आंखन देखी अमर #का मेर # िनगाह i से) sec/aankhan dekhi...

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  • कॉपीराइट @ डॉ. दगा साद अ वालु . पीड एफ़ ई-बुक इंटरनेट क प का रचनाकार : (http://rachanakar.blogspot.com ) म धारावा हक प म पूव- कािशत. पठन-पाठन हेत ुमु त उपयोग व वतरण के िलए जार .

    आंखन देखी (अमर का मेर िनगाह से)

    या ा वृ ांत

    - डॉ. दगा साद अ वालु

  • [न या,

    आ था,

    आरोह

    और उनक पूर पीढ़ को]

    अनु म

    1 परदेस म िनकला चांद 2 है पी बथ डे ट यूू 3 ज दगी, मेरे घर आना, ज दगी 4 खूबसूरती का कारोबार 5 कहो जी तुम या या खर दोगे 6 माइकल मूर: असहमित म उठा हाथ 7 पूंजीवाद के देश म समाजवाद क घसुपैठ 8 अमर का म अखबार 9 एक शह द दवस अमर का म भी 10 वाधीनता का उ लास 11 एक पु तकालय के भीतर 12 रोगी क दशा उ म है 13 ज दगी के साथ भी...

  • 14 जन वेगस नह ं वे या 15 ज दगी एक सफर है सुहाना 16 यह सच है 17 पढ़ोगे िलखोगे तो... 18 उ च िश ा: यहाँ और वहाँ 19 जोड़ने वाला पुल 20 सोन मछली 21 या ा के बाद

    *****

    सुप रिचत सा ह यकार डॉ दगा साद अ वाल क यह कृित ु "आखंन देखी" महज़ एक या ा वृ ांत नह ं है. य प इस पु तक म डॉ अ वाल ने अपनी अमर का या ा के व वध अनुभव को श दब कया है, पर यह कई कारण से एक अनूठ सा ह यक कृित बन गई है. डॉ अ वाल ने व के अ णी पूंजीवाद देश अमर का को खुली आखं और बना पूवा ह के तो देखा ह है और उसक उ मु सराहना भी क है, कंतु इसे उनक अित र स वेदनशीलता और वैचा रक ितब ता का सुफल ह माना जाना चा हए क वे इस समृ , सफल समाज क वसंगितय को भी देखने और बताने से नह ं चूके ह. इस कृित म अमर का के भौितक प क अपे ा उसके मानवीय प को अिधक मखुता द गई है. और इसी के साथ, जो बात इस पु तक को इस तरह के अ य रचनाकम से अलग तथा बेहतर िस करती है वह है रचनाकार क सा ह यकता. अपने सामा य वणन म भी डॉ अ वाल का सा ह यक पश, और थान- थान पर सा ह यकार और सा ह य के स दभ इस पु तक को एक दलभ ग रमा दान करते हु . डॉ अ वाल के पास जो सहज वाहमयी भाषा है वह इस पु तक को ऐसी पठनीयता दान करती है जो इधर के बो झल सा ह यक लखेन के घटाटोप म वरल हो चली है.

  • आंखन देखी (अमर का मेर िनगाह से)

    दगा साद अ वालु

    भूिमका यार ! सच तो यह है.... ह द म जो वधाएं अपे ाकृत कम समृ ह उनम से एक है या ा-वृ ांत. बावज़ूद इस बात के क पछले कुछ वष म अनेक कारण स ेलोग का देश- वदेश मण बढ़ा है, ह द म इस वधा म उतना नह ं िलखा गया. कम से कम मुझे तो इस तीित से खुशी नह ं होती क चालीसेक साल पहले क ‘चीड़ पर चांदनी’ (िनमल वमा), ‘अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूंद सहसा उछली’ (दोन - अ ेय), 'आ खर च टान तक' (मोहन राकेश) और ‘हर घाट ’ (रघुवंश) ह अब तक भी इस वधा क शीष थ कृितयां ह. ऐसा नह ं है क इस बीच कुछ भी नह ं िलखा गया है. लोग न ेपा रवा रक अथवा म हला प काओ ंके उपयु या ा-वृ ांत खूब िलख,े जनक अपनी उपादेयता है. कृ णनाथ के या ा वृ ांत का अपना एक अलग वाद रहा, तो अमतृलाल वेगड़ ने अपने लेख से अपने प रवेश को अमर व दान कया. मंगलेश डबराल ने आयोवा के सं मरण (एक बार आयोवा) िलख कर बु जीवी पाठक को तृ कया. इस सूची म और भी बहत कुछ जोड़ा जा सकता हैु . बावज़ूद इसके, दखद थित यह है क ह द म या ा वृ ांत वधा समृ नह ं हैु . बकौल लिलत सुरजन (समय क साखी पु तक म) "एक दजन पु तक ह. उनका ह नाम बार-बार लेते र हये." इन दजन भर पु तक म देशी और वदेशी दोन या ाओ ंके वृ ांत शर क ह. मुझे लगता है क संचार मा यम के त वकास के कारण परदेसु भी अब उतना परदेस नह ं रह गया है. हर दसर फ म और चौथे सी रयल क लोकेशन कोई न ूकोई परदेस ह है. प रणाम यह क आप चाहे बंगलूर म रहने वाले अमीर ह या िछ दवाड़ा म रहने वाले कसान, परदेस अब आपके िलए बहत अनजाना नह ं रह गया हैु .

  • शायद यह भी एक कारण है क लोग अब पहले क तरह उ साह से या ा-वृ ांत नह ं िलखते. परदेस क चकाच ध म देश तो वैसे ह नेप य म धकेला जा रहा है - खास तौर पर संचार मा यम म. ले कन या या ा वृ ांत महज़ यह बखान होता है क अमर का म ऊंची-ऊंची इमारते ह, या लंदन म एक ज है, या चीन क द वार बहत वशाल है याु .. ये सार जानका रयां और इनसे भी बहत अिधक तो आसानी से वैसे ह सुलभ हु . जब पहली बार अमर का आ रहा था और िम ने कहा क आप भी कुछ अव य िलखना, तो मेरे मन म भी यह था क एक-डेढ़ मह ना अमर का म रह कर तो म भी ऐसा ह कुछ िलख सकंूगा. और यह िलखने से तो बेहतर है क नह ं ह िलखा जाए. सो नह ं िलखा. फर दसर बार अमर का आने का संयोग बनाू . कारण शु िनजी-पा रवा रक था. बेट चा का सव. इसी के साथ खूब घूम-े फरे, मौज़-मज़ा कया. और या? चल खुसरो घर आपने.. ले कन ऐसा हो नह ं पाया. यहां रहते-रहते, घूमते- फरते, बेट -दामाद के िम -प रवार से िमलते-जुलते कुछ चीज़ अनायास ह मन म आकार लेने लगीं. इस तरह जस अमर का को हम देख रहे थे वह खूब देख-पढ़-िलख कर भी मेरे िलए अब तक अनजाना ह था. शायद और के िलए भी होगा. और, बना कसी योजना तथा इरादे के एक दन एक लेख कागज़ पर उतर आया. तट थ होकर पढ़ा तो लगा क या हज़ है अगर ऐसी ह कुछ बात और िलख ली जाएं! इसी बीच एक िम दंपती घर आए, चा ने उनसे मेरे िलखे क चचा क , उ ह ने आ ह कया तो मुझे पढ़कर सुनाना भी पड़ा. उनक ित या ने मेरा उ साह काफ बढ़ाया. उ ह ने कहा क यहां जो भी आता है, अमर का क बुराई ह देखता-करता है, जब क आपने इसका उजला तथा सकारा मक प देखा-िलखा है. इससे मझुे एक बात याद आ गई. अपनी पहली या ा के बाद जब भारत लौटा था तो एक पुराने व ाथ से प ाचार म बहस-सी हो गई थी. उसने यं य म िलखा था क म भौितकता, वलािसता, न नता, अ ीलता वगैरह के देश क सैर कर आया हूं, और मने उसे जवाब म िलखा क यहां सरे-आम कोई न नता, अ ीलता वगैरह नह ं है. जो है वह भारत से तो कम ह है. इस बात से वह उखड़ गया और उसने बहत नाराज़ होकर िलखा क ु “आप तो हर चीज़ का सकारा मक प ह देखते ह”. हो सकता है, वाकई ऐसा ह हो. और या फर यह हो क कुछ चीज़ क एक छ व हम मन म बना लेते ह, उससे िभ न कुछ भी हम वीकार नह ं होता, जब क सच केवल वह नह ं होता है. कई स दभ म मझुे ऐसा ह

