मंज़िल कहाँ

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मंज़िल कह ?? णम / नमते शत शमा आचा ोण की मूता के आगे एकल ने धनुवा अस , उसे दत , आचा ोण ने उससे गुर दण मगी | उसने तुरंत आचा की पलन , अपने दहहने हथ अंगूठ कट कर अपात कर हद |” आज के कशोर के ललए ह हपद वष बन कर रह ग है | उसकी ‘सीख’ उनके ललए गुत और लुत है | उसके रह को समझ नहं जत है | ुवक सोचते ह क वह गुर कैस रस थ और चेल ककतन मूखा !! करण -- ुग बदलत है, परज़थत बदलती ह | इनके अनुऱप मनव समुद की मतए बदलती ह | वष को तुत करने क तरक बदल ग है | अंत पररमी और क श बुहि के ललए वलंत उदहरण है अजुान | उसकी उनत और वज के पीछे थी उसकी एकत | अब हम एकल और अजुान से सबज़धत घटनओं के सस की गहरई नहं खोजनहै | पर मन म ह न अव उठत है कक आज कसी को उस ुग के आचा ोण हदखई देते ह ? कणा के गुर परशुरम ज़टटगोचर होते ह ? ककसी म चीनगुर-ऋष क तबबंब खोज पते ह हम ? सीध-स उतर है “नहं” | पर ?? ोण को महन आचा बन तकलन समज ने | उह अ बत की चंत से मुत कर के वल लश-दन म लग | अत: आचा ोण वं नहं बने उह बलक के मत-पत ने, समज ने जगत को हद | अब छोड़िए आचा की बत | आचा न तो सह लशट ... ? आजकल आपको कहं एकल क तऱप हदखई हद ? अजुान की झलक कसी वल के बलक म लमल ? नहं, नहं, पर ? इस क उतर बह त ह कहठन-स है | ऊपर के दोन न एक-दूसरे पर आत ह और उतर तो एक- दूसरे पर आधरत | सो कैसे ? हद आचा ोण होते तो एकल भी हमर ज़टट म अटकत, अजुान भी आगे आत | गुर परशुरम होते तो कणा-स चेल अंक रत होत | इस कर के गुर-लशट के पीछे, इनके आवभाव के पीछे सबसे बिी शज़त है चेल के मत-पत | उनक पूर ववस गुर पर थ | गुर और गुरमत के सथ-सथ गुरक ल क वतवरण लशट को वथ, सुढ़ और बनत थ | वह समज और उसक गठन -- दोन लशट को ‘स’ बनते थे | ह नहं कह ज सकत क तब म अछई ह रह, बुरई तनक भी नहं | ज़टट के आहदकल से आज तक के सम को परखगे तो अव हम दो छोर की व ज़त हदखई देती ह | एक है ठक रसुहती करनेवल -- ज़जसकी तह म तनक भी सचई नहं रहती | इस कर की व ज़त के त धीरे-धीरे घ ण उपन होने लगती है | इसक एक और भेद है दूसर के त शंस गुणहकत क अभव | हमर एक उतरदव है दूसर क आदर करन | जो उसह हम डट लगने म हदखते ह वह हम उनके गुण की अछे कम की तुत करने म कदप नहं हदखते |

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Post on 13-Feb-2017

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