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दद ददद दददददद दद ददद, ददद दद ददद द ददद ददद दद दददददद ददद, ददद दददद दद ददद 1 ददद ददददद दद ददददददद, दद दददद ददद ददद दददद ददद दददद दददद, ददद दददददद ददद 2 दददद दददद ददद ददद, दददद द दद दद ददद दद दद दद दद ददद ददद, दद दद दददद ददद 3 ददददददद ददददद दददद, दददद ददददद दददद ददददद दददद दददद, दददददद दददद दददद 4 ददददद दददद दददद, दददद-दददद दद दद ददद ददददद दद दददद दददद ददद द दददद ददद 5 ददददद दददद दददद दद, दद दददददद ददद दददद दददद ददद दददद, ददद ददद दद ददद 6 द दद दददददद दद दददद, दद:द ददद दददद ददद दद दददद दद ददद दद, ददद दददद दददददद 7 दददद दददद दददददद, दद दद ददददद दददद दद दद दददद द दददद, दददद दद दददद ददद 8 ददद ददद दद ददद दद, ददद ददद दद ददद द दददद ददददददद, ददददद ददददद दद ददद 9 ददददद दददद ददद दद, दददद दददददददद दद ददददद ददद द ददददद, दद दददद दददद ददद ददददददद दददद, दददद दददद ददददद ददददददद दद ददद दद, दददद दददद दददद 4 ददद ददद दददद ददद, ददद ददद ददददद दद ददददद दद ददद, दददद दद ददद दददद 45 दद दददद दद दददद, दददद ददद दद ददद दद दददद ददददद ददद, दददद ददद दददद 46 ददद ददद दद ददददद दददद दद दददद दद दद ददद दददद दददददद दद, दददद ददद ददददद दददद दददददद ददददद दददद, दददददद ददद दददद ददद द दददददद, दददद ददददद दददद दददद ददद दद दद दद, दददद दददद दद ददद ददददददद दददद दददद दद, दददद दददद ददद ददददद दद दद दददद, दददद दददद ददद ददद ददददद ददद ददद दददददद, दददद दददद दद द दददददद दददद दददद, दद दद ददद ददददद

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दुख में सुमरि�न सब क�े, सुख मे क�े न कोय । जो सुख मे सुमरि�न क�े, दुख काहे को होय ॥ 1 ॥

ति�नका कबहुँ ना निनंदि�ये, जो पाँव �ले होय । कबहुँ उड़ आँखो पडे़, पी� घान�ेी होय ॥ 2 ॥

माला फे�� जुग भया, तिफ�ा न मन का फे� । क� का मन का डा� �ें, मन का मनका फे� ॥ 3 ॥

गुरु गोतिवन्� �ोनों खडे़, काके लागूं पाँय । बलिलहा�ी गुरु आपनो, गोनिवं� दि�यो ब�ाय ॥ 4 ॥

बलिलहा�ी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बा� । मानुष से �ेव� तिकया क�� न लागी बा� ॥ 5 ॥

कबी�ा माला मनतिह की, औ� संसा�ी भीख । माला फे�े हरि� मिमले, गले �हट के �ेख ॥ 6 ॥

सुख मे सुमिम�न ना तिकया, दु:ख में तिकया या� । कह कबी� �ा �ास की, कौन सुन ेफरि�या� ॥ 7 ॥

साईं इ�ना �ीजिजये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न �हँू, साधु ना भूखा जाय ॥ 8 ॥

लूट सके �ो लूट ले, �ाम नाम की लूट । पाछे तिफ�े पछ�ाओगे, प्राण जानिहं जब छूट ॥ 9 ॥

जाति� न पूछो साधु की, पूलिछ लीजिजए ज्ञान । मोल क�ो �लवा� का, पड़ा �हन �ो म्यान ॥ 10 ॥

जहाँ �या �हाँ धम@ है, जहाँ लोभ �हाँ पाप । जहाँ क्रोध �हाँ पाप है, जहाँ क्षमा �हाँ आप ॥ 11 ॥

धी�े-धी�े �े मना, धी�े सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠ�ु आए फल होय ॥ 12 ॥

कबी�ा �े न� अन्ध है, गुरु को कह�े औ� । हरि� रूठे गुरु ठौ� है, गुरु रुठै नहीं ठौ� ॥ 13 ॥

पाँच पह� धन्धे गया, �ीन पह� गया सोय । एक पह� हरि� नाम तिबन, मुलिK कैसे होय ॥ 14 ॥

कबी�ा सोया क्या क�े, उदिठ न भजे भगवान । जम जब घ� ले जायेंगे, पड़ी �हेगी म्यान ॥ 15 ॥

कबी�ा जपना काठ की, क्या दि�ख्लावे मोय । ह्र�य नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥ 43 ॥

पति�वृ�ा मैली, काली कुचल कुरूप । पति�वृ�ा के रूप प�, वा�ो कोदिट सरूप ॥ 44 ॥

बैध मुआ �ोगी मुआ, मुआ सकल संसा� । एक कबी�ा ना मुआ, जेतिह के �ाम अधा� ॥ 45 ॥

ह� चाले �ो मानव, बेह� चले सो साध । ह� बेह� �ोनों �जे, �ाको भ�ा अगाध ॥ 46 ॥

�ाम �हे बन भी��े गुरु की पूजा ना आस । �हे कबी� पाखण्ड सब, झूठे स�ा तिन�ाश ॥ 47 ॥

जाके जिजव्या बन्धन नहीं, ह्र्�य में नहीं साँच । वाके संग न लातिगये, खाले वदिटया काँच ॥ 48 ॥

�ी�थ गये �े एक फल, सन्� मिमले फल चा� । सत्गुरु मिमले अनेक फल, कहें कबी� तिवचा� ॥ 49 ॥

सुम�ण से मन लाइए, जैसे पानी तिबन मीन । प्राण �जे तिबन तिबछडे़, सन्� कबी� कह �ीन ॥ 50 ॥

समझाये समझे नहीं, प� के साथ तिबकाय । मैं खींच� हँू आपके, �ू चला जमपु� जाए ॥ 51 ॥ हंसा मो�ी तिवण्न्या, कुञ्च्न था� भ�ाय । जो जन माग@ न जाने, सो ति�स कहा क�ाय ॥ 52 ॥

कहना सो कह दि�या, अब कुछ कहा न जाय । एक �हा दूजा गया, �रि�या लह� समाय ॥ 53 ॥

वस्�ु है ग्राहक नहीं, वस्�ु साग� अनमोल । तिबना क�म का मानव, तिफ�ैं डांवाडोल ॥ 54 ॥

कली खोटा जग आंध�ा, शब्� न माने कोय । चाहे कहँ स� आइना, जो जग बै�ी होय ॥ 55 ॥

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भलिK न होय । भलिK क�े कोइ सू�मा, जाति� व�न कुल खोय ॥ 56 ॥

जागन में सोवन क�े, साधन में लौ लाय । सू�� डो� लागी �हे, �ा� टूट नानिहं जाय ॥ 57 ॥

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शीलवन्� सबसे बड़ा, सब ��नन की खान । �ीन लोक की सम्प�ा, �ही शील में आन ॥ 16 ॥

माया म�ी न मन म�ा, म�-म� गए श�ी� । आशा �ृष्णा न म�ी, कह गए �ास कबी� ॥ 17 ॥

माटी कहे कुम्हा� से, �ु क्या �ौं�े मोय । एक दि�न ऐसा आएगा, मैं �ौंदंूगी �ोय ॥ 18 ॥

�ा� गंवाई सोय के, दि�वस गंवाया खाय । हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी ब�ले जाय ॥ 19 ॥

नीं� तिनशानी मौ� की, उठ कबी�ा जाग । औ� �सायन छांतिड़ के, नाम �सायन लाग ॥ 20 ॥

जो �ोकु कांटा बुवे, �ातिह बोय �ू फूल । �ोकू फूल के फूल है, बाकू है तिbशूल ॥ 21 ॥

दुल@भ मानुष जन्म है, �ेह न बा�म्बा� । �रुव� ज्यों पत्ती झडे़, बहुरि� न लागे डा� ॥ 22 ॥

आय हैं सो जाएगँे, �ाजा �ंक फकी� । एक सिसंहासन चदिf चले, एक बँधे जा� जंजी� ॥ 23 ॥

काल क�े सो आज क�, आज क�े सो अब । पल में प्रलय होएगी, बहुरि� क�ेगा कब ॥ 24 ॥

माँगन म�ण समान है, मति� माँगो कोई भीख । माँगन से �ो म�ना भला, यह स�गुरु की सीख ॥ 25 ॥

जहाँ आपा �हाँ आप�ां, जहाँ संशय �हाँ �ोग । कह कबी� यह क्यों मिमटे, चा�ों धी�ज �ोग ॥ 26 ॥

माया छाया एक सी, तिब�ला जाने कोय । भग�ा के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥ 27 ॥

आया था तिकस काम को, �ु सोया चा�� �ान । सु�� सम्भाल ए गातिफल, अपना आप पहचान ॥ 28 ॥

क्या भ�ोसा �ेह का, तिबनस जा� लिछन मांह । साँस-सांस सुमिम�न क�ो औ� य�न कुछ नांह ॥ 29 ॥

गा�ी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट औ� मींच । हारि� चले सो साधु है, लातिग चले सो नींच ॥ 30 ॥

साधु ऐसा चतिहए ,जैसा सूप सुभाय । सा�-सा� को गतिह �हे, थोथ �ेइ उड़ाय ॥ 58 ॥

लगी लग्न छूटे नानिहं, जीभ चोंच जरि� जाय । मीठा कहा अंगा� में, जातिह चको� चबाय ॥ 59 ॥

भलिK गें� चौगान की, भावे कोई ले जाय । कह कबी� कुछ भे� नानिहं, कहां �ंक कहां �ाय ॥ 60 ॥

घट का प��ा खोलक�, सन्मुख �े �ी�ा� । बाल सनेही सांइयाँ, आवा अन्� का या� ॥ 61 ॥

अन्�या@मी एक �ुम, आत्मा के आधा� । जो �ुम छोड़ो हाथ �ो, कौन उ�ा�े पा� ॥ 62 ॥

मैं अप�ाधी जन्म का, नख-लिसख भ�ा तिवका� । �ुम �ा�ा दु:ख भंजना, मे�ी क�ो सम्हा� ॥ 63 ॥

पे्रम न बड़ी ऊपजै, पे्रम न हाट तिबकाय । �ाजा-प्रजा जोतिह रुचें, शीश �ेई ले जाय ॥ 64 ॥

पे्रम प्याला जो तिपये, शीश �क्षिक्षणा �ेय । लोभी शीश न �े सके, नाम पे्रम का लेय ॥ 65 ॥

सुमिम�न में मन लाइए, जैसे ना� कु�ंग । कहैं कबी� तिबस�े नहीं, प्रान �जे �ेतिह संग ॥ 66 ॥

सुमरि�� सु�� जगाय क�, मुख के कछु न बोल । बाह� का पट बन्� क�, अन्�� का पट खोल ॥ 67 ॥

छी� रूप स�नाम है, नी� रूप व्यवहा� । हंस रूप कोई साधु है, स� का छाननहा� ॥ 68 ॥

ज्यों ति�ल मांही �ेल है, ज्यों चकमक में आग । �े�ा सांई �ुझमें, बस जाग सके �ो जाग ॥ 69 ॥

जा क�ण जग ढँ़ूदिfया, सो �ो घट ही मांतिह । प��ा दि�या भ�म का, �ा�े सूझे नानिहं ॥ 70 ॥

जबही नाम तिह��े घ�ा, भया पाप का नाश । मानो सिचंग�ी आग की, प�ी पु�ानी घास ॥ 71 ॥

नहीं शी�ल है चन्द्रमा, निहंम नहीं शी�ल होय । कबी�ा शी�ल सन्� जन, नाम सनेही सोय ॥ 72 ॥

