दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973(ज) “अन व षण” क...

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दड िया संिहता, 1973 (1974 का अिधिनयम संयांक 2) [25 जनवरी, 1974] दड िया संबंधी िविध का समेकन और संशोधन करने के िलए अिधिनयम भारत गणराय के चौबीसवᱶ वष मᱶ संसद् ᳇ारा िननिलिखत मᱶ यह अिधिनयिमत हो :अयाय 1 ारंिभक 1. संित नाम, िवतार और ारंभ(1) इस अिधिनयम का संित नाम दड िया संिहता, 1973 है (2) इसका िवतार जमू -कमीर राय के िसवाय संपूण भारत पर है : परंतु इस संिहता के अयाय 8, 10 और 11 से संबंिधत उपबंधᲂ से िभन, उपबंध,— () नागालᱹड राय को ; () जनजाित ेᲂ को, लागू नहᱭ हᲂगे, िकतु संब राय सरकार अिधसूचना ᳇ारा, ऐसे उपबंधᲂ या उनमᱶ से िकसी को, यथािथित, संपूण नागालᱹड राय या ऐसे जनजाित अथवा उनके िकसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक या पािरणािमक उपातरᲂ सिहत लागू कर सकती है जो अिधसूचना मᱶ िविनिदट िकए जाएं पटीकरणइस धारा मᱶ, “जनजाित से वे राय अिभेत हᱹ जो 1972 की जनवरी के 21वᱶ िदन के ठीक पहले , संिवधान की षठ अनुसूची के पैरा 20 मᱶ यथािनिदट असम के जनजाित ेᲂ मᱶ सिमिलत थे और जो िशलांग नगरपािलका की थानीय सीमाᲐ के भीतर के ेᲂ से िभन हᱹ (3) यह 1974 के अैल के थम िदन वृᱫ होगा 2. पिरभाषाएंइस संिहता मᱶ , जब तक िसंदभ से अयथा अपेित हो,— () “जमानतीय अपराधसे ऐसा अपराध अिभेत है जो थम अनुसूची मᱶ जमानतीय के मᱶ िदखाया गया है या तसमय वृᱫ िकसी अय िविध ᳇ारा जमानतीय बनाया गया है और अजमानतीय अपराधसे कोई अय अपराध अिभेत है ; () “आरोपके अंतगत, जब आरोप मᱶ एक से अिधक शीष हᲂ, आरोप का कोई भी शीष है ; () “संेय अपराधसे ऐसा अपराध अिभेत है िजसके िलए और संेय मामलासे ऐसा मामला अिभेत है िजसमᱶ , पुिलस अिधकारी थम अनुसूची के या तसमय वृᱫ िकसी अय िविध के अनुसार वारट के िबना िगरतार कर सकता है ; () “पिरवादसे इस संिहता के अधीन मिजेट ᳇ारा कारवाई िकए जाने की दृिट से मौिखक या िलिखत मᱶ उससे िकया गया यह अिभकथन अिभेत है ििकसी ित ने, चाहे वह ात हो या अात, अपराध िकया है , िकतु इसके अंतगत पुिलस िरपोट नहᱭ है ; पटीकरणऐसे िकसी मामले मᱶ , जो अवेषण के पचात् िकसी असंेय अपराध का िकया जाना कट करता है , पुिलस अिधकारी ᳇ारा की गई िरपोट पिरवाद समझी जाएगी और वह पुिलस अिधकारी िजसके ᳇ारा ऐसी िरपोट की गई है , पिरवादी समझा जाएगा ; () “उच यायालयसे अिभेत है ,— (i) िकसी राय के संबंध मᱶ , उस राय का उच यायालय ; (ii) िकसी ऐसे संघ राये के संबंध मᱶ िजस पर िकसी राय के उच यायालय की अिधकािरता का िवतार िविध ᳇ारा िकया गया है , वह उच यायालय ; (iii) िकसी अय संघ राये के संबंध मᱶ, भारत के उचतम यायालय से िभन, उस संघ राये के िलए दािडक अपील का सवᲃच यायालय ;

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  • दण्ड पर्िकर्या सिंहता, 1973 (1974 का अिधिनयम संख्याकं 2)

    [25 जनवरी, 1974]

    दण्ड पर्िकर्या सबंधंी िविध का समकेन और सशंोधन

    करन ेके िलए अिधिनयम

    भारत गणराज्य के चौबीसव वषर् म संसद ् ारा िनम् निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :—

    अध्याय 1

    पर्ारंिभक 1. सिंक्षप् त नाम, िवस्तार और पर्ारंभ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप् त नाम दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 ह ै।

    (2) इसका िवस्तार जम्म-ूकश्मीर राज्य के िसवाय सपूंणर् भारत पर ह ै:

    परंतु इस संिहता के अध्याय 8, 10 और 11 स ेसंबंिधत उपबंध से िभन् न, उपबंध,—

    (क) नागालड राज्य को ;

    (ख) जनजाित क्षेतर् को,

    लागू नह ह गे, िकतु संब राज्य सरकार अिधसूचना ारा, ऐस ेउपबंध या उनम से िकसी को, यथािस्थित, संपूणर् नागालड राज्य या ऐसे जनजाित क्षेतर् अथवा उनके िकसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंिगक या पािरणािमक उपान्तर सिहत लागू कर सकती ह ैजो अिधसूचना म िविनिदष् ट िकए जाएं ।

    स्पष् टीकरण—इस धारा म, “जनजाित क्षेतर्” से वे राज्य क्षेतर् अिभपेर्त ह जो 1972 की जनवरी के 21व िदन के ठीक पहल,े संिवधान की षष् ठ अनसुूची के पैरा 20 म यथािनिदष् ट असम के जनजाित क्षेतर् म सिम्मिलत थे और जो िशलांग नगरपािलका की स्थानीय सीमा के भीतर के क्षेतर् से िभन् न ह ।

    (3) यह 1974 के अपैर्ल के पर्थम िदन पर्वृ होगा ।

    2. पिरभाषाएं—इस संिहता म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—

    (क) “जमानतीय अपराध” से ऐसा अपराध अिभपेर्त ह ैजो पर्थम अनुसचूी म जमानतीय के रूप म िदखाया गया ह ैया तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा जमानतीय बनाया गया ह ैऔर “अजमानतीय अपराध” स ेकोई अन्य अपराध अिभपेर्त ह ै;

    (ख) “आरोप” के अंतगर्त, जब आरोप म एक से अिधक शीषर् ह , आरोप का कोई भी शीषर् ह ै;

    (ग) “संज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अिभपेर्त ह ै िजसके िलए और “संज्ञेय मामला” से ऐसा मामला अिभपेर्त ह ै िजसम, पुिलस अिधकारी पर्थम अनुसूची के या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अनुसार वारण्ट के िबना िगरफ्तार कर सकता ह ै;

    (घ) “पिरवाद” से इस संिहता के अधीन मिजस्टेर्ट ारा कारर्वाई िकए जान ेकी दिृष् ट से मौिखक या िलिखत रूप म उससे िकया गया यह अिभकथन अिभपेर्त ह ै िक िकसी िक् त ने, चाह ेवह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध िकया ह,ै िकतु इसके अंतगर्त पुिलस िरपोटर् नह ह ै;

    स्पष् टीकरण—ऐसे िकसी मामल ेम, जो अन्वषेण के पश् चात ्िकसी असंज्ञेय अपराध का िकया जाना पर्कट करता ह,ै पुिलस अिधकारी ारा की गई िरपोटर् पिरवाद समझी जाएगी और वह पुिलस अिधकारी िजसके ारा ऐसी िरपोटर् की गई ह,ै पिरवादी समझा जाएगा ;

