अनाथ लड़की प्रेमचंद ki... · mcs/िसफर् प्रथम...

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MCS/िसफ थम रचना×मक मãयांकन के टãस हेत /4/3/2012 पेज-1/100 अनाथ लड़की / ेमचंद सेठ पǽषो×तमदास पना की सरèवती पाठशाला का मआयना करने के बाद बाहर िनकले तो एक लड़की ने दौड़कर उनका दामन पकड़ िलया। सेठ जी ǽक गये और महÞबत से उसकी तरफ देखकर पछा या नाम है ? लड़की ने जवाब िदयारोिहणी। सेठ जी ने उसे गोद मɅ उठा िलया और बोले तàह कछ इनाम िमला Ʌ ? लड़की ने उनकी तरफ बÍचɉ जैसी गंभीरता से देखकर कहातम चले जाते हो , मझे रोना आता है , मझे भी साथ लेते चलो। सेठजी ने हसकर कहा मझे बड़ी दर जाना है , तम कै से चालोगी ? रोिहणी ने Üयार से उनकी गदन हाथ डाल िदये Ʌ और बोलीजहॉ तम जाओगे वहीं भी चलगी। ɇ ɇ तàहारी बेटी हगी। मदरसे के अफसर ने आगे बढ़कर कहाइसका बाप साल भर हआ नही रहा। मॉ कपड़े सीती है , बड़ी मिæकल से गजर होती है। सेठ जी के èवभाव कǽणा बहत थी। यह सनकर उनकी आँख भर आयीं। Ʌ Ʌ उस भोली ाथना वह दद था Ʌ जो प×थर-से िदल को िपघला सकता है। बेकसी और यतीमी को इससे Ïयादा ददनाक ढंग से जािहर कना नाममिकन था। उÛहɉने सोचाइस नÛहɅ -से िदल जाने या अरमान हɉगे। और लड़िकयॉ अपने Ʌ िखलौने िदखाकर कहती हɉगी, यह मेरे बाप ने िदया है। वह अपने बाप के साथ मदरसे आती हɉगी, उसके साथ मेलɉ जाती हɉगी और उनकी िदलचिèपयɉ का Ʌ िकरती हɉगी। यह सब बात सन Ʌ -सनकर इस भोली लड़की को भी वािहश होती होगी िमेरे बाप होता। मॉ की महÞबत गहराई और आि×मकता होती है Ʌ िजसे बÍचे समझ नहीं सकते। बाप की महÞबत खशी और चाव होता है िजसे Ʌ बÍचे खब समझते ह। ɇ सेठ जी ने रोिहणी को Üयार से गले लगा िलया और बोले अÍछा, मɇ तàह अपनी बेटी बनाऊँगा। लेिकन खब Ʌ जी लगाकर पढ़ना। अब छी का वत गया है , मेरे साथ आओ, तàहारे घर पहचा द। यह कहकर उÛहɉने रोिहणी को अपनी मोटरकार िबठा िलया। रोिहणी ने Ʌ बड़े इ×मीनान और गव से अपनी सहेिलयɉ की तरफ देखा। उसकी बड़ी-बड़ी आँखɅ खशी से चमक रही थीं और चेहरा चॉदनी रात की तरह िखला हआ था। सेठ ने रोिहणी को बाजार की खब सैर करायी और कछ उसकी पसÛद से , कछ अपनी पसÛद से बहत -सी चीज खरीदीं Ʌ , यहॉ तक िरोिहणी बात करते Ʌ -करते कछ थक -सी गयी और खामोश हो गई। उसने इतनी चीजɅ देखीं और इतनी बात सनीं Ʌ िउसका जी भर गया। शाम होते-होते रोिहणी के घर पहचे और मोटरकार से उतरकर रोिहणी को अब कछ आराम िमला। दरवाजा बÛद था। उसकी मॉ िकसी ाहक के घर कपड़े देने गयी थी। रोिहणी ने अपने तोहफɉ को उलटना-पलटना शǾ िकयाखबसरत रबड़ के िखलौने , चीनी की गिड़या जरा दबाने से -करने लगतीं और रोिहणी यह Üयारा संगीत सनकर फली समाती थी। रेशमी कपड़े और रंग- िबरंगी सािड़यɉ की कई बÖडल थे लेिकन मखमली बटे की गलकािरयɉ ने उसे खब लभाया था। उसे उन चीजɉ के पाने की िजतनी खशी थी , उससे Ïयादा उÛह अपनी सहेिलयɉ को िदखाने की बेचैनी थी। सÛदरी के जते Ʌ अÍछे सही लेिकन उनम ऐसे फल कहॉ ह। ऐसी गिड़या उसने कभी देखी भी हɉगी। इन Ʌ ɇ खयालɉ से उसके

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  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-1/100

    अनाथ लड़की / पे्रमचंद १ सेठ प षो तमदास पना की सर वती पाठशाला का मआयना करने के बाद बाहर िनकले तो एक लड़की ने ु ू ुदौड़कर उनका दामन पकड़ िलया। सेठ जी क गये और मह बत से उसकी तरफ देखकर पछाु ू —क्या नाम है? लड़की ने जवाब िदया—रोिहणी। सेठ जी ने उसे गोद म उठा िलया और बोले—त ह कछ इनाम िमलाु ु ? लड़की ने उनकी तरफ ब च जसैी गभंीरता से देखकर कहा—तम चले जाते होु , मझ ेरोना आता हैु , मझ ेभी ुसाथ लेते चलो। सेठजी ने हसकर कहाँ —मझ ेबड़ी दर जाना हैु ू , तम कैसे चालोगीु ? रोिहणी ने यार से उनकी गदर्न म हाथ डाल िदये और बोली—जहॉ तम जाओगे वहीं म भी चलगी। म ँ ु ूँत हारी बेटी हगी।ु ू ँ मदरसे के अफसर ने आगे बढ़कर कहा—इसका बाप साल भर हआ नही रहा। मॉ कपड़ ेसीती हैु ँ , बड़ी मि कल से गजर होती है।ु ु सेठ जी के वभाव म क णा बहत थी। यह सनकर उनकी आँख भर आयीं।ु ु उस भोली प्राथर्ना म वह ददर् था जो प थर-से िदल को िपघला सकता है। बेकसी और यतीमी को इससे यादा ददर्नाक ढंग से जािहर कना नाममिकन था। उ ह नेु सोचा—इस न ह-से िदल म न जाने क्या अरमान ह गे। और लड़िकयॉ अपनेँ िखलौने िदखाकर कहती ह गी, यह मेरे बाप ने िदया है। वह अपने बाप के साथ मदरसे आती ह गी, उसके साथ मेल म जाती ह गी और उनकी िदलचि पय का िजक्र करती ह गी। यह सब बात सनु-सनकर इस भोली लड़की ुको भी ख्वािहश होती होगी िक मेरे बाप होता। मॉ की मह बत म गहराई और आि मकता होती हैँ ु िजसे ब चे समझ नहीं सकते। बाप की मह बत म खशी और चाव होता है िजसेु ु ब चे खब समझते ह।ू सेठ जी ने रोिहणी को यार से गले लगा िलया और बोले—अ छा, म त ह अपनी बेटी बनाऊँगा। लेिकन खब ु ूजी लगाकर पढ़ना। अब छट्टी का वक्त आु गया है, मेरे साथ आओ, त हारे घर पहचा द।ु ूु ँ ँ यह कहकर उ ह ने रोिहणी को अपनी मोटरकार म िबठा िलया। रोिहणी ने बड़ ेइ मीनान और गवर् से अपनी सहेिलय की तरफ देखा। उसकी बड़ी-बड़ी आँख खशी से चमक रही थीं और चेहरा चॉदनी रात की तरह ु ँिखला हआ था।ु २ सेठ ने रोिहणी को बाजार की खब सरै करायी और कछ उसकी पस द सेू ु , कछु अपनी पस द से बहतु -सी चीज खरीदीं, यहॉ तक िक रोिहणी बात करतेँ -करते कछ थकु -सी गयी और खामोश हो गई। उसने इतनी चीज देखीं और इतनी बात सनींु िक उसका जी भर गया। शाम होते-होते रोिहणी के घर पहचे और मोटरकार से ु ँउतरकर रोिहणी को अब कछ आराम िमला। दरवाजा ब द था।ु उसकी मॉ िकसी ग्राहक के घरँ कपड़ ेदेने गयी थी। रोिहणी ने अपने तोहफ को उलटना-पलटना शु िकया—खबसरत रबड़ के िखलौनेू ू , चीनी की गिड़या जरा ुदबाने से चूँ-च करनेूँ लगतीं और रोिहणी यह यारा सगंीत सनकर फली न समाती थी। रेशमी कपड़ ेऔरु ू रंग-िबरंगी सािड़य की कई ब डल थे लेिकन मखमली बटे की गलकािरय ने उसेू ु खब लभाया था। उसे उन चीज ू ुके पाने की िजतनी खशी थीु , उससे यादा उ ह अपनी सहेिलय को िदखाने की बेचैनी थी। स दरी के जत ेु ूअ छे सही लेिकन उनम ऐसे फल कहॉ ह। ऐसी गिड़या उसने कभी देखी भी न ह गी। इनू ुँ खयाल से उसके

