1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 1. 2. 3. 4. 5. 6. · भैरव को ही शिव का खास...

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    श्रीकुल (शिरगुल) देव

    खण्ड – 1

    1. िैव और िैव परम्परा 2. कश्मीरी िैव सम्रदाय 3. नाथ परम्परा 4. गुरु गोरखनाथ 5. ऄशभनवगुप्त 6. जालंधर 7. कौल और कौलाचार

    खण्ड – 2

    1. श्री भुकडू 2. श्री भुकडू पुत्रेशि हतुे श्रीनगर (कश्मीर) के कौल सम्रदाय के

    दिेु पंशडत के पास जाना 3. श्री भूकड़ू का दसूरा शववाह करना 4. श्रीकुल और ईनके भाइ बहनों का जन्म 5. श्री भूकड़ू की दोनों पशियों का शनधन 6. ब्राह्मणी द्वारा श्रीकुल और ईनके भाइ बहनों को रताशड़त

    करना.

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    7. श्रीकुल की रथम चमत्कारी घटना खण्ड – 3

    1. तुकी िासन द्वारा श्री शिरकुल दवे को ददल्ली बुलाया जाना 2. श्रीकुल का कारावास से मुक्त होना 3. गोगा पीर का सहयोग 4. भघायन का साथ सहयोग और साथ अना 5. श्रीकुल की चमत्कारी घटनाए ँ

    खण्ड – 4

    1. बीजट द्वारा श्रीकुल मंददर की स्थापना 2. बीजट सरांह में स्थाशपत होना 3. सरांह की परम्परा राज घराने का रमाण

    खण्ड - 5 1. पूजा पद्धशत 2. चूड़शे्वर सेवा सशमशत द्वारा शनर्ममत एवं अयोशजत कायय 3. शनष्कर्य 4. कैसे पहचें

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    खण्ड – 1

    िैव और िैव परम्परा भारतीय वांगमय में िैव पूजा ऄशत राचीन ह.ै मोहन जोदड़ो की मुद्रा पर पिुपशत का शचन्ह शमलता ह.ै गांधार, कशपिा और वंक्षु नदी के क्षेत्र

    तथा मध्य एशिया में भी िैव पूजा थी. ऊग्वेद कबरथम मण्डल का 14 वां सूक्त, शद्वतीय मण्डल का 33 वां सूक्त तथा सप्तम मण्डल का 46 वां

    सूक्त रुद्र से संबशन्धत ह.ै वायु पुराण के ऄध्याय 24 एवं 27 में वैददक तथा योशगक शवशध से शिव राशप्त की बात शलखी ह.ै राजा कशनष्क के समय ईत्तर पशिम भारत में आसका रचार पसार था. चन्द्र गुप्त मौयय (शद्वतीय) के ईदय शगरर के लेख में आनकी पूजा का ईल्लेख ह.ै भारशिव तो शिललग को कन्धों पर ईठाए रहते हैं. हड़प्पा और मोहन

    जोदड़ो की खुदाआयों से राप्त तथ्यों के अधार पर पुरातत्व शवदों ने िैवमत को ऊग्वेद से भी पूवय मानने का रयास दकया ह.ै नव पार्ाण युग की ऄनेक जाशतयों में िैव रशतष्ठा रही ह.ै धरती की संपन्नता के शलए शिवललग ईपचार स्वरूप रशतशष्ठत हअ. वैददक रुद्र कालान्तर में शिव से शमलकर आसका रयाय हो गया. तेशत्तरीय संशहता (4 ,5,1) एवं

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    श्वेतांबर ईपशनर्द (3 ,11,20,3,2) में आनकी एकता शसद्ध की गयी ह.ै

    इसा से पूवय चौथी – तीसरी सदी के यूनानी राजदतू मगेन्थशनज के

    दायोशनसस की पूजा शवशध िैवपूजा शवशध से शमलती जुलती ह.ै शवष्णु पुराण में शिव को ब्रह्म के संहारक रूप में बताया गया ह.ै 1 िान्त स्वरूप ईन भगवान िंकर को मेरा बार बार नमस्कार ह.ै2 एक समय था दक िैव धमय लोक धमयवत हो गया था. कइ राजाओं को महशे्वर की ईपाशध से शवभूशर्त भी दकया गया था. शिव पुराण में ईनकी सवोपरर मशहमा का व्यावहाररक स्वरूप आस धरती पर था. ईत्तर से दशक्षण , तक कौल , कापाशलक , पिुपात तथा महाकाल अदद

    िैव –संरदायों का रचार था.3

    िैवमत भारत भूशम के बाहर दशक्षण पूवी एशिया में भी गया. जो भारतीय यहाँ से वहाँ गए वे ऄपने साथ शिवललग ले जाते थे. कालांतर में ये शिवललग नए नगरों के इिदवे हये. िैव परम्परा में कश्मीरी परम्परा का बहत ऄशधक महत्व ह.ै आसके सबसे महान अचायय ऄशभनव गुप्त हये , शजन्होंने ‘रशतशभज्ञा दियन ’ की

    स्थापना की. आस परंपरा के ग्रन्थों पर शवशवध रटकाए ँअठवीं िताब्दी तक होती रहीं. अदद िंकराचायय जी ने जब आस रदिे की यात्रा की तो

    1 विष्णु ऩुयाण अंश -1 अध्माम -2 श्रोक – 67

    2 शांति ऩिव अध्माम 284 ऩषृ्ठ 5171

    3 उत्तय बायि के तनगुवण ऩंथ साहहत्म का इतिहास : विष्णु दत्त याकेश ऩषृ्ठ 27 िथा गोयखनाथ औय नाथ ससद्ध : ऩषृ्ठ 240

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    ईस पर ऄद्वतैवाद का रभाव पड़ा. 4 दकन्तु आससे सभी सहमत नहीं हैं. िाआवमत पूवय युगों में द्वतैवादी था , कश्मीर घाटी में बौद्धों के

    अदियवाद से द्वतैवादी िैवमत का रभाव कम हो गया था. परंतु अठवीं िताब्दी में वसुगुप्त ने राचीन द्वतैवादी िैवमत की अदियवादी ऄद्वतैवाद-परक (आंशडयशलस्ट माशनशस्टक) व्याख्या करके बौद्ध रभाव से कश्मीर को मुक्त दकया.5 लहदओुं के 6 संरदाय माने गए हैं- िैव, वैष्णव, िाक्त, नाथ, वैददक और

    चवायक. आसमें से चवायक संरदाय तो लुप्त हो गया लेदकन बाकी सभी संरदाय रचलन में हैं. सबसे राचीन संरदाय िैव संरदाय को ही माना जाता ह.ै िैव संरदाय और धमय के बारे में कुछ खास बातें. िैव मत का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की अराधना में ह.ै 12 रुद्रों में रमुख रुद्र ही

    अगे चलकर शिव, िंकर, भोलेनाथ और महादवे कहलाए. आनकी पिी

    का नाम ह ैपावयती शजन्हें दगुाय भी कहा जाता ह.ै िंकर का शनवास कैलाि पवयत पर माना गया ह.ै आनके पुत्रों का नाम ह ैकार्मतकेय और गणेि और पुत्री का नाम ह ैवनमाला शजन्हें ओखा भी कहा जाता था. शिव के ऄवतार : शिव पुराण में शिव के भी दिावतारों के ऄलावा ऄन्य का वणयन शमलता है, जो शनम्नशलशखत हैं- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेि, 4.

    र्ोडि, 5. भैरव, 6. शछन्नमस्तक शगररजा, 7. धूम्रवान, 8. बगलामुखी, 4 द रयरीजिमस गेस्ट इंडडमा – िे एन पयकुहय (1920) ऩषृ्ठ 198

    5 स्ऩंद तनणवम ; ऺेभयाि – श्रीनगय कश्भीय – 1925 बूसभका बाग, ऩषृ्ठ 3

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    9. मातंग और 10. कमल नामक ऄवतार हैं. ये दसों ऄवतार तंत्रिास्त्र

    से संबंशधत हैं. शिव के ऄन्य 11 ऄवतार : 1. कपाली, 2. लपगल, 3. भीम, 4.

