लालमोहर स कहा जरा मर

इस कध को सघो तो सघ कर दखो न

लालमोहर न कधा सघ कर आख मद ली मह स असिर शबद जनकला - ए - ह

जहरामन न कहा जरा-सा हाथ रखन पर इतनी खशब समझ लालमोहर न जहरामन का हाथ पकड़ जलया - कध पर

हाथ रखा था सच सनो जहरामन नौरकी दखन का ऐसा मौका जिर कभी हाथ नही लगगा हा

तम भी दखोग लालमोहर की बततीसी चौराह की रोशनी म जझलजमला उठी

बासा पर पहच कर जहरामन न दखा रपपर क पास खड़ा बजतया रहा ह कोई हीराबाई स धनदनी और लहसनवा न एक

ही साथ कहा कहा रह गए पीछ बहत दर स खोज रही ह कपनी

जहरामन न रपपर क पास जा कर दखा - अर यह तो वही बकसा ढोनवाला नौकर जो चपानगर मल म हीराबाई को

गाड़ी पर जबठा कर अधर म गायब हो गया था

आ गए जहरामन अचछी बात इधर आओ यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दजचछना पचचीस-पचचीस

पचास

जहरामन को लगा जकसी न आसमान स धकल कर धरती पर जगरा जदया जकसी न कयो इस बकसा ढोनवाल आदमी न

कहा स आ गया उसकी जीभ पर आई हई बात जीभ पर ही रह गई इसस दजचछना वह चपचाप खड़ा रहा

हीराबाई बोली लो पकड़ो और सनो कल सबह रौता कपनी म आ कर मझस भर करना पास बनवा दगी बोलत

कयो नही

लालमोहर न कहा इलाम-बकसीस द रही ह मालजकन ल लो जहरामन जहरामन न कर कर लालमोहर की ओर दखा

बोलन का जरा भी ढग नही इस लालमोहरा को

धनदनीराम की सवगतोजि सभी न सनी हीराबाई न भी - गाड़ी-बल छोड़ कर नौरकी कस दख सकता ह कोई गाड़ीवान

मल म

जहरामन न रपया लत हए कहा कया बोलग उसन हसन की चिा की कपनी की औरत कपनी म जा रही ह जहरामन

का कया बकसा ढोनवाला रासता जदखाता हआ आग बढ़ा - इधर स हीराबाई जात-जात रक गई जहरामन क बलो

को सबोजधत करक बोली अचछा म चली भयन

बलो न भया शबद पर कान जहलाए

भा-इ-यो आज रात जद रौता सगीत कपनी क सरज पर गलबदन दजखए गलबदन आपको यह जान कर खशी होगी

जक मथरामोहन कपनी की मशह र एकटस जमस हीरादवी जजसकी एक-एक अदा पर हजार जान जिदा ह इस बार हमारी

कपनी म आ गई ह याद रजखए आज की रात जमस हीरादवी गलबदन

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नौरकीवालो क इस एलान स मल की हर पटटी म सरगमी िल रही ह हीराबाई जमस हीरादवी लला गलबदन

जिजलम एकटस को मात करती ह

तरी बाकी अदा पर म खद ह जिदा

तरी चाहत को जदलबर बया कया कर

यही खवाजहश ह जक इ-इ-इ त मझको दखा कर

और जदलोजान म तमको दखा कर

जकरट-रट-रट-रट कडड़ड़ड़डड़ड़रट-ई-घन-घन-धड़ाम

हर आदमी का जदल नगाड़ा हो गया ह

लालमोहर दौड़ता-हािता बासा पर आया - ऐ ऐ जहरामन यहा कया बठ हो चल कर दखो ज-जकार हो रहा ह मय

बाजा-गाजा छापी-िाहरम क साथ हीराबाई की ज-ज कर रहा ह

जहरामन हड़बड़ा कर उठा लहसनवा न कहा धनदनी काका तम बासा पर रहो म भी दख आऊ

धनदनी की बात कौन सनता ह तीनो जन नौरकी कपनी की एलाजनया पारी क पीछ-पीछ चलन लग हर नककड़ पर

रक कर बाजा बद कर क एलान जकया जाना ह एलान क हर शबद पर जहरामन पलक उठता ह हीराबाई का नाम

नाम क साथ अदा-जिदा वगरह सन कर उसन लालमोहर की पीठ थपथपा दी - धनदन ह धनदन ह ह या नही

लालमोहर न कहा अब बोलो अब भी नौरकी नही दखोग सबह स ही धनदनीराम और लालमोहर समझा रह थ

समझा कर हार चक थ - कपनी म जा कर भर कर आओ जात-जात परजसस कर गई ह लजकन जहरामन की बस एक

बात - धतत कौन भर करन जाए कपनी की औरत कपनी म गई अब उसस कया लना-दना चीनदहगी भी नही

वह मन-ही-मन रठा हआ था एलान सनन क बाद उसन लालमोहर स कहा जरर दखना चाजहए कयो लालमोहर

दोनो आपस म सलाह करक रौता कपनी की ओर चल खम क पास पहच कर जहरामन न लालमोहर को इशारा

जकया पछताछ करन का भार लालमोहर क जसर लालमोहर कचराही बोलना जानता ह लालमोहर न एक काल

कोरवाल स कहा बाब साहब जरा सजनए तो

काल कोरवाल न नाक-भौ चढ़ा कर कहा - कया ह इधर कयो

लालमोहर की कचराही बोली गड़बड़ा गई - तवर दख कर बोला गलगल नही-नही बल-बल नही

जहरामन न झर-स समहाल जदया - हीरादवी जकधर रहती ह बता सकत ह उस आदमी की आख हठात लाल हो गई

सामन खड़ नपाली जसपाही को पकार कर कहा इन लोगो को कयो आन जदया इधर

जहरामन वही िनजगलासी आवाज जकधर स आई खम क परद को हरा कर हीराबाई न बलाया - यहा आ जाओ

अदर दखो बहादर इसको पहचान लो यह मरा जहरामन ह समझ

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नपाली दरबान जहरामन की ओर दख कर जरा मसकराया और चला गया काल कोरवाल स जा कर कहा हीराबाई

का आदमी ह नही रोकन बोला

लालमोहर पान ल आया नपाली दरबान क जलए - खाया जाए

इसस एक नही पाच पास चारो अठजनया बोली जक जब तक मल म हो रोज रात म आ कर दखना सबका खयाल

रखती ह बोली जक तमहार और साथी ह सभी क जलए पास ल जाओ कपनी की औरतो की बात जनराली होती ह ह

या नही

लालमोहर न लाल कागज क रकड़ो को छ कर दखा - पा-स वाह र जहरामन भाई लजकन पाच पास ल कर कया

होगा पलरदास तो जिर पलर कर आया ही नही ह अभी तक

जहरामन न कहा जान दो अभाग को तकदीर म जलखा नही हा पहल गरकसम खानी होगी सभी को जक गाव-घर

म यह बात एक पछी भी न जान पाए

लालमोहर न उततजजत हो कर कहा कौन साला बोलगा गाव म जा कर पलरा न अगर बदनामी की तो दसरी बार स

जिर साथ नही लाऊ गा

जहरामन न अपनी थली आज हीराबाई क जजमम रख दी ह मल का कया जठकाना जकसम-जकसम क पाजकरकार लोग

हर साल आत ह अपन साथी-सजगयो का भी कया भरोसा हीराबाई मान गई जहरामन क कपड़ की काली थली को

उसन अपन चमड़ क बकस म बद कर जदया बकस क ऊपर भी कपड़ का खोल और अदर भी झलमल रशमी असतर

मन का मान-अजभमान दर हो गया

लालमोहर और धनदनीराम न जमल कर जहरामन की बजदध की तारीि की उसक भागय को सराहा बार-बार उसक भाई

और भाभी की जनदा की दबी जबान स जहरामन क जसा हीरा भाई जमला ह इसीजलए कोई दसरा भाई होता तो

लहसनवा का मह लरका हआ ह एलान सनत-सनत न जान कहा चला गया जक घड़ी-भर साझ होन क बाद लौरा ह

लालमोहर न एक माजलकाना जझड़की दी ह गाली क साथ - सोहदा कही का

धनदनीराम न च ह पर जखचड़ी चढ़ात हए कहा पहल यह िसला कर लो जक गाड़ी क पास कौन रहगा

रहगा कौन यह लहसनवा कहा जाएगा

लहसनवा रो पड़ा - ऐ-ए-ए माजलक हाथ जोड़त ह एकको झलक बस एक झलक

जहरामन न उदारतापवटक कहा lsquoअचछा-अचछा एक झलक कयो एक घरा दखना म आ जाऊ गाlsquo

नौरकी शर होन क दो घर पहल ही नगाड़ा बजना शर हो जाता ह और नगाड़ा शर होत ही लोग पजतगो की तरह

ररन लगत ह जरकरघर क पास भीड़ दख कर जहरामन को बड़ी हसी आई ndashlsquoलालमोहर उधर दख कसी

धककमधककी कर रह ह लोगrsquo

जहरामन भायrsquo

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lsquoकौन पलरदास कहा की लदनी लाद आएrsquoलालमोहर न पराए गाव क आदमी की तरह पछा

पलरदास न हाथ मलत हए मािी मागी ndashlsquoकसरबार ह जो सजा दो तम लोग सब मजर ह लजकन सचची बात कह

जक जसया सकमारीlsquo

जहरामन क मन का परइन नगाड़ क ताल पर जवकजसत हो चका ह बोला lsquoदखो पलरा यह मत समझना जक गाव-घर

की जनाना ह दखो तमहार जलए भी पास जदया ह पास ल लो अपना तमासा दखोlsquo

लालमोहर न कहा lsquoलजकन एक सतट पर पास जमलगा बीच-बीच म लहसनवा को भीlsquo

पलरदास को कछ बतान की जररत नही वह लहसनवा स बातचीत कर आया ह अभी

लालमोहर न दसरी शतट सामन रखी ndashlsquoगाव म अगर यह बात मालम हई जकसी तरहrsquo

lsquoराम-रामrsquoदात स जीभ को कारत हए कहा पलरदास न

पलरदास न बताया ndashlsquoअठजनया िारक इधर हrsquoिारक पर खड़ दरबान न हाथ स पास ल कर उनक चहर को बारी-

बारी स दखा बोला lsquoयह तो पास ह कहा स जमलाrsquo

अब लालमोहर की कचराही बोली सन कोई उसक तवर दख कर दरबान घबरा गया ndashlsquoजमलगा कहा स अपनी

कपनी स पछ लीजजए जा कर चार ही नही दजखए एक और हlsquoजब स पाचवा पास जनकाल कर जदखाया लालमोहर

एक रपयावाल िारक पर नपाली दरबान खड़ा था जहरामन न पकार कर कहा lsquoए जसपाही दाज सबह को ही

पहचनवा जदया और अभी भल गएrsquo

नपाली दरबान बोला lsquoहीराबाई का आदमी ह सब जान दो पास ह तो जिर काह को रोकता हrsquo

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अठजनया दजाट

तीनो न lsquoकपड़घरrsquoको अदर स पहली बार दखा सामन करसी-बचवाल दज ह परद पर राम-बन-गमन की तसवीर ह

पलरदास पहचान गया उसन हाथ जोड़ कर नमसकार जकया परद पर अजकत रामजसया सकमारी और लखनलला को

lsquoज हो ज होrsquoपलरदास की आख भर आई

जहरामन न कहा lsquoलालमोहर छापी सभी खड़ ह या चल रह हrsquo

लालमोहर अपन बगल म बठ दशटको स जान-पहचान कर चका ह उसन कहा lsquoखला अभी परदा क भीतर ह अभी

जजमनका द रहा ह लोग जमान क जलएlsquo

पलरदास ढोलक बजाना जानता ह इसजलए नगाड़ क ताल पर गरदन जहलाता ह और जदयासलाई पर ताल कारता ह

बीड़ी आदान-परदान करक जहरामन न भी एकाध जान-पहचान कर ली लालमोहर क पररजचत आदमी न चादर स दह

ढकत हए कहा lsquoनाच शर होन म अभी दर ह तब तक एक नीद ल ल सब दजाट स अचछा अठजनया दजाट सबस

पीछ सबस ऊ ची जगह पर ह जमीन पर गरम पआल ह-ह करसी-बच पर बठ कर इस सरदी क मौसम म तमासा

दखनवाल अभी घच-घच कर उठ ग चाह पीनlsquo

उस आदमी न अपन सगी स कहा lsquoखला शर होन पर जगा दना नही-नही खला शर होन पर नही जहररया जब सरज

पर उतर हमको जगा दनाlsquo

जहरामन क कलज म जरा आच लगी जहररया बड़ा लरपजरया आदमी मालम पड़ता ह उसन लालमोहर को आख

क इशार स कहा lsquoइस आदमी स बजतयान की जररत नहीlsquo

घन-घन-घन-धड़ाम परदा उठ गया ह-ए ह-ए हीराबाई शर म ही उतर गई सरज पर कपड़घर खचमखच भर गया

ह जहरामन का मह अचरज म खल गया लालमोहर को न जान कयो ऐसी हसी आ रही ह हीराबाई क गीत क हर पद

पर वह हसता ह बवजह

गलबदन दरबार लगा कर बठी ह एलान कर रही ह जो आदमी तखतहजारा बना कर ला दगा महमागी चीज इनाम म

दी जाएगी अजी ह कोई ऐसा िनकार तो हो जाए तयार बना कर लाए तखतहजारा-आ जकड़जकड़-जकररट-

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अलबतत नाचती ह कया गला ह मालम ह यह आदमी कहता ह जक हीराबाई पान-बीड़ी जसगरर-जदाट कछ नही

खाती ठीक कहता ह बड़ी नमवाली रडी ह कौन कहता ह जक रडी ह दात म जमससी कहा ह पौडर स दात धो लती

होगी हरजगज नही कौन आदमी ह बात की बबात करता ह कपनी की औरत को पतररया कहता ह तमको बात

कयो लगी कौन ह रडी का भड़वा मारो साल को मारो तरी

हो-हल क बीच जहरामन की आवाज कपड़घर को िाड़ रही ह ndashlsquoआओ एक-एक की गरदन उतार लगlsquo

लालमोहर दलाली स परापर पीरता जा रहा ह सामन क लोगो को पलरदास एक आदमी की छाती पर सवार ह ndash

lsquoसाला जसया सकमारी को गाली दता ह सो भी मसलमान हो करrsquo

धनदनीराम शर स ही चप था मारपीर शर होत ही वह कपड़घर स जनकल कर बाहर भागा

काल कोरवाल नौरकी क मनजर नपाली जसपाही क साथ दौड़ आए दारोगा साहब न हरर स पीर-पार शर की हरर

खा कर लालमोहर जतलजमला उठा कचराही बोली म भािण दन लगा ndashlsquoदारोगा साहब मारत ह माररए कोई हजट

नही लजकन यह पास दख लीजजए एक पास पाजकर म भी ह दख सकत ह हजर जरकर नही पास तब हम लोगो

क सामन कपनी की औरत को कोई बरी बात कर तो कस छोड़ दगrsquo

कपनी क मनजर की समझ म आ गई सारी बात उसन दारोगा को समझाया ndashlsquoहजर म समझ गया यह सारी बदमाशी

मथरामोहन कपनीवालो की ह तमाश म झगड़ा खड़ा करक कपनी को बदनाम नही हजर इन लोगो को छोड़

दीजजए हीराबाई क आदमी ह बचारी की जान खतर म ह हजर स कहा था नrsquo

हीराबाई का नाम सनत ही दारोगा न तीनो को छोड़ जदया लजकन तीनो की दआली छीन ली गई मनजर न तीनो को

एक रपएवाल दरज म करसी पर जबठाया ndashlsquoआप लोग यही बजठए पान जभजवा दता ह lsquoकपड़घर शात हआ और

हीराबाई सरज पर लौर आई

नगाड़ा जिर घनघना उठा

थोड़ी दर बाद तीनो को एक ही साथ धनदनीराम का खयाल हआ ndash अर धनदनीराम कहा गया

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lsquoमाजलक ओ माजलकrsquoलहसनवा कपड़घर स बाहर जचला कर पकार रहा ह lsquoओ लालमोहर मा-जल-कrsquo

लालमोहर न तारसवर म जवाब जदया ndashlsquoइधर स उधर स एकरजकया िारक सlsquoसभी दशटको न लालमोहर की ओर

मड़ कर दखा लहसनवा को नपाली जसपाही लालमोहर क पास ल आया लालमोहर न जब स पास जनकाल कर

जदखा जदया लहसनवा न आत ही पछा lsquoमाजलक कौन आदमी कया बोल रहा था बोजलए तो जरा चहरा जदखला

दीजजए उसकी एक झलकrsquo

लोगो न लहसनवा की चौड़ी और सपार छाती दखी जाड़ क मौसम म भी खाली दह चल-चारी क साथ ह य

लोग

लालमोहर न लहसनवा को शात जकया

तीनो-चारो स मत पछ कोई नौरकी म कया दखा जकससा कस याद रह जहरामन को लगता था हीराबाई शर स ही

उसी की ओर रकरकी लगा कर दख रही ह गा रही ह नाच रही ह लालमोहर को लगता था हीराबाई उसी की ओर

दखती ह वह समझ गई ह जहरामन स भी जयादा पावरवाला आदमी ह लालमोहर पलरदास जकससा समझता ह

जकससा और कया होगा रमन की ही बात वही राम वही सीता वही लखनलाल और वही रावन जसया सकमारी

को राम जी स छीनन क जलए रावन तरह-तरह का रप धर कर आता ह राम और सीता भी रप बदल लत ह यहा भी

तखत-हजारा बनानवाला माली का बरा राम ह गलबदन जमया सकमारी ह माली क लड़क का दोसत लखनलला ह

और सलतान ह रावन धनदनीराम को बखार ह तज लहसनवा को सबस अचछा जोकर का पारट लगा ह जचरया

तोहक लक ना जइव नरहर क बजररया वह उस जोकर स दोसती लगाना चाहता ह नही लगावगा दोसती जोकर

साहब

जहरामन को एक गीत की आधी कड़ी हाथ लगी ह ndashlsquoमार गए गलिामrsquoकौन था यह गलिाम हीराबाई रोती हई गा

रही थी ndashlsquoअजी हा मर गए गलिामrsquoजरजड़जड़जड़ बचारा गलिाम

तीनो को दआली वापस दत हए पजलस क जसपाही न कहा lsquoलाठी-दआली ल कर नाच दखन आत होrsquo

दसर जदन मल-भर म यह बात िल गई ndash मथरामोहन कपनी स भाग कर आई ह हीराबाई इसजलए इस बार

मथरामोहन कपनी नही आई ह उसक गड आए ह हीराबाई भी कम नही बड़ी खलाड़ औरत ह तरह-तरह दहाती

लठत पाल रही ह वाह मरी जान भी कह तो कोई मजाल ह

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दस जदन जदन-रात

जदन-भर भाड़ा ढोता जहरामन शाम होत ही नौरकी का नगाड़ा बजन लगता नगाड़ की आवाज सनत ही हीराबाई की

पकार कानो क पास मडरान लगती ndash भया मीता जहरामन उसताद गर जी हमशा कोई-न-कोई बाजा उसक मन

क कोन म बजता रहता जदन-भर कभी हारमोजनयम कभी नगाड़ा कभी ढोलक और कभी हीराबाई की पजनी उनदही

साजो की गत पर जहरामन उठता-बठता चलता-जिरता नौरकी कपनी क मनजर स ल कर परदा खीचनवाल तक

उसको पहचानत ह हीराबाई का आदमी ह

पलरदास हर रात नौरकी शर होन क समय शरदधापवटक सरज को नमसकार करता हाथ जोड़ कर लालमोहर एक जदन

अपनी कचराही बोली सनान गया था हीराबाई को हीराबाई न पहचाना ही नही तब स उसका जदल छोरा हो गया ह

उसका नौकर लहसनवा उसक हाथ स जनकल गया ह नौरकी कपनी म भती हो गया ह जोकर स उसकी दोसती हो गई

ह जदन-भर पानी भरता ह कपड़ धोता ह कहता ह गाव म कया ह जो जाएग लालमोहर उदास रहता ह धनदनीराम घर

चला गया ह बीमार हो कर

जहरामन आज सबह स तीन बार लदनी लाद कर सरशन आ चका ह आज न जान कयो उसको अपनी भौजाई की याद

आ रही ह धनदनीराम न कछ कह तो नही जदया ह बखार की झोक म यही जकतना अरर-परर बक रहा था ndash

गलबदन तखत-हजारा लहसनवा मौज म ह जदन-भर हीराबाई को दखता होगा कल कह रहा था जहरामन माजलक

तमहार अकबाल स खब मौज म ह हीराबाई की साड़ी धोन क बाद कठौत का पानी अततरगलाब हो जाता ह उसम

अपनी गमछी डबा कर छोड़ दता ह लो सघोग हर रात जकसी-न-जकसी क मह स सनता ह वह ndash हीराबाई रडी ह

जकतन लोगो स लड़ वह जबना दख ही लोग कस कोई बात बोलत ह राजा को भी लोग पीठ-पीछ गाली दत ह

आज वह हीराबाई स जमल कर कहगा नौरकी कपनी म रहन स बहत बदनाम करत ह लोग सरकस कपनी म कयो

नही काम करती सबक सामन नाचती ह जहरामन का कलजा दप-दप जलता रहता ह उस समय सरकस कपनी म

बाघ को उसक पास जान की जहममत कौन करगा सरजकषत रहगी हीराबाई जकधर की गाड़ी आ रही ह

lsquoजहरामन ए जहरामन भायrsquoलालमोहर की बोली सन कर जहरामन न गरदन मोड़ कर दखा कया लाद कर लाया ह

लालमोहर

lsquoतमको ढढ़ रही ह हीराबाई इजसरसन पर जा रही हlsquoएक ही सास म सना गया लालमोहर की गाड़ी पर ही आई ह

मल स

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lsquoजा रही ह कहा हीराबाई रलगाड़ी स जा रही हrsquo

जहरामन न गाड़ी खोल दी मालगदाम क चौकीदार स कहा lsquoभया जरा गाड़ी-बल दखत रजहए आ रह हlsquo

lsquoउसतादrsquoजनाना मसाजिरखान क िारक क पास हीराबाई ओढ़नी स मह-हाथ ढक कर खड़ी थी थली बढ़ाती हई

बोली lsquoलो ह भगवान भर हो गई चलो म तो उममीद खो चकी थी तमस अब भर नही हो सकगी म जा रही ह

गर जीrsquo

बकसा ढोनवाला आदमी आज कोर-पतलन पहन कर बाबसाहब बन गया ह माजलको की तरह कजलयो को हकम द

रहा ह ndashlsquoजनाना दजाट म चढ़ाना अचछाrsquo

जहरामन हाथ म थली ल कर चपचाप खड़ा रहा करत क अदर स थली जनकाल कर दी ह हीराबाई न जचजड़या की दह

की तरह गमट ह थली

lsquoगाड़ी आ रही हlsquoबकसा ढोनवाल न मह बनात हए हीराबाई की ओर दखा उसक चहर का भाव सपि ह ndash इतना

जयादा कया ह

हीराबाई चचल हो गई बोली lsquoजहरामन इधर आओ अदर म जिर लौर कर जा रही ह मथरामोहन कपनी म अपन

दश की कपनी ह वनली मला आओग नrsquo

हीराबाई न जहरामन क कध पर हाथ रखा hellipइस बार दाजहन कध पर जिर अपनी थली स रपया जनकालत हए बोली

lsquoएक गरम चादर खरीद लनाlsquo

जहरामन की बोली िरी इतनी दर क बाद ndashlsquoइसस हरदम रपया-पसा रजखए रपया कया करग चादरrsquo

हीराबाई का हाथ रक गया उसन जहरामन क चहर को गौर स दखा जिर बोली lsquoतमहारा जी बहत छोरा हो गया ह

कयो मीता महआ घरवाररन को सौदागर न खरीद जो जलया ह गर जीrsquo

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गला भर आया हीराबाई का बकसा ढोनवाल न बाहर स आवाज दी ndashlsquoगाड़ी आ गईlsquoजहरामन कमर स बाहर जनकल

आया बकसा ढोनवाल न नौरकी क जोकर जसा मह बना कर कहा lsquoलारिारम स बाहर भागो जबना जरकर क

पकड़गा तो तीन महीन की हवाlsquo

जहरामन चपचाप िारक स बाहर जा कर खड़ा हो गया रीसन की बात रलव का राज नही तो इस बकसा ढोनवाल

का मह सीधा कर दता जहरामन

हीराबाई ठीक सामनवाली कोठरी म चढ़ी इसस इतना रान गाड़ी म बठ कर भी जहरामन की ओर दख रही ह रकर-

रकर लालमोहर को दख कर जी जल उठता ह हमशा पीछ-पीछ हरदम जहससादारी सझती ह

गाड़ी न सीरी दी जहरामन को लगा उसक अदर स कोई आवाज जनकल कर सीरी क साथ ऊपर की ओर चली गई ndash

क-ऊ-ऊ इ-सस

-छी-ई-ई-छकक गाड़ी जहली जहरामन न अपन दाजहन पर क अगठ को बाए पर की एड़ी स कचल जलया कलज की

धड़कन ठीक हो गई हीराबाई हाथ की बगनी सािी स चहरा पोछती ह सािी जहला कर इशारा करती ह अब

जाओ आजखरी जडबबा गजरा पलरिामट खाली सब खाली खोखल मालगाड़ी क जडबब दजनया ही खाली हो गई

मानो जहरामन अपनी गाड़ी क पास लौर आया

जहरामन न लालमोहर स पछा lsquoतम कब तक लौर रह हो गावrsquo

लालमोहर बोला lsquoअभी गाव जा कर कया कर ग यहा तो भाड़ा कमान का मौका ह हीराबाई चली गई मला अब

ररगाlsquo

- lsquoअचछी बात कोई समाद दना ह घरrsquo

लालमोहर न जहरामन को समझान की कोजशश की लजकन जहरामन न अपनी गाड़ी गाव की ओर जानवाली सड़क की

ओर मोड़ दी अब मल म कया धरा ह खोखला मला

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रलव लाइन की बगल स बलगाड़ी की कचची सड़क गई ह दर तक जहरामन कभी रल पर नही चढ़ा ह उसक मन म

जिर परानी लालसा झाकी रलगाड़ी पर सवार हो कर गीत गात हए जगरनाथ-धाम जान की लालसा उलर कर अपन

खाली रपपर की ओर दखन की जहममत नही होती ह पीठ म आज भी गदगदी लगती ह आज भी रह-रह कर चपा का

िल जखल उठता ह उसकी गाड़ी म एक गीत की ररी कड़ी पर नगाड़ का ताल कर जाता ह बार-बार

उसन उलर कर दखा बोर भी नही बास भी नही बाघ भी नही ndash परी दवी मीता हीरादवी महआ घरवाररन ndash

को-ई नही मर हए महतो की गगी आवाज मखर होना चाहती ह जहरामन क होठ जहल रह ह शायद वह तीसरी कसम

खा रहा ह ndash कपनी की औरत की लदनी

जहरामन न हठात अपन दोनो बलो को जझड़की दी दआली स मारत हए बोला lsquoरलव लाइन की ओर उलर-उलर कर

कया दखत होrsquoदोनो बलो न कदम खोल कर चाल पकड़ी जहरामन गनगनान लगा ndashlsquoअजी हा मार गए गलिामrsquo

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लाल िान की बगम

िणीशवरनाथ रण

कयो जबरज की मा नाच दखन नही जाएगी कया

जबरज की मा शकरकद उबाल कर बठी मन-ही-मन कढ़ रही थी अपन आगन म सात साल का लड़का जबरज

शकरकद क बदल तमाच खा कर आगन म लोर-पोर कर सारी दह म जमटटी मल रहा था चजपया क जसर भी चड़ल

मडरा रही ह आध-आगन धप रहत जो गई ह सहआन की दकान छोवा-गड़ लान सो अभी तक नही लौरी दीया-

बाती की बला हो गई आए आज लौरक जरा बागड़ बकर की दह म ककरमाछी लगी थी इसजलए बचारा बागड़

रह-रह कर कद-िाद कर रहा था जबरज की मा बागड़ पर मन का गससा उतारन का बहाना ढढ़ कर जनकाल चकी थी

जपछवाड़ की जमचट की िली गाछ बागड़ क जसवा और जकसन कलवा जकया होगा बागड़ को मारन क जलए वह

जमटटी का छोरा ढला उठा चकी थी जक पड़ोजसन मखनी िआ की पकार सनाई पड़ी - कयो जबरज की मा नाच दखन

नही जाएगी कया

जबरज की मा क आग नाथ और पीछ पगजहया न हो तब न िआ

गरम गसस म बझी नकीली बात िआ की दह म धस गई और जबरज क मा न हाथ क ढल को पास ही ि क जदया -

बचार बागड़ को ककरमाछी परशान कर रही ह आ-हा आय आय हरट-र-र आय-आय

जबरज न लर-ही-लर बागड़ को एक डडा लगा जदया जबरज की मा की इचछा हई जक जा कर उसी डड स जबरज का

भत भगा द जकत नीम क पास खड़ी पनभरजनयो की जखलजखलाहर सन कर रक गई बोली ठहर तर बपपा न बड़ा

हथछटटा बना जदया ह तझ बड़ा हाथ चलता ह लोगो पर ठहर

मखनी िआ नीम क पास झकी कमर स घड़ा उतार कर पानी भर कर लौरती पनभरजनयो म जबरज की मा की बहकी

हई बात का इसाि करा रही थी - जरा दखो तो इस जबरज की मा को चार मन पार(जर)का पसा कया हआ ह धरती

पर पाव ही नही पड़त जनसाि करो खद अपन मह स आठ जदन पहल स ही गाव की गली-गली म बोलती जिरी ह

हा इस बार जबरज क बपपा न कहा ह बलगाड़ी पर जबठा कर बलरामपर का नाच जदखा लाऊ गा बल अब अपन घर

ह तो हजार गाड़ी मगनी जमल जाएगी सो मन अभी रोक जदया नाच दखनवाली सब तो औन-पौन कर तयार हो रही

ह रसोई-पानी कर रह ह मर मह म आग लग कयो म रोकन गई सनती हो कया जवाब जदया जबरज की मा न

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मखनी िआ न अपन पोपल मह क होठो को एक ओर मोड़ कर ऐठती हई बोली जनकाली - अर-र-हा-हा जब-र-र-

जज की मया क आग नाथ औ-रट पीछ पगजहया ना हो तब ना-आ-आ

जगी की पतोह जबरज की मा स नही डरती वह जरा गला खोल कर ही कहती ह िआ-आ सरब जसततलजमटरी (सव

सरलमर) क हाजकम क बासा पर िलछाप जकनारीवाली साड़ी पहन क त भी भरा की भरी चढ़ाती तो तमहार नाम स

भी द-तीन बीघा धनहर जमीन का पचाट कर जाता जिर तमहार घर भी आज दस मन सोनाबग पार होता जोड़ा बल

खरीदता जिर आग नाथ और पीछ सकड़ो पगजहया झलती

जगी की पतोह महजोर ह रलव सरशन क पास की लड़की ह तीन ही महीन हए गौन की नई बह हो कर आई ह और

सार कमाटरोली की सभी झगड़ाल सासो स एकाध मोरचा ल चकी ह उसका ससर जगी दागी चोर ह सी-जकलासी ह

उसका खसम रगी कमाटरोली का नामी लठत इसीजलए हमशा सीग खजाती जिरती जगी की पतोह

जबरज की मा क आगन म जगी की पतोह की गला-खोल बोली गलल की गोजलयो की तरह दनदनाती हई आई थी