    लगा. एक दन यहां टनी पीयस का एक एलबम सुन रहा था. टनी नई पीढ़ क

  • रोल मॉडल है और कु यात से स िस बल है. एलबम म एक गीत था – ‘लक ’ (Lucky). गीत या था, क ण-कथा ह थी. कम से कम मेर जानकार म तो नह ं है क ह द के लोक य (पॉप?) गीत म ऐसा सू म मािमक गीत कोई हो. टनी का देह प तो सब देखते ह (और देख कर, आन दत होकर, उसक आलोचना भी करते ह) पर यह शसंनीय, मह वपूण, स वदेनपूण प तो अनदेखा ह रह जाता है. मुझे यह भी याद

    आया क अपने गितशील झान और ऐसी ह सगंत क वजह से म भी अमर का वरोध और िन दा को ह ओढ़ता- बछाता रहा हूं, ले कन यहां आकर मुझे उससे अलग लग रहा है. यह भी याद आया क मेरे एक घनघोर गितशील लेखक िम भी मेर ह तरह पा रवा रक कारण से दो-एक मह ने के िलए अमर का आए थे और एक दन मुझसे कह रहे थे क “यार दगा बाबूु , हम लोग इनक चाहे जतनी िन दा-आलोचना कर, सच तो यह है क.... " और वह हाल मेरा भी हो रहा था. यािन जो छ व मन म बना रखी थी, जो पढ़ते रहे थे वह एक तरफ और जो देख रहे थे वह उससे काफ अलग. इसी से याद आ गए अपन ेकबीर दास. वो या कहा था उ ह ने – “तू कहता कागद क लेखी, म कहता आखंन देखी”. तो या हज़ है, आखंन देखी को िलख ह दया जाए? और इसीिलए यह कताब. ले कन यह कताब पार प रक अथ म या ा वृ ांत नह ं है. सं मरण भी नह ं है. कुल िमलाकर तो यह 'अमर का जैसा मने देखा' टाइप कुछ है. वैसे भी पाठक तो कताब पढ़ता है, वधा नह ं. वधा का सवाल तो सा ह य के पेशवेर आलोचक का है. कताब म य गत चचा काफ है. उसे िनकाल भी सकता था. पर तब जो कताब बनती वह नीरस और िनवय क होती. मुझे लगा क भले ह मेरे प रवार और मेरे जीवन म आपक कोई दलच पी न हो, उसके ज़ के साथ अमर का के बारे म पढ़ना आपको यादा अ छा लगेगा. यह कताब अमर का क राजनीित का समथन नह ं है. पूंजीवाद से मेर असहमित अब भी बरकरार है. इस कताब म बड़े और सै ांितक सवाल को उठाने का कोई यास नह ं है. सोचा समझा यास अमर का क शसंा या उसके बचाव का भी नह ं है. ब क, इस कताब को तैयार करते हएु , जसम क अमर का के नाग रक जीवन और वहां के आम नाग रक क उ मु शसंा है, मेरे मन को यह कुछ यादा ह बेचैन करता रहा है क जस देश के नाग रक इतने अ छे ह उस देश का िनज़ाम इतना ू र, मानवता वरोधी

  • य है? या जनता और शासन म कोई अंत:स बंध नह ं होता? सार दिनया म ुचौधरा ट, हंसा, र पात, शोषण - यह तो करता रहा है अमर क शासन! बहत कम ुअवसर आते ह जब कोई अमर का क भूिमका क सराहना कर पाता है. तो, अमर का का यह प मेर मिृत म बराबर रहा है, ले कन इसके बावज़ूद वहां का आम जीवन, वहां का आम नाग रक मुझे अ छा लगा. और यह मने िलख दया. म कोई िन त लाइन लेकर नह ं चला हूं. इसिलए इस कताब म कई जगह वरोधाभास भी महससू होगा. ले कन राजनीितक प से जस अमर का क सव आलोचना क जाती है, उसी अमर का के आम लोग के इस वृ ांत से हो सकता है कुछ लोग को चीज़ को दसरे पहलू से देखने म मदद ूिमल.े अगर ज़रा भी ऐसा हो सका, म अपने यास को सफल मानूंगा. इस कताब के सारे अ याय अमर का म रहते हए ह िलखे गए हु . इसीिलए अमर का के िलए 'यहां' और भारत के िलए 'वहां' का योग है. अब जब भारत पहंचकर यह कताब ुअपने पाठक को स पने क तैयार कर रहा हूं, मुझे अमर का के उन सारे िम प रवार क याद आ रह है जनके कारण वे सारे अनुभव जुट सके जो इस कताब म ह. सबका तो नामो लेख भी स भव नह ं है, पर कुछ का ज़ करने से खुद को रोक नह ं पा रहा हूं. रजनीश (उफ राज) और द पका हमारे बहत नज़द क रहे हु . राज क ब हन नयनतारा भी. द पका के माता- पता उषाजी व राकेश जी भी. राज क चाचीजी, निलनी व सुिमत भी. इनसे खूब िमलना-जुलना तथा वमश होता रहा. अपने डॉ टर िम दंपती पंकज और आरती क चचा एकािधक थान पर क है. इनसे मुझे यहां के जीवन और सवाल को समझने म बहत मदद िमलीु . पंकज वेल इंफॉ ड ह और चीज़ को बहत गहनु , व ेषणा मक तथा सुलझ-ेसकारा मक नज़ रए से देखते ह. चा -मुकेश के असं य िम - नरेश-अंश,ु अिभ जत-द पाली, मनोज-आिशता, सुनील-राधू, अजय-मोना, सुधा-सूरज, मुकेश शाह से हई अनिगनत चचाओ ंने इस कताब के िलए खादु -पानी का काम कया है. और जस बात को टालता रहा हूं, अब वह. चा -मुकेश. कहना भी चाह रहा हूं, संकोच भी है. अपने ब च के बारे म बात करना आसान नह ं होता. चा तो शु से ह मेरे िलखे क पाठक और बेबाक समी क रह है. अब चा -मुकेश कहना उिचत लग रहा है. इन दोन क ह ित याओं, सुझाव और सूचनाओ ंने मुझे इस कताब को पूरा करने म बहत मदद द हैु . मुकेश मेरे क यूटर गु भी बन गय.े इनके मागदशन म ह म क यटूर पर इस कताब क पा डुिल प तैयार कर सका. इन दोन क सहायता से म इ टरनेट का खूब उपयोग कर सका. इन दोन के ह कारण मेरे िलए अमर का क लाइ ेर का उपयोग भी स भव हआु (लाइ ेर

  • क व ततृ चचा एक लेख म है.) अमर का क दोन या ाएं तो इनके कारण हईु ह . इसिलए इस पु तक के मलू म तो ये ह ह. अपन ेब च के बारे म इससे यादा नह ं कहा जाना चा हये न? प ी वमला दोन ह या ाओ ंम साथ थीं. पूर जीवन या ा क ह सािथन ह वे. इस पु तक म जो कुछ िलखा है उस सबक चचा उनस ेिनरंतर होती रह है. एक तरह से तो यह कताब हम दोन का समवेत सजृन है. इसिलए यह कहना गैर-ज़ र है क इस कताब के िलखने म भी उनका भरपूर सहयोग रहा है. पु व ास और पु वधु सीमा ने भी इस पु तक के अनेक अ याय को पढ़कर अपने सुझाव दये ह. उनका आभार तो या मानूं?

