सभी बच्ों को त्मले आजादी का...

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  • सीताराम गुप्ा

    व्यक्ति का मूल स्वभा्व ही नहीं, जी्वन का अंतिम लक्ष्य भी आनंद ही होिा है। इसके तलए मोक्ष अथ्वा मुक्ि अतन्वाष्य्य है। प्रश्न उठिा है, तकससे मुक्ि? ऐसी अ्वसथा से मुक्ि जो आनंद में बाधक हो। हमारे आनंद में बाधक कौन है? कहिे हैं तक ष्यह संसार ही आनंद प्रातति में सबसे बड़ी बाधा है। अब संसार से िो जीिे जी मुक्ि संभ्व नहीं। िो ्ष्या मान तलष्या जाए तक जीिे जी आनंद संभ्व नहीं? ऐसा नहीं है।

    ्वासि्व में ष्यह संसार तकसी के आनंद में बाधा नहीं बनिा। ्वासित्वक बाधा कोई है िो ्वह है हमारी घोर सांसाररक ्वृतति। हमारे जो त्वकार हैं अथ्वा हमारी जो नकारातमकिा है, ्वही सबसे बड़ी बाधा है। हम अपने जी्वन में बहुि कुछ पाना चाहिे हैं, सबसे आगे तनकलना चाहिे हैं। ष्यहां िक भी कुछ-कुछ ठीक है। समसष्या िब भष्या्वह हो जािी है जब हम दूसरों को कुचलकर ष्या पीछे धकेलकर आगे बढ़ना चाहिे हैं। जो कुछ हम पाना चाहिे हैं उसके तलए जो कुछ खोना पड़िा है, ्वही हमारे आनंद की प्रातति में सबसे बड़ी बाधा है।

    कुछ लोग आनंद की खोज में घर-बार छोड़कर संनष्यासी हो जािे हैं। एक संनष्यासी भी आनंद की कामना ही करिा है। सबसे पहले ्वह अपने प्रचतलि सांसाररक नाम का तष्याग कर नष्या नाम पािा है और बन

    जािा है ति्वानंद, रामानंद, सतचिदानंद, तनतष्यानंद, तचनमष्यानंद अथ्वा तनरंजनानंद। अब इन नामों का अ्वलोकन कीतजए। नाम के अंि में जो िबद ष्या उतिरपद जुड़ा है ्वह है ‘आनंद’। ऊपरी िौर पर पिा चलिा है तक अब से इनके जी्वन का परम लक्ष्य आनंद की खोज ही हो गष्या है। पर ्ष्या ष्यह खोज संनष्यास लेने अथ्वा गृहतष्याग के उपरांि ही

    प्रारंभ होिी है? ्वासि्व में ष्यह खोज उसी तदन प्रारंभ हो जािी है, तजस तदन कोई स्वष्यं को बदलने का फैसला कर लेिा है। इसके तलए संसार को छोड़ना नहीं, अतपिु मन को बदलना पड़िा है। मन को सकारातमकिा से आपलात्वि करना पड़िा है।

    हम प्राष्यः दो परसपर त्वपरीि कसथतिष्यों से जूझिे रहिे हैं। हम के्वल सुखों की कामना करिे हैं और दुखों को तकसी भी कीमि पर स्वीकार करना नहीं चाहिे। ष्यह असंभ्व है। इसी असंभ्व की कामना जी्वन में िना्व उतपन्न करिी है जो आनंद की प्रातति में सबसे बड़ी बाधा है। ष्यतद हम सुख और दुख दोनों ही कसथतिष्यों को स्वाभात्वक रूप से स्वीकार कर लें िो िना्व से बचिे हुए दुखों से उबरकर सुखों का आनंद उठा सकिे हैं। इसके तलए तकसी भी प्रकार से घर-बार छोड़ना अथ्वा कपड़ों का रंग ष्या पू्व्य नाम बदलना अपेतक्षि नहीं। ष्यतद हम गृहसथ जी्वन में तनषकाम कम्य ्व तन:स्वाथ्य से्वा का आदि्य अपना लें िो इससे भी कम आनंद की प्रातति नहीं होगी। आनंद की प्रातति के तलए तकसी आडंबर की नहीं अतपिु संिुलन ्व ठहरा्व द्ारा मन के रूपांिरण की आ्वशष्यकिा है।

    आनंद की राह में बाधा यह संसार नहीं, बल्क घोर सांसाररक वृत्ति है

    और पढ़ने के लिए देखेंwww.speakingtree.nbt.in

    THE SPEAKING TREE

    प्रदेश में तीन त्कसानों की आतमहतया हुई है। इसके पीछे त्नजी, पाररवाररक कारण हो सकते हैं, त्िप्रेशन हो सकता है, पर ये आतमहतयाएं कज्ज के कारण नहीं हुई हैं।

