मारेगयेग़ुलफाम उफफ तीसरी कसम · 2016. 10. 26. ·...

30
मारे गये ग़ लफाम उफ फ तीसरी कसम फणीरनाथ रेण हिरामन गाडीवान की पीठ गुदगुदी लगती ि... हपछले बीस साल से गाडी ि कता िहिरामन। बैलगाडी। सीमा के उस पार, मोर राज नेपाल से धान और लकडी ढो चुका िोल के जमाने चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पिचाया िलेहकन कभी तो ऐसी गुदगुदी नि लगी पीठ ! ोल का जमाना! हिरामन कभी भूल सकता िउस जमाने को! एक बार चार खेप सीमट और कपडे की गाठ से भरी गाडी, जोगबानी हवराटनगर पिचने के बाद हिरामन का कलेजा पोता िगया था। फारहबसग का िचोर-यापारी उसको पका गाडीवान मानता। उसके बैल की बडाई बडी गी के बडे सेठ जी खुद करते , अपनी भाषा म। गाडी पकडी गई पाचवी बार, सीमा के इस पार तराई म। मिाजन का मुनीम उसी की गाडी पर गाठ के बीच चुकी-मुकी लगा कर हछपा िथा। दारोगा सािब की डे िबी चोरबी की रोशनी हकतनी तेज िती ि, हिरामन जानता िएक टे के हलए आदमी धा िजाता ि, एक छटक भी पड जाए आख पर! रोशनी के साथ कडकती ि आवाज - '-! गाडी रोको! साले , गोली मार दगे ?' बीस गाहडया एक साथ कचकचा कर रक गई हिरामन ने पिले िकिा था, 'यि बीस हवषावेगा!' दारोगा सािब उसकी गाडी बके िमुनीम जी पर रोशनी डाल कर हपशाची ि सी ि से - 'ि-ि-ि! मुनीम जी---! ि-ि-ि! -, साला गाडीवान, मु ि या देखता िरे --! बल िटाओ इस बोरे के मु ि पर से!' िकी छोटी लाठी से मुनीम जी के पेट खचा मारते िकिा था, 'इस बोरे को! -साला!' बित पुरानी अखज-अदावत िगी दारोगा सािब और मुनीम जी म। नि तो उतना ऱपया कबूलने पर भी पुहलस-दरोगा का मन डोले भला! चार िजार तो गाडी पर बैठा िदे रिा िलाठी से सरी बार खचा मारा दारोगा ने। 'पाच िजार!' हफर खचा - 'उतरो पिले ... ' मुनीम को गाडी से नीचे उतार कर दारोगा ने उसकी आख पर रोशनी डाल दी। हफर दो हसपाहिय के साथ सडक से बीस-पचीस रसी झाडी के पास ले गए। गाडीवान और गाहडय पर पाच-पाच कवाले हसपाहिय का पिरा! हिरामन समझ गया, इस बार हनतार नि। जेल? हिरामन को जेल का डर नि। लेहकन उसके बैल? जाने हकतने हदन तक हबना चारा-पानी के सरकारी फाटक पडे रिगे - भूखे -यासे। हफर नीलाम िजाएगे। भैया और भौजी को वि मु ि

Upload: others

Post on 23-Oct-2020

5 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • मारे गये ग़ुलफाम उफफ तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेण ु

    हिरामन गाडीवान की पीठ में गदुगदुी लगती ि.ै..

    हपछले बीस साल से गाडी िााँकता ि ैहिरामन। बैलगाडी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकडी ढो

    चकुा ि।ै कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पि ाँचाया ि।ै लेहकन कभी तो ऐसी गदुगदुी निीं

    लगी पीठ में!

    कंट्रोल का जमाना! हिरामन कभी भलू सकता ि ैउस जमाने को! एक बार चार खपे सीमेंट और कपडे की गााँठों से भरी

    गाडी, जोगबानी में हवराटनगर पि ाँचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता िो गया था। फारहबसगजं का िर चोर-व्यापारी

    उसको पक्का गाडीवान मानता। उसके बैलों की बडाई बडी गद्दी के बडे सेठ जी खदु करते, अपनी भाषा में।

    गाडी पकडी गई पााँचवी बार, सीमा के इस पार तराई में।

    मिाजन का मनुीम उसी की गाडी पर गााँठों के बीच चकु्की-मकु्की लगा कर हछपा ि आ था। दारोगा सािब की डेढ़ िाथ

    लंबी चोरबत्ती की रोशनी हकतनी तेज िोती ि,ै हिरामन जानता ि।ै एक घटें के हलए आदमी अधंा िो जाता ि,ै एक छटक

    भी पड जाए आाँखों पर! रोशनी के साथ कडकती ि ई आवाज - 'ऐ-य! गाडी रोको! साल,े गोली मार देंगे?'

    बीसों गाहडयााँ एक साथ कचकचा कर रुक गई।ं हिरामन ने पिले िी किा था, 'यि बीस हवषावगेा!' दारोगा सािब उसकी

    गाडी में दबुके ि ए मनुीम जी पर रोशनी डाल कर हपशाची िाँसी िाँसे - 'िा-िा-िा! मनुीम जी-ई-ई-ई! िी-िी-िी! ऐ-य,

    साला गाडीवान, मुाँि क्या देखता ि ैरे-ए-ए! कंबल िटाओ इस बोरे के मुाँि पर से!' िाथ की छोटी लाठी से मनुीम जी

    के पेट में खोंचा मारते ि ए किा था, 'इस बोरे को! स-स्साला!'

    बि त परुानी अखज-अदावत िोगी दारोगा सािब और मनुीम जी में। निीं तो उतना रूपया कबलूने पर भी पहुलस-दरोगा

    का मन न डोल ेभला! चार िजार तो गाडी पर बैठा िी द ेरिा ि।ै लाठी से दसूरी बार खोंचा मारा दारोगा ने। 'पााँच िजार!'

    हफर खोंचा - 'उतरो पिले... '

    मनुीम को गाडी से नीचे उतार कर दारोगा ने उसकी आाँखों पर रोशनी डाल दी। हफर दो हसपाहियों के साथ सडक से

    बीस-पच्चीस रस्सी दरू झाडी के पास ले गए। गाडीवान और गाहडयों पर पााँच-पााँच बंदकूवाले हसपाहियों का पिरा!

    हिरामन समझ गया, इस बार हनस्तार निीं। जले? हिरामन को जले का डर निीं। लेहकन उसके बैल? न जान ेहकतने हदनों

    तक हबना चारा-पानी के सरकारी फाटक में पडे रिेंग े- भखू-ेप्यासे। हफर नीलाम िो जाएाँग।े भयैा और भौजी को वि मुाँि

  • निीं हदखा सकेगा कभी। ...नीलाम की बोली उसके कानों के पास गूाँज गई - एक-दो-तीन! दारोगा और मनुीम में बात

    पट निीं रिी थी शायद।

    हिरामन की गाडी के पास तैनात हसपािी ने अपनी भाषा में दसूरे हसपािी से धीमी आवाज में पछूा, 'का िो? मामला

    गोल िोखी का?' हफर खनैी-तंबाकू दनेे के बिाने उस हसपािी के पास चला गया।

    एक-दो-तीन! तीन-चार गाहडयों की आड। हिरामन ने फैसला कर हलया। उसने धीरे-से अपने बैलों के गले की रहस्सयााँ

    खोल लीं। गाडी पर बैठे-बैठे दोनों को जडुवााँ बााँध हदया। बैल समझ गए उन्िें क्या करना ि।ै हिरामन उतरा, जतुी ि ई

    गाडी में बााँस की हटकटी लगा कर बैलों के कंधों को बेलाग हकया। दोनों के कानों के पास गदुगदुी लगा दी और मन-

    िी-मन बोला, 'चलो भयैन, जान बचेगी तो ऐसी-ऐसी सग्गड गाडी बि त हमलेगी।' ...एक-दो-तीन! नौ-दो-ग्यारि! ..

