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ककककककक ककक कककक कक कककक ककककक ककककककक कककक ककककक ककककक कककककक कक कककक ककककक ककक कककककककक कक ककक कक कक ककककककक कककककककक कक ककक कक कककककक कक कककककक कक ककककक ककककक ककक कककक कक कक कककक ककक कक, ककककक कककककक कक कककक ककक कककक कककककक कक कककक कककक कककककककक कक कककककक कक ककककक ककक ककककक ककक कक ककककककक ककककक ककक ककक कककक कककक ककककककक कक ककककक ककककक ककककक कक कककककक कक कककक ककककक कककककक ककक कककककक कक क कक कककक कककककक कक कककक ककककककक कक कककक कक कककक ककककककक कक ककककक ककककक ककक ककककक ककककक ककककक ककककक-कक क कककक क कक ककक कककक --- “कककककक” – ककककक

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Page 1: hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · Web viewक द व र हम क व य म ब ह य जगत स स मग र उठ कर उस नय अर थ द त

कविताओ म बि और उनस जडी सदना

मनोज कमार पिछल बधवार को हमन कपिवता म परतीको की बात की थी हालापिक परतीको की तरह ही बिबबो का परयोग भी बिहदी कावzwjय म शर स ही होता रहा ह लपिकन परतीक और बिबब म इसक परयोग को

लकर अतर ह

परतीक क दवारा हम कावय म बाहय जगत स सामगरी उठाकर उस नया अथ1 दत ह

बि क सहार बाहरी ससार की छपिवयो को लकर पिवशष सदभ1 म उनzwjह इस परकार परयकzwjत करत ह पिक हमारा कथzwjय जzwjयादा सzwjषzwjट और अधिधक परभावी हो जाता ह

ldquo ादल अकटर क हलक रगीन ऊद मदधम मदधम रकत

रकत- स आ जात

rdquoइ त न पास अपन --- ldquo rdquo ndash सधया शमशर

लग रहा ह पिक कपिव पिकसी की याद म खोया ह और परकपित को अन खयाल क रग म पिनहार रहा ह शबदो को तोडकर गपित को पिबलपिबत कर दन स धीम- धीम सरक रहा हो का भाव दा हो रहा ह

परतीक क दवारा वसzwjत जगत क दाथA तथा सथिCपितयो को परतीक बनाकर उनक माधzwjयम स सवदनाओ और अनभपितयो को वzwjयकzwjत पिकया जाता ह दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक परतीक दवारा मत1 जगत म अम1त भावनाओ का पिनरण पिकया जाता ह इस दखा नही

जाता मातर महसस पिकया जा सकता ह अन अतर म ही समझा या पिवशzwjलपिषत पिकया जा सकता ह

जस रघवीर सहाए की कतिPया ल ldquo rdquoविहलती हई मडर ह चटख हए ह पल परतीक ह दपिनया म आए पिवचलनो क दरिरयो क

परतीको क पिवरीत बि इदरि5य सध होत ह अथा1त उनकी अनभपित पिकसी न पिकसी इदरिVय स जडी रहती ह

जस दशzwjय बिबब शरवzwjय बिबब घराण बिबब सzwjश1 बिबब

कपिव या रचनाकार हमार रिरवश स कछ दशzwjय कछ धzwjवपिनयो कछ सथिCपितया उठात ह उसम अनी कलzwjना सवदना पिवचार और भावना को पिरोत ह ndashपि[र उनzwjह तराशकर बिबबो का र दत ह

ldquo दरिदसासान का समय मघमय आसमान स उतर रही ह

ह सधया सदरी परी-सीधीर-धीर-धीर

rdquoवितमिमराचल म चचलता का नही कही आभास -- पिनराला (सधया-सदरी)

यहा र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक अन कथय को सकष म और सघन र स परसzwjतत करना चापिहए इसस अनी बात जो हम कहना चाहत ह उसका परभाव बढता ह बिबब का स[ल परयोग तभी माना जाएगा जब पिकसी सथिCपित को हम सजीव र स ाठक क सामन रख दत ह

ldquo ह विखर दती सधरामोती सक सोन पर

रवि टोर लता ह उनको rdquoसदा सरा होन पर मकतिथलीशरण गपत (चवटी)

इन कतिPयो म गपत जी थवी रात ओस सबह पिकरण सय1 क दवारा जो बिबब रचत ह व हमार जीवन क अनभवो स कवल मामली समानता नही दरिदखलात बलकिलक उस दशzwjय क तरल कापितमय दीपzwjत सौदय1 को भी मरतितमान कर दत ह

छायावादी कपिवयो की रचनाओ म अनक परकार क बिबबो का पिवधान धिमलता ह जस हम lsquo ीती विभारी rsquoजाग री कपिवता को ल जयशकर परसाद इस कपिवता म कवल दशzwjय या धzwjवपिन- कतिचतर ही नही परसzwjतत करत बलकिलक गहन अनभपितयो और सवगो को भी सपरपिषत

करत ह ldquoखग- कल कल- कल सा ोल रहाrdquo यहा कल-कल धzwjवपिन का बिबब कवल कषिकषयो क कलरव का परभाव नही दता बलकिलक दश समाज तथा सापिहतzwjय म आत जागरण क उलzwjलास तथा उतzwjसाह को भी वzwjयकzwjत करता ह

कषिeम खासकर इगzwjलड म 20 वी सदी क आरभ म (बिबबवाद) नाम स एक कावzwjय आदोलन उभरा सzwjवचzwjछदता वाद का[ी रोमानी भावक गीपितमयता का र धारण कर चका था इसक पिवरोध क र म बिबबवाद आया जो सzwjवचzwjछदता वाद की आतzwjमरकता और

कतिशकतिथलता की जगह वसzwjतरकता अनशासन वzwjयवसzwjथा और सटीकता र बल दता ह इस पिवधा क अनसार पिबमzwjबातzwjमक भाषा चसzwjत तराशी हई और सटीक होनी चापिहए अनशासन तथा सतलन बरतन स कावzwjय म सकषzwjमता सकषिकषपतिपत और सगठन आ जाएगी

पिबमबवादरिदयो का मानना ह पिक कपिवता म हम आम बोलचाल की सामानzwjय भाषा का परयोग कर सकत ह जररी नही पिक भाषा आलकारिरक या पिकताबी हो

ह आता- दो टक कलज क करता चाट रह ह जठी पततल सभी सडक पर खड हए और झपट लन को उनस कतत भी ह अड हए पिनराला (कषिभकषक)

भाषा गण सनzwjन शषzwjक और सzwjषzwjट हो शबzwjदावली सटीक और उयकzwjत हो भाषा सहज- सरल पिकत अथ1- गरभिभत और वzwjयजक होनी चापिहए उसम भावाकलता नही होनी चापिहए बिकत वह सकतातzwjमक तथा सकषम होनी चापिहए कवल ऐस शबzwjदो का नातला परयोग होना

चापिहए जो इसथिpत परभाव उतzwjनzwjन कर सक गzwjवाकतिलयर म मजदरनो क जलस र जब गोली चलाई गई तो शमशर बहादर सिसह क सzwjवर- कतिचतर दखिखए

ldquo य शाम ह विक आसमान खत ह पक हए अनाज का

लपक उठी लह- भरी दरावितया विक आग ह

धआ-धआ rdquoसलग रहा गzwjालिलयर क मजदर का हदय

जब बिबबो का परयोग कर कपिवता म तो कपिवता का तथzwjय सामानzwjय नही बलकिलक गढ तथा वzwjयाक हो उसम असzwjसzwjटता न हो भावमयता कपिवता को असzwjषzwjट बना दती ह बिबब- पिवधान क माधzwjयम स पिवषय- वसzwjत को अधिधक गहराई स अधिधक सzwjषzwjटता स कम शबzwjदो क माधzwjयम

स वzwjयzwjकzwjत पिकया जा सकता हldquoआहवित- सी विगर चढी लिचता पर

चमक उठी जाला- rdquoसी सभVाकमारी चौहान ( झासी की रानी की समाधिध)

चाकषष बिबब म कतिचतरातमकता होती ह पिबमब ारमपरिरक ही नही नवीन भी होन चापिहए नजर आ सकन वाली वसzwjतओ स रच गए बिबब कई बार री कपिवता क कथzwjय को सzwjषzwjट करन म समथ1 होत ह अग अग नग जगमगत दीपलिसखा- सी दह दरिदया ढाय ह रह डौ उजzwjयारौ गह पिबहारी

छोटी छोटी सामानzwjय वसzwjतओ म भी सौदय1 कतिछा होता ह उनक सटीक सपिनकषिeत सकषिकषपzwjत वण1न क माधzwjयम स उस सदरता का साकषातzwj कार हो सकता ह शमशर की एक कपिवता lsquo rsquoजाड की सह क सात आठ ज स एक उदाहरण दखिखए

ldquo उडत पखो की परछाइया हलzwjक झाड स धप को समटन की

कोशिशश हो जस rdquo ध को समटन की यह कोकतिशश वzwjयथ1 ह कzwjयोपिक अगर वह कतिस[1 बाहर [ली हो तो झाड स समटी जा सक र

ldquo धप मर अदर भी इस समय तोrdquo इस अदर की ध को कडना और कपिव स अलग करना कदरिठन ह कzwjयोपिक उसकी मानवीय सवदना तो अदर धसी ह

पिबमzwjबवादरिदयो क अनसार भौपितक वसzwjत ही कावzwjय का पिवषय होती ह इसकतिलए ाठक र हल बिबबो का ही परभाव डता ह और उनका महतzwjव कपिव क कथzwjय की अकषा कम नही होता बिबबो क साथ पिवचार भी जड होत ह इसकतिलए बिबबर वसzwjत का गरहण करन क बाद ाठक पिवचार का भी गरहण करता ह

ldquo ह अमा-विनशा उगलता गगन धन अनzwjधकार खो रहा दरिदशा का जञान सzwjतबzwjध ह पन-चार

अपरवितहत गरज रहा पीछ अमzwjलिध विशाल भधर जzwjयो धzwjयान-मगzwjन कल जलती मशालrdquo पिनराला ( राम की शकतिP जा)

अमावसzwjया क गहन अधकार का जो बिबब ह वह हल तो हमार आग उस बाहरी दशzwjय को मरतितमान करता ह पि[र वह परतीक बनकर हम पिनराशा और गzwjलापिन क उस अधर तक ल जाता ह जो राम क मन म छाया हआ ह

मनोदशाओ की अकषिभवzwjयकतिP क कतिलए कपिवता म नई लय का सजन कर सकत ह मकzwjत छद म कपिव की वयकतिPकता अधिधक अचzwjछी तरह अकषिभवzwjयकzwjत हो सकती ह शमशर की कपिवता lsquo rsquoकषीण नील ादलो म ढलती शाम और गहराती रात का कतिचतर ह दखन वाल की मनःसथिCपित का अकन भी साथ- ndashसाथ ह

ldquo ादलो म दीघY पशिZम काआकाशमलिलनतम

ढक पील पा जा रही रगणा सधzwjया

नील आभा विशzwj की

हो रही परवित पल तमस विगत सनzwjधzwjया की

रह गई ह एक खिखडकी खली झाकता ह विगत विकसका भा ादलो क घन नील कश

चपलतम आभषणो स भर लहरत ह ाय - rdquoसग स ओर

बीमार शाम का ीलान रात क गहर अधर म बदल रहा ह लपिकन इस समय चाद आसमान र कछ इस तरह ह मानो बीत चकी शाम की एक खिखडकी सी खली रह गई ह जस शाम बीत गई ह वस ही कपिव क जीवन स पिकसी का भाव बीत चका ह वह इस खली खिखडकी स झाकन लगता ह इसी खली खिखडकी की वजह स कपिव क मन र छाया अधरा उस री तरह गरस नही ाता शाम को ढलत रात म ढलत दखन वाला मन रगण नही इसका परमाण यह ह पिक बादल उस आभषणो स सज धन नील लहरात कश

की तरह लग रह ह बिबब इतना सशकzwjत परयोग अनzwjयतर कही नही धिमलता शाम की नीलाहट रात का अधरा जाड की सबह की कोमल ध ndash सागर की लहर य सब कपिव क सवदनलोक क अकषिभनzwjन अग ह परकपित क अलग अलग रगो उसकी अलग- अलग भपिगमाओ क

साथ मानवीय सवदनाओ का जो सबध ह वह जिजतन सशकzwjत ढग स अकषिभवzwjयकzwjत हआ ह

पिबमzwjबो क दवारा कपिवता म अनी बात कहन का एक और [ायदा यह ह पिक हम सकषिकषपzwjत और समान र बल दकर अनावशzwjयक शबzwjद- जजाल स मकतिP ात ह शमशर क शकतिPशाली बिबब का एक उदाहरण

ldquo लगी हो आग जगल म कही जस हमार दरिदल सलगत ह

सरकार पलटती ह जहा

हम ददY स rdquoकरट दलत ह पिकसानो क दखकर उन पिकसानो क कतिलए शकतिP और ऊजा1 स भरा रक आदरिदवाकतिसयो का भवzwjय कतिचतर खडा करत ह

य ही ादल घटाटोपी विजलिलया जिजनम चमकती

खन म जिजनक कडक ऐसी विक गोलिलया चलती

इनकी आखो म तडकती धप सखzwjत जर की

शमशर न परकपित क कछ अतzwjयत अछत बिबब और उनस जडी हई अनी खास सवदना क कतिचतर बिहदी कपिवता को दरिदए ह जो उनक ndashअलावा कही नही धिमलत

सलाती ललाई क लिलपटा हआ काफी ऊपर तीन चौथाई खामोश गोल सादा चाद रात म ढलती हई तमतमायी सी

लाजभरी शाम कअदर

ह सफद मख विकसी खzwjयाल क खार का

एक बात का धzwjयान रख पिक बिबब धरमिमता को कपिवता का एकमातर गण मानकर हम उसक कषतर को सीधिमत कर दग कई बार अधिधक बिबब दरिदखा कर हम कावzwjय म अकषिभवzwjयकतिP को परमखता तो दत ह र कथzwjय गौण हो जाता ह इसकतिलए सीधिमतता और एकरता स बचन क

कतिलए भाषा क अनzwjय परयोगो र भी धzwjयान दपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय शासतर मनोज कमारधार ६ अकतर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ११ ) मनोविशzwjलषणादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-११) मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन पिछली दस ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) (९) मलय कतिसदधात अयर(१०) माकस1वादी सिचतन की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क

सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह

कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए

ndash मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार माक1 सवादरिदयो क अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह आइए

अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए फ़रायड मनोपिवशzwjलषण शासतरी थ उनहोन यह परपितादरिदत पिकया पिक अवचतन और चतन

मन म दधिमत काम- वासना स अनक रोग-वयाधिधया मानकतिसक पिवकष उठ खड होत ह इनका शमन उदततीकरण या रचन दवारा हो सकता ह

अरसत क पिवरचन कतिसदधात या भाव- रिरषकार को मनोपिवशzwjलषणशासतर क अतग1त उठाया गया इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक कावय काम- वासना क रचन या

उदाततीकरण का मादधयम ह मनोपिवशzwjलषण शासतरिसतरयो न कावय परयोजन को रिरभापिषत करत हए कहा

ldquo मानव की भावनाओ का उननयन- rdquoरिरषकरण और उदाततीकरण करना ही कावय का परयोजन ह

अथा1तzwjमन क भीतर उतनन हए पिवकपितयो स मकतिP दरिदलाना और कतिचतत का शमन ही कावय का उददशय ह इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक सौदय1 रक कावय और उददाम शगार रक ककवय-

नाटक- उनयास क अधययन स मनव क मन की काम- भावना रिरषकत होती ह इसका शमन होता ह

lsquo rsquo एडलर भी मनोपिवशzwjलषणशासतरी थ उनका कहना था पिक सापिहतय गरकतिथयो स मकतिP दरिदलान का माधयम ह

जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह

कषिeम क एक और मनोपिवशzwjलषणवादी ह काल1 यग उनहोन तो कपिवता और धिमथक को समकष माना उनका कहना था पिक जस सवपन और

धिमथक म आदरिदम काल स सकतिचत मानव क सामपिहक अवचतन मन और आदरिदम- पिबमब का परकाशन होता ह वस ही कपिवता म भी हमार आदरिदम

