भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 · वचन अिभव्...

41
भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का अिधिनयम संयांक 9) 1 [25 अैल, 1872] उेिशका––संिवदाᲐ से संबंिधत िविध के कितपय भागᲂ को पिरभािषत और संशोिधत करना समीचीन है ; अत: तद् ᳇ारा यह िननिलिखत प मᱶ अिधिनयिमत िकया जाता है :–– ारिभक 1. संित नाम––यह अिधिनयम भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 कहा जा सकेगा । िवतार, ारंभ–– इसका िवतार 2 [जमू-कमीर राय के िसवाय] संपूण भारत पर है; और यह 1872 के िसतबर के थम िदन को वृᱫ होगा । यावृिᱫ–– 3 * * * इसमᱶ अंतिवट कोई भी बात, तद्᳇ारा अिभयत प से िनरिसत न िकए गए िकसी टेᲷूट, अिधिनयम या िविनयम के उपबंधᲂ पर, यापार की िकसी था या िढ़ पर, अथवा िकसी संिवदा की िकसी संगित पर, जो इस अिधिनयम के उपबंधᲂ से असंगत न हो, भाव न डालेगी । 2. िनवचन खंड––इस अिधिनयम मᱶ, िननिलिखत शदᲂ और पदᲂ का िननिलिखत भावᲂ मᱶ योग िकया गया है, जब तक िक संदभ से ितकूल आशय तीत न हो–– () जब िक एक यित, िकसी बात को करने या करने से िवरत रहने की अपनी रजामदी िकसी अय को इस दृिट से संािपत करता है िक ऐसे काय या िवरित के ित उस अय की अनुमित अिभात करे तब वह थापना करता है, यह कहा जाता है; () जब िक वह यित, िजससे थापना की जाती है उसके ित अपनी अनुमित संािपत करता है तब वह थापना ितगृहीत ई कही जाती है । थापना ितगृहीत हो जाने पर वचन हो जाती है; () थापना करने वाला यित, वचनदाताकहलाता है और थापना ितगृहीत करने वाला यित वचनगृहीताकहलाता है; () जब िक वचनदाता की वांछा पर वचनगृहीता या कोई अय यित कुछ कर चुका है या करने से िवरत रहा है, या करता है या करने से िवरत रहता है, या करने का या करने से िवरत रहने का वचन देता है, तब ऐसा काय या िवरित या वचन उस वचन के िलए ितफल कहलाता है; () हर एक वचन और ऐसे वचनᲂ का हर एक संवग, जो एक दूसरे के िलए ितफल हो, करार है; 1 िवधेयक के उेयᲂ और कारणᲂ के कथन के िलए, जो भारत के िलए मुय िविधयां तैयार करने के िलए तारीख 6 जुलाई, 1866 को िनयुत हर मजेटी के किमनर किरपोट पर आधािरत है, दे िखए भारत का राजप (अंेजी), 1867, असाधारण, पृ० 34; वर सिमित की िरपोट के िलए, भारत का राजप (अंेजी), असाधारण, तारीख 28 माच, 1872, पिरषद् मᱶ ई चचा के िलए देिखए, भारत का राजप (अंेजी), 1867 अनुपूरक, पृ० 1064; भारत का राजप (अंेजी), 1871, पृ० 313 के भारत का राजप (अंेजी), 1872, पृ० 527 यह अिधिनयम, 1915 के मय ांत अिधिनयम 1 ᳇ारा मय ांत मᱶ और 1938 के मय ांत और बरार अिधिनयम 15 ᳇ारा मय ांत और बरार मᱶ संशोिधत िकया गया । संपिᱫ अंतरण अिधिनयम, 1882 (1882 का 4) के वे अयाय और धाराएं जो संिवदाᲐ से संबंिधत हᱹ ऐसे थानᲂ मᱶ जहां यह अिधिनयम वृᱫ है इस अिधिनयम के भाग माने जाएंगे । देिखए 1882 का अिधिनयम सं० 4 की धारा 4 इस अिधिनयम का िवतार, बरार िविध अिधिनयम, 1941 (1941 का 4) ᳇ारा बरार पर, 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा 2 तथा अनुसूची 1 ᳇ारा दादरा और नागर हवेली पर; 1963 के िविनयम सं० 11 की धारा 3 तथा अनुसूची ᳇ारा गोवा, दमण और दीव पर, 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 तथा अनुसूची ᳇ारा ल᳇ीप िमिनकोय और अमीनदीवी ᳇ीप समूह पर; 1968 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 तथा अनुसूची ᳇ारा पािडचेरी पर िकया गया है तथा िननिलिखत थानᲂ पर वृᱫ होने के िलए घोिषत िकया गया–– संथाल परगाना––देिखए संथाल परगना यवथापन िविनयम, 1872 (1872 का 3) की धारा 3 िजसका संशोधन संथाल परगना याय और िविध िविनयम, 1899 (1899 का 3) की धारा 3 ᳇ारा िकया गया । पंथ िपपलोदा––देिखए पंथ िपपलोदा िविध िविनयम, 1929 (1929 का 1) की धारा 2 अनुसूिचत िजला अिधिनयम, 1874 (1874 का 14) की धारा 3() के अधीन जारी अिधसूचना ᳇ारा आगरा ांत तराई मᱶ इसे वृᱫ होने के िलए घोिषत िकया गया देिखए भारत का राजप (अंेजी), 1876, भाग 1, पृ० 505; हजारी बाग िजले मᱶ लोहारडागा और मानभूम, और परगना डालभूम तथा िसघभूम िजले मᱶ कोलहान––देिखए भारत का राजप (अंेजी), 1881 भाग 1 का पृ० 504 । लोहारडागा िजला मᱶ इस समय वतमान पलामू िजला सिमिलत है िजसे 1874 मᱶ पृथक् िकया गया था । अब लोहारडागा िजले को रांची िजला कहा जाता है ––देिखए कलकᱫा राजप, 1899 भाग 1, पृ० 44 2 1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 तथा अनुसूची ᳇ारा भाग ख रायᲂ के िसवायशदᲂ के थान पर ितथािपत । 3 1914 के अिधिनयम सं०10 की धारा 3 तथा अनुसूची 2 ᳇ारा अनुसूची मᱶ उपविणत अिधिनयिमितयां इसके ᳇ारा जो अनुसूची के तीसरे तंभ मᱶ िविनिदट िवतार तक िनरिसत हᲂगी, िकतु शदᲂ का िनरसन िकया गया ।

Upload: others

Post on 25-Jul-2020

18 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का अिधिनयम सखं् याकं 9)1

    [25 अपर्लै, 1872]

    उ ेिशका––संिवदा से संबंिधत िविध के कितपय भाग को पिरभािषत और संशोिधत करना समीचीन ह;ै अत: तद ् ारा यह िनम् निलिखत रूप म अिधिनयिमत िकया जाता ह ै:––

    पर्ारिम् भक 1. सिंक्षप् त नाम––यह अिधिनयम भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 कहा जा सकेगा ।

    िवस् तार, पर्ारंभ–– इसका िवस् तार 2[जम् म-ूकश् मीर राज् य के िसवाय] संपूणर् भारत पर ह;ै और यह 1872 के िसतम् बर के पर्थम िदन को पर्वृ होगा ।

    व् याविृ ––3* * * इसम अंतिवष् ट कोई भी बात, तद ् ारा अिभव् यक् त रूप से िनरिसत न िकए गए िकसी स् टे ूट, अिधिनयम या िविनयम के उपबंध पर, व् यापार की िकसी पर्था या रूिढ़ पर, अथवा िकसी संिवदा की िकसी पर्संगित पर, जो इस अिधिनयम के उपबंध से असगंत न हो, पर्भाव न डालेगी ।

    2. िनवर्चन खडं––इस अिधिनयम म, िनम् निलिखत शब् द और पद का िनम् निलिखत भाव म पर्योग िकया गया ह,ै जब तक िक संदभर् से पर्ितकूल आशय पर्तीत न हो––

    (क) जब िक एक व् यिक् त, िकसी बात को करने या करने से पर्िवरत रहने की अपनी रजामन् दी िकसी अन् य को इस दिृष् ट से संज्ञािपत करता ह ैिक ऐसे कायर् या पर्िवरित के पर्ित उस अन् य की अनुमित अिभपर्ाप् त करे तब वह पर्स् थापना करता ह,ै यह कहा जाता ह;ै

    (ख) जब िक वह व् यिक् त, िजसस ेपर्स् थापना की जाती ह ैउसके पर्ित अपनी अनमुित सजं्ञािपत करता ह ैतब वह पर्स् थापना पर्ितगृहीत हुई कही जाती ह ै। पर्स् थापना पर्ितगृहीत हो जाने पर वचन हो जाती ह;ै