    शवरुपाक्ष, 4. शवलोशहत, 6. िास्ता, 7. ऄजपाद, 8. अशपबुयध्य, 9.

    िम्भ,ू 10.चण्ड तथा 11. भव का ईल्लेख शमलता ह.ै

    आन ऄवतारों के ऄलावा शिव के दवुायसा , महिे, वृर्भ, शपप्पलाद,

    वैश्यानाथ, शद्वजेश्वर, हसंरूप, ऄवधूतेश्वर, शभक्षुवयय, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी,

    सुनटनतकय , शद्वज, ऄश्वत्थामा, दकरात और नतेश्वर अदद ऄवतारों का

    ईल्लेख भी 'शिव पुराण ' में हअ ह ैशजन्हें ऄंिावतार माना जाता ह.ै

    भैरव को ही शिव का खास ऄवतार माना गया ह.ै िैव संस्कार : 1. िैव संरदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं. वे शिवललग की पूजा ही

    करते हैं. 2. आसके संन्यासी जटा रखते हैं.

    3. आसमें शसर तो मुंडाते हैं, लेदकन चोटी नहीं रखते.

    4. आनके ऄनुष्ठान राशत्र में होते हैं.

    5. आनके ऄपने तांशत्रक मंत्र होते हैं.

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    6. ये शनवयस्त्र भी रहते हैं , भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में

    कमंडल, शचमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं.

    7. िैव चंद्र पर अधाररत व्रत ईपवास करते हैं.

    8. िैव संरदाय में समाशध दनेे की परंपरा ह.ै

    9. िैव मंददर को शिवालय कहते हैं, जहां शसफय शिवललग होता ह.ै

    10. ये भभूशत शतलक अड़ा लगाते हैं.

    िैव साधु-संत : िैव साधुओं को नाथ , नागा, ऄघोरी, ऄवधूत, बाबा,

    ओघड़, योगी, शसद्ध अदद कहा जाता ह.ै िैव संतों में नागा साधु और

    दसनामी संरदाय के साधुओं की ही रभुता ह.ै संन्यासी संरदाय से जुड़ ेसाधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोइ लेना-दनेा नहीं होता. गृहस्थ जीवन शजतना करठन होता ह ैईससे सौ गुना ज्यादा करठन नागाओं का जीवन ह.ै िैव संतों में गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ, सांईंनाथ बाबा, गजानन

    महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदवे , तेजाजी महाराज , चौरंगीनाथ,

    गोगादवे, िंकराचायय, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भतृयहरर, जालन्रीपाव

    अदद हजारों संत हैं, जो जगरशसद्ध हैं.

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    िैव संरदाय के ईप संरदाय : िैव में िाक्त , नाथ, दसनामी, नाग अदद

    ईप संरदाय हैं. महाभारत में माहशे्वरों (िैव) के 4 संरदाय बतलाए

    गए हैं- िैव, पािुपत, कालदमन और कापाशलक.

    कश्मीरी िैव संरदाय : कश्मीर को िैव संरदाय का गढ़ माना गया ह.ै वसुगुप्त ने 9वीं िताब्दी के ईतराधय में कश्मीरी िैव संरदाय का गठन

    दकया. आससे पूवय यहां बौद्ध और नाथ संरदाय के कइ मठ थे. वसुगुप्त के दो शिष्य थे कल्लट और सोमानंद. आन दोनों ने ही िैव दियन की नइ नींव रखी. लेदकन ऄब आस संरदाय को मानने वाले कम ही शमलेंगे. वीरिैव संरदाय : वीरिैव एक ऐसी परंपरा ह ैशजसमें भक्त शिव परंपरा से बंधा हो. यह दशक्षण भारत में बहत लोकशरय हइ ह.ै यह वेदों पर अधाररत धमय ह.ै यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा िैव मत है,

    पर आसके ज्यादादातर ईपासक कनायटक में हैं. भारत के दशक्षण राज्यों महाराष्ट्र , अंररदिे, केरल और तशमलनाडु के

    ऄलावा यह संरदाय ऄफगाशनस्तान , पादकस्तान, कश्मीर, पंजाब,

    हररयाणा में बहत ही फला और फैला. आस संरदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं. तशमल में आस धमय को शिवाद्वतै धमय ऄथवा ललगायत धमय भी कहते हैं. ईत्तर भारत में आस धमय का औपचाररक नाम 'िैवा अगम ' ह.ै वीरिैव

    की सभ्यता को द्रशवड़ सभ्यता भी कहते हैं.

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    कापाशलक िैव : कापाशलक संरदाय को महाव्रत-संरदाय भी माना जाता ह.ै आसे तांशत्रकों का संरदाय माना गया ह.ै नर कपाल धारण करने के कारण ये लोग कापाशलक कहलाए. कुछ शवद्वान आसे नहीं मानते हैं. ईनके ऄनुसार कपाल में ध्यान लगाने के चलते ईन्हें कापाशलक कहा गया. पुराणों ऄनुसार आस मत को धनद या कुबेर ने िुरू दकया था. बौद्ध अचायय हररवमाय और ऄसंग के समय में भी कापाशलकों के संरदाय शवद्यमान थे. सरबरतंत्र में 12 कापाशलक गुरुओं और ईनके 12 शिष्यों

    के नाम सशहत वणयन शमलते हैं. गुरुओं के नाम हैं- अददनाथ , ऄनादद,

    काल, ऄशमताभ, कराल, शवकराल अदद. शिष्यों के नाम हैं- नागाजुयन ,

    जड़भरत, हररिन्द्र, चपयट अदद. ये सब शिष्य तंत्र के रवतयक रह ेहैं.6

    भारत के धार्ममक सम्रदायों में िैवमत रमुख हैं. वैष्णव , िाक्त अदद

    सम्रदायों के ऄनुयाशययों से आसके मानने वालों की सख्या ऄशधक है. शिव शत्रमूर्मत में से तीसरे हैं शजनका शवशिि कायय संहार करना ह ैिैव वह धार्ममक सम्रदाय हैं जो शिव को ही इश्वर मानकर अराधना करता ह.ै शिव का िाशब्दक ऄथय ह ै 'िुभ', 'कल्याण', 'मंगल', श्रेयस्कर' अदद,

    यद्यशप शिव का कायय संहार करना ह.ै िैवमत का मूलरूप ऊग्वेद में रुद्र की कल्पना में शमलता है. रुद्र के भयंकर रूप की ऄशभव्यशक्त वर्ाय के पूवय झंझावात के रूप में होती थी. रुद्र के ईपासकों ने ऄनुभव दकया दक झंझावात के पिात जगत को 6 hamarisanskruti .blaospot.in

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    जीवन रदान करने वाला िीतल जल बरसता ह ैऔर ईसके पिात एक गम्भीर िाशन्त और अनन्द का वातावरण शनर्ममत हो जाता ह.ै ऄतः रुद्र का ही दसूरा सौम्य रूप शिव जनमानस में शस्थर हो गया. लहदओुं के दवेताओं की शत्रमूर्मत- ब्रह्मा , शवष्णु और महिे में शिव

    शवद्यमान हैं और ईन्हें शवनाि का दवेता भी माना जाता है. शिव के तीन नाम िम्भु , िंकर और शिव रशसद्ध हए. आन्हीं नामों से

    ईनकी राथयना होने लगी. यजुवेद के ितरुदद्रय ऄध्याय , तैशत्तरीय अरण्यक और श्वेताश्वतर

    ईपशनर्द में शिव को इश्वर माना गया ह.ै ईनके पिुपशत रूप का संकेत सबसे पहले ऄथवयशिरस ईपशनर्द में पाया जाता है , शजसमें पिु, पाि,

    पिुपशत अदद पाररभाशर्क िब्दों का रयोग हअ ह.ै आससे लगता ह ैदक ईस समय से पिुपात सम्रदाय बनने की रदिया रारम्भ हो गयी थी. रामायण-महाभारत के समय तक िैवमत िैव ऄथवा माहशे्वर नाम से रशसद्ध हो चुका था.i कश्मीर िैव मत दाियशनक दशृि से ऄद्वतैवादी ह.ै ऄद्वतै वेदान्त और काश्मीर िैव मत में साम्रदाशयक ऄन्तर आतना ह ैदक ऄद्वतैवाद का ब्रह्म शनशष्िय ह ैदकन्तु कश्मीर िैवमत का ब्रह्म (परमेश्वर) कतृयत्वसम्पन्न ह.ै ऄद्वतैवाद में ज्ञान की रधानता है , ईसके साथ भशक्त का सामञ्जस्य पूरा

    नहीं बैठता ; कश्मीर िैवमत में ज्ञान और भशक्त का सुन्दर समवन्य है.

