इस्मत-ए-अंबिया · है लक वह सच्ा और ख़ुदा...

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  • इस्मत-ए-अंबिया(नबियों की सच्चरित्रता)

    मुक्ति बकस प्रकाि बमल सकती है औि

    उसकी वासतबवक बिलासिी कया है?

    लेखकहज़ित बमज़ाज़ा ग़ुलाम अहमद क़ाबदयानी

    मसीह मौऊद व महदी माहूद अलैबहससलाम

    I

  • नाम पुसतक : इसमत-ए-अंबियाName of book : Ismat–E–Ambiyaलेखक : हज़ित बमज़ाज़ा ग़ुलाम अहमद मसीह मौऊद अलैबहससलामWriter : Hazrat Mirza Ghulam Ahmad Masih Mouood Alaihissalamअनवुादक : डॉ अनसाि अहमद, पी एच. डी., आनसज़ा इन अिबिकTranslator : Dr Ansar Ahmad, Ph. D, Hons in Arabicटाईबपंग, सैबटंग : नाबदया पिवेज़ाTyping Setting : Nadiya Pervezaसंसकिण तथा वरज़ा : प्रथम संसकिण (बहनदी) मई 2018 ई०Edition. Year : 1st Edition (Hindi) May 2018संखया, Quantity : 1000प्रकाशक : नज़ाित नश्र-व-इशाअत, क़ाबदयान, 143516 बज़ला-गुिदासपुि (पंजाि)Publisher : Nazarat Nashr-o-Isha'at, Qadian, 143516 Distt. Gurdaspur, (Punjab)मुद्रक : िज़ले उमि बप्रंबटंग प्रेस, क़ाबदयान, 143516 बज़ला-गुिदासपुि, (पंजाि)Printed at : Fazl-e-Umar Printing Press, Qadian, 143516 Distt. Gurdaspur (Punjab)

    II

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    इस्मत-ए-अंबिया

    बिस्मिल्लाबिर्रिमिलाबिर्रिीमिनहमदुहू व नुसल्ली अला रसूलललहल करलीम

    मिुसति बिस प्रिलार प्रलाप्त िो सिती िै और उसिी वला्तबवि ब़िलला़्िी क्ला िै?

    धालममिक समस्ाओं में से मुक्ति और लसफाररश की समस्ा एक ऐसली महान एवं आधारभूत समस्ा है लक धालममिक पाबनदली के समसत उद्ेश् इसली पर जाकर समाप्त होते हैं तथा लकसली धममि की सच्ाई के परखने के ललए वहली एक ऐसा साफ और सपष्ट लनशान है लजसके द्ारा पूरमि सनतुक्ष्ट एवं सनतोष-पूवमिक ज्ात हो सकता है लक अमुक धममि वासतव में सच्ा और ख़ुदा की ओर से है। और ्ह बात लबलककुल सच और सहली है लक लजस धममि ने इस समस्ा को सहली तौर पर वरमिन नहीं लक्ा ्ा अपने समुदा् में मुक्ति प्ाप्त लोगों के वतमिमान नमूने सपष्ट अनतर के साथ लदखा नहीं सका उस धममि के लमथ्ा होने के ललए लकसली अन् प्मार की आवश्कता नहीं। परनतु लजस धममि ने सहली तौर पर मुक्ति की मूल वासतलवकता लदखाई है और न केवल इतनली बक्लक अपने वतमिमान सम् में ऐसे मनुष् भली प्सतुत लकए हैं लजन में पूरमि रूप से मुक्ति की रूह फूंकी गई है उसने मुहर लगा दली है लक वह सच्ा और ख़ुदा की ओर से है।

    ्ह तो सपष्ट है लक प्त्ेक मनुष् सवाभालवक तौर पर अपने लदल में महसूस करता है लक वह सैकड़ों प्कार की लापरवालह्ों, पददों, कामवासनाओं के आक्रमरों, ग़ललत्ों, कमजोरर्ों, मूखमिताओं,

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    इस्मत-ए-अंबिया

    क़दम-क़दम पर अंधकारों, ठोकरों, लनरनतर ख़तरों तथा भ्रमों के कारर एवं संसार की नाना प्कार की लवपलति्ों, आपदाओं के कारर एक ऐसे शक्तिशालली हाथ का अवश् मुहताज है जो उसे इन समसत अलप्् बातों से बचाए क्ोंलक मनुष् अपने सवभाव में कमजोर है और वह कभली एक पल के ललए भली अपने ऊपर भरोसा नहीं कर सकता लक वह सव्ं कामवासनाओं के अंधकारों से बाहर आ सकता है। ्ह तो मानवली् अनतरातमा की गवाहली ह ैऔर इसके अलतररति ्लद सोच-लवचार से काम लल्ा जाए तो सद्ुलधि इसली को चाहतली है लक मुक्ति के ललए लसफाररश कतामि की आवश्कता है। क्ोंलक ख़ुदा तआला अत्नत पलवत्रता एवं शुधिता की शे्रली पर है और मनुष् अत्नत अंधकार, गुनाह तथा गनदगली के गढ़े में है और अनुकूलता एवं समानता के अभाव के कारर मानवली् लगरोह का सामान् वगमि इस ्ोग् नहीं लक वह सलीधे तौर पर ख़ुदा तआला से वरदान पाकर मुक्ति की शे्रली प्ाप्त कर ले। इसललए ख़ुदा की लहकमत और रहमत (द्ा) ने ्ह चाहा लक मानव जालत और उसमें ककुछ कालमल लोग जो अपने सवभाव में एक लवशेष श्ेष्ठता रखते हों एक दरलम्ानली माध्म हों और वे इस प्कार के इनसान हों लजन के सवभाव ने ककुछ भाग लाहूतली (ख़ुदा में ललीन होने की) लवशेषताओं से लल्ा हो और ककुछ भाग नासूतली (सांसाररक लवशेषताओं) तालक़ ख़ुदा में ललीन होने की अनुकूलता के कारर ख़ुदा से वरदान प्ाप्त करें तथा शरलीअत की समानता के कारर उस वरदान को जो ऊपर से लल्ा है नलीचे को अथामित् मानव जालत को पहुंचाए। और ्ह कहना वासतव में सहली है लक

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    इस्मत-ए-अंबिया

    इस प्कार के इनसान ख़ुदा में ललीन होने औऱ शरलीअत की ख़ूबली में अलधकता के कारर अन् इनसानों से एक लवशेष अनतर रखते हैं। जैसे ्ह एक मखलूक (सृक्ष्ट) हली अलग है। क्ोंलक इन लोगों को ख़ुदा के प्ताप और श्ेष्ठता प्कट करने के ललए लजतना जोश लद्ा जाता है और इन के लदलों में वफादारली का लजतना माद्दः (तत्व) भरा जाता है तथा इनको मानव जालत की हमदददी का लजतना जोश प्दान लक्ा जाता है वह एक ऐसली लवलक्षर बात है लक दूसऱे के ललए उसकी कलपना करना भली कलठन है। हां ्ह भली समरर रखने ्ोग् है लक ्े समसत लोग एक श्ेरली पर नहीं होते बक्लक इन सवाभालवक ख़ूलब्ों में कोई उच् शे्रली पर है, कोई उस से कम तथा कोई उस से कम। एक सद्ुलधि रखने वाले व्क्ति की अनतआमितमा समझ सकतली है लक लसफाररश की समस्ा नहीं है, बक्लक ख़ुदा की लनधामिररत व्वसथा में प्ांरभ से इसके उदाहरर मौजूद हैं और प्कृलत के लन्म में इसकी गवालह्ां सपष्ट तौर पर लमलतली हैं।

