assets.vmou.ac.inassets.vmou.ac.in/mahd01-2.pdf · इकाई – 12 सूरदास के...

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    पा य म अ भक प स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज थान)

    संयोजक एवं सम वयक

    संयोजक ो. (डॉ.) कुमार कृ ण

    अ य , ह द वभाग हमांचल व व व यालय, शमला

    सम वयक डॉ. मीता शमा सहायक आचाय, ह द वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    सद य ो. (डॉ.) जवर मल पारख

    अ य , मान वक व यापीठ इि दरा गांधी रा य खलुा व व व यालय, नई द ल

    ो. (डॉ.) सुदेश ब ा पवू अ य , ह द वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    ो. (डॉ.) न दलाल क ला पवू अ य , ह द वभाग जयनारायण यास व व व यालय, जोधपरु

    डॉ. नवल कशोर भाभड़ा ाचाय

    राज. क या महा व यालय, अजमेर डॉ. पु षो तम आसोपा

    पवू ाचाय राजक य महा व यालय, सरदारशहर (चु )

    संपादन एवं पा य म-लेखन संपादक म डल ो. (डॉ.) च कला पा डेय ह द वभाग कलक ता व व व यालय, कलक ता

    पाठ लेखक इकाई सं या ो. (डॉ.) च कला पा डेय

    ह द वभाग कलक ता व व व यालय, कलक ता

    - 1, 2, 3, 4

    ो. (डॉ.) दयाशंकर पाठ ह द वभाग सरदार पटेल व व व यालय, व लभ व यानगर, गजुरात

    - 5, 6

    ो.(डॉ.) जगमल सहं पवू अ य , ह द वभाग असम व व व यालय, सलचर

    - 7, 8, 13, 14, 17, 18

    ो.(डॉ.) योगे ताप सहं पवू अ य , ह द वभाग इलाहाबाद व व व यालय, इलाहाबाद

    - 9, 10

    डॉ. ट .सी. गु ता पवू अ य , ह द वभाग राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा

    - 11, 12

    ो.(डॉ.) ल लन राय पवू अ य , ह द वभाग हमांचल व व व यालय, शमला

    - 15, 19, 20

    डॉ. मीता शमा सहायक आचाय एव ंअ य , ह द वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    - 16

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    ो.(डॉ.) व णु वराट अ य , ह द वभाग महाराजा सयाजी व व व यालय, बड़ौदा

    - 21

    डॉ. हेतु भार वाज पवू ाचाय , ह द वभाग पार क नातको तर महा व यालय, जयपरु

    - 22

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो. नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो. एम.के. घड़ो लया नदेशक

    सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन

    योगे गोयल सहायक उ पादन अ धकार ,

    वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    उ पादन : अग त-2012 ISBN-13/978-81-8496-114-0 इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. ख.ु व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पनुः ततु करने क अनुम त नह ं है।व. म. ख.ु व., कोटा के लये कुलस चव व. म. ख.ु व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत।

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    एमएएचडी-01

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    ख ड – 3 14—163 भि तकाल न का य भाग –II इकाई सं. इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई – 9 तुलसीदास का का य 14 इकाई – 10 तुलसीदास के का य का अनभुू त एव ंअ भ यजंना प 33 इकाई – 11 सूरदास का का य 56 इकाई – 12 सूरदास के का य का अनभुू त एव ंअ भ यजंना प 88 इकाई – 13 मीरा का का य 112 इकाई – 14 मीरा के का य का अनभुू त और अ भ यजंना प 133

    ख ड – 4 164—323

    र तकाल न का य भाग –I इकाई सं. इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई – 15 बहार का का य 164 इकाई – 16 बहार के का य का अनभुू त और अ भ यजंना प 181 इकाई – 17 पदमाकर का का य 202 इकाई – 18 पदमाकर के का य का अनभुू त और अ भ यजंना प 217 इकाई – 19 घनान द का का य 234 इकाई – 20 घनान द के का य का अनभुू त और अ भ यजंना प 251 इकाई – 21 भूषण का का य 276 इकाई – 22 भूषण के का य का अनभुू त और अ भ यजंना प 299

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    पा य म-प रचय सा ह य का अ ययन मनु य के भाव एवं वचार के प र करण, वकसन और उ नयन का मह वपणू मा यम है। यगु वशेष क सामािजक, राजनै तक, ऐ तहा सक, आ थक, सां कृ तक और वचैा रक पृ ठभू म के साथ उसके संघष , प रवतन तथा मह वपणू मोड क छाया सा ह य के आइने म यथावत देखी जा सकती है। इसी कारण सा ह य को मानवीय स ता के अ ययन क सं ा द जाती है। सा ह यकार हम यगु के च र का सा ा कार कराता है ह द के आ दकाल न सा ह य से लेकर आज तक के सा ह य म हम त साम यक यगु का त बबं पाते है। यगु सा ह य क व वध वधाओं म पं दत होता है।एम.ए ह द (पवूा ) का पा य म बनाते समय इस बात को वशेष प से यान म रखा गया है िजससे इसका अ ययन आपको परेू यगु को समझने म मदद दे सके और आपक एक सम ि ट तथा प ट समझ (यगु वशेष के वषय म) वक सत हो सके। यह परूा पा य म चार ख ड म वभािजत है क त ुइस वभाजन म का य- वकास पर परा क क ड़य को अ वि छ न रखने क चे टा क गई है। ख ड का अ ययन आर भ करते ह अ ययनक ता यह महससू करगे जसेै क वे ह द का य क पर परा और विृ तय से ता कक और अंतरंग वातालाप कर रहे ह । ह द सा ह य के इ तहास का अ ययन करते समय आप आ दकाल अथवा वीरगाथाकाल क सामा य विृ तय से अवगत हो चुके है। इस पृ ठभू म को ि ट म रखते हु ए ाचीन (आ द) का य शीषक से थम ख ड तैयार कया गया है िजसम

    आ दकाल के दो व श ट क वय चदंवरदायी तथा व याप त के क व यि त व, क व- ि ट , अनभुू त तथा अ भ यजंना प पर व ततृ ववेचन कया गया है। इस ख ड म चार इकाइयाँ है। इकाई- 1 तथा 2 आ द कल के सबसे ववादा पद क त ु े ठता म अ णी क व चंदवरदायी के यि त व एव ंकृ त व से संबं धत है और इकाई-3 एव ं4 लोकभाषा को का य भाषा का गौरव देने वाले मै थल को कल क व व याप त का अ ययन तुत करती है। इन दोन क का य या ा म सहभागी होते हु ए आप आ दकाल क दो मुख वशेषताओं वीरगाथापरकता और ृंगार यता से तो प र चत होग ह , इन क वय के वशद ान, सू म पयवे ण शि त, उ भावना कौशल तथा भाषा योग से भी वा कफ हो सकगे । वतीय ख ड भि तकाल न का य भाग-1 शीषक से लखा गया है। इसम भि तकाल न का य से

    संत और सूफ का य के व तक कबीर और जायसी का चयन करते हु ए अ ययन साम ी तैयार क गई है। दोन के अ ययन से प ट होगा क ह द सा ह य का भि तकाल देश यापी भि त आ दोलन क सबसे बड़ी उपलि ध है । मलूत: यह भि त आ दोलन- सामतंवाद, परुो हतवाद, शा ान के अ भमान,अंध व वास का तवाद, लोक भाषाओं के उदय एव ंत काल न समाज यव था म जनता का सामतंवाद वरोधी सां कृ तक आंदोलन था। इस आंदोलन ने समाज क दशा- ि ट देने वाले ानी संत क व दये । नगुण शाखा क ानमाग धारा के सतं कबीर ह या ेममाग के संत जायसी, दोन क सामािजक भू मका लोक हतकार थी। यह ख ड इन दोन क वय के यि त व एव ंका य के अनभुू त एव ंअ भ यजंना प पर व ततृ वचार तुत करता है। इस ख ड म पहल दो इकाइया ँसंत कबीर और दसूर दो सफू क व जायसी पर अ ययन साम ी तुत करती है। ख ड म कुल चार इकाइया ँहै।

