सत् ेव जते - narakas...

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संयोजक सयमेव जयते

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  • संयोजक

    सत्यमेव जयत े

  • साथियो,

    प्रथमआपसबकोमेरासस्नेह ननमस्कार, ह नमारी सममतत ई पत्रिका पे्ररणाका प्रकाशन प्रत्येक ततमाह नी में करती है न । ई पत्रिका प्रकाशन का मखु्य उद्येश्य आप जानत ेह नी है न कक, राजभाषा का प्रचार—प्रसार जजससे ह नमारे सदस्य एक अलग ववषय से रूबरू ह नो जाये और वसैाहह न ववषय आपके सामन ेइस बार प्रेरणा के माध्यम से रखन ेका प्रयास ककया जा रह ना है न, आप जजनके दोहे न हदल से सनुत ेहै न, जजनकी रचनाएं सनुकर आपका कायय भी रूक जाता है नऔर जीवन का सत्य सामने उभर आजाता है न, ऐसे रचनाकारों का पररचय उनके रचना के साथ कराना चाह नते है न ।

    मैं अधिक जादा न मलखकर एक मह नान संत कबीर जी के दोहे न के साथ मैं आप से अनरुोि करंूगा कक, आपके सह नयोग त्रबना सममतत का कायय अिरूाहै न ।

    हह नेंद ूकह नें मोहह न राम वपयारा, तुकय कहे न रह नमाना,

    आपस में दोड लडी-लडी मएु, मरम न कोउ जाना ।

    सभीकोपुन:मंगलकामनाएं।

    िन्यवाद।

    हस्ता/-

    28 नवंबर 2018 (बीवीएसअच्युतराव अध्यक्ष ववं उप महाप्रबंधक

    अध्यक्ष की कलम

  • अंतरंग…

    राजभाषा अधिधियम 1963 की िारा 3(3)

    अष्टम अिसूुची

    धिन्दी भाषा में ध िंग सिंबिंिी समस्या और सर समािाि

    ज िंच धबन् द ु

    प्रशासथनक शब्दावली

    ‘प्ररेणा’

    ई पत्रिका

    संपादन

    एव ंआर्ट

    श्री रमेश

    गायकवाड

    संपादक

    राजभाषा

    ‘रत्नसिंसु ’

    सदस्य

    सत्रिव

    नराकास

    रसखान स भद्राक मारी

    मीराबाई

    त लसीदास

    सरूदास

    रैदास

    कबीरदास

  • रसखान का जन्म सन ्1548 में हुआ माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहहम था और वे हदल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण-भक्तत ने उन्हें ऐसा मगु्ध कर हदया कक गोस्वामी ववट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमम में जा बसे। सन ्1628 के लगभग उनकी मतृ्यु हुई। सुजान रसखान और प्रेमवाहिका उनकी उपलब्ध कृततयााँ हैं। रसखान रचनावली के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह ममलता है। प्रमुख कृष्णभतत कवव रसखान की अनुरक्तत न केवल कृष्ण के प्रतत प्रकि हुई है बक्ल्क कृष्ण-भूमम के प्रतत भी उनका अनन्य अनुराग व्यतत हुआ है। उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधरुी, ब्रज-महहमा, राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का मनोहर वणणन ममलता है। वे अपनी प्रेम की तन्मयता, भाव-ववह्नलता और आसक्तत के उल्लास के मलए क्जतने प्रमसद्ध हैं उतने ही अपनी भाषा की माममणकता, शब्द-चयन तथा व्यंजक शैली के मलए। उनके यहााँ ब्रजभाषा का अत्यंत सरस और मनोरम प्रयोग ममलता है, क्जसमें ज़रा भी शब्दाडबंर नहीं है।

    रसखान के दोहे न प्रेमप्रेमसबकोउकह नत,प्रेमनजानतकोइ। जोजनजानैप्रेमतो,मरैजगतक्योंरोइ॥