    अब लसफाररश की लफलासफी इस प्कार समझनली चालहए लक शबदकोश में (जोड़ने) को कहते हैं तो शफाअत के शबद شــفعमें इस बात की ओर संकेत है लक वह आवश्क बात जो शफीअ (लसफाररश कतामि) की लवशेषताओं में से होतली है ्ह है लक उसे दो तरफा (दोनों ओर से) एकता प्ाप्त हो। अथामित् एक ओर उसके नफ़स का ख़ुदा तआला से ऐसा संबंध हो लक जैसे वह पूरमि एकता के कारर ख़ुदा तआला के ललए बतौर जोड़ने और बतौर पैबनद के हो और दूसरली ओर उसका मखलूक़ से भली गहरा संबंध हो जैसे

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    इस्मत-ए-अंबिया

    वह उनके अंगों का एक भाग हो। तो शफाअत (लसफाररश) का प्भाव समपालदत होने के ललए वासतव में ्हली दो भाग हैं लजन पर प्भाव का समपादन लनभमिर है। ्हली राज है जो ख़ुदा की लहकमत ने आदम को ऐसे ढुंग से बना्ा लक सवभाव के प्ारुंभ से हली उसकी प्कृलत में दो प्कार के संबंध सथालपत कर लदए। अथामित् एक संबंध तो ख़ुदा से सथालपत लक्ा जैसा लक पलवत्र क़ुआमिन में फरमा्ा –

    ْوِحْ فََقُعْوا َلٗ ٰسِجِدیَْن یُْتٗہ َونََفْخُت ِفْیِہ ِمْن ّرُ فَِاذَا َسّوَ(अललहज्र – 30)अथामित् जब मैं आदम को ठलीक-ठलीक बना लूं और अपनली रूह

    उसमें फूंक दूं तो ह़े फररशतो तुम उसली सम् सजदे में लगर जाओ।★ इस उपरोति आ्त से सपष्ट तौर पर लसधि है लक ख़ुदा ने आदम में उसके जनम के साथ हली अपनली रूह फूंक कर उसकी प्कृलत को अपने साथ एक संबंध सथालपत कर लद्ा। ्ह इसललए लक्ा ग्ा तालक इनसान को सवाभालवक तौर पर ख़ुदा से संबंध पैदा हो जाए। ऐसा हली दूसरली ओर ्ह भली आवश्क था लक उन लोगों से भली

    ★िलाबि्ला :- इस आ्त में एक गहऱे राज की ओर संकेत है जो चरम श्ेरली की खूबली का एक लनशान है, और वह ्ह लक इनसान प्ांरभ में केवल इनसान की आकृलत होतली है परनतु अनदर से वह लनजदीव (बेजान) होता है और उसमें कोई रूहालन्त नहीं होतली और इस क्सथलत में फररशते उसकी सेवा नहीं करते, क्ोंलक वह एक मक्सतषक लवहलीन पोसत है। परनतु इसके बाद धलीऱे-धलीऱे नेक इनसान पर ्ह सम् आ जाता है लक वह ख़ुदा से बहत हली क़रलीब जा रहता है। तब जब ठलीक-ठलीक प्तापली ख़ुदा के प्काश के सामने उसका नफ़स जा पड़ता है तथा बलीच में कोई पदामि नहीं होता लक उस प्काश को रोक दे तो अलवलमब ख़ुदाई प्काश लजसे दूसऱे शबदों में ख़ुदा की रूह कह

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    इस्मत-ए-अंबिया

    सवाभालवक संबंध हो जो मानव जालत कहलाएंगे। क्ोंलक जब उनका अक्सतत्व आदम की हड्ली में से हड्ली और मांस में से मांस होगा तो वह अवश् उस रूह में से भली भाग लेंगे जो आदम में फूंकी गई। इसललए आदम सवाभालवक तौर पर उनका शफीअ (लसफाररश कतामि) ठहऱेगा। क्ोंलक रूह फूंके जाने के कारर जो ईमानदारली आदम की प्कृलत (लफतरत) को दली गई है अवश् है लक उस की ईमानदारली का ककुछ भाग उस व्क्ति को भली लमले जो उसमें से लनकला है। जैसा लक सपष्ट है लक प्त्ेक जानवर का बच्ा उसकी लवशेषताओं तथा का्दों में से भाग लेता है और वासतव में शफाअत (लसफाररश की वासतलवकता भली ्हली है लक सवाभालवक वाररस अपने लवरसा देने वाले से भाग ले। क्ोंलक अभली हम वरमिन कर चुके हैं लक शफाअत का शबद شــفع के शबद से लनकला है जो जोड़़े को कहते हैं। तो जो व्क्ति सवाभालवक तौर पर एक दूसऱे व्क्ति का जोड़ा ठहर जाएगा, उसकी लवशेषताओं में से अवश् भाग लेगा। इसली लसधिानत पर पैदा्श की लवरासत का समपूरमि लसलसला जारली है। अथामित् मनुष् का बच्ा

    िेष िलाबि्ला - सकते हैं उस इनसान के अनदर दालख़ल हो जातली है। वहली एक लवशेष हालत है लजस के संबंध में ख़ुदा के कलाम में कहा ग्ा लक ख़ुदा ने आदम में अपनली रूह फूंक दली। इस हालत पर न लकसली बनावट से और न ऐसली बात से जो शरलीअत के आदेशों के रुंग में होतली है फररशतों को ्ह आदेश होता है लक उसके आगे सजदे में लगरें। अथामित पूरमिरूप से उसकी आज्ा का पालन करें जैसे लक वे उसे सजदा कर रह़े हैं। ्ह आदेश फररशतों की प्कृलत के साथ सलंगन होता है कोई नई बात नहीं होतली। अथामित ऐसे व्क्ति के मुक़ाबले पर लजस का अक्सतत्व ख़ुदा के रूप पर आ जाता है फररशते सव्ं सवाभालवक तौर पर महसूस कर लेते हैं लक अब उसकी सेवा के ललए हमें लगरना चालहए। ऐसे लक़ससे वासतव

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    इस्मत-ए-अंबिया

    मनुष् की शक्ति्ों में से लहससा लेता है और घोड़़े का बच्ा घोड़़े की शक्ति्ों में से लहससा लेता है और बकरली का बच्ा बकरली की शक्ति्ों में से लहससा लेता है। इसली लवरासत का नाम दूसऱे शबदों में शफाअत से लाभाक्नवत होना है। क्ोंलक जब शफाअत का असल अथामित् जोड़ा है तो शफाअत से लाभाक्नवत होना चाहता है ُشــفعउसे उससे सवाभालवक संबंध प्ाप्त हो, तालक जो ककुछ उसकी प्कृलत को लद्ा ग्ा है उसकी प्कृलत को भली वहली लमले। ्ह संबंध जैसा लक वहबली (प्दति) तौर पर मानव-प्कृलत में मौजूद है लक एक मनुष् दूसऱे मनुष् का एक भाग है ऐसा हली कसबली (अलजमित) तौर पर भली िेष िलाबि्ला - में लकससे नहीं हैं बक्लक पलवत्र क़ुआमिन में ख़ुदा की आदत इसली प्कार से है लक उन लकससों के नलीचे कोई ज्ान संबंधली वासतलवकता होतली है। तो ्हां ्हली ज्ान संबंधली वासतलवकता है लक ख़ुदा तआला ने इसे लक़ससे की शैलली में व्ति करना चाहा है लक कालमल (पूरमि) इनसान की लनशानली क्ा है?! तो फरमा्ा लक कालमल इनसान की लनशानली ्ह है लक (1) इनसानली सृक्ष्ट के लकसली लहससे में वह दुभामिग्शालली न हो और उसकी प्कृलत पूरमि संतुलन पर बनली हो (2) दूसरली लनशानली ्ह है लक ख़ुदा की रूह ने उसके अनदर प्वेश लक्ा हो (3) तलीसरली लनशानली ्ह है लक फररशते उसको सजदा करें। अथामित सब फररशते जो पृथवली और आकाश के का्मि में लगे हए हैं उसके सेवक हों तथा उसकी इचछानुसार काम करें। असल बात ्ह है लक जब ख़ुदा तआला लकसली बनदे के साथ होता है तो उसके सब फररशतों की सेना भली उस व्क्ति के साथ हो जातली है और उसकी ओर झुक जातली है। तब प्त्ेक मैदान में तथा प्त्ेक कलठनाई के सम् फररशते उसकी सहा्ता करते हैं और उस की आज्ा का पालन करने के ललए हर दम कमर कसे रहते हैं। जैसे वे हर सम् उसके सामने सजदे में हैं, क्ोंलक वह ख़ुदा का ख़ललीफा है। परनतु इन बातों को जमलीनली लवचार के लोग समझ नहीं सकते, क्ोंलक उनहें आकाशली् रूह से लहससा नहीं लद्ा ग्ा। (इसली से)