रख बोल रह होत ह यग का कहना था पिक धिमथक और कपिवता दोनो म अपरपितहत वग स परवापिहत होन वाली जीवनी शकतिPपिनबदध होकर

अना सयधिमत और पिनयपितरत र परसतत करती ह अब अगर इसका अभाव हो तो मनकतिसक जीवन का वह तीवर परवाह तो रक ही जाएगा अवरदध हो जाएगा या पि[र इसका तीवर वग मानकतिसक जीवन म रोग-

अराजकता उतनन कर दगा

इस परकार मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन म हम ात ह पिक कावय का कम ह भावो या पिवचारो का रचन या रिरषकार करना

सथिशzwjचम म कावय परयोजन सबधी अनक पिवचारधाराओ का परपितादन हआ र अगर गौर स दख तो हम ात ह पिक कल धिमलाकर दो समह थ एक आनदवादी और दसरा कलयाणकारी इन दोनो क

भीतर कावय सजन का परयोजन मानव चतना का पिवसतार ह सजन एक मनोवजञापिनक परपिया ह यह एक सासकपितक परपिया भी ह रचनाकार इस परपिया को आग बढाता ह भावो और पिवचारो को

समपरपिषत करता ह इस परकार जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह र कल धिमलाकर अगर दखा

जए तो कावय का परयोजन ह भावो और पिवचारो का समपरषण तथा सासकपितक चतना का पिवसतार औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 6 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार २९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - १० ) माकसYादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-१०)

माकसYादी चिचतन पिछली नौ ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) और (९) मलय कतिसदधात की

चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquo सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा औरजञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की

सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए

सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था

पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम ndash मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग

बढाए माकस1 न जिजस मलय- कतिसदधात की बात की थी माकस1वादी उसक आधार र सापिहतय की पिवचारधारा कतिशल और मलय- चतना र पिवचार करत ह अधिधकाश पिवदवान जो इस पिवचारधारा क समथ1क ह व

सापिहतय का अधययन दवदवातमक भौपितकवाद क कतिसदधातो की सहायता स करत ह इस कतिसदधात क अनयाईयो का मानना ह पिक सामाजिजक और राजनीपितक शकतिPयो म आरथिथक वयवCा वग1- सघष1 का

पिवशष हाथ होता ह व यह मानत ह पिक सापिहतय र या सजन की सापिहपतितयक षठभधिम का अधययन दोनो को आरथिथक- सामाजिजक परवकषिततयो क आधार र ही समझा ज सकता ह

माकस1वाद सापिहतय को भी समाज क रिरवत1न क एक टल क र म मानता ह उनका मानना ह पिक लोगो म जागरण सापिहतय क दवारा दा पिकया जा सकता ह व जीवादी और सामतवादी सापिहतय का lsquo rsquo पिवरोध करत ह माकस1वाद न कला कला क कतिलए कतिसदधात म जो वयकतिPवाद- भाववाद की चचा1 की गई

ह उसका पिवरोध पिकया सापिहतय का उददशय रिरभापिषत करत हए माकस1वादरिदयो का कहना ह पिक सापिहतय का उददशय मनषय को परबदध सामाजिजकता की दधि स समपनन करना होना चापिहए साथ ही यह अनीपित और अनपितकता क खिलाफ़ जागरकता दा कर

मनषय अरथिथक जीवन क अलावा एक पराणी क र म भी जीवन जीता ह सापिहतय उसक र जीवन स जडा ह सापिहतय क दवारा मनषय की ऐसी भावनाए परपित[कतिलत होती ह जो उस पराकषिणमातर स जोडती ह इसकतिलए सापिहतय पिवचारधारा मातर नही ह मनषय का इदरिVय-बोध भावनाए और आतरिरक पररणाए भी सापिहतय स वयजिजत होती ह और सापिहतय का यह कष Cायी होता ह

माकस1वाद पिवचारधारा क समथ1क यह कहत ह पिक सापिहतय का उददशय कपित की मलय- वयवCा र धयान दना ह कयोपिक सघष1रक समाज-साकष लोकमगलकारी मलय मानव- समाज को आग बढात

ह इस कतिसदधात क मानन वालो क अनसार आनदवादी रीपितवादी मलय मानव को पिवकत करत ह सापिहतय का वासतपिवक परयोजन तो जीवन- यथाथ1 का वासतपिवक उदघाटन ह

काडवल स लकर जाज1 लकाच तक सभी माकस1वादी सिचतक कावय का परयोजन मानव- कलयाण की भावना की अकषिभवयकतिP मानत रह ह पिकसी भी रचना क मलय और मलयाकन म ही उसका परयोजन

पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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इन कतिPयो म गपत जी थवी रात ओस सबह पिकरण सय1 क दवारा जो बिबब रचत ह व हमार जीवन क अनभवो स कवल मामली समानता नही दरिदखलात बलकिलक उस दशzwjय क तरल कापितमय दीपzwjत सौदय1 को भी मरतितमान कर दत ह

छायावादी कपिवयो की रचनाओ म अनक परकार क बिबबो का पिवधान धिमलता ह जस हम lsquo ीती विभारी rsquoजाग री कपिवता को ल जयशकर परसाद इस कपिवता म कवल दशzwjय या धzwjवपिन- कतिचतर ही नही परसzwjतत करत बलकिलक गहन अनभपितयो और सवगो को भी सपरपिषत

करत ह ldquoखग- कल कल- कल सा ोल रहाrdquo यहा कल-कल धzwjवपिन का बिबब कवल कषिकषयो क कलरव का परभाव नही दता बलकिलक दश समाज तथा सापिहतzwjय म आत जागरण क उलzwjलास तथा उतzwjसाह को भी वzwjयकzwjत करता ह

कषिeम खासकर इगzwjलड म 20 वी सदी क आरभ म (बिबबवाद) नाम स एक कावzwjय आदोलन उभरा सzwjवचzwjछदता वाद का[ी रोमानी भावक गीपितमयता का र धारण कर चका था इसक पिवरोध क र म बिबबवाद आया जो सzwjवचzwjछदता वाद की आतzwjमरकता और

कतिशकतिथलता की जगह वसzwjतरकता अनशासन वzwjयवसzwjथा और सटीकता र बल दता ह इस पिवधा क अनसार पिबमzwjबातzwjमक भाषा चसzwjत तराशी हई और सटीक होनी चापिहए अनशासन तथा सतलन बरतन स कावzwjय म सकषzwjमता सकषिकषपतिपत और सगठन आ जाएगी

पिबमबवादरिदयो का मानना ह पिक कपिवता म हम आम बोलचाल की सामानzwjय भाषा का परयोग कर सकत ह जररी नही पिक भाषा आलकारिरक या पिकताबी हो

ह आता- दो टक कलज क करता चाट रह ह जठी पततल सभी सडक पर खड हए और झपट लन को उनस कतत भी ह अड हए पिनराला (कषिभकषक)

भाषा गण सनzwjन शषzwjक और सzwjषzwjट हो शबzwjदावली सटीक और उयकzwjत हो भाषा सहज- सरल पिकत अथ1- गरभिभत और वzwjयजक होनी चापिहए उसम भावाकलता नही होनी चापिहए बिकत वह सकतातzwjमक तथा सकषम होनी चापिहए कवल ऐस शबzwjदो का नातला परयोग होना

चापिहए जो इसथिpत परभाव उतzwjनzwjन कर सक गzwjवाकतिलयर म मजदरनो क जलस र जब गोली चलाई गई तो शमशर बहादर सिसह क सzwjवर- कतिचतर दखिखए

ldquo य शाम ह विक आसमान खत ह पक हए अनाज का

लपक उठी लह- भरी दरावितया विक आग ह

धआ-धआ rdquoसलग रहा गzwjालिलयर क मजदर का हदय

जब बिबबो का परयोग कर कपिवता म तो कपिवता का तथzwjय सामानzwjय नही बलकिलक गढ तथा वzwjयाक हो उसम असzwjसzwjटता न हो भावमयता कपिवता को असzwjषzwjट बना दती ह बिबब- पिवधान क माधzwjयम स पिवषय- वसzwjत को अधिधक गहराई स अधिधक सzwjषzwjटता स कम शबzwjदो क माधzwjयम

स वzwjयzwjकzwjत पिकया जा सकता हldquoआहवित- सी विगर चढी लिचता पर

चमक उठी जाला- rdquoसी सभVाकमारी चौहान ( झासी की रानी की समाधिध)

चाकषष बिबब म कतिचतरातमकता होती ह पिबमब ारमपरिरक ही नही नवीन भी होन चापिहए नजर आ सकन वाली वसzwjतओ स रच गए बिबब कई बार री कपिवता क कथzwjय को सzwjषzwjट करन म समथ1 होत ह अग अग नग जगमगत दीपलिसखा- सी दह दरिदया ढाय ह रह डौ उजzwjयारौ गह पिबहारी

छोटी छोटी सामानzwjय वसzwjतओ म भी सौदय1 कतिछा होता ह उनक सटीक सपिनकषिeत सकषिकषपzwjत वण1न क माधzwjयम स उस सदरता का साकषातzwj कार हो सकता ह शमशर की एक कपिवता lsquo rsquoजाड की सह क सात आठ ज स एक उदाहरण दखिखए

ldquo उडत पखो की परछाइया हलzwjक झाड स धप को समटन की

कोशिशश हो जस rdquo ध को समटन की यह कोकतिशश वzwjयथ1 ह कzwjयोपिक अगर वह कतिस[1 बाहर [ली हो तो झाड स समटी जा सक र

ldquo धप मर अदर भी इस समय तोrdquo इस अदर की ध को कडना और कपिव स अलग करना कदरिठन ह कzwjयोपिक उसकी मानवीय सवदना तो अदर धसी ह

पिबमzwjबवादरिदयो क अनसार भौपितक वसzwjत ही कावzwjय का पिवषय होती ह इसकतिलए ाठक र हल बिबबो का ही परभाव डता ह और उनका महतzwjव कपिव क कथzwjय की अकषा कम नही होता बिबबो क साथ पिवचार भी जड होत ह इसकतिलए बिबबर वसzwjत का गरहण करन क बाद ाठक पिवचार का भी गरहण करता ह

ldquo ह अमा-विनशा उगलता गगन धन अनzwjधकार खो रहा दरिदशा का जञान सzwjतबzwjध ह पन-चार

अपरवितहत गरज रहा पीछ अमzwjलिध विशाल भधर जzwjयो धzwjयान-मगzwjन कल जलती मशालrdquo पिनराला ( राम की शकतिP जा)

अमावसzwjया क गहन अधकार का जो बिबब ह वह हल तो हमार आग उस बाहरी दशzwjय को मरतितमान करता ह पि[र वह परतीक बनकर हम पिनराशा और गzwjलापिन क उस अधर तक ल जाता ह जो राम क मन म छाया हआ ह

मनोदशाओ की अकषिभवzwjयकतिP क कतिलए कपिवता म नई लय का सजन कर सकत ह मकzwjत छद म कपिव की वयकतिPकता अधिधक अचzwjछी तरह अकषिभवzwjयकzwjत हो सकती ह शमशर की कपिवता lsquo rsquoकषीण नील ादलो म ढलती शाम और गहराती रात का कतिचतर ह दखन वाल की मनःसथिCपित का अकन भी साथ- ndashसाथ ह

ldquo ादलो म दीघY पशिZम काआकाशमलिलनतम

ढक पील पा जा रही रगणा सधzwjया

नील आभा विशzwj की

हो रही परवित पल तमस विगत सनzwjधzwjया की

रह गई ह एक खिखडकी खली झाकता ह विगत विकसका भा ादलो क घन नील कश

चपलतम आभषणो स भर लहरत ह ाय - rdquoसग स ओर

बीमार शाम का ीलान रात क गहर अधर म बदल रहा ह लपिकन इस समय चाद आसमान र कछ इस तरह ह मानो बीत चकी शाम की एक खिखडकी सी खली रह गई ह जस शाम बीत गई ह वस ही कपिव क जीवन स पिकसी का भाव बीत चका ह वह इस खली खिखडकी स झाकन लगता ह इसी खली खिखडकी की वजह स कपिव क मन र छाया अधरा उस री तरह गरस नही ाता शाम को ढलत रात म ढलत दखन वाला मन रगण नही इसका परमाण यह ह पिक बादल उस आभषणो स सज धन नील लहरात कश

की तरह लग रह ह बिबब इतना सशकzwjत परयोग अनzwjयतर कही नही धिमलता शाम की नीलाहट रात का अधरा जाड की सबह की कोमल ध ndash सागर की लहर य सब कपिव क सवदनलोक क अकषिभनzwjन अग ह परकपित क अलग अलग रगो उसकी अलग- अलग भपिगमाओ क

साथ मानवीय सवदनाओ का जो सबध ह वह जिजतन सशकzwjत ढग स अकषिभवzwjयकzwjत हआ ह

पिबमzwjबो क दवारा कपिवता म अनी बात कहन का एक और [ायदा यह ह पिक हम सकषिकषपzwjत और समान र बल दकर अनावशzwjयक शबzwjद- जजाल स मकतिP ात ह शमशर क शकतिPशाली बिबब का एक उदाहरण

ldquo लगी हो आग जगल म कही जस हमार दरिदल सलगत ह

सरकार पलटती ह जहा

हम ददY स rdquoकरट दलत ह पिकसानो क दखकर उन पिकसानो क कतिलए शकतिP और ऊजा1 स भरा रक आदरिदवाकतिसयो का भवzwjय कतिचतर खडा करत ह

य ही ादल घटाटोपी विजलिलया जिजनम चमकती

खन म जिजनक कडक ऐसी विक गोलिलया चलती

इनकी आखो म तडकती धप सखzwjत जर की

शमशर न परकपित क कछ अतzwjयत अछत बिबब और उनस जडी हई अनी खास सवदना क कतिचतर बिहदी कपिवता को दरिदए ह जो उनक ndashअलावा कही नही धिमलत

सलाती ललाई क लिलपटा हआ काफी ऊपर तीन चौथाई खामोश गोल सादा चाद रात म ढलती हई तमतमायी सी

लाजभरी शाम कअदर

ह सफद मख विकसी खzwjयाल क खार का

एक बात का धzwjयान रख पिक बिबब धरमिमता को कपिवता का एकमातर गण मानकर हम उसक कषतर को सीधिमत कर दग कई बार अधिधक बिबब दरिदखा कर हम कावzwjय म अकषिभवzwjयकतिP को परमखता तो दत ह र कथzwjय गौण हो जाता ह इसकतिलए सीधिमतता और एकरता स बचन क

कतिलए भाषा क अनzwjय परयोगो र भी धzwjयान दपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय शासतर मनोज कमारधार ६ अकतर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ११ ) मनोविशzwjलषणादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-११) मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन पिछली दस ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) (९) मलय कतिसदधात अयर(१०) माकस1वादी सिचतन की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क

सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह

कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए

ndash मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार माक1 सवादरिदयो क अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह आइए

अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए फ़रायड मनोपिवशzwjलषण शासतरी थ उनहोन यह परपितादरिदत पिकया पिक अवचतन और चतन

मन म दधिमत काम- वासना स अनक रोग-वयाधिधया मानकतिसक पिवकष उठ खड होत ह इनका शमन उदततीकरण या रचन दवारा हो सकता ह

अरसत क पिवरचन कतिसदधात या भाव- रिरषकार को मनोपिवशzwjलषणशासतर क अतग1त उठाया गया इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक कावय काम- वासना क रचन या

उदाततीकरण का मादधयम ह मनोपिवशzwjलषण शासतरिसतरयो न कावय परयोजन को रिरभापिषत करत हए कहा

ldquo मानव की भावनाओ का उननयन- rdquoरिरषकरण और उदाततीकरण करना ही कावय का परयोजन ह

अथा1तzwjमन क भीतर उतनन हए पिवकपितयो स मकतिP दरिदलाना और कतिचतत का शमन ही कावय का उददशय ह इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक सौदय1 रक कावय और उददाम शगार रक ककवय-

नाटक- उनयास क अधययन स मनव क मन की काम- भावना रिरषकत होती ह इसका शमन होता ह

lsquo rsquo एडलर भी मनोपिवशzwjलषणशासतरी थ उनका कहना था पिक सापिहतय गरकतिथयो स मकतिP दरिदलान का माधयम ह

जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह

कषिeम क एक और मनोपिवशzwjलषणवादी ह काल1 यग उनहोन तो कपिवता और धिमथक को समकष माना उनका कहना था पिक जस सवपन और

