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स्वराज जनचेतना अभि यान(REACH EVERYWHERE - REW)

स्लाइड को फ्लेक्स प्रि�न्ट करके नीचे की बातों को हो सके तो स्थानीय भाषा में समझाए।ँ उपलब्ध हो तो, एक जगह के लिलए, १ कपी मधेश स्वराज, १ कपी वीर मधेशी, और १ कपी स्वराज DVD छोड दें। जो लोग जुडना चाहते हो, उनका प्रिववरण फारम पर ले लें और उसमें जो ज्यादा सप्रि5य दिदखाई दें (या संयोजक बनने लायक हो), उसके नाम को प्रिकसी लिचन्ह से माक: कर दें। नामावली फारम को mleadtrain@gmail.com पर ईमेल करके भेज सकते हैं या जिजला संयोजकों को हस्तान्तरण कर सकते हैं।

स्लाइड - १ : मधेश का इप्रितहास

मानव की उत्पत्ति? से लेकर मानव-प्रिवकास तक, मधेश की भूमिम पर हुई। �माण के रुप में १ करोड १० लाख वष: पुराने रामाप्रिपथेकस (रामनरवानर) का अवशेष मधेश के बुटवल से मिमला है; अभी बुटवल में रामाप्रिपथेकस पाक: भी मौजूद है। इसलिलए मधेशी या उनके पूव:ज लाखों वषI से मधेश में रहते आए हैं।

�ाचीन काल में मधेश को ‘मध्यदेश’ या ‘मज्झिज्झमदेश’ कहा जाता था मध्यदेश के प्रिवदेह (जनकपुर), प्रिवराटनगर, कप्रिपलवस्तु और लिसम्रौनगढ (बारा) सभ्यता �ख्यात रहा है राजा इक्ष्वाकु और जनक से लेकर सम्राट अशोक, सलहेश, हरिरसिसंहदेव और लोहांगसेन जैसे महान राजा-

महाराजाओं ने मधेश में राज्य प्रिकया

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लोहांगसेन आधुप्रिनक मधेश एकीकरण के नायक हैं, जिजनका राज्यारोहण ईस्वी १५५३ में हुआ था। उन्होंने पज्झिZचम से लेकर पूव: तक मधेश के सारे भूभागों का एकीकरण प्रिकया था।

भारत में अंग्रेजों का राज होने के समय में मधेश में सेन वंश के राजाओं का अलग राज्य था, मधेश अलग देश था।

स्लाइड – २ : मधेश नेपाल में कैसे आया ?

भारत में अंग्रेजों का राज उदय होने के बाद मधेश में भी अंग्रेजों का �भाव कायम हुआ। पर मधेश के राजा कायम ही रहे, उसे हटाया नहीं गया। वे मधेशी राजा मुगल सम्राट और अंग्रेजों को नजराना या वार्षिषंक कर (लगान) देकर मधेश में राज प्रिकया करते थे।

पर सन् १८१६ में (याप्रिन आज से २०० वष: पहले) अंग्रेजों ने वार्षिषंक २ लाख रुपये के बदले में कोशी नदी से लेकर राप् ती नदी तक के मधेश के भूभाग नेपाल के राजा को सौंप दिदया। यह बात सन् १८१६ की संधी में �माण के रुप में मौजूद है।

उसी तरह राप् ती नदी से लेकर महाकाली नदी तक के मधेश के भूभाग अंग्रेजों ने नेपाल के राजा को सन् १८६० में (याप्रिन केवल १५० वष: पहले) उपहार के रुप में दान दे दिदया, क्योंप्रिक नेपाल ने अंग्रेजों को भारत में लिसपाही प्रिवद्रोह को दबाने के लिलए सैप्रिनक सहायता की थी।

इस तरह से सन् १८१६ और १८६० की संमिधयों के द्वारा, मधेलिशकों की मंजूरी लिलए प्रिबना ही, मधेश को नेपाल में जबरन जोड दिदया गया और तब से मधेश नेपाल का उपनिनवेश बन गया, नेपाली साम्राज्य का प्रिहस्सा बन गया। ‘उपप्रिनवेश’ का मतलब होता है प्रिवदेशी/प्रिफरंगी सेना और शासक बाहर की जगह से आकर राज करना। मधेश के पास अपनी सेना नहीं है, उसका अपना �शासन नहीं है, उसका अपना शासन नहीं है। मधेश में ९५% से ज्यादा सेना मधेश के बाहर से आकर कब्जा जमाई हुई है और मधेलिशयों पर शासन कर रही है। अभी मधेश देश स्वतन्त्र नहीं, परतन्त्र है। जिजस तरह प्रिकसी दिदन भारत में अंग्रेजों का शासन था, उसी तरह मधेश में अभी बाहर से आए प्रिफरंगी नेपालिलयों का शासन है, मधेश अभी गुलाम बनकर रह गया है। इसलिलए मधेश को आजाद करना होगा, पुन: अलग स्वतन्त्र देश बनाना होगा।

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स्लाइड – ३ : स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन और डा . सी . के . राउत

मधेश देश को प्रिफर से आजाद करने और उसपर मधेलिशयों का अपना ही शासन कायम करने के लिलए ‘स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन’ अथा:त् Alliance for Independent Madhesh (AIM) ने ‘आजादी आन्दोलन’ शुरु प्रिकया है।

इस गठबन्धन का नेतृत्व डा. सी. के. राउत कर रहे हैं। डा. सी. के. राउत सप् तरी जिजले ेके महदेवा गाेवँ मेें पैदा हुए, वहीं पले-बडे। उने्होंने नेपाल की प्रित्रभुवन यूप्रिनवर्सिसटंी, जापान की टोप्रिकयो यूप्रिनवर्सिसटंी और बेलायत की क्यामप्रिpज यूप्रिनवर्सिसटंी से लिशक्षा हालिसल की है। उन्होंने क्यामप्रिpज यूप्रिनवर्सिसटंी से PhD प्रिकया है। वे युवा इज्झिन्जप्रिनयर पुरस्कार, महेन्द्र प्रिवद्याभूषण, कुलरत् न गोल्डमेडल, ट्रप्रिफमेन् कफ एकाडेमिमक एलिचभमेन्ट अवाड: जैसे सम्मानेों से प्रिवभूप्रिषत हैं।

