hindisahityasimanchal.files.wordpress.com€¦  · web viewबौद्ध दर्शन / boudh...

146
बबबबब बबबबब / Boudh Philosophy अअअअअअअ [अअअअ ] 1 अअअअअ अअअअअ / Boudh Philosophy 2 अअअअअअअअअ 3 अअअअअअअअअअअअअअअअ 4 अअअअअअअअअअअअअ 5 अअअअअअ अअ अअअअअअअअअअअ 6 अअअअअअ अअ अअअअअअ 7 अअअअअअअअ 8 अअअअअअअअअ 9 अअअअअअअअअ अअ अअअअअ 10 अअअअअअअअअअअ 11 अअअअअअअअअअ

Upload: doanduong

Post on 06-Apr-2018

361 views

Category:

Documents


44 download

TRANSCRIPT

बौदध दरश�न / Boudh Philosophyअनकरम[छपा]

1 बौदध दरशन / Boudh Philosophy 2 शरावकयान 3 परतयकबदधयान 4 बोधि�सततवयान 5 महायान की वयतपतति� 6 हीनयान और महायान 7 महाकरणा 8 बोधि�चि$� 9 पारधिमताओ की सा�ना 10 तथागतगहयक 11 दरशभमीशवर 12 वभाषि/क दरशन

13 समबधि�त लि3क

भगवान बदध दवारा परवरतितत होन पर भी बौदध दरशन कोई एक दरशन नही, अषिपत दरशनो का समह ह। कछ बातो म षिव$ार सामय होन पर भी परसपर अतयनत मतभद ह। रशबद सामय होन पर भी अथ भद अधि�क ह। अनक रशाखोपरशाखाओ म षिवभकत होन पर भी दारशषिनक मानयताओ म सामय की दधिF स बौदध षिव$ारो का $ार षिवभागो म वगGकरण षिकया गया ह, यथा-

1. वभाषि/क, 2. सौतरानतिनतक,

3. योगा$ार एव 4. माधयधिमक।

यदयषिप अठारह षिनकायो का वभाषि/क दरशन म सगरह हो जाता ह और अठारह षिनकायो म सथषिवरवाद भी सगहीत ह, जागषितक षिवषिव� द:खो क दरशन स तथागत रशाकयमषिन भगवान बदध म सवपरथम महाकरणा का उतपाद हआ। तदननतर उस महाकरणा स पररिरत होन की वजह स 'म इन द:खी पराततिणयो को द:ख स मकत करन और उनह सख स अनतिनवत करन का भार अपन कनधो पर 3ता ह और इसक चि3ए बदधतव परापत करगा'- इस परकार का उनम बोधि�चि$� उतपनन हआ।

उनकी दरशनाए तीन षिपटको और तीन यानो म षिवभकत की जाती ह।

1. सतर,

2. षिवनय और 3. अततिभ�म- य तीन षिपटक ह। 4. शरावकयान,

5. परतयक बदधयान और 6. बोधि�सततवयान- य तीन यान ह।

शरावकयान और परतयकबदधयान को हीनयान और बोधि�सततवयान को महायान कहत ह।

शरावकयानजो षिवनय जन द:खमय ससार-सागर को दखकर तथा उसस उषिदवगन होकर ततका3 उसस मचिकत की अततिभ3ा/ा तो रखत ह, षिकनत तातकाचि3क रप स समपण पराततिणयो क षिहत और सख क चि3ए समयक समबदधतव की परानतिपत का अधयारशय (इचछा) नही रखत- ऐस षिवनय जन शरावकयानी कह3ात ह। उनक चि3ए परथम �म$कर का परवतन करत हए भगवान न $ार आयसतव और उनक अषिनतयता आदिद सो3ह आकारो की दरशना की और इनकी भावना करन स पदग3नरातमय का साकषातकार करक क3रशावरण का सम3 परहाण करत हए अहततव की और षिनवाण की परानतिपत का माग उपदिदF षिकया।

परतयकबदधयानशरावक और परतयकबदध क 3कषय म भद नही होता। परतयक बदध भी सवमचिकत क ही अततिभ3ा/ी होत ह। शरावक और परतयकबदध क जञान म और पणय स$य म थोडा फक अवशय होता ह। परतयकबदध कव3 गरहयरशनयता का बो� होता ह, गराहकरशनयता का नही। पणय भी शरावक की अपकषा उनम अधि�क होता ह। परतयकबदध उस का3 म उतपनन होत ह, जिजस समय बदध का नाम भी 3ोक म पर$चि3त नही होता। व षिबना आ$ाय या गर क ही, पवजनमो की समषित क आ�ार पर अपनी सा�ना परारमभ करत ह और परतयकबदध-अहततव और षिनवाण पद परापत करत ह। इनकी यह भी षिवरश/ता ह षिक य वाणी क दवारा �मpपदरश नही करत तथा सघ बनाकर नही रहत अथात एकाकी षिव$रण करत ह।

बोधि�सततवयानजो षिवनय जन समपण सततवो क षिहत और सख क चि3ए समयक समबदधतव परापत करना $ाहत ह, ऐस षिवनय जन बोधि�सततवयानी कह3ात ह। उन 3ोगो क चि3ए भगवान न बोधि�चि$� का उतपाद कर छह या दस पारधिमताओ की सा�ना का उपदरश दिदया तथा पदग3नरातमय क साथ �मनरातमय का भी षिवततिभनन यचिकतयो स परषितव� कर क3रशावरण और जञयावरण दोनो क परहाण दवारा समयक समबदधतव की परानतिपत क माग का उपदरश षिकया। इस महायान भी कहत ह।

महायान की वयतपधि�

'यायत अननषित यानम' अथात जिजसस जाया जाता ह, यह 'यान' ह। इस षिवगरह क अनसार माग, जिजसस गनतवय सथान तक जाया जाता ह, 'यान' ह। अथात यान-रशबद माग का वा$क ह। 'यायत असमिसमधिननषित यानम' अथात जिजसम जाया जाता ह, यह भी 'यान' ह। इस दसर षिवगरह क अनसार 'फ3' भी यान कह3ाता ह। फ3 ही गनतवय सथान होता ह। इस तरह यान-रशबद फ3वा$क भी होता ह। 'महचच तद यान महायानम' अथात वह यान भी ह और बडा भी ह, इसचि3ए महायान कह3ाता ह।

हीनयान और महायानवभाषि/क और सौतरानतिनतक दरशन हीनयानी तथा योगा$ार और माधयधिमक महायान दरशन ह इसम कछ सतयारश होन पर भी दरशन-भद यान-भद का षिनयामक कतई नही होता, अषिपत उददशय-भद या जीवन3कषय का भद ही यानभद का षिनयामक होता ह। उददशय की अधि�क वयापकता और अलप वयापकता ही महायान और हीनयान क भद का अ�ार ह। यहा 'हीन' रशबद का अथ 'अलप' ह, न षिक तचछ, नी$ या अ�म आदिद, जसा षिक आजक3 षिहनदी म पर$चि3त ह। महायान का सा�क समसत पराततिणयो को द:ख स मकत करक उनह षिनवाण या बदधतव परापत कराना $ाहता ह। वह कव3 अपनी ही द:खो स मचिकत नही $ाहता, बसमिलक सभी की मचिकत क चि3ए वयचिकतगत षिनवाण स षिनरपकष रहत हए अपरषितधिyत षिनवाण म सथिसथत होता ह। जो वयचिकत वयचिकतगत षिनवाण परापत करता ह, वह भी कोई छोटा नही, अषिपत महापर/ होता ह। इतना सौभागय भी कम 3ोगो को परापत होता ह। बड पणयो का फ3 ह यह। पराय: सभी बौदधतर दरशनो का भी अनतिनतम 3कषय सवमचिकत ही ह। अत: यह 3कषय शरy नही ह, षिफर भी अपन षिनवाण को सथषिगत करक सभी पराततिण-मातर को द:खो स मचिकत को 3कषय बनाना और उसक चि3ए परयास और सा�ना करना, अवशय ही अधि�क शरy ह।

महाकरणाद:ख करणा का आ3मबन होता ह तथा द:ख को सहन नही कर पाना इसका आकार होता ह। षिवषिव� परकार की चिरशरोवदना आदिद रशारीरिरक वदनाए द:ख-द:ख ह। वतमान म सखवत परतीत होन पर भी परिरणाम म द:खदायी �म षिवपरिरणाम द:ख कह3ात ह। सभी अषिनतयो स षिवयोग द:खपरद होता ह, इसचि3ए सभी अषिनतय �म ससकार-द:ख ह। करणा भी परारमभ म 'सतवा3मबना' होती ह। अथात पराततिणयो को और उनक द:खो को आ3मबन बनाती ह। षिकनत भावना क ब3 स षिवकचिसत होकर बाद म '�मा3मबना' हो जाती ह। बौदध दरशन क अनसार पदग3 की स�ा नही होती, वह जड और $तना का पजमातर होता ह, षिफर भी द:खो स मकत करन की अततिभ3ा/ा '�मा3मबना' करणा होती ह। वसतत: परजञा दवारा षिव$ार करन पर सभी �म षिन:सवभाव (रशनय) होत ह। वसतत: सभी सततव और उनक द:ख भी षिन:सवभाव ही ह, षिफर भी अथात रशनयता का अवबो� रखत हए भी करणावरश बदध एव बोधि�सततव द:खी पराततिणयो क द:ख को दर करन का परयास करत ह। उनकी ऐसी करणा 'षिनरा3मब' करणा कह3ाती ह।

बोधि�धि$�बोधि�चि$� ही महायान म परवरश कर दवार होता ह। बोधि�चि$� क उतपाद क साथ वयचिकत महायानो और बोधि�सततव कह3ान 3गता ह तथा बोधि�चि$� स भरF होन पर महायान स चयत हो जाता ह। 'बदधो भवय जगतो षिहताय*' अथात सभी पराततिणयो को द:खो स मकत करन क चि3ए म बदधतव परापत करगा-ऐसी अकषितरम अततिभ3ा/ा 'बोधि�चि$�' कह3ाती ह। इस परकार बदधतव महायान क अनसार साधय नही, अषिपत सा�नमातर ह। साधय तो समसत पराततिणयो की द:खो स मचिकत ही ह। बोधि�चि$� भी परततिणधि� और परसथान क भद स षिदवषिव� होता ह। ऊपर जो बदधतव परानतिपत की अकषितरम अततिभ3ा/ा को बोधि�चि$� कहा गया ह, वह 'परततिणधि�-बोधि�चि$�' ह। इसक उतपनन हो जान पर सा�क महायान-सवर गरहण करक बरहमषिवहार, सगरहवसत एव पारधिमता आदिद की सा�ना म परव�

होता ह, यह 'परसथान-बोधि�चि$�' कह3ाता ह। रशासतरो म परततिणधि�-बोधि�चि$� का भी षिवप3 फ3 और महती अनरशसा वरणिणत ह।

पारमिमताओ की सा�नापारधिमताए दस होती ह, षिकनत उनका छह म भी अनतभाव षिकया जाता ह। दान, रशी3, कषानतिनत, वीय, धयान एव परजञा-य छह पारधिमताए ह। उपाय कौरश3 पारधिमता, परततिण�ान पारधिमता, ब3 पारधिमता एव जञान पारधिमता-इन $ार को धिम3ाकर पारधिमताए दस भी होती ह। रशासतरो म अधि�कतर छह पारधिमताओ की $$ा की उप3बध होती ह। इन छह पारधिमताओ म छठवी परजञापारधिमता ही 'परजञा' ह तथा रश/ पा$ पारधिमताए 'पणय' कह3ाती ह। इन पा$ो को एक रशबद दवारा 'करणा' भी कहत ह। परजञा और करणा य दोनो बदधतव परानतिपत क उ�म उपाय ह। अभयास या भावना क दवारा षिवकास की पराकाyा को परापत कर य दोनो बदधतव अवसथा म समरस होकर सथिसथत होती ह। परजञा और करणा की यह सामरसयावसथा ही बदधतव ह। षितरकायातमक बदधतव की परानतिपत, षिबना इन पारधिमताओ क, समभव नही ह।

1. �मकाय, 2. समभोगकाय और 3. षिनमाणकाय- य तीन काय ह। बदधतव की परानतिपत क साथ इन तीन काय� की परानतिपत होती ह।

महायान क पारधिमतानय क अनसार अभयास दवारा परजञा षिवकचिसत होत हए अनत म बदध क जञान-�मकाय क रप म परिरणत हो जाती ह। षिकनत समभोग और षिनमाण काय� की परानतिपत पणय अथात रश/ पा$ पारधिमताओ क ब3 स ही होती ह। इसीचि3ए बोधि�सततव बदधतव की परानतिपत क चि3ए तीन असखयय कलप पयनत जञान और पणय समभारो का अजन करता ह।

महायान सतरो म वरत, उपवास, सनान, मनतर आदिद का षिव�ान ह, जिजसक दवारा पापो का परकषा3न और मचिकत की परानतिपत का उल3ख ह, जसा षिक बराहमण �म म ह- यह आकषप भी षिनतानत ही सारहीन ह। कयोषिक अननतदवार�ारणी की सा�ना क अनसार इस �ारणी की भावना करन वा3ा सा�क (बोधि�सतव) ससकत और अससकत षिकसी भी �म की कलपना नही करता, कव3 बदधानसमषित की भावना करता ह।

नागराजपरिरपचछासतर म भी कहा गया ह षिक सभी �म आदिदत: षिवरशदध ह, इसचि3ए �ारणी म सथिसथत बोधि�सतव रशनयसवरप बीजाकषरो का अनसरण करता ह, उनकी खोज करता ह और उनम सथिसथत होता ह, जिजसस उसम राग, दव/, मोह आदिद उतपनन नही होत। यह सा�ना भी वस ही ह, जस अषिनतयता, अरशचि$ आदिद की भावना अथात �ारणीमनतर और षिवदयामनतर का तथागत क उपदरशानसार जप, धयान एव भावना करन स पाप का कषय तथा चि$� सनतषित रशानत होती ह। यह माग सतय की भावना क समान ही ह। �ारणीमनतर क जप क समय सा�क म पाप स उतपनन होन वा3 षिवपाक क परषित भय तथा पाप कम क परषित हयता का भाव होता ह और अनत म उस पाप की पनरावतति� न हो, ऐसी परषितजञा करना अषिनवाय होता ह। य सब पाप परायतति�� क अग ह।

अठारहो षिनकायो को दारशषिनक षिवभाजन क अवसर पर वभाषि/क कहन की बौदध दारशषिनको की परमपरा रही ह। इसचि3ए हम भी वभाषि/क, सौतरानतिनतक, योगा$ार और माधयधिमक इन परचिसदध $ार बौदध दरशनो क षिव$ारो को ही त3नातमक दधिF स परसतत करग। यह भी जञात ह षिक वभाषि/क और सतरानतिनतको को हीनयान तथा योगा$ार और माधयधिमको को महायान कहन की परमपरा ह। यदयषिप हीनयान और महायान क षिवभाजन का आ�ार दरशन षिब3क3 नही ह।

वसतस�ावभाषि/क बाहयाथवादी ह। व आनतरिरक एव बाहय सभी पदाथ� की वसतस�ा सवीकार करत ह। सौतरानतिनतक भी बाहयाथवादी ह और सवभावस�ावादी भी। सौतरानतिनतक आ$ाय रशभगपत न 'बाहयाथचिसदधकारिरका' नामक अपन गरनथ म बड षिवसतार स यचिकतपवक षिवजञानवादिदयो का खणडन करक बाहयाथ की स�ा चिसदध की ह। बाहयाथ को चिसदध करन म सौतरानतिनतको न अभतपव एव सततय परयास षिकया ह। षिवजञानवादी षिनबाहयाथवादी ह। इनक मत म बाहयाथ परिरकसथिलपत मातर ह अथात बाहयाथ खपषपवत अ3ीक ह। व कव3 षिवजञान-परिरणाम की ही दरवयत: स�ा सवीकार करत ह। चि$�-$तचिसको क बाहर कोई �म नही ह। परमाण की स�ा का उनहोन बड जोरदार ढग स षिन/� षिकया ह। फ3त: परमाणओ स सचि$त सथ3 बाहयाथ का षिन/� अपन-आप हो जाता ह।परमाण

वभाषि/क परमाणवादी ह। यदयषिप परमाण क सवरप क बार म उनम परसपर अनकषिव� मतभद ह, तथाषिप सभी परमाण की स�ा सवीकार करत ह। सौतरानतिनतक भी परमाण मानत ह। बाहयथवादिदयो क चि3ए परमाण मानना आवशयक भी ह। षिवजञानवादी परमाण नही मानत। बाहयाथ का अभाव एव षिवजञान की स�ा चिसदध करन क चि3ए परमाण का षिन/� करना आवशयक होता ह। इसीचि3ए आ$ाय वसबनध न विवचिरशका म षिनरवयव परमाण का जोरदार खणडन षिकया ह।

परासषिगक माधयधिमक भी वभाषि/को की भाषित परमाणवादी ह, तथाषिप दोनो क मत म मौचि3क अनतर ह। सभी परकार क वभाषि/क षिनरवयव परमाण मानत ह। परासषिगक परमाण को कसथिलपत मानत ह। वह कसथिलपत परमाण भी उनक मतानसार षिनरवयव नही हो सकत, अषिपत सावयव होत ह। व कहत ह षिक जस वयवहार म घट, पट आदिद की स�ा ह, उसी परकार परमाण का भी असमिसततव ह।

आलयविवजञान

सथषिवरवादी यदयषिप आ3यषिवजञान नही मानत, षिफर भी कम, कमफ3, पनजनम आदिद की वयवसथा क चि3ए एक 'भवाङग' नामक चि$� सवीकार करत ह। इनक मतानसार भावाङग ही वयचिकततव ह, जो कछ अवसथाओ को छोडकर समदर की भाषित भीतर ही भीतर षिनरनतर परवाषिहत होता रहता ह। जस आ3यषिवजञान जब तक बदधतव परापत नही होता, तब तक षिनरनतर अषिवसथिचछनन रप स परव� होता रहता ह, वस ही भवाङग चि$� भी अहत क षिनरपधि�रश/ षिनवाण�ात म 3ीन होत तक परव� होता रहता ह। समदर स तरङगो की भाषित आ3यषिवजञान स जस सात परवतति�षिवजञानो की की परवतति� होती ह और अनत म व उसी म षिव3ीन हो जात ह, वस ही भवाङग चि$� स छह परवतति�षिवजञानो (वीचिथचि$�ो) की परवतति� होती ह और परव� होकर उसी म षिव3ीन हो जात ह। *षिवजञानवादी आ3यषिवजञान को जस करश3, अकरश3 का षिवपाक मानत ह, सथषिवरवादिदयो क मत म भवाङग चि$� भी करश3, अकरश3 कम� का षिवपाक होता ह। आ3यषिवजञान की भाषित भवाङग चि$� भी परषितसनधिनध (पनजनम गरहण) और चयषित (मरण) कतय करता ह। आ3यषिवजञान और भवाङग दोनो ससकत और कषततिणक होत ह। षिवजञानवाद क अनसार आ3यषिवजञान म करश3, अकरश3, अवयाकत सभी चि$�ो की वासनाए षिनषिहत रहती ह। वह समसत �म� क बीजो का आ�ार होता ह, वस भवाङग चि$� स भी /ड षिवजञानवीचिथया उतपनन होती ह और अनत म उसी म पषितत हो जाती ह। फ3त: वह भी वासनाओ का आ�ार हो जाता ह।

विनवा�ण

वभाषि/क षिनरो� को षिनवाण मानत ह। वह भी परषितसखयाषिनरो� और अपरषितसखयाषिनरो� क भद स षिदवषिव� ह। इन दोनो म परषितसखयाषिनरो� ही मखय ह। षिनरपधि�रश/षिनवाण की अवसथा म सभी ससकत �म षिनरदध हो जात ह और वह (ससकत �म� का षिनरो�) अपरषित सखया षिनरो� सवरप होता ह। वह अससकत होता ह और दरवयत: सत होता ह।

सौतरानतिनतको क मत म षिनवाण अभावमातर (परसजयपरषित/�सवरप) होता ह, जो समसत क3रशो स रषिहत मातर ह।

षिवजञानवादिदयो क मत म षिनवाणयदरवयत: सत नही ह। वह क3रशावरण का अभावमातर ह। महाषिनवाण भी क3रशावरण और जञयावरण दोनो का अभावमातर ही ह और वह एक षिनतय �म ह। महायानषिनवाण की अवसथा बदधतव की अवसथा ह। इस अवसथा म यदयषिप सासतरव प$ सकनध अथात सासतरव रशरीर एव चि$�सनतषित षिवदयमान नही होत, तथाषिप अनासतरव प$ सकनध षिवदयमान होत ह, जो समसत जीवो का कलयाण चिसदध करत ह। माधयधिमक भी ऐसी ही मानत ह।

बदधव$नवभाषि/क महायानसतरो को बदधव$न नही मानत, कयोषिक उनम वरणिणत षिव/य उनह अभीF नही ह। व कव3 हीनयानी षितरषिपटक को ही बदधव$न मानत ह। परा$ीन या आगमानयायी सौतरानतिनतक महायानसतरो को बदधव$न नही मानत थ, षिकनत �मकीरतित क बाद क अवा$ीन या यकतयनयायी सौतरानतिनतक महायानी आ$ाय� क परभाव स महायानसतरो को बदधव$न मानन 3ग, षिफर भी व उनका अथ परकारानतर स 3त थ। महायानी आ$ाय हीनयानी और महायानी सभी सतरो को बदधव$न मानत ह। �म�$कर

वभाषि/क और सौतरानतिनतक एक �म$कर ही मानत ह, जिजसकी दरशना भगवान न ऋषि/पतन मगदाव म की थी इसक षिवनय जन शरावकवगGय 3ोग ह, जो सव3कषण और बाहयस�ा पर आ�त $तरतिव� आयसतय क पातर ह। पदग3-नरातमय क साकषातकार दवारा षिनवाण परापत कर 3ना, इसका 3कषय ह। शरावक-वगGय 3ोगो की दधिF स यह नीताथ दरशना ह। योगा$ार और माधयधिमक 3ोगो की दधिF स यह नयाथ दरशना ह।

महायानी तीन �म$कर परवतन मानत ह। पह3ा ऋषि/पतन मगदाव म, दसरा गधरकट पवत पर तथा तीसरा वरशा3ी म षिदवतीय �म$कर क षिवनय जन महायानी 3ोग ह तथा रशनयता, अनतपाद, अषिनरो� आदिद इसकी षिव/यवसत ह। षिवजञानवादी 3ोग इस षिदवतीय �म$कर को नयाथ मानत ह, नीताथ नही। इसम परमखता: परजञापारधिमतासतर दचिरशत ह, जिजनस माधयधिमक दरशन षिवकचिसत हआ ह। इसकी नयनीताथता क बार म सवातनतिनतरक माधयधिमको एव परासषिगक माधयधिमको म थोडा-बहत मतभद ह। आ$ाय भावषिववक, जञानगभ, रशानतरततिकषत आदिद सवातनतिनतरक माधयधिमको क अनसार परजञापारधिमतासतरो म आयरशतसाहनधिसतरका परजञापारधिमता आदिद कछ सतर नीताथ ह, कयोषिक इनम सभी �म� की परमाथत: षिन:सवभावता षिनरदिदF ह। भगवती परजञापारधिमताहदयसतर आदिद यदयषिप षिदवतीय �म$कर म सगहीत ह, तथाषिप व नीताथ नही मान जा सकत, कयोषिक इनक दवारा जिजस परकार की सव�मषिन:सवभावता परषितपादिदत की गई ह उस परकार की षिन:सवभावता सवातनतिनतरक माधयधिमको को इF नही ह यदयषिप इन सतरो का अततिभपराय परमाथत: षिन:सवाभावता ही ह, तथाषिप उनम 'परमाथत:' यह षिवरश/ण अधि�क सपF नही ह जो षिक सवातनतिनतरक माधयधिमको क अनसार नीताथसतर होन क चि3ए परमावशयक ह। कयोषिक य 3ोग वयवहार म वसत की सव3कषण स�ा सवीकार करत ह।

परासषिगक माधयधिमको क अनसार षिदवतीय �म$कर नीताथ दरशना ह। व 'परमाथत: षिवरश/ण को षिनरथक मानत ह। इनम मत म जिजस सतर का मखय षिव/य रशनयता ह, वह सतर नीताथ ह। जिजसका मखय षिव/य सवषित सतय ह, वह नयाथ सतर ह। अत: इनक मत म भगवती परजञापारधिमताहदयसतर आदिद सतर भी नीताथ ही ह।

ततीय �म$कर का सथान वरशा3ी ह शरावक एव महायानी दोनो इसक षिवनय जन ह। आय सनधिनधषिनमp$न आदिद इसक परमख सतर ह। षिवजञानवादिदयो क अनसार यह नीताथ दरशना ह यदयषिप षिदवतीय और ततीय दोनो �म$करो म रशनयता परषितपादिदत ह, तथाषिप षिदवतीय �म$कर म समसत �म� को समान रप स षिन:सवभाव कहा गया ह। उसम यह भद नही षिकया गया ह षिक अमक �म षिन:सवभाव ह

और अमक �म षिन:सवभाव नही ह, अषिपत ससवभाव ह षिवजञानवादी समसत �म� को समानरप स षिन:सवभाव नही मानत, अषिपत पदाथ� म स कछ षिन:सवभाव ह और कछ ससवभाव। अत: व षिदवतीय �म$कर को नीताथ नही मानत। उनक मतानसार जो सतर �म� की ससवभावता और षिन:सवभावता का समयग षिवभाजन करत ह, व ही नीताथ मान जा सकत ह। जिजन सतरो म उकत परकार का षिवभाजन सपF नही ह, उनह षिवजञानवादी नयाथ ही मानत ह।

वि-विवज नरातमय

षिवजञानवाद क अनसार पदग3नरातमय का सवरप पञ$ सकनधो स दरवयत: ततिभनन, षिनतय, रशाशवत आतमा का षिन/�मातर ह, वभाषि/क, सौतरानतिनतक आदिद हीनयानी और सवातनतिनतरक माधयधिमक भी ऐसा ही मानत ह। षिवजञानवाद क अनसार बाहयाथ स रशनयता या गराहय-गराहकदवय स रशनयता �मनरातमय ह तथा सवातनतिनतरक माधयधिमको क अनसार �म� की परमाथत: षिन:सवभावता �मनरातमय ह। परसषिगक ऐसा नही मानत। उनक मत म यदयषिप उकत परकार की आतमा का असमिसततव मानय नही ह, तथाषिप उकत परकार क पदग3नरातमय क जञान स सवषिव� आतमदधिF का षिन/� नही होता। उकत जञान कव3 परिरकसथिलपत आतमधिF का ही परषितपकष ह, जो (आतमा) कव3 चिसदधानतषिवरश/ स पररिरत 3ोगो म ही होती ह। सहज आतमदधिF की इसस कछ भी हाषिन नही होती। इसक मतानसार नरातमय की सथापना पदग3 तथा �म क भद स की जाती ह पदग3षिन:सवभावनता पदग3नरातमय तथा घटादिद षिन:सवभावता �मनरातमय ह।

वि-विव� आवरण

सभी महायानी दरशनो म षिदवषिवधि� आवरणो की वयवसथा ह, यथा –

क3रशावरण एव

1. जञयावरण।

करमरश: परथम आवरण मचिकत की परानतिपत म मखय बा�क ह तथा दसरा आवरण सवजञता की परानतिपत म मखय बा�क ह।

षिवजञानवाद क अनसार पदग3ातमदधिF तथा उसस समबदध क3रश 'क3रशावरण' ह। बाहयाथदधिF तथा उसकी वासनाए 'जञयावरण' ह सवातानतिनतरक माधयधिमकमता म क3रशावरण का सवरप षिवजञानवादिदयो स ततिभनन नही ह, षिकनत उनक मतानसार �म� की सतयत: स�ादधिF जञयावरण ह। परासषिगक माधयधिमक मतानसार पदग3ातमदधिF तथा �मातमदधिF सभी क3रशावरण ह, कयोषिक सभी सवभावसद-दधिF क3रश होती ह। सवभावसद-दधिF मचिकत की परानतिपत म मखय बा�क ह। अत: मोकषपरानतिपत क चि3ए षिन:सवभावता का जञान अषिनवाय ह। अत: शरावक तथा परतयकबदध आय� क चि3ए षिन:सवभावता का जञाता होना षिनतति�त होता ह। सवभावसद-दधिF की वासना जञयावरण ह। यही सवजञजञान की परानतिपत म मखय बा�क ह। उसक परहाण क चि3ए महाकरणा स सगहीत समभारो तथा पारिरमताओ की आवशयकता होती ह। यह परासषिङगको की षिवचिरशF मानयता ह।

वि-विव� सतय

दो सतयो की $$ा हीनयानी गरनथो म भी उप3बध होती ह। पाचि3-अटठकथा एव अततिभ�मकोरश म इनक 3कषण वरणिणत ह, षिकनत महायान म इनकी पषक3 $$ा हई ह। नागाजन इसक परवतक मान जात ह। सौतरानतिनतक परमाथत: अथषिकरयासमथ को परमाथसतय कहत ह। षिनबाहयाथता या गराहय-गराहक दवत स

रषिहतता योगा$ार मत म परमाथसतय ह। सवातनतिनतरक और परासषिङगक माधयधिमक का सतयदवय क बार म जो सकषम दधिFभद ह, उस जान 3ना आवशयक ह।

भावषिववक क मत म परमाथत: षिन:सवभावता 'परमाथसतय' ह। कव3 षिन:सवभावता परमाथसतय नही मानी जाती, कयोषिक उनक मत म सवभावस�ा होती ह।

परासषिङगक माधयमो क मतानसार षिन:सवभावता ही 'परमाथसतय' ह। उनक अनसार 'परमाथत:' यह षिवरश/ण षिनरथक ह।

दोनो क मत म सवषित क दो परकार ह। भावषिववक षिव/य की दधिF स तथयसवषित और धिमथयासवषित – य दो भद मानत ह। परनत परासषिङगक मत क अनसार षिव/य दो परकार क नही हो सकत, कयोषिक सभी षिव/य धिमथया ही होत ह षिव/यी (जञान) दो परकार का होता ह। यह 3ोकवयवसथा क अनक3 भी ह। परासषिङगक की अपनी दधिF स तो सभी जञान धिमथया ही ह, कयोषिक उनकी दधिF स सभी सावत जञान भरानत होत ह। षिफर भी 3ोकवयवसथा क अनसार जञान क दो परकार ह

परमाण विव$ार

परमाणो की दो सकषया क बार म पराय: सभी बौदध एकमत ह। परमाणो क बार म सौतरानतिनतको न षिवसतत षिव$ार षिकया ह। परमाण दो ह – परतयकष और अनमान। सौतरानतिनतक परतयकष परमाण को $तरतिव� मानत ह। योगा$ार दारशषिनक भी सौतरानतिनतको क समान ही मानत ह। परनत परासषिङगक माधयधिमक सवसवदन परतयकष नही मानत। वभाषि/क भी ऐसा ही मानत ह। इनक मत म परतयकष षितरषिव� ही ह, तथा –

1. इजिनदरयपरतयकष,

2. मानसपरतयकष और 3. योषिगपरतयकष।

कछ षिवदवानो का कहना ह षिक परासषिङगक कव3 दो ही परमाण नही मानत, अषिपत परतयकष अनमान, उपमान और आगम- इन $ार परमाणो को मानत ह व अपन बात की पधिF क चि3ए परसननपदा क एक शलोक को उदधत भी करत ह।

आ$ाय $ोखापा का कहना ह षिक परसननपदा का व$न षिवगरहवयावतनी पर आ�त ह, वह $ार परमाण होन का सबत नही ह। कयोषिक उपमान और आगम का अनमान म ही अनतभाव हो जाता ह।

परमाणवारतितक म आगम को षिकतनी सीमा तक तथा षिकस परकार परीततिकषत होन पर गहीत षिकया जा सकता ह और आपत चि3ङग की वयवसथा तथा उसका सवरप कया ह? इन सबका सपFतया वणन षिकया गया ह।

षिनषक/त: परासषिङगक षिदवषिव� परमाणवादी ह। 'मान षिदवषिव� मयदवषिवधयात' (परमाणवारतितक, परतयकषपरिरचछद) इन षिनयम को परासषिङगक भी मानत ह।

वि1काय वयवसथा

बदधतव महायान का अनतिनतम परापतवय पद ह। महायान क अनसार षिनरपधि�रश/ षिनवाण परापत होन पर भी वयचिकत की रपसनतषित एव चि$�सनतषित का षिनरो� नही होता, जस षिक हीनयानी दरशनो क अनसार होता ह।

महायाषिनयो का कहना ह षिक षिनरपधि�रश/ षिनवाण होन पर वयचिकत की कव3 सथिक3F सनतषित का ही षिनरो� होता ह। अनासतरव पञ$सकनध सनतषित तो सवदा परवहमान होती ही रहती ह।

बोधि�सतव जब बदधतव परापत करता ह तो बदधतव-परानतिपत क साथ ही तीन काय� की परानतिपत होती ह, यथा -

1. �मकाय,

2. समभोग काय एव 3. षिनमाण काय।

�म�काय

जस एक सामानय वयचिकत म चि$� ($तनारश) और रशरीर (जडारश) दोनो होत ह, वस ही बदध की अवसथा म भी य दोनो होत ह। उनम स चि$� ($तनारश) �मकाय ह तथा उनक समभोग काय और षिनमाणकाय य रशरीरसथानीय ह। सासारिरक अवसथा म वयचिकत क $कषरतिवजञान आदिद षिवजञान रप, रशबद आदिद षिवततिभनन षिव/यो म परवतति� होत रहत ह। उसका आ3यषिवजञान समसत वासनाओ और दौyलयो का आशरय हआ करता ह। सथिक3F मनोषिवजञान, जो एक षिव/म षिवजञान ह, वह सवदा आ3यषिवजञान को आतमतवन गरहण करता रहता ह। बदधावसथा म इन समसत षिवजञानो की समानतिपत हो जाती ह और उनक सथान पर नए-नए षिवजञानो का उतपाद हो जाता ह। इस परषिकरया को ही 'आशरयपरावतति�' कहत ह। जस सासारिरक अवसथा म आ3यषिवजञान समसत षिवजञानो का आशरय हआ करता ह, उसी तरह बदधावसथा म सवजञजञान ही उनक समसत जञानो का आ�ार होता ह और उसम ही समसत बदधगण षिवदयमान रहत ह। आ3यषिवजञान क सथान पर बदधावसथा म सवजञजञान उतपनन होता ह, जो अपरषितधिyत षिनवाण का आ�ार होता ह। सथिक3F मनोषिवजञान क सथान पर समता जञान का उतपाद होता ह, जो समसत �म� को समानरप स रशनय जानता ह। सासारिरक अवसथा $कषरादिदषिवजञानो क सथान पर अषितषिवरशदध $कषरादिदषिवजञान उतपनन होत ह, जो एक-एक भी समसत �म� और उनकी रशनयता को जानत ह। य समसत जञान *सामषिहक रप स 'जञान �मकाय' कह3ात ह। इस जञानकाय म सवजञजञान ही परमख ह।

सवजञजञान म सथिसथत आवरणो का कषय भी �मकाय ह, उस 'आगनतक षिवरशदध सवभाव �मकाय' कहत ह। षिवजञानवादी मत म �मकाय तीन परकार का नही माना जा जाता, जसा ऊपर कहा गया ह, अषिपत दो ही परकार का माना जाता ह, यथा-

1. जञान�मकाय एव 2. आगनतक षिवरशदध सवभाव�मकाय।

इस मत म सवभाषिवरशदध सवभाव�मकाय नही होता, कयोषिक सवजञजञान म सथिसथत बाहयाथरशनयता इन षिवजञानवादिदयो क मत म �मकाय नही ह। इसका कारण यह ह षिक सवजञजञान म सथिसथत बाहयाथरशनयता उस सवजञजञान क षिव/य रप आदिद की भी बाहयाथरशनयता ह। जञातवय ह षिक इस मत म रप और रप को जानन वा3ा $कषरतिवजञान य दोनो रप क परतनतर3कषण ह और दोनो की रशनयता एक ही ह। इसीचि3ए रप को जानन वा3ा सवजञजञान भी रप का परतनतर3कषण ह और उसम सथिसथत रशनयता रप की भी रशनयता ह। ऐसी सथिसथषित म जब षिक सवजञजञान म सथिसथत रशनयता रप म भी षिवदयमान ह, तो वह कस �मकाय हो सकती ह। अथात सवजञजञान म सथिसथत रशनयता �मकाय नही ह।

यह चिसदधानत माधयधिमक मत स बहत ततिभनन ह। माधयधिमको क मत म एक �म की रशनयता दसर �म की रशनयता कथमषिप नही हो सकती। फ3त: उनक मत म सवजञजञान म जो रशनयता सथिसथत ह, वह �मकाय

होती ह, जिजस 'सवभावषिवरशदध सवभाव�मकाय' कहत ह। ऐसा होन क कारण माधयधिमको क मत म षितरषिव� �मकाय होत ह, यथा- षिदवषिव�सवभाव �मकाय और जञान�मकाय। षिदवषिव� सवभाव �मकाय य ह- सवभावषिवरशदध सवभाव �मकाय एव आगनतक षिवरशदध सवभाव�मकाय।

समभोग काय

सासारिरक अवसथा म बोधि�सततव का जो सासतरव रशरीर होता ह, वह दरश भधिमयो की अवसथा म करमरश: रशदध होता जाता ह। आखिखरी जनम म बोधि�सततव '$रमभषिवक बोधि�सततव' कह3ाता ह। वह $रमभषिवक बोधि�सततव अपन आखिखरी जनम म काम�ात और रप�ात क सथानो म उतपनन नही होता, अषिपत कव3 अकषिनy घनकषतर म ही जनमगरहण करता ह। वहा उसका रशरीर अतयनत दिदवय होता ह और कम-क3रशो का उस पर कोई परभाव नही होता। उसी दिदवय जनम म वह बदध हो जाता ह। बदध होत ही वयचिकत समभोगकाय हो जाता ह और उसका रशरीर 32 महापर/ 3कषणो और 80 अनवयजनो स षिवभषि/त हो जाता ह। वह समभोगकाय षिनमन पा$ षिवषिनयतो स यकत होता ह।

1. सथानषिवषिनयत- वह सवदा कव3 अकषिनy घनकषतर म ही सथिसथत रहता ह। 2. कायषिवषिनयत-उसका रशरीर 32 महापर/3कषण और 80 अनवयञजनो स सवदा यकत रहता ह। 3. परिरवारषिवषिनयत- उनक परिरवार म कव3 महायानी आय बोधि�सततव ही रहत ह। 4. वाग-षिवषिनयत- यह सदा महायान �म का ही उपदरश दत ह। 5. का3षिवषिनयत- वह यावत-ससार अथात जब तक ससार ह, तब तक उसी रप म सथिसथत रहत ह। 6. षिनमाण काय

समभोगकाय सवदा अकषिनy घनकषतर म ही सथिसथत रहता ह, तथाषिप वह सक3 जगत क कलयाणाथ समसत कषतरो म रशाकयमषिन गौतम बदध आदिद क रप म अनक बदधो का षिनमाण करता ह। ऐस बदधो को 'षिनमाणकाय' कहत ह। इनक सथान आदिद षिनयत नही होत। वाराणसी, मग� आदिद अनक सथ3ो म व भरमण करत रहत ह। व षिनमाणकाय परश, पकषी, पथगजन आदिद सभी जीवो क दधिFगो$र होत ह तथा समसत षिवनय जनो क कलयाणाथ शरावक, परतयक बदध बोधि�सततव आदिद सभी योनो का उपदरश करत ह। षिनमाणकाय तीन परकार क होत ह, यथा :

उ�म षिनमाणकाय— उ�म षिनमाणकाय का समभोगकाय स साकषात समबनध होता ह। व जमबदवीप आदिद षिवततिभनन 3ोको म दवादरश(12)$रिरत (3ी3ा) परदरशिरशत करत ह। इन $रिरतो क दवारा व षिवनय जनो का कलयाण चिसदध करत ह। यह काय भी 32 महापर/3कषण और 80 अनवयजनो स षिवभषि/त होता ह। रशाकयमषिन गौतम बदध इसक षिनदरशन (उदाहरण) ह।

दवादरश $रिरत इस परकार ह-

1. तषि/त 3ोक स चयषित,

2. मातकततिकष म परवरश,

3. 3नधिमबनी उदयान म अवतरण,

4. चिरशलप क3ा म षिनपणता एव कौमायpचि$त 3चि3त करीडाए,

5. राषिनयो क परिरवार क साथ राजयगरहण,

6. $ार षिनधिम�ो (वदध, रोगी, मत आदिद) को दखकर ससवग परवरजया, 7. नरजना नदी क तट पर छह व/� तक कठोर तप�रण,