    (ङ) “उच् च न्यायालय” से अिभपेर्त ह,ै—

    (i) िकसी राज्य के संबंध म, उस राज्य का उच् च न्यायालय ;

    (ii) िकसी ऐसे संघ राज्यक्षेतर् के संबंध म िजस पर िकसी राज्य के उच् च न्यायालय की अिधकािरता का िवस्तार िविध ारा िकया गया ह,ै वह उच् च न्यायालय ;

    (iii) िकसी अन्य संघ राज्यक्षेतर् के संबंध म, भारत के उच् चतम न्यायालय से िभन् न, उस संघ राज्यक्षेतर् के िलए दािण्डक अपील का सव च् च न्यायालय ;

  • 2

    (च) “भारत” स ेवे राज्यक्षेतर् अिभपेर्त ह िजन पर इस संिहता का िवस्तार ह ै;

    (छ) “जांच” से, अिभपेर्त ह ैिवचारण से िभन् न, ऐसी पर्त्येक जांच जो इस संिहता के अधीन मिजस्टेर्ट या न्यायालय ारा की जाए ;

    (ज) “अन्वषेण” के अंतगर्त व ेसब कायर्वािहयां ह जो इस संिहता के अधीन पुिलस अिधकारी ारा या (मिजस्टेर्ट से िभन् न) िकसी भी ऐस े िक् त ारा जो मिजस्टेर्ट ारा इस िनिम पर्ािधकृत िकया गया ह,ै सा य एकतर् करने के िलए की जाएं ;

    (झ) “न्याियक कायर्वाही” के अंतगर्त कोई ऐसी कायर्वाही ह ैिजसके अनुकर्म म सा य वैध रूप से शपथ पर िलया जाता ह ैया िलया जा सकता ह ै;

    (ञ) िकसी न्यायालय या मिजस्टेर्ट के संबंध म “स्थानीय अिधकािरता” से वह स्थानीय क्षेतर् अिभपेर्त ह ैिजसके भीतर ऐसा न्यायालय या मिजस्टेर्ट इस संिहता के अधीन अपनी सभी या िकन्ह शिक् तय का पर्योग कर सकता ह ै 1[और ऐस ेस्थानीय क्षेतर् म संपूणर् राज्य या राज्य का कोई भाग समािवष् ट हो सकता ह ैजो राज्य सरकार, अिधसूचना ारा िविनिदष् ट करे] ;

    (ट) “महानगर क्षेतर्” से वह क्षेतर् अिभपेर्त ह ैजो धारा 8 के अधीन महानगर क्षेतर् घोिषत िकया गया ह ैया घोिषत समझा गया ह ै;

    (ठ) “असंज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अिभपेर्त ह ैिजसके िलए और “असजं्ञेय मामला” से ऐसा मामला अिभपेर्त ह ैिजसम पुिलस अिधकारी को वारण्ट के िबना िगरफ्तारी करने का पर्ािधकार नह होता ह ै;

    (ड) “अिधसूचना” स ेराजपतर् म पर्कािशत अिधसूचना अिभपेर्त ह ै;

    (ढ) “अपराध” से कोई ऐसा कायर् या लोप अिभपेर्त ह ैजो तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा दण्डनीय बना िदया गया ह ैऔर इसके अंतगर्त कोई ऐसा कायर् भी ह ैिजसके बारे म पशु अितचार अिधिनयम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन पिरवाद िकया जा सकता ह ै;

    (ण) “पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी” के अंतगर्त, जब पुिलस थाने का भारसाधक अिधकारी थाने स ेअनुपिस्थत हो या बीमारी या अन्य कारण से अपने कतर् का पालन करने म असमथर् हो, तब थाने म उपिस्थत ऐसा पुिलस अिधकारी ह,ै जो ऐसी अिधकारी से पंिक् त म ठीक नीच ेह ैऔर कान्स्टेबल की पंिक् त से ऊपर ह,ै या जब राज्य सरकार ऐसा िनदशे द ेतब, इस पर्कार उपिस्थत कोई अन्य पुिलस अिधकारी भी ह ै;

    (त) “स्थान” के अंतगर्त गृह, भवन, तम्ब,ू यान और जलयान भी ह ;

    (थ) िकसी न्यायालय म िकसी कायर्वाही के बारे म पर्योग िकए जाने पर “प्लीडर” से, ऐसे न्यायालय म तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा या उसके अधीन िविध- वसाय करने के िलए पर्ािधकृत िक् त अिभपेर्त ह,ै और इसके अंतगर्त कोई भी अन्य

    िक् त ह,ै जो ऐसी कायर्वाही म कायर् करने के िलए न्यायालय की अनुज्ञा स ेिनयुक् त िकया गया ह ै;

    (द) “पुिलस िरपोटर्” से पुिलस अिधकारी ारा धारा 173 की उपधारा (2) के अधीन मिजस्टेर्ट को भेजी गई िरपोटर् अिभपेर्त ह ै;

    (ध) “पुिलस थाना” से कोई भी चौकी या स्थान अिभपेर्त ह ैिजसे राज्य सरकार ारा साधारणतया या िवशेषतया पुिलस थाना घोिषत िकया गया ह ैऔर इसके अंतगर्त राज्य सरकार ारा इस िनिम िविनिदष् ट कोई स्थानीय क्षेतर् भी ह ;

    (न) “िविहत” से इस संिहता के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपेर्त ह ै;

    (प) “लोक अिभयोजक” से धारा 24 के अधीन िनयुक् त िक् त अिभपेर्त ह ैऔर इसके अंतगर्त लोक अिभयोजक के िनदशे के अधीन कायर् करन ेवाला िक् त भी ह ै;

    (फ) “उपखण्ड” से िजल ेका उपखण्ड अिभपेर्त ह ै;

    (ब) “समन-मामला” से ऐसा मामला अिभपेर्त ह ैजो िकसी अपराध से संबंिधत ह ैऔर जो वारण्ट-मामला नह ह ै; 2[(बक) “पीिड़त” स ेऐसा िक् त अिभपेर्त ह ैिजसे उस कायर् या लोप के कारण कोई हािन या क्षित कािरत हुई ह ैिजसके

    िलए अिभयुक् त िक् त पर आरोप लगाया गया ह ैऔर “पीिड़त” पद के अंतगर्त उसका संरक्षक या िविधक वािरस भी ह ै;]

    (भ) “वारण्ट-मामला” से ऐसा मामला अिभपेर्त ह ै जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वषर् से अिधक की अविध के कारावास से दण्डनीय िकसी अपराध से संबंिधत ह ै;

    (म) उन शब्द और पद के, जो इसम पर्युक् त ह और पिरभािषत नह ह िकतु भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) म पिरभािषत ह, वही अथर् ह गे जो उनके उस संिहता म ह ।

    1 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत । 2 2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत ।

  • 3

    3. िनदश का अथर् लगाना—(1) इस संिहता म—

    (क) िवशेषक शब्द के िबना मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का अथर्, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—

    (i) महानगर क्षेतर् के बाहर िकसी क्षेतर् के संबंध म न्याियक मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश के रूप म लगाया जाएगा ;

    (ii) महानगर क्षेतर् के संबंध म महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश के रूप म लगाया जाएगा ;

    (ख) ि तीय वगर् मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का महानगर क्षेतर् के बाहर िकसी क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट के पर्ित और महानगर क्षेतर् के संबंध म महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै;

    (ग) पर्थम वगर् मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का,—

    (i) िकसी महानगर क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म अिधकािरता का पर्योग करन ेवाले महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै;

    (ii) िकसी अन्य क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म अिधकािरता का पर्योग करने वाल ेपर्थम वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै;

