हिन्द स्वराज - m. k. gandhiप रक शन त र ख १९०९ १०...

Post on 05-Jun-2020

22 Views

Category:

Documents

0 Downloads

Preview:

Click to see full reader

TRANSCRIPT

हिन्द स्वराज

गाांधीजी

अनुवादक

अमृतलाल ठाकोरदास नाणावटी

“यह ककताब दे्वषधर्म की जगह पे्रर्धर्म किखाती है;

कहिंिा की जगह आत्म-बकिदान को रखती है;

पशुबि िे टक्कर िेने के किए आत्मबि को खडा करती है।”

पहिी आवृकि, प्रकत १०,०००, १९४९

ISBN 978-81-7229-125-9

मुद्रक और प्रकाशक

हववेक हजतेन्द्रभाई देसाई

नवजीवन मुद्रणालय

अहर्दाबाद - ३८० ०१४

फोन: +91-79-28540635 | 27542634

E-mail : jitnavjivan10@gmail.com | Website : www.navajivantrust.org

अनुक्रमहणका

[ इि ििंस्करण र्ें जोडी गई िार्ग्री को (*) किह्न िे दशामया गया है। ]

प्रकाशन तारीख *

ििंवकधमत ििंस्करण के प्रकाशन कनकर्ि

कनवेदन

गाांधीजी की प्रस्तावनाएँ

कहिंद स्वराज की प्रस्तावना (१९१०)

कहिंद स्वराज (१९१४)*

प्रस्तावना (१९१९)*

कहिंद स्वराज्य के बारे र्ें (१९२१)

हिांद स्वराज

प्रकरण के अनुक्रर्

प्रस्तावना

प्रकरण १ िे २०

पररकशष्ट: कुछ प्रर्ाणभूत ग्रिंथ

पररकशष्ट : प्रकतकित व्यक्तियोिं की िाक्षी*

अन्य प्रस्तावनाएँ

कटप्पण (१९१९)* च. राजगोपालाचार

उपोद्घात (१९३८) मिादेव देसाई

ििंदेश: आयमन पाथ को (१९३९) मो. क. गाांधी

नई आवृकि की प्रस्तावना (१९३९) मिादेव देसाई

दो शब्द (१९५९) काका कालेलकर

प्रकाशन तारीख

१९०९ १० जुलाई-१३ नवम्बर : टर ान्सवाि डेपु्यटेशन के किए गािंधीजी का ििंदन-

कनवाि.

- १३-२२ नवम्बर: इिंग्लन्ड िे दकक्षण अकिका िौटते जहाज़ ककिडोनन

कॅिि पर गािंधीजी ने गुजराती पुस्तक किखी.

- ११ हदसम्बर: पहिे बारह प्रकरण इक्तन्डयन ओकपकनयन र्ें प्रकट हुए.

- १८ हदसम्बर: बाकी के प्रकरण इक्तन्डयन ओकपकनयन र्ें प्रकट हुए.

१९१० जनवरी : पहिा गुजराती ििंस्करण. कफनीक्स (द. अकिका) : इन्टरनेशनि

कप्रक्तन्टिंग पे्रि.

- २४ माचच: रु्िंबई िरकार ने प्रकतबिंध िगाया.

- माचच: पहिा अिंगे्रज़ी ििंस्करण (अनु. गािंधीजी). कफनीक्स (द.

अकिका) : इन्टरनेशनि कप्रक्तन्टिंग पे्रि. गािंधीजी की नई प्रस्तावना के िाथ.

१९१४ मे: दुिरा गुजराती ििंस्करण. कफनीक्स (द. अकिका) : इन्टरनेशनि कप्रक्तन्टिंग

पे्रि. गािंधीजी की नई प्रस्तावना के िाथ.

१९१९ कहिंद र्ें पहिा अिंगे्रज़ी ििंस्करण. र्द्राि: गणेश एन्ड किं पनी. गािंधीजी की नई

प्रस्तावना और ि. राजगोपािािार की कटप्पण के िाथ.

१९२१ ििंस्करण ४. र्द्राि: गणेश एन्ड किं पनी. यिंग इक्तन्डया र्ें प्रकिद्ध गािंधीजी के

'कहिंद स्वराज ओर इक्तन्डयन होर्रूि’ िेख के िाथ.

१९२२ कहिंद र्ें पहिा गुजराती ििंस्करण. नवजीवन.

१९२३ सपे्टम्बर: गािंधीजी की रू्ि पािंडुकिकप पर िे हस्ताक्षर-ििंस्करण. नवजीवन.

१९२४ िरर्न ओन ध िी नार्क अरे्ररकन ििंस्करण (ििंपा. हररदाि टी.

र्झरू्दार). कशकागो : युकनविमि पक्तिकशिंग किं पनी.

१९३८ नवजीवन का पहिा अिंगे्रज़ी ििंस्करण. र्हादेव देिाई की प्रस्तावना के िाथ.

- सपे्टम्बर: आयमन पाथ िार्कयक (रु्िंबई) के ‘कहिंद स्वराज कवशेषािंक' का

प्रकाशन.

१९३९ ििंवकधमत अिंगे्रज़ी ििंस्करण. नवजीवन. गािंधीजी ने आयमन पाथ को कदए ििंदेश

और र्हादेवभाई ने आयमन पाथ के 'कहिंद स्वराज कवशेषािंक' के बारे र्ें

हररजन र्ें किखे िेख के िाथ.

१९५१ कहिंदी ििंस्करण ( अनु. अरृ्तिाि ठाकोरदाि नाणावटी ) . नवजीवन. काका

कािेिकर की प्रस्तावना के िाथ.

२००९ कहिंद स्वराज शताब्दी वषम के कनकर्ि पर हस्ताक्षर एविं गुजराती, कहिंदी और

अिंगे्रज़ी पाठ के िाथ कवकशष्ट ििंस्करण. नवजीवन.

सांवहधचत सांस्करण के प्रकाशन हनहमत्त

दकक्षण अकिका र्ें िवम प्रथर् १९१० र्ें, कहिंद स्वराज पुस्तक स्वरूप र्ें प्रकाकशत हुई । इन

पन्ोिं पर अन्यत्र दी गई प्रकाशन-तवारीख िे स्पष्ट होता है की उिके बाद की इि पुस्तक

की प्रकाशन-यात्रा कदििस्प रही | कहिंद स्वराज के गुजराती और अिंगे्रज़ी र्ें कवकवध

ििंस्करण कनकिते रहे । इन ििंस्करणोिं र्ें गािंधीजी की प्रस्तावनाएिं अिग अिग यथेच्छ ढिंग

र्ें दी जाती रही ।

युवा र्ोहनदाि गािंधी ने ककिडोनन कॅिि जहाज़ के डॅक पर बैठ कर, जहाज़-

किं पनी ने कदए हुए के काग़ज़ पर किर् ििाई, कबना रुके, कबना कोई िुधार ककये यह

प्रकरण किखे। वह हस्तप्रत िुरकक्षत रही थी और उिके आधार पर नवजीवन ने एक

कवकशष्ट हस्ताक्षर ििंस्करण १९२३ र्ें प्रकाकशत ककया था।

२००९ र्ें कहिंद स्वराज का शताब्दी ििंस्करण नवजीवन ने अनूठे ढिंग र्ें प्रकट ककया

था: बरिोिं िे अप्राप्य हस्ताक्षर ििंस्करण के अिावा नवजीवन-प्रकाकशत रू्ि गुजराती पाठ,

गािंधीजी ने ककया था वह अिंगे्रज़ी अनुवाद (१९१०), तथा अरृ्तिाि नाणावटी-अनुवाकदत

कहिंदी पाठ: यह िब िार्ग्री किात्मक रीकत िे एककत्रत की गई थी। हाथ-काग़ज़ पर छपे,

रुकिपूवमक कनकर्मत यह कवकशष्ट ििंस्करण का िरु्कित स्वागत हुआ था, और उपहार के किए

भी उिका उपयोग होता रहा।

यह ििंस्करण िर्ाप्त होने के पश्चात उिे दुबारा प्रकट करते वक् त शताब्दी आवृकि

की कडज़ाइन िगभग यथातथ रख के, कुछ ििंपादकीय िुधार एविं नई िार्ग्री के िाथ

ििंपादकीय व्यवस्था ताककम क बनाई है; गािंधीजी की िभी प्रस्तावनाएिं उनके प्रकतपादन का

प्रवेशद्वार है। हस्ताक्षर को छोड कर िभी प्रस्तावनाएिं पुस्तक के अिंत र्ें थी िं, उन्हें पुस्तक

के आरिंभ र्ें एककत्रत करना उकित िर्झा है। कवकवध ििंस्करणोिं र्ें िर्ाकवष्ट अन्य

र्हानुभाव किक्तखत प्रस्तावनाएिं पुस्तक के अिंत र्ें दी गई हैं । आकद ििंस्करण की कुछ

प्रस्तावनाएिं जो छूट गई थी, तथा कुछ अग्रिंथस्थ िार्ग्री िुन-खोज़कर यहााँ एकत्र की गई

हैं । (उनका यथोकित कनदेश अनुक्रर्कणका र्ें ककया गया है ।) यह ििंपादकीय पररश्रर् के

बाद कहिंद स्वराज का यह कवकशष्ट ििंस्करण अखिंड और अकधकृत बनता है | इिे प्रसु्तत

करने र्ें हर्ें खुशी है।

ककफायती दर िे प्रकट होने वािे गुजराती, कहिंदी व अिंगे्रज़ी ििंस्करण र्ें भी वह िभी

नवीन िार्ग्री का िर्ावेश कर के ििंवकधमत पुस्तक िहषम प्रसु्तत है।

हनवेदन

गािंधीजी के कविार आिान कहिंदुस्तानी र्ें जनता के िार्ने रखना ‘गािंधी कहिंदुस्तानी िाकहत्य

िभा, कदल्ली' के अनेक कार्ोिं र्ें िे एक खाि कार् है। गााँधीजी अकिर आिान भाषा र्ें

ही िं किखते थे। उन्होिंने जो गुजराती भाषा र्ें किखा है, वह कबिकुि िरि है।

कफर भी रु्र्ककन है कक गुजराती, कहिंदी और दूिरी भाषाओिं र्ें जो शब्द आिानी िे

िर्झे जाते हैं, वे किफम उदूम जाननेवािोिं के किए नये होिं। इिकिए अनुवाद र्ें एिे शब्दोिं के

िाथ िाथ आिान उदूम शब्द भी देना ठीक िर्झा है। उम्मीद है कक इि तरह उदूम जबान

कहिंदी के नज़दीक आयेगी और उदूम जाननेवािी जनता कहिंदुस्तान की दूिरी भाषाओिं का

िाकहत्य भी आिानी िे िर्झ िकेगी।

गािंधी कहिंदुस्तानी िाकहत्य िभा ने नवजीवन के िाथ तय ककया है कक गािंधीजी की जो

ककताबें वह तैयार करेगी, उनकी नागरी आवृकि छापने का भार नवजीवन का होगा।

काका कालेलकर

हिांद स्वराज की प्रस्तावना

पहिा अिंगे्रज़ी ििंस्करण, दकक्षण अकिका: इन्टरनेशनि कप्रक्तन्टिंग पे्रि, १९१०

जोहाकनिबगम,

र्ािम २०, १९१०

कहिंद स्वराज्य का अिंगे्रज़ी अनुवाद जनता के िार्ने पेश करते हुए रु्झे कुछ ििंकोि हो

रहा है। एक यूरोपीय कर्त्र के१ िाथ इिकी कवषय-वसु्त पर रे्री ििाम हुई थी। उन्होिंने इच्छा

प्रकट की कक इिका अिंगे्रज़ी अनुवाद ककया जाये; इिकिए अपने फुरित के िर्य र्ें, र्ैं

जल्दी-जल्दी बोिता गया और वे किखते गये। यह कोई शब्दश: अनुवाद नही िं है। परनु्त

इिर्ें रू्ि के भाव पूरे-पूरे आ गये हैं। कुछ अिंगे्रज़ कर्त्रोिं ने इिे पढ किया है और जब रायें

र्ााँगी जा रही थी कक पुस्तक को प्रकाकशत करना ठीक है या नही िं, तभी िर्ािार कर्िा कक

रू्ि पुस्तक भारत र्ें जब्त कर िी गई है। इि िर्ािार के कारण तुरन्त कनणमय िेना पडा

कक इिका अनुवाद प्रकाकशत करने र्ें एक क्षण की भी देर नही िं की जानी िाकहए। रे्रे

इिंटरनेशनि कप्रक्तन्टिंग पे्रि के िाथी कायमकतामओिं की भी यही राय रही और उन्होिंने अकतररि

िर्य कार् करके-केवि इि कार् के प्रकत पे्रर् के कारण ही िं-रु्झे, आशा िे कर् िर्य

र्ें, इि अनुवाद को जनता के िार्ने रखने र्ें िहायता दी। पुस्तक जनता को िागत रू्ल्य

पर ही िं दी जा रही है। बहुत-िे कर्त्रोिं ने रु्झे इिकी प्रकतयााँ स्वयिं अपने किए और िोगोिं र्ें

बााँटने के किए खरीदने का विन कदया है। यकद उनिे यह आकथमक िहायता न कर्िी होती

तो शायद यह पुस्तक प्रकाकशत ही िं न हो पाती।

रू्ि र्ें जो अनेक खाकर्यािं हैं उनका रु्झे खूब ज्ञान है। अिंगे्रज़ी अनुवाद र्ें भी इनका

और िाथ ही िं दूिरी बहुत-िी भूिोिं का जाना स्वाभाकवक है। क्ोिंकक र्ैं रू्ि के भावोिं को

िही-रूप र्ें अनूवाकदत नही िं कर िका हाँ। कजन कर्त्रोिं ने अिंगे्रज़ी अनुवाद पढा है उनर्ें िे

कुछ ने पुस्तक के कवषय का कनरूपण ििंवाद-रूप र्ें करने पर आपकि की है। रे्रे पाि

इि आपकि का कोई जवाब नही िं है। किवा इिके कक इि रूप र्ें किखना गुजराती र्ें िरि

होता है और उिर्ें ककठन कवषयोिं को िर्झाने का यही िबिे अच्छा तरीका र्ाना गया

है। अगर र्ैंने रू्ितः अिंगे्रज़ी पढनेवािोिं को ध्यान र्ें रखकर किखा होता तो कवषय का

प्रकतपादन कबिकुि दूिरे प्रकार िे ककया गया होता। इिके अिावा कजि रूप र्ें ििंवाद

कदया गया है उिी रूप र्ें ककतने ही िं कर्त्रोिं िे, जो ज्यादातर इिं कडयन ओकपकनयन के पाठक

हैं, रे्री प्रत्यक्ष बातिीत भी हुई है।

कहिंद स्वराज्य र्ें प्रकट ककये गये कविार रे्रे कविार हैं और रै्नें भारतीय दशमनशास्त्र

के आिायों के िाथ-िाथ टॉल्स्टॉय, रक्तस्कन, थोरो, इर्िमन और अन्य िेखकोिं का भी

नम्रतापूवमक अनुिरण करने का यत्न ककया है। वषों िे टॉल्स्टॉय रे्रे गुरूओिं र्ें िे एक रहें

है। जो िोग आगे के अध्यायोिं र्ें प्रसु्तत कविारोिं का अनुर्ोदन ढूाँढना िाहे उन्हें स्वयिं इन

कविारकोिं के शब्दोिं र्ें अनुर्ोदन इनका कर्ि जायेगा। पाठकोिं की िहकियत के किए कुछ

पुस्तकोिं के नार् पररकशष्ट र्ें दे कदये गये हैं।

रु्झे पता नही िं कक कहिंद स्वराज्य पुस्तक भारत र्ें जब्त क् योिं कर िी गई? रे्री दृकष्ट

र्ें तो यह जब्ती किकटश िरकार कजि िभ्यता का प्रकतकनकधत्व करती है उिके कनिंद्य होने

का अकतररि प्रर्ाण है। इि पुस्तक र्ें कहिंिा का तकनक-िा भी िर्थमन कही िं ककिी रूप

र्ें नही िं है। हााँ, उिर्ें किकटश िरकार के तौर-तरीकोिं की जरूर कडी कनन् दा की गई है।

अगर र्ैं यह न करता तो र्ैं ित्य का, भारत का और कजि िाम्राज्य के प्रकत वफादार हाँ

उिका द्रोही बनता। वफादारी की रे्री कल्पना र्ें वतमर्ान शािन अथवा िरकार को,

उिकी न्यायशीिता या उिके अन्याय की ओर िे आाँखें रू्ाँदकर िुपिाप स्वीकार कर

िेना नही िं आता। न्याय और नीकत के नार् पर वह आज जो कर रही है उिे र्ैं नही िं र्ानता।

बक्ति रे्री वफादारी की यह कल्पना इि आशा और कवश्वाि पर आधाररत है कक नीकत के

कजि र्ानदण्ड को िरकार आज अस्पष्ट और पाखिंडपूणम ढिंग पर किद्धान्त-रूप र्ें स्वीकार

करती है उिे वह भकवष्य र्ें कभी व्यवहार र्ें भी स्वीकार करेगी। परनु्त रु्झे िाफ तौर िे

र्ान िेना िाकहए कक रु्झे किकटश िाम्राज्य के स्थाकयत्व िे इतना िरोकार नही िं हैं कजतना

भारत की प्रािीन िभ्यता के स्थाकयत्व िे है; क्ोिंकक रे्री र्ान्यता है कक वह ििंिार की

िवोिर् िभ्यता है। भारत र्ें अिंगे्रज़ी राज्य आज आधुकनक और प्रािीन िभ्यता के बीि के

ििंघषम का प्रतीक है। इनर्ें िे एक शैतान का राज्य है और दूिरा ईश्वर का। एक युद्ध का

देवता है और दूिरा पे्रर् का। रे्रे देशवािी आधुकनक िभ्यता की बुराइयोिं के किए अिंगे्रज़

जाकत को दोषी ठहराते है। इिकिए वे िर्झते हैं कक अिंगे्रज िोग बुरे हैं, न कक वह िभ्यता

कजिका वे प्रकतकनकधत्व करते हैं। इिकिए वे यह र्ानते हैं कक अिंगे्रज़ोिं को देश िे कनकािने

के किए उन्हें आधुकनक िभ्यता और कहिंिा के आधुकनक तरीके अपनाने िाकहए।

कहिंद स्वराज्य यह कदखाने के किए किखा गया है कक यह आत्मघातकारी नीकत पर ििना

होगा। उिका उदे्दश्य यह कदखाना भी है कक अगर वे अपनी गौरवर्य िभ्यता का ही िं पुनः

अनुिरण करें गे तो अिंगे्रज़ या तो उिको स्वीकार कर िेंगे और भारतीय बन जायेंगे या

भारत िे उनका अकधकार ही िं उठ जायेगा।

पहिे इि अनुवाद को इिं कडयन ओकपकनयन र्ें छापने का कविार था। परनु्त रू्ि

पुस्तक के जब्त हो जाने के कारण एिा करना उकित नही िं जान पडा। इिं कडयन ओकपकनयन

टर ान्सवाि के ित्याग्रह-ििंग्रार् का प्रकतकनकधत्व करता है। इिके अिावा उिर्ें आर् तौर

पर दकक्षण अकिका के भारतीयोिं की कशकायतें भी प्रकाकशत की जाती हैं। इिीकिए यह

वािंछनीय िर्झा गया कक इि तरह के प्राकतकनकधक पत्र र्ें रे्रे व्यक्तिगत कविार प्रकाकशत

न ककये जायें। ये कविार खतरनाक या राजद्रोहात्मक भी र्ाने जा िकते हैं। स्वभावत: रे्री

किन्ता तो यह है कक रे्रे ककिी एिे कायम िे कजि का उििे कोई ििंबिंध न हो, इि र्हान

ििंघषम को हाकन न पहुाँिे। अगर रु्झे यह र्ािूर् न हो गया होता कक दकक्षण अकिका र्ें भी

कहिंिात्मक िाधनोिं के िोककप्रय होने का खतरा है और रे्रे िैकडोिं देशभाइयोिं ने ओर कई

अिंगे्रज़ कर्त्रोिं ने भी रु्झिे यह आग्रह न ककया होता कक र्ैं भारत के राष्टर ीय आन्दोिन के

ििंबिंध र्ें अपने कविार प्रकट करूाँ तो र्ैं ििंघषम की खाकतर अपने कविारोिं को िेखबद्ध न

करता। िेककन आज रे्रा जो स्थान है उिे देखते हुए, उपयुमि पररक्तस्थकतयोिं र्ें इि पुस्तक

के प्रकाशन को टािना रे्रे किए कायरता होती।

इिं कडयन ओकपकनयन, २-४-१९१० मो. क. गाांधी

[अिंगे्रज़ी िे]

_____________________

१. हरर्न कैिनबैक, देक्तखए ‘उपोद्घात', पृ. १२३

हिांद स्वराज

दूिरा गुजराती ििंस्करण, दकक्षण अकिका: इिंटरनेशनि कप्रक्तन्टिंग पे्रि, १९१४

कहिंद स्वराज्य र्ैंने १९०९ र्ें इिंगै्लण्ड िे [दकक्षण अकिका] वाकपि आते हुए जहाज़ पर किखी

थी। ककताब बम्बई पे्रिीडेंिी र्ें जब्त कर िी गई थी इिकिए िन् १९१० र्ें र्ैंने उिका

[अिंगे्रज़ी] अनुवाद प्रकाकशत ककया। पुस्तक र्ें व्यि कविारोिं को प्रकाकशत हुए इि प्रकार

पााँि वषम हो िुके हैं। इि बीि, उनके ििंबिंध र्ें अनेक व्यक्तियोिं ने रे्रे िाथ ििाम की है।

कई अिंगे्रज़ोिं और भारतीयोिं ने पत्र-व्यवहार भी ककया है। बहुतोिं ने उििे अपना र्तभेद

प्रकट ककया। ककनु्त अिंत र्ें हुआ यही है कक पुस्तक र्ें र्ैंने जो कविार व्यि ककए थे, वे

और ज्यादा र्जबूत हो गए हैं। यकद िर्य की िुकवधा हो तो र्ैं उन कविारोिं को युक्तियााँ

और उदाहरण देकर और कवस्तार दे िक़ता हाँ; िेककन उनर्ें फेरफार करने का रु्झे कोई

कारण नही िं कदखता।

कहिंद स्वराज्य की दूिरी आवृकि की र्ााँग कई िोगोिं की ओर िे आई है, अत:

फीकनक्स के कनवाकियोिं और कवद्याकथमयो िं ने अपने उत्साह और पे्रर् के कारण जब-तब िर्य

कनकािकर यह दूिरा ििंस्करण छापा है।

यहााँ र्ैं किफम एक बात का उले्लख करना िाहाँगा। रे्रे कान र्ें यह बात आई है कक

यद्यकप कहिंद स्वराज्य िगातार यही िीख देता है कक हर्ें ककिी भी क्तस्थकत र्ें, ककिी भी

िर्य शरीरबि का आश्रय नही िं िेना िाकहए और अपना िाध्य िदा आत्मबि िे ही िं प्राप्त

करना िाकहए; िेककन िीख जो भी रही हो, पररणार् की दृकष्ट िे उििे अिंगे्रज़ोिं के प्रकत

कतरस्कार का भाव और उनके िाथ हकथयारोिं िे िडकर या और ककिी तरह र्ारकर उन्हें

भारत िे कनकाि देने का कविार पैदा हुआ है। यह िुनकर रु्झे दुःख हुआ। कहिंद स्वराज्य

किखने र्ें यह हेतु कबिकुि नही िं था। और रु्झे कहना पडेगा कक उिर्ें िे कजन िोगोिं ने

यह कनष्कषम कनकािा है वे उिे कबिकुि नही िं िर्झे हैं। र्ैं स्वयिं अिंगे्रज़ोिं के या अन्य ककिी

भी राष्टर की जनता या व्यक्तियोिं के प्रकत कतरस्कार की दृकष्ट िे नही िं देखता।

जैिे ककिी र्हािागर की जि-राकश की िारी बूाँदें एक ही िं अिंग हैं उिी प्रकार िब

प्राणी एक ही िं हैं। रे्रा कवश्वाि है कक प्राकणिागर र्ें रहनेवािे हर् िब प्राणी एक ही िं हैं और

एक-दूिरे िे हर्ारे ििंबिंध अत्यिंत प्रगाढ है। जो कबिंदु िरु्द्र िे अिग हो जाता है वह िूख

जाता है, उिी प्रकार जो जीव अपने को दूिरोिं िे कभन् र्ानता है वह नष्ट हो जाता है। र्ैं

तो यूरोप की आधुकनक िभ्यता का शतु्र हाँ और कहिंद स्वराज्य र्ें र्ैंने अपने इिी कविार को

कनरूकपत ककया है। और यह बताया है कक भारत की दुदमशा के किए अिंगे्रज़ नही िं बक्ति हर्

िोग ही िं दोषी हैं, कजन्होिं ने आधुकनक िभ्यता स्वीकार कर िी है। इि िभ्यता को छोडकर

हर् िच्ची धर्म-नीकत िे युि अपनी प्रािीन िभ्यता पुनः अपना िें तो भारत आज ही िं रु्ि

हो िक़ता है। कहिंद स्वराज्य को िर्झने की कुिं जी इि बात र्ें है कक हर्ें दुकनयावी प्रवृकि

िे कनवृि होकर धाकर्मक जीवन ग्रहण करना िाकहए। एिे जीवन र्ें कािे या गोरे ककिी भी

र्नुष्य के प्रकत कहिंिक व्यवहार के किए कोई स्थान नही िं हो िक़ता।

इिं कडयन ओकपकनयन, २९-४-१९१४ मो. क. गाांधी

[गुजराती िे]

प्रस्तावना

कहिंद र्ें पहिा अिंगे्रजी ििंस्करण र्द्राि: गणेश एण्ड किं पनी, १९१९

बम्बई

र्ई २८, १९१९

र्ैं इि पुक्तस्तका को एकाकधक बार पढ गया हाँ। इि िर्य इिका ज्योिं का-त्योिं छाप कदया

जाना ही िं ठीक है। परिं तु यकद र्ैं इिर्ें ििंशोधन करना ही िं िाहाँ तो उिर्ें एक ही िं शब्द

बदिना िाहाँगा क्ोिंकक र्ैं इि बात का विन अपने एक अिंगे्रज़ कर्त्र को दे िुका हाँ। उन्होिं

ने ििंिद के ििंबिंध र्ें रे्रे द्वारा प्रयुि “वेश्या” शब्द पर आपकि की थी। यह शब्द उन्हें

िुरुकिपूणम नही िं जान पडा। पाठकोिं को र्ैं कफर याद कदिा दूाँ कक प्रसु्तत पुक्तस्तका रू्ि

गुजराती पुक्तस्तका का रूपािंतर है।

जो कविार इन पृिोिं र्ें व्यि ककए गए हैं उनको अनेक वषो तक आिरण र्ें उतारने

का प्रयत्न करते रहकर जान पडता है कक उिर्ें कदखाया गया र्ागम ही िं स्वराज्य का िच्चा

र्ागम है। ित्याग्रह अथामत् पे्रर्-धर्म ही िं जीवन का धर्म है। उििे चु्यत होना कवनाश की ओर

तथा उि पर आरूढ रहना नवजीवन की ओर िे जाता है।

मो. क. गाांधी

[अिंगे्रज़ी िे]

हिांद स्वराज्य के बारे में

िौथा ििंस्करण र्द्राि: गणेश एन्ड किं पनी, १९२१

रे्री इि छोटी िी ककताब की ओर कवशाि जनििंख्या का ध्यान क्तखिंि रहा है, यह ििरु्ि

ही िं रे्रा िौभाग्य है। यह रू्ि तो गुजराती र्ें किखी गई है। इिका जीवन-क्रर् अजीब है।

यह पहिे-पहि दकक्षण अिीका र्ें छपनेवािे िाप्ताकहक इिं कडयन ओपीकनयन र्ें प्रगट

हुई थी। १९०८१ र्ें ििंदन िे दकक्षण अिीका िौटते हुए जहाज़ पर कहिंदुस्ताकनयोिं के

कहिंिावादी पिंथ को और उिी कविारधारा वािे दकक्षण अिीका के एक वगम को कदये गये

जवाब के रूप र्ें यह किखी गई थी। ििंदन र्ें रहने वािे हर एक नार्ी अराजकतावादी

कहिंदुस्तानी के ििंपकम र्ें र्ैं आया था। उनकी शूरवीरता { बहादुरी } का अिर रे्रे र्न पर

पडा था, िेककन रु्झे िगा कक उनके जोश ने उिटी राह पकड िी है। रु्झे िगा कक कहिंिा

कहिंदुस्तान के दुःखोिं का इिाज नही िं है, और उिकी ििंसृ्ककत { तर्द्दुन } को देखते हुए

उिे आत्मरक्षा { अपना बिाव } के किए कोई अिग और ऊाँ िे प्रकार का शस्त्र कार् र्ें

िाना िाकहए। दकक्षण अिीका का ित्याग्रह उि वक् त रु्क्तिि िे दो िाि का बच्चा था।

िेककन उिका कवकाि इतना हो िुका था कक उिके बारे र्ें कुछ हद तक आत्मकवश्वाि िे

किखने की र्ैंने कहम्मत की थी। रे्री वह िेखर्ािा पाठक-वगम को इतनी पिन्द आयी कक

वह ककताब के रूप र्ें प्रकाकशत की गई। कहिंदुस्तान र्ें उिकी ओर िोगोिं का कुछ ध्यान

गया। बम्बई िरकार ने उिके प्रिार की र्नाही कर दी। २उिका जवाब र्ैंने ककताब का

अिंगे्रज़ी अनुवाद प्रकाकशत कर के कदया। रु्झे िगा कक अपने अिंगे्रज़ कर्त्रोिं को इि ककताब

के कविारोिं िे वाककफ करना उनके प्रकत { तरफ़ } रे्रा फजम है।

रे्री राय र्ें यह ककताब एिी है कक यह बािक के हाथ र्ें भी दी जा िकती िं है। यह

दे्वषधर्म की जगह पे्रर्धर्म किखाती है; कहिंिा की जगह आत्म-बकिदान को रखती है; पशुबि

िे टक्कर िेने के किए आत्मबि को खडा करती है। इिकी अनेक आवृकियााँ हो िुकी हैं;

और कजन्हें इिे पढने की परवाह है उनिे इिे पढने की र्ैं जरूर किफ़ाररश करूिं गा। इिर्ें

िे र्ैंने किफम एक ही िं शब्द-और वह एक र्कहिा कर्त्र की इच्छा को र्ान कर-रद ककया है;

इिके किवा और कोई फेरबदि र्ैंने इिर्ें नही िं ककया है।

इि ककताब र्ें ‘आधुकनक िभ्यता' की िख्त टीका की गई है। यह १९०८३ र्ें किखी

गई थी। इिर्ें रे्री जो र्ान्यता प्रगट की गई है, वह आज पहिे िे ज्यादा र्जबूत बनी है।

रु्झे िगता है कक अगर कहिंदुस्तान ‘आधुकनक िभ्यता' का त्याग करेगा, तो उििे उिे िाभ

ही िं होगा।

िेककन र्ैं पाठकोिं को एक िेतावनी देना िाहता हाँ। वे एिा न र्ान िें कक इि

ककताब र्ें कजि स्वराज्य की तिवीर र्ैंने खडी की है, वैिा स्वराज्य कायर् करने के किए

आज रे्री कोकशशें िि रही हैं। र्ैं जानता हाँ कक अभी कहिंदुस्तान उिके किए तैयार नही िं

है। एिा कहने र्ें शायद कढठाई का भाि हो, िेककन रु्झे तो पक्का कवश्वाि है कक इिर्ें

कजि स्वराज्य की तिवीर र्ैंने खी िंिी है, वैिा स्वराज्य पाने की रे्री कनजी कोकशश जरूर

िि रही है। िेककन इिर्ें कोई शक नही िं कक आज रे्री िारू्कहक { आर् } प्रवृकि का धे्यय

तो कहिंदुस्तान की प्रजा की इच्छा के रु्ताकबक पाकिमयारे्न्टरी ढिंग का स्वराज्य पाना है। रेिोिं

या अस्पतािोिं का नाश करने का धे्यय रे्रे र्न र्ें नही िं है, अगरिे उनका कुदरती नाश हो

तो र्ैं जरूर उिका स्वागत करूिं गा। रेि या अस्पताि दोनोिं र्ें िे एक भी ऊाँ िी और

कबिकुि शुद्ध ििंसृ्ककत की िूिक (किह्न) नही िं है। ज्यादा िे ज्यादा इतना ही िं कह िक़ते हैं

कक यह एक एिी बुराई है, जो टािी नही िं जा िकती। दोनोिं र्ें िे एक भी हर्ारे राष्टर की

नैकतक ऊाँ िाई र्ें एक इिंि की भी बढती नही िं करती। उिी तरह र्ैं अदाितोिं के स्थायी {

कायर्ी } नाश का धे्यय र्न र्ें नही िं रखता, हािािंकक एिा नतीजा आये तो रु्झे अवश्य बहुत

अच्छा िगेगा। यिंत्रो िं और कर्िोिं के नाश के किए तो र्ैं उििे भी कर् कोकशश करता हाँ।

उिके किए िोगोिं की आज जो तैयारी है उििे कही िं ज्यादा िादगी और त्याग की जरूरत

रहती है।

इि पुस्तक र्ें बताये हुए कायमक्रर् { प्रोग्रार् } के एक ही िं कहसे्स का आज अर्ि हो

रहा है; वह है अकहिंिा। िेककन र्ैं अफ़िोि के िाथ कबूि करूिं गा कक उिका अर्ि भी

इि पुस्तक र्ें कदखाई हुई भावना िे नही िं हो रहा है। अगर हो तो कहिंदुस्तान एक ही िं रोज़ र्ें

स्वराज्य पा जाय। कहिंदुस्तान अगर पे्रर् के किद्धान्त को अपने धर्म के एक िकक्रय { अर्िी

} अिंश के रूप र्ें स्वीकार करे और उिे अपनी राजनीकत र्ें शाकर्ि करे, तो स्वराज्य स्वगम

िे कहिंदुस्तान की धरती पर उतरेगा। िेककन रु्झे दुःख के िाथ इि बात का भान है कक

एिा होना बहुत दूर की बात है ।

ये वाक् र्ैं इिकिए किख रहा हाँ कक आज के आन्दोिन { तहरीक } को बदनार्

करने के किए इि पुस्तक र्ें िे बहुत िी बातोिं का हवािा कदया जाता र्ैंने देखा है। र्ैंने

इि र्तिब के िेख भी देखे हैं कक र्ैं कोई गहरी िाि िि रहा हाँ, आज की उथि-पुथि

िे िाभ उठा कर अपने अजीब खयाि भारत के किर िादने की कोकशश कर रहा हाँ और

कहिंदुस्तान को नुकिान पहुाँिा कर अपने धाकर्मक प्रयोग कर रहा हाँ। इिका रे्रे पाि यही

जवाब है कक ित्याग्रह एिी कोई कच्ची खोखिी िीज नही िं है। उिर्ें कुछ भी दुराव-कछपाव

नही िं है, उिर्ें कुछ भी गुप्तता नही िं है। कहिंद स्वराज्य र्ें बताये हुए ििंपूणम जीवन-किद्धािंत

के एक भाग को आिरण र्ें िाने की कोकशश हो रही है, इिर्ें कोई शक नही िं। एिा नही िं

कक उि िरू्िे किद्धान्त का अर्ि करने र्ें जोक्तखर् है; िेककन आज देश के िार्ने जो प्रश्न

{ िवाि } है उिके िाथ कजन कहस्सोिं का कोई ििंबिंध नही िं है एिे कहसे्स रे्रे िेखोिं र्ें िे दे

कर िोगोिं को भडकाने र्ें न्याय हरकगज़ नही िं है।

अग्रिेख, यिंग इक्तन्डया , २६-१-१९२१

[अिंगे्रज़ी िे]

_________________

१. १९०९ र्ें

२. र्ािम १९१० र्ें

३. १९०९ र्ें

हिांद स्वराज के प्रकरण

प्रस्तावना

१. कािंगे्रि और उिके कताम-धताम

२. बिंग-भिंग

३. अशािंकत और अििंतोष

४. स्वराज्य क्ा है?

५. इग्लैंड की हाित

६. िभ्यता का दशमन

७. कहिंदुस्तान कैिे गया?

८. कहिंदुस्तान की दशा

९. कहिंदुस्तान की दशा – रेिगाकडयााँ

१०. कहिंदुस्तान की दशा – कहिंदू-रु्ििर्ान

११. कहिंदुस्तान की दशा – वकीि

१२. कहिंदुस्तान की दशा – डॉक्टर

१३. िच्ची िभ्यता कौन िी?

१४. कहिंदुस्तान कैिे आजाद हो?

१५. इटिी और कहिंदुस्तान

१६. गोिा-बारूद

१७. ित्याग्रह-आत्मबि

१८. कशक्षा

१९. र्शीनें

२०. छुटकारा

पररकशष्ट

कुछ प्रर्ाणभूत ग्रिंथ

प्रकतकित व्यक्तियोिं की िाक्षी

प्रस्तावना

इि कवषय { र्ििा } पर र्ैंने जो बीि अध्याय { बाब } किखे हैं, उन्हें पाठकोिं के िार्ने

रखने की र्ैं कहम्मत करता हाँ।

जब रु्झिे रहा ही िं नही िं गया तभी र्ैंने यह किखा है। बहुत पढा, बहुत िोिा।

कविायत र्ें टर ान्सवाि डेपु्यटेशन के िाथ र्ैं िार र्ाह रहा, उि बीि हो िका उतने

कहिंदुस्ताकनयोिं के िाथ र्ैंने िोि-कविार ककया, हो िका उतने अिंगे्रज़ोिं िे भी र्ैं कर्िा। अपने

जो कविार रु्झे आक्तखरी र्ािूर् हुए, उन्हें पाठकोिं के िार्ने रखना र्ैंने अपना फजम िर्झा।

इिं कडयन ओपीकनयन के गुजराती ग्राहक आठ िौ के करीब हैं। हर ग्राहक के पीछे

कर् िे कर् दि आदर्ी कदििस्पी िे यह अखबार पढते हैं , एिा र्ैंने र्हिूि ककया है।

जो गुजराती नही िं जानते, वे दूिरोिं िे पढवाते हैं। इन भाइयोिं ने कहिंदुस्तान की हाित के बारे

र्ें रु्झिे बहुत िवाि ककये हैं। एिे ही िं िवाि रु्झिे कविायत र्ें ककये गये थे। इिकिए रु्झे

िगा कक जो कविार र्ैंने योिं खानगी र्ें बताये, उन्हें िबके िार्ने रखना गित नही िं होगा।

जो कविार यहािं रखे गये हैं, वे रे्रे हैं और रे्रे नही िं भी हैं। वे रे्रे हैं, क्ोिंकक उनके

रु्ताकबक बरतने की र्ैं उम्मीद रखता हाँ; वे रे्री आत्मा र्ें गढे-जडे हुए जैिे हैं। वे रे्रे नही िं

हैं, क्ोिंकक किफम र्ैंने ही िं उन्हें िोिा हो िो बात नही िं। कुछ ककताबें पढने के बाद वे बने हैं।

कदि र्ें भीतर ही िं भीतर र्ैं जो र्हिूि करता था, उिका इन ककताबोिं ने िर्थमन { ताईद }

ककया।

यह िाकबत करने की जरूरत नही िं कक जो कविार र्ैं पाठकोिं के िार्ने रखता हाँ, वे

कहिंदुस्तान र्ें कजन पर (पकश्चर्ी) िभ्यता की धुन िवार नही िं हुई है एिे बहुतेरे कहिंदुस्ताकनयोिं

के हैं। िेककन यही कविार यूरोप के हज़ारोिं िोगोिं के हैं, यह र्ैं अपने पाठकोिं के र्न र्ें

अपने िबूतोिं िे ही जिंिाना िाहता हिं। कजिे इिकी खोज करनी हो, कजिे एिी फुरित हो,

वह आदर्ी वे ककताबें देख िक़ता है। अपनी फुरित िे उन ककताबोिं र्ें िे कुछ न कुछ

पाठकोिं के िार्ने रखने की रे्री उम्मीद है।

इिं कडयन ओपीकनयन के पाठकोिं या औरोिं के र्न र्ें रे्रे िेख पढ कर जो कविार

आये, उन्हें अगर वे रु्झे बतायेंगे तो र्ैं उनका आभारी रहाँगा।

उदे्दश्य किफम देश की िेवा करने का और ित्य की खोज करने का और उिके

रु्ताकबक बरतने का है। इिकिए अगर रे्रे कविार गित िाकबत होिं, तो उन्हें पकड रखने

का रे्रा आग्रह नही िं है। अगर वे िि िाकबत होिं तो दूिरे िोग भी उनके रु्ताकबक बरतें,

एिी देश के भिे के किए िाधारण तौर पर रे्री भावना रहेगी।

िुर्ीते के किए िेखोिं को पाठक और ििंपादक के बीि के ििंवाद का रूप कदया गया

है ।

ककिडोनन कॅिि मोिनदास करमचांद गाांधी

२२-११-१९०९

१. काांगे्रस और उसके कताच-धताच

पाठक: आजकि कहिंदुस्तान र्ें स्वराज्य की हवा िि रही है। िब कहिंदुस्तानी आजाद होने

के किए तरि रहें हैं। दकक्षण अकिका र्ें भी वही जोश कदखाई दे रहा है। कहिंदुस्ताकनयोिं र्ें

अपने हक पाने की बडी कहम्मत आई हुई र्ािूर् होती है। इि बारे र्ें क्ा आप अपने

खयाि बतायेंगे?

सांपादक: आपने िवाि ठीक पूछा है। िेककन इिका जवाब देना आिान बात नही िं है।

अखबार का एक कार् तो है िोगोिं की भावनायें जानना और उन्हें जाकहर करना; दूिरा

कार् है िोगोिं र्ें अरु्क जरूरी भावनायें पैदा करना; और तीिरा कार् है िोगोिं र्ें दोष होिं

तो िाहे कजतनी रु्िीबतें आने पर भी बेधडक होकर उन्हें कदखाना। आपके िवाि का

जवाब देने र्ें ये तीनोिं कार् िाथ-िाथ आ जाते हैं। िोगोिं की भावनायें कुछ हद तक बतानी

होिंगी, न होिं वैिी भावनायें उनर्ें पैदा करने की कोकशश करनी होगी और उनके दोषोिं की

कनिंदा भी करनी होगी। कफर भी आपने िवाि ककया है, इिकिए उिका जवाब देना रे्रा

फजम र्ािूर् होता है।

पाठक: क्ा स्वराज्य की भावना कहिंद र्ें पैदा हुई आप देखते हैं?

