पत्रकारिता शेशव से भविष्य तक
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पतरकारिता : शशव स भववषय तक ,
कस कस हालात हो गय ..
जब आज दश क हर कोन स पतरकाररता ( यानी मीडिया ) को कोसा जा रहा ह , तमाम तरह क आरोप लग रह ह , जजवहा पर सतय आन स पहल बीससयो बार रक
रहा ह, कही कोई गाली द रहा ह तो कोई धमकी , तब एस कालखि म उददशो को लकर च तन सवाभाववक ह | सवरप का च तन , मौसलकता क खतर भयभीत नही करत अवपत उ ाई पर जान की इचछा को और बल परदान करत ह ...
" एक समय आएगा, जब हह िदी पतर िोटिी पि छपग, सिपादको को ऊि ची तनखवाह ममलगी, सब कछ होगा ककनत उनकी आतमा मि जाएगी, समपादक, समपादक न
होकि मामलक का नौकि होगा। "
सवततरता आदोलन क दौरान अपनी कलम की ताकत स दश और दननया क सामन पतरकाररता का लोहा मनवान वाल बाबराव ववषण पराडकर जी न यह बात कही थी। उस समय उनहोन शायद पतरकाररता क भववषय को भाप सलया था।
इनतहास क पननो म ससमटी य छोटी सी बात वततमान क हालत पर सीधा कटाकष ही नही करती वरन भतकाल क गभत म भववषय क अधयाय भी बन आई ह | पतरकाररता की शरआत जहा समशन स हई थी जो आजादी क बाद धीर-धीर परोफशन बन गई | इककीसवी सदी की शरआत और स ना कानत क ववसफोट क साथ-साथ पतरकाररता का ववकास क साथ साथ मलयो क हास का दौर भी शर हो गया ह। लगभग
92674 पजीकत अखबारो और 600 स अचधक समा ार नलो क साथ दश क मीडिया न पर ववशव म अपनी एक जगह तो बनाई ह , ककत वविबना ह की यह तरककी पाठक को खो कर और गराहक क साथ परापत हई ह , आधननक जीवन की बढती वयसतताओ और बदलती भाषा शली क मददनजर पतरकाररता न अपना कलवर भी बदला ह। अब पतरकाररता 24×7 यानी ौबीस घट, सातो ददन सजग तो रहती ह, ीजो को लाइव यानी साकषात ददखान की कोसशश करती तो ह, जसटग यानी परद क
पीछ झाकन की षटा भी करती ह और सथानीय मददो स जडन का परयतन भी करती ह ककत कफर भी मलयानगत पतन क दौर को आमतरतरत भी कर ही रही ह | ननजश त ही आज दश म मीडिया का वयापक परसार हआ ह, परत दसरी ओर उसका ननतक और ाररतरतरक पतन भी हआ ह। पतरकाररता म बाजार, ववजञापन, पस व
सनसनी की महतता भी बढी ह और मानवीयता, ननषपकषता व खबरीपन म चगरावट आई ह। इसका पररणाम यह हआ ह कक समा ारो म भी कवल सनसनी और टपटपन को ही परमखता समल रही ह। समाज क उच वगत कीअययासशयो को खबर बनान क सलए एक पज थरी नामक आयाम ववकससत हो गया ह।
आखिि यह दौि कय आया ?
पतरकाररता क मापदिो की पन: ववव ना ना हो पान की दशा म आज मीडिया कलककत हो रहा ह धयान रह कक भल ही आधननक पतरकाररता का जनम और ववकास यरोप म हआ ह, भारत म इसका एक सवततर सवरप ववकससत हआ। यह सवरप पजश म क सवरप
स न कवल सभनन था, बजलक कई मायनो म उसस काफी बहतर भी था। भारत म पतरकाररता अमीरो क मनोरजन क साधन क रप म ववकससत होन की बजाय
सवततरता सगराम क एक साधन क रप म ववकससत हई थी। इससलए जब 1920 क दशक म यरोप म पतरकाररता की सामाजजक भसमका पर बहस शर हो रही थी, भारत
म पतरकाररता न इसम परौढता परापत कर ली थी। 1827 म राजा राममोहन राय न पतरकाररता क उददशय को सपषट करत हए सलखा था, " मरा ससफत यही उददशय ह कक
म जनता क सामन ऐस बौजधदक ननबध उपजसथत कर, जो उनक अनभवो को बढाए और सामाजजक परगनत म सहायक ससधद हो। म अपन शजकतशाली शासको को उनकी परजा की पररजसथनतयो का सही परर य दना ाहता ह ताकक शासक जनता को अचधक स अचधक सववधा दन का अवसर पा सक और जनता उन उपायो स
पररच त हो सक जजनक दवारा शासको स सरकषा पायी जा सक और उच त माग परी कराई जा सक ।” आखखर इतन उननत उददशयो क साथ शर हई यह जग आज अपन बौनपन पर कय आ की ह |दहनदी पतरकाररता आज हासशए पर आ रही ह |
