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1 छाोपयोगी सहायक सामाी का 10हदी अपᳯित गाश अपᳯित का अथ होता है जो पढ़ा नह गया हो , अाथत् जो पाम कᳱ पुतक से नह हिया जाता है |पाश व गाश का हवषय कुछ भी हो सकता है | इसम सबहित पूछे जाते , इससे हवाᳶथय का मानहसक ायाम होता है और उनके साहहययक ान-े का हवतार भी होता है | सा ही हवाᳶथय कᳱ हिगत योयता एव अहभहि मता भी बढ़ती है | हवहि:- अपᳯित गाश व पाश पर आिाᳯरत को हि करते समय हनहिहित बात का यान रिना चाहहए:- 1- ᳰदए गए गाश/पाश को यानपूवथक पढ़ | 2- पढ़ते समय मुय बात को रेिाᳰकत कर | 3- के उर देते समय भाषा सरि होनी चाहए | 4- उर सरि, सह व सहज होने चाहए | 5- उर म हजतना अपेहत हो उतन ही हििना चाहहए | 6- उर सदैव पूथ वाय म द | अपᳯित-कााश (1) ाकर पद-पᳯरचय– “शदभाषा कᳱ वत एव साथक इकाई है और यही शद जब वाय म युि हो जात ह तो पद कहिाते ह | इन पद के हवषय म हवतार से जानना अाथत् इनका ाकरहक पᳯरचय ही पद- पᳯरचय कहिाते है | जैसे :-छा प हिि रहा है | छा शद का पद-पᳯरचय इस कार होगा छा जाहतवाचक सा , पुᳲिग , एकवचन , कताथकारक , हिि रहा है ᳰया का कताथ | पद-पᳯरचय म हन बात का हववर देना पड़ता है 1) सा- सा के भेद ( हिवाचक, जाहतवाचक , भाववाचक ) ि, वचन , कारक, पुरष ता ᳰया से सबि | 2) सवथनाम सवथनाम के भेद (पुरषवाचक , हनयवाचक, अहनयवाचक, वाचक, हनजवाचक , सबिवाचक )ि, वचन , कारक ता ᳰया के सा सबि | 3) हवशेष के भेद– ( गुवाचक , सयावाचक , पᳯरमावाचक , सावथनाहमक ) िग वचन कारक ता ᳰया के सा सबि हवशेय | 4) ᳰया भेद ( अकमथक , सकमथक , हिकमथक ,सयुि , ेराथक , नामिातु ,पूवथकाहिक ) वाय , काि, वचन , ितु | 5) ᳰया हवशेष भेद, रीहतवाचक , कािगायक , ानवाचक , पᳯरमावाचक|

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    छात्रोपयोगी सहायक सामाग्री

    कक्षा 10वीं

    हहन्दी

    अपठित गद्ाांश अपठित का अर्थ होता है जो पढ़ा नहीं गया हो, अर्ाथत् जो पाठ्यक्रम की पुस्तक से नहीं हिया जाता है|पद्ाांश व गद्ाांश

    का हवषय कुछ भी हो सकता है| इसमें सम्बांहित प्रश्न पूछे जाते हैं, इससे हवद्ार्र्थयों का मानहसक व्यायाम होता ह ैऔर उनके

    साहहहययक ज्ञान-क्षेत्र का हवस्तार भी होता है| सार् ही हवद्ार्र्थयों की व्यहिगत योग्यता एवां अहभव्यहि क्षमता भी बढ़ती ह ै|

    हवहि:-

    अपठित गद्ाांश व पद्ाांश पर आिाठरत प्रश्न को हि करते समय हनम्नहिहित बातों का ध्यान रिना चाहहए:-

    1- ददए गए गद्ाांश/पद्ाांश को ध्यानपूवथक पढ़ें |

    2- पढ़ते समय मुख्य बातों को रेिाांदकत करें |

    3- प्रश्नों के उत्तर दतेे समय भाषा सरि होनी चाहहए |

    4- उत्तर सरि, सांहक्षप्त व सहज होने चाहहएां |

    5- उत्तर में हजतना अपेहक्षत हो उतन ही हििना चाहहए |

    6- उत्तर सदवै पूर्थ वाक्य में दें |

    अपठित-काव्याांश (1)

    व्याकरर्

    पद-पठरचय– “शब्द” भाषा की स्वतांत्र एवां सार्थक इकाई ह ैऔर यही शब्द जब वाक्यों में प्रयुि हो जातें हैं

    तो पद कहिात ेहैं | इन पदों के हवषय में हवस्तार से जानना अर्ाथत् इनका व्याकरहर्क पठरचय ही पद-

    पठरचय कहिाते ह ै|

    जैसे :-छात्र पत्र हिि रहा ह ै|

    छात्र शब्द का पद-पठरचय इस प्रकार होगा –

    छात्र – जाहतवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , एकवचन , कताथकारक , हिि रहा ह ैदक्रया का कताथ |

    पद-पठरचय में हनम्न बातों का हववरर् दनेा पड़ता ह ै–

    1) सांज्ञा- सांज्ञा के भेद ( व्यहिवाचक, जाहतवाचक , भाववाचक ) लिांग , वचन , कारक, पुरुष तर्ा

    दक्रया से सम्बन्ि |

    2) सवथनाम – सवथनाम के भेद (पुरुषवाचक , हनश्चयवाचक, अहनश्चयवाचक, प्रश्नवाचक, हनजवाचक ,

    सम्बन्िवाचक )लिांग , वचन , कारक तर्ा दक्रया के सार् सांबांि |

    3) हवशेषर् के भेद– ( गुर्वाचक , सांख्यावाचक , पठरमार्वाचक , सावथनाहमक ) लिांग वचन कारक

    तर्ा दक्रया के सार् सम्बन्ि हवशेष्य |

    4) दक्रया – भेद ( अकमथक , सकमथक , हिकमथक ,सांयुि , पे्ररर्ार्थक , नामिातु ,पूवथकाहिक ) वाच्य ,

    काि, वचन , िातु |

    5) दक्रया हवशेषर् – भेद, रीहतवाचक , कािगायक , स्र्ानवाचक , पठरमार्वाचक|

  • 2

    6) समुच्चयबोिक– भेद (समानाहिकरर् , व्यहिकरर्) शब्दों के सार् सम्बन्ि |

    7) सांबांिबोिक– भेद , सूचक (कािसूचक , ददशासूचक इययादद ) सांज्ञा तर्ा सवथनामों का हनदशे |

    8) हवस्मयाददबोिक- भेद तर्ा मनोभाव (हषथ , घृर्ा , प्रशांसा , हतरस्कार, चतेावनी , हवस्मय ,

    सांबोिन , शोक )

    1) उदहारर् स्वरुप

    वह आम िाता ह ै|

    वह – पुरुषवाचक सवथनाम , अन्य पुरुष , एकवचन , पुल्िांग , कताथकारक

    आम – जाहतवाचक सांज्ञा, एकवचन , पुल्िांग , कमथ कारक

    िाता ह ै– सकमथक दक्रया , एकवचन , पुल्िांग कतृथवाच्य, वतथमान काि |

    हम अपने दशे पर मर हमटेंगे |

    हम - पुरुषवाचक सवथनाम, उत्तम पुरुष , पुल्िांग , बहुवचन , कताथ कारक |

    अपने – सवथनाम, हनजवाचाक, पुल्िांग , एकवचन, सम्बन्ि कारक ( दशे से सम्बन्ि ) |

    दशे पर – सांज्ञा जाहतवाचक , पुल्िांग , एकवाचक , अहिकरर् कारक |

    मर हमटेंगे – अकमथक दक्रया, पुल्िांग, बहुवचन, भहवष्यत् काि, अपूर्थ पक्ष, कतृथवाच्य |

    मोहन स्कूि जाता ह|ै

    मोहन – व्यहिवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , एकवचन , कताथ कारक |

    स्कूि – जाहतवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , एकवचन , कमथ कारक |

    जाता ह ै– दक्रया , सकमथक दक्रया , कतृथवाच्य, पुल्िांग , एकवचन , वतथमान काि|

    अहा! उपवन में सुन्दर फूि हििे हैं |

    अहा ! – हवस्मयबोिक अव्यय , हषथसूचक |

    उपवन में – जाहतवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , एकवचन अहिकरर् कारक |

