सच्चा धर्म क्या है? · सच्चा धर्म क्या...

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सचा धम या है? लेखक अद लाह बिन अद ल अजज अल्-ईदान अन वादकः अताउमान जजयाउलाह संशोधनः जलाल न एवं स स अद

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Page 1: सच्चा धर्म क्या है? · सच्चा धर्म क्या ह॑? लेखक अब्दल्ुलाह बिन अब्दलु अज़ीज

सचचा धरम कया ह?

लखक

अबदललाह बिन अबदल अजीज अल-ईदान

अनवादकः अताउरमहरान जजयाउललाह

सशोधनः जलालददीन एव ससददीक अहरद

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ما هو ادلين احلق؟

(اهلنديةباللغة )

عبداهلل بن عبدالعزيز العيدانتأيلف:

عطاء الرمحن ضياء اهللترمجة:

مراجعة: جالل ادلين وصديق أمحد

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ववषय सची सकषिपत परिचय ................................................ 5

परसतावना ..................................................... 6

धरम का अरम .............................................. 11

धरो क परकािः ................................................ 12

आसरानी या पसतक समबनधी धरमः ................ 12

ररतमपजन औि लौककक धरमः ......................... 13

कया रनषय को धरम की आवशयकता ह? ............... 14

ससाि क रहान तथयो को जानन क ललए अकल

(बधदि) को धरम की आवशयकताः .................... 15

रानव-परकरत को धरम की आवशयकताः .......... 24

रनषय क रानलसक सवसर औि आधमरक शधकत को धरम की आवशयकताः ........................................ 28

सराज र परिणोओ, आचिण क रनयरो तरा वयवहाि सहहता क ललए धरम की आवशयकताः ....... 34

इसलारी अकीिा की ववशषताए ...................... 38

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सपषट अकीिाः ................................................ 38

पराकरतक अकीिाः ........................................ 39

ठोस औि सदढ अकीिाः ............................... 41

परराणणत अकीिाः ............................................ 42

अकीि क अनिि ........................................... 46

इसलार का सतलन ....................................... 46

जीवन क तरार ितरो र इसलार का यरारमवाि ................................................ 58

परररः इबाितो क अनिि इसलार का यरारमवािः .... 58

दववतीयः वयवहाि क अनिि इसलार का वासतववकतावाि: ........................................... 63

इसलार र कानन साजी क सरोत ................ 72

पािसपरिक टकिाव औि रतभि स सििाः ........... 72

पिपात एव सवचछा स पाक होनाः .................... 75

समरान औि पिवी किन र सिलताः .............. 77

पररर उिाहिणः शिाब क हिार ककए जान क पशचात

रिीन र रोलरनो का िवया ................................. 81

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3

िसिा उिाहिणः ............................................ 83

रनषय को रनषय की पजा औि गलारी स

आजािी हिलानाः ....................................... 86

इसलरार कया ह? ........................................... 91

पररर सतमभः .............................................. 92

दववतीय सतमभः नराज ............................... 96

नराज औि उसकी िकअतो की सखयाः ................. 97

नराज क फायि औि ववशषताए ........................ 97

तीसिा सतमभः जकात ............................... 103

जकात फजम किन की हहकरतः ......................... 103

धजन धनो र जाकत अरनवायम हः ................... 105

जकात क हकिाि लोग .............................. 106

जकात क फायिः ........................................... 107

चौरा सतमभः िोजा ..................................... 110

िोज क फायिः ......................................... 111

पाचवाा सतमभः हज ........................................ 113

हज क फायिः ........................................... 113

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4

हज क कायमकरम का कया उददशय ह? .............. 115

सिप क सार हज क कायमकरर यह ह: ................ 117

उमरा क आराल यह ह: .................................. 117

अनततः ................................................. 118

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5

सकषिपत पररच इस पसक र धरम का अरम औि उसक परकाि, रानव को धरम की आवशयकता, इसलारी अकीि की ववशषताए, जीवन क तरार पहलओ र इसलार की समयता, इसलार र कानन साजी क सरोत औि इसलार क सतमभो का उललख ह। यह पसतक सचच धरम क अलभलोषी क ललए रागमिशमक ह।

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बबधसरललाहहि-िहरारनि-िहीर

अललाह क नार स आिमभ किता हा, जो अरत रहिबान औि ियाल ह।

परसतावना परमयक धरम अरवा िशमन क कछ लसदिात होत ह, जो उस रनयबतरत कित ह, कछ कायम-परणाललयाा औि ववधधयाा होती ह, धजनपि वह चलता ह तरा कछ रलय होत ह, धजनकी वह पाबनिी किता ह। इस दधषटकोण स हर हि उस वयधकत क ललए, जो रौललक रप स रसलरान ह, अगल पननो र उसक धरम की सकषिपत रप-िखा परसतत किग, ताकक उसका इसलार औि उसकी इबाित (उपासना) कवल िसिो की तकलीि औि अनसिण की बजाय जञान औि जानकािी पि आधारित हो। ककनत, जो वयधकत पहल स रसलरान नही ह, हर उसक ललए भी सचच धरम अरामत इसलार का सकषिपत परिचय परसतत किग, ताकक उस इस धरम क उन रलयो तरा कायम-परणाललयो, आचिणो औि आिशो पि धचनतन-रनन का उधचत अवसि परापत

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हो सक, धजनक कािण यह धरम अनय धरो स शरषठ ह; ताकक यह जानकािी औि धचतन उस अगल किर की ओि –इस धरम स आकवषमत होन औि इसस सतषट होन की ओि- ल जाय। इसललए कक यह ईशविीय धरम ह। रानव जारत का बनाया हआ धरम नही। यह अपन सरसत पिो औि लशिाओ र समपणम ह, जसा कक आन वाली पधकतयो र पढा जाएगा। हो सकता ह यह चीज उस शीघर ही दढ ववशवास, समपणम सतधषट औि पिी सहररत क सार इस धरम र परवश किन क बाि र सोच-ववचाि किन का आरतरण ि। कयोकक वह इस धरम र परवश किन पि, –रनधशचत रप स- वासतववक सौभागय, हाहिमक सतोष, सख-चन औि हषम एव आननि का अनभव किगा औि उस सरय वह आय क हि उस हिन, घनटा औि लरनट पि शोक तरा िख परकट किगा, जो उसन इस रहान धरम स अलग िहकि बबताया ह!

इस परसतावना र हर, हि सचच धरम क अलभलाषी को एक रहमवपणम बात स सावधान किना आवशयक सरझत ह। वह यह ह कक आपको अनय

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धरो क रानन वालो की तिह, खि रसलरानो का िषट आचिण, उनर फली हई बिाइयाा, धोखाधडी अरवा अमयाचाि आहि, इस धरम स परिधचत होन, इसस एक ईशविीय धरम क रप र आशवसत होन औि सवीकाि किन र रकावट न बनन पाय। कयो यह िषट आचिण क राललक रसलरान वासतववक इसलार क पररतरनधध नही ह। यह कवस अपन पररतरनधध ह। इसलार को इनक िषट करो स कोई लना-िना नही ह। इनक इन करो को न अललाह तआला पसनि किता ह, न उसक िसल रहमरि सललललाह अलहह व सललर पसनि कित ह।

अतः हर आपको इन सकषिपत पननो क पढन का आरनतरण ित ह; ताकक आप सवय इस धरम की वासतववक लशिाओ औि इसक बाि र इसक रानन वालो की बातो की समयता का रनणमय कि सक । हर ववशवास ह कक आप इस पसतक क अनिि ऐसी जञानरय बात, रलय औि ववचाि पायग, धजनस आपको परसननता होगी, धजनकी आप तलाश र र औि अब आपक हार लग गयी ह। य इसललए कक अललाह तआला आपस परर

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किता ह, लोक-पिलोक र आपक ललए भलाई, कपा एव आपका कलयाण चाहता ह। इसललए हर आशा ह कक आप इस शर स अनत तक पढग औि धजस सचचाई की ओि यह बला िही ह, उस सवीकाि किन र जलिी किग। कयोकक सचचाई इस बात क अधधक योगय ह कक उसकी पिवी की जाय। आप नफस अमरािा (बिाई पि उभािन वाली अमरा), अपन शतर शतान, बि साधरयो अरवा पजा क अयोगय पजयो की पजा किन वाल अपन परिवाि क लोगो को इस बात की अनररत न ि कक वह आपको हहिायत क परकाश, इस ससाि र सौभागय औि जीवन क पिर सख स िोक ि, जो आपको इस धरम र परवश किन क बाि परापत होगा। इसललए कक वह आपको इसस िोककि आपको जीवन की सबस रहान औि रलयवान वसत स लाभाधनवत होन स वधचत कि िग। िि असल वह रहान औि बहरलय वसत ह रिन क पशचात सवगम परापत होना।.....तो कफि कया आप इस आरतरण को सवीकाि किग.....? अमयत

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बहरलय उपहाि जो हर आपक सरि परसतत कि िह ह....। हर आपस यही आशा ह।

अब धीि-धीि इस सकषिपत परिचय क पननो को पलटत ह।

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धरम का अरम जब हर धरम को इस पहल (दधषट) स िखत ह कक वह धरमरनषठा क अरम र एक रानलसक अवसरा ह, तो उसका तामपयम यह होता ह ककः

“एक अदशय परर अजसततव पर ववशवास रखना, जो रानव सिधधत कायो का उपाय, वयवसरा और सचालन करता ह। ऐसा ववशवास, जो उस परर और ददवय अजसततव की ओर रधच और उसस भय क सार, ववनयपवमक तरा उसकी परततषठा एव रहानता का गणगान करत हए उसकी आराधना करन पर उभारती ह।”

औि सकषिपत र यह कह सकत ह ककः

“एक अनसरण और पजा क योगय ईशवरीय अजसततव पर ववशवास रखना।”

ककनत जब हर उस इस पहल (दधषट) स िखत ह कक वह एक बाहिी वासतववकता ह, तो हर उसकी परिभाषा इस परकाि किग कक वहः

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“वह तरार कालपतनक ससधदात, जो उस ईशवरीय शजकत क गणो को तनधामररत करत ह और वह तरार वयवहाररक तनयर, जो उसकी उपासना की ववधधयो की रप-रखा तयार करत ह।”

धरो क परकारः अदययन कताम इस बात स परिधचत ह कक धरम क िो परकाि ह:

आसरानी या पसतक समिनधी धरमः अरामत धजस धरम की कोई धरमपसतक हो, जो आकाश स अवतरित हई हो, धजसर रानव जारत क ललए अललाह तआला का रागमिशमन हो। उिाहिण सवरप “यहहियत” धजसर अललाह तआला न अपनी पसतक “तौिात” को अपन सिशवाहक “रसा” अलहहससलात वससलार पि अवतरित ककया।

औि जसा कक “ईसाइयत” (Christianity) ह, धजसर अललाह तआला न अपनी पसतक “इनजील” को

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अपन सिशवाहक ईसा अलहहससलात वससलार पि अवतरित ककया।

औि जसा कक “इसलार” ह, धजसर अललाह तआला न “कआमन” को अपन अधनतर सिशवाहक औि ित “रहमरि” सललललाह अलहह व सललर पि अवतरित ककया।

इसलार औि अनय ककताबी (पसतक समबनधी, आसरानी) धरो क रदय अनति यह ह कक अललाह तआला न इसलार क रल लसदिानतो औि उसक सरोतो की सििा की ह, कयोकक यह रानव जारत क ललए अधनतर धरम ह। इसीललए यह हि-फि औि परिवतमन स गरसत नही हआ ह। जबकक िसि धरो क सरोत औि उनकी पववतर पधसतकाए नषट हो गयी औि उनर हि-फि, परिवतमन औि सशोधन कि हिय गय।

रतत मपजन और लौककक धरमः धजसका समबनध आकाश की बजाय धिती स हो तरा अललाह की बजाय रनषय स हो। जस बदि

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रत, हहनि रत, कनफलशयस, जितशती औि इनक अरतरिकत ससाि क अनय धरम।

यहाा पि सवतः एक रहमवपणम परशन उठ खडा होता ह। वह यह ह कक कया एक िजधदरान पराणी वगम, रनषय जातत को यह शोभा दता ह कक वह अपन ही सरान ककसी पराणी वगम को पजय रानकर उसकी उपासना कर? चाह वह कोई रनषय हो या पमरि, गाय हो या अनय वसत! और कया उसका जीवन सफल, उसक कायम वयवजसरत और उसकी सरसयाए हल हो सकती ह, जिकक वह ऐसी वयवसरा और शासर का अनकरण करन वाला ह, जजस पणमतः रनषय न िनाया ह।

कया रनषय को धरम की आवशयकता ह?

रनषय क ललए सारानय रप स धरम की औि ववशष रप स इसलार की आवशयकता, कोई दववतीयक आवशयकता नही ह, बधलक यह एक रौललक औि बरनयािी आवशयकता ह, धजसका

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समबनध जीवन क साि, धजनिगी क िहसय औि रनषय की अराह गहिाइयो स ह।

अरत समभाववत सिप र –जो सरझन र बाधक न हो- हर रनषय क जीवन र धरम की आवशयकता क कािणो का वणमन कि िह ह:

ससार क रहान तथयो को जानन क सलए

अकल (िजधद) को धरम की आवशयकताः रनषय को धालरमक आसरा (ववशवास) की आवशयकता –सवमपररर- उस अपन आपको जानन औि अपन आस-पास क रहान अधसतमव (जगत) को जानन की आवशयकता स उमपनन होती ह। अरामत उन परशनो का उमति जानन की आवशयकता, धजनर रानव शासतर (ववजञान) वयसत ह, ककनत उनक ववषय र कोई सतोषजनक उमति जटान र असररम ह।

जबस रनषय की सधषट हई ह, कई ऐस परशन उसक रन-रधसतषक र उभित िह ह, धजनका उमति िन की आवशयकता ह। जस, वह कहाा स आया ह?

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(आिमभ कया ह?) उस कहाा जाना ह? (अनत कया ह?) औि कयो आया ह? (उसक वजि का उददशय कया ह?) जीवन की आवशयकताए औि सरसयाए उस यह परशन किन स ककतना ही बाज िख, ककनत वह एक हिन अवशय उठ खडा होता ह, ताकक वह अपन आपस इन अननत परशनो क बाि र पछः

(क) रनषय अपन हिल र सोचता ह कक र औि रिी चािो ओि यह ववशाल जगत कहाा स उमपनन हआ ह? कया र सवतः पिा हो गया हा या कोई जनरिाता ह, धजसन रझ जनर हिया ह? रिा उसस कया समबनध ह? इसी परकाि यह ववशाल ससाि अपनी धिती औि आकाश, जानवि औि वनसपरत, खरनज पिारम औि खगोल सरत कया सवतः वजि र आ गया ह या उस ककसी परबनध कशल सषटा न वजि बखशा ह?

