ोा nेd स िंह · pdf fileदेा-देी >d स पाfल ास्...

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टोबा टेक आदत हन टो टवारे के दो-तीन ाल बाद पासकतान और सह तान की हुक मत को याल आया सक ामाय क सदय की तरह पागल का भी तबादला होना चासहए, यानी जो लमान पागल सह तान के पागलान , उह पासकतान पहुचा सदया जाए और जो सह और सख पासकतान के पागलानो , उह सह तान के हवाले कर सदया जाए। माल नह, यह बात माक थी या माक , बहरहाल दासनशम के फ ले के तासबक इधर-उधर ऊ ची तह की काफ हुई और सबल आसर पागल के तबादले के सलए एक सदन करर हो गया। अछी तरह छानबीन की गई - वे लमान पागल सजनके धी सह तान ही थे , वह रहने सदए गए, बाकी जो बचे , उनको रहद पर रवाना कर सदया गया। पासकतान सक करीब-करीब तमाम सह -सख जा के थे , इसलए सकी को रखने -रखाने का वाल ही पदा नह हुआ, सजतने सह -सख पागल थे , बके -सल की सहफात बॉर पर पहुचा सदए गए। उधर का माल नह लेसकन इधर लाहौर के पागलाने जब तबादले की बर पहुची तो बडी सदलचप गपशप होने लगी। एक लमान पागल जो बारह बर , हर रो, बाकायदगी के ाथ 'मदार' पता था, उे जब उके एक दोत ने छा, "मौलवी ाब, यह पासकतान या होता ?" तो उने बडे गौरो-सफ के बाद जवाब सदया, "सह तान एक ऐी जगह जहा उतरे बनते !" यह जवाब नकर उका दोत हो गया। इी तरह एक सख पागल ने एक रे सख पागल छा, "रदार जी, हम सह तान भेजा जा रहा , हम तो वहा की बोली नह आती।" रा कराया, "झे तो सह तोड की बोली आती , सह तानी बडे शतानी आकड आकड सिरते ह।" एक सदन, नहाते -नहाते , एक लमान पागल ने 'पासकतान दाबाद' का नारा ोर सकया सक फशर पर सिलकर सगरा और बेहोश हो गया।

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Page 1: ोा NेD स िंह · PDF fileदेा-देी >d स पाfल ास् ताा स िंह न ा - े पहले स eून-ख़ा[ा हो ा , दोनों

टोबा टक स िह आदत ह न मिटो

बिटवार क दो-तीन ाल बाद पासकसतान और सहिदसतान की हकमतो को खयाल आया सक ामानय क सदयो

की तरह पागलो का भी तबादला होना चासहए, यानी जो म लमान पागल सहिदसतान क पागलखानो म ह,

उनह पासकसतान पहचा सदया जाए और जो सहिद और स ख पासकसतान क पागलखानो म ह, उनह सहिदसतान

क हवाल कर सदया जाए।

मालम नही, यह बात माकल थी या गर माकल, बहरहाल दासनशमिदो क फ ल क मतासबक इधर-उधर

ऊ ची तह की कानफ हई और सबल आसखर पागलो क तबादल क सलए एक सदन मकररर हो गया।

अचछी तरह छानबीन की गई - व म लमान पागल सजनक िबिधी सहिदसतान ही म थ, वही रहन सदए गए,

बाकी जो बच, उनको रहद पर रवाना कर सदया गया। पासकसतान चसक करीब-करीब तमाम सहिद-स ख

जा चक थ, इ सलए सक ी को रखन-रखान का वाल ही पदा नही हआ, सजतन सहिद-स ख पागल थ,

बक- ब पसल की सहफाजत म बॉररर पर पहचा सदए गए।

उधर का मालम नही लसकन इधर लाहौर क पागलखान म जब इ तबादल की खबर पहची तो बडी

सदलचसप गपशप होन लगी।

एक म लमान पागल जो बारह बर , हर रोज, बाकायदगी क ाथ 'जमीदार' पढता था, उ जब

उ क एक दोसत न पछा, "मौलवी ाब, यह पासकसतान कया होता ह?" तो उ न बड गौरो-सफकर क बाद

जवाब सदया, "सहिदसतान म एक ऐ ी जगह ह जहा उसतर बनत ह!" यह जवाब नकर उ का दोसत ितषट

हो गया।

इ ी तरह एक स ख पागल न एक द र स ख पागल पछा, " रदार जी, हम सहिदसतान कयो भजा जा रहा

ह, हम तो वहा की बोली नही आती।" द रा मसकराया, "मझ तो सहिदसतोडो की बोली आती ह, सहिदसतानी