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    तीसर ख ड भि तकाल न का य भाग-II शीषक से तैयार कया गया है। इसम सगणु भि तधारा के रामभ त क व तलुसीदास, कृ णभ त क व सूरदास तथा ेम और वेदना क अन य गा यका, भ त सा धका मीरा पर अ ययन साम ी तुत क गई है। ख ड म कुल छ: इकाइया ँहै। पहल दो तुलसी,दसूर दो सरूदास तथा तीसर दो मीराबाई के यि त व तथा रचना के अनभुू त और अ भ यजंना प का अ ययन तुत करती है। इनक क वताओं का अ ययन प ट करता है क भि त का य, लोक भाषाओं, लोक- का य प , लोक आ थाओं तथा लोक रंजन विृ तय के वकास का का य है। चौथा ख ड र तकाल न का य अं तम ख ड है। इसम आठ इकाइया ँहै। इसम र त स का य के त न ध क व बहार , र तब का य के प ाकर और र तमु त का य के त न ध घना द के

    साथ र तकाल के वीरता और शौय के त न ध क व भूषण के क व यि त व, क व ि ट और का य कौशल पर वचार कया गया है। मानसुार बहार , पदमाकर, घनान द तथा भूषण पर दो-दो इकाइया ँअ ययन साम ी के प म लखी गई है। ात य है क येक ख ड क इकाई के अंत म मह वपणू पु तक क सचूी भी द जा रह है

    िजसका वशेष अ ययन कर आप अपने ान म अपे त वृ कर सकगे ।

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    ख ड प रचय

    ख ड 3 का प रचय एम.ए. ह द (पवूा ) पा य म का ख ड-3 भि तकाल न का य भाग-II शीषक से लखा गया है। ख ड-3 का प रचय देते हु ए पहले परैा ाफ म जो बात कह गई है उसे यहा ँयथावत उ घतृ करना संगत होगा अत: बना कसी पवू पी ठका के हम सीधे ख ड क इकाइय पर आ जाते है। इस ख ड म कुल 6 इकाइया ँहै िजनम न न ल खत प म अ ययन साम ी ततु क गई है:- इकाई 9 : इस इकाई म यकाल न रामभि त शाखा के सव े ठ क व िजसे जॉज यसन ने गौतम बु के बाद सबसे बड़ा सम वयक ता और लोकनायक माना उन कालजयी रचनाकार `तुलसीदास के क व यि त व क वतावल , का य योजन और रचनाओं का अ ययन तुत कया गया है। इसी इकाई म तलुसीदास क रचनाओं, और वनय का से चुने हु ए पद और सवयैा तथा क वता क सस दभ या या द गई है। चय नत का य ख ड क वशेषता बतलात ेहु ए या याओं के साथ जो ट प णया ँद गई है उनसे आप क व के भाव प और कला प संबधंी प ट समझ बना पाने म स म होग। अथ स षेण क सु वधा हेतु कुछ क ठन श द के अथ भी दए गए है। इकाई-10 इस इकाई म तुलसीदास के का य के अनभुू त एव ंअ भ यजंना प पर वचार कया गया है। इस संग म गो वामी तलुसीदास क आ मानभुू त के व वध प , उनके रचनाससंार, अ वचल-एक न ट भि त, उदा त मानव मू य का नदशन, सम वय भावना तथा सामािजक सरोकार का व लेषण कया गया है। अ भ यजंना प पर अ ययन साम ी तैयार करते हु ए तुलसी के का य प म सजृन प क व वधता, भावयोजना, सा हि यक तब ता, वै व य पणू रस, अलकंार एव ं छंद वधान तथा का य भाषा पर व ततृ और वपलु चंतन पर यान रखा गया है। इकाई 11: इस इकाई म भि तकाल क कृ ण भि त धारा के त न ध क व सूरदास के क व यि त व एव ंकृ तय पर प रचया मक ट पणी देते हु ए मरगीत संग के चुने गए बीस पद क संदभ स हत या या द गई है। सरु के इन पद के अ ययन से आपको वह ि ट ा त होगी िजससे इन पद के भीतर झांक कार आप त काल न सामंती समाज के यथाथ को बखूबी पहचान सकगे तथा आचाय रामच शु ल के इस कथन को च रताथ पाएंगे क “सरु का संयोग वणन एक णक घटना नह ं है, ेम-संगीतमय जीवन क एक गहर चलती धारा है, िजसम अवगाहन करने वाले को द य माधुय के अ त र त और कह ंकुछ नह ं दखाई पड़ता।” या या के अंत म क ठन श द के अथ दए गए ह, िजससे आपको अथ समझने म सहू लयत हो। इकाई 12: इस इकाई म महाक व सरूदास क क वता म अनभुू त एव ंअ भ यजंना मक प का अ ययन तुत कया गया है। इस संदभ म सरूदास क क वता म व णत ृंगार रस के संयोग एव ं वयोग प क वशेषताओं सरूदास म व णत कृ त के व वध प का मू याकंन एव ंसूर का य म लोकजीवन के च ण का व लेषण लया गया है। का य- श प के अंतगत का य प

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    छंद, रस, अलंकार का ववेचन है। इस इकाई म सवा धक मह वपणू सूर के अ भ यजंना कौशल के अंतगत गोपी-उ व संवाद का व लेषण है। कृ ण-सखा उ व से गो पय के वाद- ववाद म सूर सा ह य अपने चरम उ कष पर प रल त होता है। ीम भागवत के इस सगं को आधार बनाकर अपनी मौ लकता के सं पश से सूर ने इसे जो कला मक अ भ यि त द है,वह परवत क वय के लए रेणा ोत के साथ तमान भी बन गई । इस इकाई म सूर के भा षत योग पर वचार कया गया है। जभाषा को प रमािजत, ांजल और सहज बनाने का काय करने वाले महाक व को जभाषा का वा मी क कहना सवथा

    उ चत है। इकाई 13: कृ ण भ त क वय म अ ग य मीराबाई िजनक भि त म ण कबीर का ‘खंडन-मंडन’ है न सरू का नगुण-सगणु ववाद और न ह तुलसी का दशन सं दाय से ऊपर अपने आरा य के त न छल मन का आ म समपण है, इस इकाई म उ ह ंमीराबाई के जीवन-प रचय, रचनाकार यि त व एव ंकृ तय के प रचय के साथ मीरा के यारह चुने हु ए पद क या या क गई है। इससे अ यनक ता मीराबाई क क वता का रसा वादन कर मीराबाई के का य म एक परू क परू समाज यव था क अस ह णु और अमानवीय मान सकता को, उसक भेदभाव पणू र त-नी त और दोहर जीवन- ि ट से प र चत हो सकगे। वह समाज िजसम मीरा म वाधीनता के लए संघष कया, वष पया और भाव स य के प म अमतृमय का य रचा। या याओं के साथ जो ट प णया ंद गई है, उनसे आप क व के भावप और कलाप संबधंी प ट स ब ध बना पाने म स म होग। अथ सं ेषण क सु वधा के लए कुछ क ठन श द के अथ भी दये गये ह। इकाई 14: भि तकाल न का य भाग-II (खंड-3) क यह अि तम इकाई है िजसम मीराबाई के का य के अनभुू त एव ं अ भ यजंन प का व लेषण कया गया है। मीराबाई के रचना के योजन, उनक का य परंपरा क वता के वचैा रक प , का य- प, भाषा-शैल , अलंकार तथा छंद

