केन्द्रय विद्यालय संगठन · class xi hindi (core) सत...

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1 केरीय विालय संगठन KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN ऄहमदाबाद संभाग AHMEDABAD REGION ऄययन-सामी STUDY MATERIAL का:11 वहदी (क ᳰरक) CLASS XI HINDI (CORE) -2015-16 SESSION-2015-16

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    केन्द्रीय विद्यालय संगठन KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN

    ऄहमदाबाद संभाग

    AHMEDABAD REGION

    ऄध्ययन-सामग्री STUDY MATERIAL

    कक्षा:11 वहन्द्दी (कें द्ररक)

    CLASS XI HINDI (CORE)

    सत्र-2015-16

    SESSION-2015-16

  • 2

    ऄनुक्रमवणका

    क्रम संख्या विषय िस्तु पृष्ठ संख्या

    1 प्रश्न-पत्र प्रारूप 1

    2 ऄपठठत गद्यांश 5

    3 ऄपठठत पद्यांश 10

    4 रचनात्मक लेखन 16

    5 काव्ांश पर अधाठरत ऄथथ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 26

    6 काव्ांश पर अधाठरत सौंदयथबोध संबंधी प्रश्नोत्तर 34

    7 कविता की विषय-िस्तु पर अधाठरत लघुत्तरात्मक प्रश्न 36

    8 गद्यांश पर अधाठरत ऄथथ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 38

    9 गद्य पाठों की विषय-िस्तु पर अधाठरत बोधात्मक प्रश्न 42

    11 मूल्यपरक एिं विषय िस्तु पर अधाठरत वनबंधात्मक प्रश्न (वितान) 44

    12 मौवखक ऄवभव्वि 50

    13 अदशथ प्रश्न-पत्र(1) 52

    14 ईत्तर संकेत -अदशथ प्रश्न-पत्र 57

    15 अदशथ प्रश्नपत्र (2) 63

    16 ईत्तर संकेत -अदशथ प्रश्न-पत्र 69

    17 अदशथ प्रश्नपत्र (3) 75

  • 3

    वहन्द्दी-केवन्द्रक (302)- (2015-16)

    कऺा–ग्यारहव ीं

  • 4

  • 5

  • 6

  • 7

    ऄध्ययन सामग्री

    कऺा–ग्यारहव ीं (वहन्द्दी-केवन्द्रक)

    खण्ड ‘क’¼ऄपठठत गद्यांश½

    वनम्नवलवखत गद्यांशों को पढ़कर ईस पर अधाठरत प्रश्नों के ईत्तर दीवजए। (10 ऄंक)

    (1) िास्ति में मनुष्य स्ियं को दखे नहीं पाता। ईसके नेत्र दसूरों के चठरत्र को दखेते हैं , ईसका हृदय दसूरों के दोषों को ऄनुभि करता ह।ै ईसकी िाणी दसूरों के ऄिगुणों का विशे्लषण कर सकती है , द्रकन्द्तु ईसका

    ऄपना चठरत्र , ईसके ऄपने दोष एिं ईसके ऄिगुण , वमथ्यावभमान और थोथे अत्म-गौरि के काले अिरण में

    आस प्रकार प्रच्छन्न रहते हैं द्रक जीिन-पयंत ईसे दवृिगोचर ही नहीं हो पाते। आसीवलए मनुष्य स्ियं को सिथगुण-

    संपन्न दिेता समझ बैठता ह।ै क्षुर व्वि एिं मवस्तष्क ऄपनी क्षुर सीमा से परे द्रकसी भी िस्तु का सही मूल्य

    अँकने में ऄसमथथ रहते हैं। आसवलए व्वि स्ियं के द्वारा वजतना छला जाता ह,ै ईतना द्रकसी ऄन्द्य के द्वारा नहीं।

    अत्म-विशे्लषण करना कोइ सहज कायथ नहीं ह।ै आसके वलए ऄत्यंत ईदारता , सहनशीलता एिं महानता

    की अिश्यकता होती ह।ै आसका तात्पयथ यह नहीं द्रक अत्म-विशे्लषण मनुष्य कर ही नहीं सकता। ऄपने गुणों-

    ऄिगुणों की ऄनुभूवत मनुष्य को सदिै रहती ह।ै ऄपने दोषों से िह हर पल , हर क्षण ऄिगत रहता है , द्रकन्द्तु

    ऄपने दोषों को मानने के वलए तैयार न रहना ही ईसकी दबुथलता ह ैऔर यही ईसे अत्मा-विशे्लषण की क्षमता

    नहीं द ेपाती। ईसमें आतनी ईदारता और हृदय की विशालता ही नहीं होती द्रक िह ऄपने दोषों को स्ियं दखेकर

    कह सके। आसके विपरीत पर-ननदा एिं पर-दोष दशथन में ऄपना कुछ नहीं वबगडता, ईलटा मनुष्य अनंद ऄनुभि

    करता ह,ै परंतु अत्म-विशे्लषण करके ऄपने दोष दखेने से मनुष्य के ऄहकंार को चोट पहचँती ह।ै

    क) मनुष्य स्ियं को क्यों नहीं दखे पाता ?

    ख) मनुष्य स्ियं को सिथगुण संपन्न दिेता क्यों समझता ह ै?

    ग) अत्म-विशे्लषण के वलए क्या अिश्यक ह ै?

    घ) परननदा क्यों सरल ह ै?

    ङ) परननदा में मानि आतना अनंद क्यों लेता ह ै?

    (2) बाज़ार ने, विज्ञापन ने नहदी को एक क्रांवतकारी रूप द्रदया, वजसमें रिानगी ह,ै स्िाद ह,ै रोमांच ह,ै

    अज की सबसे बड़ी चाहत का ऄकूत संसार ह।ै आस तरह नहदी भविष्य की भाषा, समय का तकाजा और

    रोज़गार की ज़रूरत बनती जा रही थी।

    लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकाठरता ह।ै सचूना-क्रांवत ने विश्व को ग्राम बना द्रदया ह।ै मीवडया की

    जागरूकता ने समाज में क्रांवत ला दी ह ैऔर आस क्रांवत की भाषा नहदी ह।ै आतने सारे समाचार चैनल ह ैऔर

    सभी चैनलों पर नहदी ऄपने हर रूप में नए कलेिर, तेिर में वनखर कर, सँिरकर, लहरकर, ‘बोले तो नबदास

    बन कर छाइ रहती ह।ै’ तुलनात्मक ऄथो में अज ऄंगे्रज़ी-पत्रकाठरता का मूल्य, बाज़ार, ईत्पादन, ईपभोग और

    वितरण बहत बड़ा ह।ै

  • 8

    नप्रट वमवडया की वस्थवत ज्यादा बेहतर है, पत्र-पवत्रकाओं की लाखों प्रवतयाँ रोज़ाना वबकती हैं। चीन के

    बाद सबसे ऄवधक ऄखबार हमारे यहाँ पढ़े जाते हैं नहदी के संपे्रक्षण की यह मानिीय, रचनात्मक और

    सारगवभिॅत ईपलवधध ह।ै पत्र-पवत्रकाए ँनहदी की गुणित्ता और प्रचार–प्रसार के वलए कृतसंकल्प ह।ै यह भ्रम

    फैलाया गया था द्रक नहदी रोज़गारोन्द्मुखी नहीं ह।ै अज सरकारी गैर- सरकारी क्षेत्रों में करोड़ों नहदी पढ़े–वलखे

    लोग अजीविका कमा रह ेहैं। भविष्य में नहदी की बाज़ार– माँग और ऄवधक होगी ।

    पसीनों में, प्राथथनाओं में, वसरहानों की वससद्रकयों में और हमारे सपनों में जब तक नहदी रहगेी तब तक

    िह वबना द्रकसी पीड़ा या रोग के सप्राण, सिाक् और सस्िर रहगी।

    1. ईपयुथि ऄितरण के वलए एक ईपयुि शीषथक दीवजए । 1

    2. लोकतन्द्त्र का चौथा स्तंभ द्रकसे कहा गया ह ैऔर क्यों ? 2

    3. तुलनात्मक दवृि से नहदी और ऄंगे्रजी पत्रकाठरता में लेखक ने द्रकसे व्ापक माना ह ैऔर क्यों ? 2