    वाभा वक ह था क भारत लौटकर अपनी यह पा डुिल प अपने िम को दखाता. पछले कई वष से यह हो रहा है क जब भी कुछ िलखता हूं, सबसे पहले उसक चचा अपने िम , ह द के ितभाशाली आलोचक डॉ माधव हाड़ा से अव य करता हूं. वे भी ायः ऐसा ह करते ह. इतनी समझ हमम पर पर वकिसत हो गई है क खुल कर

    अपनी ित या य कर देते ह. बना यह सोचे क यह शसंा है अथवा आलोचना. यह मानते हए क अगर आलोचना भी है तो इसिलए क जो िलखा है उसे बेहतर बनाया ुजा सके. यह पा डुिल प भी सबसे पहले उ ह ं ने पढ़ है. उनके अनेक सुझाव से यह पु तक बेहतर हो पाई है. उ ह ं के सुयो य िश य, युवा और उ साह ा यापक डॉ प लव ने भी इस पा डुिल प को बेहतर बनाने के िलए अनेक सुझाव दये. अपने अ ज डॉ मनोहर भाकर, ‘समय माजरा’ के स पादक और सुप रिचत कथाकार डॉ हेतु भार ाज, सुप रिचत यं यकार डॉ यश गोयल, सुधी िम वमल जोशी, नाबाड के व र बंधक ी जी आर केजर वाल, युवा िम यशवंत गहलोत, हमारे िनकट थ ी आन द कुमार गग, ने भी काशन पूव ह इस पु तक को पढ़ कर अनेक सुझाव दान कर मझुे उपकृत कया है.

    इस पु तक क पा डुिल प तैयार करते समय मेरे सामन ेएक बड़ उलझन इस देश (संयु रा य अमर का) के नाम क नागर वतनी को लेकर रह है. अं ेज़ी वतनी (America) के अनु प उपयु था क म 'अमे रका' िलखता. ार भ म िलखा भी. ले कन कुछ संशय होने पर जब यान दया तो पाया क ह द म इसे कई तरह से िलखा जाता है. अमर का, अमेर का, और अमे रका. बीबीसी ह द सेवा वाले इसे 'अमर का' िलखते ह. अमर का क सुप रिचत सारण सं था VOA (Voice of America) को िलख कर पूछा तो वहां से उ ो षका र म शु ला ने भी इसी वतनी के प म अपनी राय द . मज़े क बात

  • यह क इस पु तक के मेरे लेख जहां भी छप,े व ान स पादकगण ने मेरे िलखे 'अमर का' को ायः 'अमे रका' म त द ल कर ह छापा. म इस पु तक म 'अमर का' ह िलख रहा हूं. इस पु तक के अनेक लेख जनस ा, मधुमती, समय माजरा, समयांतर, अनौपचा रका, लोक िश क आ द म छप कर पाठक तक पहंच चुके हु . इनके स पादक के ित आभार. तो जैसी भी है, कताब आपके हाथ म है. कहना अनाव यक है क आपक ित या क मुझे ती ा रहेगी. 1 जनवर 2006 -- दगा साद अ वालु

    परदेस म िनकला चांद राह मासूम रज़ा क पं यां ह : "हम तो ह परदेस म, देस म िनकला होगा चांद." जब आप देश म होते ह तो आपका एक बडा सपना होता है क वदेश जाएं, और जब वदेश पहंच जाते ह तो अपना देश कुछ यादा ह याद आने लगता हैु . देश क हर बात याद आने लगती है. पछले दन ह द क सुप रिचत ले खका मदृला गग अमर का आ तो ुउ ह यहां क बेहद-बेहद सफाई के बीच भारत क धूल-िम ट क याद बेचैन कर गई. अमर का म, या कसी भी देश म रह रहे भारतीय भारतवासी भारतीय से यादा भारतीय हो जाते ह. परदेस म हो रहा हर भारतीय आयोजन उ ह अपने देश के थोड़ा िनकट ले जाने वाला अवसर बन जाता है. ऐसा ह कुछ अनुभव हआ मुझे िसएटल म ु 'जगजीत िसंह नाइट' म जाकर. अब यह कहना तो कोई माने नह ं रखता क जगजीत मेरे पस द दा गायक ह. भारत म शायद ह कोई हो जसे जगजीत क गायक पस द न हो. इस मुकाम तक पहंचने म जगजीत को ुकम से कम चालीस साल लगे ह. चार दशक क कड़ मेहनत और इस दौरान अ जत अनुभव उनक गायक और टेज तु तय म बहत साफ प रल त होते हु .

  • जब हमारा अमर का आने का काय म बन रहा था तभी अमर का म जगजीत नाइट का चार शु हो गया था. बेट चा को जगजीत के ित हम दोन क द वानगी का पता है,

    इसिलये उसने हमारे िलये दो ट कट तुरंत ह खर द कर रख िलये. उसके सव क स भा वत ितिथ भी वह थी जो इस कंसट क थी, इसिलये यह तो तय ह था क बेट - दामाद इस शाम का लु फ नह ं ले पाएंग.े अमर का आने वाले हर भारतीय क तरह हम भी इस मज़ के िशकार ह क हर डॉलर अमर क मू य को भारतीय मु ा म त द ल कर भारत क क मत से तुलना कर, जैसी भी थित हो, दःखीु , च कत, ग वत होते ह. इसिलय ेजब वमला के कई बार और कई तरह से पू ने के बाद चा ने बताया क इस शो के एक ट कट का मोल साठ डॉलर है, तो हमने मन ह मन सुना- तीन हज़ार पये, और कंिचत दखी हु ुए. कुछ माह पहले ह जगजीत को जयपुर म पांच सौ पये का 'महंगा' ट कट खर द कर सुन चुके थे. पर यह अमर का है ! 14 मई को चा ने बेट को ज म दया. हम लोग अ पताल म ह थे, पर जाने कब उसने अपने साथी नरेश जैन से गुपचुप बातकर यह यव था कर द क नरेश इस साढ़े सात बजे वाले शो के िलये हम लेने छः बजे अ पताल आ पहंचेु . अब यह ं यह भी चचा कर दं क दिनया कतनी छोट और गोल है ू ु ! नरेश के दादाजी से िसरोह म मेर अ छ िम ता रह है. मुकेश के वग य पताजी का भी नरेश के इस प रवार से गहरा अपनापा था. फर संयोग यह बना क राज थान क पूव-इंजीिनय रंग पर ा (पी ई ट ) म उ ीण होने पर नरेश और चा एक साथ ह िसरोह से उदयपुर काउंिसिलंग के िलये गये. पढे अव य अलग-अलग कॉलेज म. और अब नरेश, मुकेश और चा तीन ह माइ ोसॉ ट म काम करते हए भारत का नाम रोु शन कर रहे ह. एक और संयोग यह भी क नरेश का प रवार जयपुर म रहता है, हम भी. तो, इस नरेश के साथ अपने अ पताल से कोई पचास कलोमीटर दर मूर िथएटर के िलये रवाना हएू ु . मूर िथएटर डाउनटाउन िसएटल म थत है. जब हम पहंचे तो घड ठ क साढे सात बजा ुरह थी. हॉल के बाहर का य देखकर म हआ क कह ं हम भारत म ह तो नह ं हु . इतने सारे भारतीय एक साथ! ये भारत म इतने भारतीय नह ं होते. यहां अपने पहनावे म ये भारत क तुलना म यादा भारतीय थे. वहां ये लोग भले ह जी स वगैरह म होते, यहां यादातर लोग पार प रक भारतीय वेशभूषा, यािन साड़ , सलवार सटू, कुता पाजामा वगैरह म थे.