    क ववेचना क गई है। मीरा क का यानभुू त उनके का य म एक ी के जीवन-संघष लोक त व, दाश नक भाव स दय के साथ मीराबाई क कृ ण भि त एव ंउनके आ थावाद मू य का प ट करण कया गया है। भि त के े म व वध मत-मतांतर से ऊपर मीरा ने अनभुू त प

    को ह धानता ह है। अशं से संबं धत नबधंा मक एव ंलघु तरा मक न भी दये गये ह। इसी कार इकाइय के अतं म व ततृ एवं गहन अ ययन के लए संदभ थं क सचूी द गई है।

    आप उनका भी अ ययन कर।

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    ख ड प रचय

    ख ड 4 का प रचय एम.ए. ह द (पवूा ) पा य म का यह अं तम ख ड है। इस (र तकाल न का य) ख ड म ह द सा ह य के र तकाल के त न ध क वय के रचनाकार यि त व एव ंका य सौ दय पर अ ययन साम ी तुत क गई है । ऐ तहा सक प रवतन का या भ यि त के व प म भी बदलाव ला देता है। इसका जीवतं उदाहरण है भि तकाल न ेमानभुू त क र तकाल न भावनाओं म अ तरण। आचाय रामच शु ल के अनसुार “ इसका कारण जनता क च नह ं आ यदाता राजा-महाराजाओं क च थी” का यगत े ठता का मु य आधार लोक चेतना से जुड़ना है। इसके वपर त र तकाल न क वय के लए क वता एक पेशा बन गई, दरबार सं कृ त ने भावप पर कला प को हावी कार दया। स पणू र तकाल न सा ह य को सामंती सं कृ त के प र े य म ह समझा जा सकता है। र तकाल न का य को मु यत: तीन धाराओं-र त स , र तब और र तमु त म बाटंा गया है। इस ख ड म 8 इकाइया ँ है। येक धारा के त न ध क वय को चुनते हु ए इस ख ड क अ ययन साम ी तैयार क गई है। इकाइय का वभाजन न न ल खत प म है:-

    इकाई 15: इस इकाई म र त स क व बहार के यि त व एव ंउनक एक मा रचना ‘सतसई’ से चुने गए प ह दोह क स संग या या ततु क गई है। या याओं के साथ जो ट प णया ँद गई है, उनसे आप बहार क , क पना क अ तु समाहार शि त और अलंकार धान उि त वै च य का अवलोकन कार सकते है। दोह के साथ क ठन श द के अथ दये गये है िजनसे वय ंअथ समझने मदद मलेगी। इकाई 16: इस इकाई म बहार के का य के अनभुू त और अ भ यजंना प पर वचर कया गया है। बहार क चम का रणी, मनोहा रनी, गहर , गढू और गभंीर भाषा ृंगार इस च ण म पारंगतता और एक-एक दोहे म अनेकानेक अलंकार क उपि थ त सोदाहरण दखाते हु ए स कया है, कस कार बहार के दोहे ‘नावक के तीर’ के समान है। इकाई 17: इस इकाई म र तब क व प ाकर के रचनाकार यि त व के साथ ृंगार, वीर रस और भि त-भाव से आपू रत उनके छ: छंद क ससंदभ या या तुत क गई है। या याओं को पढ़ते हु ए छंद शा पार प ाकर क पकड़ और अलंकारो पार उनके अ धकार से प र चत हुआ जा सकता है। प ाकर क लेखनी, त काल न यगु के सभी च लत वषय ृंगार , वीर एव ंभि त भावना पार चल है फर भी उनक का य शि त का सव कृ ट माण ृंगार वषयक रचनाओं म ह मलता है। या या के साथ क ठन श द के भी अथ दये गये ह। इकाई 18: ततु इकाई म प ाकर के का य के अनभुू त और अ भ यि त प का व लेषण कया गया है। भाव प क ह भां त प ाकर का कला प भी ौढ़ है। उि त वै च य और चम कार दशन क विृ त भावानभुू त के माग म बाधक नह ं हु ई है। अनु ास का बहु ल योग भी अ चकर नह ं तीत होता । भाषा पार इनका पणू अ धकार है। आचाय शु ल ने इन पार ट पणी करत ेहु ए कहा है-‘इनक भाषा कह ंअनु ास क म लत झकंार उ प न करती है, कह ं

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    र र दप से ु धवा हनी के समाज अकड़ती और कड़कती हु ई चलती है तो कभी शातं सरोवर के समान ि थर और गभंीर होकर मनु य जीवन को व ां त क छाया दखाती है।’ इकाई 19: ततु इकाई म घनान द के रचनाकार यि त व के व लेषण के उपरांत इनके कुछ क व त और सवयैा ससंदभ या या यत ह। या या के साथ वशेष ट पणी आपको घनान द के उस वै श य से प र चत करायेगी िजसे ल य करते हु ए क व ने वय ं लखा है- ‘लोग तो जोड़-तोड़ कर क वता बनात ेह ले कन मेर क वता वय ंमझुे न मत करती है।’ र तकाल न बधंन को तोड़कर भावना के उ मु त गगन म उड़ान भरने वाले घनान द अपनी खास पहचान रखते ह। इकाई 20: इस इकाई म र तमु त क व घनान द के का य के अनभुू त और अ भ यजंना प पर वचार कया गया है। आचाय शु ल का कहना है ‘घनान द का वयोग वणन अ धकतर अंतविृ त न पक है वा याथ न पक नह ं । घनान द ने अपनी क वताओं म दय क पकुार को वाणी दान क है। उनक का यानभुू त म िजस ती ता, मा मकता और रमणीयता का एक साथ वधान कया गया है, वह अनपुम है।’ इकाई 21: इस इकाई म र तकाल के वीर गीत गायक भूषण के रचनाकार यि त व पार काश डालते हु ए उनके का य से सात छंदो को चुन कार उनक स सगं या या क गई है। ह द म रा य मु तक क रचना सामा यता: डगंल के क वय वारा ह हु ई है। भूषण इनम अपवाद ह जो डगंल के थान पगंल या ज भाषा का योग करत ेह। इनक या या का अ ययन करते हु ए आप वीर रसा मकता को परख सकगे। छ साल और शवाजी के दरबार म रहते हु ए भी इ ह ने चाटुका रता के नये मानदंड बनाये और अपनी ि ट के अनसुार स ती चाटुका रता छोड़ िजस शवाजी और छ साल को उ ह ने इ लाम स ता के व लड़ने वाले वीर के प म देखा। उनका वीर व वणन और शौय वणन करने म कह ंकोई कसर नह ं छोड़ी। इकाई 22: इस इकाई म वीर ग त गायक भूषण क अनभुू त व अ भ यजंना प पार काश डाला गया है। इस ख ड क सभी इकाइय के अतं म श दावल अ यास के लए नबधंा मक एव ंलघु तरा मक न दये गये ह। व ततृ एवं गहन अ ययन के लए संदभ थं सचूी भी द गई है, आप इ ह भी देखे और अ ययन कर।

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    इकाई-9 तुलसीदास का का य इकाई क परेखा 9.0 उ े य 9.1 तावना 9.2 क व-प रचय

    9.2.1 जीवन-प रचय 9.2.2 रचनाकार का यि त व 9.2.3 कृ तया ं

    9.3 का य वाचन एव ं या या (क वतावल ) 9.3.1 छंद सं या 105 धूत कहौ अपधूत कहौ.... 9.3.2 छंद सं या 96 कसबी कसान कुल ब नक.... 9.3.3 छंद सं या 97 खेती न कसान कौ... 9.3.4 छंद सं या 11 परुतै नकसी-रघवुी बध.ू. 9.3.5 छंद सं या 79 देव तू ंदयाल ुद न हौ... वनय प का से 9.3.6 छंद सं या 90 ऐसी मूढ़ता या मन क 9.3.7 छंद सं या 105 अब लौ नसन अबन नस ैह 9.3.8 छंद सं या 111 केसव क ह न जाइ का क हए 9.3.9 छंद सं या 174 जाके य न राम वदेैह 9.3.10 छंद सं या 162 ऐसो को उदार जग मांह 9.3.11 छंद सं या 101 जाउँ कहा ँतीज चरन नहारे