बड शतानी आकड आकड सिरत ह।"

एक सदन, नहात-नहात, एक म लमान पागल न 'पासकसतान सजिदाबाद' का नारा इ जोर बलिद सकया

सक फशर पर सि लकर सगरा और बहोश हो गया।

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बाज पागल ऐ भी थ जो पागल नही थ, उनम बहतायत ऐ कासतलो की थी सजनक ररशतदारो न अफ रो

को कछ द सदलाकर पागलखान सभजवा सदया था सक वह िा ी क िि द बच जाए, यह पागल कछ-कछ

मझत थ सक सहिदसतान कयो तक ीम हआ ह और यह पासकसतान कया ह, लसकन ही वासकआत वह

भी बखबर थ, अखबारो उनह कछ पता नही चलता था और पहरदार स पाही अनपढ और जासहल थ,

सजनकी गफतग भी वह कोई नतीजा बरामद नही कर कत थ। उनको स फर इतना मालम था सक एक

आदमी महममद अली सजननाह ह सज को कायद-आजम कहत ह, उ न म लमानी क सलए एक अलहदा

मलक बनाया ह सज का नाम पासकसतान ह, यह कहा ह, इ की भौगोसलक ससथसत कया ह, इ क मतासललक

वह कछ नही जानत थ - यही वजह ह सक वह ब पागल सजनका सदमाग परी तरह सबगडा हआ नही हआ

था, इ मखम म सगरफतार थ सक वह पासकसतान म ह या सहिदसतान म, अगर सहिदसतान म ह तो पासकसतान

कहा ह, अगर वह पासकसतान म ह तो यह क हो कता ह सक वह कछ अ पहल यही रहत हए सहिदसतान

म थ।

एक पागल तो सहिदसतान और पासकसतान, पासकसतान, पासकसतान और सहिदसतान क चककर म कछ ऐ ा

सगरफतार हआ सक और जयादा पागल हो गया। झार दत-दत वह एक सदन दरखत पर चढ गया और टहन

पर बठकर दो घिट म ल ल तकरीर करता रहा, जो पासकसतान और सहिदसतान क नाजक म ल पर थी,

स पासहयो न जब उ नीच उतरन को कहा तो वह और ऊपर चढ गया। जब उ रराया-धमकाया गया तो

उ न कहा, "म सहिदसतान म रहना चाहता ह न पासकसतान म, म इ दरखत पर रह गा।" बडी दर क बाद

जब उ का दौरा दर पडा तो वह नीच उतरा और अपन सहिद-स ख दोसतो गल समल-समलकर रोन लगा

- इ खयाल उ का सदल भर आया था सक वह उ छोडकर सहिदसतान चल जाएग।

एक एम.ए - ी. पा रसरयो इिजीसनयर म जो म लमान था और द र पागलो सबलकल अलग-थलग

बाग की एक खा पगरिरी पर ारा सदन खामोश टहलता रहता था, यह तबदीली जासहर हई सक उ न अपन

तमाम कपड उतारकर दिादार क हवाल कर सदए और निग-धडिग ार बाग म चलना-सिरना शर कर सदया।

सचयौट क एक मोट म लमान न, जो मससलम लीग का रगमर कारकन रह चका था और सदन म पिदरह-

ोलह मतरबा नहाया करता था, एकदम यह आदत तकर कर दी - उ का नाम महममद अली था, चनािच

उ न एक सदन अपन जिगल म एलान कर सदया सक वह कायद-आजम महममद अली सजननाह ह, उ की

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दखा-दखी एक स ख पागल मासटर तारा स िह बन गया - इ पहल सक खन-खराबा हो जाए, दोनो को

खतरनाक पागल करार दकर अलहदा-अलहदा बिद कर सदया गया।

लाहौर का एक नौजवान सहिद वकील महबबत म नाकाम होकर पागल हो गया था, जब उ न ना सक

अमत र सहिदसतान म चला गया ह तो उ बहत दख हआ। अमत र की एक सहिद लडकी उ महबबत

थी सज न उ ठकरा सदया था मगर दीवानगी की हालत म भी वह उ लडकी को नही भला था - वह उन

तमाम सहिद और म लमान लीररो को गासलया दन लगा सजनहोन समल-समलाकर सहिदसतान क दो टकर कर

सदए ह, और उ की महबबा सहिदसतानी बन गई ह और वह पासकसतानी। जब तबादल की बात शर हई तो

उ वकील को कई पागलो न मझाया सक वह सदल बरा न कर, उ सहिदसतान भज सदया जाएगा, उ ी

सहिदसतान म जहा उ की महबबा रहती ह - मगर वह लाहौर छोडना नही चाहता था, उ का खयाल था सक

