14 ज्योतिष में नक्षत्रों का महत्व
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14 ज्योति�ष में नक्षत्रों का महत्व - चि�त्राअश्वि�नी से लेकर रेवती तक चलने वाली नक्षत्रों की यात्रा में चिचत्रा मध्यांतर अथवा मध्य के पड़ाव को दर्शाा ता है। वैदिदक ज्योतितष के अनुसार कंुडली से गणना करने के चिलए महत्वपूण माने जाने वाले सताइस नक्षत्रों में से चिचत्रा को 14 वां नक्षत्र माना जाता है तथा इस नक्षत्र के पूव और पश्चात दोनों ओर तेरह नक्षत्र होने के कारण इसे नक्षत्रों की यात्रा का मध्यांतर भी कहा जाता है। चिचत्रा का र्शााब्दि6दक अथ है चिचत्र की भांतित संुदर, अदभुत अथवा आश्चय जनक और इस अथ को समझने के चिलए कुछ तथ्यों पर तिवचार करना आवश्यक होगा। वैदिदक काल में जब इन नक्षत्रों का नामकरण तिकया गया था तो आज की भांतित टैचिलतिवजन अथवा कैमेरे नहीं होते थे जिजसके कारण चिचत्रकारों के हाथ से बनाए गए चिचत्रों को ही समृतित के रूप में आगे चलाया जाता था। अचे्छ तथा तिनपुण चिचत्रकार उस काल में अधिEकतर या तो उन लोगों के चिचत्र बनाते थे जो बहुत संुदर अथवा महत्वपूण होते थे या तिGर तिकसी अन्य वस्तु अथवा परिरस्थिLतित का जो अपने आप में अदभुत अथवा आश्चय जनक हो। इस प्रकार प्राचीन काल में बहुत संुदर व्यचिO या स्त्री को चिचत्र की भांतित संुदर भी कहा जाता था क्योंतिक तब चिचत्र अधिEकतर संुदर पुरुषों के अथवा संुदर स्त्रिस्त्रयों के ही बनते थे। इस प्रकार चिचत्रा र्शा6द का संुदर, आश्चय जनक अथवा अदभुत के साथ संबंE माना जाता है तथा अधिEकतर वैदिदक ज्योतितषी यह मानते हैं तिक चिचत्रा नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक इन तिवर्शाेषताओं का प्रदर्शा न करते हैं।
वैदिदक ज्योतितष के अनुसार बडे़ आकार के एक चमकीले रत्न को चिचत्रा नक्षत्र का प्रतीक चिचन्ह माना जाता है। बहुत से वैदिदक ज्योतितषी यह मानते हैं तिक जिजस प्रकार रत्न भूधिम के भीतर एक लंबी अवधिE के पश्चात तथा कई प्रकार की जतैिवक तथा रसायतिनक तिVयाओं जैसे तिक चरम तापमान, चरम दबाव तथा सूक्ष्म जीवों के प्रभाव के पश्चात बनता है उसी प्रकार चिचत्रा नक्षत्र के माध्यम स े भी उस कला का प्रदर्शा न होता ह ै जो कलाकार के जीवन की चरम भावनात्मक अथवा रचनात्मक परिरस्थिLतितयों में जन्म लेती है। रत्नों को कला तथा चिर्शाल्प का नमूना भी माना जाता है तथा इसी प्रकार चिचत्रा नक्षत्र भी कला तथा चिर्शाल्प जैसीं तिवर्शाेषताए ंप्रदर्शिर्शाZत करता है। कुछ वैदिदक ज्योतितषी मोती को भी चिचत्रा नक्षत्र का प्रतीक चिचन्ह मानते हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है तिक अपने आप में कला का एक नमूना माने जाने वाले मोती का जन्म भी चरम तथा उत्तेजिजत करने वाली परिरस्थिLतितयों में ही होता है। कोई बाहरी पदाथ जैसे ही सीप के बाहरी खोल के भीतर प्रवेर्शा पाने में सGल हो जाता है तो सीप के अंदर एक उत्तेजना तथा रक्षा की भावना पैदा हो जाती है जिजसके चलते सीप अपने भीतर से नैV नाम का एक पदाथ छोड़ती है जो उस बाहरी पदाथ से चिलपट कर उसके उपर बहुत सी सतहें बना लेता है तथा सीप की इस रक्षात्मक तथा उते्तजिजत प्रतिततिVया के स्वरुप मोती का जन्म होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है तिक अपने आप में बहुत सुंदर माने जाने वाले मोती का जन्म वास्तव में चरम परिरस्थिLतितयों में होता है। इसी प्रकार चिचत्रा नक्षत्र भी कला के उस नमूने को प्रदर्शिर्शाZत करता है जिजसका जन्म कलाकार के उत्तेजना, उग्रता, उदासी अथाव ऐसी ही तिकसी स्थिLतित में होने से होता है।
