ात का वववि आग...
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न्यायमूर्ति अर्ित प्रकाश शहा
भूतपूर्ि मखु्य न्यायाधीश, र्िल्ली उच्च न्यायालय
अध्यक्ष भारत का र्र्र्ध आयोग
भारत सरकार
14र्ाां तल, र्हन्िसु्तान टाईम्स हाऊस,
कस्तूरबा गाांधी मागि
नई र्िल्ली – 110 001
अ.सा.सां0 6(3)263/2014-एलसी(एलएस) 31 अगस्त, 2015
विय श्री सदानंद गौडा जी,
भारत के र्र्र्ध आयोग ने भारत में मतृ्युिांड के र्र्षय पर अध्ययन करन ेके र्लए उच्चतम न्यायालय से सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार
बनाम महाराष्ट्र [(2009)6 एससीसी498] और शांकर र्कशनरार् खािे बनाम महाराष्ट्र’’ [(2013)5 एससीसी 546] में ‘‘इस र्र्षय पर
अद्यतन और िागरूक र्र्चार-र्र्मशि तथा चचाि र्कए िान ेकी अनजु्ञा िेन ेके र्लए एक र्निशे प्राप्त र्कया था ।
यह पहली बार नहीं ह ैर्क आयोग से मतृ्युिांड पर र्र्चार करन ेके र्लए कहा गया ह—ै35र्ीं ररपोटि (‘‘मतृ्युिांड’’, 1967), र्स्ततु:
इस र्र्षय में एक महत्र्पणूि ररपोटि ह ै। उस ररपोटि में भारत में मतृ्युिांड बनाए रखन ेकी र्सफाररश की गई थी । उच्चतम न्यायालय ने बचन र्सांह बनाम
भारत सांघ [एआईआर 1980 एससी 898] में मतृ्युिांड की सांर्ैधार्नकता को बनाए रखा था, र्कन्त ुउसन ेउसके र्िए िान ेमें मनमानेपन को कम
करन ेके र्लए उसके लाग ू र्कए िान ेको ‘‘र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम’’ तक सीर्मत कर र्िया था । तथार्प, िेश के सामार्िक, आर्थिक और
साांसकृर्तक सांिभि में 35र्ीं ररपोटि के पश्चात ्से नाटकीय रूप से पररर्तिन हो गए हैं । इसके अर्तररक्त, मनमानापन 35 र्षों में, मतृ्युिांड सांबांधी
मामलों के न्यायर्नणियन में, इस र्र्षय पर सर्िप्रथम उिाहरण के अर्धकर्थत र्कए िान ेके समय से मखु्य र्चांता का र्र्षय रहा ह ै।
तिनुसार, और इस तथ्य को स्र्ीकार करते हुए र्क मतृ्युिांड बहुत ही सांरे्िनात्मक प्रकृर्त का मदु्दा ह,ै आयोग ने इस र्र्षय पर एक
व्यापक अध्ययन करन ेका र्र्र्नश्चय र्कया । मई, 2014 में आयोग ने एक परामशि पत्र िारी करके िनता से र्टप्पर्णयाां आमांर्त्रत की और इसी
उद्दशे्य की प्राप्र्त के र्लए आयोग ने नई र्िल्ली में 11 िुलाई, 2015 को ‘‘भारत में मतृ्युिांड’’ पर एक र्िन का परामशि सत्र आयोर्ित र्कया ।
तत्पश्चात ्व्यापक र्र्चार-र्र्मशि, चचाि और गहराई से अध्ययन करके आयोग ने र्तिमान ररपोटि को आकार र्िया ह ै। इस र्र्षय में आयोग की
र्सफाररश ‘‘मृत्युदडं’’ नामक आयोग की ररपोर्ट स0ं 262 के रूप में सरकार के र्र्चाराथि भेिी िा रही ह ै।
अांशकार्लक सिस्य प्रो0 (डा0) योगेश त्यागी द्वारा कुछ र्चांताएां प्रकट की गई थीं, र्िन्हें र्तिमान ररपोटि में सर्ोत्तम सांभर् सीमा तक
हल करन ेका प्रयास र्कया गया ह ै। तथार्प, ररपोटि पर उनके हस्ताक्षर प्राप्त नहीं र्कए िा सके, क्योंर्क र्ह िेश के बाहर थे । न्यायमरू्ति (सेर्ार्नर्तृ्त)
सुश्री ऊषा मेहरा, सिस्य ; श्री पी.के. मलहोत्रा, र्र्र्ध सर्चर् और डा0 सांिय र्सांह, सर्चर्, र्र्धायी र्र्भाग, पिेन सिस्यों ने ररपोटि पर हस्ताक्षर न
करन ेका चयन र्कया ह ैऔर इस र्र्षय पर अपनी र्टप्पर्णयाां प्रस्ततु की ह,ै िो पररर्शष्ट के रूप में इस ररपोटि के साथ सांलग्न ह ै।
सािर,
आपका,
ह/-
(अर्ित प्रकाश शहा)
श्री डी.वी.सदानदं गौडा
माननीय वववि और न्याय मंत्री
भारत सरकार
शास्त्री भवन
नई वदल्ली
ii
ररपोर्ट सं0 262
मृत्युदडं
ववषयवस्तु की सारणी
अध्याय नाम पृष्ठ
1 िस्तावना 1-19
क उच्चतम न्यायालय से सांिभि 1
ख र्र्र्ध आयोग की पूर्ि ररपोटें 3
(i) मृत्यिुांड पर 35र्ीं ररपोटि (1967) 3
(ii) फाांसी के ढांग पर 187र्ीं ररपोटि (2003) 5
ग 35र्ीं ररपोटि की पनु:परीक्षा करन ेके र्लए आर्श्यकता 5
(i) भारत में र्र्कास 6
(ii) 1973 में नई िांड प्रर्िया सांर्हता 8
(iii) सांर्धैार्नक सम्यक् प्रर्िया के मानकों का प्रकट होना 10
(iv) मृत्यिुांड के मनमाने और व्यक्र्तपरक रूप से लागू र्कए िाने सांबांधी न्यार्यक र्र्कास 12
(v) हाल के रािनरै्तक र्र्कास 14
(vi) अांतरराष्ट्रीय र्र्कास 15
घ आयोग द्वारा अपनाई िाने र्ाली परामशी प्रर्िया 16
ड र्तिमान ररपोटि 18
2 भारत में मृत्युदडं का इवतहास 20-54
क सांर्र्धान-पूर्ि इर्तहास और सांर्र्धान सभा र्र्चार-र्र्मशि 20
ख र्र्धायी पृष्ठभूर्म 23
ग र्र्र्ध आयोग की पूर्ि ररपोटें 25
(i) र्र्र्ध आयोग की 35र्ीं ररपोटि 25
(ii) र्र्र्ध आयोग की 187र्ीं ररपोटि 28
घ भारत में मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता 29
(i) िगमोहन से बचन र्सांह तक 29
(ii) आिशेात्मक मृत्यिुांडािशे 37
(iii) फाांसी िने ेकी पद्धर्त 39
iii
(iv) र्र्लांब और मृत्यिुांड 39
ड. भारत में मृत्यिुांड पर र्र्र्धयाां 42
(i) मृत्यिुांड के के्षत्र के हाल में र्कए गए र्र्स्तार 46
(ii) मृत्यिुांड और गैर मानर् र्ध अपराध 47
(iii) आज्ञापक मृत्यिुांड की लगातार र्र्द्यमानता 50
(iv) मृत्यिुांड और आतांक र्र्रोधी र्र्र्धयाां 50
(v) मृत्यिुांड को समाप्त करन ेका प्रस्तार् करने र्ाले र्र्धेयक 51
च हाल में भारत में र्िए गए मृत्यिुांड 53
3 अंतरराष्ट्रीय रुझान 55-108
क अांतरराष्ट्रीय मानर् अर्धकार र्र्र्ध में र्र्कास र्र्रचना 58
(i) अांतरराष्ट्रीय मानर् अर्धकार सांर्धयों में मृत्यिुांड 58
क. अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनैर्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा 60
ख. मृत्यिुांड समाप्त करन े का उद्दशे्य रखते हुए अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक
अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा का िसूरा र्कैल्र्पक प्रोटोकाल
63
ग. बालक के अर्धकारों पर कन्र्ेंशन 64
घ. यातना और िूरता, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार या िांड के र्र्रुद्ध कन्र्ेंशन 65
ड. अांतरराष्ट्रीय आपरार्धक र्र्र्ध 66
च. भारतीय र्र्र्ध में अांतरराष्ट्रीय सांर्ध बाध्यताएां 68
(ii) अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध में मृत्यिुांड से सांबांर्धत रक्षोपाय 69
क. आर्थिक और सामार्िक पररषि ्रक्षोपाय 70
ख. गैर न्यार्यक, सांर्क्षप्त या मनमाने र्नष्पािनों पर र्र्शेष ररपोटिर की ररपोटें 73
ग. यातना और अन्य िूर, अमानर्ीय या अपमानिक व्यर्हार अथर्ा िांड पर र्र्शेष
ररपोटिर
74
(iii) मृत्यिुांड के सांबांध में र्शै्र्र्क रूप से रािनरै्तक बाध्यताएां 75
क. महासभा सांकल्प 76
ख. सांयकु्त राष्ट्र मानर् अर्धकार पररषि ् 77
(iv) मृत्यिुांड और प्रत्यपिण की र्र्र्ध 78
ख मृत्यिुांड पर अांतरराष्ट्रीय रुझान 81
iv
(i) मृत्यिुांड के सांबांध में के्षत्रीय रुझान 82
क. अमरीका 82
ख. यूरोप 85
ग. अफ्रीका 91
घ. एर्शया और परै्सर्फक 96
1. िर्क्षण एर्शया 101
ग र्नष्कषि 104
4 मृत्युदडं के वलए दडं संबंिी न्यायोवित्य 109-154
क र्र्चारण का के्षत्र 109
ख र्र्र्ध आयोग की 35 र्ीं ररपोटि का दृष्र्टकोण 111
ग भयोपरतता 112
(i) मृत्यिुांड की भयपरतता के मूल्य पर आनभुर्र्क साक्ष्य 116
(ii) भयोपरतता की धारणाएां 121
क. िानकारी सांबांधी भूलें 122
ख. यकु्र्तसांगतता सांबांधी भूलें 123
(iii) आतांकर्ाि का मामला 124
घ असमथिता 128
ड. प्रर्तशोध 131
(i) बिले के रूप में प्रर्तशोध 132
(ii) प्रर्तशोध, ऐसे िांड के रूप में, र्िसके योग्य अपराधी हो 133
च आनपुार्तकता 136
छ सधुार 141
(i) सधुार के सांबांध में उच्चतम न्यायालय 142
ि अन्य महत्र्पूणि र्र्षय 146
(i) िनता की राय 146
झ सधुारात्मक न्याय की र्िशा में गर्तर्र्र्ध 148
5 मृत्यु से दडंनीय अपरािों में दडं देना 155-253
क बचन र्सांह र्र्रचना : मागिर्निरे्शत र्र्र्ेकार्धकार और व्यक्र्त र्र्शेष पर आधाररत
िांड िनेा
155
v
ख बचन र्सांह र्र्रचना का कायािन्र्यन 158
(i) सदै्धाांर्तक र्र्रचना 162
क. माछी र्सांह 163
ख. अपराध कें र्ित फोकस 165
ग. सामूर्हक चेतना को धक्का और न्याय के र्लए समाि की पकुार 169
घ. अपराध परीक्षण, आपरार्धक परीक्षण और र्र्रल ेमें से र्र्रलतम का परीक्षण 173
(ii) गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाले समझे गए कारक 177
क. गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों पर र्र्चार न करना 178
ख. कम करन ेर्ाले कारक के रूप में आयु 179
ग. गुरुतरकारी कारक के रूप में अपराध की प्रकृर्त 182
घ. र्कसी भड़काने र्ाले कारक के रूप में अपराधी का पूर्ि आपरार्धक अर्भलेख 187
ड. सधुार की सांभार्ना 189
(iii) प्रज्ञा के र्नयम 194
क. पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य 195
ख. न्यायाधीशों के बीच िोर्षता या िांडािशे पर असहमर्त 197
(iv) मृत्यिुांड के अर्धरोपण पर आनभुर्र्क आांकडे़ 205
क. मृत्यिुांड के अर्धरोपण की िरें 205
ख. ‘न्यायाधीश – कें र्ित’ मृत्यिुांड सांबांधी न्यायशास्त्र 209
ग. भौगोर्लक र्र्र्भन्नताएां 211
ग आपरार्धक न्याय प्रर्िया की व्यर्स्था सांबांधी और र्र्रचना सांबांधी र्चांताएां 212
(i) सधुार करन ेकी क्षमता का र्नधािरण करना 212
(ii) आर्थिक और शकै्षर्णक िबुिलता 219
घ आपरार्धक न्याय प्रणाली की भ्रमशीलता और मृत्यिुांड 227
(i) िोष का अर्धारण 228
(ii) मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेमें स्र्ीकार की गई गलती 236
(iii) समान मामलों में ‘र्र्रल े मामलों में से र्र्रलतम’ र्र्रचना के लागू करने में
र्र्र्भन्नाएां
241
6 क्षमा करने संबंिी शक्वतया ं और मृत्युदडं का वनष्पादन करने से सबंंवित
सम्यक् िविया वववाद्यक
254-307
vi
क प्रस्तार्ना 254
ख क्षमा करन ेसांबांधी शक्र्तयों की प्रकृर्त, प्रयोिन और के्षत्र 254
ग िया सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग की परीक्षा करन े के र्लए न्यार्यक पनुर्र्िलोकन का
मानक
267
घ िया सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग का न्यार्यक पनुर्र्िलोकन करन ेर्ाले ररट न्यायालयों
का कतिव्य
269
ड. राष्ट्रपर्त द्वारा अनचु्छेि 72 के अधीन शक्र्त के प्रयोग में व्यक्र्तपरकता 272
च िया सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग का न्यार्यक पनुर्र्िलोकन 277
(i) िीघिकार्लक मार्नसक बीमारी की उपेक्षा की गई : सनु्िर र्सांह का मामला 279
(ii) अन्र्ेषण और र्र्चारण में लांबे र्र्लांब अांतर्िर्लत करन ेर्ाले मामले 280
क. गुरमीत र्सांह का मामला 280
ख. साइमन और अन्य के मामले 281
(iii) राष्ट्रपर्त के र्लए तैयार र्कया गया भागत: और अपूणि सांके्षप : महेंि नाथ िास का
मामला
282
(iv) मस्र्तष्क का अनपुयोिन 282
क. धनन्िय चटिी का मामला 282
ख. बांडू बाबूरार् र्तडके का मामला 283
(v) मामल ेके ससुांगत अर्भलेखों तक पहुांचे र्बना नामांिूर की गई िया यार्चका : प्रर्ीण
कुमार का मामला
283
(vi) सिोष फाांसी और क्षमा सांबांधी प्रर्िया की असफलता 284
क. िीता र्सांह का मामला 284
ख. रर्िी रार् और सरुिा राम के मामले 285
(vii) पश्चातर्ती अनर्धानता से र्कए गए घोर्षत र्नणियों के अधीन मृत्यिुांड र्िए गए
अन्य कैर्ियों के मामले
287
(क) ऐसे मामले, र्िन्होंन ेरर्िी के अनर्धानता से र्कए गए र्र्र्नश्चय पर भरोसा र्कया ह ै 287
(ख) साई बन्ना का मामला 289
(ग) सांगीत और खाि ेद्वारा अनर्धानता से र्कए गए अर्भर्नधािररत र्र्र्नश्चय 290
छ फाांसी पूर्ि स्र्थर्त में मृत्य ुपांक्र्त र्ाले र्सद्धिोर्षयों पर अर्धरोर्पत ििि और पीड़ा के
सांर्धैार्नक र्नर्हताथि
291
(i) मृत्य ुपांक्र्त में सहनशील लांबे र्षि 293
vii
क. प्राट में र्र्लांब का पनुरीर्क्षत मानक 297
ख. र्र्लांर्बत र्नष्पािन र्कसी िांड सांबांधी प्रयोिन की पूर्ति नहीं करता ह ैऔर इसीर्लए
अत्यर्धक ह ै
301
(ii) र्नरोध की अर्धै एकाांत िशाएां 303
ि र्नष्कषि 306
7 वनष्कषट और वसफाररशें 308-314
क र्नष्कषि 308
ख र्सफाररश 313
उपाबंि
I भाग लेने र्ालों की सूची, एक र्िन का परामशि 315-318
पररवशष्र्
क न्यायमूर्ति (सेर्ार्नरृ्त्त) सशु्री ऊषा मेहरा, सिस्य का र्टप्पण 319 - 327
ख डा0 सांिय र्सांह, सिस्य (पिने) का र्टप्पण 328 - 333
ग श्री पी.के. मल्होत्रा, सिस्य (पिने) का र्टप्पण 334 – 343
1
अध्याय 1
िस्तावना
क. उच्ितम न्यायालय से संदभट
1.1.1 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज्य (‘खाि’े)1 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने मृत्यिुांडािशे के र्र्षय पर एक
अपील के सांिभि में कायिर्ाही करते हुए, मृत्यिुांड िने ेऔर क्षमा प्रिान करन ेके र्लए सांशक्त और र्नयर्मत प्रयोिन की कमी के बारे में
अपनी र्चांता व्यक्त की थी । न्यायालय ने इन िो र्र्षयों पर भारत के र्र्र्ध आयोग (‘आयोग’) से र्र्र्नर्ििष्ट रूप से हस्तके्षप करन ेके
र्लए, यह र्टप्पणी करते हुए, कहा :
मझुे यह प्रतीत होता ह ैर्क यद्यर्प न्यायालय ने र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम र्सद्धाांत लागू करते रह ेहैं, र्कन्तु कायिपार्लका ने
मृत्यिुांडािशे को आिीर्न कारार्ास में सांपररर्र्तित करन ेके र्लए कुछ ऐसे तथ्यों को ध्यान में रखा ह ैिो न्यायालयों को ज्ञात
नहीं ह ै। इस सांबांध में, चूांर्क हम व्यक्र्तयों (अपराधी और बलात्सांग-हत्या के पीर्ड़त, िोनों) के िीर्न से सांबांर्धत ह,ै यह
अर्नर्ायि ह ै र्क नयायालय मृत्यिुांड िने े के र्लए और िब र्क र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत हों, न्यायशास्त्र सांबांधी
आधार अर्धकर्थत करें, र्िससे र्क र्तिमान अर्नश्र्चतता से बचा िा सके । मृत्यिुांड और उसका र्नष्पािन अर्नश्र्चतता का
र्र्षय नहीं होना चार्हए और न ही मृत्युिांडािशे को आिीर्न कारार्ास में सांपररर्र्तित करना सांयोग का र्र्षय होना चार्हए ।
किार्चत भारत का र्र्र्ध आयोग इस र्र्षय की परीक्षा करके र्क क्या मृत्यिुांड एक भयपरर्तकारी िांड ह ैया प्रर्तकरात्मक
न्याय ह ैया असमथि कर िने ेर्ाले उद्दशे्य की पूर्ति करता ह,ै इस र्र्षय का समाधान कर सकता ह ै।2 (िोर र्िया ह)ै
प्रथमदृष्टया यह प्रतीत होता ह ैर्क राज््य के िो महत्र्पूणि अांग अथाित ्न्यायपार्लका और कायिपार्लका, मृत्य ुसे िांडनीय र्कसी
अपराध के िोषी र्सद्धिोर्षयों के िीर्न के साथ र्र्र्भन्न मानकों से वयर्हार कर रह ेहैं । िबर्क न्यायपार्लका द्वारा लागू
मानक र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम र्सद्धाांत का ह ै(यद्यर्प यह अपन ेलागू र्कए िाने में र्र्षयगत या न्यायाधीश कें र्ित हो
सकती हैं) र्कन्तु न्यूनीकरण प्रिान करन ेमें कायिपार्लका द्वारा लागू र्कया गया मानक ज्ञात नहीं ह ै। अत: यह हो सकता ह ै
(और हुआ भी हो) र्क प्रस्तुत मामले में सत्र न्यायाधीश, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय र्कसी र्सद्धिोषी को
मृत्यिुांड िने ेके अपन ेर्र्चार में एकमत हों और कोई अन्य र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत हो, र्कन्त ुन्यायपार्लका ने पूणि
रूप से र्र्रोधी राय रखी हो और मृत्यिुांड को लघुकृत कर र्िया हो । इस पर भी भारत के र्र्र्ध आयोग द्वारा र्र्चार र्कए िाने
की आर्श्यकता ह ै।3 (िोर र्िया ह)ै
1.1.2 खाि ेमृत्यिुांड से सांबांर्धत हाल का पहला उिाहरण नहीं था र्िसे उच्चतम न्यायालय ने आयोग को मृत्यिुांड से सांबांर्धत प्रश्न के
र्लए र्नर्ििष्ट र्कया था । सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राष्ट्र (‘बररयार’)4 में इस र्र्षय पर आनभुर्र्क अनसुांधान की
कमी पर िखु प्रकट करते हुए न्यायालय ने कहा था :
हमें यह भी ज्ञात ह ै र्क 18-12-2007 को राष्ट्र सांघ महासभा ने उन िशेों का आह्वान करते हुए, र्िन्होंन े मृत्यिुांड को
बनाए रखा ह,ै मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी दृष्र्ट से उसके र्नष्पािनों पर सांपूणि र्र्श्र्व्यापी अर्धस्थगन स्थार्पत करन ेके र्लए
सांकल्प 62/149 को अांगीकार र्कया था । तथार्प भारत 59 राष्ट्रों में से एक ह,ै र्िन्होंन ेमृत्यिुांड को बनाए रखा ह ै।
1 (2013) 5 एससीसी 546 । 2 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546, पैरा 148 पर । 3 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546, पैरा 149 पर । 4 (2009) 6 एससीसी 498
2
र्र्श्र्सनीय अनसुांधान शायि भारत के र्र्र्ध आयोग द्वारा या राष्ट्रीय मानर्ार्धकार आयोग, इस र्र्षय पर अद्यतन और
िागरूक चचाि तथा र्र्चार-र्र्मशि के र्लए अनजु्ञा ि ेिा सकता ह ै।5 (िोर र्िया ह)ै
1.1.3 इस प्रकार र्तिमान ररपोटि में अर्धकतर र्र्चार-र्र्मशि उच्चतम न्यायालय के इन र्निशेों, पररर्र्तित पररस्र्थर्तयों की दृष्र्ट से
मृत्यिुांड पर आयोग की अपनी र्सफाररशों की पनु:परीक्षा की आर्श्यकता ह,ै द्वारा सांचार्लत ह ै।
ख. वववि आयोग की पूवट ररपोर्ें
(i) मृत्युदडं पर 35वीं ररपोर्ट (1967)
1.2.1 आयोग ने र्िसांबर, 1962 में ‘‘मृत्यिुांड’’ सांबांधी अपनी 35र्ीं ररपोटि पर कायि आरांभ र्कया था, िो उसने र्िसांबर, 1967
में प्रस्तुत की । यह ररपोटि सांसि ्द्वारा भेिे गए एक र्निशे का पररणाम थी, िब तीसरी लोक सभा ने मृत्यिुांड समाप्त करन ेके र्लए श्री
रघुनाथ र्सांह, सिस्य लोक सभा द्वारा प्रस्तुत र्कए गए सांकल्प पर बहस की थी ।6 आयोग ने कानूनी पसु्तकों में से मृत्युिांड समाप्त र्कए
िाने के र्र्षय पर र्र्चार करने की व्यापक प्रर्िया आरांभ की । र्र्द्यमान सामार्िक-आर्थिक- साांस्कृर्तक सांरचनाओां (र्िनके अांतगित
शरै्क्षक स्तर और आपरार्धक िरें भी हैं) के अपन ेर्र्श्लेषण के आधार पर और र्कसी भारतीय आनभुर्र्क अनुसांधान के न होन ेपर इसन े
यह र्नष्कषि र्नकाला र्क मृत्यिुांड बनाए रखा िाना चार्हए ।
1.2.2 इसकी र्सफाररशों में कहा गया र्क :
मृत्यिुांड समाप्त करने के र्लए बहुत से तकों की र्र्र्धमान्यता को और उनके पीछे की शाक्र्त को अपर्र्िित करना कर्ठन ह ै।
आयोग न तो मृत्यिुांड की अप्रर्तसांहरणीयता के तकि को हल्के से लेता ह,ै मृत्युिांड की गांभीरता और मानर्ीय मूल्यों के गहरे
प्रश्नों पर िोर िने ेमें, िनता के कर्तपय र्गों द्वारा िर्शित गहरी भार्नाओां के र्लए आधरु्नक दृष्र्टकोण की आर्श्यकता ह ै।
तथार्प, भारत की िशाओां, इसके नागररकों के सामार्िक तान ेबान ेकी र्र्र्र्धता, िशे में नरै्तकता और र्शक्षा के स्तर में
र्र्र्भन्नता को इसके के्षत्र की र्र्शालता, इसकी िनता की अनेक रूपता और र्तिमान घटना पूणि स्र्थर्त में िशे में र्र्र्ध और
व्यर्स्था बनाए रखने के र्लए सर्ोच्च आर्श्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत मृत्यिुांड समाप्त करन ेके प्रयोग की िोर्खम
नहीं उठा सकता ह ै।
ऐसे तकि िो, र्र्श्र् के एक के्षत्र के सांबांध में र्र्र्धमान्य होंगे, इस सांिभि में िसूरे के्षत्र के सांबांध में अच्छे नहीं हो सकते हैं ।
समान रूप से मृत्यिुांड का समाप्त करना, चाह ेभारत के कुछ भागों में महत्र्पूणि अांतर न भी डाल ेतो भी िसूरे भागों में उसके
गांभीर पररणाम हो सकते हैं । सभी अांतर्िर्लत मदु्दों पर र्र्चार करन ेके पश्चात् आयोग की यह राय ह ैर्क मृत्यिुांड भारत की
र्तिमान स्र्थर्त में बनाए रखा िाना चार्हए ।7
(ii) फांसी के ढंग पर 187वीं ररपोर्ट (2003)
5 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 112 पर । 6 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967,
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1and3.pdf
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol2.pdf पर उपलब्ध ह,ै (25.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन
र्कया गया) । 7 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 1 (मुख्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार) http://lawcommissionofindia.nic.in/1-
50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
3
1.2.3 आयोग ने मृत्यिुांड के र्र्षय पर एक बार और—2003 में ‘‘मृत्यिुांड के र्नष्पािन का ढांग और आनुषांर्गक र्र्षय’’ पर
अपनी 187र्ीं ररपोटि में र्र्चार र्कया ।8 यह आयोग द्वारा स्र्प्ररेणा से उठाया गया र्र्षय था, िो ‘‘र्र्ज्ञान, प्रौद्योर्गकी, ओषर्ध,
र्नष्चेतकों के के्षत्र में प्रौद्योर्गकीय उन्नर्त’’ ।9 यह केर्ल फाांसी के ढांग पर सीर्मत प्रश्न से सांबांर्धत था और इसमें िांड के रूप में मृत्यिुांड
की सांर्धैार्नकता और र्ाांछनीयता के सारभूत प्रश्न पर र्र्चार नहीं र्कया गया था ।
ग. 35वीं ररपोर्ट की पुन:परीक्षा करने के वलए आवश्यकता
1.3.1 35र्ीं ररपोटि में आयोग का र्नष्कषि र्क ‘‘र्र्द्यमान घटनापूणि स्र्थर्त में भारत मृत्यिुांड समाप्त करने के प्रयोग की िोर्खम नहीं
उठा सकता ह’ै’10 और आयोग की र्सफाररश र्क ‘‘मृत्यिुांड िशे की र्तिमान स्र्थर्त में बनाए रखा िाना चार्हए’’11 उन िशाओां पर
र्नभिर थी और उनके द्वारा प्रभार्ी थी िो उस समय भारत में र्र्द्यमान थी । भारत में उस समय से बहुत कुछ बिल गया ह ैऔर र्र्श्र् में
र्िसम्बर, 1967 के पश्चात् से, इतना अर्धक पररर्तिन हो गया ह ैर्क समकालीन सांिभि में इस र्र्षय पर पनु: र्र्चार करना र्ाांछनीय हो
गया ह ै। छह कारकों का र्र्शेष रूप से उल्लेख र्कया िाना अपेर्क्षत ह ै।
(i) भारत में ववकास
1.3.2 मृत्यिुांड समाप्त करने को नामांिूर करन ेर्ाली 35र्ीं ररपोटि में आयोग के र्नष्कषि ‘‘भारत में स्र्थर्तयाां, उसके र्नर्ार्सयों के
सामार्िक तान-ेबान ेकी र्र्र्र्धता, िशे में नरै्तकता और र्शक्षा के स्तर में र्भन्नता’’12 से सांबांर्धत थे ।
1.3.3 तथार्प, र्शक्षा, साधारण कुशल-के्षत्र, सामार्िक तथा आर्थिक िशाएां 35 र्ीं ररपोटि र्लखे िान ेके समय से आि बहुत र्भन्न
ह ै । उिाहरण के र्लए प्रर्त व्यक्र्त कुल राष्ट्रीय आय स्र्थर कीमतों पर, 2004-2005 की आर्र्लयों पर आधाररत 2011-
2012 में 1838.5 रुपए थी, िबर्क यह 1967-1968 में यह 191.9 रुपए थी ।13 समान रूप से र्यस्क र्शक्षा 1961 में
24.02 प्रर्तशत थी14 और 2011 में 74.0 प्रर्तशत थी15 और िीर्न प्रत्याशा (पोषण, स्र्ास्थ्य सांबांधी िखेभाल, आर्ि का
8 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th report.pdf पर उपलब्ध ह ै
(25.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 9 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 5, http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th report.pdf पर
उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 10 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 1 (मखु्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) । 11 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 1 (मखु्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) । 12 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 1 (मखु्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) । 13 सारणी 1.1 िरे्खए, आर्थिक सर्े 2014-2015 का साांख्र्यकी पररर्शष्ट http://indiabudget.nic.in/es2014-15/estat1.pdf पर
उपलब्ध ह ै(6.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 14 ‘‘राज््य की साक्षरता’’ भारत की िनगणना, भारत की िनगणना 1961, http://consusindia.gov.in/Data_Products/Library/Provisional_Population_Total_link/PDF_Links/chapte
r 7.pdf पर उपलब्ध ह ै(19.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 15 ‘‘राज््य की साक्षरता’’ भारत की िनगणना, भारत की िनगणना 2011, http://consusindia.gov.in/2011-pro-
results/data_film/mp/07Lieracy.pdf पर उपलब्ध ह ै(19.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
4
उत्पाि) 1965-1970 में 47.1 र्षि थी16 और 2010-2015 में 64.9 र्षि थी ।17
1.3.4 आगे 35र्ीं ररपोटि में र्र्द्यमान (ऊां ची) अपराध की िर पर ‘‘र्तिमान घटनापूणि स्र्थर्त में’’ मृत्यिुांड समाप्त करन ेके प्रयोग
का खतरा उठाने में अपना सांकोच न्यायोर्चत ठहराया । इसमें अपनी र्चांता र्नम्नर्लर्खत रीर्त से प्रकट की :
कुछ र्षों के िौरान भारत में मानर् र्ध के आांकड़ों ने कोई स्पष्ट कमी िर्शित नहीं की ह ै। प्रर्त िस लाख िनसांख्या में मानर्
र्ध की िर भारत में बहुत से िशेों से, िहाां मृत्यिुांड समाप्त कर र्िया गया ह,ै पयािप्त रूप से ऊां ची ह ै।18
1.3.5 तथार्प भारत में अपराध सांबांधी ररपोटों19 के अनसुार, िो राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो (‘एनसीआरबी’) और गृह मांत्रालय
के तत्र्ाधान में प्रकार्शत की गई ह,ै मृत्य ुिर 1992 से लगातार और अबार्धत रूप से कम हो रही ह,ै िब यह प्रर्त एक लाख
िनसांख्या 4.6 थी,20 2013 के नर्ीनतम आांकड़ों के अनसुार मृतय ुिर प्रर्त लाख िनसांख्या 2.7 ह,ै िो 2012 से िब र्ह 2.8
थी21 और र्गर गई ह।ै मृत्य ुिर में यह कमी फाांसी िने ेकी िर में तिनसुार कमी से मेल खा रही ह,ै इस प्रकार यह इस बारे में प्रश्न उठाती ह ै
र्क क्या मृत्यिुांड आिीर्न कारार्ास से बड़ा भयपरर्तकारी प्रभार् रखता ह ै।22
1.3.6 यह स्पष्ट ह ै र्क भारत में सामार्िक, आर्थिक और साांस्कृर्तक िशाएां, र्िन्होंन ेआयोग को अपनी 35र्ीं ररपोटि में अपने
र्नष्कषि र्नकालने में प्रभार्र्त र्कया था, 1967 से पयािप्त रूप से बिल गई हैं ।
(ii) 1973 में नई दडं िविया सवंहता
1.3.7 35र्ीं ररपोटि में आयोग की र्सफाररशें र्तिमान िांड प्रर्िया सांर्हता (‘िांप्रसां’) िो 1973 में अर्धर्नयर्मत की गई थी, से पूर्ि
की हैं । इसके पररणामस्र्रूप धारा 354(3) में एक सांशोधन लाया गया, र्िसमें िब र्कसी ऐसे अपराध के र्लए, िहाां िांड आिीर्न
कारार्ास या मृत्य ुहो सकती ह,ै मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत र्कया िाता ह ैतो ‘‘र्र्शेष कारण’’ र्िए िाने की अपेक्षा की गई । बचन र्सांह
बनाम पांिाब (‘बचन र्सांह’)23 में उच्चतम न्यायालय ने इसका यह अर्भप्रेत करने के रूप में र्नर्िचन र्कया र्क हत्या के र्लए सामान्य
िांडािशे आिीर्न कारार्ास होना चार्हए और यह र्क र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए ।
16 िन्म पर िीर्न प्रत्याशा- िोनों र्लांग सम्र्मर्लत, 1965-70, यूएन डाटा, http://data.un.org/Data.aspx?q=india+life+expectancy+1965&d=PopDiv&=variableID%3a68%3bcrID
%3a356%3btimeID%3a103%2c104 पर उपलब्ध ह ै(19.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 17 िन्म पर िीर्न प्रत्याशा- िोनों र्लांग सम्र्मर्लत, 1965-70, यूएन डाटा, http://data.un.org/Data.aspx?q=india+life+expectancy+1965&d=PopDiv&=variableID%3a68%3bcrID
%3a356%3btimeID%3a112%2c113 पर उपलब्ध ह ै(19.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 18 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 262, 263 http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
19 भारत में अपराध, राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो,http://ncrb.gov.in/CD-CII2013/Home.asp पर उपलब्ध ह ै(2.08.2015 को अांर्तम
बार अर्लोकन र्कया गया) ।
20 भारत में अपराध, 2013 राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो, http://ncrb.gov.in/ciiprevious/Data/CII-1992/CII-1992/table-
2.pdf पर उपलब्ध ह ै(8.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
21 भारत में अपराध, 2013 राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो,http://ncrb.gov.in/CD-CII2013/figure%20at%20glance.pdf पर
उपलब्ध ह ै(8.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
22 युग मोर्हत चौधरी, हैंर्गांग ऑन थ्योरीि, फ्रां टलाइन, 7 र्सतांबर 2012, 29-32 23 (1980) 2 एससीसी 684
5
1.3.8 धारा 354(3) 35र्ीं ररपोटि की र्सफाररशों के, र्िनमें यह कहा गया था र्क ‘‘आयोग र्कसी ऐसे उपबांध (क) की
र्सफाररश नहीं करता र्क हत्या के र्लए साधारण िांडािशे आिीर्न कारार्ास होना चार्हए र्कन्तु भड़काने र्ाली पररस्र्थर्तयों में
न्यायालय मृत्यिुांड ि ेसकता ह’ै’, र्र्रुद्ध थीं ।24
1.3.9 प्रसांगानरुूप से ररपोटि ने यह भी र्सफाररश की र्क भारतीय िांड सांर्हता की धारा 303 अपररर्र्तित रह2े5 (तत्पश्चात् मीठू
बनाम पांिाब राज््य में इसे असांर्धैार्नक र्नधािररत र्कया गया)26 और यह र्क मृत्यिुांडािशे और र्ास्तर्र्क फाांसी27 के बीच र्कसी
न्यूनतम अांत:के्षप की (तत्पश्चात ्इसे शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ में चौिह र्िन र्कया गया) आर्श्यकता नहीं थी ।28 ऐसे र्र्कास
ररपोटि पर पनु: र्र्चार करन ेके महत्र् पर िोर ितेे हैं ।
(iii) संवैिावनक सम्यक् िविया के मानकों का िकर् होना
1.3.10 1967 के पश्चात् भारत ने सांर्र्धान के अनचु्छेि 21 के र्नर्िचन में र्र्स्तार को िखेा ह,ै र्िसमें प्रर्तष्ठा और सारर्ान
तथा सम्यक् प्रर्िया के अर्धकार को भी पढा गया ह ै। अत्यर्धक प्रर्सद्ध मनेका गाांधी बनाम भारत सांघ29 में यह अर्भर्नधािररत र्कया
गया था र्क र्र्र्ध द्वारा र्र्र्हत प्रर्िया को ऋि,ु न्यायसांगत और यकु्र्तयकु्त होना चार्हए न र्क कल्पनापूणि, िमनात्मक या मनमाना ।30
1.3.11 पश्चातर्ती बचन र्सांह में न्यायालय ने यह कहा र्क िांड प्रर्िया सांर्हता, 1973 की धारा 354(3) मत्यिुांड पर सम्यक्
प्रर्िया सांबांधी र्र्रचना का भाग ह ै। इस सांबांध में न्यायालय ने र्नम्नर्लर्खत अर्भर्नधािररत र्कया :
ऐसी बहुत सी अन्य पररस्र्थर्तयाां हैं िो हल्के िांडािशे का र्िया िाना न्यायोर्चत ठहराती हैं । क्योंर्क र्हाां भड़कान ेकी
प्रर्तरोधी पररस्र्थर्तयाां होती हैं । हम स्पष्ट रूप से न्यार्यक कम्पयूटर में ऐसी सभी स्र्थर्तयों को फीड नहीं कर सकते हैं क्योंर्क
र्े अपूणि और ऊां चे समाि में ज््योर्तष सांबांधी पररबद्धताएां हैं । तथार्प इस पर भी अर्धक िोर नहीं र्िया िा सकता र्क
मृत्यिुांड के के्षत्र में कम करन ेर्ाले कारकों की पररर्ध और धारण का धारा 354(3) में र्र्स्तृत रूप से र्लखी हुई िांड िने े
र्ाली नीर्त के अनसुार न्यायालय द्वारा उिार और व्यापक अथि लगाया िाना चार्हए । हत्यारों को फाांसी पर लटकाना उनके
24 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 7 (मखु्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
25 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 4 (मखु्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
26 (1983) 2एससीसी 277
27 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 1161-1162 (मखु्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf ) पर उपलब्ध ह ै(7.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया ।
28 (2014)3 एससीसी 1
29 (1978) 1 एससीसी 248
30 मेनका गाांधी बनाम भारत सांघ, (1978) 1 एससीसी 248, पैरा 48 पर
6
र्लए कभी बहुत अच्छा नहीं रहा ह,ै तथ्य और आांकडे़, चाह ेअपूणि हों, िो भारत सरकार द्वारा र्िए गए हैं, िर्शित करते हैं र्क
अतीत में न्यायालयों ने कभी कभार अत्यर्धक िांड र्िया ह—ैएक तथ्य, िो र्क उस सार्धानी और िया को प्रमार्णत करता
ह ैर्िसका र्क उन्होंन ेसिरै् ऐसे गांभीर मामले में अपन ेिांड िने ेके र्र्र्ेकार्धकार पर प्रयोग र्कया ह ै। अत: इस र्चांता को
आर्ाि िनेा आर्श्यक ह ैर्क न्यायालय, र्िन्हें हमारे द्वारा िर्शित र्कए गए र्र्स्तृत उिाहरणात्मक मागि र्निशेक तत्र्ों द्वारा
सहायता प्राप्त होगी, इससे भी अर्धक सार्धानी और मानर्ीय र्चांता के साथ इस िभुिर कृत्य का र्नर्िहन करेंगे, िो धारा
354(3) में र्लखी गई र्र्धायी नीर्त के उस उच्च आिशि र्निरे्शत होंगे र्क हत्या के र्सद्धिोषी व्यक्र्तयों के र्लए,
आिीर्न कारार्ास र्नयम ह ैऔर मृत्युिांडािशे एक अपर्ाि । मानर् िीर्न की गररमा के र्लए र्ास्तर्र्क और स्थायी र्चांता
र्र्र्ध के माध्यम से िीर्न लेने के र्र्रोध को र्बना प्रमाण स्र्ीकार करती ह ै। ऐसे र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम में के र्सर्ाय,
िब कोई आनकुल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत हो, नहीं र्कया िाना चार्हए ।31 (िोर र्िया गया)
1.3.12 र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम मानक के अपन ेअन्तस्तल में मृत्युिांड की सांकल्पना को ऐसे िांडािशे के रूप में रखता ह ैिो
िीर्न के पूणि र्तरस्कार में अर्द्वतीय ह ै । न्यायालय ने, मानर् िीर्न और मानर् गररमा के र्लए उसकी र्चांता और इस िांड की पूणि
अप्रर्तसांहरणीयता के र्लए उसकी मान्यता के भागरूप में आपरार्धक र्र्र्ध के अत्यर्धक माांग करन ेर्ाले और र्र्र्श करन ेर्ाले मानकों
में से एक को सोचकर र्नकाल र्लया । र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम उक्र्त का प्रकटीकरण, िब ‘‘आनकुल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से
प्रर्तबांर्धत हो’’32, भारत में मृत्यिुांड के सांर्धैार्नक र्र्र्नयमन का पूणि रूप से प्रारांभ था ।
1.3.13 तथार्प, यह महत्र्पूणि ह ैर्क र्ार्षिक रूप से र्िए गए मृत्य ुिांडािशेों की सांख्या पर एनसीआरबी द्वारा र्िए गए आांकड़ों पर
र्र्चार र्कया िाए । औसतन रूप से एनसीआरबी बोडि ने अर्भर्लर्खत र्कया ह ै र्क 129 व्यक्र्तयों को प्रत्यके र्षि या मोटे रूप से
प्रत्यके तीसरे र्िन एक व्यक्र्त को मृत्युिांड से िांडार्िष्ट र्कया िाता ह।ै खाि ेमें उच्चतम न्यायालय ने इन आांकड़ों पर ध्यान र्िया और
कहा र्क यह सांख्या ‘र्स्तुत: ऊां ची’33 ह ैऔर र्ह यह सझुार् ितेे हुए प्रतीत हुए र्क मृत्यिुांड बचन र्सांह में पररकल्र्पत रूप से बहुत
अर्धक रूप में लागू र्कया िा रहा ह ै। र्ास्तर् में िसैा र्क पश्चातर्ती पृष्ठ सझुार् ितेे हैं, उच्चतम न्यायालय को स्र्यां र्र्रल ेमामलों में
से र्र्रलतम परीक्षण के र्सद्धाांतपूणि और र्नरांतर कायािनर्यन की सांभार्ना पर सांिेह हुआ ह ै।
(iv) मृत्युदडं के मनमाने और व्यक्वतपरक रूप से लागू वकए जाने सबंंिी न्यावयक ववकास
1.3.14 बचन र्सांह में न्यायालय की इस आशार्ार्िता के बार्िूि र्क उसके मागिर्निशेक तत्र् मृत्यिुांड के मनमाने रूप से र्िए िाने
के खतरे को न्यूनतम करेंगे, इस र्र्षय पर अभी तक र्चांता बनी हुई ह,ै ‘‘मृत्यिुांड मनमाने रूप से या सनकी रूप से अर्धरोर्पत र्कया
िाता ह ै।’’34 बररयार में न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया था र्क ‘‘कम से कम कहने के र्लए पूर्ि उिाहरणों में कोई एकरूपता नहीं
ह’ै’ अर्धकाांश मामलों में मृत्यिुांड की, र्बना कोई र्र्र्धक र्सद्धाांत अर्धकर्थत र्कए हुए हमारे द्वारा पषु्र्ट की गई ह ैया उसकी पषु्र्ट करने
से इांकार र्कया गया ह ै।35
31 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 648, पैरा 209
32 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 648, पैरा 209
33 शांकर र्कशनरार् खािे बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी, पैरा 145--‘र्िए गए मतृ्युिांड की सांख्या ऊां ची ह,ै र्िससे र्क यह स्पष्ट नहीं होता ह ैर्क
क्या मतृ्युिांड केर्ल र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम में र्ास्तर् में र्िया िा रहा ह ै।’ 34 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 15
35 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 104 पर
7
1.3.15 ऐसी र्चांताओां पर बहुत सारे अर्सरों पर िोर र्िया गया ह ैिहाां न्यायालय ने इांर्गत र्कया ह ै र्क बचन र्सांह में
प्रर्तपार्ित र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम की उक्र्त को असमान रूप से लागू र्कया गया ह ै। इस सांिभि में यह र्निशेात्मक ह ैर्क आलोक
नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य36, स्र्ामी श्रद्धानांि बनाम कनािटक राज््य (‘स्र्ामी श्रद्धानांि’)37, फारूख अब्िलु गफूर बनाम
महाराष्ट्र राज््य (‘गफूर’)38, सांगीत बनाम हररयाणा राज््य (‘सांगीत’)39 और खाि4े0 में उच्चतम न्यायालय के सांपे्रक्षणों की परीक्षा की
िाए । इन मामलों में न्यायालय ने यह अर्भस्र्ीकार र्कया ह ै र्क मृत्यिुांड के व्यक्र्तपरक और मनमाने रूप से लागू र्कए िाने ने
‘र्सद्धाांतपूणि िांड र्िए िाने’’ को ‘‘न्यायाधीश कें र्ित िांड र्िया िाना’’41 बना र्िया ह,ै िो ‘‘न्यायपीठ का गठन करन े र्ाले
न्यायाधीशों की व्यक्र्तगत अर्भरुर्च पर आधाररत होता ह ै।’’42
1.3.16 यह ध्यान िने ेयोग्य ह ैर्क उच्चतम न्यायालय ने स्र्यां र्र्र्भन्न मामलों में मृत्यिुांड के लागू र्कए िाने में गलर्तयों को स्र्ीकार
र्कया ह ै।43
(v) हाल के राजनैवतक ववकास
1.3.17 कुछ हाल के र्र्कास मृत्यिुांड समाप्त करन ेके पक्ष में रािनरै्तक मत में र्ृर्द्ध होन ेका सांकेत ितेे हैं । बहुत हाल में, अगस्त,
2015 में, र्त्रपरुा र्र्धान सभा ने मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी माांग करने र्ाले एक सांकल्प के पक्ष में मतिान र्कया ह ै।44
1.3.18 मृत्यिुांड समाप्त करन े के र्लए माांग भारतीय कम्यरु्नस्ट पाटी (भा.क.पा.), भारतीय कम्यरु्नस्ट पाटी (माकि स्र्ािी)
[भा.क.पा.-(मा.)], भारतीय कम्यरु्नस्ट पाटी (माकि स्र्ािी-लेर्नर्नस्ट र्लब्ररेशन) [भा.क.पा. मा.-ले)], र्र्िथुलाई र्चरुथाईगल
काटची (र्ीसीके), मार्नथनेया मक्कल काची (एमएमके), गाांर्धय मक्कल अयक्कम (िीएमआई), मारुमलारछी िर्र्ड़ मनेुत्र कड़गम
(एमडीएमके) और िर्र्ड मनेुत्र कड़गम (डीएमके) द्वारा की गई हैं ।45
36 (2007) 12 एससीसी 230 37 (2008) 13 एससीसी 767
38 (2010) 14 एससीसी 641
39 (2013) 2 एससीसी 452
40 (2013) 5 एससीसी 546
41 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452
42 स्र्ामी श्रद्धानांि बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767
43 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी
546 और सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452 ।
44 सईि सज््िाि अली, र्त्रपुरा ने मतृ्युिांड के र्र्रुद्ध सांकल्प पाररत र्कया, र्ि र्हन्ि,ू 7 अगस्त, 2015 ।
45 पीटीआई िखेें, र्ामपांथी सांयुक्त आांिोलन ने कें ि से याकूब मेनन को फाांसी न िनेे के र्लए कहा, इकोनोर्मक टाइम्स, 27 िलुाई, 2015; आईएएनएस,
मतृ्युिांड : सीपीई नेता डी रािा ने गैर सरकारी सांकल्प पेश र्कया, इकोनोर्मक टाइम्स, 31 िलुाई, 2015 ; ईटी ब्यूरो, मतृ्युिांड समाप्त करने की माांग की ;
डीएमके की कानीमोझी ने गैर सरकारी र्र्धेयक का प्रसतार् रखना चाहा, इकोनोर्मक टाइम्स, 7 अगस्त, 2015 ; इसको भी िखेें : मतृ्युिांड का र्नरसन, सीपीआई
एम-एल, 30 िनू, 2015, http.//cpiml.in/cms/editorials/item/150-repeal-death-penalty) पर उपलब्ध ह,ै (20.8.2015
को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया) ।
8
1.3.19 31 िलुाई, 2015 को भारतीय कम्यरु्नस्ट पाटी के डी. रािा ने मृत्यिुांड समाप्त र्कए िाने के लांर्बत रहते हुए
मृत्यिुांडािशे पर अर्धस्थगन घोर्षत करन े के र्लए सरकार से कहते हुए एक गैर सरकारी सिस्य र्र्धेयक परु:स्थार्पत र्कया था ।46
अगस्त, 2015 में िर्र्ड़ मनेुत्र कड़गम की सांसि ्सिस्य कार्नमोझी ने मृत्युिांड समाप्त करन ेकी माांग करने र्ाला एक गैर सरकारी
सिस्य र्र्धेयक को राज््य सभा में परु:स्थार्पत र्कया था । 47
(vi) अंतरराष्ट्रीय ववकास
1.3.20 1967 में, िब 35र्ीं ररपोटि प्रस्तुत की गई थी, केर्ल 12 िशेों ने सभी पररस्र्थर्तयों में सभी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड
को समाप्त र्कया था ।48 आि, 140 िशेों ने र्र्र्ध के अनुसार या व्यर्हार में मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ै। आगे उन िशेों की
सांख्या, िो ‘‘सर्िय प्रर्तधारक’’ रह ेहैं अथाित् र्िन्होंन ेर्पछल े10 र्षों में कम से कम एक व्यक्र्त को फाांसी िी ह,ै 2007 में 51
से घटकर 39 (िो अप्रलै 2014 में ह)ै हो गई ह ै।49 एक प्रर्गि के िशेों ने मामूली अपराधों िसेै हत्या, के र्लए भी मृत्यिुांड को
समाप्त कर र्िया ह ैऔर इसे अपर्ािात्मक अपराधों िैसे सरै्नक र्र्र्ध के अधीन अपराध या अपर्ािात्मक पररस्र्थर्तयों में अपराध, के
र्लए बनाए रखा ह ै।50 मृत्यिुांड का सबस ेअर्धक प्रयोग प्रकट रूप से ईरान, चीन, पार्कस्तान, सउिी अरब और सयकु्त राज््य अमरेरका
में र्कया िाता ह ै।
1.3.21 मृत्य ुिांडािशे से और 35र्ीं ररपोटि के प्रकाशन के पश्चातर्ती अांतरराष्ट्रीय रूप से मृत्यिुांड समाप्त र्कए िाने की र्िशा में
र्कए िाने र्ाले उपायों से सांबांर्धत र्र्षयों पर ब्यौरे र्ार र्र्चार र्कए िान ेकी आर्श्यकता ह ै।
घ. आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली परामशी िविया
1.4.1 इस र्र्षय पर सभी र्हत धारकों के र्र्चार समझने के िम में 20र्ें र्र्र्ध आयोग ने मई, 2014 में एक परामशि पत्र िारी
र्कया था । आयोग ने उनसे उत्तर आमांर्त्रत र्कए, िो मृत्यिुांड के र्र्र्भन्न पहलुओां पर अपन ेर्र्चार व्यक्त करने के इच्छुक थे ।
1.4.2 आयोग को इस र्र्षय पर र्र्र्भन्न र्र्चारों सर्हत 350 उत्तर प्राप्त हुए, उन व्यक्र्तयों के र्लए, िो मृत्यिुांड का समथिन कर
रह ेथे, प्राथर्मक र्र्चारण थे- मृत्यिुांड का भयपरर्तकारी प्रभार्, समाि में प्रर्तशोघ और न्याय के र्लए माांग, पीर्ड़त पररर्ार की माांगे,
यह माांग र्क िांड अपराध का आनुपार्तक हो ; और यह र्र्चार र्क कर्तपय ‘िघन्य’ अपराधी इस योग्य नहीं थे र्क उन्हें सधुार के र्लए
अर्सर प्रिान र्कया िाए । उन व्यक्र्तयों के र्लए िो मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी र्कालत कर रह े थे, प्राथर्मक र्चांताएां न्यायालयों के
भ्रमत्र् और गलत िोषर्सर्द्ध की सांभार्ना ; र्कसी िांड सांबांधी प्रयोिन की अनपुस्र्थर्त और मृत्यिुांड के र्र्भेिकारी तथा मनमाने
46 आईएएनएस, मतृ्युिांड : सीपीआई नेता डी रािा, गैर सरकारी सिस्य ने सांकल्प प्रस्तार्र्त र्कया, इकोनोर्मक टाइम्स, 31 िलुाई, 2015
47 ईटी ब्यूरो, मतृ्युिांड समाप्त करने की माांग की, डीएमके की कानीमोझी ने गैर सरकारी र्र्धेयक का प्रस्तार् रखना चाहा, इकोनोर्मक टाइम्स, 7 अगस्त,
2015 ।
48 कोलांर्बया (1910), कोस्टा ररका (1877), डोर्मर्नकन ररपब्र्लक (1966), एक्र्ाडोर (1906), फेडरल ररपब्र्लक आफ िमिनी (1949),
होन्डुरस (1956), आइसलैंड (1928), मोनाको (1962), पनामा (1922), सनै मरीनो (1865), उरुगुआ (1907), रे्नेिएुला (1863) ।
भारत का र्र्र्ध आयोग, 35 र्ीं ररपोटि 1967, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर
उपलब्ध ह ै(24.8.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया) ।
49 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, 5 (5र्ाां सांस्करण 2015)।
50 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, 5 (5र्ाां सांस्करण 2015)।
9
कायािन्र्यन से सांबांर्धत थीं । ध्यान िनेे योग्य ह ै र्क स्र्गीय पूर्ि भारत के राष्ट्रपर्त डा0 ए पी िे अब्िलु कलाम ने भी मृत्यिुांड के
र्र्भेिकारी प्रभार् को र्र्शेष रूप से बताते हुए परामशि पत्र का उत्तर भेिा था ।
1.4.3 इस र्र्षय पर और उत्तर पाने के र्लए, आयोग ने एक सांपूणि र्िन का परामशि सत्र 11 िलुाई, 2015 को आयोर्ित र्कया
था, र्िसमें प्रर्सद्ध र्र्र्धज्ञों, पारांगत न्यायाधीशों, रािनीर्तक नेताओां, र्शक्षार्र्िों, परु्लस अर्धकाररयों और र्सर्र्ल समाि के
प्रर्तर्नर्धयों को आमांर्त्रत र्कया गया था । सांपूणि र्िन के परामशि सत्र में भाग लेने र्ालों की ब्यौरेर्ार सूची इस ररपोटि के उपाबांध में िी गई
ह ै।51 र्र्चार-र्र्मशि में भारत की साांर्र्धार्नक बाध्यताओां, मृत्यिुांड के लागू करन ेमें मनमानेपन और र्र्भेि, आपरार्धक न्याय प्रणाली
की गुणर्त्ता और पनुर्ािस र्र्रचना की असफलता िसेै र्र्षयों पर र्र्चार र्कया गया था ।
ड. वतटमान ररपोर्ट
1.5.1 मृत्यिुांड के समाप्त र्कए िाने के र्र्षय पर व्यापक अध्ययन करन ेके िम में आयोग ने एक उप सर्मर्त बनाई । र्िसके प्रधान
अध्यक्ष थे और र्िसमें िो अांशकार्लक सिस्य थे- श्री र्ेंकट रमानी और प्रो0 (डा0) योगेश त्यागी और उसमें न्यायमूर्ति के.चांि ू
(सेर्ार्नरृ्त्त), प्रो0 डा0 सी.रािकुमार, श्री र्िलीप र्डसूिा, डा0 मृणाल सतीश, डा0 अपणाि चन्िा, सशु्री समुर्थ चन्िशेखरन, सशु्री
बृांिा भांडारी और सशु्री रार्गनी आहूिा सम्र्मर्लत थी । सशु्री सार्नया कुमार और सशु्री सार्नया सूि, िो िोनों राष्ट्रीय र्र्र्ध
र्र्श्र्र्र्द्यालय, र्िल्ली से र्र्र्ध की र्र्द्याथी थीं, ने टीम को व्यापक अनसुांधान सहायता िी । श्री प्रणय नाथ लेखी, सशु्री ज््योत्सना
स्र्ामी, श्री अरर्र्ांि चारी, श्री हसरथ मेहता और सशु्री िीक्षा अग्रर्ाल, िो भारत के र्र्र्ध आयोग में प्रर्शक्षु थे और सशु्री कृर्तका कडोड
द्वारा िी गई सहायता भी प्रसांशनीय थी ।
1.5.2 उप सर्मर्त के र्र्र्भन्न सिस्यों ने मृत्यिुांड के र्र्र्भन्न पहलुओां पर सांकल्पना पत्र तैयार र्कए । प्रारूपणों को तैयार करन ेऔर
खाि ेतथा बररयार में भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा आांकड़ा चार्लत अनसुांधान के र्लए और र्र्चार-र्र्मशि के र्लए माांग को ध्यान में
रखते हुए, सिस्यों ने मृत्यिुांड से सांबांर्धत र्र्र्भन्न अनसुांधान पररयोिनाओां और अनभुर्र्सद्ध अध्ययनों पर भरोसा र्कया । इन प्रारूपणों
पर उप सर्मर्त के र्र्चार-र्र्मशों के िम में और चचाि की गई और उनका पुनरीक्षण र्कया गया । प्रारूपणों पर आयोग के पूणि कार्लक
सिस्यों, अथाित ् न्यायमूर्ति एसएन कपूर, न्यायमूर्ति ऊषा मेहरा और प्रो0 (डा0) मूलचांि शमाि तथा अांशकार्लक सिस्यों डा0 बीएन
मर्ण और प्रो0 (डा0) गुरिीत र्सांह के साथ भी र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया । उप सर्मर्त के सझुार्ों पर आधाररत और आगे पनुरीक्षण
र्कए गए और उसकी अांर्तम ररपोटि सांपूणि आयोग के समक्ष रखी गई। श्रीर्ेंकटरमानी और प्रो0(डा0) योगेश त्यागी ने ऐसे कई मूल्यर्ान
सझुार् र्िए र्िन पर र्र्चार र्कया गया । डा0 सांिय र्सांह, सर्चर्, र्र्धायी र्र्भाग और आयोग के पिने सिस्य द्वारा प्रकट की गई
र्चांताओां पर भी र्र्चार र्कया गया ।
1.5.3 तत्पश्चात् व्यापक चचािओ ां, र्र्चार-र्र्मशों और गहरे अध्ययन के पश्चात ्आयोग ने र्तिमान ररपोटि को आकार र्िया ।
51 उपाबांध । िरे्खए
10
अध्याय 2
भारत में मृत्युदडं का इवतहास
क. सवंविान-पूवट इवतहास और संवविान सभा वविार-ववमशट
2.1.1 मृत्यिुांड समाप्त करने का एक पूर्ि प्रयास स्र्तांत्रता पूर्ि भारत में र्कया गया था, िब श्री िया प्रसाि र्सांह ने 1931 में भारतीय
िांड सांर्हता सांबांधी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड समाप्त करन ेहतेु एक र्र्धेयक परु:स्थार्पत करन ेका प्रयास र्कया था । तथार्प र्ह र्र्धेयक
र्र्फल कर र्िया गया ।52 लगभग उसी समय, माचि, 1931 में र्ब्रर्टश सरकार द्वारा भगत र्सांह, सखुिरे् और रािगरुू को फाांसी र्िए
िाने के पश्चात् काांग्रेस ने कराची सत्र में एक सांकल्प, र्िसमें मृत्यिुांड की समाप्र्त के र्लए माांग थी, प्रस्तार्र्त र्कया ।53
2.1.2 1947 और 1949 के बीच भारत की सांर्र्धान सभा के र्र्चार-र्र्मशों में मृत्यिुांड की न्यायाधीश-कें र्ित प्रकृर्त, उसको
िने ेमें मनमानेपन, र्नधिनता में रह रह ेव्यक्र्तयों पर उसके र्र्भेिकारी प्रभार् और गलती की सांभार्ना के बारे में भी प्रश्न उठाए गए ।54
2.1.3 उिाहरण के र्लए, गलती की सांभार्ना पर, पांर्डत ठाकुरिास भागिर् ने कहा :
यह सच ह ैर्क र्कसी व्यक्र्त को प्रारांर्भक न्यायालय में न्याय नहीं प्राप्त होता ह ै। मैं र्िला न्यायालयों की र्शकायत नहीं कर
रहा हूां । ऐसे बहुत से उपिर्ों के मामलों में, र्िनमें 5 से अर्धक व्यक्र्त अांतर्िर्लत होते हैं, कई र्निोष व्यक्र्तयों को आर्लप्त
कर र्लया िाता ह ै। मैं इस र्र्षय पर प्रार्धकार से बोल सकता हूां । मैं एक र्र्र्ध व्यर्सायी हूां और बहुत र्षों से आपरार्धक
मामलों सांबांधी र्र्र्ध व्यर्साय कर रहा हूां ।55
2.1.4 मृत्यिुांड से अपील करन ेका अर्धकार बहुत अर्धक र्र्चार-र्र्मशि का र्र्षय ह।ै इस सांिभि में, प्रो0 र्सब्बन लाल सक्सेना ने
कहा :
मैं अनभुर् करता हूां र्क ऐसे व्यक्र्तयों को, र्िन्हें मृत्य ु के र्लए र्सद्धिोषी घोर्षत र्कया िाता ह,ै उच्चतम न्यायालय को
अपील करने का अांतर्निर्हत अर्धकार होना चार्हए और उन्हें इस बात का अर्श्य ही सांतोष होना चार्हए र्क उनके मामलों
को िशे में सबस ेउांचे अर्धकरण द्वारा सनुा गया ह ै। मैंन ेऐसे व्यक्र्तयों को िखेा ह,ै िो बहुत गरीब हैं, िो अपील करन ेके
योग्य नहीं हैं क्योर्क र्े काउांर्सल को फीस िने ेमें समथि नहीं हैं। मैं िखेता हूां र्क अनचु्छेि 112 कहता ह ै र्क उच्चतम
न्यायालय र्कसी र्नणिय से अपील के र्लए र्र्शेष इिाित ि ेसकता ह ैर्कन्त ुयह उन व्यक्र्तयों के र्लए होगा िो धनर्ान हैं,
52 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 12 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(24.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
53 र्र्शेष सांर्ाििाता, यह समय ह ैिब मृत्युिांड को समाप्त कर र्िया िाए : अय्यर, र्ि र्हन्ि,ू 7 अगस्त, 2015
http://www.thehindu.com/news/nation/its-time-death-penalty-is-abolished-
aiyar/article7509444.ece पर उपलब्ध ह ै(24.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
54 3 िनू, 1949, भाग 2 की सांर्र्धान सभा र्डबेट िरे्खए, िो http://parliamentofindia.nic.in/ls/debates/vol18p15b.htm पर
उपलब्ध ह ै(24.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
55 3 िनू, 1949 को सांर्र्धान सभा र्डबेट, भाग 2, http://parliamentofindia.nic.in/ls/debates/vol18p15b.htm पर उपलब्ध ह ै
(24.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
11
िो आकाश-पाताल एक कर सकते हैं, र्कन्त ुऐसे साधारण व्यक्र्त, र्िनके पास धन नहीं ह ैऔर िो गरीब हैं र्ह इस धारा
का लाभ उठाने में स्र्यां को समथि नहीं बना पाएांगे ।56
2.1.5 डा0 अम्बेडकर व्यक्र्तगत रूप से मृत्यिुांड समाप्त करन ेके पक्ष में थे । उन्होंन ेकहा था :
मरेा िसूरा र्र्चार यह ह ैर्क उच्चतम न्यायालय को, र्िसे मृत्यिुांडािशे के मामलों में अपीलें की िा सकती हैं, अपील सांबांधी
शक्र्त प्रिान करन ेके र्लए उपबांध र्कए िाने के बिाय, मैं मृत्यिुांडािशे को ही समाप्त करन ेका समथिन करूां गा । मैं समझता हूां
र्क यह उर्चत िम ह ैऔर इससे यह र्र्र्ाि ही समाप्त हो िाएगा । अांतत: यह िशे अर्हांसा के र्सद्धाांत में सार्ििर्नक रूप से
र्र्श्र्ास करता ह ै।यह इसकी परुानी परांपरा रहीं ह ैऔर हो सकता ह ैिनता ने इसे र्ास्तर् में व्यर्हार में न अपना रही हो, र्कन्तु
र्े र्नश्र्चत रूप से नरै्तक आिशे के रूप में अर्हांसा के र्सद्धाांत का पालन करते हैं और र्िसका उन्हें, िहाां तक सांभर् हो सकता
ह,ै पालन करना चार्हए, मैं समझता हूां र्क इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस िशे के र्लए उर्चत यही होगा र्क मृत्युिांडािशे
को पूणित: समाप्त कर र्िया िाए ।57
2.1.6 तथार्प उन्होंन ेसझुार् र्िया र्क मृत्यिुांडािशे पर र्र्धान बनाने की र्ाांछनीयता के र्र्षय को सांसि ्के र्लए छोड़ र्िया िाना
चार्हए । इस सझुार् का आकस्र्मक रूप से अनसुरण र्कया गया ।
ख. वविायी पृष्ठभूवम
2.2.1 स्र्तांत्रता प्राप्र्त पर भारत ने र्ब्रर्टश औपर्नरे्र्शक सरकार द्वारा बनाई गई र्र्र्धयों को बनाए रखा, र्िनमें िांड प्रर्िया सांर्हता,
1898 (‘िांड प्रर्िया सांर्हता, 1898’), और भारतीय िांड सांर्हता, 1860 (‘भािांसां’) सम्र्मर्लत थीं । भारतीय िांड सांर्हता में
छह िांडों को, मृत्यिुांड सर्हत, र्र्र्हत र्कया गया था, र्िन्हें र्र्र्ध के अधीन अर्धरोर्पत र्कया िा सकता था ।
2.2.2 ऐसे अपराधों के र्लए, िहाां मृत्यिुांड र्कैल्र्पक था, िांड प्रर्िया सांर्हता, 1898 की धारा 367(5) न्यायालय से र्हाां
कारणों को, िहाां न्यायालय ने मृत्यिुांडािशे न िने ेका र्र्र्नश्चय र्कया था, कारण अर्भर्लर्खत करन ेकी अपेक्षा करती थी :
यर्ि अर्भयकु्त, मृत्य ु से िांडनीय र्कसी अपराध का र्सद्धिोषी ह ैऔर न्यायालय उस े मृत्य ु से र्भन्न कोई िांड ितेा ह,ै तो
न्यायालय अपन ेर्नणिय में उन कारणों को कर्थत करेगा र्क उसने मृत्य ुका िांडािशे कयों नहीं र्िया ।
2.2.3 1955 में सांसि ्ने मृत्यिुांडािशे की स्र्थर्त को महत्र्पूणि रूप से पररर्र्तित करते हुए िांड प्रर्िया सांर्हता, 1898 की धारा
367(5) को र्नरर्सत कर र्िया । मृत्यिुांड अब कोई सांन्र्नयम नहीं रह गया और न्यायालयों को ऐसे र्र्शेष कारणों को कर्थत करने
की कोई आर्श्यकता नहीं रह गई र्क र्े ऐसे मामलों में मृत्यिुांडािशे को क्यों नहीं ि ेरह ेथे, िहाां र्ह र्र्र्हत िांड था ।
2.2.4 िांड प्रर्िया सांर्हता को 1973 (‘िांप्रसां’) में पनु: अर्धर्नयर्मत र्कया गया था और कई पररर्तिन र्कए गए थे, र्िनमें से
ध्यान िने ेयोग्य धारा 354 (3) का था :
56 3 िनू, 1949 को सांर्र्धान सभा र्डबेट, भाग 2, http://parliamentofindia.nic.in/ls/debates/vol18p15b.htm पर उपलब्ध ह ै
(24.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 57 3 िनू, 1949 को सांर्र्धान सभा र्डबेट, भाग 2, http://parliamentofindia.nic.in/ls/debates/vol18p15b.htm पर उपलब्ध ह ै
(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
12
िब िोषर्सर्द्ध मृत्य ु से, अथर्ा अनकुल्पत: आिीर्न कारार्ास से या कई र्षों की अर्र्ध के कारार्ास से िांडनीय र्कसी
अपराध के र्लए ह,ै तब र्नणिय में, र्िए गए िांडािशे के कारणों का और मृत्य ुके िांडािशे की िशा में ऐसे िांडािशे के र्लए र्र्शेष
कारणों का कथन होगा ।
2.2.5 यह 1955 के सांशोधन का अनसुरण करन ेर्ाली स्र्थर्त से (िहाां कारार्ास और मृत्यिुांड की अर्र्धयाां र्कसी मृत्यिुांड र्ाले
मामल ेमें समान सांभार्नाओां र्ाली थीं) महत्र्पूणि उपाांतरण था, और 1898 की र्र्र्ध के अधीन, (िहाां मृत्यिुांडािशे सांन्र्नयम था
और उन कारणों को, यर्ि कोई अन्य िांड अर्धरोर्पत र्कया गया था तो अर्भर्लर्खत र्कया िाना था) स्र्थर्त से उलट था । अब
न्यायाधीशों को उन र्र्शेष कारणों को, र्िनसे उन्होंन ेमृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत र्कया था, िने ेकी आर्श्यकता थी ।
2.2.6 इन सांशोधनों ने धारा 235(2) में र्कसी िांडािशे पर, र्िसके अांतगित मृत्यिुांडािशे भी सम्र्मर्लत था, िोषर्सर्द्ध पश्चात्
सनुर्ाई की सांभार्ना को प्रारांभ र्कया :
यर्ि अर्भयकु्त र्सद्धिोषी ह ैतो न्यायाधीश, िब तक र्क र्ह धारा 360 के उपबांधों के अनसुार अग्रसर नहीं होता ह,ै िांडािशे
के प्रश्न पर अर्भयकु्त को सनेुगा और तत्पश्चात् उस ेर्र्र्ध के अनसुार िांडािशे िगेा ।
ग. वववि आयोग की पूवट ररपोर्ें
(i) वववि आयोग की 35वीं ररपोर्ट
2.3.1 र्र्र्ध आयोग ने 1967 में ‘मृत्युदडं’ पर अपनी 35र्ीं ररपोटि यह र्सफाररश करते हुए र्र्मोर्चत की थी र्क मृत्यिुांड बनाए
रखा िाए । उसे समाप्त करर्ान ेर्ालों और बनाए रखन ेर्ालों के तकों पर, र्र्र्भन्न िशेों में मृत्यिुांड की स्र्थर्त और मृत्यिुांड के उद्दशे्यों
पर र्र्चार करन ेके पश्चात्, आयोग ने यह र्सफाररश की र्क भारत में मृत्यिुांड को बनाए रखा िाए और यह कहा र्क :
तथार्प भारत की िशाओां, उसके र्नर्ार्सयों के सामार्िक पालन पोषण की र्र्र्भन्नताओां, िशे में नरै्तकता और र्शक्षा के स्तर
में असमानताओां, उसके के्षत्र की र्र्शालता, उसकी िनता की र्र्र्र्धता और र्तिमान स्र्थर्त में िशे में र्र्र्ध और व्यर्स्था
बनाए रखने के र्लए आर्श्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत मृत्यिुांड को समाप्त करन ेके प्रयोग की िोर्खम नहीं उठा सकता
ह ै।58
2.3.2 आयोग ने यह भी िोड़ा र्क मृत्यिुांड का भयपरर्तकारी उद्दशे्य ‘उसका अत्यर्धक महत्र्पूणि उद्दशे्य था’, और यह र्क ‘यह
उसका कठोरतम न्यायोर्चतय’ था ।59 आयोग ने न्यायालयों के उस र्र्र्ेकार्धकार पर भी र्टप्पणी की िो र्े मृत्यिुांड या आिीर्न
कारार्ास अर्धरोर्पत करन ेमें रखते थे, उसने यह पाया र्क ‘ऐसे र्र्र्ेकार्धकार का र्नर्हत करना आर्श्यक ह ैऔर ऐसे र्र्र्ेकार्धकार को
प्रिान करन ेर्ाले उपबांध सांतोषप्रि रूप से कायि कर रह ेहैं’ ।60 उसने यह भी कहा र्क ‘िशे की र्तिमान स्र्थर्त में’ भारत मृत्यिुांड समाप्त
करन ेके प्रयोग की िोर्खम नहीं उठा सकता, ऐसा करन ेसे नागररकों के िीर्न को खतरा हो िाएगा ।61 आयोग ने यह भी कहा र्क
‘ऐसे व्यक्र्त, र्िनके पास पयािप्त र्र्त्तीय साधन नहीं हैं और िो र्कसी अन्य कारण से मामल ेको अांत तक नहीं ले िा सकते हैं, कष्ट
58 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 293 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 59 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 295 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 60 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 580 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 61 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 265 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
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उठाते हैं और यह र्क र्र्र्ध सार्बत करती ह ैर्क र्ह उनके प्रर्त अन्यायपूणि ह,ै यह एक ऐसा तकि ह,ै िो सारर्ान ्िाांर्डक र्र्र्ध के बिाय
र्र्र्धक सहायता के र्र्षय से सांबांर्धत ह ै।’62
2.3.3 इस पर र्र्चार करते हुए र्क यर्ि र्कसी न्यायालय को, िब र्ह इस पर अपना र्र्र्नश्चय करता ह ैर्क मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया
िाना चार्हए था या नहीं, कारण िने ेचार्हए, आयोग ने र्सफाररश की र्क र्र्र्ध को ‘न्यायालय से, िब कभी र्ह र्कसी मृत्यिुांड में िोनों
िांडािशेों में से र्कसी में बचना चाहता हो, कारण कर्थत करन ेकी अपेक्षा’ र्कए िाने के र्लए’ पररर्र्तित र्कया िाना चार्हए ।63 आयोग
की 41र्ीं ररपोटि ने िांड प्रर्िया सांर्हता 1898 को पनुरीर्क्षत करने और पनु: अर्धर्नयर्मत करन ेके र्लए इस र्सफाररश पर पनु: िोर
र्िया ।64
2.3.4 35र्ीं ररपोटि में आयोग ने कुछ आनषुांर्गक र्र्षयों पर र्सफाररशें की । उिाहरण के र्लए उसने ऐसे मामलों में, िहाां
मृत्यिुांडािशे की या तो पषु्र्ट की गई थी या र्कसी उच्च न्यायालय द्वारा उस ेअर्धरोर्पत र्कया गया था, यह िखेते हुए र्क यह आर्श्यक
नहीं था, उच्चतम न्यायालय को अपील करन े के अर्धकार के प्रश्न पर र्र्चार र्कया ।65 आयोग की 187र्ीं ररपोटि ने इससे र्भन्न
र्सफाररश की थी । 66
2.3.5 समान रूप से िबर्क 35र्ीं ररपोटि को मृत्यिुांडािशे िने ेके र्लए न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार का प्रयोग करन ेकी बात भी स्र्ीकायि
लगी, पश्चातर्ती उच्चतम न्यायालय ने मामलों में िखेा र्क यह क्यों समस्या मूलक ह ै।67 35र्ीं ररपोटि में भारतीय िांड सांर्हता की
धारा 303 को भी बनाए रखने की र्सफाररश की गई, िो आिशेात्मक मृत्यिुांड के र्लए उपबांध करती ह ै। तथार्प, उच्चतम न्यायाल ने
मीठे बनाम पांिाब राज््य में 1987 में इसे असांर्धैार्नक अर्भर्नधािररत कर र्िया ।68
62 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 265 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 63 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 265 पर, (मखु्य र्नष्कषें और र्सफाररशों का सार)
http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
64 भारत का र्र्र्ध आयोग, 41र्ीं ररपोटि, 1969, पैरा 26.9 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 41.pdf पर
उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
65 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 982 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
66 भारत का र्र्र्ध आयोग, 187र्ीं ररपोटि, 2003, पैरा 2- ‘‘‘‘आगे इस समय उन मामलों में, िहाां उच्च न्यायालय र्कसी सत्र न्यायाधीश द्वारा पाररत र्कए
गए मतृ्युिांडािशे की पुष्र्ट करता ह ैया िहाां उच्च न्यायालय सत्र न्यायाधीश द्वारा पाररत िांडािशे में र्ृर्द्ध करता ह ैऔर मतृ्युिांड ितेा ह,ै उच्चतम न्यायालय को
अपील करने का कोई कानूनी अर्धकार नहीं ह ै। आयोग र्र्र्भन्न उत्तरों और र्र्चारों पर र्र्चार करने के पश्चात् मृत्युिांड की पुष्र्ट करने र्ाले या उसे िनेे र्ाले उच्च
न्यायालय के र्नणिय के र्र्रुद्ध अपील के कानूनी अर्धकार का उपबांध करने के र्लए र्सफाररश करती ह’ै
http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th%20report.pdf पर उपलब्ध ह ै (26.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
67 आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य , (2007) 12 एससीसी 230; स्र्ामी श्रद्धानांि बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी ; सांतोष
बररयार बनाम महाराष्ट्र, (2009) 6 एससीसी 498 ; फारूख अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र , (2010) 14 एससीसी 641 ।
68 (1983) 2 एससीसी 277 ।
14
(ii) वववि आयोग की 187वीं ररपोर्ट
2.3.6 2003 में आयोग ने ‘‘फांसी देने का तरीका और आनुषंवगक ववषय’’ पर अपनी 187र्ीं ररपोटि प्रस्तुत की ।69
आयोग ने अपनी 35र्ीं ररपोटि के पश्चात् से ‘‘र्र्ज्ञान, प्रौद्योर्गकी, औषधीय, र्नष्चेतकों के के्षत्र में प्रौद्योर्गकीय उन्नर्तयों’’70 के
कारण स्र्प्रेरणा से इस र्र्षय पर कारिर्ाई की थी । इस ररपोटि ने इस र्र्षय को सांबोर्धत नहीं र्कया र्क क्या मृत्यिुांड र्ाांछनीय था । इसके
बिाय इसन ेअपन ेआप को तीन र्र्षयों : क. फाांसी िने ेकी पद्धर्त ; ख. मृत्यिुांड िनेे में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच
न्यार्यक मतों में र्भन्नताएां िरू करने की प्रर्िया; और (ग) मृत्यिुांडािशे सांबांधी मामलों में उच्चतम न्यायालय को अर्भयकु्त के अपील
करन ेके अर्धकार के र्लए उपबांध करन ेकी आर्श्यकता तक सीर्मत कर र्लया ।71
2.3.7 िनता की राय प्राप्त करन ेके पश्चात् और भारत में तथा अन्य िशेों में इन र्र्षयों पर व्यर्हार का अध्ययन करन ेके पश्चात्,
र्र्र्ध आयोग ने र्सफाररश की र्क िांड प्रर्िया सांर्हता की धारा 354(5) का, फाांसी पर लटकाने के अर्तररक्त फाांसी िने ेकी पद्धर्त के
रूप में र्र्षलैा इांिेक्शन िने ेके र्लए सांशोधन र्कया िाए । पर आयोग ने यह भी र्सफाररश की र्क ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय को
अपील करन ेका कानूनी अर्धकार होना चार्हए, िहाां उच्च न्यायालय मृत्यिुांड की पषु्र्ट करता ह ैया िांडािशे को बढाकर मृत्यिुांड कर
ितेा ह ै । इसके अर्तररक्त इसने र्सफाररश की र्क सभी मृत्यिुांडािशे सांबांधी मामलों को उच्चतम न्यायालय की कम से कम पाांच
न्यायाधीशों की न्यायपीठ द्वारा सनुा िाना चार्हए । 72
घ. भारत में मृत्युदडं की संवैिावनकता
(i) जगमोहन से बिन वसंह तक
2.4.1 भारत में मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता को पहली चनुौती िगमोहन र्सांह बनाम उत्तर प्रिशे राज््य (‘िगमोहन’) के मामल ेमें र्मली
।73 अिीिारों ने तकि र्िया र्क मृत्यिुांड भारत के सांर्र्धान के अनचु्छेि 14, अनुच्छेि 19, और अनचु्छेि 21 का अर्तिमण करता ह ै
। यह तकि र्िया गया र्क मृत्यिुांड, िीर्न के साथ, अनचु्छेि 19(1)(क) से (छ) तक के अधीन गारांटीकृत सभी स्र्तांत्रताओां को
समाप्त कर ितेा ह,ै अत: यह इन स्र्तांत्रताओां का अयकु्र्तयकु्त प्रत्याख्यान था और यह िनता के र्हत में नहीं था । आगे अिीिारों ने
तकि र्िया र्क न्यायाधीशों में मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत करन े के र्लए र्र्र्नश्चय करन ेका र्नर्हत र्र्र्ेकार्धकार अर्नयांर्त्रत था और
मागििर्शित नहीं था तथा अनचु्छेि 14 का अर्तिमण करता था । अांर्तम रूप से यह तकि र्िया गया र्क क्योंर्क र्र्र्ध के उपबांध मृत्यिुांड
और आिीर्न कारार्ास के बीच चयन करन ेके र्लए कर्ठन पररस्र्थर्तयों का र्र्चार करन ेके र्लए र्कसी प्रर्िया का उपबांध नहीं करते
थे, अत: यह अनचु्छेि 21 का अर्तिमण था । फरमनै बनाम िार्ििया में अमेररकन उच्चतम न्यायालय का र्र्र्नश्चय, र्िसमें मृत्यिुांड
को िूर होन ेके कारण असांर्धैार्नक घोर्षत र्कया गया था और असाधारण िांड भी सांर्धैार्नक न्यायपीठ के समक्ष रखा गया था ।
69 भारत का र्र्र्ध आयोग, 187र्ीं ररपोटि, 2003 http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th%20report.pdf पर
उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
70 भारत का र्र्र्ध आयोग, 187र्ीं ररपोटि, 2003, पैरा 5,
http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th%20report.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
71 भारत का र्र्र्ध आयोग, 187र्ीं ररपोटि, 2003, पैरा 7,
http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th%20report.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
72 भारत का र्र्र्ध आयोग, 187र्ीं ररपोटि, 2003, पैरा 3,
http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th%20report.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
73 (1973) 1 एससीसी ।
15
2.4.2 मृत्यिुांड को अपर्ािात्मक िांडािशे बनाने र्ाला यह मामला िांड प्रर्िया सांर्हता को 1973 में पनु: अर्धर्नयर्मत र्कए िाने
के पूर्ि, र्र्र्नश्र्चत र्कया गया था ।
2.4.3 िगमोहन में उच्चतम न्यायालय ने पाया र्क मृत्यिुांड अनजेु्ञय िांड था और यह सांर्र्धान का अर्तिमण नहीं करता था ।
न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
मानकों को अर्धकर्थत करन ेकी असांभर्ता भारत में प्रशार्सत रूप में आपरार्धक र्र्र्ध के मूल में ह,ै िो न्यायाधीशों में िांड
की र्डग्री र्नयत करने के मामल ेमें बहुत व्यापक र्र्र्ेकार्धकार को र्नर्हत करती ह ै। िांडािशेों के मामल ेमें र्ह र्र्र्ेकार्धकार,
िसैा पहले ही बताया िा चकुा ह,ै उच्चतर न्यायालयों द्वारा सही र्कए िान ेका िायी ह.ै............. । मान्यता प्राप्त र्सद्धाांतों पर
न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार का प्रयोग, अांर्तम र्र्श्लेषण में, अपराधी के र्लए सबस ेसरुर्क्षत सांभर् रक्षोपाय ह ै।74
2.4.4 न्यायालय ने यह भी अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
यर्ि र्र्र्ध ने अपराध की सभी भड़काने र्ाली और उस े न्यून करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों को तौलने के पश्चात ् न्यायाधीश को
िांडािशे के मामल ेमें उसके द्वारा प्रयोग र्कए िाने र्ाला व्यापक र्र्र्ेकार्धकार र्िया ह,ै तो यह कहना असांभर् होगा र्क उसमें
कोई भी र्र्भेि होगा क्योंर्क एक मामले के तथ्य और पररस्र्थर्तयाां कर्ठनाई से र्सैी हो सकती हैं िैसे तथ्य और पररस्र्थर्तयाां
िसूरे मामल ेकी हो सकती हैं ।75
2.4.5 उसी समय के लगभग 1973 की िांड प्रर्िया सांर्हता के र्र्र्ध बनने के ठीक पूर्ि, उच्चतम न्यायालय ने भी एर्डगा अनम्मा
बनाम आांध्र प्रिशे राज््य के मामल ेमें िांडािशे पर िोषर्सर्द्ध पश्चात् सनुर्ाई प्रारांभ करन ेकी बुर्द्धमत्ता पर र्टप्पणी की ।76
मृत्यिुांडािशे को आिीर्न कारार्ास में पररर्र्तित करन ेमें न्यायालय ने र्नम्नर्लर्खत कहा :
र्कसी भी र्जै्ञार्नक प्रणाली में, िो िांडािशे के प्रिम पर ध्यान, न केर्ल अपराध पर बर्लक अपराधी पर भी कें र्ित करता ह ै
और िांड को व्यक्र्तगत करना चाहता ह ैर्िससे र्क सधुारात्मक सांघटक उतना ही सर्िय हो र्ितना र्क भयपरर्तकारी तत्र्, यह
अर्नर्ायि ह ैर्क सामार्िक और व्यक्र्तगत प्रकृर्त के तथ्यों को, कभी-कभी र्ह पूणिरूप से असांगत हो सकते हैं यर्ि िोष र्नयत
करन ेके प्रिम पर हार्नकारक न भी हों तो, न्यायालय के ध्यान में लाया िाना होगा, िब र्ास्तर्र्क िांडािशे का अर्धारण
र्कया िाता ह ै।77
2.4.6 न्यायालय के र्र्चार में र्र्र्ध के पररर्तिन, ‘सार्धानीपूर्िक आांर्शक रूप से समाप्त करन ेऔर पूणि रूप से बनाए रखन ेसे र्ापस
आने की र्िशा में’ प्रर्ृत्र्त को प्रकट करते हैं’ ।78 र्कसी ऐसे कथन में, िो ऐसी र्चांताओां को प्रर्तर्बांर्बत करता ह,ै र्िन्होंन ेस्पन्िन प्राप्त
कर र्लया ह,ै न्यायालय ने कहा, ‘िीर्न और मृत्य ुपर र्कसी र्र्र्धक नीर्त को तिथि मन:स्र्थर्त या व्यक्र्तगत अर्भरुर्च के र्लए नहीं
छोड़ा िा सकता ह ैऔर इसर्लए हमने उस ेसांभर् सीमा तक, प्रर्तशोधात्मक र्नष्ठुरता को त्यागते हुए िीर्न समाप्त कर िने ेके अत्यर्धक
74 िगमोहन र्सांह बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1973) 1 एससीसी 20, पैरा 26 पर ।
75 िगमोहन र्सांह बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1973) 1 एससीसी 27, पैरा 26 पर ।
76 (1974) 4 एससीसी 443 । 77 एर्डगा अनम्मा बनाम आांध्र प्रिशे राज््य, (1974) 4 एससीसी 443, पैरा 14 पर ।
78 एर्डगा अनम्मा बनाम आांध्र प्रिशे राज््य, (1974) 4 एससीसी 443, पैरा 21 पर ।
16
और अप्रर्तसांहरणीय िांड के र्र्रुद्ध भयपरर्तकारक मत का सांशोधन करते हुए और प्रर्ृत्र्त को स्र्र ितेे हुए उद्दशे्य पूणि बनाना चाहा ह ै
।’79
2.4.7 1979 में रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिशे राज््य (‘रािेंि प्रसाि’)80 के मामले में इस पर र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया था र्क
मृत्यिुांडािशे को अर्धरोर्पत करने में क्या ‘र्र्शेष कारण’ हो सकते हैं । न्यायालय ने स्र्यां को मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता से नहीं र्कन्तु
िांडािशे िने े के र्र्र्ेकार्धकार से र्र्रोध रखते हुए पाया । न्यायालय ने बहुमत के अनसुार (िो न्यायाधीशों के) कहा, ‘मृत्यिुांड’
अर्धरोर्पत करने के र्लए आर्श्यक र्र्शेष कारण उसी रूप में अपराध से नहीं र्कनत ुअपराधी से अर्श्य सांबांर्धत होन ेचार्हए ।’81
उन्होंन ेिांडािशे िने ेमें सधुार पर ध्यान कें र्ित र्कया यद्यर्प उन्होंन ेअर्भर्नधािररत र्कया र्क यह केर्ल अपराध की प्रकृर्त नहीं ह ैिो
िांडािशे का र्र्र्नश्चय करन ेमें ससुांगत होगी । न्यायालय ने कहा, ‘प्रर्तशोधात्मक र्सद्धाांत’ का अपना र्िन था और अब यह र्र्र्धमान्य
नहीं रह गया ह ै। भयपरर्तकाररता और सधुार प्रारांर्भक सामार्िक उद्दशे्य हैं िो िाांर्डक रामबाण के रूप में िीर्न और स्र्तांत्रता से र्ांर्चत
र्कया िाना यकु्र्तयकु्त बनाते हैं ।’82 महत्र्पूणि रूप से उन र्चांताओां को स्र्र ितेे हुए, िो पनु: प्रकट होनी आरांभ हो गई हैं न्यायालय ने
पूछा : ‘अर्धकाांशत: र् ेकौन से मनषु्य हैं, र्िन्हें फाांसी का तख्ता र्नगल िाता ह’ै83 और पाया र्क कुछ अपर्ािों सर्हत य े‘पशु्तैनी
ग्रामीण.......कायि करन ेर्ाले कायिकताि.............रािनरै्तक र्र्रोध करने र्ाले....................बेघर और भटके हुए व्यक्र्त हैं र्िन्हें समाि
ने उपेक्षा करके सड़क पर घूमने र्ाला कठोर व्यक्र्त बना र्िया ह ैया गरीब गृहस्र्ामी-पर्त या पत्नी, िो आर्ेश के र्र्स्फोटों से उत्तेर्ित
थे ।’84 उन्हें अत्यर्धक िांड र्िया गया था ।
2.4.8 1979 में उच्चतम न्यायालय की र्र्र्भन्न न्यायपीठों ने िलबीर र्सांह बनाम पांिाब राज््य85 और बचन र्सांह बनाम पांिाब
राज््य86 के मामलों में सनुर्ाई की । िबर्क िलबीर र्सांह में र्कसी र्र्र्नश्चय पर पहुांचने के र्लए रािेंि प्रसाि पर भरोसा र्कया गया था,
बचन र्सांह में न्यायपीठ ने िखेा र्क रािेंि प्रसाि में र्नणिय िगमोहन में र्कए गए र्र्र्नश्चय के र्र्रुद्ध था और उन्होंन ेउस ेसांर्धैार्नक
न्यायपीठ को र्नर्ििष्ट कर र्िया । इसका पररणाम बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य (‘बचन र्सांह’) में सांर्धैार्नक न्यायपीठ के प्रमखु र्नणिय
के रूप में सामन ेआया ।87
2.4.9 बचन र्सांह में मृत्यिुांड की चनुौती को, अन्य बातों के साथ, उलटन ेयोग्य न होन ेऔर भ्रमशील होने तक सीर्मत कर र्िया गया
था और यह र्क िांड आर्श्यक रूप से िूर, अमानर्ीय और अपमानिनक ह ै। यह भी प्रर्तर्ाि र्कया गया था र्क भयपरर्तकाररता का
िांड सांबांधी प्रयोिन र्सद्ध नहीं हुआ था, प्रर्तशोध िांडके आधार पर स्र्ीकायि नहीं था और यह र्क सधुार और पनुर्ािस िो बातें थी, िो
िांड का प्रयोिन थीं ।
79 एर्डगा अनम्मा बनाम आांध्र प्रिशे राज््य, (1974) 4 एससीसी 443, पैरा 26 पर ।
80 (1979) 3 एससीसी 646 ।
81 रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1979) 3 एससीसी 646, पैरा 88 पर ।