जबरज क मा न एक तीखा जवाब खोज कर जनकाला लजकन मन मसोस कर रह गई गोबर की ढरी म कौन ढला

ि क

जीभ क झाल को गल म उतार कर जबरज की मा न अपनी बरी चजपया को आवाज दी - अरी चजपया-या-या आज

लौर तो तरी मड़ी मरोड़ कर च ह म झोकती ह जदन-जदन बचाल होती जाती ह गाव म तो अब ठठर-बसकोप का

गीत गानवाली पतररया-पतोह सब आन लगी ह कही बठक बाज न मरजलया सीख रही होगी ह-र-जा-ई-ई अरी

चजपया-या-या

जगी की पतोह न जबरज की मा की बोली का सवाद ल कर कमर पर घड़ को सभाला और मरक कर बोली चल

जदजदया चल इस महल म लाल पान की बगम बसती ह नही जानती दोपहर-जदन और चौपहर-रात जबजली की

बतती भक-भक कर जलती ह

भक-भक जबजली-बतती की बात सन कर न जान कयो सभी जखलजखला कर हस पड़ी िआ की ररी हई दत-पजियो

क बीच स एक मीठी गाली जनकली - शतान की नानी

जबरज की मा की आखो पर मानो जकसी न तज राचट की रोशनी डाल कर चौजधया जदया भक-भक जबजली-बतती

तीन साल पहल सव क प क बाद गाव की जलनडाही औरतो न एक कहानी गढ़ क िलाई थी चजपया की मा क

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आगन म रात-भर जबजली-बतती भकभकाती थी चजपया की मा क आगन म नाकवाल जत की छाप घोड़ की राप की

तरह जलो जलो और जलो चजपया की मा क आगन म चादी-जस पार सखत दख कर जलनवाली सब औरत

खजलहान पर सोनोली धान क बोझो को दख कर बगन का भताट हो जाएगी

जमटटी क बरतन स रपकत हए छोवा-गड़ को उगजलयो स चारती हई चजपया आई और मा क तमाच खा कर चीख पड़ी

- मझ कयो मारती ह-ए-ए-ए सहआइन जदी स सौदा नही दती ह-ए-ए-ए-ए

सहआइन जदी सौदा नही दती की नानी एक सहआइन की दकान पर मोती झरत ह जो जड़ गाड़ कर बठी हई थी

बोल गल पर लात द कर कला तोड़ दगी हरजाई जो जिर कभी बाज न मरजलया गात सना चाल सीखन जाती ह

रीशन की छोकररयो स

जबरज क मा न चप हो कर अपनी आवाज अदाजी जक उसकी बात जगी क झोपड़ तक साि-साि पहच गई होगी

जबरज बीती हई बातो को भल कर उठ खड़ा हआ था और धल झाड़त हए बरतन स रपकत गड़ को ललचाई जनगाह

स दखन लगा था दीदी क साथ वह भी दकान जाता तो दीदी उस भी गड़ चराती जरर वह शकरकद क लोभ म

रहा और मागन पर मा न शकरकद क बदल

ए मया एक अगली गड़ द द जबरज न तलहथी िलाई - द ना मया एक रतती भर

एक रतती कयो उठाक बरतन को ि क आती ह जपछवाड़ म जाक चारना नही बनगी मीठी रोरी मीठी रोरी खान

का मह होता ह जबरज की मा न उबल शकरकद का सप रोती हई चजपया क सामन रखत हए कहा बठक जछलक

उतार नही तो अभी

दस साल की चजपया जानती ह शकरकद छीलत समय कम-स-कम बारह बार मा उस बाल पकड़ कर झकझोरगी

छोरी-छोरी खोर जनकाल कर गाजलया दगी - पाव िलाक कयो बठी ह उस तरह बलजी चजपया मा क गसस को

जानती ह

जबरज न इस मौक पर थोड़ी-सी खशामद करक दखा - मया म भी बठ कर शकरकद छील

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नही मा न जझड़की दी एक शकरकद छीलगा और तीन पर म जाक जसदध की बह स कहो एक घर क जलए कड़ाही

माग कर ल गई तो जिर लौरान का नाम नही जा जदी

मह लरका कर आगन स जनकलत-जनकलत जबरज न शकरकद और गड़ पर जनगाह दौड़ाई चजपया न अपन झबर कश

की ओर स मा की ओर दखा और नजर बचा कर चपक स जबरज की ओर एक शकरकद ि क जदया जबरज भागा

सरज भगवान डब गए दीया-बतती की बला हो गई अभी तक गाड़ी

चजपया बीच म ही बोल उठी - कोयरीरोल म जकसी न गाड़ी नही दी मया बपपा बोल मा स कहना सब ठीक-ठाक

करक तयार रह मलदजहयारोली क जमयाजान की गाड़ी लान जा रहा ह

सनत ही जबरज की मा का चहरा उतर गया लगा छात की कमानी उतर गई घोड़ स अचानक कोयरीरोल म जकसी न

गाड़ी मगनी नही दी तब जमल चकी गाड़ी जब अपन गाव क लोगो की आख म पानी नही तो मलदजहयारोली क

जमयाजान की गाड़ी का कया भरोसा न तीन म न तरह म कया होगा शकरकद छील कर रख द उठा क यह मदट

नाच जदखाएगा बलगाड़ी पर चढ़ कर नाच जदखान ल जाएगा चढ़ चकी बलगाड़ी पर दख चकी जी-भर नाच

पदल जानवाली सब पहच कर परानी हो चकी होगी

जबरज छोरी कड़ाही जसर पर औधा कर वापस आया - दख जदजदया मलररी रोपी इस पर दस लाठी मारन पर भी

कछ नही होता

चजपया चपचाप बठी रही कछ बोली नही जरा-सी मसकराई भी नही जबरज न समझ जलया मया का गससा अभी

उतरा नही ह पर तौर स

मढ़या क अदर स बागड़ को बाहर भगाती हई जबरज की मा बड़बड़ाई - कल ही पचकौड़ी कसाई क हवाल करती ह

राकस तझ हर चीज म मह लगाएगा चजपया बाध द बागड़ को खोल द गल की घरी हमशा रनर-रनर मझ जरा

नही सहाता ह

रनर-रनर सनत ही जबरज को सड़क स जाती हई बलगाजड़यो की याद हो आई - अभी बबआनरोल की गाजड़या नाच

दखन जा रही थी झनर-झनर बलो की झमकी तमन स

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बसी बक-बक मत करो बागड़ क गल स झमकी खोलती बोली चजपया

चजपयाडाल द च ह म पानी बपपा आव तो कहना जक अपन उड़नजहाज पर चढ़ कर नाच दख आए मझ नाच

दखन का सौख नही मझ जगयो मत कोई मरा माथा दख रहा ह

मढ़या क ओसार पर जबरज न जिसजिसा क पछा कयो जदजदया नाच म उड़नजहाज भी उड़गा

चराई पर कथरी ओढ़ कर बठती हई चजपया न जबरज को चपचाप अपन पास बठन का इशारा जकया मफत म मार

खाएगा बचारा

जबरज न बहन की कथरी म जहससा बारत हए चककी-मककी लगाई जाड़ क समय इस तरह घरन पर ठडडी रख कर

चककी-जमककी लगाना सीख चका ह वह उसन चजपया क कान क पास मह ल जा कर कहा हम लोग नाच दखन

नही जाएग गाव म एक पछी भी नही ह सब चल गए

चजपया को जतल-भर भी भरोसा नही सझा तारा डब रहा ह बपपा अभी तक गाड़ी ल कर नही लौर एक महीना पहल

स ही मया कहती थी बलरामपर क नाच क जदन मीठी रोरी बनगी चजपया छीर की साड़ी पहनगी जबरज पर पहनगा

बलगाड़ी पर चढ़ कर-

चजपया की भीगी पलको पर एक बद आस आ गया

जबरज का भी जदल भर आया उसन मन-ही-मन म इमली पर रहनवाल जजनबाबा को एक बगन कबला गाछ का

सबस पहला बगन उसन खद जजस पौध को रोपा ह जदी स गाड़ी ल कर बपपा को भज दो जजनबाबा

मढ़या क अदर जबरज की मा चराई पर पड़ी करवर ल रही थी उह पहल स जकसी बात का मनसबा नही बाधना

चाजहए जकसी को भगवान न मनसबा तोड़ जदया उसको सबस पहल भगवान स पछना ह यह जकस चक का िल द

रह हो भोला बाबा अपन जानत उसन जकसी दवता-जपततर की मान-मनौती बाकी नही रखी सव क समय जमीन क

जलए जजतनी मनौजतया की थी ठीक ही तो महाबीर जी का रोर तो बाकी ही ह हाय र दव भल-चक माि करो

महाबीर बाबा मनौती दनी करक चढ़ाएगी जबरज की मा

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जबरज की मा क मन म रह-रह कर जगी की पतोह की बात चभती ह भक-भक जबजली-बतती चोरी-चमारी

करनवाली की बरी-पतोह जलगी नही पाच बीघा जमीन कया हाजसल की ह जबरज क बपपा न गाव की भाईखौजकयो

की आखो म जकरजकरी पड़ गई ह खत म पार लगा दख कर गाव क लोगो की छाती िरन लगी धरती िोड़ कर पार

लगा ह बसाखी बादलो की तरह उमड़त आ रह ह पार क पौध तो अलान तो िलान इतनी आखो की धार भला

िसल सह जहा परह मन पार होना चाजहए जसिट दस मन पार कारा पर तौल क ओजन हआ भगत क यहा

इसम जलन की कया बात ह भला जबरज क बपपा न तो पहल ही कमाटरोली क एक-एक आदमी को समझा क

कहा जजदगी-भर मजदरी करत रह जाओग सव का समय हो रहा ह लाठी कड़ी करो तो दो-चार बीघ जमीन हाजसल

कर सकत हो सो गाव की जकसी पतखौकी का भतार सव क समय बाबसाहब क जखलाि खासा भी नही जबरज

क बपपा को कम सहना पड़ा ह बाबसाहब गसस स सरकस नाच क बाघ की तरह हमड़त रह गए उनका बड़ा बरा घर

म आग लगान की धमकी दकर गया आजखर बाबसाहब न अपन सबस छोर लड़क को भजा जबरज की मा को

मौसी कहक पकारा - यह जमीन बाब जी न मर नाम स खरीदी थी मरी पढ़ाई-जलखाई उसी जमीन की उपज स

चलती ह और भी जकतनी बात खब मोहना जानता ह उतता जरा-सा लड़का जमीदार का बरा ह जक

चजपया जबरज सो गया कया यहा आ जा जबरज अदर त भी आ जा चजपया भला आदमी आए तो एक बार

आज

जबरज क साथ चजपया अदर चली गई

जढबरी बझा द बपपा बलाए तो जवाब मत दना खपचची जगरा द

भला आदमी र भला आदमी मह दखो जरा इस मदट का जबरज की मा जदन-रात मझा न दती रहती तो ल चक थ

जमीन रोज आ कर माथा पकड़ क बठ जाए मझ जमीन नही लनी ह जबरज की मा मजरी ही अचछीजवाब दती

थी जबरज की मा खब सोच-समझक छोड़ दो जब तमहारा कलजा ही जसथर नही होता ह तो कया होगा जोर-जमीन

जोर क नही तो जकसी और क

जबरज क बाप पर बहत तजी स गससा चढ़ता ह चढ़ता ही जाता ह जबरज की मा का भाग ही खराब ह जो ऐसा

गोबरगणश घरवाला उस जमला कौन-सा सौख-मौज जदया ह उसक मदट न कोह क बल की तरह खर कर सारी उमर

कार दी इसक यहा कभी एक पस की जलबी भी ला कर दी ह उसक खसम न पार का दाम भगत क यहा स ल

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कर बाहर-ही-बाहर बल-हररा चल गए जबरज की मा को एक बार नमरी लोर दखन भी नही जदया आख स बल

खरीद लाए उसी जदन स गाव म जढढोरा पीरन लग जबरज की मा इस बार बलगाड़ी पर चढ़ कर जाएगी नाच दखन

दसर की गाड़ी क भरोस नाच जदखाएगा

अत म उस अपन-आप पर करोध हो आया वह खद भी कछ कम नही उसकी जीभ म आग लग बलगाड़ी पर चढ़

कर नाच दखन की लालसा जकसी कसमय म उसक मह स जनकली थी भगवान जान जिर आज सबह स दोपहर तक

जकसी-न-जकसी बहान उसन अठारह बार बलगाड़ी पर नाच दखन की चचाट छड़ी ह लो खब दखो नाच कथरी क

नीच दशाल का सपना कल भोर पानी भरन क जलए जब जाएगी पतली जीभवाली पतररया सब हसती आएगी

हसती जाएगी सभी जलत ह उसस हा भगवान दाढ़ीजार भी दो बचचो की मा हो कर भी वह जस-की-तस ह

उसका घरवाला उसकी बात म रहता ह वह बालो म गरी का तल डालती ह उसकी अपनी जमीन ह ह जकसी क

पास एक घर जमीन भी अपन इस गाव म जलग नही तीन बीघ म धान लगा हआ ह अगहनी लोगो की जबखदीठ स

बच तब तो

बाहर बलो की घजरया सनाई पड़ी तीनो सतकट हो गए उतकणट होकर सनत रह

अपन ही बलो की घरी ह कयो री चजपया

चजपया और जबरज न पराय एक ही साथ कहा ह -ऊ -ऊ

चप जबरज की मा न जिसजिसा कर कहा शायद गाड़ी भी ह घड़घड़ाती ह न

ह -ऊ -ऊ दोनो न जिर हकारी भरी

चप गाड़ी नही ह त चपक स रटटी म छद करक दख तो आ चपी भागक आ चपक-चपक

चजपया जबली की तरह हौल-हौल पाव स रटटी क छद स झाक आई - हा मया गाड़ी भी ह

जबरज हड़बड़ा कर उठ बठा उसकी मा न उसका हाथ पकड़ कर सला जदया - बोल मत

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चजपया भी गदड़ी क नीच घस गई

बाहर बलगाड़ी खोलन की आवाज हई जबरज क बाप न बलो को जोर स डारा - हा-हा आ गए घर घर आन क

जलए छाती िरी जाती थी

जबरज की मा ताड़ गई जरर मलदजहयारोली म गाज की जचलम चढ़ रही थी आवाज तो बड़ी खनखनाती हई जनकल

रही ह

चजपया-ह बाहर स पकार कर कहा उसक बाप न बलो को घास द द चजपया-ह

अदर स कोई जवाब नही आया चजपया क बाप न आगन म आ कर दखा तो न रोशनी न जचराग न च ह म आग

बात कया ह नाच दखन उतावली हो कर पदल ही चली गई कया

जबरज क गल म खसखसाहर हई और उसन रोकन की परी कोजशश भी की लजकन खासी जब शर हई तो पर पाच

जमनर तक वह खासता रहा

जबरज बरा जबरजमोहन जबरज क बाप न पचकार कर बलाया मया गसस क मार सो गई कया अर अभी तो लोग

जा ही रह ह

जबरज की मा क मन म आया जक कस कर जवाब द नही दखना ह नाच लौरा दो गाड़ी

चजपया-ह उठती कयो नही ल धान की पचसीस रख द धान की बाजलयो का छोरा झबबा झोपड़ क ओसर पर रख

कर उसन कहा दीया बालो

जबरज की मा उठ कर ओसार पर आई - डढ़ पहर रात को गाड़ी लान की कया जररत थी नाच तो अब खतम हो रहा

होगा

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जढबरी की रोशनी म धान की बाजलयो का रग दखत ही जबरज की मा क मन का सब मल दर हो गया धानी रग

उसकी आखो स उतर कर रोम-रोम म घल गया

नाच अभी शर भी नही हआ होगा अभी-अभी बलमपर क बाब की सपनी गाड़ी मोहनपर होजरल-बगला स हाजकम

साहब को लान गई ह इस साल आजखरी नाच ह पचसीस रटटी म खोस द अपन खत का ह

अपन खत का हलसती हई जबरज की मा न पछा पक गय धान

नही दस जदन म अगहन चढ़त-चढ़त लाल हो कर झक जाएगी सार खत की बाजलया मलदजहयारोली पर जा रहा

था अपन खत म धान दख कर आख जड़ा गई सच कहता ह पचसीस तोड़त समय उगजलया काप रही थी मरी

जबरज न धान की एक बाली स एक धान ल कर मह म डाल जलया और उसकी मा न एक हकी डार दी - कसा

लककड़ ह त र इन दशमनो क मार कोई नम-धरम बच

कया हआ डारती कयो ह

नवानदन क पहल ही नया धान जठा जदया दखत नही

अरइन लोगो का सब कछ माि ह जचरई-चरमन ह यह लोग दोनो क मह म नवानदन क पहल नया अनदन न पड़

इसक बाद चजपया न भी धान की बाली स दो धान लकर दातो-तल दबाए - ओ मया इतना मीठा चावल

और गमकता भी ह न जदजदया जबरज न जिर मह म धान जलया

रोरी-पोरी तयार कर चकी कया जबरज क बाप न मसकराकर पछा

नही मान-भर सर म बोली जबरज की मा जान का ठीक-जठकाना नही और रोरी बनाती

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वाह खब हो तम लोगजजसक पास बल ह उस गाड़ी मगनी नही जमलगी भला गाड़ीवालो को भी कभी बल की

जररत होगी पछगा तब कोयरीरोलावालो स ल जदी स रोरी बना ल

दर नही होगी

अर रोकरी भर रोरी तो त पलक मारत बना दती ह पाच रोजरया बनान म जकतनी दर लगगी

अब जबरज की मा क होठो पर मसकराहर खल कर जखलन लगी उसन नजर बचा कर दखा जबरज का बपपा उसकी

ओर एकरक जनहार रहा ह चजपया और जबरज न होत तो मन की बात हस कर खोलन म दर न लगती चजपया और

जबरज न एक-दसर को दखा और खशी स उनक चहर जगमगा उठ - मया बकार गससा हो रही थी न

चपी जरा घलसार म खड़ी हो कर मखनी िआ को आवाज द तो

ऐ ि-आ-आ सनती हो िआ-आ मया बला रही ह

िआ न कोई जवाब नही जदया जकत उसकी बड़बड़ाहर सपि सनाई पड़ी - हा अब िआ को कयो गहारती ह सार

रोल म बस एक िआ ही तो जबना नाथ-पगजहयावाली ह

अरी िआ जबरज की मा न हस कर जवाब जदया उस समय बरा मान गई थी कया नाथ-पगजहयावाल को आ कर

दखो दोपहर रात म गाड़ी लकर आया ह आ जाओ िआ म मीठी रोरी पकाना नही जानती

िआ काखती-खासती आई - इसी क घड़ी-पहर जदन रहत ही पछ रही थी जक नाच दखन जाएगी कया कहती तो म

पहल स ही अपनी अगीठी यहा सलगा जाती

जबरज की मा न िआ को अगीठी जदखला दी और कहा घर म अनाज-दाना वगरह तो कछ ह नही एक बागड़ ह

और कछ बरतन-बासन सो रात-भर क जलए यहा तबाक रख जाती ह अपना हकका ल आई हो न िआ

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िआ को तबाक जमल जाए तो रात-भर कया पाच रात बठ कर जाग सकती ह िआ न अधर म ररोल कर तबाक का

अदाज जकया ओ-हो हाथ खोल कर तबाक रखा ह जबरज की मा न और एक वह ह सहआइन राम कहो उस

रात को अिीम की गोली की तरह एक मरर-भर तबाक रख कर चली गई गलाब-बाग मल और कह गई जक जडबबी-

भर तबाक ह

जबरज की मा च हा सलगान लगी चजपया न शकरकद को मसल कर गोल बनाए और जबरज जसर पर कड़ाही औधा

कर अपन बाप को जदखलान लगा - मलररी रोपी इस पर दस लाठी मारन पर भी कछ नही होगा

सभी ठठा कर हस पड़ जबरज की मा हस कर बोली ताख पर तीन-चार मोर शकरकद ह द द जबरज को चजपया

बचारा शाम स ही

बचारा मत कहो मया खब सचारा ह अब चजपया चहकन लगी तम कया जानो कथरी क नीच मह कयो चल रहा था

बाब साहब का

ही-ही-ही

जबरज क रर दध क दातो की िाक स बोली जनकली जबलक-मारजरन म पाच शकरकद खा जलया हा-हा-हा

सभी जिर ठठा कर हस पड़ जबरज की मा न िआ का मन रखन क जलए पछा एक कनवा गड़ ह आधा द िआ

िआ न गदगद हो कर कहा अरी शकरकद तो खद मीठा होता ह उतना कयो डालगी

जब तक दोनो बल दाना-घास खा कर एक-दसर की दह को जीभ स चार जबरज की मा तयार हो गई चजपया न छीर

की साड़ी पहनी और जबरज बरन क अभाव म पर पर परसन की डोरी बधवान लगा

जबरज क मा न आगन स जनकल गाव की ओर कान लगा कर सनन की चिा की - उह इतनी दर तक भला पदल

जानवाल रक रहग

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पजणटमा का चाद जसर पर आ गया ह जबरज की मा न असली रपा का मगजरकका पहना ह आज पहली बार जबरज

क बपपा को हो कया गया ह गाड़ी जोतता कयो नही मह की ओर एकरक दख रहा ह मानो नाच की लाल पान की

गाड़ी पर बठत ही जबरज की मा की दह म एक अजीब गदगदी लगन लगी उसन बास की बली को पकड़ कर कहा

गाड़ी पर अभी बहोत जगह ह जरा दाजहनी सड़क स गाड़ी हाकना

बल जब दौड़न लग और पजहया जब च-च करक घरघरान लगा तो जबरज स नही रहा गया - उड़नजहाज की तरह

उड़ाओ बपपा

गाड़ी जगी क जपछवाड़ पहची जबरज की मा न कहा जरा जगी स पछो न उसकी पतोह नाच दखन चली गई कया

गाड़ी क रकत ही जगी क झोपड़ स आती हई रोन की आवाज सपि हो गई जबरज क बपपा न पछा अर जगी भाई

काह कनदन-रोहर हो रहा ह आगन म

जगी घर ताप रहा था बोला कया पछत हो रगी बलरामपर स लौरा नही पतोजहया नाच दखन कस जाए आसरा

दखत-दखत उधर गाव की सभी औरत चली गई

अरी रीशनवाली तो रोती ह काह जबरज की मा न पकार कर कहा आ जा झर स कपड़ा पहन कर सारी गाड़ी पड़ी

हई ह बचारी आ जा जदी

बगल क झोपड़ स राध की बरी सनरी न कहा काकी गाड़ी म जगह ह म भी जाऊ गी

बास की झाड़ी क उस पार लरना खवास का घर ह उसकी बह भी नही गई ह जगलर का झमकी-कड़ा पहन कर

झमकती आ रही ह

आ जा जो बाकी रह गई ह सब आ जाए जदी

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जगी की पतोह लरना की बीवी और राध की बरी सनरी तीनो गाड़ी क पास आई बल न जपछला पर ि का जबरज क

बाप न एक भददी गाली दी - साला लताड़ मार कर लगड़ी बनाएगा पतोह को

सभी ठठा कर हस पड़ जबरज क बाप न घघर म झकी दोनो पतोह ओ को दखा उस अपन खत की झकी हई बाजलयो

की याद आ गई

जगी की पतोह का गौना तीन ही मास पहल हआ ह गौन की रगीन साड़ी स कड़व तल और लठवा-जसदर की गध आ

रही ह जबरज की मा को अपन गौन की याद आई उसन कपड़ की गठरी स तीन मीठी रोजरया जनकाल कर कहा खा

ल एक-एक करक जसमराह क सरकारी कप म पानी पी लना

गाड़ी गाव स बाहर हो कर धान क खतो क बगल स जान लगी चादनी काजतक की खतो स धान क झरत िलो

की गध आती ह बास की झाड़ी म कही ददधी की लता िली ह जगी की पतोह न एक बीड़ी सलगा कर जबरज की मा

की ओर बढ़ाई जबरज की मा को अचानक याद आई चजपया सनरी लरना की बीवी और जगी की पतोह य चारो ही

गाव म बसकोप का गीत गाना जानती ह खब

गाड़ी की लीक धनखतो क बीच हो कर गई चारो ओर गौन की साड़ी की खसखसाहर-जसी आवाज होती ह

जबरज की मा क माथ क मगजरकक पर चादनी जछरकती ह

अचछा अब एक बसकोप का गीत गा तो चजपया डरती ह काह जहा भल जाओगी बगल म मासररनी बठी ही

दोनो पतोहओ न तो नही जकत चजपया और सनरी न खखार कर गला साि जकया

जबरज क बाप न बलो को ललकारा - चल भया और जरा जोर स गा र चजपया नही तो म बलो को धीर-धीर

चलन को कह गा

जगी की पतोह न चजपया क कान क पास घघर ल जा कर कछ कहा और चजपया न धीम स शर जकया - चदा की

चादनी

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जबरज को गोद म ल कर बठी उसकी मा की इचछा हई जक वह भी साथ-साथ गीत गाए जबरज की मा न जगी की

पतोह को दखा धीर-धीर गनगना रही ह वह भी जकतनी पयारी पतोह ह गौन की साड़ी स एक खास जकसम की गध

जनकलती ह ठीक ही तो कहा ह उसन जबरज की मा बगम ह लाल पान की बगम यह तो कोई बरी बात नही हा

वह सचमच लाल पान की बगम ह

जबरज की मा न अपनी नाक पर दोनो आखो को क जरत करन की चिा करक अपन रप की झाकी ली लाला साड़ी की

जझलजमल जकनारी मगजरकका पर चाद जबरज की मा क मन म अब और कोई लालसा नही उस नीद आ रही ह

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कोसी का घटवार

शखर जोशी

अभी खपपर म एक-चौथाई स भी अजधक गह शि था खपपर म हाथ डालकर उसन वयथट ही उलरा-पलरा और

चककी क पारो क वतत म िल हए आर को झाडकर एक ढर बना जदया बाहर आत-आत उसन जिर एक बार और

खपपर म झाककर दखा जस यह जानन क जलए जक इतनी दर म जकतनी जपसाई हो चकी ह परत अदर की जमकदार म

कोई जवशि अतर नही आया था खसस-खसस की धवजन क साथ अतयत धीमी गजत स ऊपर का पार चल रहा था घर

का परवशदवार बहत कम ऊचा था खब नीच तक झककर वह बाहर जनकला सर क बालो और बाहो पर आर की एक

हलकी सिद पतट बठ गई थी

खभ का सहारा लकर वह बदबदाया lsquorsquoजा ससाला सबह स अब तक दस पसरी भी नही हआ सरज कहा का कहा

चला गया ह कसी अनहोनी बातrsquorsquo

बात अनहोनी तो ह ही जठ बीत रहा ह आकाश म कही बादलो का नाम-जनशान ही नही अनदय विो अब तक लोगो

की धान-रोपाई परी हो जाती थी पर इस साल नदी-नाल सब सख पड ह खतो की जसचाई तो दरजकनार बीज की

कयाररया सखी जा रही ह छोर नाल-गलो क जकनार क घर महीनो स बद ह कोसी क जकनार ह गसाई का यह घर

पर इसकी भी चाल ऐसी जक लदद घोड की चाल को मात दती ह

चककी क जनचल खड म जछचछर-जछचछर की आवाज क साथ पानी को कारती हई मथानी चल रही थी जकतनी

धीमी आवाज अचछ खात-पीत गवालो क घर म दही की मथानी इसस जयादा शोर करती ह इसी मथानी का वह शोर

होता था जक आदमी को अपनी बात नही सनाई दती और अब तो भल नदी पार कोई बोल तो बात यहा सनाई द

जाय

छपप छपप छपप परानी िौजी पर को घरनो तक मोडकर गसाई पानी की गल क अदर चलन लगा कही कोई

सराख-जनकास हो तो बद कर द एक बद पानी भी बाहर न जाए बद-बद की कीमत ह इन जदनो परायः आधा िलाग

चलकर वह बाध पर पहचा नदी की परी चौडाई को घरकर पानी का बहाव घर की गल की ओर मोड जदया गया था

जकनार की जमटटी-घास लकर उसन बाध म एक-दो सथान पर जनकास बद जकया और जिर गल क जकनार-जकनार

चलकर घर पर आ गया

अदर जाकर उसन जिर पारो क वतत म िल हए आर को बहारकर ढरी म जमला जदया खपपर म अभी थोडा-बहत गह

शि था वह उठकर बाहर आया

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दर रासत पर एक आदमी सर पर जपसान रख उसकी ओर जा रहा था गसाई न उसकी सजवधा का खयाल कर वही स

आवाज द दी lsquorsquoह हो यहा लबर दर म आएगा दो जदन का जपसान अभी जमा ह ऊपर उमदजसह क घर म दख लोlsquorsquo

उस वयजि न मडन स पहल एक बार और परयतन जकया खब ऊच सवर म पकारकर वह बोलाrsquorsquoजररी ह जी पहल

हमारा लबर नही लगा दोगrsquorsquo

गसाई होठो-ही-होठो म मसकराया ससाला कस चीखता ह जस घर की आवाज इतनी हो जक म सन न सक कछ कम

ऊची आवाज म उसन हाथ जहलाकर उततर द जदया lsquorsquoयहा जररी का भी बाप रखा ह जी तम ऊपर चल जाओrsquorsquo

वह आदमी लौर गया

जमहल की छाव म बठकर गसाई न लकडी क जलत कद को खोदकर जचलम सलगाई और गड-गड करता धआ

उडाता रहा

खससर-खससर चककी का पार चल रहा था

जकर-जकर-जकर-जकर खपपर स दान जगरानवाली जचजडया पार पर रकरा रही थी

जछचछर-जछचछर की आवाज क साथ मथानी पानी को कार रही थी और कही कोई आवाज नही कोसी क बहाव म

भी कोई धवजन नही रती-पाथरो क बीच म रखन-रखन पतथर भी अपना सर उठाए आकाश को जनहार रह थ दोपहरी

ढलन पर भी इतनी तज धप कही जचरया भी नही बोलती जकसी पराणी का जपरय-अजपरय सवर नही

सखी नदी क जकनार बठा गसाई सोचन लगा कयो उस वयजि को लौरा जदया लौर तो वह जाता ही घर क अदर

रचच पड जपसान क थलो को दखकर दो-चार कषण की बातचीत का आसरा ही होता

कभी-कभी गसाई को यह अकलापन कारन लगता ह सखी नदी क जकनार का यह अकलापन नही जजदगी-भर साथ

दन क जलए जो अकलापन उसक दवार पर धरना दकर बठ गया ह वही जजस अपना कह सक ऐस जकसी पराणी का

सवर उसक जलए नही पालत कतत-जबली का सवर भी नही कया जठकाना ऐस माजलक का जजसका घर-दवार नही

बीबी-बचच नही खान-पीन का जठकाना नही

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घरनो तक उठी हई परानी िौजी पर क मोड को गसाई न खोला गल म चलत हए थोडा भाग भीग गया था पर इस

गमी म उस भीगी पर की यह शीतलता अचछी लगी पर की सलवरो को ठीक करत-करत गसाई न हकक की नली स

मह हराया उसक होठो म बाए कोन पर हलकी-सी मसकान उभर आई बीती बातो की याद गसाई सोचन लगा इसी

पर की बदौलत यह अकलापन उस जमला ह नही याद करन को मन नही करता परानीबहत परानी बात वह भल

गया ह पर हवालदार साहब की पर की बात उस नही भलती

ऐसी ही िौजी पर पहनकर हवालदार धरमजसह आया था लॉनदडरी की धली नोकदार करीजवाली पर वसी ही पर

