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बचपन महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म गुजरात के काठि�यावाड में पोरबंदर नामक शहर में हुआ था। गांधीजी के पिपता पोरबंदर रिरयासत के दीवान थे। वे बडे धार्मिम(क

थे। पिपताजी की भाँपित गांधीजी की माता भी धम,पिनष्ठ थी। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अकू्तबर 1869 को हुआ था। अपने तीन भाईयों में ये सबसे

छोटे थे। सात साल पूर्ण, होते ही बालक गांधी को एक देहाती पा�शाला में पिवद्यापाज,न के लिलए भेजा गया। उस समय यह बालक क्षीर्ण- काय और दुब,ल था। पा�शाला में लडकों के साथ खेल- कूद में उसका मन नहप लगता था। क्योंपिक अन्य लडके शरारती और ऊधमी थे, पर बालक गांधी शांत, ईमानदार और सत्यव्रत- धारी था। सदैव गुरु की आज्ञा मान कर चलना वह अपना धम, समझता था।

बालक गांधी श्रवर्ण- भलिक्त पुस्तक से बहुत ही प्रभापिवत हुए थे। गांधीजी पर इस पुस्तक का इतना असर पडा पिक वह अपने माता- पिपता के अनन्य भक्त हो गये।

इसी तरह एक नाटक कंपनी का सत्य हरिरशं्चौJ नाटक उन्होंने देखा। उन्होंने उसी समय प्रपितज्ञा की, मैं हरिरशं्चौJ की तरह सत्यवादी बनंूगा। गांधीजी स्कूलमें बडी मेहनत से पढते थे। बारह वर्ष, की अवस्था में बालक गांधी हाईस्कूल पहूँचा।

एक वर्ष, बादही 13 वर्ष, की अवस्था में उसका पिववाह हो गया। हाईस्कूल में गांधीजी बडी लगन के साथ पढते थे। सभी लिशक्षक उन्हें मानते थे। पढाई अथवा

आचरर्ण के बारे में लिशक्षकों ने उनकी कभी लिशकायत न की। उन्हें स्कूल में इनाम भी मिमलें। मालिसक छात्र वृत्तिTयाँ भी मिमली। गांधीजी पढने से अमिधक ध्यान अपने सदाचार पर रखते थे। उनके हाईस्कूल के हेडमास्टर दोराबजी एदलजी पिगदी थे। पढाई के साथ साथ वह लडकों के व्यायाम

को भी आवश्यक समझते थे, और उस पर बहुत जोर देते थे। पिवद्यार्थिथ(योंको फुटबॉल, पि[केट आठिद खिखलाते थे, पर गांधीजी को खेल से कोई शJक न था, क्योंपिक वह समझते थे पिक पढाई और खेल से

कोई सम्बन्ध नहप। खुली हवा में घूमना वह बहुत पसंद करते थे। इस आदत को उन्होंने अंत तक बनाए रखा।

गांधीजी समझते थे पिक पढाई में खुशखत होने की जरूरत नहप। उनकी लिलखाई सुंदर न थी। बाद को उन्होंने अपना खत सुधारने की कोलिशश भी की, पर सफल न हुए। उन्होंने स्वयं लिलखा हैं : "जिजस बात की लापरवाही मैने जवानी में की, उसे मैं आज तक संभाल न सका। प्रत्येक बालक- बालिलका

को मेरे उदाहरर्ण से सचेत हो जाना चापिहए पिक अच्छा, सुन्दर लेख पिवद्याथc का आवश्यक अंग हैं। मैने तो यह पिनश्चय कर लिलया है पिक बालकों को आलेखन कला सबसे प्रथम लिलखना चापिहए ।

गांधीजी संस्कृत से बहुत घबराते थे। छ�ी कक्षा में उनकी पिहम्मत पस्त हो गई। संस्कृत के लिशक्षक बडे सख्त थे, और वह एक साथ ही पिवद्यार्थिथ(यों को बहुत- सा पढा देना चाहते थे। एक बार गांधीजी

घबराकर फारसी के दजf में जा बै�े। संस्कृत के अध्यापक इस पर बडे दुखी हुए और उन्होंने कहा, " तुम अपने धम, की भार्षा नही पढना चाहते ? तुम्हें जो कठि�नाई हो, मुझसे कहो। मैं तुम्हें अच्छा

संस्कृत तज्ञ बनाना चाहता हूँ । गांधीजी लज्जिhत हो गए, और उन्होंने बडी लगन के साथ संस्कृत का अध्ययन पिकया। उनका पिवचार था, " पिकसी भी हिह(दू लडके या लडकी को संस्कृत का अच्छा अध्ययन

पिकए पिबना न रहना चापिहए । स्कूल में पढते समय बालक गांधी को, लिसगरेट पीने की आदत पड गई थी। धुआँ उडाने में उन्हें बडा आनंद आता था। पर लिसगरेट खरीदने के लिलए पास में पैसे तो थे नहप, इस लिलए चाचाजी की पी हुई लिसगरेटों को जला- जला कर पीने लगे। पर यह ज्यादा तो चलना नहप था, अतः पिपता की जेब से

पैसे चुराकर लिसगरेट पीना शुरू कर ठिदया। परन्तु पिफर भी संतोर्ष न होता था। अब क्या करें ? बालक गांधी ने यह सब सोचकर आत्महत्या करने की सोची। इसके बारे में अपनी "आत्मकथा" मे

गांधीजीने बडा मार्मिम(क वर्ण,न पिकया है ।

परन्तु आत्महत्या कैसे करें ? पिवर्ष हमें कहाँ मिमले ? अस्तु। हमें मालूम हुआ पिक बीज खाने से आदमी मर जाता है। जंगल से ढंूढकर बीज लाए। एकांत में शाम के समय आत्महत्या का अनुष्ठान करना

पिनत्तिश्चत पिकया। परन्तु जहर खाने की पिहम्मत न होती थी। तुंत ही न मरे, तो आत्महत्या करने से लाभ ही क्या ? पिफर भी दो- चार बीज खा ही डालें। अमिधक खाने की पिहम्मत न हुई। अंत में यह पिनश्चय

पिकया पिक चलो, रामजी के मंठिदर में दश,न कर आत्महत्या के पिवचारों को मन से पिनकालकर फें क दें। अब मुझे मालूम हुआ पिक आत्महत्या का पिवचार करना तो सरल हैं, पर आत्महत्या करना अत्यंत

मुश्किश्कल है। आत्महत्या के पिवचार का यह फल हुआ पिक नJकर के पैसे चुराकर लिसगरेट लाने और पीने की आदत

पिबलकुल छूट गई। मैं इस टेव को जंगली, हापिनकारक और गंदी मानता हूँ। मुझे अब तक यह न मालूम हो पाया पिक दुपिनया को लिसगरेट का इतना जबरदस्त शJक क्यों है ? गांधीजी की लिसगरेट छूट गई, साथ ही साथ चोरी न करने का पिनश्चय भी उन्होंने पिकया। उन्होंने सोचा,

अच्छा होगा पिक वह पिपताजी के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लें। पर सामने जाने की पिहम्मत न पडती थी। पिफर भी उन्होंने सोचा पिक सारी जोखिखम उ�ा कर भी अपनी बुराई कबूल कर लेनी

चापिहए। गांधीजी ने एक लंबी लिचठ्ठी पिपताजी को लिलखी, और उसमें सारा दोर्ष कबूल कर लिलया। साथ ही इस घोर अपराध के लिलए दंड मांगा। गांधीजी ने लिलखा है ।

" लिचठ्ठी देखते ही पिपताजी के नेत्रों से आँसू टपकने लगे, और मैं भी खूब रोया। लिचठ्ठी पिपताजीने फाड डाली और मेरा अपराध एक प्रकार की मूक भार्षा में क्षमा पिकया गया जिजसकी मुझे बहुत कम आशा

थी । पिवश्वासपूव,क मैं कह सकता हूँ पिक मेरी इस दोर्ष स्वीकृपित ने पिपताजी को पिनःशंक कर ठिदया, और उनका प्रेम मुझ पर और भी बढ गया ।

क्षमाशील गांधीजी महात्मा गांधी को ईश्वर पर असीम पिवश्वास था। उन्होंने लिलखा है, जब उन्हें पिकसी कठि�नाई पर सोचना पडता, उन्हें सदैव ईश्वर का सहारा मिमलता रहा।

सत्य को रूप से, आंतरिरक प्रेरर्णासे प्राप्त करना सदाचारर्ण का  लक्षर्ण है। सदाचरर्ण की साक्षात् मूर्तित( गांधीजी भी सत्य की अनुभूपित इसी प्रकार करते थे। इसी प्रकार उन्होंने 1922 में असहयोग आंदोलन को एकाएक बंद कर देने का, 1934 में सपिवनय आज्ञापिवभंग करने का और 1936 में

देशी राज्य संबंधी नीपित का फैसला पिकया। उन्हें हमेशा एकाएक पए प्रकाश, नए ज्ञान का अनुभवहुआ।

गांधीजी गीता के अनन्य भक्त थे। और संसार की सभी धम, पुस्तकों के साथ उन पर सब से अमिधक असर गीता का पडा था। असल में गीता के आदर्श़ोंt पर व्यावहारिरक आचरर्ण करने वाले केवल

गांधीजी ही हुए हैं। रेजिजनाल्ड रेनाल््डस ने गांधीजी को ईश्वर का दीवाना लिलखा हैं। गांधीजी ने 1886 में मैठिvक की परीक्षा पास की। घरवालों ने उन्हें आगे पढने के लिलए इंग्लैंड भेजने

का पिनश्चय पिकया। पर यह बात उनकी माताजी को न रूची। उन से पिकसी ने कह ठिदया पिक पिवलायत जाकर नवयुवक पिबगड जाते हैं और वहाँ कोई भी पिबना मांस- मछली खाए और शराब पिपए नही रह सकता। माताजी ने यह सब गांधीजी को सुनाया। गांधीजी ने कहा, `` तुम मुझ पर पिवश्वास रखो। मैं

सJगंध खा कर कहता हूँ, मैं इन से बचँूगा`` । तदनु्सार गांधीजीने मांस, मठिदरा और स्त्राh से दूर रहने की प्रपितज्ञा की : तब कही माताजी ने उन्हें जाने की आज्ञा दी।

गांधीजी में एक बडी बात थी पिक वह संसार में पिकसी को अपना शत्रु नही समझते थे। अवश्य ही वह जुल्म और अत्याचार सहन न कर सकते थे, पर अत्याचारी से उन्हें कोई दुश्मनी न थी। वह समझते

थे पिक अत्याचारी ने समझने की भूल की है, और जब वह समझ जायेगा, तो वह सत्य, अहिह(सा और न्याय के सामने अवश्य झुक जायेगा, तथा अपनी गलती समझ कर खुद पछतायेगा।

गांधीजी जब दत्तिक्षर्ण अफ्रीका गये तो वहाँ के गोरे आंदोलन कर रहे थे पिक, हिह(दुस्थानी उस देश में प्रवेश न पा सकें । वे गांधीजी की जान के ग्राहक बने हुए थे, और जहाज के ऊपर ही उन्हें मार डालने की पिफ[ में थे। गांधीजी जैसे ही जहाज से उतरे, कुछ गोरे लडकों ने उन्हें पहचान लिलया वे गांधी, गांधी, लिचल्लाए।

तुरन्त ही एक बडी भीड वहाँ जमा हो गई। छोकरों ने गांधीजी को रिरक्षा पर न बै�ने ठिदया और उन पर अंडे, दंडे, पत्थर बरसाना शुरू कर ठिदया। पिकसी ने उनकी पगडी भी उछाल दी। उन पर इतनी मार पडी पिक वे बेहोश हो गए। पिकसी प्रकार एक पुलिलस अमिधकारी की स्त्राh ने उन्हें मारे जाने से

बचाया। इसको लेकर बडा हंगामा मचा। इंग्लैंड के स्वगcय लाड, चेंबरलेन ने दत्तिक्षर्ण अफ्रीका के अमिधकारिरयों

को तार ठिदया पिक गोरे आततामिययों पर मुकदमा चलाया जाय। जब गांधीजी से पूछा गया तो उन्होंने काह पिक `` मैं पिकसी पर मुकदमा नहप चाहता`` । गांधीजी ने उन्हें क्षमा कर ठिदया। एक दूसरी घटना दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में अंगू�े की छाप देने के संबंध में महात्माजी ने वहाँ की गोरी

सरकार से समझJता कर लिलया। यह समझJता वहाँ के कुछ भारतीयों को न भाया। गांधीजी का एक मुवज्जिक्कल मीरआलम उनसे पिबगड गया। अपने कुछ मिमत्रों को लेकर वह गांधीजी के डेरे पर आया,

और डेरे पर उनके साथ एलिशयाठिटक ऑपिफस चला। उसका चेहरा बदला हुआ था। उसके चेहरे पर [ोध झलक रहा था। ऑपिफस कोई पाँच कदम होगा पिक मीरआलम उनके पास आया और उनसे

पूछा`` कहाँ जा रहे हो``

गांधीजी ने जवाब ठिदया`` दसों उंगलिलयों की छाप देखकर परवाना पिनकलवाना चाहता हूँ। तुम भी चलोगे``

गांधीजी के शब्द सुनते ही मीरआलम अपने [ोध को काबू में न रख सका। उसने गांधीजी के लिसर पर ला�ी चलाई। गांधीजी `` हे राम`` कह कर पिगर पडे। वह बेहोश हो गए पर पिफर भी मीरआलम और उसके सालिथयों ने और भी लाठि�याँ और जूतें लात लगाए। चारों ओ शोर मच गया, बहुत से

राहगीर इकठे्ठ हो गए। मीरआलम और उनके साथी भागे, मगर गोरों ने उन्हें पकड लिलया। तब तक पुलिलस भी आ गई उन्हें पिहरासत ले गई।

सेवा सुश्रर्षा के बाद अचे्छ होते ही गांधीजी ने पहला काम यह पिकया पिक सरकारी वकील को इस आशय का तार ठिदया पिक मीरआलम और उसके साथी ने उस पर जो हमला पिकया है, उसके लिलए गांधीजी उन्हें दोर्षी समझछते। मीरआलम और उसके साथी गांधीजी के कहने पर छोड ठिदये गए। गांधीजी जब दत्तिक्षर्ण अफ्रीका से अपना काम खतम कर हिह(दुस्तान आए, तो उन्हें इस देश की दुद,शा

देख कर बहुत दुख हुआ। उन्होंने सव,प्रथम संदेश जो भारतवालिसयों को ठिदया वह था `` डरो नही`` । डर कायरता की पिनशानी है, और कायरता मनुष्य की अंपितम दुद,शा हैं। उस समय हर भारतवासी

डरा- डरासा रहता था। पुलिलस और गोरों को देखकर वह थर- थर कांपने लगता था। बडे से बडे हिह(दुस्तानी भी अंगे्रजों से भय खाते और हर प्रकार के अत्याचार सहन कर लेते थे। पंपिडत

जवाहरलालजी ने कहा है पिक, `` महात्माजी के इस मंत्र ` डरो नही` ने हिह(दुस्तापिनयों में जान पूँष्क दी और आज सभी जानते हैं पिक इसी मंत्र को अपनाने से देश की कायापालट हो गई है। एक घटना है गांधीजी की पिनभ,यता की। चंपारन (पिबहार) में पिनलहे साहबों के अत्याचार के पिवरूद्ध,

गांधीजी के नेतृत्व में सत्याग्रह चल रहा था। गोरे लोग तरह- तरह के अत्याचार कर रहे थे, और गांधीजी के प्रपित [ोध से पागल हो गए थे।

वे समझते थे पिक वह काला, दुबला पतला आदमी उनकी 108 वर्ष� की सTा को पलट रहा और उनके गुलाम पिकसानों को भडका रहा है। गांधीजी का कायदा यह था पिक कोई भी काम करने के पहले शतु्र से भी बातचीत करके समझJता कर लेना पसंद करते थे। वह अपनी माँग कम से कम रखते थे, पर उससे पिफर पिडगते न थे।

गांधीजी ने पिकसानों की लिशकायतों की पूरी सूची बनाई और उसे लेकर पिनलाह साहब के बंगले में बातचीत करने चले। उसे सूचना पहले ही दे दी, गांधीजी के साथ बहुत भीड चलने लगी, और साहब

के बंगले तक पहुँचते पहुँचते हजारों आदमी इकट्टा हो गए। साहब ने समझा पिक भीड, उस पर हमला करने आ रही है। अतः वह अपनी बंदूक तानकर बंगले के बरांडे में बै� गया, और गांधीजी का

इंतजार करने लगा पिक भीड के आते ही उसको गोली मार कर भगा ठिदया जाय। गांधीजी ने रंग देखा, पहचाना। भीड को उन्होंने बंगले के फाटक पर रोक ठिदया। और आप अकेले पिनभcक होकर साहब से मिमलने चल ठिदए। साहब भी चकराया और उसने सोचा पिक यह दुबला पतला पिनहत्था आदमी अकेला मेरा क्या कर सकता है। उसने बंदूक नीचे रख दी और गांधीजी से बातचीत

की। गांधीजी की आत्मशलिक्त और सच्चाई ने साहब पर पिवजय पाई। चंपारन का सत्याग्रह हिह(दुस्तान में गांधीजी का सव,प्रथम अहिह(सात्मक आंदोलन था, और अपनी पिनभcयता तथा सच्चाई से वह

पूर्ण,रूप से सफल हुआ। ऐसी एक दूसरी घटना लिसतंबर 1946 में नJखाली जिजले में मुसलमानों ने हिह(दुओं पर भयंकर

अत्याचार पिकए। हजारों घर जला डाले, माल लूट लिलया, सैकडों लोगों को जान से मार डाला, हजारों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया। खुले आम अत्याचार हुए। पिकसी हिह(दू की वहाँ जाने की पिहम्मत न होती थी। फJज बलवा शांत करने में लगी थी, पर हिह(दू नेताओं का वहाँ पहुँचना खतरे से खाली न

था। एकाएक गांधीजी ने वहाँ जाने का पिनश्चय पिकया और वे अपने कुछ सालिथयों के साथ वहाँ पहुच गए। अपनी रक्षा के लिलए मदद लेने से उन्होंने इनकार कर ठिदया। अकेले ही पग पग चल कर और गाँव गाँव पैदल घूम घूम कर वह मुसलमानों को शांपित का संदेश सुनाने लगे। हिह(दुओं से उन्होंने कहा

`` डरो नहप,`` मुसलमानों से कहो पिक `` हिह(दूगमुसलमान भाई भाई है`` और उन्होंने जो महान अत्याचार पिकया है, उस पर प्रायत्तिश्चत करना चापिहए।

सारा संसार आश्चय,चपिकत था। सरकार कांगे्रस के नेता गांधीजी की रक्षा के लिलए चिच(पितत थी। गांधीजी की पदयात्रा से, पिनभ Z िौकता से हिह(दुओं का डर कम हुआ, मुसलमान अपने अत्याचारों पर पछताने लगे। पूरा संसार गांधीजी की शांपितदूत नाम से सराहना करने लगा।

सेवाभावी गांधीजी महात्मा गांधीजी पिकसी काम को छोटा हीं मानते थे। उच्च जापित के होते हुए भी वह अपने को भंगी

कहते थे। भंपिगयों के साथ रहते थे और भंपिगयों का काम करते लज्जिhत न होते थे। सन् 1910 में जब vंसवाल की सरकार ने बहुत से भारतीय सत्याग्रपिहयों को भारत में लाकर छोड ठिदया, उस समय

गांधीजी ने उनकी सेवा का व्रत लिलया था। यहाँ गांधीजी उनकी सब आवश्यकताएँ पूरी करते और उनकी सेवा करते थे। सबेरे उ�कर पिवद्यार्थिथ(यों को पढाते और अपने हाथों से पाखाने साफ करते थे। उनके मैले कपडे धोते थे। सभी स्त्री- पुरूर्षों का गांधीजी पर पूर्ण, भरोसा था।

गांधीजी की सेवा स्वाथ,- रपिहत होती थी। उसके बदले में वह कुछ चाहते हीं थे। पिनष्काम सेवा को ही वह महत्वपूर्ण, समझते थे।

गांधीजी ने लगभग 20 वर्ष़ोंt तक दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में रहकर भारतीय की अनुपम सेवा की। हर भारतवासी उन पर जान देता था, और सब कुछ पिनछावर करने को तैयार था।

गांधीजी को अपने जीवन में सफाई का सदैव ध्यान रहा है। उनके कपडे बहुत ही सादे होते थे पर होते बडे स्वच्छ। क्या मजाल पिक उनके कपडों पर दाग पडा हो अथवा वे गंदे हो। अपने कपडे वे स्वयं धो लिलया करते थे।

गांधीजी चाहते थे भारतवर्ष, के सभी गाँव साफ- सुथरे रहें और यहाँ के पिनवालिसयों की रगरग में सफाई पसंदगी हो। जब वे वधा, आश्रम में रहते थे, उस समय वह गाँव बडा ही गंदा रहता था। लोग घर के

सामने ही पेशाब करते थे, पाखाना कर देते थे। जिजससे चारों ओ बदबू फैली रहती थी। गांधीजी ने लोगों को बहुतेरा समझाया पिक वे टट्टी, पेशाब करने के लिलए गाँव के बाहर जाएँ और घर का कूडा

भी बाहर फें के पर अनपढ, गवाँर होने के कारर्ण गाँव के लोग उनकी बात सुनते न थे। अतः गांधीजी

ने स्वयं वह काम करके लोगों को ठिदखलाना शुरू कर ठिदया। वह रोज सवेरे अपने सालिथयों को लेकर गाँव की सफाई और टट्टी- पेशाब साफ करने के लिलए जाने लगे तब ग्रामवासी सुधर गए। ग्राम की

सफाई अच्छी होने लगी। इसी प्रकार की एक घटना और है। एक बार बापू रेल में सफर कर रहे थे। उन्ही के पास एक आदमी बै�ा हुआ था, जो बार- बार रेल में ही थूक देता था। गांधीजी ने एक बार कागज के टुकडे से थूक

पौंछकर साफ कर ठिदया। उस आदमी ने सोचा यह बडे सफाई पसंद बनकर मुझे नीचा ठिदखाना चाहते हैं। उसने पिफर थूक ठिदया। बापू ने पिफर पौंछ ठिदया। उस व्यलिक्त ने [ोध में आकर पिफर थूक ठिदया। गांधीजी ने पिवचलिलत न होकर पिफर अपना काम पिकया। इस तरह बार- बार वह व्यलिक्त थूकता

और बापू पोंछे देते। अंतः में स्टेशन आया और ठिदखलाई पडी, जनता की अपार भीड। " महात्मा गांधी की जय" के नारे लग रहे थे। सब लोग उसी पिडब्बे की ओर दJडे। हँसते हँसते बापू ने जय जय कार को नमस्कार से स्वीकार पिकया। वह व्यलिक्त तब समझा पिक महात्मा गांधी ने ही उनके थूक को

बारगबार साफ पिकया है। वह लज्जिhत होकर बापू के चरर्णों पर पिगर पडा और क्षमा मांगी। बापू ने कहा " क्षमा की कोई बात हीं। मैने कत,व्य का पालन पिकया। समय पडने पर तुम भी ऐसा करना"।

फीपिनक्स ( दत्तिक्षर्ण अपिफ्रका) में गांधीजी ने रॉल्सरॉय आश्रम खोला। आश्रम में सत्याग्रह, स्वावलंबन आठिद की लिशक्षा दी जाती थी। इस आश्रम में हिह(दू, मुज्जिस्लम, पारसी और ईसाई सभी साथ रहते थे।

लगभग 40 युवक, 23 बूढे, 56 स्त्रिस्त्रयाँ और 25-30 बच्चे आश्रम आ गए। गांधीजी ने उनके लिलए पा�शाला खोली, और खच, के लिलए भीख न मांगना पडे, इस लिलए उन्होंने पिनयम बनाया पिक सब

काम अपने हाथ से पिकया जाए और कुछ कारीगरी का काम भी सीखा जाय। आश्रम का खाना, हाथ के पिपसे मोटे और पिबना छाने आटे की रोटी, मूँगफली से घर पर बनाया मख्खन और संतरे के

लिछलकों का मुरब्बा। गांधीजी ने जूतों का एक कारखाना भी खोल लिलया था। खुद उन्होंने कई दज,न चप्पलें बनाए। चप्पले

बेची जाती थी। बढई का काम भी शुरू पिकया गया। बच्चों के लिलए पा�शाला भी खोली गयी। मेहनत करते करते गांधीजी थक जाते, नपद के झोंके खाते और आँखों पर पानी लगाकर नपद भगाते, पर बच्चों को खुद पढाते। बच्चों के साथ हँसी खेल करते और इस प्रकार अपना और उनका आलस्य भगात । आश्रम में पिकतने ही लडके बडे उधमी और आवारा थे और उन्हे के साथ गांधीजी के तीन लडके

पढते थे। दूसरे लडकों का भी लालन पालन गांधीजी के लडकों की तरह होता था। गांधीजी के कुछ सालिथयों को यह पसंद हीं था। एक साथी ने गांधीजी से कहा " आपका यह लिसललिसला मुझे पिबलकुल

हीं जाँचता। इन लडकों के साथ आपके लडके रहेंगे, तो इसका बुरा नतीजा होगा। इन आवारा लडकों की सोहबत से आपके लडके पिबगडे पिबना कैसे रहेंगे' । गांधीजी ने जवाब ठिदया " अपने

लडको" और इन आवारा लडकों में मैं भेद- भाव कैसे रख सकता हूँ ? अभी तो दोनों की जिजम्मेदारी मुझ पर है।

अहिह(सावादी गांधीजी अहिह(सा का प्रपितपादन महात्माजी ने बडे मJलिलक तJर पर पिकया था। उसके द्वारा उन्होंने संसार को

ठिदखा ठिदया पिक आजकल के युग में स्वेच्छा पूर्ण, कष्ट सहन के बल पर पिकए गए सामूपिहक, नैपितक प्रपितरोध अथा,त् सत्याग्रह द्वारा युक की हिह(सा पर भी पिवजय पाई जा सकती है। उनका कहना था पिक आपका आचरर्ण न्यायपूर्ण, और सत्य हो। अत्याचारी के प्रपित अगर आप नम्र एवं दृढ हो पर उसके

संबंध में अपने कदम में कोई कलुर्षता न रखें तो अत्याचारी की उ�ी हुई तलवार अपने आप झुकजायेगी।

दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में उन्हें इस ठिदशा में गJरवपूर्ण, पिवजय मिमली। vंसवाल में जब उन्होंने डे्रकसंवग, की पहापिडयों को पार करके अपनी सत्याग्रही फJज का संचालन पिकया, तो दत्तिक्षर्ण अफ्रीका के तानाशाह भारतीयों के दुश्मन जनरल स्मट्स ने उनकी वे सब शतf मान ली, जो उन्होंने पेश की थी। इतना ही

नहप जनरल स्मट्स ने यह भी स्वीकार पिकया पिक नैपितक लडाई का तरीका जिजसमें कोई भी हिह(सात्मक हलिथयार काम में नहप लाया गया, ऐसा है जिजसका सामना नहप पिकया जा सकता।

गांधीजी का अहिह(सा अस्त्र ऐसा अस्त्र था, जिजसे गरीबगअमीर, दुब,लगमजबूत सभी चला सकते थे। गांधीजी के इस अहिह(सा अस्त्र से ही सव, शलिक्तमान पि�ठिटश सरकार उनके सामने झुक गई। तोप और

गोली का पिनशाना खाकर हिह(दुस्तान का सत्याग्रही अहिह(सक अटल रहा। बापू के जीवन की प्रमुख घटनाएँ

1869 - 2 अकू्तबर को पोरबंदर में जन्म1883 - कस्तूरबा से पिववाह1887 - मैठिvक परीक्षा पास की1888 - पढने के लिलए लंदन रवाना1891 - बम्बई में वकालत प्रारंभ1893 - मुकदमा लेकर दत्तिक्षर्ण अफ्रीका को रवाना

1. प्यारे बापू छोटा बालक आनन्दस्वरूप है, संसार की आशा है, पिनम,लता है, उत्साह है । मुक्त पुरूर्षों में एक प्रकार की बाल- वृत्तिT होती है । महात्मा गांधी बालकों की तरह पिनष्पाप थे । इसलिलए बापू की मी�ी

बातों का प्रारम्भ बालकों की कहानी से ही करनेवाला हूँ । महात्माजी को बचे्च बहुत प्यारे थे । संसार के सभी धमा,त्मा ऐसे ही हैं। उन्हें बालकों पर बहुत प्रेम

होता है । पैगम्बर मुहम्मद को रास्ते में बालक घेर लेते थे। उन्हें एक ओर खींच ले जाते और कहतेः‘‘ ’’ कहानी सुनओ । ईसामसीह भी बच्चों के बडे़ प्यारे थे । और हमारे भगवान् गोपाल-कृष्र्ण. वे तोगोपाल- बालकों में खेला ही करते थे । महात्माजी भी बालकों के पीछे पागल थे । घूमने- टहलने जाते

तो बच्चों को साथ ले जाते । जूहू (बम्बई) के समुद्र- पिकनारे बच्चों की ला�ी पकड़कर हँसते हुए महात्माजी का लिचत्र तुमने देखा ही होगा । लेपिकन आज जो कहानी सुनानेवाला हूँ, वह साबरमती-

आश्रम की है । रोज की तरह गांधीजी आश्रम से घूमने पिनकले । आश्रम के बच्चे भी पिनकले। हँसते- बोलते टहलना शुरू हुआ । टहलते समय बापूजी के साथ प्रश्नोTर चलता ही रहता था ।

‘‘बापू, आपसे एक बात पूछँू ?’’ एक बच्चे ने प्रश्न पिकया ।‘‘हाँ-हाँ, ’’पूछो ।‘‘ ‘’अहिह(सा का मतलब यही न पिक दूसरे को दुःख न दें‘‘ पिबलकुल �ीक.’’‘‘ आप हँसते- हँसते हमारा गाल चुटकी में पकड़ते हैं, ’’यब हिह(सा है पिक अहिह(सा‘‘ ’’ शैतान कहीं का कहकर खिखलखिखलाकर हँसते हुए बापू ने उसके गाल की जोर से लिचकोटी काटी ।

बच्चे ताली बजा- ‘ बजाकर बापूजी लिचढ़ गये, बापूजी लिचढ़ गये, कहते हुए हँसने लगे । महापुरूर्ष भी उस हास्मयरस में रम गया ।

2. अन्धकार में प्रकाश उन ठिदनों बापू की यात्रा नोआखाली में चल रही थी। वहाँ की जनता के आँसू पोंछने और ढाढ़स

बँधाने के लिलए गांधीजी वहाँ गये थे । हर जगह भय का वातावरर्ण छाया था । पिहन्दू घर से बाहर नहीं थे । घर- बार जलकर खाक हो गये थे। काफी लोग मारे गये थे । धम, के नाम पर अधम, का काम हो रहा था । उस अन्धकार में प्रकाश ठिदखाने, उस भय में अभय देने राष्ट्रपिपता पिनकला । गांधीजी ने जी- तोड़ कोलिशश की, लेपिकन लोग बाहर पिनकलने की पिहम्मत नहीं कर पाते थे । गांधीजी को थोडी़ देर के लिलए पिनराशा हुई । एक ठिदन उनके सालिथयों ने एक उपाय पिनकाला । वे गेंद वगैरह का खेल सड़क पर खेलने लगे । घरों

से बच्चे झाककर देखते थे ।

      ‘ आओ बच्चों, खेल खेलने आओ । बापू के साथ खेलने आओ । इस तरह बापूजी के साथी कहने लगे और वे बच्चे आने लगे । खेल बच्चों की आत्मा होती है । वे खेल में रमने लगे। भागने- दJड़ने लगे । हँसने- खेलने लगे ।

      पिफर एक ठिदन वहाँ पितरंगा झण्डा फहराया गया ।       ‘‘बापू के साथी बोलेः आओ, ’’ झण्डे का गीत गायें ।      ‘ ’ पिफर झण्डा ऊचाँ रहे हमारा गाया गया ।      ‘‘ ‘ ’ अब रघुपपित राघव राजाराम गाते चलो हमारे साथ। चलोगे न ?’’       ‘‘ जी हाँ, ’’ चलिलये      ‘ ’ जुलूस पिनकला । बचे्च रघुपपित राघव राजाराम गाते हुए आगे बढ़ते गये । बच्चों के पीछे घरों

से झाँकनेवाले माता- ‘‘ पिपता भी बाहर पिनकले । धमा,न्ध मुसलमान कहने लगे । देखेंगे ये लोग कैसेराम- नाम लेते हैं?’’ लेपिकन वह बालकों का जुलूस, राम की वानर- सेना का जुलूस देखकर मुसलमान

दंग रह गये । जयघोर्ष करते हुए आगे बढ़नेवाले उस जुलूस की ओर देखते ही रह गये । मारने के लिलए हाथ ऊपर उ�े नहीं । क्या उनका भी हृदय उछलने लगा होगा ? बाल- बच्चों को अपार प्रेम

करनेवाले पैगम्बर मुहम्मद क्या उनके हृदय में भीजग पडे़ ?       ‘‘ उस ठिदन कभी न पिनकलनेवाले आँसू गांधीजी के नयनों से पिनकल पडे।़ उन्होंने कहाः आज

’’ अन्धकार में प्रकाश ठिदखा। मुझे आशा मिमली । पिनष्पाप बालकों की श्रद्धा का यह बल है ।      ‘ ’ पिवनोबाजी बाल शब्द की यह जो व्याख्या करते हैं पिक जिजसमें बल है, ‘ ’ वह बाल । यह यों ही

नहीं है । प्रहृलाद, ध्रुव, लिचलया, रोपिहदास इत्याठिद भारतीय बालकों की पिकतनी मपिहमा है ।पिनवेदन

महात्मा गांधीजी भारत के सव,मान्य नेता और पिवश्व पूज्य मानव थे। संसार की सबसे शलिक्तशाली जापित अंग्रेजों से पिनहते्थ टक्कर लेना और मुठ्ठीभर अहिह(सक सत्याग्रपिहयों को लेकर उनकी पिवशाल

सेना को पिनरथ,क कर देना, कोई हँसीखेल की बात नहप थी। परन्तु इस महात्मा ने यह महान आश्चय, कर ठिदखाया और हमारे प्यारे देश को स्वतंत्र कराया है।

महात्माजी को बालकों से अत्यामिधक प्रेम था और उनके साथ खेलकर वे कभी नहप अघाते थे। बच्चों का साथ पाकर वे ऐसे ही प्रसन्न हो उ�ते थे, जैसे कोई बच्चा खिखलJना पाकर खिखल उ�ता है।

सभागसोसायटी, मीटिट(ग, चलते-पिफरते, काम करते हर समय उन्हें बच्चों का सहयोग पिप्रय था। इस पुस्तक के लिलखने का मेरा उदे्दश्य यही है पिक महात्माजी के बाल- प्रेम पर प्रकाश डाला जाए और

उनके गुर्णों को उदाहरर्ण के साथ प्यारे बच्चों के सामने रखा जाए जिजससे हमारे बालक कुछ सीख सकें और उन पर अमल करके अपने जीवन को उज्वल बना सकें ।

- शलिशकान्त कदम राजेबचपन

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म गुजरात के काठि�यावाड में पोरबंदर नामक शहर में हुआ था। गांधीजी के पिपता पोरबंदर रिरयासत के दीवान थे। वे बडे धार्मिम(क

थे। पिपताजी की भाँपित गांधीजी की माता भी धम,पिनष्ठ थी। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अकू्तबर 1869 को हुआ था। अपने तीन भाईयों में ये सबसे

छोटे थे। सात साल पूर्ण, होते ही बालक गांधी को एक देहाती पा�शाला में पिवद्यापाज,न के लिलए भेजा गया। उस समय यह बालक क्षीर्ण- काय और दुब,ल था। पा�शाला में लडकों के साथ खेल- कूद में उसका मन नहप लगता था। क्योंपिक अन्य लडके शरारती और ऊधमी थे, पर बालक गांधी शांत, ईमानदार और सत्यव्रत- धारी था। सदैव गुरु की आज्ञा मान कर चलना वह अपना धम, समझता था।

बालक गांधी श्रवर्ण- भलिक्त पुस्तक से बहुत ही प्रभापिवत हुए थे। गांधीजी पर इस पुस्तक का इतना असर पडा पिक वह अपने माता- पिपता के अनन्य भक्त हो गये।

इसी तरह एक नाटक कंपनी का सत्य हरिरशं्चौJ नाटक उन्होंने देखा। उन्होंने उसी समय प्रपितज्ञा की, मैं हरिरशं्चौJ की तरह सत्यवादी बनंूगा। गांधीजी स्कूलमें बडी मेहनत से पढते थे। बारह वर्ष, की अवस्था में बालक गांधी हाईस्कूल पहूँचा।

एक वर्ष, बादही 13 वर्ष, की अवस्था में उसका पिववाह हो गया। हाईस्कूल में गांधीजी बडी लगन के साथ पढते थे। सभी लिशक्षक उन्हें मानते थे। पढाई अथवा

आचरर्ण के बारे में लिशक्षकों ने उनकी कभी लिशकायत न की। उन्हें स्कूल में इनाम भी मिमलें। मालिसक छात्र वृत्तिTयाँ भी मिमली। गांधीजी पढने से अमिधक ध्यान अपने सदाचार पर रखते थे। उनके हाईस्कूल के हेडमास्टर दोराबजी एदलजी पिगदी थे। पढाई के साथ साथ वह लडकों के व्यायाम

को भी आवश्यक समझते थे, और उस पर बहुत जोर देते थे। पिवद्यार्थिथ(योंको फुटबॉल, पि[केट आठिद खिखलाते थे, पर गांधीजी को खेल से कोई शJक न था, क्योंपिक वह समझते थे पिक पढाई और खेल से

कोई सम्बन्ध नहप। खुली हवा में घूमना वह बहुत पसंद करते थे। इस आदत को उन्होंने अंत तक बनाए रखा।

गांधीजी समझते थे पिक पढाई में खुशखत होने की जरूरत नहप। उनकी लिलखाई सुंदर न थी। बाद को उन्होंने अपना खत सुधारने की कोलिशश भी की, पर सफल न हुए। उन्होंने स्वयं लिलखा हैं : "जिजस बात की लापरवाही मैने जवानी में की, उसे मैं आज तक संभाल न सका। प्रत्येक बालक- बालिलका

को मेरे उदाहरर्ण से सचेत हो जाना चापिहए पिक अच्छा, सुन्दर लेख पिवद्याथc का आवश्यक अंग हैं। मैने तो यह पिनश्चय कर लिलया है पिक बालकों को आलेखन कला सबसे प्रथम लिलखना चापिहए ।

गांधीजी संस्कृत से बहुत घबराते थे। छ�ी कक्षा में उनकी पिहम्मत पस्त हो गई। संस्कृत के लिशक्षक बडे सख्त थे, और वह एक साथ ही पिवद्यार्थिथ(यों को बहुत- सा पढा देना चाहते थे। एक बार गांधीजी

घबराकर फारसी के दजf में जा बै�े। संस्कृत के अध्यापक इस पर बडे दुखी हुए और उन्होंने कहा, " तुम अपने धम, की भार्षा नही पढना चाहते ? तुम्हें जो कठि�नाई हो, मुझसे कहो। मैं तुम्हें अच्छा

संस्कृत तज्ञ बनाना चाहता हूँ । गांधीजी लज्जिhत हो गए, और उन्होंने बडी लगन के साथ संस्कृत का अध्ययन पिकया। उनका पिवचार था, " पिकसी भी हिह(दू लडके या लडकी को संस्कृत का अच्छा अध्ययन

पिकए पिबना न रहना चापिहए । स्कूल में पढते समय बालक गांधी को, लिसगरेट पीने की आदत पड गई थी। धुआँ उडाने में उन्हें बडा आनंद आता था। पर लिसगरेट खरीदने के लिलए पास में पैसे तो थे नहप, इस लिलए चाचाजी की पी हुई लिसगरेटों को जला- जला कर पीने लगे। पर यह ज्यादा तो चलना नहप था, अतः पिपता की जेब से

पैसे चुराकर लिसगरेट पीना शुरू कर ठिदया। परन्तु पिफर भी संतोर्ष न होता था। अब क्या करें ? बालक गांधी ने यह सब सोचकर आत्महत्या करने की सोची। इसके बारे में अपनी "आत्मकथा" मे

गांधीजीने बडा मार्मिम(क वर्ण,न पिकया है । परन्तु आत्महत्या कैसे करें ? पिवर्ष हमें कहाँ मिमले ? अस्तु। हमें मालूम हुआ पिक बीज खाने से आदमी

मर जाता है। जंगल से ढंूढकर बीज लाए। एकांत में शाम के समय आत्महत्या का अनुष्ठान करना पिनत्तिश्चत पिकया। परन्तु जहर खाने की पिहम्मत न होती थी। तुंत ही न मरे, तो आत्महत्या करने से लाभ

ही क्या ? पिफर भी दो- चार बीज खा ही डालें। अमिधक खाने की पिहम्मत न हुई। अंत में यह पिनश्चय पिकया पिक चलो, रामजी के मंठिदर में दश,न कर आत्महत्या के पिवचारों को मन से पिनकालकर फें क दें।

अब मुझे मालूम हुआ पिक आत्महत्या का पिवचार करना तो सरल हैं, पर आत्महत्या करना अत्यंत मुश्किश्कल है।

आत्महत्या के पिवचार का यह फल हुआ पिक नJकर के पैसे चुराकर लिसगरेट लाने और पीने की आदत पिबलकुल छूट गई। मैं इस टेव को जंगली, हापिनकारक और गंदी मानता हूँ। मुझे अब तक यह न

मालूम हो पाया पिक दुपिनया को लिसगरेट का इतना जबरदस्त शJक क्यों है ? गांधीजी की लिसगरेट छूट गई, साथ ही साथ चोरी न करने का पिनश्चय भी उन्होंने पिकया। उन्होंने सोचा,

अच्छा होगा पिक वह पिपताजी के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लें। पर सामने जाने की पिहम्मत न

पडती थी। पिफर भी उन्होंने सोचा पिक सारी जोखिखम उ�ा कर भी अपनी बुराई कबूल कर लेनी चापिहए। गांधीजी ने एक लंबी लिचठ्ठी पिपताजी को लिलखी, और उसमें सारा दोर्ष कबूल कर लिलया। साथ

ही इस घोर अपराध के लिलए दंड मांगा। गांधीजी ने लिलखा है ।" लिचठ्ठी देखते ही पिपताजी के नेत्रों से आँसू टपकने लगे, और मैं भी खूब रोया। लिचठ्ठी पिपताजीने फाड

डाली और मेरा अपराध एक प्रकार की मूक भार्षा में क्षमा पिकया गया जिजसकी मुझे बहुत कम आशा थी । पिवश्वासपूव,क मैं कह सकता हूँ पिक मेरी इस दोर्ष स्वीकृपित ने पिपताजी को पिनःशंक कर ठिदया, और उनका प्रेम मुझ पर और भी बढ गया ।

3. ‘ ’ गांधीजी पागल है आज एक छोटे बच्चे की ही कहानी सुनाता हूँ । क्योंपिक छोटे बचे्च यानी ईश्वर का रूप । उनका मन पिनम,ल और हृदय पपिवत्र होता है बापू को छोटे बच्चे बहुत पिप्रय थे ।

एक बार बापूजी भोजन कर रहे थे । वे तो पिहसाब से खाते थे । भोजन में पाँच चीजों से ज्यादा नहीं लेते थे । उन ठिदन पिकसीने अंगूर आठिद का उपहार ला ठिदया था । उपहार में आये फल सबके बीच बाँट ठिदये जाते थे । सेवाग्राम में बापू रहते, तब उपहार के फल पहले बीमारों को मिमलते थे ।

गांधीजी खाना खा रहे थे । फल खा रहे थे । इतने में कुछ लोग मिमलने आये । वह एक प्रेमल परिरवार था । माता, पिपता, छोटा बच्चा, सब थे । गांधीजी को प्रर्णाम कर सब बै� गये । छोटे बच्चे ने बापूजी की ओर देखा । माँ से कुछ कहने लगा । माँ उसे चुप कर रही थी । ‘‘ ’’वह बच्चा कह रहा थाः गांधीजी पागल हैं । ‘‘ माँ गुस्से से बोलीः ऐसा नहीं बोलते. ’’चुप ।

‘‘उसने पिफर कहाः हाँ, ’’पागल ही है । ‘‘ ’’माँ गुस्से से डाँट रही थीः दो थप्पड़ लगाऊँगी ।

‘‘ गांधीजी का ध्यान उधर गया । अपने ऐनक के अन्दर से हँसते हुए देखा । पूछाः क्या कहता है यह ? क्यों रे मुन्ने?’’