सांपादक: वह तो जब िे नेशनि कािंगे्रि कायर् हुई तभी िे देखने र्ें आई है। 'नेशनि'

शब्द का अथम ही िं वही कविार जाकहर करता है।

पाठक: यह तो आपने ठीक नही िं कहा। नौजवान कहिंदुस्तानी आज कािंगे्रि की परवाह ही िं

नही िं करते। वे तो उिे अिंगे्रज़ोिं का राज्य कनभाने का िाधन { औज़ार, ज़ररया } र्ानते हैं।

सांपादक: नौजवानोिं का एिा खयाि ठीक नही िं है। कहिंद के दादा दादाभाई नौरोजी ने जर्ीन

तैयार नही िं की होती, तो नौजवान आज जो बातें कर रहें हैं वह भी नही िं कर पाते। कर्. ह्यूर्

ने जो िेख किखे, जो फटकारें हर्ें िुनाई, कजि जोश िे हर्ें जगाया, उिे कैिे भुिाया

जाय? िर कवकियर् वेडरबनम ने कािंगे्रि का र्क़िद हाकिि करने के किए अपना तन, र्न

और धन िब दे कदया था। उन्होिंने अिंगे्रज़ी राज्य के बारे र्ें जो िेख किखे हैं, वे आज भी

पढने िायक हैं। प्रोफेिर गोखिे ने जनता को तैयार करने के किए, कभखारी के जैिी हाित

र्ें रहकर, अपने बीि िाि कदये हैं। आज भी वे गरीबी र्ें रहते हैं। र्रहर् जक्तटि

बदरूद्दीन ने भी कािंगे्रि के जररये स्वराज्य का बीज बोया था। योिं बिंगाि, र्द्राि, पिंजाब

वगैरा र्ें कािंगे्रि का और कहिंद का भिा िाहने वािे कई कहिंदुस्तानी और अिंगे्रज़ िोग हो गये

हैं, यह याद रखना िाकहए।

पाठक: ठहररए, ठहररए। आप तो बहुत आगे बढ गये। रे्रा िवाि कुछ है और आप

जवाब कुछ और दे रहें हैं। र्ैं स्वराज्य की बात करता हाँ और आप परराज्य की बात करते

हैं। रु्झे अिंगे्रज़ोिं का नार् तक नही िं िाकहए और आप तो अिंगे्रज़ोिं का नार् देने िगे। इि तरह

तो हर्ारी गाडी राह पर आये, एिा नही िं कदखता। रु्झे तो स्वराज्य की ही िं बातें अच्छी िगती

हैं। दूिरी र्ीठी ियानी बातोिं िे रु्झे ििंतोष नही िं होगा।

सांपादक: आप अधीर हो गये हैं। र्ैं अधीरपन बरदाश्त नही िं कर िक़ता। आप जरा िि

करेंग तो आपको जो िाकहए वही कर्िेगा। 'उताविी िे आर् नही िं पकते, दाि नही िं िुरती'

– यह कहावत याद रक्तखए। आपने रु्झे रोका और आपको कहिंद पर उपकार करनेवािोिं

की बात भी िुननी अच्छी नही िं िगती, यह बताता है कक अभी आपके किए स्वराज्य दूर है।

आपके जैिे बहुत िे कहिंदुस्तानी होिं, तो हर् ( स्वराज्य िे ) दूर हट कर कपछड जायेंगे। वह

बात जरा िोिने िायक है।

पाठक: रु्झे तो िगता है कक ये गोि-र्ोि बातें बनाकर आप रे्रे िवाि का जवाब उडा

देना िाहते हैं। आप कजन्हें कहिंदुस्तान पर उपकार करनेवािे र्ानते हैं, उन्हें र्ैं एिा नही िं

र्ानता; कफर रु्झे ककिके उपकार की बात िुननी है? आप कजन्हें कहिंद के दादा कहते हैं,

उन्होिंने क्ा उपकार ककया? वे तो कहते हैं कक अिंगे्रज़ राजकताम न्याय करें गे और उनिे हर्ें

कहिकर्ि कर रहना िाकहए।

सांपादक: रु्झे िकवनय { अदब िे } आपिे कहना िाकहए कक उि पुरूष के बारे र्ें आपका

बेअदबी िे योिं बोिना हर्ारे किए शरर् की बात है। उनके कार्ोिं की ओर देक्तखए। उन्होिंने

अपना जीवन कहिंद को अपमण { नज़र } कर कदया है। उनिे यह िबक हर्ने िीखा। कहिंद

का खून अिंगे्रज़ोिं ने िूि किया है, यह किखानेवािे र्ाननीय दादाभाई हैं। आज उन्हें अिंगे्रज़ोिं

पर भरोिा है उििे क्ा? हर् जवानी के जोश र्ें एक कदर् आगे रखते हैं, इििे कया

दादाभाई कर् पूज्य हो जाते हैं? इििे क्ा हर् ज्यादा ज्ञानी हो गये? कजि िीढी िे हर्

ऊपर िढे उिको िात न र्ारने र्ें ही िं बुक्तद्धर्ानी { अक़िर्िंदी } है। अगर वह िीढी कनकाि

दें तो िारी कनिैनी कगर जाय, यह हर्ें याद रखना िाकहए। हर् बिपन िे जवानी र्ें आते हैं

तब बिपन िे नफरत नही िं करते, बक्ति उन कदनोिं को प्यार िे याद करते हैं। बरिोिं तक

अगर रु्झे कोई पढाता है और उििे रे्री जानकारी जरा बढ जाती है, तो इििे र्ैं अपने

कशक्षक { उस्ताद } िे ज्यादा ज्ञानी नही िं र्ाना जाऊाँ गा; अपने कशक्षक को तो रु्झे र्ान {

इज़्जत } देना ही िं पडेगा। इिी तरह कहिंद के दादा के बारे र्ें िर्झना िाकहए। उनके पीछे

(िारी) कहिंदुस्तानी जनता है, यह तो हर्ें कहना ही िं पडेगा।

पाठक: यह आपने ठीक कहा। दादाभाई नौरोजी की इज्जत करना िाकहए, यह तो िर्झ

िकते हैं। उन्होिंने और उनके जैिे दूिरे पुरूषोिं ने जो कार् ककये हैं, उनके बगैर हर् आज

का जोश र्हिूि नही िं कर पाते, यह बात ठीक िगती है। िेककन यही बात प्रोफेिर गोखिे

िाहब के बारे र्ें हर् कैिे र्ान िक़ते हैं? वे तो अिंगे्रज़ोिं के बडे भाईबिंद बन कर बैठे हैं; वे

तो कहते हैं कक अिंगे्रज़ोिं िे हर्ें बहुत कुछ िीखना है। अिंगे्रजोिं की राजनीकत िे हर् वाककफ

हो जायें, तभी स्वराज्य की बातिीत की जाय। उन िाहब के भाषणोिं िे तो र्ैं ऊब गया हाँ।

सांपादक: आप ऊब गये हैं, यह कदखाता है कक आपका कर्ज़ाज उताविा है। िेककन जो

नौजवान अपने र्ााँ-बाप के ठिं डे कर्ज़ाज िे ऊब जाते हैं और वे (र्ािं-बाप) अगर अपने िाथ

न दौडें तो गुस्सा होते हैं, वे अपने र्ािं-बाप का अनादर { बेअदबी } करते हैं एिा हर्

िर्झते हैं। प्रोफेिर गोखिे के बारे र्ें भी एिा ही िं िर्झना िाकहए। क्ा हुआ अगर

प्रोफेिर गोखिे हर्ारे िाथ नही िं दौडते हैं? स्वराज्य भुगतने की इच्छा रखनेवािी प्रजा

अपने बुजुगों का कतरस्कार { बेइज़्जती, नफ़रत } नही िं कर िकती िं। अगर दूिरे की इज्जत

करने की आदत हर् खो बैठे, तो हर् कनकमे्म हो जायेंगे। जो प्रौढ { पुख्ता } और तजरबेकार

हैं, वे ही िं स्वराज्य भुगत िक़ते हैं, न कक बे-िगार् िोग। और देक्तखए कक जब प्रोफेिर

गोखिे ने कहिंदुस्तान की कशक्षा { तािीर् } के किए त्याग ककया तब एिे ककतने कहिंदुस्तानी

थे? र्ैं तो खाि तौर पर र्ानता हाँ कक प्रोफेिर गोखिे जो कुछ भी करते हैं वह शुद्ध भाव

िे और कहिंदुस्तान का कहत र्ानकर करते हैं। कहिंद के किए अगर अपनी जान भी देनी पडे

तो वे दे देंगे, एिी कहिंद के किए उनकी भक्ति है। वे जो कुछ कहते हैं वह ककिी की खुशार्द

करने के किए नही िं, बक्ति िही र्ानकर कहते हैं। इिकिए हर्ारे र्न र्ें उनके किए पूज्य

भाव होना िाकहए।

पाठक: तो क् या वे िाहब जो कहते हैं उिके रु्ताकबक हर्ें भी करना िाकहए?

सांपादक: र्ैं एिा कुछ नही िं कहता। अगर हर् शुद्ध बुक्तद्ध िे अिग राय रखते हैं, तो उि

राय के रु्ताकबक ििने की ििाह खुद प्रोफेिर िाहब हर्ें दें गे। हर्ारा रु्ख्य कार् तो यह

है कक हर् उनके कार्ोिं की कनन्दा न करें ; हर्िे वे र्हान हैं एिा र्ाने और यक़ीन रखें कक

उनके रु्काबिे र्ें हर्ने कहिंद के किए कुछ भी नही िं ककया है। उनके बारे र्ें कुछ अखबार

जो अकशष्टतापूवमक { बेअदबी िे } किखते हैं उिकी हर्ें कनन् दा करनी िाकहए और प्रोफेिर

गोखिे जैिो को हर्ें स्वराज्य के स्तिंभ { खिंभ } र्ानना िाकहए। उनके खयाि गित और

हर्ारे ही िं िही हैं, या हर्ारे खयािोिं के रु्ताकबक न बरतनेवािे देश के दुश्मन हैं , एिा र्ान

िेना बुरी भावना है।

पाठक: आप जो कुछ कहते हैं वह अब रे्री िर्झ र्ें कुछ आता है। कफर भी रु्झे उिके

बारे र्ें िोिना होगा। पर कर्. ह्यूर्, िर कवकियर् वेडरबनम वगैरा के बारे र्ें आपने जो कहा

उिर्ें तो हद हो गई।

सांपादक: जो कनयर् कहिंदुस्ताकनयोिं के बारे र्ें है, वही अिंगे्रज़ोिं के बारे र्ें िर्झना िाकहए।

िारे के िारे अिंगे्रज़ बुरे हैं , एिा तो र्ैं नही िं र्ानूाँगा। बहुत िे अिंगे्रज िाहते हैं कक कहिंदुस्तान

को स्वराज्य कर्िे। उि प्रजा र्ें स्वाथम ज्यादा है यह ठीक है, िेककन उििे हर एक अिंगे्रज़

बुरा है एिा िाकबत नही िं होता। जो हक – न्याय { इन्साफ़ } – िाहते हैं, उन्हें िबके िाथ

न्याय करना होगा। िर कवकियर् कहिंदुस्तान का बुरा िाहनेवािे नही िं हैं, इतना हर्ारे किए

काफ़ी है। ज्योिं ज्योिं हर् आगे बढेंगे त्योिं त्योिं आप देखेंगे कक अगर हर् न्याय की भावना िे

कार् िेंगे, तो कहिंदुस्तान का छुटकारा जल्दी होगा। आप यह भी देखेंगे कक अगर हर् तर्ार्

अिंगे्रज़ोिं िे दे्वष { नफ़रत } करें गे, तो उििे स्वराज्य दूर ही िं जानेवािा है; िेककन अगर

उनके िाथ भी न्याय करें गे, तो स्वराज्य के किए हर्ें उनकी र्दद कर्िेगी।

पाठक: अभी तो ये िब रु्झे कफजूि की बडी बडी बातें िगती हैं। अिंगे्रज़ोिं की र्दद कर्िे

और उििे स्वराज्य कर्ि जाय, ये तो आपने दो उिटी बातें कही िं। िेककन इि िवाि का

हि अभी रु्झे नही िं िाकहए। उिर्ें िर्य कबताना बेकार है। स्वराज्य कैिे कर्िेगा, यह जब

आप बतायेंगे तब शायद आपके कविार र्ैं िर्झ िकूाँ तो िर्झ िकूाँ । कफिहाि तो अिंगे्रज़ोिं

की र्दद की आपकी बात ने रु्झे शिंका र्ें डाि कदया है और आपके कविारोिं के क्तखिाफ

रु्झे भरर्ा कदया है। इिकिए यह बात आप आगे न बढाये तो अच्छा हो।

सांपादक: र्ैं अिंगे्रज़ोिं की बात को बढाना नही िं िाहता। आप शिंका र्ें पड गये, इिकी कोई

कफकर नही िं। रु्झे जो र्हत्त्व [ अहर्् } की बात कहनी है, उिे पहिे िे ही िं बता देना ठीक

होगा। आपकी शिंका को धीरज िे दूर करना रे्रा फजम है।

पाठक: आपकी यह बात रु्झे पिन्द आयी। इििे रु्झे जो ठीक िगे वह बात कहने की

रु्झ र्ें कहम्मत आई है। अभी रे्री एक शिंका रह गई है। कािंगे्रि के आरम्भ िे स्वराज्य की

नी िंव पडी, यह कैिे कहा जा िक़ता है?

सांपादक: देक्तखये, कािंगे्रि ने अिग अिग जगहोिं पर कहिंदुस्ताकनयोिं को इकट्ठा करके उनर्ें

'हर् एक-राष्टर हैं' एिा जोश पैदा ककया। कािंगे्रि पर िरकार की कडी नज़र रहती थी।

र्हिूि का हक प्रजा को होना िाकहए, एिी र्ािंग कािंगे्रि ने हरे्शा की है। जैिा स्वराज्य

कॅनेडा र्ें है वैिा स्वराज्य कािंगे्रि ने हरे्शा िाहा है। वैिा स्वराज्य कर्िेगा या नही िं कर्िेगा,

वैिा स्वराज्य हर्ें िाकहए या नही िं िाकहए, उििे बढकर दूिरा कोई स्वराज्य है या नही िं,

यह िवाि अिग है। रु्झे कदखाना तो इतना ही िं है कक कािंगे्रि ने कहिंद को स्वराज्य का रि

िखाया। इिका जि कोई और िेना िाहे तो वह ठीक न होगा, और हर् भी एिा र्ाने तो

बेक़दर { कृतघ्न } ठहरें गे। इतना ही िं नही िं, बक्ति जो र्क़िद हर् हाकिि करना िाहते हैं

उिर्ें रु्िीबतें पैदा होिंगी। कािंगे्रि को अिग िर्झने और स्वराज्य के क्तखिाफ र्ानने िे

हर् उिका उपयोग नही िं कर िक़ते।

२. बांग-भांग

पाठक: आप कहते हैं उि तरह कविार करने पर यह ठीक िगता है कक कािंगे्रि ने स्वराज्य

की नी िंव डािी। िेककन यह तो आप र्ानेंगे कक वह िही जागृकत { जाग } नही िं थी। िही

जागृकत कब और कैिे हुई?

सांपादक: बीज हरे्शा हर्ें कदखाई नही िं देता। वह अपना कार् जर्ीन के नीिे करता है

और जब खुद कर्ट जाता है तब पेड जर्ीन के ऊपर देखने र्ें आता है। कािंगे्रि के बारे र्ें

एिा ही िं िर्कझये। कजिे आप िही जागृकत र्ानते हैं वह तो बिंग-भिंग िे हुई, कजिके किए

हर् िोडम कज़मन के आभारी हैं। बिंग-भिंग के वक् त बिंगाकियोिं ने कज़मन िाहब िे बहुत प्राथमना

को, िेककन वे िाहब अपनी ििा के र्द र्ें िापरवाह रहें। उन्होिंने र्ान किया कक कहिंदुस्तानी

िोग किफम बकवाि ही िं करें गे, उनिे कुछ भी नही िं होगा। उन्होिंने अपर्ानभरी भाषा का

प्रयोग ककया और जबरदस्ती बिंगाि के डुकडे ककये। हर् यह र्ान िक़ते हैं कक उि कदन

िे अिंगे्रज़ी राज्य के भी टुकडे हुए। बिंग-भिंग िे जो धक्का अिंगे्रज़ी हुकूर्त को िगा, वैिा

और ककिी कार् िे नही िं िगा। इिका र्तिब यह नही िं कक जो दूिरे गैर-इन्साफ़ हुए, वे

बिंग-भिंग िे कुछ कर् थे। नर्क-र्हिूि कुछ कर् गैर-इन्साफ़ नही िं है। एिा और तो आगे

हर् बहुत देखेंगे। िेककन बिंगाि के डुकडे करने का कवरोध { रु्खाकिफ़त } करने के किए

प्रजा तैयार थी। उि वक् त प्रजा की भावना बहुत तेज़ थी। उि िर्य बिंगाि के बहुतेरे नेता

अपना िब कुछ न्यौछावर करने को तैयार थे। अपनी ििा, अपनी ताक़त को वे जानते थे।

इिकिए तुरन्त आग भडक उठी। अब वह बुझनेवािी नही िं है, उिे बुझाने की जरूरत भी

नही िं है। ये टुकडे कायर् नही िं रहेंगे, बिंगाि कफर एक हो जाएगा। िेककन अिंगे्रज़ी जहाज़ र्ें

जो दरार पडी है, वह तो हरे्शा रहेगी ही िं। वह कदन-ब-कदन िौडी होती जाएगी। जागा हुआ

कहिंद कफर िो जाय, वह नारु्र्ककन है। बिंग-भिंग को रद करने की र्ािंग स्वराज्य की र्ािंग

के बराबर है। बिंगाि के नेता यह बात खूब जानते हैं। अिंगे्रज़ी हुकूर्त भी यह बात िर्झती

है। इिीकिए टुकडे रद नही िं हुए। ज्योिं ज्योिं कदन बीतते जाते हैं, त्योिं त्योिं प्रजा तैयार होती

जाती है। प्रजा एक कदन र्ें नही िं बनती; उिे बनने र्ें कई बरि िग जाते हैं।

पाठक: बिंग-भिंग के नतीजे आपने कया देखे?

सांपादक: आज तक हर् र्ानते आये हैं कक बादशाह िे अजम करना िाकहए और बैिा करने

पर भी दाद न कर्िे तो दुःख िहन करना िाकहए; अिबिा, अजम तो करते ही िं रहना िाकहए।

बिंगाि के टुकडे होने के बाद िोगोिं ने देखा कक हर्ारी अजम के पीछे कुछ ताक़त िाकहए,

िोगोिं र्ें कष्ट िहन करने की शक्ति िाकहए। यह नया जोश टुकडे होने का अहर् नतीजा

र्ाना जाएगा। यह जोश अखबारोिं के िेखोिं र्ें कदखाई कदया। िेख कडे होने िगे। जो बात

िोग डरते हुए या िोरी-िुपके करते थे, वह खुल्लर्खुल्ला होने िगी — किखी जाने िगी।

स्वदेशी का आन्दोिन { तहरीक } ििा। अिंगे्रजोिं को देखकर छोटे-बडे िब भागते थे, पर

अब नही िं डरते; र्ार-पीट िे भी नही िं डरते; जेि जाने र्ें भी उन्हें कोई हजम नही िं र्ािूर्

होता; और कहिंद के पुत्ररत्न आज देशकनकािा भुगतते हुए (कवदेशोिं र्ें) कवराजर्ान हैं। यह

िीज उि अजम िे अिग है। योिं िोगोिं र्ें खिबिी र्ि रही है। बिंगाि की हवा उिर र्ें

पिंजाब तक और (दकक्षण र्ें) र्द्राि इिाके र्ें कन्याकुर्ारी तक पहुाँि गई है।

पाठक: इिके अिावा और कोई जानने िायक नतीजा आपको िूझता है? सांपादक: बिंग-

भिंग िे जैिे अिंगे्रज़ी जहाज़ र्ें दरार पडी है, वैिे ही िं हर् र्ें भी दरार – फूट— पडी है। बडी

घटनाओिं के पररणार् { नतीजे़ } भी योिं बडे ही िं होते हैं। हर्ारे नेताओिं र्ें दो दि हो गये हैं:

एक र्ोडरेट और दूिरा एक्स्ट्र ीकर्ट। उनको हर् 'धीरे्' और ‘उताविे' कह िक़ते हैं।

(‘नरर् दि' व ‘गरर् दि' शब्द भी ििते हैं।) कोई र्ोडरेट को डरपोक पक्ष और

एक्स्ट्र ीकर्ट को कहम्मतवािा पक्ष भी कहते हैं। िब अपने अपने खयािोिं के रु्ताकबक इन

दो शब्दोिं का अथम करते हैं। यह िि है कक ये जो दि हुए हैं, उनके बीि जहर भी पैदा

हुआ है। एक दि दूिरे का भरोिा नही िं करता, दोनोिं एक-दूिरे को ताना र्ारते हैं। िुरत

कािंगे्रि के िर्य करीब करीब र्ार-पीट भी हो गई। ये जो दो दि हुए हैं वह देश के किए

अच्छी कनशानी { किह्न } नही िं है, एिा रु्झे तो िगता है। िेककन र्ैं यह भी र्ानता हाँ कक एिे

दि िमे्ब अरिे तक कटकें गे नही िं। इि तरह कब तक ये दि रहेंगे, यह तो नेताओिं पर

आधार रखता है।

३. अशाांहत और असांतोष

पाठक: तो आपने बिंग-भिंग को जागृकत का कारण र्ाना। उििे फैिी हुई अशािंकत को

ठीक िर्झा जाय या नही िं?

सांपादक: इनिान नी िंद र्ें िे उठता है तो अिंगडाई िेता है, इधर-उधर घूर्ता है और

अशान्त { बेिैन } रहता है। उिे पूरा भान { िुध } आने र्ें कुछ वक् त िगता है। उिी तरह

अगरिे बिंग-भिंग िे जागृकत आई है, कफर भी बेहोशी नही िं गई है। अभी हर् अिंगडाई िेने

की हाित र्ें हैं। अभी अशाक्तन्त की हाित है। जैिे नी िंद और जाग के बीि की हाित

जरूरी र्ानी जानी िाकहए और इिकिए वह ठीक कही जाएगी, वैिे बिंगाि र्ें और उि

कारण िे कहिंदुस्तान र्ें जो अशाक्तन्त फैिी है वह भी ठीक है। अशाक्तन्त है यह हर् जानते हैं,

इिकिए शाक्तन्त का िर्य आने की शक्ता { इर्कान } है। नी िंद िे उठने के बाद हरे्शा

अिंगडाई िेने की हाित र्ें हर् नही िं रहते, िेककन देर-िबेर अपनी शक्ति के रु्ताकबक पूरे

जागते ही िं हैं। इिी तरह इि अशाक्तन्त र्ें िे हर् जरूर छूटें गे। अशाक्तन्त ककिी को नही िं

भाती।

पाठक: अशाक्तन्त का दूिरा रूप क् या है?

सांपादक: अशाक्तन्त अिि र्ें अििंतोष है। उिे आजकि हर् ‘अनरेट’ कहते हैं। कािंगे्रि

के जर्ाने र्ें वह ‘कडस्कने्टन्ट' कहिाता था। कर्. ह्यूर् हरे्शा कहते थे कक कहिंदुस्तान र्ें

अििंतोष फैिाने की जरूरत है। यह अििंतोष बहुत उपयोगी िीज है। जब तक आदर्ी

अपनी िािू हाित र्ें खुश रहता है, तब तक उिर्ें िे कनकिने के किए उिे िर्झाना

रु्क्तिि है। इिकिए हर एक िुधार के पहिे अििंतोष होना ही िं िाकहए। िािू िीज िे ऊब

जाने पर ही िं उिे फें क देने को र्न करता है। एिा अििंतोष हर् र्ें र्हान कहिंदुस्ताकनयोिं की

और अिंगे्रज़ोिं की पुस्तकें पढकर पैदा हुआ है। उि अििंतोष िे अशाक्तन्त पैदा हुई; और उि

अशाक्तन्त र्ें कई िोग र्रे, कई बरबाद हुए, कई जेि गये, कई को देशकनकािा हुआ। आगे

भी एिा होगा; और होना िाकहए। ये िब िक्षण { कनशाकनयािं } अचे्छ र्ाने जा िक़ते हैं।

िेककन इनका नतीजा बुरा भी आ िक़ता है।

४. स्वराज्य क् या िै?

पाठक: कािंगे्रि ने कहिंदुस्तान को एक-राष्टर बनाने के किए क् या ककया, बिंग-भिंग िे जागृकत

कैिे हुई, अशाक्तन्त और अििंतोष कैिे फैिे, यह िब जाना। अब र्ैं यह जानना िाहता हाँ

कक स्वराज्य के बारे र्ें आपके क्ा खयाि हैं। रु्झे डर है कक शायद हर्ारी िर्झ र्ें फरक

हो।

सांपादक: फरक होना रु्र्ककन है। स्वराज्य के किए आप-हर् िब अधीर बन रहें हैं,

िेककन वह कया है इि बारे र्ें हर् ठीक राय पर नही िं पहुाँिे हैं। अिंगे्रज़ोिं को कनकाि बाहर

करना िाकहए, यह कविार बहुतोिं के रु्ाँह िे िुना जाता है; िेककन उन्हें क्ोिं कनकािना

िाकहए, इिका कोई ठीक खयाि ककया गया हो एिा नही िं िगता। आपिे ही िं एक िवाि

र्ैं पूछता हाँ। र्ान िीकजये कक हर् र्ािंगते हैं उतना िब अिंगे्रज हर्ें दे दें , तो कफर उन्हें (यहााँ

िे) कनकाि देने की जरूरत आप िर्झते हैं?

पाठक: र्ैं तो उनिे एक ही िं िीज र्ािंगूाँगा। वह है: रे्हरबानी करके आप हर्ारे रु्ि िे

ििे जायें। यह र्ााँग वे कबूि करें और कहिंदुस्तान िे ििे जायें, तब भी अगर कोई एिा अथम

का अनथम { िही का गित अथम } करें कक वे यही िं रहते हैं, तो रु्झे उिकी परवाह नही िं

होगी। तब कफर हर् एिा र्ानेंगे कक हर्ारी भाषा र्ें कुछ िोग ‘जाना’ का अथम 'रहना' करते

हैं।

सांपादक: अच्छा, हर् र्ान िें कक हर्ारी र्ााँग के रु्ताकबक अिंगे्रज़ ििे गये। उिके बाद

आप क् या करें गे?

पाठक: इि िवाि का जवाब अभी िे कदया ही िं नही िं जा िक़ता। वे ककि तरह जाते हैं,

उि पर बाद की हाित का आधार रहेगा। र्ान िें कक आप कहते हैं उि तरह वे ििे गये,

तो रु्झे िगता है कक उनका बनाया हुआ कवधान { दसू्तर } हर् िािू रखेंगे और राज का

कारोबार ििायेंगे। कहने िे ही िं वे ििे जायें तो हर्ारे पाि ििर तैयार ही िं होगा, इिकिए

हर्ें राजकाज ििाने र्ें कोई रु्क्तिि नही िं आयेगी।

सांपादक: आप भिे ही िं एिा र्ाने, िेककन र्ैं नही िं र्ानूाँगा। कफर भी र्ैं इि बात पर ज्यादा

बहि नही िं करना िाहता। रु्झे तो आपके िवाि का जवाब देना है। वह जवाब र्ैं आपिे

ही िं कुछ िवाि करके अच्छी तरह दे िक़ता हाँ। इिकिए कुछ िवाि आपिे करता हाँ।

हर् अिंगे्रज़ोिं को क्ोिं कनकािना िाहते हैं?

पाठक: इिकिए कक उनके राज-कारोबार िे देश किं गाि होता जा रहा है। वे हर िाि देश

िे धन िे जाते हैं। वे अपनी ही िं िर्डी के िोगोिं को बडे ओहदे देते हैं, हर्ें किफम गुिार्ी र्ें

रखते हैं, हर्ारे िाथ बेअदबी का बरताव करते हैं और हर्ारी जरा भी परवा नही िं करते।

सांपादक: अगर वे धन बाहर न िे जायें, नम्र बन जायें और हर्ें बडे ओहदे दें, तो उनके

रहने र्ें आपको कुछ हजम है?

पाठक: यह िवाि ही िं बेकार है। बाघ अपना रूप { िूरत } पिट दे तो उिकी भाईबिंदी

िे कोई नुकिान है? एिा िवाि आपने पूछा, यह किफम वक् त बरबाद करने के खाकतर ही िं।

अगर बाघ अपना स्वभाव { कर्ज़ाज } बदि िके, तो अिंगे्रज़ िोग अपनी आदत छोड िक़ते

हैं। जो कभी होनेवािा नही िं है वह होगा, एिा र्ानना र्नुष्य की रीत ही िं नही िं है।

सांपादक: कॅनेडा को जो राजििा कर्िी है, बोअर िोगोिं को जो राजििा कर्िी है, वैिी

ही िं हर्ें कर्िे तो?

पाठक: यह भी बेकार िवाि है। हर्ारे पाि उनकी तरह गोिाबारूद हो तब वैिा जरूर

हो िक़ता है। िेककन उन िोगोिं के कजतनी ििा जब अिंगे्रज़ हर्ें दें गे तब हर् अपना ही िं

झिंडा रखेंगे। जैिा जापान वैिा कहिंदुस्तान। अपना जिंगी बेडा, अपनी फौज़ और अपनी

जाहोजिािी { िरृ्क्तद्ध, र्ािार्ािी } होगी। और तभी कहिंदुस्तान का िारी दुकनया र्ें

बोिबािा होगा।

सांपादक: यह तो आपने अच्छी तिवीर खी िंिी। इिका अथम यह हुआ कक हर्ें अिंगे्रज़ी राज्य

तो िाकहए, पर अिंगे्रज़ (शािक) नही िं िाकहए। आप बाघ का स्वभाव तो िाहते हैं , िेककन

बाघ नही िं िाहते। र्तिब यह हुआ कक आप कहिंदुस्तान को अिंगे्रज़ बनाना िाहते हैं। और

कहिंदुस्तान जब अिंगे्रज़ बन जाएगा तब वह कहिंदुस्तान नही िं कहा जाएगा, िेककन िच्चा

इिं क्तग्लस्तान कहा जाएगा। यह रे्री कल्पना का स्वराज्य नही िं है।

पाठक: र्ैंने तो जैिा रु्झे िूझता है वैिा स्वराज्य बतिाया। हर् जो कशक्षा पाते हैं वह अगर

कुछ कार् की हो, से्पन्सर, कर्ि वगैरा र्हान िेखकोिं के जो िेख हर् पढते हैं वे कुछ कार्

के होिं, अिंगे्रज़ोिं की पाकिमयारे्न्ट पाकिमयारे्न्टोिं की र्ाता हो, तो कफर बेशक रु्झे तो िगता है

कक हर्ें उनकी नकि करनी िाकहए; वह यहााँ तक कक जैिे वे अपने रु्ि र्ें दूिरोिं को

घुिने नही िं देते वैिे हर् भी दूिरोिं को न घुिने दें। योिं तो उन्होिंने अपने देश र्ें जो ककया है,

वैिा और जगह अभी देखने र्ें नही िं आता। इिकिए उिे तो हर्ें अपने देश र्ें अपनाना ही िं

िाकहए। िेककन अब आप अपने कविार बतिाइए।

सांपादक: अभी देर है। रे्रे कविार अपने आप इि ििाम र्ें आपको र्ािूर् हो जायेंगे।

स्वराज्य को िर्झना आपको कजतना आिान िगता है उतना ही िं रु्झे रु्क्तिि िगता है।

इिकिए कफिहाि र्ैं आपको इतना ही िं िर्झाने की कोकशश करूाँ गा कक कजिे आप

स्वराज्य कहते हैं वह ििरु्ि स्वराज्य नही िं है।

५. इांग्लैंड की िालत

पाठक: आप जो कहते हैं उि पर िे तो र्ैं यही अिंदाज िगाता हाँ कक इिंग्लैंड र्ें जो राज्य

ििता है वह ठीक नही िं है और हर्ारे िायक नही िं है।

सांपादक: आपका यह खयाि िही है। इिंग्लैंड र्ें आज जो हाित है वह ििरु्ि दयनीय –

तरि खाने िायक है। र्ैं तो भगवान िे यही र्ााँगता हाँ कक कहिंदुस्तान की एिी हाित कभी

न हो। कजिे आप पाकिमयारे्न्टोिं की र्ाता कहते हैं, वह पाकिमयारे्न्ट तो बािंझ और बेिवा {

वेश्या } है। ये दोनोिं शब्द बहुत कडे हैं, तो भी उिे अच्छी तरह िागू होते हैं। र्ैंने उिे बािंझ

कहा, क्ोिंकक अब तक उि पाकिमयारे्न्ट ने अपने आप एक भी अच्छा कार् नही िं ककया।

अगर उि पर

जोर – दबाव डािनेवािा कोई न हो तो वह कुछ भी न करे, एिी उिकी कुदरती हाित

है। और वह बेिवा है क्ोिंकक जो र्िंकत्र-र्िंडि उिे रखे उिके पाि वह रहती है। आज

उिका र्ाकिक एक्तिथ है, तो कि बािफर होगा और परिोिं कोई तीिरा।

पाठक: आपके बोिने र्ें कुछ व्यिंग्य { भेद } है। बािंझ शब्द को अब तक आपने िागू नही िं

ककया। पाकिमयारे्न्ट िोगोिं की बनी है, इिकिए बेशक िोगोिं के दबाव िे ही िं वह कार् करेगी।

वही उिका गुण { किफ़त } है, उिके ऊपर का अिंकुश {काबू } है।

सांपादक: यह बडी गित बात है। अगर पाकिमयारे्न्ट बािंझ न हो तो इि तरह होना िाकहए

– िोग उिर्ें अचे्छ िे अचे्छ रे्म्बर िुनकर भेजते हैं। रे्म्बर तनख्वाह नही िं िेते, इिकिए

उन्हें िोगोिं की भिाई के किए (पाकिमयारे्न्ट र्ें) जाना िाकहए। िोग खुद िुकशकक्षत-ििंस्कारी

{ तािीर्याफ़्ता } र्ाने जाते हैं, इिकिए उनिे भूि नही िं होती एिा हर्ें र्ानना िाकहए। एिी

पाकिमयारे्न्ट को अजी की जरूरत नही िं होनी िाकहए, न दबाव की। उि पाकिमयारे्न्ट का

कार् इतना िरि होना िाकहए कक कदन-ब-कदन उिका तेज बढता जाय और िोगोिं पर

उिका अिर होता जाय। िेककन इििे उिटे इतना तो िब कबूि करते हैं कक पाकिमयारे्न्ट

के रे्म्बर कदखावटी और स्वाथी { खुदगजम } पाये जाते हैं। िब अपना र्तिब िाधने की

िोिते हैं। किफम डर के कारण ही िं पाकिमयारे्न्ट कुछ कार् करती है। जो कार् आज ककया

वह कि उिे रद करना पडता है। आज तक एक भी िीज को पाकिमयारे्न्ट र्ें कठकाने

िगाया हो एिी कोई कर्िाि देखने र्ें नही िं आती। बडे िवािोिं की ििाम जब पाकिमयारे्न्ट

र्ें ििती है, तब उिके रे्म्बर पैर फैिाकर िेटते हैं या बैठे बैठे झपककयााँ िेते हैं। उि

पाकिमयारे्न्ट र्ें रे्म्बर इतने जोरोिं िे किल्लाते हैं कक िुननेवािे हैरान-परेशान हो जाते हैं।

उिके एक र्हान िेखक ने उिे ‘दुकनया की बातूनी' जैिा नार् कदया है। रे्म्बर कजि पक्ष

{ दि, पाटी } के होिं उि पक्ष के किए अपना र्त वे बगैर िोिे-कविारे देते हैं, देने को बाँधे

हुए हैं। अगर कोई रे्म्बर इिर्ें अपवादरूप { इसु्तनाके तीर पर } कनकि आये, तो उिकी

कर्बख़्ती ही िं िर्कझये। कजतना िर्य और पैिा पाकिमयारे्न्ट खिम करती है उतना िर्य

और पैिा अगर अचे्छ िोगोिं को कर्िे तो प्रजा का उद्धार { बेहतर हाित } हो जाय। किकटश

पाकिमयारे्न्ट र्हज़ प्रजा का क्तखिौना है और वह क्तखिौना प्रजा को भारी खिम र्ें डािता है।

ये कविार रे्रे खुद के हैं एिा आप न र्ाने। बडे और कविारशीि अिंगे्रज़ एिा कविार रखते

हैं। एक रे्म्बर ने तो यहााँ तक कहा है कक पाकिमयारे्न्ट धकर्मि { दीनदार } आदर्ी के िायक

नही िं रही। दूिरे रे्म्बर ने तो यहााँ तक कहा है कक पाकिमयारे्न्ट एक ‘बच्चा’ (बेबी) है। बच्चोिं

को कभी आपने हरे्शा बचे्च ही िं रहते देखा है? आज िात िौ बरि के बाद भी अगर

पाकिमयारे्न्ट बच्चा ही िं हो, तो वह बडी कब होगी?

पाठक: आपने रु्झे िोि र्ें डाि कदया। यह िब रु्झे तुरन्त र्ान िेना िाकहए, एिा तो

आप नही िं कहेंगे। आप कबिकुि कनरािे कविार रे्रे र्न र्ें पैदा कर रहें हैं। रु्झे उन्हें हजर्

करना होगा। अच्छा, अब 'बेिवा' शब्द का कववेिन { तफ़िीर } कीकजये।

सांपादक: रे्रे कविारोिं को आप तुरन्त नही िं र्ान िक़ते, यह बात ठीक है। उिके बारे र्ें

आपको जो िाकहत्य पढना िाकहए वह आप पढेंगे, तो आपको कुछ खयाि आयेगा।

पाकिमयारे्न्ट को र्ैंने बेिवा कहा, वह भी ठीक है। उिका कोई र्ाकिक नही िं है। उिका

कोई एक र्ाकिक नही िं हो िक़ता। िेककन रे्रे कहने का र्तिब इतना ही िं नही िं है। जब

कोई उिका र्ाकिक बनता है – जैिे प्रधानर्िंत्री – तब भी उिकी िाि एक िरीखी नही िं

रहती। जैिे बुरे हाि { दुदमशा } बेिवा के होते हैं, वैिे ही िं िदा पाकिमयारे्न्ट के होते हैं।

प्रधानर्िंत्री को पाकिमयारे्न्ट की थोडी ही िं परवाह रहती है। वह तो अपनी ििा के र्द र्ें

र्स्त रहता है। अपना दि कैिे जीते इिी की िगन उिे रहती है। पाकिमयारे्न्ट िही कार्

कैिे करे, इिका वह बहुत कर् कविार करता है। अपने दि को बिवान बनाने के किए

प्रधानर्िंत्री पाकिमयारे्न्ट िे कैिे कैिे कार् करवाता है, इिकी कर्िािें कजतनी िाकहए उतनी

कर्ि िकती िं हैं। यह िब िोिने िायक है।

पाठक: तब तो आज तक कजन्हें हर् देशाकभर्ानी { हुज-उि-वतन } और ईर्ानदार

िर्झते आये हैं, उन पर भी आप टूट पढते हैं।

सांपादक: हााँ, यह िि है। रु्झे प्रधानर्िंकत्रयोिं िे दे्वष { बैर } नही िं है। िेककन तजरबे िे र्ैंने

देखा है कक वे िचे्च देशाकभर्ानी नही िं कहे जा िक़ते। कजिे हर् घूि कहते हैं वह घूि वे

खुल्लर्खुल्ला नही िं िेते-देते, इिकिए भिे ही िं वे ईर्ानदार कहे जायें। िेककन उनके पाि

बिीिा { किफाररश } कार् कर िक़ता है। वे दूिरोिं िे कार् कनकािने के किए उपाकध {

इिकाब } वगैरा की घूि बहुत देते हैं। र्ैं कहम्मत के िाथ कह िक़ता हाँ कक उनर्ें शुद्ध

भावना और िच्ची ईर्ानदारी नही िं होती।

पाठक: जब आपके एिे खयाि हैं तो कजन अिंगे्रज़ोिं के नार् िे पाकिमयारे्न्ट राज करती है

उनके बारे र्ें अब कुछ ककहये, ताकक उनके स्वराज्य का पूरा खयाि रु्झे आ जाये।

सांपादक: जो अिंगे्रज ‘वोटर' हैं (िुनाव करते हैं), उनकी धर्म-पुस्तक (बाइबि) तो है

अखबार। वे अखबारोिं िे अपने कविार बनाते हैं। अखबार अप्रार्ाकणक { बेईर्ान } होते हैं,

एक ही िं बात को दो शकिें देते हैं। एक दिवािे उिी बात को बडी बनाकर कदखिाते हैं,

तो दूिरे दिवािे उिी को छोटी कर डािते हैं। एक अखबारवािा ककिी अिंगे्रज़ नेता को

प्रार्ाकणक { ईर्ानदार } र्ानेगा, तो दूिरा अखबारवािा उिको अप्रार्ाकणक र्ानेगा। कजि

देश र्ें एिे अखबार हैं उि देश के आदकर्योिं की कैिी दुदमशा होगी?

पाठक: यह तो आप ही िं बताइये।

सांपादक: उन िोगोिं के कविार घडी-घडी र्ें बदिते हैं। उन िोगोिं र्ें यह कहावत है कक

िात िात बरि र्ें रिंग बदिता है। घडी के िोिक की तरह वे इधर-उधर घूर्ा करते हैं।

जर्कर वे बैठ ही िं नही िं िक़ते। कोई दौर-दर्ार्वािा आदर्ी हो और उिने अगर बडी

बडी बातें कर दी िं या दावतें दे दी िं, तो वे नक्कारिी की तरह उिीके ढोि पीटने िग जाते

हैं। एिे िोगोिं की याकिमयारे्न्ट भी एिी ही िं होती है। उनर्ें एक बात जरूर है। वह यह कक

वे अपने देश को खोयेंगे नही िं। अगर ककिी ने उि पर बुरी नजर डािी, तो वे उिकी कर्ट्टी

पिीद कर देंगे। िेककन इििे उि प्रजा र्ें िब गुण आ गये, या उि प्रजा की नक़ि की

जाय, एिा नही िं कह िक़ते। अगर कहिंदुस्तान अिंगे्रज़ प्रजा की नक़ि करे तो कहिंदुस्तान

पार्ाि हो जाय, एिा रे्रा पक्का खयाि है।

पाठक: अिंगे्रज़ प्रजा एिी हो गई है, इिके आप क् या कारण र्ानते हैं?

सांपादक: इिर्ें अिंगे्रज़ोिं का कोई खाि किूर नही िं है, पर उनकी – बक्ति यूरोप की –

आजकि की िभ्यता का किूर है। वह िभ्यता नुकिान-देह है और उििे यूरोप की प्रजा

पार्ाि होती जा रही है।

६. सभ्यता का दशचन

पाठकः अब तो आपको िभ्यता { तहजीब } की भी बात करनी होगी। आपके कहिाब िे

तो यह िभ्यता कबगाड करनेवािी है।

सांपादक: रे्रे कहिाब िे ही िं नही िं, बक्ति अिंगे्रज िेखकोिं के कहिाब िे भी यह िभ्यता कबगाड

करनेवािी है। उिके बारे र्ें बहुत ककताबें किखी गई हैं। वहााँ इि िभ्यता के क्तखिाफ

र्िंडि भी कायर् हो रहें हैं। एक िेखक ने 'िभ्यता, उिके कारण और उिकी दवा' नार्

की ककताब किखी है। उिर्ें उिने यह िाकबत ककया है कक यह िभ्यता एक तरह का रोग

है।

पाठक: यह िब हर् क्ोिं नही िं जानते?

सांपादक: इिका कारण तो िाफ है। कोई भी आदर्ी अपने क्तखिाफ जानेवािी बात करे

एिा शायद ही िं होता है। आज की िभ्यता के र्ोह र्ें फाँ िे हुए िोग उिके क्तखिाफ नही िं

किखेंगे, उिटे उिको िहारा कर्िे एिी ही िं बातें और दिीिें ढूाँढ कनकािेंगे। यह वे जान-

बुझकर करते हैं एिा भी नही िं है। वे जो किखते हैं उिे खुद िि र्ानते हैं। नी िंद र्ें आदर्ी

जो िपना देखता है, उिे वह िही र्ानता है। जब उिकी नी िंद खुिती है तभी उिे अपनी

गिती र्ािूर् होती है। एिी ही िं दशा िभ्यता के र्ोह र्ें फाँ िे हुए आदर्ी की होती है। हर्

जो बातें पढते हैं वे िभ्यता की कहर्ायत करनेवािोिं की किखी बातें होती हैं। उनर्ें बहुत

होकशयार और भिे आदर्ी हैं। उनके िेखोिं िे हर् िौिंकधया जाते हैं। योिं एक के बाद दूिरा

आदर्ी उिर्ें फाँ िता जाता है।

पाठक: यह बात आपने ठीक कही। अब आपने जो कुछ पढा और िोिा है, उिका खयाि

रु्झे दीकजये।

सांपादक: पहिे तो हर् यह िोिें कक िभ्यता ककि हाित का नार् है। इि िभ्यता की

िही पहिान तो यह है कक िोग बाहरी (दुकनया) की खोजोिं र्ें और शरीर के िुख र्ें धन्यता

– िाथमकता { पुरअरर्ानी } और पुरूषाथम { बहादुरी, बडा कार् } र्ानते हैं। इिकी कुछ

कर्िािें िें। िौ िाि पहिे यूरोप के िोग जैिे घरोिं र्ें रहते थे उनिे ज्यादा अचे्छ घरोिं र्ें

आज वे रहते हैं; यह िभ्यता की कनशानी र्ानी जाती है। इिर्ें शरीर के िुख की बात है।

इिके पहिे िोग िर्डे के कपडे पहनते थे और भािोिं का इसे्तर्ाि करते थे। अब वे ििंबे

पतिून पहनते हैं और शरीर को िजाने के किए तरह-तरह के कपडे बनवाते हैं; और भािे

के बदिे एक के बाद एक पााँि गोकियािं छोड िके एिी िक्करवािी बन्दूक इसे्तर्ाि

करते हैं | यह िभ्यता की कनशानी है | ककिी रु्ि के िोग, जो जूते वगैरा नही िं पहनते होिं,

जब यूरोप के कपडे पहनना िीखते हैं, तो जिंगिी हाित र्ें िे िभ्य हाित र्ें आये हुए र्ाने

जाते हैं। पहिे यूरोप र्ें िोग र्ारू्िी हि की र्दद िे अपने किए जात-रे्हनत करके

जर्ीन जोतते थे। उिकी जगह आज भाप के यिंत्रो िं िे हि ििाकर एक आदर्ी बहुत िारी

जर्ीन जोत िक़ता है और बहुत-िा पैिा जर्ा कर िकता है। यह िभ्यता की कनशानी

र्ानी जाती है। पहिे िोग कुछ ही िं ककताबें किखते थे और वे अनर्ोि र्ानी जाती थी िं | आज

हर कोई िाहे जो किखता है और छपवाता है और िोगोिं के र्न को भरर्ाता है। यह िभ्यता

की कनशानी है। पहिे िोग बैिगाडी िे रोज़ बारह कोि की र्िंकजि तय करते थे। आज

रेिगाडी िे िार िौ कोि की र्िंकजि र्ारते हैं। यह तो िभ्यता की िोटी { कशखर } र्ानी

गई है। यह िभ्यता जैिे जैिे आगे बढती जाती है वैिे वैिे यह िोिा जाता है कक िोग

हवाई जहाज़ िे िफ़र करें गे और थोडे ही िं घिंटो िं र्ें दुकनया के ककिी भी भाग { कहस्सा } र्ें

जा पहुाँिेंगे। िोगोिं को हाथ-पैर कहिाने की जरूरत नही िं रहेगी। एक बटन दबाया कक

आदर्ी के िार्ने पहनने की पोशाक हाकजर हो जायेगी, दूिरा बटन दबाया कक उिे

अखबार कर्ि जायेंगे, तीिरा दबाया कक उिके किए गाडी तैयार हो जायेगी; हर हरे्शा नये

भोजन कर्िेंगे, हाथ-पैर का कार् ही िं नही िं पडेगा, िारा कार् कि { यिंत्र } िे ही िं ककया

जाएगा। पहिे जब िोग िडना िाहते थे तो एक-दूिरे का शरीर-बि आजर्ाते थे। आज

तो तोप के एक गोिे िे हज़ारोिं जाने िी जा िकती िं हैं। यह िभ्यता की कनशानी है। पहिे

िोग खुिी हवा र्ें अपने को ठीक िगे उतना कार् स्वतिंत्रता िे करते थे। अब हज़ारोिं

आदर्ी अपने गुज़ारे के किए इकट्ठा होकर बडे कारखानोिं र्ें या खानोिं र्ें कार् करते हैं।

उनकी हाित जानवर िे भी बदतर हो गई है। उन्हें िीिे वगैरा के कारखानोिं र्ें जान को

जोक्तखर् र्ें डािकर कार् करना पडता है। इिका िाभ पैिेदार िोगोिं को कर्िता है। पहिे

िोगोिं को र्ार-पीट कर गुिार् बनाया जाता था; आज िोगोिं को पैिे का और भोग { र्ज़ा,

आनन्द } का िािि देकर गुिार् बनाया जाता है। पहिे जैिे रोग नही िं थे वैिे रोग आज

िोगोिं र्ें पैदा हो गये हैं और उिके िाथ डॉक्टर खोज करने िगे हैं कक ये रोग कैिे कर्टाये

जायें। एिा करने िे अस्पताि बढे हैं। यह िभ्यता की कनशानी र्ानी जाती है। पहिे िोग

पत्र किखते थे तब खाि काकिद उिे िे जाता था और उिके किए काफ़ी खिम िगता था।

आज रु्झे ककिी को गाकियााँ देने के किए पत्र किखना हो, तो एक पैिे र्ें र्ैं गाकियााँ दे

िक़ता हाँ, ककिी को रु्झे रु्बारकबाद देना हो तो भी र्ैं उिी दार् र्ें पत्र भेज िक़ता हाँ।

यह िभ्यता की कनशानी है। पहिे िोग दो या तीन बार खाते थे और वह भी खुद हाथ िे

पकाई हुई रोटी और थोडी तरकारी। अब तो हर दो घिंटे पर खाना िाकहए, और वह यहााँ

तक कक िोगोिं को खाने िे फुरित ही िं नही िं कर्िती। और ककतना कहाँ? यह िब आप ककिी

भी पुस्तक र्ें पढ िक़ते हैं। ये िब िभ्यता की िच्ची कनशाकनयााँ र्ानी जाती हैं। और अगर

कोई भी इििे कभन् बात िर्झाये, तो वह भोिा है एिा कनश्चय { खिूिन } ही िं र्ाकनए।

िभ्यता तो र्ैंने जो बताई वही र्ानी जाती है। उिर्ें नीकत या धर्म की बात ही िं नही िं है।

िभ्यता के कहर्ायती िाफ कहते हैं कक उनका कार् िोगोिं को धर्म किखाने का नही िं है।

धर्म तो ढोिंग है, एिा कुछ िोग र्ानते हैं। और कुछ िोग धर्म का दम्भ करते हैं , नीकत की

बातें भी करते हैं। कफर भी र्ैं आपिे बीि बरि के अनुभव { तजरबा } के बाद कहता हाँ

कक नीकत के नार् िे अनीकत किखिाई जाती है। ऊपर की बातोिं र्ें नीकत हो ही िं नही िं िकती िं,

यह कोई बच्चा भी िर्झ िक़ता है। शरीर का िुख कैिे कर्िे, यही आज की िभ्यता

ढूाँढती है; और यही देने की वह कोकशश करती है। परिं तु वह िुख भी नही िं कर्ि पाता।

यह िभ्यता तो अधर्म है और यह यूरोप र्ें इतने दरजे तक फैि गयी है कक वहााँ के

िोग आधे पागि जैिे देखने र्ें आते हैं। उनर्ें िच्ची कूबत नही िं है; वे नशा करके अपनी

ताक़त कायर् रखते हैं। एकान्त { तनहाई } र्ें वे बैठ ही िं नही िं िक़ते। जो क्तस्त्रयााँ घर की

राकनयााँ होनी िाकहए, उन्हें गकियोिं र्ें भटकना पडता है, या कोई र्ज़दूरी करनी पडती है।

इिंग्लैंड र्ें ही िं िािीि िाख गरीब औरतोिं को पेट के किए िख्त र्ज़दूरी करनी पडती है,

और आजकि इिके कारण 'ििेजेट' का आन्दोिन { तहरीक } िि रहा है।

यह िभ्यता एिी है कक अगर हर् धीरज धर कर बैठे रहेंगे, तो िभ्यता की िपेट र्ें

आये हुए िोग खुद की जिाई हुई आग र्ें जि र्रें गे। पैगम्बर र्ोहम्मद िाहब की िीख

के रु्ताकबक यह शैतानी िभ्यता है। कहिंदू धर्म इिे कनरा 'किजुग’ कहता है। र्ैं आपके

िार्ने इि िभ्यता का हबह कित्र नही िं खी िंि िक़ता। यह रे्री शक्ति के बाहर है। िेककन

आप िर्झ िकें गे कक इि िभ्यता के कारण अिंगे्रज़ प्रजा र्ें िडन ने घर कर किया है। यह

िभ्यता दूिरोिं का नाश करनेवािी और खुद नाशवान है। इििे दूर रहना िाकहए और

इिीकिए किकटश और दूिरी पाकिमयारे्न्टें बेकार हो गई हैं। किकटश पाकिमयारे्न्ट अिंगे्रज़ प्रजा

की गुिार्ी की कनशानी है, यह पक्की बात है। आप पढेंगे और िोिेंगे तो आपको भी एिा

ही िं िगेगा। इिर्ें आप अिंगे्रज़ोिं का दोष { किूर } न कनकािें। उन पर तो हर्ें दया आनी

िाकहए। वे काकबि प्रजा हैं इिकिए ककिी कदन उि जाि िे कनकि जाएाँ गे एिा र्ैं र्ानता

हाँ। वे िाहिी और रे्हनती हैं। रू्ि र्ें उनके कविार अनीकतभरे नही िं हैं, इिकिए उनके बारे

र्ें रे्रे र्न र्ें उिर् { बहुत अचे्छ } खयाि ही िं है। उनका कदि बुरा नही िं है। यह िभ्यता

उनके किए कोई अकर्ट रोग नही िं है। िेककन अभी वे उि रोग र्ें फिं िे हुए हैं, यह तो हर्ें

भूिना ही िं नही िं िाकहए।

७. हिांदुस्तान कैसे गया?