    9.4 वचार संदभ और श दावल 9.5 साराशं/मू यांकन 9.6 अ यासाथ न 9.7 संदभ ग थ

    9.0 उ े य गो वामी तुलसीदास जी क दो कृ तय - क वतावल तथा वनय प का के छ द

    का मूल प तथा ामा णक पाठ तुत करना ता क का य वाचन कया जा सके । क वतावल के उ तराख ड एव ंअयो याका ड एव ं वनय प का के पद क संग

    स हत या या ता क क व का म त य प ट हो सके । ट पणी के मा यम से क व के म त य को यिंजत करने वाले अलकंार एव ंअ य

    वशेषताओं को बतलाना ता क क वता क कला मक उपलि धय का ान हो सके। छ द के ज टल श द का अथ न द ट करना ता क का य वाचन और अथ लेखन

    क ज टलता दरू हो सके ।

  • 15

    9.1 तावना गो वामी तुलसीदास क दो कृ तया ँ 'क वतावल एव ं ' वनय प का' उनके जीवन के अि तम काल म लखी गई थीं । गीतावल कृ त का मूल म त य उ तराख ड को छोड़कर आरा य ीराम का ब बा मक च तुत करना है । इसके उ तरका ड म क व अपने यगु के लोक संकट तथा उससे मुि त के उपाय क खोज करता है । कुल मलाकर, जहाँ क व अपनी अ य कृ तय म अपनी आदशमयी नै तकता क अवधारणाओं क सा ह य म थापना करता है- वह ंइस क वतावल म वह अपने यगु के घोर यथाथ का वणन करता है । महामार एव ंदु भ से पी ड़त लोक क पीड़ा के यथाथपणू च ण का ऐ तहा सक सा य इस क वतावल म देखा जा सकता है । क व क दसूर कृ त ' वनय प का' उसक साधना, उपासना तथा दा य भि त क वयैि तक अनभुू तमयी न ठा को य त करती है । ' वनयप का' ीराम को भेजी गई एक प का है- िजसम क व ने उनक आ मीयता क ाि त के लए पणूभावेन सम पत होकर अपनी भौ तक वेदनाओं को य त कया है । इस वनयप का म क व का उ े य है जीवन क भौ तक अधोग त से पी ड़त मानव समाज को ई वर या ीराम क शरणाग त क ाि त कराने के लए े रत करना । इस कृ त म क व क वयैि तक पीड़ा तथा लोकपीड़ा के संदभ दोन एकमेव हो उठे ह । क व क आ मपीड़ा तथा लोकपीड़ा दोन को एकभाव से जोड़कर उसक मिु त का अि तम उपाय ीराम क 'शरणाग त' ह खोजना है । कसी भी कार से भ ु ीराम क आ मीयता क भावना क उ पि त ह लोकवासनाओ म अधोग त भोगने वाले जीवन क मुि त का हेत ु है और तुलसी अ त तक भ ु ीराम क आ मीयता क याचना ह यहा ँकरत ेरहत ेह । वनयप का के न कष को इं गत करत ेहु ए वे कहत ेह क- कृपा कोप सतभायेहु सपनेहु तरछेहु, नाथ तहारे हेरे । जो चतव न स ह लग ैसो चतइये सबेरे।।

    9.2 क व प रचय

    9.2.1 जीवन प रचय

    गो वामी तुलसीदास के जीवन के वषय म अभी तक पया त ववाद बना हुआ है क त ुअ धकाशंत: तुलसी सा ह य के अ वेषक ने उनका ज म संवत 1589 (सन ्1532) भादो मास, शु लप , एकादशी दन मंगलवार को च कूट से 15 कलोमीटर पहले दबेु के परुवा को माना है जो बाद म राजापरु के नाम से बांदा जनपद म व यात हुआ । इनके पता का नाम आ माराम दबेु तथा माता का नाम हु लसी था । बा याव था म ह माता- पता के देहावसान हो जाने के कारण आ य वह न तुलसी को पया त संकट भोगना पड़ा । ारि भक दन म इ ह गु ी नरह रदास ने आ मीयता के साथ पाला-पोसा तथा

    द ा द । गु ीनरह रदास जी से ह इ ह ने ीरामकथा का वण कया तथा जीवन

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    भर परू न ठा के साथ वे ीराम से जुड़ ेरहे । ीरामच रतमानस म क व ने अपने गु का आदरपवूक मरण कया है । ीनरह रदास जी के बाद गो वामी तुलसीदास जी ने काशी म ी शेष सनातन जी क

    पाठशाला म व धवत-् यो तष तथा वै दक सा ह य क श ा ा त क । अपनी श ा समा त करके वे पनु: अपनी ज मभू म राजापरु लौटे और यमुना के तट पर ि थत महेवा गांव के नवासी द नबधं ु पाठक क पु ी र नावल से उनका ववाह हुआ । कंवद ती है क प नी के कदवुचन से आहत तथा य थत तुलसी ीराम क भि त के त सम पत हु ए । ीराम भि त के लए संक पशील तुलसी ने परेू भारत का मण कया और अंत म

    संवत ्व 631 म अयो या आकर ीरामच रतमानस क रचना ार भ क । कहा जाता है क इसे परूा करने म तीन वष, तीन मास एव ं सात दन लगे थे- वसेै ीरामच रतमानस म क व ने कई बार पाठ म प रवतन कया है और ऐसी े ठ तथा

    कालजयी रचना के लए इतना समय अ धक नह ंहै । गो वामी तुलसीदास ने अपना अ धकाशं समय च कूट, अयो या तथा काशी म यतीत कया था। अि तम समय म वे काशी म रहे तथा उनक अि तम कृ तया-ँ दोहावल , क वतावल , वनयप का एव ं हनमुान बाहु क काशी म ह लखी गई थी ं । काशी म इनक म मंडल क चचा बराबर मलती है और इनके म म राजा 'टोडरमल' का नाम वशेष उ लेखनीय है । इनके दसूरे म गगंाराम यो तषी थे िजसके अनरुोध पर उ ह ने 'रामा ा न' क रचना क । अकबर के सेनाप त तथा दरबार अ दरुरह म खानखाना से तुलसी का अ छा स ब ध था और उनक ह ेरणा से उ ह ने 'बरव ैछ द' के अ तगत 'बरव ैरामायण' क रचना क थी । कहा जाता है क काशी नवास काल म इ ह पया त सकंट झेलना पड़ा था- िजसक सूचना 'क वतावल ' कृ त म क व ने वय ंद है । जीवन के अि तम दन म इ ह तमाम गि टया ँ नकल आई थी और हनमुान क कृपा ाि त से रोग मुि त के लए उ ह ने अपनी अि तम कृ त 'हनमुान बाहु क' क रचना क थी । गो वामी तुलसीदास जी का देहावसान संवत ् 1680 (सन ् 1623) ावण मास, शु लप , ततृीया, दन श नवार को हुआ था । गो वामी तुलसीदास जी आजीवन ीराम के त पणू न ठा तथा आ था के साथ जुड़ ेरहे और यह एक ऐसे यि त ह िजनक इस ीराम न ठा म कह ंभी खर च नह ंदखाई पड़ती - ब यो व धक परयो पु य जल उल ट उठाई च च । तुलसी चातक ेम पटु मरतहु ँलगी न ख च।।

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    9.2.2 रचनाकार का यि त व

    गो वामी तुलसीदास के यि त व के कई प हमारे सामने उभर कर उनक कृ तय के मा यम से आत ेह । ये इस कार ह- 1. गो वामी तुलसीदास ीराम के त आ यि तक प से सम पत भ त थे । उनक