पहनन की महतवाकाकषा लकर गसाई िौज म गया था पर िौज स लौरा तो पर क साथ-साथ जजदगी का अकलापन

भी उसक साथ आ गया

पर क साथ और भी जकतनी समजतया सबधद ह उस बार की छरटटयो की बात

कौन महीना हा बसाख ही था सर पर करास खखरी क करसर वाली काली जकशतीनमा रोपी को जतरछा रखकर

िौजी वदी वह पहली बार एनअल-लीव पर घर आया तो चीड वन की आग की तरह खबर इधर-उधर िल गई थी

बचच-बढ सभी उसस जमलन आए थ चाचा का गोठ एकदम भर गया था ठसाठसस जबसतर की नई एकदम साि

जगमग लाल-नीली धाररयोवाली दरी आगन म जबछानी पडी थी लोगो को जबठान क जलए खब याद ह आगन का

गोबर दरी म लग गया था बचच-बढ सभी आए थ जसिट चना-गड या हदवानी क तबाक का लोभ ही नही था कल

क शमील गसाई को इस नए रप म दखन का कौतहल भी था पर गसाई की आख उस भीड म जजस खोज रही थी

वह वहा नही थी

नाला पार क अपन गाव स भस क करया को खोजन क बहान दसर जदन लछमा आई थी पर गसाई उस जदन उसस

जमल न सका गाव क छोकर ही गसाई की जान को बवाल हो गए थ बढढ नरजसह परधान उन जदनो ठीक ही कहत थ

आजकल गसाई को दखकर सोबजनया का लडका भी अपनी िरी घर की रोपी को जतरछी पहनन लग गया ह जदन-

रात जबली क बचचो की तरह छोकर उसक पीछ लग रहत थ जसगरर-बीडी या गपशप क लोभ म

एक जदन बडी मजशकल स मौका जमला था उस लछमा को पात-पतल क जलए जगल जात दखकर वह छोकरो स

काकड क जशकार का बहाना बनाकर अकल जगल को चल जदया था गाव की सीमा स बहत दर कािल क पड क

नीच गसाई क घरन पर सर रखकर लरी-लरी लछमा कािल खा रही थी पक गदराए गहर लाल-लाल कािल

खल-खल म कािलो की छीना-झपरी करत गसाई न लछमा की मिी भीच दी थी रप-रप कािलो का गाढा लाल

रस उसकी पर पर जगर गया था लछमा न कहा था lsquorsquoइस यही रख जाना मरी परी बाह की कती इसम स जनकल

आएगीlsquorsquoवह जखलजखलाकर अपनी बात पर सवय ही हस दी थी

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परानी बात ndash कया कहा था गसाई न याद नही पडता तर जलए मखमल की कती ला दगा मरी सवा या कछ ऐसा

ही

पर लछमा को मखमल की कती जकसन पहनाई होगी ndash पहाडी पार क रमवा न जो तरी-जनसाण लकर उस बयाहन

आया था

lsquorsquoजजसक आग-पीछ भाई-बजहन नही माई-बाप नही परदश म बदक की नोक पर जान रखनवाल को छोकरी कस द द

हमrsquorsquoलछमा क बाप न कहा था

उसका मन जानन क जलए गसाई न रढ-जतरछ बात चलवाई थी

उसी साल मगजसर की एक ठडी उदास शाम को गसाई की यजनर क जसपाही जकसनजसह न कवारटर-मासरर सरोर क

सामन खड-खड उसस कहा था lsquorsquoहमार गाव क रामजसह न जजद की तभी छरटटया बढानी पडी ऌस साल उसकी

शादी थी खब अचछी औरत जमली ह यार शकल-सरत भी खब हएकदम पराखा बडी हसमख ह तमन तो दखा ही

होगा तमहार गाव क नजदीक की ही ह लछमा-लछमा कछ ऐसा ही नाम हlsquorsquo

गसाई को याद नही पडता कौन-सा बहाना बनाकर वह जकसनजसह क पास स चला आया था रम-ड थ उस जदन

हमशा आधा पग लनवाला गसाई उस जदन पशी करवाई थी ndash मलररया जपरकॉशन न करन क अपराध म सोचत-

सोचत गसाई बदबदाया lsquorsquoससाल एडजरनदरrsquorsquo

गसाई सोचन लगा उस साल छरटटयो म घर स जबदा होन स एक जदन पहल वह मौका जनकालकर लछमा स जमला था

lsquorsquoगगनाथजय की कसम जसा तम कहोग म वसा ही करगीrsquorsquoआखो म आस भरकर लछमा न कहा था

विो स वह सोचता आया ह कभी लछमा स भर होगी तो वह अवशय कहगा जक वह गगनाथ का जागर लगाकर

परायजशचत जरर कर ल दवी-दवताओ की झठी कसम खाकर उनदह नाराज करन स कया लाभ जजस पर भी गगनाथ का

कोप हआ वह कभी िल-िल नही पाया पर लछमा स कब भर होगी यह वह नही जानता लडकपन स सगी-साथी

नौकरी-चाकरी क जलए मदानो म चल गए ह गाव की ओर जान का उसका मन नही होता लछमा क बार म जकसी स

पछना उस अचछा नही लगता

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जजतन जदन नौकरी रही वह पलरकर अपन गाव नही आया एक सरशन स दसर सरशन का वालजरयरी टासिर

लनवालो की जलसर म नायक गसाईजसह का नाम ऊपर आता रहा ndash लगातार परह साल तक

जपछल बसाख म ही वह गाव लौरा परह साल बाद ररजवट म आन पर काल बालो को लकर गया था जखचडी बाल

लकर लौरा लछमा का हठ उस अकला बना गया

आज इस अकलपन म कोई होता जजस गसाई अपनी जजदगी की जकताब पढकर सनाता शबद-शबद अकषर-अकषर

जकतना दखा जकतना सना और जकतना अनभव जकया ह उसन

पर नदी जकनार यह तपती रत पनचककी की खरर-परर और जमहल की छाया म ठडी जचलम को जनषपरयोजन

गडगडाता गसाई और चारो ओर अनदय कोई नही एकदम जनजटन जनसतबध सनसान ndash

एकाएक गसाई का धयान ररा

सामन पहाडी क बीच की पगडड़ी स सर पर बोझा जलए एक नारी आकजत उसी ओर चली आ रही थी गसाई न सोचा

वही स आवाज दकर उस लौरा द कोसी न जचकन काई लग पतथरो पर कजठनाई स चलकर उस वहा तक आकर

कवल जनराश लौर जान को कयो वह बाधय कर दर स जचला-जचलाकर जपसान सवीकार करवान की लोगो की

आदत स वह तग आ चका था इस कारण आवाज दन को उसका मन नही हआ वह आकजत अब तक पगडडी

छोडकर नदी क मागट म आ पहची थी

चककी की बदलती आवाज को पहचानकर गसाई घर क अदर चला गया खपपर का अनाज समापत हो चका था

खपपर म एक कम अनदनवाल थल को उलरकर उसन अनदन का जनकास रोकन क जलए काठ की जचजडयो को उलरा कर

जदया जकर-जकर का सवर बद हो गया वह जदी-जदी आर को थल म भरन लगा घर क अदर मथानी की

जछचछर-जछचछर की आवाज भी अपकषाकत कम सनाई द रही थी कवल चककी ऊपरवाल पार की जघसरती हई

घरघराहर का हका-धीमा सगीत चल रहा था तभी गसाई न सना अपनी पीठ क पीछ घर क दवार पर इस सगीत स

भी मधर एक नारी का कठसवर lsquorsquoकब बारी आएगी जी रात की रोरी क जलए भी घर म आरा नही हlsquorsquo

सर पर जपसान रख एक सतरी उसस यह पछ रही थी गसाई को उसका सवर पररजचत-सा लगा चौककर उसन पीछ

मडकर दखा कपड म जपसान ढीला बधा होन क कारण बोझ का एक जसरा उसक मख क आग आ गया था गसाई

उस ठीक स नही दख पाया लजकन तब भी उसका मन जस आशजकत हो उठा अपनी शका का समाधान करन क

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जलए वह बाहर आन को मडा लजकन तभी जिर अदर जाकर जपसान क थलो को इधर-उधर रखन लगा काठ की

जचजडया जकर-जकर बोल रही थी और उसी गजत क साथ गसाई को अपन हदय की धडकन का आभास हो रहा था

घर क छोर कमर म चारो ओर जपस हए अनदय का चणट िल रहा था जो अब तक गसाई क पर शरीर पर छा गया था

इस कजतरम सिदी क कारण वह वधद-सा जदखाई द रहा था सतरी न उस नही पहचाना

उसन दबारा व ही शबद दहराए वह अब भी तज धप म बोझा सर पर रख हए गसाई का उततर पान को आतर थी

शायद नकारातमक उततर जमलन पर वह उलर पाव लौरकर जकसी अनदय चककी का सहारा लती

दसरी बार क परशन को गसाई न राल पाया उततर दना ही पडा lsquorsquoयहा पहल ही रीला लगा ह दर तो होगी हीlsquorsquoउसन

दब-दब सवर म कह जदया

सतरी न जकसी परकार की अननय-जवनय नही की शाम क आर का परबध करन क जलए वह दसरी चककी का सहारा लन

को लौर पडी

गसाई झककर घर स बाहर जनकला मडत समय सतरी की एक झलक दखकर उसका सदह जवशवास म बदल गया था

हताश-सा वह कछ कषणो तक उस जात हए दखता रहा और जिर अपन हाथो तथा जसर पर जगर हए आर को झाडकर

एक-दो कदम आग बढा उसक अदर की जकसी अजञात शजि न जस उस वापस जाती हई उस सतरी को बलान को

बाधय कर जदया आवाज दकर उस बला लन को उसन मह खोला परत आवाज न द सका एक जझझक एक

असमथटता थी जो उसका मह बद कर रही थी वह सतरी नदी तक पहच चकी थी गसाई क अतर म तीवर उथल-पथल

मच गई इस बार आवग इतना तीवर था जक वह सवय को नही रोक पाया लडखडाती आवाज म उसन पकारा

lsquorsquoलछमाrsquorsquo

घबराहर क कारण वह पर जोर स आवाज नही द पाया था सतरी न यह आवाज नही सनी इस बार गसाई न सवसथ

होकर पनः पकारा lsquorsquoलछमाrsquorsquo

लछमा न पीछ मडकर दखा मायक म उस सभी इसी नाम स पकारत थ यह सबोधन उसक जलए सवाभाजवक था परत

उस शका शायद यह थी जक चककीवाला एक बार जपसान सवीकार न करन पर भी दबारा उस बला रहा ह या उस

कवल भरम हआ ह उसन वही स पछा lsquorsquoमझ पकार रह ह जी

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गसाई न सयत सवर म कहा lsquorsquoहा ल आ हो जाएगाlsquorsquo

लछमा कषण-भर रकी और जिर घर की ओर लौर आई

अचानक साकषातकार होन का मौका न दन की इचछा स गसाई वयसतता का परदशटन करता हआ जमहल की छाह म

चला गया

लछमा जपसान का थला घर क अदर रख आई बाहर जनकलकर उसन आचल क कोर स मह पोछा तज धप म चलन

क कारण उसका मह लाल हो गया था जकसी पड की छाया म जवशराम करन की इचछा स उसन इधर-उधर दखा

जमहल क पड की छाया म घर की ओर पीठ जकए गसाई बठा हआ था जनकर सथान म दाजडम क एक पड की छाह

को छोडकर अनदय कोई बठन लायक सथान नही था वह उसी ओर चलन लगी

गसाई की उदारता क कारण ॠणी-सी होकर ही जस उसन जनकर आत-आत कहा lsquorsquoतमहार बाल-बचच जीत रह

घरवारजी बडा उपकार का काम कर जदया तमन ऊपर क घर म भी जान जकतनी दर म लबर जमलताlsquorsquo

अजाज सतजत क परजत जदए गए आशीवटचनो को गसाई न मन-ही-मन जवनोद क रप म गरहण जकया इस कारण उसकी

मानजसक उथल-पथल कछ कम हो गई लछमा उसकी ओर दख इसस पवट ही उसन कहा lsquorsquoजीत रह तर बाल-बचच

लछमा मायक कब आईrsquorsquo

गसाई न अतर म घमडती आधी को रोककर यह परशन इतन सयत सवर म जकया जस वह भी अनदय दस आदजमयो की

तरह लछमा क जलए एक साधारण वयजि हो

दाजडम की छाया म पात-पतल झाडकर बठत लछमा न शजकत दजि स गसाई की ओर दखा कोसी की सखी धार

अचानक जल-पलाजवत होकर बहन लगती तो भी लछमा को इतना आशचयट न होता जजतना अपन सथान स कवल

चार कदम की दरी पर गसाई को इस रप म दखन पर हआ जवसमय स आख िाडकर वह उस दख जा रही थी जस

अब भी उस जवशवास न हो रहा हो जक जो वयजि उसक सममख बठा ह वह उसका पवट-पररजचत गसाई ही ह

lsquorsquoतमrsquorsquoजान लछमा कया कहना चाहती थी शि शबद उसक कठ म ही रह गए

lsquorsquoहा जपछल साल परन स लौर आया था वि कारन क जलए यह घर लगवा जलयाlsquorsquoगसाई न ही पछा lsquorsquoबाल-

बचच ठीक हrsquorsquo

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आख जमीन पर जरकाए गरदन जहलाकर सकत स ही उसन बचचो की कशलता की सचना द दी जमीन पर जगर एक

दाजडम क िल को हाथो म लकर लछमा उसकी पखजडयो को एक-एक कर जनरददशय तोडन लगी और गसाई पतली

सीक लकर आग को करदता रहा

बातो का करम बनाए रखन क जलए गसाई न पछा lsquorsquoत अभी और जकतन जदन मायक ठहरनवाली हrsquorsquo

अब लछमा क जलए अपन को रोकना असभव हो गया रप-रप-रप वह सर नीचा जकए आस जगरान लगी जससजकयो

क साथ-साथ उसक उठत-जगरत कधो को गसाई दखता रहा उस यह नही सझ रहा था जक वह जकन शबदो म अपनी

सहानभजत परकर कर

इतनी दर बाद सहसा गसाई का धयान लछमा क शरीर की ओर गया उसक गल म चरऊ (सहाग-जचहन) नही था

हतपरभ-सा गसाई उस दखता रहा अपनी वयावहाररक अजञानता पर उस बहद झझलाहर हो रही थी

आज अचानक लछमा स भर हो जान पर वह उन सब बातो को भल गया जजनदह वह कहना चाहता था इन कषणो म

वह कवल-मातर शरोता बनकर रह जाना चाहता था गसाई की सहानभजतपणट दजि पाकर लछमा आस पोछती हई

अपना दखडा रोन लगी lsquorsquoजजसका भगवान नही होता उसका कोई नही होता जठ-जठानी स जकसी तरह जपड छडाकर

यहा मा की बीमारी म आई थी वह भी मझ छोडकर चली गई एक अभागा मझ रोन को रह गया ह उसी क जलए

जीना पड रहा ह नही तो पर पर पतथर बाधकर कही डब मरती जजाल करताlsquorsquo

lsquorsquoयहा काका-काकी क साथ रह रही होrsquorsquoगसाई न पछा

lsquorsquoमजशकल पडन पर कोई जकसी का नही होता जी बाबा की जायदाद पर उनकी आख लगी ह सोचत ह कही म हक

न जमा ल मन साि-साि कह जदया मझ जकसी का कछ लना-दना नही जगलात का लीसा ढो-ढोकर अपनी गजर

कर लगी जकसी की आख का कारा बनकर नही रह गीlsquorsquo

गसाई न जकसी परकार की मौजखक सवदना नही परकर की कवल सहानभजतपणट दजि स उस दखता-भर रहा दाजडम क

वकष स पीठ जरकार लछमा घरन मोडकर बठी थी गसाई सोचन लगा परह-सोलह साल जकसी की जजदगी म अतर

लान क जलए कम नही होत समय का यह अतराल लछमा क चहर पर भी एक छाप छोड गया था पर उस लगा उस

छाप क नीच वह आज भी परह विट पहल की लछमा को दख रहा ह

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lsquorsquoजकतनी तज धप ह इस सालrsquorsquoलछमा का सवर उसक कानो म पडा परसग बदलन क जलए ही जस लछमा न यह

बात जान-बझकर कही हो

और अचानक उसका धयान उस ओर चला गया जहा लछमा बठी थी दाजडम की िली-िली अधढकी डालो स

छनकर धप उसक शरीर पर पड रही थी सरज की एक पतली जकरन न जान कब स लछमा क माथ पर जगरी हई एक

लर को सनहरी रगीनी म डबा रही थी गसाई एकरक उस दखता रहा

lsquorsquoदोपहर तो बीत चकी होगीrsquorsquoलछमा न परशन जकया तो गसाई का धयान ररा lsquorsquoहा अब तो दो बजनवाल होगrsquorsquoउसन

कहा lsquorsquoउधर धप लग रही हो तो इधर आ जा छाव मlsquorsquoकहता हआ गसाई एक जमहाई लकर अपन सथान स उठ गया

lsquorsquoनही यही ठीक हrsquorsquoकहकर लछमा न गसाई की ओर दखा लजकन वह अपनी बात कहन क साथ ही दसरी ओर

दखन लगा था

घर म कछ दर पहल डाला हआ जपसान समाजपत पर था नबर पर रख हए जपसान की जगह उसन जाकर जदी-जदी

लछमा का अनाज खपपर म खाली कर जदया

धीर-धीर चलकर गसाई गल क जकनार तक गया अपनी अजली स भर-भरकर उसन पानी जपया और जिर पास ही

एक बजर घर क अदर जाकर पीतल और अलमजनयम क कछ बतटन लकर आग क जनकर लौर आया

आस-पास पडी हई सखी लकजडयो को बरोरकर उसन आग सलगाई और एक काजलख पती बरलोई म पानी रखकर

जात-जात लछमा की ओर मह कर कह गया lsquorsquoचाय का रम भी हो रहा ह पानी उबल जाय तो पतती डाल दना

पजडया म पडी हlsquorsquo

लछमा न उततर नही जदया वह उस नदी की ओर जानवाली पगडडी पर जाता हआ दखती रही

सडक जकनार की दकान स दध लकर लौरत-लौरत गसाई को कािी समय लग गया था वापस आन पर उसन दखा

एक छः-सात विट का बचचा लछमा की दह स सरकर बठा हआ ह

बचच का पररचय दन की इचछा स जस लछमा न कहा lsquorsquoइस छोकर को घडी-भर क जलए भी चन नही जमलता जान

कस पछता-खोजता मरी जान खान को यहा भी पहच गया हlsquorsquo

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गसाई न लकषय जकया जक बचचा बार-बार उसकी दजि बचाकर मा स जकसी चीज क जलए जजद कर रहा ह एक बार

झझलाकर लछमा न उस जझडक जदया lsquorsquoचप रह अभी लौरकर घर जाएग इतनी-सी दर म कयो मरा जा रहा हrsquorsquo

चाय क पानी म दध डालकर गसाई जिर उसी बजर घर म गया एक थाली म आरा लकर वह गल क जकनार बठा-

बठा उस गथन लगा जमहल क पड की ओर आत समय उसन साथ म दो-एक बतटन और ल जलए

लछमा न बरलोई म दध-चीनी डालकर चाय तयार कर दी थी एक जगलास एक एनमल का मग और एक

अलमजनयमक मसजरन म गसाई न चाय डालकर आपस म बार ली और पतथरो स बन बढग च ह क पास बठकर

रोजरया बनान का उपकरम करन लगा

हाथ का चाय का जगलास जमीन पर जरकाकर लछमा उठी आर की थाली अपनी ओर जखसकाकर उसन सवय रोरी

पका दन की इचछा ऐस सवर म परकर की जक गसाई ना न कह सका वह खडा-खडा उस रोरी पकात हए दखता रहा

गोल-गोल जडजबया-सरीखी रोजरया च ह म जखलन लगी विो बाद गसाई न ऐसी रोजरया दखी थी जो अजनजशचत

आकार की िौजी लगर की चपाजतयो या सवय उसक हाथ स बनी बडौल रोजरयो स एकदम जभनदन थी आर की लोई

बनात समय लछमा क छोर-छोर हाथ बडी तजी स घम रह थ कलाई म पहन हए चादी क कड ज़ब कभी आपस म

रकरा जाततो खन-खन का एक अतयत मधर सवर जनकलता चककी क पार पर रकरानवाली काठ की जचजडयो का

सवर जकतना नीरस हो सकता ह यह गसाई न आज पहली बार अनभव जकया

जकसी काम स वह बजर घर की ओर गया और बडी दर तक खाली बतटन-जडबबो को उठाता-रखता रहा

वह लौरकर आया तो लछमा रोरी बनाकर बतटनो को समर चकी थी और अब आर म सन हाथो को धो रही थी

गसाई न बचच की ओर दखा वह दोनो हाथो म चाय का मग थाम रकरकी लगाकर गसाई को दख जा रहा था

लछमा न आगरह क सवर म कहा lsquorsquoचाय क साथ खानी हो तो खा लो जिर ठडी हो जाएगीlsquorsquo

lsquorsquoम तो अपन रम स ही खाऊगा यह तो बचच क जलए rsquorsquoसपि कहन म उस जझझक महसस हो रही थी जस बचच क

सबध म जचजतत होन की उसकी चिा अनजधकार हो

lsquorsquoन-न जी वह तो अभी घर स खाकर ही आ रहा ह म रोजरया बनाकर रख आई थीrsquorsquoअतयत सकोच क साथ लछमा

न आपजतत परकर कर दी

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lsquorsquoअऽऽ यो ही कहती ह कहा रखी थी रोजरया घर मrsquorsquoबचच न रआसी आवाज म वासतजवक वयजि की बत सन रहा

था और रोजरयो को दखकर उसका सयम ढीला पड गया था

lsquorsquoचपrsquorsquoआख तररकर लछमा न उस डार जदया बचच क इस कथन स उसकी जसथजत हासयासपद हो गई थी इस कारण

लजजा स उसका मह आरि हो उठा

lsquorsquoबचचा ह भख लग आई होगी डारन स कया िायदाrsquorsquoगसाई न बचच का पकष लकर दो रोजरया उसकी ओर बढा

दी परत मा की अनमजत क जबना उनदह सवीकारन का साहस बचच को नही हो रहा था वह ललचाई दजि स कभी

रोजरयो की ओर कभी मा की ओर दख लता था

गसाई क बार-बार आगरह करन पर भी बचचा रोजरया लन म सकोच करता रहा तो लछमा न उस जझडक जदया lsquorsquoमर

अब ल कयो नही लता जहा जाएगा वही अपन लचछन जदखाएगाrsquorsquo

इसस पहल जक बचचा रोना शर कर द गसाई न रोजरयो क ऊपर एक रकडा गड का रखकर बचच क हाथो म जदया

भरी-भरी आखो स इस अनोख जमतर को दखकर बचचा चपचाप रोरी खान लगा और गसाई कौतकपणट दजि स उसक

जहलत हए होठो को दखता रहा

इस छोर-स परसग क कारण वातावरण म एक तनाव-सा आ गया था जजस गसाई और लछमा दोनो ही अनभव कर रह

सवय भी एक रोरी को चाय म डबाकर खात-खात गसाई न जस इस तनाव को कम करन की कोजशश म ही मसकराकर

कहा lsquorsquoलोग ठीक ही कहत ह औरत क हाथ की बनी रोजरयो म सवाद ही दसरा होता हlsquorsquo

लछमा न करण दजि स उसकी ओर दखा गसाई हो-होकर खोखली हसी हस रहा था

lsquorsquoकछ साग-सबजी होती तो बचारा एक-आधी रोरी और खा लताlsquorsquoगसाई न बचच की ओर दखकर अपनी जववशता

परकर की

lsquorsquoऐसी ही खान-पीनवाल की तकदीर लकर पदा हआ होता तो मर भाग कयो पडता दो जदन स घर म तल-नमक नही

ह आज थोड पस जमल हआज ल जाऊगी कछ सौदाlsquorsquo

हाथ स अपनी जब ररोलत हए गसाई न सकोचपणट सवर म कहा lsquorsquoलछमाrsquorsquo

लछमा न जजजञासा स उसकी ओर दखा गसाई न जब स एक नोर जनकालकर उसकी ओर बढात हए कहा lsquorsquoल काम

चलान क जलए यह रख लमर पास अभी और ह परसो दफतर स मनीआडटर आया थाlsquorsquo

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lsquorsquoनही-नही जी काम तो चल ही रहा ह म इस मतलब स थोड कह रही थी यह तो बात चली थी तो मन

कहाrsquorsquoकहकर लछमा न सहायता लन स इनदकार कर जदया

गसाई को लछमा का यह वयवहार अचछा नही लगा रखी आवाज म वह बोला lsquorsquoदःख-तकलीि क वि ही आदमी

आदमी क काम नही आया तो बकार ह ससाला जकतना कमाया जकतना िका हमन इस जजदगी म ह कोई जहसाब

पर कया िायदा जकसी क काम नही आया इसम अहसान की कया बात ह पसा तो जमटटी ह ससाला जकसी क काम

नही आया तो जमटटी एकदम जमटटीrsquorsquo

परनदत गसाई क इस तकट क बावजद भी लछमा अडी रही बचच क सर पर हाथ िरत हए उसन दाशटजनक गभीरता स

कहा lsquorsquoगगनाथ दाजहन रह तो भल-बर जदन जनभ ही जात ह जी पर का कया ह घर क खपपर की तरह जजतना डालो

कम हो जाय अपन-पराय परम स हस-बोल द तो वह बहत ह जदन कारन क जलएlsquorsquo

गसाई न गौर स लछमा क मख की ओर दखा विो पहल उठ हए जवार और तिान का वहा कोई जचहन शि नही था

अब वह सागर जस सीमाओ म बधकर शात हो चका था

रपया लन क जलए लछमा स अजधक आगरह करन का उसका साहस नही हआ पर गहर असतोि क कारण बझा-

बझा-सा वह धीमी चाल स चलकर वहा स हर गया सहसा उसकी चाल तज हो गई और घर क अदर जाकर उसन

एक बार शजकत दजि स बाहर की ओर दखा लछमा उस ओर पीठ जकए बठी थी उसन जदी-जदी अपन नीजी

आर क रीन स दो-ढाई सर क करीब आरा जनकालकर लछमा क आर म जमला जदया और सतोि की एक सास लकर

वह हाथ झाडता हआ बाहर आकर बाध की ओर दखन लगा ऊपर बाध पर जकसी को घमत हए दखकर उसन हाक

दी शायद खत की जसचाई क जलए कोई पानी तोडना चाहता था

बाध की ओर जान स पहल वह एक बार लछमा क जनकर गया जपसान जपस जान की सचना उस दकर वापस लौरत

हए जिर जठठककर खडा हो गया मन की बात कहन म जस उस जझझक हो रही हो अरक-अरककर वह बोला

lsquorsquoलछमा lsquorsquo

लछमा न जसर उठाकर उसकी ओर दखा गसाई को चपचाप अपनी ओर दखत हए पाकर उस सकोच होन लगा वह

न जान कया कहना चाहता हइस बात की आशका स उसक मह का रग अचानक िीका होन लगा पर गसाई न

जझझकत हए कवल इतना ही कहा lsquorsquoकभी चार पस जड ज़ाए तो गगनाथ का जागर लगाकर भल-चक की मािी माग

लना पत-पररवारवालो को दवी-दवता क कोप स बचा रहना चाजहएlsquorsquoलछमा की बात सनन क जलए वह नही रका

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पानी तोडनवाल खजतहार स झगडा जनपराकर कछ दर बाद लौरत हए उसन दखा सामनवाल पहाड की पगडडी पर

सर पर आरा जलए लछमा अपन बचच क साथ धीर-धीर चली जा रही थी वह उनदह पहाडी क मोड तक पहचन तक

रकरकी बाध दखता रहा

घर क अदर काठ की जचजडया अब भी जकर-जकर आवाज कर रही थी चककी का पार जखससर-जखससर चल रहा था

और मथानी की पानी कारन की आवाज आ रही थी और कही कोई सवर नही सब सनसान जनसतबध

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आकाशदीि

जयशकर lsquoपरसादrsquo

ldquoबदीrsquorsquo

lsquorsquoकया ह सोन दोlsquorsquo

lsquorsquoमि होना चाहत होrsquorsquo

lsquorsquoअभी नही जनरा खलन पर चप रहोlsquorsquo

lsquorsquoजिर अवसर न जमलगाlsquorsquo

lsquorsquoबडा शीत ह कही स एक कबल डालकर कोई शीत स मि करताlsquorsquo

lsquorsquoआधी की सभावना ह यही एक अवसर ह आज मर बधन जशजथल हlsquorsquo

lsquorsquoतो कया तम भी बदी होrsquorsquo

lsquorsquoहा धीर बोलो इस नाव पर कवल दस नाजवक और परहरी हlsquorsquo

lsquorsquoशसतर जमलगाrsquorsquo

lsquorsquoजमल जाएगा पोत स सबदध रजज कार सकोगrsquorsquo

lsquorsquoहाlsquorsquo

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समर म जहलोर उठन लगी दोनो बदी आपस म रकरान लग पहल बदी न अपन को सवततर कर जलया दसर का बधन

खोलन का परयतन करन लगा लहरो क धकक एक-दसर को सपशट स पलजकत कर रह थ मजि की आशा-सनह का

असभाजवत आजलगन दोनो ही अधकार म मि हो गए दसर बदी न हिाटजतरक स उसको गल स लगा जलया सहसा

उस बदी न कहा-lsquorsquoयह कया तम सतरी होrsquorsquo

lsquorsquoकया सतरी होना कोई पाप हrsquorsquondashअपन को अलग करत हए सतरी न कहा

lsquorsquoशसतर कहा ह ndash तमहारा नामrsquorsquo

lsquorsquoचपाlsquorsquo

तारक-खजचत नील अबर और समर क अवकाश म पवन ऊधम मचा रहा था अधकार स जमलकर पवन दि हो रहा

था समर म आदोलन था नौका लहरो म जवकल थी सतरी सतकट ता स लढकन लगी एक मतवाल नाजवक क शरीर स

रकराती हई सावधानी स उसका कपाण जनकालकर जिर लढकत हए बनददी क समीप पहच गई सहसा पोत स पथ-

परदशटक न जचलाकर कहा ndashlsquorsquoआधीrsquorsquo

आपजतत-सचक तयट बजन लगा सब सावधान होन लग बदी यवक उसी तरह पडा रहा जकसी न रससी पकडी कोई

पाल खोल रहा था पर यवक बदी ढलककर उस रजज क पास पहचा जो पोत स सलगन थी तार ढक गए तरग

उदवजलत हई समर गरजन लगा भीिण आधी जपशाजचनी क समान नाव को अपन हाथो म लकर कदक-करीडा और

अटटहास करन लगी

एक झरक क साथ ही नाव सवततर थी उस सकर म भी दोनो बदी जखलजखला कर हस पड आधी क हाहाकार म उस

कोई न सन सका

अनत जलजनजध म उिा का मधर आलोक िर उठा सनहली जकरणो और लहरो की कोमल सजि मसकरान लगी

सागर शात था नाजवको न दखा पोत का पता नही बदी मि ह

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नायक न कहा ndashlsquorsquoबधगपत तमको मि जकसन जकयाrsquorsquo

कपाण जदखाकर बधगपत न कहा ndashlsquorsquoइसनlsquorsquo

नायक न कहा ndashlsquorsquoतो तमह जिर बदी बनाऊ गाlsquorsquo

lsquorsquoजकसक जलए पोताधयकष मजणभर अतल जल म होगा ndash नायक अब इस नौका का सवामी म ह lsquorsquo

lsquorsquoतम जलदसय बधगपत कदाजप नहीlsquorsquondashचौककर नायक न कहा और अपना कपाण ररोलन लगा चपा न इसक