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    इस्मत-ए-अंबिया

    ्ह संबंध लवकासशलील है। अथामित् जब एक मनुष् ्ह चाहता है लक जो सवाभालवक प्ेम और सवाभालवक हमदददी मानव जालत के ललए उसमें मौजूद है उसमें वृलधि हो तो उसमें प्कृलत एवं अनुकूलता के दा्ऱे के अनुसार वृलधि भली हो जातली है। इसली आधार पर प्ेम की शक्ति का जोश मारना (लहरें मारना) भली है लक एक व्क्ति एक व्क्ति से इतना प्ेम बढाता है लक उसको देखे लबना आराम नहीं कर सकता तो उसके प्ेम की अलधकता उस दूसऱे व्क्ति के लदल पर भली असर करतली है और जो व्क्ति चरम सलीमा तक लकसली से प्ेम करता है वहली व्क्ति पूरमि रूप से तथा सच्े तौर पर उसकी भलाई को भली चाहता है। अतदः ्ह बात बच्ों के बाऱे में उनकी माताओं की ओर से देखली गई और महसूस की गई है। तो शफाअत की असल जड़ ्हली प्ेम है जब उसके साथ सवाभालवक संबंध भली हो, क्ोंलक सवाभालवक संबंध के लबना प्ेम का कमाल (ख़ूबली) जो शफाअत की शतमि है असंभव है। इस संबंध को मानवली् प्कृलत में दालखल करने के ललए ख़ुदा ने ''हववा'' को अलग पैदा न लक्ा, बक्लक आदम की पसलली से हली उसको लनकाला। जैसा लक पलवत्र क़ुआमिन में फरमा्ा है – (अक्निसा-2) َوَخلََق ِمْنَھا َزْوَجَھا

    अथामित् आदम के अक्सतत्व में से हली हमने उसका जोड़ा पैदा लक्ा जो ''हववा'' है। तालक आदम का ्ह संबंध हववा और उसकी सनतान से सवाभालवक हो न लक बनावटली, और उसकी सनतान से सवाभालवक हो न लक बनावटली, और ्ह इसललए लक्ा तालक आदमजादों (मनुष्ों) के संबंध तथा हमदददी को अनश्वरता हो क्ोंलक सवाभालवक संबंध पृथक होने वाले नहीं होते हैं। परनतु

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    इस्मत-ए-अंबिया

    असवाभालवक संबंधों के ललए अनश्वरता (बक़ा) नहीं है क्ोंलक उनमें वह परसपर आकषमिर नहीं है जो सवाभालवक में होता है। अतदः ख़ुदा ने इस से दोनों प्कार के संबंध जो आदम के ललए ख़ुदा से और मानव जालत से होने चालहए थे सवाभालवक तौर पर पैदा लकए। तो इस वतिव् से सपष्ट है लक कालमल इनसान जो शफीअ होने के ्ोग् हो वहली व्क्ति हो सकता है लजसने इन दोनों संबंधों से पूरमि लहससा लल्ा हो तथा कोई व्क्ति इन हर दो प्कार की लवशेषताओं के लबना कालमल इनसान नहीं हो सकता। इसली ललए आदम के बाद ्हली ख़ुदा की सुनित (लन्म) ऐसे तौर पर जारली हई लक कालमल इनसान के ललए जो शफीअ हो सकता है ्े दोनों संबंध आवश्क ठहराए गए। अथामित् एक ्ह संबंध लक उनमें आकाशली् रूह फूंकी गई और ख़ुदा ने ऐसा उनसे लमलाप लक्ा लक जैसे उनमें उतर आ्ा। दसूऱे ्ह लक मानव जालत के जडु़न े का वह जोड़ जो हववा और आदम में परसपर पे्म एव ंहमदददी के साथ सदुृढ लक्ा ग्ा था उनमें सबस ेअलधक चमका्ा ग्ा। इसली तहरलीक स ेउनको पक्तन्ों की ओर भली लदलचसपली हई, और ्हली इस बात का प्थम लक्षर है लक उनमें मानवजालत की हमदददी का माद्दः (तत्व) है, इसली की ओर वह हदलीस सकेंत करतली है लजसके ् ेशबद हैं लक ُٖکــْم ِلَْھــِہ ُکــْم َخْیُ َخْیُअथामित्् तुम में से सब से अलधक मानव जालत के साथ भलाई करने वाला वहली हो सकता है लक पहले अपनली पतनली के साथ भलाई कऱे। परनतु जो व्क्ति अपनली पतनली के साथ अत्ाचार और शरारत का व्वहार करता है संभव नहीं लक वह दूसरों के साथ भली भलाई कर सके, क्ोंलक ख़ुदा ने आदम को पैदा करके सबसे पहले आदम के

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    इस्मत-ए-अंबिया

    प्ेम का चररताथमि उसकी पतनली को हली बना्ा है। अतदः जो व्क्ति अपनली पतनली से प्ेम नहीं करता और ्ा उसकी सव्ं की पतनली हली नहीं वह कालमल इनसान होने की शे्रली से लगरा हआ है, और शफाअत की दो शतदों में से एक शतमि उसमें खोई हई है। इसललए ्लद उसमें इसमत् पाई भली जाए तब भली वह शफाअत करने के ्ोग् नहीं। लकनतु जो व्क्ति कोई पतनली लनकाह में लाता है वह अपने ललए मानव-जालत की हमदददी की बुलन्ाद डालता है। क्ोंलक एक पतनली बहत से ररशतों का कारर हो जातली है और बचे् पैदा होते हैं उनकी पक्तन्ां आतली हैं तथा बच्ों की नालन्ां और बच्ों के मामा इत्ालद होते हैं और इसली प्कार से ऐसा व्क्ति अकारर पे्म और हमदददी का अभ्सत हो जाता है और उसकी इस आदत का दा्रा लवसतृत होकर सब को अपनली हमदददी से लहससा देता है। परनतु जो लोग जोलग्ों की तरह पालन-पोषर पाते हैं उनको इस आदत के लवसतृत करने का कोई अवसर नहीं लमलता। इसललए उनके लदल

    ★िलाबि्ला :- जबलक बुलधि और न्ा् की दृक्ष्ट से गुनाह की पररभाषा ्ह है लक गुनाह एक का्मि को उस सम् कहा जाए जबलक एक इनसान उस का्मि के द्ारा ख़ुदा के आदेश को तोड़ कर दणडनली् ठहऱे तो इस क्सथलत में आवश्क हआ लक गुनाह के होने से पहले ख़ुदा का आदेश मौजूद हो और उस गुनाह करने वाले को वह आदेश पहुंच भली ग्ा हो और उस गुनहगार के बाऱे में बुलधि कह सकतली हो लक इस का्मि के करने से वासतव में वह दणडनली् ठहर चुका है (उदाहरर बतौर अपवाद) जैद एक ऐसे बहत दूर देश में है लक ख़ुदा की शरलीअत उसको नहीं पहुंचली तो ्लद जैद ने शरलीअत के आदेशों में से लकसली एक आदेश ्ा ककुछ आदेशों को तोड़ लद्ा है तो इस ख़ुदा के आदेशों के उल्ंघन करने से वह अपराधली नहीं है। क्ोंलक शरलीअत की उसे सूचना नहीं