    ीराम म एक मा न ठा आजीवन बनी रह । वे अपनी ीराम क एक मा ेम न ठा को चातक विृ त से उप मत करत ेह । वे कहत ेह क-

    एक भरोसो एक बल एक आस व वास । एक राम घन याम हत चातक तुलसीदास।। ीराम ह एक मा भरोसा ह, एक मा शि त ह, एक मा आशा ह-

    एकमा व वास ह- क व ऐसे ीराम के लए वा त बूँद के लए तड़पत े चातक प ी क भाँ त आजीवन बेचैन रहा है ।

    2. गो वामी तुलसीदास संपणू लोक को इस ीरामभि त के साथ जोड़ना चाहत ेथे । उनक ि ट म लोक वय ंम जब तक ीरामभि त के साथ नह ंजुड़ता उसे शाि त नह ं मलेगी । 'भि त' के संदभ म उ ह ने कोई भेदभाव नह ं रखा और उनके अनसुार सभी जा तया,ँ ी-पु ष, पश-ुप ी, भारतीय एव ंअभारतीय, व वान आ द सभी ीराम क शरणाग त ा त करके सुख एव ंशाि त का जीवन यतीत कर सकत ेह । तुलसी इस कार केवल अपने को ह नह ंवरन ्लोक के सुख तथा आन द के अ वेषक तथा उसक पीड़ा के त सचेत थे । तुलसी के यि त व क यह सबसे बड़ी वशेषता थी क वय ंके संकट के साथ लोकसंकट क मुि त के लए भी वे जीवन भर व न देखत ेरहे । ीराम से लोक को जोड़ने के पीछे उनके यि त व क लोक हतै षका विृ त का व प सामने उभरकर आता है ।

    3. गो वामी तुलसीदास एक ऐसे समाज क रचना म व वास रखत े ह- िजसम 'लोकादश' क तब ता क भावना से परूा समाज जुड़ा हो । उनके वारा र चत ीरामच रतमानस इसी लोकादश क तब ता का उदाहरण है । भाई-भाई, पु -पता, पु -माता, वध-ूसास, प त-प नी, वामी-सेवक, राजा- जा आ द के बीच सामजं य एव ं सौहा क ेममयी उदा तता के वे प धर रहे ह । जीवन के यापक मू य के त मानव मा क न ठा-राम के संक प से जुड़कर हम आगे बढ़ने के लए े रत करती है । यह उनका स ा त था । यह तुलसी के ह यि त व का तफल है क समाज म आज रावण के त सावज नक न दा का भाव दखाई पड़ता है ।

    4. गो वामी तुलसीदास के यि त व का एक मह वपणू प है- लोक सम वय क भावना म न ठा ता क टूटत े हु ए समाज को बचाया जा सके । गो वामी जी परेू भारतीय समाज को बखरने और टूटने से बचात े ह, यह उनक च ता उनक कृ तय म बराबर दखाई पड़ती है क समाज को जोड़कर कैसे समाज को े ठतम ब दओंु पर अवि थत कराया जाए । वे धा मक सम वय-जातीय सम वय तथा

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    इ तहास एव ं वतमान के सम वय के तपणू न ठावान ह । यह सम वयवाद उनके यि त व का मह वपणू प है और वदेशी आलोचक ने उनके यि त व के इस सम वय प क बराबर शंसा क है ।

    5. गो वामी तुलसीदास, भि त के साथ-ह -साथ नै तक मानवीय मू य के जीवनभर प पाती रहे ह । दया, नेह, आ मीयता, ेम, क णा, दान, अ हसंा, सम व आ द मू य मानवीय समाज क संर ा के मूल उपादान ह और गो वामी जी के यि त व क यह सबसे बड़ी वशेषता रह है क अपनी कृ तय के मा यम से आजीवन इ ह ंमू य क थापना पर वे बल देते रहे ह । ीराम का आदशपणू स ता याग एव ंभरत के ातृ व ेम का टांत तुलसी को सवथा य रहा है और वे सामािजक रचना के संदभ म इ ह ं े ठ मानवीय मू य के अि त व को जीवन भर वीकारत ेरहे ह ।

    सं ेप म, गो वामी जी के यि त व के मह वपणू प ह- ीराम के त अन य न ठा तथा अन यभि त, लोकादशमयी सव े ठ जीवन यापन क सामािजक ि ट, लोक सम वय तथा नै तक मानवीय मू य के त अगाध आ था । इस कार गो वामी तुलसीदास ीरामच रतमानस एव ंलोक न ठा के कालजयी क व के प म हमारे समाज म सव वतमान ह ।

    9.2.3 कृ तया ँ

    गो वामी तुलसीदास क कुल कृ तया ँबारह ह- 1. रामलला नहछू 2. रामा ा न 3. जानक मंगल 4. ीरामच रतमानस 5. पावती-मंगल 6. बरव ैरामायण 7. ीकृ ण गीतावल 8. ीरामगीतावल 9. वनयप का 10. दोहावल 11. क वतावल 12. हनमुान बाहु क आगे इन कृ तय के रचना मक वै श य का व लेषण आगे क इकाई म कया गया है।

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    9.3 क वतावल

    9.3.1 का यवाचन : छ द सं या 105

    धूत कहौ अवधूत कहौ रजपतू कहौ जुलहा कहौ कोई । काहू क बेट सो बेटा न याहब काहू क र त बगार न सोई । तुलसी सरनाम गलुाम है राम को जाको च ैसो कहै कछु कोई । मां ग कै खहै मसीत कै सोइबे लइबे को एक न देबो को दोई।। संग- क व गो वामी तुलसीदास इस छ द के मा यम से वय ं अपने वषय म ट पणी दे रहे ह- अपने वरो धय के त त या य त करना उनका मूल म त य है । वे अपने वरो धय को बतात ेह क वह ीराम के त परू तरह से सम पत ह जो चाहे जैसा वरोध करे, उ ह उनक च ता नह ंहै य क वे लोकर त, लोक यव था तथा लोक स ब ध से ऊपर उठ चुके ह । क व गो वामी तुलसीदास अपने वरो धय को उ तर देते हु ए कहत ेह क- या या- तुम चाहे मुझ ेछल करने वाला धूत कहो, चाहे आड बर को रचने वाला अवधूत योगी कहो, चाहे मुझ े य कहो, चाहे जुलाहा कहो, मुझ े कसी बात क कोई च ता नह ंहै । म न तो कसी क पु ी से अपने पु का याह करना चाहता हू ँऔर न कसी क जा त बगाड़ना चाहता हू ँऔर यह सभी जानत े ह क यह तुलसी तो ीराम के गलुाम के नाम से स (सरनाम) है । भ ा मांगकर खाना और नि च त

    होकर मि जद आ द धा मक थल पर सो रहना उसक दनचया ह और उसको न कसी से उधार मांगकर एक लेना और न याज स हत दो देना है । ट पणी- 1. तुलसी ने यह अपने जीवन नवाह क प त क ओर संकेत कया है, सवथा

    ीराम का होकर लोकसं ि त र हत जीवन यापन उनका उ े य है । 2. लोक वरोध का कारण तुलसी लोकससंि त मानत ेह और लोक संसि त के बाद

    वरोध य और कैसा ? 3. अपने जीवन क वृ ाव था म काशी म अपने त होने वाले वरोध का उ ह ने

    यहा ँवणन कया है ।

    9.3.2 उ तरकांड- का यवाचन : छ द सं या 96

    कसबी कसान कुल ब नक भखार भाँट चाकर चपल नट चोर चार चेटक । पेट को पढ़त गनु गढत चढ़त ग र अटन गहन वन अहन अखेट क । ऊँचे नीचे करम धरम अधरम क र पेट ह को पचत बचत बेटा बेटक । तुलसी बझुाइ एक राम घन याम ह ते