8. बोधि�वकष क म3 म उपसथिसथषित,

9. मान की समपण सना का दमन,

10. वरशाख परणिणमा क दिदन बोधि� की परानतिपत,

11. ऋषि/पतन मगदाव (सारनाथ) म �म$कर-परवतन एव 12. करशीनगर म महापरिरषिनवाण।

रशलपि6पक विनमा�णकाय

उ�म षिनमाणकाय को आ�ार बनाकर उ�म क3ाकार क रप म परकट होना 'रशसथिलपक षिनमाणकाय' कह3ाता ह। एक समय रशाकयमषिन न अपनी क3ा क अततिभमानी गनधवराज परमदिदत का दमन करन क चि3ए सवय को वीणावादक क रप म परकट षिकया था। यह 'रशसथिलपक षिनमाणकाय' का उदाहरण ह।

नया�णिणक विनमा�णकाय

उ�म षिनमाणकाय एव रशसथिलपक षिनमाणकाय क अषितरिरकत बदध का अनय सततव क रप म जनम 3ना 'नयाततिणक षिनमाणकाय' कह3ाता ह। उ�म षिनमाणकाय क रप म राजा रशदधोदन क पतर होन क पह3 बदध तषि/त कषतर म दवपतर सचछवतकत क रप म उतपनन हए थ उनका यह जनम नयाततिणक षिनमाणकाय का उदाहरण ह।

एकयानवाद

ससार म कोई भी ऐसा पराणी नही ह, जो षिकसी न षिकसी दिदन बदधतव परापत न कर 3गा। शरावक और परतयकबदध भी, जिजनहोन षिनरपधि�रश/ षिनवाण भी परापत कर चि3या ह, यह समभव ह षिक अनक कलपो तक व षिनवाण�ात म 3ीन रह, षिफर भी उनका एक न एक दिदन महायान म परवरश होगा और व अवशय बदधतव परापत करग। आ$ाय �मकीरतित न परमाणवारतितक म जीवो की चि$�सनतषित को अनादिद एव अननत चिसदध षिकया ह*। इसस चिसदध होता ह षिक षिनरपधि�रश/षिनवाण की अवसथा म भी चि$�सनतषित षिवदयमान होती ह। जब चि$�सनतषित का उचछद नही होता, तब कोई कारण नही षिक बदधतव परापत न षिकया जा सक। दोनो परकार क षिवजञानवादिदयो म आ3यषिवजञान का मानना या न मानना ही सबस बडा अनतर ह। षिकनत आ3यषिवजञान मानन वा3 षिवजञानवादी एकयानवादी न होकर षितरयानवादी होत ह, यह भी बडा अनतर ह। षिवजञानवाद की सथापना या षिवजञनतिपतमातरता चिसदध करन म भी यदयषिप दोनो क यचिकतयो म भद ह, तथाषिप यह रश3ीगत भद ह, मानयताओ म नही।

तथागतगहयक परारसमिमभक तनतर महायानसतरो स बहत धिम3त-ज3त ह। उदाहरणाथ मञजशरीम3कलप अवतसक क

अनतगत 'महावपलयमहायानसतर', क रप म परचिसदध ह। षिवदवानो की राय ह षिक तथागतगहय, गहयसमाजतनतर तथा अFादरशपट3 तीनो एक ही ह। अथात गरनथ

म जो तथागतगहयसतर क उदधरण धिम3त ह, व गहयसमाज स ततिभनन ह। अत: तथागतगहयसतर एव गहयसमाजतनतर का अभद नही ह अथात ततिभनन-ततिभनन ह।

'अFादरश' इस नाम स यह परकट होता ह षिक इस गरनथ म अठारह अधयाय या परिरचछद ह। तथागतगहयसतर क अनसार बोधि�सततव परततिण�ान करता ह षिक शमरशान म सथिसथत उसक मत रशरीर का

षितयग योषिन म उतपनन पराणी यथचछ उपभोग कर और इस परिरभोग की वजह स व सवग स उतपनन हो। इतना ही नही, वह उनक परिरषिनवाण का भी हत हो। आग षिवसतार म पढ:- तथागतगहयक

दरशभमीशवर गणडवयह की भाषित यह सतर भी अवतसक का एक भाग माना जाता ह। इसम बोधि�सततव की दस

आयभधिमयो का षिवसतत वणन ह, जिजन भधिमयो पर करमरश: अधि�रोहण करत हए बदधतव अवसथा तक सा�क पह$ता ह। 'महावसत' म इस चिसदधानत का पवरप उप3बध होता ह। इस गरनथ म उकत चिसदधानत का परिरपाक हआ ह।

महायान म इस सतर का अतयचच सथान ह। इस दरशभधिमक, दरशभमीशवर एव दरशभमक नाम स भी जाना जाता ह।

आय असग न 'दरशभमक' रशबद का ही परयोग षिकया ह। इसकी 3ोकषिपरयता एव परामाततिणकता म यह परमाण ह षिक अतयनत परा$ीनका3 म ही इसक षितबबती, $ीनी, जापानी एव मगोचि3यन अनवाद हो गय थ।

शरी �मरकष न इसका $ीनी अनवाद ई. सन 297 म कर दिदया था। इसक परषितपादन की रश3ी म 3मब-3मब समसत पद एव रपको की भरमार ह।

धिमचिथ3ा षिवदयापीठ न डॉ. जोनस राठर क ससकरण क आ�ार पर इसका पन: ससकरण षिकया ह। जञात ह षिक महायान म दस आयभधिमया मानी जाती ह, यथा- परमदिदता, षिवम3ा, परभाकरी, अरशि$षमती,

सदजया, अततिभमखी, दरङगमा, अ$3ा, सा�मती एव �मम�ा। आयावसथा स पव जो पथगजन भधिम होती ह, उस 'अधि�मचिकत$याभधिम' कहत ह। महायान म पा$ माग

होत ह- समभारमाग, परयोगमाग, दरशनमाग, भावनामाग एव अरशकषमाग। दरशनमाग परापत होन पर बोधि�सततव 'आय' कह3ान 3गता ह। उपयकत दस भधिमया आय की भधिमया ह। दरशन माग की परानतिपत स पव बोधि�सतव पथगजन होता ह। समभारमाग एव परयोगमाग पथगजनमाग ह और उनकी भधिम अधि�मचिकत$याभधिम कह3ाती ह।

महायान गोतरीय वयचिकत बोधि�चि$� का उतपाद कर महायान म परवरश करता ह। पथगजन अवसथा म समभार माग एव परयोगमाग का अभयास कर दरशन माग परापत करत ही आय होकर परथम परमदिदता भधिम को परापत करता ह। आग षिवसतार म पढ :- दरशभमीशवर

वभावि>क दरश�न इनका बहत कछ साषिहतय नF हो गया ह। इनका षितरषिपटक ससकत म था। इनक अततिभ�म म परमख रप

म सात गरनथ ह, जो पराय: म3 रप म अनप3बध ह या आचिरशक रप म उप3बध ह। $ीनी भा/ा म इनका और इनकी षिवभा/ा टीका का अनवाद उप3बध ह। व सात गरनथ इस परकार ह-

1. जञानपरसथान,

2. परकरणपाद,

3. षिवजञानकाय,

4. �मसकनध,

5. परजञनतिपतरशासतर,

6. �ातकाय एव 7. सगीषितपयाय।

वभाषि/क और सवासमिसतवादी दोनो अततिभ�म को बदधव$न मानत ह।

गौतम बदध / Buddhaगौतम बदध का नाम चिसदधाथ था। लिसह3ी, अनशरषित, खारव3 क अततिभ3ख, अरशोक क लिसहासनारोहण की षितचिथ, कणटन क अततिभ3ख आदिद क आ�ार पर महातमा बदध की जनम षितचिथ 563 ई.पव सवीकार की गयी ह। इनका जनम रशाकयवरश क राजा रशदधोदन की रानी महामाया क गभ स 3नधिमबनी म माघ परणिणमा क दिदन हआ था। रशाकय गणराजय की राज�ानी कषिप3वसत क षिनकट 3षिबनी म उनका जनम हआ। चिसदधाथ क षिपता रशाकयो क राजा रशदधो�न थ। बदध को रशाकय मविन भी कहत ह। चिसदधाथ की माता मायादवी उनक जनम क कछ दर बाद मर गई थी। कहा जाता ह षिक षिफर एक ऋषि/ न कहा षिक व या तो एक महान राजा बनग, या षिफर एक महान सा�। 3षिबनी म, जो दततिकषण मधय नपा3 म ह, समराट अरशोक न तीसरी रशताबदी ईसा पव म बदध क जनम की समषित म एक सतमभ बनवाया था। मथरा म अनक बौदध का3ीन मरतितया धिम3ी ह। जो मौय का3 और क/ाण का3 म मथरा की अषित उननत मरतित क3ा की अमलय �रोहर ह।

यह षिव�ाता की 3ी3ा ही थी षिक 3नधिमबनी म जनम 3न वा3 बदध को कारशी म �म परव�न करना पडा। षितरषिपटक तथा जातको स कारशी क ततका3ीन राजनषितक महतव की सहज ही कलपना हो जाती ह। परा$ीन बौदध गरथो म बदध का3 म (कम स कम पा$वी रशताखिबद ई.पव) कारशी की गणना $मपा, राजगह, शरावसती, साकत एव कौरशामबी जस परचिसदध नगरो म होती थी।

पारदरशG $ीवर �ारण षिकए हए बदधततिभकष यरशदिदनन दवारा षिनरमिमत सथाषिपत बदध परषितमा, मथराBuddhaपतर जनम स पह3 उनकी माता न षिवचि$तर सपन दख थ। षिपता रशदधोदन न 'आठ' भषिवषय वकताओ स उनका अथ पछा तो सभी न कहा षिक महामाया को अदभत पतर रतन की परानतिपत होगी। यदिद वह घर म रहा तो $करवतG समराट बनगा और यदिद उसन गह तयाग षिकया तो सनयासी बन जाएगा और अपन जञान क परकारश स समसत षिवशव को आ3ोषिकत कर दगा। रशदधोदन न चिसदधाथ को $करवतG समराट बनाना $ाहा, उसम कषषितरयोचि$त गण उतपनन करन क चि3य समचि$त चिरशकषा का परब� षिकया, विकत चिसदधाथ सदा षिकसी लि$ता म डबा दिदखायी दता था। अत म षिपता न उस षिववाह ब�न म बा� दिदया। एक दिदन जब चिसदधाथ रथ पर रशहर भरमण क चि3य षिनक3 थ तो उनहोन माग म जो कछ भी दखा उसन उनक जीवन की दिदरशा ही बद3 डा3ी। एक बार एक दब3 वदध वयचिकत को, एक बार एक रोगी को और एक बार एक रशव को दख कर व ससार स और भी अधि�क षिवरकत तथा उदासीन हो गय। पर एक अनय अवसर पर उनहोन एक परसननचि$� सनयासी को दखा। उसक $हर पर रशाषित और तज की अपव $मक षिवराजमान थी। चिसदधाथ उस दशय को दख-कर अतयधि�क परभाषिवत हए।

उनक मन म षिनवतति� माग क परषित षिन:सारता तथा षिनवषित मण की ओर सतो/ भावना उतपनन हो गयी। जीवन का यह सतय चिसदधाथ क जीवन का दरशन बन गया। षिववाह क दस व/ क उपरानत उनह पतर रतन की परानतिपत हई। पतर जनम का समा$ार धिम3त ही उनक मह स सहसा ही षिनक3 पडा- 'राह'- अथात ब�न। उनहोन पतर का नाम राह3 रखा। इसस पह3 षिक सासारिरक ब�न उनह चिछनन-षिवसथिचछनन कर, उनहोन सासारिरक ब�नो को चिछनन-ततिभनन करना परारभ कर दिदया और गहतयाग करन का षिन�य षिकया। एक महान राषितर को 29 व/ क यवक चिसदधाथ जञान परकारश की तषणा को तपत करन क चि3य घर स बाहर षिनक3 पड।

कछ षिवदवानो का मत ह षिक गौतम न यजञो म हो रही विहसा क कारण गहतयाग षिकया। कछ अनय षिवदवानो क अनसार गौतम न दसरो क दख को न सह सकन क कारण घर छोडा था।

गहतयाग क बाद चिसदधाथ जञान की खोज म भटकन 3ग। विबषिबसार, उदरक, आ3ार एवम का3ाम नामक साखयोपदरशको स धिम3 कर व उरव3ा की रमणीय वनसथ3ी म जा पह$। वहा उनह कौषिडलय आदिद पा$ सा�क धिम3। उनहोन जञान-परानतिपत क चि3य घोर सा�ना परारभ कर दी। विकत उसम असफ3 होन पर व गया क षिनकट एक वटवकष क नी$ आसन 3गा कर बठ गय और षिन�य कर चि3या षिक भ3 ही पराण षिनक3 जाए, म तब तक समाधि�सत रहगा, जब तक जञान न परापत कर 3। सात दिदन और सात राषितर वयतीत होन क बाद, आठव दिदन वरशाख परणिणमा को उनह जञान परापत हआ और उसी दिदन व तथागत हो गय। जिजस वकष क नी$ उनह जञान परापत हआ वह आज भी 'बोधि�वकष' क नाम स षिवखयात ह। जञान परानतिपत क समय उनकी अवसथा 35 व/ थी। जञान परानतिपत क बाद तपसस तथा कासथिल3क नामक दो रशदर उनक पास आय। महातमा बदध न उनह जञान दिदया और बौदध �म का परथम अनयायी बनाया।

बदध, करशीनगर Buddha, Kushinagar

बो�गया स $3 कर व सारनाथ पह$ तथा वहा अपन पवका3 क पा$ साचिथयो को उपदरश द कर अपना चिरशषय बना दिदया। बौदध परपरा म यह उपदरश '�म$कर परव�न' नाम स षिवखयात ह। महातमा बदध न कहा षिक इन दो अषितयो स ब$ना $ाषिहय-

काम सखो म अधि�क चि3पत होना तथा रशरीर स कठोर सा�ना करना। उनह छोड कर जो मधयम माग मन खोजा ह, उसका सवन करना

$ाषिहय।* यही '�म$कर परवतन' क रप म पह3ा उपदरश था। अपन पा$ अनयाइयो क साथ व वाराणसी पह$। यहा उनहोन एक शरधिy पतर को अपना अनयायी बनाया तथा पणरप स '�म परव�न' म जट गय। अब तक उ�र भारत म इनका काफी नाम हो गया था और अनक अनयायी बन गय थ। कई बाद महाराज रशदधोदन न इनह दखन क चि3य कषिप3वसत ब3वाना $ाहा 3षिकन जो भी इनह ब3ान आता वह सवय इनक उपदरश सन कर इनका अनयायी बन जाता था।

इनक चिरशषय घम-घम कर इनका पर$ार करत थ। इनक �म का इनक जीवन का3 म ही काफी पर$ार हो गया था कयोषिक उन दिदनो कमकाड का जोर काफी बढ $का था और परशओ की हतया बडी सखया म हो रही थी। इनहोन इस षिनरथक हतया को रोकन तथा जीव मातर पर दया करन का उपदरश दिदया। पराय: 44 व/ तक षिबहार तथा कारशी क षिनकटव�G परातो म �म पर$ार करन क उपरात अत म करशीनगर क षिनकट एक वन म रशा3 वकष क नी$ वदधावसथा म इनका परिरषिनवाण अथात रशरीरात हआ। मतय स पव उनहोन करशीनारा क परिरवराजक सभचछ को अपना अनतिनतम उपदरश दिदया।

उनक मख स विनकल अवितम रशबद थ

ह ततिभकषओ, इस समय आज तमस इतना ही कहता ह षिक जिजतन भी ससकार ह, सब नारश होन वा3 ह, परमाद रषिहत हो कर अपना कलयाण करो। यह 483 ई. प. की घटना ह। व अससी व/ क थ।*

वीचिथका

चिसर षिवहीन बदध परषितमाHeadless Image of Buddha

बदध मसतकHead Of Buddha

बदध मरतित,करशीनगरBuddha Statue, Kushinagar

बदध मरतित का �डTorso Of Buddha Image

अभय मदरा म खड भगवान बदध

Standing Buddha in Abhayamudra

बदध मरतित, करशीनगरBuddha Statue, Kushinagar

धयानावसथिसथत बदधBuddha In Meditation

बदधBuddha

बदध परषितमा का षिन$3ाभागLower Part Of Buddha

चिरशरश बदध का परथम सनानFirst Bath Of Baby Buddha

बौदध ततिभकष धयान सथ3ी, करशीनगर

बदधBuddha

बदध परषितमाBuddha Image

अभय मदरा म खड भगवान बदध

Standing Buddha in Abhayamudra

बदधBuddha

उ�र परदरश क परमख बौदध क दरUttar Pradesh Prominent Buddhist Centres

बौदध �म� / Buddhism

बदध परषितमाBuddha Imageराजकीय सगरहा3य, मथरा

बौदध �म भारत की शरमण परमपरा स षिनक3ा �म और दरशन ह। इसक ससथापक महातमा बदध, रशाकयमषिन (गौतम बदध) थ। बदध राजा रशदधोदन क पतर थ और इनका जनम 3षिबनी नामक गराम (नपा3) म हआ था। व छठवी स पा$वी रशताबदी ईसा पव तक जीषिवत थ। उनक गजरन क बाद अग3ी पा$ रशताखिबदयो म, बौदध �म पर भारतीय उपमहादवीप म फ3ा, और अग3 दो हजार सा3ो म मधय, पवG और दततिकषण-पवG जमब महादवीप म भी फ3 गया। आज, बौदध �म म तीन मखय समपरदाय ह: थरवाद, महायान और वजरयान। बौदध �म को पतीस करोड स अधि�क 3ोग मानत ह और यह दषिनया का $ौथा सबस बडा �म ह। बौदध �म म दो मखय समपरदाय ह:

थरवाद

थरवाद या हीनयान बदध क मौचि3क उपदरश ही मानता ह।

महायान

महायान बदध की पजा करता ह। य थरावादिदयो को "हीनयान" (छोटी गाडी) कहत ह। बौदध �म की एक परमख रशाखा ह जिजसका आरभ पह3ी रशताबदी क आस-पास माना जाता ह। ईसा पव पह3ी रशताबदी म वरशा3ी म बौदध-सगीषित हई जिजसम पतति�मी और पवG बौदध पथक हो गए। पवG रशाखा का ही आग $3कर महायान नाम पडा। दरश क दततिकषणी भाग म इस मत का परसार दखकर कछ षिवदवानो की मानयता ह षिक इस षिव$ार�ारा का आरभ उसी अ$3 स हआ। महायान भचिकत पर�ान मत ह। इसी मत क परभाव स बदध की मरतितयो का षिनमाण आरभ हआ। इसी न बौदध �म म बोधि�सतव की भावना का समावरश षिकया। यह भावना सदा$ार, परोपकार, उदारता आदिद स समपनन थी। इस मत क अनसार बदधतव की परानतिपत सवpपरिर 3कषय ह। महायान सपरदाय न गहसथो क चि3ए भी सामाजिजक उननषित का माग षिनरदिदF षिकया। भचिकत और पजा की भावना क कारण इसकी ओर

3ोग सर3ता स आकF हए। महायान मत क परमख षिव$ारको म अशवघो/, नागाजन और असग क नाम परमख ह।

बरज (मथरा) म बौदध �म�मथरा और बौदध �म का घषिनy सब� था। जो बदध क जीवन-का3 स क/ाण - का3 तक अकषण रहा। 'अग�रषिनकाय' क अनसार भगवान बदध एक बार मथरा आय थ और यहा उपदरश भी दिदया था।* 'वरजक-बराहमण-स�' म भगवान बदध क दवारा मथरा स वरजा तक यातरा षिकए जान का वणन धिम3ता ह।* पाचि3 षिववरण स यह जञात होता ह षिक बदधतव परानतिपत क बारहव व/ म ही बदध न मथरा नगर की यातरा की थी। [1] मथरा स 3ौटकर बदध वरजा आय षिफर उनहोन शरावसती की यातरा की। [2] भगवान बदध क चिरशषय महाकाचयायन मथरा म बौदध �म का पर$ार करन आए थ। इस नगर म अरशोक क गर उपगपत*, धरव (सकद पराण, कारशी खड, अधयाय 20), एव परखयात गततिणका वासवद�ा* भी षिनवास करती थी। मथरा राजय का दरश क दसर भागो स वयापारिरक सब� था। मथरा उ�रापथ और दततिकषणापथ दोनो भागो स जडा हआ था।* राजगह स तकषचिरश3ा जान वा3 उस समय क वयापारिरक माग म यह नगर सथिसथत था।*

बौदध मरतितGयामथरा क क/ाण रशासक जिजनम स अधि�कारश न बौदध �म को परोतसाषिहत षिकया मरतित षिनमाण क पकषपाती थ। यदयषिप क/ाणो क पव भी मथरा म बौदध �म एव अनय �म स समबनधिनधत परषितमाओ का षिनमाण षिकया गया था।

बदध परषितमाBuddha Imageराजकीय सगरहा3य, मथराषिवदिदत हआ ह षिक क/ाण का3 म मथरा उ�र भारत म सबस बडा मरतित षिनमाण का कनदर था और यहा षिवततिभनन �म� समबनधिनधत मरतितयो का अचछा भणडार था। इस का3 क पह3 बदध की सवततर मरतित नही धिम3ती ह। बदध का पजन इस का3 स पव षिवषिव� परतीक चि$नहो क रप म धिम3ता ह। परनत क/ाण का3 क परारमभ स महायान भचिकत, पथ भचिकत उतपतति� क साथ नागरिरको म बदध की सकडो मरतितयो का षिनमाण होन 3गा। बदध क पव जनम की जातक कथाय भी पतथरो पर उतकीण होन 3गी। मथरा स बौदध �म समबनधी जो अवरश/ धिम3 ह, उनम परा$ीन �ारमिमक एव 3ौषिकक जीवन क अधययन की अपार सामगरी ह। मथरा क3ा क षिवकास क साथ–साथ

बदध एव बौधि�तसव की सनदर मरतितयो का षिनमाण हआ। गपतका3ीन बदध परषितमाओ म अग परतयग क क3ा पण षिवनयास क साथ एक दिदवय सौनदय एव आधयानधितमक गाभीय का समनवय धिम3ता ह।

पा$वी रशताबदी ई. म फाहयान भारत आया तो उसन ततिभकषओ स भर हए अनक षिवहार दख। सातवी रशताबदी म हएन - साग न भी यहा अनक षिवहारो को दखा। इन दोनो $ीनी याषितरयो न अपनी यातरा म यहा का वणन षिकया ह। "पीत" दरश स होता हआ $ीनी यातरी फाहयान 80 योजन $3कर मताउ3ा [3] (मथरा) जनपद पह$ा था। इस समय यहा बौदध �म अपन षिवकास की $रम सीमा पर था। उसन चि3खा ह षिक यहा 20 स भी अधि�क सघाराम थ, जिजनम 3गभग तीन सहसर स अधि�क ततिभकष रहा करत थ।* यहा क षिनवासी अतयत शरदधा3 और सा�ओ का आदर करन वा3 थ। राजा ततिभकषा (भट) दत समय अपन मकट उतार चि3या करत थ और अपन परिरजन तथा अमातयो क साथ अपन हाथो स दान करत (दत) थ। यहा अपन-आपसी झगडो को सवय तय षिकया जाता था; षिकसी नयाया�ीरश या कानन की रशरण नही 3नी पडती थी। नागरिरक राजा की भधिम को जोतत थ तथा उपज का कछ भाग राजको/ म दत थ। मथरा की ज3वाय रशीतोषण थी। नागरिरक सखी थ। राजा पराणदड नही दता था, रशारीरिरक दड भी नही दिदया जाता था। अपरा�ी को अवसथानसार उ�र या मधयम अथदड दिदया जाता था (जमस 3गग, दिद टरवलस ऑफ फाहयान, प 43)। अपरा�ो की पनरावतति� होन पर दाषिहना हाथ काट दिदया जाता था। फाहयान चि3खता ह षिक पर राजय म $ाडा3ो को छोडकर कोई षिनवासी जीव-विहसा नही करता था। मदयपान नही षिकया जाता था और न ही 3हसन-पयाज का सवन षिकया जाता था। $ाडा3 (दसय) नगर क बाहर षिनवास करत थ। करय-षिवकरय म चिसकको एव कौषिडयो का पर$3न था (जमस 3गग, दिद टरवलस ऑफ फाहयान, प 43)। बौदध गरथो म रशरसन क रशासक अवषित पतर की $$ा ह, जो उजजधियनी क राजवरश स सबधि�त था। इस रशासक न बदध क एक चिरशषय महाकाचयायन स बराहमण �म पर वाद-षिववाद भी षिकया था।* भगवान बदध रशरसन जनपद म एक बार मथरा गए थ, जहा आनद न उनह उरमड पवत पर सथिसथत गहर नी3 रग का एक हरा-भरा वन दिदख3ाया था।* धिमलि3दपनहो* म इसका वणन भारत क परचिसदध सथानो म हआ ह। इसी गरथ म परचिसदध नगरो एवम उनक षिनवाचिसयो क नाम क एक परसग म मा�र का (मथरा क षिनवासी का भी उल3ख धिम3ता ह* जिजसस जञात होता ह षिक राजा धिमलि3द (धिमनाडर) क समय (150 ई॰ प॰) मथरा नगर पाचि3 परपरा म एक परषितधिyत नगर क रप म षिवखयात हो $का था।

वीचिथका

अभय मदरा म खड भगवानबदधStanding Buddha in Abhayamudra

चिसर षिवहीन बदध परषितमाHeadless Image of Buddha

बदध मरतित का �डTorso Of Buddha Image

बदध मसतकHead Of Buddha

बदध चिरशरश बदध का परथम सनान बदध बदध परषितमा

Buddha First Bath Of Baby Buddha Buddha Buddha Image

बदध गणअनकरम[छपा]

1 बदध गण 2 भगवान बदध की चिरशकषा 3 षितरषिव� �म$कर परवतन 4 �म$करो की नयनीताथता 5 बदध की चिरशकषा की सावभौधिमकता

6 समबधि�त लि3क

बदध म अननताननत गण होत ह। उनह $ार भागो म वगGकत षिकया जाता ह, यथा-

1. काय गण, 2. वाग-गण,

3. चि$� गण एव 4. कम गण।

काय-गण— 32 महापर/3कषण एव 80 अनवयजन बदध क कायगण ह। उनम स परतयक यहा तक षिक परतयक रोम भी सभी जञयो का साकषात दरशन कर सकता ह। बदध षिवशव क अनक बरहयाणडो म एक-साथ काधियक 3ी3ाओ का परदरशन कर सकत ह। इन 3ी3ाओ दवारा व षिवनयजनो को सनमाग म परषितधिyत करत ह।

वाग-गण— बदध की वाणी नधिसनग� वाक, मदवाक, मनोजञवाक, मनोरम वाक, आदिद कह3ाती ह। इस परकार बदध की वाणी क 64 अग होत ह, जिजनह 'बरहमसवर' भी कहत ह। य सब बदध क वाग-गण ह।

चि$�-गण— बदध क चि$�-गण जञानगत भी होत ह और करणागत भी। कछ गण सा�ारण भी होत ह, जो शरावक और परतयकबदध म भी होत ह। कछ गण असा�ारण होत ह, जो कव3 बदध म ही होत ह। दरश ब3, $तवरशारदय, तीन अससमिमभनन समतयपसथान, तीन अगपत नासमिसत मषि/तसमषितता, समयक परषितहतवासनतव, महाकरणा, अFादरश आवततिणक गण आदिद बदध क जञानगत गण ह। द:खी सततवो को दखकर बदध की महाकरणा अनायास सवत: परव� होन 3गती ह। महाकरणा क इस अजसर परवाह स जगत का अषिवसथिचछनन रप स कलयाण होता रहता ह। यह उनका करणागत गण ह।

कम-गण— य दो परकार क होत ह, यथा-

1. षिनराभोग कम और

2. अषिवसथिचछनन कम।

षिनराभोग कम स तातपय उन कम� स ह, जो षिबना परयतन या सकलप क सय स परकारश की भाषित सवत: अपन-आप परव� होत ह।

बदध क कम षिबना काचि3क अनतरा3 क 3गातार सवदा परव� होत रहत ह, अत: य अषिवसथिचछनन कम कह3ात ह।

भगवान बदध की णिरशकषामनषय जिजन द:खो स पीषिडत ह, उनम बहत बडा षिहससा ऐस द:खो का ह, जिजनह मनषय न अपन अजञान, ग3त जञान या धिमथया दधिFयो स पदा कर चि3या ह उन द:खो का परहाण अपन सही जञान दवारा ही समभव ह, षिकसी क आरशीवाद या वरदान स उनह दर नही षिकया जा सकता। सतय या यथाथता का जञान ही समयक जञान ह। अत: सतय की खोज द:खमोकष क चि3ए परमावशयक ह। खोज अजञात सतय की ही की जा सकती ह। यदिद सतय षिकसी रशासतर, आगम या उपदरशक दवारा जञात हो गया ह तो उसकी खोज नही। अत: बदध न अपन पववतG 3ोगो दवारा या परमपरा दवारा बताए सतय को नकार दिदया और अपन चि3ए नए चिसर स उसकी खोज की। बदध सवय कही परषितबदध नही हए और न तो अपन चिरशषयो को उनहोन कही बा�ा। उनहोन कहा षिक मरी बात को भी इसचि3ए $प$ाप न मान 3ो षिक उस बदध न कही ह। उस पर भी सनदह करो और षिवषिव� परीकषाओ दवारा उसकी परीकषा करो। जीवन की कसौटी पर उनह परखो, अपन अनभवो स धिम3ान करो, यदिद तमह सही जान पड तो सवीकार करो, अनयथा छोड दो। यही कारण था षिक उनका �म रहसयाडमबरो स मकत, मानवीय सवदनाओ स ओतपरोत एव हदय को सी� सपरश करता था।

वि1विव� �म�$कर परवत�नभगवान बदध परजञा व करणा की मरतित थ। य दोनो गण उनम उतक/ की पराकाyा परापत कर समरस होकर सथिसथत थ। इतना ही नही, भगवान बदध अतयनत उपायकरश3 भी थ। उपाय कौरश3 बदध का एक षिवचिरशF गण ह अथात व षिवषिव� परकार क षिवनय जनो को षिवषिव� उपायो स सनमाग पर आरढ करन म अतयनत परवीण थ। व यह भ3ीभाषित जानत थ षिक षिकस षिकस उपाय स सनमाग पर आरढ षिकया जा सकता ह। फ3त: व षिवनय जनो क षिव$ार, रचि$, अधयारशय, सवभाव, कषमता और परिरसथिसथषित क अनरप उपदरश दिदया करत थ। भगवान बदध की दसरी षिवरश/ता यह ह षिक व सनमाग क उपदरश दवारा ही अपन जगतकलयाण क काय का समपादन करत ह, न षिक वरदान या ऋजिदध क ब3 स, जस षिक चिरशव या षिवषण आदिद क बार म अनक कथाए पराणो म पर$चि3त ह। उनका कहना ह षिक तथागत तो मातर उपदFा ह, कतयसमपादन तो सवय सा�क वयचिकत को ही करना ह। व जिजसका कलयाण करना $ाहत ह, उस �म� (पदाथ�) की यथाथता का उपदरश दत थ। भगवान बदध न ततिभनन-ततिभनन समय और ततिभनन-ततिभनन सथानो म षिवनय जनो को अननत उपदरश दिदय थ। सबक षिव/य, परयोजन और पातर ततिभनन-ततिभनन थ। ऐसा होन पर भी समसत उपदरशो का अनतिनतम 3कषय एक ही था और वह था षिवनय जनो को द:खो स मचिकत की ओर 3 जाना। मोकष या षिनवाण ही उनक समसत उपदरशो का एकमातर रस ह।

�म�$करो की नयनीताथ�ताषिवजञानवाद और सवातनतिनतरक माधयधिमको क अनसार नीताथसतर व ह, जिजनका अततिभपराय यथारत (रशबद क अनसार) गरहण षिकया जा सकता ह तथा नयाथ सतर व ह, जिजनका अततिभपराय रशबदरश: गरहण नही षिकया जा सकता, अषिपत उनका अततिभपराय खोजना पडता ह, जस- माता और षिपता की हतया करन स वयचिकत षिनषपाप होकर षिनवाण परापत करता ह। मातर षिपतर हतवा....अनीघो याषित बराहमणो* इस व$न का अथ रशबदरश: गरहण

नही षिकया जा सकता, अषिपत यहा षिपता का अततिभपराय कमभव और माता का अततिभपराय तषणा स ह। इस परकार की दरशना आततिभपराधियकी या नयाथा कह3ाती ह। परासषिगक माधयधिमको क मत म नयाथ और नीताथ की वयाखया उपयकत वयाखया स षिकसथिञ$त ततिभनन ह। उनक अनसार जिजन सतरो का परषितपादय षिव/य परमाथ सतय अथात रशनयता, अषिनधिम�ता, अनतपाद, अषिनरो� आदिद ह, व नीताथ सतर ह तथा जिजन सतरो का परषितपादय षिव/य सवषित सतय ह, व नयाथ सतर ह। नयाथता और नीताथता की वयवसथा व आय –अकषयमषितषिनदरशसतर क अनसार करत ह।

परथम �म�$करपरवत�न

का3 की दधिF स यह परथम ह। वाराणसी का ऋषि/पतन मगदाव इसका सथान ह। इसक षिवनय जन (पातर) शरावकवगGय व 3ोग ह, जो सव3कषण और बाहयाथ की स�ा पर आ�त $तरतिव� आय सतयो की दरशना क पातर (भवय) ह सव3कषण स�ा एव बाहय स�ा क आ�ार पर $ार आयसतयो की सथापना इस परथम �म$कर की षिव/यवसत ह। शरावकवगGय 3ोगो की दधिF स यह नीताथ दरशना ह। योगा$ार और माधयधिमक इस नयाथ दरशना मानत ह।

वि-तीय �म�$कर परवत�न

का3 की दधिF स यह मधयम ह। इसका सथान परमखत: गधरकट पवत ह। इसक षिवनय जन महायानी पदग3 ह। रशनयता, अषिनधिम�ता, अनतपाद, अषिनरो� आदिद उसक परमख परषितपादय षिव/य ह। इस दरशना क दवारा समसत �म षिन:सवभाव परषितपादिदत षिकय गय ह। षिवजञानवादी इस नयाथ दरशना मानत ह। आ$ाय भावषिववक, जञानगभ, रशानतरततिकषत, कम3रशी3 आदिद सवातनतिनतरक माधयधिमको का इस दरशना की नयाथता और नीताथता क बार म परासषिङगक माधयधिमको स मतभद ह। उनक अनसार आय रशतसाहनधिसतरका परजञापारधिमता आदिद कछ सतर नीताथ सतर ह, कयोषिक इनम समसत �म� की परमाथत: षिन:सवभावता षिनरदिदF ह। भगवती परजञापारधिमता हदयसतर आदिद कछ सतर यदयषिप षिदवतीय �म$कर क अनतगत सगहीत ह, तथाषिप व नीताथ नही मान जात, कयोषिक इनक दवारा जिजस परकार की सव�मषिन:सवभावना परषितपादिदत की गई ह, उस परकार की षिन:सवभावता सवातनतिनतरक माधयधिमको को मानय नही ह। यदयषिप इन सतरो का अततिभपराय भी परमाथत: षिन:सवभावता ह, तथाषिप उनम 'परमाथत:' यह षिवरश/ण सपFतया उसथिल3खिखत नही ह, जो षिक उनक मतानसार नीताथ सतर होन क चि3ए परमावशयक ह।

ततीय �म�$करपरवत�न

का3 की दधिF स यह अनतिनतम ह। इसका सथान वरशा3ी आदिद परमख ह। शरावक एव महायानी दोनो परकार क पदग3 इसक षिवनय जन ह। रशनयता, अनतपाद, अषिनरो� आदिद इसक षिव/यवसत ह। षिवजञानवादिदयो क अनसार यह नीताथ दरशना ह। यदयषिप षिदवतीय और ततीय दोनो �म$करो म रशनयता परषितपादिदत की गई ह, तथाषिप षिदवतीय �म$कर म समसत �म� को समान रप स षिन:सवभाव कहा गया ह, जबषिक इस ततीय �म$कर म यह भद षिकया गया ह षिक अमक �म अमक दधिF स षिन:सवभाव ह और अमक �म षिन:सवभाव नही, अषिपत ससवभाव ह। इसी क आ�ार पर षिवजञानवादी दरशन परषितधिyत ह। इस कारण षिवजञानवादी समसत �म� को समानरप स षिन:सवभाव नही मानत। उनक अनसार �म� म स कछ षिन:सवभाव ह और कछ ससवभाव ह। अत: व समान रप स सव�मषिन:सवभावता परषितपादक षिदवतीय �म$कर को नीताथ नही मानत। उनक मतानसार जो सतर �म� की षिन:सवभावता और ससवभावता का समयक षिवभाजन करत ह, व ही नीताथ मान जात ह। इनम आयसनधिनधषिनमp$नसतर परमख ह।

भगवान बदध दवारा परवरतितत होन पर भी बौदध दरशन कोई एक दरशन नही, अषिपत दरशनो का समह ह। षिवततिभनन दारशषिनक मददो पर उनम परसपर मतभद भी ह। कोई परमाणवादी ह तो कोई परमाण की स�ा नही मानत। कोई साकार जञानवादी ह तो कोई षिनराकार जञानवादी। कछ बातो म षिव$ारसामय होन पर

भी मतभद अधि�क ह। रशबदसामय होन पर भी अथभद अधि�क ह। अनक रशाखोपरशाखाओ क होन पर भी दारशषिनक मानयताओ क सामय की दधिF स बौदध षिव$ारो का $ार षिवभागो म वगGकरण षिकया गया ह, यथा-

1. वभाषि/क,

2. सौतरानतिनतक,

3. योगा$ार (षिवजञानवाद) और 4. माधयधिमक (रशनयवाद)।

दारशषिनक मनतवयो को समझन स पह3 भगवान बदध की उन सामानय चिरशकषाओ की $$ा करना $ाहत ह, जो सभी $ारो दारशषिनक परसथानो म समानरप स मानय ह, यदयषिप उनकी वयाखया म मतभद ह।

बदध की णिरशकषा की साव�भौमिमकताभा>ा

भगवान बदध न षिकस भा/ा म उपदरश दिदए, इस जानन क चि3ए हमार पास पषक3 परामाततिणक सामगरी का अभाव ह, षिफर भी इतना षिनतति�त ह षिक उनक उपदरशो की भा/ा कोई 3ोकभा/ा ही थी। इसक अनक कारण ह।

1. पह3ा यह षिक वह अपना सनदरश जन-जन तक पह$ाना $ाहत थ, न षिक षिवचिरशF जनो तक ही। इसक चि3ए आवशयक था षिक व जनभा/ा म ही उपदरश दत।

2. दसरा यह षिक भा/ा षिवरश/ की पषिवतरता पर उनका षिवशवास न था। व यह नही मानत थ षिक रशदध भा/ा क उचचारण स पणय होता ह। बदध न कहा षिक म अपनी-अपनी भा/ा म उनह सगहीत करन की अनमषित परदान करता ह- 'अनजानाधिम ततिभकखव, सकाय षिनरतति�या बदधव$न परिरयापततिणत षित*'। फ3त: उनक उपदरश परशा$ी, ससकत, अपभररश, माग�ी आदिद अनक भा/ाओ म सकचि3त हए।

मानव-समता

भगवान बदध क अनसार �ारमिमक और आधयानधितमक कषतर म सभी सतरी एव पर/ो म समान योगयता एव अधि�कार ह। इतना ही नही, चिरशकषा, चि$षिकतसा और आजीषिवका क कषतर म भी व समानता क पकष�र थ। उनक अनसार एक मानव का दसर मानव क साथ वयवहार मानवता क आ�ार पर होना $ाषिहए, न षिक जाषित, वण, चि3ङग आदिद क आ�ार पर। कयोषिक सभी पराणी समानरप स द:खी ह, अत: सब समान ह। द:ख परहाण ही उनक �म का परयोजन ह। अत: सवदना और सहानभषित ही इस समता क आ�ारभत तततव ह। उनहोन कहा षिक जस सभी नदिदया समदर म धिम3कर अपना नाम, रप और षिवरश/ताए खो दती ह, उसी परकार मानवमातर उनक सघ म परषिवF होकर जाषित, वण आदिद षिवरश/ताओ को खो दत ह और समान हो जात ह। षिनवाण ही उनक �म का एकमातर रस ह।

मानवशरषठता

बदध क अनसार मानवजनम अतयनत द3भ ह। मनषय म वह बीज षिनषिहत ह, जिजसकी वजह स यदिद वह $ाह तो अभयदय एव षिन:शरयस अथात षिनवाण और बदधतव जस परम पर/ाथ भी चिसदध कर सकता ह। दवता शरy नही