भाषाई पतरकारिता की परमख चनौततया : सवाधीनता क बाद पररजसथनतया बदली , सवाधीनता समलन क बाद स ही पतरकाररता क इस भारतीय सवरप क सामन नौनतया भी बढन लगी थी। 15 अगसत,
1947 को ‘जनता’ (समा ार) न सलखा था, ”भारत म पतरकाररता क समकष तीन परकार की कदठनाइया ह। पहली समसया ववतत की ह। दसरी नौती ह, सवततर समा ार पतरो क पजीवाददयो स सबध, जो समा ार पतरो को लाभ कमान क साधन क रप म ववकससत करन और इसक दवारा परनतककयावादी आचथतक ससधदातो को सथावपत
करन की कोसशश कर रह ह। परबध सपादको दवारा पजजवाददयो क दहतो क ववरदध ककसी भी वव ार को परकाशन स रोका जा रहा ह। तीसरी समसया ह, वयावसानयक
पतरकार, जो अपन कररयर की आवशयकता को परा करन क सलए पतरकाररता क ससधदातवादी व समशनरी भसमका को दबा दत ह।” वासतव म यह तीसरी समसया ही सबस बडी समसया ह। वयावसानयक पतरकार और पतर-पतरतरकाए, दोनो की जो शखला ववकससत हई ह, उस पतरकाररता क ससधदातो और उददशयो स कोई लना दना नही ह। टलीववजन नलो की तो बात ही करना वयथत ह। उनका तो जनम ही यरोप की नकल स हआ ह। उनस ककसी भी परकार की भारतीयता की अपकषा करना ऐसा ही ह जस कोई बबल का वकष बोए और आम क फलन की आशा कर। आज यदद महातमा गाधी या राजा राममोहन राय या ववषण हरर परािकर या माखनलाल तवदी जीववत होत तो कया व सवय को पतरकार कहलान की दहममत करत? कया उन जस पतरकारो की ववरासत को आज क पतरकार ठीक स समरण भी कर पा रह ह? कया आज क पतरकारो म उनकी उस समधद ववरासत को सभालन की कषमता ह? य परशन ऐस ह, जजनक उततर आज की भारतीय पतरकाररता को तलाशन की जररत ह, अनयथा न तो वह पतरकाररता ही रह जाएगी और न ही उसम भारतीय कहलान लायक कछ होगा।
पतरकारिता औि ससिमशप
वषत 1947 स लकर वषत 1975 तक पतरकाररता जगत म ववकासातमक पतरकाररता का दौर रहा। नए उदयोगो क खलन और तकनीकी ववकास क कारण उस समय
समा ार पतरो और पतरतरकाओ म भारत क ववकास की खबर परमखता स छपती भी थी| समा ार-पतरो म धीर-धीर ववजञापनो की सखया बढ रही थी व इस रोजगार का साधन माना जान लगा था।
वषत 1975 पतरकाररता क दखद कालखि क रप म उभर कर सामन आया ,एक बार कफर असभवयजकत की सवततरता पर काल बादल छा गए, जब ततकालीन परधानमतरी इददरा गाधी न आपातकाल की घोषणा कर मीडिया पर ससरसशप लाग दी। सरकार क ववपकषी पादटतयो की ओर स भरषटा ार, कमजोर आचथतक नीनत को लकर उनक
खखलाफ उठ रह सवालो क कारण इददरा गाधी न परस स असभवयजकत की सवततरता छीन ली। लगभग 19 महीनो तक ल आपातकाल क दौरान भारतीय मीडिया को हर तरह स कमजोर ककया गया| उस समय दो समा ार पतरो द इडियन एकसपरस और द सटटसमन न उनक खखलाफ आवाज उठान की कोसशश की तो उनकी भी शासकीय ववततीय सहायता रोक दी गई। इददरा गाधी न भारतीय मीडिया की कमजोर नस को अचछ स पह ान सलया था। उनहोन मीडिया को अपन पकष म करन क
सलए उनको दी जान वाली ववततीय सहायता म इजाफा कर ददया और परस ससरसशप लाग कर दी। उस समय कछ पतरकार सरकार की ाटकाररता म सवय क मागत स
भटक गए और कछ ाहकर भी सरकार क ववरदध सवततर रप स अपन वव ारो को नही परकट कर सक । कछ पतरकार ऐस भी थ जो सतय क मागत पर अडिग रह। आपातकाल क दौरान समा ार पतरो म सरकारी परस ववजञजपतया ही जयादा नजर आती थी। यही वो दौर था जब स खबरो को ववजञापन क वजन स तोला जान लगा कफर कछ समपादको न ससरसशप क ववरोध म समपादकीय खाली छोड ददया।अखबार का सपादकीय पषट काला कर ददया , ककत इददरा गााधी की हटधासमतता क कारण
पतरकाररता अपन योवनकाल म ही मलयो स भटक गई | यौवन अवसथा ही मनषय की भटकाव की जिममदार होती ह | पतरकाररता का भी वही हशर हआ |
लालकषण आिवाणी न अपनी एक पसतक म कहा ह-
“उनहोन हम झकन क मलए कहा औि हमन िगना शर कि हदया।”
1977 म जब नाव हए तो मोरारजी दसाई की सरकार आई और उनहोन परस पर लगी ससरसशप को हटा ददया। इसक बाद समा ार पतरो न आपातकाल क दौरान