डा. सी. के. राउत अमेरिरका मेें वैज्ञाप्रिनक केे रूप मेें काय:रत थे। वे २०६८ साल में अपने पद से राजीनामा देकर सब कुछ त्याग करके मधेश की सेवा के लिलए लौट गए। उसके उपरान्त डा. सी. के. राउत मधेश को आजाद करने मधेश स्वराज आन्दोलन चला रहे हैं। वे बुदध्, गांधी और मंडेला के पथ का अनुशरण करते हुए शान्तिन्तपूण: अहिहंसात्मक माग: से मधेश देश को आजाद करने में लगे हुए हैं।

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स्लाइड – ४ : प्रिकताब और डक्यूमेन्टरी

डा. सी. के. राउत ने ‘वैराग से बचाव तक (प्रिडनायल टू प्रिडफेन्स)’, ‘वीर मधेशी’, ‘मधेश का इप्रितहास, ‘मधेश स्वराज’ प्रिकताबें लिलखी हैं। उन्होंने ‘Black Buddhas’ डक्यूमेन्टरी भी बनाई है।

उसके साथ-साथ ‘मधेश स्वराज आन्दोलन’ से सम्बन्धिन्धत अन्य डक्यूमेन्टरी, प्रिवप्रिडयो और अप्रिडयो (गीत) भी उपलब्ध है। आप इन्टरनेट पर ckraut.com या madhesh.com पर जाकर वह प्रिकताब, गीत और प्रिवप्रिडयो डाउनलोड कर सकते हैं। डा. सी. के. राउत से जुडने के लिलए, उनका प्रिनयमिमत संदेश पढने के लिलए या उनसे सवाल करने के लिलए फेसबुक पर facebook.com/drckraut पेज पर जा सकते हैं, वहाँ पर Like कर सकते हैं।

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स्वतंत्र मधेश देश ही क्यों चानिहए, दूसरा समाधान क्यों नहीं ?

1. नि#रंगी नेपाली सेना और पुलिलस को मधेश से वापस करने के लिलए, और उसकी जगह पर मधेशी सेना और पुलिलस बनाने के लिलए। यह तभी ही हो सकता है जब मधेश आजाद होगा, अन्यथा नहीं। और जब तक मधेश की अपनी सेना नहीं होती है, तब तक कोई संप्रिवधान, कोई प्रिनयम-कानून, कोई शासन-व्यवस्था, कुछ भी मायना नहीं रखता; चाहे संप्रिवधान में जिजतना भी अमिधकार लिलखवा लें, कोई अथ: नहीं रखता। प्रिफरंगी नेपाली सेना को लगाकर पाया हुआ सारे अमिधकार को पल भर में नेपाली शासक छीन सकते हैं। अभी मधेश में ९५% से ज्यादा सेना मधेश के बाहर से आकर कब्जा जमाकर बैठी हुई है, पूरी की पूरी नेपाली सशस्त्र पुलिलस हमारे घर-दरवाजे पर बन्दुक लेकर खडी हैं। मधेश को मुक्त करने के लिलए उन प्रिफरंगी नेपाली सेना और पुलिलस को वापस करना ही होगा, और मधेशी सेना और पुलिलस बनानी ही पडेगी। इससे लाखों मधेलिशयों को नौकरी भी मिमलेगी।

2. पहानि-यों द्वारा हो रहे मधेश का कब्जा रोकने के लिलए। मधेश के अस्तिस्तत्व के लिलए सबसे ज्यादा खतरनाक है प्रिफरंगी नेपालिलयों का मधेश में आकर कब्जा जमाना, मधेश की जमीन हडपकर यहाँ पर बस जाना। इस तरह से नेपाली लोग पूरे मधेश पर कब्जा जमाना चाहते हैं; झापा, लिचतवन और कंचनपुर जैसे जिजलों में तो पहाडी लोग पूरी तरह कब्जा जमा ही चुके हैं और वहाँ पर मधेलिशयों की हालत क्या है, आप देख सकते हैं। आज से ६० वष: पहले मधेश में केवल ६% पहाडी लोग थे, पर आज ३६% हो गए। अगर इसे अब भी नहीं रोका गया, तो पूरे मधेश पर पहाडी लोग कब्जा जमा डालेंगे, और मधेलिशयों को मधेश से ही भागना पडेगा, शरणाथ� होना पडेगा। और पहाप्रिडयों के इस आ�वासन को तभी ही रोका जा सकता है, जब मधेश आजाद होगा, अन्यथा नहीं।

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3. मधेश की नौकरी मधेशबालिसयों को ही देने के लिलए: नेपाली साम्राज्य में मधेलिशयों को नौकरी मिमलना नामुमप्रिकन सा हो गया है। नेपाली शासक मधेलिशयों को कोई नौकरी नहीं देना चाहते हैं, मधेश में भी पहाडी ही कम:चारी, लिसप्रिडओ, एसपी को रखते हैं। तो मधेश की नौकरी मधेशबालिसयों को ही देने के लिलए मधेश को आजाद करना ही होगा, अन्यथा मधेश के बाहर से लाकर पहाप्रिडयों को ही नौकरी दिदया जाता रहेगा, और बेचारे मधेशी लोग बेरोजगार दरदर भटकते रहेंगे। खाली मधेश �देश बन जाने से यह सम्भव नहीं होगा, उसमें तो ओखलढंुगा या डोल्पा से आकर पहाडी लोग ही मधेश के मुख्यमंत्री भी बन सकें गे; लिसप्रिडओ, एसपी, कम:चारी भी पहाड से ही आकर बनेंगे।

4. नागरिरकता, सुरक्षा और निवदेश नीनित अपने हाथों में लेने के लिलए: मधेलिशयों के लिलए नागरिरकता, सुरक्षा और प्रिवदेश नीप्रित बहुत ही महत्वपूण: रहा है और उसको पूण:त: अपने हाथों में लेने के लिलए मधेश को आजाद करना ही होगा। अन्यथा नागरिरकता देने या खारिरज करने का अमिधकार, प्रिवदेश या सुरक्षा नीप्रित बनाने का अमिधकार सदैव नेपाली शासकों के हाथों में ही रहेगा, और नेपाली शासक मधेलिशयों को नागरिरकता प्रिवहीन करके, मधेश में सेना और सशस्त्र पुलिलस लगाकर दमन करके, सीमाके्षत्र में अपनी मनमानी से नीप्रित लगाके मधेलिशयों को अनागरिरक, राज्यप्रिवहीन और शरणाथ� बनाते रहेंगे।