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(ख) कफि इस जीवन तरा रमय क पशचात कया होगा? इस धिती पि इस सकषिपत यातरा क पशचात कहाा जाना ह? कया जीवन की करा कवल यही ह कक “राा जनती ह औि धिती रनगलती ह” औि उसक बाि कछ नही ह? ऐस सिाचािी औि पववतर लोग, धजनहोन समय औि भलाई क रागम र अपनी जानो को नयोछावि कि हिया तरा ऐस गनहगाि औि पापी, धजनहोन शहवत, लालसा औि नफसानी खवाहहश क रागम र िसिो की बलल चढा िी, कया िोनो का अनत सरान औि बिाबि हो सकता ह? कया जीवन बबना ककसी बिल औि पररतफल क य ही रमय पि सरापत हो जायगा या रिन क पशचात एक अनय जीवन भी ह, धजसर िषकलरमयो को उनक करम का बिला हिया जाएगा औि समकरम किन वालो को अचछा पररतफल लरलगा?

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(ग) कफि यह परशन उठता ह कक रनषय की उमपधमत कयो हई ह? उस बधदि औि सोचन-सरझन की शधकत कयो परिान की गयी ह औि वह सरसत जानिािो स शरषठ कयो ह? आकाश औि धिती की सरसत चीज उसक अधीन कयो कि िी गयी ह? कया उसक जनर लन का कोई उददशय ह? कया उसक जीवन काल र उसका कोई कतमवय ह? या वह कवल इसललए पिा ककया गया ह कक जानविो क सरान खाय-वपय, कफि चौपायो क सरान रि जाए? यहि उसक वजि का कोई उददशय औि रकसि ह, तो वह कया ह? औि वह उस कस पहचानगा?

य वो परशन ह, जो हि यग र रनषय स अनगरहपवमक ऐस उमति का तकाजा कित िह ह, जो पयास को बझा सक औि हिय को सतधषट परिान कि सक। ककनत सतोषजनक उमति परापत किन का एक ही रागम ह। वह ह, धरम का आशरय लना औि उसकी ओि पलटना। धरम रनषय को –

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सवमपररर- इस बात स अवगत किाता ह कक वह न तो सहसा अधसतमव र आ गया ह औि न इस जगत र सवय सरावपत हो गया ह। बधलक वह एक रहान सषटा की एक सधषट ह। वही उसका पालनहाि ह, धजसन उसकी उमपधमत की, कफि उस ठीक-ठाक ककया, कफि उस शदि औि उधचत बनाया, कफि उसर रह फा की (जान डाला), उसक कान, आाख औि हिल बनाए औि उस उसी सरय स अपनी बशराि अनकमपाए परिान की, जब वह अपनी राा क पट र गभमसर रा। (अललाह तआला का फिरान हः)

هني ﴿ اء م ن م م م لم نلقككني ٢٠أ رار م

إل قدر ٢١فجعلنه ف قعلوم رون ٢٢م 1 ﴾فقدرنا فنعم ٱلقد

“कया हरन तमह एक हकीर (तचछ) पानी (वीयम) स पदा नही ककया, कफर हरन उस सरकषित सरान र रखा, एक तनधामररत सरय तक, कफर हरन अनरान लगाया और हर ककतना उधचत (अचछा) अनरान लगान वाल ह!”

1 सरह अल-रसमलातः 20-23

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औि धरम ही रनषय को इस बात स अवगत किाता ह कक वह जीवन औि रिण क पशचात कहाा जाएगा? धरम ही उस यह जानकािी िता ह कक रौत कवल ववनाश औि अनधसतमव नही ह, बधलक वह एक पडाव स िसि पडाव की ओि...... बजमखी जीवन की ओि सरानातरित होना ह। उसक पशचात िसिा जीवन ह, धजसर हि पराणी को उसक करो का पिा-पिा बिला हिया जायगा औि जो कछ उसन करम ककया ह, उसर वह सिव िहगा। सो वहाा ककसी नकी किन वाल की नकी, चाह वह परष हो या सतरी, नषट नही होगा। ईशवि (अललाह) क नयाय स कोई अमयाचािी, करि, अहकािी औि अलभरानी जान नही छडा सकता ह।

धरम ही रनषय को यह जञान परिान किता ह कक वह ककस उददशय क ललए पिा ककया गया ह? उस आिि एव समरान औि पररतषठा एव समकाि कयो परिान ककया गया ह? उस उसकी धजनिगी क रकसि तरा उसक िारयमव औि कतमवय स परिधचत किाता ह कक उस रनिरमक औि बकाि नही पिा ककया गया ह औि न ही उस वयरम छोड

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हिया गया ह। उसकी उमपधमत इसललए हई ह, ताकक वह धिती पि अललाह तआला का पररतरनधध औि उमतिाधधकािी बन जाय, उस अललाह क आिश क अनसाि आबाि कि, उस अललाह तआला की परसननता परापत किन क ललए कार र लाय, उसक भीति पायी जान वाली चीजो की खोज औि आववषकाि कि औि बबना िसिो क अधधकाि पि अमयाचाि ककय औि अपन िब (पालनहाि) क अधधकाि को भल, उसकी पववतर चीजो को खाय-वपय। उसक ऊपि उसक िब (पालनहाि) का सवमपररर अधधकाि यह ह कक वह अकल उसी की इबाित (उपासना) कि, उसक सार ककसी को साझी न ठहिाए औि यह कक उसकी इबाित उसी परकाि कि, जस अललाह तआला न अपन उन सिशवाहको (िसलो) क दवािा लसखाया ह, धजनह उसन रागमिशमक औि लशिक, शभसचक औि डिान वाला बनाकि भजा ह। ककनत वतमरान सरय र अधनतर नबी (ईशित) रहमरि सललललाह अलहह व सललर का अनसिण कि, जब वह इस पिीिाओ औि धालरमक

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कतमवयो (बनधनो) स रघि हए ससाि र अपन िारयमव का रनवमहण कि लगा, तो उसका पररतफल औि बिला पिलोक र पायगा। अललाह तआला का करन हः

ضر ا﴾2 ا عملت من خي م ﴿يوم تد ك نفس م

“(उस ददन को याद करो) जजस ददन हर पराणी, जो कछ उसन सतकरम ककया ह, उस अपन सरि उपजसरत पायगा।”

इसस रनषय को अपन वजि का बोध हो जाता ह औि जीवन र अपन िारयमवो औि कतमवयो का सपषट रप स पता चलता ह, धजस उसक ललए सधषट क िचरयता, जीवन िाता औि रनषय क सषटा न सपषट कि हिया ह।

जो वयधकत बबना धरम –अललाह औि पिलोक क हिन पि ववशवास िख- जीवन यापन किता ह, वह वासतव र अभागा औि वधचत वयधकत ह। वह सवय अपनी रनगाह र एक पाशव (जानवि जसा) परणी

2 सरह आल-इमरानः 30

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ह औि वह ककसी भी परकाि स उन बड-बड जानविो स लभनन नही ह, जो उसकी चािो ओि धिती पि चलत-कफित ह....... जो खात-पीत एव (सासारिक) लाभ उठात ह औि कफि रि जात ह। उनह न अपन ककसी उददशय का पता होता ह औि न वह अपन जीवन का कोई िहसय जानत ह। रनःसिह वह एक छोटा औि साधािण सधषट ह, धजसका कोई भाि औि रलय नही ह। वह पिा तो हो गया, ककनत उस यह पता नही ह कक वह कस पिा हआ ह औि उस ककसन पिा ककया ह। वह जीवन-यापन कि िहा ह, ककनत उस यह जञान नही ह कक वह कयो जी िहा ह? वह रिता ह, ककनत उस यह पता नही ह कक वह कयो रिता ह? औि रिन क पशचात कया होगा? वह अपनी तरार चीजो, रिन औि जीन, परािमभ औि अनत क ववषय र सिह बधलक अधपन का लशकाि ह।

उस रनषय का जीवन ककतना ियनीय ह, जो सवमववशष औि पररख चीज अरामत अपन नफस की वासतववकता, अपन अधसतमव क िहसय औि अपन जीवन क उददशय क समबनध र सिह औि

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ववसरय क जहननर या अनधपन औि रखमता क घटाटोप अनधिो र जी िहा हो। वसततः वह अभागा औि िखी रनषय ह, यदयवप वह सोन औि िशर र डबा हआ औि आननि औि सख क उपकिणो स रघिा हआ हो, सवोचच उपाधधपतर िखता हो औि ऊा ची-ऊा ची डडधगरयाा (उपाधधयाा) परापत ककया हआ हो!

रानव-परकतत को धरम की आवशयकताः इसी परकाि भावना औि चतना को भी धरम की आवशयकता होती ह। कयोकक रनषय इलकरॉरनक रधसतषक क सरान कवल बधदि का नार नही ह। बधलक वह बधदि, भावना व चतना औि आमरा का नार ह। इसी परकाि उसकी परकरत की िचना हई ह औि यही उसक परकरत की आवाज ह। रनषय की यह परकरत ह कक कोई जञान औि सभयता उस सनतषट नही कि सकती, कोई कला औि साहहमय उसकी आकािाओ की परतम नही कि सकता, औि न कोई शरगाि औि धन-पजी उसक शनय-हिय की परतम कि सकती ह। बधलक उसका

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हिल बचन, उसकी आमरा भखी औि उसकी परकती पयासी िहती ह औि उस रिकतता औि अभाव का गमभीि अहसास िहता ह। यहाा तक कक जब वह अललाह पि आसरा औि ववशवास की िौलत परापत कि लता ह, तो वयाकलता क बाि शाधनत लरलती ह, भय क बाि सििा का अनभव होता ह औि उसक अनिि यह अहसास जनर लता ह कक उसन अपन आपको पा ललया ह।

हराि पगमबि रहमरि सललललाह अलहह व सललर फिरात हः

بواه يهودانه، و ))ما من مولود إلا و يودل لع الفطرة، فأ

انه، أ و ينص

أ

سانه(( يمج

“हर (पदा होन वाला) सशश कितरत (इसलार की दशा) पर जनर लता ह। कफर उसक राता-वपता उस यहदी िना दत ह, ईसाई िना दत ह या रजसी िना दत ह।”

इस हिीस क अनिि इस बात पि अधधक बल हिया गया ह कक रनषय की रल परकरत यह होती ह वह अपन िब (पालनकताम) क सरि सरवपमत

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औि सचच धरम को सवीकाि किन क ललए तयाि होता ह औि इस कफतित स ववरख होकि बारतल (लरथया, असमय) धरो की ओि अपन आस-पास की परिधसररतयो क कािण ही रख किता ह। चाह इसका कािण राता-वपता हो, लशिक हो, परिवश हो या इनक अरतरिकत अनय कोई चीज।

कफलासफि (िाशमरनक) “अगोसत ससयाततयह” अपनी पसतक “धरम-शासतर” र ललखता हः

“र धरम रनषठ कयो हा? र इस परशन क सार अपन ओठ को एक बाि भी हहलाता हा, तो अपन आपको इस परशन का यह उमति िन पि वववश पाता हा कक र धरम रनषठ हा, इसललए कक र इसक ववरदि की शधकत नही िखता, इसललए कक धरम रनषठ होना रि अधसतमव की आवशयकताओ र स एक आदयाधमरक आवशयकता ह। लोग रझस कहत ह कक यह पशतनी गणो, परलशिण, अरवा सवभाव का परभाव ह। र उनस कहता हा: रन बहधा ठीक इनही आपधमतयो क दवािा अपन नफस पि आपधमत वयकत की ह। ककनत रन पाया ह कक यह सरसया

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को िबा िता ह औि उसकी कोई वयाखया नही कि पाता।”

इसर कोई आशचयम की बात नही ह कक हर यह आसरा औि धािणा हि जारतयो र; चाह वह पराचीन असभय जारतयाा हो या सभय, हि रहादवीप र; चाह वह पवी रहादवीप हो या पधशचरी औि हि यग र; चाह वह पराचीन यग हो या वतमरान यग, हिखाई िता ह। यह औि बात ह कक अधधकाश लोग सीध रागम स भटक गय।

यनानी इरतहासकाि “बलताकम ” (BLUTARCH) का कहना हः

रन इरतहास र बबना ककलो क नगिो को, बबना रहलो क नगिो को, बबना पाठशालाओ क नगिो को तो पाया ह, ककनत बबना पजासरलो औि इबाितगाहो क नगि कभी नही पाय गए।

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रनषय क रानससक सवसर और आजतरक

शजकत को धरम की आवशयकताः धरम की एक अनय आवशयकता भी ह। एक ऐसी आवशयकता, धजसका तकाजा रनषय का जीवन औि उसक अनिि उसकी आकािाए तरा आशाए औि उसकी पीडाए औि यातनाए किती ह..... रनषय की एक ऐस शधकतरान सतमभ की आवशयकता, धजसकी ओि वह शिण ल सक, एक सशकत आधाि औि सहाि की आवशयकता, धजसपि वह भिोसा कि सक। धजस सरय वह कहठनाइयो स गरसत हो, जब उसक यहाा िघमटनाए घट, जब वह अपनी वपरय चीज स हार धो बठ, अवपरय चीज का सारना कि या उसपि ऐसी चीज टट पड, धजसका उस भय या डि हो, ऐसी परिधसररत र धालरमक आसरा अपना ककिामि रनभाती ह। चनाच यह उस करजोिी क सरय शधकत, रनिाशा की घडडयो र आशा, भय क छणो र उमरीि औि कहठनाईयो, कषटो तरा सकट क सरय धयम परिान किती ह।

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अललाह तआला, उसक नयाय औि कपा र आसरा तरा कयारत क हिन उसक सरि परसतत ककय जान औि उसक सिव बाकी िहन वाल घि, जननत की पराधपत पि ववशवास, रनषय को रानलसक सवसर औि अदयाधमरक शधकत परिान किता ह। कफि तो उसक अधसतमव स हषम एव आननि की ककिण फट पडती ह, उसकी आमरा आशा स परिपणम हो जाती ह, उसकी आाखो र ससाि का ितर ववसतत हो जाता ह, वह जीवन को उजजवल दधषट स िखन लगता ह औि अपन सकषिपत असरायी जीवन र, जो कषट सहता औि धजन चीजो का सारना किता ह, वह सब उसपि सिल हो जाता ह। उस ऐस ढािस, आशा औि शाधनत का अनभव होता ह, धजसका सरान न कोई जञान औि िशमन गरहण कि सकता ह, न कोई धन-पजी औि न सनतान तरा पिब औि पधशचर का शासन।

ककनत, वह वयधकत, जो अपन ससाि र बबना ककसी ऐस धरम औि ववशवास क जीता ह, धजसस वह अपनी तरार सरसयाओ र रनिश परापत कि सक; उसस ककसी चीज क बाि र धालरमक आिश जञात

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कि, तो वह उसका आिश बतलाए, उसस परशन कि तो उसका उमति ि औि उसस सहायता राग तो उसकी सहायता कि। उस ऐसी सहायता औि सहयोग परिान कि जो पिासत न हो औि रनिनति िह। जो वयधकत, इस ववशवास औि आसरा स पि जीवन वयतीत किता ह, वह इस अवसरा र जीता ह कक उसका हिय बचन होता ह, उसकी सोच भरलरत होती ह, उसकी अलभरधच पिागनिा होती ह औि उसका अधसतमव भग औि टकड-टकड होता ह। कछ नीरत शासतरो न ऐस वयधकत को उस अभागा क सरान ठहिाया ह, धजसक बाि र बयान ककया जाता ह कक उसन बािशाह की हमया कि िी औि उसका िणड यह रनधामरित ककया गया कक उसक िोनो हारो औि िोनो पावो को चाि घोडो र बाध हिया जाय। कफि उनर स परमयक की पीठ पि लाहठयाा बिसायी गयी, ताकक उनर स हि एक चािो हिशाओ र स अलग-अलग हिशाओ र तजी स भाग। यहा तक कक उसक शिीि क टकड-टकड हो गय!