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दुब@ल को न स�ाइए, जातिक मोटी हाय । तिबना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥ 31 ॥

�ान दि�ए धन ना घ�े, न�ी न ेघटे नी� । अपनी आँखों �ेख लो, यों क्या कहे कबी� ॥ 32 ॥

�स द्वा�े का निपंज�ा, �ामे पंछी का कौन । �हे को अच�ज है, गए अचम्भा कौन ॥ 33 ॥

ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय । औ�न को शी�ल क�े, आपहु शी�ल होय ॥ 34 ॥

ही�ा वहाँ न खोलिलये, जहाँ कंुजड़ों की हाट । बांधो चुप की पोट�ी, लागहु अपनी बाट ॥ 35 ॥

कुदिटल वचन सबसे बु�ा, जारि� क� �न हा� । साधु वचन जल रूप, ब�से अमृ� धा� ॥ 36 ॥

जग में बै�ी कोई नहीं, जो मन शी�ल होय । यह आपा �ो ड़ाल �े, �या क�े सब कोय ॥ 37 ॥

मैं �ोऊँ जब जग� को, मोको �ोवे न होय । मोको �ोबे सोचना, जो शब्� बोय की होय ॥ 38 ॥

सोवा साधु जगाइए, क�े नाम का जाप । यह �ीनों सो�े भले, सातिक� सिसंह औ� साँप ॥ 39 ॥

अवगुन कहँू श�ाब का, आपा अहमक साथ । मानुष से पशुआ क�े �ाय, गाँठ से खा� ॥ 40 ॥

बाजीग� का बां��ा, ऐसा जीव मन के साथ । नाना नाच दि�खाय क�, �ाखे अपने साथ ॥ 41 ॥

अटकी भाल श�ी� में �ी� �हा है टूट । चुम्बक तिबना तिनकले नहीं कोदिट पटन को फू़ट ॥ 42 ॥

आहा� क�े मन भाव�ा, इं�ी तिकए स्वा� । नाक �लक पू�न भ�े, �ो का कतिहए प्रसा� ॥ 73 ॥

जब लग ना�ा जग� का, �ब लग भलिK न होय । ना�ा �ोडे़ हरि� भजे, भग� कहावें सोय ॥ 74 ॥

जल ज्यों प्या�ा माह�ी, लोभी प्या�ा �ाम । मा�ा प्या�ा बा�का, भगति� प्या�ा नाम ॥ 75 ॥

दि�ल का म�हम ना मिमला, जो मिमला सो गजq । कह कबी� आसमान फटा, क्योंक� सीवे �जq ॥ 76 ॥

बानी से पह्चातिनये, साम चो� की घा� । अन्�� की क�नी से सब, तिनकले मुँह कई बा� ॥ 77 ॥

जब लतिग भगति� सकाम है, �ब लग तिनष्फल सेव । कह कबी� वह क्यों मिमले, तिनष्कामी �ज �ेव ॥ 78 ॥

फूटी आँख तिववेक की, लखे ना सन्� असन्� । जाके संग �स-बीस हैं, �ाको नाम महन्� ॥ 79 ॥

�ाया भाव ह्र्�य नहीं, ज्ञान थके बेह� । �े न� न�क ही जायेंगे, सुतिन-सुतिन साखी शब्� ॥ 80 ॥

�ाया कौन प� कीजिजये, का प� तिन�@य होय । सांई के सब जीव है, की�ी कंुज� �ोय ॥ 81 ॥

जब मैं था �ब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय । पे्रम गली अति� साँक�ी, �ा मे �ो न समाय ॥ 82 ॥

लिछन ही चfे लिछन ही उ��े, सो �ो पे्रम न होय । अघट पे्रम निपंज�े बसे, पे्रम कहावे सोय ॥ 83 ॥

जहाँ काम �हाँ नाम ननिहं, जहाँ नाम ननिहं वहाँ काम । �ोनों कबहूँ ननिहं मिमले, �तिव �जनी इक धाम ॥ 84 ॥

कबी�ा धी�ज के ध�े, हाथी मन भ� खाय । टूट एक के का�ने, स्वान घ�ै घ� जाय ॥ 85 ॥

ऊँचे पानी न दिटके, नीचे ही ठह�ाय । नीचा हो सो भरि�ए तिपए, ऊँचा प्यासा जाय ॥ 86 ॥

सब�े लघु�ाई भली, लघ�ुा �े सब होय । जौसे दूज का चन्द्रमा, शीश नवे सब कोय ॥ 87 ॥

   सन्� पुरुष की आ�सी, सन्�ों की ही �ेह । लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥ 127 ॥

भूखा-भूखा क्या क�े, क्या सुनावे लोग ।

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सं� ही में स� बांटई, �ोटी में �े टूक । कहे कबी� �ा �ास को, कबहूँ न आवे चूक ॥ 88 ॥

माग@ चल�े जो तिग�ा, �ाकों नातिह �ोष । यह कतिब�ा बैठा �हे, �ो लिस� क�डे़ �ोष ॥ 89 ॥

जब ही नाम ह्र�य ध�यो, भयो पाप का नाश । मानो लिचनगी अग्निग्न की, परि� पु�ानी घास ॥ 90 ॥

काया काठी काल घुन, ज�न- ज�न सो खाय । काया वैध ईश बस, मम@ न काहू पाय ॥ 91 ॥

सुख साग� का शील है, कोई न पावे थाह । शब्� तिबना साधु नही, द्रव्य तिबना नहीं शाह ॥ 92 ॥

बाह� क्या दि�खलाए, अनन्�� जतिपए �ाम । कहा काज संसा� से, �ुझे धनी से काम ॥ 93 ॥

फल का�ण सेवा क�े, क�े न मन से काम । कहे कबी� सेवक नहीं, चहै चौगुना �ाम ॥ 94 ॥

�े�ा साँई �ुझमें, ज्यों पहुपन में बास । कस्�ू�ी का तिह�न ज्यों, तिफ�- तिफ� ढँ़ूf� घास ॥ 95 ॥

कथा- की�@न कुल तिवशे, भवसाग� की नाव । कह� कबी�ा या जग� में नातिह औ� उपाव ॥ 96 ॥

कतिब�ा यह �न जा� है, सके �ो ठौ� लगा । कै सेवा क� साधु की, कै गोनिवं� गुन गा ॥ 97 ॥

�न बोह� मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय । कबहु के धम@ अगम �यी, कबहुं गगन समाय ॥ 98 ॥

जहँ गाहक �ा हँू नहीं, जहाँ मैं गाहक नाँय । मू�ख यह भ�म� तिफ�े, पकड़ शब्� की छाँय ॥ 99 ॥

कह�ा �ो बहु� मिमला, गह�ा मिमला न कोय । सो कह�ा वह जान �े, जो ननिहं गह�ा होय ॥ 100 ॥

�ब लग �ा�ा जगमगे, जब लग उगे न सू� । �ब लग जीव जग कम@वश, ज्यों लग ज्ञान न पू� ॥ 101 ॥

आस प�ाई �ाख्�, खाया घ� का खे� । औ�न को प्� बोध�ा, मुख में पड़ �े� ॥ 102 ॥

भांडा घड़ तिनज मुख दि�या, सोई पूण@ जोग ॥ 128 ॥

गभ@ योगेश्व� गुरु तिबना, लागा ह� का सेव । कहे कबी� बैकुण्ठ से, फे� दि�या शुक्�ेव ॥ 129 ॥

पे्रमभाव एक चातिहए, भेष अनेक बनाय । चाहे घ� में वास क�, चाहे बन को जाय ॥ 130 ॥

कांचे भाडें से �हे, ज्यों कुम्हा� का �ेह । भी�� से �क्षा क�े, बाह� चोई �ेह ॥ 131 ॥

साँई �े सब हो�े है, बन्�े से कुछ नानिहं । �ाई से पव@� क�े, पव@� �ाई मानिहं ॥ 132 ॥ के�न दि�न ऐसे गए, अन रुचे का नेह । अवस� बोवे उपजे नहीं, जो नहीं ब�से मेह ॥ 133 ॥

एक �े अनन्� अन्� एक हो जाय । एक से प�चे भया, एक मोह समाय ॥ 134 ॥

साधु स�ी औ� सू�मा, इनकी बा� अगाध । आशा छोडे़ �ेह की, �न की अनथक साध ॥ 135 ॥

हरि� संग� शी�ल भया, मिमटी मोह की �ाप । तिनलिशवास� सुख तिनमिध, लहा अन्न प्रगटा आप ॥ 136 ॥

आशा का ईंधन क�ो, मनशा क�ो बभू� । जोगी फे�ी यों तिफ�ो, �ब वन आवे सू� ॥ 137 ॥

आग जो लगी समुद्र में, धुआँ ना प्रकट होय । सो जाने जो ज�मुआ, जाकी लाई होय ॥ 138 ॥

अटकी भाल श�ी� में, �ी� �हा है टूट । चुम्बक तिबना तिनकले नहीं, कोदिट पठन को फूट ॥ 139 ॥

अपने-अपने साख की, सब ही लीनी भान । हरि� की बा� दु�न्��ा, पू�ी ना कहँू जान ॥ 140 ॥

आस प�ाई �ाख�ा, खाया घ� का खे� । औन@ को पथ बोध�ा, मुख में डा�े �े� ॥ 141 ॥

आव� गा�ी एक है, उलटन होय अनेक । कह कबी� ननिहं उलदिटये, वही एक की एक ॥ 142 ॥

आहा� क�े मनभाव�ा, इंद्री की स्वा� । नाक �लक पू�न भ�े, �ो कतिहए कौन प्रसा� ॥ 143 ॥

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सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुडै़ सौ बा� । दुज@न कुम्भ कुम्हा� के, ऐके धका ��ा� ॥ 103 ॥

सब ध��ी का�ज करँू, लेखनी सब बन�ाय । सा� समुद्र की मलिस करँू गुरुगुन लिलखा न जाय ॥ 104 ॥

बलिलहा�ी वा दूध की, जामे तिनकसे घीव । घी साखी कबी� की, चा� वे� का जीव ॥ 105 ॥

आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रकट होय । सो जाने जो ज�मुआ, जाकी लाई होय ॥ 106 ॥

साधु गाँदिठ न बाँधई, उ�� समा�ा लेय ।आगे- पीछे हरि� खडे़ जब भोगे �ब �ेय ॥ 107 ॥

घट का प��ा खोलक�, सन्मुख �े �ी�ा� । बाल सने ही सांइया, आवा अन्� का या� ॥ 108 ॥

कतिब�ा खालिलक जातिगया, औ� ना जागे कोय । जाके तिवषय तिवष भ�ा, �ास बन्�गी होय ॥ 109 ॥

ऊँचे कुल में जामिमया, क�नी ऊँच न होय । सौ�न कलश सु�ा, भ�ी, साधु तिनन्�ा सोय ॥ 110 ॥

सुम�ण की सुब्यों क�ो ज्यों गाग� पतिनहा� ।होले- होले सु�� में, कहैं कबी� तिवचा� ॥ 111 ॥

सब आए इस एक में, डाल- पा� फल- फूल । कतिब�ा पीछा क्या �हा, गह पकड़ी जब मूल ॥ 112 ॥

जो जन भीगे �ाम�स, तिवग� कबहँू ना रूख । अनुभव भाव न ��स�े, ना दु: ख ना सुख ॥ 113 ॥

सिसंह अकेला बन �हे, पलक- पलक क� �ौ� । जैसा बन है आपना, �ैसा बन है औ� ॥ 114 ॥

यह माया है चूहड़ी, औ� चूहड़ा कीजो ।बाप- पू� उ�भाय के, संग ना काहो केहो ॥ 115 ॥

जह� की जमq में है �ोपा, अभी खींचे सौ बा� । कतिब�ा खलक न �जे, जामे कौन तिवचा� ॥ 116 ॥