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    इस्मत-ए-अंबिया

    कठोर और शुषक रह जाते हैं।और इसमत का शफाअत से कोई वासतलवक संबंध नहीं,

    क्ोंलक इसमत का अथमि केवल इस सलीमा तक है लक मनुष् गुनाह से बचे। और गुनाह की पररभाषा ्ह है लक मनुष् ख़ुदा के आदेश को जान बूझ कर तोड़ कर दणड ्ोग् ठहऱे।★ तो सपष्ट है लक इसमत और शफाअत में कोई व्क्तिगत अलनवा्मिता नहीं क्ोंलक कलथत पररभाषा की दृक्ष्ट से अव्सक बचे् और जनमजात पागल भली मासूम हैं। कारर ्ह लक वे इस ्ोग् नहीं हैं लक कोई गुनाह जानबूझ कर करें और न वे ख़ुदा तआला के नजदलीक लकसली का्मि करने से दणडनली् ठहरते हैं। तो लनससनदेह वे अलधकार रखते हैं लक उन को मासूम (लनषपाप) कहा जाए। परनतु क्ा वे ्ह अलधकार भली रखते हैं लक मनुष्ों के शफीअ हों और मुक्ति दाता कहलाएं? तो इस से लबलककुल सपष्ट है लक मुक्ति दाता होने तथा मासूम होने

    िेष िलाबि्ला - परनतु ्लद जैद बुलधि और लववेक रखने की क्सथलत में मूलतमि-पूजा करने लगे और ख़ुदा की तौहलीद (एकेश्वरवाद) से लवमुख हो जाए तो वह उस तक शरलीअत न पहुंचने के बावजूद भली अपराधली है, क्ोंलक लजस तौहलीद को क़ुआमिन ला्ा है वह ईसाइ्ों की तसललीस की तरह ऐसली बात नहीं है जो मनुष् की प्कृलत में अंलकत न हो, बक्लक वह प्थम लदवस से मनुष् की प्कृलत में अंलकत है। इसललए उसका उल्ंघन करने के ललए शरलीअत का पहुंचना आवश्क नहीं, केवल मानवली् बुलधि का पा्ा जाना आवश्क है और ्लद शरलीअत मौजूद है और एक व्क्ति को पहुंच गई है परनतु वह अव्सक है ्ा पागल है और उस हालत में वह लकसली ऐसे का्मि को कर चुका है जो शरलीअत की दृक्ष्ट से गुनाह कहलाता है तो वह दणडनली् नहीं, क्ोंलक मानवली् बुलधि उसे नहीं दली गई। इसललए वह शरलीअत के बावजूद लफर भली मासूम (लनषपाप) है। (इसली से)

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    इस्मत-ए-अंबिया

    में कोई वासतलवक ररशता नहीं और बुलधि हरलगज नहीं समझ सकतली लक इसमत का शफाअत से कोई वासतलवक संबंध है। हां बुलधि इस बात को ख़ूब समझतली है लक शफीअ के ललए ्ह आवश्क है लक तथाकलथत दो प्कार के संबंध उसमें पाए जाएं और बुलधि लनससंकोच ्ह आदेश करतली है लक ्लद लकसली मनुष् में ्े दो लवशेषताएं मौजूद हों लक एक ख़ुदा से घलनष्ठ संबंध हो और दूसरली ओर मखलूक़ (सृक्ष्ट) से भली पे्म एवं हमदददी का संबंध हो तो लनससनदेह ऐसा व्क्ति उन लोगों के ललए लजनहोंने जान बूझ कर उससे संबंध नहीं तोड़ा लदल के जोश के साथ शफाअत कऱेगा और उस की वह शफाअत सवलीकार की जाएगली। क्ोंलक लजस व्क्ति की प्कृलत को ्े दो संबंध प्दान लकए गए हैं उन का अलनवा्मि पररराम ्हली है लक वह ख़ुदा के पूरमि पे्म के कारर इस वरदान को खींचे और लफर स्रक्ष्ट के पूरमि प्ेम के कारर वह वरदान उन तक पहुंचाए और ्हली वह हालत है लजसे दूसऱे शबदों में शफाअत कहते हैं। शफीअ व्क्ति के ललए जैसा लक अभली मैंने वरमिन लक्ा है आवश्क है लक उसका ख़ुदा से एक ऐसा गहरा संबंध हो लक जैसे ख़ुदा उसके लदल में उतरा हआ हो और उसकी समपूरमि इनसालन्त मर कर बाल-बाल में लाहूतली (ख़ुदा में ललीन होने की) चमकार पैदा हो गई हो और उसकी रूह पानली की तरह लपघल कर बह लनकलली हो और इस प्कार से ख़ुदा के सालनध् (क़ुबमि) के अक्नतम लबनदु पर जा पहुंचली हो। इसली प्कार शफीअ के ललए ्ह भली आवश्क है लक लजसके ललए वह शफाअत करना चाहता है उसकी हमदददी में उसका लदल हाथ से लनकल जाता हो ऐसा लक जैसे शलीघ्र हली उस पर मूचछामि

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    इस्मत-ए-अंबिया

    असवथा छा जाएगली और जैसे तलीव्र करुरा से उस के अंग उस से अलग होते जाते हैं तथा उसके हवास (ज्ानेक्नरि्ां) लबखर रह़े हैं और उसकी हमदददी ने उसको उस सथान तक पहुंचा्ा हो लक जो बाप से बढकर तथा मां से बढकर और प्त्ेक हमददमि से बढकर है। तो जब ्े दोनों हालतें उसमें पैदा हो जाएंगली तो वह ऐसा हो जाएगा लक जैसे वह एक ओर से लाहूत के सथान से जुड़ा है और दूसरली ओर नासूत के सथान से जुड़ा। तब तराज़ू के दोनों पलड़़े उसमें समान होंगे। अथामित् वह लाहूत का पूरमि द्ोतक होगा और नासूत का पूरमि द्ोतक भली और बतौर बजमिख़ (रोक) दोनों हालतों के बलीच होगा इस प्कार से

    लाहूत शफाअत का सथान

    नासूत

    इसली शफाअत के सथान की ओर पलवत्र क़ुआमिन में इशारा करके आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म के पूरमि मनुष् होने की शान में फरमा्ा है –(अनिजम – 9,10) ِ اَْو اَْدٰنۚ

    ْ فََکاَن قَاَب قَْوَسی ۙ

    ٰدَنَا فََتَدّل

    अथामित् ्ह रसूल ख़ुदा की ओर चढा और जहां तक संभावना है ख़ुदा से लनकट हआ और क़ुबमि (सालनध्) की समसत ख़ूलब्ों को त् लक्ा और लाहूतली सथान से पूरमि लहससा लल्ा, लफर नासूत की ओर पूरमि रूप से लौटा। अथामित्् बनदगली के अक्नतम लबनदु तक सव्ं को पहुंचा्ा और मनुष् होने की समसत पलवत्र अलनवा्मि बातें अथामित्् मानवजालत की हमदददी एवं प्ेम से जो नासूतली कमाल कहलाता है,