अमत र म उ की परसकट नही चलगी।

यरोसपयन वारर म दो एिगलो इिसरयन पागल थ। उनको जब मालम हआ सक सहिदसतान को आजाद करक अिगरज

चल गए ह तो उनको बहत दमा हआ, वह छप-छपकर घिटो आप म इ अहम म ल पर गफतग करत

रहत सक पागलखान म अब उनकी हस यत सक सकसम की होगी, योरोसपयन वारर रहगा या उडा सदया

जाएगा, बरक-िासट समला करगा या नही, कया उनह रबल रोटी क बजाय बलरी इिसरयन चपाटी तो जबरदसती

नही खानी पडगी?

एक स ख था, सज पागलखान म दासखल हए पिदरह बर हो चक थ। हर वकत उ की जबान यह अजीबो-

गरीब अलफाज नन म आत थ, "औपड सद गड सद अनक सद बधयानाि सद मग सद दाल ऑि दी लालटन!"

वह सदन को ोता था न रात को। पहरदारो का यह कहना था सक पिदरह बर क तबील अ म वह एक

लहज क सलए भी नही ोया था, वह लटता भी नही था, अलबतता कभी-कभी सक ी दीवार क ाथ टक

लगा लता था - हर वकत खडा रहन उ क पाव ज गए थ और सपिरसलया भी िल गई थी, मगर सजसमानी

तकलीफ क बावजद वह लटकर आराम नही करता था।

सहिदसतान, पासकसतान और पागलो क तबादल क मतासललक जब कभी पागलखानो म गफतग होती थी तो

वह गौर नता था, कोई उ पछता सक उ का कया खयाल ह तो वह बडी िजीदगी जवाब दता,

"औपड सद गड गड सद अनक सद बधयानाि सद मग सद दाल आि दी पासकसतान गवनरमट!" लसकन बाद म

'आि सद पासकसतान गवनरमट' की जगह 'आि सद टोबा टक स िह गवनरमट' न ल ली, और उ न द र

पागलो पछना शर कर सदया सक टोबा टक स िह कहा ह, जहा का वह रहनवाला ह। सक ी को भी मालम

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नही था सक टोबा टक स िह पासकसतान म ह या सहिदसतान म, जो बतान की कोसशश करत थ वह खद इ

उलझाव म सगरफतार हो जात थ सक स यालकोट पहल सहिदसतान म होता था, पर अब ना ह सक पासकसतान

म ह, कया पता ह सक लाहौर जो आज पसकसतान म ह, कल सहिदसतान म चला जाए या ारा सहिदसतान ही

पासकसतान बन जाए और यह भी कौन ीन पर हाथ रखकर कह कता ह सक सहिदसतान और पासकसतान,

दोनो सक ी सदन स र गायब ही हो जाए!

इ स ख पागल क कश सछदर होकर बहत मखत र रह गए थ, चसक बहत कम नहाता था, इ सलए दाढी

और स र क बाल आप म जम गए थ सज क बाय उ की शकल बडी भयानक हो गई थी, मगर आदमी

सहि क नही था - पिदरह बर ो म उ न कभी सक ी झगडा-फ ाद नही सकया था। पागलखान क जो परान

मलासजम थ, वह उ क मतासललक इतना जानत थ सक टोबा टक स िह म उ की कई जमीन थी, अचछा

खाता-पीता जमीदार था सक अचानक सदमाग उलट गया, उ क ररशतदार उ लोह की मोटी-मोटी जिजीरो

म बाधकर लाए और पागलखान म दासखल करा गए।

महीन म एक बार मलाकात क सलए यह लोग आत थ और उ की खर-खररयत दरयाफत करक चल जात

थ, एक मशत तक यह स लस ला जारी रहा, पर जब पासकसतान, सहिदसतान की गडबड शर हई तो उनका

आना-जाना बिद हो गया।

उ का नाम सबशन स िह था मगर ब उ टोबा टक स िह कहत थ। उ को यह सबलकल मालम नही था सक

सदन कौन- ा ह या सकतन ाल बीत चक ह, लसकन हर महीन जब उ क सनकट िबिधी उ समलन क

सलए आन क करीब होत तो उ अपन आप पता चल जाता, चनािच वह दिादार कहता सक उ की

मलाकात आ रही ह, उ सदन वह अचछी तरह नहाता, बदन पर खब ाबन सघ ता और बालो म तल

रालकर कि घा करता, अपन वह कपड जो वह कभी इसतमाल नही करता था, सनकलवाकर पहनता और यो

ज-बनकर समलनवालो क पा जाता। वह उ कछ पछत तो वह खामोश रहता या कभी-कभार 'औपड

सद गड गड अनक सद बधयानाि सद मग सद दाल आि दी लालटन' कह दता।

उ की एक लडकी थी जो हर महीन एक उगली बढती-बढती पिदरह बर ो म जवान हो गई थी। सबशन स िह