‘‘ ’’उसने कहाः आप पागल हैं ।माता, पिपता का और दूसरों का मँुह सूखने लगा । लेपिकन वह राष्ट्रपिपता जोर से हँस पडा़ ।

बापू ने हँसते- ‘‘ हँसते पूछा । मैं क्योंकर पागल हूँ ? बताओ तो ’’‘‘ आप अकेले- अकेले खाते हैं । पिकसीको नहीं देते । माँ ने एक बार मुझसे कहा था, ‘ तू अकेला

खाता है, कैसा पागल है । दे उस लड़के को भी । और आप तो अकेले ही खा रहे हैं, इसलिलए पागल ’’हैं ।

‘‘हाँ, यह सच है । ले, तू भी यह फल ले । अब तो मैं सयाना हूँ न ।‘‘जाओ, ’’मुझे नहीं चापिहए ।‘‘ ’’क्यों भला ।‘‘ माँ कहती है, ’’दूसरों का ठिदया नहीं लेना चापिहए ।‘‘अरे, ’’फJरन नहीं लेना चापिहए । लेपिकन आग्रह करें तो लेना चापिहए । ले ।माता, पिपता के कहने पर उसने फल ले लिलये । सब हँसने लगे । है न मजेदार कहानी ?

4. महापुरूर्ष की महानता सन् 1930 के प्रचण्ड ठिदन थे । अभी सत्याग्रह शुरू नहीं हुआ था । अभी वह महान् दांडी- कूच शुरू नहीं हुआ था । देश में सब जगह कुतूहल से भरा हुआ वातावरर्ण था । 26 जनवरी को पहला

स्वतन्त्र्य- ठिदवस मनाया गया था । जनता का सारा ध्यान इस ओर था पिक गांधीजी क्या आदेश देते हैं, पिकस तरह का सत्याग्रह करने को कहते हैं । जगह- जगह लिशपिवर हो रहे थे । स्वयंसेवक आने लगे थे

‘‘ । गांधीजी ने कहाः नमक का सत्याग्रह हो, लेपिकन मेरे कहे बगैर नहीं करना है । पहले मैं दांडीजाऊँगा, वहाँ सत्याग्रह करँूगा, ’’पिफर सब जगह करना ।

महात्माजी एक महत्त्वपूर्ण, पत्र लिलख रहे हैं । ऐपितहालिसक पत्र, देश का भपिवष्य पिनत्तिश्चत करनेवाला पत्र लिलख रहे हैं । वह पिकसे लिलख रहे हैं ? क्या ठिदल्ली के लाटसाहब को, वाइसराय साहब को ?

पत्र पूरा हुआ । लगे हाथ दूसरा एक पत्र उन्होंने लिलखने के लिलए लिलया । यह पिकसे लिलखना है ? क्या इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री को ? अमेरीका के अध्यक्ष को ? पिकसको लिलखा जा रहा है यह पत्र ? क्या

उस समय के कांगे्रस- अध्यक्ष को ? पज्जिण्डत जवाहरलाल नेहरू को ? या रवीन्द्रनाथ �ाकुर को, जो हाल ही में आश्रम आकर यह पूछकर गये थे पिक सत्याग्रह का माग, मिमला ? पिकसे लिलख रहे थे ?

वह पत्र था एक हरिरजन बालिलका के नाम । वह वहाँ से 500 मील दूर रहती थी । उसे वह प्रेमल पत्र लिलखा जा रहा था ।

उस पत्र में राष्ट्रपिपता उस बच्ची को वात्सल्यपूर्ण, सूचना दे रहे थे - ‘‘ तेरी अँगुली दुख रही है। लेपिकन उसमें आयोडीन लगा रही है न ? ’’ लगाती रहना। एक ओर आँखों के सामने राष्ट्रव्यापी आन्दोलन

और दूसरी ओर दूर की उस बच्ची को प्यारभरा पत्र। महापुरूर्ष के लिलए सब समान है ।5. राष्ट्र का पिपता

उन ठिदनों गांधीजी महाबलेश्वर में थे । रोज की तरह वे शाम को घू मने पिनकले । पास के गाँव का10-12 वर्ष, का बच्चा रास्ते के पिकनारे पर हाथ जोड़कर खडा़ था । कमर में केवल एक मैली लँगोटी

थी । कने्ध पर एक मैला- कुचैला लिचथडा़ था । स्नान भी शायद कई ठिदन से नहीं पिकया था । गांधीजी ‘‘ ने अपने एक साथी से कहाः उससे उसका वह कपडा़ मांग लो। कहना, कल ला देंगे । ‘‘ ’’ – वह लड़का दे नहीं रहा था । कल यहीं आओगे तो मिम�ाई देगे ऐसा उसे कहने के लिलए बता कर

गांधीजी आगे पिनकल गये । दूसरे ठिदन घूमने पिनकलने का समय हूआ । गांधीजी ने प्यारेलालजी से कुछ खादी के कपडे़, खाने की चीज और साबुन- बार साथ में ले चलने को कहा ।

       ‘‘वहीं वह लड़का मिमला । बापू ने उसे पास बुलाकर प्यार पिकया और कहाः नहा- धोकर कल साफ कपडे़ पहनकर आना। और भी खाने की चीज देंगे ।

       और बाद में रोज गांधीजी की राह देखते हुए, साफ कपडे़ पहनकर, हाथ जोडे़ वह लड़का और दूसरे भी बच्चे वहाँ खडे़ रहते थे ।

       गांधीजी सचमुच राष्ट्रपिपता थे ।6. बापू की महानता

गांधीजी अखण्ड कम,योगी थे । उनका एक- एक क्षर्ण सेवा में बीतता था । देश के लिलए इस तरह सतत खपनेवाला दूसरा नहीं देखा- सुना । लेपिकन महात्माजी को कम, में आसत्तिTक नहीं थी । कम, को

वे लिसर पर चढ़ने नहीं देते थे । कम, के लिलए आडम्बर नहीं रचते थे । उन ठिदनों बोरसद तहसील में प्लेग फैला हुआ था । सरदार और उनके साथी सेवक बोरसद दJडे़ ।

सफाई का आन्दोलन शुरू हुआ । चूहे मारे जाने लगे । लेपिकन अहिह(सा के नाम पर लोग चूहे मारने ‘‘ को तैयार नहीं हो रहे थे । सरदार ने महात्माजी को लिलखाः लोगों से आप कहें पिक वे चूहे मारें,

’’वरना लोग मरने लगेंगे । ‘‘महात्माजी ने लिलखाः छोटे- से मच्छर को भी मेरे ही समान जीने का हक है । लेपिकन मानव का

जीवन अपूर्ण, है । होना तो यह चापिहए पिक मच्छर होने ही न दें, घर में चूहे आयें ही नहीं । मैं क्या ’’कहूँ चूहों को मारना चापिहए ।

महात्माजी लिलखकर ही चुप नहीं रहे । स्वयं बारसद के लिशपिवर में जा दाखिखल हुए । चुहे मारने के आन्दोलन में तेजी आयी । प्लेग दूर होने लगा । कभी- कभी महात्माजी और सरदार साथ- साथ घूमने

‘‘ जाते । एक बार गांधीजी हँसते हुए सरदार से बोलेः मेरी और तुम्हारी भेट न हुई होती, तो तुम जाने कहाँ बहते चले गये होते ?’’ यों ठिदन बीतने लगे । ‘‘ एक ठिदन सरदार वगैरह सभी लोग काम पर जाने लगे । गांधीजी ने कहाः आप सब जा रहे हैं तो ’’मुझे कुछ काम दे जाओ ।

‘‘ ’’आप हमें आलिशवा,द देने के लिलए यहीं रहें । यही आपका काम है ।‘‘ खाली बै�े क्या करँू ? ’’ मुझे एक बाज का खिखलJना ही ला दो बजाता बै�ा रहूँगा । सब हँस पडे़

और चले गये । काम का पहाड़ उ�ा लेनेवाले बापू पिवनोद में बाजे का खिखलJना बजाने को भी तैयार थे । यह थी उनकी बाल- वृTी ।

7. परावलम्बन नंगापन है गांधीजी ने स्वदेशी का अथ, व्यापक पिकया था । बंग- ‘ ’ भंग के समय स्वदेशी का मन्त्र प्रकट हुआ ।

लेपिकन महाराष्ट्र में सव,जपिनक काका ने उसमें 25-30 वर्ष, पहले उसका नारा लगाया था । पिवदेशी मिमल के कपडो़ के बजाय देशी मिमलों का कपडा़ पहनना स्वेदेशी है । लेपिकन गांधीजी ने कहा पिक यहाँ

की मिमल के बने कपडो़ के बजाय गाँव के लोगों की बनायी हुई खादी पहनना अमिधक स्वदेशी है, सJ प्रपितशत स्वदेशी है । जिजस चीज से देहाती लोगों के हाथों में अमिधक पैसा जायगा, वह अमिधक स्वदेशी

। देशी शक्कर खाना अच्छा है । लेपिकन गुड़ खाकर देहात में अमिधक पैसा बचता हो, तो गुड़ खाना ‘ ’ अमिधक स्वदेशी है । महात्माजी ने स्वदेशी में अमिधक अथ, भर ठिदया । शब्दों के अथ, युग- युग से

‘ ’ बढ़ते जाते हैं । पहले हम स्वतन्त्रता का नाम लेते थे । स्वतन्त्रता यानी पिवदेशी सTा को हटाना । लेपिकन उतना अथ, काफी नहीं है । शोर्षर्ण न हो, गरीबों का जीवन सुखी हो, यह आज स्वतन्त्रता का

अथ, हुआ है । उन ठिदनों शायद महात्माजी बारडोली तहसील में थे । उनके दश,न के लिलए हजारों स्त्री- पुरूर्ष आते और पावन होकर जाते थे । एक ठिदन महात्माजी की सेवा में कोई भेट ले आया । क्या थी वह भेट ? एक थाली रूमाल से ढँकी हुई थी । एक मपिहला ने महात्माजी के आगे वह थाली रखी । थाली में क्या था ? पूरे रूपये भरे थे । रूपयों से भरी थाली गांधीजी के सामने रखकर मपिहला ने प्रर्णाम पिकया और भक्ती- भाव से खडी़ रही ।

     ‘‘ महात्माजी ने क्षर्णभर उस मपिहला की ओर देखा । पिफर गम्भीर भाव से कहाः मेरे सामने यों नंगी कैसे आयी ? क्या तुम्हें कुछ लगता नहीं है ?

     सब चपिकत रह गये। मपिहला देखने लगी, कहीं कपडा़ फटा तो नहीं है । लेपिकन वह तो नया, सुन्दर वस्त्र पहनकर आयी थी। पिकसीकी समझ में नहीं आया पिक बात क्या है । महात्माजी ने कहाः

‘‘ मेरी बात का अथ, भी तुम लोगों पिक समझ में नहीं भाता । हम सबकी बुद्धी मानो जड़ हो गयी है । ‘ ’ यह बहन नंगी है कहने का अथ, यह नहीं पिक इसके बदन पर कपडे़ नहीं हैं, लेपिकन यह पिवलायती

कपडा़ है । तुम्हारी लाज पिवलायती व्यापारी ढँकते हैं । कल वहाँ से कपडा़ नहीं आया तो तुम्हारी लhा कैसे ढँकी जायेगी ? परावलम्बी लोग नंगे होते हैं । इसलिलये हरएक को अपने हात से कते सूत

की खादी पहननी चापिहए । अपनी इhत अपने हाथ में रखनी चापिहए । जो अपनी इhत दूसरों के हाथ में सौंप देता है, ’’ उनकी तो फजीहत ही है ।

     महात्माजी की बातों की गम्भीरता देखकर सबने लिसर झुका लिलया । हमें उन शब्दों की गम्भीरता कभी भूलनी नहीं चापिहए । अन्न और वस्त्र के मामले में प्रत्येक व्यक्ती को, कम-से- कम प्रादेलिशक

इकाइयों को स्वावलम्बी बनाना ही चापिहए। नहीं तो बाहर से अनाज नहीं आया तो भूखों मरें, बाहर से कपडा़ नहीं आया तो नंगे रहें, ऐसी मुसीबत होगी ।

8. मन की एकाग्रता की शक्ती मन की एकाग्रता में बडी़ शक्ती है । एकलव्य ने मन एकाग्र करके ही धनुपिवद्दा सीखी । मन एकाग्र करने से बहुत सारी समस्याएँ हल हो जाती हैं । सूय, की पिकरर्णों को पिबल्लJरी काँच (लेन्स) के द्वारा

केजिन्द्रत कर रूई पर रखो तो रूई जलने लगती है । पिबखरी हुई पिकरर्णों में यह शक्ती नहीं होती । मन की शलिक्त पिबखरी रहे तो संसार में तुम्हें लिसजिद्ध प्राप्त नहीं होगी ।

महापुरूर्षों में ऐसी एकाग्रती होती है । वे प्रयत्नपूव,क �ह्मचय, से उसे हालिसल करते हैं । पिववेकानन्द अमरीका गये हुए थे । वहाँ उन्होंने बुखार से तड़पती हुई एक स्त्री को देखा । वे उसके पास गये।

उसका हाथ अपने हाथ में ले लिलया और ध्यानस्थ होकर खडे़ रहे । पिफर आँखे खोलीं और बोलेः‘‘ ’’ तुम्हारा बुखार उतर गया है । सचमुच बुखार उतर गया था । मन में ऐसी संकल्प-शक्ती, ऐसीइच्छा- शक्ती रहती है । इसलिलए सदा दूसरों की भलाई ही सोचनी चापिहए । हमारे मन में पैदा

होनेवाली पिवचारों का भी संसार पर प्रभाव पड़ता हैं । एकाग्र पिवचारों का तो और अमिधक पड़ता है । आज गांधीजी की ऐसी ही एक कहानी सुनाता हूँ । सन् 1927 को बात है । बापूजी मद्रास गये थे ।

उन्हें पता चला पिक पि�टेन के मजदूर नेता, मशहूर समाजवादी, श्री फेनर �ाँकवे मद्रास के अस्पताल में बीमार हैं । महात्माजी की पिवशाल सहानुभूपित चुप कैसे रहती ? ऐसे मामलों में वे बडे़ तत्पर थे । वे

अस्पताल गये । फेनर �ाँकवे बहुत ही बीमार थे, बेचैन थे । ‘‘ ’’गांधीजी बोलेः मैं आपसे मिमलने आया हूँ ।

‘‘ ’’उन्होंने कहाः आपकी बडी़ कृपा है ।‘‘ ’’कृपा तो ईश्वर की है । आपको बहुत तकलीफ हो रही है ।‘‘ ’’क्या कहूँ बडी़ बेचैनी महसूस होती है ।‘‘ ’’आखिखर क्यों ।‘‘ नींद पिबलकुल नहीं आती । जरा नींद आ जाय, ’’तो पिकतना अच्छा हो ।‘‘ ’’ आप �ीक कहते हैं । नींद तो रसायन है । यह कहकर गांधीजी उनके माथे पर प्रेम से हाथ

रखकर खडे़ हुए, आँखे बन्द कर लीं । मन एकाग्र पिकया । क्या वे ईश्वर से प्राथ,ना कर रहे थे ? या अपनी शान्ती उस तप्त मस्तक में उँडेल रहे थे? कुछ देर बाद आँखें खोलकर गांधीजी बोलेः

‘‘ ’’अब आपको नींद आयेगी । आराम होगा । आप सुखी होंगे । इतना कहकर गांधीजी लJट आये । �ाँकवे ने एक पुस्तक लिलखी है । ‘ ’ उनका नाम पचास वर्ष, का समाजवादी जीवन का इपितहास है । उसमें वे लिलखते हैः पिकतना आश्चय,

है । गांधीजी गये और कुछ ही देर में मुझे एकदम गहरी नींद आ गयी । नींद खुली, तो पिकतना सू्फर्तित( ’’लग रही थी ।

एकाग्रता में ऐसी अदभुत शक्ती है ।9. गुरूदेव और बापू

असहयोग- आन्दोलन के ठिदन थे । महात्माजी मानो आग बन गये थे । पिवदेशी कपडे़ की होली जलाते ‘‘ जा रहे थे । कहते थेः सरकारी स्कूल- ’’ काँलेजों का बपिहष्कार करो । गुरूदेव रवीन्द्रनाथ को

महात्माजी के इस आन्दोलन में दे्वर्ष की गंध आने लगी । उन्होंने बापू को इस बारे में लिलखा । ‘‘ गांधीजी ने जवाब ठिदयाः पिवदेशी सरकार के प्रपित दे्वर्ष फैलाना तो मेरा धम, है । लेपिकन अकसर यह नाराजी और दे्वर्ष व्यलिक्त के प्रपित हो जाता है । पिफर सरकारी अमिधकारिरयों की हत्या होती है । मैं वह

दे्वर्ष व्यलिक्त से हटाकर वस्तु की ओर मोड़ता हूँ । मैं कहता हूँ पिक पिवदेशी सरकारी अमिधकारिरयों को मत मारो, यह पिवदेशी कपडा़ जलाओ । ऐसा कहकर मनुष्यों पर टूटनेवाली हिह(सा को वस्तु की तरफ

’’मोड़ता हूँ । गुरूदेव ने लिलखाः राष्ट्र अब कहीं जगने लगा है । तो इस वक्त क्या दे्वर्ष- बुजिद्ध के गाने लिसखायेंगे ?

प्रातःकाल में पक्षीगर्ण मधुर- मधुर गाते हैं । गाते- गाते ऊँचे आकाश में उड़ते है । हम ऊँचे न उड़कर क्या क्षुद्र पिवर्षयों में और खराब बातों में ही रमते रहेंगे?’’

‘‘ महात्माजी ने जवाब लिलखाः यह सही है पिक प्रातःकाल पक्षी गाते- गाते ऊँचा उड़ते हैं, लेपिकन पिपछले ठिदन उनका पेट भरा होता है । पिपछले ठिदन वे यठिद भूखे रहते, तो मी�ा गाते हुए ऊँचा थोडे़ ही उड़ते

’’। रपिवबाबू ने पूछाः पाश्चात्य लिशक्षा का क्यों बपिहष्कार करते हैं ? राममोहन राय, लोकमान्य पितलक

आठिद महापुरूर्ष क्या इसी पाश्चात्य लिशक्षा की देन नहीं हैं?’’ ‘‘ बापू बोलेः पिवदेशी भार्षा के माध्यम से लिशक्षा न लेनी पडीं होती, तो राममोहन राय, लोकमान्य आठिद और भी महान् हुए होते । पिवदेशी लिशक्षा के बावजूद उनकी असली बुजिद्ध मरी नहीं, क्योंपिक वह

अनन्त थी । क्या पुराने युग में कबीर और तुलसीदास जैसे रत्न पैदा नहीं हुए थे ? पिवदेशी लिशक्षा के कारर्ण देश की अपार हापिन हुई है । राष्ट्र की आत्मा मारी गयी है । लोकमान्य आठिद का मूल अंकुर ही बलवान था, ’’तभी वह ठिटका ।

10. बरबादी की वेदना हमारा देश गरीब है । कोई भी उपयोगी चीज यहाँ मुफ्त में खराब करना राष्ट्र को हापिन है । उसमें भी

खाने- पीने की चीजों की बरबादी तो पाप ही है । पहले के लोग चावल या दाल का दाना भी सड़क पर पडा़ दीखता, तो उसे बीन लेते थे । सन् 1930 का समय था । महात्माजी की वह इपितहास- प्रलिसद्ध दाण्डी- यात्रा शुरू हुई थी । 80

सत्याग्रपिहयों को लेकर सत्याग्रह का सन्देश देते हुए महापुरूर्ष पैदल चल पडा़ था । समुद्र के पिकनारे दाण्डी के पास जाकर महात्माजी सत्याग्रह करनेवाले थे । नमक हाथ में लेकर कहनेवाले थे पिक

रावर्ण- राज्य को समुद्र में डुबोता हूँ । महात्मा का वह पैदल प्रवास यानी एक महान् राष्ट्रीय यात्रा ही थी । वे जहाँ पहुँचते, वहाँ हजारों लोग एकत्र होते और उनका सन्देश सुनते । देशी- पिवदेशी पत्रकारों की भीड़ लगी रहती थी । वह एक पावन दृश्य होता था ।

गरमी के ठिदन थे । तरबूजों और खरबूजों का मJसम था । एक पडा़व पर लोग गापिड़यों में भर- भरकर तरबूज और खरबूजे लाये थे । वे इतने थे पिक खाये नहीं जा सकते थे । महात्माजी के साथ के लोग

खाते तो पिकतना खाते? फल वहाँ बरबाद हो रहे थे । कोई आधा ही खाकर फेक देता था । उस बठिढ़या रसीले फल की यह हालत हो रही थी ।

महात्माजी ने वह दृश्य देखा । वह, बरबादी देखकर उन्हें दुःख हुआ । वे गम्भीर हो गये । उनके प्रवचन का समय आया । हजारों स्त्री- पुरूर्ष बापू की पावन वार्णी सुनने, स्वतन्त्रता की अमर पुकार

सुनने वहाँ इकट�ा हुए थे । महात्माजी मंच पर बै�े । आज वे क्या कह रहे है, ‘‘ सुपिनयेः मैंने पिहन्दुस्तान के वाइसराय को पत्र लिलखा है पिक जनता की आमदनी जब प्रपितठिदन दो आना है, तब

आपका रोजाना सात सJ रूपये वेतन लेना �ीक नहीं है । यहाँ तो एक रूपये में आ� लोग की गुजर होती है । आपके साथ सJ रूपयों में कम-से- कम 5-6 हजार लोगों का पेट भरेगा । यानी आप 5-6 हजार लोगों का खाना छीनते हैं । मैंने वाइस- राय के पास देश की गरीबी की बात कही । उनकी

पिफजूलखचc की आलोचना की । लेपिकन यहाँ क्या देखता हूँ ? सैकडो़ फल बरबाद हुए । सालिथयों के लिलए फल लाना था तो थोडे़ से लाते । लेपिकन गाडी़ भर- भरकर लाये । अब मैं वाइसराय की

आलोचना पिकस मुँह से करँू ? यों पिफजूल खच, करना पाप है । आधा लोगों ने मेरा लिसर नीचा कर ठिदया । देश में एक तरफ भुखमरी है, आधा पेट खाकर जीनेवाले लोग हैं और यहाँ मेरी स्वतन्त्रय- यात्रा में इस तरह की बरबादी होती है । अपनी वेदना मैं कैसे व्यक्त करँू ? पिफर से ऐसा पाप नहीं ’’करना ।

उस प्रवचन को सारे लोग लिसर झुकाकर सुनते बै�े थे । अनेक लोगों की आँखों में आँसू छलक आये थे । महात्माजी के एक- एक शब्द में उनकी दुखी आत्मा प्रकट हो रही थी । उस ठिदन का भीर्षर्ण

जिजन्होंने सुना, वे कभी उसे भूल नहीं सकते । वह ऐसी अमर और उदबोधक वार्णी थी ।1. पिनरात्तिश्रत होने का आन्नद

हरिरजनों को सवर्ण, पिहन्दुओं से कानूनन् अलग न पिकया जाय, इस बात पर सन् 1932 में गांधीजी ने पूना में उपवास पिकया । तब पूना समझJता हुआ । पिफर उन्होंने जेल से हरिरजनों के सम्बन्ध में

हरिरजन पत्रों में लेख लिलखने की अनुमपित माँगी। अनुमती नहीं मिमली, इसलिलए उपवास शुरू पिकया था । उन्हें जेल से छोड़ ठिदया गया । लेपिकन वे कानून को भंग करने पिनकले । क्योंपिक आन्दोलन के जारी

रहते वे बाहर कैसे रहते ? सरकार ने पिफर पकडा़ । पिफर लेख लिलखने की अनुमपित माँगी। पिफर उपवास । सरकार तो दुराग्रही थी, जिजद्दी थी, एक तरह से पिनल,h थी । आखिखर सरकार ने जब उन्हें

मुक्त पिकया, ‘‘ तब महात्मा जी ने खुद जापिहर पिकया पिकया पिक सालभर मैं समझँूगा पिक जेल में ही हूँ। दूसरा राजनैपितक काम नहीं  करँूगा, ’’ केवल हरिरजनों का काम करँूगा । पहले वहाँ पर्ण,कुटी में 21

ठिदन का उपवास पिकया और पिफर पिहन्दुस्तान के दJरे पर पिनकले । वही उनका सुप्रलिसद्ध अस्पृश्यता- पिनवारर्ण सम्बन्धी दJरा है । यह दJरा मध्यप्रान्त ( वत,मान मध्यप्रदेश और पिवदभ,) से शुरू हुआ ।

‘ ’ मध्यप्रान्त के शेर बैरिरस्टर अभ्यंकर उनके साथ थे । उन ठिदन नागपुर में सभा थी । लोखों लोग एकत्र हुए थे । महात्माजी को थैली अर्तिप(त की गयी । उस

समय बैरिरस्टर अभ्यंकर की पत्नी ने अपने शरीर से जेवर उतारकर दे ठिदया । ‘‘श्री अभ्यंकर ने कहाः बापू, ये आखिखरी जेवर हैं । अब मेरी पत्नी के पास कोई जेवर बचा नहीं है

’’ ‘‘ । गांधीजी बोलेः �ीक है । लेपिकन अभी तक आपको रोटी की लिचन्ता नहीं है न ? जिजस ठिदन सुनँूगा पिक अभ्यंकर को खाना नहीं मिमल रहा है, ’’उस ठिदन खुशी से नाचँूगा ।

बापू जिजनसे प्रेम करते थे, उनसे अमिधक-से- अमिधक त्याग की अपेक्षा रखते थे ।12. साइपिकल की सवारी

महात्माजी का जीवन सोद्दश्य था । जो भी बातें जीवनउपयोगी थीं, उन सबकी उन्होंने उपासना की ‘‘ थी । वे यन्त्रों के पिवरोधी नहीं थे । उन्होंने कई बार कहा थाः जिजसने कपडा़ सीने की मशीन ईजाद

की, ’’ उसका बहुत बडा़ उपकार है ।      ‘‘ उन्होंने कहाः मुझे पिबजली की शलिक्त चापिहए । उसे झोंपडी़- झोंपडी़ में ले जा सकँू और वहाँ के

ग्रामोद्दोगों में उसका उपयोग हो सके, ’’ तो पिकतना अच्छा हो। उपकारक यन्त्र उन्हें चापिहए थे । यह कहानी तब की है, जब बापू साबरमती- आश्रम में थें । गांधीजी कुछ महत्त्व के काम के लिलए

आश्रम से अहमदाबाद शहर गये थे । पिफर दूसरी एक जगह उन्हें पिकसी सभा में भी जाना था । शहर के काम में काफी समय लग गया । वे उस काम में व्यस्त थे। लम्बे डग भरते हुए वह पिनभ,य पुरूर्ष, वह कम,योगी आ रहा था । इतने में आश्रम से एक भाई साइपिकल से आ रहे थे । गांधीजी को देखते ही वह साइपिकल से उतर पडे़ ।

‘‘ कहाँ चले ?’’ गांधीजी ने पूछा ।‘‘बापू, आपको उस सभा में जाना है । दस ही मिमनट रह गये । मैं आपको याद ठिदलाने आ रहा था । न आता तो आप बाद में कहते पिक क्यों नहीं बताया ?’’

‘‘ वह सभा शायद आज ही तय हुई है ?’’‘‘जी, ’’हाँ । समय भी हो रहा है ।‘‘ ’’तो पिफर अपनी साइपिकल दे दो ।‘‘ आप साइपिकल से जायेंगे ? पिगर पडे़ तो ? शहर में बहुत भीड़ होती है, ’’बापू ।‘‘ मैने अफ्रीका में सीखा था, सो भूलने के लिलए नहीं सीखा था । साइपिकल चलाना सबको आना

’’ चापिहए । लाओ । वक्त खराब न करो ।      यह कहकर बापू साइपिकल पर चढे़ और तेजी से पिनकल गये । आश्रमवासी भाई देखते रह गये । साइपिकल पर गांधीजी की मूर्तित( आँखों के सामने आती है तो हँसी आती है न ?

13. प्रेम का उपहार उन ठिदनों गांधीजी इंग्लैंड में थे । यह सन् 1931 की बात है। गांधीजी की सुरक्षा के लिलए, या कहें उन पर पिनगरानी रखने के लिलए, उनके साथ हमेशा खुपिफया पुलिलस का एक आदमी रहता था ।

गांधीजी का सारा व्यवहार खुला होता था । उसमें पिकसी तरह का लुकाव- लिछपाव नहीं रहता था । सत्य तो सूय, के प्रकाश के समान होता है । वह अन्धकार में कहीं लिछपकर बै� नहीं सकता । सत्य पिनभ,य होता है । उसे लिछपने की इच्छा भी नहीं होती ।

वह खुपिफया पुलिलस का आदमी वहाँ ऊब गया । क्योंपिक वहाँ उसे कुछ भी काम नहीं था । गांधीजी के काम में वह भी हाथ बँटाने लगा । कभी सामान सजाता, तो कभी कुछ करता । श्री प्यारेलालजी ‘‘ से और श्री मीराबहन से वह कहता पिक मुझे भी कुछ काम दीजिजये, संकोच करने की कोई बात

’’ नहीं । वह गोरा पुलिलसवाला इस बात के लिलए उत्सुक था पिक बापू का कुछ तो काम करने का अवसर मिमले । जब कोई काम मिमलता, तो वह खुशी से फूल उ�ता था और उस काम से अपने को

धन्य मानता था । गांधीजी का लन्दन का काम खत्म हुआ । वे गोलमेज परिरर्षद् के लिलए गये हुए थे । भारत की समस्या हल करने गये थे । लेपिकन अभी स्वतंत्रता की घडी़ नहीं आयी थी । पि�ठिटशों की

कारस्तानी और भारतीय नेताओं के मतभेद, यह सारा देखकर गांधीजी बहुत खिखन्न हुए । सबसे पिबदा लेकर वे पिहन्दुस्तान लJटने के लिलए पिनकले । कीलाहल शुरू हो गया। छोटे- छोटे अंगे्रज बच्चे गांधीजी

के चारों ओर उमड़ने लगे । ‘‘ इतने में एक बडा़ अफसर आया । गांधीजी से पूछाः आपके लिलए और पिकसी बात की जरूरत तो नहीं हैं ? सारी सुपिवधा है न ? कोई तकलीफ तो नहीं है ?’’

‘‘ ’’सब �ीक है । और कुछ नहीं चापिहए । पर मुझे लिसफ, एक चीज माँगनी है ।‘‘ क्या है ? ’’बताइये। संकोच न कीजिजये ।‘‘ यह जो खुपिफया पुलिलस का आदमी है, उसे पि�जिन्दसी तक मेरे साथ चलने दें । भेज सकें गे न ? ‘ ’ना

’’नहीं कीजिजयेगा।‘‘ पिकसलिलए ?’’‘‘ ’’इसलिलए पिक वह अब मेरे ही परिरवार का आदमी हो गया है । वहाँ तक साथ जाने दीजिजये ।‘‘ ’’तो पिफर ले जाइये ।

वह गोरा पुलिलसवाला बहुत खुश हुआ । पि�जिन्दसी तक वह महात्माजी के साथ गया । वहाँ उसने प्रर्णाम पिकया । गांधीजी ने उसका पता अपने पास लिलख लिलया ।

पिफर गांधीजी भारत आये। देश में जनता भड़की हुई थी । गांधीजी ने वाइसराय से मिमलने के लिलए दो तार पिकये । लाटसाहब ने मिमलने से इनकार कर ठिदया । पिफर सत्याग्रह शुरू हुआ । गांधीजी को

यरवदा- जेल में रखा गया । राष्ट्र का सारा भार ढोनेवाले वे महापुरूर्ष । लेपिकन उस गोरे खुपिफया पुलिलसवाले को वे भूले नहीं थे ।

‘ ’ उन्होंने उसे एक घडी़ उपहार में भेजी । उस पर सपे्रम भेट खुदवा ठिदया, अपना नाम भी खुदवा ठिदया था ।

      वह प्रेमभरी भेट पाकर न जाने वह पुलिलसवाला पिकतना खुश हुआ होगा ।14. तभी तो दीनबनु्ध हो

कांगे्रस के उस युवक काय,कता, को गांधीजी के क�ोर वजन उलिचत लगे । दुःख तो उसे हुआ ही । पिफर भी उन क�ोर शब्दों के पीछे रहा हुआ तत्त्व उसकी समझ में आ गया । वह वहाँ से उ�ा और भारी कदमों से चल पडा़ । हृदय धक- धक कर रहा था । पैर भारी लग रहे थे । भपिवष्य अन्धकारमय

दीखता था । वह दरवाजे तक गया ही था, इतने में देहरी से उसके पैर पीछे मुड़ने लगे । वह गांधीजी के पास आया, ‘‘बै�ा और पिगड़पिगडा़ने लगाः बापू, आपकी बात मुझे जँची है । लेपिकन मैं गरीब हूँ । जेब में एक पैसा भी नहीं हैं । जैसे- तैसे पैसे जोड़कर यहाँ तक तो आया । अब लJटँू कैसे ? लJटने

’’ के लिलए पिकसी तरह पैतीस रूपये दीजिजये । भरसक जल्दी ही यह पैसा लJटा दँूगा । इतना बोलकर वह गांधीजी के सामने लिसर नीचा करके बै� गया । आँखों से आँसू बह रहे थे । बापू को भी बुरा ‘‘ लगा । लेपिकन उन्होंने कहाः मुझसे कुछ न मिमलेगा । पहले से ही एक हजार रूपयों की जिजम्मेदारी लिलये बै�े हो । उसमें इतना और बढा़ना नहीं चापिहए । तुम्हें नया जीवन शुरू करना है न ? तो पिफर ’’नया जीवन कज, से शुरू न करो । नया ही रास्ता अपनाओ । उसीमें तुम्हारा भला है । वह युवक उ�ा । यह उसके लिलए दूसरा धक्का था । एक हजार रूपयों की व्यवस्था तो करनी ही थी

। वह बाहर जाने लगा । लेपिकन उसके चेहरे पर नये जीवन में पदाप,र्ण करते समय का एक नया ही तेज दीख रहा था । एक प्रकार के आत्मपिवश्वास के साथ वह बाहर पिनकला।

उसके पीछे- पीछे दीनबन्धु एण्ड्रज भी गये। उन्होंने उसे ठिटकट खरीद ठिदया। दीनबनु्ध आश्रम लJट ‘‘ आये। उन्हें हँसी आ रही थी। बापू हँसते हुए बोलेः तुम्हारी चालाकी मुझे मालूम हो गयी। तुम्हारा

‘ ’ नाम दीनबनु्ध यों ही थोडे़ पडा़ है ?’’ 15. पहरेवाला भी रो पडा़

माच, 1922 में गांधीजी को सजा हुई । बारडोली का सत्याग्रह स्थपिगत करने के बाद उन्हें पिगरफ्तार करने की जरूरत नहीं थी । लेपिकन आन्दोलन रोक देने के कारर्ण गांधीजी के प्रपित जनता और राष्ट्र

के नेता क्षुब्ध है, यह देखकर उस तेजोमय सूय, को जेल में �ँूसने का ही सरकार ने पिनश्चय पिकया । ‘‘ गांधीजी ने अपराध स्वीकार पिकया। उन्होंने कहाः इस शासन के पिवरूद्ध असन्तोर्ष पैदा करना मेरा

’’ धम, है । पहले लोकमान्य को छह वर्ष, की सजा दी गयी थी, उसी उदाहरर्ण को सामने रखकर न्यायाधीशों ने गांधीजी को भी छह वर्ष, की सजा सुनायी । छह साल तक राष्ट्रपिपता दीखनेवाले नहीं

थे । महादेवभाई रोने लगे । मुकदमे के समय तात्यासाहब केलकर खास तJर पर इसलिलए अहमदाबाद गये थे । वे महादेवभाई को धीरज बँधा रहे थे । लोकमान्य को सजा सुनायी गयी थी,

’ – तब हम भी ऐसे ही रोये थे कहकर महादेवभाई को सान्त्वना देते थे । वह प्रसंग बडा़ गम्भीर और हृदयद्रावक था ।

लेपिकन बंगाल के उस गाँव के एक मकान में वह संतरी भला क्यों रो रहा है ? उस मकान में एक बडा़ [ांपितकारी रहता था। मेरा खयाल है, वह उल्लासकर दT ही थे । वे जेल छूटे थे । उन्हें जरा

मपितभ्रम सा हुआ था, इसलिलए सरकार ने उन्हें छोड़ ठिदया था । वे उस मकान में रहते थे । उनकीस्मरर्ण- शक्ती पिफर सतेज हो रही थी । पागलपन मिमट रहा था ।

वह पहरेदार रो रहा था। उसके हाथ में एक बंगाली अखबार था। उस [ांपितकारी ने उससे पूछाः‘‘ क्यों रोते हो ?’’