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यह घणणत शािीरिक तौि पि टकड-टकड होना, उस रानलसक रप स भग होन क सरान ह, धजसस धरम क बबना जीन वाला वयधकत पीडडत होता ह। औि शायि होशरिो क नजिीक िसिी हालत पहली हालत स अधधक कषटिायक, ियनीय औि घातक ह। कयोकक इस भग का परभाव कछ पलो औि िणो र सरापत नही होता, बधलक यह एक यातना ह, धजसकी अवधध लमबी होती ह। यह पीडडत वयधकत का सार जीवन भि नही छोडती।

अतः हर िखत ह कक वह लोग, जो बबना सदढ ववशवास औि आसरा (अकीिा) क जीवन बबतात ह, वह िसि लोगो स अधधक रानलसक बचनी, धजसरानी तनाव, हिरागी उलझन एव वयाकलता क लशकाि होत ह। जब उनह जीवन क िभामगयो औि सकटो का सारना होता ह, तो वह अरत शीघर टट जात ह। कफि या तो जलि ही आमरहमया कि लत ह या रानलसक िोगी बनकि रतको क सरान जीवन वयतीत कित ह! जसा कक पराचीन अिबी कवव न इसको िखाककत ककया हः

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“वह वयधकत, जो रिकि ववशरार पा जाय, वह रिाम नही ह। वासतव र, रिाम वह ह, जो जीववत िहकि भी रिाम हो। रिाम तो वह वयधकत ह, जो िखी, शोक-गरसत, रत-हिय औि रनिाश होकि जीवन बबताता ह।”

इसी बात को वतमरान काल र रानसशाधसतरयो औि रानलसक िोगो की धचककमसा किन वालो न लसदि ककया ह औि इसी बात को सवमससाि र ववचािको औि सरालोचको न परराणणत ककया ह।

डॉकटर कालम पाज अपनी पसतक “वतमरान यग का रनषय अपन नफस की तलाश र ह” र कहता हः

“वपछल तीस वषो क दौरान परी दतनया क जजन रोधगयो न भी रझस परारशम सलया ह, उनसि की िीरारी का कारण, उनक ववशवास का अभाव और अकीद का अदढ एव डावा-डोल होना रा। उनह सवासर उसी सरय परापत हआ, जि उनहोन अपन ईरान को पनः सरावपत और पनजीववत कर सलया।”

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लाभ एव ससाधन शासतर ववजञानी “ववसलयर जमस” का कहना हः

“तनःसदह, धचनता और शोक का सिस रहान उपचार ईरान और ववशवास ह।”

डॉकटि “बिररयल” का करन हः

“तनःसदह, वासतववक रप स धरमतनषठ वयजकत कभी भी रानससक िीराररयो स गरसत नही होता।”

तरा डॉकटि “डील कारनीजी” अपनी पसतक “धचनता छोडो और जीवन का आरमभ करो” र कहत ह:

“रानसशासर ववजञानी जानत ह कक दढ ववशवास और धरम तनषठता, यह दोनो; शोक, धचनता, रानससक तनाव को सरापत कर दन और इन िीराररयो स सवासर परदान करन क जासरन ह।”

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सराज र पररणोओ, आचरण क तनयरो तरा वयवहार सदहता क सलए धरम की आवशयकताः धरम की अनय आवशयकता भी ह। वह ह साराधजक आवशयकता। सराज को परिको औि रनयरो की आवशयकता ह। अरामत ऐस परिक जो सराज क हि वयधकत को भलाई का कार किन औि कतमवय का पालन किन पि उभाि, यदयवप कोई उनकी रनगिानी (रनिीिण) किन वाला या बिला िन वाला रौजि न हो......। औि ऐस जाबत औि सहहताए, जो समबनधो औि समपको को रनयबतरत कि। हि एक को इस बात पि बादय कि कक वह अपनी सीरा स आग न बढ, अपनी इचछाओ या शीघर परापत होन वाल भौरतक लाभ क कािण िसि क अधधकाि पि आकररण न कि अरवा सराज क कलयाण एव हहत र लापिवाही स कार न ल।

यह नही कहा कजा सकता कक रनयर औि ववधयक इन जाबतो औि सहहताओ औि परिको को

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पिा किन क ललए परयापत ह। कयोकक रनयर ककसी परिक औि परोमसाहन को जनर नही ि सकत। इसललए कक उनस छटकािा पाना समभव ह। उनक सार चालबाजी किना औि बहाना बनाना सिल ह। इसललए ऐस परिको, वयवहाि सहहता तरा आचिण क जाबतो का होना आवशयक ह, जो रनषय क हिय क भीति स कार कित हो। उसक बाहि स नही। इस आनतरिक परिक का होना आवशयक ह। “अनतिामरा”, “भावना” या “हिय” का होना आवशयक ह –आप उसको कछ भी नार ि ि।- यही वह शधकत ह, जो जब शदि होती ह, तो रनषय का पिा करम शदि होता ह औि जब वह िवषत हो जाती ह, तो सािा करम िवषत हो जाता ह।

लोगो का रशाहहिा, अनभव औि साहहमय क पढन स यह लसदि हो चका ह कक अनतिामरा क परलशिण, आचिण शधदि, भलाई पि उभािन वाल परिको औि बिाई स िोकन वाली सहहताओ की को वजि र लान क ललए धालरमक ववशवास स बढकि कोई वसत नही ह। यहाा तक कक बिटन क कछ

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वतमरान जज –धजनह ववजञान की उननरत, सभयता क ववसताि औि रनयरो की शदिता औि यरारमवाि क बावजि, भयानक अपिाध न भयभीत कि हिया –कह पडः

“आचरण और वयवहार क बिना कोई सववधान और कानन नही पाया जा सकता तरा ईरान और ववशवास बिना कोई आचरण परवान नही चढ सकता।”

इसर कोई आशचयम की बात नही ह कक सवय कछ नाधसतको औि अधलरमयो न यह सवीकाि ककया ह कक धरम, अललाह औि पिलोक र बिला हिय जान पि ववशवास क बबना, जीवन धसरि औि सरावपत नही िह सकता। यहाा तक कक “फोजलतयर” का करन हः

“यदद अललाह का अजसततव न होता, तो हरार ऊपर अतनवायम होता कक हर उस पदा कर।”

अरामत हर लोगो क ललए एक ʻइलाह (पजय) का आववषकाि कि, धजसकी कपा की वह आशा िख, धजसक अजाब (यातना) स डि तरा समकरम

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कित हए िषकरम स बचत हए उसकी परसननता तलाश कि।

औि एक बाि ठठोल कित हए कहता हः

“तर अललाह क अजसततव र कयो सदह परकट करत हो? यदद वह न होता, तो ररी पतनी रर सार ववशवासघात करती और ररा नौकर ररी चोरी कर लता।”

औि “बलताकम ” का करन हः

“बिना धरती क एक नगर को सरावपत करना, बिना इलाह (पजय) क एक राषर को सरावपत करन स अधधक आसान ह!!”

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इसलारी अकीदा की ववशषताए इसलारी अकीिा ऐसी ववशषताओ औि गणो का वाहक ह, जो अनय धािणाओ र नही ह। यह रनमनललणखत चीजो स परिलशमत होता हः

सपषट अकीदाः यह एक सपषट औि आसान अकीिा (धािणा) ह। इसक अनिि कोई पचीिगी औि उलझाव नही ह। इसका सािाश यह ह कक इस अनपर, ससचाललत, वयवधसरत औि सदढ ससाि क पीछ एक िब पालनहाि का हार ह, धजसन इस पिा ककया ह, वयवधसरत ककया ह औि इसर हि चीज को एक अनरान औि अिाज स पिा ककया ह। इस ʻइलाह या िब का न कोई साझी ह, न इसक सरान कोई चीज ह औि न इसक बीवी बचच ह:

نتون ﴾3 ۥ ق ل ل ك رضت وٱل مو ۥ ما ف ٱلس ﴿بل ل

3 सरह अल-िकराः 1 1 6

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“िजलक आकाश और धरती की सारी चीज उसीक अधधकार र ह और हर एक उसका आजञाकारी ह।”

यह एक सपषट औि सवीकायम अकीिा ह। कयोकक बधदि सिव लभननता (अनकता) औि अधधकता की बजाय एकता औि समबनध का तकाजा किती ह औि सािी चीजो को सिा एक ही कािण की ओि लौटाना चाहती ह।

पराकततक अकीदाः यह एक ऐसा अकीिा ह, जो कफतित स अलग औि उसक ववरदि नही ह, बधलक यह उसी परकाि कफतित क अनसाि ह, धजस परकाि कक रनधामरित कजी अपन दढ ताल क अनसाि होती ह। कआमन इसी तमव को सपषट रप स खललर-खलला बयान किता हः

ين حنيفر ﴿ ل قم وجهك ل فطرت ٱفأ ل ا ت فطر ٱنلاس عليها

ٱل للكث

ن أ م ولك ين ٱلقي ك ٱل ل ذ لق ٱلل يل ل ٱنلاس ل تبد

٠4﴾يعلمون

4 सरह अर-ररः 30

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“सो, आप एकात होकर अपना रख दीन की ओर कर ल। अललाह तआला की वह ितरत, जजसपर उसन लोगो को पदा ककया ह। अललाह तआला क िनाय हए को िदलना नही ह। यह सीधा दीन ह, ककनत अधधकाश लोग नही सरझत।”

औि इसी हकीकत को हिीस नबवी सललललाह अलहह व सललर न भी सपषट ककया हः

ى لع السالم -))ك مولود يودل لع الفطرة -أ

بواه يهودانه، ، و إناما أ

سانه(( و يمجانه، أ و ينص

أ

“हर पदा होन वाला (सशश) कितरत –अरामत इसलार- पर पदा होता ह, ककनत उसक राता-वपता उस यहदी िना दत ह, ईसाई िना दत ह या रजसी (आततश परसत) िना दत ह।”

इसस रालर हआ कक इसलार ही अललाह तआला की कफतित ह। इसललए इस राता-वपता क परभाव की आवशयकता नही ह।

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जहाा तक अनय धरो जस कक यहहियत, ईसाइयत औि रजलसयत का समबनध ह, तो यह राता-वपता क लसखाय हए धरम ह।

ठोस और सदढ अकीदाः यह एक ठोस एव सदढ औि रनयलरत एव रनधामरित अकीिा ह, धजसर ककसी करी-बशी, परिवतमन औि हि-फि की गजाइश नही ह। इसललए ककसी शासक, वजञारनक ससरा या धालरमक समरलन को यह अधधकाि नही ह कक वह इसर कोई चीज बढाय अरवा इसर कोई सशोधन औि परिवतमन कि। हि परकाि क इजाफा या सशोधन एव असवीकायम ह। नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

مرنا هذا ما ليس منه فهو ر حدث ف أ

د(())من أ

“जजसन हरार इस रारल र कोई नई चीज तनकाली, वह रदमद (असवीकायम) ह।”

अरामत उसी क ऊपि लौटा हिया जायगा।

औि कआमन इस नकाित हए कहता हः

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5﴾ ه ٱلل ذن بين ما لم يأ ن ٱل شعوا لهم م ؤا م لهم شك

﴿أ

“कया उन लोगो न (अललाह क) ऐस साझी िना रख ह, जजनहोन उनक सलए दीन क ऐस अहकार तनधामररत कर ददय ह, जो अललाह तआला क िरराय हए नही ह?”

इस आधाि पि हि परकाि की बबदअत, कहारनयाा औि खिाफात, जो रसलरानो की कछ ककताबो र सधमरललत कि िी गयी ह या उनक जन-साधािण क बीच फलायी गयी ह, बारतल, असमय औि असवीकायम ह। इसलार उनह परराणणत नही किता ह औि न ही उनह इसलार क ववरदि परराण औि तकम क रप र सवीकाि ककया जा सकता ह।

परराणणत अकीदाः यह एक परराणणत अकीिा ह, जो अपन रसायल को लसदि किन क ललए कवल पाबिी औि बादयता पि ही बस नही किता ह औि िसि

5 सरह अश-शराः 21

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अकीिो औि धािणाओ क सरान यह नही कहता ह ककः

“अनध होकर ववशवास (शरधदा) रखो।”

या यह ककः

“पहल ववशवास करो, कफर जञान परापत करो।”

या यह ककः

“अपनी दोनो आखो को रद लो, कफर ररी परवी करो।”

या यह ककः

“अजञानता (जजहालत) तकवा और परहजगारी की ितनयाद ह।”

बधलक उसकी ककताब सपषट रप स कहती हः قني ١١١﴾6 ﴿قل هاتوا برهنكم إن كنتم صد

“इनस कहो कक यदद तर सचच हो, तो कोई परराण पश करो।”

6 सरह अल-िकराः 1 1 1

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इसी परकाि, कवल हिल औि आमरा को समबोधधत किन औि अकीि क ललए बरनयाि क तौि पि उनपि भिोसा किन पि बस नही किता ह, बधलक अपन रसायल को अखणडनीय (ववशवसत, परबल) परराण, िौशन िलील औि सपषट तकम क सार पश किता ह, जो बधदियो की बाग-डोि को अपन कबज र ल लती ह औि हिलो तक अपना िासता बना लती ह। अकीि क उलरा कहत ह:

अकल (िजधद) नकल (वह िात जजनका आधआर ररवायत या ससराअ ह) की ितनयाद ह और सही नकल (रनकल वसत) सपषट अकल (वववक, िजधद) क ववरधद नही होता ह।

चनाच हर िखत ह कक कआमन उलहहयत (इबाित) क रसल र, नफस (आमरा) औि इरतहास स अललाह तआला क वजि, उसकी वहिारनयत (एकमव) औि उसक कराल (समपणमता) पि िलील पश किता ह।

औि बअस (रिन क उपिानत पनः जीववत ककए जान) की समभावना पि रनषय को पररर बाि

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पिा किन, आसरानो औि जरीन को पिा किन औि रिाम जरीन को धजनिा (हिी-भिी) किन क दवािा तकम सरावपत किता ह, औि उसकी हहकरत (िहसय) पि, भलाई किन वाल को सवाब (पररतफल) िन औि बिाई किन वाल को सजा िन र खिाई (ईशविीय) नयाय औि इनसाफ क दवािा तकम सरावपत किता हः ٱلسن ﴾7 حسنوا ب