    सुन्दर – गुर्वाचक हवशेषर् , पुल्िांग , बहुवचन |

    फूि – जाहतवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , बहुवचन |

    हििे हैं – अकमथक दक्रया , पुल्िांग , बहुवचन , कतृथवाच्य , वतथमानकाि |

    2) रेिाांदकत पदों के पद-पठरचय दें -

    मैं कि बीमार र्ा , इसीहिए हवद्ािय नहीं आया |

    मैं – पुरुषवाचक सवथनाम , उत्तम पुरुष , पुल्िांग , एकवचन , कताथ कारक , “र्ा” और “आया”

    दक्रया का कताथ|

    हवद्ािय – जाहतवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , एकवचन , कमथ कारक , “आया” दक्रया का अहिकरर्

    |

    बच्चों ने अपना काम कर हिया र्ा|

    बच्चों नें – जाहतवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , बहुवचन , कताथ कारक |

    कर हिया र्ा - - सकमथक दक्रया , पुल्िांग , बहुवचन , “कर” िातु भूतकाि , कतृथवाच्य |

    मनोहर दसवीं कक्षा में पढ़ता ह ै|

    दसवीं – सांख्या वाचक हवशेषर् , क्रम सूचक , स्त्रीलिांग , एकवचन , कक्षा - “हवशेष्य” |

    मैं उसे आगरा में हमिूूँगा |

    आगरा – व्यहिवाचक सांज्ञा , पुल्िांग , एकवचन , अहिकरर् कारक , “हमिूूँगा” दक्रया का

    अहिकरर् (स्र्ान )|

    प्रश्न अभ्यास

    1) वाक्यों में रेिाांदकत पदों का पद-पठरचय दीहजये –

    (क) छोटी बच्ची हांस रही ह ै|

    (ि) ऐसा भी क्या हो सकता ह ै?

    (ग) िता सुन्दर ह ै|

    (घ) भारत महान दशे ह ै|

    (ङ) सफिता पठरश्रमी के कदम चूमती ह ै|

  • 3

    (च) तुम भी सुन्दर हिि सकते हो |

    (छ) शीिा आिवीं कक्षा में पढ़ती ह ै|

    (ज) वह िाना बना सकती ह ै|

    (झ) श्याम सों गया |

    (ञ) राम ने रावर् को मारा |

    (ट) मैं िीरे-िीरे चिता हूँ |

    (ि) कि हमने ताजमहि दिेा |

    (ड) हहमािय पर बफथ जमी रहती ह ै|

    (ढ) यह दकताब मेरी ह ै|

    2) रेिाांदकत वाक्यों के पद- पठरचय हते ुददए गए हवक्पों में से सही हवक्प चुन कर हििें –

    I. वह ददन भर पढ़ता रहा |

    (क) हनश्यवाचक सवथनाम , अन्य पुरुष , एकवचन , कताथ कारक , “ह”ै दक्रया का

    कताथ|

    (ि) अहनश्यवाचक सवथनाम अन्य पुरुष कमथ कारक , एकवचन ह ैदक्रया का कताथ|

    (ग) हनश्यवाचक सवथनाम , उत्तम पुरुष , बहुवचन , कताथ करक ह ैदक्रया का कताथ|

    (घ) हनश्यवाचक सवथनाम , मध्यम पुरुष , बहुवचन , कमथकारक ह ैदक्रया का कताथ|

    उत्तर – क

    II. मैं दसवीं कक्षा में पढता हूँ |

    (क) सांख्यावाचक हवशेषर् , क्रमसूचक , स्त्रीलिांग , एकवचन , कक्षा हवशेष्य |

    (ि) पठरमार्वाचक हवशेषर् , क्रमसूचक , पुल्िांग, एकवचन , कक्षा हवशेष्य |

    (ग) स्र्ानवाचक हवशेषर्, क्रमसचूक , स्त्रीलिांग , बहुवचन , कक्षा हवशेष्य |

    (घ) सावथनाहमक हवशेषर् , क्रमसचूक , पुल्िांग , एकवचन , कक्षा हवशेष्य |

    उत्तर-क

    3) पद-पठरचय से आप क्या समझते हैं ? उदाहरर् दकेर स्पष्ट करें |

    4) पद-पठरचय बनाते समय क्या-क्या बातें बताई जानी चाहहए ?

    5) शब्द और पद में क्या अांतर ह ै?

    रचना के आिार पर वाक्य-भदे

    सार्थक शब्दों का वह व्यव्यहस्र्त समूह जो पूर्थ अर्थ प्रकट करता ह,ै वह वाक्य कहिाता ह ै|

    जैसे ----- वह बाज़ार जाता ह ै|

    पक्षी आकाश में उड़ते ह ै|

    रचना के आिार पर वाक्य के भेद –सरि , सांयुि एवां हमश्र

    1) सरि वाक्य–हजस वाक्य में एक ही उद्दशे्य और एक ही हविेय हो उसे सरि वाक्य कहते ह ै| जैसे:-

    सूयोदय होने पर अांिकार हमट गया |

    वे वहाां क्यों गए हैं ?

    बच्चें दिू नहीं पीत ेहैं |

    आयुष पढ़ रहा ह ै|

    2) सांयुि वाक्य– सांयुि वाक्य उस वाक्य को कहते हैं हजसमे दो या दो से अहिक सरि वाक्य अर्वा

    हमश्र वाक्य एक दसूरे पर आिाठरत न होकर दकसी योजक से जुड़ ेहों |जैस े:-

    वषाथ हुई और िूिबैि गई |

    सयय बोिना चाहहए पर अहप्रय सयय नहीं |

    वे बीमार हैं अतः आन ेमें असमर्थ हैं|

    आज परीक्षा ह ैइसीहिए हवद्ािय जा रहा हूँ |

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    3) हमश्र वाक्य– हजस वाक्य में एक प्रिान वाक्य और एक या अनेक आहश्रत उपवाक्य होते ह ै, उसे

    हमश्र वाक्य कहते हैं | जैसे :-

    तुमने जैसा दकया र्ा, वैसा फि हमि गया |

    जो पठरश्रम करेगा , वह अवश्य सफि होगा |

    जब-जब वषाथ होती ह ैमेंढक टराथते हैं |

    यदद मैं पठरश्रम करता तो सफि हो जाता |

    वाक्य के अांग या घटक

    वाक्य के दो अांग होते हैं :-

    i. उद्देश्य–हजसके बारे में कुछ कहा जाए या बताया जाए उस ेउद्दशे्य कहते हैं|

    जैसे –रमा िाना पकाती ह ै|

    मोहन हचत्र बनता ह ै|

    ii. हविये- वाक्य में उद्दशे्य के बारे में जो कुछ कहा जाये उससे हविेय कहते हैं|

    जैसे – सूरज पूरब में हनकिा |

    चाूँद हछप गया ह ै |

    वाक्य में आकाांक्षा, योग्यता और आसहि का होना आवश्यक ह ै|

    आहश्रत उपवाक्य के भदे

    आहश्रत उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं :-

    सांज्ञा आहश्रत

    उपवाक्य

    हवशेषर्

    उपवाक्य

    दक्रया

    हवशेषर्

    उपवाक्य

    1) सांज्ञा आहश्रत उपवाक्य– जब आहश्रत वाक्य सकमथक दक्रया का कमथ या अकमथक दक्रया का कताथ , या

    पूरक बनकर आता ह ै| यह प्रायः “दक” से जुड़ा होता ह ै| जैसे :-

    प्रिानाचायथ ने कहा दक कि स्कूि बांद ह ै|

    पुहिस को हवश्वास र्ा दकवह अवश्य पकड़ा जायेगा |

    ( कहीं-कहीं सांज्ञा उपवाक्य से पहिे “दक” अदशृ्य होता ह ै| )

    2) हवशेषर् उपवाक्य– जो आहश्रत वाक्य मुख्य वाक्य की दकसी सांज्ञा के हवशेषर् का काम करे उसे

    हवशेषर् उपवाक्य कहते हैं | यह प्रायः जो से , जो के यौहगक रूपों से बनता ह ै| जैस े:-

    वह िेकेदार भाग गया जो कि काम पर आया र्ा |

    वे छात्र सफि हो गए जो ददन-रात एक कर रह ेर्े |

    वह चोर पकड़ा गया हजसने कार चरुाई र्ी |

    3) दक्रयाहवशेषर् उपवाक्य– जो आहश्रत वाक्य दकसी दक्रया के हवशेषर्का कायथ करे , उस े