    गाहडयों की आड में सडक के हकनारे दरू तक घनी झाडी फैली ि ई थी। दम साध कर तीनों प्राहणयों ने झाडी को पार

    हकया - बेखटक, बेआिट! हफर एक ले, दो ले - दलुकी चाल! दोनों बैल सीना तान कर हफर तराई के घने जंगलों में

    घसु गए। राि सूाँघते, नदी-नाला पार करते ि ए भाग ेपूाँछ उठा कर। पीछे-पीछे हिरामन। रात-भर भागते रि ेथे तीनों जन।

    घर पि ाँच कर दो हदन तक बेसधु पडा रिा हिरामन। िोश में आते िी उसने कान पकड कर कसम खाई थी - अब कभी

    ऐसी चीजों की लदनी निीं लादेंग।े चोरबाजारी का माल? तोबा, तोबा!... पता निीं मनुीम जी का क्या ि आ! भगवान

    जाने उसकी सग्गड गाडी का क्या ि आ! असली इस्पात लोि ेकी धरुी थी। दोनों पहिए तो निीं, एक पहिया एकदम नया

    था। गाडी में रंगीन डोररयों के फुाँ दने बडे जतन से गूाँथे गए थे।

    दो कसमें खाई िैं उसने। एक चोरबाजारी का माल निीं लादेंग।े दसूरी - बााँस। अपने िर भाडेदार से वि पिले िी पूछ

    लेता ि ै- 'चोरी- चमारीवाली चीज तो निीं? और, बााँस? बााँस लादने के हलए पचास रूपए भी द ेकोई, हिरामन की

    गाडी निीं हमलेगी। दसूरे की गाडी दखेे।

    बााँस लदी ि ई गाडी! गाडी से चार िाथ आग ेबााँस का अगआु हनकला रिता ि ैऔर पीछे की ओर चार िाथ हपछुआ!

    काब ूके बािर रिती ि ैगाडी िमशेा। सो बेकाबवूाली लदनी और खरैहिया। शिरवाली बात! हतस पर बााँस का अगआु

    पकड कर चलनेवाला भाडेदार का मिाभकुआ नौकर, लडकी-स्कूल की ओर दखेने लगा। बस, मोड पर घोडागाडी से

    टक्कर िो गई। जब तक हिरामन बैलों की रस्सी खींचे, तब तक घोडागाडी की छतरी बााँस के अगआु में फाँ स गई। घोडा-

    गाडीवाले ने तडातड चाबकु मारत ेि ए गाली दी थी! बााँस की लदनी िी निीं, हिरामन ने खरैहिया शिर की लदनी भी

    छोड दी। और जब फारहबसगंज से मोरंग का भाडा ढोना शरुू हकया तो गाडी िी पार! कई वषों तक हिरामन ने बैलों को

    आधीदारी पर जोता। आधा भाडा गाडीवाले का और आधा बैलवाले का। हिस्स! गाडीवानी करो मफु्त! आधीदारी की

    कमाई से बैलों के िी पेट निीं भरते। हपछल ेसाल िी उसने अपनी गाडी बनवाई ि।ै

  • दवेी मयैा भला करें उस सरकस-कंपनी के बाघ का। हपछले साल इसी मेल ेमें बाघगाडी को ढोनेवाले दोनों घोडे मर गए।

    चंपानगर से फारहबसगजं मलेा आने के समय सरकस-कंपनी के मनैेजर ने गाडीवान-पट्टी में ऐलान करके किा - 'सौ

    रूपया भाडा हमलेगा!' एक-दो गाडीवान राजी ि ए। लेहकन, उनके बैल बाघगाडी से दस िाथ दरू िी डर से हडकरने लग े

    - बााँ-आाँ! रस्सी तुडा कर भाग।े हिरामन ने अपने बैलों की पीठ सिलाते ि ए किा, 'दखेो भयैन, ऐसा मौका हफर िाथ न

    आएगा। यिी ि ैमौका अपनी गाडी बनवाने का। निीं तो हफर आधेदारी। अरे हपंजडे में बंद बाघ का क्या डर? मोरंग की

    तराई में दिाडते ि इ बाघों को दखे चकेु िो। हफर पीठ पर मैं तो ि ाँ।...'

    गाडीवानों के दल में ताहलयााँ पटपटा उठीं थीं एक साथ। सभी की लाज रख ली हिरामन के बैलों ने। ि मक कर आग ेबढ़

    गए और बाघगाडी में जटु गए - एक-एक करके। हसफफ दाहिने बैल ने जतुने के बाद ढेर-सा पेशाब हकया। हिरामन ने दो

    हदन तक नाक से कपडे की पट्टी निीं खोली थी। बडी गद्दी के बडे सेठ जी की तरि नकबंधन लगाए हबना बघाइन गंध

    बरदास्त निीं कर सकता कोई।

    बाघगाडी की गाडीवानी की ि ैहिरामन ने। कभी ऐसी गदुगदुी निीं लगी पीठ में। आज रि-रि कर उसकी गाडी में चंपा

    का फूल मिक उठता ि।ै पीठ में गदुगदुी लगने पर वि अाँगोछे से पीठ झाड लेता ि।ै

    हिरामन को लगता ि,ै दो वषफ से चंपानगर मले ेकी भगवती मयैा उस पर प्रसन्न ि।ै हपछले साल बाघगाडी जटु गई। नकद

    एक सौ रूपए भाडे के अलावा बतुाद, चाि-हबस्कुट और रास्ते-भर बंदर-भाल ूऔर जोकर का तमाशा दखेा सो फोकट

    में!

    और, इस बार यि जनानी सवारी। औरत ि ैया चंपा का फूल! जब से गाडी मि-मि मिक रिी ि।ै

    कच्ची सडक के एक छोटे-से खड्ड में गाडी का दाहिना पहिया बेमौके हिचकोला खा गया। हिरामन की गाडी से एक

    िल्की 'हसस' की आवाज आई। हिरामन ने दाहिने बैल को दआुली से पीटते ि ए किा, 'साला! क्या समझता ि,ै बोरे की

    लदनी ि ैक्या?'

    'अिा! मारो मत!'

    अनदखेी औरत की आवाज ने हिरामन को अचरज में डाल हदया। बच्चों की बोली जैसी मिीन, फेनहूगलासी बोली!

    मथरुामोिन नौटंकी कंपनी में लैला बननेवाली िीराबाई का नाम हकसने निीं सनुा िोगा भला! लेहकन हिरामन की बात

    हनराली ि!ै उसने सात साल तक लगातार मलेों की लदनी लादी ि,ै कभी नौटंकी-हथयेटर या बायस्कोप हसनेमा निीं

    दखेा। लैला या िीराबाई का नाम भी उसने निीं सनुा कभी। दखेने की क्या बात! सो मलेा टूटने के पंद्रि हदन पिल ेआधी

    रात की बेला में काली ओढ़नी में हलपटी औरत को देख कर उसके मन में खटका अवश्य लगा था। बक्सा ढोनेवाल े

    नौकर से गाडी-भाडा में मोल-मोलाई करन ेकी कोहशश की तो ओढ़नीवाली ने हसर हिला कर मना कर हदया। हिरामन ने

  • गाडी जोतत ेि ए नौकर से पछूा, 'क्यों भयैा, कोई चोरी चमारी का माल-वाल तो निीं?' हिरामन को हफर अचरज ि आ।

    बक्सा ढोनेवाले आदमी ने िाथ के इशारे से गाडी िााँकने को किा और अाँधेरे में गायब िो गया। हिरामन को मेल ेमें

    तंबाकू बेचनेवाली बढू़ी की काली साडी की याद आई थी।

    ऐसे में कोई क्या गाडी िााँके!

    एक तो पीठ में गदुगदुी लग रिी ि।ै दसूरे रि-रि कर चंपा का फूल हखल जाता ि ैउसकी गाडी में। बैलों को डााँटो तो

    'इस-हबस' करन ेलगती ि ैउसकी सवारी। उसकी सवारी! औरत अकेली, तंबाकू बेचनेवाली बढू़ी निीं! आवाज सनुने के

    बाद वि बार-बार मडु कर टप्पर में एक नजर डाल दतेा ि,ै अाँगोछे से पीठ झाडता ि।ै ...भगवान जान ेक्या हलखा ि ैइस

    बार उसकी हकस्मत में! गाडी जब परूब की ओर मडुी, एक टुकडा चााँदनी उसकी गाडी में समा गई। सवारी की नाक पर

    एक जगुन ूजगमगा उठा। हिरामन को सबकुछ रिस्यमय - अजगतु-अजगतु - लग रिा ि।ै सामने चंपानगर से हसंहधया

    गााँव तक फैला ि आ मदैान... किीं डाहकन-हपशाहचन तो निीं?