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    आ ग बडवा ग ते बड़ी है आ ग पेट क ।। संग- भूख से पी ड़त अपने यगु के जन समुदाय को सा वना दान करता हुआ क व

    कहता है क ीराम क शरण म जाओ, भूख क आग बडवाि न से भी भयकंर है और उसे केवल ीराम पी बादल (घन याम) ह अपनी कृपा ि ट से बझुा सकत ेह, अ य कोई नह ं। काशी म दु भ पड़ने के कारण वहा ँक भूखी जनता म हाहाकार मचा था, उस समय लोक क र ा के लए शासन वग नि य था । ऐसी प रि थ त म ीराम क कृपा के अ त र त अ य कोई वक प नह ंथा । या या- भूख क पीड़ा को मटाने के लए ह मजदरू मजदरू करत ेह. कसान समूह कृ ष करत ेह तथा ब नया, भखार , भाँट, नौकर, चंचल नट चोर, हरकारे तथा बाजीगर आ द भी इसी उदर पोषण के लए उ यम करत ेह । उदरपू त के लए ह यि त, अपने गणु को गढ़-गढ़कर कुशल बनत ेह, पहाड़ पर चढ़ने, शकार तथा दनभर गहन वन म (नाना कार क व तुओं क खोज के लए) भटकत ेरहत ेह । पेट भरने के न म त भले बरेु कम, धम-अधम का काय करत े तथा उदरपू त के न म त ह बेटे-बे टया ंबेचत ेरहत ेह । तुलसीदास जी कहत ेह क यह पेट क आग बडवाि न क भां त है जो यामल घनमेघ पी ीराम क कृपा ि ट से ह बझुाई जा सकती है । ट पणी- अपने यगु म फैल भुखमर क शां त का उपाय तुलसी ीराम कृपा बतात ेह और जन समुदाय को समझात ेह क भूख मानव जा त क सबसे बड़ी उसक ाथ मक आव यकता है, उसक शाि त ीराम कृपा से ह स भव है । 1. पर प रत पक अलंकार- “तुलसी बझुाइ..... आ ग पेटक ।” राम पी घन याम- से

    और पेट क आग के बझुने म कायकारण स ब ध है- पक राम-घन याम हेत ुहै, और काय है- पानी से आग का बझुाना ।

    श दाथ- कसबी (पेशेवर या गरै पेशेवर) मजदरू, कुल-समहू, चाकर-नौकर. चार-हरकारे, चेटक (बाजीगर), गनु गढ़त-अ यास करत े ह, अहन-टहलना, अहन- दनभर, अटन-भटकना बेटक -बेट पचत-भरत ेह. बडवा ग-बडवाि न (समु का अि न) ।

    9.3.3 उ तरकांड- का यवाचन : छ द सं या 97

    खेती न कसान को भखार को न भीख ब ल ब नक को ब नज न चाकर को चाकर । जी वका वह न लोग सी यमान सोचबस कह एक एकन सो कहा ंजाई का कर । बेद हू ंपरुान कह लोकहू बलो कयत सांकरे सम ैप ैराम रावरे कृपा कर । दा रद दसानन देबाई दनुी द नबधं ु

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    दु रत दहन दे ख तुलसी हहा कर ।। संग- क व अपने यगु म लेग, महामार , भुखमर आ द के अनेकानेक संकट से

    पी ड़त सामा य जन समुदाय को देखकर अ य त पीड़ा से दखुी होकर ीराम से उनक मुि त क ाथना कर रहा है । इस ाथना म लोकजन क पीड़ा का भौ तक संकट है- यहा ँक व आ याि मक संकट क बात न कहकर भौ तक संकट क मुि त से ाथना कर रहा है । यह ाथना अपने लए नह ,ं संपणू लोक के दखुी लोग के लए है । वह कहता है क- या या- दु भ के कारण मानव समुदाय के ऊपर इतना बड़ा संकट आ गया है क कृषक के पास न कृ ष क उपज होती है, भखार को न भीख मल रह है, यवसायी के लए न यवसाय (वा ण य) क ि थ त है और नौकर पेश ेवाले को न नौकर मल रह है । आजी वका र हत समाज के लोग च तावश भयकि पत ह, और एक-दसूरे से वे आपस म कहत ेह, कहां जाएँ और (आजी वका के लए अब) या कर? हे ीराम! ऐसी ददुशा म वेद परुाण ने बताया है और य -संसार म देखा भी जाता है क आपातकाल म हे भ!ु आपने ह बराबर कृपा क है । इस समय, दा र य पी रावण ने संसार को अपने भयकंर भाव से दबा रखा है और उससे उ प न भयकंर पीड़ा (दहन) देखकर तुलसी के साथ संपणू मानव समाज हाहाकार कर रहा है- आप सबक र ा कर । ट पणी- 1. तुलसी अपने यगु क यथाथभर सामा य जन क पीड़ा का वणन करत ेहु ए उससे

    मुि त के लए ीराम से ाथना करत े ह- य क ऐसी वषम प रि थ त म सहायता का उनके अ त र त अ य कोई आधार नह ंहै ।

    2. ''कहा जाई का कर '' तुलसी के यगु के यथाथ बोध को इं गत करता है । 3. अलंकार दा रद दसानन दबाई दनुी द नबधं म सांग पक अलंकार है । श दाथ- ब नज-वा ण य यवसाय । सी यमान-भय से कि पत, सोच-शोक, साँकरे-संकट त, दनुी-दु नया-सभी लोग को, हहा कर -हाहाकार करना ।

    9.3.4 अयो याका ड - छ द सं या 11

    परुत नकसी ंरघवुीर वध ूध र धीर दये मग म डग व ै। झलक भ र भालकनी जल क पटु सू ख गये मधरुाधर व ै। फ र अ त है चलनो अब के तक पन कुट क रहौ कत व ै। तय क ल ख आतुरता पय क अ खया अ त चा चल जल वे । संग- क व ने यहा ँसीता क मु धता, मदृतुा सुकुमारता एव ंकोमलता का च ण कया

    है । संग है. अयो या से वन गमन के लए सीता का नगर से बाहर नकलना यह ऐसी सीता ह िज ह ने वन के जीवन के वषय म सुना अव य है उनम यथाथत: वन

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    क कोई समझ का अनभुव नह ंहै । इस कार के वभाव वाल सीता के वन गमन का वै च य एव ंकौतुकपणू वणन करता हुआ क व कहता अयो या नगर से नकलकर ीराम क या सीता ने आगे धैय धारण करके माग म दो डग (पद यास) रखे ।

    दो डग रखत ेह , थकावट के कारण पसीने क बूदं क माथे पर भरपरू झलक नकल पड़ी और उनके कोमल सु दर (मधरु) ह ठो के स पटु (अधराधर: ऊपर तथा नीचे के ओ ठ) सुख से गए । इस थकान क मु ा म ीराम से वह पनु: पछूती है- अभी कतनी दरू चलना है और अपनी पणकुट छाकर कहा ँबनाएंगे । थकान से भर भोल , सरल (मु ध) प नी (सीता) क आतुरता (ज द बाजी) देखकर ीराम क रमणीक आख म जल भर आए और अ ु ब द ुटपकने लगे । ट पणी- 1. यह छ द मूलत: हनमु नाटक का पा तरण है-

    ''ग त यमि त मय द यसकृद वुाणा रामा णु: कृतवती थमावतारम ्।'' क व ने अपने रचना कौशल वारा 'हनमु नाटक' के इस संग को अ य त ना मक एव ं भावशाल बनाया है ।

    2. क व का उ े य यहा ंसीता क मु धता का च ण करके उनके त उनके प त ीराम के मोह भरे नेह एव ंआ मीयता का न पण करना है ।

    3. ीराम क यह मु धता पाठक के च त को भी वच लत करती है । 4. थकान भाव दशा का च ण है- 'ध र धीर हये' म सीता क कोमलता, भालकनी