    दक्रयाहवशेषर् उपवाक्य कहते हैं | यह वाक्य जब-जब , ज्यों-ज्यों , ययों-ययों , तब-तब इययादद से

    जुड़ा रहता ह ै| जैसे :-जब-जब पूछोग ेअवश्य बतिाता रहूँगा |

    जैसा वह हििता ह ैमैं भी वसैा हििता हूँ |

    दक्रया हवशेषर् मुख्य रूप से पाांच प्रकार के होते हैं –

    (क) कािवाचक दक्रया हवशेषर् उपवाक्य–

    जब आप आये र्े , मैं पढ़ रहा र्ा |

    मैं जैसे ही स्टेशन पर पहुांचा , वैसे ही गाड़ी चिने िगी |

    (ि) स्र्ानवाचक दक्रया हवशेषर् उपवाक्य–

    हजस हवद्ािय में तुम पढ़ते हो , उसी में मैं पढ़ाता हूँ

  • 5

    यह वही मकान ह ै, जहाूँ आप पहिे रहते र्े |

    (ग) रीहतवाचक दक्रया हवशेषर् उपवाक्य

    जैसा माहिक चाहता ह ै, वैसा ही काम करो |

    जैसा िता जी गाती हैं , वसैा कोई नहीं गाता |

    (घ) पठरमार्वाचक दक्रया हवशेषर् उपवाक्य

    हजतना तुम िा सकते हो , उतना िा िो |

    वह उतना ही अहिक र्केगा , हजतना अहिक दौड़गेा |

    (ङ) पठरर्ामवाचक दक्रया हवशेषर् उपवाक्य

    वह आज इसहिए आएगा क्योंदक हवद्ािय में मीटटांग हैं |

    दरवाज़ा बांद कर दो तादक मच्छर न आ सकें |

    वाक्य रूपाांतरर् के कुछ उदहारर्

    सूयोदय हुआ | अूँिेरा गायब हो गया |

    सरि वाक्य – सूयोदय होने पर अूँिेरा गायब हो गया |

    हमश्र वाक्य – जैसे ही सूयोदय हुआ अूँिेरा गायब हो गया |

    सांयुि वाक्य – सूयोदय हुआ और अूँिेरा गायब हो गया |

    गौरव चार ददन गाूँव में रहा | वह सबका हप्रय हो गया |

    सरि वाक्य – गौरव चार ददन गाूँव में रहकर सबका हप्रय हो गया |

    हमश्र वाक्य – जब गौरव चार ददन गाूँव में रहा तब वह सबका हप्रय हो गया |

    सांयुि वाक्य –गौरव चार ददन गाूँव में रहा और सबका हप्रय हो गया |

    अभ्यास प्रश्न

    1) िता यहाूँ आई और रेिा बाहर गई |

    रचना के आिार पर सही वाक्य भेद ह ै|

    (क) सरि वाक्य (ग) सांयुि वाक्य

    (ि) हमश्र वाक्य (घ) सांज्ञा उपवाक्य

    2) रचना की दहृष्ट से वाक्य भेद ह ै–

    (क) दो (ग) चार

    (ि) तीन (घ) पाांच

    3) हविेयके अांतगथत नहीं आता –

    (क) पूरक (ग) दक्रया का हवस्तार

    (ि) कमथ (घ) हजसके बारे में कुछ कहा जाए

    4) उद्दशे्य में सहम्महित नहीं ह ै–

    (क) कताथ का हवस्तार

    (ि) कताथ

    (ग) हजसके बारे में कुछ कहा जाए

    (घ) कमथ का हवस्तार

    5) एक प्रिान उपवाक्य और एक या एक से अहिक आहश्रत उपवाक्य होते हैं –

    (क) सांयुि वाक्य में

    (ि) हवशेषर् वाक्य में

    (ग) हमश्र वाक्य में

    (घ) िघु वाक्य में

  • 6

    6) रमा ज्यों ही घर पहुांची , वषाथ शुरू हो गई |

    रेिाांदकत उपवाक्य का भेद ह ै –

    (क) सांज्ञा आहश्रत वाक्य

    (ि) हवशेषर् आहश्रत उपवाक्य

    (ग) समानाहिकरर् उपवाक्य

    (घ) दक्रया-हवशेषर् उपवाक्य

    7) नीचे हििे वाक्यों में कुछ सरि , सांयुि एवां हमश्र वाक्य ह ै| उन्हें छाांट कर हििें-

    (क) मैं चाहता हूँ की तुम पठरश्रम करो | ( _______________ )

    (ि) वह आदमी पागि हो गया ह ै| (__________________)

    (ग) आपकी वह कुसी कहाूँ ह ैजो आप किकत्ता से िाये र्े ? (_____________)

    (घ) हमारे हमत्र कि यहाूँ से जायेंगे और आगरा पहुूँच कर ताजमहि दिेेंगें| (____)

    (ङ) अपना काम दिेो या शाांत बैिे रहो | (__________)

    उत्तर सांकेत

    1) (ग) 2) ि 3) घ 4) घ 5) ग 6) घ 7)(क) हमश्र (ि)सरि (ग) हमश्र (घ) सांयुि

    (ङ)सांयुि

    रस रस वास्तव में काव्य की आयमा ह ै | दकसी भी साहहयय में रस के हबना काव्य सत्ता की क्पना नहीं की जा

    सकती | इसीहिए सांस्कृत में आचायथ हवश्वनार् न ेकहा ह ै–“वाक्यम ्रसायमकां काव्यम”् अर्ाथत ्सरस वाक्य समहू को

    काव्य कहत ेहैं | काव्य में भावों की उयपहत्त होती ह ै | जब दकसी साहहयय को पढ़कर मनषु्य अपनी हनजी सत्ता को याद न रिकर,

    कहवता में व्यि भावों स ेजड़ु जाए तो हमारे मान के स्र्ायीभाव रस में पठरर्त हो जात ेहैं | इसका पान मन ही मन

    दकया जा सकता स ेह ै| यही काव्य का आनांद रस कहिाता ह ै| नाट्यशास्त्र के आचायथ भरत महुन न ेरस की पठरभाषा देत ेहुए कहा ह ैदक –हवभावानभुाव व्यहभचारी सांयोगाद्रस

    हनष्पहतः हवभाव, अनभुाव, व्यहभचारीभाव के सांयोग स ेरस की हनष्पहत्त होती ह ै| स्र्ायीभाव- वास्तव में यह भाव हम सबके हृदय में पहि ेस ेही स्र्ायी रूप स ेहवद्मान रहत ेहैं | काव्य पढ़न ेस ेय े

    भाव सषुपु्तावस्र्ा स ेजागतृ हो जात ेहैं और रस में बदि जातें हैं | स्र्ायीभावों की सांख्या नौ ह ैतर्ा इनके अनसुार ही

    रसों की सांख्या भी नौ ह ै| क्रम सां॰ स्र्ायीभाव रस

    १ रहत शृ्रांगार

    २ हास हास्य

    ३ शोक करुर्

    ४ क्रोि रौद्र

    ५ उयसाह वीर

    ६ भय भयानक

    ७ जुगुप्सा (घृर्ा) वीभयस

    ८ हवस्मय अद्भुत

    ९ हनवेद शान्त

    १० वायस्य (बाि -रहत) वायस्य

    ११ भगवत् रहत भहि

  • 7

    (मुख्य रूप से रस केवि नौ ही है,दकन्तु वायस्य एवां भहि रस बाद में सहम्महित हुए हैं|)

    1) सांचारी भाव / व्यहभचारी- ये मन में उिने हगरने वािे भाव हैं | स्र्ायी न होकर क्षहर्क होते हैं | य े

    अवसर के अनुकूि अनेक स्र्ायी भावों का सार् दतेे हैं | इसहिए इन्हें सांचारी अर्ाथत् सार्-सार् सांचरर्

    करन ेवािा तर्ा व्यहभचारी अर्ाथत् एक से अहिक के सार् रमन करने वािा कहा गया ह ै| स्र्ायीभावों

    के सार्-सार् बीच-बीच में जो मनोभाव प्रकट होते हैं , उन्हें सांचारी भाव कहते हैं | ये मनोहवकार पानी

    के बुिबुिों की भाूँहत बनते और हबगड़ते हैं |

    सांचारीभाव की कुि ३३ सांख्या मानी गई ह ै|

    2) हवभाव–भाव जागृत करने के कारक को हवभाव कहत ेहैं | पात्र घटनाएूँ, हस्र्हतयाूँ हवभाव ह ै , हजन्हें