    हिरामन की सवारी ने करवट ली। चााँदनी परेू मखुडे पर पडी तो हिरामन चीखते-चीखते रूक गया - अरे बाप! ई तो परी

    ि!ै

    परी की आाँखें खलु गई।ं हिरामन ने सामने सडक की ओर मुाँि कर हलया और बैलों को हटटकारी दी। वि जीभ को तालू

    से सटा कर हट-हट-हट-हट आवाज हनकालता ि।ै हिरामन की जीभ न जान ेकब से सूख कर लकडी-जसैी िो गई थी!

    'भयैा, तमु्िारा नाम क्या ि?ै'

    ि -ब-ि फेनहूगलास! ...हिरामन के रोम-रोम बज उठे। मुाँि से बोली निीं हनकली। उसके दोनों बैल भी कान खडे करके

    इस बोली को परखते िैं।

    'मरेा नाम! ...नाम मरेा ि ैहिरामन!'

    उसकी सवारी मसु्कराती ि।ै ...मसु्करािट में खशुब ूि।ै

    'तब तो मीता कि ाँगी, भयैा निीं। - मरेा नाम भी िीरा ि।ै'

    'इस्स!' हिरामन को परतीत निीं, 'मदफ और औरत के नाम में फकफ िोता ि।ै'

    'िााँ जी, मरेा नाम भी िीराबाई ि।ै'

  • किााँ हिरामन और किााँ िीराबाई, बि त फकफ ि!ै

    हिरामन न ेअपने बैलों को हझडकी दी - 'कान चहुनया कर गप सनुने से िी तीस कोस मंहजल कटेगी क्या? इस बाएाँ नाटे

    के पेट में शतैानी भरी ि।ै' हिरामन ने बाएाँ बैल को दआुली की िल्की झडप दी।

    'मारो मत, धीरे धीरे चलन ेदो। जल्दी क्या ि!ै'

    हिरामन के सामने सवाल उपहस्थत ि आ, वि क्या कि कर 'गप' करे िीराबाई से? 'तोि'े कि ेया 'अिााँ'? उसकी भाषा

    में बडों को 'अिााँ' अथाफत 'आप' कि कर संबोहधत हकया जाता ि,ै कचरािी बोली में दो-चार सवाल-जवाब चल सकता

    ि,ै हदल-खोल गप तो गााँव की बोली में िी की जा सकती ि ैहकसी से।

    आहसन-काहतक के भोर में छा जानेवाले कुिासे से हिरामन को परुानी हचढ़ ि।ै बि त बार वि सडक भलू कर भटक चुका

    ि।ै हकंत ुआज के भोर के इस घने कुिासे में भी वि मगन ि।ै नदी के हकनारे धन-खतेों से फूले ि ए धान के पौधों की

    पवहनया गधं आती ि।ै पवफ-पावन के हदन गााँव में ऐसी िी सुगधं फैली रिती ि।ै उसकी गाडी में हफर चंपा का फूल हखला।

    उस फूल में एक परी बैठी ि।ै ...जै भगवती।

    हिरामन ने आाँख की कनहखयों से दखेा, उसकी सवारी ...मीता ...िीराबाई की आाँखें गजुरु-गजुरु उसको िरे रिी िैं।

    हिरामन के मन में कोई अजानी राहगनी बज उठी। सारी दिे हसरहसरा रिी ि।ै बोला, 'बैल को मारत ेिैं तो आपको बि त

    बरुा लगता ि?ै'

    िीराबाई ने परख हलया, हिरामन सचमचु िीरा ि।ै

    चालीस साल का िट्टा-कट्टा, काला-कलटूा, दिेाती नौजवान अपनी गाडी और अपने बैलों के हसवाय दहुनया की हकसी

    और बात में हवशेष हदलचस्पी निीं लेता। घर में बडा भाई ि,ै खतेी करता ि।ै बाल-बच्चेवाला आदमी ि।ै हिरामन भाई

    से बढ़ कर भाभी की इज्जत करता ि।ै भाभी से डरता भी ि।ै हिरामन की भी शादी ि ई थी, बचपन में िी गौने के पिले

    िी दलुहिन मर गई। हिरामन को अपनी दलुहिन का चेिरा याद निीं। ...दसूरी शादी? दसूरी शादी न करन ेके अनेक कारण

    िैं। भाभी की हजद, कुमारी लडकी से िी हिरामन की शादी करवाएगी। कुमारी का मतलब ि आ पााँच-सात साल की

    लडकी। कौन मानता ि ैसरधा-काननू? कोई लडकीवाला दोब्याि को अपनी लडकी गरज में पडने पर िी द ेसकता ि।ै

    भाभी उसकी तीन-सत्त करके बैठी ि,ै सो बैठी ि।ै भाभी के आग ेभयैा की भी निीं चलती! ...अब हिरामन ने तय कर

    हलया ि,ै शादी निीं करेगा। कौन बलाय मोल लेन ेजाए! ...ब्याि करके हफर गाडीवानी क्या करेगा कोई! और सब कुछ

    छूट जाए, गाडीवानी निीं छोड सकता हिरामन।

  • िीराबाई ने हिरामन के जसैा हनश्छल आदमी बि त कम देखा ि।ै पछूा, 'आपका घर कौन हजल्ला में पडता ि?ै' कानपरु

    नाम सनुते िी जो उसकी िाँसी छूटी, तो बैल भडक उठे। हिरामन िाँसते समय हसर नीचा कर लेता ि।ै िाँसी बंद िोने पर

    उसने किा, 'वाि रे कानपरु! तब तो नाकपरु भी िोगा? 'और जब िीराबाई ने किा हक नाकपरु भी ि,ै तो वि िाँसते-िाँसते

    दिुरा िो गया।

    'वाि रे दहुनया! क्या-क्या नाम िोता ि!ै कानपरु, नाकपरु!' हिरामन ने िीराबाई के कान के फूल को गौर से दखेा। नाक

    की नकछहव के नग देख कर हसिर उठा - लि की बूाँद!

    हिरामन ने िीराबई का नाम निीं सनुा कभी। नौटंकी कंपनी की औरत को वि बाईजी निीं समझता ि।ै ...कंपनी में काम

    करनेवाली औरतों को वि देख चकुा ि।ै सरकस कंपनी की मालहकन, अपनी दोनों जवान बेहटयों के साथ बाघगाडी के

    पास आती थी, बाघ को चारा-पानी दतेी थी, प्यार भी करती थी खबू। हिरामन के बैलों को भी डबलरोटी-हबस्कुट

    हखलाया था बडी बेटी ने।

    हिरामन िोहशयार ि।ै कुिासा छाँटते िी अपनी चादर से टप्पर में परदा कर हदया -'बस दो घटंा! उसके बाद रास्ता चलना

    महुश्कल ि।ै काहतक की सबुि की धलू आप बदाफस्त न कर सहकएगा। कजरी नदी के हकनारे तेगहछया के पास गाडी लगा

    देंग।े दपुिररया काट कर...।'

    सामन ेसे आती ि ई गाडी को दरू से िी देख कर वि सतकफ िो गया। लीक और बैलों पर ध्यान लगा कर बैठ गया। राि

    काटते ि ए गाडीवान ने पछूा, 'मलेा टूट रिा ि ैक्या भाई?'

    हिरामन न ेजवाब हदया, वि मले ेकी बात निीं जानता। उसकी गाडी पर 'हबदागी' (नैिर या ससरुाल जाती ि ई लडकी)

    ि।ै न जान ेहकस गााँव का नाम बता हदया हिरामन ने।

    'छतापरु-पचीरा किााँ ि?ै'

    'किीं िो, यि ले कर आप क्या कररएगा?' हिरामन अपनी चतरुाई पर िाँसा। परदा डाल देने पर भी पीठ में गदुगदुी लगती

    ि।ै

    हिरामन परद ेके छेद से दखेता ि।ै िीराबाई एक हदयासलाई की हडब्बी के बराबर आईने में अपने दााँत दखे रिी ि।ै

    ...मदनपरु मले ेमें एक बार बैलों को नन्िीं-हचत्ती कौहडयों की माला खरीद दी थी। हिरामन ने, छोटी-छोटी, नन्िीं-नन्िीं

    कौहडयों की पााँत।

  • तेगहछया के तीनों पेड दरू से िी हदखलाई पडते िैं। हिरामन ने परद ेको जरा सरकाते ि ए किा, 'दहेखए, यिी ि ैतेगहछया।

    दो पेड जटामासी बड ि ैऔर एक उस फूल का क्या नाम ि,ै आपके कुरते पर जसैा फूल छपा ि आ ि,ै वसैा िी, खबू

    मिकता ि,ै दो कोस दरू तक गधं जाती ि,ै उस फूल को खमीरा तंबाकू में डाल कर पीते भी िैं लोग।'

    'और उस अमराई की आड से कई मकान हदखाई पडते िैं, विााँ कोई गााँव ि ैया महंदर?'