पहल उस पर अजधकार कर जलया था वह करोध स उछल पडा

lsquorsquoतो तम दवदवयदध क जलए परसतत हो जाओ जो जवजयी होगा वह सवामी होगाlsquorsquondashइतना कहकर बधगपत न कपाण दन

का सकत जकया चपा न कपाण नायक क हाथ म द जदया

भीिण घात-परजतघात आरभ हआ दोनो कशल दोनो तवररत गजतवाल थ बडी जनपणता स बधगपत न अपना कपाण

दातो स पकड़कर अपन दोनो हाथ सवततर कर जलए चपा भय और जवसमय स दखन लगी नाजवक परसनदन हो गए परत

बधगपत न लाघव स नायक का कपाणवाला हाथ पकड़ जलया और जवकर हकार स दसरा हाथ कजर म डाल उस जगरा

जदया दसर ही कषण परभात की जकरणो म बधगपत का जवजयी कपाण उसक हाथो म चमक उठा नायक की कातर

आख पराण-जभकषा मागन लगी

बधगपत न कहा ndashlsquorsquoबोलो अब सवीकार ह जक नहीrsquorsquo

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lsquorsquoम अनचर ह वरणदव की शपथ म जवशवासघात नही कर गाlsquorsquoबधगपत न उस छोड़ जदया

चपा न यवक जलदसय क समीप आकर उसक कषतो को अपनी जसनगध दजि और कोमल करो स वदना-जवहीन कर

जदया बधगपत क सगजठत शरीर पर रि-जबद जवजय-जतलक कर रह थ

जवशराम लकर बधगपत न पछाrsquorsquoहम लोग कहा होगrsquorsquo

lsquorsquoबालीदवीप स बहत दर सभवतः एक नवीन दवीप क पास जजसम अभी हम लोगो का बहत कम आना-जाना होता ह

जसहल क वजणको का वहा पराधानदय हlsquorsquo

lsquorsquoजकतन जदनो म हम लोग वहा पहचगrsquorsquo

lsquorsquoअनकल पवन जमलन पर दो जदन म तब तक क जलए खादय का अभाव न होगाlsquorsquo

सहसा नायक न नाजवको को डाड़ लगान की आजञा दी और सवय पतवार पकड़कर बठ गया बधगपत क पछन पर

उसन कहा ndashlsquorsquoयहा एक जलमगन शलखड ह सावधान न रहन स नाव रकरान का भय हlsquorsquo

lsquorsquoतमह इन लोगो न बदी कयो बनायाrsquorsquo

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lsquorsquoवाजणक मजणभर की पाप-वासना नlsquorsquo

lsquorsquoतमहारा घर कहा हrsquorsquo

lsquorsquoजाहनवी क तर पर चपा-नगरी की एक कषजतरय बाजलका ह जपता इसी मजणभर क यहा परहरी का काम करत थ माता

का दहावसान हो जान पर म भी जपता क साथ नाव पर ही रहन लगी आठ बरस स समर ही मरा घर ह तमहार

आकरमण क समय मर जपता न ही सात दसयओ को मारकर जल-समाजध ली एक मास हआ म इस नील नभ क नीच

नील जलजनजध क ऊपर एक भयानक अनतता म जनससहाय ह -अनाथ ह मजणभर न मझस एक जदन घजणत परसताव

जकया मन उस गाजलया सनाई उसी जदन स बदी बना दी गईlsquorsquondashचपा रोि स जल रही थी

lsquorsquoम भी तामरजलजपत का एक कषजतरय ह चपा परत दभाटगय स जलदसय बनकर जीवन जबताता ह अब तम कया करोगीrsquorsquo

lsquorsquoम अपन अदि को अजनजदटि ही रहन दगी वह जहा ल जाएlsquorsquondashचपा की आख जनससीम परदश म जनरददशय थी जकसी

आकाकषा क लाल डोर न थ धवल अपागो म बालको क सदश जवशवास था हतया-वयवसायी दसय भी उस दखकर

काप गया उसक मन म एक सभरमपणट शरधदा यौवन की पहली लहरो को जगान लगी समर-वकष पर जवलबमयी राग-

रजजत सधया जथरकन लगी चपा क असयत कतल उसकी पीठ पर जबखर थ ददाटनदत दसय न दखा अपनी मजहमा म

अलौजकक एक तरण बाजलका वह जवसमय स अपन हदय को ररोलन लगा उस एक नई वसत का पता चला वह

थी ndash कोमलता

उसी समय नायक न कहा ndashlsquorsquoहम लोग दवीप क पास पहच गएlsquorsquo

बला स नाव रकराई चपा जनभीकता स कद पडी माझी भी उतर बधगपत न कहा ndashlsquorsquoजब इसका कोई नाम नही ह तो

हम लोग इस चपा-दवीप कहगlsquorsquo

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चपा हस पडी

पाच बरस बाद ndash

शरद क धवल नकषतर नील गगन म झलमला रह थ चर की उजजवल जवजय पर अतररकष म शरदलकषमी न आशीवाटद

क िलो और खीलो को जबखर जदया

चपा क एक उचचसौध पर बठी हई तरणी चपा दीपक जला रही थी

बड यतन स अभररक की मजिा म दीप धर कर उसन अपनी सकमार ऊ गजलयो स डोरी खीची वह दीपाधार ऊपर

चढन लगा भोली-भोली आख उस ऊपर चढत हिट स दख रही थी डोरी धीर-धीर खीची गई चपा की कामना थी जक

उसका आकाशदीप नकषतरो स जहलजमल जाए जकत वसा होना असभव था उसन आशाभरी आख जिरा ली

सामन जल-राशी का रजत शरगार था वरण बाजलकाओ क जलए लहरो स हीर

और नीलम की करीडा शल-मालाए बन रही थी ndash और व मायाजवनी छलनाए ndash

अपनी हसी का कलनाद छोड़कर जछप जाती थी दर-दर स धीवरो का

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वशी-झनकार उनक सगीत-सा मखररत होता था चपा न दखा जक तरल सकल जलराजश म उसक कदील का परजतजबब

असतवयसत था वह अपनी पणटता क जलए सकड़ो चककर कारता था वह अनमनी होकर उठ खडी हई जकसी को

पास न दखकर पकारा ndashlsquorsquoजयाrsquorsquo

एक शयामा यवती सामन आकर खडी हई वह जगली थी नील नभोमडल ndash स मख म शदध नकषतरो की पजि क समान

उसक दात हसत ही रहत वह चपा को रानी कहती बधगपत की आजञा थी

lsquorsquoमहानाजवक कब तक आयग बाहर पछो तोlsquorsquoचपा न कहा जया चली गई

दरागत पवन चपा क अचल म जवशराम लना चाहता था उसक हदय म गदगदी हो रही थी आज न जान कयो वह

बसध थी एक दीघटकाय दढ परि न उसकी पीठ पर हाथ रख चमतकत कर जदया उसन जिर कर कहा ndashlsquorsquoबधगपतrsquorsquo

lsquorsquoबावली हो कया यहा बठी हई अभी तक दीप जला रही हो तमह यह काम करना हrsquorsquo

lsquorsquoकषीरजनजधशायी अनत की परसनदनता क जलए कया दाजसयो स आकाशदीप जलवाऊ rsquorsquo

lsquorsquoहसी आती ह तम जकसको दीप जलाकर पथ जदखलाना चाहती हो उसको जजसको तमन भगवान मान जलया हrsquorsquo

lsquorsquoहा वह भी कभी भरकत ह भलत ह नही तो बधगपत को इतना ऐशवयट कयो दतrsquorsquo

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lsquorsquoतो बरा कया हआ इस दवीप की अधीशवरी चपारानीrsquorsquo

lsquorsquoमझ इस बदीगह स मि करो अब तो बाली जावा और समातरा का वाजणजय कवल तमहार ही अजधकार म ह

महानाजवक परत मझ उन जदनो की समजत सहावनी लगती ह जब तमहार पास एक ही नाव थी और चपा क उपकल म

पणय लाद कर हम लोग सखी जीवन जबतात थ ndash इस जल म अगजणत बार हम लोगो की तरी आलोकमय परभात म

ताररकाओ की मधर जयोजत म ndash जथरकती थी बधगपत उस जवजन अनत म जब माझी सो जात थ दीपक बझ जात थ

हम-तम पररशरम स थककर पालो म शरीर लपरकर एक-दसर का मह कयो दखत थ वह नकषतरो की मधर छाया lsquorsquo

lsquorsquoतो चपा अब उसस भी अचछ ढग स हम लोग जवचर सकत ह तम मरी पराणदातरी हो मरी सवटसव होlsquorsquo

lsquorsquoनही ndash नही तमन दसयवजतत छोड़ दी परत हदय वसा ही अकरण सतषण और जवलनशील ह तम भगवान क नाम

पर हसी उडात हो मर आकाशदीप पर वयग कर रह हो नाजवक उस परचड आधी म परकाश की एक-एक जकरण क

जलए हम लोग जकतन वयाकल थ मझ समरण ह जब म छोरी थी मर जपता नौकरी पर समर म जात थ ndash मरी माता

जमटटी का दीपक बास की जपरारी म भागीरथी क तर पर बास क साथ ऊ च राग दती थी उस समय वह पराथटना करती

ndashlsquorsquoभगवान मर पथ-भरि नाजवक को अधकार म ठीक पथ पर ल चलनाlsquorsquoऔर जब मर जपता बरसो पर लौरत तो

कहत ndashlsquorsquoसाधवी तरी पराथटना स भगवान न सकरो म मरी रकषा की हlsquorsquoवह गदगद हो जाती मरी मा आह नाजवक यह

उसी की पणय-समजत ह मर जपता वीर जपता की मतय क जनषठर कारण जल-दसय हर जाओlsquorsquondashसहसा चपा का मख

करोध स भीिण होकर रग बदलन लगा महानाजवक न कभी यह रप न दखा था वह ठठाकर हस पडा

lsquorsquoयह कया चपा तम असवसथ हो जाओगी सो रहोlsquorsquondashकहता हआ चला गया चपा मिी बाध उनदमाजदनी-सी घमती

रही

जनजटन समर क उपकल म वला स रकरा कर लहर जबखर जाती थी पजशचम का पजथक थक गया था उसका मख

पीला पड़ गया अपनी शात गभीर हलचल म जलजनजध जवचार म जनमगन था वह जस परकाश की उनदमजलन जकरणो स

जवरि था

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चपा और जया धीर-धीर उस तर पर आकर खडी हो गई तरग स उठत हए पवन न उनक वसन को असत-वयसत कर

जदया जया क सकत स एक छोरी-सी नौका आई दोनो क उस पर बठत ही नाजवक उतर गया जया नाव खन लगी

चपा मगध-सी समर क उदास वातावरण म अपन को जमजशरत कर दना चाहती थी

lsquorsquoइतना जल इतनी शीतलता हदय की पयास न बझी पी सक गी नही तो जस वला म चोर खाकर जसध जचला

उठता ह उसी क समान रोदन कर

या जलत हए सवणट-गोलक सदश अनत जल म डबकर बझ जाऊ rsquorsquondashचपा क दखत-दखत पीडा और जवलन स

आरि जबब धीर-धीर जसध म चौथाई-आधा जिर सपणट जवलीन हो गया एक दीघट जनशवास लकर चपा न मह िर

जलया दखा तो महानाजवक का बजरा उसक पास ह बधगपत न झककर हाथ बढाया चपा उसक सहार बजर पर चढ

गईदोनो पास-पास बठ गए

lsquorsquoइतनी छोरी नाव पर इधर घमना ठीक नही पास ही वह जलमगन शलखड ह कही नाव रकरा जाती या ऊपर चढ

ज़ाती चपा तोrsquorsquo

lsquorsquoअचछा होता बधगपत जल म बदी होना कठोर पराचीरो स तो अचछा हlsquorsquo

lsquorsquoआह चपा तम जकतनी जनदटय हो बधगपत को आजञा दकर दखो तो वह कया नही कर सकता जो तमहार जलए नए

दवीप की सजि कर सकता ह नई परजा खोज सकता ह नए राजय बना सकता ह उसकी परीकषा लकर दखो तो कहो

चपा वह कपाण स अपना हदय-जपड जनकाल अपन हाथो अतल जल म जवसजटन कर दlsquorsquondashमहानाजवक ndash जजसक

नाम स बाली जावा और चपा का आकाश गजता था पवन थराटता था ndash घरनो क बल चपा क सामन छलछलाई

आखो स बठा था

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सामन शलमाला की चोरी पर हररयाली म जवसतत जल-दश म नील जपगल सधया परकजत की सहदय कपना जवशराम

की शीतल छाया सवपनलोक का सजन करन लगीउस मोजहनी क रहसयपणट नीलजाल का कहक सिर हो उठा जस

मजदरा स सारा अतररकष जसि हो गया सजि नील कमलो म भर उठी उस सौरभ स पागल चपा न बधगपत क दोनो हाथ

पकड़ जलए वहा एक आजलगन हआ जस जकषजतज म आकाश और जसध का जकत उस परररभ म सहसा चतनदय होकर

चपा न अपनी कचकी स एक कपाण जनकाल जलया

lsquorsquoबधगपत आज म अपन परजतशोध का कपाण अतल जल म डबा दती ह हदय न छल जकया बार-बार धोखा

जदयाrsquorsquondashचमककर वह कपाण समर का हदय वधता हआ जवलीन हो गया

lsquorsquoतो आज स म जवशवास कर कषमा कर जदया गयाrsquorsquondashआशचयट-कजपत कठ स महानाजवक न पछा

lsquorsquoजवशवास कदाजप नही बधगपत जब म अपन हदय पर जवशवास नही कर सकी उसी न धोखा जदया तब म कस कह

म तमह घणा करती ह जिर भी तमहार जलए मर सकती ह अधर ह जलदसय तमह पयार करती ह lsquorsquondashचपा रो पडी

वह सवपनो की रगीन सधया तम स अपनी आख बद करन लगी थी दीघट जनशवास लकर महानाजवक न कहा ndashlsquorsquoइस

जीवन की पणयतम घडी की समजत म एक परकाश-गह बनाऊगा चपा यही उस पहाडी पर सभव ह जक मर जीवन की

धधली सधया उसस आलोकपणट हो जाएrsquorsquo

चपा क दसर भाग म एक मनोरम शलमाला थी वह बहत दर तक जसध-जल म जनमगन थी सागर का चचल जल उस

पर उछलता हआ उस जछपाए था आज उसी शलमाला पर चपा क आजद-जनवाजसयो का समारोह था उन सबो न

चपा को वनदवी-सा सजाया था तामरजलजपत क बहत-स सजनक नाजवको की शरणी म वन-कसम-जवभजिता चपा

जशजवकारढ़ होकर जा रही थी

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शल क एक ऊ च जशखर पर चपा क नाजवको को सावधान करन क जलए सदढ दीप-सतभ बनवाया गया था आज

उसी का महोतसव ह बधगपत सतभ क दवार पर खडा था जशजवका स सहायता दकर चपा को उसन उतारा दोनो न

भीतर पदापटण जकया था जक बासरी और ढोल बजन लग पजियो म कसम-भिण स सजी वन-बालाए िल उछालती

हई नाचन लगी

दीप-सतभ की ऊपरी जखडकी स यह दखती हई चपा न जया स पछा ndashlsquorsquoयह कया ह जया इतनी बाजलकाए कहा स

बरोर लाईrsquorsquo

lsquorsquoआज रानी का बयाह ह नrsquorsquondashकहकर जया न हस जदया

बधगपत जवसतत जलजनजध की ओर दख रहा था उस झकझोरकर चपा न पछा ndashlsquorsquoकया यह सच हrsquorsquo

lsquorsquoयजद तमहारी इचछा हो तो यह सच भी हो सकता ह चपा जकतन विो स म जवालामखी को अपनी छाती म दबाए

ह lsquorsquo

lsquorsquoचप रहो महानाजवक कया मझ जनससहाय और कगाल जानकर तमन आज सब परजतशोध लना चाहाrsquorsquo

lsquorsquoम तमहार जपता का घातक नही ह चपा वह एक दसर दसय क शसतर स मरrsquorsquo

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lsquorsquoयजद म इसका जवशवास कर सकती बधगपत वह जदन जकतना सदर होता वह कषण जकतना सपहणीय आह तम इस

जनषठरता म भी जकतन महान होतrsquorsquo

जया नीच चली गई थी सतभ क सकीणट परकोषठ म बधगपत और चपा एकात म एक-दसर क सामन बठ थ

बधगपत न चपा क पर पकड़ जलए उचवजसत शबदो म वह कहन लगा ndashlsquorsquoचपा हम लोग जनदमभजम- भारतविट स

जकतनी दर इन जनरीह पराजणयो म इर और शची क समान पजजत ह समरण होता ह वह दाशटजनको का दश वह मजहमा

की परजतमा मझ वह समजत जनतय आकजिटत करती ह परत म कयो नही जाता जानती हो इतना महतव परापत करन पर

भी म कगाल ह मरा पतथर-सा हदय एक जदन सहसा तमहार सपशट स चरकात मजण ही तरह रजवत हआ

lsquorsquoचपा म ईशवर को नही मानता म पाप को नही मानता म दया को नही समझ सकता म उस लोक म जवशवास नही

करता पर मझ अपन हदय क एक दबटल अश पर शरधदा हो चली ह तम न जान कस एक बहकी हई ताररका क समान

मर शनदय म उजदत हो गई हो आलोक की एक कोमल रखा इस जनजवड़तम म मसकरान लगी पश-बल और धन क

उपासक क मन म जकसी शात और एकात कामना की हसी जखलजखलान लगी पर म न हस सका

lsquorsquoचलोगी चपा पोतवाजहनी पर असखय धनराजश लादकर राजरानी-सी जनदमभजम क अक म आज हमारा पररणय हो

कल ही हम लोग भारत क जलए परसथान कर महानाजवक बधगपत की आजञा जसध की लहर मानती ह व सवय उस

पोत-पज को दजकषण पवन क समान भारत म पहचा दगी आह चपा चलोlsquorsquo

चपा न उसक हाथ पकड़ जलए जकसी आकजसमक झरक न एक पलभर क जलए दोनो क अधरो को जमला जदया

सहसा चतनदय होकर चपा न कहा ndashlsquorsquoबधगपत मर जलए सब भजम जमटटी ह सब जल तरल ह सब पवन शीतल ह कोई

जवशि आकाकषा हदय म अजगन क समान परजवजलत नही सब जमलाकर मर जलए एक शनदय ह जपरय नाजवक तम

सवदश लौर जाओ जवभवो का सख भोगन क जलए और मझ छोड़ दो इन जनरीह भोल-भाल परजणयो क दख की

सहानभजत और सवा क जलएlsquorsquo

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lsquorsquoतब म अवशय चला जाऊ गा चपा यहा रहकर म अपन हदय पर अजधकार रख सक ndash इसम सदह ह आह उन

लहरो म मरा जवनाश हो जाएlsquorsquondashमहानाजवक क उचवास म जवकलता थी जिर उसन पछा ndashlsquorsquoतम अकली यहा कया

करोगीrsquorsquo

lsquorsquoपहल जवचार था जक कभी-कभी इस दीप-सतभ पर स आलोक जलाकर अपन जपता की समाजध का इस जल स

अनदविण कर गी जकनदत दखती ह मझ भी इसी म जलना होगा जस आकाशदीपlsquorsquo

एक जदन सवणट-रहसय क परभात म चपा न अपन दीप-सतभ पर स दखा ndash सामजरक नावो की एक शरणी चमपा का

उपकल छोड़कर पजशचम-उततर की ओर महाजल-वयाल क समान सतरण कर रही ह उसकी आखो स आस बहन लग

यह जकतनी ही शताजबदयो पहल की कथा ह चपा आजीवन उस दीप-सतभ म आलोक जलाती रही जकत उसक बाद

भी बहत जदन दवीपजनवासी उस माया-ममता और सनह-सवा की दवी की समाजध-सदश पजा करत थ

एक जदन काल क कठोर हाथो न उस भी अपनी चचलता स जगरा जदया

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गगरीन-(रोज)

(डलहौजी मई 1934) अजञय

दोपहर म उस सन आगन म पर रखत हए मझ ऐसा जान पड़ा मानो उस पर जकसी शाप की छाया मडरा रही हो उसक

वातावरण म कछ ऐसा अकथय असपशय जकनदत जिर भी बोझल और परकमपमय और घना-सा िल रहा था

मरी आहर सनत ही मालती बाहर जनकली मझ दखकर पहचानकर उसकी मरझायी हई मख-मरा तजनक स मीठ

जवसमय स जागी-सी और जिर पवटवत हो गयी उसन कहा lsquolsquoआ जाओrsquorsquo और जबना उततर की परतीकषा जकय भीतर की

ओर चली म भी उसक पीछ हो जलया

भीतर पहचकर मन पछा lsquoव यहा नही हrsquorsquo

lsquolsquoअभी आय नही दफतर म ह थोड़ी दर म आ जाएग कोई डढ़-दो बज आया करत हrsquorsquo

lsquolsquoकब क गय हए हrsquorsquo

lsquolsquoसवर उठत ही चल जात हrsquorsquo

lsquolsquoम lsquoह rsquo कर पछन को हआ lsquolsquoऔर तम इतनी दर कया करती होrsquorsquo पर जिर सोचा lsquoआत ही एकाएक परशन ठीक नही

ह म कमर क चारो ओर दखन लगा

मालती एक पखा उठा लायी और मझ हवा करन लगी मन आपजतत करत हए कहा lsquolsquoनही मझ नही चाजहएrsquorsquo पर

वह नही मानी बोलीlsquolsquoवाह चाजहए कस नही इतनी धप म तो आय हो यहा तोrsquorsquo

मन कहा lsquolsquoअचछा लाओ मझ द दोrsquorsquo

वह शायद lsquoनाrsquo करनवाली थी पर तभी दसर कमर स जशश क रोन की आवाज़ सनकर उसन चपचाप पखा मझ द

जदया और घरनो पर हाथ रककर एक थकी हई lsquoहहrsquo करक उठी और भीतर चली गयी

म उसक जात हए दबल शरीर को दखकर सोचता रहा ndash यह कया ह यह कसी छाया-सी इस घर पर छायी हई ह

मालती मरी दर क ररशत की बहन ह जकनदत उस सखी कहना ही उजचत ह कयोजक हमारा परसपर समबनदध सखय का ही

रहा ह हम बचपन स इकटठ खल ह इकटठ लड़ और जपर ह और हमारी पढ़ाई भी बहत-सी इकटठ ही हई थी और हमार

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वयवहार म सदा सखय की सवचछा और सवचछनददता रही ह वह कभी भराततव क या बड़-छोरपन क बनदधनो म नही

जघरा

म आज कोई चार विट बाद उस दखना आया ह जब मन उस इसस पवट दखा था तब वह लड़की ही थी अब वह

जववाजहता ह एक बचच की मा भी ह इसस कोई पररवतटन उसम आया होगा और यजद आया होगा तो कया यह मन

अभी तक सोचा नही था जकनदत अब उसकी पीठ की ओर दखता हआ म सोच रहा था यह कसी छाया इस घर पर

छायी हई ह और जवशितया मालती पर

मालती बचच को लकर लौर आयी और जिर मझस कछ दर नीच जबछी हई दरी पर बठ गयी मन अपनी करसी

घमाकर कछ उसकी ओर उनदमख होकर पछा lsquolsquoइसका नाम कया हrsquorsquo

मालती न बचच की ओर दखत हए उततर जदया lsquolsquoनाम तो कोई जनजशचत नही जकया वस जररी कहत हrsquorsquo

मन उस बलाया lsquolsquoजररी रीरी आ जाrsquorsquo पर वह अपनी बड़ी-बड़ी आखो स मरी ओर दखता हआ अपनी मा स जचपर

गया और रआसा-सा होकर कहन लगा lsquolsquoउह-उह-उह-ऊrsquorsquo

मालती न जिर उसकी ओर एक नज़र दखा और जिर बाहर आगन की ओर दखन लगी

काफ़ी दर मौन रहा थोड़ी दर तक तो वह मौन आकजसमक ही था जजसम म परतीकषा म था जक मालती कछ पछ जकनदत

उसक बाद एकाएक मझ धयान हआ मालती न कोई बात ही नही की यह भी नही पछा जक म कसा ह कस आया

ह चप बठी ह कया जववाह क दो विट म ही वह बीत जदन भल गयी या अब मझ दर-इस जवशि अनदतर पर-रखना

चाहती ह कयोजक वह जनबाटध सवचछनददता अब तो नही हो सकती पर जिर भी ऐसा मौन जसा अजनबी स भी नही

होना चाजहए

मन कछ जखनदन-सा होकर दसरी ओर दखत हए कहा lsquolsquoजान पड़ता ह तमह मर आन स जवशि परसनदनता नही हई-rsquorsquo

उसन एकाएक चौककर कहा lsquolsquoह rsquorsquo

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यह lsquoह rsquo परशन-सचक था जकनदत इसजलए नही जक मालती न मरी बात सनी नही थी lsquoकवल जवसमय क कारण इसजलए

मन अपनी बात दहरायी नही चप बठ रहा मालती कछ बोली ही नही तब थोड़ी दर बाद मन उसकी ओर दखा वह

एकरक मरी ओर दख रही थी जकनदत मर उधर उनदमख होत ही उसन आख नीची कर ली जिर भी मन दखा उन आखो

म कछ जवजचतर-सा भाव था मानो मालती क भीतर कही कछ चिा कर रहा हो जकसी बीती हई बात को याद करन

की जकसी जबखर हए वायमडल को पनः जगाकर गजतमान करन की जकसी रर हए वयवहार-तनदत को पनरजजीजवत

करन की और चिा म सिल न हो रहा हो वस जस दर स परयोग म न लाय हए अग को वयजि एकाएक उठान लग

और पाय जक वह उठता ही नही ह जचरजवसमजत म मानो मर गया ह उतन कषीण बल स (यदयजप वह सारा परापय बल ह)

उठ नही सकता मझ ऐसा जान पड़ा मानो जकसी जीजवत पराणी क गल म जकसी मत जनदत का तौक डाल जदया गया

हो वह उस उतारकर ि कना चाह पर उतार न पाय

तभी जकसी न जकवाड़ खरखराय मन मालती की ओर दखा पर वह जहली नही जब जकवाड़ दसरी बार खरखराय

गय तब वह जशश को अलग करक उठी और जकवाड़ खोलन गयी

व यानी मालती क पजत आय मन उनदह पहली बार दखा था यदयजप फ़ोरो स उनदह पहचानता था पररचय हआ

मालती खाना तयार करन आगन म चली गयी और हम दोनो भीतर बठकर बातचीत करन लग उनकी नौकरी क बार

म उनक जीवन क बार म उस सथान क बार म और ऐस अनदय जवियो क बार म जो पहल पररचय पर उठा करत ह

एक तरह का सवरकषातमक कवच बनकर

मालती क पजत का नाम ह महशवर वह एक पहाड़ी गाव म सरकारी जडसपनदसरी क डॉकरर ह उसी हजसयत स इन

कवारटरो म रहत ह परातःकाल सात बज जडसपनदसरी चल जात ह और डढ़ या दो बज लौरत ह उसक बाद दोपहर-भर

छटटी रहती ह कवल शाम को एक-दो घर जिर चककर लगान क जलए जात ह जडसपनदसरी क साथ क छोर-स

असपताल म पड़ हए रोजगयो को दखन और अनदय ज़ररी जहदायत करन उनका जीवन भी जबलकल एक जनजदटि ढर

पर चलता ह जनतय वही काम उसी परकार क मरीज वही जहदायत वही नसख वही दवाइया वह सवय उकताय हए ह

और इसीजलए और साथ ही इस भयकर गरमी क कारण वह अपन फ़रसत क समय म भी ससत ही रहत ह

मालती हम दोनो क जलए खाना ल आयी मन पछा lsquolsquoतम नही खोओगी या खा चकीrsquorsquo

महशवर बोल कछ हसकर lsquolsquoवह पीछ खाया करती हrsquorsquo पजत ढाई बज खाना खान आत ह इसजलए पतनी तीन बज

तक भखी बठी रहगी

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महशवर खाना आरमभ करत हए मरी ओर दखकर बोल lsquolsquoआपको तो खान का मज़ा कया ही आयगा ऐस बवकत खा

रह हrsquorsquo

मन उततर जदया lsquolsquoवाह दर स खान पर तो और अचछा लगता ह भख बढ़ी हई होती ह पर शायद मालती बजहन को

कि होगाrsquorsquo

मालती रोककर बोली lsquolsquoऊ ह मर जलए तो यह नयी बात नही ह रोज़ ही ऐसा होता हrsquorsquo

मालती बचच को गोद म जलय हए थी बचचा रो रहा था पर उसकी ओर कोई भी धयान नही द रहा था

मन कहा lsquolsquoयह रोता कयो हrsquorsquo

मालती बोली lsquolsquoहो ही गया ह जचड़जचड़ा-सा हमशा ही ऐसा रहता हrsquorsquo

जिर बचच को डारकर कहा lsquolsquoचपकरrsquorsquo जजसस वह और भी रोन लगा मालती न भजम पर बठा जदया और बोली

lsquolsquoअचछा ल रो लrsquorsquo और रोरी लन आगन की ओर चली गयी

जब हमन भोजन समापत जकया तब तीन बजन वाल थ महशवर न बताया जक उनदह आज जदी असपताल जाना ह यहा

एक-दो जचनदताजनक कस आय हए ह जजनका ऑपरशन करना पड़गा दो की शायद राग कारनी पड़ गगरीन हो गया

ह थोड़ी ही दर म वह चल गय मालती जकवाड़ बनदद कर आयी और मर पास बठन ही लगी थी जक मन कहा lsquolsquoअब

खाना तो खा लो म उतनी दर जररी स खलता ह rsquorsquo

वह बोली lsquolsquoखा लगी मर खान की कौन बात हrsquorsquo जकनदत चली गयी म जररी को हाथ म लकर झलान लगा जजसस

वह कछ दर क जलए शानदत हो गया

दरशायद असपताल म ही तीन खड़क एकाएक म चौका मन सना मालती वही आगन म बठी अपन-आप ही एक

लमबी-सी थकी हई सास क साथ कह रही ह lsquolsquoतीन बज गयrsquorsquo मानो बड़ी तपसया क बाद कोई कायट समपनदन हो गया

हो

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थोड़ी ही दर म मालती जिर आ गयी मन पछा lsquolsquoतमहार जलए कछ बचा भी था सब-कछ तोrsquorsquo

lsquolsquoबहत थाrsquorsquo

lsquolsquoहा बहत था भाजी तो सारी म ही खा गया था वहा बचा कछ होगा नही यो ही रौब तो न जमाओ जक बहत थाrsquorsquo

मन हसकर कहा

मालती मानो जकसी और जविय की बात कहती हई बोली lsquolsquoयहा सबज़ी-वबज़ी तो कछ होती ही नही कोई आता-

जाता ह तो नीच स मगा लत ह मझ आय पनदरह जदन हए ह जो सबज़ी साथ लाय थ वही अभी बरती जा रही ह