‘‘ उसने कहाः मेरी जापित के एक आदमी को छह वर्ष, की सजा हुई है । वह बूढा़ है। 54-55 वर्ष, की उसकी उम्र है । देखो, ’’इस अखबार में है । अखबार में गांधीजी के उस ऐपितहालिसक मुकदमे की तफसील थी । गांधीजी ने अपनी जापित पिकसान

बतायी थी और धन्धा कपडे़ की बुनाई लिलखाया था । वह पहरेवाजा मुसलमान था । वह बुनकर जापित का था । यह पढ़कर उसकी आँखे भर आयी थीं ।

      ‘‘ उस महान [ान्तिन्तकारी की समझ में सारी बातें आयी । वह अपने संस्मरर्ण में लिलखते हैः हम कैसे [ान्तिन्तकारी हैं ? सचे्च [ान्तिन्तकारी तो गांधीजी है । सारे राष्ट्र के साथ वे एकरूप हुए थे । मैं

पिकसान हूँ, – मैं बुनकर हूँ यह उनका शब्द राष्ट्रभर में पहुँच गया होगा । करोडो़ लोगों को यही लगा होगा पिक हममें से ही कोई जेल गया । जनता से जो एकरूप हुआ, जनता से जिजनके सम्पक, जोडा़, ’’वही पिवदेलिशयों के बन्धन से देश को मुक्त कर सकता है । उस सच्चे महान् [ान्तिन्तकारी को प्रर्णाम ।

16. एक राष्ट्र का प्रपितपिनमिध सन् 1931 में ठिदल्ली में गांधी- इरपिवन समझJता हुआ। सत्याग्रह की पिवजय हुई थी । यह पहला

समझJता है, जो पि�ठिटश सरकार ने पिहन्दुस्तान से खुद होकर पिकया था । गांधीजी गोलमेज परिरर्षद् के लिलए लन्दन जाने को राजी हो गये और पिनकले। वह देखो, बम्बई से जहाज खुल रहा है । चलते- चलते गांधीजी एक छोटे बच्चे का चुम्बन ले रहे हैं ।

फोटोग्राफर फोटो ले रहे हैं । खुल गया जहाज । आज जहाज अदन पहुँचनेवाला था । अदन की भारतीय तथा अरबी जनता की ओर से गांधीजी को

मानपत्र ठिदया जानेवाला था । लेपिकन उस समारोह के समय पितरंगा झण्डा फहराने की अनुमती वहाँ का पोलिलठिटकल रेजिजडेंट दे नहीं रहा था ।

गांधीजी ने स्वागत- ‘‘ समिमपित के अध्यक्ष से कहाः रेजिजडेंट को फोन करके कपिहये पिक पिहन्दुस्तान सरकार के साथ कांगे्रस का समझJता हुआ है । ऐसी ज्जिस्थपित में आपको राष्ट्रध्वज के लिलए इनकार

नहीं करना चापिहए । लेपिकन यठिद आप अनुमपित नहीं देते है, तो मैं मान- ’’पत्र नहीं लँूगा । फोन पिकया गया । पोलिलठिटकल रेजिजडेंट ने नाजुक परिरज्जिस्थपित पहचान ली और अनुमपित दे दी । पितरंगा झण्डा अदन में फहराया गया । लाल सागर और अरब सागर ने वह देखा ।

गांधीजी ने मान- ‘‘ पत्र का उTर देते हुए कहाः जिजस राष्ट्रध्वज के लिलए हजारों लडे,़ मरे, वह ध्वज राष्ट्रीय कांगे्रस के प्रपितपिनमिध के स्वागत में न हो तो कैसे चलेगा । राष्ट्रीय ध्वज के लिलए अनुमती देने

का यह प्रश्न नहीं है । जहाँ राष्ट्रीय कांगे्रस के प्रपितपिनमिध को बुलाया गया हो, वहाँ उसके ध्वज को भी ’’सम्मान्य स्थान मिमलना ही चापिहए ।

तब वहाँ के भारतीयों और अरब नागरिरकों को पिकतना आन्नद हुआ । उस जहाज के सैकडो़ गोरे लोग वह प्रसंग देख रहे थे ।

17. पुन्नीलाल नाई     गांधीजी इलाहाबाद गये थे । आनन्द भवन में �हरे थे । कमला नेहरू स्मारक और्षधालय का

लिशलान्यास करना था, इसलिलए आये थे । सन् 1939 के नवम्बर की 23 तारीख थी । गांधीजी को एक नाई की जरूरत थी । जवाहरलालजी के पिनजी सलिचव श्री उपाध्यायजी ने एक

कुशल नाई को बुलाया । उसका नाम पुन्नीलाल था । श्री उपाध्याय ने उसे साफ खादी के कपडे़ पहनने को ठिदये । वे कपडे़ उसे �ीक नहीं हो रहे थे । पिफर भी वह पहनकर आनन्द भवन की दूसरी ‘‘मंजिजल पर वहा गया । गांधीजी अखबार पढ़ रहे थे । उसे देखकर बोलेः अरे, तुम आ गये। तुम अच्छा बाल बनाते हो न ?’’

नाई नम्रता से मुस्कराता रहा । वह गांधीजी के बाल बनाने बै�ा । उसने उनकी दाढी़ भी बनायी । गांधीजी हँसी - मजाक कर रहे थे । उससे उसके घर की जानकारी पूछ रहे थे । बीच में उन्होंने पूछाः

‘‘ ’’लगता है पिक हमेशा खादी पहनते हो ।‘‘ ’’नही । ये कपडे़ थोडे़ समय के लिलए उधार है ।

उसका सच बोलना गांधीजी को अच्छा लगा । गांधीजी के बाल बनाते समय का श्री उपाध्याय ने एक फोटो खींचा । ‘‘ काम हुआ । नाई जाने लगा । उसने गांधीजी को प्रर्णाम पिकया । बापू ने कहाः तुम अच्छा बाल ’’बनाते हो ।

‘‘ ’’तो मुझे सटªपिफकेट दीजिजये ।‘‘ जब तक तुम अच्छा काम करते रहोगे, तब तक सटªपिफकेट की जरूरत ही क्या ?’’

लेपिकन नाई पीछे पड़ ही गया । आखिखर गांधीजी राजी हुए । वह देखो, कागज आ गया । गांधीजी लिलखने लगेः आनन्द भवन, इलाहाबाद

भाई पुन्नीलाल ने बडे़ भाव से अच्छी तरह मेरी हजामत की है । उनका उस्तरा देहाती और बगैर साबुन के हजामत करते हैं ।

मो. क. गांधी23-11-39

वह नाई इतना खुश होकर गया पिक मानो उसे पृथ्वी- जिजतनी मूल्यवान् पिनमिध मिमली हो । जवाहरलालजी ने उसे दो रूपये ठिदये । और उपाध्यायजी से वह फोटो भी ले गया । वह फोटो और

वह प्रशश्किस्तपत्र दोनों पुन्नीलाल की अनमोल सम्पत्तिT हैं ।      एक भाई सJ रूपये देने लगा था, लेपिकन पुन्नीलाल वह चीज देने को राजी नहीं हुआ । श्री

पुरूर्षोTमदासजी टण्डन ने खूब मनुहार करके उस फोटो और प्रशश्किस्त- पत्र का फोटो लिलया और प्रकालिशत पिकया, तब यह बात संसार को मालूम हुई ।

18. यन्त्रों की मया,दा चालc चैपलीन दुपिनया को हँसानेवाला व्यलिक्त है । पिफल्म में काम करता है । वह गरीबी से ऊपर उ�ा

‘‘ और गरीबों के बीच ही रहता है । गांधीजी से वह मिमला । उसने पूछाः आप यन्त्रों के खिखलाफ क्यों है ?’’ ‘‘ देश में करोडो़ लोग बेकार हैं । उन्हें कJन- सा उद्दोग दँू ? ’’इसलिलए चरखा ठिदया ।

‘‘ केवल कपडे़ के लिलए ग्रामोद्दोग ?’’‘‘ अन्न और वस्त्र के मामले में प्रत्येक राष्ट्र को स्वावलम्बी होना चापिहए । हम स्वावलम्बी थे भी ।

लेपिकन इंग्लैंड में यन्त्रों के कारर्ण अत्यमिधक उत्पादन होने लगा । उसे खपाने के लिलए वे मण्डी खोजने

लगे । भारत के बाजार पर कब्जा जमाकर आप लोग हमारा शोर्षर्ण कर रहे हैं । क्या यह इंग्लैंडपिवश्व- शान्तिन्त के लिलए खतरा नहीं है ? कल पिहन्दुस्तान जैसे पिवशाल देश यठिद बृहद् यन्त्रों से उत्पादन

करने लगे, ’’तो संसार को पिकतना बडा़ खतरा है ।‘‘ लेपिकन धन का �ीक पिवतरर्ण हो, काम का समय घटाया जाय, श्रमिमकों को अमिधक आराम मिमले

और वे अपने पिवकास में समय खच, करने लगे, तो दूसरों को गुलाम बनाकर बाजार को कब्जे में लेने की क्या जरूरत है ? तब भी क्या आपका यन्त्रों से पिवरोध रहेगा ?’’

‘‘ ’’नहीं ।19. नव- जीवन का सन्देश

गांधीजी आंध्र प्रदेश में प्रवास कर रहे थे । आन्ध्र मलमल जैसी खादी के लिलए प्रलिसद्ध है । लिचकाकोल गाँव में खादी की प्रदश,नी थी । गांधीजी को वहाँ जाना था । वह देखो, आन्ध्र की बहनें तरखा कात रही हैं । पास ही पूनी रखी है । एक- एक पूनी से तीन- तीन सJ तार सूत पिनकल रहा है । 50-60

नम्बर का सूत है । अपने ही हाथ के सूत का वस्त्र उन बहनों ने पहना था । दूध की धार के समान सूत पिनकल रहा था । वह अदभुत दृश्य देखकर गांधीजी का हृदय उमड़ आया और वे भी चरखा लेकर कातने लगे ।

एक के पीछे एक बहन आती और गांधीजी के चरर्णों के पास साफ सूत की गुण्डी भेटस्वरूप रखकर प्रर्णाम करके चली जाती । लेपिकन ये कJन दो बहनें ? ये दुखी हैं । चेहरे पर दैन्य, दुःख और लhा

के कई भाव हैं । बापू को प्रर्णाम कर वे बोलीः‘‘ हम नीच जापित में पैदा हुई हैं । पशु- पत्तिक्षयों से भी हमें हीन समझा जाता हैं । हम आज से खादी

’’पहनने का व्रत ले रही हैं । ‘‘ गांधीजी ने गम्भीर वार्णी में आश्वासन देते हुए कहाः जन्म से ही कोई पापी नहीं होता । आप सूत कापितये । ईमानदारी से मेहनत करके गुजारा चलाइये । सदाचारी रपिहये। तो आप उTम मनुष्य होंगे

’’। बापूजी की वार्णी गदगद् थी । उन दोनों बहनों का मुखकमल आशा से प्रफुल्ल था, मानो नवजीवन

मिमला हो, नवजीवन प्रारम्भ हुआ हो ।20. राष्ट्र- नेता और उसका वारिरस

वे दांडी- यात्रा के ठिदन थे । महात्माजी पैदल जा रहे थे, जैसे रामचन्द्र की यात्रा चल रही हो । सारे राष्ट्र को सू्फर्तित( मिमल रही थी । राष्ट्र के जीवन में प्रार्ण- संचार हो रहा था । शाम को एक गाँव में सभा हुई । प्राथ,ना हुई । अब मही नदी पार कर उस पार जाना था । ज्वार का पीनी आया हो तो नाव �े� पिकनारे तक जाती । लेपिकन ज्वार समाप्त होकर अब भाटे का समय हो

रहा था । भाटा शुरू होने से पहले उस पार जाना था । वरना पानी कम हो जाय, तो नाव जा नहीं पाती और मही नदी के दलदल में रात के समय उस महापुरूर्ष को पैदल जाना पड़ता । नाव तैयार हुई । गांधीजी नाव में बै�, मानो पिनर्षादराज की नाव में रामचन्द्र बै�े हों । लेपिकन गांधीजी

के साथ जाने को मिमले, ‘ ’ इस लोभ से नाव में पिकतने लोग चढ़ गये । ना पिकसको कहा जाय ? नाव को जल्दी- जल्दी ले जाना था । भारी नाव को खेते हुए ले जाना दूभर हो रहा था । आखिखर नाव फँस गयी । पानी बहुत कम था । राष्ट्र- पुरूर्ष हाथ में ला�ी लेकर नीचे उतरा । एक- एक कदम बडी़

मुश्किश्कल से पैर जमाते- जमाते बढ़ने लगे । मही नदी में बहुत दलदल होता है । कहीं- कहीं घुटनों से ऊपर तक था । लेपिकन न थकते, न हाँफते, दृढ़ता के साथ महात्माजी जा रहे थे । उन्हें इतनी दूरी

तय करने में एक घंटे से ज्यादा समय लगा । गांधीजी उधर पहुँचे ही होंगे पिक इस पिकनारे पर पंपिडत जवाहरलाल नेहरू की मोटर आ रूकी । वे

उन ठिदनों राष्ट्रध्यक्ष थे । महात्माजी से मिमलने आये थे । गांधीजी तो उस पार चले गये । भाटा उतर गया था । नाव चलना असम्भव था ।

‘‘पिकसने पूछाः पज्जिण्डतजी, क्या पिकया जाय ?’’

‘‘ ’’वे बोलेः मैं पैदल जाऊँगा ।21. शरीर सेवा का साधन है

बापू दीखने में दूबले- पतले थे । लोग उन्हें मुट्ठीभर हपि®यों का ढाँचा कहते थे । लेपिकन वे अपनी सेहत की खूब देखभाल करते थे । आहार, घूमना, मालिलश, सब पिनयमिमत रूप से चलता था । शरीर सेवा का साधन है । उसे स्वच्छ और सतेज रखना हमारा कत,व्य है । महात्मा जी दुब,लता के पुजारी नहीं

थे । कमजोरी चाहे तन की हो या मन की, उन्हें अच्छी नहीं लगती थी । खूब खाओ, खूब सेवा करो, ऐसा वे कहा करते थे ।

पिवनोबाजी की सेहत जरा कमजोर हो गयी थी । सन् 1940 में महात्माजी ने पिवनोबाजी को प्रथम सत्याग्रही चुना था । पिवनोबाजी जैसे सत्य और अहिह(सा की मूर्तित( आज देश में शायद ही कोई मिमले । साबरमती आश्रम में सबसे पहले जो सत्याथc लोग आये, उनमें युवक पिवनोबा भी एक थे ।

सेवाग्राम में गांधीजी के पास लिशकायत गयी पिक पिवनोबाजी सेहत का ख्याल नहीं रखते हैं । एक ठिदन ‘‘ गांधीजी ने पिवनोबाजी से कहाः तुम सेहत का ख्याल नहीं करते हो । तुम्हें अब मुझे अपने कब्जे में

लेना होगा । तुम्हारी सेहत खूब हृष्ट- ’’पुष्ट करनी होगी । ‘‘ पिवनोबाजी ने कहाः मुझे तीन महीनों का मJका दीजिजये । उतने में वह नहीं सुधरी, तो पिफर आप

’’अपने हाथ में लेना । पिवनोबाजी ने सोचा पिक जिजसके लिसर पर पिहन्दुस्तान का भार है, उसे मेरी चिच(ता क्यों करनी पडे़ ? और

उन्होंने अपनी सेहत की ओर ध्यान देना शुरू पिकया । तीन महीने में 24 पJड वजन बढा़ लिलया । महात्माजी को भारी खुशी हुई । महात्माजी को हृष्ट- पुष्ट लोगों की आवश्यकता थी । कमजोरों की नहीं । ध्यान में रखो, कमजोरी

पाप है ।22. महात्मा का दुःख

उन ठिदनों गांधीजी ने देशभर का दJरा बन्द कर ठिदया था । स्थायी रूप से सेवाग्राम में रहने लगे थे ।      उस ठिदन उनका जन्म- ठिदन था । हम साधारर्ण लोग अपना जन्म ठिदन मिमष्टात्र खाकर, नाच-गाना

मनाते हैं, लेपिकन आश्रम में ऐसा कुछ भी नहीं होता था । आश्रम में जन्म- ठिदन का सारा काय,[म बडी़ सादगी से मनाया जाता था ।

      इस वर्ष, भी शाम को रोज की तरह साय- प्राथ,ना के लिलए लोग जमा हुए । पिवशेर्ष रूप से बनाये गये ऊँचे मंच पर गांधीजी प्राथ,ना के लिलए बै�े । न तो वहाँ कोई सजावट थी, न फूल- माला थी ।

      केवल एक ऊँची जगह पर गांधीजी के सामने एक दीये में बाती धीमें- धीमें जल रही थी । स्वयं जलकर जग को रोशनी देनेवाला वह दीया मानो गांधीजी के जीवन का प्रतीक था ।

      गांधीजी ने दीये की तरफ देखा । आँखे मीच लीं। प्राथ,ना शुरू हुई ।      आज प्राथ,ना के बाद गांधीजी के जन्म- ठिदन के पिनमिमT पिवशेर्ष प्रवचन होनेवाला था । गांधीजी ने

‘‘ प्रारम्भ में पूछाः यह दीया पिकसने जलाया ?’’       ‘‘ ’’ कस्तूरबा ने कहाः मैंने ।      ‘‘ ‘ ’ गांधीजी बोलने लगे । आज के ठिदन सबसे खराब बात कोई हुई है तो वह यह पिक बा ने

आश्रम में दीया जलाया । आज मेरा जन्म ठिदन है, क्या इसलिलए यह दीया जलाया गया ? अपने आसपास के देहातों मे जाने पर मैं देखता हूँ पिक गाँववालों को रोटी पर लगाने के लिलए तेल नहीं

’’ मिमलता और आज मेरे आश्रम में घी जलाया जा रहा है ।      ‘ ’ ‘‘ पिफर बा को सम्बोमिधत करते हुए बोलेः इतने साल तक साथ रहते हुए तुमने यही सीखा ।

गाँववालों को जो चीज नहीं मिमलती, उसका उपभोग हमें नहीं करना चापिहए । मेरा जन्म- ठिदन है तो क्या हुआ ? जयन्ती के ठिदन तो सत्काय, करना होता है, ’’ पाप नह ।

      भार्षर्ण समाप्त हुआ । लेपिकन प्रवचन में जो उपदेश मिमला, ‘ ’ उसे बा कभी भूली नहीं ।

      महात्माजी के मन में सदा गाँवों का ख्याल रहता था । वे मानते थे गाँववालों का सुख ही हमारा सुख है, उनका दुःख ही हमारा दुःख है ।

3. देह समाज की धरोहर हैबच्चों, बापूजी बडे़ पिनभ,य थे । उन्होंने प्रचण्ड हिह(सा का सामना आत्मबल से पिकया । उन्हें मृत्यु का

भय नहीं था । उनके जैसी पिनभ,यता तथा वीरता और पिकसमें हो सकती है ? मृत्यु तो उनका सस्त्रिन्मत्र ही था ।

लेपिकन महात्माजी अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखते थे । वे शरीर की उपेक्षा को पाप मानते थे । यह शरीर समाज की सम्पत्तिT ह,ै समाज की धरोहर है । उनका दुरूपयोग करने का मुझे कोई

अमिधकार नहीं है यह उनकी भावना थी । एक बार बापू घूमने पिनकले । रास्ते में उनके पैर में �ोकर लगी अँगू�े से खून बहने लगा । पास ही

‘ ’ कस्तूरबा थीं । गांधीजी बोलेः बा जल्दी पट्टी लाओ, ’’मेरे अँगू�े में बाँधो । ‘‘ कस्तूरबा ने पिवनोद में कहाः आप तो कहते हैं पिक आपको मृत्यु का भय नहीं है और आपको पिकसी

बात का दुःख नहीं है । तब जरा- सा �ोकर लगा और थोडा़ खून बह गया तो इतना घबराने की क्या बात है ?’’ ‘ ’बापू गम्भीरता से बोलेः बा , यह शरीर जनता की सम्पत्तिT है । मेरी असावधानी से इस अँगू�े में पानी लग जाय, वह पक जाये और 7-8 ठिदन मुझसे कोई काम न हो पाये, तो उससे लोगों का

पिकतना नुकसान होगा । उससे लोगों का मुझ पर जो पिवश्वास है, ’’ वह खज्जिण्डत होगा ।      बा शरमा गयीं । जल्दी पट्टी लाकर बापू के अँगू�े में बाँध दी ।        बापू के मन में राष्ट्र- पिहत की पिकतनी लिचन्ता थी ।

24.‘ ’ गांधी मर गया   हम सबको मृत्यु का बडा़ भय लगता है। लेपिकन जीवन और मरर्ण दोनों ईश्वर की बडी़ देन हैं । ठिदन और रात दोनों में बडा़ आनन्द है । ठिदन में सूरज दीखता है, तो रात में चाँद और असंख्य तारों की शोभा दीखती है । अमावस्या और पूर्णिर्ण(मा दोनों की वन्दना करनी चापिहए । छोटा बच्चा माँ के दोनों स्तनों से भरपेट दूध पीता है । जीवन और मरर्ण जगन्माता के दो स्तन ही हैं । दोनों में आनन्द है ।

महात्माजी मरर्ण को भी ईश्वर की कृपा मानते थे । कई बार अपने उपवास के समय कहा करते थे ‘ ’ पिक मर जाऊँ तो ईश्वर की कृपा ही मापिनये। सन् 1916-17 की बात है । पिबहार के चम्पारन में

महात्माजी पिकसानों का आन्दोलन चला रहे थे । गोरे जमींदार सरकार की मदद से भारी जुल्म करते थे । एक बार एक जवान पिकसान ला�ी की मार से लिसर फूट जाने से मर गया । उसकी माँ बूढी़ थी।

उसकी वह इकलJता बेटा था । उस माँ के दुःख की सीमा नहीं थी । वह महात्माजी के पास आकर ‘‘ ’’ बोलीः मेरा इकलJता बच्चा चला गया । उसे पिकसी तरह जिजला दीजिजये । गांधीजी क्या कर सकते

थे ? ‘‘गम्भीर होकर बोलेः माँ, मैं तुम्हारे बच्चे को कैसे जीपिवत करँू ? मेरी ऐसी शलिक्त कहाँ ? ऐसी पुण्याई कहाँ ? और वैसा करना �ीक भी नहीं है । मैं उसके बदले तुम्हें दूसरा बच्चा दँू ?’’

      यह कहकर महात्माजीने उस बूढी़ माँ के काँपते हाथ अपने लिसर पर रख लिलये और आँसू ‘‘ सँभालते हुए उस माता से कहाः लो ला�ी- चाज, में गांधी मर गया । तुम्हारा लड़का जिजन्दा है और

वह तुम्हारे सामने खडा़ है, ’’ तुम्हारा आशीवा,द माँग रहा है ।      उस माँ के आँसू रोके न रूकते थे । उसने बापू को अपने पास खींच लिलया । उनका लिसर अपनी

‘ ’ ‘ ’ गोद में लेकर मेरा बापू बोलने लगी । उसने उन्हें पे्रमभरा आशीवा,द ठिदया पिक सJ साल जिजयो ।25. करूर्णामूर्तित(

महात्माजी को हम अकसर भगवान् बुद्ध अथवा भगवान् ईसा को उपमा ठिदया करते हैं । भगवान् ‘ ’ बुद्ध की तरह गांधीजी ने भी मुझे बलिल चढा़ओ कहा । ईसामसीह सभी तरह के दलिलत और पपितत लोगों की सेवा करते थे । महारोपिगयों की सेवा करते थे । गांधी ऐसे ही सेवामूतc थे ।

चम्पारन का ही करूर्ण गम्भीर प्रसंग है । पिकसानों का सत्याग्रह चल रहा था । महात्माजी के सत्याग्रह में सभी भाग ले सकते थे । सैपिनक युद्ध में बन्दुक चला सकनेवाले ही काम आते हैं ।

लेपिकन जिजस प्रकार छोटे से लेकर बडे़ तक सब राम- नाम लेते हैं, उसी प्रकार सब अपने- अपने आत्मा के बल पर इसमें भाग ले सकते हैं । सत्याग्रह में तमाम लोग शामिमल हो सकते हैं । चम्पारन

की उस सत्याग्रही सेना में कुष्ठ- रोग से पीपिड़त एक खेपितहर मजदूर था । वह पैरों में लिचथडा़ लपेटकर चलता था । उसके घाव खुल गये थे । पैर खूब सूजे हुए थे । असह्म वेदना हो रही थी लेपिकन

आस्त्रित्मक शलिक्त के बल पर वह महारोगी योद्धा सत्याग्रही बना था ।      एक ठिदन शाम को सत्याग्रही योद्धा अपनी छावनी पर लJट रहे थे । उस महारोगी सत्याग्रही के

पैरों के लिचथडे़ रास्ते में पिगर पडे ़ । उससे चला नहीं जा रहा था । घावों से खून बह रहा था । दूसरे सत्याग्रही तेजी से आगे बढ़ गये । महात्माजी सबसे आगे रहते थे । वे बडे़ तेज चलते थे । दांडी- कूच

के समय भी साथ के 80 सत्याग्रही पीछे- पीछे सरकते चलते थे, लेपिकन महात्माजी तेजी से आगे बढ़ जाते थे । चम्पारन में भी ऐसा ही हो रहा था । पीछे छूट जानेवाले उस महारोगी सत्याग्रही का ध्यान पिकसीको नहीं रहा । आश्रम पहुँचने पर प्राथ,ना का समय हुआ । बापू के चारों ओर सत्याग्रही बै�े । लेपिकन बापूजी को

वह महारोगी ठिदखाई नहीं पडा़ । उन्होंने पूछताछ की ‘‘ । अन्त में पिकसी ने कहाः वह जल्दी चल नहीं सकता था । थक जाने से वह पेड़ के नीचे बै�ा था ’’। गांधीजी एक शब्द भी न बोलकर उ�े । हाथ में बTी लेकर उसे खोजने बाहर पिनकल पडे ़ । वह महारोगी राम- नाम लेते हुए एक पेड़ के नीचे परेशान बै�ा था । बापू के हाथ की बTी दीखते ही

उसके चेहरे पर आशा फूट पडी़ ‘। भरे गले से उसने पुकाराः बापू ’। ‘‘गांधीजी कहने लगेः अरे, तुमसे चला नहीं गया, तो मुझसे कहना नहीं चापिहए था ?’’ उसके खून से

सने पैरों की ओर उनका ध्यान गया । वह महारोगी था । दूसरे सत्याग्रही घृर्णा से पीछे हट गये । लेपिकन गांधीजी ने चादर फाड़कर उसके पैर को लपेट ठिदया । उसे सहारा देकर धीरे- धीरे आश्रम में उसके कमरे में ले आये । बाद में उसके पैर �ीक तरह से धोये । प्रेम से उसे अपने पास बै�ाया । भजन शुरू हुआ । प्राथ,ना हुई । वह महारोगी भी भलिक्त और प्रेम से ताली बजा रहा था । उसकी आँखे डबडबा रही थीं । उस ठिदन की प्राथ,ना पिकतनी गम्भीर और पिकतनी भावपूर्ण, रही होगी ।

ऐसे थे हमारे बापू ।26. सेवापरायर्ण बापू

गांधीजी जन्मजात वै थे। सेवा- टहल उन्हें बहुत भाता था। शुरू- शुरू में रोपिगयों की सेवा करना उनका ‘ ’ व्यसन बन गया था। आगे चलकर उन्हें अपने आध्यास्त्रित्मक पिवकास के लिलए यह आवश्यक लगा।      सन् 1920 की बात है । ठिदसम्बर का महीना था । गांधीजी ठिदल्ली में वाइसराय के साथ

बातचीत कर रहे थे । सत्याग्रह जारी था । हजारो सत्याग्रही जेल में थे । बाइसराय के साथ बातचीत के कई दJर चले। लेपिकन समझJते के आसार नहीं ठिदख रहे थे ।

      ‘ ’ यठिद समझJते की सम्भावना नहीं है, तो मैं यहाँ क्यों रहूँ ? एक- दूसरे का समय व्यथ, गँवाने से क्या लाभ ? झू�ी आशा पिकस काम की ? बात बनती नहीं है तो खुले तJर पर जनता से कह दें ’’ –।

गांधीजी ने वाइसराय से कहा ।      ‘‘ वाइसराय ने पूछाः यह सच है पिक सच्ची ज्जिस्थपित जनता के सामने रख देना पिहम्मत का काम है । आप पिफर सेवाग्राम कब जायेंगे ?’’

      ‘‘ बापू ने कहाः हो सके तो आज ही शाम को जाऊँगा। पिनत्तिश्चत ही मैं आपके अधीन हूँ । आपको मेरी जरूरत हो तो मैं रह सकता हूँ, जरूरत न हो, तो मुझे सेवाग्राम जाने ठिदजिजये। मेरा ठिदल

वहाँ है । वहाँ कई तो बीमार हैं । उनमें से बहुत सारे मेरे साथी हैं । मेरा सारा सुख उनके पास रहने में ह ै । सेवाग्राम जाने के लिलए मैं अधीर हूँ ?’’

27. बापू धोबी बने दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में सत्याग्रह चल रहा था । सैकडो़ सत्याग्रही जेल में थे । उनके परिरवार की व्यवस्था

टाँल्सटाँय फाम, में की गयी थी । कई बहने अपने बाल- बच्चों को लेकर वहाँ रहती थीं । गांधीजी को जब भी फुरसत मिमलती, इन बहनों को सान्त्वना ठिदया करते थे । उनका काम भी कर देते थे । एक ठिदन गांधीजी कपडा़ धोने पिनकलें । अलग- ‘‘ अलग बहनों के पास गये और बोलेः धोने के कपडे़

दो बहन ! मैं धोकर ला दँूगा। नदी जरा दूर है । आपके बच्चे छोटे हैं । टट्टी- पेशाब से सने सारे कपडे़ दे दो । दूसरे भी दो । शरमाओ नहीं । तुम्हारे पपित वहाँ सत्य के लिलए जेल में तपस्या कर रहे हैं ।

तुम्हारी पिफ[ हमें करनी चापिहए । लाओ। सचमुच दो ’’। संकोचशील माँ- बहनें ये शब्द सुनकर कपडे़ पिनकालकर देती थीं । उन कपडो़ की काफी मोटी ग�री

बाँधकर, पी� पर लादकर वह राष्ट्रपिपता नदी ले जाता था । वहाँ सारे कपडे़ ढंग से धोकर, धूप मेंसुखाकर, तह करके ला देते थे । ऐसे थे बापू! उनकी सेवा की सीमा नहीं थी ।

28. दरिरद्रनारायर्ण का उपासक अदन की बात है । गांधीजी ने यहीं से अपने साथ का बहुत-सा  सामान भारत लJटा ठिदया था । बम्बई से जहाज के खुलते ही गांधीजी सामान देखने लगे । पिकतना सारा सामान था !

‘‘बापू ने पूछाः महादेव, इन बक्सों में क्या है ? इतना सामान क्यों जमा हो गया ?’’‘‘ पिवलायत में �ण्ड अमिधक है । इसलिलए कईयों ने कपडे़ ठिदये है । कम्बल हैं, गरम कपडे़ हैं ‘ ’ । ना

कैसे कहा जाय ? यह एक कश्मीरी शाल है ’’ । महादेवभाई बडी़ आजिजजी से कहने लगे ।‘ ’ हम इतने सारे कपडे़ लेकर कैसे जाँय ? हम दरिरद्रनारायर्ण के प्रपितपिनमिध रूप में जा रहे हैं न ? येकपडे-़ लTे देफकर हमें कJन गरीब कहेगा ? मुझे तो कपडो़ की आवश्यकता नहीं है । बहुत �ण्ड

लगती हो तो कम्बल काफी है । तुम्हें जो बहुत जरूरी हो, वही रखो । बाकी सब लJटा दो । अब अदन आयेगा ’’।

महादेवभाई ने अदन में वह सारा बोझ उतार ठिदया ‘ । वहाँ के मिमत्रों से कहैः यह भारत लJटा देना ’’ । कमर पर पंलिछया पहनकर दरिरद्रनारायर्ण का प्रपितपिनमिध उस साम्राज्य की राजधानी के लिलए रवाना

हुआ, जहाँ सूय, कभी अस्त न होता था ।29. बे- घर बापू

सन् 1933-34 की बात है । गांधीजी का असृ्पश्यता- पिनवारर्ण सम्बन्धी दJरा चल रहा था । उडी़सा का प्रवास अभी- अभी पूरा हुआ था । उस प्रवास में कई दफा पैदल भी घूमना पडा़ था । बापू पैदल जाते थे । पैदल घूमना उन्हें बहुत पिप्रय था । उडी़सा में आन्घ्र में आये। यात्रा शुरू हुई । सत्यधम, की अमर वार्णी देशवालिसयों को सुनाई देने लगी । जगह- जगह खूब भीड़ होती थी । गाँवों से लाखों लोग आते थे । और महात्मा के दश,न करते थे ।

यह कJन आया है ? ‘‘ ’’ – महात्माजी से मुझे मिमलने दो कह रहा है । कJन है यह ? क्या काम है इसे ? वह क्या कोई सनातनी है ? क्या शास्त्राथ, करने आया है ? लेपिकन उसके चेहरे पर शास्त्राथ, की

वृत्तिT नहीं है । पिनगाहें कुछ और ही हैं । ‘‘ पूजा गयाः आपको क्या काम है ?’’

      ‘‘ क्षर्णमात्र के लिलए मुझे उनसे मिमलने दीजिजये । मैं एक उपहार लाया हूँ । वह महात्माजी के हाथों में मुझे देने दीजिजये ‘ ’ । ना नहीं पिकजिजये ’ । उस व्यलिक्त की पलकें भींगने लगीं । गांधीजी के पास

उसे ले जाया गया । एक खादी के रूमाल में लपेटकर वह गांधीजी का एक लिचत्र लाया था । बडा़ सुन्दर लिचत्र था । वह एक लिचत्रकार था । महात्मा का लिचत्र बनाकर उसने अपनी तूलिलका को पपिवत्र पिकया था ।

‘‘महात्माजी, यह आपका लिचत्र मैंने बनाया है । उपहार स्वीकार कीजिजये ’’ । चरर्ण- कमलों में प्रर्णाम करते हुए वह बोला ।

गांधीजी ने लिचत्र हाथ में लिलया । देखा ‘‘ । वापस लिचत्रकार के हाथ में देते हुए उन्होंने कहाः मैं इसे कहाँ ले जाऊँ ? मेरे पास न कोई घर है, न द्वार। बोझ क्यों बढा़ऊँ ? सामान क्यों बढा़ऊँ ? कहाँ

लगाऊँ ? यह लिचत्र ? कहाँ रखँू ? अब तो इस देह का बोझ भी बुरा लग रहा है । भाई, इसे अपने ही पास रख लो ’’। सब गम्भीर हो गये । गांधीजी के उदगार सुनकर मुझे तुकाराम के शब्द याद आते हैः  

30. मसहरी पिकतनों को मिमलती है ? आश्रम में मच्छर बहुत परेशान करते थे । गांधीजी को �ीक नींद नहीं आती थी ‘‘। पिकसीसे कहाः इन मच्छरों का क्या पिकया जाय ? रात में बडी़ तकलीफ होती है ’’।

‘‘ उस मिमत्र ने सुझायाः आप मसहरी लगा लीजिजये, बडा़ आसान उपाय है ’’। गांधीजी सोचने लगे ‘‘ । पिफर बोलेः मसहरीवाला उपाय मैं जानता हूँ । लेपिकन पिहन्दुस्तान में पिकतने

लोग मसहरी लगा सकते हैं ? जहाँ खाने को एक रोटी नहीं मिमलती, वहाँ मसहरी कJन लगा सकता है ? �ण्ड और गरमी से लाखों लोग देश में मर रहे हैं । लाखों गाँवों में गरीब लोग गरमी का त्रास

भोगते हैं । क्या उन सबके लिलए सुलभ है ? सम्भव है ?’’ आगे जाकर पिकसी ने बापू से कहा पिक मिमट्टी का तेल बदन पर लगा कर सोये, तो मच्छर पास नहीं

आते । बापू को खुशी हुई और पिफर मिमट्टी का तेल बदन पर लिचपुड़कर सोने लगे ।31. पिफजूलखच² का भय

गांधीजी छोटी-से- छोटी बात का भी बहुत ध्यान रखते थे । उनका सत्य का प्रयोग हर जगह चलताथा । गोलमेज- परिरर्षद् के समय की बात है । भोजन के वक्त वे थोडा़- सा शहद लेते थे । उस ठिदन

गांधीजी का जहाँ भोजन था, वहाँ मीराबहन हमेशा की शहद की बोतल साथ ले जाना भूल गयीं । खाने का समय होने लगा । मीराबहन को शहद की याद आयी । बोतल तो पिनवास पर छूट गयी । अब ? उन्होंने फJरन पिकसीको पास की दूकान तक दJडा़या और शहद की नयी बोतल मँगवा ली ।

गांधीजी भोजन करने बै�े । शहद परोसा गया । उनका ध्यान उस बोतल पर गया । ‘‘ उन्होंने पूछाः बोतल नयी दीखती है । शहद की वह बोतल नहीं ठिदखाई देती ’’।

‘‘हाँ, बापू ! वह बोतल पिनवास पर छूट गयी । इसलिलए यहाँ जल्दी में यह मँगा ली ’’ । मीराबहन नेडरते- डरते कहा ।

‘‘ कुछ देर गम्भीर रहने के बाद गांधीजी ने कहाः एक ठिदन शहद न मिमला होता, तो मैं भूखा थोडे़ ही रह जाता । नयी बोतल क्यों मँगायी ? हम जनता के पैसे पर जीते हैं । जनता के पैसे की पिफजूल

खचc नहीं होनी चापिहए ’’ ।32. कुता, क्यों नहीं पहनते ?

गांधीजी की हरएक बात हेतुपूव,क होती थी । उनके कपडो़ का फक, देखने लगें तो उनके जीवन की [ान्तिन्त समझ में आयेगी । जब वे बैरिरस्टर थे, तब एकदम यूरोपिपयन पोशाक थी । बाद में वह गयी ।

अफ्रीका में सत्याग्रही पोशाक थी । भारत लJटे, तब काठि�यावाडी़ पगडी़, धोती पहनते थे। लेपिकन जब देखा पिक एक पगडी़ में कई टोपिपयाँ बन सकती है, तब टोपी पहनने लगे । इसी टोपी को हम गांधी टोपी कहते हैं । पिफर कुता, और टोपी का भी त्याग पिकया, केवल एक पंलिछया पहनकर ही वह

महापुरूर्ष रहने लगा । यह पंलिछया पहनकर ही वे लन्दन में सम्राट पंचम जाज, से मिमलने राजमहलगये । इससे चर्थिच(ल साहब नाराज हो गये । महात्माजी की आत्मा गरीब-से- गरीब लोगों से एकरूप

होने के लिलए छटपटाती रहती थी । एक बार गांधीजी एक स्कूल देखने गये । हँसी- मजाक चल रहा था । एक लड़का कुछ बोला ।

लिशक्षक ने उसकी तरफ गुस्से से देखा ‘‘ । गांधीजी उस बच्चे के पास गये और बोलेः तूने मुझे बुलाया ? क्या कहना है तुझे ? बोलो, डरो मत ’’।‘‘ आपने कुता, क्यों नहीं पहना ? मैं अपनी माँ से कहूँ क्या ? वह कुता, सी देगी । आप पहनेंगे न ?

मेरी माँ के हाथ का कुता, आप पहनेंगे ?’’‘‘ जरूर पहनँूगा । लेपिकन एक शत, है बेटा ! मैं कोई अकेला नहीं हूँ ’’।‘‘ तब और पिकतने चापिहए ? माँ दो सJ देगी ’’।‘‘बेटा, मेरे 40 करोड़ भाई- बहन हैं । 40 करोड़ लोगों के बदन पर कपडा़ आयेगा, तब मेरे लिलए भी

कुता, चलेगा । तुम्हारी माँ 40 करोड़ कुतf सी देगी ?’’ महात्माजी ने बच्चे की पी� थपथपायी । वे चले गये । गुरूजी और छात्र अपनी आँखों के सामने राष्ट्र

के दरिरद्रनारायर्ण को देखकर स्तश्किम्भत हो गये । महात्माजी राष्ट्र के साथ एकरूप हुए थे । वे राष्ट्र की माता थे !