    कमलतंतुसोछीनअरु,कहिनखडगकीिार। अततसूिोटढ़ौबहु नरर,प्रेमपंथअतनवार॥

    त्रबनगुनजोबनरूपिन,त्रबनस्वारथहह नतजातन। सुद्धकामनातेरहह नत,प्रमेसकलरसखातन॥

    प्रेमअगमअनुपमअममत,सागरसररसबखान। जोआवतएहह नहिगबहु नरर,जातनाहह नंरसखान॥ अततसूक्ष्मकोमलअततहह न,अततपतऱौअततदरू।

    प्रेमकहिनसबतेसदा,तनतइकरसभरपूर॥ भलेवथृाकररपधचमऱौ,ज्ञानगरूरबढाय। त्रबनाप्रेमफीकोसबै,कोहटनककयोउपाय॥

    दंपततसुखअरुववषयरस,पूजातनष्िाध्यान। इनहे नपरेबखातनये,सुद्धप्रेमरसखान॥ प्रेमरूपदपयणअहे न,रचैअजूबोखेल।

    यामेंअपनोरूपकछु,लखखपररहै नअनमेल॥ ह नररकेसबआिीनपै,ह नरीप्रेमआिीन।

    रसखान

  • सुभद्राकुमारीकाजन्मनागपंचमीकेहदन16 अगस्त1904 कोइलाह नाबाद(उत्तरप्रदेश केतनकटतनह नालपुरगााँवमेंएकसम्पन्नपररवारमेंहु नआथा। सुभद्राकुमारीकोबचपनसेह नीकाव्य-ग्रंथोंसेववशषेलगाववरूधचथा। आपकाववद्याथीजीवनप्रयागमेंह नीबीता। अल्पायुआयुमेंह नीसुभद्राकीपह नलीकववताप्रकामशतहु नईथी। सुभद्राऔरमह नादेवीवमायदोनोंबचपनकीसहे नमलयााँथीं। सुभद्राकुमारीकावववाह नखडंवा(मद्यप्रदेश तनवासी 'िाकुरलक्ष्मणमसहं न' केसाथहु नआ।पततकेसाथवेभीमह नात्मागांिीकेआंदोलनसेजुडगईंऔरराष्र-प्रेमपरकववताएंकरनेलगी।1948 मेंएकसडकदरु्यटनामेंआपकातनिनह नोगया।

    साहह नत्यकृततयां

    आपकापह नलाकाव्य-संग्रह न'मुकुल' 1930 मेंप्रकामशतहु नआ।इनकीचनुीहु नईकववताएाँ'त्रििारा' मेंप्रकामशतहु नईह नैं।'झााँसीकीरानी' इनकीबहु नचधचयतरचनाहै न। कववता:अनोखादान, आरािना, इसकारोना, उपेक्षा, उल्लास,कलह न-कारण, कोयल, खखल़ौनेवाला, चलतेसमय, धचतंा, जीवन-फूल, झााँसीकीरानीकीसमाधिपर, झांसीकीरानी, खझलममलतारे, िुकरादोयाप्यारकरो, तुम, नीम, पररचय, पानीऔरिूप, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथमदशयन,प्रभुतुममेरेमनकीजानो, वप्रयतमसे, फूलकेप्रतत, त्रबदाई, भ्रम, मिमुयप्याली, मुरझायाफूल, मेरागीत, मेराजीवन, मेरानयाबचपन, मेरीटेक, मेरेपधथक, यह नकदम्बकापेड-2, यह नकदम्बकापेड, ववजयीमयूर,ववदा,वीरोंकाह नोकैसावसन्त, वेदना, व्याकुलचाह न, समपयण, साि, स्वदेशकेप्रतत, जमलयााँवालाबागमेंबसंत सुभद्राजीकोप्राय:उनकेकाव्यकेमलएह नीजानाजाताहै नलेककनउन्ह नोंनेराष्रीयआंदोलन मेंभीसकियभागीदारीकीऔरजेलयािाकेपश्चातआपकेतीनकह नानीसंग्रह नभी प्रकामशत हुए, जो तनम्नमलखखत हैं: बबखरे मोती (1932 ) उन्माहदनी (1934)