जग मे बै�ी कोई नहीं, जो मन शी�ल होय । यह आपा �ो डाल �े, �या क�े सब कोय ॥ 117 ॥

आए हैं सो जाएगँे, �ाजा �ंक फकी� । एक सिसंहासन चदिf चले, एक बाँमिध जंजी� ॥ 144 ॥

आया था तिकस काम को, �ू सोया चा�� �ान । सू�� सँभाल ए कातिफला, अपना आप पह्चान ॥ 145 ॥

उज्जवल पह�े कापड़ा, पान-सुप�ी खाय । एक हरि� के नाम तिबन, बाँधा यमपु� जाय ॥ 146 ॥

उ��े कोई न आवई, पासू पूछँू धाय । इ�ने ही सब जा� है, भा� ल�ाय ल�ाय ॥ 147 ॥

अवगुन कहँू श�ाब का, आपा अहमक होय । मानुष से पशुआ भया, �ाम गाँठ से खोय ॥ 148 ॥

एक कहँू �ो है नहीं, दूजा कहँू �ो गा� । है जैसा �ैसा �हे, �हे कबी� तिवचा� ॥ 149 ॥

ऐसी वाणी बोलिलए, मन का आपा खोए । औ�न को शी�ल क�े, आपौ शी�ल होय ॥ 150 ॥

कबी�ा संग्ङति� साधु की, जौ की भूसी खाय । खी� खाँड़ भोजन मिमले, �ाक� संग न जाय ॥ 151 ॥

एक �े जान अनन्�, अन्य एक हो आय । एक से प�चे भया, एक बाहे समाय ॥ 152 ॥

कबी�ा ग�ब न कीजिजए, कबहूँ न हँलिसये कोय । अजहूँ नाव समुद्र में, ना जाने का होय ॥ 153 ॥

कबी�ा कलह अरु कल्पना, स�संगति� से जाय । दुख बासे भागा तिफ�ै, सुख में �है समाय ॥ 154 ॥

कबी�ा संगति� साधु की, जिज� प्री� कीजै जाय । दुग@ति� दू� वहावति�, �ेवी सुमति� बनाय ॥ 155 ॥

कबी�ा संग� साधु की, तिनष्फल कभी न होय । होमी चन्�न बासना, नीम न कहसी कोय ॥ 156 ॥

को छूटौ इनिहं जाल परि�, क� फु�ंग अकुलाय । ज्यों-ज्यों सु�जिझ भजौ चहै, त्यों-त्यों उ�झ� जाय ॥ 157 ॥

कबी�ा सोया क्या क�े, उदिठ न भजे भगवान । जम जब घ� ले जाएगँे, पड़ा �हेगा म्यान ॥ 158 ॥

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जो जाने जीव न आपना, क�हीं जीव का सा� । जीवा ऐसा पाहौना, मिमले ना दूजी बा� ॥ 118 ॥

कबी� जा� पुका�या, चf चन्�न की डा� । बाट लगाए ना लगे तिफ� क्या ले� हमा� ॥ 119 ॥

लोग भ�ोसे कौन के, बैठे �हें उ�गाय । जीय �ही लूट� जम तिफ�े, मैँfा लुटे कसाय ॥ 120 ॥

एक कहूँ �ो है नहीं, दूजा कहँू �ो गा� । है जैसा �ैसा हो �हे, �हें कबी� तिवचा� ॥ 121 ॥

जो �ु चाहे मुK को, छोडे़ �े सब आस । मुK ही जैसा हो �हे, बस कुछ �े�े पास ॥ 122 ॥

साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय । चाहे बोले केस �ख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥ 123 ॥

अपन-े अपने साख की, सबही लीनी मान । हरि� की बा�ें दु�न्��ा, पू�ी ना कहूँ जान ॥ 124 ॥

खे� ना छोडे़ सू�मा, जूझे �ो �ल मोह । आशा जीवन म�ण की, मन में �ाखें नोह ॥ 125 ॥

लीक पु�ानी को �जें, काय� कुदिटल कपू� । लीख पु�ानी प� �हें, शाति�� सिसंह सपू� ॥ 126 ॥

काह भ�ोसा �ेह का, तिबनस जा� लिछन मा�निहं । साँस-साँस सुमिम�न क�ो, औ� य�न कछु नानिहं ॥ 159 ॥

काल क�े से आज क�, सबतिह सा� �ुव साथ । काल काल �ू क्या क�े काल काल के हाथ ॥ 160 ॥

काया काfा काल घुन, ज�न-ज�न सो खाय । काया बह्रा ईश बस, मम@ न काहूँ पाय ॥ 161 ॥

कहा तिकयो हम आय क�, कहा क�ेंगे पाय । इनके भये न उ�के, चाले मूल गवाय ॥ 162 ॥

कुदिटल बचन सबसे बु�ा, जासे हो� न हा� । साधु वचन जल रूप है, ब�से अम्र� धा� ॥ 163 ॥

कह�ा �ो बहँूना मिमले, गहना मिमला न कोय । सो कह�ा वह जान �े, जो नहीं गहना कोय ॥ 164 ॥

कबी�ा मन पँछी भया, भये �े बाह� जाय । जो जैसे संगति� क�ै, सो �ैसा फल पाय ॥ 165 ॥

कबी�ा लोहा एक है, गfन ेमें है फे� । �ातिह का बख�� बने, �ातिह की शमशे� ॥ 166 ॥

कहे कबी� �ेय �ू, जब �क �े�ी �ेह । �ेह खेह हो जाएगी, कौन कहेगा �ेह ॥ 167 ॥

क��ा था सो क्यों तिकया, अब क� क्यों पलिछ�ाय । बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय ॥ 168 ॥

कस्�ू�ी कुन्डल बसे, मृग ढं़ूfे बन मानिहं । ऐसे घट- घट �ाम है, दुतिनया �ेखे नानिहं ॥ 169 ॥

कबी�ा सो�ा क्या क�े, जागो जपो मु�ा� । एक दि�ना है सोवना, लांबे पाँव पसा� ॥ 170 ॥

कागा काको घन ह�े, कोयल काको �ेय । मीठे शब्� सुनाय के, जग अपनो क� लेय ॥ 171 ॥

कतिब�ा सोई पी� है, जो जा नैं प� पी� । जो प� पी� न जानइ, सो कातिफ� के पी� ॥ 172 ॥

कतिब�ा मनतिह गयन्� है, आकंुश �ै- �ै �ाग्निख । तिवष की बेली परि� �है, अम्र� को फल चाग्निख ॥ 173 ॥

 

पोथी पf-पf जग मुआ, पंतिड� भया न कोय । fाई आख� पे्रम का, पfै सो पंतिड़� होय ॥ 210 ॥ पानी के�ा बु�बु�ा, अस मानस की जा� । �ेख� ही लिछप जाएगा, ज्यों सा�ा प�भा� ॥ 211 ॥

पाहन पूजे हरि� मिमलें, �ो मैं पूजौं पहा� । या�े ये चक्की भली, पीस खाय संसा� ॥ 212 ॥ पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बन�ाय । अब के तिबछुडे़ ना मिमले, दू� पड़ेंगे जाय ॥ 213 ॥

पे्रमभाव एक चातिहए, भेष अनेक बजाय । चाहे घ� में बास क�, चाहे बन मे जाय ॥ 214 ॥

बने्ध को बँनधा मिमले, छूटे कौन उपाय ।

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कबी� यह जग कुछ नहीं, ग्निखन खा�ा मीठ । काल्ह जो बैठा भण्डपै, आज भसाने �ीठ ॥ 174 ॥

कतिब�ा आप ठगाइए, औ� न ठतिगए कोय । आप ठगे सुख हो� है, औ� ठगे दुख होय ॥ 175 ॥

कथा की�@न कुल तिवशे, भव साग� की नाव । कह� कबी�ा या जग�, नाहीं औ� उपाय ॥ 176 ॥

कतिब�ा यह �न जा� है, सके �ो ठौ� लगा । कै सेवा क� साधु की, कै गोनिवं� गुनगा ॥ 177 ॥

कलिल खोटा सजग आंध�ा, शब्� न माने कोय । चाहे कहूँ स� आइना, सो जग बै�ी होय ॥ 178 ॥

के�न दि�न ऐसे गए, अन रुचे का नेह । अवस� बोवे उपजे नहीं, जो ननिहं ब�से मेह ॥ 179 ॥

कबी� जा� पुका�या, चf चन्�न की डा� । वाट लगाए ना लगे तिफ� क्या ले� हमा� ॥ 180 ॥

कबी�ा खालिलक जातिगया, औ� ना जागे कोय । जाके तिवषय तिवष भ�ा, �ास बन्�गी होय ॥ 181 ॥

गाँदिठ न थामनिहं बाँध ही, ननिहं ना�ी सो नेह । कह कबी� वा साधु की, हम च�नन की खेह ॥ 182 ॥

खे� न छोडे़ सू�मा, जूझे को �ल माँह । आशा जीवन म�ण की, मन में �ाखे नाँह ॥ 183 ॥

चन्�न जैसा साधु है, सप@तिह सम संसा� । वाके अग्ङ लपटा �हे, मन मे नानिहं तिवका� ॥ 184 ॥

घी के �ो �श@न भले, खाना भला न �ेल । �ाना �ो दुश्मन भला, मू�ख का क्या मेल ॥ 185 ॥

गा�ी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट औ� भींच । हारि� चले सो साधु हैं, लातिग चले �ो नीच ॥ 186 ॥

चल�ी चक्की �ेख के, दि�या कबी�ा �ोय । दुइ पट भी�� आइके, सातिब� बचा न कोय ॥ 187 ॥

जा पल ��सन साधु का, �ा पल की बलिलहा�ी । �ाम नाम �सना बसे, लीजै जनम सुधारि� ॥ 188 ॥

क� संगति� तिन�बन्ध की, पल में लेय छुड़ाय ॥ 215 ॥

बूँ� पड़ी जो समुद्र में, �ातिह जाने सब कोय । समुद्र समाना बूँ� में, बूझै तिब�ला कोय ॥ 216 ॥

बाह� क्या दि�ख�ाइये, अन्�� जतिपए �ाम । कहा काज संसा� से, �ुझे धनी से काम ॥ 217 ॥

बानी से पहचातिनए, साम चो� की घा� । अन्�� की क�नी से सब, तिनकले मुँह की बा� ॥ 218 ॥

बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजू� । पँछी को छाया नहीं, फल लागे अति� दू� ॥ 219 ॥

मूँड़ मुड़ाये हरि� मिमले, सब कोई लेय मुड़ाय । बा�-बा� के मुड़�े, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥ 220 ॥

माया �ो ठगनी बनी, ठग� तिफ�े सब �ेश । जा ठग न ेठगनी ठगो, �ा ठग को आ�ेश ॥ 221 ॥

भज �ीना कहँू औ� ही, �न साधुन के संग । कहैं कबी� का�ी गजी, कैसे लागे �ंग ॥ 222 ॥

माया छाया एक सी, तिब�ला जाने कोय । भाग� के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय ॥ 223 ॥

मथु�ा भावै द्वारि�का, भावे जो जगन्नाथ । साधु संग हरि� भजन तिबनु, कछु न आवे हाथ ॥ 224 ॥

माली आव� �ेख के, कलिलयान क�ी पुका� । फूल-फूल चुन लिलए, काल हमा�ी बा� ॥ 225 ॥

मैं �ोऊँ सब जग�् को, मोको �ोवे न कोय । मोको �ोवे सोचना, जो शब्� बोय की होय ॥ 226 ॥