    पद पसीने क बूदं, ह ठ का सूख जाना, पण कुट बनाने के त उ सुकता साि वक दशा से जुड़ े का यक अनभुव ह- ीराम के ने से अ ु ब दओंु का वगलन सीता के अनभुाव क ेरणा है ।

    5. यह छ द छु मल या च कला सवयैा म लखा गया है । आठ सगण का होना इसका ल ण है-सगण- IIS दो लघ ुतथा एक गु

    परुत नकल ंरघवुीर वध ूध रधी रदये मग म, डग व ै। IIS, IIS, IIS, IIS, IIS, IIS, IIS, IIS अलंकार : सू म चे टाओं के वणन के कारण सू म अलंकार तथा वाभा वकता के कारण वभावोि त अलंकार है । श दाथ : परुत-अयो यानगर क सीमा से बाहर, डग-पद यास. कनी-क णका, पटु-ओ ठ स पटु- अधराधर-ऊपर तथा दोन ओ ठ, व-ैछूकर, वौ-चनेू लगी ं-टपकने लगी ं।

    9.3.5 वनयप का

    का यवाचन-छ द सं या 79 देव! त ूदयाल ुद न ह त ूदा न ह भखार ।

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    ह स पातक त ूपाप पुजं हार ।।1।। नाथ त ूअनाथ को अनाथ कौन मोसो । मो समान आरत न ह ंआर त हर तो सो।।2।।

    म त ूह जीव त ूहै ठाकुर ह चेरो । तात मात गु सखा त ूसब व ध हत ूमेरो।।3।। तो ह ंमो ह ंनातो अनेक मा नय ैजो भाव ै। य य तुलसी कृपाल ुचरन सरन धाव।ै।4।। संग- ' म तथा जीव' के बीच के स ब ध का कैसे न चय हो, इस लए गो वामी

    तुलसीदास वय ं ई वर के ऊपर ह अपने और उनके बीच ि थत स ब ध का प ट करण करना छोड़ देत ेह । इस करण म उनक शत यह है क िजस स ब ध

    म अन त आ मीयता हमारे और आप (माया सत जीव और नमल म) के बीच ि थर तथा गाढ़ हो सके, वह वीकार कर । वीकृ त का दा य व आपका है- जीव का नह ं। तुलसी कहत ेह- या या- हे भ!ु आप द न पर दया करने वाले ह और मुझ स श कोई द न नह ंह, आप सबसे बड़ ेदानी ह और मुझ जैसा कोई द र भखार नह ं है । म तो जीव के प म सबसे बड़ा पापी हू ँऔर आप पाप समूह को न ट करने वाले भ ुह।।1।।

    हे भ!ु आप अनाथ के (र क) वामी ह और मुझ जैसा अनाथ और कौन होगा? मेरे स श (क ट से) पी ड़त कोई नह ंहै और आप स श पीड़ाओं को दरू करने वाला अ य कोई नह ।ं।2।। आप वय ं म ह और म आपसे ह जुड़ा (अन य) जीव हू ँऔर आप मेरे वामी है, म आपका सेवक हू ँ। आप मेरे पता-माता, गु , सखा ( म ) तथा मेरे सभी कार से हतैषी ह।।3।। हे कृपाल ु भ!ु आपके और मेरे बीच अनेकानेक र त ेह- जो र ता आपको भला लगे- उसे ह आप वीकार कर ल, ता क जैसे- भी हो, यह सेवक तुलसी आपके चरण म शरण ा त कर सके।।4।। ट पणी-1. ीराम म और भ त तुलसी येक वक प म ीराम के चरण म आ य ा त करना चाहत ेह- दयाल ु भ ुद न तुलसी दा न भ ु भखार तुलसी अनाथ के नाथ भ ुअनाथ तुलसी संकट ह ता भुसंकट त तुलसी

    मराम जीव तुलसी वामी राम सेवक तुलसी

    इन स ब ध के बीच तुलसी ीराम के अ त र त अपनी अन यता अ य कह ंभी नह ंदेख पात े।

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    2. म यकाल न भि त, दा याभि त, सा यभि त, वा स याभि त आ द प म या या यत है और तुलसी- 'तात मात गु सखा' के मा यम से उसक यजंना करत े हु ए भ ु से भि त क आ मीयता जोड़त े ह- म-जीव स ब ध म उ ह मुि त का य नह ं है । यहा ँवा स य, ेमरस, स य के भाव मुख ह । तुलसी ी के व प म परू तरह से बँधकर उनक आ मीयता ा त करना चाहत ेह- उ ह ीराम क भि त चा हए- मुि त नह ं।

    3. 'म ह तो ह ंनातो अनेक' वारा म-जीव के सम स ब ध क चचा क जा रह है अथात ्लोकाथ एव ंपरमाथ' का ताि वक संकेत इन पिं तय का अभी ट है । भ ुिजस भाव से वीकार करना चाह वीकार कर- यह उन पर क व छोड़ रहा है।

    यह पद तुलसी क पि तमूलक भि त के े ठ उदाहरण म से एक है । विृ त का अथ है, भ ुके त भ त का अन य समपण । श दाथ- पातक -पापी, आरत (आत)-कि टत, चेरो-दास ।

    9.3.6 का यवाचन-छ द सं या 90

    ऐसी मढुता या मनक । प रह र राम भग त सुर स रता आस करत ओसकन क ।।1।। धूम समहू नर ख चातक य तृ षत जान म त घन क । न ह ंतहँ सीतलता न बा र पु न हा न हो त लोचन क ।।2।। य गच काँच वलो क सेन जड़ छॉह अपने तन क । वत अ त आतुर अहार बस छ त बसा र आनन क ।।3।।

    कंह लै कहौ कुचाल कृपा न ध जानत ह ग त जनक । तुलसी भ ुहरहु दसुह दखु करहु लाल नज पन क ।।4।। संग- क व इस सांसा रक माया म ल त जीव के मन क उस छूता (अ ववेक) का

    वणन करता है- जो लोक के अस य को अि तम प से स य मानकर जीवनभर उसी क कामना म संल न रहता है । क व लोक जन के म यास य का उपहासपणू व वध

    टा त के साथ वणन करता हुआ उसका उपहास करता है । अहम,् अ ान एव ंम या व के कारण मानव संसार क भौ तकता को स य मानकर उसके लए जीवन भर पचं करता रहा है । क व अ ान से मुि त के संदभ को प ट करता हुआ कहता है क- या या- इस मन क ऐसी कुछ जड़ता है क वह ीराम क भि त पी देवनद गगंा जल का प र याग करके अपनी यास बझुाने के लए ओस क बूदं क आशा कए बठैा है।।1।। धुएँ के समूह को देखकर चातक प ी यास के कारण मवश बादल समझ लेता है- (जब उसे ा त करने क चे टा करता है) तो न वहा ँ(धुएँ के समूह म) न तो शीलता है, न जल है और उ टे उसके ने क ह हा न होती है।।2।।

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    िजस कार मूख बाज प ी भू म पर पड़ ेशीश ेम अपने त ब ब को देखकर अ य त आतुर- भाव से आहार क ाि त के लए उस पर टूट पड़ता है और उसे अपने मुख क

    त का ान नह ंरहता।।3।। हे कृपा न ध! म अपने दु कम का कह ंतक वणन क ँ । आप इस दास (जन) क चे टाओं को भल भाँ त जानते ह । हे नाथ! अपनी (भ त र क होने क ) मयादा को देखत ेहु ए हमारे असहनीय संकट को दरू कर।।4।। ट पणी- माया त जीव क मा मक मन:दशा का क व च ण करता हुआ- ीराम से अपनी मुि त क ाथना करता है । माया तता को समझाने के लए वह चातक और बाज प ी क छूता का टा त देता है । अलंकार- टांत अलकंार है । श दाथ- प रह र- याग करके, ओसकन- ओस क बूँद, गच-टुकड़ा, छ त-चोट।