    हिरामन ने बीडी सलुगाने के पिले पछूा, 'बीडी पीएाँ? आपको गधं तो निीं लगगेी? ...विी ि ैनामलगर ड्योढ़ी। हजस

    राजा के मले ेसे िम लोग आ रि ेिैं, उसी का हदयाद-गोहतया ि।ै ...जा रे जमाना!'

    हिरामन ने जा रे जमाना कि कर बात को चाशनी में डाल हदया। िीराबाई ने टप्पर के परद ेको हतरछे खोंस हदया। िीराबाई

    की दतंपंहि।

    'कौन जमाना?' ठुड्डी पर िाथ रख कर साग्रि बोली।

    'नामलगर ड्योढ़ी का जमाना! क्या था और क्या-से-क्या िो गया!'

    हिरामन गप रसाने का भदे जानता ि।ै िीराबाई बोली, 'तमुने दखेा था वि जमाना?'

    'दखेा निीं, सनुा ि।ै राज कैसे गया, बडी िफैवाली किानी ि।ै सनुते िैं, घर में दवेता ने जन्म ले हलया। कहिए भला,

    दवेता आहखर दवेता ि।ै ि ैया निीं? इदंरासन छोड कर हमरतभूवुन में जन्म ले ले तो उसका तेज कैसे सम्िाल सकता ि ै

    कोई! सरूजमखुी फूल की तरि माथे के पास तेज हखला रिता। लेहकन नजर का फेर, हकसी ने निीं पिचाना। एक बार

    उपलैन में लाट सािब मय लाटनी के, िवागाडी से आए थे। लाट ने भी निीं, पिचाना आहखर लटनी ने। सरुजमखुी तेज

    दखेते िी बोल उठी - ए मनै राजा सािब, सनुो, यि आदमी का बच्चा निीं ि,ै दवेता ि।ै'

    हिरामन न ेलाटनी की बोली की नकल उतारते समय खबू डैम-फैट-लैट हकया। िीराबाई हदल खोल कर िाँसी। िाँसते समय

    उसकी सारी दिे दलुकती ि।ै

    िीराबाई ने अपनी ओढ़नी ठीक कर ली। तब हिरामन को लगा हक... लगा हक...

    'तब? उसके बाद क्या ि आ मीता?'

    'इस्स! कथा सुनन ेका बडा सौक ि ैआपको? ...लेहकन, काला आदमी, राजा क्या मिाराजा भी िो जाए, रिगेा काला

    आदमी िी। सािबे के जसैे अहक्कल किााँ से पाएगा! िाँस कर बात उडा दी सभी ने। तब रानी को बार-बार सपना देन े

  • लगा दवेता! सेवा निीं कर सकत ेतो जान ेदो, निीं, रिेंग ेतुम्िारे यिााँ। इसके बाद दवेता का खले शरुू ि आ। सबसे पिल े

    दोनों दतंार िाथी मरे, हफर घोडा, हफर पटपटांग...।'

    'पटपटांग क्या ि?ै'

    हिरामन का मन पल-पल में बदल रिा ि।ै मन में सतरंगा छाता धीरे-धीरे हखल रिा ि,ै उसको लगता ि।ै ...उसकी गाडी

    पर दवेकुल की औरत सवार ि।ै दवेता आहखर दवेता ि!ै

    'पटपटांग! धन-दौलत, माल-मवसेी सब साफ! दवेता इदंरासन चला गया।'

    िीराबाई ने ओझल िोते ि ए महंदर के काँ गरेू की ओर दखे कर लंबी सााँस ली।

    'लेहकन दवेता ने जात-ेजात ेकिा, इस राज में कभी एक छोड कर दो बेटा निीं िोगा। धन िम अपने साथ ले जा रि ेिैं,

    गनु छोड जात ेिैं। दवेता के साथ सभी देव-दवेी चल ेगए, हसफफ सरोसती मयैा रि गई। उसी का मंहदर ि।ै'

    दसेी घोडे पर पाट के बोझ लाद ेि ए बहनयों को आत ेदेख कर हिरामन ने टप्पर के परद ेको हगरा हदया। बैलों को ललकार

    कर हबदहेसया नाच का बंदनागीत गाने लगा -

    'ज ैमयैा सरोसती, अरजी करत बानी,

    िमरा पर िोख ूसिाई ि ेमयैा, िमरा पर िोख ूसिाई!'

    घोडलद्द ेबहनयों से हिरामन ने ि लस कर पछूा, 'क्या भाव पटुआ खरीदते िैं मिाजन?'

    लाँगडे घोडेवाल ेबहनए ने बटगमनी जवाब हदया - 'नीचे सताइस-अठाइस, ऊपर तीस। जैसा माल, वसैा भाव।'

    जवान बहनय ेन ेपछूा, 'मले ेका क्या िालचाल ि,ै भाई? कौन नौटंकी कंपनी का खेल िो रिा ि,ै रौता कंपनी या

    मथरुामोिन?'

    'मलेे का िाल मलेावाला जाने?' हिरामन ने हफर छतापरु-पचीरा का नाम हलया।

    सरूज दो बााँस ऊपर आ गया था। हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा - 'एक कोस जमीन! जरा दम बााँध कर चलो।

    प्यास की बेला िो गई न! याद ि,ै उस बार तेगहछया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला सािब में

  • झगडा िो गया था। जोकरवा ठीक बंदर की तरि दााँत हकटहकटा कर हकहियाने लगा था, न जाने हकस-हकस दसे-मलुुक

    के आदमी आते िैं!'

    हिरामन न ेहफर परद ेके छेद से दखेा, िीराबई एक कागज के टुकडे पर आाँख गडा कर बैठी ि।ै हिरामन का मन आज

    िल्के सरु में बाँधा ि।ै उसको तरि-तरि के गीतों की याद आती ि।ै बीस-पच्चीस साल पिले, हबदहेसया, बलवािी,

    छोकरा-नाचनेवाल ेएक-से-एक गजल खेमटा गाते थे। अब तो, भोंपा में भोंप-ूभोंप ूकरके कौन गीत गात ेिैं लोग! जा रे

    जमाना! छोकरा-नाच के गीत की याद आई हिरामन को -

    'सजनवा बैरी िो ग' य िमारो! सजनवा.....!

    अरे, हचहठया िो ते सब कोई बााँचे, हचहठया िो तो....

    िाय! करमवा, िोय करमवा....

    गाडी की बल्ली पर उाँगहलयों से ताल द ेकर गीत को काट हदया हिरामन ने। छोकरा-नाच के मनवुााँ नटुवा का मुाँि

    िीराबाई-जैसा िी था। ...क़िााँ चला गया वि जमाना? िर मिीन ेगााँव में नाचनेवाल ेआत ेथे। हिरामन ने छोकरा-नाच के

    चलत ेअपनी भाभी की न जाने हकतनी बोली-ठोली सनुी थी। भाई ने घर से हनकल जाने को किा था।

    आज हिरामन पर मााँ सरोसती सिाय िैं, लगता ि।ै िीराबाई बोली, 'वाि, हकतना बहढ़या गात ेिो तमु!'

    हिरामन का मुाँि लाल िो गया। वि हसर नीचा कर के िाँसने लगा।

    आज तेगहछया पर रिनेवाल ेमिावीर स्वामी भी सिाय िैं हिरामन पर। तेगहछया के नीचे एक भी गाडी निीं। िमेशा गाडी

    और गाडीवानों की भीड लगी रिती िैं यिााँ। हसफफ एक साइहकलवाला बैठ कर ससु्ता रिा ि।ै मिावीर स्वामी को सुमर

    कर हिरामन ने गाडी रोकी। िीराबाई परदा िटाने लगी। हिरामन ने पिली बार आाँखों से बात की िीराबाई से -

    साइहकलवाला इधर िी टकटकी लगा कर दखे रिा ि।ै

    बैलों को खोलन ेके पिले बााँस की हटकटी लगा कर गाडी को हटका हदया। हफर साइहकलवाले की ओर बार-बार घरूते

    ि ए पछूा, 'किााँ जाना ि?ै मलेा? किााँ से आना िो रिा ि?ै हबसनपरु से? बस, इतनी िी दरू में थसथसा कर थक गए?