82 रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1979) 3 एससीसी 646, पैरा 88 पर ।
83 रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1979) 3 एससीसी 646, पैरा 77 पर ।
84 रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1979) 3 एससीसी 646, पैरा 77 पर ।
85 (1979) 3 एससीसी 745 ।
86 (1980) 2 एससीसी 684 ।
87 (1980) 2 एससीसी 684 ।
17
2.4.10 इस मामल ेकी सनुर्ाई करन ेर्ाले पाांच न्यायाधीशों में से चार ने इस तकि को स्र्ीकार नहीं र्कया र्क मृत्यिुांड असांर्धैार्नक
था । उन्होंन ेरािेंि प्रसाि को उलट र्िया और िगमोहन की पषु्र्ट कर िी, िब उन्होंन ेयह अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड को उन मामलों
तक र्नबंर्धत नहीं र्कया िा सकता ह,ै िब र्क राज््य और समाि की सरुक्षा, लोक व्यर्स्था और सामान्य िनता के र्हत सांकट में पड़ते
हों । उन्होंन ेअर्भनधािररत र्कया र्क गलर्तयों को उच्चतर न्यायालयों द्वारा ठीक र्कया िा सकता ह ैऔर िांडािशे-पूर्ि की सनुर्ाई और
र्ह प्रर्िया, िो उच्च न्यायालय द्वारा पषु्र्ट की अपेक्षा करती ह,ै गलर्तयों को ठीक कर िगेी ।
2.4.11 बचन र्सांह में न्यायालय ने मृत्यिुांड का अर्धरोपण करने के र्लए ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ मागििशिक र्सद्धाांत को
स्र्ीकार र्कया और यह कहा र्क मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेया अर्धरोर्पत न करन ेके कारणों में अपराध की या अपराधी की पररस्र्थर्तयाां
सम्र्मर्लत होनी चार्हए। यह र्ह भी मामला था िहाां न्यायालय ने िांडािशे िने ेकी अपनी प्रर्िया में र्नश्र्चत रूप से अांतर र्कया ।
न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया :
इस उपबांध के सांिभि में अर्भव्यक्र्त ‘र्र्शेष कारणों’ से स्पष्टत: अपराध और साथ ही अपराधी से सांबांर्धत र्र्र्शष्ट मामल ेकी
अपर्ािात्मक रूप से गांभीर पररस्र्थर्तयों में पाए गए ‘अपर्ािात्मक कारण’ अर्भप्रेत थे ।88
2.4.12 उसमें आगे िोड़ा :
इस पर और अर्धक िोर नहीं र्िया िा सकता र्क मृत्यिुांड के के्षत्र में कम करन ेर्ाले तथ्यों की पररर्ध और सांकल्पना का
न्यायालयों द्वारा धारा 354(3) में र्र्स्तृत रूप से र्लखी हुई िांडािशे िने ेकी नीर्त के अनसुार उिार और व्यापक अथारं्यन
र्कया िाना चार्हए । न्यायाधीशों को कभी खून का प्यासा नहीं होना चार्हए.............अत: इस र्चांता को स्र्र िनेा
आिशेात्मक ह ैर्क न्यायालय, िो हमारे द्वारा र्निरे्शत ऐसे र्र्स्तृत उिाहरणात्मक मागिशिक र्सद्धाांतों द्वारा सहायता प्राप्त हैं,
िो धारा 354(3) में र्लखी गई उच्च र्र्धायी नीर्त के साथ र्निरे्शत र्कए गए हैं, अथाित् यह र्क हत्या के र्सद्धिोषी
वयक्र्त के र्लए आिीर्न कारार्ास र्नयम ह ैऔर मृत्यिुांड अपर्ाि, और अर्धक सार्धानी तथा मानर्ीय र्चांताओां के साथ
िभुिर कृत्य का र्नर्िहन करेंगे । मानर् िीर्न की गररमा के र्लए र्ास्तर्र्क और आबद्धकारी र्चांता र्र्र्ध की सहायता के माध्यम
से िीर्न लेने के प्रर्तरोध को मानती ह ै। उस ेर्र्रल ेमामलों में र्र्रलतम में के र्सर्ाए, िबर्क आनकुल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत
रूप से प्रर्तबांर्धत हो, नहीं र्िया िाना चार्हए ।89 (िोर र्िया गया)
2.4.13 न्यायमूर्ति भगर्ती ने अपन े र्र्रोधी मत में मृत्यिुांड को मनमाना, र्र्भेिकारी और सनकी पाया, उन्होंन ेकारण र्िया र्क
‘मृत्यिुांड’ अपन ेर्ास्तर्र्क प्रर्तिन में र्र्भेिकारी ह ैक्योंर्क र्ह अर्धकतर गरीब और समाि के र्ांर्चत अनभुागों के र्र्रुद्ध र्िया िाता ह ै
और अमीर तथा समृद्ध व्यक्र्त सामान्यतया उसके पांिों से बच िाते हैं । यह पररस्र्थर्त भी मृत्यिुांड की मनमानी और सनकी प्रकृर्त में
र्ृर्द्ध करती ह ैऔर अनचु्छेि 14 और अनचु्छेि 21 के अर्तिमणकारी होन ेके रूप में इसे असांर्धैार्नक बनाती हैं ।’90
2.4.14 1991 में शर्श नायर बनाम भारत सांघ,91 में मृत्यिुांड को एक बार र्फर, अन्य कारणों के साथ, आयोग की 35र्ीं ररपोटि
ने बचन र्सांह में भरोसा र्कए िाने के र्लए चनुौती िी। न्यायालय ने उस यार्चका को, िशे में र्र्र्ध और व्यर्स्था की र्गरती हुई अर्स्था
का उिाहरण िकेर इस सांपे्रक्षण के साथ अस्र्ीकार कर र्िया र्क इस र्र्षय पर र्र्र्ध पर पनुर्र्िचार करन ेके र्लए अभी उपयकु्त समय नहीं
88 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 161 पर । 89 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 161 पर ।
90 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, 1982 3 एससीसी 24 (न्यायमरू्ति भगर्ती, र्र्रोधी मत), पैरा 81 पर । 91 (1992) 1 एससीसी 96 ।
18
था । इस अर्भर्ाक्य को भी र्क लटकाकर फाांसी िने ेका मृत्यिुांड असभ्य और अमानर्ीय था और इसको िांडािशे का र्नष्पािन करन ेमें
र्कसी अन्य सभ्य और कम पद्धर्त द्वारा प्रर्तस्थार्पत र्कया िाना चार्हए, अस्र्ीकार कर र्िया गया था ।92
2.4.15 र्पछले कुछ र्षों में न्यायालयों द्वारा बचन र्सांह र्र्रचना के मनमान ेरूप से लागू करन ेकी ओर तथा ऐसे मामलों में, िहाां
मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत र्कया गया ह,ै न्यार्यक गलती की सांभार्ना पर भी ध्यान आकर्षित र्कया गया ह।ै उच्चतम न्यायालय ने
आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य,93 स्र्ामी श्रद्धाांनांि बनाम कनािटक राज््य94, सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य95 और
फारूख अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य96 में, अन्य मामलों के साथ, यह िखेा ह ैर्क मृत्यिुांड के मामलों में िांडािशे िनेा मनमाना हो
गया ह ैऔर यह र्क बचन र्सांह में िांड िेन ेर्ाली र्र्र्ध का न्यायालय की र्र्र्भन्न न्यायपीठों द्वारा र्र्र्भन्न रूप में र्नर्िचन र्कया गया ह ै।
(ii) आदेशात्मक मृत्युदडंादेश
2.4.16 यद्यर्प 1983 में र्र्र्ध को मृत्यिुांड को अपर्ाि बनान े के र्लए पररर्र्तित कर र्िया गया था और न्यायाधीशों से यह
अर्धर्नणिय करन े के र्लए अपन े र्र्र्ेकार्धकार का प्रयोग करन ेकी अपेक्षा की गई थी र्क मृत्यिुांड को अर्धरोर्पत र्कए िाने की
आर्श्यकता ह ैया नहीं, न्यायालय को यह अर्भर्नधािररत करन ेके र्लए आगे आने पड़ा र्क आिशेात्मक मृत्यिुांड अनचु्छेि 14 और
अनचु्छेि 21 में गारांटीकृत अर्धकारों के र्र्रुद्ध थे ।
2.4.17 मीठू बनाम पांिाब राज््य97 में उच्चतम न्यायालय को भारतीय िांड सांर्हता की धारा 303 में अर्धर्नयर्मत मृत्य ु के
आिशेात्मक िांडािशे का सामना करना पड़ा । न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क आिशेात्मक मृत्यिुांडािशे असांर्धैार्नक था और कहा
:
एक मानकीकृत आिशेात्मक िांडािशे और र्ह भी मृत्य ु के िांडािशे के रूप में, प्रत्यके र्र्र्शष्ट मामल े के तथ्यों और
पररस्र्थर्तयों को ध्यान में रखने में असफल होता ह ै। य ेर्े तथ्य और पररस्र्थर्तयाां हैं िो प्रत्यके व्यक्र्तगत मामल ेमें िांडािशे के
प्रश्न का अर्धारण करने के र्लए सरुर्क्षत मागििशिक र्सद्धाांत का गठन करती हैं ।98
2.4.18 न्यायालय ने इस पर ध्यान र्िया र्क :
यह इस कारण से ह ैर्क मृत्यिुांडािशे को र्कसी र्र्र्शष्ट र्गि के व्यक्र्तयों के सांबांध में धारा 303 द्वारा आिशेात्मक बनाया
गया ह ैऔर यह र्क आर्श्यक पररणाम के रूप में उन्हें यह कारण िर्शित करने से र्क उन्हें मृत्यिुांडािशे क्यों नहीं र्िया िाना
चार्हए, िांड प्रर्िया सांर्हता की धारा 235(2) के अधीन अर्सर र्िए िाने से र्ांर्चत रखा गया ह ै और न्यायालय
मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत करन ेके र्लए र्र्शेष कारणों का कथन करन े से उस सांर्हता की धारा 354(3) के अधीन अपन े
92 (1992) 1 एससीसी 96, पैरा 7 पर ।
93 (2007) 12 एससीसी 230 ।
94 (2008) 13 एससीसी 767 ।
95 (2009) 6 एससीसी 498 ।
96 (2010) 14 एससीसी 641 । 97 (1983) 2 एससीसी 277
98 मीठू बनाम पांिाब राज््य, (1983) 2 एससीसी 277, पैरा 16 पर ।
19
िार्यत्र् से मकु्त हो िाते हैं । इन अर्धकारों और ऐसे रक्षापायों से र्ांर्चत करना, र्िनका पररणाम अन्याय होना र्नश्र्चत ह,ै
कठोर मनमाना और अन्यायपूणि ह ै।99
(iii) फांसी देने की पद्धवत
2.4.19 1983 में िीना बनाम भारत सांघ (‘िीना’)100 में उच्चतम न्यायालय ने लटकाकर फाांसी िने ेकी सांर्धैार्नक चनुौती को
अस्र्ीकार करके अर्भर्नधािररत र्कया र्क िब र्कसी कैिी के साथ फाांसी र्िए िाने के पूर्ि बबिरता, उसकी अर्मानना नहीं की िा
सकती, उसको यातना नहीं िी िा सकती या उसका अपमान नहीं र्कया िा सकता, तो फाांसी िकेर लटकाने में इनमें से कोई भी प्रत्यक्ष
या अप्रत्यक्ष रूप से सम्र्मर्लत नहीं ह ै । िीना में भी मृत्यिुांडािशे की सांर्धैार्नकता का पनुरीक्षण र्कए िाने का प्रयास र्कया गया था
र्कन्तु न्यायालय ने इस प्रश्न पर पनु: र्र्चार नहीं र्कया ।
2.4.20 परमानांि कटारु बनाम भारत सांघ101 के पश्चातर्ती र्र्र्नश्चय में न्यायालय ने स्र्ीकार र्कया र्क मृत्य ुके पश्चात ्शरीर को
लटकाए रखना- पांिाब िेल मनैअुल का यह अनिुशे र्क शरीर को मृत्य ुके पश्चात ्आध ेघांटे तक लटकाए रखा िाए- व्यक्र्त की गररमा
का अर्तिमण था और इसर्लए र्ह असांर्धैार्नक था ।
(iv) ववलंब और मृत्युदडं
2.4.21 र्र्लांब आपरार्धक न्याय प्रणाली में र्चांता का र्र्षय रहा ह,ै इस लोकोक्र्त के साथ र्क ‘र्र्लांब से र्िया गया न्याय, र्स्तुत
न्याय से र्ांर्चत र्कया िाना ह’ै िो अपराध के पीर्ड़त और साथ ही साथ अपराधी िोनों के िखुों का कारण बनता ह ै। कारार्ास की लांबी
अर्र्धयाां, िो अर्र्धयाां मृत्य ुपांक्र्त में और एकाांत परररोध में होती हैं, र्षों से न्यायालयों में र्चता का र्र्षय रही हैं । टी.र्ी. र्ाथीस्र्रन
बनाम तर्मलनाडु राज््य (‘र्ाथीस्र्रन’)102 के मामल ेमें, न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ऐसे िांडािशे के र्नष्पािन में र्र्लांब, िो
िो र्षि से अर्धक हो, अनचु्छेि 21 द्वारा गारांटीकृत प्रर्िया का अर्तिमण होगा । तथार्प, शेर र्सांह बनाम पांिाब राज्य103 में यह
अर्भर्नधािररत र्कया गया र्क र्र्लांब अनचु्छेि 21 का आह्वान करन ेके र्लए आधार हो सकता ह,ै र्कन्त ुयह र्क इस सांबांध में कोई भी
कर्ठन और र्नश्र्चत र्नयम अर्धकर्थत नहीं र्कया िा सकता र्क र्र्लांब र्कसी कैिी को मृत्य ुके िांडािशे को अर्भखांर्डत करान ेका
हकिार बनाएगा ।
2.4.22 र्त्रर्ेणीबेन बनाम गुिरात राज््य104 के मामल ेमें उच्चतम न्यायालय की सांर्धैार्नक न्यायपीठ ने इस प्रश्न पर र्र्चार र्कया
और अर्भर्नधािररत र्कया र्क केर्ल कायिपार्लका के र्र्लांब पर न र्क न्यार्यक र्र्लांब पर, अनचु्छेि 21 के आके्षप से ससुांगत होन ेके
रूप में र्र्चार र्कया िा सकता ह ै। न्यायालय ने कहा ‘केर्ल ऐसा र्र्लांब, िो र्र्चारण के र्लए तात्र्र्क होगा, र्ह िया यार्चकाओां के
र्नपटारे में या कायिपार्लका की प्रेरणा पर होन ेर्ाला र्र्लांब होगा ।’105
99 मीठू बनाम पांिाब राज््य, (1983) 2 एससीसी 277, पैरा 17 पर ।
100 (1983) 4 एससीसी 645 ।
101 (1995) 3 एससीसी 248 ।
102 (1983) 2 एससीसी 68 ।
103 (1983) 2 एससीसी 344 । 104 (1989) 1 एससीसी 678 ।
105 र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एससीसी 678, पैरा 17 पर ।
20
2.4.23 यर्ि, इसर्लए फाांसी में असाधारण र्र्लांब होता ह ैतो र्सद्धिोष कैिी न्यायालय आकर उससे यह परीक्षा करन ेके र्लए
अनरुोध करन ेका हकिार ह ैर्क क्या मृत्यिुांडािशे को र्नष्पार्ित र्कए िाने की अनजु्ञा िनेा न्यायोर्चत और ऋि ुह ै।
2.4.24 न्यायालय ने यह भी अर्भर्नधािररत र्कया :
मृत्य ुिांडािशे के र्नष्पािन में असम्यक् लम्बा र्र्लांब र्सद्धिोष व्यक्र्त को अनुच्छेि 32 के अधीन इस न्यायालय तक पहुांचने
के र्लए हकिार बनाएगा र्कन्तु यह न्यायालय िांडािशे की न्यार्यक प्रर्िया द्वारा अांर्तम रूप से पषु्र्ट र्कए िाने के पश्चात्
काररत र्र्लांब और पररस्र्थर्तयों की प्रकृर्त की परीक्षा करेगा, र्कां त ुउस मृत्यिुांडािशे को अांर्तम रूप से बनाए रखते हुए, उस
न्यायालय द्वारा र्नकाले गए र्नष्कषों को पनु: िखेन ेकी कोई अर्धकाररता नहीं होगी...................र्र्लांब की कोई र्नश्र्चत
अर्र्ध मृत्यिुांडािशे को अर्नष्पािनीय बनान ेके र्लए अर्भर्नधािररत नहीं की िा सकी ।106
2.4.25 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ107 के मामले में इसकी पुन: पुष्र्ट की गई थी । इस मामल ेमें ‘मृत्य ुपांक्र्त के र्सद्धिोर्षयों के
र्हतों की रक्षा करन’े108 के र्लए मागििशिक र्सद्धाांतों को भी अर्भर्नधािररत र्कया गया था, र्िनमें राष्ट्रपर्त द्वारा िया यार्चका को नामांिूर
र्कए िाने के पूर्ि एकाांत या एकल सेल परररोध की असांर्धैार्नकता पनु: पषु्ट र्कया िाना, र्र्र्धक सहायता िने ेकी आर्श्यकता और
िया यार्चका के नामांिूर र्कए िाने और फाांसी के बीच 14 र्िन की अर्र्ध की आर्श्यकता, सम्र्मर्लत थे ।
2.4.26 हाल में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय िांड सांर्हता की धारा 364क की सांर्धैार्नकता को बनाए रखा ह ैिो र्फरौती के र्लए
अपहरण के मामलों में मृत्यिुांडािशे के अर्धरोपण के र्लए अनजु्ञा ितेा ह ै। र्र्िम र्सांह बनाम भारत सांघ109 के मामल ेमें यह तकि र्िया
गया था र्क धारा 364क, अन्य बातों के साथ, असांर्धैार्नक थी क्योंर्क यह न्यायालयों को ऐसा िांड िनेे में र्र्र्ेकानसुार से र्ांर्चत
करती थी िो आिीर्न कारार्ास या मृत्यिुांडािशे नहीं था, र्र्शेष रूप से अपहरण के मामलों में, िो ऐसे ऊां चे िांड का समथिन नहीं करता
। उच्चतम न्यायालय ने अर्भस्र्ीकार र्कया र्क ‘िांड ऐसे अपराधों की, र्िनके र्लए उन्हें र्र्र्हत र्कया गया ह,ै प्रकृर्त और गांभीरता के
अनपुात में होना चार्हए’ ।110 तथार्प इनमें अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘धारा 364क को अपराध की प्रकृर्त के ऐसे अन्यायपूणि
अननपुार्तक होने के रूप में नहीं छोड़ा िा सकता र्क र्िसे असांर्धैार्नक घोर्षत र्कए िाने की माांग की िा सकती हो’111 और यह कहा
र्क मृत्यिुांडािशे के र्र्रल ेमामलों से र्र्रलतम में हीं र्िए िाएांगे । न्यायालय ने इस प्रश्न को सांबोर्धत नहीं र्कया र्क क्या मृत्यिुांड गरै
मानर् र्ध अपराध के र्लए या इस र्र्षय पर लागू अांतराष्ट्रीय र्र्र्ध मानकों के अनसुार समरु्चत िांड था ।
ड. भारत में मृत्युदडं पर ववविया ं
2.5.1 भारतीय िांड सांर्हता के अधीन मृत्यिुांडािशे कई अपराधों के र्लए र्िया िा सकता ह,ै र्िनमें र्नम्नर्लर्खत सम्र्मर्लत हैं :
106 र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एससीसी 678, पैरा 23 पर ।
107 (2014) 3 एससीसी 1 ।
108 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 241 पर ।
109 र्र्िम र्सांह@ र्र्की और अन्य बनाम भारत सांघ और अन्य, 21 अगस्त, 2015 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने 2013 की िाांर्डक अपील सां0
824 के र्नणिय में ।
110 र्र्िम र्सांह@ र्र्की और अन्य बनाम भारत सांघ और अन्य, 21 अगस्त, 2015 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने 2013 की िाांर्डक अपील सां0
824 के र्नणिय में, पैरा 49 पर ।
111 र्र्िम र्सांह@ र्र्की और अन्य बनाम भारत सांघ और अन्य, 21 अगस्त, 2015 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने 2013 की िाांर्डक अपील सां0
824 के र्नणिय में, पैरा 50 पर ।
21
सारणी : 2.1 भारतीय दडं संवहता में मृत्यु से दडंनीय अपराि
ि0 स0ं िारा स0ं वणटन
1. धारा 121 भारत सरकार के र्र्रुद्ध यदु्ध करना,
2. धारा 132 र्ास्तर् में र्कए गए र्र्िोह का िषु्प्रेरण
3. धारा 194 शपथ भांग, र्िसका पररणाम र्कसी र्निोष व्यक्र्त की िोषर्सर्द्ध और मृत्य ुमें हो
4. धारा 195क र्कसी व्यक्र्त को र्मथ्या साक्ष्य िने ेके र्लए धमकाना या उत्प्रेररत करना, र्िसका
पररणाम र्कसी र्निोष व्यक्र्त की िोषर्सर्द्ध और मृत्य ुमें हो
5. धारा 302 हत्या
6. धारा 305 र्कसी अर्यस्क या उन्मत्त व्यक्र्त द्वारा आत्महत्या के र्लए िषु्प्रेरण
7. धारा 307(2) र्कसी तामील करने र्ाले आिीर्न र्सद्धिोषी द्वारा प्रयार्तत हत्या
8. धारा 364क र्फरौती के र्लए अपहरण
9. धारा 376क बलात्सांग और क्षर्त, िो स्त्री की मृत्य ुकाररत करती ह ैया उस ेलगातार र्नष्र्ियता
की स्र्थर्त में छोड़ ितेी ह,ै काररत करन ेके र्लए िांड
10. धारा 376ड. बलात्सांग के सांिभि में पनुरार्ृत्र्त करन ेर्ाले अपराधी
11. धारा 396 हत्या सर्हत डकैती
2.5.2 मृत्यिुांड उस िशा में भी अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ैर्िसमें यर्ि कोई इन अपराधों में से र्कसी को करने के आपरार्धक
षडयांत्र का िोषी पाया िाता ह ै।112
3.5.3 भारतीय िांड सांर्हता के अर्तररक्त कई र्र्र्धयाां भारत में सांभर् िांड के रूप में मृत्यिुांड को र्र्र्हत करती हैं इनमें र्नम्नर्लर्खत
सम्र्मर्लत हैं :
सारणी : 2.2 अन्य वववियों में मृत्यु से दडंनीय अपराि
ि0 स0ं िारा स0ं अविवनयम
1. धारा 34, धारा 37 और धारा 38(1) र्ाय ुसेना अर्धर्नयम, 1950
2. धारा 3(1)(i) आांध्र प्रिशे कन्ट्रोल आफ आरगेनाइज््ड िाइम एक्ट
3. धारा 27(3) आयधु अर्धर्नयम, 1959 (र्नरर्सत)
4. धारा 34, धारा 37 और धारा 38(1) सेना अर्धर्नयम, 1950
5. धारा 21, धारा 24, धारा 25(1)(क)
और धारा 55
आसाम राइफल्स अर्धर्नयम, 2006
6. धारा 65क(2) ममु्बई प्रर्तषेध (गुिरात सांशोधन) अर्धर्नयम, 2006
112 धारा 120ख, भारतीय िांड सांर्हता, 1860
22
7. धारा 14, धारा 17, धारा 18(1)(क)
और धारा 46
सीमा सरुक्षा बल अर्धर्नयम, 1968
8. धारा 17 और धारा 49 तटरक्षक अर्धर्नयम, 1978
9. धारा 4(1) सती (र्नर्ारण) अर्धर्नयम, 1987
10. धारा 5 भारत रक्षा अर्धर्नयम, 1971
11. धारा 3 र्िनेर्ा कन्र्ेंशन अर्धर्नयम, 1960
12. धारा 3(ख) र्र्स्फोटक पिाथि अर्धर्नयम, 1908
13. धारा 16, धारा 19, धारा 20(1)(क)
और धारा 49
भारत- र्तब्बत सीमा परु्लस बल अर्धर्नयम, 1992
14. धारा 3(1)(i) कनािटक कन्ट्रोल आफ आरगेनाइज््ड िाइम एक्ट, 2000
15. धारा 3(1)(i) महाराष्ट्र कन्ट्रोल आफ आरगेनाइज््ड िाइम एक्ट
16. धारा 31क(1) स्र्ापक ओषर्ध और मन:प्रभार्ी पिाथि अर्धर्नयम, 1985
17. धारा 34, धारा 35, धारा 36, धारा
37, धारा 38, धारा 39, धारा 43,
धारा 44, धारा 49(2)(क), धारा
56(2) और धारा 59
नौसेना अर्धर्नयम, 1957
18. धारा 15(4) पेट्रोर्लयम और खर्नि पाइपलाइन (भूर्म में उपयोग के अर्धकार का
अििन) अर्धर्नयम, 1962
19. धारा 16, धारा 19, धारा 20(1)(क)
और धारा 49
सशस्त्र सीमा बल अर्धर्नयम, 2007
20. धारा 3(2)(i) अनसूुर्चत िार्तयाां और अनसूुर्चत िनिार्तयाां (अत्याचार र्नर्ारण)
अर्धर्नयम, 1989
21. धारा 3(1)(i) सामरु्िक नौपररर्हन और महाद्वीपीय मग्नतट भूर्म पर स्र्थर प्लेटफामों
की सरुक्षा के र्र्रुद्ध र्र्र्ध-र्र्रुद्ध कायों का िमन अर्धर्नयम,
2002 22. धारा 10(ख)(i) और धारा
16(1)(क)
र्र्र्धर्र्रुद्ध र्ियाकलाप (र्नर्ारण) अर्धर्नयम, 1967
(i) मृत्युदडं के के्षत्र के हाल में वकए गए ववस्तार
2.5.4 इन सांशोधनों में से कई तुलनात्मक रूप से हाल में पाररत र्कए गए हैं । उिाहरण के र्लए 2013 में पाररत र्कए गए
आपरार्धक र्र्र्ध (सांशोधन) अर्धर्नयम ने िांड प्रर्िया सांर्हता में कई नए उपबांधों को परु:स्थार्पत र्कया, र्िनके अांतगित धारा 376क
ह,ै र्िसन ेऐसे मामलों में बलात्सांग के कारण पीर्ड़त की मृत्य ुहो गई थी या र्िसन ेउस ेलगातार र्नष्र्िय स्र्थर्त में छोड़ र्िया था,
मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कए िाने की अनजु्ञा िी; और धारा 376ड., र्िसने कर्तपय पनुरार्ृत्र्त करने र्ाले अपरार्धयों पर मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत करनेकी अनजु्ञा िी। य ेसांशोधन र्माि सर्मर्त की र्सफाररशों113 को ध्यान में रखते हुए पाररत र्कए गए थे । इस पर िोर र्िया 113 िरे्खए, र्माि सर्मर्त ररपोटि, 2013, िो http://www.prsindia.org/uploads/media/Justice%verma%20committee/js%20verma%20committee%20
report.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
23
िा सकता ह ैर्क िबर्क र्माि सर्मर्त लैंर्गक हमलों और बलात्सांग के कर्तपय रूपों के र्लए बढे हुए िांड के पक्ष में थी, इसन ेर्टप्पणी
की र्क ‘‘समाज के बृहत हहतों में और मृत्यदुडं समाप्त करन ेके पक्ष में वततमान हवचारधारा को ध्यान में रखते हुए और हकसी भी दडंादशे
को मनमानेपन से हदए जाने के तकत से बचने के हिए भी, हम मृत्यदुडं की हसफाररश करन ेके पक्ष में नहीं हैं ।’’114 आपरार्धक र्र्र्ध
(सांशोधन) अर्धर्नयम, 2013 ने मृत्यिुांड के के्षत्र का तथार्प र्र्स्तार नहीं र्कया ।
2.5.5 इस समय सांसि ्में अपहरण र्र्रोधी (सांशोधन) र्र्धेयक, 2014 लांर्बत ह,ै और र्ह भी मृत्यिुांड के र्लए र्र्र्हत करता ह ै
।115
(ii) मृत्युदडं और गैर मानव वि अपराि
2.5.6 कई अपराध, र्िनके र्लए मृत्यिुांड र्र्र्हत र्कया गया ह,ै गैर-मानर् र्ध अपराध अांतर्िर्लत करते हैं और अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध
द्वारा अपेर्क्षत रूप में ‘अत्यर्धक गांभीर अपराधों’ की अर्सीमा को पूरा नहीं करते हैं ।116 इनके अांतगित र्नम्नर्लर्खत हैं :
सारणी 2.3 : गैर-मानव वि, जो मृत्यु से दडंनीय अपराि है
ि0 स0ं िारा स0ं अविवनयम
1. धारा 34, धारा 37 और धारा 38 र्ाय ुसेना अर्धर्नयम, 1950
2. धारा 34, धारा 37 और धारा 38 सेना अर्धर्नयम, 1950
3. धारा 21, धारा 24 और धारा 25 आसाम राइफल्स अर्धर्नयम, 2006
4. धारा 14, धारा 17 और धारा 18 सीमा सरुक्षा बल अर्धर्नयम, 1968
5. धारा 17, धारा 49 तटरक्षक अर्धर्नयम, 1978
6. धारा 3 र्र्स्फोटक पिाथि अर्धर्नयम, 1908
7. धारा 120ख, धारा 121 (यदु्ध करना),
धारा 132, धारा 194, धारा 195क,
धारा 364क (िांड र्र्र्ध (सांशोधन)
अर्धर्नयम, 1993 द्वारा िोड़ी गई), धारा
376ड. (िांड र्र्र्ध (सांशोधन)
अर्धर्नयम, 2013 द्वारा िोड़ी गई)
भारतीय िांड सांर्हता, 1860
8. धारा 16, धारा 19 और धारा 20 भारत- र्तब्बत सीमा परु्लस बल अर्धर्नयम, 1992
9. धारा 31 स्र्ापक ओषर्ध और मन:प्रभार्ी पिाथि अर्धर्नयम, 1985
10. धारा 34, धारा 35, धारा 26, धारा नौसेना अर्धर्नयम, 1957
114 िरे्खए, र्माि सर्मर्त ररपोटि, 2013, पैरा 246 पर, िो http://www.prsindia.org/uploads/media/Justice%verma%20committee/js%20verma%20committee%20
report.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
115 िरे्खए पीआरएस इांर्डया, अपहरण र्र्धेयक, 2014, http://www.prsindia.org/billtrack/the-anti-hijacking-
amendment-bill-2014-3500/ पर उपलब्ध ह ै(15.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
116 अनुच्छेि6(2), आईसीसीपीआर, ‘‘ऐस ेिेशों ने, र्िन्होंने मतृ्युिांड को समाप्त नहीं र्कया ह,ै मतृ्युिांडािेश को अपराध र्कए िाने के समय पर प्रर्ृत्त र्र्र्ध
के अनुसार और र्तिमान प्रसांर्र्िा के उपबांधों के और िनसांहार के अपराध के र्नर्ारण और िांड सांबांधी प्रसांर्र्िा के र्र्रोध में नहीं, अतयर्धक गांभीर अपराधों के र्लए
अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै। इस िांड को र्कसी सक्षम न्यायालय द्वारा र्िए गए अांर्तम र्नणिय के अनुसरण में र्िया िा सकता ह ै।’’
24
37, धारा 38, धारा 39, धारा 43,
धारा 44, धारा 49, धारा 56, धारा 59
11. धारा 15 पेट्रोर्लयम और खर्नि पाइपलाइन (भूर्म में उपयोग के अर्धकार का
अििन) अर्धर्नयम, 1962
12. धारा 16, धारा 19 और धारा 20 सशस्त्र सीमा बल अर्धर्नयम, 2007
13. धारा 3 अनसूुर्चत िार्तयाां और अनसूुर्चत िनिार्तयाां (अत्याचार र्नर्ारण)
अर्धर्नयम, 1989
(iii) आज्ञापक मृत्युदडं की लगातार ववद्यमानता
2.5.7 इस तथ्य के होते हुए भी र्क उच्चतम न्यायालय ने आज्ञापक मृत्यिुांड को असांर्धैार्नक और मनमाना पाया, सांसि ्ने उस समय
से ऐसी र्र्र्धयाां अर्धर्नयर्मत की हैं, िो आज्ञापक मृत्यिुांड को बराबर र्र्र्हत करती रही हैं । सामरु्िक नौपररर्हन और महाद्वीपीय
मग्नतट भूर्म पर स्र्थर प्लेटफामों की सरुक्षा के र्र्रुद्ध र्र्र्ध-र्र्रुद्ध कायों का िमन अर्धर्नयम, 2002 की धारा 3(छ) (i) में,
अनसूुर्चत िार्तयाां और अनुसूर्चत िनिार्तयाां (अत्याचार र्नर्ारण) अर्धर्नयम, 1989 की धारा 3(2)(i) में और आयधु
अर्धर्नयम की धारा 27(3) में लगातार आज्ञापक मृत्यिुांडािशे को र्र्र्हत र्कया गया ह ै। आज्ञापक मृत्यिुांडािशे को स्र्ापक औषर्ध
और मन:प्रभार्ी पिाथि अर्धर्नयम, 1985 में 1989 के सांशोधन द्वारा भी परु:स्थार्पत र्कया गया । ममु्बई उच्च न्यायालय ने इसको
2010 में असांर्धैार्नक घोर्षत कर र्िया117 और उस अर्धर्नयम को 2014 में केर्ल इसको र्नकालने के र्लए अांर्तम रूप से
सांशोर्धत र्कया गया ।
(iv) मृत्युदडं और आतंक ववरोिी ववविया ं
2.5.8 ऐसी बहुत सी र्र्र्धयाां, र्िनके अधीन मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िाता रहा ह,ै आतांकर्ािी अपराधों के सांबांर्धत ह ै। उिाहरण
के र्लए मृत्यिुांड आतांकर्ािी और र्र्ध्र्ांशकारी र्ियाकलाप अर्धर्नयम, 1987 (‘टाडा’), आतांकर्ाि र्नर्ारण अर्धर्नयम,
2002 (‘पोटा’) और र्र्र्ध र्र्रुद्ध र्ियाकलाप (र्नर्ारण) अर्धर्नयम, 1967 के अधीन लगातार अर्धरोर्पत र्कए िाते रह ेहैं
और उन्हें मान्य ठहराया िाता रहा ह ै। एक बात यह भी ह ैर्क इन मृत्य ुिांडािेशों को तब भी कायािन्र्र्त र्कया गया ह ैिबर्क ऐसे कुछ
मामलों में अांतर्निर्हत र्र्र्ध (टाडा) को या तो र्नरर्सत कर र्िया गया ह ैया र्ह व्यपगत (पोटा) हो गई ह ै। र्र्शेष रूप से आतांकर्ािी
और र्र्ध्र्ांशकारी र्ियाकलाप अर्धर्नयम, 1987 को ऋि ुर्र्चारण सांबांधी गारांर्टयों का आिर न करन ेकी आलोचना के कारण और
उसके िरुुपयोग के व्यापक अर्भकथनों के बीच र्नरर्सत कर र्िया गया था । आतांकर्ािी और र्र्ध्र्ांशकारी र्ियाकलाप अर्धर्नयम और
आतांकर्ाि र्नर्ारण अर्धर्नयम, र्र्र्ध र्र्रुद्ध र्ियाकलाप (र्नर्ारण) अर्धर्नयम ऋि ुर्र्चारण की सभी प्रकार की गारांर्टयों के र्लए
उपबांध नहीं करते थे : उन्होंन ेअपराधों को अस्पष्ट रूप से पररभार्षत र्कया ; इस प्रकार र्धैता के र्सद्धाांत से समझौता कर र्लया ;
कर्तपय उिाहरणों में र्निोर्षता की उपधारणा को उलट र्िया ; आरोप पूर्ि र्नरोध की लांबी अर्र्धयों को अनजु्ञात कर र्िया ; र्र्र्नर्ििष्ट
परु्लस अर्धकाररयों के समक्ष की गई कर्तपय सांस्र्ीकृर्तयों को साक्ष्य के रूप में ग्राह्य बना र्िया ; और अपील करन ेके अर्धकार को
केर्ल उच्चतम न्यायालय को अपील करने की अनजु्ञा िकेर सीर्मत कर र्िया ।
(v) मृत्युदडं को समाप्त करने का िस्ताव करने वाले वविेयक
117 इांर्डयन हामि ररडक्शन नेटर्कि बनाम भारत सांघ, िाांर्डक अपील सां0 1784/2010, ममु्बई उच्च न्यायालय ।
25
2.5.9 स्र्तांत्रता प्राप्र्त के पूर्ि श्री गया प्रसाि ने 1931 में भारतीय िांड सांर्हता सांबांधी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड समाप्त करन ेके
र्लए एक र्र्धेयक परु:स्थार्पत करन ेका प्रयास र्कया गया था, र्िसे र्र्फल र्िया था ।118 स्र्तांत्रता प्राप्र्त के पश्चात ्से एम ए कािमी
का 1952 और 1954 में भारतीय िांड सांर्हता की धारा 302 का सांशोधन करन े के र्लए र्र्धेयक, मकुुां ि लाल अग्रर्ाल का
1956 में र्र्धेयक, पृथ्र्ीराि कपूर का 1958 में राज््य सभा में सांकल्प और सार्र्त्री िरे्ी र्नगम का 1961 का सांकल्प, सभी
मृत्यिुांड समाप्त करना चाहते थे ।119 1962 में मृत्यिुांड समाप्त करने के र्लए श्री रघुनाथ र्सांह के सांकल्प पर लोक सभा में र्र्चार-
र्र्मशि र्कया गया था और इसका अनुसरण करते हुए इस मामल ेको र्र्र्ध आयोग को र्नर्ििष्ट र्कया गया था, र्िसके पररणामस्र्रूप
आयोग की 35र्ीं ररपोटि बनी ।120
2.5.10 र्तिमान में सांसि ्के राज््य सभा सिसयों द्वारा प्रस्तार्र्त िो र्र्धेयक इस र्र्षय पर ससुांगत हैं । कार्नमोझी ने मृत्यिुांड समाप्त
करन ेकी माांग करते हुए एक गैर सरकारी सिस्य र्र्धेयक प्रस्तार्र्त र्कया ह1ै21 और डी. रािा ने सरकार से मृत्यिुांड समाप्त र्कया िाना
लांर्बत होन ेतक मृत्यिुांडािशे पर अर्धस्थगन घोर्षत करन ेके र्लए कहते हुए एक गैर सरकारी सिस्य र्र्धेयक प्रस्तार्र्त र्कया ह ै। 122
ि. हाल में भारत में वदए गए मृत्युदडं
2.6.1 एमनेस्टी इांटरनेशनल द्वारा र्कए गए एक अध्ययन में (भारत में 1950-2006 तक के सभी मृत्यिुांडािशे सांबांधी मामलों का
अध्ययन) यह िखेा गया ह ैर्क ऐसे व्यक्र्तयों की सांख्या पर, र्िन्ह ेभारत में फाांसी िी गई ह,ै उपलब्ध शासकीय िानकारी की स्पष्टत: में
कमी ह ैऔर उसमें यह सांिहे र्कया गया ह ैर्क इस अर्र्ध के िौरान फाांसी र्िए गए मामलों की सांख्या सांभर्त: हिारों में थी ।123 तथार्प,
र्पछले समय से फाांसी र्िए िाने र्ाले व्यक्र्तयों की सांख्या में कमी हुई ह ै।
118 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 12 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1
and 3.pdf (26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) पर उपलब्ध ह ै।
119 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 15-18 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report
35Vol1 and 3.pdf (26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) पर उपलब्ध ह ै।
120 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, पैरा 1 पर, http://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report 35Vol1 and
3.pdf (26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) पर उपलब्ध ह ै।
121 र्र्शेष सांर्ाििाता, कार्नमोझी का मतृ्युिांड समाप्त करने के र्लए र्र्धेयक का प्रस्तार्, र्ि र्हन्ि,ू 31 िुलाई, 2015 ।
122 आईएएनएस, मतृ्युिांड : सीपीई नेता डी रािा, गैर सरकारी सिस्य ने सांकल्प प्रस्तार्र्त र्कया, इकोनोर्मक टाइम्स, 31 िुलाई, 2015
123 एमनेस्टी इांटरनेशनल, लीथल लाटरी : डेथ पेनाल्टी इन इांर्डया, एएसए 20/07/2008, पृष्ठ 24 पर,
http://www.amnesty.org/en/documents/ASA20/007/2008/en (26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) पर
उपलब्ध ह ै।
26
2.6.2 धनन्िय चटिी को र्पछले फाांसी र्िए गए मामल ेके पश्चात् से लगभग 7 र्षों की अर्र्ध के पश्चात् 2004 में फाांसी िी गई
थी । पूर्ि अर्भर्लर्खत फाांसी का मामला 1997 में हुआ था ।124 2004 के पश्चात् भारत में 8 र्षों से फाांसी र्िए िाने का
अशासकीय रूप से अर्धस्थगन कर र्िया गया था, िब तक र्क अिमल कसाब को नर्म्बर, 2012 में फाांसी नहीं िी गई । फरर्री,
2013 में अफिल गुरु को फाांसी र्िए िाने और िलुाई, 2015 में याकूब मनेन को फाांसी र्िए िाने के पश्चात ्से िो मामल ेहुए हैं,
र्िनमें फाांसी िी गई ह ै।
2.6.3 भारत में मृत्यिुांड के इर्तहास और इस के्षत्र के हाल के र्र्सतार की परीक्षा र्कए िाने पर, यह अनिुशेात्मक ह ैर्क इस र्र्षय पर
र्र्श्र् व्यापी रुझानों और अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध सांबांधी उपबांधों पर र्र्चार र्कया िाए ।
124 एमनेस्टी इांटरनेशनल, लीथल लाटरी : डेथ पेनाल्टी इन इांर्डया, एएसए 20/07/2008, पृष्ठ 24 पर,
http://www.amnesty.org/en/documents/ASA20/007/2008/en (26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) पर
उपलब्ध ह ै।
27
अध्याय - 3
अंतरराष्ट्रीय रुझान
3.1 मृत्यिुांडािशे के सांबांध में अांतरराष्ट्रीय पररदृश्य- अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध और राज््य व्यर्हार िोनों के अनसुार-र्पछले िशकों में
र्र्कर्सत हुआ ह ै। 1967 की तुलना में, िब आयोग की 35 र्ीं ररपोटि िारी की गई थी और 1980 में, िब बचन हसंह 125 का
र्नणिय र्िया गया था, आि र्र्श्र् के अर्धकाांश िशेों में र्र्र्ध और व्यर्हार में मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया गया ह,ै यहाां तक र्क र्े भी,
र्िन्होंन ेइसे बनाए रखा ह,ै उसकी तुलना में बहुत कम फाांसी ि ेरह े हैं, िो स्र्थर्त इस बारे में कुछ िशकों पहल ेथी ।
3.2 यह अध्याय लागू अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध, रािनरै्तक प्रर्तबद्धताओां और राज््य व्यर्हार के अध्ययन माध्यम से र्पछले िशकों में
अांतरराष्ट्रीय पररदृश्य के रुपाांतरण का और अांतरराष्ट्रीय और साथ ही िशेी र्र्र्धयों, िोनों, में मृत्यिुांड समाप्त करने की ओर स्पष्ट रुझान
का र्णिन करता ह ै।
3.3 इस अध्याय का उद्दशे्य भारतीय राज््य को लागू अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध सांन्र्नयमों को र्र्र्शष्टता से िशािना नहीं ह ै। यहाां र्र्णित कई
सांर्धयों और र्लखतों पर या तो भारतीय सरकार द्वारा हस्ताक्षर नहीं र्कए गए हैं या उनका अनसुमथिन नहीं र्कया गया ह ैया र्े िसूरे
कारणों से भारत में लागू नहीं हैं । इसके अर्तररक्त यह अध्याय मृत्यिुांड के र्र्र्धक र्र्र्नयमन और समय-समय पर उसमें हुए पररर्तिनों से
सांबांर्धत अांतरराष्ट्रीय पररदृश्य का एक र्र्हांगम दृश्य प्रस्तुत करता ह ै।
3.4 अांतरराष्ट्रीय रूप से िशेों को उनकी मृत्यिुांड िने ेकी प्रास्र्थर्त पर र्नम्नर्लर्खत प्रर्गों के आधार पर र्गीकृत र्कया गया ह ै:126
सभी अपराधों के र्लए समाप्त करन ेर्ाल1े27
मामूली अपराधों के र्लए समाप्त करन ेर्ाले
र्ास्तर् में समाप्त करने र्ाले128
बनाए रखे रहन ेर्ाले
125 (1980) 2 एससीसी 684 । 126 यह प्रणाली सांयुक्त राष्ट्र सांघ द्वारा और गैर सरकारी सांगठनों िैसे एमनेस्टी इांटरनेशनल द्वारा अपनाई गई ह ै । उिाहरण के र्लए िरे्खए, ‘मतृ्युिांड और उन
व्यक्र्तयों के, िो मतृ्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपायों का कायािन्र्यन’ सेिेटरी िनरल की ररपोटि ई/2015/49
(अर्ग्रम असांपार्ित पाठ), पृष्ठ 4, िरे्खए उपाबांध 2, एमनेस्टी इांटरनेशनल, 2014 में मृत्युिांड और फाांसी, एसीटी 50/001/2015।
127 इसका अर्भप्राय यह ह ैर्क ‘मतृ्युिांड को शाांर्तकाल में र्कए गए सभी मामलूी अपराधों के र्लए िैसे रे् अपराध, िो आपरार्धक सांर्हता में अांतर्र्िष्ट हैं और
र्िन्हें सामान्य र्र्र्ध में मान्यता प्राप्त ह ै(उिाहरण के र्लए हत्या, बलात्सांग और र्हांसा के साथ डकैती), समाप्त कर र्िया गया ह ै। मतृ्युिांड को केर्ल अपर्ािात्मक
पररस्र्थर्तयों के र्लए, िैसे युद्ध के समय में सेना सांबांधी अपराध या राज््य के र्र्रुद्ध अपराध, िसेै राििोह, आतांकर्ाि या सशस्त्र र्र्प्लर्’ - ‘मतृ्युिांड और उन
व्यक्र्तयों के, िो मतृ्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपायों का कायािन्र्यन’ सेिेटरी िनरल की ररपोटि ई/2015/49
(अर्ग्रम असांपार्ित पाठ), पृष्ठ 4 ।
128 उन राज््यों के प्रर्त-र्निशे करता ह,ै िहाां ‘मतृ्युिांड र्र्र्धपूणि ह ैऔर िहाां मतृ्युिांड अभी भी सनुाए िा सकते हैं र्कन्तु िहाां 10 र्षों से फाांर्सयाां नहीं िी गई हैं’,
या ऐस ेराज््य, ‘र्िन्होंने र्पछले 10 र्षों के भीतर फाांर्सयाां िी हैं र्कन्तु र्िन्होंने शासकीय अर्धस्थगन स्थार्पत करके एक अांतरराष्ट्रीय प्रर्तबद्धता की ह’ै ‘मतृ्युिांड
और उन व्यक्र्तयों के, िो मतृ्युिांड का सामना कर रह े हैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपायों का कायािन्र्यन’ सेिेटरी िनरल की ररपोटि
ई/2015/49 (अर्ग्रम असांपार्ित पाठ), पृष्ठ 4, एमनेस्टी इांटरनेशनल कुछ र्भन्न पररभाषा अपनाता ह ै : ऐस ेिशे र्िन्होंने सामान्य अपराधों, िसेै हत्या के
र्लए मतृ्युिांड बनाए रखा ह ैर्कन्तु र्िन्हें व्यर्हार में समाप्त करने र्ाला समझा िा सकता ह ैक्योंर्क उन्होंने गत 10 र्षों के िौरान र्कसी को फाांसी नहीं िी ह ैऔर
र्िनके बारे में र्र्श्र्ास र्कया िाता ह ैर्क उनके पास फाांसी न िनेे के र्लए नीर्त ह ैया स्थार्पत पद्धर्त ह ै। एनेग्िर 2, एमनेस्टी इांटरनेशनल, 2014 में मतृ्युिांड और
फाांर्सयाां, एसीटी 50/001/2015।
28
3.5 2014 के अांत में 98 िशे सभी अपराधों के र्लए समाप्त करन ेर्ाले हो गए थे, सात िशे केर्ल मामूली अपराधों के र्लए
समाप्त करन ेर्ाले बने थे और 35 व्यर्हार में समाप्त करन ेर्ाल ेथे, इस प्रकार िशे में 140 िशे र्र्र्ध में या व्यर्हार में समाप्त करने
र्ाले बन गए थे । 140 िशेों की इस सूची में 3 ऐसे हैं, र्िन्होंने औपचाररक रूप से 2015 में मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया अथाित्
सूरीनाम, मडेागास्कर और र्फिी ।129 58 िशेों को इसे बनाए रखन ेर्ाला माना गया ह,ै र्िनकी कानूनी पसु्तक में अभी तक मृत्यिुांड ह ै
और र्िन्होंन ेइसका र्पछले गत र्षों में उपयोग र्कया ह ै।130
3.6 िबर्क केर्ल कुछ िशेों ने इसे बनाए रखा ह ैऔर मृत्यिुांड का उपयोग र्कया ह,ै र्कन्तु इस सूची के अांतगित कुछ र्र्श्र् के बहुत
अर्धक आबािी र्ाले राष्ट्र हैं, र्िनके अांतगित भारत, चीन, इांडोनेर्शया और सांयकु्त राज््य अमेररका ह,ै िो र्र्श्र् की अर्धकाांश िनता
को इस िांड का सांभार्र्त र्र्षय बना रह ेहैं ।
129 िरे्खए, समाप्त-करने के मागि पर – डरार्ने अपर्ािों के साथ, र्ि इकोनोर्मस्ट, 4 िुलाई, 2015,
http://www.economist.com/new/international/21656666-few-countries-are-applying-death-penalty-
more-freely-global-trend-towards (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
130 एनेक्सचर ।।, एमनेस्टी इांटरनेशनल, 2014 में मतृ्युिांड और फाांर्सयाां, एसीटी 50/001/2015 ।
29
1. मृत्यिुांड
2. स्रोत एमनेस्टी इांटरनेशनल: प्रेस ररपोटें
3. मृत्यिुांड प्रास्र्थर्त, िून 2015
4. समाप्त कर र्िया गया/ कोई नहीं
5. अपर्ािात्मक अपराधों के र्लए बनाए रखा गया
6. व्यर्हार में समाप्त कर र्िया गया
7. मामूली अपराधों के र्लए प्रयोग में
7. िसेै सेना अपराध और आतांकर्ाि
स्रोत: इकोनोर्मस्ट से : समाप्र्त के मागि पर-‘डरार्ने अपराधों के साथ’ र्ि इकोनोर्मस्ट, 4 िलुाई, 2015, http://www.economist.com/news/international/21656666-fewcountries-are-applying-
death-penalty-more-freely-global-trend-towards पर उपलब्ध ह ै।
3.7 यह नक्शा 4 प्रकार के के्षत्रों को िर्शित करता ह ै। लाल रांग में िो के्षत्र हैं र्े बनाए रखन ेर्ाले हैं और र्े मामूली अपराधों के र्लए
मृत्यिुांड का प्रयोग करते हैं ; नारांगी-गुलाबी रांग में के्षत्रों ने व्यर्हार में मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ैऔर र्े र्ास्तर् में समाप्त करने
र्ाले बन गए हैं ; गहरे गुलाबी रांग में के्षत्रों ने केर्ल अपर्ािात्मक अपराधों के र्लए मृत्यिुांड को बनाए रखा ह ैऔर मामूली अपराधों के
र्लए समाप्त करन ेर्ाले बन गए हैं और हल्के/ गुलाबी सफेि रांग में के्षत्रों ने मृत्यिुांड नहीं बनाए रखा ह ैऔर इसे सभी अपराधों के र्लए
समाप्त कर र्िया ह।ै
क. अंतरराष्ट्रीय मानव अविकार वववि में ववकास ववरिना
(i) अंतरराष्ट्रीय मानव अविकार सवंियों में मृत्युदडं
30
3.8.1 मृत्यिुांड को अांतरराष्ट्रीय मानर् अर्धकार सांर्धयों में िीर्न के अर्धकार के एक पहलू के रूप में र्र्र्नयर्मत र्कया गया ह,ै
िसैा र्क अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा (‘आईसीसीपीआर’) में अांतर्र्िष्ट ह ै। समय के साथ मृत्यिुांड के
अर्धरोपण और कायािन्र्यन के कुछ पहलओु ां में िूर, अमानर्ीय और अपमानिनक व्यर्हार के र्र्रुद्ध प्रर्तषेध तथा िांड का अर्तिमण
पाया गया ह ै। अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल के प्रर्तिन में आने के साथ
अांतरराष्ट्रीय समिुाय ने प्रथम र्शै्र्र्क अांतरराष्ट्रीय र्र्र्धक र्लखत को िखेा र्िसका उद्दशे्य मृत्यिुांड समाप्त करना था ।
31
क. अंतरराष्ट्रीय वसववल और राजनैवतक अविकार संबंिी िसंववदा
3.8.2 अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा (‘आईसीसीपीआर’), अांतरराष्ट्रीय मानर् अर्धकार र्र्र्ध में
मृत्यिुांड के अर्धरोपण पर र्र्चार-र्र्मशि करन ेर्ाले मखु्य िस्तार्ेिों में से एक ह ै। यह सांर्र्िा मृत्यिुांड के प्रयोग को समाप्त नहीं करती ह ै
र्कन्तु अनचु्छेि 6 िीर्न के अर्धकार सांबांधी गारांर्टयों को अांतर्र्िष्ट करता ह ैऔर ऐसे महत्र्पूणि रक्षोपायों को अांतर्र्िष्ट करता ह,ै र्िन्हें
ऐसे हस्ताक्षरकतािओ ां द्वारा अपनाया िाना ह,ै र्िन्होंन ेमृत्यिुांड को बनाए रखा ह ै।
3.8.3 अनचु्छेि 6(2) कहता ह ै:
ऐसे िशेों में, र्िन्होंन ेमृत्यिुांड को समाप्त नहीं र्कया ह,ै उसे अपराध के र्कए िाने के समय पर प्रर्ृत्त र्र्र्ध के अनसुार, र्कन्तु
र्तिमान प्रसांर्र्िा के उपबांधों तथा िनसांहार के अपराध के र्नर्ारण और िांड सांबांधी प्रसांर्र्िा के उपबांधों के र्र्रुद्ध नहीं, केर्ल
अत्यर्धक गांभीर अपराधों के र्लए अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै । यह िांड र्कसी सक्षम न्यायालय द्वारा र्िए र्कसी अांर्तम
र्नणिय के अनुसरण में ही र्िया िा सकता ह ै।
3.8.4 अनचु्छेि 6(4) राज््यों से यह सरु्नश्र्चत करन ेकी अपेक्षा करता ह ैर्क ‘‘मृत्य ुके र्लए िांडार्िष्ट र्कसी व्यक्र्त को क्षमा
चाहन ेया िांडािशे का लघुकरण चाहन ेका अर्धकार होगा । सभी मामलों में सर्िक्षमा, क्षमा प्रिान की िा सकती ह ैया उसका लघुकरण
िा सकता ह’ै’, और अनचु्छेि 6(5) आज्ञा ितेा ह ै र्क ‘‘मृत्यिुांडािशे 18 र्षि की आय ुसे कम र्ाले व्यक्र्तयों द्वारा र्कए गए
अपराधों के र्लए अर्धरोर्पत नहीं र्कया िाएगा और गभिर्ती मर्हलाओां पर कायािन्र्र्त नहीं र्कया िाएगा ।’’
3.8.5 राष्ट्र सांघ मानर् अर्धकार सर्मर्त (राष्ट्र सांघ का र्नकाय, र्िसके अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनैर्तक अर्धकार सांबांधी
प्रसांर्र्िा के र्नर्िचनों को प्रार्धकृत समझा िाता ह)ै ने अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के अनचु्छेि 6 पर
1982 में अपन ेिनरल कमेंट में ब्यौरेर्ार चचाि की थी । सर्मर्त ने स्पष्ट र्कया था र्क िबर्क अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनैर्तक
अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा स्पष्ट रूप से मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी अपेक्षा नहीं करती ह ैर्कन्तु उस ेसमाप्त करना र्ाांछनीय था और सर्मर्त
समाप्त करन ेकी र्िशा में र्कसी किम को ‘‘िीर्न के अर्धकार के उपभोग में उन्नर्त’’131 के रूप में समझेगी । सर्मत ने यह भी कहा
र्क मृत्यिुांड ‘‘अपर्ािात्मक उपाय’’ होना चार्हए । इसन ेऐसे महत्र्पूणि प्रर्िया सांबांधी रक्षोपायों पर पनु: िोर र्िया, र्िनके अांतगित यह
ह ैर्क मृत्यिुांड को अपराध र्कए िाने के समय पर प्रर्ृत्त र्र्र्ध के अनुसार अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ैऔर यह र्क र्कसी स्र्तांत्र
अर्धकरण द्वारा उर्चत सनुर्ाई के अर्धकार, र्निोर्षता की अर्धारणा, प्रर्तरक्षा के र्लए न्यूनतम गारांर्टयों और उच्चतर अर्धकरण द्वारा
पनुर्र्िचार के अर्धकार का कठोरत: अर्श्य पालन र्कया िाना चार्हए ।132
3.8.6 सर्मर्त अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के राज््य - पक्षकारों की आर्र्धक ररपोटों का
पनुर्र्िलोकन करती ह ैऔर उसमें बहुधा मृत्यिुांड बनाए रखन ेर्ाले राज््यों की ररपोटों पर अपन ेसांपे्रक्षणों में मृत्यिुांड की समाप्र्त के प्रर्त
131 मानर् अर्धकार सर्मर्त, िनरल कमेंट नां0 6, (1982) पैरा 6, मानर् अर्धकार सांबांधी सांर्ध र्नकाय द्वारा अपनाए गए साधारण र्टप्पणों तथा साधारण
र्सफाररशों का सांकलन, यू.एन. डीओसी.एचआरआई/िीइएन/1/आरइर्ी. 6 पर, 1(1994) पर-‘‘यह अनुच्छेि ऐसे शब्िों में समाप्र्त के प्रर्त साधारणतया
र्निशे करताह ैिो कठोर रूप से सझुार् ितेे हैं (पैरा 2(2)(6) र्क समाप्त र्कया िाना र्ाांछनीय ह ै। सर्मर्त र्नष्कषि र्नकालती ह ैर्क समाप्त करने के सभी उपाय
अनुच्छेि 40 के अथांतगित िीर्न के अर्धकार के उपभोग में उन्नर्त के रूप में समझे िाने चार्हए और उस रूप में सर्मर्त को ररपोटि र्कए िाने चार्हए’’ ।
132 मानर् अर्धकार सर्मर्त, साधारण र्टप्पण सां. 6 (1982), पैरा 7, मानर् अर्धकार सांर्ध र्नकाय द्वारा अांगीकार र्कए गए साधारण र्टप्पण और साधारण
र्सफाररशें, यू.एन. डीओसी.एचआरआई/िीइएन/1/आरइर्ी. 6 पर 1 (1994) ।
32
र्निशे र्कया ह ै।133 अन्य मामलों में सर्मर्त ने अनचु्छेि 6 में सूचीबद्ध रक्षोपायों को अपनान ेके महत्र् पर भी पनु: िोर र्िया ह ैतथा
समाप्त करन ेके र्लए पथ प्रिशिक का उपबांध र्कया ह ै।134
3.8.7 इस समय 168 राज््य, र्िनमें भारत सम्र्मर्लत ह,ै अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनैर्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के पक्षकार
हैं । सर्मर्त ने 1996 में भारत की ररपोटि का पनुर्र्िलोकन र्कया था और र्सफाररश की थी र्क भारत ‘‘अंततोगत्वा समाप्त करन ेकी
दृष्हि से अव्यस्कों पर मृत्यदुडं के अहधरोपण को हवहध द्वारा समाप्त करे और अत्यहधक गंभीर अपराधों के हिए मृत्युदडं वािे अपराधों
की संख्या सीहमत करे ।’’135
ख. मृत्युदडं समाप्त करने का उद्देश्य रखते हएु अंतरराष्ट्रीय वसववल और राजनैवतक अविकार संबंिी िसंववदा का दसूरा
वैकल्वपक िोर्ोकाल
3.8.8 मृत्यिुांड समाप्त करने का उद्दशे्य रखन े र्ाला अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा का िसूरा
र्कैल्र्पक प्रोटोकाल भी केर्ल ऐसी सांर्ध ह ैिो मृत्यिुांड समाप्त करने से सीधे सांबांर्धत ह ैिो र्र्श्र् के सभी िशेों से हस्ताक्षरों के र्लए
खलुी हुई ह ै। यह 1991 प्रर्तिन में आई थी और इसके 81 राष्ट्र पक्षकार ह ैऔर 3 हस्ताक्षरकताि हैं । भारत ने इस सांर्ध पर हस्ताक्षर
नहीं र्कए हैं ।
3.8.9 िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल का अनचु्छेि 1 कथन करता ह ैर्क ‘‘वततमान प्रोिोकाि के राज्यपक्षकार की अहधकाररता के भीतर
हकसी व्यक्हत को फासंी नहीं दी जाएगी’’ और यह र्क ‘‘प्रत्यके राज््य पक्षकार अपनी अर्धकाररता के भीतर मृत्यिुांड को समाप्त करन े
के सभी उपाय करेगा’’ िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल के र्लए र्कसी आरक्षण की अनजु्ञा नहीं ह,ै ‘‘र्सर्ाय उस आरक्षण के िो अनसुमथिन
या स्र्ीकृर्त के समय पर र्कया गया हो, िो यदु्धकाल के िौरान र्कए गए सरै्नक प्रकृर्त के र्कसी अत्यर्धक गांभीर अपराध के र्लए र्कसी
िोषर्सर्द्ध के अनसुरण में यदु्ध के समय मृत्यिुांड के लागू करन ेके र्लए उपबांध करता हो ।’’136 कुछ राज््य पक्षकारों ने ऐसे आरक्षण र्कए
हैं ।
ग. बालक के अविकारों पर कन्वेंशन
133 उिाहरण के र्लए 2014 में इसने र्सफाररश की र्क र्सयरार्लयोन को ‘‘मतृ्युिांडािेश को समाप्त करने के र्लए और प्रसांर्र्िा के िसूरे र्ैकल्र्पक प्रोटोकाल
का अनुसमथिन करने के र्लए अपने प्रयासों में शीघ्रता लानी चार्हए’’, पैरा 18 मानर् अर्धकार सर्मर्त, र्सयरार्लयोन की प्रारांर्भक ररपोटि पर अांर्तम र्र्चार, 25
माचि, 2014 सीसीपीआर/एसएलई/सीओ/1 2009 में इसने िखेा र्क िबर्क रूस ने 1996 से फाांसी का र्ास्तर् में अर्धस्थगन कर र्िया था, इसको
‘‘शीघ्रतम सांभर् समय पर र्र्र्धत: मतृ्युिांड को समाप्त करने के र्लए आर्श्यक अध्यपुाय करने चार्हए और प्रसांर्र्िा के िसूरे र्ैकल्र्पक प्रोटोकाल को अांगीकार
करने पर र्र्चार करना चार्हए’’, पैरा 12 में, सांयुक्त राष्ट्र मानर् अर्धकार सर्मर्त, मानर् अर्धकार सर्मर्त के अांर्तम र्र्चार : रर्सयन फेडरेशन, 24 नर्ांबर,
2009, सीसीपीआर/सी/आरयूएस/सीओ/6 ।
134 उिाहरण के र्लए 2008 में िापान के अपने पुनर्र्िलोकन पर, सर्मर्त ने र्सफाररश की, ‘िनमत सर्ेक्षणों का ध्यान रखे र्बना, राज््य पक्षकार को मृत्युिांड
समाप्त करने के पक्ष में र्र्चार करना चार्हए और िनता को इसे समाप्त करने की र्ाांछनीयता के बारे में, िहाां आर्श्यक हो, सरू्चत करना चार्हए । पैरा 16,
सांयुक्त राष्ट्र मानर् अर्धकार सर्मर्त, मानर् अर्धकार सर्मर्त के अांर्तम र्र्चार : िापान, 18 र्िसांबर, 2008, सीसीपीआर/सी/िेपीएन/सीओ/5 । समान
रूप से 2006 में सर्मर्त ने सांयुक्त राज््य से ‘‘मतृ्युिांड र्ाले अपराधों की सांख्या सीर्मत करने की दृष्र्ट से फेडरल और राज््य र्र्धानों का पुनर्र्िलोकन करने
..........राज््य पक्षकार को मृत्युिांड को समाप्त करने की र्ाांछनीयता को ध्यान में रखते हुए मृत्युिांड पर अर्धस्थगन करना चार्हए’’ से कहा । पैरा 29, सांयुक्त राष्ट्र
मानर् अर्धकार सर्मर्त, मानर् अर्धकार सर्मत के अांर्तम र्र्चार : सांयुक्त राज््य अमरीका, 15 र्सतांबर, 2006, सीसीपीआर/सी/यूएसए/सीओ/3 ।
135 सांयुक्त राष्ट्र मानर् अर्धकार सर्मर्त, मानर् अर्धकार सर्मर्त के अांर्तम र्र्चार : भारत, 4 अगस्त, 1997, सीसीपीआर/सी/179/एडीडओ/81, पैरा
20 पर ।
136 अनुच्छेि 2(1), अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनैर्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा का िसूरा र्ैकल्र्पक प्रोटोकाल, र्िसका उद्दशे्य मतृ्युिांड को समाप्त करना ह ै
।
33
3.8.10 अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के समान बालक के अर्धकारों (‘सीआरसी’) से सांबांर्धत
कन्र्ेंशन का अनचु्छेि 37(क) 18 र्षि की आय ुसे कम व्यक्र्तयों के र्र्रुद्ध मृत्यिुांडािशे के प्रयोग का प्रर्तषेध करता ह ै। िलुाई,
2015 को 195 िशेों ने बालक के अर्धकारों से सांबांर्धत कन्र्ेंशन का अनुसमथिन र्कया ह ै। अनचु्छेि 37(क) कथन करता ह ै:
राज््य पक्षकार यह सरु्नश्र्चत करेंगे र्क : (क) र्कसी बालक को यांत्रणा नहीं िी िाएगी या उसके साथ अन्य िूर, अमानर्ीय
या अपमानिनक व्यर्हार नहीं र्कया िाएगा । 18 र्षि की आय ुसे कम के व्यक्र्तयों द्वारा र्कए गए अपराधों के र्लए न तो
मृत्यिुांड और न ही आिीर्न कारार्ास, र्नमुिक्र्त की सांभार्ना के र्बना, अर्धरोर्पत नहीं र्कया िाएगा।
3.8.11 बालक के अर्धकारों से सांबांर्धत सर्मर्त ने स्पष्ट र्कया ह ैर्क िब र्क कुछ व्यक्र्तयों ने यह उपधारणा की ह ैर्क यह र्नयम
18 र्षि के कम के व्यक्र्तयों को फाांसी लगाने का प्रर्तषेध करता ह,ै ‘‘मृत्यिुांड र्कसी अपराध के र्लए अर्धरोर्पत नहीं र्कया िा सकता
ह ैिो 18 के अधीन र्कसी व्यक्र्त द्वारा र्कया गया हो, चाह ेर्र्चारण या िांडािशे या मांिूरी के र्नष्पािन के समय उसकी आय ुकुछ भी
हो ।’’ 137
घ. यातना और िूरता, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दडं के ववरुद्ध कन्वेंशन
3.8.12 धीरे-धीरे मृत्यिुांड का र्र्श्लेषण यातना और िूरता, अमानर्ीय और अपमानिनक व्यर्हार या िांड के र्र्रुद्ध सांन्र्नयमों का
अर्तिमण करन ेके रूप में र्कया गया ह ै।138 इस सांिभि में, यातना और िूरता, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार या िांड के र्र्रुद्ध
कन्र्ेंशन (‘यातना कन्र्ेंशन’) और यातना के र्र्रुद्ध सांयकु्त राष्ट्र सर्मर्त मृत्युिांड पर पररसीमाओां और साथ ही आर्श्यक रक्षोपायों के
र्लए न्याय शास्त्र का स्रोत रही हैं ।
3.8.13 यातना कन्र्ेंशन मृत्यिुांड के अर्धरोपण को यातना या िूरता, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार या िांड के रूप में नहीं
मानता ह ै। तथार्प, फाांसी िनेे की कुछ पद्धर्तयों139 और मृत्य ुपांक्र्त के आभास140 को राष्ट्र सांघ र्नकायों द्वारा िूरता, अमानर्ीय या
137 बालक के अर्धकारों सांबांधी सर्मर्त, साधारण र्टप्पण 10: र्कशोर न्याय में बालक के अर्धकार, 25 अप्रलै, 2007, सीआरसी/सी/िीसी/10, पृष्ठ
75 पर, http://www.2.ohchr.org/english/bodies/crc/docs/CRC.C.GC.10pdf पर उपलब्ध ह ै (25.08.2015 को अांर्तम
बार अर्लोकन र्कया गया) ।
138 िरे्खए, उिाहरण के र्लए, मानर् अर्धकार उच्चायुक्त का कायािलय, मतृ्युिांड को बढती हुई यांत्रणा के रूप में िेखा गया ह ै। http://www.ohchr/EN/NewsEvents/Pages/DisplayNews.aspx?NewsID=12685LanglD=E#sthash.Gu6N
TA2d.dpuf पर उपलब्ध ह ै(25.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
139 यातना के र्र्रुद्ध सर्मर्त को ‘ऐररिोना, ओकला होमा और ओहायो में फूहड़ ढांग से फाांसी र्िए िाने के हाल के मामलों ने र्र्शेष रूप से कष्ट पहुांचाया’ और
उसने सांयुक्त राज््य से ‘ििि और लांबी बढाई हुई पीड़ा का र्नर्ारण करने के र्लए अपनी फाांसी सांबांधी पद्धर्तयों का पुनर्र्िलोकन करने के र्लए कहा’ पैरा 25 में,
सांयुक्त राज््य अमरीका की तीसरी से चौथी र्मर्श्रत आर्र्धक ररपोटों पर अांर्तम र्र्चार, 19 र्िसांबर, 2014, सीएटी/सी/यूएसए/सीओ/3-5 ।
140 कीर्नया की ररपोटि पर अपने अांर्तम र्र्चारों में सर्मर्त ने यातना के र्र्रुद्ध कहा र्क र्ह ‘उन व्यक्र्तयों की, िो मतृ्यु पांक्र्त में होते हैं, िो िवु्ियर्हार के बराबर
हो सकता ह,ै अर्नश्र्चतता’ के बारे में र्चांर्तत रही ह ैऔर उसने कीर्नया से ‘मतृ्युिांड की पद्धर्त अांर्तम रूप से समाप्त करने की दृष्र्ट से मतृ्युिांड का शासकीय और
सार्ििर्नक रूप से ज्ञात अर्धस्थगन स्थार्पत करने के र्लए आर्श्यक कारिर्ाई करने के र्लए’ आग्रह र्कया, पैरा 29, यातना के र्र्रुद्ध सांयुक्त राष्ट्र सर्मर्त, सर्मर्त
के यातना के र्र्रुद्ध अांर्तम र्र्चार : कीर्नया, 19 िनर्री, 2009, सीएटी/सी/केईएन/सीओ/1 ।
चीन की आर्र्धक ररपोटि का पुनर्र्िलोकन करते हुए यातना के र्र्रुद्ध सर्मर्त ने ‘मतृ्यु पांक्र्त में र्सद्धिोष कैर्ियों के र्नरोध की िशाओ ां, र्र्शेष रूप से र्िन के 24
घांटे िांिीरों के उपयोग पर, िो िूर, अमानर्ीय या अपमानकारी व्यर्हार के बराबर ह,ै र्चांता व्यक्त की, पैरा 34, यातना के र्र्रुद्ध सांयुक्त राष्ट्र सर्मर्त, यातना के
र्र्रुद्ध सर्मर्त के अांर्तम र्र्चार: चीन, 12 र्िसांबर, 2008, सीएटी/सी/सीएचएन/सीओ/4 ।
34
अपमानिनक व्यर्हार के रूप में िखेा गया ह ै । यद्यर्प भारत ने यातना कन्र्ेंशन पर हस्ताक्षर र्कए हैं र्कनतु उसने अभी तक उसका
अनसुमथिन नहीं र्कया ह ै।
ड. अंतरराष्ट्रीय आपराविक वववि
3.8.14 मृत्यिुांड समाप्त करने की र्िशा में अांतरराष्ट्रीय रुझान अांतरराष्ट्रीय आपरार्धक र्र्र्ध के र्र्कास में भी स्पष्ट ह ै । मृत्यिुांड
न्यूरमबगि141 और टोर्कयों142 अर्धकरणों में, िो िोनों र्द्वतीय र्र्श्र् युद्ध के पश्चात् स्थार्पत की गई थीं, अनजेु्ञय िांड था । तथार्प,
उसके पश्चात ्से अांतरराष्ट्रीय िांड न्यायालय – र्िनके अांतगित पूर्ि यगुोस्लोर्ार्कया143 के र्लए अांतरराष्ट्रीय आपरार्धक अर्धकरण का
स्टेच्यूट, अर्धकरण अांतरराष्ट्रीय आपरार्धक अर्धकरण रुआांडा144 का स्टैचटू , र्र्शेष न्यायालय र्सयरेार्लयोन145 का स्टैचटू और
कम्बोर्डया146 के न्यायालयों में असाधारण चेम्बरों की स्थापना से सांबांर्धत र्र्र्ध, हैं- अनजेु्ञय िांड रूप में मृत्यिुांड का अपर्ििन करते हैं ।
यही अांतरराष्ट्रीय िांड न्यायालय रोम147 के स्टैचूट के र्लए सही ह,ै िहाां न्यायाधीश केर्ल कारार्ास की अर्र्धयों को अर्धरोर्पत कर
सकते हैं । इसका अर्श्य ध्यान रखा िाना चार्हए र्क य ेअर्धकरण मृत्यिुांड का प्रयोग नहीं करते हैं, र्ाबिूि इसके र्क र्े अांतरराष्ट्रीय
र्र्र्ध के अधीन अत्यर्धक गांभीर अपराधों के बारे में, र्िनमें िनसांहार, यदु्ध सांबांधी अपराध और मानर्ता के र्र्रुद्ध अपराध सम्र्मर्लत
हैं, र्नयर्मत रूप से कारिर्ाई करते हैं । यह उससे ससुांगत ह ैर्क भारत, रोम स्टैचूट का हस्ताक्षरकताि नहीं ह ै।
141 सांयुक्त राज््य होलोकास्ट स्मारक सांग्रहालय, इांटरनेशनल र्मर्लटरी र्ट्रबनुल, नूरेमबगि,
http://www.ushmm.org/wic/en/article.php?Moduleld=10007069 पर उपलब्ध ह ै(15.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
142 र्िीर्नया र्र्श्र्र्र्द्यालय, टोर्कयो र्ार िाइम्स ट्रायल : ए र्डर्िटल एग्र्िर्बशन, http://lib.law.virginia.edu/imtfe/tribunal पर उपलब्ध
ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
143 पूर्ि युगोस्लोर्ार्कया के र्लए अांतरराष्ट्रीय िांड अर्धकरण, का स्टेच्यूट
http//www.icty.org/x/file/Legal%20Libiary/Statute/statute_sept09_en.pdf पर उपलब्ध ह ै(15.05.2015 को
अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
144 अांतरराष्ट्रीय िांड अर्धकरण, रुआांडा का स्टेच्यूट http//legal.un.org/avl/pdf/ha/iotr_EF.pdf पर उपलब्ध ह ै(15.05.2015 को
अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
145 र्र्शेष न्यायालय, र्सयेरार्लयोन का स्टेच्यूट, http://rscsl.org/Documents/scsl-statute.pdf पर उपलब्ध ह ै(15.05.2015 को
अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
146 कां बोर्डया के न्यायालयों में असाधारण कक्षों की स्थापना से सांबांर्धत र्र्र्ध http://www.eccc.gov.kh/sites/default/files/legal-
documents/KR_Law_as_amended_27_Oct_2004_Eng.pdf पर उपलब्ध ह ै(15.05.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया
गया) ।
147 अांतरराष्ट्रीय आपरार्धक न्यायालय का रोम स्टैच्यूट http://www.icccpi.int/nr/rdonlyres/ea9aeff7_5752_4f84_be94_0a655eb30e16/0/rome_statute_english.p
df पर उपलब्ध ह ै(15.05.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
35
ि. भारतीय वववि में अंतरराष्ट्रीय सवंि बाध्यताए ं
3.8.15 ऊपर र्र्णित सांर्धयों में से भारत ने अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनैर्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा और बालक के अर्धकारों
से सांबांर्धत कन्र्ेंशन का अनसुमथिन र्कया ह ैऔर र्ह यातना कन्र्ेंशन का हस्ताक्षरकताि ह ैर्कन्त ुउसने उसका अनसुमथिन नहीं र्कया ह ै।
अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध के अधीन सांर्ध बाध्यताएां राज््यों पर, यर्ि एक बार र्े सांर्ध का अनसुमथिन कर ितेे हैं तो उन पर आबद्धकर होती हैं
।148 यहाां तक र्क िहाां र्कसी सांर्ध पर हस्ताक्षर र्कए गए हैं र्कन्तु उसका अनसुमथिन नहीं र्कया गया ह,ै र्हाां राज््य ‘ऐसे कायों से ,
िो उस सांर्ध का उद्दशे्य और प्रयोिन र्र्फल करेंगे, उससे र्र्रत रहन ेके र्लए आबद्ध ह’ै।149
3.8.16 भारत में िशेी र्र्धान से अांतरराष्ट्रीय सांर्धयों को भारतीय र्र्र्ध में प्रर्तिनीय बनाने की अपेक्षा की िाती ह ै ।150 मानर्
अर्धकार सांरक्षण अर्धर्नयम, 1994 धारा 2(घ) और 2(च) के द्वारा भारतीय र्र्र्ध में अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक
अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा को र्नगर्मत करता ह ै। धारा 2(घ) कथन करती ह ैर्क, ‘मानर् अर्धकार’ से प्राण, स्र्तांत्रता, समानता और
व्यक्र्त की गररमा से सांबांर्धत ऐसे अर्धकार अर्भप्रेत हैं िो सांर्र्धान द्वारा प्रत्याभूत र्कए गए ह ैया अांतरराष्ट्रीय प्रसांर्र्िाओां में सन्र्नर्र्ष्ट
और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रर्तिनीय ह ै; धारा 2(च) कथन करती ह ैर्क, ‘अांतरराष्ट्रीय प्रसांर्र्िा’ से सांयकु्त राष्ट्र की महासभा द्वारा
16 र्िसम्बर, 1966 को अांगीकार की गई र्सर्र्ल और रािनीर्तक अर्धकारों पर अांतराष्ट्रीय प्रसांर्र्िा और आर्थिक, सामार्िक और
साांस्कृर्तक अर्धकारों पर अांतरराष्ट्रीय प्रसांर्र्िा अर्भप्रेत ह’ै ।
3.8.17 आगे भारतीय सांर्र्धान के अनचु्छेि 51(ग) के अनसुार राज््य ‘सांगर्ठत लोगों में एक िसूरे से व्यर्हारों में अांतरराष्ट्रीय
र्र्र्ध और सांर्ध बाध्यताओां के प्रर्त आिर बढाने का प्रयास करेगा ।’ िब र्क यह भारत की सभी सांर्ध बाध्यताओां को स्र्त: भारत पर
आबद्धकर नहीं बनाता ह,ै न्यायालयों ने िहाां अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध के र्नयमों का आिर र्कया ह ैर्हीं भारत में कोई र्र्रोधी र्र्धान नहीं ह ै
।151
(ii) अंतरराष्ट्रीय वववि में मृत्युदडं से सबंंवित रक्षोपाय
3.8.18 सांयकु्त राष्ट्र सांघ के र्नकायों के सांकल्पों ने और साथ ही सांयकु्त राष्ट्र सांघ की र्र्शेष प्रर्ियाओां द्वारा र्कए गए र्टप्पणों और
ररपोटों ने मृत्यिुांड के सांबांध में और िहाां उसका प्रयोग र्कया िाता ह ैर्हाां आर्श्यक रक्षोपायों के सांबांध में अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध मानकों के
प्रर्त योगिान र्िया ह ै। इन र्लखतों में से अर्धकाांश में रुझान मृत्यिुांडािशे के के्षत्र को र्शै्र्र्क रूप से पररसीर्मत करन ेऔर र्हाां िहाां
सांभर् ह,ै उसको समाप्त करन ेके र्लए प्रोत्सार्हत करन ेकी तरफ ।
148 िरे्खए आर्टिर्कल 26, सांर्ध की र्र्र्ध पर र्र्एना प्रसांर्र्िा ‘प्रत्येक सांर्ध, िो प्रर्ृत्त ह ैउसके पक्षकारों पर आबद्धकर ह ैऔर उनके द्वारा उसका सद्भार्पूर्िक
पालन र्कया िाना चार्हए’ ।
149 आर्टिर्कल 18, र्र्एना कन्र्ेंशन आन र्ि ला आफ ट्रीटीि (र्ीसीएलटी) ।
150 िोली िािि र्गीि और अन्य बनाम र्ि बैंक आफ कोचीन, 1980 एआईआर 470 । 151 राष्ट्रीय र्र्र्धक सेर्ा प्रार्धकरण बनाम भारत सांघ (2014) 5एससीसी 438, उिाहरण के र्लए भारत के उच्चतम न्यायालय ने कहा ‘कोई अांतरराष्ट्रीय
कां र्ेंशन िो मलू अर्धकारों से असांगत नहीं हैं और उसकी मूल भार्ना के अनुरूप ह,ै उसे उन उपबांधों अथाित् सांर्र्धान के अनुच्छेि 14, 15, 19 और 21 के
अथि और उनकी अांतर्िसतु का र्र्स्तार करने के र्लए और सांर्ैधार्नक गारांर्टयों के उद्दशे्य का सांर्धिन करने के र्लए’, पढा िाना चार्हए ।
36
क. आवथटक और सामावजक पररषद ्रक्षोपाय
3.8.19 सांयकु्त राष्ट्र सांघ आर्थिक और सामार्िक पररषि ्(ईसीओएसओसी) ने इस सांबांध में र्क उन िशेों में, िहाां उसको बनाए
रखा गया ह,ै मृत्यिुांड को कैसे अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए, रक्षोपाय र्र्र्हत करते हुए कई सांकल्प िारी र्कए हैं । य े रक्षोपाय
अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध में मृत्यिुांड के के्षत्र और उसके लागू होन ेकी महत्र्पूणि पररसीमाओां को समार्र्ष्ट करते हैं ।
3.8.20 पहला अांतरराष्ट्रीय आर्थिक और सामार्िक पररषि ् का सांकल्प, र्िसका नाम उनके अर्धकारों के, “िो मृत्यिुांड का सामना
कर रह ेहैं, सांरक्षण की गारांटी करने र्ाले रक्षोपाय’’ 1984 में अांगीकार र्कया गया था152 और उसमें र्नम्नर्लर्खत 9 रक्षोपाय हैं :
1. ऐसे िशेों में, र्िन्होंने मृत्यिुांड को समाप्त नहीं र्कया ह,ै मृत्यिुांड अत्यर्धक गांभीर अपराधों के र्लए ही अर्धरोर्पत र्कया
िा सकता ह,ै यह समझा िाता ह ैर्क उनका के्षत्र प्राणहर शस्त्र से र्कए गए साशय अपराधों के परे या अन्य अत्यर्धक गांभीर
पररणामों से परे नहीं होना चार्हए ।
2. मृत्यिुांड केर्ल ऐसे अपराध के र्लए अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै र्िसके र्लए मृत्यिुांड उसके र्कए िाने के समय
र्र्र्ध द्वारा र्र्र्हत र्कया गया ह,ै यह समझा िाता ह ैर्क यर्ि अपराध के र्कए िाने के पश्चातर्ती, र्र्र्ध द्वारा र्कसी हल्के
िांड के अर्धरोपण के र्लए उपबांध र्कया िाता ह,ै तो अपराधी को उससे लाभ प्राप्त होगा ।
3. अपराध र्कए िाने के समय 18 र्षि की आय ु से कम के व्यक्र्त को मृत्य ु से िांडार्िष्ट नहीं र्कया िाएगा और न
मृत्यिुांडािशे गभिर्ती मर्हलाओां पर या नई माताओां पर या ऐसे व्यक्र्तयों पर, िो पागल हो गए हैं, कायािन्र्र्त र्कया िाएगा ।
4. मृत्यिुांड तभी अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ैिब र्क आरोर्पत व्यक्र्त का िोष स्पष्ट और भरोसा र्िलान ेर्ाले साक्ष्य पर
आधाररत हो और र्िसमें तथ्यों के र्कसी र्कैल्र्पक सपष्टीकरण के र्लए कोई सांिहे न हो ।
5. मृत्यिुांड र्र्र्धक प्रर्िया के पश्चात् र्कसी सक्षम न्यायालय द्वारा र्िए गए अांर्तम र्नणिय के अनुसरण में, िो उर्चत
र्र्चारण सरु्नश्र्चत करन े के सभी सांभर् रक्षोपाय करता हो, कम से कम उनके बराबर, िो अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और
रािनरै्तक अर्धकारों सांबांधी प्रसांर्र्िा के अनचु्छेि 14 में अांतर्र्िष्ट हैं, र्िनके अांतगित र्कसी ऐसे व्यक्र्त का कायिर्ाही के
सभी प्रिमों पर पयािप्त र्र्र्धक सहायता के र्लए अर्धकार भी ह,ै र्िस पर ऐसे अपराध के र्लए, र्िसके र्लए मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह,ै सांिहे र्कया गया हो या उससे उसे आरोर्पत र्कया गया हो ।
6. र्कसी भी ऐसे व्यक्र्त के पास, र्िसे मृत्य ुका िांडािशे र्िया गया ह,ै उच्चतर अर्धकाररता र्ाले न्यायालय को अपील
करन ेका अर्धकार होगा और यह सुर्नश्र्चत करन ेके र्लए उपाय र्कए िान ेचार्हए र्क ऐसी अपीलें आज्ञापक होंगी ।
7. मृत्य ुसे िांडार्िष्ट र्कसी व्यक्र्त को क्षमा या िांडािशे का लघुकरण चाहने का अर्धकार होगा ; क्षमा या िांडािशे का
लघुकरण मृत्यिुांडािशे के सभी मामलों में र्कया िा सकता ह ै।
8. मृत्यिुांड र्कसी अपील के लांर्बत होते हुए या अन्य प्रर्िया अथर्ा क्षमा या िांडािशे के लघुकरण से सांबांर्धत अन्य
कायिर्ाही के लांर्बत होते हुए, कायािन्र्र्त नहीं र्कया िाएगा ।
152 उन व्यक्र्तयों के, िो मृत्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िेने र्ाले रक्षोपाय । आर्थिक और सामार्िक पररषि ्सांकल्प द्वारा
अनुमोर्ित 1984/50, 25 मई, 1984,http://www.ohchr.org/EN/Professionallnterest/Pages/DeathPenalty.aspx
पर उपलब्ध ह ै(6.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
37
9. िहाां मृत्यिुांड र्िया िाता ह ैर्हाां इसे प्रकार कायािन्र्र्त र्कया िाएगा र्क र्िससे न्यूनतम सांभर् पीड़ा हो ।
3.8.21 िो पश्चातर्ती सांकल्पों ने अर्तररक्त रक्षोपायों को प्रारांभ र्कया ।
3.8.22 1989 के सांयकु्त राष्ट्र सांघ आर्थिक और सामार्िक पररषि ्के सांकल्प ने और रक्षोपायों को िोड़ा, र्िनके अांतगित मृत्यिुांड
के अर्धरोपण में पारिर्शिता को प्रोत्सार्हत करना सम्र्मर्लत ह ै(र्िसके अांतगित इस र्र्षय पर िानकारी और आांकडे़ प्रकार्शत करना
ह)ै; उस अर्धकतम आयु को स्थार्पत करना, र्िसके पश्चात ् र्कसी व्यक्र्त को फाांसी नहीं िी िा सकती ह ैऔर “ऐसे व्यक्र्तयों के
र्लए, िो मानर्सक र्शर्थलता या अत्यर्धक सीर्मत मानर्सक क्षमता से पीर्ड़त हैं, चाह ेिांडािशे के प्रिम पर या र्नष्पािन के’’ मृत्यिुांड
को समाप्त करना ।153
3.8.23 1996 में आर्थिक और सामार्िक पररषि ्के एक तीसरे सांकल्प154 ने राज््यों को यह सुर्नश्र्चत करने के र्लए प्रोत्सार्हत
र्कया र्क मृत्यिुांड का सामना करन ेर्ाल ेप्रत्यके प्रर्तर्ािी को ऋि ु र्र्चारण सरु्नश्र्चत करन ेके र्लए सभी गारांर्टयाां िी िाएां । इसने
र्र्र्नर्ििष्ट रूप से राज््यों से यह सुर्नश्र्चत करन ेके र्लए कहा र्क ऐसे प्रर्तर्ार्ियों को, िो न्यायालय में प्रयोग की गई भाषा पयािप्त रूप से
नहीं समझते हैं, पूणिरूप से उनके र्र्रुद्ध लगाए गए आरोपों से और ससुांगत साक्ष्य से और यह र्क उनके पास अपन ेिांडािशे से और क्षमा
चाहन ेके र्लए अपील करन ेका पयािप्त समय ह,ै अर्गत कराया िाए । इसन ेराज््यों से यह भी सरु्नश्र्चत करने के र्लए कहा र्क फाांसी
िने ेकी प्रर्िया के र्र्र्नश्चय में सम्र्मर्लत अर्धकाररयों को अपील और क्षमा प्रिान करन ेके र्लए यार्चका की स्र्थर्त से पूणितया अर्गत
कराया िाए ।
ख. गैर न्यावयक, सवंक्षप्त या मनमाने वनष्पादनों पर ववशेष ररपोर्टर की ररपोर्ें
3.8.24 िहाां र्कसी मृत्यिुांड का अर्धरोपण और र्नष्पािन अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध के सांन्र्नयमों का पालन नहीं करता ह ैर्हाां उस ेराज््य
द्वारा र्कया गया गैर न्यार्यक र्नष्पािन माना िा सकता ह ैऔर र्र्शेष ररपोटिर ने गैर न्यार्यक, सांर्क्षप्त या मनमाने र्नष्पािनों पर (‘गैर
न्यार्यक र्नष्पािन पर र्र्शेष ररपोटिर’) समय –समय पर मृत्यिुांड के र्र्र्भन्न पहलओु ां सांबांधी र्र्चार-र्र्मशि पर र्टप्पणी की हैं ।
3.8.25 उिाहरण के र्लए 2006 में गैर न्यार्यक र्नष्पािनों पर र्र्शेष ररपोटिर ने मृत्यिुांड के प्रयोग में पारिर्शिता के सांबांध में एक
ररपोटि र्नकाली ।155 2007 में गैर न्यार्यक र्नष्पािनों पर र्र्शेष ररपोटिर ने र्र्द्यमान सांर्ध सांबांधी बाध्यताओां, न्यायशास्त्र और सांयकु्त
राष्ट्र सांघ के सांर्ध सांबांधी र्नकायों द्वारा कथनों के सर्ेक्षण में कहा, ‘मृत्यिुांड केर्ल इस प्रकार अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ैर्क र्ह इस
153 उन व्यक्र्तयों के, िो मतृ्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपायों का कायािन्र्यन । आर्थिक और सामार्िक पररषि ्
सांकल्प 1989/64, http://www.unodc.org/documents/commissions/CCPCJ/Crime_Resolutions/1980-
1989/1989/ECOSOC/Resolution_1989-64.pdf पर उपलब्ध ह ै(3.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
154 उन व्यक्र्तयों के, िो मृत्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपाय । आर्थिक और सामार्िक पररषि ्सांकल्प द्वारा
अनुमोर्ित 1996/15, पैरा 6, http://www.un.org/documents/ecococ/res/1996/eres1996-15htmf पर उपलब्ध ह ै
(3.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
155 न्यार्यक से र्भन्न, सांर्क्षप्त या मनमानी फाांसी, पारिर्शिता और मतृ्युिांड के अर्धरोपण पर र्र्शेष ररपोटिर की ररपोटि, E/CN.4/2006/53/Add.3 24
माचि, 2006, http://daccess-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/G06/120/57/PDF?G0612057.pdf? Open
Element पर उपलब्ध ह ै(3.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
38
प्रर्तबांध का अनपुालन करे र्क र्ह अत्यर्धक गांभीर अपराधों तक सीर्मत होना चार्हए, ऐसे मामलों में िहाां यह िर्शित र्कया िा सके
र्क आशय मारने का था और र्िसके पररणामस्र्रूप र्िनिगी की समाप्र्त हुई ह ै।’156
ग. यातना और अन्य िूर, अमानवीय या अपमानजक व्यवहार अथवा दडं पर ववशेष ररपोर्टर
3.8.26 यातना पर र्र्शेष ररपोटिर ने र्र्र्नर्ििष्ट रूप से यह र्र्चार-र्र्मशि र्कया ह ै र्क क्या मृत्यिुांड को िूर, अमानर्ीय या
अपमानिनक िांड समझा िा सकता ह ै। इस र्र्षय पर अपनी ररपोटि में र्र्शेष ररपोटिर ने अांतरराष्ट्रीय र्नकायों द्वारा न्याय शास्त्र में र्कए
गए र्र्कास पर ध्यान र्िया ह,ै र्िन्होंन ेपाया था र्क शारीररक िांड बहुधा िूर, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार के बराबर था,
क्योंर्क उसका मानर् गररमा पर प्रभार् होता था । िबर्क र्र्शेष ररपोटिर उतनी िरू तक नहीं गया, िहाां यह कहा िा सके र्क मृत्यिुांड –
सांभर्त: र्ह शारीररक िांड का चरम रूप ह-ै हमशेा िूर, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार के बराबर नहीं होता ह,ै उसने यह भी
िखेा र्क मृत्यिुांड की अनजेु्ञयता को ‘धीरे-धीरे शारीररक और मृत्यिुांड के बीच र्र्भािन से उत्पन्न होन ेर्ाली स्पष्ट असांगतताओां द्वारा
और मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी र्िशा में सार्िभौर्मक रुझानों द्वारा चनुौती िी िा रही ह ै।’157
3.8.27 र्र्शेष ररपोटिर ने कर्तपय राज््यों से मृत्य ुिांडािशेों पर अर्धसथगन अर्धरोर्पत करन ेके र्लए भी आग्रह र्कया ह ै।158
(iii) मृत्युदडं के सबंंि में वैश्ववक रूप से राजनैवतक बाध्यताए ं
3.8.28 मृत्यिुांड समाप्त करने की र्िशा में रुझान सांयकु्त राष्ट्र सांघ में, र्नकायों िसेै महासभा और सांयकु्त राष्ट्र मानर् अर्धकार
पररषि ् के सांकल्पों द्वारा,की गई रािनरै्तक प्रर्तबद्धताओां की श्रृांखलाओां में प्रकट ह ै।
क. महा सभा संकल्प
3.8.29 सांयकु्त राष्ट्र महासभा (यूएनिीए) के कई सांकल्पों ने मृत्यिुांड के प्रयोग पर अर्धस्थगन के र्लए माांग की ह ै। 2007 में
सांयकु्त राष्ट्र महासभा ने राज््यों से ‘धीरे-धीरे प्रगर्त करते हुए मृत्यिुांड का प्रयोग र्नबंर्धत करन,े ऐसे अपराधों की सांख्या में कमी करने,
र्िनके र्लए उस ेअर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह’ै और ‘मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी दृष्र्ट से फाांसी िने ेपर अर्धस्थगन स्थार्पत करन ेके
र्लए’ कहा ह ै।159 2008 में महासभा ने इस सांकल्प160 की र्िसे 2010161, 2012162 और 2014163 में पश्चातर्ती
156 न्यार्यक से र्भन्न, सांर्क्षप्त या मनमानी फाांसी, पारिर्शिता और मृत्युिांड के अर्धरोपण पर र्र्शेष ररपोटिर की ररपोटि, ए/एचआरसी/4/20, 29 िनर्री,
2007, पैरा 53 पर, http://daccess-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/G07/105/00/PDF?G0710500.pdf?