    दिेकर पािक के हृदय में भाव जागृत होते हैं | इसके दो भेद हैं-

    आिांबन हवभाव- मूि हवषय वस्तु को आिांबन हवभाव कहत ेहैं | जैस े– रांग-

    हबरांगी, बेमेि पोषाक पहन े, हवहचत्र- सी शकि बनाए ,वैसी ही टोपी िारर्

    दकए, कुछ अजीब से हरकतें करते , दकसी जोकर को दिेकर हांसी आना

    स्वाभाहवक ह|ै

    उद्दीपन हवभाव– जो आिांबन िारा जागृत भावों को उद्दीप्त करते हैं , उन्हें

    उद्दीपन हवभाव कहा जाता ह ै |उपयुथि उदाहरर् में जोकर की अजीब स े

    हरकतें, हास्यपूर्थ बातें , उसकी हवहचत्र पोषाक उद्दीपन हवभाव ह ै | इसी

    प्रकार लसांह का गजथन , उसका िुिा मुूँह , जांगि की भयानकता , गहराता

    अूँिेरा आदद भी उद्दीपन हवभाव हैं |

    3) अनभुाव हवभाव–जोकर को दिेकर चदकत होना , हूँसना , तािी बजाना आदद अनुभाव हैं| इसके

    अिावा शेर दिेकर भयभीत होकर हक्का बक्का होना, रोंगटें िड़ ेहोना ,काूँपना, पसीने से तर बतर होना

    भी अनुभाव ह ै|

    रस के भदे रस के मुख्यतः 9 भेद होत ेहैं :-

    (1) श्रृांगार रस -कामभावना का जागृत होना शृ्रांगार कहिाता ह ै | स्त्री पुरुष का सहज आकषथर् ही इसका

    आिार ह ै| इस ेरसराज भी कहते हैं | इसके दो भेद हैं–

    सांयोग शृ्रांगार

    स्र्ायी भाव – रहत

    सांयोग शृ्रांगारउदाहरर् –

    बतरस िािच िाि की

    मुरिी िरी िुकाय |

    रस

    श्रृंगार

    रस

    हास्य रस

    वीर रस

    करुण

    रस

    रौद्र रसभयानक

    रस

    वीभत्स

    रस

    अद्भुत्

    रस

    शान्त

    रस

  • 8

    सौंह करे भौहन हूँसे

    देंन कह ेनठट जाय ||

    हवयोग श्रृांगार

    नायक-नाहयका या पे्रमी-पे्रहमका के हबछड़ने के पर नायक नाहयका के पे्रम का वर्थन

    हवयोग श्रृांगार ह ै|

    उदाहरर्-हनहस ददन बरसत नैन हमारे

    सदा रहहत पावस ऋत ुहमपे ,

    जबते स्याम हसिारे |

    (2) हास्य रस-जहाूँ हविक्षर् हस्र्हतयों िारा हूँसी का पोषर् हो वहाां हास्य रस की अहभव्यहि होती ह ै|

    स्र्ायी भाव – हास्य , उदाहरर् –

    हार्ी जसैा दहे ह ै, गैंड ेजैसे िाि |

    तरबूजे सी िोपड़ी , िरबूजे से गाि ||

    (3) वीर रस –उयसाह स्र्ायी भाव जब हवभावों , अनुभवों और सांचारी भावों से पुष्ट होकर आस्वादन के

    योग्य होता ह ै, तब उस ेवीर रस कहते हैं |

    उयसाह के चार क्षेत्र पाए गए हैं – युद्ध , िमथ , दया और दान |

    स्र्ायी भाव – उयसाह , उदाहरर् –

    भािा तन कर यूूँ बोि उिा ,

    रार्ा मुझको हवश्राम न द े|

    मुझको बैरी से हृदय क्षोभ

    तू तहनक मुझे आराम न द े||

    (4) रौद्र रस- क्रोि और प्रहतशोि का भाव जब अनुभावों , हवभावों और सांचारी भावों के योग से पठरपुष्ट

    होता ह ैतो रौद्र रस की अहभव्यहि होती ह ै|

    स्र्ायी भाव – क्रोि ,उदाहरर्-

    स्वर में पावक यदद नहीं , वरृ्ा वांदन ह ै|

    वीरता नहीं , तो सभी हवनय क्रां दन ह ै|

    पर हजसके अहसघात, रि चन्दन ह ै,

    भ्रामरीउसी का करतीअहभनन्दन ह ै|

    (5) भयानक रस -जहाूँ भय स्र्ायी भाव पुष्ट हो वहाां भयानक रस की अहभव्यहि होती ह ै|

    स्र्ायी भाव – भय , उदाहरर्-

    एक ओर अजगरलहां िहि, एक ओर मृगराय |

    हवकि बटोही बीच ही , पयो मूरछा िाय ||

    (6) वीभयस रस-जहाूँ दकसी वस्त ुअर्वा दशृ्य के प्रहत जुगुप्सा (घृर्ा ) का भाव हो , वहाां वीभयस रस की

    अहभव्यहि होती ह ै|

    स्र्ायी भाव – जुगुप्सा ,उदाहरर्-

    हसर पर बैठ्यो काग आूँि दोउ िात हनकारत |

    िींचत जीमलहां स्यार , अहतहह आनांद डर िारत||

    गीि जाांहघ को िेदी-िेदी कै माूँस उपारत |

    स्वान अूँगुठरन का काठट-काठट के िात हवदारत ||

    (7) करुर् रस-हप्रय व्यहि या वस्तु की हाहन का शोक जब हवभाव, अनुभाव, सांचारी आदद भावों स े पुष्ट

    होकर व्यि होता ह ै, उसे करुर् रस कहते हैं |

    स्र्ायी भाव – शोक ,उदाहरर्-

    बुझी पड़ी र्ी हचता वहाूँ पर ,

    छाती ििक उिी मेरी |

    हाय ! फूि सी कोमि बच्ची ,

    हुई रािकी र्ी ढ़ेरी|

  • 9

    (8) अद्भतु रस-आश्चयथजनक व अद्भुत वस्तु दिेने व सनुन ेसे आश्चयथ का पोषर् हो तब अद्भुत रस की

    हनष्पहत्त होती ह ै|

    स्र्ायी भाव – हवस्मय ,उदाहरर्-

    उड़ गया अचानक िो , भूिर

    फड़का अपार पारद के पार |

    ि शेष रह गए हैं हनझथर

    ह ैटूट पड़ा र्ा भू पर अांबर ||

    (9) शान्त रस-सांसार के प्रहत वैराग्य का भाव रस-अवयवों से पठरपुष्ट होकर शान्त रस की अहभव्यहि होती

    ह ै|

    स्र्ायी भाव – वैराग्य / हनवदे ,उदाहरर्-

    मेरा मन अनांत कहाूँ सुि पावै |

    जैसे उहड़ जहाज को पांछी पुहन जहाज पे आवे ||

    सूरदास प्रभु कामिेन ुतहज छेरी कौन दहुावै||

    इनके अिावा दो और रस हैं जो इस प्रकार हैं :-

    (1) भहि रस- ईश्वर-पे्रम का भाव रस के अवयवों से पुष्ट हो रस में पठरर्त होता ह ै , तो भहि रस की

    अहभव्यहि होती ह ै|

    स्र्ायी भाव – भगवत् रहत ,उदाहरर्-

    मेरे तो हगठरिर गोपाि दसूरो न कोई |

    जाके हसर मोर मुकुट , मेरो पहत सोई ||

    (2) वायस्य रस-जहाूँ बाि-रहत का भाव रस अवयवों स ेपठरपुष्ट होकर रस रूप में व्यि होता ह ै , वहाां

    वायस्य रस होता ह ै|

    स्र्ायी भाव – बि-रहत ,उदाहरर्-

    तुम्हारी ये दन्तुठरत मुस्कान

    मृतक में भी डाि दगेी प्रार् |

    िूहि-िूसर तमु्हारे ये गाि

    हिि रह ेजिजात ||

    प्रश्न अभ्यास

    सही हवक्प छाांटकर हििें –

    1) हवभाव अनुभाव और सांचारी भावों की सहायता से रस दकस रूप में पठरर्त हो जाते हैं |

    क भाव ग स्र्ायीभाव

    ि सांचारी भाव घ व्यहभचारी भाव

    2) वीर रस का स्र्ायी भाव क्या ह ै?