ह, कयोषिक व वयापक तषणा क कषतर क बाहर नही ह। अत: मनषय उनका दास नही ह, अषिपत उनक उदधार का भार भी मनषय क ऊपर ही ह। इसीचि3ए उनहोन कहा षिक ततिभकषओ, बहजन क षिहत और सख क चि3ए तथा दव और मनषयो क कलण क चि3ए 3ोक म षिव$रण करो। ऋषि/पतन मगदाव (सारनाथ) म अपन परथम व/ावास क अननतर ततिभकषओ को उनका यह उपदरश मानवीय सवतनतरता और मानवशरyता का अपरषितम उद/ो/ ह।

वयावहारिरकता

बदध की चिरशकषा अतयनत वयावहारिरक थी। उसम षिकसी भी तरह क रहसयो और आडमबरो क चि3ए कोई सथान न था उनका चि$नतन पराततिणयो क वयापक द:खो क कारण की खोज स परारमभ होता ह, न षिक षिकसी अतयनत षिनगढ, गहापरषिवF तततव की खोज स। व यावजजीवन द:खो क अतयनत षिनरो� का उपाय ही बतात रह। उनहोन ऐस परशनो का उ�र दन स इनकार कर दिदया और उनह अवयाकरणीय (अवयाखयय) करार दिदया, जिजनक दवारा यह पछा जाता था षिक यह 3ोक रशाशवत ह षिक अरशाशवत; यह 3ोक अननत ह षिक सानत अथवा तथागत मरण क प�ात होत ह या नही- इतयादिद। उनका कहना था षिक ऐस परशन और उनका उ�र न अथसषिहत ह और न �मसषिहत।

मधयमा परवितपदा

भगवान बदध न जिजस �म$कर का परवतन षिकया अथवा जिजस माग का उनहोन उपदरश षिकया, उस 'मधयमा परषितपदा' कहा जाता ह। परसपर-षिवरो�ी दो अनतो या अषितयो का षिन/� कर भगवान न मधयम माग परकाचिरशत षिकया ह। मनषय का सवभाव ह षिक वह बडी आसानी स षिकसी अनत म पषितत हो जाता ह और उस अनत को अपना पकष बनाकर उसक परषित आगरहरशी3 हो जाता ह। यह आगरहरशी3ता ही सार मानवीय षिवभदो, सघ/� और द:खो का म3 ह। मधयमा परषितपद अनागरहरशी3ता ह और समसयाओ स मचिकत का सवp�म राजपथ ह इसका कषतर अतयनत वयापक ह और इसम अननत समभावनाए षिनषिहत ह। सामाजिजक, आरशिथक और राजनीषितक समसयाओ क समा�ान म भी इसकी उपयोषिगता समभाषिवत ह, षिकनत अभी तक उन दिदरशाओ म इसका अधययन और परयोग नही षिकया जा सका। रशी3, समाधि� और परजञा या दरशन क कषतर म ही उसकी परा$ीन वयाखयाए उप3बध होती ह। 3ीनता और उदधव (औदधतव) य दोनो दो/ ह, जो समाधि� क बा�क ह। समाधि� चि$� का समपरवाह ह। यह समाधि� की दधिF स मधयमपरषितपदा ह। परजञा की दधिF स रशारशवतवाद (षिनतयता क परषित आगरह) एक अनत ह और उचछदवाद (ऐषिहकवाद) दसरा अनत ह। इन दोनो अनतो का षिनरास मधयमा परषितपद ह। यही समयग दधिF ह। इसक षिबना अभयदय और षिन:शरयस कोई भी पर/ाथ चिसदध नही षिकया जा सकता। सभी बौदध दारशषिनक मधयम-परषितपदा सवीकार करत ह, षिकनत व रशाशवत और उचछद अनत की ततिभनन-ततिभनन वयाखयाए करत ह।

परतीतयसमतपाद

परतीतयसमतपाद सार बदध षिव$ारो की रीढ ह। बदध परणिणमा की राषितर म इसी क अन3ोम-परषित3ोम अवगाहन स बदध न बदधतव का अधि�गत षिकया। परतीतयसमतपाद का जञान ही बोधि� ह। यही परजञाभधिम ह। अनक गणो क षिवदयमान होत हए भी आ$ाय� न बडी शरदधा और भचिकतभाव स ऐस भगवान बदध का सतवन षिकया ह, जिजनहोन अनपम और अन�र परतीतयसमतपाद की दरशना की ह। $ार आयसतय, अषिनतयता, द:खता, अनातमता कषणभङगवाद, अनातमवाद, अनीशवरवाद आदिद बौदधो क परचिसदध दारशषिनक चिसदधानत इसी परतीतयसमतपाद क परषितफ3न ह।

कम�सवातनतरय

बौदधो का कम-चिसदधानत भारतीय परमपरा म ही नही, अषिपत षिवशव की �ारमिमक परमपरा म बजोड एव सबस ततिभनन ह। पराय: सभी 3ोग कम को जड मानत ह, अत: कम� क कता को उन कम� क फ3 स अनतिनवत करन क चि3ए एक अषितरिरकत $तन या ईशवर क असमिसततव की आवशयकता महसस करत ह। उनक अनसार ऐस अषितरिरकत $तन क अभाव म कम-कमफ3 वयवसथा बन नही सकगी और सारी वयवसथा असतवयसत हो जाएगी। जबषिक बौदध 3ोग कम को जड ही नही मानत। भगवान बदध न कम को '$तना' कहा ह* कम कयोषिक $तना ह, अत: वह अपन फ3 को सवय अगीकार या आकF कर 3ती ह। $तना-परवाह म कम-कमफ3 की सारी वयवसथा स$ारतया समपनन हो जाती ह। इसचि3ए फ3 दन क चि3ए एक अषितरिरकत $तन या ईशवर को मानन की उनह कतई आवशयकता नही ह इसीचि3ए षिवशव क सार आधयानधितमक �म� क बी$ म बौदध एकमातर अनीशवरवादिदयो म परमख ह।

अपन सख-द:खो क चि3ए पराणी सवय ही उ�रदायी ह। अपन अजञान और धिमथयादधिFयो स ही उनहोन सवय अपन चि3ए द:खो का उतपाद षिकया ह, अत: कोई दसरी रशचिकत ईशवर या महशवर उनह मकत नही कर सकता। इसक चि3ए उनह सवय परयास करना होगा। षिकसी क वरदान या कपा स द:खमचिकत असमभव ह। कोई महापर/, जिजसन अपन द:खो का परहाण कर चि3या हो, अपन अनभव क आ�ार पर द:खमचिकत का माग अवशय बता सकता ह, षिकनत उसकी बातो की परीकषा कर, सही परतीत होन पर उस माग पर पराणी को सवय $3ना होगा। इस कम चिसदधानत क दवारा मानव-सवतनतरता और आतम-उ�रदाधियतव का षिवचिरशF बो� परषितफचि3त होता ह। यह भारतीय ससकषित म बौदधो का अनपम योगदान ह।

महाकविव अशवघो> / Ashvaghoshससकत म बौदध महाकावयो की र$ना का सतरपात सवपरथम महाकषिव अशवघो/ न ही षिकया था। अत: महाकषिव अशवघो/ ससकत क परथम बौदधकषिव ह। $ीनी अनशरषितयो तथा साषिहनतितयक परमपरा क अनसार महाकषिव अशवघो/ समराट कषिनषक क राजगर एवम राजकषिव थ। इषितहास म कम स कम दो कषिनषको का उल3ख धिम3ता ह। षिदवतीय कषिनषक परथम कषिनषक का पौतर था। दो कषिनषको क कारण अशवघो/ क समय असदिदग� रप स षिनणGत नही था।

षिवणटरषिनतस क अनसार कषिनषक 125 ई॰ म लिसहासन पर आसीन हआ था। तदनसार अशवघो/ का सथिसथषितका3 भी षिदवतीय रशती ई॰ माना जा सकता ह। परनत अधि�कारश षिवदवानो की मानयता ह षिक कषिनषक रशक सवत का परवतक ह। यह सवतसर 78 ई॰ स परारमभ हआ था। इसी आ�ार पर कीथ अशवघो/ का समय 100 ई॰ क 3गभग मानत ह। कषिनषक का राजयका3 78 ई॰ स 125 ई॰ तक मान 3न पर महाकषिव अशवघो/ का सथिसथषितका3 भी परथम रशताबदी माना जा सकता ह।

बौदध �म क गरनथो म भी ऐस अनक परमाण धिम3त ह, जिजनक आ�ार पर अशवघो/, समराट कषिनषक क समका3ीन चिसदध होत ह। $ीनी परमपरा क अनसार समराट कषिनषक क दवारा काशमीर क कणड3व म आयोजिजत अनक अनत:साकषय भी अशवघो/ को कषिनषक का समका3ीन चिसदध करत ह।

अशवघो/ कत 'बदध$रिरत' का $ीनी अनवाद ईसा की पा$वी रशताबदी का उप3बध होता ह। इसस षिवदिदत होता ह षिक भारत म पयापत रपण पर$ारिरत होन क बाद ही इसका $ीनी अनवाद हआ होगा।

समराट अरशोक का राजयका3 ई॰प॰ 269 स 232 ई॰ प॰ ह, यह तथय पणत: इषितहास-चिसदध ह। 'बदध$रिरत' क अनत म अरशोक का उल3ख होन क कारण यह षिनतति�त होता ह षिक अशवघो/ अरशोक क परवतG थ।

$ीनी परमपरा अशवघो/ को कषिनषक का दीकषा-गर मानन क पकष म ह। अशवघो/ कत 'अततिभ�मषिपटक' की षिवभा/ा नामनी एक वयाखया भी परापत होती ह जो कषिनषक क ही समय म र$ी गयी थी।

अशवघो/ रचि$त 'रशारिरपतरपरकरण' क आ�ार पर परो0 लयडस न इसका र$नाका3 हषिवषक का रशासनका3 सवीकार षिकया ह। हषिवषक क राजयका3 म अशवघो/ की षिवदयमानता ऐषितहाचिसक दधिF स अपरमाततिणक ह। इनका राजयारोहणका3 कषिनषक की मतय क बीस व/ क बाद ह। हषिवषक क परापत चिसकको पर कही भी बदध का नाम नही धिम3ता, षिकनत कषिनषक क चिसकको पर बदध का नाम अषिकत ह। कषिनषक बौदध�माव3मबी थ और हषिवषक बराहमण �म का अनयायी था। अत: अशवघो/ का उनक दरबार म षिवदयमान होना चिसदध नही होता।

काचि3दास तथा अशवघो/ की र$नाओ का त3नातमक अधययन करन क प�ात यह षिनषक/ षिनक3ता ह षिक अशवघो/ काचि3दास क परवतG थ। काचि3दास की षितचिथ परथम रशताबदी ई॰ प॰ सवीकार करन स यह मानना पडता ह षिक दोनो र$नाओ म जो सामय परिर3ततिकषत होता ह उसस काचि3दास का ऋण अशवघो/ पर चिसदध होता ह। अशवघो/ क ऊपर काचि3दास का परभत परभाव पडा था, इसका परतयकष परमाण यह ह षिक काचि3दास न कमारसभव और रघवरश म जिजन शलोको को चि3खा, उनही का अनकरण अशवघो/ न बदध$रिरत म षिकया ह। काचि3दास न षिववाह क बाद परतयागत चिरशव-पावती को दखन क चि3ए उतसक क3ास की 33नाओ का तथा सवयमवर क अननतर अज और इनदमती को दखन क चि3ए उतसक षिवदभ की रमततिणयो का करमरश: कमारसभव तथा रघवरश म जिजन शलोको दवारा वणन षिकया ह, उनही क भावो क माधयम स अशवघो/ न भी राजकमार चिसदधाथ को दखन क चि3ए उतसक कषिप3वसत की सनदरिरयो का वणन षिकया ह। बदध$रिरत का षिनमनशलोक-

वातायनभयसत षिवषिन:सताषिन परसपरायाचिसतकणड3ाषिन।

सतरीणा षिवरजमखपङकजाषिन सकताषिन हमयनधिषवव पङकजाषिन॥* कमारसभव तथा रघवरश क षिनमनशलोक-

तासा मखरासवगनधगभवयापतानतरा सानदरकतह3ानाम।

षिव3ो3नतरभरमरगवाकषा: सहसरपतराभरणा इवासन।* की परषितचछाया ह। उपयकत शलोकदवय क त3नातमक अधययन स यह चिसदध होता ह षिक अशवघो/ काचि3दास क ऋणी थ, कयोषिक जो म3 कषिव होता ह वह अपन सनदर भाव को अनकतर वयकत करता ह। उस भाव का पर$ार-परसार $ाहता ह इसीचि3ए काचि3दास न कमारसभव और र�वरश म अपन भाव को दहराया ह। परनत अशवघो/ न काचि3दास का अनकरण षिकया ह। अत: उनहोन एक ही बार इस भाव को चि3या ह। फ3त: अशवघो/ काचि3दास स परवतG ह।

वयधिRतव तथा कत�वयससकत क परथम बौदध महाकषिव अशवघो/ क जीवनव� स समबनधिनधत अतयलप षिववरण ही परापत ह। 'सौनदरननद' नामक महाकावय की पनधिषपका स जञात होता ह षिक इनकी माता का नाम सवणाकषी था तथा य साकत क षिनवासी थ। य महाकषिव क अषितरिरकत 'भदनत', 'आ$ाय' तथा 'महावादी' आदिद उपाधि�यो स षिवभषि/त थ।* उनक कावयो की अनतरग परीकषा स जञात होता ह षिक व जाषित स बराहमण थ तथा वदिदक साषिहतय, महाभारत-रामायण क ममजञ षिवदवान थ। उनका 'साकतक' होना इस तथय का परिर$ायक ह षिक उन पर रामायण का वयापक परभाव था।

समराट कषिनषक क राजकषिव अशवघो/ बौदध �म क कटटर अनयायी थ। इनकी र$नाओ पर बौदध �म एवम गौतम बदध क उपदरशो का पयापत परभाव परिर3ततिकषत होता ह। अशवघो/ न �म का परसार करन क उददशय स ही कषिवता चि3खी थी। अपनी कषिवता क षिव/य म अशवघो/ की ससपF उदघो/णा ह षिक मचिकत की $$ा करनवा3ी यह कषिवता रशानतिनत क चि3ए ह, षिव3ास क चि3ए नही।* कावय-रप म यह इसचि3ए चि3खी गई ह ताषिक अनयमनसक शरोता को अपनी ओर आकF कर सक।

अशवघो/ बौदध-दरशन-साषिहतय क परकाणड पसथिणडत थ। इनकी गणना उन क3ाकारो की शरणी म की जाती ह जो क3ा की यवषिनका क पीछ चिछपकर अपनी मानयताओ को परकाचिरशत करत ह। इनहोन कषिवता क माधयम स बौदध �म क चिसदधानतो का षिवव$न कर जनसा�ारण क चि3ए सर3ता तथा सर3तापवक स3भ एवम आक/क बनान का सफ3 परयास षिकया ह। इनकी समसत र$नाओ म बौदध�म क चिसदधानत परषितषिबनधिमबत हए ह। भगवान बदध क परषित अपरिरधिमत आसथा तथा अनय �म� क परषित सषिहषणता महाकषिव अशवघो/ क वयचिकततव की अनयतम षिवरश/ता ह। अशवघो/ कषिव होन क साथ ही सगीत ममजञ भी थ। उनहोन अपन षिव$ारो को परभावरशा3ी बनान क चि3ए कावय क अषितरिरकत गीतातमकता को परमख सा�न बनाया।*

बहमखी परषितभा क �नी तथा ससकत क बहशरत षिवदवान महाकषिव अशवघो/ म रशासतर और कावय-सजन की समान परषितभा थी। उनक वयचिकततव म कषिवतव तथा आ$ायतव का मततिणका$न सयोग था। उनहोन सजरस$ी, महायानशरदधोतपादरशासतर तथा सतरा3कार अथवा कलपनामसथिणडषितका नामक �म और दरशन षिव/यो क अषितरिरकत रशारिरपतरपरकरण नामक एक रपक तथा बदध$रिरत तथा सौनदरननद नामक दो महाकावयो की भी र$ना की। इन र$नाओ म बदध$रिरत महाकषिव अशवघो/ का कीरतितसतमभ ह। इसम कषिव न तथागत क सासमिततवक जीवन का सर3 और सरस वणन षिकया ह। 'सौनदरननद' अशवघो/परणीत षिदवतीय महाकावय ह। इसम भगवान बदध क अनज ननद का $रिरत वरणिणत ह। इन र$नाओ क माधयम स बौदध �म क चिसदधानतो का षिवव$न कर उनह जनसा�ारण क चि3ए स3भ कराना ही महाकषिव अशवघो/ का मखय उददशय था। इनकी समसत र$नाओ म बौदध �म क चिसदधानत ससपF रप स परषितषिबनधिमबत ह। अशवघो/ परणीत महाकावयो म बदध$रिरत अपण तथा सौनदरननद पण रप म म3 ससकत म उप3बध ह।

बदध$रिरतम / Budhcharitबदध$रिरत महाकषिव अशवघो/ की कषिवतव-कीरतित का आ�ार सतमभ ह, षिकनत दभागयवरश यह महाकावय म3 रप म अपण ही उप3बध ह। 28 सग� म षिवरचि$त इस महाकावय क षिदवतीय स 3कर तरयोदरश सग तक तथा परथम एवम $तदरश सग क कछ अरश ही धिम3त ह। इस महाकावय क रश/ सग ससकत म उप3बध नही ह। इस महाकावय क पर 28 सग� का $ीनी तथा षितबबती अनवाद अवशय उप3बध ह। महाकावय का आरमभ बदध क गभा�ान स तथा बदधतव-परानतिपत म इसकी परिरणषित होती ह। यह महाकवय भगवान बदध क सघ/मय सफ3 जीवन का जव3नत, उजजव3 तथा मत चि$तरपट ह। इसका $ीनी भा/ा म अनवाद पा$वी रशताबदी क परारमभ म �मरकष, �मकषतर अथवा �माकषर नामक षिकसी भारतीय षिवदवान न ही षिकया था तथा षितबबती अनवाद नवी रशताबदी स पववतG नही ह। इसकी कथा का रप-षिवनयास वालमीषिक कत रामायण स धिम3ता-ज3ता ह।

बदध$रिरत 28 सग� म था जिजसम 14 सग� तक बदध क जनम स बदधतव-परानतिपत तक का वणन ह। यह अरश अशवघो/ कत म3 ससकत समपण उप3बध ह। कव3 परथम सग क परारमभ सात शलोक और $तदरश सग क ब�ीस स एक सौ बारह तक (81 शलोक) म3 म नही धिम3त ह। $ौखमबा ससकत सीरीज तथा $ौखमबा षिवदयाभवन की पररणा स उन शलोको की र$ना शरी राम$नदरदास न की ह। उनही की पररणा स इस अरश का अनवाद भी षिकया गया ह।

15 स 28 सग� की म3 ससकत परषित भारत म बहत दिदनो स अनप3बध ह। उसका अनवाद षितबबती भा/ा म धिम3ा था। उसक आ�ार पर षिकसी $ीनी षिवदवान न $ीनी भा/ा म अनवाद षिकया तथा आकसफोट षिवशवषिवदया3य स ससकत अधयापक डाकटर जॉनसटन न उस अगरजी म चि3खा। इसका अनवाद शरीसयनारायण $ौ�री न षिहनदी म षिकया ह, जिजसको शरी राम$नदरदास न ससकतपदयमय कावय म परिरणत षिकया ह।*

बदध$रिरत और सौनदरननद महाकावय क अषितरिरकत अशवघो/ क दो रपक-रशारिरपतरपरकरण तथा राषटरपा3 उप3बध ह। इसक अषितरिरकत अशवघो/ की जातक की रश3ी पर चि3खिखत 'कलपना मसथिणडषितका' कथाओ का सगरहगरनथ ह।*

कथावसत बदध$रिरत की कथावसत गौतम बदध क जनम स 3कर षिनवाण-परानतिपत तथा �मpपदरश दन तक परिरवयापत

ह। कषिप3वसत जनपद क रशाकवरशीय राजा रशदधोदन की पतनी महारानी मायादवी एक रात सवपन म एक गजराज को उनक रशरीर म परषिवF होत दखती ह। 3नधिमबनीवन क पावन वातावरण म वह एक बा3क को जनम दती ह। बा3क भषिवषयवाणी करता ह- मन 3ोककलयाण तथा जञानाजन क चि3ए जनम चि3या ह। बराहमण भी ततका3ीन रशकनो और रशभ3कषणो क आ�ार पर भषिवषयवाणी करत ह षिक यह बा3क भषिवषय म ऋषि/ अथवा समराट होगा। महरति/ अचिसत भी राजा स सपF रशबदो म कहत ह षिक आपका पतर बो� क चि3ए जनमा ह। बा3क को दखत ही राजा की आखो स अशर�ारा परवाषिहत होन 3गती ह। राजा अपन रशोक का कारण बताता ह षिक जब यह बा3क यवावसथा म �म-परवतन करगा तब म नही रहगा। बा3क का सवाथचिसदध नामकरण षिकया जाता ह। कमार सवाथचिसदध की रशरशवावसथा स ही सासारिरक षिव/यो की ओर आसकत करन की $Fा की गई। उनह राजपरासाद क भीतर रखा जान 3गा तथा बाहय-भरमण परषितषि/दध कर दिदया गया। उनका षिववाह यरशो�रा नामक सनदरी स षिकया गया, जिजसस राह3 नामक पतर हआ।

समदध राजय क भोग-षिव3ास, सनदरी पतनी तथा नवजात पतर का मोह भी उनह सासारिरक पारश म आबदध नही कर सका। व सबका परिरतयाग कर अनतत: षिवहार-यातरा क चि3ए बाहर षिनक3 पड। दवताओ क परयास स सवाथचिसदध सवपरथम राजमाग पर एक वदध पर/ को दखत ह तथा परतयक मनषय की परिरणषित इसी दगषित म दखकर उनका चि$� उजिदधगन हो उठता ह। व बहत दिदनो तक वदधावसथा क षिव/य म ही षिव$ार करत रह। उदयान भधिम म आननद की उप3समिबध को असमभव समझकर व पन: चि$� की रशानतिनत क चि3ए बाहर षिनक3 पडत ह। इस बार दवताओ क परयास स उनह एक रोगी दिदखाई दता ह। सारचिथ स उनह जञात होता ह षिक समपण ससार म कोई भी रोग-मकत नही ह। रोग-रशोक स सनतपत होन पर भी परसनन मनषयो की अजञानता पर उनह आ�य होता ह और व पन: उषिदवगन होकर 3ौट आत ह।

ततीय षिवहार-यातरा क समय सवाथचिसदध को शमरशान की ओर 3 जाया जाता हआ मत वयचिकत का रशव दिदखाई दता ह। सारचिथ स उनह जञात होता ह षिक परतयक वयचिकत का अनत इसी परकार अवशयमभावी ह इसस उजिदधगन हाकर सवाथचिसदध षिवहार स षिवरत होना $ाहत ह। उनकी इचछा न होत हए भी सारचिथ उनह षिवहारभधिम 3 जाता ह। यहा सनदरिरयो का समह भी उनह आकF नही कर पाता ह। जीवन की कषणभगरता, यौवन की कषततिणकता तथा मतय की अवशयभाषिवता का बो� हो जान पर जो मनषय कामासकत होता ह, उसकी बजिदध को 3ोह स षिनरमिमत मानकर सवाथचिसदध वहा स भी 3ौट आत ह।

अपनी अनतिनतम षिवहार-यातरा म सवाथचिसदध को एक सनयासी दिदखाई दता ह। पछन पर पता $3ता ह षिक वह जनम-मरण स भयभीत होकर सनयासी बन गया ह। सनयासी क इस आदरश स परभाषिवत होकर सवाथचिसदध भी सनयास 3न का सकलप करत ह। परनत राजा उनह सनयास की अनमषित नही दत ह। तथा सवाथचिसदध को गहसथाशरम म ही आबदध करन का परयतन करत ह। परमदाओ का षिववत और षिवकत रप दखकर सवाथचिसदध क मन म षिवतषणा और घणा का भाव उतपनन होता ह। व मन ही मन सो$त ह षिक नधिसतरयो की इतनी षिवकत और अपषिवतर परकषित होन पर वसतराभ/णो स वचि$त होता हआ पर/ उनक अनराग-पारश म आबदध होता ह।

षिवरकत सवाथचिसदध सारचिथ छनदक को साथ 3कर और कनथक नामक अशव की पीठ पर आरढ होकर अघराषितर म नगर स बाहर षिनक3त ह तथा परषितजञा करत ह-'जनम और मतय का पार दख षिबना कषिप3वसत म परवरश नही करगा।' नगर म दर पह$कर सवाथचिसदध अपन सारचिथ तथा अशव को बनधन-मकत कर तपोवन म ऋषि/यो क पास अपनी समसया का समा�ान ढढन क चि3ए जात ह, परनत उन तपसमिसवयो की सवग-परदाधियनी परवतति� स उनह सनतो/ नही होता ह। व एक जदिट3 षिदवज क षिनदरशानसार दिदवय जञानी अराड मषिन क पास मोकष-माग की चिरशकषा गरहण करन क चि3ए $3 जात ह। इ�र सारचिथ छनदक और कनथक नामक घोड को खा3ी दखकर अनत:पर की नधिसतरया ब3ो स षिबछडी हई गायो की भाषित षिव3ाप करन 3गती ह। पतर-मोह स वयगर राजा क षिनदरशानसार मनतरी और परोषिहत कमार का अनव/ण करन क चि3ए षिनक3 पडत ह। राजा षिबमबसार सवाथचिसदध को आ�ा राजय दकर पन: गहसथ �म म परवरश करन का असफ3 परयास करत ह। परनत आतमवान को भोग-षिव3ासो स सख-रशानतिनत की परानतिपत कस हो सकती ह? अनतत: राजा पराथना करता ह षिक सफ3 होन पर आप मझ पर अनगरह कर। षिनवतति�-माग क अनव/क सवाथचिसदध को अराड मषिन न साखय-योग की चिरशकषा दी, परनत उनक उपदरशो म भी सवाथचिसदध को रशाशवत मोकष-पथ परिर3ततिकषत नही हआ।

अनत म सवाथचिसदध गयाशरम जात ह। यहा उनह सवा चि3ए परसतत पा$ ततिभकष धिम3त ह। गयाशरम म गौतम तप करत ह, षिकनत इसस भी उनह अभीF-चिसजिदध नही धिम3ती ह। उनह यह अवबो� होता ह षिक इजिनदरयो को कF दकर मोकष-परानतिपत असमभव ह, कयोषिक सनतपत इजिनदरय और मन वा3 वयचिकत की समाधि� पण नही होती। समाधि� की मषिहमा स परभाषिवत सवाथचिसदध तप का परिरतयाग कर समाधि� का माग अगीकार करत ह।

अशवतथ महावकष क नी$ मोकष-परानतिपत क चि3ए परषितशरत राजरति/वरश म उतपनन महरति/ सवाथचिसदध को समाधि�सथ दखकर सारा ससार तो परसनन हआ, पर सदधम का रशतर मार भयभीत होता ह। अपन षिवभरम, ह/ एवम दप नामक तीनो पतरो तथा अरषित, परीषित तथा त/ा नामक पषितरयो सषिहत पषप�नवा 'मार' ससार को मोषिहत करन वा3 अपन पा$ो बाणो को 3कर अशवतथ वकष क म3 म सथिसथत पररशानतमरतित समाधि�सथ सवाथचिसदध को भौषितक पर3ोभनो स षिव$चि3त करन का असफ3 परयास करता ह। यही सवाथचिसदध का मार क साथ यदध ह। इस म मार की पराजय तथा सवाथचिसदध की षिवजय होती ह। समाधि�सथ सवाथचिसदध �य और रशानतिनत स मार की सना पर षिवजय परापत कर परम तततव का परिरजञान परापत करन क चि3ए धयान 3गात ह। धयान क माधयम स उनह सफ3ता धिम3ती ह। व अFाग योग का आशरय 3कर अषिवनारशी पद तथा सवजञतव को परापत करत ह।

इस परकार म3 ससकत म उप3बध बदध$रिरत क 14 सग� म भगवान बदध का जनम स 3कर बदधतव-परानतिपत तक षिवरशदध जीवन-वतानत वरणिणत ह। पनदरहव सग स 3कर अठारहव सग तक का रश/ भाग षितबबती भा/ा म परापत ह। आकसफोड षिवशवषिवदया3य क ससकत अधयापक डा॰ जॉनसटन न षितबबती तथा $ीनी भा/ा स उसका अगरजी म भावानवाद षिकया था, जिजसका शरीसयनारायण $ौ�री न षिहनदी भा/ा म अनवाद षिकया। उसी का ससकत पदयानवाद जब3पर महनत शरीराम$नदरदास रशासतरी न षिकया ह। यदयषिप महनत शरी राम$नदरदास रशासतरी न अनवाद अशवघो/ क म3 क समककष बनान का यथासाघय परयास षिकया ह, षिफर भी म3 तो म3 ही होता ह। अनवाद कभी भी म3 का सथान नही 3 सकता।

अशवघो/ परणीत म3 बदध$रिरत का $ौदहवा सग बदधतव-परानतिपत म समापत होता ह। उसक बाद क सग� म करमरश: बदध का कारशीगमन, चिरशषयो को दीकषादान, महाचिरशषयो की परवरजया, अनाथषिपणडद की दीकषा, पतर-षिपतासमागम, जतवन की सवीकषित, परवरजयासरोत, आमरपा3ी क उपवन म आयषिनणय, चि3चछषिवयो पर अनकमपा, षिनवाणमाग, महापरिरषिनवाण, षिनवाण की पररशसा तथा �ात का षिवभाजन षिव/य वरणिणत ह। बदध$रिरत क 15 स 28 व सग तक इस अनदिदत भाग म भगवान बदध क चिसदधानतो का षिवव$न ह। अधि�कतर अनFप छनद म षिवरचि$त बदध$रिरत क इस षिदवतीय भाग म रशासतरीजी न सग क अनत म ससकत-कावय-सरततिण क अनरप वसनतषित3का आदिद छनदो का भी परयोग षिकया ह।

28 सग� म रचि$त बदध$रिरत क म3 14 सग� तक क परथम भाग म 1115 तथा 15 स 28 सग तक अनदिदत षिदवतीय भाग म 1033 शलोक ह। भगवान बदध क षिवरशदध जीवनव� पर आ�ारिरत इस महाकावय की कथावसत को वणनातमक उपादानो स अ3कत करन का महाकषिव अशवघो/ न सफ3 परयास षिकया ह। इस महाकावय क सर3 एव परभावोतपादक वणनो म अनत:पर-षिवहार, उपवन-षिवहार, वदध-दरशन, रोगी-दरशन, मतक-दरशन, काधिमषिनयो दवारा मनोरजन, वनभधिम-दरशन, शरमणोपदरश, सनदरिरयो का षिवकत रप-दरशन, महाततिभषिनषकरमण, वन-यातरा, छनदक-कनथक-षिवसजन, तपसमिसवयो स वाता3ाप, अनत:पर-षिव3ाप तथा मारषिवजय उल3खनीय ह।

महाकषिव अशवघो/ न उपयकत षिव/यो का कावयोचि$त रश3ी म वणन कर इस महाकावय क सौyव का सव�न षिकया ह तथा कावय को सरस बनान क चि3ए इन वणनो का समचि$त सयोजन षिकया ह। कावय को दरशन और �म क अनक3 बना 3ना अशवघो/ की मौचि3क षिवरश/ता ह। बदध$रिरत म कषिव का यह वचिरशषटय पद-पद पर परिर3ततिकषत होता ह। अशवघो/ न इस महाकावय क माधयम स बौदध-�म क चिसदधानतो का पर$ार करन का सफ3 परयास षिकया ह। षिवरशदध कावय की दधिF स बदध$रिरत क परथम पा$ सग तथा अFम एवम तरयोदरश सग क कछ अरश अतयनत रमणीय ह। इसम यमक, उपमा और उतपरकषा आदिद अ3कारो की कषिव न अतयनत रमणीय योजना की ह। इस महाकावय म सवाभाषिवकता का सामराजय ह। आधयानधितमक जीवन तथा तथागत भगवान बदध क षिवरशदध एवम 3ोकसनदर $रिरतर क परषित कषिव की अगा� शरदधा क कारण इस महाकावय म भावो का नसरतिगक परवाह इस महाकावय को उदा� भावभधिम पर परषितधिyत करता ह। मानवता को अभयदय और मचिकत का सनदरश दन क अततिभ3ा/ी अशवघो/ क वयचिकततव की गरिरमा क अनरप ही उनका यह कावय भी भगवान बदध क गौरवपण वयचिकततव स मसथिणडत ह।

लधिलतविवसतर / Lalitvister वपलयसतरो म यह एक अनयतम और पषिवतरतम महायानसतर माना जाता ह। इसम समपण बदध$रिरत का वणन ह। बदध न पथवी पर जो-जो करीडा (3चि3त) की, उनका वणन होन क कारण इस '3चि3तषिवसतर' कहत ह।

इस 'महावयह' भी कहा जाता ह। इसम क3 27 अधयाय ह, जिजनह 'परिरवत' कहा जाता ह। षितबबती भा/ा म इसका अनवाद उप3बध ह। समगर म3 गरनथ का समपादन डॉ॰ एस 0 3फमान न षिकया था।

परथम अधयाय म राषितर क वयतीत होन पर ईशवर, महशवर, दवपतर आदिद जतवन म प�ार और भगवान की पादवनदना कर कहन 3ग-'भगवन, 3चि3तषिवसतर नामक �मपयाय का वयाकरण कर। भगवान का तषि/त3ोक म षिनवास, गभावकरानतिनत, जनम, कौमाय$या, सव मारमणड3 का षिवधवसन इतयादिद का इस गरथ म वणन ह। पव क तथागतो न भी इस गरथ का वयाकरण षिकया था।' भगवान न दवपतरो की पराथना सवीकार की। तदननतर अषिवदर षिनदान अथात तषि/त3ोक स चयषित स 3कर समयग जञान की परानतिपत तक की कथा स परारमभ कर समगर बदध$रिरत का वणन सनान 3ग।

बोधि�सततव न कषषितरय क3 म जनम 3न का षिनणय षिकया। भगवान न बताया षिक बोधि�सततव रशदधोदन की मषिह/ी मायादवी क गभ म उतपनन होग। वही बोधि�सततव

क चि3ए उपयकत माता ह। जमबदवीप म कोई दसरी सतरी नही ह, जो बोधि�सततव क तलय महापर/ का गभ �ारण कर सक। बोधि�सततव न महानाग अथात कञजर क रप म गभावकरानतिनत की।

मायादवी पषित की आजञा स 3नधिमबनी वन गई, जहा बोधि�सततव का जनम हआ। उसी समय पथवी को भदकर महापदम उतपनन हआ। ननद, उपननद आदिद नागराजाओ न रशीत और उषण ज3 की �ारा स

बोधि�सततव को सनान कराया। बोधि�सततव न महापदम पर बठकर $ारो दिदरशाओ का अव3ोकन षिकया। बोधि�सततव न दिदवय$कष स समसत, 3ोक�ात को दखा और जाना षिक रशी3, समाधि� और परजञा म मर तलय कोई अनय सततव नही ह। पवाततिभमख हो व सात पग $3। जहा-जहा बोधि�सततव पर रखत थ, वहा-वहा कम3 परादभत हो जाता था। इसी तरह दततिकषण और पतति�म की दिदरशा म $3। सातव कदम पर लिसह की भाषित षिननाद षिकया और कहा षिक म 3ोक म जयy और शरy ह। यह मरा अनतिनतम जनम ह। म जाषित, जरा और मरण द:ख का अनत करगा। उ�राततिभमख हो बोधि�सततव न कहा षिक म सभी पराततिणयो म अन�र ह नी$ की ओर सात पग रखकर कहा षिक मार को सना सषिहत नF करगा और नारकीय सततवो पर महा�ममघ की वधिF कर षिनरयाखिगन को रशानत करगा। ऊपर की ओर भी सात पग रख और अनतरिरकष की ओर दखा।

सातव परिरवत म बदध और आननद का सवाद ह, जिजसका सारारश ह षिक कछ अततिभमानी ततिभकष बोधि�सततव की परिररशदध गभावकरानतिनत पर षिवशवास नही करग, जिजसस उनका घोर अषिनF होगा तथा जो इस सतरानत को सनकर तथागत म शरदधा का उतपाद करग, अनागत बदध भी उनकी अततिभ3ा/ा पण करग। जो मरी रशरण म आत ह, व मर धिमतर ह। म उनका कलयाण साधि�त करगा। इसचि3ए ह आननद, शरदधा क उतपाद क चि3ए यतन करना $ाषिहए।

बदध की गभावकरानतिनत एव जनम की जो कथा 3चि3तषिवसतर म धिम3ती ह, वह पाचि3 गरथो म वरणिणत कथा स कही-कही पर ततिभनन भी ह। पाचि3 गरथो म षिवरश/त: सयकत षिनकाय, दीघ षिनकाय आदिद म यदयषिप बदध क अनक अदभत �म� का वणन ह, तथाषिप व अदभत �म� स समनवागत होत हए भी अनय मनषयो क समान जरा, मरण आदिद द:ख एव दौमनसय क अ�ीन थ। *पाचि3 गरनथो क अनसार बदध 3ोको�र कव3 इसी अथ म ह षिक उनहोन मोकष क माग का अनव/ण षिकया था तथा उनक दवारा उपदिदF माग का अनसरण करन स दसर 3ोग भी षिनवाण और अहपव पद परापत कर सकत ह। परनत महासाधिघक 3ोको�रवादी षिनकाय क 3ोग इसी अथ म 3ोको�र रशबद का परयोग नही करत। इसीचि3ए 3ोको�रता को 3कर उनम वाद-षिववाद था।

आग का 3चि3तषिवसतर का वणन महावगग की कथा स बहत कछ धिम3ता-ज3ता ह। जहा समानता ह, वहा भी 3चि3तषिवसतर म कछ बात ऐसी ह, जो अनयतर नही पाई जाती। उदाहरणाथ रशाकयो क कहन स जब रशदधोदन कमार को अपन दवक3 म 3 गय तो सब परषितमाए अपन-अपन सवरप म आकर कमार क परो पर षिगर पडी। इसी तरह कमार जब चिरशकषा क चि3ए चि3षिप रशा3ा म 3 जाय गय तो आ$ाय, कमार क तज को सहन नही कर पाय और मरचछिचछत होकर षिगर पड। तब बोधि�सतव न आ$ाय स कहा- आप मझ षिकस चि3षिप की चिरशकषा दग। तब कमार न बराहमी, खरोyी, पषकरसारिर, अग, बग, मग� आदिद 64 चि3षिपया षिगनाई। आ$ाय न कमार का कौरशन दखकर उनका अततिभवादन षिकया।

बदध क जीवन की पर�ान घटनाए ह- षिनधिम� दरशन, जिजनस बदध न जरा, वयाधि�, मतय एव परवरजया का जञान परापत षिकया। इसक अषितरिरकत अततिभषिनषकरमण, षिबनधिमबसार क समीप गमन, दषकर$या, मार�/ण, अततिभसबोधि� एव �म$करपरवतन आदिद घटनाए ह। जहा तक इन घटनाओ का समबनध ह, 3चि3तषिवसतर का वणन बहत ततिभनन नही ह। षिकनत 3चि3तषिवसतर म कछ अषितरशयताए अवशय ह। 27 व परिरवत म गरनथ क माहातमय का वणन ह।

यह षिनतति�त ह षिक जिजन चिरशसथिलपयो न जावा म सथिसथत बोरोबदर क मजिनदर को परषितमाओ स अ3कत षिकया था, व 3चि3तषिवसतर क षिकसी न षिकसी पाठ स अवशय परिरचि$त थ। चिरशलप म बदध का $रिरत इस परकार उतकीण ह, मानो चिरशलपी 3चि3तषिवसतर को हाथ म 3कर इस काय म परव� हए थ। जिजन चिरशसथिलपयो न उ�र भारत म सतप आदिद क3ातमक वसतओ को बदध$रिरत क दशयो स अ3कत षिकया था, व भी 3चि3तषिवसतर म वरणिणत बदध कथा स परिरचि$त थ।

दिदवयावदान / Divyavdan इस बौजिदधक गरनथ म पषयधिमतर को मौय वरश का अनतिनतम रशासक बत3ाया गया ह । इसम महायान एव हीनयान दोनो क अरश पाए जात ह। षिवशवास ह षिक इसकी सामगरी बहत कछ म3