    (घ) मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का िकसी महानगर क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म अिधकािरता का पर्योग करने वाल ेमुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै।

    (2) इस संिहता म जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो, न्याियक मिजस्टेर्ट के न्यायालय के पर्ित िनदश का महानगर क्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् के महानगर मिजस्टेर्ट के न्यायालय के पर्ित िनदश ह ै।

    (3) जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो इस संिहता के पर्ारंभ के पूवर् पािरत िकसी अिधिनयिमित म, —

    (क) पर्थम वगर् मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै;

    (ख) ि तीय वगर् मिजस्टेर्ट या तृतीय वगर् मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै;

    (ग) पेर्िसडसी मिजस्टेर्ट या मुख्य पेर्िसडसी मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह कर्मशः महानगर मिजस्टेर्ट या मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै;

    (घ) महानगर क्षेतर् म सिम्मिलत िकसी क्षेतर् के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ऐसे महानगर क्षेतर् के पर्ित िनदश ह,ै और पर्थम वगर् या ि तीय वगर् मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का ऐस ेक्षेतर् के संबंध म यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म अिधकािरता का पर्योग करने वाल ेमहानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै।

    (4) जहां इस संिहता से िभन् न िकसी िविध के अधीन, िकसी मिजस्टेर्ट ारा िकए जा सकन ेवाल ेकृत्य ऐसे मामल स ेसंबंिधत ह, —

    (क) िजनम सा य का अिधमलू्यन अथवा सू म परीक्षण या कोई ऐसा िविनश् चय करना अंतवर्िलत ह ैिजससे िकसी िक् त को िकसी दडं या शािस्त की अथवा अन्वेषण, जांच या िवचारण होने तक अिभरक्षा म िनरोध की संभावना हो सकती ह ै या िजसका पर्भाव उसे िकसी न्यायालय के समक्ष िवचारण के िलए भेजना होगा, वहां व ेकृत्य इस संिहता के उपबंध के अधीन रहते हुए न्याियक मिजस्टेर्ट ारा िकए जा सकते ह ; या

    (ख) जो पर्शासिनक या कायर्पालक पर्कार के ह जैस े अनुज्ञिप् त का अनुदान, अनुज्ञिप् त का िनलबंन या र िकया जाना, अिभयोजन की मंजूरी या अिभयोजन वापस लेना, वहां व ेयथापूव क् त के अधीन रहते हुए, कायर्पालक मिजस्टेर्ट ारा िकए जा सकत ेह ।

    4. भारतीय दडं सिंहता और अन्य िविधय के अधीन अपराध का िवचार—(1) भारतीय दडं संिहता (1860 का 45) के अधीन सब अपराध का अन्वेषण, जांच, िवचारण और उनके संबंध म अन्य कायर्वाही इसम इसके पश् चात् अन्तिवष् ट उपबंध के अनुसार की जाएगी ।

    (2) िकसी अन्य िविध के अधीन सब अपराध का अन्वषेण, जांच, िवचारण और उनके संबंध म अन्य कायर्वाही इन्ह उपबंध के अनुसार िकतु ऐस ेअपराध के अन्वेषण, जांच, िवचारण या अन्य कायर्वाही की रीित या स्थान का िविनयमन करन ेवाली तत्समय पर्वृ िकसी अिधिनयिमित के अधीन रहते हुए, की जाएगी ।

    5. ाविृ —इसस े पर्ितकूल िकसी िविनिदष् ट उपबंध के अभाव म इस संिहता की कोई बात तत्समय पर्वृ िकसी िवशेष या स्थानीय िविध पर, या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध ारा पर्द िकसी िवशेष अिधकािरता या शिक् त या उस िविध ारा िविहत िकसी िवशेष पर्िकर्या पर पर्भाव नह डालेगी ।

  • 4

    अध्याय 2

    दडं न्यायालय और कायार्लय का गठन 6. दडं न्यायालय के वगर्—उच् च न्यायालय और इस संिहता से िभन् न िकसी िविध के अधीन गिठत न्यायालय के अितिरक् त,

    पर्त्येक राज्य म िनम् निलिखत वग के दडं न्यायालय ह गे, अथार्त् :—

    (i) सेशन न्यायालय ;

    (ii) पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट और िकसी महानगर के्षतर् म महानगर मिजस्टेर्ट ;

    (iii) ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट ; और

    (iv) कायर्पालक मिजस्टेर्ट ।

    7. पर्ादिेशक खंड—(1) पर्त्येक राज्य एक सेशन खंड होगा या उसम सेशन खंड ह गे और इस संिहता के पर्योजन के िलए पर्त्येक सेशन खंड एक िजला होगा या उसम िजल ेह गे :

    परंतु पर्त्येक महानगर क्षेतर्, उक् त पर्योजन के िलए, एक पृथक् सेशन खंड और िजला होगा ।

    (2) राज्य सरकार उच् च न्यायालय से परामशर् के पश् चात,् ऐस ेखंड और िजल की सीमा या संख्या म पिरवतर्न कर सकती ह ै।

    (3) राज्य सरकार उच् च न्यायालय से परामशर् के पश् चात,् िकसी िजल ेको उपखंड म िवभािजत कर सकती ह ैऔर ऐसे उपखंड की सीमा या संख्या म पिरवतर्न कर सकती ह ै।

    (4) िकसी राज्य म इस संिहता के पर्ारंभ के समय िव मान सेशन खंड, िजले और उपखंड इस धारा के अधीन बनाए गए समझ ेजाएंग े।

    8. महानगर क्षतेर्—(1) राज्य सरकार, अिधसूचना ारा, घोिषत कर सकती ह ैिक उस तारीख स े; जो अिधसूचना म िविनिदष् ट की जाए, राज्य का कोई क्षेतर् िजसम ऐसा नगर या नगरी समािवष् ट ह ैिजसकी जनसंख्या दस लाख से अिधक ह,ै इस संिहता के पर्योजन के िलए महानगर क्षतेर् होगा ।

    (2) इस संिहता के पर्ारंभ से, मुंबई, कलक ा और मदर्ास पेर्िसडने्सी नगर म से पर्त्येक और अहमदाबाद नगर, उपधारा (1) के अधीन महानगर क्षेतर् घोिषत िकए गए समझ ेजाएंग े।

    (3) राज्य सरकार, अिधसूचना ारा, महानगर क्षेतर् की सीमा को बढ़ा सकती ह,ै कम कर सकती ह ैया पिरवितत कर सकती ह,ै िकतु ऐसी कमी या पिरवतर्न इस पर्कार नह िकया जाएगा िक उस क्षेतर् की जनसंख्या दस लाख से कम रह जाए ।

    (4) जहां िकसी क्षेतर् के महानगर क्षेतर् घोिषत िकए जाने या घोिषत समझ ेजाने के पश् चात् ऐसे क्षेतर् की जनसंख्या दस लाख स ेकम हो जाती ह ैवहां ऐसा क्षेतर्, ऐसी तारीख को और उसस,े जो राज्य सरकार, अिधसूचना ारा इस िनिम िविनिदष् ट करे, महानगर क्षेतर् नह रहगेा ; िकतु महानगर क्षेतर् न रहने पर भी ऐसी जांच, िवचारण या अपील जो ऐसे न रहने के ठीक पहल ेऐस ेक्षेतर् म िकसी न्यायालय या मिजस्टेर्ट के समक्ष लंिबत थी इस संिहता के अधीन इस पर्कार िनपटाई जाएगी मानो वह महानगर क्षेतर् हो ।