    - जा रे जवानी!'

    साइहकलवाला दबुला-पतला नौजवान हमनहमना कर कुछ बोला और बीडी सलुगा कर उठ खडा ि आ। हिरामन दहुनया-

    भर की हनगाि से बचा कर रखना चािता ि ैिीराबाई को। उसने चारों ओर नजर दौडा कर दखे हलया - किीं कोई गाडी

    या घोडा निीं।

  • कजरी नदी की दबुली-पतली धारा तेगहछया के पास आ कर परूब की ओर मडु गई ि।ै िीराबाई पानी में बैठी ि ई भैसों

    और उनकी पीठ पर बैठे ि ए बगलुों को दखेती रिी।

    हिरामन बोला, 'जाइए, घाट पर मुाँि-िाथ धो आइए!'

    िीराबाई गाडी से नीचे उतरी। हिरामन का कलेजा धडक उठा। ...निीं, निीं! पााँव सीधे िैं, टेढ़े निीं। लेहकन, तलवुा इतना

    लाल क्यों िैं? िीराबाई घाट की ओर चली गई, गााँव की बि -बेटी की तरि हसर नीचा कर के धीरे-धीरे। कौन किगेा हक

    कंपनी की औरत ि!ै ...औरत निीं, लडकी। शायद कुमारी िी ि।ै

    हिरामन हटकटी पर हटकी गाडी पर बैठ गया। उसने टप्पर में झााँक कर दखेा। एक बार इधर-उधर देख कर िीराबाई के

    तहकए पर िाथ रख हदया। हफर तहकए पर केि नी डाल कर झकु गया, झकुता गया। खशुब ूउसकी दिे में समा गई। तहकए

    के हगलाफ पर कढ़े फूलों को उाँगहलयों से छू कर उसने सूाँघा, िाय रे िाय! इतनी सगुधं! हिरामन को लगा, एक साथ

    पााँच हचलम गााँजा फूाँ क कर वि उठा ि।ै िीराबाई के छोटे आईने में उसने अपना मुाँि देखा। आाँखें उसकी इतनी लाल क्यों

    िैं?

    िीराबाई लौट कर आई तो उसने िाँस कर किा, 'अब आप गाडी का पिरा दीहजए, मैं आता ि ाँ तरंुत।'

    हिरामन ने अपना सफरी झोली से सिजेी ि ई गजंी हनकाली। गमछा झाड कर कंधे पर हलया और िाथ में बालटी लटका

    कर चला। उसके बैलों ने बारी-बारी से 'ि ाँक-ि ाँक' करके कुछ किा। हिरामन ने जाते-जाते उलट कर किा, 'िााँ,िााँ, प्यास

    सभी को लगी ि।ै लौट कर आता ि ाँ तो घास दूाँगा, बदमासी मत करो!'

    बैलों ने कान हिलाए।

    निा-धो कर कब लौटा हिरामन, िीराबाई को निीं मालूम। कजरी की धारा को देखते-दखेते उसकी आाँखों में रात की

    उचटी ि ई नींद लौट आई थी। हिरामन पास के गााँव से जलपान के हलए दिी-चडूा-चीनी ले आया ि।ै

    'उहठए, नींद तोहडए! दो मटु्ठी जलपान कर लीहजए!'

    िीराबाई आाँख खोल कर अचरज में पड गई। एक िाथ में हमट्टी के नए बरतन में दिी, केले के पत्ते। दसूरे िाथ में बालटी-

    भर पानी। आाँखों में आत्मीयतापणूफ अनरुोध!

    'इतनी चीजें किााँ से ले आए!'

  • 'इस गााँव का दिी नामी ि।ै ...चाि तो फारहबसगजं जा कर िी पाइएगा।

    हिरामन की दिे की गदुगदुी हमट गई। 'िीराबाई ने किा, 'तमु भी पत्तल हबछाओ। ...क्यों? तमु निीं खाओगे तो समटे

    कर रख लो अपनी झोली में। मैं भी निीं खाऊाँ गी।'

    'इस्स!' हिरामन लजा कर बोला, 'अच्छी बात! आप खा लीहजए पिल!े'

    'पिले-पीछे क्या? तमु भी बैठो।'

    हिरामन का जी जडुा गया। िीराबाई ने अपने िाथ से उसका पत्तल हबछा हदया, पानी छींट हदया, चडूा हनकाल कर हदया।

    इस्स! धन्न ि,ै धन्न ि!ै हिरामन ने दखेा, भगवती मयैा भोग लगा रिी ि।ै लाल िोठों पर गोरस का परस! ...पिाडी तोत े

    को दधू-भात खाते दखेा ि?ै

    हदन ढल गया।

    टप्पर में सोई िीराबाई और जमीन पर दरी हबछा कर सोए हिरामन की नींद एक िी साथ खलुी। ...मलेे की ओर जानेवाली

    गाहडयााँ तेगहछया के पास रूकी िैं। बच्चे कचर-पचर कर रि ेिैं।

    हिरामन िडबडा कर उठा। टप्पर के अदंर झााँक कर इशारे से किा - हदन ढल गया! गाडी में बैलों को जोतते समय उसने

    गाडीवानों के सवालों का कोई जवाब निीं हदया। गाडी िााँकते ि ए बोला, 'हसरपरु बाजार के इसहपताल की डागडरनी िैं।

    रोगी दखेन ेजा रिी िैं। पास िी कुडमागाम।'

    िीराबाई छत्तापरु-पचीरा का नाम भलू गई। गाडी जब कुछ दरू आग ेबढ़ आई तो उसने िाँस कर पछूा, 'पत्तापरु-छपीरा?'

    िाँसते-िाँसते पेट में बल पड जाए हिरामन के - 'पत्तापरु-छपीरा! िा-िा। व ेलोग छत्तापरु-पचीरा के िी गाडीवान थे, उनसे

    कैसे किता! िी-िी-िी!'

    िीराबाई मसु्कराती ि ई गााँव की ओर दखेने लगी।

    सडक तेगहछया गााँव के बीच से हनकलती ि।ै गााँव के बच्चों ने परदवेाली गाडी दखेी और ताहलयााँ बजा-बजा कर रटी

    ि ई पंहियााँ दिुरान ेलग े-

    'लाली-लाली डोहलया में

  • लाली रे दलुहिहनया

    पान खाए...!'

    हिरामन िाँसा। ...दलुहिहनया ...लाली-लाली डोहलया! दलुहिहनया पान खाती ि,ै दलुिा की पगडी में मुाँि पोंछती ि।ै ओ

    दलुहिहनया, तेगहछया गााँव के बच्चों को याद रखना। लौटती बेर गडु का लड्डू लेती आइयो। लाख बररस तेरा ि लिा

    जीए! ...हकतने हदनों का िौसला परूा ि आ ि ैहिरामन का! ऐसे हकतने सपने दखे ेिैं उसने! वि अपनी दलुहिन को ले

    कर लौट रिा ि।ै िर गााँव के बच्चे ताहलयााँ बजा कर गा रि ेिैं। िर आाँगन से झााँक कर दखे रिी िैं औरतें। मदफ लोग पूछते

    िैं, 'किााँ की गाडी ि,ै किााँ जाएगी? उसकी दलुहिन डोली का परदा थोडा सरका कर देखती ि।ै और भी हकतने सपने...

    गााँव से बािर हनकल कर उसने कनहखयों से टप्पर के अदंर दखेा, िीराबाई कुछ सोच रिी ि।ै हिरामन भी हकसी सोच में

    पड गया। थोडी दरे के बाद वि गनुगनुाने लगा-

    'सजन रे झठू महत बोलो, खदुा के पास जाना ि।ै

    निीं िाथी, निीं घोडा, निीं गाडी -

    विााँ पैदल िी जाना ि।ै सजन रे...।'

    िीराबाई ने पछूा, 'क्यों मीता? तमु्िारी अपनी बोली में कोई गीत निीं क्या?'

    हिरामन अब बेखटक िीराबाई की आाँखों में आाँखें डाल कर बात करता ि।ै कंपनी की औरत भी ऐसी िोती ि?ै सरकस

    कंपनी की मालहकन ममे थी। लेहकन िीराबाई! गााँव की बोली में गीत सनुना चािती ि।ै वि खलु कर मसु्कराया - 'गााँव

    की बोली आप समहझएगा?'