    -कैलाश त्वजयवगगीय

    बीजेपी महासलिव

    देवर्षि नारद को अतभमान हो गष्या तक उनसे बड़ा भ्ि त्ैलो्ष्य में कोई नहीं है। एक तदन ्वह भग्वान त्वषणु से पूछ बैठे,‘भग्वान, आपका सबसे बड़ा भ्ि कौन है?’ भग्वान नारद के मन की बाि िाड़ गए। उनहोंने कहा, ‘मेरा सबसे बड़ा भ्ि अमुक गां्व में रहने ्वाला एक तकसान है।’ उतिर सुनिे ही नारद जी हिप्रभ रह गए। ्वे भागे-भागे उस तकसान की झोपड़ी में जा पहुंचे और सुबह से राि िक उसकी तदनचष्या्य देखी। तकसान ने सबेरे उठिे ही भग्वान का समरण तकष्या। नहाने के बाद हल कंधे पर रखा और खेि पर चला गष्या। तकसान िाम को घर लौटा िो हाथ-पां्व धोकर भग्वान का समरण तकष्या, भोजन तकष्या और सो गष्या। नारद जी भग्वान के पास पहुंचे िथा बोले, ‘प्रभु मैं तकसान की पूरी तदनचष्या्य स्वष्यं देखकर आष्या हूं। ्वह के्वल दो बार आपके नाम का समरण करिा है, मैं िो अहतन्यि आपके नाम का जप करिा हूं। तफर भी आप उस तकसान

    को मुझसे बड़ा भ्ि कैसे मानिे हैं।’ भग्वान हंसे। उनहोंने लबालब भरा अमृि-कलि देिे हुए कहा, ‘दे्वत््य, िुम इस अमृि कलि को लेकर त्ैलो्ष्य की ष्यात्ा कर आओ। तकंिु ष्यह धष्यान रखना तक इसकी एक भी बूंद न छलकने पाए। ष्यतद एक बूंद भी नीचे तगर गई िो िुमहारा मसिक

    तछन्न-तभन्न हो जाएगा।’ नारद जी अमृि कलि को तसर पर धारण कर पररक्रमा के तलए चले गए। लौटने पर भग्वान ने पूछा,‘पररक्रमा के दौरान िुमने

    तकिनी बार मेरा समरण तकष्या।’ नारद जी ने कहा,‘प्रभु, मैं इसी पर केंतरिि रहा तक एक बूंद भी न छलकने पाए। इसीतलए एक बार भी आपका समरण नहीं कर पाष्या।’ भग्वान ने कहा,‘दे्वत््य, तकसान अपने िमाम काष्य्य करिे हुए भी कम से कम दो बार तनष्यतमि रूप से मेरा समरण करना नहीं भूलिा है, िो ्वह सबसे बड़ा भ्ि हुआ तक नहीं?’ नारद जी का मोहभंग हो चुका था।

    संकिन : मनीषा देवी

    सबसे बड़ा भ्ति

    और पढ़ने के लिए देखेंwww.ekda.nbt.in

    एकदा

    भारतिी्य महानगरों में लगभग हर तकसी के काम आ रही अमेररकी कार िेष्यररंग कंपनी ऊबर तफलहाल दो ्वजहों से चचा्य में है। पूरी दुतनष्या में सबसे िेज िर्की करने ्वाली इस सटाट्ट-अप कंपनी के साि आला अतधकाररष्यों को इसी साल त्वतभन्न आरोपों में कंपनी छोड़कर जाना पड़ा है। इसके ्वैलष्युएिन को लेकर भी कई स्वाल उठ रहे हैं। लेतकन अपने घर में त्वतभन्न समसष्याओं की तिकार इसी कंपनी के ्वतकिंग मॉडल में

    भारि की नामी-तगरामी आईटी कंपतनष्यों को अपनी सद्गति नजर आ रही है। ऊबर का ्वतकिंग मॉडल ष्यह है तक तजन टैक्सष्यों की से्वाएं ्वह अपने ग्ाहकों को मुहैष्या करा रही है, ्वे तकसी और की हैं। न ड्ाइ्वर रखने की तकचतकच, न गातड़ष्यों के ईंधन

    और मेंतटनेंस का झंझट। देि-त्वदेि में िमाम संकटों से जूझ रही भारिीष्य आईटी कंपतनष्यों को लग रहा है तक ष्यही िरीका अगर ्वे सॉफट्वेष्यर इंजीतनष्यरों को लेकर अपना लें - उनहें तनष्यतमि नौकरी पर रखने के बजाष्य प्रॉजे्ट की जरूरिों के अनुरूप ही उनकी से्वाएं लें - िो न तसफ्फ उनके सथाष्यी खचचे बचेंगे, बकलक कम्यचाररष्यों से जुड़ी हर िरह की तजममेदारी से भी ्वे मु्ि हो जाएंगी। अभी ष्यह ्वतकिंग मॉडल तसफ्फ पुणे कसथि एक छोटी आईटी कंपनी द्ारा ही अपनाष्या गष्या है, लेतकन तनकट भत्वषष्य में टीसीएस, इनफोतसस और त्वप्रो जैसी बड़ी कंपतनष्यों को भी हम िाष्यद इसी तदिा में बढ़िे देखें। हां, ऊबर का मॉडल पूरी िरह अपनाना िाष्यद उनके तलए संभ्व न हो, ्ष्योंतक अपनी बुतनष्यादी चीजों का साझा ्वे घुमंिू सॉफट्वेष्यर कामगारों के साथ नहीं करना चाहेंगी। लेतकन तकनारे पड़ने ्वाले दस-बीस फीसदी कामों के तलए ्वे प्रॉजे्ट-बेतसस पर सीधे ष्या तकसी थड्ट पाटटी के जररष्ये उनकी से्वाएं ले सकिी हैं। इसके तलए नई पीढ़ी के इंजीतनष्यरों की मानतसकिा का भी ह्वाला तदष्या जा रहा है, जो कहीं बंध कर काम करना पसंद नहीं करिे। लेतकन सरकारों और समाज के तजममेदार लोगों को ष्यह जरूर सोचना चातहए तक ष्ये नई पीढ़ी के इंजीतनष्यर अब से दस-पंरिह साल बाद भी ऐसे ही िो नहीं रहेंगे। कहीं ऐसा न हो तक जब उन पर अपना परर्वार चलाने, बचिे पालने की तजममेदारी आए िो उनके पास सथाष्यी काम और सामातजक सुरक्षा के नाम पर कुछ भी न हो!