    4. बाज़ार ने नहदी के स्िरूप को क्या विशेषताए ंदी वजससे िह रोजगार की जरूरत बनती जा रही ह ै? 2

    5. विश्व को ग्राम बना दनेे का अशय समझाआए । 2

    6. ‘जागरुकता’ एिं ‘संपे्रषण’ शधदों में से ईपसगथ और प्रत्यय ऄलग कीवजए। 1

    (3) हर मनुष्य की ऄपनी कुछ कल्पनाए ँहोती हैं। कल्पना करने और सपने दखेने में फकथ ह।ै कल्पना में ईत्सुकता जुड़ने के साथ यद्रद मनुष्य ऄपनी आवन्द्रयों पर संयम न रखे तो यहीं से प्रलोभन अरम्भ होता ह।ै

    जीिन में प्रलोभन अया और नैवतक दवृि से अप जऱा भी कम जोर हए तो पतन की पुरी सम्भािना बन जाती

    ह।ै दखेते ही दखेते अदमी विलासी , नशा करने िाला, अलसी, भोगी हो जाता ह।ै प्रलोभन आवन्द्रयों को खींचते

    हैं। आनका कोइ स्थायी अकार नहीं होता , न ही कोइ स्पि स्िरूप होता ह।ै आनके आशारे चलते हैं और आवन्द्रयाँ

    स्ितंत्र होकर दौड़ भाग करने लगती हैं। गुलामी आवन्द्रयों को भी पसंद नहीं। िे भी स्ितंत्र होना चाहती हैं।

    दवुनया में हरेक को स्ितंत्रता पसंद ह ैऔर ईसका ऄवधकार है , लेद्रकन वजस द्रदन आवन्द्रयों का स्ितंत्रता द्रदिस

    शुरू होता है , ईसी द्रदन से मनुष्य की गुलामी के द्रदन शुरू हो जाते हैं। आवन्द्रयाँ सद्रक्रय हइ और मनुष्य की

    नचतनशील सहप्रिृवत्तयाँ विकलांग होने लगती हैं। दखेा जाए तो बाहरी संसार की िस्तुओं में अकषथण नहीं

    होता, लेद्रकन जब हमारी कल्पना और ईत्सुकता ईस िस्तु से जुड़ती हैं , तब ईसमें अकषथण पैदा हो जाता ह।ै

    वििेक का वनयंत्रण ढीला पड़ने लगता है , आवन्द्रयों के प्रवत हमारी सतकथ ता गायब होने लगती ह ैऔर िे दौड़

    पडती हैं। आवन्द्रयों को रोकने के वलए दबाि न बनाए ँ। रुवच से ईनका सदपुयोग करें। आसमें सत्संग बहत काम

    अता ह।ै सत्संग में मनुष्य की आवन्द्रयाँ डायबटथ होनी शुरू होती हैं। ईनके अकषथण के केन्द्र बदलने लगते हैं।

    ईसमें एक ऐसी सुगंध होती ह ैद्रक आवन्द्दयाँ द्रफर ईसी के असपास मँडराने लगती हैं और यह हमारी कम जोरी

    की जगह ताकत बन जाती ह।ै

    (क) ईपयुथि गद्यांश का ईवचत शीषथक वलवखए । 2

    (ख) आवन्द्रयों के स्ितंत्र होने पर ईसका पठरणाम क्या होता ह ै? 2

    (ग) आवन्द्रयों के ईपयोग की बात द्रकस रूप में की गइ ह ै? 2

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    (घ) सहप्रिृवत्त से क्या तात्पयथ ह ै? 2

    (ड.) ‘अकषथण’ और ‘स्ितंत्र’ का विलोम शधद वलवखए। 2

    (4) द्रफजूलखची एक बुराइ है , लेद्रकन ज्यादातर मौकों पर हम आसे भोग , ऄय्याशी से जोड़ लेते हैं। द्रफजूलखची के पीछे बारीकी से नजऱ डालें तो ऄहकंार नजऱ अएगा । ऄह ंको प्रदशथन से तृवि वमलती

    ह।ै ऄह ंकी पूर्तत के वलए कइ बार बुराआयों से ठरश्ता भी जोड़ना पड़ता ह।ै ऄहकंारी लोग बाहर से भले ही

    गम्भीरता का अिरण ओढ़ लें, लेद्रकन भीतर से िे ईथलेपन और वछछोरेपन से भरे रहते हैं। जब कभी समुर तट

    पर जाने का मौका वमले , तो दवेखएगा लहरें अती हैं, जाती हैं और यद्रद चट्टानों से टकराती हैं तो पत्थर िहीं

    रहते हैं, लहरें ईन्द्हें वभगोकर लौट जाती हैं। हमारे भीतर हमारे अिेगों की लहरें हमें ऐसे ही टक्कर दतेी हैं। आन

    अिेगों, अिेशों के प्रवत ऄवडग रहने का ऄभ्यास करना होगा , क्योंद्रक ऄहकंार यद्रद लम्बे समय ठटकने की

    तैयारी में अ जाए तो िह नए-नए तरीके ढू ঁढऺेगा। स्ियं को महत्त्ि वमले ऄथिा स्िेच्छाचाठरता के प्रवत अग्रह , ये

    सब द्रफर सामान्द्य जीिनशैली बन जाती ह।ै इसा मसीह ने कहा है- मैं ईन्द्हें धन्द्य कहगँा , जो ऄंवतम हैं। अज के

    भौवतक युग में यह ठटप्पणी कौन स्िीकारेगा , जब नम्बर िन होने की होड़ लगी ह।ै इसा मसीह ने आसी में अगे

    जोड़ा ह ैद्रक इश्वर के राज्य में िही प्रथम होंगे , जो ऄंवतम हैं और जो प्रथम होने की दौड़ में रहेंगे , िे ऄभागे

    रहेंगे। यहाँ ऄंवतम होने का संबंध लक्ष्य और सफलता से नहीं ह।ै जीसस ने विनम्रता , वनरहकंाठरता को शधद

    द्रदया ह ै ‘ऄंवतम’। अपके प्रयास ि पठरणाम प्रथम हों , ऄग्रणी रहें, पर अप भीतर से ऄंवतम हों यावन विनम्र ,

    वनरहकंारी रहें। िरना ऄह ंऄकारण ही जीिन के अनंद को खा जाता ह।ै

    (क) ईपयुथि गद्यांश का ईवचत शीषथक वलवखए । 2

    (ख) ‘ऄंवतम’ शधद का ऄवभप्राय स्पि करें । 2

    (ग) द्रफजूलखची को सूक्ष्म दवृि से क्या कहा गया ह ै? 2

    (घ) ऄहकंारी व्वियों की द्रकन कवमयों की ओर संकेत द्रकया गया ह ै? 2

    (ड.) ‘वनरहकंाठरता’ शधद में ईपसगथ और प्रत्यय छा ঁठटए । 2

    (5) जब हम परेशान होते हैं या ऄपनी द्रकसी गलती के कारण द्रकसी को वजम्मेदार बनाने पर ईतारू होते हैं, तब काम, क्रोध, लोभ, मोह और ऄहकंार जैसे शधदों को कोसने लगते हैं। हमें लगता ह ैसारी

    झंझटें आन्द्हीं के कारण हैं। आन्द्हें बुरा कहा जाता ह ैऔर आनके पठरणामों पर खूब प्रिचन होते हैं, लेद्रकन अधा सच

    पूरे झूठ से भी खतरनाक ह।ै गुरुनानक दिे ने एक जगह कहा है- ऄंधा-ऄंधा ठेवलया। ऄंधे लोग ऄंधों को ही धक्का

    द ेरह ेहैं। ये हमारी मनोिृवत्तयाँ हैं और आन्द्हें ठीक से नहीं समझ पाने के कारण हम ऄंधों की तरह व्िहार करने

    लगते हैं। ऄपने काम-क्रोध को दसूरे के काम-क्रोध से जोड़ लेते हैं। यही ऄंधा-ऄंधा ठेवलया िाला व्िहार होता

    ह।ै

  • 10

    आन मनोिृवत्तयों से काम वलए वबना नज़दगी चल भी नहीं सकती। परमात्मा ने जन्द्म से हमें आन्द्हें द े

    रखा ह।ै आसका मतलब ही ह ैद्रक आनका कोइ न कोइ ईपयोग ज़रूर होगा। आसवलए द्रदमाग ठीक जगह लगाया