    ऄद्वतैवाद वेदान्त में जगत ब्रह्म का शववतय (भ्रम) ह.ै कश्मीर िैवमत में

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    जगत ब्रह्म का स्वातन््य ऄथवा अभास ह.ै कश्मीर िैव की दो रमुख िाखाऐं हैं–

    1. स्पन्द िास्त्र और

    2. रत्यशभज्ञा िास्त्र. पहली िाखा के मुख्य ग्रन्थ ‘शिव दशृि’ (सोमानन्द

    कृत), ‘इश्वररत्यशभज्ञाकाररका’ (ईत्पलाचायय कृत) ,

    इश्वरप्र्तत्यशभज्ञाकाररकाशवमर्मिनी’ और (ऄशभनवगुप्त रशचत) ‘तन्त्रालोक’

    हैं. दोनों िाखाओं में कोइ ताशववक भेद नहीं है ; केवल मागय का भेद ह.ै

    स्पन्द िास्त्र में इश्वराद्वय्की ऄनुभूशत का मागय इश्वरदियन और ईसके द्वारा मलशनवारण ह.ै रत्यशभज्ञािास्त्र में इश्वर के रूप में ऄपनी रत्यशभज्ञा (पुनरनुभूशत) ही वह मागय ह.ै आन दोनों िाखाओं के दियन को ‘शत्रकदियन’ ऄथवा इश्वराद्वयवाद’ कहा जाता ह.ै7

    कश्मीरी िैव सम्रदाय :- वसुगुप्त ने 9वीं िताब्दी के ईतराध्दय में कश्मीरी िैव सम्रदाय का गठन

    दकया. आनके कल्लट और सोमानन्द दो रशसध्द शिष्य थे. आनका दाियशनक मत इश्वराद्वयवाद था. सोमानन्द ने ”रत्यशभज्ञा मत ” का

    रशतपादन दकया. रशतशभज्ञा िब्द का तात्पयय ह ैदक साधक ऄपनी पूवयज्ञात वस्तु को पुन: जान ले. आस ऄवस्था में साधक को ऄशनवचयनीय अनन्दानुभूशत होती ह.ै वे ऄद्वतैभाव में द्वतैभाव और शनगुयण में भी सगुण की कल्पना कर लेते थे. ईन्होने मोक्ष राशप्त के शलए कोरे ज्ञान 7 www.hi.bharatdiscovery.org

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    और शनरीभशक्त को ऄसमथय बतलाया. दोनो का समन्वय से ही मोक्ष राशप्त करा सकता ह.ै यद्यशप िुध्द भशक्त शबना द्वतैभाव के संभव नही ह ैऔर द्वतैभाव ऄज्ञान मूलक ह ैदकन्तु ज्ञान राप्त कर लेने पर जब द्वतै मूलक भाव की कल्पना कर ली जाती ह ैतब ईससे दकसी रकार की हाशन की संभावना नही रहती. आस रकार आस सम्रदाय में कशतपय ऐसे भी साधक थे जो योग-दिया द्वारा रहस्य का वास्तशवक पता पाना चाहते थे क्योंदक ईनकी धारणा थी दक योग-दिया से हम माया के अवरण को समाप्त कर सकते ह ैऔर आस दिा में ही मोक्ष की शसध्द सम्भव ह.ै8 नाथ परम्परा राचीन काल से चले अ रह ेनाथ संरदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और ईनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली दफे व्यवस्था दी. गोरखनाथ ने आस सम्रदाय के शबखराव और आस सम्रदाय की योग शवद्याओं का एकत्रीकरण दकया. गुरु और शिष्य को शतब्बती बौद्ध धमय में महाशसद्धों के रुप में जाना जाता ह.ै पररव्रराजक का ऄथय होता ह ैघुमक्कड़. नाथ साधु-संत दशुनया भर में भ्रमण करने के बाद ईम्र के ऄंशतम चरण में दकसी एक स्थान पर रुककर ऄखंड धूनी रमाते हैं या दफर शहमालय में खो जाते हैं. हाथ में शचमटा ,

    कमंडल, कान में कंुडल , कमर में कमरबंध , जटाधारी धूनी रमाकर

    ध्यान करने वाले नाथ योशगयों को ही ऄवधूत या शसद्ध कहा जाता है. ये योगी ऄपने गले में काली उन का एक जनेउ रखते हैं शजसे 'शसल'े 8 www.hi.bharatdiscovery.org

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    कहते हैं. गले में एक सींग की नादी रखते हैं. आन दोनों को 'सींगी सेली'

    कहते हैं. आस पंथ के साधक लोग साशत्वक भाव से शिव की भशक्त में लीन रहते हैं. नाथ लोग ऄलख (ऄलक्ष) िब्द से शिव का ध्यान करते हैं. परस्पर 'अदिे' या अदीि िब्द से ऄशभवादन करते हैं. ऄलख और अदिे िब्द

    का ऄथय रणव या परम पुरुर् होता ह.ै जो नागा (ददगम्बर) ह ैवे भभूतीधारी भी ईक्त सम्रदाय से ही है , आन्हें लहदी रांत में बाबाजी या

    गोसाइ समाज का माना जाता ह.ै आन्हें बैरागी , ईदासी या वनवासी

    अदद सम्रदाय का भी माना जाता ह.ै नाथ साधु-संत हठयोग पर शविेर् बल दतेे हैं. आन्हीं से अगे चलकर चौरासी और नवनाथ माने गए जो शनम्न हैं:- रारशम्भक दस नाथ अददनाथ, अनंददनाथ, करालानाथ, शवकरालानाथ, महाकाल नाथ ,

    काल भैरव नाथ , बटुक नाथ , भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ.

    आनके बारह शिष्य थे जो आस िम में ह-ै नागाजुयन , जड़ भारत ,

    हररिचंद्र, सत्यनाथ, चपयटनाथ, ऄवधनाथ, वैराग्यनाथ,

    कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयाजुयन नाथ.

    चौरासी और नौ नाथ परम्परा अठवी सदी में 84 शसद्धों के साथ बौद्ध धमय के महायान के वज्रयान की

    परम्परा का रचलन हअ. ये सभी भी नाथ ही थे. शसद्ध धमय की

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    वज्रयान िाखा के ऄनुयायी शसद्ध कहलाते थे. ईनमें से रमुख जो हए ईनकी संख्या चौरासी मानी गइ ह.ै नौ नाथ गुरु : 1. मच्छेंद्रनाथ 2. गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेि नाथ 5.भारती

    नाथ 6.चपयटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ 9.रेवन नाथ.

    आसके ऄलावा ये भी हैं: 1. अददनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ

    6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.शबरुपक्षनाथ 9.भतृयहरर नाथ

    10.ऄइनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ.