मन पछा lsquolsquoनौकर कोई नही हrsquorsquo

lsquolsquoकोई ठीक जमला नही शायद एक-दो जदन म हो जाएrsquorsquo

lsquolsquoबरतन भी तमही माजती होrsquorsquo

lsquolsquoऔर कौनrsquorsquo कहकर मालती कषण-भर आगन म जाकर लौर आयी

मन पछा lsquolsquoकहा गयी थीrsquorsquo

lsquolsquoआज पानी ही नही ह बरतन कस मजगrsquorsquo

lsquolsquoकयो पानी को कया हआrsquorsquo

lsquolsquoरोज़ ही होता ह कभी वकत पर तो आता नही आज शाम को सात बज आएगा तब बरतन मजगrsquorsquo

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lsquolsquoचलो तमह सात बज तक छटटी हईrsquorsquo कहत हए म मन-ही-मन सोचन लगा lsquoअब इस रात क गयारह बज तक काम

करना पड़गा छटटी कया खाक हईrsquo

यही उसन कहा मर पास कोई उततर नही था पर मरी सहायता जररी न की एकाएक जिर रोन लगा और मालती क

पास जान की चिा करन लगा मन उस द जदया

थोड़ी दर जिर मौन रहा मन जब स अपनी नोरबक जनकाली और जपछल जदनो क जलख हए नोर दखन लगा तब

मालती को याद आया जक उसन मर आन का कारण तो पछा नही और बोली lsquolsquoयहा आय कसrsquorsquo

मन कहा ही तो lsquolsquoअचछा अब याद आया तमस जमलन आया था और कया करनrsquorsquo

lsquolsquoतो दो-एक जदन रहोग नrsquorsquo

lsquolsquoनही कल चला जाऊ गा ज़ररी जाना हrsquorsquo

मालती कछ नही बोली कछ जखनदन सी हो गयी म जिर नोरबक की तरफ़ दखन लगा

थोड़ी दर बाद मझ भी धयान हआ म आया तो ह मालती स जमलन जकनदत यहा वह बात करन को बठी ह और म पढ़

रहा ह पर बात भी कया की जाय मझ ऐसा लग रहा था जक इस घर पर जो छाया जघरी हई ह वह अजञात रहकर भी

मानो मझ भी वश म कर रही ह म भी वसा ही नीरस जनजीव-सा हो रहा ह जस-हा जस यह घर जस मालती

मन पछा lsquolsquoतम कछ पढ़ती-जलखती नहीrsquorsquo म चारो और दखन लगा जक कही जकताब दीख पड़

lsquolsquoयहाrsquorsquo कहकर मालती थोड़ा-सा हस दी वह हसी कह रही थी lsquoयहा पढ़न को ह कयाrsquo

मन कहा lsquolsquoअचछा म वापस जाकर ज़रर कछ पसतक भजगाrsquorsquo और वाताटलाप जिर समापत हो गया

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थोड़ी दर बाद मालती न जिर पछा lsquolsquoआय कस हो लारी मrsquorsquo

lsquolsquoपदलrsquorsquo

lsquolsquoइतनी दर बड़ी जहममत कीrsquorsquo

lsquolsquoआजखर तमस जमलन आया ह rsquorsquo

lsquolsquoऐस ही आय होrsquorsquo

lsquolsquoनही कली पीछ आ रहा ह सामान लकर मन सोचा जबसतरा ल ही चलrsquorsquo

lsquolsquoअचछा जकया यहा तो बसrsquorsquo कहकर मालती चप रह गयी जिर बोली lsquolsquoतब तम थक होग लर जाओrsquorsquo

lsquolsquoनही जबलकल नही थकाrsquorsquo

lsquolsquoरहन भी दो थक नही भला थक हrsquorsquo

lsquolsquoऔर तम कया करोगीrsquorsquo

lsquolsquoम बरतन माज रखती ह पानी आएगा तो धल जाएगrsquorsquo

मन कहा lsquolsquoवाहrsquorsquo कयोजक और कोई बात मझ सझी नही

थोड़ी दर म मालती उठी और चली गयी जररी को साथ लकर तब म भी लर गया और छत की ओर दखन लगा

मर जवचारो क साथ आगन स आती हई बरतनो क जघसन की खन-खन धवजन जमलकर एक जवजचतर एक-सवर उतपनदन

करन लगी जजसक कारण मर अग धीर-धीर ढील पड़न लग म ऊ घन लगा

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एकाएक वह एक-सवर रर गया ndash मौन हो गया इसस मरी तनदरा भी ररी म उस मौन म सनन लगा

चार खड़क रह थ और इसी का पहला घरा सनकर मालती रक गयी थी वही तीन बजवाली बात मन जिर दखी

अबकी बार उगर रप म मन सना मालती एक जबलकल अनजचछक अनभजतहीन नीरस यनदतरवत ndash वह भी थक हए

यनदतर क स सवर म कह रही ह lsquolsquoचार बज गयrsquorsquo मानो इस अनजचछक समय को जगनन म ही उसका मशीन-त य जीवन

बीतता हो वस ही जस मोरर का सपीडो मीरर यनदतरवत फ़ासला नापता जाता ह और यनदतरवत जवशरानदत सवर म कहता

ह (जकसस) जक मन अपन अजमत शनदयपथ का इतना अश तय कर जलया न जान कब कस मझ नीद आ गयी

तब छह कभी क बज चक थ जब जकसी क आन की आहर स मरी नीद खली और मन दखा जक महशवर लौर आय ह

और उनक साथ ही जबसतर जलय हए मरा कली म मह धोन को पानी मागन को ही था जक मझ याद आया पानी नही

होगा मन हाथो स मह पोछत-पोछत महशवर स पछा lsquolsquoआपन बड़ी दर कीrsquorsquo

उनदहोन जकजचत गलाजन-भर सवर म कहा lsquolsquoहा आज वह गगरीन का आपरशन करना ही पड़ा एक कर आया ह दसर

को एमबलनदस म बड़ असपताल जभजवा जदया हrsquorsquo

मन पछाrsquorsquo गगरीन कस हो गयाrsquorsquo

lsquolsquoएक कारा चभा था उसी स हो गया बड़ लापरवाह लोग होत ह यहा कrsquorsquo

मन पछा lsquolsquoयहा आपको कस अचछ जमल जात ह आय क जलहाज स नही डॉकररी क अभयास क जलएrsquorsquo

बोल lsquolsquoहा जमल ही जात ह यही गगरीन हर दसर-चौथ जदन एक कस आ जाता ह नीच बड़ असपतालो म भीrsquorsquo

मालती आगन स ही सन रही थी अब आ गयी lsquolsquoबोली lsquolsquoहा कस बनात दर कया लगती ह कारा चभा था इस पर

राग कारनी पड़ यह भी कोई डॉकररी ह हर दसर जदन जकसी की राग जकसी की बाह कार आत ह इसी का नाम ह

अचछा अभयासrsquorsquo

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महशवर हस बोल lsquolsquoन कार तो उसकी जान गवाएrsquorsquo

lsquolsquoहा पहल तो दजनया म कार ही नही होत होग आज तक तो सना नही था जक कारो क चभन स मर जात हrsquorsquo

महशवर न उततर नही जदया मसकरा जदय मालती मरी ओर दखकर बोली lsquolsquoऐस ही होत ह डॉकरर सरकारी असपताल

ह न कया परवाह ह म तो रोज़ ही ऐसी बात सनती ह अब कोई मर-मर जाए तो खयाल ही नही होता पहल तो रात-

रात-भर नीद नही आया करती थीrsquorsquo

तभी आगन म खल हए नल न कहा ndash जरप जरप जरप-जरप-जरप-जरप

मालती न कहा lsquolsquoपानीrsquorsquo और उठकर चली गयी खनखनाहर स हमन जाना बरतन धोए जान लग ह

जररी महशवर की रागो क सहार खड़ा मरी ओर दख रहा था अब एकाएक उनदह छोड़कर मालती की ओर जखसकता

हआ चला महशवर न कहा lsquolsquoउधर मत जाrsquorsquo और उस गोद म उठा जलया वह मचलन और जचला-जचलाकर रोन

लगा

महशवर बोल lsquolsquoअब रो-रोकर सो जाएगा तभी घर म चन होगीrsquorsquo

मन पछा lsquolsquoआप लोग भीतर ही सोत ह गरमी तो बहत होती हrsquorsquo

lsquolsquoहोन को तो मचछर भी बहत होत ह पर यह लोह क पलग उठाकर बाहर कौन ल जाय अब क नीच जाएग तो

चारपाइया ल आएगrsquorsquo जिर कछ रककर बोल lsquolsquoआज तो बाहर ही सोएग आपक आन का इतना लाभ ही होगाrsquorsquo

जररी अभी तक रोता ही जा रहा था महशवर न उस एक पलग पर जबठा जदया और पलग बाहर खीचन लग मन कहा

lsquolsquoम मदद करता ह rsquorsquo और दसरी ओर स पलग उठाकर जनकलवा जदय

अब हम तीनो महशवर जररी और म दो पलगो पर बठ गय और वाताटलाप क जलए उपयि जविय न पाकर उस कमी

को छपान क जलए जररी स खलन लग बाहर आकर वह कछ चप हो गया था जकनदत बीच-बीच म जस एकाएक कोई

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भला हआ कततटवय याद करक रो उठता या और जिर एकदम चप हो जाता था और कभी-कभी हम हस पड़त थ या

महशवर उसक बार म कछ बात कह दत थ

मालती बरतन धो चकी थी जब वह उनदह लकर आगन क एक ओर रसोई क छपपर की ओर चली तब महशवर न

कहा lsquolsquoथोड़-स आम लाया ह वह भी धो लनाrsquorsquo

lsquolsquoकहा हrsquorsquo

lsquolsquoअगीठी पर रख ह कागज़ म जलपर हएrsquorsquo

मालती न भीतर जाकर आम उठाय और अपन आचल म डाल जलय जजस कागज़ म व जलपर हए थ वह जकसी परान

अखबार का रकड़ा था मालती चलती-चलती सनदधया क उस कषण परकाश म उसी को पढ़ती जा रही थी वह नल क

पास जाकर खड़ी उस पढ़ती रही जब दोनो ओर पढ़ चकी तब एक लमबी सास लकर उस ि ककर आम धोन लगी

मझ एकाएक याद आयाबहत जदनो की बात थी जब हम अभी सकल म भरती हए ही थ जब हमारा सबस बड़ा

सख सबस बड़ी जवजय थी हाजज़री हो चकन क बाद चोरी स कलास स जनकल भागना और सकल स कछ दरी पर

आम क बगीच म पड़ो पर चढ़कर कचची आजमया तोड़-तोड़ खाना मझ याद आया कभी जब म भाग आता और

मालती नही आ पाती थी तब म भी जखनदन-मन लौर आया करता था

मालती कछ नही पढ़ती थी उसक माता-जपता तग थ एक जदन उसक जपता न उस एक पसतक लाकर दी और कहा जक

इसक बीस पज रोज़ पढ़ा करो हफत भर बाद म दख जक इस समापत कर चकी हो नही तो मार-मार कर चमड़ी उधड़

दगा मालती न चपचाप जकताब ल ली पर कया उसन पढ़ी वह जनतय ही उसक दस पनदन बीस पज िाड़ कर ि क

दती अपन खल म जकसी भाजत फ़कट न पड़न दती जब आठव जदन उसक जपता न पछा lsquolsquoजकताब समापत कर लीrsquorsquo

तो उततर जदयाlsquolsquoहा कर लीrsquorsquo जपता न कहा lsquolsquoलाओ म परशन पछगा तो चप खड़ी रही जपता न कहा तो उदधत सवर

म बोली lsquolsquoजकताब मन िाड़ कर ि क दी ह म नही पढ़ गीrsquorsquo

उसक बाद वह बहत जपरी पर वह अलग बात ह इस समय म यही सोच रहा था जक वह उदधत और चचल मालती

आज जकतनी सीधी हो गयी ह जकतनी शानदत और एक अखबार क रकड़ को तरसती ह यह कया यह

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तभी महशवर न पछा lsquolsquoरोरी कब बनगीrsquorsquo

lsquolsquoबस अभी बनाती ह rsquorsquo

पर अबकी बार जब मालती रसोई की ओर चली तब जररी की कततटवय-भावना बहत जवसतीणट हो गयी वह मालती की

ओर हाथ बढ़ा कर रोन लगा और नही माना मालती उस भी गोद म लकर चली गयी रसोई म बठ कर एक हाथ स

उस थपकन और दसर स कई छोर-छोर जडबब उठाकर अपन सामन रखन लगी

और हम दोनो चपचाप राजतर की और भोजन की और एक-दसर क कछ कहन की और न जान जकस-जकस नदयनता

की पजतट की परतीकषा करन लग

हम भोजन कर चक थ और जबसतरो पर लर गय थ और जररी सो गया था मालती पलग क एक ओर मोमजामा

जबछाकर उस उस पर जलरा गयी थी वह सो गया था पर नीद म कभी-कभी चौक उठता था एक बार तो उठकर बठ

भी गया था पर तरनदत ही लर गया

मन महशवर स पछा lsquolsquoआप तो थक होग सो जाइयrsquorsquo

वह बोल lsquolsquoथक तो आप अजधक होग अठारह मील पदल चल कर आय हrsquorsquo जकनदत उनक सवर न मानो जोड़

जदया थका तो म भी ह rsquorsquo

म चप रहा थोड़ी दर म जकसी अपर सजञा न मझ बताया वह ऊ घ रह ह

तब लगभग साढ़ दस बज थ मालती भोजन कर रही थी

म थोड़ी दर मालती की ओर दखता रहा वह जकसी जवचार म ndash यदयजप बहत गहर जवचार म नही लीन हई धीर-धीर

खाना खा रही थी जिर म इधर-उधर जखसक कर पर आराम स होकर आकाश की ओर दखन लगा

पजणटमा थी आकाश अनभर था

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मन दखा-उस सरकारी कवारटर की जदन म अतयनदत शषक और नीरस लगन वाली सलर की छत भी चादनी म चमक रही

ह अतयनदत शीतलता और जसनगधता स छलक रही ह मानो चजनदरका उन पर स बहती हई आ रही हो झर रही हो

मन दखा पवन म चीड़ क वकष गरमी स सख कर मरमल हए चीड़ क वकष धीर-धीर गा रह हो कोई राग जो

कोमल ह जकनदत करण नही अशाजनदतमय ह जकनदत उदवगमय नही

मन दखा परकाश स धधल नील आकाश क तर पर जो चमगादड़ नीरव उड़ान स चककर कार रह ह व भी सनददर

दीखत ह

मन दखा ndash जदन-भर की तपन अशाजनदत थकान दाह पहाड़ो म स भाप स उठकर वातावरण म खोय जा रह ह जजस

गरहण करन क जलए पवटत-जशशओ न अपनी चीड़ वकषरपी भजाए आकाश की ओर बढ़ा रखी ह

पर यह सब मन ही दखा अकल मन महशवर ऊ घ रह थ और मालती उस समय भोजन स जनवतत होकर दही जमान क

जलए जमटटी का बरतन गरम पानी स धो रही थी और कह रही थीlsquolsquoअभी छटटी हई जाती हrsquorsquo और मर कहन पर ही

जक lsquolsquoगयारह बजन वाल हrsquorsquo धीर स जसर जहलाकर जता रही थी जक रोज़ ही इतन बज जात ह मालती न वह सब-

कछ नही दखा मालती का जीवन अपनी रोज़ की जनयत गजत स बहा जा रहा था और एक चनदरमा की चजनदरका क

जलए एक ससार क जलए रकन को तयार नही था

चादनी म जशश कसा लगता ह इस अलस जजजञासा स मन जररी की ओर दखा और वह एकाएक मानो जकसी

शशवोजचत वामता स उठा और जखसक कर पलग स नीच जगर पड़ा और जचला-जचला कर रोन लगा महशवर न

चौककर कहा ndash lsquolsquoकया हआrsquorsquo म झपर कर उस उठान दौड़ा मालती रसोई स बाहर जनकल आयी मन उस lsquoखरrsquo

शबद को याद करक धीर स करणा-भर सवर म कहा lsquolsquoचोर बहत लग गयी बचार कrsquorsquo

यह सब मानो एक ही कषण म एक ही जकरया की गजत म हो गया

मालती न रोत हए जशश को मझस लन क जलए हाथ बढ़ात हए कहा lsquolsquoइसक चोर लगती ही रहती ह रोज़ ही जगर

पड़ता हrsquorsquo

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एक छोर कषण-भर क जलए म सतबध हो गया जिर एकाएक मर मन न मर समच अजसततव न जवरोह क सवर म कहा ndash

मर मन न भीतर ही बाहर एक शबद भी नही जनकला ndash lsquolsquoमा यवती मा यह तमहार हदय को कया हो गया ह जो तम

अपन एकमातर बचच क जगरन पर ऐसी बात कह सकती हो ndash और यह अभी जब तमहारा सारा जीवन तमहार आग

हrsquorsquo

और तब एकाएक मन जाना जक वह भावना जमथया नही ह मन दखा जक सचमच उस करमब म कोई गहरी भयकर

छाया घर कर गयी ह उनक जीवन क इस पहल ही यौवन म घन की तरह लग गयी ह उसका इतना अजभनदन अग हो

गयी ह जक व उस पहचानत ही नही उसी की पररजध म जघर हए चल जा रह ह इतना ही नही मन उस छाया को दख

भी जलया

इतनी दर म पवटवत शाजनदत हो गयी थी महशवर जिर लर कर ऊ घ रह थ जररी मालती क लर हए शरीर स जचपर कर

चप हो गया था यदयजप कभी एक-आध जससकी उसक छोर-स शरीर को जहला दती थी म भी अनभव करन लगा था

जक जबसतर अचछा-सा लग रहा ह मालती चपचाप ऊपर आकाश म दख रही थी जकनदत कया चजनदरका को या तारो

को

तभी गयारह का घरा बजा मन अपनी भारी हो रही पलक उठा कर अकसमात जकसी असपि परतीकषा स मालती की

ओर दखा गयारह क पहल घर की खड़कन क साथ ही मालती की छाती एकाएक ििोल की भाजत उठी और धीर-

धीर बठन लगी और घरा-धवजन क कमपन क साथ ही मक हो जानवाली आवाज़ म उसन कहा lsquolsquoगयारह बज गयrsquorsquo

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उसन किा था

चरधर शमाट गलरी

बड़-बड़ शहरो क इकक-गाड़ीवालो की जबान क कोड़ो स जजनकी पीठ जछल गई ह और कान पक गए ह उनस

हमारी पराथटना ह जक अमतसर क बबकारटवालो की बोली का मरहम लगाव जब बड़-बड़ शहरो की चौड़ी सड़को पर

घोड़ की पीठ चाबक स धनत हए इककवाल कभी घोड़ की नानी स अपना जनकर-सबध जसथर करत ह कभी राह

चलत पदलो की आखो क न होन पर तरस खात ह कभी उनक परो की अगजलयो क पोरो को चीथ कर अपन-ही को

सताया हआ बतात ह और ससार-भर की गलाजन जनराशा और कषोभ क अवतार बन नाक की सीध चल जात ह तब

अमतसर म उनकी जबरादरीवाल तग चककरदार गजलयो म हर-एक लडढीवाल क जलए ठहर कर सबर का समर उमड़ा

कर बचो खालसा जी हरो भाई जी ठहरना भाई आन दो लाला जी हरो बाछा कहत हए सिद ि रो खचचरो और

बततको गनदन और खोमच और भारवालो क जगल म स राह खत ह कया मजाल ह जक जी और साहब जबना सन

जकसी को हरना पड़ यह बात नही जक उनकी जीभ चलती नही पर मीठी छरी की तरह महीन मार करती हई यजद

कोई बजढ़या बार-बार जचतौनी दन पर भी लीक स नही हरती तो उनकी बचनावली क य नमन ह - हर जा जीण

जोजगए हर जा करमावाजलए हर जा पतता पयाररए बच जा लबी वाजलए समजि म इनक अथट ह जक त जीन योगय ह

त भागयोवाली ह पतरो को पयारी ह लबी उमर तर सामन ह त कयो मर पजहए क नीच आना चाहती ह बच जा

ऐस बबकारटवालो क बीच म हो कर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दकान पर आ जमल उसक बालो

और इसक ढील सथन स जान पड़ता था जक दोनो जसख ह वह अपन मामा क कश धोन क जलए दही लन आया था

और यह रसोई क जलए बजड़या दकानदार एक परदसी स गथ रहा था जो सर-भर गील पापड़ो की गडडी को जगन

जबना हरता न था

तर घर कहा ह

मगर म और तर

माझ म यहा कहा रहती ह

अतरजसह की बठक म व मर मामा होत ह

म भी मामा क यहा आया ह उनका घर गर बजार म ह

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इतन म दकानदार जनबरा और इनका सौदा दन लगा सौदा ल कर दोनो साथ-साथ चल कछ दर जा कर लड़क न

मसकरा कर पछा - तरी कड़माई हो गई इस पर लड़की कछ आख चढ़ा कर धत कह कर दौड़ गई और लड़का मह

दखता रह गया

दसर-तीसर जदन सबजीवाल क यहा दधवाल क यहा अकसमात दोनो जमल जात महीना-भर यही हाल रहा दो-तीन

बार लड़क न जिर पछा तरी कड़माई हो गई और उततर म वही धत जमला एक जदन जब जिर लड़क न वस ही हसी

म जचढ़ान क जलए पछा तो लड़की लड़क की सभावना क जवरदध बोली - हा हो गई

कब

कल दखत नही यह रशम स कढ़ा हआ साल लड़की भाग गई लड़क न घर की राह ली रासत म एक लड़क को

मोरी म ढकल जदया एक छावड़ीवाल की जदन-भर की कमाई खोई एक कतत पर पतथर मारा और एक गोभीवाल क

ठल म दध उड़ल जदया सामन नहा कर आती हई जकसी वषणवी स रकरा कर अध की उपाजध पाई तब कही घर

पहचा

2

राम-राम यह भी कोई लड़ाई ह जदन-रात खदको म बठ हडजडया अकड़ गई लजधयाना स दस गना जाड़ा और मह

और बरि ऊपर स जपडजलयो तक कीचड़ म धस हए ह जमीन कही जदखती नही - घर-दो-घर म कान क परद

िाड़नवाल धमाक क साथ सारी खदक जहल जाती ह और सौ-सौ गज धरती उछल पड़ती ह इस गबी गोल स बच तो

कोई लड़ नगरकोर का जलजला सना था यहा जदन म पचीस जलजल होत ह जो कही खदक स बाहर सािा या

कहनी जनकल गई तो चराक स गोली लगती ह न मालम बईमान जमटटी म लर हए ह या घास की पजततयो म जछप रहत

लहनाजसह और तीन जदन ह चार तो खदक म जबता ही जदए परसो ररलीि आ जाएगी और जिर सात जदन की छटटी

अपन हाथो झरका कर ग और पर-भर खा कर सो रहग उसी जिरगी मम क बाग म - मखमल का-सा हरा घास ह

िल और दध की विाट कर दती ह लाख कहत ह दाम नही लती कहती ह तम राजा हो मर म क को बचान आए

हो

चार जदन तक एक पलक नीद नही जमली जबना िर घोड़ा जबगड़ता ह और जबना लड़ जसपाही मझ तो सगीन चढ़ा कर

माचट का हकम जमल जाय जिर सात जरमनो को अकला मार कर न लौर तो मझ दरबार साहब की दहली पर मतथा

रकना नसीब न हो पाजी कही क कलो क घोड़ - सगीन दखत ही मह िाड़ दत ह और पर पकड़न लगत ह यो

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अधर म तीस-तीस मन का गोला ि कत ह उस जदन धावा जकया था - चार मील तक एक जमटन नही छोडा था पीछ

जनरल न हर जान का कमान जदया नही तो -

नही तो सीध बजलटन पहच जात कयो सबदार हजाराजसह न मसकरा कर कहा -लड़ाई क मामल जमादार या नायक

क चलाए नही चलत बड़ अिसर दर की सोचत ह तीन सौ मील का सामना ह एक तरि बढ़ गए तो कया होगा

सबदार जी सच ह लहनजसह बोला - पर कर कया हडजडयो-हडजडयो म तो जाड़ा धस गया ह सयट जनकलता नही

और खाई म दोनो तरि स चब की बावजलयो क स सोत झर रह ह एक धावा हो जाय तो गरमी आ जाय

उदमी उठ जसगड़ी म कोल डाल वजीरा तम चार जन बालजरया ल कर खाई का पानी बाहर ि को महाजसह शाम

हो गई ह खाई क दरवाज का पहरा बदल ल - यह कहत हए सबदार सारी खदक म चककर लगान लग

वजीराजसह पलरन का जवदिक था बारी म गदला पानी भर कर खाई क बाहर ि कता हआ बोला - म पाधा बन

गया ह करो जमटनी क बादशाह का तपटण इस पर सब जखलजखला पड़ और उदासी क बादल िर गए

लहनाजसह न दसरी बारी भर कर उसक हाथ म द कर कहा - अपनी बाड़ी क खरबजो म पानी दो ऐसा खाद का

पानी पजाब-भर म नही जमलगा

हा दश कया ह सवगट ह म तो लड़ाई क बाद सरकार स दस घमा जमीन यहा माग लगा और िलो क बर लगाऊ गा

लाड़ी होरा को भी यहा बला लोग या वही दध जपलानवाली िरगी मम -

चप कर यहावालो को शरम नही

दश-दश की चाल ह आज तक म उस समझा न सका जक जसख तबाख नही पीत वह जसगरर दन म हठ करती ह

ओठो म लगाना चाहती हऔर म पीछ हरता ह तो समझती ह जक राजा बरा मान गया अब मर म क क जलए लड़गा

नही

अचछा अब बोधजसह कसा ह

अचछा ह

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जस म जानता ही न होऊ रात-भर तम अपन कबल उस उढ़ात हो और आप जसगड़ी क सहार गजर करत हो उसक

पहर पर आप पहरा द आत हो अपन सख लकड़ी क तखतो पर उस सलात हो आप कीचड़ म पड़ रहत हो कही तम

न माद पड़ जाना जाड़ा कया ह मौत ह और जनमोजनया स मरनवालो को मरबब नही जमला करत

मरा डर मत करो म तो बलल की खडड क जकनार मर गा भाई कीरतजसह की गोदी पर मरा जसर होगा और मर हाथ

क लगाए हए आगन क आम क पड़ की छाया होगी

वजीराजसह न तयोरी चढ़ा कर कहा - कया मरन-मारन की बात लगाई ह मर जमटनी और तरक हा भाइयो कस -

जदली शहर त जपशोर न जाजदए

कर लणा लौगा दा बपार मजड़ए

कर लणा नाड़दा सौदा अजड़ए -

(ओय) लाणा चराका कदए न

कदद बणाया व मजदार गोररए

हण लाणा चराका कदए न

कौन जानता था जक दाजढ़योवाल घरबारी जसख ऐसा लचचो का गीत गाएग पर सारी खदक इस गीत स गज उठी और

जसपाही जिर ताज हो गए मानो चार जदन स सोत और मौज ही करत रह हो

3

दोपहर रात गई ह अधरा ह सनदनारा छाया हआ ह बोधाजसह खाली जबसकरो क तीन जरनो पर अपन दोनो कबल

जबछा कर और लहनाजसह क दो कबल और एक बरानकोर ओढ़ कर सो रहा ह लहनाजसह पहर पर खड़ा हआ ह

एक आख खाई क मह पर ह और एक बोधाजसह क दबल शरीर पर बोधाजसह कराहा

कयो बोधा भाई कया ह

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पानी जपला दो

लहनाजसह न करोरा उसक मह स लगा कर पछा - कहो कस हो पानी पी कर बोधा बोला - क पनी छर रही ह रोम-

रोम म तार दौड़ रह ह दात बज रह ह

अचछा मरी जरसी पहन लो

और तम

मर पास जसगड़ी ह और मझ गमी लगती ह पसीना आ रहा ह

ना म नही पहनता चार जदन स तम मर जलए -

हा याद आई मर पास दसरी गरम जरसी ह आज सबर ही आई ह जवलायत स बन-बन कर भज रही ह मम गर

उनका भला कर यो कह कर लहना अपना कोर उतार कर जरसी उतारन लगा

सच कहत हो

और नही झठ यो कह कर नाही करत बोधा को उसन जबरदसती जरसी पहना दी और आप खाकी कोर और जीन

का करता भर पहन-कर पहर पर आ खड़ा हआ मम की जरसी की कथा कवल कथा थी

आधा घरा बीता इतन म खाई क मह स आवाज आई - सबदार हजाराजसह

कौन लपरन साहब हकम हजर - कह कर सबदार तन कर िौजी सलाम करक सामन हआ

दखो इसी दम धावा करना होगा मील भर की दरी पर परब क कोन म एक जमटन खाई ह उसम पचास स जयादा

जमटन नही ह इन पड़ो क नीच-नीच दो खत कार कर रासता ह तीन-चार घमाव ह जहा मोड़ ह वहा परह जवान खड़

कर आया ह तम यहा दस आदमी छोड़ कर सब को साथ ल उनस जा जमलो खदक छीन कर वही जब तक दसरा

हकम न जमल डर रहो हम यहा रहगा

जो हकम

चपचाप सब तयार हो गए बोधा भी कबल उतार कर चलन लगा तब लहनाजसह न उस रोका लहनाजसह आग हआ

तो बोधा क बाप सबदार न उगली स बोधा की ओर इशारा जकया लहनाजसह समझ कर चप हो गया पीछ दस

आदमी कौन रह इस पर बड़ी हजजत हई कोई रहना न चाहता था समझा-बझा कर सबदार न माचट जकया लपरन

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साहब लहना की जसगड़ी क पास मह िर कर खड़ हो गए और जब स जसगरर जनकाल कर सलगान लग दस जमनर

बाद उनदहोन लहना की ओर हाथ बढा कर कहा - लो तम भी जपयो

आख मारत-मारत लहनाजसह सब समझ गया मह का भाव जछपा कर बोला - लाओ साहब हाथ आग करत ही

उसन जसगड़ी क उजाल म साहब का मह दखा बाल दख तब उसका माथा ठनका लपरन साहब क परटटयो वाल

बाल एक जदन म ही कहा उड़ गए और उनकी जगह कजदयो स कर बाल कहा स आ गए शायद साहब शराब जपए

हए ह और उनदह बाल करवान का मौका जमल गया ह लहनाजसह न जाचना चाहा लपरन साहब पाच विट स उसकी

रजजमर म थ

कयो साहब हमलोग जहदसतान कब जाएग

लड़ाई खतम होन पर कयो कया यह दश पसद नही

नही साहब जशकार क व मज यहा कहा याद ह पारसाल नकली लड़ाई क पीछ हम आप जगाधरी जजल म जशकार

करन गए थ -

हा हा -

वही जब आप खोत पर सवार थ और और आपका खानसामा अबद ला रासत क एक मजदर म जल चढ़ान को रह

गया था बशक पाजी कही का - सामन स वह नील गाय जनकली जक ऐसी बड़ी मन कभी न दखी थी और आपकी

एक गोली कध म लगी और पटठ म जनकली ऐस अिसर क साथ जशकार खलन म मजा ह कयो साहब जशमल स

तयार होकर उस नील गाय का जसर आ गया था न आपन कहा था जक रजमर की मस म लगाएग

हा पर मन वह जवलायत भज जदया -

ऐस बड़-बड़ सीग दो-दो िर क तो होग

हा लहनाजसह दो िर चार इच क थ तमन जसगरर नही जपया

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पीता ह साहब जदयासलाई ल आता ह - कह कर लहनाजसह खदक म घसा अब उस सदह नही रहा था उसन झरपर

जनशचय कर जलया जक कया करना चाजहए

अधर म जकसी सोनवाल स वह रकराया

कौन वजीराजसह

हा कयो लहना कया कयामत आ गई जरा तो आख लगन दी होती

4

होश म आओ कयामत आई ह और लपरन साहब की वदी पहन कर आई ह

कया

लपरन साहब या तो मार गए ह या कद हो गए ह उनकी वदी पहन कर यह कोई जमटन आया ह सबदार न इसका मह