  • जो ट कट हमारे पास थे उनम बाकायदा यह अं कत था क हम आयल (Aisle) 3 से वेश करना है और S कतार म हमार सीट न बर 2 व 3 है. पर वहां तक पहंचने के ु

    िलये खासी मश क़त करनी पड . िथएटर क लॉबी म इतनी भीड थी क आगे बढ पाना ह मु क़ल था. लोग के हाथ म लटे थीं, लेट म समोस,े छोल,े ट क वगैरह और चार तरफ थी भारतीय पकवान क जानी पहचानी खुशबू. हाल-चाल पूछे जा रहे थे, ठहाके लग रहे थे, चटखारे िलये जा रहे थे. ऐसा भारतपन भला रोज़-रोज़ कहां नसीब होता है! इस सात समु पार के वलायत म बड इंतज़ार के बाद यह शाम उतर थी और इसने इस मूर िथएटर को एक िमनी ह द तान म त द ल कर ुदया था. इस बहत ु इ फामल ए ट यूड वाले देश म जैसा देस वैसा भेस बनाकर रह रहे भारतीय आज अपने पूरे रंग म थे. म हलाओ ंने तो मानो अपने गहन -कपड क नुमाइश ह लगा द थी. हम जैसे-तैसे अपनी सीट तक पहंचेु . िथएटर कुछ पुराना-सा था, यादा ह भ य. वरना यहां के िथएटर (भारत क तुलना म) बहत सादे होते हु . जगजीत मंच पर आ चुके थे. ार भक औपचा रकताएं भी शायद पूर क जा चुक थीं. बहत ह केु -फु के अ दाज़ म

    उ ह ने अपने साथी संगतकार का प रचय कराया. हर कलाकार के िलये तािलयां और सी टयां बजती रह ं, और इस सबके बीच ह जगजीत ने गाना शु कर दया. जगजीत क गायक का या कहना ! उसके जाद का असर न होू , यह मुम कन ह नह ं. वे एक के बाद एक गज़ल सुनाते गय.े कब डेढ़ घ टा बीत गया, पता ह नह ं चला. पं ह-बीस िमिनट का म यांतर हआु , लोग फर खाने और िमलन-ेजुलने पर टट पू ड़े. फर काफ देर तक गाने के बीच लोग का आना-जाना चलता रहा. जगजीत ने फर डेढ़ घ टा गाया, और अचानक शो समा . जगजीत अ सर ऐसा ह करते ह. यह कहने क कोई ज़ रत नह ं क जगजीत ने अ छा गाया. यह भी कहने क ज़ रत नह ं क उ ह ने ोताओ ंके मूड के अनु प गाया. यहां जो ोता थे वे सब बहत ग भीर ुोता नह ं थे. जगजीत खुद एम ट वी पर अपने एक इंटर यू म कह चुके ह क उनके

    कंसट म कुछ ोता ऐसे होते ह जनका संगीत स ेकोई वा ता नह ं होता. वे महज़ इसिलये होते ह क अगले दन यह दखावा कर सक क वे भी कल यहां थे ! कुछ ोता ार भ से ह काफ 'उ च अव था' को ा थे. िथएटर म भी एक बार (Bar) था. जो घर

    से उ च अव था को ा होकर नह ं आये थे, उनम से अनेक यहां उस अव था को ा हो गये. और जब आप उस महान अव था को ा हो चुके ह तो आपके िलये

  • 'आ ह ता-आ ह ता' और 'िम ट दा बाबा' म कोई फक न रह जाये, यह वाभा वक ह है. ‘िम ट दा बाबा' जगजीत क बहुत य रचना है. वे गाते भी इसे पूरे दद के साथ ह. शायद उ ह अपना ववेक ह याद आ जाता हो, इसे गाते व त. इसिलये जब इस गीत पर भी लोग सी टयां, तािलयां और चुट कयां बजाने लगे तो जगजीत यह याद दलाये बगैर नह ं रह सके क यह 'उस तरह' का गीत नह ं है! मेर अगली क़तार म बैठे एक स जन हर गीत के ख म होते न होते 'दरबार ' क फरमाईश कर रहे थे. बा-आवाज़े-बुल द. मज़े क बात यह क जब जगजीत ने वाकई दरबार गाना शु कया, तब भी वे मांग कर रहे थे - दरबार ! मेरे ठ क आगे एक युवक हर गीत पर जस तरह अपना हाथ उठाकर अपने आ ाद का दशन कर रहा था उससे शु -शु म तो मुझे लगा क यह उसका फेव रट नगमा होगा, पर पं ह-बीस गीत पर उसक एक-सी ित या देखकर मुझे उसक जवानी पर ह यादा लाड़ आया. और, जवानी म समझ होती ह कहां है? मेर दांयी तरफ से एक बुज़ुग स जन कभी-कभी 'गािलब' क गुहार लगा देते थे. उनक आवाज़ तो मंच तक नह ं पहंची पर जगजीत ने उनक शाम साथक ज़ र कर दु . जगजीत गािलब को गा रहे थे, म उन स जन को देख फराक़ को मरण कर रहा था- आए थे हंसते खेलते मैखाने म फराक़ जब पी चुके शराब, संजीदा हो गये ! जगजीत बहत हु के मूड म थे. ोताओ ंसे चुहल करते जा रहे थे. साउंड िस टम पर खफा होने का उनका िचर-प रिचत अ दाज़ यहां भी बरक़रार था. एक शो-मैन के प म वे मंज चुके ह. और इस मंज जाने क अपनी सीमाएं होती ह जो यहां साफ गोचर थी. जगजीत ने वे ह सार चीज़ सुना जो वे हर कंसट म सुनाते ह. नई और ग भीर चीज़ सुनाने क र क य ली जाये ? एक मुकाम पर आकर शीष पर टके रहने क चाह आपक एक ऐसी मज़बूर बन जाती है जो कुछ भी नया और बेहतर करने क आपक योगशीलता को बािधत करती है. जगजीत ने अ छा गाया, पर वे बेहतर गा सकते थे. जो लोग इस कंसट म आये, उनम जगजीत क गायक के ित अनुराग से यादा अपनी धरती क महक क ललक थी. तीन-चार घ ट के िलये एक ह द तान ह बन गया था ुवहां. अगर यह कहना अिश तापूण न लगे तो कहं क वह अ त य तताू , वह ध का-मु क , वह गमजोशी, वह अपनापा, वह सब कुछ जो अपने देश म होता है !

  • दरअसल, यह भी परदेश म रहने क एक भावना मक ज़ रत होती है. आप घर वाल से बात कर सकते ह, उनके समाचार पा सकते ह, घर म ह द तानी खाना खा सकते ह पर ुआपके चार तरफ तो अमर का ह होता है ना , जो चाहे कतना ह अ छा य ना हो, अपना तो नह ं होता. इसी ‘अपने’ क तलाश, अपनी धरती का मोह भारतीय को इस तरह के आयोजन म खींच लाता है. यह कारण है क यह शो बीस दन पहले ह सो ड आउट (Sold out) हो चुका था. ऐसे म, कसने या गाया, और कसने या सुना, इसका कोई खास मतलब नह ं रह जाता. असल बात यह थी क जगजीत के इस कंसट के बहाने यहां इस िसएटल शहर म भी च द घ ट के िलये वह चांद िनकल आया था जसे याद कर राह मासूम रज़ा उदास हए थेु .