33. गहरा आघात सन् 1933-34 के बीच का समय था । असृ्पश्यता- पिनवारर्ण के हेतु महात्माजी का उपवास समाप्त हुआ था । उपवास के बाद बापूजी ने देशभर में प्रवास पिकया । वह महापुरूर्ष सब जगह यह कहता पिफरा पिक अस्पृश्यता मिमटाओ, मजिन्दर और घर के द्वार खोल दो । महापुरूर्ष धम, को बार- बार पिनम,ल

रूप देते रहते है । महात्माजी उस समय समस्या के साथ मानो तन्मय हो गये । असृ्पश्यों को उन्होंने‘ ’ हरिरजन नाम ठिदया । मानो वे कहने लगे पिक वे हरिर के जन हैं, प्रभु के प्यारे हैं । क्योंपिक जिजने मनुप्य

दूर करता है, उसे ईश्वर अपनाता है । उन ठिदनों गांधीजी को ऐसे ही सपने आते थे पिक हरिरजनों के लिलए अमुक मजिन्दर खुल गया, अमुक

कँुआ खुल गया आठिद । असल में उन्हें गहरी नींद आती थी । लेपिकन उनके मन में हमेशा अस्पृश्यता- पिनवारर्ण ही बसा हुआ था । एक ही लिचन्ता लगी थी ।

प्रवास करते- करते उडींसा आये । प्रलिसद्ध सप्त पुरिरयों में से एक जगन्नाथपुरी इसी प्रान्त में है । देशभर के यात्री यहाँ आते हैं । वहाँ नJ बडे-़ बडे़ हण्डों में प्रसाद चढ़ता है । जगन्नाथ का प्रलिसद्ध रथ

कJन नहीं जानता ? कई ऐसे भी श्रद्धालु हो गये हैं, जिजन्होंने मोक्ष पाने की आशा से रथ के नीचे आकर शरीर त्यागा है । जगन्नाथपुरी के पास समुद्र भी अपित सुन्दर है । नीला, गम्भीर सागर । यहीं

तो बंगाल के महान् भक्त चैतन्य महाप्रभु समुद्र देखकर देह की सुध- बुध खो बै�े थे । वह नीला-नीला सागर देखकर चैतन्य को लगा पिक सामने साक्षात् भगवान् कृष्र्ण ही हैं । और वे उसमें घुस गये । उस

जगन्नाथपुरी में बापू आये । महात्माजी ने अस्पृश्यता- ‘‘ पिनवारर्ण के सम्बन्ध में यह सन्देश ठिदयाः धम, तो सबको जोड़नेवाला होता

ह ै । यठिद हम अपने ही भाई- बहनों को दूर रखते हैं, तो ईश्वर भी दूर रह जाएगा । पिकसीको नीच नमापिनये । सब प्रभु की सन्तान हैं । भेद करना पाप है । असृ्पश्यता रहती है तो सच्चा धम, नहीं रहेगा ।

स्वराज्य भी नहीं होगा ’’। महात्माजी के साथ कस्तूरबा थीं, महादेवभाई थे । सांयकालीन सभा हुई । प्राथ,ना हुई । महात्माजी

आराम कर रहे थे । कस्तूरबा को जगन्नाथ के दश,न करने की इच्छा हुई । वे महादेव भाई से बोलीः‘‘ तुम चलोगे मेरे साथ ? – चलो, हम प्रभु के दश,न कर आयें । वह पावन मजिन्दर देख आयें ’’।

महादेवभाई कस्तूरबा के साथ गये । दोनों मजिन्दर गये । कस्तूरबा प्रभु के आगे काफी देर खडी़ रहीं । दोनों लJट आये । महात्माजी को मालूम हुआ पिक महादेव और कस्तूरबा दोनों मंठिदर गये हैं ।

महात्माजी बेचैन हुए । उन्हें कुछ सूझता ही नहीं था । ठिदल धड़कने लगा । बहुत अस्वस्थ हो गये । इतने में कस्तूरबा आयीं, महादेवभाई आये ।

‘‘ तुम लोग मजिन्दर कैसे गये । मैं अपने को हरिरजन- अस्पृश्य मानता हूँ । जहाँ हरिरजनों को मनाही है, वहाँ हम लोग कैसे जा सकते हैं ? मैं औरों को माफ कर देता, लेपिकन तुम लोग तो मुझसे एक- रूप

हो गये हो । तुम्हीं लोग मजिन्दर हो आये । जहाँ हरिरजन जा नहीं सकते, वहाँ हो आये । लिछः ! मैं यह कैसे सहन करँू ? अपनी वेदना पिकससे कहूँ  ? तुम लोग मजिन्दर गये, तो मानो मैं ही गया । क्योंपिक

’’ मेरे साथ के लोगों को देखकर ही मेरी भी परीक्षा की जाती है ।      बापू से बोला नहीं जा रहा था । जोर से ठिदल धड़क रहा था । नाडी़ तेज चलने लगी।

महादेवभाई परेशान हुए । महात्माजी के तो मानो प्रार्ण गले में अटकने लगे । कस्तूरबा और महादेवभाई को यह कल्पना नहीं थी पिक परिरर्णाम इतना भयानक होगा । लेपिकन अब क्या हो  ?

डाँक्टर दJड़- धूप करने लगे । कस्तूरबा प्राथ,ना करने बै�ीं । महादेवभाई की जबान बन्द हो गयी ।      धीरे- धीरे महात्माजी का मन शान्त हुआ । नाडी़ �ीक हुई । ठिदल की धड़कन कम हुई । वे शान्त

‘‘ पडे़ हुए थे । अनथ, टल गया। जीवनदान मिमला । महादेवभाई लिलखते हैः सन्तों की सेवा करना, उनके साथ रहना बहुत कठि�न है । कब क्या हो जाय, ’’कोई ठि�काना नहीं है ।

      महात्माजी कई मामलों में बडे़ भावुक थे ।34. भूल का अनोखा प्रायत्तिश्चत

नागपुर के आसपास असृ्पश्यता-पिनवारर्ण- सम्बन्धी दJरा हो रहा था । एक ठिदन क्या हुआ  ? महात्माजी का हाथ पोंछनेवाला रूमाल काम की भीड़ में कहीं पिपछले पडा़व पर छूट गयाः शायद

सूखने के लिलए फैलाया था, वहीं रह गया। महात्माजी को रूमाल की जरूरत पडी़ । महादेवभाई से ‘‘ ’’ माँगा । उन्होंने कहाः खोज लाता हूँ । महादेवभाई ने बहुत खोजा । रूमाल मिमला नहीं । बापू से कैसे कहा जाय पिक रूमाल खो गया  ? आखिखर महादेवभाई ने आकर कहाः

‘‘बापू, ’’रूमाल पीछे छूट गया । शायद कहीं खो गया। मैं दूसरा ला देता हूँ । बापू कुछ देर तक बोले नहीं । पिफर पूछाः

‘‘ वह पिकतने ठिदन तक चलता ?’’‘‘ ’’चार महीने और चलता ।‘‘ तो पिफर मैं चार मपिहने पिबना रूमाल के ही चलाऊँगा। भूल का यह प्रायत्तिश्चत है। बाद में दूसरा

’’ रूमाल लेंगे । महादेवभाई क्या बोलते ?35. बापू की उदारता

श्री घनश्यामदास पिबड़ला और गांधीजी में बडा़ आत्मयीय सम्बन्ध था ‘ ’ । पिबड़लाजी ने बापू नामक ‘‘ एक पुस्तक भी लिलखी है । एक बार पिबड़लाजी पिबमार थे । बापू ने उन्हें लिलखाः सेवाग्राम आइये ।

’’ इलाज करँूगा । राजेन्द्रबाबू, सरदार, नरेन्द्रदेव आठिद न जाने पिकतने लोगों की सेवा उन्होंने सेवाग्राम में की और उनके इलाज का प्रबन्ध पिकया । सबके प्रपित उनका समभाव था । बडे़ नेता हों, पूँजीपपित हों, छोटा बच्चा हो और चाहे पिकसी पक्ष का हो । सबसे वे प्रेम करते थे । चाहे राजमहल

हो, चाहे झोपडी़ सूय, की पिकरर्णें सब जगह समान रूप से पहुँचती हैं । महात्माजी पिबड़लाजी को बुलाते थे, लेपिकन पिबड़लाजी संकोच करते थे । सेवाग्राम में भंगी नहीं है ।

सारे आश्रम के ही लोग भंगी- काम करते हैं । और पिबड़लाजी जहाँ रहनेवाले थे, उस जगह की सफाई और वहाँ के आरोग्य की जिजम्मेदारी महादेवभाई पर आनेवाली थी । पिबड़लाजी को भंगी- काम पसन्द नहीं था । और उनकी पखाना- सफाई महादेवभाई करें, यह बात उन्हें सहन नहीं होती थी । इसलिलए

वे आते नहीं थे  ।

लेपिकन गांधीजी से उनका पाला पडा़ । ‘‘ बापू ने कहाः आइये तो एक बार सेवाग्राम । आपको �ीक कर दँूगा । अपना इलाज शुरू करँूगा

’’। पिबड़लाजी ने अपनी अड़चन बतायी । महादेवभाई को हँसी आयी । गांधीजी भी हँसे । लेपिकन

गांधीजी पिकसी पर कोई बात लादते नहीं थे । दूसरों की भावना को पहचानते थे और उसकी कद्र ‘‘ करते थे। बापू ने कहाः आप आइये, ’’आपके लिलए कुछ ठिदन तक भंगी रखा जायगा ।

तब पिबड़लाजी आये। कुछ ठिदन के लिलए एक पिवशेर्ष भंगी का प्रबन्ध पिकया गया था । ऐसे थे सबको पिनभानेवाले बापू !

36. भूल कबूलने की पिहम्मत सन् 1921 में ही बारडोली का आन्दोलन होनेवाला था । लेपिकन वह हुआ 1927 में । भला

1921 में क्यों नहीं हुआ ? तैयारी हो गयी थी । देशव्यापी सत्याग्रह शुरू करने से पहले महात्माजी एक तहसील में प्रयोग करनेवाले थे । वहाँ स्वराज्य की घोर्षर्णा करनेवाले थे । यह पिनश्चय करने वाले

थे पिक सरकार की हम नहीं मानेंगे । इसके लिलए उन्होंने बारडोली तहसील को पसन्द पिकया था । देशभर में पिबजली जैसा वातावरर्ण था । पि�ठिटश हुकूमत को न मानने का समुदामियक प्रयोग ! देशबनु्ध लिचTरंजन दास जेल में थे । स्वयंसेवकों का संग�न गैर कानूनी करार ठिदया था। हजारों

युवक जेल में थे । चन्द्रशेखर आजाद को जानते हो न ? वही, जो इलाहाबाद के बगीचे में पुलिलस के साथ लड़ते- लड़ते शहीद हुए थे ! यह सन् 1921 की बात है । वह केवल 15 साल का युवक था ।

‘ ’ लेपिकन उसे तब कोडे़ लगाये गये । वह बालक चन्द्रशेखर प्रत्येक कोडे़ पर महात्मा गांधी की जय गरजता था ! ऐसा वह सन् 1921 का वर्ष, था । लेपिकन जहाँ देशभर में पिबजली का- सा वातावरर्ण था, वहाँ युक्त प्रान्त ( उTर प्रदेश) के चJरीचJरा नामक स्थान पर दंगे हुए । पुलिलस वगैरह को जला ठिदया गया । लोग प्रकु्षब्ध थे और महात्माजी व्यलिथत । गांधीजी पिवशेर्ष आग्रह के साथ कहते थे पिक बारडोली का आन्दोलन यठिद सफल करना है

तो सारे देश को शान्त रहना चापिहए, कहीं कोई अत्याचार नहीं होना चापिहए । बारडोली- आन्दोलन के ‘ पिवर्षय में उन्होंने वाइसराय को पत्र लिलखा था । लेपिकन चJरीचJरा की खबर मिमली । गांधीजी ने

‘ ’ आन्दोलन स्थपिगत कर ठिदया । चJरीचJरा खतरे का संकेत है । देश शान्त नहीं रह सकता । मुझे आन्दोलन छेड़ना नहीं चापिहए । इस आशय का एक लेख गांधीजी ने लिलखा। वह एक क�ोर आत्म-

परीक्षर्ण था, राष्ट्र- ‘ ’ परीक्षर्ण था पिवद्दनु्मय राष्ट्र गांधीजी का पिनर्ण,य सुनकर हताश हुआ । केशरी पत्र ‘ ’ अपने अग्रलेख में लिलखाः बारडोली का वार खाली गया । पिकसीने कहा पिक देश का तेजोभंग करना

पाप है। देशबन्धु जेल के अन्दर गुस्से लाल हो गये । उन्होंने इसे गांधीजी की भयंकर भूल कहा । लेपिकन वह महापुरूर्ष शान्त रहा । गांधीजी अपिवचलिलत रहे ।

एक बार पिकसी ने गांधीजी से पूछाः आपके जीवन में सबसे महत्त्व का ठिदन कJन- सा है ? कJन- सा ठिदन आपको बडा़ लगता है ?’’ उन्होंने जवाब ठिदयाः सारे राष्ट्र के पिवरोध के बावजूद बारडोली का

आन्दोलन जिजस ठिदन मैंने स्थपिगत पिकया, उस ठिदन को मैं बडा़ मानता हूँ । पीछे हटने का वह ठिदवस, लेपिकन वह सत्याग्रही की दृमिष्ट से पिवजय- ’’ ठिदवस था। वह अहिह(सा की जीत थी ।

लोगों को वह ठिदन पराजय का ठिदन दीखता था, वही महात्माजी को पिवजय का ठिदन लगा ।37. वज्र से क�ोर

सन् 1926 की बात है । गांधीजी साबरमती- आश्रम में रहते थे । और भारत के महान् सेवक दीनबन्धु एण्ड¶ज भी उस समय वहीं थे । दीनबनु्ध का हृदय वास्तव में दया- लिसन्धु था । दूसरों का

दूःख देखते ही उनकी आँखें भर आती थीं । गांधीजी भी प्रेमसागर थे, लेपिकन समय आने पर वेकत,व्य- पिनषु्ठर हो जाते थे । कभी- कभी तो क�ोरता के साथ पिकये गये इनकार में ही अपार करूर्णा

होती है ।

एक बार मलाबार की ओर का एक कांगे्रस कमेटी का मन्त्री बापूजी के पास आया । उसकी कहानी बडी़ करूर्णाजनक थी । उसने साव,जपिनक कोर्ष से बहुत- सा धन लोक- सेवा में ही खच, पिकया ।

लेपिकन पिहसाब न रखने के कारर्ण सारा जमा- खच, �ीक से पेश नहीं कर सकता था । हजार- एक रूपयों की बात थी उसने अपने लिलए तो एक भी पैसा खच, पिकया नहीं था । लेपिकन स्थानीय

‘‘काय,कारिरर्णी समिमपित के लोगों ने कहाः जमा- खच, पेश करो, ’’ पैसे भरो ।‘‘ ’’ इतनी रकम कहाँ से दँू‘‘ हम क्या बतायें । साव,जपिनक पैसे का पिहसाब �ीक- ’’ �ीक रहना चापिहए ।‘‘ बापूजी के पास जाता हूँ । वे कह दें, तब तो मानेंगे ?’’ ‘‘हाँ, ’’ मान लेंगे ।

‘‘वह मन्त्री बापूजी के पास पहुँचा। गांधीजी के सामने सारी हकीकत रखी । उसने कहाः बापू, मैं स्कूल की नJकरी छोड़कर सेवा के लिलए अपने को समर्तिप(त कर चुका हूँ । मैंने एक पैसा भी अपने

’’ लिलए काम में नहीं लिलया है ।‘‘ यह सच हो सकता है । लेपिकन आपको पैसे भरने चापिहए । साव,जपिनक काम में व्यवज्जिस्थतता

’’ जरूरी है ।‘‘ लेपिकन अब क्या हो ?’’ ‘‘ पैसा भरना ही एक उपाय हो ?’’

‘‘वह युवक रोने लगा। पास ही दीनबनु्ध थे । वे दुःखी हुए । बोलेः बापू, जो पछता रहा है, उससे इतनी क�ोरता से क्यों बोलते हैं ?’’

‘‘ बापू ने कहाः पश्चाताप केवल मन में होने से क्या लाभ ? दोर्ष का परिरमाज,न हो, तो ही कहा जा सकेगा पिक वास्तपिवक पश्चाTाप हुआ । यह कुछ नहीं। इस युवक को अपनी भूल सुधारनी चापिहए । ’’जनसेवा है यह ।

38. वचन- पालन महापुरूर्ष सत्याव्रती होते हैं । जो वचन ठिदया, ‘ उसे पालते ही है । इसीलिलए रामचन्द्र को हम एक

’ बात बोलनेवाला कहते हैं ।‘ ’ रघुकुल रीपित सदा चलिल आई । प्रान जाय पर बरू बचन न जाई ।

ऐसी थी रघुकुल की मपिहमा । श्री रामकृष्र्ण परमहंस मुँह से जो शब्द पिनकलता, उसे सत्य ही मानते ‘ ’ ‘ ’ थे । कोई कहता पिक दूध लीजिजये और इनके मँुह से यठिद नही पिनकल पड़ता, तो परमहंस दूध लेते

नहीं थे । जो शब्द उच्चारिरत हुआ, उसे कैसे झु�लायें ? उसे व्यथ, कैसे होने दें ? महापुरूर्ष ऐसी तीव्रता से सत्य की उपासना करते हैं । ‘ ’ गांधीजी भी ऐसा ही कहते थे । कलकTे का मालिसक माडन, रिरवू्य पिवश्वपिवख्यात पत्र है । उसके सम्पादक रामानन्द चटजc अब संसार में नहीं हैं । उनके जीवन- काल की यह घटना है। सन् 1930

की बात है । श्री रामानन्दजी ने मालिसक पत्र के लिलए गांधीजी से कुछ लिलखने को कहा था । ‘‘ गांधीजी ने कहाः मुझे समय कहाँ मिमलता है ?’’

‘‘ ’’ चार ही पंलिक्त भेजिजयेगा ।‘‘ ’’ �ीक है । कभी त्तिभजवा दँूगा ।

गांधीजी के लिसर पर सम्पूर्ण, राष्ट्र का भार था । लाहJर की कांग्रेस हुई । स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास हुआ । गांधीजी ने वाइसराय के सामने ग्यारह माँगें रखीं, जो काफी प्रलिसद्ध हैं । सरकार ने इन्कार पिकया । गांधीजी इस पिवचार में व्यस्त थे पिक स्वतन्त्रता का देशव्यापी आन्दोलन शुरू पिकया जाय।

‘ ’ ‘उन्हें नमक नजर आया । तय हुआ पिक नमक- ’ कानून को भंग पिकया जाय। वे आश्रम से पिनकल पडे़ पैदल यात्रा, मुलाकातें, प्राथ,ना सभा वगैरह खूब काम रहते थे । लेपिकन उस बीच भी गांधीजी ‘‘ ’ कहा करते थे पिकः माँडन, रिरव्यू के लिलए लेख भेजना तय पिकया है, कब समय पिनकालूँ ?’’  रोज

उन्हें अपने वचन का स्मरर्ण होता था । आखिखर एक ठिदन एक छोटा- सा लेख उस राष्ट्रपुरूर्ष ने लिलख भेजा ।

उस लेख का बडा़ अजीब हाल हुआ । वह छोटा- सा लेख उस पपित्रका- काया,लय में जाने कहाँ धरा ‘‘ रह गया । श्री रामानन्दजी का दुबारा पत्र आया । महात्माजी ने पत्र में लिलखाः लेख भेज ठिदया गया

’’ है । खोजबीन हुई, आखिखर रद्दी की टोकरी में लेख पडा़ मिमला। वह अमूल्य रचना मिमल गयी । श्री ’’ रामानन्दजी ने महात्माजी को पत्र लिलखकर क्षमायाचना की ।

39. सफाईः ज्ञान का पहला पा� गांधीजी अफ्रीका के सत्याग्रह में सफलता प्राप्त कर पिहन्दुस्तान लJट आये थे । अपने गुरू श्री गोखले

के कथानानुसार वे समुचे देश में घूम रहे थे । युक्तप्रान्त ( उTर प्रदेश) में घूमते समय पिबहार के कुछ लोग उनसे मिमले । पिबहार के चम्पारन में गोरे जमींदारों ने भारी जुल्म मचा रखा था । पिबहार के लिशष्ट-

मण्डल के लोगों ने कहाः‘‘गांधीजी, आप आइये, ’’हमें रास्ता ठिदखाइये ।

‘‘ ’’गांधीजी बोलेः मैं जरूर आऊँगा । लेपिकन आप लोगों को मेरी बात माननी होगी । ‘‘ उन्होनें स्वीकार पिकयाः जैसा आप कहेंगे, ’’हम वैसा ही करेंगे ।

‘‘ ’’जेल जाने की तैयारी रखेंगे ।‘‘जी, ’’हाँ ।

बात तय हो गयी और कुछ ठिदनों बाद चम्पारन के सत्याग्रह के लिलए वे दJड़ पडे़ । श्री राजेन्द्रबाबू वगैरह पिबहार के सत्याग्रही लोग उसी समय पहले- पहले गांधीजी से मिमले । पिकसानों का काम तो

शुरू हुआ, लेपिकन गांधीजी को सारी जनता के अन्दर चेतना जगानी थी । कई साथी स्वयंसेवकों से ‘‘ ’’ उन्होंने कहा पिक आप लोग देहातों में जाँय और पिकसानों के बच्चों के लिलए स्कूल चलायें ।

‘‘ कस्तूरबा भी चम्पारन गयी थीं । एक ठिदन गांधीजी ने उनसे कहाः तुम क्यों कोई स्कूल नहीं शुरू करती ? पिकसानों के बच्चों के पास जाओ, ’’उन्हें पढा़ओ ।

कस्तूरबा बोलीः मैं क्या लिसखाऊँ ? उन्हें क्या मैं गुजराती लिसखाऊँ ? अभी मुझे पिबहार की पिहन्दी ’’आती भी तो नहीं ।

‘‘ बात यह नहीं है । बच्चों का प्राथमिमक लिशक्षर्ण तो सफाई का है । पिकसानों के बच्चों को इकट्ठा करो । उनके दाँत देखो। आँखे देखो । उन्हें नहलाओ । इस तरह उन्हें सफाई का पहला पा� तो लिसखा

सकोगी । माँ के लिलए यह सब करना कठि�न थोडे़ ही है । यह करते- करते उनके साथ बातचीतकरोगी, तो वे भी तुमसे बोलेंगे । उनकी भार्षा तुम्हारी समझ में आने लगेगी और आगे जाकर तुम

’’उन्हें ज्ञान भी दे सकोगी । लेपिकन सफाई का पा� तो कल से ही उन्हें देना शुरू करो । कस्तूरबा अगले ठिदन से वही करने लगीं, बालगोपालों की सेवा का असीम आनन्द लूटने लगीं । गांधीजी सफाई को ज्ञान का प्रारम्भ मानते थे ।

40. बुद्ध का अवतार हमारा देश एक बडा़ अजायबघर है । यहाँ संस्कृपित की प्रत्येक श्रेर्णी के नमूने ठिदखाई देते हैं । जिजस

गाँव में ज्ञानस्वरूप परमात्मा की उपासना करनेवाला संन्यासी होगा, उसी गाँव में मुगc और बकरी की बलिल चढा़नेवाले लोग भी मिमलेंगे । गाँव में माता पिनकली तो वे बकरी का जुलूस पिनकालकर उसे

जिजन्दा ही गाड़ देते हैं । इस तरह बकरी को गाड़ने से कहीं हैजा दूर होगा ? माता तो स्वच्छता रखने से दूर होती है । हमलोग अज्ञान और रूठिढ़यों के लिशकार हैं ।

चम्पारन की बात है । एक ठिदन शाम को एक जुलूस पिनकल रहा था। हो- हल्ला हो रहा था । गांधीजी ‘‘ ने साथी काय,कता, से पूछाः यह आवाज काहे की है ? जुलूस कैसा ?’’ वह बोल नहीं पा रहा था। वह बलिल चढ़ाने के लिलए बकरी का जुलूस पिनकला था । महात्माजी उ�े । जुलूस में शामिमल हो गये।

माला पहनायी गयी । बकरी के साथ चलने लगे । जुलूस देवी के मजिन्दर के पास आया। महात्माजी उस बकरी के साथ थे । उन्होंने पूछाः

‘‘ बकरी पिकसलिलए बलिल चढा़यी जा रही है ?’’ ‘‘ ’’ इसलिलए पिक देवी प्रसन्न हो ।‘‘ बकरी से आदमी श्रेष्ठ है । मनुष्य की बलिल देने से देवी अमिधक प्रसन्न होगी। देखो, क्या ऐसा कोई

आदमी तैयार है ? ’’ नहीं तो मै तैयार हूँ । ‘‘ पिकसीसे बोल पिनकल नहीं रहे थे । सब गँूगे हो गये थे । बापू बोलेः गँूगे जानवर के खून से क्या देवी

प्रसन्न होती है? यठिद वह प्रसन्न होती हो तो अपना अमिधक मूल्यवान् रक्त दो । वह क्यों नहीं देते ? यह तो धोका है, ’’ अधम, है । ’’ आप हमें धम, समझाइये ।

‘‘ सत्य पर चलो । प्रात्तिर्णमात्र पर प्रेम करो । वह बकरी छोड़ दो। आज यह जगदम्बा आप लोगों पर जिजतनी प्रसन्न हुई होगी, ’’ उतनी इससे पहले कभी न हुई होगी ।

सब लोग लJट गये । भगवान् बुद्ध ने 2600 वर्ष, पहले एक यज्ञमण्डल में जो पिकया था, वही महात्माजी ने 1916-17 में पिकया । महात्माजी प्रेम की प्रपितमूर्तित( थे ।

41. चरखे के व्यामोहक डर गांधीजी को हमेशा यही लिचन्ता रहती थी पिक देश के दरिरद्रनारायर्ण को पेटभर अन्न कैसे मिमले । इस

देश में करोंडो़ लोग बेकार हैं। उन्हें घर में ही कोई रोजगार दें, तो क्या दें ? पिवचार करते- करते उन्हें चरखा भगवान् के दश,न हुए । उनके भतीजे श्री मगनलालभाई ने सब जगह घूम- घामकर गांधीजी

को चरखा ला ठिदया । गांधीजी का पक्का पिवश्वास था पिक देश में पिफर एक बार चरखे की घर,- घर, सभी जगह शुरू हुए पिबना पिनस्तार नहीं है । उससे लोगों को तत्काल रोटी दे सकते हैं, कभी आना-दो आना दे सकते हैं । वर्षा, की बँूद पड़ते ही सारी धरती हरी हो जाती है, उसी तरह चरखे से थोडा़- थोडा़ मिमलता जाय, तो भी घर में कुछ राहत मिमल सकती है । यही सब वे सोचते थे। तब चरखा और खादी का प्रचार शुरू हुआ । उडी़सा में इतनी गरीबी है पिक सचमुच जब चरखे से दो पैसे मिमलने लगें

तो लोगों की आँखें कृतज्ञता से भर आयीं । चरखे ने देश में कहाँ- कहाँ पिकतनी आशा की ज्योपित जगायी है, हमें पता नहीं चलता । चरखे के और भी उपयोग हैं ही । हमारे कातने से श्रम की प्रपितष्ठा

बढ़ती है । हम श्रम करनेवालों से एकरूप होते हैं । मन में पिनम,लता आती है । एकाग्रता आती है । एक प्रकार का प्रशान्त आनन्द महसूस होने लगता है ।

‘‘ कना,टक के हुबली गाँव में गांधी सेवा संघ का अमिधवेशन था । उसमें गांधीजी बोलेः मैंने अपने ’’ भगवान् का नाम चरखा रखा है । गहरा उदगार था । भारी श्रद्धा थी । ईश्वर के अनन्त नाम हैं ।

चरखा खाना देता है, सहारा देता है, स्वात्तिभमान लिसखता है । इसलिलए चरखा ईश्वर के महान् उपासक थे ।

एक बार बोलत- बोलते गांधीजी ने कहाः मैं कहीं इस चरखे की आसलिक्त में फँस तो नहीं जाऊँगा ? कहीं ऐसा न हो जाय पिक मरते समय राम- ’’ नाम के बजाय मुँह से चरखे का नाम पिनकल जाय । ‘‘पास में ही जमनालालजी बजाज बै�े थे । बोलेः बापू, आप चिच(ता न कीजिजये । चरखे की पिफ[ ’’ छोड़ दीजिजये । उसे जनता मरने नहीं देगी ।

गांधीजी का स्मरर्ण कर हम रोज कुछ कात लें तो पिकतना अच्छा हो। पूज्य पिवनोबाजी ने कहाः‘‘ ’’ महात्माजी की मूर्तित( खादी में है । सच है न ?

42. दुब,लता का लाभ उ�ाना पाप है पिपछली बार जब गांधीजी आगाखाँ- महल में, तब उनके साथ उनके परिरवार के लोग भी । सरोजिजनी

नायडू भी थीं । आगाखाँ- महल के चारों ओर एक बडा़ मैदान था । वहीं बापू शाम के समय घूमते थे । शुरू के कुछ ठिदन सुबह- शाम इस मैदान में घूमना हो इन लोगों का मनोंरजन था ।

कुछ ठिदनों बाद सरकार ने उसे मैदान में इन लोगों के खेलने की सुपिवधा कर दी । इन लोगों को बैडमिम(टन बहुत था । खासकर सरोजिजनीदेवी को वह खेल बहुत पिप्रय था ।

खेल के सामान आये । खेल का खास स्थान छील- छालकर साफ पिकया गया । सारी तैयारी होने के बाद सरोजिजनीदेवी खेलने के लिलए मैदान में उतरी । गांधीजी हमेशा के अपने व्रत ज्यों के त्यों चला

रहे थे । महल के बरामदे में सूत कातते हुए बै�े थे । उनकी दृमिष्ट सरोजिजनीदेवी की तरफ गयी । उन्होंने कहाः

‘‘ क्यों सरोजिजनी ! अकेली खेलोगी ? मुझे साथ में लोगी ?’’ ‘‘वे बोलीः बापू, मुझे क्या, चाहे जब आपको ले सकती हूँ । लेपिकन आप खेलना जानते तो हैं न ?’’

‘‘ बापू ने कहाः वाह ! उसमें कJन- सी बडी़ बात है ? तुम जैसा खेलोगी, वह देखकर मैं भी खेलँूगा’’ । यह कहकर बापू सचमुच खेलने नीचे उतर आये । जिजसे हमेशा यह पिफ[ हो पिक अपने पीछे राष्ट्र में क्या हो रहा है, वह महापुरूर्ष खेलने आया । हो सकता है पिक पिपछले ठिदन ही इस राजनैपितक

महापुरूर्ष ने वाइसराय को कोई महत्त्वपूर्ण, पत्र लिलखा हो, लेपिकन अब वह सारी लिचन्ता, व्यवहार सब भूलकर खेल में रमने लगा ।

ज्यों ही बापू आये । सरोजिजनीदेवी खेलने के लिलए गेंद उ�ाकर आयीं तो देखती हैं, बापू बायें हाथ में ‘‘रैकेट लिलए खेलने की मुद्रा में खडे़ हैं । सरोजिजनीदेवी खूब हँसने लगीं और बोलीः बापू, आप यह

भी नहीं जानतें पिक रैकेट पिकस हाथ में पकड़ना है, और चले हैं खेलने ?’’ ‘‘ बापू ने कहाः मेरा क्या दोर्ष ? तुमने बायें हाथ में रैकेट लिलया है, तो मैंने भी लिलया । तुम जैसा

करोगीं, वैसा ही मैं करँूगा ?’’ ‘‘ तब जाकर सरोजिजनीदेवी के ध्यान में बात आयी । वे बोलीः मेरा दापिहना हाथ दुखता है, इसलिलए मैं ’’ बायें हाथ से खेलती हूँ । आप तो दायें हाथ से खेलिलये ।

महात्माजी ने हाथ बदल लिलया । गेंद इधर उड़ने लगी। इतने में सरोजिजनीदेवी ने खेल रोका । पूछाः‘‘ यह क्या बापू ? ’’ पिफर बायें हाथ से खेलने लगे ।

सचमुच बापू पिफर बायें हाथ से खेल रहे थे । बोलेः‘‘ जी हाँ ! मैं तो बायें हाथ से ही खेलँूगा । वरना मैं जीत जाऊँ तो तुम कहोगी पिक दायें हाथ से

खेलते रहे, ’’ इसलिलए जीते । गांधीजी का पिवनोद सुनकर खेल देखने के लिलए एकत्र सारे लोग हँसने लगे । पिफर खेल शुरू हुआ ।

राष्ट्र की और मानवता की लिचन्ता ढोनेवाला महापुरूर्ष अनेक बार खेल और पिवनोद में भी लीन हो जाता था । 75 वर्ष, के इस बूढे़ में 25 वर्ष, के युवक जैसा खेलने का उत्साह अक्सर ठिदखाई देता था

।43. नमक हो अलोना हो जाय तो ?

गांधीजी लिलये हुए व्रत को कभी तोड़ते नहीं थे । उनके परिरवार के लोगों से उन्हें ऐसा ही संस्कार मिमला था । गांधीजी ने अनेक प्रकार के व्रत लिलये थे । लेपिकन सूत- कताई के व्रत के प्रपित उनका पिवशेर्ष पे्रम था। चाहे जिजतना काम हो, बडे-़ बडे़ लोगों की मुलाकातें हों, कांगे्रस की बै�क हो, चचा,

हो, लेपिकन वे प्रपितठिदन पिनयत समय पर सूत काते बगैर नहीं रहते थे । यही व्रत आश्रम के अनेक व्यलिक्त पालते थे ।

एक बार गांधीजी प्रवास पर थे । प्रवास खूब लम्बा था। साथ में और लोग भी थे । समय मिमलते ही गांधीजी ने अपना चरखा खोला। यह क्या ? उसमें पूनी ही नहीं ! पूनी रखना ही वे भूल गये ।

‘‘ उन्होंने महादेवभाई का आवाज दी और कहाः अरे महादेव, मैं सेवाग्राम से रवाना होते समय पूनी लेना भूल गया । अपने पास से थोडी़ पूपिनयाँ दोगे ?’’

‘‘ महादेवभाई से काफी देर तक बोला नहीं गया। गांधीजी ने पिफर कहाः देगे न, महादेव ?’’ ‘‘तब महादेवभाई बोलेः बापू, मैं रोज कातता हूँ, ’’ लेपिकन आज चरखा ही लेना भूल गया ।

महादेवभाई लिसर नीचा पिकये खडे़ रहे । बापू की आँखों से आँख मिमलाने की पिहम्मत नहीं होती थी । पिफर गांधीजी ने दूसरे पिकसीसे पूनी माँगी तो उससे भी वही जवाब मिमला ।

‘ ’ गांधीजी गम्भीर हो गये । अन्तमु,ख हुए। कुछ गम्भीर पिवचार में लीन हो गये । लगे हाथों हरिरजन के ‘‘ अगले अंक में उन्होंने एक लेख प्रकालिशत पिकया । उसमें उन्होंने लिलखा थाः नमक ही अपना

खारापन छोड़ दे तो उसका यह अलोनापन कJन मिमटाये ? वास्तव में जो सूत- कताई का प्रसार करनेवाले हैं, वे ही अपने व्रत की तरफ दुल,क्ष्य करें, तो उन्हें व्रत- पालन करना कJन लिसखाये ?’’ साधारर्ण लोगों में यह पिहम्मत नहीं होती पिक अपने दोर्षों को स्वीकार कर लें । लेपिकन गांधीजी अपनी

भूलों को फJरन् संसार के सामने खोलकर रख देते थे । उनका मानना था पिक यह आत्मशुजिद्ध का एक उपाय है ।

‘‘ उन्होंने अपने एक लेख में लिलखा थाः यठिद मनुष्य को अपनी भूल स्वीकार करने में शरम आती है, ’’ तो वैसी भूल करने में सJगुना शरम होनी चापिहए ।

44. गुर्ण- दश,न का नमूना बापूजी सफाई के परम भक्त थे । सफाई परमेश्वर का रूप है । हमारे देश को अभी यह सीखना

बाकी है पिक सफाई ईश्वर है । घर में तो हम सफाई रखते हैं । लेपिकन साव,जपिनक सफाई का हमें अभी मान नहीं है। गांधीजी का सारा जीवन ही अन्तबा,ह्म शुलिचभू,त और पिनम,ल था । उनका वह

छोटा- सा पंलिछया था, पिफर भी वह पिकतना साफ रहता था । उन ठिदनों गांधीजी यरवदा- जेल में थे । उन्होंने अपने लिलए खास काम माँग रखा था । वे कपडे़ सीते

थे । गांधीजी तो महान् कम,योगी थे। एक ठिदन जेल के प्रमुख अमिधकारी उनके पास गये । गांधीजी जहाँ बै�कर सूत कातते थे, वहाँ तक वे सhन जूता पहनकर चले गये । गांधीजी से कुशल- के्षम पूछी । बापू ने भी प्रसन्न मुख से उTर ठिदया । कुछ देर में वे अमिधकारी चले गये । तब गांधीजी उ�े और बाल्टीभर पानी लाये । सुपरिरण्टेण्डेण्ट जहाँ तक जूता पहनकर आया था, वहाँ तक सारा धोया,

लिलपाई की, साफ कर ठिदया । ‘‘पिकसीने पूछाः बापू, यह क्या कर रहे हैं ?’’

‘ यह मेरे उ�ने- बै�ने का स्थान है। क्या उसे साफ न रखँू ?’ ‘ पिकसने गन्दा पिकया ?’’ ‘‘ सुपरिरण्टेण्डेण्ट आये थे । आज वे बोलते- बोलते यहाँ तक आये । जूते पहने यहाँ तक चले आये ।

’’ इसलिलए साफ कर रहा हूँ ।‘‘ आपने उनसे क्यों नहीं कहा ? ’’ यहाँ एक पठिटया लगा दीजिजये पिक जूते बाहर ही उतारकर आयें ।‘‘नहीं, यह तो हरएक के समझने की बात है । जाने दो । बहुत ठिदनों के बाद आज लिलपाई का ।

ऐसा अवसर मुझे कJन देगा ? सुपरिरण्टेण्डेण्ट के प्रती आभार मानना चापिहए पिक उन्होंने मुझे ऐसे सत्काय, का अवसर ठिदया, ’’ मेरे होथों सफाई की सेवा हुई ।

यह कहकर बापू हँसते- हँसते हाथ धोने लगे ।45. सादगी और साबुन

‘‘ ’’ गांधीजी हमेशा कहते थेः मैं सबसे अमिधक लोकतन्त्र का उपभोक्ता हूँ । सचमुच वे वैसे ही थे। वे कभी पिकसी पर कुछ लादते नहीं थे । साबरमती- आश्रम में छोटे बच्चों के साथ के व्यवहारों में भी ‘ ’ उनकी यह वृत्तिT दीखती थी । उन ठिदनों काकासाहब का बच्चा बाल आश्रम में ही था । बाल और उनके सालिथयों को साबुन की जरूरत पडी़। कपडे़ मैले थे ।

‘‘ ’’ संचालक ने कहाः बापूजी की स्वीकृपित लो । पिफर साबुन के लिलए पैसे मिमलेंगे । वे बाल- वीर बापू के पास गये ।

‘‘बापू, ’’ आप मंजूरी दीजिजये । ‘‘ गांधीजी समझाने लगेः हमें तो गरीबी से रहना है । पिकसान का जीवन जीना है । पिकसान क्या रोज

कपडो़ में साबुन लगाता है ? ’’ यह अच्छा नहीं दीखेगा ।

‘‘ क्या पिकसान को गन्दा रहना है ? स्वराज्य में हम ऐसा करेंगे पिक हरएक पिकसान को साबुन मिमले । काम से घर लJटने पर उसे भी साफ कपडे़ पहनने चापिहए । बापू, सफाई का मतलब क्या शान-

शJकत है ? सफाई क्या ऐश है ? ’’ साबुन तो एक आवश्यक चीज है । आप हमें मंजूरी दीजिजये ।‘‘ मान लो, मैंने मंजूरी दे दी । लेपिकन आश्रम के सब लोगों को यह पसन्द न आया तो ? तुम लोग

एक काम करो । अपने अनुकूल बहुमत प्राप्त करो । समथ,न में हस्ताक्षर लाओ, ’’ जाओ ।‘ ’’ ‘ ’ वह हमारा काम है कहकर बाल कूदने लगा । और उन बाल वीरों ने आश्रमवालिसयों के खूब सारे

‘ ’ हस्ताक्षर प्राप्त पिकये । सबको ही साबुन चापिहए था । ना कJन करता ? यानी क्या गांधीजी से ये लोग डरते थे ? लेपिकन बच्चों ने पिनभ,य वातावरर्ण बनाया। वे हस्ताक्षर लेकर गांधीजी के पास गये ।

‘‘बापूजी, ’’ लीजिजये ये हस्ताक्षर पिवजयी वीरों ने कहा ।‘‘ ’’ साबुन मंजूर बापू हँसते हुए बोले ।

46. गफलत खतरनाक है मीराबहन को पिहन्दुस्तान आये अमिधक ठिदन नहीं हुए थे । गांधीजी की तालीम में वे लिशत्तिक्षत हो रही थीं

। वे ठिदल्ली में डाँ अन्सारी के यहाँ गयीं । मुसलमानों के आपितथ्य की सीमा नहीं रहती । मीराबहन को पान का बीडा़ ठिदया गया ।

‘ ’ उन्होंने ना कहा ।‘‘ पान खाने में क्या बुराई है ? पान तो भारतीय सत्कार का लिचह्न है । यह आरोग्य की दृमिष्ट से भी

’’ अच्छा है । डाँक्टर पान की मपिहमा गाने लगे । उन्हें बुरा न लगे, इसलिलए मीराबहन ने पान खा लिलया । लेपिकन उन्हें लगा पिक यह �ीक नहीं पिकया ।

उन्होंने यह बात बापू को लिलख दी । यह भी पूछा पिक कहीं भूल तो नहीं हुई ? भूल हुई तो क्षमा करें, यह भी लिलख ठिदया ।

गांधीजी ने नम्न आशय का उTर ठिदयाः‘‘ डाँक्टर साहब का ऐसा आग्रह करना �ीक नहीं था । साधक के लिलए अनावश्यक वस्तुओं का

स्वीकार करना उलिचत नहीं है । मुसलमान लोग पान देना सभ्यता और पे्रमपूर्ण, सत्कार का लिचह्न मानते हैं । लेपिकन जीवन में पान की खास जरूरत नहीं है । साधक को तो कदम- कदम पर सजग रहना चापिहए । कोई पीछे पड़ जाय, तो भी अपना व्रत छोड़ना नहीं चापिहए । ऐसी छोटी- छोटी बातों

में भी दृढ़ न रहने से आगे जाकर वह व्यसन ही बन जाता है और पिफर बडी़ बातों में भी पिफसलने का ’’ भय रहता है ।

गांधीजी अपने पिनकटवतc लोगों के जीवन को पिकतनी मेहनत से आकार देते थे ! 47. नम्रता ने ही चकमा ठिदया

यह कहानी सन् 1924 की है, जबपिक गांधीजी आगाखाँ- महल में थे । बापूजी जेल में भी अपना समय व्यथ, नहीं गँवाते थे । वाचन, लेखन, प्राथ,ना, कताई, सब काम बराबर चलते थे । बीच में ही कभी कोई नयी भार्षा सीखते थे, पिकसी नये ग्रंन्थ का परिरचय कर लेते

थे। इस तरह चलता था । जवाहरलालजी, मJलाना आजाद, राजेन्द्रबाबू आठिद सारे नेता भी जेलवास का इसी तरह लाभ उ�ा लेते थे । जवाहरलालजी ने तो अपने सारे बडे-़ बडे़ ग्रन्थ जेल में ही लिलखे हैं

। उस ठिदन गांधीजी का जन्म- ठिदन था । आन्दोलन के उन ठिदनों में जेल के बाहर सारे देश में जनता बडी़ गम्भीरता के साथ वह ठिदन मनाती थी । उधर सरोजिजनीदेवी, डाँ सुशील नैयर आठिद ने एक नया

‘‘लिशगूफा खिखलाया । वे बोलीः बापू, आज सारे काम बन्द ! ’’ आज आपका जन्म ठिदवस है । ‘ ’’ बापू ने कहाः सारा ठिदन काम बन्द नहीं रखना है। केवल दोपहर के समय कुछ देर बन्द रहे । तय हो गया । दोपहर को गांधीजी के परिरवार के लोगों ने नया ही खेल शुरू पिकया ।

पिनश्चय हुआ पिक संसार के महान् पिवचारकों के भार्षर्ण और लेख लिलये जायँ और बारी- बारी से प्रत्येक व्यलिक्त उन पिवचारकों का नाम पहचाने । दूसरों की बारी समाप्त हुई । गांधीजी की बारी आयी । उन्हें

‘‘कुछ उद्धरर्ण सुनाये गये और सब बापू से कह उ�ेः बापू, पहचापिनये तो, ये पिकनकी उलिक्तयाँ हैं ?’’ ‘‘ बापू ने कुछ देर सोचकर कहाः पहली थोरी की है, दूसरी रोमांरोलां की और तीसरी इमस,न की या

’’ काला,ईल की है । ‘‘सब लिचल्ला उ�ेः गलत, पिबलकुल गलत !’’ ‘‘पिफर उनमें से एक ने कहाः बापू, ये सारे उद्धरर्ण एक ही व्यलिक्त के हैं और उस व्यलिक्त का नाम है

मोहनदास करमचन्द गांधी !’’ बापू हँस पडे।़ सब हँसने लगे अनजाने ही गांधीजी ने अपने को महान् पिवचारको की श्रेर्णी में बै�ा ठिदया था ।

यों तो नम्रता आडे़ आ जाती, लेपिकन उस ठिदन नम्रता ने ही गांधीजी को चकमा दे ठिदया था ।48. शोर्षर्ण का पाप

सन् 1931 में कराची में कांगे्रस का अमिधवेशन हुआ । सन् 1930 ‘ ’ का नमक सत्याग्रह समाप्त हो गया था । सरकार के साथ संघर्ष, में पिहन्दुस्तान की जीत हुई थी । संसार में पिहन्दुस्तान की प्रपितष्ठा बढी़ थी । वाइसराय ने गांधीजी से समझJता पिकया था और महात्माजी गोलमेज परिरर्षद् के लिलए

लन्दन जानेवाले थे । कराची- कांगे्रस ने उन्हें अपना एक मात्र प्रपितपिनमिध चुना था । गांधीजी पिवलायत के लिलए रवाना हुए । वही कपडे,़ वही सादगी ! साथी लोगों ने खूब कपडे़ लिलये थे । लेपिकन गांधीजी ‘‘ ’’ ने वे सब कपडे़ अदन से लJटा ठिदये। बोलेः मैं दरिरद्रनारायर्ण का प्रपितपिनमिध हूँ । पंचा पहना हुआ यह योपिगराज, महान् नेता, ईसा का अवतार लन्दन पहुँचा । वहाँ गांधीजी मजदूरों की बस्ती में �हरे। उन्हें न तो जाडे़ ने दुःख ठिदया, न बफ, ने परेशान पिकया । वहाँ वे बच्चों के बडे़ प्यारे हो गये थे । उन्हीं

के साथ घूमते-हँसते, खेलते रहे । गोलमेज परिरर्षद् का काम चालू था । चचा, और व्याख्यान रोज होते थे । लेपिकन जिजन्ना साहब कुछ

भी चनने नहीं देते थे । गांधीजी को गोलमेज परिरर्षद् के अलावा और भी कई जगह जाना पड़ता था । भेट, मुलाकात, प्रश्नोTर पत्रकार- परिरर्षद् जैसे कुछ-न- कुछ काम लगे ही रहते थे ।

ऐसी ही एक सभा थी । महात्माजी बोले । उन्होंने वर्ण,न पिकया पिक पि�ठिटश शासन में पिहन्दुस्तान का पिकस प्रकार सव,तोमुखी पतन हुआ है । भारत की भयंकर गरीबी का उन्होंने करूर्ण गम्भीर लिचत्र खडा़ पिकया । सभा सत्बध थी । बीच ही में एक व्यलिक्त ने उ�कर प्रश्न पिकयाः

‘‘गांधीजी, यह �ीक है पिक पि�ठिटश पूँजीवादी लोग सTा के आधार पर पिहन्दुस्तानी जनता का शोर्षर्ण कर रहे हैं, लेपिकन क्या आपके देश के ही मिमल-मालिलक, जमींदार, मालिलक- वग, जनता का खून नहीं चूस रहे हैं ? आपके पूँजीपपित लोग क्या पापी नहीं हैं ?’’