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    इस्मत-ए-अंबिया

    पूरा लहससा लल्ा। इसललए एक ओर ख़ुदा के प्ेम में कमाल तक पहुंचा तो चूंलक वह पूरमि रूप से ख़ुदा से क़रलीब हआ और लफर पूरमि रूप से मानवजालत से क़रलीब हआ। इसललए दोनों ओर के समान क़ुबमि (सालनध्) के कारर ऐसा हो ग्ा जैसा लक दो धनुषों के बलीच एक ऱेखा होतली है। इसललए वह शतमि जो शफाअत के ललए आवश्क है उसमें पाई गई और ख़ुदा ने अपने कलाम में उसके ललए गवाहली दली लक वह अपनली मानवजालत में तथा अपने ख़ुदा में इस प्कार से मध् में है, जैसे लक प्त्ंचा (वतर) दो धनुषों के मध् होतली है।

    लफर एक अन् सथान में उसके ख़ुदाई क़ुबमि (सालनध्) के बाऱे में ्ों फरमा्ा –

    َْ

    ٰعلَِمیْ ِاّنَ َصَلِتْ َونُُسِکْی َوَمْحَیاَی َوَمَماِتْ ِلِ َرِبّ ال

    ْقُل

    )अलअनआम – 163(अथामित्् लोगों को सूचना दे दे लक मेरली ्ह हालत है लक मैं

    अपने अक्सतत्व से लबलककुल खो्ा ग्ा हूुं। मेरली समसत इबादतें (उपासनाएं) ख़ुदा के ललए हो गई हैं। ्ह इस बात की ओर संकेत है लक प्त्ेक मनुष् जब तक वह कालमल नहीं ख़ुदा के ललए शुधि तौर पर इबादत नहीं कर सकता, बक्लक ककुछ इबादत उसकी ख़ुदा के ललए होतली है और ककुछ अपने नफ़स के ललए। क्ोंलक वह अपने नफ़स की शे्ष्ठता और महानता चाहता है जैसा लक ख़ुदा की श्ेष्ठता और महानता करनली चालहए और ्हली इबादत की वासतलवकता है और ऐसा हली एक भाग उसका सृक्ष्ट के ललए होता है क्ोंलक लजस श्ेष्ठता और सममान, क़ुदरत और अलधकार को ख़ुदा से लवलशष्ट करना चालहए उस शे्ष्ठता और क़ुदरत का

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    इस्मत-ए-अंबिया

    लहससा मखलूक (सृक्ष्ट) को भली देता है। इसललए जैसा लक वह ख़ुदा की इबादत करता है नफ़स और सृक्ष्ट की भली इबादत करता है, बक्लक सामान् तौर पर समसत घलट्ा काररों को अपनली इबादत से लहससा देता है। क्ोंलक ख़ुदा के इरादे और तकदलीर के सामने इन काररों को भली ख़ुदा के सामथ्मि में भागलीदार समझता है। तो ऐसा मनुष् ख़ुदा तआला का सच्ा इबादत करने वाला नहीं ठहर सकता जो कभली ख़ुदा की शे्ष्ठता का अपने नफ़स को भागलीदार ठहराता है और कभली सृक्ष्ट और कभली काररों को, बक्लक सच्ा उपासक (इबादत करने वाला) वह है जो ख़ुदा की समसत शे्ष्ठताएं, समसत महानताएं और समसत अलधकार ख़ुदा को हली देता है न लक लकसली और को। जब इस तौहलीद की शे्रली पर मनुष् की इबादत पहुंत जाए तब वह वासतलवक तौर पर ख़ुदा का इबादत करने वाला कहला सकता है। ऐसा मनुष् जैसा लक ज़ुबान से कहता है लक ख़ुदा भागलीदार रलहत एक है ऐसा हली वह अपने का्मि से अथामित्् अपनली इबादत से भली ख़ुदा की तौहलीद पर गवाहली देता है। इसली पूरमि श्ेरली की ओर संकेत है जो उपरोति आ्त में आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म को फरमा्ा ग्ा लक तू लोगों को कह दे लक मेरली समसत इबादतें ख़ुदा के ललए हैं। अथामित्् नफ़स को और सृक्ष्ट को तथा काररों को मेरली इबादत में से कोई लहससा नहीं।

    लफर इसके बाद फरमा्ा लक मेरली क़ुबामिनली भली लवशेष तौर पर ख़ुदा के ललए है और मेरा जलीलवत रहना भली ख़ुदा के ललए और मेरा मरना भली ख़ुदा के ललए। ्ाद रह़े लक नसलीकदः (نَســیکہ) अरबली

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    इस्मत-ए-अंबिया

    शबद कोश में क़ुबामिनली को कहते हैं और शबद نُُســک जो आ्त में मौजूद है उसका बहवचन है और इसके दूसऱे मा्ने इबादत के भली हैं। अतदः ्हां ऐसा शबद इसतेमाल लक्ा ग्ा, लजसके मा्ने इबादत और क़ुबामिनली दोनों पर बोले जाते हैं। ्ह इस बात की तरफ संकेत है लक पूरमि इबादत लजसमें नफ़स, सृक्ष्ट और कारर भागलीदार नहीं हैं वासतव में एक क़ुबामिनली है और पूरमि क़ुबामिनली वासतव में पूरमि इबादत है। लफर इसके बाद जो फरमा्ा लक मेरा जलीना भली ख़ुदा के ललए है और मेरा मरना भली ख़ुदा के ललए। ्ह अक्नतम वाक् क़ुबामिनली के शबद की व्ाख्ा है तालक कोई इस भ्रम में न पड़़े लक क़ुबामिनली से अलभप्ा् बकऱे की क़ुबामिनली ्ा गा् की क़ुबामिनली ्ा ऊंट की क़ुबामिनली है और तालक इस शबद से लक मेरा जलीलवत रहना और मेरा मरना लवशेष तौर पर ख़ुदा के ललए है सप्ष्ट तौर पर समझा जाए लक इस क़ुबामिनली से अलभप्ा् रूह की क़ुबामिनली है और क़ुबामिनली का शबद क़ुबमि से लल्ा ग्ा है ्ह इस बात की तरफ संकेत है लक ख़ुदा का क़ुबमि (सालनध्) तब प्ाप्त होता है जब समसत कामवासना संबंधली शक्ति्ों तथा कामवासना संबंधली हरकतों पर मौत आ जाए। अतदः ्ह आ्त आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म के पूरमि क़ुबमि (सालनध्) पर एक बड़ा प्मार है। ्ह आ्त बता रहली है लक आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म ख़ुदा में इतने ललीन और खो गए थे लक आप के जलीवन की समसत सांसे तथा आपकी मौत केवल ख़ुदा के ललए हो गई थली और आप के अक्सतत्व में नफ़स और सृक्ष्ट तथा काररों का ककुछ लहससा शेष नहीं रहा था और आप की रूह ख़ुदा की चौखट पर ऐसली लनषकपटता से लगरली थली लक उसमें

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    इस्मत-ए-अंबिया

    गै़र की एक कर भर लमलावट नहीं रहली थली। तो इस प्कार से आप ने उस शतमि के एक भाग को पूरा लक्ा जो शफीअ के ललए एक अलनवा्मि शतमि है। उपरोति आ्त का अक्नतम वाक् ्ह है लक मेरा जलीलवत रहना और मरना उस ख़ुदा के ललए है जो समपूरमि संसार के पोषर में लगा हआ है। इसमें ्ह संकेत है लक मेरली क़ुबामिनली भली समपूरमि संसार की भलाई के ललए है। इसली प्कार शतमि का दूसरा भाग लशफाअत का सृक्ष्ट की हमदददी है और हम अभली ललख चुके हैं लक आ्त ّٰل فََتــَد इसली सहानुभूलत تَــَدّلٰ का दूसरा शबद अथामित्् دَٰن पर आधाररत है ्ाद रह़े लक ٰتَــَدّل का एक वचन ــو