    जाए। क्रोध में जो ईत्तेजना होती है , यद्रद ईसे समझ वलया जाए तो ईसे ईत्साह में बदलना असान हो जाएगा।

    ईत्साह एक ताकत ह।ै यह एक तरह की सामथ्यथ ह।ै खाली क्रोध कमज़ोरी और वनयवन्द्त्रत क्रोध ताकत बन जाता

    ह।ै लोभ मनुष्य को ईन्नवत , प्रगवत और विकास की ओर ले जाता ह।ै लोभ द्रक्रयाशील भी बनाता ह।ै मोह न हो

    तो लोभ एक दसूरे के प्रवतघातक हो जाए। वन मोही भाि यद्रद ठीक से न समझा जाए तो वनमथमता में बदल

    जाता ह।ै आसवलए आन मनोिृवत्तयों को समझना बहत ज़रूरी ह।ै आनका सदपुयोग आनकी ताकत से हमें जोड़ता

    ह।ै

    (क) ईपयुथि गद्यांश का ईवचत शीषथक वलवखए । 2

    (ख) मनुष्य ऄपनी द्रकस ऄिस्था में द्रकन शधदों को कोसने लगता ह ै? 2

    (ग) मनुष्य ऄंधों की तरह व्िहार द्रकन वस्थवतयों में करता ह ै? 2

    (घ) क्रोध को सकारात्मक स्िरूप दनेे पर िह द्रकस रूप में पठरिर्ततत हो जाता ह ै? 2

    (ड.) ‘द्रक्रयाशील’ और ‘ईत्साह’ का विलोम शधद वलवखए। 2

    (6) जीिन में जब भी कोइ ईपलवधध होती ह ैतो ईसे दो दवृि से दखेें। संाासाठरक ईपलवधध में

    पठरश्रम और समपथण के साथ क्रवमक वस्थवतयाँ बनती हैं और तब एक द्रदन सफलता वमलती ह।ै ऄध्यात्म में पे्रम

    और प्राथथना के साथ वस्थवतयाँ अरम्भ होती हैं , लेद्रकन जो ईपलवधध होती है , तब ऄचानक छलांग-सी लग

    जाती ह।ै ऐसा लगता ह ैजैसे कोइ विस्फोट हो गया हो। यहाँ की सफलता एक हार्ददक दशा ह।ै संसार की

    सफलता भौवतक वस्थवत ह।ै सुंदरकाण्ड मंाे हनुमान जी माता सीता से वमलकर लंका से लौटे और वजन िानरों

    को समुर तट पर छोड़ कर गए थ,े ईनसे द्रफर वमले। यहाँ तुलसीदास जी ने वलखा-

    हरषे सब वबलोक हनुमाना। नूतन जन्द्म कवपन्द्ह तब जाना।।

    मुख प्रसन्न तन तेज वबराजा। कीन्द्हवेस रामचंर कर काजा।।

    हनुमानजी को दखेकर सब हर्तषत हो गए। और िानरों ने ऄपना नया जन्द्म समझा। हनुमान जी का मुख

    प्रसन्न ह ैऔर शरीर में तेज़ विराजमान ह।ै ये श्रीरामचन्द्र जी का कायथ कर अए हैं। वष्मले सकल ऄवत भए

    सुखारी। तलफत मीन पाि वजवम बारी।।ष् सब हनुमान जी से वमले और बहत ही सुखी हये , जैसे तड़पती हइ

    मछली को जल वमल गया हो। आस समय हनुमान जी के मुख पर प्रसन्नता और तेज़ था। हनुमान जी बताते हैं द्रक

    द्रकतना ही बडाऺ काम करके लौटें , ऄपनी प्रसन्नता को समाि न करें। हमारे साथ ईल्टा होता ह।ै हम बड़ा और

    ऄवधक काम कर लंाे तो ऄपनी थकान ि वचड़वचड़ाहट दसूरों पर ईतारने लगते हैं। आसवलए खुश रहना असान

    ह,ै लेद्रकन दसूरों को खुश रखना कठठन ह।ै हनुमान जी से सीखा जाए- खुश रहांे और खुश रखें।

    (क) ईपयुथि गद्यांश का ईवचत शीषथक वलवखए। 2

  • 11

    (ख) जीिन की ईपलवधधयों को द्रकन-द्रकन दवृियों से दखेने की ज़रूरत ह ै? 2

    (ग) अध्यावत्मक और संाासाठरक सफलताओं में क्या ऄन्द्तर ह ै? 2

    (घ) प्रस्तुत गद्यांश में वनवहत संदशे बताआए। 2

    (ड.) गद्यांश में वनवहत ईद्दशे्य और सामान्द्य मनुष्य की सोच में क्या ऄन्द्तर होता ह ै? 2

    (7) घर, घर नहीं हैं; िरन् गृवहणी ही घर कही जाती ह।ै यह बात महाभारत के शांवत पिथ में

    व्ि की गइ ह।ै अज भारत के पठरिारों में वजन-वजन बातों ने तेजी से प्रिेश द्रकया है, ईनमें से एक ऄशांवत भी

    ह।ै जो लोग चाहते हों द्रक हमारे गृहस्थ जीिन में शांवत बनी रहे , ईन्द्हें घर की वियों को समझना और सम्मान

    दनेा होगा। माता संबोधन में भारतीय घरों का ऄमृत भण्डार भरा हअ ह।ै वजस घर के केन्द्र में माँ प्रवतवष्ठत ह ै

    समझ लीवजए परमात्मा स्थावपत ह।ै दरऄसल , जब-जब नारी स्ितंत्रता की बात की गइ , हमने ईसकी बाहरी

    प्रवतष्ठा पर ही घ्यान द्रदया ह।ै वियों ने भी आसे आसी रूप में वलया और आसीवलए घर से बाहर वनकलने को ही

    नारी का विकास मान वलया गया , लेद्रकन घरों में िी के अंतठरक विकास की ज़रूरत हैं, क्योंद्रक जीिन के कुछ

    महत्त्िपूणथ सूत्र ईन्द्हीं के हाथ में हैं और ईनमें से एक ह ैसंतान को जन्द्म दनेा।

    शािों में स्पि द्रकया गया ह ैद्रक भायाथ पुरुष का अधा भाग ि ईसकी श्रेष्ठतम वमत्र ह।ै हमने वियों के

    बाहरी विकास को लेकर जागरूकता द्रदखाइ , संघषथ द्रकए , लेद्रकन िी ऄपने जीिन का महत्त्िपूणथ वहस्सा

    संिेदनाओं के साथ भीतर से जीती ह।ै जीिन वजस रस का नाम है , ईसे क्रम से प्राि करना पड़ता ह।ै पे्रमपूणथ

    जीिन नाठरयों का सहज स्िभाि हो जाता ह।ै आसको प्रेठरत करने और बचाने के वलए वियों को ध्यान योग के

    माध्यम से पहले शरीर की अिश्यकताए ँपूरी करनी चावहए, ईसके बाद मन की ओर बढें, द्रफर अत्मा तक चलें।

    चौथी ऄिस्था अती ह ैअनंद की। दखेा गया ह ैमाताएँ-बहनें ध्यान-योग से कम जुड़ती हैं , लेद्रकन ईनके

    अंतठरक विकास के वलए यही एक राजपथ ह।ै

    (क) ईपयुथि गद्यांश का ईवचत शीषथक वलवखए। 2

    (ख) गृहस्थ जीिन में शांवत का ईपाय क्या ह ै? 2

    (ग) परमात्मा की स्थापना को द्रकस रूप में दखेा गया ह ै? 2

    (घ) पे्रमपूणथ जीिन को प्राि करने के वलए नाठरयों को क्या करना चावहए। 2

    (ड.) ‘स्ितंत्रता’ और ‘जागरूकता’ में ईपसगथ-प्रत्यय ऄलग-ऄलग कीवजए। 2

    ऄपठठत पद्यांश

    वनम्नवलवखत पद्यांशों को पढ़कर ईस पर अधाठरत प्रश्नों के ईत्तर दीवजए। (05 ऄंक)