    9.3.7 का य वाचन - छ द सं या 105

    अबल नसानी अब न नसैह । रामकृपा भव नसा सरानी जागे फ र न डसौह ।।1।। पायेउ नाम चाह चतंाम न उर करत ेन खसैह । याम प च चर कसौट चत कंचन ह ंकसैह ।।2।।

    परबस जा न हाँ यो इन इि न नज बस है न हाँसैह । मन मधुकर पनकै तुलसी रघपु त पद कमल बसैह ।।3।। संग- मा यक यथाथ का वा त वक बोध हो जाने पर जागतृ क मन:दशा से जुड़ा

    साधक जीव ( यि त) अब पनु: माया म न फँसने का यहा ँसंक प लेता है । जीवन भर माया को स य मानकर उसक अनेकानेक यातनाओं को भोगने वाला यह जीवन अब जा त हो चकुा है । यह जागतृ जीवदशक क भाँ त संसार को एक य जैसा वीकार करता हुआ कहता है क- या या- अब वा त वकता का ान हो चुका है- अब तक मा यक म या संसि त म िजतना भी जीवन न ट हो चुका है- उसके आगे अब उसे नह ंन ट होने दूंगा । ीराम क कृपा से सांसा रक माया पी रा समा त हो हो चुक है- अब जग चुका हू-ँ पनु: अब सोने के लए बछौने नह ंलगाऊँगा।।1।। मने ीराम के नाम पी म ण को ा त कर लया है और मायास त होकर पनु: उसे दय- पी हाथ से नह ं गरने दूँगा । ीराम का यामवण कसौट है और अब अपने च त पी वण को उसी पर कस-कसकर उसक े ठता क जाँच करता रहू ँगा।।2।। इन इि य ने सदैव मेरे च त को दसूरे के वश (माया के वश) म समझ-समझ कर मेरा उपहास कया है, अब पनु: अपने को उनके वश म करके उपहास नह ंकराऊँगा।। ान हो जाने के बाद तुलसी कहत े ह क वह ण करके अपने मन पी मर को ीराम के पद कमल म नर तर नवास करात ेरहगे।।3।।

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    ट पणी- 1. जीव क च त जागृ त के बाद उसक ववेकशि त आ याि मक होकर भ ुीराममय हो उठती है । ीराम क कृपा से सांसा रक माया- पी रा क समाि त के

    बाद पनु: जागतृ जीव उसम नह ंफँसना चाहता । यहा ँइस पद म तुलसी वय ंअपनी इसी मनोदशा का च ण करत ेह । अलंकार- '' याम प च...... कसहै '' म सांग पक अलकंार है । ''मनमधकुर.. ...... ...बसैह '' पर प रत पक अलकंार है । ( मर का कमल म आ य लेना एक पर परागत मा यता है, इस लए पर प रत पक अलंकार है। श दाथ- सरानी-समा त हो गई, डसैह - सोने के लए ब तर लगाना, खसैह - गराना कसौट -सोने क शु ता क जाँच क कसौट , पनकै- ण करके ।

    9.3.8 का यवाचन - छ द सं या 111

    केसव क ह न जाइ का क हये । देखत तव रचना व च ह र समु झ मन ह ंमन र हये।।1।। सू य भी तपर च रंग न ह ंतन ु बन ु लखा चतेरे । धोये मटइ न मरइ भी त दखु पाइय यह तन हेरे।।2।। र वकर नीर बसै अ त दा न मकर प ते ह माह ं। बदनह न सो स ैचराचर पान करन जे जाह ।ं।3।। कोउ कह स य झूठ कह कोऊ जुगल बल कोउ मान ै। तुलसीदास प रहरै तीन म सो आपन प हचान।ै।4।। संग- क व यहा ँसंसार के म या व का कूटा मक (रह यमयी) वणन कर रहा है ।

    संसार के म या व का वणन करने के लए कबीर आ द स त ने कूटा मक शेल का बराबर योग कया है । उसी शैल म यहा ँ भ त क व तुलसीदास भी संसार के आ चयपणू म या व का तीका मक वणन कर रहे ह । वह कहत ेह क- या या- माया से त यह म या संसार कतना आ चयपणू है, हे केशव! यह कहा नह ंजाता अथात ्म वणन करने म असमथ हू ँ। हे ह र! आपक अ य त व च ता भर सिृ ट रचना को देखकर मन ह मन चुप होकर रह जाना पड़ता है।।1।। यह संसार पी च बनाया तो गया है क त ुइस च के लए कोई आधार ( भि त फलक) नह ंहै । इस च म कोई रंग नह ंहै तथा च कार भी बना शर र का है । ये च धोने से मटत ेनह ंऔर इसे मृ यु का नर तर भय या त रहता है तथा इसक ओर देखने पर नर तर क ट उ प न होता रहता है।।2।। सूय क करण के जल म (जल क मर चका मे) मृ यु (काल) पी एक भयकंर मगर नवास करता है । वह मगर मुखह न है क त ुसचराचर जो इस मगृमर चका का पान करने जाता है, वह उसका भ ण करता रहता है।।3।।

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    हे भ!ु आपक इस सिृ ट रचना को कोई स य कहता है, कोई अस य कहता है, कोई इसे यगुल अथात ्दोन अथात ्स यास य मानता है । तुलसीदास जी कहत ेह क इन तीन म (स य, अस य एव ंस यास य) का प र याग कर देने के बाद ह उसे सह -सह समझा जा सकता है।।4।। ट पणी- 1. इस पद म कूट अलंकार है- कूट का अथ है- या या म तीका मक ज टलता और

    यह ज टलता पहेल क भाँ त है- समझ लेने पर इससे व च ता भरा आन द मलता है । इस कूटा मक वणन के वारा क व शू यवा दय क भाँ त ससंार का वणन करता है, उसके अनसुार यह अनभुव का वषय है क त ुउसक या या नह ंक जा सकती- जैसा न मानकर अ वतैवेदा तवा दय क भां त कहता है क यह संसार तीत होता है क स य है क त ुसवथा म या तथा अस य है ।

    2. येक च के लए एक फलक चा हए, एक च कार का यि त व चा हए, च मटाने पर मटना चा हए, च को देखकर आन द मलना चा हए- क त ुक व कहता है क यह संसार एक च है- क त ुआधार र हत है, इस च का च कार दखाई नह ंपड़ता, इस च को रंगा नह ंगया है, कसी भी तरह इस च को न ट नह ं कया जा सकता और इस च को देखने पर आन द के थान पर क ट होता है ।

    इस संसार म बना जल के अथात ् म या मर चका पी मा मक अस य म मृ यु पी एक मगर रहता है और वह सम त ा णय का भ ण करता रहता है- अथात ्

    काल देवता इस संसार को नर तर खात ेरहत ेह- असहाय लोग उ ह देखते रह जात ेह। व वतजन इस ससंार को अ वतै, वतै एव ं वतैा वतै आ द नाम से पकुारते ह क त ुवह उनसे सवथा वल ण है । इस सिृ ट क वल णता को क व तुलसी कूट क अलंका रक शैल म वल णता के प म य त करत ेह ।

    3. बना कारण के काय का घ टत होना- वभावना अलकंार है । इस कूटा मक वणन का आधार वभावना अलंकार है । मुखह न मगर का सबको ास बना लेना बना कारण के काय है ।

    9.3.9 का यवाचन - छ द सं या 174

    जाके य न राम वदेैह तिजये ता ह ंको ट बरै सम य य प परम सनेह ।।1।। त यो पता लाद वभीषन बधं ुभरत महतार । ब ल गु त यो कंत ज ब नति ह भये गदु मंगलकार ।।2।। नाते नेह राम के म नयत सुहद ससेु