    क ओज ग रहत

    ि उयसाह घ क्रोि

    3) शृ्रांगार रस का स्र्ायी भाव क्या ह ै?

    क प्रेम ग रहत

    ि उयसाह घ हास

    4) साहहयय शास्त्र में रसों की दकतनी सांख्या मानी गई ह ै?

    क 10 ग 9

    ि 11 घ 8

    5) कौन सा रस 9 रसों के अांतगथत नहीं आता ?

    क अद्भुत ग रौद्र

    ि भयानक घ वायस्य

  • 10

    6) हनम्न में से रस कौन सा ह ै?

    क उयसाह ग हास्य

    ि क्रोि घ जगुुप्सा

    7) रौद्र रस का स्र्ायी भाव क्या ह ै?

    क उयसाह ग जुगुप्सा

    ि वैराग्य घक्रोि

    8) शान्त रस का स्र्ायी भाव क्या ह ै?

    क रहत ग भय

    ि हनवेद घ जुगुप्सा

    9) भयानक रस का स्र्ायी भाव क्या ह ै?

    क क्रोि ग जगुुप्सा

    ि रहत घ भय

    10) दकस रस को रसराज के नाम से भी जाना जाता ह ै?

    क वायस्य ग वीर

    ि रौद्र घ शृ्रांगार रस

    उत्तर

    1) ि , 2) ग , 3) ि , 4) क , 5) घ, 6) ि , 7) घ , 8) ि , 9) घ , 10) घ वाच्य

    वाच्य का शाहब्दक अर्थ ह ै– बोिने का हवषय | हम जो कुछ बोिते हैं तब हमारे ध्यान के केन्द्र में कोई व्यहि

    , वस्तु अर्वा कायथ अवश्य रहता ह ै | अतः दक्रया के हजस रूप से य ेज्ञात हो दक दक्रया का प्रयोग करता के

    अनुसार ह ैया कमथ के अनुसार या भाव के अनुसार उसे वाच्य कहते हैं |

    वाच्य के भदे

    वाच्य के तीन भेद हैं –

    कतृथवाच्य

    कमथवाच्य

    भाववाच्य

    कतृथवाच्य :- हजन वाक्यों में कताथ की प्रिानता होती ह ैऔर दक्रया का हविान कताथ के लिांग वचन के

    अनुसार होता ह ै, उसे कतृथवाच्य कहते हैं | उदाहरर् –

    (क) िड़के दक्रकेट िेि रह ेहैं |

    (ि) रोहन पुस्तकें िरीद रहा ह ै|

    (ग) कबूतर दाना चुग रह ेहैं |

    (घ) सूयथ चमक रहा ह ै|

    (ङ) महक हनबांि हििती ह ै|

    पहचान – कताथ प्रमुि , दक्रया कताथ के अनुसार , कताथप्रर्म हवभहि में |

    कमथवाच्य:- हजस वाक्य में दक्रया के लिांग और वचन कमथ के अनुसार होते हैं वाच्य लबांद ुकताथ न होकर कमथ

    होता ह,ै उसे कमथवाच्य कहत ेहैं | उदाहरर् :-

    (क) शैवी से स्कूि जाया जाता ह ै|

    (ि) रमा से दिू हपया जाता ह ै|

    (ग) परीक्षा में प्रश्न-पत्र बाांटे गए |

    (घ) बािक से पत्र हििा जाता ह ै|

    पहचान – ध्यान दनेे योग्य बात यह ह ैदक कमथवाच्य में कताथ का िोप होता ह ैया कताथके सार् “िारा”, “के

    िारा”, या “से” जोड़ा जाता ह,ै इस कारर् कताथगौर् हो जाता ह ैतर्ा उसमें सकमथक दक्रयाांए प्रयुि होती हैं |

  • 11

    भाववाच्य:- हजन वाक्यों में वाच्य लबांद ुन कताथ हो , न कमथ हो बह्क दक्रया का भाव ही मुख्य हो , उस े

    भाववाच्य कहा जाता ह ै| उदाहरर् :-

    (क) मुझसे चिा नहीं जाता |

    (ि) अब उिा जाए |

    (ग) र्ोड़ी दरे सो हिया जाए |

    (घ) अब िेिा जाये |

    (ङ) बच्चों िारा हांसा जाता ह ै|

    पहचान – भाव प्रमुि,दक्रया-एकवचन, पुल्िांग ,अन्य पुरुष तर्ा सामान्य भूत कि में |

    --वाच्य सांबांिी कुछ महत्त्वपरू्थ लबांद ु–-

    I. कतृथवाच्य में अकमथक एवां सकमथक दोनों प्रकार की दक्रयाओं का प्रयोग होता ह ै|

    II. कमथवाच्य वही ूँ होगा जहाूँ कमथ होता ह ै, अर्ाथत ्केवि सकमथक दक्रयाओं में ही कमथवाच्य होता ह ै|

    III. भाववाच्य सदवै अकमथक दक्रयाओं में अन्य पुरुष पुल्िांग तर्ा एकवचन में होता ह ै|

    IV. कमथवाच्य तर्ा भाववाच्य के हनषेिायमक वाक्यों में जहाूँ कताथ के बाद के िारा /िारा या से परसगथ

    का प्रयोग दकया जाता ह ै|

    V. कमथवाच्य तर्ा भाववाच्य के हनषेिायमक वाक्यों में जहाूँ कताथ तर्ा स ेपरसगथ का प्रयोग होता ह ै

    वहाूँ एक अन्य असमर्थता सचूक अर्थ की भी अहभव्यहि होती ह ै|

    जैसे :-

    मुझसे दकताब नहीं पढ़ी जाती |

    हपताजी से पैदि नहीं चिा जाता |

    VI. कतृथवाच्य के सकारायमक वाक्यों में सामर्थयथ को सूहचत दकया जाता ह ै|

    लहांदी में दक्रया का एक ऐसा रूप भी ह ैजो कमथवाच्य की तरह प्रयुि होता ह ै– वह ह ैसकमथक दक्रया

    से बना उसका अकमथक रूप हजसे व्युत्त्पन्न अकमथक कहते हैं |

    जसैे:-

    हगिास टूट गया | (तोड़ना स ेटूटना रूप )

    --वाच्य पठरवतथन--

    कतृथवाच्य से कमथवाच्य बनाना

    1) कतृथवाच्य की मुख्यदक्रया का सामान्य भूतकाि में पठरवतथन |

    2) कताथ के सार् “िारा”, “के िारा” या “से” िगाएूँ|

    3) दक्रया के पठरवर्तथत रूप के सार् काि, पुरुष,वचन तर्ा लिांग के अनुसार दक्रया का

    रूप जोडें |

    4) यदद कमथ के सार् हवभहि िगी हो तो उसे हटा दें |

    उदाहरर्-

    कतृथवाच्य कमथवाच्य

    प्रिानमांत्री ने सफाई अहभयान चिाया| प्रिानमांत्री के िारा सफाई अहभयान चिाया गया|

    सोनि काम कर रही ह ै| सोनि स ेकाम दकया जा रहा ह ै|

    तुिसीदास ने रामायर् हििी | तुिसीदास िारा रामायर् हििी गयी |

    मजदरू मजदरूी करेंगे | मजदरूों िारा मजदरूी की जाएगी |

    मैंने पत्र हििा | मेरे िारा पत्र हििा गया |

    कतृथवाच्य से भाववाच्य बनाना

  • 12

    भाववाच्य में कमथ नहीं होता | मूि कताथ की दो हस्र्हतयाूँ होती हैं |

    1) उसके आगे “स”े िगता ह ै|

    2) उसका उ्िेि ही नहीं होता |

    जैसे – मैं अब चि नहीं सकता |

    मुझसे अब चिा नहीं जाता |

    भाववाच्य में दक्रया सदा एकवचन, पुल्िांग,अकमथक तर्ा अन्य पुरुष में रहती ह ै|

    उदाहरर्-

    कतृथवाच्य भाववाच्य

    चिो, अब चिें | चिो , अब चिा जाए |

    मैं िड़ा नहीं हो सकता | मुझसे िड़ा नहीं हुआ जाता |

    हम इतना पढ़ नहीं सकते | हमसे इतना पढ़ा नहीं जाता |

    पक्षी उड़ेंगे | पहक्षयों िारा उड़ा जायेगा |

    प्रश्न अभ्यास

    1. हनदशेानुसार उत्तर दीहजये –

    (क) आओ कुछ बातें करें | (कमथवाच्य)