नही दखा मन दखा और बात की ह सौहरा साि उदट बोलता ह पर जकताबी उदट और मझ पीन को जसगरर जदया ह

तो अब

अब मार गए धोखा ह सबदार होरा कीचड़ म चककर कारत जिरग और यहा खाई पर धावा होगा उठो एक काम

करो परन क परो क जनशान दखत-दखत दौड़ जाओ अभी बहत दर न गए होग

सबदार स कहो एकदम लौर आए खदक की बात झठ ह चल जाओ खदक क पीछ स जनकल जाओ पतता तक न

खड़क दर मत करो

हकम तो यह ह जक यही -

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ऐसी तसी हकम की मरा हकम - जमादार लहनाजसह जो इस वि यहा सब स बड़ा अिसर ह उसका हकम ह म

लपरन साहब की खबर लता ह

पर यहा तो तम आठ ह

आठ नही दस लाख एक-एक अकाजलया जसख सवा लाख क बराबर होता ह चल जाओ

लौर कर खाई क महान पर लहनाजसह दीवार स जचपक गया उसन दखा जक लपरन साहब न जब स बल क बराबर

तीन गोल जनकाल तीनो को जगह-जगह खदक की दीवारो म घसड़ जदया और तीनो म एक तार सा बाध जदया तार

क आग सत की एक गतथी थी जजस जसगड़ी क पास रखा बाहर की तरि जा कर एक जदयासलाई जला कर गतथी पर

रखन -

इतन म जबजली की तरह दोनो हाथो स उरी बदक को उठा कर लहनाजसह न साहब की कहनी पर तान कर द मारा

धमाक क साथ साहब क हाथ स जदयासलाई जगर पड़ी लहनाजसह न एक कदा साहब की गदटन पर मारा और साहब

ऑख मीन गौटट कहत हए जचतत हो गए लहनाजसह न तीनो गोल बीन कर खदक क बाहर ि क और साहब को

घसीर कर जसगड़ी क पास जलराया जबो की तलाशी ली तीन-चार जलिाि और एक डायरी जनकाल कर उनदह अपनी

जब क हवाल जकया

साहब की मछाट हरी लहनाजसह हस कर बोला - कयो लपरन साहब जमजाज कसा ह आज मन बहत बात सीखी

यह सीखा जक जसख जसगरर पीत ह यह सीखा जक जगाधरी क जजल म नीलगाए होती ह और उनक दो िर चार इच

क सीग होत ह यह सीखा जक मसलमान खानसामा मजतटयो पर जल चढ़ात ह और लपरन साहब खोत पर चढ़त ह

पर यह तो कहो ऐसी साि उदट कहा स सीख आए हमार लपरन साहब तो जबन डम क पाच लफज भी नही बोला

करत थ

लहना न पतलन क जबो की तलाशी नही ली थी साहब न मानो जाड़ स बचन क जलए दोनो हाथ जबो म डाल

लहनाजसह कहता गया - चालाक तो बड़ हो पर माझ का लहना इतन बरस लपरन साहब क साथ रहा ह उस चकमा

दन क जलए चार आख चाजहए तीन महीन हए एक तरकी मौलवी मर गाव आया था औरतो को बचच होन क

ताबीज बारता था और बचचो को दवाई दता था चौधरी क बड़ क नीच मजा जबछा कर हकका पीता रहता था और

कहता था जक जमटनीवाल बड़ पजडत ह वद पढ़-पढ़ कर उसम स जवमान चलान की जवदया जान गए ह गौ को नही

मारत जहदसतान म आ जाएग तो गोहतया बद कर दग मडी क बजनयो को बहकाता जक डाकखान स रपया जनकाल

लो सरकार का राजय जानवाला ह डाक-बाब पोह राम भी डर गया था मन म लाजी की दाढ़ी मड़ दी थी और

गाव स बाहर जनकाल कर कहा था जक जो मर गाव म अब पर रकखा तो -

साहब की जब म स जपसतौल चला और लहना की जाघ म गोली लगी इधर लहना की हनरी माजरटन क दो िायरो न

साहब की कपाल-जकरया कर दी धड़ाका सन कर सब दौड़ आए

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बोधा जचलया - कया ह

लहनाजसह न उस यह कह कर सला जदया जक एक हड़का हआ कतता आया था मार जदया और औरो स सब हाल कह

जदया सब बदक ल कर तयार हो गए लहना न सािा िाड़ कर घाव क दोनो तरि परटटया कस कर बाधी घाव मास

म ही था परटटयो क कसन स लह जनकलना बद हो गया

इतन म सततर जमटन जचला कर खाई म घस पड़ जसकखो की बदको की बाढ़ न पहल धाव को रोका दसर को रोका

पर यहा थ आठ (लहनाजसह तक-तक कर मार रहा था - वह खड़ा था और और लर हए थ) और व सततर अपन

मदाट भाइयो क शरीर पर चढ़ कर जमटन आग घस आत थ थोड स जमजनरो म व - अचानक आवाज आई वाह गरजी

की ितह वाह गरजी का खालसा और धड़ाधड़ बदको क िायर जमटनो की पीठ पर पड़न लग ऐन मौक पर जमटन

दो चककी क पारो क बीच म आ गए पीछ स सबदार हजाराजसह क जवान आग बरसात थ और सामन लहनाजसह क

साजथयो क सगीन चल रह थ पास आन पर पीछवालो न भी सगीन जपरोना शर कर जदया

एक जकलकारी और - अकाल जसकखा दी िौज आई वाह गरजी दी ितह वाह गरजी दा खालसा सत शरी

अकालपरख और लड़ाई खतम हो गई जतरसठ जमटन या तो खत रह थ या कराह रह थ जसकखो म परह क पराण

गए सबदार क दाजहन कध म स गोली आरपार जनकल गई लहनाजसह की पसली म एक गोली लगी उसन घाव को

खदक की गीली मटटी स पर जलया और बाकी का सािा कस कर कमरबद की तरह लपर जलया जकसी को खबर न

हई जक लहना को दसरा घाव - भारी घाव लगा ह

लड़ाई क समय चाद जनकल आया था ऐसा चाद जजसक परकाश स ससकत-कजवयो का जदया हआ कषयी नाम साथटक

होता ह और हवा ऐसी चल रही थी जसी वाणभटट की भािा म दतवीणोपदशाचायट कहलाती वजीराजसह कह रहा

था जक कस मन-मन भर रास की भजम मर बरो स जचपक रही थी जब म दौडा-दौडा सबदार क पीछ गया था सबदार

लहनाजसह स सारा हाल सन और कागजात पा कर व उसकी तरत-बजदध को सराह रह थ और कह रह थ जक त न होता

तो आज सब मार जात

इस लड़ाई की आवाज तीन मील दाजहनी ओर की खाईवालो न सन ली थी उनदहोन पीछ रलीिोन कर जदया था वहा

स झरपर दो डाकरर और दो बीमार ढोन की गाजड़या चली जो कोई डढ़ घर क अदर-अदर आ पहची िीड

असपताल नजदीक था सबह होत-होत वहा पहच जाएग इसजलए मामली पटटी बाध कर एक गाड़ी म घायल जलराए

गए और दसरी म लाश रकखी गई सबदार न लहनाजसह की जाघ म पटटी बधवानी चाही पर उसन यह कह कर राल

जदया जक थोड़ा घाव ह सबर दखा जाएगा बोधाजसह जवर म बराट रहा था वह गाड़ी म जलराया गया लहना को छोड़

कर सबदार जात नही थ यह दख लहना न कहा - तमह बोधा की कसम ह और सबदारनीजी की सौगध ह जो इस

गाड़ी म न चल जाओ

और तम

मर जलए वहा पहच कर गाड़ी भज दना और जमटन मरदो क जलए भी तो गाजड़या आती होगी मरा हाल बरा नही ह

दखत नही म खड़ा ह वजीराजसह मर पास ह ही

अचछा पर -

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बोधा गाड़ी पर लर गया भला आप भी चढ़ जाओ सजनए तो सबदारनी होरा को जचिी जलखो तो मरा मतथा रकना

जलख दना और जब घर जाओ तो कह दना जक मझस जो उसन कहा था वह मन कर जदया

गाजड़या चल पड़ी थी सबदार न चढ़त-चढ़त लहना का हाथ पकड़ कर कहा - तन मर और बोधा क पराण बचाए ह

जलखना कसा साथ ही घर चलग अपनी सबदारनी को त ही कह दना उसन कया कहा था

अब आप गाड़ी पर चढ़ जाओ मन जो कहा वह जलख दना और कह भी दना

गाड़ी क जात लहना लर गया वजीरा पानी जपला द और मरा कमरबद खोल द तर हो रहा ह

5

मतय क कछ समय पहल समजत बहत साि हो जाती ह जनदम-भर की घरनाए एक-एक करक सामन आती ह सार

दशयो क रग साि होत ह समय की धध जबकल उन पर स हर जाती ह

लहनाजसह बारह विट का ह अमतसर म मामा क यहा आया हआ ह दहीवाल क यहा सबजीवाल क यहा हर कही

उस एक आठ विट की लड़की जमल जाती ह जब वह पछता ह तरी कड़माई हो गई तब धत कह कर वह भाग जाती

ह एक जदन उसन वस ही पछा तो उसन कहा - हा कल हो गई दखत नही यह रशम क िलोवाला साल सनत ही

लहनाजसह को दःख हआ करोध हआ कयो हआ

वजीराजसह पानी जपला द

पचीस विट बीत गए अब लहनाजसह न 77 रिस म जमादार हो गया ह उस आठ विट की कनदया का धयान ही न रहा

न-मालम वह कभी जमली थी या नही सात जदन की छटटी ल कर जमीन क मकदम की परवी करन वह अपन घर गया

वहा रजजमर क अिसर की जचिी जमली जक िौज लाम पर जाती ह िौरन चल आओ साथ ही सबदार हजाराजसह

की जचिी जमली जक म और बोधाजसह भी लाम पर जात ह लौरत हए हमार घर होत जाना साथ ही चलग सबदार

का गाव रासत म पड़ता था और सबदार उस बहत चाहता था लहनाजसह सबदार क यहा पहचा

जब चलन लग तब सबदार बढ म स जनकल कर आया बोला - लहना सबदारनी तमको जानती ह बलाती ह जा

जमल आ लहनाजसह भीतर पहचा सबदारनी मझ जानती ह कब स रजजमर क कवारटरो म तो कभी सबदार क घर

क लोग रह नही दरवाज पर जा कर मतथा रकना कहा असीस सनी लहनाजसह चप

मझ पहचाना

नही

तरी कड़माई हो गई - धत - कल हो गई - दखत नही रशमी बरोवाला साल -अमतसर म -

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भावो की रकराहर स मछाट खली करवर बदली पसली का घाव बह जनकला

वजीरा पानी जपला - उसन कहा था

सवपन चल रहा ह सबदारनी कह रही ह - मन तर को आत ही पहचान जलया एक काम कहती ह मर तो भाग िर

गए सरकार न बहादरी का जखताब जदया ह लायलपर म जमीन दी ह आज नमक-हलाली का मौका आया ह पर

सरकार न हम तीजमयो की एक घघररया परन कयो न बना दी जो म भी सबदारजी क साथ चली जाती एक बरा ह

िौज म भती हए उस एक ही बरस हआ उसक पीछ चार और हए पर एक भी नही जजया सबदारनी रोन लगी अब

दोनो जात ह मर भाग तमह याद ह एक जदन तागवाल का घोड़ा दहीवाल की दकान क पास जबगड़ गया था तमन

उस जदन मर पराण बचाए थ आप घोड़ की लातो म चल गए थ और मझ उठा कर दकान क तखत पर खड़ा कर जदया

था ऐस ही इन दोनो को बचाना यह मरी जभकषा ह तमहार आग आचल पसारती ह

रोती-रोती सबदारनी ओबरी म चली गई लहना भी आस पोछता हआ बाहर आया

वजीराजसह पानी जपला -उसन कहा था

लहना का जसर अपनी गोद म रकख वजीराजसह बठा ह जब मागता ह तब पानी जपला दता ह आध घर तक लहना

चप रहा जिर बोला - कौन कीरतजसह

वजीरा न कछ समझ कर कहा - हा

भइया मझ और ऊ चा कर ल अपन पटट पर मरा जसर रख ल वजीरा न वस ही जकया

हा अब ठीक ह पानी जपला द बस अब क हाड़ म यह आम खब िलगा चचा-भतीजा दोनो यही बठ कर आम

खाना जजतना बड़ा तरा भतीजा ह उतना ही यह आम ह जजस महीन उसका जनदम हआ था उसी महीन म मन इस

लगाया था वजीराजसह क आस रप-रप रपक रह थ

कछ जदन पीछ लोगो न अखबारो म पढा -

रास और बलजजयम - 68 वी सची - मदान म घावो स मरा - न 77 जसख राइिस जमादार लहनाजसह

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ईदगाि

मशी परमचद

रमजान क पर तीस रोजो क बाद ईद आई ह जकतना मनोहर जकतना सहावना परभाव ह वकषो पर अजीब हररयाली ह

खतो म कछ अजीब रौनक ह आसमान पर कछ अजीब लाजलमा ह आज का सयट दखो जकतना पयारा जकतना

शीतल ह यानी ससार को ईद की बधाई द रहा ह गॉव म जकतनी हलचल ह ईदगाह जान की तयाररया हो रही ह

जकसी क करत म बरन नही ह पड़ोस क घर म सई-धागा लन दौड़ा जा रहा ह जकसी क जत कड़ हो गए ह उनम तल

डालन क जलए तली क घर पर भागा जाता ह जदी-जदी बलो को सानी-पानी द द ईदगाह स लौरत-लौरत दोपहर

हो जाएगी तीन कोस का पदल रासता जिर सकड़ो आदजमयो स जमलना-भरना दोपहर क पहल लौरना असभव ह

लड़क सबस जयादा परसनदन ह जकसी न एक रोजा रखा ह वह भी दोपहर तक जकसी न वह भी नही लजकन ईदगाह

जान की खशी उनक जहसस की चीज ह रोज बड़-बढ़ो क जलए होग इनक जलए तो ईद ह रोज ईद का नाम ररत थ

आज वह आ गई अब जदी पड़ी ह जक लोग ईदगाह कयो नही चलत इनदह गहसथी जचताओ स कया परयोजन सवयो

क जलए दध और शककर घर म ह या नही इनकी बला स य तो सवया खाएग वह कया जान जक अबबाजान कयो

बदहवास चौधरी कायमअली क घर दौड़ जा रह ह उनदह कया खबर जक चौधरी आख बदल ल तो यह सारी ईद महरटम

हो जाए उनकी अपनी जबो म तो कबर का धन भरा हआ ह बार-बार जब स अपना खजाना जनकालकर जगनत ह

और खश होकर जिर रख लत ह महमद जगनता ह एक-दो दस-बारह उसक पास बारह पस ह मोहनजसन क पास

एक दो तीन आठ नौ परह पस ह इनदही अनजगनती पसो म अनजगनती चीज लाएग- जखलौन जमठाइया जबगल गद

और जान कया-कया और सबस जयादा परसनदन ह हाजमद वह चार-पाच साल का गरीब सरत दबला-पतला लड़का

जजसका बाप गत विट हज की भर हो गया और मा न जान कयो पीली होती-होती एक जदन मर गई जकसी को पता कया

बीमारी ह कहती तो कौन सनन वाला था जदल पर जो कछ बीतती थी वह जदल म ही सहती थी ओर जब न सहा

गया तो ससार स जवदा हो गई अब हाजमद अपनी बढ़ी दादी अमीना की गोद म सोता ह और उतना ही परसनदन ह

उसक अबबाजान रपय कमान गए ह बहत-सी थजलया लकर आएग अममीजान अलहा जमया क घर स उसक जलए

बड़ी अचछी-अचछी चीज लान गई ह इसजलए हाजमद परसनदन ह आशा तो बड़ी चीज ह और जिर बचचो की आशा

उनकी कपना तो राई का पवटत बना लती ह हाजमद क पाव म जत नही ह जसर पर एक परानी-धरानी रोपी ह

जजसका गोरा काला पड़ गया ह जिर भी वह परसनदन ह जब उसक अबबाजान थजलया और अममीजान जनयमत लकर

आएगी तो वह जदल स अरमान जनकाल लगा तब दखगा मोहजसन नर और सममी कहा स उतन पस जनकालग

अभाजगन अमीना अपनी कोठरी म बठी रो रही ह आज ईद का जदन उसक घर म दाना नही आज आजबद होता तो

कया इसी तरह ईद आती ओर चली जाती इस अधकार और जनराशा म वह डबी जा रही ह जकसन बलाया था इस

जनगोड़ी ईद को इस घर म उसका काम नही लजकन हाजमद उस जकसी क मरन-जीन क कया मतल उसक अदर

परकाश ह बाहर आशा जवपजतत अपना सारा दलबल लकर आए हाजमद की आनद-भरी जचतबन उसका जवधवस कर

दगी हाजमद भीतर जाकर दादी स कहता ह-तम डरना नही अममा म सबस पहल आऊगा जबकल न डरना अमीना

का जदल कचोर रहा ह गाव क बचच अपन-अपन बाप क साथ जा रह ह हाजमद का बाप अमीना क जसवा और कौन

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ह उस कस अकल मल जान द उस भीड़-भाड़ स बचचा कही खो जाए तो कया हो नही अमीना उस यो न जान

दगी ननदही-सी जान तीन कोस चलगा कस पर म छाल पड़ जाएग जत भी तो नही ह वह थोड़ी-थोड़ी दर पर उस

गोद म ल लती लजकन यहा सवया कौन पकाएगा पस होत तो लौरत-लोरत सब सामगरी जमा करक चरपर बना

लती यहा तो घरो चीज जमा करत लगग माग का ही तो भरोसा ठहरा उस जदन िहीमन क कपड़ जसल थ आठ

आन पस जमल थ उस उठनदनी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद क जलए लजकन कल गवालन जसर

पर सवार हो गई तो कया करती हाजमद क जलए कछ नही ह तो दो पस का दध तो चाजहए ही अब तो कल दो आन

पस बच रह ह तीन पस हाजमद की जब म पाच अमीना क बरव म यही तो जबसात ह और ईद का तयौहार अला

ही बड़ा पर लगाए धोबन और नाइन और महतरानी और चजड़हाररन सभी तो आएगी सभी को सवया चाजहए और

थोड़ा जकसी को आखो नही लगता जकस-जकस स मह चराएगी और मह कयो चराए साल-भर का तयोहार ह जजदगी

खररयत स रह उनकी तकदीर भी तो उसी क साथ ह बचच को खदा सलामत रख य जदन भी कर जाएग गाव स

मला चला और बचचो क साथ हाजमद भी जा रहा था कभी सबक सब दौड़कर आग जनकल जात जिर जकसी पड़ क

नीच खड़ होकर साथ वालो का इतजार करत यह लोग कयो इतना धीर-धीर चल रह ह हाजमद क परो म तो जस पर

लग गए ह वह कभी थक सकता ह शहर का दामन आ गया सड़क क दोनो ओर अमीरो क बगीच ह पककी

चारदीवारी बनी हई ह पड़ो म आम और लीजचया लगी हई ह कभी-कभी कोई लड़का ककड़ी उठाकर आम पर

जनशान लगाता ह माली अदर स गाली दता हआ जनकलता ह लड़क वहा स एक िलाग पर ह खब हस रह ह

माली को कसा उल बनाया ह बड़ी-बड़ी इमारत आन लगी यह अदालत ह यह कालज ह यह कलब घर ह इतन

बड़ कालज म जकतन लड़क पढ़त होग सब लड़क नही ह जी बड़-बड़ आदमी ह सच उनकी बड़ी-बड़ी मछ ह

इतन बड़ हो गए अभी तक पढ़त जात ह न जान कब तक पढ़ग ओर कया करग इतना पढ़कर हाजमद क मदरस म

दो-तीन बड़-बड़ लड़क ह जबकल तीन कौड़ी क रोज मार खात ह काम स जी चरान वाल इस जगह भी उसी तरह

क लोग होग ओर कया कलब-घर म जाद होता ह सना ह यहा मदो की खोपजड़या दौड़ती ह और बड़-बड़ तमाश

होत ह पर जकसी को अदर नही जान दत और वहा शाम को साहब लोग खलत ह बड़-बड़ आदमी खलत ह मछो-

दाढ़ी वाल और मम भी खलती ह सच हमारी अममा को यह द दो कया नाम ह बर तो उस पकड़ ही न सक घमात

ही लढ़क जाए महमद न कहा- हमारी अममीजान का तो हाथ कापन लग अला कसम मोहजसन बोल- चलो मनो

आरा पीस डालती ह जरा-सा बर पकड़ लगी तो हाथ कापन लगग सौकड़ो घड़ पानी रोज जनकालती ह पाच घड़

तो तरी भस पी जाती ह जकसी मम को एक घड़ा पानी भरना पड़ तो आखो तक अधरी आ जाए महमद- लजकन

दौड़ती तो नही उछल-कद तो नही सकती मोहजसन- हॉ उछल-कद तो नही सकती लजकन उस जदन मरी गाय खल

गई थी और चौधरी क खत म जा पड़ी थी अममा इतना तज दौड़ी जक म उनदह न पा सका सच आग चल हलवाइयो

की दकान शर हई आज खब सजी हई थी इतनी जमठाइया कौन खाता दखो न एक-एक दकान पर मनो होगी सना

ह रात को जजनदनात आकर खरीद ल जात ह अबबा कहत थ जक आधी रात को एक आदमी हर दकान पर जाता ह

और जजतना माल बचा होता ह वह तलवा लता ह और सचमच क रपय दता ह जबकल ऐस ही रपय हाजमद को

यकीन न आया- ऐस रपय जजनदनात को कहा स जमल जाएगी मोहजसन न कहा- जजनदनात को रपय की कया कमी जजस

खजान म चाह चल जाए लोह क दरवाज तक उनदह नही रोक सकत जनाब आप ह जकस िर म हीर-जवाहरात तक

उनक पास रहत ह जजसस खश हो गए उस रोकरो जवाहरात द जदए अभी यही बठ ह पाच जमनर म कलकतता पहच

जाए हाजमद न जिर पछा- जजनदनात बहत बड़-बड़ होत ह मोहजसन- एक-एक जसर आसमान क बराबर होता ह जी

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जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका जसर आसमान स जा लग मगर चाह तो एक लोर म घस जाए हाजमद- लोग उनदह

कस खश करत होग कोई मझ यह मतर बता द तो एक जजनन को खश कर ल मोहजसन- अब यह तो न जानता

लजकन चौधरी साहब क काब म बहत-स जजनदनात ह कोई चीज चोरी जाए चौधरी साहब उसका पता लगा दग ओर

चोर का नाम बता दग जमराती का बछवा उस जदन खो गया था तीन जदन हरान हए कही न जमला तब झख मारकर

चौधरी क पास गए चौधरी न तरनदत बता जदया मवशीखान म ह और वही जमला जजनदनात आकर उनदह सार जहान की

खबर द जात ह अब उसकी समझ म आ गया जक चौधरी क पास कयो इतना धन ह और कयो उनका इतना सममान ह

आग चल यह पजलस लाइन ह यही सब काजनसजरजबल कवायद करत ह ररन िाय िो रात को बचार घम-घमकर

पहरा दत ह नही चोररया हो जाए मोहजसन न परजतवाद जकया- यह काजनसजरजबल पहरा दत ह तभी तम बहत जानत

हो अजी हजरत यह चोरी करत ह शहर क जजतन चोर-डाक ह सब इनस महल म जाकर lsquoजागत रहो जात

रहोrsquoपकारत ह तभी इन लोगो क पास इतन रपय आत ह मर माम एक थान म काजनसजरजबल ह बरस रपया महीना

पात ह लजकन पचास रपय घर भजत ह अला कसम मन एक बार पछा था जक माम आप इतन रपय कहा स पात

ह हसकर कहन लग- बरा अलाह दता ह जिर आप ही बोल- हम लोग चाह तो एक जदन म लाखो मार लाए हम

तो इतना ही लत ह जजसम अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए हाजमद न पछा- यह लोग चोरी करवात ह

तो कोई इनदह पकड़ता नही मोहजसन उसकी नादानी पर दया जदखाकर बोला अर पागल इनदह कौन पकड़गा

पकड़न वाल तो यह लोग खद ह लजकन अलाह इनदह सजा भी खब दता ह हराम का माल हराम म जाता ह थोड़

ही जदन हए माम क घर म आग लग गई सारी लई-पजी जल गई एक बरतन तक न बचा कई जदन पड़ क नीच सोए

अला कसम पड़ क नीच जिरन जान कहा स एक सौ कजट लाए तो बरतन-भाड़ आए हाजमद- एक सौ तो पचास स

जयादा होत ह lsquoकहा पचास कहा एक सौ पचास एक थली-भर होता ह सौ तो दो थजलयो म भी न आए अब बसती

घनी होन लगी ईदगाह जान वालो की रोजलया नजर आन लगी एक स एक भड़कील वसतर पहन हए कोई इकक-ताग

पर सवार कोई मोरर पर सभी इतर म बस सभी क जदलो म उमग गरामीणो का यह छोरा-सा दल अपनी जवपनदनता स

बखबर सतोि ओर धयट म मगन चला जा रहा था बचचो क जलए नगर की सभी चीज अनोखी थी जजस चीज की

ओर ताकत ताकत ही रह जात और पीछ स आनट की आवाज होन पर भी न चतत हाजमद तो मोरर क नीच जात-

जात बचा सहसा ईदगाह नजर आई ऊपर इमली क घन वकषो की छाया ह नाच पकका िशट ह जजस पर जाजम

जढछा हआ ह और रोजदारो की पजिया एक क पीछ एक न जान कहा वक चली गई ह पककी जगत क नीच तक

जहा जाजम भी नही ह नए आन वाल आकर पीछ की कतार म खड़ हो जात ह आग जगह नही ह यहा कोई धन

और पद नही दखता इसलाम की जनगाह म सब बराबर ह इन गरामीणो न भी वज जकया ओर जपछली पजि म खड़ हो

गए जकतना सनददर सचालन ह जकतनी सनददर वयवसथा लाखो जसर एक साथ जसजद म झक जात ह जिर सबक सब

एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ झकत ह और एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ खड़ हो जात ह एक साथ

झकत ह और एक साथ खड़ हो जात ह कई बार यही जकरया होती ह जस जबजली की लाखो बजततया एक साथ परदीपत

हो और एक साथ बझ जाए और यही गरम चलता रह जकतना अपवट दशय था जजसकी सामजहक जकरयाए जवसतार

और अनतता हदय को शरदधा गवट और आतमानद स भर दती थी मानो भराततव का एक सतर इन समसत आतमाओ को

एक लड़ी म जपरोए हए ह नमाज खतम हो गई लोग आपस म गल जमल रह ह तब जमठाई और जखलौन की दकान पर

धावा होता ह गरामीणो का यह दल इस जविय म बालको स कम उतसाही नही ह यह दखो जहडोला ह एक पसा दकर

चढ़ जाओ कभी आसमान पर जात हए मालम होग कभी जमीन पर जगरत हए यह चखी ह लकड़ी क हाथी घोड़

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ऊ र छड़ो म लरक हए ह एक पसा दकर बठ जाओ और पचचीस चककरो का मजा लो महमद और मोहजसन ओर

नर ओर सममी इन घोड़ो ओर ऊरो पर बठत ह हाजमद दर खड़ा ह तीन ही पस तो उसक पास ह अपन कोि का एक

जतहाई जरा-सा चककर खान क जलए नही द सकता सब चजखटयो स उतरत ह अब जखलौन लग अधर दकानो की

कतार लगी हई ह तरह-तरह क जखलौन ह- जसपाही और गजररया राज ओर वकी जभशती और धोजबन और साध

वाह जकतत सनददर जखलोन ह अब बोला ही चाहत ह महमद जसपाही लता ह खाकी वदी और लाल पगड़ीवाला

कध पर बदक रख हए मालम होता ह अभी कवायद जकए चला आ रहा ह मोहजसन को जभशती पसद आया कमर

झकी हई ह ऊपर मशक रख हए ह मशक का मह एक हाथ स पकड़ हए ह जकतना परसनदन ह शायद कोई गीत गा रहा

ह बस मशक स पानी अड़ला ही चाहता ह नर को वकील स परम ह कसी जवदवतता ह उसक मख पर काला चोगा

नीच सिद अचकन अचकन क सामन की जब म घड़ी सनहरी जजीर एक हाथ म कानन का पौथा जलए हए मालम

होता ह अभी जकसी अदालत स जजरह या बहस जकए चल आ रह ह यह सब दो-दो पस क जखलौन ह हाजमद क

पास कल तीन पस ह इतन महग जखलौन वह कस ल जखलौना कही हाथ स छर पड़ तो चर-चर हो जाए जरा पानी

पड़ तो सारा रग घल जाए ऐस जखलौन लकर वह कया करगा जकस काम क मोहजसन कहता ह- मरा जभशती रोज

पानी द जाएगा साझ-सबर महमद- और मरा जसपाही घर का पहरा दगा कोई चोर आएगा तो िौरन बदक स िर कर

दगा नर- ओर मरा वकील खब मकदमा लड़गा सममी- ओर मरी धोजबन रोज कपड़ धोएगी हाजमद जखलौनो की

जनदा करता ह- जमटटी ही क तो ह जगर तो चकनाचर हो जाए लजकन ललचाई हई आखो स जखलौनो को दख रहा ह

और चाहता ह जक जरा दर क जलए उनदह हाथ म ल सकता उसक हाथ अनायास ही लपकत ह लजकन लड़क इतन

तयागी नही होत ह जवशिकर जब अभी नया शौक ह हाजमद ललचता रह जाता ह जखलौन क बाद जमठाइया आती

ह जकसी न रवजड़या ली ह जकसी न गलाबजामन जकसी न सोहन हलवा मज स खा रह ह हाजमद जबरादरी स पथक

ह अभाग क पास तीन पस ह कयो नही कछ लकर खाता ललचाई आखो स सबक ओर दखता ह मोहजसन कहता

ह- हाजमद रवड़ी ल जा जकतनी खशबदार ह हाजमद को सदह हआ य कवल करर जवनोद ह मोहजसन इतना उदार नही

ह लजकन यह जानकर भी वह उसक पास जाता ह मोहजसन दोन स एक रवड़ी जनकालकर हाजमद की ओर बढ़ाता ह

हाजमद हाथ िलाता ह मोहजसन रवड़ी अपन मह म रख लता ह महमद नर ओर सममी खब ताजलया बजा-बजाकर

हसत ह हाजमद जखजसया जाता ह मोहजसन- अचछा अबकी जरर दग हाजमद अलाह कसम ल जा हाजमद- रख

रहो कया मर पास पस नही ह सममी- तीन ही पस तो ह तीन पस म कया-कया लोग महमद- हमस गलाबजामन ल

जाओ हाजमद मोहजमन बदमाश ह हाजमद- जमठाई कौन बड़ी नमत ह जकताब म इसकी जकतनी बराइया जलखी ह

मोहजसन- लजकन जदन म कह रह होग जक जमल तो खा ल अपन पस कयो नही जनकालत महमद- इस समझत ह

इसकी चालाकी जब हमार सार पस खचट हो जाएग तो हम ललचा-ललचाकर खाएगा जमठाइयो क बाद कछ दकान