ين أ ما عملوا ويجزي ٱل س ـ وا ب

ين أ جزي ٱل ﴿ل

“ताकक अललाह लआला िर करम करन वालो को उनक करो का िदला द, और सतकरम करन वालो को अचछा परततफल परदान कर।”

7 सरह अन-नजरः 31

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अकीद क अनदर

इसलार का सतलन

इसलारी अकीिा साि पहलओ स सतललत होन क कािण अनय धरो क अकीिो स शरठ औि लभनन ह। यह ववशषता उस आसान औि सतधषट क काबबल बना िती ह, जो सवीकािन औि पिवी क योगय ह। इस ववशषता औि अनपरता को जानन क ललए आग आन वाली पधकतयो को पढ :

1. इसलार उन खिाफारतयो, जो एरतकाि क अनिि सीरा को पाि कि जात ह, हि चीज को सचचा रान लत ह औि बबना परराण क उसपि ववशवास किन लगत ह, तरा उन भौरतकवाहियो क बीच एरतकाि क अनिि सतलन पिा किता ह, जो चतना क पि सािी चीजो को नकाित ह औि कफतित की आवाज, चतना की पकाि औि रोधजजा (चरमकाि) की चीख को सनन स भागत ह।

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चनाच इसलरार एरतकाि औि ववशवास की िावत िता ह; ककनत, कवल उसीपि, धजसपि कतई िलील औि रनधशचत परराण सरावपत हो। इसक लसवा अनय चीजो को वह नकाि िता ह औि भरर शराि किता ह। उसका सिा यह नािा हः

قني ﴾8 ﴿قل هاتوا برهنكم إن كنتم صد

“यदद तर सचच हो, तो अपन परराण लाकर पश करो।”

2. वह सतललत ह उन रलहहिो (अधलरमयो) क बीच, जो ककसी भी इलाह (पजय) को नही रानत, अपन सीनो र कफतित की आवाज को िबा ित ह औि अपन सिो र बधदि की पकाि को चौलज कित ह..... औि उन लोगो क बीच जो अनक राबिो (ईशविो) को रानत ह, यहा तक कक वह बकरियो औि गायो को भी पजन लगत ह औि ररतमयो औि पमरिो को ईशवि बना लत ह।

8 सरह अल-िकराः 1 1 1

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चनाच इसलार एक इलाह (पजय) पि ववशवास िखन की िावत िता ह, धजसका कोई साझी नही। न उसन ककसी को जना ह, न वह ककसी स जना गया ह औि न कोई उसका हरसि (सरवती) ह। उसक अरतरिकत जो लोग भी ह औि जो चीज भी ह, वह रखलक ह। वह लाभ औि हारन, रौत औि धजनिगी औि िोबािा जीववत होन का अधधकाि नही िखत ह। इसललए उनको पजय बनाना लशकम , अमयाचाि औि सपषट परभरषटता हः

ۥ إل يوم ﴿ يب ل يستج من ل من دون ٱلل ن يدعوا ضل مم

ومن أ

فلون هم غ 9﴾ٱلقيمة وهم عن دعئ

“और उस वयजकत स िढकर गरराह कौन होगा, जो अललाह क ससवा ऐसो को पकारता ह, जो कयारत तक उसकी परारमना सवीकार न कर सक , िजलक उनक पकारन स रार िखिर (तनशचत) हो!”

9 सरह अल-अहकािः 5

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3. औि वह सतललत ह, उन लोगो क बीच, जो ससाि को ही अकला समय अधसतमव सरझत ह औि इसक अरतरिकत उन सािी चीजो को, धजनह आाख स िख औि हार स छ नही सकत, असमय, खिाफात औि भिर सरझत ह,..... औि उन लोगो क बीच, जो ससाि को एक भरर सरझत ह, धजसकी कोई हकीकत नही, उस चहटयल रिान र चरकती हई ित क सरान सरझत ह, धजस पयासा वयधकत िि स पानी सरझता ह, ककनत जब उसक पास पहाचता ह, तो उस कछ भी नही पाता।

चनाच इसलार ससाि क वजि को एक वासतववकता सरझता ह, धजसर कोई सिह नही ह। ककनत वह इस हकीकत स एक िसिी हकीकत की ओि सफि किता ह, जो इसस अधधक बडी हकीकत ह। वह ह, वह हसती धजसन इस ससाि का रनरामण ककया, इस वयवधसरत ककया औि इसक सचालन

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र लगा हआ ह। वह हसती, अललाह तआला की हः

ل وٱنلهار أليت إن ف ﴿رض وٱختلف ٱل

موت وٱل خلق ٱلس

ول ل

لبب قيمر ١٩٠ٱل ين يذكرون ٱلل هم ا ا وقعودر ٱل جنوب

ولعرض ربنا ما خلقت هذا بطلر

ت وٱل مو رون ف خلق ٱلس

ويتفك 10﴾ك فقنا عذاب ٱنلار سبحن

“आसरानो और जरीन की रचना और रात ददन क हर-फर र, सच-रच िजधदरानो क सलए तनशातनया ह, जो अललाह तआला का जजकर खड और िठ और अपनी करवटो क िल लट हए करत ह और आसनानो और धरती की पदाइश र सोच-ववचार करत ह, और कहत ह: ऐ हरार परवरददगार! तन यह तनररमक नही िनाया। त पाक ह। सो, हर आग क अजाि (यातना) स िचा ल।”

4. वह सतललत ह, उन लोगो क बीच, जो रनषयो को पजय (इलाह) बनात ह, उनह रबबबयत की ववशषताओ स समरारनत

10 सरह आल-इमरानः 1 90-1 91

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कित ह औि उनही को अपना इलाह (पजय) सरझत ह कक वह जो चाहत ह कित ह औि जो चाहत ह फसला कित ह, तरा उन लोगो क बीच, धजनहोन आधरमक, साराधजक या धालरमक वयवसराओ औि काननो को बनिी बना ललया ह। सो, उसका उिाहिण हवा क झोक र पि (पख) या कठपरली क सरान ह, धजसक धागो को सराज, इधकतसाि या भागय हहला िहा ह।

चनाच इसलार की दधषट र रनषय एक धजमरिाि औि रकललफ (उमतििाता, रनयर बदि) रखलक ह। ससाि का सििाि ह। अललाह का एक बनिा ह। अपन आस-पास की चीजो को बिलन की उतनी ही शधकत िखता ह, धजतनी अपन आपको बिलन की। (अललाह तआला का फरामन हः)

هم ﴾11 نفسأ وا ما ب يغي قوم حت ما ب ل يغي ﴿إن ٱلل

11 सरह अर-रअदः 1 1

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“तनःसदह, अललाह तआला ककसी कौर की हालत नही िदलता, जितक वह सवय उस न िदल, जो उनक ददलो र ह।”

5. वह सतललत ह उन लोगो क बीच, जो नबबयो को पववतर रानत ह, यहा तक कक उनहोन उनह उलहहयत (ईशविता) या इलाह (ईशवि) क पतरमव क पि पि पहचा हिया, तरा उन लोगो क बीच, धजनहोन उनह झठलाया, उनपि आिोप लगाए औि यातनाओ क पहाड तोड।

पगमबि हराि सरान रनषय ह। खाना खात ह औि बाजािो र चलत-कफित ह। उनर स अधधकाश क पास बीवी-बचच भी ह। उनक औि उनक अरतरिकत अनय लोगो क बीच अनति रातर यह ह कक अललाह तआला न उनपि वहय (ईशवाणी) क दवािा उपकाि तरा रोधजजात (चरमकािो) क दवािा उनका सररमन औि सहयोग ककया हः

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ن ٱ﴿ ثلكم ولك ن إل بشل م قالت لهم رسلهم إن ن يمن لع لل من يشاء من بإذن ٱلل

سلطن إل تيكم بن نأ

ۦ وما كن نلا أ عباده

ٱلمؤمنون فليتوك 12﴾ولع ٱلل

“उनक पगमिरो न उनस कहा कक यह तो सच ह कक हर, तर जस ही इनसान ह, ककनत अललाह तआला अपन िनदो र स जजसपर चाहता ह, अपनी अनकमपा करता ह। अललाह क हकर (अनरतत) क बिना हरार िस की िात नही कक हर तमह कोई रोजजजा (चरतकार) ददखाय। और ईरान वालो को कवल अललाह तआला ही पर भरोसा रखना चादहए।”

6. वह सतललत ह, उन लोगो क बीच, जो ससाि की वासतववकताओ की जानकािी परापत किन क सरोत की हलसयत स कवल बधदि (अकल) पि ववशवास कित ह, औि उन लोगो क बीच, जो कवल वहय औि इलहार पि ववशवास कित ह। ककसी चीज को

12 सरह इबराहीरः 1 1

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नकािन या सवीकािन र बधदि की योगिान को नही रानत।

जबकक इसलार बधदि पि ववशवास िखता ह। सोच-ववचाि औि गौि व कफकर की िावत िता ह, उसक अनिि जरि औि अनकिण को नकािता ह, आिशो औि रनषधो स सबोधधत किता ह, औि ससाि की रहान वासतववकताओ; अललाह ताआला क वजि औि नबअत क िाव की सचचाई को लसदि किन क ललए उसपि भिोसा किता ह। वह वहय पि इस हलसयत स ववशवास िखता ह कक वह बधदि की परतम किन वाली औि उन चीजो र उसकी सहायक औि रििगाि ह, धजनर बधदियाा भटक जाती ह, रतभि का लशकाि हो जाती ह औि धजन पि शहवतो औि खवाहहशात का िबाव औि बल चढ जाता ह। उसकी उस चीज की ओि रागमिशमन औि िहनराई किन वाली ह, जो उसस समबधनधत नही ह औि जो उसक बस र नही ह। जस की गबबययात (अदशय

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चीज), सरइययात (वह बात धजनका आधाि वहय हो जस जननत, जहननर आहि) औि अललाह तआला की इबाित क तिीक। िरनया र भलाई अरवा बिाई किन पि, रिन क बाि िसिी िरनया र सवाब औि सजा क रप र नयायपणम खिाई (ईशविीय) बिला हिए जान पि ववशवास िखन र, इस कफतिी औि असली अहसास को सररमन लरलता ह कक उस बिकाि औि अमयाचाि स बिला लना अरनवायम औि आवशयक ह, धजसन सासारिक नयाय स अपना पीछा छडा ललया ह, औि उस वयधकत को सवाब आवशयक ह, धजसन भलाई औि नकी की ह औि उसका परचािक िहा ह, पिनत उस घणा औि उमपीडन क लसवा कछ न लरला हो..... तरा सिाचारियो औि ििाचारियो, नक औि बि लोगो, सधाि किन वालो औि भरषटाचारियो क बीच बिाबिी न की जायः

﴿ ي ٱلس ين ٱجتحوا ب ٱل م حسين ءامنوا أ علهم كٱل ن ن

ات أ

لحت ٱلص ياهم ومماتهم ساء ما وعملوا ٢١يكمون سواءر م

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وخلق ٱلل ٱلق رض بت وٱل مو ما كسبت ٱلس جزى ك نفس ب ول

13﴾٢٢وهم ل يظلمون

“कया उन लोगो का, जो िर कार करत ह, यह गरान ह कक हर उनह उन लोगो जसा कर दग, जो ईरान लाय और नक कार ककय कक उनका ररना जीना िरािर हो जाय, िरा ह वह िसला, जो वह कर रह ह। और आसरानो और जरीन को अललाह न िहत नयाय क सार पदा ककया ह और ताकक हर वयजकत को उसक ककय हए कार का परा िदला ददया जाय और उनपर अतयाचार न ककया जाय।”

जननत औि जहननर औि उनर जो कछ हहससी (जाहहिी) औि रानवी (बारतनी) नरत औि अजाब ह उस पि ईरान िखना, रनषय की वसतधसररत क अनसाि ह, इस हलसयत स कक वह शिीि औि आमरा स लरलकि बना ह औि उनर स हि एक की

13 सरह अल-जाससयाः 21 -22

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कछ आशाए औि आवशयकताए ह। तरा इस हलसयत स भी कक कछ लोग ऐस ह, धजनक ललए शिीि को छोडकि कवल आमरा की नरत या अजाब पयामपत नही ह। धजस परकाि कक उनर स कछ लोग ऐस ह, धजनह आमरा को छोडकि कवल शिीि की नरत या यातना सतषट नही कि सकती ह। इसीललए जननत र खाना, पानी, बडी-बडी आाखो वाली हि (सनिरियाा) औि रहानतर अललाह की परशसा ह.... औि जहननर र जनजीि, तौक, रहड, खन-पीप औि काटिाि पडो का भोजन होगा, जो न रोटा किगा औि न भख लरटाएगा, औि उनक ललए इसक उपिानत अपरान, धजललत औि रसवाई होगी, जो सबस अधधक कठोि औि कषट िायक होगी।

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जीवन क तरार िरो र इसलार का यरारमवाद

इसलार क तनयर, उसक ससधदात और उसकी सशिाए रानव जीवन क हर िर र यरारमवाद पर आधाररत ह। वह रानव जीवन की पररजसरततयो, आवशयकताओ और ववसभनन हालात पर नजर रखता ह। इस सचचाई स पदाम उठान क सलए हर इस यरारमवाद को कवल दो िरो क दवारा सवषट करगः

परररः इिादतो क अनदर इसलार का यरारमवादः इसलार कई वासतववक एव यरारामनरप इबाितो क सार आया ह। कयोकक वह इनसान क अमरा की अललाह तआला स समपकम सरावपत किन की पयास को जानता ह। इसललए उसपि ऐसी इबाित फजम किाि हिया ह, जो उसकी पयास को बझाती, उस की तज भक को लरटाती औि उसक हिय क

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खालीपन (रिकतता) की परतम किती ह। ककनत, उसन इनसान की सीलरत शधकत को दयान र िखा ह। इसीललए, उस ककसी ऐसी चीज का बादय नही ककया ह, जो उस कहठनाई औि तगी र डाल िः

ين من حرج ﴾14 ﴿وما جعل عليكم ف ٱل

“और दीन क रारल र उसन तरपर कोई तगी नही डाली ह।”

(क) उिाहिणतः इसलार न जीवन की वासतववकता औि हकीकत तरा उसक खानिानी, सराजी औि आधरमक परिधसररतयो औि िोजी की तलाश र धिती क सरतल औि आसान िासतो र भाग-िोड को दयान र िखा ह। इसललए रसलरानो स इस बात का रतालबा नही ककया ह कक वह पािरियो क सरान धगिजाघिो र इबाित क ललए सािी चीजो स कटकि एकात हो जाय। बधलक यहि वह ऐसा किना चाह, तब

