चिट्ठियों की अनूिीदनुनया अध्ययन...

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चिठिय की अन िनया अययन सामी प की द नया भी अजीबो - गरीब है और उसकी उ पयोचगता हमे शा से बनी रही है । प जो काम कर सकते ह , वह संिार का आध नकतम साधन नहीं कर सकता है । प जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहा दे सकता है। प एक नया ससलसला श करते ह और राजनीनत , साठहय तथा कला क े े म तमाम वववाद और नयी घटनाओं की ज भी प ही होते ह । द नया का तमाम साठह य प पर ठित है और मानव सयता क े वकास म इन प ने अन िसमका ननभाई है प का भाव सब जगह एक - सा है , भले ही उसका ना अलग - अलग है । प को उद खत , संक त म , कन कागद , तेल उरम , जाब और ले ख तथा तसमल म कडिद कहा जाता है। प याद को सहे जकर रखते ह , इसम कसी को कोई संदेह नहीं है। हर एक की अपनी प लेखन कला है और हर एक के प का अपना दायरा। द नया भर म रोज क रे प एक सरे को तलाशते तमाम ठिकान तक पह िते ह भारत म ही रोज साढे िर करो चिठिया िा क म िली जाती ह जो साबबत करती ह क प कतनी अ हसमयत रखते पंडित जवाहरलाल ने ह ने सन 1953 सही ही क हा था - ‘‘ हजार साल तक संिार का साधन क े वल हरका रे या कफर तेज घोिे रहे । उसक े बाद पठहए आए। पर रे लवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेल से भी ते ज गनत से संवाद पह िने का ससलसला श कया। अब टे लीफोन , वायरलैस और आगे रेिार - नया बदल रहा है ’’

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Page 1: चिट्ठियों की अनूिीदनुनया अध्ययन सामग्री · का बेसब्री से जजसने इंतजार

चिट्ठियों की अनूिी दनुनयाअध्ययन सामग्री

❖ पत्रों की दनुनया भी अजीबो-गरीब है और उसकी उपयोचगता हमेशा से बनी रही है। पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संिार का आधुननकतम साधन नहीं कर सकता है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहााँ दे सकता है।

❖ पत्र एक नया ससलससला शुरू करते हैं और राजनीनत, साठहत्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम वववाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही होते हैं। दनुनया का तमाम साठहत्य पत्रों पर कें ठित है और मानव सभ्यता के ववकास में इन पत्रों ने अनूिी भूसमका ननभाई है।

❖ पत्रों का भाव सब जगह एक-सा है, भले ही उसका नाम अलग-अलग है। पत्र को उदूू में खत, सस्ंकृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम,् जाबू और लेख तथा तसमल में कडिद कहा जाता है।

❖ पत्र यादों को सहेजकर रखते हैं, इसमें ककसी को कोई संदेह नहीं है। हर एक की अपनी पत्र लेखन कला है और हर एक के पत्रों का अपना दायरा। दनुनया भर में रोज करेड़ों पत्र एक दसूरे को तलाशते तमाम ठिकानों तक पहुाँिते हैं।

❖ भारत में ही रोज साढे िार करोड़ चिट्ठियााँ िाक में िाली जाती हैं जो साबबत करती हैं कक पत्र ककतनी अहसमयत रखते हैं।

❖ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन ्1953 में सही ही कहा था कक- ‘‘हजारों सालों तक संिार का साधन केवल हरकारे या कफर तेज घोिे े़ रहे हैं। उसके बाद पठहए आए। पर रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेलों से भी तेज गनत से संवाद पहुाँिाने का ससलससला शुरू ककया। अब टेलीफोन, वायरलैस और आगे रेिार-दनुनया बदल रहा है।’’

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❖ वपछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले सलया। िाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही ठदशा देने के सलए ववशेष प्रयास ककए गए। पत्र संस्कृनत ववकससत करने के सलए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का ववषय भी शासमल ककया गया।

❖ भारत ही नहीं दनुनया के कई देशों में ये प्रयास िले और ववश्व िाक संघ ने अपनी ओर से भी काफी प्रयास ककए। ववश्व िाक संघ की ओर से 16 वष ूसे कम आयुवग ूके बच्िों के सलए पत्र लेखन प्रनतयोचगताएाँ आयोजजत करने का ससलससला सन ्1972 से शुरू ककया गया।

❖ यह सही है कक खास तौर पर बड़ ेशहरों और महानगरों में संिार साधनों के तेज ववकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभाववत हुई है पर देहाती दनुनया आज भी चिट्ठियों से ही िल रही है। फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिट्ठियों की तेजी को रोका है पर व्यापाररक िाक की संख्या लगातार बढ रही है।