    स भद्राक मारी

  • यहााँ कोककला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, काले काले कीि, भ्रमर का भ्रम उपजाते। कमलयााँ भी अधखखली, ममली हैं कंिक-कुल स,े वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।पररमल-हीन पराग दाग़ सा बना पडा है, हा! यह प्यारा बाग़ खनू से सना पडा है। ओ, वप्रय ऋतुराज! ककन्त ुधीरे से आना, यह है शोक-स्थान यहााँ मत शोर मचाना। वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना, दुुःख की आहें संग उडा कर मत ले जाना। कोककल गावें, ककन्तु राग रोने का गावें, भ्रमर करें गुंजार कष्ि की कथा सुनावें। लाना संग में पुष्प, न हों वे अधधक सजीले, तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले। ककन्तु न तुम उपहार भाव आ कर हदखलाना, स्मतृत में पूजा हेतु यहााँ थोड ेबबखराना। कोमल बालक मरे यहााँ गोली खा कर, कमलयााँ उनके मलये धगराना थोडी ला कर। आशाओं से भरे हृदय भी तछन्न हुए हैं, अपने वप्रय पररवार देश से मभन्न हुए हैं। कुछ कमलयााँ अधखखली यहााँ इसमलए चढाना, कर के उनकी याद अश्र ुके ओस बहाना। तडप तडप कर वदृ्ध मरे हैं गोली खा कर, शुष्क पुष्प कुछ वहााँ धगरा देना तुम जा कर। यह सब करना, ककन्तु यहााँ मत शोर मचाना, यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना। - सुभद्रा कुमारी चौहान

  • कृष्णभजक्तशाखाकीहह नदंीकीमह नानकवतयिीमीराबाईकाजन्मसवंत्१५७३मेंजोिपरुमेंचोकडीनामकगााँवमेंहु नआथा।इनकावववाह नउदयपरुकेमह नाराणाकुमारभोजराजजीकेसाथहु नआथा।येबचपनसेह नीकृष्णभजक्तमेंरुधचलेनेलगीथीं। वववाह नकेथोडेह नीहदनकेबादआपकेपततकास्वगयवासह नोगयाथा।पततकेपरलोकवासकेबादइनकीभजक्तहदन-प्रतत-हदनबढतीगई।येमहंदरोंमेंजाकरवह नााँम़ौजूदकृष्णभक्तोंकेसामनेकृष्णजीकीमतूत यकेआगेनाचतीरह नतीथीं। मीराबाईकार्रसेतनकालाजाना मीराबाईकाकृष्णभजक्तमेंनाचनाऔरगानाराजपररवारकोअच्छानह नींलगा।उन्ह नोंनेकईबारमीराबाईकोववषदेकरमारनेकीकोमशशकी।र्रवालोंकेइसप्रकारकेव्यवह नारसेपरेशानह नोकरवह नद्वारकाऔरवृदंावनगईं।वह नजह नााँजातीथी,ं वह नााँलोगोंकासम्मानममलताथा।लोगआपकोदेववयोंकेजैसाप्यारऔरसम्मानदेतेथे।इसीद़ौरानउन्ह नोंनेतलुसीदासकोपिमलखाथा:-

    स्वक्स्त श्री तुलसी कुलभूषण दषून- हरन गोसाई। बारहह ंबार प्रनाम करहूाँ अब हरहूाँ सोक- समुदाई।। घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधध बढाई।

    साध-ु सग अरु भजन करत माहह ंदेत कलेस महाई।। मेरे माता- वपता के समहौ, हररभततन्ह सुखदाई।

    हमको कहा उधचत कररबो है, सो मलखखए समझाई।। मीराबाई के पत्र का जबाव तलुसी दास ने इस प्रकार हदया:-

    जाके वप्रय न राम बैदेही। सो नर तक्जए कोहि बैरी सम जद्यवप परम सनेहा।। नाते सबै राम के मतनयत सुह्मद सुसंख्य जहााँ लौ। अंजन कहा आाँखख जो फूिे, बहुतक कहो कहा ंलौ।।