सवासमिसतवादी षिवनय स परापत हई ह। दिदवयावदान म दीघागम, उदान, सथषिवरगाथा आदिद क उदधरण पराय: धिम3त ह। कही-कही बौदध ततिभकषओ की $याओ क षिनयम भी दिदय गय ह, जो इस तथय की पधिF करत ह षिक दिदवयावदान म3त: षिवनयपर�ान गरनथ ह। यह गरनथ गदय-पदयातमक ह। इसम 'दीनार' रशबद का परयोग कई बार षिकया गया ह। इसम रशगका3 क राजाओ का भी वणन ह।

रशाद3कणावदान का अनवाद $ीनी भा/ा म 265 ई. म हआ था। दिदवयावदान म अरशोकावदान एव कमार3ात की कलपनामसथिणडषितका क अनक उदधरण ह। इसकी

कथाए अतयनत रो$क ह। उपगपत और मार की कथा तथा कणा3ावदान इसक अचछ उदाहरण ह। अवदानरशतक की सहायता स अनक अवदानो की र$ना हई ह, यथा- कलपदरमावदानमा3ा,

अरशोकावदानमा3ा, दवाविवरशतयवदानमा3ा भी अवदानरशतक की ऋणी ह। अवदानो क अनय सगरह भदरकलयावदान और षिवचि$तरकरणिणकावदान ह। इनम स पराय: सभी अपरकाचिरशत ह। कछ क षितबबती और $ीनी अनवाद धिम3त ह।

कषमनदर की अवदानकलप3ता का उल3ख करना भी परसग परापत ह। इस गरनथ की समानतिपत 1052 ई. म हई। षितबबत म इस गरनथ का अतयधि�क आदर ह। इस सगरह म 107 कथाए ह।

कषमनदर क पतर सोमनदर न न कव3 इस गरनथ की भधिमका ही चि3खी, अषिपत अपनी ओर स एक कथा भी जोडी ह। यह जीमतवाहन अवदान ह।

अठारह बौदध विनकाय अनकरम[छपा]

1 अठारह बौदध षिनकाय 2 षिनकायो की परिरभा/ा 3 षिनकाय - परमपरा 4 अठारह षिनकायो क सामानय चिसदधानत

5 समबधि�त लि3क भगवान बदध क परिरषिनवाण क अननतर बदधव$नो म परकषप (अनय व$नो को डा3 दना) और

अपनयन (कछ बदधव$नो को हटा दना) न होन दन क चि3ए करमरश: तीन सगीषितयो का आयोजन षिकया गया। परथम सगीषित बदध क परिरषिनवाण क ततका3 बाद परथम व/ावास क का3 म ही राजगह म महाकाशयप क सरकषकतव म समपनन हई। इसम आननद न सतर (इसम अततिभ�म भी सनधिममचि3त ह) और उपाचि3 न षिवनय का सगायन षिकया। इस तरह इस सगीषित म सनधिममचि3त पा$ सौ अहत ततिभकषओ न परथम बार बदधव$नो को षितरषिपटक आदिद म षिवभाजन षिकया। भगवान बदध क परिरषिनवाण क बाद सौ व/ बीतत-बीतत आयषमान यरश न वरशा3ी क वसथिजजप�क ततिभकषओ को षिवनय षिवपरीत दस वसतओ का आ$रण करत हए दखा, जिजसम सोन-$ादी का गरहण भी एक था। अनक ततिभकषओ की दधिF म उनका

यह आ$रण अनचि$त था। इसका षिनणय करन क चि3ए षिदवतीय सगीषित ब3ाई गई। महासथषिवर रवत की अधयकषता म समपनन इस सगीषित म सनधिममचि3त सात सौ अहत ततिभकषओ न उन (वसथिजजप�क ततिभकषओ) का आ$रण षिवनयषिवपरीत षिनतति�त षिकया। वरशा3ी क वसथिजजप�क ततिभकषओ न महासथषिवरो क इस षिनणय को अमानय कर दिदया और कौरशामबी म एक पथक सगीषित आयोजिजत की, जिजसम दस हजार ततिभकष सनधिममचि3त हए थ। यह सभा 'महासघ' या 'महासगीषित' कह3ाई तथा इस सभा को मानन वा3 'महासाधिघक' कह3ाए।

इस परकार बौदध सघ दो भागो या षिनकायो म षिवभकत हो गया, सथषिवरवादी और महासाधिघक। आग $3कर भगवान क परिरषिनवाण क 236 व/ बाद समराट अरशोक क का3 म आयोजिजत ततीय सगीषित क समय तक बौदध सघ अठारह षिनकायो म षिवकचिसत हो गया था।

महासाधिघक भी का3ानतर म दो भागो म षिवभकत हो गए-

1. एकवयावहारिरक और 2. गोकचि3क।

गोकचि3क स भी दो रशाखाए षिवकचिसत हई, यथा-

1. परजञनतिपतवादी और 2. बाहचि3क या बाहशरषितक।

बाहचि3क स $तयवादी नामक एक और रशाखा परकट हई। इस तरह महासाधिघक स पा$ रशाखाए षिनक3ी, जो महासाधिघक क साथ क3 6 षिनकाय होत ह।

दसरी ओर सथषिवरवादी भी पह3 दो भागो म षिवभकत हए, यथा- वसथिजजप�क और महीरशासक। वसथिजजप�क 4 भागो म षिवभकत हए, यथा-

1. �मp�रीय,

2. भदरयाततिणक,

3. छनरागरिरक (/ाणणागरिरक) और 4. सनधिममतीय।

महीरशासक स भी दो रशाखाए षिवकचिसत हई, यथा-

1. �मगनतिपतक और 2. सवासमिसतवादी।

सवासमिसतवादिदयो स करमरश: काशयपीय, काशयपीय स साकरानतिनतक और साकरानतिनतक स सतरवादी सौतरानतिनतक षिनकाय षिवकचिसत हए। इस परकार सथषिवरवादी षिनकाय स 11 षिनकाय षिवकचिसत हए, जो सथषिवरवादी षिनकाय क साथ क3 12 होत ह। दोनो परकार क षिनकायभद धिम3कर क3 अठारह षिनकाय होत ह।

विनकायो की परिरभा>ामहासामिघक

मतयभव और उपपतति�भव क बी$ म एक अनतराभव होता ह, जहा सततव मरन क बाद और पनजनम गरहण करन क बी$ कछ दिदनो क चि3ए रहता ह।

कछ सवासमिसतवादी आदिद बौदध उस अनतराभव का असमिसततव सवीकार करत ह और कछ बौदध षिनकाय उस नही मानत।

भोट षिवदवान पदम-गय3-छन का कहना ह षिक महासाधिघक अनतराभव क असमिसततव को नही मानत। वसबनध क अततिभ�म-कोरश-सवभाषय म ऐसा उल3ख धिम3ता ह षिक दसर कछ नकाधियक अनतराभव

नही मानत* style=color:blue>*</balloon>। यह समभव ह षिक महासाधिघक ही उनक अनतगत आत हो और इसीचि3ए पदम-गय3-छन न वसा कहा

हो। वस सथषिवरवादी बौदध भी अनतराभव नही मानत।

सथविवरवाद

'सथषिवरवाद' रशबद क अनक अथ होत ह। सथषिवर का अथ 'वदध' भी ह और 'परा$ीन' भी अत: वदधो का या परा$ीनो का जो वाद (माग) ह, वह 'सथषिवरवाद' ह। 'सथषिवर' रशबद सथिसथरता को भी सचि$त करता ह। षिवनय-परमपरा क अनसार जिजस ततिभकष क उपसमपदा क अननतर दस व/ बीत गए हो तथा जो षिवनय क अङगो और उपाङगो को अचछा जञाता होता ह, वह 'सथषिवर' कह3ाता ह। इसक अ3ावा वह भी सथषिवर कह3ाता ह जो सथषिवरगोतरीय होता ह अथात जिजसकी रचि$ आदिद सथषिवरवादी चिसदधानतो की ओर अधि�क परवण होत ह और जो उन चिसदधानतो का शरदधा क साथ वयाखयान करता ह। ऐस सथषिवरो का वाद 'सथषिवरवाद' ह।

सवा�लपिसतवाद

षिकसी समय (परा$ीन का3 म) पतति�मो�र भारत म षिवरश/त: मथरा, कशमीर और गानधार आदिद परदरशो म सवासमिसतवादिदयो का बह3 पर$ार था। सवासमिसतवादी चिसदधानतो को मानन वा3 बौदध आजक3 षिवशव म रशायद ही कही हो। षिकनत भोटदरशीय ततिभकष-परमपरा सवासमिसतयावादी षिवनय का अवशय अनसरण करती ह। कषितपय षिवचिरशF चिसदधानतो क आ�ार पर 'सवासमिसतवाद' यह नामकरण हआ ह। इसम परयकत 'सव' रशबद का तातपय तीनो का3ो अथात भत, भषिवषय और वतमान का3ो स ह। जो 3ोग वसतओ की तीनो का3ो म स�ा मानत ह और जो तीनो का दरवयत: असमिसततव सवीकार करत ह, व 'सवासमिसतवादी' कह3ात ह।

एकवयावहारिरक

जो 3ोग एक कषण म बदध की सवजञता का उतपाद मानत ह, व 'एकवयावहारिरक' कह3ात ह। अथात इनक मतानसार एक चि$�कषण स समपरयकत परजञा क दवारा समसत �म� का अवबो� हो जाता ह। इस एककषणावबो� को सवीकार करन क कारण इनका यह नामकरण हआ ह। महावस टीका क अनसार एकवयावहारिरक और गोकचि3क य दोनो षिनकाय सभी करश3-अकरश3 ससकारो को जवा3ारषिहत अङगार स धिमततिशरत भसमषिनरय क समान समझत ह।

लोको�रवाद

कछ 3ोग बदध क काय म सासतरव �म� का षिबलक3 असमिसततव नही मानत और कछ मानत ह। य 3ोको�रवादी बदध की सनतषित म सासरव �म� का असमिसततव सवथा नही मानत। इनक मतानसार समयक समबोधि� की परानतिपत क अननतर बदध क सभी आशरय अथात चि$�, $तचिसक, रप आदिद पराव� होकर षिनरासरव और 3ोको�र हो जात ह। यहा '3ोको�र' रशबद अनासरव क अथ म परयकत ह। जो इस अनासरवतव को सवीकार करत ह, व 3ोको�रवादी ह। यहा '3ोको�र' रशबद का अथ मानवो�र क अथ म नही ह इनकी मानयता क अनसार कषणभङगवाद की दधिF स पह3 सभी �म सासरव होत ह। बोधि�परानतिपत क अननतर सासरव �म षिवरदध हो जात ह और अनासरव �म उतपनन होत ह। यह जञात नही ह षिक य 3ोग महायाषिनयो की भाषित बदध का अनासराव जञान�मकाय मानत ह अथवा नही।

परजञपतिVतवादी

कछ वादी ऐस होत ह, जो परसपर आततिशरत सभी �म� को परजञपत (कसथिलपत) मानकर उनक परषित सतयत: अततिभषिनवरश करत ह, व ही परजञनतिपतवादी ह। महावरशटीका क अनसार 'रप भी षिनवाण की भाषित परमाथत: ह' – ऐसा मानन वा3 परजञनतिपतवादी कह3ात ह।

वातसीप1ीय

सथषिवरवादी सघ स जो सवपरथम षिनकाय भद षिवकचिसत हआ, वह वातसीपतरीय षिनकाय ही ह। सथषिवरो स इनका सदधानतिनतक मतभद था। य 3ोग पदग3ासमिसततववादी थ। अथात य पदग3 क दरवयत: असमिसततव क पकषपाती थ और उस अषिनव$नीय कहत थ यह षिनकाय सथषिवरवादिदयो का परमख परषितपकष रहा ह। यही कारण ह षिक ततीय सगीषित क अवसर पर जो समराट अरशोक क का3 म पाटचि3पतर (पटना) म आयोजिजत हई थी, उसम मदग3ीपतर षितषय न सवषिवरवाद स ततिभनन सतरह षिनकायो का खणडन करत हए जिजस 'कथावतथ' नामक गरनथ की र$ना की थी, उस गरनथ म उनहोन सवपरथम पदग3वादी वातसीपतरीयो का ही खणडन षिकया। इसस यह भी षिनषक/ परषितफचि3त होता ह षिक ततीय सगीषित स पव ही इनका असमिसततव था। कौरशामबी मथरा तथा अवती आदिद इनक परमख कनदर थ।

सपतिममतीय

इस षिनकाय क परवतक आय महाकातयायन मान जात ह। य व ही आ$ाय ह, जिजनहोन दततिकषणापथ (अवनती) म सवपरथम सदधम की सथापना की। उस परदरश क षिनवाचिसयो क आ$ार म बहत ततिभननता दखकर षिवनय क षिनयमो म कछ सरशो�नो का भी इनहोन सझाव रखा था। इसी षिनकाय स आवनतक और करकल3क षिनकाय षिवकचिसत हए। कभी-कभी सनधिममतीयो का सगरह वातसीपतरीयो म और कभी वातसीपतरीयो का सगरह सनधिममतीयो म भी दखा जाता ह। इसका कारण उनक समान चिसदधानत हो सकत ह।

महीरशासक

षिपर3सकी महोदय क अनसार य 3ोग सथषिवर पराण क अनयायी थ। जञात ह षिक पराण वही सथषिवर ह, जो राजगह म जब परथम सगीषित हो रही थी, तब दततिकषणषिगरिर स $ारिरका करत हए पा$ सौ ततिभकषओ क साथ वही (राजगह म) ठहर हए थ। सगीषितकारक ततिभकषओ न उनस सगीषित म सनधिममचि3त होन क षिनवदन षिकया, षिकनत उनहोन उनक काय की पररशसा करत हए भी उसम भाग 3न स इनकार कर दिदया और कहा षिक मन भगवान क मह स जसा सना ह, उसी का अनसरण करगा।

�म�गVतक

परमाथ क मतानसार इस षिनकाय क परवतक महामौदग3यायन क चिरशषय सथषिवर �मगपत थ। षिपर3सकी और फराउवालनर का कहना ह षिक य �मगपत यौनक �मरततिकषत स अततिभनन ह।

काशयपीय

पाचि3 परमपरा और सा$ी क अततिभ3खो स जञात होता ह षिक कशयपगोतरीय ततिभकष समसत षिहमवतपरदरश क षिनवाचिसयो क आ$ाय थ। $ीनी भा/ा म उप3बध 'षिवनयामातका' नामक गरनथ स भी उपयकत कथन की पधिF होती ह। इसीचि3ए काशयपीय और हमवत अततिभनन परतीत होत ह। सव/क और सदधमव/क भी इनही का नाम ह। इस षिनकाय का षिहमवतपरदरश म पर$ार समभवत: महाराज अरशोक क का3 म समपनन हआ, जब ततीय सगीषित क अननतर उनहोन षिवततिभनन परदरशो म सदधम क पर$ाराथ �मदतो को परषि/त षिकया था।

विवभजयवाद

आ$ाय वसधिमतर क मतानसार यह षिनकाय सवासमिसतवादी षिनकाय क अनतगत गहीत होता ह। सथषिवरवादी भी अपन को षिवभजयवादी कहत ह। आ$ाय भवय क अनसार यह षिनकाय सथषिवरवाद स ततिभनन ह। कछ 3ोगो क अनसार इनह हतवादी भी कहा जाता ह। इस षिनकाय का यह षिवचिरशF अततिभमत ह षिक षिकय हए कम का जब तक फ3 या षिवपाक उतपनन नही हो जाता, जब तक उस अतीत कम का दरवयत: असमिसततव होता ह। जिजसन अभी फ3 नही दिदया ह, उस अतीत कम की और वतमान कम की दरवयस�ा ह तथा जिजसन फ3 द दिदया ह, उस अतीत कम की और अनागत कम की परजञनतिपतस�ा ह- इस परकार कम� क बार म इनकी वयवसथा ह। कम� क इस परकार क षिवभाजन क कारण ही इस षिनकाय का नाम 'षिवभजयवाद' ह। हतवादी भी इनही का काम ह। भत, भौषितक समसत वसतओ क हत होत ह, यह इनका अततिभमत ह। कथावतथ और उसकी अटठकथा म इस षिनकाय क बार म पषक3 $$ा उप3बध होती ह।

विनकाय-परमपराआ$ाय षिवनीतदव आदिद परमख आ$ाय� की मानयता ह षिक $ार ही म3 षिनकाय ह, जिजनस आग $3 कर सभी अठारह षिनकाय षिवकचिसत हए। व ह-

1. आय सवासमिसतवादी, 2. आय महासाधिघक,

3. आयसथषिवर एव 4. आय सनधिममतीय।

म3सघ स जो यह षिवभाजन हआ या अठारह या उसस अधि�क षिनकायो का जो जनम हआ, वह षिकसी गषितरशी3 शरy �म का 3कषण ह, न षिक हरास का। भगवान बदध न सवय ही षिकसी भी रशासता क व$न या षिकसी पषिवतर गरनथ क व$न को अनतिनतम परमाण मानन स अपन अनयायी ततिभकषओ को मना कर दिदया था। उनहोन सवतनतर चि$नतन, अपन अनभव की परामाततिणकता, वसतसङगत दधिF और उदार षिव$ारो क जो बीज ततिभकषसघ म षिनततिकषपत (सथाषिपत 0 षिकय थ, उनही बीजो स का3ानतर म षिवततिभनन रशाखाओ वा3ा सदधम रपी महावकष षिवकचिसत हआ, जिजसन भारत सषिहत षिवशव क कोदिट-कोदिट षिवनय जनो की आकाकषाए अपन पषप, फ3, पतर और छाया क दवारा पण की और आज भी कर रहा ह।

अठारह विनकायो क सामानय धिसदधानत

आ$ाय वसधिमतर, भावषिववक आदिद महापसथिणडतो क गरनथो क दारशषिनक चिसदधानतो स सभी अठारह षिनकाय पराय: सहमत ह-

जञान म गराहय (विव>य) क आकार का अभाव

बौदध दारशषिनको म इस षिव/य पर पयापत $$ा उप3बध होती ह षिक जञान जब अपन षिव/य म परव� होता ह, तब षिव/य क आकार को गरहण करक अथात षिव/य क आकार स आकारिरत (साकार) होकर षिव/य गरहण करता ह या षिनराकार रहत हए। सौतरानतिनतको का मानना ह षिक $कषरतिवजञान नी3ाकार होकर नी3 षिव/य म परव� होता ह। उनका कहना ह षिक जिजस समय $कषरतिवजञान उतपनन होता ह, उस समय उसका गराहय (नी3 आ3मबन) षिनरदध रहता ह। कयोषिक नी3 आ3मबन कारण ह और $कषरतिवजञान उसका काय। कारण को काय स षिनयत पववत� होना $ाषिहए इसचि3ए नी3 आ3मबन $कषरतिवजञान स एक कषण पव षिनरदध हो जाता ह। षिकनत जञान म षिव/य का आकार षिवदयमान होन स वह जञान 'नी3जञ' कहा जाता ह।

जञान म सवसवदनतव का अभाव

वभाषि/क परमख सभी अठारह षिनकायो म जञान म जस जञय (षिव/य) का आकार नही माता जाता अथात जस उस षिनराकार माना जाता ह, उसी परकार जञान म गराहक-आकार अथात अपन सवरप (सवय) को गरहण करन वा3ा आकार भी नही माना जाता। सवय (अपन सवरप) को गरहण करन वा3ा जञान 'सवसवदन' कह3ाता ह। आरशय यह षिक व (वभाषि/क आदिद) सवसवदन नही मानत। जञात ह षिक बौदध नयाधियक सौतरानतिनतक आदिद $ार परतयकष मानत ह-

1. इजिनदरय परतयकष, 2. मानस परतयकष,

3. सवसवदन परतयकष और 4. योगी-परतयकष।

इनम स वभाषि/क आदिद कयोषिक सवसवदन नही मानत, इसचि3ए इनक मत म रश/ तीन परतयकष ही मान जात ह।

बाहयाथ� का अलपिसततव

वभाषि/क आदिद क मत म जञान म अषितरिरकत बाहय वसतओ की स�ा मानी जाती ह। व रप, रशबद आदिद बाहय वसतए परमाणओ स आरबध (षिनरमिमत) होती ह, न षिक षिवजञान क परिरणाम क रप म मानी जाती ह- जसा षिक योगा$ार षिवजञानवादी मानत ह। योगा$ार मतानसार समसत बाहयाथ आ3यषिवजञान या मनोषिवजञान म सथिसथत वासना क परिरणाम होत ह। वभाषि/क ऐसा नही मानत। वभाषि/क मतानसार घट आदिद पदाथ� म सथिसथत परमाण $कषरिरजिनदरय क षिव/य होत ह तथा $कषरिरजिनदरय म सथिसथत परमाण $कषरतिवजञान क आशरय होत ह। इसचि3ए इनक मत म परमाण स षिनरमिमत F आदिद सथ3 वसतओ की वसतस�ा नही मानी जाती। सौतरानतिनतको क मतानसार घट आदिद म सथिसथत परतयक परमाण $कषरतिवजञान का षिव/य नही होता, अत: $कषरतिवजञान म भाचिसत होन वा3 घट आदिद सथ3 वसतओ की वसतस�ा मानी जाती ह। जस वरशषि/क दारशषिनक अवयवो स अषितरिरकत एक अवयवी दरवय की स�ा सवीकार करत ह, वस वभाषि/क नही मानत, इसचि3ए घट आदिद क अनतगत षिवदयमान परमाण ही इजिनदरय क षिव/य होत ह।

तीनो कालो की स�ा

जो सभी अतीत, अनागत और परतयतपनन का3ो का असमिसततव मानत ह, व सवासमिसतवादी $ार परकार क ह, यथा-

1. भावानयचिथक। इस मत क परमख आ$ाय भदनत �मतरात ह। इनक अनसार अधवो (का3ो) म परवतमान (गषितरशी3) �म� की दरवयता म अनयथातव नही होता। कव3 भाव म अनयथातव होता ह।

2. 3कषणानयचिथक। इसक परमख आ$ाय भदनत घो/क ह। इनक अनसार अधवो म परवतमान अतीत �म यदयषिप अतीत-3कषण स यकत होता ह, षिफर भी वह परतयतपनन और अनागत 3कषण स भी अषिवयकत होता ह।

3. अवसथानयचिथक। इसक परमख आ$ाय भदनत वसधिमतर ह। इनक अनसार अधवो म परवतमान �म ततिभनन-ततिभनन अवसथाओ को परापत कर अवसथा की दधिF स ततिभनन-ततिभनन षिनरदिदF षिकया जाता ह, न षिक ततिभनन-ततिभनन दरवय की दधिF स ततिभनन-ततिभनन षिनरदिदF होता ह।

4. अनयथानयचिथक। इसक परमख आ$ाय भदनत बदधदव ह। इनक अनसार अधवो म परवतमान �म पव, अपर की अपकषा स ततिभनन-ततिभनन कहा जाता ह।

विनरपधि�रश> विनवा�ण

वभाषि/क आदिद षिनकायो क मत म षिनरपधि�रश/ षिनवाण की अवसथा म वयचिकततव की सवथा षिनवतति� (परिरसमानतिपत) मानी जाती ह। इस अवसथा म अनादिद का3 म $3ी आ रही वयचिकत की नाम-रप सनतषित सवथा रशानत हो जाती ह, जस दीपक क बझ जान पर उसकी षिकसी भी परकार की सनतषित अवचिरशF नही रहती।

बोधि� स पव� गौतम बदध का पथगजन होना

इन षिनकायो क मतानसार जनम गरहण करत समय राजकमार चिसदधाथ पथगजन ही थ। वह बोधि�सततव अवशय थ और माग की दधिF स समभारमाग की अवसथा म षिवदयमान थ। घर स बाहर होकर परवरजया गरहण करन क अननतर जिजस समय बोधि�वकष क म3 म समाधि� म सथिसथत थ, तब उनहोन करमरश: परयोगमाग, दरशनमाग और भावनामाग को परापत षिकया। अनत म उनहोन उसी आसन पर समयक सबदधतव की परानतिपत की।

सथविवरवाद

परमाथ� �म� विव$ार

अठारह षिनकायो म सथषिवरवाद भी एक ह। इन दिदनो षिवशव म दो ही षिनकाय जीषिवत ह-

1. सथषिवरवाद और 2. सवासमिसतवाद की षिवनय-परमपरा।

सथषिवरवाद की परमपरा शरी3का, मयामार, थाई3णड, कमबोषिडया आदिद दततिकषण पवG एचिरशयाई दरशो म परमावी ढग स पर$चि3त ह। उसका षिवसतत पाचि3साषिहतय षिवदयमान ह और आज भी र$नाए हो रही ह। अत: सकषप म यहा उसक परमाथसतय तथा रशी3समाधि� और परजञा का परिर$य दिदया जा रहा ह। रशी3, समाधि� और परजञा ही मागसतय ह, जिजसस षिनवाण (मोकष) जस परमाथसतय एव परम पर/ाथ की परानतिपत समभव ह।

परमाथ�

जो अपन सवभाव को कभी भी नही छोडता तथा जिजसक सवभाव स कभी परिरवतन नही होता ऐसा तततव 'परमाथ' कहा जाता ह। जस 3ोभ का सवभाव (3कषण) आसचिकत या 3ा3$ ह। यह $ाह मनषय म हो अथवा परश म हो अपन आसचिकत या 3ा3$ी सवभाव को कभी भी नही छोडता। भौषितक (रप) वसतओ म भी पथवी का सवभाव 'कठोर' होना ह। यह पथव कही भी षिकसी भी अवसथा म अपन कठोर सवभाव को नही छोडती। इसचि3ए चि$�, सपरशवदना आदिद $तचिसक, पथवी अप आदिद महाभत और भौषितक वसत (रप) तथा षिनवाण परमाथ कह जात ह।

धि$�-$तधिसक

यदयषिप चि$�-$तचिसक पथक-पथक सवभाव वा3 होत ह तथाषिप व दोनो एक षिव/य (आ3मबन) म एक साथ उतपनन होकर एक साथ षिनरदध होत ह। इनम स वण, रशबद आदिद षिव/यो (आ3मबन) को सामानय रपण जानना मातर 'चि$�' ह। यहा चि$� दवारा आ3मबन का गरहण करना या परापत करना ही 'जानना' कहा जाता ह। जानना, गरहण करना, परापत करना, परिरचछद (उदगरहण) करना, य पयायवा$ी ह।

चि$�, मन और षिवजञान एक ही अथ क वा$क ह जो स$य करता ह। (चि$नोषित), वह चि$� ह। यही मनस ह, कयोषिक यह मनन करता ह (मनत)।यही षिवजञान ह, कयोषिक वह अपन आ3मबन को जानता ह (आ3मबन षिवजानाषित)।

$तधिसक

जब कोई चि$� उतपनन होता ह, तब सपरश वदना आदिद $तचिसक भी उतपनन होत ह। चि$� स समबदध होकर उतपनन होन क कारण, चि$� म होन वा3 उन सपरश वदना आदिद �म� को, '$तचिसक' कहत ह। यहा 'चि$�' आ�ार ह तथा $तचिसक उसम होन वा3 आ�य ह- ऐसा नही समझना $ाषिहए। हा, यह ठीक ह षिक पवगामी चि$� क अभाव म $तचिसक नही हो सकत, इस सथिसथषित म चि$� क न होन पर $तचिसको क कतय नही होग, चि$� स समबदध होन पर ही व समभव ह, अत: चि$� म होन वा3 सपरश वदना आदिद �म $तचिसक ह- ऐसा भी कहा जाता ह। यह ठीक भी ह, कयोषिक सपरश वदना आदिद सदा सवथा चि$� म समपरयकत होत ह। चि$� क षिबना $तचिसक अपन आ3मबनो को गरहण करन म असमथ रहत ह। इसीचि3ए चि$�-$तचिसको का साथ-सा उतपाद षिनरो� माना जाता ह तथा साथ ही समान आ3मबन का गरहण एव समान वसत (इजिनदरय) का आशरय करना माना जाता ह।

रप

चि$� $तचिसक मनषय क $तन (अभौषितक) पदाथ (�म) ह, इनह बौदध परिरभा/ा म 'अरप �म' या 'नाम �म' कहा जाता ह। य नाम �म यदयषिप भौषितक (रप) �म� का आशरय करक ही उतपनन होत ह। तथाषिप व भौषितक (रप) �म� का स$ा3न भी करत रहत ह। उसका अततिभपराय यह ह षिक यदिद रप �म नही होत ह तो अरप (नाम)¬ �म भी नही होत। यदिद अरप (नाम) �म नही ह तो रप �म षिनषपरयोजन हो जात ह। यदयषिप भगवान बदध का पर�ान परषितपादय षिनवाण था और षिनवाण परानतिपत क चि3ए करश3, अकरश3 अरप�म� का षिवव$न करना भी आवशयक था, तथाषिप रप �म� क षिवव$न क षिबना अरप�म� का षिवव$न समभव नही था, फ3त: उनहोन 28 परकार क भौषितक �म� का षिवव$न षिकया। इस परकार मनषय जीवन म यदयषिप अरप�म पर�ान ह, तथाषिप रप�म� की भी अषिनवायता ह। अत: सभी अततिभ�मरशासतर रपो का भी षिवशल/ण करत ह।

पथवी अप आदिद 28 रपो म स पथवी अप, तजस, वाय वण, गनध, रस और ओजस य आठ रप सदा एक साथ रहत ह। परमाण, जो सकषम पदाथ माना जाता ह, उसम भी य आठ रप रहत ह। इनम स पथवी, अप तजस और वाय को 'महाभत' कहत ह। कयोषिक इन $ार रपो का सवभाव और दरवय अनय रपो स महान होत ह तथा य ही म3भत होत ह इन $ार महाभतो का आशरय 3कर ही वण आदिद अनय रपो की अततिभवयचिकत होती ह।

वण, गनध आदिद रपो का हम तभी परतयकष हो सकता ह, जबषिक इनक म3 म सघातरप महाभत हो। जब महाभतो का सघात रहगा तब वण गनध आदिद का भी परतयकष हो सकगा।

मनषय क रशरीर म षिवदयमान $ार महाभतो क सवभाव को समझन क चि3ए मतति�का स बनी हई मरतित को उपमा स षिव$ार षिकया जाता ह। एक-एक रप-समदाय (क3ाप) म षिवदयमान इन $ार महाभतो को पराकत $कष दवारा नही दखा जा सकता, व परमाण नामक अतयनत सकषम रप-समदाय (क3ाप) होत ह अनक रपो (क3ापो-रप-समदायो) का सघात होन पर ही उनह पराकत $कष दवारा दखा जा सकता ह। इस परकार अनक रप-समदायो (क3ापो) का सघात होन पर मनषय का भौषितक रशरीर बन जाता ह। भौषितक रशरीर होन म मनषय क पवकत कम ($तना) मखय कारण होत ह।

विनवा�ण

चि$�, $तचिसक और रप �म� का यथाथ जञान हो जान पर षिनवाण का साकषातकार षिकया जा सकता ह। यथाथ जञान की परानतिपत करन क चि3ए सा�ना (षिवपशयना) करना $ाषिहए। सा�ना (षिवपशयना) क दवारा जो जञान को परापत करता ह, वह आयपदग3 ह, आयपदग3 ही षिनवाण का साकषातकार कर सकत ह। जिजसक द:ख और द:ख क कारण (तषणा-समदय) षिनव� हो जात ह, वही षिनवाण का साकषातकार कर सकता ह, अत: द:ख तथा तषणा स आतयनतिनतकी षिनवतति� ही 'षिनवाण' कह3ाता ह। यदयषिप षिनवाण द:खो स आतयनतिनतकी षिनवतति� मातर का षिनरो� मातर को कहत ह, तथाषिप वह अभाव नही कहा जा सकता, कयोषिक वह आयजनो क दवारा साकषात करन योगय ह अथात षिनवाण जञानपरापत आयजनो का षिव/य (आ3मबन) होन स अभाव नही कहा जा सकता। वसतत: वह अतयनत सकषम �म होन स सा�ारण जनो क दवारा जानन एव कहन योगय नही होन पर भी वह आयजनो का षिव/य होता ह। इसचि3ए षिनवाण को एक परमाथ �म कहत ह।

षिनवाण रशानतिनत सख 3कषण वा3ा ह। यहा सख दो परकार का होता ह-

1. रशानतिनत सख एव 2. वदधियतसख।

रशानतिनतसख वदधियतसख की तरह अनभषितयोगय सख नही ह। षिकसी एक षिवरश/ वसत का अनभव न होकर वह उपरशमसख मातर ह अथात द:खो स उपरशम होना ही ह। षिनवाण क सवरप क षिव/य म आजक3 नाना परकार की षिवपरषितपतति�या ह। कछ 3ोग षिनवाण को रप षिवरश/ एव नाम षिवरश/ कहत ह। कछ 3ोग कहत ह। षिक नाम-रपातमक सकनध क भीतर अमत की तरह एक षिनतय�म षिवदयमान ह, जो नामरपो क षिनरदध होन पर भी अवचिरशF रहता ह, उस षिनतय, अजर, अमर, अषिवनारशी क रप म षिवदयमान रहना ही षिनवाण ह, जस- अनय भारतीय दारशषिनको क मत म आतमा। कछ 3ोगो का मत ह षिक षिनवाण की अवसथा म यदिद नामरप �म न रहग तो उस अवसथा म सख का अनभव भी कस होगा इतयादिद।

रशील-विवमरश�

जिजन आ$रणो क पा3न स चि$� म रशानतिनत का अनभव होता ह, ऐस सदा$रणो को सदा$ार (रशी3) कहत ह सामानयतया आ$रणमातर को रशी3 कहत ह। $ाह व अचछ हो, $ाह बर, षिफर भी रदिढ स सदा$ार ही रशी3 कह जात ह षिकनत कव3 सदा$ार का पा3न करना ही रशी3 नही ह, अषिपत बर आ$रण भी 'रशी3' (द:रशी3) ह अचछ और बर आ$रण करन क म3 म जो उन आ$रणो को करन को पररणा दन वा3ी एक परकार की भीतरी रशचिकत होती ह, उस $तना कहत ह। वह $तना ही वसतत: 'रशी3' ह। इसक अषितरिरकत $तचिसक 'रशी3' सवररशी3 और अवयषितकरम रशी3- य तीन रशी3 और होत ह-

$तनारशील जीव विहसा स षिवरत रहन वा3 या गर, उपाधयाय आदिद की सवा सशर/ा करन वा3 पर/ की $तना ($तना रशी3) ह। अथात जिजतन भी अचछ कम (स$रिरत) ह, उनका समपादन करन की पररिरका $तना '$तना रशी3' ह। जब तक $तना न होगी तक पर/ रशरीर या वाणी स अचछ या बर कम नही कर सकता। अत: अचछ कम को सदा$ार (रशी3) कहना तथा बर कम को दरा$ार कहना, उन (सदा$ार, दरा$ार) का सथ3 रप स कथन ह। वसतत: उनक म3 म रहन वा3ी $तना ही महततवपण ह, इसीचि3ए भगवान बदध न '$तनाह ततिभकखव, कमम वदाधिम*' कहा ह।

$तधिसक रशील

जीवविहसा आदिद दFकम� स षिवरत रहन वा3 पर/ की वह षिवरषित '$तचिसक रशी3' ह अथात दषकम� क करन स रोकन वा3ी रशसथिक� 'षिवरषित ह। यह षिवरषित भी एक परकार का 'रशी3' ह, अत: इस 'षिवरषित रशी3' भी कहत ह। अथवा 3ोभ, दव/ मोह आदिद का परहाण करन वा3 पर/ क जो अ3ोभ, अदव/, अमोह ह, व '$तचिसक रशी3' ह अथात जिजस पर/ की सनतान म 3ोभ, मोह न होग वह काय दचचरिरत आदिद दषकम� स षिवरत रहगा। अत: इनह (अ3ोभ आदिद को) 'षिवरषित रशी3' कहत ह।

सवररशील

बर षिव/यो की ओर परव� इजिनदरयो की उन षिव/यो स रकषा करना अथात अपनी इजिनदरयो को बर षिव/यो म न 3गन दना, इस परकार अपन दवारा सवीकत आ$रणो की रकषा करना, जञान क दवारा क3रश (नीवरण) �म� को उतपनन होन स रोकना, षिवपरीत �म� स समागम होन पर उनह सहन करना तथा उतपनन हो गय काम-षिवतक आदिद को उतपनन न होन दन क चि3ए परयास करना 'सवर रशी3' ह।

अवयवितकरम रशील

गहीत वरतो (चिरशकषापरदो) का काय और वाक क दवारा उल3घन न करना (अनल3घन) अवयषितकरम रशी3 कह3ाता ह। अथात जिजस पर/ न यह परषितजञा की ह षिक म पराणी-विहसा न करगा- ऐस पर/ का षिकसी भी परिरसथिसथषित म रशरीर या वाणी दवारा अपनी परषितजञा का उल3घन न करना 'अवयषितकरम रशी3' ह।

$ारिर� रशील, वारिर� रशील

यदयषिप रशी3 अनको परकार क ह, तथाषिप उनका $ारिर� रशी3 व वारिर� रशी3 इन दो म सगरह हो जाता ह। जिजन कम� का समपादन करना $ाषिहए, उनका समपादन करना '$ारिर� रशी3' ह तथा जिजनह नही करना $ाषिहए, उनह न करना 'वारिर� रशी3' ह। भगवान बदध न षिवनय षिपटक म ततिभकषओ क चि3ए जो करणीय आ$रण कह ह, उनक करन स यदयषिप '$ारिरततव रशी3' परा हो जाता ह, और षिनषि/दध कम� क न करन स 'वारिर� रशी3' परा हो जाता ह, तथाषिप उनहोन षिनवाण परानतिपत क चि3ए जो माग परदरशिरशत षिकया ह, उस अपन जीवन म उतारन स ही $रिर� रशी3, भ3ीभाषित परा होता ह।

विनतयरशील

1. पराणाषितपात स षिवरत रहना, 2. $ोरी स षिवरत रहना, 3. म/ावाद स षिवरत रहना, 4. काम धिमथया$ार स षिवरत रहना, तथा

5. रशराब आद मादक दरवयो क पीन स षिवरत रहना-

य पा$ षिनतय रशी3 ह। अथात इनक पा3न स कोई पणय नही होता, षिकनत इनका पा3न न करन स दो/ (आपतति�) होता ह। य 5 रशी3 सभी 3ोगो क चि3ए अषिनवाय ह। गहसथ, परवरजिजत (शरामणर), ततिभकष-ततिभकषणी सभी को इनका पा3न करना $ाषिहए। यदिद गहसथ शरदधा और उतसाह स समपनन हो तो वह अFमी, परणिणमा अमावसया (उपोसथ) क दिदन 8 या 10 रशी3ो का भी पा3न कर सकता ह। इनह अFाङगरशी3 या दरशरशी3 कहत ह।

अषटाङगरशील

1. पराततिण-विहसा स षिवरत रहना, 2. $ोरी न करना, 3. बरहम$य का पा3न करना, 4. झठ बो3न स षिवरत रहना, 5. रशराब आदिद मादक दरवयो क सवन स षिवरत रहना, 6. दोपहर 12 बज क बाद (षिवका3 म) भोजन न करना, 7. नतय, गीत आदिद न दखना, न सनना तथा मा3ा, सगनध आदिद का इसतमा3 न करना तथा 8. ऊ$ और शरy आसनो का तयाग करना।

दरश रशील

अFाङग रशी3 क 7 व रशी3 को दो भागो म षिवभकत कर दिदया जाता ह, इस तरह 8 व क सथान पर 9 हो जात ह तथा उसम सवण, $ादी आदिद का गरहण न करना एक रशी3 को और जोड दिदया जाता ह, इस तरह क3 10 रशी3 हो जात ह।

$ातपरिररशणिदध रशील

ऊपर जो रशी3 कह गय ह, व सामानयतया गहसथ आदिद की दधिF स परहाण करन योगय रशी3 ह। योगी ततिभकषओ क चि3ए षिवरश/त: क3रशो क परहाण क चि3ए 4 परकार क परिररशजिदधरशी3ो का पा3न करना आवशयक होता ह और सभी रशी3 इनक अनतगत आ जात ह। अत: इनका यहा परषितपादन षिकया जा रहा ह।

1. पराषितमोकष सवररशी3— जिजनक पा3न स मोकष की परानतिपत हो जाती ह, ऐस आ$रणो (चिरशकषापदो) को 'पराषितमोकष' कहत ह। उन आ$रणो की रकषा करना ही 'पराषितमोकष सवररशी3' ह। इनक पा3न क चि3ए शरदधा का होना परम आवशयक ह। बदध रशासन क परषित शरदधा होन पर ही बदध क दवारा उपदिदF आ$रणो (चिरशकषापदो) का पा3न षिकया जा सकता ह। ततिभकष म जब शरदधा का आधि�कय होता ह, तो वह बदध दवारा उपदिदF अपन रशी3ो का उसी परकार साव�ानी क साथ आ$रण करता ह, जिजस परकार $ामरी गाय अपनी पछ की, माता अपन एकमातर षिपरय पतर की तथा काणा वयचिकत अपनी एक आख की साव�ानी क साथ आ$रण करता ह।