5. अपना साधन-स्रोत, खानी, राजस्व, पैसा, वैदेभिशक अनुदान, लगानी आदिद पर पूर्ण< अलिधकार कायम करने के लिलए और अपने निवकास में लगाने के लिलए: मधेश के साधन-स्रोत, खानी, राजस्व, पैसा, वैदेलिशक अनुदान, लगानी आदिद पर पूण: अमिधकार कायम करने के लिलए और अपने प्रिवकास में लगाने के लिलए मधेश को आजाद करना ही होगा, तभी ही उन चीजों पर मधेलिशयों का पूण: प्रिनयन्त्रण हो सकता है। अन्यथा उन चीजों पर नेपाली शासक अपना आमिधपत्य जमाए रखेगा, और सारे साधन-स्रोत, राजस्व, वैदेलिशक अनुदान, पैसा पहाड की ओर ले जाता रहेगा, पहाड के लिलए खच: करता रहेगा।

6. स्थायी रूप से अलिधकार पाने के लिलए: चाहे कोई भी अमिधकार हो, स्थायी रुप से पाने के लिलए मधेश को आजाद करना ही होगा। अन्यथा जो अमिधकार पहले मिमल भी चुका रहता है, वह भी नेपाली शासक मौका मिमलते ही छीन लेता है। यहाँ तक की प्रिवतरण की हुई नागरिरकता को भी हजारों की संख्या में खारेज कर देता है, तो दूसरी चीजों की बात ही क्या! संप्रिवधान या सम्झौता में मधेलिशयों का अमिधकार स्पष्ट लिलखे रहने के बाबजूद भी मौका मिमलते ही नेपाली शासक उसको उलटा देता है। इसलिलए स्थायी समाधान की ओर जाना ही होगा, भूलभूलैया में अब नहीं रह सकते। अगर हमारे हाथ नेपाली प्रिफरंप्रिगयों ने बाँध दिदया है, तो हमें इनसे बार-बार भीख मांगने की बजाय, कुछ खाने के लिलए दे दो कहके बार-बार इनके पैर पकडकर प्रिगडप्रिगडाने की वजाय, अपना हाथ हमें खोलना होगा। वही स्थायी समाधान है, उनसे भीख मांग-मांग कर, उनकी कृपा पर हम कब तक जी सकते हैं ?

7. गुलामी से मुलि? और आत्मसम्मान के लिलए: आखिखर कब तक हम गुलाम की तरह नेपाली राज में जीते रहेंगे, कब तक दूसरे-तीसरे दज� के नागरिरक बने रहेंगे ? उससे मुलिक्त पाने के लिलए मधेश को आजाद करना ही होगा, अपने आत्मसम्मान के लिलए भी मधेश को आजाद करना ही होगा। गुलामी की जंजीर को तोडना ही होगा।

ऊपर की ये बातें खाली मधेश �देश बन जाने से समाधान कदाप्रिप नहीं हो सकेगा, स्वतन्त्र मधेश अलग देश बनने से ही हो सकेगा, इसलिलए मधेलिशयों को ‘आजाद मधेश’ के लिलए ही लडना होगा।

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अन्य प्रश् न

मधेश को कैसे आजाद करें ?

मधेश आजादी के कई तरीके हो सकते हैं:

१) पहला तरीका ये है प्रिक प्रिवशाल आन्दोलन के माफ: त् १-सूत्रीय मांग रखी जाय प्रिक स्वतंत्र मधेश के लिलए जनमत-संग्रह हो। उस जनमत-संग्रह में मधेशी जनता को केवल यह चुनना है प्रिक मधेश आजाद देश बनें प्रिक नहीं (प्रिकसी नेता, पाट�, गठबन्धन को वोट नहीं देना है बस्तिल्क लिसफ: यह कहना है प्रिक आपको आजादी चाप्रिहए प्रिक नहीं)। उस जनमत-संग्रह में ५०% से ज्यादा मत लाने पर स्वत: मधेश आजाद हो जाएगा, और उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी आसानी से हालिसल होकर मधेश देश स्थाप्रिपत होगा। उसके बाद वहाँ पर अपना मधेश संसद और सरकार गठन करके मधेश देश चलाना शुरु कर सकते हैं। इसके लिलए, अभी के वत:मान मधेश आन्दोलन को भी मोडा जा सकता है -- इस आन्दोलन की मांग ही केवल १-सूत्रीय बनाकर आगे बढें तो; याप्रिन केवल १ मांग होनी चाप्रिहए: स्वतंत्र मधेश के लिलए जनमत -संग्रह हो।

२) दूसरा तरीका है, नेपाल के संसद में जिजतने भी मधेश के सांसद है, वे राजीनामा देकर अंतरिरम मधेश संसद और सरकार गठन करें और मधेश स्वतंत्रता का उद्‍घोष करें (Declaration of Independence जारी करें)। �प्रितप्रिनमिध पहले से जनप्रिनवा:लिचत होने के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता सीधे �ाप् त हो सकता है, नहीं तो �प्रितरक्षा आन्दोलन करके स्थामियत्व के लिलए जनमत-संग्रह तक जाना पड़ सकता है। बाधा इसमें यह है प्रिक मधेशी नेता और सांसद प्रिकस तरह नेपाल के संसद की कुस� को प्यार करते हैं और उससे प्रिकस तरह लिचपके रहना चाहते हैं, वह आपने �धानमंत्री के प्रिनवा:चन में देख ही लिलया; तो उन्हें वह कुस� छोडकर आने के लिलए जनता और आन्दोलनकारी ही दबाब दें तो ही यह हो सकता है।

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३) तीसरा तरीका है, मधेश में अपना ही प्रिनवा:चन कराके मधेश संसद और सरकार का गठन करना। उसके बाद स्वतन्त्रता का उद्‍घोष करके अंतरराष्ट्रीय समथ:न जुटाना। फायदा इसमें यह है प्रिक मधेश में अलग प्रिनवा:चन कराना ही अपने-आप में मधेश देश को स्थाप्रिपत करने का एक अहम् ‘स्टेप’ है, उसके अलावा संसद और सरकार जनप्रिनवा:लिचत होने के कारण उसे अंतरराष्ट्रीय समथ:न मिमलना आसान होगा।