14 सरह अल-हजजः 78

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भी उस इस एकात की अनररत नही िी ह। रसलरान को कछ ऐसी इबाितो का बादय ककया ह, जो उस उसक िब (पालनहाि) स जोडती तो ह, पिनत उस उसक सराज स काटती नही ह। उन (इबाितो) स वह अपनी आणखित को आबाि तो किता ह, पिनत उनक पीछ अपनी िरनया को बबामि नही किता। इसलार न उनस इस बात का रतालबा नही ककया ह कक वह जीवन भि रहारनयत की खाललस कफजा र ऊा ची उडान भडत िह, बधलक िसल सललललाह अलहह व सललर न अपन कछ साधरयो स फिरायाः “एक घटा औि एक घटा।”15

(ख) इसलार को इसान क अनिि उकताहट औि उिासीनता की कफतित का जञान ह। इसललए उसन ववलभनन परकाि की इबाितो को अरनवायम ककया ह। कछ इबाित शािीरिक ह, जस नराज औि िोजा। कछ इबाितो का समबनध राल स ह, जस

15 रजसलर

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जकात औि सिका व खिात औि तीसिी ककसर की इबाित वह ह, जो राल औि शिीि िोनो स समबधनधत ह, जस हज औि उमरा। कछ इबाितो को िरनक ककया गया ह, जस नराज। कछ इबाितो को वावषमक या रौसरी किाि हिया गया ह, जस िोजा औि जकात औि कछ को जीवन र कवल एक बाि अरनवायम ककया गया ह, जस हज। कफि जो वयधकत अधधक भलाई औि अललाह तआला की रनकटता चाहता ह, उसक ललए ऐधचछक इबाितो का दवाि खोल हिया गया ह औि नफली इबाित किना वध कि हिया गया हः

16﴾ ع خير ا فهو خيل ل ﴿فمن تطو

“जो वयजकत अपनी इचछा स नकी और भलाई करना चाह, तो वह उसक सलए शरषठ ह।”

16 सरह अल-िकराः 1 84

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(ग) इसलार न रनषय क आपातकालीन परिधसररतयो, जस यातरा औि बीरािी आहि को दयान र िखा ह। इसी ललए रखसतो औि आसारनयो को वध ककया ह, जो अललाह तआला को पसनि ह। उिाहिण सवरप, बीराि का अपनी शधकत अनसाि बठकि या पहल क बल नराज पढना, जखरी आिरी का यहि सनान औि वज क ललए पानी परयोग किना हारनकािक हो तो तयमरर किना, बीराि का िरजान र िोजा न िखना औि बाि र अरनवायम रप स कजा किना, गभमवरत औि िध वपलान वाली रहहलाओ का यहि उनह अपनी या अपन बचचो की जान का भय हो तो िोजा न िखना तरा अधधक आय वाल बढ वयधकत औि बढी सतरी का िोजा न िखना औि हि हिन क बिल कफदया क रप र एक लरसकीन (रनधमन) को खाना णखलाना।

इसी परकाि यातरी क ललए चाि िकअत वाली नराजो को कसर (कर) किना औि जहर

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तरा असर एव रधिब तरा इशा की नराजो को जरा किक एक सार पढना, चाह िोनो नराजो को पहली नराज क सरय पढी जाय अरवा िोनो को िसिी नराज क सरय.....। यह सािी रखसत लोगो की वासतववक धसररत का ललहाज कित हए औि उनकी रनत-नयी औि परिवतमनशील परिधसररतयो को दयान र िखत हए परिान की गयी ह। जस कक िोज की आयत र अललाह तआला का फरामन हः

كم ٱلعس 17 كم ٱليس ول يريد ب ب يريد ٱلل“अललाह तआला का इरादा तमहार सार आसानी का ह, सखती का नही।”

दववतीयः वयवहार क अनदर इसलार का वासतववकतावाद: इसलार न ऐस वासतववक अखलाक व वयवहाि को पश ककया ह, धजसन जन-साधािण की साधािण शधकत (िरता) को दयान र िखत हए इनसानी

17 सरह अल-िकराः 1 85

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करजोिी, इनसानी जजबात औि भौरतक तरा रानलसक आवशयकताओ को सवीकाि ककया ह।

(क) उिाहिण क तौि पि इसलार न इसलार र परवश किन वाल पि यह अरनवायम नही ककया ह कक वह अपनी धन-समपधमत औि िहन-सहन की चीजो का परिमयाग कि ि, जसा कक इनजील रसीह क बाि र उललख किता ह कक उनहोन अपनी पिवी किन क इचछक लोगो स कहाः “अपन राल-धन को िच दो, कफर रर पीछ चलो।”

औि न ही कआमन न उस परकाि की कोई बात कही ह, धजस परकाि इनजील का कहना हः “धनी वयजकत आसरानो की िादशाहत र उस सरय तक परवश नही पा सकता, जि तक कक ऊट सई क नाक र परवश न कर ल।”

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बधलक इसलार न वयधकत औि सराज की धन औि राल की जरित को दयान र िखा ह। चनाच उस जीवन का सरावपतकताम सरझा ह। उस बढान, ववधकसत किन औि उसकी सििा किन का आिश हिया ह। अललाह तआला न कआमन क अनिि कई सरानो र रालिािी औि धन की नरत क दवािा इनसान पि उपकाि का उललख ककया ह। अललाह तआला न अपन िसल सललललाह अलहह व सललर स फिरायाः

غن ﴾18لر فأ ﴿ ووجدك عئ

“और तझ तनधमन पाकर धनी नही िनाया?”

औि िसलललाह सललललाह अलहह व सललर न फिरायाः

ب بكر((19حد كمال أ

))ما نفعن مال أ

18 सरह अज-जहाः 8

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“अि िकर क धन की तरह ककसी और धन न रझ लाभ नही पहचाया।”

औि अमर बबन आस िधजयललाह अनहरा न फिरायाः

الح((20 ))نعم المال الصالح للراجل الصا

“नक आदरी क सलए पाक और शधद राला कया ही िहतरीन पजी ह!”

(ख) कआमन औि सननत र इस परकाि की कोई बात नही आई ह, धजस परकाि इनजील र रसीह क करन आए ह: “अपन दशरनो स परर करो.... अपन को िरा-भला कहन वालो क सलए िरकत की दआ करो..... जो तमहार दादहन गाल पर

19 इस हदीस को इरार अहरद न अि हररा रजजयललाह अनह स ररवायत ककया ह और इसकी सनद सहीह ह जसा कक रनावी की ककताि अल-यसीर र ह। 20 इस हदीस को इरार अहरद न अपनी रसनद र और तिरानी न रोजरल-किीर र सहीह सनद क सार ररवायत ककया ह।

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रार, उस िाया गाल भी पश कर दो.....और जो तमहारी करीस चरा ल, उस अपना तहिनद भी द दो।”

यह चीज सीलरत अवसरा र औि ककसी ववशष धसररत क उपचाि क ललए वध हो सकती ह, ककनत परमयक धसररत र, हि वाताविण र, हि जरान र औि साि लोगो क ललए सारानय रनिश औि सझाव क रप र उधचत नही ह। कयोकक साधािण इनसान स अपन िशरन स रहबबत किन औि उस बिा-भला कहन वाल को आशीवामि िन का रतालबा किना, उसक सहन औि बिामशत स अधधक बोझ डालन क रायन र ह। इसी ललए इसलार न रनषय स अपन िशरन क सार नयाय स कार लन का रतालबा किन पि ही बस ककया हः

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قرب ول يرمنكم شن ﴿ هو أ لوا ٱعد لوا ل تعد

أ ان قوم لع

لتقوى 21﴾ل

“ककसी कौर की दशरनी तमह अनयाय करन पर न उभार, नयाय ककया करो, जो तकवा क अधधक तनकट ह।”

इसी परकाि िाहहन गाल पि रािन वाल क ललए बायाा गाल भी पश कि िना, ऐसा कार ह, जो लोगो क हिलो पि बहत भािी गजिता ह, बधलक बहत स लोगो क ललए ऐसा किना िशवाि औि कहठन ह। यह भी हो सकता ह कक यह कार ििाचािी औि बि लोगो को नक औि सिाचािी लोगो पि रनडि औि साहसी बना ि। कभी–कभाि -कछ हालतो र औि कछ लोगो क सार- अरनवायम हो जाता ह कक बि औि बिराश लोगो को िरा किन की बजाय वसा ही िणड हिया जाय, जसा अमयाचाि उनहोन कया

21 सरह अल-राइदाः 8

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रा, ताकक ऐसा न हो कक वह परसननता का अनभव कि औि अधधक जयािती औि अमयाचाि किन लग।

(ग) इसलारी अखलाक वासतववकता र यह भी ह कक उसन लोगो क बीच सवभाववक औि अरली अनति तरा फकम को सवीकाि ककया ह। कयोकक साि लोग ईरान की शधकत, अललाह क आिशो का पालन किन, उसकी रनषध की हई बातो स बचन औि ऊा च आिशो को अपनान र एक ही शरणी औि एक ही िज क नही होत ह।

चनाच एक शरणी इसलार की ह, िसिी शरणी ईरान की ह औि तीसिी शरणी एहसान की ह, जो कक सवोचच शरणी ह। जसा कक हिीस धजिील र इसकी ओि सकत ह। परमयक शरणी क कछ लोग ह।

इसी परकाि कछ लोग गनाहो क दवािा अपन ऊपि अमयाचाि किन वाल ह, कछ लोग रदय शरणी क ह औि कछ

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लोग नककयो औि भलाइयो र जलिी किन वाल ह। जसा कक अललाह तआला न कआमन किीर र बयान ककया ह।

1. इस अरम की परतम इसस भी होती ह कक इसलारी अखलाक न रमतककयो क बाि र यह अरनवायम नही ककया ह कक वह हि बिाई स पववतर औि हि गनाह स पाक हो। रानो कक वह पिो वाल फरिशत ह। बधलक उसन इस बात को दयान र िखा ह कक रनषय लरटटी औि आमरा स लरलकि बना ह। यहि आमरा उस कभी ऊा चा उठाती ह, तो लरटटी उस कभी नीच धगिा िती ह। जबकक रमतककयो की ववशषता यह ह कक वह िरा याचना किन वाल औि अललाह की ओि लौटन वाल होत ह। जसा कक अललाह तआला न अपन इस फरामन र उनकी ववशषता का उललख ककया ह:

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﴿ فٱستغفروا ٱلل نفسهم ذكروا أ و ظلموا

شة أ فح ين إذا فعلوا وٱل

وهم ما فعلوا لع وا ولم يص نوب إل ٱلل هم ومن يغفر ٱل نوب ل 22﴾١٣٥يعلمون

“जि उनस कोई िहदा (अशलील) कार हो जाय या कोई गनाह कर िठ , तो तरनत अललाह का जजकर और अपन गनाहो क सलए िरा रागत ह, वासतव र अललाह क अततररकत कौन गनाहो को िरा कर सकता ह? और वह जञान क होत हए ककसी िर कार पर हठ नही करत ह।”

22 सरह आल-इमरानः 1 35

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इसलार र कानन साजी क सरोत

जब रनषय क पास कानन साजी औि आिश व रनषध का सरोत, रनषय दवािा रनलरमत कवानीन औि सववधान की बजाय, उसका पालनहाि औि जनरिाता होता ह, तो उसकी अनक रहमवपणम फायि परापत होत ह। इसका कािण सपषट ह औि वह ह, इस सववधान क बनान वाल अरामत अललाह तआला का कराल औि समपणमता। जबकक अनय कवानीन औि सववधानो क सार रनषय की करजोिी औि कोताही लगी िहती ह।

इसलारी कवानीन क फायिो को रनमन परकाि स उललणखत ककया जा सकता हः

पारसपररक टकराव और रतभद स सरिाः शिीअत का सरोत रनषय क पालनहाि औि सषटा क होन का सवमपररर परभाव यह ह कक वह उस

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पािसपरिक टकिाव औि रतभि स सिकषित ह, धजसस इनसानी कवानीन व सववधान औि परिवरतमत धरम पीडडत ह।

रनषय की यह परकरत ह कक एक यग क लोग िसि यग क लोगो स रतभि िखत ह। बधलक एक ही यग र एक सरय क लोग िसि सरय क लोगो स, एक िश क लोग िसि िश क लोगो स, बधलक एक ही िश र एक परिश क लोग िसि परिश क लोगो स औि एक ही परिश र एक परिवश क लोग िसि वपिवश क लोगो क रतभि िखत ह।

हर परायः िखत ह कक जवानी की अवसरा र एक वयधकत क ववचाि, अधडपन या बढाप की अवसरा क ववचाि क ववरदि होत ह औि परायः हर िखत ह कक कहठनाई औि रनधमनता की घडी र आिरी क ववचाि, खशहाली औि रालिािी की अवसरा क ववचाि स लभनन होत ह।

जब रनषय की बधदि की यह परकरत ह औि आवशयक रप स वह सरय, सरान, परिधसररतयो

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औि िशाओ स परभाववत होता ह, तो कफि उसक दवािा बनाय गय कवानीन क पािसपरिक टकिाव औि रतभि स सिकषित होन की कलपना कस की जा सकती ह? चाह वह कवानीन कलपना औि ववशवास स समबधनधत हो, या वयवहाि औि अरल स,.... रनःसिह पािसपरिक टकिाव औि अनति उसका एक आवशयक अग ह।

इस पािसपरिक टकिाव की झधलकयो र स एक यह ह कक परमयक खिसाखता (गढ हए) औि परिवरतमत धालरमक औि इनसानी कवानीन औि वयवसराओ र हर अरतशयोधकत िख औि अनभव कि सकत ह। जसा कक यह हकीकत आधमरक औि भौरतक, वयधकतगत औि सारहहक, वासतववकता औि आिशमता, अकल औि हिल, दढता औि परिवतमन, औि इनक अरतरिकत अनय ववपिीत चीजो क बाि र उनक दधषटकोण स सपषट ह, धजसक बाि र परमयक धरम या कानन कवल एक ही पहल पि नजि िखता ह, िसि पहल स बपिवाही बितता ह या उसपि अमयाचाि किता ह। ककनत इसलारी कानन इसक ववपिीत ह। कयोकक

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उसका सरोत रनषय का उमपधमतकताम ह। रनषय नही!

पिपात एव सवचछा स पाक होनाः इसलार की िबबारनयत (अरामत िब की ओि स होन) क फायिो र स एक यह ह कक वह रनतात नयाय पि आधारित ह औि पिपात, अमयाचाि औि खवाहहशात की पिवी स पववतर ह, धजसस रनषय सिकषित नही िह सकता, चाह वह कोई भी हो।

हा, कोई भी गि रासर वयधकत –जञान औि आमरसयर क रारल र उसका सति ककतना ही ऊा चा कयो न हो- खवाहहशात औि वयधकतगत, खानिानी, ितरीय, िलीय औि िाषरीय रझानो औि झकाव स परभाववत होए बबना नही िह सकता। अगिच वह जाहहिी तौि पि नयाय वपरय औि गिजारनबिािी का पिोकाि हिखता हो।

यहि रनषय की कोई रनधामरित इचछा या ववशष रझान हो, जो उसकी िहनराई औि उसक ववचाि को परिवरतमत किता हो औि उसक फसल को उसी

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ओि रोडन वाला हो धजसका वह इचछक औि पररी ह, तो यह गमभीि सरसया ह। इसक अनिि इनसान की जाती कोताही व अभाव क सार सार, पिवी की जान वाली खवाहहश भी एकतर हो गयी। इस परकाि सरसया औि गमभीि हो गयीः

23﴾ ن ٱلل غي هدر ى م ه ب بع هوى ن ٱت ممضل ﴿ومن أ

“उस वयजकत स िढकर पर-भरषट कौन होगा, जो अललाह तआला क रागमदशमन क बिना अपनी खवादहशात क पीछ चलन वाला हो?”