पाठक: आपने िभ्यता के बारे र्ें बहुत कुछ कहा; और रु्झे कविार र्ें डाि कदया। अब तो

र्ैं इि ििंकट { पिोपेश, दुकबधा } र्ें आ पडा हाँ कक यूरोप की प्रजा िे र्ैं क्ा िूाँ और क् या

न िूाँ। िेककन एक िवाि रे्रे र्न र्ें तुरन्त उठता है: अगर आज की िभ्यता कबगाड

करनेवािी है, एक रोग है, तो एिी िभ्यता र्ें फिं िे हुए अिंगे्रज़ कहिंदुस्तान को कैिे िे िके?

इिर्ें वे कैिे रह िक़ते हैं?

सांपादक: आपके इि िवाि का जवाब कुछ आिानी िे कदया जा िकेगा और अब थोडी

देर र्ें हर् स्वराज्य के बारे र्ें भी कविार कर िकें गे। आपके इि िवाि का जवाब अभी

देना बाकी है, यह र्ैं भूिा नही िं हाँ। िेककन आपके आखरी िवाि पर हर् आये। कहिंदुस्तान

अिंगे्रज़ोिं ने किया िो बात नही िं है, बक्ति हर्ने उन्हें कदया है। कहिंदुस्तान र्ें वे अपने बि िे

नही िं कटके हैं, बक्ति हर्ने उन्हें कटका रखा है। वह कैिे िो देखें। आपको र्ैं याद कदिाता

हाँ कक हर्ारे देश र्ें वे दरअिि व्यापार के किए आये थे। आप अपनी किं पनी बहादुर को

याद कीकजये। उिे बहादुर ककिने बनाया? वे बेिारे तो राज करने का इरादा भी नही िं रखते

थे। किं पनी के िोगोिं की र्दद ककिने की? उनकी िााँदी को देखकर कौन र्ोह र्ें पड जाता

था? उनका र्ाि कौन बेिता था? इकतहाि { तवारीख } िबूत देता है कक यह िब हर् ही िं

करते थे। जल्दी पैिा पाने के र्तिब िे हर् उनका स्वागत करते थे। हर् उनकी र्दद

करते थे। रु्झे भााँग पीने की आदत हो और भााँग बेिनेवािा रु्झे भााँग बेिे, तो किूर

बेिनेवािे का कनकािना िाकहए या अपना खुद का? बेिनेवािे का किूर कनकािने िे रे्रा

व्यिन { ित, कुटेव } थोडे ही िं कर्टनेवािा है? एक बेिनेवािे को भगा दें गे तो क् या दूिरे

रु्झे भााँग नही िं बेिेंगे? कहिंदुस्तान के िचे्च िेवक को अच्छी तरह खोज करके इिकी जड

तक पहुाँिना होगा। ज्यादा खाने िे अगर रु्झे अजीणम हुआ हो, तो र्ैं पानी का दोष कनकाि

कर अजीणम {बदहजर्ी } दूर नही िं कर िकूिं गा। िच्चा डॉक्टर तो वह है जो रोग की जड

खोजे। आप अगर कहिंदुस्तान के रोग के डॉक्टर होना िाहते हैं, तो आपको रोग की जड

खोजनी ही िं पडेगी।

पाठक: आप िि कहते हैं। अब रु्झे िर्झाने के किए आपको दिीि करने की जरूरत

नही िं रहेगी। र्ैं आपके कविार जानने के किए अधीर बन गया हाँ। अब हर् बहुत ही िं कदििस्प

कवषय { बात } पर आ गये हैं, इिकिए रु्झे आप अपने ही िं कविार बतायें। जब उनके बारे

र्ें शिंका पैदा होगी तब र्ैं आपको रोकूाँ गा।

सांपादक: बहुत अच्छा। पर रु्झे डर है कक आगे ििने पर हर्ारे बीि कफर िे र्तभेद

जरूर होगा। कफर भी जब आप रु्झे रोकें गे तभी र्ैं दिीि र्ें उतरूाँ गा। हर्ने देखा कक

अिंगे्रज़ व्यापाररयोिं को हर्ने बढावा कदया तभी वे कहिंदुस्तान र्ें अपने पैर फैिा िके। वैिे ही िं

जब हर्ारे राजा िोग आपि र्ें झगडे तब उन्होिंने किं पनी बहादुर िे र्दद र्ााँगी। किं पनी

बहादुर व्यापार और िडाई के कार् र्ें कुशि { होकशयार } थी। उिर्ें उिे नीकत-अनीकत

की अडिन नही िं थी। व्यापार बढाना और पैिा कर्ाना, यही उिका धिंधा था। उिर्ें जब

हर्ने र्दद दी तब उिने हर्ारी र्दद िी और अपनी कोकठयााँ बढाई। कोकठयोिं का बिाव

करने के किए उिने ििर रखा। उि ििर का हर्ने उपयोग ककया, इिकिए अब उिे

दोष देना बेकार है। उि वक् त कहिंदू-रु्ििर्ानोिं के बीि बैर था। किं पनी को उििे र्ौक़ा

कर्िा। इि तरह हर्ने किं पनी के किए एिे ििंजोग पैदा ककये, कजििे कहिंदुस्तान पर उिका

अकधकार हो जाय। इिकिए कहिंदुस्तान गया एिा कहने के बजाय ज्यादा िि यह कहना

होगा कक हर्ने कहिंदुस्तान अिंगे्रज़ोिं को कदया।

पाठक: अब अिंगे्रज़ कहिंदुस्तान को कैिे रख िक़ते हैं िो ककहये।

सांपादक: जैिे हर्ने कहिंदुस्तान उन्हें कदया वैिे ही िं हर् कहिंदुस्तान को उनके पाि रहने देते

हैं। उन्होिंने तिवार िे कहिंदुस्तान किया एिा उनर्ें िे कुछ कहते हैं, और एिा भी कहते हैं

कक तिवार िे वे उिे रख रहें हैं। ये दोनोिं बातें गित हैं। कहिंदुस्तान को रखने के किए

तिवार ककिी कार् र्ें नही िं आ िकती िं; हर् खुद ही िं उन्हें यहााँ रहने देते हैं।

नेपोकियन ने अिंगे्रज़ोिं को व्यापारी प्रजा कहा है। वह कबिकुि ठीक बात है। वे कजि

देश को (अपने काबू र्ें ) रखते हैं, उिे व्यापार के किए रखते हैं, यह जानने िायक है।

उनकी फ़ौजें और जिंगी बेडे किफम व्यापार की रक्षा { रखवािी } के किए हैं। जब टर ान्सवाि

र्ें व्यापार का िािि नही िं था तब कर्. गे्लडटन को तुरन्त िूझ गया कक टर ान्सवाि अिंगे्रज़ोिं

को नही िं रखना िाकहए। जब टर ान्सवाि र्ें व्यापार का आकषमण देखा तब उििे िडाई की

गई और कर्. िेम्बरिेन ने यह ढूाँढ कनकािा कक टर ान्सवाि पर अिंगे्रज़ोिं की हुकूर्त है। र्रहर्

पे्रकिडेन्ट कू्रगर िे ककिी ने िवाि ककया: ‘िााँद र्ें िोना है या नही िं?’ उिने जवाब कदया:

“िााँद र्ें िोना होने की ििंभावना नही िं है, क्ोिंकक िोना होता तो अिंगे्रज़ अपने राज के िाथ

उिे जोड देते।' पैिा उनका खुदा है, यह ध्यान र्ें रखने िे िब बातें िाफ हो जायेगी िं।

तब अिंगे्रज़ोिं को हर् कहिंदुस्तािं र्ें किफम अपनी ग़रज़ िे रखते हैं। हर्ें उनका व्यापार

पििंद आता है। वे िािबाजी करके हर्ें ररझाते हैं और ररझाकर हर्िे कार् िेते हैं। इिर्ें

उनका दोष कनकािना उनकी ििा को कनभाने जैिा है। इिके अिावा, हर् आपि र्ें

झगडकर उन्हें ज्यादा बढावा देते हैं।

अगर आप ऊपर की बात को ठीक िर्झते हैं, तो हर्ने यह िाकबत कर कदया कक

अिंगे्रज़ व्यापार के किए यहााँ आये, व्यापार के किए यहााँ रहते हैं और उनके रहने र्ें हर् ही िं

र्ददगार हैं। उनके हकथयार तो कबिकुि बेकार हैं।

इि र्ौके पर र्ैं आपको याद कदिाता हाँ कक जापान र्ें अिंगे्रज़ी झिंडा िहराता है एिा

आप र्ाकनये। जापान के िाथ अिंगे्रज़ोिं ने जो करार ककया है वह अपने व्यापार के किए ककया

है। और आप देखेंगे कक जापान र्ें अिंगे्रज़ िोग अपना व्यापार खूब जर्ायेंगे। अिंगे्रज़ अपने

र्ाि के किए िारी दुकनया को अपना बाजार बनाना िाहते हैं। यह िि है कक एिा वे नही िं

कर िकें गे। इिर्ें उनका कोई किूर नही िं र्ाना जा िक्रता। अपनी कोकशश र्ें वे कोई

किर नही िं रखेंगे।

८. हिांदुस्तान की दशा

पाठक: कहिंदुस्तान अिंगे्रजोिं के हाथ र्ें क् योिं है, यह िर्झा जा िक़ता है। अब र्ैं कहिंदुस्तान

की हाित के बारे र्ें आपके कविार जानना िाहता हाँ।

सांपादक: आज कहिंदुस्तान की रिंक { किं गाि } दशा है। यह आपिे कहते हुए रे्री आाँखोिं र्ें

पानी भर आता है और गिा िूख जाता है। यह बात र्ैं आपको पूरी तरह िर्झा िकूिं गा

या नही िं, इि बारे र्ें रु्झे शक है। रे्री पक्की राय है, कक कहिंदुस्तान अिंगे्रज़ोिं िे नही िं, बक्ति

आजकि की िभ्यता { तहजीब } िे कुििा जा रहा है, उिकी िपेट र्ें वह फाँ ि गया है।

उिर्ें िे बिने का अभी भी उपाय है, िेककन कदन-ब-कदन िर्य बीतता जा रहा है। रु्झे

तो धर्म प्यारा है; इिकिए पहिा दुःख रु्झे यह है कक कहिंदुस्तान धर्मभ्रष्ट होता जा रहा है।

धर्म का अथम र्ैं यहााँ कहिंदू, रु्क्तिर् या जरथोस्ती धर्म नही िं करता। िेककन इन िब धर्ों के

अन्दर जो 'धर्म' है वह कहिंदुस्तान िे जा रहा है; हर् ईश्वर िे कवरु्ख { अिग } होते जा रहें

हैं।

पाठक: िो कैिे?

सांपादक: कहिंदुस्तान पर यह तोहर्त है कक हर् आििी हैं और गोरे िोग रे्हनती और

उत्साही { पुरजोश } हैं। इिे हर्ने र्ान किया है। इिकिए हर् अपनी हाित को बदिना

िाहते हैं।

कहिंदू, रु्क्तिर्, जरथोस्ती, ईिाई िब धर्म किखाते हैं कक हर्ें दुकनयावी बातोिं के बारे

र्ें र्िंद { िुस्त } और धाकर्मक { दीनी } बातोिं के बारे र्ें उत्साही रहना िाकहए। हर्ें अपने

दुकनयावी िोभ की हद बााँधनी िाकहए और धाकर्मक िोभ को खुिा छोड देना िाकहए। हर्ारा

उत्साह { जोश } धाकर्मक िोभ र्ें ही िं रहना िाकहए।

पाठक: इििे तो र्ािूर् होता है कक आप पाखिंडी { ढोिंगी } बनने की तािीर् देते हैं। धर्म

के बारे र्ें एिी बातें करके ठग िोग दुकनया को ठगते आये हैं और आज भी ठग रहें हैं।

सांपादक: आप धर्म पर गित आरोप { तोहर्त } िगाते हैं। पाखिंड तो िब धर्ों र्ें है। जहााँ

िूरज है वहााँ अिंधेरा रहता ही िं है। परछाई हर एक िीज के िाथ जूडी रहती है। धाकर्मक

ठगोिं को आप दुकनयावी ठगोिं िे अचे्छ पाएाँ गे। िभ्यता र्ें जो पाखिंड र्ैं आपको बता िुका

हाँ, वैिा पाखिंड धर्म र्ें र्ैंने कभी नही िं देखा।

पाठक: यह कैिे कहा जा िक़ता है? धर्म के नार् पर कहिंदू-रु्ििर्ान िडे, धर्म के नार्

पर ईिाइयोिं र्ें बडे बडे युद्ध हुए। धर्म के नार् पर हज़ारोिं बेगुनाह िोग र्ारे गये, उन्हें जिा

कदया गया, उन पर बडी बडी रु्िीबतें गुजारी गईिं। यह तो िभ्यता िे बदतर ही िं र्ाना

जाएगा।

सांपादक: तो र्ैं कहाँगा कक यह िब िभ्यता के दुःख िे ज्यादा बरदाश्त हो िकने जैिा है।

आपने जो कुछ कहा वह पाखिंड है, एिा िब िोग िर्झते हैं। इिकिए पाखिंड र्ें फिं िे हुए

िोग र्र गए कक िारा िवाि हि हो गया। जहााँ भोिे िोग हैं वहााँ एिा ही िं ििता रहेगा।

िेककन उिका अिर हरे्शा के किए बुरा नही िं रहता। िभ्यता की होिी र्ें जो िोग जि

र्रे हैं, उनकी तो कोई हद ही िं नही िं है। उिकी खूबी यह है कक िोग उिे अच्छा र्ानकर

उिर्ें कूद पडते हैं। कफर वे न तो रहते दीन के और न रहते दुकनया के। वे िि बात को

कबिकुि भूि जाते हैं। िभ्यता िूहे की तरह फूिं ककर काटती है। उिका अिर जब हर्

जानेंगे तब पुराने वहर् रु्काबिे र्ें हर्ें र्ीठे िगेंगे। रे्र कहना यह नही िं कक हर्ें उन वहर्ोिं

को कायर् रखना िाकहए। नही िं, उनके क्तखिाफ तो हर् िडेंगे ही िं; िेककन वह िडाई धर्म

को भूि कर नही िं िडी जायेगी, बक्ति िही तौर पर धर्म को िर्झकर और उिकी रक्षा

करके िडी जायेगी।

पाठक: तब तो आप यह भी कहेंगे कक अिंगे्रज़ोिं ने कहिंदुस्तान र्ें शाक्तन्त का जो िुख हर्ें कदया

है वह बेकार है।

सांपादक: आप भिे शािंकत देखते होिं, पर र्ैं तो शाक्तन्त का िुख नही िं देखता।

पाठक: तब तो ठग, कपिंडारी, भीि वगैरा देश र्ें जो त्राि { जुल्म } गुजारते थे उिर्ें आपके

खयाि िे कोई बुराई नही िं थी?

सांपादक: आप जरा िोिेंगे तो र्ािूर् होगा कक उनका त्राि बहुत कर् था। अगर ििरु्ि

उनका त्राि भयिंकर होता, तो प्रजा का जडरू्ि िे कभी का नाश हो जाता। और, हाि की

शाक्तन्त तो नार् की ही िं है। र्ैं यह कहना िाहता हाँ कक इि शाक्तन्त िे हर् नार्दम , नपुिंिक

और डरपोक बन गये हैं। भीिोिं और कपिंडारीयोिं का स्वभाव अिंगे्रज़ोिं ने बदि कदया है, एिा

हर् न र्ान िें। हर् पर एिा जुल्म होता हो तो हर्ें उिे बरदाश्त करना िाकहए। िेककन

दूिरे िोग हर्ें उि जुल्म िे बिाये, यह तो हर्ारे किए कबिकुि कििंक { दाग } जैिा है।

हर् कर्जोर और डरपोक बनें, इििे तो भीिोिं के तीर-कर्ान िे र्रना रु्झे ज्यादा पििंद

है। उि हाित र्ें जो कहिंदुस्तान था, उिका जोश कुछ दूिरा ही िं था। रै्कोिे ने कहिंदुस्ताकनयोिं

को नार्दम र्ाना, वह उिकी अधर् अज्ञान दशा को बताता है। कहिंदुस्तानी नार्दम कभी नही िं

थे। यह जान िीकजये कक कजि देश र्ें पहाडी िोग बिते हैं, जहााँ बाघ-भेकडये रहते हैं, उि

देश के रहनेवािे अगर ििरु्ि डरपोक होिं तो उनका नाश ही िं हो जाये। आप कभी खेतोिं

र्ें गये हैं? र्ैं आपिे यकीनन कहता हाँ कक खेतोिं र्ें हर्ारे ककिान आज भी कनभमय { कनडर

} होकर िोते हैं, जब कक अिंगे्रज़ और आप वहााँ िोने के किए आनाकानी करें गे। बि तो

कनभमयता { कनडरता } र्ें है; बदन पर र्ााँि के िोिंदे होने र्ें बि नही िं है। आप थोडा भी

िोिेंगे तो इि बात को िर्झ जायेंगे।

और आपको, जो स्वराज्य िाहनेवािे हैं, र्ैं िावधान { आगाह } करता हाँ कक भीि,

कपिंडारी और ठग ये िब हर्ारे ही िं देशी भाई हैं। उन्हें जीतना रे्रा और आपका कार् है।

जब तक आपके ही िं भाई का डर आपको रहेगा, तब तक आप कभी र्क़िद हाकिि नही िं

कर िकें गे।

९. हिांदुस्तान की दशा – रेलगाह़ियाँ

पाठक: कहिंदुस्तान की शाक्तन्त के बारे र्ें रे्रा जो र्ोह था वह आपने िे किया। अब तो याद

नही िं आता कक आपने रे्रे पाि कुछ भी रहने कदया हो।

सांपादक: अब तक तो र्ैंने आपको किफम धर्म की दशा का ही िं खयाि कराया है। िेककन

कहिंदुस्तान रिंक { किं गाि } क्ोिं है, इि बारे र्ें र्ैं अपने कविार आपको बताऊाँ गा तब तो

शायद आप रु्झिे नफरत ही िं करें गे; क्ोिंकक आज तक हर्ने और आपने कजन िीजोिं को

िाभकारी र्ाना है, वे रु्झे तो नुकिानदेह ही िं र्ािूर् होती हैं।

पाठक: वे क् या हैं?

सांपादक: कहिंदुस्तान को रेिोिं ने, वकीिोिं ने और डॉक्टरोिं ने किं गाि बना कदया है। यह एक

एिी हाित है कक अगर हर् िर्य पर नही िं िेतेंगे, तो िारोिं ओर िे कघर कर बरबाद हो

जायेंगे।

पाठक: रु्झे डर है कक हर्ारे कविार कभी कर्िेंगे या नही िं। आपने तो जो कुछ अच्छा देखने

र्ें आया है और अच्छा र्ाना गया है, उिी पर धावा बोि कदया है! अब बाकी कया रहा?

सांपादक: आपको धीरज रखना होगा। िभ्यता नुकिान करनेवािी कैिे है, यह तो

रु्क्तिि िे र्ािूर् हो िक़ता है। डॉक्टर आपको बतिायेंगे कक क्षय का र्रीज र्ौत के

कदन तक भी जीने की आशा रखता है। क्षय का रोग बाहर कदखाई देनेवािी हाकन नही िं

पहुाँिाता और वह रोग आदर्ी को झठूी िािी देता है। इििे बीर्ार कवश्वाि र्ें बहता रहता

है और आकखर डूब जाता है। िभ्यता का भी एिा ही िं िर्कझये। वह एक अदृश्य { गैबी }

रोग है। उििे िेत कर रकहये।

पाठक: अच्छा, तो अब आप रेि-पुराण िुनाइये।

सांपादक: आपके कदि र्ें यह बात तुरन्त उठेगी कक अगर रेि न हो तो अिंगे्रज़ोिं का काबू

कहिंदुस्तान पर कजतना है उतना तो नही िं ही िं रहेगा। रेि िे र्हार्ारी फैिी है। अगर रेिगाडी

न हो तो कुछ ही िं िोग एक जगह िे दूिरी जगह जायेंगे और इि कारण ििंक्रार्क {

फैिानेवािे } रोग िारे देश र्ें नही िं पहुाँि पायेंगे। पहिे हर् कुदरती तौर पर ही िं 'िेगे्रगेशन'

– िूतक – पािते थे। रेि िे अकाि बढे हैं, क्ोिंकक रेिगाडी की िुकवधा { िुभीता } के

कारण िोग अपना अनाज बेि डािते हैं। जहााँ र्हिंगाई हो वहााँ अनाज क्तखिंि जाता है, िोग

िापरवाह बनते हैं और उििे अकाि का दुःख बढता है। रेि िे दुष्टता { नीिता } बढती

है। बुरे िोग अपनी बुराई तेजी िे फैिा िक़ते हैं। कहिंदुस्तान र्ें जो पकवत्र { पाक } स्थान थे,

वे अपकवत्र { नापाक } बन गये हैं। पहिे िोग बडी रु्िीबत िे वहााँ जाते थे। एिे िोग वहााँ

िच्ची भावना िे ईश्वर को भजने जाते थे; अब तो ठगोिं की टोिी किफम ठगने के किए वहााँ

जाती है।

पाठक: यह तो आपने इकतरफा बात कही। जैिे खराब िोग वहााँ जा िक़ते हैं वैिे अचे्छ

भी तो जा िक़ते हैं। वे क्ोिं रेिगाडी का पूरा िाभ नही िं िेते?

सांपादक: जो अच्छा होता है वह बीरबहटी की तरह धीरे ििता है। उिकी रेि िे नही िं

बनती। अच्छा करनेवािे के र्न र्ें स्वाथम नही िं रहता। वह जल्दी नही िं करेगा। वह जानता

है कक आदर्ी पर अच्छी बात का अिर डािने र्ें बहुत िर्य िगता है। बुरी बात ही िं तेजी

िे बढ िकती िं है। घर बनाना रु्क्तिि है, तोडना िहि है। इिकिए रेिगाडी हरे्शा दुष्टता

का ही िं फैिाव करेगी, यह बराबर िर्झ िेना िाकहए। उििे अकाि फैिेगा या नही िं, इि

बारे र्ें कोई शास्त्रकार रे्रे र्न र्ें घडी भर शिंका पैदा कर िक़ता है; िेककन रेि िे दुष्टता

बढती है यह बात जो रे्रे र्न र्ें जर् गयी है वह कर्टनेवािी नही िं है।

पाठक: िेककन रेि का िबिे बडा िाभ दूिरे िब नुकिानोिं को भुिा देता है। रेि है तो

आज कहिंदुस्तान र्ें एक-राष्टर का जोश देखने र्ें आता है। इिकिए र्ैं तो कहाँगा कक रेि के

आने िे कोई नुकिान नही िं हुआ।

सांपादक: यह आपकी भूि ही िं है। आपको अिंगे्रज़ोिं ने किखाया है कक आप एक-राष्टर नही िं थे

और एक-राष्टर बनने र्ें आपको िैकडोिं बरि िगेंगे। यह बात कबिकुि बेबुकनयाद है। जब

अिंगे्रज़ कहिंदुस्तान र्ें नही िं थे तब हर् एक-राष्टर थे, हर्ारे कविार एक थे, हर्ारा रहन-िहन

एक था। तभी तो अिंगे्रजोिं ने यहााँ एक-राज्य कायर् ककया। भेद तो हर्ारे बीि बाद र्ें उन्होिंने

पैदा ककये।

पाठक: यह बात रु्झे ज्यादा िर्झनी होगी।

सांपादक: र्ैं जो कहता हाँ वह कबना िोिे-िर्झे नही िं कहता। एक-राष्टर का यह अथम नही िं

कक हर्ारे बीि कोई र्तभेद नही िं था; िेककन हर्ारे रु्ख्य िोग पैदि या बैिगाडी र्ें

कहिंदुस्तान का िफ़र करते थे, वे एक-दूिरे की भाषा िीखते थे और उनके बीि कोई अन्तर

नही िं था। कजन दूरदशी { दूरिं देश } पुरूषोिं ने िेतुबिंध रारे्श्वर, जगन्ाथपुरी और हरद्वार की

यात्रा ठहराई { कनकश्चत की }, उनका आपकी राय र्ें क्ा खयाि होगा? वे रू्खम नही िं थे, यह

तो आप कबूि करें गे। वे जानते थे कक ईश्वर-भजन घर बैठे भी होता है। उन्ही िं ने हर्ें यह

किखाया है कक र्न िाँगा तो कठौती र्ें गिंगा। िेककन उन्होिंने िोिा कक कुदरत ने कहिंदुस्तान

को एक-देश बनाया है, इिकिए वह एक-राष्टर होना िाकहए। इिकिए उन्होिंने अिग अिग

स्थान तय करके िोगोिं को एकता का कविार इि तरह कदया, जैिा दुकनया र्ें और कही िं

नही िं कदया गया है। दो अिंगे्रज कजतने एक नही िं हैं उतने हर् कहिंदुस्तानी एक थे और एक हैं।

किफम हर् और आप जो खुद को िभ्य र्ानते हैं उन्ही िं के र्न र्ें एिा आभाि ( भ्रर् ) पैदा

हुआ कक कहिंदुस्तान र्ें हर् अिग अिग राष्टर हैं। रेि के कारण हर् अपने को अिग राष्टर

र्ानने िगे और रेि के कारण एक-राष्टर का खयाि कफर िे हर्ारे र्न र्ें आने िगा, एिा

आप र्ाने तो रु्झे हजम नही िं है। अफ़ीर्िी कह िक़ता है कक अफ़ीर् के नुकिान का पता

रु्झे अफ़ीर् िे ििा, इिकिए अफ़ीर् अच्छी िीज है। यह िब आप अच्छी तरह िोकिए।

अभी आपके र्न र्ें और भी शिंकाएाँ उठें गी। िेककन आप खुद उन िबको हि कर िकें गे।

पाठक: आपने जो कुछ कहा उि पर र्ैं िोिूाँगा। िेककन एक िवाि रे्रे र्न र्ें इिी िर्य

उठता है। रु्ििर्ान कहिंदुस्तान र्ें आये उिके पहिे के कहिंदुस्तान की बात आपने की।

िेककन अब तो रु्ििर्ानोिं, पारकियोिं, ईिाइयोिं की कहिंदुस्तान र्ें बडी ििंख्या है। वे एक-राष्टर

नही िं हो िक़ते। कहा जाता है कक कहिंदू-रु्ििर्ानोिं र्ें कट्टर बैर है। हर्ारी कहावतें भी एिी

ही िं हैं। 'कर्यााँ और र्हादेव की नही िं बनेगी।' कहिंदू पूवम र्ें ईश्वर को पूजता है, तो रु्क्तिर्

पकश्चर् र्ें पूजता है। रु्ििर्ान कहिंदू को बुतपरस्त – रू्कतमपूजक – र्ानकर उििे नफरत

करता है। कहिंदू रू्कतमपूजक है, रु्ििर्ान रू्कतम को तोडनेवािा है। कहिंदू गाय को पूजता है,

रु्ििर्ान उिे र्ारता है। कहिंदू अकहिंिक है, रु्ििर्ान कहिंिक। योिं पग-पग पर जो कवरोध

{ बेरे्ि } है, वह कैिे कर्टे और कहिंदुस्तान एक कैिे हो?

१० . हिांदुस्तान की दशा – हिांदू-मुसलमान

सांपादक: आपका आखरी िवाि बडा गम्भीर र्ािूर् होता है। िेककन िोिने पर वह िहि

र्ािूर् होगा। यह िवाि उठा है, उिका कारण भी रेि, वकीि और डॉक्टर हैं। वकीिोिं

और डॉक्टरोिं का कविार तो अभी करना बाकी है। रेिोिं का कविार हर् कर िुके। इतना र्ैं

जोडता हाँ कक र्नुष्य इि तरह पैदा ककया गया है कक अपने हाथ-पैर िे बने उतनी ही िं आने-

जाने वगैरा की हििि उिे करनी िाकहए। अगर हर् रेि वगैरा िाधनोिं िे दौडधूप करें ही िं

नही िं, तो बहुत पेिीदे िवाि हर्ारे िार्ने आयेंगे ही िं नही िं। हर् खुद होकर दुःख को न्योतते

हैं। भगवान ने र्नुष्य की हद उिके शरीर की बनावट िे ही िं बााँध दी, िेककन र्नुष्य ने उि

बनावट की हद को िााँघने के उपाय { तरकीबें } ढूाँढ कनकािे। र्नुष्य को अकि इिकिए

दी गई है कक उिकी र्दद िे वह भगवान को पहिाने। पर र्नुष्य ने अकि का उपयोग

भगवान को भूिने र्ें ककया। र्ैं अपनी कुदरती हद के रु्ताकबक अपने आिपाि रहनेवािोिं

की ही िं िेवा कर िक़ता हाँ; पर र्ैंने तुरन्त अपनी र्गरूरी र्ें ढूाँढ कनकािा कक रु्झे तो िारी

दुकनया की िेवा अपने तन िे करनी िाकहए। एिा करने र्ें अनेक धर्ों के और कई तरह

के िोगोिं का िाथ होगा। यह बोझ र्नुष्य उठा ही िं नही िं िकता और इिकिए अकुिाता है।

इि कविार िे आप िर्झ िेंगे कक रेिगाडी ििरु्ि एक तूफानी िाधन है। र्नुष्य रेिगाडी

का उपयोग करके भगवान को भूि गया है।

पाठक: पर र्ैं तो अब जो िवाि र्ैंने उठाया है उिका जवाब िुनने को अधीर हो रहा हाँ।

रु्ििर्ानोिं के आने िे हर्ारा एक-राष्टर रहा या कर्टा?

सांपादक: कहिंदुस्तान र्ें िाहे कजि धर्म के आदर्ी रह िक़ते हैं ; उििे वह एक-राष्टर

कर्टनेवािा नही िं है। जो नये िोग उिर्ें दाक्तखि होते हैं, वे उिकी प्रजा को तोड नही िं िक़ते,

वे उिकी प्रजा र्ें घुिकर्ि जाते हैं। एिा हो तभी कोई रु्ि एक-राष्टर र्ाना जाएगा। एिे

रु्ि र्ें दूिरे िोगोिं का िर्ावेश करने का गुण होना िाकहए। कहिंदुस्तान एिा था और आज

भी है। योिं तो कजतने आदर्ी उतने धर्म एिा र्ान िक़ते हैं। एक-राष्टर होकर रहनेवािे िोग

एक-दूिरे के धर्म र्ें दखि नही िं देते; अगर देते हैं तो िर्झना िाकहए कक वे एक-राष्टर होने

िायक नही िं हैं। अगर कहिंदू र्ाने कक िारा कहिंदुस्तान किफम कहिंदुओिं िे भरा होना िाकहए, तो

यह एक कनरा िपना है। रु्ििर्ान अगर एिा र्ाने कक उिर्ें किफम रु्ििर्ान ही िं रहें , तो

उिे भी िपना ही िं िर्कझये। कफर भी कहिंदू, रु्ििर्ान, पारिी, ईिाई, जो इि देश को

अपना वतन र्ानकर बि िुके हैं एक-देशी, एक-रु्िी हैं, वे देशी-भाई हैं, और उन्हें एक-

दूिरे के स्वाथम के किए भी एक होकर रहना पडेगा। दुकनया के ककिी भी कहसे्स र्ें एक-

राष्टर का अथम एक-धर्म नही िं ककया गया है; कहिंदुस्तान र्ें तो एिा था ही िं नही िं।

पाठक: िेककन दोनोिं कौर्ोिं के कट्टर बैर का क्ा?

सांपादक: ‘कट्टर बैर' शब्द दोनोिं के दुश्मन ने खोज कनकािा है। जब कहिंदू-रु्ििर्ान

झगडते थे तब वे एिी बातें भी करते थे। झगडा तो हर्ारा िबका बिंद हो गया है। कफर

कट्टर बैर काहे का? और इतना याद रक्तखए कक अिंगे्रज़ोिं के आने के बाद ही िं हर्ारा झगडा

बन्द हुआ एिा नही िं है। कहिंदू िोग रु्ििर्ान बादशाहोिं के र्ातहत और रु्ििर्ान कहिंदू

राजाओिं के र्ातहत रहते आये हैं। दोनोिं को बाद र्ें िर्झ र्ें आ गया कक झगडने िे कोई

फायदा नही िं; िडाई िे कोई अपना धर्म नही िं छोडेंगे और कोई अपनी कजद भी नही िं छोडेंगे।

इिकिए दोनोिं ने कर्िकर रहने का फैििा ककया। झगडे तो कफर िे अिंगे्रज़ोिं ने शुरू

करवाये।

‘कर्यािं और र्हादेव की नही िं बनती' इि कहावत का भी एिा ही िं िर्कझये। कुछ

कहावतें हरे्शा के किए रह जाती हैं और नुकिान करती ही िं रहती हैं। हर् कहावत की

धुन र्ें इतना भी याद नही िं रखते कक बहुतेरे कहिंदुओिं और रु्ििर्ानोिं के बाप-दादे एक ही िं

थे, हर्ारे अिंदर एक ही िं खून है। क् या धर्म बदिा इिकिए हर् आपि र्ें दुश्मन बन गये?

धर्म तो एक ही िं जगह पहुाँिने के अिग-अिग रासे्त हैं। हर् दोनोिं अिग-अिग रासे्त िें,

इििे क्ा हो गया? उिर्ें िडाई काहे की?

और एिी कहावतें तो शैवोिं और वैष्णवोिं र्ें भी ििती हैं; पर इििे कोई यह नही िं

कहेगा कक वे एक-राष्टर नही िं हैं। वेदधकर्मयो िं और जैनोिं के बीि बहुत फकम र्ाना जाता है,

कफर भी इििे वे अिग राष्टर नही िं बन जाते। हर् गुिार् हो गये हैं, इिीकिए अपने झगडे

हर् तीिरे के पाि िे जाते हैं।

जैिे रु्ििर्ान रू्कतम का खिंडन करनेवािे हैं, वैिे कहिंदुओिं र्ें भी रू्कतम का खिंडन

करनेवािा एक वगम देखने र्ें आता है। ज्योिं ज्योिं िही ज्ञान बढेगा त्योिं त्योिं हर् िर्झते

जायेंगे कक हर्ें पिन्द न आनेवािा धर्म दूिरा आदर्ी पािता हो, तो भी उििे बैरभाव

रखना हर्ारे किए ठीक नही िं; हर् उि पर जबरदस्ती न करें ।

पाठक: अब गोरक्षा के बारे र्ें अपने कविार बताइये।

सांपादक: र्ैं खुद गाय को पूजता हाँ यानी र्ान देता हाँ। गाय कहिंदुस्तान की रक्षा करनेवािी

है, क्ोिंकक उिकी ििंतान पर कहिंदुस्तान का, जो खेती-प्रधान देश है, आधार है। गाय कई

तरह िे उपयोगी जानवर है। वह उपयोगी जानवर है, यह तो रु्ििर्ान भाई भी कबूि

करें गे।

िेककन जैिे र्ैं गाय को पूजता हाँ वैिे र्ैं र्नुष्य को भी पूजता हाँ। जैिे गाय उपयोगी

है वैिे र्नुष्य भी – कफर िाहे वह रु्ििर्ान हो या कहिंदू – उपयोगी है। तब कया गाय को

बिाने के किए र्ैं रु्ििर्ान िे िडूाँगा? क् या उिे र्ैं र्ारूाँ गा? एिा करने िे र्ैं रु्ििर्ान

का और गाय का भी दुश्मन बनूाँगा। इिकिए र्ैं कहाँगा कक गाय की रक्षा करने का एक

यही उपाय है कक रु्झे अपने रु्ििर्ान भाई के िार्ने हाथ जोडने िाकहए और उिे देश

के खाकतर गाय को बिाने के किए िर्झाना िाकहए। अगर वह न िर्झे तो रु्झे गाय को

र्रने देना िाकहए, क्ोिंकक वह रे्रे बि की बात नही िं। अगर रु्झे गाय पर अत्यिंत { बेहद }

दया आती हो तो अपनी जान दे देनी िाकहए, िेककन रु्ििर्ान की जान नही िं िेनी िाकहए।

वही धाकर्मक कानून है, एिा र्ैं तो र्ानता हाँ।

'हााँ' और 'नही िं' के बीि हरे्शा बैर रहता है। अगर र्ैं वाद-कववाद { बहि } करूाँ गा,

तो रु्ििर्ान भी वाद-कववाद करेगा। अगर र्ैं टेढा बनूाँगा, तो वह भी टेढा बनेगा। अगर

र्ैं बाकिश्त भर नरू्ाँगा, तो वह हाथ भर नरे्गा; और अगर वह नही िं भी नरे् तो रे्रा नर्ना

गित नही िं कहिायेगा। जब हर्ने कजद की तब गोकुशी बढी। रे्री राय है कक गोरक्षा

प्रिाररणी िभा गोवध प्रिाररणी िभा र्ानी जानी िाकहए। एिी िभा का होना हर्ारे किए

बदनार्ी की बात है। जब गाय की रक्षा करना हर् भूि गये तब एिी िभा की जरूरत

पडी होगी।

रे्रा भाई गाय को र्ारने दौडे, तो र्ैं उिके िाथ कैिा बरताव करूाँ गा? उिे र्ारूाँ गा

या उिके पैरो िं र्ें पडूाँगा? अगर आप कहें कक रु्झे उिके पााँव पडना िाकहए, तो रु्झे

रु्ििर्ान भाई के भी पााँव पडना िाकहए।

गाय को दुःख देकर कहिंदू गाय का वध करता है; इििे गाय को कौन छुडाता है?

जो कहिंदू गाय की औिाद { बैि को } को पैना (आर) भोिंकता है, उि कहिंदू को कौन िर्झाता

है? इििे हर्ारे एक-राष्टर होने र्ें कोई रूकावट नही िं आई है।

अिंत र्ें, कहिंदू अकहिंिक और रु्ििर्ान कहिंिक है, यह बात अगर िही हो तो अकहिंिक

का धर्म क्ा है? अकहिंिक को आदर्ी की कहिंिा करनी िाकहए, एिा कही िं किखा नही िं है।

अकहिंिक के किए तो राह िीधी है। उिे एक को बिाने के किए दूिरे की कहिंिा करनी ही िं

नही िं िाकहए। उिे तो र्ात्र िरण-विंदना करनी िाकहए, किफम िर्झाने का कार् करना

िाकहए। इिी र्ें उिका पुरूषाथम { बहादुरी } है।

िेककन कया तर्ार् कहिंदू अकहिंिक हैं? िवाि की जड र्ें जाकर कविार करने पर

र्ािूर् होता है कक कोई भी अकहिंिक नही िं है, क्ोिंकक जीव को तो हर् र्ारते ही िं हैं। िेककन

इि कहिंिा िे हर् छूटना िाहते हैं, इिकिए अकहिंिक (कहिाते) हैं। िाधारण कविार करने

िे र्ािूर् होता है कक बहुत िे कहिंदू र्ााँि खाने वािे हैं, इिकिए वे अकहिंिक नही िं र्ाने जा

िक़ते। खीिंि-तानकर दूिरा अथम करना हो तो रु्झे कुछ कहना नही िं है। जब एिी हाित

है तब रु्ििर्ान कहिंिक और कहिंदू अकहिंिक हैं, इिकिए दोनोिं की नही िं बनेगी, वह िोिना

कबिकुि गित है।

एिे कविार स्वाथी धर्मकशक्षकोिं, शाक्तस्त्रयोिं और रु्ल्लाओिं ने हर्ें कदये हैं। और इिर्ें

जो कर्ी रह गई थी, उिे अिंगे्रज़ोिं ने पूरा ककया है। उन्हें इकतहाि किखने की आदत है; हर

एक जाकत के रीकत-ररवाज जानने का वे दिंभ { कदखावा } करते हैं। ईश्वर ने हर्ारा र्न तो

छोटा बनाया है, कफर भी वे ईश्वरी दावा करते आये हैं और तरह तरह के प्रयोग

{ आजर्ाइश } करते हैं। वे अपने बाजे खुद बजाते हैं और हर्ारे र्न र्ें अपनी बात िही

होने का कवश्वाि जर्ाते हैं। हर् भोिेपन र्ें उि िब पर भरोिा कर िेते हैं।

जो टेढा नही िं देखना िाहते वे देख िकें गे कक कुरान शरीफ़ र्ें एिे िैकडोिं विन हैं,

जो कहिंदुओिं को र्ान्य { र्िंजूर } होिं; भगवद् गीता र्ें एिी बातें किखी हैं कक कजनके क्तखिाफ

रु्ििर्ान को कोई भी ऐतराज नही िं हो िक़ता। कुरान शरीफ़ का कुछ भाग र्ैं न िर्झ

पाऊाँ या कुछ भाग रु्झे पििंद न आये, इि वजह िे क्ा र्ैं उिे र्ाननेवािे िे नफरत

करूाँ ? झगडा दो िे ही िं हो िक़ता है। रु्झे झगडा नही िं करना हो, तो रु्ििर्ान क् या करेगा?

और रु्ििर्ान को झगडा न करना हो, तो र्ैं क्ा कर िक़ता हाँ? हवा र्ें हाथ उठानेवािे

का हाथ उखड जाता है। िब अपने अपने धर्म का स्वरूप िर्झकर उििे किपके रहें

और शाक्तस्त्रयोिं व रु्ल्लाओिं को बीि र्ें न आने दें , तो झगडे का रु्ाँह हरे्शा के किए कािा

ही िं रहेगा।

पाठक: अिंगे्रज़ दोनोिं कौर् का रे्ि होने दें गे?