उ को पहचानता ही नही था - वह बचची थी जब भी अपन आप को दखकर रोती थी, जवान हई तब भी

उ की आखो आ बहत थ।

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पासकसतान और सहिदसतान का सकस ा शर हआ तो उ न द र पागलो पछना शर सकया सक टोबा टक

स िह कहा ह, जब उ इतमीनानबखत जवाब न समला तो उ की करद सदन-ब-सदन बढती गई। अब मलाकात

भी नही होती थी, पहल तो उ अपन आप पता चल जाता था सक समलनवाल आ रह ह, पर अब ज

उ क सदल की आवाज भी बिद हो गई थी जो उ उनकी आमद की खबर द सदया करती थी - उ की बडी

खवासहश थी सक वह लोग आएि जो उ हमददी का इजहार करत थ और उ क सलए िल, समठाइया और

कपड लात थ। वह आए तो वह उन पछ सक टोबा टक स िह कहा ह, वह उ यकीनन बता दग सक टोबा

टक स िह पासकसतान म ह या सहिदसतान म - उ का खयाल था सक वह टोबा टक स िह ही आत ह जहा

उ की जमीन ह।

पागलखान म एक पागल ऐ ा भी था जो खद को खदा कहता था। उ जब एक रोज सबशन स िह न पछा

सक टोबा टक स िह पासकसतान म ह या सहिदसतान म तो उ न हसब-आदत कहकहा लगाया और कहा, "वह

पासकसतान म ह न सहिदसतान म, इ सलए सक हमन अभी तक हकम ही नही सदया!"

सबशन स िह न उ खदा कई मतरबा बडी समननत- माजत कहा सक वह हकम द द तासक झिझट खतम

हो, मगर खदा बहत म रफ था, इ सलए सक उ और ब-शमार हकम दन थ।

एक सदन तिग आकर सबशन स िह खदा पर बर पडा, "औपड सद गड गड सद अनक सद बधयानाि सद मग

सद दाल आि वाह गर जी दा खाल एिर वाह गर जी सद फतह!" इ का शायद मतलब था सक तम

म लमानो क खदा हो, स खो क खदा होत तो जरर मरी नत।

तबादल कछ सदन पहल टोबा टक स िह का एक म लमान जो सबशन स िह का दोसत था, मलाकात क

सलए आया, म लमान दोसत पहल कभी नही आया था। जब सबशन स िह न उ दखा तो एक तरफ हट

गया, सिर वाप जान लगा मगर स पासहयो न उ रोका, "यह तम समलन आया ह, तमहारा दोसत

िजलदीन ह!"

सबशन स िह न िजलदीन को एक नजर दखा और कछ बडबडान लगा।

िजलदीन न आग बढकर उ क कि ध पर हाथ रखा, "म बहत सदनो ोच रहा था सक तम समल लसकन

फर त ही न समली, तमहार ब आदमी खररयत सहिदसतान चल गए थ, मझ सजतनी मदद हो की, मन

की तमहारी बटी रपकौर..." वह कहत-कहत रक गया।

सबशन स िह कछ याद करन लगा, "बटी रपकौर..."

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िजलदीन न रक-रककर कहा, "हा, वह, वह भी ठीक-ठाक ह, उनक ाथ ही चली गई थी!"

सबशन स िह खामोश रहा।

िजलदीन न सिर कहना शर सकया, "उनहोन मझ कहा था सक तमहारी खर-खररयत पछता रह , अब मन

ना ह सक तम सहिदसतान जा रह हो, भाई बलबीर स िह और भाई वधावा स िह मरा लाम कहना और

बहन अमतकौर भी, भाई बलबीर कहना सक िजलदीन राजीखशी ह, दो भरी भ जो वह छोड गए

थ, उनम एक न कटटा सदया ह, द री क कटटी हई थी, पर वह छ: सदन की होक मर गई और मर लायक

जो सखदमत हो, कहना, म हर वकत तयार ह , और यह तमहार सलए थोड- मरोर लाया ह !"