    ओंकार नाथ , ईदय नाथ , सन्तोर् नाथ , ऄचल नाथ , गजबेली नाथ ,

    ज्ञान नाथ, चौरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ. सम्भव ह ै

    यह ईपयुक्त नाथों के ही दसूरे नाम ह.ै बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले,

    गजानन महाराज , गोगा नाथ , पंढरीनाथ और साईं बाब को भी नाथ

    परंपरा का माना जाता ह.ै ईल्लेखनीय ह ैदक भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और िैव दोनों ही संरदाय का माना जाता है, क्योंदक ईनकी भी

    नाथों में गणना की जाती ह.ै भगवान भैरवनाथ भी नाथ संरदाय के ऄग्रज माने जाते हैं.9

    9 jaganatah karanje's blog

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    शमशथलेि वामनकर के ब्लॉग में रकाशित एक लेख के ऄनुसार शसद्धों की भोग-रधान योग-साधना की रशतदिया के रूप में अददकाल में नाथपंशथयों की हठयोग साधना अरम्भ हइ. आस पंथ को चलाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) तथा गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) माने जाते हैं. आस पंथ के साधक लोगों को योगी, ऄवधूत, शसद्ध, औघड़ कहा जाता ह.ै

    कहा यह भी जाता ह ैदक शसद्धमत और नाथमत एक ही हैं. शसद्धों की भोग-रधान योग-साधना की रवृशत्त ने एक रकार की स्वच्छंदता को जन्म ददया शजसकी रशतदिया में नाथ संरदाय िुरू हअ. नाथ-साधु हठयोग पर शविेर् बल दतेे थे. वे योग मागी थे. वे शनगुयण शनराकार इश्वर को मानते थे. तथाकशथत नीची जाशतयों के लोगों में से कइ पहचें हए शसद्ध एवं नाथ हए हैं. नाथ-संरदाय में गोरखनाथ सबसे महत्वपूणय थे. अपकी कइ रचनाए ंराप्त होती हैं. आसके ऄशतररक्त चौरन्गीनाथ , गोपीचन्द, भरथरी अदद नाथ पन्थ के

    रमुख कशव ह.ै आस समय की रचनाए ंसाधारणतः दोहों ऄथवा पदों में राप्त होती हैं, कभी-कभी चौपाइ का भी रयोग शमलता ह.ै परवती संत-

    साशहत्य पर शसध्दों और शविेर्कर नाथों का गहरा रभाव पड़ा ह.ै गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर शवद्वानों में मतभेद हैं. राहल सांकृत्यायन आनका जन्मकाल 845 इ. की 13वीं सदी का मानते हैं. नाथ परम्परा

    की िुरुअत बहत राचीन रही है , ककतु गोरखनाथ से आस परम्परा को

    सुव्यवशस्थत शवस्तार शमला. गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे. दोनों को चौरासी शसद्धों में रमुख माना जाता ह.ै

  • 17

    गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता ह.ै आनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर ह.ै गोरखनाथ नाथ साशहत्य के अरम्भकताय माने जाते हैं. गोरखपंथी साशहत्य के ऄनुसार अददनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता ह.ै शिव की परम्परा को सही रूप में अगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हए. ऐसा नाथ सम्रदाय में माना जाता ह.ै गोरखनाथ से पहले ऄनेक सम्रदाय थ,े शजनका नाथ सम्रदाय में शवलय

    हो गया. िैव एवं िाक्तों के ऄशतररक्त बौद्ध , जैन तथा वैष्णव योग

    मागी भी ईनके सम्रदाय में अ शमले थे. गोरखनाथ ने ऄपनी रचनाओं तथा साधना में योग के ऄंग दिया-योग ऄथायत तप, स्वाध्याय और इश्वर रणीधान को ऄशधक महत्व ददया ह.ै

    आनके माध्य म से ही ईन्होंने हठयोग का ईपदिे ददया. गोरखनाथ िरीर और मन के साथ नए-नए रयोग करते थे. गोरखनाथ द्वारा रशचत गं्रथों की संख्या ४० बताइ जाती ह ैदकन्तु डा. बड़्थथ्याल ने केवल १४ रचनाए ंही ईनके द्वारा रशचत मानी ह ैशजसका संकलन ‘गोरखबानी’ मे

    दकया गया ह.ै जनश्रुशत ऄनुसार ईन्होंने कइ क रठन (अड़-े शतरछे) असनों का अशवष्कार भी दकया. ईनके ऄजूबे असनों को दखे लोग ऄचरशम्भत हो जाते थे. अगे चलकर कइ कहावतें रचलन में अईं. जब भी कोइ ईल्टे-सीधे कायय करता ह ैतो कहा जाता ह ैदक ‘यह क्या गोरखधंधा लगा

    रखा ह.ै’

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    गोरखनाथ का मानना था दक शसशद्धयों के पार जाकर िून्य समाशध में शस्थत होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाशहए. िून्य समाशध ऄथायत समाशध से मुक्त हो जाना और ईस परम शिव के समान स्वयं को स्थाशपत कर ब्रह्मलीन हो जाना , जहाँ पर परम िशक्त का ऄनुभव होता

    ह.ै हठयोगी कुदरत को चुनौती दकेर कुदरत के सारे शनयमों से मुक्त हो जाता ह ैऔर जो ऄदशृ्य कुदरत है , ईसे भी लाँघकर परम िुद्ध रकाि

    हो जाता ह.ै शसद्ध योगी : गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को अगे बढ़ाने वाले शसद्ध योशगयों में रमुख हैं :- चौरंगीनाथ , गोपीनाथ, चुणकरनाथ,

    भतृयहरर, जालन्रीपाव अदद. 13वीं सदी में आन्होंने गोरख वाणी का

    रचार-रसार दकया था. यह एकेश्वरवाद पर बल दतेे थे , ब्रह्मवादी थे

    तथा इश्वर के साकार रूप के शसवाय शिव के ऄशतररक्त कुछ भी सत्य नहीं मानते थे. नाथ सम्रदाय गुरु गोरखनाथ से भी पुराना ह.ै गोरखनाथ ने आस सम्रदाय के शबखराव और आस सम्रदाय की योग शवद्याओं का एकत्रीकरण दकया. पूवय में आस समरदाय का शवस्तार ऄसम और ईसके असपास के आलाकों में ही ज्यादा रहा , बाद में समूचे राचीन भारत में

    आनके योग मठ स्थाशपत हए. अगे चलकर यह सम्रदाय भी कइ भागों में शवभक्त होता चला गया.10

    10

    http://hi.wikipedia.org/s/16j1

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    जमालपुर के पास गोरखनाथ का मंददर ह.ै ऄनुश्रुशत ह ैकी गोरखनाथ जी यहीं पर रहस्यात्मक ढंग से गायब हो गए थे. 11 नाथ मत के तीन संरदाय सामने अते हैं – 1 यह िैवागम की एक िाखा है , 2 नाथ

    सम्रदाय शसद्धों का ही परवती रूप है , 3 यह तांशत्रक योशगक परम्परा

    का शवकास ह.ै12 बाआराव और भैरवी के ऄनन्तर लौदकक जगत में मीन नाथ (मत्सयेन्द्र नाथ) ही आसके अदद रचारक थे.13 बहतों का मानना ह ैदक जहां भी िैव िशक्तपीठ होते हैं वहाँ भैरवी तंत्र भी स्थाशपत दकया जाता ह ैऔर पूजा भी जाता ह.ै

    गुरु गोरखनाथ गुरु गोरखनाथ का समय मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ के समय के बारे में आस दिे में ऄनेक शवद्वानों ने ऄनेक रकार की बातें कही हैं. वस्तुतः आनके और आनके समसामशयक शसद्ध जालंधरनाथ और कृष्णपाद के संबंध में ऄनेक दतंकथाए ँरचशलत हैं. गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ-शवर्यक समस्त कहाशनयों के ऄनुिीलन से कइ बातें स्पि रूप से जानी जा सकती हैं. रथम यह दक मत्स्येंद्रनाथ और 11