ककनत जहाा तक “अललाह तआला की वयवसरा” औि “अललाह तआला क कानन” का परशन ह, तो सपषट ह कक उस लोगो क पालनहाि न लोगो क ललए बनाया ह। उस हसती न उस बनाया ह, जो सरय औि सरान स परभाववत नही होती ह। इसललए कक वही सरय औि सरान को पिा किन वाली ह। उसपि खवाहहशात औि रझानात का बस नही चलता ह, कयोकक वह खवाहहशात व रझानात

23 सरह अल-कससः 50

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स पववतर ह। वह हसती ककसी िाषर, िग औि िल का पि नही लती ह, इसललए कक वह सबका पालनहाि ह औि सबलोग उसक गलार ह। इसललए उसक बाि र एक िल को छोडकि िसि िल का, एक नसल को छोडकि िसि नसल का औि एक िाषर को छोडकि िसि िाषर का पि लन औि जारनबिािी किन की कलपना नही की जा सकती।

समरान और परवी करन र सरलताः इसी परकाि इस शिीअत की ववशषताओ र स एक ववशषता यह भी ह कक इसकी ईशविीयता वयवसरा या कानन को पववतरता औि समरान स ससधजजत किती ह, जो रनषय क बनाय हए ककसी वयवसरा औि कानन र नही पाया जाता ह।

यह समरान औि पववतरता यहा स जनर लता ह कक रोलरन अललाह तआला क कराल (पणमता) औि उसक अपनी तखलीक (उमपधमत) औि आिश र हि परकाि की करी स पाक होन का एरतकाि िखता ह। वह इस बात पि भी यकीन िखता ह

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कक अललाह तआला न हि चीज को बहति रप र पिा ककया ह औि हि चीज को अपनी कािीगिी स सदढ ककया ह। जसा कक अललाह तआला न अपनी ककताब र फिराया हः

ء ﴾24 تقن ك شي أ ٱل ﴿صنع ٱلل

“यह अललाह तआला की कारीगरी ह, जजसन हर चीज को सदढ िनाया ह।”

इसी परकाि अललाह तआला न अपनी शिीअत औि उतािी हई ककताब को भी सदढ बनाया ह। जसा कक अललाह तआला न कआमन किीर क बाि र फिराया हः

ن حكيم خبي ١﴾25 لت من ل حكمت ءايتهۥ ثم فص

﴿كتب أ

“यह एक ऐसी ककताि ह कक उसकी आयत सदढ की गयी ह, कफर सपषट रप स उनकी वयाखया की गयी ह, एक हकीर (ततवदशी) सवमजञानी की ओर स।”

24 सरह अन-नमलः 88 25 सरह हदः 1

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सो, उसन जो कछ पिा ककया औि रकददि ककया ह, उसर हहकरत वाला ह औि जो कछ उसन आिश हिया ह औि रनाही की ह, उसर वह हहकरत वाला ह। (अललाह तआला का फिरान हः)

ا ترى ف خلق ٱلرنمح من تفوت ﴾26 ﴿م

“तमह रहरान (अललाह) की उतपजतत र कोई गडिडी नही ददखायी दगी।”

तमह िहरान की शिीअत र कोई िोष औि बजोडपन नही लरलगा। सो, पववतर ह अललाह तआला, जो सवमशरषठ पिा किन वाला औि तरार हाककरो का हाककर ह।

इस समरान औि तकिीस क अधीन यह ह कक रनषय उस वयवसरापक की लशिाओ औि उसक आिशो स परसनन हो औि खल हिल स, उनह सवीकाि कि ल। यह अललाह औि उसक िसल पि ववशवास क तकाजो र स हः

26 सरह अल-रलकः 3

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ك ل ي ﴿ موك فيما شجر بينهم ثم ل يدوا فل ورب يك ؤمنون حتهم حرجر نفس

أ موا تسليمر ف ا قضيت ويسل م 27﴾٦٥ا ا م

“सो सौगनध ह तर पालनहार की! यह रोसरन नही हो सकत, जि तक कक आपस क तरार रतभदो र आपको हाककर न रान ल। कफर जो तनणमय आप उनर कर द, उनस अपन ददल र ककसी परकार तगी और अपरसननता न अनभव कर और आजञाकाररता क सार सवीकार कर ल।”

इस समरान, तकिीस औि ससवीकायमता स यह आवशयक हो जाता ह कक उनह अरल र लान र जलिी की जाय, सख-िख र उनपि कान धिा जाय औि आजञापालन की जाय, ककसी परकाि का टाल-रटोल या काहहली न की जाय औि न ही वयवसरा क अनसाि चलन, उसकी पाबनिी किन औि आिशो तरा रनषध बातो का अनपालन किन स जान छडान क ललए बहाना बाजी की जाय।

27 सरह अन-तनसाः 65

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हर यहाा कवल िो उिाहिणो का उललख किन पि बस कित ह, जो नबी सललललाह अलहह व सललर क सरयकाल र अललाह तआला की शिीअत औि उसक आिश तरा रनषध क पररत दधषटकोण औि िवय को सपषट कित ह:

पररर उदाहरणः शराि क हरार ककए जान

क पशचात रदीन र रोसरनो का रवया अिबो को शिाब (रहििा), उसक बतमनो औि उसकी रहकफलो स बडा लगाव रा। अललाह तआला को भली-भाारत इसका जञान रा। इसललए अललाह तआला न उस रिहलावाि हिार किन का िासता अपनाया। यहा तक कक वह रनणामयक आयत उति गयी

, धजसन उस रनधशचत रप स हिार किाि ि हिया औि यह घोषणा की ककः

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يطن ﴾28 ن عم ل ٱلش ﴿رجسل م

“यह सि अपववर, शतान क कारो र स ह।”

चनाच इस आयत क आधाि पि नबी सललललाह अलहह व सललर न उसका पीना, बचना औि उस गिरधसलरो को उपहाि िना तक हिार किाि ि हिया। कफि कया रा! रसलरानो न उनक पास जो भी शिाब क भणडाि औि उसक बतमन र, उनह लाकि रिीन की गललयो र उनडल हिया। यह इस बात की घोषणा री कक वह शिाब स पाक औि पववतर हो गय।

अललाह तआला की इस शिीअत की पिवी का एक अनठा पहल यह ह कक जब उनर स एक िल को यह आयत पहची, तो उनर एक ऐसा वयधकत भी रा, धजसक हार र शिाब का पयाला रा, धजसर स उसन कछ पी ललया रा औि कछ उसक हार र बाकी रा, तो उसन उस अपन रह स फ क हिया औि अललाह तआला क फरामन 29 نتم

فهل أ

28 सरह अल-राइदाः 90 29 सरह अल-राइदाः 91

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نتهون (?अरामतः तो कया तर िाज आन वाल हो) مका पालन कित हए- कहाः ऐ हराि पालनहाि! हर बाज आ गय।

यहि हर इसलारी परिवश र शिाब क ववरदि जग किन औि उसका कार सरापत किन र इस सपषट सफलता की तलना उस भयानक पिाजय स किग, धजसस सयकत िाजय अरिीका उस सरय िो-चाि हआ, जब उसन कानन साजी किक औि फौजी िसतो (अरामत शधकत) क दवािा शिाब क ववरदि यदि किन का इिािा ककया, तो हर जञात हो जाएगा कक रानव-जारत का सधाि कवल आसरान का कानन औि सववधान ही कि सकता ह, धजसकी ववशषता यह ह कक वह शधकत औि शासन पि भिोसा किन स पहल आमरा औि ववशवास पि भिोसा किता ह।

दसरा उदाहरणः परारलरक रसलरान रहहलाओ का वह िवया जो उनहोन अललाह तआला क उस आिश क पररत अपनाया, धजसक दवािा अललाह तआला न उनपि जाहहललयत काल (इसलार स

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पवम अिब धजस अजञानता औि परभरषटता र जी िह र, उस जाहहललयत का काल कहत ह।) क सरान बबना पि क घरना वधजमत (हिार) कि हिया औि उनपि पिाम किना औि हया क सार िहना अरनवायम कि हिया। चनाच जाहहललयत काल क सरय सतरी अपन सीन को खोलकि चलती री। उसक ऊपि कछ नही होता रा। सतरी परायः अपनी गिमन, बाल औि कानो की बाललयो को हिखाती िहती री। सो, अललाह तआला न रोलरन रहहलाओ पि पहली जाहहललयत क सरान बपिाम घरना हिार किाि ि हिया। उनह आिश ि हिया कक वह जाहहललयत की धसतरयो स लभनन िह। उनकी चाल-ढाल का वविोध कि। अपन चाल-चलन, िहन-सहन औि तरार अहवाल र पि औि सभयता पि ववशष दयान ि। अपनी गिमनो पि िपटट डाल ललया कि। अरामत अपन लसि क िपटट को इस तिह कसकि बााध ललया कि कक वह सीन क खल हए भाग को ढााक ल। इस परकाि सीना, गिमन औि कान छप जाएगा।

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यहाा पि उमरल रोलरनीन सरयिा आयशा िधजयललाह अनहा हर बताती ह कक ककस परकाि पररर इसलारी सराज र रहाधजिीन औि अनसाि की धसतरयो न इस इलाही (ईशविीय) कानन का सवागत ककया, जो रहहलाओ क जीवन र एक रहमवपणम परिवतमन स समबधनधत रा औि वह ह चाल-ढाल (वश-भषा), बनाव-लसगाि औि वसतर।

आयशा िधजयललाह अनहा फिराती ह: पररर रहाजजरीन की रदहलाओ पर अललाह तआला रहरत िरसाय...... जि अललाह तआला न यह आयत उतारीः

﴿ هن جيوبمرهن لع 30﴾ولضبن ب

“और अपन गरीिान पर अपनी ओढतनया डाल सलया कर।”

तो उनहोन अपनी चादरो को फाडकर उनस ओढतनया िना ली।31

30 सरह अन-नरः 31 31 िखारी

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यह ह रोलरन रहहलाओ का रौककफ उस चीज क बाि र, धजसका अललाह तआला न उनह हकर हिया ह। वह धजस चीज का अललाह तआला न आिश हिया ह, उसका पालन किन औि धजस चीज स िोका ह उसस बचन र जलिी किती ह। न कोई सकोच, न परतीिा। उनहोन एक हिन, िो हिन या इसस अधधक परतीिा नही ककया, ताकक वह नय कपड खिीि या लसल सक , जो उनक लसि को ढाापन क योगय हो औि गिीबान पि डालन क ललए रनालसब हो, बधलक जो भी कपडा लरल गया औि जो भी िग रयससि हो सका, वही उनक योगय औि रनालसब रा औि यहि नही लरला, तो अपन कपडो औि चाििो को फाडकि अपन लसि पि बााध ललया। इस बात की कोई पिवाह नही कक इसक बाि वह कसी हिखगी।

रनषय को रनषय की पजा और गलारी स

आजादी ददलानाः उपिोकत सभी ववशषताओ स बढकि इस िबबारनयत क परिणारो औि फायिो र स एक यह ह कक

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रनषय, रनषय की पजा औि गलारी स आजाि हो जाता ह। इसललए कक पजा क अनक परकाि औि रप ह औि उनर स सवामधधक खतिनाक औि सबस अधधक परभावपणम यह ह कक रनषय अपन ही सरान िसि रनषय क आग आमर सरपमन कि ि। चनाच वह उसक ललए जो चाह औि जब चाह हलाल कि ि, उसपि जो चाह औि धजस तिह चाह हिार ठहिा ि, उस धजस चीज का चाह आिश ि औि वह आिश का पालन कि, औि धजस चीज स चाह रनाही कि ि औि वह उसस ििी बना ल। िसि शबिो र वह उसक ललए एक “जीवन वयवसरा” या “जीवन रागम” रनधामरित कि ि औि उसक ललए उस सवीकाि किन, उस रानन औि उसका अनसिण किन क अरतरिकत कोई चािा न हो।

सचची बात यह ह कक जो हसती इस वयवसरा या रागम को रनधामरित किन, लोगो को इसपि बादय किन औि उनह इसक अधीन किन का अधधकाि िखती ह, वह अकल अललाह की हसती ह, जो लोगो का पालनहाि, लोगो का सवारी औि लोगो

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का इलाह (उपासय) ह। इसललए कवल उसी का यह अधधकाि ह कक वह लोगो को आिश ि औि उनह रना कि, उनक ललए ककसी चीज को हलाल कि औि उनपि ककसी चीज को हिार कि। इसललए कक यह उसकी रबबबयत (खाललक, राललक औि पालनहाि होन), उनह पिा किन, औि उनह हि परकाि की नरतो स समरारनत किन का तकाजा हः

32﴾ عمة فمن ٱلل ن ن كم م ﴿وما ب

“तमहार पास जजतनी भी नरत ह, सि उसी अललाह की दी हई ह।”

यहि कछ लोग अपन ललए इस अधधकाि का िावा कि –या उनक ललए इसका िावा ककया जाय- तो यह लोग अललाह तआला स उसकी रबबबयत क अधधकाि र झगड िह ह, उसकी उलहहयत क रारल र हसतिप कि िह ह औि उनहोन अललाह क कछ बनिो को अपना बनिा औि गलार बना

32 सरह अन-नहलः 53

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ललया ह, हालााकक वह भी उनही क सरान रखलक ह, उनपि भी अललाह की सननतो र स वही चीज जािी होती ह, जो अनय लोगो पि होती ह।

इसर कोई आशचयम की बात नही ह कक कआमन किीर न यहि एव नसािा क इस वयहाि को नकािा ह कक वह अपनी उस आजािी का परिमयाग का कि बठ, धजसपि उनकी पिाइश हई री औि अपन उन ववदवानो औि ििवशो की पजा औि गलारी पि सहरत हो गय, जो उनक ललए आिश औि रनषध, हलाल औि हिार क कानन बनान क अधधकाि क राललक बन बठ औि ककसी भी वयधकत को आपधमत वयकत किन, हटधपपणी किन या पनःववचाि किन का कोई अधधकाि नही िहा। इसीललए कआमन किीर न अहल ककताब (यहि एव नसािा) पि लशकम औि गरललाह की इबाित किन का ठपपा लगा हिया ह।