  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-2/100

    िदल म उमगं भर आयी और वह अपनी मोिहनी आवाज म एक गीत गाने लगी। सेठ जी दरवाजे पर खड़ ेइन पिवत्र य का हािदर्क आन द उठा रहे थे। इतने म रोिहणी की मॉ िक्मणी कपड़ की एक पोटली िलये ँहए आतीु िदखायी दी। रोिहणी ने खशी से पागल होकर एक छलॉगु ँ भरी और उसके पैर से िलपट गयी। िक्मणी का चेहरा पीला था, आँख म हसरत और बेकसी िछपी हईु थी, ग त िचतंा का सजीव िचत्र मालम ु ूहोती थी, िजसके िलए िजदंगी म कोई सहारा नहीं। मगर रोिहणी को जब उसने गोद म उठाकर यार से चमा मो जरा देर केू िलए उसकी ऑखं म उ मीद और िजदंगी की झलक िदखायी दी। मरझाया हआ फलु ूु िखल गया। बोली—आज त इतनी देर तक कहॉ रहीू ँ , म तझ ेढढ़ने पाठशाला गयीु ू ँ थी। रोिहणी ने हमककर कहाु —म मोटरकार पर बैठकर बाजार गयी थी। वहॉ से बहत अ छीँ ु -अ छी चीज लायी ह। वह देखो कौन खड़ा हैू ँ ? मॉ ने सेँ ठ जी की तरफ ताका और लजाकर िसर झका िलया।ु बरामदे म पहचते ही रोिहणी मॉ की गोद से उतरकर सेठजी के पास गयीुँ ँ और अपनी मॉ को यकीन िदलाने ँके िलए भोलेपन से बोली—क्य , तम मेरे बाप होु न? सेठ जी ने उसे यार करके कहा—हॉ,ँ तम मेरी यारी बेटी हो।ु रोिहणी ने उनसे महं की तरफ याचनाु -भरी आखँ से देखकर कहा—अब तम रोज यहीं रहा करोगेु ? सेठ जी ने उसके बाल सलझाकर जवाब िदयाु —म यहॉ रहगा तो काम कौनँ ू ँ करेगा? म कभी-कभी त ह देखने ुआया क गाँ , लेिकन वहॉ से त हारे िलएँ ु अ छी-अ छी चीज भेजगा।ूँ रोिहणी कछ उदासु -सी हो गयी। इतने म उसकी मॉ ने मकान का दरवाजाँ खोला ओर बड़ी फतीर् से मलेै ुिबछावन और फटे हए कपड़ ेसमेट कर कोने म डालु िदये िक कहीं सेठ जी की िनगाह उन पर न पड़ जाए। यह वािभमान ि त्रय की खास अपनी चीज है। िक्मणी अब इस सोच म पड़ी थी िक म इनकी क्या खाितर-तवाजो क ।ँ उसने सेठ जी का नाम सना थाु , उसका पित हमेशा उनकी बड़ाई िकया करता था। वह उनकी दया और उदारता की चचार्एँ अनेक बार सन ुचकी थी। वह उ ह अपने मनु का देवता समझा कतरी थी, उसे क्या उमीद थी िक कभी उसका घर भी उसके कदम से रोशन होगा। लेिकन आज जब वह शभ िदन सयंोग से आया तो वह इस कािबल भी नहीं िकु उ ह बैठने के िलए एक मोढ़ा दे सके। घर म पान और इलायची भी नहीं। वह अपने आँसओं को िकसी तरह न ुरोक सकी। आिखर जब अधेंरा हो गया और पास के ठाकर वारे से घ ट और नगाड़ु की आवाज आने लगीं तो उ ह ने जरा ऊँची आवाज म कहा—बाईजी, अब म जाता ह। मझ ेअभी यहॉ बहत काम करना है। मेरी रोिहणी को ू ुँ ु ँकोई तकलीफ न हो। मझेु जब मौका िमलेगा, उसे देखने आऊँगा। उसके पालने-पोसने का काम मेरा है और म उसे बहत खशी से परा क गा। उसके िलए अब तम कोई िफक्र मत करो। मनेु ु ू ुँ उसका वजीफा बॉध िदया ँहै और यह उसकी पहली िक त है। यह कहकर उ ह ने अपना खबसरत बटआ िनकाला और िक्मणी के ू ू ुसामने रख िदया। गरीब औरत की आँख म आसँ जारी थे। उसका जी बरबस चाहता था िक उसके पैरू को पकड़कर खब रोये। आज बहत िदन के बाद एक स चे हमददर् की आवाज उसू ु के मन म आयी थी। जब सेठ जी चले तो उसने दोन हाथ से प्रणाम िकया। उसके दय की गहराइय से प्राथर्ना िनकली—आपने एक बेबस पर दया की है, ई वर आपको इसका बदला दे। दसरे िदन रोिहणी पाठशाला गई तो उसकी बॉकी सजू ँ -धज आँख म खबीु जाती थी। उ तािनय ने उसे बारी-बारी यार िकया और उसकी सहेिलयॉ उसकीँ एक-एक चीज को आ चयर् से देखती और ललचाती थी। अ छे