    मीराबाई

  • मीराबाईनेचारग्रंथोंकीरचनाकी-- - बरसीकामायरा - गीतगोववदंटीका - रागगोववदं - रागसोरिकेपद इसकेअलावामीराबाईकेगीतोंकासंकलन"मीराबाईकीपदावली' नामकग्रन्थमेंककयागयाहै न।

    मीराबाईकीभजक्त मीराकीभजक्तमेंमाियुय-भावकाफीह नदतकपायाजाताथा।वह नअपनेइष्टदेवकृष्णकीभावनावप्रयतमयापततकेरुपमेंकरतीथी।उनकामाननाथाककइससंसारमेंकृष्णकेअलावाकोईपुरुषहै नह नीनह नीं।कृष्णकेरुपकीदीवानीथी--

    बसोमेरेनैननमेंनंदलाल। मोह ननीमूरतत, सााँवरर, सुरततनैनाबनेववसाल।। अिरसुिारसमुरलीबाजतत, उरबैजंतीमाल।

    क्षुद्रर्ंहटकाकहट-तटसोमभत, नूपुरशब्दरसाल। मीराप्रभुसंतनसुखदाई, भक्तबछलगोपाल।।

    मीराबाईरैदासकोअपनागुरुमानतेहु नएकह नतीह नैं- 'गुरुमममलयारैदासदीन्ह नीज्ञानकीगुटकी।'

    इन्ह नोंनेअपनेबहु नतसेपदोंकीरचनाराजस्थानीममधितभाषामेंह नीहै न।इसकेअलावाकुछववशुद्धसाहह नजत्यकब्रजभाषामेंभीमलखाहै न।इन्ह नोंनेजन्मजातकववतयिीनह नोनेकेबावजूदभजक्तकीभावनामेंकववतयिीकेरुपमेंप्रमसवद्धप्रदानकी।मीराकेववरह नगीतोंमेंसमकालीनकववयोंकीअपेक्षाअधिकस्वाभाववकतापाईजातीहै न।इन्ह नोंनेअपनेपदोंमेंिृगंारऔरशांतरसकाप्रयोगववशषेरुपसेककयाहै न।

    मनरेपामसह नररकेचरन। सुभगसीतलकमल-कोमलत्रिववि-ज्वाला-ह नरन।

    जोचरनप्रह्मलादपरसेइंद्र-पद्वी-ह नान।। जजनचरनध्रवुअटलकींन्ह नोंराखखअपनीसरन। जजनचरनब्राह्मांडमेंथ्योंनखमसख़ौिीभरन।। जजनचरनप्रभुपरसलतनह नोंतरीग़ौतमिरतन। जजनचरनिरथोगोबरिनगरब-मिवा-ह नरन।।