    (ि) अशोक कभी चुप नहीं बैिता | (भाववाच्य)

    (ग) इसी कारर् िड़की को अांहतम पूूँजी कहा गया ह ै| (कतृथवाच्य)

    (घ) माूँ परांपरा से हटकर उसको सीि द ेरही ह ै| (कमथवाच्य)

    (ङ) तुम टहि ही नहीं सकते हो |(भाववाच्य)

    उत्तर :-

    (क) आईए! कुछ बातें की जाएूँ |

    (ि) अशोक कभी चुप नहीं बैिता |

    (ग) इसी कारर् िड़की को अांहतम पूूँजी कहते हैं |

    (घ) माूँ िारा परांपरा से हटकर उसको सीि दी जा रही है|

    (ङ) तुमसे टहिा ही नहीं जा सकता |

    2. सही हवक्प चनुकर उत्तर हििें –

    1) हजस वाक्य में कताथ के अनसुार दक्रया का रूप बदिता ह ै,उसे कहते हैं -

    (क) भाववाच्य (ि)कमथवाच्य

    (ग)सािारर् वाच्य (घ)कतृथवाच्य

    2) हजस वाक्य में कमथ के अनसुार दक्रया का रूप बदिता ह ै, उसे कहते ह-ै

    (क) कमथवाच्य (ि)भाववाच्य

    (ग)कतृथवाच्य (घ)अन्य

    3. वाच्य बताएां –

    1) प्रिानमांत्री िारा भाषर् ददया गया |

    (क) भाववाच्य (ि)कमथवाच्य

    (ग)कतृथवाच्य (घ)अन्य

    2) मीना उपन्यास पढ़ती ह ै|

    (क)कतृथवाच्य(ि)कमथवाच्य

    (ग)भाववाच्य (घ)इनमे से कोई नहीं

  • 13

    3) माूँ से चिा भी नहीं जाता |

    (क) कमथवाच्य (ि) भाववाच्य

    (ग)कतृथवाच्य(घ)अन्य

    4) सुहमत्रा िारा पत्र पढ़ा गया |

    (क)कमथवाच्य (ि)कतृथवाच्य

    (ग)भाववाच्य (घ)अन्य

    5) भाववाच्य छाूँटें-

    (क) िता स ेसोया नहीं जाता |

    (ि) िता सो नहीं सकती |

    (ग) िता सो नहीं पाती |

    (घ) िता नहीं सो सकती |

    उत्तर

    2-1)घ ,2-2)-ग, 3-1)ि3-,2)-क,3-3)ि,-4)क,-5)क

    पत्र-िेिन पत्र-िेिन एक किा है| या मानव के हवचारों के आदान-प्रदान का अययांत सरि और सशि सािन है| िेिन की हजतनी

    भी किाएूँ हैं उनमें यह हविा अिग ह ैक्योंदक पत्रदकसी न दकसी व्यहि को सांबोहित करते हुए हििा जाता ह ै|

    पत्र-िेिन में ध्यातव्य बातें-

    1-पत्र की भाषा सरि,सजीव तर्ा रोचक होनी चाहहए |

    2-पत्रों में सरि तर्ा छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहहए |

    3-पत्र में इिर-उिर की बातें न हििकर अनावश्यक हवस्तार से बचना चाहहए |

    4-पत्र-िेिन में भाषा की हशष्टता अवश्य बनाए रिना चाहहए | यहाूँ तक दक हवरोि प्रकट करने की हिए भी कटु भाषा

    का प्रयोग होना चाहहए |

    5-पत्र का सांपादन इस प्रकार होना चाहहए दक पत्र का साराांश उसमें झिकता हो |

    पत्रों के प्रकार -

    पत्रों को मुख्यतया दो भागों में बाूँटा जा सकता ह ै–

    1-औपचाठरक पत्र- जो पत्र सरकारी कायाथियों के आिावा अिथसरकारी तर्ा गैर-सरकारी कायाथियों को भेजे जाते हैं, उन्हें

    औपचाठरक पत्र कहते हैं | ये पत्र उन िोगों, अहिकाठरयों, कमथचाठरयों को हििे जात ेहैं, हजनसे हमारा

    हनजता का या ठरश्ते का सम्बन्ि नहीं होता है| ये पत्र दहैनक जीवन की हवहभन्न आवश्यकताओं के सन्दभथ

    में हििे जाते हैं, हजनमे ज़्यादातर अनुरोि का बोि होता ह ै|

    जैसे-प्रार्थना पत्र, आवेदन पत्र, हशकायती पत्र, सम्पादकीय पत्र, शुभकामना पत्र, िन्यवाद पत्र, व्यावसाहयक पत्र|

    पत्र का प्रकार सम्बन्ि प्रारम्भ समापन

    प्रार्थना पत्र प्राचायथ महोदय/ महोदया माननीय/ श्रीमानजी आपकाआज्ञाकारी हशष्य/हशष्या

    आवेदन पत्र सम्बांहित अहिकारी का पद माननीय/ श्रीमानजी प्रार्ी/हवनीत/भवदीय

    हशकायती पत्र सम्बांहित अहिकारी का पद माननीय/ श्रीमानजी प्रार्ी/हवनीत/भवदीय

    औपचाठरक पत्र का प्रारूप- प्रार्थना-पत्र

    सेवा में,

    प्राचायथ/ प्राचायाथ

    ......................

    ......................

    .....................

    हवषय-.......................................( सम्बांहित हवषय का उ्िेि )

    महोदय/महोदया

    .............................................................................................................................................

    ...........................................................................................................................................................

  • 14

    ...........................................................................................................................................................

    ...........................................................................................................................................................

    ................................................

    िन्यवाद,

    आपका आज्ञाकारी हशष्य/ हशष्या

    .............................................

    .............................................

    नमनूा प्रार्थना पत्र

    प्रश्न- ग्रीष्मावकाश में आपके हवद्ािय का टूर शैहक्षक भ्रमर् हतेु जाना चाहता है| दकसी पवथतीय स्र्ि की जानकारी, वहाूँ के

    सािन, रमर्ीक स्र्ि आदद को बताते हुए अपने हवद्ािय को उस स्र्ान पर टूर िे जाने का सुझाव भरा पत्र हिहिए-

    सेवामें,

    प्राचायथ महोदय,

    कें द्रीय हवद्ािय

    चांडीगढ़ |

    हवषय- टूर के हिए उपयुि पवथतीय स्र्ि के सुझाव के सम्बन्ि में |

    महोदय,

    उपयुथि हवषय में हनवेदन है दक मैं इस हवद्ािय की दसवीं कक्षा का मोहनटर हूँ| हमारे कक्षाध्यापकने बताया ह ैदक इस

    ग्रीष्मावकाश में हवद्ािय की ओर सेशैहक्षक-भ्रमर् हतेु टूर का आयोजनदकयाजा रहा है| यह टूर राजस्र्ान के उदयपुर, अजमेर

    और जयपुर के हिए है|

    श्रीमानजी, इससे पूवथ भी हमारा टूर राजस्र्ान जा चुका है, गमी के महीने में टूर का आनांद हमारी परेशानी बन जाता ह ै

    | इस ग्रीष्मावकाश में जम्मू, कटरा तर्ा वैष्र्ो दवेी जैसे पवथतीय स्र्ानों पर टूर िे चिें तो अच्छा रहगेा | दद्िी तर्ा नई दद्िी

    से होकर जाने वािी अनेक गाहड़याूँ हमें जम्मू तवी स्टेशन तक छोंड देंगी | इस यात्रा में ग्यारह-बारह घांटे िगेंगे | जम्मू शहर में

    अनेक मांददरों तर्ा ऐहतहाहसक महत्त्व वािे स्र्ानों को दिेकर वहाूँ से दो घांटे की यात्रा कर कटरा पहुूँचा जा सकता है| पवथतीय

    सड़क, तीिे मोड़, पास से गुजरती तवी नदी तर्ा प्राकृहतक सुषमा अययांत मनोहर ह ै | इससे हमें एक नया अनुभव एवां ज्ञान प्राप्त

    होगा |

    आपसे प्रार्थना ह ैदक मेरे इस सुझाव पर सहानुभूहतपूवथक हवचार करने की कृपा करें |

    सिन्यवाद,

    आपका आज्ञाकारी हशष्य

    ..................................