    ऊबराइजेशन का फॉरयु्जला

    लगाम कसे केंद्र सरकार

    राजस्ान के बाड़मेर में गाष्य ले जा रहे ितमलनाडु सरकार के कम्यचाररष्यों पर कतथि गौरक्षकों ने तजस िरह हमला तकष्या, उससे सबकी आंखें खुल जानी चातहए। ष्ये गाष्यें केंरिीष्य कृत् मंत्ालष्य द्ारा संचातलि ‘राषट्ीष्य गोकुल तमिन’ के िहि राजसथान से ितमलनाडु ले जाई जा रही थीं। ितमलनाडु के अफसरों की टीम ने न के्वल जैसलमेर के डीएम और संबंतधि एसडीएम से एनओसी तलष्या था, बकलक सभी संबंतधि त्वभागों और

    अतधकाररष्यों से जरूरी दसिा्वेज भी हातसल कर तलए थे। तजन ट्कों में गाष्यें ले जाई जा रही थीं, उनमें भी साफ-साफ तलखा था ‘ऑन ग्वन्यमेंट डष्यूटी’। इस सबके बा्वजूद गौरक्षकों की भीड़ ने बाड़मेर में पुतलस थाने के 300 मीटर के दाष्यरे में उन ट्कों को रोका। ्वे कुछ भी सुनने को िैष्यार नहीं थे और सीधे मार-पीट िुरू कर दी। एक ट्क में आग लगाने की कोतिि भी हुई। अगर ्वे सफल हो जािे िो कम से कम

    10 गाष्यों और िीन बछड़ों की जान जानी िष्य थी। आतखरकार पुतलस ने ही गौरक्षकों की इस भीड़ को काबू तकष्या और संकट में तघरी अफसरों की इस टीम को सुरतक्षि तनकाला, लेतकन इसमें कोई िक नहीं तक मामला इस हद िक तबगड़ जाने देने में कुछ भूतमका पुतलस की भी थी। लापर्वाही बरिने और समष्य से कार्य्वाई न करने के आरोप में साि पुतलसकतम्यष्यों के तखलाफ ए्िन तलए जाने की सूचना है। अभी दो महीने पहले राजसथान में ही हररष्याणा के पहलू खान को गाष्य खरीद कर ले जाने के आरोप में ऐसी ही भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। उसके पास भी सारे कागजाि थे। केंरि में बीजेपी सरकार आने के बाद से राजसथान ही नहीं, ष्यूपी समेि त्वतभन्न राजष्यों में गौरक्षकों ने तजस िरह का िांड्व िुरू कर तदष्या है, ्वह पुतलस और सरकार के संरक्षण के बगैर संभ्व ही नहीं है। तदलचसप बाि ष्यह है तक ष्यह समथ्यन और संरक्षण कोई छुपी हुई बाि भी नहीं है। जब भी ऐसी कोई घटना होिी है, िरह-िरह की दलीलों के जररए उसे जाष्यज ठहराने की कोतिि िुरू हो जािी है। इन कोतििों में सतिारूढ़ पक्ष के ्वररषठ लोग िातमल होिे हैं। इस बार भी पुतलस का कहना है तक हमला करने ्वाले गौरक्षक नहीं, कुछ िराबी थे। बहस गौरक्षकों के उतपाि पर होनी चातहए, जबतक पूरा जोर इस बाि पर होिा है तक गाष्य की पत्वत्िा का ढोल पीटने के कौन से नए िरीके तनकाले जा सकिे हैं। इन सब ्वजहों से कतथि गौरक्षकों की कारसिातनष्यां तछप जािी हैं। ष्यह पहला मौका है जब इनकी गुंडागदटी नंगे रूप में सामने आई है। ष्यह साफ हुआ है तक तकसी को तकसी भी बहाने से गुंडागदटी की छूट देना देि के तलए तकिना खिरनाक हो सकिा है। ्ष्या हम उममीद करें तक कम से कम अब िो इसे ढकने ष्या जाष्यज ठहराने के प्रष्यास नहीं तकए जाएंगे?