ये �ो घ� है पे्रम का, खाला का घ� नानिहं । सीस उ�ा�े भँुई ध�े, �ब बैठें घ� मानिहं ॥ 227 ॥

या दुतिनयाँ में आ क�, छाँतिड़ �ेय �ू ऐंठ । लेना हो सो लेइले, उठी जा� है पैंठ ॥ 228 ॥

�ाम नाम चीन्हा नहीं, कीना निपंज� बास । नैन न आवे नी��ौं, अलग न आवे भास ॥ 229 ॥

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जब लग भलिK से काम है, �ब लग तिनष्फल सेव । कह कबी� वह क्यों मिमले, तिन: कामा तिनज �ेव ॥ 189 ॥

जो �ोकंू काँटा बुवै, �ातिह बोय �ू फूल । �ोकू फूल के फूल है, बाँकू है ति��शूल ॥ 190 ॥

जा घट प्रेम न संच�े, सो घट जान समान । जैसे खाल लुहा� की, साँस ले�ु तिबन प्रान ॥ 191 ॥

ज्यों नैनन में पू�ली, त्यों मालिलक घ� मानिहं । मूख@ लोग न जातिनए, बह� ढं़ूf� जांतिह ॥ 192 ॥

जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप । पुछुप बास �ें पाम�ा, ऐसा �त्व अनूप ॥ 193 ॥

जहाँ आप �हाँ आप�ा, जहाँ संशय �हाँ �ोग । कह कबी� यह क्यों मिमटैं, चा�ों बाधक �ोग ॥ 194 ॥

जाति� न पूछो साधु की, पूलिछ लीजिजए ज्ञान । मोल क�ो �लवा� का, पड़ा �हन �ो म्यान ॥ 195 ॥

जल की जमी में है �ोपा, अभी सींचें सौ बा� । कतिब�ा खलक न �जे, जामे कौन वोचा� ॥ 196 ॥

जहाँ ग्राहक �ँह मैं नहीं, जँह मैं गाहक नाय । तिबको न यक भ�म� तिफ�े, पकड़ी शब्� की छाँय ॥ 197 ॥

झूठे सुख को सुख कहै, मान�ा है मन मो� । जग� चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गो� ॥ 198 ॥

जो �ु चाहे मुलिK को, छोड़ �े सबकी आस । मुK ही जैसा हो �हे, सब कुछ �े�े पास ॥ 199 ॥

जो जाने जीव आपना, क�हीं जीव का सा� । जीवा ऐसा पाहौना, मिमले न �ीजी बा� ॥ 200 ॥

दि�न गये अका�थी, संग� भई न सं� । पे्रम तिबना पशु जीवना, भलिK तिबना भगवं� ॥ 201 ॥

�ी� �ुपक से जो लडे़, सो �ो शू� न होय । माया �जिज भलिK क�े, सू� कहावै सोय ॥ 202 ॥

�ा� गंवाई सोय के, दि�वस गंवाया खाय । ही�ा जन्म अनमोल था, कौंड़ी ब�ले जाए ॥ 230 ॥

�ाम बुलावा भेजिजया, दि�या कबी�ा �ोय । जो सुख साधु सगं में, सो बैकंुठ न होय ॥ 231 ॥

संगति� सों सुख्या ऊपजे, कुसंगति� सो दुख होय । कह कबी� �हँ जाइये, साधु संग जहँ होय ॥ 232 ॥

सातिहब �े�ी सातिहबी, सब घट �ही समाय । ज्यों मेहँ�ी के पा� में, लाली �खी न जाय ॥ 233 ॥

साँझ पडे़ दि�न बी�बै, चकवी �ीन्ही �ोय । चल चकवा वा �ेश को, जहाँ �ैन ननिहं होय ॥ 234 ॥

संह ही मे स� बाँटे, �ोटी में �े टूक । कहे कबी� �ा �ास को, कबहुँ न आवे चूक ॥ 235 ॥

साईं आगे साँच है, साईं साँच सुहाय । चाहे बोले केस �ख, चाहे घौंट मुण्डाय ॥ 236 ॥

लकड़ी कहै लुहा� की, �ू मति� जा�े मोनिहं । एक दि�न ऐसा होयगा, मैं जा�ौंगी �ोतिह ॥ 237 ॥

हरि�या जाने रुखड़ा, जो पानी का गेह । सूखा काठ न जान ही, के�ुउ बूड़ा मेह ॥ 238 ॥

ज्ञान ��न का ज�नक� माटी का संसा� । आय कबी� तिफ� गया, फीका है संसा� ॥ 239 ॥

ॠजि� लिसजि� माँगो नहीं, माँगो �ुम पै येह । तिनलिस दि�न ��शन शाधु को, प्रभु कबी� कहँु �ेह ॥ 240 ॥

क्षमा बडे़ न को उलिच� है, छोटे को उत्पा� । कहा तिवष्णु का घदिट गया, जो भुगु मा�ीला� ॥ 241 ॥

�ाम-नाम कै पटं ��ै, �ेबे कौं कुछ नानिहं । क्या ले गु� सं�ोतिषए, हौंस �ही मन मानिहं ॥ 242 ॥

बलिलहा�ी गु� आपणौ, घौंहाड़ी कै बा� । जिजतिन भातिनष �ैं �ेव�ा, क�� न लागी बा� ॥ 243 ॥

ना गुरु मिमल्या न लिसष भया, लालच खेल्या डाव । दुन्यू बूडे़ धा� में, चदिf पाथ� की नाव ॥ 244 ॥

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�न को जोगी सब क�े, मन को तिब�ला कोय । सहजै सब तिवमिध पाइये, जो मन जोगी होय ॥ 203 ॥

�ब लग �ा�ा जगमगे, जब लग उगे नसू� । �ब लग जीव जग कम@वश, जब लग ज्ञान ना पू� ॥ 204 ॥

दुल@भ मानुष जनम है, �ेह न बा�म्बा� । �रुव� ज्यों पत्ती झडे़, बहुरि� न लागे डा� ॥ 205 ॥

�स द्वा�े का पींज�ा, �ामें पंछी मौन । �हे को अच�ज भयौ, गये अचम्भा कौन ॥ 206 ॥

धी�े- धी�े �े मना, धी�े सब कुछ होय । माली सीचें सौ घड़ा, ॠ�ु आए फल होय ॥ 207 ॥

न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय । मीन स�ा जल में �है, धोये बास न जाय ॥ 208 ॥

पाँच पह� धने्ध गया, �ीन पह� गया सोय । एक पह� भी नाम बीन, मुलिK कैसे होय ॥ 209 ॥

 

स�गु� हम संू �ीजिझ करि�, एक कह्मा क� संग । ब�स्या बा�ल पे्रम का, भींजिज गया अब अंग ॥ 245 ॥

कबी� स�गु� ना मिमल्या, �ही अधू�ी सीष । स्वाँग ज�ी का पहरि� करि�, धरि�-धरि� माँगे भीष ॥ 246 ॥

यह �न तिवष की बेल�ी, गुरु अमृ� की खान । सीस दि�ये जो गुरु मिमलै, �ो भी सस्�ा जान ॥ 247 ॥

�ू �ू क��ा �ू भया, मुझ में �ही न हँू । वा�ी फे�ी बलिल गई, जिज� �ेखौं ति�� �ू ॥ 248 ॥

�ाम तिपया�ा छांतिड़ करि�, क�ै आन का जाप । बेस्या के�ा पू�ं ज्यूं, कहै कौन सू बाप ॥ 249 ॥

कबी�ा पे्रम न चतिषया, चतिष न लिलया साव । सूने घ� का पांहुणां, ज्यूं आया त्यूं जाव ॥ 250 ॥

कबी�ा �ाम रि�झाइ लै, मुग्निख अमृ� गुण गाइ । फूटा नग ज्यूं जोतिड़ मन, संधे संमिध मिमलाइ ॥ 251 ॥

कबी� के �ोहे 

लंबा मा�ग, दूरि�ध�, तिवकट पंथ, बहुमा� । कहौ सं�ो, क्यूं पाइये, दुल@भ हरि�- �ी�ा� ॥ 252 ॥

तिब�ह- भुवगम �न बसै मंb न लागै कोइ ।�ाम- तिबयोगी ना जिजवै जिजवै �ो बौ�ा होइ ॥ 253 ॥

यह �न जालों मलिस क�ों, लिलखों �ाम का नाउं । लेखक्षिण करंू क�ंक की, लिलखी- लिलखी �ाम पठाउं ॥ 254 ॥

अ�ेंसड़ा न भाजिजसी, स�ैसो कतिहयां । के हरि� आयां भाजिजसी, कैहरि� ही पास गयां ॥ 255 ॥

इस �न का �ीवा क�ौ, बा�ी मेल्यूं जीवउं । लोही सींचो �ेल ज्यूं, कब मुख �ेख पदिठउं ॥ 256 ॥

अंषतिड़यां झाईं पड़ी, पंथ तिनहारि�- तिनहारि� । जीभतिड़याँ छाला पड़या, �ाम पुकारि�- पुकारि� ॥ 257 ॥

सब �ग �ं� �बाब �न, तिब�ह बजावै तिनत्त । औ� न कोई सुक्षिण सकै, कै साईं के लिचत्त ॥ 258 ॥

जो �ोऊँ �ो बल घटै, हँसो �ो �ाम रि�साइ । मन ही मानिहं तिबसू�णा, ज्यूँ घुँण काठनिहं खाइ ॥ 259 ॥

  हरि�-�स पीया जाक्षिणये, जे कबहुँ न जाइ खुमा� । मैम�ा घूम� �है, नातिह �न की सा� ॥ 302 ॥  कबी� हरि�-�स यौं तिपया, बाकी �ही न थातिक । पाका कलस कंुभा� का, बहुरि� न चfई चातिक ॥ 303 ॥

कबी� भाठी कलाल की, बहु�क बैठे आई । लिस� सौंपे सोई तिपवै, नहीं �ौ तिपया न जाई ॥ 304 ॥

तिbक्षणा सींची ना बुझै, दि�न दि�न बध�ी जाइ । जवासा के रुष ज्यूं, घण मेहां कुमिमलाइ ॥ 305 ॥

कबी� सो घन संलिचये, जो आगे कू होइ । सीस चfाये गाठ की जा� न �ेख्या कोइ ॥ 306 ॥

कबी� माया मोतिहनी, जैसी मीठी खांड़ । स�गुरु की कृपा भई, नहीं �ौ क��ी भांड़ ॥ 307 ॥

क��ा �ीसै की��न, ऊँचा करि� करि� �ंुड । जाने-बूझै कुछ नहीं, यौं ही अंधा रंुड ॥ 308 ॥

कबी� पदिfयो दूरि� करि�, पुस्�क �ेइ बहाइ । बावन आतिष� सोमिध करि�, ��ै मम� लिचत्त लाइ ॥ 309 ॥

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कबी� हँसणाँ दूरि� करि�, करि� �ोवण सौ लिचत्त । तिबन �ोयां क्यूं पाइये, पे्रम तिपया�ा मिमत्व ॥ 260 ॥

सुग्निखया सब संसा� है, खावै औ� सोवे । दुग्निखया �ास कबी� है, जागै अरु �ौवे ॥ 261 ॥

प�बति� प�बति� मैं तिफ�या, नैन गंवाए �ोइ । सो बूटी पाऊँ नहीं, जा�ैं जीवतिन होइ ॥ 262 ॥

पू� तिपया�ौ तिप�ा कौं, गौहतिन लागो घाइ ।लोभ- मिमठाई हाथ �े, आपण गयो भुलाइ ॥ 263 ॥

हाँसी खैलो हरि� मिमलै, कौण सहै ष�सान । काम क्रोध तिbष्णं �जै, �ोतिह मिमलै भगवान ॥ 264 ॥