महात्माजी बोलेः‘‘ देशी पूँजी भी पापी है, लेपिकन उनके पाप का मूल आप लोगों में है । यठिद मैं हिह(सावादी होता और

गरीबों को चूसनेवाले अपने देश के पूँजीपपितयों को दो गोली मारता, तो पि�ठिटशों को चार गोली मारता । भारत के अन्दर आप लोगों का पाप बहुत ज्यादा है । सJ- डेढ़ सJ वर्षt की लूट ! पहाड़ के बराबर

पाप ! अब बताइये पिक भारतीय पूँजीवादी पाप का प्रारम्भ कहाँ से हुआ ?’’ ऐसा तेजस्वी उTर गांधीजी ने ठिदया। गांधीजी पिनभ,य थे, पिनःसृ्पह थे । जिजसके पास सत्य का आधार होता है, वही इस तरह की बात कह सकता है ।

49. बापू की छटपटाहट बापू की करूर्णा जनक मृत्यु से कुछ ही पहले की बात है । मीराबहन ठिदल्ली आयी हुई थीं ।

मीराबहन पिहमालय की तराइयों में ( ऋपिर्षकेश के पास ) एक गाँव में गोशाला चला रही हैं। गाय- बैलों के मल- मुत्र का कृपिर्ष में बठिढ़या उपयोग कर रही हैं । इंग्लैण्ड के एक जल सेना- अमिधकारी की वे पुत्री हैं । भारत की जनता की सेवा में अपने को समर्तिप(त करने के पिनश्चय से वे भारत आयीं । महात्माजी

के तत्त्वज्ञान की वे बेजोड़ उपासक बनीं । वे साधक मनोवृत्तिTवाली बहन हैं । पिववेकानन्द के साथ जैसी भपिगनी पिनवेठिदती थीं, वैसी गांधीजी के साथ मीरीबहन थीं ।

‘‘मीराबहन ने गांधीजी से कहाः बापू, एक बार ऋपिर्षकेश आइये न ? मेरे लिलए न सही, अपने पिप्रय गायों के लिलए तो आइये । पिकतनी सुन्दर गायें हैं  ?’’ ‘‘ बापू बोलेः मैं इस समय मृतवत् हूँ। मुझे क्यों बुलाती हो ?’’

देशभर में साम्प्रदामियक खूनखराबी हो रही थी । मैं कह रहा हूँ, लेपिकन मेरी कJन सुनता है, मैं अपने को अकेला महसूस कर रहा हूँ । यह कत्लेआम देखने के बजाय मर जाना अच्छा, ऐसा उनको

लगता था । लेपिकन मीराबहन की करूर्णामय और दुःखी मुद्रा देखकर बापू पिफर गम्भीरता से बोलेः‘‘ मैं मरने के बाद सबसें अमिधक एकरूप हो जाऊँगा । शरीर का बन्धन टूट जायगा, आत्मा मुक्त हो

जायेगी । सबमें मिमल जाऊँगा। �ीक है न  ?’’50. प्रेम बनाम आदर

गांधीजी स्वतन्त्रता के पिहमायती थे। लादा गया धम, उन्हें पसन्द नहीं था । हमेशा कहते थे, मैं लोकतन्त्र का सबसे बडा़ उपासक हूँ । वास्तपिवक प्रेम स्वतन्त्रता देनेवाला होता है । सच्चा प्रेम कभी पिकसीको गुलाम नहीं बनाता । परमेश्वर का प्रेम इस तरह पिनरपेक्ष होता है । आप �ीक व्यवहार

करेंगे, इस आशा से वह सूय,, चन्द्र, तारे, बादल, फूल सब देता ही जाता है । महापुरूर्ष ऐसे ही होते हैं ।

सन् 1933-34 में अस्पृश्यता- पिनवारर्ण का प्रवास मध्यप्रान्त से शुरू हुआ था । महान् देशभक्त बै अभ्यंकर महात्माजी के साथ उन्हींकी मोटरगाडी़ में पूरे मध्यप्रान्त के प्रवास में रहे । बै अभ्यंकर स्पष्टवक्ता थे । उनकी भलिक्त पिनभ,य ही थी । सच्चा प्रेम पिनभ,य ही होता है । जहाँ भय है, संकोच है,

वहाँ प्रेम कैसा  ? बै अभ्यंकर ने गांधीजी से मोटर में जाते- ‘‘ जाते कहाः आपके साथ प्रवास करना बडा़ कठि�न है, ’’ ठिदक्कत का काम है ।

‘‘क्यों, क्या हुआ  ?’’ गांधीजी ने हँसते- हँसते पूछा ।‘‘ आपके साथ लिसगरेट पी नहीं पाता । आपके सामने कैसे पी जाय  ? ’’ अपमान जो होगा ।

अभ्यंकर ने कहा । ‘‘ गांधीजी ने खुले ठिदल से कहाः आप पी सकते हैं । सच, ’’ आप पीजीये । गांधीजी ने अनुमपित दी । लेपिकन महात्माजी के साथ जब तक वे घूमते रहे, तब तक एक भी लिसगरेट

उन्होंने नहीं पी ।50. प्रेम बनाम आदर

गांधीजी स्वतन्त्रता के पिहमायती थे। लादा गया धम, उन्हें पसन्द नहीं था । हमेशा कहते थे, मैं लोकतन्त्र का सबसे बडा़ उपासक हूँ । वास्तपिवक प्रेम स्वतन्त्रता देनेवाला होता है । सच्चा प्रेम कभी पिकसीको गुलाम नहीं बनाता । परमेश्वर का प्रेम इस तरह पिनरपेक्ष होता है । आप �ीक व्यवहार

करेंगे, इस आशा से वह सूय,, चन्द्र, तारे, बादल, फूल सब देता ही जाता है । महापुरूर्ष ऐसे ही होते हैं ।

सन् 1933-34 में अस्पृश्यता- पिनवारर्ण का प्रवास मध्यप्रान्त से शुरू हुआ था । महान् देशभक्त बै अभ्यंकर महात्माजी के साथ उन्हींकी मोटरगाडी़ में पूरे मध्यप्रान्त के प्रवास में रहे । बै अभ्यंकर स्पष्टवक्ता थे । उनकी भलिक्त पिनभ,य ही थी । सच्चा प्रेम पिनभ,य ही होता है । जहाँ भय है, संकोच है,

वहाँ प्रेम कैसा  ? बै अभ्यंकर ने गांधीजी से मोटर में जाते- ‘‘ जाते कहाः आपके साथ प्रवास करना बडा़ कठि�न है, ’’ ठिदक्कत का काम है ।

‘‘क्यों, क्या हुआ  ?’’ गांधीजी ने हँसते- हँसते पूछा ।‘‘ आपके साथ लिसगरेट पी नहीं पाता । आपके सामने कैसे पी जाय  ? ’’ अपमान जो होगा ।

अभ्यंकर ने कहा । ‘‘ गांधीजी ने खुले ठिदल से कहाः आप पी सकते हैं । सच, ’’ आप पीजीये ।

गांधीजी ने अनुमपित दी । लेपिकन महात्माजी के साथ जब तक वे घूमते रहे, तब तक एक भी लिसगरेट उन्होंने नहीं पी ।

52. पपिवत्र मनुष्य सरदार वल्लभभाई को गांधीजी के प्रपित अत्यन्त भलिक्त और प्रेम था। सन् 1935 में उनको भी गांधीजी के साथ सरवदा- जेल में रखा गया था । गांधीजी की तरह वे भी खाने- पीने लगे । वे चाय ले

नहीं पाते थे । खजूर खाने लगे । ‘‘बापू से पूछतेः बापू, पिकतने खजूर लूँ ?’’ ‘‘ ’’ बापू कहतेः पन्द्रह ।

‘‘ बीस लें तो क्या हज, है ? पन्द्रह और बीस में कJन बडा़ फक, है ?’’ ‘‘ तो पिफर दस ही काफी हैं । दस और पन्द्रह में पिकतना फक, है ?’’ यह कहकर गांधीजी मुक्त हँसी

हँसते । गांधीजी की सेवा करने का सरदार को बडा़ शJक था । लेपिकन गांधीजी स्नान करने आते, तभी कपडे़ भी धोकर लाते थे ! वह सेवा भी सरदार को मिमलती नहीं थी । रात को सरदार उनके चरर्णों में मस्तक नवाकर ही सोने जाते ।

सन् 1932 में जापित पर आधारिरत चुनाव- पद्धपित बदलने के लिलए असृ्पश्यों को सवर्णt से अलग न कर देने के लिलए गांधीजी ने जेल में आमरर्ण अनशन शुरू पिकया । राजाजी को यरवदा लाया गया ।

‘‘ ’’ राजाजी ने सरदार से कहाः आप गांधीजी को उपवास न करने को कपिहये । ‘‘ सरदार बोलेः उनसे बढ़कर अमिधक पपिवत्र मनुष्य मैंने कहीं देखा नहीं । उन्हें मैं क्या बताऊँ ? उनके

’’ लिलए उनका अन्तया,मी ही प्रमार्ण है । ‘‘ सरदार गांधीजी से कई बार कहतेः हम साथ- ’’ साथ ही मरें । अपने पीछे मुझे छोड़ न देना । लेपिकन बापू गये । सरदार को दुःख पिनगलकर सहयोपिगयों के साथ देश की गाडी़ को संकट से आगे

ले जाना पडा़ ।53. श्रद्धा का परिरर्णाम

‘‘ ईश्वर पर श्रद्धा एक जीपिवत तथ्य है । सन्त तुकाराम ने कहाः प्रार्ण भले हो जायँ, पिनष्ठा नहीं पिडगनी ’’चापिहए ।

‘ तुका म्हर्णे व्हावी प्रार्णांसवे ताटी । ’ नाहीं तरी गोष्टी बोलंू नये। ।

ईश्वर के बारे में, श्रद्धा के बारे में व्यथ, क्यों बोलते हो ? अगर यहाँ तक तैयारी है पिक प्रार्ण छूट जायँ तो भी लिचन्ता नहीं, तब ऐसी बातें बोलो। तुकाराम के ये शब्द सच्चे हैं ।

ईश्वर पर गांधीजी की पिनष्ठा ऐसी ही थी । वही तारनेवाला है, वही मारनेवाला है। साबरमती का आश्रम हाल ही में शुरू हुआ था। उन्होंने कहा पिक अगर कोई हरिरजन आ सके तो उसे भी आश्रम में

लेंगे । एक हरिरजन- परिरवार आया । महात्माजी ने उसे लिलया। अहमदाबाद के सनातनी लोग कु्षब्ध हुए । व्यापारी लोग धम, के मामले में बडे़ कटृर होते हैं । अब आश्रम की सहायता कJन करेगा ?

मगनलालभाई गांधीजी के भतीजे थे । वे आश्रम की व्यवस्था देखते थे । दत्तिक्षर्ण अफ्रीका से गांधीजी की साधना में समरस हुए थे । गांधीजी उन्हें अपना दायाँ हाथ मानते थे । गांधीजी को चरखा चापिहए

था, तो मगनलालभाई ने गुजरातभर छान मारा । सूत कातनेवाली एक बहन ठिदखी तो वे खुशी से पागल हो गये। चरखा मिमल गया, ऐसे थे मगनलालभाई । उन्होंने एक ठिदन शाम की प्राथ,ना के बाद ‘‘बापूजी से कहाः बापू, कल आश्रम में खाने को कुछ नहीं है । पैसे तो बचे नहीं । क्या पिकया जाय

?’’ ‘‘ बापू ने शान्तिन्त से कहाः लिचन्ता न करो। ईश्वर को लिचन्ता है । उसने कहा, ‘ ’ ’’ योगक्षेमं वहाम्यहम् । उसी ठिदन रात को कोई व्यापारी आया । उसने आश्रम देखा और दस हजार रूपये देकर चला गया । ‘‘ एक बार पिकसीने गांधीजी से पूछाः आप अपना बीमा क्यों नहीं करवाते ?’’ उन्होंने कहाः इसलिलए ’’ पिक ईश्वर पर श्रद्धा है ।

54. ध्येय- पिनष्ठा और अलिलप्तता सन् 1908 की बात है । लोकमान्य पितलक को छः वर्ष, की कालेपानी की सजा हुई थी, और उधर

अफ्रीका में गांधीजी भी जेल में थे । जोहान्सबग, की जेल में दूसरे कैठिदयों की बीच ही उन्हें रखा गया था । जिजस ठिदन पहली बार उन्हें को�डी़ में शराबी, डाकू, चोर आठिद नाना प्रकार के कैदी थे । वे चाहे जो बकते थे, चुहलबाजी करते थे । गांधीजी रातभर जागते रहे। वह रात वे कभी भूले नहीं ।

धीरे- धीरे उनकी वृTी शान्त हुई । बदन पर कैदी के कपडे़ थे । कडी़ सजा हुई थी । उन्हें पत्थर फोड़ने का काम ठिदया गया था । एक ठिदन पत्थर फोड़ते- फोड़ते उनके हाथ से खून बहने लगा ।

‘‘साथी सत्याग्रहीयों ने कहाः बापूजी, ’’ काम बन्द कीजिजये । अँगुलिलयों से खून बह रहा है । ‘‘ बापू ने कहाः जब तक हाथ काम करता रहेगा, ’’ तब तक करते रहना मेरा कत,व्य है । और वह महान् सत्याग्रही पत्थर फोड़ता ही रहा ।

जेल में रहते समय एक बार उन्हें कोई गवाही देने के लिलए अदालत ले जाया गया । कोई मिमत्र ‘‘ ’’ अदालत आये हुये थे । मैं आनन्द में हूँ इतना ही वे बोले । काम समाप्त होते ही पुलिलस के पहरे

में वे चल पडे़ । यूरोपिपयन बच्चे गांधीजी पर प्रेम करते थे । वे सब पीछे- पीछे आ रहे थे । लेपिकन बापूजी ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा । ध्येय- लिसजिद्ध के लिलए जो महान् यज्ञ प्रज्वलिलत करना

था, उस ओर उनकी दृमिष्ट थी । महात्माओं के मन के भाव कJन समझ सकता है ? 55. ‘ ’ श्रद्धा चापिहए

मैं बडों से हमेशा दूर रहता हूँ । सूय, से दूर रहकर धूप ली जाय और अपने जीवन का पिवकास पिकयाजाय, यही हमारा प्रयत्न हो, एसी मेरी वृत्तिT है । नालिसक- जेल में श्री प्यारेलालजी ने मुझसे कहाः‘‘ ’’छूटने पर आप गांधीजी से मिमलिलये । जमनालालजी मिमलायेंगे ।

‘‘ ’’ मैंने कहाः मैं नहीं जाऊँगा । अपना रोना लेकर कहीं जाने की मेरी इच्छा नहीं है । ‘‘ मैं जेल से छूटकर अमलनेर आया । जमनालालजी का पत्र आयाः आप आइये। महात्माजी से

’’ आपकी मुलाकात का समय पिनत्तिश्चत करँूगा । ‘‘ ’’ मैंने लिलखाः क्षमस्व। मैं नहीं आ सकता । बाद में कुछ ठिदन तक मैं एक गाँव में रहा था । गांधीजी अमलनेर होते हुए वधा, की ओर जानेवाले थे

। हम स्टेशन पर उनके लिलए तथा उनके सालिथयों के लिलए खाना- पिपना ले गये । गाडी़ के छूटने का समय हो रहा था । पिकसीने मुझे गाडी़ में ढकेल ठिदया । दो स्टेशन तक स्वयं सेवक साथ जानेवाले थे

। गांधीजी और उनके साथी गाडी़ में भोजन करनेवाले थे । और पिफर वे बत,न लेकर स्वयंसेवक लJटती गाडी़ से आने वाले थे । मैं जानेवाला नहीं था । लेपिकन ढकेल ठिदया गया, तो जाना ही पडा़ । ‘‘ ’’ मुझसे कहा गयाः आपको दो मिमनट का समय ठिदया गया है । गांधीजी के पास जाइये ।

मैं नम्रता के साथ गांधीजी के सामने जा बै�ा । प्रर्णाम पिकया । उनके लिलए हमने आम का रस ठिदया । ‘‘ ’’ वह पीकर वे बत,न धोने पिनकले । मैंने आगे जाकर कहाः मैं धो दँूगा । इशारे से उन्होंने मना पिकया

। हाथ- मुँह पोंछकर गांधीजी बै�े । मुझे कुछ पूछना नहीं था । मुझे पिकसी तरह की शंका नहीं थी । ‘‘ आखिखर मुश्किश्कल से मैंने कहाः मैं एक गाँव में रहता हूँ । लेपिकन मुझे समाधान नहीं है । लोगों को

मेरे प्रवचनों की आवश्यकता नहीं है । उनकी आर्थिथ(क ज्जिस्थपित कैसे सुधारँू ?’’ ‘‘ ’’ गाँव की सफाई पिकये जाओ ।‘‘ ’’ वह तो हम करते हैं ।‘‘ तब �ीक है। लोगों की सेहत सुधरेगी । उससे वे ज्यादा ठिदन काम करेंगे । इससे उनकी आर्थिथ(क

ज्जिस्थपित कुछ सुधरेगी । दवा में पैसे खच, नहीं होंगे । घर के लोगों का समय नष्ट नहीं होगा । पिनराश होने से काम नहीं चलता । सेवक में श्रद्धा चापिहए । दस साल में भी अगर हमें एक समानधमc मिमलें,

तो भी बहुत हुआ, ’’ ऐसा मानना चापिहए । ‘ ’ दो मिमनट समाप्त हुए । मैं प्रर्णाम कर फJरन् उ� आया । श्रद्धा चापिहए ये उनके शब्द आज भी

कानों में गँूज रहे हैं ।

56. अन्धपिवश्वास पर कुल्हाडी़ सन् 1930 का अप्रैल का महीना । दाँडी- कूच पूरा हो गया था । गांधीजी ने नमक का सत्याग्रह पिकया था । अब वे लिसन्दी (खजूर) का पेड़ काटने का सत्याग्रह कर रहे थे । कराडी नामक गाँव में पडा़व था । वह देख रहे हो न छोटी- सी झोपडी़ ? उसी में गांधीजी रहते थे ।

एक ठिदन प्रातःकाल अनोखा ही ढंग देखने में आया । गाँववालों ने बडा़ जुलूस पिनकाला । जुलूस में स्त्रिस्त्रयाँ भी थीं । वे सबसे आगे थीं । सामने राष्ट्रध्वज था । बाजे बज रहे थे । यह कैसा जुलूस है ? ये

सारे लोग क्या सत्याग्रह करने जा रहे थे ? पुरूर्षों के हाथ में फल, फूल, पैसे हैं । यह सब क्या है ? गांधीजी झोपडी़ से बाहर पिनकले । लगातार जयजयकार होने लगी । उन सबने भलिक्तपूव,क प्रर्णाम

कर अपना उपहार गांधीजी के चरर्णों में समर्तिप(त पिकया । ‘‘ बापूजी ने पूछाः कैसे आये ? यह बाजा पिकसलिलए ?’’

‘‘उनके नेता ने कहाः महात्माजी, हमारे गाँव में हमेशा पानी का अकाल रहता है । गरमी के ठिदन आये पिक कुएँ सूख जाते हैं । पानी की बडी़ कठि�नाई होती है । लेपिकन आश्चय, है बापू हमारे गाँव में

आपके चरर्ण पड़ते ही सारे कुओं में पानी भर आया । पिफर हमारे हृदय भलिक्त भाव से क्यों न भर जायँ ?’’

तुम लोग पागल हो। मेरे आने का और इस पानी का क्या संबध है ? ईश्वर पर मेरा अमिधकार थोडे़ ही है ? उसके पास आपकी वार्णी का जो मूल्य है, उतना ही मेरा वार्णी का है । पागलों की तरह बोलो

’’ नहीं । गांधीजी ने क�ोरता से कहा । ‘‘ कुछ समय बीती । राष्ट्रपिपता हँसे और कहाः यह देखो, पेड़ पर कJआ बै�ने और पेड़ टूटने का संयोग हो आये तो क्या यह कहोगे पिक कJए ने पेड़ तोड़ ठिदया ? और भी कई कारर्ण होते हैं । तुम्हारे

कुएँ में पानी आया, पृथ्वी के गभा, में कुछ भी उथल- पुथल हुई होगी और नया झरना फूटा होगा । है पिक नहीं। व्यथ, में बाल- कल्पना न करो । तुम सबके सब लोग पहले सूत कातने लगो । भारतमाता को कपडा़ चापिहए न ?’’ सारी जनता प्रर्णाम करके गयी । हाथ में तेज धारवाली कुल्हाडी़ लेकर राष्ट्र का पिपता, वह महान्

सत्याग्रही चिस(दी के पेड़ काटने के लिलए बाहर पिनकल पडा़ ।57. मरर्ण का आनन्द मनाओ

आज एक गंभीर कहानी सुनाता हूँ । गांधीजी ने हर प्रकाश का भय अपने जीवन से प्रयत्नपूवक, दूर कर ठिदया था । वे पिनभ,य हो गये थे । पिनभ,यता ही मोक्ष है । संस्कृत में एक वाक्य हैः

‘ ’ आनन्दं �ह्मार्णो पिवद्वान् न पिबभेपित कदाचन इसका अथ, बताऊँ ? अथ, यह पिक- �ह्मानन्द जो जाने, ’ उसे भय कहीं नहीं । महात्माजी सकल चराचर में अपनी आत्मा ही देखते थे । पिफर जहाँ अपनी ही आत्मा देखनी है, तब

कोई पिकसीसे डरे क्यों ? �ीक है न ? मैं जो प्रसंग सुना रहा हूँ, वह इस प्रकार हैः

रJलट कानून के खिखलाफ गांधीजी ने प्रचण्ड आन्दोलन देशभर में पिकया । उसमें से जलिलयाँवाला बाग का काण्ड हुआ । उसमें से असहयोग और कानून की अवज्ञा सब बाद में होने को था । प्रवास से

थके- माँदे गांधीजी आश्रम में पिवश्रान्तिन्त के लिलए आये थे । उस समय आश्रम छोटा था । स्थापना को3-4 वर्ष, ही हुए थे। पिवनोबाजी, अप्पासाहब पटवध,न जैसे तेजस्वी, ध्येयपिनष्ठ साधक आश्रम में आ

गये थे । और सन् 1919 का 2 अक्टूबर का ठिदन आया। गांधीजी 50 वर्ष, पूरे करके 51 वें में प्रवेश करनेवाले थे । आश्रमवालिसयों ने मिमलकर एक सामान्य- सा आनन्द समारोह करने का पिनश्चय पिकया । माला, हार, तोरर्ण आठिद से सब जगह की शोभा बढा़ दी गयी । समारोह का समय हुआ ।

गांधीजी आकर बै�े । चारों ओर सत्याथc साथी जमा थे । मानो चन्द्र के चारों ओर तारे हों, सूय, के चारों ओर पिकरर्णें हों, कमल के चारों ओर मधुकर हों । गांधीजी बोलने लगे । उन्होंने कहाः

‘‘ आज मेरे 50 वर्ष, पूरे हुए । यानी आधा जीवन समाप्त हुआ । अब थोडे़ से ठिदन बचे हैं। मुझे 51 वाँ वर्ष, लगा है । 50 पूरे होने आप लोग आनन्द मना रहे हैं । मेरा 51 वाँ जन्म- ठिदन देखकर खुश हैं

। आप लोग ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हैं । �ीक है । और यह माला, ये हार ! मुझे इनमें पिवशेर्ष रूलिच नहीं है । लेपिकन आप लोगों ने बडे़ पे्रम से यह सब पिकया है । आपकी भावना को मैं समझ सकता हूँ

। �ीक है । लेपिकन मुझे जो बात कहनी है, वह भूलिलये नहीं । आप लोग मेरा जन्म- ठिदन जिजतने आनन्द से मना रहें हैं, उतने ही आनन्द से मेरा मृत्यु- ठिदन भी मनाना । आज जिजस प्रकार ईश्वर का आभार मान रहे हैं, उसी प्रकार उसने मुझे उ�ा लिलया, इसके लिलए भी कृतज्ञतापूव,क उसका आभार मानना । जीवन और मरर्ण दोनों उसीके मंगलमय वरदान हैं । अन्यथा मेरी मृत्यु के समय यठिद आप

लोग रोते बै�ें गे, तो यह पिवनोबा यहाँ जो लगातार गीता पढ़ता है, उसका क्या प्रयोजन है ?’’ महात्माजी ने अफ्रीका से आने के समय से ही अपने मन से मरर्ण का भय पूरी तरह मिमटा ठिदया था ।

वे सचमुच मुक्त पुरूर्ष थे ।जाती

वैसे गांधीजी मोढ़ बपिनयोंकी जापितमें पैदा हुए हैं। पर वे खुद अपनेको क्या कहते हैं?

एक बार सरकान े उन पर राजद्रोहका मामला चलाया। अहमदाबादकी अदालतमें मुकदमेकी

सुनवाई हो रही थी। अदालतम ें न्यायधीश (मजिजस्vेट) – अपराधीका नाम पता पूछता ही है।

गांधीजीसे भी पूछा गयाः

' आपका नाम क्या है?'

' मोहनदास करमचंद्र गांधी।'

' आप रहते कहाँ हैं?'

' सत्याग्रह आश्रम, साबरमती।'

' आप का पेशा क्या है?'

' पिकसानी और जुलहापिगरी।'

यह आखिखरी जवाब सुनकर न्यायाधीश सन्न रह गये ! जनता दंग रह गई !

1. वह अदभुत प्रपात सन ् 1924 म ें कांगे्रस का अमिधवेशन बेलगाँव म ें था । श्री गंगाधरराव देशपाण्डेय और दूसरे

काय,कता,ओं ने पिकतनी व्यवस्था की थी, कैसा समारोह रचाया था ! सबको आराम मिमला था, सब खुश थे। महात्माजी काम में डूबे हुए थे । वे ही उस कांग्रेस के अध्यक्ष थे । कांगे्रस की सभा समाप्त

हुई। सब लJटने लगे । कुछ लोग आसपास के प्राकृपितक सJन्दय, के स्थान देखने गये । एक काय,कता, महाशय गांधीजी के पास आये और बोलेः

‘‘गांधीजी, शरावती का प्रपात देखने चलेंगे ? भारत में ही नहिह(, सारे संसार में सबसे ऊँचा प्रपात है यह । 800 फुट की ऊँचाई से पिगरता है । दृश्य बडा़ भव्य है। चलेंगे ? महादेवभाई और काकासाहब ’’की भी चलने की इच्छा है । आप चलें तो वे भी चलेंगे । ना नहीं कपिहयेगा ।

‘‘ मैं भला कैसे चलूँ ? मैं क्या अब दृश्य देखते घूम ूँ ? काम पिकतना पडा़ ह ै ? महादेव भी जा नहीं ’’ सकेगा । काका को ले जाइये ।

‘‘गांधीजी, इतनी ऊँचाई से पिगरनेवाला वह प्रपात ! सचमुच देखने लायक है । कैसे तुर्षार उड़ते हैं । कैसा सुन्दर इन्द्रधनुर्ष ठिदखाई देता है ! पिकतनी ऊँचाई से पानी पिगरता है ! ऐसा लगता है, मानो हम

धीर- गंभीर मूर्तित(मान ् अनन्त पिनसग, की समिन्नमिध म ें ह ैं । क्या आपने कोई प्रपात देखा ह ै ऊँच े से पिगरनेवाला ?’’ ‘‘हाँ, ’’कई बार देखा है ।

“ शरावती जिजतना ऊँचा ?”“ ’’उससे भी ऊँचा ।“ शरावती के प्रपात से बडा़ और ऊँचा प्रपात तो संसारभर में नहीं है । हमने तो भूगोल में पढा़ नहीं ’’।

‘‘ भूगोल में नहीं होगा । परन्तु मैं अपनी आँखों से कई बार देखता हूँ । और आपने भी वह देखा है । पिकतनी ऊँचाई से पानी पिगरता है !”

“ वह भला कJन- सी नदी हैं ? ’’हमने तो देखा नहीं ।“ वर्षा, का पानी ! पज,न्यधाराएँ पिकतनी ऊँचाई से पिगरती हैं ! वह पानी शरावती के पानी की अपेक्षा

अमिधक ऊँचाई से नहीं पिगरता ? मैंने सच कहा पिक नहीं ?” सब हँस पडे ? महात्माजी भी हँसे। काकासाहब और अन्य लोग प्रपात देखने गये । महात्माजी ने उन्हें जाने को कहा, लेपिकन स्वयं काम में तल्लीन रहे । कई ठिदनों बाद महादेवभाई पिकसी काम से मैसूर गय े थे, तब वह प्रपात देख आने की व्यवस्था

महात्माजी ने उनके लिलए कर दी थी ।3. पिवनोद में भी लिशक्षा

यह तब की बात है, जब गांधीजी सेवाग्राम आश्रम में थे । आश्रम का भोजन अत्यन्त सादा होता था । तरह- तरह का जायकेदार भोजन बनाना मना था । सादा ही आहार हो, परन्तु भूख लगने पर खाया तो स्वास्थ्य उTम रहता है, यह वे जानते थे । पिफर आश्रम में तो अस्वाद- व्रत का पालन करना होता था !

अस्वाद का अथ, ह,ै जीभ के चटोरेपन को छोड़कर अन्न का सेवन । भोजन सादा होता था, परन्तु सबको पेटभर खाने की छूट थी । गांधीजी को जिजस ठिदन फुरसत रहती, उस ठिदन वे स्वयं सबको परोसते थे । कोई कम खाता, तो उसकी तबीयत के बारे में वे पूछताछ करने लगते । सबमें आनन्द, समाधान और सन्तोर्ष फैलाने का प्रसास करते थे ।

एक बार एक अमरीकी पिवद्वान् पत्रकार लुई पिफशर सेवा- ग्राम आश्रम में उनसे मिमलने आये थे । सप्ताहभर �हरे । एक ठिदन दोपहर के भोजन में वे गांधीजी के साथ बै�े । गांधीजी आश्रम में

अस्वाद- व्रत का आग्रह रखते थे । परन्तु बाहरी मेहमान पर जबरदस्ती नहीं करते थे । यथाशलिक्त उनकी रुलिच के अनुकूल खिखलाते थे । उस ठिदन उन्होंने पिफशर को भोजन के साथ आम खाने को ठिदया

। उन्हें वह बहुत पसंद आया ।खाते- “खाते पिफशर ने गांधीजी से पिवनोद में पूछाः गांधाजी, आप इन लोगों को सादा भोजन खिखलाते हैं । बेचारों को अपना स्वाद मारने के लिलए क्यों कहते हैं ? आप तो अहिह(सा के पिहमायती, पिफर

‘ ’ मारना लिसखाते हैं, यह कैसे ?”

उनका मजाक गांधाजी ताड़ गये । लेपिकन वे सवाये पिवनोद थे । जवाब ठिदयाः हाँ, पिफशर साहब, यठिद संसार स्वाद मारने तक ही हिह(सा का उपयोग सीमिमत कर दे तो मैं सारे संसार को वैसा करने की छूट

’’दे दँूगा । इस पर सारे लोग हँस पडे़ ।

गांधीजी बात- बात में इस प्रकार का पिवनोद करते थे । इससे गंभीर चचा, के बीच भी मुक्त वातावरर्ण का अनुभव आता था ।

“ गांधीजीने एक बार कहा थाः मेरे जीवन में पिवनोद न होता तो मेरा जीवन कब का नीरस बन जाता’’ ।

4. हस्ताक्षर के लिलए शत, ‘ ’ वेब मिमलर एक अमरीकी पत्रकार थे । उन्होंने मुझे शांपित नहीं मिमली (I found no peace)

नामक एक पुस्तक लिलखी है । उसमें उन्होंने गांधीजी का एक सुन्दर संस्मरर्ण ठिदया है । सन् 1931 में गांधीजी गोलमेज- परिरर्षद् के लिलए पिवलायत गये थे । एक ठिदन बेव मिमलर उनसे मिमलने “ आये । खूब बाते होने पर लिसगरेट का अपना पिडब्बा आगे बढा़कर उन्होंने गांधीजी के कहाः इस ’’पिडब्बे पर आप भी अपना हस्ताक्षर दीजिजये ।

उस पिडब्बे पर लायड जाज,, फ्रें च राजनीपितज्ञ क्लेमेंकी आठिद प्रख्यात व्यलिक्तयों के हस्ताक्षर थे । “ गांधीजी ने पिडब्बा हाथ में लिलया । खोलकर देखा और हँसते हुए कहाः लिसगरेट की यह पिडपिबया हैं । धूम्रपान के सम्बन्ध में मेरे पिवचार आप जानते ही हैं । मुझे यह कैसे पसंद होगा पिक मेरा नाम तंबाकू

से ढँका जाय ? अगर आप वचन दें पिक इस पिडब्बे में लिसगरेट कभी नहीं रखेंगे, तो मैं हस्ताक्षर दँूगा’’।

वेब मिमलर ने वचन ठिदया और गांधीजी ने हस्ताक्षर ठिदये । तब से वह अमरीकी पत्रकार उस पिडब्बे में पिवजिजटिट(ग काड, रखने लगे । वह लिलखता हैः पिडब्बे पर अनेक लोगों के हस्ताक्षर थे । परन्तु गांधीजी

का हस्ताक्षर सबसे स्वच्छ और स्पष्ट था ।5. गांधीजी का अनोखा हास्य-पिवनोद

महात्माजी का हास्य अपूव, चीज थी । पं. ‘ ’ जवाहरलालजी अपनी आत्मकथा मेरी कहानी में लिलखते हैः जिजसने महात्माजी की हास्य मुद्रा नहीं देखी, उसने अत्यन्त मूल्यवान् वस्तु खोयी, यही मैं कहूँगा

’’ ‘‘ । गांधीजी कहते थेः मुझमें यठिद हास्य- पिवनोद न होता, ’’ तो मैं कभी का टूट गया होता । काकासाहब कालेलकर महात्माजी के हास्य को मुक्त पुरुर्ष का हास्य कहते हैं ।

सन् 1934 के अंत में कांगे्रस का अमिधवेशन बंबई में हुआ था । अमिधवेशन समाप्त हुआ । नेताअपने- अपने घर लJटने लगे । उस समय राजेन्द्रबाबू अध्यक्ष थे । उनको आज लJटना था । सुबह

आ� बजे का समय था । वहाँ के सभा- भवन में महात्माजी, राजेन्द्रबाबू, सरदार वगैरह बडे-़ बडे़ लोग खडे़ थे । मैं दूर से ही वह प्रसंग देख रहा था । राजेन्द्रबाबू ने महात्माजी का चरर्ण- स्पश, पिकया ।

वातावरर्ण गंभीर हो गया । आँखें छलछला आयीं । वातावरर्ण का भार कम करने का जादू महात्माजी जानते थे । पास में ही एक स्वयंसेवक खडा़ था । महात्माजी ने उसके लिसर से टोपी लेकर

सरदार के लिसर पर चढा़ दो ! सब जोर से हँस पडे़ । महात्माजी का मुक्त हास्य फूट पडा़ । गंभीर वातावरर्ण पुनः उल्लासमय हो गया ।

6. कन्याकुमारी का दश,न कुछ महीने पहले जयप्रकाश बाबू मद्रास प्रांत के दJरे पर गये थे । तब उनकी धम,पत्नी प्रभावतीदेवी

भी छाया की तरह उनके साथ रहने लगी थीं । कन्याकुमारी के दश,न के लिलए दोनों गये थे । साथ में मिमत्र भी थे । भारत का अन्तिन्तम छोर ! दो महासागर मिमल रहे हैं, उमड़ रहे है । उधर से अरब सागर और इधर से बंगाल का उपसमुद्र दोनों हाथ मिमला रहे हैं । कहते हैं, अत्यन्त गम्भीर और उदाT दश,न

है वह ! वहाँ एक ओर सूय, अस्त होता ठिदखाई देता है, तो दूसरी ओर चन्द्रमा उठिदत होता ठिदखाई देता है । पूव,- पत्तिश्चम समुद्रों के मिमलन का भव्य दृश्य ! वहाँ का दृश्य देखकर स्वामी पिववेकानन्द को

समामिध लग गयी थी । वह दृश्य देखकर गांधीजी भाव- पिवभोर हो गये । प्रकृपित का सJन्दय, देखते बै�ने के लिलए गांधीजी के पास समय कहाँ ? लेपिकन उनका एक फोटो ऐसा भी है, जब पिवलायत जाते समय रात में जहाज से सागर की ओर वे देख रहे हैं । देशबंधु लिचTरंजन दास की बीमारी के समय उनके साथ गांधीजी दार्जिज(चिल(ग में रहे थे । वहाँ से पिहमालय ठिदखाई पड़ता था । गांधीजी ने ‘ ’ अपने गुजराती नवजीवन में उस दृश्य का बडा़ सुन्दर वर्ण,न पिकया था ! कहते हैं पिक कन्याकुमारी

के दश,न का भी गांधीजी के लिचT पर पिवलक्षर्ण प्रभाव पडा़ था । जयप्रकाशजी और प्रभावतीदेवी ने वह उदाT दृश्य देखा । उस ठिदन शु[वार था । महात्माजी का

पिनवा,र्ण- ठिदवस था । उस ठिदन प्रभावतीजी उपवास रखती हैं । वे समुद्र- स्नान करने आयी थीं । वह अमर दृश्य देखकर वे अपने कमरे में आयीं और कातने बै�ीं ।

गांधीजी के साथ पहले भी वे उसी कमरे में �हरी थीं । गांधीजी लिशस कमरे में रहे थे, वही था यह कमरा । प्रभावतीजी के मन में सैकडो़ स्मृपितयाँ जागृत हुई ।

“ ’’ गांधीजी यहीं �हरे थे । यही वे बोलीं। उनसे अमिधक बोला नहीं जा रहा था । बापूजी का स्मरर्ण करते हुए वह सो गयीं ।

7. पिपता- पुत्र में पिवनोद ठिदल्ली के वे अन्तिन्तम ठिदन ! अब उन्हें अन्तिन्तम ही कहना चापिहए । उस समय पिकसीको कल्पना नहीं

थी पिक वे अन्तिन्तम ठिदन होंगे । एक ठिदन महात्माजी के पुत्र श्री देवदासभाई गांधीजी के पास आये थे । देवदासभाई ठिदल्ली में हो रहते थे ।

‘ ’ पिहन्दुस्तान टाइम्स के वे सम्पादक थे । रात में कुछ देर के लिलए अक्सर आ जाया करते थे । “बातचीत हुई । देवदासभाई बोलेः बापू, आज मैं प्यारेलालजी को अपने यहाँ भोजन के लिलए ले

जाना चाहता हूँ । ले जाऊँ ?’’“ ले जाओ, जरुर ले जाओ । लेपिकन क्यों रे, मुझे भोजन के लिलए ले जाने की कभी इच्छा नहीं होती ?” बापू ने कहा । और पिफर खुलकर हँस पडे़ । पिपता- पुत्र का वह मधुर पिवनोद था !