    गौरक्षकों की गुंडागददीनवभारति टाइमस । मुंबई । बुधवार, 14 जून 2017

    विचार

    बुधवार (7 जून) को न्वभारि टाइमस में ‘मैतथली को तहंदी में सेध लगाने का हक ्ष्यों’ िी््यक लेख पढ़ कर अ्वाक रह गई। पहले िो आशचष्य्य हुआ तक ऐसा लेख इस अखबार में कैसे छपा। तफर देखा लेख के

    अंि में एक तटपपणी थी तक ‘ष्ये लेखक के तनजी त्वचार हैं और इस पर आपकी राष्य आमंतत्ि है’। थोड़ी राहि तमली। लगा तक अखबार इस पर बहस आगे बढ़ाना चाहिा है।

    हालांतक पूरा संिो् नहीं हुआ, ्ष्योंतक उस लेख की जो बािें थीं और तजस िरह की दलील उसमें दी गई थी, उसको स्वसथ लोकिांतत्क तमजाज का संकेि नहीं कहा जा सकिा। उदाहरण के तलए लेख में ष्यह पीड़ा बाकाष्यदा वष्य्ि की गई तक सातहतष्य अकादमी पुरसकार पाने ्वाले मैतथली सातहतष्यकार को भी तहंदी सातहतष्यकार के बराबर राति और सुत्वधाएं

    तमलिी हैं। अब इस िरह की संकीण्य सोच पर अलग से कोई तटपपणी करने की जरूरि िो नहीं होनी चातहए।

    कोई िक नहीं तक तहंदी सातहतष्य के आतदकाल से ही त्वद्ापति आिे हैं तजनकी भा्ा मैतथली है। ्वैसे ही जैसे रामचररि मानस की भा्ा अ्वधी, सूर सातहतष्य की भा्ा ब्रजभा्ा आतद हैं। इन सबसे भी तहंदी सातहतष्य समृद्ध है। लेखक तहंदी भा्ी होिे हुए भी तहंदी की गररमा नहीं समझ पाए।

    मुझे ष्याद है जब काफी पहले मुझे मैतथली के प्रश्नपत् सेट करने संघ से्वा काष्य्यलष्य में बुलाष्या जािा था। गोपनीष्यिा इिनी रहिी थी तक मैतथली ्वाले िो दूर, परर्वार ्वाले भी नहीं जानिे थे तक मैं कहां जािी हूं, ्ष्या करने जािी हूं। ्वहां अंदर एक हॉल में सभी भा्ाओं के प्रश्न पत् बनाने ्वाले बैठे रहिे थे। हमे त्वगि पांच ्व्षों के प्रश्न पत् तदए जािे थे और उन प्रश्नों को देख मैं चतकि रह जािी। सरल प्रश्न को भी घुमा-तफरा कर, उलझे रूपों में पूछा जािा तक समझने में ही तकिना समष्य चला जािा होगा। मैतथली भा्ा कोई सरल सुबोध भा्ा नहीं तक अनजान आदमी भी समझ जाए। इसके वष्याकरण, मुहा्वरे बहुि ही क्लषट हैं। सबसे बड़ी बाि ष्यह है तक परीक्षक िक तकसी की भी पहुंच नहीं होिी। मैं भी कभी सेटर थी

    ष्या और भी अनेक भूतमकाओं में संघ लोक से्वा आष्योग से जुड़ी रही, ष्ये तकसी को भी नहीं मालूम। आज उसमें नहीं हूं िो इस आलेख के ज्वाब में मुझे तलखना पड़ा।

    और जष्यादा नंबर देने की समसष्या। मुझे िो दुख होिा है तक तहंदी के ्वैककलपक भा्ा होिे हुए भी उसके परीक्षक नंबर नहीं देिे। दुभा्यगष्य तहनदी का! मैं भी अ्वकाि प्राति तहंदी प्राधष्यातपका हूं। जब उतिरपुकसिका मूलष्यांकन एक ही जगह होने लगा िो जो अतधकारी होिे, सपषट कहिे कोई अगर फसट्ट ्लास के अंक दे रहे हैं, पहले मुझे कॉपी तदखला दें। 50 अंक से जष्यादा तकसी को न तदष्या जाए। पर मैंने कभी

    बाि नहीं मानी। जो भी अचछी कॉपी होिी उसमें अचछे मा्स्य देिी। 60 परसेंट भी देिी िो उन अतधकारी को कॉपी नहीं तदखािी।

    समझ नहीं पािी हूं तक इस िरह का दतकष्यानूसीपन कहां से आिा है? नंबर देिे तकसी का जी ्ष्यों जलिा है? ्ष्या इसके पीछे तकसी िरह की ्वच्यस्व्वादी सोच काम कर रही होिी है? िाष्यद हलके-फुलके ढंग से कही जाने ्वाली इस उक्ि में भी सचाई का कुछ न कुछ अंि जरूर है तक तजंदगी में जो खुद जैसा नंबर पािा है ्वह दूसरों को भी ्वैसा ही नंबर देिा है।

    और जहां िक मैतथली के छात्ों की उतिरपुकसिकाएं मैतथलीभा्ी तिक्षकों द्ारा जांचे जाने का स्वाल है िो िमाम भा्ाओं में कॉतपष्यां उसी भा्ा के ज्ािा िो जांचिे हैं। डोगरी की कॉतपष्यां डोगरी के त्वद्ान, गुजरािी की कॉतपष्यां गुजरािी त्वद्ान। तफर मैतथली पर ही स्वाल ्ष्यों? मैतथलीभा्ी तिक्षकों द्ारा मैतथल छात्ों के साथ पक्षपाि जैसी तनराधार बाि करना न के्वल मैतथल समाज के स्वातभमान पर और संघ लोकसे्वा आष्योग की प्रामातणकिा पर चोट है बकलक खुद लेखक की बौतद्धक क्षमिा पर भी एक िीखी तटपपणी है। हमें समझना चातहए तक तकसी एक नक्षत् से आकाि नहीं भर जािा, एक फूल से उद्ान नहीं बन जािा। उसी िरह तकसी एक भा्ा से देि नहीं समृद्ध होिा।

    रहंदी को खतिरा मैर्ली से नहीं छोटी सोच से तमाम भाषाओं में कॉपियां उसी भाषा के

    ज्ाता जांचते हैं। डोगरी की कॉपियां डोगरी के पिद्ान, गुजराती की कॉपियां गुजराती पिद्ान। पिर मैपिली िर ही सिाल कयों?