    दासमीरालालधगरिरआजमतारनतरन।।

  • त लसीदास

    मह नानकववतुलसीदासकीप्रततभा-ककरणोंसेनकेवलहह नन्दूसमाजऔरभारत, बजल्कसमस्तसंसारआलोककतह नोरह नाहै न।बडाअफसोसहै नककउसीकववकाजन्म-कालवववादोंकेअिंकारमेंपडाहु नआहै न।अबतकप्राप्तशोि-तनष्कषयभीह नमेंतनजश्चतताप्रदानकरनेमेंअसमथयहदखाईदेतेह नैं।मूलगोसाईं-चररतकेतथ्योंकेआिारपरडा०पीताम्बरदत्तबडथ्वालऔरश्यामसंुदरदासतथाककसीजनिुततकेआिारपर"मानसमयंक' - कारभी१५५४काह नीसमथयनकरतेह नैं।इसकेपक्षमेंमूलगोसाईं-चररतकीतनम्नाकंकतपंजक्तयोंकाववशषेउल्लेखककयाजाताहै न। पंद्रह नसैच़ौवनववषै, कामलदंीकेतीर, सावनसुक्लासत्तमी, तुलसीिरेउशरीर। तुलसीदासकीजन्मभूमम तुलसीदासकीजन्मभूममह नोनेकाग़ौरवपानेकेमलएअबतकराजापुर(बांदा , सोरों(एटा , ह नाजीपुर(धचिकूटकेतनकट , तथातारीकीओरसेप्रयासककएगएह नैं।संततुलसीसाहह नबकेआत्मोल्लेखों, राजापुरकेसरयपूारीणब्राह्मणोंकोप्राप्त"मुआफी' आहदबहह नसायक्ष्योंऔरअयोध्याकांड(मानस केतायसप्रसंग, भगवानरामकेवनगमनकेिममेंयमुनानदीसेआगेबढनेपरव्यक्तकववकाभावावेशआहदअतंसायक्ष्योंतथातुलसी-साहह नत्यकीभावषकवजृत्तयोंकेआिारपररामबह नोरेशुक्लराजापुरकोतुलसीकीजन्मभूममह नोनाप्रमाखणतहु नआहै न। रामनरेशत्रिपािीकातनष्कषयहै नककतुलसीदासकाजन्मस्थानसोरोंह नीहै न।सोरोंमेंतुलसीदासकेस्थानकाअवशषे, तुलसीदासकेभाईनदंदासकेउत्तराधिकारीनरमसहं नजीकामंहदरऔरवह नांउनकेउत्तराधिकाररयोंकीववद्यमानतासेत्रिपािीऔरगुप्तजीकेमतकोपररपुष्टकरतेह नैं।तुलसीदास का बाल्यकाल घोर अथण-दाररद्रय में बीता। मभक्षोपजीवी पररवार में उत्पन्न होने के कारण बालक तुलसीदास को भी वही साधन अंगीकृत करना पडा।

    अथय-संकटसेगुजरतेहु नएपररवारमेंनयेसदस्योंकाआगमनह नषयजनकनह नींमानागया- जायोकुलमंगनबिावनोबजायोसुतन, भयोपररतापपायजननीजनकको। बारेंतेललातत्रबललातद्वार-द्वारदीन, जानतह नौंचाररफलचाररह नीचनकको। (कववतावली मातुवपताजगजायतज्योववधिहू ननमलखीकछुभालभलाई नीचतनरादरभाजनकादरकूकरटूकतनलाधगललाई। रामसुभाउसुन्योतुलसीप्रभु, सोकह्योबारकपेटखलाई। स्वारथकोपरमारथकोरर्नुाथसोसाह नबखोररनलाई।। ह नोशसंभालनेकेपवुयह नीजजसकेसरपरसेमाता-वपताकेवात्सल्यऔरसंरक्षणकीछायासदा-सवयदाकेमलएह नटगयी, ह नोशसंभालतेह नीजजसेएकमुट्ठीअन्नकेमलएद्वार-द्वारववललानेकोबाध्यह नोनापडा, संकट-कालउपजस्थतदेखकरजजसकेस्वजन-पररजनदरककनारह नोगए, चारमुट्ठीचनेभीजजसकेमलएजीवनकेचरमप्राप्य(अथय, िमय, कामऔरमोक्ष बनगए, वह नकैसेसमझेककवविातानेउसकेभालमेंभीभलाईकेकुछशब्दमलखेह नैं।उक्तपदोंमेंव्यजंजतवेदनाकासह नीअनुभवतोउसेह नीह नोसकताहै न, जजसेउसदारुणपररजस्थततसेगुजरनापडाह नो।ऐसाह नीएकपदववनयपत्रिकामेंभीममलताहै न-

    द्वार-द्वारदीनताकह नीकाहिरदपररपाहंू न हे नदयालु, दनुीदसहदसादखु-दोस-दलन-छमककयोसंभाषनकाहंू न। तनुजन्योकुहटलकोटज्योंतज्योंमात-ुवपताहंू न। काहे नकोरोष-दोषकाहह निौंमेरेह नीअभागमोसीसकुचतछुइसबछाहंू न