    (5) जहां राज्य सरकार उपधारा (3) के अधीन, िकसी महानगर क्षेतर् की सीमा को कम करती ह ैया पिरवितत करती ह ैवहां ऐसी जांच, िवचारण या अपील पर जो ऐसे कम करने या पिरवतर्न के ठीक पहले िकसी न्यायालय या मिजस्टेर्ट के समक्ष लंिबत थी ऐसे कम करने या पिरवतर्न का कोई पर्भाव नह होगा और ऐसी पर्त्येक जांच, िवचारण या अपील इस संिहता के आधीन उसी पर्कार िनपटाई जाएगी मानो ऐसी कमी या पिरवतर्न न हुआ हो ।

    स्पष् टीकरण—इस धारा म, “जनसंख्या” पद से नवीनतम पूवर्वत जनगणना म यथा अिभिनिश् चत वह जनसंख्या अिभपेर्त ह ैिजसके सुसंगत आंकड़ ेपर्कािशत हो चुके ह ।

    9. सशेन न्यायालय—(1) राज्य सरकार पर्त्येक सेशन खंड के िलए एक सेशन न्यायालय स्थािपत करेगी ।

    (2) पर्त्येक सेशन न्यायालय म एक न्यायाधीश पीठासीन होगा, जो उच् च न्यायालय ारा िनयुक् त िकया जाएगा ।

    (3) उच् च न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश को भी सेशन न्यायालय म अिधकािरता का पर्योग करने के िलए िनयुक् त कर सकता ह ै।

    (4) उच् च न्यायालय ारा एक सेशन खंड के सेशन न्यायाधीश को दसूरे खंड का अपर सेशन न्यायाधीश भी िनयुक् त िकया जा सकता ह ैऔर ऐसी अवस्था म वह मामल को िनपटाने के िलए दसूरे खंड के ऐसे स्थान या स्थान म बैठ सकता ह ैिजनका उच् च न्यायालय िनदशे द े।

    (5) जहां िकसी सेशन न्यायाधीश का पद िरक् त होता ह ै वहां उच् च न्यायालय िकसी ऐसे अजन्ट आवेदन के, जो उस सेशन न्यायालय के समक्ष िकया जाता ह ै या लंिबत ह,ै अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश ारा, अथवा यिद अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश नह ह ै तो सेशन खंड के मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट ारा िनपटाए जाने के िलए वस्था कर सकता ह ै और ऐसे पर्त्येक

  • 5

    न्यायाधीश या मिजस्टेर्ट को ऐसे आवेदन पर कायर्वाही करन ेकी अिधकािरता होगी ।

    (6) सेशन न्यायालय सामान्यत: अपनी बैठक ऐसे स्थान या स्थान पर करेगा जो उच् च न्यायालय अिधसूचना ारा िविनिदष् ट करे ; िकतु यिद िकसी िवशेष मामल ेम, सेशन न्यायालय की यह राय ह ैिक सेशन खंड म िकसी अन्य स्थान म बैठक करने से पक्षकार और सािक्षय को सुिवधा होगी तो वह, अिभयोजन और अिभयुक् त की सहमित स ेउस मामल ेको िनपटाने के िलए या उसम साक्षी या सािक्षय की परीक्षा करने के िलए उस स्थान पर बैठक कर सकता ह ै।

    स्पष् टीकरण—इस संिहता के पर्योजन के िलए “िनयुिक् त” के अंतगर्त सरकार ारा संघ या राज्य के कायर्कलाप के सबंंध म िकसी सेवा या पद पर िकसी िक् त की पर्थम िनयुिक् त, पद-स्थापना या पदोन् नित नह ह ैजहां िकसी िविध के अधीन ऐसी िनयुिक् त, पद-स्थापना या पदोन् नित सरकार ारा िकए जान ेके िलए अपेिक्षत ह ै।

    10. सहायक सशेन न्यायाधीश का अधीनस्थ होना—(1) सब सहायक सेशन न्यायाधीश उस सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ ह गे िजसके न्यायालय म व ेअिधकािरता का पर्योग करत ेह ।

    (2) सेशन न्यायाधीश ऐसे सहायक सेशन न्यायाधीश म कायर् के िवतरण के बारे म इस संिहता से संगत िनयम, समय-समय पर बना सकता ह ै।

    (3) सेशन न्यायाधीश, अपनी अनपुिस्थित म या कायर् करने म असमथर्ता की िस्थित म, िकसी अजण्ट आवेदन के अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश ारा, या यिद कोई अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश न हो तो, मखु्य न्याियक मिजस्टेर्ट ारा िनपटाए जान ेके िलए भी वस्था कर सकता ह ै ; और यह समझा जाएगा िक ऐसे पर्त्येक न्यायाधीश या मिजस्टेर्ट को ऐसे आवेदन पर कायर्वाही करने की अिधकािरता ह ै।

    11. न्याियक मिजस्टेर्ट के न्यायालय—(1) पर्त्येक िजल े म (जो महानगर क्षेतर् नह ह)ै पर्थम वगर् और ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट के इतने न्यायालय, ऐसे स्थान म स्थािपत िकए जाएंग ेिजतन ेऔर जो राज्य सरकार, उच् च न्यायालय से परामशर् के पश् चात् अिधसूचना ारा िविनिदष् ट कर :

    1[परंत ुराज्य सरकार उच् च न्यायालय स ेपरामशर् के पश् चात ्िकसी स्थानीय क्षेतर् के िलए, पर्थम वगर् या ि तीय वगर् के न्याियक मिजस्टेर्ट के एक या अिधक िवशेष न्यायालय, िकसी िवशेष मामल ेया िवशेष वगर् के मामल का िवचारण करने के िलए स्थािपत कर सकती ह ैऔर जहां कोई ऐसा िवशेष न्यायालय स्थािपत िकया जाता ह ैउस स्थानीय क्षेतर् म मिजस्टेर्ट के िकसी अन्य न्यायालय को िकसी ऐसे मामल ेया ऐसे वगर् के मामल का िवचारण करने की अिधकािरता नह होगी, िजनके िवचारण के िलए न्याियक मिजस्टेर्ट का ऐसा िवशेष न्यायालय स्थािपत िकया गया ह ै।]

    (2) ऐसे न्यायालय के पीठासीन अिधकारी उच् च न्यायालय ारा िनयुक् त िकए जाएंगे ।

    (3) उच् च न्यायालय, जब कभी उसे यह समीचीन या आवश्यक पर्तीत हो, िकसी िसिवल न्यायालय म न्यायाधीश के रूप म कायर्रत राज्य की न्याियक सेवा के िकसी सदस्य को पर्थम वगर् या ि तीय वगर् मिजस्टेर्ट की शिक् तयां पर्दान कर सकता ह ै।

    12. मखु्य न्याियक मिजस्टेर्ट और अपर मखु्य न्याियक मिजस्टेर्ट, आिद—(1) उच् च न्यायालय, पर्त्येक िजल ेम (जो महानगर क्षेतर् नह ह)ै एक पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट को मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट िनयुक् त करेगा ।

    (2) उच् च न्यायालय िकसी पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट को अपर मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट िनयुक् त कर सकता ह ैऔर ऐसे मिजस्टेर्ट को इस संिहता के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट की सब या कोई शिक् तयां, िजनका उच् च न्यायालय िनदशे द,े ह गी ।

    (3) (क) उच् च न्यायालय आवश्यकतानुसार िकसी उपखंड म िकसी पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट को उपखंड न्याियक मिजस्टेर्ट के रूप म पदािभिहत कर सकता ह ैऔर उस ेइस धारा म िविनिदष् ट उ रदाियत्व से मुक् त कर सकता ह ै।