    गोयखनाथ औय नाथ ससद्ध : ऩषृ्ठ 232 12

    उऩयोक्ि – ऩषृ्ठ 206 13

    बायिीम संस्कृति औय साधना – बाग 1, गोऩी नाथ कवियाि ऩषृ्ठ 151

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    जालंधरनाथ समसाशयक थे ; दसूरी यह दक मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के

    गुरु थे और जालांधरनाथ कानुपा या कृष्णपाद के गुरु थे ; तीसरी यह

    की मत्स्येंद्रनाथ कभी योग-मागय के रवतयक थे , दफर संयोगवि ऐसे एक

    अचार में सशम्मशलत हो गए थे शजसमें शस्त्रयों के साथ ऄबाध संसगय मुख्य बात थी - संभवतः यह वामाचारी साधना थी;-चौथी यह दक िुरू

    से ही जालांधरनाथ और काशनपा की साधना-पद्धशत मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ की साधना-पद्धशत से शभन्न थी. यह स्पि ह ैदक दकसी एक का समय भी मालूम हो तो बाकी शसद्धों के समय का पता ऄसानी से लग जाएगा. समय मालूम करने के शलए कइ युशक्तयाँ दी जा सकती हैं. एक-एक करके हम ईन पर शवचार करें. (1) सबसे रथम तो मत्स्येंद्रनाथ द्वारा शलशखत ‘कौल ज्ञान शनणयय ’ गं्रथ

    (कलकत्ता संस्कृत सीरीज़ में डॉ० रबोधचंद्र वागची द्वारा 1934 इ० में

    संपाददत) का शलशपकाल शनशित रूप से शसद्घ कर दतेा ह ैदक मत्स्येंद्रनाथ ग्यारहवीं िताब्दी के पूवयवती हैं. (2) सुरशसद्ध कश्मीरी अचायय ऄशभनव गुप्त ने ऄपने तंत्रालोक में

    मच्छंद शवभु को नमस्कार दकया ह.ै ये ‘मच्छंद शवभु’ मत्स्येंद्रनाथ ही हैं,

    यह भी शनिशचत ह.ै ऄशभनव गुप्त का समय शनशित रूप से ज्ञात ह.ै ईन्होंने इश्वर रत्याशभज्ञा की बृहती वृशत्त सन् 1015 इ० में शलखी थी

    और िम स्त्रोत की रचना सन् 991 इ० में की थी. आस रकार ऄशभनव

    गुप्त सन् इसवी की दसवीं िताब्दी के ऄंत में और ग्यारहवीं िताब्दी के

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    अरंभ में वतयमान थे. मत्स्येंद्रनाथ आससे पूवय ही अशवभूतय हए होंगे. शजस अदर और गौरव के साथ अचायय ऄशभनव गुप्तपाद ने ईनका स्मरण दकया ह ैईससे ऄनुमान दकया जा सकता ह ैदक ईनके पयायप्त पूवयवती होंगे. (3) पंशडत राहल सांकृत्यायन ने गंगा के पुरातववांक में 84 वज्रयानी

    शसद्धों की सूची रकाशित कराइ ह.ै आसके दखेने से मालूम होता ह ैदक मीनपा नामक शसद्ध , शजन्हें शतब्बती परंपरा में मत्स्येंद्रनाथ का शपता

    कहा गया ह ैपर वे वस्तुतः मत्स्येंद्रनाथ से ऄशभन्न हैं राजा दवेपाल के राज्यकाल में हए थे. राजा दवेपाल 809-49 इ० तक राज करते रह े

    (चतुरािीत शसद्ध रवृशत्त, तन्जूर 86.1. कार्मडयर, पृ० 247). आससे यह

    शसद्ध होता ह ैदक मत्स्येंद्रनाथ नवीं िताब्दी के मध्य के भाग में और ऄशधक से ऄशधक ऄंत्य भाग तक वतयमान थे. (4) गोलवदचंद्र या गोपीचंद्र का संबंध जालंधरपाद से बताया जाता ह.ै

    वे काशनफा के शिष्य होने से जालंधरपाद की तीसरी पुश्त में पड़ते हैं. आधर शतरुमलय की िैलशलशप से यह तथ्य ईदधृत दकया जा सका ह ैदक दशक्षण के राजा राजेंद्र चोल ने मशणकचंद्र को पराशजत दकया था. बंगला में ‘गोशवन्द चंजेंद्र चोल ने मशणकचंद्र के पुत्र गोलवदचंद्र को

    पराशजत दकया था. बंगला में ‘गोलवद चंद्ररे गान ’ नाम से जो पोथी

    ईपलब्ध हइ है , ईसके ऄनुसार भी गोलवदचंद्र का दकसी दाशक्षणात्य

    राजा का युद्ध वर्मणत ह.ै राजेंद्र चोल का समय 1063 इ० -1112 इ०

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    ह.ै आससे ऄनुमान दकया जा सकता ह ैदक गोलवदचंद्र ग्यारहवीं िताब्दी के मध्य भाग में वतयमान थे. यदद जालंधर ईनसे सौ वर्य पूवयवती हो तो भी ईनका समय दसवीं िताब्दी के मध्य भाग में शनशित होता है. मत्स्येंद्रनाथ का समय और भी पहले शनशित हो चुका ह.ै जालंधरपाद ईनके समसामशयक थे. आस रकार ऄनेक कि-कल्पना के बाद भी आस बात से पूवयवती रमाणों की ऄच्छी संगशत नहीं बैठती ह.ै (5) वज्रयानी शसद्ध कण्हपा (काशनपा, काशनफा, कान्ूपा) ने स्वयं ऄपने

    गानों पर जालंधरपाद का नाम शलया ह.ै शतब्बती परंपरा के ऄनुसार ये भी राजा दवेपाल ( 809-849 इ०) के समकालीन थे. आस रकार

    जालंधरपाद का समय आनसे कुछ पूवय ठहरता ह.ै (6) कंथड़ी नामक एक शसद्ध के साथ गोरखनाथ का संबंध बताया जाता

    ह.ै ‘रबंध लचतामशण ’ में एक कथा अती ह ैदक चौलुक्य राजा मूलराज

    ने एक मूलेश्वर नाम का शिवमंददर बनवाया था. सोमनाथ ने राजा के शनत्य शनयत वंदन-पूजन से संतुि होकर ऄणशहल्लपुर में ऄवतीणय होने की आच्छा रकट की. फलस्वरूप राजा ने वहाँ शत्रपुरुर्-रासाद नामक मंददर बनवाया. ईसका रबंधक होने के शलए राजा ने कंथड़ी नामक िैवशसद्ध से रथयना की. शजस समय राजा ईस शसद्ध से शमलने गया ईस समय शसद्ध को बुखार था, पर ऄपने बुखार को ईसने कंथा में संिाशमत

    कर ददया. कंथा काँपने लगी. राजा ने पूछा तो ईसने बताया दक ईसी ने कंथा में ज्वर संिशमत कर ददया ह.ै बड़ ेछल-बल से ईस शनःस्पृह तपस्वी को राजा ने मंददर का रबंधक बनवाया. कहानी में शसद्ध के

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    सभी लक्षण नागपंथी योगी के हैं , आसशलए यह कंथड़ी शनिय ही

    गोरखनाथ के शिष्य ही होंगे. ‘रबंध लचतामशण ’ की सभी रशतयों में

    शलखा ह ैदक मूलराज ने संवत् 993 की अर्ाढ़ी पूर्मणमा को राज्यभार

    ग्रहण दकया था. केवल एक रशत में 998 संवत् ह.ै आस शहसाब से जो

    काल ऄनुमान दकया जा सकता है , वह पूवयवती रमाणों से शनधायररत

    शतशथ के ऄनुकूल ही ह.ै ये ही गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ का काल-शनणयय करने के ऐशतहाशसक या ऄद्धय-ऐशतहाशसक ऄधार हैं. परंतु रायः दतंकथाओं और सांरदाशयक परंमपराओं के अधार पर भी काल-शनणयय का रयि दकया जाता ह.ै गोरखनाथ' या गोरक्षनाथ जी महाराज ११वी से १२वी िताब्दी के