सांपादक: यह िवाि डरपोक आदर्ी का है। यह िवाि हर्ारी हीनता को कदखाता है।

अगर दो भाई िाहते होिं कक उनका आपि र्ें रे्ि बना रहें, तो कौन उनके बीि र्ें आ

िक़ता है? अगर तीिरा आदर्ी दोनोिं के बीि झगडा पैदा कर िकें , तो उन भाइयोिं को

हर् कचे्च कदि के कहेंगे। उिी तरह अगर हर् – कहिंदू और रु्ििर्ान – कचे्च कदि के

होिंगे, तो कफर अिंगे्रज़ोिं का किूर कनकािना बेकार होगा। कच्चा घडा एक किं कड िे नही िं तो

दूिरे किं कड िे फूटेगा ही िं। घडे को बिाने का रास्ता यह नही िं है कक उिे किं कड िे दूर

रखा जाय, बक्ति यह है कक उिे पक्का बनाया जाय, कजििे किं कड का भय ही िं न रहें।

उिी तरह हर्ें पके्क कदि के बनना है। हर् दोनोिं र्ें िे कोई एक (भी) पके्क कदि के होिंगे,

तो तीिरे की कुछ नही िं ििेगी। यह कार् कहिंदू आिानी िे कर िक़ते हैं। उनकी ििंख्या

बडी है, वे अपने को ज्यादा पढे-किखे र्ानते हैं; इिकिए वे पक्का कदि रख िकते हैं।

दोनोिं कौर् के बीि अकवश्वाि { ना एतबार } है, इिकिए रु्ििर्ान िोडम र्ोिे िे

कुछ हक र्ााँगते हैं। इिर्ें कहिंदू क् योिं कवरोध करें? अगर कहिंदू कवरोध न करें , तो अिंगे्रज िौकें गे,

रु्ििर्ान धीरे धीरे कहिंदुओिं का भरोिा करने िगेंगे और दोनोिं का भाईिारा बढेगा। अपने

झगडे अिंगे्रज़ोिं के पाि िे जाने र्ें हर्ें शरर्ाना िाकहए। एिा करने िे कहिंदू कुछ खोनेवािे

नही िं हैं; इिका कहिाब आप खुद िगा िकें गे। कजि आदर्ी ने दूिरे पर कवश्वाि ककया,

उिने आज तक कुछ खोया नही िं है।

र्ैं यह नही िं कहना िाहता कक कहिंदू-रु्ििर्ान कभी झगडेंगे ही िं नही िं। दो भाई िाथ

रहें तो उनके बीि तकरार होती है। कभी हर्ारे किर भी फूटेंगे। एिा होना जरूरी नही िं है,

िेककन िब िोग एक िी अकि के नही िं होते। दोनोिं जोश र्ें आते हैं तब अकिर गित

कार् कर बेठते हैं। उन्हें हर्ें िहन करना होगा। िेककन एिी तकरार को भी बडी वकाित

बघारकर हर् अिंगे्रज़ोिं की अदाित र्ें न िे जायें। दो आदर्ी िडे, िडाई र्ें दोनोिं के किर

या एक का किर फूटे, तो उिर्ें तीिरा कया न्याय करेगा? जो िडेंगे वे जख्मी भी होिंगे।

बदन िे बदन टकरायेगा तब कुछ कनशानी तो रहेंगी ही िं। उिर्ें न्याय कया हो िक़ता है?

११. हिांदुस्तान की दशा – वकील

पाठक: आप कहते हैं कक दो आदर्ी झगडें तब उिका न्याय भी नही िं कराना िाकहए। यह

तो आपने अजीब बात कही।

सांपादक: इिे अजीब ककहये या दूिरा कोई कवशेषण { किफ़्त } िगाइए, पर बात िही है।

आपकी शिंका हर्ें वकीि-डॉक्टरोिं की पहिान कराती है। रे्री राय है कक वकीिोिं ने

कहिंदुस्तान को गुिार् बनाया है, कहिंदू-रु्ििर्ानोिं के झगडे बढाये हैं और अिंगे्रज़ी हुकूर्त

को यहााँ र्जबूत ककया है।

पाठक: एिे इिजार् िगाना आिान है, िेककन उन्हें िाकबत करना रु्क्तिि होगा। वकीिोिं

के किवा दूिरा कौन हर्ें आजादी का र्ागम बताता? उनके किवा गरीबोिं का बिाव कौन

करता? उनके किवा कौन हर्ें न्याय कदिाता? देक्तखये, स्व र्नर्ोहन घोष ने ककतनोिं को

बिाया? खुद एक कौडी भी उन्होिंने नही िं िी। कािंगे्रि, कजिके आपने ही िं बखान ककये हैं,

वकीिोिं िे कनभती है और उनकी रे्हनत िे ही िं उिर्ें कार् होते हैं। इि वगम { जर्ात } की

आप कनिंदा करें , यह इन्साफ़ के िाथ गैर-इन्साफ़ करने जैिा है। वह तो आपके हाथ र्ें

अखबार आया इिकिए िाहे जो बोिने की छूट िेने जैिा िगता है।

सांपादक: जैिा आप र्ानते हैं वैिा ही िं र्ैं भी एक िर्य र्ानता था। वकीिोिं ने कभी कोई

अच्छा कार् नही िं ककया, एिा र्ैं आपिे नही िं कहना िाहता। कर्. र्नर्ोहन घोष की र्ैं

इज्जत करता हाँ। उन्होिंने गरीबोिं की र्दद की थी यह बात िही है। कािंगे्रि र्ें वकीिोिं ने

कुछ कार् ककया है, यह भी हर् र्ान िक़ते हैं। वकीि भी आक्तखर र्नुष्य है; और

र्नुष्यजाकत र्ें कुछ तो अच्छाई है ही िं। वकीिोिं की भिर्निी के जो बहुत िे ककसे्स देखने

र्ें आते हैं, वे तभी हुए जब वे अपने को वकीि िर्झना भूि गये। रु्झे तो आपको किफम

यही कदखाना है कक उनका धिंधा उन्हें अनीकत किखानेवािा है। वे बुरे िािि र्ें फाँ िते हैं ,

कजिर्ें िे उबरनेवािे कबरिे ही िं होते हैं।

कहिंदू-रु्ििर्ान आपि र्ें िडे हैं। तटस्थ { बेतरफ़दार } आदर्ी उनिे कहेगा कक

आप गयी-बीती को भूि जायें; इिर्ें दोनोिं का किूर रहा होगा। अब दोनोिं कर्िकर रकहये।

िेककन वे वकीि के पाि जाते हैं। वकीि का फजम हो जाता है कक वह रु्वक्तक्कि की ओर

जोर िगाये। रु्वक्तक्कि के खयाि र्ें भी न होिं एिी दिीिें रु्वक्तक्कि की ओर िे ढूाँढना

वकीि का कार् है। अगर वह एिा नही िं करता तो र्ाना जाएगा कक वह अपने पेशे को

बट्टा िगाता है। इिकिए वकीि तो आर् तौर पर झगडा आगे बढाने की ही िं ििाह देगा।

िोग दूिरोिं का दुःख दूर करने के किए नही िं, बक्ति पैिा पैदा करने के किए वकीि बनते

हैं। वह एक कर्ाई का रास्ता है। इिकिए वकीि का स्वाथम झगडा बढाने र्ें है। वह तो

रे्री जानी हुई बात है कक जब झगडे होते हैं तब वकीि खुश होते हैं। रु्खतार िोग भी

वकीि की जात के हैं। जहााँ झगडे नही िं होते वहााँ भी वे झगडे खडे करते हैं। उनके दिाि

जोिंक की तरह गरीब िोगोिं िे किपकते हैं और उनका खून िूि िेते हैं। वह पेशा एिा है

कक उिर्ें आदकर्योिं को झगडे के किए बढावा कर्िता ही िं है। वकीि िोग कनठले्ल होते हैं।

आििी िोग ऐश-आरार् करने के किए वकीि बनते हैं। यह िही बात है। वकाित का

पेशा बडा आबरूदार पेशा है, एिा खोज कनकािनेवािे भी वकीि ही िं हैं। कानून वे बनाते

हैं, उिकी तारीफ़ भी वे ही िं करते हैं। िोगोिं िे क्ा दार् किये जायें, यह भी वे ही िं तय करते

हैं; और िोगोिं पर रोब जर्ाने के किए आडिंबर { कदखावा } एिा करते हैं, र्ानोिं वे आिर्ान

िे उतर कर आये हुए देवदूत { फररशे्त } होिं!

वे र्जदूर िे ज्यादा रोज़ी क् योिं र्ााँगते हैं? उनकी जरूरतें र्ज़दूर िे ज्यादा क्ोिं हैं?

उन्होिंने र्ज़दूर िे ज्यादा देश का क् या भिा ककया है? क्ा भिा करनेवािे को ज्यादा पैिा

िेने का हक है? और अगर पैिे के खाकतर उन्होिंने भिा ककया हो, तो उिे भिा कैिे कहा

जाय? यह तो उि पेशे का जो गुण है वह र्ैंने बताया।

वकीिोिं के कारण कहिंदू-रु्ििर्ानोिं के बीि कुछ दिंगे हुए हैं, यह तो कजन्हें अनुभव

है वे जानते होिंगे। उनिे कुछ खानदान बरबाद हो गये हैं। उनकी बदौित भाईयोिं र्ें जहर

दाक्तखि हो गया है। कुछ ररयाितें वकीिोिं के जाि र्ें फाँ िकर कजमदार हो गयी हैं। बहुत

िे गराकिये { राजविंशी जागीरदार } इन वकीिोिं की कारस्तानी िे िुट गये हैं। एिी बहुत

िी कर्िािें दी जा िकती िं हैं।

िेककन वकीिोिं िे बडे िे बडा नुकिान तो यह हुआ है कक अिंगे्रज़ोिं का जुआ हर्ारी

गदमन पर र्जबूत जर् गया है। आप िोकिये। क्ा आप र्ानते हैं कक अिंगे्रज़ी अदािते यहााँ

न होती िं तो वे हर्ारे देश र्ें राज कर िक़ते थे? ये अदािते िोगोिं के भिे के किए नही िं हैं।

कजन्हें अपनी ििा कायर् रखनी है, वे अदाितोिं के जररये िोगोिं को बि र्ें रखते हैं। िोग

अगर खुद अपने झगडे कनबटा िें, तो तीिरा आदर्ी उन पर अपनी ििा नही िं जर्ा िक़ता।

ििरु्ि जब िोग खुद र्ार-पीट करके या ररशे्तदारोिं को पिंि बनाकर अपना झगडा कनबटा

िेते थे तब वे बहादुर थे। अदािते आयीिं और वे कायर बन गये। िोग आपि र्ें िड कर

झगडे कर्टायें, यह जिंगिी र्ाना जाता था। अब तीिरा आदर्ी झगडा कर्टाता है, यह क् या

कर् जिंगिीपन है? क् या कोई एिा कह िकेगा कक तीिरा आदर्ी जो फैििा देता है वह

िही फैििा ही िं होता है? कोन िच्चा है, यह दोनोिं पक्ष के िोग जानते हैं। हर् भोिेपन र्ें

र्ान िेते हैं कक तीिरा आदर्ी हर्िे पैिे िेकर हर्ारा इन्साफ़ करता है।

इि बात को अिग रखें। हकीकत तो यही कदखानी है कक अिंगे्रजोिं ने अदाितोिं के

जररये हर् पर अिंकुश जर्ाया है और अगर हर् वकीि न बनें तो ये अदािते िि ही िं नही िं

िकती िं। अगर अिंगे्रज़ ही िं जज होते, अिंगे्रज़ ही िं वकीि होते और अिंगे्रज़ ही िं किपाही होते, तो

वे किफम अिंगे्रज़ोिं पर ही िं राज करते। कहिंदुस्तानी जज और कहिंदुस्तानी वकीि के बगैर उनका

कार् िि नही िं िका। वकीि कैिे पैदा हुए, उन्होिंने कैिी धािंधि र्िाई, यह िब अगर

आप िर्झ िकें , तो रे्रे कजतनी ही िं नफ़रत आपको भी इि पेशे के किए होगी। अिंगे्रज़ी

ििा की एक रु्ख्य { बडी } कुिं जी उनकी अदािते हैं और अदाितोिं की कुिं जी वकीि हैं।

अगर वकीि वकाित करना छोड दें और वह पेशा वेश्या के पेशे जैिा नीि र्ाना जाय,

तो अिंगे्रज़ी राज एक कदन र्ें टूट जाय। वकीिोिं ने कहिंदुस्तानी प्रजा पर यह तोहर्त िगवाई

है कक हर्ें झगडे प्यारे हैं और हर् कोटम -किहरी रूपी पानी की र्छकियााँ हैं।

जो शब्द र्ैं वकीिोिं के किए इसे्तर्ाि करता हाँ, वे ही िं शब्द जजोिं को भी िागू होते

हैं। ये दोनोिं र्ौिेरे भाई हैं और एक-दूिरे को बि देनेवािे हैं।

१२. हिांदुस्तान की दशा- डॉक्टर

पाठक: वकीिोिं की बात तो हर् िर्झ िकते हैं। उन्होिंने जो अच्छा कार् ककया है वह

जान-बूझकर नही िं ककया, एिा यकीन होता है। बाकी उनके धिंधे को देखा जाय तो वह

ककनि { बहुत हिका } ही िं है। िेककन आप तो डॉक्टरोिं को भी उनके िाथ घिीटते हैं। यह

केिे?

सांपादक: र्ैं जो कविार आपके िार्ने रखता हाँ , वे इि िर्य तो रे्रे अपने ही िं हैं। िेककन

एिे कविार र्ैंने ही िं ककये हैं िो बात नही िं। पकश्चर् के िुधारक खुद रु्झिे ज्यादा िख्त शब्दोिं

र्ें इन धिंधो िं के बारे र्ें किख गये हैं। उन्होिंने वकीिोिं और डॉक्टरोिं की बहुत कनिंदा की है।

उनर्ें िे एक िेखक ने एक जहरी पेड का कित्र खी िंिा है, वकीि-डॉक्टर वगैरा कनकमे्म

धिंधेवािोिं को उिकी शाखाओिं के रूप र्ें बताया है और उि पेड के तने पर नीकत-धर्म की

कुल्हाडी उठाई है। अनीकत को इन िब धिंधोिं की जड बताया है। इििे आप यह िर्झ

िेंगे कक र्ैं आपके िार्ने अपने कदर्ाग िे कनकािे हुए नये कविार नही िं रखता, िेककन दूिरोिं

का और अपना अनुभव आपके िार्ने रखता हाँ।

डॉक्टरोिं के बारे र्ें जैिे आपको अभी र्ोह है वैिे कभी रु्झे भी था। एक िर्य एिा

था जब र्ैंने खुद डॉक्टर होने का इरादा ककया था और िोिा था कक डॉक्टर बनकर कौर्

की िेवा करूाँ गा। रे्रा यह र्ोह अब कर्ट गया है। हर्ारे िर्ाज र्ें वैद्य का धिंधा कभी

अच्छा र्ाना ही िं नही िं गया, इिका भान अब रु्झे हुआ है; और उि कविार की कीर्त र्ैं

िर्झ िक़ता हाँ।

अिंगे्रजोिं ने डॉक्टरी कवद्या िे भी हर् पर काबू जर्ाया है। डॉक्टरोिं र्ें दिंभ की भी कर्ी

नही िं है। रु्गि बादशाह को भरर्ानेवािा एक अिंगे्रज़ डॉक्टर ही िं था। उिने बादशाह के

घर र्ें कुछ बीर्ारी कर्टाई, इिकिए उिे किरोपाव कर्िा। अर्ीरोिं के पाि पहुाँिनेवािे भी

डॉक्टर ही िं हैं।

डॉक्टरोिं ने हर्ें जड िे कहिा कदया है। डॉक्टरोिं िे नीर्-हकीर् ज्यादा अचे्छ, एिा

कहने का रे्रा र्न होता है। इि पर हर् कुछ कविार करें ।

डॉक्टरोिं का कार् किफम शरीर को ििंभािने का है; या शरीर को ििंभािने का भी

नही िं है। उनका कार् शरीर र्ें जो रोग पैदा होते हैं उन्हें दूर करने का है। रोग क्ोिं होते हैं?

हर्ारी ही िं गफ़ित िे। र्ैं बहुत खाऊाँ और रु्झे बदहजर्ी, अजीरन हो जाय; कफर र्ैं डॉक्टर

के पाि जााँऊ और वह रु्झे गोिी दे; गोिी खाकर र्ैं ििंगा हो जााँऊ और दुबारा खूब खाऊाँ

और कफर िे गोिी िूाँ। अगर र्ैं गोिी न िेता तो अजीरन की िजा भुगतता और कफर िे

बेहद नही िं खाता। डॉक्टर बीि र्ें आया और उिने हदिे ज्यादा खाने र्ें रे्री र्दद की।

उििे रे्रे शरीर को तो आरार् हुआ, िेककन रे्रा र्न कर्ज़ोर बना। इि तरह आक्तखर

रे्री यह हाित होगी कक र्ैं अपने र्न पर जरा भी काबू न रख िकूिं गा।

र्ैंने कविाि ककया, र्ैं बीर्ार पडा; डॉक्टर ने रु्झे दवा दी और र्ैं िाँगा हुआ। क्ा

र्ैं कफर िे कविाि नही िं करूाँ गा? जरूर करूाँ गा। अगर डॉक्टर बीि र्ें न आता तो कुदरत

अपना कार् करती, रे्रा र्न र्जबूत बनता और अन्त र्ें कनकवमषयी { बे-नन्स-परस्त } होकर

र्ैं िुखी होता।

अस्पतािें पाप की जड हैं। उनकी बदौित िोग शरीर का जतन कर् करते हैं और

अनीकत को बढाते हैं।

यूरोप के डॉक्टर तो हद करते हैं। वे किफम शरीर के ही िं गित जतन के किए िाखोिं

जीवोिं को हर िाि र्ारते हैं , कजिंदा जीवोिं पर प्रयोग करते हैं। एिा करना ककिी भी धर्म को

र्िंजूर नही िं। कहिंदू, रु्ििर्ान, ईिाई, जरथोस्ती – िब धर्म कहते हैं कक आदर्ी के शरीर के

किए इतने जीवोिं को र्ारने की जरूरत नही िं।

डॉक्टर हर्ें धर्मभ्रष्ट { बेदीन } करते हैं। उनकी बहुत िी दवाओिं र्ें िरबी या दारू

होती है। इन दोनोिं र्ें िे एक भी िीज कहिंदू-रु्ििर्ान को िि िके एिी नही िं है। हर् िभ्य

होने का ढोिंग करके, दूिरोिं को वहर्ी र्ानकर और बे-िगार् { स्वच्छन्द } होकर िाहे िो

करते रहें; यह दूिरी बात है। िेककन डॉक्टर हर्ें धर्म िे भ्रष्ट करते हैं, यह िाफ और िीधी

बात है।

इिका पररणार् { नतीजा } यह आता है कक हर् कनःित्व { कजिर्ें कुछ दर् न हो }

और नार्दम बनते हैं। एिी दशा र्ें हर् िोकिेवा करने िायक नही िं रहते और शरीर िे

क्षीण { कर्ज़ोर } और बुक्तद्धहीन { बे-अक़ि } होते जा रहें हैं। अिंगे्रज़ी या यूरोकपयन डॉक्टरी

िीखना गुिार्ी की गााँठ को र्जबूत बनाने जैिा है।

हर् डॉक्टर क्ोिं बनते हैं, यह भी िोिने की बात है। उिका िच्चा कारण तो

आबरूदार और पैिा कर्ाने का धिंधा करने की इच्छा है। उिर्ें परोपकार की बात नही िं

है। उि धने्ध र्ें परोपकार नही िं है, यह तो र्ैं बता िुका। उििे िोगोिं को नुकिान होता है।

डॉक्टर किफम आडम्बर कदखाकर ही िं िोगोिं िे बडी फीि विूि करते हैं और अपनी एक

पैिे की दवा के कई रूपये िेते हैं। योिं कवश्वाि र्ें और ििंगे हो जाने की आशा र्ें िोग

डॉक्टरोिं िे ठगे जाते हैं। जब एिा ही िं है तब भिाई का कदखावा करनेवािे डॉक्टरोिं िे खुिे

ठग-वैद्य ( नीर्-हकीर् ) ज्यादा अचे्छ।

१३. सच्ची सभ्यता कौन सी?

पाठक: आपने रेि को रद कर कदया, वकीिोिं की कनन्दा की, डॉक्टरोिं को दबा कदया। तर्ार्

कि-कार् { यिंत्रकार् } को भी आप नुकिानदेह र्ानेंगे, एिा र्ैं देख िक़ता हाँ। तब िभ्यता

{ तहजीब } कहें तो ककिे कहें?

सांपादक: इि िवाि का जवाब रु्क्तिि नही िं है। र्ैं र्ानता हाँ कक जो िभ्यता कहिंदुस्तान ने

कदखायी है, उिको दुकनया र्ें कोई नही िं पहुाँि िक़ता। जो बीज हर्ारे पुरखोिं ने बोए हैं,

उनकी बराबरी कर िके एिी कोई िीज देखने र्ें नही िं आयी। रोर् कर्ट्टी र्ें कर्ि गया,

ग्रीि का किफम नार् ही िं रह गया, कर्स्र की बादशाही ििी गई, जापान पकश्चर् के कशकिं जे र्ें

फाँ ि गया और िीन का कुछ भी कहा नही िं जा िक़ता। िेककन कगरा-टूटा जैिा भी हो,

कहिंदुस्तान आज भी अपनी बुकनयाद र्ें र्जबूत है।

जो रोर् और ग्रीि कगर िुके हैं, उनकी ककताबोिं िे यूरोप के िोग िीखते हैं। उनकी गिकतयााँ

वे नही िं करें गे एिा गुर्ान { अकभर्ान } रखते हैं। एिी उनकी किं गाि हाित है, जब कक

कहिंदुस्तान अिि है, अकडग है। यही उिका भूषण है। कहिंदुस्तान पर आरोप िगाया जाता

है कक वह एिा जिंगिी, एिा अज्ञान है कक उििे जीवन र्ें कुछ फेरबदि कराये ही िं नही िं

जा िक़ते। यह आरोप हर्ारा गुण { किफ़त } है, दोष { नुक़्ि } नही िं। अनुभव { तजरबा }

िे जो हर्ें ठीक िगा है, उिे हर् क्ोिं बदिेंगे? बहुत िे अकि देनेवािे आते-जाते रहते

हैं, पर कहिंदुस्तान अकडग रहता है। यह उिकी खूबी है, यह उिका ििंगर है।

िभ्यता वह आिरण { बरताव } है कजििे आदर्ी अपना फजम अदा करता हैं। फजम

अदा करने के र्ानी है नीकत का पािन करना। नीकत के पािन का र्तिब है अपने र्न

और इक्तियोिं को बि र्ें रखना। एिा करते हुए हर् अपने को (अपनी अिकियत को)

पहिानते हैं। यही िभ्यता है। इििे जो उिटा है वह कबगाड करनेवािा है।

बहुत िे अिंगे्रज िेखक किख गये हैं कक ऊपर की व्याख्या { तशरीह } के रु्ताकबक

कहिंदुस्तान को कुछ भी िीखना बाकी नही िं रहता।

यह बात ठीक है। हर्ने देखा कक र्नुष्य की वृकियााँ { भावनाएिं – जजे्ब } ििंिि हैं।

उिका र्न बेकार की दौडधूप ककया करता है। उिका शरीर जैिे-जैिे ज्यादा कदया जाय

वैिे-वैिे ज़्यादा र्ााँगता है। ज्यादा िेकर भी वह िुखी नही िं होता। भोग भोगने िे भोग की

इच्छा बढती जाती है। इिकिए हर्ारे पुरखोिं ने भोग की हद बााँध दी। बहुत िोिकर उन्होिंने

देखा कक िुख-दुःख तो र्न के कारण हैं। अर्ीर अपनी अर्ीरी की वजह िे िुखी नही िं है,

गरीब अपनी गरीबी के कारण दुःखी नही िं है। अर्ीर दुःखी देखने र्ें आता है और गरीब

िुखी देखने र्ें आता है। करोडोिं िोग तो गरीब ही िं रहेंगे। एिा देखकर उन्होिंने भोग की

वािना

{ ख्वाकहश } छुडवाई। हजारोिं िाि पहिे जो हि कार् र्ें किया जाता था, उििे हर्ने कार्

ििाया। हजारोिं िाि पहिे जैिे झोिंपडे थे, उन्हें हर्ने कायर् रखा। हजारोिं िाि पहिे

जैिी हर्ारी कशक्षा { तािीर् } थी वही ििती आई। हर्ने नाशकारक होड को िर्ाज र्ें

जगह नही िं दी; िब अपना अपना धिंधा करते रहें। उिर्ें उन्होिंने दसू्तर के रु्ताकबक दार्

किए। एिा नही िं था कक हर्ें यिंत्र वगैरा की खोज करना ही िं नही िं आता था। िेककन हर्ारे

पूवमजोिं ने देखा कक िोग अगर यिंत्र वगैरा की झिंझट र्ें पडेंगे, तो गुिार् ही िं बनेंगे और अपनी

नीकत को छोड देंगे। उन्होिंने िोि-िर्झकर कहा कक हर्ें अपने हाथ-पैरो िं िे जो कार् हो

िके वही करना िाकहए। हाथ-पैरो िं का इसे्तर्ाि करने र्ें ही िं िच्चा िुख है, उिीर्ें

तिंदुरूस्ती है।

उन्होिंने िोिा कक बढे शहर खडे करना बेकार की झिंझट है। उनर्ें िोग िुखी नही िं

हो िंगे। उनर्ें धूतों { ठगोिं } की टोकियााँ और वेश्याओिं { बेिवाओिं } की गकियााँ पैदा होिंगी;

गरीब अर्ीरोिं िे िूटे जायेंगे। इिकिए उन्होिंने छोटे देहातोिं िे ििंतोष र्ाना।

उन्होिंने देखा कक राजाओिं और उनकी तिवार के बकनस्बत नीकत का बि ज्यादा

बिवान है। इिकिए उन्होिंने राजाओिं को नीकतवान पुरूषोिं – ऋकषयोिं और फकीरोिं—िे कर्

दजे का र्ाना।

एिी कजि राष्टर की गठन है वह राष्टर दूिरोिं को किखाने िायक है; वह दूिरोिं िे

िीखने िायक नही िं है।

इि राष्टर र्ें अदािते थी िं, वकीि थे, डॉक्टर-वैद्य थे। िेककन वे िब ठीक ढिंग िे

कनयर् के रु्ताकबक ििते थे। िब जानते थे कक ये धने्ध बडे नही िं हैं। और वकीि, डॉक्टर

वगैरा िोगोिं र्ें िूट नही िं ििाते थे; वे तो िोगोिं के आकश्रत { पनाहगीर } थे। वे िोगोिं के

र्ाकिक बनकर नही िं रहते थे। इन्साफ़ काफी अच्छा होता था। अदाितोिं र्ें न जाना, यह

िोगोिं का धे्यय { र्क़िद } था। उन्हें भरर्ानेवािे स्वाथी िोग नही िं थे। इतनी िडन भी किफम

राजा और राजधानी के आिपाि ही िं थी। योिं (आर्) प्रजा तो उििे स्वतिंत्र रहकर अपने

खेत का र्ाकिकी हक भोगती थी। उिके पाि िच्चा स्वराज्य था।

और जहााँ यह िािंडाि { शैतानी } िभ्यता नही िं पहुाँिी है, वहााँ कहिंदुस्तान आज भी

वैिा ही िं है। उिके िार्ने आप अपने नये ढोिंगो िं की बात करें गे, तो वह आपकी हाँिी

उडाएगा। उि पर न तो अिंगे्रज़ राज करते हैं, न आप कर िकें गे। कजन िोगोिं के नार् पर

हर् बात करते हैं, उन्हें हर् पहिानते नही िं हैं, न वे हर्ें पहिानते हैं। आपको और दूिरोिं

को, कजनर्ें देशपे्रर् है, रे्री ििाह है कक आप देश र्ें—जहााँ रेि की बाढ नही िं फैिी है उि

भाग र्ें – छह र्ाह के किए घूर् आयें और बाद र्ें देश की िगन िगाये, बाद र्ें स्वराज्य

की बात करें ।

अब आपने देखा कक िच्ची िभ्यता र्ैं ककि िीज को कहता हाँ। ऊपर र्ैंने जो

तिवीर खी िंिी है वैिा कहिंदुस्तान जहााँ हो वहााँ जो आदर्ी फेरफार करेगा उिे आप दुश्मन

िर्कझये। वह र्नुष्य पापी है।

पाठक: आपने जैिा बताया वैिा ही िं कहिंदुस्तान होता तब तो ठीक था। िेककन कजि देश र्ें

हजारोिं बाि-कवधवायें हैं, कजि देश र्ें दो बरि की बच्ची की शादी हो जाती है, कजि देश

र्ें बारह िाि की उम्र के िडके-िडककयोिं घर-ििंिार ििाते हैं, कजि देश र्ें स्त्री एक िे

ज्यादा पकत करती है, कजि देश र्ें कनयोग१ की प्रथा है, कजि देश र्ें धर्म के नार् पर

कुर्ाररकाएाँ बेिवाएाँ { देवदाकियािं } बनती हैं, कजि देश र्ें धर्म के नार् पर पाडोिं और बकरोिं

की हत्या { कत्ल } होती है, वह देश भी कहिंदुस्तान ही िं है। एिा होने पर भी आपने जो बताया

वह क्ा िभ्यता का िक्षण { कनशानी } है?

सांपादक: आप भूिते हैं। आपने जो दोष बताये वे तो ििरु्ि दोष ही िं हैं। उन्हें कोई िभ्यता

नही िं कहता। वे दोष िभ्यता के बावजूद कायर् रहें हैं। उन्हें दूर करने के प्रयत्न हरे्शा हुए

हैं, और होते ही िं रहेंगे। हर्र्ें जो नया जोश पैदा हुआ है, उिका उपयोग हर् इन दोषोिं को

दूर करने र्ें कर िकते हैं।

र्ैंने आपको आज की िभ्यता की जो कनशानी बताई, उिे इि िभ्यता के कहर्ायती

खुद बताते हैं। र्ैंने कहिंदुस्तान की िभ्यता का जो वणमन ककया, वह वणमन { बयान } नई

िभ्यता के कहर्ायकतयोिं ने ककया है।

ककिी भी देश र्ें ककिी भी िभ्यता के र्ातहत िभी िोग ििंपूणमता तक नही िं पहुाँि

पाये हैं। कहिंदुस्तान की िभ्यता का झुकाव नीकत को र्जबूत करने की ओर है; पकश्चर् की

िभ्यता का झुकाव अनीकत को र्जबूत करने की ओर है। इिकिए र्ैंने उिे हाकनकारक

कहा है। पकश्चर् की िभ्यता कनरीश्वरवादी { खुदा र्ें नही िं र्ाननेवािी } है, कहिंदुस्तान की

िभ्यता ईश्वर र्ें र्ाननेवािी है।

योिं िर्झकर, एिी श्रद्धा रखकर, कहिंदुस्तान के कहतकििंतकोिं को िाकहए कक वे

कहिंदुस्तान की िभ्यता िे, बच्चा जैिे र्ााँिे किपटा रहता है वैिे, किपट रहें।

________________________

१. एक पुराना ररवाज कजिके रु्ताकबक कबना ििंतानवािी स्त्री पकत के रोगी, नपुिंिक या रृ्त होने की हाित

र्ें अपने देवर या पकत के ककिी और ििंबिंधी िे ििंतान पैदा करा िकती थी।

१४. हिांदुस्तान कैसे आजाद िो?

पाठक: िभ्यता के बारे र्ें आपके कविार र्ैं िर्झ गया। आपने जो कहा उि पर रु्झे

ध्यान देना होगा। तुरन्त िब कुछ र्िंजूर कर किया जाय, एिा आप नही िं र्ानते होिंगे; एिी

आशा भी नही िं रखते होिंगे। आपके एिे कविारोिं के अनुिार आप कहिंदुस्तान के आजाद होने

का कया उपाय बतायेंगे?

सांपादक: रे्रे कविार िब िोग तुरन्त र्ान िें, एिी आशा र्ैं नही िं रखता। रे्रा फजम इतना

ही िं है कक आपके जैिे जो िोग रे्रे कविार जानना िाहते हैं, उनके िार्ने अपने कविार रख

दूाँ। वे कविार उन्हें पििंद आयेंगे या नही िं आयेंगे, यह तो िर्य बीतने पर ही िं र्ािूर् होगा।

कहिंदुस्तान की आजादी के उपायोिं का हर् कविार कर िुके। कफर भी हर्ने दूिरे

रूप र्ें उन पर कविार ककया। अब हर् उन पर उनके स्वरूप र्ें कविार करें ।

कजि कारण िे रोगी बीर्ार हुआ हो वह कारण अगर दूर कर कदया जाय, तो रोगी

अच्छा हो जाएगा यह जग र्शहर बात है। इिी तरह कजि कारण िे कहिंदुस्तान गुिार् बना

वह कारण अगर दूर कर कदया जाय, ततो वह बिंधन िे रु्ि { आजाद } हो जाएगा।

पाठक: आपकी र्ान्यता के रु्ताकबक कहिंदुस्तान की िभ्यता अगर िबिे अच्छी है, तो कफर

वह गुिार् क् योिं बना?

सांपादक: िभ्यता तो र्ैंने कही वैिी ही िं है, िेककन देखने र्ें आया है कक हर िभ्यता पर

आफतें आती हैं। जो िभ्यता अिि है वह आक्तखरकार आफतोिं को दूर कर देती है।

कहिंदुस्तान के बािकोिं र्ें कोई न कोई कर्ी थी, इिीकिए वह िभ्यता आफतोिं िे कघर गई।

िेककन इि घेरे र्ें िे छूटने की ताक़त उिर्ें है, यह उिके गौरव { बडाई } को कदखाता

है।

और कफर िारा कहिंदुस्तान उिर्ें (गुिार्ी र्ें) कघरा हुआ नही िं है। कजन्होिंने पकश्चर् की

कशक्षा पाई है और जो उिके पाश { फिं दे } र्ें फाँ ि गये हैं, वे ही िं गुिार्ी र्ें कघरे हुए हैं। हर्

जगत को अपनी दर्डी के नाप िे नापते हैं। अगर हर् गुिार् हैं, तो जगत को भी गुिार्

र्ान िेते हैं। हर् किं गाि दशा र्ें हैं, इिकिए र्ान िेते हैं कक िारा कहिंदुस्तान एिी दशा र्ें

है। दरअिि एिा कुछ नही िं है। कफर भी हर्ारी गुिार्ी िारे देश की गुिार्ी है, एिा

र्ानना ठीक है। िेककन ऊपर की बात हर् ध्यान र्ें रखें तो िर्झ िकें गे कक हर्ारी अपनी

गुिार्ी कर्ट जाय, तो कहिंदुस्तान की गुिार्ी कर्ट गई एिा र्ान िेना िाकहए। इिर्ें अब

आपको स्वराज्य की व्याख्या { तशरीह } भी कर्ि जाती है। हर् अपने ऊपर राज करें वही

स्वराज्य है; और वह स्वराज्य हर्ारी हथेिी र्ें है।

इि स्वराज्य को आप िपने जैिा न र्ाने। र्न िे र्ान कर बैठे रहनें का भी यह

स्वराज्य नही िं है। यह तो एिा स्वराज्य है कक आपने अगर इिका स्वाद िख किया हो, तो

दूिरोिं को इिका स्वाद िखाने के किए आप कजन्दगी भर कोकशश करें गे। िेककन रु्ख्य {

खाि या अहर्् } बात तो हर शख्ि के स्वराज्य भोगने की है। डूबता आदर्ी दूिरे को नही िं

तारेगा, िेककन तैरता आदर्ी दूिरे को तारेगा। हर् खुद गुिार् होिंगे और दूिरोिं को आजाद

करने की बात करें गे, तो वह ििंभव नही िं है।

िेककन इतना काफी नही िं है। हर्ें और भी आगे िोिना होगा।

अब इतना तो आपकी िर्झ र्ें आया होगा कक अिंगे्रज़ोिं को देश िे कनकािने का

र्क़िद िार्ने रखने की जरूरत नही िं है। अगर अिंगे्रज़ कहिंदुस्तानी बनकर रहें तो हर्

उनका िर्ावेश यहााँ कर िकते हैं। अिंगे्रज अगर अपनी िभ्यता के िाथ रहना िाहें, तो

उनके किए कहिंदुस्तान र्ें जगह नही िं है। एिी हाित पैदा करना हर्ारे हाथ र्ें है।

पाठक: अिंगे्रज़ कहिंदुस्तानी बनें, यह नारु्र्ककन है।

सांपादक: हर्ारा एिा कहना यह कहने के बराबर है कक अिंगे्रज र्नुष्य नही िं हैं। वे हर्ारे

जैिे बनें या न बनें, इिकी हर्ें परवाह नही िं है। हर् अपना घर िाफ करें । कफर रहने िायक

िोग ही िं उिर्ें रहेंगे; दूिरे अपने-आप ििे जायेंगे। एिा अनुभव तो हर आदर्ी को हुआ

होगा।

पाठक: एिा होने की बात तवारीख { इकतहाि } र्ें तो हर्ने नही िं पढी।

सांपादक: जो िीज तवारीख र्ें नही िं देखी वह कभी नही िं होगी, एिा र्ानना र्नुष्य की

प्रकतिा र्ें अकवश्वाि करना है। जो बात हर्ारी अकि र्ें आ िके, उिे आक्तखर हर्ें

आजर्ाना तो िाकहए ही िं।

हर देश की हाित एक िी नही िं होती। कहिंदुस्तान की हाित कवकित्र है। कहिंदुस्तान

का बि अिाधारण है। इिकिए दूिरी तवारीखोिं िे हर्ारा कर् ििंबिंध है। र्ैंने आपको

बताया कक दूिरी िभ्यतायें कर्ट्टी र्ें कर्ि गयी िं, जब कक कहिंदुस्तानी िभ्यता को आाँि नही िं

आयी है।

पाठक: रु्झे ये िब बातें ठीक नही िं िगती िं। हर्ें िडकर अिंगे्रज़ोिं को कनकािना ही िं होगा,

इिर्ें कोई शक नही िं। जब तक वे हर्ारे रु्ि र्ें हैं, तब तक हर्ें िैन नही िं पड िक़ता।

'पराधीन िपनेहु िुख नाही िं' एिा देखने र्ें आता है। अिंगे्रज़ यहााँ हैं इिकिए हर् कर्ज़ोर

होते जा रहें हैं। हर्ारा तेज ििा गया है और हर्ारे िोग घबराये-िे दीखते हैं। अिंगे्रज हर्ारे

देश के किए यर् (काि) जैिे हैं। उि यर् को हर्ें ककिी भी प्रयत्न िे भगाना होगा।

सांपादक: आप अपने आवेश { जोश } र्ें रे्रा िारा कहना भूि गये हैं। अिंगे्रज़ोिं को यहााँ

िानेवािे हर् हैं और वे हर्ारी बदौित ही िं यहााँ रहते हैं। आप यह कैिे भूि जाते हैं कक

हर्ने उनकी िभ्यता अपनायी है, इिकिए वे यहााँ रह िक़ते हैं? आप उनिे जो नफ़रत

करते हैं वह नफ़रत आपको उनकी िभ्यता िे करनी िाकहए। कफर भी र्ान िें कक हर्

िडकर उन्हें कनकािना िाहते हैं। यह कैिे हो िकेगा?

पाठक: इटिी ने ककया वैिे। रै्कज़नी और गेरीबाल्डी ने जो ककया, वह तो हर् भी कर

िक़ते हैं। वे र्हावीर थे, इि बात िे क्ा आप इनकार कर िकें गे?

१५. इटली और हिांदुस्तान

सांपादक: आपने इटिी का उदाहरण { कर्िाि } ठीक कदया। रै्कज़नी र्हात्मा था।

गैरीबाल्डी बडा योद्धा { िडवैया } था। दोनोिं पूजनीय थे। उनिे हर् बहुत िीख िक़ते हैं।

कफर भी इटिी की दशा और कहिंदुस्तान की दशा र्ें फरक है।

पहिे तो रै्कज़नी और गैरीबाल्डी के बीि का भेद जानने िायक है। रै्कज़नी के

अरर्ान अिग थे। रै्कज़नी जैिा िोिता था वैिा इटिी र्ें नही िं हुआ। रै्कज़नी ने र्नुष्य-

जाकत के कतमव्य के बारे र्ें किखते हुए यह बताया है कक हर एक को स्वराज्य भोगना िीख

िेना िाकहए। यह बात उिके किए िपने जैिी रही। गैरीबाल्डी और रै्कज़नी के बीि र्तभेद

{ अिग राय } हो गया था, यह हर्ें याद रखना िाकहए। इिके किवा, गैरीबाल्डी ने हर

इटाकियन के हाथ र्ें हकथयार कदये और हर इटाकियन ने हकथयार किये।

इटिी और आक्तटर या के बीि िभ्यता का भेद नही िं था। वे तो ‘ििेरे भाई’ र्ाने

जायेंगे। 'जैिे को तैिा' वािी बात इटिी की थी। इटिी को परदेशी (आक्तटर या के) जूए िे

छुडाने का र्ोह गैरीबाल्डी को था। इिके किए उिने कावूर के र्ारफ़त जो िाकज़शें {

षड्यिंत्र } की िं, वे उिकी शूरता को बट्टा िगानेवािी हैं।

और अन्त र्ें नतीजा क्ा कनकिा? इटिी र्ें इटाकियन राज करते हैं इिकिए इटिी

की प्रजा िुखी है, एिा आप र्ानते होिं तो र्ैं आपिे कहाँगा कक आप अिंधेरे र्ें भटकते हैं।

रै्कज़नी ने िाफ िाफ बताया है कक इटिी आजाद नही िं हुआ है। कवक्टर इरे्नु्यअि ने इटिी

का एक अथम ककया, रै्कज़नी ने दूिरा। इरे्नु्यअि, कावूर और गैरीबाल्डी के कविार िे इटिी

का अथम था इरे्नु्यअि या इटिी का राजा और उिके हुजूरी। रै्कज़नी के कविार िे इटिी

का अथम था इटिी के िोग—उिके ककिान। इरे्नु्यअि वगैरा तो उनके (प्रजा के) नौकर

थे। रै्कज़नी का इटिी अब भी गुिार् है। दो राजाओिं के बीि शतरिंज की बाज़ी िगी थी;

इटिी की प्रजा तो किफम प्यादा थी और है। इटिी के र्जदूर अब भी दुःखी हैं। इटिी के

र्जदूरोिं की दाद-फ़ररयाद नही िं िुनी जाती, इिकिए वे िोग खून करते हैं, कवरोध करते हैं,

किर फोडते हैं और वहााँ बिवा होने का डर आज भी बना हुआ है। आक्तटर या के जाने िे

इटिी को क्ा िाभ हुआ? नार् का ही िं िाभ हुआ। कजन िुधारो िं के किए जिंग र्िा वे िुधार

हुए नही िं, प्रजा की हाित िुधरी नही िं।

कहिंदुस्तान की एिी दशा करने का तो आपका इरादा नही िं ही िं होगा। र्ैं र्ानता हाँ कक

आपका कविार कहिंदुस्तान के करोडोिं िोगोिं को िुखी करने का होगा, यह नही िं कक आप या

र्ैं राजििा िे िूाँ। अगर एिा है तो हर्ें एक ही िं कविार करना िाकहए। वह यह कक प्रजा

स्वतन्त्र { आजाद } कैिे हो।

आप कबूि करें गे कक कुछ देशी ररयाितोिं र्ें प्रजा कुििी जाती है। वहााँ के शािक

नीिता िे िोगोिं को कुििते हैं। उनका जुल्म अिंगे्रज़ोिं के जुल्म िे भी ज्यादा है। एिा जुल्म

अगर आप कहिंदुस्तान र्ें िाहते होिं, तो हर्ारी पटरी कभी नही िं बैठेगी।

रे्रा स्वदेशाकभर्ान { हुबे्बवतन } रु्झे यह नही िं किखाता कक देशी राजाओिं के र्ातहत

कजि तरह प्रजा कुििी जाती है उिी तरह उिे कुििने कदया जाय। रु्झर्ें बि होगा तो

र्ैं देशी राजाओिं के जुल्म के क्तखिाफ और अिंगे्रज़ी जुल्म के क्तखिाफ जूझूाँगा।

स्वदेशाकभर्ान का अथम र्ैं देश का कहत { भिा } िर्झता हाँ। अगर देश का कहत

अिंगे्रज़ोिं के हाथोिं होता हो, तो र्ैं आज अिंगे्रज़ोिं को झुक कर नर्स्कार करूाँ गा। अगर कोई

अिंगे्रज़ कहे कक देश को आजाद करना िाकहए, जुल्म के क्तखिाफ होना िाकहए और िोगोिं

की िेवा करनी िाकहए, तो उि अिंगे्रज को र्ैं कहिंदुस्तानी र्ान कर उिका स्वागत करूाँ गा।

कफर, इटिी की तरह जब कहिंदुस्तान को हकथयार कर्िें तभी वह िड िक़ता है; पर

इि भगीरथ (बहुत बडे) कार् का तो, र्ािूर् होता है, आपने कविार ही िं नही िं ककया है।

अिंगे्रज़ गोिा-बारूद िे पूरी तरह िैि हैं, इििे रु्झे डर नही िं िगता। िेककन एिा तो

दीखता है कक उनके हकथयारोिं िे उन्ही िं के क्तखिाफ िडना हो, तो कहिंदुस्तान को हकथयारबिंद

करना होगा। अगर एिा हो िक़ता हो, तो इिर्ें ककतने िाि िगेंगे? और तर्ार्

कहिंदुस्ताकनयोिं को हकथयारबिंद करना तो कहिंदुस्तान को यूरोप-िा बनाने जैिा होगा। अगर

एिा हुआ तो आज यूरोप के जो बेहाि है वैिे ही िं कहिंदुस्तान के भी होिंगे। थोडे र्ें, कहिंदुस्तान

को यूरोप की िभ्यता अपनानी होगी। एिा ही िं होनेवािा हो तो अच्छी बात यह होगी कक

जो अिंगे्रज उि िभ्यता र्ें कुशि हैं, उन्ही िं को हर् यहााँ रहनें दें। उनिे थोडा-बहुत झगड

कर कुछ हक हर् पायेंगे, कुछ नही िं पायेंगे और अपने कदन गुजारें गे।

िेककन बात तो यह है कक कहिंदुस्तान की प्रजा कभी हकथयार नही िं उठायेगी। न उठाये

यह ठीक ही िं है।

पाठक: आप तो बहुत आगे बढ गये। िबके हकथयारबिंद होने की जरूरत नही िं। हर् पहिे

तो कुछ अिंगे्रज़ोिं का खून करके आतिंक { दहशत, त्राि } फैिायेंगे। कफर तो थोडे िोग

हकथयारबिंद होिंगे, वे खुल्लर्खुल्ला िडेंगे। उिर्ें पहिे तो वीि-पिीि िाख कहिंदुस्तानी

जरूर र्रें गे। िेककन आक्तखर हर् देश को अिंगे्रज़ोिं िे जीत िेंगे। हर् गुरीिा (डाकुओिं जैिी)

िडाई िडकर अिंगे्रज़ोिं को हरा दें गे।

सांपादकः आपका खयाि कहिंदुस्तान की पकवत्र भूकर् को राक्षिी { शैतानी } बनाने का िगता

है। अिंगे्रज़ोिं का खून करके कहिंदुस्तान को छूडायेंगे, एिा कविार करते हुए आपको त्राि क् योिं

नही िं होता? खून तो हर्ें अपना करना िाकहए; क्ोिंकक हर् नार्दम बन गये हैं, इिीकिए हर्

खून का कविार करते हैं। एिा करके आप ककिे आजाद करें गे? कहिंदुस्तान की प्रजा एिा

कभी नही िं िाहती। हर् जैिे िोग ही िं, कजन्होिंने अधर् िभ्यतारूपी भािंग पी है, नशे र्ें एिा

कविार करते हैं। खून करके जो िोग राज करें गे, वे प्रजा को िुखी नही िं बना िकें गे। धी िंगरा१

ने जो खून ककया है उििे या जो खून कहिंदुस्तान र्ें हुए हैं उनिे देश को फायदा हुआ है,

एिा अगर कोई र्ानता हो तो यह बडी भूि करता है। धी िंगरा को र्ैं देशाकभर्ानी र्ानता

हाँ, िेककन उिका देशपे्रर् पागिपन िे भरा था। उिने अपने शरीर का बकिदान गित

तरीके िे कदया। उििे अिंत र्ें तो देश को नुकिान ही िं होनेवािा है।

पाठक: िेककन आपको इतना तो कबूि करना ही िं होगा कक अिंगे्रज़ इि खून िे डर गये हैं,

और िोडम र्ोिे ने जो कुछ हर्ें कदया है वह एिे डर िे ही िं कदया है।

सांपादक: अिंगे्रज़ जैिे डरपोक प्रजा हैं वैिे बहादुर भी हैं। गोिाबारूद का अिर उन पर

तुरन्त होता है, एिा र्ैं र्ानता हाँ। ििंभव है, िोडम र्ोिे ने हर्ें जो कुछ कदया वह डर िे कदया

हो। िेककन डर िे कर्िी हुई िीज जब तक डर बना रहता है तभी तक कटक िकती िं है।

___________________

१. पिंजाबी युवक र्दनिाि धी िंगरा ने जुिाई , १९०९ र्ें ििंदन र्ें कनमि िर कजमन बाइिी को गोिी का

कनशाना बनाया था, उिे फािंिी की िजा कर्िी थी।

१६. गोला-बारूद

पाठक: डर िे कदया हुआ जब तक डर रहें तभी तक कटक िकता है, यह तो आपने कवकित्र

बात कही। जो कदया िो कदया। उिर्ें कफर क् या हेरफेर हो िक़ता है?