जा का�क्षिण में ढँ़ूf�ी, सनमुख मिमलिलया आइ । धन मैली तिपव ऊजला, लातिग न सकौं पाइ ॥ 265 ॥

पहुँचेंगे �ब कहैगें, उमड़ैंगे उस ठांई । आजहंू बे�ा समं� मैं, बोलिल तिबगू पैं काई ॥ 266 ॥

�ीठा है �ो कस कहंू, कह्मा न को पति�याइ । हरि� जैसा है �ैसा �हो, �ू हरि�ष- हरि�ष गुण गाइ ॥ 267 ॥

भा�ी कहौं �ो बहुड�ौं, हलका कहंू �ौ झूठ । मैं का जाणी �ाम कंू नैनूं कबहंू न �ीठ ॥ 268 ॥

कबी� एक न जाण्यां, �ो बहु जाण्यां क्या होइ । एक �ै सब हो� है, सब �ैं एक न होइ ॥ 269 ॥

कबी� �ेख स्यंदू� की, काजल दि�या न जाइ । नैनूं �मैया �मिम �ह्मा, दूजा कहाँ समाइ ॥ 270 ॥

कबी� कू�ा �ाम का, मुति�या मे�ा नाउं । गले �ाम की जेवड़ी, जिज� खैंचे ति�� जाउं ॥ 271 ॥

कबी� कलिलजुग आइ करि�, कीये बहु� जो भी� । जिजन दि�ल बांध्या एक सूं, �े सुख सोवै तिनचीं� ॥ 272 ॥

जब लग भगतिह� सकाम�ा, सब लग तिनफ@ ल सेव । कहै कबी� वै क्यँू मिमलै तिनह्कामी तिनज �ेव ॥ 273 ॥

पति�ब��ा मैली भली, गले कांच को पो� । सब सग्निखयन में यों दि�पै, ज्यों �तिव सलिस को जो� ॥ 274 ॥

मैं जाण्यूँ पादिfबो भलो, पादिfबा थे भलो जोग । �ाम-नाम संू प्री�ी करि�, भल भल नींयो लोग ॥ 310 ॥

प� गाएं मन ह�तिषयां, साषी कह्मां अन�ं । सो �� नांव न जाक्षिणयां, गल में पतिड़या फं� ॥ 311 ॥

जैसी मुख �ै नीकसै, �ैसी चाले चाल । पा� ब्रह्म नेड़ा �है, पल में क�ै तिनहाल ॥ 312 ॥

काजी-मुल्ला भ्रमिमयां, चल्या युनीं कै साथ । दि�ल थे �ीन तिबसारि�यां, क�� लई जब हाथ ॥ 313 ॥

पे्रम-तिप्रति� का चालना, पतिहरि� कबी�ा नाच । �न-मन �ाप� वा�हुँ, जो कोइ बौलौ सांच ॥ 314 ॥

सांच ब�ाब� �प नहीं, झूठ ब�ाब� पाप । जाके तिह��ै में सांच है, �ाके तिह��ै हरि� आप ॥ 315 ॥

खूब खांड है खीचड़ी, मातिह ष्डयाँ टुक कून । �ेख प�ाई चूपड़ी, जी ललचावे कौन ॥ 316 ॥

साईं से�ी चोरि�याँ, चो�ा से�ी गुझ । जाणैंगा �े जीवएगा, मा� पडै़गी �ुझ ॥ 317 ॥

�ी�थ �ो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाय । कबी� मूल तिनकंदि�या, कौण हलाहल खाय ॥ 318 ॥

जप-�प �ीसैं थोथ�ा, �ी�थ व्र� बेसास । सूवै सैंबल सेतिवया, यौ जग चल्या तिन�ास ॥ 319 ॥

जे�ी �ेखौ आत्म, �े�ा सालिलग�ाम । �ाधू प्र�तिष �ेव है, नहीं पाथ सँू काम ॥ 320 ॥

कबी� दुतिनया �ेहु�ै, सी� नवांव�ग जाइ । तिह��ा भी�� हरि� बसै, �ू �ातिह सौ ल्यो लाइ ॥ 321 ॥

मन मथु�ा दि�ल द्वारि�का, काया कासी जाक्षिण । �सवा ंद्वा�ा �ेहु�ा, �ामै जोति� तिपलिछरि�ग ॥ 322 ॥

मे�े संगी �ोइ ज�ग, एक वैष्णौ एक �ाम । वो है �ा�ा मुलिK का, वो सुमिम�ावै नाम ॥ 323 ॥

मथु�ा जाउ भावे द्वारि�का, भावै जाउ जगनाथ ।

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कामी अभी न भावई, तिवष ही कौं ले सोमिध । कुबुग्निध्� न जीव की, भावै स्यंभ �हौ प्रमोलिथ ॥ 275 ॥

भगति� तिबगाड़ी कामिमयां, इन्द्री के�ै स्वादि� । ही�ा खोया हाथ थैं, जनम गँवाया बादि� ॥ 276 ॥

प�ना�ी का �ाचणौ, जिजसकी लहसण की खातिन । खूणैं बेलिस� खाइय, प�गट होइ दि�वातिन ॥ 277 ॥

प�ना�ी �ा�ा तिफ�ैं, चो�ी तिबदिf�ा खानिहं । दि�वस चारि� स�सा �है, अति� समूला जानिहं ॥ 288 ॥

ग्यानी मूल गँवाइया, आपण भये क�ना । �ाथैं संसा�ी भला, मन मैं �है ड�ना ॥ 289 ॥

कामी लज्जा ना क�ै, न माहें अतिहला� । नीं� न माँगै साँथ�ा, भूख न माँगे स्वा� ॥ 290 ॥

कलिल का स्वामी लोक्षिभया, पी�लिल घ�ी खटाइ ।�ाज- दुबा�ा यौं तिफ�ै, ज्यँ हरि�हाई गाइ ॥ 291 ॥

स्वामी हूवा सी�का, पैलाका� पचास ।�ाम- नाम काठें �ह्मा, क�ै लिसषां की आंस ॥ 292 ॥

इतिह उ�� के का�णे, जग पाच्यो तिनस जाम ।स्वामी- पणौ जो लिसरि� चfयो, लिस� यो न एको काम ॥ 293 ॥

ब्राह्म्ण गुरु जग�् का, साधू का गुरु नानिहं ।उ�जिझ- पु�जिझ करि� भरि� �ह्मा, चारि�उं बे�ा मांतिह ॥ 294 ॥

कबी� कलिल खोटी भई, मुतिनय� मिमलै न कोइ । लालच लोभी मसक�ा, ति�नकँू आ�� होइ ॥ 295 ॥

कलिल का स्वमी लोक्षिभया, मनसा घ�ी बधाई । �ैंतिह पईसा ब्याज़ को, लेखां क��ा जाई ॥ 296 ॥

कबी� इस संसा� कौ, समझाऊँ कै बा� । पँूछ जो पकडै़ भेड़ की उ�� या चाहे पा� ॥ 297 ॥

�ी�थ करि�- करि� जग मुवा, डंूधै पाणी न्हाइ । �ामतिह �ाम जप�ंडां, काल घसीटया जाइ ॥ 298 ॥

च�ु�ाई सूवै पfी, सोइ पंज� मांतिह । तिफरि� प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नानिहं ॥ 299 ॥

साथ-संगति� हरि�-भागति� तिबन-कछु न आवै हाथ ॥ 324॥

कबी� संगति� साधु की, बेतिग क�ीजै जाइ । दुम@ति� दूरि� बंबाइसी, �ेसी सुमति� ब�ाइ ॥ 330 ॥

उज्जवल �ेग्निख न धीजिजये, वग ज्यूं माडै ध्यान । धी� बौदिठ चपेटसी, यूँ ले बूडै ग्यान ॥ 325 ॥

जे�ा मीठा बोल�गा, �े�ा साधन जारि�ग । पहली था दि�खाइ करि�, उडै �ेसी आरि�ग ॥ 326 ॥

जातिन बूजिझ सांचनिहं �ज�, क�ै झूठ सँू नेहु । �ातिक संगति� �ाम जी, सुतिपने ही तिपतिन �ेहु ॥ 327 ॥

कबी�ा खाई कोट तिक, पानी तिपवै न कोई । जाइ मिमलै जब गंग से, �ब गंगो�क होइ ॥ 328 ॥

माषी गुड़ मैं गतिड़ �ही, पंख �ही लपटाई । �ाली पीटै लिसरि� घुन,ै मीठै बोई माइ ॥ 329 ॥

मू�ख संग न कीजिजये, लोहा जलिल न ति��ाइ । क�ली-सीप-भुजगं मुख, एक बूं� ति�हँ भाइ ॥ 330 ॥  कबी� �ास मिमलाइ, जास तिहयाली �ू बसै । ननिहं�� बेतिग उठाइ, तिन� का गंज� को सहै ॥ 331॥

कबी�ा बन-बन मे तिफ�ा, का�क्षिण आपणै �ाम । �ाम स�ीखे जन मिमले, ति�न सा�े सवे�े काम ॥ 332 ॥

कबी� मन पंषो भया, जहाँ मन वहाँ उतिड़ जाय । जो जैसी संगति� क�ै, सो �ैसे फल खाइ ॥ 333 ॥

हरि�जन से�ी रुसणा, संसा�ी सँू हे� । �े ण� क�े न नीपजौ, ज्यूँ काल� का खे� ॥ 334 ॥

काजल के�ी कोठड़ी, �ैसी यहु संसा� । बलिलहा�ी �ा �ास की, पैलिस� तिनकसण हा� ॥ 335॥

पाणी ही�ै पा�ला, धुवाँ ही �ै झीण । पवनां बेतिग उ�ावला, सो �ोस्� कबी� कीन्ह ॥ 336 ॥

आसा का ईंधण करँू, मनसा करँू तिबभूति� । जोगी फे�ी तिफल करँू, यौं तिबनना वो सूति� ॥ 337 ॥

कबी� मारू मन कँू, टूक-टूक है जाइ । तिवव की क्या�ी बोइ करि�, लुण� कहा पलिछ�ाइ ॥ 338 ॥

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कबी� मन फूल्या तिफ�ै, क��ा हँू मैं घ्रंम । कोदिट क्रम लिसरि� ले चल्या, चे� न �ेखै भ्रम ॥ 300 ॥

सबै �साइण मैं तिक्रया, हरि� सा औ� न कोई । ति�ल इक घ� मैं संच�े, �ौ सब �न कंचन होई ॥ 301 ॥

 

काग� के�ी नाव �ी, पाणी के�ी गंग । कहै कबी� कैसे ति�रँू, पंच कुसंगी संग ॥ 339 ॥

मैं मन्�ा मन मारि� �े, घट ही माहैं घरेि� । जबहीं चालै पीदिठ �े, अंकुस �ै-�ै फेरि� ॥ 340॥

कबी� के �ोहे कबी� कहा ग�तिबयौ, काल कहै क� केस ।

ना जाणै कहाँ मारि�सी, कै धरि� के प��ेस ॥ 341 ॥

नान्हा का�ौ लिचत्त �े, महँगे मोल तिबलाइ । गाहक �ाजा �ाम है, औ� न नेडा आइ ॥ 342 ॥

  कबी� नौब� आपणी, दि�न- �स लेहू बजाइ ।

ए पु� पाटन, ए गली, बहुरि� न �ेखै आइ ॥ 343 ॥

जिजनके नौबति� बाज�ी, भैंगल बंध�े बारि� । एकै हरि� के नाव तिबन, गए जनम सब हारि� ॥ 344 ॥

कहा तिकयौ हम आइ करि�, कहा कहैंगे जाइ । इ� के भये न उ� के, चलिल� भूल गँवाइ ॥ 345 ॥