  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-3/100

    कपड़ से कछु वािभमान का अनभव होता है। आज रोिहणी वह गरीब लड़की न रही जो दसर कीु ू तरफ िववश नेत्र से देखा करती थी। आज उसकी एक-एक िक्रया से शैशवोिचत गवर् और चंचलता टपकती थी और उसकी जबान एक दम के िलए भी न कती थी। कभी मोटर की तेजी का िजक्र था कभी बाजार की िदलचि पय का बयान, कभी अपनी गिड़य केु कशलु -मगंल की चचार् थी और कभी अपने बाप की मह बत ुकी दा तान। िदल था िक उमगं से भरा हआ था।ु एक महीने बाद सेठ प षो तमदाु स ने रोिहणी के िलए िफर तोहफे और पये रवाना िकये। बेचारी िवधवा को उनकी कपा से जीिवका की िच ता से छट्टी िमली। वहृ ु भी रोिहणी के साथ पाठशाला आती और दोन मॉ-ँबेिटयॉ एक ही दरजे के साथँ -साथ पढ़तीं, लेिकन रोिहणी का न बर हमेशा मॉ से अ वल रहा सेठ जी जब पना ँ ू की तरफ से िनकलते तो रोिहणी को देखने ज र आते और उनका आगमन उसकी प्रस नता और मनोरंजन के िलए महीन का सामान इकट्ठा कर देता। इसी तरह कई साल गजर गये और रोिहणी ने जवानी के सहाने हरेु ु -भरे मदैान म पैर रक्खा, जबिक बचपन की भोली-भाली अदाओं म एक खास मतलब और इराद का दखल हो जाता है। रोिहणी अब आ तिरक और बा य सौ दयर् म अपनी पाठशाला की नाक थी। हाव-भाव म आकषर्क ग भीरता, बात म गीत का-सा िखचंाव और गीत का-सा आि मक रस था। कपड़ म रंगीन सादगी, आँख म लाज-सकंोच, िवचार म पिवत्रता। जवानी थी मगर घम ड और बनावट और चचंलता से मक्त। उसम एकु एकाग्रता थी ऊँचे इराद से पैदा होती है। ि त्रयोिचत उ कषर् की मिंजल वह धीरे-धीरे तय करती चली जाती थी। ३ सेठ जी के बड़ ेबेटे नरो तमदास कई साल तक अमेिरका और जमर्नी की यिनविसर्िटय की खाक छानने के ुबाद इंजीिनयिरगं िवभाग म कमाल हािसल करके वापस आए थे। अमेिरका के सबसे प्रिति ठत कालेज म उ ह ने स मान का पद प्रा त िकया था। अमेिरका के अखबार एक िह दो तानी नौजवान की इस शानदार कामयाबी पर चिकत थे। उ हीं का वागत करने के िलए ब बई म एक बड़ा जलसा िकया गया था। इस उ सव म शरीक होने के िलए लोग दरू-दर से आए थे। सर वतीू पाठशाला को भी िनमतं्रण िमला और रोिहणी को सेठानी जी ने िवशेष प से आमिंत्रत िकया। पाठशाला म ह त तैयािरयॉ हई। रोिहणी को एक ँ ुदम के िलए भी चैन न था। यह पहला मौका था िक उसने अपने िलए बहत अ छेु -अ छे कपड़ ेबनवाये। रंग के चनाव म वह िमठास थीु , काट-छॉट म वह फबन िजससे उसकीँ स दरता चमक उठी। सेठानी कौश या ुदेवी उसे लेने के िलए रेलवे टेशन पर मौजद थीं। रोिहणी गाड़ी से उतरते ही उनके पैर की तरफ झकी ू ुलेिकन उ ह ने उसे छाती से लगा िलया और इस तरह यार िकया िक जैसे वह उनकी बेटी है। वह उसे बार-बार देखती थीं और आखँ से गवर् और पे्रम टपक पड़ता था। इस जलसे के िलए ठीक सम दर के िकनारे एक हरेु -भरे सहाने मदैान मु एक ल बा-चौड़ा शािमयाना लगाया गया था। एक तरफ आदिमय का समद्र उमड़ा हआु ु था दसरी तरफ समू दु्र की लहर उमड़ रही थीं, गोया वह भी इस खशी म शरीकु थीं। जब उपि थत लोग ने रोिहणी बाई के आने की खबर सनी तो हजार आदमीु उसे देखने के िलए खड़ ेहो गए। यही तो वह लड़की है। िजसने अबकी शा त्री की परीक्षा पास की है। जरा उसके दशर्न करने चािहये। अब भी इस देश की ि त्रय म ऐसे रतन मौजद ह। भोलेू -भाले देशपे्रिमय म इस तरह की बात होने लगीं। शहर की कई प्रिति ठत मिहलाओं ने आकर रोिहणी को गले लगाया और आपस म उसके सौ दयर् और उसके कपड़ की चचार् होने लगी। आिखर िम टर प षो तमदास तशरीफ लाए। हालॉिक वह ु ँ बड़ा िश ट और ग भीर उ सव था लेिकन उस वक्त दशर्न की उ कंठा पागलपन की हद तक जा पहची थी। एकुँ भगदड़-सी मच गई। किसर्य की कतारे गड़बड़ हो गईं। कोई कसीर् पर खड़ाु ु हआु , कोई उसके ह थ पर। कछ मनचले लोग ने ु

  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-4/100

    शािमयाने की रि सयॉ पकड़ींँ और उन पर जा लटके कई िमनट तक यही तफान मचा रहा। कहीं किसर्यां ू ुटटींू , कहीं किसर्यॉ उलटींु ँ , कोई िकसी के ऊपर िगरा, कोई नीचे। यादा तेज लोग म धौल-ध पा होने लगा। तब बीन की सहानी आवाज आने लगीं। रोिहणी ने अपनी म डली के साथु देशपे्रम म डबा हआ गीत श ू ुुिकया। सारे उपि थत लोग िबलकल शा त थे औरु उस समय वह सरीला रागु , उसकी कोमलता और व छता, उसकी प्रभावशाली मधरताु , उसकी उ साह भरी वाणी िदल पर वह नशा-सा पैदा कर रही थी िजससे पे्रम की लहर उठती ह, जो िदल से बराइय को िमटाता है और उससे िज दगी की हमेशाु याद रहने वाली यादगार पैदा हो जाती ह। गीत ब द होने पर तारीफ की एक आवाज न आई। वहीं ताने कान म अब तक गज रही थीं।ूँ गाने के बाद िविभ न सं थाओं की तरफ से अिभन दन पेश हए और तबु नरो तमदास लोग को ध यवाद देने के िलए खड़ ेहए। लेिकन उनके भाषाण सेु लोग को थोड़ी िनराशा हई। य दो तो की म डली म उनकी ुवक्तता के आवेगृ और प्रवाह की कोई सीमा न थी लेिकन सावर्जिनक सभा के सामने खड़ ेहोते ही श द और िवचार दोन ही उनसे बेवफाई कर जाते थे। उ ह ने बड़ी-बड़ी मि कल से ध यवाद के कछ श द कहे और तब ु ुअपनी योग्यता की लि जत वीकितृ के साथ अपनी जगह पर आ बैठे। िकतने ही लोग उनकी योग्यता पर ज्ञािनय की तरह िसर िहलाने लगे। अब जलसा ख म होने का वक्त आया। वह रेशमी हार जो सर वती पाठशाला की ओर से भेजा गया था, मेज पर रखा हआ था। उसे हीरो के गले म कौन डालेु ? पे्रिसडे ट ने मिहलाओं की पंिक्त की ओर नजर दौड़ाई। चनने वाली आँख रोिहणीु पर पड़ी और ठहर गई। उसकी छाती धड़कने लगी। लेिकन उ सव के सभापित के आदेश का पालन आव यक था। वह सर झकाये हए मेज के पास आयी और कॉपते हाथ सेु ु ँ हार को उठा िलया। एक क्षण के िलए दोन की आँख िमलीं और रोिहणी ने नरो तमदास के गले म हार डाल िदया। दसरे िदन सर वती पाठशाला के मेहमान िवदा हए लेिकन कौश या देवीू ु ने रोिहणी को न जाने िदया। बोली—अभी त ह देखने से जी नहीं भराु , त हु यहॉ एक ह ता रहना होगा। आिखर म भी तो त हारी मॉ ह। ँ ँु ू ँएक मॉ सेँ इतना यार और दसूरी मॉ से इतना अलगावँ ! रोिहणी कछ जवाब न दे सकी।ु यह सारा ह ता कौश या देवी ने उसकी िवदाई की तैयािरय म खचर् िकया। सातव िदन उसे िवदा करने के िलए टेशन तक आयीं। चलते वक्त उससे गले िमलीं और बहत कोिशश करने पर भी आँसओ ंको न रोक ु ुसकीं। नरो तमदास भी आये थे। उनका चेहरा उदास था। कौश या ने उनकी तरफ सहानभितपणर् आँख सेु ू ू देखकर कहा—मझ ेयह तो ख्याल ही न रहाु , रोिहणी क्या यहॉ से पना तक अकेलीँ ू जायेगी? क्या हजर् है, त हीं चले जाओु , शाम की गाड़ी से लौट आना। नरो तमदास के चेहरे पर खशी की लहर दौड़ गयीु , जो इन श द म न िछप सकी—अ छा, म ही चला जाऊँगा। वह इस िफक्र म थे िक देख िबदाई की बातचीत का मौका भी िमलता है या नहीं। अब वह खब जी ूभरकर अपना दद िदल सनायगे और ममिकन हआ तो उस लाजु ु ु -सकंोच को, जो उदासीनता के परदे म िछपी हई हैु , िमटा दगे। ४ िक्मणी को अब रोिहणी की शादी की िफक्र पैदा हई। पड़ोस की औरतु म इसकी चचार् होने लगी थी। लड़की इतनी सयानी हो गयी है, अब क्या बढ़ापेु म याह होगा? कई जगह से बात आयी, उनम कछ बड़ ेप्रिति ठत ुघराने थे। लेिकन जब िक्मणी उन पैमान को सेठजी के पास भेजती तो वे यही जवाब देते िक म खद िफक्र ुम ह। िक्मणी को उनकी यह टालूँ -मटोल बरी मालम होतीु ू थी।