धिमथक म आदरिदम काल स सकतिचत मानव क सामपिहक अवचतन मन और आदरिदम- पिबमब का परकाशन होता ह वस ही कपिवता म भी हमार आदरिदम

रख बोल रह होत ह यग का कहना था पिक धिमथक और कपिवता दोनो म अपरपितहत वग स परवापिहत होन वाली जीवनी शकतिPपिनबदध होकर

अना सयधिमत और पिनयपितरत र परसतत करती ह अब अगर इसका अभाव हो तो मनकतिसक जीवन का वह तीवर परवाह तो रक ही जाएगा अवरदध हो जाएगा या पि[र इसका तीवर वग मानकतिसक जीवन म रोग-

अराजकता उतनन कर दगा

इस परकार मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन म हम ात ह पिक कावय का कम ह भावो या पिवचारो का रचन या रिरषकार करना

सथिशzwjचम म कावय परयोजन सबधी अनक पिवचारधाराओ का परपितादन हआ र अगर गौर स दख तो हम ात ह पिक कल धिमलाकर दो समह थ एक आनदवादी और दसरा कलयाणकारी इन दोनो क

भीतर कावय सजन का परयोजन मानव चतना का पिवसतार ह सजन एक मनोवजञापिनक परपिया ह यह एक सासकपितक परपिया भी ह रचनाकार इस परपिया को आग बढाता ह भावो और पिवचारो को

समपरपिषत करता ह इस परकार जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह र कल धिमलाकर अगर दखा

जए तो कावय का परयोजन ह भावो और पिवचारो का समपरषण तथा सासकपितक चतना का पिवसतार औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 6 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार २९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - १० ) माकसYादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-१०)

माकसYादी चिचतन पिछली नौ ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) और (९) मलय कतिसदधात की

चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquo सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा औरजञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की

सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए

सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था

पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम ndash मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग

बढाए माकस1 न जिजस मलय- कतिसदधात की बात की थी माकस1वादी उसक आधार र सापिहतय की पिवचारधारा कतिशल और मलय- चतना र पिवचार करत ह अधिधकाश पिवदवान जो इस पिवचारधारा क समथ1क ह व

सापिहतय का अधययन दवदवातमक भौपितकवाद क कतिसदधातो की सहायता स करत ह इस कतिसदधात क अनयाईयो का मानना ह पिक सामाजिजक और राजनीपितक शकतिPयो म आरथिथक वयवCा वग1- सघष1 का

पिवशष हाथ होता ह व यह मानत ह पिक सापिहतय र या सजन की सापिहपतितयक षठभधिम का अधययन दोनो को आरथिथक- सामाजिजक परवकषिततयो क आधार र ही समझा ज सकता ह

माकस1वाद सापिहतय को भी समाज क रिरवत1न क एक टल क र म मानता ह उनका मानना ह पिक लोगो म जागरण सापिहतय क दवारा दा पिकया जा सकता ह व जीवादी और सामतवादी सापिहतय का lsquo rsquo पिवरोध करत ह माकस1वाद न कला कला क कतिलए कतिसदधात म जो वयकतिPवाद- भाववाद की चचा1 की गई

ह उसका पिवरोध पिकया सापिहतय का उददशय रिरभापिषत करत हए माकस1वादरिदयो का कहना ह पिक सापिहतय का उददशय मनषय को परबदध सामाजिजकता की दधि स समपनन करना होना चापिहए साथ ही यह अनीपित और अनपितकता क खिलाफ़ जागरकता दा कर

मनषय अरथिथक जीवन क अलावा एक पराणी क र म भी जीवन जीता ह सापिहतय उसक र जीवन स जडा ह सापिहतय क दवारा मनषय की ऐसी भावनाए परपित[कतिलत होती ह जो उस पराकषिणमातर स जोडती ह इसकतिलए सापिहतय पिवचारधारा मातर नही ह मनषय का इदरिVय-बोध भावनाए और आतरिरक पररणाए भी सापिहतय स वयजिजत होती ह और सापिहतय का यह कष Cायी होता ह

माकस1वाद पिवचारधारा क समथ1क यह कहत ह पिक सापिहतय का उददशय कपित की मलय- वयवCा र धयान दना ह कयोपिक सघष1रक समाज-साकष लोकमगलकारी मलय मानव- समाज को आग बढात

ह इस कतिसदधात क मानन वालो क अनसार आनदवादी रीपितवादी मलय मानव को पिवकत करत ह सापिहतय का वासतपिवक परयोजन तो जीवन- यथाथ1 का वासतपिवक उदघाटन ह

काडवल स लकर जाज1 लकाच तक सभी माकस1वादी सिचतक कावय का परयोजन मानव- कलयाण की भावना की अकषिभवयकतिP मानत रह ह पिकसी भी रचना क मलय और मलयाकन म ही उसका परयोजन

पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
Page 3: hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · Web viewक द व र हम क व य म ब ह य जगत स स मग र उठ कर उस नय अर थ द त

पिबमzwjबवादरिदयो क अनसार भौपितक वसzwjत ही कावzwjय का पिवषय होती ह इसकतिलए ाठक र हल बिबबो का ही परभाव डता ह और उनका महतzwjव कपिव क कथzwjय की अकषा कम नही होता बिबबो क साथ पिवचार भी जड होत ह इसकतिलए बिबबर वसzwjत का गरहण करन क बाद ाठक पिवचार का भी गरहण करता ह

ldquo ह अमा-विनशा उगलता गगन धन अनzwjधकार खो रहा दरिदशा का जञान सzwjतबzwjध ह पन-चार

अपरवितहत गरज रहा पीछ अमzwjलिध विशाल भधर जzwjयो धzwjयान-मगzwjन कल जलती मशालrdquo पिनराला ( राम की शकतिP जा)

अमावसzwjया क गहन अधकार का जो बिबब ह वह हल तो हमार आग उस बाहरी दशzwjय को मरतितमान करता ह पि[र वह परतीक बनकर हम पिनराशा और गzwjलापिन क उस अधर तक ल जाता ह जो राम क मन म छाया हआ ह

मनोदशाओ की अकषिभवzwjयकतिP क कतिलए कपिवता म नई लय का सजन कर सकत ह मकzwjत छद म कपिव की वयकतिPकता अधिधक अचzwjछी तरह अकषिभवzwjयकzwjत हो सकती ह शमशर की कपिवता lsquo rsquoकषीण नील ादलो म ढलती शाम और गहराती रात का कतिचतर ह दखन वाल की मनःसथिCपित का अकन भी साथ- ndashसाथ ह

ldquo ादलो म दीघY पशिZम काआकाशमलिलनतम

ढक पील पा जा रही रगणा सधzwjया

नील आभा विशzwj की

हो रही परवित पल तमस विगत सनzwjधzwjया की

रह गई ह एक खिखडकी खली झाकता ह विगत विकसका भा ादलो क घन नील कश

चपलतम आभषणो स भर लहरत ह ाय - rdquoसग स ओर

बीमार शाम का ीलान रात क गहर अधर म बदल रहा ह लपिकन इस समय चाद आसमान र कछ इस तरह ह मानो बीत चकी शाम की एक खिखडकी सी खली रह गई ह जस शाम बीत गई ह वस ही कपिव क जीवन स पिकसी का भाव बीत चका ह वह इस खली खिखडकी स झाकन लगता ह इसी खली खिखडकी की वजह स कपिव क मन र छाया अधरा उस री तरह गरस नही ाता शाम को ढलत रात म ढलत दखन वाला मन रगण नही इसका परमाण यह ह पिक बादल उस आभषणो स सज धन नील लहरात कश

की तरह लग रह ह बिबब इतना सशकzwjत परयोग अनzwjयतर कही नही धिमलता शाम की नीलाहट रात का अधरा जाड की सबह की कोमल ध ndash सागर की लहर य सब कपिव क सवदनलोक क अकषिभनzwjन अग ह परकपित क अलग अलग रगो उसकी अलग- अलग भपिगमाओ क

साथ मानवीय सवदनाओ का जो सबध ह वह जिजतन सशकzwjत ढग स अकषिभवzwjयकzwjत हआ ह

पिबमzwjबो क दवारा कपिवता म अनी बात कहन का एक और [ायदा यह ह पिक हम सकषिकषपzwjत और समान र बल दकर अनावशzwjयक शबzwjद- जजाल स मकतिP ात ह शमशर क शकतिPशाली बिबब का एक उदाहरण

ldquo लगी हो आग जगल म कही जस हमार दरिदल सलगत ह

सरकार पलटती ह जहा

हम ददY स rdquoकरट दलत ह पिकसानो क दखकर उन पिकसानो क कतिलए शकतिP और ऊजा1 स भरा रक आदरिदवाकतिसयो का भवzwjय कतिचतर खडा करत ह

य ही ादल घटाटोपी विजलिलया जिजनम चमकती

खन म जिजनक कडक ऐसी विक गोलिलया चलती

इनकी आखो म तडकती धप सखzwjत जर की

शमशर न परकपित क कछ अतzwjयत अछत बिबब और उनस जडी हई अनी खास सवदना क कतिचतर बिहदी कपिवता को दरिदए ह जो उनक ndashअलावा कही नही धिमलत

सलाती ललाई क लिलपटा हआ काफी ऊपर तीन चौथाई खामोश गोल सादा चाद रात म ढलती हई तमतमायी सी

लाजभरी शाम कअदर

ह सफद मख विकसी खzwjयाल क खार का

एक बात का धzwjयान रख पिक बिबब धरमिमता को कपिवता का एकमातर गण मानकर हम उसक कषतर को सीधिमत कर दग कई बार अधिधक बिबब दरिदखा कर हम कावzwjय म अकषिभवzwjयकतिP को परमखता तो दत ह र कथzwjय गौण हो जाता ह इसकतिलए सीधिमतता और एकरता स बचन क

कतिलए भाषा क अनzwjय परयोगो र भी धzwjयान दपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय शासतर मनोज कमारधार ६ अकतर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ११ ) मनोविशzwjलषणादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-११) मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन पिछली दस ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) (९) मलय कतिसदधात अयर(१०) माकस1वादी सिचतन की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क

सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह

कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए

ndash मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार माक1 सवादरिदयो क अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह आइए

अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए फ़रायड मनोपिवशzwjलषण शासतरी थ उनहोन यह परपितादरिदत पिकया पिक अवचतन और चतन

मन म दधिमत काम- वासना स अनक रोग-वयाधिधया मानकतिसक पिवकष उठ खड होत ह इनका शमन उदततीकरण या रचन दवारा हो सकता ह

अरसत क पिवरचन कतिसदधात या भाव- रिरषकार को मनोपिवशzwjलषणशासतर क अतग1त उठाया गया इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक कावय काम- वासना क रचन या

उदाततीकरण का मादधयम ह मनोपिवशzwjलषण शासतरिसतरयो न कावय परयोजन को रिरभापिषत करत हए कहा

ldquo मानव की भावनाओ का उननयन- rdquoरिरषकरण और उदाततीकरण करना ही कावय का परयोजन ह

अथा1तzwjमन क भीतर उतनन हए पिवकपितयो स मकतिP दरिदलाना और कतिचतत का शमन ही कावय का उददशय ह इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक सौदय1 रक कावय और उददाम शगार रक ककवय-

नाटक- उनयास क अधययन स मनव क मन की काम- भावना रिरषकत होती ह इसका शमन होता ह

lsquo rsquo एडलर भी मनोपिवशzwjलषणशासतरी थ उनका कहना था पिक सापिहतय गरकतिथयो स मकतिP दरिदलान का माधयम ह

जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह

कषिeम क एक और मनोपिवशzwjलषणवादी ह काल1 यग उनहोन तो कपिवता और धिमथक को समकष माना उनका कहना था पिक जस सवपन और

धिमथक म आदरिदम काल स सकतिचत मानव क सामपिहक अवचतन मन और आदरिदम- पिबमब का परकाशन होता ह वस ही कपिवता म भी हमार आदरिदम

रख बोल रह होत ह यग का कहना था पिक धिमथक और कपिवता दोनो म अपरपितहत वग स परवापिहत होन वाली जीवनी शकतिPपिनबदध होकर

अना सयधिमत और पिनयपितरत र परसतत करती ह अब अगर इसका अभाव हो तो मनकतिसक जीवन का वह तीवर परवाह तो रक ही जाएगा अवरदध हो जाएगा या पि[र इसका तीवर वग मानकतिसक जीवन म रोग-

अराजकता उतनन कर दगा

इस परकार मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन म हम ात ह पिक कावय का कम ह भावो या पिवचारो का रचन या रिरषकार करना

सथिशzwjचम म कावय परयोजन सबधी अनक पिवचारधाराओ का परपितादन हआ र अगर गौर स दख तो हम ात ह पिक कल धिमलाकर दो समह थ एक आनदवादी और दसरा कलयाणकारी इन दोनो क

भीतर कावय सजन का परयोजन मानव चतना का पिवसतार ह सजन एक मनोवजञापिनक परपिया ह यह एक सासकपितक परपिया भी ह रचनाकार इस परपिया को आग बढाता ह भावो और पिवचारो को

समपरपिषत करता ह इस परकार जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह र कल धिमलाकर अगर दखा

जए तो कावय का परयोजन ह भावो और पिवचारो का समपरषण तथा सासकपितक चतना का पिवसतार औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 6 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार २९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - १० ) माकसYादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-१०)

माकसYादी चिचतन पिछली नौ ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) और (९) मलय कतिसदधात की

चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquo सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा औरजञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की

सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए

सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था

पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम ndash मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग

बढाए माकस1 न जिजस मलय- कतिसदधात की बात की थी माकस1वादी उसक आधार र सापिहतय की पिवचारधारा कतिशल और मलय- चतना र पिवचार करत ह अधिधकाश पिवदवान जो इस पिवचारधारा क समथ1क ह व

सापिहतय का अधययन दवदवातमक भौपितकवाद क कतिसदधातो की सहायता स करत ह इस कतिसदधात क अनयाईयो का मानना ह पिक सामाजिजक और राजनीपितक शकतिPयो म आरथिथक वयवCा वग1- सघष1 का

पिवशष हाथ होता ह व यह मानत ह पिक सापिहतय र या सजन की सापिहपतितयक षठभधिम का अधययन दोनो को आरथिथक- सामाजिजक परवकषिततयो क आधार र ही समझा ज सकता ह

माकस1वाद सापिहतय को भी समाज क रिरवत1न क एक टल क र म मानता ह उनका मानना ह पिक लोगो म जागरण सापिहतय क दवारा दा पिकया जा सकता ह व जीवादी और सामतवादी सापिहतय का lsquo rsquo पिवरोध करत ह माकस1वाद न कला कला क कतिलए कतिसदधात म जो वयकतिPवाद- भाववाद की चचा1 की गई

ह उसका पिवरोध पिकया सापिहतय का उददशय रिरभापिषत करत हए माकस1वादरिदयो का कहना ह पिक सापिहतय का उददशय मनषय को परबदध सामाजिजकता की दधि स समपनन करना होना चापिहए साथ ही यह अनीपित और अनपितकता क खिलाफ़ जागरकता दा कर

मनषय अरथिथक जीवन क अलावा एक पराणी क र म भी जीवन जीता ह सापिहतय उसक र जीवन स जडा ह सापिहतय क दवारा मनषय की ऐसी भावनाए परपित[कतिलत होती ह जो उस पराकषिणमातर स जोडती ह इसकतिलए सापिहतय पिवचारधारा मातर नही ह मनषय का इदरिVय-बोध भावनाए और आतरिरक पररणाए भी सापिहतय स वयजिजत होती ह और सापिहतय का यह कष Cायी होता ह

माकस1वाद पिवचारधारा क समथ1क यह कहत ह पिक सापिहतय का उददशय कपित की मलय- वयवCा र धयान दना ह कयोपिक सघष1रक समाज-साकष लोकमगलकारी मलय मानव- समाज को आग बढात

ह इस कतिसदधात क मानन वालो क अनसार आनदवादी रीपितवादी मलय मानव को पिवकत करत ह सापिहतय का वासतपिवक परयोजन तो जीवन- यथाथ1 का वासतपिवक उदघाटन ह