  • सरूदास जीवात्सल्यरसकेसम्राटमानेजातेह नैं।उन्ह नोंनेिृंगारऔरशान्तरसोंकाभीबडाममयस्पशीवणयनककयाहै न। सरूदासकीजन्मततधथएवंजन्मस्थानकेववषयमेंववद्वानोंमेंमतभेदहै न।"साहह नत्यलह नरी' सरूकीमलखीरचनामानीजातीहै न।इसमेंसाहह नत्यलह नरीकेरचना-कालकेसम्बन्िमें तनम्नपदममलताहै न- मतुनपतुनकेरसलेख। दसनग़ौरीनन्दकोमलखखसवुलसवंत्पेख।। इसकाअथयसवंत्१६०७वव०मानाजाताहै न, अतएवं"साहह नत्यलह नरी' कारचनाकालसवंत्१६०७वव०है न।इसग्रन्थसेयह नभीप्रमाखणतह नोताहै नककसरूकेगरुुिीबल्लभाचाययथे।इसआिारपरसरूदासकाजन्मस०ं१५३५वव०केलगभगिह नरताहै न, क्योंककबल्लभसम्प्रदायकीमान्यताहै नककबल्लभाचाययसरूदाससेदसहदनबडेथेऔरबल्लभाचाययकाजन्मउक्तसवंत्कीवशैाख्कृष्णएकादशीकोहु नआथा।इसमलएसरूदासकीजन्म-ततधथवशैाखशकु्लापचंमी, सवंत्१५३५वव०समीचीनमानीजातीहै न।उनकीमतृ्युसवंत्१६२०से१६४८वव०केमध्यमान्यहै न। आचाययरामचन्द्रशकु्लजीकेमतानसुारसरूदासकाजन्मसवंत्१५४०वव०केसजन्नकटऔरमतृ्युसवंत्१६२०वव०केआसपासमानीजातीहै न।

    जन्मस्थल 'च़ौरासीवषै्णवकीवाताय' केआिारपरउनकाजन्मरुनकताअथवारेणुकाक्षिे(वतयमानजजलाआगरान्तगयत मेंहु नआथा।मथुराऔरआगराकेबीचगऊर्ाटपरयेतनवासकरतेथे।बल्लभाचाययसेइनकीभेंटवह नींपरहु नईथी।"भावप्रकाश' मेंसरूकाजन्मस्थानसीह नीनामकग्रामबतायागयाहै न।वेसारस्वतब्राह्मणथेऔरजन्मकेअिेंथे। "आइनेअकबरी' में(सवंत्१६५३वव० तथा"मतुखबतु-तवारीख' केअनसुारसरूदासकोअकबरकेदरबारीसगंीतज्ञोंमेंमानाहै न।

    अधिकतरववद्वानोंकामतहै नककसरूकाजन्मसीह नीनामकग्राममेंएकतनियनसारस्वतब्राह्मणपररवारमेंहु नआथा।बादमेंयेआगराऔरमथुराकेबीचगऊर्ाटपरआकररह ननेलगेथे।

    खजंन ननै रुप मदमाते । अततशय चारु चपल अतनयारे, पल वपजंरा न समाते ।।

    चमल - चमल जात तनकि स्रवनन के, उलि-पुलि तािंक फाँ दाते । "सूरदास' अजंन गुन अिके, नतरु अबहह ंउड जाते ।।

    सरूदास

  • क्यासूरदासअंिेथे? सरूदासिीनाथभकी"ससं्कृतवातायमखणपाला', िीह नरररायकृत"भाव-प्रकाश", िीगोकुलनाथकी"तनजवाताय' आहदग्रन्थोंकेआिारपर, जन्मकेअन्िेमानेगएह नैं।लेककनरािा-कृष्णकेरुपस़ौन्दययकासजीवधचिण, नानारंगोंकावणयन, सकू्ष्मपययवेक्षणशीलताआहदगणुोंकेकारणअधिकतरवतयमानववद्वानसरूकोजन्मान्िस्वीकारनह नींकरत।े" श्यामसनु्दरदासनेइससम्बन्िमेंमलखाहै न-"सरूवास्तवमेंजन्मान्िनह नींथे, क्योंककिृंगारतथारंग-रुपाहदकाजोवणयनउन्ह नोंनेककयाहै नवसैाकोईजन्मान्िनह नींकरसकता।'' डॉक्टरह नजारीप्रसादद्वववदेीनेमलखाहै न- "सरूसागरकेकुछपदोंसेयह नध्वतनअवश्यतनकलतीहै नककसरूदासअपनेकोजन्मकाअन्िाऔरकमयकाअभागाकह नतेह नैं, परसबसमयइसकेअक्षराथयकोह नीप्रिाननह नींमाननाचाहह नए।"