  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-5/100

    रोिहणी को ब बई से लौटे महीना भर हो चका था। एक िदन वह पाठशाला सेु लौटी तो उसे अ मा की चारपाई पर एक खत पड़ा हआ िमला। रोिहणी पढ़ने लगीु , िलखा था—बहन, जब से मने त हाु री लड़की को ब बई म देखा है, म उस पर रीझ गई ह। अब उसके बगरै मझ ेचैन नहीं है। क्या मेरा ऐसा भाग्य होगा िकूँ ु वह मेरी बह बन सकेू ? म गरीब ह लेिकन मने सेठ जी को राजी कर िलया है।ू ँ तम भी मेरी यह िवनती ुकबल करो। म त हारी लड़की को चाहे फल की सेू ु ू ज पर न सला सकु ूँ , लेिकन इस घर का एक-एक आदमी उसे आँख की पतली बनाकरु रखेगा। अब रहा लड़का। मॉ के मह से लड़के का बखान कछ अ छा नहीं ँ ुँ ुमालमू होता। लेिकन यह कह सकती ह िक परमा मा ने यह जोड़ी अपनी हाथ बनायी है।ू ँ सरत मू , वभाव म, िव या म, हर ि ट से वह रोिहणी के योग्य है। तम जसेै चाहे अपना इ मीनान कर सकती हो। जवाब ुज द देना और यादा क्या िलख। नीचे थोड़ेूँ -से श द म सेठजी ने उस पैगाम की िसफािरश की थी। रोिहणी गाल पर हाथ रखकर सोचने लगी। नरो तमदास की त वीर उसकी आँख के सामने आ खड़ी हई। ुउनकी वह पे्रम की बात, िजनका िसलिसला ब बई से पना तक नहीं टटा थाू ू , कान म गजंने लगीं। उसने एक ूठ डी सॉस ली औरँ उदास होकर चारपाई पर लेट गई। 5 सर वती पाठशाला म एक बार िफर सजावट और सफाई के य िदखाई दे रहे ह। आज रोिहणी की शादी का शभ िदन। शाम का ु वक्त, बस त का सहानाु मौसम। पाठशाला के दारो-दीवार म करा रहे ह और हराु -भरा बगीचा फला नहींू समाता। च द्रमा अपनी बारात लेकर परब की तरफ से िनकला। उसी वक्त मगंलाचरणू का सहाना राग उस पहली ुचॉदनी और ह केँ -ह के हवा के झोक म लहर मारने लगा। द हा आयाू , उसे देखते ही लोग हैरत म आ गए। यह नरो तमदास थे। द हा म डप के नीचे गया। रोिहणी की मॉ अपने को रोक न सकीू ँ , उसी वक्त जाकर सेठ जी के पैर पर िगर पड़ी। रोिहणी की आँख से पे्रम और आ दद के आँस ूबहने लगे। म डप के नीचे हवन-क ड बना था। हवन श हआु ु ु , खशबु ू की लपेट हवा म उठीं और सारा मदैान महक गया। लोग के िदलो-िदमाग म ताजगी की उमगं पैदा हई।ु िफर सं कार की बारी आई। द हा और द हन ने आपस म हमददीर्ू ु ; िज मेदारी और वफादारी के पिवत्र श द अपनी जबान से कहे। िववाह की वह मबारक जजंीर गले म पड़ी िजसमु वजन है, सख्ती है, पाबि दयॉ ह ँलेिकन वजन के साथ सख और पाबि दय के साथ िव वास है। दोन िदल म उस वक्तु एक नयी, बलवान, आि मक शिक्त की अनभित हो रही थी।ु ू जब शादी की र म ख म हो गयीं तो नाच-गाने की मजिलस का दौर आया। मोहक गीत गजने लगे। सेठ ूँजी थककर चर हो गए थे। जरा दम लेने के िलए बागीचेू म जाकर एक बच पर बठै गये। ठ डी-ठ डी हवा आ रही आ रही थी। एक नशा-सा पैदा करने वाली शाि त चार तरफ छायी हई थी। उसी वक्त रोिहणी उनके ुपास आयी और उनके पैर से िलपट गयी। सेठ जी ने उसे उठाकर गले से लगा िलया और हसकर बोलेँ —क्य , अब तो तम मेरी अपनी बेटी हो गयींु ?

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    आ माराम / पे्रमचंद 1 वेद -ग्राम म महादेव सोनार एक सिवख्यात आदमी था। वह अपने सायबानु म प्रात: से सं या तक अगँीठी के सामने बैठा हआ खटखट िकया करता था। यहु लगातार विन सनने के लोग इतने अु य त हो गये थे िक जब िकसी कारण से वह बंद हो जाती, तो जान पड़ता था, कोई चीज गायब हो गयी। वह िन य-प्रित एक बार प्रात:काल अपने तोते का िपजंड़ा िलए कोई भजन गाता हआ तालाब की ओर जाताु था। उस धधले ँप्रकाश म उसका जजर्र शरीर, पोपला मह और झकी हई कमरु ुँ ु देखकर िकसी अपिरिचत मन य को उसके ुिपशाच होने का भ्रम हो सकता था। य ही लोग के कान म आवाज आती—‘स त ग द त िशवद त ुदाता,’ लोग समझ जाते िक भोर हो गयी। महादेव का पािरवािरक जीवन सखमय न था। उसके तीन पत्र थेू ु , तीन बहऍ ंथींु , दजर्न नाती-पाते थे, लेिकन उसके बोझ को ह का करने-वाला कोई न था। लड़के कहते—‘तब तक दादा जीते ह, हम जीवन का आनंद भोग ले, िफर तो यह ढोल गले पड़गेी ही।’ बेचारे महादेव को कभी-कभी िनराहार ही रहना पड़ता। भोजन के समय उसके घर म सा यवाद का ऐसा गगनभेदी िनघ ष होता िक वह भखा ही उठ आताू , और नािरयल का हक्का पीता हआ सो जाता। उनका यापसाियक जीवन और भीु ु आशांितकारक था। य यिप वह अपने काम म िनपण थाु , उसकी खटाई और से कहीं यादा शिद्धकारक और ुउसकी रासयिनक िक्रयाऍ ंकहीं यादा क टसा य थीं, तथािप उसे आये िदन शक्की और धैयर्-श य प्रािणय ूके अपश द सनने पड़तेु थे, पर महादेव अिविचिलत गा भीयर् से िसर झकाये सब कछ सना करता था।ु ुु य ही यह कलह शांत होता, वह अपने तोते की ओर देखकर पकार उठताु —‘स त ग द त िशवद तदाता।ु ’ इस मतं्र को जपते ही उसके िच त को पणर् शांितू प्रा त हो जाती थी। 2 एक िदन सयंोगवश िकसी लड़के ने िपजंड़ ेका वार खोल िदया। तोता उड़ गया। महादेव ने िसह उठाकर जो िपजंड़ ेकी ओर देखा, तो उसका कलेजा स न-से हो गया। तोता कहॉ गया। उसने िफर िपजंड़ ेको देखाँ , तोता गायब था। महादेव घबड़ा कर उठा और इधर-उधर खपरैल पर िनगाह दौड़ाने लगा। उसे ससंार म कोई व त ुअगर यारी थी, तो वह यही तोता। लड़के-बाल , नाती-पोत से उसका जी भर गया था। लड़को की चलबल से ु ुउसके काम म िवघ्न पड़ता था। बेट से उसे पे्रम न था; इसिलए नहीं िक वे िनक मे थे; बि क इसिलए िक उनके कारण वह अपने आनंददायी क हड़ की िनयिमु त सखं्या से वंिचत रह जाता था। पड़ोिसय से उसे िचढ़ थी, इसिलए िक वे अगँीठी से आग िनकाल ले जाते थे। इन सम त िवघ्न-बाधाओं से उसके िलए कोई पनाह थी, तो यही तोता था। इससे उसे िकसी प्रकार का क ट न होता था। वह अब उस अव था म था जब मन य ुको शांित भोग के िसवा और कोई इ छा नहीं रहती। तोता एक खपरैल पर बैठा था। महादेव ने िपजंरा उतार िलया और उसे िदखाकर कहने लगा—‘आ आ’ स त ग द त िशवदाता।ु ’ लेिकन गॉव और घर के लड़केँ एकत्र हो कर िच लाने और तािलयॉ बजाने लगे। ऊपर से ँकौओं ने कॉवँ-कॉव कीँ रट लगायी? तोता उड़ा और गॉवँ से बाहर िनकल कर एक पेड़ पर जा बैठा। महादेव खाली िपजंडा िलये उसके पीछे दौड़ा, सो दौड़ा। लोगो को उसकी द्रितगािमता परु अच भा हो रहा था। मोह की इससे स दरु , इससे सजीव, इससे भावमय क पना नहीं की जा सकती। दोपहर हो गयी थी। िकसान लोग खेत से चले आ रहे थे। उ ह िवनोद का अ छा अवसर िमला। महादेव को िचढ़ाने म सभी को मजा आता था। िकसी ने कंकड़ फके, िकसी ने तािलयॉ बजायीं। तोता िफर उड़ा और वहाँ ँसे दर आम के बागू म एक पेड़ की फनगी पर जा बैठा । महादेव िफर खाली िपजंड़ा िलये मढक कीु भॉित ँ