तिबन �खवाले बातिह�ा, लिचतिड़या खाया खे� ।आधा- प�धा ऊब�ै, चेति� सकै �ो चैति� ॥ 346 ॥

उजला कपड़ा पतिहरि� करि�, पान सुपा�ी खानिहं । एकै हरि� के नाव तिबन, बाँधे जमपुरि� जानिहं ॥ 347 ॥

कबी� केवल �ाम की, �ू जिजतिन छाँडै़ ओट ।घण- अह�तिन तिबलिच लौह ज्यूँ, घणी सहै लिस� चोट ॥ 348 ॥

मैं- मैं बड़ी बलाइ है सकै �ो तिनकसौ भाजिज । कब लग �ाखौ हे सखी, रुई लपेटी आतिग ॥ 349 ॥

कबी� माला मन की, औ� संसा�ी भेष । माला पह�यां हरि� मिमलै, �ौ अ�हट कै गलिल �ेग्निख ॥ 350 ॥

माला पतिह�ै मनभुषी, �ाथै कछू न होइ । मन माला को फै��ा, जग उजिजया�ा सोइ ॥ 351 ॥

कैसो कहा तिबगातिड़या, जो मुंडै सौ बा� । मन को काहे न मूंतिडये, जामे तिवषम- तिवका� ॥ 352 ॥

कबी� हरि� सब कँू भजै, हरि� कँू भजै न कोइ । जब लग आस स�ी� की, �ब लग �ास न होइ ॥ 403 ॥

लिस� साटें हरि� सेवेये, छांतिड़ जीव की बाक्षिण । जे लिस� �ीया हरि� मिमलै, �ब लतिग हाक्षिण न जाक्षिण ॥ 404 ॥

जे�े �ा�े �ैक्षिण के, �े�ै बै�ी मुझ । धड़ सूली लिस� कंगु�ै, �ऊ न तिबसा�ौ �ुझ ॥ 405 ॥

आपा भेदिटयाँ हरि� मिमलै, हरि� मेट् या सब जाइ । अकथ कहाणी पे्रम की, कह्या न कोउ पत्याइ ॥ 406 ॥

जीवन थैं मरि�बो भलौ, जो मरि� जानैं कोइ । म�नैं पहली जे म�ै, जो कलिल अज�ाव� होइ ॥ 407 ॥

कबी� मन मृ�क भया, दुब@ल भया स�ी� । �ब पैंडे लागा हरि� तिफ�ै, कह� कबी� कबी� ॥ 408 ॥

�ोड़ा है �हो बाट का, �जिज पाषंड अक्षिभमान । ऐसा जे जन है �है, �ातिह मिमलै भगवान ॥ 409 ॥

कबी� चे�ा सं� का, �ासतिन का प��ास । कबी� ऐसैं होइ �क्षा, ज्यूँ पाऊँ �लिल घास ॥ 410 ॥  अब�न कों का ब�तिनये, भोपै लख्या न जाइ । अपना बाना वातिहया, कतिह-कतिह थाके भाइ ॥ 411 ॥

जिजसतिह न कोई तिवसतिह �ू, जिजस �ू ति�स सब कोई । �रि�गह �े�ी सांइयाँ, जा मरूम कोइ होइ ॥ 412 ॥

साँई मे�ा वाक्षिणयां, सहति� क�ै व्यौपा� । तिबन डांडी तिबन पालडै़ �ौले सब संसा� ॥ 413 ॥

झल बावै झल �ातिहनै, झलतिह मातिह त्योहा� । आगै-पीछै झलमाई, �ाख ैलिस�जनहा� ॥ 414 ॥

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माला पह�यां कुछ नहीं, भगति� न आई हाथ । माथौ मूँछ मुंडाइ करि�, चल्या जग�् के साथ ॥ 353 ॥

बैसनो भया �ौ क्या भया, बूझा नहीं बबेक । छापा ति�लक बनाइ करि�, �गहया अनेक ॥ 354 ॥

स्वाँग पहरि� सो �हा भया, खाया- पीया खूंदि� । जिजतिह �े�ी साधु नीकले, सो �ो मेल्ही मूंदि� ॥ 355 ॥

च�ु�ाई हरि� ना मिमलै, ए बा�ां की बा� । एक तिनस प्रेही तिन�धा� का गाहक गोपीनाथ ॥ 356 ॥

एष ले बूfी पृथमी, झूठे कुल की ला� । अलष तिबसा�यो भेष में, बूडे़ काली धा� ॥ 357 ॥

कबी� हरि� का भाव�ा, झीणां पंज� । �ैक्षिण न आवै नीं�ड़ी, अतंिग न चfई मांस ॥ 358 ॥

सिसंहों के लेहँड नहीं, हंसों की नहीं पाँ� । लालों की नतिह बोरि�याँ, साध न चलै जमा� ॥ 359 ॥

गाँठी �ाम न बांधई, ननिहं ना�ी सों नेह । कह कबी� �ा साध की, हम च�नन की खेह ॥ 360 ॥

तिन�बै�ी तिनहकाम�ा, साईं से�ी नेह । तिवतिषया संू न्या�ा �है, सं�तिन का अंग सह ॥ 378 ॥

जिजनिहं तिह��ै हरि� आइया, सो क्यूं छाना होइ ।ज�न- ज�न करि� �ातिबये, �ऊ उजाला सोइ ॥ 361 ॥

काम मिमलावे �ाम कंू, जे कोई जाणै �ाग्निख । कबी� तिबचा�ा क्या कहै, जातिक सुख्�ेव बोले साख ॥ 362 ॥

�ाम तिवयोगी �न तिबकल, �ातिह न चीन्हे कोई । �ंबोली के पान ज्यूं, दि�न- दि�न पीला होई ॥ 363 ॥

पावक रूपी �ाम है, घदिट- घदिट �ह्या समाइ । लिच� चकमक लागै नहीं, �ाथै घूवाँ है- है जाइ ॥ 364 ॥

फाटै �ी�ै में तिफ�ौं, नजिज� न आवै कोई । जिजतिह घदिट मे�ा साँइयाँ, सो क्यूं छाना होई ॥ 365 ॥

हैव� गैव� सघन धन, छbप�ी की नारि� । �ास पटे�� ना �ुलै, हरि�जन की पतिनहारि� ॥ 366 ॥

एसी बाणी बोलिलये, मन का आपा खोइ । औ�न को सी�ल क�ै, आपौ सी�ल होइ ॥ 415 ॥

कबी� हरि� कग नाव सँू प्रीति� �है इकवा� । �ौ मुख �ैं मो�ी झडै़ ही�े अन्� न पा� ॥ 416 ॥

बै�ागी तिब�क� भला, तिग�ही लिचत्त उ�ा� । दुहँु चूका �ी�ा पडै़ वाकँू वा� न पा� ॥ 417 ॥

कोई एक �ाखै सावधां, चे�तिन पह�ै जातिग । बस्�� बासन सँू ग्निखसै, चो� न सकई लातिग ॥ 418 ॥

बा�ी-बा�ी आपणीं, चले तिपया�े म्यं� । �े�ी बा�ी �े जिजया, नेड़ी आवै निनं� ॥ 419 ॥

प�ा�थ पेलिल करि�, कंक� लीया हालिथ । जोड़ी तिबछटी हंस की, पड़या बगां के सालिथ ॥ 420 ॥

निनं�क तिनया�े �ाग्निखये, आंगन कुदिट छबाय । तिबन पाणी तिबन सबुना, तिन�मल क�ै सुभाय ॥ 421 ॥

गोत्यं� के गुण बहु� हैं, लिलखै जु तिह��ै मांतिह । ड��ा पाणी जा पीऊं, मति� वै धोये जातिह ॥ 422 ॥

जो ऊग्या सो आंथवै, फूल्या सो कुमिमलाइ । जो लिचक्षिणयां सो ढतिह पडै़, जो आया सो जाइ ॥ 423 ॥

सी�ल�ा �ब जाक्षिणयें, समिम�ा �है समाइ । पष छाँडै़ तिन�पष �है, सब� न �ेष्या जाइ ॥ 424 ॥

खूं�न �ौ ध��ी सहै, बाf सहै बन�ाइ । कुसब� �ौ हरि�जन सहै, दूजै सह्या न जाइ ॥ 425 ॥

नी� तिपयाव� क्या तिफ�ै, साय� घ�-घ� बारि� । जो तिbषावन्� होइगा, सो पीवेगा झखमारि� ॥ 426 ॥

कबी� लिस�जन हा� तिबन, मे�ा तिह� न कोइ । गुण औगुण तिबहणै नहीं, स्वा�थ बँधी लोइ ॥ 427 ॥

ही�ा प�ा बजा� में, �हा छा� लतिपटाइ । ब �क मू�ख चलिल गये पा�ग्निख लिलया उठाइ ॥ 428 ॥

सु�ति� क�ौ मे�े साइयां, हम हैं भोजन मानिहं । आपे ही बतिह जानिहंगे, जौ ननिहं पक�ौ बानिहं ॥ 429 ॥

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जिजनिहं धरि� साध न पूजिज, हरि� की सेवा नानिहं । �े घ� भड़धट सा�षे, भू� बसै ति�न मानिहं ॥ 367 ॥

कबी� कुल �ौ सोभला, जिजतिह कुल उपजै �ास । जिजनिहं कुल �ास न उपजै, सो कुल आक- पलास ॥ 368 ॥

क्यूं नृप- ना�ी नींदि�ये, क्यूं पतिनहा�ी कौ मान । वा माँग सँवा�े पील कौ, या तिन� उदिठ सुमिम�ै�ाम ॥ 369 ॥

काबा तिफ� कासी भया, �ाम भया �े �हीम । मोट चून मै�ा भया, बैदिठ कबी�ा जीम ॥ 370 ॥

दुग्निखया भूखा दुख कौं, सुग्निखया सुख कौं झूरि� । स�ा अजं�ी �ाम के, जिजतिन सुख- दुख गेल्हे दूरि� ॥ 371 ॥

कबी� दुतिबधा दूरि� करि�, एक अंग है लातिग । यहु सी�ल बहु �पति� है, �ोऊ कतिहये आतिग ॥ 372 ॥

कबी� का �ू सिचं�वै, का �े�ा च्यंत्या होइ । अण्च्यंत्या हरि�जी क�ै, जो �ोतिह च्यं� न होइ ॥ 373 ॥

भूखा भूखा क्या क�ैं, कहा सुनावै लोग । भांडा घतिड़ जिजतिन मुख मियका, सोई पू�ण जोग ॥ 374 ॥

�चनाहा� कंू चीग्निन्ह लै, खैबे कंू कहा �ोइ । दि�ल मंदि� मैं पैलिस करि�, �ाक्षिण पछेवड़ा सोइ ॥ 375 ॥

कबी� सब जग हंतिडया, मां�ल कंमिध चfाइ । हरि� तिबन अपना कोउ नहीं, �ेखे ठोतिक बनाइ ॥ 376 ॥

मांगण म�ण समान है, तिब��ा बंचै कोई । कहै कबी� �घुनाथ सूं, मति� �े मंगावे मोतिह ॥ 377 ॥

मातिन मह�म प्रेम- �स ग�वा�ण गुण नेह । ए सबहीं अहला गया, जबही कह्या कुछ �ेह ॥ 378 ॥

सं� न बांधै गाठड़ी, पेट समा�ा- �ेइ । साईं संू सनमुख �है, जहाँ माँगे �हां �ेइ ॥ 379 ॥

कबी� संसा कोउ नहीं, हरि� संू लाग्गा हे� ।काम- क्रोध संू झूझणा, चौडै मांड्या खे� ॥ 380 ॥