सवाल यह है प्रिक क्या मधेश में हम अपना ही प्रिनवा:चन करा सकते हैं, उकसे लिलए सक्षम हैं, नेपाल सरकार करने देगी ? इसका उ?र है, हाँ। वत:मान मधेश आन्दोलन के 5म में ही देखिखए: मधेशी जनता ने लगभग मधेश को कब्जा करके ही रखा है न ? न कोई सरकारी काया:लय चल रहा है, न यातायात साधन, न भंसार। तो मधेशी जनता इस हद तक मधेश को अपने प्रिनयन्त्रण में लेकर रखा है। जब पूरा भंसार पर कब्जा करके मधेशी जनता बैठ सकती है, २-२ महीने पूरा मधेश को ठप्प कर सकती है, तो गांव-गांव में चुनाव कराना कौन सी बडी बात है, कौन उसे रोक पाएगा ? अभी के माहौल में ही अगर गांव-गांव में चुनाव कराए ँतो नेपाल सरकार प्रिकतना रोक सकती है ? दूसरी बात, कुछ जगह पर नेपाल सरकार प्रिनवा:चन को भाँड भी दे, तो कोई फक: नहीं पडता। वहाँ पर पुन: चुनाव करवा सकते हैं, ये तो नहीं है प्रिक एक ही दिदन में हरेक जगह प्रिनवा:चन सफल कराना ही पडता है। तो हम स्वतंत्र मधेश का प्रिनवा:चन करा सकते हैं। पर उसके लिलए अपनी तैयारी चाप्रिहए: स्वतंत्र मधेश के प्रिनवा:चन आयोग से लेकर गांव-गांव के स्तर तक प्रिनवा:चन कराने के लिलए कम:चारी, स्वयंसेवक आदिद; उसके लिलए आवZयक बक्सा, गाडी जैसे भौप्रितक सामग्री की भी व्यवस्था करनी होगी। परन्तु यह प्रिबल्कुल ही सम्भव है।

४) चौथा तरीका है १०ओं लाख की संख्या में मधेशी जनता सडक पर उतरकर वहीं से मधेश संसद और सरकार की घोषणा कर दें, और स्वतंत्रता का उद्‍घोष कर दें। १०ओं लाख जनता की उपज्झिस्थप्रित ही मधेश स्वतंत्रता का जनमत और मधेश सरकार के लिलए समथ:न है, इसलिलए उसे अंतरराष्ट्रीय समथ:न सीधे भी मिमल सकता है। नहीं तो आन्दोलन जारी रखकर, औपचारिरक जनमत-संग्रह करके स्वतन्त्र मधेश को संस्थागत प्रिकया जाएगा।

इसके अलावा भी कई तरीके हो सकते हैं।

क्या यह सम्भव है, कहीं हो रहा है ?

देश का आजाद होना और बनना कोई दुल:भ और असम्भव काय: नहीं है—वैसा केवल शासकवग: शालिसत लोगों को प्रिनरुत्साप्रिहत करने के लिलए कहते हैं। केवल सन् १९९० के बाद भी ३० से ज्यादा नए देश बने हैं। सन् २००० के बाद भी पूव� दिटमोर, मोन्टेनेग्रो, सर्षिबंया, कोसोभो और दत्तिक्षण सुडान बने हैं, और प्रिनकट भप्रिवष्य में स्कटलैन्ड, काटालोप्रिनया, क्यूबेक और सोमालिललैन्ड लगायत के दज:नों नए देश बनने की कगार पर है। आज से ७० वष: पहले UN में केवल ५१ देश था, आज १९३ देश हैं ! तो यह असम्भव कैसा ?

वैसे हरेक मालिलक अपने दास (नौकरों) के दिदमाग में यही बात डाल देते हैं प्रिक तुम गुलामी से मुक्त नहीं हो सकते, बहुत खतरा है, तुम्हें कोई काम पे नहीं रखेगा, तुम अपना जीवन प्रिनवा:ह नहीं कर सकोगे, भूखे मर जाओगे, ताप्रिक वह गुलाम डर के मारे उसी मालिलक की नौकरी पुष्तो-पुष्ता करता रहे। उसी तरह नेपाली शासकों ने हमारे दिदमाग में वह भ्रम डाल दिदया है, ताप्रिक हम नेपाल में गुलाम बनकर जीते रहें, आजादी के लिलए कोलिशस ही न करें। हमें उस भ्रम को चीर कर आजादी की ओर बढना होगा, जो प्रिक बहुत ही प्रिनकट है।

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क्या यह शांनितपूर्ण< माग< से ही सम्भव होगा ?

बहुत सारे लोग शांप्रितपूण: माग: पर शक करते हैं, उन्हें प्रिवZवास नहीं हो पाता प्रिक अहिहंसा में इतनी ताकत हो सकती है -- बन्दुक, तोप और मिमशायल से ज्यादा। इसके लिलए हम कुछ डेटा देखें:सन् १९०० के बाद हुए ३२३ महत्वपूण: राजनैप्रितक आन्दोलन पर समीक्षा करते हुए एक शोधपत्र में प्रिनष्कष: प्रिनकाला गया था प्रिक शांनितपूर्ण< आन्दोलन का स#लता दर ५३% रहा, और पूर्ण< अस#लता केवल २०% जबनिक हिहंसात्मक आन्दोलन की स#लता २३% और पूर्ण< अस#लता दर ६०% रहा।सत्य यह होते हुए भी जब लोग आ5ोश में आते हैं तो कहने लगते हैं ऐसे शांप्रितपूण: तरीके से थोडे ही होगा, लात के भूत बातों से थोडे ही मानेगा, अब बन्दुक ही उठाना पडेगा ! वत:मान मधेश आन्दोलन केो भी नेपाली शासक जब बहुत दिदनों तक नजरअन्दाज करता रहा, तो बहुत सारे मधेलिशयों के मुँह से यही सुनने को मिमलता था। वे अक्सर तक: करते थे प्रिक भारत को आजाद करने में गरम दल भी तो थे, सुभाष चंद्र बोस भी तो थे, उनकी आजाद हिहंद फौज भी तो थी, तो हम भी चलो बन्दुक उठाते हैं ! पर याद रहें हम उस समय की घटना को आज केी प्रिवZव-परिरज्झिस्थप्रित से प्रिबल्कुल तुलना नहीं कर सकते और हुबहु लागू नहीं कर सकते। सुवास चन्द्र बोस के समय में United Nations था ? NATO जैसे संगठन था? उस समय में प्रिवZव आज की तरह आतंकवाद के खिखलाफ जंग छेडने के लिलए एकप्रित्रत था ? इसलिलए उस समय अगर आजादी के लिलए बन्दुक उठाई गई, तो आज भी हम नहीं उठा सकते। लिसकन्दर या सम्राट अशोक घोडे पर चढकर ही प्रिवZव-प्रिवजय के लिलए प्रिनकले, तो उसका मतलब यह नहीं है प्रिक आज भी हम घोडा पर सबार होकर ही युदध् करने प्रिनकल जाए।ँआज पूरे प्रिवZव हिहंसा के खिखलाफ में, आतंकबाद के खिखलाफ में एक हैं। चाहे प्रिकसी भी कारण से आप बन्दुक उठाए,ँ प्रिवZव कारण नहीं देखने लगता हैं, लिसफ: आपको आतंकवादी मानता है, और परस्पर प्रिवरोधी देश भी मिमलकर आपको परास्त करने में लग जाते हैं। इसलिलए पहले के दिदनों में हिहंसा के माग: से थोडा-बहुत कुछ सफलता मिमलती भी हो, पर आज के समय में वह नामुमप्रिकन सा हो गया है।