    इस चांद के ितिल म से बाहर िनकले तो रात के साढे यारह बज रहे थे. काफ सद रात थी पर मूर िथएटर के उस इलाके म ह ब-मामूल चकाच ध बरक़रार थी. बहमं ज़ला ुइमारत , शानदार यावसाियक ित ान और तेज़ भगती कार क हेडलाइ स क च ध. ब क इससे भी कुछ यादा. सड़क पर बखर भारतीय सु द रय के आभूषण क , उनके चमचमाते झलिमलाते व क और इन सबसे यादा अभी-अभी ‘भारत से लौटकर आये’ उनके फु लत चेहर क उ लासपूण आभा इस चमक को और बढा रह थी. इस चकाच ध के घेरे से बाहर िनकल, कुछ दर चले तो हम और दन कू बिन बत अमर क आकाश आज कुछ कम चमकदार लगा. िनकले हए चांद कोु हम पीछे जो छोड़ आये थे ! *************

    है पी बथ डे टू यू चा ने सुबह ह कह दया था क शाम को हम द पका के यहां जाना है. द पका और रजनीश (राज) इन लोग के नज़द क दो त म ह. नज़द क कई तरह क है. घर एकदम पास है. पैदल कोई 3-4 िमिनट क दर परू . मुकेश और राज दोन ह माइ ोसॉ ट म ह. दोन , ब क चार बेहद िमलनसार और खुशिमज़ाज़ ह. पछली बार, डेढ़ेक साल पहले जब हम लोग यहां आए थे, इन प रवार म दो ती नह ं थी. ले कन इस

  • बीच गंगा म बहत सारा पानी बह चुका हैु . दोन प रवार कई बार साथ बाहर जा चुके ह, और अगर एक घर म कोई खास डश बनती है तो दसरे घर म उसके वाद क तार फ ूहोती ह है. दोन प रवार क नज़द क का एक आयाम यह भी है क चा और द पका क गभाव था एक साथ आगे बढ रह है. दोन क स भा वत सव ितिथ एक ह है. अ पताल एक है, डॉ टर एक है. और जैसे इतना ह काफ न हो, गभकाल म मदद के िलये चा के मां-बाप(यािन हम) आये हए ह तो द पका के भी मांु -बाप आये हए हु . दोन प रवार अ वाल ह. आज द पका का ज म दन है. सवकाल िनकट होने से यह संशय तो बना ह हआ था ुक शाम को द पका (या चा , या दोन ) घर पर ह ह गी या सूितगहृ म, पर फर भी आयोजन कर ह िलया गया था. मुकेश भी आज द तर से ज द आ गये. सात बजे. रोज़ साढ़े आठ-नौ बजे तक आते ह. ज द से नहा-धोकर तरोताज़ा हए और हम चले राज के घरु . पहले एक च कर िनकट क दकान काु . चा द पका के िलये कुछ लेना चाहती थी. राज ने साढ़े सात बजे बुला रखा था. इन दन अमर का म सूया त बहत देर से होता है ु - रात साढ़े नौ बजे के आस पास. साढ़े सात बजे तो ऐसा लग रहा था जैसा भारत म शाम चार बजे लगा करता है. पूरा, चमकता, उजास भरा दन. ज द करते-करते भी हम थोडा लेट हो ह गये. राज के यहां पहंचे तो घड़ आठ बजा रह थीु . बहत बड़ा आयोजन नह ं थाु . कोई दस-बारह लोग थे. सभी सहकम . सभी युवा. सभी भारतीय. यहां भारतीय व अमर कय के स बंध काम-काज तक ह सीिमत ह. घर आने-जाने क आ मीयता लगभग नह ं है. भारतीय क अपनी एक अलग ह दिनया हैु . िसएटल जैसे शहर म इस दिनया का बना रहना ुसहज और स भव है भी. अकेले माइ ोसॉ ट म ह लगभग चार-पांच हज़ार भारतीय ह. कह ं भी जाएं - शॉ पंग माल म, पाक म, रे टोरे ट म, आपको साड़ ,सलवार, चूड़ , ब द के दशन हो ह जाएंगे. तो हम भी जूते उतार कर भीतर पहंचेु . बता दं क यहां जूते अिनू वायतः बाहर उतारे जाते ह. सभी आ चुके थे. दो युवा माताएं और उनके पितगण - अपने अपने िशशओु ंम मगन. एक क संतान पछली जून म हई थीु , एक क जुलाई म. चचा हई क मई म मां ुबनने वाली दो युवितयां (चा व द पका) यहां ह. इस तरह मई,जून,जुलाई,अग त म लगातार बथडे पा टयां हआ करगीु . एक दो त इन लोग क दो-तीन दन बाद भारत से आने वाली ह. उ ह ने अग त म िशश ुको ज म दया था. उ ह भी िगन िलया गया था. उनके पित पाट म थे. एक और दंपती थे. प ी गभवती थीं. दखाई भी दे रह ं थी पर

  • उनका प रचय यह कहकर कराया गया क वे ै ने ट ह. यहां गभाव था को गोपनीय नह ं माना जाता. उसके बारे म जतनी खलुकर और सहज भाव से उ लासपूण चचा होती है उसक भारत म क पना भी नह ं क जा सकती. इस खुलेपन का एक बड़ा फायदा यह है क यां अपनी गभाव था के बारे म, उसके क के बारे म और उन क से बचने के उपाय के बारे म सब कुछ जान जाती ह. डॉ टर भी बहत खुलकर और व तार से ुबात करते ह. नए माता- पता के िलये बाकायदा सिेमनास/काउंिसिलंग सेशसं होते ह और लोग पैसा खच कर उनका लाभ उठाते ह. यह है जीवन के ित व थ कोण! सभी से प रचय हआु . रजनीश क बहन नयनतारा भी इसी िसएटल शहर म रहती है. वह भी आई हई थीु . द पका के माता- पता और हम दोन को छोड़कर शषे सभी आपस म बहत अ छ तरह घुलेु -िमले थे. पर असहज हम भी महससू नह ं कर रहे थे. अमर क जीवन और आबो-हवा म कुछ ऐसी अनौपचा रक सहजता है क आप वाह से अछूते रह ह नह ं सकते. हंसी-मज़ाक के दौर पर दौर चल रहे थे. नयनतारा से कहा गया क वह आजकल राज के यहां बहत आती हु . उसने भी मज़ाक का पूरा मज़ा लेते हए जवाु ब दया क आजकल यहां अ छे-अ छे पकवान जो बनते ह. इतना सुख क न केवल खाओ, अगले दन के िलये पैक करके भी ले जाओ.. म सोच रहा था, या भारत म इस तरह मज़ाक कया जा सकता है? और या यह भी बहत वाभा वक होगा क एक ह ुशहर म बहन-भाई अलग-अलग घर म रह? बड़े शहर क द रय और काम क ूय तताओ ंने अ वाभा वक को भी वाभा वक बना दया है. जब भी फुरसत िमलती है, नयनतारा भाई के यहां आ जाती है. एमबीए कया है. कसी अ छ क पनी म काम करती है. छोट -सी, यार -सी,गु डया-सी लडक . भारत म होती तो शायद मां कह ं अकेले जाने ह नह ं देती, ले कन यहां सात समु पार पूरे दमखम से शानदार ज़ दगी जी रह है. यह है आज क युवती. यहां खाने क कुछ िभ न पर परा है.पहले अपेटाइज़र. पर भारत म इस से जो आशय होता है(सूप वगैरह) उससे थोड़ा अलग. यहां अपेटाइज़र का आशय खा से होता है, बेशक उसके साथ पेय भी हो सकता है. हम ेड रोल और कांजी बड़ा दया गया. यहां पेपर नैप कन ( जसे ये लोग ट यू पेपर कहते ह) का भरपूर उपयोग होता है. िगलास ड पोज़ेबल, पर इतने सुघड़ और सु दर क चाह तो अलमार म सजा ल. ट यू भी कम ग रमापूण नह ं. हंसी-मज़ाक का दौर चल रहा था. हम फेिमली म म ह थे. फेिमली म यहां एक ऐसी जगह होती है जसम कचन भी शािमल होता है. ओपन कचन. कचन, एक बड़