सांपादक: एिा नही िं है। १८५७ की घोषणा बिवे के अिंत र्ें िोगोिं र्ें शाक्तन्त कायर् रखने

के किए की गई थी। जब शाक्तन्त हो गई और िोग भोिे कदि के बन गये तब उिका अथम

बदि गया। अगर र्ैं िजा के डर िे िोरी न करूाँ , तो िजा का डर कर्ट जाने पर िोरी

करने की रे्री कफर िे इच्छा होगी और र्ैं िोरी करूाँ गा। यह तो बहुत ही िं िाधारण अनुभव

{ तजरबा } है; इििे इनकार नही िं ककया जा िक़ता। हर्ने र्ान किया है कक डााँट-डपटकर

िोगोिं िे कार् किया जा िक़ता है और इिकिए हर् एिा करते आये हैं।

पाठक: आपकी यह बात आपके क्तखिाफ जाती है, एिा आपको नही िं िगता? आपको

स्वीकार करना होगा कक अिंगे्रज़ोिं ने खुद जो कुछ हाकिि ककया है, वह र्ार-काट करके ही िं

हाकिि ककया है। आप कह िुके हैं कक (र्ार-काट िे) उन्होिंने जो कुछ हाकिि ककया है वह

बेकार है; यह रु्झे याद है। इििे रे्री दिीि को धक्का नही िं पहुाँिता। उन्होिंने बेकार (िीज)

पाने का िोिा और उिे पाया। र्तिब यह कक उन्होिंने अपनी रु्राद पूरी की। िाधन {

जररया } क्ा था, इिकी किन्ता हर् क्ोिं करें? अगर हर्ारी रु्राद अच्छी हो तो क् या उिे

हर् िाहे कजि िाधन िे, र्ार-काट करके भी, पूरा नही िं करें गे? िोर रे्रे घर र्ें घुिे तब

क् या र्ैं िाधन का कविार करूाँ गा? रे्रा धर्म { फजम } तो उिे ककिी भी तरह बाहर कनकािने

का ही िं होगा।

एिा िगता है कक आप यह तो कबूि करते हैं कक हर्ें िरकार के पाि अरकज़यााँ

भेजने िे कुछ नही िं कर्िा है और न आगे कभी कर्िनेवािा है। तो कफर उन्हें र्ारकर हर्

क् योिं न िें? जरूरत हो उतनी र्ार का डर हर् हरे्शा बनाये रखेंगे। बच्चा अगर आग र्ें

पैर रखे और उिे आग िे बिाने के किए हर् उि पर रोक िगाये, तो आप भी इिे दोष

नही िं र्ानेंगे। ककिी भी तरह हर्ें अपना कार् पूरा कर िेना है।

सांपादक: आपने दिीि तो अच्छी की। वह एिी है कक बहुतोिं ने उििे धोखा खाया है। र्ैं

भी एिी ही िं दिीि करता था। िेककन अब रे्री आाँखें खुि गई हैं और र्ैं अपनी गिती

िर्झ िक़ता हाँ। आपको वह गिती बताने की कोकशश करूाँ गा।

पहिे तो इि दिीि पर कविार करें कक अिंगे्रज़ोिं ने जो कुछ पाया वह

र्ार-काट करके पाया, इिकिए हर् भी वैिा ही िं करके र्निाही िीज पायें। अिंगे्रज़ोिं ने र्ार-

काट की और हर् भी कर िक़ते हैं, यह बात तो ठीक है। िेककन र्ार-काट िे जैिी िीज

उन्हें कर्िी वैिी ही िं हर् भी िे िक़ते हैं। आप कबूि करें गे कक वैिी िीज हर्ें नही िं िाकहए।

आप र्ानते हैं कक िाधन और िाध्य—जररया और रु्राद—के बीि कोई ििंबिंध नही िं

है। यह बहुत बडी भूि है। इि भूि के कारण जो िोग धाकर्मक { दीनदार } कहिाते हैं,

उन्होिंने घोर कर्म ककये हैं। यह तो धतूरे का पौधा िगाकर र्ोगरे के फूि की इच्छा करने

जैिा हुआ। रे्रे किए िरु्द्र पार करने का िाधन जहाज़ ही िं हो िक़ता है। अगर र्ैं पानी र्ें

बैिगाडी डाि दूाँ तो वह गाडी और र्ैं दोनोिं िरु्द्र के तिे पहुाँि जायेंगे। जैिे देव वैिी

पूजा— यह वाक् { कफ़करा } बहुत िोिने िायक है। उिका गित अथम करके िोग भुिावे

र्ें पड गये हैं। िाधन बीज है और िाध्य—हाकिि करने की िीज—पेड है। इिकिए कजतना

ििंबिंध िीज और पेड के बीि है, उतना ही िं िाधन और िाध्य के बीि है। शैतान को भजकर

र्ैं ईश्वर-भजन का फि पाउ, यह कभी हो ही िं नही िं िक़ता। इिकिए यह कहना कक हर्ें तो

ईश्वर को ही िं भजना है, िाधन भिे शैतान हो, कबिकुि अज्ञान की बात है। जैिी करनी

वैिी भरनी।

अिंगे्रज़ोिं ने र्ार-काट करके १८३३ र्ें वोट के (र्त के) कवशेष अकधकार पाये। क् या

र्ार-काट करके वे अपना फजम िर्झ िके? उनकी रु्राद अकधकार पाने की थी, इिकिए

उन्होिंने र्ार-काट र्िाकर अकधकार पा किये। िचे्च अकधकार तो फजम के फि { नतीजे }

हैं; वे अकधकार उन्होिंने नही िं पाये। नतीजा यह हुआ कक िबने अकधकार पाने का प्रयत्न

ककया, िेककन फजम िो गया। जहााँ िभी अकधकार की बात करें , वहााँ कौन ककिको दे? वे

कोई भी फजम अदा नही िं करते, एिा कहने का र्तिब यहााँ नही िं है। िेककन जो अकधकार

वे र्ााँगते थे उन्हें हाकिि करके उन्होिंने वे फजम पूरे नही िं ककये जो उन्हें करने िाकहए थे।

उन्होिंने योग्यता प्राप्त नही िं की, इिकिए उनके अकधकार उनकी गरदन पर जूए की तरह

िवार हो बैठे हैं। इिकिए जो कुछ उन्होिंने पाया है, वह उनके िाधन का ही िं पररणार् {

नतीजा } है। जैिी िीज़ उन्हें िाकहए थी वैिे िाधन उन्होिंने कार् र्ें किये।

रु्झे अगर आपिे आपकी घडी छीन िेनी हो, तो बेशक आपके िाथ रु्झे र्ार-पीट

करनी होगी। िेककन अगर रु्झे आपकी घडी खरीदनी हो, तो आपको दार् देने होिंगे। अगर

रु्झे बक्तिश के तौर पर आपकी घडी िेनी होगी, तो रु्झे आपिे कवनकत { आकजज़ी }

करनी होगी। घडी पानें के किए र्ैं जो िाधन कार् र्ें िूाँगा, उिके अनुिार वह िोरी का

र्ाि, रे्रा र्ाि या बक्तिश की िीज़ होगी। तीन िाधनोिं के तीन अिग पररणार् आयेंगे।

तब आप कैिे कह िक़ते हैं कक िाधन की कोई किन्ता नही िं? अब िोर को घर र्ें िे

कनकािने की कर्िाि िें। र्ैं आपिे इिर्ें िहर्त नही िं हाँ कक िोर को कनकािने के किए

िाहे जो िाधन कार् र्ें किया जा िक़ता है।

अगर रे्रे घर र्ें रे्रा कपता िोरी करने आयेगा, तो र्ैं एक िाधन कार् र्ें िूाँगा।

अगर कोई रे्री पहिान का िोरी करने आयेगा, तो र्ैं वही िाधन कार् र्ें नही िं िूाँगा। और

कोई अनजान आदर्ी आयेगा, तो र्ैं तीिरा िाधन कार् र्ें िूाँगा। अगर वह गोरा हो तो

एक िाधन और कहिंदुस्तानी हो तो दूिरा िाधन कार् र्ें िाना िाकहए, एिा भी शायद आप

कहेंगे। अगर कोई रु्दामर िडका िोरी करने आया होगा, तो र्ैं कबिकुि दूिरा ही िं िाधन

कार् र्ें िूाँगा। अगर वह रे्री बराबरी का होगा, तो और ही िं कोई िाधन र्ैं कार् र्ें िूाँगा।

और अगर वह हकथयारबिंद तगडा आदर्ी होगा, तो र्ैं िुपिाप िो रहाँगा। इिर्ें कपता िे

िेकर ताकतवर आदर्ी तक अिग अिग िाधन इसे्तर्ाि ककये जायेंगे। कपता होगा तो

भी रु्झे िगता है कक र्ैं िो रहाँगा और हकथयार िे िैि कोई होगा तो भी र्ैं िो रहाँगा। कपता

र्ें भी बि है, हकथयारबिंद आदर्ी र्ें भी बि है। दोनोिं बिोिं के बि होकर र्ैं अपनी िीज

को जाने दूाँगा। कपता का बि रु्झे दया िे रूिायेगा। हकथयारबिंद आदर्ी का बि रे्रे र्न

र्ें गुस्सा पैदा करेगा; हर् कट्टर दुश्मन हो जायेंगे। एिी रु्क्तिि हाित है। इन कर्िािोिं िे

हर् दोनोिं िाधनोिं के कनणमय { फैििा } पर तो नही िं पहुाँि िकें गे। रु्झे तो िब िोरोिं के बारे

र्ें क्ा करना िाकहए यह िूझता है। िेककन उि इिाज िे आप घबरा जायेंगे, इिकिए र्ैं

आपके िार्ने उिे नही िं रखता। आप इिे िर्झ िें; और अगर नही िं िर्झेंगे तो हर वक् त

आपको अिग िाधन कार् र्ें िेने होिंगे। िेककन आपने इतना तो देखा कक िोर को

कनकािने के किए िाहे जो िाधन कार् नही िं देगा; और जैिा िाधन आपका होगा उिके

रु्ताकबक नतीजा आयेगा। आपका धर्म ककिी भी िाधन िे िोर को घर िे कनकािने का

हरकगज नही िं है।

जरा आगे बढें। वह हकथयारबिंद आदर्ी आपकी िीज़ िे गया है। आपने उिे याद

रखा है। आपके र्न र्ें उि पर गुस्सा भरा है। आप उि िुचे्च को अपने किए नही िं, िेककन

िोगोिं के कल्याण के किए िजा देना िाहते हैं। आपने कुछ आदर्ी जर्ा ककये। उिके घर

पर आपने धावा बोिने का कनश्चय ककया। उिे र्ािूर् हुआ। वह भागा। उिने दूिरे िुटेरे

जर्ा ककये। वह भी खीजा हुआ है। अब तो उिने आपका घर कदन-दहाडे िूटने का ििंदेशा

आपको भेजा है। आप उिके रु्काबिे के किए तैयार बैठे हैं। इि बीि िुटेरा आपके

आिपाि के िोगोिं को हैरान करता है। वे आपिे कशकायत करते हैं। आप कहते हैं: “यह

िब र्ैं आप ही िं के किए तो करता हाँ। रे्रा र्ाि गया उिकी तो कोई कबिात ही िं नही िं” िोग

कहते हैं; “पहिे तो वह हर्ें िूटता नही िं था। आपने जब िे उिके िाथ िडाई शुरू की है

तभी िे उिने यह कार् शुरू ककया है।” आप दुकवधा र्ें फाँ ि जाते हैं। गरीबोिं के ऊपर

आपको रहर् है। उनकी बात िही है। अब क् या ककया जाय? क् या िुटेरे को छोड कदया

जाय? इििे तो आपकी इज्जत ििी जायेगी। इज्जत िबको प्यारी होती है। आप गरीबोिं िे

कहते हैं : “कोई । कफ़क्र नही िं। आइये, रे्रा धन आपका ही िं है। र्ैं आपको हकथयार देता

हाँ। र्ैं आपको उनका उपयोग किखाऊाँ गा। आप उि बदर्ाश को र्ाररये, छोकडये नही िं.”

योिं िडाई बढी। िुटेरे बढे। िोगोिं ने खुद होकर रु्िीबत र्ोि िी। िोर िे बदिा िेने का

पररणार् यह आया कक नी िंद बेिकर जागरण र्ोि किया। जहााँ शािंकत थी वहााँ अशािंकत पैदा

हुई। पहिे तो जब र्ौत आती तभी र्रते थे। अब तो िदा ही िं र्रने के कदन आये। िोग

कहम्मत हारकर पस्तकहम्मत { ना कहम्मत, कायर } बने। इिर्ें र्ैंने बढा िढाकर कुछ नही िं

कहा है, यह आप धीरज िे िोिेंगे तो देख िकें गे। यह एक िाधन हुआ।

अब दूिरे िाधन की जााँि करें । िोर को आप अज्ञान { नािर्झ } र्ान िेते हैं। कभी

र्ौका कर्िने पर उिे िर्झाने का आपने िोिा है। आप यह भी िोिते हैं कक वह भी हर्ारे

जैिा आदर्ी है। उिने ककि इरादे िे िोरी की, यह आपको क् या र्ािूर्? आपके किए

अच्छा रास्ता तो यही है कक जब र्ौका कर्िे तब आप उि आदर्ी के भीतर िे िोरी का

बीज ही िं कनकाि दें। एिा आप िोि रहें हैं, इतने र्ें वे भाई िाहब कफर िे िोरी करने आते

हैं। आप नाराज नही िं होते। आपको उि पर दया आती है। आप िोिते हैं कक यह आदर्ी

रोगी है। आप क्तखडकी-दरवाजे खुिे कर देते हैं। आप अपनी िोने की जगह बदि देते हैं।

आप अपनी िीजें झट िे जाई जा िकें इि तरह रख देते हैं। िोर आता है। वह घबराता

है। यह िब उिे नया ही िं र्ािूर् होता है। र्ाि तो वह िे जाता है, िेककन उिका र्न

िक्कर र्ें पड जाता है। वह गााँव र्ें जााँि-पडताि करता है। आपकी दया के बारे र्ें उिको

र्ािूर् होता है। वह पछताता है और आपिे र्ाफी र्ााँगता है। आपकी िीजें वापि िे आता

है। वह िोरी का धिंधा छोड देता है। आपका िेवक बन जाता है। आप उिे कार्धिंधे िे

िगा देते हैं। यह दूिरा िाधन है।

आप देखते हैं कक अिग अिग िाधनोिं के अिग अिग नतीजे आते हैं। िब िोर

एिा ही िं बरताव करें गे या िबर्ें आपका-िा दयाभाव होगा, एिा र्ैं इििे िाकबत नही िं

करना िाहता। िेककन यही कदखाना िाहता हाँ कक अचे्छ नतीजे िाने के किए अचे्छ ही िं

िाधन िाकहए। और अगर िब नही िं तो ज्यादातर र्ार्िोिं र्ें हकथयार-बि िे दयाबि ज्यादा

ताकतवर िाकबत होता है। हकथयार र्ें हाकन { नुकिान } है, दया र्ें कभी नही िं।

अब अरजी की बात िें। कजिके पीछे बि नही िं है वह अरजी कनकम्मी है, इिर्ें कोई

शक नही िं। कफर भी स्व न्यायरू्कतम रानडे कहते थे कक अरजी िोगोिं को तािीर् देने का एक

िाधन है। उििे िोगोिं को अपनी क्तस्थकत { हाित } का भान कराया जा िक़ता है और

राजकताम { हाककर् } को िेतावनी दी जा िकती िं है। योिं िोिें तो अरजी कनकम्मी िीज है।

बराबरी का आदर्ी अरजी करेगा तो वह उिकी नम्रता की कनशानी र्ानी जाएगी। गुिार्

अरजी करेगा तो वह उिकी गुिार्ी की कनशानी होगी। कजि अरजी के पीछे बि है वह

बराबरी के आदर्ी की अरजी है; और वह अपनी र्ााँग अरजी के रूप र्ें रखता है, यह

उिकी खानदाकनयत को बताता है।

अरजी के पीछे दो तरह के बि होते हैं: “अगर आप नही िं देंगे तो हर् आपको

र्ारें गे।” यह गोिा-बारूद का बि है। इिका बुरा नतीजा हर् देख िुके। दूिरा बि यह

है: “अगर आप नही िं दें गे तो हर् आपके अरजदार नही िं रहेंगे। हर् अरजदार होिंगे तो आप

बादशाह बने रहेंगे। हर् आपके िाथ कोई व्यवहार नही िं रखेंगे।” इि बि को िाहे दयाबि

कहें, िाहे आत्मबि कहें या ित्याग्रह कहें। यह बि अकवनाशी { िाफ़ानी } है और इि

बि का उपयोग करनेवािा अपनी हाित को बराबर िर्झता है। इिका िर्ावेश हर्ारे

बुजुगों ने 'एक ना ही िब रोगोिं की दवा' र्ें ककया है। यह बि कजिर्ें है उिका हकथयार-

बि कुछ नही िं कबगाड िक़ता।

बच्चा अगर आग र्ें पैर रखे, तो उिको दबाने की कर्िाि की छानबीन करने र्ें तो

आप हार जायेंगे। बचे्च के िाथ आप क्ा करें गे? र्ान िीकजये कक बच्चा एिा जोर करे कक

आपको र्ारकर वह आग र्ें जा पडे। तब तो आग र्ें पडे कबना वह रहेगा ही िं नही िं। इिका

उपाय आपके पाि यह है: या तो आग र्ें पडने िे रोकने के किए आप उिके प्राण िे िें,

या उिका आग र्ें पडना आपिे देखा नही िं जाता इिकिए आप स्वयिं आग र्ें पडकर अपनी

जान दे दें। आप बचे्च के प्राण तो नही िं ही िं िेंगे। आपर्ें अगर ििंपूणम दयाभाव न हो, तो

रु्र्ककन है कक आप अपने प्राण नही िं दें गे। तो कफर िािारी िे आप बचे्च को आग र्ें कूदने

दें गे। इि तरह आप बचे्च पर हकथयार-बि का उपयोग नही िं करते हैं। बचे्च को आप और

ककिी तरह रोक िकें तो रोकें गे; और वह बि कर् दजम का िेककन हकथयार-बि ही िं होगा

एिा भी आप न िर्झ िें। वह बि और ही िं प्रकार { तरह } का है। उिी को िर्झ िेना

है।

बचे्च को रोकने र्ें आप किफम बचे्च का स्वाथम देखते हैं। कजिके ऊपर आप अिंकुश

रखना िाहते हैं, उि पर उिके स्वाथम के किए ही िं अिंकुश रखेंगे। यह कर्िाि अिंगे्रज़ोिं पर

जरा भी िागू नही िं होती। आप अिंगे्रज़ोिं पर जो हकथयार-बि का उपयोग करना िाहते हैं,

उिर्ें आप अपना ही िं यानी प्रजा का स्वाथम देखते हैं। उिर्ें दया जरा भी नही िं है। अगर

आप योिं कहें कक अिंगे्रज़ जो अधर्—नीि कार् करते हैं वह आग है, वे आग र्ें अज्ञान के

कारण जाते हैं और आप दया िे अज्ञानी को यानी बचे्च को उििे बिाना िाहते हैं, तो इि

प्रयोग को आजर्ाने के किए आपको जहााँ-जहााँ जो भी आदर्ी नीि कार् करता होगा वहााँ

वहााँ पहुाँिना होगा और िार्नेवािे के—बचे्च के—प्राण िेने के बजाय अपने प्राणोिं की

आहुकत देनी पडेगी। इतना पुरूषाथम { बडा कार् } आप करना िाहें तो कर िक़ते हैं, आप

स्वतिंत्र हैं। पर यह बात कबिकुि अििंभव है।

१७. सत्याग्रि – आत्मबल

पाठक: आप कजि ित्याग्रह या आत्मबि की बात करते हैं, उिका इकतहाि र्ें कोई प्रर्ाण

{ िबूत } है? आज तक दुकनया का एक भी राष्टर इि बि िे ऊपर िढा हो, एिा देखने र्ें

नही िं आता। र्ार-काट के कबना बुरे िोग िीधे रहेंगे ही िं नही िं, एिा कवश्वाि अभी भी रे्रे र्न

र्ें बना हुआ है।

सांपादक: ककव तुििीदािजी ने किखा है:

दया धरर् को रू्ि है,

पापयूििं१ अकभर्ान,

तुििी दया न छााँकडये,

जब िग घट र्ें प्रान।

रु्झे तो यह वाक् शास्त्र-विन जैिा िगता है। जैिे दो और दो िार ही िं होते हैं, उतना ही िं

भरोिा रु्झे ऊपर के विन पर है। दयाबि आत्मबि है, ित्याग्रह है। और इि बि के

प्रर्ाण पग पग पर कदखाई देते हैं। अगर यह बि नही िं होता, तो पृथ्वी रिाति (िात पातािोिं

र्ें िे एक) र्ें पहुाँि गई होती।

िेककन आप तो इकतहाि का प्रर्ाण िाहते हैं। इिके किए हर्ें इकतहाि का अथम

जानना होगा।

‘इकतहाि’ का शब्दाथम है: 'एिा हो गया।' एिा अथम करें तो आपको ित्याग्रह के कई

प्रर्ाण कदये जा िकें गे। 'इकतहाि' कजि अिंगे्रज़ी शब्द का तरजुर्ा है और कजि शब्द का

अथम बादशाहोिं या राजाओिं की तवारीख होता है, उिका अथम िेने िे ित्याग्रह का प्रर्ाण

नही िं कर्ि िक़ता। जसे्त की खान र्ें आप अगर िााँदी ढूाँढने जायें , तो वह कैिे कर्िेगी?

'कहटरी' र्ें दुकनया के कोिाहि की ही िं कहानी कर्िेगी। इिकिए गोरे िोगोिं र्ें कहावत है

कक कजि राष्टर की 'कहटरी' (कोिाहि) नही िं है वह राष्टर िुखी है। राजा िोग कैिे खेिते थे,

कैिे खून करते थे, कैिे बैर रखते थे, यह िब 'कहटरी' र्ें कर्िता है। अगर यही इकतहाि

होता, अगर इतना ही िं हुआ होता, तब तो यह दुकनया कब की डूब गई होती। अगर दुकनया

की कथा िडाई िे शुरू हुई होती, तो आज एक भी आदर्ी कजिंदा नही िं रहता। जो प्रजा

िडाई का ही िं भोग (कशकार) बन गई, उिकी एिी ही िं दशा हुई है। आटर ेकिया के हब्शी

िोगोिं का नार्ोकनशान कर्ट गया है। आटर े किया के गोरो िं ने उनर्ें िे शायद ही िं ककिी को

जीने कदया है। कजनकी जड ही िं खतर् हो गई, वे िोग ित्याग्रही नही िं थे। जो कजिंदा रहेंगे वे

देखेंगे कक आटर ेकिया के गोरे िोगोिं के भी यही हाि होिंगे। ‘जो तिवार ििाते हैं उनकी

र्ौत तिवार िे ही िं होती है।' हर्ारे यहााँ एिी कहावत है कक ‘तैराक की र्ौत पानी र्ें'।

दुकनया र्ें इतने िोग आज भी कजिंदा हैं, यह बताता है कक दुकनया का आधार हकथयार-

बि पर नही िं है, परनु्त ित्य, दया या आत्मबि पर है। इिका िबिे बडा प्रर्ाण तो यही है

कक दुकनया िडाई के हिंगार्ोिं के बावजूद कटकी हुई है। इिकिए िडाई के बि के बजाय

दूिरा ही िं बि उिका आधार है।

हजारोिं बक्ति िाखोिं िोग पे्रर् के बि रहकर अपना जीवन बिर करते हैं। करोडोिं

कुटुम्बोिं का के्लश { दुःख } पे्रर् की भावना र्ें िर्ा जाता है, डूब जाता है। िैकडोिं राष्टर

रे्िजोि िे रहें हैं, इिको 'कहटरी' नोट नही िं करती; 'कहटरी' कर भी नही िं िकती िं। जब

इि दया की, पे्रर् की और ित्य की धारा रुकती है, टूटती है, तभी इकतहाि र्ें वह किखा

जाता है। एक कुटुम्ब के दो भाई िडे। इिर्ें एक ने दूिरे के क्तखिाफ ित्याग्रह का बि

कार् र्ें किया। दोनोिं कफर िे कर्ि-जुिकर रहने िगे। इिका नोट कौन िेता है? अगर

दोनोिं भाईयोिं र्ें वकीिोिं की र्दद िे या दूिरे कारणोिं िे वैरभाव बढता और वे हकथयारोिं

या अदाितोिं (अदाित एक तरह का हकथयार-बि, शरीर-बि ही िं है) के जररये िडते, तो

उनके नार् अखबारोिं र्ें छपते, अडोि-पडोि के िोग जानते और शायद इकतहाि र्ें भी

किखे जाते। जो बात कुटुम्बोिं, जर्ातोिं और इकतहाि के बारे र्ें िि है, वही राष्टर ो िं के बारे र्ें

भी िर्झ िेना िाकहए। कुटुम्ब के किए एक कानून और राष्टर के किए दूिरा, एिा र्ानने

का कोई कारण नही िं है। 'कहटरी' अस्वाभाकवक { गैर-कुदरती } बातोिं को दजम करती है।

ित्याग्रह स्वाभाकवक है, इिकिए उिे दजम करने की जरूरत ही िं नही िं है।

पाठक: आपके कहे रु्ताकबक तो यही िर्झ र्ें आता है कक ित्याग्रह की कर्िािें इकतहाि

र्ें नही िं किखी जा िकती िं। इि ित्याग्रह को ज्यादा िर्झने की जरूरत है। आप जो कुछ

कहना िाहते हैं, उिे ज्यादा िाफ शब्दो र्ें कहेंगे तो अच्छा होगा।

सांपादक: ित्याग्रह या आत्मबि को अिंगे्रज़ी र्ें 'पैकिव रेकज़टेन्स’ कहा जाता है। कजन िोगोिं

ने अपने अकधकार पाने के किए खुद दुःख िहन ककया था, उनके दुःख िहने के ढिंग के

किए यह शब्द बरता गया है। उिका धे्यय { र्क़िद } िडाई के धे्यय िे उिटा है। जब

रु्झे कोई कार् पिन्द न आये और वह कार् र्ैं न करूाँ , तो उिर्ें र्ैं ित्याग्रह या आत्मबि

का उपयोग करता हाँ।

कर्िाि के तौर पर, रु्झे िागू होनेवािा कोई कानून िरकार ने पाि ककया। वह

कानून रु्झे पिन्द नही िं है। अब अगर र्ैं िरकार पर हर्िा करके यह कानून रद करवाता

हाँ, तो कहा जाएगा कक र्ैंने शरीर-बि का उपयोग ककया। अगर र्ैं उि कानून को र्िंजूर

ही िं न करूाँ और उि कारण िे होनेवािी िजा भुगत िूाँ, तो कहा जाएगा कक र्ैंने आत्मबि

या ित्याग्रह िे कार् किया। ित्याग्रह र्ें र्ैं अपना ही िं बकिदान देता हाँ।

यह तो िब कोई कहेंगे कक दूिरे का भोग— बकिदान— िेने िे अपना भोग देना

ज्यादा अच्छा है। इिके किवा, ित्याग्रह िे िडते हुए अगर िडाई गित ठहरी, तो किफम

िडाई छेडनेवािा ही िं दुःख भोगता है। यानी अपनी भूि की िजा वह खुद भोगता है। एिी

कई घटनायें हुई हैं कजनर्ें िोग गिती िे शाकर्ि हुए थे। कोई भी आदर्ी दावे िे यह नही िं

कह िक़ता कक फिािं कार् खराब ही िं है। िेककन कजिे वह खराब िगा, उिके किए तो वह

खराब ही िं है। अगर एिा ही िं है तो कफर उिे वह कार् नही िं करना िाकहए और उिके किए

दुःख भोगना, कष्ट िहन करना िाकहए। यही ित्याग्रह की कुिं जी है।

पाठक: तब तो आप कानून के क्तखिाफ होते हैं! यह बेवफाई कही जाएगी। हर्ारी कगनती

हरे्शा कानून को र्ाननेवािी प्रजा र्ें होती है। आप तो ‘एक्स्ट्र ीकर्ट' िे भी आगे बढते

दीखते हैं। 'एक्स्ट्र ीकर्ट’ कहता है कक जो कानून बन िुके हैं उन्हें तो र्ानना ही िं िाकहए;

िेककन कानून खराब होिं तो उनके बनानेवािोिं को र्ारकर भगा देना िाकहए।

सांपादक: र्ैं आगे बढता हाँ या पीछे रहता हाँ, इिकी परवाह न आपको होनी िाकहए, न

रु्झे। हर् तो जो अच्छा है उिे खोजना िाहते हैं और उिके रु्ताकबक बरतना िाहते हैं।

हर् कानून को र्ाननेवािी प्रजा हैं, इिका िही अथम तो यह है कक हर् ित्याग्रही

प्रजा हैं। कानून जब पिन्द न आयें तब हर् कानून बनानेवािोिं का किर नही िं तोडते, बक्ति

उन्हें रद कराने के किए खुद उपवाि करते हैं खुद दुःख उठाते हैं।

हर्ें अचे्छ या बुरे कानून को र्ानना िाकहए, एिा अथम तो आजकि का है। पहिे

एिा नही िं था। तब िाहे कजि कानून को िोग तोडते थे और उिकी िजा भोगते थे।

कानून हर्ें पिन्द न होिं तो भी उनके रु्ताकबक ििना िाकहए, यह किखावन

र्दामनगी के क्तखिाफ है, धर्म के क्तखिाफ है और गुिार्ी की हद है।

िरकार तो कहेगी कक हर् उिके िार्ने निंगे होकर नािें। तो क्ा हर् नािेंगे? अगर

र्ैं ित्याग्रही होऊाँ तो िरकार िे कहाँगा: “यह कानून आप अपने घर र्ें रक्तखये। र्ैं न तो

आपके िार्ने निंगा होनेवािा हाँ और न नािनेवािा हाँ।” िेककन हर् एिे अित्याग्रही हो

गये हैं कक िरकार के जुल्म के िार्ने झुक कर निंगे होकर नािने िे भी ज्यादा नीि कार्

करते हैं।

कजि आदर्ी र्ें िच्ची इन्साकनयत है, जो खुदा िे ही िं डरता है, वह और ककिी िे

नही िं डरेगा। दूिरे के बनाये हुए कानून उिके किए बिंधनकारक नही िं होते। बेिारी िरकार

भी नही िं कहती कक ‘तुम्हें एिा करना ही िं पडेगा।' वह कहती है कक 'तुर् एिा नही िं करोगे

तो तुम्हें िजा होगी।' हर् अपनी अधर् दशा के कारण र्ान िेते हैं कक हर्ें 'एिा ही िं करना

िाकहए', यह हर्ारा फजम है, यह हर्ारा धर्म है।

अगर िोग एक बार िीख िें कक जो कानून हर्ें अन्यायी { गैर-इन्साफ़वािा } र्ािूर्

हो उिे र्ानना नार्दमगी है, तो हर्ें ककिी का भी जुल्म बााँध नही िं िक़ता। यही स्वराज्य की

कुिं जी है।

ज्यादा िोग जो कहें उिे थोडे िोगोिं को र्ान िेना िाकहए, यह तो अनीश्वरी { िा-

खुदाई } बात है, एक वहर् है। एिी हजारोिं कर्िािें कर्िेंगी, कजनर्ें बहुतोिं ने जो कहा वह

गित कनकिा हो और थोडे िोगोिं ने जो कहा वह िही कनकिा हो। िारे िुधार बहुत िे

िोगोिं के क्तखिाफ जाकर कुछ िोगोिं ने ही िं दाक्तखि करवाये हैं। ठगोिं के गााँव र्ें अगर बहुत

िे िोग यह कहें कक ठगकवद्या िीखनी ही िं िाकहए, तो क्ा कोई िाधु ठग बन जाएगा?

हरकगज नही िं। अन्यायी कानून को र्ानना िाकहए, यह वहर् जब तक दूर नही िं होता तब

तक हर्ारी गुिार्ी जानेवािी नही िं है। और इि वहर् को किफम ित्याग्रही ही िं दूर कर

िक़ता है।

शरीर-बि का उपयोग करना, गोिा-बारूद कार् र्ें िाना, हर्ारे ित्याग्रह के

कानून के क्तखिाफ है। इिका अथम तो यह हुआ कक हर्ें जो पििंद है वह दूिरे आदर्ी िे

हर् (जबरन) करवाना िाहते हैं। अगर यह िही हो तो कफर वह िार्नेवािा आदर्ी भी

अपनी पििंद का कार् हर्िे करवाने के किए हर् पर गोिा-बारूद ििाने का हकदार है।

इि तरह तो हर् कभी एकराय पर पहुाँिेंगे ही िं नही िं। कोल्स्ह के बैि की तरह आाँखोिं पर पट्टी

बााँधकर भिे ही िं हर् र्ान िें कक हर् आगे बढते हैं। िेककन दरअिि तो बैि की तरह हर्

गोि गोि िक्कर ही िं काटते रहते हैं। जो िोग एिा र्ानते हैं कक जो कानून खुद को

नापिन्द है उिे र्ानने के किए आदर्ी बाँधा हुआ नही िं है, उन्हें तो ित्याग्रह को ही िं िही

िाधन { जररया } र्ानना िाकहए; वरना बडा कवकट { खतरनाक } नतीजा आयेगा।

पाठक: आप जो कहते हैं उि पर िे रु्झे िगता है कक ित्याग्रह कर्ज़ोर आदकर्योिं के

किए काफी कार् का है। िेककन जब वे बिवान बन जायें तब तो उन्हें तोप (हकथयार) ही िं

ििाना िाकहए।

सांपादक: यह तो आपने बडे अज्ञान की बात कही। ित्याग्रह िबिे बडा—िवोपरी बि

है। वह जब तोपबि िे ज्यादा कार् करता है, तो कफर कर्ज़ोरोिं का हकथयार कैिे र्ाना

जाएगा? ित्याग्रह के किए जो कहम्मत और बहादुरी िाकहए, वह तोप का बि रखनेवािे के

पाि हो ही िं नही िं िकती िं। क् या आप यह र्ानते हैं कक डरपोक और कर्ज़ोर आदर्ी नापिन्द

कानून को तोड िकेगा? ‘एक्स्ट्र ीकर्ट' तोपबि – पशुबि के कहर्ायती हैं। वे क् योिं कानून

को र्ानने की बात कर रहें हैं? र्ैं उनका दोष नही िं कनकािता। वे दूिरी कोई बात कर ही िं

नही िं िक़ते। वे खुद जब अिंगे्रज़ोिं को र्ारकर राज्य करें गे तब आपिे और हर्िे (जबरन)

कानून र्नवाना िाहेंगे। उनके तरीके के किए यही कहना ठीक है। िेककन ित्याग्रही तो

कहेगा कक जो कानून उिे पिन्द नही िं हैं उन्हें वह स्वीकार नही िं करेगा, कफर िाहे उिे तोप

के रु्ाँह पर बााँधकर उिकी धक्तज्जयााँ क्ोिं न उडा दी जायाँ !

आप क् या र्ानते हैं? तोप ििाकर िैकडोिं को र्ारने र्ें कहम्मत की जरूरत है या

हाँिते-हाँिते तोप के रु्ाँह पर बाँध कर धक्तज्जयााँ उडने देने र्ें कहम्मत की जरूरत है? खुद

र्ौत को हथेिी र्ें रखकर जो ििता-कफरता है वह रणवीर है या दूिरोिं की र्ौत को अपने

हाथ र्ें रखता है वह रणवीर है?

यह कनकश्चत र्ाकनये कक नार्दम आदर्ी घडी भर के किए भी ित्याग्रही नही िं रह

िक़ता।

हााँ, यह िही है कक शरीर िे जो दुबिा हो वह भी ित्याग्रही हो िक़ता है। एक

आदर्ी भी (ित्याग्रही) हो िक़ता है और िाखोिं िोग भी हो िक़ते हैं। र्दम भी ित्याग्रही

हो िक़ता है; औरत भी हो िकती िं है। उिे अपना ििर तैयार करने की जरूरत नही िं

रहती। उिे पहिवानोिं की कुश्ती िीखने की जरूरत नही िं रहती। उिने अपने र्न को

काबू र्ें ककया कक कफर वह वनराज— कििंह की तरह गजमना कर िक़ता है; और जो उिके

दुश्मन बन बैठे हैं उनके कदि इि गजमना िे फट जाते हैं।

ित्याग्रह एिी तिवार है, कजिके दोनोिं ओर धार है। उिे िाहे जैिे कार् र्ें किया

जा िक़ता है। जो उिे ििाता है और कजि पर वह ििाई जाती है, वे दोनोिं िुखी होते हैं।

वह खून नही िं कनकािती, िेककन उििे भी बडा पररणार् िा िकती िं है। उिको जिंग नही िं

िग िकती िं। उिे कोई (िुराकर) िे नही िं जा िक़ता। अगर ित्याग्रही दूिरे ित्याग्रही के

िाथ होड र्ें उतरता है, तो उिर्ें उिे थकान िगती ही िं नही िं। ित्याग्रही की तिवार को

म्यान की जरूरत नही िं रहती। उिे कोई छीन नही िं िक़ता। कफर भी ित्याग्रह को आप

कर्ज़ोरोिं का हकथयार र्ाने तब तो उिे अाँधेर ही िं कहा जाएगा।

पाठक: आपने कहा कक वह कहिंदुस्तान का खाि हकथयार है। तो कया कहिंदुस्तान र्ें तोप के

बि का कभी उपयोग नही िं हुआ है?

सांपादक: आप कहिंदुस्तान का अथम रु्ट्ठीभर राजा करते हैं। रे्रे र्न तो कहिंदुस्तान का अथम

वे करोडोिं ककिान हैं, कजनके िहारे राजा और हर् िब जी रहें हैं।

राजा तो हकथयार कार् र्ें िायेंगे ही िं। उनका वह ररवाज ही िं हो गया है। उन्हें हुक्म

ििाना है। िेककन हुक्म र्ाननेवािे को तोपबि की जरूरत नही िं है। दुकनया के ज्यादातर

िोग हुक्म र्ाननेवािे हैं। उन्हें या तो तोपबि या ित्याग्रह का बि किखाना िाकहए। जहााँ

वे तोपबि िीखते हैं वहााँ राजा-प्रजा दोनोिं पागि जैिे हो जाते हैं। जहााँ हुक्म र्ाननेवािोिं

ने ित्याग्रह करना िीखा है वहााँ राजा का जुल्म उिकी तीन गज की तिवार िे आगे नही िं

जा िक़ता; और हुक्म र्ाननेवािोिं ने अन्यायी हुक्म की परवाह भी नही िं की है। ककिान

ककिी के तिवार-बि के बि न तो कभी हुए हैं, और न होिंगे। वे तिवार ििाना नही िं

जानते; न ककिी की तिवार िे वे डरते हैं। वे र्ौत को हरे्शा अपना तककया बनाकर

िोनेवािी र्हान प्रजा हैं। उन्होिंने र्ौत का डर छोड कदया है, इिकिए िबका डर छोड

कदया है। यहााँ र्ैं कुछ बढा-िढाकर तिवीर खी िंिता हाँ, यह ठीक है। िेककन हर् जो तिवार

के बि िे िककत { दिंग } हो गये हैं, उनके किए यह कुछ ज्यादा नही िं है।

बात यह है कक ककिानोिं ने, प्रजा-र्िंडिोिं ने अपने और राज्य के कारोबार र्ें ित्याग्रह

को कार् र्ें किया है। जब राजा जुल्म करता है तब प्रजा रूठती है। यह ित्याग्रह ही िं है।

रु्झे याद है कक एक ररयाित र्ें रैयत को अरु्क हुक्म पिन्द नही िं आया, इिकिए

रैयत ने कहजरत करना—गााँव खािी करना – शुरू कर कदया। राजा घबडाये। उन्होिंने रैयत

िे र्ाफी र्ााँगी और हुक्म वापि िे किया। एिी कर्िािें तो बहुत कर्ि िकती िं हैं। िेककन

वे ज्यादातर भारत-भूकर् की ही िं उपज होिंगी। एिी रैयत जहााँ है वही िं स्वराज्य है। इिके

कबना स्वराज्य कुराज्य है।

पाठक: तो क्ा आप यह कहेंगे कक शरीर को किने की जरूरत ही िं नही िं है?