लोह की चीजो की कछ जगलर और कछ नकली गहनो की लड़को क जलए यहा कोई आकिटण न था व सब आग

बढ़ जात ह हाजमद लोह की दकान पर रक जात ह कई जचमर रख हए थ उस खयाल आया दादी क पास जचमरा

नही ह तब स रोजरया उतारती ह तो हाथ जल जाता ह अगर वह जचमरा ल जाकर दादी को द द तो वह जकतना

परसनदन होगी जिर उनकी ऊगजलया कभी न जलगी घर म एक काम की चीज हो जाएगी जखलौन स कया िायदा

वयथट म पस खराब होत ह जरा दर ही तो खशी होती ह जिर तो जखलौन को कोई आख उठाकर नही दखता यह तो

घर पहचत-पहचत रर-िर बराबर हो जाएग जचमरा जकतन काम की चीज ह रोजरया तव स उतार लो च ह म सक

लो कोई आग मागन आए तो चरपर च ह स आग जनकालकर उस द दो अममा बचारी को कहा िरसत ह जक

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बाजार आए और इतन पस ही कहा जमलत ह रोज हाथ जला लती ह हाजमद क साथी आग बढ़ गए ह सबील पर

सबक सब शबटत पी रह ह दखो सब कतन लालची ह इतनी जमठाइया ली मझ जकसी न एक भी न दी उस पर कहत

ह मर साथ खलो मरा यह काम करो अब अगर जकसी न कोई काम करन को कहा तो पछगा खाए जमठाइया आप

मह सड़गा िोड़-िजनदसया जनकलगी आप ही जबान चरोरी हो जाएगी तब घर स पस चराएग और मार खाएग

जकताब म झठी बात थोड़ ही जलखी ह मरी जबान कयो खराब होगी अममा जचमरा दखत ही दौड़कर मर हाथ स ल

लगी और कहगी- मरा बचचा अममा क जलए जचमरा लाया ह जकतना अचछा लड़का ह इन लोगो क जखलौन पर

कौन इनदह दआए दगा बड़ो का दआए सीध अलाह क दरबार म पहचती ह और तरत सनी जाती ह म भी इनस

जमजाज कयो सह म गरीब सही जकसी स कछ मागन तो नही जात आजखर अबबाजान कभी न कभी आएग अममा

भी आएगी ही जिर इन लोगो स पछगा जकतन जखलौन लोग एक-एक को रोकररयो जखलौन द और जदखा ह जक

दोसतो क साथ इस तरह का सलक जकया जात ह यह नही जक एक पस की रवजड़या ली तो जचढ़ा-जचढ़ाकर खान लग

सबक सब हसग जक हाजमद न जचमरा जलया ह हस मरी बला स उसन दकानदार स पछा- यह जचमरा जकतन का ह

दकानदार न उसकी ओर दखा और कोई आदमी साथ न दखकर कहा- तमहार काम का नही ह जी lsquoजबकाऊ ह जक

नहीrsquolsquoजबकाऊ कयो नही ह और यहा कयो लाद लाए हrsquolsquoतो बतात कयो नही क पस का हrsquolsquoछ पस लगगlsquoहाजमद

का जदल बठ गया lsquoठीक-ठीक पॉ च पस लगग लना हो लो नही चलत बनोlsquoहाजमद न कलजा मजबत करक कहा

तीन पस लोग यह कहता हआ व आग बढ़ गया जक दकानदार की घड़जकया न सन लजकन दकानदार न घड़जकया

नही दी बलाकर जचमरा द जदया हाजमद न उस इस तरह कध पर रखा मानो बदक ह और शान स अकड़ता हआ

सजगयो क पास आया जरा सन सबक सब कया-कया आलोचनाए करत ह मोहजसन न हसकर कहा- यह जचमरा कयो

लाया पगल इस कया करगा हाजमद न जचमर को जमीन पर परकर कहा- जरा अपना जभशती जमीन पर जगरा दो सारी

पसजलया चर-चर हो जाए बचा की महमद बोला- तो यह जचमरा कोई जखलौना ह हाजमद- जखलौना कयो नही ह

अभी कनदध पर रखा बदक हो गई हाथ म ल जलया िकीरो का जचमरा हो गया चाह तो इसस मजीर का काम ल

सकता ह एक जचमरा जमा द तो तम लोगो क सार जखलौनो की जान जनकल जाए तमहार जखलौन जकतना ही जोर

लगाए मर जचमर का बाल भी बाका नही कर सकत मरा बहादर शर ह जचमरा सममी न खजरी ली थी परभाजवत

होकर बोला- मरी खजरी स बदलोग दो आन की ह हाजमद न खजरी की ओर उपकषा स दखा- मरा जचमरा चाह तो

तमहारी खजरी का पर िाड़ डाल बस एक चमड़ की जझली लगा दी ढब-ढब बोलन लगी जरा-सा पानी लग जाए

तो खतम हो जाए मरा बहादर जचमरा आग म पानी म आधी म तिान म बराबर डरा खड़ा रहगा जचमर न सभी को

मोजहत कर जलया अब पस जकसक पास धर ह जिर मल स दर जनकल आए ह नौ कब क बज गए धप तज हो रही

ह घर पहचन की जदी हो रही ह बाप स जजद भी कर तो जचमरा नही जमल सकता हाजमद ह बड़ा चालाक

इसीजलए बदमाश न अपन पस बचा रख थ अब बालको क दो दल हो गए ह मोहजसन महमद सममी और नर एक

तरि ह हाजमद अकला दसरी तरि शासतरथट हो रहा ह सममी तो जवधमी हा गया दसर पकष स जा जमला लजकन

मोहजसन महमद और नर भी हाजमद स एक-एक दो-दो साल बड़ होन पर भी हाजमद क आघातो स आतजकत हो उठ

ह उसक पास नदयाय का बल ह और नीजत की शजि एक ओर जमटटी ह दसरी ओर लोहा जो इस वि अपन को

िौलाद कह रहा ह वह अजय ह घातक ह अगर कोई शर आ जाए जमया जभशती क छकक छर जाए जो जमया

जसपाही जमटटी की बदक छोड़कर भाग वकील साहब की नानी मर जाए चोग म मह जछपाकर जमीन पर लर जाए

मगर यह जचमरा यह बहादर यह रसतम-जहद लपककर शर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आख जनकाल

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लगा मोहजसन न एड़ी-चोरी का जोर लगाकर कहा- अचछा पानी तो नही भर सकता हाजमद न जचमर को सीधा

खड़ा करक कहा- जभशती को एक डार बताएगा तो दौड़ा हआ पानी लाकर उसक दवार पर जछड़कन लगगा मोहजसन

परासत हो गया पर महमद न कमक पहचाई- अगर बचा पकड़ जाए तो अदालम म बध-बध जिरग तब तो वकील

साहब क परो पड़ोग हाजमद इस परबल तकट का जवाब न द सका उसन पछा- हम पकड़न कौन आएगा नर न

अकड़कर कहा- यह जसपाही बदकवाला हाजमद न मह जचढ़ाकर कहा- यह बचार हम बहादर रसतम-जहद को

पकड़ग अचछा लाओ अभी जरा कशती हो जाए इसकी सरत दखकर दर स भागग पकड़ग कया बचार मोहजसन को

एक नई चोर सझ गई- तमहार जचमर का मह रोज आग म जलगा उसन समझा था जक हाजमद लाजवाब हो जाएगा

लजकन यह बात न हई हाजमद न तरत जवाब जदया- आग म बहादर ही कदत ह जनाब तमहार यह वकील जसपाही

और जभशती लजडयो की तरह घर म घस जाएग आग म वह काम ह जो यह रसतम-जहनदद ही कर सकता ह महमद न

एक जोर लगाया-वकील साहब करसी-मज पर बठग तमहारा जचमरा तो बावरचीखान म जमीन पर पड़ा रहन क जसवा

और कया कर सकता ह इस तकट न सममी और नर को भी सजी कर जदया जकतन जठकान की बात कही ह पटठ न

जचमरा बावरचीखान म पड़ा रहन क जसवा और कया कर सकता ह हाजमद को कोई िड़कता हआ जवाब न सझा तो

उसन धाधली शर की- मरा जचमरा बावरचीखान म नही रहगा वकील साहब कसी पर बठ ग तो जाकर उनदह जमीन

पर परक दगा और उनका कानन उनक पर म डाल दगा बात कछ बनी नही खाल गाली-गलौज थी लजकन कानन

को पर म डालनवाली बात छा गई ऐसी छा गई जक तीनो सरमा मह ताकत रह गए मानो कोई धलचा कान-कौआ

जकसी गडवाल कनकौए को कार गया हो कानन मह स बाहर जनकलन वाली चीज ह उसको पर क अदर डाल जदया

जाना बतकी-सी बात होन पर भी कछ नयापन रखती ह हाजमद न मदान मार जलया उसका जचमरा रसतम-जहनदद ह

अब इसम मोहजसन महमद नर सममी जकसी को भी आपजतत नही हो सकती जवजता को हारनवालो स जो सतकार

जमलना सवभाजवक ह वह हाजमद को भी जमल औरो न तीन-तीन चार-चार आन पस खचट जकए पर कोई काम की

चीज न ल सक हाजमद न तीन पस म रग जमा जलया सच ही तो ह जखलौनो का कया भरोसा रर-िर जाएगी हाजमद

का जचमरा तो बना रहगा बरसो सजध की शत तय होन लगी मोहजसन न कहा- जरा अपना जचमरा दो हम भी दख

तम हमार जभशती लकर दखो महमद और नर न भी अपन-अपन जखलौन पश जकए हाजमद को इन शतो को मानन म

कोई आपजतत न थी जचमरा बारी-बारी स सबक हाथ म गया और उनक जखलौन बारी-बारी स हाजमद क हाथ म

आए जकतन खबसरत जखलौन ह हाजमद न हारन वालो क ऑस पोछ- म तमह जचढ़ा रहा था सच यह जचमरा भला

इन जखलौनो की कया बराबर करगा मालम होता ह अब बोल अब बोल लजकन मोहजसन की पारी को इस जदलास

स सतोि नही होता जचमर का जसका खब बठ गया ह जचपका हआ जरकर अब पानी स नही छर रहा ह मोहजसन-

लजकन इन जखलौनो क जलए कोई हम दआ तो न दगा महमद- दआ को जलए जिरत हो उर मार न पड़ अममा

जरर कहगी जक मल म यही जमटटी क जखलौन जमल हाजमद को सवीकार करना पड़ा जक जखलौनो को दखकर जकसी

की मा इतनी खश न होगी जजतनी दादी जचमर को दखकर होगी तीन पसो ही म तो उस सब-कछ करना था ओर उन

पसो क इस उपायो पर पछताव की जबकल जररत न थी जिर अब तो जचमरा रसतम-जहनदद ह ओर सभी जखलौनो

का बादशाह रासत म महमद को भख लगी उसक बाप न कल खान को जदए महमद न कवल हाजमद को साझी

बनाया उसक अनदय जमतर मह ताकत रह गए यह उस जचमर का परसाद था गयारह बज गाव म हलचल मच गई

मलवाल आ गए मोहजसन की छोरी बहन दौड़कर जभशती उसक हाथ स छीन जलया और मार खशी क जा उछली तो

जमया जभशती नीच आ रह और सरलोक जसधार इस पर भाई-बहन म मार-पीर हई दानो खब रोए उसकी अममा यह

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शोर सनकर जबगड़ी और दोनो को ऊपर स दो-दो चार और लगाए जमया नर क वकील का अत उनक परजतषठानकल

इसस जयादा गौरवमय हआ वकील जमीन पर या ताक पर हो नही बठ सकता उसकी मयाटदा का जवचार तो करना ही

होगा दीवार म खजरया गाड़ी गई उन पर लकड़ी का एक पररा रखा गया परर पर कागज का कालीन जबदाया गया

वकील साहब राजा भोज की भाजत जसहासन पर जवराज नर न उनदह पखा झलना शर जकया आदालतो म खर की

ररटटया और जबजली क पख रहत ह कया यहा मामली पखा भी न हो कानन की गमी जदमाग पर चढ़ जाएगी जक नही

बास का पखा आया ओर नर हवा करन लग मालम नही पख की हवा स या पख की चोर स वकील साहब

सवगटलोक स मतयलोक म आ रह और उनका मारी का चोला मारी म जमल गया जिर बड़ जोर-शोर स मातम हआ

और वकील साहब की अजसथ घर पर डाल दी गई अब रहा महमद का जसपाही उस चरपर गाव का पहरा दन का

चाजट जमल गया लजकन पजलस का जसपाही कोई साधारण वयजि तो नही जो अपन परो चल वह पालकी पर चलगा

एक रोकरी आई उसम कछ लाल रग क िर-परान जचथड़ जबछाए गए जजसम जसपाही साहब आराम स लर नर न

यह रोकरी उठाई और अपन दवार का चककर लगान लग उनक दोनो छोर भाई जसपाही की तरह lsquoछोनवाल जागत

लहोrsquoपकारत चलत ह मगर रात तो अधरी होनी चाजहए नर को ठोकर लग जाती ह रोकरी उसक हाथ स छरकर जगर

पड़ती ह और जमया जसपाही अपनी बनददक जलय जमीन पर आ जात ह और उनकी एक राग म जवकार आ जाता ह

महमद को आज जञात हआ जक वह अचछा डाकरर ह उसको ऐसा मरहम जमला गया ह जजसस वह ररी राग को

आनन-िानन जोड़ सकता ह कवल गलर का दध चाजहए गलर का दध आता ह राग जावब द दती ह शय-जकरया

असिल हई तब उसकी दसरी राग भी तोड़ दी जाती ह अब कम-स-कम एक जगह आराम स बठ तो सकता ह एक

राग स तो न चल सकता था न बठ सकता था अब वह जसपाही सनदयासी हो गया ह अपनी जगह पर बठा-बठा पहरा

दता ह कभी-कभी दवता भी बन जाता ह उसक जसर का झालरदार सािा खरच जदया गया ह अब उसका जजतना

रपातर चाहो कर सकत हो कभी-कभी तो उसस बार का काम भी जलया जाता ह अब जमया हाजमद का हाल सजनए

अमीना उसकी आवाज सनत ही दौड़ी और उस गोद म उठाकर पयार करन लगी सहसा उसक हाथ म जचमरा दखकर

वह चौकी lsquoयह जचमरा कहॉ थाrsquolsquoमन मल स जलया हlsquolsquoक पस मrsquolsquoतीन पस जदयlsquoअमीना न छाती पीर ली यह

कसा बसमझ लड़का ह जक दोपहर हआ कछ खाया न जपया लाया कया जचमरा lsquoसार मल म तझ और कोई चीज न

जमली जो यह लोह का जचमरा उठा लायाrsquoहाजमद न अपराधी-भाव स कहा- तमहारी उगजलयॉ तव स जल जाती थी

इसजलए मन इस जलया बजढ़या का करोध तरनदत सनह म बदल गया और सनह भी वह नही जो परगभ होता ह और

अपनी सारी कसक शबदो म जबखर दता ह यह मक सनह था खब ठोस रस और सवाद स भरा हआ बचच म जकतना

वयाग जकतना सदभाव और जकतना जववक ह दसरो को जखलौन लत और जमठाई खात दखकर इसका मन जकतना

ललचाया होगा इतना जबत इसस हआ कस वहा भी इस अपनी बजढ़या दादी की याद बनी रही अमीना का मन

गदगद हो गया और अब एक बड़ी जवजचतर बात हई हाजमद क इस जचमर स भी जवजचतर बचच हाजमद न बढ़ हाजमद

का पारट खला था बजढ़या अमीना बाजलका अमीना बन गई वह रोन लगी दामन िलाकर हाजमद को दआए दती

जाती थी और आस की बड़ी-बड़ी बद जगराती जाती थी हाजमद इसका रहसय कया समझता

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दणनया का सबस अनमोल रतन

परमचद

जदलजफ़गार एक क रील पड़ क नीच दामन चाक जकय बठा हआ खन क आस बहा रहा था वह सौनददयट की दवी यानी

मलका जदलफ़रब का सचचा और जान दन वाला परमी था उन परजमयो म नही जो इतर-िलल म बसकर और शानदार

कपड़ो स सजकर आजशक क वश म माशजकयत का दम भरत ह बजक उन सीध-साद भोल-भाल जफ़दाइयो म जो

जगल और पहाड़ो स सर रकरात ह और फ़ररयाद मचात जिरत ह जदलफ़रब न उसस कहा था जक अगर त मरा सचचा

परमी ह तो जा और दजनया की सबस अनमोल चीज़ लकर मर दरबार म आ तब म तझ अपनी गलामी म कबल

कर गी अगर तझ वह चीज़ न जमल तो खबरदार इधर रख न करना वनाट सली पर जखचवा दगी जदलजफ़गार को

अपनी भावनाओ क परदशटन का जशकव-जशकायत का परजमका क सौनददयट-दशटन का तजनक भी अवसर न जदया गया

जदलफ़रब न जयो ही यह फ़सला सनाया उसक चोबदारो न गरीब जदलजफ़गार को धकक दकर बाहर जनकाल जदया

और आज तीन जदन स यह आफ़त का मारा आदमी उसी क रील पड़ क नीच उसी भयानक मदान म बठा हआ सोच

रहा ह जक कया कर दजनया की सबस अनमोल चीज़ मझको जमलगी नाममजकन और वह ह कया कार का

खजाना आब हयात खसरो का ताज जाम-जम तखतताऊस परवज़ की दौलत नही यह चीज़ हरजगज़ नही

दजनया म ज़रर इनस भी महगी इनस भी अनमोल चीज़ मौजद ह मगर वह कया ह कहा ह कस जमलगी या खदा

मरी मजशकल कयोकर आसान होगी

जदलजफ़गार इनदही खयालो म चककर खा रहा था और अकल कछ काम न करती थी मनीर शामी को हाजतम-सा

मददगार जमल गया ऐ काश कोई मरा भी मददगार हो जाता ऐ काश मझ भी उस चीज़ का जो दजनया की सबस

बशकीमत चीज़ ह नाम बतला जदया जाता बला स वह चीज़ हाथ न आती मगर मझ इतना तो मालम हो जाता जक

वह जकस जकसम की चीज़ ह म घड़ बराबर मोती की खोज म जा सकता ह म समनददर का गीत पतथर का जदल मौत

की आवाज़ और इनस भी जयादा बजनशान चीज़ो की तलाश म कमर कस सकता ह मगर दजनया की सबस अनमोल

चीज़ यह मरी कपना की उड़ान स बहत ऊपर ह

आसमान पर तार जनकल आय थ जदलजफ़गार यकायक खदा का नाम लकर उठा और एक तरि को चल खड़ा हआ

भखा-पयासा नग बदन थकन स चर वह बरसो वीरानो और आबाजदयो की खाक छानता जिरा तलव कारो स

छलनी हो गय शरीर म हडजडया ही हडजडया जदखायी दन लगी मगर वह चीज़ जो दजनया की सबस बश-कीमत चीज़

थी न जमली और न उसका कछ जनशान जमला

एक रोज़ वह भलता-भरकता एक मदान म जा जनकला जहा हजारो आदमी गोल बाध खड़ थ बीच म कई अमाम

और चोग वाल दजढयल काजी अफ़सरी शान स बठ हए आपस म कछ सलाह-मशजवरा कर रह थ और इस जमात स

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ज़रा दर पर एक सली खड़ी थी जदलजफ़गार कछ तो कमजोरी की वजह स कछ यहा की कजियत दखन क इराद स

जठठक गया कया दखता ह जक कई लोग नगी तलवार जलय एक कदी को जजसक हाथ-पर म ज़जीर थी पकड़ चल

आ रह ह सली क पास पहचकर सब जसपाही रक गय और कदी की हथकजडया बजडया सब उतार ली गयी इस

अभाग आदमी का दामन सकड़ो बगनाहो क खन क छीरो स रगीन था और उसका जदल नकी क खयाल और रहम

की आवाज़ स ज़रा भी पररजचत न था उस काला चोर कहत थ जसपाजहयो न उस सली क तखत पर खड़ा कर जदया

मौत की िासी उसकी गदटन म डाल दी और जलादो न तखता खीचन का इरादा जकया जक वह अभागा मजररम

चीखकर बोला-खदा क वासत मझ एक पल क जलए िासी स उतार दो ताजक अपन जदल की आजखरी आरज जनकाल

ल यह सनत ही चारो तरि सनदनारा छा गया लोग अचमभ म आकर ताकन लग काजजयो न एक मरन वाल आदमी

की अजतम याचना को रदद करना उजचत न समझा और बदनसीब पापी काला चोर ज़रा दर क जलए िासी स उतार

जलया गया

इसी भीड़ म एक खबसरत भोला-भोला लडका एक छड़ी पर सवार होकर अपन परो पर उछल-उछल फ़जी घोड़ा

दौड़ा रहा था और अपनी सादगी की दजनया म ऐसा मगन था जक जस वह इस वि सचमच जकसी अरबी घोड़ का

शहसवार ह उसका चहरा उस सचची खशी स कमल की तरह जखला हआ था जो चनदद जदनो क जलए बचपन ही म

हाजसल होती ह और जजसकी याद हमको मरत दम तक नही भलती उसका जदल अभी तक पाप की गदट और धल स

अछता था और मासजमयत उस अपनी गोद म जखला रही थी

बदनसीब काला चोर िासी स उतरा हज़ारो आख उस पर गड़ी हई थी वह उस लड़क क पास आया और उस गोद म

उठाकर पयार करन लगा उस इस वि वह ज़माना याद आया जब वह खद ऐसा ही भोला-भाला ऐसा ही खश-व-

खरटम और दजनया की गनददजगयो स ऐसा ही पाक साफ़ था मा गोजदयो म जखलाती थी बाप बलाए लता था और सारा

कनबा जान नदयोछावर करता था आह काल चोर क जदल पर इस वकत बीत हए जदनो की याद का इतना असर हआ

जक उसकी आखो स जजनदहोन दम तोड़ती हई लाशो को तड़पत दखा और न झपकी आस का एक कतरा रपक पड़ा

जदलजफ़गार न लपककर उस अनमोल मोती को हाथ म ल जलया और उसक जदल न कहा-बशक यह दजनया की सबस

अनमोल चीज़ ह जजस पर तखत ताऊस और जामजम और आब हयात और ज़र परवज़ सब नदयोछावर ह

इस खयाल स खश होता कामयाबी की उममीद म सरमसत जदलजफ़गार अपनी माशका जदलफ़रब क शहर मीनोसवाद

को चला मगर जयो-जयो मजजल तय होती जाती थी उसका जदल बठ जाता था जक कही उस चीज़ की जजस म दजनया

की सबस बशकीमत चीज़ समझता ह जदलफ़रब की आखो म कर न हई तो म िासी पर चढ़ा जदया जाऊ गा और इस

दजनया स नामराद जाऊ गा लजकन जो हो सो हो अब तो जकसमत-आज़माई ह आजखरकार पहाड़ और दररया तय

करत शहर मीनोसवाद म आ पहचा और जदलफ़रब की डयोढ़ी पर जाकर जवनती की जक थकान स ररा हआ

जदलजफ़गार खदा क फ़ज़ल स हकम की तामील करक आया ह और आपक कदम चमना चाहता ह जदलफ़रब न

फ़ौरन अपन सामन बला भजा और एक सनहर परद की ओर स फ़रमाइश की जक वह अनमोल चीज़ पश करो

जदलजफ़गार न आशा और भय की एक जवजचतर मनजसथजत म वह बद पश की और उसकी सारी कजफ़यत बहत

परअसर लफज़ो म बयान की जदलफ़रब न परी कहानी बहत गौर स सनी और वह भर हाथ म लकर ज़रा दर तक गौर

करन क बाद बोली-जदलजफ़गार बशक तन दजनया की एक बशकीमत चीज़ ढढ़ जनकाली तरी जहममत और तरी

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सझबझ की दाद दती ह मगर यह दजनया की सबस बशकीमत चीज़ नही इसजलए त यहा स जा और जिर कोजशश

कर शायद अब की तर हाथ वह मोती लग और तरी जकसमत म मरी गलामी जलखी हो जसा जक मन पहल ही बतला

जदया था म तझ िासी पर चढ़वा सकती ह मगर म तरी जाबखशी करती ह इसजलए जक तझम वह गण मौजद ह जो म

अपन परमी म दखना चाहती ह और मझ यकीन ह जक त जरर कभी-न-कभी कामयाब होगा

नाकाम और नामराद जदलजफ़गार इस माशकाना इनायत स ज़रा जदलर होकर बोला-ऐ जदल की रानी बड़ी मददत क बाद

तरी डयोढ़ी पर सजदा करना नसीब होता ह जिर खदा जान ऐस जदन कब आएग कया त अपन जान दन वाल

आजशक क बर हाल पर तरस न खाएगी और कया अपन रप की एक झलक जदखाकर इस जलत हए जदलजफ़गार को

आन वाली सजखतयो क झलन की ताकत न दगी तरी एक मसत जनगाह क नश स चर होकर म वह कर सकता ह जो

आज तक जकसी स न बन पड़ा हो

जदलफ़रब आजशक की यह चाव-भरी बात सनकर गससा हो गयी और हकम जदया जक इस दीवान को खड़-खड़ दरबार

स जनकाल दो चोबदार न फ़ौरन गरीब जदलजफ़गार को धकक दकर यार क कच स बाहर जनकाल जदया

कछ दर तक तो जदलजफ़गार अपनी जनषठर परजमका की इस कठोरता पर आस बहाता रहा और सोचन लगा जक कहा

जाऊ मददतो रासत नापन और जगलो म भरकन क बाद आस की यह बद जमली थी अब ऐसी कौन-सी चीज ह

जजसकी कीमत इस आबदार मोती स जयादा हो हज़रत जखजर तमन जसकनददर को आबहयात क कए का रासता

जदखाया था कया मरी बाह न पकड़ोग जसकनददर सारी दजनया का माजलक था म तो एक बघरबार मसाजफ़र ह तमन

जकतनी ही डबती जकजशतया जकनार लगायी ह मझ गरीब का बड़ा भी पार करो ऐ आलीमकाम जजबरील कछ तमही

इस नीमजान दखी आजशक पर तरस खाओ तम खदा क एक खास दरबारी हो कया मरी मजशकल आसान न करोग

गरज़ यह जक जदलजफ़गार न बहत फ़ररयाद मचायी मगर उसका हाथ पकडऩ क जलए कोई सामन न आया आजखर

जनराश होकर वह पागलो की तरह दबारा एक तरफ़ को चल खड़ा हआ

जदलजफ़गार न परब स पजचछम तक और उततर स दजकखन तक जकतन ही जगलो और वीरानो की खाक छानी कभी

बजफ़ट सतानी चोजरयो पर सोया कभी डरावनी घाजरयो म भरकता जिरा मगर जजस चीज़ की धन थी वह न जमली यहा

तक जक उसका शरीर हडजडयो का एक ढाचा रह गया

एक रोज वह शाम क वि जकसी नदी क जकनार खसताहाल पड़ा हआ था बखदी क नश स चौका तो कया दखता ह

जक चनददन की एक जचता बनी हई ह और उस पर एक यवती सहाग क जोड़ पहन सोलहो जसगार जकय बठी हई ह

उसकी जाघ पर उसक पयार पजत का सर ह हज़ारो आदमी गोल बाध खड़ ह और िलो की बरखा कर रह ह

यकायक जचता म स खद-ब-खद एक लपर उठी सती का चहरा उस वि एक पजवतर भाव स आलोजकत हो रहा था

जचता की पजवतर लपर उसक गल स जलपर गयी और दम-क-दम म वह िल-सा शरीर राख का ढर हो गया परजमका न

अपन को परमी पर नदयोछावर कर जदया और दो परजमयो क सचच पजवतर अमर परम की अजनदतम लीला आख स ओझल

हो गयी जब सब लोग अपन घरो को लौर तो जदलजफ़गार चपक स उठा और अपन चाक-दामन करत म यह राख का

ढर समर जलया और इस मटठी भर राख को दजनया की सबस अनमोल चीज़ समझता हआ सिलता क नश म चर यार

क कच की तरि चला अबकी जयो-जयो वह अपनी मजजल क करीब आता था उसकी जहममत बढ़ती जाती थी कोई

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उसक जदल म बठा हआ कह रहा था-अबकी तरी जीत ह और इस खयाल न उसक जदल को जो-जो सपन जदखाए

उनकी चचाट वयथट ह आजखकार वह शहर मीनोसवाद म दाजखल हआ और जदलफ़रब की ऊ ची डयोढ़ी पर जाकर

खबर दी जक जदलजफ़गार सखट-र होकर लौरा ह और हजर क सामन आना चाहता ह जदलफ़रब न जाबाज़ आजशक

को फ़ौरन दरबार म बलाया और उस चीज क जलए जो दजनया की सबस बशकीमत चीज़ थी हाथ िला जदया

जदलजफ़गार न जहममत करक उसकी चादी जसी कलाई को चम जलया और मिी भर राख को उसकी हथली म रखकर

सारी कजफ़यत जदल को जपघला दन वाल लफजो म कह सनायी और सनददर परजमका क होठो स अपनी जकसमत का

मबारक फ़सला सनन क जलए इनदतज़ार करन लगा जदलफ़रब न उस मिी भर राख को आखो स लगा जलया और कछ

दर तक जवचारो क सागर म डब रहन क बाद बोली-ऐ जान जनछावर करन वाल आजशक जदलजफ़गार बशक यह राख

जो त लाया ह जजसम लोह को सोना कर दन की जसफ़त ह दजनया की बहत बशकीमत चीज़ ह और म सचच जदल स

तरी एहसानमनदद ह जक तन ऐसी अनमोल भर मझ दी मगर दजनया म इसस भी जयादा अनमोल कोई चीज़ ह जा उस

तलाश कर और तब मर पास आ म तहजदल स दआ करती ह जक खदा तझ कामयाब कर यह कहकर वह सनहर

परद स बाहर आयी और माशकाना अदा स अपन रप का जलवा जदखाकर जिर नजरो स ओझल हो गयी एक

जबजली थी जक कौधी और जिर बादलो क परद म जछप गयी अभी जदलजफ़गार क होश-हवास जठकान पर न आन

पाय थ जक चोबदार न मलायजमयत स उसका हाथ पकडकर यार क कच स उसको जनकाल जदया और जिर तीसरी बार

वह परम का पजारी जनराशा क अथाह समनददर म गोता खान लगा

जदलजफ़गार का जहयाव छर गया उस यकीन हो गया जक म दजनया म इसी तरह नाशाद और नामराद मर जान क जलए

पदा जकया गया था और अब इसक जसवा और कोई चारा नही जक जकसी पहाड़ पर चढकर नीच कद पड़ ताजक

माशक क ज मो की फ़ररयाद करन क जलए एक हडडी भी बाकी न रह वह दीवान की तरह उठा और जगरता-पड़ता

एक गगनचमबी पहाड़ की चोरी पर जा पहचा जकसी और समय वह ऐस ऊ च पहाड़ पर चढऩ का साहस न कर

सकता था मगर इस वकत जान दन क जोश म उस वह पहाड़ एक मामली रकरी स जयादा ऊ चा न नजर आया करीब

था जक वह नीच कद पड़ जक हर-हर कपड़ पहन हए और हरा अमामा बाध एक बजगट एक हाथ म तसबीह और दसर

हाथ म लाठी जलय बरामद हए और जहममत बढ़ान वाल सवर म बोल-जदलजफ़गार नादान जदलजफ़गार यह कया

बज़जदलो जसी हरकत ह त महबबत का दावा करता ह और तझ इतनी भी खबर नही जक मजबत इरादा महबबत क

रासत की पहली मजज़ल ह मदट बन और यो जहममत न हार परब की तरफ़ एक दश ह जजसका नाम जहनददोसतान ह वहा