  • टेबल, कुछ सोफे ( ज ह ये लोग काउच बोलते ह), कुछ कुिसयां, टलू , ट वी, यू ज़क िस टम; यािन जहां बैठकर आप गपशप करते हुए, अनौपचा रक व सहज प से खा-पी सक. टेबल पर केक लगा दया गया था. द पका ने ( ज ह डॉ टर के अनुमान के िलहाज़ से इस समय अ पताल म होना चा हये था) केक काटा. सबने तािलयां बजा , ‘है पी बथ डे ट यूू ’ गाया. राज और मुकेश ने पूछा क म ंक म या लेना पस द क ं गा. राज के यहां बहत ुसमृ बार है. मेर पस द ह क थी. राज ने ट चस ह क क बॉटल िनकाली. राकेश जी और उषा जी -द पका के माता पता- लखनऊ म रहते ह. ये गु ा दंपती भी हमार ह तरह दसर बार अमर का आये हू . हम लोग यहां के जीवन के बारे म अपने अनुभव बांटना शु करते ह. यहां क सु यव था, यहां क सफाई, यहां का सुगम नाग रक जीवन, वगैरह. इन लोग ने कल 'धूप' फ म देखी थी और इनसे ह उसक ड वीड लेकर आज दोपहर हमने भी देख डाली. मेरे जेहन पर 'धूप' का कथानक छाया हआ थाु . भारत म शायद यह फ म रलीज़ ह नह ं हो पाई है, हालां क इसका संगीत काफ चला है. म तो इस फ म से अिभभूत था. गु ा जी भी. कहानी भारत म या ाचार और िनक मेपन से एक आदमी (ओम पुर ) क लड़ाई क है. इससे मुझे सव र दयाल स सेना क 'लड़ाई' भी याद आती रह . हम दोन यह चचा करते रहे क य भारत म ह ऐसा होता है, अमर का म नह ं. यहां तो जसे जो काम करना है, पूरे मन से करता है. भारत म तो जैसे वक क चर है ह नह ं. चचा ह ब-मामूल िस टम पर आकर अटक जाती है. हम लोग अमर का क , उसक पंूजीवाद सं कृित क , मनु य वरोधी आचरण क , सार दिनया पर अपनी चौधराहट लादने क खूब लानत मलामत करते हु . पर इसी अमर का का दसरा पहलू भी हैू , यहां का साफ-सुथरा नाग रक जीवन. इसी को देखकर समझ म आता है क य अमर का दिनया के सबसे समृु , शानदार और जीवंत देश म िगना जाता है. हमार चचा इससे फसलकर आम जीवन पर आ जाती है. भारत म हम कपड़ वगैरह क खूब िचंता करते ह. यहां उनक ब कुल भी िचंता नह ं क जाती. आप जो और जैसे चाहे पहन ल. िन कर(घुट ना) और िघसा हआ बिनयान जैसा ट शट पहन ुकर तो लोग नौकर पर चले जाते ह. इस आयोजन म भी कोई बना-ठना नह ं था. युवितयां भी नह ं. एक अपवाद द पका थीं. उ ह होना भी था. पर वे भी उस तरह सजी-संवर नह ं थीं जैसे अपने ज म दन पर भारत म होतीं. शषे सब तो िनतांत काम चलाऊ कपड़ म थे. अमर का म कपड़ का तो यह आलम है क पछली बार जब हम यहां आये तो म जो सूट टाई वगैरह लाया था, उ ह उसी पै ड अव था म वापस ले गया. लगा क सटू-टाई म अजूबा लगूंगा. यहां तो शॉट, ट शट, जींस यह चलता है. घर म

  • भी, द तर म भी और पाट म भी. औपचा रक वेशभूषा तो बहत ह कम अवसर पर ुइ तेमाल होती है. हमार गपशप के बीच ह प ज़ा भी आ गया. एक पेग ख म हो गया, गु ा जी दसरा ूबना लाये. उधर युवा समूह म ( जसम ीमती गु ा और ीमती अ वाल भी थीं,बावज़ूद इसके क उनका युवा होना स द ध था) गपशप का उ मु दौर चल रहा था. य म सहज हो जाने का ज मजात गुण होता ह है. आवाज़ के टकड़े हम तक भी आ रहे थेु . द पका के पता और म अपना अपना िगलास लकेर इस फेिमली म से सटे िल वंग म (जो हमारे ाइंग म के समक होता है) म जा बैठे. पूर पाट म म दरा ेमी हम

    दो ह थे. वहां से भी हम इधर का सब कुछ दखाई-सुनाई दे रहा था. बाद म घर आकर मने वमला से जाना क सभी अपन-ेअपने ब च के ज म का ब दास वणन कर रह थीं. वमला घर आकर भी 'हाय राम' मोड (Mode) म थी. यहां सव के समय पित तो उप थत रहता ह है, अ य प रवार जन भी रह सकते ह. नयनतारा से कहा जा रहा था क वह द पका के सव क फोटो ाफ करे और वह (बेचार कंुवार ह द तानी लड़कु ) सव का नाम सनुकर ह घबरा रह थी, और सब दे वयां उसक इस घबराहट का मज़ा ले

    रह थीं. यहां कोई कसी से औपचा रकता नह ं बरतता. सब एक दसरे को उसके नाम से पुकारते ूह. जी, साहब, बहनजी, भाभीजी का बोझ ये लोग भारत से यहां ढोकर नह ं लाये ह. खाने पीने के मामले म कोई मनुहार नह ं है. यह बहत आम है क आप कसी के घर जाएं तो ुगहृ वामी आपके खाना शु करने का इंतज़ार ह न करे. आपको खाना है, खाए,ं न खाना है, न खाएं. अगर यह आस लगाई क कोई दो बार आ ह करेगा तभी खाएंगे, तो भूखे ह रह जाएंगे. खाना खाकर झूठे बतन िसंक म साफ करना तथा डश वाशर म लगाने के िलये तैयार कर देना यहां आम है. इससे गहृ वामी/ वािमनी को जो आसानी होती है, उसे देखकर ह समझा जा सकता है. लोग एक एक करके वदा हो रहे थे. हम य क उनके वदा माग म ह थे, सभी हमसे भी बाय-बाय करते जा रहे थे. ंक ख म कर और पेट म वा द प ज़ा ठंूस कर (म तो यादा ह खा गया था!) हम लोग भीतर वाले िल वंग ए रया म आ गये. अब हम

    प रवारजन ह रह गये थे. राज-द पका, नयनतारा, मुकेश-चा , और हम दोन माता पता युगल. थोड़ देर सी वस खलेा. पहली बार ह खेला पर मज़ा आया..

  • जब उठे तो यारह बज रहे थे. इस वास म हमारे िलये पहला अवसर था यह देखने समझने का क एक िभ न सं कृित कस तरह आपको अपने अनु प ढालती है, और य द आप ववेकशील ह तो कस तरह दोन सं कृितय क अ छाइय को अपना लेते ह! .*******************

    ज़ंदगी, मेरे घर आना, ज़ंदगी !i उफ नई ज़ दगी का शानदार वागत ! यह हमार दसर ू अमर का या ा थी. पहली बार 2002 के अ टोबर म बेट -दामाद के बुलावे पर अमर का घूमने आए थे. अमर का या ा के म म सबसे मु क़ल होता है अमर का का वीज़ा िमलना. उस व त हम बमु क़ल तीन मह ने का वीज़ा िमल पाया, उसम से भी एक मह ना तो रज़वशन वगैरह िमलने म ह बीत गया. डेढ़ मह ना यहां रहे, खूब घूमे- फरे. दो साल भी नह ं बीते क फर अमर का आने का संयोग बन गया. बटे गभवती थी. बेट -दामाद ह नह ं, इनके प रवार वाले भी चाहते थे क इस व त हम लोग इनके साथ ह . हम भी कोई खास द क़त नह ं थी. पछली बार तो सरकार नौकर म था, यादा छु टयां िमलना मु क़ल था. अब सेवािनवृ हो जाने से वह द क़त भी नह ं रह थी. द क़त एक ह थी - वीज़ा िमलने क . अमर क वीज़ा िमलना इतना मु क़ल माना जाता है क भारत के अखबार म तो पेशवेर वीज़ा सलाहकार के व ापन पते ह, आपको इ टर यू के िलये बाकायदा तैयार कया जाता है. ले कन हमने तो सोच िलया था क जो भी पूछा जाएगा, उसका सच-सच जवाब दे दगे. ले कन चा क सलाह कुछ अलग थी. प ी का और मेरा खयाल था क अमर क दतावासू म इ टर यू म यह तो पूछा ह जायेगा क हम इतनी ज द दबारा ु अमर का य जाना चाहते ह ? और हमारा सौ-टका सच जवाब होगा- "बेट क गभाव था म उसक सहायता के िलये." ले कन चा ने