Open Element पर उपलब्ध ह ै(3.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
157 पैरा 47 यातना और अन्य िूर, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार या िांड पर र्र्शेष ररपोटिर की ररपोटि,ए/एचआरसी/10/44, 14 िनर्री, 2009,
पैरा 47 पर, http://daccess-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/G09/105/103/12/PDF/G0910312.pdf? Open
Element पर उपलब्ध ह ै(3.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
158 िरे्खए, सांयुक्त राष्ट्र सांघ मानर् अर्धकार उच्चायुक्त, सांयुक्त राष्ट्र सांघ के र्र्शेषज्ञों ने पार्कस्तान से र्कशोरों को फाांसी न िनेे के र्लए आग्रह र्कया ह,ै 20
माचि, 2015,
http://www.ohchr.org/EN?NewsEvents/Pages?displayNews.aspx?NewsID=15729&LanglID=E और
सांयुक्त राष्ट्र/मतृ्युिांड : सांयुक्त राष्ट्र सांघ के र्र्शेषज्ञ फेडरल अर्धस्थगन के र्लए, िब बोस्टन के बम फें कने र्ाले को मतृ्युिांड र्िया िा रहा ह,ै माांग करते हैं, 26
िनू, 2015
http://www.ohchr.org/EN?NewsEvents/Pages?displayNews.aspx?NewsID=16160&LangID=E पर उपलब्ध
ह ै(3.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
159 महासभा द्वारा अांगीकार र्कया गया सांकल्प ‘मतृ्युिांड के प्रयोग पर अर्धस्थगन’ ए/आइएस/62/149, 26 फरर्री, 2008 ।
39
सांकल्पों द्वारा पनु: सदुृढ र्कया गया था’, पनु: पषु्र्ट की । इनमें से बहुत से सांकल्पों में यह िखेा गया र्क ‘मृत्यिुांड के प्रयोग पर
अर्धस्थगन मानर् गररमा और मानर् अर्धकारों की र्ृर्द्ध और प्रगर्तशील र्र्कास के र्लए आिर करन ेके र्लए योगिान ितेा ह’ै’।
3.8.30 इन सांकल्पों को धीरे-धीरे अर्धक समथिन प्राप्त हो रहा ह ै: 117 िशेों ने 2014 में अभी हाल के सांकल्प के पक्ष में, िो
र्क 2007 में 104 की तुलना में अर्धक था, मतिान र्कया ।
ख. संयुक्त राष्ट्र मानव अविकार पररषद ्
3.8.31 सांयकु्त राष्ट्र मानर् अर्धकार पररषि ्ने हाल ही में मृत्यिुांड पर, मृत्यिुांड से िांडार्िष्ट या फाांसी र्िए गए, माता-र्पता के बच्चों
के मानर् अर्धकारों का प्रारांर्भक र्बांि ुके रूप में प्रयोग करते हुए एक नई िाांच आरांभ की ह ै। 2013 के सांकल्प में, मानर् अर्धकार
पररषि ्ने ‘माता-र्पता के मृत्यिुांड और उसके र्नष्पािन का उनके बच्चों पर नकारात्मक प्रभार्’ अर्भस्र्ीकार र्कया था और ‘राज््यों से
उन बच्चों को ऐसा सांरक्षण और सहायता िने ेके र्लए, र्िनकी र् ेअपेक्षा करें,’ आग्रह र्कया था और इस र्र्र्नर्ििष्ट र्र्षय पर एक
अध्ययन करान ेके र्लए आिशे र्िया था ।164 इसन ेराज््यों से ‘उन बालकों को या, िहाां समरु्चत हो, बालक के सर्ोत्तम र्हतों को
सम्यक् रूप से ध्यान में रखते हुए पररर्ार के िसूरे सिस्य को, उनके माता-र्पता तक पहुांचने के र्लए और उनके माता-र्पता की स्र्थर्त के
बारे में सभी ससुांगत िानकारी तक पहुांचने की व्यर्स्था करन ेके र्लए’ कहा ।165 मानर् अर्धकार पररषि ्के 2014 के सांकल्प में यह
िखेा गया र्क ‘र्र्र्भन्न र्र्र्धक प्रणार्लयों, परम्पराओां, सांस्कृर्तयों और धार्मिक पृष्ठभूर्म र्ाले राज््यों में मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया
गया ह ैया र् ेउसके प्रयोग पर अर्धस्थगन लागू कर रह ेहैं’ और इस तथ्य पर खेि प्रकट र्कया र्क ‘मृत्यिुांड का प्रयोग उनके, िो मृत्यिुांड
का सामना कर रह ेहैं और अन्य प्रभार्र्त व्यक्र्तयों के मानर् अर्धकारों के अर्तिमणों का मागि प्रशसत करता ह’ै मानर् अर्धकार पररषि ्
ने राज््यों से अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल का अनुसमथिन करने के र्लए
आग्रह र्कया ह।ै166
(iv) मृत्युदडं और ित्यपटण की वववि
3.8.32 प्रत्यपिण की र्र्र्ध मृत्यिुांड की समाप्र्त करने र्ाले िशेों के र्लए एक िसूरा औिार रही हैं ।167 कई मृत्यिुांड समाप्त करन े
र्ाले िशे या तो उस ेबनाए रखने र्ाले- प्रत्यपिण करन ेर्ाल ेिशेों से मृत्यिुांड अर्धरोर्पत न करने के आश्र्ासन की अपेक्षा करते हैं या
160 महासभा द्वारा अांगीकार र्कया गया सांकल्प ‘मतृ्युिांड के प्रयोग पर अर्धस्थगन’ ए/आइएस/63/168, 13 फरर्री, 2009 । 161 महासभा द्वारा अांगीकार र्कया गया सांकल्प ‘मतृ्युिांड के प्रयोग पर अर्धस्थगन’ ए/आइएस/65/206, 28 माचि, 2011 । 162 महासभा द्वारा अांगीकार र्कया गया सांकल्प ‘मतृ्युिांड के प्रयोग पर अर्धस्थगन’ ए/आइएस/67/176, 20 माचि, 2013 । 163 महासभा द्वारा अांगीकार र्कया गया सांकल्प ‘मतृ्युिांड के प्रयोग पर अर्धस्थगन’ ए/आइएस/69/166, 4 फरर्री, 2015 ।
164 मानर् अर्धकार पररषि ्मृत्युिांड या फाांसी र्िए गए माता-र्पता के बालकों के मानर् अर्धकारों से सांबांर्धत पैनल, 15 माचि, 2013,
ए/एचआरसी/22/एल.18
165 मानर् अर्धकार पररषि ्मृत्युिांड या फाांसी र्िए गए माता-र्पता के बालकों के मानर् अर्धकारों से सांबांर्धत पैनल, 15 माचि, 2013,
ए/एचआरसी/22/एल.18
166 मानर् अर्धकार पररषि,् मतृ्युिांड पर प्रश्न, 25 िनू, 2014ए/एचआरसी/26/एल.8/आरइर्ी.1
167 उिाहरण के र्लए मृत्युिांड समाप्त कर िनेे र्ाले िशे, ऐस ेव्यक्र्तयों के र्लए प्रत्यपिण के र्लए अनुरोध से इांकार करके, िो मतृ्युिांड अपराधों के र्लए अपेर्क्षत
हैं, उन पर िबार् डालते हैं, र्िन्होंने मृत्युिांड को बनाए रखा ह ै । िरे्खए रोिर हुड, केरोर्लन होयल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी पररपे्रक्ष्य, पृष्ठ 35 पर, (5र्ाां
सांस्करण 2015) ।
40
उन्होंन ेऐसे खांड को र्द्वपक्षीय प्रत्यपिण सांर्ध में सम्र्मर्लत कर र्िया ह ै।168 मृत्यिुांड समाप्त करन ेर्ाले िशे बहुधा इसे सरु्नश्र्चत करन ेके
र्लए आबद्ध हैं । उिाहरण के र्लए यूरोर्पयन यूर्नयन का मौर्लक अर्धकार चाटिर का आर्टिर्कल 19(2) :
र्कसी को भी ऐसे िशे में भेिा, र्नष्कार्षत या प्रत्यर्पित नहीं र्कया िा सकता ह,ै िहाां इस बात का गांभीर खतरा ह ैर्क र्हाां
उसको मृत्यिुांड र्िया िाएगा, यातना िी िाएगी या उसके साथ अन्य अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार र्कया िाएगा या
िांड र्िया िाएगा ।
3.8.33 कई न्यायालयों ने इस र्र्षय पर प्रारांर्भक र्नणिय र्कए हैं । उिाहरण के र्लए सोररांग र्सेस यूके169 के मामले में यूरोर्पयन
मानर् अर्धकार न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्कसी व्यक्र्त का यूके से र्िीर्नया के र्लए, िो सांयकु्त राज््य अमरीका में राज््य ह,ै
र्िसन ेमृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया था, प्रत्यपिण यूरोर्पयन मानर् अर्धकार कनर्ेंशन का अर्तिमण करेगा क्योंर्क :
ऐसी चरम िशाओां में, मृत्य ुपांक्र्त में व्यतीत की गई बहुत लांबी अर्र्ध, हमशेा मृत्यिुांड के र्नष्पािन की प्रतीक्षा करन ेर्ालों
के र्लए सिरै् बनी रहन ेर्ाली और बढन ेर्ाली र्चांता के साथ और आर्ेिक की व्यक्र्तगत पररस्र्थर्तयों के र्लए, र्र्शेष रूप
से अपराध के समय उसकी आय ुऔर उसकी मानर्सक स्र्थर्त को िखेते हुए, आर्ेिक का (सांयकु्त राज््य) के र्लए प्रत्यपिण
आर्टिर्कल 3 (यातना का प्रर्तषेध) द्वारा स्थार्पत अर्सीमा के परे िाकर व्यर्हार के र्ास्तर्र्क खतरे के र्लए उस ेअनार्ृत्त
करेगा ।
3.8.34 यूएस र्सेस बनिस,170 के मामल ेमें कनाडा के उच्चतम न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड बनाए रखने र्ाले
र्कसी िशे को प्रत्यपिण के मामले में ये आश्र्ासन ‘र्क मृत्यिुांड अर्धरोर्पत नहीं र्कया िाएगा, या यर्ि अर्धरोर्पत र्कया गया तो ,
र्नष्पार्ित नहीं र्कया िाएगा’ सभी मामलों में र्कन्तु ‘अपर्ािात्मक’ मामलों के र्सर्ाय, आर्श्यक थे । समान रूप से ‘मोहम्मि एांड
एनािर र्सेस प्रेर्सडेंट आफ र्ि ररपब्र्लक आफ साउथ अफ्रीका’171 के मामले में िर्क्षण अफ्रीका के सांर्धैार्नक न्यायालय ने यह
अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘‘मोहम्मि का ‘र्र्र्ासन’ या ‘प्रत्यपिण’ पहल ेयह आश्र्ासन प्राप्त र्कए र्बना र्क उस ेमृत्यिुांडािशे नहीं र्िया
िाएगा या यर्ि इस प्रकार िांडार्िष्ट र्कया गया तो उस ेफाांसी नहीं िी िाएगी, असांर्धैार्नक होगा’’ यह भी िोड़ा र्क ऐसा प्रत्यपिण उसके
‘िीर्न के अर्धकार, उसकी मानर् गररमा का आिर और सांरक्षण र्कए िाने के अर्धकार और उसके साथ िूरता, अमानर्ीयता र्कए
िाने या अपमानिनक िांड र्िए िाने के अर्धकार का’ अर्तिमण होगा ।
3.8.35 इसी प्रकार का न्याय शास्त्र अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध में भी पाया िा सकता ह ै । िि र्सेस कनाडा172 में सांयकु्त राष्ट मानर्
अर्धकार सर्मर्त ने कनाडा से सांयकु्त राज््य को र्र्र्ार्सत र्कए गए र्कसी व्यक्र्त के बारे में कारिर्ाई करते हुए, अर्भर्नधािररत र्कया र्क
‘‘कनाडा ने, ऐसे राज््य पक्षकार के रूप में, र्िसन ेमृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह,ै इस बात का ध्यान रखे र्बना र्क उसने अभी तक
अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल का अनसुमथिन नहीं र्कया ह,ै आर्टिर्कल
168 उिाहरण के र्लए चीन ने स्पेन, फ्राांस और आस्टे्रर्लया के साथ यह कहते हुए प्रत्यपिण सांर्धयों पर हस्ताक्षर र्कए ह ैर्क र्ह इन िेशों से प्रत्यर्र्तित र्कए गए
व्यक्र्तयों पर मतृ्युिांड अर्धरोर्पत नहीं करेगा । िरे्खए रोिर हुड, केरोर्लन होयल, मृत्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी पररपे्रक्ष्य, पृष्ठ 38 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015) ।
169 एप्लीकेशन नां0 14038/68, http://hudoc.echr.coe.int/eng?i=001-57619 पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
170 यूएस र्सिस बनसि, (2001) 1 एससीआर 283 । 171 2001 (3) एसए 893 (सीसी) । 172 रोिर िि र्सिस कनाडा, कम्युर्नकेशन नां0 829/1998 यू.एन. डीओसी. सीसीपरीआर/सी/78/डी/829/1998 (2003)
41
6, परैा 1 के अधीन लेखक के िीर्न के अर्धकार का, उस ेसांयकु्त राज््य में र्र्र्ार्सत करके, िहाां र्ह मृत्यिुांड के अधीन ह,ै यह
सरु्नश्र्चत र्कए र्बना र्क उस ेमृत्यिुांड नहीं र्िया िाएगा, अर्तिमण र्कया ह ै।’’173
3.8.36 भारत का प्रत्यपिण अर्धर्नयम, 1962 इस र्सद्धाांत को धारा 34ग में प्रर्तर्बांर्बत करता ह ै: ‘तत्समय प्रर्ृत्त र्कसी अन्य
र्र्र्ध में र्कसी बात के होते हुए भी, िहाां र्कसी ऐसे प्रपलायी अपराधी को, र्िसन ेभारत में मृत्य ुसे िांडनीय प्रतयपिण अपराध र्कया ह,ै
कें िीय सरकार के अनरुोध पर र्कसी र्र्िशेी राज््य द्वारा अभ्यर्पित र्कया िाता ह ैया लौटाया िाता ह ैऔर उस र्र्िशेी राज््य की र्र्र्धयों
में ऐसे अपराध के र्लए मृत्य ुशास्र्त का उपबांध नहीं ह ैर्हाां ऐसा प्रपलायी अपराधी उस अपराध के र्लए केर्ल आिीर्न कारार्ास से
िांडनीय होगा’ ।
ख. मृत्युदडं पर अंतरराष्ट्रीय रुझान
3.9.1 आि मृत्यिुांड की प्रास्र्थर्त और उसका प्रयोग, मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी ओर ऐसे रुझान का सझुार् ितेे हैं, र्िसमें गलती नहीं
की िा सकती ह ै। िब सांयकु्त राष्ट्र को 1945 में बनाया गया था, र्र्श्र् में केर्ल 7 िशेों ने मृत्यिुांड समाप्त र्कया था ।174 इसके
र्र्रुद्ध 31 र्िसम्बर, 2014 को र्र्श्र् में 140 िशेों ने मृत्यिुांड को र्र्र्ध या व्यर्हार में समाप्त कर र्िया ह ै।175
3.9.2 सांयकु्त राष्ट्र महासर्चर्, र्शै्र्र्क रूप से मृत्यिुांड की प्रास्र्थर्त पर एक आर्र्धक ररपोटि प्रकार्शत करते हैं ; इन ररपोटों में से
अद्यतन में 2009 और 2013 के बीच स्र्थर्त का र्शै्र्र्क रूप से अर्लोकन र्कया गया ह ै।176 इस अर्र्ध में पूणिरूप से समाप्त
करन ेर्ाले राज््यों की सांख्या बढकर 6 हो गई ह ैऔर लगभग सभी बनाए रखन ेर्ाले िशेों ने मृत्यिुांड के अधीन रहते हुए र्नष्पािनों की
सांख्या में और अपराधों की सांख्या में कमी की ररपोटि की ह ै। मृत्यिुांड बनाए रखन ेर्ाले िशेों में से केर्ल 32 ने न्यार्यक फाांर्सयों को
र्िया ह ै। इस ररपोटि ने ‘अर्धकाांश िशेों में मृत्यिुांड समाप्त र्कए िाने और उसके प्रयोग को र्नबंर्धत र्कए िाने की र्िशा में स्पष्ट र्चर्ित
रुझान के बने रहन ेकी पषु्र्ट की ह ै।177
3.9.3 यह रुझान अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल के, र्िसका उद्दशे्य
मृत्यिुांड समाप्त करना ह,ै र्िस पर 81 राज्यों ने हस्ताक्षर र्कए ह ैया उसे स्र्ीकार र्कया ह,ै हस्ताक्षरकतािओ ां से स्पष्ट ह ै।
(i) मृत्युदडं के संबंि में के्षत्रीय रुझान
क. अमरीका
173 रोिर िि र्सिस कनाडा, कम्युर्नकेशन नां0 829/1998 य.ूएन. डीओसी. सीसीपीआर/सी/78/डी/829/1998 (2003), पैरा 10.6 पर
।
174 पैरा 31, यातना और अन्य िूर, अमानर्ीय या अपमानिनक व्यर्हार या िांड पर र्र्शेष ररपोटिर की ररपोटि,ए/एचआरसी/10/44, 14 िनर्री,
2009, http://daccess-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/G09/105/103/12/PDF/G0910312.pdf? Open
Element पर उपलब्ध ह ै(5.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
175 िरे्खए एनेक्सचर ।।, एमनेस्टी इांटरनेशनल, 2014 में मतृ्युिांड और फाांसी, एसीटी 50/001/2015 । 176 उन व्यक्र्तयों के, िो मृत्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपाय । सेिेटरी िनरल की ररपोटि, ई/2015/49, 13
अप्रलै, 2015, पैरा 26 पर, http://www.ohchr.org/Documents/Issues/DeathPenalty/E-2015-49.pdf पर उपलब्ध ह ै
(5.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
177 उन व्यक्र्तयों के, िो मृत्युिांड का सामना कर रह ेहैं, अर्धकारों के सांरक्षण की गारांटी िनेे र्ाले रक्षोपायों का कायािन्र्यन । सेिेटरी िनरल की ररपोटि,
ई/2015/49, 13 अप्रैल, 2015, पैरा 26 पर, http://www.ohchr.org/Documents/Issues/DeathPenalty/E-2015-
49.pdf पर उपलब्ध ह ै(5.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
42
3.9.4 अमरीकन मानर् अर्धकार सांबांधी कन्र्ेंशन 1969 मृत्यिुांड के लागू र्कए िाने को महत्र्पूणि रूप से र्नबंर्धत करता ह ै ।
कन्र्ेंशन का आर्टिर्कल 4 कर्थत करता ह ैर्क इसको उर्चत र्र्चारण के पश्चात् गांभीर अपराधों के र्लए ही अर्धरोर्पत र्कया िा सकता
ह,ै इसे रािनैर्तक अपराधों या सांबांर्धत मामूली अपराधों के र्लए नहीं र्िया िा सकता ह,ै यह उन राज््यों में, र्िन्होंन ेइसे समाप्त कर
र्िया ह,ै पनु: स्थार्पत नहीं र्कया िा सकता ह ैऔर यह 18 र्षि से कम आय ुके व्यक्र्त पर या 70 र्षि के अर्धक आय ुके व्यक्र्त पर
या गभिर्ती मर्हला पर अर्धरोर्पत नहीं र्कया िा सकता ह ै।
3.9.5 अमरीका के पास मृत्यिुांड समाप्त करन ेर्ाला एक र्र्र्नर्ििष्ट कन्र्ेंशन भी ह ै। मृत्यिुांड समाप्त करने के र्लए अमरीकन मानर्
अर्धकार कन्र्ेंशन के (र्िसे 13 िशेों द्वारा अनसुमर्थित र्कया गया ह)ै प्रोटोकाल के आर्टिर्कल 1 के अधीन ‘इस प्रोटोकाल के राज््य
पक्षकार अपन ेराज््यके्षत्र में, अपनी अर्धकाररता के अधीन र्कसी व्यक्र्त को मृत्यिुांड नहीं िेंगे । ’
3.9.6 कुछ िशेों के इसे र्र्र्ध में रखन ेके बार्िूि अमरीका के अर्धकाांश िशेों में मृत्यिुांड र्र्र्ध या व्यर्हार में समाप्त कर र्िया गया
ह ै।
3.9.7 उिाहरण के र्लए अपन ेबहुत से िर्क्षण अमरीकन पड़ोर्सयों के समान178 ब्राजील ने 1882 में कई िशाब्र्ियों पहल ेमामूली
अपराधों के र्लए मृत्यिुांड समाप्त कर र्िया था । यह समाप्त करना मामूली अपराधों के र्लए मृत्यिुांड तक ही लागू होता ह ैऔर यदु्ध के
असाधारण समय में अपराधों के र्लए मृत्यिुांड अभी तक बना हुआ ह ै। ब्रािील का सांर्र्धान उपबांध करता ह ैर्क मृत्यु द्वारा कोई िांड नहीं
र्िया िाएगा र्सर्ाय युद्ध के मामल ेमें आर्टिर्कल [5XLVII]179 । र्ही आर्टिर्कल यह भी उपबांध करता ह ै र्क कोई आिीर्न
कारार्ास र्हाां नहीं होगा,इससे ब्रािील र्र्श्र् के ऐसे कुछ िशेों में से एक बन गया ह ैिहाां मृत्यिुांड और आिीर्न कारार्ास िोनों
र्र्द्यमान नहीं हैं । बीसर्ीं शताब्िी में रािनरै्तक अस्र्थरता और सरै्नक शासन की दृष्र्ट से, ब्रािील ने : मृत्यिुांड को िो बार र्षि
1939-45 में (र्हांसा के रािनीर्त से प्रेररत अपराधों के र्लए) और 1969-79 में (राष्ट्रीय सरुक्षा के र्र्रुद्ध रािनीर्तक अपराधों
के र्लए) पनु: प्रारांभ र्कया था, र्कन्तु कोई मृत्यिुांड इन र्षों के िौरान र्कसी व्यक्र्त पर अर्धरोर्पत नहीं र्कया गया ।180
3.9.8 सांयकु्त राज््य अमरीका में मृत्यिुांड के प्रर्त उसके दृष्र्टकोण के अनसुार ध्यान र्िए िान ेयोग्य अपर्ाि ह ै। 2014 में सांयकु्त
राज््य अपन ेके्षत्र में फाांसी िनेे के र्लए एकमात्र िशे था । सांयकु्त राज््य के अांिर भी, फरमान र्सिस िार्ििया 181 के मामले के पश्चात ्एक
अर्र्ध के र्लए , लगभग 4 र्षि के र्लए, 1972 और 1976 के बीच मृत्यिुांड पर र्ास्तर् में अर्धस्थगन था । िबर्क मृत्यिुांड को
उस समय के पश्चात् से यथापूर्ि कर र्िया गया ह,ै न्यायालय के र्र्र्नश्चयों ने इसके के्षत्र को सांकीणि कर र्िया ह ैऔर रक्षोपायों को प्रारांभ
र्कया ह ै। उिाहरण के र्लए रोपर र्सिस साइमांस182 में उच्चतम न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ऐसे अपराधों के र्लए, िब व्यक्र्त
18 र्षि से कम आयु का था, मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िाना असांर्ैधार्नक था । आगे एटर्कन्स र्सेस र्िीर्नया183 में उच्चतम
न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क बौर्द्धक र्नयोग्यता र्ाल ेव्यक्र्तयों को फाांसी िनेा िूरता और असामान्य िांड के बराबर ह ैऔर इस
प्रकार यह असांर्धैार्नक ह ै। सांयकु्त राज््य में राज््यों की बढती हुई सांख्या शासकीय या अशासकीय रूप से अर्धस्थगन अर्धरोर्पत कर
178 इनमें अिेंटीना, र्चली, कोलम्र्बया, कोस्टा ररका, एक्र्ाडोर, एल सालरे्डर, र्नकारागुआ, पैराग्रे्, रे्नेिएुला और उरुग्रे् सम्र्मर्लत हैं ।
179 ब्रािीर्लयन सांर्र्धान का, 2010 में सांशोर्धत रूप में, अांगे्रिी पाठ http://www.stf.jus.br/repositorio/cms/portalstfinternaclonal/portalstfsobrecorte_en_us/anexo/constituica
o_ingles_3ed2010.pdf पर उपलब्ध ह ै(10.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया)।
180 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 70-71 पर, (5र्ाां सांस्करण. 2015)।
181 फरमनै र्सिस िार्ििया, 408, यू.एस. 238 ।
182 रोपर र्सिस साइमांस, 543 यू.एस. 551 (2005) ।
183 एटर्कन्स र्सिस र्िीर्नया, 536, यू.एस. 304 (2002) ।
43
रही ह ै। सांयकु्त राज््य में 19 राज््य ने इसे समाप्त कर र्िया ह,ै इनमें सबस ेहाल के राज््य 2012 में कनकै्र्टकट, 2013 में मरेरलैंड
और 2015 में लेब्रास्का हैं ।184 2014 में सांयकु्त राज््य में 35 व्यक्र्तयों को फाांसी िी गई थी,िो 1995 से सबस ेकम सांख्या थी
।
ख. यूरोप
3.9.9 सभी यूरोप के िशेों ने, बेलारूस के अपर्ाि के र्सर्ाय, या तो औपचाररक रूप से मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ैया उस पर
अर्धस्थगन बनाए रखा ह ै।185
3.9.10 यूरोर्पयन मानर् अर्धकारों और मूल स्र्तांत्रताओां के सांरक्षण से सांबांर्धत कन्र्ेंशन (‘यूरोर्पयन कनर्ेंशन’) ने मूल रूप से
कर्थत र्कया, ‘र्कसी को भी अपन ेिीर्न से साशय र्कसी न्यायालय के ऐसे िांडािशे के र्नष्पािन में के र्सर्ाय, िो र्कसी ऐसे अपराध
की िोषर्सर्द्ध के र्लए हो, र्िसके र्लए इस िांड का र्र्र्ध द्वारा उपबांध र्कया गया ह,ै र्ांर्चत नहीं र्कया िाएगा ।’186 1983 में
मृत्यिुांड की समाप्र्त से सांबांर्धत यूरोर्पयन कन्र्ेंशन का प्रोटोकाल नां0 6 कहता ह,ै ‘मृत्यिुांड समाप्त र्कया िाएगा । र्कसी को भी ऐसे
िांड से िांर्डत नहीं र्कया िाएगा या फाांसी नहीं िी िाएगी’ र्सर्ाय ‘ऐसे कायों के सांबांध में, िो यदु्ध के समय या युद्ध के आसन्न खतरे के
समय र्कए गए हों ।’187 अांर्तम रूप से 2002 में यूरोर्पयन कन्र्ेंशन के प्रोटोकाल 13 ने सभी पररस्र्थर्तयों में मृत्यिुांड समाप्त कर
र्िया । 44 िशेों ने इस प्रोटोकाल को, र्िसके अांतगित यूरोर्पयन यूर्नयन के सभी सिस्य राज््य हैं, स्र्ीकार कर र्लया ह ै।
3.9.11 यूरोर्पयन मानर् अर्धकार न्यायालय (‘ईसीएचआर’) ने ऐसे िशेोंके र्लए, र्िन्होंने िो र्कैल्र्पक प्रोटोकालों का अभी तक
अनसुमथिन नहीं र्कया ह,ै मूल्यर्ान न्याय शास्त्र र्र्कर्सत र्कया ह ै। बहुत से अर्सरों पर, न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया ह ैर्क
ऐसे िशे को प्रत्यपिण, िहाां मृत्यिुांड ह,ै िीर्न के अर्धकार का और यातना के र्र्रुद्ध प्रर्तषेध का अर्तिमण कर सकता ह ै ।188
2010 में यूरोर्पयन मानर् अर्धकार न्यायालय ने अर्धक सांख्या में यूरोर्पयन कन्र्ेंशन के अर्धक सांख्या में ऐसे हस्ताक्षरकतािओ ां को
िखेा, र्िनहोंने मृत्यिुांड समाप्त कर र्िया था । उसने कहा ‘य ेआांकडे़, मृत्यिुांड पर अर्धस्थगन का पालन करन ेमें लगातार राज््य के
व्यर्हार सर्हत, इस बात के कठोर रूप से र्निशिक हैं र्क आर्टिर्कल 2 को इस प्रकार सांशोर्धत र्कया गया ह ै र्क र्िससे सभी
पररस्र्थर्तयों में मृत्यिुांड का प्रर्तषेध र्कया िा सके ।’ इसन ेअर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘‘आर्टिर्कल 3 में ‘अमानर्ीय या अपमानिनक
व्यर्हार या मृत्यिुांड’ शब्ि को सम्र्मर्लत कर सकते हैं ।’’189
3.9.12 शेष यूरोप के समान फ्राांस ने िनता की र्र्रोधी राय होने के बार्िूि मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया । फ्राांस में मृत्यिुांड को,
नेशनल असेम्बली में समाप्त र्कए िाने के पक्ष में र्र्र्नश्चय र्कए िान ेके र्लए मत के पश्चात् 9 अक्तूबर, 1981 को समाप्त कर
184 मतृ्युिांड सचूना कें ि से प्राप्त आांकड़ों पर आधाररत, http://www.deathpenaltyinfo.org/states-and-wihtout-death-penalty
पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
185 एमनेस्टी इांटरनेशनल, 2014 में मतृ्युिांड और फाांर्सयाां, एसीटी 50/001/2015, पृष्ठ 41 पर ।
186 आर्टिर्कल 2(1), मानर् अर्धकारों और मूल स्र्तांत्रताओ ां के सांरक्षण से सांबांर्धत कनर्ेंशन,
http://conventions.coe.int/treaty/en/Treaties/Html/005.htm पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया
गया)।
187 आर्टिर्कल 1 और 2, मानर् अर्धकारों और मलू स्र्तांत्रताओ ां के सांरक्षण से सांबांर्धत कनर्ेंशन का प्रोटोकाल नां0 6,
http://conventions.coe.int/treaty/en/Treaties/Html/114.htm पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया
गया)।
188 बेडर एांड केनबोर र्सिस स्र्ीडेन, एप्लीकेशन नां0 13284/04 ; िाबरी र्सिस टकी, एप्लीकेशन नां0 40035/98 ।
189 अल-सािनू एांड मफु्धी र्सिस यूनाइटेड र्कां गडम, 61498/08/[2010] ईसीएचआर 282, पृष्ठ 120 पर ।
44
र्िया गया था ।190 इसन ेइस र्र्षय पर नेशनल असेम्बली में िो शताब्र्ियों के र्र्चार-र्र्मशि को, प्रथम प्रस्तार् इतने समय पूर्ि र्क
1791 में प्रस्तुत र्कया गया था, समाप्त करना र्चर्ित र्कया ।191 समाप्त र्कए िाने को 2007 में फ्राांस के सांर्र्धान के आर्टिर्कल
66-1 में र्नगर्मत र्कया गया था, िो इस प्रकार ह ैर्क ‘र्कसी को मृत्य ुका िांडािशे नहीं र्िया िाएगा’ ।192 इसको समाप्त र्कए िाने
के पश्चात् बहुत र्षों तक िनता की राय ने मृत्यिुांड का समथिन र्कया (2006 के मतिान ने िर्शित र्कया र्क 52 प्रर्तशत िनसांख्या
इसके र्र्रुद्ध थी) ।193 राबटि बैर्डन्टर, िो 1981 में फ्राांस में न्याय मांत्री थे, र्िन्होंन ेर्र्धायी सांशोधन का मागििशिन र्कया था, सझुार्
र्िया र्क ‘सामान्यतया मृत्यिुांड समाप्त करन ेके पश्चात् िनता के र्लए यह समझना बांि करन ेमें र्क मृत्यिुांड लाभिायक ह ैऔर यह
अनभुर् करन ेमें र्क यह मानर् र्ध के स्तर पर कोई अांतर नहीं करता ह,ै लगभग 10-15 र्षि लगते हैं’, इस भर्र्ष्य कथन को बहुत से
िशेों में समथिन र्मला ह ै।194
3.9.13 यूनाइटेड र्कां गडम में मृत्यिुांड का इर्तहास भी भारतीय सांिभि में ससुांगत ह ै। मृत्यिुांड समाप्त करने की ओर झुकार् रखन े
र्ाली लेबर सरकार ने, र्िसे यदु्ध के पश्चात् र्ब्रटेन में र्नर्ािर्चत र्कया गया था, मृत्यिुांड के र्र्षय पर कम से कम छह बार, उस ेएक तरफ
हटाने के पूर्ि र्र्चार र्कया था, िब उसन े1947 में अपना र्िर्मनल िस्र्टस र्बल पटल पर रखा था, यह र्र्र्नश्चय करते हुए र्क
मृत्यिुांड समाप्त करना इसकी मखु्य प्राथर्मकता नहीं थी और 1950 तक तथार्प ठीक से कारिर्ाई न र्कए गए मामलों की और फाांसी
र्िए गए मामलों की श्रृांखला ने इसे समाप्त र्कए िाने के पक्ष में मिबूत िन आन्िोलन को िन्म र्िया ।195 यूनाइटेड र्कां गडम में अांर्तम
बार फाांसी 1964 में िी गई थी ।196 1965 में ग्रेट र्ब्रटेन में हाउस आफ कामनस ने र्र्र्ध द्वारा पाांच र्षि की अर्र्ध के र्लए हत्या के
र्लए मृत्यिुांड पर अर्धस्थगन अर्धरोर्पत करन ेऔर उस ेर्नलांर्बत करने के र्लए मतिान र्कया ।197
3.9.14 हत्या के र्लए मृत्यिुांड को औपचाररक रूप से 1969 में समाप्त कर र्िया गया था िब यूनाइटेड र्कां गडम की पार्लियामेंट
ने र्र्र्नश्चय र्कया र्क 1965 एक्ट को उन हाल के िनमतों के बार्िूि व्यपगत नहीं होन ेर्िया िाना चार्हए,198 िो यह िर्शित करते
190 फ्राांस और मतृ्युिांड, फ्राांस में समाप्त र्कया िाना, http://www.diplomatie.gouv.fr/en/french-foreign-policy/human-
rights/death-penalty/france-and-death-penalty/ पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया)
191 9 अक्तूबर, 1981 की र्र्र्ध : फ्राांस में मतृ्युिांड का समाप्त र्कया िाना, http://www.france.fr/en/institutions-and-
values/law-9th-october-1981-abolition-death-penalty-france.html पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया) ।
192 फ्राांस और मृत्युिांड, फ्राांस में मतृ्युिांड का समाप्त र्कया िाना, http://www.diplomatie.gouv.fr/en/french-foreign-
policy/human-rights/death-penalty/france-and-death-penalty/ पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन
र्कया गया) ।
193 इर्ान िे.मेनडरी, कैर्पटल पर्नशमेंट । ऐ बलैेंस्ड एग्िार्मनेंशन, पृष्ठ 640 पर ( पहला सांस्करण, 2005) 194 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 464 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
195 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 51-56 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
196 र्ब्रर्टश सरै्नक और आपरार्धक इर्तहास : 1900 से 1999, यूके में अांर्तम फाांर्सयाां, http://www.stephen-
straford.co.uk/last_ones.htm पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
197 मडिर (अबोर्लसन आफ डेथ पेनाल्टी) ऐक्ट, 1965 की धारा 4 िरे्खए, मलूरूप में अर्धर्नयर्मत,
http://www.legislation.gov.uk/ukpga/1965/71/pdfs/ukpga_19650071_en.pdf पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को
अांर्तम बार िखेा गया) ।
198 मडिर (अबोर्लसन आफ डेथ पेनाल्टी) ऐक्ट, 1965, यथा सांशोर्धत, http://www.legislation.gov.uk/ukpga/1965/71 पर उपलब्ध
ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार िखेा गया) ।
45
थे र्क लगभग 80 प्रर्तशत िनसांख्या िांड को बनाए रखन ेके पक्ष में थी ।199 (उत्तरी आयरलैंड ने 1973 में एक समरूप र्र्र्ध
पाररत की थी ।200) हत्या के र्लए मृत्यिुांड समाप्त र्कए िाने के पश्चात,् हाउस आफ कामन्स ने मृत्यिुांड को प्रत्यार्र्तित करन ेके र्लए
प्रत्यके पार्लियामेंट के िौरान (1997 तक एक मतिान रखा, र्कन्तु प्रस्तार् कभी पाररत नहीं र्कया गया ।201 मृत्यिुांड अांर्तम रूप से
यूके में सभी अपराधों के र्लए केर्ल 1999 में हटाया गया था, आगे यूनाइटेड र्कां गडम द्वारा यूरोर्पयन मानर् अर्धकार सांबांधी
कनर्ेंशन और अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के िसूरे र्कैल्र्पक प्रोटोकाल का अनसुमथिन र्कए िाने
और उसके अधीन बाध्यताओां को पूरा करन ेके र्लए र्कया ।202
3.9.15 िांड के यूनाइटेड र्कां गडम र्र्र्ध का भाग न रह िानेके बार्िूि यू.के. र्प्रर्र् काउांर्सल ने कैरेर्बयन िशेों में, िहाां मृत्यिुांड अभी
तक ह,ै मामलों से सांबांर्धत र्र्र्भन्न र्र्र्नश्चयों पर मृत्यिुांड र्र्चार-र्र्मशि र्कया ह,ै इनमें से अत्यर्धक ध्यान िने ेयोग्य 1993 का प्राट
एांड मोगिन र्सेस र्ि अटानी िनरल फार िमकैा का मामला था ।203 इस मामल ेमें यूके र्प्रर्र् काउांर्सल ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क
िमायका में ऐसे कैिी को िो 14 र्षों से मृत्य ुपांक्र्त में रहा था, फाांसी िनेा असांर्धैार्नक था । र्प्रर्र् काउांर्सल के अनसुार िमायका
का सांर्र्धान ‘अमानर्ीय या अपमानिनक िांड’ का प्रर्तषेघ करता ह’ै र्िसके पररणामस्र्रूप िांडािशे र्िए िाने और िांड के र्नष्पािन के
बीच अत्यर्धक र्र्लांब नहीं हो सकता। र्र्र्नर्ििष्ट रूप से इसन ेअर्भर्नधािररत र्कया र्क िांडािशे िने ेऔर उसके र्नष्पािन के बीच 5 र्षि
से अर्धक का र्र्लांब प्रथमदृष्टया अमानर्ीय या अपमानिनक िांड का साक्ष्य था । ऐसे अत्यर्धक र्र्लांब के मामलों में उसन ेकहा र्क
मृत्य ुिांडािशे को आिीर्न कारार्ास में सांपररर्र्तित कर र्िया िाना चार्हए ।
3.9.16 प्राट एांड मोगिन र्ाले मामल ेका अन्य कैरेर्बयन िशेों के समरूप मामलों पर ‘कुछ प्रभार् हुआ’204 , िहाां मृत्य ुपांक्र्त र्ाल े
र्सद्धिोषों के र्लए िांडािशे को आिीर्न कारार्ास में सांपररर्र्तित कर र्िया गया । इसन े यूके से र्भन्न िशेों में र्प्रर्र् काउांर्सल की
अपीलीय शक्र्तयों के बारे में एक पृथक् और लांबे चलन ेर्ाले र्र्चार र्र्मशि को प्रारांभ कर र्िया ।205
ग. अफ्रीका
3.9.17 अक्तूबर, 2014 में, 17 अफ्रीकन िशेों ने औपचाररक रूप से मृत्यिुांड को समाप्त र्कया था और 25 अन्य िशेों ने 10
र्षों के िौरान कोई फाांसी नहीं िी थी ।206 ऐसे िशेों में, िो बराबर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत कर रह ेहैं, इर्िप्ट, इक्र्ेटोररयल गीर्नया,
199 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 55 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
200 सेक्शन 1, उत्तरी आयरलैंड (आपात उपबांध) अर्धर्नयम, 1973, http://www.legislation.gov.uk/ukpga/1965/53/section/1
पर उपलब्ध ह ै(20.08.2015 को अांर्तम बार िखेा गया) ।
201 चाल्िस हनेसन, र्ि डेथ पेनाल्टी इश्यू, टाइम, 1 र्सतांबर, 2011, http://insidetime.org/the-death-penalty-issue/ पर उपलब्ध
(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
202 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 56 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)। 203 (1993) यूकेपीसी 1, र्प्रर्ी काउांसेल, 1993 की अपील सां0 10, http://www.bailii.org/uk/cases/UKPC/1993/1.html पर
उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
204 र्थरेसी र्मल्स (2005), पत्र : मृत्युिांड के ऊपर औपर्नरे्र्शक शक्र्त, बीबीसी, 19 िनर्री, 2005,
http://news.bbc.co.uk/2/hi/americas/4185745.stm पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
205 िरे्खए, उिाहरण के र्लए, ओरे्न बोकाट एांड माया र्ोल्फे-रोर्बनसन, र्ब्रर्टश न्यायालय ने र्ट्रर्नडाड के िो हत्यारों को मतृ्युिांड र्िया, र्ि गार्िियन, 4 फरर्री,
2014, http://www.theguardian.com/law/2015/feb/04/british-court-to-rule-on-death-sentences-for-two-
trinidad-murderers पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
46
सडुान और सोमार्लया सम्र्मर्लत हैं । कई अफ्रीकन िशेों (अथाित् अांगोला, नामीर्बया) ने सांर्र्धान के द्वारा मृत्यिुांड का समाप्त कर
र्िया ह,ै िबर्क िसूरे िशेों ने प्रमखुत: िर्क्षण अफ्रीका में न्यायालयों ने नेतृत्र् र्कया ह ै।
3.9.18 बालक के अर्धकारों और कलयाण से सांबांर्धत अफ्रीकन चाटिर कहता ह,ै ‘बालकों द्वारा र्कए गए अपराधों के र्लए
मृत्यिुांड नहीं सनुाया िाएगा’ । 2008 में ‘राज््य पक्षकारों से मृत्यिुांड पर अर्धस्थगन का पालन करन ेके र्लए माांग करनेर्ाल ेसांकल्प’
में अफ्रीकन मानर्ीय और िनता के अर्धकारों सांबांधी आयोग ने आग्रह र्कया ‘ऐसे राज््य पक्षकार, र्िन्होंन ेअभी तक मृत्यिुांड को बनाए
रखा ह,ै मृत्यिुांडों के र्नष्पािन पर अर्धस्थगन का पालन करे’ ।207 2014 में, अफ्रीका में मृत्यिुांड की समाप्र्त पर काांर्टनेंटल काांफ्रें स
की घोषणा में मृत्यिुांड समाप्त करने की ओर रुझान को मान्यता िी गई,208 और िेशों से अफ्रीका में मृत्यिुांड की समाप्र्त पर अफ्रीका के
मानर्ीय और िनता के अर्धकारों सांबांधी चाटिर के एडीशनल प्रोटोकाल का समथिन करन ेके र्लए कहा गया ।
3.9.19 उिाहरण के र्लए कीर्नया ने बहु अपराधों के र्लए, र्िनके अांतगित हत्या, सशस्त्र डकैती औरी राििोह ह,ै मृत्यिुांड को बनाए
रखा ह ै। तथार्प कीर्नया में अांर्तम रूप से ज्ञात फाांसी 1987 में िी गई थी और उस िशे को र्ास्तर् में समाप्त कर िनेे र्ाले िशे के रूप
में माना िाता ह ै। मटुीसो र्सेस ररपब्र्लक (2010) के मामल ेमें, मोबासा के अपील न्यायालय ने हत्या के र्लए आज्ञापक मृत्यिुांड
को यह अर्भर्नधािररत करते हुए समाप्त कर र्िया था र्क िांड िीर्न के अर्धकार के अर्तिमण में था और र्ह अमानर्ीय व्यर्हार के
बराबर था और यह र्क र्कसी व्यक्र्त को 3 र्षि से अर्धक के र्लए मृत्यु पांर्ि में रखना असांर्ैधार्नक होगा । उसन ेयह भी सझुार् र्िया
र्क उसके तकि आज्ञापक मृत्यिुांडािशे र्ाले अन्य अपराधों को भी लागू होंगे।209 तथार्प, िोसेफ निगुुना मोरा र्सेस ररपब्र्लक
(2013) के मामल ेमें अपील न्यायालय ने सशस्त्र डकैती के र्लए मृत्यिुांड को बनाए रखा । उसन ेकहा र्क इसका र्र्र्नश्चय र्र्धान
मांडल को करना था र्क क्या आज्ञापक मृत्यिुांड बनाए रखा िाना चार्हए या नहीं । इन िो र्र्र्नश्चयों के बीच सांघषि का उच्चतम
न्यायालय द्वारा हल र्नकाले िाने की आशा की िाती ह।ै210
3.9.20 िर्क्षण अफ्रीका में मृत्यिुांड को सांर्धैार्नक न्यायालय के र्र्र्नश्चय द्वारा, रांगभिे र्ाली शासन प्रणाली211 के कुछ समय
पश्चात ्समाप्त र्कया गया था ।1995 में प्रारांभ के र्र्र्नणिय में स्टेट सर्ेस मक्र्ान्याने212 में िर्क्षण अफ्रीका के सांर्धैार्नक न्यायालय ने
अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड असांर्ैधार्नक था । ऐसा करन ेमें न्यायालय ने कहा :
206 मतृ्युिांड के र्र्रुद्ध र्र्श्र् र्िर्स पर मानर् और िनता के अर्धकारों सांबांधी अफ्रीकन आयोग के कायिकारी समहू के अध्यक्ष द्वारा मतृ्युिांड पर कथन,
http://www.achpr.org/press/2014/10/d227/ पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 207 मतृ्युिांड पर अर्धस्थगन का पालन करने के र्लए राज््य सरकारों से माांग करने र्ाला सांकल्प, ACHPR/Res.136 (XXXXXIIII).08,
http:/old.achpr.org/English/resolutions/resolution136_en.htm पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन
र्कया गया) । 208 पैरा 4, उिाहरण के र्लए कहता ह ै‘उन अफ्रीकन राज््यों की, र्िन्होंने मतृ्युिांड को समाप्त कर र्िया ह,ै बढने र्ाली सांख्या की हृिय से प्रशांसा करता ह’ै
अफ्रीका में मतृ्युिांड के समाप्त र्कए िाने से सांबांर्धत महार्द्वपीय सम्मेलन, http:/www.achpr.org/news/2014/07/d150 पर उपलब्ध
(20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
209 िरे्खए, र्ि डेथ पेनल्टी प्रोिेक्ट, कीर्नया, http://www.deathpenaltyproject.org/where-we-operate/africa/kenya/ पर
उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
210 िरे्खए, र्ि डेथ पेनल्टी र्ल्िडर्ाइड, कीर्नया, http://www.deathpenaltyworldwide.org/country-search-
post.cfm?country=Kenya पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 211 िरे्खए, हार्डि फ्रें च, िर्क्षण अफ्रीका के सर्ोच्च न्यायालय ने मृत्युिांड समाप्त र्कया, न्यूयाकि टाइम्स, 7 िनू, 1995, http://www.nytimes.com/1995/06/07/world/south-africa-s-supreme-court-abolishes-death-penalty.html
पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
47
िीर्न और गररमा के अर्धकार सभी मानर् अर्धकारों में से अत्यर्धक महत्र्पूणि हैं और अध्याय 3 में सभी अन्य व्यक्र्तगत
अर्धकारों का स्रोत हैं । र्कसी ऐसे समाि के र्लए, िो मानर् अर्धकारों की मान्यता पर आधाररत हो, अपन ेआपको प्रर्तबद्ध
करते हुए हमसे अपेक्षा की िाती ह ैर्क हम सभी अन्य अर्धकारों के ऊपर इन िो अर्धकारों को महत्र् िने ेऔर यह राज््य
द्वारा प्रत्यके बात में प्रिर्शित र्कया िाना चार्हए र्क र्ह ऐसा करता ह,ै इसके अांतगित र्ह पद्धर्त भी ह ैर्िसमें र्ह अपरार्धयों
को िांर्डत भी करता ह ै। यह हत्यारों को उद्दशे्य बनाकर और उनहें मृत्यिुांड िकेर और िसूरों के र्लए उन्हें उिाहरण के रूप में
इस आशा में रख के र्क र्े उसके द्वारा सांभर्त: भय अनभुर् करेंगे, प्राप्त नहीं र्कया िा सकता ह ै।
और यह र्क :
हमारे सांर्र्धान के अधीन प्रर्तशोघ को र्ही र्िन नहीं प्रिान र्कया िा सकता िो िीर्न और गररमा के अर्धकार को प्रिान
र्कया िाता ह ैिो र्क अध्याय 3 में सभी अर्धकारों से अर्धक महत्र्पूणि हैं । यह िर्शित नहीं र्कया गया ह ैर्क मृत्यिुांडािशे,
हत्या से डराने या उसका र्नर्ारण करन ेके र्लए, तात्र्र्क रूप से आिीर्न कारार्ास के आनकुल्र्पक िांडािशे से अर्धक
प्रभार्ी होगा । इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और साथ ही मृत्यिुांड को लागू करन ेमें मनमानेपन तथा गलती की सांभार्ना
के तत्र्ो को ध्यान में रखते हुए ऐसा स्पष्ट और भरोसा करने र्ाला मामला, िो हत्या के र्लए िांड के रूप में मृत्यिुांडािशे को
न्यायोर्चत ठहरान ेके र्लए अपेर्क्षत ह,ै सामन ेनहीं लाया गया ह ै।
3.9.21 इस र्र्र्नश्चय के समय मृत्यिुांड पर िर्क्षण अफ्रीका में िनता की राय, मृत्यिुांड को बनाए रखन ेके र्लए बहुत से समथिन के
साथ, बहुत र्र्भार्ित था । अपराध एक बड़ी समस्या थी और रांगभेि र्ाली शासन प्रणाली के िौरान मृत्यिुांड का व्यापक प्रयोग र्कया
गया था ।213 अांर्तम फाांसी उसको समाप्त र्कए िाने के ठीक 4 र्षि पूर्ि िी गई थी । 1997 में िर्क्षण अफ्रीका की सांसि ्ने न्यायालय
के र्र्र्नश्चय का र्र्र्ध के द्वारा पनु: पषु्र्ट की ।214
3.9.22 नाईिीररया में मृत्यिुांड मखु्यत: राज््य र्र्षय ह ैक्योंर्क िशे में सांघीय प्रणाली ह,ै िहाां आपरार्धक र्र्र्धयाां 36 िशेों में
र्र्र्भन्न रूपों में हैं । प्रत्यके राज््य अपराध और िांड को अपन ेराज््यके्षत्र के भीतर र्र्र्नर्ििष्ट करता ह ैऔर शररया तथा सामानय र्र्र्ध
प्रणाली पर आधाररत र्र्र्धयाां रखता ह ै। आज्ञापक मृत्यिुांड नाईिीररया के र्र्र्भन्न राज््यों में बहुत से अपराधों के र्लए र्र्र्हत र्कया गया
ह ै।215
3.9.23 2012 में लगैोस राज््य के उच्च न्यायालय ने िेम्स अिूल ुएांड अिसि र्सेस अटानी िनरल आफ लगोश216 में घोर्षत
र्कया र्क आज्ञापक मृत्यिुांड असांर्धैार्नक था । न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘ऐसे अपराधों िसेै सशस्त्र डकैती और हत्या
के र्लए आज्ञापक मृत्यिुांड का र्र्र्हत र्कया िाना आर्ेिकों के मानर् गररमा के अर्धकार और नाईिीररया के सांघीय गणराज््य के
212 1995(6) बीसीएलआर 665 । 213 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मृत्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 89 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)। 214 रोिर हुड एांड केरोर्लन होएल, एबोर्लर्शांग र्ि डेथ पेनल्टी र्ल्िडर्ाइड : र्ि इम्पैक्ट आफ ए ‘न्य ूडायर्नर्मक’ िाइम एांड िस्र्टस, र्ोल्. 3X, नां0 1
(2009), पृष्ठ 1-63 पर ।
215 कां ट्री प्रोफाइल : नाइिीररया, 19 िनू, 2014 को, http//www.deathpenaltyworldwide.org/country-search-
post.cfm?country=Nigeria पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
216 सटू नां0 आईडी/76एम/2008, अक्तूबर, 2012 ।
48
सांर्र्धान 1999 की धारा 34 के अधीन अमानर्ीय या अपमानिनक िांड न र्िए िाने के उनके अर्धकार का उल्लांघन करता ह’ै217
इस र्र्र्नणिय के पररणामस्र्रूप मृत्यिुांड के आज्ञापक अर्धरोपण का लागोस राज्य में प्रर्तषेध र्कया गया ह ै और मृत्यिुांड अब अर्धकतम
ह ैर्कन्तु केर्ल मात्र नहीं हैं, िांड सांभर् ह ै। यह अर्भर्नधािरण केर्ल लोगोस राज््य में प्रर्तिनीय ह ै।
3.9.24 नाईिीररया में 2013 में चार कैर्ियों को फाांसी िी गई थी, िब र्क उसने अन्यथा 2006 से फाांसी नहीं िी थी ।218
र्सतांबर, 2013 में मृत्य ुपांक्र्त में खडे़ हुए कैर्ियों की सांख्या 1233 थी, र्िनमें से बहुत से कैिी मृत्य ुपांक्र्त में िस र्षि से अर्धक से
बन ेहुए थे (सांयकु्त राष्ट्रसांघ के र्र्शेष ररपोटिर द्वारा की गई एक ररपोटि के अनसुार 2006 में औसत पहल ेसे ही 20 र्षि था) ।219
घ. एवशया और पैवसवफक
3.9.25 एर्शया-परै्सर्फक में लगभग 40 प्रर्तशत िशे मृत्यिुांड के प्रर्तधारक हैं और उन्होंने उस ेबनाए रखा ह ैतथा उसका प्रयोग
करते हैं । चीन, ईरान, इराक और सउिी अरब र्शै्र्र्क रूप से सबसे अर्धक फाांसी िने ेर्ालों में बने हुए हैं और र्पछले कुछ र्षों में
पार्कस्तान और इांडोनेर्शया को, फाांसी िने ेर्ालों में र्ापस आने के र्लए अपने र्ास्र्त में अर्धस्थगन को समाप्त करते हुए िखेा गया ह ै
।
3.9.26 िर्क्षण पूर्ि एर्शया में मृत्युिांड के रुझानों का र्र्श्लेषण करने र्ाले 2015 के एक ओएचसीएचआर प्रकाशन ने पाया ह ै
र्क ‘मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी र्िशा में र्शै्र्र्क आांिोलन िर्क्षण पूर्ि एर्शया में प्रर्तर्बम्र्बत हो रहा ह ै ।’220 ररपोटि के समय ब्रनेुई
िारुसलम, इांडोनेर्शया, लाओस, मलेर्शया, र्मआनमार, र्सांगापरु, थाईलैंड और र्र्यतनाम ने मृत्यिुांड को समाप्त नहीं र्कया था िबर्क
कम्बोर्डया, टाइमर-लसै्टे और र्फलीपीन्स ने ऐसा र्कया था ।
3.9.27 इांडोनेर्शया, उिाहरण के र्लए बनाए रखन ेर्ाला िशे ह,ै िो र्र्र्भन्न अपराधों के र्लए, र्िनके अांतगित मािक िव्य से
सांबांर्धत अपराध हैं, मृत्यिुांड का प्रयोग करता ह ै। 2015 के प्रारांभ में इांडोनेर्शया ने मािक िव्य सांबांधी अपराधों के र्लए 8 व्यक्र्तयों
को, र्िनके अांतगित र्र्िशेी राष्र्ट्रक भी थे, गोली चलाने र्ाले िस्ते के द्वारा फाांसी िी थी । इांडोनेर्शया के राष्ट्रपर्त िोको र्र्डोडो ने
मृत्यिुांड की यह कहकर प्रर्तरक्षा की र्क ‘हम मािक िव्य की तसकरी करने र्ालों को यह कठोर सांिशे भेिना चाहते हैं र्क इांडोनेर्शया
मािक िव्य से सांबांर्धत समसया को हल करन ेमें दृढ और गांभीर ह ैऔर इसका एक पररणाम, यर्ि न्यायालय उन्ह ेमृत्य ुके र्लए िांडािशे
217 मतृ्युिांड का प्रश्न : मानर् अर्धकार सांबांधी सांयुक्त राष्ट्र सांघ उच्चायुक्त की र्ार्षिक ररपोटि और उच्चायुक्त तथा महासर्चर्, मानर् अर्धकार पररषि ् के
कायािलय की ररपोटें, 24 र्ाां सत्र, सांयुक्त राष्ट्र महासभा, ए/एचआरसी/24/18, 1 िलुाई, 2013 ।
218 कां ट्री प्रोफाइल : नाइिीररया, 19 िनू, 2014 को, http//www.deathpenaltyworldwide.org/country-search-
post.cfm?country=Nigeria पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
219 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 204 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
220 िर्क्षण पूर्ि एर्शया के र्लए मानर् अर्धकार सांबांधी उच्चायुक्त का के्षत्रीय कायािलय, ‘मरू् अरे् फ्राम र्ि डेथ पेनल्टी : लेसनस इन साउथ ईस्ट एर्शया’, पृष्ठ
19 पर, http://bangkok.ohchr.org/fkiles/Moving%20away%20from%20the%20death%20penalty-
English%20for%20Website.pdf पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
49
ितेा ह ैतो फाांसी िनेा ह’ै221 इांडोनेर्शया में 2008 और 2012 के बीच सांर्क्षप्त अशासकीय अर्धस्थगन था र्कनतु उसके पश्चात ्
उसने फाांसी िने ेको पुन:ग्रहण कर र्लया ह ै।222
3.9.28 चीन र्र्श्र् में सांबसे बडे़ फाांसी िने ेर्ाले िशे में एक ह ै । र्हाां इस बारे में बहुत सीर्मत िानकारी ह ै र्क चीन में र्कतनी
फाांर्सयाां िी िाती हैं क्योंर्क र्े सभी रहस्यमय रूप से िी िाती हैं । तथार्प, प्राक्कलन सझुार् ितेे हैं र्क र्र्श्र् की 90 प्रर्तशत फाांर्सयाां
एर्शया में िी िाती हैं और उनमें से अर्धकाांश चीन में िी िाती हैं,223 और यह र्क चीन सभी अन्य िशेों को र्मलाकर सबस े
अर्धक व्यक्र्तयों को फाांसी ितेा ह ै।224 2010 में 68 अपराध चीन में मृत्युिांड से िांडनीय थे । 2011 के एक सांशोधन में इस
सांख्या को घटाकर 55 कर र्िया गया । हाांगकाांग और मकाऊ, िो िोनों चीन के प्रशार्सत के्षत्र ह,ै ने मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ै।
इसी प्रकार िापान ने भी मृत्यिुांड बनाए रखा ह2ै25 और र्ह रहसयमय रूप से फाांसी ितेा ह ै। पररर्ारों को सामान्यतया फाांसी र्िए िाने
के पश्चात् सूर्चत र्कया िाता ह ै।226
3.9.29 र्फलीपीन्स एर्शया में प्रथम िशेों में से एक था र्िसन ेमृत्यिुांड को समाप्त र्कया था । उसका 1987 का सांर्र्धान, र्िसे
राष्ट्रपर्त माकोस का तख्ता पलट र्िए िाने के पश्चात् प्रख्यार्पत र्कया गया था,227 कहता ह ैर्क :
आर्टिर्कल 3, सेक्शन 19(1) : अत्यर्धक िमुािने अर्धरोर्पत नहीं र्कए िाएांगे, िूर, अपमानिनक या अमानर्ीय िांड
नहीं र्िया िाएगा । न तो मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िाएगा िब तक र्क र्र्र्श र्कए िाने र्ाले कारण न हों, र्िनमें िघन्य
अपराध अांतर्िर्लत हैं, काांग्रेस इसके पश्चात् इसके र्लए उपबांध करती ह ै। कोई मृत्यिुांड, र्िसे पहल ेही अर्धरोर्पत र्कया िा
चकुा ह,ै कम करके र्चरस्थायी एकाांतर्ास में पररर्र्तित कर र्िया िाएगा (िोर र्िया गया) ।228
3.9.30 1994 तक राष्ट्र के कुछ भागों में मन:स्र्थर्त पररर्र्तित हो गई थी और ररपब्र्लक एक्ट नां0 7659, र्िसे ‘कर्तपय
िघन्य अपराधों के र्लए मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेर्ाला अर्धर्नयम’ भी कहा िाता ह,ै पाररत र्कया गया था । इस र्र्र्ध की उद्दशे्र्यका
ने कहा र्क काांग्रेस, न्याय, लोक व्यर्स्था और र्र्र्ध के शासन तथा िघन्य अपराधों के र्लए िाांर्डक मांिूररयों को तकि सांगत और
सामांिस्यपूणि बनाने की आर्श्यकता हतेु, उक्त अपराधों के र्लए मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्लए र्र्र्श करने र्ाल ेकारणों को पाती ह ै
221 अल ििीरा से बातचीत, िोको र्र्डोडो : ‘मािक िव्य तस्करों को एक कड़ा सांिशे’, अल ििीरा, 7 माचि, 2015
http://www.aljazeera.com/programmes/talktojazeera/2015/03/joko-widodo-stronge-message-drug-
smugglers-150305131413414.html पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
222 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 98 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
223 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 98 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
224 चीन सांबांधी काांगे्रसनल कायिकारी आयोग, चीन की सरकार मतृ्यु से िांडनीय अपराधों की सांख्या घटाने के बारे में र्र्चार कर रही ह,ै फरर्री 23, 2011 http://www.cecc.gov/publications/commission-analysis/chinese-government-considers-reducing-
number-of-crimes-bunishable पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
225 http://www.economist.com/blogs/banyan/2014/09/death-penalty-japan पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम
बार अर्लोकन र्कया गया) ।
226 एमनेस्टी इांटरनेशनल, िापान : प्रार्धकारी कायिकारी पुन: फाांसी िकेर िनता का धोखा िे रहे हैं, 25 िनू, 2015, http://www.amnesty.org/en/latest/news/2015/06/japan-authorities-deceiving-the-public-by-resuming-
executions/ पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
227 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 100 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
228 र्फलीपीन्स गणराज््य का सांर्र्धान, http://www.gov.ph/constitutions/1987-constitution पर उपलब्ध ।
50
।’229 इस अर्धर्नयम ने बहुत सारे अपराधों के र्लए, र्िनके अांतगित हत्या, राििोह और कर्तपय प्रकार के बलातसांग थे, मृत्यिुांड को
पनु: प्रारांभ र्कया । मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत र्कए गए थे और फाांसी िनेा पुन: प्रारांभ र्कया गया था ।
3.9.31 र्फलीपीन्स ने इस अर्र्ध में, मृत्यिुांड पर गहन लोक र्र्चारर्र्मशि को िखेा । 2000 में, राष्ट्रपर्त एसट्राडा ने फाांसी िनेे
पर अर्धस्थगन को घोर्षत र्कया, र्िसे राष्ट्रपर्त अरोयो ने िारी रखा ।230 अप्रलै, 2006 में राष्ट्रपर्त अरोयो ने सभी मृत्यु िांडािशेों को
सांपररर्र्तित करन ेऔर फाांसी र्िए िान ेको बांि करने का र्र्र्नश्चय र्कया ।231 बाि में उस र्षि मृत्यिुांड को पूणिरूप से समाप्त करन ेर्ाला
एक र्र्धेयक पाररत र्कया गया ।232 2007 में र्फलीपीन्स ने अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनरै्तक अर्धकार सांबांधी प्रसांर्र्िा के िसूरे
र्कैल्र्पक प्रोटोकाल का अनसुमथिन कर र्िया ।
3.9.32 सउिी अरब ने भी मृत्यिुांड को बनाए रखा ह ै र्िसका र्ह र्र्िेशी राष्र्ट्रकों और ऐसे अपराधों के, िो ‘अत्यर्धक गांभीर
अपराधों’ की अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध की अर्सीमा को पूरा नहीं करते हैं, र्सद्धिोषी व्यक्र्तयों के र्र्रुद्ध प्रयोग करता ह ै । हाल में केर्ल
2015 में 102 व्यक्र्तयों से अर्धक को फाांसी र्िए िान ेसे फाांर्सयों की िर और सांख्या में र्ृर्द्ध हुई ह ै।233
3.9.33 1948 में इसके बनने के पश्चात् से, इिराइल, मामूली अपराधों के र्लए इसको समाप्त करन ेर्ाला रहा ह ै। मृत्यिुांड केर्ल
एक बार 1962 में अर्धरोर्पत र्कया गया और कायािन्र्र्त र्कया गया, िब एडोल्फ आईचमान को फाांसी िी गई थी । र्तिमान में
र्नम्नर्लर्खत अपराधों में मृत्यिुांडािशे र्िया िा सकता ह ै: िनसांहार, नािी शासन के िौरान कष्ट िने ेर्ाले व्यक्र्तयों की हत्या ; सरै्नक
र्र्र्ध और िांड र्र्र्ध के अधीन राििोह के कायि, िो यदु्ध की स्र्थर्त के समय में र्कए गए हों और शस्त्रों का अर्र्र्धपूणि प्रयोग और उनहें
रखना । आगे इिराइली र्र्र्ध अपेक्षा करती ह ैर्क मृत्यिुांड केर्ल न्यार्यक सहमर्त से अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ैन र्क न्यार्यक
बहुसांख्या से । 2015 में ऐसा एक र्र्धेयक परु:स्थार्पत करन ेके प्रयास र्कए गए थे, िो आतांकर्ार्ियों पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करना,
ऐसे मामलों में केर्ल न्यायाधीशों की बहुसांख्या से अपेक्षा करके और उनके बीच सहमर्त न भी होने पर, िो सरल बनाएगा । र्र्धेयक
अपनी पहली रीर्डांग में ही नामांिूर कर र्िया गया था ।234
1. दवक्षण एवशया
229 अर्धर्नयम की प्रर्त http://www.lawphil.net/statutes/repacts/ra1993/ra_7659_1993.html पर उपलब्ध ह ै। 230 िरे्खए एमनेस्टी इांटरनेशनल, र्फलीपीन्स ने मृत्युिांड समाप्त र्कया, 7 िुलाई, 2006,
http://www.amnesty.org.au/news/comments/2412/ पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया
गया) ।
231 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, पृष्ठ 101 पर, (5र्ाां सांस्करण 2015)।
232 िरे्खए सारह टोम्स, र्फलीपीन्स ने मृत्युिांड बांि र्कया, बीबीसी न्यूि, 24 िनू, 2006, http://news.bbc.co.uk/1/hi/world/asia-
pacific/5112696.stm पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
233 बीबीसी न्यूि : र्मर्डल ईस्ट, एक र्षि में सउिी अरब ने 175 लोगों को फाांसी िी- एमनेस्टी, http://www.bbc.co.uk/news/world-
middle-east-34050853 पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ; एडम र्र्थनाल, सउिी अरब, प्रत्येक िो र्िनों में
एक व्यक्र्त को फाांसी ितेा ह,ै इसर्लए र्सर से धड़ अलग करने की िर र्कां ग सलमान के अधीन बढ गई ह,ै र्ि इांर्डपेंडेंट, 28 अगस्त, 2015 http://www.indpendent.co.uk/news/world/middle-east/Saudi-arabia-executions-amnesty-international-
beheadings-death-sentences-rate-under-king-salman-10470456.html पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार
अर्लोकन र्कया गया)
234 िरे्खए टाइम्स आफ इिरायल, ‘नेसेट ने आतांकर्ार्ियों के र्लए मतृ्युिांड सांबांधी र्र्धेयक को नामांिूर र्कया’ 15 िलुाई,
2015,http://www.timesofisrael.com/Knesset-rejects-bill-on-deaht-penalty-for-terrorists/ पर
उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
51
3.9.34 िर्क्षण एर्शया में भारत, पार्कसतान और बांगलािशे ने मृत्यिुांड को बनाए रखा ह ै। र्िसांबर, 2014 में पार्कस्तान ने पेशार्र
में एक स्कूल पर आतांकर्ािी हमल ेके उत्तरमें फाांसी िने ेपर अपने अर्धस्थगन को हटा र्िया था । उसके पश्चात् से लगभग 200
व्यक्र्तयों को फाांसी िी गई ह ैऔर लगभग 8000 व्यक्र्त मृत्य ुपांर्ि में फाांसी र्िए िाने के खतरे में हैं ।235
3.9.35 मालिीर् और श्रीलांका ने र्र्र्ध में िांड को बनाए रखा ह,ै र्कन्तु व्यर्हार में उन्होंने इसे समाप्त कर र्िया ह ै। श्रीलांका में
1976 में अांर्तम फाांसी िी गई थी ; तथा मालिीर् में 1950 में । श्रीलांका में मृत्यिुांड औपर्नरे्र्शक समय के िौरान प्रारांभ र्कया गया
था । श्रीलांका ने अभी तक इसे बनाए रखा ह ैऔर र्ह व्यक्र्तयों को मृत्य ुका िांडािशे ितेा ह ै। मृत्य ुपांक्र्त श्रीलांका में र्र्र्ािास्पि
तथ्य ह ै। केर्ल 2014 में श्रीलांकन न्यायालय ने 61 व्यक्र्तयों से अर्धक को, र्िनके अांतगित र्कशोर भी थे, िांडािशे र्िया था ।236
श्रीलांका ने भी मािक िव्य से सांबांर्धत ऐसे अपराधों के र्लए, िो अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध में ‘ अत्यर्धक गांभीर अपराधों’ की सीमा को पूरा
नहीं करते हैं, मृत्यिुांड को बनाए रखा ह ैर्कन्तु श्रीलांका ने 1976 से कोई फाांसी नहीं िी ह ैऔर उस ेव्यर्हार में समाप्त करन ेर्ाला
समझा िाता ह ै । मृत्य ुिांडािशेों को कारार्ास की अर्र्ध में सांपररर्र्तित कर र्िया िाता ह ै । यह ध्यान िनेे योग्य ह ै र्क श्रीलांका का
अर्धस्थगन 1980 और 2000 के अांत तक के बीच बगार्त और र्सर्र्ल यदु्ध के बार्िूि बना रहा ह ै।
3.9.36 भूटान और नेपाल ने मृत्यिुांड समाप्त कर र्िया ह ै। भूटान ने इसे 2004 में समाप्त र्कया था और यह इसके 2008 के
सांर्र्धान में भी प्रर्तर्षद्ध ह ै। नेपाल में अांर्तम बार फाांसी 1979 में िी गई थी ।नेपाल ने शासकीय रूप से 1990 में मृत्यिुांड समाप्त
कर र्िया था और उसकी सरकार ने कहा ‘िांड को इसकी नई बहुिलों र्ाली रािनीर्तक पद्धर्त से असांगत समझा िाता ह ै।’237 उसके
पश्चात ् से नेपाल ने 10 र्षि लांबा र्सर्र्ल युद्ध, िो 1966 से 2006 तक रहा, िखेा ह ै । र्सर्र्ल यदु्ध के िोनो पक्षकार मानर्
अर्धकारों का िरुुपयोग करते रह ेहैं और उसका उत्तरिार्यत्र् आि नेपाल में कें िीय र्चांता का र्र्षय ह ै।
3.9.37 यह र्हांसा और सांघषि नेपाल की सरकार और नेपाल की कम्यरु्नस्ट पाटी (माओर्ािी) के बीच 2006 के व्यापक शाांर्त
समझौते पर हस्ताक्षर होन ेके पश्चात् समाप्त हुआ । र्हांसा और नृशांसताओां के पमैाने के बार्िूि समझौते का खांड 7.2.1 स्पष्ट रूप से
कहता ह ैर्क ‘िोनों पक्षकार र्कसी व्यक्र्त के िीर्न के मूल अर्धकार का आिर करते हैं और उसका सांरक्षण करते हैं । कोई व्यक्र्त अपने
मूल अर्धकार से र्ांर्चत नहीं र्कया िाएगा और कोई भी र्र्र्ध, िो मृत्यिुांड का उपबांध करती ह,ै अर्धर्नयर्मत नहीं की िाएगी ।’238
नेपाल के अांतररम सांर्र्धान का अनचु्छेि 12, िो व्यापक शाांर्त समझौते पर हस्ताक्षर होन ेके पश्चात् प्रर्तिन में आया ह,ै कहता ह ै
:239
235 िरे्खए बीबीसी न्यूि : एर्शया, पार्कस्तान ने अपीलों के बार्ििू शफाकत हुसनै को फाांसी िी, बीबीसी न्यूि, 4 अगस्त, 2014,
http://www.bbc.com/new/world-asia-33767835 पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
236 एमनेस्टी इांटरनेशनल, 2014 में मतृ्युिांड और फाांसी, एसीटी50/001/2015 ।
237 एलए टाइम्स, ‘नेपाली न्यू लीडसि ने मतृ्युिांड समाप्त र्कया’ 10 िलुाई, 1990, http://articles.latimes.com/1990-
30/news/mn-790_1_death-sentence पर उपलब्ध ह ै।
238 नेपाल सरकार और नेपाल की कम्युर्नस्ट पाटी (माओर्ािी) के र्कए गए व्यापक शाांर्त करार का अशासकीय अनुर्ाि, 21 नर्ांबर, 2006
2006http://www.usip.org/sites/defaults/files/resources/collections/peace_agreements/nepal_
opa_20061121_en.pdf पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
239 िरे्खए, नेपाल का अांतररम सांर्र्धान, 2007,
http://www.worldstatesmenorg/Nepal_Interim_Constitution2007.pdf पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम
बार अर्लोकन र्कया गया) ।
52
प्रत्यके व्यक्र्त को गररमा के साथ रहने का अर्धकार होगा और कोई र्र्र्ध ऐसी नहीं बनाई िाएगी िो मृत्यिुांड के र्लए
उपबांध करती हो ।
3.9.38 मृत्यिुांड के र्र्रुद्ध प्रर्तषेध को भी नेपाल के र्तिमान प्रारूप सांर्र्धान में, र्िस पर सांर्र्धान सभा में र्र्चार-र्र्मशि र्कया िा
रहा ह,ै बनाए रखा गया ह ै।
ग. वनष्कषट
3.10.1 आि 140 िशेों ने मृत्यिुांड को र्र्र्ध या व्यर्हार में समाप्त कर र्िया ह ै । िांड समाप्त करने की र्िशा में यह रुझान
अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध में हुए र्र्कासों से प्रकट ह,ै र्िन्होंन ेमृत्यिुांड के के्षत्र को, ऐसे अपराधों की प्रकृर्त को र्नबंर्धत करके, र्िनके र्लए इसे
कायािर्नर्त र्कया िा सकता ह,ै उस रीर्त को पररसीर्मत करके, र्िसमें इसे र्नष्पार्ित र्कया िा सकता ह ैऔर प्रर्िया सांबांधी रक्षोपायों
को प्रारांभ करके, पररसीर्मत कर र्िया ह ै। अांतरराष्ट्रीय स्तर पर हाल की रािनरै्तक प्रर्तबद्धताएां, िसेै फाांसी र्िए िान ेपर अर्धस्थगन
सांबांधी राष्ट्र सांघ की महासभा के सांकल्प के र्लए बढता हुआ समथिन, इस रुझान की पनु: पषु्र्ट करती हैं ।
3.10.2 यह अध्याय प्रिर्शित करता ह ैर्क बगार्त, आतांक या र्हांसक अपराध से लड़ने और मृत्यिुांड की आर्श्यकता के बीच र्कसी
कड़ी का कोई साक्षय नहीं ह ै। कई िशेों ने मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ैया र्सर्र्ल यदु्ध, बगार्त की धमर्कयों या आतांकर्ािी हमलों
का सामना करन ेके बार्िूि फाांसी िनेे पर अर्धसथगन बनाए रखा ह ै। उिाहरण के र्लए नेपाल ने 1990 में मृत्यिुांड को शासकीय रूप
से समाप्त कर र्िया था और र्सर्र्ल युद्ध के भय से भी इसे पनु: प्रारांभ नहीं र्कया ; श्रीलांका ने, लांबे र्सर्र्ल यदु्ध के बार्िूि, मृत्यिुांड पर
अर्धस्थगन बनाए रखा ह ै; और इिराइल ने, उसके बनने के पश्चात् से, केर्ल एक बार फाांसी िी ह ै। अर्धकाांश यूरोर्पयन िशे, अथाित्
यूके, फ्राांस और स्पेन अपनी राष्ट्रीय सीमाओां के भीतर आतांर्ाि का सामना करने के बार्िूि इसे समाप्त करने र्ाले बन ेरह ेहैं । र्ास्तर्
में यह ध्यान िनेा ससुांगत ह ैर्क यूके ने मृत्यिुांड को ऐसे समय पर समाप्त र्कया िब आइररस ररपब्र्लकन आमी, िो िाांर्तकारी सरै्नक
सांगठन ह,ै र्र्र्शष्ट रूप से िशे में सर्िय था । इसे अपराधों से लड़न ेके र्लए भी िखेा िा सकता ह ै । र्फलीपीन्स मािक िव्यों के
िवु्ियापार की गांभीर समस्या का सामना कर रहा ह ैर्कन्तु उसने मृत्यिुांड समाप्त कर र्िया ह ै। िर्क्षण अफ्रीका ने ऐसे समय पर मृत्यिुांड को
समाप्त र्कया था, िब िशे में अपराध-िर बहुत ऊां ची थी ।
3.10.3 मृत्यिुांड को समाप्त करन ेया बनाए रखन ेका र्कसी िशे का र्र्र्नश्चय उसके सामार्िक, आर्थिक र्र्कास के पाश्िर् र्चत्र से
आर्श्यक रूप से िडु़ा हुआ नहीं ह,ै बिाय इसके रािनरै्तक इच्छा और नेतृत्र् इसमें प्रमखु हैं । कई र्र्कासशील िशे मृत्यिुांड का प्रयोग
नहीं करते हैं । नेपाल, रुआांडा, सेनेगन, शोलोमन द्वीप, र्डर्िबाउटी, टोगो, हाइटी और गीर्नया-र्बसाऊ सभी ऐसे िेशों के उिाहरण हैं
र्िनहें सांयकु्त राष्ट्र सांघ र्र्कास पररयोिना मानर् र्र्कास सूचकाांक में ‘कम मानर् र्र्कास र्ाले’ िशेों के अधीन पांक्र्त में रखा गया ह,ै
(अथाित ्र्िन्हें भारत से कम र्र्कर्सत समझा िाता ह)ै, र्कन्तु उनहोंन ेमृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ै।240
3.10.4 मृत्यिुांड के सांबांध में राज््य व्यर्हार भी यह प्रिर्शित करता ह ैर्क िांड समाप्त र्कए िाने का मागि सिरै् िनता की राय का कृत्य
नहीं ह,ै रािनरै्तक नेतृत्र् इस प्रर्िया में प्रमखु रहा ह ै। बहुत से राज््यों ने ऐसे समय पर मृत्यिुांड को समाप्त र्कया ह,ै िब िनता की राय
ने इस स्र्थर्त का आर्श्यक रूप से समथिन न भी र्कया हो । तथार्प बहुत से िेशों में िनता की राय धीरे-धीरे पश्चातर्ती पीर्ढयों के साथ
पररर्र्तित होते-होते समय के साथ उलट गई ह,ै िो यह सझुार् ितेी ह ैर्क िनता के र्लए यह सोचना बांि करने में र्क ‘िांड लाभप्रि ह’ै
या यह अनभुर् करन ेमें र्क इसका मानर् र्ध के स्तरों के साथ कोई सांबांध नहीं ह,ै समय लगता ह ै। उिाहरण के र्लए फ्राांस में िनता की
राय मृत्यिुांड का कई र्षों तक, उसके समाप्त कर र्िए िाने के पश्चात्, समथिन करती रही और यह र्र्र्ध के समाप्त र्कए िाने के
240 िरे्खए, मानर् र्र्कास सचूकाांक और उसके सांघटक, http://hdr.undp.org/en/content/table-1-human-
development-index-and-its-components पर उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) ।
53
लगभग िो िशकों के पश्चात् हुआ र्क र्ह राय बिलनी आरांभ हुई । समान रूप से िर्क्षण अफ्रीका में एक सांर्धैार्नक न्यायालय के
र्र्र्नश्चय ने मृत्यिुांड को ऐसे समय पर, िब िनता उसका समथिन कर रही थी, असांर्धैार्नक पाया, और नयायालय के र्र्र्नश्चय का
र्र्धान मांडल द्वारा समथिन र्कया गया । समय के साथ य ेर्र्र्नश्चय बुर्द्धमत्तापूणि कायि के अनिुम सार्बत हुए हैं । य ेिशे आि भी िांड
समाप्त करने र्ाले बने हुए हैं और उन्होंन ेअपने र्र्र्नश्चयों पर सांिहे या उस पर प्रश्न करने की आर्श्यकता नहीं अनभुर् की ह ै। उन्होंने
अपराध का र्नयांत्रण करन ेऔर व्यक्र्तयों को िांड िने ेके र्लए र्र्र्भन्न पद्धर्तयों पर भरोसा र्कया ह।ै यूके और फ्राांस में ऐसे रािनीर्तक
पक्षकार, र्िन्होंन ेमृत्यिुांड को िनता की राय के र्र्रोध में समाप्त र्कया था , र्ास्तर् में पनु: र्नर्ािर्चत र्कए गए थे ।241
3.10.5 आि की र्सथर्त में, 1979-80 में मृत्यिुांड की र्शै्र्र्क स्र्थर्त से तुलना करके, बचन र्सांह में उच्चतम न्यायालय के
र्र्र्नश्चय के समय से अांतर र्कया िा सकता ह ै। न्यायालय ने िखेा र्क केर्ल 18 िशेों ने सभी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड को समाप्त
र्कया था और 8 और िशेों ने इसे केर्ल ‘यदु्ध के समय पर र्कए गए र्र्र्नर्ििष्ट अपराधों’ के र्लए बनाए रखा था । न्यायालय ने सउिी
अरब, सांयकु्त राज््य अमरीका , इिराइल, चीन, अिेंटीना, बेल्र्ियम, फ्राांस, िापान, ग्रीस, टकी, मलेर्शया, र्सांगापरु और यूएसएसआर
(रूस) को उिाहरण के रूप में उद्धत र्कया था ।242 इन िशेों में से कई ने, र्िनके अांतगित, बेल्र्ियम, फ्राांस, ग्रीस और टकी हैं , र्र्र्ध
और व्यर्हार में आि इसे समाप्त कर र्िया ह ै । िसूरों ने िसेै अिेंटीना और इिराइल ने इसे केर्ल अपर्ािात्मक अपराधों के र्लए
बनाए रखा ह ै।
3.10.6 अांतरराष्ट्रीय र्र्र्ध में और र्र्श्र् में राज््यों के व्यर्हार में इसे समाप्त करन ेकी र्िशा में स्पष्ट रुझान र्िखाई पड़ रहा ह ै ।
अांतरराष्ट्रीय र्र्र्धक सांन्र्नयमों को बहुत सांकीणि र्कसम के मामलों में और बहुत सीर्मत रीर्त में मृत्यिुांड के र्र्र्धपूणि प्रयोग को र्नबंर्धत
करन ेके र्लए, र्र्कर्सत र्कया गया ह ै। भारत में व्यक्र्तयों को मृत्यिुांड से िांडार्िष्ट र्कया िाना और उन्हें फाांसी र्िया िाना िारी ह ैऔर
भारत ने अर्धस्थगन पर महासभा के सभी 5 सांकल्पों का र्र्रोध र्कया ह ै । ऐसा करन ेमें भारत उन अल्पसांख्यक िशेों के, र्िनहोंने
मृत्यिुांड को बनाए रखा ह ैऔर यहाां तक र्क उससे भी छोटी सांख्या र्ाले ऐसे िशेों के साथ ह,ै िो र्ास्तर् में फाांसी िेते हैं, ऐसे िशेों की
सूची में चीन, इरान, इराक और सउिी अरब सम्र्मर्लत हैं ।
241 अपने लेख में हुड और होएल ने मतृ्युिांड और िनता की राय पर अध्ययन के प्रर्त र्निशे र्कया, र्िसने पाया ह ैर्क मतृ्युिांड समाप्र्त के प्रत्येक र्षि ने ‘इस
सांभार्ना को कम र्कया ह ैर्क कोई व्यक्र्त 46 प्रर्तशत मृत्युिांड का समथिन करेगा,’ िो यह िर्शित करता ह ैर्क दृढ रािनीर्तक नेता द्वारा मतृ्युिांड की समाप्र्त स्र्यां
िनता की राय में पररर्तिन कर सकती ह,ै (यूनाइटेड नेशन्स, 2014),
http://www.ohchr.org/Lists/MeetingNY/Attachments/52/Moving-Away-from-the-Death-Penalty.pdf पर
उपलब्ध (20.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 242 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1982) 3 एससीसी 24, पैरा 128 और 129 पर ।
54
अध्याय 4
मृत्युदडं के वलए दडं संबंिी न्यायोवित्य
क. वविारण का के्षत्र
4.1.1 उच्चतम न्यायालय ने र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य243 (‘खाि’े) में र्नयम बनाया र्क ‘यह आज्ञापक ह ै
..................र्क न्यायालय मृत्यिुांड िने ेके र्लए और िब र्र्कलप र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत हो, न्याय शास्त्र सांबांधी आधार
अर्धकर्थत करे ।’244 इस सांिभि में न्यायालय ने र्र्र्ध आयोग से ‘ इस मदु्द ेका यह परीक्षा करके समाधान करन ेके र्लए कहा र्क
क्या मृत्यिुांड भयपरर्तकारी िांड ह ैया प्रर्तशोधात्मक न्याय ह ैया अक्षम बनाने र्ाले उद्दशे्य की पूर्ति करता ह ै।’245 इस अध्याय
में इस ररपोटि ने इस बात की परीक्षा की ह ै र्क क्या मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने के र्लए कोई िांड सांबांधी प्रयोिन ह ै । यह ररपोटि
भयपरर्तकारी, अक्षमता और प्रर्तशोध के र्सद्धाांतों का र्र्श्लेषण करती ह ै। आनपुार्तकता और पनुर्ािस की भी िांड के र्सद्धाांतों के
रूप में सांके्षप में परीक्षा की गई ह ै। क्योंर्क इन र्सद्धाांतों का उच्चतम न्यायालय द्वारा अपन ेमृत्यिुांड सांबांधी न्यायर्नणियन में उपयोग
र्कया गया ह ै।
4.1.2 इस समय आयोग के र्लए यह िोर िनेा आर्श्यक ह ैर्क मृत्यिुांड को समाप्त करना अपराधी को समाि में र्कसी भी
प्रकार के र्कसी िांड के र्बना र्नमुिक्त करना आर्श्यक नहीं बनाता ह ै। इस पर अर्श्य ध्यान र्िया िाना चार्हए र्क मृत्यिुांड का
र्र्कल्प आिीर्न कारार्ास ह ैऔर इसे बहुधा मृत्यिुांड पर होने र्ाले र्र्चार र्र्मशों में छोड़ र्िया िाता ह ै।246 मृत्यिुांड को बनाए
रखन ेमें क्या गुणागुण िर्शित र्कए िाने चार्हए, क्या मृत्यिुांड र्िए िाने के न्यूनतम लाभ अथाित ्ऐसे लाभ िो आिीर्न कारर्ास
द्वारा नहीं र्िए िाते हैं, इतने अर्धक पयािप्त हैं र्क र्िससे एक िीर्न ले र्लया िाए ।247 यह र्सद्धाांत उच्चतम न्यायालय द्वारा
सांतोष कुमार बररयार बनाम महाराष्ट्र,248 (‘बररयार’) में अर्धकर्थत र्कया गया था, िहाां न्यायालय ने कहा :
िांडािशे र्िए िाने की प्रर्िया के िौरान िांडािशे िने ेर्ाले न्यायालय या उस मामल ेके र्लए अपील न्यायालय को मृत्यिुांड
और उस प्रयोिन के बीच, र्िसके र्लए उस े र्र्र्हत र्कया गया ह,ै तार्कि क और उद्दशे्यात्मक सांबांध का र्नष्कषि र्नकालना
होता ह ै। िांडािशे िने ेमें, िांड प्रर्िया सांर्हता की धारा 354(3) के अधीन पररकल्र्पत रूप में ‘र्र्शेष कारण’ पि को उस
तुलनात्मक उपयोर्गता का समाधान करना होता ह ैर्िसकी मृत्यिुांडािशे र्र्र्शष्ट मामल ेमें आिीर्न कारार्ास की तुलना में
पूर्ति करेगा । यह प्रश्न की क्या र्िया गया िांड अनचु्छेि 21 के अधीन िीर्न के अर्धकार का यथासांभर् कम, ह्रास करता ह ै
।249
243 (2013) 5 एससीसी 546 ।
244 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546, पैरा 148 पर ।
245 (2013) 5 एससीसी 546, पैरा 614 पर । 246 िरे्खए, एच. र्बिायु, भयोपरतता और मृत्युिांड : पुनर्र्िचारण, 61 आपरार्धक र्र्र्ध िरनल, अपराध शास्त्र और पुर्लस र्र्ज्ञान 539, 542 (1970)
; ररचडि लेम्पटि, अर्भत्यिन और भयोपरतता : मतृ्युिांड के र्लए मामले के नैर्तक आधारों का र्नधािरण, 79, र्मर्शगन ला ररव्यू 1177, 1192 (1981) । 247 िरे्खए, एच. र्बिायु, भयोपरतता और मृत्युिांड : पुनर्र्िचारण, 61 आपरार्धक र्र्र्ध िरनल, अपराध शास्त्र और पुर्लस र्र्ज्ञान 539, 542 (1970)
; ररचडि लेम्पटि, अर्भत्यिन और भयोपरतता : मतृ्युिांड के र्लए मामले के नैर्तक आधारों का र्नधािरण, 79, र्मर्शगन ला ररव्यू 1177, 1192 (1981) 248 (2009) 6 एससीसी 498 ।
249 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 145 पर ।
55
ख. वववि आयोग की 35 वीं ररपोर्ट का दृष्वर्कोण
4.2.1 यह र्सफाररश करन ेमें र्क क्या मृत्यिुांड को बनाए रखा िाए, र्र्र्ध आयोग की 35 र्ीं ररपोटि में यह मत व्यक्त र्कया गया र्क
मृत्यिुांड द्वारा र्नम्नर्लर्खत प्रयोिनों की पूर्ति होती ह ै:
(क) भयोपरतता - 35र्ीं ररपोटि ने कहा र्क भयोपरतता न केर्ल मृत्यिुांड का, र्कन्तु साधारणतया िांड का सबस ेअर्धक
महत्र्पूणि उद्दशे्य ह ै।250
(ख) प्रर्तशोध- प्रर्तशोध को भी 35र्ीं ररपोटि में मृत्यिुांड के महत्र्पूणि न्यायोर्चतय के रूप में िखेा गया ह ै। यह कहा गया
था र्क प्रर्तशोध को ‘आांख के र्लए आांख’ के रूप में नहीं समझा िाना चार्हए र्कन्त ुउसके पररष्कृत रूप में
अपराध की लोक र्नांिा के रूप में समझा िाना चार्हए ।251
(ग) अक्षमता - 35र्ीं ररपोटि ने कहा र्क ऐसे व्यक्र्तयों का एक प्रर्गि ह ैिो ‘िूर और िषु्चररत्र हैं और र्े सधुार र्कए
िाने के योग्य नहीं हैं’ । सर र्फट्ििेम्स स्टीफन को उद्धत करते हुए ररपोटि ने कहा र्क ‘ऐसे व्यक्र्तयों को िीने
की अनजु्ञा िनेा सभ्य समाि में भेर्ड़ए को िीर्र्त छोड़ िने ेिसैा होगा ।’252 इसन ेआगे कहा र्क यर्ि ऐसा कोई
खतरा ह ैर्क ऐसा व्यक्र्त पनु: अपराध कर सकता ह,ै तो यह यकु्र्तयकु्त होगा र्क उसका िीर्न समाप्त कर र्िया
िाए ।253
4.2.2 मृत्यिुांड को बनाए रखने के र्लए 35 र्ीं ररपोटि में कर्थत एक बड़ा कारण भारत की अर्द्वतीय स्र्थर्त ह ैऔर यह र्क इस समय
प्रर्ृत्त समाि की पररस्र्थर्तयों की दृष्र्ट से मृत्यिुांड का समाप्त करना बुर्द्धमत्ता पूणि नहीं होगा ।254
4.2.3 35र्ीं ररपोटि द्वारा कर्थत न्यायोर्चत्यों में से प्रत्यके के बारे में नीचे ब्यौरे र्ार बताया गया ह ै:
ग. भयपरतता
4.3.1 भयपरतता का उद्दशे्य व्यक्र्तयों को िांड के डर और धमकी के प्रयोग से अपराध करन ेसे र्नर्ाररत करना ह ै।255 भयपरतता के
र्सद्धाांत के पीछे उपधारणा यह ह ै र्क सभी व्यक्र्त तार्कि क व्यक्र्त हैं और र्ह अपराध तभी करेंगे िब र्े िखेते हैं र्क लाभ, िो र्ह
आपरार्धक कायि करके प्राप्त करेंगे, उस पीड़ा से अर्धक होगा िो र्ह उसके िाांर्डक पररणामों से भोगेंगे ।256 र्र्श्र्ास यह ह ै र्क
भयपरतता की सांर्िया सदुृढ होती ह,ै िब िांड को इतना गांभीर बनाया िाता ह ैर्ितनी की मृत्य ुस्र्यां ह,ै तो कोई भी व्यक्र्त अपने सही
250 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498 । 251 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 297 पर । 252 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 300 पर । 253 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 301 पर । 254 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, (मुख्य र्नष्कषों और र्सफाररशों का सार) http://lawcommissionofindia.nic.in/1-
50/report 35Vol1 and 3.pdf पर उपलब्ध ह ै(26.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 255 एन्र्ियु एशर्थि : िांडािशे िनेा और आपरार्धक न्याय 75 (चौथा सांस्करण 2005) ; रेमांड पेटनोस्टर, हम आपरार्धक भयोपरतता के बारे में र्ास्तर् में
र्कतना िानते हैं, 100 आपरार्धक र्र्र्ध और अपराध शास्त्र का िरनल, 765, 766 (2010) । 256 एांर्ियू एशर्थि, िांडािेश िनेा और आपरार्धक न्याय 71(चौथा सांस्करण 2005) ।
56
मस्र्तष्क से ऐसा कायि नहीं करेगा र्िसके पररणामस्र्रूप उसका िीर्न समाप्त हो, स्र्यां को बनाए रखन ेकी सहि प्रर्ृत्र्त साधारण
पररस्र्थर्तयों में स्र्ाभार्र्क, िरै्र्क और अिेय होती हैं ।257 इस सांबांध में बहुधा उद्धतृ र्कया गया कथन सर िेम्स स्टीफन का ह ै:
कुछ व्यक्र्त, सांभर्तया हत्या से िरू रहते हैं क्योंर्क र्े डरते हैं र्क यर्ि उनहोंने हत्या की तो उनहें फाांसी पर लटकाया िाएगा
।हिारों में से सकैड़ों इससे इसर्लए िरू रहते हैं क्योंर्क र्े इसे भयार्ना समझते हैं । एक बड़ा कारण, र्िससे र्े इसे भयानक
समझते हैं र्ह यह ह ैर्क हत्यारों को फाांसी पर लटकाया िाता ह ै।258
4.3.2 35र्ीं ररपोटि ने इस प्रस्तार्ना के पक्ष में र्क मृत्यिुांड भयपरर्तकारी मूल्य की पूर्ति करता ह ै (अन्य के साथ)
र्नम्नर्लर्खत कारण र्िए :259
1. प्रत्यके मानर् मृत्य ुसे डरता ह ै।260
2. मृत्यिुांड कारार्ास से र्भन्न पिस्थान पर ह ै। िोनों में अांतर गुणागुण का ह,ै केर्ल मात्रा का नहीं ।
3. आयोग द्वारा परामशि र्कए गए र्र्शेषज्ञों का, र्िनके अांतगित राज्य सरकारें, न्यायाधीश, सांसि ्सिस्य, राज््य र्र्धान
मांडल के सिस्य, परु्लस अर्धकारी और अर्धर्क्ता थे, यह र्र्चार था र्क ‘मृत्यिुांड का भयपरर्तकारी उद्दशे्य भारत में काफी
मात्रा में प्राप्त कर र्लया गया ह ै।’261
4. क्या िांड के अन्य रूपों को मृत्यिुांड का लाभ प्राप्त ह,ै यह सांिहे का र्र्षय ह ै।
5. ‘अन्य िशेों के आांकडे़ इस र्र्षय पर अपूणि हैं । यर्ि उनके बारे में यह नहीं माना िाता ह ैर्क उन्होंन ेभयपरर्तकारी प्रभार्
को सार्बत र्कया ह,ै तो उनके बारे में यह भी नहीं माना िा सकता र्क उन्होंन ेअांर्तम रूप से इसे सार्बत नहीं र्कया ह ै।’262
6. यह कहने के र्लए र्क मृत्यिुांड भयपरर्तकारी के रूप में कायि करता ह ै‘ पयािप्त राय’ ह ै।263
4.3.3 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य264 में उच्चतम न्यायालय ने कहा र्क र्र्श्र् के अर्धकाांश िशेों में, भारत सर्हत, िनसांख्या का
एक बड़ा भाग, प्रर्सद्ध िांडार्िष्टों, न्यायाधीशों, न्यायर्र्िों, र्र्धायकों और अन्य र्र्द्वान व्यक्र्तयों सर्हत’ अभी तक र्र्श्र्ास करता ह ैर्क
257 अनेस्ट हाग, र्ि अलटीमेट पर्नशमेंट – ए र्डफें स, 99 हार्िडि ला ररर्र्व्यू 1662, 1666 (1986)
258 अनेस्ट हाग, र्ि अलटीमेट पर्नशमेंट – ए र्डफें स, 99 हार्िडि ला ररर्र्व्यू 1662, 1666 (1986)
259 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 370 पर ।
260 हुड एांड होएले, तकि ितेे हैं र्क यह सांभर् ह ै र्क कुछ व्यक्र्त फाांसी के डर के कारण हत्या करने से र्र्रत रह,े र्कन्तु र्ह इस र्नष्कषि को र्नकालने के र्लए
अपयािप्त आधार ह ैर्क मतृ्युिांड का बना रहना व्यक्र्तयों को हत्या करने से भयोपरत करता ह,ै िेर्खए:रोिर हुड और केरोर्लन होएले, भयोपरता का भ्रम, मृत्युिांड से
िरू िाने में । तकि , रुझान और दृष्र्टकोण,67 (सांयुक्त राष्ट्र सांघ, मानर् अर्धकार आयोग, 2014) । 261 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 370 पर । 262 भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 370 पर । 263 इस प्रर्तपािना के र्लए आयोग अपनी प्रश्नार्ली के र्लए प्राप्त उत्तरों और सर पैर्ट्रक स्पेंस द्वारा हाउस आफ कामन्स में, उनके भारत में अनुभर्ों के आधार पर,
र्िए गए कथन को उद्धतृ करता ह ै। 264 (1980) 2 एससीसी 684 ।
57
मृत्यिुांड आिीर्न कारार्ास से अर्धक भयपरतता का सृिन करता ह ै।265 न्यायालय ने ऐसे बहुत से मामलों को िखेा ह,ै िहाां उसने
मृत्यिुांड के भयपरर्तकारी मूल्य को मान्यता प्रिान की थी ।266
4.3.4 बचन र्सांह के पश्चात् उच्चतम न्यायालय ने भयपरतता का मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्लए एक न्यायोर्चत्य के रूप में
उपयोग र्कया ह ै। उिाहरण के र्लए महशे बनाम मध्य प्रिशे राज््य267 में मृत्य ुका िांडािशे अर्धरोर्पत करते हुए न्यायालय ने यह िखेा र्क
‘(र्क सामान्य मनषु्य सधुारात्मक र्र्र्शष्ट शब्िार्ली से भयपरतता की भाषा अर्धक समझता ह ैऔर उसकी प्रशांसा करता ह ै ।268
िासबुा भरत र्सांह गोर्र्ांि बनाम गुिरात राज््य269 में न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘समाि का सांरक्षण और अपराधी को भयपरत
करना र्र्र्ध का स्पष्ट उद्दशे्य ह ै ।270 तथार्प ऐसे अन्य मामल ेहैं िहाां न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया ह ै र्क भयपरतता मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत करन ेके र्लए प्राथर्मक न्यायोर्चत्य नहीं हैं271 और उनहोंन ेभयपरतता की कुशलता पर सांिहे र्कया ह ै।272
(i) मृत्युदडं की भयपरतता के मूल्य पर आनुभववक साक्ष्य
4.3.5 उन पद्धर्तयों में से एक र्िसके द्वारा भयपरतता के तकि की कुशलता का परीक्षण र्कया िाता ह,ै आनुभर्र्क रूप से यह
स्थार्पत करना ह ै र्क मृत्यिुांड का भयपरर्तकारी प्रभार् ह ै । बहुत र्षों के अनसुांधान और साांख्र्यकीर्र्िों, व्यर्सार्ययों और
र्सद्धाांतर्ार्ियों के बीच र्र्चार-र्र्मशि के पश्चात् एक र्र्श्र् व्यापी सहमर्त अर्प्रकट हुई ह ैर्क यह सझुार् िनेे के र्लए कोई साक्ष्य नहीं
ह ैर्क मृत्यिुांड अपन ेर्र्कल्प- आिीर्न कारार्ास-से अर्धक भयपरर्तकारी प्रभार् रखता ह ै।
4.3.6 भयपरतता की कुशलता पर र्र्चार-र्र्मशि ने र्हिाब अहलररच द्वारा र्कए गए अध्ययन के साथ, िो 1975 में प्रकार्शत
र्कया था, र्िसमें अहलररच ने हत्यारों को फाांसी र्िए िाने का ‘अर्द्वतीय भयपरर्तकारी प्रभार्’ पाया था, गर्त पकड़ ली ।273 इस
अध्ययन ने िार्ा र्कया र्क प्रत्यके फाांसी ‘8 र्निोष िीर्न’ तक बचाती ह ै।274 भारत के उच्चतम न्यायालय ने बचन र्सांह में अहलररच
के अनसुांधान को उद्धत र्कया और उसे व्यापक मूल्य र्िया ।275 तथार्प, पश्चातर्ती अहलररच की प्रद्धर्त और उपधारणाओां में कई
265 (1980) 2 एससीसी 684, 713 ।
266 न्यायालय पारस राम बनाम पांिाब राज््य, (1981) 2 एससीसी 508, िगमोहन बनाम राज््य एआईआर 1973 एससी 947, एर्डगा अन्नम्मा बनाम
आांध्र प्रिेश राज््य एआईआर 1974 एससी 799, र्शर् मोहन र्सांह बनाम राज््य एआईआर 1977 एससी 949, चालसि सोभराि बनाम अधीक्षक, कें िीय
कारागार, र्तहाड़, नई र्िल्ली, 1978 एआईआर 1514 के प्रर्त र्निशे करता ह ै।
267 (1987) 3 एससीसी 80 ।
268 महशे बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (1987) 3 एससीसी 80, 82 । यह भी िरे्खए : सेर्क पेरुमल बनाम तर्मनाडु, (1991) 3 एससीसी 471, 480,
अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 667, 675, मोहन अन्ना छार्न बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2008) 7 एससीसी 561,
574 ।
269 (1994) 4 एससीसी 353 ।
270 िशबुा भारतर्सांह गोर्हल बनाम गुिरात राज््य, (1994) 4 एससीसी 353, 360 । यह भी िरे्खए : पर्नबेन बनाम गुिरात राज््य, (1992) 2
एससीसी 474, 483, बी.कुमार बनाम पुर्लस र्नरीक्षक, (2015) 2 एससीसी 346, 354, गयासदु्दीन खान बनाम र्बहार राज््य,(2003) 12 एससीसी
516, 525, पारस राम बनाम पांिाब राज््य, (1981) 2 एससीसी 508, 508 ।
271 िरे्खए, सुशील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, 343 ।
272 रर्र्न्ि र्त्रबांक छोटमल बनाम महाराष्ट्र राज््य, (1996) 4 एससीसी 148, 151 ।
273 इसकै एल्ररच, मतृ्युिांड का भयपरर्तकारी प्रभार् : िीर्न और मृत्य ुका एक प्रश्न, 65 एएम, ईसीओएन. आरईर्ी. 397 (1975)
274 इसकै एल्ररच, मतृ्युिांड का भयपरर्तकारी प्रभार् : िीर्न और मृत्य ुका एक प्रश्न, 65 एएम, ईसीओएन. आरईर्ी. 397 (1975) ।
275 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 648, 717-718 ।
58
कर्मयाां पायी गई थीं । उिाहरण के र्लए अहलररच के अध्ययन के एक शक्र्तशाली आलोचक ने प्रकट र्कया र्क यर्ि आांकडे़ ठीक छह
र्षों के, 1963-69 के, 43 र्षि (1922-1963) र्ाले बडे़ आांकड़ों के सेट से र्लए गए थे, तो भयपरतता का साक्ष्य पूणिरूप से
अदृश्य हो गया था ।276
4.3.7 अहलररच के अध्ययन और अन्य अध्ययनों का, र्िन्होंन ेभयपरतता को मृत्यिुांड से िोड़ा था, पनुर्र्िलोकन करन ेके र्लए
सांयकु्त राज््य में राष्ट्रीय र्जै्ञार्नक अकािमी द्वारा एक पनैल बनाया गया, र्िसके अध्यक्ष (नोर्ेल लारेट) लारेंस क्र्लयन थे । इस पनैल
ने, 1978 में प्रस्तुत की गई अपनी ररपोटि में र्नष्कषि र्नकाला र्क ‘उपलब्ध अध्ययन मृत्यिुांड के भयपरर्तकारी प्रभार् पर कोई लाभप्रि
साक्ष्य नहीं ितेा ह’ै और मृत्यिुांड की मांिूरी के भयपरर्तकारी प्रभार्ों पर अनसुांधान से ऐसे पररणाम र्नकलन ेकी सांभार्ना नहीं ह ैिो नीर्त
बनाने र्ालों पर अर्धक प्रभार् रखेंगे या र्िन्हें रखना चार्हए ।277
4. 3. 8 डोनोहू और बोल्फसि, इन अध्ययनों के, िो िार्ा करते हैं र्क मृत्यिुांड का भयपरर्तकारी प्रभार् होता ह,ै िोरिार आलोचक हैं
।278 उन्होंन ेररपोटि र्कया र्क सांयकु्त राज््य और कनाडा में मानर् र्ध िरें (साांस्कृर्तक रूप से और सामार्िक-आर्थिक रूप से समान
के्षत्रों में) र्सतुत: चेनबद्ध िसैी हो गई थीं, िबर्क मृत्यिुांड के प्रर्त दृष्र्टकोणों में 1950 से तेिी से मतभेि हो गया था । समान रूप से
सांयकु्त राज््य के भीतर सभी मृत्यिुांड िने ेर्ाले और मृत्यिुांड न िने ेर्ाले राज््यों की मानर् र्ध िरों में (1960 और 2000 के बीच)
गर्त र्स्तुत: समान ही पायी गई थी ।279 इस प्रकार उन्होंने र्नष्कषि र्नकाला र्क समय और स्थान को दृष्र्ट से की गई शुद्ध मानर् र्ध
तुलनाओां में भयपरतता का साक्ष्य पाना कर्ठन ह ै।
4.3.9 डोनोहू और बोल्फसि ने यह भी पाया र्क भयपरतता के र्लए र्र्द्यमान साक्ष्य आश्चयििनक रूप से कमिोर ह ैऔर र्र्र्निशेों में
छोटे पररर्तिन तक नाटकीय रूप से र्भन्न पररणाम ितेे हैं.......हमारे प्राक्कलन इस बारे में र्क मृत्यिुांड का कोई भयपरर्तकारी प्रभार् होता
ह,ै न केर्ल ‘ यकु्र्तयकु्त सांिहे का बर्लक गहरी अर्नश्र्चतता का सझुार् ितेे हैं.....................’हम र्नराशार्ािी हैं र्क र्र्द्यमान आांकडे़
इस अर्नश्र्चता का समाधान र्नकाल सकते हैं ।’ 280 (इस पर िोर र्िया गया)
4.3.10 र्र्द्यमान सार्हत्य के समरूप व्यापक पनुर्र्िलोकन में सांयकु्त राज््य में राष्ट्रीय अनसुांधान पररषि ्ने 2012 में प्रकार्शत एक
ररपोटि में र्नष्कषि र्नकाला र्क’ मानर् र्ध पर मृत्यिुांड के प्रभार् पर आि तक का अनसुांधान इस बारे में सूचना िने ेर्ाला नहीं ह ैर्क क्या
मृत्यिुांड मानर् र्ध की िरों को घटाता ह,ै बढाता ह ैया उसपर कोई प्रभार् नहीं रखता ह ै। अत: यह सर्मर्त र्सफाररश करती ह ैर्क इन
276 पीटर पेसेल एांड िॉन टेलर, मतृ्युिांड का भयपरर्तकारी प्रभार् :एक िसूरा दृष्र्टकोण 67 एएम ईसीओएन.आरइर्ी. 445(1977)
277 लारेंस आरक्लीन, ब्रायन फोस्ट एांड र्र्क्टर र्फलाटो, मतृ्युिांड का भयपरर्तकारी प्रभार्, प्राक्कलनों का र्नधािरण, एल्फे्रड ग्लमू्सटेनमे, िेर्िन कोहने एांड डेर्नयल
नर्गन (ईडीएस) भयपरतता और असमथिता : अपराध िरों पर आपरार्धक मांिरूी के प्रभार् का प्राक्कलन, राष्ट्रीय र्र्ज्ञान अकािमी, र्ार्शांगटन डीसी (1978) ।
यह भी िरे्खए :आईएस नर्गन एांड िोन र्ी टेपर (ईडीएस), भयपरतता और मतृ्युिांड, भयपरतता और मृत्युिांड सांबांधी सर्मर्त (र्र्र्ध और न्याय सांबांधी सर्मर्त)
राष्ट्रीय अनुसांधान पररषि ्(2012) ।
278 िोन डोनाहु एांड िस्र्टन र्ोल्फसि, मतृ्युिांड सांबांधी र्र्चार-र्र्मशि में आनुभर्र्क साक्ष्य के उपयोग और िरुुपयोग, 58 स्टेन एल. आरईर्ी. 791 (2005),
यह भी िरे्खए, डेर्नयल एस नर्गन एांड िोन र्ी पेपर (ईबीएस), भयोपरतता और मृत्युिांड : भयोपरतता और मतृ्युिांड सांबांधी सर्मर्त । (र्र्र्ध और न्याय सांबांधी
सर्मर्त), राष्ट्रीय अनुसांधान पररषि ्(2012) ।
279 िोन डोनाहु एांड िस्र्टन र्ोल्फसि, मतृ्युिांड सांबांधी र्र्चार-र्र्मशि में आनुभर्र्क साक्ष्य के उपयोग और िरुुपयोग, 58 स्टेन एल. आरईर्ी. 791 (2005),
यह भी िरे्खए, डेर्नयल एस नर्गन एांड िोन र्ी पेपर (ईबीएस), भयोपरतता और मतृ्युिांड, भयोपरतता और मृत्युिांड सांबांधी सर्मर्त । (र्र्र्ध और न्याय सांबांधी
सर्मर्त), राष्ट्रीय अनुसांधान पररषि ्(2012) ।
280 िोन डोनाहु एांड िस्र्टन र्ोल्फसि, आनुभर्र्क साक्ष्य के उपयोग और िरुुपयोग, मतृ्युिांड सांबांधी र्र्चार-र्र्मशि, 58 स्टेन एल. आरईर्ी. 791, 794 ।
59
अध्ययनों का मानर् र्ध पर मृत्यिुांड के प्रभार् के बारे में र्नणियों की अपेक्षा करने र्ाले र्र्चार-र्र्मशों को सूर्चत करन ेके र्लए प्रयोग
नहीं र्कया िाना चार्हए ।281 (िोर र्िया गया)
4.3.11 इस प्रकार र्र्चार-र्र्मशि 21र्ीं सिी के पहल ेिशक में र्नकाले गए र्नष्कषों के साथ र्हीं आ गया ह,ै िहाां से प्रारांभ हुआ
था क्योंर्क, र्नष्कषि र्ही हैं िो 1951 में यूके रायल कमीशन आन र्ि डेथ पेनाल्टी द्वारा र्नकाले गए थे, िब उसने कहा :
साधारण र्नष्कषि, र्िस पर हम पहुांचे हैं यह ह ैर्क ऐसे आांकड़ों में, र्िनकी हमन ेपरीक्षा की ह ैकोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं ह ैर्क
मृत्यिुांड के समाप्त र्कए िाने ने मानर् र्ध की िर में र्ृर्द्ध की ह ैया यह र्क उसके पनु: प्रारांभ र्कए िाने ने उसमें कमी की ह ै
।282 (िोर र्िया गया)
4.3.12 इस दृष्र्टकोण का सांयकु्त राष्ट्र(यू एन) द्वारा भी समथिन र्कया गया ह ै र्िसने लगातर यह माना ह ै । 2008, 2010,
2013 और 2015 के मृत्यिुांड के उपयोग पर अर्धस्थगन सांबांधी सांकल्पों में र्क भयपरतता और मृत्यिुांड पर कोई र्नश्चायक साक्ष्य
नहीं ह ै।283 आगे सांयकु्त राष्ट्र सांघ ने इन ररपोटों में, िो हाल ही में िैसे 2014 में प्रकार्शत की गई हैं, यह िखेा ह ैर्क भयोपरतता के
र्कसी साक्ष्य के बारे में उसके र्र्द्यमान होन ेकी उपधारणा नहीं की िा सकती ह ै।284 सांयकु्त राष्ट्र ने यह भी िखेा ह ैर्क भयपरतता ‘
भ्रम’ से अर्धक कुछ नहीं ह ै।285
4.3.13 आगे िर्क्षण अफ्रीका के सांर्धैार्नक न्यायालय ने भयपरर्तकारी के तकि पर र्नणिय ितेे हुए स्टेस र्सिस मकै्र्ान्यान े एांड
मछूनू286 में यह कहा :
यह एटानी िनरल द्वारा स्र्ीकार र्कया गया था र्क भयपरर्तकाररता मृत्यिुांडािशे सांबांधी सार्हत्य में बहुत र्र्र्ािास्पि मदु्दा ह ै।
उन्होंन ेतकि र्िया र्क यह सामान्य समझ ह ैर्क अत्यार्धक डरार्ना िांड सबसे अर्धक भयपरर्तकारी होगा, र्कन्तु यह स्र्ीकार
र्कया र्क इस बात का कोई सबूत नहीं ह ै र्क मृत्यिुांडािशे र्ास्तर् में लांबी अर्र्ध के आिीर्न कारार्ास से बड़ा
भयपरर्तकारी ह ै। ........’ र्कसी िांड के बारे में, िो इतना चरम रूप का और इतना अप्रर्तसांहरणीय ह ैिसेै मृत्यु, इस बारे में
पररकल्पना के आधार पर दृढतापूर्िक यह नहीं कहा िा सकता र्क उसका क्या भयपरर्तकारक प्रभार् होगा ।287
4.3.14 उच्चतम न्यायालय ने बचन र्सांह में भयपरर्तकाररता और मृत्यिुांड पर आकड़ों के अनसुार र्कए गए अध्ययनों को ध्यान में
रखते हुए कहा: ‘ हम यह कह सकते हैं र्क मृत्यिुांड र्ास्तर् में व्यर्हार में भयपरर्तकारक के रूप में कायि करता ह ैया नहीं, यह आांकड़ों
के अनसुार र्कसी भी तरफ सार्बत नहीं र्कया िा सकता, क्योंर्क इस बारे में आांकड़ों का सांग्रह करना र्क र्कतने सांभार्र्त हत्यारे, हत्या
के र्लए मृत्यिुांड के र्र्द्यमान होने के कारण, हत्या करन ेसे भयभीत हुए थे, यर्ि पूणितया असांभर् नहीं तो कर्ठन अर्श्य ह ै। भयभीत हुए
281 राष्ट्रीय र्र्ज्ञान अकािमी, भयोपरतता और मृत्युिांड, 102 (डेर्नयल एस. नर्गन, 2012) । 282 िरे्खए, मतृ्युिांड पर यूके रायल कमीशन की ररपोटि ।
283 िरे्खए, मृत्युिांड के उपयोग पर अर्धस्थगन सांबांधी सांकल्प ; सांकल्प 65/206(2010) और सांकल्प 67/176 (2013) और सांकल्प
/69/186 (2015) । यह िखेना महत्र्पूणि ह ैर्क भारत इन सांकल्पों का हस्ताक्षरकताि नही ह ै।
284 मतृ्युिांड से िरू िाते हुए । िर्क्षण पूर्ि एर्शया से पाठ, राष्ट्र सांघ मानर् अर्धकार आयोग, 10 (2014)
285 केरोर्लन होएले एांड रोिर हुड, मतृ्युिांड से िरू िाने में भयोपरतता का भ्रम : तकि , रुझान और दृष्र्टकोण, सांयुक्त राष्ट्र मानर् अर्धकार उच्चायुक्त का कायािलय,
74-83 (2014)
286 केस नां0 सीसीटी/3/94, िर्क्षण अफ्रीकी गणराज््य का सांर्ैधार्नक न्यायालय ।
287 स्टेस र्सिस मकै्र्ान्याने एांड मछूनू, केस नां0 सीसीटी/3/94, िर्क्षण अफ्रीकी गणराज््य का सांर्ैधार्नक न्यायालय ।
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सांभार्र्त हत्यारों के ऐसे आांकडे़ प्रकट करना कर्ठन ह,ै क्योंर्क र् ेउनके मस्र्तष्क के सबस ेभीतर के गुप्त स्थानों में र्छपे रहते हैं ।288 इस
प्रकार इस पर िोर िनेा, िसैा र्क उच्चतम न्यायालय द्वारा बचन र्सांह में कहा गया ह,ै महत्र्पूणि ह ै र्क िांडािशे िेन ेर्ाली नीर्त को
मृत्यिुांड के दृष्र्टगोचर भयपरर्तकारी प्रभार् के आनभुर्र्क र्र्श्लेषण के आधार पर, एक तरफ या िसूरी तरफ, ही प्रभार्र्त नहीं होना
चार्हए और उसके आधार पर र्र्र्नश्चय नहीं र्कया िाना चार्हए ।
(ii) भयोपरतता की िारणाए ं
4.3.15 भयोपरतता के कायि करन ेके र्लए, यह आर्श्यक ह ैर्क कर्तपय पूर्ि अपेक्षाओां को पूरा र्कया िाए । यर्ि इन पूर्ि अपेक्षाओां
में से कोई र्र्द्यमान नहीं ह ैया उनमें से कोई कमिोर ह ैतो भयोपरतता का र्र्चार समग्र रूप से असफल हो िाता ह ै। इन पूर्ि अपेक्षाओां
को मोटे तौर पर र्नम्नर्लर्खत रूप में प्रभार्शाली और स्पष्ट रूप से र्लखा िा सकता ह ै:289
(क) सांभार्र्त अपराधी यह िानते हैं र्क कौन से अपराध मृत्यिुांड के पात्र हैं ।
(ख) सांभार्र्त अपराधी अपराध करन ेके पूर्ि या करते समय लागत और लाभों का र्र्श्लेषण करते हैं और मृत्युिांड को
गांभीर और महत्र्पूणि लागत के रूप में मापते हैं ।
(ग) सांभार्र्त अपराधी इसे एक सांभर् पररणाम के रूप में िखेते हैं र्क उनहें मृत्यिुांड र्िया िाएगा,यर्ि र्ह अपराध करते
हैं ।
(घ) सांभार्र्त अपराधी खतरे के र्र्रुद्ध होते हैं न र्क खतरा चाहन ेर्ाले ।
(ड.) सांभार्र्त अपराधी लाभों से अर्धक लागत को महत्र् ितेे हैं और कायि न करन ेका चयन करते हैं ।
4.3.16 यर्ि ऊपर र्र्णित सभी अपेक्षाएां पूरी हो िाती हैं तो यह उपधारणा की िाती ह ै र्क सांभार्र्त अपराधी अपराध करन े से
भयभीत होगा ।
4.3.17 तथार्प र्र्शेषज्ञों ने इन उपधारणाओां में िो बड़ी भूलों को िखेा ह-ै िानकारी सांबांधी भूलें और यकु्र्तमूलक भूलें ।290
क. जानकारी संबंिी भूलें
4.3.18 िानकारी सांबांधी भूलें, इस र्र्चार के प्रर्त र्निशे करती हैं र्क अपराधी उस अपराध को लागू, िो र्े करन ेकी योिना बनाते
हैं, िांडों को नहीं िानते हैं । अत: र्े गांभीर िांड के द्वारा भयभीत होना अनभुर् नहीं करते हैं । तथार्प, भयोपरतता यह उपधारणा करती ह ै
र्क प्रत्यके व्यक्र्त, यर्ि र्ह कोई अपराध करता ह,ै तो उसको लागू र्र्र्धक िांडों को िानता ह ै। यह िर्शित करने के र्लए काफी साक्ष्य ह ै
र्क सामान्य िनता और सांभार्र्त अपराधी उन िांडों की कम या कोई िानकारी नहीं रखते, िो उन्हें र्िए िा सकते हैं ।291 िानकारी
सांबांधी भूल के र्र्चार को र्कां ग द्वारा उर्चत रूप से सांके्षप में व्यक्त र्कया गया ह,ै ‘ र्र्र्ध को भांग करन ेर्ाले र्र्र्ध की पसु्तकों में र्र्र्हत
िांड की तरफ नहीं िखेते हैं : र्े योिना बनाते हैं और यर्ि सोचते भी हैं तो यह र्क पकडे़ िाने से कैसे बचा िाए ।292
288 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 101 पर । 289 पाल रार्बांसन एांड िोन डाले, क्या आपरार्धक र्र्र्ध भयोपरत करती ह,ै 24, आक्सफोडि र्र्र्धक अध्ययन िरनल, 173,175 (2004) । 290 पाल रार्बांसन एांड िोन डाले, क्या आपरार्धक र्र्र्ध भयोपरत करती ह,ै 24, आक्सफोडि र्र्र्धक अध्ययन िरनल, 173 (2004) । 291 डेर्र्ड एांडरसन, भयोपरतता और कल्पना, अमरीकन ला एांड ईसीओएन. आरईर्ी.295 (2002)
292 डेर्र्ड एांडरसन, भयोपरतता और कल्पना, अमरीकन ला एांड ईसीओएन. आरईर्ी.295 (2002)
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ख. युक्वतसंगतता संबंिी भूलें
4.3.19 भयोपरतता र्सद्धाांत की एक बड़ी उपधारणा यह ह ैर्क सांभार्र्त अपराधी यकु्र्तसांगत र्र्र्नश्चय करने र्ाले होते हैं । तथार्प,
एक बड़ी सांख्या में अपराध उन्माि या गुस्से की अर्स्था में र्कए िाते हैं या िब अपराधी निैार्नक रूप से र्नराश होता ह ैया र्ह ऐसी
कठोर भार्नाओां, िसेै प्रर्तशोध या सांभ्राांर्त द्वारा प्रेररत होता ह ै ।293 ऐसी पररस्र्थर्तयों में, िसैी ये हैं, भयोपरतता से कायि करन ेकी
सांभार्ना नहीं होती ह ैक्योंर्क कायि करन ेर्ाले के द्वारा इस बात पर र्क उस पर पश्चातर्ती िांड अर्धरोर्पत र्कए िा सकते हैं, सम्यक्
ध्यान र्िए िाने की या सरसरे रूप से भी र्र्चार र्कए िाने की सांभार्ना नहीं होती ह ै; क्योंर्क र्र्चारों का कें िर्बांि ुउसके मस्र्तष्क में
आने र्ाली भार्नाएां होती हैं ।294
4.3.20 ऊपर र्कया गया र्र्चार र्र्मशि यह सांकेत नहीं ितेाह ैर्क भयोपरतता एक भ्रम ह ैऔर आपरार्धक न्याय प्रणाली भयोपरतता
पर कोई प्रभार् डाल ेर्बना, पूणि रूप से सभी िांडों से छुटकारा पर सकती ह ै। तथार्प, िसैा र्क र्र्द्वानों द्वारा प्रकट र्कया गया ह ैर्क यह
तथ्य की एक आपरार्धक न्याय प्रणाली र्र्द्यमान ह,ै िो आपरार्धक आचरण को िांर्डत करती ह,ै स्र्यां में भयपरर्तकारी ह ै ।295
पररणामस्र्रूप यह आर्श्यक नहीं ह ै र्क िांड स्र्यां में कठोर या अत्यर्धक हो । र्सद्धाांतर्ािी तकि ितेे हैं र्क आपधाररक र्र्र्ध में यह
उपधारणा र्क कठोरतर िांड हो, तो अपराध को र्कए िाने की सांभार्ना कम होती ह,ै सही नहीं ह ै।296
(iii) आतंकवाद का मामला
4.3.21 एक महत्र्पूणि प्रश्न, र्िसका आयोग द्वारा सामना र्कया गया, यह था र्क क्या मृत्यिुांड आतांकर्ाि सांबांधी अपराधों के सांबांध
में बनाए रखना चार्हए, चाह ेउस ेसभी अपराधों के र्लए समाप्त कर र्िया िाए । इस प्रर्तपालना के र्लए एक बड़ा कारण यह ह ै र्क
मृत्यिुांड, नागररकों की सरुक्षा और राष्ट्र की समग्रता बनाए रखन ेके र्लए, भर्र्ष्य में समान अपराधों के र्लए भय उत्पन्न करके एक
महत्र्पूणि औिार के रूप में कायि करता ह ै। चूांर्क आतांकर्ाि सांबांधी अपराध लागू उद्दशे्यों के अनसुार को मामूली अपराधों से बहुत
र्भन्न होते हैं, अत: भयोपरतता की धारणाओां पर यह अर्भर्नश्र्चत करने के र्लए र्क क्या आतांकर्ाि र्र्रोधी अपराधों के र्लए शायि
मृत्यिुांड को बनाए रखना र्ाांछनीय ह,ै पनु: र्र्चार र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै।
4.3.22 बहुत से व्यक्र्तयों द्वारा यह दृष्र्टकोण अपनाया गया ह ैर्क मृत्यिुांड से आतांकर्ार्ियों को भयभीत करन ेकी सांभार्ना नहीं ह,ै
क्योंर्क बहुत से आतांकर्ािी आत्मघाती र्मशन पर होते हैं (र्े अपन ेउद्दशे्य के र्लए अपना िीर्न अर्पित करन े के र्लए तैयार रहते
हैं)’,297 और अन्य ऐसे कारण भी हैं र्िससे र्क र्ास्तर् में मृत्यिुांड आतांकर्ािी हमलों में र्ृर्द्ध कर सकता ह ै । मृत्युिांड की बहुधा
293 पाल रार्बांसन एांड िोन डाले, क्या आपरार्धक र्र्र्ध भयोपरत करती ह,ै 24, आक्सफोडि र्र्र्धक अध्ययन िरनल, 173, 174 (2004)
294 पाल रार्बांसन एांड िोन डाले, क्या आपरार्धक र्र्र्ध भयोपरत करती ह,ै 24, आक्सफोडि र्र्र्धक अध्ययन िरनल, 173 (2004)
295 पाल रार्बांसन एांड िोन डाले, क्या आपरार्धक र्र्र्ध भयोपरत करती ह,ै 24, आक्सफोडि र्र्र्धक अध्ययन िरनल, 173 (2004)
296 पाल रार्बांसन एांड िोन डाले, क्या आपरार्धक र्र्र्ध भयोपरत करती ह,ै 24, आक्सफोडि र्र्र्धक अध्ययन िरनल, 173, 174 (2004)
297 थामस माइकल मैकडोनल । मतृ्युिांड ‘आतांकर्ाि के र्र्रुद्ध युद्ध ? के र्लए बाधा, 37 वैंड. जे. ट्रांसनेटल एल. 353, 390 (2004) ।
राष्ट्रपर्त िािि डब्लयू बशु की 2002 राष्ट्रीय सरुक्षा नीर्त, र्िसे मोटे रूप से 9/11 के एक र्षि पश्चात् प्रकार्शत र्कया गया था, कहती ह ैर्क ‘भयपरतता की
पारम्पररक सांकल्पनाएां ऐसे आतांकर्ािी शत्र ुके र्र्रुद्ध कायि नहीं करेंगी र्िसकी प्रकट युक्र्तयाां र्र्ध्र्ांश करती हैं और र्निोषों को लक्ष्य बनाती हैं, र्िनके तथाकर्थत
र्सपाही मतृ्यु में शहाित चाहते हैं और र्िनका अत्यर्धक प्रभार्शाली सांरक्षण राष्ट्रहीनता ह.ै...............भयपरतता – राष्ट्रों के र्र्रुद्ध भारी प्रर्त-र्हांसा का र्ायिा -
से प्रर्तरक्षा के र्लए र्बना र्कसी राष्ट्र या नागररकों के छायात्मक आतांकर्ािी तांत्र के र्र्रुद्ध कुछ अर्भपे्रत नहीं हैं, रे्स्ट पर्ाइांट, न्यूयाकि में सांयुक्त राज््य की सरै्नक
अकािमी में प्रारांर्भक सांबोधन, 38 वीकली सीओएमपी., प्रेस डीओसी. 944, 946 (जनू 1, 2012) ; बुश के 2006 के सांबोधन में भी
उसी र्बांि ुपर सांबोधन र्कया गया था ‘आतांकर्ािी शुत्र, र्िनका हम आि सामना करते हैं, गुफाओ ां में और छाया में छुप िाते हैं और र्हाां से स्र्तांत्रा राष्ट्रों पर
62
आतांकर्ार्ियों द्वारा याचना की िाती ह ै। क्योंर्क उन्हें फाांसी र्िए िाने पर, उनके रािनरै्तक उद्दशे्य का फाांसी से सहयुक्त व्यक्र्तयों द्वारा
नाटकीयता से समथिन र्कया िाता ह2ै98 और उन्हें इससे केर्ल िनता का ध्यान ही प्राप्त नहीं होता ह ैर्कनत ुबहुधा उन्हें उन सांगठनों और
राष्ट्रों का समथिन भी र्मल िाता ह,ै िो मृत्यिुांड का र्र्रोध करते हैं । इांडोनेर्शया के बाली बाम्बर की अपनी िोषर्सर्द्ध और फाांसी लगन े
के समाचार पर यह प्रर्तर्िया थी र्क र्ह प्रसन्न हो रहा था और अपन ेआप को शाबासी ि ेरहा था मानो उसने कोई पुरस्कार िीता हो
।299
4.3.23 िस्र्सका इस्टनि ने, िो आतांकर्ाि के र्र्षय पर पहल ेसे ही प्रर्तष्र्ठत र्र्शेषज्ञ ह,ै यह मत व्यक्त र्कया ह ै:
कोई व्यक्र्त, साधारणतया मृत्यिुांड की प्रभार्काररता के बारे में तकि ि ेसकता ह ै । र्कन्तु िब आतांकर्ाि की बात सामने
आती ह ै तो राष्ट्रीय सरुक्षा सांबांधी र्चांताएां सर्ोपरर होनी चार्हए । आतांकर्ार्ियों का, र्र्शेष रूप से अर्यस्क सर्िय
व्यक्र्तयों को फाांसी िने ेका ऐसा प्रभार् होता ह ैिो प्रर्तशोध या न्याय से परे होता ह ै । फाांसी र्र्रोर्धयों के हाथों का
र्खलर्ाड़ होती ह ै । हम र्र्रोर्धयों को शहीि बना ितेे हैं, प्रर्तशोधात्मक आघातों को र्नमांर्त्रत करते हैं और शत्रओु ां के
िनसांपकों और र्नर्ध िटुाने र्ाली यकु्र्तयों में र्ृर्द्ध करते हैं ।300
4.3.24 समान रूप से बोस्टन के लांबी िौड़ र्ाले बाम्बर के र्र्र्नर्ििष्ट मामलें पर र्टप्पण करते हुए डिोखर टसानेर्, एलेन डसोर्र्टुि
र्लखते हैं :
टसानेर् के र्र्रुद्ध मृत्यिुांड की माांग करना और उस ेअर्धरोर्पत करना, यर्ि उस ेर्सद्धिोषी ठहराया िाना ह ैतो र्ह उस ेशहीि
बना िगेा । उसका चेहरा आत्मघाती बम फें कन ेर्ालों के र्लए भती करन ेसे सांबांर्धत पोसटरों पर र्िखाई पडे़गा । उसको फाांसी
र्िए िाने की र्िशा में कम होते र्िन आतांकर्ाि के अन्य कायों को अर्श्य प्रेररत कर सकते हैं । ऐसे व्यक्र्त , िो शहाित के
माध्यम से स्र्गि चाहते हैं, उस ेऐसी भूर्मका के र्लए अपने आिशि के रूप में िखेेंगे………. ।301
4.3.25 िेरेमी बेंथम, िो भयोपरतता के र्सद्धाांत के प्रणेता हैं, के प्रर्त र्निशे करना भी उपयोगी होगा । ‘ र्र्िोर्हयों के सांिभि में’ या
’र्र्िोह’ के मामल ेमें (र्िसे मोटे तौर से राष्ट्र-र्र्रोधी या आतांकर्ार्ियों के समान समझा िा सकता ह)ै बेंथम ने कहा र्क उन्हें फाांसी
िनेा अन्य सांभार्र्त र्र्रोर्धयों को भयभीत नहीं करेगा र्कन्तु र्ासतर् में फाांसी र्िए गए व्यक्र्त को शहीि बना िगेा, र्िसकी मृत्य ु
सांभार्र्त अनगुार्मयों को प्रेररत करेगी, न र्क भयभीत करेगी ।302
4.3.26 यद्यर्प आतांकर्ाि के साथ अन्य अपराध के रूप में व्यर्हार र्कए िाने के र्लए कोई र्र्र्धपूणि िांड सांबांधी न्यायोर्चत्य नहीं हैं,
तथार्प इस सांबांध में बहुधा र्चांता की िाती ह ै र्क आतांकर्ाि सांबांधी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड को समाप्त करन ेसे राष्ट्रीय सरुक्षा पर
प्रभार् पडे़गा । इस र्चांता के कारण र्र्र्ध बनाने र्ालों में गहरा मतभेि ह ै। र्र्र्ध बनाने र्ालों द्वारा उठायी गई र्चांताओां को ध्यान में रखते
हुए आयोग, आतांकर्ाि सांबांधी अपराधों से र्भन्न सभी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी र्िशा में प्रथम किम उठाए िाने के
र्लए और लांबी प्रतीक्षा करन ेका कोई कारण नहीं िखेता ह ै।
आिमण करने के र्लए प्रकट होते हैं आतांकर्ार्ियों के पास सांरक्षा करने के र्लए कोई सीमा या प्रर्तरक्षा के र्लए कोई रािधानी नहीं ह ै। उन्हें भयपरत नहीं र्कया िा
सकता – र्कन्तु रे् हार िाएांगे । रे्स्ट पर्ाइांट, न्यूयाकि में सांयुक्त राज््य की सरै्नक अकािमी में प्रारांर्भक सांबोधन, 42, वीकली सीओएमपी., प्रेस
डीओसी. 1037, 1039 ( मई 27, 2006) । 298 थामस माइकल मकैडोनल । मतृ्युिांड ‘आतांकर्ाि के र्र्रुद्ध युद्ध ? के र्लए बाधा, 37 र्ैंड. िे. ट्राांसनेटल एल. 353, 2004, 401 । 299 िेन परलेि, न्यायालय बाली के र्र्स्फोटकताि को मृत्युिांड िनेे का र्र्र्नश्चय करता ह,ै न्यूयाकि टाईम्स, अगस्त, 8 2003 ।
300 िेर्सका स्टनि, हमारी अपनी िोर्खम पर आतांकर्ार्ियों को फाांसी , न्यूयाकि टाईम्स, 28 फरर्री, 2001 । 301 एलन डरशोर्र्ट्ि, र्डिोखर र्टसारनेर्, को मतृ्यु सांबांधी अपराध के र्लए भी मतृ्युिांड का सामना नहीं करना चार्हए, र्ि गार्िियन, 24 अप्रलै, 2013 302 एच.ए. र्बिायु बेंथम का यूटीर्लटेररयन र्िर्टक आफ र्ि डेथ पेनल्टी, 7 आपरार्धक र्र्र्ध और अपराध शास्त्र का िरनल,1033, 1046 (1983) ।
63
घ. असमथटता
4.4.1 असमथिता का र्सद्धाांत अपरार्धयों के साथ इस प्रकार व्यर्हार करन ेकी र्कालत करता ह ैर्क र्ह िोबारा अपराध करन ेकी
स्र्थर्त में न रहें ।303 इसका सामान्यत: पनुरार्ृत्र्त करन ेर्ाले अपरार्धयों, ‘खतरनाक अपरार्धयों’ और ‘पेशेर्र अपरार्धयों’304 पर
लांबे िांडािशे अर्धरोर्पत के र्लए न्यायोर्चत्य के रूप में प्रयोग र्कया िाता ह ै।305 मृत्यिुांडािशे असमथिता का सबस ेअर्धक चरम रूप
ह,ै क्योंर्क इसमें अपराधी का िीर्न यह सरु्नश्र्चत करन ेके र्लए ले लेना र्नर्हत होता ह ैर्क र्ह पनु: अपराध न करे । र्कसी व्यक्र्त को
असमथिता की यकु्र्तसांगतता का प्रयोग करते हुए, यर्ि यह अर्धाररत र्कया िाता ह ैर्क उसका अस्र्तत्र् समाि के र्लए अयकु्र्तयकु्त
भय काररत करेगा, मृत्य ुका िांडािशे र्िया िाता ह ै।306
4.4.2 असमथिता की यकु्र्तसांगतता का उपयोग करन ेमें समथि होने के र्लए यह आर्श्यक ह ैर्क िांडािशे िनेे र्ाला न्यायालय अपराधी
की ‘भयानकता’ का और इस सांभार्ना का र्क उस व्यक्र्त के पनु: अपराध र्कए िाने की सांभार्ना ह,ै र्नधािरण करता ह ै।
4.4.3 असमथिता के आधार पर र्कसी व्यक्र्त को फाांसी िने ेका प्राथर्मक उद्दशे्य उसके पूर्ि लक्षण यकु्त होन ेकी समस्या ह ै ।
सदै्धाांर्तकों ने तकि र्िया ह ैर्क इस प्रकार का पूर्ि कथन करन ेमें समथि होना र्स्तुत: असांभर् ह ैर्क र्सद्धिोषी व्यक्र्त के पनु: अपराध र्कए
िाने की सांभार्ना ह ै।307 र्कसी अपराध व्यसन के बारे में पूर्ि कथन करन ेका प्रयोग सिरै् उसमें कुछ अर्धक सम्र्मर्लत करेगा और
र्मथ्या सकारात्मकों बातों की करेगा ।308 पूर्ि कथन का ऐसा कायि स्र्यां एक मनमाना प्रयोग ह,ै िो मृत्यिुांड का अर्धरोपण करन ेमें पहल े
से ही र्र्द्यमान मनमानेपन को िोड़ता ह ै।309 आगे असमथिता में र्कसी ऐसी बात के र्लए, िो उसने नहीं की ह-ै अथाित र्कसी
ऐसी बात के र्लए, िो र्ह व्यक्र्त को भर्र्ष्य में कर सकता ह ैया नहीं कर सकता ह,ै कोई पररणाम, िो न्यायोर्चत्य नहीं हैं, गांभीर रूप से
र्कसी व्यक्र्त को िांड िनेा अांतर्िर्लत ह ै ।310 लॉग ने पूणि कुशलता से ‘खतरनाक’ व्यक्र्त को फाांसी न िकेर ‘भार्ी भयानकता के
खतरे’ के र्र्षय पर, सांके्षप में र्लख ह,ै िब र्ह कहता ह-ै ‘ यह र्कसी सर्तांत्र, यद्यर्प अपूणि प्रिातांत समाि में रहन ेका अपररहायि खतरा
होगा ।’311
303 एन्र्ियु एशर्थि, मृत्युिांडािशे और आपरार्धक न्याय, 80 ( चौथा सांस्करण 2005) 304 िरे्खए, र्िस्टी ए र्र्शेर, असमथिता और अपराध र्नयांत्रण : क्या उनको कारागार में रखने की नीर्त अपराध को कम करती ह ै? 4 िस्ट. क्यू513, 539
(1987) 305 िरे्खए, र्िस्टी ए र्र्शेर, असमथिता और अपराध र्नयांत्रण : क्या उनको कारागार में रखने की नीर्त अपराध को कम करती ह ै? 4 िस्ट. क्यू513, 539
(1987) 306 हार्े डी. एर्लस र्टप्पणी : सांर्ैधार्नक र्र्र्ध :मतृ्युिांड : 8र्ें सांशोधन की अपेक्षाओ ां को उसके न्यायोर्चत्य का समाधान करने के र्लए रखे गए िाशिर्नक
आधारों का आलोचक, 34 ओकला.एल. आरईर्ी. 567, 609 ।
307 सारा एफ. र्रबोफ, हाल्र्टांग र्ि सडेन र्डसेन्ट इनटू ब्रूटल्टी, कैसे केनेड र्सिस ल्यूर्सयाना अर्धक र्नबंर्धत मतृ्युिांड न्यायशास्त्र को प्रस्तुत करता ह,ै 14,
ल्यूइस एांड क्लाकि एल. आरईर्ी. 1601, 1639 (2010) ।
308 िेम्स आर. एक्कर, न्यूयाकि की प्रस्तार्र्त मृत्युिांड र्र्धान : सांर्ैधार्नक और नीर्त दृष्र्टकोण, 54, एएलबी.एल. आरईर्ी. 515, 572 (1989-
1990)
309 डोनाल्ड एल बेशेल, िोष (या भयपरतता) से क्या करना ह?ै मृत्युिांड सांस्कार और अनुकारी र्हांसा, 38, डब्ल्युएम.एांड मरैी एल. आरईर्ी. 487, 502
(1996) ।
310 34 ओकला.एल. आरईर्ी 567, 610 ।
311 62 यूएमकेसी एल. आरईर्ी 107, 170 (1993) ।
64
4.4.4 एक िसूरा तकि , िो असमथिता के आधार पर र्कसी व्यक्र्त को फाांसी िने ेके र्र्रुद्ध र्िया िा सकता ह,ै यह ह ैर्क इससे सधुार
की सांभार्ना पूणितया समाप्त हो िाएगी, िो र्क भारत में एक महत्र्पूणि िांड सांबांधी र्र्चारण ह ै।312
4.4.5 पहले से ही कारार्ास में रखे गए व्यक्र्तयों के मामलों में पनु: अपराध करन ेकी सांभार्ना ऐसी र्सथर्तयों तक पररसीर्मत ह ैिहाां
र्सद्धिोषी िसूरे र्सद्धिोषी को या िेल अर्धकाररयों को, िब र्े कारार्ास में हों, मारते हैं ।313 भारतीय सांिभि में आज्ञापक मृत्यिुांड को,
िो ऐसी स्र्थर्त के र्लए र्र्द्यमान था, मीठू बनाम पांिाब राज््य314 में असांर्धैार्नक ठहराया गया । िांडािशे िनेे र्ाले न्यायालय, ‘र्र्रल
मामलों में से र्र्रलतम’ के र्र्श्लेषण को यह अर्धाररत करन ेके र्लए लागू करना होगा र्क क्या मृत्य ुसमरु्चत िांडािशे ह ै। र्कसी व्यक्र्त
को, ऐसी स्र्थर्त में भी, भारत में केर्ल असमथिता के आधार पर फाांसी नहीं िी िा सकती ह ै।
4.4.6 मृत्यिुांड, िब उसका असमथिता के प्रयोिन के र्लए प्रयोग र्कया िाता ह3ै15 तो र्ह अत्यर्धक भारी िांड हो िाता ह,ै क्योंर्क
असमथिता का उद्दशे्य आिीर्न कारार्ास द्वारा उतना ही प्राप्त र्कया िा सकता ह,ै र्ितना र्क फाांसी िने ेके द्वारा प्राप्त होता ह ै।316
र्सद्धिोषी अपराधी, कारार्ास में होते हुए, पनु: अपराध करने का अर्सर नहीं पाता ह ै।317 अत: यह स्पष्ट ह ैर्क असमथिता को मृत्यिुांड
के र्लए न्यायोर्चत्य के रूप में प्रयोग नहीं र्कया िा सकता, र्कन्तु र्ह आिीर्न कारार्ास के र्लए र्र्र्धमान्य न्यायोर्चत्य हो सकता ह ै।
ड. िवतशोि
4.7.1 प्रर्तशोध का र्सद्धाांत र्कए गए अपराध पर और र्कसी व्यक्र्त के साथ न्यायोर्चत्य व्यर्हार पर, बिाय अपराध का र्नर्ारण
करन ेपर, ध्यान कें र्ित करता ह ै।318 यह इस बात पर िोर ितेा ह ैर्क िोष उन व्यक्र्तयों को िांड िकेर प्रभार्ी बनाया िाता ह,ै िो र्कसी
ऐसे िोषपूणि कायि के कारण, िो उन्होंन ेसाशय या इच्छापूर्िक र्कया ह,ै असखुि पररणाम के पात्र होते हैं ।319
4.7.2 प्रर्तशोध के िो कारण हैं – एक प्रर्तशोध को बिल ेके रूप में समझता ह ै। िसूरा कहता ह ैर्क प्रर्तशोध अपराधी के साथ कोई
समतुल्य कायि करन ेकी माांग नहीं करता ह,ै िसैा र्क ‘ आांख के र्लए आांख’ र्सद्धाांत (‘िपिण िांड’) द्वारा सझुार् र्िया गया ह ै। यह
अपराधी के चररत्र के र्लए िांड के मार्पत और समरु्चत स्तर की र्कालत करता ह ै।320
(i) बदले के रूप में िवतशोि
312 नीचे सधुार पर भाग िरे्खए ।
313 डोनाल्ड एल बेशेल, िोष (या भयपरतता) से क्या करना ह?ै मृत्युिांड सांस्कार और अनुकारी र्हांसा, 38, डब्ल्युएम.एांड मरैी एल. आरईर्ी. 487, 502
(1996) ।
314 (1983) 2 एससीसी 277 । उच्चतम न्यायालय ने पुन: अपराध करने र्ाले हत्या के र्सद्धिोर्षयों के सांबांध में सांयुक्त राष्ट्र के आांकड़ों को भी िखेा ह ै।
उसने कहा र्क यद्यर्प भारत में इस सांबांध में कोई अध्ययन नहीं हुआ ह ैर्कन्तु यह उपधारणा करना उर्चत होगा र्क हत्या के र्सद्धिोर्षयों द्वारा हत्या की घटनाएां
न्यूनतम हैं । िरे्खए : (1983) 2 एससीसी 277, 292 ।
315 14 ल्यूइस एांड क्लाकि एल. आरईर्ी. 1601, 1639 (2010) ।
316 38 डब्ल्युएम.एांड मैरी एल. आरईर्ी. 487, 502 (1996) । यह भी सांयुक्त राज््य के उच्चतम न्यायालय द्वारा फरमन र्सिस िार्ििया में व्यक्त र्कया
गया ह,ै 408 यू.एस. 238, 311(व्हाइट, िे. कां कररांग) ।
317 िरे्खए, फरमन र्सिस िार्ििया, 408 यू.एस. 238 (1972) ।
318 आर. र्ासेरस्ट्राम, न्याय और िांड में िांड के र्सद्धाांतों की कुछ समस्याएां, 189,(िे. सेडेरब्लूम एांड डब्ल्यू.ब्लीिेक ईडीएस., 1977) ।
319 मरैी एलेन गेल, प्रर्तशोध, िांड और मृत्यु, 18 यू.सी. डेर्र्स एल. आरईर्ी. 973,999-1000 (1985) ।
320 ससुनै एस्टोन एांड र्िस्टीन र्पपर, मतृ्युिांडािशे और िांड :न्याय के र्लए प्रश्न, 57 (2012) ।
65
4.7.3 बिल ेके र्लए प्रर्तशोध की सांकल्पना इस समझ पर आधाररत ह ैर्क पीर्ड़त के साथ अपराधी द्वारा की गई ‘नाहक बुराई’ के
अनरुूप अपराधी को र्िए िाने र्ाले िांड की मात्रा समान होनी चार्हए ।321 िसैा र्क पहल ेकहा गया ह ैर्क बहुधा उद्धत यकु्र्त- ‘आांख
के र्लए आांख’ इस दृष्र्टकोण का सांर्ध स्थल ह ै।322
4.7.4 उच्चतम न्यायालय ने प्रर्तशोध के दृष्र्टकोण पर आधाररत बिल ेका अननमुोिन र्कया ह ै । िीना बनाम भारत सांघ323 में
न्यायालय ने र्नयम बनाया र्क ‘िाांत के र्लए िाांत’ और ‘आांख के र्लए आांख’ र्सद्धाांत में अांतर्िर्लत प्रर्तशोध सभ्य न्यायशास्त्र की
स्कीम में कोई स्थान नहीं रखता ह’ै।324 अभी हाल में शत्रधुन चौहान बनाम भारत सांघ325 में उच्चतम न्यायालय ने र्नयम बनाया र्क
प्रर्तशोध का भारत में कोई सांर्धैार्नक मूलय नहीं ह ै।326 उसने अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्कसी अपराधी को सांर्र्धान के अधीन र्ास्तर्
में सांरक्षण प्राप्त ह ैऔर न्यायालय का यह कतिव्य ह ैर्क र्ह उसका परररक्षण और सांरक्षण करे।327 उसने आगे अर्भर्नधािररत र्कया र्क
ऐसे सांरक्षण का ‘प्रत्यके र्सद्धिोषी तक, र्िसके अांतगित मृत्य ुर्सद्धिोषी भी हैं’ र्र्स्तार ह ै।328 इस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने अब
स्पष्ट रूप से इस बात को मान्यता िी ह ैर्क िांड के र्लए न्यायोर्चत्य के रूप म ेबिल ेके र्लए प्रर्तशोध सांर्धैार्नक सूची की कसौटी पर
उत्तीणि नहीं होता ह ै। न्यायालय ने इस बात पर भी िोर र्िया ह ैर्क प्रर्तशोधात्मक र्सद्धाांत का अपना र्िन था और अब र्ह र्र्र्धमान्य
नहीं रह गया ह ै।’329
4.7.5 बचन र्सांह330 में न्यायालय ने यह कहा र्क ‘प्रर्तशोध’ सबसे खराब अपराधों के र्लए समाि के पररत्याग के अथि में पूणितया
परुानी सांकल्पना नहीं हैं ।’331 यह र्र्चारधारा प्रर्तशोध को ‘बिल’े के रूप में नहीं िखेती ह ै र्कन्तु यह उस ेअपराधी के कायों का
र्तरस्कार करन ेके रूप में िखेती ह।ै इस प्रकार बचन र्सांह में, ‘आांख के र्लए आांख’ दृष्र्टकोण की उसने र्कालत नहीं की गई थी ।
(ii) िवतशोि, ऐसे दडं के रूप में, वजसके योग्य अपरािी हो
4.7.6 ‘अर्भत्यिन’ की सांकल्पना आधरु्नक समझ और प्रर्तशोधात्मक र्सद्धाांत के आधार को र्र्र्हत करती ह ै।332 यह र्र्र्हत
करती ह ैर्क गलत कायि के र्लए ऐसा िांड होना चार्हए, िो अपराधी के कायि के र्लए समुर्चत हो और र्ह उसके योग्य हो ।333 यह
321 इम्युनेल कें ट, नैर्तकता के सकू्ष्म र्र्चार 141-142 (एम.िे.गे्रगर ट्राांस, 1996), िेफ्री िी. मफी, कें ट : अर्धकार के िाशिर्नक र्सद्धाांत 124 (1994)
322 ससुनै एस्टोन एांड र्िस्टीन र्पपर, मतृ्युिांडािशे और िांड :न्याय के र्लए प्रश्न, 57 (2012) ।
323 (1983) 4 एससीसी 645 ।
324 िीना बनाम भारत सांघ, (1983) 4 एससीसी 645, पैरा 10 पर ।
325(2014) 3 एससीसी 1 ।
326 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 245 पर । 327 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 245 पर ।
328 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 245 पर ।
329 रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (1979) 3 एससीसी 646, पैरा 88 पर ।
330 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684।
331 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 102 पर ।
332 मरैी एलेन गेल, प्रर्तशोध, िांड और मतृ्यु, 18 यू.सी. डेर्र्स एल. आरईर्ी. 973, 1003( 1985) । 333 ससुनै एस्टोन एांड र्िस्टीन र्पपर, मतृ्युिांडािेश और िांड :न्याय के र्लए प्रश्न, 57 (2012) ।
66
कर्थत करता ह ैर्क प्रर्तशोध को बिल ेके बराबर मानना भ्रम ह ै।334 क्योंर्क प्रर्तशोध और बिल ेका समकेन ‘आधरु्नक आपरार्धक
र्र्र्ध की िर्टलता को, र्िसका ध्यान आशय की मात्रा पर और नयूनीकरण तथा क्षमा के मामलों पर कें र्ित ह,ै सम्र्मर्लत नहीं करता ह ै
।’335
4.7.7 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य336 में, उच्चतम न्यायालय ने र्नयम बनाया र्क समुर्चत िांड का अर्धरोपण र्ह
रीर्त ह ै र्िसमें न्यायालय अपरार्धयों के र्र्रुद्ध न्याय के र्लए समाि की पुकार का उत्तर ितेे हैं ।’337 पश्चातर्ती, ‘न्याय के र्लए
समाि की पकुार’ का उच्चतम न्यायालय द्वारा मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत करने के र्लए, र्नयर्मत रूप से न्यायोर्चत्य के रूप में उपयोग
र्कया िाता रहा ह ै।338
4.7.8 ‘न्याय के र्लए समाि की पकुार’ का उपयोग करन ेर्ाले िांड का न्यायोर्चत्य ऐसे िांड के रूप में, अपराधी र्िसके योग्य हो,
प्रर्तशोध की सांकल्पना के उपयकु्त नहीं हैं, क्योंर्क र्ह इस पर ध्यान कें र्ित करन ेमें असफल रहता ह ैर्क क्या र्सद्धिोषी उस िांड के,
र्िसके अांतगित मृत्यिुांडािशे ह,ै योग्य ह ै। अर्धकाांश मामलों ने, र्िन्होंन ेिांड िने ेर्ाले न्यायोर्चत्य के रूप में ‘न्याय के र्लए समाि की
पकुार’ पर भरोसा र्कया ह,ै339 साधारणतया प्रत्यके व्यक्र्तगत मामल ेमें र्ृर्द्ध करन ेर्ाले और न्यूनीकरण करने र्ाले तथ्यों का र्र्श्लेषण
नहीं र्कया ह,ै ऐसी एक प्रर्िया, िो यह र्नधािरण करन ेके र्लए अपेर्क्षत ह ैर्क क्या िांडािशे योग्य ह ै।340
4.7.9 आगे, प्रर्तशोध इस प्रश्न के सांबांध में र्क ‘र्कतना अर्धक’ िांर्डत र्कया िाना और िांड लगभग र्कतना होना चार्हए, र्कसी
मागिर्निशेन का उपबांध नहीं करता ह ै।341 प्रर्तशोधात्मक न्याय के बारे में कहा िाता ह ैर्क उसमें अांशशोधन समसयाएां हैं िहाां कोई
‘अपराध की तुला के पीछे से िांड की तुला’ पर सरकते हुए कहाां रुकना ह,ै नहीं िान सकता ह ै।342 र्सद्धाांतर्ािी कहते हैं र्क मृत्यिुांड के
उपयोग को आपरार्धक न्याय की प्रर्तशोधकारी प्रणाली में न्यायोर्चत नहीं ठहराया िा सकता ।343
334 गेराडि र्सिस बे्रडली, प्रर्तशोध : िांड का कें िीय उद्दशे्य, 27 हार्िडि, िे.एल.एांड पब. पोली. 19, 21 (2003)।
335 एच.एल.ए. हटि, िांड और उत्तरिार्यत्र् 164-165 (1968); मरैी एलेन गेल, प्रर्तशोध, िांड और मृत्यु, 18 यू.सी. डेर्र्स एल. आरईर्ी. 973,
1003( 1985) ।
336 (1984) 2 एससीसी 220 ।
337 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (1994) 2 एससीसी 220, पैरा 15 पर ।
338 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (1994) 2 एससीसी 220, िमील बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2010) 12 एससीसी 532 ; मध्य प्रिेश
राज््य बनाम बसोडी, (2009) 12 एससीसी 318 ; बांटू बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2008) 1 एससीसी 113 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य
(2008) 7 एससीसी 561 ; मध्य प्रिशे राज््य बनाम सलीम, (2005) 5 एससीसी 554 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम श्री कृष्ण, (2005) 10 एससीसी
420 ; िय कुमार बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (1999) 5 एससीसी 1 ; रर्िी बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175 ; भेरू र्सांह बनाम
रािस्थान राज््य, (1994) 2 एससीसी 467 ; मध्य प्रिशे राज््य बनाम शेख शार्हि, (2009) 12 एससीसी 715 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतान @
सत्येंि, (2009) 4 एससीसी 736 ; मध्य प्रिेश राज््य बनाम सांतोष कुमार, (2006) 6 एससीसी 1 ; शलैेष िसर्ांतभाई बनाम गुिरात राज््य, (2006)
2 एससीसी 359 ।
339 ओम प्रकाश बनाम हररयाणा, (1999) 3 एससीसी 19 ; िमील बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2010) 12 एससीसी 532 ; मध्य प्रिशे राज््य बनाम
बसोडी, (2009) 12 एससीसी 318 ; बांटू बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2008) 1 एससीसी 113 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य (2008)
7 एससीसी 561
340 ओम प्रकाश बनाम हररयाणा, (1999) 3 एससीसी 19, पैरा 7 पर ।
341 क्लेरी र्फां केर्लस्टीन, मतृ्यु और प्रर्तशोध, 21 र्िम.िस्ट.एर्थक्स. 12, 13 (2002) ।
342 एन्र्ियु ओल्डेनक्र्र्स्ट, प्रर्तशोध और मृत्युिांड, 29 यू. डेटन एल.आरईर्ी 335, 338(2003) । 343 मथै्यू एच. िेमर, मतृ्युिांड की आचार नीर्त :बरुाई और उसके पररणामों का एक िाशिर्नक अन्रे्षण, प्रर्तशोध के र्लए मृत्यु, 77 (2011) ।
67
ि. आनुपावतकता
4.8.1 र्कसी अपराधी की पररर्नन्िा करना और उसके कायों के र्लए समाि का अननमुोिन सांसूर्चत करना आनपुार्तकता के र्सद्धाांत
का प्राथर्मक उद्दशे्य ह ै।344 अपराधी के कायों की समाि द्वारा की गई पररर्नन्िा को आनपुार्तक िांड – ऐसा िांड िो उससे अर्धक नहीं
ह,ै र्िसके र्ह योग्य ह-ै अर्धरोर्पत करके उस ेसांसूर्चत र्कया िाता ह ै।345 उसको सांसूर्चत करन ेर्ाले कृत्य के द्वारा आनुपार्तकता का
उद्दशे्य अपराधी से उसके कायों के र्लए पछतार्ा करर्ाना होता ह ै ।346 यह अपराधी को पछतार्ा प्रकट करने के साधनों का उपबांध
करके कराया िाता ह ै। आगे आनपुार्तकता के र्सद्धाांत की मूल अपेक्षा यह ह ैर्क अर्धरोर्पत र्कया गया िांड ‘अांतर्िर्लत अपराध की
गांभीरता के अनपुात से अर्धक’ नहीं होना चार्हए ।347 (यूके) र्िर्मनल िस्र्टस ऐक्ट 2003 का सेक्शन 143(1) इस र्सद्धाांत के
एक उिाहरण का उपबांध करता ह ै। यह कहता ह ैर्क र्कसी अपराध की गांभीरता का र्र्चारण करन ेमें न्यायालय को उस अपराध को और
र्कसी हार्न को, िो उस अपराध ने काररत की ह,ै करन ेमें अपराधी की सिोर्षता पर र्र्चार करना चार्हए र्क क्या र्ह अपराध काररत
र्कए िाने के र्लए आशर्यत था या पूर्ािनमुान करके काररत र्कया गया ह ै।
4.8.2 िांड की कठोरता आनपुार्तकता के र्सद्धाांत के र्लए महत्र्पूणि र्र्चारण ह ैक्योंर्क अननपुार्तक या गांभीर िांड र्नन्िा करन ेके तत्र्
को परार्ित कर ितेा ह ै।348 पररणामस्र्रूप यह र्सद्धाांत अर्धकाररताओां के पार कैि के र्नम्न स्तरों और र्र्द्यमान िांड की अनपुातत:
कटौती का पक्ष लेता ह ै।349 आनपुार्तकता र्र्र्ध के शासन के मूल्यों का आिर करती ह ैऔर िांडािशे िने ेकी शक्र्त पर सीमाओां को
रखती ह ै।350
4.8.3 कुछ मामलों में उच्चतम न्यायालय ने आनपुार्तकता का िांड सांबांधी उद्दशे्य के रूप में प्रयोग र्कया ह ै।351 यह र्र्र्नणिय र्क
‘आपरार्धक र्र्र्ध प्रत्यके र्कस्म के आपरार्धक आचरण की सिोर्षता के अनुसार िार्यत्र् र्र्र्हत करन ेमें आनपुार्तकता के र्सद्धाांत का
साधारणत: पालन करती ह,ै352 न्यायालय ने आनपुार्तकता का मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्लए न्यायोर्चत्य के रूप में उपयोग र्कया ह ै
344 पी.एफ. स्ट्रासन, स्र्तांत्रता और रोष और अन्य पाठ 1 (1974) ; एन्िू र्ान र्हस्िच, िांड के िाशिर्नक र्सद्धाांत में आनुपार्तकता : ‘िांड क्यों र्िया िाए ?’