नछपाई गई बातो को छापा। पतरकाररता दवारा आजादी क दौरान ककया गया सघषत बहत पीछ छट का था और पतरकाररता अब पश म तबदील हो की थी।भारत म एक और ऐसी घटना घटी जजसन पतरकाररता क सवरप को एक बार कफर बदल ददया। वषत 1991 की उदारीकरण की नीनत और वशवीकरण क कारण पतरकाररता पर बहत बडा परभाव पडा और पतरकाररता म धीर-धीर वयावसानयककरण का दौर आन लगा।
यही दौर ह जजसन कलम की ताकत को नौती द दी , कहत ह ना वकत स बडा कछ भी नही होता , वकत की मार कह या ससयासत की हठ !! आखखर ननयनत को यही मजर था, यही सलखा था कलमववरो क भागय म , जजस कलम को तलवार भी जयादा ताकतवर माना जाता था उसी की मजबत ननब को तोडा जान लगा | ससयासत भी पहल स कही जयादा बदल गई थी , ववशवास और मानवीय मलयो की बसल द कर लोग यहा सपनो क महल बनन लग गय थ ,
इसी दौर म रोशनी की ककरण भी आई , जजनहोन अपनी कलम को ससयासत क नापाक मसबो क आग झकन नही ददया | उममीद बनी , कछ बहतर सलखा जान लगा , ककत आज क इस दौर म बहतर और स सलखा भी गया तो वो बहर हो गय जजनको स सनना था |
खबिो पि बाजािवाद का असि
इन सब क अलावा सबस मल नौती आधननकता स रग म पतरकाररता का मल सवरप ह | खबरो पर बािारवाद हावी होता जा रहा ह , जहा एक और ननसवाथत सवा पतरकाररता का मल उददशय था आज वह मलय नदारद ह |आखखर अब पतरकाररता "समशन"
नही बजलक "परोफशन" बनता जा रहा ह | और जब परोफशन बन ही रहा ह तो उसम कही ना कही ववतत की ववकराल समसया और ववजञापनवाद का हावी होना भी कही ना कही पतरकाररता क ननतक पतन म
शासमल ह | खबरो स जयादा ववजञापन लाना और उनह परकासशत करना आज मजबरी बन की ह , कयकी अखबार का दम रददी की कीमत स बस तोडा ही तो जयादा ह , जबकक
लागत मलय स कोसो दर | अखबार की लागत मलय १५ रपय २५ रपय क बी होती ह और वह तरबकता ह महज २रपय या ४ रपय म |
ब ा हआ लागत मलय ननकालन का जजममा ववजञापन ववभाग पर आ जाता ह जजस कारण स कई खबर रोशनी म आन स रह जाती ह | कयकी ववजञापन ववभाग की भी अपनी मजबरी हो जाती ह खबरो म हसतकषप करना | जबकक होना तो यह ादहए की ववजञापन ववभाग , कभी सपादकीय ककष म कोई हसतकषप ही ना कर , ककत य तब तक नही हो सकता जब तक अखबार का दम उसकी लागत मलय तक ना पह , ताकक ववतत की कोई समसया ही नही हो | तब तो सच ा दसतावि कफर बन जाएगा अखबार , और नयज नल भी 250 नल २०० रपय म ना ददखाए जाए |
आखखर पतरकाररता क वासतववक मलयो की बसल दकर कोई कस कानत की अपकषा कर सकता ह | टकसाल और सवा म
रासत बहत अलग होत ह , जो रासता टकसाल की तरफ जाता ह उसका कही भी ककसी भी समय सवा म मागत स समलन असभव ह | वही अतर ह परान समय की पतरकाररता और आधननकता का सलबास पहनी हई पतरकाररता म |
परान जमान की पतरकाररता निररया दती थी, कानत का माददा रखती थी, कलम की ताकत स ससयासत को भी दहला कर रख दती थी , ककत वततमान समय की पतरकाररता म उपरोकत कोई गण निर कम आता ह | आखखर च तन का पररणाम सभी पतरकारो को समलकर ही ननकलना पडगा की आखखर कस भटक हई कलम को कफर स गौरवाजनवत कषण द जजसस वह पन: ननदोष बन
जाए |
आखखर हमारा कततवय बनता ह की घर म लग मकडी क जाल स हम ही घर को साफ कर |अनयथा पररणाम बहत ही ववनाशकारी होगा, शायद पतरकाररता का अजसततव
ही खतर म आ जाए |
ककसी कवव न ठीक ही सलखा ह ;
"तमन कलम उठाई ह तो वततमान सलखना , हो सक तो राषर का कीनत तमान सलखना . ापलस तो सलख क ह ालीस बहत ,
हो सक तम हरदय का तापमान सलखना .. महलो म चगरवी ह गररमा जो गााव की , सहमी सी सडको पर तम सवासभमान सलखना."
आपका साथी, अपतण जन "अवव ल"
परधान सपादक- खबर हल ल नयज
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