    नाथ योगी थे. गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण दकया और ऄनेकों ग्रन्थों की रचना की.14 आन दतंकथाओं से संबद्ध ऐशतहाशसक व्यशक्तयों का काल बहत समय जाना हअ रहता ह.ै बहत-से ऐशतहाशसक व्यशक्त गोरखनाथ के साक्षात् शिष्य माने जाते हैं. ईनके समय की सहायता से भी गोरखनाथ के समय का ऄनुमान लगाया जा सकता ह.ै शब्रग्स ने ( ‘गोरखनाथ एडं

    कनफटा योगीज़’ कलकत्ता, 1938) आन दतंकथाओं पर अधाररत काल

    और चार मोटे शवभागों में आस रकार बाँट शलया ह-ै

    14

    https://vimisahitya.wordpress.com/tag/

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    (1) कबीर नानक अदद के साथ गोरखनाथ का संवाद हअ था , आस पर

    दतंकथाए ँभी हैं और पुस्तकें भी शलखी गइ हैं. यदद आनसे गोरखनाथ का काल-शनणयय दकया जाए , जैसा दक बहत-से पंशडतों ने भी दकया है , तो

    चौदहवीं िताब्दी के इर्त् पूवय या मध्य में होगा. (2) गूगा की कहानी , पशिमी नाथों की ऄनुश्रुशतयाँ , बँगाल की िैव-

    परंपरा और धमयपूजा का संपद्राय , दशक्षण के पुरातवव के रमाण ,

    ज्ञानेश्वर की परंपरा अदद को रमाण माना जाए तो यह काल 1200

    इ० के ईधर ही जाता ह.ै तेरहवीं िताब्दी में गोरखपुर का मठ ढहा ददया गया था , आसका ऐशतहाशसक सबूत है , आसशलए शनशित रूप से

    कहा जा सकता ह ैदक गोरखनाथ 1200 इ० के पहले हए थे. आस काल

    के कम से कम सौ वर्य पहले तो यह काल होना ही चाशहए. (3) नेपाल के िैव-बौद्ध परंपरा के नरेंद्रदवे, के बाप्पाराव, ईत्तर-पशिम

    के रसालू और होदो, नेपाल के पूवय में िंकराचायय से भेंट अदद अधाररत

    काल 8वीं िताब्दी से लेकर नवीं िताब्दी तक के काल का शनदिे करते

    हैं. (4) कुछ परंपराए ँआससे भी पूवयवती शतशथ की ओर संकेत करती हैं.

    शब्रग्स दसूरी श्रेणी के रमाणों पर अधाररत काल को ईशचत काल समझते हैं, पर साथ ही यह स्वीकार करते हैं दक यह ऄंशतम शनणयय नहीं

    ह.ै जब तक और कोइ रमाण नहीं शमल जाता तब तक वे गोरखनाथ के शवर्य में आतना ही कह सकते हैं दक गोरखनाथ 1200 इ० से पूवय ,

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    संभवतः ग्यारहवीं िाताब्दी के अरंभ में , पूवी, बंगाल में रादभुुयत हए

    थ.े परंतु सब शमलकर वे शनशित रूप से जोर दकेर कुछ नहीं कहते और जो काल बताते हैं , ईसे ऄन्य रमाणों से ऄशधक युशक्तसंगत माना जाए ,

    यह भी नहीं बताते. मैंने नाथ संरदाय में ददखाया ह ैदक दकस रकार गोरखनाथ के ऄनेक पूवयवती मत ईनके द्वारा रवर्मतत बारहपंथी संरदाय में ऄंतभुयक्त हो गए थे. आन संरदायों के साथ ईनकी ऄनेक ऄनुश्रुशतयाँ और दतंकथाए ँभी संरदाय में रशवि हईं. आसशलए ऄनुश्रुशतयों के अधार पर ही शवचार करने वाले शवद्वानों को कइ रकार की परम्परा-शवरोधी परंपराओं से टकराना पड़ता ह.ै परंतु उपर के रमाणों के अधार पर नाथमागय के अदद रवतयकों का समय नवीं िताब्दी का मध्य भाग ही ईशचत जान पड़ता ह.ै आस मागय में पूवयवती शसद्ध भी बाद में चलकर ऄंतभुयक्त हए हैं और आसशलए गोरखनाथ के संबंध में ऐसी दजयनों दतंकाथाए ँचल पड़ी हैं, शजनको ऐशतहाशसक तथ्य मान लेने पर शतशथ-संबंधी झमेला खड़ा

    हो जाता ह.ै गोरखनाथ के आंतजार में जलती र ही मां की ज्वाला : शहमाचल रदिे के कांगड़ा शजले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा ह ैज्वाला दवेी का

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    मंददर. मां ज्वाला दवेी तीथय स्थल को दवेी के 51 िशक्तपीठों में से

    एक िशक्तपीठ माना जाता ह.ै िशक्तपीठ वह स्थान कहलाते हैं जहा-ंजहां भगवान शवष्णु के चि से कटकर माता सती के ऄंग शगरे थे. िास्त्रों के ऄनुसार ज्वाला दवेी में सती की शजह्वा शगरी थी. मान्यता ह ैदक सभी िशक्तपीठों में दवेी हमेिा शनवास करती हैं. िशक्तपीठ में माता की अराधना करने से माता जल्दी रसन्न होती ह.ै ज्वालादवेी मंददर में सददयों से शबना तेल बाती के राकृशतक रूप से नौ ज्वालाए ंजल रही हैं. नौ ज्वालाओं में रमुख ज्वाला जो चांदी के जाला के बीच शस्थत ह ैईसे महाकाली कहते हैं. ऄन्य अठ ज्वालाओं के रूप में मां ऄन्नपूणाय , चण्डी,

    लहगलाज, शवध्यवाशसनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, ऄशम्बका एवं ऄंजी

    दवेी ज्वाला दवेी मंददर में शनवास करती हैं. आस ज्वाला को बुझा न सका ऄकबर : कथा ह ैदक मुगल बादिाह ऄकबर ने ज्वाला दवेी की िशक्त का ऄनादर दकया और मां की तेजोमय ज्वाला को बुझाने का हर संभव रयास दकया. लेदकन ऄकबर ऄपने रयास में ऄसफल रहा. ऄकबर को जब ज्वाला दवेी की िशक्त का अभास हअ तो ऄपनी भूल की क्षमा मांगने के शलए ऄकबर ने ज्वाला दवेी को सवामन सोने का छत्र चढ़ाया.

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    ज्वालादवेी की ज्योशत : ज्वाला माता से संबंशधत गोरखनाथ की कथा आस क्षेत्र में काफी रशसद्ध ह.ै कथा ह ैदक भक्त गोरखनाथ यहां माता की अरधाना दकया करता था. एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब ईसने माता से कहा दक अप अग जलाकर पानी गमय करें , मैं शभक्षा

    मांगकर लाता ू.ं माता अग जलाकर बैठ गयी और गोरखनाथ शभक्षा मांगने चले गये. आसी बीच समय पररवतयन हअ और कशलयुग अ गया. शभक्षा मांगने गये गोरखनाथ लौटकर नहीं अये. तब ये माता ऄशि जलाकर गोरखनाथ का आंतजार कर रही हैं. मान्यता ह ैदक सतयुग अने पर बाबा गोरखनाथ लौटकर अएगें , तब-तक यह ज्वाला यूं ही जलती

    रहगेी. गोरख शडब्बी ज्वाला दवेी िशक्तपीठ में माता की ज्वाला के ऄलावा एक ऄन्य चमत्कार दखेने को शमलता ह.ै मंददर के पास ही 'गोरख शडब्बी' ह.ै यहां