‘र्कतना’ र्िया िाए , 25 एलएसआर एल आरईर्ी.549, 561 (1991)
345 मथै्यू र्डिसर्थि, िांडािशे और आपरार्धक न्याय 84(2005) ।
346 मथै्यू र्डिसर्थि, िांडािशे और आपरार्धक न्याय 84(2005) । िरे्खए :एन्ियू र्ान र्ह्रस्च, िांड के िाशिर्नक र्सद्धाांत में आनुपार्तकता, 16 अपराध और
न्याय 67 (1992 ; आर.ए. डफ, ट्रायल और पर्नशमेंट 1986) ।
347 मथै्यू र्डिसर्थि, िांडािशे और आपरार्धक न्याय 84(2005) । 348 एन्ियू र्ान र्ह्रस्च एांड एन्ियू र्डिसर्थि, आनुपार्तक िांडािशे : र्सद्धाांतों को खोिना, 143 (2005)
349 ससुनै एस्टोन एांड र्िस्टीन र्पपर, मृत्युिांडािशे और िांड :न्याय के र्लए प्रश्न, 57 (2012) ; मेल्कम थोरबनि, आपरार्धक र्र्र्ध और आपरार्धक न्याय के
र्सद्धाांतोंमें आनुपार्तक मतृ्यिांडािशे और र्र्र्ध के र्नयम : एस्से इन आनर आफ एन्र्िय ुर्डिसर्थि 269 (लरु्सका िेंडर एांड िरु्लयन र्ी. राबटि ईडीएस 2012)
;बेरी पोलक, डेिटि एांड डेथ : िांड पर अर्धकतम सीमाएां, 44 रूटिसि एल. आरईर्ी. 985 (1991-1992) ।
350 मथै्यू र्डिसर्थि, िांडािशे और आपरार्धक न्याय 84(2005) ।
351 िरे्खए र्शर् ुबनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713 ; लेहना बनाम हररयाणा राज््य, (2002) 3 एससीसी 76 ;
उत्तर प्रिशे राज््य बनाम सतीश, (2005) 3 एससीसी 114 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य (2008) 7 एससीसी 561 ।
352 िरे्खए र्शर् ुबनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713, पैरा 25 पर ; लेहना बनाम हररयाणा राज््य, (2002) 3
एससीसी 76, पैरा 27 पर ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतीश, (2005) 3 एससीसी 114, पैरा 29 पर ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य
(2008) 7 एससीसी 561, पैरा 21 पर ; लेहना बनाम हररयाणा राज््य, (2002) 3 एससीसी 76 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतीश, (2005) 3
एससीसी 114 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य (2008) 7 एससीसी 561 ।
68
।353 न्यायालय ने आनपुार्तकता के र्सद्धाांत को, और समाि सांबांधी धारणाओां को ध्यान में रखन ेकी अपेक्षा को भी पढा ह ै। उसने कहा
: आनपुार्तकता के र्सद्धाांत का भारतीय आपरार्धक न्यायशास्त्र के अधीन िांडािशे िने े की नीर्त में मूल्यर्ान उपयोिन
ह.ै............न्यायालय को न केर्ल इसकी परीक्षा करनी होगी र्क क्या न्यायसांगत ह ैबल्र्क इसकी भी परीक्षा करनी होगी र्क समाि पर
स्र्च्छांि प्रभार् पड़न ेको दृष्र्ट में रखते हुए, अर्भयकु्त र्कसके योग्य ह ै ।’354 उसन ेयह भी कहा र्क ‘िांड का अर्धरोपण, बहुत से
मामलों में सामार्िक व्यर्स्था पर उसके प्रभार् का र्र्चारण र्कए र्बना, र्ास्तर् में एक र्नष्फल प्रयास हो सकता ह ै।355
4.8.4 उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की एक न्यायपीठ ने हाल ही में इस पर मागिर्निशेन र्कया ह ैर्क आनपुार्तकता के
र्सद्धाांत को मृत्यिुांड के सबांध में कैसे लागू र्कया िा सकता ह ै। न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया :
िांडािशेों की आनपुार्तकता के प्रश्न पर कायिर्ाही करन ेमें, मृत्यिुांड को कारार्ास के िांड से र्कस्म और श्रेणी में र्भन्न समझा
िाता ह।ै उसका पररणाम यह ह ैर्क िबर्क इस बात के कई उिाहरण हैं िब मृत्यिुांड को र्कए गए अपराध से अननुपार्तक
समझा गया ह,ै र्कन्तु कारार्ास के िांड के ऐसे बहुत कम और र्र्रल ेमामल ेहैं, र्िन्हें अननपुार्तक अर्भर्नधािररत र्कया गया
ह ै।356
4.8.5 आनपुार्तकता के र्सद्धाांत की सही समझ और उसका लागू र्कया िाना बररयार में पाया िा सकता ह,ै र्िसमें न्यायालय ने उस
र्र्रचना का उपबांध र्कया, र्िसके भीतर मृत्यिुांड के मामल ेमें िांड िने ेकी प्रर्िया की िानी चार्हए । उसने कहा र्क न्यायालय को पहले
उसके समक्ष मामले के तथ्यों की ‘समान रूप से पररस्र्थर्तबद्ध मृत्यु से िांडनीय प्रर्तर्ार्ियों के पूल’ के साथ तुलना करनी चार्हए
।357 अपराध की गांभीरता और प्रकृर्त तथा साथ ही अपराधी के हतेु पर इस र्र्श्लेषण में र्र्चार र्कया िा सकता ह ै । तत्पश्चात ्
गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों को पररर्चर्ित र्कया िाना चार्हए । उनकी भी तुलनीय मामलों के पूल के साथ तुलना की
िानी चार्हए । यह सरु्नश्र्चत करेगा र्क न्यायालय समान रूप से प्रस्तुत मामलों पर एक साथ र्र्चार करता ह ैऔर यह अभ्यास न्यायालय
को यह िानकारी िगेा र्क कैसे समरूप मामल ेपर पहल ेकारिर्ाई की गई ह ै। न्यायालय ने यह मत व्यक्त र्कया र्क यह अभ्यास िांड िने ेमें
अत्यार्धकता को, यर्ि कोई हो, इांर्गत कर सकता ह ैऔर साथ ही कर्तपय सीमा तक मनमानेपन को कम कर सकता ह ै। उसने यह भी
सलाह िी र्क उसके द्वारा प्रस्तार्र्त प्रयोग र्नश्र्चत रूप से र्कया िाना चार्हए, यर्ि िांड िने ेर्ाला न्यायालय र्सद्धिोषी व्यक्र्त पर
मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्र्कल्प का प्रयोग करता ह ै। महत्र्पूणि रूप से न्यायालय ने यह भी अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘सदै्धाांर्तक िांड
िनेा’ सरु्नश्र्चत करन ेके र्लए तकि सबसे अर्धक महत्र्पूणि ह ै।358
4.8.6 िैसा र्क पहले र्र्णित र्कया िा चकुा र्क आनपुार्तकता का मखु्य कें ि र्बनि ुपररर्नन्िा ह ै। िांड को सांसूर्चत र्कए िाने से
सांबांर्धत पहल ुभी एक महत्र्पूणि र्र्चारण ह ैऔर पररर्नन्िा तथा सांसूचना सांबांधी पहलओु ां की आिीर्न कारार्ास के माध्यम से,
अपराधी पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने के बिाय, अर्धक अच्छे ढांग से पूर्ति की िा सकती ह ै। कैि अपराधी को पछतार्ा प्रकट करन ेका
साधन प्रिान करती ह ैऔर उसके कायों के र्लए समाि के अननमुोिन को सांसूर्चत करती ह ै। िसूरी ओर मृत्यिुांड िांड के सांसूचनात्मक
353 िरे्खए र्शर् ुबनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713 ; लेहना बनाम हररयाणा राज््य, (2002) 3 एससीसी 76 ;
उत्तर प्रिशे राज््य बनाम सतीश, (2005) 3 एससीसी 114 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य (2008) 7 एससीसी 561 ।
354 बिृेंि र्सांह बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (2012) 4 एससीसी 289, 305 (रामनरेश और अन्य बनाम छत्तीसगढ राज््य, (2012) 4 एससीसी257,
287 के मामले में) ।
355 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 667, पैरा 15 पर । 356 र्र्िम र्सांह बनाम भारत सांघ, 2013(एससी) की िाांर्डक अपील सां0 824, तारीख 21 अगस्त, 2015, पैरा 49 पर। 357 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 131 पर । 358 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498।
69
पहल ुके महत्र् को कम करता ह,ै क्योंर्क अपराधी का िीर्न समाप्त कर र्िया िाता ह ै। अत: इस दृष्र्टकोण से आिीर्न कारार्ास
आनपुार्तकता के उद्दशे्य की समरु्चत रूप से पूर्ति करता ह ै।
4.8.7 आनपुार्तकता का सांसूचनात्मक पहलू समाि को यह सांसूचना िनेा ह ैर्क अपराधी के कायि सर्ीकायि योग्य नहीं हैं । इस सांिभि में
‘पाशर्र्कता सांबांधी प्रभार्’ पर ध्यान िेना आर्श्यक ह ै।359 बोबसि और पीयसि तकि ितेे हैं र्क िब र्कसी राज््य द्वारा र्ध र्कया िाता ह ै
तो र्ह इसको न्यायोर्चत ठहराकर र्क र्ह उसकी र्नन्िा करना चाहता ह,ै सांसूचनात्मक पहल ुका महत्र् कम कर ितेा ह।ै र्ह सामान्य
व्यक्र्त की र्नगाहों में िीर्न के महत्र् को कम करता ह,ै िो आगे अपरार्धयों का सशक्त बनाता ह ै।360
छ. सुिार
4.9.1 सधुार का र्सद्धाांत सभी अपरार्धयों को शाांर्तपूणि, उत्पािक और समथि समाि के नागररकों के रूप में पररर्र्तित कर िनेा चाहता
ह ै। सधुार यह उपधारणा करता ह ैर्क अपराधी पररर्तिन के योग्य हैं, और यर्ि एक बार अपराध र्कए िान ेके र्लए कारण िरू कर र्िए
िाते हैं तो र्ह साधारण और पूणि िीर्न र्बता सकता ह ै।361
4.9.2 िबर्क यह स्पष्ट ह ैर्क िब र्कसी व्यक्र्त को मृत्य ुका िांड र्िया िाता ह ैतो सधुार का आिशि िांड र्िए िान ेमें अपनी पूर्र्िकता
स्पष्ट रूप से खो ितेा ह,ै सधुार पर र्र्चार-र्र्मशि बहुधा मृत्यिुांड के न्यायर्नणियन का (और र्स्तुत:, होना अपेर्क्षत ह)ै भाग रहा ह ै। यह
इस कारण ह ैर्क सधुार हमारी आपरार्धक न्यायप्रणाली की कें िीय आिशिमूलक प्रर्तबद्धता रहा ह ैऔर केर्ल उन अपरार्धयों को, र्िन्हें
सधुार से परे अर्धर्नणीत र्कया गया ह ैऔर िो, अर्भयोिन द्वारा र्िए गए र्नश्चायक साक्ष्य के माध्यम से ऐसे सार्बत हुए हैं, कभी भी
मृत्य ुसे िांडार्िष्ट र्कया िा सकता ह ै।
(i) सुिार के संबंि में उच्ितम न्यायालय
4.9.3 उच्चतम न्यायालय द्वारा मृत्युिांडािशे के न्यायर्नणियन में र्र्चार र्कए िाने र्ाले र्सद्धाांत के रूप में बचन र्सांह में र्कालत र्कए
िाने के पूर्ि भी यह िांड सांबांधी नीर्त न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड और गैर मृत्यिुांड के िोनों सांिभों में लगातार व्यक्त की गई ह ै । एर्डगा
अनम्मा बनाम आांध्र प्रिशे राज््य362 में न्यायालय ने िांड िने ेके प्रिम पर ‘सामार्िक और व्यक्र्तगत प्रकृर्त के तथ्यों’ के सांबांध में साक्ष्य
िने ेकी आर्श्यकता पर िोर र्िया । यह इस बात को सरु्नश्र्चत करने के र्लए था र्क सधुार को उतना ही महत्र् र्िया गया था र्ितना
भयोपरतता को ।363
359 र्र्र्लयम िे. र्ोर्सि एांड ग्लेन एल. र्पयेरसी, भयोपरतता या बबिरता : फाांसी का क्या प्रभार् ह?ै 26 र्िम एांड डेर्लांग 453 (1980) ; िोएना शेफडि,
कैर्पटल पर्नशमेंट्स र्डफररांग इम्पैक्ट्स एमांग स्टेट्स, 104 र्मर्शगन ला ररव्यू (2005) । 360 र्र्र्लयम िे. र्ोर्सि एांड ग्लेन एल. र्पयेरसी, भयोपरतता या बबिरता : फाांसी का क्या प्रभार् ह?ै 26 र्िम एांड डेर्लांग 453 (1980) ; यह भी िरे्खए :
एच.एल.ए. हटि : िांड और उत्तरिार्यत्र्, 88 (2008) 361 एन्र्ियु एशर्थि, मतृ्युिांडािेश और आपरार्धक न्याय, 82 ( चौथा सांस्करण 2005) । 362 (1974) 4 एससीसी 443 । 363 िरे्खए एर्डगा अनम्मा, (1974) 4 एससीसी 443, पैरा 14 पर।
70
4.9.4 समान रूप से सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन364 में न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क पनुर्ािस और सधुार हमारी
आपरार्धक न्याय प्रणाली में िांड िने ेकी नीर्त का महत्र्पूणि भाग हैं और र्तिमान कारार्ास की प्रथाओां को उन सांर्धैार्नक सांन्र्नयमों के
साथ, िो कैर्ियों के पनुर्ािस की माांग करते हैं, समरूप बनाने का प्रयास र्कया । उसने कहा र्क ‘(क) पनुर्ािस का प्रयोिन अपराधी के
प्रत्यके िांडािशे में सांन्र्नर्हत ह ैऔर होना चार्हए िब तक र्क िांड िने ेर्ाले न्यायालय द्वारा अन्यथा आिशे न र्िया गया हो ।’365
4.9.5 न्यायालय ने बत्रा में भी मोहम्मि गयासदु्दीन बनाम आांध्र प्रिशे राज््य366 को र्नर्ििष्ट र्कया, िहाां उसने अर्भर्नधािररत र्कया था
र्क आधरु्नक समिुाय का अपराधी के सधुार में प्राथर्मक िाांर् ह ैऔर ध्यान ‘आतांक सांबांधी’ दृष्र्टकोण में होन ेके बिाय आरोग्य सांबांधी
में होना चार्हए ।367 न्यायालय ने कहा : ‘सांपूणि मनषु्य स्र्ासथप्रि मनषु्य ह ै और प्रत्यके व्यक्र्त िन्म से अच्छा होता ह ै। आपरार्धकता
एक साध्य र्र्चलन ह.ै................हमारे कारागार सधुार करन े र्ाले घर होन े चार्हए न र्क आत्मा को पीड़ा िने े र्ाले िूर
लोहा........................ हम यह लगातार सांपे्रक्षण िशे में स्र्तांत्रता की अर्नर्ायिता को लान ेके र्लए कर रह ेहैं.................यह र्क राज््य
द्वारा उसके र्ांचन को केर्ल ऐसी योिना द्वारा र्र्र्धमान्य र्कया िाए, िो िांडों को उसके िन्मर्सद्ध अर्धकार के अर्धक योग्य बनाने के
र्लए हो ।368 (िोर र्िया गया)
4.9.6 सधुार सांबांधी आिशि उच्चतम न्यायालय द्वारा अन्य मामलों में भी व्यक्त र्कया गया ह ै।369 इस पृष्ठभूर्म में बचन र्सांह का
मामला आया, र्िसन े इस सधुारात्मक पहलू को, ‘र्र्रल े मामलों में से र्र्रलतम’ परीक्षण को र्र्कर्सत करते हुए मृत्यिुांड के
न्यायर्नणियन का भाग बनाया ।
4.9.7 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य370 में, उच्चतम न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क पनुर्ािस प्रकट िांड िने ेर्ाला उद्दशे्य ह ैऔर
उसकी र्र्शेष रूप से मृत्यिुांड के सांिभि में कभी उपेक्षा नहीं की िानी चार्हए । उसने अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड ‘र्र्रले मामलों में से
र्र्रलतम’ में के र्सर्ाय, िब आनकुल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत हो,371 अर्धरोर्पत नहीं र्कया िाना चार्हए (इस पर िोर
र्िया गया)
4.9.8 उच्चतम न्यायालय ने पनु: हाल में मृत्यिुांड के मामलों में ‘सधुार से परे’ साक्ष्य के प्रस्तुत र्कए िाने की आर्श्यकता पर िोर
र्िया ह ै।372 न्यायालय ने ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ के परीक्षण पर, िसैा र्ह बचन र्सांह में अर्भकर्थत र्कया गया ह,ै परीक्षण को
िो भागों में र्र्भार्ित कर र्िया; प्रथम भाग यह र्र्र्नश्र्चत करने र्ाला ह ै र्क क्या मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ प्रर्गि से
सांबांर्धत होना चार्हए ; और िसूरा भाग यह र्र्र्नश्र्चत करन ेर्ाला ह ैर्क क्या आिीर्न कारार्ास का आनकुल्र्पक र्र्कल्प उस मामल े
के तथ्यों में पयािप्त नहीं होगा । िसूरे भाग पर र्टप्पण करते हुए न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया : (आिीर्न कारार्ास) पूणितया
र्नरथिक ह ैकेर्ल तब, िब सधुार के र्लए िांड िने ेर्ाले उद्दशे्य को प्राप्त न करने र्ाला कहा िाए । अत: ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’
364 सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन, (1978) 4 एससीसी 494 । 365 सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन, (1978) 4 एससीसी 494, पैरा 230 पर । 366 (1977) 3 एससीसी 287 ।
367 िरे्खए गयासदु्दीन, (1977) 3 एससीसी 287, पैरा 8 पर ।
368 िरे्खए गयासदु्दीन, (1977) 3 एससीसी 287, पैरा 24-25 पर ।
369 र्बशनु िरे् शार् बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (1979) 3 एससीसी 714 ; मेरु राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107 ।
370 (1980) 2 एससीसी 107 । 371 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 284, पैरा 209 पर । 372 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498।
71
के र्सद्धाांत के िसूरे अपर्ाि की प्रर्तपूर्ति करन ेके र्लए न्यायालय को इस बारे में स्पष्ट साक्ष्य िनेा होगा र्क र्सद्धिोषी र्कसी भी प्रकार की
सधुारात्मक और पुनर्ािस स्कीम के र्लए क्यों नहीं उपयकु्त ह ै।373 (इस पर िोर र्िया गया)
4.9.9 इस प्रकार र्कसी मामले को ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ अर्धर्नणीत करन ेके अर्तररक्त मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेका
समान रूप से एक महत्र्पूणि भाग यह ह ैर्क क्या अपराधी सधुार के योग्य ह ैया नहीं । यह अर्धारण करन ेमें र्क कोई अपराधी मृत्य ुसे
िांडार्िष्ट र्कया िाना चार्हए, र्र्र्भन्न पररस्र्थर्तयों को र्नधािररत करन े की आर्श्यकता होती ह।ै यह िखेना महत्र्पूणि ह ै र्क य े
पररस्र्थर्तयाां अपराधी और अपराध, िसैा र्क उच्चतम न्यायालय द्वारा अर्भर्नधािररत र्कया गया ह,ै िोनों की ह ै।374
4.9.10 बचन र्सांह में न्यायालय के आिशे की, िो न्यायालय से यह र्नधािरण करन ेकी अपेक्षा करता ह ैर्क क्या अपराधी सधुार र्कए
िाने के योग्य ह ैऔर क्या आिीर्न कारार्ास र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत ह,ै बहुधा मृत्यिुांड का न्यायर्नणियन करन ेमें उपेक्षा की गई ह ै
।375 अपराधी के बारे में ‘सधुार से परे’ होन ेका साक्ष्य कभी-कभी र्िया गया ह ैऔर उस पर र्र्चार र्कया गया ह ै।376
4.9.11 कुछ आलोचकों ने मत व्यक्त र्कया ह ैर्क यर्ि सधुार िांड िने ेका र्सद्धाांत ह,ै और ‘सधुार से परे’ साक्ष्य पर र्र्चार र्कया
िाना ह ैतो यह र्नष्कषि र्नकालना कभी सांभर् नहीं ह ैर्क कोई अपराधी सधुार से परे ह ैक्योंर्क सिरै् अपराध को कुछ कम करन ेर्ाली
पररस्र्थर्तयाां पायी िा सकती हैं । न्यायमूर्ति भगर्ती के शब्िों में :
र्नश्र्चत रूप से यह भर्र्ष्य कथन करन ेका या र्कसी नरै्तकता की र्कसी श्रेणी की र्नश्र्चतता के साथ यह िानन ेका र्क
हत्यारे का सधुार नहीं र्कया िाएगा या र्ह सधुार र्कए िाने के अयोग्य ह,ै कोई मागि नहीं ह ै। र्ह सब िो हम िानते हैं यह ह ै
र्क अत्यर्धक िोषयकु्त मामलों में भी सफलताएां र्मली हैं ......................बहुत सारे उिाहरण यह स्पष्ट रूप से िर्शित करते
हैं र्क र्कसी र्नश्र्चत मात्रा के साथ समयपूर्ि यह िानना सांभर् नहीं ह ैर्क कोई हत्यारा सुधार से परे ह ै।377 (इस पर िोर
र्िया गया ह)ै
ज. अन्य महत्वपूणट ववषय
(i) जनता की राय
4.10.1 मृत्यिुांड बनाए रखने के र्लए सरकार द्वारा बहुधा र्िया गया एक महत्र्पूणि कारण यह ह ैर्क िनता की राय उसकी माांग करती
ह ै। र्र्र्ध आयोग की 35र्ीं ररपोटि में भी मृत्यिुांड के सांिभि में िनता की राय को एक महत्र्पूणि तथ्य माना गया था ।378
4.10.2 कोई तकि ि ेसकता ह ैर्क िनता की राय र्ास्तर् में ऐसा तत्र् ह ैर्िस पर, ऐसे महत्र्पूणि र्र्र्नश्चय करते समय ,र्िनसे िनता
पर स्र्च्छांि प्रभार् पड़ता ह,ै र्र्चार र्कया िाना चार्हए । तथार्प सरकार के र्लए प्रत्यके र्र्षय पर िनता की राय को मानना आर्श्यक
373 सांतोष कुमार सतीशभूषण बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498। 374 रािेंि प्रसाि बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, यह भी िेर्खए बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 284, सांतोष बररयार, (2009) 6 एससीसी
498 , एर्डगा अनम्मा,
1974) 4 एससीसी 443 ।
375 िरे्खए मृत्युिांड के न्यायर्नणियन में मनमानेपन पर अध्याय 5 में र्र्चार-र्र्मशि ।
376 376 िरे्खए अध्याय 5 में र्र्चार-र्र्मशि, यह भी िरे्खए अपणाि चन्ि, एक सनकी कैि । र्िसांबर, 16 के सामरू्हक बलात्सांग मामले में र्र्चारण न्यायालय के
िांडािेश पर र्टप्पण ।
377 मध ुमेहता बनाम भारत सांघ (1984) 4 एससीसी 62 । 378 35 र्ीं ररपोटि ने अनुभर् र्कया र्क यर्ि र्र्र्ध िनता की राय के र्र्रुद्ध गई तो यह सांभर् ह ैर्क िनता अपरार्धयों की स्र्यां हत्या करके या उन्हें घायल करके
बिले के कायों में सांर्लप्त हो िाएगी । (िरे्खए भारत का र्र्र्ध आयोग, 35र्ीं ररपोटि, 1967, र्र्र्ध मांत्रालय, भारत सरकार, पैरा 265 (22) पर ।
72
नहीं ह ै। र्सतुत: सरकार का यह कतिव्य ह ैर्क र्ह िनता की राय उन र्र्कल्पों की िशा में ले िाए, िो ऋितुा, गररमा और न्याय का
समथिन करते हैं, िो सांर्धैार्नक रूप से प्रर्तष्ठार्पत आिशि हैं । यहाां पूर्ि राष्ट्र सांघ मानर् अर्धकार सांबांधी उच्चायकु्त, नर्ीर्पल्ल ैको
उद्धत करना उपयोगी होगा, िो कहते हैं :
मानर् उन्नर्त स्र्थर नहीं रहती ह ै। मृत्यिुांड के र्लए आि प्रर्सद्ध समथिन का यह अथि नहीं ह ैर्क र्ह कल भी रहगेा । ऐसे
अर्र्र्ािास्पि ऐर्तहार्सक उिाहरण हैं िहाां उन र्र्र्धयों, नीर्तयों और पद्धर्तयों को, िो मानर् अर्धकार मानकों से असांगत
थीं, अर्धकाांश िनसांख्या का समथिन प्राप्त था । र्कन्त ुर्े गलत सार्बत हुई और आकस्र्मक रूप से उन्हें समाप्त या र्र्िित
कर र्िया गया । नेताओां को र्ह मागि िर्शित करना चार्हए र्क मृत्यिुांड मानर् गररमा के साथ र्कतने गहरे रूप से असांगत ह ै
।379 (इस पर िोर र्िया गया)
4.10.3 ऐसे बहुत से उिाहरण ह ैिहाां र्र्श्र् के चारो ओर सरकारों ने, एर्शया और पश्र्चम, िोनों में, र्तिमान िनता की राय के र्र्रुद्ध
मृत्यिुांड को समाप्त कर र्िया ह ै ।380 र्तिमान मृत्यिुांड समाप्त करने र्ाले बहुत कम िशेों ने मृत्यिुांड को समाप्त र्कया होता यर्ि
उन्होंन ेइस र्र्षय पर िनता की राय बिलने की प्रतीक्षा की होती ।381 इसके अर्तररक्त िब एक बार िब मृत्यिुांड समाप्त कर
र्िया गया, तो र्र्र्धक र्र्रचना के कारण इस र्र्षय पर िनता की राय आमूल रूप से पररर्र्तित कर र्िया और अब मृत्यिुांड
अर्र्चारणीय समझा िाता ह ै ।382 सामार्िक मदु्दों को शार्सत करने र्ाली र्र्र्धयों का भारतीय अनभुर् िसेै सती, िहिे प्रर्तषेध,
छुआछूत का प्रर्तषेध और बालक र्र्र्ाह इस तथ्य का प्रमाण हैं र्क सरकार के पास गहरे रूप से घुसे हुए साांस्कृर्तक सांन्र्नयमों के र्र्रुद्ध
िनता की राय का मागििशिन करने की शक्र्त ह ैऔर उसकी ऐसा करने की, िब मानर् गररमा और समानता से सांबांर्धत र्र्षयों का
सामना हो, बाध्यता भी ह ै।
झ. सुिारात्मक न्याय की वदशा में गवतवववि
4.11.1 पीर्ड़तों के र्लए न्याय के अांततोगत्र्ा उपाय के रूप में मृत्यिुांड पर ध्यान कें र्ित करन े में न्याय के सधुारात्मक और
पनुर्ािसात्मक पहलओु ां से ध्यान हट िाता ह ै । मृतयिुांड पर भरोसे से बीमार आपरार्धक न्याय प्रणाली की अन्य समस्याओां िसेै कम
अनर्ेषण, अपराध र्नर्ारण और अपराध के पीर्ड़तों के अर्धकार से ध्यान हट िाता ह ै।
4.11.2 20 र्ीं शताब्िी के बाि में एक बड़ा र्र्कास अपराध के पीर्ड़तों के अर्धकारों और आर्श्यकताओां पर ध्यान कें र्ित होना
था । आपरार्धक नयाय के सधुारात्मक र्सद्धाांत भी कुछ समय के बाि प्रकट हुए ।383 एशर्थि ने िैसा र्टप्पण र्कया ह ै‘मूल प्रर्तपािना
यह ह ैर्क पीर्ड़तों के र्लए न्याय आपरार्धक न्याय प्रणाली और िांड िने ेका कें िीय उद्दशे्य हो िाता ह ै।’384 एशर्थि ने आगे कहा र्क’
सधुारात्मक न्याय, आपरार्धक व्यर्हार को उत्तर िने ेके सांरचनात्मक और सामार्िक रूप से सम्र्मर्लत मागि के रूप में पयािप्त आकषिण
रखता ह ै।’385
379 मतृ्युिांड से िरू िाना : िर्क्षण पूर्ि एर्शया से पाठ, सांयुक्त राष्ट्र मानर् अर्धकार आयोग 6 (2014) । 380 मतृ्युिांड से िरू िाना : िर्क्षण पूर्ि एर्शया से पाठ, सांयुक्त राष्ट्र मानर् अर्धकार आयोग 9 (2014) । 381 िोन याकी, मतृ्युिांड के र्र्रुद्ध 262 (पहला सांस्करण 2008) । 382 उिाहरण, फ्राांस और यूके ; यह भी िरे्खए, 10 िलुाई, 2015 के र्र्र्ध आयोग राष्ट्रीय परामशि पर रोिर हुड का भाषण । 383 एन्र्ियु एशर्थि : िांडािशे िनेा और आपरार्धक न्याय 88 (2005) । 384 एन्र्ियु एशर्थि : िांडािशे िनेा और आपरार्धक न्याय 88 (2005) । 385 एन्र्ियु एशर्थि : िांडािशे िनेा और आपरार्धक न्याय 89 (2005) ।
73
4.11.3 अर्धक अच्छे और अर्धक प्रभार्ी अनर्ेषण तथा अर्भयोिन के र्लए परु्लस सधुारों की आर्श्यकता सार्िभौर्मक रूप से
कुछ समय से अब अनभुर् की िा रही ह ैऔर उसके बारे में पूर्र्िकता के आधार पर उपाय र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै । उच्चतम
न्यायालय ने प्रकाश र्सांह बनाम भारत सांघ386 में यह अर्भर्नधािररत र्कया :
र्नम्नर्लर्खत का ध्यान रखते हुए (i) समस्याओां की गांभीरता ; (ii) र्र्र्ध के शासन का परररक्षण करन ेऔर उसे सदुृढ
बनाने के र्लए अत्यार्श्यकता ; (iii) इस यार्चका का भी र्पछले 10 र्षों से लांर्बत होना ; (iv) यह तथ्य र्क
र्र्र्भन्न आयोगों और सर्मर्तयों ने िशे में परु्लस व्यर्स्था में सधुार प्रारांभ करन ेके र्लए समान आधारों पर र्सफाररशें की हैं ;
और (v) इस बारे में पूणि अर्नश्र्चतता की र्क परु्लस सधुारों को कब प्राांरभ र्कया िाएगा, हम समझते हैं र्क अब और
प्रतीक्षा नहीं की िा सकती ह ैऔर तुरांत अनपुालन के र्लए समर्चत र्निशे िारी करन ेके र्लए र्सथर्त आ गई ह ैर्िससे र्क
उन्हें ऐसे समय तक के र्लए र्ियाशील र्कया िा सके िब तक र्क नया आिशि परु्लस अर्धर्नयम कें िीय सरकार और/या
राज््य सरकारें तैयार करती हैं और अपेर्क्षत र्र्धान पाररत कराती हैं । आगे इस पर भी ध्यान र्िया िा सकता ह ैर्क िेश में
आपरार्धक न्याय प्रणाली की गुणर्त्ता, बड़ी सीमा तक, परु्लस बल के कायिकरण पर र्नभिर करती ह ै । इस प्रकार बृहत्
सार्ििर्नक र्हत को ध्यान में रखते हुए यह पूणिरूप से आर्श्यक ह ैर्क अपेर्क्षत र्निशे िारी र्कए िाएां । इस न्यायालय ने
लगभग 10 र्षों पूर्ि, र्र्नीत नारायण बनाम भारतसांघ [(1998) 1 एससीसी 226 : 1998 एससीसी (िीमी)
307 में अपेर्क्षत र्ियार्र्र्ध स्थार्पत करन ेके र्लए अत्यार्श्यकता अनभुर् की थी और कें िीय सरकार को राज््य सरकारों
के साथ पुर्लस सधुारों के र्र्षय पर कायि करन ेतथा न केर्ल राज््य पुर्लस के प्रमखु के र्कन्तु परु्लस अधीक्षक और उसकी
ऊपर के रैंक के सभी परु्लस अर्धकाररयों के चयन/र्नयकु्त, अर्र्ध, स्थानाांतरण और तैनाती के र्लए एक र्ियार्र्र्ध
स्थार्पत करना सरु्नश्र्चत करन ेके र्लए भी र्निशे र्िया था । न्यायालय ने अपना िखु प्रकट र्कया था र्क कुछ राज्यों में
परु्लस अधीक्षक की अर्र्ध कुछ महीनों की होती ह ैऔर स्थानाांतरण सनकी कारणों से र्कए िाते हैं, र्िससे र्क परु्लस बल
पर न केर्ल र्नराशार्ािी प्रभार् पड़ता ह ैबर्लक िो पररकल्र्पत सांर्धैार्नक याांर्त्रकी के भी प्रर्तकूल ह ै। यह िखेा गया था र्क
परु्लस बल में र्नराशा फैलाने के अर्तररक्त इससे कार्मिकों को रािनरै्तक बनान ेका भी प्रर्तकूल प्रभार् पड़ता ह ैऔर इसर्लए
यह आर्श्यक ह ैर्क कें िीय सरकार द्वारा तुरांत उपाय र्कए िाएां।387
4.11.4 प्रकाश र्सांह में उच्चतम न्यायालय के र्निशेों को कायािन्र्र्त करन ेके र्लए उपाय र्कए िान ेचार्हए ।
4.11.5 पीर्ड़तों और सार्क्षयों की आर्ािें बहुधा शक्र्तशाली अपराधी व्यक्र्तयों द्वारा िी गई धमर्कयों और अपनायी गई
भयोत्पािक तकनीकों द्वारा बांि करा िी िाती हैं । अत: यह आर्श्यक ह ैर्क कोई सार्क्षयों के सांरक्षण की स्कीम भी स्थार्पत की िाए
।388
4.11.6 यह आर्श्यक ह ैर्क अपराध के पीर्ड़तों को पनुर्ािर्सत करने के र्लए प्रभार्ी पीर्ड़त प्रर्तकर सकीमें बनाएां । साथ ही यह भी
महत्र्पूणि ह ैर्क न्यायालय उर्चत मामलों में पीर्ड़तों को समरु्चत प्रर्तकर िने ेके र्लए िांड प्रर्िया सांर्हता 1973 के अधीन उनहें िी गई
शक्र्त का प्रयोग करें ।
386 (2006) 8 एससीसी 1 । 387 (2006) 8 एससीसी 1, पैरा 26 पर । 388 साक्षी सांरक्षण सकीमों का र्िल्ली उच्च न्यायालय द्वारा न्यार्यक रूप से नीलम कटारा बनाम भारत सांघ आईएलआर (2003) 2 र्िल्ली, 377 में प्रस्तार्
र्कया गया ह,ै इस सांबांध में र्िल्ली सरकार द्वारा एक शुरुआत की गई ह,ै र्िससे िलुाई, 2015 में एक साक्षी सांरक्षण स्कीम को अर्धसरू्चत र्कया गया ।
74
4.11.7 आपराधररक कारणों के र्लए प्रर्तकर का िांड प्रर्िया सांर्हता 1973 के (िांप्र.सां.) की धारा 357 और धारा 357क में
उपबांध र्कया गया ह ै। धारा 357 (1) के अधीन िब र्कसी र्सद्धिोषी पर िांड के भागरूप में कोई िमुािना अर्धरोर्पत र्कया िाता ह,ै
तो न्यायाधीश यह आिशे ि ेसकता ह ैर्क सांपूणि िमुािने की रकम या उसके भाग का पीर्ड़त (र्िसके अांतगित घातक िघुिटना अर्धर्नयम,
1855 के अधीन उसके र्हतार्धकारी भी हैं) को प्रर्तकर के रूप में सांिाय र्कया िाए । इस उपबांध के अधीन प्रर्तकर की रकम
र्सद्धिोषी पर अर्धरोर्पत िमुािने की रकम से अर्धक नहीं हो सकती ह ै।
4.11.8 धारा 357(3) के अधीन िांड के भागरूप में कोई िमुािना अर्धरोर्पत नहीं र्कया िाता ह,ै तो न्यायाधीश र्सद्धिोषी को,
प्रर्तकर के रूप में पीर्ड़त को ऐसी रकम का सांिाय करन ेका आिशे ि ेसकता ह,ै िो न्यायाधीश र्र्र्नर्ििष्ट करे । िबर्क प्रर्तकर की रकम
के, िो इस उपबांध के अधीन िी िा सकती ह,ै ऊपर कोई सीमा नहीं ह,ै उच्चतम न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया ह ै र्क धारा
357(3) के अधीन प्रर्तकर की रकम र्नयत करन ेमें न्यायालय को प्रत्यके मामलें के तथ्यों और पररस्र्थर्तयों, अपराध की प्रकृर्त,
िार् ेकी न्यायोर्चतता और अपराधी की सांिाय करन ेकी सामथ्िय को ध्यान में रखना चार्हए ।389
4.11.9 इस पर ध्यान िनेा आर्श्यक ह ै र्क धारा 357 के खांड (1) और (3) के अधीन प्रर्तकर केर्ल िोषकताि से और
िोषकताि का िोष स्थार्पत हो िाने के पश्चात् ही, र्सूलनीय ह ै।
4.11.10 ऐसे मामलों के सांबांध में कारिर्ाही करन ेमें, िहाां धारा 357 के अधीन प्रर्तकर की रकम पीर्ड़त को पुनर्ािर्सत करन ेके
र्लए यथोर्चत नहीं ह,ै390 या िहाां र्कसी िोषकताि की पहचान नहीं की गई ह,ै पता नहीं लगाया गया ह ैया उस ेर्सद्धिोषी नहीं ठहराया
गया ह,ै र्हाां धारा 357क यह उपबांध करती ह ै र्क राज््य अपराध के पीर्ड़तों के प्रर्तकर और पनुर्ािस के र्लए एक र्नर्ध का सृिन
करेगा । इस धारा के अधीन कें ि से परामशि करके राज््य सरकारों द्वारा एक स्कीम बनाए िाने की आर्श्यकता ह ैऔर राज््य को उस सकीम
के र्लए र्नर्ध आबांर्टत करनी होगी। कई राज््य स्कीमें 2008 में इसके अर्धर्नयमन के पश्चात् ही इस उपबांध के अधीन स्थार्पत की गई
हैं ।391
4.11.11 इस सांिभि में उच्चतम न्यायालय ने सरेुश बनाम हररयाणा राज््य392, में पीर्ड़त के प्रर्तकर से सांबांर्धत र्निशे िारी र्कए थे
और यह र्नयम बनाया था र्क :
हमें यह सूर्चत र्कया गया ह ैर्क 29 में से 25 राज््य सरकारों ने पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीमों को अर्धसूर्चत र्कया ह ै। स्कीमें
प्रर्तकर की अर्धकतम सीमा को र्र्र्नर्ििष्ट करती हैं और अर्धकतम सीमा के अधीन रहते हुए, मात्रा को र्र्र्नश्र्चत करन ेका
र्र्र्ेकार्धकार राज््य/र्िला र्र्र्धक प्रार्धकाररयों पर छोड़ र्िया गया ह ै। इस ओर हमारा ध्यान र्िलाया गया ह ैर्क यद्यर्प िांड
प्रर्िया सांर्हता की धारा 357क के अर्धर्नयमन के पश्चात् से 5 र्षि व्यतीत हो गए हैं, प्रर्तकर का र्िया िाना र्नयम नहीं
बना ह ैऔर अांतररम प्रर्तकर, िो र्क बहुत महत्र्पूणि ह,ै न्यायालयों द्वारा नहीं र्िया िा रहा ह ै। यह भी बताया गया ह ैर्क
प्रर्तकर की ऊपरी सीमा, िो कुछ राज््यों द्वारा र्नयत की गई ह,ै मनमान ेरूप से कम ह ैऔर र्र्धान के उद्दशे्य को ध्यान में
रखते हुए नहीं बनायी गई ह ै।
389 अांकुश र्शर्ािी गायकर्ाड बनाम महाराष्ट्र राज््य, एआईआर 2013 एससी 2454 । र्र्कास यािर् बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (2015) 218
डीएलटी(सीएन) 1 में र्िल्ली उच्च न्यायालय ने पीर्ड़त प्रर्तकर के सांबांध में र्र्र्ध को सांके्षर्पत र्कया और इस सांबांध में मागिर्निशेक तत्र्ों का उपबांध र्कया ।
390 िांड सांर्हता प्रर्िया के प्रयोिनों के र्लए पीर्ड़त की पररभाषा के र्लए िरे्खए धारा 2(डब्ल्यूए) िांड प्रर्िया सांर्हता।
391 िरे्खए अथाित् र्िल्ली पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीम, 2011, उड़ीसा पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीम, 2012, तर्मलनाडु पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीम, 2013 ।
392 (2015) 2 एससीसी 227 ।
75
हमारा ऐसा र्र्चार ह ै र्क यह न्यायालयों का कतिव्य ह ै र्क, र्कसी आपरार्धक अपराध का सांज्ञान लेते हुए, र्े यह
अर्भर्नश्र्चत करें र्क क्या अपराध का करना प्रिर्शित करने र्ाली मूति सामग्री ह,ै क्या पीर्ड़त पहचाने िाने योग्य ह ैऔर क्या
अपराध के पीर्ड़त को तुरांत र्र्त्तीय अनुतोष िने ेकी आर्श्यकता ह ै। र्कसी आर्ेिन पर या स्र्प्रेरणा से समाधान हो िाने
पर, न्यायालय को अांर्तम प्रर्तकर के पश्चातर्ती अर्धाररत र्कए िाने के अधीन रहते हुए, अांर्तम प्रर्तकर को िने ेके र्लए
र्निशे िनेा चार्हए। ऐसा कतिव्य प्रतयके आपरार्धक मामल ेके प्रत्यके प्रिम पर, िहाां प्रर्तकर र्िया िाना चार्हए और नहीं
र्िया गया ह,ै पीर्ड़त द्वारा र्िए गए आर्ेिन का ध्यान रखे र्बना, बना रहता ह ै। अांर्तम सुनर्ाई के प्रिम पर न्यायालय के
भाग पर यह बाध्यकारी ह ैर्क र्ह उपबांध की ओर ध्यान ि ेऔर यह र्नष्कषि अर्भर्लर्खत करे र्क क्या प्रर्तकर की मांिूरी के
र्लए कोई मामला बनाया गया ह ैऔर यर्ि ऐसा ह ैतो कौन और र्कतन ेप्रर्तकर के र्लए हकिार ह ै । ऐसे प्रर्तकर का
अर्धर्नणिय अांतररम हो सकता ह ै। अपराध की गांभीरता और पीर्ड़त की आर्श्यकता कुछ ऐसे मागिर्नििशक कारक हैं र्िन्हें,
ऐसे अन्य कारकों से पृथक, िो र्कसी व्यक्र्तगत मामल ेके तथ्यों और पररस्र्थर्तयों में ससुांगत पाए िाएां, ध्यान में रखा िाना
चार्हए ।
हमारा यह भी र्र्चार ह ैर्क प्रर्तकर के पमैाने में ऊपर की ओर पुनरीक्षण र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै और ऐसे र्र्चारण के
लांर्बत रहत हुए केरल राज््य द्वारा अपनी स्कीम में अर्धसूर्चत र्कया गया पैमाना, िब तक र्क र्कसी अन्य राज्य या सांघ
राज्यके्षत्र द्वारा अर्धर्नणीत र्कया गया पैमाना उच्चतर न हो, अपनाया िाए । आांध्र प्रिशे, मध्यप्रिशे, मघेालय और तेलांगाना
राज््यों को इस आिशे की एक प्रर्त की प्राप्र्त से एक मास के भीतर अपनी स्कीमें अर्धसूर्चत करने का र्निशे र्िया िाता ह ै
।393
4.11.12 तिनसुार, आयोग की यह राय ह ैर्क पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीम को, र्िसका उच्चतम न्यायालय द्वारा सरेुश में सझुार् र्िया गया
ह,ै कायािन्र्र्त र्कया िाए ।
अध्याय 5
मृत्यु से दडंनीय अपरािों में दडं देना
क. बिन वसंह ववरिना : मागटवनदवेशत वववेकाविकार और व्यक्वत ववशेष पर आिाररत दडं देना
5.1.1 क्या बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य394 (‘बचन र्सांह’) में न्यायालय को मृत्यिुांड की र्नम्नर्लर्खत चुनौर्तयों को सांबोर्धत करना
पड़ा था :
(1) भारतीय िांड सांर्हता की धारा 302 में हत्या के अपराध के र्लए उपबांर्धत मृत्यिुांड असांर्धैार्नक ह ै।
(2) यर्ि पूर्िगामी प्रश्न का उत्तर नकारात्मक हो, तो क्या िांड प्रर्िया सांर्हता, 1973 (1974 का अर्धर्नयम 2) में उपबांर्धत
िांड िने ेकी प्रर्िया इस आधार पर असांर्धैार्नक ह ैर्क र्ह न्यायालय में मागििशिन रर्हत और बाधा रर्हत र्र्र्ेकार्धकार को र्र्र्नर्हत
करती ह ैऔर भारतीय िांड सांर्हता के अधीन मृत्य ुसे या अनकुल्पत: आिीर्न कारार्ास से िांडनीय हत्या का अथर्ा र्कसी अन्य मृत्य ुसे
िांडनीय र्कसी अपराध का िोषी पाए गए र्कसी व्यक्र्त पर मनमान ेढांग से या सनकीपन से र्कसी मृत्यिुांडािशे को अर्धरोर्पत र्कए िाने
की अनजु्ञा ितेी ह ै।395
393 (2015) 2 एससीसी 227, पैरा 15-17 । 394 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684 । 395 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 15 पर ।
76
5.1.2 न्यायालय ने पहले प्रर्त र्र्रोध को अस्र्ीकार कर र्िया और इसके बिाय उसने पाया र्क मृत्यिुांड अनचु्छेि 19 और अनचु्छेि
21 में यकु्तता की अपेक्षा को पूरा करता ह,ै प्राथर्मक रूप से, क्योंर्क व्यक्र्तयों के एक बडे़ र्नकाय की यह राय ह ै र्क मृत्यिुांड एक
तार्कि क िांड ह ै। िसूरे के बारे में उसने उस र्चांता के बारे में कारिर्ाई की र्क िांड प्रर्िया सांर्हता न्यायालय को यह र्र्र्नश्र्चत करन ेमें र्क
र्कसी प्रस्तुत मामल ेमें मृत्यिुांड र्िया िाए या नहीं, मागििर्शित करन ेके र्लए र्र्धायी नीर्त से और साथ ही न्यार्यक उिाहरणों से र्सद्धाांत
लेकर ‘न्यायालय में मागििशिन रर्हत और बाधा रर्हत र्र्र्ेकार्धकार र्नर्हत करती ह ैऔर मृत्यिुांड को मनमाने ढांग से या सनकीपन से
अर्धरोर्पत करन ेके र्लए’396 अनजु्ञात करती ह ै।
5.1.3 मृत्यिुांड को मनमानेपन के िगुुिण से बचान ेके र्लए न्यायालय ने अत्यर्धक और बहुत कम न्यार्यक र्र्र्केार्धकार के बीच,
र्िनमें से िोनों का पररणाम मनमाने और अऋि ुिांड में हो सकता ह,ै कठोर मागि पर चलना चाहा । एक तरफ, न्यायालय ने अर्भर्नधािररत
र्कया र्क मृत्यिुांड के लागू र्कए िाने के र्लए कठोर और सीधा फामूिला या प्रर्गों को अर्धकर्थत र्कया िाना ‘न तो व्यर्हायि था और
न र्ाांछनीय’397 । कोई भी िो मामल े ‘िर्मकत: एक िसेै नहीं होते हैं और उनमें ’अनांत अपूर्िकथनीय और अप्रत्यार्शत
र्र्र्र्धताएां......................और अनर्गनत िम पररर्तिन तथा सम्र्मश्रण’ 398,एकल प्रर्गि के अपराधों तक में भी, होते हैं । एक
याांर्त्रकी सूत्रीय दृष्र्टकोण, िो आपरार्धकता की र्र्र्र्धताओां में अांशाांर्कत नहीं र्कया गया ह’ै399, एकल र्कस्म के या प्रर्गि के
अपराधों के र्लए भी, प्रकृर्त में न्यार्यक नहीं रह िाएगा । इसके बिाय ऐसा मानकीकरण ‘अांधी एकरूपता की बेिी पर न्याय का
बर्लिान’ कर िगेा400 और उसकी समाप्र्त ‘बलपूर्िक समता स्थार्पत करन ेर्ाली िूरता में हो सकती ह’ै ।401
5.1.4 इसी समय न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्र्धायी नीर्त ने र्निर्शित र्कया ह ैर्क र्नम्नर्लर्खत र्सद्धाांतों को हत्या के र्लए
समरु्चत मृत्यिुांडािशे का अर्धारण के र्लए न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार का मागििशिन करना चार्हए :
1. हत्या के अपराध के र्लए, आिीर्न कारार्ास र्नयम हैं और मृत्यिुांडािशे एक अपर्ाि ।
2. यह अपर्ािात्मक िांड र्कसी मामल ेमें गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों को, ‘अपराध की पररस्र्थर्तयों
और साथ ही ‘अपराधी की पररस्र्थर्तयों’ को ध्यान में रखते हुए, ‘अत्यर्धक आपरार्धकता के केर्ल गांभीरतम
मामलों में अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै।
3. िांड का मनमाना होन ेसे र्नर्ारण करन ेके र्लए न्यायालय ने इस दृष्र्टकोण का समथिन र्कया र्क गुरुतरकारी और कम
करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों का अर्धारण ‘समुान्यता प्राप्त र्सद्धाांतों पर...............र्िन्हें ऐसे न्यार्यक र्र्र्नश्चयों द्वारा
आकार र्िया गया हो, िो इस बात का उिाहरण ितेे हों र्क र्कसे उन मामलों में गुरुतरकारी या कम करन ेर्ाली
पररस्र्थर्तयाां माना गया था’,402 आधाररत होना चार्हए । इस प्रकार न्यायालय ने र्सद्धाांतपूणि िांड िने ेकी प्रर्िया को
र्र्र्हत र्कया और अर्भर्नधािररत र्कया र्क गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाले कारकों का अर्धारण अर्धाररत मानकों
पर, िो न्यार्यकपूणि र्नणियों की र्र्कासशील प्रर्िया के माध्यम से सृर्ित र्कए गए हों, आधाररत होगा ।
4. केर्ल तब, िब गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली पररर्सथर्तयों के र्र्श्लेषण ने, िसैा ऊपर र्निर्शित र्कया गया ह,ै मृत्य ु
के र्लए ‘अपर्ािातमक कारणों’ का उपबांध र्कया हो, क्या मृत्यिुांड न्यायोर्चत होगा, क्योंर्क ‘(क) मानर् िीर्न
की गररमा के र्लए र्ास्तर्र्क और स्थायी र्चांता, र्र्र्ध के माध्यम से िीर्न लेने का र्र्रोध करन ेका अर्धकार
396 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 15 पर । 397 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 195 पर । 398 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 172 पर । 399 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 173 पर । 400 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 173 पर । 401 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 173 पर । 402 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 165 पर ।
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माांगती ह ै। ऐसा र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम में के र्सर्ाय, िब आनकुल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत
हो, नहीं र्कया िाना चार्हए ।’403
5.1.5 अत: न्यायालय के अनसुार ऊपर िर्शित र्कए गए र्सद्धाांतों में हत्या के र्लए िांडािशे िने ेमें न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार के प्रयोग के
र्लए पयािप्त मागिर्निशेन र्िया गया ह ैऔर मृत्यिुांड को मनमानेपन के आरोप से बचा र्लया ह ै।
ख. बिन वसंह ववरिना का कायाटन्वयन
5.2.1 बचन र्सांह में न्यायालय की इस आशार्ार्िता के बार्िूि र्क इसके मागिर्निशेक र्सद्धाांत मृत्यिुांड को मनमानेपन से अर्धरोर्पत
र्कए िाने के खतरे को न्यूनतम करेंगे, यह र्चांता र्क मृत्यिुांड ‘मनमानेपन से या सनकीपन से’ अर्धरोर्पत र्कया िाता ह4ै04, भारत में
मृत्यिुांड सांबांधी न्यायशास्त्र को परेशान कर रही ह ै। र्पछली िशाब्िी में ही, आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य405 , स्र्ामी
श्रद्धानांि बनाम कनािटक राज््य,406 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य407 , मोहम्मि फारुख अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य408 ,
सांगीत बनाम हररयाणा राज््य409, शांकर खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य410 और अशोक िरे् र्माि बनाम र्त्रपरुा राज््य411 िसेै मामलों में,
उच्चतम न्यायालय ने अर्भस्र्ीकार र्कया र्क मृत्यिुांड का लागू र्कया िाना र्र्षयगत और मनमाना ह ैऔर यह र्क यद्यर्प बचन र्सांह में
‘र्सद्धाांतपूणि िांड िनेा’ आशर्यत था, र्कन्तु अब िांड िनेा र्ास्तर् में न्यायाधीश-कें र्ित हो गया ह ै।412 इस प्रकार इस न्यायालय द्वारा
‘मृत्यिुांड की पषु्र्ट या उसका लघुकरण न्यायपीठ का गठन करन ेर्ाल े न्यायाधीशों की अर्भरुर्च पर बहुत कुछ र्नभिर करता ह’ै413।
न्यायालय ने अपन ेभाग पर इसको ‘गांभीर स्र्ीकृर्त’414 मानते हुए सांतोष बररयार में स्र्ीकार र्कया र्क ‘इस बारे में असांगतता ह ैर्क
बचन र्सांह को कैसे कायािन्र्र्त र्कया गया ह ैक्योंर्क बचन र्सांह में र्सद्धाांतपूणि िांड िने ेकी और न र्क न्यायाधीश कें र्ित िांड िने ेकी आज्ञा
िी गई थी ।’415
5.2.2 इस पर र्टप्पणी करते हुए र्क ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ की बचन र्सांह र्ाली अर्सीमा को र्भन्न-र्भन्न रूप में और
असांगत रूप से लागू र्कया गया ह’ै 416 उच्चतम न्यायालय ने इस बात को मान्यता िी र्क ‘मामल ेप्रर्त मामले के आधार पर गुरुतरकारी
403 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 209 पर । 404 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 15 पर । 405 आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (2007) 12 एससीसी 230 ।
406 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767 ।
407 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498 ।
408 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641 ।
409 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452 ।
410 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546 ।
411 अशोक िबे्बारामा बनाम र्त्रपुरा राज््य, (2014) 4 एससीसी 747 (‘मनमानापन, र्र्भेि और असांगतता बहुधा बहुत बडे़ र्िखायी पड़ते हैं, िब हम
िांडािेश िनेे र्ाले कुछ न्यार्यक र्नणियों का र्र्श्लेषण करते हैं’)
412 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452, पैरा 33 पर ।
413 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767, पैरा 51 पर ।
414 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 54 पर ।
415 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 54 पर ।
416 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 109 पर ।
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और कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों के तुलनपत्र ने पयािप्त रूप से इतना अच्छा कायि नहीं र्कया ह,ै र्िससे र्क हमारी मृत्यु से िांड िने ेर्ाली
प्रणाली से मनमानेपन के िोष को हटाया िा सके ।’417 िहाां बचन र्सांह में यह अर्भर्नधािररत र्कया गया था र्क न्यायपूणि र्नणियों के
माध्यम से र्र्कर्सत समुान्यताप्राप्त र्सद्धाांत मृत्य ुसे िांडनीय अपराध के र्लए िांड िने ेमें न्यायालयों का मागििशिन करेंगे, मोहम्मि फारूख
में, उच्चतम न्यायालय ने स्र्ीकार र्कया र्क ‘मृत्यिुांड पर पूर्ि र्नणिय’ पृथक् र्नर्ािचनों के र्िन के अधीन स्र्यां र्बखर गए हैं
।’418
5.2.3 उन मामलों की गणना करते हुए, िहाां र्र्र्भन्न न्यायपीठें ऐसे मामलों में, िहाां समान तथ्य और पररस्र्थर्तयाां हैं419, र्र्परीत
रूप से र्र्रोधी पररणामों पर पहुांची हैं, उच्चतम न्यायालय ने मृत्य ु से िांडनीय अपराध में िांड िने ेमें, ‘ सांगतता की कमी’420 और
‘एकरूपता की कमी’421 को ‘न्याय के आपरार्धक प्रशासन की प्रणाली का घर्टया प्रर्तर्बांब’ बताया ह ै।422 न्यायालय ने इस बारे में
र्चांता व्यक्त की ह ैर्क ‘बचन र्सांह के अत्यर्धक असमानपूणि रूप से लागू र्कए िाने में मृत्य ुसे िांडनीय अपराध में िांड िने ेसांबांधी र्र्र्ध
में अर्नश्र्चतता की स्र्थर्त को िन्म र्िया ह,ै िो सांर्धैार्नक सम्यक् प्रर्िया और समानता के र्सद्धाांत के स्पष्ट रूप से र्र्रुद्ध ह ै।’ 423
5.2.4 बचन र्सांह में उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधीशों से ‘यह र्र्र्नश्चय करन ेमें र्क मृत्यिुांड को सिरै् से अर्धक सबस ेअर्धक
सार्धानी और मानर्ीय र्चांता के साथ अर्धरोर्पत र्कया िाए या नहीं, िभुिर कृत्य का र्नर्िहन करन ेकी अपेक्षा की थी ।’424 समान
भार्ना को, बररयार में प्रर्तध्र्र्नत करते हुए न्यायालय ने र्टप्पणी की र्क ‘इस र्नष्कषि को र्क मामला र्र्रले प्रर्गि के र्र्रलतम से
सांबांर्धत ह ैया नहीं, न्यार्यक सांयम और पूणित: के उच्चतम मानकों को पूरा करना चार्हए ।’425 तथार्प िसैा र्क न्यायालय ने समय-
समय पर माना ह ैर्क भारत के मृत्यिुांड सांबांधी न्यायशास्त्र में असांगतताओां की बहुतपरतें र्र्द्यमान हैं, िो मृत्य ुसे िांडनीय अपराधों का
र्र्र्नश्चय करन ेमें, िांड िने ेमें सांयम रखना कर्ठन बनाती हैं । अत्यर्धक आधारी स्तर पर, मृत्यिुांड सांबांधी न्यायशास्त्र, मृत्यिुांड के िांड
सांबांधी प्रयोिनों की र्र्र्भन्नतापूणि और बहुधा प्रर्तयोगी समझ को स्र्यां प्रिर्शित करता ह ै। चूांर्क इस पहलू पर पूर्ि अध्याय में र्र्चार कर
र्लया गया ह ै। अत: इस पर यहाां र्र्चार नहीं र्कया िाएगा ।426
5.2.5 इसके आगे यह ररपोटि भारत में मृत्य ुसे िांडनीय अपराध के र्लए िांड िनेे की वयर्स्था में मनमानेपन के सांबांध में र्चांताओां की
परीक्षा करेगी, िसैा र्क उच्चतम न्यायालय द्वारा स्र्यां र्र्र्शष्ट रूप से िशािया गया ह ैऔर र्िसकी र्र्द्वानों के हस्तके्षपों, आनभुर्र्क
आांकड़ों और तुलनात्मक िानकारी द्वारा अनपूुर्ति की गई ह ै।
(i) सैद्धावंतक ववरिना
417 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 109 पर ।
418 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 165 पर ।
419 नीचे िरे्खए ।
420 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767, पैरा 52 पर ।
421 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767, पैरा 52 पर ।
422 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767, पैरा 52 पर ।
423 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 110 पर ।
424 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 209 पर ।
425 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 61 पर । 426 ऊपर अध्याय 4 िरे्खए ।
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5.2.6 बचन र्सांह में न्यायालय ने व्यक्र्त पर आधाररत र्कनत ु र्सद्धाांतपूणि िांड िने े के महत्र् पर िोर र्िया था । न्यायालय ने यह
अर्भर्नधािररत करते हुए र्क एकल प्रर्गि के अपराधों में भी अनन्य अनर्गनत िम पररर्तिन और सम्र्मश्रण ह,ै ऐसे अपराधों के र्लए,
र्िनके र्लए मृत्यिुांड लागू होगा, प्रर्गों का सृिन करन ेसे इांकार कर र्िया था । इसके बिाय न्यायालय ने न्यायाधीशों से यह अपेक्षा की
र्क र्े िांडािशे का र्नधािरण करने में अपराध और साथ ही अपराधी, िोनों की गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों को प्रत्यके
व्यक्र्तगत मामलें में, ध्यान में रखे । इस बात को मान्यता ितेे हुए र्क अपराध और अपराधी से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयाां बहुधा ‘इतनी
परस्पर र्मली हुई होती हैं र्क उनमें से प्रत्यके के साथ पृथक् व्यर्हार करना कर्ठन होता ह’ै427, न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क
‘अपराध की पररस्र्थर्तयों और अपराधी की पररस्र्थर्तयों पर िो पृथक् पूणिरूप से बांि कक्षों के रूप में, र्र्चार करना र्ाांछनीय नहीं ह ै
।’428 तथार्प, पश्चातर्ती मामलों में न्यायालय ने बचन र्सांह सांबांधी अपेक्षाओां को र्र्र्भन्न र्नर्ािचन र्िए हैं और र्र्र्भन्न न्यायाधीशों ने
बचन र्सांह र्ाली आज्ञा को र्भन्न-र्भन्न रूपों में समझा ह ै।
क. माछी वसंह
5.2.7 बचन र्सांह के तीन र्षों के पश्चात् उच्चतम नयायालय के तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने माछी र्सांह बनाम पांिाब राज््य429
(‘माछी र्सांह’) में ऐसे पाांच र्गों के मामल ेसूचीबद्ध र्कए, र्िनके र्लए मृत्यिुांड उपयकु्त र्र्कल्प था । न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया
र्क मृत्यिुांड र्हाां अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह,ै िहाां समाि की ‘सामूर्हक चेतना’430 को इतना धक्का लगता ह ै‘र्क र्ह न्यार्यक
शक्र्त कें ि के धारकों से मृत्यिुांड िने ेकी अपेक्षा करती ह ै।’431 न्यायालय के अनुसार ‘समिुाय ऐसी भार्नाओां में उस समय बह सकता
ह,ै िब अपराध को, उसके र्लए हतेुक की दृष्र्ट से या अपराध के र्कए िाने की रीर्त से अथर्ा अपराध की गैर सामार्िक या घृणात्मक
प्रकृर्त की दृष्र्ट से, िखेा िाता ह ै।’432
427 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 201 पर । 428 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 201 पर । 429 माछी र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 3 एससीसी 470 ।
430 माछी र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 3 एससीसी 470, पैरा 32 पर ।
431 माछी र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 3 एससीसी 470, पैरा 32 पर ।
432 माछी र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 3 एससीसी 470, पैरा 33-37 पर, इन प्रर्गों को ब्यौरेर्ार र्नम्नर्लर्खत रूप में स्पष्ट र्कया : हत्या करने की
रीर्त : िब हत्या अत्यर्धक िूर, बबिर, िरुाचारपूणि, र्र्िोही या डरपोक रीर्त से की गई ह,ै र्िससे र्क र्ह समाि के गहरे और अत्यर्धक आिोश को िन्म ि े।
उिाहरण के र्लए I (i) िब पीर्ड़त का घर उसको घर में र्िन्िा िलाने की दृष्र्ट से िला र्िया िाता ह ै; (ii) िब पीर्ड़त को अमानर्ीय यातना िी िाती ह ैया
िूरता से उसके साथ व्यर्हार र्कया िाता ह ैर्िससे र्क उसकी मतृ्यु हो सके; (iii) िब पीर्ड़त का शरीर टुकड़ों में काटा िाता ह ैया उसके शरीर का पैशार्चक
रीर्त से अांग र्र्च्छेि र्कया िाता ह ै;
II हत्या करने के र्लए हतेु- िब हत्या ऐसे हते ुके र्लए की िाती ह ैिो पूणि बबिरता और कमीनेपन को प्रिर्शित करता ह ै। उिाहरण के र्लए – िब (क) कोई भाड़े
का हत्यारा धन या ईनाम के र्लए हत्या करता ह ै; (ख) र्कसी रर्क्षत व्यक्र्त की या हत्यारे के र्नयांत्रण के अधीन व्यक्र्त की या उसकी तुलना में, उसकी िो हत्यारे
के आर्धपत्य में ह ैया उसके र्लए हत्यारा र्र्श्र्ास की र्सथर्त में ह,ै सांपत्र्त को उत्तरार्धकार में पाने या उसके ऊपर र्नयांत्रण पाने के र्लए िानबूझकर योिना बनाकर
उसकी र्निियतापूर्िक हत्या करता ह ै; (ग) कोई हत्या मात्रभूर्म से िोह करने के अनुिम में की िाती ह ै।
III अपराध की गैर सामार्िक या सामार्िक रूप से घणृास्पि प्रकृर्त (क) िब र्कसी अनुसरू्चत िार्त या अल्पसांख्यक समिुाय आर्ि के व्यक्र्त की हत्या,
व्यक्र्तगत कारणों से नहीं, र्कन्तु ऐसी पररर्सथर्तयों में िो सामार्िक गुस्से को भड़काती हैं, की िाती ह ै। उिाहरण के र्लए, िब ऐसा कोई अपराध ऐसे व्यक्र्तयों
को डराने और उन्हें भयभीत करने के र्लए, र्िससे र्क रे् एक स्थान से चले िाएां या र्पछले अन्यायों को उलटने की दृष्र्ट से उन्हें र्ांर्चत करने और सामार्िक
सांतुलन को प्रत्यार्र्तित करने के िम में, की िाती ह ै।
(ख) ‘िलु्हन को िलाने’ के मामलों में और उनमें र्िन्हें ‘िहिे मतृ्यु’ के रूप में िाना िाता ह ैया पुन: िहिे र्नष्कर्षित करने के र्लए या सम्मोहन के कारण र्कसी
िसूरी स्त्री से र्र्र्ाह करने के र्लए, िोबारा र्र्र्ाह करने के िम में, हत्या की िाती ह ै।
80
5.2.8 माछी र्सांह ने इस प्रकार र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम र्सद्धाांत के लागू र्कए िान ेको पाांच र्भन्न प्रर्गों के र्लए र्नश्र्चत कर
र्िया, र्िससे र्क बचन र्सांह में स्पष्ट रूप से र्र्रत रहा गया था । िसैा र्क उच्चतम न्यायालय ने स्र्ामी श्रद्धानांि में र्टप्पण र्कया र्क
माछी र्सांह ने ‘मृत्यिुांड को अर्धरोर्पत करन ेके र्लए के्षत्र का पयािप्त रूप से र्र्स्तार कर र्िया था’433, उससे परे, र्िसकी बचन र्सांह में
पररकल्पना की गई थी ।
ख. अपराि कें वित फोकस
5.2.9 माछी र्सांह प्रर्गि केर्ल अपराध की पररस्र्थर्तयों से सांबांर्धत हैं । िबर्क न्यायालय ने यह कहा र्क िांड िने ेर्ाल ेन्यायाधीश को
कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों को भी पूणि र्िन प्रिान करना चार्हए, पश्चातर्ती मामलों में बहुत से न्यायाधीशों ने माछी र्सांह में बनाए
गए प्रर्गों का ऐसी रीर्त से आह्वान र्कया ह ैिो सझुार् ितेा ह ैर्क एक बार यर्ि कोई मामला 5 प्रर्गों में से र्कसी में आ िाता ह,ै तो
र्ह मृत्यिुांड के योग्य र्र्रल े मामलों में से र्र्रलतम हो िाता ह ै ।434 इसका एक उिाहरण िरे्ेंिपाल र्सांह बनाम राष्ट्रीय रािधानी
राज््यके्षत्र435 ह,ै िहाां बहुमत ने माछी र्सांह प्रर्गों को उद्धत र्कया था और यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क अपराध की पररस्र्थर्तयाां
(अपराधी की पररस्र्थर्तयों के सांबांध में कोई र्र्चार-र्र्मशि र्कए र्बना) ऐसी थीं र्क िो मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कए िाने की अपेक्षा करती
थीं । र्नश्र्चत रूप से र्र्सम्मत न्यायाधीश ने इस मामलें में अपराधी को िोषमुक्त कर र्िया था, र्कनतु इस कारक पर बहुमत द्वारा यह
र्र्र्नश्चय करन ेमें र्क र्ह मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ में से एक था, र्र्चार नहीं र्कया गया था ।
5.2.10 माछी र्सांह और पश्चातर्ती ऐसी पांर्ि के मामलों में अपराध की पररर्सथर्तयों, प्रकृर्त, रीर्त और हतेुक पर, अपराधी की
पररस्र्थर्तयों को या सधुार की सांभार्ना को, िसैा बचन र्सांह र्सद्धाांत के अधीन अपेर्क्षत ह,ै ध्यान में रखे र्बना, ध्यान कें र्ित र्कया गया
। माछी र्सांह के आगे के मामलों में बहुत सांख्या में ऐसे मामलें सम्र्मर्लत हैं, र्िनमें न्यायालय ने यह र्र्र्नश्र्चत र्कया ह ैर्क केर्ल यह
परीक्षा करके र्क अपराध र्कतना िूर, िरुाचारपूणि या पशैार्चक ह,ै र्िससे र्क ‘समिुाय की सामूर्हक चेतना को धक्का लगता ह’ै,
मृत्यिुांड र्िया िाए या नहीं ।436 न्यायालय ने बररयार में इस बात को मान्यता िी र्क न्यायाधीश ‘गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली
IV हत्या का पररमाण : िब हत्या अनुपात में र्र्शाल ह ै। उिाहरण के र्लए िब बहु हत्याएां अथाित् र्कसी पररर्ार के सभी सिस्यों की या अर्धकाांश की या र्कसी
र्र्र्शष्ट िार्त, समिुाय या पररके्षत्र के व्यक्र्तयों की, की िाती हैं ।
V हत्या के पीर्ड़त का व्यक्र्तत्र् : िब हत्या का पीर्ड़त (क) एक र्निोष बालक ह,ै िो कोई बहाना नहीं बना सकता था या र्िसने नहीं बनाया ह,ै िहाां हत्या के
र्लए बहुत ही कम उत्तेिना ह,ै (ख) कोई असहाय स्त्री या र्ृद्धार्स्था अथर्ा अशक्तता के कारण असहाय कोई व्यक्र्त (ग) िब कोई पीर्ड़त ऐसा व्यक्र्त ह,ै
र्िसकी तुलना में हत्यारा उसे आर्धपत्य में लेने की या उसके र्र्श्र्ास में होने की स्र्थर्त में ह,ै (घ) िबर्क पीर्ड़त कोई सार्ििर्नक कोई व्यक्र्त ह,ै र्िसे समाि
द्वारा उसके द्वारा की गई सेर्ाओ ां के र्लए प्यार र्कया िाता ह ैऔर उसका आिर र्कया िाता ह ैऔर हत्या व्यक्र्तगत कारणों से र्भन्न रािनैर्तक या समरूप कारणों
से की िाती ह ै।
433 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767 ।
434 िरे्खए उिाहरण प्रिीप कुमार र्सांह बनाम र्बहार राज््य (2008) 4 एससीसी 434, िहाां न्यायालय ने माछी र्सांह के कारकों का उिाहरण र्िया था और र्फर
अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्तिमान मामले में अपराध की र्र्शालता सार्ििर्नक रूप से र्लखी हुई ह ै। अपराधी अपीलाथी ने बहुत सी हत्याएां की और 3 सार्क्षयों पर
आिमण र्कया ...................इस कायि की बबिरता उस रीर्त से बढ गई र्िसमें उस घर के सभी रहने र्ालों पर आिमण र्कया गया ह,ै र्िसमें असहाय पीर्ड़तों की
हत्या की गई ह,ै िो इस तथ्य को िर्शित करती ह ैर्क यह कायि र्र्चारों में सर्ोच्च शे्रणी का पैशार्चक कायि था और र्नष्पािन में िूरतापूणि था तथा र्कसी आधाररक
मानर्ता की धारणा के अांतगित नहीं आता ह ैिो उसकी ऐसी मानर्सक स्र्थर्त को िर्शित करता ह,ै र्िसे र्कसी सुधार के योग्य नहीं कहा िा सकता ।’ अपराध की
प्रकृर्त स्र्यां इस बात को िर्शित करने र्ाली अर्भर्नधािररत की गई ह ैर्क र्ह व्यक्र्त सधुार से परे ह ै।
435 िरे्ेंि पाल र्सांह बनाम राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, (2002) 5 एससीसी 234 । 436 एक उिाहरण सुडान @ राहुल कर्नराम िाधर् बनाम महाराष्ट्र राज््य (2011) 7एससीसी 125, पैरा 22 पर ह ै , िहाां अर्भयुक्त एक स्त्री और 4
बालकों की हत्या करने के र्लए िोषर्सद्ध ठहराया गया था । न्यायालय ने िखेा र्क अपराध पूर्िर्चांतन करके र्कया गया था और अर्भर्नधािररत र्कया र्क तथ्य यह
81
पररस्र्थर्तयों पर बहुत कम उद्दशे्यपूणि र्र्चार – र्र्मशि करते हैं’ ।437 ऐसे अर्धकाांश मामलों में न्यायालय अपराध के सूचकाांक की
िूरता पर र्र्चार करते रह ेहैं । समान रूप से सांगीत में न्यायालय ने इस बात को मान्यता िी र्क बचन र्सांह के बार्िूि, प्राथर्मकता
अभी भी अपराध की प्रकृर्त को िी िाती हुई प्रतीत होती ह ै। अपराधी की पररस्र्थर्तयाां, िो बचन र्सांह में र्नर्ििष्ट की गई ह,ै िांड िने े
र्ाली प्रर्िया की पृष्ठभूर्म में िाती हुई प्रतीत होती हैं ।’438
5.2.11 बररयार में न्यायालय ने रर्िी एर्लयाश रामचांि बनाम रािस्थान राज््य439 में र्र्र्नश्चय की परीक्षा की । िहाां उसन े
अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
‘यह अपराध की, न र्क अपराधी की प्रकृर्त और गांभीरता ह ैिो आपरार्धक र्र्चारण में समरु्चत िांड के र्र्चारण के र्लए
समरु्चत अांग हैं ......................र्कसी अपराध के र्लए र्िए िाने र्ाले िांड को उस नृशांसता और िूरता के, र्िससे र्ह
अपराध र्कया गया ह,ै सार्ििर्नक घृणा को उर्चत ठहराने र्ाली अपराध की र्र्शालता के, अनरुूप और सांगत होना चार्हए
और उस ेअपराधी के र्र्रुद्ध न्याय के र्लए समाि की पकुार का उत्तर’ िनेा चार्हए ।440
5.2.12 बररयार ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क रर्िी में अपराध पर अनन्य रूप से ध्यान कें िण से इस र्र्र्नश्चय ने बचन र्सांह को
असार्धानता से र्कया गया बना र्िया था । न्यायालय ने 6 मामलों को सूचीबद्ध र्कया िहाां रर्िी को अपनाया गया था और र्िनहोंने
इस कारण गलत पूर्ि र्नणिय पर भरोसा र्कया था ।
5.2.13 समान रूप से उच्चतम न्यायालय ने धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य441 में मृत्यिुांड के अर्धरोपण के ठीक होने पर
खाि ेमें सांिहे प्रकट र्कया, िहाां न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया था र्क प्रस्तुत मामले में िांड के पमैाने को अपराध की नृशांसता पर
; अपराधी के आचरण और पीर्ड़त के रक्षा रर्हत और सांरक्षण रर्हत होने की स्र्थर्त पर र्नभिर होना चार्हए । समरु्चत िांड का अर्धरोपण
र्ह रीर्त ह,ै र्िसमें न्यायालय अपरार्धयों के र्र्रुद्ध न्याय के र्लए समाि की पुकार का उत्तर ितेा ह ै।’442 खाि ेमें न्यायालय ने यह मत
व्यक्त र्कया र्क प्रथमदृष्टया र्नणिय में अपराधी से सांबांर्धत कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों को ध्यान में नहीं रखा गया था । धनन्िय चटिी
को 2004 में फाांसी िी गई थी ।
िर्शित करते हैं र्क ‘अपराध पशतुुल्य, अत्यर्धक बबिरतापूणि, पैशार्चक और भयानक रीर्त से र्कया गया ह ै। इसके पररणामस्र्रूप समुिाय में गहरा और अत्यर्धक
रोष ह ैऔर इसने समाि की सामरू्हक चेतना को झकझोर र्िया ह ै। हमारी यह राय ह ैर्क अपीलाथी समाि के र्लए अर्भशाप ह,ै र्िसका सधुार नहीं र्कया िा
सकता । हमारी राय में कमतर िांड खतरे से भरा हुआ होगा, चूांर्क र्ह समाि को एक बार र्फर अपीलाथी के हाथों में खतरे के र्लए अनार्ृत्त करेगा ।’ न्यायालय ने
र्कसी भी कम करने र्ाली पररस्र्थर्त का न तो उल्लेख र्कया न उसके बारे में चचाि की ।
437 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 71 पर ।
438 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452, पैरा 34 पर ।
439 रर्िी इर्लयास राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175 ।
440 रर्िी इर्लयास राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175, पैरा 124 पर । सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6
एससीसी 498, पैरा 63 पर, बचन र्सांह में अनर्धानता हुई ।
441 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल, (1994) 2 एससीसी 220 ।
442धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल, (1994) 2 एससीसी 220, पैरा 15 पर । इस र्र्र्नश्चय का अनन्य कें ि अपराध पर और न र्क अपराधी पर होने के
बारे में शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546 में प्रश्न र्कया गया था ।
82
5.2.14 सांगीत में भी न्यायालय ने अर्तररक्त तीन मामलों पर ध्यान र्िया, र्िनमें गुरुतरकारी और कम करने र्ाली िोनों पररस्र्थर्तयों
पर र्र्चार करन ेके र्लए बचन र्सांह में र्िए गए र्निशे को नहीं अपनाया गया था ।443
5.2.15 उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मान्यता के बार्िूि र्क उसने उन मामलों में गलती की थी िहाां केर्ल अपराधी की
पररस्र्थर्तयों को न र्क अपराधी की पररस्र्थर्तयों को ध्यान में रखा गया था, न्यायाधीश केर्ल पूर्ि र्र्चारणों पर आधाररत मृत्यिुांड को
अर्धरोर्पत कर रह ेहैं ।444
ग. सामूवहक िेतना को िक्का और न्याय के वलए समाज की पुकार
5.2.16 माछी र्सांह ने भारत के मृत्यिुांड सांबांधी न्याय शास्त्र की शब्िार्ली में समाि की ‘सामूर्हक चेतना को धक्का’445 धारणा को
यह र्र्र्नश्चय करन ेके र्लए कसौटी के रूप में प्रारांभ र्कया र्क मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िाए या नहीं । समान धारणाओां िसेै ‘न्याय के
र्लए समाि की पकुार’446 और ‘अपराध के प्रर्त िनता की घृणा’447 का भी न्यायालय द्वारा पश्चातर्ती मामलों में आह्वान र्कया गया
ह ै। बचन र्सांह में स्पष्ट रूप से चेतार्नी िी गई की :
न्यायाधीशों को िनता की राय का भर्र्ष्य र्क्ता या प्रर्क्ता होन े का िार्यत्र् अपने ऊपर नहीं लेना
चार्हए........................िब न्यायाधीश अपन ेऊपर आचरण के सामार्िक सांन्र्नयम स्थार्पत करन ेका िार्यत्र् लेते हैं,
तब, समाि में स्र्च्छांि रूप से र्र्द्यमान सही और गलत धारणाओां का तार्कि क अनमुान लगाने के र्लए प्रत्यके प्रयास करन े
443 र्शर्ु र्ी. महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713 ; रािेंि प्रलहािरार् र्ासर्नक बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2012) 4
एससीसी 37 ; मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 5 एससीसी 317 ।
444 उिाहरण िरे्खए, सांिीप बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (2012) 6 एससीसी 107 ; अिीतर्सांह हरनामर्सांह गुिराल बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2011) 14
एससीसी 401 ।
445 माछी र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 3 एससीसी 470, पैरा 32 पर ।
446 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (1994) 2 एससीसी 220, िमील बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2010) 12 एससीसी 532 ; मध्य प्रिेश
राज््य बनाम बसोडी, (2009) 12 एससीसी 318 ; बांटू बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2008) 1 एससीसी 113 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य
(2008) 7 एससीसी 561 ; मध्य प्रिशे राज््य बनाम सलीम, (2005) 5 एससीसी 554 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम श्री कृष्ण, (2005) 10 एससीसी
420 ; िय कुमार बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (1999) 5 एससीसी 1 ; रर्िी बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175 ; भेरू र्सांह बनाम
रािस्थान राज््य, (1994) 2 एससीसी 467 ; मध्य प्रिशे राज््य बनाम शेख शार्हि, (2009) 12 एससीसी 715 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतान @
सत्येंि, (2009) 4 एससीसी 736 ; मध्य प्रिेश राज््य बनाम सांतोष कुमार, (2006) 6 एससीसी 1 ; शलैेष िसर्ांतभाई बनाम गुिरात राज््य, (2006)
2 एससीसी 359 ।
447 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (1994) 2 एससीसी 220, िमील बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2010) 12 एससीसी 532 ; मध्य प्रिशे
राज््य बनाम बसोडी, (2009) 12 एससीसी 318 ; बांटू बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2008) 1 एससीसी 113 ; मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य
(2008) 7 एससीसी 561 ; मध्य प्रिेश राज््य बनाम सलीम, (2005) 5 एससीसी 554 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम श्री कृष्ण, (2005) 10 एससीसी
420 ; िय कुमार बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (1999) 5 एससीसी 1 ; रर्िी बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175 ; भेरू र्सांह बनाम
रािस्थान राज््य, (1994) 2 एससीसी 467 ; मध्य प्रिशे राज््य बनाम शेख शार्हि, (2009) 12 एससीसी 715 ; उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतान @
सत्येंि, (2009) 4 एससीसी 736 ; मध्य प्रिेश राज््य बनाम सांतोष कुमार, (2006) 6 एससीसी 1 ; शलैेष िसर्ांतभाई बनाम गुिरात राज््य, (2006)
2 एससीसी 359 ।
83
के बार्िूि इसका खतरा रहता ह ैर्क र् ेअपन ेर्र्र्शष्ट र्र्चार या व्यक्र्तगत अर्धमान को र्नष्कपटतापूर्िक गलती से समाि
के नरै्तक र्नयमों के रूप में िखेते हुए, र्र्र्ध में र्लख सकते हैं । ‘समाि के मानकों की धारणा या नरै्तक र्नयम एक
न्यायाधीश से िसूरे न्यायाधीश के र्लए र्भन्न हो सकते हैं । । न्यायाधीशों के पास र्नश्र्चत रूप से िनता की इच्छा का सही-
सही अनमुान लगाने के र्लए कोई अनमुान लगाने र्ाली छड़ी नहीं ह ै।448
5.2.17 तथार्प माछी में और पश्चातर्ती मामलों में िनता की राय को ‘सामूर्हक चेतना’ , ‘समाि की पकुार’ और ‘िनता की
घृणा’ के स्पष्ट मानकों के सांर्ध-योिन के माध्यम से िांड िने ेर्ाले न्याय शास्त्र में महत्र्पूणि भूर्मका करने के र्लए िी गई ह ै।
5.2.18 बररयार में उच्चतम न्यायालय ने र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम के र्र्श्लेषण में ऐसी ‘िनता की राय’ को कारक बनाने की
ससुांगतता और र्ाांछनीयता पर प्रश्न र्कया था क्योंर्क प्रथमत: र्नश्र्चत रूप से यह पररभार्षत करना कर्ठन ह ैर्क र्कसी प्रसतुत मामल ेपर
र्ास्तर् में ‘िनता की राय’ क्या ह ै। इसके अर्तररक्त िनता की अपराध की धारणा ‘न तो अपराध से और न अपराधी से’ सांबांर्धत
उद्दशे्यपूणि पररस्र्थर्त ह ै।449 इस प्रकार यह कारक बचन र्सांह450 द्वारा आज्ञा र्िए गए र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम के र्र्श्लेषण से
असांगत ह ै । तीसरे िसैा र्क बररयार में भी बताया गया ह ै न्यायालय सांर्धैार्नक रक्षोपायों द्वारा शार्सत होते हैं, िो राज््य द्वारा अपनी
र्र्र्भन्न हरै्सयतों में िनता के साथ, र्िनके अांतगित र्सद्धिोषी भी हैं, ‘व्यर्हार करन ेमें आह्वान की िाने र्ाली प्रर्िया के सांबांध में
ऋितुा, यकु्र्तयकु्तता और समान व्यर्हार की चुनौती के अनसुार सांस्थागत और्चत्य के मूल्यों को प्रारांभ करते हैं।’451 उिाहरण के र्लए
न्यायालय बहुमत र्ाल ेमनोर्ेगों के र्र्रुद्ध व्यक्र्तगत अर्धकारों की रक्षा करन ेमें बहुमत र्ाली भूर्मका का प्रर्तर्र्रोध करता ह ै। र्कसी
प्रस्तुत मामल ेमें िनता की राय र्र्र्ध के शासन के मूल्यों और सांर्धैार्नकता के, र्िसके द्वारा न्यायालय तथार्प आबद्ध हैं, र्र्रुद्ध िा
सकती ह ै।452
5.2.19 िांड िने ेर्ाले र्कसी न्यायालय के पास र्कसी प्रस्तुत मामल ेमें िनता की राय की कठोर रूप से परीक्षा करन ेके साधन नहीं
होते हैं । यह भी र्क कोई सांसक्त, सांबद्ध और दृढ ‘िनता की राय’ एक कल्पना ह ै। िनता के सिसयों की राय चांचल और गलत सूचना
पर आधाररत हो सकती ह ैक्योंर्क ‘िनता को न केर्ल र्कसी व्यक्र्तगत मामल ेके तथ्य र्िए िाते हैं र्कनतु स्र्यां आपरार्धक न्याय
प्रर्िया के बारे में भी बताया िाता ह ै। अत: िनता की राय पर ध्यान कें र्ित करन ेसे ‘मृत्यिुांड िनेा मीर्डया के र्लए आकषिक दृश्य बनने
का खतरा रखता ह ै। यर्ि मीर्डया द्वारा र्र्चारण की सांभार्ना ह,ै तो मीर्डया द्वारा िांड िने ेको भी अर्धै नहीं ठहराया िा सकता ।453
ऐसी पररस्र्थर्तयों में सांर्धैार्नक मानकों और रक्षोपायों पर ध्यान कें र्ित करन ेके बिाय िनता की राय का आह्वान करना बचन र्सांह में
र्र्सतार से बताई गई सांपूणि र्र्चरना को र्र्फल कर िगेा ।454 रमेंश भाई राठौर बनाम गुिरात राज््य455 में एक राय ने यह माना र्क,
448 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 126 पर । 449 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 80 पर । 450 मोर्हन्िर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (2013) 3 एससीसी 294 में िोहराया गया । 451 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 82 पर । 452 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498 । 453 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 87 पर ।
454 यह भी िरे्खए अपणाि चन्ि, एक सनकी कैि, 2 राष्ट्रीय र्र्र्ध र्र्श्र्र्र्द्यालय, र्िल्ली का िरनल 124 (2014) (‘कोई न्यायालय र्र्र्ध का न्यायालय है
न र्क सार्ििर्नक राय का न्यायालय । र्न:सांिेह न्यायाधीश समाि का सिृन हैं और उन पर उसका प्रभार् पडे़गा । र्कन्तु सार्ििर्नक राय का मतृ्युिांड िनेे की
औपचाररक र्र्रचना में सांकेत िनेा उसे र्निशेात्मक र्िन ितेा ह,ै िो समस्यामलूक ह ै। यर्ि िनता की राय िांड िनेे के प्रश्न पर महत्र् रखती ह ैतो न्यायालय िांडािशे
का अर्धारण करने के र्लए गलत सांस्थाएां हैं । सांसि ्या तुरांत न्याय करने र्ाली भीड़ अर्धक र्र्रोधी हैं’)।
455 रमेशभाई राठौड़ बनाम गुिरात राज््य,(2009) 5 एससीसी 740 (पीईआर गाांगुली, िे)
84
न्यायालय ध्यानपूर्िक र्र्चार करन ेकी इस अपेक्षा पर र्क क्या अपराध करन ेर्ाला व्यक्र्त समाि के र्लए खतरा ह,ै र्कए गए
अपराधों की प्रकृर्त के बारे में र्तरस्कार की भार्नाओां को प्राथर्मकता नहीं ि ेसकता । न्यायालय को इस बात पर अर्श्य
र्र्चार करना चार्हए र्क क्या अपराध करन ेर्ाले व्यक्र्त के सधुार या पनुर्ािस की कोई सांभार्ना ह ैऔर र्ह िांड िने ेर्ाली
प्रर्िया के मूल में होनी चार्हए । यही केर्ल र्ह दृष्र्टकोण ह ैिो मृत्यिुांड को ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम में रख सकता
ह’ै ।456
5.2.20 हरेश मोहनिास रािपूत बनाम महाराष्ट्र राज््य457 में उच्चतम न्यायालय ने इस बात को मान्यता िी र्क माछी र्सांह के ‘समाि
की सामूर्हक चेतना को धक्का िनेे’458 के आह्वान ने यह मूल्याांकन करने के र्लए र्क कोई मामला मृत्य ुके योग्य ह ैया नहीं, र्र्रल े
मामलों में से र्र्रलतम सूत्र का उससे परे, र्िसकी बचन र्सांह में पररकल्पना की गई थी, र्र्सतार र्कया । तथार्प, िसैा नीचे र्र्चार र्र्मशि
र्कया गया ह,ै इस अर्भसर्ीकृर्त के बार्िूि न्यायालय मृत्यिुांड िने ेके र्लए आधार के रूप में समिुाय की प्रर्तर्ियाओां और िनता की
राय का आह्वान करता रहा ह ै।459
घ. अपराि परीक्षण, आपराविक परीक्षण और ववरले में से ववरलतम का परीक्षण
5.2.21 अभी हाल के मामलों में उच्चतम न्यायालय ने बचन र्सांह र्सद्धाांत के िसूरे सूत्र का सांर्धयोिन करके इस र्चांता का उत्तर
र्िया ह ै र्क मृत्यिुांडािशे िनेा ‘न्यायाधीश कें र्ित’ ह ै । न्यायालय ने गुरुर्ेल र्सांह@ गाला बनाम पांिाब राज््य460 िसेै मामलों में यह
अर्भर्नधािररत र्कया ह ैर्क मृत्यिुांड र्िए िाने के पूर्ि तीन परीक्षणों का समाधान र्कया िाना होगा : अपराध परीक्षण, र्िसका तात्पयि ह ै
मामल ेकी गुरतरकारी पररस्र्थर्तयाां ; आपरार्धक परीक्षण, र्िसका तात्पयि ह ै र्क अपराधी का पक्ष लेने र्ाली कोई कम करन ेर्ाली
पररस्र्थर्तयाां नहीं होनी चार्हए ; और यर्ि िोनों परीक्षणों का समाधान हो िाता ह,ै तब र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम का परीक्षण, ‘िो
समाि के दृष्र्टकोण पर र्नभिर करता ह ैन र्क न्यायाधीश कें र्ित’ पर, अथाित् क्या समाि कर्तपय प्रकार के अपराधों के र्लए मृत्यिुांड िने े
का अनमुोिन करेगा या नहीं । इस परीक्षण को लागू करते हुए न्यायालय को र्र्र्भन्न प्रकार के कारणों को िखेना होता ह,ै िसेै कर्तपय
प्रकार के अपराधों के प्रर्त समाि की घृणा, अत्यर्धक आिोश और र्चढ’ ।461 इस परीक्षण को स्पष्ट करते हुए न्यायालय ने मोर्फल
बनाम झारखांड राज््य462 में कहा र्क इस परीक्षण को ‘आधारभूत रूप से इस बात की परीक्षा करनी ह ैर्क क्या समाि ऐसे अपराधों से
घृणा करता ह ैऔर क्या ऐसे अपराध समाि की चेतना को धक्का पहुांचाते हैं और समाि के गहरे और अत्यर्धक आिोश को आकर्षित
करते हैं।’463
456 रमेशभाई राठौड़ बनाम गुिरात राज््य,(2009) 5 एससीसी 740, पैरा 108 पर ।
457 हरेश मोहनिास रािपूत बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2011) 12 एससीसी 56 ।
458 हरेश मोहनिास रािपूत बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2011) 12 एससीसी 56, पैरा 20 पर ।
459 यह भी िरे्खए, र्सांत सांपत डुपरे बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2015) 1 एससीसी 252 3 (इस मदु्द ेपर हषि रािपूत को उद्धतृ करते हुए र्क माछी र्सांह ने
‘सामरू्हक चेतना’ की सांकल्पना की शरुुआत करके बचन र्सांह र्ाले सूत्र के परे र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम र्सद्धाांत का र्र्स्तार र्कया था । र्कनतु र्तिमान मामल ेमें
मतृ्युिांड अर्धरोर्पत करने में सामरू्हक चेतना को धक्का लगने का आह्वान करना यद्यर्प कुछ नहीं ह)ै ।
460 गुररे्ल र्सांह@गाला बनाम पांिाब राज््य, (2013) 2 एससीसी 713 । यह भी िरे्खए र्बरि ूबनाम मध्य प्रिेश राज््य, (2014) 3 एससीसी 421,
अशोक िबेबमाि@अशोक िबेबमाि बनाम र्त्रपुरा राज््य, 2014) 4 एससीसी 747 ; सांतोष कुमार र्सांह बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (2014) 12 एससीसी
650 ; धरम िरे् यािर् बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2014) 5 एससीसी 509 ; अर्नल@एांथोनी अररक्स्र्ामी िोसेफ बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2014) 4
एससीसी 69 । र्तहरे परीक्षण में प्रयुक्त शांकर खाि ेकी राय भी िरे्खए। 461 गुररे्ल र्सांह@गाला बनाम पांिाब राज््य, (2013) 2 एससीसी 713, पैरा 19 पर । 462 मोर्फल खान बनाम झारखांड, (2015) 1 एससीसी 67 । 463 मोर्फल खान बनाम झारखांड, (2015) 1 एससीसी 67, पैरा 46 पर ।
85
5.2.22 य ेर्तहरा परीक्षण मृत्यिुांड के अर्धरोर्पत र्कए िान ेकी सांभार्ना को मामलों के उस बहुत सांकीणि प्रर्गि तक, र्िनमें कैसी भी
कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयाां नहीं हैं, पररसीर्मत करता ह ै। इसमें परीक्षण बचन र्सांह की भार्ना को बनाए रखता ह ैर्क मृत्यिुांड केर्ल
अत्यर्धक अपर्ािात्मक पररस्र्थर्तयों में अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए ।
5.2.23 तथार्प, र्तहरे परीक्षण के र्र्श्लेषण में, मृत्यिुांड की ‘न्यायाधीश कें र्ित’ प्रकृर्त का अपराध के समाि सांबांधी उत्तर पर ध्यान
कें र्ित करके र्नर्ारण र्कया िा सकता ह ै। यह सांबांर्धत र्चांता का र्र्षय ह ैक्योंर्क िसैा र्क बचन र्सांह ने स्र्यां अर्भस्र्ीकार र्कया था
और र्िसे बररयार में पनु: िोहराया गया था र्क यह सांभार्ना ह ैर्क न्यायाधीश समाि की धारणाओां के स्थान पर अपनी उपधारणाओां,
मूल्यों और अर्धमानों को प्रर्तस्थार्पत कर िें, क्योंर्क यर्ि र्कसी को यह उपधारणा करनी ह ैर्क समाि इन मामलों पर र्नश्र्चत, दृढ और
र्र्स्तृत रूप से बाांटे हुए अर्धमान रखता ह,ै तो न्यायाधीशों के पास इन अर्धमानों का अर्धारण करन ेके र्लए कोई साधन नहीं ह ै।
5.2.24 आगे, िसैा ऊपर र्र्णित र्कया गया ह ैबचन र्सांह ने उन अपराधों की, िो मृत्यिुांड के योग्य हैं, र्कस्मों का प्रर्गीकरण करन े
की धारणा को नामांिूर कर र्िया । तथार्प, यह र्तहरा परीक्षण सांबांधी सूत्र ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ में र्ही करना चाहता ह ैिो
‘कर्तपय प्रकार के अपराधों के र्लए समाि की घृणा, अत्यर्धक आिोश और र्चढ’ के बारे में दृढतापूर्िक कहा गया ह ै।’464
5.2.25 ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ से गुरुतरकारी और कम करने र्ाली पररस्र्थर्तयों का र्र्योिन बचन र्सांह र्र्रचना से िरू हट
िाता ह ै । इसके अर्तररक्त र्तहरा परीक्षण सूत्र अपराध से सांबांर्धत पररर्सथर्तयों और अपराधी से सांबांर्धत पररर्सथर्तयों की र्र्र्भन्न
सूर्चयाां बनाना चाहता ह ै । यह बचन र्सांह व्यािशे के र्र्रुद्ध िाता ह ै र्क अपराध और अपराधी से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयों को सरु्भन्न,
पूणिरूप से बांि कक्षों के रूप में नहीं माना िा सकता ।465 र्स्तुत: उच्चतम न्यायालय ने स्र्यां इस र्चांता पर र्तहरे परीक्षण के साथ महशे
धानािी र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य466 में तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ में र्टप्पणी की और सार्धान र्कया र्क यह र्तहरा परीक्षण’ ऐसी
पररस्र्थर्तयों का सृिन कर सकता ह ैिो उससे परे िा सकती हैं िो र्क बचन र्सांह में अर्धकर्थत र्कया गया था ।’467 तथार्प, तेहरे
परीक्षण को महशे र्सांि ेमें र्र्र्नश्चय के बार्िूि उच्चतम न्यायालय स्र्यां अपनाता रहा ह ैऔर लागू करता रहा ह ै।468
5.2.26 बचन र्सांह से, र्र्श्लेषण की र्र्रचना के और र्र्चार र्कए िाने र्ाले (र्र्शेष रूप से िनता की राय का र्र्चारण) ससुांगत
कारणों के अनुसार, यह िोनों से हट िाने में र्तहरा काांटेिार परीक्षण ‘र्र्रल ेमें से र्र्रलतम’ सांबांधी र्र्श्लेषण के चारो और और र्चैाररक
सांभ्रम िोड़ता र्िखाई पड़ता ह ै।
5.2.27 उपयुिक्त र्र्चार र्र्मशि र्निर्शित करता ह ैर्क र्र्र्भन्न न्यायाधीशों ने ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ मामलों की अपेक्षाओां
को र्भन्न रूप में समझा ह,ै र्िसका पररणाम र्र्षम और ‘न्यायाधीश कें र्ित’ इस अर्धारण में हुआ ह ैर्क कोई मामला ‘र्र्रल ेमामलों
में से र्र्रलतम’ के प्रर्गि के भीतर आता ह ैया नहीं । िसैा र्क न्यायालय ने सांगीत में कहा ह,ै बचन र्सांह उक्र्त ‘अनरु्ाि में खो गई’
प्रतीत होती ह ै ।469 उच्चतम न्यायालय ने मोहम्मि फारूख में ‘न्यायालय द्वारा िांडािशे िने े में ‘र्र्रल े मामलों में से र्र्रलतम’
464 गुररे्ल र्सांह@गाला बनाम पांिाब राज््य, (2013) 2 एससीसी 713, पैरा 19 पर ।
465 इस परीक्षण की समीक्षा के र्लए साधारणतया िेर्खए अपणाि चन्िा, एक सनकी कैि, 2 राष्ट्रीय र्र्र्ध र्र्श्र्र्र्द्यालय, र्िल्ली का िरनल 14 (2014) ।
466 महशे धानािी र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2014) 4 एससीसी 292 ।
467 महशे धानािी र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2014) 4 एससीसी 292, पैरा 24 पर ।
468 िरे्खए अशोक िेबबमाि@अछक िबेबमाि बनाम र्त्रपुरा, (2014) 4 एससीसी 747, धरम िरे् यािर् बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2014) 5 एससीसी
409, लर्लट कुमार यािर्@कुरी बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2014) 11 एससीसी 129 ।
469 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452, पैरा 33 पर ।
86
अर्भव्यक्र्त के र्र्र्भन्न र्नर्िचनों से र्नकलती हुई असमानता’ को अर्भस्र्ीकार र्कया470 और उसको र्चांता थी र्क ‘मृत्यिुांड पर पूर्ि
र्नणिय असमान र्नर्िचनों के र्िन के नीचे र्बखर रह ेहैं ।’471 न्यायालय ने यह भी सार्धान र्कया र्क इस परीक्षण के र्कसी सांगत
र्नर्िचन के र्बना अनचु्छेि 14 का अर्तिमण होगा ।472
(ii) गुरुतरकारी और कम करने वाले समझे गए कारक
5.2.28 बचन र्सांह ने इस बात को मान्यता िी और इस पर िोर र्िया र्क प्रत्यके मामला अर्द्वतीय ह ैऔर उसका अपन ेतथ्यों और
पररस्र्थर्तयों के आधार पर र्र्र्नश्चय र्कया िाना ह ै। इस कारण से न्यायालय ने ऐसे अपराधों का, र्िनके र्लए मृत्यिुांड लागू होगा, कोई
मानकीकरण या प्रर्गीकरण करने से इांकार कर र्िया । तथार्प, उसी समय न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क िांड िने ेका
र्र्र्ेकार्धकार अर्नयांर्त्रत नहीं था । बर्लक उसने िगमोहन में उस धारणा की पषु्र्ट की र्क ‘िांड िनेे र्ाले र्र्र्ेकार्धकार का
समुान्यताप्राप्त ऐसे र्सद्धाांतों के आधार पर प्रयोग र्कया िाना ह,ै र्िनहें इस बारे में उिाहरण िनेे र्ाले न्यार्यक र्र्र्नश्चयों द्वारा र्क र्कन्हें
उन मामलों में गुरुतरकारी या कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयाां माना िाए, आकार र्िया गया हो ।’473 इस प्रकार बचन र्सांह ने न्यायालयों
को, इस प्रकार के कारकों के, िो गुरुतरकारी हैं और िो कम करन ेर्ाले हैं, बारे में पूर्ि र्नणियों के अध्ययन से प्राप्त न्यार्यक र्सद्धाांतों को
ध्यान में रखते हुए यह अर्धाररत करने के र्लए र्निशे र्िया र्क क्या कोई मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ ह ै। इस प्रकार बचन
र्सांह ने व्यक्र्तगत तथार्प, र्सद्धाांतर्ािी िांड िने ेके िडु़र्े तत्र्ों का अनमुोिन र्कया । तथार्प, उच्चतम न्यायालय ने उस समय से इस बात
को मान्यता िी ह ैऔर नीचे मामले यह प्रिर्शित करते हैं, ‘यद्यर्प साधारणतया न्यायालय पूर्ि र्नणियों की ओर िखेेंगे र्कन्त ुयह अत्यर्धक