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❖ जहााँ तक पत्रों का सवाल है अगर आप बारीकी से उसकी तह में जाएाँ तो आपको ऐसा कोई नहीं समलेगा जजसने कभी ककसी को पत्र न सलखा या न सलखाया हो या पत्रों का बेसब्री से जजसने इंतजार न ककया हो।

❖ हमारे सैननक तो पत्रों का जजस उत्सकुता से इतंजार करते हैं उसकी कोई समसाल ही नहीं। एक दौर था जब लोग पत्रों का महीनों इंतजार करते थे पर अब वह बात नहीं। पररवहन साधनों के ववकास ने दरूी बहुत घटा दी है।

❖ पहले लोगों के सलए संिार का इकलौता साधन चिट्िी ही थी पर आज और भी साधन ववकससत हो िुके हैं। आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और साँजोकर ववरासत के रूप में रखे हुए हों या कफर बड़-ेबड़ ेलेखक, पत्रकारों, उद्यमी, कवव, प्रशासक, संन्यासी या ककसान, इनकी पत्र रिनाएाँ अपने आप में अनुसंधान का ववषय हैं।

❖ अगर आज जैसे संिार साधन होते तो पंडित नेहरू अपनी पुत्री इंठदरा गांधी को फोन करते, पर तब वपता के पत्र पुत्री के नाम नहीं सलखे जाते जो देश के करोड़ों लोगों को पे्ररणा देते हैं।

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❖ पत्रों को तो आप सहजेकर रख लेते हैं पर एसएमएस संदेशों को आप जल्दी ही भूल जाते हैं। ककतने संदेशों को आप सहेजकर रख सकते हैं? तमाम महान हजस्तयों की तो सबसे बड़ी यादगार या धरोहर उनके द्वारा सलखे गए पत्र ही हैं।

❖ इतनी स्पीड़ से मैसेजस ्हमारे पास आते हैं, उनमें से ककतनों को सहेजकर रखना अब मुमककन नहीं है । सभी प्रससद्द लोगों की तो सबसे बड़ी यादगार उनके द्वारा सलखे गए पत्र ही है।

❖ भारत में आजादी के पहले महासंग्राम के ठदनों में जो कुछ अंगे्रज अफ्सरों ने अपने पररवार जनों को पत्र में सलखा वे आगे िलकर बहुत महत्त्व की पुस्तक तक बन गए। इन पत्रों ने साबबत ककया कक यह संग्राम ककतनी जमीनी मजबूती सलए हुए था।

❖ महात्मा गांधी के पास दनुनया भर से तमाम पत्र केवल महात्मा गांधी-इंडिया सलखे आते थे और वे जहााँ भी रहते थे वहााँ तक पहुाँि जाते थे। आजादी के आंदोलन की कई अन्य ठदग्गज हजस्तयों के साथ भी ऐसा ही था।

❖ गांधीजी के पास देश-दनुनया से बड़ी संख्या में पत्र पहुाँिते थे पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था। कहा जाता है कक जैसे ही उन्हें पत्र समलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी सलख देते थे।

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❖ अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। जब सलखते-सलखते उनका दाठहना हाथ ददू करने लगता था तो वे बाएाँ हाथ से सलखने में जुट जाते थे। महात्मा गांधी ही नहीं आंदोलन के तमाम नायकों के पत्र गााँव-गााँव में समल जाते हैं।

❖ पत्र भेजनेवाले लोग उन पत्रों को ककसी प्रशजस्तपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो उन पत्रों को फे्रम कराकर रख सलया है। यह है पत्रों का जाद।ू यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने ककतनी ककताबें सलखी जा िुकी हैं।

❖ वास्तव में पत्र ककसी दस्तावेज से कम नहीं हैं। पंत के दो सौ पत्र बच्िन के नाम और ननराला के पत्र हमको सलख्यौ है कहा तथा पत्रों के आईने में दयानंद सरस्वती समेत कई पुस्तकें आपको समल जाएाँगी।

❖ कहा जाता है कक पे्रमिंद खास तौर पर नए लेखकों को बहुत पे्ररक जवाब देते थे तथा पत्रों के जवाब में वे बहुत मुस्तैद रहते थे। इसी प्रकार नेहरू और गांधी के सलखे गए रवींिनाथ टैगोर के पत्र भी बहुत पे्ररक हैं।

❖ कहा जाता है कक पे्रमिंद जोकक साठहत्यकार के बहुत जाने माने लेखक रहे है इनके द्वारा सलखी गई रिनाएाँ अनोखी है। उनहोंने आने वाले नए लेखकों को भी पे्ररणा दी है । जब भी उनके पास पत्र पहुाँिता था तो उसका जवाब देने के सलए हमेषा तैयार रहते थे।

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❖ पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली ववकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी ववभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुिववल िाक ववभाग की ही है।

❖ इसकी एक खास वजह यह भी है कक यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुाँि है। संिार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्िी-पत्री की हैससयत बरकरार है।