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और शोध से भी यही देखने को मिमलता है। ग्राफ में देखें प्रिक जब सन् १९४० के दशक में वाकई में हिहंसात्मक माग: से ज्यादा सफलता मिमलने की सम्भावना रहती थी, पर निपछले दशकों में हिहंसात्मक माग< से स#लता दर केवल १०% के करीब है, जबनिक शांनितपूर्ण< माग< द्वारा स#लता दर ७०% के करीब ! तो सफलता के लिलए कौन सा रास्ता हमें चुनना होगा ?तो हम केवल भावना में न बहें, आ5ोश में प्रिनण:य न लें। तथ्य पर प्रिवचार करें, संयमता से काम करें। शांप्रितपूण: माग: से मधेश की आजादी सुप्रिनज्झिZचत है।

(Chenoweth, E., & Stephan, M. J. Why civil resistance works: The strategic logic of nonviolent conflict. Columbia University Press, 2011)

(मधेश स्वराज प्रिकताब से)

शान्तिन्तपूण: और अहिहंसात्मक माग: द्वारा बहुत सारे देशों को स्वतन्त्रता मिमली है, भारत और दत्तिक्षण अप्रि�का जैसे उदाहरण हमारे सामने है। आधुप्रिनक समय में जहाँ पर आजादी के लिलए सशस्त्र युदध् भी हुआ, वहाँ भी शायद ही कभी प्रिवद्रोप्रिहयों को पूण: प्रिवजय मिमली, और वहाँ पर भी अन्तत: शान्तिन्तपूण: माग: द्वारा ही समस्या का समाधान प्रिकया गया, अन्त में टेबल पर से या जनमत संग्रह से ही बात को सुलझाया गया। और सन् २००१ के ९/११ की घटना के बाद तो प्रिवZव का रूख ही पलट गया है, और आज के प्रिवZव में सशस्त्र माग: द्वारा ज्यादा देर तक दिटका ही नहीं जा सकता, प्रिवजय पाना तो दूर की बात है। जहाँ पर हिहंसा द्वारा जीत हालिसल भी हुई, वहाँ थोड़ी देर बाद ही सही, अन्तत: सरकार एक या दूसरे तरीकों से परिरज्झिस्थप्रित को काबू कर ही लेती है। तमिमलों ने श्रीलंका के एक भू-खण्ड पर कब्ज़ा कर ही लिलया था, नेपाल में माओवादिदयों ने भी एक तरह से जीत ही हालिसल कर ली थी, पर अन्तत: क्या हुआ? तो आज जहाँ आतंकवाद के नाम पर पूरे प्रिवZव की शलिक्तयाँ एक होकर दम लगाती हैं, तो उसमें भले ही नेक उददे्Zय के लिलए कोई हिहंसा का इस्तेमाल करता हो, पर उसे भी सरकारें नहीं छोड़तीं। ऐसे में अहिहंसात्मक माग: प्रिवकल्पहीन सा हो गया है।

इसलिलए आज के दिदन में शान्तिन्तपूण: और अहिहंसात्मक माग: ही सब से उ?म और सफलता देने वाला माग: है। इस राह पर अन्तरराष्ट्रीय समथ:न भी आसानी से �ाप् त प्रिकया जा सकता है और इसके द्वारा प्रिवजय प्रिनज्झिZचत है।दूसरी बात, सशस्त्र आन्दोलन से मधेश का भला नहीं हो सकता, थोड़ी सी हुई सशस्त्र गप्रितप्रिवमिधयों का नतीजा आप देख सकते हैं। सरकार को बहाना मिमल जाता है, मधेलिशयों पर ज�ल्म करने के लिलए, ‘सुरक्षा’ के नाम पर एक पर एक प्रिवधेयक और ‘सुरक्षा योजना’ लाने के लिलए, मधेश में हजारों सशस्त्र �हरी तैनात करने के लिलए, दज:नों सशस्त्र �हरी और सैप्रिनक कैम्प खोलने के

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लिलए, मधेलिशयों पर अत्याचार करने के लिलए। सशस्त्र संघष: की राह अप्रि�का में हुए हिहंसात्मक संघष:, और गरीबी तथा हिहंसा से भरे समाज, की ओर ले जाती है, जो मधेश के प्रिहत में कदाप्रिप नहीं है।उसके अलावा, सशस्त्र आन्दोलन के लिलए भले ही कुछ जुनून भरे लोग आ जाए,ँ पर बहुसंख्यक मधेशी जनता इसके लिलए आगे आना नहीं चाहेगी। इसलिलए अमिधक से अमिधक समथ:न पाने के लिलए भी हमें सशस्त्र आन्दोलन से दूर रहना होगा।

�Zन: कहाँ पर अहिहंसात्मक आन्दोलन ने अपनी भूमिमका प्रिनभाई है?