कर्ठन, यर्ि असांभर् नहीं, हो िाता ह,ै क्योंर्क पूर्ि र्नणियों में कोई एकरूपता नहीं ह,ै कम से कम यह कहा िा सकता ह ै।’474
क. गुरुतरकारी और कम करने वाली पररस्वथवतयों पर वविार न करना
5.2.29 उत्तर प्रिशे राज्य बनाम सतीश475 में र्सद्धिोषी र्कसी अर्यस्क का बलात्कार और हत्या करन ेका अर्भयकु्त था । िांडािशे
के प्रश्न पर, न्यायालय ने, ऐसे र्र्र्नश्चयों का सर्ेक्षण करने के पश्चात् र्िनहोंने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके सांबांध में र्सद्धाांत अर्धकर्थत
र्कए हैं, यह कहा र्क उसे ‘यह अर्भर्नधािररत करन ेमें कोई सांकोच नहीं ह ैर्क प्रसतुत मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ के प्रर्गि में
आता ह ैऔर र्र्चारण न्यायालय द्वारा र्िया गया मृत्यिुांड समरु्चत था ।’476 यह र्नणिय मामले की गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली
पररस्र्थर्तयों पर पूणि रूप से शाांत ह,ै इस पर र्कसी भी प्रकार का कोई र्र्चार-र्र्मशि नहीं र्कया गया ह ैर्क प्रस्तुत मामला क्यों मृत्यिुांड
का अर्धरोपण र्कए िाने के योग्य था ।
5.2.30 यह एकल उिाहरण नहीं ह ै । बचन र्सांह के पश्चातर्ती बहुत से मामलों ने, उिाहरण के र्लए लोकपाल र्सांह बनाम
मध्यप्रिशे राज््य477, िशिन र्सांह बनाम पांिाब राज््य478 और रांिीन र्सांह बनाम रािस्थान राज््य479 ने ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ सूत्र
470
मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 165 पर ।
471 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 165 पर ।
472 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641 । 473 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 197 पर । 474 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 104 पर ।
475 उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतीश, (2005) 3 एससीसी 114 ।
476 उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सतीश, (2005) 3 एससीसी 114 ।
477 लोक पाल र्सांह बनाम मध्य प्रिेश राज््य, एआईआर 1985 एससी 891 ।
478 िशिन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1988) 1 एससीसी 618 ।
87
के प्रर्त र्बल्कुल भी र्निशे र्कए र्बना मृत्यिुांड को बनाए रखा ह ै। कुछ अन्य मामलों में िसेै नाम र्लए िाने के र्लए मकुुां ि बनाम मध्य
प्रिशे राज्य480, अशोक कुमार पाांडे बनाम र्िल्ली राज््य481 में, फारूख बनाम केरल राज््य482 और अचारपरमबाथ प्रिीपन बनाम केरल
राज््य483, न्यायालय ने ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ उक्र्त के प्रर्त र्निशे र्कया । र्कनतु उस ेमृत्यिुांड िने ेमें, सांपररर्र्तित करन ेमें लागू
नहीं र्कया, र्िससे र्क उसने केर्ल ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ परीक्षण के प्रर्त केर्ल मौर्खक कायि र्कया ।
ख. कम करने वाले कारक के रूप में आयु
5.2.31 बचन र्सांह ने इस बात को मान्यता िी थी र्क अपराधी की अल्पाय ुससुांगत कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्त ह,ै र्िसे िांडािशे के
अर्धारण में बड़ा र्िन र्िया िाना चार्हए । न्यायालय ने यह बार-बार अर्भर्नधािररत र्कया ह ै र्क यर्ि अपराधी ने अल्पाय ुमें कोई
अपराध र्कया ह ैतो अपराधी का सधुार करन ेकी सांभार्ना से मना नहीं र्कया िा सकता । उिाहरण के र्लए, राम नरेश बनाम छत्तीसगढ
राज््य484 में, र्िसमें सामूर्हक बलात्सांग और हत्या अांतर्िर्लत थे, न्यायालय ने सभी र्सद्धिोर्षयों की (सभी 21-30 र्षि की आय ुके
बीच थे) अल्पाय ुको ध्यान में रखते हुए आिीर्न कारार्ास का िांड अर्धरोर्पत र्कया था, र्िसन ेसुधार की सांभार्ना के प्रर्त सांकेत
र्कया । समान रूप से, रमशे बनाम रािसथान राज््य485 में, िो लाभ के र्लए िोहरी हत्या अांतर्िर्लत करन ेर्ाला मामला था, न्यायालय ने
यह अर्भर्नधािररत करके आिीर्न कारार्ास का िांड अर्धरोर्पत र्कया र्क र्सद्धिोषी की अल्पाय ुकम करन ेर्ाला कारक थी, क्योंर्क उसे
सधुारा िा सकता था । सरेुन्ि महेतो बनाम र्बहार राज््य486 में आिीर्न कारार्ास का िांड अर्धरोर्पत करने में न्यायालय द्वारा र्र्चार
र्कया गया प्राथर्मक कम करने र्ाला कारक यह था र्क अपराधी केर्ल 30 र्षि का था और इसर्लए उसका सधुार र्कया िा सकता था
।
5.2.32 तथार्प, कम करने र्ाले कारक के रूप में आय ुका उपयोग बहुत ही असांगत रूप में र्कया गया ह ै । बचन र्सांह में स्र्यां
र्र्सांगत राय प्रकट करते हुए न्यायमूर्ति भगर्ती ने अन्यथा ऐसे समरूप मामलों के, िहाां अपराधी की अल्पायु पर मृत्य ु के बिाय
आिीर्न कारार्ास का िांड िनेे के र्लए आधार के रूप में र्र्चार र्कया गया था या नहीं, बहुत से उिाहरण र्िए थे । कम करन ेर्ाले
कारक के रूप में अर्भयकु्त की आय ुपर र्र्चार करन ेमें असांगतता की प्रर्ृत्र्त बचन र्सांह के पश्चात् भी बनी रही ह ै।
5.2.33 एक उिाहरण लेने के र्लए, धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य487 में उच्चतम न्यायालय ने अपराधी को 18 र्षि
की एक स्त्री का, िो उस भर्न में रहती थी, िहाां र्ह सरुक्षा गाडि था, बलात्सांग और हत्या करन ेके र्लए मृत्यिुांड र्िया था । यह मामला
रमशेभाई चांिभूाई राठौर बनाम गुिरात राज््य488 में ध्यान में लाया गया था, र्िसमें न्यायालय के अपन ेर्नधािरण के अनसुार समान तथ्य
अांतर्िर्लत थे र्सर्ाय इससे र्क इस मामल ेमें बलात्कार और हत्या एक बच्चे की की गई थी । बड़ी न्यायपीठ को र्निशे र्कए िाने पर,
क्योंर्क िो न्यायाधीशों की न्यायपीठ िांडािशे पर सहमत नहीं हो सकी, न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने तथ्यों की समानता
479 रांिीत र्सांह बनाम रािस्थान राज््य, (1980) 1 एससीसी 683 ।
480 मकुुां ि बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (1997) 10 एससीसी 683 ।
481 अशोक कुमार पाांडे बनाम र्िल्ली राज््य, (2002) 4 एससीसी 76 ।
482 फारूख बनाम केरल राज््य, (2002) 4 एससीसी 697 ।
483 आचारपरमबथ प्रिीपन बनाम केरल राज््य, (2006) 13 एससीसी 643 ।
484 रामनरेश और अन्य बनाम छत्तीसगढ राज््य, (2012) 4 एससीसी 257 ।
485 रमेश बनाम रािस्थान राज््य, (2011) 3 एससीसी 685 ।
486 सरेुन्ि मेहतो बनाम र्बहार राज््य, िाांर्डक अपील सां0 211/2009 । 487 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य,(1994) 2 एससीसी 220 । 488 रमेशभाई चांिभूाई राठौर (2) बनाम गुिरात राज््य, (2011) 2 एससीसी 764 ।
88
धनन्िय चटिी के मामल ेके साथ िखेी । र्कनतु यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क अपराधी की आय ुकेर्ल 28 र्षि थी, र्िसमें सधुार र्कए
िाने की सांभार्ना थी और इसर्लए उन्होंने उस पर आिीर्न कारार्ास का िांड अर्धरोर्पत र्कया । अत: स्र्ीकायि रूप से समरूप तथ्यों
की स्र्थर्त में रमशेभाई राठौर को आिीर्न कारार्ास र्िया गया था, क्योंर्क र्ह 28र्षि की आय ुका था । धनन्िय चटिी को मृत्यिुांड
र्िया गया था और उस े2004 में फाांसी िी गई थी, र्ह 27 र्षि की आय ुका था ।
5.2.34 परुुषोत्तम िशरथ बोराटे बनाम महाराष्ट्र राज््य489 में, िो उच्चतम न्यायालय द्वारा इस र्षि मई में र्र्र्नश्र्चत र्कया गया बहुत
हाल का मामला ह,ै बलात्सांग और हत्या के समरूप तथ्यों की स्र्थर्त अांतर्िर्लत थी । न्यायालय ने पनु: मामले की धनन्िय चटिी के
मामल े के साथ समरूपता इांर्गत की और धनन्िय चटिी के मामले का अनगुमन करते हुए उसने िोनों अपरार्धयों पर मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत र्कया । न्यायालय ने न तो रमशेभाई राठोर में र्र्र्नश्चय के प्रर्त और न शांकर खाि ेमें र्र्र्नश्चय के प्रर्त र्निशे र्कया,
र्िनहोंने धनन्िय चटिी में मृत्यिुांड के अर्धरोपण पर इस आधार पर सांिहे र्कया था र्क नयायालय ने कम करने र्ाले तथ्यों को ध्यान में
नहीं रखा था । परुुषोत्तम िशरथ बोराटे में अपरार्धयों की आय ुिमश: 26 और 20 र्षि थी ।490
5.2.35 उच्चतम न्यायालय ने शांकर खाि ेमें बलात्सांग और हत्या की अन्यथा समरूप मामलों में कम करने र्ाले कारक के रूप में
आय ुके असांगत उपयोग की तरफ इांर्गत र्कया । एक तरफ अपरार्धयों को अर्मत बनाम महाराष्ट्र राज््य491 (लगभग 20 र्षि की आय)ु
में राहुल बनाम महाराष्ट्र राज््य492 (आय ु24 र्षि), सांतोष कुमार र्सांह बनाम राज््य493 (आय ु24 र्षि), रमशेभाई चांिभूाई राठौर
(2) बनाम गुिरात राज््य494 (आय ु28 र्षि) और अर्मत बनाम उत्तर प्रिशे राज््य495 (आय ु28 र्षि) में मृत्यिुांड नहीं र्िया गया
था क्योंर्क उनकी आय ुको कम करन ेर्ाले कारक के रूप में समझा गया था, िसूरी तरफ धनन्िय चटिी496 (आय ु27 र्षि), िय
कुमार बनाम मध्य प्रिशे राज््य497 (आय ु22 र्षि), और र्शबु और अन्य बनाम महा रर्िस्ट्रार कनािटक उच्च न्यायालय498 (आय ु
20 और 22 र्षि) में, अपराधी की अल्पाय ुपर या तो र्र्चार नहीं र्कया गया था या उस ेअसांगत समझा गया था ।
ग. गुरुतरकारी कारक के रूप में अपराि की िकृवत
5.2.36 चूांर्क मृत्यिुांड ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ में ही र्िया िाना ह,ै अत: बररयार में न्यायाधीशों से यह अर्धारण करन ेमें र्क
क्या उनके समक्ष मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ था या नहीं, समरूप मामलों के समूह का सर्ेक्षण करने की अपेक्षा की गई थी ।
489 पुरुषोत्तम िशरथ बोराटे बनाम महाराष्ट्र राज््य, ए.आई.आर.2015 एससी 2170 । 490 अपराधी की आयु इस मामले में उच्च न्यायालय के र्नणिय से ली गई ह ै। िरे्खए महाराष्ट्र राज््य बनाम पुरुषोत्तम िशरथ बोराटे, िाांर्डक अपील सां0
632/2012(ममु्बई), 25.09.2012 । 491 अर्मत बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2003) 8 एससीसी 93 ।
492 राहुल बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2005) 10 एससीसी 322 ।
493 सांतोष कुमार र्सांह बनाम राज््य, (2010) 9 एसससी 747 ।
494 रमेशभाई चांिभूाई राठौर (2) बनाम गुिरात राज््य, (2011) 2 एससीसी 764 ।
495 अर्मत बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (2012) 4 एससीसी 107 ।
496 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य,(1994) 2 एससीसी 220 ।
497 िय कुमार बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (1999) 5 एससीसी 1।
498 र्शब ुऔर अन्य बनाम महा रर्िस्ट्रार कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713 ।
89
5.2.37 हाल में, शांकर खाि ेमें उच्चतम न्यायालय ने पनु: साक्ष्य आधाररत मृत्यिुांडािशे के र्लए आर्श्यकता की ओर सांकेत र्कया
था और र्ह इस बात से सांबांर्धत था र्क ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ का सूत्र व्यर्हायि नहीं हैं, िब तक र्क आनभुर्र्क साक्ष्य
उपलब्ध नहीं कराया िाता ह ैिो न्यायालय को यह मूल्याांकन करन ेके र्लए अनजु्ञात करता ह ैर्क कोई र्र्र्शष्ट मामला, र्र्रल ेमामलों
के तुलनीय समूह से ‘र्र्रलतम’ ह ै। इस आांकडे़ की अनपुस्र्थर्त में न्यायालय ने अनभुर् र्कया र्क ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ सूत्र
का लागू करना ‘अत्यर्धक नािकु’ और ‘र्र्षयगत’ हो िाता ह ै ।499 तथार्प, िसैा र्क न्यायालय ने इस मामल ेमें, बलात्सांग और
हत्या से सांबांर्धत मामलों के समूह का सर्ेक्षण करते समय, अनभुर् र्कया र्क र्कसी अल्पाय ुके बालक का बलात्कार और हत्या कुछ
मामलों में न्यार्यक चेतना को झकझोरते हैं, िसूरों में नहीं ।
5.2.38 इस प्रकार उिाहरण के र्लए एक तरफ न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया ह ैर्क एक मामल ेमें र्कसी डेढ साल के र्शश ुका
बलात्कार और हत्या,500 िसूरे में 6 र्षि की आय ुकी बार्लका का बलात्कार और हत्या501 और तीसरे मामलें में 10 र्षि की बार्लका
का बलात्कार और हत्या502, मृत्यिुांड को आकर्षित नहीं करेंगे, क्योंर्क यद्यर्प य ेअपराध िघन्य थे, र्कनतु अपराधी समाि के र्लए
खतरा नहीं थे और सधुार की सांभार्ना समाप्त नहीं हुई थी । िसूरी तरफ मामलों की िसूरी आर्र्लयों में न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत
र्कया र्क र्कसी 5 र्षि की आय ुकी503, 6 र्षि की आय ुकी504 या 7 र्षि की आय ुकी505 या 9 र्षि की आय ुकी506 बार्लका का
बलात्कार और हत्या, उसकी प्रकृर्त से ही अत्यर्धक िूर, िरुाचारपूणि, िघन्य और बबिरतापूणि थे और इस प्रकार चरम िांड के योग्य थे ।
इस प्रकार उिाहरण के र्लए िमु्मन खान बनाम उत्तर प्रिशे राज््य507 में, र्िसमें र्कसी 6 र्षि की आय ुकी बार्लका का बलात्कार और
हत्या अांतर्िर्लत थी, न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क केर्ल मात्र िांड, र्िसके र्क अपीलाथी अपनी कामर्ासना की पूर्ति के
र्लए र्कसी र्निोष बार्लका की र्नन्िा योग्य और बबिर हत्या करन ेके र्लए योग्य ह,ै र्ह कुछ नहीं बर्लक सामार्िक आर्श्यकता के
उपाय के रूप में और अन्य सांभार्र्त अपरार्धयों को भयोपरत करन ेके र्लए साधन के रूप में मृत्य ुह ै।’508
5.2.39 समान रूप से मोहम्मि मन्नन @ अब्िलु मन्नन बनाम र्बहार राज््य509 में र्सद्धिोषी ने एक 7 र्षि की बार्लका का
व्यपहरण र्कया, बलात्कार र्कया और उसकी हत्या कर िी । न्यायालय ने मृत्यिुांड र्िया, क्योंर्क पीर्ड़त एक ‘र्निोष, असहाय और
रक्षारर्हत बार्लका’ थी ।510 न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘अपराध ने समिुाय का अत्यर्धक आिोश आमांर्त्रत र्कया था और
समाि की सामूर्हक चेतना को धक्का पहुांचाया था । उनकी प्रत्याशा अर्धर्नणीत करन ेकी शक्र्त प्रिान र्कए गए प्रार्धकाररयों से यह थी
र्क र्े मृत्यिुांडािशे िें, िो र्क प्राकृर्तक और तार्कि क ह।ै’511 सािर ऊपर र्िए गए र्र्रोधी पांक्र्त के मामलों को िखेते हुए, इस र्नणिय से
यह स्पष्ट नहीं ह ैर्क इस मामले में क्यों, ऊपर र्र्णित मामलों में क्यों नहीं, समाि की सामूर्हक चेतना को इतना धक्का लगा था र्क उसने
499 र्शब ुऔर अन्य बनाम महा रर्िस्ट्रार कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713, पैरा 2-3 । 500 मो0 चमन बनाम राज््य (राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, र्िल्ली), (2001) 2 एससीसी 28 । 501 बांटू बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (2001) 9 एससीसी 615 । 502 हरेश मोहनिास रािपूत बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2011) 12 एससीसी 56 । 503 बांटू बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (2008) 11 एससीसी 113 । 504 िमु्मन खान बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1991) 1 एससीसी 752 । 505 कामता र्तर्ारी बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (1996) 6 एससीसी 250 । 506 र्शर्ािी @ िया शांकर अलहत बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2008) 15 एससीसी 269 । 507 िमु्मन खान बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (1991) 1 एससीसी 752 । 508 िमु्मन खान बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1991) 1 एससीसी 752, पैरा 4 पर । 509 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65 । 510 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65, पैरा 18 पर । 511 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65, पैरा 18 पर ।
90
मृत्यिुांड को आमांर्त्रत र्कया था । असांगर्तयाां, िो यहाां र्र्र्शष्ट रूप से बतायी गई और न्यायालय द्वारा स्र्यां खाि ेमें िखेी गई ां थीं, इस
मामल ेमें मृत्यिुांड का र्िया िाना, कुछ भी र्कन्तु ‘प्राकृर्तक और तार्कि क’ बनाती हैं ।512
5.2.40 इन असांगर्तयों ने उच्चतम न्यायालय को यह स्र्ीकार करने के र्लए प्रेररत र्कया ह ैर्क ‘ऐसे तथ्यों की बहुत पतली रेखा ह ै
िो र्कसी अल्पाय ुके व्यक्र्त द्वारा र्कसी बार्लका के बलात्कार और हत्या के मामल ेमें मृत्यिुांड र्िए िान ेको आिीर्न कारार्ास से
पृथक् करती ह ैऔर मृत्यिुांड की नरै्तकता, कुशलता या अन्यथा के बारे में व्यक्र्तगत रूप से न्यायाधीशों की र्र्षयगत राय को पूणिरूप से
असांगत नहीं माना िा सकता ।’513
5.2.41 समान रूप से सशुील मरुमू बनाम झारखांड राज््य514 के र्र्रुद्ध महाराष्ट्र राज््य बनाम िामू515 की तुलना की िा सकती ह ै।
पश्चातर्ती में अपराधी छुपा हुआ खिाना प्राप्त करन ेके र्लए मानर् बर्लिान के रूप में 3 बालकों की हत्या करन ेके र्सद्धिोषी थे ।
न्यायालय ने उन पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत नहीं र्कया, यद्यर्प यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क भयानक कायों ने इसे ‘अत्यर्धक रूप से र्र्रल
मामला’ बना र्िया था ।516 तथार्प न्यायालय ने इस तकि पर आिीर्न कारार्ास अर्धरोर्पत र्कया र्क अपराध अज्ञानता और
अांधर्र्श्र्ास से प्रेररत था और र्िन्हें कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयाां समझा गया था । इसके र्र्रुद्ध सशुील मरुमू में िहाां अर्भयकु्त मानर्
बर्लिान के रूप में एक बालक की हत्या करन ेका र्सद्धिोषी था, न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क अपराध की प्रकृर्त को िखेते
हुए, अपराधी ‘के पास आधारभूत मानर्ता नहीं थी और उसके पास पूणिरूप से ऐसे अांत:करण या मस्र्तष्क की कमी थी, र्िसमें कोई
सधुार र्कया िा सके र्ह सुधार से परे था ।’517 यह कथन करते हुए र्क अपराध ‘मानर्ता के र्र्रुद्ध ऐसे र्कसी अपराध की सीमा पर
था, िो न केर्ल सही सोचने र्ाले व्यक्र्त की , बर्लक न्यायालयों की चेतना को भी धक्का िने ेर्ाला सबसे बड़ी िरुाचाररता का सांकेतक
था,’518 न्यायालय ने कम करने र्ाले कारक के रूप में अांधर्र्श्र्ास की प्रेरणा पर र्र्चार करन ेसे इांकार कर र्िया । इसके स्थान पर
उसने अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्कसी भी पररमाण की अांधर्र्श्र्ार्सता का रांग र्कसी ऐसी हत्या के, र्िसमें कोई उत्तेिना न र्िलायी गई
हो, पाप और अपराध को नहीं धो सकता और ऐसा र्कसी र्निोष और रक्षा रर्हत बालक के मामल ेमें तो और भी अर्धक ह ै।’519
न्यायालय के र्लए इस प्रकार का कोई मामला ‘ र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम’ के रूप में माना िाने र्ाला एक उिाहरणात्मक और
अत्यर्धक उल्लेखनीय मामला ह,ै र्िसमें मृत्यिुांडािशे र्नयम ह ैऔर होना चार्हए, र्कसी भी प्रकार के र्बना अपर्ाि के र्बना ।’520
अत: समरूप पररस्र्थर्तयों में, िबर्क एक मामल ेको मानर् बर्लिान के र्लए तीन बालकों की हत्या को मृत्यिुांड िने ेके र्लए माांग न
करन ेर्ाला पाया गया, िसूरे मामले में समान कारणों से एक बालक की हत्या को र्नयम के रूप में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेर्ाला पाया
गया ।
घ. वकसी भडकाने वाले कारक के रूप में अपरािी का पूवट आपराविक अवभलेख
5.2.42 िबर्क न्यायालय ने बहुधा यह अर्धाररत करन ेमें र्क कोई व्यक्र्त सधुार र्कए िाने योग्य ह ैया नहीं, अपराधी के पूर्ि
आपरार्धक अर्भलेख को ध्यान में रखा ह,ै उच्चतम न्यायालय ने सांगीत और शांकर खाि ेमें उन उिाहरणों की ओर सांकेत र्कया िहाां
512 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65, पैरा 18 पर । 513 रमेशभाई राठौर(2) बनाम गुिरात राज््य, (2011) 2 एससीसी 764, पैरा 8 पर । 514 महाराष्ट्र राज््य बनाम िामू, (2000) 6 एससीसी 269 । 515 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338 । 516 महाराष्ट्र राज््य बनाम िामू, (2000) 6 एससीसी 269, पैरा 47 पर। 517 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, पैरा 22 पर । 518 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, पैरा 22 पर । 519 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, पैरा 22 पर । 520 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, पैरा 23 पर ।
91
नयायालय ने ऐसे मामलों को ध्यान में रखा था िो नयायालयों के समक्ष केर्ल लांर्बत थे और अांर्तम रूप से र्र्र्नश्र्चत नहीं र्कए गए थे
।521 यह अर्भर्नधािररत करते हुए की र्क ऐसे लांर्बत मामलों पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्र्र्नश्चय को आधाररत करना र्निोर्षता
की उपधारणा के र्सद्धाांत को नकारात्मक रूप में लेने के बराबर होगा, उच्चतम न्यायालय ने स्र्ीकार र्कया र्क य ेर्र्र्नश्चय भ्रामक थे
।522
5.2.43 ऐसा एक मामला सशुील मुरमू बनाम झारखांड राज््य523 का था, िहाां अपराध में मानर् बर्लिान के प्रयोिन के र्लए हत्या
अांतर्िर्लत थी । न्यायालय ने, मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने में ‘अपराधी के आपरार्धक झुकार् को, िो इस तथ्य से स्पष्ट रूप से िखेा िा
सकता ह ैर्क र्र्चारण के समय मानर् बर्लिान को अांतर्िर्लत करन ेर्ाले समरूप अर्भयोग र्र्द्यमान थे’ को ध्यान में रखा ।524 यद्यर्प
न्यायालय ने इस बात को मान्यता िी र्क उसके र्र्रुद्ध अर्भयोगों को अर्भलेख पर नहीं लाया गया था और इसर्लए यह स्पष्ट नहीं था
र्क क्या अर्भयोगों के पररणामसर्रूप िोषर्सर्द्ध हुई थी, न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘ यह तथ्य र्क ऐसे समरूप अर्भयोगों का,
िो अर्भयकु्त–अपीलाथी के र्र्रुद्ध लगाए गए थे, र्िनके र्लए र्ह र्र्चारण का सामना कर रहा था, ध्यान से नहीं हटाए िा सकते हैं
।’525 इस आधार पर न्यायालय ने अर्भयकु्त पर मृत्यिुांडािशे अर्धरोर्पत र्कया ।
5.2.44 समान रूप से बी.ए.उमशे बनाम महारर्िस्ट्रार कनािटक उच्च न्यायालय526 में, िहाां अर्भयकु्त बलात्सांग, हत्या और डकैती
का र्सद्धिोषी था, र्हाां उच्चतम न्यायालय ने उसको मृत्यिुांड, अन्य बातों के साथ, इस आधार पर र्िया र्क र्ह पहल ेभी समरूप
आचरण में र्लप्त था और र्तिमान घटना के िो र्िन पश्चात् समरूप अपराध का प्रयास करते हुए पकड़ा गया था । न्यायालय ने
अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘अपीलाथी का पूर्िर्ती और उसका पश्चातर्ती आचरण यह इांर्गत करता ह ैर्क र्ह समाि के र्लए अर्भशाप
ह ैऔर पनुर्ािस के अयोग्य ह ै ।’527 िसैा र्क उच्चतम नयायालय ने सांगीत में स्र्यां िखेा र्क उमशे के अन्य अपराध कर चकुने के
अर्भकथन कभी सार्बत नहीं हुए थे या अर्भलेख पर नहीं लाए गए थे ।528 इसके बार्िूि इस र्र्र्नश्चय के र्र्रूद्ध एक पनुर्र्िलोकन
यार्चका न्यायालय द्वारा खाररि की गई थी, र्िसमें पनु: इस अर्भकथन का र्निेश र्िया गया था र्क ‘कोई पश्चाताप िर्शित करन ेसे िरू,
र्ह इस घटना के िो र्िन के भीतर स्थानीय िनता द्वारा शीबा के घर में इसी प्रकार का अपराध करते हुए पकड़ा गया था ।’529
5.2.45 इस प्रकार िबर्क एक तरफ, एक पांक्र्त के मामलों में न्यायालय ने अपराधी के र्र्रुद्ध लांर्बत (र्कन्तु र्र्र्नश्चय न र्कए गए)
मामलों को ध्यान में रखा ह,ै मामलों की िसूरी पांक्र्त में, र्िसके अांतगित सांगीत और मो0 फारूख अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य530
हैं, न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया ह ैर्क िब तक कोई व्यक्र्त र्कसी मामल ेमें िोषी सार्बत नहीं हो िाता ह ैतब तक उस ेउसके र्र्रुद्ध
गुरुतरकारी कारक नहीं माना िाना चार्हए। 521 बी.ए. उमेश बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2011) 3 एससीसी 85 ; सुशील मुमूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338
; र्शर् ुबनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713 । इसे भी िरे्खए, गुरमखु र्सांह बनाम हररयाणा राज््य, (2009) 15
एससीसी 635 ।
522 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452 ।
523 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338। 524 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, पैरा 23 पर । 525 सशुील ममुूि बनाम झारखांड राज््य, (2004) 2 एससीसी 338, पैरा 23 पर । 526 बी.ए. उमेश बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2011) 3 एससीसी 85 । 527 बी.ए. उमेश बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2011) 3 एससीसी 85, पैरा 84 पर । 528 सांगीत बनाम झारखांड राज््य, (2013) 2 एससीसी 452 । 529 बी.ए. उमेश बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, पुनर्र्िलोकन यार्चका (िां0) सां0 (एस). 2011 का 135-136, 2011 का अप. अपील
सां0 285-286 ।
530 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641 ।
92
ड. सुिार की संभावना
5.2.46 बचन र्सांह में उच्चतम न्यायालय ने यह अपेक्षा की र्क मृत्यिुांड केर्ल उन अपर्ािात्मक ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ में
अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए िहाां ‘आनकुल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत ह ै।’531 उच्चतम न्यायालय ने बररयार में इस
बात को मान्यता िी र्क बचन र्सांह र्र्रचना के अधीन िीर्न का र्र्कल्प ‘र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत’ ह ैऔर ‘पूणिरूप से र्नष्फल ह’ै,
केर्ल तब िबर्क सधुार के र्लए िांड िने ेका उद्दशे्य अप्राप्य होना कहा िा सकता ह ै।’532
5.2.47 बचन र्सांह ने िांड प्रर्िया सांर्हता की धारा 235(2) में िांडािशे पूर्ि सनुर्ाई की अपेक्षा पर न्यायालयों के र्लए यह
अर्धाररत करन ेहतेु आर्श्यक सूचना िने ेके र्लए भरोसा र्कया र्क मामले में कौन सी कम करने र्ाली पररस्र्थर्तयाां, यर्ि कोई हो,
र्र्द्यमान थीं और इसर्लए मामले में न्यायालय के अनसुार कौन सा समुर्चत िांड होगा । न्यायालय के अनुसार :
धारा 235(2) र्र्भार्ित र्र्चारण के र्लए उपबांध करती ह ैऔर र्र्र्नर्ििष्ट रूप से अर्भयकु्त व्यक्र्त को िांडािशे पूर्ि
सनुर्ाई का अर्धकार ितेी ह,ै र्िस प्रिम पर र्ह अर्भलेख पर ऐसी सामग्री या साक्ष्य ला सकता ह ैिो िाांच के अधीन
र्र्र्शष्ट अपराध से कठोरत: ससुांगत या सांबांर्धत नहीं हो सकते हैं, तथार्प, धारा 354(3) में रेखाांर्कत नीर्त के अनुसार,
िांडािशे के चयन पर प्रभार् रखता ह ै। धारा 354(3) के साथ पर्ठत धारा 235(2) से दृष्टव्य र्र्द्यमान र्र्धायी नीर्त
यह ह ैर्क र्र्र्भन्न अपराधों के र्लए, र्िनके अांतगित िांड सांर्हता की धारा 302 के अधीन अपराध भी ह,ै िांड की मात्रा
र्नयत करन ेमें या उसका चयन करन ेमें, न्यायालयों को अपन ेर्र्चारण को र्र्र्शष्ट अपराध से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयों तक ही
मखु्य रूप से या केर्ल मात्र रूप से पररसीर्मत नहीं रखना चार्हए र्कन्तु अपराधी की पररस्र्थर्तयों पर भी सम्यक् र्र्चार
करना चार्हए ।533
5.2.48 इस प्रकार बचन र्सांह में ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ सूत्र का कें ि र्बन्ि ुअपराधी का सधुार करन ेकी सांभार्ना का
र्नधािरण ह,ै र्िसका अर्धारण सरु्भन्न िांडािशे पूर्ि कायिर्ाही के द्वारा, िहाां साक्ष्य इस र्र्र्ाद्यक पर लाया िा सकता ह,ै र्कया िाना ह ै।
5.2.49 बचन र्सांह द्वारा पृष्ठाांर्कत मानक पर ध्यान खींचते हुए र्क राज््य को यह िर्शित करने के र्लए साक्ष्य को आगे लाना ह ैर्क
र्सद्धिोषी का सधुार या पनुर्ािस नहीं र्कया िा सकता ह ैऔर इस प्रकार र्ह समाि के र्लए बराबर बना रहन ेर्ाला खतरा ह ै ।534
बररयार ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘न्यायालय को इस बारे में स्पष्ट साक्ष्य िनेा होगा र्क र्सद्धिोषी र्कसी भी प्रकार की सधुार और
531 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 209 पर ।
532 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 66 पर ; मोर्हन्िर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (2013) 3 एससीसी 294, पैरा
23
533 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 209 पर । इसे भी िरे्खए अलाउद्दीन र्मयाां बनाम र्बहार राज््य, (1983) 3एससीसी
5, सभी र्र्चारण न्यायालयों को, र्कसी अपराधी के िोषी होने का र्नणिय सनुाने के पश्चात् िांडािशे के पररमाण पर सनुर्ाई को िसूरे र्िन के र्लए स्थर्गत कर िनेा
चार्हए, र्िससे र्क िोनों अर्भयुक्त और अर्भयोिन िांडािेश के पररमाण के समथिन में सामग्री प्रस्तुत करने में समथि हो सकें । 534 बचन र्सांह में न्यायालय ने र्नम्नर्लर्खत मानकों का अनुमोिन र्कया :
(3) यह सांभार्ना र्क अर्भयुक्त र्हांसा के आपरार्धक कायि नहीं करेगा क्योंर्क रे् समाि के र्लए बराबर खतरा बनेंगे ।
(4) यह सांभार्ना र्क अपराधी का सधुार र्कया िा सकता ह ैऔर उसका पुनर्ािस र्कया िा सकता ह ै। राज््य साक्ष्य द्वारा सार्बत करेगा र्क अपराधी
उपयुिक्त (3) और (4) की शतों का समाधान नहीं करता ह ै।
93
पनुर्ािस सकीम के र्लए क्यों उपयकु्त नहीं हैं ।’535 सधुार करन ेकी सांभार्ना के र्लए इस प्रकार का साक्ष्य आधाररत लेखा न्यायालय
द्वारा िांड िने ेर्ाली प्रर्िया में उद्दशे्यपूणिता का तत्र् लान ेके र्लए आर्श्यक समझा गया था ।536
5.2.50 इस अपेक्षा पर न्यायालय द्वारा शांकर खाि ेमें पनु: िोर र्िया गया ह ैर्क राज््य को न केर्ल तकों द्वारा, र्कन्तु साक्ष्य द्वारा यह
न्यायोर्चत ठहराना चार्हए र्क मृत्य ुका अपर्ािात्मक िांड मामल ेमें केर्ल र्र्कल्प ह,ै । तथार्प, बररयार को र्र्रल रूप से अपनाया गया
ह,ै िो र्क स्र्यां भारत में मृत्यिुांड सांबांधी न्यायशास्त्र की चांचल प्रकृर्त का साक्षी ह ै ।537 हाल में शांकर खािे, अर्नल@एांथोनी
अररकस्र्ामी िोसेफ बनाम महाराष्ट्र राज््य538 और र्बरिू बनाम मध्य प्रिशे राज््य539 में अन्य के साथ न्यायालय ने अपराधी की सधुार
की सांभार्ना के साक्ष्य आधाररत र्नधािरण की आर्श्यकता पर िोर र्िया ह ै । तथार्प, िसैा इन मामलों ने भी िखेा ह,ै ‘बहुत बार,
िांडािशे का अर्धारण करते समय न्यायालय, र्कसी र्र्र्शष्ट मामल ेके तथ्यों को िखेते हुए यह मान लेते हैं र्क अपराधी समाि के र्लए
अर्भशाप होगा और सधुार तथा पनुर्ािस की कोई सांभार्ना नहीं ह.ै......................’540
5.2.51 एक उिाहरण मो0 मन्नन बनाम राज््य541 का ह,ै िहाां अर्भयकु्त को बलात्सांग और हत्या के र्लए र्सद्धिोषी ठहराया गया था
। इस मामल ेमें न्यायालय ने यह मत व्यक्त र्कया था र्क अपराधी ‘समाि के र्लए अर्भशाप ह ैऔर ऐसा ही बना रहगेा और उसका
सधुार नहीं र्कया िा सकता ह।ै’542 सांगीत में इस मामल ेपर ध्यान ितेे हुए उच्चतम न्यायालय ने यह िखेा र्क र्नणिय र्कसी ऐसी सामग्री
को िर्शित नहीं करता था, र्िसके आधार पर न्यायालय ने यह र्नष्कषि र्नकाला र्क ‘अपराधी समाि के र्लए एक अर्भशाप था और ‘
ऐसा बना रहगेा और उसका सधुार नहीं र्कया िा सकता’543 यह मालूम होता था र्क केर्ल एक कारक, र्िस पर न्यायालय ने अपन े
र्नष्कषि को आधाररत र्कया था, र्ह अपराध की प्रकृर्त थी । तथार्प िसैा र्क शांकर खाि ेमें िखेा गया था, अन्यथा समरूप तथ्यों में
न्यायालय ने इस बात पर र्भन्न र्नष्कषि र्नकाले थे र्क क्या अर्भयकु्त सधुार र्कए िाने के योग्य था । अत: िबर्क एक तरफ सधुार या
पनुर्ािस की सांभार्ना को, र्बना र्कसी र्र्शेषज्ञ के साक्ष्य के, ियकुमार बनाम मध्य प्रिशे राज््य544, बी.ए. उमशे बनाम महारर्िसट्रार,
कनािटक उच्च न्यायालय545 और मो0 मन्नन बनाम र्बहार राज््य546 में खाररि कर र्िया गया था, िसूरी तरफ पनु: र्बना र्कसी र्र्शषेज्ञ
के साक्ष्य के, र्नमिल र्सांह बनाम हररयाण राज््य547, मो0 चमन बनाम राज््य (राष्ट्रीय रािधानी राज््य के्षत्र र्िल्ली)548, रािू बनाम
535 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 66 पर ।
536 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498 ।
537 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013)5 एससीसी 546, पैरा 46 पर (उन मामलों को सचूीबद्ध करते हुए, िहाां इस पर कोई साक्ष्य नहीं
र्िया गया था र्क क्या सुधार की सांभार्ना ‘र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत’ थी)।
538 अर्नल@एांथोनी अररकस्र्ामी िोसेफ बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2014) 4 एससीसी 69 ।
539 र्बरि ूबनाम मध्य प्रिेश राज््य, (2014) 3 एससीसी 421 ।
540 अर्नल@एांथोनी एररक्स्र्ामी िोसेफ बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2014) 4 एससीसी 69, पैरा32 पर ; र्बरि ूबनाम मध्य प्रिशे राज््य, (2014) 3
एससीसी 421 ।
541 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65 ।
542 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65, पैरा 18 पर ।
543 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452, पैरा 38 पर ।
544 िय कुमार बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (1999) 5 एससीसी 1 ।
545 बी.ए. उमेश बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2011) 3 एससीसी 85 । 546 मो0 मन्नन खान बनाम र्बहार राज््य, (2011) 8 एससीसी 65 ।
547 र्नमिल र्सांह बनाम हररयाणा राज््य, (1999) 3 एससीसी 670 ।
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हररयाणा राज््य549, बांटू बनाम मध्य प्रिशे राज््य550, सरुेंि पाल र्शर्लकपाल बनाम गुिरात राज््य551, राहुल बनाम महाराष्ट्र राज््य552
और अर्मत बनाम उत्तर प्रिशे राज््य553 में इस सांभार्ना का लाभ र्िया गया था ।
(iii) िज्ञा के वनयम
5.2.52 उच्चतम न्यायालय ने मो0 फारूख बनाम महाराष्ट्र राज््य554 में, प्रणाली की भार्ी िोर्षता की र्चांताओां को सांबोर्धत करन े
के र्लए मृत्यिुांड का अर्धर्नणिय करन े में अपनाए िाने र्ाल े कर्तपय ‘प्रज्ञा के र्नयम’ पर र्र्चार-र्र्मशि र्कया । न्यायालय ने
अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
इस र्र्र्शष्ट िांड में न्यायालय पर प्रर्िया सांबांधी न्यार्यक अपेक्षाओां को, िो िोनों परुानी र्र्र्ध और पररपार्टयों से प्रकट हो
रही हैं, पूरा करन ेका भारी र्िन ह ै। प्रज्ञा के र्नयमों के अनसुार और र्सद्धाांत को दृष्र्ट में रखते हुए, न्यायालय ऐसे मामलों में,
िो एकल रूप से पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत हैं या िहाां उच्च न्यायालय ने आिीर्न कारार्ास या िोषमकु्र्त ि ेिी ह,ै
मृत्यिुांड के ऊपर आिीर्न कारार्ास को प्राथर्मकता िने ेका चयन कर सकता ह ै।555
5.2.53 मृत्यिुांड की सरु्भन्न प्रकृर्त को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने इसर्लए सार्धान र्कया र्क यह प्रज्ञा पूणि होगा र्क एक तरफ
पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत मामलों में और िहाां र्नचले न्यायालयों ने आिीर्न कारार्ास अर्धरोर्पत र्कया ह ैया िोषमकु्त कर
र्िया ह,ै मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने से बचा िाए । तथार्प, ऊपर र्र्चार-र्र्मशि र्कए गए मामलों के समरूप इन प्रज्ञा के र्नयमों का पालन
करन ेमें कम सामांिस्य ह ै।
क. पररस्वथवतजन्य साक्ष्य
5.2.54 केर्ल पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत र्सद्धिोषों की भार्ी भ्रमशीलता से सांबांर्धत और इस तथ्य से अर्गत र्क मृत्यिुांड
का उलटा नहीं िा सकता ह,ै न्यायालय ने र्र्र्भन्न मामलों में सार्धान र्कया र्क मृत्यिुांड से साधारणतया बचा िाना चार्हए िबर्क
िोषर्सर्द्ध एकल रूप से पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत हो । इस र्सद्धाांत का उिाहरण ितेे हुए र्क ‘‘अर्धक गांभीर अपराध सबूत
की र्डग्री उतनी ही कठोर’556, न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत ऐसे मामले
548 मो0 चमन बनाम राज््य (र्िल्ली का राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र), (2001) 2 एससीसी 28 ।
549 रािू बनाम हररयाणा राज््य, (2001) 9 एससीसी 615 ।
550 बांटू बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (2001) 9 एससीसी 615 ।
551 सरेुन्ि पाल र्शर्कुमारपाल बनाम गिुरात राज््य, (2005) 3 एससीसी 127 ।
552 राहुल बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2005) 10 एससीसी 322 ।
553 अर्मत बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (2012) 4 एससीसी 107 ।
554 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641 । 555 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 164 पर । 556 मौसम र्सन्हा राय बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (2003) 12 एससीसी 377 ; शरि र्भरिीचांि सरिा बनाम महाराष्ट्र राज््य, (1984) 4 एससीसी
116 ; कशमीरा र्सांह बनाम मध्य प्रिेश राज््य, एआईआर 1962 एससी 159 ।
95
बाि में उनकी तुलना में, िो सबूत के िोडे़ हुए स्रोतों पर आधाररत हैं, गलत िोषर्सद्ध होन े के अर्धक अर्सर रखते हैं,
‘प्रतीत होन ेर्ाल े र्नश्चायक पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर’ आधाररत िोषर्सर्द्ध को ससु्पष्ट घटना के रूप में पररकल्र्पत नहीं
र्कया िाना चार्हए और यह तथ्य र्क र्ह पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत ह,ै िांड िने ेर्ाले प्रिम पर र्र्चार-र्र्मशों के
िौरान र्नश्र्चत कारक होना चार्हए, यह र्र्चार करते हुए र्क मृत्यिुांड अपनी पूणि अप्रर्तसांहरणीयता में अर्द्वतीय ह ै। र्र्चारण
की र्कसी भी ऐसी र्र्शेषता को, िसेै िोषर्सर्द्ध एकमात्र रूप से पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत ह,ै िो आपरार्धक गणना
में अर्नश्र्चतता के र्लए योगिान ितेा ह,ै हत्या के र्लए अर्धकतम िांड का र्र्र्नश्चय करते समय नकारात्मक ध्यान आकर्षित
करना चार्हए ।557
5.2.55 अत: सहिरे् बनाम उत्तर प्रिशे राज््य558, शेख ईशाक बनाम र्बहार राज््य559, आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल
राज््य560, स्र्ामी श्रद्धानांि (2),561 और भानु प्रसाि र्सन्हा बनाम असम राज््य562 में न्यायालय ने मृत्यिुांड को, अन्य बातों के साथ,
इस र्र्चारण पर र्क िोषर्सर्द्ध पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत थी, अर्धरोर्पत नहीं र्कया ।
5.2.56 तथार्प, इस सार्धानी के बार्िूि एक र्र्रोधी पांक्र्त के मामलों में न्यायालय ने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत न करन ेके र्लए आधार
के रूप पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर र्र्चार करन ेसे सपष्ट रूप से इांकार कर र्िया ह ै। िसैा र्क उच्चतम न्यायालय ने शांकर खाि ेमें, र्शर्ािी
बनाम महाराष्ट्र राज््य563, कामता र्तर्ारी बनाम मध्य प्रिशे राज््य564 और मोलाई बनाम मध्य प्रिशे राज््य565 में िखेा ह,ै इस न्यायालय
ने स्पष्ट रूप से इस र्र्चार को नामांिूर कर र्िया र्क मृत्यिुांड उस मामल ेमें नहीं र्िया िा सकता िहाां साक्ष्य पररस्र्थर्तिन्य हैं और
अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘[गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली] पररस्र्थर्तयों के तुलनपत्र में, इस तथ्य की कोई भूर्मका नहीं ह ैर्क मामला
पररस्र्थर्तिन्य साक्ष्य पर आधाररत था ।’566
ख. न्यायािीशों के बीि दोवषता या दडंादेश पर असहमवत
5.2.57 र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम का र्सद्धाांत, मृत्यिुांड के अर्धरोपण के र्लए बहुत ही सांकीणि अांतर का, केर्ल अत्यर्धक
अपर्ािात्मक मामलों तक सीर्मत, उपबांध करता ह ै। इस अत्यर्धक सांकीणि अपर्ाि से, यह आशा की िाएगी र्क र्र्र्भन्न न्यायालयों के
न्यायाधीश, र्िन्होंन ेमामल ेको सुना ह,ै इस बारे में र्क मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ प्रर्गि से सांबांर्धत ह ैया नहीं यह िर्शित
557 काल ूखान बनाम रािस्थान राज््य, िाांर्डक अपील 1891-1892/2014 तारीख 10.03.2015 ।
558 सहिरे् बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2004) 10 एससीसी 682 ।
559 शेख इश्क बनाम र्बहार राज््य, (1995) 3 एससीसी 392 ।
560 आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (2007) 12 एससीसी 230 ।
561 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767 ।
562 भानु प्रसाि र्सन्हा बनाम असम राज््य, (2007 11 एससीसी 467 । 563 र्शर्ािी बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2008), 15 एससीसी 269 ।
564 कामता र्तर्ारी बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (1996) 6 एसीसी 250 ।
565 मोलाई बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (1999) 9 एसीसी 681 ।
566 र्शर्ािी बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2008), 15 एससीसी 269, पैरा 27 पर ।
96
करेंगे र्क र् ेर्कसी मात्रा तक एकमत हैं ।567 आगे मृत्यिुांड की उलटा न र्कए िाने योग्य प्रकृर्त को िखेते हुए, यर्ि र्कसी न्यायाधीश को
अपराधी की िोर्षता के बारे में ही सांिहे ह,ै तो र्ह सर्यां मृत्यिुांड न अर्धरोर्पत करन ेके र्लए आधार होना चार्हए ।568
5.2.58 उच्चतम न्यायालय ने मो0 फारूख में इस दृष्र्टकोण का अनमुोिन र्कया और अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्युिांड के लागू करने
में र्र्षमता िरू करन ेके र्लए और एकरूपता की एक मात्रा लान ेके र्लए, ‘सर्िसम्मर्त से पहुांच’569 को अांगीकार र्कया िाना चार्हए,
र्िसके द्वारा मृत्यिुांड केर्ल तब अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए यर्ि न्यायालय प्रणाली की र्र्र्भन्न श्रेर्णयों के बीच शीषि से और साथ ही
न्यायपीठों के बीच एक स्तर पर सर्िसम्मर्त हो।
5.2.59 तथार्प, िसैा र्क पूर्ि धाराओां में उल्र्लर्खत मामलों में ह,ै इस मदु्द ेपर भी पूर्ि र्नणियों में पयािप्त र्र्र्र्धता र्र्द्यमान ह ै ।
उिाहरण के र्लए एक तरफ उत्तर प्रिशे राज््य बनाम सतीश570 का मामला और िसूरी तरफ महाराष्ट्र राज््य बनाम सरेुश571 का मामला
र्लया िा सकता ह,ै पूर्िर्ती में अर्भयकु्त को छह र्षि की बार्लका के साथ बलात्सांग और उसकी हत्या के र्लए आरोर्पत र्कया गया था
और र्र्चारण न्यायालय द्वारा र्सद्धिोषी ठहराया गया था तथा मृत्यिुांडािशे र्िया गया था र्कनत ुउच्च न्यायालय ने उस ेिोषमकु्त कर र्िया
। उच्चतम न्यायालय ने र्र्चारण न्यायालय का आिशे प्रत्यार्र्तित कर र्िया और उच्च न्यायालय द्वारा अर्भयकु्त की िोर्षता के बारे में
सांिहे को ध्यान में रखे र्बना अपराध की िूर और िरुाचार पूणि प्रकृर्त के आधार पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत कर र्िया । िसूरी तरफ सरेुश में
भी 4 र्षि की आय ुकी बार्लका का बलात्कार और उसकी हत्या अांतर्िर्लत थी । यहाां भी र्र्चारण न्यायालय ने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत
र्कया था र्कन्तु उच्च न्यायालय ने उस े िोषमकु्त कर र्िया । उच्चतम न्यायालय ने र्र्चारण न्यायालय का िोषर्सर्द्ध का आिशे
प्रत्यार्र्तित कर र्िया और उसका मृत्युिांड अर्धरोर्पत करन ेकी ओर झुकार् था र्कन्तु उसने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘चूांर्क अर्भयकु्त
को एक बार उच्च न्यायालय द्वारा िोषमकु्त कर र्िया गया था अत: हम इस तथ्य के बार्िूि र्क यह मामला र्र्रले मामलों में से
र्र्रलतम के के्षत्र के खतरनाक रूप से नििीक ह,ै उस चरम िांड को अर्धरोर्पत करन ेसे र्र्रत रहते हैं ।’572
5.2.60 समान रूप से िबर्क र्लक्ष्मा िरे्ी बनाम रािस्थान राज््य573, उत्तर प्रिशे राज््य बनाम बाबू राम574, महाराष्ट्र राज््य बनाम
िामू575, महाराष्ट्र राज््य बनाम भरत फकीरा धीर्र576, तर्मलनाडु राज््य बनाम सरेुश577 और सांतोष कुमार र्सांह बनाम राज््य578 में
567 इस र्र्चार का न्यायमरू्ति थामस द्वारा सथुेंि रािा उफि सथुेंर्थरा रािा उफि सांथान बनाम राज््य(1999) 9 एससीसी 323 में समथिन र्कया गया था ।(‘मेरी
राय में यह एक उिाहरण बनाने के र्लए ठोस प्रर्तपािना होगी र्क िब तीन न्यायाधीशों में से एक आिीर्न कारार्ास के िांडािशे के अर्धमान में कर्थत कारणों पर
र्कसी अर्भयुक्त को मृत्युिांड िनेे से र्र्रत रहता ह ैतो उस तथ्य को यह मानने के र्लए पयािप्त माना िा सकता ह ैर्क र्ह र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम की सांकीणि
पररर्ध के भीतर, िब आनुकल्र्पक र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत ह,ै नहीं आता ह’ै ।
568 इस र्र्चार का, यद्यर्प कम स्पष्टत: से मो0 फारूख अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य (2010) 14 एससीसी 641 और र्लक्ष्मा िरे्ी बनाम रािस्थान
राज््य (1988) 4 एससीसी 456 में अनुमोिन र्कया गया ह ै। (‘िहाां िो न्यायालयों द्वारा अर्भयुक्त की िोर्षता के बारे में िो राय हैं, र्हाां साधारतया उर्चत
िांडािेश मृत्यु नहीं र्कन्तु आिीर्न कारार्ास होगा’) ।
569 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 165 पर ।
570 उत्तर प्रिशे राज््य बनाम सतीश, (2005) 3 एससीसी 114 ।
571 महाराष्ट्र राज््य बनाम सरेुश, (2000) 1 एससीसी 471 ।
572 महाराष्ट्र राज््य बनाम सरेुश, (2000) 1 एससीसी 471, पैरा 29 पर ।
573 र्लच्छम्मािरे्ी बनाम रािस्थान राज््य, (1988) 4 एससीसी 456 ।
574 उत्तर प्रिशे राज््य बनाम बाबू राम, (2000) 4 एससीसी 515 ।
575 महाराष्ट्र राज््य बनाम िामू, (2000) 6 एससीसी 269 ।
576 महाराष्ट्र राज््य बनाम भरत फकीरा धीर्र, (2002) 1 एससीसी 622 ।
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उच्चतम न्यायालय ने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेसे इांकार कर र्िया क्योंर्क र्नचल ेन्यायालय ने अपराधी को िोषमकु्त कर र्िया था; िसूरी
तरफ रािस्थान राज्य बनाम खेरि राम579, िरे्ेंि पाल र्सांह बनाम राज््य, राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र र्िल्ली580, और कृष्णा मोची
बनाम र्बहार राज््य581, में न्यायाधीशों के अपराधी की िोर्षता पर असहमत होन ेके बार्िूि, मृत्यिुांड र्िया गया था । िरे्ेंि पाल र्सांह
बनाम राज््य, राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र र्िल्ली582 में और कृष्णा मोची बनाम र्बहार राज््य583 में िोर्षता के प्रश्न पर स्र्यां उच्चतम
न्यायालय के ज््यषे्ठतम न्यायाधीश की असहमर्त थी ।
5.2.61 समान र्चांताएां बी.ए. उमशे बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय584, अांकुश मारुर्त र्सांि े बनाम महाराष्ट्र
राज््य585, रामिरे् चौहान@ रािनाथ चौहान बनाम असम राज््य586 िसेै मामलों में और कृष्णा मोची बनाम र्बहार राज््य587 में तीन
अपीलार्थियों के मामल ेमें उत्पन्न हुई ां थीं, िहाां श्रेर्णयों और न्यायापीठों से परे न्यायाधीश अपरार्धयों की िोर्षता पर सहमत थे, र्कन्त ुइस
पर नहीं थे र्क मामला र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम प्रर्गि से सांबांर्धत था । इस असहमर्त के बार्िूि, उच्चतम न्यायालय ने मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत र्कया । रामिरे् चौहान में, िहाां उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने स्र्यां अपराधी की अत्यर्धक तरुण आय ुके आधार
पर आिीर्न कारार्ास अर्धरोर्पत र्कया था, बहुमत र्ाले एक न्यायाधीश ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क यह अपराधी के र्लए
कायिपार्लका से लघुकरण के र्लए माांग करन ेके र्लए एक आधार हो सकता ह,ै र्कन्त ुइससे न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कए
िाने पर प्रभार् नहीं पडे़गा । समान रूप से कृष्णा मोची में, िहाां न्यायपीठ के ज््यषे्ठतम नयायाधीश ने अपीलाथी को िोषमकु्त कर र्िया
था और तीन पर आिीर्न कारार्ास अर्धरोर्पत र्कया था, सभी चारों को बहुमत द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था । इन मामलों के र्र्रोध में
मयांकर बलिरे् सरिार बनाम महाराष्ट्र राज््य588 में, िबर्क न्यायालय ने यह पाया र्क मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ मानक को
पूरा करता था, उसने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन े से केर्ल इसर्लए इांकार कर र्िया क्योंर्क उच्च न्यायालय ने अर्भयुक्त पर आिीर्न
कारार्ास अर्धरोर्पत र्कया था ।
5.2.62 उन मामलों में अर्तररक्त र्चांताए उत्पन्न होती हैं, िहाां उच्चतम न्यायालय मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने के र्लए पहला न्यायालय
ह,ै 1984 में राष्ट्रसांघ आर्थिक और सामार्िक पररषि ्ने उन व्यक्र्तयों के, िो मृत्यिुांड का सामना कर रह ेथे, अर्धकारों के सरांक्षण की
गारांटी िने ेर्ाले कर्तपय रक्षोपाय अांगीकार र्कए थे,589 र्िनका सांयकु्त राष्ट्रसांघ महासभा द्वारा सर्िसम्मर्त से अनमुोिन र्कया था, इन
577 तर्मलनाडु राज््य सरेुश, (1998) 2 एससीसी 372 ।
578 सांतोष कुमार र्सांह बनाम राज््य, (2010) 9 एससीसी 747 ।
579 रािस्थान राज््य बनाम खेरि राम, (2003) 8 एससीसी 224 ।
580 िरे्ेन्िर पाल र्सांह बनाम राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, (2002) 5 एससीसी 234 ।
581 कृष्णा मोची बनाम र्बहार राज््य, (2002) 6 एससीसी 81 ।
582 िरे्ेन्िर पाल र्सांह बनाम राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, (2002) 5 एससीसी 234 ।
583 कृष्णा मोची बनाम र्बहार राज््य, (2002) 6 एससीसी 81 ।
584 बी.ए. उमेश बनाम महारर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2011) 3 एससीसी 85 ।
585 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 667 ।
586 राम िरे् चौहान @ राि नाथ चौहान बनाम असम राज््य, (2000) 7 एससीसी 455 ।
587 कृष्णा मोची बनाम र्बहार राज््य, (2002) 6 एससीसी 81 ।
588 (2007) 12 एससीसी 654 । 589 25 मई, 1984 का सांकल्प 1984/50 ।
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रक्षोपायों के अनसुार ‘मृत्य ुसे िांडार्िष्ट र्कसी व्यक्र्त को उच्चतर अर्धकाररता र्ाले न्यायालय को अपील करने का अर्धकार होगा और
यह सरु्नश्र्चत करन ेके र्लए उपाय र्कए िाने चार्हए र्क ऐसी अपीलें आज्ञापक होंगी ।’590
5.2.63 भारत की अांतरराष्ट्रीय बाध्यताओां के अधीन इसर्लए मृत्य ु से िांडार्िष्ट र्कसी व्यक्र्त को मृत्यिुांडािशे के अर्धरोपण से
अपील करने का अर्धकार ह ैऔर राज््य के र्लए यह बाध्यता होगी र्क र्ह ऐसा अपीलीय मांच प्रिान करे । तथार्प, िहाां मृत्यिुांड उच्चतम
न्यायालय के स्तर पर पहली बार अर्धरोर्पत र्कया िाता ह,ै र्हाां यह अर्धकार नकारात्मक हो िाता ह ै। उिाहरण के र्लए साइमन बनाम
कनािटक राज््य591 ले सकते हैं । इस मामले में 4 व्यक्र्तयों को मृतयिुांड से िोषर्सद्ध र्कया गया था । इस मामले का र्र्चारण आतांकर्ािी
और र्र्ध्र्ांशकारी र्ियाकलाप सांबांधी नयायालय द्वारा र्कया गया था और उसकी पहली और केर्ल मात्र अपील उच्चतम न्यायालय के
समक्ष थी । आतांकर्ािी और र्र्ध्र्ांशकारी र्ियाकलाप सांबांधी नयायालय ने अपराधी को िोषर्सद्ध ठहराया और उन्हें आिीर्न कारार्ास
का िांड ि ेर्िया । िोषर्सद्धों ने इस र्र्र्नश्चय की उच्चतम न्यायालय को अपील की । राज््य द्वारा या पीर्ड़तों द्वारा िांडािशे की र्ृर्द्ध के
र्लए कोई अपील फाइल नहीं की गई थी ।तथार्प उच्चतम न्यायालय ने स्र्प्रेरणा से 4 अपीलार्थियों का िांड बढाकर मृत्य ुकर र्िया ।
अत: उच्चतम न्यायालय पहला और केर्ल न्यायालय था, र्िसने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया । अपरार्धयों के पास र्र्र्नश्चय से अपील
करन ेके र्लए कोई उपलब्ध मांच नहीं था । इस सांबांध में यह िखेा गया ह ैर्क आयोग ने अपनी 187र्ीं ररपोटि में, यह र्सफाररश की थी
र्क ‘िहाां उच्चतम न्यायालय र्कसी मामल ेमें यह समझता ह ैर्क िोषमकु्र्त गलत ह ैऔर अर्भयकु्त को िोषर्सद्ध ठहराया िाना चार्हए
और मृत्यिुांड र्िया िाना चार्हए ; या र्ह समझता ह ै र्क र्कसी अर्र्ध के र्लए िांड या आिीर्न कारार्ास का िांड बढाकर मृत्यिुांड
र्कया िाना ह,ै तो उच्चतम न्यायालय मामल ेको माननीय भारत के मखु्य न्यायमूर्ति के समक्ष कम से कम 5 न्यायाधीशों की न्यायपीठ
द्वारा सनुर्ाई के र्लए रखे िाने के र्लए र्निरे्शत कर सकता ह ै । इसमें उच्चतम न्यायालय के र्नयमों को सांशोर्धत र्कया िाना भी
अपेर्क्षत ह ै।’592 तथार्प, इस र्सफाररश को कायािन्र्र्त नहीं र्कया गया ह ै।
5.2.64 समरूप तथ्य र्ाली स्र्थर्तयों में असमान व्यर्हार के बारे में िसूरी र्चांता उन मामलों में उठती ह,ै िहाां सह अर्भयकु्त, िो
अपराध में समान भूर्मका करने र्ाल ेअर्भयकु्त ह,ै उनके साथ र्भन्न व्यर्हार र्कया िाता ह,ै उिाहरण के र्लए एक ही प्रथम इत्र्तला
ररपोटि में, िो कृष्णा मोची में अर्भयकु्त की िोषर्सर्द्ध और मृत्यिुांड का आधार थीं, ब्यासराम को भी नार्मत र्कया गया था और उस पर
भी उसी भूर्मका का आरोपण र्कया गया था ।593 उसके मामल ेपर पृथक् रूप से र्र्चार र्कया गया था । उच्चतम न्यायालय के समक्ष,
न्यायाधीशों ने अपराधी को िोषर्सद्ध ठहराने के र्लए कृष्णा मोची र्ाले र्नणिय से तथ्यों पर भरोसा र्कया । तथार्प, यह िखेते हुए र्क
कृष्णा मोची में एक अर्भयकु्त की िोर्षता के प्रश्न पर और अन्य तीन अपरार्धयों को मृत्यिुांड र्िए िाने की समुर्चतता के प्रश्न पर
र्र्सम्मर्त थी, न्यायालय ने ब्यासराम में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेसे इांकार कर र्िया । इसर्लए यद्यर्प, कृष्णा मोची और उसके िो सह
अर्भयकु्तों को उनके पक्ष में र्र्सम्मत र्नणिय के बार्िूि मृत्यिुांड र्िया गया था, ब्यासराम को उसी र्नणिय के आधार पर आिीर्न
कारार्ास र्िया गया था ।
5.2.65 य ेमामल ेउस िसूरे मामल ेको प्रर्तध्र्र्नत करते हैं, र्िसको न्यायाधीश भगर्ती द्वारा ‘मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेमें सनकीपन
के उिाहरण’594 के रूप में बचन र्सांह में अपनी र्र्सम्मर्त में महत्र्पूणि रूप से र्लखा गया था । हरर्ांश र्सांह बनाम उत्तर प्रिशे राज््य
में595 तीन अर्भयकु्त –िीता र्सांह, कश्मीरा र्सांह और हरर्ांश र्सांह सम्र्मर्लत थे । सभी तीनों को इलाहाबाि उच्च न्यायालय द्वारा चार
590 25 मई, 1984 का सांकल्प 1984/50 । 591 साइमन बनाम कनािटक राज््य, (2004) 1 एससीसी 74 । 592 भारत का र्र्र्ध आयोग, 187र्ीं ररपोटि, 2013 http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/187th%20 report.pdf पर
उपलब्ध (25.08.2015 को अांर्तम बार अर्लोकन र्कया गया) । 593 व्यास राम बनाम र्बहार राज््य, 2013(12) एससीसी 349 । 594 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1982) 3 एससीसी 24, पैरा 71 पर । 595 हरबांस र्सांह बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (1982) 2 एससीसी 101 ।
99
व्यक्र्तयों के एक पररर्ार की हत्या में समान भाग लेने के र्लए मृत्यिुांड र्िया गया था । प्रत्यके व्यक्र्त ने उच्चतम न्यायालय में पृथक्
अपील की । िीता र्सांह की र्र्शेष इिाित यार्चका एक न्यायपीठ के समक्ष आई और उसने उस ेखाररि कर र्िया । उस ेफाांसी ि ेिी गई
। कश्मीरा र्सांह की र्र्शेष इिाित यार्चका एक र्भन्न न्यायपीठ के समक्ष रखी गई और उस ेइिाित प्रिान कर िी गई और तत्पश्चात्
उसका िांड आिीर्न कारार्ास करके लघुकृत कर र्िया गया । हरर्ांश र्सांह की र्र्शेष इिाित यार्चका एक अन्य न्यायपीठ के समक्ष
आई । इिाित नामांिूर कर िी गई और एक पनुर्र्िलोकन यार्चका भी खाररि कर िी गई । हरर्ांश र्सांह को िीता र्सांह के साथ फाांसी
लगायी िानी थी । तथार्प उसने उच्चतम न्यायालय के समक्ष ररट यार्चका फाइल की और उसकी फाांसी पर रोक आिशे र्िया गया । िब
ररट यार्चका सनुी गई, तब न्यायपीठ को कृष्णा र्सांह के लघुकरण के बारे में पता लगा ।न्यायमूर्ति भगर्ती के अनसुार बचन र्सांह में,
यह एक र्र्र्शष्ट मामला ह,ै िो मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने में न्यार्यक उच्श्रृांखलताओां का उिाहरण प्रस्तुत करता ह ैऔर
अपनी सभी िूर और दृढ र्ास्तर्र्कताओां में प्रिर्शित करता ह ैर्क मृतयिुांड का र्िया िाना कैसे न्यायपीठ की र्र्रचना द्वारा
प्रभार्र्त होता ह.ै....................... यह प्रश्न अर्भयकु्त द्वारा पूछा िा सकता ह ै: मझुे उस तरीके पर र्नभिर रहते हुए, र्िसमें
समय-समय पर न्यायपीठों का गठन र्कया िाता ह,ै क्या िीर्र्त रहना ह ैया मरना ह ै? क्या यह स्पष्ट रूप से अनचु्छेि 14
और अनचु्छेि 21 में प्रर्तष्ठार्पत मूल अर्धकारों की प्रत्याभूर्तयों का अर्तिमण नहीं ह ै।596
596 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1982) 3 एससीसी 24, पैरा 71 पर ।
100
(iv) मृत्युदडं के अविरोपण पर आनुभववक आंकडे
क. मृत्युदडं के अविरोपण की दरें
5.2.66 राष्ट्रीय परामशि पर प्रस्तुत र्कए गए और लोक परामशि के उत्तर में र्र्र्ध आयोग को प्रस्तुत र्कए गए आांकडे़ मृत्यिुांड के
असांगत, मनमान ेऔर न्यायाधीश-कें र्ित रूप से लागू होन ेके दृश्य को भी र्सद्ध करते हैं ।
5.2.67 राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो द्वारा मृत्यिुांड पर एकर्त्रत र्कए गए आांकडे़ इांर्गत करते हैं र्क 2000 और 2012 की
अर्र्ध में 1,677 मृत्यिुांड भारतीय न्यायालयों द्वारा अर्धरोर्पत र्कए गए थे । िसैा र्क राष्ट्रीय परामशि में कुछ भाग लेने र्ालों द्वारा
उल्लेख र्कया गया था र्क यह इांर्गत करता ह ैर्क भारत प्रर्तर्षि औसतन 129 व्यक्र्तयों को मृत्य ुपांक्र्त में भेिता ह,ै या मोटे रूप से
प्रर्त तीसरे र्िन एक व्यक्र्त को भेिता ह ै । खाि ेमें, उच्चतम न्यायालय ने इन आांकड़ों पर र्र्चार र्कया और कहा र्क यह सांख्या
खतरनाक रूप से ऊां ची थी और यह सुझार् ितेी प्रतीत होती ह ैर्क मृत्यिुांड उससे अर्धक र्र्स्तृत रूप में लागू र्कया िा रहा ह ैिो बचन
र्सांह में पररकल्र्पत था ।597
5.2.68 उसी समयार्र्ध के िौरान हत्या के र्लए समग्र िोषर्सर्द्धयों के सांबांध में अर्धरोर्पत मृत्यिुांड पर राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो
के आांकड़ों का पास में रखना अन्य उपयोगी, यद्यर्प सदृश अांतदृिष्र्ट प्रिान करता ह ै ।598 य ेआांकडे़ प्रिर्शित करते हैं र्क 2004 से
2012 की अर्र्ध के िौरान हत्या अांतर्िर्लत करन ेर्ाले 180439 मामलों में न्यायालयों द्वारा िोषर्सर्द्धयाां अर्भर्लर्खत की गई थीं
। उसी अर्र्ध के िौरान मृत्यिुांड के 1178 मामलों में, अथाित ्हत्या के र्लए िोषर्सर्द्ध अांतर्िर्लत करन ेर्ाले 0.65 प्रर्तशत मामलों
में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया गया था । पूणि सांख्याओां में यह एक बड़ा अांक ह,ै िसैा उच्चतम न्यायालय द्वारा खाि ेमें माना गया ह ै।
इसके अर्तररक्त मृत्यिुांड के अर्धरोपण में मनमानेपन और असांगतता को िखेते हुए, श्रद्धानांि (2)599 में उठाया गया प्रश्न पनुरार्ृत्र्त
करता ह ै:
यर्ि समान मामलों या अर्धक र्र्िोही प्रकर्त के हत्या के मामलों में अपराधी मृत्यिुांड से बच गए या कुछ मामलों में
आपरार्धक न्याय प्रणाली से भी पूणित: बचने में समथि हो गए, तो र्हाां र्सद्धिोष व्यक्र्त का चयन करना और र्नचले
न्यायालयों द्वारा उसे र्िए गए मृत्यिुांड की पषु्र्ट करना, केर्ल इसर्लए र्क र्ह न्यायालय के समक्ष आ गया ह,ै अत्यर्धक
अयकु्र्तपूणि और अन्यायपूणि होगा । र्कनतु र्कसी मामल ेको इस दृष्र्ट से िखेन ेके र्लए इस न्यायालय के पास तुलना के र्लए
कोई के्षत्र नहीं ह ै । यह न्यायालय केर्ल उन मामलों में से, िो उसके पास र्र्चारण न्यायालय द्वारा र्िए गए और उच्च
न्यायालय द्वारा पषु्र्ट र्कए गए मृत्य ु के िांड के साथ आते हैं, मामलों का ‘र्र्रल े मामलों में से र्र्रलतम’ या र्कसी
‘अपर्ािात्मक मामले’ या र्कसी अत्यर्धक गांभीर मामल ेके रूप में र्नणिय करन ेकी स्र्थर्त में होता ह ै। र्े सभी मामल,े िो
‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ के रूप में अहिन हो सकते हैं और िो मृत्यिुांड का समथिन कर सकते हैं र्कन्त ुर्िनमें मृत्यिुांड
र्र्चारण न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा र्नणिय की गलती के कारण र्ास्तर् में नहीं र्िया गया ह,ै तुलना के के्षत्र से स्र्त:
बाहर हो िाते हैं । अर्धक महत्र्पूणि मामल ेर्नकृष्टतम प्रकार के हत्या के मामल ेहैं और उनकी सांख्या र्कसी भी प्रकार कम
597 र्िए गए मृत्युिांडों की सांख्या यद्यर्प बड़ी ह ैिो यह स्पष्ट बनाती ह ैर्क मृत्युिांड र्ास्तर् में र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम में ही र्िया िा रहा ह ै। शांकर र्कशनरार्
खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546 ।
598 अपणाि चन्ि, मणृाल सतीश, र्ृांिा भांडारी और रार्धका र्चतकारा, तुला पर लटके हुए : मतृ्युिांड के अर्धर्नणियन पर भारत में मनमानापन (1950-2013)
(2015 फाइल पर उपलब्ध ह)ै । सांख्याएां केर्ल लगभग अांतदृिष्र्ट ितेी हैं क्योंर्क िोषर्सर्द्ध की िरें हत्या के र्लए हैं, मतृ्युिांड के आांकड़ों में गैर हत्या र्ाले मृत्यु
से िांडनीय अपराधों के र्लए अर्धरोर्पत िांडािेश भी लेखे में र्लए िा सकते हैं । चूांर्क बहुत कम मृत्युिांडािशे ऐसे अपराधों में अर्धरोर्पत र्कए गए हैं र्िनमें हत्या
अांतर्िर्लत नहीं ह,ै हत्या की इन लगभग और र्ास्तर्र्क सांख्या के बीच अांतर मृत्युिांड से सांबांर्धत ह,ै िो उपेक्षणीय होगा ।
599 स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767 ।
101
नहीं ह,ै र्िनमें अपराधी, यद्यर्प र्ह पहचान योग्य ह,ै र्कसी भी प्रकार से िांड बचने का प्रबांध कर लेता ह ैया बहुत हल्का िांड
भुगत कर बाहर र्नकल आता ह ै। ऐसे मामले उन मामलों के साथ, र्िनके बारे में यह न्यायालय मृत्यिुांड की पषु्र्ट करन ेके
र्लए र्र्चार कर रहा हो, तुलना के र्लए कभी सामने नहीं आते हैं । कहने के र्लए यह इस कारण से ह ैक्योंर्क आपरार्धक
न्याय प्रणाली, र्िसका न्यायालय एक भाग ह,ै सौ प्रर्तशत कुशलता से या उसके आसपास भी, कायि नहीं करती ह ै । यह
कहने के र्लए कुछ असाधारण, नया या मौर्लक नहीं ह ै। र्कनतु र्र्षय र्बांि ुयह ह ैर्क इस न्यायालय को, िो िशे का सर्ोच्च
न्यायालय होते हुए ऐसी आपरार्धक न्याय प्रणाली की अध्यक्षता कर रहा ह ै, िो हत्या के अत्यर्धक खतरनाक और र्र्िोही
र्कस्म के अपरार्धयों के भाग िाने की अनजु्ञा ि ेितेी ह,ै मृत्यिुांड के बारे में कायिर्ाही करते समय अत्यर्धक सार्धान होना
चार्हए ।600
5.2.69 िसूरे शब्िों में कैसे िशे में कोई न्यायालय यह अर्धाररत कर सकता ह ै र्क उसके समक्ष मामल े ‘र्र्रल ेमामलों में से
र्र्रलतम’ हैं । प्रत्यके न्यायाधीश अपने र्र्श्लेषण को उन मामलों तक, र्िनमें र्ह पीठासीन हुआ ह ैया र्िनहें उसने पढा ह,ै सीर्मत कर
सकता ह,ै मामलों की बड़ी सांख्या को ध्यान में रखते हुए यह अर्धारणा र्क एक या िसूरा मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ ह,ै
कुछ नहीं र्कन्तु एक र्र्र्धक कल्पना रह िाएगा । क्या कोई र्र्र्ध, िो र्र्र्धक कल्पना के आधार पर िीर्न लेने की अनजु्ञा ितेी ह,ै
सांर्र्धान के पाठ और आत्मा के अनरुूप ह,ै इसका अन्र्ेषण र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै।
5.2.70 मृत्यिुांड के अत्यर्धक उपयोग से िसूरे आांकडे़ प्रकट होते हैं । उच्चतम न्यायालय द्वारा मृतयिुांड मकुिमबेािी क्लीर्नक,
राष्ट्रीय र्र्र्ध र्र्श्र्र्र्द्यालय, र्िल्ली को र्िए गए और राष्ट्रीय परामशि में प्रस्तुत र्कए गए आांकडे़ िर्शित करते हैं र्क 2000-2015
के बीच र्र्चारण न्यायालयों ने 1790 व्यक्र्तयों पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया ह ै।601 इनमें से 1512 मामले उच्च न्यायालय द्वारा
र्र्र्नश्र्चत र्कए गए थे । शेष या तो अभी तक लांर्बत हैं या उनके र्नणिय पता नहीं लगे हैं । 1512 मामलों के 62.8 प्रर्तशत में
अपीलीय न्यायालय ने िांड को लघुकृत कर र्िया । अथाित् यद्यर्प अपीलीय न्यायालय र्र्चारण न्यायालय के साथ िोषर्सर्द्ध पर सहमत
थे, र्कन्तु न्यायालयों ने िांड िनेे र्ाले अर्धारण को नामांिूर कर र्िया । िसूरे 28.9 प्रर्तशत मामले, िहाां र्र्चारण न्यायालय ने मृत्यिुांड
र्िया था या मोटे रूप से एक-र्तहाई मामले, र्िनमें िोषमकु्र्त हुई थी, र्नचले न्यायालयों में न्यायर्नणियन की गुणर्त्ता से सांबांर्धत इससे
भी अर्धक गहरी प्रणाली सांबांधी समस्या की ओर सांकेत करते हैं । समग्र रूप से मृत्यिुांड की केर्ल 4.3 प्रर्तशत मामलों में पषु्र्ट की गई
थी । उच्चतम न्यायालय के आांकडे़ इस प्रकार िर्शित करते हैं र्क 95.7 प्रर्तशत मामलों में र्र्चारण न्यायालयों ने गलती से मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत करते हैं ।
ख. ‘न्यायािीश – कें वित’ मृत्युदडं संबंिी न्यायशास्त्र
5.2.71 प्रो0 ब्लकैशील्ड द्वारा 1970 में की गई मृत्यिुांड की आनभुर्र्क परीक्षा र्र्र्शष्ट रूप से उन र्िनों में मृत्युिांड के लागू करन े
में न्यायाधीश-कें र्ित प्रकृर्त का उल्लेख करती ह ै। इस अध्ययन में 1972-1976 के बीच उच्चतम न्यायालय के 70 र्र्र्नश्चयों
का र्र्श्लेषण र्कया गया था िहाां न्यायालय को आिीर्न कारार्ास या मृत्युिांड के बीच र्र्र्नश्चय करना था । लेखक को उस समय
न्यायाधीश कें र्ित िांडािशे का साक्ष्य र्मला, िब र्ह यह िखे रहा था र्क बहुत बड़ी सांख्या में मृत्यिुांड न्यायमूर्ति र्दै्यर्लांगम िआु और
अलाइर्गरर स्र्ामी से र्मलकर बनी न्यायपीठों द्वारा र्िए गए थे और उनकी पषु्र्ट की गई थी ।602 आगे ब्लकैशील्ड ने उच्चतम
न्यायालय द्वारा र्र्चार में लाए गए कई गुरुतरकारी और कम करने र्ाले कारकों का भी र्र्श्लेषण र्कया और उसको लागू करन ेमें
600
स्र्ामी श्रद्धानांि (2) बनाम कनािटक राज््य, (2008) 13 एससीसी 767, पैरा 45 पर । 601 यह आांकड़ा टाडा मामलों में सम्र्मर्लत नहीं ह ै। 602 ए.आर. ब्लैकशीड, भारत में मृत्युिांड, 21(2) भारतीय र्र्र्ध सांस्थान का िरनल, 156-158 (अप्रलै-िनू, 1979)
102
न्यायालय के दृष्र्टकोण में कोई सामांिस्य नहीं र्मला । िबर्क िांड र्िए िाने के पश्चात ्र्र्लांब को 5 मामलों में महत्र् र्िया गया था,
िसूरे 5 में उसे छोड़ र्िया गया था । समान रूप से अपराधी की तरुण आय ुका िो मामलों में सम्यक् ध्यान रखा गया था र्कन्त ुिसूरे
मामले में उसे छोड़ र्िया गया था । अपराधी-अपीलाथी के ‘अनरै्तक’ सांबांध को िो मामलों में कम करने र्ाले कारक के रूप में और एक
मामलें में गुरुतरकारी कारक के रूप में माना गया था ।603 ऊपर र्नर्ििष्ट की गई न्यायमूर्ति भगर्ती की र्र्सम्मर्त, प्रो0 ब्लकैशील्ड के
अनसुांधान और मृत्यिुांड की र्तिमान स्र्थर्त के बीच समानताएां आश्चयििनक हैं ।
5.2.72 न्यायमूर्ति भगर्ती की र्चांता र्क मृत्यिुांड मामल ेके तथ्यों पर नहीं र्कन्त ुन्यायपीठ की र्र्रचना पर र्नभिर करता ह,ै उच्चतम
न्यायालय द्वारा हाल में की गई इन स्र्ीकारोक्र्तयों में प्रर्तध्र्र्नत होती ह ैर्क मृत्यिुांड का अर्धरोपण ‘न्यायाधीश-कें र्ित’ ह ै।604 आगे
इस र्चांता की पुष्र्ट उस अनसुांधान द्वारा होती ह ैर्िसे मृत्यिुांड सांबांधी मामलों के पररणाम पर न्यार्यक चेतना के प्रभार् की परीक्षा करते
हुए राष्ट्रीय परामशि में प्रस्तुत र्कया गया था । 2000 के पश्चात ्उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने 30 मामलों में से 14 में
(र्िनमें से 2 में उच्च न्यायालय द्वारा िोषमकु्र्त की गई थी, 2 में आिीर्न कारार्ासों को मृत्य ुमें पररर्र्तित कर र्िया गया था और 2 में
उच्चतम न्यायालय के िसूरे नयायाधीश द्वारा िोषमकु्त र्कए िाने के बार्ििू मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया गया था) मृत्यिुांड अर्धरोर्पत
र्कया । प्रसांगानसुार, मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेर्ाले इन 15 मामलों में से 5 उच्चतम न्यायालय द्वारा स्र्यां अनर्धानता से र्र्र्नश्र्चत
र्कए गए घोर्षत र्कए गए हैं । एक िसूरे न्यायाधीश ने 18 में से 8 में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया, िबर्क 2 अन्य न्यायाधीशों ने िमश:
10 और 16 मामलों का अर्धर्नणियन करन ेमें कोई मृत्यिुांड अर्धरोर्पत नहीं र्कया ।605
5.2.73 य ेअध्ययन और उिाहरण भारत में ‘र्सद्धाांतपूणि िांड िने’े की सीर्मत सांभार्ना को िर्शित करते हैं, िो र्क भारत में मृत्यिुांड
की सांर्धैार्नकता के र्लए र्नर्हत पररकल्पना ह ै।
ग. भौगोवलक वववभन्नताए ं
5.2.74 ऊपर उद्धत राष्ट्रीय अपराध ररकाडि ब्यूरो के आांकडे़ मृत्यिुांड सांबांधी न्यायशास्त्र में असमानता की िसूरी धरुी की तरफ सांकेत
करते हैं । िब राज््य र्ार उनहें अलग-अलग र्कया गया तो 2004-12 की अर्र्ध में हत्या के र्लए िोषर्सर्द्ध की िर की प्रर्तशतता
के रूप में मृत्यिुांडों के अर्धरोपण की िर राज््य र्ार महत्र्पूणि असमानता िर्शित करती ह ै। उिाहरण के र्लए केरल में हत्या के र्सद्धिोष
की मृत्यिुांड पान ेकी सांभार्ना एक साथ रखते हुए िशे के शेष भागों से लगभग िगुुनी ह ै; झारखांड में हत्या के र्सद्धिोषी की मृत्यिुांड पाने
की सांभार्ना िशे के शेष भागों की तुलना में 2.4 गुनी ह,ै गुिरात में 2.5 गुनी, पश्र्चम बांगाल में 3 गुनी, कनािटक में 3.2 गुनी,
र्िल्ली में 6 गुनी और िम्मू-कश्मीर में 6.8 गुनी ह ै। कनािटक में हत्या के र्सद्धिोषी की मृत्यिुांड पाने की सांभार्ना तर्मलनाडु की तुलना
में 5.8 गुना ह ै। गुिरात में हत्या के र्सद्धिोषी की मृत्यिुांड पान ेकी सांभार्ना रािस्थान में एक र्सद्धिोष से 5.8 गुना ह ै। महाराष्ट्र,
हत्या के िोषर्सद्धों को मध्य प्रिशे से 2.9 गुना अर्धक आर्ृत्र्त में मृत्यु पांक्र्त में भेिता ह ै । उत्तर प्रिशे सबस ेअर्धक सांखया में
व्यक्र्तयों को मृत्य ुपांक्र्त में भेिता ह ैर्कन्तु हत्या के र्लए िोषर्सर्द्ध की िर के अनपुात के रूप में यह राष्ट्रीय औसत के लगभग बराबर ह ै
603 ए.आर. ब्लैकशीड, भारत में मृत्युिांड, 21(2) भारतीय र्र्र्ध सांस्थान का िरनल, 156-158 (अप्रलै-िनू, 1979) 604 सांगीत बनाम हररयाणा राज््य, (2013) 2 एससीसी 452, पैरा 33 पर । 605 राष्ट्रीय परामशि पर डा0 युग मोर्हत चौधरी द्वारा तैयार र्कया गया र्नरुपण (फाइल पर) ।
103
। कनािटक इस अर्र्ध में मृत्य ुपांक्र्त में भेिन ेके र्लए िसूरा सबस ेबड़ा योगिान करन ेर्ाला था और उसकी मृत्यिुांड िर राष्ट्रीय औसत से
3.2 गुनी थी ।606
ग. आपराविक न्याय िविया की व्यवस्था सबंंिी और ववरिना संबंिी विंताए ं
5.3.1 मृत्यिुांड के अत्यर्धक और मनमाने प्रयोग के सांबांध में र्चांताओां से पृथक् आांकडे़ िर्शित करते हैं र्क मृत्यिुांड के अर्धरोपण में
असमानता ह,ै िो व्यर्सथा सांबांधी और र्र्रचना सांबांधी, र्र्शेष रूप से सामार्िक और आर्थिक रूप से हार्सए पर व्यक्र्तयों की
असरु्र्धाओां को प्रर्तर्बांर्बत करती हैं ।
(i) सुिार करने की क्षमता का वनिाटरण करना
5.3.2 बचन र्सांह सूत्र न्यायाधीशों से केर्ल तब मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेकी अपेक्षा करता ह ैिबर्क िीर्न का र्र्कलप ‘र्नश्र्चत
रूप से प्रर्तबांर्धत’हो ।607 यहाां अर्धारण करन ेके र्लए न्यायाधीशों से इस पर र्र्चार करन ेकी अपेक्षा की िाती ह ैर्क क्या अपराधी
सधुार र्कए िान ेके योग्य ह ै। र्नश्र्चत रूप से बचन र्सांह ने इस मानक का अनमुोिन र्कया र्क अर्भयोिन को मुख्य साक्ष्य द्वारा यह
सार्बत करना चार्हए की अपराधी का सुधार नहीं र्कया िा सकता ह ै।608
5.3.3 िसैा र्क उच्चतम न्यायालय ने पश्चातर्ती िखेा र्क सांिहेों के बिाय मखु्य साक्ष्य के माध्यम से सधुार करने की सांभार्ना का
अर्धारण करन ेके र्लए इस व्यािशे को बहुत कम अपनाया गया ह ै।609 बहुधा, न्यायाधीश मूल्याांकन करने के बिाय यह कहते हैं र्क
क्या र्कसी व्यक्र्त के समाि के र्लए बराबर अर्भशाप बने रहने की सांभार्ना ह ै; क्या र्ह सधुार र्कए िाने के योग्य ह ैऔर इसर्लए क्या
उसके िीर्न को बचा िनेा ‘र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत’ ह ै।610 कैसे न्यायाधीश अपराधी की भार्ी प्रर्ृत्र्तयों को पहल ेसे बता सकते
हैं, िब र्े र्र्शेष रूप से (यद्यर्प केर्ल यही नहीं) अन्यथा समरूप तथ्य र्ाली स्र्थर्तयों में यह पाते हैं र्क एक मामल ेमें अपराधी के
समाि के र्लए अर्भशाप होने की सांभार्ना नहीं थी और िसूरे में थी ? तुलनात्मक अनभुर् और र्नश्चायक रूप से हमारा अपना इर्तहास
ऐसे र्नधािरण करन ेके बारे में हमें सार्धान करता ह ै।
5.3.4 बहुत से अध्ययनों ने, र्िन्हें अब अर्र्श्र्सनीय माना गया ह,ै यह अर्धाररत करन ेका प्रयास र्कया ह ैर्क कर्तपय व्यक्र्तयों या
समूहों को उनकी आपरार्धक रुर्चयों या अन्य प्रर्ृत्र्तयों के अनसुार चररत्र, र्चर्त्रत और प्रर्गीकृत र्कया िा सकता ह ै। इस प्रकार के
अध्ययनों ने, उिाहरण के र्लए, यह िर्शित करन ेका प्रयास र्कया था र्क श्र्ेतों का ‘अर्र’ िार्तयों िसेै ब्लकैों से बड़ा मस्र्तष्क था
और इस प्रकार र् ेअर्धक बुर्द्धमान थे । तथार्प, स्टीफेन िे. गोल्ड ने, र्िसने र्पछले 150 र्षों में मस्र्तष्क के आकार से बुर्द्धमानता
को सांबांर्धत करन ेके कुछ ‘र्जै्ञार्नक’ प्रयासों का अध्ययन र्कया, यह सार्बत र्कया र्क य ेप्रयास असफल थे ।611 कुछ कायों में उसन े
अध्ययन र्कया र्क प्रयोग की गई पद्धर्तयाां गांभीर रूप से िोषपूणि थीं । िसूरों में इन र्जै्ञार्नकों के र्र्द्यमान पूर्ािग्रहों ने इस बात को प्रभार्ी
606 िरे्खए अपणाि चन्ि, मणृाल सतीश, र्ृांिा भांडारी और रार्धका र्चतकारा, तुला पर लटके हुए : मृत्युिांड के अर्धर्नणियन पर भारत में मनमानापन (1950-
2013) (2015 फाइल पर उपलब्ध ह)ै । 607 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1980) 2 एससीसी 684, पैरा 209 पर । 608 ऊपर चचाि िरे्खए । 609 सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498 ।
610 ऊपर चचाि िरे्खए । 611 स्टीफेन िेय गाउल्ड, र्ि र्मसमेिर आफ मनै, 56 (1996) ।
104
र्कया र्क कैसे उन्होंन ेअपने आांकड़ों का चयन और र्र्श्लेषण र्कया । र्कन्तु र्नश्र्चत रूप से गोल्ड ने इन अध्ययनों में एक प्रर्ृत्र्त को
िखेा, िो अमूति पूर्ािग्रहों-यहाां-यह र्क ब्लकै अर्र हैं- तथ्यों में सांपररर्र्तित करन ेकी थी, र्िससे र्क कोई िनता के बीच ऐसे प्रभाग बना
सके और र्भन्नताएां ला सके, र्िसका र्क हमारी साांस्कृर्तक और रािनीर्तक प्रणाली आिशे ि े।’612
5.3.5 भारतीय इर्तहास िनता को र्गीकृत करन ेके समान समस्यामूलक प्रयासों को प्रर्तध्र्र्नत करता ह ै। 1871 में, उिाहरण के
र्लए र्ब्रर्टश ने ‘र्िर्मनल ट्राइब्स ऐक्ट’ पाररत र्कया । इस अर्धर्नयम के पीछे प्रेरक धारणा ‘इस िनिार्त के सभी सिस्यों को भार्ी
अपरार्धयों के रूप में मानन ेकी थी’ ।613 इस अर्धर्नयम ने नाम से लगभग 150 िनिार्तयों को सूचीबद्ध र्कया ।614 यर्ि र्कसी
व्यक्र्त ने इन िनिार्तयों में से एक में िनम र्लया था, तो र्ह व्यक्र्त िन्म से और पररभाषा से अपराधी होगा । इस र्र्धेयक को, िो र्क
1871 का ऐक्ट बना, परु:स्थार्पत करते समय, टी.र्ी. स्टीफेन्स, र्ब्रटेन की लॉ और आडिर कमीशन के सिस्य ने कहा र्क ऐसी
िनिार्तयाां ‘अर्र्स्मरणीय समय से अपराधी थीं......उनके भाग्य में िार्त प्रथा से अपराध करना र्लखा हुआ था और उनकी सांतानें र्र्र्ध
के र्र्रुद्ध तब तक अपराधी होंगी िब तक र्क सांपूणि िनिार्त का उन्मूलन नहीं कर र्िया िाता ह ैया उनको ठगों की रीर्त से र्कसी के
लेख ेमें सम्र्मर्लत नहीं कर र्लया िाता ह…ै…………………………..मैं करीब-करीब यह कह सकता हूां र्क उनका धमि
अपराध करना ह ै।615 ऐसे व्यक्र्तयों के बारे में इस प्रकार यह उपधारणा थी र्क र्े आितों, व्यसनों या धार्मिक आज्ञाओां के द्वारा अपराध
करन ेके प्रर्त उनमखु होते हैं ।616
5.3.6 यह उपधारणा करते हुए र्क र्कसी व्यक्र्त की अांतर्निर्हत, आनरु्ांर्शक या िन्मिात र्र्शेषताओां पर आधाररत आपरार्धकता
बहुधा र्र्र्ध में और न्याय की प्रर्िया में, र्िसके अांतगित मृत्यिुांड भी ह,ै मागि र्नकाल लेती ह ै। यहाां तक र्क 1996 में टेक्सास को यह
कथन करन ेके र्लए अपनी िांड प्रर्िया सांर्हता का सांशोधन करना पड़ा र्क मृत्यिुांड सांबांधी मामलों में अर्भयोिन ‘यह स्थार्पत करन ेके
र्लए र्क प्रर्तर्ािी का कुल या िार्त इसकी सांभार्ना बनाते हैं र्क प्रर्तर्ािी भार्ी आपरार्धक आचरण में र्लप्त होगा’, साक्ष्य प्रस्तुत न
करे ।617 अथाित,् 1996 में पश्चातर्ती, टेक्सस में र्र्र्ध को यह उपधारणा करन ेकी प्रर्ृत्र्त का स्पष्ट रूप से प्रर्तषेध करना पड़ा र्क
कुछ व्यक्र्तयों में अपन े कुल या िार्त के कारण अपराध के प्रर्त अांतर्निर्हत, आनरु्ांर्शक पूर्ािनकूुलता होती ह ै । अमरीकन र्र्र्धज्ञ
पररषि ्ने भी यह आग्रह र्कया ह ैर्क र्र्र्ध ‘भार्ी खतरे’ की धारणा को ही समाप्त कर िे ।618 उन्होंन ेिखेा र्क यह र्र्चार ‘बहुधा
612 स्टीफेन िेय गाउल्ड, र्ि र्मसमेिर आफ मनै, 56 (1996) ।
613 भारत के र्शक्षा और सामार्िक कल्याण मांत्रालय का भारत का गिट, (4) 1978, नई र्िल्ली ।
614 प्रर्तरोध की पहल करने र्ाला अांतरराष्ट्रीय, ब्रेंर्डयो में ‘िन्म लेने र्ाले’ अपराधी : भारत में र्नरुद्ध और नोमेर्डक िनिार्तयों के र्र्रुद्ध िार्त सांबांधी िवु्ियर्हार,
भारत की 15 से 19र्ीं आर्र्धक ररपोटों का पुनर्र्िलोकन करने में िार्त सांबांधी र्र्भेि के र्नरसन पर सर्मर्त के र्र्चारण के र्लए सचूना, (3 फरर्री,
2007),http://www.2ohchr.org/English/bodies/cerd/docs/noos/resist.pdf पर उपलब्ध ह,ै 23.08.2015
को अर्लोकन र्कया ।
615 र्िलीप र्डसूिा ने िन्म से अपराधी घोर्षत र्कए गए व्यक्र्तयों की ‘अर्धसचूना को रद्द र्कया’, (2001), http:www.manushi-
india.org/pdfs_issues/PDF%20file%20123/4%Declared%20Criminal%20at%20Birth.pdf, पर
उपलब्ध ह,ै 23.08.2015 को िखे गया ।
616 र्िलीप र्डसूिा ने िन्म से अपराधी घोर्षत र्कए गए व्यक्र्तयों की ‘अर्धसचूना को रद्द र्कया’, (2001), http:www.manushi-
india.org/pdfs_issues/PDF%20file%20123/4%Declared%20Criminal%20at%20Birth.pdf, पर
उपलब्ध ह,ै 23.08.2015 को िखे गया ।
617 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, 361 (2015)।
618 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, 361 (2015), अमेररकन र्र्र्धज्ञ पररषि,् राज््य मृत्युिांड प्रणार्लयों में ऋितुा और
शदु्धता का मूल्याांकन करना : टैक्सस मतृ्युिांड र्नधािरण ररपोटि (र्सतांबर, 2013),
105
अर्र्श्र्सनीय, र्जै्ञार्नक साक्ष्य की ओर मडु़ िाता ह’ै619 । िसूरी तरह कहा िाए तो अमरीकन र्र्र्धज्ञ पररषि ् ने यह माना र्क
अांतर्निर्हत रूप में आपरार्धक झुकार् िसैी र्स्तु का कोई र्जै्ञार्नक साक्ष्य नहीं ह ै।
5.3.7 कल्र्पत खतरे के बारे में समरूप र्चांताएां भारत में भी उठती हैं । पनु: आपरार्धक िनिार्त अर्धर्नयम का उिाहरण ले सकते हैं,
यद्यर्प इस र्र्र्ध को 1952 में र्नरर्सत कर र्िया गया था (और िनिार्तयों के सांबांध में ‘अर्धसूचना’ को रद्द कर र्िया गया था),
तथार्प उस ेआभ्यार्सक अपराधी अर्धर्नयम द्वारा कई राज््यों में प्रर्तस्थार्पत र्कया गया था । रद्द की गई अर्धसूचना र्ाली िार्तयों से
सांबांर्धत व्यक्र्तयों के बारे में यह धारणा (व्यर्हार में, यर्ि र्र्र्ध में नहीं तो) बनी हुई ह ैर्क र्े अपराधी होते हैं और अपराध के प्रर्त
आनरु्ांर्शक रूप से अनकूुल होते हैं ।620 रद्द की गई अर्धसूचना से सांबांर्धत िनिार्तयों के बारे में आपरार्धक न्याय कृत्यकाररयों के
रुझान का, बहुत सी अन्य समरूप समाचार सांबांधी ररपोटों के बीच, इस प्रकार साराांश बताया िा सकता ह ै:
आशर्त के परु्लस मखु्य एसएस गायकर्ाड़ के अनसुार स्थानीय चोररयों में से एक-चौथाई चोररयाां पारर्धयों द्वारा की िाती हैं
। उनके र्डप्टी आधे पारधी व्यक्र्तयों की गणना अपरार्धयों में करते हैं । श्री गायकर्ाड़ आपरार्धकता की ऊां ची िर गरीबी के
कारण मानते हैं । र्कन्तु र्र्श्र्ास करते ह ै र्क सांस्कृर्त भी उसका एक भाग ह ै : ‘पारधी व्यक्र्तयों के र्र्रुद्ध अर्धक
आपरार्धक मामलों के होने का तात्पयि ह ैउसकी ऊां ची प्रास्र्थर्त और इसर्लए उसके र्र्र्ाह का अर्धक अच्छा भर्र्ष्य ।621
5.3.8 इस प्रकार की धारणाओां के र्लए र्कसी प्रकार का कोई र्जै्ञार्नक साक्ष्य नहीं ह ै । र्फर भी आभ्यार्सक अपराधी अर्धर्नयम
सांपूणि भारत में बना हुआ ह ै। आगे परु्लस मनैअुल आि तक रर्िस्ट्रीकृत पूर्ि अर्धसूर्चत िनिार्त के सिस्यों के र्लए ‘उनकी सर्िय
आपरार्धकता के कारण’ इर्तर्ृत्त खोलन ेका आिशे ितेी हैं ।622 ‘अांतर्निर्हत आपरार्धकता का िाग’ राज््य सार्धत्रों, र्िसमें परु्लस
सम्र्मर्लत ह,ै के साथ रद्द की गई अर्धसूचना र्ाली िनिार्तयों के सिस्यों की पारस्पररक र्िया को आकार ि ेरहा ह ै। र्ास्तर् में र्िल्ली
उच्च न्यायालय ने नाि फाउांडेशन बनाम राज््य (राष्ट्रीय राज््यके्षत्र र्िल्ली)623 में यह भी िखेा र्क कैसे आपरार्धकता का िाग र्हिरा
समिुाय िसेै समिुायों के र्लए बना हुआ ह ै।624
5.3.9 र्र्चारणीय र्र्षय यह ह ै र्क ऐसी िनिार्तयों के सिस्यों के साथ, र्िन्हें बहुधा ऐसी प्रर्तकूल रीर्त से िखेा िाता ह,ै
आपरार्धक न्याय प्रणाली के भीतर, र्र्शेष रूप से तब, िबर्क उनके ‘भर्र्ष्य में खतरे’ या उनकी ‘सधुार करने की सांभार्ना’ के प्रश्न
का मदु्दा हो, कैसे व्यर्हार र्कया िाएगा । र्कस सीमा तक, यर्ि कोई हो, सामार्िक रूप से र्र्रर्चत और मस्र्तष्क में बनी हुई प्रर्तकूल
धारणाएां व्यक्र्त की पहचान के र्र्रुद्ध भूर्मका र्नभाएांगी ? िबर्क इसके बारे में र्नश्र्चत होना कर्ठन ह,ै न्यायर्नणियन का बड़ा सांिभि,
िहाां व्यक्र्तगत न्यायाधीश बहुधा ऐसी सामार्िक र्र्रचनाओां पर आधाररत र्र्र्धक र्नधािरण करते हैं, र्कसी उत्तर का सांकेतक ह ै। िार्त
से सांबांर्धत उपधारणाएां बहुधा की गई हैं और उनका र्भन्न रूपों में र्र्र्भन्न अपराधों के र्लए र्र्चारण के र्लए उपयोग र्कया गया ह,ै िो
र्क इस र्चांता को बनाए रखता ह ैर्क अन्यथा ऐसे असांगत कारक िसेै र्कसी व्यक्र्त का र्गि या िार्त, आपरार्धक न्याय प्रणाली के साथ
http://www.americanbar.org/content/dam/aba/administrative/death_peanlty_moratorium/tx_complete_r
eport.authcheckdam.pdf पर उपलब्ध ह,ै 23.08.2015 को िखेा गया ।
619 रोिर हुड, केरोर्लन होएल, मतृ्युिांड : एक र्र्श्र्व्यापी दृष्र्टकोण, 361 (2015) । 620 िार्तमलूक र्र्भेि के सभी रूपों के र्नरसन सांबांधी अांतरराष्ट्रीय कनर्ेंशन,सीईआरडी/सी/आईएनडी/सीओ/19, 3 (70र्ाां सेशन, माचि 2007) 621 र्ि इकोनोर्मस्ट, ‘यर्ि रे् कुर्टल थे, क्या रे् अमीर होंगे?’, अप्रलै 22, 2010 ।
622 मणृाल सतीश, िषु्चररत्र, र्हस्ट्रीशीटर, पनपते हुए गुांडे और उद्दांड व्यक्र्त’ भारत में पुर्लस सर्ेक्षण फाइलें और आसचूना आांकड़ा कोष, 23 नेशनल एल.