    एक कुण्ड में पानी खौलता हअ रतीत होता जबदक छूने पर कंुड का पानी ठंडा लगता ह.ै15 सभी ऄनुश्रुशतयाँ आस बात में एकमत हैं दक नाथ संरदाय के अददरवतयक चार महायोगी हए हैं. अददनाथ स्वयं शिव ही हैं. ईनके दो शिष्य हए: (1) जालंधरनाथ और (2) मत्स्येंद्रनाथ या मच्छंदरनाथ. जालंधरनाथ के शिष्य थे कृष्णपाद और मत्स्येंद्रनाथ के गोरख (गोरख) नाथ. आस रकार ये चार शसद्ध गोगीश्वर नाथ संरदाय के मूल रवतयक हैं. 15

    http://hi.wikipedia.org/s/g74

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    आनमें जालंधर नाथ और कृष्णपाद का संबंध कापाशलक साधना से था. परवती नाथ संरदाय में मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ का ही ऄशधक ईल्लेख पाया जाता ह.ै आन चार में से दकसी एक का समय यदद ठीक ठीक शनशित हो सके तो चारों का समय शनशित दकया जा सकेगा ,

    क्योंदक ये चारों ही समसामशयक माने जाते हैं. आन शसद्धों के बारे में सारे दिे में जो ऄनुश्रुशतयाँ और दतंकथाए ँरचशलत हैं, ईनसे असानी से

    आन शनष्कर्ों पर पहचंा जा सकता ह-ै 1. मत्स्येंद्र और जालंधर समसामशयक गुरुभाइ थे और आन दोनों के रधान शिष्य िमि: गोरखनाथ और कृष्णपाद थे , 2. मत्स्येंद्रनाथ दकसी शविेर् रकार के

    योगमागय के रवतयक थे परंतु बाद में दकसी ऐसी साधना में जा फँसे थे जहाँ शस्त्रयों का ऄबाध संसगय अवश्यक माना जाता था (कौल ज्ञान के शनमायण से जान पड़ता ह ैदक वह वामाचारी कौल साधना था शजसे कौल मत कहते थे. गोरखनाथ ने ऄपने गुरु का वहाँ से ईद्धार दकया था). 3. िुरू से ही मत्स्येंद्र और गोरख की साधनापद्धशत जालंधर और कृष्णपाद की साधनापद्धशत से कुछ शभन्न थी. गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ-शवर्यक समस्त कहाशनयों के ऄनुिीलन से कइ बातें स्पि रूप से जानी जा सकती हैं. रथम यह दक मत्स्येंद्रनाथ और जलधरनाथ समसमाशयक थे दसूरी यह दक मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के गुरु थे और जालांधरनाथ कानुपा या कृष्णपाद के गुरु थे , तीसरी यह

    की मत्स्येंद्रनाथ कभी योग-मागय के रवतयक थे , दफर संयोगवि ऐसे एक

    अचार-शवचार में सशम्मशलत हो गए थे शजसमें शस्त्रयों के साथ ऄबाध

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    सेक्स संसगय मुख्य बात थी - संभवतः यह वामाचारी यौनसुखी साधना थी-चौथी यह दक िुरू से ही जालांधरनाथ और काशनपा की साधना-पद्धशत मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ की साधना-पद्धशत से शभन्न थी. यह स्पि ह ैदक दकसी एक का समय भी मालूम हो तो बाकी शसद्धों के समय का पता असानी से लग जाएगा. समय मालूम करने के शलए कइ युशक्तयाँ दी जा सकती हैं. एक-एक करके हम ईन पर शवचार करें. (1) सबसे रथम तो मत्स्येंद्रनाथ द्वारा शलशखत ‘कौल ज्ञान शनणयय ’ गं्रथ

    (कलकत्ता संस्कृत सीरीज में डॉ० रबोधचंद्र वागची द्वारा 1934 इ० में संपाददत) का शलशपकाल शनशित रूप से शसद्घ कर दतेा ह ैदक मत्स्येंद्रनाथ ग्यारहवीं िताब्दी के पूवयवती हैं. (2) सुरशसद्ध कश्मीरी अचायय ऄशभनव गुप्त ने ऄपने तंत्रालोक में मच्छंद शवभु को नमस्कार दकया ह.ै ये ‘मच्छंद शवभु’ मत्स्येंद्रनाथ ही हैं,

    यह भी शनशित ह.ै ऄशभनव गुप्त का समय शनशित रूप से ज्ञात ह.ै ईन्होंने इश्वर रत्याशभज्ञा की बृहती वृशत्त सन् 1015 इ० में शलखी थी और िम स्त्रोत की रचना सन् 991 इ० में की थी. आस रकार ऄशभनव गुप्त सन् इसवी की दसवीं िताब्दी के ऄंत में और ग्यारहवीं िताब्दी के अरंभ में वतयमान थे. मत्स्येंद्रनाथ आससे पूवय ही अशवभूयत हए होंगे. शजस अदर और गौरव के साथ अचायय ऄशभनव गुप्तपाद ने ईनका स्मरण दकया ह ैईससे ऄनुमान दकया जा सकता ह ैदक ईनके पयायप्त पूवयवती होंगे.16

    16 www.amarujala.com/news/spirituality/religion-festivals/mystry-behind-jwala-devi-jyoti/

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    आनके िमस्तोत्र तथा भैरवस्तोत्र और सन्दभों एवं ऄन्य शनदिेों पर अधाररत आनकी कृशतयों के ऐशतहाशसक िम से यह स्पि हो जाता ह ैदक आन्होंने सवयरथम ऄपनी लेखनी ईस समय तक राप्त तंत्रों की शिवाद्वयवादी व्याख्या के क्षेत्र में चलाइ. ऄशभनव की रथम राप्त रचना कमस्त्रोत्र के अधार पर यह कहा जा सकता ह ैदक आन्होंने ऄपनी सजयनयात्रा सवयरथम आसी क्षेत्र से अरम्भ की थी. आस िाखा को लेकर ईक्त स्तोत्र के ऄशतररक्त आनकी एक ऄन्य रचना राप्त ह-ै िमकेशल. आसके पिात् आनका ध्यान शत्रक की ओर अकर्मर्त हअ. आस क्षेत्र की आनकी रमुख दने ह-ै पूवयपंशचका तथा ऄन्य पंशचकाए.ँ पूवयिास्त्र से ऄशभराय ह-ै माशलनी शवजय तंत्र , तथा पंशचका का ऄथय ह-ै शवस्तृत

    व्याख्या. ऄत: यह कृशत शनशित रूप से माशलनी शवजय पर शवस्तृत टीका रही होगी. दभुायग्य से यह कृशत ऄब ईपलब्ध नहीं ह.ै कौलिास्त्र को लेकर आनकी ऄब तक दो रचनाए ंराप्त हइ हैं- 'भैरवस्तव' तथा

    'पराशत्रशिका शववरण ' आसी अयाम के ऄशन्तम चरण में ऄशभनव ने

    तंत्रालोक जैसी महववपूणय तथा शविद व्याख्यामूलक कृशत दी. आसे कश्मीर एवं िैव दियन का शवश्वकोि कहा जाये तो ऄत्युशक्त न होगी ,

    क्योंदक आसमें आस दियन के सभी समानान्तर रस्थानों की चचाय हइ है. आसके साथ ही साथ आन्होंने तीन सार ग्रन्थों- तंत्रसार , तंत्रोच्चय तथा

    तंत्रवट धशनका की रचना भी आसी काल में की.17 जालंधर 17

    http://bharatdiscovery.org/india/

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    बंगला में ‘गोलवद चंद्ररे गान ’ नाम से जो पोथी ईपलब्ध हइ है , ईसके

    ऄनुसार भी गोलवदचंद्र का दकसी दाशक्षणात्य राजा का युद्ध वर्मणत ह.ै राजेंद्र चोल का समय 1063 इ० -1112 इ० ह.ै आससे ऄनुमान दकया