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    उचकता चला। बाग म पहचाु ँ तो पैर के तलओं से आग िनकल रही थीु , िसर चक्कर खा रहा था। जब जरा सावधान हआु , तो िफर िपजंड़ा उठा कर कहने लगे—‘स त ग द त िशवद त दाताु ’ तोता फनगी से उतर कर ुनीचे की एक डाल पी आ बैठा, िक त महादेव की ओर सशंक नेत्र से ताक रहा था। महादेव ने समझाु , डर रहा है। वह िपजंड़ ेको छोड़ कर आप एक दसरे पेड़ की आड़ म िछप गया। तोते नेू चार ओर गौर से देखा, िन शंक हो गया, अतरा और आ कर िपजंड़ ेके ऊपर बैठ गया। महादेव का दय उछलने लगा। ‘स त ग द त िशवद त दाताु ’ का मतं्र जपता हआ धीरेु -धीरे तोते के समीप आया और लपका िक तोते को पकड़ ल, िक त ुतोता हाथ न आया, िफर पेड़ पर आ बैठा। शाम तक यही हाल रहा। तोता कभी इस डाल पर जाता, कभी उस डाल पर। कभी िपजंड़ ेपर आ बैठता, कभी िपजंड़ ेके वार पर बैठे अपने दाना-पानी की यािलय को देखता, और िफर उड़ जाता। ब ढा अगर मितर्मान ु ूमोह था, तो तोता मितर्मयी माया। यहॉ तक िक शाम हो गयी। माया और मोह का यह सगं्रामू ँ अधंकार म िवलीन हो गया। 3 रात हो गयी ! चार ओर िनिबड़ अधंकार छा गया। तोता न जाने प त म कहॉ िछपा बैठा था। महादेव ँजानता था िक रात को तोता कही उड़कर नहीं जा सकता, और न िपजंड़ ेही म आ सकता ह, िफर भी वह उस जगह से िहलने का नाम न लेता था। आज उसने िदन भर कछ नहीं खाया। रात के भोजन का समय ुभी िनकल गया, पानी की बद भी उसके कंठ म न गयीूँ , लेिकन उसे न भख थीू , न यास ! तोते के िबना उसे अपना जीवन िन सार, श क और सना जान पड़ता थाु ू । वह िदन-रात काम करता था; इसिलए िक यह उसकी अतं:पे्ररणा थी; जीवन के और काम इसिलए करता था िक आदत थी। इन काम मे उसे अपनी सजीवता का लेश-मात्र भी ज्ञान न होता था। तोता ही वह व त थाु , जो उसे चेतना की याद िदलाता था। उसका हाथ से जाना जीव का देह- याग करना था। महादेव िदन-भर का भखू- यासा, थका-मॉदाँ , रह-रह कर झपिकयॉ ले लेताँ था; िक त एक क्षण म िफर च क ुकर ऑखें खोल देता और उस िव तत अधंकारृ म उसकी आवाज सनायी देतीु —‘स त ग द त िशवद त ुदाता।’ आधी रात गजर गयी थी। सहसा वह कोई आहट पा कर चौका। देखाु , एक दसरेू वक्ष के नीचे एक धधला ृ ु ँदीपक जल रहा है, और कई आदमी बठे हए आपस म कछु ु बात कर रहे ह। वे सब िचलम पी रहे थे। तमाख ूकी महक ने उसे अधीर कर िदया। उ च वर से बोला—‘स त ग द त िशवद त दाताु ’ और उन आदिमय की ओर िचलम पीने चला गया; िक त िजस प्रकार बंदकु ू की आवाज सनते ही िहरन भागु जाते ह उसी प्रकार उसे आते देख सब-के-सब उठ कर भागे। कोई इधर गया, कोई उधर। महादेव िच लाने लगा—‘ठहरो-ठहरो !’ एकाएक उसे यान आ गया, ये सब चोर ह। वह जारे से िच ला उठा—‘चोर-चोर, पकड़ो-पकड़ो !’ चोर ने पीछे िफर कर न देखा। महादेव दीपक के पास गया, तो उसे एक मलसा रखा हआ िमला जो मोच सेु काला हो रहा था। महादेव का दय उछलने लगा। उसने कलसे मे हाथ डाला, तो मोहर थीं। उसने एक मोहरे बाहर िनकाली और दीपक के उजाले म देखा। हॉ ँमोहर थी। उसने तरंत कलसा उठा िलयाु , और दीपक बझा िदया और पेड़ु के नीचे िछप कर बैठ रहा। साह से चोर बन गया। उसे िफर शकंा हईु , ऐसा न हो, चोर लौट आव, और मझ ेअकेला देख करु मोहर छीन ल। उसने कछ मोहर ुकमर म बॉधीँ , िफर एक सखी लकड़ी से जमीनू की की िमटटी हटा कर कई ग ढे बनाये, उ ह माहर से भर कर िमटटी से ढकँ िदया।

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    4 महादेव के अतनत्र के सामने अब एक दसरा जगत थाू ् , िचतंाओं और क पना से पिरपणर्। य यिप अभी कोष ूके हाथ से िनकल जाने का भय था; पर अिभलाषाओं ने अपना काम श कर िदया। एक पक्का मकान बन ुगया, सराफे की एक भारी दकान खल गयीू ु , िनज स बि धय से िफर नाता जड़ु गया, िवलास की सामिग्रयॉ ँएकित्रत हो गयीं। तब तीथर्-यात्रा करने चले, और वहॉ से लौट करँ बड़ ेसमारोह से यज्ञ, ब्र मभोज हआ। इसके ुप चात एक िशवालय और कऑ ंबनु गया, एक बाग भी लग गया और वह िन यप्रित कथा-पराण सनने ु ुलगा। साधु-स त का आदर-स कार होने लगा। अक मात उसे यान आया, कहीं चोर आ जाय ँ , तो म भागगा क्यूँ -कर? उसने परीक्षा करने के िलए कलसा उठाया। और दो सौ पग तक बेतहाशा भागा हआु चला गया। जान पड़ता था, उसके पैरो म पर लग गये ह। िचतंा शांत हो गयी। इ हीं क पनाओं म रात यतीत हो गयी। उषा का आगमन हआु , हवा जागी, िचिड़यॉ ँगाने लगीं। सहसा महादेव के कान म आवाज आयी— ‘स त ग द त िशवद त दाताु , राम के चरण म िच त लगा।’ यह बोल सदैव महादेव की िज वा पर रहता था। िदन म सह ही बार ये श द उसके मह से िनकलते थेुँ , पर उनका धािमर्क भाव कभी भी उसके अ त:कारण को पशर् न करता था। जसेै िकसी बाजे से राग िनकलता ह, उसी प्रकार उसके मह से यह बोल िनकलता था। िनरथर्क और प्रभावुँ -श य। तब उसकाू दय- पी वक्ष पत्रृ -प लव िवहीन था। यह िनमर्ल वाय उसे गजंिरत न करु ु सकती थी; पर अब उस वक्ष म कोपल और ृशाखाऍ ंिनकल आयी थीं। इन वायु-प्रवाह से झम उठाू , गिंजत हो गया।ु अ णोदय का समय था। प्रकित एक अनरागमय प्रकाश म डबी हई थी।ृ ु ू ु उसी समय तोता पैर को जोड़ ेहए ुऊँची डाल से उतरा, जसेै आकाश से कोई तारा टटे और आ कर िपजंड़ ेम बैठ गया। महादेव प्रफि लत हो ू ुकर दौड़ा और िपजंड़ ेको उठा कर बोला—आओ आ माराम तमने क ट तो बहत िदयाु ु , पर मेरा जीवन भी सफल कर िदया। अब त ह चॉदी के िपजंड़ ेम रखंगा और सोने से मढ़ु ूँ दगा।ूँ ’ उसके रोम-रोम के परमा मा के गणानवाद की विन िनकलने लगी। प्रभु ु ु तम िकतने दयावान होु ् ! यह त हारा असीु म वा स य है, नहीं तो मझ पापीु , पितत प्राणी कब इस कपा के योग्य थाृ ! इस पिवत्र भाव से आ मा िव हल हो गयी ! वह अनरक्त ुहो कर कह उठा— ‘स त ग द त िशवद त दाताु , राम के चरण म िच त लागा।’ उसने एक हाथ म िपजंड़ा लटकाया, बगल म कलसा दबाया और घर चला। 5 महादेव घर पहचाु ँ , तो अभी कछ अधेँरा था। रा ते म एक क ते केु ु िसवा और िकसी से भट न हईु , और क त ेुको मोहर से िवशेष पे्रम नहीं होता। उसने कलसे को एक नाद म िछपा िदया, और कोयले से अ छी तरह ढक करँ अपनी कोठरी म रख आया। जब िदन िनकल आया तो वह सीधे परािहत के घर पहचा।ु ु ँ परोिहत ुपजा पर बैठे सोच रहे थेू —कल ही मकदम की पेशी ह और अभी तक हाथु म कौड़ी भी नहीं—यजमानो म कोई सॉस भी लेता। इतने म महादेव ने पालागनँ की। पंिड़त जी ने मह फेर िलया। यह अमगंलमितर् कहॉ से ु ूँ ँआ पहचीु ँ , मालम ूनहीं, दाना भी मय सर होगा या नहीं। ट हो कर पछाू —क्या है जी, क्या कहते हो। जानते नहीं, हम इस समय पजा पर रहते ह।ू महादेव ने कहा—महाराज, आज मेरे यहॉ स यनाराण की कथा है।ँ