एससीएच, इांर्डया आरईर्ी 133, 138 (2001-12)
623 नाि फाउांडेशन बनाम राज््य (राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, र्िल्ली), 2010 डाां एल िे 94 (र्िल्ली) ।
624 नाि फाउांडेशन बनाम राज््य (राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, र्िल्ली), 2010 डाां एल िे 94 (र्िल्ली), पैरा 50 पर ।
106
व्यक्र्त की परस्पर र्िया पर प्रभार् डाल सकते हैं ।625 यह कर्तपय समूहों के र्र्रुद्ध लगातार बनी हुई सामार्िक प्रर्तकूलताओां के बडे़
सांिभि में ह ैर्क िहाां मृत्यिुांड िसैा अांर्तम और अप्रर्तसांहरणीय िांड र्ियान्र्र्त होता ह,ै िो न केर्ल परु्लस सार्धत्र को, अर्भयोिन तांत्र
को, सार्क्षयों और िनता को, र्कन्तु न्यायाधीशों को भी प्रभार्र्त कर सकता ह ै।
5.3.10 य ेकेर्ल सदै्धाांर्तक कल्पनाएां मात्र नहीं हैं, िार्त, र्गि और धमि के र्र्भेिकारी प्रभार् की र्ास्तर्र्कता को राष्ट्रीय र्र्र्ध
र्र्श्र्र्र्द्यालय, र्िल्ली की मृत्यिुांड अनुसांधान पररयोिना द्वारा आयोग के राष्ट्रीय परामशि में प्रस्तुत र्कए गए आांकड़ों द्वारा िशािया गया ह ै
। य ेआांकडे़ िर्शित करते हैं र्क िशे में मृत्य ु पांर्ि र्ाले 373 कैर्ियों में से, 75 प्रर्तशत से अर्धक र्पछडे़ र्गों और धार्मिक
अल्पसांख्यकों से सांबांर्धत होते हैं । आतांकर्ािी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड र्िए गए 93.5 प्रर्तशत व्यक्र्त धार्मिक अल्पसांख्यकों या
िर्लतों में से हैं ।626 अत:, यह प्रतीत होता ह ैर्क मृत्यिुांड के र्र्षम और र्र्भेिकारी प्रभार् तक से डरन ेके र्लए बहुत से कारण हैं और
साथ ही आनभुर्र्क साक्ष्य ह ै।
(ii) आवथटक और शैक्षवणक दबुटलता
5.3.11 र्सब्बन लाल सक्सेना, भारत की सांर्र्धान सभा के सिसय ने स्र्तांत्रता पूर्ि मृत्य ुपांक्र्त पर िो र्षि से अर्धक व्यतीत र्कए थे ।
उस समय उन्होंन ेकई अन्य कैर्ियों को फाांसी लगते िखेा था, र्िनमें से ऐसे 7 थे, र्िनके बारे में उन्होंन ेर्र्श्र्ास र्कया र्क र्े र्निोष थे ।
सांर्र्धान सभा में र्र्चार-र्र्मशि के िौरान सक्सेना ने कहा:
मैंन ेऐसे व्यक्र्तयों को िखेा ह,ै िो बहुत गरीब हैं, िो अपनी िोषर्सर्द्ध के र्र्रुद्ध अपील करन ेमें समथि नहीं हैं, क्योंर्क र्े
काउनसेल को फीस नहीं ि ेसकते हैं । उच्चतम न्यायालय र्कसी र्नणिय से अपील करन ेके र्लए र्र्शेष इिाित प्रिान कर
सकता ह ै र्कन्तु ऐसा उन व्यक्र्तयों के र्लए होगा, िो धनाड्य हैं, िो आकाश-पाताल एक कर सकते हैं, र्कन्तु साधारण
व्यक्र्त, र्िनके पास कोई धन नहीं ह ैऔर िो गरीब हैं, इस प्रकार अपील करन ेमें समथि नहीं होंगे ।627
5.3.12 सक्सेना के कथन का आशय यह था र्क सीर्मत आर्थिक साधनों र्ाले र्कसी अपराधी के र्लए अपनी प्रर्तरक्षा करना उन
व्यक्र्तयों से, िो अमीर कैिी हैं, अर्धक कर्ठन होगा । यर्ि यह स्पष्ट सांपे्रक्षण ह ैिो बोडि रखता ह,ै तो यह इस बात का भी सांकेतक ह ै
र्क कोई मृत्यिुांड र्र्चारण, अपनी प्रकृर्त से ही आर्थिक रूप से िबुिल, र्र्शेष रूप से र्कसी र्र्रोधात्मक प्रणाली में होन ेर्ाले व्यक्र्तयों
के र्लए असरु्र्धािनक होता ह ै। यह इस गांभीर प्रश्न का भी स्मरण करान ेर्ाला ह ैर्क प्रत्यके मृत्यिुांड र्र्चारण को इस बात का सामना
करना होता ह ै: हम यह कैसे सरु्नश्र्चत करें र्क अर्भयकु्त का सांपूणि लांबी प्रर्िया के िौरान यकु्र्तयकु्त र्र्र्धक प्रर्तर्नर्धत्र् हुआ ह ै?
बहुधा र्ह र्कसी र्कील को करने की क्षमता रखन ेके र्लए बहुत गरीब होता ह ै। ऐसे मामलों में सरकार प्रर्तरक्षा के र्लए र्कीलों को
र्नयकु्त करन ेके र्लए बाध्य ह ै। तथार्प, इस प्रकार र्नयकु्त र्कए गए र्कीलों को अयकु्त रूप से कम रकम उनके कायि के र्लए िी िाती
ह ै। र्र्र्धक सहायता र्ाले र्कीलों को साधारणतया 500-1500 रुपए प्रर्त र्र्चारण और 1000-3000 रुपए प्रर्त अपील की
श्रेणी में सांिाय र्कया िाता ह ै। र्िल्ली एक अपर्ाि ह,ै िहाां र्र्र्धक सहायता र्ाले र्कीलों को एक सत्र र्र्चारण के र्लए, िहाां मृत्यिुांड
625 िरे्खए, उिाहरण के रे्ल्लापनाई बनाम राज््य, 2001, डाां एल.िे. 2772 (एमएडी), पैरा 15 पर, ियाराम बनाम मध्य प्रिेश राज््य, 1992, डाां. एल.िे.
3154 (एमपी) । 626 11 िलुाई, 2015 को राष्ट्रीय परामशि पर मृत्युिांड पर तैयार र्कया गया र्नरुपण । 627 भारत की सांसिीय सभा, र्ो0 8, 3 िनू, 1949, http:/parliamentofindia.nic.in/ls/debates/vol8p15b.htm पर
उपलब्ध ह,ै 25.08.2015 को िखेा गया ।
107
एक सांभर् िांड र्र्कल्प ह,ै 12000 रुपए का सांिाय र्कया िाता ह ै।628 और र्फर भी यह सांख्या उस फीस से, िो प्राइर्ेट अर्धर्क्ता
साधारणतया लेगा, महत्र्पूणि रूप से कम ह ै।
5.3.13 आनभुर्र्क साक्ष्य यह भी सझुार् ितेा ह ैर्क भारत में मृत्यु पांक्र्त र्ाले र्सद्धिोर्षयों की बहु सांख्या समाि के आर्थिक रूप से
िबुिल अनभुागों में से ह ै। राष्ट्रीय र्र्र्ध र्र्श्र्र्र्द्यालय, र्िल्ली की मृत्यिुांड अनसुांधान पररयोिना द्वारा प्रस्तुत आांकडे़ प्रिर्शित करते हैं र्क
लगभग 74 प्रर्तशत र्सद्धिोषी आर्थिक रूप से िबुिल थे, (िबुिलता का र्नणिय बडे़ भाग में उनकी उपिीर्र्काओां और भूधृर्तयों से र्कया
गया ह)ै एकमात्र रोटी कमान ेर्ाले होन े के कारण क्लीर्नक को 25 प्रर्तशत र्सद्धिोर्षयों के बारे में सूचना नहीं र्मली । शेष 75
प्रर्तशत र्सद्धिोर्षयों में से 63 प्रर्तशत एकमात्र रोटी कमान ेर्ाले थे,629 िो र्नश्र्चत रूप से इस बात पर प्रभार् डालेगा र्क क्या उनके
पररर्ार र्र्र्धक प्रर्कया के माध्यम से सक्षम काउनसेल रखन ेके र्लए सक्षम हो सकते थे । काउन्सेल की सक्षमता सांपूणि र्र्चारण और
अपीलीय प्रर्िया पर भी प्रभार् डालती ह ै।
5.3.14 अप्रभार्ी र्र्र्धक सहायता के र्र्षय पर, र्र्शेष रूप से मृत्यिुांड के मामलों में, र्र्श्र् में चारों तरफ बहस होती रही ह ै। यह
तकि र्िया गया ह ैर्क क्या कोई व्यक्र्त मृत्य ुपांक्र्त में समाप्त कर ितेा ह,ै इस बात का सामान्यतया र्नधािरण अपराध की िघन्यता से नहीं,
र्कन्तु र्र्चारण काउन्सेल की गुणर्त्ता से र्कया िाता ह ै।630 काउन्सेल की अप्रभार्ी सहायता की उच्चतर प्रर्ृत्र्त सिोष िोषर्सर्द्धयों
की ओर ले िाने की होती ह ै ।631 उिाहरण के र्लए मो0 हुसनै@िलु्र्फकार अली बनाम राज््य632 का मामला ले सकते हैं, िहाां
अर्भयकु्त को एक र्र्स्फोट के र्लए, र्िसम े4 व्यक्र्त मारे गए थे, र्र्चारण न्यायालय और उच्च नयायालय द्वारा र्सद्धिोषी ठहराया गया
था और मृत्यिुांड र्िया गया था । उच्चतम न्यायालय ने उस मामल ेको यह िखेते हुए पनु: र्र्चारण के र्लए प्रर्तप्रेर्षत र्कया र्क अपराधी
का प्रभार्ी र्र्र्धक प्रर्तर्नर्धत्र् न होने के कारण ऋि ु र्र्चारण नहीं र्कया गया था। इस नए र्सरे से र्र्चारण में मो0 हुसनै को सभी
आरोपों में र्निोष पाया गया और िोषमुक्त कर र्िया गया । र्ह 15 र्षि िेल में रहा र्िनमें से र्ह 7 र्षि 2 महीने के र्लए मृत्य ुपांक्र्त में
था ।
5.3.15 रोचक बात यह ह ै र्क सरुेंि कोली बनाम उत्तर प्रिशे राज््य633 के हाल के मामल ेमें, िहाां र्सद्धिोष व्यक्र्त ने उच्चतम
न्यायालय द्वारा अपनी िोषर्सर्द्ध और िांडािशे के र्र्रुद्ध एक पनुर्र्िलोकन यार्चका इस आधार पर फाइल की थी उसको र्र्चारण
न्यायालय के समक्ष प्रभार्ी र्र्र्धक प्रर्तर्नर्धत्र् नहीं र्मला था, उच्चतम न्यायालय ने यार्चकाकताि के इस तकि को नामांिूर कर र्िया
क्योंर्क ‘र्तिमान कायिर्ार्हयों में पनुर्र्िलोकन के इस र्र्लांर्बत प्रिम पर यह तकि यार्चकाकताि को र्र्राम नहीं ि ेपाएगा,’ र्कन्त ुउसने
कहा र्क ‘र्र्द्वान र्िला न्यायाधीश को, प्रर्तरक्षा काउन्सेल को समनिुरे्शत करते समय र्र्शेष रूप से ऐसे मामलों में िहाां र्र्र्धक
सहायता अर्भयकु्त व्यक्र्त द्वारा माांगी गई ह,ै अर्धमान रूप से मामले को ऐसे काउांसेल को सौंपना चार्हए िो सत्र र्र्चारण का सांचालन
करन ेमें र्र्शेषज्ञता रखता हो । मामलों का ऐसा समनिुशेन न केर्ल अर्भयकु्त व्यक्र्तयों के र्र्र्धक प्रर्तर्नर्धत्र् के अर्धकार की अर्धक
अच्छा सांरक्षा करेगा र्कनतु प्रभार्ी र्र्चारण कायिर्ार्हयाां सरु्नश्र्चत करने के उद्दशे्यों की भी पूर्ति करेगा ।’634
5.3.16 गलती से सांबांर्धत आनभुर्र्क आांकडे़ इस र्र्भेिकारी प्रभार् की पषु्र्ट करते हैं िो र्क र्नधिनता और पररणामस्र्रूप काउांसेल
की सांभर् अप्रभार्ी सहायता मृत्यिुांड के र्लए आरोर्पत व्यक्र्तयों पर रखती ह ै । उच्चतम न्यायालय ने 20 व्यक्र्तयों पर अर्धरोर्पत
628 डा0 युग चौधरी द्वारा आयोग को सांबांर्धत राज््य र्र्र्धक सेर्ा प्रार्धकरणों से यथाप्राप्त आांकड़ा उपलब्ध कराया गया (फाइल पर) । 629 11 िलुाई, 2015 को र्र्र्ध आयोग द्वारा राष्ट्रीय परामशि पर आयोर्ित मतृ्युिांड अनुसांधान पररयोिना द्वारा उपलब्ध आांकडे़ । 630 केनेथ र्र्र्लयम्स, सर्ािर्धक योग्य मृत्यु? मृत्युिांड के र्र्र्धशास्त्र पर उच्चतम न्यायालय का र्र्श्लेषण 17 (2012) । 631 केनेथ र्र्र्लयम्स, सर्ािर्धक योग्य मृत्यु? मृत्युिांड के र्र्र्धशास्त्र पर उच्चतम न्यायालय का र्र्श्लेषण 18 (2012) । 632 मो0 हुसनै@िलु्फीकार अली बनाम राज््य, 2012 (8) स्केल 308 । 633 सरेुन्ि कोली बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, तारीख 28 अक्तूब, 2014 की पुनयािर्चका (िाां) सां0 395 । 634 सरेुन्ि कोली बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, तारीख 28 अक्तूब, 2014 की पुनयािर्चका (िाां) सां0 395 ।
108
मृत्यिुांड अांतर्िर्लत करन ेर्ाले 16 मामलों में गलती को बररयार, सांगीत और खाि ेमें अर्भस्र्ीकार र्कया । बाधा डालने र्ाले इन
मामलों में से आध ेसे अर्धक में, र्िनमें न्यायालय को बाि में गलती र्मली, अपरार्धयों का प्रर्तर्नर्धत्र् न्याय र्मत्र द्वारा र्कया गया था ।
तुला में लटके हुए : भारत में मृत्यिुांड के न्यायर्नणियन में मनमानापन (1950-2013) नाम अध्ययन से पाए गए आांकडे़ िर्शित करते
हैं र्क 281 व्यक्र्तयों में से, र्िन्हें 2000 और 2013 के बीच कम से कम एक स्तर के न्यायालय द्वारा मृतयिुांड र्िया गया था और
र्िनके मामल ेन्यार्यक प्रणाली की सभी श्रेर्णयों तक गए थे, 128 व्यक्र्तयों को केर्ल र्र्चारण न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था
।635 उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय िोनों ने इन मामलों के या तो िांड को लघुकृत र्कया था या व्यक्र्त को िोषमकु्त कर र्िया
था । इन अर्भयकु्तों में से 7.03 प्रर्तशत का प्रर्तर्नर्धत्र् न्याय र्मत्र द्वारा र्कया गया था । उसी समयार्र्ध के िौरान 79 व्यक्र्तयों को
र्र्चारण न्यायालय और उच्च न्यायालय िोनों के द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था र्कन्त ुउनहें या तो उच्चतम न्यायालय द्वारा िोषमकु्त कर
र्िया गया था या उनके िांडािशे को लघकृुत कर र्िया गया था । न्यायर्मत्र द्वारा इस समूह के प्रर्तर्नर्धत्र् की प्रर्तशतता 22.8 प्रर्तशत
थी और अांर्तम रूप से 69 व्यक्र्तयों में से, र्िन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा स्र्यां मृत्यिुांड र्िया गया था, 36.2 प्रर्तशत का प्रर्तर्नर्धत्र्
न्याय र्मत्र द्वारा गया गया था ।636
5.3.17 गलती और मृत्यिुांड के अर्धरोपण से सांबांर्धत मामलों में न्यायर्मत्र का अत्यर्धक प्रर्तर्नर्धत्र् सार्धानी के र्लए कारण ह,ै
र्बल्कुल भी नहीं क्योंर्क यह मृत्यिुांड के अर्धरोपण पर र्र्रचना सांबांधी और प्रणाली सांबांधी पूर्ािग्रहों के प्रभार् का सांकेत ि ेसकता ह ै।
केर्ल इसर्लए र्क र्कसी व्यक्र्त का प्रर्तर्नर्धत्र् उच्चतम न्यायालय के समक्ष न्यायर्मत्र द्वारा र्कया गया ह,ै अर्श्य ही यह सांकेत नहीं
र्मलता ह ैर्क उस व्यक्र्त को उच्चतम न्यायालय के समक्ष अच्छा र्र्र्धक प्रर्तर्नर्धत्र् नहीं र्मला । तथार्प यह तथ्य र्क र्कसी अपराधी
का न्यायर्मत्र द्वारा प्रर्तर्नर्धत्र् र्कया गया ह,ै उस व्यक्र्त की आर्थिक पररस्र्थर्तयों के प्रर्त सांकेत करता ह ै । र्र्चारण नयायालयों के
समक्ष गुणर्त्ता र्ाले र्र्र्धक प्रर्तर्नर्ध को फीस िकेर रखन ेकी और यह सरु्नश्र्चत करन ेकी सामथ्िय र्क र्र्चारण न्यायालय के स्तर पर
र्कसी ठोस अर्भलेख का सृिन र्कया िाए, सांभार्ना ह ै र्क ऐसे उिाहरणों में उसके साथ समझौता हो िाए । गुणर्त्ता र्ाले र्र्र्धक
प्रर्तर्नर्ध तक, र्र्शेष रूप से र्र्चारण प्रिम पर, पहुांच की कमी के प्रभार् में सांभर् ह ै र्क मृत्यिुांड न्यायशास्त्र में असांगतताओां की
र्र्द्यमानता से र्ृर्द्ध हो िाए, र्िसका पररणाम र्र्र्ध के र्कसी असांबद्ध के्षत्र पर अपयािप्त रूप से मागिर्निरे्शत न्यायाधीशों के समक्ष अपूणि
रूप से प्रर्शर्क्षत र्कीलों द्वारा तकि र्कए िाने में हो ।
5.3.18 यह ऐसे मामलों में, र्िनम े मृत्यिुांड उच्चतम न्यायालय द्वारा बनाए रखा िाता ह ै न्यायर्मत्र के प्रर्तर्नर्धत्र् की अर्धक
उपस्र्थर्त के र्लए भागत: उत्तरिायी हो सकता ह,ै ऐसा हो सकता ह,ै िसैा यह आांकडे़ िर्शित करते हैं र्क ऐसे व्यक्र्तयों में से, र्िन्हें
र्र्चारण न्यायालय के स्तर पर मृत्यिुांड र्िया गया ह,ै उन व्यक्र्तयों के बारे में, िो अपना स्र्यां का र्र्र्धक प्रर्तर्नर्ध फीस िकेर नहीं रख
सकते हैं, इस बात की अर्धक सांभार्ना ह ै र्क उनके मृत्यिुांड की उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा पषु्र्ट कर िी िाए ।
र्स्तुत: इसे उच्चतम न्यायालय द्वारा मो0 फारूख अब्िलु गफ्फार बनाम महाराष्ट्र राज््य637 में अर्भस्र्ीकार र्कया गया था, िहाां
न्यायालय ने िखेा र्क आपरार्धक न्याय प्रणाली की अांतर्निर्हत अपूणिताएां ‘िोष और िांडािशे के अर्धारण के मदु्दे पर अर्भयकु्त के
लटकते हुए भर्र्ष्य का’ मागििशिन करती हैं ।638 उसने इस पर भी ध्यान र्िया र्क ‘मृत्यिुांड पर प्रमखु र्टप्पणकताि यह दृष्र्टकोण रखते हैं
र्क इसन ेअर्भन्न रूप से र्नरार्श्रत को, िो अत्यर्धक िांड भुगतता ह,ै सीमान्त पर कर र्िया ह ै।639
635 अपणाि चन्िा, मणृाल सतीश, र्ृांिा भांडारी और रार्धका र्चतकारा, तुला पर लटके हुए : भारत में मतृ्युिांड के न्यायर्नणियन में मनमानापन (1950-2013),
(आगामी 2015) (फाइल पर) ।
636 अपणाि चन्िा, मणृाल सतीश, र्ृांिा भांडारी और रार्धका र्चतकारा, तुला पर लटके हुए : भारत में मतृ्युिांड के न्यायर्नणियन में मनमानापन (1950-2013),
(आगामी 2015) (फाइल पर) । 637 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641 । 638 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 169 पर ।
639 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 169 पर ।
109
5.3.19 समान भार्नाओां को प्रर्तध्र्र्नत करते हुए, यद्यर्प अमरीका के सांिभि में, िनर्हत र्कील ब्रायन स्टीर्ेंशन, समान न्याय
पहल640 के कायिपालक र्निशेक, ने एक बार कहा था ‘र्ास्तर्र्कता यह ह ैर्क अमरीका में मृत्यिुांड एक लाटरी ह ै। यह एक िांड ह ैर्िसे
र्नधिनता, िार्त, भौगोर्लक और स्थानीय रािनीर्त की मिबूररयों द्वारा आकार र्िया िाता ह ै।’641
5.3.20 समान रूप से बचन र्सांह र्ाल ेमामल ेमें अपन ेर्र्सम्मत र्नणिय में न्यायमूर्ति पी.एन. भगर्ती ने र्लखा :
मृत्यिुांड कर्तपय प्रकार का रांग-ढांग या पूर्ािग्रह रखता ह ैक्योंर्क बहुसांख्या में ऐसे गरीब और उत्पीर्ड़त ही होते हैं, िो इस
चरम िांड के पीर्ड़त होते हैं । हमें कर्ठनाई से ही ऐसा अमीर या धनाड्य वयक्र्त र्मलेगा र्िसे फाांसी िी िा रही हो । मृतयिुांड,
िसैा र्क सन्क्र्ेंर्टन स्टेट र्प्रर्िम बाडिन क्लींटन िूमने डफी द्वारा इांर्गत र्कया गया ह ै‘गरीब का र्र्शेषार्धकार’ ह ै।642
5.3.21 तत्पश्चात् उसने अपन ेतकि को र्नम्नर्लर्खत रूप में और मृत्यिुांड के सीधे िोषारोपण के साथ सांके्षप में र्लखा :
इस बारे में कोई सांिहे नहीं हो सकता र्क अपन ेर्ास्तर्र्क प्रर्तिन में मृत्यिुांड र्र्भेिकारी ह ैक्योंर्क यह अर्धकाांशत: समाि
के गरीब या र्ांर्चत अनभुागों के र्र्रुद्ध कायि करता ह ैऔर अमीर तथा धनाड्य इसके पांिे से बच िाते हैं । यह पररस्र्थर्त
मृत्यिुांड की मनमानी और सनकी प्रकृर्त को भी िोड़ती हैं और इसे अनचु्छेि 14 तथा अनचु्छेि 21 का अर्तिामक होने
के रूप में असांर्धैार्नक बनाती हैं ।643
5.3.22 असांर्धैार्नकता के इस प्रख्यापन का िर्क्षण अफ्रीका के सांर्धैार्नक न्यायालय ने 1995 में पक्ष र्लया, िब न्यायपीठ के
सभी 11 सिस्य इस बात पर सहमत हो गए र्क िार्त और र्नधिनता मृत्यिुांड के मामलों के पररणाम में कारक थे, िसैा र्क ‘र्र्चारण
न्यायाधीश का व्यक्र्तत्र् और मृत्यिुांड के प्रर्त उसकी र्र्र्शष्ट प्रर्ृत्र्त थी ।’644 इन और अन्य आधारों पर उन्होंन ेआख्यापन र्कया र्क
मृत्यिुांड ने िर्क्षण अफ्रीका के अांतररम सांर्र्धान का अर्तिमण र्कया था । उस समय से इसे िर्क्षण अफ्रीका में समाप्त कर र्िया गया ह ै
।645
5.3.23 मृत्यिुांड के अत्यर्धक अर्नश्र्चत और र्र्भेिकारी रूप से लागू होन े के सांबांध में र्चांताओां में सांपूणि रूप से प्रणाली की
भ्रमशीलता से, र्र्शेष रूप से न उलटन ेयोग्य िांड के कारण, र्ृर्द्ध हो िाती ह ै।
घ. आपराविक न्याय िणाली की भ्रमशीलता और मृत्युदडं
मृत्यिुांड अप्रर्तसांहरणीय ह ै ; इसको र्ापस नहीं बुलाया िा सकता ह ै । यह हमशेा के र्लए िीर्न ज््योर्त बुझा ितेा ह ै
।..........................इसकी ठांडी और िूर अांर्तमता के कारण यह ह ैर्क मृत्यिुांड िांड के सभी अन्य रूपों से गुणात्मक रूप से
र्भन्न हैं ।
640 समान न्यार्यक शुरुआत, www.eji.org पर उपलब्ध ह ै।
641 ह्यगूो एडम बेडाउ एांड पाल िी. केसलै, मतृ्युिांड पर र्डबेट :क्या अमरीका में अपराध के र्लए मृत्युिांड होना चार्हए? 78(2004) ।
642 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1982) 3 एससीसी 24, पैरा 81 पर ।
643 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1982) 3 एससीसी 24, पैरा 81 पर । 644 राज््य बनाम मैकर्ान्येने और अन्य, िर्क्षण अफ्रीका का सांर्ैधार्नक न्यायालय, सीसीटी/3/94, 6 िनू, 1995, पैरा 48 पर । 645 राज््य बनाम मैकर्ान्येने और अन्य, िर्क्षण अफ्रीका का सांर्ैधार्नक न्यायालय, सीसीटी/3/94, 6 िनू, 1995 ।
110
बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य (र्र्सम्मर्त िने ेर्ाले न्यायमूर्ति भगर्ती)646
इस र्िन के बाि मैं मृत्य ुतांत्र को सुधारने का कायि नहीं करूां गा । 20 र्षों से अर्धक से मैंने प्रयास र्कया ह ै- र्फर भी मैंन ेइस
न्यायालय की बहुसांख्या के साथ- सांघषि र्कया ह,ै ऐसे प्रर्िया सांबांधी और सारभूत र्नयमों को र्र्कर्सत करने का, िो
मृत्यिुांड के र्लए ऋितुा के केर्ल दृष्र्टगत होन ेसे अर्धक का कायि करेंगे । न्यायालय के इस भ्रम का आिर बनाए रखन ेके
बिाय र्क ऋितुा का र्ाांर्छत सतर प्राप्त कर र्लया गया ह ैऔर र्र्र्नयमन के र्लए आर्श्यकता समाप्त कर िी गई ह,ै मैं
नरै्तक रूप से और बौर्द्धक रूप से यह मानन ेके र्लए बाध्य समझता हूां र्क मृत्यिुांड का प्रयोग असफल हो गया ह ै ।
र्स्तुत: यह मझुे अब सर्यां स्पष्ट ह ैर्क प्रर्िया सांबांधी र्नयमों या सारभूत र्र्र्नयमों का कोई र्मश्रण कभी भी मृत्यिुांड को
उसकी अांतर्निर्हत सांर्धैार्नक कर्मयों से नहीं बचा सकता ह ै। आधारभूत प्रश्न – क्या प्रणाली सही रूप से और सांगत रूप से
यह अर्धाररत कर सकती ह ैर्क कौन से प्रर्तर्ािी मरने के ‘योग्य’ हैं । इसका उत्तर सकारात्मक रूप में नहीं र्िया िा सकता
। साि ेरूप से यह नहीं ह ैर्क इस न्यायालय ने अस्पष्ट गुरुतरकारी पररस्र्थर्तयों को र्नयोर्ित करने अनजु्ञा िी ह,ै ससुांगत कम
करन ेर्ाले साक्ष्य को नहीं माना ह ैऔर र्र्स्तृत न्यार्यक पनुर्र्िलोकन को अर्रुद्ध र्कया ह ै। समस्या यह ह ैर्क र्ास्तर्र्क
र्र्र्धक और नरै्तक गलती की अर्नर्ायिता हमें ऐसी प्रणाली ितेी ह ैर्िसको हम िानते हैं र्क उसे अर्श्य कुछ प्रर्तर्ार्ियों
को गलत रूप से मार िनेा चार्हए, एक प्रणाली, िो सांर्र्धान द्वारा अपेर्क्षत ऋि,ु सांगत तथा र्र्श्र्सनीय मृत्यिुांड को प्रिान
करन ेमें असफल होती ह ै।
-कार्लन्स बनाम कार्लन्स (ब्लकैमन, िे, र्र्सम्मर्त िने ेर्ाले)647
(i) दोष का अविारण
5.4.1 मृत्यिुांड की अांर्तमता के बारे में न्यायमूर्ति भगर्ती के अनसु्मारक और न्यायमूर्ति ब्लकैमन की उसकी भ्रमशीलता के बारे में
दृढ र्र्श्र्ास के कारण मृत्यिुांड के बारे में र्कसी भी र्र्चार-र्र्मशि में सार्धानी बरती िानी चार्हए । इस न उलटन ेयोग्य िांड को बनाए
रखन ेकी र्ाांछनीयता की इस आपरार्धक न्याय प्रणाली के सांिभि में, िो र्क िोनों ह ैअथाित् भ्रमशील ह ैऔर िोड़-तोड़ के र्लए खलुी ह,ै
प्रशांसा की िानी होगी । इसका एक हाल का र्र्लक्षण उिाहरण इस र्चांता का र्र्र्शष्टता से उल्लेख करता ह ै। 2002 में अक्षरधाम
मांर्िर के र्र्स्फोटों में 33 लोग मारे गए थे और लगभग 85 घायल हुए थे । आिम भाई , सलेुमानभाई अिमरेी और 5 अन्य इस
आिमण के र्लए र्गरफ्तार र्कए गए थे । उनका र्र्र्भन्न अपराधों के र्लए, र्िसके अांतगित आतांकर्ािी र्नर्ारण अर्धर्नयम के अधीन
अपराध ह,ै र्र्चारण र्कया गया था । अपरार्धयों में से 3 को र्र्चारण न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था । उच्च न्यायालय ने उनकी
िोषर्सर्द्ध और िांड को बनाए रखा । उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील र्कए िाने पर न्यायालय ने पाया र्क न केर्ल सभी अपराधी
र्निोष थे और उन्हें िोषमकु्त कर र्िया, र्कन्तु ‘उस सक्षमता के बारे में, र्िससे अन्र्ेषण करन ेर्ाले अर्भकरणों ने इतनी गांभीर प्रकृर्त के,
राष्ट्र की अखांडता और सरुक्षा अांतर्िर्लत करन ेर्ाले, ऐसे मामल ेका अन्र्ेषण र्कया था, गुस्सा’ प्रकट की । इतनी अविक मूल्यवान
वजन्दवगयों को लेने के वलए उत्तरदायी वास्तववक अपरावियों पर मुकदमा िलाने के बजाय पुवलस ने वनदोष व्यक्वतयों को
पकड वलया और उनके ववरुद्ध गंभीर आरोपों को अविरोवपत करा वदया । वजसका पररणाम उनकी दोषवसवद्ध और पश्िातवती
दडं में हआु ।’648
5.4.2 अत: यह अन्र्ेषण में गलती का मामला नहीं था र्कन्त ुपुर्लस द्वारा पूणितया गढन ेका मामला था । इसके बार्िूि िो श्रेर्णयों के
न्यायालयों को यकु्र्तयकु्त सांिहे के परे इस बात का र्र्श्र्ास था र्क सभी अर्भयकु्त िोषी थे । िभुािग्य से यह एक ऐसा मामला नहीं ह,ै
646 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य,(1982) 3 एससीसी 24, पैरा 23 पर । 647 केर्नांस र्सिस कोर्लांस, 510 यूएस 1141 (1994) । 648 आिमभाई सलेुमानभाई अिमेरी और अन्य बनाम गुिरात राज््य, (2014) 7 एससीसी 716, पैरा 225 पर ।
111
बहुत से मामलों में, उच्चतम न्यायालय ने पाया ह ैर्क अर्भयकु्त व्यक्र्त न केर्ल र्सद्धिोषी ठहराए गए थे र्कन्त ुउन्हें छल साधन से र्कए
गए अन्र्ेषणों के माध्यम से या आपरार्धक न्याय प्रणाली में र्र्र्भन्न अर्भनेताओां की, र्िनके अांतगित परु्लस अर्भयोिन और र्नचले
न्यायालय भी ह,ै उपेक्षा या असार्धानी से बनाए गए झूठे और गढे गए साक्ष्य के आधार पर मृत्यिुांड भी र्िया गया था । िार्मया टीचसि
सोर्लडररटी यूर्नयन की एक ररपोटि गांभीर अर्भकथनों के 16 मामलों को सूचीबद्ध करती ह,ै िो सभी आतांक सांबांधी ऐसे आरोप
अांतर्िर्लत करन ेर्ाले हैं, िो न्यायालयों द्वारा पूणिरूप से झूठे और गढे गए पाए गए थे । इनमें से सभी 16 मामलों का एक परु्लस सेल
द्वारा अन्र्ेषण र्कया गया था । र्फर भी समस्या अर्धक व्यापक रूप से फैली हुई ह ै। िसैा र्क उच्चतम न्यायालय ने स्र्यां माना ‘यह
सरु्र्र्ित तथ्य ह ैर्क हमारे िशे में बहुधा अर्भयोिन न केर्ल र्ास्तर्र्क हमलार्रों को, र्कन्तु र्निोष व्यक्र्तयों को भी आर्लप्त कर लेता
ह,ै र्िससे र्क िाल को र्र्स्तृत रूप से फैलाया िा सके ।649
5.4.3 बहुत से मामलों में न्यायालय ने िखेा ह ैर्क र्नचले न्यायालयों द्वारा अपराधी का र्सद्धिोष (और पाररणार्मक मृत्यिुांड) गढ ेहुए
साक्ष्य पर आधाररत था । इसका एक उिाहरण आशीष बथाम बनाम मध्य प्रिशे राज््य650 ह,ै िहाां उच्चतम न्यायालय ने सांपे्रक्षण र्कया
र्क ‘हम अर्भलेख पर र्लखन ेसे रोक नहीं सके र्क अपीलाथी केर्ल सांिहे के आधार पर आर्लप्त र्कया हुआ प्रतीत होता ह ैऔर सामन े
रखी गई सामग्री के आधार पर बनायी गई अर्भयोिन की कहानी न तो सच और न पूणि रूप से सच प्रतीत होती ह ैऔर नीच ेर्ाले
न्यायालयों के र्नष्कषि, यद्यर्प समर्ती प्रतीत होते हैं, र्कन्तु उन्हें िरू्षत करन ेर्ाली स्पष्ट र्शर्थलताओां तथा अर्भलेख सांबांधी स्पष्ट
गलर्तयों का ध्यान रखते हुए र्े हमारे हाथों से स्र्ीकार र्कए िाने या अनमुोिन र्कए िाने के योग्य नहीं हैं, र्िनका पररणाम अपीलाथी के
र्लए गांभीर और र्चांतािनक घोर अन्याय में होगा।’651
5.4.4 समान रूप से रामपाल र्पथर्ा राहीिास बनाम महाराष्ट्र राज््य652 में, िहाां र्र्चारण न्यायालय ने 8 व्यक्र्तयों को मृत्यिुांड र्िया
था और उच्च न्यायालय ने उनमें से 5 के र्र्रुद्ध मृत्यिुांड की पषु्र्ट कर िी थी, उच्चतम न्यायालय ने इस आधार पर सभी अपरार्धयों को
िोषमकु्त कर र्िया र्क उनके र्र्रुद्ध मखु्य साक्ष्य, िो एक इकबाली साक्षी का था, र्र्श्र्सनीय नहीं था । न्यायालय ने न केर्ल साक्ष्य
को र्र्श्र्ास करन ेयोग्य नहीं पाया, बर्लक उसने यह भी र्नष्कषि र्नकाला र्क साक्षी पर पुर्लस द्वारा इकबाली साक्षी बनने के र्लए िबार्
डाला गया था, क्योंर्क ‘अन्र्ेषण में कुछ नहीं र्मला था और स्र्ीकायि रूप से चांिपरु की र्िला परु्लस पर मीर्डया और िनता से
लगातार हमल ेहो रह ेथे ।’ 653
5.4.5 इसी प्रकार सभुाष चन्ि आर्ि बनाम कृष्ण लाल और अन्य654 में , िहाां र्र्चारण न्यायालय ने 4 अर्भयकु्तों को र्सद्धिोष
ठहराया था और उनमें से 3 को मृत्यिुांड र्िया था और उच्च न्यायालय ने र्सद्धिोष को बनाए रखा था र्कन्तु सभी के िांड को आिीर्न
कारार्ास में पररर्र्तित कर र्िया था, उच्चतम न्यायालय ने सभी अपरार्धयों को यह सांपे्रक्षण करते हुए िोषमकु्त कर र्िया र्क ‘हमन ेिखु
के साथ यह िखेा ह ैर्क पूर्ोक्त चार अर्भयकु्त व्यक्र्तयों को न केर्ल न्यायालय को भ्रर्मत करन ेके र्लए र्कनतु र्ास्तर्र्क व्यक्र्तयों को
सांरक्षण िने ेके र्लए भी आर्लप्त र्कया गया था, यह र्नश्र्चत होते हुए र्क अन्ततोगत्र्ा कोई न्यायालय पूर्ोक्त अर्भयकु्तों में से र्कसी
को भी र्सद्धिोष नहीं ठहरा सकता था और िांड नहीं ि ेसकता था’ ।655 न्यायालय की इस राय के बार्िूि र्क ‘कोई न्यायालय पूर्ोक्त
अर्भयकु्तों को र्सद्धिोषी नहीं ठहरा सकता था और िांडािशे नहीं ि ेसकता था’656 उनमें से 3 ने लगभग 6 र्षि मृत्य ुपांक्र्त में र्बताए ।
649 मेिर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (2006) 10 एससीसी 499, पैरा 15 पर । 650 आशीष बाथम बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (2002) 7 एससीसी 317 । 651 आशीष बाथम बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (2002) 7 एससीसी 317, पैरा 15 पर । 652 रामपाल र्पथर्ा राहीिास बनाम महाराष्ट्र राज््य, (1994) 2 एससीसी 685 । 653 आशीष बाथम बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (2002) 7 एससीसी 317, पैरा 27 पर । 654 सभुाष चांि बनाम कृष्ण लाल और अन्य (2001) 4 एससीसी 458 । 655 सभुाष चांि बनाम कृष्ण लाल और अन्य (2001) 4 एससीसी 458, पैरा 12 पर । 656 सभुाष चांि आर्ि बनाम कृष्ण लाल और अन्य (2001) 4 एससीसी 458, पैरा 12 पर ।
112
5.4.6 पनु: परमानांि पेगू बनाम असम राज््य657 में उच्चतम न्यायालय ने यह िखेा र्क सांसर्ीकृर्तयाां अस्र्चै्र्छक थीं और यह र्क
र्चर्कत्सीय साक्ष्य तथा मृत्य ुका कारण की गई सांस्र्ीकृर्तयों से मले नहीं खाता था । अर्भयकु्त ने अपनी सांस्र्ीकृर्तयाां या र्ापस ले ली
थीं और र्र्चारण न्यायालय को उस यांत्रणा के बारे में, र्िसे उन्होंन ेसहा था, सूर्चत र्कया, िब उन्होंन ेिांड प्रर्िया सांर्हता की धारा
313 के अधीन न्यायालय में अपन ेकथन र्कए । उच्चतम न्यायालय ने अपराधी को िोषमकु्त कर र्िया और पाया र्क तथ्य य ेसझुार् ि े
रह ेथे र्क पुर्लस ने अस्र्चै्र्छक सांसर्ीकृर्त र्नष्कर्षित की थी । इस बात पर ध्यान र्िया िाए र्क िोनों र्नचल ेन्यायालयों ने अर्भयकु्त पर
मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया था ।
5.4.7 अन्य कारक, िसेै प्रभार्ी र्र्र्धक प्रर्तर्नर्धत्र् का र्ांचन, र्निोष व्यक्र्तयों को मृत्य ुपांक्र्त में भेि सकता ह,ै इसका एक
उिाहरण मो0 हुसनै @ िलु्र्फकार अली बनाम राज््य658 ह,ै िहाां अर्भयकु्त को र्िल्ली में एक बस में र्र्स्फोट करन ेके र्लए, र्िसमें 4
व्यक्र्तयों की मृत्य ुहुई थी, र्सद्धिोष ठहराया गया था और मृत्यिुांड र्िया गया था । उसकी िोषर्सर्द्ध और िांड को उच्च न्यायालय द्वारा
बनाए रखा गया था ।659 उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक खांड न्यायपीठ ने यह िखेा र्क अर्भयकु्त को ऋि ुर्र्चारण से, र्र्र्धक
प्रर्तर्नर्धत्र् न र्िए िाने के कारण, र्ांर्चत रखा गया था ।660 र्र्चारण न्यायालय की मृत्यिुांड के मामले का सांचालन करन ेमें उसकी
‘आकस्र्मक’ रीर्त के र्लए, र्नन्िा करते हुए, खांडपीठ इस बारे में र्र्भार्ित हो गई र्क क्या अपराधी को िोषमकु्त र्कया िाए या मामले
को पनु: र्र्चारण के र्लए भेिा िाए ।661 मामले को तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ को र्नर्ििष्ट र्कया गया था, र्िसन ेमामल ेको पनु:
र्र्चारण के र्लए भेि र्िया । िनर्री, 2013 में मो0 हुसैन को र्निोष पाया गया और उस ेसभी आरोपों से िोषमकु्त कर र्िया गया ।
र्ह 15 र्षि िेल में रहा, र्िसमें से 7 र्षि और 2 महीन ेके र्लए र्ह मृत्य ुपांक्र्त में था ।662
5.4.8 िसूरा उिाहरण रामिरे् चौहान बनाम असम राज््य663 का मामला ह,ै रामिरे् चौहान को एक अपराध के र्लए, िो 1992 में
हुआ, र्गरफ्तार र्कया गया था । उस े र्र्चारण न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा र्सद्धिोष ठहराया गया और मृत्यिुांड र्िया गया ।
उसकी र्कशोरार्स्था के अर्भर्ाक् को नामांिूर कर र्िया गया । उच्चतम न्यायालय की िो न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने 2000 में उसके
मृत्यिुांड को बनाए रखा ।664 पनुर्र्िलोकन पर एक न्यायाधीश ने यह तथ्य अर्भर्लर्खत र्कया र्क यद्यर्प रामिरे् अपराध के करन ेके
समय र्कशोर नहीं था, र्ह लगभग 16 र्षि का था और उसकी तरुण आय ुकम करन ेर्ाला कारक थी । इस कारण से उसने मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत करन ेसे इांकार कर र्िया । तथार्प, बहुमत के अनसुार, रामिरे् चौहान का मृत्यिुांड बनाए रखा गया ।665 2002 में असम के
राज््यपाल ने राष्ट्रीय मानर्ार्धकार आयोग के हस्तके्षप करन ेपर उसके मृत्यिुांड को लघुकृत कर र्िया । तथार्प 2009 में मृत व्यक्र्त के
पररर्ार के द्वारा फाइल की गई एक ररट में, उच्चतम न्यायालय ने लघुकृत आिशे को अपास्त कर र्िया और मृत्यिुांड को प्रत्यार्र्तित कर
र्िया ।666 इस र्र्र्नश्चय के पुनर्र्िलोकन में उच्चतम न्यायालय ने रामिरे् चौहान से अपराध करन े के समय पर उसकी आय ु के
657 परमानांि पेगू बनाम असम राज््य, (2004) 7 एससीसी 779 ।
658 मो0 हुसनै@ िलु्र्फकार अली बनाम राज््य, 2012(8) स्केल 308 ।
659 राज््य बनाम मो0 हुसनै@ िलु्र्फकार अली, 140 (2007) डीएलटी 428 ।
660 मो0 हुसनै@ िलु्र्फकार अली बनाम राज््य, 2012(1) स्केल 145 ।
661 मो0 हुसनै@ िलु्र्फकार अली बनाम राज््य, 2012(8) स्केल 308 । 662 राज््य बनाम मो0 हुसनै@ िलु्र्फकार अली, सेशन केस नां0 79/2012, तारीख 04.01.2013 (र्िल्ली) । 663 रामिरे् चौहान @ रािनाथ चौहान बनाम बनी काांत िास, पुनयािर्चका (िाां) 1378/009 । 664 रामिरे् चौहान @ रािनाथ चौहान बनाम असम राज््य, (2007) 7 एससीसी 455 । 665 रामिरे् चौहान @ रािनाथ चौहान बनाम बनी काांत िास, पुनयािर्चका (िाां) 1105/2000, 10.05.2001 (एससी) ।
666 बनी काांत िास और अन्य बनाम असम राज््य, ररट यार्चका (र्सर्र्ल) 457/2005 1378/2009, 19.11.2010(एससी) ।
113
अर्धारण के र्लए समरु्चत मांच पर पहुांचने के र्लए कहा ।667 2010 में गोर्ाहाटी उच्च न्यायालय ने अांर्तम रूप से अर्धाररत र्कया
र्क रामिरे् अपराध करन ेके समय र्ास्तर् में एक र्कशोर था । इस समय तक र्ह कारागार में लगभग 18 र्षि र्बता चकुा था, र्िसमें से
लगभग 6 र्षि र्ह मृत्य ुपांक्र्त में था । उस समय में, उच्चतम न्यायालय की तीन र्भन्न न्यायपीठों ने उस पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया था
।
5.4.9 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य668 समरूप उिाहरण हैं, 2006 में अांकुश र्सांि ेऔर 5 अन्य को र्र्चारण
न्यायालय द्वारा र्कसी अर्यस्क के बलात्कार और हत्या के र्लए मृत्यिुांड र्िया गया था । उच्च न्यायालय ने 3 का मृत्यिुांड बनाए रखा
और िसूरों का आिीर्न कारार्ास में लघुकृत कर र्िया । अपील पर उच्चतम न्यायालय ने सभी 6 पर (रर्िी में अनर्धानता के कारण
र्िए गए र्र्र्नश्चय पर उसके इस अर्धारण के र्लए भरोसा करते हुए र्क र्ह मामला ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ के प्रर्गि में आता
था), मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया । 2012 में, उच्चतम न्यायालय के र्र्र्नश्चय के लगभग 3 र्षि पश्चात ्एक र्र्चारण न्यायालय ने
अर्धाररत र्कया र्क अांकुश र्सांि ेअपराध करन ेके समय र्कशोर था ।669 इस समय तक र्ह कारागार में कुल 9 र्षों की अर्र्ध में से
मृत्य ुपांक्र्त में 6 र्षि र्बता चकुा था ।
5.4.10 ‘तुला में लटके हुए अध्ययन’ र्िसे ऊपर र्नर्ििष्ट र्कया गया ह,ै इांर्गत करता ह ैर्क ऊपर र्र्णित मामल ेपृथककृत उिाहरण
नहीं हैं । 2000-2013 की अर्र्ध में 80 व्यक्र्तयों को, र्िनहें िोनों र्नचल े न्यायालयों द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था, उच्चतम
न्यायालय द्वारा िोष मकु्त कर र्िया गया था । अर्तररक्त 67 व्यक्र्तयों को कम से कम एक न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था और
िसूरे द्वारा िोषमकु्त कर र्िया गया था । इनमें से उच्चतम न्यायालय ने स्र्यां 2 व्यक्र्तयों पर, र्िन्हें उच्च न्यायालय द्वारा िोषमकु्त र्कया
गया था और 2 अन्य व्यक्र्तयों पर र्िन्हें उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश द्वारा िोषमकु्त र्कया गया था, मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया
था । य ेआांकडे़ और ऊपर र्र्णित उिाहरण आपरार्धक न्याय प्रर्िया की मिबूती के बारे में, िो अप्रर्तसांहरणीय मृत्यिुांड की सांर्िया के
र्लए सांिभि और र्र्रचना का उपबांध करती ह,ै गांभीर प्रश्न उठाते हैं । आपरार्धक न्याय प्रणाली इस बारे में र्क इतनी बड़ी सांख्या में
व्यक्र्तयों को, र्िन्हें एक न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड र्िया िाता ह ैर्कन्तु अांततोगत्र्ा उन्हें र्निोष पाया िाता ह,ै गांभीर र्चांताएां उठाती हैं ।
ऐसी प्रणाली में मृत्यु िसेै न उलटने योग्य िांड की र्र्द्यमानता पर, मृत्यिुांड समाप्त र्कए िाने के बारे में र्कसी र्र्चार-र्र्मशि में, अर्श्य
र्र्चार र्कया िाना चार्हए ।
(ii) मृत्युदडं अविरोवपत करने में स्वीकार की गई गलती
5.4.11 ‘मृत्यिुांड के मामलों में ऊां ची उलटन ेर्ाली िर और साथ ही र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ र्सद्धाांत के लागू होन े में
असांगतताओां के बारे में र्चांताओां को सांयोर्ित करते हुए गलती की िर ऊां ची ह,ै र्िसे उच्चतम न्यायालय द्वारा स्र्यां उसके अपन े
र्र्र्नश्चयों में स्र्ीकार र्कया गया ह ै । ठीक 3 मामलों : बररयार, सांगीत और खाि ेमें न्यायालय ने 20 व्यक्र्तयों को मृत्यिुांडािशे
अांतर्िर्लत करन ेर्ाले 16 मामलों में गलती अर्भस्र्ीकार की ह ै। इन व्यक्र्तयों में से 16 को 2000-2013 के बीच की अर्र्ध में
मृत्यिुांड र्िया गया था, र्िसका र्नर्हताथि ह ैर्क उच्चतम न्यायालय ने कुल 69 व्यक्र्तयों में से, र्िन्हें न्यायालय द्वारा इस समयार्र्ध के
िौरान मृत्यिुांड र्िया गया था, 16 व्यक्र्तयों पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने में गलती स्र्ीकार की थी । यह गलती की िर 23.2 प्रर्तशत
ह ै। अत: उच्चतम न्यायालय ने अर्भस्र्ीकार र्कया ह ैर्क लगभग एक-चौथाई मामले, र्िनमें उसने हाल में र्पछले र्िनों में मृत्यिुांड र्िया
था, मृत्यिुांड गलती से अर्धरोर्पत र्कया गया था ।
667 रामिरे् चौहान @ रािनाथ चौहान बनाम बनी काांत िास, पुनयािर्चका (िाां) 1378/2009, 19.11.2010
(एससी) । 668 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 667 । 669 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, िाांर्डक एप्लीकेशन 05/2012, 6.07.2012 (सत्र न्यायालय, नार्सक ।
114
5.4.12 बररयार में, न्यायालय ने रर्िी उफि रामचन्ि बनाम रािस्थान670 राज््य में र्र्र्नश्चय की परीक्षा की थी, िहाां उसने यह
अर्भर्नधािररत र्कया था र्क :
यह अपराध की, न र्क अपराधी की, प्रकृर्त और गांभीरता ह,ै िो र्कसी आपरार्धक र्र्चारण में समरु्चत िांड का र्र्चार करन े
के र्लए सांगत ह.ै....................र्कसी अपराध के र्लए र्िया िान ेर्ाला िांड उस नृशांसता और िूरता के, र्िससे र्ह
अपराध र्कया गया ह,ै उस अपराध के महापाप के र्िसे की लोक घृणा समथिन करती ह,ै अनरुूप और सांगत होना चार्हए
और उस ेअपराधी के र्र्रुद्ध न्याय के र्लए िनता की पकुार का उत्तर िनेा चार्हए ।671
5.4.13 बररयार ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क रर्िी में अपराध पर अनन्य सांिेिण ने इस र्र्र्नश्चय को अनर्धानता से र्कया गया बना
र्िया । न्यायालय ने आगे 6 ऐसे मामलों को सूचीबद्ध र्कया, िहाां रर्िी का अनगुमन र्कया गया था और इसर्लए उनमें गलत पूर्ि र्नणिय
पर भरोसा र्कया गया था । 11 में से 2 व्यक्र्तयों को इस प्रकार र्िए गए िांड के अनसुार, र्िसके अांतगि रर्िी स्र्यां ह,ै फाांसी िी गई थी
और शेष 3 अपनी िया यार्चका के साथ अभी तक, र्िसे पश्चातर्ती नामांिूर कर र्िया गया था, न्यायालय के 6 र्षि पूर्ि अपनी गलती
को अर्भस्र्ीकार कर र्लए िाने के बार्िूि, मृत्य ुपांक्र्त में हैं । 672
5.4.14 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य673 पर, र्िस पर बररयार से िो सप्ताह पूर्ि र्नणिय पररित्त र्कया गया था, और
र्िसमें रर्िी पर भरोसा करते हुए 6 व्यक्र्तयों को मृत्यिुांड र्िया था, न्यायालय द्वारा बररयार में ध्यान नहीं र्िया गया था । आश्चयििनक
रूप से बररयार में स्पष्ट रूप से यह अर्भर्नधािररत र्कए िान ेके पश्चात् भी र्क रर्िी का र्र्र्नश्चय अनर्धानता से र्कया गया था, उस
मामले में र्र्र्नश्चय का उच्चतम न्यायालय द्वारा कम से कम 3 मामलों में अनगुमन र्कया गया ह ै । यद्यर्प इन मामलों पर उच्चतम
न्यायालय ने अभी तक ध्यान नहीं र्िया ह,ै कुल र्मलाकर अर्तररक्त 9 व्यक्र्तयों को रर्िी पर भरोसा करते हुए मृत्यिुांड र्िया गया ह ै
।674
5.4.15 समान रूप से उच्चतम न्यायालय ने शांकर खाि ेमें धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य675 में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत
र्कए िाने के ठीक होन ेपर सांिहे र्कया ह,ै िहाां न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया था र्क र्कसी र्िए गए मामल ेमें िांड का पररमाण
अपराध की नृशांसता ; अपराधी के आचरण और पीर्ड़त की रक्षा रर्हत और असांरर्क्षत स्र्थर्त पर र्नभिर होना चार्हए । समरु्चत िांड का
670 रर्िी इर्लयास राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175 । 671 रर्िी इर्लयास राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175, पैरा 124 पर । सांतोष बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6
एससीसी 498, पैरा 63, बचन र्सांह में अनर्धानता हुई ।
672 साइबन्ना और र्शर्ािी आहत की िया यार्चकताएां नामांिरू कर िी गई हैं । समाचार ररपोटें िर्शित करती हैं र्क गृह मांत्रालय ने मोहन अन्ना चव्हाण द्वारा प्रस्तुत
की गई िया यार्चका को नामांिूर र्कए िाने के र्लए र्सफाररश की ह ै। िरे्खए िो र्सद्धिोर्षयों की िया यार्चकाओ ां को नामांिरू र्कया, प्रणर् ने कहा, र्ि र्हन्ि,ू अगस्त
18, 2015 र्ि र्हन्ि,ू अगस्त 18, 2015, http://www.thehindu.com/news/national/reject-mercy-pleas-of-2-
convicts-pranab-told/article7551067.ece
673 अांकुश मारुर्त र्सांि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 667 । 674 अिीत र्सांह हरनामर्सांह गुिराल बनाम महाराष्ट्र, (2011) 14 एससीसी 401; सनु्िर र्सांह बनाम उत्तराांचल, (2010) 10 एससीसी 611 ;
िगिीश बनाम मध्य प्रिेश राज््य, 2009 (12) स्केल 580 । इन मामलों में, न्यायालय ने, तुलनात्मक मामल ेके रूप में यह कहने के र्लए रर्िी पर भरोसा
र्कया र्क इस मामले के तथ्यों में मृत्युिांड अर्धरोर्पत र्कया गया था और इस बात का अर्धारण करने के र्लए इस तथ्य का उपयोग र्कया र्क क्या मृत्युिांड उनकी
अपनी तथ्य सांबांधी स्र्थर्तयों में अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए ।
675 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य (1994) 2 एससीसी 220 ।
115
अर्धरोपण र्ह रीर्त ह ैर्िसमें न्यायालय अपरार्धयों के र्र्रुद्ध न्याय के र्लए समाि की पकुार का उत्तर ितेा ह ै।’676 खाि ेमें न्यायालय
ने यह राय व्यक्त की र्क प्रथमदृष्टया र्नणिय ने अपराधी से सांबांर्धत कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों का र्हसाब नहीं लगाया था । धनन्िय
चटिी को 2004 में फाांसी िी गई थी ।
5.4.16 समान रूप से सांगीत में, न्यायालय ने ऐसे और 3 मामलों पर ध्यान र्िया था, िहाां गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली िोनों
पररस्र्थर्तयों पर र्र्चार करन ेके र्लए बचन र्सांह के र्निशे को नहीं अपनाया गया था ।677
सारणी 5.1 : बररयार, संगीत, खाद ेमें संदेह वकए गए मामले की सूिी
ि0स0ं मामला उन व्यक्वतयों की संख्या,
वजन्हें मृत्युदडं वदया गया
मृत्युदडं का अविरोपण,
वजसे िकर् रूप से678
वनम्नवलवखत मामलों में
गलत अवभवनिाटररत वकया
गया
1. रर्िी उफि राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य,
(1996) 2 एससीसी 175
1 बररयार
2. र्शर्िी बनाम महाराष्ट्र राज््य, एआईआर 2009
एससी 56
1 बररयार
3. मोहन अन्ना चह्वाण बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2008)
11 एससीसी 113
1 बररयार
4. बांटू बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (2008) 11
एससीसी 113
1 बररयार
5. ियार्नर्ध र्बसोई बनाम उड़ीसा राज््य, (2003) 9
एससीसी 310
1 बररयार
6. सुरिा राम बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 6
एससीसी 271
1 बररयार
676 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य (1994) 2 एससीसी 220, पैरा 15 पर । इस र्र्र्नश्चय के अनन्य कें ि के अपराध पर न र्क अपराधी पर होने
के बारे में शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546 ।
677 र्शर् ुबनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी 713, रािेंि प्रलहािरार् र्ासर्नक बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2012) 4
एससीसी 37, मो0 मन्नन बनाम र्बहार राज््य,(2011) 5 एससीसी 317 ।
678 ऐस ेबहुत से मामलों में न्यायालय ने गुरतरकारी और कम करने र्ाली पररस्र्थर्तयों के लागू होने में असांगतताओ ां की ओर इांर्गत र्कया ह ै। र्नणीतानुसार पर
आधाररत र्कसी न्यार्यक प्रणाली में, र्र्शेष रूप से बचन र्सांह में न्यायालय के सांिभि में, र्िसमें स्पष्ट रूप से यह आिेश र्िया था र्क िांड िनेे र्ाले र्र्रे्कार्धकार का
प्रयोग पूर्ि र्नणिय की दृष्र्ट से र्कया िाएगा, ये असांगतताएां बहुत सारे ऐसे मामलों का र्नणिय अनर्धानता से र्कया गया बनाती हैं । तथार्प, चूांर्क उच्चतम न्यायालय
ने स्पष्ट रूप से यह अर्भस्र्ीकार नहीं र्कया ह ैर्क ये मामल ेअनर्धानता से र्कए गए हैं, अत: उन्हें सचूी में नहीं िोड़ा गया ह ै। र्र्शेष रूप से सांगीत और खािे
िरे्खए ।
116
7. उत्तर प्रिेश राज््य बनाम सत्तन, (2009) 4
एससीसी 736
4 बररयार
8. साईबन्ना बनाम कनािटक राज््य, (2005) 4
एससीसी165
1 बररयार
9. र्शर् ुबनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय ,
(2007), 4 एससीसी 713
2 सांगीत
10. रािेन्ि प्रलहािरार् र्ासर्नक बनाम महाराष्ट्र
राज््य,(2012) 4 एससीसी 37
1 सांगीत
11. मो0 मन्नन बनाम र्बहार राज््य, (2011) 5 एसीसी
317
1 सांगीत
12. बी.ए. उमेश बनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च
न्यायालय, (2011) 3 एससीसी 85
1 सांगीत
13. सुशील मरुम ुबनाम झारखांड राज््य, (2004) 2
एससीसी 338
1 सांगीत
14. गरुमखु र्सांह बनाम हररयाणा राज््य, (2009) 15
एससीसी 635
1 सांगीत
15. धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य,
(1994) 2 एससीसी 220
1 सांगीत
16. कामता र्तर्ारी बनाम मध्य प्रिेश राज््य, (1996)
6 एससीसी 250
1 सांगीत
5.4.17 बाधा डालन ेर्ाले इन मामलों में से आध े से अर्धक में, र्िनमें न्यायालय को बाि में गलती र्मली, अपरार्धयों का
प्रर्तर्नर्धत्र् न्याय र्मत्र द्वारा र्कया गया था । गलती और मृत्यिुांड के अर्धरोपण से सांबांर्धत मामलों में न्यायर्मत्र का अत्यर्धक
प्रर्तर्नर्धत्र् सार्धानी के र्लए कारण हैं, र्बल्कुल भी नहीं क्योंर्क यह मृत्यिुांड के अर्धरोपण पर र्र्रचना सांबांधी और प्रणाली सांबांधी
पूर्ािग्रहों के प्रभार् का सांकेत ि ेसकता ह ै।
(iii) समान मामलों में ‘ववरले मामलों में से ववरलतम’ ववरिना के लागू करने में वववभन्नाए ं
5.4.18 मो0 फारूख में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा था र्क मृत्यिुांड के लागू करन ेमें कुछ उद्दशे्यपूणिता और एकरूपता लाने के
र्लए, ‘सर्िसम्मर्त से पहुांच’ को अांगीकार र्कया िाना चार्हए, र्िसके द्वारा मृत्यिुांड केर्ल तब अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए िब यर्ि
न्यायालय प्रणाली की र्र्र्भन्न श्रेर्णयों के बीच शीषि से और साथ ही न्यायपीठों के बीच एक स्तर पर सर्िसम्मर्त हो ।679
679 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 165 पर ।
117
5.4.19 तथार्प तुला में लटके हुए अध्ययन ‘सर्िसम्मर्त से पहुांच’ से बारबार र्र्चलन को िर्शित करता ह ै। ‘य ेआांकडे़ िर्शित करते
हैं र्क 2000-13 में 281 व्यक्र्तयों के मामल ेउच्चतम न्यायालय के समक्ष आए, िहाां कम से कम एक न्यायालय ने मृत्यिुांड
अर्धरोर्पत र्कया था । इनमें से 205 व्यक्र्तयों के र्लए मृत्यिुांड का अर्धरोपण न्यायालय के समक्ष र्र्र्ाद्यक र्र्षय था । इन 205
व्यक्र्तयों में से उच्चतम न्यायालय ने 69 व्यक्र्तयों पर (33.7 प्रर्तशत) मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया था । इस समूह में से, 5.8
प्रर्तशत (एन=4) को एक न्यायालय/उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा िोषमकु्त र्कया गया था । िसूरे 22.2 प्रर्तशत
(एन=16) को कम से कम एक न्यायालय/उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा िीर्न र्िया गया था । इस प्रकार समग्र रूप से 29
प्रर्तशत मामलों में, िहाां उच्चतम न्यायालय ने मृत्यिुांड को बनाए रखा या अर्धरोर्पत र्कया, र्हाां न्यायाधीशों के बीच स्र्यां इस बात पर
एकरूपता नहीं थी र्क क्या अर्भयकु्त र्ास्तर् में िोषी था,/या र्क उसका मामला मृत्यिुांड की माांग करने र्ाले र्र्रल ेमामलों में से
र्र्रलतम प्रर्गि में आता था ।
5.4.20 281 मामलों में से, िहाां कम से कम एक न्यायालय ने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया था, र्हाां उच्चतम न्यायालय ने
अर्भयकु्त को 60 (21.4 प्रर्तशत) में िोषमकु्त कर र्िया, 142 (50.5 प्रर्तशत) में लघुकृत कर र्िया या आिीर्न कारार्ास
अर्धरोर्पत कर र्िया और 8 (2.8 प्रर्तशत) मामलों में उच्च न्यायालय या र्र्चारण न्यायालय को मामला र्ापस प्रत्यार्र्तित कर र्िया
। 60 िोषमकु्त र्कए गए व्यक्र्तयों में से, 18 को सभी र्नचले न्यायालयों द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था । 142 में से, र्िन्हें अांततोगत्र्ा
आिीर्न कारार्ास र्िया गया था, 61 को सभी र्नचले न्यायालयों द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था ।
5.4.21 अत: 281 मामलों में से 79 (28.1 प्रर्तशत) में उच्चतम न्यायालय ने पाया र्क समान तथ्यों पर, िोनों र्नचले
न्यायालयों में गलती से मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया था ।
5.4.22 आगे उच्चतम न्यायालय ने उन 12 व्यक्र्तयों पर मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया, र्िन्हें कम से कम एक र्नचल ेन्यायालय द्वारा
आिीर्न कारार्ास र्िया गया था तथा आगे 4 व्यक्र्तयों पर और र्कया, र्िन्हें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा स्र्यां आिीर्न
कारार्ास र्िया गया था ।
5.4.23 यह िखेना महत्र्पूणि ह ैर्क केर्ल इस कारण से र्क मृत्यिुांड का अर्धरोपण अांर्तम रूप से इतनी बड़ी सांख्या के मामलों में
उलट र्िया गया था, यह तात्पयि नहीं ह ैर्क यह प्रणाली ठीक कायि नहीं कर रही ह ै। ऊपर र्र्णित अर्धकाांश उिाहरणों में, िोनों र्नचले
न्यायालयों ने गलती की ह ै। ऐसी गलर्तयों को केर्ल कारागार में लांबी अर्र्धयों के पश्चात्, र्िसके अांतगित मृत्य ुपांक्र्त में बढाई गई
अर्र्धयाां भी हैं, ठीक र्कया गया ह ै। मृत्यिुांड के अधीन होन ेका आघात, र्िसे ‘मृत्य ुपांक्र्त आभास’ कहा िाता ह,ै अपन ेमानर्सक
और शारीररक िांड का, उस व्यक्र्त को पश्चातर्ती फाांसी न र्िए िाने पर भी, भार डालता ह ै ।680 अत: मृत्यिुांड के अत्यर्धक
अर्धरोपण के र्र्रुद्ध इस आरोप का कोई उत्तर नहीं ह ैर्क इन मामलों को अपीलीय न्यायालयों द्वारा र्कस प्रकार उलट र्िया गया या
लघुकृत कर र्िया गया । यर्ि िो न्यायालय, र्िनमें अनभुर्ी न्यायाधीशों के कमिचारी हैं, िोष या िांडािशे के अर्धारण में गलती कर
सकते हैं, तो यह सझुार् िने ेके र्लए कुछ नहीं रह िाता ह ैर्क र्ही गलती तीसरी श्रेणी के न्यायाधीश द्वारा नहीं की िा सकती ह ै। िसूरे
िशेों में, अत्यर्धक र्र्र्शष्ट रूप में सांयुक्त राज््य में, गलत र्सद्धिोर्षयों को, र्जै्ञार्नक साक्ष्य, िसेै डीएनए के उपयोग द्वारा सही करन ेके
प्रयासों ने ऐसे बहुत से मामलों का मागििशिन र्कया ह,ै िहाां र्कसी व्यक्र्त को, न्यायपार्लका के उच्चतम स्तरों तक अपीलों की बहुल
परतों और पनुर्र्िलोकन के बार्िूि, सिोष र्सद्धिोष ठहराया गया था और मृत्य ुतक का िांड र्िया गया था ।681 भारत में ऐसे अध्ययनों
680 अगले अध्याय में चचाि हुई । 681 िरे्खए बे्रनडन एल. गरेट, र्ि बेनार्लटी आफ राांगफुल एग्र्िक्यूशनस, माइकल एल. रेर्. (2014) (डीएनए द्वारा माफी र्िए गए अन्य 250 में से 18 मृत्यु
पांक्र्त र्ाली माांर्फयों को सचूीबद्ध र्कया गया ह ै।) सभी में अभी तक लगभग 155 मृत्यु पांक्र्त र्ाले कैर्ियों को डीएनए और गैर डीएनए साक्ष्य का उपयोग करते
हुए अमरीका में माांर्फयाां िी गई हैं । िरे्खए र्निोष सचूी, मतृ्युिांड सचूना कें ि, http://www.deathpenaltyinfo.org/innocence-list-
118
की अनपुस्र्थर्त में, यह अर्धाररत करना सांभर् नहीं ह ैर्क क्या, और यर्ि ऐसा ह ैतो ऐसे र्कतन ेमामल ेभारत में र्र्द्यमान हैं । तथार्प,
ऊपर र्िए गए उिाहरण और यहाां प्रस्तुत र्कए गए आांकडे़ हमें सार्धान करते हैं र्क मृत्यिुांड के समान न उलटने योग्य िांड, भूल करने
र्ाली प्रणाली में र्र्द्यमान ह ै।
5.4.24 आगे 2000 से उच्चतम न्यायालय ने मृत्यिुांड के अर्धरोपण के र्र्रुद्ध अपील करने के र्लए र्र्शेष इिाित सांबांधी कम से
कम 9 यार्चकाओां को प्रारांभ में ही खाररि कर र्िया ह ै ।682 इतनी ऊां ची उलटन ेर्ाली िर सांबांधी र्कसी प्रणाली में, उच्चतम
न्यायालय ने, िो अांर्तम अपीलीय न्यायालय ह,ै स्र्यां ‘र्नर्िहन करन ेके र्लए अर्धक गांभीर और गहन कतिव्य’ अर्भस्र्ीकार र्कया ह ै।
‘न्यायालय को न केर्ल यह सुर्नश्र्चत करना ह ैर्क मृत्यिुांड के र्िए िाने में, ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ र्सद्धाांत के प्रकट रूप से
र्र्चारण के पश्चात्, धारा 302 के अधीन र्र्र्ेकार्धकार का प्रयोग असार्धानी से र्कया िाने र्ाला नहीं रह िाता ह,ै र्कन्त ुयह भी
र्क र्र्र्नश्चय करन ेर्ाली प्रर्िया इस सांबांध में लागू प्रर्िया सांबांधी न्याय की र्र्शेष कर्ठनाइयों से बची रहती ह ै।’683 इस र्सद्धाांत की
दृष्र्ट से मृत्यिुांड के र्र्रुद्ध अपील करन ेर्ाली र्र्शेष इिाित सांबांधी यार्चकाओां को प्रारांभ में ही खाररि करने र्ाल ेव्यर्हार को समाप्त
करना चार्हए, िसैी र्क आयोग द्वारा अपनी 187र्ीं ररपोटि में र्सफाररश की गई थी ।
5.4.25 सांके्षप में, मृत्यिुांड ऐसी प्रणाली में कायि करता ह ैिो बहुत अर्धक चांचल, िोड़-तोड़ और गलर्तयों के र्लए खलुी और
प्रकट रूप से भ्रमशील ह ै। तथार्प प्रणाली कैसी भी उद्दशे्यपूणि हो, चूांर्क उसमें कमिचारी मानर् होते हैं और इस प्रकार मानर्ीय क्षमताएां
और प्रर्ृत्र्तयाां सीर्मत होती हैं, अत: गलती की सांभार्ना सिरै् खलुी रहती ह ै। िसैा र्क सांपूणि र्र्श्र् में, र्िसके अांतगित अत्यर्धक बडे़
स्रोत र्ाली र्र्र्धक प्रणार्लयाां हैं, अर्भस्र्ीकार र्कया गया ह ै।
5.4.26 िसैा र्क ऊपर उद्धत उिाहरण िर्शित करते हैं, अपीलीय प्रर्ियाओां की र्र्द्यमानता गलती के अर्सरों को कम कर सकती ह,ै
र्कन्तु उनहें पूणिरूप से समाप्त नहीं र्कया िा सकता । मृत्यिुांड की न उलटन ेयोग्य प्रकृर्त को िखेते हुए, यह िांड केर्ल र्हाां न्यायोर्चत
ठहराया िा सकता ह ैिहाां सांपूणि प्रणाली सम्यक् प्रर्िया के सबसे ऊां चे मानकों, र्नष्पक्ष अन्र्ेषण और प्रर्िया, अत्यर्धक मिबूत
प्रर्तरक्षा और अत्यर्धक र्नष्पक्ष तथा र्नपणु न्यायाधीशों का ध्यान रखते हुए मूखिता से परे रीर्त में कायि करती ह ै। तथार्प सांपूणि र्र्श्र् में,
भारत सर्हत, अनभुर् यह सझुार् ितेे हैं र्क यह प्रणाली ‘एक बेइमान परु्लस अर्धकारी, एक अक्षम र्कील, एक अत्यर्धक उत्साही
अर्भयोिक या एक गलती करने र्ाले साक्षी के कारण र्ह सब कुछ ले लेती ह ैऔर प्रणाली असफल हो िाती ह’ै ।684 कुशल
आपरार्धक न्याय प्रणाली में मृत्यिुांड गलती से मकु्त रूप में अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै। तथार्प अभी तक ऐसी र्कसी प्रणाली को
नहीं बनाया गया ह ै। अत: मृत्यिुांड अपूणि, कमिोर और भ्रमशील प्रणाली में न उलटन ेयोग्य िांड रहता ह ै।
5.4.27 मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता का मूल्याांकन पूर्िगामी र्र्चार-र्र्मशि को दृष्र्ट में रखते हुए उसके कर्थत न्यायोर्चतयों और ऊपर
उठायी गई र्चांताओां के आधार पर र्कया िाना होगा । िसैा र्क उच्चतम न्यायालय ने बररयार में सार्धान र्कया था,
those-freed-death-row.(साधारणतया िरे्खए, र्ि इर्नर्र्टेर्बर्लटी आफ एरर, र्ि डेथ पेनल्टी प्रोिेक्ट (2014) (र्र्र्भन्न िेशों में गलती से र्िए
गए मतृ्युिांडों के उिाहरणों को िरे्खए) ।
682 लाल चांि@ लार्लया बनाम रािस्थान राज्य (20.02.2004 को) ; िफर अली बनाम उत्तर प्रिशे राज््य (05.04.2006), टोटे र्िर्ान@मान
बहािरु र्िर्ान बनाम असम राज््य (08.08.2005), सांिय बनाम उत्तर प्रिेश राज््य (03.07.2006), बांि ूबनाम कनािटक राज््य (10.07.2006),
ध्यानेश्र्र बोरकर बनाम महाराष्ट्र राज््य (21.07.2012), र्ितेंि @ िीत ूऔर अन्य बनाम मध्य प्रिेश राज््य (06.01.2015), बाबासाहबे मारूर्त
काम्बल ेबनाम महाराष्ट्र राज््य (06.01.2015) । 683 मो0 फारूक अब्िलु गफूर बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 14 एससीसी 641, पैरा 155 पर । 684 र्ि इर्नर्र्टेर्बर्लटी आफ एरर, र्ि डेथ पेनल्टी प्रोिेक्ट (2014) (र्र्र्भन्न िशेों में गलती से र्िए गए मृत्युिांडों के उिाहरणों को िरे्खए) ।
119
िीर्न का अर्धकार सभी अर्धकारों में से अत्यर्धक मूल ह ै। पररणामस्र्रूप कोई िांड, र्िसका उद्दशे्य िीर्न लेना ह,ै सबस े
गांभीर िांड ह ै। मृत्यिुांड िीर्न के मूल अर्धकार के आर्श्यक तत्र् पर इसे असाध्य रूप से र्नरर्सत करते हुए सीमा अर्धरोर्पत
करता ह ै। हम इस अर्धकार की पूणि प्रकृर्त को, इस अथि में र्क,यह सभी अन्य अर्धकारों का स्रोत ह,ै अनभुर् करते हैं ।
अन्य अर्धकार सीर्मत हो सकते हैं और र्ापस भी र्लए िा सकते हैं और उन्हें पनु: प्रिान र्कया िा सकता ह ैर्कन्त ुउनकी
अांर्तम सीमा को िीर्न के अर्धकार के परररक्षण में पाना होगा । िीर्न का अर्धकार सांर्र्धान के अधीन सभी अर्धकारों
की आर्श्यक अांतर्िस्तु ह ै। यर्ि िीर्न पूणितया ले र्लया िाता ह ैतो अन्य अर्धकार र्र्द्यमान नहीं रह िाते हैं ।
5.4.28 समान रूप से शांकर लाल, ग्यारार्शलाल िीर्क्षत बनाम महाराष्ट्र राज््य685 में न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
‘मृत्यिुांड के र्िए िाने में न्यायाधीश को बहुत बड़ी र्चांता और अपनी उर्द्वग्नता को, क्योंर्क र्ह ऐसा िांडािशे ह ैर्िसे र्ापस नहीं लाया
िा सकता, बाहर लानी चार्हए’ ।
5.4.29 उच्चतम न्यायालय ने िीर्न के अर्धकार में मृत्यिुांड के अपधारण की मात्रा और िांड की अप्रर्तसांहरणीयता को ध्यान में
रखते हुए इस बात पर ठीक से िोर र्िया ह ैर्क :
िांडों के सांिभि में अनचु्छेि 14 और अनचु्छेि 21 से प्रकट होने र्ाले सांरक्षणों को कठोरतम सांभर् शब्िों में लागू र्कया
िाना ह ै । प्रत्यके मृत्यिुांड सांबांधी मामल ेमें यह अर्श्य मस्र्तष्क में रहना चार्हए र्क ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ की
सीमा, मृत्यिुांड की अांतर्निर्हत प्रकृर्त के कारण, अनचु्छेि 14 और अनचु्छेि 21 द्वारा सूर्चत की गई ह ै । बचन र्सांह
(ऊपर) के पश्चात् मृत्यिुांड सांर्धैार्नक न्याय र्नणियन के घेरे में आ गया ह ै । यह हमारे सांर्र्धान के अनचु्छेि 14 और
अनचु्छेि 21 में िर्शित रक्षोपायों के आधार पर ह ै।686
5.4.30 यह सच ह ै र्क 1980 में बचन र्सांह ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड इस बारे में अनचु्छेि 21 का अर्तिमण नहीं
करता ह ै।
5.4.31 न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
कल्पना के र्कसी भी र्र्स्तार द्वारा यह नहीं कहा िा सकता ह ैर्क िांड प्रर्िया सांर्हता की धारा 302 के अधीन मृत्युिांड या
तो स्र्त: या लटकाने के द्वारा उसके र्नष्पािन के कारण, अयकु्र्तयकु्त, िूर या असामान्य िांड का गठन करता ह ै । उसी
सांर्धैार्नक आधारभूत तत्र् के कारण, यह नहीं कहा िा सकता र्क सांर्र्धान के सांरचनाकतािओ ां ने हत्या के र्लए मृत्यिुांड पर
र्र्चार र्कया या इसके र्नष्पािन के पारम्पररक तरीके को अपमानिनक िांड के रूप में, िो सांर्र्धान की उद्दशे्र्यका के र्चांतन
के भीतर ‘व्यक्र्त की गररमा’ को िरू्षत करेगा, र्र्र्हत करने के र्लए र्र्चार र्कया । कारणों की तुलना पर, यह नहीं कहा िा
सकता र्क हत्या के अपराध के र्लए मृत्यिुांड सांर्र्धान की आधारी र्र्रचना का अर्तिमण करता ह ै।’
5.4.32 तथार्प उसके र्र्र्नश्चय के पश्चात् से 30 र्षि का समय और उस समय से पयािप्त रूप से पररर्र्तित र्शै्र्र्क और सांर्धैार्नक
पररदृश्य ऐसे कारक हैं, र्िन पर मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता के र्कसी पनुमूिल्याांकन पर र्र्चार र्कया िाना ह ै।
5.4.33 मृत्यिुांड के मनमाने रूप से और असमान रूप से लागू करने से सांबांर्धत र्चांता िरू करने के र्लए र्तिमान प्रणाली का सधुार
करन ेके र्लए र्र्कल्प सीर्मत हैं । एक तरफ, िसैा बचन र्सांह में ह ैऔर पश्चातर्ती मीठू बनाम पांिाब राज््य687 में अर्भर्नधािररत र्कया
685 (1981) 2 एससीसी 35 । 686 बररयार । 687 मीठू बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684 ।
120
गया ह,ै न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार को िांड िने ेर्ाली प्रर्िया से बाहर नहीं र्कया िा सकता । र्बना र्र्र्ेकार्धकार के िांड िने ेर्ाली प्रर्िया
अर्धक सांगत हो सकती ह ैर्कन्तु र्ह मामलों के बीच ससुांगत अांतर की उपेक्षा करन ेके र्लए समान रूप से मनमानी होगी । ऐसी प्रणाली
में यह सांभार्ना ह ैर्क िांड का र्िया िाना गांभीर रूप से अऋि ुहोगा और र्नश्र्चत रूप से न्यार्यक कृत्य नहीं रह िाएगा ।
5.4.34 तुलनात्मक अनभुर् उस दृष्र्टकोण के र्र्रुद्ध भी चेतार्नी ितेे हैं िो मानकीकरण और प्रर्गीकरण पर ध्यान कें र्ित करता ह ै।
इसका एक अनिुशेात्मक उिाहरण यूके ह ै। 1953 में, र्ब्रर्टश रायल कमीशन ने मृत्यिुांड की परीक्षा की और र्नष्कषि र्नकाला, ‘ऐसा
कोई सूत्र सांभर् नहीं ह ैिो उन पररस्र्थर्तयों की, िो हत्या के अपराध की गांभीरता पर प्रभार् डाल सकती ह,ै असांख्य र्कसमों के र्लए एक
यकु्र्तयकु्त कसौटी का उपबांध करेगा ।’688 रायल कमीशन हत्या की र्कसी श्रेणी या मात्रा के र्कसी रूप को अांगीकार र्कए िाने के
र्र्रुद्ध र्र्शेष रूप से अपराध के नरै्तक प्रभार् की र्र्स्तृत र्र्र्र्धता को िखेते हुए, हत्या के ऐसे प्रर्गि का, िो र्नकृष्टतम से र्नकृष्टतम
का गठन करेगा, अर्ग्रम रूप से अर्धारण करना लगभग असांभर् बनाते हुए अपनी र्सफाररश में एकमत था । यह ग्रेट र्ब्रटेन में मृत्यिुांड
करन ेके र्लए आयोग की र्सफाररश का आधार था । 1957 में यूके सरकार ने होमीसाइड ऐक्ट परु:स्थार्पत र्कया र्िसन ेहत्या के
र्र्र्भन्न प्रर्गों के बीच र्र्भािन करन ेका प्रयास र्कया और मृत्यिुांड को हत्या के छह र्गों तक र्नबंर्धत कर र्िया ।689 इनके अांतगित
चोरी के अनिुम में या सहायता में की गई या बांिकू चलाकर या र्र्स्फोट काररत करके, र्र्रोध करन ेके िम या उसके प्रयोिन के र्लए,
र्र्र्धपूणि र्गरफ्तारी से बचने या उसका र्नर्ारण करने या र्र्र्धपूणि अर्भरक्षा से भाग र्नकलना प्रभार्ी बनाने या उसमें सहायता करने में
की गई हत्या; र्कसी पुर्लस अर्धकारी की उसके कतिव्य के र्नष्पािन में या उसकी सहायता करन ेर्ाले र्कसी व्यक्र्त की या र्कसी कैिी
द्वारा कारागार के अर्धकारी की उसके कतिव्यों के र्नष्पािन में या उसकी सहायता करन ेर्ाले र्कसी व्यक्र्त की हत्या, सम्र्मर्लत ह ै ।
इसके साथ मृत्यिुांड िसूरी पृथक् हत्या करन ेर्ाले र्कसी व्यक्र्त पर अर्धरोर्पत र्कया िा सकता था ।690 अर्धर्नयम ने ‘घटते हुए
उत्तरिार्यत्र्’ की आांर्शक प्रर्तरक्षा और र्कसी आत्मघाती समझौते के िम में हत्या को भी पनु: स्थार्पत र्कया ।691
5.4.35 इस ऐक्ट की एक बड़ी आलोचना (अर्धक र्सद्धाांतपूणि और अपर्ािात्मक िांड िने ेका प्रारांभ करने के प्रयास के बार्िूि र्ह
बेतरतीब आधार था र्िस पर मृत्य ुिी िाएगी) - उिाहरण के र्लए र्र्ष द्वारा पूर्ि र्र्चार करके र्निियतापूर्िक की गई हत्या मृत्यिुांड का
भाग नहीं होगी र्कन्तु िघुिटनार्श र्कसी चोरी के िम में र्कसी व्यक्र्त की हत्या मृत्यिुांड से िांडनीय होगी । समान रूप से यर्ि कोई
व्यक्र्त िसूरे व्यक्र्त को कुल्हाड़ी का उपयोग करके मारता ह ैतो र्ह मृत्य ुसे िांडनीय हत्या नहीं होगी ; र्कन्तु अन्य चीिों के समान होने
पर यर्ि शस्त्र बांिकू था, तो र्ह होगी ।692 इसन े र्र्र्ध को नैर्तक या र्सद्धाांतपूणि आधार से र्ांर्चत कर र्िया और र्ह व्यर्हार में
कायिकरणीय नहीं रह गई ।
5.4.36 इसन े1965 के मडिर (एबोर्लशन आफ डेथ पेनल्टी) ऐक्ट का मागि प्रशस्त र्कया, र्िसन ेहत्या के र्लए मृत्यिुांड पर 5
र्षि का अर्धस्थगन अर्धरोर्पत र्कया, र्िसकी र्िसांबर, 1969 में र्ब्रटेन में हत्या के र्लए मृत्यिुांड को औपचाररक रूप से समाप्त करने
688 मतृ्युिांड पर रायल कमीशन की ररपोटि, 1949-1953, सीएमडी 8932, 595 पर, मैकगाउथा र्सिस कैर्लफोर्निया क्र्ोट र्कया, 402 यू.एस. 183,
205 (1971) । 689 ग्राहम ह्यूि , र्ि इांग्र्लश होमीसाइड ऐक्ट आफ 1957 । मृत्युिांड के मामले और हत्या तथा मानर्हत्या की र्र्र्ध में र्कए गए र्र्र्भन्न सधुार, 49 (6)
अपराधी र्र्र्ध और िांडशास्त्र के िरनल 521 (1959)
http://scholarlycommonslaw.northwestern.edu/cgi/viewcontentogl?article=4773&context=jcic
पर उपलब्ध ह,ै 25.08.2015 को िखेा गया । 690 र्ब्रटेन में लटकाने पर समाप्र्त,http://www.capitalpunishmentuk.org/abolish.thml पर उपलब्ध, 25.08.2015 को
िखेा गया । 691 ला कमीशन, कां सल्टेशन पेपर 177, ए न्यू होमीसाइड ऐक्ट फार इांग्लैंड एांड रे्ल्स,
http://www.law.upenn.edu/of/faculty/ofinkets/workingpapers/Report%20for%British%law20
commission%20op177.pdf, पृष्ठ 18 पर उपलब्ध ह,ै 25.08.2015 को िखेा गया ।
692 गेरनाल्ड गार्डिनर क्यूसी ‘र्िर्मनल ला कैर्पटल पर्नशमेंट इन र्ब्रटेन’, 45 एबीए, िरनल 259, 260-261(माचि 1959) ।
121
के र्लए पनु: पषु्र्ट की गई । मृत्यिुांड को यथापूर्ि करन ेके र्लए 1994 में एक और मतिान को हाउस आफ कामन्श ने 1994 में
र्र्फल र्कया गया था । तत्पश्चात् मृत्यिुांड 1971 में रायल डाकयाडि में आग लगाने के र्लए और 1998 में राििोह और र्हांसा के
साथ िलिस्यतुा के र्लए समाप्त र्कया गया था और इस प्रकार यह सभी अपराधों के र्लए समाप्त हो गया ।693
5.4.37 भारत का अपना न्याय शास्त्र और अन्य िशेों के अनभुर् मृत्यिुांड के मनमानेपन के उत्तर के रूप में मानकीकरण और
प्रर्गीकरण के र्र्रुद्ध चेतार्नी ितेे हैं ।
5.4.38 अन्य र्र्कल्प ऐसे अन्य मागििशिक र्सद्धाांतों को बनाना ह ैिो कम कठोर हों और लचीलेपन की अनजु्ञा ितेे हों र्कन्त ुमृत्यिुांड
के लागू करन ेके के्षत्र को सीर्मत न करते हों । र्कन्तु यह र्नश्र्चत रूप से र्ह मागि ह ैिो बचन र्सांह द्वारा र्लया गया ह ै। उस मामल ेमें
न्यायालय ने एक बहुत ही सांकीणि अपर्ािात्मक प्रर्गि को बनाना चाहा था । तथार्प उिाहरण की अर्भर्ृर्द्ध के साथ बचन र्सांह
मागिर्निशेक तत्र् मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्लए र्कसी अथिपूणि र्नबंधन से अर्धक र्र्र्ध सांगत हो गए हैं । तुलनीय सांिभों में िब
मृत्यिुांड िने ेमें मनमानेपन और असमानता का सामना होता ह ैतो अन्य िशे मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी र्िशा में बढ गए हैं । िर्क्षण
अफ्रीका में उिाहरण के र्लए, मृत्यिुांड न्यार्यक रूप से अांत तक आ गया ह ै। मक्र्ानयाने694 में िर्क्षण अफ्रीका के सांर्धैार्नक न्यायालय
ने मृत्यिुांड की सांर्धैार्नक र्र्र्धमानता को, िांड में अांतर्निर्हत मनमानेपन और असमानता पर भरोसा करते हुए, र्र्खांर्डत कर र्िया और
अर्भर्नधािररत र्कया र्क :
यह नहीं कहा िा सकता र्क गरीबी, िार्त और अर्सर मृत्यिुांड सांबांधी मामलों के पररणाम में, और अांर्तम र्र्र्नश्चय में र्क
र्कसको िीर्र्त रहना चार्हए और र्कसको मरना चार्हए, भूर्मका र्नभाते हैं । कभी-कभी यह कहा िाता ह ैर्क न्यायाधीशों
द्वारा, िहाां तक सांभर् हो यह समझा िाता ह ैऔर उस ेध्यान में रखा िाता ह ैर्कन्तु स्र्यां में यह मनमानेपन की र्शकायत का
कोई उत्तर नहीं ह ै; िसूरी तरफ यह मनमानेपन का एक अर्तररक्त कारक प्रारांभ कर सकता ह ैर्िसे भी ध्यान में रखना होगा ।
कुछ र्कन्तु सभी अर्भयकु्त नहीं िोषमकु्त हो सकते हैं क्योंर्क ऐसी छूटें िी िाती हैं और िसूरे, िो र्सद्धिोष ठहराए िाते हैं,
र्कन्तु सभी नहीं, इसी कारण से मृत्यिुांड से बच सकते हैं ।695
5.4.39 न्यायालय की स्र्यां की अर्भस्र्ीकृर्त को ध्यान में रखते हुए र्क मृत्यिुांड प्रणाली मनमान ेढांग से कायि करती ह ै। मृत्यिुांड लागू
करन ेकी चालू पद्धर्त को समाप्त होना ह ै। तुलनात्मक अनभुर् हमें बताता ह ैर्क न्यायमूर्ति भगर्ती द्वारा बचन र्सांह में र्र्र्शष्ट रूप से
प्रकट की गई और उच्चतम न्यायालय के हाल के र्नणियों में प्रर्तध्र्र्नत र्चांताओां के, मृत्यिुांड के सार्धत्रों में सुधार करन ेके प्रयासों के
बार्िूि, बने रहन ेकी सांभार्ना ह ै।
693 र्ब्रटेन में लटकाने पर समाप्र्त, http://www.capitalpunishmentuk.org/timeline.html पर उपलब्ध ह ै। 694 राज््य बनाम मकर्ान्येने और अन्य, िर्क्षण अफ्रीका का सांर्ैधार्नक न्यायालय, सीसीटी/3/94, िनू 6, 1995 । 695राज््य बनाम मकर्ान्येने और अन्य, िर्क्षण अफ्रीका का सांर्ैधार्नक न्यायालय, सीसीटी/3/94, िनू 6, 1995, पैरा 51 पर ।
122
अध्याय 6
क्षमा करने सबंंिी शक्वतया ंऔर मृत्युदडं का वनष्पादन करने से संबंवित सम्यक् िविया वववाद्यक
क. िस्तावना
6.1 उच्चतम न्यायालय ने शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य696 (‘खाि’े) को भी मृत्य ुसांबांधी मामलों में भारत के सांर्र्धान
के अनचु्छेि 72 और अनचु्छेि 161 के अधीन कायिपार्लका द्वारा क्षमा करन ेसांबांधी शक्र्तयों के प्रशासन के बारे में आयोग को उसके
र्र्चारण के र्लए र्नर्ििष्ट र्कया । यह अध्याय र्कसी मृत्यिुांड का लघुकरण करन ेके र्लए कायिपार्लका की शक्र्त की प्रकृर्त, उसके
प्रयोिन और के्षत्र का र्णिन करता ह ै। यह अध्याय न्यायालयों के उन र्र्र्नश्चयों की, िहाां इन शक्र्तयों के प्रयोग के पररणाम को ररट
कायिर्ार्हयों में चुनौती िी गई ह,ै परीक्षा करन ेके अलार्ा व्यक्र्तगत मामलों में िया सांबांधी अर्धकाररता के लागू होन ेका भी र्र्श्लेषण
करता ह ै।
ख. क्षमा करने संबंिी शक्वतयों की िकृवत, ियोजन और के्षत्र
6.2.1 राज््य और कें िीय सरकारों के पास मृत्यिुांडों को उनकी अांर्तम न्यार्यक पषु्र्ट के पश्चात् लघुकृत करने की शक्र्तयाां हैं । यह
शक्र्त, न्यार्यक शक्र्त से असमान रूप में व्यापक र्र्स्तार की ह ैऔर सीमाबद्ध नहीं हैं र्सर्ाय इसके की इसका प्रयोग अर्श्य ही
सद्भार्पूणि होना चार्हए । बहुधा र्र्र्धक न्यायर्नणियन से अज्ञात और असांगत र्र्र्ाद्यक--नरै्तकता, आचार नीर्त, सार्ििर्नक भलाई
और नीर्त सांबांधी धारणाएां-- क्षमा सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग से स्र्ाभार्र्क रूप से सांबद्ध हैं । य ेशक्र्तयाां र्र्द्यमान हैं क्योंर्क समुर्चत
मामलों में र्र्र्ध की कठोर अपेक्षाओां को, सही रूप से न्याय पूणि पररणाम तक उसके र्र्स्तृतम अथि में पहुांचने के र्लए, कम करन ेऔर
उनसे र्र्रत होन ेकी आर्श्यकता होती ह ै। र्कसी मृत्यिुांड को कम करने के र्लए कायिपार्लका की शक्र्तयाां, िसूरे शब्िों में र्र्र्ध के
कठोरत: लागू करन ेमें कर्मयों का सधुार करन ेके र्लए, र्र्द्यमान होती हैं । अत: मृत्यिुांड को बनाए रखन ेर्ाली अर्धकाररताओां में िया
सांबांधी शक्र्तयों का प्रयोग उस पर र्नभिर मानर् र्िांिर्गयों को िखेते हुए अत्यर्धक महत्र् का ह ै। प्रत्यके नागररक को र्कसी मृत्यिुांड को
लघुकृत करन ेके र्लए सरकार को यार्चका भेिन ेका अर्धकार ह ै। क्योंर्क िीर्न लेने की राज््य की शक्र्त िनता से ही उत्पन्न होती ह ै
और फाांर्सयाां उनके नाम में ही लगायी िाती हैं ।
6.2.2 र्कसी अपराधी को या तो क्षमा करन ेकी या र्िए गए िांड को कम करन ेकी या उसमें पररर्तिन करने की क्षमा सांबांधी
शक्र्तयाां697 समरूप शक्र्तयों में उद्गम रखती हैं िो र्क अर्र्स्मरणीय समय से प्रभुतर् सांपन्न में र्नर्हत की गई हैं । तथार्प आि उनका
प्रयोग, आधरु्नक प्रिातांत्र राज््यों में, िसैा र्ह प्राचीन काल में था, िया का कोई र्निी कायि नहीं ह ै र्कन्तु र्ह गांभीर सांर्धैार्नक
उत्तरिार्यत्र् ह ै।698
6.2.3 भारत में क्षमा सांबांधी शक्र्तयाां सांर्र्धान में प्रर्तष्ठार्पत हैं । अनचु्छेि 72 इन शक्र्तयों को राष्ट्रपर्त में र्नर्हत करता ह ैऔर
अनचु्छेि 161 समरूप शक्र्तयों को राज््यों के राज््यपाल में र्नर्हत करता ह ै:
अनचु्छेि 72. क्षमता आर्ि की और कुछ मामलों में िांडािशे के र्नलांबन, पररहार या लघुकरण की राष्ट्रपर्त की शक्र्त -
(1) राष्ट्रपर्त को, र्कसी अपराध के र्लए र्सद्धिोष ठहराए गए र्कसी व्यक्र्त के िांड को क्षमा, उसका प्रर्र्लांबन, र्र्राम या
पररहार करन ेकी अथर्ा िांडािशे के र्नलांबन, पररहार या लघुकरण की—
696 शांकर र्कशनरार् खाि ेबनाम महाराष्ट्र राज््य, (2013) 5 एससीसी 546, पैरा 147-150 पर । 697 क्षमा, प्रर्र्लांबन, र्र्राम, आर्ि के अथि के र्लए िरे्खए राज््य (राष्ट्रीय रािधानी राज््यके्षत्र, र्िल्ली सरकार) बनाम पे्रम राि, (2003) 7 एससीसी 121,
पैरा 10 पर ।
698 इपरू सधुाकर बनाम आांध्र प्रिेश सरकार, (2006) 8 एससीसी 161, पैरा 16, 17 पर ।
123
(क) उन सभी मामलों में, र्िनमें िांड या िांडािशे सेना न्यायालय ने र्िया ह,ै
(ख) उन सभी मामलों में, र्िनमें िांड या िांडािशे ऐसे र्र्षय सांबांधी र्कसी र्र्र्ध के र्र्रुद्ध अपराध के र्लए र्िया
गया ह ैर्िस र्र्षय तक सांघ की कायिपार्लका शक्र्त का र्र्स्तार ह,ै
(ग) उन सभी मामलों में, र्िनमें िांडािशे, मृत्य ुिांडािशे ह,ै
शक्र्त होगी ।
(2) खांड (1) के उपखांड (क) की कोई बात सांघ के सशस्त्र बलों के र्कसी आर्फसर की सेना न्यायालय द्वारा पाररत
िांडािशे के र्नलांबन, पररहार या लघुकरण की र्र्र्ध द्वारा प्रित्त शक्र्त पर प्रभार् नहीं डालेगी ।
(3) खांड (1) के उपखांड (ग) की कोई बात तत्सयम प्रर्ृत्त र्कसी र्र्र्ध के अधीन र्कसी राज््य के राज््यपाल द्वारा
प्रयोक्तव्य मृत्य ुिांडािशे के र्नलांबन, पररहार या लघुकरण की शक्र्त पर प्रभार् नहीं डालेगी ।
6.2.4 अनचु्छेि 161 कहता ह ै:
अनचु्छेि 161. क्षमा आर्ि की और कुछ मामलों में िांडािशे के र्नलांबन, पररहार या लघुकरण की राज््यपाल की शक्र्त-
र्कसी राज््य के राज््यपाल को उस र्र्षय सांबांधी, र्िस र्र्षय पर उस राज््य की कायिपार्लका शक्र्त का र्र्स्तार ह,ै र्कसी
र्र्र्ध के र्र्रुद्ध र्कसी अपराध के र्लए र्सद्धिोष ठहराए गए र्कसी व्यक्र्त के िांड को क्षमा, उसका प्रर्र्लांबन, र्र्राम या
पररहार करन ेकी अथर्ा िांडािशे के र्नलांबन, पररहार या लघुकरण की शक्र्त होगी ।
6.2.5 इन शक्र्तयों में से कोई भी पि के धारक के र्लए व्यक्र्तगत नहीं हैं र्कन्त ुउसका प्रयोग (िमश: अनचु्छेि 74699, और
अनचु्छेि 163700 के अधीन) मांर्त्र पररषि ्की सहायता और सलाह पर र्कया िाना होगा ।
699 अनुच्छेि 74. (1) राष्ट्रपर्त को सहायता और सलाह िनेे के र्लए एक मांर्त्र-पररषि ्होगी र्िसका प्रधान, प्रधानमांत्री होगा और राष्ट्रपर्त अपने कृत्यों का
प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कायि करेगा :
परांत ुराष्ट्रपर्त मांर्त्र-पररषि ्से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्र्िचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और राष्ट्रपर्त ऐसे पुनर्र्िचार के पश्चात ्िी गई सलाह
के अनुसार कायि करेगा ।
(2) इस प्रश्न की र्कसी न्यायालय में िाांच नहीं की िाएगी र्क क्या मांर्त्रयों ने राष्ट्रपर्त को कोई सलाह िी, और यर्ि िी तो क्या िी ।
700 अनुच्छेि 163 . (1) र्िन बातों में इस सांर्र्धान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेर्क्षत ह ैर्क र्ह अपने कृत्यों या उनमें से र्कसी को अपने
र्र्रे्कानुसार करे उन बातों को छोड़कर राज््यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह िनेे के र्लए एक मर्त्र-पररषि ्होगी र्िसका प्रधान,
मखु्यमांत्री होगा ।
(2) यर्ि कोई प्रश्न उठता ह ै र्क कोई र्र्षय ऐसा ह ैया नहीं र्िसके सांबांध में इस सांर्र्धान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेर्क्षत ह ै र्क र्ह अपने
र्र्रे्कानसुार कायि करे तो राज््यपाल का अपने र्र्रे्कानुसार र्कया गया र्र्र्नश्चय अांर्तम होगा और राज््यपाल द्वारा की गई र्कसी बात की र्र्र्धमान्यता इस आधार
पर प्रश्नगत नहीं की िाएगी र्क उसे अपने र्र्रे्कानुसार कायि करना चार्हए था या नहीं ।
(3) इस प्रश्न की र्कसी न्यायालय में िाांच नहीं की िाएगी र्क क्या मांर्त्रयों ने राज््यपाल को कोई सलाह िी, और यर्ि िी तो क्या िी ।
124
6.2.6 क्षमा सांबांधी शक्र्तयाां सामान्यता र्कसी अपराधी की न्यार्यक र्सद्धिोर्षता और उस ेिांड र्िए िाने के पश्चात् भूर्मका र्नभाती हैं
। इन क्षमा सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग में राष्ट्रपर्त और राज््यपाल मामले के अर्भलेख की सांर्ीक्षा करने और िोर्षता या िांड के र्बांि ुपर
न्यार्यक अर्धमत से र्भन्न राय रखन ेके र्लए सशक्त ह ै। उस समय भी िब र्े इस प्रकार र्भन्न राय नहीं रखते हैं, र्े उन कारकों को ध्यान
में रखते हुए, िो न्यार्यक दृष्र्ट से बाहर और परे हैं, मामल ेमें कर्ठनाई ठीक करन,े गलती सधुारने और पूणि न्याय करने के र्लए अपनी
क्षमा सांबांधी शक्र्तयों का प्रयोग करन ेके र्लए सशक्त हैं । र्े नए साक्ष्य को भी, िो न्यायालयों के समक्ष नहीं रखा था, िखेन ेके र्लए
सशक्त हैं । केहर र्सांह बनाम भारत सांघ (‘केहर र्सांह’)701 में सांर्धैार्नक न्यायपीठ (पाांच न्यायाधीश) ने र्नम्नर्लर्खत अर्भर्नधािररत
र्कया था :
7.............र्कसी सभ्य समाि के र्लए उसके सिस्यों के िीर्न और व्यक्र्तगत स्र्तांत्रता से महत्र्पूणि कोई गुण नहीं हो
सकता । यह सांर्र्धान के अनचु्छेि 21 को न्यायालयों द्वारा िी गई सर्ोच्च स्र्थर्त से स्पष्ट ह ै । य ेिो गुण सभी अन्य
रािनरै्तक और सामार्िक व्यर्स्था के गुणों के ऊपर मूल प्रभुता का उपभोग करते हैं और पररणामस्र्रूप र्र्धान मांडल,
कायिपार्लका और न्यायपार्लका उनके प्रर्त िरै्नक र्र्द्यमानता के अन्य गुणों से अर्धक सांर्ेिनग्राही ह ै। राज््य के कायि द्वारा
व्यक्र्तगत स्र्तांत्रता का र्ांचन और र्ांचन की धमकी को अत्यर्धक सभ्य समािों में गांभीर रूप से र्लया िाता ह ैऔर उनके
र्लए या तो स्पष्ट सांर्धैार्नक उपबांध के अधीन या र्र्धायी अर्धर्नयर्मर्त के माध्यम से अर्लांब लेने के र्लए न्यायपार्लका
के अांग का उपबांध र्कया गया ह ै । र्कन्तु अत्यर्धक प्रर्शर्क्षत मस्र्तष्क में भी, ऐसे मस्र्तष्क में िो अनभुर्ों की खेती से
सज््र्ित ह,ै मानर् र्नणिय की भ्रमशीलता से इांकार नहीं र्कया िा सकता, अत: यह समरु्चत समझा गया ह ैर्क िीर्न और
व्यक्र्तगत सर्तांत्रता के मामल ेमें, िीर्न के धमकी भरे र्ांचन या व्यक्र्तगत स्र्तांत्रता के धमकी भरे या लगातार र्ांचन की
र्र्र्धमान्यता की सांर्ीक्षा करन े के र्लए आगे र्कसी उच्च प्रार्धकारी को शक्र्त सौंप कर सांरक्षण का र्र्सतार र्कया िाना
चार्हए । इस प्रकार सौंपी गई शक्र्त िनता से सांबांर्धत और राज््य के सर्ोच्च पिार्धकारी में र्र्श्र्ास से रखी गई शक्र्त
ह ै।..............................