    ْ है और دَل

    कहते हैं डोल को ककुएं के अनदर डुबोना तालक उसमें पानली دلــوभर जाए और دَلــو के दूसऱे मा्ने ्ह हैं लक लकसली को अपना शफीअ पकड़ना। तो ّٰل ــَد के ्े मा्ने हैं लक शफाअत के ललए تَदूर पड़़े लोगों की ओर पूरली हमदददी और सहानुभूलत से ध्ान देना और उनसे बहत लनकट होकर उनका गनदा पानली उठाना और उनहें शुधि पानली प्दान करना।

    चूंलक ख़ुदा से प्ेम करना और उसके प्ेम में क़ुबमि (सालनध्) के उच् मुक़ाम तक पहुंचना एक ऐसली बात है लक लकसली ग़ैर को उस पर सूचना नहीं हो सकतली। इसललए ख़ुदा तआला ने आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म के ऐसे का्मि प्कट लकए लजन से लसधि होता है लक आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म ने वासतव में समसत चलीजों पर ख़ुदा को अपना लल्ा था और आप के कर-कर और रग-व-ऱेशे में ख़ुदा का प्ेम और ख़ुदा की श्ेष्ठता ऐसे रचली हई थली लक जैसे आप का अक्सतत्व ख़ुदा की चमकारों को देखने के ललए एक दपमिर

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    इस्मत-ए-अंबिया

    के समान था। ख़ुदा के पूरमि प्ेम के लक्षर लजतने बुलधि सोच सकतली है वे सब आंहजरत सल्ल्ाह अलैलह वसल्म में मौजूद थे। ्ह सपष्ट है लक एक व्क्ति जो लकसली दूसऱे व्क्ति से प्ेम करता है वह ्ा तो उसके लकसली उपकार के कारर उस से प्ेम करता है और ्ा उसकी सुनदरता के कारर। क्ोंलक जब से लक मनुष् पैदा हआ है उस सम् से आज तक समसत लोगों का सवमिसममत ्ह अनुभव है लक उपकार प्ेम को प्ेररत करता है और इसके बावजूद लक बनली आदम (लोग) अपनली तलब्तों में बहत सा मतभेद रखते हैं तथालप समसत मनुष्ों के अनदर ्ह लवशेषता पाई जातली है लक वे उपकार से अपनली ्ोग्तानुसार प्भालवत होकर उपकारली का प्ेम लदल में पैदा कर लेते हैं ्हां तक लक अत्लधक कंजूस और लनदमि्ली तथा मनुष्ों का कमलीना समुदा् जो चोर और डाकू तथा अन् अपराधली पेशा लोग हैं जो लभनि-लभनि प्कार के अपराधों के माध्म से जलीलवका पैदा करते हैं वे भली उपकार से प्भालवत हो जाते हैं। उदाहररत्ा एक चोर लजसका काम सेंध मारना है ्लद उसे रात के सम् दो घरों में सेंध मारने का अवसर लमले और उन दोनों में से एक व्क्ति ऐसा हो लक कभली उसने उसके साथ नेकी की थली और दूसरा व्क्ति अजनबली हो तो उस चोर की प्कृलत बहत अपलवत्र होने के बावजूद इस बात को हरलगज पसनद नहीं कऱेगली लक सेंध लगाते सम् अजनबली के घर को तो जानबूझ कर छोड़ दे और उस अपने दोसत के घर में सेंध लगाए। बक्लक इनसान तो इनसान जानवरों तथा दररनदों में भली ्ह लवशेषता पाई जातली है लक वे उपकार करने वाले पर आक्रमर नहीं करते। अतदः इस बाऱे में ककुतिे का चररत्र और आदत अलधकतर लोगों के अनुभव

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    में आ चुकी है लक वह अपने उपकारली का लकतना आज्ापालन करता है। तो इसमें ककुछ सनदेह नहीं लक उपकार प्ेम का कारर है, इसली प्कार सुनदरता का कारर प्ेम होना भली प्कट है। क्ोंलक सुनदरता के देखने में एक आननद है और मनुष् ऐसली चलीज की ओर सवाभालवक तौर पर झुकता है लजस से उसे आननद पैदा होता है और सुनदरता से अलभप्ा् केवल शारलीररक नकश नहीं हैं लक आंख ऐसली हो, नाक ऐसली हो, मसतक ऐसा हो और रुंग ऐसा हो बक्लक इस से अलभप्ा् एक व्क्तिगत ख़ूबली और व्क्तिगत कमाल तथा व्क्तिगत उतिमता है जो कमाल संतुलन और अलद्तली्ता से ऐसली श्ेरली पर हो लक उसमें एक आकषमिर पैदा हो जाए। अतएव समसत वे ख़ूलब्ां लजन को इनसान की प्कृलत पररभाषा में शालमल करतली है सुनदरता में शालमल हैं और इनसान का लदल उनकी ओर लखंचा जाता है। उदाहररत्ा एक व्क्ति एक ऐसा बहादुर पहलवान जो अपनली कला में प्लसधि है लक कोई आदमली ककुशतली में उसकी बराबरली नहीं कर सकता और न केवल इतना हली बक्लक वह शेरों को भली हाथ से पकड़ लेता है और ्ुधि के मैदान में अपनली बहादुरली और शक्ति से हजार लोगों को भली परालजत कर सकता है तथा हजारों शत्रुओं के घेऱे में आकर जान बचा कर लनकल जाता है तो ऐसा व्क्ति सवाभालवक तौर पर लदलों को अपनली ओर आकलषमित कऱेगा और लोग उससे अवश् प्ेम करेंगे और ्द्लप लोगों को उसकी इस अलद्तली् पहलवानली एवं बहादुरली से ककुछ भली लाभ न हो बक्लक वह लकसली बहत दूर देश का लनवासली हो लजसे देखा भली न हो ्ा इस ्ुग से पहले वह गुजर चुका हो परनतु लफर भली लोग उसके लक़ससों को प्ेमपूवमिक सुनेंगे और उसकी इन ख़ूलब्ों के

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    कारर उस से प्ेम करेंगे। तो इस प्ेम का क्ा कारर है? क्ा उसने लकसली पर उपकार लक्ा है। सपष्ट है लक उपकार तो उसने लकसली पर नहीं लक्ा, तो सुनदरता के अलतररति उसका कोई अन् कारर नहीं। अतदः ककुछ सनदेह नहीं लक ्े समसत रूहानली खूलब्ाँ सुनदरता हैं और उसनका नाम सदाचार और सद्ुर है जो अंगों की सुनदरता के मुकाबले पर है। और उपकार में और सदाचार तथा सद्ुरों में ्ह अनतर है लक लकसली व्क्ति के सदाचार ्ा सद्ुर को उस सम् तथा उस व्क्ति के बाऱे में उपकार के नाम से नालमत लक्ा जाएगा जब एक व्क्ति उस सदाचार और सद्ुर के प्भाव से लाभाक्नवत हो जाए और उस से कोई लाभ प्ाप्त कर ले। तो वह व्क्ति जो उस सदाचार और सद्ुर से लाभ प्ाप्त कऱेगा तो उसके बाऱे में वह सदाचार और सद्ुर उपकार होगा लजसका वरमिन वह बतौर प्शंसा और बतौर आभार के कऱेगा परनतु दूसऱे लोगों के बाऱे में उसका वह सदाचार सुनदरता में सक्ममललत होगा। उदाहररत्ा दानशलीलता और दान देने की लवशेषता उस व्क्ति के पक्ष में उपकार है जो लाभाक्नवत हआ परनतु दूसरों की नजर में सद्ुर समझा जाएगा।