    प्रश्न-2 आपके नगर की प्रहसद्ध डेयरी में दिू तर्ा दिू से हनर्मथत पदार्ों में हमिावट की जाती है | नगर के स्वास्र्थय अहिकारी को

    पत्र िारा जानकारी दतेे हुए उहचत कायथवाही के हिए अनुरोि कीहजए |

    सेवामें,

    स्वास्र्थय अहिकारी,

    जयपुर नगर हनगम,

    मानसरोवर, जयपुर |

    हवषय- दिू एवां दगु्ि पदार्ों में हमिावट सम्बन्िी जानकारी दनेे के सम्बन्ि में |

    महोदय,

    मैं आपका ध्यान मानसरोवर क्षेत्र में चि रही ‘गुप्ता डेयरी’ िारा हमिावट के अनैहतक िन्िे की ओर आकृष्ट करना

    चाहता हूँ | इस डेयरी में दिू हवतठरत होता ह ैतर्ा दिू से बने पदार्थ- पनीर, दही, िोया आदद बनाकर बेचे जाते हैं | इन पदार्ों

    में भरी हमिावट की जाती ह ै | इसकी हशकायत बार-बार की गई ह,ै पर डेयरी माहिक स्वास्र्थय कमथचाठरयों को ठरश्वत देकर

    अपना काम हनरांतर जारी दकये हुए हैं | यह डेयरी िोगों के स्वास्र्थय के सार् हििवाड़ कर रही है |

    अतः आपसे करबद्ध अनुरोि ह ैदक इस डेयरी पर आवश्यक क़ानूनी कारथवाई की जाए, हजससे यहाूँ हमिावट पर रोक

    िगे जा सके |

    सिन्यवाद |

    भवदीय

    उमेश

    नगर पाषथद (मानसरोवर)

    2-अनौपचाठरक पत्र- इन पत्रों को व्यहिगत या पाठरवाठरक पत्र भी कहा जाता है| इन पत्रों को अपने हमत्रों, ठरश्तेदारों, सगे-

    सम्बहन्ियों तर्ा शुभेच्छु व्यहियों को हििे जाते हैं| इस पत्रों में आयमीयता, हनकटता, तर्ा घहनष्ठता का

    भाव समाया रहता है, हजनमें घरेिू और हनजतापूर्थ बातों का उ्िेि रहता है|

    जैसे- बिाई पत्र, आभार प्रदशथन-पत्र, हनमांत्रर्-पत्र, सांवेदना-पत्र |

    पत्र का प्रकार - बिाई पत्र िन्यवाद पत्र शुभकामना पत्र साांयवना पत्र

    सम्बन्ि प्रारम्भ समापन

  • 15

    बड़ों के हिए बराबर वािों के हिए अपने से छोटों के हिए

    आदरर्ीय,पूज्य हप्रय हमत्र/नाम हप्रय अनुज/पुत्र/पुत्री

    आपका/ आपकी से्नही आपका अहभन्न ह्रदय आपका अग्रज/हपता

    प्रश्न-1 आपके चाचाजी िोकसभा का चुनाव जीत गए हैं | मतदाताओं की अपेक्षा में िरे उतरने की कामना करते हुए उन्हें बिाई

    पत्र हिहिए |

    27 ए, कृष्र्ा नगर

    गोपािगांज, हबहार

    01.07.20---

    आदरर्ीय चाचाजी,

    सादर प्रर्ाम |

    यह सुनते ही मैं आश्चयथचदकत हो गया दक मेरे चाचा िोगों के बीच रहते-रहते, िोगों के दःुि-ददथ दरू करते-करते कब

    उनके नेता हो गए ! आपका िोकसभा चुनाव में जीतना पहिे से ही तय र्ा क्योंदक हर मुूँह पर आपका ही नाम र्ा | हर चेहरे पर

    आपकी ही छहव झिकती र्ी क्योंदक अपने हर एक के दःुि को अपना दःुि समझकर उसे दरू दकया इसीहिए आपके हिए

    हवजयश्री प्राप्त करना एक सहज कायथ र्ा; परन्तु पद हमिने पर कभी भी आप अपन ेआपको बदि मत िेना और मतदाताओं की

    सभी अपेक्षाओं पर िरा उतारकर उनका हवश्वास कायम रिना यद्हप मैं यह मानता हूँ दक आपके पास दःुि-ददथ से त्रस्त िोगों

    का ताूँता िगा रहेगा | सब आपको मसीहा समझकर आप ही के पास हसर झुकाकर सांकट हरने की प्रार्थना करेंगे, दफर भी आप

    हमेशा से सबके ह्रदय में शोभा पाते रह ेहैं और आगे भी पाते रहेंगे |

    मैं यह भी अपेक्षा करता हूँ दक आप सभी की अपेक्षाओं पर िरा उतरकर हम सभी को गौरवाहन्वत करेंगे |

    सभी को यर्ायोग्य अहभवादन |

    आपका भतीजा

    अहमत शमाथ

    आवेदन-पत्र

    एन.सी.ई.आर.टी. नई दद्िी में हिहपक पदों के ठरि स्र्ानों को भरने के हिए ‘रोजगार समाचार’ में हवज्ञापन आया है, उसका

    हवािा दतेे हुए सहचव के नाम आवेदन-पत्र हिहिए।

    सेवा में,

    सहचव महोदय,

    एन.सी.ई.आर.टी।

    नई दद्िी।

    हवषय- हिहपक पद की हनयुहि हतेु आवेदन-पत्र।

    महोदय,

    हनवेदन ह ैदक साप्ताहहक-पत्र ‘रोजगार-समाचार’ ददनाांक के हवज्ञापन के अनुसार हिहपक पद हतेु आवेदन-पत्र प्रेहषत ह।ै

    नाम : शशाांक शमाथ

    हपता का नाम : श्री वी.के. शमाथ

    जन्म हतहर् : 15-12-1980

    पत्र व्यवहार हतेु पता : बी-15, प्रेम हबहार नोएडा, गौतमबुद्ध नगर

    शकै्षहर्क योग्यता :

    कक्षा महाहवद्ािय बोडथ/हव.हव. उत्तीर्थ वषथ प्राप्ताांक हवषय

    दस रा.स.हश.उ. सी.बी.एस.ई. 1998 400 लहांदी, अांग्रेजी, गहर्त

    बारह रा.स.हश.उ. सी.बी.एस.ई. 2000 400 अांग्रेजी, गहर्त, रसायन हवज्ञान

    बी.सी.ए. आई.एम.एस चौ.च.हस. मेरि 2003 450 कम्प्यूटर

    हवशेष-

    1. मुझे टांकर् में हवशेष कुशिता प्राप्त ह।ै

    2.प्रकाशन हवभाग में कायथ करने का िगभग दस माह का अनुभव प्राप्त है, हजसका प्रमार्-पत्र आवेदन-पत्र के सार्

    सांिग्न ह।ै

    अत: अपेक्षा करता हूँ दक साक्षायकार हतेु अवसर प्रदान करेंगे।

    सिन्यवाद

    भवदीय

    महक शमाथ

    ददनाांक

    सांिग्नक सूची-

    1. कक्षा दस का प्रमार्-पत्र

    2. कक्षा बारह का प्रमार्-पत्र

    3. बी.सी.ए. का प्रमार्-पत्र

    4. अनुभव प्रमार्-पत्र

  • 16

    5. चठरत्र प्रमार्-पत्र

    सांपादक को पत्र

    प्रश्न- दकसी प्रख्यात समाचार-पत्र के सांपादक के नाम पत्र हििकर रेि आरक्षर् व्यवस्र्ा में हुए सुिार की प्रशांसा कीहजए।

    सेवा में,

    सांपादक,

    नवभारत टाइम्स

    नई दद्िी

    ददनाांक ........................