काडवल स लकर जाज1 लकाच तक सभी माकस1वादी सिचतक कावय का परयोजन मानव- कलयाण की भावना की अकषिभवयकतिP मानत रह ह पिकसी भी रचना क मलय और मलयाकन म ही उसका परयोजन

पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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शमशर न परकपित क कछ अतzwjयत अछत बिबब और उनस जडी हई अनी खास सवदना क कतिचतर बिहदी कपिवता को दरिदए ह जो उनक ndashअलावा कही नही धिमलत

सलाती ललाई क लिलपटा हआ काफी ऊपर तीन चौथाई खामोश गोल सादा चाद रात म ढलती हई तमतमायी सी

लाजभरी शाम कअदर

ह सफद मख विकसी खzwjयाल क खार का

एक बात का धzwjयान रख पिक बिबब धरमिमता को कपिवता का एकमातर गण मानकर हम उसक कषतर को सीधिमत कर दग कई बार अधिधक बिबब दरिदखा कर हम कावzwjय म अकषिभवzwjयकतिP को परमखता तो दत ह र कथzwjय गौण हो जाता ह इसकतिलए सीधिमतता और एकरता स बचन क

कतिलए भाषा क अनzwjय परयोगो र भी धzwjयान दपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय शासतर मनोज कमारधार ६ अकतर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ११ ) मनोविशzwjलषणादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-११) मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन पिछली दस ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) (९) मलय कतिसदधात अयर(१०) माकस1वादी सिचतन की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क

सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह

कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए

ndash मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार माक1 सवादरिदयो क अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह आइए

अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए फ़रायड मनोपिवशzwjलषण शासतरी थ उनहोन यह परपितादरिदत पिकया पिक अवचतन और चतन

मन म दधिमत काम- वासना स अनक रोग-वयाधिधया मानकतिसक पिवकष उठ खड होत ह इनका शमन उदततीकरण या रचन दवारा हो सकता ह

अरसत क पिवरचन कतिसदधात या भाव- रिरषकार को मनोपिवशzwjलषणशासतर क अतग1त उठाया गया इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक कावय काम- वासना क रचन या

उदाततीकरण का मादधयम ह मनोपिवशzwjलषण शासतरिसतरयो न कावय परयोजन को रिरभापिषत करत हए कहा

ldquo मानव की भावनाओ का उननयन- rdquoरिरषकरण और उदाततीकरण करना ही कावय का परयोजन ह

अथा1तzwjमन क भीतर उतनन हए पिवकपितयो स मकतिP दरिदलाना और कतिचतत का शमन ही कावय का उददशय ह इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक सौदय1 रक कावय और उददाम शगार रक ककवय-

नाटक- उनयास क अधययन स मनव क मन की काम- भावना रिरषकत होती ह इसका शमन होता ह

lsquo rsquo एडलर भी मनोपिवशzwjलषणशासतरी थ उनका कहना था पिक सापिहतय गरकतिथयो स मकतिP दरिदलान का माधयम ह

जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह

कषिeम क एक और मनोपिवशzwjलषणवादी ह काल1 यग उनहोन तो कपिवता और धिमथक को समकष माना उनका कहना था पिक जस सवपन और

धिमथक म आदरिदम काल स सकतिचत मानव क सामपिहक अवचतन मन और आदरिदम- पिबमब का परकाशन होता ह वस ही कपिवता म भी हमार आदरिदम

रख बोल रह होत ह यग का कहना था पिक धिमथक और कपिवता दोनो म अपरपितहत वग स परवापिहत होन वाली जीवनी शकतिPपिनबदध होकर

अना सयधिमत और पिनयपितरत र परसतत करती ह अब अगर इसका अभाव हो तो मनकतिसक जीवन का वह तीवर परवाह तो रक ही जाएगा अवरदध हो जाएगा या पि[र इसका तीवर वग मानकतिसक जीवन म रोग-

अराजकता उतनन कर दगा

इस परकार मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन म हम ात ह पिक कावय का कम ह भावो या पिवचारो का रचन या रिरषकार करना

सथिशzwjचम म कावय परयोजन सबधी अनक पिवचारधाराओ का परपितादन हआ र अगर गौर स दख तो हम ात ह पिक कल धिमलाकर दो समह थ एक आनदवादी और दसरा कलयाणकारी इन दोनो क

भीतर कावय सजन का परयोजन मानव चतना का पिवसतार ह सजन एक मनोवजञापिनक परपिया ह यह एक सासकपितक परपिया भी ह रचनाकार इस परपिया को आग बढाता ह भावो और पिवचारो को

समपरपिषत करता ह इस परकार जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह र कल धिमलाकर अगर दखा

जए तो कावय का परयोजन ह भावो और पिवचारो का समपरषण तथा सासकपितक चतना का पिवसतार औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 6 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार २९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - १० ) माकसYादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-१०)

माकसYादी चिचतन पिछली नौ ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) और (९) मलय कतिसदधात की

चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquo सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा औरजञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की

सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए

सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था

पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम ndash मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग

बढाए माकस1 न जिजस मलय- कतिसदधात की बात की थी माकस1वादी उसक आधार र सापिहतय की पिवचारधारा कतिशल और मलय- चतना र पिवचार करत ह अधिधकाश पिवदवान जो इस पिवचारधारा क समथ1क ह व

सापिहतय का अधययन दवदवातमक भौपितकवाद क कतिसदधातो की सहायता स करत ह इस कतिसदधात क अनयाईयो का मानना ह पिक सामाजिजक और राजनीपितक शकतिPयो म आरथिथक वयवCा वग1- सघष1 का

पिवशष हाथ होता ह व यह मानत ह पिक सापिहतय र या सजन की सापिहपतितयक षठभधिम का अधययन दोनो को आरथिथक- सामाजिजक परवकषिततयो क आधार र ही समझा ज सकता ह

माकस1वाद सापिहतय को भी समाज क रिरवत1न क एक टल क र म मानता ह उनका मानना ह पिक लोगो म जागरण सापिहतय क दवारा दा पिकया जा सकता ह व जीवादी और सामतवादी सापिहतय का lsquo rsquo पिवरोध करत ह माकस1वाद न कला कला क कतिलए कतिसदधात म जो वयकतिPवाद- भाववाद की चचा1 की गई

ह उसका पिवरोध पिकया सापिहतय का उददशय रिरभापिषत करत हए माकस1वादरिदयो का कहना ह पिक सापिहतय का उददशय मनषय को परबदध सामाजिजकता की दधि स समपनन करना होना चापिहए साथ ही यह अनीपित और अनपितकता क खिलाफ़ जागरकता दा कर

मनषय अरथिथक जीवन क अलावा एक पराणी क र म भी जीवन जीता ह सापिहतय उसक र जीवन स जडा ह सापिहतय क दवारा मनषय की ऐसी भावनाए परपित[कतिलत होती ह जो उस पराकषिणमातर स जोडती ह इसकतिलए सापिहतय पिवचारधारा मातर नही ह मनषय का इदरिVय-बोध भावनाए और आतरिरक पररणाए भी सापिहतय स वयजिजत होती ह और सापिहतय का यह कष Cायी होता ह

माकस1वाद पिवचारधारा क समथ1क यह कहत ह पिक सापिहतय का उददशय कपित की मलय- वयवCा र धयान दना ह कयोपिक सघष1रक समाज-साकष लोकमगलकारी मलय मानव- समाज को आग बढात

ह इस कतिसदधात क मानन वालो क अनसार आनदवादी रीपितवादी मलय मानव को पिवकत करत ह सापिहतय का वासतपिवक परयोजन तो जीवन- यथाथ1 का वासतपिवक उदघाटन ह

काडवल स लकर जाज1 लकाच तक सभी माकस1वादी सिचतक कावय का परयोजन मानव- कलयाण की भावना की अकषिभवयकतिP मानत रह ह पिकसी भी रचना क मलय और मलयाकन म ही उसका परयोजन

पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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ldquo मानव की भावनाओ का उननयन- rdquoरिरषकरण और उदाततीकरण करना ही कावय का परयोजन ह

अथा1तzwjमन क भीतर उतनन हए पिवकपितयो स मकतिP दरिदलाना और कतिचतत का शमन ही कावय का उददशय ह इस कतिसदधात क मानन वालो का कहना था पिक सौदय1 रक कावय और उददाम शगार रक ककवय-

नाटक- उनयास क अधययन स मनव क मन की काम- भावना रिरषकत होती ह इसका शमन होता ह

lsquo rsquo एडलर भी मनोपिवशzwjलषणशासतरी थ उनका कहना था पिक सापिहतय गरकतिथयो स मकतिP दरिदलान का माधयम ह

जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह

कषिeम क एक और मनोपिवशzwjलषणवादी ह काल1 यग उनहोन तो कपिवता और धिमथक को समकष माना उनका कहना था पिक जस सवपन और

धिमथक म आदरिदम काल स सकतिचत मानव क सामपिहक अवचतन मन और आदरिदम- पिबमब का परकाशन होता ह वस ही कपिवता म भी हमार आदरिदम

रख बोल रह होत ह यग का कहना था पिक धिमथक और कपिवता दोनो म अपरपितहत वग स परवापिहत होन वाली जीवनी शकतिPपिनबदध होकर

अना सयधिमत और पिनयपितरत र परसतत करती ह अब अगर इसका अभाव हो तो मनकतिसक जीवन का वह तीवर परवाह तो रक ही जाएगा अवरदध हो जाएगा या पि[र इसका तीवर वग मानकतिसक जीवन म रोग-

अराजकता उतनन कर दगा

इस परकार मनोपिवशzwjलषणवादी सिचतन म हम ात ह पिक कावय का कम ह भावो या पिवचारो का रचन या रिरषकार करना

सथिशzwjचम म कावय परयोजन सबधी अनक पिवचारधाराओ का परपितादन हआ र अगर गौर स दख तो हम ात ह पिक कल धिमलाकर दो समह थ एक आनदवादी और दसरा कलयाणकारी इन दोनो क

भीतर कावय सजन का परयोजन मानव चतना का पिवसतार ह सजन एक मनोवजञापिनक परपिया ह यह एक सासकपितक परपिया भी ह रचनाकार इस परपिया को आग बढाता ह भावो और पिवचारो को

समपरपिषत करता ह इस परकार जीवन की जदरिटलता को अनभपित की आच म सहजता स काकर ाठक को रोस दना भी सापिहतय का एक परयोजन कहा जा सकता ह र कल धिमलाकर अगर दखा

जए तो कावय का परयोजन ह भावो और पिवचारो का समपरषण तथा सासकपितक चतना का पिवसतार औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 6 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार २९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - १० ) माकसYादी चिचतन

कावय परयोजन (भाग-१०)

माकसYादी चिचतन पिछली नौ ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) और (९) मलय कतिसदधात की

चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquo सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा औरजञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की

सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए

सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था

पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम ndash मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग

बढाए माकस1 न जिजस मलय- कतिसदधात की बात की थी माकस1वादी उसक आधार र सापिहतय की पिवचारधारा कतिशल और मलय- चतना र पिवचार करत ह अधिधकाश पिवदवान जो इस पिवचारधारा क समथ1क ह व

सापिहतय का अधययन दवदवातमक भौपितकवाद क कतिसदधातो की सहायता स करत ह इस कतिसदधात क अनयाईयो का मानना ह पिक सामाजिजक और राजनीपितक शकतिPयो म आरथिथक वयवCा वग1- सघष1 का

पिवशष हाथ होता ह व यह मानत ह पिक सापिहतय र या सजन की सापिहपतितयक षठभधिम का अधययन दोनो को आरथिथक- सामाजिजक परवकषिततयो क आधार र ही समझा ज सकता ह

माकस1वाद सापिहतय को भी समाज क रिरवत1न क एक टल क र म मानता ह उनका मानना ह पिक लोगो म जागरण सापिहतय क दवारा दा पिकया जा सकता ह व जीवादी और सामतवादी सापिहतय का lsquo rsquo पिवरोध करत ह माकस1वाद न कला कला क कतिलए कतिसदधात म जो वयकतिPवाद- भाववाद की चचा1 की गई

ह उसका पिवरोध पिकया सापिहतय का उददशय रिरभापिषत करत हए माकस1वादरिदयो का कहना ह पिक सापिहतय का उददशय मनषय को परबदध सामाजिजकता की दधि स समपनन करना होना चापिहए साथ ही यह अनीपित और अनपितकता क खिलाफ़ जागरकता दा कर

मनषय अरथिथक जीवन क अलावा एक पराणी क र म भी जीवन जीता ह सापिहतय उसक र जीवन स जडा ह सापिहतय क दवारा मनषय की ऐसी भावनाए परपित[कतिलत होती ह जो उस पराकषिणमातर स जोडती ह इसकतिलए सापिहतय पिवचारधारा मातर नही ह मनषय का इदरिVय-बोध भावनाए और आतरिरक पररणाए भी सापिहतय स वयजिजत होती ह और सापिहतय का यह कष Cायी होता ह

माकस1वाद पिवचारधारा क समथ1क यह कहत ह पिक सापिहतय का उददशय कपित की मलय- वयवCा र धयान दना ह कयोपिक सघष1रक समाज-साकष लोकमगलकारी मलय मानव- समाज को आग बढात

ह इस कतिसदधात क मानन वालो क अनसार आनदवादी रीपितवादी मलय मानव को पिवकत करत ह सापिहतय का वासतपिवक परयोजन तो जीवन- यथाथ1 का वासतपिवक उदघाटन ह

काडवल स लकर जाज1 लकाच तक सभी माकस1वादी सिचतक कावय का परयोजन मानव- कलयाण की भावना की अकषिभवयकतिP मानत रह ह पिकसी भी रचना क मलय और मलयाकन म ही उसका परयोजन

पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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माकसYादी चिचतन पिछली नौ ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) (७) कला कला क कतिलए (८) कला जीवन क कतिलए (सिलक) और (९) मलय कतिसदधात की

चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquo सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा औरजञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की

सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव दरिदया जाना चापिहए

सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह कला जीवन क कतिलए ह मानन वालोका मत था

पिक कपिवता म नपितक पिवचारो की उकषा नही होनी चापिहए मलय कतिसदधात क अनसार कावय का चरम ndash मलय ह कलातमक रिरतोष और भाव रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग

बढाए माकस1 न जिजस मलय- कतिसदधात की बात की थी माकस1वादी उसक आधार र सापिहतय की पिवचारधारा कतिशल और मलय- चतना र पिवचार करत ह अधिधकाश पिवदवान जो इस पिवचारधारा क समथ1क ह व

सापिहतय का अधययन दवदवातमक भौपितकवाद क कतिसदधातो की सहायता स करत ह इस कतिसदधात क अनयाईयो का मानना ह पिक सामाजिजक और राजनीपितक शकतिPयो म आरथिथक वयवCा वग1- सघष1 का

पिवशष हाथ होता ह व यह मानत ह पिक सापिहतय र या सजन की सापिहपतितयक षठभधिम का अधययन दोनो को आरथिथक- सामाजिजक परवकषिततयो क आधार र ही समझा ज सकता ह

माकस1वाद सापिहतय को भी समाज क रिरवत1न क एक टल क र म मानता ह उनका मानना ह पिक लोगो म जागरण सापिहतय क दवारा दा पिकया जा सकता ह व जीवादी और सामतवादी सापिहतय का lsquo rsquo पिवरोध करत ह माकस1वाद न कला कला क कतिलए कतिसदधात म जो वयकतिPवाद- भाववाद की चचा1 की गई

ह उसका पिवरोध पिकया सापिहतय का उददशय रिरभापिषत करत हए माकस1वादरिदयो का कहना ह पिक सापिहतय का उददशय मनषय को परबदध सामाजिजकता की दधि स समपनन करना होना चापिहए साथ ही यह अनीपित और अनपितकता क खिलाफ़ जागरकता दा कर

मनषय अरथिथक जीवन क अलावा एक पराणी क र म भी जीवन जीता ह सापिहतय उसक र जीवन स जडा ह सापिहतय क दवारा मनषय की ऐसी भावनाए परपित[कतिलत होती ह जो उस पराकषिणमातर स जोडती ह इसकतिलए सापिहतय पिवचारधारा मातर नही ह मनषय का इदरिVय-बोध भावनाए और आतरिरक पररणाए भी सापिहतय स वयजिजत होती ह और सापिहतय का यह कष Cायी होता ह