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    परोिहत जी िवि मत हो गये। कान पर िव वास न हआ। महादेव के घरु ु कथा का होना उतनी ही असाधारण घटना थी, िजतनी अपने घर से िकसी िभखारी के िलए भीख िनकालना। पछाू —आज क्या है? महादेव बोला—कछ नहींु , ऐसा इ छा हई िक आज भगवान की कथा सन ल।ु ु ूँ प्रभात ही से तैयारी होने लगी। वेद के िनकटवतीर् गॉवो म सपारीँ ू िफरी। कथा के उपरांत भोज का भी नेवता था। जो सनता आ चयर्ु करता आज रेत म दब कैसे जमी।ू सं या समय जब सब लोग जमा हो, और पंिडत जी अपने िसहंासन पर िवराजमान हएु , तो महादेव खड़ा होकर उ च वर म बोला—भाइय मेरी सारी उम्र छल-कपट म कट गयी। मने न जाने िकतने आदिमय को दगा दी, िकतने खरे को खोटा िकया; पर अब भगवान ने मझ पर दया की हैु , वह मेरे मह की कािलख कोुँ िमटाना चाहते ह। म आप सब भाइय से ललकार कर कहता ह िक िजसका मेरेू ँ िज मे जो कछ िनकलता ुहो, िजसकी जमा मने मार ली हो, िजसके चोखे माल का खोटा कर िदया हो, वह आकर अपनी एक-एक कौड़ी चका लेु , अगर कोई यहॉ न आ ँ सका हो, तो आप लोग उससे जाकर कह दीिजए, कल से एक महीने तक, जब जी चाहे, आये और अपना िहसाब चकता कर ले। गवाहीु -साखी का काम नहीं। सब लोग स नाटे म आ गये। कोई मािमर्क भाव से िसर िहला कर बोला—हम कहते न थे। िकसी ने अिव वास से कहा—क्या खा कर भरेगा, हजार को टोटल हो जायगा। एक ठाकर ने ठठोली कीु —और जो लोग सरधाम चले गये।ु महादेव ने उ तर िदया—उसके घर वाले तो ह गे। िक त इस समय लोग को वसली की इतनी इ छा न थीु ू , िजतनी यह जानने की िक इसे इतना धन िमल कहॉ सेँ गया। िकसी को महादेव के पास आने का साहस न हआ। देहात के आु दमी थे, गड़ ेमद उखाड़ना क्या ुजान। िफर प्राय: लोग को याद भी न था िक उ ह महादेव से क्या पाना ह, और ऐसे पिवत्र अवसर पर भलू-चक हो जाने का भयू उनका मह ब द िकये हए था। सबसे बड़ी बात यह थी िक महादेव की साधता नेु ुँ ु उ हीं वशीभत कर िलया था।ू अचानक पुरोिहत जी बोले—त ह याद हु , मने एक कंठा बनाने के िलए सोना िदया था, तमने कई माशे तौल म उड़ा िदये थे।ु महादेव—हॉ,ँ याद ह, आपका िकतना नकसान हआ होग।ु ु परोिहतु —पचास पये से कम न होगा। महादेव ने कमर से दो मोहर िनकालीं और परोिहत जी के सामने रख दींु । परोिहतजी की लोलपता पर टीकाऍ ंहोने लगीं। यह बेईमानी हु ु , बहतु हो, तो दो-चार पये का नकसान हआ ु ुहोगा। बेचारे से पचास पये ऐंठ िलए। नारायण का भी डर नहीं। बनने को पंिड़त, पर िनयत ऐसी खराब राम-राम ! लोग को महादेव पर एक द्धा-सी हो गई। एक घंटा बीत गया पर उन सह मन य म से एक ुभी खड़ा न हआ। तब महादेव ने िफर कहॉु —ँमालम होता हैू , आप लोग अपना-अपना िहसाब भल गये हू , इसिलए आज कथा होने दीिजए। म एक महीने तक आपकी राह देखगा। इसके पीछे तीथर् यात्रा करने चला ू ँजाऊँगा। आप सब भाइय से मेरी िवनती है िक आप मेरा उद्धार कर। एक महीने तक महादेव लेनदार की राह देखता रहा। रात को च रो के भय से नींद न आती। अब वह कोई काम न करता। शराब का चसका भी छटा। साधू ु-अ यागत जो वार पर आ जाते, उनका यथायोग्य स कार करता। दरू-दर उसका सयश फैलू ु गया। यहॉ तक िक महीना परा हो ँ ू गया और एक आदमी भी िहसाब लेने न आया। अब महादेव को ज्ञान हआ िक ससंार म िकतना धमर्ु , िकतना स यवहार ह। अब उसे मालम हआ ू ुिक ससंार बर के िलए बरा ह और अ छे के िलए अ छा।ु ु 6

  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-10/100

    इस घटना को हए पचास वषर् बीत चके ह। आप वेद जाइयेु ु , तो दर हीू से एक सनहु ला कलस िदखायी देता है। वह ठाकर वारे का कलस है। उससे िमला हआु ु एक पक्का तालाब ह, िजसम खब कमल िखले रहते ह। ूउसकी मछिलयॉ कोई नहींँ पकड़ता; तालाब के िकनारे एक िवशाल समािध है। यही आ माराम का मितृ -िच ह है, उसके स ब ध म िविभ न िकवदंितयॉ प्रचिलत ं ँ है। कोई कहता ह, वह र नजिटत िपजंड़ा वगर् को चला गया, कोई कहता, वह ‘स त ग द तु ’ कहता हआ अतं यार्न हो गयाु , पर यथार्थ यह ह िक उस पक्षी- पी चंद्र को िकसी िब ली- पी राह ने ग्रस िलया। लोग कहते हु , आधी रात को अभी तक तालाब के िकनारे आवाज आती है— ‘स त ग द त िशवद त दाताु , राम के चरण म िच त लागा।’ महादेव के िवषय म भी िकतनी ही जन- ितयॉ है। उनम सबसे मा यु ँ यह है िक आ माराम के समािध थ होने के बाद वह कई सं यािसय के साथ िहमालय चला गया, और वहॉ से लौट कर न आया। उसका नाम ँआ माराम प्रिसद्ध हो गया।