2. इजिनदरय सवररशी3— $कष आदिद इजिनदरयो की रकषा करना 'इजिनदरय सवररशी3' ह। जब ततिभकष उपयकत पराषितमोकष सवररशी3 स समपनन हो जाता ह, तब वह इजिनदरय सवररशी3 का भी पा3न करन म समथ हो

जाता ह। य दोनो रशी3 वसतत: परसपराततिशरत होत ह। जो पराषितमोकषसवर रशी3 स समपनन होता ह, वह इजिनदरय सवररशी3 का भी पा3न करता ह तथा जो इजिनदरय सवररशी3 स समपनन होता ह, वह पराषितमोकष सवररशी3 का भी पा3न करता ह। इजिनदरय सवररशी3 स समपनन होन क चि3ए अपन $कष आदिद इजिनदरयो की रकषा की जाती ह। जस- जब $कष क सममख वण (रप) उपसथिसथत होता ह तो उस रप क परषित राग आदिद का उतपाद नही होन दना $ाषिहए।

3. आजीव पारिररशजिदधरशी3— अपनी जीषिवका $3ान क चि3ए ग3त (पापम3क) सा�नो का परयोग न करना 'आजीव पारिररशजिदधरशी3' ह। जब कोई वयचिकत ततिभकष-दीकषा गरहण करता ह, तो उस दीकषा क साथ ही ततिभकषापातर भी धिम3 जाता हा, जिजस 3कर वह गाव-नगर म घमता ह और शरदधा3 3ोगो दवारा शरदधापवक जो भी भोजन, वसतर आदिद दिदय जात ह, उनस अपनी जीषिवका $3ाता ह।

परतययसधिननततिशरत रशी3— वसतर, ($ीवर), भोजन (षिपणडपात), रशयनासन (षिवहार) तथा औ/धि� (ग3ानपरतययभ/जय)- इन $ार वसतओ का परतयय कहत ह। जो ततिभकष इन $ार वसतओ को ही अपन जीवन का सा�न बनाता ह, उस ततिभकष का यह आ$रण ही 'परतययसधिननततिशरत रशी3' कह3ाता ह। इस रशी3 की समपननता क चि3ए 'परजञा' की परम आवशयकता ह। यदयषिप भगवान बदध न अपन ततिभकषओ को तीन वसतर और भोजन आदिद का आशरय 3कर जीवन $3ान क चि3ए कहा ह, तथाषिप इनका इसतमा3 खब सो$-षिव$ार करक षिकया जाता ह।

1. �ताग— रशी3ो क पा3न स यदयषिप ततिभकष परिररशदधरशी3 हो जाता ह, तथाषिप जो ततिभकष अलपचछता, अलपसनतधिF आदिद गणो स यकत होत ह, व यदिद अपन रशी3ो को और पषिवतर करना $ाहत ह, तो भगवान बदध न उनक चि3ए 13 परकार क परिररशदध रशी3ो अथात �तागो का उपदरश षिकया ह।

समाधि�— षिवमरश

समाधि�

रशोभन षिव/यो म परव� राग, दव/ मोह स रषिहत पषिवतर चि$� (करश3 चि$�) की एकागरता (षिन�3ता) को समाधि� कहत ह। समाधि� का अथ समा�ान ह। अथात एक आ3मबन (षिव/य) म चि$� $तचिसको का बराबर (सम) तथा भ3ीभाषित (समयक) परषितधिyत होना या रखना (आघान) 'समा�न' ह। इसचि3ए जिजस तततव क परभाव स एक आ3मबन म चि$�-$तचिसक बराबर और भ3ीभाषित षिवततिकषपत और षिवपरकीण न होत हए सथिसथत होत ह, उस तततव को 'समाधि�' कहत ह।

पतजचि3 न भी चि$� की वतति�यो क षिनरो� को 'योग' कहा ह।*

वयास न योग को समाधि� कहा ह।*

वतति�कार न योग का अथ 'समा�ान' बत3ाया ह।*

इस परकार बौदध और बौदध�र आ$ाय� न 'समाधि�' रशबद की वयतपतति� समानरप स की ह। अग�रषिनकाय म बदध न समाधि� की बह3ता स वतमान जीवन म सखपवक षिवहार (दधिF�म-

सखषिवहार), दिदवय$कष-जञान, समषित-समपरजञान स समपननता और क3रश (आसतरव) कषय आदिद अनक गण बताय ह।* इस परकार समाधि� का अथ एकागरता स अधि�क महनीय और गमभीर चिसदध होता ह।

कम�सथान

कमसथान दो परकार क होत ह, यथा- रशमथ कमसथान और षिवपशयना कमसथान। योगी जिजन आ3मबनो को अपन भावनाकतय की समपननता क चि3ए सा�न बनाता ह, उनह 'कमसथान' कहत ह। पथवी, अप आदिद $ा3ीस

परकार क सा�न 'समाधि�' क आ3मबन' (रशमथ कमसथान) ह। तथा प$सकनधातमक नाम-रप आदिद सा�न परजञा क षिव/य (षिवपशयना कमसथान) ह। आनापानसमषित – बौदध सा�ना म शवास और परशवास को 'आनापान' कहत ह। इस ही पातज3 योग-दरशन म 'पराणायाम' कहा गया ह। यह शवास-परशवास (आनापान) समाधि�3ाभ क चि3ए एक उतकF सा�न ह। यह ठीक भी ह, कयोषिक पराण ही जीवन ह। पराण ही समसत ससार का म3 कारण ह। पराण क षिबना पराणी का जीषिवत रहना असमभव ह। सभी जीवो क चि3ए पराण अषिनवाय अग ह। जब स जीव जनम 3ता ह, तभी स शवास-परशवास परषिकरया परारमभ हो जाती ह। इसचि3ए बौदध और बौदधतर भारतीय योगरशासतर म पराणायाम या आनापान का अतयधि�क महततव परषितपादिदत षिकया गया ह।

विवरशणिदध और जञान

यहा योगी नाम-रप ससकार �म� क परषित कव3 अषिनतय या द:ख या अनातम की भावनामातर स माग एव फ3 जञान परापत नही कर सकता, अषिपत उस ससकार �म� की अषिनतय, द:ख एव अनातम-इन तीन सवभावो (3कषणो) स षिवपशयना-भावना करनी पडती ह। माग परानतिपत क पव-कषण म यदिद ससकार �म� क अषिनतय सवभाव को दखता ह तो वह माग एव फ3 अषिनधिम�षिवमोकष कह3ाता ह। यदिद माग परानतिपत क पव-कषण म ससकार �म� को द:ख सवभाव अथवा अनातम सवभाव दखता ह तो वह माग एव फ3 अपरततिणषिहत अथवा रशनयताषिवमोकष कह3ाता ह।

वभावि>क दरश�न / Vaibhashik Philosophy

अनकरम[छपा]

1 वभाषि/क दरशन / Vaibhashik Philosophy 2 परिरभा/ा 3 हत - फ3वाद 4 वचिरशFय 5 परमाण षिव$ार 6 जञानमीमासा 7 बदध

8 समबधि�त लि3क

(सवासमिसतवाद)

इनका बहत कछ साषिहतय नF हो गया ह। इनका षितरषिपटक ससकत म था। इनक अततिभ�म म परमख रप म सात गरनथ ह, जो पराय: म3 रप म अनप3बध ह या आचिरशक रप म उप3बध ह।

$ीनी भा/ा म इनका और इनकी षिवभा/ा टीका का अनवाद उप3बध ह। व सात गरनथ इस परकार ह-

1. जञानपरसथान,

2. परकरणपाद,

3. षिवजञानकाय,

4. �मसकनध,

5. परजञनतिपतरशासतर,

6. �ातकाय एव 7. सगीषितपयाय।

वभाषि/क और सवासमिसतवादी दोनो अततिभ�म को बदधव$न मानत ह।

[सपादिदत कर] परिरभा>ा सवासमिसतवाद रशबद म 'सव' का अथ तीनो का3 तथा 'असमिसत' का अथ दरवयस�ा ह अथात जो षिनकाय

तीनो का3ो म �म� की दरवयस�ा करत ह, व सवासमिसतवादी ह* परमाथ क अनसार जो अतीत, अनागत, परतयतपनन, आकारश, परषितसखयाषिनरो� और

अपरषितसखयाषिनरो�-इन सबका असमिसततव सवीकार करत ह, व सवासमिसतवादी ह। वसबनध कहत ह षिक जो परतयतपनन और अतीत कम क उस परदरश (षिहसस) को, जिजसन अभी फ3 नही

दिदया ह, उस सत मानत ह तथा अनागत और अतीत कम क उस परदरश (षिहसस) को, जिजसन फ3 परदान कर दिदया ह, उस असत मानत ह, व षिवभजयवादी ह, न षिक सवासमिसतवादी। उनक मतानसार जिजनका वाद यह ह षिक अतीत, अनागत, परतयतपनन सबका असमिसततव ह, व सवासमिसतवादी ह। सवासमिसतवादी आगम और यचिकत क आ�ार पर तीनो का3ो की स�ा चिसदध करत ह। उनका कहना ह षिक सतर म भगवान न अतीत, अनागत और परतयतपनन तीनो का3ो म होनवा3 रप आदिद सकनधो की दरशना की ह (रपमषिनतयमतीतमनागतम इतयादिद)। यचिकत परसतत करत हए व कहत ह षिक अतीत, अनागत की स�ा न होगी तो योगी म अतीत, अनागत षिव/यक जञान ही उतपनन न हो सकगा, जबषिक ऐसा जञान होता ह तथा यदिद अतीत नही ह तो अतीत कम अनागत म कस फ3 द सकगा? अथात नही द सकगा। अत: इन और अनय अनक यचिकतयो क आ�ार पर चिसदध होता ह षिक अतीत, अनागत की स�ा ह।

[सपादिदत कर] हत-फलवाद इस वभाषि/को का काय-कारणभाव भी कह सकत ह। इनक मत म छह हत, $ार परतयय और $ार फ3

मान जात ह। छह हत इस परकार ह-

1. कारणहत,

2. सहभहत,

3. सभागहत,

4. समपरयकतकहत,

5. सवतरगहत एव 6. षिवपाकहत।

$ार परतयय ह, यथा-

1. हत-परतयय,

2. समननतर-परतयय,

3. आ3मबन-परतयय एव 4. अधि�पषित-परतयय।

$ार फ3 ह, यथा-

1. षिवपाकफ3,,

2. अधि�पषितफ3,

3. षिनषयनदफ3 एव 4. पर/कारफ3।

कारणहत— सभी �म अपन स अनय सभी �म� क कारणहत होत ह। कोई भी �म अपना कारणहत नही होता। अथात सभी �म उतपनन होनवा3 समसत ससकत �म� क कारणहत होत ह, कयोषिक इनका उनक उतपाद म अषिवघनभाव स अवसथान होता ह। आरशय यह ह षिक काय� क उतपाद म षिवघन न करना कारणहत का 3कषण ह।

सहभहत— सहभहत व �म ह, जो परसपर एक-दसर क फ3 होत ह। जस $ारो महाभत परसपर एक दसर क हत और फ3 होत ह, यथा-एक षितपाही क तीनो पाव एक-दसर को खडा रखत ह। सभी ससकत �म यथासमभव सहभहत ह, बरशत षिक व अनयोऽनयफ3 क रप म समबदध हो।

सभागहत— सदरश �म सभागहत होत ह। सदरश �म सदरश �म� क सभागहत होत ह। यथा-करश3 �म करश3 क और सथिक3F �म सथिक3F �म� क सभागहत होत ह।

समपरयकतकहत— चि$� और $तचिसक समपरयकतक हत होत ह। व ही चि$�-$तचिसक परसपर समपरयकतकहत होत ह, जिजनका आशरय सम या अततिभनन होता ह। जस $कषरिरजिनदरय का एक कषण एक $कषरतिवजञान और ततसमपरयकत वदना आदिद $तचिसको का आशरय होता ह। इसी तरह मन-इजिनदरय का एक कषण, एक मनोषिवजञान एव ततसमपरयकत $तचिसको का आशरय होता ह। व हत समपरयकतक कह3ात ह, जिजनकी सम परवतति� होती ह। चि$� और $तचिसक पा$ समताओ स समपरयकत होत ह, कयोषिक उनक आशरय, आ3मबन और आकार एक ही होत ह। कयोषिक व एक साथ उतपनन होत ह। कयोषिक इनका का3 भी एक ही होता ह। इन पा$ समताओ म स यदिद एक का भी अभाव हो तो उनकी सम-परवतति� नही हो सकती। ऐसा सथिसथषित म वह समपरयकत नही हो सकत।

सवतरगहत— पवpतपनन सवतरग सवभधिमक सथिक3F �म� क सवतरगहत होत ह। अथात पवpतपनन अथात अतीत या परतयतपनन सवभधिमक सवतरग बाद म उतपनन होन वा3 सवभधिमक सथिक3F �म� क सवतरगहत

होत ह। सवतरग हत सथिक3F �म� क सामानय कारण ह। य षिनकायानतरीय सथिक3F �म� क भी हत होत ह। अथात इनक परभाव स अनय षिनकायो (रशरीरो) म सपरिरवार क3रश उतपनन होत ह।

षिवपाकहत— अकरश3 और सासरव करश3 �म षिवपाकहत होत ह। कयोषिक षिवपाक दना इनकी परकषित ह अवयाकत �म षिवपाकहत नही हो सकत, कयोषिक व दब3 होत ह।

फ3वयवसथा— षिवपाकफ3 अनतिनतम षिवपाकहत स उतपनन होता ह। इसक दो अथ षिकय जात ह, यथा- एक षिवपाक का हत और दसरा षिवपाक ही हत। षिवपाक रशबद क दोनो अथ यकत ह। परथम कारण हत का अधि�पषितफ3 होता ह। सभाग और सवतरग हत का षिन:षयनद फ3 होता ह तथा सहभहत और समपरयकतकहत का पर/कार फ3 होता ह।

[सपादिदत कर] वणिरशषटयवभाषि/को को छोडकर अनय सभी बौदध काय और कारण को एककाचि3क नही मानत। षिकनत वभाषि/को की यह षिवरश/ता ह व षिक हत और फ3 को एककाचि3क भी मानत ह, यथा-सहजात (सहभ) हत।

सतय-य वयवसथा

वभाषि/क भी अनय बौदधो की भाषित दो सतयो की वयवसथा करत ह। सतय दो ह, यथा-

1. सवषितसतय एव 2. परमाथसतय।

सवषितसतय— अवयवो का भद अथात उनह अ3ग-अ3ग कर दन पर जिजस षिव/य म तदबजिदध का नारश हो जाता ह, उस सवषित-सतय कहत ह, जस घट या अमब (ज3)। जब घट का मदगर आदिद स षिवनारश कर दिदया जाता ह और जब वह कपा3 क रप म परिरणत हो जाता ह, तब उस (घट) म जो पह3 घटबजिदध हो रही थी, वह नF हो जाती ह। इसी तरह अमब का बजिदध दवारा षिवशल/ण करन पर अमबबजिदध भी समापत हो जाती ह। इसी परकार उपकरणो दवारा या बजिदध दवारा षिवशल/ण करन पर जिजन षिव/यो म तदषिव/यक बजिदध का षिवनारश हो जाता ह, व �म सवषितसतय कह3ात ह। सावषितक दधिF स घट या अमब कहन वा3ा वयचिकत सतय ही बो3ता ह, धिमथया नही, अत: इनह 'सवषितसतय' कहत ह।

परमाथ सतय- सवषितसतय स षिवपरीत सतय परमाथसतय ह। अथात उपकरण या बजिदध दवारा भद कर दन पर भी जिजन षिव/यो म तदषिव/यक बजिदध का नारश नही होता, व �म 'परमाथसतय' यथा- रप, वदना, जञान, षिनवाण आदिद। रप का परमाण म षिवभाजन कर दन पर भी रपबजिदध नF नही होती। इसी तरह अनय षिव/यो क बार म भी जानना $ाषिहए। य �म परमाथत: सतय होत ह, अत: 'परमाथसतय' कह3ात ह। अथवा जो �म आय योगी क समाषिहत 3ोको�र जञान दवारा जस गहीत होत ह, उसी रप म पy3बध जञान दवारा भी गहीत होत ह, व *'परमाथसतय' ह। यदिद वस ही गहीत नही होत तो व सवषित सतय ह।

द:खसतय, समदयसतय, षिनरो�सतय एव मागसतय-इस तरह $ार सतय होत ह। ऊपर जो दो सतय कह गय ह, उनस इनका कोई षिवरो� नही ह। $ार आयसतय दो म या दो सतय $ार म परसपर सगहीत षिकय जा सकत ह। जस षिनरो� सतय परमाथ सतय ह तथा रश/ तीन सवषितसतय।

[सपादिदत कर] परमाण विव$ार

वभाषि/क मत म परमाण षिनरवयव मान जात ह। सघात होन पर भी उनका परसपर सपरश नही होता। परमाण षिदवषिव� ह, यथा-

1. दरवयपरमाण एव 2. सघातपरमाण।

अक3ा षिनरवयव परमाण दरवयपरमाण कह3ाता ह। सघात परमाण म कम स कम आठ परमाण अवशय रहत ह, यथा 4 महाभतो (पथवी, अप, तजस

और वाय) क तथा $ार उपादाय रपो (रप, गनध, रस, सपरFवय) क परमाण एक क3ाप (सघात) म षिनतति�त रप स रहत ह। यह वयवसथा काम�ात क सघात क बार म ह। काम�ात का एक परमाणक3ाप, जिजसम रशबद और इजिनदरय परमाण नही ह, वह षिन�य ही अFदरवयातमक होता ह।

सौतरानतिनतक दरवयपरमाण की स�ा नही मानत, व कव3 सघात परमाण ही मानत ह। आ$ाय वसबनध भी सौतरानतिनतक क इस मत स सहमत ह।

[सपादिदत कर] जञानमीमासावभाषि/क भी दो ही परमाण मानत ह, यथा-

1. परतयकष और 2. अनमान।

परतयकष इनक मत म तीन ही ह, यथा-

1. इजिनदरयपरतयकष,

2. मानसपरतयकष एव 3. योषिगपरतयकष।

य सवसवदनपरतयकष नही मानत, जसा षिक सौतरानतिनतक आदिद नयायानसारी बौदध मानत ह। इसका कारण यह ह षिक य जञान म गराहयकार नही मानत, इसचि3ए गराहकाकार (सवसवदन) भी नही मानत। इनक मत म जञान षिनराकार होता ह। सवसवदन नही मानन स इनक अनसार जञान की स�ा का षिन�य परवतG जञान दवारा हआ करता ह। यह परवतG जञान समतयातमक या कलपनातमक ही होता ह। आरशय यह ह षिक इनक अनसार जञान समत हआ करता ह। वह सवयपरकारश नही होता।

इजिनदरयपरतयकष— इजिनदरयो स उतपनन जञान इजिनदरयपरतयकष ह। इनक मत म यदयषिप $कष/ ही रप को दखता ह, तथाषिप य $कषरतिवजञान को ही परमाण मानत ह। इजिनदरयपरतयकष पा$ ह, यथा- #$कषरतिवजञान,

1. शरोतरषिवजञान,

2. घराणषिवजञान,

3. षिवहरषिवजञान एव

4. कायषिवजञान।

मानसपरतयकष— इजिनदरय षिवजञानो क अननतर उनही क षिव/य को गरहण करता हआ यह मानसपरतयकष उतपनन होता ह। समननतर अतीत छह षिवजञान अथात मनो�ात इसका अधि�पषितपरतयय होता ह।

योषिगपरतयकष— योगी दो परकार क होत ह- 3ौषिकक एव 3ोको�र। इनम स 3ोको�र योगी का परतयकष ही योषिगपरतयकष होता ह, इस 3ोको�र मागजञान भी कह सकत ह। $ार आयसतय, षिनवाण एव नरातमय इसक षिव/य होत ह। 3ौषिकक योगी की दिदवयशरोतर, दिदवय$कष/ आदिद अततिभजञाए मानसपरतयकष ही ह, योषिगपरतयकष नही।

कलपना— जो जञान वसत स उतपनन न होकर रशबद को अधि�पषितपरतयय बनाकर उतपनन होता ह अथवा जो जञान $कषरादिद परतयकष षिवजञानो क अननतर अधयवसाय करत हए उतपनन होता हा, वह 'कलपना' या 'षिवकलप' ह।

जञानाकार— इनक मत म जञान म आकार नही माना जाता। य जञान को साकार नही, अषिपत षिनराकार मानत ह। इसी परकार य वसत म भी आकार नही मानत। षिनराकार जञान परमाण-समह को दखता ह। परमाण वसतवाकार नही होत। यदिद जञान साकार वसत का गरहण करगा तो आकारमातर का दरशन करगा, वसत का नही।

माग-फ3-वयवसथा— माग पा$ होत ह, यथा- परयोगमाग, दरशनमाग, भावनामाग एव अरशकषमाग। परथम दो माग पथगजन अवसथा क माग ह और य 3ौषिकक माग कह3ात ह। रश/ तीन माग आय पदग33 क माग ह और 3ोको�र ह आय क माग ही वसतत: 'मागसतय' ह। परथम दो माग यदयषिप माग ह, षिकनत मागसतय नही।

अरशकषमाग— अरशकषमाग क कषण म कोई हय क3रश अवचिरशF नही रहता। कव3 रशरीर ही अवचिरशF रहता ह। अरशकष माग 3ोको�र परजञा ह, जिजसका आ3मबन कव3 षिनवाण होता ह।

षितरयानवयवसथा— शरावकयान, परतयकबदधयान एव बोधि�सततवयान-य तीन यान होत ह। शरावकगोतरीय पदग3 का 3कषय पराय: पदग3नरातमय का साकषातकार करनवा3ी परजञा दवारा अपन क3रशो का परहाण कर $ाय आयसतयो का साकषातकार करक शरावकीय अहततव पद परापत करना ह। इसक चि3ए सवपरथम अकषितरम षिनयाण चि$� का उतपाद आवशयक ह। समभारमाग परापत होन क अननतर अतयनत तीकषणपरजञ पदग3 तीन जनमो म अहततव परापत कर 3ता ह। सतरोतापतति� माग परापत होन क अननतर आ3सी सा�क भी काम�ात म सात स अधि�क जनमगरहण नही करता।

[सपादिदत कर] बदधवभाषि/क मतानसार बोधि�सततव जब बदधतव परापत कर 3ता ह, तब भी उसका रशरीर सासरव ही होता ह तथा वह द:खसतय और समदयसतय होता ह, षिकनत उसकी सनतान म क3रश सवथा नही होत। क3रशावरण क अ3ावा जञयावरण का असमिसततव य 3ोग षिबलक3 नही मानत। बदध क 12 $रिरतर होत ह। उनम स

1. तषि/त कषतर स चयषित, 2. मातकततिकषपरवरश,

3. 3नधिमबनी उदयान म अवतरण,

4. चिरशलप षिव/य म नपणय एव कौमायpचि$त 3चि3त करीडा तथा

5. राषिनयो क परिरवार क साथ राजयगरहण-य पा$ गहसथपाततिकषक $रिरतर ह तथा 6. रोगी, वदध आदिद $ार षिनधिम�ो को दखकर ससवग परवरजया, 7. नरजना क तट पर 6 व/� तक कदिठन तप�रण,

8. बोधि�वकष क म3 म उपसथिसथषित,

9. मार का सना क साथ दमन,

10. वरशाख परणिणमा की राषितर म बदधतवपरापत,

11. �म$कर परवतन तथा 12. करशीनगर म महापरिरषिनवाण-य सात $रिरतर परवरजयापाततिकषक ह।

शरावक

अहत, परतयकबदध अहत एव बदध इन तीनो को जब अनपधि�रश/षिनवाण की परानतिपत हो जाती ह, तब इनकी जड सनतषित एव $तन-सनतषित दोनो �ाराए सवथा समापत हो जाती ह। इन दोनो �ाराओ का अभाव ही अनपधि�रश/षिनवाण ह और इसकी भी दरवयस�ा वभाषि/क सवीकार करत ह। इनक मत म सभी �म दरवयसत और अथषिकरयाकारी मान जात ह। आकारश, षिनवाण आदिद सभी �म इसी परकार क होत ह। जो सवथा नही होत, जस रशरशषिव/ाण, वनधयापतर आदिद असत होत ह। कछ ऐस भी वभाषि/क थ, जो षिनरधि�रश/षिनवाण क अननतर भी $तन�ारा का असमिसततव मानत थ। वभाषि/को क मत म समभोगकाय एव �मकाय नही होता। कव3 षिनमाणकाय ही होता ह।

सौ1ापतिनतक दरश�नअनकरम[छपा]

1 सौतरानतिनतक दरशन 2 उदभव एव षिवकास 3 समीकषा 4 सौतरानतिनतक की परिरभा/ा 5 षितरषिपटक 6 षिनषक/ 7 परमख सौतरानतिनतक चिसदधानत 8 आशरय , वसत या पदाथ 9 आततिशरत माग 10 फ3

11 फ3सथ पदग3 12 सौतरानतिनतक दरशन की दस षिवरश/ताए 13 काय 14 जञानमीमासा

15 समबधि�त लि3क

[सपादिदत कर] उदभव एव विवकास सामानयतया षिवदवानो की �ारणा ह षिक सौतरानतिनतक षिनकाय का परादभाव बदध क परिरषिनवाण क अननतर

षिदवतीय रशतक म हआ। पाचि3-परमपरा क अनसार वरशा3ी की षिदवतीय सगीषित क ततका3 बाद कौरशामबी म आयोजिजत

महासगीषित म महासाधिघक षिनकाय का गठन षिकया गया और बौदध सघ दो भागो म षिवभकत हो गया। थोड ही दिदनो क अननतर सथषिवर षिनकाय स महीरशासक और वजिजपतरक (वसथिजजप�क) षिनकाय षिवकचिसत हए। उसी रशताबदी म महीरशासक षिनकाय स सवासमिसतवाद, उसस काशयपीय; उनस सकरानतिनतवादी, षिफर उसस सतरवादी षिनकाय का जनम हआ। आरशय यह षिक सभी अठारह षिनकाय उसी रशताबदी म षिवकचिसत हो गय।

[सपादिदत कर] समीकषा1. षिनकायो क नामो और का3 क षिव/य म जो मतभद उप3बध होत ह। उसका कारण दरश भद और

आवागमन की सषिव�ा का अभाव भी परतीत होता ह। उदाहरणाथ भारत क पतति�मो�र म अथात कशमीर, गानधार आदिद परदरशो म सौतरानतिनतक षिनकाय कशमीर वभाषि/को स पथक होकर षिव3मब स असमिसततव म आया, अत: वसधिमतर उसका अदभवका3 $तथ बदध रशताबदी षिनतति�त करत ह। उस षिनकाय न मधय दरश अथात मथरा आदिद सथानो म पह3 ही अपना सवरप परापत कर चि3या, अत: वसधिमतर स अनय आ$ाय� का मत ततिभनन हो गया। इस परकार का मतभद होन पर भी उनम मौचि3क एकरपता दधिFगो$र होती ह। उदाहरण क रप म काशयपीय षिनकाय क षिवततिभनन नाम षिवततिभनन परदरशो म थ।

2. ऐषितहाचिसक दधिF स षिव$ार करन पर ऐसा परतीत होता ह षिक सौतरानतिनतक षिनकाय क बीज बदध का3 म ही षिवदयमान थ। पाचि3 भा/ा म उपषिनबदध और उप3बध परामाततिणक बदधव$नो म तथा भोट भा/ा और $ीनी भा/ा म उप3बध एव सरततिकषत उनक अनवादो म 'स�नतिनतक', 'स��र' (सतर�र), 'स�वादी' (सतरवादी) आदिद रशबद बह3तया उप3बध होत ह। जञात ह षिक उस का3 म चिसदधानत षिवरश/ क चि3ए 'वाद' रशबद परयकत होता था। सतरो म 'स��र', 'स�वादी', 'स�नतिनतक', 'स�नतवादी' आदिद रशबद उन ततिभकषओ क चि3ए परयकत होता था, जो सतरषिपटक क षिवरश/जञ होत थ, जिजनह सतरषिपटक कणठसथ था और जो उसक वयाखयान म षिनपण थ।

[सपादिदत कर] सौ1ापतिनतक की परिरभा>ा जो षिनकाय सतरो का या सतरषिपटक का सबस अधि�क परामाणय सवीकार करता ह, उस सौतरानतिनतक कहत

ह। अटइसाचि3नी म सतर रशबद क अनक अथ कह गय ह, यथा:

अतथान स$नतो सव�तो सवनतो थ सदनतो।स�ाणा स�सभागतो $ स� षित अकखात॥ -(अटठसाचि3नी, षिनदानकथावणणना, प. 39)

सतर को ही 'सतरानपत' भी कहत ह अथवा सतर क आ�ार पर परवरतितत चिसदधानत 'सतरानत' कह3ात ह। उनस समबदध षिनकाय 'सौतरानतिनतक' ह। जिजन व$नो क दवारा भगवान जगत का षिहत समपादिदत करत ह, व व$न 'सतर' ह। अथवा जस मततिण, सवण आदिद क दानो को एक �ाग म षिपरोकर सनदर हार (आभ/ण) का षिनमाण षिकया जाता ह, उसी तरह नाना अधयारशय एव रचि$ वा3 सततवो क चि3ए उपदिदF नाना बदधव$नो को षिनवाण क अथ म जिजनक दवारा आबनधन षिकया जाता ह, व सतर ह।

महायानी परमपरा क अनसार बदध का कोई एक भी व$न ऐसा नही ह, जिजसम जञय, माग और फ3 सगहीत न हो। इसचि3ए बदधव$न ही 'सतर' ह। अत: 'सतर' यह बदध व$नो का सामानय नाम ह।

यरशोधिमतर न अततिभ�मकोरशभाषयटीका की टीका म सौतरानतिनतक रशबद की वयतपतति� करत हए चि3खा ह : 'क: सौतरानतिनतकाथ:? य सतरपरामाततिणका:, न त रशासतरपरामाततिणकासत सौतरानतिनतका:*' अथात सौतरानतिनतक रशबद का कया अथ ह? जो सतर को, न षिक रशासतर को परमाण मानत ह, व सौतरानतिनतक ह। इनह ही दाFानतिनतक भी कहत ह, कयोषिक व दFानत क माधयम स बदध व$नो का वयाखयान करन म अतयनत षिनपण होत ह। इस षिनव$न क दवारा षितरषिपटक क समबनध म सौतरानतिनतको की दधिF का सकत भी षिकया गया ह।

[सपादिदत कर] वि1विपटकइस विव/य म षिकसी का कोई षिववाद नही ह षिक महाकाशयप आदिद महासथषिवरो न बदध व$नो का सक3न करक उनह षितरषिपटक का सवरप परदान षिकया। का3 करम म आग $3कर बदधव$नो क समबनध म परसपर षिवरदध षिवषिव� मत-मतानतर और षिवषिव� सामपरदाधियक दधिFया परसफदिटक हई। इस षिव/य म सौतरानतिनतको की षिवरश/ दधिF ह। इनक मतानसार सथषिवरवादिदयो का अततिभ�मषिपटक, जिजसम �ममसगततिण, षिवभग आदिद 7 गरनथ सगहीत ह, वह (अततिभ�मषिपटक) बदधव$न नही माना जा सकता। इनका कहना ह षिक इन गरनथो म अससकत �म� की दरवयस�ा आदिद अनक यचिकतहीन चिसदधानत परषितपादिदत ह। भगवान बदध कभी भी यचिकतहीन बात नही बो3त, अत: इनह बदधव$न क रप म सवीकार करना असमभव ह। वसतत: य (सातो) गरनथ परवतG ह और आततिभ�ारमिमको की कषित ह। अत: य रशासतर ह। उनहोन इनक र$धियताओ क नामो का भी उल3ख षिकया ह, यथा-जञानपरसथान क कता आयकातयायनीपतर, परकरणपाद क वसधिमतर, षिवजञानकाय क दवरशमा, �मसकनध क रशारीपतर, परजञनतिपतरशासतर क मौदग3यायन, �ातकाय क पण तथा सगीषितपयाय क महाकौधिyल3 कता ह। य गरनथ षिकसी परामाततिणक पर/ दवारा रचि$त नही ह और न परथम सगीषित म इनका सगायन ही हआ ह, अत: पथगजनो दवारा षिवर$चि$त होन स हम सौतरानतिनतक इनह बदधव$न नही मानत। इनका कहना ह षिक बदध दवारा उपदिदF सतर ही हमार मत म परमाण ह, न षिक कोई अनय रशासतर।

[सपादिदत कर] विनषक>� सौतरानतिनतक षिनकाय का असमिसततव तो ततीय सगीषित क अवसर पर समराट अरशोक क का3 म षिवदयमान

था, षिकनत दारशषिनक परसथान क रप म उसका षिवकास समभवत: ईसा पव परथम रशतक म समपनन हआ। षिनकाय क साथ सौतरानतिनतक रशबद का परयोग तो समभवत: तब परारमभ हआ, जब अनय षिनकायो और

मानयताओ क बी$ षिवभाजन-रखा अधि�क ससपF हई। सात अततिभ�म गरनथो का सगरह परवतG ह, इसचि3ए बदध व$नो क रप म सौतरानतिनतको न उनह मानयता

परदान नही की।

सतरषिपटक और षिवनयषिपटक को परामाततिणक बदधव$न मानकर सौतरानतिनतको न अपन चिसदधानतो की अनय षिनकायो स अ3ग सथापना की। तभी स सौतरानतिनतक षिनकाय की परमपरा परारमभ हई। ऐसा 3गता ह षिक अनय 3ोगो न जब बदधव$नो का अततिभ�मषिपटक क रप म सगरह षिकया और उनह बदधव$न क रप म माना, तब परारमभ म सौतरानतिनतको न षिवरो� षिकया होगा, षिकनत अनय षिनकाय वा3ो न उनका षिवरो� मानन स इनकार कर दिदया होगा, तब षिववरश होकर उनहोन पथक षिनकाय की सथापना की। यह घटना षिदवतीय बदधाबद म घटनी $ाषिहए।

महाराज अरशोक क का3 म सभी षिनकायो क षितरषिपटक असमिसततव म आ गय थ। इसीचि3ए अरशोक क समय कथावतथ नामक गरनथ म अनय मतो की समा3ो$ना समभव हो सकी। इसचि3ए यह षिनतति�त होता ह षिक अततिभ�म का बदधव$न समबनधी षिववाद एव सौतरानतिनतक षिनकाय का गठन उसस पववतG ह। यही षिववाद अनततोगतवा अनय षिनकायो स सौतरानतिनतक षिनकाय क पथक होन क रप म परिरणत हआ। यही सौतरानतिनतक षिनकाय क उदगम का हत और का3 ह।

[सपादिदत कर] परमख सौ1ापतिनतक धिसदधानतसौतरानतिनतको की जो परमख षिवरश/ताए ह, जिजनकी वजह स व अनय बौदध, अबौदध दारशषिनको स ततिभनन हो जात ह, अब हम उन षिवरश/ताओ की ओर सकत करना $ाहत ह। जञात ह षिक बौदध �म म अनक षिनकायो का षिवकास हआ। यदयषिप उनकी दारशषिनक मानयताओ म भद ह, षिफर भी बदधव$नो क परषित गौरव बजिदध सभी म समान रप स पाई जाती ह। सभी षिनकायो क पास अपन-अपन षितरषिपटक थ। ऐषितहाचिसक करम म महायान का भी उदय हो गया। यह षिन:सजिनदग� ह। षिक पर/ाथ-चिसजिदध सभी भारतीय दरशनो का परम 3कषय ह। इसी 3कषय को धयान म रख कर बौदधो म यानो की वयवसथा की गई ह। उनक दरशनो का गठन भी यानवयवसथा पर आ�ारिरत ह। इसक आ�ारभत तततव तीन होत ह, यथा-

1. आशरय, वसत आ3मबन या पदाथ, 2. आततिशरत माग (रशी3, समाधि�, परजञा), 3. परयोजन या 3कषयभत फ3।

[सपादिदत कर] आशरय, वसत या पदाथ�मीमासा क अवसर पर दो सतयो अथात परमाथ सतय और सवषित सतय की $$ा की जाती ह।

परमाथ� सतय

सौतरानतिनतको की दो �ाराओ म स आगम-अनयायी सौतरानतिनतको क अनसार यनतर आदिद उपकरणो क दवारा षिवघटन कर दन पर अथवा बजिदध दवारा षिवशल/ण करन पर जिजस षिव/य की पव बजिदध नF नही होती, वह 'परमाथ सतय' ह। यथा-नी3, पीत, चि$�, परमाण, षिनवाण आदिद का षिकतना ही षिवघटन या षिवशल/ण षिकया जाए, षिफर भी नी3बजिदध, परमाणबजिदध या षिनवाणबजिदध नF नही होती, अत: ऐस पदाथ उनक मत म परमाथ सतय मान जात ह। इस मत म $ारो आयसतयो क जो सो3ह आकार होत ह, व परमाथत: सत मान जात ह। जञात ह षिक परतयक सतय क $ार आकार होत ह। जस द:खसतय क अषिनतयता, द:खता, रशनयता एव अनातमता य $ार आकार ह। समदय सतय क समदय, हत, परतयय और परभव य $ार आकार, षिनरो� सतय क षिनरो�, रशानत, परणीत एव षिन:सरण य $ार आकार तथा मागसतय क माग, नयाय, परषितपतति� और षिनयाण य $ार आकार होत ह। इस तरह क3 16 आकार होत ह।

यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतक मत क अनसार जो परमाथत: अथषिकरया-समथ ह और परतयकष आदिद परामाततिणक बजिदध का षिव/य ह, वह 'परमाथ सतय' ह, जस- घट आदिद। इस मत क अनसार योगी का समाषिहत जञान ससकार (हत-परतयय स उतपनन) सकनधो का ही साकषात परतयकष करता ह तथा उनकी आतमरशनयता और षिनवाण का जञान तो उस परतयकष क सामथय स होता ह।

सवषितसतय— इस मत म पा$ सकनध सवषितसतय ह परमाथत: अथषिकरयासमथ न होना सवषितसतय का 3कषण ह। सवषितसतय, सामानय3कषण, षिनतय, अससकत एव अकतक �म पयायवा$ी ह। सवषित का तातपय षिवकलप जञान स ह। उसक परषितभास सथ3 म जो सतय ह, वह सवषितसतय ह। षिवकलप क सवषित इसचि3ए कहत ह, कयोषिक वह वसत की यथाथ सथिसथषित क गरहण म आवरण करता ह। आगमानयायी सौतरानतिनतको क अनसार यनतर आदिद उपकरणो दवारा षिवघटन करन पर या बजिदध दवारा षिवशल/ण करन पर जिजन पदाथ� की पवबजिदध नF हो जाती ह, व सवषितसतय ह, यथा- घट, अमब आदिद।

इस दरशन म पा$ परकार क परमय मान जात ह, यथा- रप, चि$�, $तचिसक, षिवपरयकत ससकार एव अससकत षिनवाण। य सकनध, आयतन और �ातओ म यथायोगय सगहीत होत ह।

[सपादिदत कर] आणिशरत माग�जिजस माग की भावना की जाती ह, वह माग वसतत: समयक जञान ही ह।

1. नरातमय जञान, 2. $ारो आयसतयो क सो3ह आकारो का जञान,

3. सतीस बोधि�पकषीय �म, 4. $ार अपरमाण,

5. नौ अनपव समापतति�या- य �म यथायोगय 3ौषिकक और अ3ौषिकक माग� म सगहीत होत ह।

[सपादिदत कर] फल सरोत आपनन, सकदागामी, अनागामी और अहत य $ार आय पदग3 होत ह। य $ारो मागसथ और

फ3सथ दो परकार क होत ह, अत: आयपदग3ो की सखया आठ मानी जाती ह। सोपधि�रश/ षिनवाण परापत और षिनरपधि�रश/ षिनवाण परापत-इस तरह अहत पदग3 भी षिदवषिव� होत ह। परतयक बदधतव और समयक सबदधतव भी फ3 मान जात ह। बदधतवपरानतिपत और अहतवपरानतिपत क माग म यदयषिप जञानगत कोई षिवरश/ता इस मत म नही मानी जाती,

षिकनत पारधिमताओ की परतित का दीघका3ीन अभयास अथात पणयस$य बदधतव परानतिपत क माग की षिवरश/ता मानी जाती ह।