    बहस: त्हंदी और अनयशेफारलका वमाषि

    कैमरे हट जाएं, त्फर कौन पूछने

    वाला है...

    देश रागAjit Ninan

    सभी बच्ों को त्मले आजादी का हकिीन करोड़ बचिे अपना घर-बार छोड़ कर दूसरों की िरण में जाने को अतभिति हैं

    आज हम तजस दुतनष्या में जी रहे हैं, ्वहां मान्व िरीर के सूक्मिम ित्व डीएनए में फेरबदल करके मनचाहा मनुषष्य बनाने की िैष्याररष्यां हो रही हैं। पृथ्वी के त्वकलप के रूप में मंगल ग्ह अथ्वा बीच-बीच में अंिररक्ष सटेिन

    बना कर मान्व जाति को बसाने की कोतििें भी िुरू हो चुकी हैं। गूगल और ऐपल चाष्य के पष्यालों जैसी छोटी सी तडबबेनुमा मिीनों को सूचनाओं के समुरि से इस िरह जोड़ रहे हैं तक आप उनके सामने बैठ कर कोई भी स्वाल पूछें िो ्वे सेकंड भर में ज्वाब पेि कर देिी हैं। मैं इसी त्वकतसि दुतनष्या में रहने ्वाले ऐसे करोड़ों बचिों की बाि कर रहा हूं, जो मान्व जाति के तलए ईश्वर प्रदति सबसे बड़े उपहार आजादी िक से ्वंतचि हैं।

    िॉकिेट का सवादकुछ व्षि पहले मैं पकशचमी अफ्ीका के देि आइ्वरी कोसट के एक गां्व में बैठा था। ्वहां के करीब सभी बचिे कोको बीनस की खेिी में गुलामों की िरह काम करिे थे। उनके हाथ-पां्व में घा्वों के तनिान थे। इनहीं कोको बीनस से चॉकलेट पाउडर बनाष्या जािा है। मैंने कौिूहल्वि पूछा तक उनहें चॉकलेट का स्वाद कैसा लगिा है? बचिे एक-दूसरे का मुंह िाकने लगे। मेरे तलए ष्यह आशचष्य्यजनक था तक चॉकलेट जैसी तकसी चीज को चखना िो दूर उनहोंने उसका नाम िक नहीं सुना था। अभी दो तदन पहले हमने त्वश्व बाल श्रम त्वरोधी तद्वस मनाष्या है। मजे की बाि ष्यह तक आज भी ऐसे प्रबुद्ध लोगों की कमी नहीं जो मानिे हैं तक गरीबों के बचिे मजदूरी नहीं करेंगे िो भूखे मर जाएंगे। मुझे उनकी बुतनष्यादी नैतिकिा पर िरस आिा है। ्ष्या कभी तकसी बचिे ने गरीबी पैदा की? अगर नहीं िो उसकी गरीबी को गुलामी में िबदील करने का हक आप को तकसने तदष्या? आज जब दुतनष्या में करीब 21 करोड़ ्वष्यसक लोग बेरोजगार हैं िो

    17 करोड़ बचिों से मजदूरी कराने का ्ष्या िक्फ हो सकिा है? तसफ्फ ष्यह तक ्वे ससिे ष्या मुफि के मजदूर हैं और उनके िो्ण से अनैतिक काली कमाई करने ्वालों को आसानी रहिी है।

    हमारा सामातजक, राजनैतिक और आतथ्यक जी्वन दोहरेपन पर तटका है। ईश्वर ने हमारे तदलों में करुणा जैसा अमृि तदष्या है। इसे बांटेंगे िो समुरि की िरह ष्यह फैलिा चला जाएगा, और स्वाथटी बन कर पकड़े रहेंगे िो भाप की िरह तिरोतहि हो जाएगा। आज करुणा को आंदोलन बनाने की, इसका भूमंडलीकरण करने की जरूरि है। िातक तजस िरह हमने अपनी संिानों ष्या छोटे-भाई बहनों में इस दुतनष्या को तसकोड़ तलष्या है, उससे बाहर तनकल सकें। जब िक संसार के सभी बचिे स्विंत्, सुरतक्षि और तितक्षि नहीं हो जािे, िब

    िक ष्यह दुतनष्या सुरतक्षि और िांतिमष्य नहीं बन सकिी। गुलामी की ईंटों से कभी भी त्वकास के सथाष्यी महल नहीं बन सकिे।