चिर्शाल्प कला में सबसे तिनपुण माने जाने वाले तिव� कमा को वैदिदक ज्योतितष के अनुसार चिचत्रा नक्षत्र का अधिEपतित देवता माना जाता है जिजसके कारण इस नक्षत्र पर तिव�कमा का प्रबल प्रभाव रहता है। तिव�कमा चिर्शाल्प कला के संुदर तथा अदभुत नमूने बनाने के चिलए जाने जाते हैं तथा तिव�कमा के चरिरत्र की ये तिवरे्शाषता चिचत्रा नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शिर्शाZत होती है। तिव� कमा को रचना से जुड़े प्रत्येक प्रकार के रहस्य तथा माया का ज्ञाता माना जाता है तथा तिव�कमा के इस नक्षत्र पर प्रबल प्रभाव के कारण इस नक्षत्र के जातक भी लगभग र्शाून्य से ही कला के उत्कृष्ट नमूने बनाने में दक्ष होते हैं। इस प्रकार चिचत्रा नक्षत्र माया के बहुत से भेद जानने वाले नक्षत्र के रूप में जाना जाता है तथा इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव वाले जातक ऐसी संुदर से संुदर कृतितयों की रचना करने में सक्षम होते हैं जिजसकी
कल्पना करना भी अन्य बहुत से नक्षत्र के जातकों के चिलए बहुत कदिbन होता है। इसी कारण बहुत से वैदिदक ज्योतितषी चिचत्रा नक्षत्र को अपार प्रतितभा का Eनी मानते हैं जो माया तथा रहस्यवाद को भेदकर बहुत सी संुदर कृतितयों को जन्म दे सकता है। वैदिदक ज्योतितष के अनुसार नवग्रहों में से मंगल ग्रह को चिचत्रा नक्षत्र का अधिEपतित ग्रह माना जाता है जिजसके कारण इस नक्षत्र पर मंगल ग्रह का भी प्रभाव रहता है। वैदिदक ज्योतितष में मंगल को अब्दिग्न, उजा तथा र्शाचिO से जुड़े हुए एक ग्रह के रूप में जाना जाता है तथा मंगल का चिचत्रा नक्षत्र पर प्रभाव इस नक्षत्र को वह आवश्यक उजा तथा प्रोत्साहन प्रदान करता है जो इसे अपनी कला को सजीव रूप देने के चिलए आवश्यक रूप से चातिहए होती है। इस प्रकार मंगल का इस नक्षत्र पर प्रभाव इस नक्षत्र की रचनात्मकता तथा कलात्मकता को और भी बढ़ा देता है।
वैदिदक ज्योतितष के अनुसार चिचत्रा नक्षत्र के पहले दो चरण कन्या राचिर्शा में स्थिLत होते हैं जबतिक इस नक्षत्र के र्शाेष दो चरण तुला राचिर्शा में स्थिLत होते हैं जिजसके चलते इस नक्षत्र पर कन्या राचिर्शा तथा इस राचिर्शा के स्वामी ग्रह बुE और तुला राचिर्शा तथा इस राचिर्शा के स्वामी ग्रह र्शाुV का भी प्रभाव रहता है। बहुत से वैदिदक ज्योतितषी यह मानते हैं तिक बुE तथा रु्शाV का चिचत्रा नक्षत्र पर प्रभाव इस नक्षत्र की कलात्मकता तथा रचनात्मकता को और भी बढ़ा देता है क्योंतिक वैदिदक ज्योतितष के अनुसार बुE तथा रु्शाV को रचनात्मकता तथा कलात्मकता के साथ जोड़ा जाता है। कुछ वैदिदक ज्योतितषी चिचत्रा नक्षत्र का संबंE राहू से भी जोड़ते हैं क्योंतिक इन ज्योतिततिषयों के अनुसार राहू कन्या राचिर्शा के सह-अधिEपतित हैं। इस प्रकार राहू का इस नक्षत्र पर प्रभाव होने के कारण राहू की तिवरे्शाताओं का भी इस नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शा न होता है जिजनमें रहस्यवाद तथा माया भी र्शााधिमल है। चिचत्रा नक्षत्र में तिव�कमा , बुE, रु्शाV तथा राहू की तिवश्विभन्न तिवरे्शाषताओं का समावेर्शा इस नक्षत्र को एक जदिटल प्रकार का नक्षत्र बना देता है जिजसके कारण इस नक्षत्र की उजा कई बार असुंतुचिलत हो जाती है जबतिक कई बार इन तिवरे्शाषताओं का संयुO प्रभाव इस नक्षत्र को कला के उत्कृष्ट नमूने रचने में सहायता भी करता है।