    (ग) पर्स् थापना करने वाला व् यिक् त, “वचनदाता” कहलाता ह ै और पर्स् थापना पर्ितगृहीत करन े वाला व् यिक् त “वचनगृहीता” कहलाता ह;ै

    (घ) जब िक वचनदाता की वांछा पर वचनगृहीता या कोई अन् य व् यिक् त कुछ कर चुका ह ैया करने से िवरत रहा ह,ै या करता ह ैया करने से पर्िवरत रहता ह,ै या करने का या करने से पर्िवरत रहने का वचन दतेा ह,ै तब ऐसा कायर् या पर्िवरित या वचन उस वचन के िलए पर्ितफल कहलाता ह;ै

    (ङ) हर एक वचन और ऐसे वचन का हर एक संवगर्, जो एक दसूरे के िलए पर्ितफल हो, करार ह;ै

    1 िवधेयक के उ ेश् य और कारण के कथन के िलए, जो भारत के िलए मुख् य िविधयां तैयार करने के िलए तारीख 6 जुलाई, 1866 को िनयुक् त हर मजेस् टी के किमश् नर की िरपोटर् पर आधािरत ह,ै दिेखए भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1867, असाधारण, पृ० 34; पर्वर सिमित की िरपोटर् के िलए, भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), असाधारण, तारीख 28 माचर्, 1872, पिरषद ्म हुई चचार् के िलए देिखए, भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1867 अनुपूरक, पृ० 1064; भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1871, पृ० 313 के भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1872, पृ० 527 ।

    यह अिधिनयम, 1915 के मध् य पर्ांत अिधिनयम 1 ारा मध् य पर्ांत म और 1938 के मध् य पर्ांत और बरार अिधिनयम 15 ारा मध् य पर्ांत और बरार म संशोिधत िकया गया ।

    संपि अंतरण अिधिनयम, 1882 (1882 का 4) के वे अध् याय और धाराएं जो संिवदा से संबंिधत ह ऐसे स् थान म जहां यह अिधिनयम पर्वृ ह ैइस अिधिनयम के भाग माने जाएंगे । दिेखए 1882 का अिधिनयम सं० 4 की धारा 4 ।

    इस अिधिनयम का िवस् तार, बरार िविध अिधिनयम, 1941 (1941 का 4) ारा बरार पर, 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा 2 तथा अनुसूची 1 ारा दादरा और नागर हवेली पर; 1963 के िविनयम सं० 11 की धारा 3 तथा अनुसूची ारा गोवा, दमण और दीव पर, 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 तथा अनुसूची ारा लक्ष ीप िमिनकोय और अमीनदीवी ीप समूह पर; 1968 के अिधिनयम सं० 2 की धारा 3 तथा अनुसूची ारा पािण् डचेरी पर िकया गया ह ैतथा िनम् निलिखत स् थान पर पर्वृ होने के िलए घोिषत िकया गया––

    सथंाल परगाना––दिेखए संथाल परगना व् यवस् थापन िविनयम, 1872 (1872 का 3) की धारा 3 िजसका संशोधन संथाल परगना न् याय और िविध िविनयम, 1899 (1899 का 3) की धारा 3 ारा िकया गया ।

    पथं िपपलोदा––दिेखए पंथ िपपलोदा िविध िविनयम, 1929 (1929 का 1) की धारा 2 । अनुसूिचत िजला अिधिनयम, 1874 (1874 का 14) की धारा 3(क) के अधीन जारी अिधसूचना ारा आगरा पर्ांत तराई म इसे पर्वृ होने के िलए घोिषत

    िकया गया दिेखए भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1876, भाग 1, पृ० 505; हजारी बाग िजले म लोहारडागा और मानभूम, और परगना डालभूम तथा िसघभूम िजले म कोलहान––दिेखए भारत का राजपतर् (अंगर्ेजी), 1881 भाग 1

    का पृ० 504 । लोहारडागा िजला म इस समय वतर्मान पलामू िजला सिम् मिलत ह ैिजसे 1874 म पृथक् िकया गया था । अब लोहारडागा िजले को रांची िजला कहा जाता ह–ै–दिेखए कलक ा राजपतर्, 1899 भाग 1, पृ० 44 । 2 1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 तथा अनुसूची ारा “भाग ख राज् य के िसवाय” शब् द के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 3 1914 के अिधिनयम सं०10 की धारा 3 तथा अनुसूची 2 ारा “अनुसूची म उपविणत अिधिनयिमितयां इसके ारा जो अनुसूची के तीसरे स् तंभ म िविनिदष् ट िवस् तार तक िनरिसत ह गी, िकन् तु” शब् द का िनरसन िकया गया ।

  • 2

    (च) वे वचन जो एक दसूरे के िलए पर्ितफल या पर्ितफल का भाग ह , व् यितकारी वचन कहलाते ह;

    (छ) वह करार जो िविधत: पर्वतर्नीय न हो, शून् य कहलाता ह;ै

    (ज) वह करार, जो िविधत: पर्वतर्नीय हो, संिवदा ह;ै

    (झ) वह करार, जो उसके पक्षकार म से एक या अिधक के िवकल् प पर तो िविध ारा पर्वतर्नीय हो, िकतु अन् य पक्षकार या पक्षकार के िवकल् प पर नह , शून् यकरणीय संिवदा ह;ै

    (ञ) जो संिवदा िविधत: पर्वतर्नीय नह रह जाती वह तब शून् य हो जाती ह ैजब वह पर्वतर्नीय नह रह जाती ।

    अध् याय 1

    पर्स् थापना की ससंचूना, पर्ितगर्हण और पर्ितसंहरण के िवषय म 3. पर्स् थापना की ससंचूना, पर्ितगर्हण और पर्ितसहंरण––पर्स् थापना की संसूचना, पर्स् थापना का पर्ितगर्हण और

    पर्स् थापना तथा पर्ितगर्हण का पर्ितसंहरण कर्मश: पर्स् थापना करने वाले, पर्ितगर्हण करने वाले या पर्ितसंहरण करने वाल ेपक्षकार के िकसी ऐसे कायर् या लोप से हुआ समझा जाता ह,ै िजसके ारा वह ऐसी पर्स् थापना, पर्ितगर्हण या पर्ितसंहरण को संसूिचत करने का आशय रखता हो, या जो उसे संसूिचत करने का पर्यास रखता हो ।

    4. ससंचूना कब सपंणूर् हो जाती ह–ै–पर्स् थापना की संसूचना तब सपूंणर् हो जाती ह ैजब पर्स् थापना उस व् यिक् त के ज्ञान म आ जाती ह ैिजसे वह की गई ह ै।

    पर्ितगर्हण की संसूचना––

    पर्स् थापक के िवरु तब संपूणर् हो जाती ह ैजब वह उसके पर्ित इस पर्कार पारेषण के अनुकर्म म कर दी जाती ह ैिक वह पर्ितगृहीता की शिक् त के बाहर हो जाए;

    पर्ितगृहीता के िवरु तब संपूणर् हो जाती ह ैजब वह पर्स् थापक के ज्ञान म आती ह ै।

    पर्ितसंहरण की संसूचना––

    उसे करने वाले व् यिक् त के िवरु तब संपूणर् हो जाती ह,ै जब वह उस व् यिक् त के पर्ित, िजससे पर्ितसंहरण िकया गया हो, इस पर्कार पारेषण के अनुकर्म म कर दी जाती ह ैिक वह उस व् यिक् त की शिक् त के बाहर हो जाए, जो उसे करता ह ै।

    उस व् यिक् त के िवरु , िजससे पर्ितसंहरण िकया गया ह,ै तब संपूणर् हो जाती ह,ै जब वह उसके ज्ञान म आती ह ै।

    दषृ् टातं

    (क) अमुक कीमत पर ख को गृह बेचने की पतर् ारा पर्स् थापना करता ह ै।

    पर्स् थापना की संसूचना तब संपूणर् हो जाती ह ैजब ख को पतर् पर्ाप् त होता ह ै।

    (ख) क की पर्स् थापना का ख डाक से भेजे गए पतर् को पर्ितगर्हण करता ह ै।

    पर्स् थापना की संसूचना तब संपूणर् हो जाती ह ैजब ख से पतर् पर्ाप् त होता ह ै।

    पर्ितगर्हण की संसूचना––

    क के िवरु तब संपूणर् हो जाती ह ैजब पतर् डाक म डाल िदया जाता ह;ै

    ख के िवरु तब संपूणर् हो जाती ह ैजब क को पतर् पर्ाप् त होता ह ै।

    (ग) क अपनी पर्स् थापना का पर्ितसंहरण तार ारा करता ह ै।

    क के िवरु पर्ितसंहरण तब संपूणर् हो जाता ह ैजब तार पेर्िषत िकया जाता ह ै। ख के िवरु पर्ितसंहरण तब संपूणर् हो जाता ह ैजब ख को तार पर्ाप् त होता ह ै।