माकस1वाद पिवचारधारा क समथ1क यह कहत ह पिक सापिहतय का उददशय कपित की मलय- वयवCा र धयान दना ह कयोपिक सघष1रक समाज-साकष लोकमगलकारी मलय मानव- समाज को आग बढात

ह इस कतिसदधात क मानन वालो क अनसार आनदवादी रीपितवादी मलय मानव को पिवकत करत ह सापिहतय का वासतपिवक परयोजन तो जीवन- यथाथ1 का वासतपिवक उदघाटन ह

काडवल स लकर जाज1 लकाच तक सभी माकस1वादी सिचतक कावय का परयोजन मानव- कलयाण की भावना की अकषिभवयकतिP मानत रह ह पिकसी भी रचना क मलय और मलयाकन म ही उसका परयोजन

पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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पिनपिहत रहता ह

इस परकार हम दखत ह पिक माकस1वाद सिचतन म कलावादी मलयो स अधिधक मानववादी मनवतावादी नपितक उयोपिगतावादी या य कह पिक सामाजिजक मलयो का अधिधक महतव दरिदया गया ह उनक अनसार सापिहतय जनता क कतिलए हो इसका परयोजन तो मानव- कलयाण ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 13 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार माकस1वादी सिचतनहसपवितार ९ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग - ७ ) कला कला क लिलए

कावय परयोजन (भाग-७)

कला कला क लिलए पिछली छह ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (५) नव अकषिभजातzwjयवाद और कावय परयोजन (सिलक) और (६) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ldquo rdquo ही कपिवता का सकल परयोजन मौकतिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwj यवादरिदयो का यह मानना था पिक सापिहतय परयोजन म आनद और नपितक आदशA की कतिशकषा को महतzwjव

दरिदया जाना चापिहए सवछदतावादी मानत थ पिक कपिवता हम आनद परदान करती ह आइए अब ाशzwj चातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

उननीसवी सदी क दसर दशक म ldquo rdquoकला कला क लिलए कतिसदधानत सामन आया कछ हद तक सवpदतावाद की परवकषितत ही कलावाद का र धारण कर सामन आई इस कतिसदधात को फरास क

पिवकटर कज न परपितादरिदत पिकया था बाद म आसकर वाइलड एसी बरडल एसी लकिसवनबन1 एडगर ऐलन ो वालटर टर आदरिद कलाकारो न भी इस कतिसदधात का समथ1न पिकया

इस कतिसदधातकारो का मानना था पिक कावयकला की दपिनया सवायतत ह ऑटोनोमस ह अथा1तzwjजो पिकसी दसर क शासन या पिनयतरण म नही हो बलकिलक जिजस र अना ही अधिधकार हो उनका यह भी मानना

था पिक कला का उददशय धारमिमक या नपितक नही ह बलकिलक द की ण1ता की तलाश ह अन इन पिवचारो को रखत हए कलावादरिदयो न कहा पिक कला या कावयकला को पिकसी उयोपिगतावाद

नपितकतावाद सौनदय1वाद आदरिद की कसौटी र कसना उकतिचत नही ह

कलावादरिदयो क अनसार कला को अगर पिकसी कसौटी र रखना ही ह तो उसकी कसौटी होनी चापिहए सौदय1- चतना की तपतिपत उनक अनसार कला सौदया1नभपित का वाहक ह और उसका अना

लकषय आ ही ह

कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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कलावाद एक आदोलन था उननीसवी शताबदी म कावय और कला की हालत दयनीय थी इसी हालात की परपितपिया की उज था यह आनदोलन इस आदोलन क वाहको का कहना था पिक कावय और

कला की अनी एक अलग सता ह इसका परयोजन आनद की सधि ह

ldquoPOETRY FOR POETRY SAKErdquo

अथा1तzwjअनभव की सवततर सतता

ldquoThis experience is an end in itself is worth having on its own account has an intrisic valuerdquo

अथा1तzwjकावय स परापत आनद की अनी सवततर सतता ह

इस परकार सवpदतावाद सौदय1वाद और कलावाद तीन अलग- अलग वचारिरक दधिकोण थ कलावादी का मानना था पिक कलातमक सौदय1 सवाभापिवक या पराकपितक सौदय1 स शरषठ होता ह

वादलयर रमब मलाम म यह झलक धिमलती ह

पिबमबवाद तथा परतीकवाद कलावाद क ही पिवसतार थ बाद म बालज़ाक और गादरिटयार आदरिद न र- पिवधान र बल दरिदया धीर- ldquo rdquo धीर कला कला क कतिलए कतिसदधात का पिवकास हआ और रवाद क अलावा सरचनावाद नयी समीकषा नव- सरचनावाद या उततर-सरचनावाद पिवपिनरमिमपितवाद आया

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ०० वा1हन 14 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतरशविनार ४ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -6) सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन

कावय परयोजन (भाग-6)

सzwjचzwjछदतााद और कावzwjय परयोजन पिछली ाच ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA क पिवचार (सिलक)

(३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार (सिलक) (४) नवजागरणकाल और कावय परयोजन (सिलक) और नव अकषिभजातzwj यवाद और कावय परयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक

लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था

मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार जबपिक नव अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना

चाविहए आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

सोलहवी सतरहवी शताबzwjदी म पिवककतिसत नव अकषिभजातzwjयवाद की पिवचारधारा क साथ- साथ नव- मानववाद का भी पिवकास हआ इस पिवचारधार म मानव को पिवशzwjव क क V म माना गया इसक अलावा आतzwjमवाद की भी

अवधारण सामन आई रचनाकार आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP क कतिलए अकषिभपररिरत हए

इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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इसी बीच एक महतzwjवण1 घटना हई थी औदयोपिगक ापित इसस सामतवादी ढाच का तन हआ था और सामाजिजक वzwjयवसzwjथा म रिरवत1न आया इस तरह स परकतिसदध फरासीसी ापित की नीव तयार हो चकी थी फरासीसी

ापित का मखzwjय सzwjवर था समानता सzwjवततरता और बधतzwjव यही तीन सzwjवर उस समय क सापिहतzwjय सजन क परयोजन बनकर उभर

इस परकार कावzwjय परयोजन न एक नया आयाम गरहण पिकया नव अकषिभजातzwjयवादी तो पिनयम और सयम म रसथिcentढबदध थ र इस काल म इसका भी पिवरोध हआ और सzwjवचzwjछदतावाद का उदय हआ पिवकतिलयम बzwjलक

(1757-1827) समzwjयअल कॉzwjलरिरज (1772-1834) पिवकतिलयम वड1सवथ1 (177-1850 ) शल कीटस बायरन आदरिद कपिव न इस पिवVोही सzwjवर को आवाज दी इनक अनसर कावzwjय सजन का परयोजन था

ldquo आतzwjम साकषातzwjकार rdquoआतzwjम सजन और आतzwjमाशिभवzwjयलिकत

इस तरह सzwjवचzwjछदतावादरिदयो न अन कावzwjय सजन का परमख उददशzwjय मानव की मकतिP की कामना को माना जहा इनक व1वतcurren नव अकषिभजातzwjचादी पिनयम सयम सतलन तक1 को तरजीह द रह थ वही दसरी ओर सzwjवचzwj

छदतावादी परकपित सzwjवचzwjछदता मकzwjत-अकषिभवzwjयकतिP कलzwjना और भावावग को अन सजन म परधानता द रह थ

जीवन म आनद इनक सजन का उददशzwjय था आनद क साथ साथ रहसzwjय अदभत और वकतिचतरय म उनकी रकतिच थी सzwjवचzwjछदतावादी मानत थ पिक सजन म सदर क साथ अदभत का सयोग होना चापिहए यही उनक कावzwjय का पराण

ततzwjव था

lsquo rsquo कॉलरिरज और वड1सवथ1 न कावzwjय म कलzwjना शकतिP र बल दरिदया वड1सवथ1 न कतिलरिरकल बलडस म कहा

ldquo rdquoकविता हम आनद परदान करती ह

इस परकार हम ात ह पिक कषिeम का सzwjवचzwjछदतावाद भारतीय कावzwjयशासzwjतर क रस- कतिसदधात क बहत करीब ह बिहदी क आधपिनक आलोचको म स एक डॉ नगनzwjV न भी माना ह पिक सzwjवचzwjछदतावाद का आनदवाद स घपिनषzwjठ सबध

इस काल क परमख रचनाकारो शल वड1सवथ1 कॉलरिरज कीटस बायरन की रचनाओ म आनद का सzwjवर परमखता स दरिदखाई डता ह

सवछदतावादी कावय समीकषक डा lsquo rsquo नगV न रस कतिसदधात म कहा भी ह पिक शल का मानवता की मकतिP म अटटपिवशzwjवास वड1सवथ1 का सवा1तzwjमवाद कॉलरिरज का आतzwjमवाद कीटस का सौदय1 क परपित उलzwjलासण1 आसzwjथा और

बायरन का जीवन क परपित अबाध उतzwjसाह आनदवाद क ही र ह

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता मनोज कमार सzwjवचzwjछदतावादशकरार ३ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -5) न अशिभजातzwjयाद

कावय परयोजन (भाग-5) न अशिभजातzwjयाद और कावय परयोजन

पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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पिछली चार ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक) (२) ससकत क आचायA कपिवचार (सिलक) (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) और (४) नवजागरणकाल और कावयपरयोजन (सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल औरआनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न

लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया नवजागरणकाल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास और रिरषकार आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

हमन नवजागरण यग की चचा1 करत हए ाया पिक एक नई चतना का उदय हआ इटली म शर हए इस पिवचार का धीर- धीर फरास जम1नी और इगzwjलड तक पिवसzwjतार हआ नरदधार और परतzwjयावत1न क इस

यरोीय रनसा वzwjयकतिP को मधzwjययगीन बधनो स मकzwjत करन का यह आदोलन वzwjयकतिP सzwjवततरता की भावना को आग बढान का परबल क V बना र बीतत समय क साथ वzwjयकतिP सzwjवाततरय की भावना अपितवाद म बदल गई इसस अराजकता [लन लगी इसक कारण लोगो का झकाव अकषिभजातzwjयवाद

की ओर होन लगा नवअकषिभजातzwjयवाद क उदय न सापिहतzwjय जगत को भी परभापिवत पिकया

फरास म अरसzwjत क कतिसदधात की नई वzwjयाखzwjयाए हई कालcurrenन रासीन बअलो आदरिद न नए पिनयम बनाए उनका मानना था पिक शरषzwjठ कपितया वही कही जा सकती ह जिजनम कथा तथा सरचना की गरिरमा हो व भवzwjयता क साथ साथ सतलन को भी सजन का परमख गण मानत थ

अठारहवी शताबzwjदी तक यह पिनयोकzwjलाकतिसज़म इगzwjलड भी हच गया यहा र नव अकषिभजातzwjय पिवचारधारा क परमख परवकzwjता थ डॉ समzwjयअल जॉनसन जॉन डराइडन अलकzwjजडर ो जोस[ एपिडसन नव

अकषिभजातzwjयवादरिदयो का यह मानना था पिक साविहतय परयोजन म आनद और नवितक आदशt की शिशकषा को महतzwj दरिदया जाना चाविहए

परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नव अकषिभजातzwjयवाद मनोज कमारधार १ लिसतमर २०१०

कावय परयोजन ( भाग -4) नजागरणकाल की दविx

कावय परयोजन (4)

नजागरणकाल और कावय परयोजन पिछली तीन ोसटो म हमन (१) कावय - सजन का उददशय (सिलक)(२) ससकत क आचायA क

पिवचार (सिलक) और (३) ाशzwjचातय पिवदवानो क पिवचार(सिलक) की चचा1 की थी जहा एक ओर ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद ही कपिवता का ldquo rdquoसकल परयोजन मौलिलभत ह वही दसरी ओर ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न

पिकया आइए अब ाशzwjचातय पिवदवानो की चचा1 को आग बढाए

पलॉदरिटनस न दश1न क आधार र पिववचना करत हए कहा पिक कपिवता उस रम चतनय तक हचन का सोान ह उनक अनसार कपिवता क परयोजन आनद और रम चतना क सौदय1 का साकषातकार ह

तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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तीसरी शताबदी क उततरादध1 स चौदहवी शताबदी क वा1दध1 तक अधकार यग माना जाता ह इसक बाद

नवजागरणकाल की शरआत हई यह पिवशzwjव इपितहास की एक यगानतरकारी घटना थी इस काल म सापिहतय और कला म एक नई चतना का परादभा1व हआ बलकिलक परबल पिवसफोट कहना ज़यादा उकतिचत होगा धमाlaquoधता

और रदरिढवादरिदता र परहार हआ और हर चीज़ो की पिववचना और पिवशलषण वजञापिनक दधिकोण स पिकय

जान लगा नए- नए आपिवषकार हए धम1- दश1न को नए ढग स रिरभापिषत पिकया गया हर दरिदशा म ापितकारी

रिरवत1न रिरलकषिकषत हए नई चतना का परचार व परसार हआ इस रनसा (Renaissance) या नजा1गरण भी कहा जाता ह

नवजागरणकाल म पराचीन यनानी- रोमन जञान का नरदधार हआ पिवजञान और तक1 की कसौटी र वत1मान की तलाश- रख की गई और रढ और जज1र मलयो- रमपराओ का बपिहषकार हआ

रलोकवाद की जगह इहलौपिकक सिचतन को महतव दरिदया जान ललगा धम1पिनरकष सिचतन का माग1 परशसत हआ एक नई ऊजा1 का सचार हआ सपसर मालreg और शकसपियर सरीख रचनाकारो का सजन इसी ऊजा1 स ओत- परोत ह

इस काल क सापिहतय का परयोजन था मानव की सवदनातमक जञानातमक चतना का पिवकास औररिरषकारपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ५४ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता नवजागरणकाल मनोज कमारमगलार ३१ अगसत २०१०

कावय परयोजन ( भाग -3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार

पिछल दो ोसटो म हमन कावय - सजन का उददशय और ससकत क आचायA क पिवचार की चचा1 की थी ससकत क आचायA न कहा था पिक लोकमगल और आनद यही कपिवता का ldquo सकल परयोजन

rdquoमौलिलभत ह आइए अब इसी पिवषय र ाशzwjचातय पिवदवानो न कया कहा उसकी चचा1 कर

सथिशzwjचम क पिवदवानो न भी समय- समय र कावय परयोजन र पिवचार पिकया उनहोन मनोपिवजञान और मनोपिवशलषण शासतर की

सहायता स कपिव क मन की सजन परपिया को समझन का परयास पिकया इस आधार र जो दधिकोण सामन आए वो दो परकार क थ एक क अनसार कला कला क कतिलए ह तो दसर

क अनसार कला जीवन क कतिलए ह

यनानी दाश1पिनक पलटो का काल ई 427-347 का ह यह समय एथनस क तन का था इस समय आधयासतरितमक और नपितक हरास म काफ़ी बढोततरी हई अतः उनकी कतिचनता

थी पिक कस आदश1 राजय की Cाना हो और चरिरतर पिनमा1ण दवारा नपितक मलयो की रकषा कस हो उनहोन भी लोकमगल

अथा1तzwjसतय और कतिशव क आधार र कावय क परयोजन को दखा पलटो का मानना था पिक कावय का उददशय मानव- परकपित म जो महान और शभ ह नपितक और

नयायरायण ह उसका उसका उदघाटन होना चापिहए दसर शबदो म हम कह सकत ह पिक पलटो न कला क आनद कतिसदधात स आग बढकर लोकमगल कतिसदधात को महतवण1 बतया

अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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अरसत (384 ndash ई 322 ई) कषिeमी दश1नशासतर क सबस महान दाश1पिनको म एक थ व भी यनानी दाश1पिनक थ व पलटो क

कतिशषयथ उनहोन भी पलटो क पिवचार को सवीकारा और अन ldquo rdquo कावयशासतर म कावय क परयोजन लोकमगल अथा1तzwjसतय और

कतिशव का परपितादन पिकया उनक अनसार कावय का परयोजन कतिशकषा या जञानाज1न और आनद ह उनका कहना था पिक जञान क अज1न स

अतयत परबल आनद परापत होता ह अरसत क अनसार इस कावयानद का सवर आधयासतरितमक न होकर भौपितक आनद ह