[सपादिदत कर] फलसथ पदगलजस शरावकयान म $ार मागसथ और $ार फ3सथ आठ आयपदग3 मान जात ह, वस ही इस मत क अनसार परतयक बदधयान म भी आय पदग3ो की वयवसथा की जाती ह। षिकनत खङगोपम परतयक बदध षिन�य ही अहत स ततिभनन होता ह। वह बदध आदिद क उपदरशो की षिबना अपकषा षिकय आनतरिरक सवत: सफत जञान दवारा षिनवाण का

अधि�गम करता ह। उसका षिनरपधि�रश/ षिनवाण बदध स रशनय दरश और का3 म होता ह। मागसथ और फ3सथ आय पदग3ो क पारमारशिथक सघ म बीस परकार क पदग3 होत ह। इनका षिवसतत षिवव$ना अततिभसमया3ङकार और अततिभ�मकोरश आदिद गरनथो म उप3बध ह।

[सपादिदत कर] सौ1ापतिनतक दरश�न की दस विवरश>ताएकषणभङग धिसणिदधबौदध 3ोग, जो परतयक वसत क उतपाद, सथिसथषित और भङय य तीन 3कषण मानत ह, उनको 3कर बौदधतर दारशषिनको क साथ उनक बहत वयापक, गमभीर और दीघका3ीन षिववाद ह। सौतरानतिनतको क अनसार उतपाद क अननतर षिवनF होनवा3ी वसत ही कषण ह। उनक अनसार उतपाद मातर ही वसत होती ह। वसत की तरकाचि3क स�ा नही होती। कारण-सामगरी क जट जान पर काय का षिनषपनन होना ही उतपाद ह। उतपनन की भी सथिसथषित नही होती, अषिपत उतपाद क अननतर वसत नही रहती, यही उसकी भङगावसथा ह।

स1परामाणयसौतरानतिनतको क मतानसार जञानपरसथान आदिद सात अततिभ�मरशासतर बदध व$न नही ह, अषिपत व आ$ाय� की कषित ह। वसधिमतर आदिद आ$ाय उन गरनथो क परणता ह, अत: व रशासतर ह, न षिक बदधव$न या आगम। ऐसा मानन पर भी अथात सतरषिपटक मातर को परमाण मानन परी इनक मत म अततिभ�म का आभाव या षितरषिपटक का अभाव नही ह। जिजन सतरो म वसत क सव3कषण और सामानय 3कषण आदिद की षिवव$ना की गई ह, व सतर ही अततिभ�म ह, जस अथषिवषिन�यसतर आदिद। बदधव$न 84,000 �मसकनध, 12 अग एव तीन षिपटको म सगहीत होत ह। परवतG सौतरानतिनतक सतरो का नयाथ और नीताथ म षिवभाजन भी करत ह।

परमाणवादसौतरानतिनतक मत म परमाण षिनरवयव एव दरवयसत मान जात ह। य परमाण ही सथ3 रपो क आरमभक होत ह। जब परमाणओ स सथ3 रपो का आरमभ होता ह, तब एक ससथान म षिवदयमान होत हए भी इनम परसपर सपरश नही होता। सौतरानतिनतक मत म ऐसा कोई रप नही होता, जो अषिनदरशन और अपरषितघ होता हो, जसा षिक अषिवजञनतिपत नामक रप की स�ा वभाषि/क मानत ह। इनक अनसार अषिवजञनतिपतरप की सव3कषणस�ा नही ह, उसकी मातर परजञनतिपतस�ा ह।

दरवयसततव-परजञपतिVतसततवसौतरानतिनतको क अनसार व ही पदाथ दरवयसत मान जात ह, जो अपन सवरप को सवय अततिभवयकत करत ह तथा जिजनम अधयारोषिपत सवरप का 3रशमातर भी नही होता। उदाहरणसवरप रप, वदना आदिद �म वस ही ह। जब रप आदिद �म अपन सवरप का या अपन आकार का अपन गराहक जञानो म, जञानदिदरयो अथवा आय जञानो म आ�ान (अपण) करत ह, तब व षिकसी की अपकषा नही करत, अषिपत सवत: अपन ब3 स करत ह। अषिप $, $कषरादिद परतयकष जञान अथवा योषिगजञान जब रप आदिद का साकषातकार करत ह, तब व भी उसम षिकसी कसथिलपत आकार का आरोपण नही करत। इसचि3ए रप, वदना आदिद इनक मत म दरवयसत या परमाथसत मान जात ह। पदग3 आदिद �म वस नही ह। व अपन सवरप का सवत: जञान म आ�ान नही करत। न तो जञान म पदग3 आदिद का आभास होता ह। जब यथाथ की परीकषा की जाती ह, तब उनका सवरप षिवदीण होन 3गता ह। कव3 उनक अधि�yान नाम-रप आदिद �म ही उप3बध होत ह। पदग3 कही उप3बध नही होता। अत: ऐस �म परजञनतिपतसत मान जात ह।

जञान की साकारतावभाषि/क आदिद दरशन क अनसार रप आदिद षिव/यो का गरहण $कष आदिद इजिनदरयो क दवारा होता ह, जञान दवारा नही। इजिनदरयो क दवारा गहीत नी3, पीत आदिद षिव/यो का $कषरतिवजञान आदिद इजिनदरय-षिवजञान अनभव करत ह अथात इजिनदरयो म परषितषिबनधिमबत आकार ही इजिनदरयषिवजञानो का षिव/य हआ करता ह, अनयथा षिवजञान षिबना आकार

क ही होता ह। सौतरानतिनतक दरशन क अनसार नी3, पीत आदिद षिव/य अपना आकार सवगराहक जञान म अरतिपत करत ह, फ3त: षिवजञान षिव/यो क आकार स आकरिरत हो जात ह। जञानगत आकार क दवारा ही षिव/य अपन को परकाचिरशत करत ह। यदिद ऐसा नही माना जाएगा तो षिवजञान की षिबना अपकषा षिकय ही षिव/य का परकारश होन 3गगा। अत: जहा षिव/य का अवभास होता ह, वह जञान ही ह। फ3त: जञान म परषितभाचिसत नी3, पीत आदिद षिव/यो की बाहयस�ा चिसदध होती ह।

साकार जञानो क भदजञानगत आकार क बार म तीन परकार क मत पाय जात ह, यथा- गराहय-गरहक समसखया वाद, नाना अदवत वाद तथा नाना अनपवगरहण वाद, इस अ�ाणडाकार वाद भी कहत ह।

गराहय-गराहक समसखया वाद— नी3, पीत आदिद अनक वण� स यकत चि$तर का दरशन करत समय चि$तर म जिजतन वण होत ह, उतनी ही सखया म वण परषितषिबनधिमबत षिवजञान भी होत ह। जस चि$तर क वण परसपर ततिभनन और पथक-पथक अवसथिसथत होत ह, वस ही व षिवजञान भी होत ह, अनयथा षिव/य और जञान का षिनतति�त षिनयम नही बन सकगा। इस वाद क अनसार चि$तर म जिजतन वण होत ह, उतन ही षिवजञान एक साथ उतपनन होत ह।

नाना अदवत वाद— यदयषिप नाना वण वा3 चि$तरपट को आ3मबन बनाकर अनक आकारो स यकत षिवजञान उतपनन होता ह, तथाषिप वह $कषरतिवजञान एक ही होता ह। एक षिवजञान का अनक आकारो स यकत होना न तो असमभव ह और न षिवरदध ही। कयोषिक अनक वण� का आभास जञान म एकसाथ ही होता ह। जञान क अनदर षिवदयमान व अनक आकार एक जञान क ही अरश होत ह, न षिक पथक। इस मत क अनसार वह चि$तर भी अनक वणमा3ा होन पर भी दरवयत: एक और अततिभनन ही होता ह। उसम सथिसथत सभी वण उस चि$तर क अरश ही होत ह।

नाना अनपवगरहण वाद— जिजस परकार एक चि$तर म नी3, पीत आदिद अनक वण अ3ग-अ3ग सथिसथत होत ह, वस जञान म भी अनकता होना आवशयक नही ह। उस चि$तर को गरहण करन वा3ा $कषरतिवजञान एक होत हए भी उन सभी वण� का साकषातकार करता ह। इस मत क अनसार अनक वण� क जञान क चि3ए जञान का अनक होना आवशयक नही ह। यह षिव/य बडा गमभीर ह। घट, पट आदिद अनक वसतओ को एक साथ दखन वा3ा $कषरतिवजञान कया एक होता ह या अनक। षिफर कव3 एक षिव/य को दखनवा3ा $कषरतिवजञान तो समभव ही नही ह। कयोषिक परतयक षिव/य क अपन अवयव होत ह। $कषरतिवजञान जब एक षिव/य को दखता ह तो उसक अवयवो को भी दखता ह। तब कया उन अवयवो क अनरप अनक $कषरतिवजञान होत ह अथवा एक ही $कषरतिवजञान होता ह? इस षिव/य म षिवदवानो क अनक मत ह।

काय� और कारण की णिभननकाधिलकताकारण हमरशा काय स पववतG होता ह, इस पर सौतरानतिनतको का बडा आगरह ह। काय सवदा कारण क होन पर होता ह (अनवय) और न होन पर नही होता ह (वयषितरक)। यदिद काय और कारण दोनो समान का3 म होग तो कारण म काय को उतपनन करन क सवभाव की हाषिन का दो/ होगा, कयोषिक कारण क का3 म काय षिवदयमान ही ह। इस सथिसथषित म कारण की षिनरथकता का भी परसग (दो/) होगा। इसचि3ए वभाषि/को को छोडकर सौतरानतिनतक आदिद सभी बौदध दारशषिनक परमपराए कारण को काय स पववतG ही मानती ह। वभाषि/क कारण को काय का समकाचि3क तो मानत ही ह, कभी-कभी तो काय स प�ातकाचि3क कारण भी मानत ह। सथषिवरवादी भी सहभ हत, प�ाजजात हत आदिद मानत ह।

परहाण और परवितपधि�वभाषि/क आदिद जस अहत क दवारा परापत क3रशपरहाण और परापत आयजञान की हाषिन (पतन) मानत ह, वस सौतरानतिनतक नही मानत। सौतरानतिनतको का कहना ह षिक क3रशपरहाण और आयजञान का अधि�गम चि$� क �म ह

और चि$� क दढ होन स उनक भी दढ होन क कारण उनकी हाषिन की समभावना नही ह। इस षिव/य का षिवसतत षिववरण परमाणवारतितक* style=color:blue>*</balloon> और उसक अ3कारभाषय म अव3ोकनीय ह।

धयानाङगो की विवरश>तानौ समापतति�या (4 रपी, 4 अरपी और षिनरो�समापतति�) होती ह। इसम सौतरानतिनतको और वभाषि/को म मतभद नही ह। षिकनत षिनरो�समापतति� क बार म सौतरानतिनतको की कछ षिवरश/ता ह। वभाषि/को क अनसार षिनरो�समापतति� अवसथा म चि$� और $तचिसको का सवथा षिनरो� हो जाता ह, यहा तक षिक उनकी वासनाए भी अवचिरशF नही रहती। कयोषिक वासनाओ की आ�ार चि$�सनतषित का सवथा षिनरो� हो $का ह। हा, उनकी परानतिपत आदिद षिवपरयकत ससकार अवचिरशF रह सकती ह।

परमाण आदिद समयगजञानषिवजञान की साकारता क आ�ार पर सौतरानतिनतक परमाणो की वयवसथा करत ह। षिवजञान की साकारता का परषितपादन पह3 षिकया जा $का ह। परमाणो म सवसवदन परतयकष की सथापना सौतरानतिनतको की षिवरश/ता ह। सौतरानतिनतको की जञानमीमासा म जञान और उनक भदो की $$ा ह।

बदध, बोधि�सततव और बदधकायपारधिमताओ की सा�ना क आ�ार पर बोधि�सततवो की $या का वणन सतरषिपटक म पराय: जातको म उप3बध होता ह। बदधतव ही बोधि�सततवो का अनतिनतम पर/ाथ ह कयोषिक उसक दवारा ही व बहजन का षिहत समपादन करन म पण समथ होत ह। इसक चि3ए व तीन असखयय कलप पयनत जञानसमभार का अजन करत ह। जमबदवीप का आय बोधि�सततव बदधतव क सवथा योगय होता ह। काम�ात क अनय दवीपो म तथा अनय �ात और योषिनयो म उतपनन काय स बदधतव की परानतिपत समभव नही ह।

[सपादिदत कर] कायमहायान स अषितरिरकत अनय बौदध षिनकायो की इस षिव/य म पराय: समान मानयता ह षिक भगवान बदध क दो काय होत ह, यथा- रपकाय और �मकाय। वभाषि/को की यह मानयता ह षिक *भगवान बदध का रपकाय, जो ब�ीस 3कषणो और अससी अनवयजनो स परषितमसथिणडत ह, वह सासरव होता ह तथा माता-षिपता क रशकर-रशोततिणत स उतपनन 'करज काय' होता ह।

सौतरानतिनतक म कछ आगमानयायी भी पराय: इसी मत क ह। सथषिवरवादी भी ऐसा ही मानत ह। यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतक रपकाय को 'बदध' ही मानत ह, कयोषिक वह अनक कलपो तक समभारो का

समभरण करन स पणयपजातमक होता ह। �मकाय क सवरप क बार म वभाषि/को और सौतरानतिनतको म षिवरश/ मतभद नही ह, षिकनत �मकाय स

समबदध जो षिनवाण तततव ह, उस वभाषि/क दरवयसत मानत ह। सौतरानतिनतको क अनसार षिनवाण का अभावसवरप होना, उसकी �मता ह और यही सव परप$ो का

उपरशम ह।

[सपादिदत कर] जञानमीमासा सौतरानतिनतको की जञानमीमासा क षिवकास म आ$ाय दिदङनाग का योगदान षिवदवानो स षितरोषिहत नही ह।

यदयषिप उनस पह3 भी नयायषिवदया स समबदध परमाणषिवदया का असमिसततव था, षिकनत वह इतना धिम3ा- सपF षिवभाजन दख सकत ह।

बौदधतर रशासतरो म आगम, रशबद, ऐषितहय आदिद जञान स ततिभनन ज3ा था षिक उसम वदिदक, अवदिदक, आदिद भद करना समभव नही था।

दिदङनाग क बाद हम उनम सा�न भी परमाण मान जात ह षिकनत आ$ाय दिदङनाग म समयग जञान को ही सवपरथम परमाण षिन�ारिरत षिकया।

सौ1ापतिनतक आ$ाय� और कवितयाअनकरम[छपा]

1 सौतरानतिनतक आ$ाय और कषितया 2 आ$ाय परमपरा 3 अनय परा$ीन आ$ाय 4 परवतG परमपरा 5 आ$ाय रशभगपत

6 समबधि�त लि3क

सभी बौदध दारशषिनक परसथान बदध व$नो को ही अपन-अपन परसथान क आरमभ का म3 मानत ह। इसम सनदह नही षिक षिवशव क चि$नतन कषतर म बदध क षिव$ारो का अपव और मौचि3क योगदान ह। बदध की परमपरा क पो/क, उन-उन दरशन-समपरदायो क परवतक आ$ाय� और परवतG उनक अनयाधिययो का महतव भी षिवदवानो स चिछपा नही ह। सौतरानतिनतक दरशन क परवतक और परमख आ$ाय� का परिर$य इस परकार ह- बदध न अपन अनयाधिययो को जो षिव$ारो की सवतनतरता परदान की, सवानभव की परामाततिणकता पर ब3 दिदया और षिकसी भी रशासतर, रशासतरो क व$नो को षिबना परीकषा षिकय गरहण न करन का जो उपदरश दिदया, उसकी वजह स उनका रशासन उनक षिनवाण क कछ ही व/� क भीतर अनक �ाराओ म षिवकचिसत हो गया। अनक परकार की हीनयानी और महायानी सगीषितयो का आयोजन इसका परमाण ह। दो सौ व/� क भीतर 18 षिनकाय षिवकचिसत हो गय। इस करम म यदयषिप सतरवादिदयो का मत परभावरशा3ी और वयापक रहा ह, षिफर भी जब उनहोन दखा षिक दसर नकाधियको क मत बदध क दवारा साकषात उपदरशो स दर होत जा रह ह तो उनहोन रशासतर परामाणय का षिनराकरण करत हए बदध क दवारा साकषात उपदिदF सतरो क आ�ार पर सवतनतर षिनकाय क रप म अपन मत की सथापना की। इस परकार उनहोन सतरो म अनक परकार क परकषपो स बदधव$नो की रकषा की और 3ोगो का धयान म3 बदध व$नो की ओर आकF षिकया। परथम और ततीय सगीषितयो क मधयवतG का3 म रचि$त '�ममसगततिण', 'कथावसथ', 'जञानपरसथान' आदिद गरनथो की बदध व$न क रप म परामाततिणकता का उनहोन जम कर खणडन षिकया। उनहोन कहा षिक य गरनथ आ$ाय� दवारा रचि$त रशासतर ह, न षिक बदध व$न। जबषिक सवासमिसतवादी और सथषिवरवादी उनह बदधव$न मानन क पकष म थ।

[सपादिदत कर] आ$ाय� परमपरा सामानय रप स आ$ाय कमार3ात सौतरानतिनतक दरशन क परवतक मान जात ह। षितबबती और $ीनी

सतरोतो स भी इसकी पधिF होती ह। षिकनत सकषम दधिF स षिव$ार करन पर परतीत होता ह षिक कमार3ात स

पह3 भी अनक सौतरानतिनतक आ$ाय हए ह। यह जञात ही ह षिक सौतरानतिनतक मत अरशोक क का3 म पणरप स षिवदयमान था। वसधिमतर आदिद आ$ाय� न यदयषिप सौतरानतिनतक, �मp�रीय, सकरानतिनतवाद आदिद का उदगवका3 बदध की तीसरी-$ौथी रशताबदी माना था, षिकनत गणना पदधषित कसी थी, यह सो$न की बात ह। पाचि3 परमपरा और सवासमिसतवादिदयो क कषदरक वग स जञात होता ह षिक �मारशोक क समय सभी 18 षिनकाय षिवदयमान थ। उनहोन ततीय सगीषित म परषिवF अनय मताव3नधिमबयो का षिनषकासन सबस पह3 षिकया, उसक बाद सगीषित आरमभ हई। महान अरशोक सभी 18 बौदध षिनकायो क परषित समान शरदधा रखता था और उनका दान-दततिकषणा आदिद स सतकार करता था। इस षिववरण स यह चिसदध होता ह षिक अरशोक क समय सौतरानतिनतक मत सपF था और आ$ाय कमार3ात षिन�य ही अरशोक स परवतG ह, इसचि3ए अनक आ$ाय षिन�य ही कमार3ात स पह3 हए होग, अत: कमार3ात को ही सवपरथम परवतक आ$ाय मानना सनहह स पर नही ह। इसम कही कछ षिवसगषित परतीत होती ह।

सौतरानतिनतको म दो परमपराए मानी जाती ह –

1. आगमानयायी और 2. यचिकत-अनयायी।

आगमानयाधिययो की भी दो रशाखाओ का उल3ख आ$ाय भवय क परजञापरदीप क भाषयकार आव3ोषिकतशवर न अपन गरनथो म षिकया ह, यथा-कषणभङगवादी और दरवयसथिसथरवादी। षिकनत इस दरवयसथिसथरवाद क नाममातर को छोडकर उनक चिसदधानत आदिद का उल3ख वहा नही ह। इस रशाखा क आ$ाय� का भी कही उल3ख नही धिम3ता। सकरानतिनतवादी षिनकाय का का3 ही इसका उदगव का3 ह।

ऐसा सकत धिम3ता ह षिक बदध क परिरषिनवाण क बाद तीन $ार सौ व/� तक षिनकाय क साथ आ$ाय� क नामो क सयोजन की परथा पर$चि3त नही थी। सघनायक ही परमख आ$ाय हआ करता था। सघ रशासन ही पर$चि3त था। आज भी सथषिवरवादी और सवासमिसतवादी परमपरा म सघ परमख की पर�ानता दिदख3ाई पडती ह। ऐसा ही अनय षिनकायो म भी रहा होगा। सौतरानतिनतको म भी यही परमपरा रही होगी, ऐसा अनमान षिकया जा सकता ह।

सौतरानतिनतक पराय: सवासमिसतवादी मणड3 म परिरगततिणत होत ह, कयोषिक व उनही स षिनक3 ह। सवासमिसतवादिदयो क आ$ाय� की परमपरा रशासतरो म उप3बध होती ह। और भी अनक आ$ाय सचि$या उप3बध होती ह। उनम मतभद और षिवसगषितया भी ह, षिकनत इतना षिनतति�त ह षिक बदध स 3कर अशवघो/ या नागाजन तक क आ$ाय पर बौदध रशासन क परषित षिनyावान हआ करत थ।

भदनत आ$ाय शरी3ात कमार3ात

[सपादिदत कर] अनय परा$ीन आ$ाय�षिकसी जीषिवत षिनकाय का यही 3कषण ह षिक उसकी अषिवसथिचछनन आ$ाय परमपरा षिवदयमान रह। यदिद वह बी$ म टट जाती ह तो वह षिनकाय समापत हो जाता ह। यही सथिसथषित पराय: सौतरानतिनतक षिनकाय की ह। भदनत, कमार3ात क अननतर उस षिनकाय म कौन आ$ाय हए, यह अतयनत सपF नही ह। यदयषिप चिछटपट रप म कछ आ$ाय� क नाम गरनथो म उप3बध होत ह, यथा-भदनत रत (3ात), राम, वसवमा आदिद, षिकनत इतन मातर स कोई अषिवसथिचछनन परमपरा चिसदध नही होती और न तो उनक का3 और कषितयो क बार म ही कोई सपF सकत उप3बध होत ह। य सभी सौतरानतिनतक षिनकाय क परा$ीन आ$ाय 'आगमानयायी सौतरानतिनतक' थ, वह षिन�यपवक कहा जा

सकता ह, कयोषिक नागाजन का3ीन गरनथो म इनक नाम की $$ा नही ह। यदयषिप अततिभ�मकोरश आदिद वभाषि/क या सवासमिसतवादी गरनथो म इनक नाम यतर ततर यदा कदा दिदख3ाई पडत ह। वसबनध क बाद यरशोधिमतर भी आगमानयायी सौतरानतिनतक परमपरा क आ$ाय मान जात ह। उनहोन अपनी सफटाथा टीका म अपनी सतरानतिनतकषिपरयता परकट की ह, यह अनत:साकषय क आ�ार पर षिवजञ षिवदवानो दवारा सवीकार षिकया जाता ह।

वसबनध

[सपादिदत कर] परवतh परमपराआ$ाय वसबनध क बाद सभी अठारह बौदध षिनकायो म तततवमीमासा की परणा3ी म कछ नया परिरवतन दिदखाई दता ह। तततवचि$नतन क षिव/य म यदयषिप इसक पह3 भी तक पर�ान षिव$ारपदधषित सौतरानतिनतको दवारा आरमभ की गई थी और आ$ाय नागाजन न इसी तक पदधषित का आशरय 3कर महायान दरशन परसथान को परषितधिyत षिकया था, सवय आ$ाय वसबनध भी परमाणमीमासा, जञानमीमासा और वादषिवधि� क परकाणड पसथिणडत थ, षिफर भी वसबनध क बाद जञानमीमासा क कषतर म कछ इस परकार का षिवकास दधिFगो$र होता ह, जिजसस सौतरानतिनतको की वह परा$ीन परणा3ी अपन सथान स विकचि$त परिरवरतितत सी दिदखाई दती ह। उनक चिसदधानतो और पव मानयताओ म भी परिरवतन दिदख3ाई पडता ह। अपनी तक षिपरयता, षिवकासोनमख परकषित एव मकतचि$नतन की पकषपाषितनी दधिF क कारण व अनय दरशनो की समककषता म आ गय। जञात ह षिक परा$ीन सौतरानतिनतक 'आगमानयायी' कह3ात थ। उनका सामपरदाधियक परिरवरश अब बद3न 3गा। यह परिरवतन सौतरानतिनतको म षिव$ारो की दधिF स सकरमण का3 कहा जा सकता ह। इसी का3 म आ$ाय दिदङनाग का परादभाव होता ह। उनहोन परमाणमीमासा क आ�ार पर सौतरानतिनतक दरशन की पन: परीकषा की और उस नए तरीक स परषितyाषिपत षिकया। दिदङनाग क बाद सौतरानतिनतको को परा$ीन आगमानयायी परमपरा पराय: नामरश/ हो गई। उस परमपरा म कोई परषितभासमपनन आ$ाय उतपनन होत दिदख3ाई नही दता।

आ$ाय दिदङनाग आ$ाय रशभगपत

[सपादिदत कर] आ$ाय� रशभगVतइषितहास म इनक नाम की बहत कम $$ा हई। 'कलयाणरततिकषत' नाम भी गरनथो म उप3बध होता ह। वसतत: भोट भा/ा म इनक नाम का अनवाद 'दग-सङ' हआ ह। 'रशभ' रशबद का अथ 'कलयाण' तथा 'गपत' रशबद का अथ 'रततिकषत' भी होता ह। अत: नाम क य दो पयाय उप3बध होत ह। रशानतरततिकषत क तततवसगरह की 'पजिजका' टीका म कम3रशी3 न 'रशभगपत' इस नाम का अनक�ा वयवहार षिकया ह। अत: यही नाम परामाततिणक परतीत होता ह, षिफर भी इस षिव/य म षिवदवान ही परमाण ह। रशभगपत कहा उतपनन हए थ, इसकी परामाततिणक स$ना नही ह, षिफर भी इनका कशमीर-षिनवासी होना अधि�क सभाषिवत ह। भोटदरशीय परमपरा इस समभावना की पधिF करती ह। �मp�र इनक साकषात चिरशषय थ, अत: तकषचिरश3ा इनकी षिवदयाभधिम रही ह। आ$ाय �मp�र की कमभधिम कशमीर-परदरश थी, ऐसा डॉ॰ षिवदयाभ/ण का मत ह।

समय

इनक का3 क बार म भी षिवदवानो म षिववाद ह, षिफर भी इतना षिनतति�त ह षिक आ$ाय रशानतरततिकषत और आ$ाय �मp�र स य पववतG थ। आ$ाय �माकरद� और रशभगपत दोनो �मp�र क गर थ। भोटदरश क सभी इषितहासजञ इस षिव/य म एकमत ह। परवतG भारतीय षिवदवान भी इस मत का समथन करत ह। आ$ाय रशभगपत रशानतरततिकषत स पववतG थ, इस षिव/य म रशानतरततिकषत का गरनथ 'मधयमका3कार' ही

परमाण ह। सौतरानतिनतक मतो का खणडन करत समय गरनथकार न रशभगपत की कारिरका का उदधरण दिदया ह।

पसथिणडत सख3ा3 सघवी का कथन ह षिक आ$ाय �माकरद� 725 ईसवीय व/ स पववतG थ। जन दारशषिनक आ$ाय अक3ङक न �मp�र क मत की समीकषा की ह। पसथिणडत महनदरमार क मतानसार अक3ङक का समय ईसवीय व/ 720-780 ह। इसक अनसार

�मp�र का समय सातवी रशताबदी का उ�रा� षिनतति�त होता ह। �मp�र रशभगपत क चिरशषय थ, अत: उनक गर रशभगपत का का3 ईसवीय सपतम रशतक षिन�ारिरत करन म कोई बा�ा नही दिदखती।

डॉ॰ एस.एन. गपत �मp�र का समय 847 ईसवीय व/ षिन�ारिरत करत ह तथा डॉ॰ षिवदयाभ/ण उनक गर रशभगपत का का3 ईसवीय 829 व/ सवीकार करत ह। डॉ॰ षिवदयाभ/ण क का3 षिन�ारण का आ�ार महाराज �मपा3 का समय ह। षिकनत य कौन �मपा3 थ, इसका षिन�य नही ह। दसरी ओर आ$ाय रशानतरततिकषत जिजस रशभगपत की कारिरका उदधत करक उसका खणडन करत ह, उनका भोटदरश म 790 ईसवीय व/ म षिन�न हआ था। 792 ईसवीय व/ म भोटदरश म रशानतरततिकषत क चिरशषय आ$ाय कम3रशी3 का 'समया चिछमब' नामक महाषिवहार म $ीन दरश क परचिसदध षिवदवान 'हरशग' क साथ माधयधिमक दरशन पर रशासतराथ हआ था। इस रशासतराथ म हररशग' की पराजय हई थी, इसका उल3ख $ीन और जापान क पराय: सभी इषितहासवता करत ह। इन षिववरणो स आ$ाय रशानतरततिकषत का का3 सषिनतति�त होता ह। फ3त: डॉ॰ षिवदयाभ/ण का मत उचि$त एव तक सगत परतीत नही होता, कयोषिक जिजनक चिसदधानतो का खणडन रशानतरततिकषत न षिकया हो और जिजनका षिन�न 790 ईसवीय व/ म हो गया हो, उनस पववतG आ$ाय रशभगपत का का3 829 ईसवीय व/ कस हो सकता ह?

महापसथिणडत राह3 साकतयायन आ$ाय �मकीरतित का का3 600 ईसवीय व/ षिनतति�त करत ह। उनकी चिरशषय-परमपरा का वणन उनहोन इस परकार षिकया ह, यथा-दवनदरबजिदध, रशाकयबजिदध, परजञाकर गपत तथा �मp�र। आ$ाय दवनदरबजिदध का का3 उनक मतानसार 650 ईसवीय व/ ह। गर-चिरशषय क का3 म 25 व/� का अनतर सभी इषितहासव�ाओ दवारा मानय ह। षिकनत यह षिनयम सभी क बार म 3ाग नही होता। ऐसा सना जाता ह षिक दवनदरबजिदध आ$ाय �मकीरतित स भी उमर म बड थ। और उनहोन आ$ाय दिदङनाग स भी नयाय रशासतर का अधययन षिकया था। �मp�र क दोनो गर �माकरद� और रशभगपत परजञाकरगपत क समसामधियक थ। ऐसी सथिसथषित म रशभगपत का समय ईसवीय सपतम रशताबदी षिनतति�त षिकया जा सकता ह। महापसथिणडत राहत साकतयायन की भी इस षितचिथ म षिवमषित नही ह।

कवितया

भदनत रशभगपत यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतको क अनतिनतम और 3बधपरषितy आ$ाय थ। उनक बाद ऐसा कोई आ$ाय जञात नही ह, जिजसन सौतरानतिनतक दरशन पर सवतनतर और मौचि3क र$ना की हो। यदयषिप �मp�र आदिद भारतीय तथा जमयङ-जद-पई, तक-छङ-पा आदिद भोट आ$ाय� न बहत कछ चि3खा ह, षिकनत वह पव आ$ाय� की वयाखयामातर ह, नतन और मौचि3क नही ह। आज भी दिदङनागीय परमपरा क सौतरानतिनतक दरशन क षिवदवान थोड-बहत हो सकत ह, षिकनत मौचि3क रशासतरो क र$धियता नही ह। आ$ाय रशभगपत न क3 षिकतन गरनथो की र$ना की, इसकी परामाततिणक जानकारी नही ह। उनका कोई भी गरनथ म3 ससकत म उप3बध नही ह। भोट भा/ा और $ीनी भा/ा म उनक पा$ गरनथो क अनवाद सरततिकषत ह, यथा

1. सवजञचिसजिदधकारिरका, 2. वाहयाथचिसजिदधकारिरका, 3. शरषितपरीकषा,

4. अपोहषिव$ारकारिरका एव 5. ईशवरभङगकारिरका।

य सभी गरनथ 3घकाय ह, षिकनत अतयनत महततवपण ह। इनका परषितपादय षिव/य इनक नाम स ही सपF ह, यथा-

सवजञचिसजिदधकारिरका म षिवरश/त: जधिमनीय दरशन का खणडन ह, कयोषिक व सवजञ नही मानत। गरनथ म यकतपवक सवजञ की चिसजिदध की गई ह।

बाहयाथचिसजिदध कारिरका म जो षिवजञानवादी बाहयाथ नही मानत, उनका खणडन करक सपरमाण बाहयाथ की स�ा चिसदध की गई ह।

शरषितपरीकषा म रशबदषिनतयता, रशबदाथ समबनध की षिनतयता और रशबद की षिवधि�वतति� का खणडन षिकया गया ह। 'शरषित' का अथ वद ह। वद की अपौर/यता का चिसदधानत मीमासको का परमख चिसदधानत ह, उसका गरनथ म यचिकतपवक षिनराकरण परषितपादिदत ह।

अपोहषिव$ारकारिरका म रशबद और कलपना की षिवधि�वतति�ता का खणडन करक उनह अपोहषिव/यक चिसदध षिकया गया ह। अपोह ही रशबदाथ ह, यह बौदधो की परचिसदध चिसदधानत ह, इसका इसम मणडन षिकया ह। वचिरशषि/क सामानय को रशबदाथ ह, यह बौदधो की परचिसदध ह, इसका इसम मणडन षिकया ह। वचिरशषि/क सामानय को रशबदाथ सवीकार करत ह, गरनथ म सामानय का षिवसतार क साथ खणडन षिकया गया ह।

ईशवरभङगकारिरका म इस बात का खणडन षिकया गया ह, षिक ईशवर जो षिनतय ह, वह जगत का कारण ह। गरनथ म षिनतय को कारण मानन पर अनक दो/ दरशाए गय ह। इन गरनथो स सौतरानतिनतक दरशन की षिव3पत परमपरा का पयापत परिर$य परापत होता ह।

योगा$ार दरश�नअनकरम[छपा]

1 योगा$ार दरशन 2 परिरभा/ा 3 आगमानयायी 4 यचिकतअनयायी 5 सतयाकारवादी 6 धिमथयाकारवादी 7 सतयाकार षिवजञानवादिदयो क भद 8 धिमथयाकार षिवजञानवादिदयो क भद 9 पदाथमीमासा 10 परमाण और परमाणफ3 वयवसथा

11 परमाणफ3

(षिवजञानवाद)

[सपादिदत कर] परिरभा>ा जो 'बाहयाथ सवथा असत ह और एकमातर षिवजञान ही सत ह'- ऐसा मानत ह, व षिवजञानवादी कह3ात

ह। य दो परकार क होत ह, यथा

1. आगमानयायी और 2. यचिकत-अनयायी।

आय असङग, वसबनध आदिद आगमानयायी तथा आ$ाय दिदङनाग, �मकीरतित आदिद यचिकत-षिवजञानवादी ह।

षिवजञानवादिदयो का एक ततिभनन परकार स भी षिदवषिव� षिवभाजन षिकया जाता ह, यथा-

1. सतयाकार षिवजञानवादी एव 2. धिमथयाकार षिवजञानवादी।

भोटदरशीय षिवदवानो क मतानसार आगमानयायी और यचिकत-अनयायी दोनो परकार क षिवजञानवादिदयो म सतयाकारवादी और धिमथयाकारवादी होत ह।

[सपादिदत कर] आगमानयायीआय असङग न शरावकभधिमरशासतर, परतयकबदध-भधिमरशासतर आदिद नामो स पा$ भधिमरशासतरो की र$ना की ह, जो इन भधिमरशासतरो क आ�ार पर अपन पदाथ� की वयवसथा करत ह और आ3यषिवजञान, सथिक3F मनोषिवजञान आदिद की स�ा सवीकार करत ह, व 'आगमानयायी' कह3ात ह।

[सपादिदत कर] यधिRअनयायीदिदङनाग क परमाण समचचय एव �मकीरतित क सात (सपतवगGय) परमाणरशासतरो क आ�ार पर जो पदाथ मीमासा की सथापना करत ह तथा घट, पट आदिद पदाथ� को बाहयाथतव स रशनय चिसदध करत हए आ3यषिवजञान और सथिक3F मनोषिवजञान का खणडन करत ह, व 'यचिकत-अनयायी' कह3ात ह।

[सपादिदत कर] सतयाकारवादीजञानगत नी3ाकार, पीताकार आदिद को जो जञान सवरप (जञान सवभाव) सवीकार करत हए उनकी सतयत: (वसतत:) स�ा सवीकार करत ह, अथात जो यह मानत ह षिक उनकी स�ा कसथिलपत नही ह, व 'सतयाकारवादी' कह3ात ह।

[सपादिदत कर] मिमथयाकारवादी

जञान म उतपनन (जञानगत) नी3ाकार, पीताकार आदिद जञानसवरप नही ह, अत: उनकी वसतत: (सतयत:) स�ा नही ह, अषिपत व वासनाजनय एव षिनतानत कसथिलपत ह। इस परकार जिजनकी मानयता ह, व 'धिमथयाकारवादी' कह3ात ह।

[सपादिदत कर] सतयाकार विवजञानवादिदयो क भद सतयाकारवादी तीन परकार क होत ह, यथा-

1. गराहय-गराहक समसखयावादी, 2. अ�ाणडाकारवादी एव 3. नाना अदवयवादी।

गराहय-गराहक समसखयावादी-जिजस परकार षिकसी चि$तरपट म षिवदयमान नी3, पीत आदिद पा$ वण दरवयत: पथक-पथक अवसमिसतत होत ह, उसी परकार उस चि$तरपट क गराहक जञान भी नी3ाकार, पीताकार आदिद भद स दरवयत: पथक-पथक पा$ परकार क होत ह।

अ�ा�णडाकारवादी— नी3, पीत आदिद अनकवण वा3 चि$तरपट म षिवदयमानसभी वण दरवयत: पथक-पथक होत ह, षिकनत उस चि$तरपट का गरहक $कषरतिवजञान उतनी सखया म पथक-पथक न होकर दरवयत: एक ही होता ह।

नाना अ-यवादी— जस नाना वण वा3 चि$तरपट को जानन वा3 $कषरतिवजञान म वण क अनसार दरवयत: पथगभाव (नानाभाव) नही होता, अषिपत वह एक होता ह, वस चि$तरपट म षिवदयमान नाना वण भी दरवयत: पथक नही होत, अषिपत तादातमयरप स व एक और अततिभनन होत ह।

[सपादिदत कर] मिमथयाकार विवजञानवादिदयो क भद धिमथयाकार षिवजञानवादी भी दो परकार क होत ह-

समल विवजञानवादी— इनक मतानसार बदध की अवसथा म भी दवत परषितभास होता ह।

विवमल विवजञानवादी— इनक मतानसार बदध की अवसथा म दवत परषितभास सवथा (षिबलक3) नही होता, कयोषिक बदध की चि$� सनतषित म म3 का 3रश भी नही होता।

[सपादिदत कर] पदाथ�मीमासा षिवजञानवाद क अनसार परमयो को हम तीन भागो म षिवभकत कर सकत ह, यथा-

1. परिरकसथिलपत 3कषण,

2. परतनतर 3कषण तथा 3. परिरषिनषपनन 3कषण।

परिरकलपि6पत लकषण— 3कषण को सवभाव भी कहत ह, अत: इस परिरकसथिलपत सवभाव भी कहा जा सकता ह। सवगराहक कलपना दवारा आरोषिपत होना परिरकसथिलपत सवभाव का 3कषण ह। रप, रशबद आदिद बाहय एव जड पदाथ� म तथा इजिनदरय, षिवजञान आदिद आनतरिरक �म� म षिवकलपो (कलपनाओ) दवारा गराहय-गराहक की पथक दरवयस�ा एव बाहयाथता का आरोपण षिकया जाता ह, वही बाहयाथारोप या गराहय-गराहकदवत का आरोप 'परिरकसथिलपत 3कषण' ह। यहा जिजस परिरकसथिलपत3कषण का परषितपादन षिकया जा रहा ह, वह परिरषिनषपनन3कषण या �मनरातमय का षिन/धय होता ह।

परतन1 लकषण— हत-परतययो स उतपनन होना परतनतर सवभाव का 3कषण ह। समसत चि$�-$तचिसक एव उनम आभाचिसत रप आदिद �म परतनतर 3कषण ह। उदाहरणाथ रप और रपजञ $कषरतिवजञान दोनो सवभावत: अततिभनन और परतनतर 3कषण ह, कयोषिक दोनो एक ही वासना बीज क फ3 ह, एक ही का3 म उतपनन होत ह और एक ही का3 म षिनरदध होत ह।

परविनषपननलकषण— रप आदिद परतनतर �म� म आरोषिपत बाहयाथतव एव अततिभ�यसव3कषणतव परिरकसथिलपत 3कषण ह, जो परतनतर �म� म षिनतानत असत ह। परतनतर �म� म परिरकसथिलपत 3कषण की वसतत: अषिवदयमानता या रषिहतता ही 'परिरषिनषपनन 3कषण' ह और षिवजञानवादी रशासतरो म यही (परिरषिनषपनन 3कषण) �म�ात, तथता, भतकोदिट, परमाथ सतय आदिद रशबदो स षिनरदिदF ह। यह परिरषिनषपनन 3कषण परतनतर 3कषण स न ततिभनन होता ह और न अततिभनन। वह सवभावत: अततिभनन और वयावतति�त: ततिभनन होता ह।

[सपादिदत कर] परमाण और परमाणफल वयवसथा बौदधनयाय क मत म भी दो परमाण और परतयकष क $ार परकार वस ही मान जात ह, जस सौतरानतिनतक

मानत ह।

परमाण

अषिवसवादकता और अपवगो$रता परमाण का 3कषण ह। अथात वही जञान परमाण कह3ा सकता ह, जिजसम यह सामथय हो षिक अपन दवारा दF वसत को परापत करा सक तथा जो अपन ब3 स वसत को जान, अनय पर षिनभर होकर नही।

परामाणय

जञान की अषिवसवादकता और अपवगो$रता सवत: चिसदध होती ह। या परत: अथात अनय परमाणो स? यदिद सवत: परामाणय षिनतति�त होता ह तो षिकसी भी वयचिकत को परमाण और अपरमाण क षिव/य म कभी अजञान ही नही होगा। यदिद परत: दसर परमाण स परामाणय षिनतति�त होता ह तो उस दसर परमाण क परामाणय क चि3ए अनय तीसर परमाण की आवशयकता होगी। इस तरह अनवसथा दो/ होगा?