    (ख) पर्त्येक उपखंड न्याियक मिजस्टेर्ट को मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहत ेहुए उपखंड म (अपर मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट से िभन् न) न्याियक मिजस्टेर्ट के काम पर पयर्वेक्षण और िनयंतर्ण की ऐसी शिक् तयां भी ह गी, जैसी उच् च न्यायालय साधारण या िवशेष आदशे ारा इस िनिम िविनिदष् ट करे, और वह उनका पर्योग करेगा ।

    13. िवशषे न्याियक मिजस्टेर्ट—(1) यिद कदर्ीय या राज्य सरकार उच् च न्यायालय स ेऐसा करने के िलए अनुरोध करती ह ैतो उच् च न्यायालय िकसी िक् त को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता ह ैया िजसन ेकोई पद धारण िकया ह,ै 2[िकसी स्थानीय क्षेतर् म, जो महानगर क्षेतर् नह ह,ै िवशेष मामल या िवशेष वगर् के मामल के संबंध म] ि तीय वगर् न्याियक मिजस्टेर्ट को इस संिहता ारा या उसके अधीन पर्द या पर्द की जा सकने वाली सभी या कोई शिक् तयां पर्द कर सकता ह ै:

    परंतु ऐसी कोई शिक् त िकसी िक् त को पर्दान नह की जाएगी जब तक उसके पास िविधक मामल के संबंध म ऐसी अहर्ता या अनुभव नह ह ैजो उच् च न्यायालय, िनयम ारा िविनिदष् ट करे ।

    1 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 3 ारा जोड़ा गया । 2 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।

  • 6

    (2) ऐस ेमिजस्टेर्ट िवशेष न्याियक मिजस्टेर्ट कहलाएंग ेऔर एक समय म एक वषर् से अनिधक की इतनी अविध के िलए िनयुक् त िकए जाएंग ेिजतनी उच् च न्यायालय, साधारण या िवशेष आदशे ारा िनिदष् ट करे ।

    1[(3) उच् च न्यायालय िकसी िवशेष न्याियक मिजस्टेर्ट को अपनी स्थानीय अिधकािरता के बाहर के िकसी महानगर क्षेतर् के संबंध म महानगर मिजस्टेर्ट की शिक् तय का पर्योग करन ेके िलए सशक् त कर सकता ह ै।]

    14. न्याियक मिजस्टेर्ट की स्थानीय अिधकािरता—(1) उच् च न्यायालय के िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए, मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट, समय-समय पर उन क्षेतर् की स्थानीय सीमाएं पिरिनिश् चत कर सकता ह ैिजनके अंदर धारा 11 या धारा 13 के अधीन िनयुक् त मिजस्टेर्ट उन सब शिक् तय का या उनम से िकन्ह का पर्योग कर सकगे, जो इस संिहता के अधीन उनम िनिहत की जाएं :

    2[परंत ुिवशेष मिजस्टेर्ट का न्यायालय उस स्थानीय क्षेतर् के भीतर, िजसके िलए वह स्थािपत िकया गया ह,ै िकसी स्थान म अपनी बैठक कर सकता ह ै।]

    (2) ऐसे पिरिनश् चय ारा जैसा उपबंिधत ह ैउसके िसवाय पर्त्येक ऐसे मिजस्टेर्ट की अिधकािरता और शिक् तय का िवस्तार िजल ेम सवर्तर् होगा ।

    3[(3) जहां धारा 11 या धारा 13 या धारा 18 के अधीन िनयुक् त मिजस्टेर्ट की स्थानीय अिधकािरता का िवस्तार, यथािस्थित, उस िजल ेया महानगर क्षेतर् के, िजसके भीतर वह मामलूी तौर पर अपनी बैठके करता ह,ै बाहर िकसी क्षेतर् तक ह ैवहां इस संिहता म सेशन न्यायालय, मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट या मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश का ऐसे मिजस्टेर्ट के संबंध म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उसकी स्थानीय अिधकािरता के संपूणर् क्षेतर् के भीतर उक् त िजला या महानगर क्षेतर् के संबंध म अिधकािरता का पर्योग करने वाल,े यथािस्थित, सेशन न्यायालय, मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट या मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के पर्ित िनदश ह ै।]

    15. न्याियक मिजस्टेर्ट का अधीनस्थ होना—(1) पर्त्येक मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट, सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और पर्त्येक अन्य न्याियक मिजस्टेर्ट, सेशन न्यायाधीश के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए, मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट के अधीनस्थ होगा ।

    (2) मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट, अपने अधीनस्थ न्याियक मिजस्टेर्ट म कायर् के िवतरण के बारे म, समय-समय पर, इस संिहता से संगत िनयम बना सकता ह ैया िवशेष आदशे द ेसकता ह ै।

    16. महानगर मिजस्टेर्ट के न्यायालय—(1) पर्त्येक महानगर क्षेतर् म महानगर मिजस्टेर्ट के इतने न्यायालय, ऐसे स्थान म स्थािपत िकए जाएंगे िजतन ेऔर जो राज्य सरकार, उच् च न्यायालय स ेपरामशर् के पश् चात,् अिधसचूना ारा िविनिदष् ट करे ।

    (2) ऐस ेन्यायालय के पीठासीन अिधकारी उच् च न्यायालय ारा िनयुक् त िकए जाएंग े।

    (3) पर्त्येक महानगर मिजस्टेर्ट की अिधकािरता और शिक् तय का िवस्तार महानगर क्षेतर् म सवर्तर् होगा ।

    17. मखु्य महानगर मिजस्टेर्ट और अपर मखु्य महानगर मिजस्टेर्ट—(1) उच् च न्यायालय अपनी स्थानीय अिधकािरता के भीतर पर्त्येक महानगर क्षेतर् के संबंध म एक महानगर मिजस्टेर्ट को ऐसे महानगर क्षेतर् का मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट िनयुक् त करेगा ।

    (2) उच् च न्यायालय िकसी महानगर मिजस्टेर्ट को अपर मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट िनयुक् त कर सकता ह,ै और ऐसे मिजस्टेर्ट को, इस संिहता के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट की सब या कोई शिक् तयां, िजनका उच् च न्यायालय िनदशे द,े ह गी ।

    18. िवशषे महानगर मिजस्टेर्ट—(1) यिद कदर्ीय या राज्य सरकार उच् च न्यायालय से ऐसा करने के िलए अनुरोध करती ह ैतो उच् च न्यायालय िकसी िक् त को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता ह ैया िजसने कोई पद धारण िकया ह,ै अपनी स्थानीय अिधकािरता के भीतर िकसी महानगर क्षेतर् म िवशेष मामल के या िवशेष वगर् के मामल के 4*** संबंध म महानगर मिजस्टेर्ट को इस संिहता ारा या उसके अधीन पर्द या पर्द की जा सकने वाली सभी या कोई शिक् तयां पर्द कर सकता ह ै:

    परंतु ऐसी कोई शिक् त िकसी िक् त को पर्दान नह की जाएगी जब तक उसके पास िविधक मामल के संबंध म ऐसी अहर्ता या अनुभव नह ह ैजो उच् च न्यायालय, िनयम ारा िविनिदष् ट करे ।

    (2) ऐसे मिजस्टेर्ट िवशेष महानगर मिजस्टेर्ट कहलाएंगे और एक समय म एक वषर् से अनिधक की इतनी अविध के िलए िनयुक् त िकए जाएंगे िजतनी उच् च न्यायालय, साधारण या िवशेष आदशे ारा, िनिदष् ट करे ।

    5[(3) यथािस्थित, उच् च न्यायालय या राज्य सरकार िकसी महानगर मिजस्टेर्ट को, महानगर क्षेतर् के बाहर िकसी स्थानीय क्षेतर् म पर्थम वगर् के न्याियक मिजस्टेर्ट की शिक् तय का पर्योग करने के िलए सशक् त कर सकती ह ै।]