    रचनाए ंसरूदासकीरचनाओंमेंतनम्नमलखखतपााँचग्रन्थबताएजातेह नैं- १सरूसागर २सरूसारावली ३साहह नत्य-लह नरी ४नल-दमयन्ती ५ब्याह नलो उपरोक्तमेंअजन्तमदोग्रथंअप्राप्यह नैं। नागरीप्रचाररणीसभाद्वाराप्रकामशतह नस्तमलखखतपसु्तकोंकीवववरणतामलकामेंसरूदासके१६ग्रन्थोंकाउल्लेखहै न।इनमेंसरूसागर, सरूसारावली, साहह नत्यलह नरी, नल-दमयन्ती, ब्याह नलोकेअततररक्तदशमस्कंिटीका, नागलीला, भागवत,् गोवियनलीला, सरूपचीसी, सरूसागरसार, प्राणप्यारी, आहदग्रन्थसजम्ममलतह नैं।इनमेंप्रारम्भकेतीनग्रथंह नीमह नत्त्वपणूयसमझेजातेह नैं।

  • रैदास नाम से ववख्यात संत रववदास का जन्म सन ्1388 (इनका जन्म कुछ ववद्वान 1398 में हुआ भी बताते हैं) को बनारस में हुआ था। रैदास कबीर के समकालीन हैं। रैदास की ख्यातत से प्रभाववत होकर मसकंदर लोदी ने इन्हें हदल्ली आने का तनमंत्रण भेजा था। मध्ययुगीन साधकों में रैदास का ववमशष्ि स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोहि के प्रमुख कववयों में ववमशष्ि स्थान रखते हैं। कबीर ने 'संतन में रववदास' कहकर इन्हें मान्यता दी है। मूततणपूजा, तीथणयात्रा जैसे हदखावों में रैदास का बबल्कुल भी ववश्वास न था। वह व्यक्तत की आंतररक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धमण मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहाररक ब्रजभाषा का प्रयोग ककया है, क्जसमें अवधी, राजस्थानी, खडी बोली और उदूण-फारसी के शब्दों का भी ममश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार ववशषे वप्रय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवव ने हृदय के भाव बडी स़फाई से प्रकि ककए हैं। इनका आत्मतनवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्तत पाठक के हृदय को उद्वेमलत करते हैं। रैदास के चालीस पद मसखों के पववत्र धमणग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सक्म्ममलत हैं। कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे। अब कैसे छूिे राम रि लागी। प्रभु जी, तुम चदंन हम पानी, जाकी अाँग-अाँग बास समानी॥ प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे धचतवत चदं चकोरा॥ प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोतत बरै हदन राती॥ प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहह ंममलत सोहागा॥

    रैदास

  • रैदासकेदोह े

    जातत-जाततमेंजाततह नैं, जोकेतनकेपात। रैदासमनषुनाजुडसकेजबतकजाततनजात।।

    रैदासकनकऔरकंगनमाहह नजजममअंतरकछुनाहह न।ं तैसेह नीअंतरनह नींहह नन्दअुनतुरकनमाहह न।।

    हह नदंूतुरकनह नींकछुभेदासभीमह नएकरक्तऔरमासा। दोऊएकऊदजूानाह नी,ं पेख्योसोइरैदासा।।

    कह नरैदासतरेीभगततदरूरहै न, भागबडेसोपाव।ै तजजअमभमानमहेटआपापर, वपवपलकह नवैचतुनखाव।ै।

    कृस्न, करीम, राम, ह नरर, रार्व, जबलगएकनपेखा। वेदकतेबकुरान, परुानन, सह नजएकनहह नंदेखा।।