    दुतनष्या के इतिहास में करीब िीन करोड़ बचिे अपना घर-बार और देि छोड़ कर दूसरों की िरण में जाने के तलए कभी भी अतभिति नहीं थे, लेतकन आज हैं। 23 करोड़ बचिे खौफ, असुरक्षा और अतनकशचििा में जीिे हुए ष्युद्ध और तहंसा से ग्सि इलाकों में रहिे हैं। इनमें बड़ी संखष्या उन बेतटष्यों की है, तजनहें मािा-तपिा से छीन कर ह्वस के तलए गुलामी कराई जा रही है। लाखों बचिों को बंधुआ और बाल मजदूरी में धकेला जा रहा है। कोई बिाए तक इतिहास के तकस दौर में बचिे ष्युद्ध की त्वभीत्का का कारण बने? कौन सा धम्य खदानों, खेि-खतलहानों, धधकिी भतटिष्यों, ्वेशष्यालष्यों में रोज मरिे बचिों के करुण क्रंदन को भुला कर आरतिष्यों, अजानों और प्राथ्यनाओं से ईश्वर को खुि करना तसखािा है?

    मैं समसष्याओं को हमेिा चुनौिी की िरह लेिा हूं और उनका समाधान ढूंढ़ने में त्वश्वास करिा हूं। इसी सोच ने मुझे एक बार तफर एक त्वश्ववष्यापी ष्यु्वा आंदोलन खड़ा करने के तलए

    प्रेररि तकष्या। मैंने बाल मजदूरी को खतम करने के तलए कई आंदोलन और जनजागरूकिा अतभष्यान चलाए हैं। बाल मजदूरी के तखलाफ मैं 1998 में गलोबल माच्य अंगेसट चाइलड लेबर नाम से दुतनष्या की सबसे लंबी ष्यात्ा आष्योतजि कर चुका हूं। 80,000 तकलोमीटर की ष्यह ष्यात्ा िब 103 देिों से होकर गुजरी थी और करीब डेढ़ करोड़ लोग इसमें िातमल हुए थे। इस ष्यात्ा के जररए ही पहली बार बाल मजदूरी और बाल दासिा की िरफ त्वश्व समुदाष्य का धष्यान आकत््यि हुआ था।

    आईएलओ कन्वेंिन-182 और त्वश्व बाल श्रम त्वरोधी तद्वस भी इसी ष्यात्ा का पररणाम है। अब मैंने दुतनष्या भर के बचिों को तहंसा और िो्ण से मु्ि कराने के मकसद से भारि की धरिी से ‘100 तमतलष्यन फॉर 100 तमतलष्यन’ नामक एक अतभष्यान की िुरुआि की है। पांच साल िक चलने ्वाले इस आंदोलन से 10 करोड़ ष्यु्वाओं को जोड़ा जाएगा जो दुतनष्या के 10 करोड़ ्वंतचि बचिों को िो्ण से मुक्ि तदलाने के तलए अतभष्यान चलाएंगे। ष्यह दुतनष्या का अपनी िरह का सबसे बड़ा ष्यु्वा आंदोलन होगा। इसी अतभष्यान के िहि मैं भारि में बाल ष्यौन िो्ण और बाल िसकरी के तखलाफ जन-जागरूकिा फैलाने के तलए देिवष्यापी ‘भारि ष्यात्ा’ का आष्योजन कर रहा हूं।

    तोडो बंधन तोडोरवशव बाल श्रम त्वरोधी तद्वस के अ्वसर पर मेरी आप सब से अपील है तक आप भी मेरे साथ इस ष्यात्ा में िातमल हों और उन करोड़ों गुलाम बचिों की तससतकष्यों को मुसकराहट में बदलें जो मुक्ि के तलए झटपटा रहे हैं। उनकी बेतड़ष्यां िोतड़ए। मेरा दृढ़ त्वश्वास है तक गुलामी की बेतड़ष्यां आजादी की चाहि से जष्यादा मजबूि नहीं होिीं। इसतलए जलद ही ्वह तदन आएगा जब दुतनष्या से बाल मजदूरी और बाल दासिा खतम हो जाएगी। सभी बचिे आजाद होंगे, खेलने के तलए, पढ़ने के तलए और सपने देखने के तलए भी।

    (लेखक नोबेल िांति पुरसकार त्वजेिा और जाने-माने बाल अतधकार काष्य्यकिा्य हैं)

    भारत में बाि यौन शोषण और बाि तसकरी के लखिाफ जन-जागरूकता फैिाने के लिए देशवयापी ‘भारत यात्ा’ का आयोजन

    कैलाश सत्या्दी

    मुंबई के एक बीच पर कागज की चरखी बेचता बच्ा

    S L Shanth Kumar

    चंद्रभूषण

    मेरे एक स्वगटीष्य तमत् आज भी अपनी ष्यादों से मुझे परेिान करिे हैं। ष्ये कोई भा्वुक, रूमानी ष्यादें नहीं होिीं। एक पत्कार के रूप में उनका पेिे्वर अंदाज, जानी-पहचानी चीजों को लेकर चौंका देने ्वाला उनका गैर-पारंपररक नजररष्या और दोसिों की मदद करने का उनका जुनून गाहे-बगाहे उनकी ष्याद िाजा करा देने के तलए काफी है। स्विंत्िा आंदोलन के अंतिम तदनों में ्वे एक छात् संगठन के काष्य्यकिा्य थे। आजाद भारि में नौकरिाही का अंग बने, लेतकन बंधी हुई तजंदगी रास नहीं आई िो एक अखबार से जुड़ गए। कुछ समष्य बाद लगा तक ढरचे की खबरें करनी पड़ रही हैं िो किर दूिा्वास में जनसंपक्फ अतधकारी बन गए। बिािे थे तक ्वहां मजे ही मजे थे- कोई बॉस नहीं, अचछी सैलरी, दोनों देिों की छुतटिष्यां। लेतकन दोबारा एक अखबार से जुड़ने का मौका तमला िो सब छोड़कर आधी पगार में उधर चले गए।