समा�ान

जिजतन परमाण होत ह, व सभी न तो एकानत रप स सवत: परमाण होत और न परत: परमाण होत ह उनम कछ सवत: परमाण होत ह और कछ परत:।

परशन— सवत: परामाणय और परत: परामाणय कया ह? यान परमाण सवब3 स षिव/य का षिन�य करता ह या षिव/यी का षिन�य करता ह? अथात षिव/य क षिन�य स परामाणय षिनतति�त होता ह षिक षिव/यी क षिन�य स?

समा�ान— जो परमाण अपनी अषिवसवादकता का षिन�य सवत: अपन ब3 स कर 3ता ह, वह 'सवत: परमाण' तथा जिजसकी अषिवसवादकता परत: दसर परमाण स षिनतति�त होती ह, वह 'परत: परमाण' कह3ाता ह।

परशन— यदिद सवत: या परत: परमाण का 3कषण उकत परकार का ह तो अनमान सवत: परमाण नही हो सकगा, जब षिक चिसदधानतत: अनमान सवत: परमाण माना जाता ह, कयोषिक $ावाक का कहना ह षिक �म हत स वधिÐ को जानन वा3ा अनमान अपनी अषिवसवादकता का षिन�य सवत: नही कर सकता?

समा�ान— दो/ नही ह। यदयषिप $ावाक पछन पर यह कहगा षिक अनमान परमाण नही ह, षिफर भी उसकी चि$� सनतषित म �म स वधिÐ को जानन वा3ा जञान उतपनन होता ह और उसस वह जानता ह षिक पवत म वधिÐ ह और उस जञान को वह सही जञान भी समझता ह। अत: अनमान सवत: परमाण चिसदध होता ह। सभी सवसवदन सवत: परमाण ह, कयोषिक व अपनी अषिवसवादकता को सवय षिन�यपवक जानत ह। योगी परतयकष सवत: परमाण ह। पथगजन का मानस परतयकष परमाण नही ह। अततिभजञा परापत पथगजन योगी का मानस परतयकष सवत: परमाण होता ह। आय का मानस परतयकष भी सवत: परमाण ह। सा�नपरव�, अपोहपरव�, सामानय3कषण, सषिवकलप, षिनरतिवकलप इतयादिद का सवरप एव षिव$ार सौतरानतिनतको क समान ही इस मत म भी मानय ह।

जञान सात परकार क होत ह, यथा-

1. परतयकष,

2. अनमान,

3. अधि�गत षिव/यक जञान,

4. मनोषिव$ार, 5. परषितभास-अषिन�याक,

6. धिमथयाजञान एव 7. सनदह।

1.और 2. सपF ह। $कषरतिवजञान आदिद जञान अपन उतपादन क षिदवतीय कषण स 3कर जब तक उनकी �ारा समापत नही

होती, 'अधि�गत षिव/यक जञान' ह। जो जञान समयक चि3ङग पर आततिशरत (अनमान) नही होता तथा अनभवातमक (परतयकष) भी नही होता,

षिकनत अपन षिव/य का षिबना सरशय क गरहण करता ह, ऐसा अधयावसायातमक जञान 'मनोषिव$ार' कह3ाता ह। इसक तीन परकार ह-

अहतक मनोविव$ार— षिबना षिकसी हत क और षिबना सरशय क यह जानना षिक 'रशबद अषिनतय ह' या 'सवजञ होता ह'- यह 'अहतक मनोषिव$ार' कह3ाता ह।

अनकापतिनतक मनोविव$ार— 'रशबद अषिनतय ह, - कयोषिक वह परमय ह'- इस परकार क अनकानतिनतक परमय हत स उतपनन रशबदषिनतयता का जञान 'अनकानतिनतषिक मनोषिव$ार' ह।

विवरदध मनोविव$ार— 'रशबद अषिनतय ह, कयोषिक अकतक ह'- इस परकार क षिवरदध हत स उतपनन रशबदाषिनतयता का जञान 'षिवरदध मनोषिव$ार' ह।

परषितभास-अषिन�ायक- षिव/य का परषितभास होन पर भी जब षिन�य नही होता, तो ऐस जञान को 'परषितभास -अषिन�ायक' कहत ह। उदाहरणाथ दर स आत हए अपन गर का जञान म परषितभास होन पर भी यह षिन�य नही होता षिक परषितभाचिसत वयचिकत गर ही ह तथा अनयगतमानस पदग3 का शरोतरषिवजञान और पथगजन का रपजञ, रशबदजञ आदिद मानस परतयकष 'परषितभास-अषिन�ायक' जञान ह।

6.और 7. सपF ह। सभी मनोषिव$ार अषिवसवादी जञान नही होत, कयोषिक व सरशय एव षिवपयय आदिद धिमथया षिवपरषितपतति�यो

का षिनरास कर षिव/य का सपF परिरचछद (अवबो�) नही करत। अषिवसवादी जञान होन क चि3ए षिवपरषितपतति�यो का षिनरास करना आवशयक ह। अनयथा परवादी दवारा सरशय पदा षिकया जा सकता ह।

[सपादिदत कर] परमाणफल इसकी दो परकार स वयवसथा की जाती ह, -

बाहयाथ�वादी-सा�ारण— नीन परमय म अनधि�गत अषिवसवादी नी3ाकार जञान परमाण ता षिवपरषितपतति�षिनरास पवक नी3-परिरचछद (अवषिपरीत अवबो�) परमाणफ3 ह।

असा�ारण— परजञपत नी3 परमय म अनधि�गत अषिवसवादी जञान परमाण तथा परजञपत नी3 का परिरचछद 'परमाणफ3' ह।

माधयमिमक दरश�नअनकरम[छपा]

1 माधयधिमक दरशन 2 परिरभा/ा 3 सवातनतिनतरक माधयधिमक 4 परासषिगक माधयधिमक 5 �मनरातमय 6 पदग3नरातमय

7 टीका दिटपपणी

(रशनयवाद)

[सपादिदत कर] परिरभा>ा

सततव (स�ा) और असततव (अस�ा) क मधय म सथिसथत होना 'माधयधिमक' रशबद का अथ ह अथात सभी �म परमाथत: (सतयत:) सत नही ह और सवषितत: (वयवहारत:) असत भी नही ह- ऐसी जिजनकी मानयता ह, व 'माधयधिमक' कह3ात ह।

माधयधिमको क भद-माधयधिमक दो परकार क होत ह, यथा-

1. सवातनतिनतरक माधयधिमक एव 2. परासषिगक माधयधिमक।

'सवातनतिनतरक' और 'परासषिगक'- यह नामकरण भोट दरश क षिवदवानो दवारा षिकया गया ह। भारतीय म3 गरनथो म यदयषिप उनक चिसदधानतो की $$ा और वाद-षिववाद उप3बध होत ह, षिकनत उपयकत नामकरण उप3बध नही होता।

[सपादिदत कर] सवातपतिन1क माधयमिमकवयवहारिरक स�ा की सथापना म मतभद क कारण इनक भी दो भद होत ह, यथा-

1. सतरा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक एव 2. योगा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक।

स1ा$ार सवातपतिन1क माधयमिमकय 3ोग वयवहार की सथापना पराय: सौतरानतिनतक दरशन की भाषित करत ह। इसचि3ए इनह 'सौतरानतिनतक सवातनतिनतरक माधयधिमक' भी कहत ह अथात अठारह �ातओ म सगहीत �म� की सथापना वयवहार म य सौतरानतिनतको की भाषित करत ह। आ$ाय भावषिववक या भवय एव जञानगभ आदिद इस मत क परमख आ$ाय ह।

षिव$ार षिबनद— इनक मतानसार वयवहार म बाहयाथ की स�ा मानय ह। इजिनदरयज जञान धिमथयाकार नही होत, अषिपत सतयाकार होत ह। व (जञान) अपन षिव/य क आकार को गरहण करत हए उन (षिव/यो) का गरहण करत ह।

सतरा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक पवापरकाचि3क कायकारणभाव मानत ह, समकाचि3क नही अथात कारण और काय का एक का3 म (यगपद) समवसथान नही होता।

दरशभमक सतर क 'चि$�मातर भो जिजनपतरा यदत तर�ातकम*' इस व$न का अथ य 3ोग ऐसा नही मानत षिक इसक दवारा बाहयाथ का षिनराकरण और चि$�मातरता की सथापना की गई ह, अषिपत इस व$न क दवारा चि$� स अषितरिरकत कोई ईशवर, महशवर आदिद इस 3ोक का कता ह, जसा तरशिथक (बौदधतर दारशषिनक) मानत ह, उस (मानयता) का खणडन षिकया गया ह, बाहयाथ का नही।

3कावतार सतर क :

दशय न षिवदयत बाहय चि$� चि$तर षिह दशयत। दहभोगपरषितyान चि$�मातर वदामयहम॥ -(3कावतार, 3:33)*

इस व$न का अततिभपराय भी बाहयाथ क षिन/� म नही ह, अषिपत बाहयाथ की परमाथत: स�ा नही ह- इतना मातर अथ ह। इतना ही नही, जिजतन भी सतरव$न षिवजञनतिपतमातरता का परषितपादन करत हए स दधिFगो$र होत ह, भावषिववक क मतानसार उनका वसा अथ नही ह। अथात षिवजञानतिपतमातरता षिकसी भी सतर का परषितपादय अथ नही ह।

सव3कषणपरीकषा— षिवजञानवादिदयो क मतानसार परजञापारधिमतासतरो म परषितपादिदत सव�मषिन:सवभावता का तातपय यह ह षिक परिरकसथिलपत3कषण 3कषणषिन:सवभाव ह, परतनतर3कषण उतपतति�षिन:सवभाव ह तथा परिरषिनषपनन3कषण परमाथषिन:सवभाव ह।

भावषिववक षिवजञानवादिदयो स पछत ह षिक उस परिरकसथिलपत 3कषण का सवरप कया ह, जो 3कषणषिन: सवभाव होन क कारण षिन:सवभाव कह3ाता ह। यदिद रपादिदषिव/यक रशबद एव कलपनाबजिदध स इसका तातपय ह तो यह महान अपवादक होगा, कयोषिक रशबद और कलपनाबजिदध प$सकनधो म सगहीत होन वा3ी वसत ह।

योगा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक— य 3ोग षिन:सवभावतावादी माधयधिमक होत हए भी वयवहार की सथापना योगा$ार दरशन की भाषित करत ह, अत: 'योगा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक' कह3ात ह। य वयवहार म बाहयाथ की स�ा नही मानत, अत: तीनो �ातओ की षिवजञनतिपतमातर वयवसथाषिपत करत ह। आ$ाय रशानतरततिकषत, कम3रशी3 आदिद इस मत क परमख आ$ाय ह। इनक चिसदधानत इस परकार ह, यथा-

1. परमाथत: पदग3 और �म� की सवभावस�ा पर षिव$ार, 2. वयवहारत: बाहयाथ की स�ा पर षिव$ार, 3. आयसनधिनधषिनमp$नसतर का वासतषिवक अथ तथा 4. परमाथत: स�ा का खणडन करनवा3ी पर�ान यचिकत का परदरशन।

परमाथ�त: पदगल और �मm की सवभावस�ा पर विव$ारआय सनधिनधषिनमp$नसतर म 3कषणषिन:सवभावता एव उतपतति�षिन:सवभावता की $$ा उप3बध होती ह। उसकी जसी वयाखया आ$ाय भावषिववक करत ह, उसी तरह का अथ मधयमका3ोक म भी वरणिणत ह, अत: ऐसा परतीत होता ह षिक आ$ाय रशानतरततिकषत भी वयवहार म सव3कषणत: स�ा सवीकार करत ह। जञात ह आ$ाय रशानतरततिकषत ही इस मत क पर:सथापक ह। इनक मत म भी व ही यचिकतया परयकत ह, जिजनका आ$ाय �मकीरतित क सपत परमाणरशासतरो म काय-कारण की सथापना क समबनध म उल3ख षिकया गया। इसस परतीत होता ह षिक य वयवहार म सवभावस�ा मानत ह। फ3त: इनक मतानसार पदग3 और �म� की परमाथत: स�ा नही होती, षिकनत उनकी वयवहारत: स�ा मानय ह।

वयवहारत: बाहयाथ� स�ा पर विव$ारआ$ाय रशानतरततिकषत न अपन मधयमका3ङकार भाषय म काय और कारण की सावषितक स�ा क सवरप पर षिव$ार षिकया ह। उनहोन वहा यह पवपकष उपसथिसथत षिकया ह षिक सवषितसत �म मातर चि$�$�ातमक (षिवजञनतिपतमातरातमक) ह या उनकी बाहयाथत: स�ा होती ह? इसका समा�ान करत हए उनहोन चि3खा ह षिक उनकी बाहयाथत: स�ा कथमषिप नही होती अथात उनकी बाहयात: स�ा मानना षिनतानत यचिकतषिवरदध ह। इसक चि3ए उनहोन सहोप3मभ यचिकत का वहा परयोग षिकया ह तथा सवपन, माया आदिद दFानतो क दवारा वयवहारत: उनकी षिवजञनतिपतमातरातमकता परषितपादिदत की ह।

आय�सनधिoविनमp$नस1 का वासतविवक अथ�'परिरकसथिलपत3कषण 3कषणषिन:सवभाव ह तथा अवचिरशF दोनो 3कषण अथात परतनतर और परिरषिनषपनन 3कषण वस नही ह'- आयसनधिनधषिनमp$न क इस व$न का आ$ाय रशानतरततिकषत यह अथ गरहण करत ह षिक परतनतर 3कषण और परिरषिनषपनन 3कषण 3कषणषिन:सवभाव नही ह, अषिपत उनकी सव3कषण स�ा ह। षिकनत उनकी वह सव3कषण स�ा पारमारशिथक नही, अषिपत वयावहारिरक (सावषितक) ह। परतनतर और परिरषिनषपनन की परमाथत: स�ा मानना षिनतानत परिरकसथिलपत ह और उस परिरकसथिलपत की परमाथत: स�ा रशरशशरङगवत सवथा अ3ीक ह। आरशय यह ह

षिक परतनतर और परिरषिनषपनन की परमाथत: स�ा परिरकसथिलपत ह और वह परिरकसथिलपत 3कषणषिन:सवभाव (रशरशशरङगवत) ह। षिवजञान क गभ म उनकी वयावहारिरक (सवषितत:) सव3कषणस�ा मानन म आपतति� नही ह। जो आकारश आदिद परिरकसथिलपत3कषण ह, व रशरशशरङगवत सवथा अ3ीक नही ह, अषिपत उनकी सावषितक स�ा होती ह। पारमारशिथक स�ा की तो सावषितक स�ा भी नही ह।

परमाथ�त: स�ा का खणडन करन वाली पर�ान यधिRजञात ह षिक माधयधिमक रशनयतावादी ह। रशनयता क दवारा जिजसका षिन/� षिकया जाता ह, उस षिन/धय का पह3 षिन�य कर 3ना $ाषिहए। तभी रशनयता का सवरप सपF होता ह, कयषिक षिन/धय का षिन/� ही रशनयता ह। षिन/धय म फक होन क कारण माधयधिमको क आनतरिरक भद होत ह। अत: इस मत क अनसार षिन/धय क सवरप का षिन�ारण षिकया जा रहा ह।

[सपादिदत कर] परासविगक माधयमिमकजो माधयधिमक कव3 'परसग' का परयोग करत ह, व परासषिगक माधयधिमक कह3ात ह। सभी भारतीय दरशनो म सवपकष की सथापना और परपकष क षिनराकरण की षिव�ा दधिFगो$र होती ह माधयधिमक सभी �म� को षिन:सवभाव (रशनय) मानत ह। परासषिगक माधयधिमको का कहना ह षिक जब हत, साधय, पकष आदिद सभी रशनय ह तो ऐसी सथिसथषित म यह उचि$त नही ह षिक रशनयता को साधय बनाकर उस हत परयोग आदिद क दवारा चिसदध षिकया जाए। इस सथिसथषित म एक ही उपाय अवचिरशF रहता ह षिक जो दारशषिनक हतओ क दवारा वसतस�ा चिसदध करत ह, उनक परयोगो (अनमानपरयोगो) म दो/ दिदखाकर यह चिसदध षिकया जाए षिक उनक सा�न उनक साधय को चिसदध करन म असमथ ह। इस उपाय स जब सवभाव स�ा (वसतस�ा) चिसदध नही होगी तो यही षिन:सवभावता की चिसजिदध होगी अथात सवभावस�ा का षिन/� ही षिन:सवभावता की चिसजिदध ह। इसचि3ए परपकष का षिनराकरण मातर माधयधिमक को करना $ाषिहए। सवतनतर रप स हतओ का परयोग करक सवपकष की चिसजिदध करना माधयधिमको क षिव$ारो क वातावरण क सवथा षिवपरीत ह। अत: परपकष षिनराकरण मातर पर ब3 दन क कारण य 3ोग 'परासषिगक' माधयधिमक कह3ात ह। जबषिक भावषिववक, रशानतरततिकषत आदिद माधयधिमक आ$ाय इन षिव$ारो स सहमत नही ह, उनका कहना ह षिक सभी �म� क परमाथत: षिन:सवभाव (रशनय) होन पर भी वयवहार म उनकी स�ा होती ह, अत: सवतनतर रप स हत, दFानत आदिद का परयोग करक रशनयता की चिसजिदध की जा सकती ह। अत: य 3ोग 'सवातनतिनतरक' माधयधिमक कह3ात ह। जञात ह षिक परासषिगक वयवहार म भी वसत की स�ा नही मानत। इनही उपयकत बातो क आ�ार पर सवातनतिनतरक और परासषिगक माधयधिमको न अपन-अपन ढग स अपन-अपन दरशनो का षिवकास षिकया ह।

[सपादिदत कर] �म�नरातमय आ$ाय बदधपाचि3त का कहना ह षिक इन सब व$नो क दवारा भगवान न सभी �म� को अनातम कहा ह।

उनह माया, मरीचि$, सवपन एव परषितषिबमब की तरह कहा ह। इन सभी ससकारो म तथयता अथात ससवभावता नही ह, सभी धिमथया और परपजातमक ह- ऐसा कहा ह।

बदधपाचि3त कहत ह षिक यहा 'अनातम' रशबद षिन:सवभाव क अथ म ह, कयोषिक 'आतमा' रशबद सवभाववा$ी ह। इसचि3ए 'सभी �म अनातम ह' का अथ 'सभी �म षिन:सवभाव ह'- यह होता ह। उपयकत बदधव$न हीनयान षिपटक म भी ह, अत: वहा भी �मनरातमय सपरषितपादिदत ह।

आ$ाय $नदरकीरतित भी बदधपाचि3त क उपयकत वयाखयान स सहमत ह। उनका भी कहना ह षिक शरावकषिपटक म भी �मनरातमय परषितपादिदत ह।

[सपादिदत कर] पदगलनरातमय

वभाषि/क स 3कर सवातनतिनतरक माधयधिमक पयनत सभी सवयथय चिसदधानतवादिदयो क मत म यह माना जाता ह षिक 'पदग3 सकनधो स ततिभनन 3कषणवा3ा, सवतनतर एव दरवयसत नही ह'। इस (पथक दरवयत: स�ा क अभाव को) ही व 'पदग3नरातमय' कहत ह।

उनका यह भी कहना ह षिक आतमदधिF 'अहम' क आशरय (आ�ार) आतमा को सकनधो क सवामी की भाषित तथा सकनधो को उसक दास की भाषित गरहण करती ह। कयोषिक 'मरा रप, मरी वदना, मरी सजञा' इतयादिद परकार स गरहण षिकया जाता ह, इसचि3ए व सकनध उस आतमा क ह और इसचि3ए व आतमा क अ�ीन ह। इसचि3ए आतमदधिF पा$ो सकनधो को आतमा क अ�ीन रप म गरहण करती ह। अत: सवामी की भाषित, सकनधो स पथक 3कषण वा3, सवतनतर आतमा का जसा अवभास (परतीषित) होता ह तथा उसी क अनरप उसका 'सत' क रप म जो अततिभषिनवरश षिकया जाता ह, वसा अततिभषिनवरश ही पदग3 को 'दरवयसत' गरहण करन का आकार-परकार ह। पदग3 की उस परकार की दरवयस�ा का खणडन हो जान पर 'पदग3' सकनधो म उप$रिरतमातर या आरोषिपत मातर रह जाता ह। 'मातर' रशबद दवारा पदग3 की सकनधो स ततिभननाथता का षिन/� षिकया जाता ह।

'रशासतरो म की गई तततव मीमासा षिववाद-षिपरयता क चि3ए नही, अषिपत षिवमचिकत (मोकष या षिनवाण) क चि3ए की गई ह'- $नदरकीरतित क मधयमकावतार म उकत इस व$न क अनसार माधयधिमक रशासतरो म वसतसथिसथषित की जिजतनी भी यचिकतपवक परीकषाए की गई ह, व सभी पराततिणयो क मोकष 3ाभ क चि3ए ही की गई ह।

पदग3 एव �म� क परषित सवभावाततिभषिनवरश क कारण ही सभी पराणी ससार म ब� हए ह। 'अहम असमिसम' (म ह) इस परकार की बजिदध क आ3मबन पदग3 एव उसक सनतषितगत �म ह, उन (पदग3 एव �म) दोनो म पदग3ातमा और �मातमा नामक आतमदवय का जो अततिभषिनवरश होता ह, वही ससार म बा�नवा3ा परमख बनधन ह। अत: जिजन पदग3 एव �म� म आतमा (पदग3ातमा और �मातमा) क रप म गरहण होता ह, यचिकत दवारा षिन/� करन क भी मखय आ�ार व दो ही होत ह। अत: सभी यचिकतया इन दो आतमाओ की षिन/�क क रप म ही सगहीत होती ह।

रशासतरकारो न एकानक सवभावरषिहतततव [1], वजरकणयचिकत [2], सदसदनपपतति�यचिकत [3], $तषकोदिटकोतपादानपपतति�यचिकत [4] तथा परतीतयसमतपादयचिकत [5] आदिद अनक यचिकतयो का रशासतरो म वणन षिकया ह।

दरशभमकसतर म दस समताओ दवारा /yभधिम म अवतरिरत होन की दरशना की गई ह। सव�म-अनतपाद क रप म समता का परषितपादन करन स अनय समताओ का परषितपादन सकर हो जाता ह- ऐसा सो$कर आ$ाय नागाजन न म3ामधयधिमककारिरका म :

न सवतो नाषिप परतो न दवाभया नापयहतत:।उतपनना जात षिवदयनत भावा: कक$न क$न॥

इस कारिरका को परसतत षिकया ह। फ3त: �मनरातमय (रशनयता) को चिसदध करन की परमख यचिकत उनक अनसार यही $तषकोदिटकोतपादानपपतति� यचिकत ही ह।

यह $तषकोदिटक उतपाद की अनपतति� भी परतीतयसमतपाद स ही चिसदध होती ह, कयोषिक वसतओ की अहतक, ईशवर, परकषित, का3 आदिद षिव/महतक तथा सवत:, परत: एव उभयत: उतपतति� उनक परतीयसमतपनन होन स समभव नही हो पाती। वसतओ क परतीतयसमतपनन होन स ही अहतक, षिव/महतक, सवत: परत: उतपाद आदिद को य कलपनाए यचिकत दवारा परीकषाकषम नही हो पाती। इसचि3ए इस परतीतयसमतपाद यचिकत क दवारा कदधिF क समसत जानो का समचछद षिकया जाता ह।

अकर आदिद बाहय वसतए और ससकार आदिद आनतरिरक वसतए करमरश: बीज आदिद तथा अषिवदया आदिद हतओ पर षिनभर होकर ही उतपनन होती ह। यही कारण ह षिक उनक उतपाद आदिद सभी सव3कषणत:

चिसदध सवभाव स रशनय ह तथा व सवत: परत:, उभयत:, अहतत: या षिव/महतत: उतपनन नही होत। इस तरह उनक सवभावत: होन का षिन/� षिकया जाता ह। अत: समसत कदधिF जा3ो का उचछद करन वा3ी तथा परमाथस�ा का षिन/� करन वा3ी पर�ान यचिकत परतीतयसमतपाद ही ह। परासषिगक माधयधिमक तो इस यचिकतराज कहत ह।

[सपादिदत कर] टीका दिटVपणी1. ↑ यदिद आतमा और सकनध एक ह तो व दोनो अतयनत अततिभनन हो जाएग। फ3त: जस सकनध अनक ह,

वस आतमा को भी अनक मानना पडगा अथवा जस आतमा एक ह, वस सकनधो को भी एक मानना पडगा। सकनधो की भाषित आतमा भी अषिनतय हो जाएगा। अथवा आतमा की भाषित सकनध भी षिनतय हो जाएग। यदिद आतमा और सकनध ततिभनन ह तो यचिकतयो दवारा उनह सवथा ततिभनन ही रहना $ाषिहए। ऐसी सथिसथषित म रशरीर क रगण या जीण होन पर म 'रगण ह जीण ह' – इस परतीषित स षिवरो� होगा अथात ऐसी परतीषित नही होनी $ाषिहए। भद क इस चिसदधानत को वादी कसथिलपत नही मानता, अत: वह ऐसा नही कह सकता षिक यह ततिभननता पराषितभाचिसक दधिF स ह। पन� उस आतमा को पथक दिदख3ाना होगा।

2. ↑ रप आदिद वसतए, सवभावत: अनतपनन ह, सवत: परत: उभयत: एव अहतक: उतपनन न होन स। 3. ↑ रप आदिद वसतए, सवभावत: अनतपनन ह, हत क का3 म सत अथवा असत होत हए उतपनन न होन

स। 4. ↑ रप आदिद वसतए, सवभावत: अनतपनन ह, एक हत स अनक फ3, अनक हतओ स एक फ3,

अनक हतओ स अनक फ3 तथा एक ही हत स एक फ3 उतपनन न होन स 5. ↑ रप आदिद �म, षिन:सवभाव ह, परतीतयसमतपनन होन स।

महायान साविहतय[सपादिदत कर] महायानसतर

अनकरम[छपा]

1 महायान साषिहतय 2 महायानसतर 3 सदधमपणडरीक 4 3चि3तषिवसतर 5 सवणपरभास 6 तथागतगहयक 7 दरशभमीशवर 8 परजञापारधिमतासतर 9 अवदान साषिहतय

10 अवदानरशतक 11 दिदवयावदान

12 अशवघो/ साषिहतय

महयानसतर अननत ह। उनम कछ उप3बध ह, और कछ म3 रप म अनप3बध ह। भोट-भा/ा, $ीनी भा/ा म अनक सतरो क अनवाद उप3बध ह। कछ सतर अवशय ऐस ह, जिजन का महायान बौदध परमपरा म अतयधि�क आदर ह। ऐस सतरो की सखया 9 ह। इन 9 सतरो को 'नव �म' भी कहत ह तथा 'वपलयसतर' भी कहत ह। व इस परकार ह-

1. सदधमपणडरीक, 2. 3चि3तषिवसतर, 3. 3कावतार, 4. सवणपरभास,

5. गणडवयह,

6. तथागतगहयक,

7. समाधि�राज,

8. दरशभमीशवर एव 9. अFसाहचिसका आदिद

परजञापारधिमतासतर भी इन सतरो स अ3ग एक महतवपण सतर ह जिजसम परमखत: भगवान बदध दवारा गधरकट पवत पर षिदवतीय �म$कर क का3 म उपदिदF दरशनाए ह।

[सपादिदत कर] सदधम�पणडरीक महायान वपलयसतरो म यह अनयतम एव एक आदत सतर ह। 'पणडरीक' का अथ 'कम3' होता ह।

'कम3' पषिवतरता और पणता का परतीक होता ह। जस पक (की$ड) म उतपनन होन पर भी कम3 उसस चि3पत नही होता, वस 3ोक म उतपनन होन पर भी बदध 3ोक क दो/ो स चि3पत नही होत। इसी अथ म सदधमपणडरीक यह गरनथ का साथक नाम ह।

$ीन, जापान, कोरिरया, षितबबत आदिद महायानी दरशो म इसका बडा आदर ह और यह सतर बहत पषिवतर माना जाता ह।

$ीनी भा/ा म इसक छह अनवाद हए, जिजसम पह3ा अनवाद ई. सन 223 म हआ। �मरकष, कमारजीव, जञानगपत और �मगपत इन आ$ाय� क अनवाद भी परापत होत ह। $ीन और जापान म आ$ाय कमारजीव- कत इसका अनवाद अतयनत 3ोकषिपरय ह। ईसवीय 615 व/ म जापान क एक राजपतर रशी-तोक-ताय-चिरश न इस पर एक टीका चि3खी, जो

अतयनत आदर क साथ पढी जाती ह।

इस गरनथ पर आ$ाय वसबनध न 'सदधम-पणडरीकरशासतर' नामक टीका चि3खी, जिजसका बोधि�रचि$ और रतनमषित न 3गभग 508 ईसवीय व/ म $ीनी भा/ा म अनवाद षिकया था। इसका समपादन 1992 म परो. ए$. कन एव बषिनधियउ नजिजयो न षिकया।

इस गरनथ म क3 27 अधयाय ह, जिजनह 'परिरवत' कहा गया ह। परथम षिनदान परिरवत म इसम उपदरश की पyभधिम और परयोजन की $$ा करत हए कहा गया ह षिक यह 'वपलयसतरराज' ह। इस परिरचछद का मखय परषितपादय तो भगवान का यह कहना ह षिक 'तथागत नाना षिनरचिकत और षिनदरशनो (उदाहरणो) स, षिवषिव� उपायो स नाना अधि�मचिकत, रचि$ और (बजिदध की) कषमता वा3 सतवो को सदधम का परकारशन करत ह। सदधम क�ई तक गो$र नही ह। तथागत सततवो को तततवजञान का समयग अवबो� करान क चि3ए ही 3ोक म उतपनन हआ करत ह। तथागत यह महान कतय एक ही यान पर आधि�धिyत होकर करत ह, वह एक यान ह 'बदधयान' उसस अनय कोई दसरा और तीसरा यान नही ह। वह बदधमय ही सवजञता को परापत करान वा3ा ह। अतीत, अनागत और परतयतपनन तीनो का3ो क बदधो न बदधयान को ही अपनाया ह। व बदधयान का ही तीन यानो (शरावकयान, परतयक बदधयान और बोधि�सततवयान) क रप म षिनदरश करत ह। अत: बदधयान ही एकमातर यान ह।

एक षिह यान षिदवतीय न षिवदयतततीय षिह नवासमिसत कदाषिप 3ोक।*

षिदवतीय उपायकौरशलय परिरवत म भगवान न रशारिरपतर क चि3ए वयाकरण षिकया षिक वह अनागत का3 म पदमनाभ नाम क तथागत होग और सदधम का परकारश करग। रशारिरपतर क बार म वयाकरण सनकर जब वहा उपसथिसथत 12 हजार शरावको को षिवचि$षिकतसा उतपनन हई तब उस हटात हए भगवान न ततीय औपमयपरिरवत म एक उदाहरण दत हए कहा षिक षिकसी महा�नी पर/ क कई बचच ह, व खिख3ौनो क रशौकीन ह। उसक घर म आग 3ग जाए, उसम बचच धिघर जाए और षिनक3न का एक ही दवार हो, तब षिपता बचचो को पकार कर कहता ह- आओ बचचो, खिख3ौन 3 3ो, मर पास बहत खिख3ौन ह, जस- गोरथ, अशवरथ, मगरथ आदिद। तब व बचच खिख3ौन क 3ोभ म बाहर आ जात ह। तब रशारिरपतर, वह पर/ उन सभी बचचो को सवpतकF गोरथ दता ह। जो अशवरथ और मगरथ आदिद हीन ह, उनह नही दता। ऐसा कयो? इसचि3ए षिक वह महा�नी ह और उसका को/ (खजाना) भरा हआ ह। भगवान कहत ह षिक उसी परकार य सभी मर बचच ह, मझ $ाषिहए षिक इन सबको समान मान कर उनह 'महायान' ही द। कया रशारिरपतर, उस षिपता न तीनो यानो को बताकर एक ही 'महायान' दिदया, इसम कया उनका म/ावाद ह? रशारिरपतर न कहा नही भगवान तथागत महाकारततिणक ह, वह सभी सतवो क षिपता ह। व द:ख रपी ज3त हए घर स बाहर 3ान क चि3ए तीनो यानो की दरशना करत ह, षिकनत अनत म सबको बदधयान की ही दरशना दत ह।

वयाकरणपरिरवत नामक /y (छठव) परिरचछद म शरावकयान क अनक सथषिवरो क बार म, जो महायन म परषिवF हो $क थ, वयाकरण षिकया गया ह। बदध कहत ह षिक महासथषिवर महाकाशयप भषिवषय म 'रसथिशमपरभास' तथागत होग। सथषिवर सभषित, 'रशचिरशकत', महाकातयायन 'जामबनदपरभास' तथा महामौद3यायन 'तमा3पतर $नदरनगनध' नाम क तथागत होग। *पञ$ततिभकषरशतवयाकरण परिरवत म पण मतरायणी पतर आदिद अनक ततिभकषओ क बदधतव-परानतिपत का वयाकरण षिकया गया ह।

नवम परिरवत म आयषमान आननद और राह3 आदिद दो सहसर शरावको क बार म बदधतव-परानतिपत का वयाकरण ह।

उस समय वहा महापरजापषित गौतमी और ततिभकषणी राह3 माता यरशो�रा आदिद परिर/द म द:खी होकर इसचि3ए बठी थी षिक भगवान न हमार बार म बदधतव का वयाकरण कयो नही षिकया? भगवान न उनक चि$� का षिव$ार जानकर कपापवक उनका भी वयाकरण षिकया।

सदधमपणडरीक क इस सततिकषपत पया3ो$न स महायान बौदध-�म का हीनयान स समबनध सपF होता ह। पाचि3-गरनथो म दो परकार की �म दरशना ह। एक दानकथा, रशी3कथा आदिद उपाय �म दरशना ह ता दसरी 'सामककचिसका �ममदरशना ह', जिजसम $ार आयसतयो की दरशना दी जाती ह। इस सदधमपणडरीक म $ार आयसतयो की दरशना तथा सवजञताजञान पयवसायी दो दरशनाए ह। यह सवजञताजञान परापत करान वा3ी दरशना भगवान न रशारिरपतर आदिद को जो पह3 नही दी, यह उनका उपायकौरशलय ह। यह षिदवतीय दरशना ही परमाथ दरशना ह। इसम रशारिरपतर आदिद महासथषिवरो और महापरजापषित गौतमी आदिद सथषिवराओ को बदधतव परानतिपत का आशवासन दिदया गया ह। हीनयान म उपदिदF �म भी बदध का ही ह। उस एकानतत: धिमथया नही कहा गया ह, षिकनत कव3 उपायसतय ह, परमाथसतय तो बदधयान ही ह।

सदधमपणडरीक म बदधयान एव तथागत की मषिहमा का वणन ह, तथाषिप इस गरनथ क कछ अधयायो म अव3ोषिकतशवर आदिद बोधि�सततवो की मषिहमा का भी पषक3 वणन ह। अव3ोषिकतशवर बोधि�सततव करणा की मरतित ह। अव3ोषिकतशवर न यदयषिप बोधि� की परानतिपत की ह, तथाषिप जब तक ससार म एक भी सततव द:खी और बदध रहगा, तब तक षिनवाण परापत नही करन का उनका सकलप ह। व षिनवाण म परवरश नही करग। व सदा बोधि�सतव की सा�ना म षिनरत रहत ह। इसस उनकी मषिहमा कम नही होती। बोधि�सततव अव3ोषिकतशवर क नाम मातर क उचचारण म अनक द:खो और आपदाओ स रकषण की रशचिकत ह। हम बोधि�सततवो की शरदधा क साथ उपासना का परारमभ इस गरनथ म दखत ह।

[सपादिदत कर] लधिलतविवसतर वपलयसतरो म यह एक अनयतम और पषिवतरतम महायानसतर माना जाता ह। इसम समपण बदध$रिरत का वणन ह। बदध न पथवी पर जो-जो करीडा (3चि3त) की, उनका वणन होन क कारण इस '3चि3तषिवसतर' कहत ह।

इस 'महावयह' भी कहा जाता ह। इसम क3 27 अधयाय ह, जिजनह 'परिरवत' कहा जाता ह। षितबबती भा/ा म इसका अनवाद उप3बध ह। समगर म3 गरनथ का समपादन डॉ॰ एस 0 3फमान न षिकया था।

परथम अधयाय म राषितर क वयतीत होन पर ईशवर, महशवर, दवपतर आदिद जतवन म प�ार और भगवान की पादवनदना कर कहन 3ग-'भगवन, 3चि3तषिवसतर नामक �मपयाय का वयाकरण कर। भगवान का तषि/त3ोक म षिनवास, गभावकरानतिनत, जनम, कौमाय$या, सव मारमणड3 का षिवधवसन इतयादिद का इस गरथ म वणन ह। पव क तथागतो न भी इस गरथ का वयाकरण षिकया था।' भगवान न दवपतरो की पराथना सवीकार की। तदननतर अषिवदर षिनदान अथात तषि/त3ोक स चयषित स 3कर समयग जञान की परानतिपत तक की कथा स परारमभ कर समगर बदध$रिरत का वणन सनान 3ग।

बोधि�सततव न कषषितरय क3 म जनम 3न का षिनणय षिकया। भगवान न बताया षिक बोधि�सततव रशदधोदन की मषिह/ी मायादवी क गभ म उतपनन होग। वही बोधि�सततव

क चि3ए उपयकत माता ह। जमबदवीप म कोई दसरी सतरी नही ह, जो बोधि�सततव क तलय महापर/ का गभ �ारण कर सक। बोधि�सततव न महानाग अथात कञजर क रप म गभावकरानतिनत की।

मायादवी पषित की आजञा स 3नधिमबनी वन गई, जहा बोधि�सततव का जनम हआ। उसी समय पथवी को भदकर महापदम उतपनन हआ। ननद, उपननद आदिद नागराजाओ न रशीत और उषण ज3 की �ारा स बोधि�सततव को सनान कराया। बोधि�सततव न महापदम पर बठकर $ारो दिदरशाओ का अव3ोकन षिकया। बोधि�सततव न दिदवय$कष स समसत, 3ोक�ात को दखा और जाना षिक रशी3, समाधि� और परजञा म मर तलय कोई अनय सततव नही ह। पवाततिभमख हो व सात पग $3। जहा-जहा बोधि�सततव पर रखत थ,

वहा-वहा कम3 परादभत हो जाता था। इसी तरह दततिकषण और पतति�म की दिदरशा म $3। सातव कदम पर लिसह की भाषित षिननाद षिकया और कहा षिक म 3ोक म जयy और शरy ह। यह मरा अनतिनतम जनम ह। म जाषित, जरा और मरण द:ख का अनत करगा। उ�राततिभमख हो बोधि�सततव न कहा षिक म सभी पराततिणयो म अन�र ह नी$ की ओर सात पग रखकर कहा षिक मार को सना सषिहत नF करगा और नारकीय सततवो पर महा�ममघ की वधिF कर षिनरयाखिगन को रशानत करगा। ऊपर की ओर भी सात पग रख और अनतरिरकष की ओर दखा।

सातव परिरवत म बदध और आननद का सवाद ह, जिजसका सारारश ह षिक कछ अततिभमानी ततिभकष बोधि�सततव की परिररशदध गभावकरानतिनत पर षिवशवास नही करग, जिजसस उनका घोर अषिनF होगा तथा जो इस सतरानत को सनकर तथागत म शरदधा का उतपाद करग, अनागत बदध भी उनकी अततिभ3ा/ा पण करग। जो मरी रशरण म आत ह, व मर धिमतर ह। म उनका कलयाण साधि�त करगा। इसचि3ए ह आननद, शरदधा क उतपाद क चि3ए यतन करना $ाषिहए।