डॉ: आपको दूर जाने की जरूरत नहीं है, भारत हमारे लिलए सबसे बड़ा उदाहरण है। उसी तरह, मंडेला का उदाहरण भी हमारे सामने है। कहें तो सन् १९६६ से १९९९ तक में शांप्रितपूण: नागरिरक आन्दोलनों ने प्रिनरंकुश शासन को हटाने की ६७ घटनाओं में से ५० में मुख्य भूमिमका प्रिनभाई है।

मधेश को आजाद करने के लिलए हम क्या करें ?जहाँ हैं वहीं, लोगों में आजादी के लिलए चेतना फैलाए,ँ लोगों को �लिशक्षण दें प्रिक आजादी ही क्यों चाप्रिहए, और संगठन (समिमप्रित और सदस्य) बनाए।ँ ‘संघम् महाबलम्’ – अथा:त् संगठन में ही सबसे बडी शलिक्त है, वही मधेश को आजाद कर सकता है। जिजस दिदन वह संगठन प्रिनमा:ण हो जाएगा (मान लें १० लाख �लिशत्तिक्षत सदस्य बन जाएगा), �लिशक्षण और आधारभूत तैयारी सम्पन्न हो जाएगी, उसी दिदन आजादी का उद्‍घोष प्रिकया जाएगा। (अन्य �Z नों के जवाब के लिलए ‘मधेश स्वराज’ प्रिकताब देखें, फेसबुक पोस्ट भी देखते रहें: http://facebook.com/drckraut )

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आजादी आन्दोलन शुरुआत का औलिचत्य और स्वरुप

(Concrete Plan)

वत<मान मधेश आंदोलन की समीक्षावत:मान मधेश आंदोलन के १०० दिदन पूरा होने के बाद यह स्पष्ट दिदख रहा है प्रिक संप्रिवधान काया:न्वयन नहीं होगा, �देश बनने की संभावना कम है, और सबसे बडी बात मधेश पूरी तरह जाप्रितय द्वन्द्व, हिहंसा और गृहयुदध् की ओर जा रहा है। मधेशी उपर नेपाली सेना लगाकर दमन करके मधेलिशयों को शरणाथ� बनाकर प्रिवस्थाप्रिपत करने की �प्रि5या शुरु हो चुकी है। नेपाल सरकार द्वारा मधेश आंदोलन को संबोधन करने की वजाय अनेकों अपमानजनक और आ5ामक रणनीप्रित अज्झिख्तयार करना, और नेपाल के �धानमंत्री द्वारा मधेलिशयों को सीधे यूपी प्रिवहार जाने के लिलए बोलने से लेकर मधेलिशयों की नागरिरकता खारेज करने तक की बात की जा रही है। यह प्रिबलकुल ही सुप्रिनयोजिजत है जिजस तरह से भूटान में नेपालभाप्रिषयों को भगाकर शरणाथ� बनाया गया था, उसी तरह प्रिफरंगी नेपाली शासक मधेलिशयों उपर दमन करके भगाने और शरणाथ� बनाने के लिलए कडा कदम उठा लिलया है। मधेलिशयों के ऊपर अन्तरराखिष्ट्रय समथ:न रहने के बाबजूद भी यह हो रहा है, इससे नेपाली शासकों का कडा प्रिनणा:यक रुख साफ जाप्रिहर होता है।

हम सभी चाहते थे प्रिक नेपाल के संप्रिवधान जारी हो, संघीयता आ जाए,ँ �देश सभा और सरकार बन जाए।ँ क्योंप्रिक �देश सरकार बन जाने के बाद लोग देख देते प्रिक संघीयता क्या होती है और प्रिफर उसका अगला चरण स्वत: आजादी होता, कोई भ्रम जनता में बाकी नहीं रहता। उसके साथ-साथ �देश बन जाने के बाद मधेश को आजाद करना और भी आसान होता (क्योंप्रिक सीमांकन, राजधानी, आधारभूत �ादेलिशक संरचना सभी तैयार रहता, खाली आजादी करना बाकी रहता)। इसलिलए हम सभी वत:मान आंदोलन में अपना मौन समथ:न देते रहे, कहीं हमसे कोई बाधा न हो इसके कारण स्वराज आंदोलन से जुडे अमिधकांश काय:5मों को भी प्रिपछले मप्रिहनों में स्थप्रिगत कर दिदए थे।

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पर अब और इंतजार करना प्रिबलकुल ही मधेश के लिलए घातक है। क्योंप्रिक जो संप्रिवधान संशोधन का हवा मधेशी पाट� दे रही है उसके लिलए दो-प्रितहाई बहुमत वत:मान सरकार के पास हैं नहीं, अगले कुछ मप्रिहनों के बाद सरकार प्रिगराने के बाबजूद भी वह वह दो-प्रितहाई बहुमत मिमलेगा नहीं क्योंप्रिक जिजस एमाले सरकार को प्रिगराके नई सरकार बनाई जाएगँे, उसे एमाले पाट� क्यों समथ:न करेगी जब वह खुद की सरकार बचाने के लिलए मधेलिशयों के पक्ष में नहीं रहे हो?इसलिलए इस आंदोलन का प्रिनकास कुछ नहीं है। संप्रिवधान संशोधन की राह में जाने के बदले, मधेश में जाप्रितय द्वन्द्व, हिहंसा और गृहयुदध् होने की सम्भावना बहुत ही ज्यादा बढ गई है, मधेश उसी की ओर चल पडी है, मधेश लिसरिरया और सुडान की राह पर चल पडी है। सबसे बडी बात, जब मनसाय ही सही न हो, तो २-३ वष: आंदोलन करके नेपाली शासकों को झुकाकर संशोधन कर लेने के बाद ही क्या होगा? प्रिकतना दिदन दिटकेगा संशोधन ? और अभी तो संघीय कानून और संरचना बनाना शुरु भी नहीं हुआ है, वहाँ हरेक कानून में, हरेक संरचना में प्रिवभेद होना है, और आंदोलन की जरूरत पडेगी। याप्रिन प्रिक मधेश में अनवरत का गृहयुदध् और अज्झिस्थरता होगी, यह सुप्रिनज्झिZचत है।