इसी बाि र कआमन किीर का फरामन हः

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ربابر ﴿حبارهم ورهبنهم أ

أ ذوا ن دون ٱٱت ا م يح ٱبن مريم لل وٱلمس

عبدوا إلهر مروا إل لدر وما أ ا يشكون ا ا وح إله إل هو سبحنهۥ عم ل

﴾33

“उनहोन अललाह को छोडकर अपन ववदवानो और दरवशो को रि (उपासना पार) िना सलया और रयमर क िट रसीह को भी, हालाकक उनह कवल एक अललाह की उपासना का आदश ददया गया रा, जजसक ससवा कोई पजा पार नही, वह (अललाह) उनक साझी िनान स पाक और पववर ह।”

33 सरह अत-तौिाः 31

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इसलरार कया ह? समपणम इसलार, धजसक सार अललाह तआला न अपन सिशवाहक रहमरि सललललाह अलहह व सललर को भजा ह, वह पााच सतमभो पि आधारित ह। कोई रनषय उस सरय तक पकका-सचचा रसलरान नही हो सकता, जब तक उनपि ईरान न ल आए, उनकी अिायगी न कि औि उनपि कायमबदि न हो। यह पााच सतमभ इस परकाि ह:

1. इस बात कक गवाही िना कक अललाह क अरतरिकत कोई अनय पजय नही ह औि रहमरि सललललाह अलहह व सललर अललाह क सिशवाहक ह।

2. नराज कायर किना।

3. जकात (अरनवायम धरम-िान) िना।

4. िरजान रहीन क िोज िखना।

5. अललाह क पववतर घि काबा का हज किना, यहि वहाा तक पहाचन का सारथयम हो।

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आग इन पााच सतमभो र स परमयक सतमभ की सकषिपत वयाखया पश की जा िही हः

पररर सतमभः “ला इलाहा इललललाह” (अललाह तआला क अरतरिकत कोई सचचा पजय नही) औि “रहमरिि-िसलललाह” (रहमरि अललाह क सिशवाहक ह) की गवाहीः

यह गवाही रनषय क इसलार र परवश किन का दवाि औि कजी ह। यह ककसी अनय गवाही या कह जान वाल शबि क सरान नही ह। किावप नही। बधलक इस धरम क अनिि इसका एक रहान औि गहिा अरम ह। यही कािण ह कक जो वयधकत इस अपन रख स कह ल औि इसक अरम को भली-भाारत जान ल, उसका पररतफल यह ह कक कयारत क हिन अललाह तआला उस सवगम र िाणखल किगा। इसलार क पगमबि रहमरि सललललाह अलहह व सललर इस ववषय र फिरात ह:

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، و أن حممدا عبده و من شهد أن ل هلإ إل اهلل وحده ل رشيك هل))، ولكمته ألقاها إىل مريم و روح منه، واجلنة حق، وانلار حق، رسوهل

34أدخله اهلل اجلنة لع مااكن من العمل((

“जजसन इस िात कक गवाही दी कक अललाह क अततररकत कोई अनय पजय नही, वह अकला ह, उसका कोई साझी नही और यह गवाही दी रहमरद सललललाह अलदह व सललर अललाह क िनद और उसक सदशवाहक ह, और ईसा अलदहससलार अललाह क िनद, उसक सदशवाहक तरा उसका कसलरा ह, जजस रयमर की ओर अललाह तआला न डाल ददया रा और उसकी ओर स रह ह, और यह कक जननत सतय ह और नरक सतय ह, तो ऐस वयजकत को अललाह तआला सवगम र परवश ददलायगा, चाह उसका करम कछ भी हो।”

“ला इलाहा इललललाह” की गवाही का अरम यह ह कक आकाश औि धिती र अकल अललाह क अरतरिकत कोई अनय वासतववक पजय नही। वही सचचा पजय ह। अललाह क अरतरिकत धजसकी भी

34 िखारी एव रजसलर

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रनषय पजा किता ह, चाह उसकी गणवमता कछ भी हो, वह झठा औि असमय ह।

“रहमरिि-िसलललाह” (रहमरि सललललाह अलहह व सललर क अललाह क सिशवाहक होन) की गवाही िन का अरम यह ह कक आप यह जञान औि ववशवास िख कक रहमरि सललललाह अलहह व सललर सिशवाहक ह, धजनह अललाह तआला न सरसत रानव औि धजननात की ओि सिशवाहक बनाकि भजा ह औि यह कक वह एक उपासक ह, उपासना क पातर नही ह (अरामत उनकी उपासना नही की जाएगी।), वह एक सिशवाहक ह, उनह झठलाया नही जाएगा, बधलक उनका आजञापालन औि अनसिण ककया जाएगा। धजसन उनका आजञापालन ककया वह सवगम र परवश किगा औि धजसन उनकी अवहलना की, वह निक र जायगा। पगमबि रहमरि सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

ما من رجل يهودى أو نصاين يسمع يب، ثم ل يؤمن باذلى جئت به )) إل دخل انلار((

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“जो भी यहदी या ईसाई रर िार र सना, कफर ररी लाई हई शरीअत पर ईरान न लाय, वह नरक र परवश करगा।”

इसी परकाि आप यह जञान औि ववशवास िख कक शिीअत क कानन औि आिश तरा रनषध को, चाह उसका समबनध इबाितो स हो, शासन वयवसरा स हो, हलाल औि हिार स हो, आधरमक, साराधजक या वयवहारिक जीवन स हो या इनक अरतरिकत ककसी अनय ितर स, कवल इस िसल किीर सललललाह अलहह व सललर क रागम स ही ललया जा सकता ह। इसललए कक अललाह क िसल रहमरि सललललाह अलहह व सललर ही अपन िब की ओि स उसकी शिीअत क परसािक व परचािक ह। अतः ककसी रसलरान क ललए वध नही ह कक वह पगमबि रहमरि सललललाह अलहह व सललर क अरतरिकत ककसी अनय िासत स आय हए ककसी कानन, आिश या रनाही को सवीकाि कि।

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दववतीय सतमभः नराज

नराज को अललाह तआला न इसललए रशरअ ककया ह, ताकक यह अललाह औि बनि क बीच समबनध का रादयर बन सक, धजसर वह उसकी आिाधना कि औि उस पकाि। नराज धरम का खमबा औि उसका रल सतमभ ह, धजस परकाि कक तमब का खमबा होता ह। यहि वह धगि जाय, तो शष सतमभो का कोई रलय नही िह जाता। इसी क बाि र कयारत क हिन रनषय स सवमपररर पछ-ताछ की जायगी। यहि नराज सवीकाि कि ली गयी, तो उसक साि करम सवीकाि कि ललए जायग औि यहि इस ठकिा हिया गया, तो उसक साि करम ठकिा हिए जायग।

अललाह तआला न नराज क ललए कछ शत रनधामरित की ह तरा इसक कछ अकामन औि वाधजबात भी ह, धजनह उनक लकषित ववधध क अनसाि किना परमयक नराजी क ललए आवशयक ह, ताकक उसकी नराज अललाह क पास गरहणयोगय हो सक।

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नराज और उसकी रकअतो की सखयाः नराजो की सखया हिन औि िात र पााच ह, जो इस तिह ह: फजर की नराज िो िकअत, जहर की नराज चाि िकअत, असर की नराज चाि िकअत, रधिब की नराज तीन िकअत औि इशा की नराज चाि िकअत। इनर स परमयक नराज का एक रनधामरित सरय ह, धजसस उसको ववलमब किना जायज नही, धजस परकाि कक उस उसक सरय स पहल पढना जायज नही। यह नराज रधसजिो र पढी जायगी, जो अललाह क घि ह। इसस कवल उस वयधकत को छट ह, धजसक पास कोई शईम कािण हो, जस कक यातरा औि बीरािी आहि।

नराज क िायद और ववशषताए: इन नराजो को पाबिी क सार पढन क बहत स लौककक औि पिलौककक लाभ औि ववशषताए ह, धजनर स कछ यह ह:

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ʻ नराज रनषय क, ससाि की बिाइयो औि कहठनाइयो स सिकषित िहन का कािण ह। इसक बाि र नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

ياابن آدم ل ))من صىل الصبح ف مجاعة فهو ف ذمة اهلل، فانظر يطلبنك اهلل من ذمته بشئ((35

“जजसन सिह (िजर) की नराज जराअत क सार पढी, वह अललाह तआला की सरिा र ह। सो ऐ आदर क िट! दख, कही अललाह तआला तझस अपनी सरिा र स ककसी चीज का रतालिा न करन लग।”

ʻ नराज गनाहो की िरा का कािण ह, धजनस कोई वयधकत सिकषित नही िह पाता। इसक बाि र नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

))من تطهر ف بيته، ثم مىض إىل بيت من بيوت اهلل يلقىض فريضة من فرائض اهلل، اكنت خطواته إحداها حتط خطيئة، واألخرى ترفع

درجة((36

35 इस रजसलर न ररवायत ककया ह।

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“जो वयजकत अपन घर र वज करता ह, कफर अललाह क घरो र स ककसी घर (रजसजद) र अललाह तआला की अतनवायम की हई ककसी िजम नराज को पढन क सलए जाता ह, तो उसक एक पग पर एक गनाह झडता ह और दसर पग पर एक पद िलनद होता ह।”

ʻ नराज, नराज पढन वालो क ललए फरिशतो की िआ औि उनकी िरा याचना का कािण ह। नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

))املالئكة تصىل لع أحدكم ما دام يف مصاله اذلي صىل فيه ما لم حيدث، تقول: امهلل اغفر هل، امهلل ارمحه((37

“िररशत तमहार सलए रहरत की दआ करत रहत ह, जि तक तरर स कोई वयजकत अपन उस सरान पर होता ह, जजसर उसन नराज पढी ह, जि तक कक उसका वज टट न जाय। िररशत दआ करत ह: ऐ अललाह! उस िरा कर द! ऐ अललाह! उस िरा कर द!”

36 इस रजसलर न ररवायत ककया ह। 37 इस िखारी न ररवायत ककया ह।

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ʻ नराज शतान पि ववजय परापत किन, उस पिासत औि अपरारनत किन का साधन ह।

ʻ नराज रनषय क ललए कयारत क हिन समपणम परकाश परापत किन का कािण ह। नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

بشر المشائين في الظلم إلى المساجد، بالنور التام يوم ))

38القيامة((

“अनधरो र रजसजदो की ओर जान वालो को, कयारत क ददन समपणम परकाश (नर) की शभ सचना द दो।”

ʻ जराअत क सार नराज पढन का कई गना अजर व सवाब ह। नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

))صالة اجلماعة أفضل من صالة الفذ بسبع و عرشين درجة((39

“जराअत क सार नराज पढना अकल नराज पढन स सतताईस गना अधधक िहतर ह।”

38 इस अि दाऊद और ततसरमजी न ररवायत ककया ह। 39 िखारी एव रजसलर

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ʻ नराज क कािण उन रनाकफको क अवगणो र स एक अवगण स छटकािा लरलता ह, धजनका हठकाना जहनर का सबस रनचला भाग ह। । नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

لع املنافقني من صالة الفجر والعشاء، ولو ))ليس صالة أثقل يعلمون ما فيهما ألتوهما و لو حبوا((40

“रनाकिको पर िजर और इशा की नराज स भारी कोई नराज नही। यदद उनह पता चल जाय कक इन दोनो नराजो र कया –अजर व सवाि- ह, तो वह उसर अवशय आय, चाह घटनो क िल तघसट कर ही कयो न हो?”

ʻ यह रनषय क ललए वासतववक सौभागय, हाहिमक सनतधषट की पराधपत, रानलसक िोगो तरा जीवन की सरसयाओ स छटाकािा पान का उधचत रागम ह, धजनस आज कल अधधकाश लोग जझ िह ह। जस कक शोक, धचनता, बचनी, वयाकलता औि बहत स पारिवारिक, वयापारिक औि वजञारनक रारलो र नाकारी इमयाहि।

40 िखारी एव रजसलर

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ʻ नराज सवगम र परवश पान का कािण ह। । नबी सललललाह अलहह व सललर फिरात ह:

))من صىل الربدين دخل اجلنة((41

“जजसन दो ठडी नराज (असर और िजर की नराज) पढी, वह जननत र परवश करगा।”

يلج انلار أحد صىل قبل طلوع الشمس و قبل غروبها(( يعن ))لن الفجر والعص.42

“जजस वयजकत न सरज तनकलन और उसक डिन स पहल नराज पढी, वह जहननर र कदावप नही जाएगा।” अरामत िजर और असर की नराज।

इसक अरतरिकत इसलार क अनिि अनय नराज भी ह, जो अरनवायम नही ह, बधलक सननत (ऐधचछक) ह। जस कक ईिन (ईिल-कफतर औि ईिल अजहा) की नराज, चााि औि सिज गरहण की नराज, इधसतसका (वषाम राागन) की नराज औि इधसतखािा की नराज इमयाहि।

41 इस िखारी एव रजसलर न ररवायत ककया ह। 42 इस रजसलर न ररवायत ककया ह।

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तीसरा सतमभः जकात

जकात इसलार का तीसिा सतमभ ह। इसक रहमव क कािण अललाह तआला न कआमन किीर र बहत स सरानो पि इसका औि नराज का एक सार उललख ककया ह। यह कछ रनधामरित शतो क सार रालिािो की समपधमतयो र एक अरनवायम अधधकाि ह। इसका ववतिण कछ रनधामरित लोगो क बीच, रनधामरित सरय र ककया जाता ह।

जकात िजम करन की दहकरतः इसलार र जकात क फजम ककए जान की अनक हहकरत औि लाभ ह, धजनर स कछ य ह:

ʻ रोलरन क हिय को गनाहो औि नाफिरारनयो क परभाव तरा हिलो को उनक िषट परिणारो स पववतर किना एव उसकी आमरा को बखीली औि कजसी की बिाई औि उनक बि नतीजो स पाक औि शदि किना। अललाह तआला का फरामन हः

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ها﴾43 يهم برهم وتزك هم صدقةر تطه ل مو

﴿خذ من أ

”उनक रालो र स जकात ल लीजजए, जजसक दवारा आप उनह पाक और पववर कीजजए।”

ʻ रनधमन रसलरानो की ककफायत, उनकी आवशयकताओ की परतम, उनकी िख-िख तरा उनह अललाह क लसवा ककसी क सारन हार फलान की धजललत स बचाना।

ʻ कजमिाि रसलरानो का कजम चकाकि उनक शोक औि धचनता को हलका किना।

ʻ असत-वयसत औि णखनन हिलो को ईरान औि इसलार पि एकतर किना औि उनह दढ ववशवास न होन क कािण पाए जान वाल सिहो औि रानलसक वयाकलताओ स रनकाल कि दढ ईरान औि परिपणम ववशवास की ओि ल जाना।

ʻ रसलरान यातरी की सहायता किना। यहि वह िासत र फस जाय औि उसक पास यातरा क ललए पयामपत वयय न हो, तो उस जकात क कोष स