जा और तरी आरज परी होगी

यह कहकर हज़रत जखजर गायब हो गय जदलजफ़गार न शजकरय की नमाज अदा की और ताज़ा हौसल ताज़ा जोश और

अलौजकक सहायता का सहारा पाकर खश-खश पहाड़ स उतरा और जहनददोसतान की तरि चल पड़ा

मददतो तक कारो स भर हए जगलो आग बरसान वाल रजगसतानो कजठन घाजरयो और अलघय पवटतो को तय करन क

बाद जदलजफ़गार जहनदद की पाक सरज़मीन म दाजखल हआ और एक ठणड पानी क सोत म सफ़र की तकलीि धोकर

थकान क मार नदी क जकनार लर गया शाम होत-होत वह एक चजरयल मदान म पहचा जहा बशमार अधमरी और

बजान लाश जबना कफ़न क पड़ी हई थी चील-कौए और वहशी दररनदद मर पड़ हए थ और सारा मदान खन स लाल

हो रहा था यह डरावना दशय दखत ही जदलजफ़गार का जी दहल गया या खदा जकस मसीबत म जान ि सी मरन

वालो का कराहना जससकना और एजडया रगडकर जान दना दररनददो का हडजडयो को नोचना और गोशत क लोथड़ो

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को लकर भागना ऐसा हौलनाक सीन जदलजफ़गार न कभी न दखा था यकायक उस खयाल आया यह लड़ाई का

मदान ह और यह लाश सरमा जसपाजहयो की ह इतन म करीब स कराहन की आवाज़ आयी जदलजफ़गार उस तरफ़

जिरा तो दखा जक एक लमबा-तड़गा आदमी जजसका मदाटना चहरा जान जनकालन की कमज़ोरी स पीला हो गया ह

ज़मीन पर सर झकाय पड़ा हआ ह सीन स खन का िौववारा जारी ह मगर आबदार तलवार की मठ पज स अलग

नही हई जदलजफ़गार न एक चीथड़ा लकर घाव क मह पर रख जदया ताजक खन रक जाए और बोला-ऐ जवामदट त

कौन ह जवामदट न यह सनकर आख खोली और वीरो की तरह बोला-कया त नही जानता म कौन ह कया तन आज

इस तलवार की कार नही दखी म अपनी मा का बरा और भारत का सपत ह यह कहत-कहत उसकी तयोररयो पर

बल पड़ गय पीला चहरा गसस स लाल हो गया और आबदार शमशीर जिर अपना जौहर जदखान क जलए चमक

उठी जदलजफ़गार समझ गया जक यह इस वि मझ दशमन समझ रहा ह नरमी स बोला-ऐ जवामदट म तरा दशमन नही

ह अपन वतन स जनकला हआ एक गरीब मसाजफ़र ह इधर भलता-भरकता आ जनकला बराय महरबानी मझस यहा

की कल कजफ़यत बयान कर

यह सनत ही घायल जसपाही बहत मीठ सवर म बोला-अगर त मसाजफ़र ह तो आ मर खन स तर पहल म बठ जा

कयोजक यही दो अगल ज़मीन ह जो मर पास बाकी रह गयी ह और जो जसवाय मौत क कोई नही छीन सकता

अफ़सोस ह जक त यहा ऐस वकत म आया जब हम तरा आजतथय-सतकार करन क योगय नही हमार बाप-दादा का दश

आज हमार हाथ स जनकल गया और इस वि हम बवतन ह मगर (पहल बदलकर) हमन हमलावर दशमन को बता

जदया जक राजपत अपन दश क जलए कसी बहादरी स जान दता ह यह आस-पास जो लाश त दख रहा ह यह उन

लोगो की ह जो इस तलवार क घार उतर ह (मसकराकर) और गोया जक म बवतन ह मगर गनीमत ह जक दशमन की

ज़मीन पर मर रहा ह (सीन क घाव स चीथड़ा जनकालकर) कया तन यह मरहम रख जदया खन जनकलन द इस रोकन

स कया फ़ायदा कया म अपन ही दश म गलामी करन क जलए जज़नददा रह नही ऐसी जज़नददगी स मर जाना अचछा

इसस अचछी मौत ममजकन नही

जवामदट की आवाज़ मजदधम हो गयी अग ढील पड़ गय खन इतना जयादा बहा जक खद-ब-खद बनदद हो गया रह-

रहकर एकाध बद रपक पड़ता था आजखरकार सारा शरीर बदम हो गया जदल की हरकत बनदद हो गयी और आख मद

गयी जदलजफ़गार न समझा अब काम तमाम हो गया जक मरन वाल न धीम स कहा-भारतमाता की जय और उसक

सीन स खन का आजखरी कतरा जनकल पड़ा एक सचच दशपरमी और दशभि न दशभजि का हक अदा कर जदया

जदलजफ़गार पर इस दशय का बहत गहरा असर पड़ा और उसक जदल न कहा बशक दजनया म खन क इस कतर स

जयादा अनमोल चीज कोई नही हो सकती उसन फ़ौरन उस खन की बद को जजसक आग यमन का लाल भी हच ह

हाथ म ल जलया और इस जदलर राजपत की बहादरी पर हरत करता हआ अपन वतन की तरफ़ रवाना हआ और

सजखतया झलता आजखरकार बहत जदनो क बाद रप की रानी मलका जदलफ़रब की डयोढ़ी पर जा पहचा और पगाम

जदया जक जदलजफ़गार सखटर और कामयाब होकर लौरा ह और दरबार म हाजज़र होना चाहता ह जदलफ़रब न उस

फ़ौरन हाजज़र होन का हकम जदया खद हसब मामल सनहर परद की ओर म बठी और बोली-जदलजफ़गार अबकी त

बहत जदनो क बाद वापस आया ह ला दजनया की सबस बशकीमत चीज कहा ह

जदलजफ़गार न महदी-रची हथजलयो को चमत हए खन का वह कतरा उस पर रख जदया और उसकी परी कजफ़यत

परजोश लहज म कह सनायी वह खामोश भी न होन पाया था जक यकायक वह सनहरा परदा हर गया और

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जदलजफ़गार क सामन हसन का एक दरबार सजा हआ नज़र आया जजसकी एक-एक नाज़नीन जलखा स बढकर थी

जदलफ़रब बड़ी शान क साथ सनहरी मसनद पर सशोजभत हो रही थी जदलजफ़गार हसन का यह जतलसम दखकर

अचमभ म पड़ गया और जचतरजलजखत-सा खड़ा रहा जक जदलफ़रब मसनद स उठी और कई कदम आग बढकर उसस

जलपर गयी गानवाजलयो न खशी क गान शर जकय दरबाररयो न जदलजफ़गार को नज़र भर की और चाद-सरज को

बड़ी इजजत क साथ मसनद पर बठा जदया जब वह लभावना गीत बनदद हआ तो जदलफ़रब खड़ी हो गयी और हाथ

जोडकर जदलजफ़गार स बोली-ऐ जाजनसार आजशक जदलजफ़गार मरी दआए बर आयी और खदा न मरी सन ली और

तझ कामयाब व सखटर जकया आज स त मरा माजलक ह और म तरी लौडी

यह कहकर उसन एक रतनजजरत मजिा मगायी और उसम स एक तखती जनकाली जजस पर सनहर अकषरो म जलखा

हआ था-

lsquoखन का वह आजखरी कतरा जो वतन की जहफ़ाजत म जगर दजनया की सबस अनमोल चीज़ हrsquo

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अिना-अिना भागय

जनर कमार

बहत कछ जनरददशय घम चकन पर हम सड़क क जकनार की एक बच पर बठ गए ननीताल की सधया धीर-धीर उतर

रही थी रई क रश-स भाप-स बादल हमार जसरो को छ-छकर बरोक-रोक घम रह थ हक परकाश और अजधयारी स

रगकर कभी व नील दीखत कभी सिद और जिर दर म अरण पड़ जात व जस हमार साथ खलना चाह रह थ

पीछ हमार पोलो वाला मदान िला था सामन अगरजो का एक परमोदगह था जहा सहावना रसीला बाजा बज रहा था

और पाशवट म था वही सरमय अनपम ननीताल

ताल म जकजशतया अपन सिद पाल उड़ाती हई एक-दो अगरज याजतरयो को लकर इधर स उधर और उधर स इधर खल

रही थी कही कछ अगरज एक-एक दवी सामन परजतसथाजपत कर अपनी सई-सी शकल की डोजगयो को मानो शतट

बाधकर सरपर दौड़ा रह थ कही जकनार पर कछ साहब अपनी बसी डाल सधयट एकागर एकसथ एकजनषठ मछली-

जचनदतन कर रह थ पीछ पोलो-लान म बचच जकलकाररया मारत हए हॉकी खल रह थ

शोर मार-पीर गाली-गलौच भी जस खल का ही अश था इस तमाम खल को उतन कषणो का उददशय बना व बालक

अपना सारा मन सारी दह समगर बल और समची जवधा लगाकर मानो खतम कर दना चाहत थ उनदह आग की जचनदता

न थी बीत का खयाल न था व शदध ततकाल क पराणी थ व शबद की समपणट सचचाई क साथ जीजवत थ

सड़क पर स नर-नाररयो का अजवरल परवाह आ रहा था और जा रहा था उसका न ओर था न छोर यह परवाह कहा जा

रहा था और कहा स आ रहा था कौन बता सकता ह सब उमर क सब तरह क लोग उसम थ मानो मनषयता क

नमनो का बाजार सजकर सामन स इठलाता जनकला चला जा रहा हो

अजधकार-गवट म तन अगरज उसम थ और जचथड़ो स सज घोड़ो की बाग थाम व पहाड़ी उसम थ जजनदहोन अपनी

परजतषठा और सममान को कचलकर शनदय बना जलया ह और जो बड़ी ततपरता स दम जहलाना सीख गए ह

भागत खलत हसत शरारत करत लाल-लाल अगरज बचच थ और पीली-पीली आख िाड़ जपता की उगली

पकड़कर चलत हए अपन जहनददसतानी नौजनहाल भी थ अगरज जपता थ जो अपन बचचो क साथ भाग रह थ हस रह

थ और खल रह थ उधर भारतीय जपतदव भी थ जो बजगी को अपन चारो तरि लपर धन-सपनदनता क लकषणो का

परदटशन करत हए चल रह थ

अगरज रमजणया थी जो धीर-धीर नही चलती थी तज चलती थी उनदह न चलन म थकावर आती थी न हसन म मौत

आती थी कसरत क नाम पर घोड़ पर भी बठ सकती थी और घोड़ क साथ ही साथ जरा जी होत ही जकसी-जकसी

जहनददसतानी पर कोड़ भी िरकार सकती थी व दो-दो तीन-तीन चार-चार की रोजलयो म जनशक जनरापद इस परवाह

म मानो अपन सथान को जानती हई सड़क पर चली जा रही थी

उधर हमारी भारत की कललकषमी सड़क क जबकल जकनार दामन बचाती और सभालती हई साड़ी की कई तहो म

जसमर-जसमरकर लोक-लाज सतरीतव और भारतीय गररमा क आदशट को अपन पररविनो म जछपाकर सहमी-सहमी

धरती म आख गाड़ कदम-कदम बढ़ रही थी

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इसक साथ ही भारतीयता का एक और नमना था अपन कालपन को खरच-खरचकर बहा दन की इचछा करनवाला

अगरजीदा परिोततम भी थ जो नजरवो को दखकर मह िर लत थ और अगरज को दखकर आख जबछा दत थ और दम

जहलान लगत थ वस व अकड़कर चलत थ-मानो भारतभजम को इसी अकड़ क साथ कचल-कचलकर चलन का उनदह

अजधकार जमला ह

घणर क घणर सरक गए अधकार गाढ़ा हो गया बादल सिद होकर जम गए मनषयो का वह ताता एक-एक कर कषीण

हो गया अब इकका-दकका आदमी सड़क पर छतरी लगाकर जनकल रहा था हम वही क वही बठ थ सदी-सी मालम

हई हमार ओवरकोर भीग गए थ पीछ जिरकर दखा यह लाल बिट की चादर की तरह जबकल सतबध और सनदन

पड़ा था

सब सनदनारा था तलीलाल की जबजली की रोशजनया दीप-माजलका-सी जगमगा रही थी वह जगमगाहर दो मील

तक िल हए परकजत क जलदपटण पर परजतजबजमबत हो रही थी और दपटण का कापता हआ लहर लता हआ वह जल

परजतजबमबो को सौगना हजारगना करक उनक परकाश को मानो एकतर और पजीभत करक वयापत कर रहा था पहाड़ो

क जसर पर की रोशनाईया तारो-सी जान पड़ती थी

हमार दखत-दखत एक घन पद न आकर इन सबको ढक जदया रोशजनया मानो मर गई जगमगाहर लपत हो गई व

काल-काल भत-स पहाड़ भी इस सिद पद क पीछ जछप गए पास की वसत भी न दीखन लगी मानो यह घनीभत

परलय था सब कछ इस घनी गहरी सिदी म दब गया एक शभर महासागर न िलकर ससकजत क सार अजसततव को

डबो जदया ऊपर-नीच चारो तरि वह जनभदय सिद शनदयता ही िली हई थी

ऐसा घना कहरा हमन कभी न दखा था वह रप-रप रपक रहा था मागट अब जबकल जनजटन-चप था वह परवाह न

जान जकन घोसलो म जा जछपा था उस वहदाकार शभर शनदय म कही स गयारह बार रन-रन हो उठा जस कही दर कबर

म स आवाज आ रही हो हम अपन-अपन होरलो क जलए चल जदए रासत म दो जमतरो का होरल जमला दोनो वकील

जमतर छटटी लकर चल गए हम दोनो आग बढ़ हमारा होरल आग था

ताल क जकनार-जकनार हम चल जा रह थ हमार ओवरकोर तर हो गए थ बाररश नही मालम होती थी पर वहा तो

ऊपर-नीच हवा स कण-कण म बाररश थी सदी इतनी थी जक सोचा कोर पर एक कमबल और होता तो अचछा होता

रासत म ताल क जबलकल जकनार पर बच पड़ी थी म जी म बचन हो रहा था झरपर होरल पहचकर इन भीग कपड़ो

स छटटी पा गरम जबसतर म जछपकर सोना चाहता था पर साथ क जमतरो की सनक कब उठगी कब थमगी-इसका पता न

था और वह कसी कया होगी-इसका भी कछ अनददाज न था उनदहोन कहा-rdquoआओ जरा यहा बठ rdquo

हम उस चत कहर म रात क ठीक एक बज तालाब क जकनार उस भीगी बिट -सी ठडी हो रही लोह की बच पर बठ

गए

पाच दस पनदरह जमनर हो गए जमतर क उठन का इरादा न मालम हआ मन जखजसयाकर कहा-

rdquoचजलए भीrdquo

rdquoअर जरा बठो भीrdquo

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हाथ पकड़कर जरा बठन क जलए जब इस जोर स बठा जलया गया तो और चारा न रहा- लाचार बठ रहना पड़ा सनक

स छरकारा आसान न था और यह जरा बठना जरा न था बहत था

चपचाप बठ तग हो रहा था कढ़ रहा था जक जमतर अचानक बोल-

rdquoदखोhellip वह कया हrdquo

मन दखा-कहर की सिदी म कछ ही हाथ दर स एक काली-सी सरत हमारी तरि बढ़ी आ रही थी मन कहा- rdquoहोगा

कोईrdquo

तीन गज की दरी स दीख पड़ा एक लड़का जसर क बड़-बड़ बालो को खजलाता चला आ रहा ह नग पर ह नगा

जसर एक मली-सी कमीज लरकाए ह पर उसक न जान कहा पड़ रह ह और वह न जान कहा जा रहा ह- कहा जाना

चाहता ह उसक कदमो म जस कोई न अगला ह न जपछला ह न दाया ह न बाया ह

पास ही चगी की लालरन क छोर-स परकाशवतत म दखा-कोई दस बरस का होगा गोर रग का ह पर मल स काला पड़

गया ह आख अचछी बड़ी पर रखी ह माथा जस अभी स झररटया खा गया ह वह हम न दख पाया वह जस कछ भी

नही दख रहा था न नीच की धरती न ऊपर चारो तरि िला हआ कहरा न सामन का तालाब और न बाकी दजनया

वह बस अपन जवकर वतटमान को दख रहा था

जमतर न आवाज दी-rdquoएrdquo

उसन जस जागकर दखा और पास आ गया

rdquoत कहा जा रहा हrdquo

उसन अपनी सनी आख िाड़ दी

rdquoदजनया सो गई त ही कयो घम रहा हrdquo

बालक मौन-मक जिर भी बोलता हआ चहरा लकर खड़ा रहा

rdquoकहा सोएगाrdquo

rdquoयही कहीrdquo

rdquoकल कहा सोया थाrdquo

rdquoदकान परrdquo

rdquoआज वहा कयो नहीrdquo

rdquoनौकरी स हरा जदयाrdquo

rdquoकया नौकरी थीrdquo

rdquoसब काम एक रपया और जठा खानाrdquo

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rdquoजिर नौकरी करगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoबाहर चलगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoआज कया खाना खायाrdquo

rdquoकछ नहीrdquo

rdquoअब खाना जमलगाrdquo

rdquoनही जमलगाrdquo

lsquoयो ही सो जाएगाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoकहाrdquo

rdquoयही कहीrdquo

rdquoइनदही कपड़ो मrdquo

बालक जिर आखो स बोलकर मक खड़ा रहा आख मानो बोलती थी-यह भी कसा मखट परशन

rdquoमा-बाप हrdquo

rdquoहrdquo

rdquoकहाrdquo

rdquoपनदरह कोस दर गाव मrdquo

rdquoत भाग आयाrdquo

rdquoहाrdquo

rdquoकयोrdquo

rdquoमर कई छोर भाई-बजहन ह-सो भाग आया वहा काम नही रोरी नही बाप भखा रहता था और मारता था मा भखी

रहती थी और रोती थी सो भाग आया एक साथी और था उसी गाव का मझस बड़ा था दोनो साथ यहा आए वह

अब नही ह

rdquoकहा गयाrdquo

rdquoमर गयाrdquo

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rdquoमर गयाrdquo

rdquoमर गयाrdquo

rdquoहा साहब न मारा मर गयाrdquo

rdquoअचछा हमार साथ चलrdquo

वह साथ चल जदया लौरकर हम वकील दोसतो क होरल म पहच

rdquoवकील साहबrdquo

वकील लोग होरल क ऊपर क कमर स उतरकर आए कशमीरी दोशाला लपर थ मोज-चढ़ परो म चपपल थी सवर म

हकी-सी झझलाहर थी कछ लापरवाही थी

rdquoआ-हा जिर आप कजहएrdquo

rdquoआपको नौकर की जररत थी न दजखए यह लड़का हrdquo

rdquoकहा स ल आए इस आप जानत हrdquo

rdquoजानता ह -यह बईमान नही हो सकताrdquo

rdquoअजी य पहाड़ी बड़ शतान होत ह बचच-बचच म गल जछप रहत ह आप भी कया अजीब ह उठा लाए कही स-लो

जी यह नौकर लोrdquo

rdquoमाजनए तो यह लड़का अचछा जनकलगाrdquo

rdquoआप भीhellip जी बस खब ह ऐर-गर को नौकर बना जलया जाए अगल जदन वह न जान कया-कया लकर चमपत हो

जाएrdquo

rdquoआप मानत ही नही म कया करrsquo

rdquoमान कया खाक आप भीhellip जी अचछा मजाक करत हhellip अचछा अब हम सोन जात हrdquo और व चार रपय रोज

क जकराय वाल कमर म सजी मसहरी पर सोन झरपर चल गए

वकील साहब क चल जान पर होरल क बाहर आकर जमतर न अपनी जब म हाथ डालकर कछ ररोला पर झर कछ

जनराश भाव स हाथ बाहर कर मरी ओर दखन लग

rdquoकया हrdquo

rdquoइस खान क जलए कछ-दना चाहता थाrdquo अगरजी म जमतर न कहा-rdquoमगर दस-दस क नोर हrdquo

rdquoनोर ही शायद मर पास ह दखrdquo

सचमच मर पाजकर म भी नोर ही थ हम जिर अगरजी म बोलन लग लड़क क दात बीच-बीच म करकरा उठत थ

कड़ाक की सदी थी

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जमतर न पछा-rdquoतबrdquo

मन कहा-rdquoदस का नोर ही द दोrdquo सकपकाकर जमतर मरा मह दखन लग-rdquoअर यार बजर जबगड़ जाएगा हदय म

जजतनी दया ह पास म उतन पस तो नही हrdquo

rdquoतो जान दो यह दया ही इस जमान म बहत हrdquo मन कहा जमतर चप रह जस कछ सोचत रह जिर लड़क स बोल-

rdquoअब आज तो कछ नही हो सकता कल जमलना वह lsquoहोरल डी पबrsquo जानता ह वही कल दस बज जमलगाrdquo

rdquoहा कछ काम दग हजरrdquo

rdquoहा हा ढढ दगाrdquo

rdquoतो जाऊrdquo

rdquoहाrdquo ठडी सास खीचकर जमतर न कहा-rdquoकहा सोएगाrdquo

rdquoयही कही बच पर पड़ क नीच जकसी दकान की भटठी मrdquo

बालक जिर उसी परत-गजत स एक ओर बढ़ा और कहर म जमल गया हम भी होरल की ओर बढ़ हवा तीखी थी-

हमार कोरो को पार कर बदन म तीर-सी लगती थी

जसकड़त हए जमतर न कहा-rdquoभयानक शीत ह उसक पास कम-बहत कम

कपड़helliprdquo

rdquoयह ससार ह यारrdquo मन सवाथट की जिलासिी सनाई-rdquoचलो पहल जबसतर म गमट हो लो जिर जकसी और की जचनदता

करनाrdquo

उदास होकर जमतर न कहा-rdquoसवाथट-जो कहो लाचारी कहो जनषठरता कहो या बहयाईrdquo

दसर जदन ननीताल- सवगट क जकसी काल गलाम पश क दलार का वह बरा- वह बालक जनजशचत समय पर हमार

lsquoहोरल डी पबrsquo म नही आया हम अपनी ननीताल की सर खशी-खशी खतम कर चलन को हए उस लड़क की आस

लगात बठ रहन की जररत हमन न समझी

मोरर म सवार होत ही थ जक यह समाचार जमला जक जपछली रात एक पहाड़ी बालक सड़क क जकनार पड़ क नीच

जठठरकर मर गया

मरन क जलए उस वही जगह वही दस बरस की उमर और वही काल जचथड़ो की कमीज जमली आदजमयो की दजनया न

बस यही उपहार उसक पास छोड़ा था

पर बतान वालो न बताया जक गरीब क मह पर छाती मटठी और परो पर बरि की हकी-सी चादर जचपक गई थी

मानो दजनया की बहयाई ढकन क जलए परकजत न शव क जलए सिद और ठणड किन का परबनदध कर जदया था

सब सना और सोचा अपना-अपना भागय

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रािी

सभराकमारी चौहान

-तरा नाम कया ह

- राही

- तझ जकस अपराध म सज़ा हई

- चोरी की थी सरकार

- चोरी कया चराया था

- नाज की गठरी

- जकतना नाज था

- होगा पाच-छः सर

- और सज़ा जकतन जदन की ह

- साल भर की

- तो तन चोरी कयो की मज़दरी करती तब भी तो जदन भर म तीन-चार आन पस जमल जात

- हम मज़दरी नही जमलती सरकार हमारी जाजत मागरोरी ह हम कवल मागत-खात ह

- और भीख न जमल तो

- तो जिर चोरी करत ह उस जदन घर म खान को नही था बचच भख स तड़प रह थ बाजार म बहत दर तक मागा

बोझा ढोन क जलए रोकरा लकर भी बठी रही पर कछ न जमला सामन जकसीका बचचा रो रहा था उस दखकर मझ

अपन भख बचचो की याद आ गई वही पर जकसी की नाज की गठरी रखी हई थी उस लकर भागी ही थी जक

पजलसवाल न पकड़ जलया

अजनता न एक ठडी सास ली बोली - जिर तन कहा नही जक बचच भख थ इसजलए चोरी की सभव ह इस बात स

मजजसटर कम सज़ा दता

- हम गरीबो की कोई नही सनता सरकार बचच आय थ कचहरी म मन सब-कछ कहा पर जकसी न नही सना

राही न कहा

- अब तर बचच जकसक पास ह उनका बाप ह अजनता न पछा

राही की आखो म आस आ गए वह बोली उनका बाप मर गया सरकार

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जल म उस मारा था और वही असपताल म वह मर गया अब बचचो का कोई नही ह

ldquoतो तर बचचो का बाप भी जल म ही मरा वह कयो जल आया था rdquo अजनता न परशन जकया

- उस तो जबना कसर क ही पकड़ जलया था सरकार राही न कहा - ताड़ी पीन को गया था दो-चार दोसत भाई उसक

साथ थ मर घरवाल का एक वि पजलसवाल स झगड़ा हो गया था उसी का बदला उसन जलया 109 म उसका

चालान करक साल भर की सज़ा जदला दी वही वह मर गया

अनीता न एक दीधट जनःशवास क साथ कहा अचछा जा अपना काम कर राही चली गई

अनीता सतयागरह करक जल आई थी पजहल उस lsquoबीrsquoकलास जदया था जिर उसक घरवालो न जलखा-पढ़ी करक उस

lsquoएrsquoकलास जदलवा जदया

अनीता क सामन आज एक परशन था वह सोच रही थी जक दश की दरररता और इन जनरीह गरीबो क किो को दर

करन का कोई उपाय नही ह हम सभी परमातमा की सतान ह एक ही दश क जनवासी कम-स-कम हम सबको खान

पजहनन का समान अजधकार ह ही जिर यह कया बात ह जक कछ लोग तो बहत आराम स रहत ह और कछ लोग पर

क अनदन क जलए चोरी करत ह उसक बाद जवचारक की अदरदजशटता क कारण या सरकारी वकील क चातयटपणट

जजरह क कारण छोर - छोर बचचो की माताय जल भज दी जाती ह उनक बचच भखो मरन क जलए छोड़ जदय जात

ह एक ओर तो यह कदी ह जो जल आकर सचमच जल जीवन क कि उठाती ह और दसरी ओर ह हम लोग जो

अपनी दशभजि और तयाग का जढढोरा पीरत हए जल आत ह हम आमतौर स दसर कजदयो क मकाजबल म अचछा

बरताव जमलता ह जिरभी हम सतोि नही होता हम जल आकर lsquoएrsquoऔर lsquoबीrsquoकलास क जलए झगड़त ह जल आकर

ही हम कौन-सा बड़ा तयाग कर दत ह जल म हम कौन-सा कि रहता ह जसवा इसक जक हमार माथ पर नततव की

सील लग जाती ह हम बड़ अजभमान स कहत ह lsquoयह हमारी चौथी जल यातरा ह lsquoयह हमारी पाचवी जल यातरा

हrsquoऔर अपनी जल यातरा क जकसस बार-बार सना-सनाकर आतमगौरव अनभव करत ह तातपयट यह जक हम जजतन

बार जल जा चक होत ह उतनी ही सीढ़ी हम दशभजि और तयाग स दसरो स ऊपर उठ जात ह और इसक बल पर

जल स छरन क बाद कागरस को राजकीय सतता जमलत ही हम जमजनसरर सथाजनक ससथाओ क ममबर और कया कया

हो जात ह

अनीता सोच रही थी - कल तक जो खददर भी न पजहनत थ बात-बात पर कागरस का मजाक उड़ात थ कागरस क हाथो

म थोड़ी शजि आत ही व कागरस भि बन गए खददर पजहनन लग यहा तक जक जल म भी जदखाई पड़न लग

वासतव म यह दशभजि ह या सतताभजि

अनीता क जवचारो का ताता लगा हआ था वह दाशटजनक हो रही थी उस अनभव हआ जस कोई भीतर-ही-भीतर

उस कार रहा हो अनीता की जवचारावजल अनीता को ही खाय जा रही थी उसी बार-बार यह लग रहा था जक

उसकी दशभजि सचची दशभजि नही वरन मज़ाक ह उस आतमगलाजन हई और साथ-ही-साथ आतमानभजत भी

अनीता की आतमा बोल उठी - वासतव म सचची दशभजि तो इन गरीबो क कि- जनवारण म ह य कोई दसर नही

हमारी ही भारतमाता की सतान ह इन हज़ारो लाखो भख-नग भाई-बजहनो की यजद हम कछ भी सवा कर सक थोड़ा

भी कि-जनवारण कर सक तो सचमच हमन अपन दश की कछ सवा की हमारा वासतजवक दश तो दहातो म ही ह

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जकसानो की ददटशा स हम सभी थोड़-बहत पररजचत ह पर इन गरीबो क पास न घर ह न दवार अजशकषा और अजञान

का इतना गहरा पदाट इनकी आखो पर ह जक होश सभालत ही माता पतरी को और सास बह को चोरी की जशकषा दती ह

और उनका यह जवशवास ह जक चोरी करना और भीख मागना ही उनका काम ह इसस अचछा जीवन जबतान की वह

कपना ही नही कर सकत आज यहा डरा डाल क रह तो कल दसरी जगह चोरी की बच तो बच नही तो जिर

साल दो साल क जलए जल कया मानव जीवन का यही लकषय ह लकषय ह भी अथवा नही यजद नही ह तो

जवचारादशट की उचच सतह पर जरक हए हमार जन-नायको और यग-परिो की हम कया आवशयकता इजतहास धमट-

दशटन जञान-जवजञान का कोई अथट नही होता पर जीवन का लकषय ह अवशय ह ससार की मगमरीजचका म हम लकषय

को भल जात ह सतह क ऊपर तक पहच पानवाली कछक महान आतमाओ को छोड़कर सारा जान-समदाय ससार म

अपन को खोया हआ पाता ह कततटवयाकततटवय का उस धयान नही सतयासतय की समझ नही अनदयथा मानवीयता स

बढ़कर कौन-सा मानव धमट ह पजतत मानवता को जीवन-दान दन की अपकषा भी कोई महततर पणय ह राही जसी

भोली-भाली जकनदत गमराह आतमाओ क कयाण की साधना जीवन की साधना होनी चाजहए सतयागरही की यह

परथम परजतजञा कयो न हो दशभजि का यही मापदड कयो न बन अनीता जदन भर इनदही जवचारो म डबी रही शाम को

भी वह इसी परकार कछ सोचत-सोचत सो गई

रात म उसन सपना दखा जक जल स छरकार वह इनदही मागरोरी लोगो क गाव म पहच गई ह वहा उसन एक छोरा-सा

आशरम खोल जदया ह उसी आशरम म एक तरि छोर-छोर बचच पढ़त ह और जसतरया सत कारती ह दसरी तरफ़ मदट

कपड़ा बनत ह और रई धनकत ह शाम को रोज़ उनदह धाजमटक पसतक पढ़कर सनाई जाती ह और दश म कहा कया

हो रहा ह यह सरल भािा म समझाया जाता ह वही भीख मागन और चोरी करनवाल आदशट गरामवासी हो चल ह

रहन क जलए उनदहोन छोर-छोर घर बना जलए ह राही क अनाथ बचचो को अनीता अपन साथ रखन लगी ह अनीता

यही सख-सवपन दख रही थी रात म वह दर स सोई थी सबह सात बज तक उसकी नीद न खल पाई अचानक सतरी

जलर न आकर उस जगा जदया और बोली - आप घर जान क जलए तयार हो जाइए आपक जपता बीमार ह आप

जबना शतट छोड़ी जा रही ह

अनीता अपन सवपन को सचचाई म पररवजतटत करन की एक मधर कपना ल घर चली गई

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