  • सलाह द थी क हम भलूकर भी यह जवाब न द. च कने क बार हमार थी. सच को न बताने क वजह ? चा ने समझाया क यह उ र देने पर वीज़ा अिधकार यह कहकर हम िन र कर दगे क "इस कारण जाने क कोई ज़ रत नह ं है, इस काम के िलये तो अमर क िच क सा सेवाएं ह पया ह." हमारा भारतीय मन इस बात को पचा नह ं पाया. आ खर कोई भी डॉ टर, कोई भी अ पताल- चाहे कतना ह अ छा य न हो, मां-बाप या घर वाल का वक प कैसे हो सकता है. ले कन फोन पर बहस ममु कन नह ं थी... क़ सा कोताह यह क चा क सलाह पर अमल कया, कहा हम सेवा िनवृ के बाद फुसत से अमर का घूमना चाहते ह, प ली बार यादा छु टयां न िमल सकने के कारण ठ क से घूम नह ं पाए थे (और यह बात िम या भी नह ं थी !)-- और दस साल का वीज़ा िमल गया, म ट पल ए वाला. वीज़ा िमल जाने क याशा म हवाई जहाज म ट कट पहले ह लाक करवा रखे थे, अत: उसम कोई समय लगा नह ,ं और 28 अ ेल

    2004 क दोपहर हम अमर का क धरती पर, अपनी यार बेट और उससे भी यारे दामाद के सामने थे. चा ने जो कहा था, उसे देखन-ेसमझने का मौका िमला कोई पं ह दन बाद. इस बीच टकु ड़ -टकु ड़ म अमर का क िच क सा सु वधाओ ंके बारे म हमारा ानवधन होता रहा. अमर का म िच क सा सु वधा बहतु यादा महंगी है. इसके अपने कारण ह, जनक चचा कभी अलग से क ं गा. ले कन इस समाज ने महंगी िच क सा ा करने का भी एक तर का तलाश िलया है, या बना िलया है. वह है मे डकल इं योरस. यहां अिधकांश लोग अपना मे डकल इं योरस कराते ह और तब इलाज़ का यय भार इं योरस क पनी वहन करती है. इं योरस क कई ला स ह, बीिमत रािश भी अलग-अलग होती है, इ ह आप अपनी ीिमयम चुकाने क हैिसयत के अनुसार चुन लेते ह. मुकेश और चा दोन य क माइ ोसॉ ट म काम करते ह, माइ ोसॉ ट ह इन दोन का ीिमयम भरता है.

    इस िलहाज़ से माइ ोसॉ ट काप रेशन अमर का के े तम िनयो ाओ ंम से है क वह अपने कमचा रय को सव े िच क सा बीमा का संर ण दलाने का यय भार वहन करता है. मज़े क बात यह क सूित यय भी मे डकल इं योरस से ह होता है. चा क सूित का सारा यय भार इनके मे डकल इं योरस से ह वहन हआ और उस ु

  • इं योरस का ीिमयम इनके िनयो ा ने चुकाया. (हमने बाद म जाना क चा के सव पर कुल 14,000 डॉलर खच हआु , यािन भारतीय मु ा म . 7 लाख.) गभ धारण करते ह आपको कसी अ पताल म पजंीयन करवा लेना होता है. यहां लगभग सब कुछ िनजी े म है. चा ने अपना पंजीयन एवर ीन अ पताल म करवाया था. संगवश, यह बता दं क इस अ पताल क गणना सूित के िलहाज़ से ू अमर का के दस े अ पताल म क जाती है. बहत िनयिमतता से चा का चेकु -अप होता रहा, दवाइयां िमलती रह ं. इसी दौरान चा और मुकेश -भावी माता पता- को उन सेिमनास को भी अटै ड करने का मौका िमला जनम गभ धारण, गभ वकास-उसक या, सम याओ ंऔर सावधािनय का पूरा ान कराया गया और नवजात िशश ुको पालने का बहत सघन िश ण दया गयाु . इन लोग से समय-समय पर हई चचा से यह बात पता ुलगी क जो बात हम दादा-दाद बनकर तथा अब नाना-नानी बनने के कगार पर पहंचकर भी नह ं जानु पाये ह वे सब बात ये लोग वै ािनक तौर पर जान-सीख चुके ह. जब भी इनके दो त, जो क वाभा वक प से इनके हम उ ह, घर आते, ब च के बारे म ह चचा होती, और हम इनक जानकार क गहनता से च कत होते. कहना अनाव यक है, यह सारा ान उ ह िश ण क देन था जो भावी माता- पता को अ पताल म दया जाता है. यह ं यह भी बता दं क इन म से अिधकांश िश ण भार फ स चुकाकर ा ूकये जाते ह. और यह भी, क यहां गोपनीयता जैसा कुछ भी नह ं होता. सब-कुछ बेबाक, दो टकू . िन य ह इस खलुेपन के अपने फायदे ह, ज ह हम भारतीय यादा अ छ तरह समझ सकते ह. तेरह मई क शाम से चा को सव पीड़ा शु हो गई थी. हम दोन िचंितत थे, ले कन चा और मुकेश अपने िश ण क वजह से जानते थे क नवजात के आगमन का ण अभी कतना दर ू है. रात इन लोग ने अपने डॉ टर को फोन करके मश वरा कया. कहा गया क सुबह अ पताल आ जाएं. रात जैसे-तैसे कट . सुबह मुकेश चा को लेकर अ पताल चले गये और हम बेस ी से उनके स देश क ती ा करने लगे. कोई एक घंटे बाद मुकेश का फोन आया क चा को भत कर िलया गया है और हम दोन को लेने उनके िम राज, जो पास म ह रहते ह, आ रहे ह. राज के साथ हम अ पताल पहंचेु .

  • अमर का म अ पताल से यह हमारा पहला सा ा कार था. अगर हमने बाहर बोड न पढ़ा होता तो यह समझते क राज हम कसी पाँच िसतारा होटल म ले आये ह. बहतु भ य और एकदम साफ सुथरा. कर नेदार. ऑटोमे टक दरवाज़ को पार करते हएु , और जन दरवाज़ से आपको न गुज़रना हो, आपक आहट से उनम लगे ससर स य हो जाने से उनके भी खलुने ब द हो जाने के खेल का आन द लेते हएु , कई साफ सुथरे, चमचमाते गिलयार से गुज़र कर हम उस कमरा न बर 2169 तक पहंचे जहां हमार बेट ु अनेक हाई-टेक उपकरण के बीच एक बड़े बेड पर लेट थी. कमरे म एक छोटा ज, एक ट वी, एक वीसीड -ड वीड लेयर, एक यू ज़क िस टम, एक अित र बेड, एक बाथ म, जसम जाकुजी सु वधा तक थी, एक क यूटर वगैरह थे. यह पूर सूची नह ं है, पर इससे वहां उपल ध सु वधाओ ंका अ दाज़ लगाया जा सकता है. जस बेड पर चा लेट थी उस पर कई तरह के वच थे जनसे पलंग को ऊपर-नीचे कया जा सकता था, संगीत सुना, ट वी देखा जा सकता था, नस से बात क जा सकती थी या उसे बुलाया जा सकता था, वगैरह. कमरे के बाहर एक खुला-खुला बड़ा-सा ती ालय था, जहां और एक ट वी था और थी कई सार प काएं. पास ह , यािन 5-6 कमर के बीच एक साझा कचन जैसा कुछ था जहां एक माइ ोवेव अवन, ज ( जसम काफ माल भरा था), कॉफ के बड़े-बड़े थमस वगैरह थे. बहत ु सारे पाउच थे जनम दधू, चीनी, नमक, िमच, कई तरह क चाय थी. इस कचन से कोई भी अपनी ज़ रत के अनुसार साम ी ले सकता था या अपने साथ लाई साम ी यहां लाकर गरम कर सकता था. अ पताल के वेश ार के पास ह एक वे डंग मशीन भी थी जसम िस के डाल कर को ड ंक, िच स वगैरह खर दे जा सकते थे. वह ं एक िग ट शॉप भी थी जहां से गुलद ते और छोटे-मोटे उपहार खर दे जा सकते थे. यादा सह तो यह कहना होगा क वहां अ पताल म आने वाल के काम क हर चीज़