सबशन स िह न मरोरो की पोटली लकर पा खड स पाही क हवाल कर दी और िजलदीन पछा, "टोबा

टक स िह कहा ह?"

िजलदीन न कदर हरत कहा, "कहा ह? वही ह, जहा था!"

सबशन स िह न सिर पछा, "पासकसतान म ह या सहिदसतान म?"

"सहिदसतान म, नही, नही पासकसतान म!" िजलदीन बौखला- ा गया।

सबशन स िह बडबडाता हआ चला गया, "औपड सद गड गड सद अनक सद बधयानाि सद मग सद दाल आि

दी पासकसतान एिर सहिदसतान आि दी दर सिट मह!"

तबादल की तयाररया मकममल हो चकी थी, इधर उधर और उधर इधर आनवाल पागलो की फहररसत

पहच चकी थी और तबादल का सदन भी मकररर हो चका था।

खत सदरया थी जब लाहौर क पागलखान सहिद-स ख पागलो भरी हई लाररया पसल क रकषक दसत

क ाथ रवाना हई, िबिसधत अफ र भी हमराह थ - वागह(एक गाव) क बॉररर पर तरिीन (दोनो तरफ)

क पररटरट एक-द र समल और परारिसभक काररवाई खतम होन क बाद तबादला शर हो गया, जो रात-

भर जारी रहा।

पागलो को लाररयो सनकालना और उनको द र अफ रो क हवाल करना बडा कसठन काम था, बाज तो

बाहर सनकलत ही नही थ, जो सनकलन पर रजामिद होत थ, उनको भालना मसशकल हो जाता था, कयोसक

वह इधर-उधर भाग उठत थ, जो निग थ, उनको कपड पहनाए जात तो वह उनह िाडकर अपन तन जदा

कर दत - कोई गासलया बक रहा ह, कोई गा रहा ह कछ आप म झगड रह ह कछ रो रह ह, सबलख रह

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ह - कान पडी आवाज नाई नही दती थी - पागल औरतो का शोर-शराबा अलग था, और दी इतनी

कडाक की थी सक दात दात बज रह थ।

पागलो की अक रीयत इ तबादल क हक म नही थी, इ सलए सक उनकी मझ म नही आ रहा था सक

उनह अपनी जगह उखाडकर कहा ि का जा रहा ह, वह चिद जो कछ ोच- मझ कत थ, 'पासकसतान

: सजिदाबाद' और 'पासकसतान : मदारबाद' क नार लगा रह थ, दो-तीन मतरबा फ ाद होत-होत बचा, कयोसक

बाज म लमानो और स खो को यह नार नकर तश आ गया था।

जब सबशन स िह की बारी आई और वागह क उ पार का मतासललक अफ र उ का नाम रसजसटर म दजर

करन लगा तो उ न पछा : "टोबा टक स िह कहा ह, पासकसतान म या सहिदसतान म?"

यह नकर सबशन स िह उछलकर एक तरफ हटा और दौडकर अपन बच हए ासथयो क पा पहच गया।

पासकसतानी स पासहयो न उ पकड सलया और द री तरफ ल जान लग, मगर उ न चलन इनकार कर

सदया, "टोबा टक स िह यहा ह!" और जोर-जोर सचललान लगा, "औपड सद गड गड सद अनक सद

बधयानाि सद मग सद दाल आि दी टोबा टक स िह एिर पासकसतान!"

उ बहत मझाया गया सक दखो, अब टोबा टक स िह सहिदसतान म चला गया ह, अगर नही गया ह तो उ

िौरन वहा भज सदया जाएगा, मगर वह न माना! जब उ को जबदरसती द री तरफ ल जान की कोसशश की

गई तो वह दरसमयान म एक जगह इ अिदाज म अपनी जी हई टािगो पर खडा हो गया ज अब उ कोई

ताकत नही सहला कगी, आदमी चसक ीधा था, इ सलए उ जयादा जबदरसती न की गई, उ को वही

खडा रहन सदया गया, और तबादल का बाकी काम होता रहा।

रज सनकलन पहल शाित पड सबशन स िह क हलक क एक गगन भदी चीख सनकली।

इधर-उधर कई दौड आए और उनहोन दखा सक वह आदमी जो पिदरह बर तक सदन-रात अपनी टागो पर

खडा रहा था, औिध मह लटा ह - उधर खरदार तारो क पीछ सहिदसतान था, इधर व ही तारो क पीछ

पासकसतान, दरसमयान म जमीन क उ टकड पर सज का कोई नाम नही था, टोबा टक स िह पडा था।

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