    'ि ाँ-ऊाँ -ऊाँ !' िीराबाई ने गदफन हिलाई। कान के झमुके हिल गए।

    हिरामन कुछ दरे तक बैलों को िााँकता रिा चपुचाप। हफर बोला, 'गीत जरूर िी सहुनएगा? निीं माहनएगा? इस्स! इतना

    सौक गााँव का गीत सनुने का ि ैआपको! तब लीक छोडानी िोगी। चाल ूरास्ते में कैसे गीत गा सकता ि ैकोई!'

    हिरामन न ेबाएाँ बैल की रस्सी खींच कर दाहिने को लीक से बािर हकया और बोला, 'िररपरु िो कर निीं जाएाँग ेतब।'

    चाल ूलीक को काटते दखे कर हिरामन की गाडी के पीछेवाले गाडीवान ने हचल्ला कर पछूा, 'काि ेिो गाडीवान, लीक

    छोड कर बेलीक किााँ उधर?'

  • हिरामन ने िवा में दआुली घमुाते ि ए जवाब हदया - 'किााँ ि ैबेलीकी? वि सडक नननपरु तो निीं जाएगी।' हफर अपने-

    आप बडबडाया, 'इस मलुकु के लोगों की यिी आदत बरुी ि।ै राि चलते एक सौ हजरि करेंग।े अरे भाई, तमुको जाना

    ि,ै जाओ। ...दिेाती भचु्च सब!'

    नननपरु की सडक पर गाडी ला कर हिरामन ने बैलों की रस्सी ढीली कर दी। बैलों ने दलुकी चाल छोड कर कदमचाल

    पकडी।

    िीराबाई ने दखेा, सचमचु नननपरु की सडक बडी सनूी ि।ै हिरामन उसकी आाँखों की बोली समझता ि ै- 'घबराने की

    बात निीं। यि सडक भी फारहबसगजं जाएगी, राि-घाट के लोग बि त अच्छे िैं। ...एक घडी रात तक िम लोग पि ाँच

    जाएाँग।े'

    िीराबाई को फारहबसगजं पि ाँचने की जल्दी निीं। हिरामन पर उसको इतना भरोसा िो गया हक डर-भय की कोई बात निीं

    उठती ि ैमन में। हिरामन ने पिल ेजी-भर मसु्करा हलया। कौन गीत गाए वि! िीराबाई को गीत और कथा दोनों का शौक

    ि ै...इस्स! मि आ घटवाररन? वि बोला, 'अच्छा, जब आपको इतना सौक ि ैतो सुहनए मि आ घटवाररन का गीत।

    इसमें गीत भी ि,ै कथा भी ि।ै'

    ...हकतने हदनों के बाद भगवती ने यि िौसला भी परूा कर हदया। ज ैभगवती! आज हिरामन अपने मन को खलास कर

    लेगा। वि िीराबाई की थमी ि ई मसु्कुरािट को दखेता रिा।

    'सहुनए! आज भी परमार नदी में मि आ घटवाररन के कई परुाने घाट िैं। इसी मलुकु की थी मि आ! थी तो घटवाररन,

    लेहकन सौ सतवतंी में एक थी। उसका बाप दारू-ताडी पी कर हदन-रात बेिोश पडा रिता। उसकी सौतेली मााँ साच्छात

    राकसनी! बि त बडी नजर-चालक। रात में गााँजा-दारू-अफीम चरुा कर बेचनेवाल े से ले कर तरि-तरि के लोगों से

    उसकी जान-पिचान थी। सबसे घटु्टा-भर िले-मले। मि आ कुमारी थी। लेहकन काम कराते-कराते उसकी िड्डी हनकाल

    दी थी राकसनी ने। जवान िो गई, किीं शादी-ब्याि की बात भी निीं चलाई। एक रात की बात सुहनए!'

    हिरामन न ेधीरे-धीरे गनुगनुा कर गला साफ हकया -

    ि ेअ-अ-अ- सावना-भादवा के - र- उमडल नहदया -ग-ेमें-मैं-यो-ओ-ओ,

    मयैो गे रैहन भयावहन-ि-ेए-ए-ए;

    तडका-तडके-धडके करेज-आ-आ मोरा

  • हक िमि ाँ ज ेबार-नान्िी रे-ए-ए ...।'

    ओ मााँ! सावन-भादों की उमडी ि ई नदी, भयावनी रात, हबजली कडकती ि,ै मैं बारी-क्वारी नन्िी बच्ची, मरेा कलेजा

    धडकता ि।ै अकेली कैसे जाऊाँ घाट पर? सो भी परदशेी रािी-बटोिी के पैर में तेल लगाने के हलए! सत-मााँ ने अपनी

    बज्जर-हकवाडी बंद कर ली। आसमान में मेघ िडबडा उठे और िरिरा कर बरसा िोने लगी। मि आ रोने लगी, अपनी मााँ

    को याद करके। आज उसकी मााँ रिती तो ऐसे दरुहदन में कलेज ेसे सटा कर रखती अपनी मि आ बेटी को। ग ेमइया, इसी

    हदन के हलए, यिी हदखाने के हलए तमुने कोख में रखा था? मि आ अपनी मााँ पर गसु्साई - क्यों वि अकेली मर गई,

    जी-भर कर कोसती ि ई बोली।

    हिरामन न ेलक्ष्य हकया, िीराबाई तहकए पर केि नी गडा कर, गीत में मगन एकटक उसकी ओर दखे रिी ि।ै ...खोई ि ई

    सरूत कैसी भोली लगती ि!ै

    हिरामन न ेगल ेमें काँ पकाँ पी पैदा की -

    'ि ाँ-ऊाँ -ऊाँ -रे डाइहनयााँ मैयो मोरी-ई-ई,

    नोनवा चटाई काि ेनाहि ंमारहल सौरी-घर-अ-अ।

    एहि हदनवााँ खाहतर हछनरो हधया

    तेंि पोसहल हक नेन-ूदधू उगटन ..।

    हिरामन न ेदम लेत ेि ए पछूा, 'भाखा भी समझती िैं कुछ या खाली गीत िी सनुती िैं?'

    िीरा बोली, 'समझती ि ाँ। उगटन माने उबटन - जो दिे में लगात ेिैं।'

    हिरामन ने हवहस्मत िो कर किा, 'इस्स!' ...सो रोने-धोने से क्या िोए! सौदागर ने परूा दाम चकुा हदया था मि आ का।

    बाल पकड कर घसीटता ि आ नाव पर चढ़ा और मााँझी को ि कुम हदया, नाव खोलो, पाल बााँधो! पालवाली नाव

    परवाली हचहडया की तरि उड चली। रात-भर मि आ रोती-छटपटाती रिी। सौदागर के नौकरों ने बि त डराया-धमकाया

    - चपु रिो, निीं तो उठा कर पानी में फें क देंग।े बस, मि आ को बात सूझ गई। भोर का तारा मघे की आड से जरा बािर

    आया, हफर हछप गया। इधर मि आ भी छपाक से कूद पडी पानी में। ...सौदागर का एक नौकर मि आ को दखेते िी

    मोहित िो गया था। मि आ की पीठ पर वि भी कूदा। उलटी धारा में तैरना खले निीं, सो भी भरी भादों की नदी में।

    मि आ असल घटवाररन की बेटी थी। मछली भी भला थकती ि ैपानी में! सफरी मछली-जसैी फरफराती, पानी चीरती

  • भागी चली जा रिी ि।ै और उसके पीछे सौदागर का नौकर पकुार-पकुार कर किता ि ै- 'मि आ जरा थमो, तमुको पकडन े

    निीं आ रिा, तमु्िारा साथी ि ाँ। हजदंगी-भर साथ रिेंगे िम लोग।' लेहकन...।

    हिरामन का बि त हप्रय गीत ि ैयि। मि आ घटवाररन गाते समय उसके सामन ेसावन-भादों की नदी उमडन ेलगती ि,ै

    अमावस्या की रात और घने बादलों में रि-रि कर हबजली चमक उठती ि।ै उसी चमक में लिरों से लडती ि ई बारी-

    कुमारी मि आ की झलक उसे हमल जाती ि।ै सफरी मछली की चाल और तेज िो जाती ि।ै उसको लगता ि,ै वि खदु

    सौदागर का नौकर ि।ै मि आ कोई बात निीं सनुती। परतीत करती निीं। उलट कर दखेती भी निीं। और वि थक गया ि,ै

    तैरते-तैरते।

    इस बार लगता ि ैमि आ ने अपने को पकडा हदया। खदु िी पकड में आ गई ि।ै उसने मि आ को छू हलया ि,ै पा हलया

    ि,ै उसकी थकन दरू िो गई ि।ै पंद्रि-बीस साल तक उमडी ि ई नदी की उलटी धारा में तैरत ेि ए उसके मन को हकनारा

    हमल गया ि।ै आनंद के आाँसू कोई भी रोक निीं मानते।

    उसने िीराबाई से अपनी गीली आाँखें चरुान ेकी कोहशश की। हकंत ुिीरा तो उसके मन में बैठी न जान ेकब से सब कुछ

    दखे रिी थी। हिरामन ने अपनी कााँपती ि ई बोली को काबू में ला कर बैलों को हझडकी दी - 'इस गीत में न जान ेक्या ि ै

    हक सनुते िी दोनों थसथसा जाते िैं। लगता ि,ै सौ मन बोझ लाद हदया हकसी ने।'

    िीराबाई लंबी सााँस लेती ि।ै हिरामन के अगं-अगं में उमगं समा जाती ि।ै

    'तमु तो उस्ताद िो मीता!'