❖ शहरी इलाकों में आलीशान हवेसलयााँ हो या कफर झोपडड़यों में रह रहे लोग, दगुमू जंगलों से नघरे गााँव हों या कफर बफूबारी के बीि जी रहे पहाड़ों के लोग, समुि तट पर रह रहे मछुआरे हों या कफर रेचगस्तान की ढााँणणयो में रह रहे लोग, आज भी खेतों का ही सबसे अचधक बेसब्री से इंतजार होता है।

❖ एक दो नहीं, करोड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के सलए रोज भारतीय िाकघरों के दरवाजों तक पहुाँिते हैं और इसकी बहु आयामी भूसमका नजर आ रही है।

❖ दरू देहात में लाखों गरीब घरों में िूल्हे मनीआिरू अथव्यवूस्था से ही जलते हैं। गााँवों या गरीब बजस्तयों में चिट्िी या मनीआिरू लेकर पहुाँिनेवाला िाककया देवदतू के रूप में देखा जाता है।

❖ गााँव में लाखों गरीब घरों में िूल्हे मनीआिरू द्वारा आए पैसों से िलते हैं। घर में कामाने वाले लोग दरू शहरों में काम करते है और वह मनीआिरू के द्वारा पैसे घर-पररवार के गुजारे के सलए भेजते हैं। गााँवों या गरीब बजस्तयों में चिट्िी या मनीआिरू लेकर पहुाँिनेवाला िाककया देवदतू के रूप में देखा जाता है। उसकी पूजा की जाती है,जैसे वह दरवाजे पर आ गया मानों ईश्वर ही आ गये हों।

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प्रश्न अभ्यासप्र॰1 पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?

उत्तर – पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश नही दे सकता क्योंकक पत्र जो काम कर सकते हैं, वह नये जमाने के संिार के साधन नहीं कर सकते। पत्र एक नया ससलससला शुरू करते हैं और राजनीनत, साठहत्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम वववाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही होते हैं। दनुनया का तमाम साठहत्य पत्रों पर कें ठित है और मानव सभ्यता के ववकास में इन पत्रों ने अनूिी भूसमका ननभाई है।

प्र॰2 पत्र को खत, कागद, उत्तरम,् जाबू, लेख, कडिद, पाती, चिट्िी इत्याठद कहा जाता है। इन शब्दों से संबंचधत भाषाओं के नाम बताइए।

उत्तर – पत्र को उदूू में खत और चिट्िी, सस्ंकृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम,् जाबू और लेख, ठहदंी में पाती तथा तसमल में कडिद कहा जाता है।

प्र॰3 पत्र लेखन की कला के ववकास के सलए क्या-क्या प्रयास हुए? सलणखए।

उत्तर – पत्र लेखन की कला के ववकास के सलए ननम्न प्रयास हुए। िाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही ठदशा देने के सलए ववशेष प्रयास ककए गए। पत्र संस्कृनत ववकससत करने के सलए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का ववषय भी शासमल ककया गया। ववश्व िाक संघ की ओर से 16 वष ूसे कम आयवुग ूके बच्िों के सलए पत्र लेखन प्रनतयोचगताएाँ आयोजजत करने का ससलससला सन ्1972 से शुरू ककया गया।

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प्र॰4- पत्र धरोहर हो सकते हैं लेककन एसएमएस क्यों नहीं? तकू सठहत अपना वविार सलणखए।उत्तर – आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और साँजोकर ववरासत के रूप में रखे हुए हों, पत्रों को तो आप सहजेकर रख लेते हैं पर एसएमएस सदेंषां को आप जल्दी ही भूल जाते हैं। ककतने संदेशों को आप सहेजकर रख सकते हैं? तमाम महान हजस्तयों की तो सबसे बड़ी धरोहर उनके द्वारा सलखे गए पत्र ही हैं। भारत में इस शे्रणी में राष्ट्रवपता महात्मा गांधी को सबसे आगे रखा जा सकता है। दनुनया के तमाम संग्रहालय में जानी मानी हजस्तयों के पत्रों का अनूिा संकलन भी हैं। इससलए कहा जाता है कक पत्र धरोहर हो सकते हैं लेककन एसएमएस नहीं।प्र॰5 क्या चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?उत्तर – चिट्ठियों की जगह कभी फैक्सए ई-मेलए टेलीफोन तथा मोबाइल नहीं ले सकते है क्योंकक यह सब वैज्ञाननक युग के हैंए जो मानव के सलए बहुत महत्त्व रखते है परन्तु ये कभी भी पत्रों का स्थान नहीं ले सकते।जजतना पे्रम और अपनापन हमे पत्रों में सलणखत एक-एक शब्द द्वारा समलता है वह इन ववकससत संिार साधनो द्वारा नहीं। इससलए ये कभी भी चिट्ठियों का स्थान नहीं ले सकते |