इस कारण से मधेश के लिलए और इंतजार करना अपने आंखो के आगे मधेश को जाप्रितय द्वन्द्व, हिहंसा और गृहयुदध् में धकेलना होगा। और इंतजार करना मधेश के लिलए प्रिबलकुल ही घातक होगा। इसलिलए अब मधेश को आजादी आंदोलन में लगने के अलावा और कोई प्रिवकल्प नहीं है। यह बात सभी मधेशी पाट�, नेता, काय:कता:, आंदोलनकारी, बुदम्िधजीप्रिव इमान्दारी से सोचें, मानें, और पहल करें तो ही हम सभी मधेश और मधेलिशयों का अस्तिस्तत्व बचा पाएगेँ। आजादी के लिलए जनसमथ:न भी व्यापक है, इसलिलए मधेश को आजादी की ओर प्रिनकास देना ही होगा। अगर नहीं तो मधेशी जनता में जो 5ोध है, �स्टे्रशन है, वह हिहंसा में बदलेगी, और मधेश पूरी तरह हिहंसात्मक गृहयुदध् के चपेट में फँस जाएगा। मधेश के लिलए अन्तरा:खिष्ट्रय समथ:न भी व्यापक रहा है, उसका लाभ भी हमें इस समय आजादी आंदोलन में मिमलेगा, क्योंप्रिक अन्तरा:खिष्ट्रय समुदाय द्वारा नेपाल सरकार को बारम्बार अनुरोध करने पर भी वह मधेलिशयों को समुलिचत अमिधकार देने के लिलए नहीं मान रही है, यह स्पष्ट है। अगर ऐसा ही चलता रहा, अन्तरा:खिष्ट्रय समुदाय की बात नेपाल सरकार नहीं मानती रही, उस परज्झिस्थप्रित में अन्तरा:खिष्ट्रय समुदाय स्वतंत्र मधेश की सरकार को तुरन्त मान्यता �दान करेगी।

वत<मान आन्दोलन में समाधान क्यों नहीं मिमल रहा है ?इसके अनेकों कारणों में �मुख रहा है प्रिक समाधान देने की चाबी आप नेपाली शासक के हाथ में रख दिदए हैं। याप्रिन प्रिक मांग पूरी कराएगा कौन? नेपाल सरकार / नेपाली शासक। और उसकी प्रिनयत साफ है प्रिक वह मधेलिशयों को पूरी तरह खत्म करके साफ कर देना चाहता है। इसलिलए आजादी आंदोलन का स्वरुप प्रिनधा:रण करते समय इस बात को याद रखना होगा, प्रिक हम प्रिफर “नेपाली शासकों से मांगने” के चक्कर में न पडे, याप्रिन प्रिक “मांग पूरी करने या न करने की चाबी” नेपाल सरकार के हाथों में न दें। वैसा हूआ तो प्रिफर मप्रिहनों नाकाबंदी करते रहेंगे, वे सुनेगा ही नहीं। इसलिलए आजादी आन्दोलन ऐसा हो प्रिक उसमें नेपाल सरकार से मांगने की बात न हो, नेपाल सरकार पर प्रिनभ:र न हो। जैसे प्रिक अगर हम वत:मान आंदोलन में भी आजादी के लिलए जनमत संग्रह के माग उठा सकते थे, वह भी आजादी के लिलए एक तरीका जरूर है, पर वह मांग रखकर जनमत संग्रह कराने या न कराने का प्रिनण:य प्रिफर नेपाल सरकार के हाथों में हम दे रहे होंगे, याप्रिन प्रिनयंत्रण अपने हाथों में नहीं रहेगा। इसलिलए पूण: प्रिनयन्त्रण अपने हाथों में रहनेवाला, सफलता सुप्रिनज्झिZचत होने वाला रास्ता ही हमें आजादी आंदोलन के लिलए चयन करना होगा, जो प्रिक प्रिनम्नानुसार है।

आजादी आंदोलन का स्वरुप (Concrete Plan)१. पहला चरण: जनता में जाकर कोणसभा, जनसभा, आमसभा आदिद करके उन्हें आजादी के लिलए जागृत करना, आजादी लाने के माग: को समझाना, आजादी आंदोलन के लिलए एकबदध् जनमत तैयार करना, साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मत और समथ:न भी ‘स्वतंत्र मधेश’ के पक्ष में तैयार करना

२. दूसरे चरण में मधेश में उच्चस्तरीय राजनैप्रितक संयन्त्र स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के पहल में गठन करना:

(क) उच्चस्तरीय राजनैप्रितक सुझाव समिमप्रित: प्रिवत्तिभन्न राजनैप्रितक दल के राजप्रिनप्रितज्ञ, बुदम्िधजीप्रिव, उद्योगपप्रित, नागरिरक समाज आदिद को मिमलाकर

(ख) मधेश संवैधाप्रिनक सुझाव समिमप्रित : भूतपूव: न्यायाधीश, कानूनप्रिवद,् संप्रिवधानप्रिवद,् वकील के सहभाप्रिगता में

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(ग) मधेश प्रिनवा:चन आयोग: भूतपूव: न्यायाधीश, प्रिनवा:चन आयुक्त आदिद के नेतृत्व में

इसके साथ-साथ गठबन्धन के नेतृत्व में आवZयक जनशलिक्त और पूवा:धार प्रिनमा:ण के काम सम्पन्न होगा।

३. तीसरे चरण में(क) ‘मधेश संप्रिवधान सभा / संसद ‘ प्रिनवा:चन की घोषणा करना और उसे ३-६ मप्रिहने में चरणवदध् रुप में सम्पन्न करना;(ख) मधेश संसद और सरकार गठन करना;(ग) अंतरराखिष्ट्रय मान्यता के लिलए आह्वान करना।

याप्रिन प्रिक मधेश में प्रिनवा:चन कराके सरकार गठन करना ही आन्दोलन होगा (कोई गाडी जाम करना, नाकाबंदी करना और नेपाल सरकार से मांग पूरी कराने के लिलए कहना नहीं पडेगा)। इसका फायदा यह है प्रिक:

(क) ५०% से ज्यादा मत प्रिगरता है तो स्वत: जनमत-संग्रह का काम हो जाएगा, क्योंप्रिक जो लोग वोट डालेंगे, वे तो स्वंतत्र मधेश की सरकार के लिलए डाल रहे हैं

(ख) प्रिनवा:लिचत सरकार होने से अंतरराखिष्ट्रय समथ:न मिमलना आसान होगा

(ग) प्रिनवा:लिचत मधेश संप्रिवधान-सभा और सरकार बनेगी, जो प्रिक अभी राजनीमा देकर मुमप्रिकन नहीं हो रहा है