    1 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा अन्तःस्थािपत । 2 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 5 ारा जोड़ा गया । 3 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 5 ारा अन्तःस्थािपत । 4 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 6 ारा “साधारणतया मामल के” शब्द का लोप िकया गया । 5 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 6 ारा उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।

  • 7

    19. महानगर मिजस्टेर्ट का अधीनस्थ होना—(1) मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट और पर्त्येक अपर मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और पर्त्येक अन्य महानगर मिजस्टेर्ट सेशन न्यायाधीश के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहत ेहुए मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के अधीनस्थ होगा ।

    (2) उच् च न्यायालय, इस संिहता के पर्योजन के िलए पिरिनिश् चत कर सकेगा िक अपर मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट िकस िवस्तार तक, यिद कोई हो, मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के अधीनस्थ होगा ।

    (3) मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट महानगर मिजस्टेर्ट म कायर् के िवतरण के बारे म और अपर मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट को कायर् के आबंटन के बारे म, समय-समय पर, इस संिहता से संगत िनयम बना सकेगा या िवशेष आदशे द ेसकेगा ।

    20. कायर्पालक मिजस्टेर्ट—(1) राज्य सरकार पर्त्येक िजल ेऔर पर्त्येक महानगर क्षेतर् म उतन े िक् तय को, िजतने वह उिचत समझ,े कायर्पालक मिजस्टेर्ट िनयुक् त कर सकती ह ैऔर उनम से एक को िजला मिजस्टेर्ट िनयुक् त करेगी ।

    (2) राज्य सरकार िकसी कायर्पालक मिजस्टेर्ट को अपर िजला मिजस्टेर्ट िनयुक् त कर सकेगी, और ऐस ेमिजस्टेर्ट को इस संिहता के अधीन या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन िजला मिजस्टेर्ट की 1[व]े शिक् तयां ह गी, 2[जो राज्य सरकार िनिदष् ट करे] ।

    (3) जब कभी िकसी िजला मिजस्टेर्ट के पद की िरिक् त के पिरणामस्वरूप कोई अिधकारी उस िजल ेके कायर्पालक पर्शासन के िलए अस्थायी रूप से उ रवत होता ह ैतो ऐसा अिधकारी, राज्य सरकार ारा आदशे िदए जाने तक, कर्मशः उन सभी शिक् तय का पर्योग और कतर् का पालन करेगा जो उस सिंहता ारा िजला मिजस्टेर्ट को पर्द या उस पर अिधरोिपत ह ।

    (4) राज्य सरकार आवश्यकतानुसार िकसी कायर्पालक मिजस्टेर्ट को उपखंड का भारसाधक बना सकती ह ैऔर उसको भारसाधन से मुक् त कर सकती ह ैऔर इस पर्कार िकसी उपखंड का भारसाधक बनाया गया मिजस्टेर्ट उपखंड मिजस्टेर्ट कहलाएगा ।

    3[(4क) राज्य सरकार, साधारण या िवशेष आदशे ारा और ऐसे िनयंतर्ण और िनदशे के अधीन रहते हुए, जो वह अिधरोिपत करना ठीक समझ,े उपधारा (4) के अधीन अपनी शिक् तयां, िजला मिजस्टेर्ट को पर्त्यायोिजत कर सकेगी ।]

    (5) इस धारा की कोई बात तत्समय पर्वृ िकसी िविध के अधीन, महानगर क्षेतर् के संबंध म कायर्पालक मिजस्टेर्ट की सब शिक् तयां या उनम से कोई शिक् त पुिलस आयुक् त को पर्द करने से राज्य सरकार को पर्वािरत नह करेगी ।

    21. िवशषे कायर्पालक मिजस्टेर्ट—(1) राज्य सरकार िविशष् ट क्षेतर् के िलए या िविशष् ट कृत्य का पालन करने के िलए कायर्पालक मिजस्टेर्ट को, जो िवशेष कायर्पालक मिजस्टेर्ट के रूप म ज्ञात ह गे, इतनी अविध के िलए िजतनी वह उिचत समझ,े िनयुक् त कर सकती ह ैऔर इस संिहता के अधीन कायर्पालक मिजस्टेर्ट को पर्द की जा सकने वाली शिक् तय म से ऐसी शिक् तयां, िजन्ह वह उिचत समझ,े इन िवशेष कायर्पालक मिजस्टेर्ट को पर्द कर सकती ह ै।

    22. कायर्पालक मिजस्टेर्ट की स्थानीय अिधकािरता—(1) राज्य सरकार के िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए िजला मिजस्टेर्ट, समय-समय पर, उन क्षेतर् की स्थानीय सीमाएं पिरिनिश् चत कर सकता ह ैिजनके अंदर कायर्पालक मिजस्टेर्ट उन सब शिक् तय का या उनम से िकन्ह का पर्योग कर सकग,े जो इस संिहता के अधीन उनम िनिहत की जाएं ।

    (2) ऐस ेपिरिनश् चय ारा जैसा उपबंिधत ह ैउनके िसवाय, पर्त्येक ऐसे मिजस्टेर्ट की अिधकािरता और शिक् तय का िवस्तार िजले म सवर्तर् होगा ।

    23. कायर्पालक मिजस्टेर्ट का अधीनस्थ होना—(1) अपर िजला मिजस्टेर्ट से िभन् न सब कायर्पालक मिजस्टेर्ट, िजला मिजस्टेर्ट के अधीनस्थ ह गे और (उपखंड मिजस्टेर्ट स ेिभन् न) पर्त्येक कायर्पालक मिजस्टेर्ट, जो उपखंड म शिक् त का पर्योग कर रहा ह,ै िजला मिजस्टेर्ट के साधारण िनयंतर्ण के अधीन रहते हुए, उपखंड मिजस्टेर्ट के भी अधीनस्थ होगा ।

    (2) िजला मिजस्टेर्ट अपने अधीनस्थ कायर्पालक मिजस्टेर्ट म कायर् के िवतरण के बारे म और अपर िजला मिजस्टेर्ट को कायर् के आबंटन के बारे म समय-समय पर इस संिहता स ेसंगत िनयम बना सकता ह ैया िवशेष आदशे द ेसकता ह ै।

    4[24. लोक अिभयोजक—(1) पर्त्येक उच् च न्यायालय के िलए, कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार उस उच् च न्यायालय से परामशर् के पश् चात,् यथािस्थित, कदर्ीय या राज्य सरकार की ओर से उस उच् च न्यायालय म िकसी अिभयोजन, अपील या अन्य कायर्वाही के संचालन के िलए एक लोक अिभयोजक िनयुक् त करेगी और एक या अिधक अपर लोक अिभयोजक िनयुक् त कर सकती ह ै।

    (2) कदर्ीय सरकार िकसी िजल ेया स्थानीय क्षेतर् म िकसी मामल ेया िकसी वगर् के मामल के संचालन के पर्योजन के िलए एक या अिधक लोक अिभयोजक िनयुक् त कर सकती ह ै।

    (3) पर्त्येक िजल े के िलए, राज्य सरकार एक लोक अिभयोजक िनयुक् त करेगी और िजल े के िलए एक या अिधक अपर लोक अिभयोजक भी िनयुक् त कर सकती ह ै:

    1 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा “सब या कोई” के स्थान पर पर्ितस्थािपत । 2 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा अंत:स्थािपत । 3 2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 2 ारा अंत:स्थािपत । 4 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 8 ारा धारा 24 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।

  • 8

    परंतु एक िजल े के िलए िनयुक् त लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िकसी अन्य िजल े के िलए भी, यथािस्थित, लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक् त िकया जा सकता ह ै।