    (1) गहराइ को कौन पूछ्ता

    गहरा तो ह ैकूप भी

    पर न पहचँता िहाँ समीरन

    नहीं पहचँती धूप भी

  • 12

    जीत ईसी की जो लहरों का दतेा रहता साथ ह ै

    बादल का क्या दोष, फोड़ यद्रद सका न यह चट्टान तो

    पानी तो पानी ह,ै मतकर

    यों ऄपना ऄपमान तू

    कल्प-कल्प का धैयथ जुटे जब, बनता तभी प्रपात ह ै

    सह ले पगले, चुप हो सहल,े अया जो अघात ह ै

    1] कवि के ऄनुसार आस संसार में गहराइ को महत्त्ि क्यों नहीं द्रदया जाता ? 1

    2] गहरे कुए ँमें क्या नहीं पहचँता ? 1

    3] आस संसार में विजय द्रकसकी होती ह ै? 1

    4] कवि ने क्या करने का परामशथ द्रदया ह ै? 1

    5] काव्ांश का ईवचत शीषथक वलवखए। 1

    (2) माँ ऄनपढ़ थीं

    ईसके लेख े

    काले ऄच्छर भैंस बराबर

    थे नावगन से टेढ़े – मेढ़े

    नहीं याद था

    ईसे श्लोक स्तुवत का कोइ भी नहीं जानती थी अिाह्न

    या द्रक विसजथन दिेी माँ का

    नहीं िि था

    ठाकुरबाड़ी या वशिमंद्रदर जाने का भी

    तो भी ईसकी तुलसी माइ

    वनत्य सहजे वलया करती थीं

    वनश्छल करुण ऄशु्र-गीतों में

    वलपटे – गुँथे ददथ को माँ के ।

    ऄकस्मात बीमार हइ मा ँ

    चौका–बासन, गोबर–गोंआठा ओठरयाने में

    सुखिन ले जान,े लाने में

    भीगी थीं सारे द्रदन जम कर

    ऐसा चढ़ा बुखार

    न ईतरा ऄंवतम क्षण तक

  • 13

    दबुथल तन िृध्दािस्था का

    झेल नहीं पाया प्रकोप

    ज्िर का ऄवत भीषण,

    लकिा मारा, दहे समूची सुन्न हो गइ,

    गल्ले िाले घर की चाभी

    पहचँ गइ ‘गे्रजुएट’ भाभी के

    तार–चढ़े मखमली पसथ में ।

    (क) ‘काले ऄच्छर भैंस बराबर’ से कवि का क्या अशय ह?ै 1

    (ख) ‘माँ’ को मंद्रदर जाने का समय क्यों नहीं वमलता था? 1

    (ग) ‘माँ’ तुलसी माइ को क्या ऄर्तपत करती थी? 1

    (घ) माँ का तन बुखार के प्रकोप को क्यों नहीं झेल पाया ? 1

    (ङ) माँ की शारीठरक ऄसमथथता से भाभी को क्या फायदा हअ ? 1

    (3) ह ेग्राम-दिेता ! नमस्कार !

    सोने-चाँदी से नहीं ककत ु

    तुमने वमट्टी से द्रकया प्यार

    ह ेग्राम-दिेता ! नमस्कार !

    जन-कोलाहल से दरू

    कहीं एकाकी वसमटा-सा वनिास,

    रवि-शवश का ईतना नहीं

    द्रक वजतना प्राणों का होता प्रकाश,

    श्रम-िैभि के बल पर करते हो

    जड़ में चेतन का विकास

    दानों-दानों से फूट रह े

    सौ-सौ दानों के हरे हास

    यह ह ैन पसीनों की धारा

    यह गंगा की ह ैधिल धार

    ह ेग्राम दिेता ! नमस्कार !

    (क) कवि ने ‘ग्राम दिेता’ द्रकसे कहा ह?ै 1

    (ख) कवि ग्राम-दिेता को नमस्कार क्यों करता ह?ै 1

    (ग) जड़ में चेतन का विकास करने का क्या अशय ह?ै 1

    (घ) कवि ने द्रकसान के वनिास स्थान को कहाँ और कैसा बताया ह?ै 1

  • 14

    (ड़) द्रकसान के पसीने को ‘गंगा की धिल धार’ क्यों कहा गया ह?ै 1

    (4) थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,

    जो कोइ जो कह सके, कह,े क्यों चूके?

    छीने न मातृपद ककतु भरत का मुझस,े

    ह ेराम, दहुाइ करँू और क्या तुझस?े

    कहते अते थ,े यही सभी नरदहेी,

    माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।

    ऄब कहें सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता,

    ह ैपुत्र ! पुत्र ही, रह ेकुमाता माता।

    (क) पहली पंवि में कैकेयी ने ऐसा क्यों कहा-मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके ? 1

    (ख) कैकेयी राम से क्या प्राथथना कर रही ह ै? 1

    (ग) माता और पुत्र के संबंध में क्या ईवि चली अ रही ह ै? 1

    (घ) यह ईवि क्यों प्रवसद्ध ह ै? 1

    (ड़) कैकेयी के ऄनुसार आस लोक प्रवसद्ध ईवि में क्या पठरितथन अया ह ैतथा क्यों ? 1

    (5) वज़न्द्दगी को मुस्करा के काट दीवजए,

    कि लाख हों मगर न व्ि कीवजए।

    तनाि के क्षणों को, लगाम दीवजए

    हसँी ह ैदिा मधुर का पान कीवजए।

    हसँ-हसँ तनाि को, ईखाड़ फें द्रकए

    लाख-लाख रोगों की एक ह ैदिा

    मुस्करा के जीने का, और ह ैमज़ा

    चेहरे पर गम की न रेखा लाआए।

    मुस्करा के बढ़न,े की बात कीवजए।

    (क) द्रकसको लगाम दनेे की बात कही गइ ह?ै 1

    (ख) द्रकसको दिा कहा गया ह ैऔर ईसके पान की बात कवि ने क्यों की? 1

    (ग) चेहरे पर क्या न लाने की बात कही गइ ह?ै 1

    (घ) लाख-लाख रोगों की दिा द्रकसे कहा गया ह?ै 1

  • 15

    (ड़) ईपयुथि पद्यांश का प्रवतपाद्य वलवखए । 1

    (6) असरा मत उपर का दखे

    सहारा मत नीचे का माँग,

    यही क्या कम तुझको िरदान

    द्रक तेरे ऄन्द्तस्तल में राग;

    राग से बाँधे चल अकाश

    राग से बाँधे चल पाताल,

    धँसा चल ऄन्द्धकार को भेद

    राग से साधे ऄपनी चाल।

    (क) द्रकस िरदान की बात की गइ ह ै? 1

    (ख) राग से कवि का क्या अशय ह ै? 1

    (ग) द्रकस अश्रय पर वनभथर न रहने की बात कही गइ ह ै? 1

    (घ) द्रकससे सहारा न माँगने की बात कही गइ ह ै? 1

    (ड़) कविता का संदशे स्पि करें। 1

    (7) मैंने ऄपना दखु-ददथ, तुमसे नहीं,

    लेखनी से कहा था;

    ऄगर ईसने तुम तक नहीं पहचँाया

    तो मैं तुम्हें दोष नहीं दतेा।

    मैंने ऄपना दखु-ददथ, तुमसे नहीं,

    कागज़ से कहा था;

    ऄगर तुमने मुझे नहीं समझा

    तो मैं तुम्हें दोष नहीं दतेा।

    मैंने ऄपना दखु-ददथ, तुमसे नहीं,

    शधदों से कहा था;

    ऄगर तुमने मुझे संिेदना नहीं दी,

    तो मैं तुम्हें दोष नहीं दतेा।

    मैंने ऄपना दखु-ददथ, तुमसे नहीं,

    काली रातों से कहा था

    गँूगे वसतारों से कहा था,

  • 16

    सूने असमानों से कहा था;