चिचत्रा नक्षत्र के जातक तिकसी न तिकसी स्तर पर रचनात्मकता के साथ जुड़े होते हैं क्योंतिक चिचत्रा नक्षत्र अपने आप में रचनात्मकता का ही दूसरा रूप है। चिचत्रा नक्षत्र के जातकों को प्रकृतित की संुदर से संुदर कृतितयों के रहस्य को समझने में बहुत रूचिच होती है तथा बहुत बार ये जातक इन रहस्यों को समझने में सGल भी हो जाते हैं क्योंतिक चिचत्रा नक्षत्र के जातकों में जदिटल से जदिटल रहस्य को भी भेद देने की क्षमता अन्य कई नक्षत्रों के जातकों से बहुत अधिEक होती है। आज के युग में चिचत्रा नक्षत्र के जातक वास्तु कला के क्षेत्र में, Gैर्शान जगत के के्षत्र में तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में काय रत पाये जा सकते हैं जिजनमें सGलता प्राप्त करने के चिलए रचनात्मक कल्पना र्शाचिO का होना आवश्यक है। चिचत्रा नक्षत्र के जातक अपने उच्च स्तर पर माया के रहस्य समझने में तथा दूसरे लोकों के साथ जुड़ने में भी सक्षम होते हैं। चिचत्रा नक्षत्र के जातकों के चरिरत्र तथा इनकी कृतितयों को एक प्रकार का रहस्यवाद घेर कर रखता है तथा रहस्य के इस घेरे को भेद कर इन जातकों की वास्ततिवकता को समझ लेना अधिEकतर व्यचिOयों के चिलए कदिbन काय हो सकता है। उदाहरण के चिलए अपनी भतिवष्य की तिकसी कृतित पर काय कर रहा चिचत्रा का कोई जातक अपने इद तिगद वाले लोगों को तिकसी रहस्यमयी चरिरत्र की भांतित लग सकता है क्योंतिक इस जातक के द्वारा तिकया जाने वाला काय इन लोगों की समझ से परे होता है तथा इन लोगों को ऐसा लगता है तिक चिचत्रा का यह जातक अपनी इस कृतित पर केवल अपना समय ही व्यथ कर रहा है तथा जब यही चिचत्रा का जातक अपनी इस कृतित को एक संुदर रूप में पूण करने में सGल हो जाता है तो ये लोग अचम्भिmत रह जाते हैं। चिचत्रा नक्षत्र के जातकों में अपने चरिरत्र तथा रचनात्मकता के चलते अन्य लोगों को अचम्भिmत करने की प्रबल क्षमता होती है।
आइए अब चचा करते हैं इस नक्षत्र से जुड़े कुछ अन्य तथ्यों के बारे में जिजन्हें वैदिदक ज्योतितष के अनुसार तिववाह कायn के चिलए प्रयोग तिकए जाने वाली गुण धिमलान की तिवधिE में महत्वपूण माना जाता है। वैदिदक ज्योतितष चिचत्रा को एक स्त्री नक्षत्र मानता है जिजसका कारण बहुत से वैदिदक ज्योतितषी इस नक्षत्र का बुE तथा रु्शाV के साथ संबंE मानते
हैं। वैदिदक ज्योतितष चिचत्रा नक्षत्र को वैश्य वण प्रदान करता है जिजसका कारण बहुत से वैदिदक ज्योतितषी इस तथ्य को मानते हैं तिक अधिEकतर कृतितयों का तिनमा ण काम करने की श्रेणी में आने वाले लोग करते हैं तथा वैश्य जातित का संबंE इसी श्रेणी से माना जाता है। वैदिदक ज्योतितष के अनुसार चिचत्रा नक्षत्र को गुण से तामचिसक तथा गण से राक्षस माना जाता है। अधिEकतर वैदिदक ज्योतितष इस वगpकरण का कारण इस तथ्य को मानते हैं तिक चिचत्रा नक्षत्र का माया के साथ प्रबल संबंE है तथा माया के भेद समझने में राक्षस जातित अन्य सभी जातितयों की तुलना में कहीं आगे है। वैदिदक ज्योतितष पंच तत्वों में से अब्दिग्न तत्व को इस नक्षत्र के साथ जोड़ता है तथा यह अब्दिग्न चिचत्रा की रचनात्मकता को उजा प्रदान करने वाली अब्दिग्न मानी जाती है।
लेखकतिहमांर्शाु र्शांगारी