    ख अपने पर्ितगर्हण का पर्ितसंहरण तार ारा करता ह ै। ख का पर्ितसंहरण ख के िवरु तब संपूणर् हो जाता ह ैजब तार पेर्िषत िकया जाता ह ैऔर क के िवरु तब, जब तार उसके पास पहुचंता ह ै।

    5. पर्स् थापना और पर्ितगर्हण का पर्ितसहंरण––कोई भी पर्स् थापना उसके पर्ितगर्हण की संसूचना पर्स् थापक के िवरु संपूणर् हो जाने से पूवर् िकसी भी समय पर्ितसंहृत की जा सकेगी, िकन् तु उसके पश् चात् नह ।

    कोई भी पर्ितगर्हण उस पर्ितगर्हण की संसूचना, पर्ितगृहीता के िवरु संपूणर् हो जान ेसे पूवर् िकसी भी समय पर्ितसहंृत िकया जा सकेगा, िकन् तु उसके पश् चात् नह ।

  • 3

    दषृ् टातं

    क अपना गृह ख को बेचने की पर्स् थापना डाक से भेजे गए एक पतर् ारा करता ह ै।

    ख पर्स् थापना को डाक से भेजे गए पतर् ारा पर्ितगृहीत करता ह ै।

    क अपनी पर्स् थापना को ख ारा अपने पर्ितगर्हण का पतर् डाक म डाले जाने से पूवर् िकसी भी समय या डाले जाने के क्षण पर्ितसंहृत कर सकेगा, िकन् तु उसके पश् चात् नह ।

    ख अपने पर्ितगर्हण को, उसे संसूिचत करने वाला पतर् क को पहुचंने के पूवर् िकसी भी समय या पहुचंने के क्षण पर्ितसंहृत कर सकेगा, िकन्तु उसके पश् चात् नह ।

    6. पर्ितसहंरण कैस ेिकया जाता ह–ै–पर्स् थापना का पर्ितसंहरण हो जाता ह–ै–

    (1) पर्स् थापक ारा दसूरे पक्षकार को पर्ितसंहरण की सूचना के संसूिचत िकए जाने स;े

    (2) ऐसी पर्स् थापना म उसके पर्ितगर्हण के िलए िविहत समय के बीत जाने से या यिद कोई समय इस पर्कार िविहत न हो तो पर्ितगर्हण की संसूचना के िबना युिक् तयुक् त समय बीत जाने से;

    (3) पर्ितगर्हण िकसी पुरोभाव् य शतर् को पूरा करने म पर्ितगृहीता की असफलता से; अथवा

    (4) पर्स् थापक की मृत् यु या उन् म ता से, यिद उसकी मृत् यु या उन् म ता का तथ् य पर्ितगृहीता के ज्ञान म पर्ितगर्हण से पूवर् आ जाए ।

    7. पर्ितगर्हण आत् यिन् तक होना ही चािहए––पर्स् थापना को वचन म संपिरवितत करन ेके िलए पर्ितगर्हण––

    (1) आत् यिन् तक और अिवशेिषत होना ही चािहए;

    (2) िकसी पर्ाियक और युिक् तयुक् त पर्कार से अिभव् यक् त होना ही चािहए, जब तक िक पर्स् थापना िविहत न करती हो िक उसे िकस पर्कार पर्ितगृहीत िकया जाना ह ै। यिद पर्स् थापना िविहत करती हो िक उसे िकस पर्कार पर्ितगृहीत िकया जाना ह ैऔर पर्ितगर्हण उस पर्कार से न िकया जाए, तो पर्स् थापक, उसे पर्ितगर्हण संसूिचत िकए जाने के पश् चात् युिक् तयुक् त समय के भीतर आगर्ह कर सकेगा िक उसकी पर्स् थापना िविहत पर्कार से ही पर्ितगृहीत की जाए, अन् यथा नह । िकन् तु यिद वह ऐसा करने म असफल रहता ह ैतो वह उस पर्ितगर्हण को पर्ितगृहीत करता ह ै।

    8. शत के पालन या पर्ितफल की पर्ािप् त ारा पर्ितगर्हण––िकसी पर्स् थापना की शत का पालन, या व् यितकारी वचन के िलए, जो पर्ितफल िकसी पर्स् थापना के साथ पेश िकया गया हो, उसका पर्ितगर्हण उस पर्स् थापना का पर्ितगर्हण ह ै।

    9. वचन अिभव् यक् त और िवविक्षत––जहां तक िक िकसी वचन की पर्स् थापना या उसका पर्ितगर्हण शब् द म िकया जाता ह ैवह वचन अिभव् यक् त कहलाता ह ै । जहां तक िक ऐसी पर्स् थापना या पर्ितगर्हण शब् द से अन् यथा िकया जाता ह,ै वह वचन िवविक्षत कहलाता ह ै।

    अध् याय 2

    सिंवदा , शनू् यकरणीय सिंवदा और शनू् य करार के िवषय म 10. कौन स ेकरार सिंवदाएं ह––सब करार संिवदाएं ह, यिद वे संिवदा करने के िलए सक्षम पक्षकार की स् वतन् तर् सम् मित से

    िकसी िविधपूणर् पर्ितफल के िलए और िकसी िविधपूणर् उ ेश् य से िकए गए ह और तद ् ारा अिभव् यक् तत: शून् य घोिषत नह िकए गए ह ।

    इसम अन् तिवष् ट कोई भी बात 1[भारत] म पर्वृ और तद ् ारा अिभव् यक् तत: िनरिसत न की गई िकसी ऐसी िविध पर, िजसके ारा िकसी संिवदा का िलिखत2 रूप म या सािक्षय की उपिस् थित म िकया जाना अपेिक्षत हो, या िकसी ऐसी िविध पर जो दस् तोवज

    के रिजस् टर्ीकरण से सम् बिन् धत हो, पर्भाव न डालेगी ।

    11. सिंवदा करन ेके िलए कौन सक्षम ह–ै–हर ऐसा व् यिक् त संिवदा करने के िलए सक्षम ह,ै जो उस िविध के अनुसार, िजसके वह अध् यधीन ह,ै पर्ाप् तवय हो, और जो स् वस् थिच हो, और िकसी िविध ारा, िजसके वह अध् यधीन3 ह,ै संिवदा करने से िनरिहत न हो ।

    1 1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 तथा अनुसूची ारा “भाग क राज् य तथा भाग ग राज् य ” के स् थान पर पर्ितस् थािपत; िजसे िविध अनुकूलन आदशे, 1950 ारा “पर्ान् त ” के स् थान पर पर्ितस् थािपत िकया गया था । 2 उदाहरणाथर्, देिखए इसी की धारा 25; पर्ितिलप् यिधकार अिधिनयम, 1957 (1957 का 14) की धारा 19; वाहक अिधिनयम, 1865 (1865 का 3) की धारा 6 तथा धारा 7; कंपनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 12, धारा 30, धारा 46, तथा धारा 109 । 3 देिखए भारतीय वयस् कता अिधिनयम, 1875 (1875 का 9) ।

  • 4

    12. सिंवदा करन ेके पर्योजन के िलए स् वस् थिच क् या ह–ै–कोई व् यिक् त संिवदा करने के पर्योजन के िलए स् वस् थिच कहा जाता ह,ै यिद वह उस समय, जब वह संिवदा करता ह ै उस संिवदा को समझने म और अपन े िहत पर उसके पर्भाव के बारे म युिक् तसंग

    त पर्ाय: िवकृतिच रहता ह ै िकन् त ु कभी-कभी स् वस् थिच हो जाता ह,ै वह जब स् वस् थिच हो तब संिवदा कर सकेगा ।

    नह कर स

    जो अन् तराल म स् वस् थिच हो जाता ह,ै उन अन् तराल के दौरान म संिवदा कर सकेगा ।

    पर उसके पर्भाव के बारे म युिक् तसंगत िनणर्य नह ले सकता तब तक संिवदा नह कर सकता जब तक ऐसी िच िवपय

    13. “सम् म ाते ह जब िक वे िकसी एक बात पर एक ही भाव म सहमत होते ह ।

    14. “स् वत वह––

    हो;

    दनेा ह,ै जो भारतीय दण् ड सिंहता (1860 का 45) ारा िनिष ह,ै अथवा िकसी व् यिक् त पर, चाह ेवह कोई हो, पर्ितकूल पर्भाव डालने के िलए िकसी सम् पि का िविधिवरु िन ना या िनरोध करने की धमकी दनेा ह ै।