    ऄगर ईनकी प्रवतध्िवन,

    तुम्हारे ऄन्द्तर से नहीं हइ,

    तो मैं तुम्हें दोष नहीं दतेा,

    राग से साधे ऄपनी चाल।

    (क) कवि ने ऄपने दखु-ददथ का िणथन द्रकन-द्रकन के समक्ष द्रकया ह ै? 1

    (ख) कवि को संिेदना द्रकसने नहीं दी ? 1

    (ग) वसतारों को गूँगा क्यों कहा गया ह ै? 1

    (घ) ‘सूने असमान’ का ऄवभप्राय स्पि करें। 1

    (ड़) ‘ईनकी प्रवतध्िवन’ के माध्यम से कवि ने क्या आंवगत द्रकया ह ै? 1

    (8) आस भू की पुत्री के कारण भस्म हइ लंका सारी,

    सुइ नोंक भर भू के पीछे, हअ महाभारत भारी।

    पानी-सा बह ईठा लह था, पानीपत के प्रांगण में,

    वबछा द्रदए पुरयण से शि में, आसी तरायण के रण में।

    शीश चढ़ाया काट गदथनें या ऄठर गरदन काटी ह,ै

    खून द्रदया ह,ै मगर नहीं दी कभी दशे की माटी ह।ै

    (क) लंका के भस्म होने का कारण क्या था ? 1

    (ख) महाभारत के पीछे का कारण स्पि करें । 1

    (ग) ‘पानी-सा बह ईठा लह था’-ऄवभप्राय स्पि करें । 1

    (घ) हमने दशे की माटी को कभी द्रकसी को क्यों नहीं द्रदया ? 1

    (ड़) पुरयण और तरायण का ऄथथ स्पि करें । 1

    नोटः- पुरयण - कमल का पत्ता प्रतीकाथथ ढेर ऄथिा समूह

    तरायण- तराआन का युद्ध

  • 17

    खण्ड-ख

    रचनात्मक लेखन (कामकाजी नहदी और रचनात्मक लेखन)

    नोटः-कक्षा 11िीं तथा 12िीं के पाठ्यक्रम में संयुि रूप से वनधाथठरत ‘ऄवभव्वि और माध्यम’ पुस्तक के

    वनम्नांद्रकत 07 पाठ कक्षा 11िीं के पाठ्यक्रम वनधाथठरत हैं-

    1. जनसंचार माध्यम (पाठ-1)

    2. पत्रकाठरता के विविध अयाम (पाठ-2)

    3. डायरी वलखने की कला (पाठ-9)

    4. कथा-पटकथा (पाठ-10)

    5. कायाथलयी लेखन और प्रद्रक्रया (पाठ-14)

    6. स्ििृत्त लेखन और रोजगार संबंधी अिेदन पत्र (पाठ-15)

    7. शधदकोश, संदभथ-गं्रथों की ईपयोग विवध और पठरचय (पाठ-16)

    ईि सात पाठों में से एक-एक ऄंक के पाँच प्रश्न पूछे जाएगेँ।

    जनसंचार माध्यम

    प्रश्न-1 संचार क्या ह?ै

    ईत्तर- दो या दो से ऄवधक व्वियों के बीच सूचनाओं ि भािनाओं का अदान-प्रदान ही संचार ह।ै

    प्रश्न-2 संचार माध्यम क्या ह?ै

    ईत्तर- संचार की प्रद्रक्रया को ऄंजाम दनेे िाले साधन संचार माध्यम कहलाते हैं।

    प्रश्न-3 संचार के प्रमुख तत्त्ि कौन-कौन से हैं?

    ईत्तर-संचार की प्रद्रक्रया में कइ चरण या तत्त्ि सवम्मवलत होते हैं। िे वनम्नांद्रकत हैं-

    (क) स्रोत या संचारक- संचार प्रद्रक्रया को प्रारम्भ करनेिाला/बात कहनेिाला।

    (ख) कूटीकरण/एनकोनडग - भािों को भाषा में/शधदों में बदलने की प्रद्रक्रया ।

    (ग) संदशे - कथ्य

    (घ) माध्यम (चैनल) - मौवखक शधद, टेलीफोन, समाचार पत्र, रेवडयो, टेलीविजन, आन्द्टरनेट ि द्रफ़ल्म

    अद्रद। ।

    (ड़) प्रािकत्ताथ (ठरसीिर) - संदशे प्रािकत्ताथ, जो कूट भाषा की डी-कोनडग करता ह ैऄथाथत् कथ्य को

    समझने का प्रयास करता ह।ै

    (च) फीडबैक - संदशे प्रािकत्ताथ की ऄच्छी/बुरी प्रवतद्रक्रया

  • 18

    प्रश्न-4 संचार के प्रमुख प्रकार बताआए।

    ईत्तर- िगीकरण का प्रथम प्रकार-(02 भेद) मौवखक तथा ऄमौवखक संचार।

    िगीकरण का दसूरा प्रकार-(04 भेद)

    1. ऄंतःिैयविक संचार- जहाँ संचारक ि प्रािकत्ताथ एक ही होता ह।ै जैसे सोचना/विचारना अद्रद।

    2. ऄतंर िैयविक संचार- जब दो व्वि अमने-सामने संचार करते हैं।

    3. समूह संचार- जब हमारा कथन द्रकसी एक व्वि के वलए न होकर एक पूरे समूह के वलए होता

    ह।ै जैसे - सभा/पंचायत/संसद अद्रद।

    4. जनसंचार- जब समूह से प्रत्यक्ष संिाद की बजाय द्रकसी यांवत्रक साधन/तकनीकी के माध्यम से

    संिाद स्थावपत द्रकया जाता ह।ै जैसे ऄखबार, टेलीविजन, रेवडयो, वसनेमा, आन्द्टरनेट अद्रद।

    प्रश्न-5 जनसंचार की प्रमुख विशेषताए ँबताआए।

    ईत्तर- 1. जनसंचार का फीडबैक तुरन्द्त नहीं वमलता।

    2. ईसमें श्रोताओं/पाठकों/दशथकों का दायरा बहत बड़ा पंचमेल (विविधता भरा) होता ह।ै

    3. ईसमें प्रसाठरत संदशे की प्रकृवत सािथजवनक होती ह।ै

    4. जनसंचार के वलए औपचाठरक संगठन -रेवडयो/टीिी चैनल/ऄखबार की अिश्यकता होती ह।ै

    5. आसमें प्रचाठरत-प्रसाठरत सामग्री को वनयंवत्रत ि वनधाथठरत करने के वलए कइ द्वारपाल होते हैं।

    जैसे संपादक /ईपसंपादक अद्रद।

    प्रश्न-6 जनसंचार के प्रमुख कायथ बताआए।

    ईत्तर- 1. सूचना दनेा

    2. वशवक्षत करना

    3. मनोरंजन करना

    4. एजेंडा तय करना

    5 वनगरानी करना

    6. विचार-विमशथ के वलए मंच ईपलधध कराना।

    प्रश्न-7 भारत में पत्रकाठरता का प्रारम्भ कब हअ?

    ईत्तर- सन् 1870 में जेम्स ऑगस्ट वहकी के ‘बंगाल गजट’ से।

    प्रश्न-8 नहदी का पहला पत्र कौन-सा था?

    ईत्तर- नहदी का पहला पत्र ‘ईदतं मातथण्ड’ सन् 1826 में कलकत्ता से पंवडत जुगल द्रकशोर के संपादन में

    प्रकावशत हअ।

    प्रश्न-9 अज़ादी के पूिथ के प्रमुख समाचार पत्र/पवत्रकाओं के नाम बताआए।

    ईत्तर- केसरी, वहन्द्दसु्तान, हसं, कमथिीर, अज, प्रताप, प्रदीप और विशाल भारत अद्रद।

  • 19

    प्रश्न-10 अज़ादी के पूिथ के प्रमुख पत्रकार कौन-कौन से थे ?

    ईत्तर- गांधीजी, भारतेन्द्द ुहठरश्चन्द्र, लोकमान्द्य वतलक, मदनमोहन मालिीय, गणेश शंकर विद्याथी,

    माखनलाल चतुिेदी, महािीर प्रसाद वद्विेदी, बाबूराि-विष्णुराि पराड़कर, प्रताप नारायण

    वमश्र, वशिपूजन सहाय, रामिृक्ष बेनीपुरी अद्रद।

    प्रश्न-11 अज़ादी के बाद के भारत के प्रमुख नहदी ऄखबारों के नाम बताआए।

    ईत्तर- निभारत टाआम्स, जनसत्ता, नइ दवुनया, राजस्थान पवत्रका, ऄमर ईजाला, दवैनक भास्कर,

    दवैनक जागरण अद्रद एिं पवत्रकाओं में धमथयुग, सािावहक वहन्द्दसु्तान, द्रदनमान, रवििार,

    आंवडया टुड ेि अईट लुक अद्रद।

    प्रश्न-12 अज़ादी के बाद के प्रमुख नहदी पत्रकारों के नाम बताआए।

    ईत्तर- ऄज्ञेय, रघुिीर सहाय, धमथिीर भारती, श्याम मनोहर जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाश जोशी,

    सिेश्वर दयाल सक्सेना, सुरेन्द्र प्रताप नसह अद्रद।

    प्रश्न-13 रेवडयो का अविष्कार कब और द्रकसने द्रकया?