    उपल ध थी. चा के कमरे म एक नस थी - जीना. बहत ह स यु , बहत ह शालीु न, अ यिधक कमिन . वह सारे मॉनीटस पर तो नज़र रख ह रह थी, साथ-साथ अ पताल के तं से जुड़े क यूटर पर सूचनाओ ंका ेषण भी करती जा रह थी. और इतना ह नह ं, चा क हर ज़ रत पूर करते हए उसक विभ न ज ासाओ ंका समाधान भी करती जा रह थीु . पूरे दन म दो-एक बार उसे बाहर जाना पड़ा तो अपनी जगह कसी और को बठा कर ह गई. जो भी नई नस आती, मु कराकर हाय/हैलो करती, अपना नाम बताती और ऐसी त परता से अपने काम म लग जाती मानो कई दन से यह ,ं इसी कमरे म काम कर रह हो. इनको देखकर जी चाहता था श दकोष से कामचोर श द को िमटा ह दया जाए.

  • हमारे िलये उस दन खाना राज और द पका अपने घर से बनाकर ले आये थे. (बाद म भी मुकेश-चा के कोई न कोई िम ह अपने घर से हम सबके िलये खाना-ना ता लाते रहे. न केवल अ पताल म, ब क घर पहंचकर भी हम दो दन िम के घर सेु आया भोजन ह करते रहे.) द पका का सव भी इसी अ पताल म होना था और डॉ टर भी उसने वे ह चुने थे जो चा ने चुने थे. यहां मर ज़ को हक़ है क वह अपना डॉ टर चुने. सव क स भा वत ितिथ भी एक ह थी. मज़ाक चलता रहता था क द पका भी भत हो जाएं तो हम एक साथ ह दो िशशओु ंको लेकर घर जाएं. चा -मुकेश तथा राज-द पका को देखकर दो ती के नये रंग क खशुबू का एहसास हआु . चा के पर ण बराबर चल रहे थे. डॉ टर िचंितत थे क िशश ुके आगमन क या उनक आशा के अनु प व रत नह ं है. उ ह ने या को गित देने के यास करने के साथ ह चा क र ढ म एक इंजे शन (epidural) भी लगा दया ता क सव वेदना कम से कम महससू हो. काफ य और ती ा के बाद अंततः शाम कोई साढ़े चार बजे डॉ टर ने यह िनणय िलया क सीज़े रयन करके ब चे को दिनया म लाया जायु . अगर यह नॉमल डलीवर होती तो ब चा उसी कमरे म दिनया के पहले दशन करता जसम चा अब तक थीु . पर सीज़े रयन के िलये चा को ऑपरेशन िथएटर म ले जाया जाना था. यहां दंपती को पहले से ह एक फॉम भरकर यह बता देना होता है क सव के व त कौन-कौन य उप थत रहेगा. ऐन सव के व त पित तो उप थत रहता ह है, प रवार या िनकट के और भी जतने लोग चाह उप थत रह सकते ह. मुकेश ने खुद के अलावा वमला का नाम दे दया था. हमार चा को लगभग अ बेहोशी म ेचर पर िलटाकर ऑपरेशन िथएटर क तरफ ले जाया गया. मुकेश, वमला और म साथ थे. चा ने थोड़ -सी आखं खोली तो मने आखं ह आखं म उसे आशीवाद दया, उसका हाथ हौल-ेसे दबाया, और वे लोग मुझे बाहर छोड़ भार दरवाज़ के भीतर ऑपरेशन िथएटर म घुस गये. अब म था और था ल बा गिलयारा. सामने भार दरवाज़ा. उसके पीछे शायद और दरवाज़ा, फर कुछ और . . .और शायद तब एक टेबल पर लेट मेर बेट . . . . . . गिलयारे म कभी-कभार कोई गुज़रता. अगर -स पक होता, हाय/हैलो हो जाती. आम अमर क को कसी भी अजनबी को देखकर मु कुराने व उसका अिभवादन करने म ज़रा

  • भी संकोच नह ं होता. आ मीयता का यह अकु ठत व तार अ छा लगता है. यादातर अमर कय के हाथ म कोक का कैन या कॉफ का ढ कनदार िगलास ज़ र होता. कसी- कसी के साथ गोरे-गोलमटोल-गदबदे बबुए जैसे िशश ुभी. या क उछलते-कूदते ब चे. समय बीतता जा रहा था, परंतु उसक गित जैसे धीमी हो गई थी. अ दर न जाने या चल रहा होगा? कैसी होगी हमार बेट ? कभी दरवाज़ा खुलने क आहट होती तो

    मन चौक ना हो जाता. अ दर से बाहर कम आ रहे थे, बाहर से अ दर ह थोड़ -थोड़ देर म कोई न कोई जा रहा था. शायद दसेक लोग तो भीतर जा चुके ह गे. कह ं कोई ग भीर संकट तो नह ?ं अपना यान बंटाने को बाहर ताकने लगता हूं. गिलयारे के छोर तक दो च कर पहले ह लगा चुका हूं. बाहर साफ-सुथरा मैदान है. दरू-दर तक फैली ूह रयाली और उस पर उतरती शाम क मुलायम धूप. ऐसी ह धूप के िलये तो धमवीर भारती ने कहा होगा- ‘जॉजट के पीले प ल-ेसी धूप’. दर ू कह ं से आते संगीत के वर मानो हौल-ेसे मुझे सहला जाते ह, आ त कर जाते ह. कहां से आ रहे ह गे ये वर? चार तरफ तो शीश ेजड़े ह! पूरा भवन वातानुकूिलत है. बाहर क कोई आवाज़ तो अ दर आ ह नह ं सकती. फर यह वर-लहर ? अपना यान क त करता हूं. अ छा ! तो यह बात है. पूरे ह भवन म यू ज़क िस टम लगा है. बहत ह कु , थपथपाती-सी वर लहर उसी से वा हत होती रहती है. इतनी ह क , मान हो ह ना. संगीत का भाव यहां महसूस होता है. उ ेिलत मन को शांित िमल रह है. पा ा य शा ीय संगीत

    जैसा कुछ है. मैने देखा है क यहां ये लोग अपनी वरासत का बहत खूबसूरत ु(वा ण यक) उपयोग करते ह. गभवती मां के सुनने के िलये मो ज़ाट, बाख, बीथोवेन आ द के संगीत क सीड यहां आम है. यह चा रत करते हए इ ह बेचा जाता है क ुइससे गभ थ िशश ुके मानिसक वकास को गित िमलती है. चा के यहां ऐसी सीड देखकर मुझे बहत अ छा लगाु . मन म यह वचार भी आया क प डत र वशकंर, िशव कुमार शमा, उ ताद अली अकबर खां, ह र साद चौरिसया आ द के संगीत का भी तो यह भाव होता होगा - अगर होता हो. असल बात तो माक टंग क है, पर सच कहूं, इस माक टंग से मझुे खुशी हईु . बाद म मने यह भी पाया क नवजात िशश ुके जो खलौने ह उनम भी मो ज़ाट, बीथोवेन, बाख वगैरह के संगीत