    की धारा 506 पर्वृ नह थी ।

    को अिधशािसत करने की िस् थित म ह ैऔर उस िस् थित का उपयोग उस दसूरे प

    या और पूवर्वत िस ांत की व् यापकता पर पर्ितकूल पर्भाव डाले िबना यह ह ैिक कोई व् यिक् त िकसी अन् य की इच् छा को अिधशािस

    ार रखता ह,ै या उस अन् य के साथ वैश् वािसक संबंध की िस् थित म

    त िनणर्य लेने म समथर् ह ै।

    जो व् यिक्

    जो व् यिक् त पर्ाय: स् वस् थिचत रहता ह ै िकतु कभी-कभी िवकृतिचन् हो जाता ह,ै वह जब िवकृतिच हो तब संिवदाकेगा ।

    दषृ् टातं

    (क) पागलखाने का एक रोगी,

    (ख) वह स् वस् थिच मनुष् य, जो ज् वर से िच िवपयर्स् त ह ैया जो इतना म ह ै िक वह संिवदा के िनबंधन को नह समझ सकता या अपने िहत

    र्स् तता या म ता बनी रह े।

    ित” की पिरभाषा––दो या अिधक व् यिक् त सम् मत हुए तब कह ेज

    तंर् सम् मित” की पिरभाषा––सम् मित स् वतन् तर् तब कही जाती ह ैजब िक

    (1) न तो धारा 15 म यथापिरभािषत पर्पीड़न ारा कािरत

    (2) न धारा 16 म यथापिरभािषत असम् यक् असर ारा कािरत हो;

    (3) न धारा 17 म यथापिरभािषत कपट ारा कािरत हो;

    (4) न धारा 18 म यथापिरभािषत दवु् यर्पदशेन ारा कािरत हो;

    (5) न भूल ारा कािरत हो, िकन् तु यह बात धारा 20, 21 और 22 के उपबंध के अध् यधीन ह ै।

    सम् मित ऐसे कािरत तब कही जाती ह ै जब िक वह ऐसा पर्पीड़न, असम् यक् असर, कपट, दवु् यर्पदशेन या भलू न होती, तो न दी जाती ।

    15. “पर्पीड़न” की पिरभाषा––“पर्पीड़न” इस आशय से िक िकसी व् यिक् त से कोई करार कराया जाए कोई ऐसा कायर् करना या करने की धमकी

    रोध कर

    स् पष् टीकरण––यह तत्त्वहीन ह ैिक िजस स् थान पर पर्पीड़न का पर्योग िकया जाता ह ैवहां भारतीय दण् ड संिहता (1860 का 45) पर्वृ ह ैया नह ।

    दषृ् टातं

    खुले समुदर् म एक अंगर्ेजी पोत पर, ऐसे कायर् ारा, जो भारतीय दण् ड संिहता (1860 का 45) के अधीन आपरािधक अिभतर्ास की कोिट म आता ह,ै ख से क एक करार कराता ह ै।

    तत् पश् चात् क संिवदा भंग के िलए कलक े म ख पर वाद लाता ह ै।

    क ने पर्पीड़न का पर्योग िकया ह ैय िप उसका कायर् इंग् लड की िविध के अनसुार अपराध नह ह,ै और य िप उस समय जब और उस स् थान पर जहां वह कायर् िकया गया था भारतीय दण् ड संिहता (1860 का 45)

    1[16. “असम् यक् असर” की पिरभाषा––(1) संिवदा असम् यक् असर ारा उत् पेर्िरत कही जाती ह ैजहां िक पक्षकार के बीच िव मान संबधं ऐसे ह िक उनम से एक पक्षकार दसूरे पक्षकार की इच् छा

    क्षकार से अऋजु फायदा अिभपर्ाप् त करने के िलए करता ह ै।

    (2) िविशष् टतत करने की िस् थित म समझा जाता ह ैजब िक वह––

    (क) उस अन् य पर वास् तिवक या दशृ् यमान पर्ािधकह;ै अथवा

    1 1899 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 2 ारा मूल धारा 16 के स् थान पर पर्ितस् थािपत ।

  • 5

    (ख) ऐसे व् यिक् त के साथ संिवदा करता ह ैिजसकी मानिसक सामथ् यर् पर आयु, रुग् णता या मानिसक या शारीिरक कष् ट के कारण अस् थायी या स् थायी रूप से पर्भाव पड़ा ह ै।

    खेने से ही या िदए गए सा य के आधार पर लोकात् मािवरु पर्तीत होता ह ैवहां यह सािबत करने का भार िक ऐसी संिवदा असम् यक् असर से उत् पेर्िरत नह की गई थी उस व् य होगा जो उस अन् य की इच् छा को अिधशािसत करने की िस् थित म था ।

    उससे उस उधार धन की बाबत शोध् य रािश से अिधक रकम के िलए एक बन् धपतर् अिभपर्ाप् त कर लेता ह ै। क असम् यक्

    से ख को उसकी वृि

    से िनबंधन पर धन उधार लतेा ह ै जो लोकात् मा

    ह ै। यह संव् यवहार कारबार के मामूली

    ी पिरभाषा––“कपट” से अिभपेर्त ह ैऔर उसके अन् तगर्त आता ह ैिनम् निलिखत काय म कोई भी ऐसा कायर् जो संिवदा के एक पक्ष की या उसके अिभकतार् की पर्वंचन

    जाना जो यह िवश् वास नह करता िक वह सत् य ह

    (5) कोई ऐसा कायर् या लोप िजसका कपटप विध िवशेषत: घोिषत करे ।

    वत: ही बोलने के तुल् य न हो ।

    ेऐब ह ै। क कुछ भी नह कहता ह ै। यहां क

    करने के ि नह ह ै।

    (3) जहां िक कोई व् यिक् त, जो िकसी अन् य की इच् छा को अिधशािसत करने की िस् थित म हो, उसके साथ संिवदा करता ह,ै और वह संव् यवहार द

    िक् त पर

    इस उपधारा की कोई भी बात भारतीय सा य अिधिनयम, 1872 (1872 का 1) की धारा 111 के उपबंध पर पर्भाव नह डालेगी ।

    दषृ् टातं

    (क) क, िजसने अपने पुतर् ख को उसकी अपर्ाप् तवयता के दौरान म धन उधार िदया था, ख के पर्ाप् तवय होने पर अपने पैितर्क असर के दरुुपयोग ारा

    असर का पर्योग करता ह ै।

    (ख) रोग या आयु से क्षीण हुए मनुष् य क पर ख का, जो असर उसके िचिकत् सीय पिरचारक के नाते ह,ै उस असरक सेवा के िलए एक अयुिक् तयुक् त रािश दनेे का करार करने के िलए क उत् पेर्िरत िकया जाता ह ै। ख असम् यक् असर का

    पर्योग करता ह ै।

    (ग) क अपने गर्ाम के साहूकार ख का ऋणी होते हुए एक नई संिवदा करके ऐिवरु पर्तीत होते ह । यह सािबत करने का भार िक संिवदा असम् यक् असर से उत् पेर्िरत नह की गई थी ख पर ह ै।

    (घ) क एक बककार से उधार के िलए ऐसे समय म आवेदन करता ह ैजब धन के बाजार म तंगी ह ै । बककार ब् याज की अपर्ाियक ऊंची दर पर दनेे के िसवाय उधार दनेे से इन् कार कर दतेा ह ै। क उन िनबंधन पर उधार पर्ितगृहीत करता

    अनुकर्म म हुआ ह,ै और वह संिवदा असम् यक् असर से उत् पेर्िरत नह ह ै।]

    17. “कपट” ककार ारा, या उसकी मौनानकूुलता से या उसके अिभकतार्1 ारा, संिवदा के िकसी अन् य पक्षकार ा करने के आशय से या उसे संिवदा करने के िलए उत् पेर्िरत करने के आशय से िकया गया हो––

    (1) जो बात सत् य नह ह,ै उसका तथ् य के रूप म उस व् यिक् त ारा सुझाया ;ै

    (2) िकसी तथ् य का ज्ञान या िवश् वास रखने वाले व् यिक् त ारा उस तथ् य का सिकर्य िछपाया जाना;

    (3) कोई वचन जो उसका पालन करने के आशय के िबना िदया गया हो;

    (4) पर्वंचना करने योग् य कोई अन् य कायर्;

    ूणर् होना ि

    स् पष् टीकरण––संिवदा करने के िलए िकसी व् यिक् त की रजामन् दी पर िजन तथ् य का पर्भाव पड़ना संभाव् य हो उनके बारे मकेवल मौन रहना कपट नह ह ैजब तक िक मामल ेकी पिरिस् थितयां ऐसी न ह िजन् ह ध् यान म रखते हुए मौन रहन ेवाले व् यिक् त का यकतर्व् य हो जाता हो िक वह बोले2 या जब तक िक उसका मौन स्