सांपादक: एिा र्ैं कभी नही िं कहाँगा। शरीर को किे कबना ित्याग्रही होना रु्क्तिि है।

अकिर कजन शरीरो िं को गित िाड िडा कर या िहिाकर कर्ज़ोर बना कदया गया है,

उनर्ें रहनेवािा र्न भी कर्ज़ोर होता है। और जहााँ र्न का बि नही िं है वहााँ आत्मबि

कैिे हो िक़ता है? हर्ें बाि-कववाह वगैरा के कुररवाज को और ऐश-आरार् की बुराई को

छोडकर शरीर को किना ही िं होगा। अगर र्ैं र्ररयि और कर्ज़ोर आदर्ी को यकायक

तोप के रु्ाँह पर खडा हो जाने के किए कहाँ, तो िोग रे्री हाँिी उडायेंगे।

पाठक: आपके कहने िे तो एिा िगता है कक ित्याग्रही होना र्ारू्िी बात नही िं है, और

अगर एिा है तो कोई आदर्ी ित्याग्रही कैिे बन िक़ता है, यह आपको िर्झाना होगा।

सांपादक: ित्याग्रही होना आिान है। िेककन कजतना वह आिान है उतना ही िं रु्क्तिि भी

है। िौदह बरि का एक िडका ित्याग्रही हुआ है, यह रे्रे अनुभव की बात है। रोगी

आदर्ी ित्याग्रही हुए हैं, यह भी र्ैंने देखा है। र्ैंने यह भी देखा है कक जो िोग शरीर िे

बिवान थे और दूिरी बातोिं र्ें भी िुखी थे, वे ित्याग्रही नही िं हो िके।

अनुभव िे र्ैं देखता हाँ कक जो देश के भिे के किए ित्याग्रही होना िाहता है, उिे

िह्मियम का पािन करना िाकहए, गरीबी अपनानी िाकहए, ित्य का पािन तो करना ही िं

िाकहए और हर हाित र्ें अभय { कनडर } बनना िाकहए।

िह्मियम एक र्हान व्रत है, कजिके कबना र्न र्जबूत नही िं होता। िह्मियम का पािन

न करने िे र्नुष्य वीयमवान नही िं रहता, नार्दम और कर्ज़ोर हो जाता है। कजिका र्न कवषय

{ नफ़िानी ख्वाकहश } र्ें भटकता है, वह क् या शेर र्ारेगा? यह बात अनकगनत कर्िािोिं िे

िाकबत की जा िकती िं है। तब िवाि यह उठता है कक घर-ििंिारी को क् या करना िाकहए।

िेककन एिा िवाि उठने की कोई जरूरत नही िं। घर-ििंिारी ने जो ििंग ककया (स्त्री की

िोहबत की) वह कवषय-भोग नही िं है, एिा कोई नही िं कहेगा। ििंतान पैदा करने के किए ही िं

अपनी स्त्री का ििंग करने की बात कही गयी है। और ित्याग्रही को ििंतान पैदा करने की

इच्छा नही िं होनी िाकहए। इिकिए ििंिारी होने पर भी वह िह्मियम का पािन कर िक़ता

है। यह बात ज्यादा खोिकर किखने की जरूरत नही िं। स्त्री का क्ा कविार है? यह िब

कैिे हो िक़ता है? एिे कविार र्न र्ें पैदा होते हैं। कफर भी कजिे र्हान कायों र्ें कहस्सा

िेना है, उिे तो एिे िवािोिं का हि ढूाँढना ही िं होगा।

जैिे िह्मियम की जरूरत है वैिे ही िं गरीबी को अपनाने की भी जरूरत है। पैिे का

िोभ और ित्याग्रह का िेवनपािन (दोनोिं िाथ िाथ) कभी नही िं िि िक़ते। िेककन रे्रा

र्तिब यह नही िं है कक कजिके पाि पैिा है वह उिे फें क दे। कफर भी पैिे के बारे र्ें

िापरवाह रहने की जरूरत है। ित्याग्रह का िेवन करते हुए अगर पैिा ििा जाय, तो

किन्ता नही िं करनी िाकहए।

जो ित्य का िेवन नही िं करता, वह ित्य का बि, ित्य की ताक़त कैिे कदखा

िकेगा? इिकिए ित्य की तो पूरी-पूरी जरूरत रहेगी ही िं। बडे िे बडा नुकिान होने पर

भी ित्य को नही िं छोडा जा िक़ता। ित्य के किए कुछ कछपाने को होता ही िं नही िं। इिकिए

ित्याग्रही के किए कछपी िेना की जरूरत नही िं होती। जान बिाने के किए झठू बोिना

िाकहए या नही िं, एिा िवाि यहााँ र्न र्ें नही िं उठाना िाकहए। कजिे झठू का बिाव करना

है, वही एिे बेकार िवाि उठाता है। कजिे ित्य की ही िं राह िेनी है, उिके िार्ने एिे धर्म-

ििंकट { दुकबधा } कभी आते ही िं नही िं। एिी रु्क्तिि हाित र्ें आ पडे तो भी ित्यवादी

उिर्ें िे उबर जाता है।

अभय के कबना तो ित्याग्रही की गाडी एक कदर् भी आगे नही िं िि िकती िं। अभय

ििंपूणम और िब बातोिं के किए होना िाकहए। जर्ीन-जायदाद का, झठूी इज्जज़त का, िगे-

ििंबिंकधयोिं का, राज-दरबार का, शरीर को पहुाँिनेवािी िोटोिं का और र्रण का अभय हो,

तभी ित्याग्रह का पािन हो िक़ता है। यह िब करना रु्क्तिि है, एिा र्ानकर इिे छोड

नही िं देना िाकहए। जो किर पर पडता है उिे िह िेने की शक्ति कुदरत ने हर र्नुष्य को

दी है। कजिे देशिेवा न करनी हो, उिे भी एिे गुणोिं का िेवन करना िाकहए।

इिके किवा, हर् यह भी िर्झ िक़ते हैं कक कजिे हकथयार-बि पाना होगा, उिे भी

इन बातोिं की जरूरत रहेगी। रणवीर होना कोई एिी बात नही िं कक ककिी ने इच्छा की और

तुरन्त रणवीर हो गया। योद्धा (िडवैया) को िह्मियम का पािन करना होगा, कभखारी बनना

होगा। रण र्ें कजिके भीतर अभय न हो वह िड नही िं िक़ता। उिे (योद्धा को) ित्यव्रत

का पािन करने की उतनी जरूरत नही िं है, एिा शायद ककिी को िगे। िेककन जहााँ अभय

है वहााँ ित्य कुदरती तौर पर रहता ही िं है। र्नुष्य जब ित्य को छोडता है तब ककिी तरह

के भय के कारण ही िं छोडता है।

इिकिए इन िार गुणोिं { किफ़तोिं } िे डर जाने का कोई कारण नही िं है। कफर,

तिवारबाज़ को और भी कुछ बेकार कोकशशें करनी पडती हैं , जो ित्याग्रही को नही िं करनी

पडती िं। तिवारबाज़ को जो दूिरी कोकशशें करनी पडती हैं, उिका कारण भय है। अगर

उिर्ें पूरी कनडरता आ जाय, तो उिी पि उिके हाथ िे तिवार कगर जाएगी। कफर उिे

तिवार के िहारे की जरूरत नही िं रहती। कजिकी ककिी िे दुश्मनी नही िं है, उिे तिवार

की जरूरत ही िं नही िं है। कििंह के िार्ने आनेवािे एक आदर्ी के हाथ की िाठी अपने-

आप उठ गई। उिने देखा कक अभय का पाठ उिने किफम ज़बानी ही िं ककया था। उिने

िाठी छोडी और वह कनभमय-कनडर बना।

__________________

१. गािंधीजी ने 'कदहरू्ि' पाठ किया है। -अनुवादक

१८. हशक्षा

पाठक: आपने इतना िारा कहा, परनु्त उिर्ें कही िं भी कशक्षा –तािीर् की जरूरत तो

बताई ही िं नही िं। हर् कशक्षा की कर्ी की हरे्शा कशकायत करते रहते हैं। िाकज़र्ी तािीर्

देने का आन्दोिन हर् िारे देश र्ें देखते हैं। र्हाराजा गायकवाड ने (अपने राज्य र्ें)

िाकज़र्ी कशक्षा शुरू की है। उिकी ओर िबका ध्यान गया है। हर् उन्हें धन्यवाद देते हैं।

यह िारी कोकशश क्ा बेकार ही िं िर्झनी िाकहए?

सांपादक: अगर हर् अपनी िभ्यता { तहजीब } को िबिे अच्छी र्ानते हैं, तब तो रु्झे

अफिोि के िाथ कहना पडेगा कक वह कोकशश ज्यादातर बेकार ही िं है। र्हाराजा िाहब

और हर्ारे दूिरे धुरन्धर { बहुत बडे } नेता िबको तािीर् देने की जो कोकशश कर रहें हैं,

उिर्ें उनका हेतु कनर्मि है। इिकिए उन्हें धन्यवाद ही िं देना िाकहए। िेककन उनके हेतु का

जो नतीजा आने की ििंभावना है, उिे हर् कछपा नही िं िक़ते।

कशक्षा: तािीर् का अथम क्ा है? अगर उिका अथम किफम अक्षरज्ञान ही िं हो, तो वह

तो एक िाधन जैिी ही िं हुईिं। उिका अच्छा उपयोग भी हो िक़ता है और बुरा उपयोग भी

हो िक़ता है। एक शस्त्र { औज़ार } िे िीर-फाड करके बीर्ार को अच्छा ककया जा िक़ता

है और वही शस्त्र ककिी की जान िेने के किए भी कार् र्ें िाया जा िक़ता है। अक्षर-ज्ञान

का भी एिा ही िं है। बहुत िे िोग उिका बुरा उपयोग करते हैं , यह तो हर् देखते ही िं हैं।

उिका अच्छा उपयोग प्रर्ाण { रु्काबिे } र्ें कर् ही िं िोग करते हैं। यह बात अगर ठीक

है तो इििे यह िाकबत होता है कक अक्षर-ज्ञान िे दुकनया को फायदे के बदिे नुकिान ही िं

हुआ है।

कशक्षा का िाधारण अथम अक्षर-ज्ञान ही िं होता है। िोगोिं को किखना, पढना और

कहिाब करना किखाना बुकनयादी या प्राथकर्क – प्रायर्री – कशक्षा कहिाती है। एक ककिान

ईर्ानदारी िे खुद खेती करके रोटी कर्ाता है। उिे र्ारू्िी तौर पर दुकनयावी ज्ञान है।

अपने र्ााँ-बाप के िाथ कैिे बरतना, अपनी स्त्री के िाथ कैिे बरतना, बच्चोिं िे कैिे पेश

आना, कजि देहात र्ें वह बिा हुआ है वहााँ उिकी िािढाि कैिी होनी िाकहए, इि िबका

उिे काफी ज्ञान है। वह नीकत के कनयर् िर्झता है और उनका पािन करता है। िेककन

वह अपने दस्तखत करना नही िं जानता। इि आदर्ी को आप अक्षर-ज्ञान देकर क्ा करना

िाहते हैं? उिके िुख र्ें आप कौन िी बढती करें गे? क्ा उिकी झोिंपडी या उिकी हाित

के बारे र्ें आप उिके र्न र्ें अििंतोष पैदा करना िाहते हैं? एिा करना हो तो भी उिे

अक्षर-ज्ञान देने की जरूरत नही िं है। पकश्चर् के अिर के नीिे आकर हर्ने यह बात ििायी

है कक िोगोिं को कशक्षा देनी िाकहए। िेककन उिके बारे र्ें हर् आगे-पीछे की बात िोिते

ही िं नही िं।

अब ऊिं िी कशक्षा को िें। र्ैं भूगोि-कवद्या िीखा, खगोि-कवद्या (आकाश के तारो िं की

कवद्या) िीखा, बीजगकणत (एिजिा) भी रु्झे आ गया, रेखागकणत (ज्योरे्टर ी) का ज्ञान भी

र्ैंने हाकिि ककया, भूगभम-कवद्या को भी र्ैं पी गया। िेककन उििे क्ा? उििे र्ैंने अपना

कौन िा भिा ककया? अपने आिपाि के िोगोिं का क्ा भिा ककया? ककि र्किद िे र्ैंने

वह ज्ञान हाकिि ककया? उििे रु्झे क्ा फायदा हुआ? एक अिंगे्रज़ कवद्वान (हक्सिी) ने

कशक्षा के बारे र्ें यो िं कहा है: “उि आदर्ी ने िच्ची कशक्षा पाई है, कजिके शरीर को एिी

आदत डािी गई है कक वह उिके बि र्ें रहता है, कजिका शरीर िैन िे और आिानी िे

िौिंपा हुआ कार् करता है। उि आदर्ी ने िच्ची कशक्षा पाई है, कजिकी बुक्तद्ध शुद्ध, शािंत

और न्यायदशी { इन्साफ़ को परखनेवािी } है। उिने िच्ची कशक्षा पाई है, कजिका र्न

कुदरती कानूनोिं िे भरा है और कजिकी इक्तियााँ उिके बि र्ें हैं, कजिके र्न की भावनायें

कबिकुि शुद्ध हैं, कजिे नीि कार्ोिं िे नफ़रत है और जो दूिरोिं को अपने जैिा र्ानता है।

एिा आदर्ी ही िं िच्चा कशकक्षत (तािीर्शुदा) र्ाना जाएगा, क् योिंकक वह कुदरत के कानून

के रु्ताकबक ििता है। कुदरत उिका अच्छा उपयोग करेगी और वह कुदरत का अच्छा

उपयोग करेगा।” अगर यही िच्ची कशक्षा हो तो र्ैं किर् खाकर कहाँगा कक ऊपर जो

शास्त्र र्ैंने कगनाए हैं उनका उपयोग रे्रे शरीर या रे्री इक्तियोिं को बि र्ें करने के किए

रु्झे नही िं करना पडा। इिकिए प्रायर्री – प्राथकर्क कशक्षा को िीकजये या ऊाँ िी कशक्षा को

िीकजये, उिका उपयोग रु्ख्य बात र्ें नही िं होता। उििे हर् र्नुष्य नही िं बनते – उििे

हर् अपना कतमव्य { फजम } नही िं जान िक़ते।

पाठक: अगर एिा ही िं है, तो र्ैं आपिे एक िवाि करूाँ गा। आप ये जो िारी बातें कह रहें

हैं, वह ककिकी बदौित कह रहें हैं? अगर आपने अक्षर-ज्ञान और ऊाँ िी कशक्षा नही िं पाई

होती, तो ये िब बातें आप रु्झे कैिे िर्झा पाते?

सांपादक: आपने अच्छी िुनाई। िेककन आपके िवाि का रे्रा जवाब भी िीधा ही िं है।

अगर र्ैंने ऊाँ िी या नीिी कशक्षा नही िं पाई होती, तो र्ैं नही िं र्ानता कक र्ैं कनकम्मा आदर्ी

हो जाता। अब ये बातें कहकर र्ैं उपयोगी बनने की इच्छा रखता हाँ। एिा करते हुए जो

कुछ र्ैंने पढा उिे र्ैं कार् र्ें िाता हाँ; और उिका उपयोग, अगर वह उपयोग हो तो, र्ैं

अपने करोडोिं भाईयोिं के किए नही िं कर िक़ता, किफम आप जैिे पढे-किखोिं के किए ही िं कर

िकता हाँ। इििे भी रे्री ही िं बात का िर्थमन { ताईद } होता है। र्ैं और आप दोनोिं गित

कशक्षा के पिंजे र्ें फैं ि गये थे। उिर्ें िे र्ैं अपने को रु्ि हुआ र्ानता हाँ। अब वह अनुभव

र्ैं आपको देता हाँ और उिे देते िर्य िी हुई कशक्षा का उपयोग करके उिर्ें रही िडन

र्ैं आपको कदखाता हाँ।

इिके किवा, आपने जो बात रु्झे िुनाई उिर्ें आप गिती खा गये, क्ोिंकक र्ैंने

अक्षर-ज्ञान को (हर हाित र्ें) बुरा नही िं कहा है। र्ैंने तो इतना ही िं कहा है कक उि ज्ञान की

हर्ें रू्कतम की तरह पूजा नही िं करनी िाकहए। वह हर्ारी कार्धेनु { र्निाहा देनेवािी गाय

} नही िं है। वह अपनी जगह पर शोभा दे िक़ता है। और वह जगह यह है: जब र्ैंने और

आपने अपनी इक्तियोिं को बि र्ें कर किया हो, जब हर्ने नीकत की नी िंव र्जबूत बना िी

हो, तब अगर हर्ें अक्षर-ज्ञान पाने की इच्छा हो, तो उिे पाकर हर् उिका अच्छा उपयोग

कर िक़ते हैं। वह कशक्षा आभूषण { गहना } के रूप र्ें अच्छी िग िकती िं है। िेककन

अक्षर-ज्ञान का अगर आभूषण के तौर पर ही िं उपयोग हो, तो एिी कशक्षा को िाकज़र्ी करने

की हर्ें जरूरत नही िं। हर्ारे पुराने सू्कि ही िं काफी हैं। वहााँ नीकत को पहिा स्थान कदया

जाता है। वह िच्ची प्राथकर्क कशक्षा है। उि पर हर् जो इर्ारत खडी करें गे वह कटक

िकेगी।

पाठक: तब क् या रे्रा यह िर्झना ठीक है कक आप स्वराज्य के किए अिंगे्रज़ी कशक्षा का

कोई उपयोग नही िं र्ानते?

सांपादक: रे्रा जवाब 'हााँ' और ‘नही िं' दोनोिं है। करोडोिं िोगोिं को अिंगे्रज़ी की कशक्षा देना

उन्हें गुिार्ी र्ें डािने जैिा है। रे्कोिे ने कशक्षा की जो बुकनयाद डािी, वह ििरु्ि गुिार्ी

की बुकनयाद थी। उिने इिी इरादे िे अपनी योजना बनाई थी, एिा र्ैं नही िं िुझाना िाहता।

िेककन उिके कार् का नतीजा यही कनकिा है। यह ककतने दुःख की बात है कक हर्

स्वराज्य की बात भी पराई भाषा र्ें करते हैं?

कजि कशक्षा को अिंगे्रज़ोिं ने ठुकरा कदया है वह हर्ारा कििंगार बनती है, यह जानने

िायक है। उन्ही िं के कवद्वान कहते रहते हैं कक उिर्ें यह अच्छा नही िं है, वह अच्छा नही िं है।

वे कजिे भूि-िे गये हैं, उिी िे हर् अपने अज्ञान के कारण किपके रहते हैं। उनर्ें अपनी

अपनी भाषा की उन्कत करने की कोकशश िि रही है। वेल्स इिंग्लैंड का एक छोटा िा

परगना है; उिकी भाषा धूि जैिी नगण्य है। एिी भाषा का अब जीणेद्धार१ हो रहा है।

वेल्स के बचे्च वेल्स्श भाषा र्ें ही िं बोिें, एिी कोकशश वहााँ िि रही है। इिर्ें इिंग्लैंड

के खजािंिी िॉयड जोजम बडा कहस्सा िेते हैं। और हर्ारी दशा कैिी है? हर् एक-दूिरे को

पत्र किखते हैं तब गित अिंगे्रज़ी र्ें किखते हैं। एक िाधारण एर्. ए. पाि आदर्ी भी एिी

गित अिंगे्रज़ी िे बिा नही िं होता। हर्ारे अचे्छ िे अचे्छ कविार प्रगट { जाकहर } करने का

जररया है अिंगे्रज़ी; हर्ारी कािंगे्रि का कारोबार भी अिंगे्रज़ी र्ें ििता है। अगर एिा ििंबे

अरिे तक ििा, तो रे्रा र्ानना है कक आनेवािी पीढी हर्ारा कतरस्कार करेगी और उिका

शाप { बददुआ } हर्ारी आत्मा को िगेगा।

आपको िर्झना िाकहए कक अिंगे्रज़ी कशक्षा िेकर हर्ने अपने राष्टर को गुिार् बनाया

है। अिंगे्रज़ी कशक्षा िे दिंभ { ढोिंग }, राग { र्र्ता } दे्वष }, जुल्म वगैरा बढे हैं। अिंगे्रज़ी कशक्षा

पाये हुए िोगोिं ने प्रजा को ठगने र्ें, उिे परेशान करने र्ें कुछ भी उठा नही िं रखा है। अब

अगर हर् अिंगे्रज़ी कशक्षा पाये हुए िोग उिके किए कुछ करते हैं, तो उिका हर् पर जो

कजम िढा हुआ है उिका कुछ कहस्सा ही िं हर् अदा करते हैं।

यह क् या कर् जुल्म की बात है कक अपने देश र्ें अगर रु्झे इन्साफ़ पाना हो, तो

रु्झे अिंगे्रज़ी भाषा का उपयोग करना िाकहए! बैररटर होने पर र्ैं स्वभाषा र्ें बोि ही िं नही िं

िक़ता! दूिरे आदर्ी को रे्रे किए तरजुर्ा कर देना िाकहए! यह कुछ कर् दिंभ है? यह

गुिार्ी की हद नही िं तो और क् या है? इिर्ें र्ैं अिंगे्रज़ोिं का दोष कनकािूाँ या अपना? कहिंदुस्तान

को गुिार् बनानेवािे तो हर् अिंगे्रज़ी जाननेवािे िोग ही िं हैं। राष्टर की हाय अिंगे्रज़ोिं पर नही िं

पडेगी, बक्ति हर् पर पडेगी।

िेककन र्ैंने आपिे कहा कक रे्रा जवाब 'हााँ' और ‘ना' दोनोिं है । हााँ! कैिे िो र्ैंने

आपको िर्झाया।

अब 'ना' कैिे यह बताता हाँ। हर् िभ्यता के रोग र्ें एिे फाँ ि गये हैं कक अिंगे्रज़ी

कशक्षा कबिकुि किये कबना अपना कार् ििा िकें एिा िर्य अब नही िं रहा। कजिने वह

कशक्षा पाई है, वह उिका अच्छा उपयोग करे। अिंगे्रज़ोिं के िाथ के व्यवहार र्ें, एिे

कहिंदुस्ताकनयोिं के िाथ के व्यवहार र्ें कजनकी भाषा हर् िर्झ न िक़ते होिं और अिंगे्रज़ खुद

अपनी िभ्यता िे कैिे परेशान हो गये हैं यह िर्झने के किए अिंगे्रज़ी का उपयोग ककया

जाय। जो िोग अिंगे्रज़ी पढे हुए हैं उनकी ििंतानोिं को पहिे तो नीकत किखानी िाकहए, उनकी

र्ातृभाषा { र्ादरी जबान } किखानी िाकहए और कहिंदुस्तान की एक दूिरी भाषा किखानी

िाकहए। बािक जब पुख्ता (पक्की) उम्र के हो जायें तब भिे ही िं वे अिंगे्रज़ी कशक्षा पायें, और

वह भी उिे कर्टाने के इरादे िे, न कक उिके जररये पैिे कर्ाने के इरादे िे। एिा करते

हुए भी हर्ें यह िोिना होगा कक अिंगे्रज़ी र्ें क्ा िीखना िाकहए और क् या नही िं िीखना

िाकहए। कोन िे शास्त्र पढने िाकहए, यह भी हर्ें िोिना होगा। थोडा कविार करने िे ही िं

हर्ारी िर्झ र्ें आ जाएगा कक अगर अिंगे्रज़ी कडग्री िेना हर् बन्द कर दें , तो अिंगे्रज हाककर्

िौकें गे।

पाठक: तब कैिी कशक्षा दी जाय?

सांपादकः उिका जवाब ऊपर कुछ हद तक आ गया है। कफर भी इि िवाि पर हर् और

कविार करें । रु्झे तो िगता है कक हर्ें अपनी िभी भाषाओिं को उज्ज्वि—शानदार बनाना

िाकहए। हर्ें अपनी भाषा र्ें ही िं कशक्षा िेनी िाकहए— इिके क् या र्ानी है, इिे ज्यादा

िर्झाने का यह स्थान नही िं है। जो अिंगे्रजी पुस्तकें कार् की हैं, उनका हर्ें अपनी भाषा र्ें

अनुवाद करना होगा। बहुत िे शास्त्र िीखने का दिंभ और वहर् हर्ें छोडना होगा। िबिे

पहिे तो धर्म की कशक्षा या नीकत की कशक्षा दी जानी िाकहए। हर एक पढे-किखे कहिंदुस्तानी

को अपनी भाषा का, कहिंदू को ििंसृ्कत का, रु्ििर्ान को अरबी का, पारिी को फारिी

का और िबको कहिंदी का ज्ञान होना िाकहए। कुछ कहिंदुओिं को अरबी और कुछ रु्ििर्ानोिं

और पारकियोिं को ििंसृ्कत िीखनी िाकहए। उिरी और पकश्चर्ी कहिंदुस्तान के िोगोिं को

ताकर्ि िीखनी िाकहए। िारे कहिंदुस्तान के किए जो भाषा िाकहए, वह तो कहिंदी ही िं होनी

िाकहए। उिे उदूम या नागरी किकप र्ें किखने की छूट रहनी िाकहए। कहिंदू-रु्ििर्ानोिं के

ििंबिंध ठीक रहें, इिकिए बहुत िे कहिंदुस्ताकनयोिं का इन दोनोिं किकपयोिं को जान िेना जरूरी

है। एिा होने िे हर् आपि के व्यवहार र्ें अिंगे्रज़ी को कनकाि िकें गे।

और यह िब ककिके किए जरूरी है? हर् जो गुिार् बन गये हैं उनके किए। हर्ारी

गुिार्ी की वजह िे देश की प्रजा गुिार् बनी है। अगर हर् गुिार्ी िे छूट जायाँ, तो प्रजा

तो छूट ही िं जाएगी।

पाठक: आपने जो धर्म की कशक्षा की बात कही वह बडी ककठन है।

सांपादक: कफर भी उिके कबना हर्ारा कार् नही िं िि िक़ता। कहिंदुस्तान कभी नाक्तस्तक

नही िं बनेगा। कहिंदुस्तान की भूकर् र्ें नाक्तस्तक फि-फूि नही िं िकते। बेशक, यह कार्

रु्क्तिि है। धर्म की कशक्षा का खयाि करते ही िं किर िकराने िगता है। धर्म के आिायम

दिंभी और स्वाथी { खुदगजम } र्ािूर् होते हैं। उनके पाि पहुाँिकर हर्ें नम्र भाव िे उन्हें

िर्झाना होगा। उिकी कुिं जी रु्ल्लोिं, दसू्तरोिं और िाह्मणोिं के हाथ र्ें है। िेककन उनर्ें

अगर िद्बुक्तद्ध पैदा न हो, तो अिंगे्रज़ी कशक्षा के कारण हर्र्ें जो जोश पैदा हुआ है उिका

उपयोग करके हर् िोगोिं को नीकत की कशक्षा दे िक़ते हैं। यह कोई बहुत रु्क्तिि बात

नही िं है। कहिंदुस्तानी िागर के ककनारे पर ही िं रै्ि जर्ा है। उि रै्ि िे जो गिंदे हो गये हैं

उन्हें िाफ होना है। हर् िोग एिे ही िं हैं और खुद ही िं बहुत कुछ िाफ हो िक़ते हैं। रे्री

यह टीका करोडोिं िोगोिं के बारे र्ें नही िं है। कहिंदुस्तान को अििी रासे्त पर िाने के किए

हर्ें ही िं अििी रासे्त पर आना होगा। बाकी करोडोिं िोग तो अििी रासे्त पर ही िं हैं। उिर्ें

िुधार, कबगाड, उन्कत { तरक्की }, अवनकत { कगरावट } िर्य के अनुिार होते ही िं रहेंगे।

पकश्चर् की िभ्यता को कनकाि बाहर करने की ही िं हर्ें कोकशश करनी िाकहए। दूिरा िब

अपने-आप ठीक हो जाएगा।

______________________

१. उद्धार-ििंवार, कफर िे कजिाने की कोकशश

१९. मशीनें

पाठक: आप पकश्चर् की िभ्यता को कनकाि बाहर करने की बात कहते हैं, तब तो आप

यह भी कहेंगे कक हर्ें कोई भी र्शीन नही िं िाकहए।

सांपादक: रु्झे जो िोट िगी थी उिे यह िवाि करके आपने ताजा कर कदया है। कर्.

ररे्शिि दि की पुस्तक कहिंदुस्तान का आकथमक इकतहाि जब र्ैंने पढी, तब भी रे्री एिी

हाित हो गई थी। उिका कफर िे कविार करता हाँ, तो रे्रा कदि भर आता है। र्शीन की

झपट िगने िे ही िं कहिंदुस्तान पार्ाि हो गया है। रै्ने्चटर ने हर्ें जो नुकिान पहुाँिाया है,

उिकी तो कोई हद ही िं नही िं है। कहिंदुस्तान िे कारीगरी जो करीब-करीब खतर् हो गई, वह

रै्ने्चटर का ही िं कार् है।

िेककन र्ैं भूिता हाँ। रै्ने्चटर को दोष कैिे कदया जा िक़ता है? हर्ने उिके कपडे

पहने तभी तो उिने कपडे बनाये। बिंगाि की बहादुरी का वणमन { कजक्र } जब र्ैंने पढा

तब रु्झे हषम { भारी खुशी } हुआ। बिंगाि र्ें कपडे की कर्िें नही िं हैं, इिकिए िोगोिं ने अपना

अििी धिंधा कफर िे हाथ र्ें िे किया। बिंगाि बम्बई की कर्िोिं को बढावा देता है वह ठीक

ही िं है; िेककन अगर बिंगाि ने तर्ार् र्शीनोिं िे परहेज ककया होता, उनका बायकाट –

बकहष्कार ककया होता, तो और भी अच्छा होता।

र्शीनें यूरोप को उजाडने िगी हैं और वहााँ की हवा अब कहिंदुस्तान र्ें िि रही है।

यिंत्र आज की िभ्यता की रु्ख्य कनशानी है और वह र्हापाप है, एिा र्ैं तो िाफ देख

िकता हाँ।

बम्बई की कर्िोिं र्ें जो र्जदूर कार् करते हैं , वे गुिार् बन गये हैं। जो औरतें उनर्ें

कार् करती हैं, उनकी हाित देखकर कोई भी कााँप उठेगा। जब कर्िोिं की वषाम नही िं हुई

थी तब वे औरतें भूखोिं नही िं र्रती थी िं। र्शीन की यह हवा अगर ज्यादा ििी, तो कहिंदुस्तान

की बुरी दशा होगी।

रे्री बात आपको कुछ रु्क्तिि र्ािूर् होती होगी। िेककन रु्झे कहना िाकहए कक

हर् कहिंदुस्तान र्ें कर्िें कायर् करें , उिके बजाय हर्ारा भिा इिी र्ें है कक हर् रै्ने्चटर

को और भी रूपये भेजकर उिका िडा हुआ कपडा कार् र्ें िें; क् योिंकक उिका कपडा

कार् र्ें िेने िे किफम हर्ारे पैिे ही िं जायेंगे। कहिंदुस्तान र्ें अगर हर् रै्ने्चटर कायर् करें गे

तो पैिा कहिंदुस्तान र्ें ही िं रहेगा, िेककन वह पैिा हर्ारा खून िूिेगा; क्ोिंकक वह हर्ारी नीकत

को कबिकुि खतर् कर देगा। जो िोग कर्िोिं र्ें कार् करते हैं उनकी नीकत कैिी है, यह

उन्ही िं िे पूछा जाय। उनर्ें िे कजन्होिंने रूपये जर्ा ककये हैं, उनकी नीकत दूिरे पैिेवािोिं िे

अच्छी नही िं हो िकती िं। अर्रीका के रॉकफेिरोिं िे कहिंदुस्तान के रॉकफेिर कुछ कर् हैं,

एिा र्ानना कनरा अज्ञान है। गरीब कहिंदुस्तान तो गुिार्ी िे छूट िकेगा, िेककन अनीकत िे

पैिेवािा बना हुआ कहिंदुस्तान गुिार्ी िे कभी नही िं छूटेगा।

रु्झे तो िगता है कक हर्ें यह स्वीकार करना होगा कक अिंगे्रज़ी राज्य को यहााँ कटकाए

रखनेवािे ये धनवान िोग ही िं हैं। एिी क्तस्थकत र्ें ही िं उनका स्वाथम िधेगा। पैिा आदर्ी को

दीन { िािार } बना देता है। एिी दूिरी िीज दुकनया र्ें कवषय-भोग { शहवत } है। ये दोनोिं

कवषय { बातें } कवषर्य { जहरीिे } हैं। उनका डिंक िााँप के डिंक िे ज्यादा जहरीिा है। जब

िााँप काटता है तो हर्ारा शरीर िेकर हर्ें छोड देता है। जब पैिा या कवषय काटता है तब

वह शरीर, ज्ञान, र्न िब-कुछ िे िेता है, तो भी हर्ारा छुटकारा नही िं होता। इिकिए हर्ारे

देश र्ें कर्िें कायर् होिं, इिर्ें खुश होने जैिा कुछ नही िं है।

पाठक: तब क् या कर्िोिं को बन्द कर कदया जाय?

सांपादक: यह बात रु्क्तिि है। जो िीज स्थायी या र्जबूत हो गई है, उिे कनकािना

रु्क्तिि है। इिीकिए कार् शुरू न करना पहिी बुक्तद्धर्ानी है।१ कर्ि-र्ाकिकोिं की ओर

हर् नफ़रत की कनगाह िे नही िं देख िक़ते। हर्ें उन पर दया करनी िाकहए। वे यकायक

कर्िें छोड दें , यह तो रु्र्ककन नही िं है; िेककन हर् उनिे एिी कबनती कर िक़ते हैं कक वे

अपने इि िाहि को बढाये नही िं। अगर वे देश का भिा करना िाहें, तो खुद अपना कार्

धीरे धीरे कर् कर िकते हैं। वे खुद पुराने, प्रौढ, पकवत्र िरखे देश के हजारोिं घरोिं र्ें दाक्तखि

कर िक़ते हैं और िोगोिं का बुना हुआ कपडा िेकर उिे बेि िकते हैं।

अगर वे एिा न करें तो भी िोग खुद र्शीनोिं का कपडा इसे्तर्ाि करना बन्द कर

िकते हैं।

पाठक: यह तो कपडे के बारे र्ें हुआ। िेककन यिंत्र की बनी तो अनेक िीजें हैं। वे िीजें या

तो हर्ें परदेश िे िेनी होिंगी या एिे यिंत्र हर्ारे देश र्ें दाक्तखि करने होिंगे।

सांपादक: ििरु्ि हर्ारे देव (रू्कतमयााँ) भी जर्मनी के यिंत्रो िं र्ें बनकर आते हैं; तो कफर

कदयाििाई या आिकपन िे िेकर कााँि के झाड-फानूि की तो बात ही िं क्ा? रे्रा अपना

जवाब तो एक ही िं है। जब ये िब िीजें यिंत्र िे नही िं बनती थी िं तब कहिंदुस्तान क्ा करता था?

वैिा ही िं वह आज भी कर िक़ता है। जब तक हर् हाथ िे आिकपन नही िं बनायेंगे तब तक

उिके कबना हर् अपना कार् ििा िेंगे। झाड-फानूि को आग िगा दें गे। कर्ट्टी के दीये र्ें

तेि डािकर और हर्ारे खेत र्ें पैदा हुई रूई की बिी बना कर दीया जिायेंगे। एिा करने

िे हर्ारी आाँखें (खराब होने िे) बिेंगी, पैिे बिेंगे और हर् स्वदेशी रहेंगे, बनेंगे और

स्वराज्य की धूनी जगायेंगे।

यह िारा कार् िब िोग एक ही िं िर्य र्ें करें गे या एक ही िं िर्य र्ें कुछ िोग यिंत्र

की िब िीजें छोड देंगे, यह ििंभव नही िं है। िेककन अगर यह कविार िही होगा, तो हर्

हरे्शा शोध-खोज करते रहेंगे और हरे्शा थोडी-थोडी िीजें छोडते जायेंगे। अगर हर् एिा

करें गे तो दूिरे िोग भी एिा करें गे। पहिे तो यह कविार जड पकडे यह जरूरी है; बाद र्ें

उिके रु्ताकबक कार् होगा। पहिे एक ही िं आदर्ी करेगा, कफर दि, कफर िौ—योिं नाररयि

की कहानी की तरह िोग बढते ही िं जायेंगे। बडे िोग जो कार् करते हैं, उिे छोटे भी करते

हैं और करें गे। िर्झें तो बात छोटी और िरि है। आपको और रु्झे दूिरोिं के करने की

राह नही िं देखना है। हर् तो ज्योिं ही िं िर्झ िें त्योिं ही िं उिे शुरू कर दें। जो नही िं करेगा वह

खोयेगा। िर्झते हुए भी जो नही िं करेगा, वह कनरा दिंभी कहिायेगा।

पाठक: टर ार्गाडी और कबजिी की बिी का क् या होगा?

सांपादक: यह िवाि आपने बहुत देर िे ककया। इि िवाि र्ें अब कोई जान नही िं रही।

रेिने अगर हर्ारा नाश ककया है, तो क्ा टर ार् नही िं करती? यिंत्र तो िााँप का एिा कबि है,

कजिर्ें एक नही िं बक्ति िैकडोिं िााँप होते हैं। एक के पीछे दूिरा िगा ही िं रहता है। जहााँ

यिंत्र होिंगे वहााँ बडे शहर होिंगे। जहााँ बडे शहर होिंगे वहााँ टर ार्गाडी और रेिगाडी होगी। वही िं

कबजिी की बिी की जरूरत रहती है। आप जानते होिंगे कक कविायत र्ें भी देहातोिं र्ें

कबजिी की बिी या टर ार् नही िं है। प्रार्ाकणक { ईर्ानदार } वैद्य और डॉक्टर आपको बतायेंगे

कक जहााँ रेिगाडी, टर ार्गाडी वगैरा िाधन { जररये } बढे हैं, वहााँ िोगोिं की तिंदुरूस्ती कगरी

हुई होती है। रु्झे याद है कक यूरोप के एक शहर र्ें जब पैिे की तिंगी हो गई थी तब टर ार्ोिं,

वकीिोिं और डॉक्टरोिं की आर्दनी घट गयी थी, िेककन िोग तिंदुरूस्ती हो गये थे।

यिंत्र का गुण तो रु्झे एक भी याद नही िं आता, जब कक उिके अवगुणोिं िे र्ैं पूरी

ककताब किख िकता हाँ।

पाठक: यह िारा किखा हुआ यिंत्र की र्दद िे छापा जाएगा और उिकी र्दद िे बााँटा

जाएगा, यह यिंत्र का गुण है या अवगुण?

सांपादक: यह 'जहर की दवा जहर है' की कर्िाि है। इिर्ें यिंत्र का कोई गुण नही िं है। यिंत्र

र्रते र्रते कह जाता है कक 'रु्झिे बकिए, होकशयार रकहये; रु्झिे आपको कोई फायदा

नही िं होने का।' अगर एिा कहा जाय कक यिंत्र ने इतनी ठीक कोकशश की, तो यह भी उन्ही िं

के किए िागू होता है जो यिंत्र की जाि र्ें फाँ िे हुए हैं।

िेककन रू्ि बात न भूकियेगा। र्न र्ें यह तय कर िेना िाकहए कक यिंत्र खराब िीज

है। बाद र्ें हर् उिका धीरे-धीरे नाश करें गे। एिा कोई िरि { आिान,

िीधा }, रास्ता कुदरत ने ही िं बनाया नही िं है कक कजि िीज की हर्ें इच्छा हो वह तुरन्त कर्ि

जाय। यिंत्र के ऊपर हर्ारी र्ीठी नज़र के बजाय जहरीिी नज़र पडेगी, तो आक्तखर वह

जाएगा ही िं।

______________________

१. अनारम्भो कह कायमणार्् प्रथर्िं बुक्तद्धिक्षणर््,

आरब्धस्यान्तगर्नर्् कद्वतीयिं बुक्तद्धिक्षणर्् ।

२०. छुटकारा

पाठक: आपके कविारोिं िे एिा िगता है कक आप एक तीिरा ही िं पक्ष कायर् करना िाहते

हैं। आप एक्स्ट्र ीकर्ट भी नही िं हैं और र्ोडरेट भी नही िं हैं।

सांपादक: यहााँ आपकी भूि होती है। रे्रे र्न र्ें तीिरे पक्ष का कोई खयाि नही िं है। िबके

कविार एक िे नही िं रहते। र्ोडरेटोिं र्ें भी िब एक ही िं कविार के हैं, एिा नही िं र्ानना िाकहए।

कजिे (िोगोिं की) िेवा ही िं करनी है, उिके किए पक्ष कैिा? र्ैं तो र्ोडरेटोिं की िेवा करूाँ गा

और एक्स्ट्र ीकर्टोिं की भी करूाँ गा। जहााँ उनके कविार िे रे्री राय अिग पडेगी वहााँ र्ैं

उन्हें नम्रता िे बताऊाँ गा और अपना कार् करता ििूाँगा।

पाठक: अगर आप दोनोिं िे कहना िाहें तो क्ा कहेंगे?

सांपादक: एक्स्ट्र ीकर्टोिं िे र्ैं कहाँगा कक आपका हेतु कहिंदुस्तान के किए स्वराज्य हाकिि

करने का है। स्वराज्य आपकी कोकशश िे कर्िनेवािा नही िं है। स्वराज्य तो िबको अपने

किए पाना िाकहए—और िबको उिे अपना बनाना िाकहए। दूिरे िोग जो स्वराज्य कदिा

दें वह स्वराज्य नही िं है, बक्ति परराज्य है। इिकिए किफम अिंगे्रज़ोिं को बाहर कनकािा कक

आपने स्वराज्य पा किया, एिा अगर आप र्ानते होिं तो वह ठीक नही िं है। िच्चा स्वराज्य

जो र्ैंने पहिे बताया वही होना िाकहए। उिे आप गोिा-बारूद िे कभी नही िं पायेंगे। गोिा-

बारूद कहिंदुस्तान को िधेगा नही िं। इिकिए ित्याग्रह पर ही िं भरोिा रक्तखए। र्न र्ें एिा

शक भी पैदा न होने दीकजये कक स्वराज्य पाने के किए हर्ें गोिा-बारूद की जरूरत है।

र्ोडरेटोिं िे र्ैं कहाँगा कक हर् खािी आकजज़ी करना िाहें, यह तो हर्ारी हीनता {

कर्ी } होगी। उिर्ें हर् अपना हिकापन कबूि करते हैं। ‘अिंगे्रजोिं िे ििंबिंध रखना हर्ारे

किए जरूरी है' – एिा कहना हर्ारे किए, ईश्वर के िोर बनने जैिा हो जाता है। हर्ें ईश्वर

के किवा और ककिी की जरूरत है, एिा कहना ठीक नही िं है। और िाधारण कविार करने

िे भी हर्ें िगेगा कक ‘अिंगे्रज़ोिं के कबना आज तो हर्ारा कार् ििेगा ही िं नही िं.' एिा कहना

अिंगे्रजोिं को अकभर्ानी बनाने जैिा होगा।

अिंगे्रज़ बोररया-कबस्तर बााँधकर अगर ििे जायेंगे, तो कहिंदुस्तान अनाथ हो जाएगा

एिा नही िं र्ानना िाकहए। अगर वे गये तो ििंभव है कक जो िोग उनके दबाव िे िुप रहें

होिंगे वे िडेंगे। फोडे को दबाकर रखने िे कोई फायदा नही िं। उिे तो फूटना ही िं िाकहए।

इिकिए अगर हर्ारे भाग र्ें आपि र्ें िडना ही िं किखा होगा तो हर् िड र्रेंगे। उिर्ें

कर्ज़ोर को बिाने के बहाने ककिी दूिरे को बीि र्ें पडने की जरूरत नही िं है। इिी िे

तो हर्ारा ित्यानाश हुआ है। इि तरह कर्ज़ोर को बिाना उिे और भी कर्ज़ोर बनाने

जैिा है। र्ोडरेटोिं को इि बात पर अच्छी तरह कविार करना िाकहए। इिके कबना स्वराज्य

नही िं प्राप्त हो िक़ता। र्ें उन्हें एक अिंगे्रज़ पादरी के शब्दोिं की याद कदिाऊाँ गा: “स्वराज्य

र्ें अिंधाधुिंधी बरदाश्त की जा िकती िं है, िेककन परराज्य की व्यवस्था (बन्दोबस्त) हर्ारी

किं गािी को बताती है।” किफम उि पादरी के स्वराज्य का और कहिंदुस्तान के स्वराज्य का

अथम अिग है। हर् ककिी का भी जुल्म या दबाव नही िं िाहते – िाहे वह गोरा हो या

कहिंदुस्तानी हो। हर् िबको तैरना िीखना और किखाना है।

अगर एिा हो तो एक्स्ट्र ीकर्ट और र्ोडरेट दोनोिं कर्िेंगे—कर्ि िकें गे – दोनोिं को

कर्िना िाकहए; दोनोिं को एक-दूिरे का डर रखने की या अकवश्वाि करने की जरूरत नही िं

है।

पाठक: इतना तो आप दोनोिं पक्षोिं िे कहेंगे। परनु्त अिंगे्रज़ोिं िे क्ा कहेंगे?