    ईत्तर- 1895 में आटली के जी. माकोनी ने।

    प्रश्न-14 ऑल आंवडया रेवडयो (अकाशिाणी) की स्थापना कब हइ। आसकी व्ापकता बताआए।

    ईत्तर- सन् 1936 में। 24 भाषाओं और 146 बोवलयों में प्रसाठरत कायथक्रमों का लाभ दशे की 96

    प्रवतशत अबादी ईठाती ह।ै

    प्रश्न-15 एफ.एम. रेवडयो की शुरुअत भारत में कब हइ?

    ईत्तर- सन् 1993 में।

    प्रश्न-16 ितथमान में अकाशिाणी ि दरूदशथन पर द्रकसका वनयंत्रण ह?ै

    ईत्तर- ‘प्रसार भारती’ नामक स्िायत्तशासी वनकाय का।

    प्रश्न-17 भारत में टेलीविजन की शुरुअत कब हइ ?

    ईत्तर-15 वसतम्बर 1959 में (यूनेस्को की एक पठरयोजना के ऄंतगथत प्रायोवगक रूप में)

    15 ऄगस्त 1965 से अकाशिाणी के ही ऄंतगथत विवधित रूप से टेलीविजन सेिा प्रारंभ हइ।

  • 20

    प्रश्न-18 दरूदशथन पृथक् विभाग कब बना?

    ईत्तर- 01 ऄपे्रल 1976 से ।

    प्रश्न-19 वसनेमा का अविष्कार द्रकसने ि कब द्रकया?

    ईत्तर- थॉमस ऄल्िा एडीसन के द्वारा सन् 1883 में ‘वमनेठटस्कोप की खोज’ के साथ ही वसनेमा

    ऄवस्तत्ि में अया। विश्व की पहली द्रफ़ल्म ‘द ऄरायिल ऑफ टे्रन’ 1894 में फ्ांस में बनी।

    प्रश्न-20 भारत की पहली द्रफ़ल्म कौन-सी थी ि कब बनी?

    ईत्तर- राजा हठरशचंर 1913 में बनी। यह मूक द्रफ़ल्म थी।

    प्रश्न-21 भारत की पहली बोलती द्रफल्म कौन-सी थी ि कब बनी?

    ईत्तर- सन् 1931 में वनर्तमत ‘अलमअरा’ (अदवेशर इरानी द्वारा वनदवेशत)।

    प्रश्न-22 आंटरनेट की विशेषताए ँबताआए।

    ईत्तर- आंटरनेट में नप्रट मीवडया, रेवडयो, टेलीविजन, द्रकताब, वसनेमा यहाँ तक द्रक पुस्तकालय के

    भी सारे गुण मौजूद हैं। यह एक ‘ऄन्द्तर द्रक्रयात्मक’ (आंटरेवक्टि) माध्यम ह।ै आसमें अप मूक

    दशथक/श्रोता नहीं हैं।

    पत्रकाठरता के विविध अयाम

    प्रश्न-1 ‘पत्रकाठरता’ क्या ह ै?

    ईत्तर- सूचनाओं को संकवलत और संपाद्रदत करके अम पाठकों तक पहचँाने का कायथ ही पत्रकाठरता ह।ै

    प्रश्न-2 द्रकसी घटना के ‘समाचार’ बनने के वलए ईसमें कौन-कौन से तत्त्ि अिश्यक हैं ?

    ईत्तर- निीनता, जनरुवच, वनकटता, प्रभाि, टकराि या संघषथ, महत्त्िपूणथ लोग ईपयोगी जानकारी,

    ऄनोखापन, पाठकिगथ ि नीवतगत ढँााचा अद्रद बातें वनवश्चत करती हैं द्रक कोइ घटना समाचार

    ह ैया नहीं।

    प्रश्न-3 समाचारों के संपादन में द्रकन प्रमुख वसद्धान्द्तों का पालन ज़रूरी ह ै?

    ईत्तर- तथ्यपरकता, िस्तुपरकता, वनष्पक्षता, संतुलन ि स्रोत की जानकारी जैसे वसद्धान्द्तों का

  • 21

    पालन संपादन में ज़रूरी ह।ै

    प्रश्न-4 पत्रकाठरता के प्रमुख प्रकारों के नाम बताआए।

    ईत्तर- खोजपरक पत्रकाठरता,

    िॉचडॉग पत्रकाठरता,

    एडिोकेसी पत्रकाठरता अद्रद।

    प्रश्न-5 ‘डडैलाआन’ क्या ह?ै

    ईत्तर- द्रकसी समाचार माध्यम में समाचार को प्रकावशत/प्रसाठरत होने के वलए प्राि होने की

    अवखरी समय-सीमा डडैलाआन कहलाती ह।ै अमतौर पर डडैलाआन के बाद प्राि समाचार

    के प्रकावशत/प्रसाठरत होने की संभािना कम ही होती ह।ै

    प्रश्न-6 पत्रकाठरता के विविध अयाम कौन-कौन से हैं?

    ईत्तर- समाचारों के ऄवतठरि समाचार पत्रों में ऄन्द्य विविध सामग्री भी प्रकावशत होती ह।ै िे ही

    ईसके विविध अयाम हैं। जैसे संपादकीय पृष्ठ (संपादकीय ऄग्रलेख पाठकों के पत्र अद्रद),

    फोटो पत्रकाठरता, काटूथन कोना रेखांकन ि काटोग्राफ अद्रद।

    प्रश्न-7 पेज-थ्री पत्रकाठरता से क्या अशय ह?ै

    ईत्तर- फैशन, ऄमीरों की पार्टटयाँ ि जाने माने लोगों (सेलीविटीज़) के वनजी-जीिन से संबंवधत

    सामग्री का प्रकाशन पेज-थ्री पत्रकाठरता ह।ै

    प्रश्न-8 पीत-पत्रकाठरता क्या ह?ै

    ईत्तर- पाठकों को लुभाने के वलए झूठी ऄफ़िाहों, व्विगत अरोप-प्रत्यारोपों, पे्रम-संबंधों,

    भंडाफोड़ और द्रफल्मी गपशप जैसी सामग्री के प्रकाशन को पीत-पत्रकाठरता कहते हैं।

    डायरी वलखने की कला

    प्रश्न-1 डायरी क्या ह?ै

    ईत्तर- वनतांत वनजी स्तर पर घठटत घटनाओं और तत्संबंधी बौवद्धक ि भािनात्मक प्रवतद्रक्रयाओं

    का लेखा-जोखा, वजसे लेखक स्ियं ऄपने वलए ही शधदबद्ध करता है- डायरी कहलाता ह।ै

  • 22

    प्रश्न-2 डायरी लेखन की क्या ईपयोवगता ह?ै

    ईत्तर- द्रकसी बात/घटना/विचार/ऄनुभि को हम डायरी में शधदबद्ध करके यह सुवनवश्चत

    करते हैं द्रक िह विस्मृवत की वशकार न हो।

    प्रश्न-3 वद्वतीय विश्वयुद्ध के नाज़ी ऄत्याचारों के ऐवतहावसक दस्तािेज के रूप में द्रकसकी डायरी

    प्रवसद्ध ह?ै

    ईत्तर-ऐनी फ्ैं क एक यहदी द्रकशोरी की डायरी, वजसमें 1942-44 के दरवमयान नाज़ी ऄत्याचारों

    का एक द्रकशोर मन द्वारा दजथ वििरण रोंगटे खड़ ेकर दनेा िाला ह।ै

    प्रश्न-4 कुछ प्रवसद्ध भारतीय/नहदी डायरी लेखकों के बारे में बताआए।

    ईत्तर- मोहन राकेश की डायरी, रमेशचंर शाह की डायरी के ऄवतठरि रामिृक्ष बेनीपुरी की ‘‘पैरों

    में पंख बाँधकर ’’ राहल सांकृत्यायन के ‘रूस में पच्चीस मास ’ सेठ गोविन्द्ददास की सुदरू

    दवक्षण-पूिथ, कनथल सज्जन नसह की ‘लद्दाख यात्रा की डायरी ’ ि मुविबोध की एक सावहवत्यक

    की डायरी’ अद्रद कृवतयाँ प्रवसद्ध हैं।

    कथा-पटकथा लेखन

    प्रश्न-1 ‘पटकथा’ क्या ह?ै

    ईत्तर- परद े(टीिी/वसनेमा) पर द्रदखाइ जाने िाली िह कथा , वजसमें ऄवभनेताओं को संिादों के

    साथ-साथ ऄपनी-ऄपनी भूवमका की बारीद्रकयों की जानकारी तथा कैमरे के पीछे काम करने

    िाले तकनीवशयनों ि सहायकों को भी ऄपने-ऄपने विभागों के वलए महत्त्िपूणथ सूचनाए ँ

    वमलती हैं।

    प्रश्न-2 ‘फ़्लैशबैक’ द्रकसे कहते हैं ?