    दषृ् टातं

    (क) क नीलाम ारा ख को एक घोड़ा बेचता ह ैिजसके बारे म क जानता ह ैिक वह ऐबदार ह ै। क घोड़ ेके ऐब के बारे म ख को कुछ नह कहता । यह क ओर से कपट नह ह ै।

    (ख) क की ख पुतर्ी ह ैऔर अभी ही पर्ाप् तवय हुई ह ै। यहां पक्षकार के बीच के संबंध के कारण क का यह कतर्व् य हो जाता ह ैिक यिद घोड़ा ऐबदार ह ैतो ख को वह बता द े।

    (ग) क से ख कहता ह ैिक यिद आप इस बात का पर्त् याख् यान न कर तो मै मान लूंगा िक घोड़ा ब का मौन बोलने के तुल् य ह ै।

    (घ) क और ख, जो व् यापारी ह, एक संिवदा करते ह । क को कीमत म ऐसे पिरवतर्न की िनजी जानकारी ह,ै िजससे संिवदा लए अगर्सर होने की ख की रजामन् दी पर पर्भाव पड़गेा । ख को यह जानकारी दनेे के िलए क आब

    1 धारा 238 भी दिेखए । 2 धारा 143 भी दिेखए ।

  • 6

    18. “दवु् य

    रने वाले िकसी व् यिक् त को कोई फायदा िकसी अन् य को ऐसा भुलावा दकेर पहुचंाए,

    , कोई भूल कराना ।

    िजसकी सम् मित ऐसे कािर

    थित म रखा जाए िजसम वह होता यिद िकए गए व् यपदशेन सत् य होते ।

    के पास, िजसकी सम् मित इस पर्कार कािरत हुई थी, सत् य का पता मामलूी तत् परता से चला लनेे के साधन थे ।

    संिवदा ख के िवकल् प पर शून् यकरणीय ह ै।

    क के दवु् यर्पदशेन के कारण शून् यकरणीय नह ह ै।

    य क के िवकल् प पर शून् यकरणीय ह ै।

    की सम् मित इस पर्कार कािरत हुई ह ै।

    दषृ् टातं

    र्पदशेन” की पिरभाषा––“दवु् यर्पदशेन” से अिभपेर्त ह ैऔर उसके अन् तगर्त आते ह––

    (1) उस बात का, जो सत् य नह ह,ै ऐसे पर्कार से िकया गया िनश् चयात् मक पर्ाख् यान जो उस व् यिक् त की, जो उसे करता ह,ै जानकारी से समिथत न हो, य िप वह उस बात के सत् य होने का िवश् वास करता हो;

    (2) कोई ऐसा कतर्व् य भंग, जो पर्वंचना करने के आशय के िबना उस व् यिक् त को, जो उसे करता ह,ै या उससे व् युत् पन् न अिधकार के अधीन दावा किजससे उस अन् य पर या उससे व् युत् पन् न अिधकार के अधीन दावा करने वाले िकसी व् यिक् त पर पर्ितकूल पर्भाव पड़;े

    (3) चाह ेिकतने ही सरल भाव से क् य न हो, करार के िकसी पक्षकार से उस बात के पदाथर् के बारे म, जो उस करार का िवषय हो

    [19. स् वततंर् सम् मित के िबना िकए गए करार की शनू् यकरणीयता––जब िक िकसी करार के िलए सम् मित पर्पीड़न, 1* * * कपट या दवु् यर्पदशेन से कािरत हो तब वह करार ऐसी संिवदा ह ै जो उस पक्षकार के िवकल् प पर शून् यकरणीय ह ै

    त हुई थी ।

    संिवदा का वह पक्षकार िजसकी सम् मित कपट या दवु् यर्पदशेन से कािरत हुई थी, यिद वह ठीक समझे तो, आगर्ह कर सकेगा िक संिवदा का पालन िकया जाए, और वह उस िस्

    अपवाद––यिद ऐसी सम् मित दवु् यर्पदशेन ारा या ऐसे मौन ारा, जो धारा 17 के अथर् के अन् तगर्त कपटपूणर् ह,ै कािरत हुई थी तो ऐसा होने पर भी संिवदा शून् यकरणीय नह ह ैयिद उस पक्षकार

    स् पष् टीकरण––वह कपट या दवु् यर्पदशेन, िजसने संिवदा के उस पक्षकार की सम् मित कािरत नह की, िजससे ऐसे कपट यदवु् यर्पदशेन िकया गया था, संिवदा को शून् यकरणीय नह कर दतेा ।

    दषृ् टातं

    (क) ख को पर्वंिचत करने के आशय से क िमथ् या व् यपदशेन करता ह ैिक क के कारखाने म पांच सौ मन नील पर्ितवषर् बनाया जाता ह ैऔर तद ् ारा ख को वह कारखाना खरीदने के िलए उत् पेर्िरत करता ह ै।

    (ख) क दवु् यर्पदशेन ारा ख को गलत िवश् वास कराता ह ैिक क के कारखाने म पांच सौ मन नील पर्ितवषर् बनाया जाता ह ै। ख कारखाने के लेखा की पड़ताल करता ह ैजो यह दिशत करते ह िक केवल चार सौ मन नील बनाया गया ह ै। इसके पश् चात् ख कारखान ेको खरीद लेता ह ै। संिवदा

    (ग) क कपटपूवर्क ख को इि ला दतेा ह ैिक क सम् पदा-िवल् लंगम् मुक् त ह ै। तब ख उस सम् पदा को खरीद लेता ह ै। वह सम् पदा एक बन् धक के अध् यधीन ह ै। ख या तो संिवदा को शून् य कर सकेगा या यह आगर्ह कर सकेगा िक वह िकर्यािन् वत की जाए और बंधक ऋणका मोचन िकया जाए ।

    (घ) क की सम् पदा म ख अयस् क की एक िशला का पता लगाकर क से उस अयस् क के अिस् तत् व को िछपाने के साधन का पर्योग करता ह ैऔर िछपा लेता ह ै। क के अज्ञान के ख उस सम् पदा को न् यून-मूल् य पर खरीदने म समथर् हो जाता ह ै। संिवदा क के िवकल् प पर शून् यकरणीय ह ै।

    (ङ) ख की मृत् यु पर एक सम् पदा का उ रािधकारी होने का क हकदार ह ै। ख की मृत् यु हो जाती ह ै। ख की मृत् यु का समाचार पाने पर ग उस समाचार को क तक नह पहुचंने दतेा और इस तरह क को उत् पेर्िरत करता ह ैिक उस सम् पदा म अपना िहत उसके हाथ म बेच द े। यह िवकर्

    2[19क. असम् यक् असर स ेउत् पर्ेिरत संिवदा को अपास् त करन ेकी शिक् त––(1) जब िक िकसी करार के िलए सम् मित असम् यक् असर से कािरत हो, तब वह करार ऐसी संिवदा ह ै जो उस पक्षकार के िवकल् प पर शून् यकरणीय ह ै िजस

    ऐसी कोई भी संिवदा या तो आत् यिन् तकत: अपास् त की जा सकेगी या यिद उस पक्षकार ने, जो उसके शून् यकरण का हकदार हो, तद ्धीन कोई फायदा पर्ाप् त िकया हो तो ऐसे िनबंधन और शत पर, जो न् यायालय को न् यायसंगत पर्तीत ह ।

    (क) क के पुतर् ने एक वचनपतर् पर ख के नाम की कूटरचना की ह ै। क के पुतर् का अिभयोजन करन ेकी धमकी दकेर क से कूटरिचत वचनपतर् की रकम के िलए एक बन् धपतर् ख अिभपर्ाप् त करता ह ै। यिद ख उस बंधपतर् पर वाद लाए तो न् यायालय उसे अपास् त कर सकेगा ।

    1 1899 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 3 ारा “असम् यक् असर” शब् द का िनरसन िकया गया । 2 1899 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 3 ारा अंत:स् थािपत ।

  • 7

    (ख) एक साहूकार क एक कृषक ख को 100 रुपए उधार दतेा ह ैऔर असम् यक् असर से ख को 6 पर्ितशत पर्ितमास ब् याज पर 200 रुपए का एक बन् धपतर् िनष् पािदत करने को उत् पेर्िरत करता ह ै। न् यायालय ऐसे ब् याज सिहत जो न् यायसंगत पर्तीत हो, 100 रुपए के पर्ित संदा