  • MCS/िसफर् प्रथम रचना मक म यांकन के ट स हेतू ू ु/4/3/2012 पेज-11/100

    ठाकर का कआँ ु ु / पे्रमचंद 1 जोख ने लोटा महं से लगाया तो पानी म सख्त बदब आई । गगंी से बोलाू ु ू -यह कैसा पानी है ? मारे बास के िपया नहीं जाता । गला सखा जा रहा है और त सडाू ू पानी िपलाए देती है ! गगंी प्रितिदन शाम पानी भर िलया करती थी । कआं दर थाु ू , बार-बार जाना मि कल था । कल वह पानी ुलायी, तो उसम ब िबलकल न थीू ु , आज पानी म बदब कैसीू ! लोटा नाक से लगाया, तो सचमच बदब थी । ु ूज र कोई जानवर कएंु म िगरकर मर गया होगा, मगर दसरा पानी आवे कहां सेू ? ठाकर के कंए पर कौन चढ़न देगाु ु ? दर से लोग डॉट बताऍगे । साहू ँ ू का कऑ ंगॉव के उस िसरे पर हैु ँ , पर त ुवहॉ कौन पानी भरने देगां ? कोई कऑ ंु गॉव म नहीं है।ँ जोख कई िदन से बीमार ह । कछ देर तक तो यास रोके चप पड़ा रहाू ुु , िफर बोला-अब तो मारे यास के रहा नहीं जाता । ला, थोड़ा पानी नाक बंद करके पी ल ं।ू गगंी ने पानी न िदया । खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी इतना जानती थी, परंत यह न जानती थी िक ुपानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती रहती ह । बोली-यह पानी कैसे िपय गे ? न जाने कौन जानवर मरा ह। कऍ से म ैदसराु ू पानी लाए देती ह।ूँ जोख ने आू चयर् से उसकी ओर देखा-पानी कहॉ से लाएगी ? ठाकर और साह के दो कऍ ंतो ह। क्यो एक लोटा पानी न भरन दगेु ुू ? ‘हाथ-पांव तड़वा आएगी और कछ न होगा । बैठ चपके से । ब्राह णु ुु देवता आशीवार्द दगे, ठाकर लाठी मारेगु , साहजीू एक पांच लेग । गराबी का ददर् कौन समझता ह ! हम तो मर भी जाते है, तो कोई दआर पर झॉकन ु ँनहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कएँ सेु पानी भरने दग ?’ इन श द म कड़वा स य था । गगंी क्या जवाब देती, िक त उसने वह बदबदार पानी पीने को न िदया ।ु ू 2 रात के नौ बजे थे । थके-मॉदे ँ मजदर तो सो चके थू ु , ठाकर केु दरवाजे पर दस-पॉच बेिफके्र जमा थ मदैान ँम । बहादरी का तो न जमाना रहाु है, न मौका। काननी बहादरी की बात हो रही थीं । िकतनी होिशयारी सेू ु ठाकर ने थानेदार को एक खास मकदमे की नकल ले आए । नािजर और मोहितिममु ु , सभी कहते थ, नकल नहीं िमल सकती । कोई पचास मॉगताँ , कोई सौ। यहॉ बे-पैसे-कौड़ी नकल उड़ा दी । काम करने ढ़ग चािहए । इसी समय गगंी कऍ से पानी लेने पहची ।ु ु ँ क पी की धधली रोशनी कऍ ंपर आ रही थी । गगंी जगत की आड़ मे बठैीु ुुँ मौके का इंतजार करने लगी । इस कए का पानी सारा गॉव पीुँ ं ता ह । िकसी के िलए रोका नहीं, िसफर् ये बदनसीब नहीं भर सकते । गगंी का िवद्रोही िदल िरवाजी पाबंिदय और मजबिरय पर चोट करनेू लगा-हम क्य नीच ह और ये लोग क्य ऊच ह ? इसिलए िकये लोग गले म तागा डाल लेते ह ? यहॉ तो िजतने है, एक-से-एक छटे ह ।ॅ चोरी ये कर, जाल-फरेब ये कर, झठे मकदमे ये कर । अभी इस ठाकर ने तो उस िदन बेचारेू ु ु गड़िरए की भेड़ चरा ली ुथी और बाद मे मारकर खा गया । इ हीं पंिडत के घर म तो बारह मास जआ होता है। यही साह जी तो ु ूघी म तेल िमलाकर बेचते है । काम करा लेते ह, मजरीू देते नानी मरती है । िकस-िकस बात मे हमसे ऊँचे ह, हम गली-गली िच लाते नहीं िक हम ऊँचे है, हम ऊँचे । कभी गॉव म आँ जाती हँू, तो रस-भरी आँख से देखने लगते ह। जसेै सबकी छाती पर सॉप लोटनेँ लगता है, परंत घमडं यह िक हम ऊँचे हु !

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    कऍ ंपर िकसी के आने की आहट हु ुई । गगंी की छाती धक-धक करने लगी । कहीं देख ले तो गजब हो जाए । एक लात भी तो नीचे न पड़ े। उसाने घड़ा और र सी उठा ली और झककर चलती हई एक वक्ष के ु ु ृअधँरे साए मे जा खड़ी हई । कबु इन लोग को दया आती है िकसी पर ! बेचारे महग को इतना मारा िक ूमहीनो लहू थकता रहाू । इसीिलए तो िक उसने बेगार न दी थी । इस पर ये लोग ऊँचे बनते ह ? कऍ ंपर ि त्रयाँ पानी भरने आयी थी । इनम बात हो रही थीं ।ु ‘खान खाने चले और हक्म हआ िक ताजा पानी भर लाओं । घड़ ेके िलए पैसे नहीं है।ु ु ’ हम लोग को आराम से बैठे देखकर जसेै मरद को जलन होती ह ।’ ‘हाँ, यह तो न हआ िक कलिसया उठाकर भर लाते। बसु , हकम चला िदया िक ताजा पानी लाओु ु , जसेै हम ल िडयाँ ही तो ह।’ ‘लौिडयंॉ नहीं तो और क्या हो तमँ ु ? रोटी-कपड़ा नहीं पातीं ? दस-पाँच पये भी छीन-झपटकर ले ही लेती हो। और लौिडयॉ कैसी होती हं !’ ‘मत लजाओं, दीदी! िछन-भर आराम करने को ती तरसकर रह जाता है। इतना काम िकसी दसरे के घर कर ूदेती, तो इससे कहीं आराम से रहती। ऊपर से वह एहसान मानता ! यहॉ काम करतें -करते मर जाओं, पर िकसी का मह ही सीधा नहीं होताुँ ।’ दान पानी भरकर चली गई, तो गगंी वक्ष की छाया से िनकृ ली और कऍ ंकीु जगत के पास आयी । बेिफके्र चले गऐ थ । ठाकर भी दरवाजा बंदर कर अदंरु ऑगंन म सोने जा रहे थ । गगंी ने क्षिणक सख की सॉस ुली। िकसी तरह मदैान तो साफ हआ। अमत चरा लाने के िलए जो राजकमार िकसी जमाने म गया थाु ृ ु ु , वह भी शायद इतनी सावधानी के साथ और समझ-्बझकर न गया हो । गगंी दबे पॉव कऍ ंू ँ ु की जगत पर चढ़ी, िवजय का ऐसा अनभव उसे पहले कभी न हआ ।ु ु उसने र सी का फंदा घड़ ेम डाला । दाऍ-ंबाऍ ंचौकनी टी से देखा जसेै कोई िसपाही रात को शत्र के िकले ुम सराख कर रहा हो । अगर इस समयू वह पकड़ ली गई, तो िफर उसके िलए माफी या िरयायत की र ती-भर उ मीद नहीं । अतं मे देवताओं को याद करके उसने कलेजा मजबत िकया और घड़ा कऍ ंम डालू ु िदया । घड़ ेने पानी म गोता लगाया, बहत ही आिह ता । जराु -सी आवाज न हई ।ु गगंी ने दो-चार हाथ ज दी-ज दी मारे ।घड़ा कऍ ंके मह तक आ पु ुँ हचा ।ु ँ कोई बड़ा शहजोर पहलवान भी इतनी तेजी से न खींसच सकता था। गगंी झकी िक घड़ ेको पकड़कर जगत पर रख िक एकाएक ठाकर साहब का दरवाजा खल गया । शेर का ु ुुमह इससे अिधक भयानक न होगा।ुँ गगंी के हाथ र सी छट गई । र सी के साथ घड़ा धड़ाम से पानी म िगरा और कई क्षू ण तक पानी म िहलकोरे की आवाज सनाई देती रहीं ।ु ठाकर कौन हैु , कौन है ? पकारते हए कऍ ंकी तरफ जा रहे थ और गगंी जगत से कदकर भागी जा रही थी ।ु ु ु ू घर पहचकर देखा िक लोटा महं से लगाए वही मलैा गदंा पानी रहा है।ु ँ ु