  स�गुन की सेवा क�ो, तिन�गुन का क�ो ज्ञान ।

तिन�गुन स�गुन के प�े, �हीं हमा�ा ध्यान ॥ 381 ॥

क्या मुख लै तिबन�ी क�ौं, लाज आव� है मोतिह । �ुम �ेख� ओगुन क�ौं, कैसे भावों �ोतिह ॥ 430 ॥

सब काहू का लीजिजये, साचां सब� तिनहा� । पच्छपा� ना कीजिजये कहै कबी� तिवचा� ॥ 431 ॥

गुरु सों ज्ञान जु लीजिजये सीस �ीजिजए �ान । बहु�क भोदँू बतिह गये, �ाग्निख जीव अक्षिभमान ॥ 432 ॥

गुरु को कीजै �ण्डव कोदिट-कोदिट प�नाम । कीट न जाने भृगं को, गुरु क�ले आप समान ॥ 433 ॥

कुमति� कीच चेला भ�ा, गुरु ज्ञान जल होय । जनम-जनम का मो�चा, पल में डा�े धोय ॥ 434 ॥

गुरु पा�स को अन्��ो, जान� है सब सन्� । वह लोहा कंचन क�े, ये करि� लेय महन्� ॥ 435 ॥

गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय । कहैं कबी� सो सन्� हैं, आवागमन नशाय ॥ 436 ॥

जो गुरु बसै बना�सी, सीष समुन्�� �ी� । एक पलक तिबस�े नहीं, जो गुण होय श�ी� ॥ 437 ॥

गुरु समान �ा�ा नहीं, याचक सीष समान । �ीन लोक की सम्प�ा, सो गुरु �ीन्ही �ान ॥ 438 ॥

गुरु कुम्हा� लिसष कंुभ है, गदिf-गदिf काfै खोट । अन्�� हाथ सहा� �ै, बाह� बाहै चोट ॥ 439 ॥

गुरु को लिस� �ाग्निखये, चलिलये आज्ञा मानिहं । कहैं कबी� �ा �ास को, �ीन लोक भय ननिहं ॥ 440 ॥

लच्छ कोष जो गुरु बसै, �ीजै सु�ति� पठाय । शब्� �ु�ी बसवा� है, लिछन आवै लिछन जाय ॥ 441 ॥

गुरु मू�ति� गति� चन्द्रमा, सेवक नैन चको� । आठ पह� तिन�ख�ा �हे, गुरु मू�ति� की ओ� ॥ 442 ॥

गुरु सों प्रीति� तिनबातिहये, जेतिह �� तिनबटै सन्� । पे्रम तिबना दिढग दू� है, पे्रम तिनकट गुरु कन्� ॥ 443 ॥

गुरु तिबन ज्ञान न उपजै, गुरु तिबन मिमलै न मोष ।

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घन ग�जै, �ामिमतिन �मकै, बूँ�ैं ब�सैं, झ� लाग गए। ह� �लाब में कमल ग्निखले, �हाँ भानु प�गट भये॥ 382 ॥

क्या काशी क्या ऊस� मगह�, �ाम हृ�य बस मो�ा। जो कासी �न �जै कबी�ा, �ामे कौन तिनहो�ा ॥ 9384 ॥

काल काल सब कोई कहै, काल न चीन्है कोय । जे�ी मन की कल्पना, काल कहवै सोय ॥ 385 ॥

कह�े �ो कतिह जान �े, गुरु की सीख �ु लेय । साकट जन औ श्वान को, फेरि� जवाब न �ेय ॥ 386 ॥

फागुन आव� �ेग्निख के, मन झू�े बन�ाय । जिजन डाली हम केलिल, सो ही ब्यो�े जाय ॥ 387 ॥

मूस्या ड�पैं काल सों, कदिठन काल को जो� । स्वग@ भूमिम पा�ाल में जहाँ जावँ �हँ गो� ॥ 388 ॥

काल पाय जब ऊपजो, काल पाय सब जाय । काल पाय सतिब तिबतिनश है, काल काल कहँ खाय ॥ 389 ॥

पा� झ�न्�ा �ेग्निख के, हँस�ी कूपलिलयाँ । हम चाले �ु मचालिलहौं, धी�ी बापलिलयाँ ॥ 390 ॥

  सब जग ड�पै काल सों, ब्रह्मा, तिवष्णु महेश ।

सु� न� मुतिन औ लोक सब, सा� �सा�ल सेस ॥ 391 ॥

कबी�ा पग�ा दूरि� है, आय पहँुची साँझ ।जन- जन को मन �ाख�ा, वेश्या �तिह गयी बाँझ ॥ 392 ॥

जाय झ�ोखे सोव�ा, फूलन सेज तिबछाय । सो अब कहँ �ीसै नहीं, लिछन में गयो बोलाय ॥ 393 ॥

काल तिफ�े लिस� ऊप�ै, हाथों ध�ी कमान । कहैं कबी� गहु ज्ञान को, छोड़ सकल अक्षिभमान ॥ 394 ॥

�ाजी छूटा शह� �े, कसबे पड़ी पुका� । ��वाजा जड़ा ही �हा, तिनकस गया असवा� ॥ 395 ॥

खुलिल खेलो संसा� में, बाँमिध न सक्कै कोय । घाट जगा�ी क्या क�ै, लिस� प� पोट न होय ॥ 396 ॥

घाट जगा�ी धम@�ाय, गुरुमुख ले पतिहचान । छाप तिबना गुरु नाम के, साकट �हा तिन�ान ॥ 397 ॥

संसै काल श�ी� में, जारि� क�ै सब धूरि� । काल से बांचे �ास जन जिजन पै द्दाल हुजू� ॥ 398 ॥

कबी� सोई सूरि�मा, मन सँू मांडै झूझ । पंच पया�ा पातिड़ ले, दूरि� क�ै सब दूज ॥ 399 ॥

जिजस म�नै यैं जग ड�ै, सो मे�े आनन्� । कब मरि�हँू कब �ेग्निखहूँ पू�न प�मानं� ॥ 400 ॥

गुरु तिबन लख ैन सत्य को, गुरु तिबन मिमटे न �ोष ॥ 444 ॥

गुरु मू�ति� आगे खड़ी, दुतिनया भे� कछु नानिहं । उन्हीं कँू प�नाम करि�, सकल ति�मिम� मिमदिट जानिहं ॥ 445 ॥

गुरु श�णागति� छातिड़ के, क�ै भ�ौसा औ� । सुख सम्पति� की कह चली, नहीं प�क ये ठौ� ॥ 446 ॥

लिसष खांडा गुरु भसकला, चfै शब्� ख�सान । शब्� सहै सम्मुख �है, तिनपजै शीष सुजान ॥ 447 ॥

ज्ञान समागम पे्रम सुख, �या भलिK तिवश्वास । गुरु सेवा �े पाइये, सद्गरुु च�ण तिनवास ॥ 448 ॥

अहं अग्निग्न तिनलिश दि�न ज�ै, गुरु सो चाहे मान । �ाको जम न्यो�ा दि�या, होउ हमा� मेहमान ॥ 449 ॥

जैसी प्रीति� कुटुम्ब की, �ैसी गुरु सों होय । कहैं कबी� �ा �ास का, पला न पकडै़ कोय ॥ 450 ॥

मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव । मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य स�भाव ॥ 451 ॥

पंतिड� पादिf गुतिन पलिच मुये, गुरु तिबना मिमलै न ज्ञान । ज्ञान तिबना ननिहं मुलिK है, सत्त शब्� प�नाम ॥ 452 ॥

सोइ-सोइ नाच नचाइये, जेतिह तिनबहे गुरु पे्रम । कहै कबी� गुरु पे्रम तिबन, क�हुँ कुशल नतिह के्षम ॥ 453 ॥

कहैं कबी� जजिज भ�म को, नन्हा है क� पीव । �जिज अहं गुरु च�ण गहु, जमसों बाचै जीव ॥ 454 ॥

कोदिटन चन्�ा उगही, सू�ज कोदिट हज़ा� । �ीमिम� �ौ नाश ैनहीं, तिबन गुरु घो� अंधा� ॥ 455 ॥

�बही गुरु तिप्रय बैन कतिह, शीष बfी लिच� प्री� । �े �तिहयें गुरु सनमुखाँ कबहूँ न �ीजै पीठ ॥ 456 ॥

�न मन शीष तिनछाव�ै, �ीजै स�बस प्रान । कहैं कबी� गुरु पे्रम तिबन, तिक�हँू कुशल ननिहं के्षम ॥ 457 ॥

जो गुरु पू�ा होय �ो, शीषतिह लेय तिनबातिह । शीष भाव सुत्त जातिनये, सु� �े श्रेष्ठ लिशष आतिह ॥ 458 ॥

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अब �ौ जूझया ही ब�गै, मुतिड चल्यां घ� दू� । लिस� सातिहबा कौ सौंप�ा, सोंच न कीजै सू� ॥ 401 ॥

कबी� घोड़ा प्रेम का, चे�तिन चादिf असवा� । ग्यान खड़ग गतिह काल लिसरि�, भली मचाई मा� ॥ 402 ॥

 

भौ साग� की bास �ेक, गुरु की पकड़ो बाँतिह । गुरु तिबन कौन उबा�सी, भौ जल धा�ा माँतिह ॥ 459 ॥

क�ै दूरि� अज्ञान�ा, अंजन ज्ञान सु�ेय । बलिलहा�ी वे गुरुन की हंस उबारि� जुलेय ॥ 460 ॥

सुतिनये सन्�ों साधु मिमलिल, कहनिहं कबी� बुझाय । जेतिह तिवमिध गुरु सों प्रीति� छै कीजै सोई उपाय ॥ 461 ॥

अबुध सुबुध सु� मा�ु तिप�ु, सबतिह क�ै प्रति�पाल । अपनी औ� तिनबातिहये, लिसख सु� गतिह तिनज चाल ॥ 462 ॥

लौ लागी तिवष भातिगया, कालख डा�ी धोय । कहैं कबी� गुरु साबुन सों, कोई इक ऊजल होय ॥ 463 ॥

कबी� के �ोहे

�ाजा की चो�ी क�े, �है �ंग की ओट । कहैं कबी� क्यों उब�ै, काल कदिठन की चोट ॥ 464 ॥

साबुन तिबचा�ा क्या क�े, गाँठे �ाखे मोय । जल सो अ�सां ननिहं, क्यों क� ऊजल होय ॥ 465 ॥

सत्गुरु �ो स�भाव है, जो अस भे� ब�ाय । धन्य शीष धन भाग ति�तिह जो ऐसी सुमिध पाय ॥ 466 ॥

स�गुरु श�ण न आवहीं, तिफ� तिफ� होय अकाज । जीव खोय सब जायेंगे काल ति�हूँ पु� �ाज ॥ 467 ॥

स�गुरु सम कोई नहीं सा� �ीप नौ खण्ड । �ीन लोक न पाइये, अरु इक्कीस ब्रह्म्ण्ड ॥ 468 ॥

स�गुरु मिमला जु जातिनये, ज्ञान उजाला होय । भ्रम का भांड �ोतिड़ करि�, �है तिन�ाला होय ॥ 469 ॥

स�गुरु मिमले जु सब मिमले, न �ो मिमला न कोय ।मा�ा- तिप�ा सु� बाँधवा ये �ो घ� घ� होय ॥ 470 ॥

जेतिह खोज� ब्रह्मा थके, सु� न� मुतिन अरु �ेव । कहै कबी� सुन साधवा, करु स�गुरु की सेव ॥ 471 ॥

मननिहं दि�या तिनज सब दि�या, मन से संग श�ी� । अब �ेवे को क्या �हा, यों कमिय कहनिहं कबी� ॥ 472 ॥