    'इस्स!'

    आहसन-काहतक का सरूज दो बााँस हदन रिते िी कुम्िला जाता ि।ै सरूज डूबने से पिले िी नननपरु पि ाँचना ि,ै हिरामन

    अपने बैलों को समझा रिा ि ै- 'कदम खोल कर और कलेजा बााँध कर चलो ...ए ...हछ ...हछ! बढ़के भयैन! ले-ले-

    ले-ए ि े-य!'

    नननपरु तक वि अपने बैलों को ललकारता रिा। िर ललकार के पिले वि अपने बैलों को बीती ि ई बातों की याद

    हदलाता - याद निीं, चौधरी की बेटी की बरात में हकतनी गाहडयााँ थीं, सबको कैसे मात हकया था! िााँ, वि कदम

    हनकालो। ले-ले-ले! नननपरु से फारहबसगंज तीन कोस! दो घटें और!

    नननपरु के िाट पर आजकल चाय भी हबकने लगी ि।ै हिरामन अपने लोटे में चाय भर कर ले आया। ...कंपनी की औरत

    जानता ि ैवि, सारा हदन, घडी घडी भर में चाय पीती रिती ि।ै चाय ि ैया जान!

  • िीरा िाँसते-िाँसते लोट-पोट िो रिी ि ै- 'अरे, तमुसे हकसने कि हदया हक क्वारे आदमी को चाय निीं पीनी चाहिए?'

    हिरामन लजा गया। क्या बोले वि? ...लाज की बात। लेहकन वि भोग चकुा ि ैएक बार। सरकस कंपनी की मेम के िाथ

    की चाय पी कर उसने देख हलया ि।ै बडी गमफ तासीर!

    'पीहजए गरुू जी!' िीरा िाँसी!

    'इस्स!'

    नननपरु िाट पर िी दीया-बाती जल चकुी थी। हिरामन ने अपना सफरी लालटेन जला कर हपछवा में लटका हदया।

    आजकल शिर से पााँच कोस दरू के गााँववाल ेभी अपने को शिरू समझने लगे िैं। हबना रोशनी की गाडी को पकड कर

    चालान कर दतेे िैं। बारि बखेडा !

    'आप मझुे गरुू जी मत कहिए।'

    'तमु मरेे उस्ताद िो। िमारे शास्तर में हलखा ि आ ि,ै एक अच्छर हसखानेवाला भी गरुू और एक राग हसखानेवाला भी

    उस्ताद!'

    'इस्स! सास्तर-परुान भी जानती िैं! ...मैंने क्या हसखाया? मैं क्या ...?'

    िीरा िाँस कर गनुगनुाने लगी - 'ि-ेअ-अ-अ- सावना-भादवा के-र ...!'

    हिरामन अचरज के मारे गूाँगा िो गया। ...इस्स! इतना तेज जिेन! ि -ब-ि मि आ घटवाररन!

    गाडी सीताधार की एक सूखी धारा की उतराई पर गडगडा कर नीचे की ओर उतरी। िीराबाई ने हिरामन का कंधा धर

    हलया एक िाथ से। बि त दरे तक हिरामन के कंधे पर उसकी उाँगहलयााँ पडी रिीं। हिरामन ने नजर हफरा कर कंधे पर कें हद्रत

    करने की कोहशश की, कई बार। गाडी चढ़ाई पर पि ाँची तो िीरा की ढीली उाँगहलयााँ हफर तन गई।ं

    सामन ेफारहबसगंज शिर की रोशनी हझलहमला रिी ि।ै शिर से कुछ दरू िट कर मेल ेकी रोशनी ...टप्पर में लटके लालटेन

    की रोशनी में छाया नाचती ि ैआसपास।... डबडबाई आाँखों से, िर रोशनी सरूजमखुी फूल की तरि हदखाई पडती ि।ै

    फारहबसगजं तो हिरामन का घर-दआुर ि!ै

  • न जान ेहकतनी बार वि फारहबसगजं आया ि।ै मेल ेकी लदनी लादी ि।ै हकसी औरत के साथ? िााँ, एक बार। उसकी

    भाभी हजस साल आई थी गौने में। इसी तरि हतरपाल से गाडी को चारों ओर से घरे कर बासा बनाया गया था।

    हिरामन अपनी गाडी को हतरपाल से घरे रिा ि,ै गाडीवान-पट्टी में। सबुि िोते िी रौता नौटंकी कंपनी के मैनेजर से बात

    करके भरती िो जाएगी िीराबाई। परसों मेला खलु रिा ि।ै इस बार मले ेमें पालचट्टी खबू जमी ि।ै ...बस, एक रात। आज

    रात-भर हिरामन की गाडी में रिगेी वि। ...हिरामन की गाडी में निीं, घर में!

    'किााँ की गाडी ि?ै ...कौन, हिरामन! हकस मेल ेसे? हकस चीज की लदनी ि?ै'

    गााँव-समाज के गाडीवान, एक-दसूरे को खोज कर, आसपास गाडी लगा कर बासा डालते िैं। अपने गााँव के लालमोिर,

    धनु्नीराम और पलटदास वगरैि गाडीवानों के दल को दखे कर हिरामन अचकचा गया। उधर पलटदास टप्पर में झााँक कर

    भडका। मानो बाघ पर नजर पड गई। हिरामन ने इशारे से सभी को चपु हकया। हफर गाडी की ओर कनखी मार कर

    फुसफुसाया - 'चपु! कंपनी की औरत ि,ै नौटंकी कंपनी की।'

    'कंपनी की -ई-ई-ई!'

    ' ? ? ...? ? ...!

    एक निीं, अब चार हिरामन! चारों ने अचरज से एक-दसूरे को दखेा। कंपनी नाम में हकतना असर ि!ै हिरामन ने लक्ष्य

    हकया, तीनों एक साथ सटक-दम िो गए। लालमोिर ने जरा दरू िट कर बहतयाने की इच्छा प्रकट की, इशारे से िी।

    हिरामन न ेटप्पर की ओर मुाँि करके किा, 'िोहटल तो निीं खलुा िोगा कोई, िलवाई के यिााँ से पक्की ले आवें!'

    'हिरामन, जरा इधर सनुो। ...मैं कुछ निीं खाऊाँ गी अभी। लो, तमु खा आओ।'

    'क्या ि,ै पैसा? इस्स!' ...पैसा द ेकर हिरामन ने कभी फारहबसगजं में कच्ची-पक्की निीं खाई। उसके गााँव के इतने

    गाडीवान िैं, हकस हदन के हलए? वि छू निीं सकता पैसा। उसने िीराबाई से किा, 'बेकार, मलेा-बाजार में ि ज्जत मत

    कीहजए। पैसा रहखए।' मौका पा कर लालमोिर भी टप्पर के करीब आ गया। उसने सलाम करते ि ए किा, 'चार आदमी

    के भात में दो आदमी खसुी से खा सकते िैं। बासा पर भात चढा ि आ ि।ै िें-िें-िें! िम लोग एकहि गााँव के िैं। गौंवााँ-

    हगराहमन के रिते िोहटल और िलवाई के यिााँ खाएगा हिरामन?'

    हिरामन न ेलालमोिर का िाथ टीप हदया - 'बेसी भचर-भचर मत बको।'

    गाडी से चार रस्सी दरू जाते-जाते धनु्नीराम ने अपने कुलबलुाते ि ए हदल की बात खोल दी - 'इस्स! तुम भी खबू िो

    हिरामन! उस साल कंपनी का बाघ, इस बार कंपनी की जनानी!'