    ईत्तर- िह तकनीक, वजसमें अप ितथमान घटनाक्रम को बीच में ही छोड़कर ऄतीत में घटी घटना

    को द्रदखाते हैं और द्रफर ितथमान में लौट अते हैं।

    प्रश्न-3 ‘फ़्लैश फॉरिाडथ द्रकसे कहते हैं?

    ईत्तर- ‘फ़्लैश फॉरिाडथ में हम भविष्य में होने िाली घटना को ितथमान में ही (हादसा होने से पहल े

    ही) द्रदखा दतेे ह ैऔर द्रफर ितथमान में लौट अते हैं।

  • 23

    कायाथलयी लेखन और प्रद्रक्रया

    पाठ की कुछ महत्त्िपूणथ बातें

    1. प्रत्येक विषय से संबंवधत एक फाआल होती ह।ै

    2. विषय से संबंवधत जो पत्र या प्रस्ताि बाहरी व्वियों या दसूरे कायाथलयों से प्राि होता ह ैईसे

    फाआल की दावहनी ओर रखा जाता ह।ै तथा ईस विषय या प्रस्ताि पर जो ठटप्पवणयाँ/मन्द्तव् द्रकस

    कायाथलय में वलखे जाते हैं िे बाईं और लगे पृष्ठों पर वलखे जाते हैं ऄथाथत् फाआल के बाईं ओर का

    वहस्सा ठटप्पण के वलए तथा दावहनी ओर का पत्र-व्िहार के वलए होता ह।ै

    प्रश्न- 1- कायाथलयी लेखन के विविध प्रकार के नाम बताआए-

    ईत्तर- 1. औपचाठरक पत्र

    2. मुख्य ठटप्पण

    3. अनुषंवगक ठटप्पण

    4. ऄनुस्मारक/स्मरण पत्र

    5. ऄद्वथसरकारी पत्र (डी ओ लेटर)

    6. कायथसूची (एजेंडा)

    7. कायथिृत्त (वमवनट्स)

    8. पे्रस विज्ञवि

    नोट- उपर वलखे कायाथलयी लेखन के विविध प्रकारों से संबंवधत प्रत्येक प्रकार के लेखन के विषय में

    ध्यान दनेे योग्य बातों की जानकारी के वलए मूलतः ‘ऄवभव्वि और माध्यम’ पुस्तक का ऄिलोकन

    करें।

    प्रश्न-2 औपचाठरक पत्र से क्या तात्पयथ ह?ै

    ईत्तर- जो पत्र प्रायः एक कायाथलय, विभाग ऄथिा मंत्रालय से दसूरे कायाथलय, विभाग ऄथिा

    मंत्रालय को भेजे जाते हैं, औपचाठरक पत्र कहलाते हैं।

    प्रश्न-3 ठटप्पण द्रकसे कहते हैं? यह द्रकतने प्रकार की होती ह?ै

    ईत्तर- द्रकसी विचाराधीन पत्र ऄथिा प्रकरण को वनपटाने के वलए ईस पर जो राय, मन्द्तव्,अदशे

    ऄथिा वनदशे द्रदया जाता ह ैिह ठटप्पण कहलाता ह।ै यह दो प्रकार की होती है- मुख्य ठटप्पण

    ि अनुषंवगक ठटप्पण।

    प्रश्न-4 मुख्य ठटप्पण द्रकसे कहते हैं?

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    ईत्तर- प्रारवम्भक ठटप्पण मुख्य ठटप्पण कहलाता ह,ै वजसे प्रायः सहायक स्तर पर वलखा जाता ह।ै

    प्रश्न-5 अनुषंवगक ठटप्पण द्रकसे कहते हैं?

    ईत्तर- सहायक द्वारा वलखे ठटप्पणी जब ऄवधकारी के पास पहचँती ह ैतो िह ऄवधकारी ईस ेपढ़कर

    ऄपना मन्द्तव् वलखता ह ैिह अनुषंवगक ठटप्पणी कहलाती ह।ै

    प्रश्न-6 स्मरण पत्र/ऄनुस्मारक पत्र द्रकसे कहते हैं?

    ईत्तर- जब द्रकसी पत्र/ज्ञापन आत्याद्रद का ईत्तर समय पर प्राि नहीं होता तो याद द्रदलाने के वलए

    ऄनुस्मारक भेजा जाता ह।ै

    प्रश्न-7 ऄद्वथसरकारी पत्र (डी ओ लेटर) द्रकसे कहते हैं?

    ईत्तर- जब कोइ एक ऄवधकारी दसूरे संबंवधत ऄवधकारी को व्विगत स्तर पर जानता हो तब

    मैत्री भाि ि ऄनौपचाठरकता से युि जो पत्र कायाथलय से संबंवधत विषय पर वलखा जाता ह ै

    ईसे ऄद्वथसरकारी पत्र कहते हैं।

    प्रश्न-8 कायथसूची या एजेंडा क्या ह ै?

    ईत्तर- द्रकसी भी संस्था की औपचाठरक बैठक में चचाथ के वलए वनधाथठरत विषयों की ऄवग्रम

    जानकारी दनेेिाला दस्तािेज कायथसूची कहलाता ह।ै आसे बैठक की सूचना के साथ ही सदस्यों

    को भेजा जाता ह ैताद्रक िे पूरी तैयारी से अ सकें ।

    प्रश्न-9 कायथिृत्त या वमवनट्स द्रकसे कहते हैं ?

    ईत्तर- द्रकसी बैठक की कायथसूची में रेखांद्रकत विषयों पर हए विचार-विमशथ ि वनणथयों के को

    कायथिृत्त कहा जाता ह।ै

    प्रश्न-10 पे्रस-विज्ञवि द्रकसे कहते हैं?

    ईत्तर- कोइ संस्थान या व्वि जब द्रकसी विषय या बैठक में वलए गए वनणथयों को जन-सामान्द्य

    तक

    पहचँाना चाहता ह ैतो िह ‘पे्रस विज्ञवि’ जाऺरी करता ह।ै

    प्रश्न-11 पठरपत्र या सकुथ लर द्रकसे कहते हैं?

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    ईत्तर- संस्थान/कायाथलयों द्वारा वलए गए महत्त्िपूणथ वनणथयों को कायाथवन्द्ित करने के वलए ‘पठरपत्र’

    जाऺरी द्रकया जाता ह,ै वजसमें वनणथय को कायाथवन्द्ित करने के वनदशे होते हैं। स्ििृत्(बायोडटेा)

    लेखन तथा रोजगार संबंधी अिेदन पत्र।

    स्ििृत्त

    प्रश्न-1 स्ििृत्त क्या है? ईसमें क्या विशेषताए ँहोनी चावहए?

    ईत्तर- द्रकसी व्वि विशेष द्वारा ऄपने बारे में सूचनाओं का वसलवसलेिार संकलन ही स्ििृत्त

    कहलाता ह।ै आसमें व्वि ऄपने व्वित्त्ि , ज्ञान और ऄनुभि के सबल पक्ष को आस प्र कार

    प्रस्तुत करता ह ैजो वनयोिा के मन में ईम्मीदिार के प्रवत ऄच्छी ि सकारात्मक छवि प्रस्तुत

    करता ह।ै

    प्रश्न-2 स्ििृत्त में द्रकन-द्रकन बातों का समािेश होना चावहए?