    िक दोन पक्षकार तथ् य की बात सम् बन् धी भलू म ह तब करार शनू् य ह–ै–जहां िक िकसी करार के दोन पक्षकार ऐसी तथ् य की बात के बारे म, जो करार के िलए ममर्भूत ह,ै भूल म ह ार शून् य ह ै।

    करने वाला पोत संत् यक् त कर िदया गया था और माल नष् ट

    ा चलता ह ैिक वह घोड़ा सौद ेके समय मर चुका था, य िप दोन म स

    ार इस तथ् य से अनिभज्ञ थे । करार शून् य ह ै।

    िविध े बारे क लू क –– ई संिवदा इस कारण ही शू करणीय ह ैिक वह 1[भारत] म पर् िविध बारे की िकसी भूल के कारण की गई थी, िकन् तु िकसी ऐसी िविध ी, जो 1[भारत] म पर्वृ नह ह,ै िकसी भूल का वही पर्भाव ह ैजो तथ् य की भूल का ह ै।

    *

    े बारे की भलू स ेकािरत सिंवदा––कोई संिवदा इस कारण ही शून् यकरणीय नह ह ैिक उसके पक्ष के बारे की भूल म होने से वह कािरत हुई थी ।

    ––

    ो; अथवा

    को िवफल कर दगेा; अथवा

    न् यायालय उसे अनैितक या लोकनीित के िवरु माने ।

    दषृ् टातं

    य का आदशे ख को दतेे हुए बन् धपतर् अपास् त कर सकेगा ।]

    20. जब वहां कर

    स् पष् टीकरण––जो चीज करार की िवषयवस् तु हो उसके मलू् य के बारे म गलत राय, तथ् य की बात के बारे म भूल नह समझी जाएगी ।

    दषृ् टातं

    (क) माल के एक िविनिदष् ट स् थोरा को, िजसके बारे म यह अनमुान ह ैिक वह इंग् लड से मुम् बई को चल चुका ह,ै ख को भेजने का करार क करता ह ै। पता चलता ह ैिक सौद ेके िदन से पूवर्, उस स् थोरा के पर्वहण

    हो गया था । दोन म से िकसी भी पक्षकार को इन तथ् य की जानकारी नह थी । करार शून् य ह ै।

    (ख) ख से अमुक घोड़ा खरीदने का करार क करता ह ै। यह पते िकसी भी पक्षकार को इस तथ् य की जानकारी नह थी । करार शून् य ह ै।

    (ग) ख के जीवनपयर्न् त के िलए एक सम् पदा का हकदार होते हुए क उसे ग को बेचने का करार करता ह ै। करार के समय ख मर चुका था । िकन् तु दोन पक्षक

    21. क ी भ ा पर्भाव को न् य नह वृ के के बारे क

    2* * * * * *

    दषृ् टातं

    क और ख इस गलत िवश् वास पर संिवदा करते ह िक एक िविशष् ट ऋण भारतीय पिरसीमा िविध ारा वािरत ह ै। संिवदा शून् यकरणीय नह ह ै।

    3* * * * * * *

    22. एक पक्षकार की तथ् य की बात ककार म से एक के िकसी तथ् य की बात

    23. कौन स ेपर्ितफल और उ ेश् य िविधपणूर् ह और कौन स ेनह ––करार का पर्ितफल या उ ेश् य िविधपूणर् ह,ै िसवाय जब िक

    वह िविध4 ारा िनिष ह

    वह ऐसी पर्कृित का हो िक यिद वह अनुज्ञात िकया जाए तो वह िकसी िविध के उपबंध

    वह कपटपूणर् हो; अथवा

    उसम िकसी अन् य के शरीर या सम् पि को क्षित अन् तवर्िलत या िवविक्षत हो; अथवा

    इन दशा म से हर एक म करार का पर्ितफल या उ ेश् य िविधिवरु कहलाता ह ै । हर एक करार, िजसका उ ेश् य या पर्ितफल िविधिवरु हो, शून् य ह ै।

    (क) क अपना गहृ 10,000 रुपए म ख को बेचने का करार करता ह ै। यहां 10,000 रुपए दनेे का ख का वचन गृह बेचन ेके क के वचन के िलए पर्ितफल ह,ै और गृह बेचने का क का वचन 10,000 रुपए दने े के ख के वचन के िलए पर्ितफल ह ै । ये िविधपूणर् पर्ितफल ह ।

    1 “िबिटश इिण् डया” मूल शब् द का अनुकर्मश: िविध अनुकूलन, आदशे, 1948 तथा िविध अनुकूलन आदशे, 1950 ारा संशोधन िकया गया िजससे िक उपयुर्क् त पढ़ा जाए । 2 भारतीय िविध अनुकूलन आदशे, 1937 ारा पैरा 2 अंत:स् थािपत िकया गया िजसका िविध अनुकूलन आदशे, 1950 ारा लोप िकया गया । 3 1917 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 3 तथा अनुसूची 2 ारा धारा 21 के ि तीय दषृ् टांत का िनरसन िकया गया । 4 धारा 26, धारा 27, धारा 28 तथा धारा 30 भी दिेखए ।

  • 8

    (ख) क यह वचन दतेा ह ैिक यिद ग, िजसे ख को 1,000 रुपए दनेा ह,ै उसे दनेे म असफल रहा तो वह ख को छह मास के बीतते ही 1,000 रुपए दगेा । ख तदनुसार ग को समय दनेे का वचन दतेा ह ै। यहां हर एक पक्षकार का वचन दसूरे पक्षकार के वचन के िलए पर्ितफल ह ैऔर ये िविधपूणर् पर्ितफल ह ।

    के वचन के िलए पर्ितफल ह

    तेा ह ैऔर ख उस पर्योजन के िलए क को 1,000 रुपए वािषक दनेे का वचन दते

    ए गए या िकए जाने वाले अिभलाभ के आपस म िवभाजन के िलए करार करते ह ।

    विधिवरु ह ै।

    िवविक्षत ह ैिक क ने अपने मािलक स

    करने वाले को वह भू-सम् पदा खरीदने से पर्ितिष करता ह ै। क के साथ तय करके ख केर्ता बन जाता ह ैऔर यह करार कर

    जाता ह ैऔर इस पर्कार उससे िविध का उ ेश् य िवफल हो

    न दतेा ह ैऔर क को 1,000 रुपए दनेे का वचन ग दतेा ह ै। करार शून् य ह ैक् य क ह ै।

    शनू् य करार

    24. यिद पर्ितफल और भागत: िविधिवरु ह तो य ह ग–े–यिद एक या अिधक उ ेश् य के िलए िकसी एकल पर्ितफल क

    दषृ् टातं

    िधिवरु ह ै।

    या गया करार शून् य ह,ै िसवाय ज

    और एक दसूरे

    नदाता वैध रूप से िववश िकए जाने का दायी था; अथवा

    (ग) ख ारा उसे दी गई िकसी रािश के बदले क यह वचन दतेा ह ैिक यिद ख का पोत अमुक समुदर् यातर्ा म नष् ट हो जाए तो क उसके पोत के मूल् य की पर्ितपूित करेगा । यहां क का वचन ख के संदाय के िलए पर्ितफल ह,ै और ख का संदाय क

    ;ै और ये िविधपूणर् पर्ितफल ह ।

    (घ) ख के बच् चे का भरण-पोषण करने का क वचन दा ह ै। यहां हर एक पक्षकार का वचन दसूरे पक्षकार के वचन के िलए पर्ितफल ह ै। ये िविधपूणर् पर्ितफल ह ।

    (ङ) क, ख और ग अपने ारा कपट से अिजत िककरार शून् य ह ैक् य िक उसका उ ेश् य िविधिवरु ह ै।

    (च) ख के िलए लोक सेवा म िनयोजन अिभपर्ाप् त करने का वचन क दतेा ह ैऔर क को ख 1,000 रुपए दनेे का वचन दतेा ह ै। करार शून् य ह ैक् य िक उसके िलए पर्ितफल ि

    (छ) क, जो एक भूस् वामी का अिभकतार् ह,ै अपने मािलक के ज्ञान के िबना अपने मािलक की भूिम का एक प ा ख के िलए अिभपर्ाप् त करने का करार धन के िलए करता ह ै। क और ख के बीच का करार शून् य ह ैक् य िक उससे यह

    े िछपाव ारा कपट िकया ह ै।

    (ज) क उस अिभयोजन को, जो उसने लूट के बारे म ख के िवरु संिस् थत िकया ह,ै छोड़ दनेे का ख को वचन दतेा ह,ै और ख दी गई चीज का मूल् य लौटा दनेे का वचन दतेा ह ै। करार शून् य ह ैक् य िक उसका उ ेश् य िविधिवरु ह ै।