कयोपिक यह आनद पिकसी दखी हई वसत को हचानन का आनद ह यह वसत को दखन क आनद स अलग ह यह अनकरणजनय

ldquo rdquoआनद ह परकतिसदध अगरज़ आलोचक न इस कलना का आनद कहा अरसत का कहना था पिक कावय म कलातमक परभाव नपितक भावना का ोषक हो उनका यह मानना था पिक वयाक अथ1 म

कावय का परयोजन ह पिवरचन अथा1तzwjभाव-रिरषकार भाव-उननयन अरसत का यह पिवरचन कतिसदधात आज भी मानय ह

ाशzwjचातय पिवदवानो म जिजनहोन कावय परयोजन र चचा1 की एक और महतवण1 नाम ह लाजाइनस का lsquo rsquo इनहोन अन गरथ रिरइपसस म कहा ह पिक कावय वाणी का ऐसा वकतिशषटय ह चरमोतकष1 ह जिजसस महान कपिवयो को जीवन म परपितषठा और यश धिमलता ह कारण यह ह पिक उसका सजन ाठक को

मातर जागत करन क कतिलए नही होता बलकिलक उसक मन म अहलाद उतनन करन म सकषम होता ह उनका मानना था पिक महान सजन महान आतमा की परपितधवपिन ह लाजाइनस न कावय म उदातत- ततव

की बात की थी उदातत की शकतिP स ाठक कपित- lsquo rsquo परभाव को आतमापितमण क र म गरहण करता ह इसम भी भाव-रिरषकार भाव- उननयन या पिवरचन कतिसदधात शाधिमल ह

इस परकार हम दखत ह पिक ाशzwjचातय पिवचारको न लोकमगलवादी ( कतिशकषा और जञान) कावयशासतर का समथ1न पिकया महान कावय वही ह जो सभी को सब कालो म आनद परदान कर और समय जिजस

lsquo rsquo lsquo rsquo राना न कर सक इस परकार आनद या आतमापितमण ही सापिहतय का मखय परयोजन ह परसततकता1 मनोज कमार र ४ ०८ वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल अरसत कावय परयोजन कावय शासतर कोलकाता ाशzwjचातय कावयशासतर पलटो मनोज कमार लाजाइनसहसपवितार २६ अगसत २०१०

सपरषण की समसzwjया

कभी- कभी ऐसा लगता ह पिक कपिवता का यग समापत हो गया ह इसका सबस बडा कारण ह बौजिदधक सधिननात स गरकतिसत कपिवताओ की बहतायात यह बात तय ह पिक जहा कपिवताए बौजिदधक

होगी वहा व कतिशकतिथल होगी कपिवता की पिनरमिमपित इसी जीव जगत स होती ह यदरिद कपिवता कछ ही रिरषकत बौजिदधक लोगो को परभापिवत या आक करती ह तो कही-न- कही कपिवता कमजोर अवशय

ह कपिवता की वयापतिपत इतनी बडी हो पिक व जन सामानय को समट सक आज कपिवता और ाठक क बीच दरी बढ गई ह सवादहीनता क इस माहौल म सपरषण की समसया र पिवचार करन क कतिलए

हमन डॉ० रमश मोहन झा स पिनवदन पिकया था उनहोन हमार पिनवदन र यह आलख दरिदया ह उस हम यहा परसतत कर रह ह

सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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सपरषण की समसzwjया डॉ० रमश मोहन झा जएन य नई दरिदलली स एमए एम पि[ल परापत परकतिसदद

आलोचक परो० नामवर सिसह क पिनदsup2शन म ीएच डी कर सपरपित बिहदी कतिशकषण योजना राजभाषा पिवभाग गह मतरालय कोलकाता स सबदध ह वागथ1

दसतावज परपितपिवमब कथादश कथाम साकषातकार परभपित बिहदी तर- पितरकाओ म आलख समीकषा आदरिद का पिनयधिमत परकाशन सक1 सखया 09433204657

कावzwjय की परारलकिsup3क अवसzwjथा स ही कपिवयो क समकष अनभत सतzwjय को मारमिमक और परभावशाली ढग स सपरपिषत करन की समसzwjया बडी परमख रही ह परतzwjयक यग का कपिव कछ पिवकतिशषzwjट अनभपितया

उलबzwjध कर उनzwjह सण1ता म वzwjयकzwjत कर अनी कला को स[ल मानता ह कावzwjय की अस[लता ndash का कारण इनzwjही दो कषो अनभपित और अकषिभवzwjयकतिP म स पिकसी पिकसी एक का तरदरिटण1 होना ह

यदरिद अनभपित अरिरकzwjव ह तो उसक महतzwjव का परशzwjन ही नही उठता शरषzwjठ सापिहतzwjय क कतिलए अनभपित की रिरकzwjवता का ही महतव ह उसक पिबना न तो वसzwjत का महतzwjव होगा और न कतिशलzwj- साधना का परशzwj

न सामन आएगा अनभपित की रिरकzwjवता हली शत1 ह इसक बाद ही कतिशलzwj का परशzwjन आता ह अतः कतिशलzwj की ण1ता शरषzwjठ कावzwjय की दसरी अपिनवाय1 शतत1 ह

अनभपित का उलzwjलख होत ही उसम पिबना सोच- ldquo rdquo समझ एक पिवशषण तीवर जोड दरिदया जाता ह लपिकन अनभपित की तीवरता का आशय कzwjया ह इस कम लोग जानत ह अनभपित की तीवरता एकzwj

ndashसाइटमट नही ह अजञय न ठीक ही कहा ह भानाए नही ह सोता

भानाए खाद ह कल

जरा इनको दा रखो

जरा सा और पकन दो

तल और तपन दो

अधरी तहो की पट म

विपघलन और पकन दो

रिरसन और रचन दो

विक उनका सार नकर

चतना की धरा को

कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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कछ उYर कर द

- ldquo rdquoहरी घास पर कषण भर

कावzwjय क कतिलए अनभपितयो क शोध का बडा महतzwjव ह इसी स शली म परभावोतzwjादकता आती ह आवश म सजन सभव नही ह सजन की सथिCपित आवश की सथिCपित स पिनतात कषिभनzwjन ह

हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता

क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह

सजन क कतिलए धय1 की पिनतात आवशzwjयकता ह हडबडाहट म सबकछ कहन की चषzwjटा म कावzwjय सचना का जखीरा बन जाता ह और कावzwjयातzwjमकता गम हो जाती ह साथ ही धय1 का अभाव और आवश की अधिधकता क कारण उनका अनभत सतzwjय कलातzwjमक ढग स सपरपिषत होन स रह जाता ह

भाषा भी [ीलावो वाली हो जाती ह अतः अनभत सतzwjय को सपरपिषत करन क कतिलए सयम अपिनवाय1 ह एक- एक शबzwjद तौल- मोलकर रखना ह अतः कपिवयो को चापिहए पिक व शबzwjदो का

सधान शोध और रिरमाज1न करत रह इसक पिबना व शरषzwjठ रचना रच नही सकत उद1 क शायर एक एक शबzwjद गढन म री ताकत या यो कह पिक भावो को सकजिनVत कर दत ह तब जाकर एक

rsquo श र कहत ह और उसकी गहराई दखकर लोग दातो तल उगली दबा लत ह उनक यहा इस वज़न कहत ह हमार यहा भी यह वज़न वाली शली अनानी चापिहए तभी कपिवता म जान आ ाएगी ndashअजञय इस पिवषय म कहत ह

विकसी को

शबद ह ककड

कट लो पीस लो

छान लो विडविया म डाल दो

विकसी को

शबzwjद ह सीविपया

लाखो का उलट फर

कभी एक मोती मिमल जाएगा

-- ldquo rdquoइन5धनष रौद हए य

शबzwjदो क साथ- साथ पिबमzwjबो का भी जिज़ जररी ह आज कपिवता म पिवमzwjबो की जो परधानता ह उसका सबध भी अनभत सतय क सपरषण स ह पिबमzwjबो की योजना अकषिभवzwjयकतिP को समथ1 और

साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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साथ1क बनान का साधन या पिनधिमतत ह यदरिद पिबमzwjबो म सजीवता ह तो उसका कारण अनभपित की सतयता और ईमानदारी ह

वही कावzwjय शरषzwjठ माना जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण हो

अकषिभवzwjयकतिP की परौढता क साथ- ldquo rdquo साथ अकषिभवzwjयकतिP की एकरसी कपिवता को षzwjट और ण1 बनाती ldquo rdquo ह एकरसी को क V म रखत हए कपिवता क शबzwjदकोश म अतzwjयधिधक वयापतिपत आ गई ह लोक स

लकर अनक शासतरो की रिरभापिषक शबzwjदावली को आयात पिकया गया ह

अब इसक परयोग की जिजमzwjमदारी कपिवयो र ह इस सहज ढग स गथन स भाषा म सzwjषzwjटता बधकता अचकता और साथ1कता को गपि[त पिकया जा सकता ह और वही कावzwjय शरषzwjठ माना

जाएगा जिजसम शबzwjद- शबzwjद धला छा हो उसम शकतिP और सौनzwjदय1 दोनो का ससतरिममशरण होपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता डॉ० रमश मोहन झाधार २५ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7) - विनषकषY

विनषकषY कविता क नए सोपान ( ndashभाग 7)

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo rdquoकविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान ( भाग -4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

आज की कपिवता का आगरह कदरिठन कावzwjयशासzwjतर क परपित नही रहा ह आज की कपिवता की खाकतिसयत यही ह पिक यह अतzwjयत मखर होकर र साहस स अन ाठको अन शरोताओ क समकष आ रही ह

अधिधकाश कपिवता आज एक रस ह तब भी आज भी कपिवता क सवदन को सघष1 को पिवचार को

हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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हम सzwjषzwjट महसस कर सकत ह पिछल छह भागो म परसzwjतत पिवचारो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक रान परपितमान आज उतन कारगर नही रह जिजतन पिक हल थ यहा तक पिक रस अब कपिवता क कतिलए आवशzwjयक नही रह गया ह हालापिक छायावाद क आलोचक डॉ नगनzwjV न नए कावzwj

ldquo य सिचतन क इस दौर म भी कपिवता कzwjया हrdquo शीष1क आलख म रस कतिसदधात को कावzwjय का शाशzwjवत परपितमान माना ह पिकनzwjत अजञय न इस कतिसदधात का खडन पिकया अजञय का कहना था पिक रस का

आधार था अदवदव और कतिचतत की समापिहपित (शापित) जबपिक नई कपिवता का आधार ह तनाव दवदव

अजञय का मानना था

ldquoजीवन सनो और आकारो का एक रगीन और पिवसzwjमय भरा ज ह हम चाह तो उस र स ही उलझ रह सकत ह र र का आकष1ण भी वासzwjतव म जीवन क परपित हमार आकष1ण का परपितबिबब

ह जीवन को सीध न दखकर हम एक काच म स दखत ह जब ऐसा करत ह तो हम उन रो म ही अटक जात ह rdquoजिजनक दवारा जीवन अकषिभवzwjयकतिP ाता ह (अतzwjमनद)

इस परकार यह तो सzwjषzwjट ह पिक नई कपिवता क सदभ1 म कतिस[1 अनभपित ही या1पzwjत नही ह बलकिलक यह तो भरम दा करती ह छायावादी कपिवता की अनभपित और नई कपिवता की अनभपित म बदलाव ह आज हम पिनवparaयकतिPक अनभपित की बात करत ह ( यहा दख ) पिनरतर परयोग म आत रहन स शबzwjद म बासीन आ जाता ह इसकतिलए आज कपिव क सामन शबद म नया अथ1 भरन की चनौती ह तो नया कपिव इस

चनौती को सzwjवीकार कर शबzwjदो म नए अथ1 का पिनरण करता ह हम हल भी इस बात की चचा1 कर ldquo rdquo आए ह पिक नई कपिवता अकषिभवzwjयकतिP नही ह पिनरमिमत ह ( यहा दख ) अगर पिवजयदव नारायण साही

क शबzwjदो म कह तो नई कपिवता तरग क र को सzwjटरकzwjचर म बदल दती ह जस हीर का पिसzwjटल हो

कपिवता पिनरमिमत इसकतिलए ह पिक आज हमको कलाकपित पिक सरचना र धzwjयान दना डता ह आज कपिवता को रखन का परमाकषिणक परपितमान कावzwjय भाषा ह कzwjयोपिक कावzwjय- भाषा ही वह चीज ह जिजसम कावzwjयाथ1 की नए भाव- बोध की पिनषzwjकषितत होती ह

इस सारी चचा1 क पिनषzwjकष1 क तौर र हम कह सकत ह पिक जहा एक ओर आज कपिवता का ऊरी कलवर बदला ह साथ ही नए परतीको याzwjपिबमबो या शबदावली की खोज हई ह वही दसरी ओर गहर सzwj

तर र कावzwjयानभपित की बनावट म ही [क1 आ गया ह इसका कारण ह हमार रागातzwjय सबध की परणाकतिलया बदली ह इन रागातzwjमक परणाकतिलयो क बदलाव स हमारा बाहय और आतरिरक वासzwjतपिवकता स

गहरा रिरशzwjता पिनधा1रिरत होता ह जीवन आज जदरिटल हआ ह इस कावzwjयानभपित का कपिव- कम1 र गहरा असर डा ह आज कपिवता हम रिरझाती नही हमारा चन तोड दती ह शबzwjद और अथ1 का तनाव सzwjषzwjट दीखता ह सजन म नए नए अथ1 सौदय1 की तलाश जारी ह वसzwjत और र क बीच एक दवदवातzwjमक

रिरशzwjता हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 12 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारमगलार २४ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -6) कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कावzwjय चिचतन म नई समीकषा

कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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कविता क नए सोपान (भाग-6)

ाशzwjचातzwjय कावzwjय सिचतन म नई समीकषा ( नय पिदरिटकतिसज़म) सzwjकल क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र बहस करत हए यह पिनषzwjकष1 दरिदया पिक

ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमत ह या वब1ल आईकॉन ह(Verbal Icon) rdquo

अथा1तzwjकपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह ( यहा दख )

टीएसएकतिलयट ( यहा दख ) और अईए रिरचड1स ( यहा दख ) इसी नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम सकल स ह नई समीकषा क पिवचारको न कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर पिवचार पिकया अथा1त इनकी

ldquo rdquo ldquo rdquo समीकषा म कपिव क V म नही ह इनक सिचतन का क V कपिवता ह

इस सकल क पिवचारको दवारा कपिवता का पिवशzwjलषण कावzwjय- भाषा क आधार र हआ उसकी कलाकपित की परपिया र सिचतन पिकया गया उनzwjहोन कावzwjय- भाषा को आधार बनाकर सिचतन

पिकया इस सzwjकल म पिवचारको का कहना थाldquo कपिवता भाषा की सभापिवत कषमताओ का सधान rdquoह इस सzwjकल का मानना था पिक कपिवता क अथ1 ता लगान की मल समसzwjया भाषा की समसzwj या ह

बिहदी आलोचना म नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम क रोधा अजञय न भी ाशzwjचातzwjय पिवदधानो दवारा दरिदए गए रिरभाषा को बार बार दहराया पिक कावzwjय शबzwjद ह उनzwjहोन कहा पिक शबzwjद का ससzwjकार ही कपितकार को कती बनाता ह

अजञय दवारा कही गई बात का अनzwjय पिवदवानो न भी समथ1न दरिदया डॉ रामसzwjवर चतवsup2दी नldquo rdquoभाषा और सवदना ldquo अजञय rdquo आधपिनक रचना की समसया म भी अजञय दवारा कही गई

बात को समथ1न दत हए कहा पिक कावzwjय शबद ह और कपिवता को कावzwjय भाषा क आधार र ही रखा जाना चापिहए

परसततकता1 मनोज कमार र ५ ४२ वा1हन 10 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार २३ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -5) ndash कविता का विनयलिकतकता लिसदधात

कविता का विनयलिकतकता लिसदधात कविता क नए सोपान (भाग-5)

ldquo rdquo छायावादरिदयो न कपिवता की रिरभाषा करत हए सवानभपित र बल दरिदया था ( यहा ढ ) वही दसरी ओर नयी कपिवता क कपिव- आलोचको न कहा पिक रिरवश म बदलाव क कारण

ldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता ह इस थोडा और सप करन स हल कपिव आलोचक और

सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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सिचतक पिवजयदवनारायण साही की कतिPया उदधत कर

ldquo न कतिसफ़1 कपिवता का कलवर बदला ह बलकिलक गहर सतर र कावयानभपित की बनावट म भी rdquoफ़रक़1 आया ह ( यहा ढ )

ldquo rdquo अनभपित की बनावट का फ़रक़1 ही छायावादी सवानभपित और नयी कपिवता कीldquo rdquo अनभपितगत कषिभननता क अनतर को सप करता ह कपिवता क नय परपितमान म इसी बात

को बतात हए परो नामवर सिसह न कहा ह

ldquo अनभपित की बनावट म फ़रक़1 क कारण नयी कपिवता छायावाद क समान ही rdquoअनभपित र बल दत हए भी भावो की शाशzwjवतता क परपित उतनी आशzwjवसत नही ह

नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह

इसीकतिलए हम ात ह पिक नयी कपिवताओ म कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क बदल हए सदभ1 र अधिधक बल दत ह और यह भी सप ह पिक उनका बल रागातमक सबधो र ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय का भी मानना था पिक हमार रागातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म बदलाव रिरलकषिकषत ह ( यहा ढ ) ldquo rdquo अजञय न बात को और सप करत हए दसरा सपतक

की भधिमका म कहा ह

rdquo यह कहा जा सकता ह पिक हमार मल राग- पिवराग नही बदल परम अब भी परम ह और घणा अब भी घणा र यह भी धयान रखना होगा पिक राग वही rdquoरहन र भी रागातमक सबधो की परणाकतिलया बदल गई ह

कपिव का कषतर तो रागातमक सबधो का कषतर होता ही ह इसकतिलए य जो बदलाव ह उसका आज क कपिव कम1 र बहत ही गहरा असर डा ह

हमार चारो तरफ़ जो बाहरी वातावरण ह जस- जस उसम रिरवत1न आता जाता ह वस- वस हमार रागातमक सबध को जोडन की दधपित भी बदलती जाती ह अगर ऐसा न हआ

होता अगर बदलाव न हआ होता तो उस बाहरी वासतपिवकता स तो हमारा नाता ही टट जाता अजञय को कषिeम म चल रह एटी रोमादरिटक सिचतन का ता था

उस समय म ाeातय सजन की सिचतन धारा म एक नयी सोच शर हई थी उसका आधारभत सवर रोमादरिटक भावबोध का पिवरोधी था यहा

र टीएस एकतिलएट क पिवचार समरण हो रह ह( यहा ढ ) उनहोनldquoएणटी- rdquo रोमादरिटक रवया अनाया था उनहोन एक नए पिवचार को सामन

लाया उनका मानना था

ldquo rdquoकपिवता वयकतिPतव की अकषिभवयकतिP नही ह वरनzwjवयकतिPतव स लायन ह

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
Page 20: hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · Web viewक द व र हम क व य म ब ह य जगत स स मग र उठ कर उस नय अर थ द त

ldquo rdquo यह रिरभाषा रोमादरिटको क आतमाकषिभवयकतिP कतिसदधात का पिवरोध ही नही पिनषध भी करती ldquo rdquo ह इन पिवचारो क साथ जो कतिसदधात सामन आया उस पिनवparaयकतिPकता का कतिसदधात कहा

गया वयकतिPतव स लायन का अथ1 ह अन और राए की भद- बजिदध स मP होजाना पिनवparaयकतिPक हो जाना इसी अवCा को भारतीय कावयशासतर म कहा गया ह

ldquo rdquoपिनज मोह सकट पिनवारण परसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 5 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमाररविार २२ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -4)

कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिरश क साथ दवदवमय सथिसथवित म ह

कपिव आलोचक और सिचतक पिवजयदवनारायण साही नई कपिवता क दौर क परमख कपिवयो म स एक ह

उनहोन नयी कपिवता क ऊर अन पिवचार रखत हए कहाldquo rdquoकपिवता कपिव की भावनाओ तथा रिरवश क बीच सघष1 की उज ह

उनका यह मानना था पिक यह सघष1 कोई नई चीज नही ह यह हल भी था लपिकन उनका यह कहना था पिक

ldquo rdquo हल का कपिव अधिधक पिवदगध (दकष) था तातzwjय1 यह पिक वह कपिव इस सघष1 स न कतिस[1 बचन क उाय

जानता था बलकिलक वह इस सघष1 स उज तनाव स बच भी जाता था लपिकन आज रिरसथिCपित अलग ह आज का कपिव अन रिरवश क साथ एक दवदवमय सथिCपित जी रहा होता ह

जिजस रिरवश म हम रह ह उसम भी बदलाव आया ह इस बदलाव क कारण अनभपित की जदरिटलता बढी ह सवदनातzwjमक उलझाव का समावश भी रिरवश म हआ ह य सार ततzwjव आज की कपिवता को परभापिवत कर रह

ह इस जदरिटलता और उलझाव क कारण कपिवता क कलवर म भी बदलाव आया ह इसक अलावा एक और चीज

उलzwjलखनीय ह पिक अगर गहर सzwjतर र दख तो कावzwjयानभपित की बनावट म भी [क1 आया ह

चतना क ततzwjव जो हल की कपिवता म कावzwjयानभपित क आवशzwjयक अग थ आज क दौर- दौरा म अनयोगी दरिदखन लग ह लगता ह इस बदलत रिरवश म व साथ1क नही रह इसी तरह कछ ऐस ततzwjव जिजनzwjह हल

अनावशयक माना जाता था आज व ही कावzwjयानभपित क क V म आ गए ह ldquo rdquo साही जी अनी बात को एक पिनषzwjकष1 तक लात हए शमशर की कावzwjयानभपित की बनावट शीष1क लख म

कहत ह

ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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ldquo कल धिमलाकर कावzwjयानभपित और जीवन की कावzwjयतर अनभपितयो म जो रिरशzwjता दरिदखता था वह रिरशzwjता भी rdquoबदल गया ह

इस परकार नई कपिवता म अनभपित की बनावट की कषिभनzwjनता रिरलकषिकषत ह अतः हम ात ह पिक नए कपिव अनभपित स अधिधक अनभपित क रिरवरतितत सदभ1 र अधिधक बल दत ह

परसततकता1 मनोज कमार र ३ ५६ वा1हन 7 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता नयी कपिवता मनोज कमारशविनार २१ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -3) - कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

कविता क नए सोपान (भाग-3)

कविता लिसरफY हदय की मकतासथा नही लकिलक शिदध की मकतासथा ह

नयी कपिवता आदोलन क सशP हसताकषर कवर नारायण अजञय दवारा सादरिदत तीसरा सपतक (१९५९) क

परमख कपिवयो म रह ह 2009 म वष1 2005 क जञानीठ रसकार स सममापिनत पिकया गए

कवर नारायण न तीसरा सपतक क कपिव- वPवय म कहाldquo कपिवता मर कतिलए कोरी भावकता की हाय- हाय न होकर यथाथ1 क परपित एक परौढ

rdquoपरपितपिया की मारमिमक अकषिभवयकतिP ह यह रिरभाषा कपिवता म रोमादरिटक दपतिशट का पिवरोध करती ह दसर शबदो म हम कह सकत

ह पिक कवर नारायण एटी रोमादरिटक दधि का समथ1न करत ह ldquo rdquo यहा र उनहोन मारमिमक अकषिभवयकतिP का परयोग पिकया ह कही न कही वो अजञय क इस ldquo मत स पिक वासतपिवकता क बदलत सदभ1 म नए रागातमक सबध की परमाकषिणकता क पिवकास की तथयगत

rdquo सथिCपित क बहत रक़रीब ह

इस रिरभाषा क आधार र यह पिनषकष1 पिनकाला जा सकता ह पिक कपिवता कतिसफ़1 भावना की अकषिभवयकतिP नही ह

वह बजिदध स पररिरत सज1ना ह यानी कतिसफ़1 हदय की मPावCा नही बलकिलक बजिदध की मPावCा हपरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १९ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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कविता क नए सोपान ( भाग -2) ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की rdquoअशिभवयलिकत ह

कविता क नए सोपान (भाग-2)ldquo कविता जदरिटल सदनाओ की अशिभवयलिकत

rdquoह परयोगवाद क बाद बिहदी कपिवता की जो नवीन धारा पिवककतिसत हई वह नई कपिवता ह

जिजनम ररागत कपिवता स आग नय भावबोधो की अकषिभवयकतिP क साथ ही नय मलयो और नय कतिशल- पिवधान का अनवषण पिकया गया शरी लकषमीकात वमा1 नयी कपिवता क परकतिसदध

ldquo rdquoकतिसदधातकार और कपिव ह इनकी रचना नय परपितमान रान पिनकष ldquo लकषमीकात वमा1 की rdquo परपितपिनधिध रचनाए म सककतिलत ह उनका मानना था

rdquo rdquoकविता आतमपरक अनभवित की रागातमक अशिभवयजना ह

अजञय दवारा समपादरिदत एव परकाकतिशत तारसपतक क सात कपिवयो म स एक कपिव पिगरिरजाकमार माथर भी हपिगरिरजाकमार माथर का कहना था

ldquo नयी कपिवता का तो लकषण यही ह पिक वह अतयत जदरिटल अनभवो को अतयत सहज और सव1गराहय र म वयP करती ह और जदरिटलताओ को rdquoचाकर उसम साव1जनीन सतय का असल ततव पिनकालती ह

इस रिरभाषा म दो महतवण1 और धयान दन वाली बात ह हली यह पिक नयी कपिवता जदरिटल सवदनाओ की अकषिभवयकतिP ह और दसरी बात यह पिक माथर जी दवारा यह भी कहा गया पिक इन जदरिटल सवदनाओ को सव1गराहय और समपरषणीय बनाता ह

अथा1तzwjकपिव क पिवचारो का साधारनीकरण भी उनक कतिलए एक महतवण1 परशzwjन थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०६ वा1हन 11 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारधार १८ अगसत २०१०

कविता क नए सोपान ( भाग -1)

कविता क नए सोपान (भाग-1) नयी कपिवता क कपिवयो- अलोचको न कावय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया ह परयोगवाद क साथ- साथ नई कपिवता र बहस चली ldquo rdquo इस बहस म यह परशzwjन भी सामन आया पिक नया कया ह साथ

ही यह भी पिवचारणीय रहा पिक कपिवता कया ह

आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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आधपिनक पिहनदी कपिवता म डाकटर जगदीश गपत का महततवण1 Cान ह उनका मानना था पिक

ldquo य दोनो परशzwjन परसzwjपर समzwjदध और एक ही लिसकzwjक क दो पहल ह कzwjयोविक कविता म rdquoनीनता की उतzwjपलितत सzwjततः सचzwjची कविता लिलखन की आकाकषा स उतzwjपनzwjन होती ह

बात सही भी ह कपिव जो भी कहता ह उसम यदरिद सजनातzwjमकता और सवदनीयता नही हो तो उस कपिवता नही कहा जा सकता ldquo नई कविता सzwjरप

rdquoऔर समसzwjयाए सzwjतक म जगदीश गपzwjत न कहा पिक

ldquo कविता सहज आतरिरक अनशासन स यकzwjत अनभवित जनzwjय सघन- लयातzwjमक शबzwjदाथY ह जिजसम सह- अनभवित rdquoउतzwjपनन करन की यथषzwjट कषमता विनविहत रहती ह

ldquo rdquo उनzwjहोन यथषzwjट शबzwjद का परयोग पिकया ह यथषzwjट शबzwjद कपिव और ाठक दोनो को समापिहत पिकए ह इसका अथ1 यह हआ पिक कपिवता क पिवषय म कपिव का पिनण1य अपितम पिनण1य नही ह ाठक या

शरोता की मानzwjयता अपिनवाय1 ह

र इस नई कपिवता को रिरभापिषत करत समय जगदीशगपzwjत न सजनातzwjमकता शबzwjद का परयोग नही पिकया ह इस कारण स कछ पिवदवानो न इस रिरभाषा र आकषितत भी उठाई ह जान मान

आलोचक डॉ नामर चिसह न ldquo rdquoकविता क नए परवितमान ldquo rdquo म कपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा ह इस पिनबध म उनzwjहोन कहा

ldquoडॉ जगदीशगपzwjत अपनी कावzwjय- परिरभाषा म ह ततzwj भल गए जिजस नई कविता न बिहदी कावzwjय- परमपरा स जोडा ह इसलिलए अनभवित तो उनzwjह याद रह गई लविकन सजनातzwjमकता भल गए

ldquo जगदीशगपzwjत की परिरभाषा की यह सस डी सीमा ह यह परिरभाषा छायाादी अनभवित rdquoऔर नई कविता की नई अनभवित म फकY करक नही चलती

ldquoसह- rdquo अनभपित म पिवचार- ldquo rdquo भपिगमा का नयान ह सह अनभपित ldquo rdquoरसानभपित का या1य नही ह यह नवीन कावzwjयानभपित का या1य ह अतः हम कह सकत ह पिक

सह- अनभपित का परशzwjन रसानभपित क पिवरोध म उठाया गया थापरसततकता1 मनोज कमार र ४ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारमगलार १७ अगसत २०१०

कावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह

rdquoकावzwjय क मल म मानीय सदना की सविकरयता ह नई कपिवता क कपिवयो न कावzwjय को नए ढग स रिरभापिषत पिकया उनहोन रचनाओ म

सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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सवदनशीलता र उनzwjहोन पिवचार पिकया इन आलोचको कपिवयो का कहना था पिक कावzwjय क मल म मानवीय सवदना ही सपिय रहती ह जिजस तरह स हमारा जीवन गपितशील और

रिरवत1नशील ह उसी तरह मानवीय सवदना भी ह हमार आसास जो कछ ह जो घदरिटत हो रहा ह उसका परभाव कावzwjय र डना सzwjवाभापिवक ह रिरवश की नवीनता उसका

बदलाव कावzwjय सिचतन क रिरपरकषzwjय को बदल दती ह

कपिव और सिचतक सलकिदानद हीरानद ातzwjसयायन अजञय जिजनzwjहोन दसरा सपzwjतक और सजYना और सदभY की रचना की का

मानना था पिक हमार रामातzwjमक सबधो म भी बदलाव आया ह इसक [लसzwjवर रान ससzwjकारगत रागातzwjमक सबधो म

बदलाव रिरलकषिकषत ह

रघवीर सहाय क कावzwjय सकलन सीसथिcentढयो र ध म की भधिमका म अजञय न कहा ह -ldquo कावzwjय सस पहल शबzwjद ह और

सस अत म भी यही ात च जाती ह विक कावzwjय शबzwjद ह

यह एक महतzwjवण1 रिरभाषा ह सार कपिवधम1 इसी रिरभाषा स पिनःसत होत ह शबzwjद का जञान और इसकी अथ1वतता की

सही कड स ही एक वयकतिP रचनाकार स रचधियता बनता ह अजञय का मानना था पिक धzwjवपिन लय छद आदरिद क सभी परशzwjन

इसी म स पिनकलत ह और इसी म पिवलय होत ह

अजञय तो यहा तक कहत ह पिक ldquo सार सामाजिजक सदभY भी यही स विनकलत ह इसी म यग- समपलिकत का और कवितकार क सामाजिजक उतzwjतरदामियतzwj का हल मिमलता ह या मिमल सकता ह इस

परकार जब हम कावzwjय लकषण रमzwjरा की चचा1ओ र धzwjयान क दरिVत करत ह तो ात ह पिक या तो कावzwjयाथ1 शबzwjद म ह या अथ1 म ह या पि[र दोनो म ह इस बहस म एक बात तो सzwjषzwj

ट ह पिक अधिधकाश आचायA न शबzwjद ररा का ही समथ1न पिकया ह दसरी परमख बात जो सामन आती ह वह यह ह पिक अलकार रीपित वोकतिP रस जस रान परपितमान जिजस

तरह स हल कारगर थ आज नही रह हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 15 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारसोमार १६ अगसत २०१०

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत ह

कविता सामविहक भा ोध की अशिभवzwjयलिकत हrdquo बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

ndash भाग 5 परगविताद काल

कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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कावzwjय सिचतन को परगपितवादरिदयो न नए ढग स उठाया इस धारा क पिवदवानो का मानना था पिक कपिवता पिवकासमान सामाजिजक वसत ह इसका सजन तो वzwjयकतिPगत परयास का रिरणाम ह र धzwjयान दन वाली बात यह ह पिक यह सजन मलतः सामाजिजक और सासzwjकपितक भधिम र क दरिVत होता ह