    अतदः ख़ुदा की प्कृलत का लन्म लजस का लसललसला हमेशा से तथा मनुष् की बुलन्ाद के सम् से चला आता है वह हमें ्ह लसखाता है लक ख़ुदा के साथ घलनष्ठ संबंध पैदा होने के ललए ्ह आवश्क है लक उसके उपकार और सुनदरता से फा्दा उठा्ा हो। अभली हम उल्ेख कर चुके हैं लक उपकार से अलभप्ा् ख़ुदा तआला के वे लशष्टाचार के नमूने हैं जो लकसली मनुष् ने सव्ं अपने बाऱे में सव्ं अपनली आंखों से देखे हों। उदारहरत्ा लनराश््ता, लवनम्रता,

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    इस्मत-ए-अंबिया

    कमजोरली और अनाथ होने के सम् में ख़ुदा उस का अलभभावक हआ हो तथा आवश्कताओं और जरूरतों के सम् में ख़ुदा ने सव्ं उस की आवश्कताओं की पूलतमि की हो और कठोर एवं कमर तोड़ने वाले शोकों के सम् में ख़ुदा ने सव्ं उसकी सह्ता की हो और ख़ुदा की अलभलाषा के सम् में लकसली पथ प्दशमिक और रहनुमा के माध्म के लबना सव्ं ख़ुदा ने उसका मागमि-दशमिन लक्ा हो। और सुनदरता से अलभप्ा् भली ख़ुदा के वहली सद्ुर हैं जो उपकार के रुंग में भली देखे जाते हैं। उदाहरर के तौर पर ख़ुदा की पूरमि क़ुदरत और वह नमदी, वह कृपा, वह प्लतपालन और वह द्ा जो ख़ुदा में पाए जाते हैं और उसका वह सामान् प्लतपालन जो लदखाई दे रहा है और उसकी वे सामान् नेमतें जो मनुष् के आराम के ललए बहता्त के साथ मौजूद हैं और उसका वह ज्ान लजसे मनुष् नलब्ों के द्ारा प्ाप्त करता तथा उसके द्ारा मौत और तबाहली से बचता है और उसकी ्ह लवशेषता लक वह बेचैनों और थके-हाऱे लोगों की दुआएं सवलीकार करता है और उसकी ्ह खूबली लक जो लोग उसकी ओर झुकते हैं वह उन से अलधक उनकी ओर झुकता है। ख़ुदा की ्े समसत लवशेषताएं उसकी सुनदरता में सक्ममललत हैं और लफर वहली लवशेषताएं हैं लक जब एक व्क्ति लवशेष तौर पर उन से लाभाक्नवत भली हो जाता है तो वह उसके बाऱे में उपकार भली कहलातली हैं। ्द्लप दूसऱे के बाऱे में केवल सुनदरता में सक्ममललत हैं। और जो व्क्ति ख़ुदा तआला की उन लवशेषताओं को जो वासतव में उसकी सुनदरता और ख़ूबसूरतली है उपकार के रुंग में भली देख लेता है तो उस का ईमान बहत हली सुदृढ हो जाता है और वह ख़ुदा की ओर ऐसा लखंचा जाता है जैसा लक

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    एक लोहा चुमबक की और लखंचा जाता है। ख़ुदा से उसका प्ेम बहत बढ जाता है और ख़ुदा पर उसका भरोसा बहत सुदृढ हो जाता है और चूंलक वह इस बात को परख लेता है लक उसकी समपूरमि भलाई ख़ुदा में है इसललए उसकी आशाएं ख़ुदा पर बहत मजबूत हो जातली हैं और वह सवाभालवक तौर पर न लक लकसली बनावट और आडमबर से ख़ुदा की ओर झुका रहता है और सव्ं को हर पल ख़ुदा से सहा्ता पाने का मुहताज देखता है और उसकी इन पूरमि लवशेषताओं की कलपना से लवश्वास रखता है लक वह अवश् सफल होगा, क्ोंलक ख़ुदा के वरदान, कृपा और दान के बहत से नमूने उसका चशमदलीद अवलोकन होता है। इसललए उसकी दुआएं शक्ति और लवश्वास के झरने से लनकलतली हैं तथा उसके साहस का प्र अत्नत सुदृढ और मजबूत होता है और अनततदः ख़ुदा की नेमतों और अनुकमपाओं को देखकर लवश्वास का प्काश बड़़े जोर के साथ उसके अनदर प्वेश कर जाता है और उसकी हसतली (अक्सतत्व) पूरमिरूप से जल जातली है और ख़ुदा की श्ेष्ठता और क़ुदरत की कलपना की प्चुरता के कारर उस का लदल ख़ुदा का घर हो जाता है। और लजस प्कार मनुष् की रूह उसके जलीलवत होने की अवसथा में कभली उसके शरलीर से पृथक नहीं होतली, उसली प्कार प्तापली ख़ुदा की ओर से जो लवश्वास उस के अनदर दालख़ल हआ है वह कभली उससे पृथक नहीं होता और पलवत्र रूह हर सम् उसके अनदर जोश मारतली रहतली है तथा उसली पलवत्र रूह की लशक्षा से वह बोलता और उसके अनदर से सच्ाइ्ां तथा मआररफ लनकलते हैं और उसके लदल में सममाननली् तेजसवली ख़ुदा की श्ेष्ठता का तमबू हर सम् लगा रहता है। लवश्वास, सच्ाई और

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    प्ेम का आननद हर सम् पानली के समान उसके अनदर बहता रहता है लजसकी लसंचाई से उसका प्त्ेक अंग सींचा हआ लदखाई देता है। आंखों में एक अलग लसंचाई लदखाई देतली है। मसतक पर उस लसंचाई का एक पृथक प्काश लहराता हआ दृक्ष्टगोचर होता है और चेहऱे पर ख़ुदा के प्ेम की एक वषामि बरसतली हई महसूस होतली है और ज़ुबान भली उस प्ाकाश की लसंचाई से पूरा लहससा लेतली है। इसली प्कार समसत अंगों पर एक प्फकुल्ता नजर आतली है जैसा लक बहार के बादल के बरसने के बाद बहार के मौसम में वृक्षों की टहलन्ों, पतिों, फूलों और फलों में एक मनमोहक ताजगली महसूस होतली है। परनतु लजस व्क्ति में ्ह रूह नहीं उतरली और उसे ्ह लसंचाई प्ाप्त नहीं हई उसका समपूरमि शरलीर मुदामि की तरह होता है और ्ह लसंचाई तथा ताजगली एवं प्फकुल्ता लजसकी क़लम व्ाख्ा नहीं कर सकतली ्ह उस मुदामि लदल को लमल हली नहीं सकतली लजसको लवश्वास के प्काश रूपली झरने ने हरा भरा नहीं लक्ा, बक्लक उस से एक प्कार की सड़ली हई दुगमिनध आतली है, परनतु वह व्क्ति लजसे ्ह प्काश लद्ा ग्ा है और लजसके अनदर ्ह झरना फूट लनकला है उसके लक्षरों में से ्ह एक लक्षर है लक उसका मन हर सम् ्हली चाहता है लक प्त्ेक बात में तथा प्त्ेक कथन में और प्त्ेक का्मि में ख़ुदा से शक्ति पाए, उसली में उसका आननद होता है और उसली में उसका आराम होता है। वह उसके लबना जलीलवत हली नहीं रह सकता। और शक्ति पाने के ललए जो शबद ख़ुदा के कलाम में लनधामिररत लकए गए हैं वहली हैं जो इक्सतग़फार (पापों की माफी मांगना) के नाम से प्लसधि हैं।