    ईत्तर- स्ििृत्त में ऄपनी पूरा पठरचय , पता, सम्पकथ सूत्र (टेलीफोन , मोबाआल, इ-मेल अद्रद) ,

    शैक्षवणक ि व्ािसावयक योग्यताओं के वसलवसलेिार वििरण के साथ-साथ ऄन्द्य संबंवधत

    योग्यताओं, विशेष ईपलवधधयों , कायेत्तर गवतविवधयों ि ऄवभरुवचयों का ईल्लेख होना

    चावहए। एक-दो ऐसे सम्मावनत व्वियों के वििरण , जो ईम्मीदिार के व्वित्ि ि

    ईपलवधधयों से पठरवचत हांा,े का समािेश भी होना चावहए।

    नोट- रोजगार संबंधी अिेदन पत्र के फॉरमैट के वलए पाठ्यपुस्तक का ऄिलोकन करें। शधदकोश, संदभथ ग्रंथों की ईपयोग की विवध और पठरचय शधदकोश दखेने की विवध

    शधदकोश में सवम्मवलत शधद िणथमाला के िणों के क्रम में व्िवस्थत रहते हैं। ऄतः शधदकोश दखेने

    के पूिथ ह मे िणथमाला के ज्ञान के साथ-साथ शधद का िणथ-विच्छेद करना सीखना अिश्यक ह।ै शधदकोश में

    शधदों को आस िणथ-ऄनुक्रम में द्रदया जाता ह-ै ऄं , ऄ, अ,ं अ, आं, आ, ईं, इ, ईं, ई, उं, उ, ऊ, एं, ए, ऐं, ऐ, ओं,

    ओ, औं, औ। आसके पश्चात् क से ह तक के िणथ क्रम के ऄनुसार। संयुिाक्षरों के विषय में यह बात विशेष ध्यान

    रखने योग्य ह ैद्रक यद्रद वमले हए िणथ उपर-नीचे वलखे हैं तो उपर िाला िणथ पहले स्थान पाएगा तथा नीचे

    िाला िणथ बाद में स्थान पाएगा एिं संयुिाक्षर की मात्रा नीचे िाले िणथ की मानी जाएगी। जैसे-

    1. शुवद्ध = ( श्+ई) + (द+्ध्+आ) 2. प्राथथना = (प्+र्+अ) +(र्+थ्+ऄ)+(न+्अ)

    3. द्युवत = (द+्य्+ई) +(त्+आ)

  • 26

    िणथ- विच्छेद में मात्रा िाला स्िर सदा ही ईस व्ंजन के बाद अता ह ैवजस पर मात्रा लगी हो (भले ही मात्रा

    पीछे से लगी हो।) जैसे- वस = स् +आ, सी =स्+इ अधे ऄक्षरों से पूिथ वलखी ‘आ’ की मात्रा ईस ऄक्षर की न होकर

    ऄगले व्ंजन की होती ह।ै जैसे -वस्थवत =स् वथ वत यद्रद वमले हए िणथ (संयुिाक्षर) उपर नीचे न होकर बराबर

    उँचाइ पर वलखे हैं तो िणों का क्रम िही होगा जो द्रदखाइ द ेरहा ह।ै

    जैसे - शधद = श+ब्+द,् पम्प = प+म्+प, द्वार = द+्िा+र

    वनम्नांद्रकत संयुिाक्षरों के िणथ विच्छेद पर विशेष ध्यान दें-

    क्ष = क्+ष+्ऄ त्र = त+्र्+ऄ ज्ञ = ज+्ञ+्ऄ द्य=द+्य+्ऄ

    ù = द+्म्+ऄ ह्य = ह्+य्+ऄ क्र = क्+र्+ऄ कथ = र्+क्+ऄ

    ऄं तथ ऄः को स्िरों में नहीं वगना जाता ह।ै ऄतः शधदकोश में आनके वलए ओ, औ के बाद ऄलग से खंड

    नहीं होता। ऄनुस्िार (नबद)ु तथा ऄनुनावसक (चंरनबद)ु िाले िणथ शधद कोश में सबसे पहले अएगेँ। जैसे- ‘ऄंकुर’

    तथा ‘ऄकुलाहट’ में से ऄंकुर पहले स्थान पाएगा , जबद्रक ऄकुलाहट बाद में अएगा। आसी प्रकार ‘आ’ तथा ‘आं’ में

    से आं से प्रारम्भ होने िाले शधद पहले अएगेँ तथा आ से प्रारम्भ होने िाले शधद बाद में। जैसे-आंक ि आकहरा में से

    आंक पहले अएगा तथा आकहरा बाद में अएगा।

    खण्ड-ग

    काव्ांश पर अधाठरत ऄथथ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

    पद

    कबीरदास

    हम तौ एक एक कठर जांनां।

    दोआ कहैं वतनहीं कौं दोजग वजन नानहन पवहचांनां ।।

    एकै पिन एक ही पानीं एकै जोवत समांनां।

    एकै खाक गढ़े सब भांडैऺ एकै कोंहरा सांनां।।

    जैसे बाढ़ी काि ही काटै ऄवगवन न काटै कोइ।

    सब घठट ऄंतठर तूँही व्ापक धरै सरूपै सोइ।।

    माया दवेख के जगत लुभांनां काह ेरे नर गरबांनां।

    वनरभै भया कछू ननह धयापै कह ैकबीर द्रदिांनां।।

    प्रश्न-1 कबीर परमात्मा के द्रकस स्िरूप में अस्था रखते हैं? और िह स्िरूप द्रकस प्रकार का ह ै?

    ईत्तर- कबीर परमात्मा के ऄद्वतै स्िरूप में अस्था रखते थे और िह स्िरूप वनगुथण वनराकार इश्वर का ह।ै

    प्रश्न-2 कबीर ने द्रकन लोगों को नरक का ऄवधकारी माना ह?ै

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    ईत्तर- कबीर ने ईन लोगों को नरक का ऄवधकारी माना ह ैजो लोग परमात्मा को एक नहीं, दो मानते हैं।

    प्रश्न-3 कबीर ने द्रकस प्रकार वसद्ध द्रकया ह ैद्रक इश्वर एक ह?ै

    ईत्तर- कबीर ने कहा द्रक वजस प्रकार विश्व में एक ही िायु और जल ह ैईसी प्रकार संपूणथ संसार में एक ही परम

    ज्योवत व्ाि ह।ै सभी मानि एक ही वमट्टी से िह्मा द्वारा वनर्तमत हैं।

    प्रश्न-4 कबीर के ऄनुसार प्रभु को जानने के वलए क्या अिश्यक ह?ै

    ईत्तर- कबीर के ऄनुसार प्रभु को जानने के वलए वमथ्या दभं, माया-मोह ऄथाथत सुखों को त्यागना अिश्यक ह।ै

    पद

    मीरा

    मेरे तो वगरधर गोपाल, दसूरो न कोइ,

    जा के वसर मोर-मुकुट, मेरो पवत सोइ।

    छांवड़ दयी कुल की कावन, कहा कठरह ैकोइ?

    संतन द्रढग बैठठ-बैठठ, लोक-लाज खोयी।

    ऄंसुिन जल सींवच-सींवच, पे्रम-बेवल बोयी,

    ऄब त बेवल फैवल गयी, अणंद-फल होयी।

    दधू की मथवनयाँ बड़ ेपे्रम से विलोयी,

    दवध मवथघृत काद्रढ़ वलयो, डाठर दयी छोयी।

    भगत दवेख राजी हयी, जगत दवेख रोयी,

    दावस मीरां लाल वगरधर! तारो ऄब मोही।

    प्रश्न-1 मीरा ऄपना सिथस्ि द्रकसे मानती हैं? और िह स्िरूप कैसा ह।ै

    ईत्तर- मीरा श्रीकृष्ण को ऄपना सिथस्ि मानती हैं, वजनके वसर पर मोर-मुकुट सुशोवभत ह।ै

    प्रश्न-2 मीरा ने समाज को क्या चुनौती दी ह?ै

    ईत्तर- मीरा ने समाज को चुनौती दी ह ैद्रक ईसने तो साधु-संन्द्यावसयों के साथ ब