दसर शबzwjदो म हम कह सकत ह पिक कपिवता म ससzwjकपितक रराओ की सवदना समापिहत होती ह

गजानन माधzwj मलिकतोध न नयी कविता का आतzwjमसघषY तथा अनय विनध म इस पिवषय र परकाश डालत हए कहा पिक कावzwjय एक सासzwjकपितक परपिया ह

परगपितवादी कावzwjय परपिया को छायावादी कावzwjय परपिया स अलग मानत ह मकतिPबोध का ndashमानना था पिक

ldquo इसका अथ1 यह नही ह पिक आज का कपिव वzwjयाकलता या आवश का अनभव नही करता होता यह ह पिक वह अन आवश या वzwjयाकलता को

बाधकर पिनयपितरत कर ऊर उठाकर उस जञानातzwjमक सवदन क र म या rdquoसवदनातzwjमक जञान क र म परसzwjतत कर दता ह

ldquo रोमदरिटक कवियो की भावित आशयकzwjत होकर आज का कवि भाो को अनायास सzwjचzwjछद अपरवितहत पराह म नही हता इसक विपरीत ह विकनzwjही अनभत मानलिसक परवितविकरयाओ को ही वzwj

यकत करता ह कभी ह इन परवितविकरयाओ की मानलिसक रपरखा परसzwjतत करता ह कभी ह उस रप rdquoरखा म रग भर दता ह

मकतिPबोध न आग यह कहा पिक ldquo इसका अथY यह नही ह विक आज का कवि वzwjयाकलता या आश का अनभ नही करता होता यह ह विक ह अपन आश या वzwjयाकलता को ाधकर विनयवित कर

ऊपर उठाकर rdquoउस जञानातzwjमक सदन क रप म या सदनातzwjमक जञान क रप म परसzwjतत कर दता ह

मकतिPबोध का कावzwjय को सासzwjकवितक परविकरया कहन क ीछ यह तक1 ह पिक कावzwjय- सजन म सामाजिजक आरथिथक राजनीपितक सासकपितक शकतिPयो का हाथ होता ह इस कतिलए यह सासzwj

कपितक परपिया ह

यह तो सzwjषzwjट ह पिक परगपितवाद का कावzwjय सिचतन माकzwjस1वाद स परभापिवत ह व यह अवषzwjय मानत ह पिक कावzwjयानभपित की बनावट म सामाजिजक सौदया1नभपित की भधिमका अहम ह

डॉ रामविलास शमाY न अनी सzwjतक परगवित और परमzwjपरा म यह कहा ह पिक

ldquo ndash कावzwjय एक महान सामाजिजक विकरया ह जो सामाजिजक विकास क समानातर विकलिसत rdquoहोती रहती ह इ स रिरभाषा स यह कतिसदध होता ह पिक कपिवता सामाजिजक यथाथ1

का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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का कतिचतरण करती ह ाशzwjचातzwjय सिचतक काडल का Illusion and Reality म कहना था

Art is the product of society as the pearl is the product of the oyster

अथा1त rdquoसाविहतzwjय ह मोती ह जो समाज रपी मोती त पलता ह उसक इस कथन को अधिधकाश परगपितवादी मानत रह यह एक भौपितकवादी सिचतन ह

कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और

तनाव रहता ह इसस हटकर जाजY लकाच न दवदवातzwjमक भापितकवादी पिवचारधार को आग बढाया उनका कहना था ldquo हमारी चतना मा भौवितक सथिसथवितयो स विनयवित नही होती ह अपकषाकत सzwjत ह और

rdquoकभी कभी ह ाहरी भौवितक सथिसथवितयो क विपरीत भी जा सकती ह यह दधि सौदय1शासतरिसतरयो क सिचतन स बहत मल खाती ह

ऊर कही गई बातो र गौर कर तो हम इस पिनषzwjकष1 र हचत ह पिक कपिवता म जिजस अनभपित का कतिचतरण होता ह वह वयकतिPक न होकर भी सामाजिजक होती ह इस सामाजिजक अनभपित म जदरिटलता ससथिशलषzwjटता और तनाव रहता ह इसकतिलए हम पिनषzwjकष1 क र म यह

मान सकत ह पिक कपिवता सामपिहक भाव बोध की अकषिभवzwjयकतिP ह आचायY रामच5 शकzwjल का कहना था पिक जञान- परसार क भीतर ही भाव- परसार होता ह उनकी यह मानzwjयता

परगपितवादरिदयो को भी मानzwjय रही हपरसततकता1 मनोज कमार र ६ ०० वा1हन 8 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारशकरार १३ अगसत २०१०

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह

rdquoकावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभवित ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 4 छायााद काल

बिहदी सापिहतzwjय म यह वह काल था जब पिनराला परसाद त और महादवी सपिय थ छायावादी कपिवयो न कावzwjय लकषण र नए ढग स पिवचार पिकया

जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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जिजस परकार ाशzwjचातzwjय सापिहतzwjय क सzwjवचzwjछदतावादी कपिव न कावzwjय की रिरभाषा दत हए कहा पिक कपिवता बलवती भावनाओ का सहज उचzwj

छलन ह उसी तरह स सय1कात पितराठी पिनराला न कहा कपिवता ndashपिवमल हदय का उचzwjछवास ह

तम पिवमल हदय उचzwjछवास और म कानzwjतकाधिमनी कपिवता

परसाद त और महादवी भी यह अवधारणा वzwjयकzwjत करत रहपिक कावzwjय अकषिभवzwjयकतिP ह जयशकर परसाद छायावाद क एक

परमख सzwjतभो म स एक थ व सामाजिजक- सासzwjकपितक ररा की जड स जोडकर कपिवता को दखत थ उनzwjहोन ldquo rdquoकावzwjय और कला तथा अनzwjय पिनबध म कावzwjय को आतzwjमा की सकलzwjनातzwj

मक अनभपित कहा उनका कहना था -

कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjनातzwjमक अनभपित ह जिजसका सबध पिवशzwjलषण पिवकलzwj या पिवजञान स नही ह वह एक शरयमयी परय रचनातzwjमक जञान

धारा ह आतzwjमा की मनन शकतिP की आसाधारण अवसzwjथा जो शरय सतzwj य को उसक मल चारतzwjव म सहसा गरहण कर लती ह कावzwjय म सकलzwj

rdquoनातzwjमक मल अनभपित कही जा सकती ह

इस रिरभाषा म सौदय1 और सतzwjय क सामजसzwjय क कतिलए परपितभा स उजी (परापितभ) अनभपित र पिवशष बल दरिदया गया ह इस रिरभाषा म हम

आचाय1 शकzwjल की रिरभाषा की झलक दीखती ह

आचाय1 शकzwjल का कपिवता को भाव- योग कहना ( यहा दख ) और परसाद का अनभपित- योग मानना सहमपित ही तो दशा1ता ह इन दोनो की रिरभाषा म कषिeम क सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का परभाव कम या न क बराबर था य दोनो कपिव अनी कावzwjय- सिचतन भधिम र खड रहकर कषिeम क कावzwjय- सिचतन का अथ1 गरहण कर रह थ

कई बार छायावाद को सzwjवचछदतावाद का या1य मान कतिलया जाता ह शायद भरमवश दोनो वाद अलग- अलग दशो म उज इनका काल भी अलग- अलग था और य अलग- अलग ससzwj कपित क कावzwjय- आदोलन रह हा ऐसा परतीत होता ह पिक छायावाद क कपिव- आलोचको न कषिeम क पिवचारो को ढा और समझा तो र उसकी नकल नही की इस हम सयोग मान सकत ह पिक छायावादरिदयो दवारा कहा गया मकतिP की आकाकषा और सzwjवानभपित का पिवसzwj

तार सzwjवचzwjछदतावादरिदयो का भी क Vीय ततzwjव रहा

हमन वड1सवथ1 की कावzwjय रिरभाषा ( यहा दख ) और कॉलरिरग की रिरभाषा ( यहा दख ) की चचा1 करत हए दखा था पिक इसका मल आधार भावना ldquo rdquo कलzwjना क योग स पिनकला कावzwjय ह

वही दसरी ओर छायावाद आतzwjमाकषिभवzwjयकतिP का कतिसदधात परपितादरिदत करता ह इसम वयकतिPक

अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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अनभपित र अधिधक बल दरिदया गया ह इस कतिलए हम कह सकत ह पिक छायावादरिदयो की दधि कपिव- क दरिVत ह कावzwjय- क दरिVत नही

इस मत का आग चलकर पिवरोध भी हआ जब परगपितवाद और नई कपिवता का काल आयापरसततकता1 मनोज कमार र ५ ५६ वा1हन 17 दरिटपकषिणया इस सदश क कतिलए सिलकलबल कावय लकषण कावय शासतर कोलकाता मनोज कमारहसपवितार १२ अगसत २०१०

ldquo rdquo कविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwj य लकषण - ndash भाग 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

ldquo rdquoकविता हदय की मकतासथा ह बिहदी की चिचतन परपरा म कावzwjय लकषण

भाग ndash 3 ndash नजागरण काल आचायY रामच5 शकzwjल

आचाय1 रामचV शकzwjल न सzwjतक सिचतामकषिण म ldquo rdquoकपिवता कzwjया ह पिनबध कतिलखा इस पिनबध को आचाय1 शकzwjल जीवन भर कतिलखत रिरसzwjकत करत रह नवजागरण कालीन ( भारतनzwjद यग

और पिदववदी यग) मानकतिसकता का सबस परबल पिवसzwj[ोट इस पिनबध म दखन को धिमलता ह ndashइस पिनबध क माधzwjयम स उनzwjहोन कपिवता क सबध म अना मत दत हए कहा

ldquo जिजस परकार आतzwjमा की मकzwjतावसzwjथा जञान दशा कहलाती ह उसी परकार हदय की मPावCा रसदशा कहलाती ह हदय की इसी मकzwjतावसzwjथा क कतिलए मनषzwjय की वाणी जो शबzwjद- rdquoपिवधान करती आई ह उस कपिवता कहत ह

आचाय1 शकzwjल यह भी कहत ह पिक इस साधना को हम भावायोग कहत ह और कम1योग और जञानयोग का समककष मानत ह

इस रिरभाषा म जो पिवशष बात ह वह ह रसदशा रसदशा उनक अनसार हदय की मकzwjत अवसzwjथा ह मकzwjत हदय को अधिधक सपषzwjट करत हए आचाय1 शकzwjल कहत ह

ldquo जब तक कोई अनी थक सतता की भावना को ऊर पिकए इस कषतर क नाना रो और वzwjयाारो को अन योग-कषम हापिन-लाभ सख- दख आदरिद स समzwjबदध करक दखता रहता ह

तब तक उसका हदय एक परकार स बदध रहता ह इन रो और वzwjयाारो क सामन जब कभी वह अनी थक सतता की धारणा स छट कर अन आको पिबलzwjकल भलकर पिवशदध

rdquoअनभपित मातर रह जाता हो तब वह मकzwjत हदय हो जाता ह

ऐसा मकzwjत हदय पराणी जब अन हदय को लोक- हदय स धिमला दता ह तो यह दशा ही

रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
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रसदशा ह इस परकार हम कह सकत ह पिक वzwjयाक अथ1 म रस दशा ldquo हदय की मकzwjतावसzwjrdquoथा ही ह

आचाय1 शकzwjल न कपिवता को ldquoशबzwjद- rdquoपिवधान की शकतिP माना हमन हल ाशचातzwjय कावzwjय शासzwjतर की चचा1 करत हए ( सिलक यहा ह) ldquo rdquo कहा था पिक नई समीकषा ( नzwjय पिदरिटकतिसजzwjम) सकल

क पिवदवानो न कावzwjय लकषण र पिनषzwjकष1तः कहा पिक ldquo कपिवता एक शाखिबदक पिनरमिमतrdquoह अथा1त कपिवता शबzwjद ह और अत म भी यही बात बचती ह पिक कपिवता शबzwjद ह कही न

कही इस उकतिP म भी भारतीय सिचतन- ररा की धzwjवपिन मौजद ह

  • कविताओ म बिब और उनस जडी सवदना
    • मनोज कमार
      • ldquoबादल अकटबर क
      • हलक रगीन ऊद
      • मदधम मदधम रकत
      • रकत-स आ जात
      • इ त न पास अपनrdquo --- ldquoसधयाrdquo ndash शमशर
        • बधवार ६ अकतबर २०१०
          • कावय परयोजन (भाग-११) मनोविशzwjलषणवादी चितन
            • बधवार २९ सितमबर २०१०
              • कावय परयोजन (भाग-१०) मारकसवादी चितन
                • कावय परयोजन (भाग-१०)
                  • मारकसवादी चितन
                    • बहसपतिवार ९ सितमबर २०१०
                      • कावय परयोजन (भाग-७) कला कला क लिए
                      • कावय परयोजन (भाग-७)
                          • कला कला क लिए
                            • शनिवार ४ सितमबर २०१०
                              • कावय परयोजन (भाग-6) सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                • कावय परयोजन (भाग-6)
                                  • सzwjवचzwjछदतावाद और कावzwjय परयोजन
                                    • शकरवार ३ सितमबर २०१०
                                      • कावय परयोजन (भाग-5) नव अभिजातzwjयवाद
                                      • कावय परयोजन (भाग-5)
                                      • नव अभिजातzwjयवाद और कावय परयोजन
                                        • बधवार १ सितमबर २०१०
                                          • कावय परयोजन (भाग-4) नवजागरणकाल की दषटि
                                          • कावय परयोजन (4)
                                              • नवजागरणकाल और कावय परयोजन
                                                • मगलवार ३१ अगसत २०१०
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3) पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                  • कावय परयोजन (भाग-3)
                                                      • पाशzwjचातय विदवानो क विचार
                                                        • बहसपतिवार २६ अगसत २०१०
                                                          • सपरषण की समसzwjया
                                                              • सपरषण की समसzwjया
                                                                • बधवार २५ अगसत २०१०
                                                                  • कविता क नए सोपान (भागndash7) - निषकरष
                                                                      • निषकरष
                                                                        • कविता क नए सोपान (भागndash7)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                            • मगलवार २४ अगसत २०१०
                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-6) कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                  • कावzwjय चितन म नई समीकषा
                                                                                    • कविता क नए सोपान (भाग-6)
                                                                                    • सोमवार २३ अगसत २०१०
                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-5) ndash कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                          • कविता का निरवयकतिकता सिदधात
                                                                                            • कविता क नए सोपान (भाग-5)
                                                                                            • रविवार २२ अगसत २०१०
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-4)
                                                                                              • आज का कवि परिवश क साथ दवदवमय सथिति म ह
                                                                                                • शनिवार २१ अगसत २०१०
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3) - कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-3)
                                                                                                      • कविता सिरफ हदय की मकतावसथा नही बलकि बदधि की मकतावसथा ह
                                                                                                        • बहसपतिवार १९ अगसत २०१०
                                                                                                          • कविता क नए सोपान (भाग-2) ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                              • कविता क नए सोपान (भाग-2)
                                                                                                              • ldquoकविता जटिल सवदनाओ की अभिवयकति हrdquo
                                                                                                                • बधवार १८ अगसत २०१०
                                                                                                                  • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                      • कविता क नए सोपान (भाग-1)
                                                                                                                        • मगलवार १७ अगसत २०१०
                                                                                                                          • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता ह
                                                                                                                              • कावzwjय क मल म मानवीय सवदना की सकरियता हrdquo
                                                                                                                                • सोमवार १६ अगसत २०१०
                                                                                                                                  • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति ह
                                                                                                                                      • कविता सामहिक भाव बोध की अभिवzwjयकति हrdquo
                                                                                                                                        • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                          • भाग ndash 5 परगतिवाद काल
                                                                                                                                            • शकरवार १३ अगसत २०१०
                                                                                                                                              • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                  • कावzwjय आतzwjमा की सकलzwjपनातzwjमक अनभति हrdquo
                                                                                                                                                    • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                      • भाग ndash 4 छायावाद काल
                                                                                                                                                        • बहसपतिवार १२ अगसत २०१०
                                                                                                                                                          • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण-भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल
                                                                                                                                                              • ldquoकविता हदय की मकतावसथा हrdquo
                                                                                                                                                              • हिदी की चितन परपरा म कावzwjय लकषण
                                                                                                                                                                • भाग ndash 3 नवजागरण काल ndash आचारय रामचदर शकzwjल