(घ) प्रिनवा:चन में मोचा: / पाट� के काय:कता: भी उम्मीदबारी देने की संभावना �बल रहेगी, जिजससे इस संयंत्र में मधेशी पार्टिटंयां भी समावेश हो जाएगी। भले ही पाट� अध्यक्ष से प्रिनद�श रहने के कारण और पाट� से आर्सिथंक आदिद लाभ मिमलते रहने के कारण अभी के जिजला स्तर या प्रिनवा:चन के्षत्र स्तर के मधेशी पार्टिटंयों के �मुख को लगना मुस्तिZकल हो, पर उसके अलावा पार्टिटंयों के सभी जिजल्ला और के्षप्रित्रय स्तर के नेता भी मधेश के संप्रिवधान सभा प्रिनवा:चन में खुलकर प्रिहस्सा लेंगे, और चाहकर-नचाहकर भी मधेशी पाट� इसमें समावेश होगी ही।

(ङ) जो लोग पहले स्वतंत्र मधेश का समथ:न नहीं भी करते हो , दूसरों को देखकर या उस माहौल में, वे भी वोट डालने जाएगंे, और स्वतंत्रता के पक्ष में अपेक्षा से ज्यादा जनमत मिमलेगा

(च) और सबसे बडी बात, इसमें कोई भी प्रिनयन्त्रण नेपाल सरकार के पास नहीं होगा प्रिक हमारी मांग “आप” पूरा करों, बस्तिल्क हम खुद करेंगे, हमें नेपाल सरकार से पाने के लिलए इंतजार नहीं करना पडेगा

आप �Zन कर सकते हैं प्रिक इतने बडे प्रिनवा:चन कराएगेँ कैसे ? इससे सम्बन्धिन्धत मुख्य �Zन कुछ इस �कार हो सकता है:

(क) सुरक्षा समस्या यानिन क्या नेपाल सरकार करने देगी ?– प्रिकसी गांव में प्रिनवा:चन कराना प्रिकसी हाइवे बंद करने, नाकाबंदी करने, सदरमुकाम बंद करने आदिद कायI से कठीन होगा? जैसे प्रिक अभी के आंदोलन के माहौल लगभग पूरा मधेश आन्दोलनकारिरयों के प्रिनयन्त्रण में है, न तो कोई गाडी चलती है न तो सरकारी काया:लय, तो ऐसे अवस्था में गांव-गांव में प्रिनवा:चन कराने से कराने से सरकार कैसे रोक सकता है। और प्रिनवा:चन कराना शांप्रितपूण: लोकतांप्रित्रक गप्रितप्रिवमिध है, अवरोधात्मक नहीं, आ5ामक नहीं, आपत्कालीन् नहीं, इसलिलए इसे सेना परिरचालिलत करके दबा भी नहीं सकता। दूसरी बात, कुछ जगहों पर नेपाल सरकार प्रिनवा:चन में बाधा डाल भी दे, तो यह प्रिनवा:चन एक ही दिदन में, एक ही बार में सफल कराना आवZयक तो नहीं होता है, प्रिनवा:चन अनेकों चरणों में होता है। भाँडेगा, तो प्रिफर दूसरे दिदन प्रिकया जा सकता है। यह प्रिनवा:चन ३ मप्रिहना, ६ मप्रिहना तक अनेक चरणों में चलेगा, और सम्पन्न होने में कोई कदिठनाई नहीं रहेगी।

(ख) आर्थिथंक समस्या यानिन निनवा<चन कराने इतना ब-ा खच< कहाँ से लाएगँे ?– सरकारी प्रिनवा:चन में प्रिकतना खच: होता है, इस पर न जाए।ँ आप यह सोचें प्रिक प्रिपछले ३ मप्रिहने से मधेश आन्दोलिलत है, उसके के लिलए एक गांव से आन्दोलन पर जिजतना खच: हुआ है (टै्रक्टर भाडा, लाउडस्पीकर, बैठक पर बैठक, खाना), क्या उतना खच: उसी गांव में प्रिनवा:चन कराने में लगेगा ? सच्चाई तो यह है प्रिक १ दिदन के बैठक या आंदोलन के लिलए जिजतना खच: होता है, उतने में ही प्रिनवा:चन सम्पन्न प्रिकया जा सकता है।

(ग) जनशलि? समस्या यानिन निनवा<चन कराने अलिधकृत, कम<चारी, स्वयंसेवक कहाँ से लाएगँे ?

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– जब सरकार प्रिनवा:चन कराती है तो उसके लिलए भी कोई प्रिनवा:चन कम:चारी या जनशलिक्त स्थायी नहीं रहता, लिसफ: ऊपरी संरचना को छोडकर, याप्रिन प्रिक लिशक्षक, कम:चारी, स्वास्थ्यकम� इन्हीं लोगों को प्रिनवा:चन कराने के लिलए भी रवाना प्रिकया जाता है। तो उसी तरह मधेश में भी प्रिनवा:चन कराने के लिलए मधेशी कम:चारी, लिशक्षक आदिद को ही काम में लाया जाएगा। सुरक्षा के लिलए स्वयंसेवक दस्ता तैयार प्रिकया जाएगा, जो प्रिक हो भी रहा है।

(घ) क्या इसे मान्यता मिमलेगी ?– अगर हम गम्भीर होकर, सव:पक्षीय सहमप्रित से करे तो जरुर मान्यता मिमलेगा। उसके लिलए अन्तरराखिष्ट्रय मान्यता के अनुसार अपना काम करना होगा, हाइ-�ोफाइल लोगों को (जैसे भूतपूव: प्रिनवा:चन आयुक्त, न्यायाधीश आदिद को) प्रिनवा:चन आयुक्त बनाकर आगे बढना होगा। अन्तराखिष्ट्रय ओबजरवर को लाना होगा, जिजसके लिलए संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रिवत्तिभन्न एजेन्सी, काट:र सेन्टर, प्रिवत्तिभन्न NGO/INGO, प्रिवत्तिभन्न राष्ट्र के �प्रितप्रिनमिध आदिद को लाया जा सकता है। ऐसे माहौल में कराने पर मधेश के प्रिनवा:चन, और मधेश के संसद और सरकार को जरूर अन्तरराखिष्ट्रय मान्यता मिमलेगी। और अभी के सन्दभ: में जिजस तरह से अन्तरराखिष्ट्रय समुदाय छटपटा रहे हैं प्रिक अब नेपाल हमारी बात मान ही नहीं रहा है, अब क्या करें, उस समय में उनके आगे प्रिनवा:लिचत मधेश सरकार मिमल जाय, तो अन्तरराखिष्ट्रय समुदाय झट से उस मधेश सरकार को समथ:न देने में लगेगा।

और इस �प्रि5या द्वारा मधेश ६ मप्रिहना के भीतर आजाद हो सकता है।

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