    इस्तग़़िलार िे वला्तबवि और मिूल अर्थ ्े िैं लक ख़ुदा से

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    इस्मत-ए-अंबिया

    लवनतली करना लक मनुष् होने की कोई कमजोरली प्कट न हो और ख़ुदा प्कृलत (लफतरत) को अपनली शक्ति का सहारा दे और अपने समथमिन और सहा्ता के घेऱे के अनदर ले ले। ्ह शबद َغفــر से लल्ा ग्ा है जो ढांकने को कहते हैं। तो इसके ्े अथमि हैं लक ख़ुदा अपनली शक्ति के साथ क्षमा्ाचक व्क्ति की कमजोरली को ढांक ले। परनतु इसके बाद सामान् लोगों के ललए इस शबद के अथमि और भली लवशाल लकए गए और ्ह भली अलभप्ा् लल्ा ग्ा लक ख़ुदा गुनाह (पाप) को जो हो चुका है ढांक ले। लकनतु असल और वासतलवक अथमि ्हली हैं लक ख़ुदा अपनली ख़ुदाई की शक्ति के साथ क्षमा्ाचक को जो पाप की क्षमा्ाचना करता है सवाभालवक कमजोरली से बचाए और अपनली शक्ति से शक्ति प्दान कऱे तथा अपने ज्ान से ज्ान प्दान कऱे और अपने प्काश से प्काश दे, क्ोंलक ख़ुदा मनुष् को पैदा करके उस से अलग नहीं हआ, बक्लक वह जैसा लक मनुष् का स्रष्टा है और उसकी समपूरमि एवं बाह्य शक्ति्ों का पैदा करने वाला है वैसा हली वह मनुष् का क़ा्म रखने वाला भली है। अथामित्् जो ककुछ बना्ा है उसे अपने लवशेष सहाऱे से सुरलक्षत रखने वाला है। तो जब लक ख़ुदा का नाम क़य्ूम (क़ा्म रखने वाला) भली है अथामित्् अपने सहाऱे से सृक्ष्ट को क़ा्म रखने वाला। इसललए मनुष् के ललए अलनवा्मि है लक जैसा लक वह ख़ुदा के सृजन करने के गुर से पैदा हआ है ऐसा हली वह अपनली पैदा्श के नकश को ख़ुदा की क़य्ूलम्त (का्म रखने) के द्ारा लबगड़ने से बचाए, क्ोंलक ख़ुदा के स्रष्टा होने के गुर ने मनुष् पर ्ह उपकार लक्ा लक उस को ख़ुदा के रूप पर बना्ा। तो इसली प्कार ख़ुदा की क़य्ूलम्त ने चाहा लक वह उस

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    इस्मत-ए-अंबिया

    पलवत्र मानवली् नकश को जो ख़ुदा के दोनों हाथों से बना्ा ग्ा है गनदा और ख़राब न होने दे। इसललए मनुष् को लशक्षा दली गई लक वह क्षमा्ाचना (इक्सतग़फार) के द्ारा शक्ति मांगे। तो ्लद संसार में गुनाह का अक्सतत्व भली न होता तब भली इक्सतग़फार होता। क्ोंलक असल इक्सतग़फार इसललए है लक जो ख़ुदा के स्रष्टा होने ने मनुष्ता की इमारत बनाई है वह इमारत धवसत न हो और क़ा्म रह़े तथा ख़ुदा के सहाऱे के लबना लकसली वसतु का क़ा्म (सथालपत) रहना संभव नहीं। अतदः मनुष् के ललए ्ह एक सवाभालवक आवश्कता थली लजस के ललए इक्सतग़फार का लनददेश है। इसली की ओर पलवत्र क़ुआमिन का लनददेश है। इसली की ओर पलवत्र क़ुआमिन में ्ह संकेत लक्ा ग्ा है लक(अलबक़रह – 256( َۚقّیُْوُم

    ُْ ال ـَحّ

    ْاَلُ َل ِاٰلَ ِاّلَ ُھَوۚ اَل

    अथामित्् ख़ुदा हली है जो उपासना (इबादत) के ्ोग् है, क्ोंलक वहली जलीलवत करने वाला है और उसली के सहाऱे से मनुष् जलीलवत रह सकता है। अथामित्् मनुष् का प्कटन एक स्रष्टा को चाहता है और एक क़य्ूम को तालक स्रष्टा उसे पैदा कऱे और क़य्ूम उसको लबगड़ने से सुरलक्षत रखे। अतदः वह ख़ुदा स्रष्टा भली है और क़य्ूम भली। लफर जब मनुष् पैदा हो ग्ा तो स्रष्टा होने का काम तो पूरा हो ग्ा परनतु लवशेषताओं का काम हमेशा के ललए है। इसलीललए हमेशा के इक्सतग़फार की आवश्कता पड़ली। तो ख़ुदा की प्त्ेक लवशेषता के ललए एक वरदान है तो इक्सतग़फार क़य्ूलम्त की लवशेषता का लाभ प्ाप्त करने के ललए करते रहने की ओर संकेत सूरह फालतहा की इस आ्त में है –(अलफालतहा – 3( ُ

    ِْایَّاَک نَْعُبُد َوِایَّاَک نَْسَتِعی

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    इस्मत-ए-अंबिया

    अथामित्् हम तेरली हली इबादत (उपासना) करते हैं और तुझ से हली इस बात की सहा्ता चाहते हैं लक तेरली क़य्ूलम्त और रबूलब्त (प्लतपालन) हमें सहा्ता दे और हमें ठोकर से बचाए तालक ऐसा न हो लक कमजोरली प्कट हो जाए और हम इबादत न कर सकें।

    इस समपूरमि लववरर से सपष्ट है लक इक्सतग़फार की लवनतली के असल अथमि ्ह हैं लक वह इसललए नहीं होतली लक कोई अलधकार मारा ग्ा है बक्लक इस इचछा से होतली है लक कोई अलधकार मारा न जाए और मानवली् प्कृलत सव्ं को कमजोर देख कर सवाभालवक तौर पर ख़ुदा से शक्ति मांगतली है जैसा लक बच्ा मां से दूध मांगता है। तो जैसा लक ख़ुदा ने प्ारुंभ से मनुष् को ज़ुबान, आंख, लदल और कान इत्ालद प्दान लकए हैं ऐसा हली इक्सतग़फार की इचछा प्ांरभ से हली प्दान की है और उसे महसूस करा्ा है लक वह अपने अक्सतत्व के साथ ख़ुदा से सहा्ता पाने का मुहताज है। इसली की ओर इस आ्त में संकेत है –

    ُمٔوْ ِمَنا ِت َْ َو ال

    ُْمٔوِمِنی

    ْ َو ا ْسَتْغِفْر ِلَ نِْبَک َو لِل

    )मुहममद – 20)अथामित्् ख़ुदा से लनवेदन कर लक तेरली प्कृलत को मनुष् होने की

    कमजोरली से सुरलक्षत रखे और अपनली ओर से प्कृलत (लफतरत) को ऐसली शक्ति दे लक वह कमजोरली प्कट न होने पाए तथा इसली प्कार उन पुरुषों और उन क्सत्र्ों के ललए जो तुझ पर ईमान लाते हैं बतौर शफाअत के दुआ करता रह तालक जो सवाभालवक कमजोरली से उन से ग़ललत्ां होतली हैं वे उनके दणड से सुरलक्षत रहें और उनका भावली जलीवन गुनाहों से भली सुरलक्षत हो जाए। ्ह आ्त मासूलम्त और

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    इस्मत-ए-अंबिया

    शफाअत की उच् श्ेरली की लफलासफी पर आधाररत है और ्ह इस बात की ओर संकेत करतली है लक मनुष् उच् श्ेरली के इसमत के मुक़ाम तथा शफाअत की श्ेरली पर तभली पहुंच सकता है लक जब अपनली कमजोरली को रोकने के ललए दूसरों को गुनाह के जहर से मुक्ति देने के ललए हर दम तथा प्लतपल दुआ मांगता रहता है और लवन्पूवमिक ख़ुदा तआला की शक्ति को अपनली ओर खींचता है और लफर चाहता है लक उस