सांपादक: उनिे र्ैं कवनय िे कहाँगा कक आप हर्ारे राजा जरूर हैं। आप अपनी तिवार

िे हर्ारे राजा हैं या हर्ारी इच्छा िे, इि िवाि की ििाम रु्झे करने की जरूरत नही िं।

आप हर्ारे देश र्ें रहें इिका भी रु्झे दे्वष { डाह, इष्याम, बैर } नही िं है। िेककन राजा होते

हुए भी आपको हर्ारे नौकर बनकर रहना होगा। आपका कहा हर्ें नही िं, बक्ति हर्ारा

कहा आपको करना होगा। आज तक आप इि देश िे जो धन िे गये, वह भिे आपने

हजर् कर किया। िेककन अब आगे आपका एिा करना हर्ें पिन्द नही िं होगा। आप

कहिंदुस्तान र्ें किपाहकगरी करना िाहें तो रह िक़ते हैं। हर्ारे िाथ व्यापार करने का िािि

आपको छोडना होगा। कजि िभ्यता की आप कहर्ायत करते हैं, उिे हर् नुकिानदेह

र्ानते हैं। अपनी िभ्यता को हर् आपको िभ्यता िे कही िं ज्यादा ऊाँ िी िर्झते हैं। आपको

भी एिा िगे तो उिर्ें आपका िाभ ही िं है। िेककन एिा न िगे तो भी आपको, आपकी

कहावत१ के रु्ताकबक, हर्ारे देश र्ें कहिंदुस्तानी होकर रहना होगा। आपको एिा कुछ नही िं

करना िाकहए, कजििे हर्ारे धर्म को बाधा पहुाँिे। राजकताम होने के नाते आपका फजम है

कक कहिंदुओिं की भावना का आदर करने के किए आप गाय का र्ािंि खाना छोड दें और

रु्ििर्ानोिं के खाकतर बुरे जानवर-(िूअर)का र्ािंि खाना छोड दें। हर् दब गये थे इिकिए

बोि नही िं िके, िेककन आप एिा न िर्झें कक आपके इि बरताव िे हर्ारी भावनाओिं को

िोट नही िं पहुाँिी है। हर् स्वाथम या दूिरे भय िे आज तक कह नही िं िके, िेककन अब यह

कहना हर्ारा फजम हो गया है। हर् र्ानते हैं कक आपकी कायर् की हुई शािाएाँ और

अदािते हर्ारे ककिी कार् की नही िं हैं। उनके बजाय हर्ारी पुरानी अििी शािाएाँ और

अदािते ही िं हर्ें िाकहए।

कहिंदुस्तान की आर् भाषा अिंगे्रज़ी नही िं बक्ति कहिंदी है। वह आपको िीखनी होगी

और हर् तो आपके िाथ अपनी भाषा र्ें ही िं व्यवहार करें गे।

आप रेिवे और फौज के किए बेशुर्ार रूपये खिम करते हैं, यह हर्िे देखा नही िं

जाता। हर्ें उिकी जरूरत नही िं र्ािूर् होती। रूि का डर आपको होगा, हर्ें नही िं है।

रूिी आयेंगे तब हर् उनिे कनबट िेंगे; आप होिंगे तो हर् दोनोिं कर्िकर उनिे कनबट िेंगे।

हर्ें कविायती या यूरोपी कपडा नही िं िाकहए। इि देश र्ें पैदा होनेवािी िीजोिं िे ही िं हर्

अपना कार् ििा िेंगे। आपकी एक आाँख रै्ने्चटर पर और दूिरी हर् पर रहें, यह अब

नही िं पुिायेगा। आपका और हर्ारा स्वाथम एक ही िं है, इि तरह आप बरतेंगे तभी हर्ारा

िाथ बना रह िक़ता है।

आपिे यह िब हर् बेअदबी िे नही िं कह रहें हैं। आपके पाि हकथयार-बि है, भारी

जहाजी िेना है। उिके क्तखिाफ वैिी ही िं ताक़त िे हर् नही िं िड िक़ते। िेककन आपको

अगर ऊपर कही गई बात र्िंजूर न हो, तो आपिे हर्ारी नही िं बनेगी। आपकी र्रजी र्ें

आये तो और रु्र्ककन हो तो आप हर्ें तिवार िे काट िकते हैं, र्रजी र्ें आये तो हर्ें

तोप िे उडा िक़ते हैं। हर्ें जो पििंद नही िं है वह अगर आप करें गे, तो हर् आपकी र्दद

नही िं करें गे; और बगैर हर्ारी र्दद के आप एक कदर् भी नही िं िि िकें गे।

ििंभव है कक अपनी ििा के र्द र्ें हर्ारी इि बात को आप हाँिी र्ें उडा दें।

आपका हाँिना बेकार है, एिा आज शायद हर् नही िं कदखा िकें । िेककन अगर हर्र्ें कुछ

दर् होगा, तो आप देखेंगे कक आपका र्द { गरूर, घर्िंड } बेकार है और आपका हाँिना

(कवनाश-काि की) कवपरीत { उिटी } बुक्तद्ध की कनशानी है।

हर् र्ानते हैं कक आप स्वभाव िे धाकर्मक राष्टर की प्रजा हैं। हर् तो धर्मस्थान र्ें ही िं

बिे हुए हैं। आपका और हर्ारा कैिे िाथ हुआ, इिर्ें उतरना कफजूि है। िेककन अपने

इि ििंबिंध का हर् दोनोिं अच्छा उपयोग कर िकते हैं।

आप कहिंदुस्तान र्ें आनेवािे जो अिंगे्रज़ हैं वे अिंगे्रज़ प्रजा के िचे्च नरू्ने नही िं हैं; और

हर् जो आधे अिंगे्रज़ जैिे बन गये हैं वे भी िच्ची कहिंदुस्तानी प्रजा के नरू्ने नही िं कहे जा

िक़ते। अिंगे्रज़ प्रजा को अगर आपकी करतूतोिं के बारे र्ें िब र्ािूर् हो जाय, तो वह

आपके कार्ोिं के क्तखिाफ हो जाय। कहिंद की प्रजा ने तो आपके िाथ ििंबिंध थोडा ही िं रखा

है। आप अपनी िभ्यता को, जो दरअिि कबगाड करनेवािी है, छोड कर अपने धर्म की

छानबीन करें गे, तो आपको िगेगा कक हर्ारी र्ााँग ठीक है। इिी तरह आप कहिंदुस्तान र्ें

रह िक़ते हैं। अगर उि ढिंग िे आप यहााँ रहेंगे तो आपिे हर्ें जो थोडा िीखना है वह हर्

िीखेंगे और हर्िे आपको जो बहुत िीखना है वह आप िीखेंगे। इि तरह हर् (एक-दूिरे

िे) िाभ उठायेंगे और िारी दुकनया को िाभ पहुाँिायेंगे। िेककन यह तो तभी हो िक़ता है

जब हर्ारे ििंबिंध की जड धर्मके्षत्र र्ें जरे्।

पाठक: राष्टर िे आप क् या कहेंगे?

सांपादक: राष्टर कौन?

पाठक: अभी तो आप कजि अथम र्ें यह शब्द कार् र्ें िेते हैं उिी अथमवािा राष्टर , यानी जो

िोग यूरोप की िभ्यता र्ें रिं गे हुए हैं, जो स्वराज्य की आवाज़ उठा रहें हैं।

सांपादक: इि राष्टर िे र्ैं कहाँगा कक कजि कहिंदुस्तानी को (स्वराज्य की) िच्ची खुर्ारी यानी

र्स्ती िढी होगी, वही अिंगे्रज़ोिं िे ऊपर की बात कह िकेगा और उनके रोब िे नही िं दबेगा।

िच्ची र्स्ती तो उिी को िढ िकती िं है, जो ज्ञानपूवमक – िर्झबूझकर – यह र्ानता

हो कक कहिंद की िभ्यता िबिे अच्छी है और यूरोप की िभ्यता िार कदन की िााँदनी है।

वैिे िभ्यतायें तो आज तक कई हो गयी िं और कर्ट्टी र्ें कर्ि गयी िं, आगे भी कई होिंगी और

कर्ट्टी र्ें कर्ि जाएगी िं।

िच्ची खुर्ारी उिी को हो िकती िं है, जो आत्मबि अनुभव करके शरीर-बि िे नही िं

दबेगा और कनडर रहेगा तथा िपने र्ें भी तोप-बि का उपयोग करने की बात नही िं िोिेगा।

िच्ची खुर्ारी उिी कहिंदुस्तानी को रहेगी, जो आज की िािार हाित िे बहुत ऊब

गया होगा और कजिने पहिे िे ही िं जहर का प्यािा पी किया होगा।

एिा कहिंदुस्तानी अगर एक ही िं होगा, तो वह भी ऊपर की बात अिंगे्रजोिं िे कहेगा और

अिंगे्रज़ोिं को उिकी बात िुननी पडेगी।

ऊपर की र्ााँग र्ााँग नही िं है; वह कहिंदुस्ताकनयोिं के र्न की दशा को बताती है। र्ााँगने

िे कुछ नही िं कर्िेगा; वह तो हर्ें खुद िेना होगा। उिे िेने की हर्र्ें ताक़त होनी िाकहए।

यह ताक़त उिीर्ें होगी:

१. जो अिंगे्रज़ी भाषा का उपयोग िािारी िे ही िं करेगा।

२. जो वकीि होगा तो अपनी वकाित छोड देगा और खुद घर र्ें िरखा ििाकर

कपडे बुन िेगा।

३. जो वकीि होने के कारण अपने ज्ञान का उपयोग किफम िोगोिं को िर्झाने और

िोगोिं की आाँखें खोिने र्ें करेगा।

४. जो वकीि होकर वादी-प्रकतवादी – रु्द्दई और रु्द्दािेह – के झगडोिं र्ें नही िं

पडेगा, अदाितोिं को छोड देगा और अपने अनुभव िे दूिरोिं को अदािते छोडने के किए

िर्झायेगा।

५. जो वकीि होते हुए भी जैिे वकाित छोडेगा वैिे न्यायाधीशपन { जजी } भी

छोडेगा।

६. जो डॉक्टर होते हुए भी अपना पेशा छोडेगा और िर्झेगा कक िोगोिं की िर्डी

िोिंथने के बजाय बेहतर है कक उनकी आत्मा को छुआ जाय और उिके बारे र्ें शोध-खोज

करके उन्हें तिंदुरस्त बनाया जाय।

७. जो डॉक्टर होने िे िर्झेगा कक खुद िाहे कजि धर्म का हो, िेककन अिंगे्रज़ी

बैदकशािाओिं – फार्मकियोिं – र्ें जीवोिं पर जो कनदमयता की जाती है, वैिी कनदमयता िे (बनी

हुई दवाओिं िे) शरीर को ििंगा करने के बजाय बेहतर है कक शरीर रोगी रहें।

८. जो डॉक्टर होने पर भी खुद िरखा ििायेगा और जो िोग बीर्ार होिंगे उन्हें

उनकी बीर्ारी का िही कारण बताकर उिे दूर करने के किए कहेगा; कनकम्मी दवाएाँ

देकर उन्हें गित िाड नही िं िडायेगा। वह तो यही िर्झेगा कक कनकम्मी दवाएाँ न िेने िे

बीर्ार की देह अगर कगर भी जाय, तो उििे दुकनया अनाथ नही िं हो जाएगी, और यही

र्ानेगा कक उिने बीर्ार पर िच्ची दया की है।

९. जो धनी होने पर भी धन की परवाह ककये कबना अपने र्न र्ें होगा वही कहेगा

और बडे-िे-बडे ििाधीश की भी परवाह न करेगा।

१०. जो धनी होने िे अपना रूपया िरखे िािू करने र्ें खरिेगा और खुद किफम

स्वदेशी र्ाि का इसे्तर्ाि करके दूिरोिं को भी एिा करने के किए बढावा देगा।

११. दूिरे हर कहिंदुस्तानी की तरह जो यह िर्झेगा कक यह िर्य पश्चािाप

{ अफ़िोि, पछतावा } का, प्रायकश्चि { कफ्फ़ारा } का और शोक { र्ातर् } का है।

१२. जो दूिरे हर कहिंदुस्तानी की तरह यह िर्झेगा कक अिंगे्रज़ोिं का किूर कनकािना

बेकार है। हर्ारे किूर की वजह िे वे कहिंदुस्तान र्ें आये, हर्ारे किूर के कारण ही िं वे यहााँ

रहते हैं और हर्ारा किूर दूर होगा तब वे यहााँ िे ििे जायेंगे या बदि जायेंगे।

१३. दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह जो यह िर्झेगा कक र्ातर् के वक् त र्ौज-शौक

नही िं हो िक़ते। जब तक हर्ें िैन नही िं है तब तक हर्ारा जेि र्ें रहना या देश-कनकािा

भोगना ही िं ठीक है।

१४. जो दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह यह िर्झेगा कक िोगोिं को िर्झाने के बहाने

जेि र्ें न जाने की खबरदारी रखना कनरा र्ोह है।

१५. जो दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह यह िर्झेगा कक कहने िे करने का अिर

अद्भुत होता है; हर् कनडर होकर जो र्न र्ें है वही कहेंगे और इि तरह कहने का जो

नतीजा आये उिे िहेंगे, तभी हर् अपने कहने का अिर दूिरोिं पर डाि िकें गे।

१६. जो दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह यह िर्झेगा कक हर् दुःख िहन करके ही िं

बिंधन यानी गुिार्ी िे छूट िकें गे।

१७. जो दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह िर्झेगा कक अिंगे्रज़ोिं की िभ्यता को बढावा

देकर हर्ने जो पाप ककया है, उिे धो डािने के किए अगर हर्ें र्रने तक भी अिंदर्ान र्ें

रहना पडे, तो वह कुछ ज्यादा नही िं होगा।

१८. जो दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह िर्झेगा कक कोई भी राष्टर दुःख िहन ककये

कबना ऊपर िढा नही िं है। िडाई के रै्दान र्ें भी दुःख ही िं किौटी होता है, न कक दूिरे को

र्ारना। ित्याग्रह के बारे र्ें भी एिा ही िं है।

१९. जो दूिरे कहिंदुस्ताकनयोिं की तरह िर्झेगा कक यह कहना कुछ न करने के किए

एक बहाना भर है कक ‘जब िब िोग करें गे तब हर् भी करें गे’। हर्ें ठीक िगता है इिकिए

हर् करें , जब दूिरोिं को ठीक िगेगा तब वे करें गे – यही करने का िच्चा रास्ता है। अगर

र्ैं स्वाकदष्ट { जायकेदार } भोजन देखता हाँ, तो उिे खाने के किए दूिरे की राह नही िं देखता।

ऊपर कहे रु्ताकबक प्रयत्न { कोकशश } करना, दुःख िहना यह स्वाकदष्ट भोजन है। ऊबकर

िािारी िे करना या दुःख िहना कनरा बेगार है।

पाठक: िब एिा कब करें गे और कब उिका अिंत आयेगा?

सांपादक: आप कफर भूिते हैं। िबकी न तो रु्झे परवाह है, न आपको होनी िाकहए। ‘आप

अपना देख िीकजये, र्ैं अपना देख िूाँगा'—यह स्वाथम-विन र्ाना जाता है, िेककन यह

परर्ाथम-विन भी है। र्ैं अपना उजािूाँगा—अपना भिा करूाँ गा, तभी दूिरे का भिा कर

िकूिं गा। अपना कतमव्य { फजम } र्ैं कर िूाँ, इिी र्ें कार् की िारी किक्तद्धयााँ िर्ाई हुई हैं।

आपको कबदा करने िे पहिे कफर एक बार र्ैं यह दोहराने की इजाजत िाहता हाँ

कक:

१, अपने र्न का राज्य स्वराज्य है।

२, उिकी कुिं जी ित्याग्रह, आत्मबि या करूणा-बि है।

३, उि बि को आजर्ाने के किए स्वदेशी को पूरी तरह अपनाने की जरूरत है ।

४, हर् जो करना िाहते हैं वह अिंगे्रज़ोिं के किए (हर्ारे र्न र्ें) दे्वष है इिकिए या

उन्हें िजा देने के किए नही िं करें , बक्ति इिकिए करें कक एिा करना हर्ारा कतमव्य है।

र्तिब यह कक अिंगे्रज़ अगर नर्क-र्हिूि रद कर दें, किया हुआ धन वापि कर दें , िब

कहिंदुस्ताकनयोिं को बडे बडे ओहदे दे दें और अिंगे्रज़ी ििर हटा िें, तो हर् उनकी कर्िोिं

का कपडा पहनेंगे, या अिंगे्रज़ी भाषा कार् र्ें िायेंगे, या उनकी हुनर-किा का उपयोग

करें गे िो बात नही िं है। हर्ें यह िर्झना िाकहए कक वह िब दरअिि नही िं करने जैिा है,

इिकिए हर् उिे नही िं करें गे।

र्ैंने जो कुछ कहा है वह अिंगे्रज़ोिं के किए दे्वष होने के कारण नही िं, बक्ति उनकी

िभ्यता के किए दे्वष होने के कारण कहा है।

रु्झे िगता है कक हर्ने स्वराज्य का नार् तो किया, िेककन उिका स्वरूप हर् नही िं

िर्झे हैं। र्ैंने उिे जैिा िर्झा है वैिा यहााँ बताने की कोकशश की है।

रे्रा र्न गवाही देता है कक एिा स्वराज्य पाने के किए रे्रा यह शरीर िर्कपमत {

भेंट, नजर ककया हुआ } है।

_____________________

१. Be a Roman in Rome - रोर् र्ें रोर्न बनकर रहो।

पररहशष्ट

कुछ प्रमाणभूत ग्रांथ और प्रहतहित व्यक्तियो ां की साक्षी

१. कुछ प्रमाणभूत ग्रांथ

कहिंद स्वराज्य र्ें प्रकतपाकदत कवषय के अकधक अध्ययन के किए िूकित पुस्तकें :

द ककिं गडर् ओफ़ गोड इज़ कवकदन यू — टॉल्स्टॉय

व्होट इज़ आटम? – टॉल्स्टॉय

द स् िेवरी ओफ़ अवर टाइस — टॉल्स्टॉय

द फटम टेप — टॉल्स्टॉय

हाउ शैि वी एसे्कप? – टॉल्स्टॉय

िेटर टु ए कहिंदू — टॉल्स्टॉय

द व्हाइट िेव्ज़ ओफ़ इिंग्लैंड – शेराडम

किकविाइजे़शन, इट्ि कोज़ एण्ड क्ोर — कारपेन्टर

द फैिेिी ओफ़ स्पीड — टेिर

ए नू्य कू्रिेड — िाउण्ट

ओन ध डू्यटी ओफ़ किकवि कडिओबीकडएन्स — थोरो

िाइफ कवदाउट कप्रन्सीपि — थोरो

अनु्ट कदि िाट — रक्तस्कन

ए जॉय फोर एवर — रक्तस्कन

डू्यटीज़ ओफ़ रै्न — रै्कज़नी

कडफेन्स एण्ड डैथ ओफ़ िोके्रटीज़ — पे्लटो

पैराडोके्सज़ ओफ़ किकविाइजे़शन — रै्क्स नादमयू

पावटी एण्ड अनकिकटश रूि इन इिं कडया — नौरोजी

इकानाकर्क कहटर ी ओफ़ इिं कडया — दि

कविेज कमु्यकनटीज़ — रे्न

२. प्रहतहित व्यक्तियो ां की साक्षी

श्री अल्स्िेड वेब के रू्ल्यवान ििंग्रह िे कदए जा रहें इन उद्धरणोिं िे ज्ञात होगा कक भारत

की प्रािीन िभ्यता को आधुकनक पाश्चात्य िभ्यता िे कुछ भी नही िं िीखना है :

जे सीमोर के,

किकटश ििंिद-िदस्य

यह िेखक भारत र्ें बैंक-व्यविायी रहा था (१८८३ र्ें किक्तखत)

यह बात अच्छी तरह िर्झ िेनी िाकहए कक हर्ारी क्तस्थकत भारत र्ें जिंगिी जाकतयोिं के बीि

िभ्यता का प्रकाश िेकर पहुाँिे हुए िभ्य िोगोिं की कभी नही िं रही। हर् जब भारत पहुाँिे

तो हर्ने देखा कक वहााँ उन िोगोिं के पाि एक प्रािीन िभ्यता है जो कपछिे हजारोिं िािोिं

र्ें वहााँ रहनेवािी अकतशय बुक्तद्धर्ान जाकतयोिं के िररत्र र्ें घुि-कर्ि गई है और उनकी

िारी जरूरतोिं को पूरा करती है। उनकी यह िभ्यता ितही नही िं है, वह िवमस्पशी और

िवमव्यापी है – उिने उि देश को न केवि िर्ाज के राजनीकतक जीवन के गठन की

पद्धकतयााँ दी हैं बक्ति िार्ाकजक और कौटुिं कबक जीवन की अत्यिंत कवकवध और िरृ्द्ध

ििंस्थाएाँ भी दी हैं। ये िारी ििंस्थाएाँ कुि कर्िाकर ककतनी कहतकारी हैं, यह बात कहिंदू जाकत

के िररत्र पर उनके प्रभाव को देखकर जानी जा िकती िं है। इि देश की जनता के िररत्र

र्ें उिकी िभ्यता का यह कहतकारी प्रभाव कजतना स्पष्ट है उतना ककिी अन्य देश की

जनता र्ें शायद ही िं कर्िे। वे व्यापार र्ें ितुर हैं, कविार और कववेिन की गहराइयोिं र्ें

जानेवािी तीक्ष्ण बुक्तद्ध रखते हैं, कर्तव्ययी, धर्म-परायण, ििंयर्शीि, उदार, र्ाता-कपता की

आज्ञा र्ाननेवािे, वृद्धोिं को आदर देनेवािे, कानून का पािन करनेवािे, व्यवहार र्ें र्ीठे,

अिहायोिं के प्रकत दयािु और आपकि आ पडने पर उिे धीरज िे िहन करनेवािे हैं।

हवक्टर कह़िन

(१७९२-१८६७)

(दशमन के के्षत्र र्ें एक-धारा कवशेष का प्रवतमक)

दूिरी ओर जब हर् पूवम के और खाि कर भारत के काव्य या दाशमकनक कििंतन के

आिंदोिनोिं का, कजनका प्रभाव अब यूरोप र्ें भी फैिता कदखाई दे रहा है, ध्यान िे अध्ययन

करते हैं तो हर्ें वहााँ इतने अकधक और इतने गहरे ित्योिं का िाक्षात्कार होता है कक हर्

पूवम की प्रकतभा के िार्ने घूाँटने टेकने के किए कववश हो जाते हैं और यह र्ाने कबना नही िं

रह िक़ते कक र्नुष्य-जाकत के पािने-जैिी यह भूकर् उच्चतर् दाशमकनक कििंतन की

जन्मभूकर् है। यूरोप की प्रकतभा कजन पररणार्ोिं तक पहुाँिकर रुक गई है उनकी कु्षद्रता

और पूवम की प्रकतभा द्वारा प्रकाकशत इन ित्योिं के र्हदन्तर को देखकर ििरु्ि आश्चयम

होता है।

फे्रडररक मैक्समुलर

हर्ारा िारा पािन-पोषण यूनाकनयोिं, रोर्नोिं और केवि एक ही िं िार्ी जाकत, अथामत्

यहकदयोिं की कविार-िम्पद् पर हुआ है। यकद र्ैं अपने-आपिे यह प्रश्न करूाँ कक अपना

आिंतररक जीवन अकधक ििंपूणम, अकधक व्यापक, अकधक िवमस्पशी या एिा कहें िही अथो

र्ें अकधक र्ानवतापूणम बनाने के किए कजि वसु्त की आवश्यकता है वह हर् यूरोपवाकियोिं

को कहााँ िे कर्ि िकती िं है तो र्ैं कफर भारत का ही िं नार् िूाँगा।

फे्रडररक वोन शे्लगेल

इििे इनकार नही िं ककया जा िक़ता कक पूवमकािीन भारतीयोिं को ईश्वर का िच्चा ज्ञान था।

उनकी रिनाएाँ उदाि, प्रािंजि और भव्य भावोिं और उद्गारोिं िे पररपूणम हैं। उनकी गहराई

और उनर्ें प्रकतकबक्तम्बत भक्ति की भावना कवकवध भाषाओिं के िाकहत्य र्ें प्राप्त ईश्वर परक

रिनाओिं की गहराई या भक्ति-भावना िे ककिी भी प्रकार कर् नही िं है। ... एिे राष्टर ो िं र्ें

कजनके पाि अपना दशमन और तत्त्वज्ञान है और जो इन कवषयोिं के प्रकत स्वाभाकवक रुकि

रखते हैं— िर्य की दृकष्ट िे भारत का स्थान पहिा है।

एबे जे. ए. दुबो़ि

रै्िूर र्ें ईिाई धर्म-प्रिारक: यह उद्धरण १५ कदिम्बर, १८२० को

श्रीरिंगपट्टर् िे किक्तख गई एक किट्ठी िे किया गया है।

कववाकहत क्तस्त्रयााँ अपने घरोिं र्ें अपने अकधकार का उपयोग पररवार के िदस्योिं र्ें शािंकत

और व्यवस्था बनाएाँ रखने र्ें करती हैं; और उनर्ें िे अकधकािंश इि र्हत्त्वपूणम कतमव्य को

कजि कववेक और दूरदकशमता िे कनबाहती हैं उिकी तुिना यूरोप र्ें रु्क्तिि िे ही िं कर्िेगी।

बडे-बडे िडके और बडी-बडी िडककयााँ और उनके बच्चोिं िे कनकर्मत, तीि-तीि, िािीि-

िािीि व्यक्तियोिं के पररवारो िं को र्ैंने ककिी बडी-बूढी स्त्री, उन बडे िडके-िडककयोिं की

र्ााँ या िाि की अध्यक्षता र्ें इकटे्ठ रहते देखा है। र्ैंने देखा कक यह वृद्धा अपने व्यवस्था-

कौशि िे, अपनी उन बहुओिं िे उनके स्वभाव के अनुिार व्यवहार करके, पररक्तस्थकतयोिं

के अनुिार कभी कठोर होकर और कभी क्षर्ा और उदारता कदखाकर बरिोिं तक

प्रकतकूि स्वभाववािी उन िारी क्तस्त्रयोिं र्ें शािंकत और िौहादम रखने र्ें िफि होती है। र्ैं

पूछता हाँ कक क् या यह िीज़ एिी पररक्तस्थकतयोिं र्ें हर् अपने देशोिं र्ें किद्ध करने की उम्मीद

कर िक़ते हैं? हर्ारे देशोिं र्ें तो हर् इतना भी नही िं कर पाते कक एक ही िं घर र्ें रहनेवािी

दो क्तस्त्रयााँ आपि र्ें कर्ि-जुिकर रहें।

ककिी िभ्य देश र्ें ईर्ानदारी िे ककए जाने योग्य जो भी कायम होते हैं उनर्ें शायद

ही िं कोई एिा हो कजिर्ें कहिंदू क्तस्त्रयााँ िरु्कित कहस्सा न िेती होिं। घर-गृहस्थी की व्यवस्था

और पररवार की िार-िाँभाि के किवा ककिानोिं की पकत्नयााँ और िडककयााँ अपने पकतयोिं

और कपताओिं को खेती-ककिानी र्ें र्दद पहुाँिाती हैं। व्यापार-धिंधा करनेवािोिं की क्तस्त्रयााँ

उन्हें उनकी दूकान ििाने र्ें र्दद करती हैं। ककतनी ही िं क्तस्त्रयााँ अपने बि पर दूकानें

ििाती हैं; उन्हें अक्षर या अिंकोिं का ज्ञान नही िं होता कफर भी वे अपना कहिाब-ककताब दूिरी

युक्तियोिं के द्वारा बहुत अच्छी तरह रखती हैं और व्यापाररक िौदे करने र्ें वे पुरुषोिं िे भी

ितुर र्ानी जाती हैं।

जे. यांग

िेके्रटरी, िेवोन रे्केकनक्स इिं क्तटटू्यट

भारत र्ें बिनेवािी ये जाकतयााँ नैकतक दृकष्ट िे दुकनया र्ें शायद िबिे ज्यादा कवकशष्ट हैं।

उनके व्यक्तित्व और स्वभाव िे नैकतक पकवत्रता टपकती र्ािूर् होती है कजिकी हर्

िराहना ककए कबना नही िं रह िक़ते। गरीब वगों के बारे र्ें यह बात खाि तौरपर िागू होती

है जो गरीबी िे उत्पन् अभावोिं के बावजूद िुखी और ििंतुष्ट कदखाई पडते हैं। वे प्रकृकत के

िचे्च बािक हैं और अपना जीवन कि की कििंता ककए कबना और कवधाता ने उन्हें रूखा-

िूखा जो भी दे रखा है, उिके किए उिका आभार र्ानते हुए, ििंतोष िे कबताते हैं। स्त्री

और पुरुष र्ज़दूरोिं को कदन-भर की कडी र्ज़दूरी के बाद, जो कभी-कभी तो िूयोदय िे

िूयामस्त तक ििती रहती है, शार् के िर्य घर वापि आते हुए देक्तखए तो आपको कवस्मय

होगा। िगातार कडी रे्हनत करने के फिस्वरूप होनेवािी थकान के बावजू़द वे िोग

ज्यादातर खुश नज़र आते हैं, उनके हाथ-पााँवो िं र्ें तब भी िजीवता होती है, आपि र्ें

उत्साहपूवमक बातिीत करते होते हैं और बीि-बीि र्ें ककिी गीत की कडी गुाँजा उठते हैं।

ककिं तु कजन्हें वे अपना घर कहते हैं उन झोिंपडोिं र्ें पहुाँिने के बाद उन्हें कर्िता क्ा है?

भोजन के नार् पर थोडा-िा िावि और िोने के किए कर्ट्टी का फशम। भारतीय घरोिं र्ें

पाररवाररक िौहादम तो िार्ान्यत: कर्िता ही िं है। भारत र्ें प्रिकित कववाह-ििंबिंध की रीकत

का खयाि ककया जाए तो वह कुछ अजीब-िी र्ािूर् होती है क्ोिंकक कववाह ििंबिंध जोडने

का कार् वहााँ र्ाता-कपता करते हैं। अकधकतर घर-पररवार हर तरह िे िुििंपन् शे्रि

वैवाकहक जीवन का उदाहरण प्रसु्तत करते हैं। इिका कारण शायद उनके शास्त्रोिं की

कशक्षा और वैवाकहक कतमव्योिं के कवषय र्ें उनके र्हान आदेश हैं। िेककन यह कहने र्ें भी

कोई अतु्यक्ति नही िं कक पकत िार्ान्यत: अपनी पकत्नयोिं िे गहरा पे्रर् करते हैं और अकधकािंश

पकत्नयााँ पकत के प्रकत अपने कतमव्योिं के बारे र्ें बहुत ऊाँ िे आदशम रखती हैं।

कनचल टामस मनरो

(भारत र्ें ३२ वषम तक िरकारी नौकर)

खेती की अच्छी पद्धकत, अकद्वतीय वसु्त-कनर्ामण-कौशि, एिी िारी िीजें पैदा करने की

क्षर्ता कजनिे िुकवधाओिं र्ें या िुखोपभोग र्ें वृक्तद्ध होती हो, किखना-पढना और गकणत

आकद किखाने के किए हर एक गााँव र्ें पाठशािाएाँ , अभ्यागत का स्वागत-ित्कार करने की

िवमिार्ान्य प्रथा और एक-दूिरे के प्रकत पे्रर् और िद्भाव का गुण और िबिे बढकर

स्त्रीजाकत के प्रकत कवश्वाि, आदर और कोर्िता का व्यवहार—यकद इन्हें ककिी जाकत के

िभ्य होने का किह्न र्ाना जाए तो कहिंदू जाकत यूरोप के ककिी भी राष्टर िे घटकर नही िं है; और

यकद इन दोनोिं देशोिं के बीि िभ्यता का िेन-देन होता है तो रु्झे कनश्चय है कक इि देश िे

हर् जो भी िेंगे उििे िाभ ही िं होगा।

सर हवहलयम वेडरबनच, बैररस्टर

भारतीय गााँव इि प्रकार िकदयोिं तक राजनीकतक अव्यवस्था की बाढ रोकने वािी दीवार

और िादे, घरेिू और िार्ाकजक गुणोिं का धार् रहा है। इिकिए कोई आश्चयम नही िं कक

तत्ववेिाओिं और इकतहाि-िेखकोिं ने इि प्रािीन ििंस्था की हृदय िे िराहना की है। ग्रार्-

ििंस्था स्वाभाकवक िार्ाकजक इकाई और ग्रार्-जीवन का शे्रि नरू्ना है : स्वयिंपूणम,

उद्योगशीि, शािंकत-पे्रर्ी और शब्द के उिर् अथम र्ें प्रािीनता-पे्रर्ी। ... रे्रा खयाि है कक

आप रु्झिे इि बात र्ें िहर्त होिंगे कक भारतीय गााँव के िार्ाकजक और घरेिू जीवन की

इि झिक र्ें एिा बहुत-कुछ है जो िुहावना भी है और िुभावना भी। वह र्नुष्य की

जीवन पद्धकत का एक कनदोष और िुखी नरू्ना है। इिके किवा, उिके व्यावहाररक

पररणार् भी बहुत अचे्छ रहें हैं।

अन्य प्रस्तावनाएँ

हटप्पण

कहिंिा की कविारधारा को हर्ें िाधारणतया प्रतीत होता है उििे अकधक अनुर्ोदन प्राप्य

है। कहिंिा के कहर्ायती दो वगम र्ें कवभाकजत हैं। अल्प और अल्पतर् होता एक िरु्दाय कहिंिा

र्ें र्ानता है और उि पर आिरण करने को तत्पर होता है। दूिरा एक कवशाि वगम हरे्शा

िे रहा है जो कहिंिा र्ें आस्था तो रखता है, पर, हाि के आिंदोिन की कनष्फिता के कटु

अनुभव के पश्चात्, उनकी यह आस्था आिरण र्ें पररवकतमत नही िं होती। कायमकिक्तद्ध के किए

जबरदस्ती किवा दूिरा र्ागम उनके पाि नही िं होता। कहिंिा के प्रकत उनका दृढ इतबार उन्हें

अन्य ककिी कार् करने िे या भोग देने के रासे्त पर ििने िे रोकता है। यह दोनोिं ही िं बातें

भारी आपकिपूणम हैं।

जब तक हर् कहिंिा के तर्ार् स्वरूपोिं को कतिािंजकि नही िं दे देते और अकहिंिक पररबिोिं

को अपना िािकबि नही िं बनने देते तब तक अपनी यह र्ातृभूकर् के नवकनर्ामण की आशा

कर्थ्या है। कहिंिािार के नकार की आवश्यकता कजतनी आज है इतनी पहिे कभी न थी।

इि धे्ययकिक्तद्ध के किए गािंधीजी के यह कवख्यात पुस्तक का प्रकाशन और उिके कवशाि

प्रिार िे बेहतर र्ागम और क् या हो िक़ता है?

इि पुस्तक के प्रकाशन की कबनती का िहषम स्वीकार कर गणेश एन्ड किं पनी ने उच्च

राष्टर भावना कदखाई है।

ित्याग्रह िभा, च. राजगोपालाचार

र्द्राि, ६-६-’१९ [कहिंद र्ें पहिा अिंगे्रज़ी ििंस्करण,

[अिंगे्रज़ी िे] र्द्राि: गणेश एन्ड किं पनी, १९१९]

उपोद्घात

िोडम िोकधयन जब िेवाग्रार् आये थे तब उन्होिंने रु्झिे कहिंद स्वराज्य की नकि र्ािंगी थी।

उन्होिंने कहा था: ‘गािंधीजी आजकि जो कुछ भी कह रहें हैं वह इि छोटी िी ककताब र्ें

बीज के रूप र्ें है, और गािंधीजी को ठीक िे िर्झने के किए यह ककताब बार-बार पढनी

िाकहए।‘

अिरज की बात यह है कक उिी अरिे र्ें श्रीर्ती िोकफया वाकडया ने कहिंद स्वराज्य के बारे

र्ें एक िेख किखा था, कजिर्ें उन्होिंने हर्ारे िब र्िंकत्रयोिं िे, धारािभा के िदस्योिं िे, गोरे

और भारतीय किकवकियनोिं िे, इतना ही िं नही िं, आज के िोक-शािन के अकहिंिक प्रयोग की

िफिता िाहनेवािे हर एक नागररक िे यह ककताब बार-बार पढने की किफाररश की

थी। उन्होिंने किखा था:

अकहिंिक आदर्ी अपने ही िं घर र्ें तानाशाही कैिे ििा िक़ता है? वह शराब कैिे

बेि िक़ता है? अगर वह वकीि हो तो अपने रु्वक्तक्कि को अदाित र्ें जाकर

िडने की ििाह कैिे दे िक़ता है? इन िारे िवािोिं का जवाब देते िर्य बहुत ही िं

र्हत्त्व के राजनीकतक िवािोिं का कविार करना जरूरी हो जाता है। कहिंद स्वराज्य

र्ें इन प्रश्नोिं की किद्धान्त की दृकष्ट िे ििाम की गई है। इिकिए वह पुस्तक िोगोिं र्ें

ज्यादा पढी जानी िाकहए और उिर्ें जो कहा गया है उिके बारे र्ें िोकर्त तैयार

करना िाकहए।

श्रीर्ती वाकडया की कबनती ठीक वक् त पर की गई है। १९०९ र्ें गािंधीजी ने कविायत

िे िौटते हुए जहाज़ पर यह पुस्तक किखी थी। कहिंिक िाधनोिं र्ें कवश्वाि रखनेवािे कुछ

भारतीयोिं के िाथ जो ििामएिं हुई थी िं, उन पर िे उन्होिंने रू्ि पुस्तक गुजराती र्ें किखी थी

और इिं कडयन ओपीकनयन नार्क िाप्ताकहक र्ें कििकििेवार िेखोिं र्ें उिे प्रगट ककया

गया था। बाद र्ें उिे पुस्तक के रूप र्ें प्रगट ककया गया और बम्बई िरकार ने उिे जब्त

ककया। गािंधीजी ने कर्. कैिनबैक के किए उि ककताब का अिंगे्रज़ी र्ें जो अनुवाद ककया था,

उिे बम्बई िरकार के हुक्म के जवाब के रूप र्ें प्रकाकशत ककया गया। गोखिे जी १९१२

र्ें जब दकक्षण अिीका गये तब उन्होिंने वह अनुवाद देखा। उन्हें उिका र्जरू्न इतना

अनगढ िगा और उिके कविार एिे जल्दबाज़ी र्ें बने हुए िगे कक उन्होिंने भकवष्यवाणी

की कक गािंधीजी एक िाि भारत र्ें रहने के बाद खुद ही िं उि पुस्तक का नाश कर देंगे।

गोखिेजी की वह भकवष्यवाणी िि नही िं कनकिी। १९२१ र्ें गािंधीजी ने उि पुस्तक के बारे

र्ें किखते हुए कहा था:

वह दे्वषधर्म की जगह पे्रर्धर्म किखाती है; कहिंिा की जगह आत्मबकिदान को रखती

है; पशुबि िे टक्कर िेने के किए आत्मबि को खडा करती है। उिर्ें िे र्ैंने किफम

एक ही िं शब्द-और वह एक र्कहिा कर्त्र की इच्छा को र्ान कर रद ककया है। उिे

छोडकर कुछ भी फेरबदि नही िं ककया है। इि ककताब र्ें आधुकनक { आज की }

िभ्यता की िख्त टीका की गई है। यह १९०९ र्ें किखी गई थी। इिर्ें र्ैंने जो

र्ान्यता प्रगट की है, वह आज पहिे िे ज्यादा र्जबूत बनी है।... िेककन र्ैं पाठकोिं

को एक िेतावनी देना िाहता हाँ। वे एिा न र्ान िें कक इि ककताब र्ें कजि स्वराज्य

की तिवीर र्ैंने खडी की है, वैिा स्वराज्य कायर् करने के किए आज रे्री कोकशशें

िि रही हैं, र्ैं जानता हाँ कक अभी कहिंदुस्तान उिके किए तैयार नही िं है। एिा कहने

र्ें शायद कढठाई का भाि हो, िेककन रु्झे तो पक्का कवश्वाि है। उिर्ें कजि स्वराज्य

की तिवीर र्ैंने खी िंिी है, वैिा स्वराज्य पाने की रे्री कनजी कोकशश जरूर िि रही

है। िेककन इिर्ें कोई शक नही िं कक आज की रे्री िारू्कहक { आर् } प्रवृकि का

धे्यय तो कहिंदुस्तान की प्रजा की इच्छा के रु्ताकबक पाकिमयारे्न्टरी ढिंग का स्वराज्य

पाना है।

१९३८ र्ें भी गािंधीजी को कुछ जगहोिं पर भाषा बदिने के किवा और कुछ फेरबदि

करने जैिा नही िं िगा। इिकिए यह ककताब ककिी भी प्रकार की काट-छािंट के कबना रू्ि

रूप र्ें ही िं कफर िे प्रकाकशत की जाती है।

िेककन इिर्ें बताये हुए स्वराज्य के किए कहिंदुस्तान तैयार हो या न हो, कहिंदुस्ताकनयोिं

के किए यही उिर् { िबिे अच्छा } है कक वे इि बीजरूप ग्रिंथ का अध्ययन करें । ित्य

और अकहिंिा के किद्धान्तोिं के स्वीकार िे अिंत र्ें क्ा नतीजा आयेगा, उिकी तिवीर इिर्ें

है। इिे पढकर उन किद्धान्तोिं को स्वीकार करना िाकहए या उनका त्याग, यह तो पाठक

ही िं तय करें ।

वधाम, २-२-‘३८ मिादेव िररभाई देसाई

[अिंगे्रज़ी के गुजराती अनुवाद िे]

[नवजीवन द्वारा पहिा अिंगे्रज़ी ििंस्करण, अहर्दाबाद, १९३८]

सांदेश : आयचन पाथ को

कजन किद्धािंतो िं के पक्षपोषण { ताईद } के किए कहिंद स्वराज किखा गया,१ आप उनका प्रिार

कर रहें हैं, यह रे्रे किए बडी खुशी की बात है। अिंगे्रज़ी ििंस्करण { एकडशन } रू्ि गुजराती

पुस्तक का अनुवाद है। अगर इिे कफर िे किखना पडे तो हो िक़ता है, इिकी भाषा र्ें र्ैं

जहााँ-तहााँ कुछ पररवतमन करूाँ । िेककन तब िे रे्रे जीवन के जो तीि कर्म-ििंकुि वषम बीते

हैं, उनर्ें रे्रे देखने र्ें एिा कुछ नही िं आया कजिके आधार पर र्ैं इि पुक्तस्तका र्ें

प्रकतपाकदत कविारोिं र्ें कोई पररवतमन करूाँ । पाठक यह याद रखें कक इिर्ें कुछ

कायमकतामओिं के िाथ – कजनर्ें िे एक तो पक्का कवप्लववादी { एनाककम ट } था— रे्री जो

बातिीत हुई, उिको ही िं ईर्ानदारी के िाथ किकपबद्ध ककया गया है। उन्हें यह भी याद

रखना िाकहए कक दकक्षण अकिका र्ें रहनेवािे भारतीयोिं के जीवन र्ें जो एक िडााँघ आ

जाने का खतरा पैदा हो गया था, उिे भी इि पुस्तक ने रोक कदया। और पाठक िाहें तो

इि राय के रु्काबिे दूिरे पिडे पर रे्रे एक कप्रय कर्त्र की (अफिोि कक अब वे हर्ारे

बीि नही िं रहें) इि राय को रख िक़ते हैं कक यह तो एक रू्खम व्यक्ति की कृकत है।२

िेगााँव मो. क. गाांधी

जुिाई १४, १९३८

[अिंगे्रज़ी के गुजराती अनुवाद िे]

[दूिरी ििंवकधमत अिंगे्रज़ी आवृकि, नवजीवन, अहर्दाबाद, १९३९]

_______________________

१. कहिंद स्वराज पर कितम्बर र्ें आयमन पाथ का एक कवशेषािंक कनकिा था। उिर्ें िैकडर क िोडी, जी डी

एि कोि, िी डेकििि बन्सम, जोन कर्कडिटन र्री, ह्यूग आइ’ आनिन फोिेट, गेराल्ड हडम और इरेन

रॅथबोन जैिे पाश्चात्य कविारकोिं के िेख थे। यद्यकप उनर्ें िे कोई भी कहिंद स्वराज र्ें प्रकतपाकदत र्त िे

पूणमतया िहर्त नही िं था, कफर भी िभी ने उि कृकत को अत्यिंत र्हत्त्वपूणम र्ाना था।

२. देक्तखए ‘उपोद्घात' पृ. १२३

नई आवृहत्त की प्रस्तावना

[कहिंद स्वराज्य की यह जो नई आवृकि प्रकाकशत होती है, उिके दीबािे के तौर पर आयमन

पाथ र्ाकिक के कहिंद स्वराज्य अिंक की जो िर्ािोिना र्ैंने हररजन र्ें अिंगे्रज़ी र्ें किखी

थी, उिका तरजुर्ा देना यहािं नारु्नाकिब नही िं होगा। यह िही है कक कहिंद स्वराज्य की

पहिी आवृकि र्ें गािंधीजी के जो कविार कदखाये गये हैं, उनर्ें कोई फेरबदि नही िं हुआ है।

िेककन उनका उिरोिर { िगातार } कवकाि { क्तखिना } तो हुआ ही िं है। रे्रे नीिे कदये हुए

िेख र्ें उि कवकाि के बारे र्ें कुछ ििाम की गई है। उम्मीद है कक उििे गािंधीजी के

कविारोिं को ज्यादा िाफ िर्झने र्ें र्दद होगी।

वधाम, ११-१२-१९३८ – म. ि. दे.]

मित्त्व का प्रकाशन

आयमन पाथ र्ाकिक ने अभी अभी कहिंद स्वराज्य अिंक प्रकाकशत ककया है। कजि तरफ एिा

अिंक { निंबर } कनकािने का कविार अनोखा है, उिी तरह उिका रूप-रिंग भी बकढया है।

इिका प्रकाशन श्रीर्ती िोकफया वाकडया के भक्तिभाव-भरे श्रर् का आभारी है। उन्होिंने

कहिंद स्वराज्य की नकिें परदेश र्ें अपने अनेक कर्त्रोिं को भेजी थी िं और उनर्ें जो रु्ख्य थे

उन्हें उि पुस्तक के बारे र्ें अपने कविार किख भेजने के किए कहा था। खुद श्रीर्ती वाकडया

ने तो उि पुस्तक के बारे र्ें िेख किखे ही िं थे और ये कविार जाकहर ककये थे कक उिर्ें

भारतवषम के उजिे भकवष्य की आशा रही है। िेककन उि पुस्तक र्ें यूरोप की अिंधाधुिंधी

को भी कर्टाने की शक्ति है, एिा यूरोप के कविारकोिं और िेखक-िेक्तखकाओिं िे उन्हें

कहिाना था। इिकिए उन्होिंने यह योजना { तरकीब } कनकािी। उिका नतीजा अच्छा

आया है। इि खाि अिंक र्ें अध्यापक िोडी, कोि, कडिाइि बन्सम, कर्डिटन र्री,

बेरेिफडम, ह्यू फोिेट, क्लोड हटन, कज़राल्ड हडम, कुर्ारी रैथबोन वगैरा अनेक नार्ी

िेखक-िेक्तखकाओिं के िेख छपे हैं। उनर्ें िे कुछ तो शािंकतवादी और िर्ाजवादी के तौर

पर र्शहर हैं। िेककन कजनके कविार शािंकतवाद और िर्ाजवाद के क्तखिाफ हैं, एिे िोगोिं

के िेख भी इि अिंक र्ें आये होते तो अिंक कैिा होता! जो िेख कदये गये हैं उनकी व्यवस्था

इि तरह की गई है कक 'शुरू के िेखोिं र्ें जो आिोिनायें और उज्र आये हैं, उनर्ें िे बहुतोिं

के जवाब बाद के िेखोिं र्ें आ जाते हैं।' िेककन दो-एक टीकायें िगभग िब िेखकोिं ने की

हैं, इिकिए पहिे उनका कविार करना ठीक होगा। कुछ बातें एिी कही गई हैं, कजन्हें तुरन्त

स्वीकार कर िेना िाकहए। अध्यापक िोडी ने किखा है कक वे हाि र्ें ही िं कहिंदुस्तान आये थे

और यहााँ उन्होिंने एिा कुछ भी नही िं देखा कजिे ऊपर-ऊपर िे देखने पर एिा िगे कक

कहिंद स्वराज्य र्ें बताये हुए किद्धान्तोिं { उिूिोिं } को कुछ ज्यादा िफिता कर्िी है। यह

कबिकुि िि बात है। एिी ही िं िही बात कर्. कोि ने कही है कक गािंधीजी की 'किफम अकेिे

की बात िोिनी हो तो वे एिे स्वराज्य के नजदीक इनिान कजतना पहुाँि िक़ता है उतना

पहुाँि ही िं िुके हैं। िेककन उिके अिावा एक और िवाि रहता है; वह यह कक इनिान

इनिान के बीि जो खाई है, खुद अकेिे अरु्क आिरण करना और दूिरोिं को उनकी

बुक्तद्ध के रु्ताकबक आिरण करने र्ें र्दद करना – इन दोनोिं के बीि जो अिंतर है उिे कैिे

पाटा जाय? इि दूिरी िीज के किए तो औरोिं के िाथ रह कर, उनर्ें िे एक बन कर,

उनके िाथ तादात्म्य – एकता िाध कर र्नुष्य को आिरण करना पडता है; एक ही िं िर्य

र्ें अपना अििी रूप और दूिरे का धारण ककया हुआ रूप यानी व्यक्तित्व (कजिे खुद

जााँि िके, कजिकी टीका-कटप्पणी कर िके और कजिकी कीर्त आिंक िके), एिे दो तरह

के बरताव रखने पडते हैं। गािंधीजी ने अपने आिरण की िाधना को आक्तखरी हद तक

पहुाँिाया जरूर है, िेककन इि दूिरे िवाि को, खुद को ििंतोष हो इि तरह, वे हि नही िं

कर पाये हैं।' कफर जोन कर्डिटन र्री कहते हैं वह भी िही है कक 'अकहिंिा को अगर किफम

राजनीकतक { कियािी } दबाव के एक िाधन के तौर पर इसे्तर्ाि ककया जाय, तो उिकी

शक्ति जल्दी खतर् होती है।' और कफर िवाि यह उठता है कक 'एिी अकहिंिा को क् या

िच्ची अकहिंिा कहा जा िक़ता है?’