8. मानस- पुत्र बनने का आनन्द महात्माजी ने प्रथम बार देशव्यापी सत्याग्रह शुरु कर ठिदया । उनकी पुकार भारत के हृदय को जगा

चुकी थी । मानो दस हजार वर्षt के राष्ट्रीय इपितहास की आत्मशलिक्त पुकार रही थी । वह पुकार “ ’’ परिरलिचत सी लगीः प्राथ,ना करो । उपवास करो । आत्मसमप,र्ण करो । यह थी वह पुकार । उस

पुकार से लाखों के जीवन में [ांपित हुई । गांधीजी साबरमती- आश्रम में थे । एक हट्टा- कट्टा नJजवान उनसे मिमलने आया। गांधीजी का वजन मुश्किश्कल से सJ पJण्ड होगा, तो इस सुन्दर नवयुवक का दो सJ से ज्यादा था । महात्माजी का चरर्ण-

स्पश, कर उस युवक ने उनके हाथ में पत्र ठिदया । पढ़कर महात्माजी गंभीर हो गये। पिफर हँसते हुए बोलेः

“ पिफर क्या करना है ?’’‘ ना नहीं कपिहयेगा । मुझे अपना पुत्र मान लीजिजये, मानो गोद लिलया हुआ ?”“ मेरी गोद पिकतनी छोटी है, तू भला इसमें समायेगा कैसे ? बापू हँसते- हँसते बोले ।

जमनालालजी की आँखें गोली हो गयीं “ । अन्त में महात्माजी ने कहाः तो �ीक है । बन जा मेरा पुत्र । मैं अपनी तरफ से पिपता का नाता रखँूगा । पुत्र का नाता पिनभाना तेरा काम है ’’।

जमनालालजी के आनन्द की सीमा नहीं रही । पिफर अन्त तक वह नाता बना रहा ।9. बालकों से दोस्ती

महात्माजी गोलमेज- परिरर्षद् के लिलए जहाज से जा रहे थे । जहाज में अंगे्रज लोगों के बच्चे गांधीजी के कमरे में झाँक- झाँककर देखते थे । पिफर इन बच्चों का परिरचय हुआ । गांधीजी उनके कान

“ पकड़कर पी� पर मुक्का जमाते थे । पिफर कहते थेः यह नाश्ता अब काफी है न ? अब दूसरा क्या चापिहए ? खजूर या पिकशमिमश ?”

“ खजूर नहीं, पिकशमिमश, ’’पिकशमिमश - बच्चे कहते थे । प्लेट भर भरके बच्चे पिकशमिमश ले जाते और प्लेटों को खाली करके फJरन् वापस आते ।

      “ ”आज अब बस - गांधीजी हँसकर कहते और वे अबोध, पिनष्पाप बच्चे शुपि[या कहकर लJट जाते ।

10. हस्ताक्षर की फीस महात्माजी अपने हस्ताक्षर की फीस कम-से- कम पाँच रुपये लेते थे । लेपिकन कभी- कभी बडा़ मजा

करते थे । एक बार अमरीकी सhन हस्ताक्षर लेने महात्माजी के पास आये ।

गांधीजी ने पूछाः आपके पास पिकतने पैसे हैं ?” उन्होंने जेब से अपना बटुआ पिनकाला । पैसे पिगने ।310 रुपये पिनकले । गांधीजी ने उनका बटुआ हाथ में लिलया और उसमें से सारे पैसे लेकर खाली

बटुआ लJटाया । हस्ताक्षर दे ठिदये । “ परंतु वह अमरीकी सhन परेशान ठिदखाई ठिदया । महात्माजी हँसकर बोलेः क्या हुआ ?”

गांधीजी, ’’मुझे जहाज तक जाने के लिलए रेल का पिकराया चापिहए । अब मेरे पास कुछ नहीं है ।“�ीक, ’’हम पिहसाब लगा लें - गांधीजी बोले । पिकराया, होटल में रहने का खच, वगैरह सब मिमलाकर

पिहसाब पिकया तो पूरे 310 रुपये का जो़ड़ आया । तब गांधीजी ने सारे पैसे वापस लJटा ठिदये ।11. ‘ ’ तुम्हारे मुकाबले में आधा हूँ

मीराबहन एक जल- सेना के अमिधकारी की पुत्री हैं । गोलमेज- परिरर्षद् के समय वे बापूजी के साथ थीं । एक भाई मीराबहन के पास आकर बोलाः मैं आपके पिपताजी के मातहत 21 वर्ष, रहा हूँ । मेरा

’’दामाद ही गांधीजी के लिलए बकरी का दूध लाता है । मुझे बापूजी के हस्ताक्षर ठिदला दीजिजये । “ आखिखर गांधीजी की और उस भाई की भेट हुई । वह बोलाः आपको आपके काम में सफलता मिमले

। मैंने गत महायुद्ध में भाग लिलया था । लेपिकन पिफर युद्ध हुआ तो उसमें भाग नहीं लँूगा । युद्ध भयानक कृत्य है । मैं युद्ध का पिवरोध करँुगा । जरुरत पडे़ तो जेल जाऊँगा और आपके ध्येय के

’’लिलए लडूगँा ।“ क्या तुम्हारे बाल- बच्चे हैं ?” गांधीजी ने पूछा ।

’’जी हाँ । चार बचे्च और चार बज्जिच्चयाँ हैं । कुल आ� हैं ।“ ’’मेरे तो चार ही बच्चे हैं । तुम्हारे मुकाबले में आधा ही हूँ ।

गांधीजी हँस पडें और सबके पेट में हँसते- हँसते बल पड़ गये ।   12. बापू की मया,दा

गोलमेज- परिरर्षद् के समय पिकसी पत्र में यह छप गया पिक सन् 21 में पिप्रन्स आँफ वेल्स जब भारतगये, “ तब गांधीजी उनके चरर्णों पर पिगरे गांधीजी से पूछा गया तो वे बोलेः ऐसी मनगढंत बातें

बनानेवाली । कल्पना- शलिक्त अथ,शून्य है । मैं हरिरजनों और भंपिगयों के आगे नतमस्तक होऊँगा, उनकी चरर्ण- रज अपने माथे पर लगाऊँगा । परन्तु राजा के आगे कभी मस्तक झुकनेवाला नहीं हूँ ।

तब राजकुमार की बात ही क्या ? मदान्ध साम्राज्यशाही सTा के वे प्रतीक हैं । भले ही मुझे हाथी अपने पैरों तले रौंद दे, पर मैं उनके सामने लिसर नहीं झुकाऊँगा । लेपिकन भूल ले चींटी पर भी पैर पड़

जाय, ’’तो मैं उसे प्रर्णाम करँूगा ।13. बच्चों के साथ तैरने गये

गांधीजी को बच्चों की संपिगत में बडा़ आनन्द आता था । बच्चों का संग मानो भगवान् का संग ! वे बच्चों के साथ हँसते-खेलते, पिवनोद करते थे । एक मद्रासी बच्चे ने एक बार उनसे जिजद्द की काँफी

’’ पिपलाओ । तब उन्होंने खुद काँफी बनाकर उस बच्चे को पिपलायो । इतना ही नहीं, बश्किल्क बडे़ प्यार

“ से पूछाः क्या तुझे और कुछ बना दँू ? ‘ ’इडली , ‘ ’ दोसा बना दँू ?’’ गांधीजी बठिढ़या रसोई बनाते थे । गांधीजी सब जानते थे । जीवन की सब उपयोगी बातें वे जानते थे । गांधीजी साइपिकल भी चलाते थे । परन्तु उसकी कहानी पिफर कभी सुनाउँगा । आज दूसरा ही एक मजे का पिकस्सा सुनाता हूँ । यह बात है सन् 1926 की । महात्माजी खादी- प्रचार के दJरे पर थे । आराम की दृमिष्ट से कुछ ठिदनों

के लिलए साबरमती- आश्रम लJट आये थे । साबरमती नदी अपने सJम्य रूप में बह रही थी । आश्रम के सदस्य नदी में नहाने जाते थे । कोई डुबकी लगा आता, तो कोई तैरता ।

“बापूजी, ’’आज आपको भी तैरने चलना चापिहए ।“ सचमुच ! ’’आज बापू को लिलये पिबना नहीं छोडेग़े ।“ ’’लेपिकन बापू तैरना भूल गये होंगे ।“ तैरना कोई भूलता है ? बापू, आप चलेंगे न ? ’’हमें देखना है आप कैसे तैरते है ।“ ’’कमान्य पितलक अचे्छ तैराक थे । गंगा की बाढ़ में वे कूद पडे़ थे और तैरकर उस पार गये थे ।“ परन्तु लोकमान्य ने तो अभ्यास पिकया था । बापू, आज आप हमें तैरकर ठिदखाइये न । बडा़ मजा

’’आयेगा ।“ ’’बापू तो लिसफ, हँस रहे है । वे नहीं चलेंगे । चलिलये न । आज हमारे साथ तैरने चलिलये ।

बच्चे आज गांधीजी को घेरे उपयु,क्त बातचीत कर रहे थे । गांधीजी इनकार नहीं कर सके । जाने को तैयार हुए । बचे्च खुश हो गये । सारा आश्रम चल पडा़ । साबरमती नदी भी खुशी से उछल पडी़, उसकी तरंगें नाच उ�ीं । आज बापू नदी की लहरों का सामना करनेवाले थे । पि�ठिटश सTा से

जूझनेवाला वीर योद्धा आज साबरमती की लहरों से खेलनेवाला था । बचे्च पानी में उतरे । कहने “लगेः बापू, ’’ आइये चलिलये । और गांधीजी कूद पडे,़ उन्होंने सूर मारा था और सप- सप पानी काटते

हुए जा रहे थे । बचे्च आनन्द पिवभोर होकर जय- घोर्ष करने लगे । तालिलयाँ बजाने लगे । गांधीजी का पीछा करके उन्हें छूने के लिलए कुछ बचे्च चल पडे़ । बडा़ मजा आया । पिकतना आनन्द ! 55 वर्ष, की आयु में गांधीजी ने डेढ़ सJ गज की दूरी तैरकर पार की । बच्चों के आनन्द की खापितर बापू तैरने गये

थे । ऐसे थे बापू ! ऐसा था हमारा लाडला राष्ट्रपिपता ! 14. ‘ ’ गांधी बाबा को सबकी लिचन्ता है  

आज एक पिनराली ही कहानी सुनाता हूँ । तुम लोगों ने कपिव और काव्यगायक श्री सोपानदेव चJधरी का नाम सुना होगा । वे एक सत्कपिव हैं, उनके काव्य- गायन का श्रवर्ण यानी एक अपूर्ण, भोज का

अवसर । उन्होंने एक बार महात्माजी के संबंध में स्व- रलिचत कपिवता रेपिडयो पर सुनायी । यह संस्मरर्ण उन्होंने ही मुझे सुनाया था ।

एक बार महात्माजी दJरा करते हुए खानदेश आये थे । जलगाँव में पिवराट् सभा हुई । गाँवों से हजारों पिकसान आये थे । पिगरर्णा नदी के पिकनारे बसे हुए मछुए भी सभा में आये थे । सभा समाप्त हुई ।

लोगों के झुण्ड अपने- अपने गाँवों की ओर लJट रहे थे । आपस में बातें करते जा रहे थे । जाल कंधों पर डाले हुए बोल रहे हैः

“ अरे यार, हम बडे़ पापी हैं । गांधी बाबा तो अहिह(सा की बात करता है और हम ठिदन- रात मछली पकड़ते हैं । हमारी सारी जिजन्दगी हिह(सा में ही बीतती है । भला, धंधा न करें तो करें क्या ? खायें क्या

? वह (गांधीजी) ‘ ’ कहते हैं पिकसीको मत मारो । हम मछली मारने का धंधा छोड़ दें तो दूसरा कJन- सा कर सकें गे ? अपने पास न खेती, न बाडी़ । नदी का पानी यही अपनी खेती है, मछलिलयों की

खेती । कैसे क्या करें ?”“अरे, तू पिफ[ क्यों करता है ? गांधी बाबा को सबकी लिचन्ता है । कल स्वराज्य आने पर गांधी बाबा

हमें बुलायेंगे और कहेंगे पिक मछली मत मारो, हिह(सा मत करो । तुम्हारे लिलए यह धंधा चुन लिलया है । यह सीख लो और �ीक से गृहस्थी चलाओ । अरे, उसको सबकी चिच(ता है । हमारे गुजारे की लिचन्ता क्या उन्हें नहीं होगी ? नया धंधा मिमलते ही यह जाल तोड़कर पिगरर्णा में फें क देंगे । तब तक चलायेंगे यह धंधा । क्या करें ? लेपिकन गांधी बाबा को सबकी लिचन्ता है । चलो, ’’रात हो जायेगी ।

15. लेने के बदले दो मीराबहन इन ठिदनों पिहमालय की तलहटी पर एक गाँव में गोशाला चला रही हैं । गाय- बैलों के मल-

मूत्र का कृपिर्ष के लिलए व्यवज्जिस्थत उपयोग करती हैं । जल- सेना के अमिधकारी की वह पुत्री हैं । भारतीय जनता की सेवा में जीवन समर्तिप(त करने के पिनश्चय से वह भारत आयीं और महात्माजी के

जीवन- दश,न को पिनःसीम उपालिसका बनीं । साधक वृपित को मपिहला हैं । स्वामी पिववेकानन्द की जैसे भपिगनी पिनवेठिदता, वैसे महात्मा गांधी की मीराबहन । सेवाग्राम आने के बाद मीराबहन त्तिभक्षुर्णी की तरह व्रती बन गयीं । आसपास की पंचकोशी में दवा

लेकर घूमती थीं । सेवा उनका धम, बन गया । मीराबहन अच्छी पढी़- लिलखी हैं । फ्रें च अच्छा जानती हैं । महादेवभाई ( गांधीजी के सलिचव) को फ्रें च सीखाने की इच्छा हुई । थोडा़ समय पिनकालकर

मीराबहन के पास वे फ्रें च सीखने लगे । आगे चलकर यह बात गांधीजी को मालूम हुई । एक ठिदन बापू और महादेवभाई बात कर रहे थे, तब महात्माजी ने पूछाः

“महादेव, मैंने सुना पिक तुम आजकल फ्रें च सीख रहे हो ? कJन लिसखाता है ?”“ ’’मीराबहन लिसखाती हैं ।“ सीखने के लिलए तुमने समय कहाँ से पिनकाला ? मेरे काम में ठिढलाई करते होगे ? और देखो,

मीराबहन स्वदेश और स्वगृह छोड़कर इस देश में आयी हैं । उसे तुम पिहन्दी लिसखाओ । उसके पास से कुछ लेने के बजाय, उसे कुछ नया दो । �ीक है न ?”

‘‘हाँ, बापू- महादेवभाई ने कहा ।16. बापू का आशीवा,द जीवन- परिरवत,नकारी

तब महात्माजी सेवाग्राम आ गये थे । वे रोज सुबह- शाम घूमने जाते थे । एक बार एक धनी मारवाड़ी गांधीजी से मिमलने आये । उनके पुत्र का हाल में ही पिववाह हुआ था । पुत्र और पुत्र- वधू से बापूजी के

चरर्णों में प्रर्णाम कराने की उनकी इच्छा थी । उस पिपता की बडी़ उत्कष्ठा थी पिक वर- वधू को बापूजी का मंगल आशीवा,द मिमले ।

“ उनसे कहा गयाः आप सुबह आइये । बापू जब घूमने जाते हैं, तब रास्ते में मिमलये । पुत्र और ’’पुत्रवधू को लेते आइये ।

“ रास्ते में पिनत्तिश्चत ही मिमलेंगे न ? आप लोग नाराज तो नहीं होंगे ?” “ हम नाराज हों तो भी बापूजी थोडे़ ही नाराज होनेवाले हैं ? ’’ सुबह रास्ते में मिमलेये ।

वह श्रद्धालु मारवाडी़ गया और सुबह होने की प्रतीक्षा करता रहा । सब लोग जल्दी उ�े । वधू, वर, वर के माता- पिपता पिनकल पडे़ । जिजस रास्ते से महात्माजी घूमने पिनकलते थे, उसी रास्ते पर राह

देखते सब लोग खडे़ थे । पक्षी चहचहाने लगे । सृमिष्ट प्रसन्न थी और उधर से महात्माजी के मुक्त हास्य की शुभ ध्वपिन सुनायी दी

। आ गये, महात्माजी आ गये । भारत के भाग्यपिवधाता चले आ रहे थे । “ ’’ मारवाडी़ ने कहाः चरर्ण छुओ । महात्माजी के चरर्ण छुओ ।

वधू- वर ने उन पपिवत्र चरर्णों पर मस्तक रखा । महात्माजी ने प्रेम से उन्हें उ�ाया । एक क्षर्ण बापू गम्भीर बनकर खडे़ रहे । लेपिकन क्यों ?

उस वधू के चेहरे पर घूँघट था, पदा, था । यह गुलामी बापू कैसे सहन कर सकते थे ? आँख के रहते अन्धे बनकर रहना ? पपिवत्रता तो मुक्तता में ही खिखलती है । बापूजी ने उस लड़की का घूँघट चेहरे पर

से हटाया । उसके श्वशुर बोलेः“ मैंने यह पदा, हटाया है । इस लड़की के मुखमण्डल को इसी तरह हमेशा खुला रखो । पिफर से यह

’’घूँघट चेहरे पर आने न पाये ।“ जैसी आपकी आज्ञा ! ’’ आपकी आज्ञा के पिवरुद्ध हम नहीं है । आपका आशीवा,द चापिहए । श्वशुर

बोले ।

“ जो भला है, ’’ उसे प्रभु का आशीवा,द सदा रहता ही है । इतना कहा और उन वर- वधू के मस्तक पर मंगलमय हाथ रखकर महात्माजी तेजी से आगे बढ़ गये ।

भारत को मुक्त करनेवाला महात्मा भारत के सब लोगों के जीवन में सच्ची आजादी लाना चाहता था । पिकतने ही लोगों के जीवन में बापूजी ने ऐसी [ांपित लायी होगी ! वह सारा इपितहास संसार को कJन

सुनायेगा ? बापू के जैसा [ांपितकारी दूसरा हुआ नहीं ।17. पिबना सँुघनी के दाँत उखड़वाया

तब गांधीजी अफ्रीका से लन्दन गये थे । वे दत्तिक्षर्ण अफ्रीका के भारतीयों की बात इंग्लैण्ड के लोगों के ‘ सामने रखने के लिलए गये थे । वहाँ उन्होंने एक दत्तिक्षर्णी अफ्रीका- ’ समिमपित की स्थापना की । बडे-़बडे ़

लोगों से मिमले। अखबारों में लेख लिलखे । सभाएँ की । ठिदनभर ही नहीं, बश्किल्क मध्यरापित्र तक काम चलता था ।

‘ वे एक होटल में �हरे थे । एक ठिदन दत्तिक्षर्णी अफ्रीका- ’ समिमपित की बै�क हो रही थी । इतने में उनके एक मिमत्र डा. जोलिशया ओल्डफील्ड उनसे मिमलने आये । गांधीजी बैरिरस्टर बनने के लिलए इंग्लैंड रहे थे, तब जोलिशया और वे एक ही घर में रहते थे । उनमें बडा़ स्नेह था ।

पुराना मिमत्र मिमलने आया, इसलिलए गांधीजी बाहर आये । थोडी़ बातचीत के बाद उन्होंने डाक्टर से पूछाः

“ मेरा एक दाँत बहुत दुखता है, उसे आप पिनकाल देंगे ?” ‘ डाक्टर ओल्डफील्ड ने दाँत देखा । दाँत पिनकालना कठि�न था । बोलेः पिकसी दंत- लिचपिकत्सक के पास

’’जाना होगा । “ गांधीजी ने कहाः मुझे समय नहीं है । यहीं के यहीं चट से पिनकाल दें तो मैं बडा़ आभारी होऊँगा ।

देखिखये । क्योंपिक मेरा सारा ध्यान इस दाँत की ओर जाता है और एकाग्र मन से सोच नहीं सकता हूँ, ’’न काम ही कर पाता हूँ ।

डा. ओल्डफील्ड बाहर गये । दाँत पिनकालने का औजार कहीं से माँगकर लाये । मसूडे़ को सुन्न पिकये बगैर दाँत उखाड़ना बडा़ दुखदायी होता है । गांधीजी ने समिमपित के लोगों से कुछ देर रुकने के लिलए कहा और अपने शयनकक्ष में आये । डाक्टर दाँत पिनकालने लगे । पिनकालने में बडी़ तकलीफ हुई । परन्तु गांधीजी शांत थे । सारी वेदना चुपचाप सहन की । उफ तक नहीं पिकया । दाँत पिनकल गया ।

कुछ मिमनट शांपित से बै�े रहे । पिफर धीमी आवाज में डाक्टर को धन्यवाद ठिदया और अपने काम पर लJट आये ।

18. एक मंगल प्रसंग दो मिमत्र आपस में मिमलते हैं, तो पिकतना आनन्द आता है । लम्बे अरसे के बाद मिमलते हैं तो आनन्द

सJगुना बढ़ जाता है । दो मिमत्रों के मिमलन में मिम�ास होती है । क्योंपिक उसमें पिनम,ल प्रेम होता है । – परन्तु जब दो महापुरुर्ष एक दूसरे से मिमलते हैं, तब तो उसमें अपूव, माधुय, होता है । वह गंगा- यमुना का मिमलन है, सूय,- चन्द्र का मिमलन है, हरिर- हर का मिमलन है । एक बार समथ, रामदास और

सन्त तुकाराम ऐसे ही मिमले थे । एक नदी के पिकनारे इन दो सन्तों के बीच क्या बातचीत होती है, यह देखने के लिलए कJतूहल से हजारों लोग एकत्र हुए थे । एक ने पानी में पत्थर फें का, दूसरे ने आ काश

की ओर उँगली उ�ायी । दोनों पिनकल गये । इसका अथ, क्या है ? एक ने कहाः जैसे पत्थर पानी में डूबता है, ’’ वैसे ये लोग संसार में डूबे रहे हैं । दूसरे ने कहाः क्या करें ? प्रभु की इच्छा !’’ लेपिकन आज मैं तुम्हें बापूजी की एक मी�ी बात सुनानेवाला हूँ । यरवदा- जेल में महात्माजी नें सन्

1932 में अनशन शुरु पिकया था । अंगे्रजों ने हरिरजनों को पिहन्दू- समाज से हमेशा के लिलए अलग कर देने की योजना बनायी थी । महात्माजी के लिलए यह बात असह्य हो गयी । शरीर का एक अंग

काटकर अलग कर देना पिकसे सह्य होगा ? और पिहन्दू- समाज के लिलए वह स्थायी कलंकरूप बन गया होता । इसलिलए महात्माजी ने उपवास शुरू पिकया । इंग्लैंड के उस समय के बडे़ वजीर मैक्डोनाल्ड ने

जो फैसला जापिहर पिकया था, उसे रद्द कराने के लिलए वह उपवास था । भागदJड़ शुरू हुई । यरवदा-

जेल भारत का राजनैपितक चचा,- के्षत्र बना । प. मदनमोहन मालवीय आये । राजाजी और डा. बाबासाहब अम्बेडकर आये । अंत में पूना- करार स्वीकृत हुआ, जो अम्बेडकर को मंजूर था । सबको

आनंद हुआ ।उपवास- समान्तिप्त के समय वहाँ कJन- कJन थे ? देशबनु्ध दास की पत्नी वासन्तीदेवी आयी थीं ।

सरोजिजनीदेवी थीं । मदनमोहन मालवीय थे । और थे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ । वे महात्माजी के पास आये । आम्रवृक्ष के नीचे महात्माजी की खठिटया थी । राष्ट्रपिपता लेटा हुआ था । उपवास समाप्त होने को था । रवीन्द्रनाथ महात्माजी के पास गये ।

महाकपिव भावना- पिवभोर हो गये । वे झुके और महात्माजी के वक्षः- स्थल पर लिसर रखकर वह महान्कवीन्द्र, गुरुदेव नन्हें बच्चे की तरह रो पडे़ ! वह दृश्य आँखों के सामने आते ही मैं कई बार गदगद्

हो उ�ा हूँ ! भारत का सारा सत्य, लिशव, सुन्दर उस समय यरवदा में इकट�ा हुआ था । महान् प्रसंग ! को प्रर्णाम !

19. नसीहत देनेवाले बापू एक बार बंगाल के सफर में गांधीजी एक जमीनदार के घर �हरे थे । यह जमींदार अपनी आदत के

अनुसार हर काम के लिलए नJकरों का उपयोग करता था । नJकरों की सारी भागदJड़ इस जमींदार का काम करने के लिलए थी । एक ठिदन बँगले के बरामदे में सदा की भाँपित गांधीजी प्राथ,ना के लिलए उच्च आसन पर बै�े । उनकी

प्राथ,ना और बाद का प्रवचन सुनने के लिलए बहुत सारे लोग सामने बै�े थे । उन ठिदनों गांधीजी बTी बुझाकर प्राथ,ना पिकया करते थे । प्राथ,ना के समय जमींदार गांधीजी के पास आकर बै�ा । प्राथ,ना

शुरू होने से पहले गांधीजी ने जमींदार को बTी बुझा देने को कहा । बTी का बटन जमींदार के लिसर पर ही था । परन्तु अपनी आदत के अनुसार उन्होंने नJकर को बुलाया ।

इतने में चमत्कार हुआ । बत्तिTयाँ एकाएक बुझ गयीं और अंधेरे में प्राथ,ना का आरम्भ हुआ । गांधीजी ने स्वयं उ�कर चट से बटन दबा ठिदया था ।

“ प्राथ,ना के बाद प्रश्नोTर के समय गांधीजी ने प्रसंगवशात् कहाः आजकल के पढे़- लिलखे और धनी लोगों को शरीर- श्रम करने में लhा आती है, उसे वे हीन काम मानते हैं, लेपिकन यह गलत है । गीता

में तो कहा है पिक जो शरीर श्रम न करके खाता है, ’’वह चोर है । जमीदार को अपनी भूल मालूम हुई । उस पर पिकया गया व्यंग वह भाप गया और बाद में...

बाद में एक मजेदार बात हुई । भीड़ के कारर्ण पास की एक टेबुल लुढ़क गयी और उस पर रखा चीनी मिमट्टी का गमला नीचे पिगरकर चूर- चूर हो गया । फJरन जमींदार उच्च आसन से कूद पडा़ और

फूटे गमले के टुकडे़ समेटने लगा । थोडी़ ही देर में उन टुकडो़ को बटोरने के लिलए नJकर दJडे़ आये । परन्तु मालिलक ही घुटने के बल बै�कर टुकडें बटोर रहा था ।

यह दृश्य गांधीजी ने नहीं देखा । परन्तु उनके शब्दों ने तो अनजाने ही अपना काम कर ठिदया था । बापूजी का दैपिनक जीवन नसीहतों से भरा हुआ था ।

उनके जीवन का प्रत्येक क्षर्ण संसार को संन्देश देता था ।20. इंग्लैण्ड आने के लिलए तीन शत�

गांधीजी सन् 1931 में लन्दन गये थे, तब मिमस म्युरिरल लिलस्टर की गरीब बस्ती में �हरे थे । म्युरिरयल बहन उससे पहले एक बार भारत आयी थीं । तब बापू साबरमती- आश्रम में रहते थे । “ बहन ने कहाः आप इंग्लैंड आइये न !’’

“ पिकसलिलए आऊँ ? आप लोगों को लिसखाने लायक मेरे पास अभी कुछ नहीं है । हमारा सत्याग्रह का ’’प्रयोग सफल होने दीजिजये । पिफर देखा जायगा ।

“बापू, ’’ मेरा मतलब यह नहीं था पिक आप हमें लिसखाने आइये ।“ पिफर क्यों आऊँ ?’’

“ ’’ हमसे सीखने आइये । “गांधीजी के चेहरे पर खुशी खिखल उ�ी । बोलेः सच, वहाँ कइयो से मिमलना होगा । जाज, डेपिवस

वगैरह के अनुभव जानने को मिमलेंगे । ’’ आना तो चापिहए । मैं आऊँगा ।

“ अच्छी बात है । कब आयेंगे ?” “ ’’ मेरी शत, कबूल कीजिजये ।“ ’’ बताइये तो सही ।“ मैंचेस्टर के मिमल- मालिलकों से कपिहये पिक यहाँ वे कपडा़ न भेजें । पार्थिल(यामेंट के सदस्यों और

मन्तिन्त्रमण्डल से कपिहये पिक भारत को स्वराज्य दे ठिदया जाय । तीसरी बात यह पिक पि�ठिटश सTा के कारर्ण हमारे यहाँ जहाँ- तहाँ शराब फैल रही है । शराब की आमदनी से यहाँ लिशक्षर्ण ठिदया जाता है ।

यह पाप है । अपिफम का भी व्यापार भारत में इन्होंने चला रखा है । अफीम तो बुरी है ही, शराब उससे भी बुरी है । अफीम तो खानेवाले को ही नुकसान पहुँचाती है, शराब सारे घर को उजाड़ती है । स्त्रिस्त्रयों पर जो पिबतती है, वह पूछो ही मत । इसलिलए वहाँ जाकर यह प्रचार कीजिजये पिक भारत में शराब और अफीम बन्द होनी चापिहए । आप ये तीन काम कीजिजये । पिफर मैं एक करोड़ भारतीयों के

हस्ताक्षर लेकर, ’’ अपने खच, से पिवलायत आऊँगा और कहूँगा पिक भारत के पिवचार को मान्य करो ।“ जो भी कर सकँूगी, ’’मैं करूगी। - म्युरिरयल बहन ने कहा । बापू के देहावसान के बाद वह बहन

“ भारत आयी थीं । सेवाग्राम में गांधीजी की कुठिटया में खडी़ रहीं। बोलीः बापू के पिबना बापू की कुटी ’’ “ । उनकी आँखें भर आयीं । पिफर बोलीः यहाँ छोटे बच्चों को आय,नायकम् और आशादेवी पढा़ते हैं ’’ । बापू की आत्मा यहाँ सव,त्र है ।

21. अमराकी पत्रकारों को मJन का पा� सन् 1931 में गांधीजी जब इग्लैंड में थे, तब अमरीकी संवाददातोओ ने गांधीजी को एक ठिदन

भोजन और भार्षर्ण के लिलए आमंपित्रत पिकया । गांधीजी ने आमन्त्रर्ण स्वीकार कर लिलया । मीराबहन साथ थीं । गांधीजी के लिलए शुद्ध शाकाहार का प्रबन्ध था । गांधीजी बोलने के लिलए खडे़ हुए । बोलेः

“ संवाददाताओं को संयम सीखना जरूरी है । मैं आपसे जो भी कहूँगा, वह न पिनजी बात है, न नयी । परन्तु मैं आपको संयम लिसखाना चाहता हूँ । आज के ठिदन आप लोग मJन रखें । यानी मैं यहाँ जो भी बोलँूगा, ’’उसे लिलखकर कहीं न भेजें । सारे संवाददाता लिलख लेने के इरादे से जमा हुए थे । सब पिवत्तिभन्न पत्रों में भार्षर्ण की रिरपोट, प्रकालिशत

कराने के लिलए कलम खोलकर तैयार थे । परन्तु गांधीजी के पिनवेदन को उन लोगों ने मान लिलया । और उन अमरीकी संवाददातोओं ने न तो कुछ नोट लिलया, न ही कुछ प्रकालिशत पिकया ।

22. सम्राट् से भेट ! बापू उस समय लन्दन में थे । वे वहाँ दरिरद्रनारायर्ण के प्रपितपिनमिध के नाते गये थे । पि�ठिटश सरकार के

पिनमन्त्रर्ण से गये थे । वे अपने को पि�ठिटशों का मेहमान मानते थे । बर्तिक(घम पैलेस से राजा और रानी से मिमलने के लिलए पिनमंत्रर्ण आया । बापू के सामने प्रश्न खडा़ हुआ

पिक जाँय या नहीं । उधर पिहन्दुस्तान की जनता पर सरकार ने हलिथयार तान रखे हैं । मैं क्या इधर सम्राट् का पिनमन्त्रर्ण स्वीकार करता रहूँ । परन्तु मैं पि�ठिटशों का अपितलिथ हूँ । मैं व्यलिक्तगत तJर पर आया होता तो सम्राट् के पिनमंत्रर्ण को �ुकरा सकता था । परन्तु आज तो मैं उनके अपितलिथ के रूप में

हूँ । मुझे जाना चापिहए । अंन्त में बापू ने जाने का पिनर्ण,य पिकया । लेपिकन पि�ट्श अमिधकारिरयों से कहाः “ मैं अपनी पोशाक नहीं बदलँूगा । मैं अपनी पिनत्य की पोशाक में ही आऊँगा । हज, न हो तो बताइये’’।

उTर मिमला पिक कोई हज, नहीं है । पि�ठिटश- सम्राट् से मिमलने के लिलए भारतीय जनता का हृदय- सम्राट् घुटने तक का कच्छ पहनकर गया ।

साम्राज्य का अत्तिभमानी चर्थिच(ल इससे लाल- पीला हो गया था । परन्तु उस कच्छ के अपार वैभव की मपिहमा चर्थिच(ल भला क्या जाने !

23. भारत का बादशाह गांधीजी यरवदा में थे । पिकसी पिवदेशी ने गांधीजी को एक पत्र लिलखा था । पता नहीं, वह पिवदेशी उम्र

से छोटा था या बडा़ । शायद वह बालक रहा होगा । अन्थया ऐसी पिनम,लता कैसे आती ? उस पत्र में क्या था, कJन जानता है ? आज वह पत्र कहीं है भी या नहीं, मालूम नहीं । परन्तु ठिदल्ली

के राजघाट पर जो प्रदश,नी हुई, उसमें उस पत्र का लिलफाफा रखा था । उस लिलफाफे पर का पिनम्न पता पढो़ और गदगद होओः

ToThe King of India,Delhi,(India)[ भारत के बादशाह को, ठिदल्ली । (भारत)]

यह पता उस पत्र पर था । अन्दर जो बातें लिलखी थीं, उन पर से मालूम हुआ पिक पत्र गांधीजी को लिलखा गया था, इसलिलए वह पत्र आखिखर यरवदा पहुँचा । भारत का बादशाह पि�ठिटशों की जेल में था

। भारतीय जनता का सच्चा सम्राट् इंग्लैण्ड में नहीं था । पत्र भेजनेवाले उस अज्ञात व्यलिक्त को लगा पिक भारत के सम्राट् महात्माजी हैं । पिकतना बडा़ सत्य है ! दूसरे राजा आयेंगे, जायेंगे । परन्तु इस

राजा का लिसहासन तो भारतीयों के ही नहीं, संसार के सब लोगों के हृदय में सनातन काल तक ज्जिस्थर रहेगा । क्योंपिक सत्य और पे्रम की बुपिनयाद पर वह चिस(हासन ज्जिस्थर है ।

24. बच्चे और बापू बापू को छोटे बच्चों से बडा़ प्यार था । और बच्चों को भी बापू से पिवशेप प्रेम था । सेवाग्राम में

बापूजी के नाती रहते थे । वे बापू को खूब तंग करते थे । ‘ ’एक नन्हा नाती डेढ़ वर्ष, का था । वह गांधीजी के आगे खडा़ रहता और लगातार बापूजी -‘ ’ बापूजी

लिचल्लाया करता । गांधीजी न ध्यान देते, न जवाब । आसपास के सारे लोग पिवनोद देखकर हँसने लगते ।

गांधीजी सन् 1944 में जेल से छूटकर शान्तिन्तपिनकेतन गये थे । जवाहरलालजी की पुत्री इंठिदरा वहीं ‘ थी । राजीव उसका छोटा पु्त्र था । गांधीजी को देखते ही राजीव बोल पडाः जय पिहन्द, बापू !’’ ‘ बापू का ठिदल प्यार से भर आया और बोलेः जय पिहन्द, राजीव !” एक बार सेवाग्राम में गांधीजी घूमने पिनकले । घूमते समय भी मुलाकातें होती थीं । चचा, थी पिक

गांधीजी ठिदल्ली जानेवाले हैं । साथ में जो नाती था, “उसने पूछाः बापूजी, आप ठिदल्ली जानेवाले हैं, है न ?”

“ ’’ हाँ बेटे ।“ पिकसलिलए जायेंगे ?” “ ’’ वाइसराय से मिमलने ।“ हमेशा आप ही उनसे मिमलने जाते हैं । वाइसराय आपसे मिमलने क्यों नहीं आते ?”

यह प्रश्न सुनकर सब हँस पडे़ । बापूजी ने उस नाती की पी� पर प्यार से मुक्का जमा ठिदया । बापूजी तब पंचगनी में थे । दादर के मोतीवाले लागू अपने बच्चे के साथ तब पंचागनी थे । एक बार गांधीजी घूमने पिनकले । लागूजी का बच्चा भी साथ था । गांधीजी की छडी़ उसने हाथ में ली । एक

लिसरा उसके हाथ मे, दूसरा गांधीजी के हाथ में । बच्चा भागने लगा । बापू भी भागने लगे । उस वक्त का लिचत्र अजर- “ अमर है । उस लिचत्र के नीचे यह लिलखा हुआ तुमने देखा होगाः नेता को ले

’’ चलनेवाला बालक । गांधीजी जुहू में थे। सन् 1944 के बाद की बात है । प्राथ,ना जुहू में होती थी । बम्बई से हजारों

लोग प्राथ,ना में जाते थे । एक ठिदन एक लड़का दादर से पैदल चला। फल- फूल लेकर जुहू पहुँचा।

बापूजी से मिमला । उनके चरर्णों में फूल चढा़ये, फल सामने रखे । राष्ट्रपिपता ने उसे पास में पिब�ाया, उसे आशीवा,द ठिदया । बापूजी का परम मंगल हाथ पी� सहलाये, इससे अमिधक महान् भाग्य क्या हो

सकता है !25. नमक- सत्याग्रह

सन् 1930 में महात्माजी सत्याग्रह शुरू करनेवाले थे । अभी यह पिनत्तिश्चत नहीं हुआ था पिक कJन- सा सत्याग्रह करनेवाले हैं । रवीन्द्रनाथ �ाकुर सन् 30 के प्रारम्भ में साबरमती- आश्रम आये हुए थे ।

“उन्होनें पूछाः महात्माजी, सत्याग्रह का स्वरूप क्या रहेगा ?”“ मैं ठिदन- ’’ रात सोच रहा हूँ । अभी प्रकाश नहीं मिमला है बापू बोले । आगे चलकर बापूजी को नमक

ठिदखाई ठिदया । दादाभाई नJरोजी ने 50 वर्ष, पूव, लिलख रखा था पिक नमक के बारे में जो अन्याय हो रहा है, वह जिजस ठिदन जनता के ध्यान में आयेगा, उसी ठिदन वह पिवद्रोह कर उ�ेगी । नमक तैयार करने में जो खच, आता है, उससे सैकडो़गुना अमिधक उस पर सरकारी कर लगा है । बंगाल के बाजार

में पिवलायती नमक पिबकता है । मद्रास के इलाके में जो नमक के आगर थे, वे सब नष्ट हो गये ।मद्रास- राज्य में तो गरीबी अत्यमिधक है । समुन्दर के पिकनारे पर बसे लोगों के पास नमक खरीदने के

लिलए भी पैसा नहीं है। लेपिकन पेट में नमक न जाय तो कैसे चलेगा ? जानवरों की खुराक में भी हम नमक मिमलाते हैं । मद्रास के पास हमारे गरीब भाई रात के समय समुद्र- तट पर जाते हैं और वहाँ की जमीन चाटते हैं, तापिक पेट में कुछ तो नमक का अंश पहुँचे । समुद्र- तट पर अपने- आप बननेवाले नमक की मिमट्टी में मिमलाने के लिलए पि�ठिटश सरकार ने कम,चारी तैनात कर रखे थे । नमक में या खाद्द पदाथ, में मिमट्टी मिमलाना पिकतना बडा़ पाप है !