  • हिरामन ने दबी आवाज में किा, 'भाई रे, यि िम लोगों के मलुकु की जनाना निीं हक लटपट बोली सनु कर भी चपु रि

    जाए। एक तो पहच्छम की औरत, हतस पर कंपनी की!'

    धनु्नीराम ने अपनी शकंा प्रकट की - 'लेहकन कंपनी में तो सनुते िैं पतरुरया रिती ि।ै'

    'धत!्' सभी ने एक साथ उसको दरुदरुा हदया, 'कैसा आदमी ि!ै पतरुरया रिगेी कंपनी में भला! दखेो इसकी बहुि। सनुा

    ि,ै दखेा तो निीं ि ैकभी!'

    धनु्नीराम ने अपनी गलती मान ली। पलटदास को बात सझूी - 'हिरामन भाई, जनाना जात अकेली रिगेी गाडी पर? कुछ

    भी िो, जनाना आहखर जनाना िी ि।ै कोई जरूरत िी पड जाए!'

    यि बात सभी को अच्छी लगी। हिरामन ने किा, 'बात ठीक ि।ै पलट, तमु लौट जाओ, गाडी के पास िी रिना। और

    दखेो, गपशप जरा िोहशयारी से करना। िााँ!'

    हिरामन की दिे से अतर-गलुाब की खशुब ूहनकलती ि।ै हिरामन करमसााँड ि।ै उस बार मिीनों तक उसकी दिे से बघाइन

    गधं निीं गई। लालमोिर ने हिरामन की गमछी सूाँघ ली - 'ए-ि!'

    हिरामन चलते-चलत ेरूक गया - 'क्या करें लालमोिर भाई, जरा किो तो! बडी हजद्द करती ि,ै किती ि,ै नौटंकी दखेना

    िी िोगा।'

    'फोकट में िी?'

    'और गााँव निीं पि ाँचेगी यि बात?'

    हिरामन बोला, 'निीं जी! एक रात नौटंकी देख कर हजदंगी-भर बोली-ठोली कौन सनुे? ...दसेी मगुी हवलायती चाल!'

    धनु्नीराम ने पछूा, 'फोकट में दखेने पर भी तमु्िारी भौजाई बात सनुाएगी?'

    लालमोिर के बासा के बगल में, एक लकडी की दकुान लाद कर आए ि ए गाडीवानों का बासा ि।ै बासा के मीर-

    गाडीवान हमयााँजान बढू़ ेने सफरी गडुगडुी पीत ेि ए पछूा, 'क्यों भाई, मीनाबाजार की लदनी लाद कर कौन आया ि?ै'

    मीनाबाजार! मीनाबाजार तो पतरुरया-पट्टी को किते िैं। ...क्या बोलता ि ैयि बढू़ा हमयााँ? लालमोिर ने हिरामन के कान

    में फुसफुसा कर किा, 'तमु्िारी दिे मि-मि-मिकती ि।ै सच!'

  • लिसनवााँ लालमोिर का नौकर-गाडीवान ि।ै उम्र में सबसे छोटा ि।ै पिली बार आया ि ैतो क्या? बाब-ूबबआुइनों के

    यिााँ बचपन से नौकरी कर चकुा ि।ै वि रि-रि कर वातावरण में कुछ सूाँघता ि,ै नाक हसकोड कर। हिरामन ने दखेा,

    लिसनवााँ का चेिरा तमतम गया ि।ै कौन आ रिा ि ैधडधडाता ि आ? - 'कौन, पलटदास? क्या ि?ै'

    पलटदास आ कर खडा िो गया चपुचाप। उसका मुाँि भी तमतमाया ि आ था। हिरामन ने पछूा, 'क्या ि आ? बोलत ेक्यों

    निीं?'

    क्या जवाब द ेपलटदास! हिरामन ने उसको चेतावनी द ेदी थी, गपशप िोहशयारी से करना। वि चपुचाप गाडी की आसनी

    पर जा कर बैठ गया, हिरामन की जगि पर। िीराबाई ने पूछा, 'तमु भी हिरामन के साथ िो?' पलटदास ने गरदन हिला

    कर िामी भरी। िीराबाई हफर लेट गई। ...चेिरा-मोिरा और बोली-बानी देख-सनु कर, पलटदास का कलेजा कााँपने लगा,

    न जान ेक्यों। िााँ! रामलीला में हसया सकुुमारी इसी तरि थकी लेटी ि ई थी। जै! हसयावर रामचंद्र की जै! ...पलटदास के

    मन में ज-ैजकैार िोने लगा। वि दास-वसै्नव ि,ै कीतफहनया ि।ै थकी ि ई सीता मिारानी के चरण टीपने की इच्छा प्रकट

    की उसने, िाथ की उाँगहलयों के इशारे से, मानो िारमोहनयम की पटररयों पर नचा रिा िो। िीराबाई तमक कर बैठ गई -

    'अरे, पागल ि ैक्या? जाओ, भागो!...'

    पलटदास को लगा, गसु्साई ि ई कंपनी की औरत की आाँखों से हचनगारी हनकल रिी ि ै- छटक्-छटक्! वि भागा।

    पलटदास क्या जवाब द!े वि मलेा से भी भागने का उपाय सोच रिा ि।ै बोला, 'कुछ निीं। िमको व्यापारी हमल गया।

    अभी िी टीसन जा कर माल लादना ि।ै भात में तो अभी देर िैं। मैं लौट आता ि ाँ तब तक।'

    खात ेसमय धनु्नीराम और लिसनवााँ ने पलटदास की टोकरी-भर हनंदा की। छोटा आदमी ि।ै कमीना ि।ै पैसे-पैसे का

    हिसाब जोडता ि।ै खाने-पीने के बाद लालमोिर के दल ने अपना बासा तोड हदया। धनु्नी और लिसनवााँ गाडी जोत कर

    हिरामन के बासा पर चले, गाडी की लीक धर कर। हिरामन ने चलते-चलते रूक कर, लालमोिर से किा, 'जरा मरेे इस

    कंधे को सूाँघो तो। सूाँघ कर देखो न?'

    लालमोिर न ेकंधा सूाँघ कर आाँख ेमूाँद लीं। मुाँि से अस्फुट शब्द हनकला - ए - ि!'

    हिरामन ने किा, 'जरा-सा िाथ रखने पर इतनी खशुबू! ...समझे!' लालमोिर ने हिरामन का िाथ पकड हलया - 'कंधे

    पर िाथ रखा था, सच? ...सनुो हिरामन, नौटंकी दखेन ेका ऐसा मौका हफर कभी िाथ निीं लगगेा। िााँ!'

    'तमु भी दखेोगे?' लालमोिर की बत्तीसी चौराि ेकी रोशनी में हझलहमला उठी।

  • बासा पर पि ाँच कर हिरामन न ेदखेा, टप्पर के पास खडा बहतया रिा ि ैकोई, िीराबाई से। धनु्नी और लिसनवााँ ने एक

    िी साथ किा, 'किााँ रि गए पीछे? बि त दरे से खोज रिी ि ैकंपनी...!'

    हिरामन ने टप्पर के पास जा कर दखेा - अरे, यि तो विी बक्सा ढोनेवाला नौकर, जो चंपानगर मलेे में िीराबाई को गाडी

    पर हबठा कर अाँधेरे में गायब िो गया था।

    'आ गए हिरामन! अच्छी बात, इधर आओ। ...यि लो अपना भाडा और यि लो अपनी दहच्छना! पच्चीस-पच्चीस,

    पचास।'

    हिरामन को लगा, हकसी ने आसमान से धकेल कर धरती पर हगरा हदया। हकसी ने क्यों, इस बक्सा ढोनेवाल ेआदमी ने।

    किााँ से आ गया? उसकी जीभ पर आई ि ई बात जीभ पर िी रि गई ...इस्स! दहच्छना! वि चपुचाप खडा रिा।

    िीराबाई बोली, 'लो पकडो! और सनुो, कल सबुि रौता कंपनी में आ कर मझुसे भेंट करना। पास बनवा दूाँगी। ...बोलत े

    क्यों निीं?'

    लालमोिर न ेकिा, 'इलाम-बकसीस द ेरिी ि ैमालहकन, ले लो हिरामन! हिरामन ने कट कर लालमोिर की ओर देखा।

    ...बोलन ेका जरा भी ढंग निीं इस लालमोिरा को।'