  • कबीरदास

    कबीरहह नदंीसाहह नत्यकेमहह नमामजडडतव्यजक्तत्वह नैं।कबीरकेजन्मकेसबंिंमेंअनेकककंवदजन्तयााँह नैं।कुछलोगोंकेअनसुारवेरामानन्दस्वामीकेआशीवायदसेकाशीकीएकवविवाब्राह्मणीकेगभयसेपदैाहु नएथे, जजसकोभलूसेरामानदंजीनेपिुवतीह नोनेकाआशीवायददेहदयाथा।ब्राह्मणीउसनवजातमशशुकोलह नरतारातालकेपासफें कआयी। कबीरकेमाता-वपताकेववषयमेंएकरायतनजश्चतनह नींहै नकककबीर"नीमा' और"नीरु' कीवास्तववकसतंानथेयानीमाऔरनीरुनेकेवलइनकापालन-पोषणह नीककयाथा।कह नाजाताहै नककनीरुजुलाहे नकोयह नबच्चालह नरतारातालपरपडापाया, जजसेवह नअपनेर्रलेआयाऔरउसकापालन-पोषणककया।बादमेंयह नीबालककबीरकह नलाया। कबीरनेस्वयंकोजुलाहे नकेरुपमेंप्रस्ततुककयाहै न- "जाततजुलाह नानामकबीरा बतनबतनकफरोउदासी।' कबीरपजन्थयोंकीमान्यताहै नकककबीरकीउत्पजत्तकाशीमेंलह नरतारातालाबमेंउत्पन्नकमलकेमनोह नरपुष्पकेऊपरबालककेरूपमेंहु नई।ऐसाभीकह नाजाताहै नकककबीरजन्मसेमुसलमानथेऔरयुवावस्थामेंस्वामीरामानन्दकेप्रभावसेउन्ह नेंहह नदंूिमयकाज्ञानहु नआ।एकहदनकबीरपञ्चगंगार्ाटकीसीहढयोंपरधगरपडेथे, रामानन्दजउसीसमयगंगास्नानकरनेकेमलयेसीहढयााँउतररहे नथेककउनकापैरकबीरकेशरीरपरपडगया।

  • उनके मखु से तत्काल `राम-राम' शब्द तनकल पडा। उसी राम को कबीर न ेदीक्षा-मन्त्र मान मलया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर मलया। कबीर के ही शब्दों में- `हम कासी में प्रकि भये हैं, रामानन्द चतेाये'। अन्य जनश्रतुतयों से ज्ञात होता है कक कबीर ने हहदं-ुमसुलमान का भेद ममिा कर हहदं-ूभततों तथा मसुलमान फकीरों का सत्संग ककया और दोनों की अच्छी बातों को आत्मसात कर मलया। जनश्रतुत के अनसुार कबीर के एक पतु्र कमल तथा पतु्री कमाली थी। इतने लोगों की परवररश करने के मलये उन्हें अपने करघे पर काफी काम करना पडता था। साध ुसंतों का तो घर में जमावडा रहता ही था। कबीर को कबीर पंथ में, बाल- ब्रह्मचारी और ववराणी माना जाता है। इस पंथ के अनसुार कामात्य उसका मशष्य था और कमाली तथा लोई उनकी मशष्या। लोई शब्द का प्रयोग कबीर ने एक जगह कंबल के रुप में भी ककया है। वस्ततुुः कबीर की पत्नी और संतान दोनों थे। एक जगह लोई को पकुार कर कबीर कहते हैं :-

    "कहत कबीर सनुहु रे लोई। हरर बबन राखन हार न कोई।।'

    कबीर पढे-मलखे नही ंथे- `ममस कागद छूवो नहीं, कलम गही नहह ंहाथ।' उन्होंन ेस्वयं गं्रथ नहीं मलखे, मुाँह से भाखे और उनके मशष्यों ने उसे मलख मलया। आप के समस्त ववचारों में रामनाम की महहमा प्रततध्वतनत होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कमणकाण्ड के घोर ववरोधी थे। अवतार, मकू्त्तण, रोज़ा, ईद, मसक्जद, मंहदर आहद को व ेनही ंमानते थे।