‘ ’ ऐसे नमक की ओर राष्ट्रपिपता का ध्यान गया । नमक का सत्याग्रह शब्द भारतभर में फैला । सत्याग्रह का यह नया शब्द, कानून भंग का शब्द रसोई- घर तक पहुँचा । माँ- बहनें भी सत्याग्रह करने

पिनकल पडी़ । सन् 1930 की वह अपूर्ण, लडा़ई ! नमक का सत्याग्रह, जंगल का सत्याग्रह, करबन्दी- इस तरह

लडा़ई का स्वरूप व्यापक होता गया । परन्तु सबसें चार चाँद लगा ठिदये वानर- सेना ने । भारतभर के बच्चे बज्जिच्चयाँ राष्ट्रीय संग्राम में शामिमल हुईं । सुबह- शाम राष्ट्रीय गीत गाते हुए भारतभर में बालक-

बालिलकाओं की सेनाएँ घूमने लगीं । जैसे राम के वानर थे, लिशवाजी के मावले थे, वैसे बापूजी के ये बालक थे । सारे राष्ट्र को इन तेजस्वी बालकों ने देश- भलिक्त की दीक्षा दी ! छोटे बालकों ने लाठि�याँ

सहीं । कल्यार्ण में आ� साल की एक बच्ची ला�ी की मार से बेहोश हीकर पिगर पडो़ । बापू जेल से छूटे । सत्याग्रह रूका । वे गदगद होकर बोलेः ईश्वर पर भरोसा रखकर मैंने आन्दोलन शुरू पिकया था । परन्तु छोटे बचे्चयों उ�ेगे, देशभर में वानर- सेनाएँ खडी़ होंगी, इस बात की मुझे

कल्पना भी नहीं थी । छोटे बच्चों की पिनष्पाप साधना में असीम सामथ, होती है । प्रभु की कृपा है ! ’’ उसीके हाथ में यह आन्दोलन था । उसने ही सबको प्रेरर्णा दी ।

26. स्त्रीत्व- रक्षा के प्रहारी दूसरा पिवश्व- युद्ध शुरू हो गया था । यूरोप के राष्ट्र एक के बाद एक पिगरते जा रहे थे । इंग्लैण्ड संकट

में था । वह देखो, उपपिनवेशों से फJजें आने लगीं । इंग्लैण्ड में उतरने लगीं । एक आस्vेलिलयन सेना बंबई में उतरी । उसे पिवलायत जाना है । लडा़ई के मैदान में मरने के लिलए जानेवाले सैपिनकों को हर तरह की छूट रहती है । पिफर गुलाम भारत

में गोरे लिसपाहीयों के मिमजाज चढे़ हुए हों, तो क्या आश्चय, ! उन आस्vेलिलयन गोरे टामिमयों ने बम्बई में उपद्रव कर ठिदया । पिकसीकी टमटम पर चढ़ जाते, पिकसीकी मोटर थाम लेते । परन्तु सबसे बुरी बात

तो मपिहलाओं के साथ उनके व्यवहार की थी । पिगरगाँव, ग्रैंट रोड वगैरह भागों में भारतीय नारिरयों का घूमना- पिफरना मुहाल होने लगा । टामी छेड़छाड़ करते थे । सुना है, आँचल भी पकड़ कर खींचते थे ।

परन्तु बम्बई के अखबार चुप थे । महाराष्ट्र के पिहन्दुत्व के अत्तिभमानी समाचारपत्र भी �ण्डे पडे़ थे ।

आखिखर राष्ट्रपिपता के कान तक बात पहुँची । वह शांत चिस(ह प्रकु्षब्ध हो उ�ा । हरिरजन में बापूजी ने “ लिलखाः सैपिनक अमिधकारी कहाँ हैं ? गवन,र क्या कर रहे हैं ? बम्बई के मेयर पिकधर गये ? हिह(सा- ’’ अहिह(सा का यह सवाल नहीं है । स्त्रिस्त्रयों की आबरू का रक्षर्ण होना ही चापिहए । ज्यों ही महात्माजी

ने अपनी पिनभ,य आवाज बुलन्द की, त्यों ही दूसरे अखबारों की लेखनी खुली । महात्माजी यानी मूर्तित(मन्द पिनभ,यता ।

27. गांधीजी और लोकमान्य पितलक लोकमान्य पितलक के प्रपित महात्माजी के मन में बडा़ आदर था । परन्तु उन्हें भी नम्रतापूव,क, लेपिकन

पिनभ,य होकर सुनाने से महात्माजी कभी पिहचपिकचाते नहीं थे । सन् 1917 की बात है। कलकTा में कांग्रेस का अमिधवेशन था । डा. एनी बेसेण्ट उस वर्ष, कांगे्रस की अध्यक्षा थीं । अमिधवेशन के पिनमिमT से दूसरी भी साव,जपिनक सभाएँ होती थीं, नेताओं के भार्षर्ण होते थे । वह देखो, एक पिवराट् सभा हो रही है । हजारों लोग इकट्ठा हुए हैं । वहाँ लोकमान्य पितलक, गांधीजी

आठिद महापुरुर्ष बै�े हैं । लोकमान्य का भार्षर्ण हुआ । वे अंगे्रजी में बोले । उनके बाद गांधीजी “ उ�कर बोलेः लोकमान्य का सुन्दर, सू्फर्तित(- दायक भार्षर्ण पिहन्दी में हुआ होता तो अमिधकांश लोग समझ पाते । यह अंगे्रजी भार्षर्ण बहुत ही कम लोग समझ सके होंगे । भार्षर्ण जिजनकी समझ में न आया हो, ’’ वे हाथ ऊपर उ�ायें । “ हजारों हाथ उ�े । गांधीजी ने लोकमान्य से कहाः भार्षर्ण जनता की समझ में आना चापिहए न ?’’

लोकमान्य पिफर से भार्षर्ण के लिलए खडे़ हुए । जनता उनकी भी भगवान् थी । लोकमान्य को पिहन्दी में बोलने का अभ्यास नहीं था । पिफर भी टूटी- फूटी पिहन्दी में वे बोले । लोगों के चेहरे खिखल उ�े ।

महात्माजी को अपार आनन्द हुआ हुआ । सही अथ, में राष्ट्रीयता और राष्ट्रैक्य का उदय हो रहा था ।28. इच्छा- शलिक्त का वह चमत्कार

आज एक करुर्ण और गंभीर संस्मरर्ण सुना रहा हूँ । सन् 1943 के ठिदन थे । उन ठिदनों को कJन भूल सकता है ? ‘ ’भारत छोडो़ - आन्दोलन का जोर कम हो गया था । जयप्रकाशजी जेल से भागकर पिफर

से संग�न मजबूत बनाने में लगे थे । आजाद दस्ते जगह- जगह कायम कर रहे थे । इतने में आगाखाँ महल में गांधीजी का उपवास प्रारम्भ हुआ । सबके मुँह सूख गये । लाड, लिलनलिलथगो राष्ट्रपिपता को छोड़ने को तैयार नहीं थे । उधर चर्थिच(ल जैसे जिजद्दी साम्राज्यवादी व्यलिक्त प्रधानमन्त्री था । गांधीजी की उसकों क्या कद्र थी ? बम्बई से कुछ व्यलिक्त गांधीजी से मिमलने जा सकते थे । उनके द्वारा कुछ समाचार मिमल जाता था । गांधीजी का स्वास्थ्य उस ठिदन लिचन्ताजनक था । नाडी़ �ीक नहीं चल रही थी । डाक्टर असहाय- से

हो गये थे । कहते हैं पिक उन्होंने सरकार को बता ठिदया था पिक हम महापुरुर्ष को जबरदस्ती नली से अन्न कभी नहीं देंगे, ऐसी पिवडम्बना वे नहीं करेंगे । लेपिकन कहीं गांधीजी का देहान्त हो जाय तो ?

सरकार ने पिनश्चय कर रखा था पिक तीन ठिदन तक इस समाचार का देश को पता नहीं लगने ठिदया जायगा । खास- खास जगहों पर सेना तैनात कर दी गयी था । यह भी सुना था पिक जरुरत पड़ने पर

चन्दन की लकडी़ भी सरकार ने तैयार रखी थी । उस ठिदन बम्बई में जयप्रकाशजी, अच्युतराव आठिद कुछ साथी चिच(ता कर रहे थे । काय,कता, सोच रहे

थे पिक भले सरकार यह समाचार दबाने की कोलिशश करे, लेपिकन लाखों की तादाद में पच� छापकर जनता को वे जरूर जानकारी कर, देंगे । कब क्या समाचार आये, क्या ठि�काना ?

“ ’ जयप्रकाश आप पचा, लिलखिखये । सभी भार्षाओं में उसका अनुवाद कराना होगा । इस समय आँसू ”पोछ लीजिजये और लिलखिखये - अच्युतराव ने कहा । साथी गदगद हो रहे थे । गांधीजी अपने बीच में से

उ� गये । हैं, यह कल्पना करके लिलखना था । हम चालीस करोड़ लोग होते हुए उन्हें जेल से छुडा़ नहीं सके ! पिकतनी शम,नाक बात है । जयप्रकाशजी ने लिलखने के लिलए कलम- कागज उ�ाया । एक

शब्द लिलखते थे तो आँसू की बँूद से वह मिमट जाता था । इस प्रकार आँसुओं से भीगा हुआ पत्रक तैयार हुआ । उसका मरा�ी में अनुवाद करने के लिलए एक प्रपित मेरे पास आयी । इतने में समाचार आया पिक नाडी़ �ीक हो गयी । संकट टला, राष्ट्रपिपता अब नहीं जायगा । महात्मा

की संकल्प- शलिक्त की तो वह पिवजय नहीं ? वह एक चमत्कार ही था । स्वराज्य अपनी आँख से देखे पिबना महापुरुर्ष जाता कैसे ? उस रात का स्मरर्ण होता है, तो आज भी हृदय अनेक स्मृपितयों से भर आता है ।

29. हरएक काम भगवान् की पूजा साबरमती का आश्रम अभी- अभी शुरू हुआ था । दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में सत्याग्रह का सफल प्रयोग

करके गांधीजी स्वदेश लJटे थे । गुरु ना. गोखले की सलाह के अनुसार सारा भारत घूमकर वे साबरमती के पिकनारे आश्रम स्थापिपत करके साधना कर रहे थे । महात्माजी कभी- कभी अहमदाबाद

के बाररूम में भी जाते और चचा, पिकया करते थे । सरदार वल्लभभाई ताश खेलने बै�ते । गांधीजी की ओर कोई खास ध्यान नहीं देता था । परन्तु धीरे- धीरे कुछ वकीलों में कुतूहल पैदा होने लगा ।

गांधीजी के पास कुछ काम माँगने की उनको इच्छा होने लगी । एक ठिदन आश्रम में गांधीजी अपने सालिथयों के साथ काम कर रहे थे । पूरा स्वावलम्बन था ।

महात्माजी और पिवनोबाजी साथ- साथ एक ही चक्की पर बै�कर पीसते थे । पिकतना महान् अनुभव ! लेपिकन आज पिपसाई नहीं, अनाज- सफाई चल रही थी । पहले सफाई, पिफर पिपसाई । गांधीजी,

पिवनोबाजी और अन्य साथी अनाज साफ करने बै�े थे । इतने में कुछ वकील लोग आये । उनके बै�ने के लिलए खजूर की चटाई पिबछाई गयीं ।

“ ’’बैठि�ये - गांधीजी बोले ।‘ हम बै�ने नहीं आये । हमें कुछ काम दीजिजये । आपका कुछ-न- कुछ काम करने के पिवचार से हम

’’ आये हैं ।‘‘ ’’�ीक है । खुशी की बात है । - इतना कहकर दो- तीन थालिलयों में अनाज लेकर उन वपिकलों के

आगे रख ठिदया ।“ ’’ यह अनाज साफ कीजिजये । �ीक से साफ कीजिजये ।“ हम क्या यह ज्वार- बाजरा साफ करते बै�ें गे ?” “ ’’ जी हाँ । इस समय यही काम है ।

क्या करते बेचारे ? वे सफेदपोश वकील अनाज साफ करते बै�े । कुछ देर बाद नमस्कार करके चले गये । पिफर कभी काम माँगने नहीं आये । गांधीजी की दृमिष्ट में स्वतंत्रता के लिलए संघर्ष, करना,

अस्पृश्यता पिनवारर्ण के लिलए उपवास करना जिजतना महत्व का काम था, उतना ही महत्व का कामदाल- चावल बीनना भी था । उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा पिक यह तो औरतों का तुच्छ काम है । सेवा

का प्रत्येक कम, पपिवत्र है । हरएक कम, में अपनी आत्मा उँडेल़ दो । वह कम, �ीक से करना यही परमेश्वर की पूजा है, यही मोक्ष है ।

30. गांधी का अनोखा व्यायाम संसार के सभी महापुरुर्ष सादगी से रहते आये हैं । उन्हें कोई भी छोटा काम करने में संकोच नहीं

होता था । भगवान् कृष्र्ण गायें चराते, घोडे़ हाँकते, जू�न उ�ाते थे । पैगम्बर मुहम्मद ऊँट चराते थे, अपना कपडा़ स्वयं सीते थे, गोशाला जाकर दूध दुहते थे, मज्जिस्जद में झाड़ू लगाते थे । महात्मा पुरुर्ष

सेवा के पिकसी काम को छोटा नहीं समझते थे । वे खेलते भी थे । गोपालकृष्र्ण ग्वालों के साथ खेलते ‘ ’ थे । कृष्र्ण भगवान् ने खेलों को एक ठिदव्यना प्रदान की । उनका पेद्दा लँगोठिटया मिमत्र अमर हो गया । मुहम्मद पैगम्बर भी बच्चों के साथ रमते थे, खेलते थे, उनको पिकस्से- कहापिनयाँ सुनाते थे ।

ईसामसीह को भी बच्चों से प्यार था । महात्माजी को भी बच्चों से बेहद प्यार था । उन ठिदनों वे दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में रहते थे । रहन- सहन

सादा था । सब कुछ स्वावलम्बन से चलता था । सुबह छह बजे ही उ�कर सब पीसने में लग जाते ।

ठिदनभर का आटा पुरुर्ष पीस देते थे । पिपसाई दस- पन्द्रह मिमनट चलती थी । उतना पया,प्त हो जाता था । पीसते समय हँसी- मजाक चलता था । चक्की चलाने में व्यायाम के साथ आनन्द भी मिमलता था

। चक्की की आवाज में हँसने की आवाज मिमल जाती थी । बडा़ मजा आता था । पानी भरना, झाडू़लगाना, पाखाना साफ करना, बत,न मलना- सभी काम घर में ही होता था । शरीर को व्यायाम होता

और काम भी अच्छा होता था । एक मजे की बात सुनाता हूँ । सब जानते ही हैं पिक महात्माजी टहलने का व्यायाम रोज करते थे ।

जानते हो, मैं कJन- सा पिकस्सा सुनाने वाला हूँ ? महात्माजी पीसने लगते थे, पाखाना साफ करते थे, परन्तु एक पिनराला ही व्यायाम भी करते थे, वह बडा़ मजेदार था । बूझो तो ! क्या दण्ड- बै�क लगाते

थे ? नहीं। आसन करते थे ? नहीं । तो पिफर कJन- सा व्यायाम करते होंगे ? समझे कुछ ? महात्माजी डोरी पर से छलाँग मारने में बडे़ मापिहर थे । सुबह- सुबह हाथ में रस्सी लेकर कूदना शुरू करते । वैसे

आश्रम में हँसी सुनाई नहीं देती थी, लेपिकन पीसते समय और रस्सी पर की उड़ानें भरते समय हँसी फूट पड़ती थी । बडा़ मजा आता था । संसार को अहिह(सा का सन्देश देनेवाला, भारत को आजादी

ठिदलाने वाला यह महात्मा और राष्ट्रपिपता दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में सुबह हाथ में रस्सी लेकर कूदा करता था । कोई लिचत्रकार महात्माजी का यह लिचत्र बनायेगा तो पिकतना अच्छा रहेगा ? गोपालकृष्र्ण गोकुल में

लगोरी खेलता था । महात्माजी रस्सी पर उडा़न भरते थे ।31. गांधीजी की कम,- पूजाः कताई

सन् 1931 के ठिदन थे । सन् 30 का महान् सत्याग्रह स्थपिगत हो चुका था । पं मोतीलाल नेहरू हाल में ही पिनजधाम लिलधारे थे । जवाहरलालजी को ढाढ़स बँधाकर गांधीजी ठिदल्ली लJट आये थे । सारे

राष्ट्र का भार उनके लिसर पर था । उन्हें शोक करते बै�ने को समय नहीं था । आजादी की लडा़ई से राष्ट्र नये तेज से चमक रहा था । परन्तु वाता, अभी होने को थी । अन्तिन्तम शत�

तय करना बाकी था । पिवदेशी माल की दूकानों पर पिपकेटिट(ग का हक, समुद्र के पानी से बना नमक इकट्ठा करने या अपने उपयोग के लिलए बना लेने का हक और इसी तरह अन्य कुछ प्रश्नों पर

वाइसराय इर्तिव(न और गांधीजी के बीच बातचीत हो रही थी । दूसरी भी काली छायाएँ मँडरा रहीं थीं । सरदार भगतचिस(ह और उनके बहादुर सालिथयों को फाँसी की सजा सुनायी गयी थी । उनके बारे में भी गांधीजी यथासंभव प्रयत्न कर रहे थे । सारे राष्ट्र का कारोबार उन्हें सँभालना था ।

उन ठिदनों महात्माजी को 17-18 घंटे काम करना पड़ता था । एक ठिदन 22 घंटे काम करना पडा़ । वाइसराय के साथ रात के 12 बजे तक बातचीत होती थी । एक ठिदन रात बारह बजे के बाद

गांधीजी घर लJटे । दो बजने को आये । वह राष्ट्रपिपता क्या घर आकर सोया होगा ? थका हुआ वह शरीर क्या पिबस्तर पर पडा़ होगा ? नहीं । घर आकर वे चरखा ले बै�े । क्योंपिक रोज की कताई बाकी

थी । कातना तो उनके लिलए कम,- पूजा थी । चरखे को वे ईश्वर करते थे । क्योंपिक चरखा गरीब को रोटी देता है । चरखे का धागा उनको दरिरद्रनारायर्ण से जोड़ता था, गरीबों के श्रम- जीवन से जोड़ता

था । रात को थके- माँदे लJटने पर भी, दो बजे चरखा चलाते बै�नेवाले बापू को मूर्तित( आँखों के सामने आती है, तो हाथ नमस्कार के लिलए जुड़ जाते हैं ।

32. मिमताहारी बापू मद्रास प्रान्त में हरिरजन- यात्रा चल रही थी । एक स्टेशन के पास भोजन की व्यवस्था की गयी थीं ।

बापू ने सोचा पिक यहाँ बकरी का दूध वगैरह कहाँ मिमलेगा ? परन्तु उन्होंने पूछा नहीं । भोजन का समय हुआ । उधर जयघोर्ष हो रहा था । इधर बापू थाली पर बै�े थे । मीराबहन बै�ीं । दूसरे लोग

भी बै�े । बापूजी का खाना समाप्त होने को आया । मीराबहन लिसफ, गोभी की उबली सब्जी खाती थीं । बापू उ�ने को ही थे पिक मेजवान मपिहला आयीं और बोलीः

“महात्माजी, ’’ �हरिरये । यह बकरी का दूध लायी हूँ ।“ बकरी का ?”

“जी, हाँ । चार ठिदन से खास इसीलिलए एक बकरी लायी हूँ । उसे बठिढ़या चारा खिखलाया है, गाजरआठिद, तापिक मी�ा दूध मिमले । यह दूध सात तह कपडे़ से छाना है । भाप में गरम पिकया है । लीजिजये’’ ।

“ ’’ लेपिकन मेरा पेट भर गया है ।“ ’’ ऐसा न कपिहये ।“ ’’ मीराबहन को दीजिजये ।“बापू, ” मेरा भी पेट भरा है ।

गांधीजी ने मीराबहन को इशारा पिकया । उनकी पिनगाहों में यह भाव था पिक इस मपिहला को पिकतना बुरा लगेगा ।

“ मीराबहन ने कहाः �ीक है, ” लाइये ।“ ” लीजिजये । आप ही पीजिजये । वह महात्माजी को पहुँच जायगा । आप सब एक ही हैं ।

मीराबहन ने प्याला खाली कर ठिदया । मन्द- “मन्द मुस्करती हुई बोलीः बापू, सचमुच अमृत जैसा है ”दूध ।

“ तुम्हारे नसीब में था, ” मेरे नहीं । बापू जोर से हँसते हुए बोले । सबको आनन्द हुआ ।33. प्रयत्नशील बापू

गांधीजी से जो गुर्ण सीखने जैसे हैं, उनमें से एक है उनकी काटकसर (मिमतव्यमियता) । गांधीजी अपने पिनत्य- जीवन में इसका बडा़ ध्यान रखते थे पिक कोई भी चीज जरूरत से ज्यादा काम में न ली जाय ।

वैसे करना वे गुनाह मानते थे और चोरी करने जैसे समझते थे । हमें जिजतने की आवश्यकता है, उससे अमिधक पिकसी भी वस्तु का उपयोग करने का अथ, ह,ै दूसरे को उसका उपयोग करने से वंलिचत

रखना, इसी का नाम है चोरी । गांधीजी सेवाग्राम में थे, तब की बात है । उनके आश्रम में अनेक अपितलिथ आते थे- कोई मिमलने आता,

कोई बात करने आता, कोई चचा, करने आता । गांधीजी को कुछ लिलखकर देना होता या पिकसीके पास कोई लिचट भेजनी होती उसके लिलए उन्हें छोटी- छोटी कागज की परलिचयों की जरूरत पड़ती ।

तब वे कोरा कागज उपयोग पिकये हुए कागजों के टुकडे़ काम में लेते थे । सरकारी पत्रक आते थे । उनके चारों ओर पिकनारे पर भरपूर जगह खाली छूटी रहती थी । बाजू के

उस कोरे कागज की पट्टी काटकर गांधीजी उनका उपयोग कर लेते थे । एक बार आश्रमवासी लोग इकट्ठा बै�े थे । गांधीजी ने सामने पडी़ हुई कैं ची उ�ायी और कागज के कोरे पिहस्से की पट्टी काटना शुरू पिकया । उन्हें �ीक से जम नहीं रहा था । पास में बै�े एक

“आश्रमवासी ने कहाः बापू, ’’ कैं ची मुझे दीजिजये । आप �ीक से नहीं काट सकें गे । मुझे आदत है । “ गांधीजी बोलेः नहीं काट सकँूगा तो क्या हुआ ? ’’ कोलिशश करना तो मेरे हाथ में है । इतना कहकर गांधीजी ने काटने का अपना काम जारी रखा । लाख कोलिशश करने पर भी उनसे वह �ीक नहीं कट

रहा था । परन्तु उन्होंने कैसे- वैसे वह काम पूरा करके ही छोडा़ । काम �ीक नहीं बना, पिफर भी तो पूरा तो हुआ ही ।

बापूजी कुछ बातों में बडे़ जिजद्दी थे । कोई कहे पिक फलानी चीज मैं नहीं कर सकता, यह उनको पिबलकुल पसन्द न था । वे मानते थे पिक हर काम उTम रीपित से करने का प्रयत्न प्रामात्तिर्णकता के

साथ करना हरएक का कत,व्य है ।34. सफाई शे्रष्ठ काय,

ठिदल्ली की बात है । गांधीजी पिबरला- भवन में �हरे थे । वे स्नान घर में गये । थोडी़ ही देर पहले से� पिबरला स्नान करके गये थे । उनकी भीगी धोती वहीं पडी़ थी । बापूजी ने वह धोती साफ धो दी ।

पिफर नहाकर अपना अँगोछा सूखने के लिलए फैलाया और बाद में से�जी की धोती भी झटककर फैला “रहे थे । इतने में से�जी आये । उन्होंने बापू के हाथ से झट धोती छीन ली और बोलेः बापू, यह क्या पिकया ?”

‘‘ वहीं पडी़ थी । साफ धोती पर पिकसीका पैर पड़ जाता, इसलिलए धो ठिदया । इसमें क्या बुरा हुआ ? सफाई के काम से बढ़कर महान् काम और कJन- सा है ?”  

35. आगाखाँ- महल में बापू का ठिदन[म‘ ’ भारत छोडो़ आन्दोलन चल रहा था । बापूजी, कस्तूरबा, महादेवभाई, प्यारेलालजी, डा. पिगल्डर, डा. सुशीला नैयर, सरोजिजनीदेवी वगैरह लोग पूना में, आगाखाँ- महल में नजरबन्द थे ।

श्री महादेवभाई तो 15 अगस्त को ही स्वग, लिसधार गये । जेल गये सप्ताहभर भी नहीं बीता था । बा और बापू के मन पर बडा़ [ूर आघात था वह ! सब लोग सारा दुःख पीकर रह गये । जेल में समय कैसे काटे ? रात में कभी- कभी कस्तूरबा, डा. पिगल्डर और अन्य लोग कैरम खेलते थे ।

बा को कैरम बडा़ पिप्रय था । वे अच्छा खेलती भी थीं । बापू भी तरह- तरह के खेल खेलते थे । बैडमिम(टन, हिप(गपांग वगैरह खेलते थे । बापू पहली बार

हिप(गपांग खेलने आये, उस ठिदन वे छोटे बल्ले से गेंद लJटाने को ही थे पिक इतने में वह उनके माथे से टकराकर लJट गया। सब हँस पडे़ ।

एक बार सबने मजे की पोशाक पहनने का पिनश्चय पिकया । डा. पिगल्डर ने बलूची प�ान की पोशाक पहनी । बापू की हँसी रोके न रुकती थी ।

डा. पिगल्डर का जन्म- ठिदन आया, तो बापू ने अपने हाथ से रूमाल पर उनका नाम अंपिकत कर उन्हें रूमाल भेट पिकया । राष्ट्र को मुक्त करनेवाला महात्मा आगाखाँ- महल में लिसलाई- कढा़ई का भी काम

करता था । परन्तु एक बात ने मुझे गदगद कर ठिदया । बा की अवस्था 70 के लगभग थी । बापूजी ने 70 पूरे

कर लिलये थे । समय काटने के लिलए बापू कस्तूरबा को भूगोल लिसखाते थे । पूज्य पिवनोबाजी कहते थेः “ ’’ भूगोल जैसा सरस पिवर्षय दूसरा नहीं है । भारत का पिपता वृद्ध कस्तूरबा को जेल में भूगोल लिसखा

रहा है- यह दृश्य आँख के सामने आते ही मेरा हृदय उमड़ आता है । कैसा मधुर, मंगल, सहृदय दृश्य था !

36. टहलने का व्यायामदाण्डी- कूच के समय गांधीजी के साथ 80 सत्याग्रपिहयों को टुकडी़ थी । दण्डधारी गांधीजी अपना

थैला कने्ध पर लटकाकर सबसे आगे रहते थे । शहामृग ( एक बडा़ और ऊँचा पक्षी) की तरह लम्बी टाँगे भरते हुए वे चलते थे । मंद गपित गांधीजी को कभी पसन्द नहीं थी । घूमने जाते, तब भी तेज चलते थे । घूमना उनका व्यायाम था ।

‘ ’ महात्माजी के साथी सत्याग्रही थक जाते थे । अन्त में महात्माजी ने यंग इंपिडया में व्यायाम पर एक लेख लिलखा । महात्माजी अहिह(सा के उपासक थे, इसका अथ, कई लोग यह करते हैं पिक वे दुब,लता पसंद करते थे । यह पिवलकुल गलत धारर्णा है। महात्माजी नीरोगी और शलिक्तसम्पन्न शरीर चाहते थे । उससे भी अमिधक शलिक्तशाली मन चाहते थे । राष्ट्र को सत्याग्रह का सन्देश देनेवाला राष्ट्रपिपता उस “समय व्यायाम पर लेख लिलखने लगा । और उस लेख में वे लिलकते हैः कम-से- कम टहलने का

”व्यायाम तो सब कर सकते हैं । टहलना सारे व्यायामों का राजा है ।37. हरिरजन- काय, में एक वर्ष,

महात्माजी ने सन् 1932 में हरिरजनों के लिलए उपावास पिकया । साम्प्रदामियक फैसले ( कम्युनलअवाड,) को बदलवा लिलया । डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने सम्मपित दी । महात्माजी ने जेल से हरिरजन

पत्र आरम्भ पिकया । कुछ ठिदन बाद सरकार ने उन्हें छोडा़ । वे अहमदाबाद गये । साबरमती का आश्रम जब्त करने की सूचना उन्होंने सरकार को दी । आजादी की लडा़ई जारी थी । सरकार आश्रम

को ले नहीं रही थी । तब महात्माजी ने उस आश्रम को हरिरजन- सेवा के लिलए हरिरजन सेवक संघ के सुपुद, कर ठिदया और स्वयं सपिवनय अवज्ञा का प्रचार करने के लिलए पिनकल पडे़ । क्योंपिक देशभर में

आन्दोलन चालू था । वे अहमदाबाद के पिनकट एक गाँव में गये । सरकार ने उन्हें पकड़कर यरवदा लाकर रखा । वहाँ से पहले की तरह साप्तापिहक हरिरजन के लिलए लेख लिलखने की सरकार से अनुमपित

माँगी । जिजद्दी सरकार ने अनुमपित नहीं दी । तब पिफर से महात्माजी ने उपवास आरम्भ पिकया । सरकार ने पिफर उन्हें छोडा़ । तब महात्माजी यरवदा गाँव में ही सत्याग्रह करने पिनकल पडे़ । सरकार

ने उन्हें पिफर से पकडा़ । पिफर उन्होंने हरिरजन के लिलए लिलखने की अनुमपित माँगी। सरकार ने पिफर इन्कार पिकया । राष्ट्रपिपता ने पिफर से उपवास शुरू पिकया । पिफर वे रिरहा पिकये गये । सरकार मानो गांधीजी को सत्यपरीक्षा कर रही थी । भले ही सरकार को कोई शम, न हो, लेपिकन गांधीजी तो सद-् अत्तिभरुलिच के उपासक थे । यह चूहे- पिबल्ली का खेल कब तक चलता ? मदान्ध साम्राज्शाही राष्ट्रपिपता

का कदम- कदम पर अपमान कर रही थी । आखिखर महात्माजी ने तय पिकया पिक सरकार छोड़ भी दे, तो भी एक साल जेल में ही हैं, ऐसा मानकर राजनैपितक काय, न पिकया जाय । पिफर असृ्पश्यता- पिनवारर्ण के पिनमिमT सारे देश में दJरा करने

का उन्होंने पिनश्चय पिकया । परन्तु प्रवास पर पिनकलने से पहले पर्ण,कुटी में उन्होंने 21 ठिदन का उपवास पिकया । उस समय के उनके साथी स्वामी आनन्द और पिनजी सलिचव श्री प्यारेलालजी

नालिसक- “जेल में थे । महात्माजी ने उन्हें पत्र में लिलखाः हरिरजन- काय, के लिलए धनी लोग आर्थिथ(क ” सहायता तो देंगे । परन्तु उपवास के द्वारा मैं पहले आध्यास्त्रित्मक पूँजी इकट्ठा कर रहा हूँ ।

38. राजकुमारी को शादी में उपहार पि�ठिटश राजकुमारी का पिववाह होनेवाला था । उस समय लाड, माउण्टबेटन भारत के वाइसराय थे ।

राजकुमारी को क्या भेंट दी जाय ? महात्माजी रोज इस भेट के लिलए सूत कातते थे और उस सूत का रूमाल बुनवाकर भेजनेवाले थे । यह बात केवल माउण्टबेटन को मालूम थी । गांधीजी के हाथ के

सूत के रूमाल का सुन्दर उपहार पि�ठिटश राजकुमारी को उनके पिववाह के अवसर पर भेजा गया । गांधीजी मानो दो राष्ट्रों के हृदयों को धागे से जो़ड़ रहे थे ।

39. सव,त्र आत्मदश,न का पा� गांधीजी बडे़ दृढ़व्रती थे । जो भी व्रत उन्होंने लिलया, उसे कभी तोडा़ नहीं । वे रोज काता करते थे ।

उनकी पिनत्य कताई कभी खंपिडत नहीं हुई । कभी- कभी खुद ही अपनी पूनी भी बना लेते थे । एक ठिदन उनकी कताई नहीं हो पायी थी । पूनी समाप्त हो गयी थी ।

“ आज अपनी पूनी मैं ही बनाता हूँ । लाइये, धुनकी ( युद्ध हिप(जन) ’’ । अच्छी तरह धुन लेता हूँ । यह कहकर राष्ट्र का पिपता रूई धुनने बै�ा । रात का समय था । महात्माजी तंुई- तंुई करते धुनते रहे ।

परन्तु हवा में नमी थी । धुनकी की ताँत नम हो जाती थी । उसमें रूई लिचपक जाती थी । धुनाई अच्छी नहीं हो रही थी ।

पास ही मीराबहन बै�ी थीं । वह तो साक्षात् सेवामूर्तित( थीं । पंच[ोशी में दवा लेकर घूमती रहती थीं । झोपडी़- झोपडी़ में जाती थीं ।“बापू, क्या �ीक से धुनाई नहीं हो रही है ?” “ ’’ रूई लिचपकती है । लेपिकन एक उपाय है ।“ क्या ?” “ नीम की पTी मसलकर उसका रस ताँत पर लगायें, ” तो रूई लिचपकती नहीं ।“ पTी मैं ले आऊँ ?” “हाँ, ” लाओ ।

मीराबहन बाहर गयीं । वह नीम के पेड़ से खासी- भली टहनी ही तोड़ लायीं ।“ ’’ यह लीजिजये पTी । टहनी ही ले आयी हूँ । पत्तिTयाँ खूब हैं ।‘‘ मुट्ठीभर पTी के लिलए इतनी बडी़ टहनी क्यों तोड़ लायी ? और इधर आओ । यह देखो, ये पTे कैसे

सोये हुए- से ठिदखते हैं । व्यथ, ही तुम टहनी लें आयी । जरूरत थी, इसलिलए लिसफ, मुट्ठीभर पत्तिTयाँ ही लाना �ीक था न ?”