िेककन यह िारी कक्रया िगातार कवकाि की कक्रया है। उि िाध्य

{ र्क़िद } की किक्तद्ध के किए कोकशश करते करते र्नुष्य िाधन { जररया } की ििंपूणमता

के किए भी कोकशश करता रहता है। िैकडोिं बरि पहिे बुद्ध और ईिा र्िीह ने अकहिंिा

और पे्रर् के किद्धान्त का उपदेश ककया था। इन िैकडोिं बरिोिं र्ें इके्कदुके्क व्यक्तियोिं ने

छोटे-छोटे और िीकर्त { र्हदूद } प्रश्नोिं र्ें उिका प्रयोग ककया है। गािंधीजी के बारे र्ें एक

बात स्वीकार हो िुकी है, कजिका कजक्र करते हुए इि िेख-ििंग्रह { र्जरु्आ } र्ें कज़राल्ड

हडम ने कहा है कक ‘गािंधीजी के प्रयोग र्ें िारे जगत को कदििस्पी है, और उिका र्हत्त्व {

अहकर्यत } युगोिं तक कायर् रहेगा। इिका कारण यह है कक उन्होिंने िरू्ह को िेकर या

राष्टर ीय पैर्ाने पर उिका प्रयोग करने की कोकशश की है।' उि प्रयोग की ककठनाइयााँ तो

िाफ हैं, िेककन गािंधीजी को भरोिा है कक इन रु्िीबतोिं को पार करना नारु्र्ककन नही िं

है। कहिंदुस्तान र्ें १९२१ र्ें वह प्रयोग नारु्र्ककन र्ािूर् हुआ और उिे छोड देना पडा।

िेककन जो बात उि िर्य नारु्र्ककन थी, वह १९३० र्ें रु्र्ककन हुई। अब भी बहुत बार

यह िवाि उठता है कक 'अकहिंिक िाधन का अथम क्ा है?' उि शब्द का िब को र्िंजूर

हो एिा अथम और उिकी र्यामदा { हद } तय करने और उिे िािू करने िे पहिे अकहिंिा

का ििंबे अरिे तक प्रयोग और आिरण { अर्ि } करने की जरूरत है। पकश्चर् के कविारक

अकिर भूि जाते हैं कक अकहिंिा के आिरण र्ें िब िे जरूरी और न टािी जा िकने

वािी िीज पे्रर् है; और शुद्ध कनःस्वाथम पे्रर् र्न की और शरीर की बेदाग – कनष्कििंक शुक्तद्ध

के कबना ििंभव नही िं है और प्राप्त नही िं ककया जा िक़ता।

कहिंद स्वराज्य की प्रशिंिा भरी िर्ािोिना र्ें िब िेखकोिं ने एक बात का कजक्र

ककया है: वह है गािंधीजी का यिंत्रो िं के बारे र्ें कवरोध।

िर्ािोिक इि कवरोध को नारु्नाकिब और अकारण { कबिावजह } र्ानते हैं।

कर्डिटन र्री कहते हैं: ‘गािंधीजी अपने कविारोिं के जोश र्ें यह भूि जाते हैं कक जो िरखा

उन्हें बहुत प्यारा है, वह भी एक यिंत्र ही िं है और कुदरत की नही िं िेककन इनिान की बनायी

हुई एक अकुदरती – कृकत्रर् िीज है। उनके उिूि के रु्ताकबक तो उिका भी नाश करना

होगा।' कडिाइि बन्सम कहते हैं: 'यह तो बुकनयादी कविार-दोष है। उिर्ें कछपे रूप िे यह

बात िूकित की गई है कक कजि ककिी िीज का बुरा उपयोग हो िक़ता है, उिे हर्ें नैकतक

दृकष्ट िे हीन र्ानना िाकहए। िेककन िरखा भी तो एक यिंत्र ही िं है। और नाक पर िगाया

हुआ िश्मा भी आिंख की र्दद करने को िगाया हुआ यिंत्र ही िं है। हि भी यिंत्र है। और पानी

खी िंिने के पुराने िे पुराने यिंत्र भी शायद र्ानव-जीवन को िुधारने की र्नुष्य की हजारोिं

बरि की िगातार कोकशश के आक्तखरी फि होिंगे।... ककिी भी यिंत्र का बुरा उपयोग होने

की ििंभावना रहती है। िेककन अगर एिा हो तो उिर्ें रही हुई नैकतक हीनता यिंत्र की नही िं,

िेककन उिका उपयोग करने वािे र्नुष्य की है।'

रु्झे इतना तो कबूि करना िाकहए कक गािंधीजी ने 'अपने कविारोिं के जोश र्ें’ यिंत्रो िं

के बारे र्ें अनगढ भाषा इसे्तर्ाि की है और आज अगर वे इि पुस्तक को कफर िे िुधारने

बैठें तो उि भाषा को वे खुद बदि देंगे। क्ोिं कक रु्झे यकीन है कक र्ैंने ऊपर िर्ािोिकोिं

के जो कथन कदये हैं उनका गािंधीजी स्वीकार करें गे; और जो नैकतक गुण यिंत्र का इसे्तर्ाि

करने वािे र्ें रहें हैं, उन गुणोिं को उन्होिंने यिंत्र के गुण कभी नही िं र्ाना। कर्िाि के तौर पर

१९२४ र्ें उन्होिंने जो भाषा इसे्तर्ाि की थी वह ऊपर कदये हुए दो कथनोिं की याद कदिाती

है। उि िाि कदल्स् िी र्ें गािंधीजी का एक भाई के िाथ जो ििंवाद { बातिीत } हुआ था, वह

र्ैं नीिे देता हाँ:

‘क्ा आप तर्ार् यिंत्रो िं के क्तखिाफ़ हैं?’ रार्ििन् ने िरि भाव िे पूछा।

गािंधीजी ने रु्स्कराते हुए कहा: वैिा र्ैं कैिे हो िक़ता हाँ, जब र्ैं जानता हाँ कक यह

शरीर भी एक बहुत नाजुक यिंत्र ही िं है? खुद िरखा भी एक यिंत्र ही िं है, छोटी दािंत-कुरेदनी

{ खरका } भी यिंत्र है। रे्रा कवरोध यिंत्रो िं के किए नही िं है, बक्ति यिंत्रोिं के पीछे जो पागिपन

िि रहा है, उिके किए है। आज तो कजन्हें रे्हनत बिाने वािे यिंत्र कहते हैं, उनके पीछे

िोग पागि हो गये हैं। उनिे रे्हनत जरूर बिती है, िेककन िाखोिं िोग बेकार होकर

भूखोिं र्रते हुए रास्तोिं पर भटकते हैं। िर्य और श्रर् की बित तो र्ैं भी िाहता हाँ, परनु्त

वह ककिी खाि वगम की नही िं, बक्ति िारी र्ानव-जाकत की होनी िाकहए। कुछ कगने-कगनाये

िोगोिं के पाि ििंपकि जर्ा हो एिा नही िं, बक्ति िब के पाि जर्ा हो एिा र्ैं िाहता हाँ।

आज तो करोडोिं की गरदन पर कुछ िोगोिं के िवार हो जाने र्ें यिंत्र र्ददगार हो रहें हैं।

यिंत्रो िं के उपयोग के पीछे जो पे्ररक कारण है वह श्रर् की बित नही िं है, बक्ति धन का िोभ

है। आज की इि िािू अथम-व्यवस्था के क्तखिाफ र्ैं अपनी तर्ार् ताक़त िगा कर युद्ध

ििा रहा हाँ।'

रार्ििन् ने आतुरता िे पूछा: “तब तो, बापूजी, आप का झगडा यिंत्रो िं के क्तखिाफ

नही िं, बक्ति आज यिंत्रोिं का जो बुरा उपयोग हो रहा हे उिके क्तखिाफ है?'

‘जरा भी आनाकानी ककये कबना र्ैं कहता हाँ कक 'हािं'। िेककन र्ैं इतना जोडना

िाहता हाँ कक िबिे पहिे यिंत्रो िं की खोज और कवज्ञान िोभ के िाधन नही िं रहने िाकहए।

कफर र्जदूरोिं िे उनकी ताक़त िे ज्यादा कार् नही िं किया जाएगा, और यिंत्र रूकावट बनने

के बजाय र्ददगार हो जायेंगे। रे्रा उदे्दश्य { र्क़िद } तर्ार् यिंत्रो िं का नाश करने का नही िं

है, बक्ति उनकी हद बािंधने का है।'

रार्ििन् ने कहा: 'इि दिीि को आगे बढाये तो उिका र्तिब यह होता है कक

भौकतक { दुकनयावी } शक्ति िे ििने वािे और भारी पेिीदा तर्ार् यिंत्रो िं का त्याग करना

िाकहए।'

गािंधीजी ने र्िंजूर करते हुए कहा: त्याग करना भी पडे। िेककन एक बात र्ैं िाफ

करना िाहाँगा। हर् जो कुछ करें उिर्ें रु्ख्य कविार इनिान के भिे का होना िाकहए। एिे

यिंत्र नही िं होने िाकहए जो कार् न रहने के कारण आदर्ी के अिंगोिं को जड और बेकार बना

दें। इिकिए यिंत्रो िं को रु्झे परखना होगा। जैिे, कििंगर की िीने की र्शीन का र्ैं स्वागत

करूिं गा। आज की िब खोजोिं र्ें जो बहुत कार् की थोडी खोजें हैं, उनर्ें िे एक यह िीने

की र्शीन है। उिकी खोज के पीछे अद्भुत इकतहाि है। कििंगर ने अपनी पत्नी को िीने

और बक्तखया िगाने का उकताने वािा कार् करते देखा। पत्नी के प्रकत रहें उिके पे्रर् ने

गैर-जरूरी रे्हनत िे उिे बिाने के किए कििंगर को एिी र्शीन बनाने की पे्ररणा की। एिी

खोज करके उिने न किफम अपनी पत्नी का ही िं श्रर् बिाया, बक्ति जो भी एिी िीने की

र्शीन खरीद िक़ते हैं उन िब को हाथ िे िीने के उबाने वािे श्रर् िे छुडाया है।'

रार्ििन् ने कहा: ‘िेककन कििंगर की िीने की र्शीनें बनाने के किए तो बडा

कारखाना िाकहए और उिर्ें भौकतक शक्ति िे ििने वािे यिंत्रो िं का उपयोग करना ही िं

पडेगा।'

रार्ििन् के इि कवरोध र्ें किफम ज्यादा जानने की इच्छा ही िं थी। गािंधीजी ने

रु्स्कराते हुए कहा: 'हािं, िेककन र्ैं इतना कहने की हद तक िर्ाजवादी तो हाँ ही िं कक एिे

कारखानोिं का र्ाकिक राष्टर हो या जनता की िरकार की ओर िे एिे कारखाने ििाये

जायें। उनकी हस्ती नफे के किए नही िं बक्ति िोगोिं के भिे के किए हो। िोभ की जगह पे्रर्

को कायर् करने का उिका उदे्दश्य हो। र्ैं तो यह िाहता हाँ कक र्ज़दूरोिं की हाित र्ें

कुछ िुधार हो। धन के पीछे आज जो पागि दौड िि रही है वह रूकनी िाकहए। र्ज़दूरोिं

को किफम अच्छी रोजी कर्िे, इतना ही िं बि नही िं है। उनिे हो िके एिा कार् उन्हें रोज

कर्िना िाकहए। एिी हाित र्ें यिंत्र कजतना िरकार को या उिके र्ाकिक को िाभ

पहुिंिायेगा, उतना ही िं िाभ उिके ििाने वािे र्ज़दूर को पहुिंिायेगा। रे्री कल्पना र्ें यिंत्रो िं

के बारे र्ें जो कुछ अपवाद हैं, उनर्ें िे एक यह है। कििंगर र्शीन के पीछे पे्रर् था, इिकिए

र्ानव-िुख का कविार रु्ख्य { खाि } था। उि यिंत्र का उदे्दश्य है र्ानव-श्रर् की बित।

उिका इसे्तर्ाि करने के पीछे र्क़िद धन के िोभ का नही िं होना िाकहए, बक्ति

प्रार्ाकणक रीकत { ईर्ानदारी } िे दया का होना िाकहए। र्ििन, टेढे तकुवे को िीधा बनाने

वािे यिंत्र का र्ैं बहुत स्वागत करूिं गा। िेककन िुहारो िं का तकुवे बनाने का कार् ही िं खतर्

हो जाय, यह रे्रा उदे्दश्य नही िं हो िक़ता। जब तकुवा टेढा हो जाय तब हर एक कातने

वािे के पाि तकुवा िीधा कर िेने के किए यिंत्र हो, इतना ही िं र्ैं िाहता हाँ। इिकिए िोभ

की जगह हर् पे्रर् को दें। तब कफर िब अच्छा ही िं अच्छा होगा।‘

रु्झे नही िं िगता कक ऊपर के ििंवाद र्ें गािंधीजी ने जो कहा है, उिके बारे र्ें इन

आिोिकोिं र्ें िे ककिी का किद्धान्त { उिूि } की दृकष्ट िे कवरोध हो। देह की तरह यिंत्र भी,

अगर वह आत्मा के कवकाि र्ें र्दद करता हो तो, और कजतनी हद तक र्दद करता हो

उतनी हद तक ही िं, उपयोगी है।

पकश्चर् की िभ्यता के बारे र्ें भी एिा ही िं है। 'पकश्चर् की िभ्यता र्नुष्य की आत्मा

की र्हाशतु्र है' – इि कथन का कवरोध करते हुए कर्. कोि किखते हैं: ‘र्ैं कहता हाँ कक

से्पन और एकबिीकनया के भयिंकर ििंहार { कत्ल }, हर्ारे किर पर हरे्शा िटकने वािा भय,

िब तरह की ररक्तद्ध-किक्तद्ध पैदा करने की शक्ति र्ौजूद होने पर भी करोडोिं का दाररद्र्य, ये

िब पकश्चर् की िभ्यता के दूषण हैं, गिंभीर दूषण { खराकबया } हैं। िेककन वे कुदरती नही िं

हैं, िभ्यता की जड नही िं हैं।... र्ैं यह नही िं कहता कक हर् अपनी इि िभ्यता को िुधारें गे;

िेककन वह िुधर ही िं नही िं िकती िं, एिा र्ैं नही िं र्ानता। जो िीज़ें र्ानव की आत्मा के किए

जरूरी हैं, उनके िाफ इनकार पर उि िभ्यता की रिना हुई है एिा र्ैं नही िं र्ानता !’

कबिकुि िही बात है। और गािंधीजी ने उि िभ्यता के जो दूषण बताये वे कुदरती नही िं थे,

बक्ति उि िभ्यता की प्रवृकियोिं र्ें रहें हुए दूषण थे; और इि पुस्तक र्ें गािंधीजी का र्क़िद

भारतीय िभ्यता की प्रवृकियािं पकश्चर् की िभ्यता की प्रवृकियोिं िे ककतनी कभन् हैं यही

कदखाने का था। पकश्चर् की िभ्यता को िुधारना नारु्र्ककन नही िं है, कर्. कोि की इि बात

िे गािंधीजी पूरी तरह िहर्त { हर् राय } होिंगे; उनको यह भी र्िंजूर होगा कक पकश्चर् को

पकश्चर् के ढिंग का ही िं स्वराज्य िाकहए; वे आिानी िे यह भी स्वीकार करें गे कक वह स्वराज्य

‘गािंधी जैिे आत्म-कनग्रह { खुद पर काबू रखनेवािे } वािे पुरूषोिं के कविार के अनुिार तो

होगा, िेककन वे पुरूष हर्ारे पकश्चर् के ढिंग के होिंगे; और वह ढिंग गािंधी या कहिंदुस्तान का

नही िं, पकश्चर् का अपना कनरािा ही िं ढिंग होगा |’

हसद्धान्त की मयाचदा

अध्यापक कोि ने नीिे की उिझन िार्ने रखी है:

जब जर्मन और इटाकियन कवर्ानी से्पन की प्रजा का ििंहार कर रहें होिं, जब जापान

के कवर्ानी िीन के शहरोिं र्ें हजारोिं िोगोिं को कत्ल कर रहें होिं, जब जर्मन िेनाएाँ

आक्तटर या र्ें घुि िुकी होिं और िेकोिोवाककया र्ें घुि जाने की धर्ककयााँ दे रही

होिं, जब एकबिीकनया पर बर् बरिाकर उिे जीत किया गया हो, तब आज के एिे

िर्य र्ें क्ा यह (अकहिंिा का) किद्धान्त कटक िकेगा? दो-एक बरि पहिे र्ैं तर्ार्

ििंजोगोिं र्ें युद्ध का और रृ्तु्यकारी कहिंिा का कवरोध करता था। िेककन आज, युद्ध

के बारे र्ें रे्रे कदि र्ें नापििंदगी और नफ़रत होने पर भी, इन कते्लआर्ोिं –

हत्याकािंडोिं को रोकने के किए र्ैं युद्ध का खतरा जरूर उठाऊाँ गा।

उनके र्न र्ें एक-दूिरे के कवरोधी ये कविार कैिा िख्त ििंघषम र्िा रहें हैं, यह नीिे

की ितरोिं िे जाकहर होता है। वे कहते हैं:

र्ैं युद्ध का खतरा जरूर उठाऊाँ गा, परनु्त अभी भी रे्रा वह दूिरा व्यक्तित्व {

शक्तियत } इनिान की हत्या करने के कविार िे घबराकर, िोट खाकर पीछे हटता

है। र्ैं खुद तो दूिरे की जान िेने के बजाय अपनी जान देना ज्यादा पिन्द करूिं गा।

िेककन अरु्क ििंजोगोिं र्ें खुद र्र-कर्टने के बजाय दूिरे की जान िेने की कोकशश

करना कया रे्रा फजम नही िं होगा? गािंधी शायद जवाब देंगे कक कजिने व्यक्तिगत {

अपना } स्वराज्य पाया है, उिके िार्ने एिा धर्मििंकट { पिोपेश, दुकवधा } पैदा ही िं

नही िं होगा। एिा व्यक्तिगत स्वराज्य र्ैंने पाया है, यह रे्रा दावा नही िं है। िेककन

खयाि कीकजये कक र्ैंने एिा स्वराज्य पा किया है, तो भी उििे पकश्चर् यूरोप र्ें आज

के िर्य रे्रे किए यह िवाि कुछ कर् जोरदार हो जायेगा एिा रु्झे कवश्वाि नही िं

होता।'

कर्. कोि ने जो ििंजोग बताये हैं, वे र्नुष्य की श्रद्धा { अक़ीदा } की किौटी जरूर

करते हैं। िेककन इिका जवाब गािंधीजी अनेक बार दे िुके हैं, हािािंकक उन्होिंने अपना

व्यक्तिगत स्वराज्य पूरी तरह पाया नही िं है; क्ोिंकक जब तक दूिरे देशबनु्धओिं ने स्वराज्य

नही िं पाया है, तब तक वे अपने पाये हुए स्वराज्य को अधूरा ही िं र्ानते हैं। िेककन वे श्रद्धा

के िाथ जीते हैं और अकहिंिा के बारे र्ें उनकी जो श्रद्धा है वह इटिी या जापान के ककये

हुए कते्लआर्ोिं की बात िुनते ही िं डगर्गाने नही िं िगती। क्ोिंकक कहिंिा र्ें िे कहिंिा के ही िं

नतीजे पैदा होते हैं; और एक बार उि रासे्त पर जा पहुिंिे कक कफर उिका कोई अन्त ही िं

नही िं आता। 'िीन का पक्ष िेकर आपको िडना िाकहए’ एिा कहने वािे एक िीनी कर्त्र

को जवाब देते हुए वार रेकज़टर नार्क पत्र र्ें कफकिप र्र्फडम ने किखा है:

आपकी शतु्र तो जापान की िरकार है; जापान के ककिान और िैकनक आपके

दुश्मन नही िं हैं। उन अभागे और अनपढ िोगोिं को तो र्ािूर् भी नही िं कक उन्हें क् योिं

िडने का हुक्म ककया जाता है। कफर भी, अगर आप अपने देश के बिाव के किए

र्ौजूदा ििरी तरीकोिं का उपयोग करें गे, तो आपको इन बेकिूर िोगोिं को ही िं –

जो आपके िचे्च दुश्मन नही िं हैं उन्ही िं को— र्ारना पडेगा। अकहिंिा की जो रीकत

गािंधीजी ने कहिंदुस्तान र्ें आजर्ाई, उिी के जररये अगर िीन अपनी रक्षा करने की

कोकशश करेगा – और गािंधीजी की वह रीकत िीन के र्हान धर्म-गुरूओिं के उपदेश

िे बहुत ज्यादा रे्ि खाती है – तो र्ैं बेधडक कहाँगा कक यूरोप के शस्त्रयुद्ध की

रीकत की नकि करने के बजाय इि अकहिंिा की रीकत िे उिे बहुत ज्यादा िफिता

कर्िेगी। ...िीन की जनता, जो जगत की िब िे ज्यादा शािंकतकप्रय प्रजा है, जगत की

ककिी भी िडाकू प्रजा के बकनस्बत ज्यादा ििंबे अरिे तक अपने को और अपनी

ििंसृ्ककत को कायर् रख िकी है, यह हकीकत ही िं र्ानव-जाकत के किए एक िबक़

है। जो शूरवीर िीनी अपने देश के बिाव के किए िड रहें हैं, उनके किए हर्ें आदर

नही िं है एिा आप न र्ानें। हर् उनके त्याग और बकिदान की भारी कदर करते हैं

और िर्झते हैं कक वे हर् िे कभन् किद्धान्तोिं र्ें र्ानने वािे हैं। कफर भी हर् तो र्ानते

हैं कक कहिंिा िब ििंजोगोिं र्ें बुरी है और उिर्ें िे अचे्छ फि कनकिना अििंभव है।

अकहिंिा का पािन आपको तर्ार् दुःखोिं िे उबार तो नही िं िेगा, िेककन र्ैं र्ानता हाँ

कक आपके िब शस्त्र-अस्त्रोिं और ििरोिं के बकनस्बत अकहिंिा एक अरिे के बाद

आपके भावी कवजेता के क्तखिाफ ज्यादा अिरकारक िाकबत होगी; और िबिे

ज्यादा र्हत्त्व { अहर् } की बात तो यह है कक इििे आपकी प्रजा के आदशम जीकवत

रहेंगे।

कुर्ारी रैथबोन ने एिी ही िं एक िर्स्या { र्ििा, पहेिी } रखी है। वे किखती है :

'जाकिर् के िार्ने किर झुका कर और अपनी अिंदर की आवाज़ के कवरूद्ध िि

कर अगर छोटे रु्िायर् बच्चोिं और बक्तच्चयोिं को बिाया जा िक़ता हो, तो इि दुकनया

र्ें एिा कौन आदर्ी – िार्ान्य या ििंतपुरूष – है, जो उनकी हत्या होने देगा?’ गािंधी

इि िवाि का जवाब नही िं देते। उन्होिंने यह िवाि उठाया तक नही िं है। ...इि बारे

र्ें ईिा र्िीह का कहना ज्यादा स्पष्ट { िाफ़ } है। ...उनके शब्द ये हैं: ‘रु्झ पर

श्रद्धा रखने वािे इन नन्हें रु्न्ोिं के क्तखिाफ जो कोई हाथ उठाये, उिके गिे र्ें

िक्की का पाट िटका कर उिे िरु्द्र के पानी र्ें डुबो कदया जाय।' ... योिं हर्ें इि

बारे र्ें गािंधीजी के बकनस्बत ईिा र्िीह की ओर िे ज्यादा र्दद कर्िती है...।

रु्झे िगता है, ईिा र्िीह के विन किफम उनका पुण्य-प्रकोप { पाक गुस्सा } प्रकट

करते हैं, और उन्होिंने जो कदर् उठाने की बात कही है, वह गुनहगारोिं को कोई और

आदर्ी िजा करे इिकिए नही िं, बक्ति गुनहगार खुद अपने को प्रायकश्चि { कफ़्फारा } के

तौर पर िजा दे इिकिए है। और क् या कुर्ारी रैथबोन को पक्का यकीन है कक कजिे वे ईिा

का उपाय र्ानती हैं, उिे आजर्ाकर वे बािकोिं को र्ौत िे बिा िकें गी? गािंधीजी ने यह

िवाि उठाया ही िं नही िं है, एिा उनका र्ानना िही नही िं है। उन्होिंने यह िवाि उठाया है

और उिका िाफ़ िाफ़ जवाब भी कदया है; जैिे १३०० बरि पहिे उन अर्र रु्क्तिर्

शहीदोिं ने भी यह िवाि उठाया था और अपने कार् िे उिका जवाब कदया था। जाकिर्

के िार्ने झुकने और अपनी अिंतर-आत्मा को धोखा देने के बजाय अपने बीबी-बच्चोिं को

भूखे-प्यािे तडपते हुए र्रने देना ही िं उन्होिंने ज्यादा पिन्द ककया था; क्ोिंकक जाकिर् के

िार्ने झुकने और अपनी अिंतर-आत्मा को धोखा देने का पररणार् यही होता है कक जाकिर्

को नये नये जुल्म गुजारने का बढावा कर्िता है।

िेककन कुर्ारी रैथबोन ने भी कहिंद स्वराज्य को ‘बहुत भारी अिरकारक पुस्तक'

कहा है और किखा है कक ‘उिे पढकर, उिर्ें रही भारी प्रार्ाकणकता { ईर्ानदारी } को

देखकर अपनी प्रार्ाकणकता की जािंि करना रे्रे किए जरूरी हो गया है। िोगोिं िे रे्री

कबनती है कक वे इि पुस्तक को जरूर पढें।'

आयमन पाथ र्ाकिक के ििंपादकोिं ने यह कहिंद स्वराज्य अिंक कनकाि कर शािंकत और

अकहिंिा के कायम की कनकवमवाद { खिूिन्, बेशक } िेवा की है, एिा हर्ें कहना होगा।

हररजन १०-९-१९३८ मिादेव िररभाई देसाई

[अिंगे्रज़ी के गुजराती अनुवाद िे]

[दूिरी ििंवकधमत अिंगे्रज़ी आवृकि, नवजीवन, अहर्दाबाद, १९३९]

दो शब्द

ििंदन िे दकक्षण अिीका िौटते हुए गािंधीजी ने रासे्त र्ें जो ििंवाद किखा और

कहिंद स्वराज्य के नार् िे छपवाया, उिे आज पिाि बरि हो गये।

दकक्षण अिीका के भारतीय िोगोिं के अकधकारोिं की रक्षा के किए ितत िडते हुए

गािंधीजी १९०९ र्ें ििंदन गये थे। वहािं कई क्रािंकतकारी स्वराज्य-पे्रर्ी भारतीय नवयुवक उन्हें

कर्िे। उनिे गािंधीजी की जो बातिीत हुई उिीका िार गािंधीजी ने एक काल्पकनक ििंवाद

र्ें ग्रकथत ककया है। इि ििंवाद र्ें गािंधीजी के उि िर्य के र्हत्त्व के िब कविार आ जाते

हैं। ककताब के बारे र्ें गािंधीजी ने स्वयिं कहा है कक ‘रे्री राय र्ें यह ककताब एिी है कक यह

बािक के हाथ र्ें भी दी जा िकती िं है। यह दे्वषधर्म की जगह पे्रर्धर्म किखाती है; कहिंिा की

जगह आत्म-बकिदान को रखती है; पशुबि िे टक्कर िेने के किए आत्मबि को खडा

करती है।' गािंधीजी इि कनणमय पर पहुिंिे थे कक पकश्चर् के देशोिं र्ें, यूरोप-अरे्ररका र्ें जो

आधुकनक िभ्यता जोर कर रही है, वह कल्याणकारी नही िं है, र्नुष्य-कहत के किए वह

ित्यानाशकारी है। गािंधीजी र्ानते थे कक भारत र्ें और िारी दुकनया र्ें प्रािीन काि िे जो

धर्म-परायण नीकत-प्रधान िभ्यता ििी आयी है वही िच्ची िभ्यता है।

गािंधीजी का कहना था कक भारत िे केवि अिंगे्रज़ोिं को और उनके राज्य को हटाने

िे भारत को अपनी िच्ची िभ्यता का स्वराज्य नही िं कर्िेगा। हर् अिंगे्रज़ोिं को हटा दें और

उन्ही िं की िभ्यता का और उन्ही िं के आदशम का स्वीकार करें तो हर्ारा उद्धार नही िं होगा।

हर्ें अपनी आत्मा को बिाना िाकहए। भारत के किखे-पढे ििंद िोग पकश्चर् के र्ोह र्ें फिं ि

गये हैं। जो िोग पकश्चर् के अिर तिे नही िं आये हैं, वे भारत की धर्म-परायण नैकतक िभ्यता

को ही िं र्ानते हैं। उनको अगर आत्मशक्ति का उपयोग करने का तरीक़ा किखाया जाय,

ित्याग्रह का रास्ता बताया जाय, तो वे पकश्चर्ी राज्य-पद्धकत का और उििे होने वािे

अन्याय का रु्क़ाबिा कर िकें गे तथा शस्त्रबि के कबना भारत को स्वतिंत्र कर के दुकनया

को भी बिा िकें गे।

पकश्चर् का कशक्षण और पकश्चर् का कवज्ञान अिंगे्रज़ोिं के अकधकार के जोर पर हर्ारे

देश र्ें आये। उनकी रेिें, उनकी किककत्सा और रूग्णािय, उनके न्यायािय और उनकी

न्यायदान-पद्धकत आकद िब बातें अच्छी ििंसृ्ककत के किए आवश्यक नही िं है, बक्ति कवघातक

ही िं हैं – वगैरा बातें कबना ककिी ििंकोि के गािंधीजी ने इि ककताब र्ें दी हैं।

रू्ि ककताब गुजराती र्ें किखी गयी थी। उिके कहिंदुस्तान आते ही िं बिंबई िरकार ने

आके्षपाहम बताकर उिे जब्त ककया। तब गािंधीजी ने िोिा कक कहिंद स्वराज र्ें र्ैंने जो कुछ

भी किखा है, वह जैिा का वैिा अपने अिंगे्रज़ी जानने वािे कर्त्रोिं और टीकाकारोिं के िार्ने

रखना िाकहए। उन्होिंने स्वयिं गुजराती कहिंद स्वराज का अिंगे्रज़ी अनुवाद ककया और उिे

छपाया। उिे भी बम्बई िरकार ने आके्षपाहम घोकषत ककया।

दकक्षण अिीका का अपना िारा कार् पूरा करके िन् १९१५ र्ें गािंधीजी भारत

आये। उिके बाद ित्याग्रह करने का जब पहिा र्ौका गािंधीजी को कर्िा, तब उन्होिंने

बिंबई िरकार के हुक्म के क्तखिाफ कहिंद स्वराज कफर िे छपवाकर प्रकाकशत ककया। बम्बई

िरकार ने इिका कवरोध नही िं ककया। तब िे यह ककताब बम्बई िरकार ने राज्य र्ें, िारे

भारत र्ें और दुकनया के गिंभीर कविारकोिं के बीि ध्यान िे पढी जाती है।

स्व. गोखिेजी ने इि ककताब के कववेिन को कच्चा कह कर उिे नापिन्द ककया

था और आशा की थी कक भारत िौटने के बाद गािंधीजी स्वयिं इि ककताब को रद कर देंगे।

िेककन वैिा नही िं हुआ। गािंधीजी ने एकाध िुधार कर के कहा कक आज र्ैं इि ककताब को

अगर कफर िे किखता, तो उिकी भाषा र्ें जरूर कुछ िुधार करता। िेककन रे्रे रू्िभूत

कविार वही हैं, जो इि ककताब र्ें र्ैंने व्यि ककये हैं।

गािंधीजी के प्रकत आदर और उनके कविारोिं के प्रकत िहानुभूकत रखने वािे दुकनया के

बडे बडे कविारकोिं ने कहिंद स्वराज के बारे र्ें जो ििंर्कत प्रगट की है, उिका िार श्री र्हादेव

देिाई ने नई आवृकि की अपनी िुन्दर प्रस्तावना र्ें कदया ही िं है।

अकहिंिा का िार्थ्यम, यिंत्रवाद का गािंधीजी का कवरोध और पकश्चर्ी िभ्यता तीनोिं के

बारे र्ें और ित्याग्रह की अिंकतर् भूकर्का के बारे र्ें भी पकश्चर् के िोगोिं ने अपना र्तभेद

स्पष्ट रूप िे व्यि ककया है।

गािंधीजी के िारे जीवन-कायम के रू्ि र्ें जो श्रद्धा कार् करती रही, वह िारी कहिंद

स्वराज्य र्ें पायी जाती है। इिकिए गािंधीजी के कविारिागर र्ें इि छोटी िी पुस्तक का

र्हत्त्व अिाधारण है।

गािंधीजी के बताये हुए अकहिंिक रासे्त पर िि कर भारत स्वतिंत्र हुआ। अिहयोग,

कानूनोिं का िकवनय भिंग और ित्याग्रह – इन तीनोिं कदर्ोिं की र्दद िे गािंधीजी ने स्वराज्य

का रास्ता तय ककया। हर् इिे िर्त्कारपूणम घटना का कत्रकवक्रर् कह िकते हैं।

गािंधीजी के प्रयत्न का वही हाि हुआ, जो दुकनया की अन्य शे्रि कवभूकतयोिं के प्रयत्नोिं

का होता आया है।

भारत ने, भारत के नेताओिं ने और एक ढिंग िे िोिा जाय तो भारत की जनता ने भी

गािंधीजी के द्वारा कर्िे हुए स्वराज्य-रूपी फि को तो अपनाया, िेककन उनकी जीवन-दृकष्ट

को पूरी तरह अपनाया नही िं है। धर्मपरायण, नीकत-प्रधान पुरानी ििंसृ्ककत की प्रकतिा कजिर्ें

नही िं है, एिी ही िं कशक्षा-पद्धकत भारत र्ें आज प्रकतकित है। न्यायदान पकश्चर्ी ढिंग िे ही िं हो

रहा है। इिकी तािीर् भी जैिी अिंगे्रज़ोिं के कदनोिं र्ें थी वैिी ही िं आज है। अध्यापक, वकीि,

डॉक्टर, इिंजीकनयर और राजनीकतक नेता – ये पािंि कर्िकर भारत के िावमजकनक जीवन

को पकश्चर्ी ढिंग िे ििा रहें हैं। अगर पकश्चर् के कवज्ञान और यािंकत्रक कौशल्य

(Technology) का िहारा हर् न िें और गािंधीजी के ही िं िािंसृ्ककतक आदशम का स्वीकार

करें , तो भारत जैिा र्हान देश िाउदी अरेकबया जैिे नगण्य देश की कोकट तक पहुिंि

जाएगा, यह डर भारत के आज के िभी पक्ष के नेताओिं को है।

भारत शािंततावादी है, युद्ध-कवरोधी है। दुकनया का िाम्राज्यवाद, उपकनवेशवाद,

शोषणवाद, राष्टर -राष्टर के बीि फैिा हुआ उच्च-नीि भाव – इन िब का कवरोध करने का

किं कण भारत-िरकार ने अपने हाथ र्ें बािंधा है। तो भी कजि तरह के आदशम का गािंधीजी

ने अपनी ककताब कहिंद स्वराज्य र्ें पुरस्कार ककया है, उिका तो उिने अस्वीकार ही िं ककया

है। स्वाभाकवक है कक इि तरह के नये भारत र्ें अिंगे्रज़ी भाषा का ही िं बोिबािा रहें। किफम

अरे्ररका ही िं नही िं, ककनु्त रकशया, जर्मनी, िेकोिोवाककया, जापान आकद कवज्ञान-परायण

राष्टर ो िं की र्दद िे भारत यिंत्र-ििंसृ्ककत र्ें जोरो िं िे आगे बढ रहा है। और उिकी आिंतररक

कनिा र्ानती है कक यही िच्चा र्ागम है। पू॰ गािंधीजी के कविार जैिे हैं वैिे नही िं िि िक़ते।

यह नई कनिा केवि नेहरूजी की नही िं, ककनु्त करीब करीब िारे राष्टर की है। श्री

कवनोबा भावे गािंधीजी के आत्मवाद का, िवोदय का और अकहिंिक शोषण-कवहीन िर्ाज-

रिना का जोरोिं िे पुरस्कार कर रहें हैं। ग्रार्राज्य की स्थापना िे, शािंकतिेना के द्वारा, नई

तािीर् के जररये, स्त्री-जाकत की जागृकत के द्वारा वे र्ानि-पररवतमन, जीवन-पररवतमन और

िर्ाज-पररवतमन का पुरस्कार कर रहें हैं। भूदान और ग्रार्दान के द्वारा िार्ाकजक जीवन

र्ें आरू्िाग्र क्रािंकत करने की कोकशश कर रहें हैं। िेककन उन्होिंने भी देख किया है कक पकश्चर्

के कवज्ञान और यिंत्र-कौशल्य के कबना िवोदय अधूरा ही िं रहेगा।

जब अरे्ररका का प्रजाििावाद, रकशया और िीन का िाम्यवाद, दूिरे और देशोिं

का और भारत का िर्ाजििावाद और गािंधीजी का िवोदय दुकनया के िार्ने स्वयिंवर के

किए खडे हैं, एिे अविर पर गािंधीजी की इि युगािंतरकारी छोटी िी ककताब का अध्ययन

जोरोिं िे होना िाकहए। गािंधीजी स्वयिं भी नही िं िाहते थे कक शब्द-प्रर्ाण की दुहाई देकर

हर् उनकी बातें जेिी की वैिी ग्रहण करें ।

कहिंद स्वराज्य की प्रस्तावना र्ें गािंधीजी ने स्वयिं किखा है कक व्यक्तिश: उनका िारा

प्रयत्न कहिंद स्वराज्य र्ें बताये हुए आध्याक्तत्मक स्वराज्य की स्थापना करने के किए ही िं है।

िेककन उन्होिंने भारत र्ें अनेक िाकथयोिं की र्दद िे स्वराज्य का जो आन्दोिन ििाया,

कािंगे्रि के जैिी राजनीकतक राष्टर ीय ििंस्था का र्ागमदशमन ककया, वह उनकी प्रवृकि

पाकिमयारे्न्टरी स्वराज्य के किए ही िं थी।

स्वराज्य के किए अन्याय का, शोषण का और परदेशी िरकार का कवरोध करने र्ें

अकहिंिा का िहारा किया जाय, इतना एक ही िं आग्रह उन्होिंने रखा है। इिकिए भारत की

स्वराज्य-प्रवृकि का अथम उनकी इि वार्नरू्कतम पुस्तक कहिंद स्वराज्य िे न ककया जाय।

गािंधीजी की यह िेतावनी कािंगे्रि के स्वराज्य-आन्दोिन का कवपयामि करने वािोिं

के किए थी। आज जो िोग भारत का स्वराज्य ििा रहें हैं, उनके बिाव र्ें भी यह िूिना

कार् आ िकती िं है। भारत के राष्टर ीय कवकाि का कदन-रात कििंतन करने वािे कििंतक और

नेता भी कह िक़ते हैं कक हर्ारे किर पर कहिंद स्वराज्य के आदशम का बोझा गािंधीजी ने

नही िं रखा था।

िेककन अगर गािंधीजी की बात िही है और भारत का और दुकनया का भिा कहिंद

स्वराज्य र्ें प्रकतकबक्तम्बत िािंसृ्ककतक आदशम िे ही िं होनेवािा है, तो इिके कििंतन का, नव-

ग्रथन का और आिरण का भार ककिी के किर पर तो होना ही िं िाकहए।

र्ैंने एक दफे गािंधीजी िे कहा था कक ‘आपने अपनी स्वराज्यिेवा के प्रारम्भ र्ें कहिंद

स्वराज्य नार्क जो पुस्तक किखी उिर्ें आपके र्ौकिक कविार हैं, तो भी शिंका होती है

कक वे रक्तस्कन, थोरो, एडवडम कारपेन्टर, टेिर, रै्क्स नाडूम आकद िोगोिं के कििंतन िे प्रभाकवत

हैं। इन िोगोिं ने आधुकनक िभ्यता के दोष कदखाये हैं। कवश्व-बिंधुत्व की बुकनयाद पर स्थाकपत

पुरानी िभ्यता का इन िोगोिं ने पुरस्कार ककया, इिकिए आपका कहिंद स्वराज्य पढने िे

यही खयाि होता है कक आप भूतकाि को कफर िे जाग्रत करने के पक्ष र्ें हैं। आपको

बार-बार कहना पडता है कक आप भूतकाि के उपािक नही िं हैं। र्ानव-जाकत ने गित

रासे्त कजतनी प्रगकत की उतना रास्ता पीछे ििकर िचे्च रासे्त पर िगने के बाद आप कफर

नीकतकनि, आत्मकनि रासे्त िे नई ही िं प्रगकत करना िाहते हैं। तो:

“आपका जीवन-कायम करीब करीब िर्ाप्त होने आया है। भारत का स्वराज्य

स्थाकपत होने की तैयारी है। एिे िर्य पर आप कफर िे अपने जीवनभर के अनुभव और

कििंतन की बुकनयाद पर एिी एक नयी ही िं ककताब क्ोिं नही िं किखते, कजिर्ें भकवष्य की एक

हजार िाि की र्हार्ानव ििंसृ्ककत का बीज दुकनया को कर्िे?” वे अपने कायम र्ें इतने

व्यस्त थे और कबगडता हुआ र्ार्िा िुधारने की प्राणपण िे िेष्टा करने के किए इतने

कििंकतत थे कक रे्री िूिना या प्राथमना िुनने की भी उनकी तैयारी नही िं थी।

अब जब गािंधीजी का दुकनयावी जीवन पूरा हो िुका है और उनके िेखोिं का, भाषणोिं

का, पत्रोिं का और रु्िाकातोिं का अशेष ििंग्रह तैयार हो रहा है, तब आदशम-ििंसृ्ककत के बारे

र्ें और उिे स्थाकपत करने के बारे र्ें गािंधीजी के कविार इकट्ठा कर के एिा एक प्रभावशािी

कित्र ककिी अकधकारी व्यक्ति को तैयार करना िाकहए, कजिे हर् कहिंद स्वराज्य की पररणत

आवृकि नही िं कहेंगे; उिे तो स्वराज्य-भोगी भारत का कवश्वकायम या एिा ही िं कुछ कहना

होगा।

जो हो, एिी एक ककताब की बहुत ही िं जरूरत है।

इिके र्ानी यह नही िं कक वह ककताब इि कहिंद स्वराज्य का स्थान िे िकेगी। इि

अर्र ककताब का स्थान तो भारतीय जीवन र्ें हरे्शा के किए रहेगा ही िं।

१ अगस्त, १९५९ काका कालेलकर

[रू्ि कहिंदी]

[पहिा कहिंदी ििंस्करण, नवजीवन, अहर्दाबाद, १९५९]

आज िे करीब १०६ िाि पहिे, िन १९०९ र्ें, दकक्षण अकिका के टर ान्सवाि प्रान्त र्ें

बिनेवािे कहन्दुस्तानी िोगोिं की िर्स्याओिं के बारे र्ें अिंगे्रज िरकार के िाथ र्शवरा करने

के किए दो िदस्योिं का प्रकतकनकधर्िंडि िन्दन गया था। उन दो िदस्योिं र्ें िे एक गािंधीजी

थे। िन्दन र्ें िार र्कहनोिं तक रुकने के बाद ककिडोनन कॅिि नार्क जि-जहाज़ र्ें वे

वापि िौटते थे। दि कदन के उि िफर के दरकर्यान गािंधीजी की किर् िे जो झरा वह

उनके जीवन की प्रस्तावना बराबर था। शायद ही ३७ िाि की उम्र के गािंधीजी अभी

कहन्दुस्तान के ककनारे छः िाि बाद उतरने वािे थे। इिके पहिे उन्होिंने अपने आगे के

जीवन का और स्वतिंत्र कहन्दुस्तान के राष्टर जीवन का र्ानो पथ-नकशा उि छोटी िी पुस्तक

र्ें रेखािंककत ककया। दकक्षण अकिका पहुाँिने के बाद रक्तस्कन की पुस्तक अनु्ट कधि िाट

गािंधीजी के जीवन र्ें र्ागम-पररवतमक बनी थी; तो, र्ानो उिी पुस्तक के कवककित स्वरूप

र्ें कहन्द स्वराज पुस्तक आई।

यह ग्रिंथ अनेक कारणोिं िे कवकशष्ट है। गािंधीजी की किर् िे, गािंधीजी के हस्ताक्षरोिं

र्ें, र्ातृभाषा गुजराती र्ें , किखा गया हो और उनके हस्ताक्षरोिं र्ें ही छपा हो, ऐिा यह एक

र्ात्र ग्रिंथ है। इिके अिावा िबिे र्हत्त्वपूणम बात यह है कक गािंधी कविारधारा को िर्झने

के किए यह ग्रिंथ िाबी-रूप है और आज िौ वषम बाद भी यह कवद्यर्ान है।

top related