    उनहीं का कहना था- ‘पत्काररिा के कीड़े ने तजसको एक बार काट तलष्या, उसको इस बीमारी से कभी तनजाि नहीं तमलिी।’ इस मसिमौला इंसान की तजंदगी का अकेला अफसोस ष्यह था तक पत्काररिा की उसकी दूसरी पारी जष्यादा लंबी नहीं चली। तजस अखबार से ्वे जुड़े थे, ्वह जलद ही बंद हो गष्या। निीजा ष्यह तक अपने परर्वार का जी्वन सिर बनाए रखने के तलए उनहें त्वज्ापन तलखने से लेकर त्वदेिी टी्वी चैनलों का कंटेंट तहंदी में लाने िक बहुि िरह के काम करने पड़े। लेतकन इन वष्यसििाओं के बीच भी ्वे पतत्काओं के तलए तलखिे रहे। उनसे मेरा पररचष्य इसी दौर में हुआ था। मैं ष्यह देखकर हैरान रह जािा था तक इिना हाई-प्रोफाइल पत्कार, तजसके पररतचिों में दो-चार मंत्ी भी हुआ करिे थे, उनसे मदद लेने की बाि भी नहीं सोचिा।

    इसके त्वपरीि मेरे नजदीकी दाष्यरे में कई ऐसे पत्कार भी हैं- नए-पुराने दोनों- जो अपने छोटे से छोटे पररचष्य का भी जष्यादा से जष्यादा फाष्यदा उठािे हैं। इनहीं में एक छोटी प्रजाति उनकी है, जो अपने कमषों से न तसफ्फ अपने संसथान पर बोझ बन जािे हैं, बकलक कोई भी इनहें अपने साथ रखना खिरे से खाली नहीं मानिा। ऐसे में ष्ये अपना अलग मंच लगाकर खुद को त्वरिोही घोत्ि कर देिे हैं। सांसथातनक बाधष्यिाओं से ऊपर उठकर आपको अपना पैिन खुद ही आजमाने का मौका तमले, इससे अचछी बाि और ्ष्या हो सकिी है? लेतकन जब पिा चलिा है तक उनके मंच का इसिेमाल भी सूचना और त्वचार की जद्ोजहद के तलए नहीं, पैसे-पा्वर की तिकड़म के तलए ही हो रहा है, िो धक से लगिा है तक मेरे उन स्वगटीष्य तमत् ने कहां अपनी तजंदगी खपा दी!

    बागी पत्रकाररतिा का बोझनजरबट्टू

    अगर कोई यह सोचता है त्क उसने जीवन में कोई गलती नहीं की, तो इसका मतलब है त्क उसने जीवन में कभी कुछ नया करने की नहीं सोची। - अलबट्ट इंसटाइन

    अगर आप त्कसी वयल्त को परखना शुरू कर देंगे तो उससे प्रेम करने के त्लए आपके पास व्त ही नहीं बचेगा।

    -मदर टेरेसा

    हर कोई दुत्नया को बदलने के बारे में सोचता है, लेत्कन कोई खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता।

    - त्लयो टॉलसटॉय

    थॉट शॉटथॉट शॉटथॉट शॉटथॉट शॉटथॉट शॉटथॉट शॉटत्कसान राहत

    काय्जक्रम

    रीिस्ज मेल

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    नजरर्या बदलना होगातकसान आदंोलन के दौरान दस तदनों िक चले तहसंक प्रदि्यन के बाद, सरकार के कज्य-माफी के आश्वासन से आतखरकार तकसानों का आक्रोि िािं हआु और अन्न-दूध की ‘बअेदबी’ का तसलतसला थम गष्या। लेतकन तकसानों की मुकशकलें अभी पूरी िरह टली नहीं हैं। हड़िाली तकसानों की मागंें जाष्यज हो सकिी हैं, लतेकन अपनी बाि मन्वाने के तलए उनका ‘खाद् पदाथषों’ को नषट करना तकस ेरास आष्या होगा? सरकारें भी तकसानों/मजदरूों/ज्वानों की जरूरिों की सनु्वाई सहज िरीके से नहीं करिी हैं। उनका सब्र जब ज्वाब द ेजािा ह ैऔर जब ्ेव उग् रूप धारण करके िोड़-फोड़ पर उिारू हो जािे हैं, िब जाकर सरकार की नींद टूटिी ह।ै िब िक सरकार को त्वरोधी दल का भी रो् सहना पड़िा ह।ै मुनाफे पर तटकी सरकार की नजर को जनिा की समसष्याओं को दखेने का नजररष्या ्व िरीका बिेक समष्य रहिे बदलना होगा, िातक तहंसक आंदोलनों की नौबि ही न आए। - रत्रलोचन रसहं 'अरोरा', ई-मले से