...........10. क्षमा करन ेकी शक्र्त सांर्धैार्नक स्कीम का भाग ह ैऔर हमें इस बारे में, अपन ेमस्र्तष्क में कोई सांिहे नहीं ह ै
र्क इसको भारतीय गणतांत्र में इसी प्रकार माना िाना चार्हए । इसे िनता द्वारा सांर्र्धान के माध्यम से राज््य के प्रमुख में
र्र्श्र्ासपूर्िक रखा गया ह,ै िो सर्ोच्च स्र्थर्त का उपभोग करता ह ै। यह बडे़ महत्र् का सांर्धैार्नक उत्तरिार्यत्र् ह ैर्िसका
िब अर्सर आए, सांिभि द्वारा अनधु्यात र्र्र्ेकानसुार प्रयोग र्कया िाना ह ै । हमारा र्र्चार ह ै र्क राष्ट्रपर्त सांर्र्धान के
अनचु्छेि 72 द्वारा उसमें र्नर्हत शक्र्त का आपरार्धक मामल ेके अर्भलेख पर साक्ष्य की सांर्ीक्षा करन ेऔर उससे, िो
न्यायालय द्वारा अर्भयकु्त की िोर्षता के सांबांध में और उस पर अर्धरोर्पत िांड के सांबांध में अर्भर्लर्खत र्कया गया ह,ै र्भन्न
र्नष्कषि पर आन ेके र्लए स्र्तांत्र ह ै। ऐसा करन ेमें राष्ट्रपर्त न्यार्यक अर्भलेख का न तो सांशोधन करता ह,ै न उसका उपाांतरण
करता ह ैऔर न उसे अर्धष्र्ठत करता ह ै। यह न्यार्यक अर्भलेख अक्षत और बाधा रर्हत रहता ह ै । राष्ट्रपर्त पूणिरूप से
र्भन्न सतह पर उससे, र्िसमें न्यायालय ने कायि र्कया था, कायि करता ह ै। र्ह सांर्धैार्नक शक्र्त के अधीन, र्िसकी प्रकृर्त
न्यार्यक शक्र्त से पूणिरूप से र्भन्न ह ैऔर र्िसे उसका र्र्सतार नहीं माना िा सकता, कायि करता ह ैऔर ऐसा, इस बात के
होते हुए भी ह ैर्क राष्ट्रपतीय कायि का व्यर्हाररक प्रभार् अपराधी से िोष के कलांक को हटाना या उस पर अर्धरोर्पत िांड से
माफी िनेा ह ै।
.................... यह स्पष्ट ह ैर्क अनचु्छेि 72 के अधीन शक्र्त राष्ट्रपर्त को आपरार्धक मामले के साक्ष्य के अर्भलेख की
परीक्षा करन े के र्लए और स्र्यां के र्लए यह अर्धारणा करन े के र्लए र्क क्या मामला उस शक्र्त के भीतर आन ेर्ाले
अनतुोष को प्रिान र्कए िाने के योग्य ह,ै हकिार बनाती ह ै। राष्ट्रपर्त इस बात के होते हुए भी र्क इस न्यायालय द्वारा
701 (1989) 1 एससीसी 204 ।
125
उसको र्िए गए र्र्चारण की शक्र्त द्वारा न्यार्यक रूप से र्नष्कषि र्नकाला गया ह,ै मामल ेके गुणागुण पर र्र्चार करने का
हकिार ह ै।
........16...........तथार्प कोई र्नश्र्चत स्पष्ट रूप से पररभार्षत और पयािप्त रूप से रास्ता बनाए गए मागिर्निशेक तत्र्ों को
अर्धकर्थत करना सांभर् नहीं हो सकता ह ैक्योंर्क हमको यह अर्श्य याि रखना चार्हए र्क अनचु्छेि 72 के अधीन शक्र्त
र्र्स्तृतम र्र्स्तार की ह,ै िो मामला िर मामला र्र्भेिकारी तथ्यों और स्र्थर्तयों के साथ मामल ेकी असांख्य र्कस्मों और
प्रर्गों को अनधु्यात कर सकती ह,ै र्िनमें गुणागुण और राज््य के कारणों की र्र्द्यमान अर्सर और र्नकलन ेर्ाल ेसमय द्वारा
गहन रूप से सहायता की िा सकती ह ैऔर यह बहुत बडे़ महत्र् की बात ह ै र्क कृत्य स्र्यां सांर्धैार्नक स्कीम में ऊां ची
प्रास्र्थर्त का उपभोग करता ह ै।702
6.2.7 इस प्रकार यह िखेा िाएगा र्क क्षमा सांबांधी शक्र्तयाां, िबर्क बहुत से र्र्चारणों और अपररर्तिनशील अर्सरों के र्लए
प्रयोिव्य होते हुए , न्यार्यक गलती या न्याय की हत्या की सांभार्ना के र्र्रुद्ध अांर्तम रक्षोपाय के रूप में भी कृत्य करती हैं । यह इस
शक्र्त का उपभोग करन ेर्ाले पर भारी उत्तरिार्यत्र् डालता ह ैऔर मस्र्तष्क का पूणि उपयोिन, न्यार्यक अर्भलेखों की सांर्ीक्षा और
क्षमा सांबांधी यार्चका का न्यायर्नणियन करन ेमें र्र्स्तृत प्रकार की िाांच, र्र्शेष रूप से न्यार्यक रूप से पषु्र्ट र्कए गए मृत्यिुांडािशे के
अधीन कैिी से, िो फाांसी र्िए िाने के र्कनारे पर ह,ै करना आर्श्यक बनाता ह ै।
6.2.8 भारत सरकार के गृह मांत्रालय ने मृत्यिुांडािशे के कैर्ियों द्वारा प्रस्तुत की गई िया यार्चकाओां के सांबांध में कारिर्ाई करन ेके र्लए
राज््य सरकारों और कारागार प्रार्धकाररयों का मागििशिन करन ेके र्लए ‘मृत्यिुांडािशे सांबांधी मामलों में िया के र्लए यार्चका के सांबांध में
प्रर्िया’ का प्रारूपण र्कया ह ै। इन र्नयमों को उच्चतम न्यायालय द्वारा शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ703 (‘शत्रधु्न चौहान’) में सांके्षप
में र्िया गया था :
98. गृह मांत्रालय,भारत सरकार के पास मृत्यिुांडािशे सांबांधी मामलों में िया के र्लए यार्चका के सांबांध में ब्यौरे र्ार प्रर्िया
ह ै।
98.1 उक्त प्रर्िया के अनसुार र्नयम 1 मृत्यिुांड के अधीन र्सद्धिोषी को उस र्िन से 7 र्िन के भीतर और उस र्िन का
अपर्ििन करके, र्िसको िेल का अधीक्षक उच्चतम न्यायालय द्वारा उसकी अपील खाररि र्कए िान ेकी या उच्चतम
न्यायालय को अपील के र्लए की गई र्र्शेष इिाित के र्लए उसका आर्ेिन खाररि र्कए िाने की सूचना ितेा ह,ै िया के
र्लए यार्चका प्रस्तुत करन ेके र्लए समथि बनाता ह ै।
98.2 र्नयम 2 यार्चकाओां के प्रस्तुत र्कए िाने के र्लए प्रर्िया र्र्र्हत करता ह ै। इस र्नयम के अनसुार ऐसी यार्चकाएां
राज््यों के मामल ेमें प्रथमत: राज््य के राज््यपाल को और तत्पश्चात् भारत के राष्ट्रपर्त को सांबोर्धत की िाएांगी और सांघ
राज््यके्षत्रों की िशा में सीधे भारत के राष्ट्रपर्त को सांबोर्धत की िाएांगी । िसेै ही िया यार्चका प्राप्त होती ह,ै िांडािशे का
र्नष्पािन सभी मामलों में उस पर आिशेों की प्राप्र्त लांर्बत होन ेतक स्थर्गत कर र्िया िाएगा ।
98.3 र्नयम 3 कहता ह ैर्क यार्चका प्रथमत:, राज््यों की िशा में, सांबांर्धत राज््य को र्र्चारण के र्लए और राज््यपाल के
आिशेों के र्लए भेिी िाएगी । यर्ि र्र्चारण के पश्चात् उसे नामांिूर कर र्िया िाता ह ैतो र्ह भारत सरकार के गृह मांत्रालय
के सर्चर् को अगे्रर्षत की िाएगी । यर्ि यह र्र्र्नश्चय र्कया िाता ह ैर्क मृत्यिुांड का लघुकरण र्कया िाए, तो राष्ट्रपर्त को
सांबोर्धत यार्चका रोक ली िाएगी और उस आशय की सूचना यार्चककताि को भेिी िाएगी ।
702 केहर र्सांह बनाम भारत सांघ, (1989) 1 एससीसी 204, पैरा 7, 10 और 16 पर । 703 (2014) 3 एससीसी 1 ।
126
98.4 र्नयम 5 कथन करता ह ैर्क उन सभी मामलों में, र्िनमें मृत्यिुांड के अधीन र्कसी र्सद्धिोषी की िया यार्चका को,
यथास्र्थर्त, भारत सरकार के गृह मांत्रालय के सर्चर्, राज््यपाल/ मखु्य आयुक्त/प्रशासक या सांबांर्धत राज््य सरकार को
भेिा िाना ह,ै र्हाां र्ह ऐसी यार्चका को यथासांभर्शीघ्रता से मामल ेके अर्भलेखों और यार्चका में र्िए गए आधारों में से
र्कसी के सांबांध में अपन ेसांपे्रक्षणों के साथ अगे्रर्षत करेगा ।
98.5 र्नयम 6 आिशे ितेा ह ैर्क राष्ट्रपर्त के आिशेों की प्राप्र्त पर एक अर्भस्र्ीकृर्त तुरांत र्र्र्हत रीर्त से भारत सरकार
के गृह मांत्रालय के सर्चर् को भेिी िाएगी । असम तथा अांडमान और र्नकोबार द्वीप समूहों की िशा में सभी आिशे तार द्वारा
सांसूर्चत र्कए िाएांगे और उनकी प्राप्र्त की अर्भस्र्ीकृर्त भी तार द्वारा भेिी िाएगी । अन्य राज््यों और सांघ राज््यके्षत्रों की
िशा में, यर्ि यार्चका नामांिूर कर िी िाती ह,ै तो आिशे एक्सप्रेस पत्र द्वारा सांसूर्चत र्कए िाएांगे और उनकी प्राप्र्त की
अर्भस्र्ीकृर्त एक्सप्रेस पत्र द्वारा भेिी िाएगी । मृत्यिुांडािशे को लघुकृत करन ेर्ाले आिशे र्िल्ली की िशा में एक्सप्रेस पत्रों
द्वारा भेिे िाएांगे और सभी अन्य मामलों में तार द्वारा सांसूर्चत र्कए िाएांगे और उनकी प्राप्र्त की अर्भस्र्ीकृर्त, यथास्र्थर्त,
एक्सप्रेस पत्र या तार द्वारा भेिी िाएगी ।
98.6 र्नयम 8(क) र्सद्धिोषी को समथि बनाता ह ैर्क यर्ि पररस्र्थर्तयों में कोई पररर्तिन होता ह ैया कोई नई सामग्री
उसकी पूर्िर्ती िया यार्चका के नामांिूर र्कए िाने के सांबांध में उपलबध होती ह,ै तो र्ह राष्ट्रपर्त को पूर्िर्ती आिेश पर
पनुर्र्िचार करन ेके र्लए नया आर्ेिन करन ेके र्लए स्र्तांत्र ह ै।
99 मृत्यिुांड के अधीन र्सद्धिोर्षयों के र्लए या उनकी ओर से िया यार्चकाओां के सांबांध में िेल के अधीक्षकों के कतिव्यों
से सांबांर्धत र्र्र्नर्ििष्ट अनिुशे िारी र्कए गए हैं ।
99.1 र्नयम 1 आिशे ितेा ह ैर्क उच्च न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड की पषु्र्ट र्कए िाने के पररणामस्र्रूप फाांसी के र्ारांट की
प्राप्र्त पर तुरांत िेल अधीक्षक सांबांर्धत र्सद्धिोषी को सूर्चत करेगा र्क यर्ि र्ह उच्चतम न्यायालय को अपील करना चाहता
ह ैया भारत के सांर्र्धान के ससुांगत उपबांधों में से र्कसी के अधीन उच्चतम न्यायालय को अपील के र्लए र्र्शेष इिाित के
र्लए आर्िने िनेा चाहता ह,ै तो उस ेऐसा उच्चतम न्यायालय के र्नयमों में र्र्र्हत अर्र्ध के भीतर करना चार्हए ।
99.2 र्नयम 2 यह स्पष्ट करता ह ैर्क र्सद्धिोषी द्वारा या उसकी ओर से फाइल की गई अपील या अपील करन ेकी र्र्शेष
इिाित के र्लए आर्ेिन के उच्चतम न्यायालय द्वारा खाररि कर र्िए िाने की सूचना की प्राप्र्त पर, यर्ि सांबांर्धत र्सद्धिोषी
ने पहल ेही िया के र्लए कोई यार्चका नहीं भेिी ह,ै तो िेल अधीक्षक तुरांत उस ेसूर्चत करेगा र्क यर्ि र्ह िया के र्लए
यार्चका भेिन ेकी इच्छा रखता ह ैतो उस यार्चका को ऐसी सूचना प्राप्र्त की तारीख से 7 र्िनों के भीतर प्रस्तुत र्कया िाना
चार्हए ।
99.3 र्नयम 3 कहता ह ैर्क यर्ि र्सद्धिोषी र्नयम 2 द्वारा र्र्र्हत 7 र्िन की अर्र्ध के भीतर कोई यार्चका प्रस्तुत करता
ह ैतो र्ह राज््यों की िशा में, प्रथमत: राज््य के राज््यपाल को और तत्पश्चात् भारत के राष्ट्रपर्त को और सांघ राज््यके्षत्र की
िशा में भारत के राष्ट्रपर्त को सांबोर्धत की िानी चार्हए । िेल का अधीक्षक तत्काल उस ेसांबांर्धत र्र्भाग में राज््य के सर्चर्
को या, यथास्र्थर्त, उप राज््यपाल/मखु्य आयकु्त/प्रशासक को फाांसी के र्लए र्नयत की गई तारीख की सूचना ितेे हुए एक
व्याख्या पत्र के साथ भेिेगा और यह प्रमार्णत करेगा र्क फाांसी को यार्चका पर सरकार के आिशे प्राप्त र्कए िाने तक रोक
र्िया गया ह ै।
127
99.4 र्नयम 4 आिशे ितेा ह ैर्क यर्ि र्सद्धिोषी र्नयम 2 द्वारा र्र्र्हत अर्र्ध के पश्चात् यार्चका भेिता ह ैतो िले का
अधीक्षक, तुरांत, उसे राज््य सरकार को भेिेगा और उसी समय उसके सार को ऐसे आिशेों के र्लए अनरुोध करते हुए र्क क्या
फाांसी स्थर्गत की िानी चार्हए, यह कहते हुए र्क उत्तर के लांर्बत होन ेतक फाांसी नहीं िी िाएगी, तार द्वारा अगे्रर्षत करेगा ।
100. उपयुिक्त र्नयम यह स्पष्ट करते हैं र्क प्रत्यके प्रिम पर मामल े पर शीघ्रता से कारिर्ाई की िानी ह ैऔर उसमें
अर्धकाररयों के, र्र्शेष रूप से, िेल अधीक्षक के कहने पर, र्हाां उपयोग र्कए गए ‘तुरांत’ शब्ि का ध्यान रखते हुए, कोई
र्र्लांब नहीं र्कया िा सकता ।
101. िया यार्चकाओां के प्रस्तुत र्कए िाने और उनका र्नपटारा र्कए िाने से सांबांर्धत उपयुिक्त र्नयमों से पृथक् गृहमांत्री
द्वारा अनमुोर्ित र्कए िाने र्ाले और भारत के राष्ट्रपर्त द्वारा समरु्चत आिशे पाररत करन ेके र्लए र्टप्पण को तैयार करन ेके
र्लए आर्श्यक अनिुशे िारी र्कए गए हैं ।
102. िया यार्चकाओां के र्नपटारे के र्लए लागू र्र्र्भन्न राज््यों की कारागार मनैअुलों से उद्धरण हमारे सामन ेरखे गए हैं ।
प्रत्यके राज््य की पृथक् कारागार मनैअुल ह,ै िो शीघ्रतापूर्िक र्र्र्नश्चय र्कए िाने के र्लए ब्यौरे र्ार प्रर्िया, गृह मांत्री और
राष्ट्रपर्त के अनुमोिन के र्लए अपेर्क्षत सामग्री की प्रार्प्त और उसके रखे िाने के बारे में बताती ह ै। र्नयम िया यार्चका की
प्राप्र्त के पश्चात् िेल के अधीक्षक द्वारा की िाने र्ाली कारिर्ाई और भारत के राष्ट्रपर्त द्वारा उसके र्नपटाए िाने के पश्चात,्
पश्चातर्ती कारिर्ाई के बारे में भी उपबांध करते हैं । लगभग सभी र्नयम र्र्र्हत करते हैं र्क मृतय ुर्सद्धिोर्षयों के साथ, भारत
के राष्ट्रपर्त द्वारा अांर्तम र्र्र्नश्चय र्कए िाने तक, कैसे व्यर्हार र्कया िाना ह ै।
103. उपरोक्त र्र्स्तृत प्रर्िया स्पष्ट रूप से िर्शित करती ह ैर्क मृत्यिुांड के र्सद्धिोर्षयों के साथ भी भारत के सांर्र्धान के
अनचु्छेि 21 की दृष्र्ट से उर्चत व्यर्हार र्कया िाना ह ै । तथार्प, यहाां सभी यार्चकाकतािओ ां का िार्ा ह ै र्क इन सभी
र्नयमों का कठोरत: पालन नहीं र्कया गया ह ैऔर र्ह िया यार्चकाओां के र्नपटारे में अत्यर्धक र्र्लांब के र्लए प्राथर्मक
कारण हैं । उिाहरण के र्लए िया यार्चका की प्रार्प्त पर सांबांर्धत र्र्भाग को र्सद्धिोषी से सांबांर्धत सभी अर्भलेखों/सामर्ग्रयों
को मांगाना होता ह ै। िोषर्सर्द्ध से सांबर्धत सभी सामर्ग्रयों की बिाय टुकड़ों में अर्भलेखों का मांगाना र्नरुत्सार्हत र्कया िाना
चार्हए । िब मामल ेको राष्ट्रपर्त के समक्ष रखा िाता ह,ै तो गृह मांत्रालय के र्लए यह अत्यार्श्यक ह ैर्क र्ह तुरांत र्सद्धिोष
से सांबांर्धत सभी सामग्री िसेै र्र्चारण न्यायालय, उच्च न्यायालय और अांर्तम न्यायालय अथाित् उच्चतम न्यायालय के
र्नणिय और कुछ अन्य ससुांगत सामग्री राष्ट्रपर्त के समक्ष रखे और अर्भलेखों को टुकड़ों में न मांगाए ।704
ग. दया सबंंिी शक्वतयों के ियोग की परीक्षा करने के वलए न्यावयक पुनववटलोकन का मानक
6.3.1 उच्चतम न्यायालय ने िया सांबांधी उपबांधों (अनचु्छेि 72 और 161) की प्रकृर्त को सांर्धैार्नक कतिव्य के रूप में,
र्र्शेषार्धकार या अनगु्रह के र्र्षय के बिाय, र्र्शेषीकृत र्कया ह ै। उच्चतम न्यायालय ने शत्रुध्न चौहान में र्नम्नर्लर्खत सांपे्रक्षण र्कया :
सांके्षप में सांर्र्धान के अनचु्छेि 72 के अधीन राष्ट्रपर्त में और अनचु्छेि 161 के अधीन राज््यपाल में र्नर्हत शक्र्त एक
सांर्धैार्नक कतिव्य ह ै। पररणामस्र्रूप न तो यह अनगु्रह का मामला ह ैऔर न र्र्शेषार्धकार ह ैर्कन्तु यह िनता द्वारा सर्ािच्च
प्रार्धकारी में र्नके्षप र्कया गया महत्र्पूणि सांर्धैार्नक उत्तरिार्यत्र् ह ै । क्षमा करन े की शक्र्त अर्नर्ायि रूप से एक
कायिपार्लका का कायि ह,ै र्िसका न्याय की सहायता में और न र्क उसके र्र्रोध में प्रयोग र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै।
704 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 98-103 पर ।
128
आगे यह अच्छी तरह से पररर्नधािररत ह ैर्क भारत के सांर्र्धान के अनचु्छेि 72/161 के अधीन शक्र्त का प्रयोग मांर्त्र
पररषि ्की सहायता से और उसकी सलाह पर र्कया िाना ह ै।705
6.3.2 उच्चतम न्यायालय ने आगे इपरुु सधुाकर बनाम आन्ध्र प्रिशे राज््य706 में अर्भर्नधािररत र्कया र्क सांर्र्धान के अनचु्छेि 72
के अधीन राष्ट्रपर्त द्वारा और अनचु्छेि 161 राज््यपाल द्वारा शक्र्त का प्रयोग न्यार्यक पनुर्र्िलोकन के सीर्मत रूप के अधीन ह ै।707
उच्चतम न्यायालय ने यह भी अर्भर्नधािररत र्कया र्क अनचु्छेि 72 और अनचु्छेि 161 के अधीन िया के र्र्शेषार्धकार का र्र्र्ध के
र्नयम के र्सद्धाांत के अनसुार र्नर्िहन र्कया िाना चार्हए, र्िसमें ऋितुा और र्र्र्धक र्नश्र्चतता आर्श्यक तत्र् हैं ।708 आगे उच्चतम
न्यायालय के र्र्र्भन्न र्र्र्नश्चयों में इन िया सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग को चनुौती िने ेके र्लए र्नम्नर्लर्खत आधारों को र्िया गया ह ै
:709
(क) शक्र्त का प्रयोग राज््यपाल/राष्ट्रपर्त द्वारा स्र्यां सरकार की सलाह के र्बना र्कया गया ह ै;
(ख) शक्र्त के प्रयोग में राज्यपाल/राष्ट्रपर्त ने अपनी अर्धकाररता का अर्तिमण र्कया ह ै;
(ग) यर्ि अनचु्छेि 72 या अनचु्छेि 161 के अनसुरण में पाररत आिशे प्रकट करता ह ैर्क मस्र्तष्क का उपयोग नहीं
र्कया गया ह ैया उसका असद्भार्पूणि आधार ह ै;
(घ) शक्र्त का रािनरै्तक र्र्चारण के आधार पर प्रयोग र्कया गया ह ै;
(ड.) आिशे मनमानेपन से पीर्ड़त ह ै;
(च) शक्र्त के प्रयोग की रीर्त र्नम्नर्लर्खत त्ररु्टयों से पीर्ड़त ह ै:
बाह्य या पणूिरूप से असांगत र्र्चारण को ध्यान में रखा गया ह ै;
सससससस ससससससस सस सससससस सस सससस ससस ससस सस ।
घ. दया सबंंिी शक्वतयों के ियोग का न्यावयक पुनववटलोकन करने वाले ररर् न्यायालयों का कतटव्य
6.4 उच्चतम न्यायालय ने मृत्यिुांड सांबांधी मामलों में कायिपार्लका के प्रार्धकाररयों द्वारा िया सांबांधी अर्धकाररता के र्नर्िहन की परीक्षा
करन ेमें सांकटमय भूर्मका का प्रर्तषेध र्कया ह ै। न्यायालय ने न्याय शास्त्र के इस र्नकाय को ‘िया न्याय शास्त्र’710 के रूप में माना ह ै
और इसे ‘र्शष्टता के मानक, िो समाि का प्रमाण र्चि ह ै र्र्कर्सत करने’711, से िोड़ र्िया ह ै । र्ास्तर् में न्यायालय ने शत्रधु्न
चौहान में सांपे्रक्षण र्कया र्क ‘न्यार्यक हस्तके्षप सांर्र्धान का समािशे ह’ै िब र्क कायिपार्लका द्वारा िया सांबांधी शक्र्त के प्रयोग में
705 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 242 पर । 706 इपरू सधुाकर बनाम आांध्र प्रिेश सरकार, (2006) 8 एससीसी 161 पर ।
707 इसे भी िरे्खए, नारायण ित्त बनाम पांिाब राज््य, (2011) 4 एससीसी 353, पैरा 14-31 पर ; बी.पी. र्सांघल बनाम भारत सांघ, (2010) 6
एससीसी 331, पैरा 76 पर ; शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 22 पर ।
708 इपरू सधुाकर बनाम आांध्र प्रिेश सरकार, (2006) 8 एससीसी 161, पैरा 65-67 पर ।
709 िरे्खए मारु राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107, पैरा 62-65 पर ; इपरू सधुाकर बनाम आांध्र प्रिशे सरकार, (2006) 8 एससीसी
161 पर, पैरा 34-38 ; नारायण ित्त बनाम पांिाब राज््य, (2011) 4 एससीसी 353, पैरा 24 पर ; शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3
एससीसी, पैरा 23-24 पर ।
710 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 242-245 पर । 711 मारू राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107 ।
129
सम्यक् सार्धानी बरते िाने का और पररश्रमशीलता का अभार् ह ैऔर र्ह स्र्च्छांि हो गई ह ै।712 न्यायालय ने शत्रधु्न चौहान में इस
र्नर्मत्त र्नम्नर्लर्खत अर्भर्नधािररत र्कया ह ै:
242. पूर्ोक्त समूह के मामलों में हमसे एक र्र्कासशील न्यायशास्त्र पर, र्िसकी र्क भारत र्शै्र्र्क र्र्र्धक
कायिके्षत्र के परुोभाग में होन ेके कारण अपनी साख रखता ह,ै र्र्र्नश्चय करन ेके र्लए कहा गया ह ै। िया सांबांधी
न्यायशास्त्र र्शष्टता के मानक र्र्कर्सत करन ेका, िो र्क समाि का प्रमाण र्चि ह,ै एक भाग ह ै।
243. र्नश्र्चत रूप से इस न्यायालय की सांर्र्धान न्यायपीठों की आर्र्लयों ने िशाब्र्ियों के समय से भारत में
मृत्यिुांड की सांर्धैार्नक र्र्र्धमान्यता की मयाििा को बनाए रखा ह ैर्कन्त ुय ेर्नणिय िांडािशे के र्नष्पािन में र्र्र्ध
द्वारा स्थार्पत सम्यक् प्रर्िया का अनसुरण करने के कतिव्य का अपहरण नहीं करते हैं । र्िस प्रकार र्क मृत्यिुांड
र्र्र्धपूणि रूप से र्िया िाता ह,ै िांडािशे का र्नष्पािन भी सांर्धैार्नक आिशे के अनरुूप और न र्क सांर्धैार्नक
र्सद्धाांतों के अर्तिमण में, होना चार्हए ।
244. यह ससु्थार्पत ह ै र्क राष्ट्रपर्त या राज््यपाल द्वारा अनचु्छेि 72/161 के अधीनशक्र्त का प्रयोग
सांर्धैार्नक बाध्यता ह ैन र्क केर्ल र्र्शेषार्धकार । कायािलय की ऊां ची प्रास्र्थर्त पर र्र्चार करते हुए सांर्र्धान
के बनाने र्ालों ने उक्त अनचु्छेिों के अधीन िया यार्चकाओां का र्नपटारा करने के र्लए र्कसी अन्य बाह्य सीमा
को अनबुद्ध नहीं र्कया, र्िसका तात्पयि यह ह ै र्क इसका र्र्र्नश्चय यकु्र्तयुक्त समय के भीतर होना चार्हए ।
तथार्प, िब िया यार्चका के र्नपटारे में र्कसी र्र्लांब को अयकु्र्तयकु्त, स्पष्ट और पररर्मत रूप में िखेा िाता ह ै
तो इस न्यायालय का यह कतिव्य ह ैर्क र्ह र्र्षय को हाथ में ले और इस पहलू पर र्र्चार करे । सांर्र्धान के
अनचु्छेि 72/161 के अधीन िया माांगने का अर्धकार सांर्ैधार्नक अर्धकार ह ैऔर र्ह कायिपार्लका के
र्र्र्ेकार्धकार या मनमौिीपन पर आधाररत नहीं ह ै । प्रत्यके सांर्धैार्नक कतिव्य को सम्यक् सार्धानी और
पररश्रमशीलता से पूरा र्कया िाना चार्हए अन्यथा न्यार्यक हस्तके्षप सांर्र्धान का, उसके मूल्यों को बनाए रखन े
के र्लए, समािशे ह ै।
245. याि रखा िाना चार्हए र्क प्रर्तशोघ का हमारे र्र्शाल प्रिाताांर्त्रत िेश में कोई मूल्य नहीं ह ै। भारत में
एक अपराधी को भी सांर्र्धान के अधीन सांरक्षण प्राप्त ह ैऔर यह न्यायालय का कतिव्य ह ै र्क र्ह उसका
परररक्षण और सांरक्षण करे । अत: हम यह स्पष्ट करते हैं र्क िब न्यायपार्लका ऐसे मामलों में हस्तके्षप करती ह ै
तो र्ह अनचु्छेि 72/161 के अधीन प्रयोग की गई शक्र्त के साथ र्ास्तर् में हस्तके्षप नहीं करती ह ैर्कन्त ु
र्ह केर्ल मृत्यिुांड के र्सद्धिोषी सर्हत प्रत्यके र्सद्धिोषी के र्लए सांर्र्धान द्वारा र्िए गए र्ास्तर्र्क सांरक्षण को
बनाए रखती ह ै।713 (इस पर िोर र्िया गया)
ड. राष्ट्रपवत द्वारा अनुच्छेद 72 के अिीन शक्वत के ियोग में व्यक्वतपरकता
6.5.1 इस पर ध्यान र्िया िाना ह ै र्क अनचु्छेि 72 और अनचु्छेि 161 के अधीन, यथास्र्थर्त, राष्ट्रपर्त या राज््यपाल को
अनचु्छेि 74 और 164 के अधीन मांर्त्र पररषि ् द्वारा िी गई ‘सहायता और सलाह’ द्वारा मागिर्निरे्शत और र्निरे्शत होना ह ै ।
न्यायालय ने ऐसा स्पष्ट शब्िों में मारुराम बनाम भारत सांघ714 में र्नम्नर्लर्खत परैा में कहा ह ै:
712 मारू राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107, पैरा 61 पर । 713 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 242-245 पर । 714 मारू राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107 ।
130
क्योंवक राष्ट्रपवत सांकेवतक है, कें िीय सरकार वास्तववकता है, जैसे वक राज्यपाल भी कायटपावलका की शक्वत का
औपिाररक िमुख और एकमात्र वनके्षपक हैं, वकनतु मंवत्र पररषद ्की सलाह पर और उसके अनुसार के वसवाय कायट
करने में असमथट है । इसका पररणाम यह है वक राज्य सरकार िाह ेराज्यपाल पसंद करे या नहीं, अनुच्छेद 161 के
अिीन सलाह दे सकती है और कायट कर सकती है और राज्यपाल उस सलाह से आबद्ध है । लघुकृत करने और
वनमुटक्त करने की कारटवाई सरकार के वववनश्िय के अनुसरण में हो सकती है और आदेश, राज्यपाल के अनुमोदन
के वबना भी, कारबार के वनयमों के अिीन और और सवैंिावनक वशष्र्ता के रूप में जारी वकया जा सकता है, यह
आबद्धकर है वक राज्यपाल के हस्ताक्षर से क्षमा, लघुकरण या वनमुटक्वत को िाविकृत वकया जाना िावहए ।
राष्ट्रपर्त के सांबांध में भी स्र्थर्त सारभूत रूप से समान हैं । राष्ट्रपर्त या राज््यपाल को स्र्तांत्र रूप से र्र्र्नश्चय करन ेया अपन े
चयन से र्कसी को र्नमुिक्त करन ेया र्नमुिक्त करन ेसे इांकार करन ेकी स्र्तांत्रता नहीं ह ै। र्ेस्टर्मर्नस्टर प्रणाली के र्लए यह मूल
ह ैर्क कैर्बनेट शासन करती ह ैऔर रानी का आर्धपत्य ह ै, िो हमारी प्रणाली में गहरे रूप से समाया हुआ आधाररक ह ै। इस
सांबांध में कोई गांभीर र्र्रोध र्र्द्वान महा सोर्लर्सटर द्वारा नहीं र्कया गया था, र्िसके मूल तत्र्ों की र्नश्र्चत समझ ने उस ेइस
प्रर्तपािना को उलटने की अनजु्ञा नहीं िी र्क राष्ट्रपर्त और राज््यपाल पाठ की शब्िार्ली में र्कतन ेही ऊां चे हों, र्कन्त ु
कृत्यकारी मधरु अर्भव्यक्र्त र्ाले र्े शीघ्रता से मांर्त्र पररषि ्की सलाह पर और केर्ल सलाह पर कायि करते हुए शक्र्त का
सांकीणि के्षत्र रखते हैं । यह र्र्षय अब र्र्र्ाि से परे ह ै। इस न्यायालय ने प्रार्धकार रूप से र्र्र्ध को शमशेर र्सांह मामल ेमें
अर्धकर्थत र्कया ह ै[शमशेर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1975)1 एससीआर 814 : (1974)2 एससीसी 831 :
1974 एससीसी (एल एांड एस) 550] । अत: हम अनुच्छेद 367(1) और सािारण खंड अविवनयम, 1897
के िवतवनदशे वकए वबना सहमत हैं वक अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 के अिीन शक्वतयों के ियोग के मामले
में हमारी संवैिावनक स्कीम में दो उच्ितम पदाविकाररयों को अपने स्वय ं के वनणटय से नहीं वकन्तु मंवत्रयों की
सहायता और सलाह के अनुसार कायट करना िावहए । अनुच्छेद 74, 42वें सशंोिन के पश्िात्, अनुमान को शांत
करा देता है और अनुपालन के वलए बाध्य करता है । राज्यपाल अपनी मवंत्र पररषद ्की तुलना में राष्ट्रपवत से ऊंिा
नहीं है वसवाय एक संकीणट के्षत्र में, जो अनुच्छेद 161 को सम्वमवलत नहीं करता है । सवैंिावनक वनष्कषट यह है
वक राज्यपाल है वकन्तु वह राज्य सरकार के वलए एक संवक्षप्त अवभव्यक्वत है और राष्ट्रपवत कें िीय सरकार के वलए
संवक्षप्त रूप है ।715 (िोर र्िया गया)
6.5.2 िबर्क भारत का राष्ट्रपर्त िया यार्चका के र्र्चारण में मांर्त्र पररषि ्द्वारा िी गई सलाह से र्र्चलन न करन ेके र्लए सांर्धैार्नक
रूप से बाध्य ह,ै र्कन्तु ऐसे अर्सर रह ेहैं िब र्क राष्ट्रपर्त उक्त िया यार्चका पर कोई भी र्र्र्नश्चय र्कसी भी तरह का करन ेसे र्र्रत
रहा ह ैऔर इस प्रकार मामल ेको लांर्बत रखा ह ै। नीचे िी गई सारणी में आि तक र्र्र्भन्न राष्ट्रपर्तयों द्वारा र्नपटाई गई िया यार्चका के
अर्भलेख पर र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह ै:716
सारणी 6.1. राष्ट्रपवत द्वारा वववनश्वित की गई दया याविकाओ ंके ब्यौरे
ि0सां0 राष्ट्रपर्त का नाम अर्र्ध स्र्ीकार की गई
िया यार्चकाओां
की सांख्या
नामांिूर की गई िया
यार्चकाओां की सांख्या
िोड़
715 मारू राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107, पैरा 61 पर । 716 यह सारणी पुरालेखीय अनुसांधान और र्र्िमिीत बत्रा और अन्य द्वारा सांगृहीत सचूना के अर्धकार में प्राप्त आांकड़ों पर आधाररत ह ै। िम सां0 1-9 पर
राष्ट्रपर्तयों द्वारा र्नपटाई गई िया यार्चकाओ ां के शासकीय आांकडे़ उपलब्ध नहीं हैं और सारणी में आांकडे़ अर्भलेखागार से र्कए आनुभर्र्क सत्यापन पर आधाररत
हैं ।
131
1. रािेंि प्रसाि 26.1.1950- 3.5.1962
130 1 181
2. सर्िपल्ली राधाकृष्णन 13.5.1962-13.5.1967
57 0 57
3. िार्कर हुसनै 13.5.1967-3.5.1969
22 0 22
4. र्ी.र्ी.र्गरर 3.5.1969-20.7.1969; 24.8.1969-24.8.1974
3 0 3
5. फखरुद्दीन अली अहमि 24.8.1974 – 11.2. 1977
0
6. एन सांिीर्ा रेड्डी 25.7.1977 – 5.7.1982
0
7. िलै र्सांह 25.7.1982 – 25.7.1987
2 30 32
8. आर. र्ेंकटरमन 25.7.1987-25.7.1992
5 45 50
9. एस.डी. शमाि 25.7.1992 – 25.7.1997
0 18 18
10. के. आर. नारायणन 25.7.1997 -25.7.2002
0 0 0
11. ए.पी.िे. अब्िलु कलाम 25.7.2002 -25.7.2007
1 1 2
12. प्रर्तभा पार्टल 25.7.2007- 25.7.2012
34 5 39
13. प्रणब मखुिी 25.7.2012 –
2 31 33
कुल 306 131 437
6.5.3 1950 -1982 की अर्र्ध के िौरान, र्िसमें 6 राष्ट्रपर्त हुए, मृत्यिुांडािशे का आिीर्न कारार्ास में लघुकरण करन ेके
262 मामलों के र्र्रुद्ध केर्ल एक िया यार्चका को नामांिूर र्कया गया था । उपलब्ध अर्भलेखों के अनसुार राष्ट्रपर्त रािेंि प्रसाि ने
180 िया यार्चकाओां में से, र्िन्हें उनहोंन ेर्र्र्नश्र्चत र्कया था, केर्ल 1 को नामांिूर करते हुए 180 मामलों में मृत्यिुांडािशे को
लघुकृत र्कया था । राष्ट्रपर्त राधाकृष्णन ने उनके द्वारा र्र्र्नश्र्चत की गई सभी 57 िया यार्चकाओां में मृत्यिुांडािशे को लघुकृत र्कया
था । राष्ट्रपर्त हुसनै और राष्ट्रपर्त र्गरर ने उनके द्वारा र्र्र्नश्र्चत की गई सभी यार्चकाओां में मृत्यिुांड को लघुकृत र्कया था, िबर्क
राष्ट्रपर्त अहमि और राष्ट्रपर्त रेड्डी को अपनी अर्र्ध में र्कसी िया यार्चका के सांबांध में कारिर्ाई करन ेका अर्सर नहीं र्मला ।
132
6.5.4 इस प्रथम स्र्थर्त (1950 -1982) के र्र्रोध में, 1982 और 1997 के बीच 3 राष्ट्रपर्तयों ने 93 िया
यार्चकाओां का नामांिूर र्कया और 7 मृत्य ुिांडािशेों को लघुकृत र्कया । राष्ट्रपर्त िलै र्सांह ने 32 िया यार्चकाओां में से, र्िनका
उन्होंन ेर्र्र्नश्चय र्कया था, 30 को नामांिूर र्कया और राष्ट्रपर्त र्ेंकटरमन ने 50 िया यार्चकाओां में से, र्िनका उन्होंन ेर्र्र्नश्चय
र्कया था, 45 को नामांिूर कर र्िया । पश्चातर्ती राष्ट्रपर्त शमाि ने उनके समक्ष रखी गई सभी 18 िया यार्चकाओां को नामांिूर कर
र्िया ।
6.5.5 र्िसे तीसरी स्र्थर्त अथाित ्1997-2007 कहा िा सकता ह,ै उसमें िो राष्ट्रपर्तयों ने उनके द्वारा उस र्िन की सरकार से
उनको प्राप्त लगभग सभी िया यार्चकाओां को लांर्बत रखा और केर्ल 2 िया यार्चकाएां इस अर्र्ध के िौरान र्र्र्नश्र्चत की गई थीं।
राष्ट्रपर्त नारायणन ने उनके समक्ष प्रस्तुत की गई र्कसी िया यार्चका पर कोई र्र्र्नश्चय नहीं र्कया । राष्ट्रपर्त अब्िलु कलाम ने अपनी
अर्र्ध के िौरान केर्ल िो बार कायि र्कया, र्िसके पररणामस्र्रूप एक को नामांिूर र्कया गया और िसूरे को लघुकृत र्कया गया । उनकी
10 र्षों की सम्र्मर्लत अर्र्ध के िौरान उन्होंन ेिया यार्चकाओां के र्नपटारे पर बे्रक लगा र्िए ।
6.5.6 पश्चातर्ती राष्ट्रपर्त प्रर्तभा पार्टल ने अपन ेराष्ट्रपर्तत्र् के िौरान 5 िया यार्चकाएां नामांिूर की और 34 मृत्य ुिांडािशेों को
लघुकृत र्कया । र्तिमान भारत के राष्ट्रपर्त श्री प्रणर् मखुिी ने उनके द्वारा र्र्र्नश्र्चत की गई 33 िया यार्चकाओां में से अभी तक 31
को नामांिूर कर र्िया ह ै।
6.5.7 राष्ट्रपर्तयों द्वारा र्नपटायी गई िया यार्चकाओां के चाटि का अर्लोकन सझुार् ितेा ह ैर्क एक मृत्य ुपांक्र्त र्ाले र्सद्धिोषी का
भाग्य िीर्न और मृत्य ुके मामलों में केर्ल उस र्िन की सरकार की र्र्चारधारा और र्र्चारों पर ही र्नभिर नहीं करता ह ैर्कन्त ुराष्ट्रपर्त
के व्यक्र्तगत र्र्चारों और र्र्चार प्रणाली पर भी र्नभिर करता ह ै।
ि. दया संबंिी शक्वतयों के ियोग का न्यावयक पुनववटलोकन
6.6.1 उच्चतम न्यायालय ने शत्रुध्न चौहान में अर्भर्लर्खत र्कया ह ै र्क गृह मांत्रालय िया यार्चकाओां का र्र्र्नश्चय करते हुए
र्नम्नर्लर्खत कारकों पर र्र्चार करता ह ै:
(क) अर्भयकु्त का व्यक्र्तत्र् (िसेै आय,ु र्लांग या मानर्सक रूप से कमी) या मामल ेकी पररस्र्थर्तयाां (िसेै उत्प्रेरण या
समरूप न्यायोर्चत्य) ;
(ख) ऐसे मामले, र्िनमें अपीलीय न्यायालय ने साक्ष्य की र्र्श्र्सनीयता के बारे में सांिहे र्कया र्कन्त ुकभी भी िोषर्सर्द्ध
पर र्र्र्नश्चय नहीं र्कया ;
(ग) ऐसे मामले, िहाां यह अर्भकर्थत र्कया गया ह ैर्क नया साक्ष्य मखु्य रूप से यह िखेन ेकी दृष्र्ट से प्राप्य ह ैर्क क्या
र्फर से िाांच र्कया िाना न्यायोर्चत ह ै;
(घ) िहाां उच्च न्यायालय ने अपील पर िोषमकु्र्त को उलट र्िया ह ैया अपील में िांडािशे को बढा र्िया ह ै;
(ड.) क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की न्यायपीठ में कोई मत र्भन्नता ह ैिो बड़ी न्यायपीठ को र्निशे करना
आर्श्यक बनाती ह ै;
(च) सामूर्हक हत्या के मामल ेमें उत्तरिार्यत्र् र्नयत करने में साक्ष्य का र्र्चारण ;
133
(छ) अन्र्ेषण और र्र्चारण आर्ि में लांबे र्र्लांब ।717
6.6.2 तथार्प िब गृह मांत्रालय द्वारा शक्र्त के र्ास्तर्र्क प्रयोग का (र्िसकी र्सफाररश पर िया यार्चकाओां का र्र्र्नश्चय र्कया
िाता ह)ै र्र्श्लेषण र्कया िाता ह,ै यह िखेा गया ह ैर्क बहुत बार इन मागिर्निशेक र्सद्धाांतों का पालन नहीं र्कया गया ह ै। अनर्गनत
मामलों में ररट न्यायालयों ने उस रीर्त की परीक्षा की ह,ै र्िसमें कायिपार्लकाओां ने िया यार्चकाओां पर कायि र्कया ह ै । र्ास्तर् में
उच्चतम न्यायालय ने समूह मामले के भागरूप शत्रधु्न चौहान मामल ेमें 11 ररट यार्चकाओां की, र्िन्होंने कायिपार्लका द्वारा िया
यार्चका के नामांिूर र्कए िाने को चनुौती िी थी, सनुर्ाई की । इनमें से कुछ र्र्र्नश्चयों का र्नम्लर्नर्खत पृष्ठों में र्र्श्लेषण र्कया गया ह ै
:
(i) दीघटकावलक मावनसक बीमारी की उपेक्षा की गई : सुन्दर वसंह का मामला718
6.6.3 सनुिर र्सांह को अपने 5 सांबांर्धयों को र्िन्िा िलाने के र्लए मृत्यिुांड र्िया गया था । उसकी िया यार्चका को राज््यपाल द्वारा
21.1.2011 को और तत्पश्चात् राष्ट्रपर्त द्वारा 31.3.2013 को खाररि कर र्िया गया था । यद्यर्प उसने अपनी िया यार्चका में
कहा था र्क उसन ेमानर्सक बीमारी के प्रभार् में अपराध र्कया था । इस िार् ेकी िेल अर्भलेखों द्वारा पषु्र्ट की गई थी, र्िनमें िर्शित
र्कया गया था र्क उसके असामान्य व्यर्हार के कारण उस ेअनर्गनत र्चर्कत्सीय बोडों के सामन ेप्रस्तुत र्कया गया था, र्िनमें सरकारी
मनोर्जै्ञार्नक थे और र्िन्होंन ेराय िी थी र्क र्ह िीघिकार्लक मनोरोग से पीर्ड़त था और उस ेलांबी अर्र्ध के उपचार की आर्श्यकता थी
। यह सूचना आर्र्धक रूप से राज््य सरकार को और भारत सरकार के गृह मांत्रालय को, र्िसन ेर्फर भी उसकी िया यार्चका को नामांिूर
करन ेका चयन र्कया, िी गई थी । घटनार्श उस ेराज््य सरकार द्वारा र्नयकु्त र्कए गए मनोर्जै्ञार्नकों की टीम द्वारा ‘मृत्यिुांड र्िए िाने के
र्लए मानर्सक रूप से अयोग्य’719 पाया गया और उसका मृत्यिुांड उच्चतम न्यायालय द्वारा लघुकृत कर र्िया गया ।
717 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 55-56 पर । 718 सनु्िर र्सांह की ररट (ररट यार्चका (िाां.) सां0 192/2013) पर शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1 के बचै मामले में र्र्चार
र्कया गया । र्र्र्ध पर चचाि के र्लए पैरा 79-87 िरे्खए और ररट यार्चका (िाां.) के पररणाम सां0 192/2013 के पररणाम के र्लए पैरा 178-195
िरे्खए ।
719 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी, पैरा 190 पर ।
134
(ii) अन्वेषण और वविारण में लंबे ववलंब अंतवटवलत करने वाले मामले
क. गुरमीत वसंह का मामला720
6.6.4 िब मृत्य ुपांक्र्त में र्कसी र्सद्धिोषी ने पहल ेही, उसकी िया यार्चका राष्ट्रपर्त द्वारा र्र्र्नश्र्चत र्कए िाने के पूर्ि, कारागार में
पयािप्त अर्र्ध र्बता ली ह,ै तो यह इसका र्र्र्नश्चय करन ेमें मिबूत कारक हो िाता ह ै र्क क्या ऐसा कैिी अभी तक फाांसी का
अर्तररक्त िांड र्िए िाने के योग्य ह ैया नहीं ।
6.6.5 गुरमीत को 16.10.1986 को र्गरफ्तार र्कया गया था, र्सद्धिोष ठहराया गया था और 20.07.1992 को र्र्चारण
न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड र्िया गया था । उच्च न्यायालय ने 8.3.1996 को (बहुमत के अनसुार), उसके मृत्यिुांड की पषु्र्ट कर िी और
उच्चतम न्यायालय ने 28.9.2005 को उसका र्सद्धिोष तथा मृत्यिुांड बनाए रखा । र्सद्धिोषी की िया यार्चका का 1.3.2003
को र्र्र्नश्चय र्कया गया था, र्िस समय तक र्ह अर्भरक्षा में 27 र्षि र्बता चकुा था, र्िसमें से लगभग 21 र्षि उसने मृत्यिुांड के
अधीन र्बताए थे । इन कारकों की उपेक्षा की गई थी और उसकी िया यार्चका नामांिूर कर िी गई । उच्चतम न्यायालय ने शत्रधु्न चौहान
में गुरमीत र्सांह के मृत्यिुांड को, कायिपार्लका द्वारा उसकी िया यार्चका र्नपटान ेमें अत्यर्धक र्र्लांब र्कए िाने के कारण, लघुकृत कर
र्िया ।
720 गुरमीत र्सांह की ररट (ररट यार्चका (िाां.) सां0 193/2013) शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1 के बचै मामले में र्र्चार र्कया
गया । ररट यार्चका (िा.) सां0 193/2013 के पररणाम के र्लए पैरा 148-16 िरे्खए । गुरमीत र्सांह बनाम उत्तर प्रिेश, (2005) 12 एससीसी 107
भी िरे्खए।
135
ख. साइमन और अन्य के मामले721
6.6.6 साइमन, र्बलाबेंिन, गगननप्रकाशम और मर्िया को 14.7.1993 को र्गरफ्तार र्कया गया था तथा र्र्चारण न्यायालय
द्वारा 29.9.2001 को आतांकर्ािी और र्र्ध्र्ांशकारी र्ियाकलाप (र्नर्ारण) अर्धर्नयम के अधीन िोषर्सद्ध ठहराया गया था । उन्हें
आिीर्न कारार्ास का िांड र्िया गया था । राज््य ने उच्चतम न्यायालय से िांड बढाने के र्लए अपील की र्कन्त ुउसकी र्र्शेष इिाित
यार्चका को र्र्लांब के कारण खाररि कर र्िया गया था । िब र्सद्धिोर्षयों द्वारा फाइल की गई आपरार्धक अपील की सनुर्ाई की िा
रही थी तब उच्चतम न्यायालय ने स्र्प्रेरणा से िांड की र्ृर्द्ध के र्लए नोर्टस िारी कर र्िया और ततपश्चात ् र्सद्धिोर्षयों को
29.1.2004 को मृत्यिुांड ि े र्िया । यह पहली बार था, िब र्सद्धिोर्षयों को मृत्यिुांड र्िया गया था और क्योंर्क यह उच्चतम
न्यायालय द्वारा र्कया गया था, अत: उसके पश्चात् कोई अपील सांभर् नहीं थी । िब र्सद्धिोषी के िया अर्भर्ाकों का 9 र्षि पश्चात्
र्र्र्नश्चय र्कया गया, तब तक र् े पहल े ही कारागार में अर्भरक्षा में 19 र्षि और 7 मास र्बता चकेु थे । साइमन, र्बलाबेंिन,
गननप्रकाशम और मर्िया 50, 55, 60 और 64 र्षों की आय ुके थे, िब उनकी िया यार्चकाओां को राष्ट्रपर्त द्वारा 8.2.2013
को लगभग 9 र्षि के र्र्लांब के पश्चात् नामांिूर र्कया गया था । उनकी यार्चकाओां को अांर्तम रूप से उच्चतम न्यायालय द्वारा अनजु्ञात
र्कया गया था ।
(iii) राष्ट्रपवत के वलए तैयार वकया गया भागत: और अपूणट सकें्षप : महेंि नाथ दास का मामला722
6.6.7 िब महेंि नाथ िास ने राष्ट्रपर्त द्वारा उसकी िया यार्चका के नामांिूर करन ेको चनुौती िी, तो उच्चतम न्यायालय ने िया
यार्चका से सांबांर्धत अर्भलेखों को समन र्कया और यह पाया र्क इसी मामले में र्कसी पूर्ि राष्ट्रपर्त द्वारा क्षमा करन ेसांबांधी र्सफाररश
को राष्ट्रपर्त प्रर्तभा पार्टल के सम्मखु नहीं रखा गया था या उन्हें सांसूर्चत नहीं र्कया गया था, िब उनसे िया यार्चका नामांिूर करन ेके
र्लए कहा गया था । उच्चतम न्यायालय ने इसे बहुत गांभीर गलती अर्भर्नधािररत र्कया और िया यार्चका के र्नपटाने में लगाए गए 11
र्षि के र्र्लांब को र्मलाकर कहा र्क यह पयािप्त कारण ह ैर्क र्िससे िया यार्चका की नामांिूरी को अर्भखांर्डत कर र्िया िाए और
मृत्यिुांड का लघुकरण कर र्िया िाए ।
(iv) मस्वतष्क का अनुपयोजन
क. िनन्जय िर्जी का मामला723
6.6.8 धनन्िय चटिी के मामले में िब राज््यपाल को िया यार्चका नामांिूर करन ेकी सलाह िी गई थी, उन्हें मामल ेकी कम करने
र्ाली पररस्र्थर्तयों के बारे में सूर्चत नहीं र्कया गया था । उच्चतम न्यायालय ने उस ेऐसी गांभीर गलती अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्िसन े
र्सद्धिोषी पर प्रर्तकूम प्रभार् डाला था और पररणामस्र्रूप िया यार्चका की नामांिूरी को अर्भखांर्डत कर र्िया । तथार्प धनन्िय चटिी
द्वारा िी गई िया यार्चका पश्चातर्ती कायिपार्लका द्वारा नामांिूर कर िी गई थी और उस ेफाांसी ि ेिी गई ।
ख. बडूं बाबूराव वतडके का मामला724
721 साइमन और अन्य की ररट (ररट यार्चका (िाां.) सां0 34/2013) शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1 के बचै मामले में र्र्चार
र्कया गया । ररट यार्चका (िा.) सां0 34/2013 के पररणाम के र्लए पैरा 120-137 िरे्खए । साइमन बनाम कनािटक राज््य, (2004) 2 एससीसी
694 भी िरे्खए। 722 महेंि नाथ िास बनाम भारत सांघ, (2013) 6 एससीसी 253 । 723 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य (2004) 9 एससीसी 751 । 724 बांध ूबाबूरार् र्टडके बनाम कनािटक राज््य (2006 की एसएलपी िां. 3048 में ररपोटि न र्कए गए आिशे) तारीख 10.7.2006 ।
136
6.6.9 र्तडके की िया यार्चका गृह मांत्रालय को 2007 में प्राप्त हुई थी । 2.6.2012 को यह र्र्र्नश्चय र्कया गया था र्क उसके
मृत्यिुांड का लघुकरण र्कया िाए । तथार्प, राष्ट्रपर्त, गृह मांत्रालय तथा राज््य सरकार के अनिाने में, र्तडके की 18.10.2007 को
लगभग 5 र्षि पूर्ि कारागार में, िब र्ह अपनी िया यार्चका पर र्नणिय की प्रतीक्षा कर रहा था, मृत्य ुहो गई थी । उसकी िया यार्चका
पर कारागार प्रार्धकाररयों या राज््य सरकार से अद्यतन िानकारी प्राप्त र्कए र्बना र्र्र्नश्चय र्कया गया था, िो िया यार्चका का र्नणिय
करन ेमें प्रयोग की गई पररश्रमशीलता और प्रर्िया के बारे में प्रश्न उठाता ह ै।
(v) मामले के सुसंगत अवभलेखों तक पहुिें वबना नामंजूर की गई दया याविका :
िवीण कुमार का मामला725
6.6.10 यद्यर्प िया यार्चका र्नयम का र्नयम 5 र्र्र्नर्ििष्ट रूप से अपेक्षा करता ह ैर्क राज््य सरकार को, िब र्ह िया यार्चका का
र्र्र्नश्चय कर रही हो, सांपूणि अर्भलेख भेिा िाए और गृह मांत्रालय द्वारा प्रयोग र्कए िाने र्ाले मागििशिक र्सद्धाांत भी स्पष्ट रूप से
अर्भलेख की गहन सांर्ीक्षा की अपेक्षा करते हैं । बहुत से मामलों में यह पाया गया ह ैर्क कें िीय सरकार ने र्कसी र्सद्धिोषी की िया
यार्चका को र्बना पढे या र्र्चारण न्यायालय का अर्भलेख प्राप्त र्कए र्बना नामांिूर कर र्िया ह ै।
6.6.11 उिाहरण के र्लए, प्रर्ीण कुमार के मामल ेमें उच्चतम न्यायालय ने यह पाया र्क उसकी िया यार्चका को कें िीय सरकार
और राष्ट्रपर्त द्वारा र्र्चारण न्यायालय का अर्भलेख पढे र्बना या प्राप्त र्कए र्बना नामांिूर कर र्िया गया था । पररणामस्र्रूप इस
मामल ेमें कम करन े र्ाली पररस्र्थर्तयों की ओर या र्सद्धिोषी से सांबांर्धत उन पररस्र्थर्तयों की ओर िो गृह मांत्रालय के मागिर्निशेक
र्सद्धाांतों के अनसुार िया यार्चका के न्यायर्नणियन के र्लए आर्शयक ह,ै कोई ध्यान नहीं र्िया गया था ।
(vi) सदोष फांसी और क्षमा सबंंिी िविया की असफलता
क. जीता वसंह का मामला726
6.6.12 िीता र्सांह के मामल ेपर पूर्ि अध्याय में र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह ैर्कन्तु उसकी ससुांगतता यहाां भी ह ै। िीता र्सांह , हरर्ांश
र्सांह और कशमीरा र्सांह को र्र्चारण न्यायालय द्वारा हत्या के एक अपराध में समान भूर्मकाओां के र्लए मृत्यिुांड र्िया गया था । उनमें से
प्रत्यके ने उच्चतम न्यायालय में पृथक् अपीलें फाइल की, िो र्र्र्भन्न न्यायपीठों के समक्ष सनुर्ाई के र्लए आई । िीता की र्र्शेष
इिाित यार्चका को 15.4.1976 को खाररि कर र्िया गया था । कशमीरा की र्र्शेष इिाित के र्लए यार्चका को िांड के प्रश्न पर
स्र्ीकार कर र्लया गया था और 10.4.1977 को उसकी अपील मांिूर कर ली गई थी और मृत्यिुांड उच्चतम न्यायालय द्वारा लघुकृत
कर र्िया गया था । हरर्ांश र्सांह की र्र्शेष इिाित के र्लए यार्चका को 16.10.1978 को खाररि कर र्िया गया था । उसकी
पनुर्र्िलोकन यार्चका को 9.5.1980 को खाररि कर र्िया गया था और उसकी िया यार्चका को राष्ट्रपर्त द्वारा 22.8.1981 को
नामांिूर कर र्िया गया था । हरर्ांश और िीता की िया यार्चकाओां को नामांिूर करते समय कायिपार्लका ने यह नहीं िेखा र्क उच्चतम
न्यायालय ने समान रूप से स्र्थत सह अर्भयकु्त (कशमीरा र्सांह) की अपील को मांिूर कर र्लया था और मृत्यिुांड को 4 र्षि से अर्धक
पूर्ि लघुकृत कर र्िया था । हरर्ांश र्सांह और िीता र्सांह 6.10.1981 को फाांसी के र्लए अनसूुर्चत थे । हरर्ांश र्सांह ने एक बार र्फर
उच्चतम न्यायालय को अनचु्छेि 32 के रूप में अपील की और र्ह बच गया । िीता नहीं बचा और उस ेफाांसी पर लटका र्िया गया
।727
725 प्रर्ीण कुमार की ररट (ररट यार्चका (िा.) सां0 187/2013) शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1 के बचै मामल ेमें र्र्चार
र्कया गया । ररट यार्चका (िा.) सां0 187/2013 के पररणाम के र्लए पैरा 139-141 िरे्खए ।
726 हरबांश र्सांह बनाम उत्तर प्रिेश राज््य, (1982) 2 एससीसी 101 । 727 हरबांश र्सांह बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, (1982) 2 एससीसी 101 । यह भी िरे्खए, बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (न्यायमरू्ति भगर्ती का र्र्रोध),
(1982) 3 एससीसी 24, पैरा 71 पर, िहाां उसने हांरर्ांश र्सांह के मामले को ‘मतृ्युिांड के अर्धरोपण में सनकीपन का अत्यर्धक ज््र्लांत’ उिाहरण बताया ।
137
ख. रवजी राव728 और सुरजा राम729 के मामले
6.6.13 रर्िी रार् और सरुिा राम के मामलों पर पूर्ि अध्याय में र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह ै । यहाां ध्यान इस पर ह ैर्क उनकी िया
यार्चकाओां के बारे में कायिपार्लका द्वारा कैसे कायिर्ाही की गई थी ।
6.6.14 रर्िी @ राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य (‘रर्िी’)730 में एक मामला, र्िसे िो न्यायाधीशों की न्यायपीठ द्वारा
र्र्र्नश्र्चत र्कया गया था, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से अर्भर्नधािररत र्कया :
यह अपराध की, न र्क अपराधी र्क प्रकृर्त और गांभीरता ह ैिो र्कसी आपरार्धक र्र्चारण में समुर्चत िांड के र्र्चारण के
र्लए सांगत हैं ।731
6.6.15 इस प्रकार न्यायालय ने रर्िी के मामलें में मृत्यिुांड की पुष्र्ट करते हुए यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क अपराधी से सांबांर्धत
पररस्र्थर्तयाां असांगत हैं और अपराध से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयों पर अनन्य रूप से ध्यान कें र्ित र्कया । रर्िी के मामल ेमें र्र्र्नश्चय का
यह पहलू बचन र्सांह के र्र्र्नणिय के सीधे र्र्रोध में हैं, िहाां न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया था र्क सभी मामलों में, र्िनमें
अत्यर्धक िूर और िघन्य मामल ेसम्र्मर्लत हैं, अपराधी से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयों को पूणि र्िन र्िया िाना चार्हए ।732 िसैा र्क पहले
अध्याय में िखेा गया ह ै। न्यायालय ने सांतोष कुमार बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य (‘बररयार’) में रर्िी के मामल ेऔर बचन र्सांह के
बीच र्र्रोध को ध्यान से िखेा था और रर्िी के र्र्र्नश्चय को अनर्धानता से र्कया गया र्नणिय पाया था ।
6.6.16 यद्यर्प रर्िी को अनर्धानता से र्कए गए र्नणिय के आधार पर मृत्यिुांड र्िया गया था, उसकी िया यार्चका को केर्ल 8
र्िनों में 19.3.1996 को नामांिूर कर र्िया गया था और उसे 4.5.1996 को फाांसी िी गई थी । समान रूप से सुरिा राम की िया
यार्चका को, र्िसे भी समान कारण से गलत रूप से िांडार्िष्ट र्कया गया था, 7.4.1997 को फाांसी ि ेिी गई थी । उसकी िया
यार्चका को 14 र्िनों में 7.3.1997 को नामांिूर कर र्िया गया था ।
(vii) पश्िातवती अनविानता से वकए गए घोवषत वनणटयों के अिीन मृत्युदडं वदए गए अन्य कैवदयों के मामले
6.6.17 उच्चतम न्यायालय ने हाल के र्षों में बहुत से ऐसे र्र्र्नश्चयों को िखेा ह ैर्िनका पररणाम अनर्धानता से मृत्यिुांड में हुआ
ह।ै इस पहलू पर भी पूर्ि अध्याय में कारिर्ाई की गई ह ै।733
(क) ऐसे मामले, वजन्होंने रवजी के अनविानता से वकए गए वववनश्िय पर भरोसा वकया है
6.6.18 बररयार में उच्चतम न्यायालय ने रर्िी के मामले में गलती की ओर इांर्गत करन ेके पश्चात् ऐसे अन्य 6 मामलों को भी िखेा,
र्िनमें रर्िी के मामल ेका अनसुरण र्कया गया था और उसन ेअर्भर्नधािररत र्कया र्क य ेर्र्र्नश्चय भी सिोष र्कए गए थे :
र्शर्ािी बनाम महाराष्ट्र राज््य, मोहन अन्ना चर्ान बनाम महाराष्ट्र, बांटू बनाम उत्तर प्रिशे राज््य, सरुिा राम बनाम रािस्थान
राज््य, ियार्नर्ध र्बसोई बनाम उड़ीसा राज््य और उत्तर प्रिशे राज््य बनाम सतान ऐसे र्र्र्नश्चय हैं िहाां रर्िी का अनुसरण
र्कया गया ह ै। यह नहीं मामूल होता ह ैर्क इस न्यायालय ने इनमें से अर्धकाांश मामलों में िांड िने ेर्ाली स्र्थर्त में अपराधी से
728 ररिर्ी इर्लयास राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175 ।
729 सरुिा राम बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 6 एससीसी 271 । 730 (1996) 2 एससीसी 175
731 ररिर्ी इर्लयास राम चन्ि बनाम रािस्थान राज््य, (1996) 2 एससीसी 175, पैरा 24 पर । 732 बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1980) 2 एससीसी 684, पैरा 181 पर । 733 ऐस ेसभी मामलों से, र्िन्हें अनर्धानता से र्कया गया माना गया ह,ै कैर्ियों की व्यापक सचूी के र्लए सारणी 5.1 के प्रर्त र्निशे करें ।
138
सांबांर्धत र्कसी कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्त या अन्य पररस्र्थर्त पर र्र्चार र्कया ह ै। यह स्पष्ट ह ैर्क रर्िी पर न केर्ल र्र्चार
र्कया गया ह ैर्कन्तु इस र्बांि ुपर र्क िघन्य अपराधों में अपराधी से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयाां सांबद्ध नहीं हैं, उस पर प्रार्धकार के
रूप में भरोसा भी र्कया गया ह ै।734
6.6.19 न्यायालय ने, बररयार में, यह सांपे्रक्षण र्कया र्क यह स्पष्ट ह ैर्क इन 6 मामलों में 13 र्सद्धिोर्षयों से सांबांर्धत पररस्र्थर्तयों
में से कोई भी पररस्र्थर्त अर्भलेख पर नहीं लाई गई ह ैऔर उस पर उच्चतम न्यायालय द्वारा िांड िने ेर्ाले र्र्चार-र्र्मशि के िौरान र्र्चार
नहीं र्कया गया ह ै। ऊपर र्र्णित मामल े उच्चतम न्यायालय द्वारा बररयार में रर्िी का अनसुरण करने के कारण अनर्धानता से र्कए गए
र्र्र्नश्चय घोर्षत र्कए गए हैं । िसूरे मामले, अांकुश मारुर्त र्सांि ेऔर अन्य बनाम महाराष्ट्र राज््य735 को, िहाां 6 व्यक्र्तयों को रर्िी के
गलत तकि का स्पष्ट रूप से अनसुरण करके ऊपर र्र्णित िसेै मामलों में, मृत्यिुांड र्िया गया था, बररयार से कुछ र्िन पूर्ि र्र्र्नश्र्चत
र्कया गया था और इसर्लए उस र्र्र्नश्चय में उस पर ध्यान नहीं र्िया गया था ।
6.6.20 बररयार के पश्चातर्ती उच्चतम न्यायालय ने पनु: र्िलीप र्तर्ारी बनाम महाराष्ट्र राज््य736 में रर्िी के मामलें और अन्य
ऐसे मामलों में, र्िनमें रर्िी का अनसुरण र्कया गया था, की गई गलती के र्र्र्ाद्यक को उठाया । उच्चतम न्यायालय ने रािेश कुमार
बनाम राज््य737 में एक बार र्फर रर्िी रार् के मामल ेमें और ऐसे अन्य मामलों में, र्िन्होंन ेरर्िी के पूर्ि र्नणिय का अनसुरण र्कया था,
काररत न्याय की हत्या पर िोर र्िया । तत्पश्चात् उच्चतम न्यायालय ने मोर्हन्िर र्सांह बनाम पांिाब राज््य738 में यह अर्भर्नधािररत र्कया
र्क रर्िी का मामला और उसका अनसुरण करन ेर्ाले अन्य मामल ेिोषपूणि रूप से र्र्र्नश्र्चत र्कए गए हैं ।
(ख) साई बन्ना का मामला739
6.6.21 उच्चतम न्यायालय ने आलोक नाथ और बररयार में साई बन्ना बनाम कनािटक राज््य (‘साई बन्ना’) में मृत्यिुांड के अर्धर्नणिय
पर सांिहे र्कया ह ै। उस मामले के तथ्य य ेहैं र्क साई बन्ना ने अपनी पहली पत्नी की हत्या कर िी थी और उसको सांिहे था र्क र्ह उसके
प्रर्त बेर्फा थी । र्ह र्सद्धिोषी ठहराया गया था और उस े2.2.1993 को आिीर्न कारार्ास से िांडार्िष्ट र्कया गया था । उसने,
िबर्क र्ह परोल पर कारागार से बाहर था, पनु: र्र्र्ाह कर र्लया । पश्चातर्ती 13.9.1994 को िब उस ेपनु: परोल पर र्नमुिक्त
र्कया गया, उसने अपनी िसूरी पत्नी की भी यह सांिहे करते हुए हत्या कर िी र्क र्ह भी उसके प्रर्त बेर्फा थी । 1995 में उस पर िांड
प्रर्िया सांर्हता की धारा 303 के अधीन आरोप लगाए गए थे, िो आज्ञापक मृतयिुांड को र्र्र्हत करते थे, यद्यर्प उस धारा को उच्चतम
न्यायालय द्वारा मीठू बनाम पांिाब राज््य (‘मीठू’)740 में पहले ही र्र्खांर्डत र्कया िा चकुा था । उच्च न्यायालय ने िांड प्रर्िया सांर्हता
की धारा 303 के अधीन मृत्यिुांड की पषु्र्ट कर िी । उच्चतम न्यायालय ने अपील में र्नणिय को बनाए रखा ।741 उस न्यायालय ने
अर्भर्नधािररत र्कया र्क साई बन्ना को, िो पहल ेसे ही आिीर्न कारार्ास भुगत रहा ह,ै पनु: आिीर्न कारर्ास का िांड नहीं र्िया िा
सकता और इसर्लए केर्ल मृत्यिुांड ही उपलब्ध िांड था ।
734 सांतोष कुमार बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 63 पर ।
735 (2009) 6 एससीसी 667, पैरा 28 पर ।
736 र्िलीप र्तर्ारी बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2010) 1 एससीसी 775, पैरा 68 पर ।
737 रािेश कुमार बनाम राज््य, (2011) 13 एससीसी 706, पैरा 66 -70 पर ।
738मोर्हन्िर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (2013) 3 एससीसी 294, पैरा 37 पर । 739 साईबन्ना बनाम कनािटक राज््य, (2005) 4 एससीसी 165 । 740 मीठू बनाम पांिाब राज््य, (1983) 2 एससीसी 277 । 741 साईबन्ना बनाम कनािटक राज््य, (2005) 4 एससीसी 165 ।
139
6.6.22 पश्चातर्ती उच्चतम न्यायालय ने आलोक नाथ ित्ता बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य742 में यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क
अिीिार के मामल ेमें उच्चतम न्यायालय द्वारा अपनाया गया दृष्र्टकोण ‘सांिहेपूणि’ था । तत्पश्चात ्बररयार में, न्यायालय ने अर्भर्नधािररत
र्कया र्क साई बन्ना में उसका र्नणिय ‘मीठू और बचन र्सांह से असांगत’743 था, र्िनमें से िोनों सांर्धैार्नक न्यायपीठ के र्नणिय हैं । साई
बन्ना के मामल ेमें उच्चतम न्यायालय द्वारा गलती की यह स्र्ीकृर्त भी 14 सेर्ार्नरृ्त्त न्यायाधीशों द्वारा (र्िनमें एक पूर्िर्ती उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश, 5 उच्च न्यायालयों के पूर्िर्ती मखु्य न्यायामूर्ति और 8 उच्च न्यायालय के पूर्िर्ती न्यायाधीश सम्र्मर्लत थे),
राष्ट्रपर्त के ध्यान में लाई गई थी । राष्ट्रपर्त ने साई बन्ना की िया यार्चका को 4.1.2013 को नामांिूर कर र्िया ।
(ग) संगीत और खाद ेद्वारा अनविानता से वकए गए अवभवनिाटररत वववनश्िय
6.6.23 समान रूप से उच्चतम न्यायालय ने शांकर खाि ेमें धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य744 में मृत्यिुांड के अर्धरोपण
के सही होन ेपर सांिहे र्कया, िहाां न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया था र्क ‘र्कसी प्रस्तुत मामल ेमें िांड का माप अपराध की नृशांसता
; अपराधी के आचरण और पीर्ड़त के रक्षारर्हत और असांरर्क्षत होने की स्र्थर्त पर र्नभिर होना चार्हए । समरु्चत िांड का अर्धरोपण र्ह
रीर्त ह,ै र्िसमें न्यायालय अपरार्धयों के र्र्रुद्ध न्याय के र्लए समाि की पकुार का उत्तर ितेा ह ै।’745 खाि ेमें न्यायालय ने यह मत
व्यक्त र्कया र्क प्रथमदृष्टया र्नणिय ने अपराधी से सांबांर्धत कम करन ेर्ाली पररस्र्थर्तयों का लेखा-िोखा नहीं र्िया था । धनन्िय चटिी
को 2004 में फाांसी िी गई थी ।
6.6.24 समान रूप से, सांगीत में न्यायालय ने ऐसे अर्तररक्त 3 मामलों को िखेा िहाां गुरुतरकारी और कम करन ेर्ाली िोनों
पररस्र्थर्तयों पर र्र्चार करन ेके र्लए बचन र्सांह के र्निशे का अनसुरण नहीं र्कया गया था ।746
छ. फांसी पूवट स्वथवत में मृत्यु पंक्वत वाले वसद्धदोवषयों पर अविरोवपत ददट और पीडा के संवैिावनक वनवहताथट
6.7.1 भारत में मृत्य ुपांक्र्त र्ाले र्सद्धिोषी उस समय तक, िब तक र्े अपनी आपरार्धक अपीलों को र्न:शेष करते हैं, बहुत र्षि र्बता
चकेु होते हैं । एक बार िब उच्चतम न्यायालय द्वारा मृत्यिुांड की अांर्तम रूप से पषु्र्ट कर िी िाती ह,ै तब कोई र्सद्धिोषी, उसके द्वारा
भेिी गई िया यार्चका पर राज््यपाल और भारत के राष्ट्रपर्त से आिशे की प्रतीक्षा में र्षों र्बता ितेा ह ै। बहुधा मृत्य ुपांर्ि र्ाले र्सद्धिोषी
को, र्र्चारण न्यायालय द्वारा उसे मृत्यिुांड र्िए िाने के तुरांत पश्चात ्एकाांत परररोध में भेि र्िया िाता ह ैऔर र्ह बहुल फाांसी र्ारांटों के
र्लए भी अनार्ृत्त होता ह ै।
6.7.2 मृत्यिुांड के अधीन कैिी फाांसी पर लटकाने र्ाले फां ि ेके नीचे अपन ेअस्र्तत्र् को िसेै-तैस ेबनाए रखता ह ैऔर अत्यर्धक ििि,
र्चांता और र्सर पर मांडराती हुई फाांसी के कमिोर कर िने ेर्ाले डर से पीर्ड़त रहता ह ै। ऐसी अर्द्वतीय पररस्र्थर्तयों का र्मश्रण मृत्य ुपांक्र्त
र्ाले र्सद्धिोषी के र्लए घोर यातना र्ाली शारीररक और मनोर्जै्ञार्नक स्र्थर्तयाां उत्पन्न करता ह ै।747 इस प्रकार मृत्य ुपांक्र्त र्ाले कैिी
द्वारा सह ेगए इस अनभुर् को ‘मृत्य ुपांक्र्त आभास’ कहा िाता ह ै।
742 आलोक नाथ ित्त बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य, (2007) 12 एससीसी 230, पैरा 149-50 पर । 743 सांतोष कुमार बररयार बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2009) 6 एससीसी 498, पैरा 49-52 पर । 744 (1994) 2 एससीसी 220 ।
745 धनन्िय चटिी बनाम पश्र्चम बांगाल राज््य (1994) 2 एससीसी 220, पैरा 15 पर ।. इस र्र्र्नश्चय का अनन्य कें ि अपराध पर था और न र्क
र्सद्धिोषी से सांबांर्धत पहलओु ां पर था, अत: इस बारे में खाि ेमें प्रश्न उठाए गए थे ।
746 र्शर् ुबनाम महा रर्िस्ट्रार, कनािटक उच्च न्यायालय, (2007) 4 एससीसी ; रािेंि प्रलहािरार् र्ासर्नक बनाम महाराष्ट्र राज््य, (2012) 4 एससीसी
37 ; मो0 मन्नन बनाम र्बहार राज््य,(2011) 5 एससीसी 317 ।
747 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 61 पर ।
140
6.7.3 मृत्य ुपांक्र्त आभास के मखु्य सांघटकों में से एक मृत्यिुांड के अधीन िीर्र्त रहन ेके अर्द्वतीय िबार् से, र्िसके अांतगित र्सर पर
मडराती फाांसी का पूर्ािर्धारण करन ेकी मानर्सक व्यथा ह,ै सांबांर्धत ह ै। प्रत्यके क्षण का र्नकलना भी र्सद्धिोषी के र्लए आशा का भार्ी
दृश्य उपस्र्थत करता ह ैिो आर्ति में इस बारे में र्क र्ह घटनात्मक रूप से िीर्र्त रहगेा या नहीं, लगातार मानर्सक सांघषि उत्पन्न करता ह ै
।
6.7.4 आगे मृत्य ुपांक्र्त आभास में र्सद्धिोषी पर अर्धरोर्पत कारार्ास की िशाओां के, र्िनके अांतगित एकाांत परररोध और र्र्द्यमान
कठोर कारागार की िशाएां भी हैं, अपमानिनक प्रभार् के र्मल िाने से और र्ृर्द्ध हो िाती ह ै ।
6.7.5 सांर्धैार्नक रूप से यह प्रश्न, ऐसे पररदृश्य से उत्पन्न होने र्ाल ेर्नर्हताथों से सांबांर्धत ह,ै िहाां मृत्य ुपांक्र्त र्ाले र्सद्धिोषी को,
उसके मृत्यिुांड के र्नष्पािन के पूर्ि, लांबी अर्र्ध के र्लए कारार्ास में रखा िाता ह ैिहाां र्ह वयथा, ििि के बढने र्ाले स्तरों से और फाांसी
के फां ि ेकी सिरै् र्र्द्यमान छाया में िीर्र्त रहन ेसे उत्पन्न िबार् से पीर्ड़त रहता ह ै। प्रश्न यह ह ैर्क क्या र्सद्धिोषी द्वारा सहन र्कया िाने
र्ाला यह मानर्ता छीन लेने र्ाला और अपमानकारी अनभुर् र्कसी ऐसी र्र्र्धक िशा का गठन करता ह,ै िो पश्चातर्ती मृत्यिुांड के
र्नष्पािन को अननजेु्ञय बनान ेर्ाले का प्रभार् रख सकता ह ै।
6.7.6 उच्चतम न्यायालय ने टी.र्ी. र्ाथीस्र्रन बनाम तर्मलनाडु राज््य748 में और तत्पश्चात् शेरर्सांह बनाम पांिाब राज््य749 में
(‘शेरर्सांह’) और र्त्रर्ेनीबेन बनाम गुिरात राज््य750 (‘र्त्रर्ेनीबेन’) में मृत्य ुपांक्र्त र्ाले र्सद्धिोषी द्वारा उसके मृत्यिुांड के र्नष्पािन में
लांबे र्र्लांब के कारण उसके द्वारा सहन की िाने र्ाली पीड़ा की अपमानिनक और मानर्ता छीन लेने र्ाली प्रकृर्त को मान्यता िी ह ै।
न्यायालय ने लांबे र्र्लांब को ‘अकस्मात आ पड़न ेर्ाली पररस्र्थर्त’ के रूप में माना ह,ै िो मृत्यिुांड को अर्नष्पािनीय बनाने का प्रभार्
रखता ह ै।
6.7.7 र्षों से इस तथ्य के बारे में एक अांतरराष्ट्रीय सहमर्त प्रकट हुई ह ैर्क मृत्य ुपांक्र्त की कठोर िशाओां के अधीन ऐसे र्र्लांब के
पश्चात ्र्िससे बचा िा सकता ह,ै फाांसी िूर और अत्यर्धक िांड िने ेर्ाली होगी ।751
(i) मृत्यु पंक्वत में सहनशील लंबे वषट
6.7.8 उच्चतम न्यायालय, टी र्ी र्ाथीस्र्रन बनाम तर्मलनाडु राज््य (‘र्ाथीस्र्रन’)752 में अन्यथा र्र्र्धमान्य मृत्यिुांड के
अर्धरोपण के पश्चात् फाांसी लगाने की अनजु्ञा र्िए िाने के र्लए सम्यक् प्रर्िया रोध को बहुत ऊां चा स्थान ितेा ह ै । न्यायालय ने
र्ाथीस्र्रन में पहली बार फाांसी लगन ेके र्लए प्रतीक्षा करन ेर्ाली मृत्य ुपांक्र्त में र्कसी र्सद्धिोषी के फाांसी-पूर्ि कारागार में र्नर्हत पीड़ा
और ििि की अर्द्वतीय प्रकृर्त से र्नकलने र्ाले सांर्धैार्नक र्नर्हताथों को मान्यता िी । उच्चतम न्यायालय ने र्ाथीस्र्रन में अपने
र्र्श्लेषण को इस तथ्य पर आधाररत र्कया र्क अनचु्छेि 21 र्कसी कैिी में उसकी अांर्तम श्र्ास तक और तब तक भी िब तक र्क
उसकी गििन के चारों ओर फां िा कसा िाता ह,ै र्नर्हत करता ह ै। न्यायालय ने यह भी सांपे्रक्षण र्कया र्क पीड़ा के ढेर से र्भन्न कैिी को
मृत्यिुांड की छाया में र्षों तक िीर्र्त रहने के कारण भी सहन करना पड़ता ह,ै र्िससे बचा िा सकता ह ैऔर िो मृत्यिुांड के र्नष्पािन
की प्रर्िया को अऋि,ु अयकु्र्तयकु्त, मनमाना और सनकी बनाता ह ैऔर इसके कारण र्ह अनचु्छेि 21, अनचु्छेि 14 और
748 (1983) 2 एससीसी 68 । 749 (1983) 2 एससीसी 344। 750 (1983) 1 एससीसी 678 । 751 सोररांग र्सिस यूनाइटेड र्कां गडम, 161इयूआर.सीटी. एच.आर., 154 (1989) पर ; फ्राांर्सस र्सिस िमकैा (नां0 606/1994). यूएन डीओसी.