स�गुरु को माने नही, अपनी कहै बनाय ।

  गुरु मिमला �ब जातिनये, मिमटै मोह �न �ाप । ह�ष शोष व्यापे नहीं, �ब गुरु आपे आप ॥ 502 ॥

यह �न तिवषय की बेल�ी, गुरु अमृ� की खान । सीस दि�ये जो गुरु मिमलै, �ो भी सस्�ा जान ॥ 503 ॥

बँधे को बँधा मिमला, छूटै कौन उपाय । क� सेवा तिन�बन्ध की पल में लेय छुड़ाय ॥ 504 ॥

गुरु तिबचा�ा क्या क�ै, शब्� न लागै अंग । कहैं कबी� मैक्ली गजी, कैसे लागू �ंग ॥ 505 ॥

गुरु तिबचा�ा क्या क�े, ह्र�य भया कठो� । नौ नेजा पानी चfा पथ� न भीजी को� ॥ 506 ॥

कह�ा हँू कतिह जा� हँू, �े�ा हँू हेला । गुरु की क�नी गुरु जाने चेला की चेला ॥ 507 ॥

लिशष्य पुजै आपना, गुरु पूजै सब साध । कहैं कबी� गुरु शीष को, म� है अगम अगाध ॥ 508 ॥

तिह��े ज्ञान न उपजै, मन प��ी� न होय । �ाके सद्गरुु कहा क�ें, घनघलिस कुल्ह�न होय ॥ 509 ॥

ऐसा कोई न मिमला, जासू कहँू तिनसंक । जासो तिह��ा की कहँू, सो तिफ� मा�े डंक ॥ 510 ॥

लिशष तिक�तिपन गुरु स्वा�थी, तिकले योग यह आय ।

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कहै कबी� क्या कीजिजये, औ� म�ा मन जाय ॥ 473 ॥

जग में युलिK अनूप है, साधु संग गुरु ज्ञान । �ामें तिनपट अनूप है, स�गुरु लागा कान ॥ 474 ॥

कबी� समूझा कह� है, पानी थाह ब�ाय । �ाकँू स�गुरु का क�े, जो औघट डूबे जाय ॥ 475 ॥

तिबन स�गुरु उप�ेश, सु� न� मुतिन ननिहं तिनस्��े ।ब्रह्मा-तिवष्णु, महेश औ� सकल जिजव को तिगनै ॥ 476 ॥

के�े पदिf गुतिन पलिच भुए, योग यज्ञ �प लाय । तिबन स�गुरु पावै नहीं, कोदिटन क�े उपाय ॥ 477 ॥

डूबा औघट न ��ै, मोनिहं अं�ेशा होय । लोभ न�ी की धा� में, कहा पड़ो न� सोइ ॥ 478 ॥

स�गुरु खोजो सन्�, जोव काज को चाहहु । मेटो भव को अंक, आवा गवन तिनवा�हु ॥ 479 ॥

क�हु छोड़ कुल लाज, जो स�गुरु उप�ेश है । होये सब जिजव काज, तिनश्चय करि� प��ी� करू ॥ 480 ॥

यह स�गुरु उप�ेश है, जो मन माने प��ी� । क�म भ�म सब त्यातिग के, चलै सो भव जल जी� ॥ 481 ॥

जग सब साग� मोनिहं, कहु कैसे बूड़� �े�े । गहु स�गुरु की बानिहं जो जल थल �क्षा क�ै ॥ 482 ॥

जानी�ा बूझा नहीं बूजिझ तिकया नहीं गौन । अने्ध को अन्धा मिमला, �ाह ब�ावे कौन ॥ 483 ॥

जाका गुरु है आँध�ा, चेला ख�ा तिन�न्ध । अने्ध को अन्धा मिमला, पड़ा काल के फन्� ॥ 484 ॥

गुरु लोभ लिशष लालची, �ोनों खेले �ाँव । �ोनों बूडे़ बापु�े, चदिf पाथ� की नाँव ॥ 485 ॥

आगे अंधा कूप में, दूजे लिलया बुलाय । �ोनों बूडछे बापु�े, तिनकसे कौन उपाय ॥ 486 ॥

गुरु तिकया है �ेह का, स�गुरु चीन्हा नानिहं । भवसाग� के जाल में, तिफ� तिफ� गो�ा खातिह ॥ 487 ॥

कीच-कीच के �ाग को, कैसे सके छुड़ाय ॥ 511 ॥

स्वामी सेवक होय के, मनही में मिमलिल जाय । च�ु�ाई �ीझै नहीं, �तिहये मन के माय ॥ 512 ॥

गुरु कीजिजए जातिन के, पानी पीजै छातिन । तिबना तिवचा�े गुरु क�े, प�े चौ�ासी खातिन ॥ 513 ॥

स� को खोज� मैं तिफरँू, सति�या न मिमलै न कोय । जब स� को सति�या मिमले, तिवष �जिज अमृ� होय ॥ 514 ॥

�ेश-�ेशान्�� मैं तिफरँू, मानुष बड़ा सुकाल । जा �ेखै सुख उपजै, वाका पड़ा दुकाल ॥ 515 ॥

॥ क्षिभलिK के तिवषय मे �ोहे ॥

कबी� गुरु की भलिK तिबन, �ाजा ससभ होय । माटी ल�ै कुम्हा� की, घास न डा�ै कोय ॥ 516 ॥

कबी� गुरु की भलिK तिबन, ना�ी कूक�ी होय । गली-गली भँूक� तिफ�ै, टूक न डा�ै कोय ॥ 517 ॥

जो कामिमतिन प��ै �हे, सुन ैन गुरुगुण बा� । सो �ो होगी कूक�ी, तिफ�ै उघा�े गा� ॥ 518 ॥

चौंसठ �ीवा जोय के, चौ�ह चन्�ा मानिहं । �ेतिह घ� तिकसका चाँ�ना, जिजतिह घ� स�गुरु नानिहं ॥ 519 ॥

हरि�या जाने रूखाड़ा, उस पानी का नेह । सूखा काठ न जातिनहै, तिक�हँू बूड़ा गेह ॥ 520 ॥

जिझ�मिम� जिझ�मिम� ब�लिसया, पाहन ऊप� मेह । माटी गलिल पानी भई, पाहन वाही नेह ॥ 521 ॥

कबी� ह्र�य कठो� के, शब्� न लागे सा� । सुमिध-सुमिध के तिह��े तिवधे, उपजै ज्ञान तिवचा� ॥ 522 ॥

कबी� चन्�� के क्षिभ�ै, नीम भी चन्�न होय । बूड़यो बाँस बड़ाइया, यों जतिन बूड़ो कोय ॥ 523 ॥

पशुआ सों पालो प�ो, �हू-�हू तिहया न खीज । ऊस� बीज न उगसी, बोवै दूना बीज ॥ 524 ॥

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पू�ा स�गुरु न मिमला, सुनी अधू�ी सीख । स्वाँग य�ी का पतिहतिन के, घ� घ� माँगी भीख ॥ 488 ॥

कबी� गुरु है घाट का, हाँटू बैठा चेल । मूड़ मुड़ाया साँझ कँू गुरु सबे�े ठेल ॥ 489 ॥

गुरु- गुरु में भे� है, गुरु- गुरु में भाव । सोइ गुरु तिन� बजिन्�ये, शब्� ब�ावे �ाव ॥ 490 ॥

जो गुरु �े भ्रम न मिमटे, भ्रान्तिन्� न जिजसका जाय । सो गुरु झूठा जातिनये, त्याग� �े� न लाय ॥ 491 ॥

झूठे गुरु के पक्ष की, �ज� न कीजै वा� । द्वा� न पावै शब्� का, भटके बा�म्बा� ॥ 492 ॥

सद्गरुु ऐसा कीजिजये, लोभ मोह भ्रम नानिहं । �रि�या सो न्या�ा �हे, �ीसे �रि�या मातिह ॥ 493 ॥

कबी� बेड़ा सा� का, ऊप� ला�ा सा� । पापी का पापी गुरु, यो बूfा संसा� ॥ 494 ॥

जो गुरु को �ो गम नहीं, पाहन दि�या ब�ाय । लिशष शोधे तिबन सेइया, पा� न पहुँचा जाए ॥ 495 ॥

सोचे गुरु के पक्ष में, मन को �े ठह�ाय । चंचल से तिनश्चल भया, ननिहं आवै नहीं जाय ॥ 496 ॥

गु अँमिधया�ी जातिनये, रु कतिहये प�काश । मिमदिट अज्ञाने ज्ञान �े, गुरु नाम है �ास ॥ 497 ॥

गुरु नाम है गम्य का, शीष सीख ले सोय । तिबनु प� तिबनु म�जा� न�, गुरु शीष ननिहं कोय ॥ 498 ॥

गुरुवा �ो घ� तिफ�े, �ीक्षा हमा�ी लेह । कै बूड़ौ कै ऊब�ो, टका प��ानी �ेह ॥ 499 ॥

गुरुवा �ो सस्�ा भया, कौड़ी अथ@ पचास । अपने �न की सुमिध नहीं, लिशष्य क�न की आस ॥ 500 ॥

जाका गुरु है गी�ही, तिग�ही चेला होय ।कीच- कीच के धोव�े, �ाग न छूटे कोय ॥ 501 ॥

कंचन मेरू अ�पही, अ�पैं कनक भण्डा� । कहैं कबी� गुरु बेमुखी, कबहूँ न पावै पा� ॥ 525 ॥

साकट का मुख तिबम्ब है तिनकस� बचन भुवंग । �ातिक औषण मौन है, तिवष ननिहं व्यापै अंग ॥ 526 ॥

शुक�ेव स�ीखा फेरि�या, �ो को पावे पा� । तिबनु गुरु तिनगु�ा जो �हे, पडे़ चौ�ासी धा� ॥ 527 ॥

कबी� लहरि� समुन्द्र की, मो�ी तिबख�े आय । बगुला प�ख न जानई, हंस चुतिन-चुतिन खाय ॥ 528 ॥

साकट कहा न कतिह चलै, सुनहा कहा न खाय । जो कौवा मठ हतिग भ�ै, �ो मठ को कहा नशाय ॥ 529 ॥

साकट मन का जेव�ा, भजै सो क��ाय । �ो अच्छ� गुरु बतिह�ा, बाधा जमपु� जाय ॥ 530 ॥

कबी� साकट की सभा, �ू मति� बैठे जाय । एक गुवाडे़ कदि� बडै़, �ोज ग�ह�ा गाय ॥ 531 ॥

संग� सोई तिबगुच@ई, जो है साकट साथ । कंचन कटो�ा छातिड़ के, सनहक लीन्ही हाथ ॥ 532 ॥

साकट संग न बैदिठये क�न कुबे� समान । �ाके संग न चलिलये, पतिड़ हैं न�क तिन�ान ॥ 533 ॥

टेक न कीजै बाव�े, टेक मातिह है हातिन । टेक छातिड़ मातिनक मिमलै, स� गुरु वचन प्रमातिन ॥ 534 ॥

साकट सूक� कीक�ा, �ीनों की गति� एक है । कोदिट ज�न प�मोमिघये, �ऊ न छाडे़ टेक ॥ 535 ॥

तिनगु�ा ब्राह्म्ण ननिहं भला, गुरुमुख भला चमा� । �ेव�न से कुत्ता भला, तिन� उदिठ भँूके द्वा� ॥ 536 ॥

हरि�जन आव� �ेग्निखके, मोहड़ो सूग्निख गयो । भाव भलिK समझयो नहीं, मू�ख चूतिक गयो ॥ 537 ॥

खसम कहावै बै�नव, घ� में साकट जोय । एक ध�ा में �ो म�ा, भलिK कहाँ �े होय ॥ 538 ॥

घ� में साकट स्bी, आप कहावे �ास । वो �ो होगी शूक�ी, वो �खवाला पास ॥ 539 ॥

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