    जा सकता ह ैदक गोलवदचंद्र ग्यारहवीं िताब्दी के मध्य भाग में वतयमान थ.े यदद जालंधर ईनसे सौ वर्य पूवयवती हो तो भी ईनका समय दसवीं िताब्दी के मध्य भाग में शनशित होता ह.ै 18 जालंधर मत्सयेन्द्र नाथ के गुर भाइ थे. शतब्बती परम्परा में आन्हें मत्सयेन्द्र नाथ का गुरु भी कहा ह.ै19 ‘चौरासी शसद्धों का वृतांत ’ के ऄनुसार जालंधर का ऄथय – जाल

    धारण करने वाला.20 आनका स्थान नगर ठौड़ था. 21 यह शिव ईपासक थ.े भरथरी और कनीफ़ा जालंधर नाथ के शिष्य थे. आन्होंने नाथ सम्रदाय के समान्तर या पंथ की साथपना की. 22 इसा की 10 वीं 11 वीं सदी में कापाशलक , लाकुशलि एवं कालमुख धीरे धीरे ऄपनी

    स्वायत्ता खो कर नाथ सम्रदाय में शवलीन हो गए. आन िाआवोन में कश्मीरी िैव रमुख थे. कश्मीरी िैव दियन ऄपना शविेर् महत्व रखता ह.ै तंत्राचार से यह भी रभाशवत थे.23 कौल एवं कौलाचार

    18

    bharatdiscovery.org/india/असबनिगुप्ि 19

    गोयखनाथ औय नाथ ससद्ध ऩषृ्ठ 76 20

    उऩयोक्ि ऩषृ्ठ 94 21

    उऩयोक्ि ऩषृ्ठ 76 22

    उऩयोक्ि ऩषृ्ठ 408 23

    उऩयोक्ि ऩषृ्ठ 302

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    कौल ऄथवा कौलों के अचार-शवचार तथा ऄनुष्ठान रकार को कौलाचार के नाम से जाना जाता ह.ै िाक्तमत के ऄनुसार साधनाक्षेत्र में तीन भावों तथा सात अचारों की शवशिि शस्थशत होती है. पिुभाव ,

    वीरभाव और ददव्यभाव - ये तो तीन भावों के संकेत हैं. वेदाचार ,

    वैष्णवाचार, िैवाचार, दशक्षणचार, वामाचार, शसद्धांताचार और

    कौलाचार ये पूवोशल्लशखत भावत्रय से संबद्ध सात अचार हैं. आनमें ददव्यभाव के साधक का संबंध कौलाचार से ह.ै पररचय जो साधक द्वतैभावना का सवयथा शनराकरण कर दतेा ह ैऔर ईपास्य दवेता की सत्ता में ऄपनी सत्ता डुबा कर ऄद्वतैानंद का अस्वादन करता ह,ै वह तांशत्रक भार्ा में ददव्य कहलाता ह ैऔर ईसकी मानशसक दिा

    ददव्यभाव कहलाती ह.ै कौलाचार तांशत्रक अचारों में सवयश्रेष्ठ माना जाता है , क्योंदक यह पूणय ऄद्वतै भावना में रमनेवाले ददव्य साधक के

    द्वारा ही पूणयत: गम्य और ऄनुसरणीय होता ह.ै दकन्हीं अचायों की संमशत में समयाचार ही श्रेष्ठ , शविुद्ध तांशत्रक अचार ह ैतथा कौलाचार

    ईससे शभन्न तांशत्रक मागय ह.ै िंकराचायय तथा ईनके ऄनुयायी समयाचार के ऄनुयायी थे. तो ऄशभनवगुप्त तथा गौडीयिाक्त कौलाचार के ऄनुवती थे. समयमागय में ऄंतयोग (हृदयस्थ ईपासना) का महत्व है, तो कौल मत में बशहयोग का. पंच मकार- मद्य , मांस, मत्स्य,

    मुद्रा और मैथुन दोनों में ही ईपासना के मुख्य साधन हैं. ऄंतर केवल यह ह ैदक समय मागी आन पदाथों का रत्यक्ष रयोग न करके आनके

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    स्थान पर आनके रशतशनशधभूत ऄन्य वस्तुओं (शजन्हें तांशत्रक ग्रथों में ऄनुकल्प कहा जाता ह)ै का रयोग करता है ; कौल आन वस्तुओं का ही

    ऄपनी पूजा में ईपयोग करता ह.ै सौंदयय लहरी के भाष्यकार लक्ष्मीधर ने 41वें श्लोक की व्याख्या में कौलों के दो ऄवांतर भेदों का शनदिे दकया ह.ै ईनके ऄनुसार पूवयकौल श्री चि के भीतर शस्थत योशन की पूजा करते हैं; ईत्तरकौल सुंदरी तरुणी के रत्यक्ष योशन के पूजक हैं और ऄन्य

    मकारों का भी रत्यक्ष रयोग करते हैं. ईत्तरकौलों के आन कुत्सापूणय ऄनुष्ठानों के कारण कौलाचार वामाचार के नाम से ऄशभशहत होने लगा और जनसाधारण की शवरशक्त तथा ऄवहलेना का भाजन बना. कौलाचार के आस ईत्तरकालीन रूप पर शतब्बती तंत्रों का रभाव बहि: लशक्षत होता ह.ै गंधवयतंत्र , तारातंत्र, रुद्रयामल तथा शवष्णायामल के

    कथानानुसार आस पूजा रकार का रचार महाचीन (शतब्बत) से लाकर वशसष्ठ ने कामरूप में दकया. राचीनकाल में ऄसम तथा शतब्बत का परस्पर धार्ममक अदान रदान भी होता रहा. आससे आस मत की पुशि के शलये अधार राप्त होता ह.ै24 ऄशभनवगुप्त ऄशभनवगुप्त बहमुखी रशतभािाली कश्मीरी संस्कृत-शवद्वान् तथा कश्मीर िैवदियन के अचायय थे. काव्यिास्त्रीय 'ध्वन्यालोक' पर आनकी

    टीका 'ध्वन्यालोक -लोचन ' तथा 'नाट्डिास्त्र' की टीका

    'ऄशभनवभारती' रशसद्ध हैं. 'रत्यशभज्ञाशवमर्मिनी' 'तंत्रालोक' आत्यादद 24

    http://hi.wikipedia.org/s/17yc

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    आनकी रशसद्ध दाियशनक कृशतयाँ हैं. भारतीय समीक्षािास्त्र एवं सौंदययमीमांसा पर ऄशभनवगुप्त की ऄशमट छाप ह.ै साथ ही तत्व शचन्तन परम्परा में भी ईनका ररक्थ ऄशवस्मरणीय ह.ै वंि पररचय ऐसा माना जाता ह ैदक कन्नौज के रब्रशजत िैव मनीर्ी ऄशवगुप्त ,

    ऄशभनवगुप्त के रथम पूवयज हैं. ईसके ऄनन्तर लगभग डढे़ सौ वर्य तक का कालखंड ईस वंि परम्परा के शवर्य में मौन सा ह.ै आसके शपतामह वराहगुप्त का जन्म इसा की दसवीं िताब्दी के रथम चरण में माना जाता ह.ै ईनके शपता नरलसह गुप्त ईफय चुखुलक ऄत्यन्त मेधावी शवद्वान ,

    सवयिास्त्रशवद तथा परम शिव भक्त थे. ईनकी माता शवमलकला परमसाध्वी एवं धार्ममक मशहला थीं. दभुायग्य से ईनकी छाया आनके उपर से बचपन में ही ईठ गइ. माता-शपता के ऄशतररक्त ईनके पररवार में एक शपतृव्य थे वामनगुप्त तथा एक ऄनुज मनोरथ और पांच शपतृव्य ऊन्तनय-क्षेम, ईत्पल, ऄशभनव, चिक तथा पद्मगुप्त. आसके ऄशतररक्त

    ईनकी एक महान गुरु परम्परा थी , शजसमें (