    (4) िजला मिजस्टेर्ट, सेशन न्यायाधीश के परामशर् से, ऐस े िक् तय के नाम का एक पैनल तैयार करेगा जो, उसकी राय म, उस िजल ेके िलए लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक् त िकए जान ेके योग्य ह ै।

    (5) कोई िक् त राज्य सरकार ारा उस िजल ेके िलए लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक् त नह िकया जाएगा जब तक िक उसका नाम उपधारा (4) के अधीन िजला मिजस्टेर्ट ारा तैयार िकए गए नाम के पैनल म न हो ।

    (6) उपधारा (5) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां िकसी राज्य म अिभयोजन अिधकािरय का िनयिमत काडर ह ैवहां राज्य सरकार ऐसा काडर, गिठत करने वाल े िक् तय म स ेही लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक् त करेगी :

    परंतु जहां राज्य सरकार की राय म ऐस ेकाडर म से कोई उपयुक् त िक् त िनयुिक् त के िलए उपलब्ध नह ह ैवहां राज्य सरकार उपधारा (4) के अधीन िजला मिजस्टेर्ट ारा तैयार िकए गए नाम के पैनल म से, यथािस्थित, लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक के रूप म िकसी िक् त को िनयुक् त कर सकती ह ै।

    1[स्पष् टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए,—

    (क) “अिभयोजन अिधकािरय का िनयिमत काडर” स े अिभयोजन अिधकािरय का वह काडर अिभपेर्त ह,ै िजसम लोक अिभयोजक का, चाह ेवह िकसी भी नाम से ज्ञात हो, पद सिम्मिलत ह ैऔर िजसम उस पद पर सहायक लोक अिभयोजक की, चाह ेवह िकसी भी नाम स ेज्ञात हो, पदोन् नित के िलए उपबंध िकया गया ह ै;

    (ख) “अिभयोजन अिधकारी” से लोक अिभयोजक, अपर लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक के कृत्य का पालन करने के िलए इस संिहता के अधीन िनयुक् त िकया गया िक् त अिभपेर्त ह,ै चाह ेवह िकसी भी नाम स ेज्ञात हो ।]

    (7) कोई िक् त उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) या उपधारा (6) के अधीन लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक िनयुक् त िकए जान ेका पातर् तभी होगा जब वह कम से कम सात वषर् तक अिधववक् ता के रूप म िविध वसाय करता रहा हो ।

    (8) कदर्ीय सरकार या राज्य सरकार िकसी मामल ेया िकसी वगर् के मामल के पर्योजन के िलए िकसी अिधववक् ता को, जो कम से कम दस वषर् तक िविध वसाय करता रहा हो, िवशेष लोक अिभयोजक िनयुक् त कर सकती ह ै:

    2[परंतु न्यायालय इस उपधारा के अधीन पीिड़त को, अिभयोजन की सहायता करन ेके िलए अपनी पसंद का अिधववक् ता रखने के िलए अनुज्ञात कर सकेगा ।]

    (9) उपधारा (7) और उपधारा (8) के पर्योजन के िलए उस अविध के बारे म, िजसके दौरान िकसी िक् त ने प्लीडर के रूप म िविध वसाय िकया ह ैया लोक अिभयोजक या अपर लोक अिभयोजक या सहायक लोक अिभयोजक या अन्य अिभयोजन अिधकारी के रूप म,

    चाह ेवह िकसी भी नाम से ज्ञात हो, सेवाएं की ह (चाह ेइस संिहता के पर्ारंभ के पहल ेकी गई ह या पश् चात्) यह समझा जाएगा िक वह ऐसी अविध ह ैिजसके दौरान ऐसे िक् त ने अिधवक् ता के रूप म िविध वसाय िकया ह ै।

    25. सहायक लोक अिभयोजक—(1) राज्य सरकार पर्त्येक िजल ेम मिजस्टेर्ट के न्यायालय म अिभयोजन का संचालन करन ेके िलए एक या अिधक सहायक लोक अिभयोजक िनयुक् त करेगी ।

    3[(1क) कदर्ीय सरकार मिजस्टेर्ट के न्यायालय म िकसी मामल ेया िकसी वगर् के मामल के संचालन के पर्योजन के िलए एक या अिधक सहायक लोक अिभयोजक िनयुक् त कर सकती ह ै।]

    (2) जैसा उपधारा (3) म उपबंिधत ह ै उसके िसवाय, कोई पुिलस अिधकारी सहायक लोक अिभयोजक िनयुक् त होन े का पातर् होगा ।

    (3) जहां कोई सहायक लोक अिभयोजक िकसी िविशष् ट मामल ेके पर्योजन के िलए उपलभ्य नह ह ैवहां िजला मिजस्टेर्ट िकसी अन्य िक् त को उस मामल ेका भारसाधक सहायक लोक अिभयोजक िनयुक् त कर सकता ह ै:

    परंतु कोई पुिलस अिधकारी इस पर्कार िनयुक् त नह िकया जाएगा—

    (क) यिद उसन ेउस अपराध के अन्वेषण म कोई भाग िलया ह,ै िजसके बारे म आयुक् त अिभयोिजत िकया जा रहा ह,ै या

    (ख) यिद वह िनरीक्षक की पंिक् त स ेनीच ेका ह ै। 4[25क. अिभयोजन िनदशेालय—(1) राज्य सरकार एक अिभयोजन िनदशेालय स्थािपत कर सकेगी, िजसम एक अिभयोजन

    1 2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत । 2 2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 3 ारा अंत:स्थािपत । 3 1978 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 9 ारा अंत:स्थािपत । 4 2005 के अिधिनयम सं० 25 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत ।

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    िनदशेक और उतने अिभयोजन उप-िनदशेक ह गे, िजतन ेवह ठीक समझ े।

    (2) कोई िक् त अिभयोजन िनदशेक या उप अिभयोजन िनदशेक के रूप म िनयुिक् त के िलए केवल तभी पातर् होगा यिद वह अिधववक् ता के रूप म कम-से-कम दस वषर् तक वसाय म रहा ह ैऔर ऐसी िनयुिक् त उच् च न्यायालय के मुख्य न्यायमूित की सहमित से की जाएगी ।

    (3) अिभयोजन िनदशेालय का पर्धान अिभयोजन िनदशेक होगा, जो राज्य म गृह िवभाग के पर्धान के पर्शासिनक िनयंतर्ण के अधीन कृत्य करेगा ।

    (4) पर्त्येक अिभयोजन उप-िनदशेक, अिभयोजन िनदशेक के अधीनस्थ होगा ।

    (5) राज्य सरकार ारा धारा 24 की, यथािस्थित, उपधारा (1) या उपधारा (8) के अधीन, उच् च न्यायालय म मामल का संचालन करने के िलए िनयुक् त िकया गया पर्त्येक लोक अिभयोजक, अपर लोक अिभयोजक और िवशेष लोक अिभयोजक, जो अिभयोजन िनदशेक के अधीनस्थ होगा ।

    (6) राज्य सरकार ारा, धारा 24 की, यथािस्थित, उपधारा (3) या उपधारा (8) के अधीन िजला न्यायालय म मामल का संचालन करने के िलए िनयुक् त िकया गया पर्त्येक लोक अिभयोजक, अपर लोक अिभयोजक और िवशेष लोक अिभयोजक, और जो धारा 25 की उपधारा (1) के अधीन िनयुक् त िकया गया पर्त्येक सहायक लोक अिभयोजक, जो अिभयोजन उप-िनदशेक के अधीनस्थ होगा ।