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    कफ़न / पे्रमचंद झ पड़ ेके वार पर बाप और बेटा दोन एक बझ ेहए अलाव के सामनेु ु चपचाप बैठे हए ह और अ दर बेटे ु ुकी जवान बीवी बिधया प्रसवु -वेदना म पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मह से ऐसी िदल िहला देनेवाली ुँआवाज िनकलती थी, िक दोन कलेजा थाम लेते थे। जाड़ की रात थी, प्रकित स नाटे ृ म डबी हईू ु , सारा गाँव अ धकार म लय हो गया था। घीस ने कहाू —‘‘मालम होता हैू , बचेगी नहीं। सारा िदन दौड़ते हो गया, जा देख तो आ।’’ माधव िचढ़कर बोला—‘‘मरना ही है तो ज दी मर क्य नहीं जाती ? देखकर क्या क ँ ?’’ ‘‘त बड़ा बेददर् है बेू ! साल-भर िजसके साथ सखु-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई !’’ ‘‘तो मझसे तो उसका तड़पना और हाथु -पाँव पटकना नहीं देखा जाता।’’ चमार का कनबा था और सारे गाँव म बदनाम। घीस एक िदन काम करताु ू तो तीन िदन आराम । माधव इतना काम-चोर था िक आध घ टे काम करता तो घंटे-भर िचलम पीता। इसिलए उ ह कहीं मजदरी नहीं ूिमलती थी। घर म मट्ठीु -भर भी अनाज मौजद होू , तो उनके िलए काम करने की कसम थी। जब दो-चार फाके हो जाते तो घीस पेड़ पर चढ़कर लकिड़याँ तोड़ लाता और माधव बाजार से बेच लाता। और जबू तक वह पैसे रहते, दोन इधर-उधर मारे-मारे िफरते। जब फाके की नौबत आ जाती, तो िफर लकिड़याँ तोड़ते या मजदरी तलाश करते। गाँव म काम की कमी न थी।ू िकसान का गाँव था, मेहनती आदमी के िलए पचास काम थे। मगर इन दोन को उसी वक्त बलातेु , जब दो आदिमय से एक का काम पाकर भी स तोष कर लेने के िसवा और कोई चारा न होता। अगर दोन साध होतेु , तो उ ह सतंोष और धैयर् के िलए, सयंम और िनयम की ज रत न होती। यह तो इनकी प्रकित थी। िविचत्र जीवन था इनकाृ ! घर म िमट्टी के दो-चार बतर्न के िसवा कोई स पि त नहीं। फटे चीथड़ से अपनी नग्नता को ढाँके हए जीये जाते थे। ससंार की िचतंाओं से मु कु्त ! कजर् से लदे हए। गािलयाँ ुभी खाते, मार भी खाते, मगर कोई भी गम नहीं। दीन इतने िक वसली की िबलकल आशा न रहने पर भी ू ुलोग इ ह कछु -न-कछ कजर् दे देतेु थे। मटर, आल की फसल म दसर के खेत से मटर या आल उखाड़ लाते ू ू ूऔर भनू-भानकर खा लेते या दस-पाँच ऊख उखाड़ लाते और रात को चसते। घीस ने इसीू ू आकाश-वि त से ृसाठ-साल की उम्र काट दी और माधव भी सपत बेटे की तरह बाप हीू के पद-िच न पर चल रहा था, बि क उसका नाम और भी उजागर कर रहा था। इस वक्त भी दोन अलाव के सामने बैठ कर आल भन रहे थेू ू , जो िक िकसी के खेत से खोद लाये थे। घीस की त्री का तो बहत िदन हएू ु ु , देहा त हो गया था। माधव का याह िपछले साल हआ था। जबसे यह औरत आई थीु , उसने इस खानदान म यव था की नींव डाली थी और इन दोन बेगरैत का दोज़ख भरती रहती थी। जबसे वह आई, यह दोन और भी आरामतलब हो गये थे। बि क कछु अकड़ने भी लगे थे। कोई कायर् करने को बलाताु , तो िन यार्ज भाव से दगनी मजदरी माँगते।ु ू वही औरत आज प्रसव-वेदना से मर रही थी और यह दोन शायद इसी इ तजार म थे िक वह मर जाय, तो आराम से सोएँ। घीस ने आल िनकालकर छीलते हए कहाू ू ु —‘‘जाकर देख तो, क्या दशा है उसकी ? चड़लै का िफसाद होगाु , और क्या ? यहाँ तो ओझा भी एक पया माँगता है !’’ माधव को भय था, िक वह कोठरी म गया, तो घीस आलओं ू ुका बड़ा भाग साफ कर देगा। बोला—‘‘मझ ेवहाँ जाते डर लगता है।ु ’’ ‘‘डर िकस बात का है, म तो यहाँ ह ही।ू ँ ’’ ‘‘तो त हीं जाकर देखो नु ?’’

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    ‘‘मेरी औरत जब मर रही थी; तो म तीन िदन तक उसके पास से िहला तक नहीं; और मझसे लजायेगी िक ुनहीं ? िजसका कभी मह नहीं देखाुँ ; आज उसका उघड़ा हआ बदन देखु ू ँ! उसे तन की सध भी तो न होगीु ? मझ ेदेख लेगी तो खलकरु ु हाथ-पाँव भी न पटक सकेगी !’’ ‘‘म सोचता ह कोई बाू ँ ल-ब चा हआु , तो क्या होगा ? स ठ, गणु, तेल, कछ भी तो नहीं है घर मु !’’ ‘‘सब कछ आ जायगा भगवान द तोु ् ! जो लोग अभी पैसा नहीं दे रहे ह, वे ही कल बलाकर पये दगे। मेरे ुनौ लड़के हएु , घर म कभी कछ न थाु ; मगर भगवान ने िकसी् -न-िकसी तरह बेड़ा पार ही लगाया।’’ िजस समाज म रात-िदन मेहनत करने वाल की हालत उनकी हालत से कछु बहत अ छी न थीु , और िकसान के मकाबले म वे लोगु , जो िकसान की दबर्लताओं से लाभ उठाना जानते थेु , कहीं यादा स प न थे, वहाँ इस तरह की मनोवि त पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी। हम तोृ यही कहगे, घीस ूिकसान से कहीं यादा िवचारवान था और िकसान के िवचार् -श य समह मू ू शािमल होने के बदले बैठकबाज़ की कि सत म डली म जा िमला था। हाँु , उसम यह शिक्त न थी िक बैठकबाज के िनयम और नीित का पालन करता। इसिलए जहाँ उसकी म डली के और लोग गाँव के सरगना और मिखया बने हए थेु ु , उस पर सारा गाँव उँगली उठाता था। िफर भी उसे यह तसकीन तो थी ही िक अगर वह फटेहाल है तो कम-से-कम उसे िकसान की-सी जी-तोड़ मेहनत तो नहीं करनी पड़ती, और उसकी सरलता और िनरीहता से दसरे लोग बेजा फ़ायदा तो ूनहीं उठात े! दोन आल ूिनकाल-िनकालकर जलते-जलते खाने लगे। कल से कछ नहीं खायाु था। इतना सब्र न था िक उ ह ठ डा हो जाने द। कई बार दोन की जबान जल गईं। िछल जाने पर आल का बाहरी िह सा बहत ू ुयादा गमर् मालम न होताू था; लेिकन दाँत के तले पड़ते ही अ दर का िह सा जबान, हलक और ताल कोू

    जला देता था और उस अगंारे को मह म रखने से यादा ख़ैिरयत इसी म थीुँ िक वह अ दर पहच जाय। ु ँवहाँ उसे ठ डा करने के िलए काफ़ी सामान थे। इसिलए दोन ज द-ज द िनगल जाते। हालाँिक इस कोिशश म उनकी आँख से आँस िनकलू आते। घीस को उस वक्त ठाकर की ू ु बारात याद आई, िजसम बीस साल पहले वह गया था। उस दावत म उसे जो ति त िमली थीृ , वह उसके जीवन म एक याद रखने लायक बात थी, और आज भी उसकी याद ताजा थी। बोला—‘‘वह भोज नहीं भलता। तब सेू िफर उस तरह का खाना और भरपेट नहीं िमला। लड़कीवाल ने सबको भरपेट पिड़याँू िखलाई थीं, सबको ! छोटे-बड़ ेसबने पिड़याँ खाईं और असली घी कीू ! चटनी, रायता, तीन तरह के सखे सागू , एक रसेदार तरकारी, दही, चटनी, रायता, अब क्या बताऊँ िक उस भोज म क्या वाद िमला, कोई रोक-टोक नहीं थी, जो चीज चाहो, माँगो, िजतना चाहो, खाओ। लोग ने ऐसा खाया, ऐसा खाया, िक िकसी से पानी न िपया गया। मगर परोसने वाले ह िक प तल म गमर्-गमर् गोल-गोल सवािसतु कचौिड़याँ डाल देते ह। मना करते ह िक न