    हवषय - रेि आरक्षर् की नई व्यवस्र्ा

    महोदय,

    मैं आपके िोकहप्रय दहैनक समाचार पत्र के माध्यम से रेि आरक्षर् में आए सुिार की प्रशांसा करना चाहता हूँ तादक

    इसका िाभ सभी यात्री उिा सकें ।

    रेिवे ने ई-ठटकटटांग व्यवस्र्ा िागू कर घर बैिे कम्प्यूटर पर रेि ठटकटों का आरक्षर् करना आरांभ कर ददया है। इससे

    आरक्षर् कायाथिय जाने और िांबी-िांबी िाइनों के झांझट से छुटकारा हमि गया ह।ै ठटकटों की कािाबाजारी भी प्राय: समाप्त हो

    गई है। इस व्यवस्र्ा के हिए रेि मांत्रािय बिाई का पात्र है। आशा ह ै रेिवे भहवष्य में भी जनहहतकारी योजनाएूँ िागू करता

    रहगेा।

    िन्यवाद सहहत,

    भवदीय

    कीर्तथ प्रसाद

    सांयोजक, दहैनक रेि यात्री सांघ, साहहबाबाद

    अनौपचाठरक-पत्र

    प्रश्न- छात्रावास में रहने वािे छोटे भाई को एक पत्र हिहिए हजसमें योग एवां प्रार्ायाम का महयव बताया गया हो और हनयहमत

    रूप से इनका अभ्यास करने का सुझाव ददया गया हो।

    ए-32/6, नवीन नगर,

    दद्िी।

    ददनाांक...........................

    हप्रय अनुज,

    शुभाशीवाथद।

    तुम्हारा पत्र हमिा। पत्र से प्रतीत होता ह ैदक छात्रावास में रहकर तुम कुछ अस्वस्र् से रहने िगे हो। इसका उपाय यह

    ह ैदक तुम प्रहतददन योग और प्रार्ायाम का अभ्यास करो। योग से शरीर और मन दोनों स्वस्र् रहते हैं। प्रार्ायाम प्रार्वायु को

    सुचारू रूप से पूरे शरीर में सांचाठरत करता है। तुम टी.वी. पर बाबा रामदवे का योग कायथक्रम देिकर इन दक्रयाओं को भिी

    प्रकार कर सकते हो। कुछ ही ददनों में तुम्हें इसका अच्छा असर दिेने को हमि जाएगा। इसके हिए प्रात:काि 5-6 बजे का समय

    सबसे अच्छा होगा। योग एवां प्रार्ायाम का महयव तो प्राचीन काि से रहा है। तुम्हें भी इन दक्रयाओं को दहैनक जीवन का हहस्सा

    बना िेना चाहहए। मैं आशा करता हूँ दक तुम पूर्थत: स्वस्र् हो जाओगे।

    तुम्हारा शुभलचांतक

    प्रकाश वमाथ

    हनबांि हनबांि का अर्थ - सम्यक रूप से बांिा हुआ या कसा हुआ| हनबांि में भाव या हवचार पूर्थतया एक सूत्र में बांिे हुए रहते हैं| हनबांि एक

    बैिक में सरिता से पढ़ा जा सकता है| इसमें कहानी की तरह हवषय की दकसी एक पक्ष का हनरूपर् होता है|

    कहानी की भाूँहत हनबांि में भी पूर्थता होती ह ै|

    हनबांि का गिन-

    हनबांि हििने से पूवथ उसकी रुपरेिा हनिाथठरत करना आवश्यक ह ै| इसके तीन अांग होते हैं:

    1- प्रस्तावना (प्रारम्भ) 2- हवषय-प्रहतपादन 3- उपसांहार

    1प्रस्तावना- प्रस्तावना में हनबांि िेिक पािक का हवषय से पठरचय करता है| अतः प्रस्तावना अययांत आकषथक,सारगर्भथत और

    प्रभावपूर्थ होनी चाहहए| प्रस्तावना का अनावश्यक हवस्तार नहीं होना चाहहए |

    2हवषय-प्रहतपादन-हवषय का सम्यक प्रहतपादन करने के हिए हवषय को हवचार को क्रहमक इकाइयों में हवभाहजत करते हैं| इन

    हवचार-हबन्दओुं को श्रृांििाबद्ध तर्ा तकथ पूर्थ ढांग से प्रस्तुत करना चाहहए|

    3 उपसांहार- उपसांहार हनबांि की चरमावस्र्ा का द्ोतक ह ै | उपसांहार इतना प्रभावी होना चाहहए दक पािक के मन पर अपनी

    छाप छोड़ सके |

  • 17

    उदाहरर्-

    हनबांि ििेन हते ुकुछ अन्य हवषयों के सांकेत-लबांद ु-

    1- इांटरनेट की उपयोहगता- हवज्ञान का चमयकार, अनोिी क्राांहत, हवहवि जानकारी का स्रोत, मनोरांजन का सािन, वरदान भी,

    अहभशाप भी।

    2- मेरा दशे भारत- भारत का स्वर्र्थम इहतहास, उन्नत वतथमान और उज्ज्वि भहवष्य, भारतीय सांस्कृहत की हवशेषताएूँ, हवश्व में

    भारत की हस्र्हत।

    3- मेरे जीवन का िक्ष्य- जीवन में िक्ष्य का हनिाथरर् क्यों, मेरा िक्ष्य, कारर्, िक्ष्य प्राहप्त हतेु प्रश्नयास।

    4- भाग्य और पुरुषार्थ- पुरुषार्थ का अर्थ, पुरुषार्थ का महत्त्व, भाग्यवादी हनहष्क्रय, पुरुषार्ी की हवजय, पुरुषार्थ िारा भाग्य को

    बदिना सांभव।

    5- परािीन सपनेहुूँ सुि नालहां- स्वािीनता और परािीनता में अांतर, स्वािीनता आयमसम्मान की पोषक, परािीनता में हनराशा-

    कुां िा की वृहद्ध, परािीनता एक अहभशाप, स्वािीनता को बनाए रिने की आवश्यकता,

    उपाय।

    6- वन रहेंगे-हम रहेंगे- वनों की आवश्यकता, वतथमान हस्र्हत, कारर्, पयाथवरर् पर प्रभाव, वन-सांरक्षर् केउपाय।

    7.प्रदषूर् की समस्या- भूहमका, कि कारिानों की वृहद्ध,प्रकृहत सांतुिन में अहस्र्रता, मौसम के दहूषतप्रभावरोकने के उपाय,

    हनष्कषथ

    8.पठरश्रम का महयव - पठरश्रम की आवश्यकता, पठरश्रम सफिता का मूिमांत्र, पठरश्रम कभी हनष्फि नहीं होता, पठरश्रम से गुर्ों

    का हवकास, उपसांहार

    9.जानिेवा महांगाई- हपछिे वषथ में बढी महांगाई, हनरांतर वृहि, सरकार के दावे र्ोर्े, िोगों का जीवन जीनादभूर, रोकने के

    उपाय, हनष्कषथ

    10.हवद्ार्ी और अनुशासन- अनुशासन का अर्थ,हवद्ार्ी जीवन, अनुशासन का महयव, अनुशासन के िाभ, बांिन, हनष्कषथ

    11.कम्प्यूटर का महत्त्व- कम्प्यूटर आज के समय की माांग, महयवपूर्थ उपकरर्, हवहभन्न क्षेत्रों में प्रयोग, नुकसान, समस्याओं का

    सांभाहवत हि, ज्ञान आवश्यक, हनष्कषथ ।

    सार ििेन दकसी गद्ाांश जैसे िेि, सूचना, पत्र, हववरर् आदद के मुख्य भाव या हवचार को छोड़े हबना उसमें हनहहत तर्थयों को

    सरि एवां सुबोि भाषा एवां सांक्षेप में हििना सार कहिाता ह ै|

    सार हििते समय मूि अांश के समस्त मुख्य तयवों को िोस रूप में प्रस्तुत करना महत्त्वपूर्थ होता है | सार मूि अांश के

    िगभग एक हतहाई शब्दों तक सीहमत होता ह ै|

    सार िेिन के हिए ध्यान रिने योग्य महत्त्वपूर्थ लबांद-ु

    1.हजस गद्ाांश का सार हििना ह ैउसे ध्यानपूवथक पढ़ें और समझने का प्रयत्न करें | यदद एक बार में पूरी तरह समझ न आए तो

    दोबारा पढ़ें |

    2.गद्ाांश के मुख्य भाव को समझें |

    3.गद्ाांश में आए वे महत्त्वपूर्थ अांश और शब्द रेिाांदकत कर िें हजनके आिार पर सार हििा जा सकता ह ै|

    4.सार हििते समय गद्ाांश में आए उदाहरर्, सन्दभथ आदद को छोड़ दनेा चाहहए |

    5.हििे हुए सार को एक उपयुथि शीषथक भी दनेा चाहहए |

    6.सार हििते समय मूि गद्ाांश की भाषा को न अपनाकर अपने शब्दों में हििने का प्रयास करना चाहहए |

    7.सार हििते समय सरि,सहज भाषा और छोटे-छोटे वाक