    (झ) क की सम् पदा का राजस् व की बकाया के िलए िवकर्य िवधान-मण् डल के एक ऐसे अिधिनयम के उपबंध के अधीन िकया जाता ह,ै जो व् यितकर्म

    ता ह ैिक वह क से वह कीमत िमलने पर, जो ख ने दी ह,ै वह सम् पदा क को हस् तान् तिरत कर दगेा । करार शून् य ह ैक् य िक उसका यह पर्भाव ह ैिक वह संव् यवहार व् यितकर्म करने वाले ारा िकया गया कर्य बन

    जाएगा ।

    (ञ) क, जो ख का मुख् तार ह,ै उस असर को जो उस हिैसयत म उसका ख पर ह ैग के पक्ष म पर्युक् त करने का वचिक वह अनैित

    (ट) क अपनी पुतर्ी को उपपत् नी के रूप म रखे जाने के िलए ख को भाड़ ेपर दनेे के िलए करार करता ह ै। करार शून् य ह ैक् य िक वह अनैितक ह,ै य िप इस पर्कार भाड़ ेपर िदया जाना भारतीय दण् ड संिहता (1860 का 45) के अधीन दण् डनीय न हो ।

    करार शनू् ा कोई भाग, या िकसी एक उ ेश् य के िलए कई पर्ितफल म से कोई एक या िकसी एक का कोई भाग िविधिवरु हो तो करार

    शून् य ह ै।

    क नील के वधै िविनमार्ण का, और अन् य वस् तु म अवैध दवु् यार्पार का ख की ओर से अधीक्षण करने का वचन दतेा ह ै। ख 10,000 रुपए वािषक संबलम् क को दनेे का वचन दतेा ह ै। यह करार इस कारण शून् य ह ैिक क के वचन का उ ेश् य और ख के वचन के िलए पर्ितफल भागत: िव

    25. पर्ितफल के िबना करार शनू् य ह ैिसवाय जबिक वह िलिखत तथा रिजस् टर्ीकृत हो या की गई िकसी बात के िलए पर्ितकर दने ेका वचन हो, या पिरसीमा िविध ारा वािरत िकसी ऋण के सदंाय का वचन हो––पर्ितफल के िबना िक

    बिक वह––

    (1) िलिखत रूप म अिभव् यक् त और 1[दस् तावेज ] के रिजस् टर्ीकरण के िलए तत् समय पर्वृ िविध के अधीन रिजस् टर्ीकृत के साथ िनकट संबंध वाले पक्षकार के बीच नैसिगक पेर्म और स् नेह के कारण िकया गया हो; अथवा

    (2) िकसी ऐसे व् यिक् त को पूणर्त: या भागत: पर्ितकर दनेे के िलए वचन हो, िजससे वचनदाता के िलए स् वेच् छया पहले ही कोई बात कर दी हो अथवा ऐसी कोई बात कर दी हो िजसे करने के िलए वच

    1 1891 के अिधिनयम सं० 12 की धारा 2 तथा अनुसूची 2, भाग 1 ारा “हस् तांतरण-पतर्” के स् थान पर पर्ितस् थािपत ।

  • 9

    (3) िजस ऋण का संदाय वाद की पिरसीमा िवषयक िविध ारा वािरत न होने की दशा म लेनदार करा लेता, उसके पूणर्त: या भागत: संदाय के िलए उस व् यिक् त ारा िजसे उस वचन से भािरत िकया जाना ह ैया तिन् निम साधारण या िवशेष रूप से पर्ािधकृत उसके अिभ

    तुत: िदए गए िकसी दान की िविधमान् यता पर, जहां तक िक दाता और आदाता के बीच का संबंध ह,ै पर्भाव नह डालेगी ।

    ल इस कारण शून् य नह ह ैिक पर्ितफल

    ए क के व् यय के संदाय का ख वचन दतेा ह ै। यह संिवदा ह ै।

    । यह संिवदा ह ै।

    रार संिवदा ह ै।

    न् तर्ता से दी गई थी ।

    कारबार क क थानीय कारबार े गुडिवल का हक व् युत् पन् न हुआ हो, उन सीमा म तत् सदशृ कारबार च पर्तीत ह

    * *

    28. िविध

    त: अवरु िकया जाता ह ैया जो उस समय को, िजसके स पर्कार पर्वितत करा सकता ह,ै पिरसीिमत कर दतेा ह;ै या

    कतार् ारा, िकया गया िलिखत और हस् ताक्षिरत वचन हो ।

    इसम से िकसी भी दशा म ऐसा करार संिवदा ह ै।

    स् पष् टीकरण 1––इस धारा की कोई भी बात वस्

    स् पष् टीकरण 2––कोई करार, िजसके िलए वचनदाता के सम् मित स् वतन् तर्ता स ेदी गई ह,ै केवअपयार्प् त ह,ै िकन् तु इस पर्श् न को अवधािरत करने म िक वचनदाता की सम् मित स् वतंतर्ता से दी गई थी या नह पर्ितफल की

    अपयार्प् तता न् यायालय ारा गणना म भी ली जा सकेगी ।

    दषृ् टातं

    (क) ख को िकसी पर्ितफल के िबना 1,000 रुपए दनेे का क वचन दतेा ह,ै यह करार शून् य ह ै।

    (ख) क नैसिगक पेर्म और स् न् ेह से अपने पुतर् ख को 1,000 रुपए दनेे का वचन दतेा ह ै। ख के पर्ित अपने वचन को क लेखब करता ह ैऔर उसे रिजस् टर्ीकृत करता ह ैयह संिवदा ह ै।

    (ग) ख की थैली क पड़ी पाता ह ैऔर उसे उसको द ेदतेा ह ै। क को ख 50 रुपए दनेे का वचन दतेा ह ै। यह संिवदा ह ै।

    (घ) ख के िशशुपुतर् का पालन क करता ह ै। वैसा करने म हु

    (ङ) ख के 1,000 रुपए क ारा दये ह िकतु वह ऋण पिरसीमा अिधिनयम ारा वािरत ह ै। क उस ऋण म ेख को 500 रुपए दनेे का िलिखत वचन हस् ताक्षिरत करता है

    (च) क 1,000 रुपए के मूल् य के घोड़ ेको 10 रुपए म बेचने का करार करता ह ै। इस करार के िलए क की सम् मित स् वतन् तर्ता से दी गई थी । पर्ितफल अपयार्प् त होते हुए भी यह क

    (छ) क 1,000 रुपए के मूल् य के घोड़ ेको 10 रुपए म बेचने का करार करता ह ै। क इससे इंकार करता ह ैिक इस करार के िलए उसकी सम् मित स् वत

    पर्ितफल की अपयार्प् तता ऐसा तथ् य ह ै िजसे न् यायालय को यह िवचार करने म गणना म लनेा चािहए िक क की सम् मित स् वतन् तर्ता से दी गई थी या नह ।

    26. िववाह का अवरोधक करार शनू् य ह–ै–ऐसा हर करार शून् य ह ै जो अपर्ाप् तवय से िभन् न िकसी व् यिक् त के िववाह के अवरोधाथर् हो ।

    27. व् यापार का अवरोधक करार शनू् य ह–ै–हर करार िजससे कोई व् यिक् त िकसी पर्कार की िविधपूणर् वृि , व् यापार या कारबार करने से अवरु िकया जाता हो, उस िवस् तार तक शून् य ह ै।

    अपवाद 1––िजस कारबार की गडुिवल बचे दी गई ह ैउस कारबार को न चलान ेके करार की व् याविृ ––वह व् यिक् त जो िकसी ी गुडिवल का िवकर्य करे, केर्ता से यह करार कर सकेगा ि वह िविनिदष् ट स् सीमा के अन् दर तब तक तत् सदशृ

    चलाने से िवरत रहगेा जब तक केर्ता या कोई ऐसा व् यिक् त, िजसे उससलाता रह;े परन् तु यह तब जब िक उस कारबार की पर्कृित की दिृष् ट से ऐसी सीमाएं न् यायालय को युिक् तयुक् त

    । 1* * * * *

    क कायर्वािहय के अवरोधक करार शनू् य ह––2[हर करार,––

    (क) िजससे उसका कोई पक्षकार िकसी संिवदा के अधीन या उसके बारे म अपने अिधकार को मामूली अिधकरण म पर्ाियक िविधक कायर्वािहय ारा पर्वितत कराने से आत् यंितकभीतर वह अपने अिधकार को इ

    (ख) जो िकसी िविनिदष् ट अविध की समािप् त पर िकसी संिवदा के अधीन या उसके बारे म उसके िकसी पक्षकार के अिधकार को िनवार्िपत कर दतेा ह ैया उसके िकसी पक्षकार को िकसी दाियत् व से उन् मोिचत कर दतेा ह,ै िजससे िक कोई पक्षकार अपने अिधकार को पर्वितत कराने से अवरु हो जाए,