    (7) अिभयोजन िनदशेक और अिभयोजन उप-िनदशेक की शिक् तयां तथा कृत्य तथा व े क्षेतर् िजनके िलए पर्त्येक अिभयोजन िनदशेक िनयुक् त िकया जाएगा, वे ह गे जो राज्य सरकार, अिधसचूना ारा, िविनिदष् ट करे ।

    (8) लोक अिभयोजक के कृत्य का पालन करने म, इस धारा के उपबधं राज्य के महािधववक् ता को लागू नह ह गे ।]

    अध्याय 3

    न्यायालय की शिक् त 26. न्यायालय, िजनके ारा अपराध िवचारणीय ह—इस संिहता के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए,—

    (क) भारतीय दडं संिहता (1860 का 45) के अधीन िकसी अपराध का िवचारण—

    (i) उच् च न्यायालय ारा िकया जा सकता ह,ै या

    (ii) सेशन न्यायालय ारा िकया जा सकता ह,ै या

    (iii) िकसी अन्य ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता ह ैिजसके ारा उसका िवचारणीय होना पर्थम अनुसचूी म दिशत िकया गया ह ै: 1[परंत ु2[भारतीय दडं संिहता, (1860 का 45) की धारा 376 और धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ या

    धारा 376ङ] के अधीन िकसी अपराध का िवचारण यथासाध्य ऐसे न्यायालय ारा िकया जाएगा, िजसम मिहला पीठासीन हो।]

    (ख) िकसी अन्य िविध के अधीन िकसी अपराध का िवचारण, जब उस िविध म इस िनिम कोई न्यायालय उिल्लिखत ह,ै तब उस न्यायालय ारा िकया जाएगा और जब कोई न्यायालय इस पर्कार उिल्लिखत नह ह ैतब—

    (i) उच् च न्यायालय ारा िकया जा सकता ह,ै या

    (ii) िकसी अन्य ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता ह ै िजसके ारा उसका िवचारणीय होना पर्थम अनसुूची म दिशत िकया गया ह ै।

    27. िकशोर के मामल म अिधकािरता—िकसी ऐसे अपराध का िवचारण, जो मृत्यु या आजीवन कारावास स ेदडंनीय नह ह ैऔर जो ऐस े िक् त ारा िकया गया ह,ै िजसकी आयु उस तारीख को, जब वह न्यायालय के समक्ष हािजर हो या लाया जाए, सोलह वषर् से कम ह,ै मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट के न्यायालय ारा या िकसी ऐसे न्यायालय ारा िकया जा सकता ह ै िजस ेबालक अिधिनयम, 1960 (1960 का 60) या िकशोर अपरािधय के उपचार, पर्िशक्षण और पुनवार्स के िलए उपबंध करन ेवाली तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन िवशेष रूप से सशक् त िकया गया ह ै।

    28. दडंादशे, जो उच् च न्यायालय और सशेन न्यायाधीश द ेसकग—े(1) उच् च न्यायालय िविध ारा पर्ािधकृत कोई दडंादशे द ेसकता ह ै।

    (2) सेशन न्यायाधीश या अपर सशेन न्यायाधीश िविध ारा पर्ािधकृत कोई भी दडंादशे द ेसकता ह ै ; िकतु उसके ारा िदए गए मृत्यु दडंादशे के उच् च न्यायालय ारा पुष् ट िकए जान ेकी आवश्यकता होगी ।

    1 2009 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा अंत:स्थािपत । 2 2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 11 ारा पर्ितस् थािपत ।

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    (3) सहायक सेशन न्यायाधीश मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वषर् स ेअिधक की अविध के िलए कारावास के दडंादशे के िसवाय कोई ऐसा दडंादशे द ेसकता ह ैजो िविध ारा पर्ािधकृत ह ै।

    29. दडंादशे, जो मिजस्टेर्ट द े सकग—े(1) मुख्य न्याियक मिजस्टेर्ट का न्यायालय मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वषर् से अिधक की अविध के िलए कारावास के दडंादशे के िसवाय कोई ऐसा दडंादशे द ेसकता ह ैजो िविध ारा पर्ािधकृत ह ै।

    (2) पर्थम वगर् मिजस्टेर्ट का न्यायालय तीन वषर् से अनिधक अविध के िलए कारावास का या 1[दस हजार रुपए] से अनिधक जुमार्ने का, या दोन का, दडंादशे द ेसकता ह ै।

    (3) ि तीय वगर् मिजस्टेर्ट का न्यायालय एक वषर् से अनिधक अविध के िलए कारावास का या 2[पांच हजार रुपए] से अनिधक जुमार्न ेका, या दोन का, दडंादशे द ेसकता ह ै।

    (4) मुख्य महानगर मिजस्टेर्ट के न्यायालय को मखु्य न्याियक मिजस्टेर्ट के न्यायालय की शिक् तयां और महानगर मिजस्टेर्ट के न्यायालय को पर्थम वगर् मिजस्टेर्ट की शिक् तयां ह गी ।

    30. जमुार्ना दने ेम ितकर्म होन ेपर कारावास का दडंादशे—(1) िकसी मिजस्टेर्ट का न्यायालय जुमार्ना दने ेम ितकर्म होने पर इतनी अविध का कारावास अिधिनण त कर सकता ह ैजो िविध ारा पर्ािधकृत ह ै:

    परंतु वह अविध—

    (क) धारा 29 के अधीन मिजस्टेर्ट की शिक् त स ेअिधक नह होगी ;

    (ख) जहां कारावास मुख्य दडंादशे के भाग के रूप म अिधिनण त िकया गया ह,ै वहां वह उस कारावास की अविध के चौथाई से अिधक न होगी िजसको मिजस्टेर्ट उस अपराध के िलए, न िक जुमार्ना दने ेम ितकर्म होने पर दडं के तौर पर, दने ेके िलए सक्षम ह ै।

    (2) इस धारा के अधीन अिधिनण त कारावास उस मिजस्टेर्ट ारा धारा 29 के अधीन अिधिनण त की जा सकन ेवाली अिधकतम अविध के कारावास के मुख्य दडंादशे के अितिरक् त हो सकता ह ै।

    31. एक ही िवचारण म कई अपराध के िलए दोषिस होन ेके मामल म दडंादशे—(1) जब एक िवचारण म कोई िक् त दो या अिधक अपराध के िलए दोषिस िकया जाता ह ैतब, भारतीय दडं संिहता (1860 का 45) की धारा 71 के उपबंध के अधीन रहत ेहुए, न्यायालय उस ेउन अपराध के िलए िविहत िविभन् न दडं म स ेउन दडं के िलए, िजन्ह दनेे के िलए ऐसा न्यायालय सक्षम ह,ै दडंादशे द ेसकता ह ै; जब ऐसे दडं कारावास के रूप म ह तब, यिद न्यायालय ने यह िनदशे न िदया हो िक ऐस ेदडं साथ-साथ भोगे जाएंग,े तो वे ऐसे कर्म स ेएक के बाद एक पर्ारंभ ह गे िजसका न्यायालय िनदशे द े।

    (2) दडंादशे के कर्मवत होने की दशा म केवल इस कारण से िक कई अपराध के िलए संकिलत दडं उस दडं से अिधक ह ैजो वह न्यायालय एक अपराध के िलए दोषिसि पर दने ेके िलए सक्षम ह,ै न्यायालय के िलए यह आवश्यक नह होगा िक अपराधी को उच् चतर न्यायालय के समक्ष िवचारण के िलए भेज े:

    परंतु—

    (क) िकसी भी दशा म ऐसा िक् त चौदह वषर् से अिधक की अविध के कारावास के िलए दडंािदष् ट नह िकया जाएगा ;

    (ख) संकिलत दडं उस दडं की मातर्ा के दगुने से अिधक न होगा िजसे एक अपराध के िलए दने े के िलए �