43 सरह अत-तौिाः 1 03

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इतना राल हिया जाएगा, धजसस उसकी आवशयकता पिी हो जाय औि वह अपना घि लौट लौट सक।

ʻ धन को पववतर किना, उसको बढाना, उसकी सििा किना तरा अललाह तआला क आजञापालन, उसक आिश क समरान औि उसकी रखलक पि उपकाि किन की बिकत स, उस िघमटनाओ स बचाना।

जजन धनो र जाकत अतनवायम हः वह चाि परकाि क ह, जो रनमनललणखत ह:

ʻ धिती स रनकलन वाल अनाज औि गलल।

ʻ कीरत (रलय) जस सोना चािी औि बक नोट (किलसयाा)।

ʻ वयवसाय क सारान। इसस अलभपराय हि वह वसत ह, धजस करान औि वयपाि किन क ललए तयाि ककया गया हो, जस ... जानवि, अनाज, गाडडयाा आहि।

ʻ चौपाय। इसस रिाि ऊा ट, बकिी औि गाय ह।

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इनसब पधजयो र जकात कछ रनधामरित शतो क पाय जान पि ही अरनवायम ह। यहि वह नही पायी गयी, तो जकात अरनवायम नही ह।

जकात क हकदार लोग

इसलार र जकात क कछ ववशष रसारिफ (उपभोकता) ह औि वह रनमनललणखत वगम क लोग ह:

ʻ गिीब औि रनधमन लोग। (धजनक पास अपनी जरितो का आधा सारान भी न हो।)

ʻ लरसकीन लोग। (धजनक पास अपनी जरितो का आधा या उसस अधधक सारान हो, ककनत पिा सारान न हो।)

ʻ जकात वसल किन पि रनयकत करमचािी।

ʻ ऐस लोग धजनक हिल की तसलली की जाय। (अरामत नौरधसलर, रसलरान किी आहि)

ʻ गलार (िास या िासी) आजाि किन क ललए।

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ʻ कजम खाय हए लोग तरा तावान उठान वाल लोग।

ʻ अललाह क रागम र अरामत धजहाि (धरम यदि) क ललए।

ʻ यातरी (अरामत वह वयधकत धजसका यातरा क िौिान राल असबाब सरापत हो जाय।

जकात क िायदः ʻ अललाह औि उसक िसल क आिश क पालन औि अललाह औि उसक िसल की रजी को अपन नफस की वपरय चीज –धन- पि परारलरकता िना।

ʻ अरल क सवाब का कई गणा बढ जाना। (अललाह तआला का फिरार हः)

نبتت سبع كمثل حبة أ لهم ف سبيل ٱلل مو

ين ينفقون أ مثل ٱل سنبلة

ل ف ك ائة حبة سناب من وٱم يضعف ل لل 44يشاء

44 सरह अल-िकराः 261

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“जो लोग अपना धन अललाह तआला क रासत र खचम करत ह, उसका उदाहरण उस दान क सरान ह, जजसस सात िासलया तनकल और हर िाली र सौ दान हो, और अललाह जजस चाह िढा-चढा कर द।”

ʻ जकात रनकालना ईरान का परराण औि उसकी रनशानी ह। जसा कक हिीस र हः

))والصدقة برهان((45

“और सदका (ईरान का) परराण ह।”

ʻ गनाहो औि िषट आचिण की गनिगी स पववतरता परापत किना। अललाह तआला का फिरान हः

ها﴾46 يهم برهم وتزك هم صدقةر تطه ل مو

﴿خذ من أ

“आप उनक धनो र स सदका ल लीजजए, जजसक दवारा आप उनको पाक-साफ कर द।”

45 इस रजसलर न ररवायत ककया ह। 46 सरह अत-तौिाः 1 03

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ʻ धन र बढोतिी, बिकत, उसकी सििा औि उसकी बिाई स बचाव। इसललए कक हिीस र हः

))ما نقص مال من صدقة((47

“सदका करन स धन र कोई करी नही होती।”

ʻ सिका किन वाला कयारत क हिन अपन सिका की छााव र होगा। जसा कक एक हिीस र ह कक अललाह तआला सात लोगो को उस हिन अपनी छाया र सरान िगा, धजस हिन उसकी छाया क अरतरिकत कोई औि छाया न होगीः

حىت ل تعلم شماهل ما تنفق ))رجل تصدق بصدقة فأخفاها 48يمينه((

“एक वह वयजकत जजसन सदका ककया, तो उस इस परकार गपत रखा कक जो कछ उसक दादहन हार न खचम ककया, उसका िाया हार उस नही जानता ह।”

47 इस रजसलर न ररवायत ककया ह। 48 िखारी तरा रजसलर

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ʻ सिका अललाह तआला की कपा औि िया का कािण हः (अललाह तआला का फरामन हः)

ء ﴿ عت ك ش كتبه ورحت وسين يتقون ويؤتون فسأ ل ا ل

ة كو 49﴾ٱلز

“ररी रहरत सारी चीजो को सजमरसलत ह, सो उस र उन लोगो क सलए अवशय सलखगा, जो डरत ह और जकात दत ह।”

चौरा सतमभः रोजा िोज का अरम ह, िोज की रनयत स, फजर रनकलन स लकि सिज डबन तक, तरार िोजा तोडन वाली चीजो, जस खान-पीन औि समभोग स रक जाना। िोजा िरजानल रबािक क पि रहीन का िखना ह, जो साल र एक बाि आता ह।

अललाह तआला का फरामन हः

ها﴿ يأ كتب ي ين ءامنوا ين ٱل يام كما كتب لع ٱل عليكم ٱلص

50﴾من قبلكم لعلكم تتقون

49 सरह अल-आरािः 1 56

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“ऐ लोगो जो ईरान लाय हो! तरपि िोज अरनवायम ककए गय ह, धजस परकाि तरस पवम क लोगो पि अरनवायम ककए गय र। ताकक तर डिन वाल (पिहजगाि) बन जाओ।”

औि िसल सललललाह अलहह व सललर न फिरायाः

))من صام رمضان إيمانا و احتسابا غفر له ما تقدم من ذنبه((51

“जजसन ईरान क सार और सवाि की तनयत रखत हए ररजन क रोज रख, उसक वपछल गनाह िरा कर ददए जायग।”

रोज क िायदः इस रहीन का िोजा िखन स रसलरान को अनक ईरानी, रानलसक औि सवासर समबनधी फायि परापत होत ह, धजनर स कछ यह ह:

ʻ िोजा पाचन ककरया औि रिा (आराशय) को सालो साल लगाताि (रनिनति) कायम किन क कषट

50 सरह अल-िकराः 1 83 51 िखारी एव रजसलर

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स आिार पहाचाता ह, अनावशयक चीजो को वपघला िता ह, शिीि को शधकत परिान किता ह तरा बहत स िोगो क ललए भी लाभिायक ह।

ʻ िोजा नफस को शाइसता (सभय, लशषट) बनाता ह औि भलाई, वयवसरा, आजञापालन, धयम औि इखलास (रनःसवारमता) का आिी बनाता ह।

ʻ िोजिाि को अपन िोजिाि भाइयो क बीच बिाबिी का अहसास होता ह। वह उनक सार िोजा िखता ह औि उनक सार ही िोजा खोलता ह। इस तिह उस सवम-इसलारी एकता का अनभव होता ह। उस भख का अहसासा होता ह, तो अपन भख भाइयो की खबिगीिी औि िख-िख किता ह।

तरा िोज क कछ आिाब ह, धजनस िोजिाि का ससधजजत होना रहमवपणम ह, ताकक उसका िोजा शदि औि पणम हो।

कछ चीज िोज को वयरम किन वाली भी ह। यहि िोजिाि उनर स ककसी एक चीज को कि ल, तो उसका िोजा वयतम हो जाता ह। इसलार न बीराि, यातरी, िध वपलान वाली रहहला औि इनक

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अरतरिकत अनय लोगो की हालत का ललहाज कित हए यह वध ककया ह कक वह इस रहीन र िोजा तोड ि औि साल क आन वाल सरय र उसकी कजा कि ल।

पाचवा सतमभः हज

यह सतमभ रसलरान सतरी तरा परष पि पि जीवन र कवल एक बाि अरनवायम ह। इसस अधधक बाि किना नफल औि सननत ह, धजस पि कयारत क हिन अललाह तआला क पास बहत बडा पणय लरलगा। हज रसलरान पि कवल उसी सरय अरनवायम ह, जब वह उसक किन की शधकत िखता हो। चाह वह आधरमक शधकत हो या शािीरिक शधकत। यहि वह इसकी शधकत न िखता हो, तो इस सतमभ को अिा किन स भाि रकत हो जाता ह।

हज क िायदः हज की अिायगी स रसलरान को कई फायि परापत होत ह, धजनर स कछ य ह:

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ʻ यह आमरा, शिीि औि धन क दवािा अललाह तआला की उपासना ह।

ʻ हज र ससाि क हि सरान स रसलरान एकतर होत ह, सबक सब एक सरान पि लरलत ह, एक ही पोशाक पहनत ह औि एक ही सरय र एक ही िब की इबाित कित ह। िाजा औि परजा, धनी औि रनधमन, काल औि गोि, अिबी औि अजरी क बीच कोई अनति नही होता। हाा, यहि होता ह तो कवल आमरसयर औि समकरम क आधाि पि। इस परकाि रसलरानो क बीच आपस र परिचय, सहयोग, परर तरा एकता का भाव उमपनन होता ह औि इस समरलन क दवािा वह उस हिन को याि कित ह, धजस हिन अललाह तआला उनसब को रिन क पशचात एक सार पनः जीववत किगा औि हहसाब क ललए एक ही सरान पि एकतर किगा। इसललए वह अललाह तआला की आजञापालन किक रिन क बाि क जीवन क ललए तयािी कित ह।

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हज क कायमकरम का कया उददशय ह?

ककनत परशन यह ह कक काबा, जो कक रसलरानो का ककबला ह, धजसकी ओि अललाह तआला न उनह, चाह वह कही भी हो, नराज क अनिि रख किन का आिश हिया ह, उसकी चािो ओि तवाफ (परिकररा) किन का उददशय कया ह? इसी परकाि रकका क अनय सरानो अिफात औि रजिललफा र उसक रनधामरित सरय र ठहिन तरा लरना र कयार किन का कया उददशय ह? तो याि िखना चाहहए कक इसका कवल एक ही उददशय ह औि वह हः उन पाक औि पववतर सरानो र उसी ककफयत औि उसी तिीक पि अललाह तआला की इबाित किना, धजस परकाि अललाह तआला न आिश हिया ह।

जहाा तक सवय काबा तरा उन सरानो औि सािी सधषट की बात ह, तो जञात होना चाहहए कक न तो उनकी पजा औि उपासना की जाएगी औि न ही व लाभ औि हारन पहाचा सकत ह। इबाित कवल अललाह की की जाएगी औि लाभ औि हारन

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पहाचान वाला भी कवल अललाह तआला ही ह। यहि अललाह न उस घि का हज किन औि उन रशायि औि सरानो र ठहिन का आिश न हिया होता, तो रसलरान क ललए जायज नही होता कक वह हज कि औि यह सािी चीज कि। इसललए की उपासना रनषय क अपन ववचाि औि इचछा क आधाि पि नही हो सकती, बधलक कआमन किीर र रौजि अललाह तआला क आिश या िसलललाह सललललाह अलहह व सललर की सननत क अनसाि ही हो सकती ह। अललाह तआला का फरामन हः

و ﴿ لع ٱنلاس حج ٱليت من ٱستطاع إله سبيلر ن كفر وم لل عن ٱلعلمني فإن ٱ غن 52﴾لل

“अललाह तआला न उन लोगो पर खाना-कािा का हज अतनवायम कर ददया ह, जो वहा तक पहचन की ताकत रखत हो। और जो वयजकत कफर कर, तो अललाह तआला (उसस िजलक) सवम ससार स ितनयाज (तनसपह) ह।”

52 सरह आल-इमरानः 97

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सिप क सार हज क कायमकरर यह ह: 1. एहिार (हजज र िाणखल होन की नीयत

किना)।

2. लरना र िात बबताना।

3. अिफात र ठहिना।

4. रजिललफा र िात बबताना।

5. ककिी रािना।

6. कबामनी का जानवि जबह किना।

7. लसि क बाल रडाना।

8. तवाफ (काबा की परिकररा किना।) 9. सइ (सफा औि रिवा क बीच िौडना) 10. लरना वापस जाना औि वहाा िात बताना।

उमरा क आराल यह ह: ʻ एहिार (उमरा र िाणखल होन की रनयत किना।)

ʻ तवाफ किना।

ʻ सइ किना।

ʻ लसि क बाल रडाना।

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ʻ एहिार स हलाल होना। (एहिार खोल िना।)

ऊपि उललख ककए गय कायमकरो र स हि एक की अनय ववसताि, वयाखया औि हटपपणी ह, धजस आप अललाह की इचछा स उस सरय जान लग जब आप शीघर ही हजज व उमरा क रनालसक को अिा किन का सकलप किग।

अनततः इस सिश क अनत र, धजसर हरन इसलार की कछ लशिाओ, लसदिानतो, उसक आचिण औि कायमकरो क बाि र सकषिपत परिचय परसतत ककया ह, हर आपका इस बात पि शककरया अिा ककए बबना नही िह सकत कक आपन हर यह अवसि परिान ककया कक हर आपक सारन ससाि क रहानतर धरम औि अधनतर आसरानी सिश क बाि र यह सकषिपत जानकािी पश कि सक । आशा ह कक यह जानकािी इस धरम को सवीकाि किन औि इसकी लशिाओ औि लसदिातो को रानन क बाि र ठड हिल स सोचन वालो क ललए शभािमभ लसदि होगी। हर आपको ऐसा रनषय

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सरझत ह, जो कवल समय का इचछक औि ऐस धरम की तलाश र ह, जो सतधषट औि अनकिण का पातर हो। इस ईरानी, आधमरक औि रानलसक यातरा क बाि हर आपक बाि र यही सोचत औि गरान कित ह कक आप हि उस ववचाि, आसरा या उपासना स खि को अलग कि लग, जो इस धरम क ववरदि हो। ताकक आप एकशविवाि, परकरत औि बधदि क धरम, साि ईशितो क धरम.... अधनतर सिशवाहक रहमरि सललललाह अलहह व सललर क सनिश की पिवी किक लोक तरा पिलोक की सफलता औि जननत स समरारनत हो सक । आप इस शदि औि सचच धरम की ओि लोगो को आरनतरण िन वाल बन जाए; ताकक उनह ससाि क निक औि उसक शोक औि धचनता स रकत किा सक । उनह एक बहत ही भयानक औि कठोि चीज, निक की आग स नजात हिला सक । यहि वह इस धरम पि ववशवास िख बबना औि इस रहान िसल सललललाह अलहह व सललर की पिवी ककए बबना रि जात ह!!

अनवािक

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(अताउिमहरान धजयाउललाह)