    उस िवस् तार तक शून् य ह ै।]

    1 1932 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 73 तथा अनुसूची 2 ारा अपवाद 2 तथा 3 िनरिसत । 2 1997 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 2 ारा (8-1-1997 से) पर्ितस् थािपत ।

  • 10

    अप – ो ाध् के दिशत सिंव व् –य ा उ दा वाद 1 –जो िववाद पदैा ह उसको म यस् थम् िलए िन करन ेवाली दा की याविृ – ह धार स संिवको अवैध

    सी बक या िव ीय ससं् था के पर्त् याभिूत करार की व् याविृ ––यह धारा ऐसी िकसी िलिखत संिवदा को अवैध नह करेगी िजसके त् याभूित या पर्त् याभूित का उपबंध करने वाले िकसी करार म, उस िविनिदष् ट अविध की समािप् त होने की तारीख से एका िनवार्पन या िकस ध िनयत की गई हो ।

    स् पष् टीकर

    (i) अपवाद अिभपर्

    ) कोई “बककारी कंपनी”, जो बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खंड (ग) म

    ”, जो बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खंड (घक)

    ारतीय स् टेट बक अिधिनयम, 1955 (1955 का 23) की धारा 3 के अधीन गिठत “भारतीय स् टेट बक”

    षुंगी बक”, जो भारतीय स् टेट बक (समनुषगंी बक) अिधिनयम, 1959 (1959 का 38) की धारा 2 के

    1976 (1976 का 21) की धारा 3 के अधीन स् थािपत “पर्ादिेशक

    ारी बक”, जो बककारी िविनमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खंड

    (छ) कोई “बहुराज् य सहकारी बक”, जो बककारी िविनयमन अिधिनयम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खंड (गगiiiक) म पिरभािषत ह;ै और

    कर व

    स तरह का तेल आशियत था । क

    िदष् ट वणर्न का एक सौ टन ऐसा तेल बेचने का करार करता ह ैजो एक वािणिज् यक वस् तु के रूप म ज्ञात ह ै। यहा

    नह कर दगेी िजसके ारा दो या अिधक व् यिक् त करार कर िक िकसी िवषय के या िवषय के िकसी वगर् के बारे म, जो िववाद उनके बीच पैदा हो वह माध् यस् थम् के िलए िनदिशत िकया जाएगा और िक ऐसे िनिदष् ट िववाद के बारे म केवल वह रकम वसलूीय होगी जो ऐसे माध् यस् थम् म अिधिनण त हो ।

    1* * * * * * *

    अपवाद 2––जो पर्श् न पहल ेही पदैा हो चकेु ह उन् ह िनदिशत करन ेकी सिंवदा की व् याविृ ––और न यह धारा िकसी ऐसी िलिखत संिवदा को अवैध कर दगेी िजससे दो या अिधक व् यिक् त िकसी पर्श् न को, जो उनके बीच पहले ही पैदा हो चकेु ह , माध् यस् थम् के िलए िनदिशत करने का करार करे, या माध् यस् थम्2 िवषयक िनदश के बारे म िकसी तत् समय पर्वृ िविध के िकसी उपबंध पर पर्भाव डालेगी ।

    3[अपवाद 3––िकारा िकसी बक या िव ीय संस् था ारा िकसी पर्

    पर, जो ऐसे पक्षकार के उक् त दाियत् व से िनवार्पन या उन् मोचन सबंंधी िविनिदष् ट िस् थित के होने या न क वषर् से कम की नह ह,ै ऐसी पर्त् याभूित या करार के अधीन या उसकी बाबत उसके िकसी पक्षकार के अिधकार ी उन् मोचन करने संबंधी अवि

    ण––

    3 म, “बक” पद से ेत ह–ै–

    (क पिरभािषत ह;ै

    (ख) कोई “तत् स् थानी नया बक म पिरभािषत ह;ै

    (ग) भ;

    (घ) कोई “समन खंड (ट) म पिरभािषत ह;ै

    (ङ) पर्ादिेशक गर्ामीण बक अिधिनयम,गर्ामीण बक”;

    (च) कोई “सहक(गगi) म पिरभािषत ह;ै

    (ii) अपवाद 3 म “िव ीय संस् था” पद से कंपनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 4क के अथार्न् तगर्त कोई लोक िव ीय संस् था अिभपेर्त ह ै।]

    29. ार अिनिश् चतता के कारण शनू् य ह–ै– े करार, िजनका अथर् िनिश् चत नह ह ै या िनिश् चत िकया जाना शक् त नह ह,ै शून् य ह ै।

    दषृ् टातं

    (क) ख को क “एक सौ टन तेल” बेचने का करार करता ह ै। उसम यह दिशत करने के िलए कुछ नह ह ैिक िकरार अिनिश् चतता के कारण शून् य ह ै।

    (ख) ख को क, िविनं कोई अिनिश् चतता नह ह ैिजससे करार शून् य हो जाए ।

    1 1877 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 2 तथा अनुसूची ारा धारा 28 के अपवाद 1 का ि तीय खंड िनरिसत । 2 दिेखए माध् यस् थम् अिधिनयम, 1940 (1940 का 10) और कम् पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 389 । 3 2013 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 17 और अनुसूची ारा (18-1-2013 से) अंत:स् थािपत ।

  • 11

    (ग) क, जो केवल नािरयल के तले का व् यवसायी ह,ै ख, को “एक सौ टन तले” बेचने का करार करता ह ै। क के व् यापार की पर्कृित इन शब् द का अथर् उपदिशत करती ह ैऔर क ने एक सौ टन नािरयल के तेल के िवकर्य के िलए संिवदा की ह ै।

    क करता ह ै। कीमत िनिश् चत की जा सकती

    े , िजसके बारे म कोई पं म् िकया गया हो पिरणाम के अनसुार व् ययिनत ो न् यस् त की गई हो ।

    घड़ुदौड़ के िलए कितपय पािरतोिषक द ेया अिभदाय को, या चन् दा दनेे या अिभदाय करने के ऐ 1

    भारतीय दण् ड सिंहता की धारा 294क पर पर्भाव न इस धारा की कोई भी बात घुड़दौड़ से संबंिधत िकसी ऐसे संव् यवहार को, िजसे भारतीय दण् ड संिहता (1860 का 45) की ध ागू ह,ै वैध बना दनेे वाली नह समझी जाएगी ।

    ा––“समािशर्त संिवदा” वह संिवदा ह ैजो ऐसी संिवदा से साम् पािश् वक िकसी घटना के घिटत होन

    समािशर्त संिवदा का पर्वतर्न, जो िकसी अि

    ाए तो ऐसी संिवदाएं शून् य हो जाती ह ।

    िक यिद ग के मरने के पश् चात् क जीिवत रहा तो वह ख का घोड़ा खरीद लेगा । इस संिवदा का पर्वतर्न िव

    ; इस संिवदा का पर्वतर्न िविध ारा नह कराया जा सकता यिद और जब तक ग घोड़ ेको खरीदने से इन् कार न कर द े।

    क करार करता ह ैिक यिद अमुक पोत वापस न आए ख को एक धनरािश दगेा । वह पोत डूब जाता ह ै। संिवदा का वतर्न पो

    (घ) क “रामनगर म मेरे धान् य भंडार म का सारा धान् य” ख को बेचने का करार करता ह ै। यहां कोई अिनिश् चतता नह ह ैिजससे करार शून् य हो जाए ।

    (ङ) ख को “ग ारा िनयत की जाने वाले कीमत पर एक हजार मन चावल” बेचने का करार ह,ै इसिलए यहां कोई अिनिश् चतता नह ह ैिजससे करार शून् य हो जाए ।

    (च) ख को क “मेरा सफेद घोड़ा पांच सौ रुपए या एक हजार रुपए के िलए” बेचने का करार करता ह ै। यह दिशत करने के िलए कुछ नह ह ैिक इन दो कीमत म से कौन-सी दी जानी ह ै। करार शून् य ह ै।

    30. पं म ्के तौर के करार शनू् य ह––पं म् के तौर के करार शून् य ह; और िकसी ऐसी चीज की वसूली के िलए कोई वाद न लाया जाएगा, जो पं म् पर जीती गई अिभकिथत हो, या जो िकसी व् यिक् त को िकसी ऐसे खेल या अन् य अिनिश् चत घटना क

    की जाने क

    स ेपक्ष म अपवाद––यह धारा ऐसे चन्से करार को िविधिवरु बना दनेे वाली न समझी जाएगी जो िकसी घुड़दौड़ के िवजेता