महात्माजी बोलते रहे । मीराबहन की आँखें आँसुओं से भर आयीं । पेड़- पJधों पर महात्माजी का यह प्रेम देखकर मीराबहन को एक नया हीं दश,न हुआ । भारतीयों की आध्यास्त्रित्मक वृत्तिT का भाष्य हीं था

वह प्रवचन । सव,त्र आत्मा के दश,न करना सीखें, ‘इसका मूक प्रवचन । ऐसे थे महात्माजी प्रेम-’ लिसन्धु ।

40. गांधीजी की हार्दिद(कता महापुरुर्षों के आँसुओं में और मधुर वार्णी में अपार शलिक्त होती है । ऋजुता ही उनका परा[म होता

है । सुना है पिक स्वामी रामतीथ, की मन्द मुस्कान असरकारक थी । एक बार एक सhन वाद-पिववाद करने श्री रामतीथ, के पास पहुँचे । पिकन्तु रामतीथ, का मधुर हास्य देखकर वाद करना भूल गये और प्रर्णाम करके लJट आये । महात्माजी के पास भी ऐसा ही जादू था ।

एक बार राष्ट्रसभा (कांगे्रस) को काय,कारिरर्णी की बै�क थी । देशबनु्ध दास काय,कारिरर्णी के सदस्य थे “ । इन्होंने अपने मिमत्र से कहाः मैं आज महात्माजी से खासी चचा, करनेवाला हूँ । सभी मुदे्द तैयार

करके रखे हैं । देखें, ” गांधीजी क्या उTर देते हैं । बै�क प्रारम्भ हुई । महात्माजी ने हँसते- हँसते प्रवेश पिकया । सबने नमस्कार पिकया । महात्माजी ने अपना पिनवेदन प्रस्तुत पिकया । अत्यन्त पिनम,लता

और प्रामात्तिर्णकता के साथ प्रस्तुत पिकये हुए पिववरर्ण ने सभा को जीत लिलया । “ बापूजी ने पूछाः पिकसीको कोई शंका है ?” “ ” सदस्यों ने कहाः सब पिनःशंक हो गये हैं ।

“ ”�ीक है । मैं जाता हूँ - कहकर गांधीजी ने सबको प्रर्णाम पिकया और मुस्कान पिबखेरते हुए चले गये । “ देशबनु्ध से पिकसीने पूछाः आप तो गांधीजी से चचा, करनेवाले थे न ? पिफर चुप क्यों रहे ?” “ देशबनु्ध का उTर थाः बताऊँ ? हमेशा ऐसा ही होता है । पूरी तैयारी करके आता हूँ, परन्तु गांधीजी

के एक- एक शब्द में जो हार्दिद(कता टपकती है, वह मुझे जीत लेती है । हमारा बुजिद्धवाद पिनष्प्रार्ण लिसद्ध होता है । अंत में हृदय ही वाद- ” पिप्रय बुद्ध को जीत लेती है ।

41. गांधीजी की पिनभ,यता सन् 1931 की बात है । सन् 1930 का स्वातंत्र्य- संग्राम सफल हुआ था । वाइसराय और

महात्माजी के बीच सुलह हुई और सभी सत्याग्रही छूट गये थे । ठिदल्ली में गांधी- इर्तिव(न समझJता हुआ था, उस पर मुहर लगाने के लिलए कराची में कांगे्रस का अमिधवेशन माच, के अंपितम सप्ताह में होनेवाला

था । पिकन्तु उस अमिधवेशन पर काली छाया मँडरा रही थी । अमिधवेशन प्रारम्भ होने के एक- दो ठिदन पहले सरदार भगतचिस(ह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दी गयी थी । सरकार और कांग्रेस के बीच सJहाद, पिनमा,र्ण होने जा रहा था, ऐसे समय में उन महान् तरुर्ण देशभक्तों को फाँसी देना घृष्टता ही

कही जायगी । कराची कांगे्रस में फूट पैदा हो, यह भी सरकार का हेतु रहा हो । सीमांत प्रदेश के लाल कुतcवाले खुदाई खिखदमतगारों की धारर्णा बनी थी पिक फाँसी की सजा रद्द कराने में गांधीजी ने खास कोलिशश नहीं की । पिनत्तिश्चत ही यह धारर्णा गलत थी । महात्माजी ने हर संभव प्रयत्न पिकया था

। पिफर भी नJजवान क्षुब्ध हो उ�े थे । महात्माजी कराची- कांगे्रस के लिलए जा रहे थे । रास्ते में लाल कुतcवालों ने उन्हें काले फूल ठिदये । यह

पिनरे्षध का प्रतीक था । वे कराची पहुँचे । अमिधवेशन प्रारम्भ हुआ । उस ठिदन महात्माजी ने शांपित से उस प्रतीक को स्वीकार पिकया । उसे सुरत्तिक्षत रखा। रात में एक पिवराट् सभा का आयोजन पिकया गया

था । उस सभा में महात्माजी बोलनेवाले थे । प्रक्षुब्ध जवान तथा लाल कुतcवालों के समूह के सामने वे बोलने जा रहे थे । महात्माजी से बार- बार पिवनती की गयी पिक आप सभा में न जाँय, भीड़

“ उTेजना में है । उन्होंने कहाः इसीलिलए तो मुझे जाना चापिहए । मुझ पर ही उन्हें [ोध है । उसे शांत ” करने के लिलए मुझे ही जाना चापिहए । और यह महापुरुर्ष धीर- गंभीरता के साथ पिनकल पडा़ । दीखने में छोटी, परन्तु आत्मशलिक्त से महान्

वह मूर्तित( ऊँचे मंच पर चढी़ । सामने प्रक्षुब्ध नJजवानों की भीड़ थी । एक क्षर्ण के लिलए चारों ओर शांपित छा गयी । महात्माजी ने शांपितपूव,क चारों ओर नजर घुमायी । पिफर वह अमर वार्णी प्रवापिहत

होने लगी । अन्त में गांधीजी ने कहाः मेरी यह मुट्ठीभर ह®ी आप लोग अनयास तोड़ सकते हैं ।

परन्तु जिजस तत्व के लिलए मैं खडा़ हूँ, और जिजन तत्वों का मैं उपासक हूँ, उन्हें कJन तोड़ सकता है ? ” वे तो शाश्वत सत्य हैं ।

सभा को भंग करने के इरादे से आये हु्ए नJजवान प्रर्णाम करके लिससकते हुए लJट गये और राष्ट्रपिपता शान्तिन्त से अपने खेमे में लJट आया ।

42. गांधीजी की करुर्णा सन् 1930 की बात है । सत्याग्रह-संग्राम, नमक- सत्याग्रह अभी प्रारम्भ नहीं हुआ था । परन्तु

महात्मा गांधी 80 सत्याग्रपिहयों की टुकडी़ लेकर साबरमती- आश्रम से पिनकल पडे़ थे ! उनकी आज्ञा थी पिक वे जब तक सत्याग्रह न करें, तब कोई न करे । महात्माजी की दाण्डी- यात्रा प्रारम्भ हुई ।

देशभर में तेज की लJ फैल रही थी । महात्माजी की वार्णी देशभर में पहुँच रही थी, सात समुद्र पार जा रही थी । देशभर में देशभलिक्त की लहरें उमड़ रहीं थीं । उस ठिदन महात्माजी के पडा़व पर शाम को पिवराट् सभा हुई । महापुरुर्ष की वार्णी सुनकर लोग पावन

हुए, उत्सू्फत, हुए । सभा समाप्त हुई । महात्माजी ने प्राथ,ना की । सत्याग्रपिहयों का भोजन हुआ । महात्माजी का पिबस्तर लगा ठिदया गया । छत पर आकाश के तले महापुरुर्ष सोया था । महात्माजी की

पिनद्रा तो योगी के जैसी गाढ़ पिनद्रा थी । रात के दो- तीन बजे का समय था । बाहर स्वच्छ चाँदनी लिछटकी थी- महात्माजी की तपस्या के समान शान्त और सुन्दर । महात्माजी उ�े । उन्हें बहुत- से पत्र लिलखने थे । लालटेन पास में ही थी । बTी

बडी़ करके वे लिलखने बै�े । परन्तु लालटेन का तेल खत्म हो गया । रोशनी धीमी होने लगी । बाती ही जलने लगी । आखिखर

लालटेन बुझ गयी । अब क्या करें ? स्वयंसेवक, सत्याग्रही सब थके- माँदे सोये हुए थे । महात्माजी ने उन्हें जगाया नहीः वे वहीं चन्द्रमा के मन्द- मधुर प्रकाश में लिलखने लगे ।

पिकसीकी नींद खुली । महात्माजी कुछ लिलख रहे हैं, यह देखकर वे उनके पास आये ।“बापू, चन्द्र के प्रकाश में लिलखने के लिलए ठिदखाई देता है ? आँखों को तकलीफ नहीं होती ? आपने

पिकसीको जगा क्यों नहीं लिलया ? और क्या इन लोगों को लालटेन में पूरा तेल भरके नहीं रखना था ?” वे भाई बडे़ गुस्से में बोलने लगे ।

“ गांधीजी शान्तिन्त से बोलेः मुझे चाँदनी में ठिदख रहा है । हाँ, पढ़ना जरूर नहीं हो पाता । सोने दो ” सबको । सब थके हैं । आप भी शान्तिन्त से कुछ देर सो लीजिजये । अभी काफी रात है ।

स्वयंसेवकों को न जगाकर, चाँदनी में लिलखनेवाली राष्ट्रपिपता की वह स्नेहमयी मूर्तित( आँखों के सामने आते ही मेरा जी भर आता है ।

43. गांधीजी की वत्सलता ‘ ’ उन ठिदनों महात्माजी दत्तिक्षर्ण अफ्रीका में थे । एक बडा़ खेत लेकर वहाँ पिफपिनक्स नाम से उन्होंने

आश्रम शुरू पिकया था । सबने शरीर- श्रम का व्रत लिलया था । महात्माजी तड़के उ�ते थे । अनाज पीसते थे, पानी भरते थे, जूता गाँ�ते थे, बढ़ईपिगरी करके थे । और भी अनेक काम करते थे । सबकी देखभाल भी वे ही करते थे । आश्रम में एक भाई की लड़की बहुत बीमार थी । गांधीजी उसे गोद में लेते थे । वह लड़की गांधीजी

से लिचपककर बै�ती थी । ठिदनभर तो दूसरे कामों से उन्हें फुरसत नहीं मिमलती थी । शाम हुई । अंधकार की छाया फैलने लगी । अनन्त आकाश के नीचे आश्रमवासी प्राथ,ना के लिलए एकत्र हुए । वह देखो, बापू आये । पलथी लगाकर बै�े । लेपिकन उनकी गोद में वह क्या है ? वही छोटी बीमार बच्ची । थके- माँदे घर लJटे बापू उस बच्ची को गोद में लेकर टहल रहे थे । वह बच्ची उनसे लिलपटकर सोयी हुई थी । इतने में प्राथ,ना की घंटी बजी । वह बच्ची कहीं जाग न पडे,़ इसलिलए

उसे उसी तरह गोद में लिलये हुए बापू आये। प्यार से, आपिहस्ते से उसे अपनी गोद में लिलटा लिलया । वह नन्हीं बच्ची सोयी थी । प्राथ,ना प्रारम्भ हुई । गांधीजी की गोद में लेटी वह छोटी बच्ची और गांधीजी,

दोनों पिवश्वमाता से एकरूप बन गये । अनन्त आकाश के नीचे गोद में बीमार बच्ची को लेकर प्राथ,ना में लीन बापू ! पिकतना हृदयस्पशc दृश्य ।

44. वचन- पूर्तित( गांधीजी पितथल में थे, तब एक ठिदन बोडc ज्जिस्थत गोखले-लिशक्षर्ण- संस्था के एक लिशझक श्री ग. म. केलकर वहाँ आये । गांधीजी की उनके साथ अच्छी दोस्ती हो गयी । क्योंपिक गांधीजी गोखलेजी को

अपना गुरु मानते थे । ये लिशक्षक बापूजी के सहवास में 3-4 ठिदन ही रहे थे । लJटते समय उन्होंने गांधीजी से कहाः

“बापूजी, आप भी एक बार बोडc आइये । काका (कालेकर) तो 2-4 महीने वहाँ अपने स्वास्थ के ” लिलए आये थे और उस पिनसगँरम्य वातावरर्ण में उनका स्वास्थ्य पिबलकुल �ीक हो गया था । “ बापू ने कहाः अच्छी बात है । मैं बीमार पडूगँा, ” तब बोडc जरूर आऊँगा । यह सुनकर लिशक्षक को ” बुरा लगा । वे बोलेः बोडc आने के लिलए आप बीमार न पपिड़ये । स्वस्थ ही आइये । “बापू ने कहाः आऊँगा, परन्तु एक शत, है । आप जिजस गाँव में हैं, वहाँ 100 घरों को खादीधारी

बनाइये और ऐसे 100 घर बनाइये पिक जहाँ एक हरिरजन को वे अपने घर में रखें । तब मैं बोडc ” अवश्य आऊँगा । लिशक्षक ने कोई जवाब नहीं ठिदया । सामान्य व्यलिक्त से भी कुछ-न- कुछ उपयोगी काम लेने की

असामान्य कला बापूजी में भरपूर थी । ‘वे भाई बापू की शत, पूरी नहीं कर सके । बापूजी का अत्यन्त पिप्रय काय, हरिरजन- ’ सेवा का था ।

उसमें वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काफी मदद करते थे । शत, न होने के कारर्ण गांधीजी कभी ‘ ’ बोडc नहीं गये । लेपिकन मृत्यु के बाद भी गांधीजी ने अपने वचन का पालन पिकया । भस्मी के रूप

में गांधीजी बोडc गये और लिशक्षक को ठिदया गया वचन इस तरह पूरा हुआ । ठिदये गये वचन को प्रार्णपर्ण से पिनभाने में ही शीलसव,स्य समाया हुआ है, यह बापूजी का महान् उपदेश था ।

45. सबका खयाल रखनेवाले बापू एक बार कांगे्रस की काय,कारिरर्णी की बै�क हो रही थी । काफी देर तक बै�क चलती रही । लोग ऊबने लगे । बात गांधीजी के ध्यान में आ गयी । वे बोलेः

“ ” आप सब अब चाय पीकर आइये । आपके चाय पीने का समय हुआ होगा ।“ ” वैसी खास आवश्यकता नहीं है । और कुछ समय बै�ें गे और बाद में चाय पिपयेंगे ।“ सब समय पर होना चापिहए । बाद में क्यों ? आप परेशान तो ठिदखाई दे रहे हैं । जाइये, चाय पीकर

आइये । चाय के लिलए क्या आग्रह की जरूरत है ?” गांधीजी हँसते हुए बोले । सब लोग हँस पडे़ । ऐसा था राष्ट्र का पिपता, सबका खयाल रखनेवाला । एक बार महादेवभाई को रात में देर तक काम करना पडा़, तो बापूजी ने उनके लिलए चाय तैयार करवा दी ! ’सरदार चाय पीते थे । परन्तु सन् 32

में यरवदा जेल में गांधीजी के साथ थे, तब चूँपिक गांधीजी चाय नहीं पीते थे, इसलिलए वे भी नहीं पीते थे । महान् व्यलिक्तयों की महान् बातें !!

46. दो नजरबन्द कर उन ठिदनों महात्माजी पूना के आगाखाँ- महल में बन्दी थे । वे सन् 1942 की आजादी की लडा़ई

‘ ’ के उज्ज्वल ठिदन थे । चले जाओ का जंग लिछड़ गया था और अचानक महात्माजी का महादेव भगवान् के पास चला गया । बापूजी का दापिहना हाथ गया । उनकी व्यथा वे ही जानें ! जहाँ दाह- संस्कार हुआ, वहाँ गांधीजी ने छोटी- सी समामिध बनवायी । वृक्ष लगाया । रोज वे उस समामिध के पास

जाते थे और पुष्पांजलिल चढा़ते थे । गांधीजी भाव- लिसन्धु थे । एक ठिदन राष्ट्र का पिपता महादेवभाई की समामिध पर रोज की तरह जाकर लJट रहा था । उस छोटे- से सँकरे रास्ते से वे आ रहे थे । इतने में बाड़ के उस पार उन्हें पिहरन का एक पिनष्पाप लिशशु ठिदखाई ठिदया

। वह लिशशु बापू की ओर करुर्ण- दृमिष्ट से देख रहा था । बापू बन्दी थे । बापू देखते रहे । भरे हुए “ अन्तःकरर्ण से वे चले गये। सन्तों को सबके प्रपित प्रेम होता है । सन्त तुकाराम कहते थेः वृक्षवल्ली

और वनचर हमारे सगे- ” सम्बन्धी हैं । भारतीय संस्कृपित का नाम लेते ही आश्रम, पिहरर्ण आँखों के सामने आ जाते हैं । उस मृगशावक को देखकर बापू को कहीं महादेव की आत्मा तो याद नहीं आयी

? “ अगले ठिदन जेल के अमिधकारी आये । बापू ने कहाः उधर पिहरन है, वह भी नजरबन्द है और मैं भी

” नजरबंद हूँ । हम दोनों को मिमलने की अनुमपित रहे । शंकाशील अमिधकारी ने उस पिहरन को ही वहाँ से हटा ठिदया ! बापू को वह पिहरन पिफर कभी नहीं

ठिदखाई ठिदया ।47. बापू की गोद में साँप

महात्माजी ने प्रयत्नपूव,क अपने जीवन से भय को मिमटाया था । बचपन में अँधेरे में जाने से डरनेवाला यह मोहनदास आगे चलकर पिनभ,यता का मूत, रूप बना ।

साबरमती- आश्रम की बात है । एक बार बै�े थे, तब एक साँप उनकी गोद में ऊपर से पिगर पडा़ । गांधीजी उनकी ओर देखते रहे । वह क्यी गांधीजी की गोद में क्षर्णभर के लिलए लेटने आया था ? प्रेमामृत का मिम�ास चखने आया था ? जिजसे सारे पिवश्व में परमेश्वर दीखता है, उसे पिकसी का डर क्यों

लगेगा ? एक बार पिकसीने गांधीजी से पूछाः

“गांधीजी, सामने से बाघ आये, तो आप क्या करेंगे ?” “ बापू बोलेः मैं तो पिनभ,य होकर उसके आगे से पिनकलँूगा । मेरे साथ क्या करना है, यह बाघ तय करे

”।48. आजाद भारत का पहला राष्ट्रपपित कJन ?

भारत का नया संपिवधान बन रहा था । शीघ्र ही वह पूरा हो गया । पज्जिण्डत जवाहरलाल बडे़ अधीर हो ‘ ’ रहे थे । संपिवधान के स्वीकृत होते ही वे भारत को लोकतांपित्रक राष्ट्र घोपिर्षत करनेवाले थे ।

राष्ट्रपिपता जीपिवत नहीं थे । परन्तु वे जानते थे पिक भारत का संपिवधान कभी-न- कभी पूरा होगा और भारत लोकतान्तिन्त्रक साव,भीम राष्ट्र बनेगा । लोकतान्तिन्त्रक राष्ट्र में नये संपिवधान के अनुसार कोई अध्यक्ष भी चुना जायगा । स्वतन्त्र भारत का पहला अध्यक्ष ? पिकसे मिमलेगा वह मान ? पिकसीको भी

मिमले । इस राष्ट्र का प्रथम अध्यक्ष कJन हो- इस बारे में गांधीजी क्या सोचते थे ? उस ठिदन ठिदल्ली की भंगी- बस्ती में सभा थी । हरिरजन- बस्ती में आज सायं- प्राथ,ना होगी, वहीं

प्राथ,नोTर प्रवचन होगा । उस प्रवचन का उनका वह महान् उदगार तुम्हें सुनाऊँ ? ठिदल्ली- डायरी में “ ” वह है । महात्माजी बोलेः मेरी तमन्ना है पिक इस देश का पहला अध्यक्ष कोई भंगी बालिलका बने ।

‘ ’पददलिलत लोग आयें , इसकी यह कैसी छटपटाहट ! वह वचन पढ़कर मुझे मुहम्मद पैगम्बर का इसी तरह का उदगार याद आता है । एक ईरानी गुलाम को पैगम्बर ने गुलामी से मुक्त पिकया और कहाः

“ ” मैं चाहता हूँ पिक मेरे बाद का खलीफा यह बने । जो कल तक गुलाम था, वह सारे मुसलमानों का प्रमुख बने- यह पैगम्बर की इच्छा थी, तो भंगी बालिलका भारत की प्रथम अध्यक्षा बने- यह गांधीजी की

चाह थी । महान् महान् ही होते हैं । वे कहीं भी क्यों न जनमें ।49. ‘ ’ आप ही की गाडी़ में जाऊँगा

गोलमेज- परिरर्षद् के लिलए गांधीजी लन्दन गये थे । तब की अनेक कहापिनयाँ हैं । एक ठिदन पिगल्ड हाल ‘ ’में सभा थी । स्वेच्छा से लिलया हुआ गरीबी का व्रत - इस पिवर्षय पर गांधीजी बोलनेवाले थे । मिमस

मांड रायडन नामक मपिहला गांधीजी को अपनी मोटर में सभा- स्थान पर ले गयीं । उस मपिहला के पास डी. डी. की पदवी थी । “मोटर में जाते समय गांधीजी ने पूछाः डी. डी. का क्या अथ, है ?” “ रायडन बहन ने कहाः उसका अथ, यह है डाक्टरेट आफ पिडपिवपिनटी (ईश्वर- शास्त्र में पारंगत) ।

ग्लासो- ” पिवश्वपिवद्दालय ने मुझे यह पदवी दी है ।

“ ” तो ईश्वर के पिवर्षय में आपको सब कुछ मालूम होगा । गांधीजी ने मुस्कराते हुए पूछा । सभा स्थान आ गया ?

“ ” गांधीजी ने कहाः सभा के बाद आप की ही गाडीं से लJटँूगा खयाल रखिखयेगा । उस बहन को वह सन्मान प्रतीत हुआ । कइयों की इच्छा होती थी पिक गांधीजी उनकी मोटर में

बै�कर जायँ । संसार के एक महापुरुर्ष को अपनी मोटर में बै�ने का सदभाग्य पाने के लिलए कJन उत्सुक नहीं होगा ?

सभा समाप्त हुई । सभा- स्थान के बाहर भारी भीड़ थी । पितस पर वर्षा, भी हो रही थी । वहाँ सैकडो़ मोटरें खडी़ थीं। उस बहन को अपनी मोटर जल्द मिमल नहीं रही थी । गांधीजी वर्षा, में खडे़ थे । चारों

ओर अनेक मोटरें थीं । महात्माजी को ले जाने को सुयोग पाने की वे सब मोटरें उत्सुकता से राह देख रही थीं । हवा में बेहद �ंडक आ गयी । बापूजी के बदन पर गरम कपडा़ नहीं था । वह बहन

शरमायी । “रायडन बहन ने कहाः गांधीजी, आप पिकसी मोटर से जाइये । मुझे अपनी गीडी़ मिमल नहीं रही है ।

” आप रुपिकये नहीं ।“ ” लेपिकन आपकी गाडी़ मिमलने तक मैं रुकँूगा । गांधीजी शान्तिन्त से बोले ।

उस बहन को ऐसा आनन्द हुआ, मानो राजमुकुट मिमल गया हो । भीड़ कम हुई । मोटर मिमल गयी । बापू उसी मोटर से गये ! उस बहन को बडा़ समाधान मिमला !

50. छोटे सेवकों की याद गांधीजी बडे़ संजीदा व्यलिक्त थे । उनकी स्मरर्ण- शलिक्त बडी़ तेज थी । हजारों छोटे- बडे़ सेवकों की उन्हें

याद रहती थी । स्मृपित एक आध्यास्त्रित्मक गुर्ण ह,ै साश्कित्त्वक गुर्ण ह,ै अजु,न गीता के अन्त में कहता हैः“ मोह गया, ’’ ‘ ’ स्मृपित प्राप्त हुई । स्मृपित का मतलब है दक्षता । दक्ष ही मोक्ष पाता है । बावले को, बार- बार भूलनेवाले को लिसजिद्ध कैसे मिमलेगी ?

महात्माजी बारडोली से वधा, जा रहे थे । अमलनेर स्टेशन पर उन्हें आहार ठिदया गया । शाम हुई, गाडीं खुली । एरंडोल स्टेशन भी गया । और अगले चावलखेडे़ स्टेशन पर गाडी़ रूकी । आसपास के देहातों से सैकडों पिकसान आये थे । गांधीजी के पिडब्बे के पास वे जमा हुए । गांधीजी खिखड़की के

पास शान्तिन्त से बै�े थे । ’हरिरजनों के वास्ते - कहकर उन्होंने अपना हाथ फैलाया । और प्रत्येक पिकसान अपने घर से इसी हेतु

लाया गया आना- दो पैसा राष्ट्रपिपता के हाथ पर रखता गया । हर व्यलिक्त पैसा रखता, प्रर्णाम करता, दूर हो जाता । गांधीजी को समाधान हुआ । गाडी़ चल पडी़ । पिकसानों ने जय- जयकार पिकया ।

महादेवभाई और प्यारेलालजी पैसे पिगनने में लगे ।“ यह कैन- सा गाँव था ?” गांधीजी ने पूछा ।“ ” एरंडोल के पास के ये सब गाँव हैं । खाली हाथ एक भी नहीं आया था । पिकसान कहा ।“ एरंडोल ? ” �ीक है । शंकरभाऊ काबरे का गाँव । शंकरभाऊ वहाँ का पिनरहंकारी सेवक । एरंडोल

का नाम सुनते ही गांधीजी को शंकरभाऊ का स्मरर्ण हुआ । उनकी पिनरहंकारता का उन्होंने जिज[ पिकया । मैं उसी पिडब्बे में था । दूर- दूर के सेवकों की उनकी यह याद देखकर मेरा हृदय भर आया । सेवकों की ऐसी कद्र करनेवाले को सेवकों की कभी कमी नहीं पड़ती । गांधीजी ने क्या यों ही देशभर में हजारों- व्यलिक्तयों को खडा़ पिकया था ? सहृदय मानवता के वे भण्डार थे ।

51. नन्हा गोपू ‘ ’ महात्माजी राष्ट्रपिपता थे । सब उनकी सन्तान थे । उन्हें पिकसी चीज की आसलिक्त नहीं थी । अन्त में

वे ठिदल्ली में थे । महात्माजी के लिचरंजीव श्री देवदासभाई उनसे मिमलने जाते थे । देवदासभाई अपने छोटे लड़के गोपू को भी साथ ले जाते थे । वह तीन साल का था । उसके आते ही उसे वे पे्रम से गोद

में लेते थे, हँसी- पिवनोद करते थे ।

कभी गोपू साथ नहीं आता, “ तो गांधीजी पूछते थेः आज गोपू क्यों नहीं आया ? वह नहीं आया तो मुझे खोया-खोया- ’’ सा लगता है । बापू तो चले गये । बापू उस नन्हें गोपू का जिजन शब्दों में स्वागत करते थे, उसकी हूबहू नकल गोपू

घर में करता था और देवदासभाई तथा उनकी पत्नी की आँखे भर आती थीं ।52. ‘ ’ मैं बेसहारा हो गया

गांधीजी सेवाग्राम में थे । जमनालालजी अन्य सारे काम छोड़कर गो- सेवा के लिलए जीवन समर्तिप(त करने का पिवचार कर रहे थे । उस पिवचार ने उन्हें पागल बना रखा था । परन्तु जमनालालजी बीमार

हुए । डाक्टर दJडे़ आये । सेवाग्राम से महात्माजी आये । जमनालालजी �ीक नहीं हुए । ईश्वर के “ पास चले गये । पिवनोबाजी ने कहाः उनके मन में जो पिवचार उफन रहा था, वह देह में समा नहीं ” सका । देह तोड़कर वे बाहर पिनकल गये । गांधीजी बहुत दुःखी हुए । वास्तव में वे थे ज्जिस्थतप्रज्ञ । परन्तु गांधीजी के जीवन में करूर्ण मानवता थी । ठिदन बीत गया । लेपिकन उस रात गांधीजी को नींद

“ नहीं आ रही थी । बोलेः मैं अब बेसहारा हो गया, मेरा भार कJन सँभालेगा ?”  53. मगनलाल गांधी

महात्माजी की जीवन- साधना में संसार के हजारों छोटे- बडे़ लोग शामिमल हुए थे । परन्तु मगनलालभाई तो सेवकों के मुकुटमत्तिर्ण थे । ज्यों ही महात्माजी के मन में कोई पिवचार आता, त्यों ही

उसे प्रत्यक्ष काय,रूप में परिरर्णत करने के लिलए मगनभाई अपनी सारी अन्तबखिह्म शलिक्त लगा देते थे । सन् 1928 ‘ में उनका देहान्त हुआ । मंगल मंठिदर खोलो, ’दयामय - इस भजन को दुहराते, गुनगुनाते

वे ईश्वर के पास गये । “ ” महात्माजी का दुःख असीम था । बोलेः उनकी मृत्यु से मैं पिवधवा हो गया ।

54. बच्चे का काम पहले महात्माजी उस समय महाबलेश्वर में थे । उनसे मिमलने के लिलए ठिदल्ली से देवदासभाई भी बाल- बच्चों

के साथ आये थे । गांधीजी के चारों ओर सारी दुपिनया के कई मसले थे । नेता मिमलने आते थे । संसारभर के पत्रकार आते थे । चचा, चलती थी । पत्र- व्यवहार भी रहता था ।

वह देखो, देवदासभाई का बच्चा गत्तिर्णत का सवाल हल करने में लीन है । लेपिकन उससे हल नहीं हो “ रहा है । वह लड़का कइयों के पास जाकर पूछ रहा है पिक यह सवाल कैसे हल करें, आप बतायेंगे

?” लेपिकन इस बचे्च की प्राथ,ना की ओर कJन ध्यान देगा ? आखिखर वह नन्हा बच्चा अपने दादाजी “के पास गया और बोलाः बापू, इतने लोग हैं, पर कोई मुझे सवाल हल करके नहीं देता है । आप

बतायेंगे ?”   बापू साप्तापिहक हरिरजन के लिलए लेख लिलखने में मशगूल थे । परन्तु उस बाल�ह्मा को वे दूर कैसे करते ? “प्रेम से बोलेः आ, मेरे पास । तुझे क्या चापिहए ? उन लोगों के पास बहुत काम रहते हैं ।

तूने पहले ही मेरे पास आकर पूछा क्यों नहीं ? अब कहीं कोई ठिदक्कत आ जाय, तो सीधे मेरे पास आ जाना । खैर ! देखूँ तो, तेरा सवाल ?”

महत्त्वपूर्ण, लेख लिलखने में तल्लीन बापू अब नाती का कापी लेकर उसे उसका सवाल समझाने में लग गये ।

55. अहिह(सा का पा� सन् 1937-38 की बात है । कई प्रान्तों में कांगे्रस की सरकारें थी । बंगाल में फजलुल हक का

मंपित्रमण्डल था । कांगे्रस- सरकार ने राजनैपितक कैठिदयों को मुक्त कर ठिदया । परन्तु बंगाल के राजनैपितक बंठिदयों का क्या होगा ? महात्माजी सारे राष्ट्र के पिपता थे । वे चुप थोडे़ ही रहनेवाले थे । वे

कलकTा गये । बंगाल के गवन,र और मुख्यमन्त्री फजलुल हक से मिमले । गांधीजी से कहा गया पिक यठिद वे राजनैपितक कैदी हिह(सा का त्याग करेंगे, तो उन्हें छोडा़ जायगा । गांधीजी जेल में जाकर

कैठिदयों से मिमले और उन्हें हिह(सा की व्यथ,ता समझाने लगे ।

उन ठिदनों गांधीजी को रक्तचाप की तकलीफ थी । पिफर भी वे राजबजिन्दयों की मुलिक्त के लिलए प्रयत्न “ ” कर रहे थे । गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने लिलखाः गांधीजी पर भरोसा करो। उनकी बात मानो । वह देखो, गांधीजी जेल से चचा, करके बाहर आ रहे हैं । दोनों हाथों से लिसर दबाये आ रहे हैं । क्या

रक्तचाप बढ़ गया ? राष्ट्रपिपता के ऐसे संस्मरर्ण याद आते ही आँखों में कृतज्ञता के आँसू छलछता आते हैं ।

56. सोने का खिखलJना पिकसी भाई के यहाँ महात्माजी �हरे थे । कुछ महत्त्वपूर्ण, लेख लिलख रहे थे । वहीं पास में एक छोटा बच्चा बहुत शोर मचा रहा था । कागज- पत्र पिबखेर रहा था । परन्तु बापू ने उससे कुछ नहीं कहा ।

उसे खेलने- कूदने ठिदया । इतने में बच्चा रोने लगा । अब ? हरिरजन काय, के लिलए पिकसीका ठिदया हुआ एक गहना गांधीजी के पास रखा हुआ था । गांधीजी ने वह सोने- जैसे उस नन्हें लिशशु को खेलने के लिलए दे ठिदया । बच्चा खेलने लगा, बापू लिलखने लगे ।

57. प्राथ,ना पर श्रद्धा महात्माजी का जीवन प्राथ,नामय था । पिबना हवा के वे एक जी सकते, परन्तु प्राथ,ना के पिबना जी

नहीं सकते थे । प्राथ,ना उनके जीवन का आधार था । ईश्वर पर उनकी श्रद्धा थी । अपने को साक्षात्कार हो गया है, ऐसी भार्षा वे नहीं बोलते थे, परन्तु यह कहते थे पिक आप मेरे सामने हैं, यह

जिजनका सत्य है, उतना यह भी सत्य है पिक ईश्वर है । मुझे उसका भान होता है, उस अनंत सत्य काकभी- कभी धूमिमल दश,न होता है ।

उन ठिदनों महात्माजी अपिफ्रका में थे । जीवन का साधना जारी थी । भारत के भावी जीवन की सम्पूर्ण, बुपिनयाद अपिफ्रका में डाली जा रही थी । सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया था । भारतीय जनता दृढ़ पिनश्चय के

साथ खडी़ थी। अफ्रीका में बसे भारतीय नर- नारी नव इपितहास का पिनमा,र्ण कर रहे थे । शान्त- दान्त महात्माजी ठिदव्य माग,दश,न कर रहे थे ।

आज कुछ गम्भीर बात थी । जनरल स्मट्स तो फJलादी शख्स थे । गांधीजी के आन्दोलन को मिमट्टी में मिमला देने पर तुले हुए थे । परन्तु जो भी हो, आत्मशलिक्त का प्रभाव उन पर भी पड़ रहा था ।

गांधीजी को उन्होंने बुला भेजा । जोहान्सबग, जाने के लिलए गांधीजी पिनकले । स्टेशन पर पोलक और उनकी धम,पत्नी, दोनों आये थे । महात्माजी और पोलक गंभीरतापूव,क बात कर रहे थे, परन्तु बात

रूक गयी । सफलता मिमलेगी या पिवफलता ? पोलाक की पत्नी लिचन्तिन्तत थीं । उनके मन में रह- रहकर यही आता था पिक गांधीजी के लिलए हम क्या

कर सकते हैं ? “बापू, ”भाई - उन्होंने आवाज दी । उन ठिदनों गांधीजी को लोग बापू के बदले भाई कहकर पुकारते थे । पोलक छोटे भाई थे, तो गांधीजी बडे़ भाई ।

‘ गांधीजी ने पूछाः क्या बात है ? तुम ऐसी लिचन्तिन्तत क्यों हो ?” “ आपके लिलए मैं क्या करँु ? आप तो वाता, के लिलए जा रहे हैं । मन ऊपर- नीचे हो रहा है । क्या

करँू ?” “ प्राथ,ना करो। अन्तःकरर्णपूव,क प्राथ,ना करो । इससे अमिधक करने जैसा दूसरा क्या हो सकता है ?”

गांधीजी शान्तिन्त से बोले ।58. भगवान् भरोसे

सन् 1919-20 । आन्दोलन के ठिदन थे । गांधीजी देशभर में पिबजली की तरह संचार कर रहे थे । असम का प्रवास आरम्भ हुआ । असम में आवागमन की बहुत असुपिवधा थी । सव,त्र प्रचंड नठिदयाँ हैं

। ऊँचे पव,त, गहरी कन्दराएँ ! गापिड़याँ पिवशेर्ष हैं नहीं । एक बार एक गाडी़ गयी, तो दूसरी कबमिमलेगी, इसका कोई ठि�काना नहीं । एक बार तो मालगाडी़ के पिडब्बे में ही बै�कर जाना पडा़ ।

रात का समय था । गांधीजी को एक पिडब्बे में बै�ाया गया था । उस छोटे पिडब्बे में वे अकेले थे । अपेक्षा यह थी पिक रातभर उन्हें आराम मिमले । परन्तु गाड़ी आगे चली गयी । गाड, बीच में था ।

काफी दूर पिनकल जाने के बाद उसके ध्यान में आया पिक पीछे के कुछ पिडब्बे छूट गये हैं । गाडी़ रुकी । गांधीजी का पिडब्बा कहाँ है ? वह तो पीछे छूट गया ! काय,कता, लिचन्ता के मारे परेशान हुए । पीछे से कोई गाडी़ आ जाय तो ? गाडी़ को धीरे- धीरे पीछे लाया गया । काय,कता, पिडब्बे के फाटक पर

खडे़ थे । काफी सावधीनी रखी गयी पिक गाडी़ जाकर गांधीजी के पिडब्बे को जोर से धक्का न दे । गांधीजी का पिडब्बा दीख पडा़ । गांधीजी जाग गये थे और अपनी मधुर मुसकान से बै�े थे ।

“मिमत्रों ने कहाः बापू, आज पिकतनी बडी़ आफत आ गयी थी !” बापू ने हँसकर कहाः अगर पीछे से ”कोई गाडी़ आती तो शायद प्रकृपितमाता की गोद में चला जाता । बडा़ मजा आता ।

59. कृपा पिकसको ? गांधीजी हमेशा रेल के तीसरे दजf में ही प्रवास करते थे । गरीबों के जीवन से एकरूप हो गये थे ।

उन्हें इस दजf में प्रवास करने से अनेक प्रकार के अनुभव भी मिमलते थे । गांधीजी की नम्रता, पिनरहंकारता ऐसे समय सुन्दर ढंग से प्रकट होती थी ।

एक बार गांधीजी तीसरे ददf में इसी तरह सफर कर रहे थे । एक स्टेशन पर खूब भीड़ थी । गांधीजी इस गाडी़ से जा रहे है, यह खबर लोगों को नहीं थी । नहीं तो दश,न के लिलए हजारों लोग आ गये ‘ ’ होते । महात्मा गांधी की जय के जयघोर्ष से सारा इलाका गँूज उ�ा होता, परन्तु आज उस प्रकार

जयघोर्ष नहीं हो रहा था । गांडी़ उस स्टेशन पर बहुत कम समय के लिलए रुकनेवाली थी । वह देखो, एक भाई आ रहा है । पिकतना सामान है उसका । कोई से� तो नहीं । ? खुद चढ़ने से पहले वह

अपना सामान गाडी़ में चढा़ रहा था । गाडी़ खुल गयी । कुली अपनी मजदूरी के लिलए जल्दी मचा रहा था । से�जी हड़बडी़ में चढ़ने लगे । पिगरने ही वाले थे । कुली ने से�जी के शरीर को जैसे- तैसे

अन्दर धकेल ठिदया। से�जी पिगरते- पिगरते बचे । वे अंदर अपने सामान पर बै�े । जान में जान आयी, तब सारा सामान �ीक से लगा लिलया । थोडी़ देर में बडा़ स्टेशन आया । वहाँ हजारों लोग बापूजी के दश,नाथ, जमा हुए थे । जयजयकार से ‘ ’दसों ठिदशाएँ गँूज रही थीं। महात्माजी ने सबको दश,न ठिदये । हरिरजनों के वास्ते - कहकर हाथ आगे पिकया । लोगों ने अपने पास जो कुछ था, वही ठिदया । पिफर गाडी़ खुली । महादेवभाई और अन्य लोग

पैसे पिगनने लगे । से�जी के ध्यान में आया पिक वे उसी पिडब्बे में चढ़ आये हैं, जिजसमें गांधीजी हैं, इसी कारर्ण पिगरते-

पिगरते बचे । महात्माजी की कृपा ! उस से�जी का हृदय कृतज्ञता से भर आया । वह घीरे- से उ�े।डरते- डरते गांधीजी के पास गये । थर थर काँपते हुए कुछ देर खडे़ रहे और गांधीजी के पैरों पर पिगर

पडे़ ।“ यह क्या ? क्या हुआ ? क्या चाहते हो ?”- गांधीजी ने पूछा ।“ महाराज ! आप इस पिडब्बे में थे, मुझे मालूम ही नहीं था । मैं पिपछले स्टेशन पर चढ़ते समय पिगरने

” वाला था । लेपिकन बच गया । यह आपकी कृपा है । “ महात्माजी ने गम्भीरता से कहाः मैं इस पिडब्बे में था, इसलिलए आप पिगरनेवाले थे । बच गये, ईश्वर

” की कृपा से ।60. वह दूर है, पिफर भी पिनरन्तर पास है ।

गांधीजी का उपवास आरम्भ हुआ । नालिसक- “ जेल में प्यारेलालजी बीमार थे । वे कहते थेः बापूजी के सभी उपवासों के समय मैं उनके पास रहा हूँ । एपिनमा पिकतना देना है, पानी पिकतना और कैसे देना है, ” सब मुझे मालूम है । परन्तु इस समय मैं उनके पास नहीं हूँ ।

‘‘ गांधीजी से पत्र आयाः उपपिनर्षद् में कहा है, ‘ ’तददूरे तदं्वन्तिन्तके - आत्मा दूर भी है, पास भी है । दूर रहनेवाली आत्मा पिनकट भी है, ऐसा अनुभव ऐसे ही प्रसंगों में करना होता है । न ?”

61. राम- नाम को पोर्षर्ण

महात्माजी का उपवास जारी था । नालिसक- जेल में उनके पत्र आते थे । पत्रों में अपने उपवास के बारे में अमिधक न लिलखकर स्वामी आनन्द के स्वास्थ्य की खबर पूछते थे । उपवास में भी वे दूसरों की

चिच(ता करते थे । एक बार के पत्र में लिलखा थाः“ यह सच है पिक मैं अन्न नहीं लेता हूँ । पानी के लिसवा कोई अन्य रस नहीं लेता हूँ । परन्तु राम- नाम

” का रस तो पोर्षर्ण दे ही रहा है ।62. बापू की पिनद्रा

इसी उपवास के बीच महादेवभाई का लिलखा एक पत्र नालिसक- जेल में आया, उसका स्मरर्ण आ रहा है । उपवास जारी था । पर्ण,कुटी के बरामदे में चJकी पर महापुरुर्ष पडा़ था । उन्हें कुछ देर नींद आ

गयी थी । चारों ओर सुन्दर गम्भीर सृमिष्ट थी । महादेवभाई ने लिलखाः“ बापू सोया हैं । एक नन्हें लिशशु के समान सोये हैं । मानो पिवराट् सृमिष्टमाता की गोद में लिशशु सो रहाहो, ” पिकतना भव्य और उदाT दृश्य है ।

63. ‘ ’ ताटी उघडा ज्ञानेश्वरा सेवाग्राम का पिनवासकाल । महात्माजी पिनत्य प्रातः घूमने जाते थे । घूमकर लJटते समय कोई बीमार

हो तो उसकी कुठिटया में जाकर पूछताछ करते थे । एक बार एक झोपडी़ के पास वे आये । उनके कानों में यह सुन्दर अभंग सुनाई पडा़

सन्त जेर्णें व्हावे । जग- बोलर्णें सJसावे तरीच अगीं थोरपर्णे । जाया नाहीं अत्तिभमान

थोरपर्ण जैथें वसे । तेथें भूतदया असे रागैं भरावे कवर्णासीं । आपर्ण �ह्म सव, देशीं ऐशी समदृमिष्ट करा । ताटी उघडा ज्ञानेश्वरा ।। पिवश्व झालिलया वखिन्ह । संतमुखें व्हावे पार्णी

तुम्ही तरोन पिवश्व तारा । ताटी उघडा ज्ञानेश्वरा ।। ‘ मजवरी दया करा। ताटी उघडा ज्ञानेश्वरा ।।

जिजसे सन्त बनना हो, उसे संसार की बातें सहनी होंगी । महानता तभी मिमलेगी, जब मन में अत्तिभमान नहीं होगा । पिकस पर [ोध करें, जब स्वयं �ह्म ही सव,त्र है । हे ज्ञानेश्वर, ऐसी समदृमिष्ट रखो और परदा खोलो । सारा पिवश्व अखिग्न बन जाय, तो सन्त की वार्णी को जल बनना होगा । हे ज्ञानेश्वर, तुम स्वयं तर जाओ, औरों को तारो, परदा खोलो । मुझ पर कृपा करो, ज्ञानेश्वर, परदा खोलो ।

श्री परचुरे शास्त्री वह अभंग अपनी सुस्बर मी�ी आवाज में गा रहे थे । पिकवाड़ खोलने के बारे में सन्त मुक्ताबाई का वह प्रलिसद्ध अभंग हैं । उसके जो चरर्ण याद आते थे, वही शास्त्रीजी गा रहे थे । परचुरे शास्त्रीजी को वह अभंग अत्यन्त पिप्रय था । थोडी़ देर में समामिध उतरने के बाद गांधीजी झोपडी़ के अन्दर गये । बोलेः

“शास्त्रीजी, यह अभंग मुझे लिलख दीजिजये । मैं उसे कण्�स्थ करूगाँ । पिकतना प्रेमभरा और पिकतना उदाT है यह अभंग पिकसका है ?”

“ मुक्ताबाई का । ज्ञानेश्वर महाराज की वह छोटी बहन थी । एक बार आलन्दी में ज्ञानेश्वर सड़क पर ‘ से जा रहे थे । कुछ हिन(दक लोग उनकी ओर उँगली उ�ाकर लिचल्ला उ�ेः अरे देखो वह संन्यासी का

बच्चा सामने दीख पडा़, हाय-हाय, ’ अपशकुन हो गया । ज्ञानेश्वर का मन बै� गया । कमरे में जाकर पिकवाड़ बन्द करके बै� गये । मुक्ताबाई पानी लेने गयी थीं । आयीं तो पिकवाड़ बन्द देखा । तब ‘ ’ उन्होनें यह अभंग सुनाया । वह ताटी के अभंग के नाम से प्रलिसद्ध है। प्रत्येक अभंग के अन्त में

‘ ’ ” ताटी उघडा ज्ञानेश्वरा आता है । परचुरे शास्त्रीजी को पूरा अभंग याद नहीं आ रहा था । लेपिकन उन्होंने पूना के प्रा. दTोपंत पोतदार

को पत्र लिलखकर सारे अभंग मँगवा लिलये और गांधीजी को लिलखकर दे ठिदये ।