    शभुरचतंिक कैस?ेत्वति मतं्ी अरुण जटेली का तकसानों को केंरि सरकार की सहाष्यिा से इनकार करना अफसोसजनक ह|ै कृत् और तिक्षा ्वसै ेिो मलू रूप से सतं्वधान की राजष्य सचूी िातमल में थ,े लेतकन 1976 में 42्वें सतं्वधान सिंोधन द्ारा इनहें सम्विटी सचूी में डालन ेके पशचाि केंरि सरकार का इस िरह स ेपलला झाड़ना अिोभनीष्य ह|ै ष्य ेतकसान भारि के नागररक हैं और ढाई लाख करोड़ रुपष्य ेके बजट का प्रा्वधान त्वदिेी सहाष्यिा तलए नहीं तकष्या जाना ह|ै हा,ं तकसानों में जानबझू कर कज्य न ्वापस करने की बढंिी प्र्वतृति को रोकन ेके तलए नीतिष्या ंअलग स ेिष्य की जा सकिी हैं| डूबिे उद्ोगों को ‘हाष्य’ और डूबिे तकसानों को ‘बाष्य’ ्वाली सरकार अब तकसानों की िुभतचिंक कैस ेह?ै

    डॉ. हररप्रसाद रा्य, ई-मले से

    चोरी की रबजली उतिर प्रदेि में िहर से लेकर कसबों, गां्वों िक तबजली की समसष्या है। इस समसष्या को लेकर अ्सर तचंिा जिाई जािी है, लेतकन धड़लले से हो रही तबजली चोरी की ओर धष्यान नहीं तदष्या जािा। िहर से लेकर दूर-दराज के इलाकों िक लोगों के घरों में टेतलत्वजन, कंपष्यूटर, एसी, तफ्ज, कूलर सब चोरी की तबजली से चलिे हैं। गां्वों में जष्यादािर घरों में तबजली के मीटर नहीं लगे हैं। तजस िरह से हम पानी बचाने, पलाकसटक के इसिेमाल पर रोक लगाने के तलए लोगों को जागरूक करिे हैं, उसी िरह लोगों में ष्यह संदेि जाना चातहए तक तबजली चोरी अपराध के साथ-साथ खुद के तलए नुकसानदाष्यक भी है। इससे तबजली की खपि पर बढ़ने ्वाले बोझ से तनजाि तमलेगी और काफी हद िक समाधान भी होगा।

    गररमा शमाषि, ई-मेल से

    अंलतम पत्खबर : मझु ेतसनमेा हॉल और िॉतपंग मॉल म ेजान े्वाली बह ूनहीं चातहए - राबड़ी द्ेवीरटपपणी : आपके अनपढ़ राजकुमारों को लड़की तमल जाए, ्वही बहिु ह।ै

    - सजं्य इदंोरर्या, ई-मेल से

    व्षि 67 संख्या 291आर.एन.आई. पंजीष्यन नंबर एमएएचएचआईएन/ 2009/27562स्वत्वातधकारी बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी तलतमटेड के तलए आर. कृषणमूति्य द्ारा टाइमस ऑफ इंतडष्या तबकलडंग, डॉ. डी. एन. रोड, फोट्ट, मुंबई 400001 से प्रकातिि और उनके द्ारा (1) टाइमस ऑफ इंतडष्या सबब्यन प्रेस, आकुलटी रोड, तनकट ्वेसटन्य ए्सप्रेस हाइ्वे, कांतद्वली (पू.) मुंबई 400101 ए्वं (2) टाइमस ऑफ इंतडष्या तप्रंट तसटी, पलॉट नं. 4, टी.टी.सी. इंडकसट्ष्यल एररष्या, ठाणे बेलापुर रोड, ऐरोली, न्वी मुंबई-400708. फोन नं. (022) 2760 9999 ; फै्स:(022) 2760 5275। फोन मुंबई: (022) 66353535, 22733535 रेसपांस: (022) 66353636, 22733636 फै्स: (022) 22731889, 22731144, कांतद्वली (022) 28872324 से मुतरिि। सथानीष्य संपादक (मुंबई) : सुंदर चंद ठाकुर (पी. आर. बी. अतधतनष्यम के अंिग्यि समाचारों के चष्यन के तलए उतिरदाष्यी) स्वा्यतधकार सुरतक्षि। प्रकािक की तलतखि अनुमति के तबना संपूण्य ष्या आंतिक पुनप्र्यकािन पूण्यि: प्रतिबंतधि। सड़क ्व रेल परर्वहन से्वा िुलक: मुंबई, ठाणे ्व राष्यगड तजलों के बाहर 1.00 रुपष्या। त्वमान से्वा िुलक: राष्यपुर, नागपुर, गो्वा ए्वं ्वाष्या 2.00 रुपष्ये, इंदौर, चेन्नै ए्वं ्वाष्या 3.00 रुपष्ये, अहमदाबाद, बेंगलुरु, कोचीन, कोष्यमबिूर, एरनाकुलम, हैदराबाद, कोझीकोड, मंगलूर, तत््वेंरिम, उदष्यपुर, ्वाइजग ए्वं ्वाष्या 4.00 रुपष्ये, तदलली, कोलकािा, ए्वं ्वाष्या 5.00 रुपष्ये।

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