प्र॰ 6 ककसी के सलए बबना ठटकट सादे सलफाफे पर सही पता सलखकर पत्र बैरंग भेजने पर कौन-सी कठिनाई आ सकती है? पता कीजजए।उत्तर:- बबना ठटकट सादे सलफाफे पर सही पता सलखकर पत्र बैरंग भेजने पर पत्र को पाने वाले व्यजक्त को ठटकट की धनरासश जुमाूने के रूप में देनी होगी।

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प्र॰ 7 वपन कोि भी संख्याओ ंमें सलखा गया एक पता है, कैसे?उत्तर:- वपन कोि ककसी खास क्षेत्र को संबोचधत करता है कक यह पत्र ककस राज्य के ककस क्षेत्र का है। इसके साथ व्यजक्त का नाम और नंबर आठद भी सलखना पड़ता है।वपन कोि का पूरा रूप है पोस्टल इंिके्स नंबर। यह 6 अकंो का होता है। हर एक का खास स्थानीय अथ ूहोता है, जसेै – १ अकं राज्य, २ और ३ अकं उपक्षेत्र, अन्य अकं क्रमशः िाकघर आठद के होते है। इस प्रकार वपन कोि भी संख्याओ ंमें सलखा गया एक पता है।

प्र॰ 8 ऐसा क्यों होता था कक महात्मा गांधी को दनुनया भर से पत्र ‘महात्मा गांधी-इंडिया’ पता सलखकर आते थे?उत्तर:- महात्मा गांधी को दनुनया भर से पत्र ‘महात्मा गांधी-इंडिया’ पता सलखकर आते थे क्योंकक महात्मा गांधी अपने समय के सवाूचधक लोकवप्रय व प्रससद्ध व्यजक्त थे। वे भारत गौरव थे। गााँधी जी देश के ककस भाग में रह रहे हैं यह देशवाससयो को पता रहता था। अत: उनको पत्र अवश्य समल जाता था।भाषा की बात

प्र॰ 9. ककसी प्रयोजन ववशषे से संबंचधत शब्दों के साथ पत्र शब्द जोड़ने से कुछ नए शब्द बनते हैं, जसेै – प्रशजस्त पत्र, समािार पत्र। आप भी पत्र के योग से बननेवाले दस शब्द सलणखए।उत्तर:- 1. प्राथनूा पत्र2. माससक पत्र3. छः माससक पत्र4. वावषकू पत्र5. दैननक पत्र6. साप्ताठहक पत्र7. पाक्षक्षक पत्र8. सरकारी पत्र9. साठहजत्यक पत्र10. ननमंत्रण पत्र

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प्र॰ 10 ‘व्यापाररक’ शब्द व्यापार के साथ ‘इक’ प्रत्यय के योग से बना है। इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्यपुस्तक से खोजकर सलणखए।उत्तर:- इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्द –1. स्वाभाववक 2. साठहजत्यक 3. व्यवसानयक 4. दैननक5. प्राकृनतक 6. जवैवक 7. प्रारंसभक 8. पौराणणक9. ऐनतहाससक 10.सांस्कृनतकप्र॰ 11 दो स्वरों के मेल से होने वाले पररवतनू को स्वर संचध कहते हैं;जसेै – रवीन्ि = रवव + इन्ि। इस संचध में इ + इ = ई हुई है। इसे दीघ ूसंचध कहते हैं। दीघ ूस्वर संचध के और उदाहरण खोजकर सलणखए। मुख्य रूप से स्वर संचधयााँ िार प्रकार की मानी गई हैं – दीघ,ू गुण, वदृ्चध और यण।ह्रस्व या दीघ ूअ, इ, उ के बाद ह्रस्व या दीघ ूअ, इ, उ, आ आए तो ये आपस में समलकर क्रमशः दीघ ूआ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संचध को दीघ ूसंचध कहते हैं;जसेै – संग्रह + आलय = संग्रहालय, महा + आत्मा = महात्मा।इस प्रकार के कम-से-कम दस उदाहरण खोजकर सलणखए और अपनी सशक्षक्षका/सशक्षक को ठदखाइए।उत्तर:- 1. गुरूपदेश = गुरू + उपदेश (उ + उ)2. संग्रहालय = संग्रह + आलय (अ + आ)3. ठहमालय = ठहम + आलय (अ + आ)4. भोजनालय = भोजन + आलय (अ + आ)5. स्वेच्छा= सु + इच्छा( उ + इ)6. अनुमनत = अनु + मनत (उ + अ)7. रवीन्ि = रवव + इंि (इ + इ)8. ववद्यालय = ववद्या + आलय (आ + आ)9. सूय ू+ उदय = सूयोदय (अ + उ)10. सदा + एव = सदैव (आ + ए)