सीसीपीआर/सी/54/डी/606/1995 (1995) ; प्राट र्सिस अटानी िनरल, िमकैा, र्प्रर्ी काउांसेल अपील नां0 10, 12 (1993) । प्राट में र्प्रर्ी
काउांसेल (1994) 2 ए.सी. 33 में यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘र्कसी व्यक्र्त को मृत्य ुपांक्र्त में र्नलांर्बत िीर्न्तता की स्र्थर्त में रखा िाना यह िानते हुए र्क
र्कसी भी र्िन प्रार्धकारी िानबझूकर िीर्न समाप्त करने के सनुाए गए अपने र्नणिय के आशय को कायािन्र्र्त कर सकते हैं, मृत्य ुसे भी अर्धक िूरतापूणि था’ । 752 (1983) 2 एससीसी 68 ।
141
अनचु्छेि 19 के अधीन प्रर्तष्ठार्पत सम्यक् प्रर्िया गारांर्टयों का अर्तिामक ह ै।753 न्यायालय बाथीसर्रन में र्सद्धिोषी के अनचु्छेि
21 के अर्धकारों को की गई क्षर्त को भी र्नम्नर्लर्खत शब्िों में व्यक्त करता ह ै:
11. िब र्क हम मृत्यिुांड के पश्चात् लांबे र्र्लांब के मानर्ता छीन लेने र्ाल ेप्रभार् के बारे में लाडि स्कारमने और लाडि
ब्राइटमने से पूणितया सहमत हैं । हम एक छोटा से कैर्र्एट डालते हैं र्कन्तु केर्ल र्ही, र्फर हम आगे िा सकते हैं । हम
समझते हैं र्क र्र्लांब महत्र्हीन ह ैिब िांडािशे मृत्य ुह ै। र्र्लांब के र्लए कारण हो सकता ह,ै अपील के र्लए आर्श्यक समय
या प्रर्र्लांबन का र्र्चारण या कोई अन्य कारण, र्िसके र्लए अपराधी स्र्यां उत्तरिायी हो सकता ह,ै र्कन्तु इससे र्र्लांब के
मानर्ता छीन लेने र्ाल ेस्र्रूप में पररर्तिन नहीं होगा ।
12. मृत्यिुांड के र्नष्पािन में लांबे र्र्लांब के मानर्ता छीन लेन ेर्ाले तत्र् के सांर्धैार्नक र्नर्हताथि क्या हैं? हमें तुरांत
सांर्र्धान के अनचु्छेि 21 की ओर लौटना चार्हए क्योंर्क यह र्ह अनचु्छेि ह ैर्िसकी ओर हमें सांरक्षण के र्लए, िब
कभी िीर्न या स्र्तांत्रता खतरे में हो, प्रथम िखेना चार्हए । अनचु्छेि 21 कहता ह ै: ‘‘र्कसी व्यक्र्त को, उसके प्राण या
िरै्हक स्र्तांत्रता से र्र्र्ध द्वारा स्थार्पत प्रर्िया के अनसुार ही र्ांर्चत र्कया िाएगा, अन्यथा नहीं ।’’ अनचु्छेि 21 की
र्र्माओ का, र्िन्हें एक बार ए.के.गोपालन बनाम मिास राज््य (एआईआर1950 एससी 27) द्वारा सांकुर्चत र्कया गया
प्रतीत होता था, र्ास्तर् में मेनका गाांधी बनाम भारत सांघ [(1978)1एससीसी 248] और सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली
प्रशासन [(1978) 4 एससीसी 494] द्वारा र्र्स्तार र्कया गया ह ै।754 (िोर र्िया गया )
6.7.9 न्यायालय ने, नोयल ररल ेर्सेस एटानी िनरल755 में र्प्रर्र् काउांसेल के लाडि स्कारमने और लाडि ब्राइटमने की र्र्सम्मत राय
का पक्ष लेते हुए यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड के र्नष्पािन में लांबा र्र्लांब उस र्र्लांब के कारण और प्रकृर्त की ओर उिासीन
रहते हुए, र्सद्धिोषी के अर्धकारों, अनचु्छेि 21 का उल्लांघन करता ह ै। न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड के र्नष्पािन में
िो र्षि से अर्धक के र्र्लांब को मृत्यिुांड के अधीन व्यक्र्त को अनचु्छेि 21 का आह्वान करन ेऔर मृत्यिुांड अर्भखांर्डत करन ेकी माांग
करन ेके र्लए हकिार बनाने के र्लए पयािप्त समझा िाना चार्हए ।’756 िसूरे शब्िों में र्ाथीस्र्रन में िो र्षों की सीमा ने न्यार्यक र्र्लांब
को क्षमा सांबांधी र्र्लांब से र्भन्न रूप में नहीं माना अथाित् न्यायालय ने र्ाथीस्र्रन में इस सांरक्षण का र्र्स्तार र्र्चारण और अपील के
िौरान काररत र्र्लांबों तक भी कर र्िया । र्ाथीस्र्रन के इस पहलू पर शेरर्सांह की तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ द्वारा सांिहे र्कया गया
।757 न्यायालय ने शेरर्सांह में कहा र्क अपीलीय न्यायालय सामान्य िम में अपीलों में प्रर्िया करन ेके र्लए 4 या 5 र्षि तक लेते हैं,
उस समय से पृथक्, िो िया यार्चकाओां पर र्र्चार करन े के र्लए अनचु्छेि 72 और अनचु्छेि 161 के अधीन सांर्धैार्नक
प्रार्धकाररयों द्वारा र्लया िाता ह ै। अत: न्यायालय ने शेरर्सांह में र्ाथीस्र्रन न्यायालय द्वारा प्रर्तपार्ित की गई अनुभर् पर आधाररत
र्नयम की पहुांच (िो र्षि की) से र्र्चलन र्कया और अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्र्लांब की र्कसी पूर्ि अर्धाररत अर्र्ध को मृत्यिुांड की
र्नराशा की गारांटी िने ेर्ाला अर्भर्नधािररत नहीं र्कया िा सकता ।
6.7.10 उच्चतम न्यायालय की सांर्ैधार्नक न्यायपीठ ने र्त्रर्ेनीबेन758 में न्यायालय द्वारा शेरर्सांह में र्नकाले गए र्नष्कषों का भी पक्ष
र्लया । र्त्रर्ेनीबेन में न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क कोई भी मृत्य ुपांक्र्त र्सद्धिोषी, अपीलीय िीर्न चि में र्र्चारण के र्लए ली
िाने र्ाली अपनी अपील के र्लए प्रतीक्षा करते समय, अपन ेपक्ष में न्यार्यक आिशे पान े के र्लए ‘आशा की र्करण’ रखता ह ै ।
753 टी.र्ी. र्ाथीस्र्रन बनाम तर्मलनाडु राज््य, (1983) 2 एससीसी 68, पैरा 20 पर ; शेर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 2 एससीसी 644, पैरा
23 पर ; िगिीश बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (2009) 9 एससीसी 495, पैरा 48-49 पर । 754 टी.र्ी. र्ाथीस्र्रन बनाम तर्मलनाडु राज््य, (1983) 2 एससीसी 68, पैरा 11-12 पर । 755 1982 िांड र्र्र्ध पुनर्र्िलोकन 679 । 756 टी.र्ी. र्ाथीस्र्रन बनाम तर्मलनाडु राज््य, (1983) 2 एससीसी 68, पैरा 21 पर । 757 शेर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 2 एससीसी 344 । 758 र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एससीसी 678 ।
142
न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क ऐसी पररस्र्थर्तयों में, िहाां अपील अभी तक लांर्बत ह ै र्सद्धिोषी आकर्समक फाांसी की प्रतीक्षा
करन ेकी मानर्सक यांत्रणा से पीर्ड़त नहीं होता ह ै क्योंर्क मृत्यिुांड अभी तक र्नश्र्चत रूप से र्नश्र्चत नहीं हुआ ह ै । र्त्रर्ेनीबेन में
न्यायालय ने र्नश्र्चत शब्िों में अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्सद्धिोषी द्वारा अनचु्छेि 21 के प्रयोिन के र्लए र्कया गया र्र्लांब का िार्ा
केर्ल उस ेसर्िय करन ेर्ाला कहा िा सकता ह ैिब एक बार न्यार्यक प्रर्िया उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील खाररि कर र्िए िाने के
पश्चात ्समाप्त हो िाती ह ै।759
6.7.11 उच्च न्यायालय ने शेरर्सांह में यह भी अर्भर्नधािररत र्कया र्क अनुच्छेि 32 की ऐसी यार्चकाओां में र्कसी मृत्य ुपांक्र्त र्ाले
र्सद्धिोषी को उस र्र्लांब का लाभ उठाने की अनजु्ञा नहीं िी िा सकती, िो फाांसी में र्र्लांब करन ेके र्लए उसके द्वारा फाइल की गई
कायिर्ार्हयों के कारण काररत ह ै। न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया र्क र्कसी ऐसे मामल ेमें लघुकरण के र्लए कैिी के अर्भर्ाक् का
साम्यतापूणि आधार पर समझौता हो िाता ह ैयर्ि उसने र्कसी प्रकार अपनी िया यार्चका के र्नपटारे में काररत र्र्लांब के र्लए योगिान
र्िया ह ै।760
क. िार् में ववलंब का पुनरीवक्षत मानक
6.7.12 उच्चतम न्यायालय ने शेरर्सांह में और उसके पश्चात् र्त्रर्ेनीबेन में र्र्लांब की गणना से बाहर अपीली कायिर्ार्हयों में र्लए गए
समय को आगे बढाकर र्नष्पािन में पररहायि र्र्लांब के कारण अपमानिनक िांड पर र्र्र्ध को तात्पर्यित रूप से सवु्यर्स्र्थत र्कया ह ै।
र्ह र्सद्धिोषी का उसके द्वारा की गई कायिर्ार्हयों के कारण काररत र्र्लांब के र्लए लाभ का िार्ा करने के र्लए भी प्रर्तषेध करता ह ै।
इस पर ध्यान र्िया िाना ह ैर्क उच्चतम न्यायालय ने शेरर्सांह में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपीलों के र्नपटारे
का सामान्य अनभुर् इस कारण से 4 या 5 र्षि होन ेका उद्धत र्कया । तथार्प, इस कारण अांतरराष्ट्रीय सांन्र्नयमों में तब से पररर्तिन
हुआ ह ै।
6.7.13 नोएल ररले र्सिस एटानी िनरल761 में र्र्र्नश्चय र्कए िाने के एक िशक पश्चात् र्प्रर्ी काांउसेल ने प्राट एांड अिसि र्सिस
एिी आफ िमाएका (‘प्राट’)762 में अपन े र्र्र्नश्चय को, भारतीय उच्चतम न्यायालय के र्ाथीस्र्रन, शेरर्सांह और र्त्रर्ेनीबेन में
र्र्र्नश्चय का उद्धरण ितेे हुए, उलट र्िया और यह माना र्क लांबा र्र्लांब मृत्यिुांड को र्नष्पार्ित र्कए िाने के र्लए अमानर्ीय और
अपमानिनक बनाता ह ै। र्कन्तु ऐसा करन ेमें र्प्रर्ी काउांसेल ने र्र्लांब की एक स्र्स्थ समझ प्रस्तुत की । र्प्रर्ी काउांसेल आि मृत्य ुपांक्र्त
में कैिी के र्लए प्रतीक्षा के लांबे र्षों के िमनात्मक प्रभार् पर र्र्चार करते समय र्र्लांब की प्रकृर्त और र्र्लांब के कारणों के आधार पर
सरु्भन्नता नहीं करती ह ै। र्प्रर्ी काउांसेल का ध्यान केर्ल र्र्लांर्बत फाांसी से र्नकलने र्ाल ेमानर् अर्धकार सांबांधी र्नर्हताथों पर ह ै।
र्प्रर्ी काउांसेल ने प्राट में िखेा र्क भारतीय र्र्र्ध में अपमानिनक िांड का गठन करन ेर्ाले र्र्लांब की पररभाषा के पहलू पर र्ाथीस्र्रन से
र्त्रर्ेनीबेन तक र्र्चलन हुआ ह ैऔर उसन ेपूर्िर्ती का पक्ष र्लया । र्प्रर्ी काउांसेल ने अर्भर्नधािररत र्कया :
भारत में िहाां मृत्यिुांड आज्ञापक नहीं ह ैर्हाां अपील न्यायालय र्र्लांब को यह र्र्र्नश्चय करते हुए ध्यान में रखते हैं र्क क्या
मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए । र्ाथीस्र्रन बनाम तर्मलनाडु राज्य में न्यायाधीश र्चन्नप्पा रेड्डी ने पृष्ठ 353 पर
कहा :
...............न्यायालय ने यह अर्भर्नधािररत र्कया र्क मृत्यिुांड के र्नष्पािन में िो र्षि से अर्धक का र्र्लांब
मृत्यिुांड के अधीन र्कसी व्यक्र्त को अपने िांड को र्र्खांर्डत करन ेकी इस आधार पर माांग करन ेके र्लए हकिार
759 शेर र्सांह बनाम पांिाब राज््य, (1983) 2 एससीसी 344, पैरा 18-19 पर ; र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एससीसी 678, पैरा 16
पर ; र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एससीसी 678, पैरा 16 पर ; र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1988) 4 एससीसी 574, पैरा 2 पर ।
760 र्त्ररे्नीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एससीसी 17, 23 पर ; शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 48 पर ।
761 नोएल ररल ेर्सिस अटानी िनरल, 1982 िांड र्र्र्ध पुनर्र्िलोकन 679 । 762 (1994) 2 एसी 1।
143
बनाने के र्लए पयािप्त होना चार्हए र्क उसने भारतीय सांर्र्धान के अनचु्छेि 21 का अर्तर्तिन र्कया ह,ै िो
उपबांध करता ह,ै ‘‘र्कसी व्यक्र्त को, उसके प्राण या िरै्हक स्र्तांत्रता से र्र्र्ध द्वारा स्थार्पत प्रर्िया के अनसुार
ही र्ांर्चत र्कया िाएगा, अन्यथा नहीं ।’’ ।
शेरर्सांह और अन्य बनाम पांिाब राज््य में न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया :
‘मृत्यिुांड के र्नष्पािन में लांबा र्र्लांब र्नश्र्चत रूप से यह अर्धारण करने के र्लए महत्र्पूणि र्र्चारण ह ैर्क क्या
िांड को र्नष्पार्ित र्कए िाने की अनजु्ञा िी िानी चार्हए । र्कन्तु कोई भी पक्का र्नयम नहीं ह ैर्क मृत्यिुांड के
र्नष्पािन में िो र्षि से अर्धक र्र्लांब को मृत्यिुांड के अधीन व्यक्र्त को अनुच्छेि 21 का आह्वान करन ेऔर
मृत्यिुांड को र्र्खांर्डत करन े की माांग करन े के र्लए हकिार बनाने के र्लए पयािप्त समझा िाना चार्हए’
अर्धकर्थत र्कया िा सकता ह ैिसैा र्क र्ाथीस्र्रन में र्कया गया ह’ै’ ।
न्यायालय ने इांर्गत र्कया र्क िो र्षि की कठोर समय सीमा अर्धरोर्पत करना कैिी को तुच्छ और अमान्य कायिर्ार्हयों की
आर्र्लयों को करके न्याय के उद्दशे्य को र्र्फल करन ेमें समथि बनाएगा ।
श्रीमती र्त्रर्ेनीबेन बनाम गुिरात राज््य (1989) 1एससीिे 383 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने शेरर्सांह बनाम पांिाब
राज््य में र्नणिय का अनुमोिन र्कया और अर्भर्नधािररत र्कया र्क ‘सर्ोच्च न्यायालय’ द्वारा अर्धरोर्पत मृत्यिुांड, र्िसने
मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करते समय स्र्यां र्र्लांब का ध्यान रखा ह,ै उस तारीख के पश्चात् होन ेर्ाले र्र्लांब के आधार पर
उच्चतम न्यायालय को प्रस्तुत की गई यार्चका पर उसके पश्चात ्ही अपास्त र्कया िा सकता ह ै। न्यायाधीश ओिा ने पृष्ठ
410 पर कहा :
यर्ि, इसर्लए र्नष्पािन में अत्यर्धक र्र्लांब ह,ै तो र्सद्धिोष कैिी न्यायालय आकर यह अनरुोध करन ेका हकिार
ह ैर्क न्यायालय यह परीक्षा करे र्क क्या यह न्याय सांगत और ऋि ुह ैर्क मृत्यिुांड को र्नष्पार्ित र्कए िाने के
र्लए अनजु्ञा िी िाए ।’
न्यायाधीशों के र्र्चार में र्कसी ऐसे राज््य को, िो मृत्यिुांड बनाए रखन ेकी इच्छा रखता ह,ै यह सरु्नश्र्चत करन ेका
उत्तरिार्यत्र् अर्श्य स्र्ीकार करना चार्हए र्क फाांसी, अपील और क्षमा के र्र्चारण के र्लए यकु्र्तयकु्त समय की अनजु्ञा
ितेे हुए, यथासाध्यशीघ्र िांड के पश्चात ्होनी चार्हए । यह मानर् िशा का भाग ह ैर्क कोई र्सद्धिोष व्यक्र्त अपील प्रर्िया
के उपयोग के माध्यम से अपना िीर्न बचान ेके र्लए प्रत्यके अर्सर लेगा । यर्ि अपील प्रर्िया कैिी को अपीली सुनर्ाइयाां
र्षों तक लांबा करने में समथि बनाती हैं तो त्ररु्ट उस अपील प्रणाली की होगी िो ऐसे र्र्लांब की अनजु्ञा ितेी ह ैऔर न र्क
कैिी की, िो इसका लाभ उठाता ह ै। अपीली प्रर्ियाएां, र्िनम ेर्षों र्नकल िाते ह,ै मृत्यिुांड से सांगत नहीं ह ै। मृत्य ुपांक्र्त
आभास हमारे न्याय शास्त्र के भागरूप में स्थार्पत नहीं होना चार्हए । (िोर र्िया गया)
6.7.14 उच्चतम न्यायालय द्वारा र्ाथीस्र्रन में स्थार्पत िो र्षि का मानक न तो िया यार्चकाओां के र्र्चारण में कायिपार्लका के
र्र्लांब और न्यार्यक र्र्लांबों के बीच र्र्भािन के प्रर्त सांर्ेिनग्राही था और न उस र्र्लांब के प्रर्त, िो कैिी के मुकिमबेािी सांबांधी
प्रयासों के कारण काररत होती ह ै। उच्चतम न्यायालय ने र्ाथीस्र्रन में, िसैा र्क अब र्प्रर्ी काउांसेल ने प्राट में र्कया ह,ै मृत्य ुपांक्र्त
र्ाले र्सद्धिोषी पर ऐसे र्र्लांब के, र्िससे बचा िा सकता ह,ै पररणामों और प्रभार् पर र्सद्धाांतपूणि स्र्थर्त बनायी । तथार्प, र्ाथीस्र्रन
र्ाला र्र्र्नश्चय, र्िसन ेप्राट में र्प्रर्ी काउांसेल के र्र्र्नश्चय के र्लए सकारात्मक पूर्ि र्नणिय के रूप में कायि र्कया था, आि उलट र्िया
गया ह ै। र्त्रर्ेनीबेन में आकार र्िए गए रूप में र्र्र्ध लांर्बत अपीलों को मृत्य ुपांक्र्त आभास के अनसुार अनयुोज््य र्र्लांब के रूप में नहीं
मानती ह ै।
144
ख. ववलंवबत वनष्पादन वकसी दडं संबंिी ियोजन की पूवतट नहीं करता है और इसीवलए अत्यविक है
6.7.15 उच्चतम न्यायालय ने यह भी अर्भर्नधािररत र्कया ह ै र्क मृत्यिुांड का र्र्लांर्बत र्नष्पािन, उस समय िब न्यायालय ने
र्सद्धिोषी पर उसकी पषु्र्ट की थी, मूल रूप से आशा र्कए गए िाांर्डक प्रयोिनों में से र्कसी की पूर्ति नहीं करता ह ै। र्र्लांर्बत मृत्यिुांड
उस सीमा तक केर्ल मस्र्तष्क रर्हत और मध्यकाल की प्रर्तशोधात्मक क्र्ार्लटी के, िो िांड के र्तिमान सभ्यता सांबांधी सांन्र्नयमों का
उल्लांघन करती ह,ै िर्शित करता ह ैउच्चतम न्यायालय ने िगिीश बनाम मध्य प्रिशे राज््य763 में सांयकु्त राज््य के सांर्र्धान के 8र्ें
सांशोधन में िूर और असामान्य िांड के र्र्रुद्ध यह र्नयम बनाने के र्लए र्नषेधाज्ञा का आह्वान र्कया र्क र्र्लांर्बत फाांर्सयाां मृत्यिुांड के
प्रर्तशोधात्मक और भयपरर्तकारी िोनों तकों की पूर्ति करन ेमें असफल रहती हैं । न्यायालय ने कहा :
43...............................िांडशास्त्री और र्चर्कत्सा र्र्शेषज्ञ सहमत थे र्क मृत्य ुका र्नणिय र्नष्पार्ित करन ेकी प्रर्िया
बहुधा मानर् भार्ना के र्लए इतनी अपमानिनक और िूर होती ह,ै र्क र्िससे मनोर्जै्ञार्नक यांत्रणा र्मलती ह ै । काल्मन
र्सिस बाल्कोम [68 एल ईडी 2 डी 334 :451 यू एस 949 (1981)] यूएस पृष्ठ 952 पर न्यायालय ने सांपे्रक्षण
र्कया र्क ‘अर्नश्र्चतता की उस अर्र्ध के िौरान कारागार के भयपरर्तकारी मूल्य की तुलना स्र्यां अांर्तम किम के पररणाम
के साथ की िा सकती ह’ै और िब मृत्यिुांड ‘इन प्रयोिनों को आगे बढाने के र्लए र्ास्र्र्तक रूप से नहीं रह िाता ह,ै तो
उसका अर्धरोपण र्कसी र्र्चारणीय सामार्िक या लोक प्रयोिनों के र्लए केर्ल हार्शए में र्लखे योगिान के साथ र्बना
र्कसी प्रयोिन के और अनार्श्यक रूप से िीर्न को समाप्त करना होगा । राज््य के र्लए ऐसे उपेक्षणीय लाभ के साथ िांड
स्पष्ट रूप से अत्यर्धक और िूर तथा असामान्य िांड होगा, िो 8 र्ें सांशोधन का अर्तिामक होगा’ तथार्प न्यायालयों ने
एक सरु्भन्नता की ह ैर्िसके द्वारा अपराधी स्र्यां न्यार्यक प्रर्िया के िरुुपयोग द्वारा र्र्लांब के र्लए उत्तरिायी रहा ह ै। र्कन्तु
र्र्र्धक और सांर्र्धान सांबांधी उपचारों को करन ेमें अपराधी द्वारा र्लए गए समय को उसके र्र्रुद्ध उससे नहीं र्लया िा
सकता ।
44. इस पर बार-बार िोर र्िया गया ह ैर्क मृत्यिुांड के नीचे रेखाांर्कत िो र्सद्धाांत हैं :
(1) र्ह प्रर्तशोधात्मक होना चार्हए और
(2) उस ेभयपरर्तकारक के रूप में कायि करना चार्हए ।
और चूांर्क र्र्लांब का पूर्ोक्त िोनों कारकों को र्मटा डालने का प्रभार् होता ह,ै अत: अर्धक र्र्लांब के पश्चात ्र्कसी कैिी
को फाांसी िने ेका कोई और्चत्य नहीं हो सकता । कुछ अत्यर्धक ससुांगत सांपे्रक्षण ऊपर काल्मन र्सिस बाल्कोम [68 एल
ईडी 2 डी 334 :451 यू एस 949 (1981)] यूएस पृष्ठ 952 से उद्धत र्कए गए हैं ।
45. सांयकु्त राज््य के सांर्र्धान के 8र्ें सांशोधन की पृष्ठभूर्म में, िो उपबांध करता ह ैर्क :
‘अत्यर्धक िमानत अपेर्क्षत नहीं होनी चार्हए, न अत्यर्धक िमुािना अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए, न िूर और
असामान्य िांड र्िया िाना चार्हए’
मामल ेकी िाांच करते समय यह िखेा गया ह ैर्क यद्यर्प मृत्यिुांड अनजेु्ञय था र्कन्तु उसका प्रभार् र्र्लांब की िशा में खो गया
था । [ग्रेग र्सिस िार्ििया 49 एल ईडी 2डी 859 : 428 यूएस 153 (1976)]764
ii. वनरोि की अवैि एकांत दशाए ं
6.7.16 उच्चतम न्यायालय ने सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन (‘बत्रा’)765 में 1978 में एकाांत परररोध की पद्धर्त को र्र्र्ध
बाह्य कर र्िया । एकाांत परररोध को उच्चतम न्यायालय ने अन्य कैर्ियों से पृथक् र्कसी एकल सेल में र्कसी अपराधी के परररोध के रूप
763 (2009) 9 एससीसी 495 । 764 िगिीश बनाम मध्य प्रिशे राज््य, (2009) 9 एससीसी 495, पैरा 43-45 पर ।
145
में पररभार्षत र्कया ।766 उच्चतम न्यायालय ने सनुील बत्रा में यह सांपे्रक्षण र्कया र्क एकाांत परररोध, र्र्शेष न्यार्यक आिेश के अभार्
में, केर्ल तब अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ैिब कोई कैिी मृत्य ुके र्नष्पािनीय िांड के अधीन हो, अथाित् उसकी िया यार्चका राष्ट्रपर्त
द्वारा नामांिूर कर िी गई हो और उसके पश्चात् भी गांभीर र्नबंधनों और उपाांतरणों के अधीन न्यायालय ने अर्भर्नधािररत र्कया :
118. यह अनसुरण करता ह ैर्क र्कसी राज््य के राज््यपाल या भारत के राष्ट्रपर्त के समक्ष िया यार्चका के लांर्बत होन ेके
िौरान मृत्यिुांड र्नष्पार्ित नहीं र्कया िाएगा । इस प्रकार इन िो उच्च अर्धकाररयों द्वारा क्षमा प्रस्तार् के नामांिूर र्कए िाने
तक यह पहल ेसे कहना सांभर् नहीं ह ै र्क र्हाां कोई स्र्यां र्नष्पािनीय मृत्यिुांड ह ै । अत: कोई कैिी स्र्यां कायि करने र्ाले
मृत्यिुांड का र्र्षय र्र्र्धक रूप से केर्ल तभी होता ह ैिब कैिी का क्षमा आर्ेिन नामांिूर हो िाता ह ै । र्न:सांिहे उसके
पश्चात् कारागार अर्धर्नयम की धारा 30(2) आकर्षित होती ह ै। िया के र्लए एक िसूरा या कोई तीसरा, चौथा या और
आगे आर्ेिन उस ेउस प्रर्गि से तब तक बाहर नहीं ले िाता ह ैिब तक सक्षम प्रार्धकारी द्वारा मृत्यिुांड के र्नष्पािन को रोकने
र्ाला कोई र्र्र्नर्ििष्ट आिशे न हो ।767
6.7.17 िबर्क एकाांत परररोध की अर्धैता को उच्चतम न्यायालय द्वारा एक र्र्र्नश्चय से अर्धक में बहुत स्पष्ट र्कया गया ह ै। र्ह
पद्धर्त मृत्य ुपांक्र्त में कैर्ियों के र्लए र्र्शेष रूप से अभी तक व्याप्त ह ै। शत्रधु्न चौहान में, सनुील बत्रा के र्र्र्नश्चय पर भरोसा करते हुए
उच्चतम न्यायालय ने मृत्य ुपांक्र्त र्ाले कैर्ियों के र्लए एकाांत परररोध के व्यापक प्रयोग की र्र्द्यमानता के बारे में शोक व्यक्त र्कया ह ै
और कारगार प्रार्धकाररयों से सनुील बत्रा र्र्र्नश्चय को उसके र्ास्तर्र्क अर्भप्राय के अनसुार कायािन्र्र्त करन ेका आग्रह र्कया ह ै।
उच्चतम न्यायालय ने कहा :
91. र्त्रर्ेनीबेन [र्त्रर्ेनीबेन बनाम गुिरात राज््य, (1989) 1 एसीसीसी 678 : 1989 एससीसी (िाांर्डक) 246]
में इस न्यायालय ने यह कहा र्क र्कसी कैिी को एकाांत परररोध में रखना सनुील बत्रा (सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन
(1978) 4 एसीसीसी 494 : 1979 एससीसी (िाांर्डक)155] में र्र्र्नणिय के र्र्रुद्ध ह ैऔर यह ‘अर्तररक्त और
पृथक्’ िांड, िो र्र्र्ध द्वारा प्रार्धकृत नहीं र्कया गया ह,ै िनेे के बराबर होगा । यह पूणि रूप से िभुािग्यपूणि ह ैर्क न्यार्यक पक्ष
से र्चर स्थायी आख्यापनों के बार्िूि, इन उपबांधों का र्ास्तर्र्क कायािन्र्यन र्ास्तर्र्कता से िरू ह ै। हम इस अर्सर का
उपयोग िेल प्रार्धकाररयों से यह आग्रह करन े के र्लए करते हैं र्क र्े सुनील बत्रा (सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन
(1978) 4 एसीसीसी 494 : 1979 एससीसी (िाांर्डक)155] में अर्धमत के र्ास्तर्र्क आशय को समार्र्ष्ट
और कायािन्र्र्त करे ।768 (िोर र्िया गया)
6.7.18 उच्चतम न्यायालय ने अिय कुमार पाल बनाम भारत सांघ769 में यह िखेा र्क र्सद्धिोषी को एकाांत परररोध में, िब र्ह मृत्य ु
पांक्र्त में था, रखा गया था, न्यायालय ने कायिपार्लका प्रार्धकाररयों द्वारा िया यार्चका के र्नपटारे में र्र्लांब और एकाांत परररोध के
अर्धरोपण के कारण, मृत्यिुांड को आिीर्न कारार्ास में लघुकृत कर र्िया ।
6.7.19 इसी प्रकार एकाांत परररोध पर पीपलु्स यूर्नयन आफ डेमोिेर्टक राइट्स बनाम भारत सांघ और अन्य770 के मामल ेमें ससुांगत
अकस्मात आ पड़न ेर्ाली पररस्र्थर्त के रूप में र्र्चार र्कया गया था ।
ज. वनष्कषट
765 (1978) 4 एससीसी 494 । 766 सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन, (1978) 4 एससीसी 494, पैरा 91-92 पर । 767 सनुील बत्रा बनाम र्िल्ली प्रशासन, (1978) 4 एससीसी 494, पैरा 118 पर । 768 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 91 पर । 769 (2014) 13 स्केल 762 । 770 2015 (2) एडीिे 398 ।
146
6.8.1 कायिपार्लका की िया सांबांधी शक्र्तयाां मनमान ेऔर गलत मृत्यिुांडों की त्ररु्टयों को ठीक करती हैं और न्याय की हत्या के र्र्रुद्ध
अर्तररक्त प्राचीर का उपबांध करती हैं । अत: िया के र्लए अयोग्य पाए गए मामल ेमृत्यिुांड के पात्र होते हैं । इसर्लए िया सांबांधी शक्र्तयाां
इस प्रकार मृत्यिुांड के र्लए रक्षोपाय और आर्श्यक पूर्ि शति हैं ।
6.8.2 िब ररट न्यायालय न्यार्यक पनुर्र्िलोकन शक्र्तयों के अनसुरण में, तुलनात्मक र्नयर्मत आधार पर, कायिपार्लका के िया
यार्चकाओां के नामांिूर करन ेके र्र्र्नश्चयों को प्रर्िया सांबांधी अर्तिमणों, मनमानेपन और मस्र्तष्क का उपयोग न करन ेके कारण िरू्षत
पाते हैं, तो िया सांबांधी शक्र्तयों के रक्षोपाय बहुत अच्छी तरह कायि करते प्रतीत नहीं होते हैं ।
6.8.3 यह िखेना भी पीड़ािायक ह ैर्क मृत्य ुपांक्र्त र्ाले कैर्ियों को कारागार की अत्याचारपूणि िशाओां और र्र्चारण, अपील तथा
तत्पश्चात् कायिपार्लका की क्षमा में होन ेर्ाले लांबे र्र्लांबों से उत्पन्न होने र्ाली अर्तिखुिायी और शारीररक पीड़ाओां की असाधारण
र्मली-िलुी पररस्र्थर्तयों में रहना होता ह ै । कायिपार्लका प्रार्धकाररयों द्वारा िाांर्डक उल्लांघनों के कारण लघुकरण प्राप्त करन ेके र्लए
न्यार्यक पनुर्र्िलोकन उपचारों का आह्वान करन ेहतेु मृत्य ुपांक्र्त र्ाले कैर्ियों द्वारा र्कए गए बार-बार प्रयासों के बार्िूि एकाांत परररोध
की पद्धर्त और लांबे र्र्लांब र्बना रुके हुए बने रहने र्ाले प्रतीत होते हैं । आयोग का यह र्र्चार ह ैर्क मृत्य ुपांक्र्त आभास भारत में
मृत्यिुांड सार्धत्र का िभुािग्यपूणि और सरु्भन्न लक्षण बन गया ह ै।
6.8.4 आगे मृत्यिुांड र्ाले कैर्ियों पर अर्तररक्त असमर्थित और न्यार्यक रूप से मांिूरी न प्राप्त पीड़ाओां का र्िया िाना अपमानिनक
और अत्यर्धक िांड के र्र्रुद्ध अनचु्छेि 21 की रोध को भांग करता ह ै । इस पीड़ा की र्चरकालीन प्रकृर्त के कारण, िसेै ही कोई
न्यायालय र्कसी कैिी को मृत्यिुांड ितेा ह,ै प्रर्तर्िया का र्सलर्सला शरुु हो िाता ह ैऔर इसर्लए उसका र्र्स्तार ऐसे कैर्ियों की, िो
उच्चतम न्यायालय में और िया यार्चका र्ाली स्र्थर्त में र्र्फल हो िाने के पश्चात् फाांसी के समीप आ िाते हैं, सीर्मत सांख्या से परे हो
िाता ह ै।
6.8.5 मृत्यिुांड उद्योग, िसैा र्ह भारत में कायि करता ह,ै अन्यथा र्र्र्ध बाह्य िांड सांबांधी पद्धर्तयों से, िो ऐसा ििि, पीड़ा और यांत्रणा,
िो र्क बहुधा अनचु्छेि 21 द्वारा अनुज्ञात अर्धकतम पीड़ा से परे ह,ै ितेा ह ै। कैर्ियों पर अर्धरोर्पत इस िर्टल आभास के कमिोर
बना िने ेर्ाले प्रभार् ऐसे होते हैं र्िन्हें केर्ल िीर्र्त मृत्य ुकहा िा सकता ह ै।
6.8.6 िब र्क र्कसी र्र्र्शष्ट मामल ेमें मृत्य ुपांर्ि आभास से सांबांर्धत अर्धैताओां को मृत्यिुांड लघुकृत करन ेर्ाले ररट न्यायालयों
द्वारा सांबोर्धत र्कया िा सकता ह,ै र्कन्तु र्ह अर्धै पीड़ा, र्िसे र्सद्धिोषी मृत्यु पांक्र्त में र्र्द्यमान होते हुए सहते हैं, िशे में िाांर्डक न्याय
के प्रशासन पर एक लांबी छाया डालती ह ै।
147
अध्याय 7
वनष्कषट और वसफाररशें
क. वनष्कषट
7.1. 1 मृतयिुांड आिीर्न कारार्ास से अर्धक भयपरर्तकाररता के िांड शास्त्र सांबांधी उद्दशे्य की पूर्ति नहीं करता ह ै। आगे भारतीय
र्र्र्ध के अधीन आिीर्न कारर्ास से सांपूणि िीर्न के र्लए कारार्ास अर्भप्रेत ह,ै िो ऐसी न्यायपूणि छूटों के अधीन रहते हुए होता ह ै
र्िन्हें बहुत से राज््यों में गांभीर अपराधों के मामलों में बहुत र्षों के कारार्ास के पश्चात्, िो 30-60 र्षों के र्र्स्तार में होता ह,ै र्िया
िाता ह ै।771
7.1.2 प्रर्तशोध की िांड में महत्र्पूणि भूर्मका होती ह ै। तथार्प उसे प्रर्तर्हांसा तक नीचे नहीं लाया िा सकता ह ै।‘एक आांख के र्लए
एक आांख, िाांत के र्लए िाांत’ की धारणा का हमारे सांर्धैार्नक रूप से मध्यस्थता की गई आपरार्धक न्याय प्रणाली में कोई स्थान नहीं ह ै
। मृतयिुांड सांर्धैार्नक रूप से र्र्र्धमान्य िांड शास्त्र सांबांधी उद्दशे्यों की पूर्ति करन ेमें असफल होता ह ै।
7.1.3 पीर्ड़तों के र्लए न्याय में अांर्तम अध्यपुाय के रूप में मृतयिुांड के ऊपर ध्यान कें र्ित करन ेसे न्याय के पनु:स्थापन और पनुर्ािस
करन ेसांबांधी पहलू दृष्र्ट से ओझल हो िाते हैं । मृतयिुांड पर भरोसे से बीमार आपरार्धक न्याय प्रणाली की अन्य समस्याओां िसेै घर्टया
अनर्ेषण, अपराध र्नर्ारण और अपराध के पीर्ड़तों के अर्धकार, से ध्यान हट िाता ह ै। यह अर्नर्ायि ह ैर्क राज््य अपराध के पीर्ड़तों
का पनुर्ािस करन ेके र्लए प्रभार्ी पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीमें स्थार्पत करे । इसी समय यह भी आर्श्यक ह ैर्क न्यायालय िांड प्रर्िया सांर्हता,
1973 के अधीन यथोर्चत मामलों में पीर्ड़तों को समरु्चत प्रर्तकर िने ेके र्लए उनको िी गई शक्र्त का प्रयोग करे । पीर्ड़तों और
सार्क्षयों की आर्ािें बहुधा शक्र्तशाली अर्भयकु्त व्यक्र्तयों द्वारा िी गई धमर्कयों और र्नयोर्ित की गई अन्य उत्पीड़क तकनीकों द्वारा
शाांत कर िी िाती हैं । अत: यह आर्श्यक ह ैर्क साक्षी सांरक्षण स्कीम को स्थार्पत र्कया िाए । अर्धक अच्छे और अर्धक प्रभार्ी
अन्र्ेषण और अर्भयोिन के र्लए पुर्लस सधुारों की आर्श्यकता सार्िभौर्मक रूप से कुछ समय से अनभुर् की गई ह ैऔर उसके बारे में
पूर्र्िकता के आधार पर उपाय र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै।
7.1.4 र्पछले िशक में उच्चतम न्यायालय ने अनर्गनत अर्सरों पर मृतयिुांड सांबांधी मामलों में मनमान ेरूप से िांड िने ेके बारे में र्चांता
प्रकट की ह ै। न्यायालय ने यह िखेा ह ैर्क ऐसे मामलों को, िहाां मृतयिुांड अर्धरोर्पत र्कया गया ह ै , उन मामलों से, िहाां आिीर्न
कारार्ास के र्र्कल्प को लागू र्कया गया ह,ै र्भन्न करना कर्ठत ह ै। न्यायालय के अपन ेशब्िों में ‘बचन र्सांह के अत्यर्धक असमान
रूप से लागू र्कए िाने ने मृतयिुांड िने ेसांबांधी र्र्र्ध में अर्नश्र्चतता की स्र्थर्त को उत्पन्न र्कया ह,ै िो स्पष्ट रूप से सांर्धैार्नक सम्यक्
प्रर्िया और समानता के र्सद्धाांत के र्र्रुद्ध ह’ै । न्यायालय ने बचन र्सांह के मागििशिक र्सद्धाांतों के उल्लांघन में मृतयिुांड के गलती से
अर्धरोपण को भी अर्भस्र्ीकार र्कया ह ै। अत: मृतयिुांड का सांर्धैार्नक र्र्र्नयमन, र्िसका बचन र्सांह में प्रयास र्कया गया था, मृतयिुांड
का ‘मनमान ेरूप से और सनकीपन से अर्धरोर्पत र्कए िान ेका’ का र्नर्ारण करने में असफल रहा ह ै।
7.1.5 मृतयिुांड से ऐसे मनमानेपन को हटाने के र्लए कोई र्सद्धाांतपूणि पद्धर्त नहीं ह ै। अपराधों का कठोर, मानकीकरण या प्रर्गीकरण,
िो मामलों के बीच अांतर को ध्यान में नहीं रखता ह,ै मनमाना ह ैऔर य ेर्भन्न मामलों के साथ एक ही धरातल पर व्यर्हार करता ह ै।
कम प्रर्गीकरण र्ाला कोई मामला, िसेै बचन र्सांह र्र्रचना स्र्यां, प्रिशिनीय रूप में और स्र्ीकायि रूप में असफल रहा ह ै।
771 गोपाल र्र्नायक गोडसे बनाम महाराष्ट्र, एआईआर 1961 एससी.600 ; मारु राम बनाम भारत सांघ, (1981) 1 एससीसी 107 । माफी के र्नयमों के
उिाहरण के र्लए, िरे्खए महाराष्ट्र के ‘समयपूर्ि र्नमुिक्र्त के र्लए मागिर्निशेक तत्र्’ में प्रर्गि 6, तारीख 15.3.2010 ।
148
7.1.6 अनर्गनत सर्मर्त की ररपोटों ने और उच्चतम न्यायालय के र्नणियों ने यह माना ह ैर्क िशे में आपरार्धक न्याय का प्रशासन
गहरे सांकट में ह ै । स्रोतों की कमी, अन्र्ेषण के परुाने तरीके, अर्धक काम में लगा हुआ पुर्लस बल, अप्रभार्ी अर्भयोिन और कम
र्र्र्धक सहायता कुछ ऐसी समस्याएां हैं िो प्रणाली को घेरे हुए हैं । मृतयिुांड इस सांिभि के भीतर कायि करता ह ैऔर इसर्लए उसी
सांरचनात्मक और व्यर्स्था सांबांधी बाधाओां से पीर्ड़त ह ै। इसर्लए मृतयिुांड का प्रशासन इस प्रकार भूल करने र्ाला और िरुुपयोिन के
प्रर्त प्रहायि ह ै। प्रणाली की उच्श्रृांखलताएां भी ऐसे सामार्िक और आर्थिक रूप से हार्सए पर व्यक्र्तयों के र्र्रुद्ध अननपुार्तक रूप से
कायि करती हैं, र्िनके पास र्र्रोधी आपरार्धक न्याय प्रणाली के भीतर अपन ेअर्धकारों की प्रभार्ी रूप से र्कालत करन ेके र्लए स्रोतों
की कमी ह ै।
7.1.7 क्षमा सांबांधी शक्र्तयाां सामान्यता र्कसी अपराधी की न्यार्यक िोषर्सर्द्ध और उस ेिांड र्िए िाने के पश्चात् भूर्मका र्नभाती हैं ।
इन क्षमा सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग में राष्ट्रपर्त और राज््यपाल मामल ेके अर्भलेख की सांर्ीक्षा करन ेऔर िोर्षता या िांड के र्बांि ुपर
न्यार्यक अर्धमत से र्भन्न राय रखन ेके र्लए सशक्त ह ै। उस समय भी िब र्े इस प्रकार र्भन्न राय नहीं रखते हैं, र्े उन कारकों को ध्यान
में रखते हुए, िो न्यार्यक दृष्र्ट से बाहर और परे हैं, मामल ेमें कर्ठनाई ठीक करन,े गलती सधुारने और पूणि न्याय करने के र्लए अपनी
क्षमा सांबांधी शक्र्तयों का प्रयोग करन ेके र्लए सशक्त हैं ।772 क्षमा सांबांधी शक्र्तयाां िबर्क बहुत से र्र्चारणों और अपररर्तिनशील
अर्सरों के र्लए प्रयोिव्य होते हुए , न्यार्यक गलती या न्याय की हत्या की सांभार्ना के र्र्रुद्ध अांर्तम रक्षोपाय के रूप में भी कृत्य करती
हैं । यह इस शक्र्त का उपभोग करन ेर्ाले पर भारी उत्तरिार्यत्र् डालती हैं और मस्र्तष्क के पूणि उपयोिन, न्यार्यक अर्भलेखों की
सांर्ीक्षा और क्षमा सांबांधी यार्चका का न्यायर्नणियन करने में र्र्स्तृत प्रकार की िाांच, र्र्शेष रूप से न्यार्यक रूप से पषु्र्ट र्कए गए
मृत्यिुांडािशे के अधीन कैिी से, िो फाांसी र्िए िाने के र्कनारे पर ह,ै करन ेको आर्श्यक बनाती ह ै। आगे उच्चतम न्यायालय ने शत्रधु्न
चौहान773 में ऐसे र्र्र्भन्न ससुांगत र्र्चारणों को अर्भर्लर्खत र्कया ह,ै र्िनको िया यार्चकाओां का र्र्र्नश्चय करन ेमें गृह मांत्रालय द्वारा
ध्यान में रखा िाता ह ै ।
7.1.8 अनचु्छेि 72 और अनचु्छेि 161 के अधीन िया सांबांधी शक्र्तयों का प्रयोग मृत्यिुांड के अर्धरोपण में न्याय की हत्या के
र्र्रुद्ध अांर्तम रक्षोपाय के रूप में कायि करन ेमें असफल हुआ ह ै। उच्चतम न्यायालय ने बार-बार इस बारे में अांतरालों और अर्धैताओां
की तरफ इांर्गत र्कया ह ैर्क कैसे कायिपार्लका ने अपनी िया सांबांधी शक्र्तयों का र्नर्िहन र्कया ह ै। िब िया सांबांधी शक्र्तयों के प्रयोग
कभी – कभी घोर प्रर्िया सांबांधी अर्तिमणों और मस्र्तष्क का प्रयोग न र्कए िाने के कारण िरू्षत हो िाता ह ैतब मृत्यिुांड अरक्षणीय
हो िाता ह ै।
7.1.9 र्र्र्ध में रक्षोपाय इस अप्रर्तसांहरणीय िांड के प्रशासन के र्लए सांर्धैार्नक रूप से सरुर्क्षत र्ातार्रण को िने ेमें असफल हुए हैं ।
मृत्यिुांड के र्नष्पािन को सांर्धैार्नक रूप से र्नयर्मत करन ेके न्यायालयों के प्रयास हमशेा लाभप्रि नहीं रह े हैं ।
7.1.10 मृत्य ुपांक्र्त र्ाले कैिी र्र्चारणों, अपीलों और तत्पश्चात् कायिपार्लका की क्षमा में होन ेर्ाले र्र्लांबों का बराबर सामना कर
रह ेहैं । इस समय के िौरान, मृत्य ुपांक्र्त र्ाला कैिी घोर व्यथा, र्चांता, सन्र्नकट र्फर भी अर्नश्र्चत फाांसी से उत्पन्न होन ेर्ाल ेकमिोर
कर िने ेर्ाले डर से पीर्ड़त रहता ह ै। उच्चतम न्यायालय ने अर्भस्र्ीकार र्कया ह ैर्क ऐसी अर्द्वतीय पररस्र्थर्तयों का समामलेन मृत्यु
पांक्र्त र्ाले र्सद्धिोर्षयों के र्लए यातना झेलने र्ाली शारीररक और मनोर्जै्ञार्नक िशाएां उत्पन्न करता ह ै।774 आगे मृत्य ुपांक्र्त आभास
िोषर्सर्द्ध पर अर्धरोर्पत कारार्ास की िशाओां, र्िनके अांतगित एकाांत परररोध भी ह ैऔर र्र्द्यमान कठोर कारागार की िशाओां के
अपमानिनक और अत्याचारपूणि प्रभार्ों से बहुगुर्णत हो िाता ह ै। मृत्य ुपांक्र्त आभास भारत में मृत्यिुांड सार्धत्र का एक िभुािग्यपूणि और
772 केहर र्सांह बनाम भारत सांघ, (1989) 1 एससीसी 204, पैरा 7, 10 और 16 पर । 773 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 55-56 पर । 774 शत्रधु्न चौहान बनाम भारत सांघ, (2014) 3 एससीसी 1, पैरा 61 पर ।
149
र्र्र्शष्ट लक्षण ह ै । आगे मृत्यिुांड के कैर्ियों को अर्तररक्त, अर्ाांर्छत और न्यार्यक रूप से मांिूर न की गई पीड़ाओां को पहुांचाना
अपमानकारी और अत्यर्धक िांड के र्र्रुद्ध अनचु्छेि 21 की रोध का अर्तिमण करता ह ै।
7.1.11 मृत्यिुांड को बनाए रखन ेमें और इसे व्यर्हार में लान ेमें भारत छोटे और हमशेा प्रर्तष्ठा कम होने र्ाले राष्ट्रों के समूह का
भाग ह ै । 140 िशे अब र्र्र्ध में या व्यर्हार में मृत्यिुांड समाप्त करने र्ाले बन गए हैं । र्े प्रिर्शित करते हैं र्क मानर् गररमा और
र्शष्टता के र्र्कासशील मानक मृत्यिुांड का समथिन नहीं करते हैं । सफलतापूर्िक और लगातार मृत्यिुांड का समाप्त र्कया िाना भी इस
बात की पषु्र्ट करता ह ैर्क मृत्यिुांड को बनाए रखना राज््य प्रर्तरोध, आतांक या र्हांसात्मक अपराध का प्रभार्ी रूप से उत्तर िने ेके र्लए
आर्श्यक नहीं ह ै ।
ख. वसफाररश
7.2.1 आयोग र्सफाररश करता ह ै र्क ऊपर परैा 7.1.3 में सझुार् र्िए गए उपाय, र्िनके अांतगित परु्लस सधुारों, साक्षी सांरक्षण
स्कीम और पीर्ड़त प्रर्तकर स्कीम के र्लए उपबांध हैं, यथाशीघ्र सरकार द्वारा र्कए िाने चार्हए ।
7.2.2 हमारे अपन े न्यायशास्त्र का आगे बढना- 1955 में मृत्य ुकी बिाय आिीर्न कारार्ास अर्धरोर्पत करन ेके र्लए र्र्शेष
कारण िने ेकी अपेक्षा हटाना; 1973 में मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करने के र्लए र्र्शेष कारणों की अपेक्षा करना ; 1980 तक, िब
मृत्यिुांड को उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम’ तक र्नबंर्धत र्कया गया था – उस र्िशा को िर्शित करता ह,ै
र्िसमें हमें आगे िाना ह ै । िीर्न के अर्धकार की र्र्स्तार की गई और गहरी अांतर्िस्तुओ ां द्वारा अर्गत अनभुर् से और राज््य तथा
व्यक्र्तके बीच पारस्पररक र्ियाओां में सदुृढ की गई सम्यक् प्रर्िया अपेक्षाओां, र्र्द्यमान सांर्धैार्नक नैर्तकता और मानर् गररमा के
मानकों द्वारा प्राप्त िानकारी के सांिभि में आयोग अनभुर् करता ह ैर्क भारत के र्लए मृत्यिुांड समाप्त करने की र्िशा में आगे बढन ेका
समय आ गया ह ै।
7.2.3 यद्यर्प, आतांकर्ाि को अन्य अपराधों से र्भन्न रूप में मानन ेके र्लए कोई र्र्र्धमान्य िांड सांबांधी न्यायोर्चतय नहीं हैं, तथार्प
इस बारे में बहुधा र्चांता उठाई गई ह ैर्क आतांकर्ाि से सांबांर्धत अपराधों और यदु्ध करन ेके र्लए मृत्यिुांड को समाप्त करन ेसे राष्ट्रीय
सरुक्षा पर प्रभार् पडे़गा । तथार्प र्र्र्ध बनाने र्ालों द्वारा उठाई गई र्चांताओां को िखेते हुए आयोग आतांकर्ाि सांबांधी अपराधों से र्भन्न
सभी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड समाप्त करन ेकी र्िशा में पहला किम उठाने के र्लए और प्रतीक्षा करन ेका कोई कारण नहीं िखेता ह ै।
7.2.4 यह आयोग तिनसुार र्सफाररश करता ह ैर्क मृत्यिुांड आतांकर्ाि सांबांधी अपराधों और यदु्ध करन ेके र्लए अपराध से र्भन्न सभी
अपराधों के र्लए समाप्त कर र्िया िाए ।
7.2.5 यह आयोग र्र्श्र्ास करता ह ैर्क यह ररपोटि सभी अपराधों के र्लए मृत्यिुांड समाप्त र्कए िाने पर अर्धक तार्कि त र्सद्धाांतपूणि
और िागरूक र्र्चार-र्र्मशि के र्लए योगिान िगेी ।
7.2.6 आगे यह आयोग शदु्ध हृिय से आशा करता ह ै र्क मृत्यिुांड को पूणिरूप से समाप्त करन ेकी र्िशा में गर्त तीव्र और
अपररर्तिनीय होगी ।
[न्यायमूवतट ए. पी. शहा]
अध्यक्ष
[न्यायमूवतट एस. एन. कपूर]
सदस्य
[िो0 (डा0) मूल िन्द शमाट]
सदस्य
[नयायमूवतट ऊषा मेहरा]
सदस्य
150
[पी.के.मल्होत्रा]
पदेन सदस्य
[डा0 संजय वसंह]
पदेन सदस्य
[डा0 जी. नारायण राजू]
सदस्य –सविव
[आर. वेंकर्रमानी]
सदस्य (अंशकावलक)
[िो0 (डा0) गुरजीत वसंह]
सदस्य (अंशकावलक)
[डा0 बी.एन. मवण]
सदस्य (अंशकावलक)
उपाबंि I
भाग लेने वालों की सूिी
I. भारत का वववि आयोग
1. न्यायमूर्ति ए पी शहा
अध्यक्ष
2. न्यायमूर्ति एस एन कपूर
सिस्य
3. न्यायमूर्ति ऊषा महेरा
सिस्य
4. प्रो0 (डा0) मूल चन्ि शमाि
सिसय
5. डा0 िी नारायण रािू
सिस्य - सर्चर्
6. पी.के. मल्होत्रा
र्र्र्ध सर्चर् (पिने सिस्य)
7. प्रो (डा0) योगेश त्यागी
सिस्य (अांशकार्लक)
8. आर र्ेंकटरमानी
सिस्य (अांशकार्लक)
151
9. डा0 (श्रीमती) पर्न शमाि
सांयकु्त सर्चर् और र्र्र्ध अर्धकारी
10. ए.के. उपाध्याय,
अपर र्र्र्ध अर्धकारी
11. डा0 र्ी.के. र्सांह
उप र्र्र्ध अर्धकारी
II. मुख्य अवतवथ
1. गोपाल कृष्ण गाांधी
भूतपूर्ि राज््यपाल, पश्र्चम बांगाल
III. अन्य वक्ता
1. न्यायमूर्ति प्रभा श्रीिरे्न, सेर्ार्नरृ्त्त न्यायाधीश, मिास उच्च न्यायालय
2. न्यायमूर्ति हसबेट सरेुश, सेर्ार्नरृ्त्त न्यायाधीश, ममु्बई उच्च न्यायालय
3. मनीष र्तर्ारी, भूतपूर्ि सूचना और प्रसारण मांत्री
4. न्यायमूर्ति र्बलाल निकी, अध्यक्ष, बी.एच.आर.सी.
5. यगु चौधरी, अर्धर्क्ता, ममु्बई
6. आशीश खेतान, प्रर्क्ता, एएपी
7. प्रो0 डा0 सी रािकुमार, उप कुलपर्त, ओ.पी. र्िन्िल ग्लोबल यरु्नर्र्सिटी, सोनीपत, हररयाणा
8. प्रो0 रणबीर र्सांह, उप कुलपर्त, रा.र्र्.र्र्., र्िल्ली
9. िूर्लयो ररबेररयो, सेर्ार्नरृ्त्त परु्लस अर्धकारी
10. मिीि ममेन, सांसि ्सिस्य और र्ररष्ठ अर्धर्िा
11. बृांिा कारत, महासर्चर्, सीपीआई(एम)
12. शांकर सेन, भूतपूर्ि महार्निशेक, र्िल्ली परु्लस/राष्ट्रीय मानर् अर्धकार आयोग
13. न्यायमूर्ति के. चांि,ू भूतपूर्ि न्यायाधीश, मिास उच्च न्यायालय
14. प्रो0 एन आर माधर् मनेन, भूतपूर्ि उप कुलपर्त, नेशनल िूररर्डकल स्कूल, कोलकाता
15. न्यायमूर्ति रार्िन्िर सच्छर, भूतपूर्ि न्यायाधीश, र्िल्ली उच्च न्यायालय
16. शर्श थरूर, भूतपूर्ि कें िीय मांत्री
17. कार्नमोझी, सांसि ्सिस्य, डीएमके
152
18. प्रो0 रोिर हुड, सेंटर आफ र्िर्मनोलोिी, यूर्नर्र्सिटी आफ आक्सफोडि
19. िषु्यांत िर्,े र्ररष्ठ अर्धर्क्ता
20. टीआर अांध्यारुर्िना, र्ररष्ठ अर्धर्क्ता
21. प्रो0 मोहन गोपाल, अध्यक्ष राष्ट्रीय न्यायालय प्रबांध प्रणाली, उच्चतम न्यायालय
22. आनन्ि ग्रोर्र, र्ररष्ठ अर्धर्क्ता
23. र्िाहत हबीबुल्ला, भूतपूर्ि, मखु्य सूचना आयकु्त, भारत सरकार
24. डी आर कार्तिकेयन, भूतपूर्ि महार्निशेक, राष्ट्रीय मानर् अर्धकार आयोग
25. र्रुण गाांधी, सांसि ्सिस्य लोक सभा
26. सांिय हगेडे, अर्धर्क्ता
27. चमन लाल, सेर्ार्नरृ्त्त र्ररष्ठ परु्लस अर्धकारी
IV. अन्य आमंवत्रती/भाग लेने वाले
1. कुसमुिीत र्सांधू, सर्चर्, न्याय र्र्भाग, र्र्र्ध और न्याय मांत्रालय, भारत सरकार
2. नर्ाि कोतर्ाल, परामशी, न्याय र्र्भाग
3. िी.एस. बािपेई, रर्िस्ट्रार, रा.र्र्.र्र्., र्िल्ली
4. कोर्लन गोनसाल्र्से, एचआरएलएन
5. र्नत्या रामकृष्णन, र्ररष्ठ अर्धर्क्ता
6. िर्ाहर रािा, अर्धर्क्ता
7. रानी शांकरिास, पीआरएिेए
8. अमन लेखी, र्ररष्ठ अर्धर्क्ता
9. डा0 र्ाईएसआर मूर्ति, अध्यक्ष, ओ.पी.र्िन्िल गोपाल र्र्श्र्र्र्द्यालय, हररयाणा
10. न्यायमूर्ति एस.बी. र्सांहा, सेर्ार्नरृ्त्त न्यायाधीश, र्िल्ली उच्च न्यायालय
11. डी नागासेला, पीयूसीएल
12. र्ृांिा ग्रोर्र, र्ररष्ठ अर्धर्क्ता
13. सांर्हता अांबष्ट, अर्धर्क्ता
14. अरघ्या सेनगुप्ता, र्र्र्ध सेंटर आफ लीगल पार्लसी, नई र्िल्ली
15. पीएम नायर, सेर्ार्नरृ्त्त परु्लस अर्धकारी
16. मीरन सी बोरर्ांकर, अपर महार्निशेक, महाराष्ट्र (कारागार)
153
17. र्त्रिीप पायस, अर्धर्क्ता
18. शार्लनी गेरा, िग लग
19. रर्र् नायर, एसएएचआरडीसी
20. र्ृांिा भांडारी, अर्धर्क्ता
21. सहुास चकमा, एसीएचआर
22. ऊषा रामचांिन, सामार्िक कायिकताि
23. शाररब अली, र्ि क्र्र्ल फाउांडेशन
24. अर्नल गुलाटी, सांयकु्त सर्चर्, न्याय र्र्भाग, र्र्र्ध और न्याय मांत्रालय, भारत सरकार
25. र्नमशे िसेाई, र्निशेक, इहबास
26. डा0 अनूप सरुेंिनाथ, र्निशेक, मृत्यिुांड पररयोिना, रा.र्र्.र्र्., र्िल्ली
27. र्ेंकटेश, सीएचआरआई
28. मनोि र्मट्ट, र्ररष्ठ सांर्ाििाता
29. र्ी र्ेंकटेशन, र्ररष्ठ सांर्ाििाता
30. प्रर्ीण स्र्ामी, र्ररष्ठ सांर्ाििाता
31. डा0 अपणाि चन्िा, सहायक प्रोफेसर, रा.र्र्.र्र्., र्िल्ली
32. डा0 मृणाल सतीश, एसोर्शएट प्रोफेसर, रा.र्र्.र्र्., र्िल्ली
पररवशष्र् क
सेर्ा में
अध्यक्ष,
भारत का र्र्र्ध आयोग,
नई र्िल्ली
महोिय,
मैं सािर र्र्नम्रतापूर्िक कहती हूां र्क मृत्यिुांड की समाप्र्त के बारे में आपके द्वारा की गई र्सफाररशों का मैं समथिन नहीं करती हूां । अत:
मैं मृत्यिुांड बनाए रखन ेके र्लए अपन ेकुछ र्र्चारों को र्लख रही हूां ;
1. मृत्यिुांड भारतीय िांड सांर्हता के र्र्र्भन्न उपबांधों में उिाहरण के र्लए धारा 376ड., 364क, 302 आर्ि में, अन्य
के अर्तररक्त, आया ह ै। य ेउपबांध मृत्यिुांड या आिीर्न कारार्ास के अर्धरोपण के र्लए उपबांध करते हैं । क्या िीर्न
या मृत्य ुउर्चत िांड होगा, यह उस न्यायालय के र्र्र्ेकार्धकार पर ह,ै र्िससे उस मामल ेके तथ्यों और अपराध की
गांभीरता और उसकी उग्रता या बबिरता का ध्यान रखते हुए बुर्द्धमततापूर्िक उसका प्रयोग करने की आशा की िाती ह ै।
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2. यह कहना र्क मामल ेका र्र्र्नश्चय करते समय और मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करते समय र्नणिय में गलती हुई ह ैया र्ह
र्र्भेिकारी ह,ै र्ह मरेी समझ में बहुत साधारण कथन ह ै। इसके अर्तररक्त गलती करना मानर्ीय ह ै। ईश्र्र ही केर्ल
पूणि न्याय करने र्ाला ह ै । उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, मानर्ीय गलती की पररसीमा के अधीन रहते हुए अपन े
सर्ोत्तम रूप से कायि करते हैं । र्कन्त ुइसका यह अथि नहीं ह ैर्क मृत्यिुांड का उपबांध सभी मामलों में, उनकी गांभीरता
और िघनयता का ध्यान रखे र्बना, समाप्त र्कया िाना चार्हए । अन्यथा भी उस समय तक, िब तक मामला उच्चतम
न्यायालय पहुांचता ह,ै र्ह उच्च न्यायालय की सांर्ीक्षा से र्नकलता ह,ै िो सत्र न्यायालयों द्वारा र्कए गए र्निशे पर
मृत्य ुकी पषु्र्ट करता ह ै।
3. र्फरौती के र्लए, िनता के बीच आतांक फैलान े और अपन े सहयकु्तों तथा काडरों को मकु्त कराने के र्लए
आतांकर्ार्ियों द्वारा व्यपहरण ने गांभीर र्र्माओां को प्राप्त कर र्लया ह ै। र्फरौती के र्लए व्यपहरण और अपहरण की
र्र्भीर्षका में र्ृर्द्ध हो रही ह ै। अत: अपनी बुर्द्ध के अनसुार मृत्यिुांड कानूनी पुस्तक में होना ही चार्हए ।
4. कहने के र्लए र्क मानर् मस्र्तष्कों का, िो ऐसे िांडों का र्नयांत्रण, प्रबांध और प्रशासन करते हैं, स्र्ाभार्र्क झुकार्, िो
उन्हें अपररहायि रूप से मनमाना बना ितेा ह,ै सही नहीं ह ै। क्या हम ‘कसाब’ ‘अफिल गुरु’ िसेै मामलों को दृष्र्ट से
ओझल कर सकते हैं, र्े समाि की सरुक्षा, रक्षा और शाांर्त के र्लए खतरा प्रस्तुत करते हैं । बहुत से र्निोषों का
िीर्न समाप्त हो िाता ह ै । ऐसे मामलों में ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ के र्सद्धाांत पर र्िया गया अत्यर्धक िांड
मनमाना या र्र्भेिकारी नहीं कहा िा सकता । र्ास्तर् में ररपोटि में मृत्यिुांड के अधीन व्यक्र्तयों के मानर् अर्धकार
सांबांधी र्सद्धाांत पर, यद्यर्प उसी समय र्निोष पीर्ड़तों के मानर् अर्धकारों को भुलाते हुए, बहुत अर्धक िोर र्िया गया
ह ै।
5. िसैा र्क मरेे द्वारा पहल ेही इांर्गत र्कया गया ह,ै गलती की सांभार्ना मृत्यिुांड समाप्त करने के र्लए कारण नहीं होनी
चार्हए । उच्चतम न्यायालय ने बचन र्सांह के मामल ेमें ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ के र्सद्धाांत की व्याख्या की थी,
र्िस र्सद्धाांत पे समय के परीक्षण का सामना र्कया ह,ै यह न तो असफल हुआ ह ैऔर न डगमगाया ह ै। ‘र्नठारी’ को
िसूरा कौन सा िांड र्िया िा सकता था । ऐसे िघन्य अपराध के मामलों में अत्यर्धक अध्यपुाय समाि की रक्षा और
सरुक्षा को ध्यान में रखते हुए, उन्हें कठोर िांड िने ेके र्लए अपेर्क्षत हैं ।
6. हाल में उच्चतम न्यायालय ने र्र्िम र्सांह @र्र्की और अन्य बनाम भारत सांघ और अन्य के मामले में, िो उसने
25.8.2015 को र्र्र्नश्र्चत र्कया था, यह कहा र्क ‘हमारे िसेै सांसिीय प्रिातांत्र में र्र्र्धयाां सांसि ्या राज्य र्र्धान
मांडलों द्वारा सांर्र्धान के अधीन र्र्र्नििष्ट उनके अपन-ेअपन े र्र्धायी के्षत्रों के भीतर अर्धर्नयर्मत की िाती हैं । इन
र्र्र्धयों से सांबांर्धत उपधारणा यह ह ैर्क र्ह समाि सांबांधी माांगों को पूरा करने के र्लए और समय की चनुौती को
स्र्ीकार करने के र्लए तात्पर्यित हैं, र्र्धान मांडल के र्लए यह उपधारणा की िाती ह ै र्क र्े सर्ोच्च रूप से परम
बुर्द्धमान और ऐसी आर्श्यकताओां तथा चनुौर्तयों के प्रर्त िागरूक ह’ै । यूएसए के सपु्रीम कोटि ने भी र्र्र्नश्चयों के
सांर्क्षप्त र्र्र्रण पर आधाररत रोनल्ड एलन हामरे्लांन र्सिस र्मर्शगन 501 यूएस 957 में हाल के मामले में ऐसी
स्र्थर्त को, िो आनपुार्तकता की सीमाओां की परीक्षा की अपेक्षा करती थी, लागू कुछ सामान्य र्सद्धाांतों को बनाया ।
न्यायालय द्वारा प्रख्यार्पत पूर्ि र्र्र्नश्चय से र्नकाला गया पहला र्सद्धाांत यह था र्क अपराधों के र्लए र्र्र्हत िांड
र्र्धान मांडल के पास ह,ै र्क न न्यायालयों के पास और यह र्क न्यायालयों को र्र्धान मांडल की बुर्द्धमत्ता को
सम्मान िनेा चार्हए ।
7. मनरुाम बनाम भारत सांघ (1981)1 एससीसी 107 में न्यायालय ने कहा र्क ‘ऊपर र्र्णित पररस्र्थर्तयों के
र्र्चारण पर र्नष्कषि ऐसा ह,ै र्िससे बचा नहीं िा सकता र्क सांसि ्ने धारा 433क को अर्धर्नयर्मत करके हमारे िेश
में र्र्द्यमान िशाओां को दृष्र्ट में रखते हुए तत्समय उसके द्वारा अनधु्यात अपराधों के सांबांध में िांड के सधुारात्मक
155
स्र्रूप को नामांिूर कर र्िया ह ै। यह सुस्र्थर ह ैर्क र्र्धान मांडल अपनी िनता की आर्श्यकताओां और अपेक्षाओां को
न्यायालयों से बहुत अर्धक अच्छे रूप में समझता ह ै। भारत सरकार ने मृत्यिुांड पर अर्धस्थगन की माांग करन ेर्ाले
सांयकु्त राष्ट्र महासभा के सांकल्प के र्र्रुद्ध मतिान र्कया ह ै। नर्म्बर, 2012 में, भारत ने मृत्यिुांड पर अपनी स्र्थर्त
को, मृत्यिुांड का र्ििन करन ेकी माांग करने र्ाले सांयकु्त राष्ट्र महासभा के प्रारूप सांकल्प के र्र्रुद्ध मतिान करके, पनु:
बनाए रखा । यह हमारे िशे में र्र्द्यमान िशाओां के अर्तररक्त अपनी िनता की आर्श्यकताओां और अपेक्षाओां के
बारे में र्र्धान मांडल की समझ को िर्शित करता ह ै।
8. मध्य प्रिशे राज््य बनाम बाला उफि बुलाराम (2005) 8 एससीसी 1 के मामल ेमें न्यायालय ने कहा ‘िांड सांर्हता
द्वारा र्र्र्हत िांड सामार्िक आर्श्यकताओां की र्र्धायी मान्यता, सांबांर्धत अपराध की गांभीरता, समाि पर उसके
प्रभार् और र्कसी र्र्र्शष्ट अपराध के र्लए उपयकु्त िांड के रूप में र्र्धान मांडल क्या समझता ह,ै उसको प्रर्तर्बांर्बत
करता ह ै‘।
9. र्र्िम र्सांह (ऊपर) के मामले में अपीलाथी ने भारतीय िांड सांर्हता की धारा 364क की र्र्र्धमान्यता पर आके्षप
र्कया था, िब र्क न्यायालय ने भारतीय िांड सांर्हता की धारा 364क की सांर्धैार्नक र्र्र्धमान्तया को बनाए रखते
हुए कहा र्क धारा 364क कानूनी पसु्तक में प्रारांभ में 1993 में आई थी, केर्ल इस कारण नहीं की र्फरौती के र्लए
अपहरण और व्यपहरण में र्ृर्द्ध हो रही थी और र्र्र्ध आयोग ने र्सफाररश की थी र्क उसे िांडनीय बनाए िाने र्ाला
एक पृथक् उपबांध र्नगर्मत र्कया िाए, र्कन्तु इसर्लए भी र्क आतांकर्ािी सांगठनों की गर्तर्र्र्धयों का भीषण रूप में
र्र्स्तार हो गया था और िो ऐसी र्फरौती र्ाली स्र्थर्तयों का र्नर्ारण करन े के र्लए और उनके र्लए उत्तरिायी
व्यक्र्तयों को िांड िने ेके र्लए प्रभार्ी र्र्र्धक र्र्रचना की माांग करता था ।
10. न्यायालय ने आगे कहा र्क ‘आांकड़ों में आगे यह िखेा गया ह ैर्क र्फरौती के र्लए अपहरण लाभकर हो गया ह ैऔर
र्ह सांपूणि िशे में समृद्ध उद्योग बन गया ह,ै र्िसके बारे में कठोरतम सांभर् रीर्त से कारिर्ाई की िानी चार्हए और उसके
र्लए न्यायालयों पर भी िार्यत्र् ह ै। न्यायालयों को उस र्िशा में सहायतापूणि हाथ बढाना चार्हए’ ।
11. हमें इस बात को महत्र् िनेा चार्हए र्क िब र्फरौती के र्लए अपहरण और हत्या के अपराध होते हैं तब ऐसे अपराधों
के साथ िघन्य अपराध के रूप में व्यर्हार र्कया िाना चार्हए और इनके र्लए मृत्यिुांड को ध्यान में रखना अननपुार्तक
नहीं हैं । कैसे ‘आतांकर्ािी को सधुारा िा सकता ह,ै र्िसका मखु्य उद्दशे्य समाि की शाांर्त को, यर्ि समाि को उसी
रूप में नहीं, नष्ट करना ह ै।
12. उच्चतम न्यायालय ने र्र्िम र्सांह मामल ेको यह कहकर समाप्त र्कया र्क ‘र्फरौती के र्लए अपहरण और व्यपहरण, न
केर्ल धनीय लाभ के र्लए साधारण अपरार्धयों द्वारा या आर्थिक लाभ के र्लए सांगर्ठत र्ियाकलाप के रूप में
आतांकर्ािी सांगठनों द्वारा भी िी गई चुनौर्तयों के िर्मक र्र्कास ने, भारतीय िांड सांर्हता की धारा364क के र्नगमन
को और ऐसी कायिर्ार्हयों में लगन ेर्ाल ेव्यक्र्तयों के र्लए कठोरतम िांड को आर्श्यक बनाया ह ै। उस पृष्ठभूर्म को
िखेते हुए, र्िसमें र्र्र्ध अर्धर्नयर्मत की गई थी और सांसि ्द्वारा नागररकों की रक्षा और सरुक्षा, िशे की सांप्रभुता और
अखांडता के र्लए िर्शित र्चांता को िखेते हुए धारा 364क के र्र्रोध में कायि करन ेर्ाले व्यक्र्तयों के र्लए र्र्र्हत िांड
को अपराध की प्रकृर्त से इतने अर्धक अननपुार्तक के रूप में काटा-छाांटा नहीं िा सकता, र्िससे र्क उसे
असांर्धैार्नक घोर्षत र्कया िाए ............................ठीक इसर्लए र्क मृत्य ुका िांड एक सांभर् िांड ह,ै र्िसे समरु्चत
मामलों में र्िया िा सकता ह,ै इसे स्र्त: अमानर्ीय या बबिरतापूणि नहीं बनाया िा सकता । साधारण िम में और ऐसे
मामलों में, िो र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम कहलाए िान ेके योग्य हैं, मृत्यु केर्ल र्हीं िी िा सकती ह ैिहाां अपहरण
या व्यपहरण के पररणामस्र्रूप अपराध के र्कए िाने के िम में पीर्ड़त या र्कसी अन्य व्यक्र्त की मृत्य ुहो िाती ह ै।
ऐसी र्ास्तर्र्क स्र्थर्तयाां, िहाां र्ह कायि, र्िससे अपराधी को आरोर्पत र्कया गया ह,ै हमारे सांघीय, पांथ र्नरपेक्ष और
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प्रिाताांर्त्रक र्र्रचना के ममि को धमकी िने ेर्ाला आतांकी कायि सार्बत हो िाता ह,ै केर्ल अन्य सांभर्तया ऐसी
स्र्थर्तयाां हो सकती हैं, िहाां न्यायालय चरम िांड िने ेपर र्र्चार कर सकते हैं’ ।
13. मैंन ेअपन ेपूर्िर्ती र्टप्पण में भी यह उल्लेख र्कया था र्क मृत्यिुांड की सामान्य समाप्र्त या िघन्य अपराधों में मृत्यिुांड
पर अर्धस्थगन, र्र्शेष रूप से हमारे िशे में र्र्द्यमान पररस्र्थर्तयों को िखेते हुए, समरु्चत अनिुम नहीं हैं ।
न्यायमूर्ति ऊषा महेरा
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मृत्युदडं पर वर्प्पण
प्रारांभ में मैं यह बताना चाहूांगा र्क भारत सरकार ने मृत्यिुांड पर अर्धस्थगन की माांग करन ेर्ाले सांयकु्त राष्ट्र महासभा के सांकल्प के र्र्रुद्ध
मतिान र्कया ह ै। नर्म्बर, 2012 में, भारत ने मृत्यिुांड पर अपनी स्र्थर्त को, मृत्यिुांड का र्ििन करन ेकी माांग करन ेर्ाले सांयकु्त राष्ट्र
महासभा के प्रारूप सांकल्प के र्र्रुद्ध मतिान करके, पनु: बनाए रखा ।
र्ास्तर् में न्याय की कोई भी प्रणाली ऐसे पररणाम नहीं ि ेसकती िो सौ प्रर्तशत सभी समयों पर र्नश्र्चत हों । गलर्तयाां र्कसी भी ऐसी
प्रणाली में की िाएांगी िो सबूत के र्लए पररसाक्ष्य पर र्नभिर करती ह ै। हमें ऐसी गलर्तयों को अनार्ृत्त करने और उनसे बचने के र्लए
िागरूक रहना चार्हए । हमारे न्याय की प्रणाली सही रूप से मृत्यिुांड मामल ेके र्लए ऊां चे मानकों की माांग करती ह ै। मृत्यिुांड के मामलों
में लागू की गई असाधारण सम्यक् प्रर्िया से गलती करन ेका खतरा बहुत कम ह ै। यह िर्शित करन ेके र्लए कोई र्र्श्र्सनीय साक्ष्य नहीं
ह ैर्क र्निोष व्यक्र्तयों को फाांसी िी गई ह ै।
मृत्यिुांड सांबांधी एमनेस्टी इांटरनेशनल के आांकडे़ यद्यर्प उपलब्ध हैं र्कन्तु कोई शासकीय आांकडे़ अभी तक प्रकार्शत नहीं र्कए गए हैं ।
र्र्चारण न्यायालय द्वारा 1617 कैर्ियों को र्िए गए मृत्यिुांड की िोषर्सर्द्ध के र्र्रुद्ध मृत्यिुांड की पषु्र्ट केर्ल 71 मामलों में की गई
थी । 71 मामलों में से भी र्पछले 40 र्षों के िौरान केर्ल 4 व्यक्र्तयों को फाांसी पर लटकाया गया ह ै। 2 आतांकर्ािी अथाित ्कसाब
और अफिल गुरु थे और िसूरे िो अल्पसांख्यक या िर्लत र्गि से सांबांर्धत नहीं हैं । अत: यह कहना सही नहीं होगा र्क हमारी प्रणाली ने
र्नधिनता, अल्पसांख्यकता, िार्त या िर्लत होने के कारण र्कसी भी रीर्त से र्र्भेि र्कया ह ै। याकूब मनेन गरीब व्यक्र्त नहीं था और र्ह
सर्ोत्तम र्र्र्धक सहायता ले सकता था । र्ास्तर् में मृत्यिुांड की सामान्य समाप्र्त उन पररस्र्थर्तयों के र्लए सहायक नहीं होगी, र्िसमें
भारत ह ै।
स्टीर्न ओ. स्टीर्ाडि, िेडी, क्लाकि काउांटी के र्लए पे्रिेंर्टांग अटनी ने कहा ‘घातक नष्ट पोत रखन ेके खतरे से अर्धक र्कसी गलती की
अपररहायिता हो, तो नौका को अर्धै बना िनेा चार्हए’ ।
मृत्यिुांड की समाप्र्त से अांतरराष्ट्रीय आतांकर्ािी सांगठनों से र्मलने र्ाल ेखतरे और आधरु्नक राज््य की सांप्रभतुा और राज््यके्षत्रीय
अखांडता के र्लए राििोह आर्ि िसेै आांतररक र्र्क्षोभ और भी बढ सकते हैं । मृत्यिुांड की समाप्र्त से िशे की सरुक्षा पर प्रभार् पड़
सकता ह ै।
मृत्यिुांड की साधारण समाप्र्त नहीं होनी चार्हए और इस प्रणाली के उर्चत रूप से कायि करन ेके र्लए हमें र्र्र्धक सहायता सेर्ाओां को
अर्भयकु्त को उपलब्ध करान ेके र्लए सदुृढ बनाना चार्हए । मृत्यिुांड ऋि ुऔर उर्चत र्र्चारण के पश्चात् र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम
में ही र्िया िाता ह,ै अत: इसे केर्ल योग्य मामलों में ही र्िया िाना चार्हए ।
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पररवशष्र् ख
डा0 संजय वसंह
सर्चर्
सत्यमेर् ियते भारत सरकार
वववि और न्याय मतं्रालय
वविायी ववभाग
तारीख 28 अगस्त, 2015
माननीय अध्यक्ष महोिय,
कृपया मृत्यिुांड से सांबांर्धत प्रारूप ररपोटि िखेें, उस पर और र्र्चार-र्र्मशि र्कए िाने की आर्श्यकता ह ै। इस सांबांध में यह
उल्लेख र्कया िा सकता ह ैर्क मृत्यिुांड अर्र्स्मरणीय समय से िांड का एक तरीका रहा ह ैऔर इसके पक्ष में तथा इसके र्र्रुद्ध तकों में,
इन र्षों में अर्धक पररर्तिन नहीं हुआ ह ै। सभ्यता की प्रगर्त के साथ मृत्यिुांड के तरीकों में मानर्ीय आधारों पर महत्र्पूणि पररर्तिन िखेे
गए हैं ।
2. भारत में इस र्र्र्ाद्यक पर बहुत अर्धक र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह ैर्क क्या मृत्यिुांड को बनाए रखा िाए या समाप्त र्कया िाए ।
हमारे िशे में भारतीय िांड सांर्हता (1860 का 45) में ऐसे बहुत से उपबांध हैं िहाां मृत्यिुांड का िांड र्र्द्यमान ह,ै अथाित् धारा
121 (भारत सरकार के र्र्रुद्ध यदु्ध करना आर्ि), धारा 132 (सशस्त्र बल के र्कसी सिस्य द्वारा र्र्िोह का उपशमन), धारा 194
(र्मथ्या साक्ष्य के कारण र्निोष व्यक्र्त को िोषर्सद्ध ठहराना और उसको फाांसी), धारा 302 (हत्या), धारा 303 (आिीर्न
कारार्ास के िांडािशे के अधीन र्कसी व्यक्र्त द्वारा हत्या), धारा 305 (र्शश ुया उन्मत्त व्यक्र्त की आत्महत्या का िषु्प्रेरण), धारा
307 (आिीर्न र्सद्धिोषी द्वारा हत्या का प्रयास, यर्ि उपहर्त काररत हुई ह)ै, 364क (र्फरौती आर्ि के र्लए व्यपहरण) और धारा
396 (हत्या सर्हत डकैती)। कर्तपय अन्य र्र्र्धयों िसेै स्र्ापक ओषर्ध और मन:प्रभार्ी पिाथि अर्धर्नयम, 1985 (धारा
31क), र्र्र्ध र्र्रुद्ध र्ियाकलाप र्नर्ारण अर्धर्नयम, 1967 (धारा 10 और धारा 16), नौसेना अर्धर्नयम,1957 आर्ि में
भी मृत्यिुांड िने ेके र्लए उपबांध हैं ।
3. मृत्यिुांड के र्र्षय ने सांयकु्त राष्ट्रसांघ का ध्यान 1957 के अांत में आकर्षित र्कया था । िब 12र्ीं सांयकु्त राष्ट्र सांघ महासभा की
तीसरी सर्मर्त ने र्सर्र्ल और रािनीर्तक अर्धकारों सांबांधी प्रसांर्र्िा के प्रारूप के अनचु्छेि 6 पर र्र्चार-र्र्मशि आरांभ र्कया था और
उस ेउपाांतरणों सर्हत अांगीकार र्कया था । 1979 में भारत ने अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनीर्तक अर्धकारों सांबांधी प्रसांर्र्िा को मान
र्लया । अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनीर्तक अर्धकारों सांबांधी प्रसांर्र्िा का अनचु्छेि 6(2) कहता ह ै र्क ऐसे िशेों में, र्िन्होंन े
मृत्यिुांड समाप्त नहीं र्कया ह,ै मृत्यिुांड केर्ल अत्यर्धक गांभीर अपराधों के र्लए अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै।
4. मृत्यिुांड से सांबांर्धत अांतरराष्ट्रीय र्र्र्धयाां और मानक इस र्र्षय पर स्पष्ट हैं और कथन करते हैं र्क मृत्यिुांड केर्ल र्र्र्धक मानकों
का कड़ाई से पालन करन ेके पश्चात् अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह ै । सांयकु्त राष्ट्र आर्थिक और सामार्िक पररषि ्द्वारा 1984 में
अांगीकार र्कए गए (ईसीओएसओसी सांकल्प 50/1984) ‘उनके अर्धकारों के, िो मृत्यिुांड का सामना कर रह ेहैं, सांरक्षण की
गारांटी िने ेर्ाले रक्षोपाय’ का रक्षोपाय 5 कथन करता ह ै र्क मृत्यिुांड केर्ल ऐसी र्र्र्धक प्रर्िया के पश्चात्, िो ऋि ु र्र्चारण
सरु्नश्र्चत करने के र्लए सभी सांभर् रक्षोपाय, कम से कम उनके समान, िो अांतरराष्ट्रीय र्सर्र्ल और रािनीर्तक अर्धकारों सांबांधी
प्रसांर्र्िा के अनचु्छेि 14 में अांतर्र्िष्ट हैं, र्कसी कायिर्ार्हयों के सभी प्रिमों पर पयािप्त र्र्र्धक सहायता िनेे के र्लए र्कसी ऐसे व्यक्र्त
के अर्धकार भी सम्र्मर्लत हैं, र्िस पर र्कसी ऐसे अपराध के र्लए, र्िसके र्लए मृत्यिुांड अर्धरोर्पत र्कया िा सकता ह,ै सांिहे र्कया
गया ह ैया उससे उस ेआरोर्पत र्कया गया ह,ै र्कसी सक्षम न्यायालय द्वारा र्िए गए अांर्तम र्नणिय के अनसुरण में ही र्िया िा सकता ह ै।
159
5. आगे सूक्ष्मता से सांयकु्त राष्ट्र आर्थिक और सामार्िक पररषि ्द्वारा 1984 में अांगीकार र्कए गए रक्षोपायों में से रक्षोपाय 1 में
कहा गया ह ैर्क ‘ऐसे िशेों में, र्िन्होंन ेमृत्यिुांड समाप्त नहीं र्कया ह,ै मृत्यिुांड अत्यर्धक गांभीर अपराधों के र्लए अर्धरोर्पत र्कया िा
सकता ह,ै यह समझा िाता ह ैर्क उनका के्षत्र घातक शस्त्र से र्कए गए साशय अपराधों या अन्य अत्यर्धक गांभीर पररणामों र्ाले अपराधों
से परे नहीं िाना चार्हए ।
6. भारत के र्र्र्ध आयोग ने इस र्र्षय की र्र्स्तार से परीक्षा की ह ैऔर अपनी 35र्ीं ररपोटि यह र्नष्कषि र्नकालते हुए प्रस्तुत की ह ै
र्क ‘यह सझुार् र्क मृत्यिुांड एक प्रयोग के रूप में समाप्त र्कया िा सकता ह ै(र्िससे र्क उसे समाप्र्त के पश्चात् पनु: प्रारांभ र्कया िा
सके) एक तकि ह ैर्िस पर हमन ेध्यानपूर्िक र्र्चार र्कया ह ै; र्कन्तु हमें कर्तपय सांभार्नाओां का ध्यान रखना होगा । समाप्र्त और पनु:
प्रारांभ के बीच र्हांसा का एक यगु हस्तके्षप कर सकता ह ै- हम यह नहीं कहते र्क यह र्नश्र्चत पररणाम ह ै– र्कन्तु यह सांभार्ना ह ै
र्िसकी उपेक्षा नहीं की िा सकती, उस स्र्थर्त में असाध्य हार्न न केर्ल ऐसी र्हांसा के पीर्ड़तों को र्कन्त ुसमाि की सरुक्षा के सामान्य
हतेुक को भी हो चकुी होगी । एक बार यर्ि र्र्र्ध र्र्रुद्धता की शक्र्तयों को ढीला छोड़ र्िया िाता ह ैतो मृत्यिुांड के पनु: प्रारांभ करन ेसे
भी र्र्र्ध और व्यर्स्था को तुरांत प्रत्यार्र्तित करन ेका र्ाांर्छत प्रभार् नहीं हो सकता ह ै। आगे सांसि ् सभी समय पर सत्र में नहीं हो सकती
ह ैऔर र्ह अांतराल, िो र्र्र्ध के पनु: र्ास्तर् में सांशोर्धत र्कए िाने के पूर्ि व्यपगत हो सकता ह,ै सर्िनाशकर होगा । सभी अांतर्िर्लत
र्र्र्ाद्यकों पर र्र्चार करन ेके पश्चात् हमारी यह राय ह ैर्क मृत्यिुांड को िशे की र्तिमान िशा में बनाए रखा िाना चार्हए।’
7. 1973 में उच्चतम न्यायालय ने पहली बार िगमोहन र्सांह बनाम उत्तर प्रिशे राज््य (एआईआर 1973 एससी 947) के
मामल ेमें मृत्यिुांड की सांर्ैधार्नकता को बनाए रखा था । उसी र्षि में िांड प्रर्िया सांर्हता 1973 (1974 का 1) को अर्धर्नयर्मत
र्कया गया था । सांर्हता ने न्यायाधीशों से यह अपेक्षा की र्क र्े मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करते समय र्र्शषे कारणों को र्लखें और उसने
अपेक्षा की र्क र्र्चारण न्यायालय में आज्ञापक िांडािशे- पूर्ि सनुर्ाई की िाए । ऐसी सनुर्ाई की अपेक्षा स्पष्ट थी क्योंर्क र्ह न्यायाधीश
का यह र्नष्कषि र्नकालन ेमें सहायता करेगी र्क क्या तथ्यों ने मृत्यिुांड अर्धरोर्पत करन ेके र्लए र्कसी र्र्शेष कारण की ओर इांर्गत र्कया
ह ै।
8. 1980 में उच्चतम न्यायालय ने पनु: बचन र्सांह बनाम पांिाब राज््य (एआईआर 1980 एससी 898) के महत्र्पूणि मामलें में
मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता को बनाए रखा । उसमें यह सांपे्रक्षण र्कया गया र्क मानर् िीर्न की गररमा के र्लए र्ास्तर्र्क और स्थायी
र्चांता र्र्र्ध के माध्यम से िीर्न लेन ेके र्र्रोध की उपधारणा करती ह ै। ऐसा र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम के र्सर्ाय, िब आनकुल्र्पक
र्र्कल्प र्नश्र्चत रूप से प्रर्तबांर्धत हो, नहीं र्कया िाना चार्हए ।
9. 1991 में उच्चतम न्यायालय की सांर्धैार्नक न्यायपीठ ने मृत्यिुांड की सांर्धैार्नकता को श्रीमती शर्श नायर बनाम भारत सांघ और
अन्य (एआईआर 1992 एसीसी 395) में पुन: बनाए रखा । न्यायालय ने इस र्र्र्ाद्यक पर पूर्ि र्र्र्नणियों को उद्धत करते हुए और
यह तकि ितेे हुए र्क िशे में र्र्र्ध और व्यर्स्था की स्र्थर्त और खराब हो गई ह,ै इसर्लए अब ऐसा अर्सर नहीं ह ैर्क िब मृत्यिुांड को
समाप्त र्कया िाए, यह अर्भर्नधािररत र्कया की र्क भारत में मृत्यिुांड के र्नष्पािन की पद्धर्त र्जै्ञार्नक और र्चर्कत्सीय न्यायशास्त्र के
अधीन कम से कम पीड़ािायक होते हुए, सांर्र्धान के अनचु्छेि 21 की अर्तिामक नहीं ह ै ।
10. मृत्यिुांड भयपरर्तकारी के रूप में कायि करता ह ै। यर्ि मृत्यिुांड समाप्त कर र्िया िाता ह ैतो र्ह डर, िो िघन्य अपराधों को करते
समय िनता के मागि में आता ह,ै हट िाएगा, र्िसका पररणाम अर्धक बबिर अपराधों में होगा । सभी िांडािशे समाि की सरुक्षा और
सांरक्षण के र्लए तथा िनता के शाांर्तपूर्िक रहन ेके र्लए र्िए िाते हैं । िो कोई अत्यर्धक नृशांस रीर्त से पूर्ि र्चांतन करके िघन्य अपराध
करता ह,ै उसको आिीर्न कारार्ास या मानर्ीय आधार पर कम िांड र्िए िाने की अनजु्ञा नहीं र्मलनी चार्हए । क्योंर्क र्ह उसके योग्य
नहीं ह ै।
11. तथार्प मृत्यिुांड पर स्थगन की माांग करन ेर्ाले सांयकु्त राष्ट्र सांघ के सांकल्प की दृष्र्ट से , र्िसे सांयकु्त राष्ट्र महासभा की तीसरी
सर्मर्त द्वारा अांगीकार र्कया गया ह ैऔर र्िसे र्र्र्भन्न यूरोर्पयन राष्ट्रों द्वारा अांगीकार र्कया गया ह,ै यद्यर्प भारत ने उक्त सांकल्प के
र्र्रुद्ध मतिान र्कया ह,ै सधुारात्मक उपाय के रूप में, यह समरु्चत हो सकता ह ैर्क माननीय उच्चतम न्यायालय के र्र्र्नणियों के समकक्ष
160
इस बारे में मागििशिक र्सद्धाांत बनाए िाएां र्क ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ का, िो भारतीय र्र्र्धयों के अधीन मृत्यिुांड का समथिन
करता ह,ै गठन कैसे र्कया िाए ।
12. ऊपर स्पष्ट की गई स्र्थर्त को ध्यान में रखते हुए इस बारे में मामल ेकी परीक्षा कराया िाना न्यायसांगत और उर्चत होगा र्क
मृत्यिुांड से िांडनीय अपराधों की िोषर्सर्द्ध की िशा में मृत्यिुांड र्िए िाने के र्लए ‘र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम’ का गठन कैसे होगा ।
उपयुिक्त की दृष्र्ट से यह ररपोटि र्कसी ऐसे बात की र्सफाररश नहीं कर सकती, िो राज््य को भारत की सांप्रभुता और अखांडता के र्हत में
र्र्र्ध बनाने से रोकने का प्रभार् रखती हो । िसूरे शब्िों में राज््य का र्हत सर्ोपरर महत्र् का ह ैऔर इस सांबांध में की गई र्कसी र्सफाररश
को िशे के र्हत का सांरक्षण करने के र्लए आर्श्यक राज््य की शक्र्तयों पर र्नबंधन अर्धरोर्पत करन ेके रूप में समझा िा सकता ह ै।
13. आयोग, यर्ि समरु्चत समझे तो, मृत्यिुांड पर अपनी ररपोटि में उपयुिक्त र्र्चारों को सम्र्मर्लत कर सकता ह ै।
सािर,
भर्िीय,
(डा0 सांिय र्सांह)
माननीय श्री न्यायमूर्ति ए.पी.शहा,
अध्यक्ष,
भारत का र्र्र्ध आयोग,
नई र्िल्ली
161
पररवशष्र् ग
िेम कुमार मल्होत्रा
सर्चर्
सत्यमेर् ियते भारत सरकार
वववि और न्याय मतं्रालय
वववि कायट ववभाग
अगस्त 31, 2015
अ.शा.सां0 31/08/2015-एलएस
माननीय अध्यक्ष महोिय,
यह उस र्र्चार-र्र्मशि के अगले िम में ह ैिो मैंन े27 अगस्त, 2015 को ‘मतृ्युिांड’ सांबांधी प्रारूप ररपोटि पर र्कया था । उसका अांर्तम पाठ
मझेु 29 अगस्त, 2015 की सांध्या को प्राप्त हुआ था ।
िैसा र्क मैं दृढतापरू्िक अनभुर् करता हूां र्क हमारे िेश में अभी मतृ्युिांड की समाप्र्त के र्लए समय पररपक्र् नहीं हुआ ह ै। मैं इस र्र्षय पर अपने
र्र्चार समार्र्ष्ट करते हुए एक र्टप्पण इस अनरुोध के साथ भेि रहा हूां र्क उसे आयोग की ररपोटि के साथ सांलग्न र्कया िाए ।
सािर,
सांलग्नक : यथा उपयुिक्त ।
भर्िीय,
(पी.के.मल्होत्रा)
माननीय श्री न्यायमूवतट ए.पी.शहा,
अध्यक्ष,
भारत का र्र्र्ध आयोग,
एच.टी. र्बल्र्डांग,
नई वदल्ली
मझु े‘मृत्यिुांड’ पर प्रारूप ररपोटि, िो र्क मझुे 23 अगस्त, 2015 को उपलब्ध कराई गई थी, पढने का लाभ प्राप्त हुआ ह ै
। ररपोटि से सांलग्न बैठक की सूचना कहती ह ैर्क इस ररपोटि पर आयोग में 26 और 27 अगस्त, 2015 को र्र्चार र्कया िाएगा ।
मैं आयोग की बैठक में 26 अगस्त, 2015 को मांत्रालय में समयबद्ध अन्य कायों में पहल ेसे व्यस्त होन ेके कारण उपस्र्थत नहीं हो
सका । मझु ेबताया गया र्क आयोग की 27 अगस्त, 2015 को कोई बैठक नहीं ह।ै तथार्प मझुे प्रारूप ररपोटि पर र्र्र्ध आयोग के
माननीय अध्यक्ष के साथ 27 तारीख को र्र्चार-र्र्मशि करन ेका अर्सर प्राप्त हुआ ।
सािर, मैं कहना चाहता हूां र्क मैं इस र्सफाररश पर सहमत होन ेमें असमथि हूां र्क मृत्यिुांड को आतांक से र्भन्न सभी अपराधों
के र्लए तुरांत समाप्त र्कया िाए । तथार्प मैं इस र्र्चार से सहमत हूां र्क मृत्यिुांड की समाप्र्त अांर्तम उद्दशे्य ह ै। मरेा यह सोचा-समझा
हुआ र्र्चार ह ै र्क हमारे िशे में अभी इसकी समाप्र्त के र्लए समय पररपक्र् नहीं हुआ ह ै । यद्यर्प मैं इस र्र्षय पर अपन ेब्यौरे र्ार
र्र्चार िनेा चाहता था र्कन्तु ऐसा करना सांभर् नहीं हो सका ह,ै क्योंर्क र्तिमान र्र्र्ध आयोग की अर्र्ध 31 अगस्त, 2015 को
समाप्त हो रही ह ै । अांर्तम र्नष्कषि और र्सफाररशें 29 अगस्त, 2015 की सांध्या को उपलब्ध कराई गई ां थीं और आयोग 31
अगस्त, 2015 के पूर्ि अपनी ररपोटि प्रस्तुत करना चाहता ह ै। ररपोटि में उठाए गए सभी प्रश्नों के बारे में र्र्चार व्यक्त करन ेका कर्ठनता
से ही समय ह ै। मैं इस र्र्षय पर अपनी राय के समथिन में सांर्क्षप्त कारण िूांगा ।
162
र्कसी अपराध के कुछ र्नर्हताथि होते हैं और र्कसी व्यक्र्त को, िो कोई अपराध करता ह,ै कोई गलत किम उठाने से पूर्ि
उसके पररणामों के बारे में सोचना चार्हए । यर्ि र्नर्हताथों को छोड़ा िाता रहगेा तो एक समय ऐसा आ िाएगा िब र्र्र्ध र्र्द्यमान नहीं
रह िाएगी । र्कसी र्सद्धिोषी को िांड र्िया िाता ह ै र्िससे र्क र्ह शेष मानर्ता के र्लए उिाहरण बन िाता ह ै और आचार भ्रष्ट
मस्र्तष्क को ऐसे अपराध करने से डराता ह ै। अत: यर्ि ऐसा अपराध िो र्कसी िसूरे का िीर्न लेने िसैा िघन्य ह ैर्कया िाता ह ैतो िांड
को गांभीर होना होगा। ऐसे उिाहरण हो सकते हैं िहाां आिीर्न कारार्ास र्ाांर्छत उद्दशे्य की पूर्ति नहीं कर सकता ह ै। ऐसे उिाहरण हैं िहाां
आिीर्न कारार्ास को भुगतने र्ाले र्सद्धिोषी को पेरोल िी िाती ह ैऔर र्े अपने परुाने मागि पर, समाि को हार्न पहुांचाते हुए लौट आते
हैं । इस बारे में िो राय नहीं हो सकती ह ैर्क अर्भयकु्त के अर्धकारों का आिर र्कया िाए । र्कन्तु य ेपीर्ड़त व्यक्र्त हैं और समाि ह ै
र्िनके अर्धकारों को अपराधी के अर्धकारों के ऊपर अर्धमान र्मलना चार्हए । पीर्ड़त के अर्धकारों का अर्तिमण और समाि की
सरुक्षा के मूल्य पर िघन्य अपराध करन ेर्ाले अपराधी व्यक्र्त के अर्धकारों के बारे में सोचना अर्भयकु्त के साथ गलत रूप से सहानभूुर्त
रखन े के बराबर होगा । पूर्ि अमरीकन राष्ट्रपर्त श्री िािि बुश ने अपन े राष्ट्रपतीय र्र्चार-र्र्मशों में से एक में उल्लेख र्कया ह ै र्क
मृत्यिुांड का समथिन करन ेका कारक यह ह ैर्क यह िसूरे व्यक्र्तयों का िीर्न बचाता ह ै। सर िेम्स एफ. स्टीफन, एक र्र्ख्यात न्यायर्र्ि,्
ने कहा ह ैर्क कोई अन्य िांड व्यक्र्त को अपराध करन ेसे इतने प्रभार्ी रूप से नहीं डराता ह ैर्ितन ेर्क मृत्यिुांड । उसके अनसुार यह उन
प्रर्तपािनाओां में से एक ह ैर्िसे सार्बत करना केर्ल इस कारण कर्ठन ह ैक्योंर्क र्ह स्र्यां उससे अर्धक स्पष्ट हैं, र्ितना र्क कोई
सबूत उस ेबना सकता ह ै। र्कसी िसूरे िांड में, चाह ेर्ह र्कतना भी भयानक हो, एक आशा होती ह ै। र्कन्त ुमृत्य ुतो मृत्य ुह,ै इसके के्षत्रों
को अर्धक शक्र्तशाली रूप से र्र्णित नहीं र्कया िा सकता ह ै।
सांसि ्ने, िो िनता की इच्छा का प्रर्तर्बांब होती ह,ै स्र्त्रयों के र्र्रुद्ध, इतने र्र्लांब से र्क, 2013 में कर्तपय अपराधों के
र्लए मृत्यिुांड के साथ एक र्र्र्ध पाररत की ह ै। हाल में सरकार ने सांसि ्में र्र्मान अपहरण र्र्रोधी र्र्धेयक परु:स्थार्पत र्कया ह,ै िहाां
उसने र्र्मान अपहरण के कर्तपय अपराधों के सांबांध में मृत्यिुांड प्रस्थार्पत र्कया ह ै । यह िखेना रोचक ह ै र्क इस र्र्र्ध को र्र्मान
अपहरण र्र्र्ध के बारे में कायि करन ेर्ाल ेबीर्िांग प्रोटोकाल पर आधाररत रूप में सांशोर्धत र्कया िा रहा ह ै। सांसिीय स्थायी सर्मर्त ने
भी, र्र्मान अपहरण र्र्रोधी र्र्धेयक पर अपनी ररपोटि में, यह कहा ह ैर्क एक व्यापक और सदुृढ र्र्मान अपहरण र्र्रोधी र्र्र्ध की इस
समय आर्श्यकता ह ै। र्र्धेयक के उपबांधों के प्रर्त र्निशे करते हुए, िो र्कसी बांधक व्यक्र्त या र्कसी सरुक्षा कार्मिक की मृत्य ुकी िशा
में िांड र्र्र्हत करते हैं, सर्मर्त ने यह कहा ह ैर्क सशस्त्र हस्तके्षप के मामल ेमें कार्मिक की या तो आरपार की गोला बारी के कारण या
र्र्स्फोटक फें कने से या र्ाययुान के भूर्म अथर्ा िल पर टूटकर र्गर िाने से मृत्य ुहो सकती ह ै। सर्मर्त ने अनभुर् र्कया र्क ऐसी घटना
की िशा में, र्िसका पररणाम र्र्मान अपहरण के अपराध के सीधे पररणामस्र्रूप र्कसी व्यक्र्त की मृत्य ुमें होता ह,ै अपराधी पर
अर्धकतम िांड अर्धरोर्पत र्कया िाना चार्हए । अत: उसने प्रस्तार्र्त र्र्धेयक में उस िशा में मृत्यिुांड का उपबांध करन ेके र्लए, िहाां
र्र्मान अपहरण के अपराध के सीधे पररणामस्र्रूप र्कसी व्यक्र्त की, र्िसके अांतगित बांधक व्यक्र्त या सरुक्षा कार्मिक भी ह,ै मृत्य ुहोती
ह,ै और सांशोधन करन ेका सझुार् र्िया ह ै। सांसि ्की इच्छा िर्शित करती ह ैर्क िशे में र्र्द्यमान स्र्थर्त को िखेते हुए भारतीय समाि
अभी मृत्यिुांड के पूणि रूप से समाप्त र्कए िाने के र्लए पररपक्र् नहीं हुआ ह ै।
मृत्यिुांड पर र्र्र्ध आयोग की 35र्ीं ररपोटि में यह र्र्र्नर्ििष्ट रूप से कहा गया ह ै र्क र्र्द्यमान सामार्िक- आर्थिक,
साांस्कृर्तक र्र्रचना (र्िसके अांतगित र्शक्षा का स्तर और अपराध की िरें भी हैं) के र्पछले र्र्श्लेषण के आधार पर और र्कसी
आनभुर्र्क अनसुांधान के न होने पर, मृत्यिुांड को िशे की र्तिमान स्र्थर्त में बनाए रखा िाना चार्हए । हमारे र्लए समरु्चत अनिुम यह
होगा र्क हम र्र्द्यमान सामार्िक- आर्थिक साांस्कृर्तक र्र्रचना का र्र्श्लेषण करें और यह िखेन ेके र्लए आनभुर्र्क अनसुांधान करें र्क
क्या र्ह र्ातार्रण, िो 1967 में था, िब र्र्र्ध आयोग की 35र्ीं ररपोटि िी गई थी, पररर्र्तित हो गया ह ैऔर यर्ि र्ह पररर्र्तित हो
गया ह ैतो क्या र्ह अच्छे के र्लए हुआ ह ैया खराब के र्लए ।
भारतीय िांड सांर्हता की धारा 364क को र्फरौती के र्लए अपहरण और व्यपहरण की घटनाओां में र्ृर्द्ध के कारण 1993
में र्नगर्मत र्कया गया था । उसके कुछ ही समय बाि इस उपबांध को सांशोर्धत करना पड़ा, क्योंर्क भारत ने बांधक व्यक्र्तयों को पकड़
लेने के र्र्रुद्ध अांतरराष्ट्रीय कां र्ेंशन को अांगीकार र्कया था, र्िसे सांयकु्त राष्ट्र सांघ की महासभा द्वारा ईरानी बांधकों के सांकट की पृष्ठभूर्म
163
में अांगीकार र्कया गया था, चूांर्क भारत ने उक्त कां र्ेंशन को अांगीकार करने का र्र्र्नश्चय र्कया था । अत: भारतीय िांड सांर्हता की धारा
364क को ऐसी स्र्थर्तयों को, िहाां अपराध र्र्िशेी राज््य या अांतरराष्ट्रीय अांत:सरकारी सांगठन को र्र्र्श करन ेया कोई कायि करन ेसे
अनपुस्र्थत रहन ेया र्फरौती का सांिाय करन ेके र्लए र्र्र्श करन ेकी दृष्र्ट से र्कया गया ह,ै उसके अांतगित लान ेके र्लए उसके के्षत्र का
र्र्स्तार करते हतेु सांशोर्धत र्कया गया था । इस उपबांध की र्र्र्धमान्यता को उच्चतम न्यायालय द्वारा बनाए रखा गया । सर्ोच्च
न्यायालय ने र्र्िम र्सांह बनाम भारत सांघ (डीओिे 21.8.2015) के मामल ेमें यह कहा र्क िांड अपराध से आनपुार्तक होना
चार्हए, र्िसे आपरार्धक न्यायशास्त्र के मूल र्सद्धाांत के रूप में सांपूणि र्र्श्र् में स्र्ीकार र्कया गया ह ै। सर्ोच्च न्यायालय के अनुसार िांड
सांर्हता द्वारा र्र्र्हत िांड सामार्िक आर्श्यकताओां, सांबांर्धत अपराध की गांभीरता, समाि पर उसके प्रभार् और यह र्क र्र्धान मांडल
र्र्र्शष्ट अपराध के र्लए िांड के रूप में क्या उपयकु्त समझता ह,ै की र्र्धायी मान्यता को प्रर्तर्बांर्बत करता ह ै। न्यायालयों के र्लए उस
र्र्धायी बुर्द्धमत्ता को ग्रहण करना और उसका आिर करना आर्श्यक ह ै। भारतीय िांड सांर्हता की धारा 364क की सांर्धैार्नकता को
बनाए रखते हुए न्यायालय ने र्नम्नर्लर्खत रूप में अर्भर्नधािररत र्कया :-
‘हम पाते हैं र्क भारतीय िांड सांर्हता की धारा 364क को लान ेकी आर्श्यकता प्रारांभ में र्फरौती के र्लए
अपहरण और व्यपहरण की घटनाओां में र्ृर्द्ध के कारण उत्पन्न हुई । यह र्र्र्ध आयोग द्वारा की गई र्सफाररशों से स्पष्ट ह,ै
र्िनके प्रर्त हमनें इस र्नणिय के पूर्िर्ती भाग में र्निशे र्कया ह ै। िब र् ेर्सफाररशें सरकार के पास लांर्बत थीं, आतांकर्ाि के
र्पशाच ने न केर्ल नागररकों की सरुक्षा और रक्षा को, र्कन्त ुिशे की सांप्रभुता और अखांडता को भी भयभीत करते हुए र्सर
उठाना आरांभ कर र्िया था, र्िससे उस पर रोक लगाने के र्लए, िो र्कसी िशे को अस्र्थर करने की सांभार्ना रखता था,
पयािप्त अध्यपुाय करने के र्लए माांग की गई । आतांकर्ाि की अांतरराष्ट्रीय र्र्माओां की उपधारणा करते हुए, र्र्र्ध को और
सांशोर्धत करन ेकी आर्श्यकता उठी, र्िसके पररणामस्र्रूप र्षि 1994 में धारा 364क में सांशोधन र्कया गया । ‘र्फरौती
के र्लए अपहरण और व्यपहरण, न केर्ल धनीय लाभ के र्लए साधारण अपरार्धयों द्वारा या आर्थिक लाभ के र्लए सांगर्ठत
र्ियाकलाप के रूप में आतांकर्ािी सांगठनों द्वारा भी िी गई चनुौर्तयों के िर्मक र्र्कास ने, भारतीय िांड सांर्हता की
धारा364क के र्नगमन को और ऐसी कायिर्ार्हयों में लगन ेर्ाले व्यक्र्तयों के र्लए कठोरतम िांड को आर्श्यक बनाया ह ै।
उस पृष्ठभूर्म को िखेते हुए, र्िसमें र्र्र्ध अर्धर्नयर्मत की गई थी और सांसि ्द्वारा नागररकों की रक्षा और सरुक्षा, िशे की
सांप्रभुता और अखांडता के र्लए िर्शित र्चांता को िखेते हुए धारा 364क के र्र्रोध में कायि करने र्ाले व्यक्र्तयों के र्लए
र्र्र्हत िांड को अपराध की प्रकृर्त से इतना अर्धक अननपुार्तक के रूप में काटा-छाांटा नहीं िा सकता, र्िससे र्क उस े
असांर्धैार्नक घोर्षत र्कया िाए, ठीक इसर्लए र्क मृत्य ुका िांड एक सांभर् िांड ह,ै र्िसे समरु्चत मामलों में र्िया िा सकता
ह,ै इसे स्र्त: अमानर्ीय या बबिरतापूणि नहीं बनाया िा सकता । साधारण िम में और ऐसे मामलों में, िो र्र्रल ेमामलों में से
र्र्रलतम कहलाए िाने के योग्य हैं, मृत्य ुकेर्ल र्हीं िी िा सकती ह ैिहाां अपहरण या व्यपहरण के पररणामस्र्रूप अपराध
के र्कए िाने के िम में पीर्ड़त या र्कसी अन्य व्यक्र्त की मृत्य ुहो िाती ह ै । ऐसी र्ास्तर्र्क स्र्थर्तयाां, िहाां र्ह कायि,
र्िससे अपराधी को आरोर्पत र्कया गया ह,ै हमारे सांघीय, पांथ र्नरपेक्ष और प्रिाताांर्त्रक र्र्रचना के ममि को धमकी िने ेर्ाला
आतांकी कायि सार्बत हो िाता ह,ै केर्ल अन्य सांभर्तया ऐसी स्र्थर्तयाां हो सकती हैं, िहाां न्यायालय चरम िांड िने ेपर
र्र्चार कर सकते हैं । न्यायालयों द्वारा उन अपराधों के र्लए, िो धारा 364क के र्र्रुद्ध आते हैं, र्र्र्हत िो िांडािशेों में से
एक का चयन करने के न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार का प्रयोग र्न:सांिहे न्यार्यक रूप से मान्यताप्राप्त आधारों पर र्कया िाएगा
और मृत्यिुांड र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम में ही र्िया िाएगा र्कन्तु ऐसे चरम और र्र्रले मामलों में से र्र्रलतम में मृत्य ुसे
कम, अपहरण या व्यपहरण के सार्बत हुए मामल ेमें आिीर्न कारार्ास ऐसा नहीं होगा र्क उसे बबिरतापूणि या अमानर्ीय
र्र्णित र्कया िाए, र्िससे र्क सांर्र्धान के अनचु्छेि 21 के अधीन गारांटीकृत िीर्न के अर्धकार का उल्लांघन होता हो ।
मरेा र्र्चार ह ै र्क आर्थिक र्र्कास, र्शक्षा के स्तर में सधुार के बार्िूि अपराध की िरों में और समग्र रूप से साांस्कृर्तक
अर्नर्त में र्ृर्द्ध हुई ह ै। मरेा र्र्चार ह ैर्क आतांकर्ाि का खतरा आि उससे अर्धक ह ैिो 1967 में था िब र्र्र्ध आयोग ने मृत्यिुांड
164
पर अपनी 35र्ीं ररपोटि िी थी । मकु्र्तधन के र्लए अपहरण और व्यपहरण के मामलें धनीय लाभ के र्लए या सांगर्ठत र्ियाकलाप के
रूप में आर्थिक लाभ के र्लए बढ रह ेहैं । नागररकों की रक्षा और सरुक्षा और िेश की एकता, सांप्रभुता और अखांडता सर्ोच्च महत्र् के हैं
। किार्चत इनहीं कारणों से सांसि ्ने अपनी बुर्द्धमत्ता से हाल ही में र्पछले र्िनों में पाररत की गई बहुत सी र्र्र्धयों में स्र्यां को आिीर्न
कारार्ास या कमतर िांड िने ेसे र्नयांर्त्रत करते हुए मृत्यिुांड के र्लए उपबांध र्कया ह ै।
यह कहना सही नहीं ह ैर्क मृत्यिुांड का र्र्र्हत र्कया िाना बिल ेकी हत्या या आर्िकालीन या बबिरतापूणि हत्या में सांर्लप्त
होना ह ै। िब र्कसी मृत्यिुांड को र्र्र्ध की सम्यक् प्रर्िया का अनसुरण करते हुए र्िया िाता ह ैतो र्हाां उर्चत र्नयांत्रण होते हैं । यह
र्र्र्ध प्रणाली में पयािप्त रूप से अांत: र्नर्मित ह ै। िब मृत्यिुांड र्र्चारण न्यायालय द्वारा अर्धरोर्पत र्कया िाता ह,ै तो र्ह उच्च न्यायालय
द्वारा पषु्र्ट र्कए िाने के अधीन ह,ै िहाां अर्भयकु्त व्यक्र्त अपनी प्रर्तरक्षा को प्रस्तुत करन ेका अर्सर प्राप्त करता ह ै। अर्भयकु्त को
उच्चतम न्यायालय को अपील के रूप में िसूरा अर्सर प्राप्त होता ह ै। मृत्यिुांड से सांबांर्धत र्र्र्नश्र्चय/र्नणिय की कभी कारण न िने े
र्ाले आिशे द्वारा पषु्र्ट नहीं की िाती ह ै। र्र्द्यमान पद्धर्त को ध्यान में रखते हुए अर्भयकु्त व्यक्र्त साधारणतया सर्ोच्च न्यायालय के
समक्ष सधुारात्मक यार्चका की तुलना में पनुर्र्िलोकन यार्चका प्रस्तुत करन ेको अर्धमान ितेा ह ै। इस प्रकार यह िखेा िा सकता ह ैर्क
र्र्चारण न्यायालय द्वारा र्सद्धिोष के पश्चात्, अर्भयकु्त व्यक्र्त को उच्चतर न्याय मांच के समक्ष मृत्यिुांड के र्र्रुद्ध अपन ेमामल ेमें तकि
िने ेके र्लए 4 अर्सरों से अर्धक अर्सर प्राप्त होते हैं । यर्ि सर्ोच्च न्यायपार्लका अपनी बुर्द्धमत्ता से मृत्यिुांड का र्नणिय उलटन ेमें
कोई गुणागुण नहीं पाती ह,ै तो ऐसा मामला स्पष्ट रूप से र्सद्धाांतों के अनसुार, र्िन पर र्र्र्भन्न मामलों में र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह ै
और आयोग की इस ररपोटि में र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह,ै र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम मामलों में आता ह ै। अपराधी के र्लए उपचार
का अांत यहीं नहीं होता ह ै। उसे राष्ट्रपर्त और राज््य के राज््यपाल के समक्ष भी िया यार्चका फाइल करने का अर्सर प्राप्त होता ह ै। यह
नहीं कहा िा सकता र्क य ेसभी प्रार्धकारी, िो सर्ोच्च स्तर पर कायि कर रह ेहैं और सांर्ैधार्नक कृत्य का र्नर्ािह कर रह ेहैं, अर्भयकु्त
व्यक्र्त द्वारा उपभोग र्कए गए अर्धकारों के प्रर्त असार्धान हैं । यर्ि ऐसे सभी प्रार्धकारी इस र्नष्कषि पर पहुांचते हैं र्क अर्भयकु्त
व्यक्र्त को अर्श्य ही मृत्यिुांड द्वारा िांर्डत र्कया िाना चार्हए तो उसे र्कसी भी कल्पना द्वारा राज््य द्वारा ‘बिले की हत्या’ नहीं कहा िा
सकता ।
यह कहना गलत ह ैर्क र्र्धानमांडल द्वारा उपबांर्धत न्यार्यक र्र्र्ेकार्धकार र्बना मागििशिन के या अर्नयांर्त्रत ह ै। उच्चतम
न्यायालय स्र्यां बचन र्सांह के मामल े(1980) में इस र्र्र्ेकार्धकार का प्रयोग करते हुए, ऐसे मामलों में िहाां अर्श्य ही मृत्यिुांड
र्िया िा सकता ह,ै आज्ञापक िांडािशे-पूर्ि की सनुर्ाई के प्रिम की अपेक्षा करता ह ै। बचन र्सांह के मामल ेमें र्र्कर्सत ‘र्र्रल ेमामलों
में से र्र्रलतम’ का र्गीकरण मृत्यिुांड के मामलों पर र्नबंधन लगान ेके र्लए आशर्यत था । बररयार के मामले (2009) में, न्यायालय
ने मनमानेपन की समस्या का और हल र्िया । न्यायाधीशों को र्सद्धिोषी के सधुार की सांभार्ना को ध्यान में रखना होगा और उस पर
र्र्चार करना होगा । िब तक र्क अर्भयोिन यह स्थार्पत करन ेमें समथि न हो र्क र्सद्धिोषी सधुार से परे ह,ै तब तक न्यायालय र्ास्तर्
में मृत्यिुांड नहीं ि ेसकते हैं ।
सांसि ्ने अपनी बुर्द्धमत्ता से केर्ल िघन्य अपराधों में मृत्यिुांड को र्र्र्हत र्कया ह ै। इस समय की आर्श्यकता इसे बनाए
रखन ेकी र्कन्तु मृत्यिुांड को र्र्रल ेमामलों में से र्र्रलतम में र्िए िाने की शक्र्त का प्रयोग करन ेकी ह ै। हमारे पास एक स्पांिनशील
न्यायपार्लका ह,ै र्िसका सांपूणि र्र्श्र् में आिर र्कया िाता ह ै। हमें अपन ेन्यायाधीशों की बुर्द्धमत्ता में र्र्श्र्ास रखना चार्हए र्क र्े
इस शक्र्त का प्रयोग केर्ल उसके योग्य मामलों में, र्िनके र्लए र्र्र्ध र्र्र्भन्न र्नणियों में भली-भाांर्त अर्भर्नधािररत की गई ह ैऔर इस
ररपोटि में र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह,ै प्रयोग करेंगे ।
उन कारणों से, र्िन पर मखु्य ररपोटि में र्र्चार-र्र्मशि र्कया गया ह,ै मैं इस बात से सहमत हूां र्क मृत्यिुांड का समाप्त र्कया
िाना अांर्तम उद्दशे्य ह,ै र्कन्तु मरेा यह सोचा-समझा हुआ दृष्र्टकोण ह ैर्क हमारे िशे में अभी तक इस स्र्थर्त में इसको समाप्त करने के
र्लए समय पररपक्र् नहीं हुआ ह ै।
(पी. के. मल्होत्रा)