बदध की गभावकरानतिनत एव जनम की जो कथा 3चि3तषिवसतर म धिम3ती ह, वह पाचि3 गरथो म वरणिणत कथा स कही-कही पर ततिभनन भी ह। पाचि3 गरथो म षिवरश/त: सयकत षिनकाय, दीघ षिनकाय आदिद म यदयषिप बदध क अनक अदभत �म� का वणन ह, तथाषिप व अदभत �म� स समनवागत होत हए भी अनय मनषयो क समान जरा, मरण आदिद द:ख एव दौमनसय क अ�ीन थ। *पाचि3 गरनथो क अनसार बदध 3ोको�र कव3 इसी अथ म ह षिक उनहोन मोकष क माग का अनव/ण षिकया था तथा उनक दवारा उपदिदF माग का अनसरण करन स दसर 3ोग भी षिनवाण और अहपव पद परापत कर सकत ह। परनत महासाधिघक 3ोको�रवादी षिनकाय क 3ोग इसी अथ म 3ोको�र रशबद का परयोग नही करत। इसीचि3ए 3ोको�रता को 3कर उनम वाद-षिववाद था।

आग का 3चि3तषिवसतर का वणन महावगग की कथा स बहत कछ धिम3ता-ज3ता ह। जहा समानता ह, वहा भी 3चि3तषिवसतर म कछ बात ऐसी ह, जो अनयतर नही पाई जाती। उदाहरणाथ रशाकयो क कहन स जब रशदधोदन कमार को अपन दवक3 म 3 गय तो सब परषितमाए अपन-अपन सवरप म आकर कमार क परो पर षिगर पडी। इसी तरह कमार जब चिरशकषा क चि3ए चि3षिप रशा3ा म 3 जाय गय तो आ$ाय, कमार क तज को सहन नही कर पाय और मरचछिचछत होकर षिगर पड। तब बोधि�सतव न आ$ाय स कहा- आप मझ षिकस चि3षिप की चिरशकषा दग। तब कमार न बराहमी, खरोyी, पषकरसारिर, अग, बग, मग� आदिद 64 चि3षिपया षिगनाई। आ$ाय न कमार का कौरशन दखकर उनका अततिभवादन षिकया।

बदध क जीवन की पर�ान घटनाए ह- षिनधिम� दरशन, जिजनस बदध न जरा, वयाधि�, मतय एव परवरजया का जञान परापत षिकया। इसक अषितरिरकत अततिभषिनषकरमण, षिबनधिमबसार क समीप गमन, दषकर$या, मार�/ण, अततिभसबोधि� एव �म$करपरवतन आदिद घटनाए ह। जहा तक इन घटनाओ का समबनध ह, 3चि3तषिवसतर का वणन बहत ततिभनन नही ह। षिकनत 3चि3तषिवसतर म कछ अषितरशयताए अवशय ह। 27 व परिरवत म गरनथ क माहातमय का वणन ह।

यह षिनतति�त ह षिक जिजन चिरशसथिलपयो न जावा म सथिसथत बोरोबदर क मजिनदर को परषितमाओ स अ3कत षिकया था, व 3चि3तषिवसतर क षिकसी न षिकसी पाठ स अवशय परिरचि$त थ। चिरशलप म बदध का $रिरत इस परकार उतकीण ह, मानो चिरशलपी 3चि3तषिवसतर को हाथ म 3कर इस काय म परव� हए थ। जिजन चिरशसथिलपयो न उ�र भारत म सतप आदिद क3ातमक वसतओ को बदध$रिरत क दशयो स अ3कत षिकया था, व भी 3चि3तषिवसतर म वरणिणत बदध कथा स परिरचि$त थ।

[सपादिदत कर] सवण�परभास

महायान सतर साषिहतय म सवणपरभास की महततवपण सतरो म गणना की जाती ह। $ीन और जापान म इसक परषित अषितरशय शरदधा ह। फ3सवरप �मरकष न 412-426 ईसवी म, परमाथ न 548 ईसवी म, यरशोगपत न 561-577 ईसवी म, पाओककी न 597 ईसवी म तथा इसथितसग न 703 ईसवी म इसका $ीनी भा/ा म अनवाद षिकया।

इसी तरह जापानी भा/ा म भी तीन या $ार अनवाद हए। षितबबती भा/ा म भी इसका अनवाद उप3बध ह। साथ ही उइगर (Uigur) और खोतन म भी इसका अनवाद हआ। इन अनवादो स यह चिसदध होता ह षिक इस सतर का आदर एव 3ोकषिपरयता वयापक कषतर म थी। इस सतर म दरशन, नीषित, तनतर एव आ$ार का उपाखयानो दवारा ससपF षिनरपण षिकया गया ह। इस तरह बौदधो क महायान चिसदधानतो का षिवसतत परषितपादन ह। इसम क3 21 परिरवत ह।

परथम परिरवत म सवणपरभास क शरवण का माहातमय वरणिणत ह। षिदवतीय परिरवत म जिजस षिव/य की आ3ो$ना की गई ह, वह अतयनत महतवपण ह। बदध न दी/ाय होन

क दो कारण बताए ह। परथम पराततिणव� स षिवरत होना तथा षिदवतीय पराततिणयो क अनक3 भोजन परदान करना। बोधि�सततव रचि$रकत को सनदह हआ षिक भगवान न दीघायषकता क दोनो सा�नो का आ$रण षिकया, षिफर भी अससी व/ म ही उनकी आय समापत हो गई। अत: उनक व$न का कोई परामाणय नही ह।

इस रशका का समा�ान करन क चि3ए $ार बदध अकषोभय, रतनकत, अधिमताय और दनदततिभसवर की कथा की तथा चि3सथिचछषिव कमार बराहमण कोसथिणडनय की कथा की अवतारणा की गई। आरशय यह ह षिक बदध का रशरीर पारशिथव नही ह, अत: उसम स/प (सरसो) क बराबर भी �ात नही ह तथा उनका रशरीर �ममय एव षिनतय ह। अत: पवpकत रशका का कोई अवसर नही ह।

तथा षिह: यदा रशरशषिव/ाणन षिन:शरणी सकता भवत।सवगसयारोहणाथाय तदा �ातभषिवषयषित॥अनसथिसथरधि�र काय कतो �ातभषिवषयषित।*अषिप $, न बदध: परिरषिनवाषित न �म: परिरहीयत। सततवाना परिरपाकाय परिरषिनवाण षिनदशयत॥अचि$नतयो भगवान बदधो षिनतयकायसतथागत:।दरशषित षिवषिव�ान वयहान सततवाना षिहतकारणात।*

ततीय परिरवत म रचि$रकत बोधि�सततव सवपन म एक बराहमण को दनदततिभ बजात दखता ह और दनदततिभ स �म गाथाए षिनक3 रही ह। जागन पर भी बोधि�सततव को गाथाए याद रहती ह और वह उनह भगवान क सामन षिनवदिदत करता ह।

$तथ परिरवत म महायान क मौचि3क चिसदधानतो का गाथाओ दवारा उपपादन षिकया गया ह। पञ$म परिरवत म बदध क सतव ह, जिजनका सामषिहक नाम कम3ाकर ह। इनम बदध की मषिहमा का

वणन ह। /y परिरवत म वसतमातर की रशनयता क परिररशी3न का षिनदरश ह। सपतम म सवणपरभास क माहातमय का वणन ह। अFम परिरवत म सरसवती दवी बदध क सममख आषिवभत हई और सवणपरभास म परषितपादिदत �म का

वयाखयान करन वा3 �मभाणक को बदध की परषितभा स समपनन करन की परषितजञा की। *नवम परिरवत म

महादवी बदध क सममख परकट हई और घो/णा की षिक म वयावहारिरक और आधयानधितमक समपतति� स �मभाणक को समपनन करगी।

दरशम परिरवत म षिवततिभनन तथागतो एव बोधि�सततवो क नामो का सकीतन षिकया गया ह। एकादरश परिरवत म दढा नामक पथवी दवी भगवान क सममख उपसथिसथत हई और कहा षिक �मभाणक

क चि3ए जो उपवरशन-पीठ ह, वह यथासमभव सखपरदायक होगा। साथ ही आगरह षिकया षिक �मभाणक क �मामत स अपन को तपत करगी।

दवादरश परिरवत म यकष सनापषित अपन अटठाइस सनापषितयो क साथ भगवान क पास आय और सवणपरभास क पर$ार क चि3ए अपन सहयोग का व$न दिदया। साथ ही �मभाणको की रकषा का आशवासन भी दिदया।

तरयोदरश परिरवत म राजरशासतर समबनधी षिव/यो का परषितपादन ह। $तदरश परिरवत म ससमभव नामक राजा का व�ानत ह। प$दरश परिरवत म यकषो और अनय दवताओ न सवणपरभास क शरोताओ की रकषा की परषितजञा की। /ोडरश परिरवत म भगवान न दरश सहसर दवपतरो क बदधतव 3ाभ की भषिवषयवाणी की। सपतदरश परिरवत म वयाधि�यो क उपरशमन करन का षिववरण दिदया गया ह। अFादरश परिरवत म ज3वाहन दवारा मतसयो को बौदध�म म परवरश करान क $$ा ह। उननीसव परिरवत म भगवान न बोधि�सततव अवसथा म एक वयाघरी की भख धिमटान क चि3ए अपन रशरीर

का परिरतयाग षिकया था, उसकी $$ा ह। बीसव परिरवत म सवणरतनाकरछतरकट नामक तथागत की बोधि�सततवो दवारा की गई गाथामय सतषित

परषितपादिदत ह। इककीसव परिरवत म बोधि�सततवसमचचया नामक क3-दवता दवारा वयकत सवरशनयताषिव/यक गाथाए

उसथिल3खिखत ह।

[सपादिदत कर] तथागतगहयक परारसमिमभक तनतर महायानसतरो स बहत धिम3त-ज3त ह। उदाहरणाथ मञजशरीम3कलप अवतसक क

अनतगत 'महावपलयमहायानसतर', क रप म परचिसदध ह। षिवदवानो की राय ह षिक तथागतगहय, गहयसमाजतनतर तथा अFादरशपट3 तीनो एक ही ह। अथात गरनथ

म जो तथागतगहयसतर क उदधरण धिम3त ह, व गहयसमाज स ततिभनन ह। अत: तथागतगहयसतर एव गहयसमाजतनतर का अभद नही ह अथात ततिभनन-ततिभनन ह।

'अFादरश' इस नाम स यह परकट होता ह षिक इस गरनथ म अठारह अधयाय या परिरचछद ह। तथागतगहयसतर क अनसार बोधि�सततव परततिण�ान करता ह षिक शमरशान म सथिसथत उसक मत रशरीर का

षितयग योषिन म उतपनन पराणी यथचछ उपभोग कर और इस परिरभोग की वजह स व सवग स उतपनन हो। इतना ही नही, वह उनक परिरषिनवाण का भी हत हो।[1]

पर�, तदनसार बोधि�सततव �मकाय स परभाषिवत होता ह, इसचि3ए वह अपन दरशन, शरवण और सपरश स भी सततवो का षिहत करता ह।[2]

उसी सतर म अनयतर उसथिल3खिखत ह षिक जस रशानतमषित, जो वकष म3 स उखड गया हो, उसकी सभी रशाखाए डाचि3या और प� सख जात ह, उसी परकार सतकायदधिF का नारश हो जान स बोधि�सततव क सभी क3रश रशानत हो जात ह।[3]

अषिप $, महायान म परसथिसथत बोधि�सततव क य $ार �म षिवरश/ गमन क और अपरिरहाततिण क हत होत ह। कौन $ार? शरदधा, गौरव, षिनमानता (अनहकार) एव वीय।[4]

पन�, बोधि�स�ततव सवदा अपरमादी होता ह और अपरमाद का अथ ह 'इजिनदरयसवर'। वह न षिनधिम� का गरहण करता ह और न अनवयजन का। वह सभी �म� क आसवाद, आदीनव और षिन:सरण को ठीक-ठीक जानता ह।[5]

अपरमाद अपन चि$� का दमन करता ह, दसरो क चि$�ो की रकषा, क3रश म अरषित एव �म म रषित ह।[6]

योषिनरश: परयकत बोधि�सततव 'जो ह' उस असमिसत क रप म और 'जो नही ह' उस नासमिसत क रप म जानता ह।[7]

तथागतगहयसतर क अनसार जिजस राषितर म तथागत न अततिभसमबोधि� परापत की तथा जिजस राषितर म परिरषिनवाण परापत करग, इस बी$ म तथागत न एक भी अकषर न कहा और न कहग। परशन ह षिक तब समसत सर, असर, मनषय, षिकननर, चिसदध, षिवदया�र, नाग आदिद षिवनयजनो को उनहोन कस षिवषिव� परकार की दरशना की? मातर एक कषण की धवषिन क उचचारण स वह षिवषिव�जनो क मानचिसक अनधकार का नारश करन वा3ी, उनक बजिदधरपी कम3 को षिवकचिसत करन वा3ी, जरा, मरण आदिद रपी नदी और समदर का रशो/ण करन वा3ी तथा पर3यका3ान3 को 3सथिजजत करन वा3ी रशरतकाचि3क अरण-परभा क समान थी। वसतत: जस तरी नामक वादययनतर वाय क झोको स बजती ह, वहा कोई बजान वा3ा नही होता, षिफर भी रशबद षिनक3त ह, वस ही सततवो की वासना स पररिरत होकर बदध की वाणी भी षिन:सत होती ह, जबषिक उनम षिकसी भी परकार की कलपना नही होती।[8]

नाना आरशय वा3 सततव समझत ह षिक तथागत क मख स वाणी षिनक3 रही ह। उनह ऐसा 3गता ह, मानो भगवान हम �म की दरशना कर रह ह और हम दरशना सन रह ह, षिकनत तथागत म कोई षिवकलप नही होता, कयोषिक उनहोन समसत षिवकलप जा3ो का परहाण कर दिदया ह।[9]

इस परकार हम दखत ह षिक आ$ाय रशानतिनतदव क चिरशकषासमचचय और $नदरकीरतित की परसननपदा म3 माधयधिमक कारिरका टीका म अनक सथ3ो पर तथागतगहयसतर क उदधरण उप3बध ह, जिजनका हमन भी यथासमभव पाददिटपपणी म उल3ख षिकया ह। यदिद य उदधरण परकाचिरशत वतमान गहयसमाज म उप3बध नही होत ह- तो समझा जाना $ाषिहए षिक तथागतगहयसतर और गहयसमाज अततिभनन नही ह, जस षिक कछ षिवदवानो की �ारणा ह। आ$ाय रशानतिनतदव और $नदरकीरतित क का3 म य दोनो अवशय ततिभनन-ततिभनन थ।

[सपादिदत कर] दरशभमीशवर गणडवयह की भाषित यह सतर भी अवतसक का एक भाग माना जाता ह। इसम बोधि�सततव की दस

आयभधिमयो का षिवसतत वणन ह, जिजन भधिमयो पर करमरश: अधि�रोहण करत हए बदधतव अवसथा तक सा�क पह$ता ह। 'महावसत' म इस चिसदधानत का पवरप उप3बध होता ह। इस गरनथ म उकत चिसदधानत का परिरपाक हआ ह।

महायान म इस सतर का अतयचच सथान ह। इस दरशभधिमक, दरशभमीशवर एव दरशभमक नाम स भी जाना जाता ह।

आय असग न 'दरशभमक' रशबद का ही परयोग षिकया ह। इसकी 3ोकषिपरयता एव परामाततिणकता म यह परमाण ह षिक अतयनत परा$ीनका3 म ही इसक षितबबती, $ीनी, जापानी एव मगोचि3यन अनवाद हो गय थ।

शरी �मरकष न इसका $ीनी अनवाद ई. सन 297 म कर दिदया था। इसक परषितपादन की रश3ी म 3मब-3मब समसत पद एव रपको की भरमार ह।

धिमचिथ3ा षिवदयापीठ न डॉ॰ जोनस राठर क ससकरण क आ�ार पर इसका पन: ससकरण षिकया ह। जञात ह षिक महायान म दस आयभधिमया मानी जाती ह, यथा- परमदिदता, षिवम3ा, परभाकरी, अरशि$षमती,

सदजया, अततिभमखी, दरङगमा, अ$3ा, सा�मती एव �मम�ा। आयावसथा स पव जो पथगजन भधिम होती ह, उस 'अधि�मचिकत$याभधिम' कहत ह। महायान म पा$ माग

होत ह- समभारमाग, परयोगमाग, दरशनमाग, भावनामाग एव अरशकषमाग। दरशनमाग परापत होन पर बोधि�सततव 'आय' कह3ान 3गता ह। उपयकत दस भधिमया आय की भधिमया ह। दरशन माग की परानतिपत स पव बोधि�सतव पथगजन होता ह। समभारमाग एव परयोगमाग पथगजनमाग ह और उनकी भधिम अधि�मचिकत$याभधिम कह3ाती ह।

महायान गोतरीय वयचिकत बोधि�चि$� का उतपाद कर महायान म परवरश करता ह। पथगजन अवसथा म समभार माग एव परयोगमाग का अभयास कर दरशन माग परापत करत ही आय होकर परथम परमदिदता भधिम को परापत करता ह।

पारधिमताए भी दस होती ह, यथा-दान, रशी3, कषानतिनत, वीय, धयान, परजञा, उपायकौरश3, परततिण�ान, ब3 एव जञान पारधिमता। बोधि�सततव परतयक भधिम म सामानयत: इन सभी पारधिमताओ का अभयास करता ह, षिकनत परतयक भधिम म षिकसी एक पारधिमता का परा�ानय हआ करता ह। गरनथ म इन भधिमयो क वचिरशषटय का षिवसतत परषितपादन षिकया गया ह-

परमदिदता

सबोधि� को तथा सततवषिहत की चिसजिदध को आसनन दखकर इस भधिम म परकF (तीवर) मोद (ह/) उतपनन होता ह, अत: इस 'परमदिदता' भधिम कहत ह। इस अवसथा म बोधि�सततव पा$ भयो स मकत हो जाता ह, यथा- जीषिवकाभय, षिननदभय, मतयभय, दगषितभय एव परिर/दरशारदय (3जजा का) भय। जो बोधि�सततव परमदिदता भधिम म अधि�धिyत हो जाता ह, वह जमबदवीप पर आधि�पतय करन म समथ हो जाता ह। इस भधिम म बोधि�सततव सामानयत: दान, षिपरयव$न, परषिहतसमपादन (अथ$या) एव समानाथता (सव�मसमता)- इन कतयो का समपादन करता ह। षिवरश/त: इस भधिम म उसकी दानपारधिमता की परतित होती ह।

विवमला

दौ:रशीलय एव आभोग आदिद सभी म3ो स वयपगत (रषिहत) होन क कारण यह भधिम 'षिवम3ा' कही जाती ह। इस भधिम म बोधि�सततव रशी3 म परषितधिyत होकर दस परकार क करश3कमp का समपादन करता ह। इस भधिम म $ार सगरह वसतओ[10] म षिपरयवादिदता एव रशी3पारधिमता का परा�ानय होता ह।

परभाकरी

षिवचिरशF (महान) �म� का अवभास करान क कारण यह भधिम 'परभाकरी' कह3ाती ह। इस अवसथा म बोधि�सततव सभी ससकार �म� को अषिनतय, द:ख, अनातम एव रशनय दखता ह। सभी वसतए उतपनन होकर षिवनF हो जाती ह। व अतीत अवसथा म सकरानत नही होती, भषिवषय म कही जाकर सथिसथत नही होती तथा वतमान म भी कही उनका अवसथान नही होता। रशरीर द:खसकनधातमक ह- ऐसा बोधि�सततव अव�ारण करता ह। उसम रशानतिनत, रशम, औदाय एव षिपरयवादिदता आदिद गणो का उतक/ होता ह। इस भधिम म अवसथिसथत बोधि�सततव इनदर क समान बन जात ह। इस भधिम म सततवषिहत $या ब3वती होती ह और रशानतिनतपराधिमता का आधि�कय होता ह तथा बोधि�सतव दसरो म �म का अवभास करता ह।

अरचि$Gषमती

बोधि�पाततिकषक परजञा इस भधिम म क3रशावरण एव जञयावरण का दहन करती ह। बोधि�पाततिकषक �म अरशि$/ (जवा3ा) क समान होत ह। फ3त: बोधि�पाततिकषक �म और परजञा स यकत होन क कारण यह भधिम 'अरशि$षमती' कह3ाती ह। बोधि�सततव इस भधिम म दस परकार क �मा3ोक क साथ अधि�रढ होता ह। बोधि�पाततिकषक �म सतीस होत ह।, यथा-$ार समतयपसथान, $ार पर�ान, $ार ऋजिदधपाद, पा$ इजिनदरय, पा$ ब3, सात बोधयङय और आठ आयमाग (आयअFाषिङगक माग) बोधि�सततव इन बोधि�पाततिकषक �म� का इस भधिम म षिवरश/ 3ाभ करता ह। अनय पारिरमताओ की अपकषा इस भधिम म वीयपारधिमता की पर�ानता होती ह तथा सगरह वसतओ म समानाथता अधि�क उतक/ को परापत होती ह।

सदज�या

बोधि�सततव इस भधिम म सततवो का परिरपाक और अपनी चि$� की षिवरश/ रप स रकषा करता ह। य दोनो काय अतयनत दषकर ह। इन पर जय परापत करन क कारण यह भधिम 'सदजया' कह3ाती ह। बोधि�सततव इस भधिम म दस परकार की चि$�षिवरशजिदधयो को परापत करता ह तथा $तरतिव� आयसतव क यथाथजञान का 3ाभ करता ह। इस सथिसथषित म बोधि�सततव को यह उप3समिबध होती ह षिक समपण षिवशव रशनय ह। सभी पराततिणयो क परषित उसम महाकरणा का परादभाव होता ह तथा महामतरी का आ3ोक उतपनन होता ह। वह दान, षिपरयवादिदता एव �मpपदरश आदिद क दवारा ससार म कलयाण क माग का षिनदरश करता ह। इस भधिम म अनय पारधिमताओ की अपकषा धयानपारधिमता की पर�ानता होती ह।

अणिभमखी

इस भधिम म परजञा का परा�ानय होता ह। परजञापारधिमता की वजह स ससार और षिनवाण दोनो म परषितधिyत नही होन क कारण यह भधिम ससार और षिनवाण दोनो क अततिभमख होती ह। इसचि3ए 'अततिभमखी' कह3ाती ह। इस भधिम म बोधि�सतव बोधयङगो की षिनषपतति� का षिवरश/ परयास करत ह। इस भधिम म परजञापारधिमता अनय पारधिमताओ की अपकषा अधि�क पर�ान होती ह।

दरङगमा

सबोधि� को परापत करान वा3 एकायन माग स अनतिनवत होन क कारण यह भधिम उपाय और परजञा क कषतर म दर तक परषिवF ह, कयोषिक बोधि�सततव अभयास की सीमा को पार कर गया ह, इसचि3ए यह भधिम 'दरङगमा' कह3ाती ह। इस अवसथा म बोधि�सततव रशनयता, अषिनधिम� और अपरततिणषिहत इन षितरषिवधि� षिवमोकष या समाधि�यो का 3ाभ करता ह। इस भधिम म अनय पारधिमताओ की अपकषा 'उपायकौरश3 पारधिमता' अधि�क ब3वती होती ह।

अ$ला

नाम स ही सपF ह षिक इस भधिम पर अधि�रढ होन पर बोधि�सततव की परावतति� (पीछ 3ौटन) की समभावना नही रहती। इस भधिम म वह अनतपतति�क �मकषानतिनत स समनतिनवत होता ह। षिनधिम�ाभोगसजञा और अषिनधिम�ाभोगसजञा इन दोनो सजञाओ स षिव$चि3त नही होन क कारण यह भधिम 'अ$3ा' कह3ाती ह। इस भधिम का 3ाभ करन पर बोधि�सततव षिनवाण की भी इचछा नही करत, कयोषिक ऐसा करन पर सभी द:खी पराततिणयो का कलयाण करन की उनकी जो परषितजञा ह, उसक भङग होन की आरशका होती ह। व 3ोक म ही अवसथान करत ह। इनका पव परततिण�ान इस अवसथा म ब3वान होता ह। जो बोधि�सततव इस भधिम म अवसथान करत ह, उनम आयवचिरशता, $तोवचिरशता, कमवचिरशता आदिद दरश वचिरशताए तथा अरशयब3, अधयारशय ब3, महाकरणा आदिद दरश ब3 समपनन होत ह। इस भधिम म अनय पारधिमताओ की अपकषा 'परततिण�ान पारधिमता' का आधि�कय रहता ह।

सा�मती

$ार परषितसषिवद (षिवरश/ जञान) होती ह, यथा- �मपरषितसषिवद अथपरषितसषिवद, षिनरचिकतपरषितसषिवद एव परषितभानपरषितसषिवद। इस भधिम म बोधि�सतव इन $ारो परषितसषिवद म परवीण (=सा� अथात कमणय) हो जाता ह, इसचि3ए यह भधिम 'सा�मती' कह3ाती ह। �मपरषितसषिवद क दवारा वह �म� क सव3कषण को जानता ह। अथपरषितसषिवद क दवारा �म� क षिवभाग को जानता ह। षिनरचिकतपरषितसषिवद क दवारा �म� को अषिवभकत दरशना को जानता ह तथा परषितभानपरषितसषिवद क दवारा �म� क अनपरबनध अथात षिनरवसथिचछननता को जानता ह। इस अवसथ म बोधि�सततव करश3 और अकरश3ो को षिनषपतति� क परकार को ठीक-ठीक जान 3ता ह। इस भधिम म पारधिमताओ म 'ब3 पारधिमता' का परा�ानय होता ह।

�म�मघा

�म रपी आकारश षिवषिव� समाधि� मख और षिवषिव� �ारणीमख रपी मघो स इस भधिम म वयापत हो जाता ह, अत: यह भधिम '�ममघा' कह3ाती ह। यह भधिम अततिभ/क भधिम आदिद नामो स भी परिरचि$त ह। इस भधिम म बोधि�सततव की 'सवजञानाततिभ/क समाधि�' षिनषपनन होती ह। बोधि�स�व जब इस समाधि� का 3ाभ करत ह तब व 'महारतनराजपदम' नामक आसन पर उपषिवF दिदख3ाई पडत ह। व अजञान स उतपनन क3रश रपी अखिगन का �ममघ क वणन स उपरशमन करत ह। अथात क3रशरपी अखिगन को बझा दत ह, इसचि3ए इस भधिम का नाम '�ममघा' ह। इस भधिम म उनकी 'जञानपारधिमता' अनय पारधिमताओ की अपकषा परा�ानय का 3ाभ करती ह।

[सपादिदत कर] परजञापारमिमतास1 परजञापारधिमतासतर परमखत: भगवान बदध दवारा गधरकट पवत पर षिदवतीय �म$कर क का3 म उपदिदF

दरशनाए ह। का3ानतर म य सतर जमबदवीप म षिव3पत हो गय। आ$ाय नागाजन न नाग3ोक जाकर उनह परापत षिकया और व वहा स पन: जमबदवीप 3ाए।

परजञापारधिमतासतरो क दो पकष ह।

1. एक दरशनपकष ह, जिजस परजञापकष या रशनयतापकष भी कहा जाता ह। 2. दसरा ह सा�नापकष, जिजस उपायपकष या करणापकष भी कहा जाता ह।

नागाजन न परजञापारधिमतासतरो क दरशन पकष को अपनी कषितयो दवारा परकाचिरशत षिकया। परजञापारधिमतासतरो क आ�ार पर उनहोन परमखत: म3माधयधिमककारिरका आदिद गरनथो म रशनयता-दरशन को यचिकतयो दवारा परषितyाषिपत षिकया, जिजस आग $3कर उनक अनयाधिययो न और अधि�क षिवकचिसत षिकया। परजञापारधिमतासतरो क सा�नापकष को आय असग न अपनी कषितयो दवारा परकाचिरशत षिकया। तदननतर उनक अनयाधिययो न उस और अधि�क पल3षिवत एव पनधिषपत षिकया। रशनयता, अनतपाद,

अषिनरो� आदिद पयायवा$ी रशबद ह। सभी �म� की षिन:सवभावता परजञापारधिमतासतरो का मखय परषितपादय ह। परजञापारधिमतासतरो की सखया अतयधि�क ह। रशतसाहततिसरका (एक 3ाख शलोकातमक) परजञापारधिमता स 3कर एकाकषरी परजञापारधिमता तक य सतर पाय जात ह। महायानी वपलयसतरो क दो परकार ह। एक परकार क व सतर ह, जिजनम बदध, बोधि�सततव, बदधयान आदिद की मह�ा परदरशिरशत की गई ह। 3चि3तषिवसतर, सदधमपणडरीक आदिद सतर इसी परकार क ह। दसर परकार म व सतर आत ह, जिजनम रशनयता और परजञा की मह�ा परदरशिरशत ह, य सतर परजञापारधिमतासतर ही ह। रशनयता और महाकरणा- इन दोनो का समनवय परजञापारधिमतासतरो म दधिFगो$र होता ह।

महायान साषिहतय म परजञापारधिमतासतरो का अतयधि�क महततव ह। अनय सतरो म अधि�कतर बदध और बोधि�सततवो का सवाद दिदख3ाई दता ह, जबषिक परजञापारधिमतासतरो म बदध सभषित नामक सथषिवर स परशन करत ह। सभषित और रशारिरपतर इन दो सथषिवरो का रशनयता क बार म सवाद ही तासमिततवक एव गमभीर ह। इन सतरो की परा$ीनता इसी स परमाततिणत ह षिक ई. सन 179 म परजञापारधिमतासतर का $ीनी भा/ा म रपानतर हो गया था। पराय: सभी बौदध �मानयायी दरशो म इन सतरो का अतयधि�क समादर ह।

नपा3ी परमपरा क अनसार म3 परजञापारधिमता महायान सतर सवा 3ाख शलोकातमक ह। पन: एक 3कषातमक, पचचीस हजार, दस हजार और आठ हजार शलोकातमक परजञापारधिमतासतर भी परकाचिरशत ह। $ीनी और षितबबती परमपरा म इसक और भी अनक परकार ह।

ससकत म षिनमनचि3खिखत सतर अरशत: या पणरपण उप3बध होत ह-

1. रशतसाहततिसरकापरजञापारधिमता, 2. पञ$विवरशषितसाहनधिसतरका परजञापारधिमता, 3. अFसाहनधिसतरकापरजञापारधिमता, 4. सा�षिदवसाहनधिसतरका परजञापारधिमता, 5. सपतरशषितका परजञापारधिमता, 6. वजरचछदिदका (षितररशषितका) परजञापारधिमता, 7. अलपाकषरा परजञापारधिमता, 8. भगवती परजञापारधिमतासतर आदिद।

परजञापारधिमतासतरो को जननी सतर भी कहत ह। परजञापारधिमता क षिबना बदधतव का 3ाभ समभव नही ह, अत: यह बदधतव को उतपनन करन वा3ी ह। इसी अथ म इस जननी, बदधमाता आदिद रशबदो स भी अततिभषिहत करत ह। इनह 'भगवती' भी कहत ह, जो इनक परषित अतयधि�क आदर का स$क ह। जननी सतरो का तीन म षिवभाजन भी षिकया जाता ह, यथा- षिवसतत, मधयम एव सततिकषपत जिजनजननीसतर।

रशतसाहनधिसतरका परजञापारधिमता षिवसतत जिजनजननीसतर ह, जिजसका उपदरश भगवान न मद-इजिनदरय और षिवसततरचि$ षिवनयजनो क चि3ए षिकया ह। मधयजिनदरय और मधयरचि$ षिवनयजनो क चि3ए मधयम जिजनजननी अथात पञ$विवरशषित साहनधिसतरका परजञापारधिमता का तथा तीकषणजिनदरय और सततिकषपत रचि$ षिवनयजनो क चि3ए सततिकषपत जिजनजननी अथात अFसाहनधिसतरका परजञापारधिमता का भगवान न उपदरश षिकया ह। इन सभी म अFसाहनधिसतरका पणत: उप3बध ह, अत: उसका यहा षिनरपण षिकया जा रहा ह।

[सपादिदत कर] अवदान साविहतय इस रशबद की वयतपतति� अजञात ह। पाचि3 म इसक समककष 'अपदान' रशबद ह। समभवत: इसका

परारसमिमभक अथ असा�ारण या अदभत काय ह। अवदान कथाए कम-पराबलय को चिसदध करती ह। आजक3 अवदान का अथ कथामातर रह गया ह। महावसत को भी 'अवदान' कहत ह। अवदान कथाओ का परा$ीनतम सगरह 'अवदानरशतक' ह। तीसरी रशताबदी म इसका $ीनी अनवाद हो गया था। परतयक कथा क अनत म यह षिनषक/ दिदया जाता ह

षिक रशक3 कम का रशक3 फ3, कषण कम का कषण फ3 तथा वयाधिमशर का वयाधिमशर फ3 होता ह। इनम स अनक म अतीत जनम की कथा ह। इस हम जातक भी कह सकत ह। कयोषिक जातक म बोधि�सततव क जनम की कथा दी गयी ह। षिकनत ऐस भी अवदान ह, जिजनम अतीत की कथा नही पाई जाती। कछ अवदान 'वयाकरण' क रप म ह अथात इनम परतयतपनन कथा का वणन करक अनागत का3 का वयाकरण षिकया गया ह। षितबबती भा/ा म भी अवदान साषिहतय अनदिदत हआ ह।

[सपादिदत कर] अवदानरशतक यह हीनयान का गरनथ ह- ऐसी मानयता ह। इसक $ीनी अनवादको का ही नही, अषिपत इसक अनतरग

परमाण भी ह। सवासमिसतवादी आगम क परिरषिनवाणसतर तथा अनय सतरो क उदधरण अवदानरशतक म पाय जात ह।

यदयषिप इसकी कथाओ म बदध पजा की पर�ानता ह, तथाषिप बोधि�सततव का उल3ख नही धिम3ता। अवदानरशतक की कई कथाए अवदान क अनय सगरहो म और कछ पाचि3-अपदानो म भी आती ह।

[सपादिदत कर] दिदवयावदान इस बौजिदधक गरनथ म पषयधिमतर को मौय वरश का अनतिनतम रशासक बत3ाया गया ह । इसम महायान एव हीनयान दोनो क अरश पाए जात ह। षिवशवास ह षिक इसकी सामगरी बहत कछ म3

सवासमिसतवादी षिवनय स परापत हई ह। दिदवयावदान म दीघागम, उदान, सथषिवरगाथा आदिद क उदधरण पराय: धिम3त ह। कही-कही बौदध ततिभकषओ की $याओ क षिनयम भी दिदय गय ह, जो इस तथय की पधिF करत ह षिक दिदवयावदान म3त: षिवनयपर�ान गरनथ ह। यह गरनथ गदय-पदयातमक ह। इसम 'दीनार' रशबद का परयोग कई बार षिकया गया ह। इसम रशगका3 क राजाओ का भी वणन ह।

रशाद3कणावदान का अनवाद $ीनी भा/ा म 265 ई. म हआ था। दिदवयावदान म अरशोकावदान एव कमार3ात की कलपनामसथिणडषितका क अनक उदधरण ह। इसकी

कथाए अतयनत रो$क ह। उपगपत और मार की कथा तथा कणा3ावदान इसक अचछ उदाहरण ह। अवदानरशतक की सहायता स अनक अवदानो की र$ना हई ह, यथा- कलपदरमावदानमा3ा,

अरशोकावदानमा3ा, दवाविवरशतयवदानमा3ा भी अवदानरशतक की ऋणी ह। अवदानो क अनय सगरह भदरकलयावदान और षिवचि$तरकरणिणकावदान ह। इनम स पराय: सभी अपरकाचिरशत ह। कछ क षितबबती और $ीनी अनवाद धिम3त ह।

कषमनदर की अवदानकलप3ता का उल3ख करना भी परसग परापत ह। इस गरनथ की समानतिपत 1052 ई. म हई। षितबबत म इस गरनथ का अतयधि�क आदर ह। इस सगरह म 107 कथाए ह।

कषमनदर क पतर सोमनदर न न कव3 इस गरनथ की भधिमका ही चि3खी, अषिपत अपनी ओर स एक कथा भी जोडी ह। यह जीमतवाहन अवदान ह।

[सपादिदत कर] अशवघो> साविहतय 1892 ई. म चिस3वा 3वी दवारा बदध$रिरत क परथम सग क परकारशन स पव यरोप म कोई नही जानता

था षिक अशवघो/ एक महान कषिव हए ह। षितबबती और $ीनी आमनाय क अनसार अशवघो/ महाराज कषिनषक क समका3ीन थ। जो परमाण उप3बध ह, उनक अनसार व अशवघो/ क समका3ीन या उसस कछ पववतG थ।

$ीनी आमनाय क अनसार अशवघो/ का समबनध षिवभा/ा स भी था, षिकनत षिवदवानो को इसम सनदह ह। अशवघो/ की कावयरश3ी चिसदध करती ह षिक वह काचि3दास स कई रशताबदी पव थ। भास उनका अनसरण करत ह। रशबद परयोग स 3गता ह षिक कौदिटलय क षिनकटवतG थ। अशवघो/ अपन को 'साकतक' कहत ह और माता का नाम 'सवणाकषी' बतात ह। रामायण का उनक गरनथो पर षिवरश/ परभाव ह। उनका कहना ह षिक रशाकय इकषवाकवरशीय थ। अशवघो/

बराहमण थ, उसी परकार उनकी चिरशकषा भी हई थी। बाद म व बौदध �म म दीततिकषत हए। उनक गरनथो स चिसदध होता ह षिक व बौदध �म क पर$ार-परसार म अतयनत वयसत थ। षितबबती षिववरण क अनसार व एक अचछ सगीतजञ भी थ और गायको की मणड3ी क साथ भरमण करत थ तथा बौदध �म का पर$ार व गानो क माधयम स करत थ।

1. बदध$रिरत,

2. सौनदरननद और 3. रशारिरपतर परकरण- य तीनो गरनथ उनकी र$नाए ह।

बदध$रिरत म बदध की कथा वरणिणत ह। इसम 28 वग ह। बदध कथा भगवान क जनम स परारमभ होती ह औ सवगोतपतति�, अततिभषिनषकरमण, मारषिवजय, सबोधि� �म$करपरवतन, परिरषिनवाण आदिद घटनाओ का वणन कर परथम सगीषित और अरशोक क राजयका3 पर समापत होती ह।

सौनदरननद म बदध क भाई ननद क बौदध �म म दीततिकषत होन की कथा ह। इस गरनथ म 18 सग ह। समगर गरनथ सरततिकषत ह।

रशारिरप1 परकरण यह नाटक गरनथ ह। इसम 9 अक ह। इसम रशारिरपतर औ मौदगलयायन क बौदध �म म दीततिकषत होन की कथा वरणिणत ह। यह खसथिणडत रप म परापय ह। इसका उदधार परोफसर 3डस न षिकया ह। य तीनो गरनथ एक र$धियता दवारा र$ हए परतीत होत ह। शरी जानसटन न बदध$रिरत का समपादन षिकया ह। परा अषिवक3 गरनथ ससकत म उप3बध नही ह। परथम सग और 14 व सग का कछ अरश खसथिणडत ह। 2-13 सग ठीक ह। 15 सग स आग म3 ससकत म अनप3बध ह।

षितबबती और $ीनीपरमपरा अशवघो/ को अनय गरनथो का भी र$धियता मानती ह। टामस न उनकी स$ी परकाचिरशत की ह, षिकनत व ससकत म अपरापय ह, इसचि3ए उनक बार म कछ कहना समभव नही ह। परोफसर 3डस को रशारिरपतरपरकरण क साथ दो और नाटको क अरश धिम3 ह। एक क मातर तीन पतर धिम3 ह, जिजनम बदध क ऋदिदब3 का परदरशन ह। दसर म एक नवयवक की कथा ह, जिजसन बौदध �म की दीकषा 3ी। षिकनत इनक अशवघो/ की र$ना होन म षिवदवानो म ऐकमतय नही ह।

तीन और गरनथ अशवघो/ क बताय जात ह- वजरस$ी, गणडीसतोतर एव सतरा3ङकार। $ीनी अनवादक सतरा3कार को अशवघो/ की कषित मानत ह। बाद म परोफसर 3डस को मधय एचिरशया म इस गरनथ क म3 ससकत म कछ अरश धिम3 ह, उनहोन चिसदध षिकया ह षिक वहा गरनथकार का नाम कमार3ात ह और गरनथ का नाम कलपनामसथिणडषितका ह। सामानयत: षिवदवान इनह अशवघो/ की र$ना नही मानत।

अपनी र$नाओ म अशवघो/ न शरदधा की मषिहमा का जोरदार वणन षिकया ह।

शरदधाङकरधिमम तसमात सव�धियतमहचिस।तदवदधौ व�त �म� म3वदधौ यथा दरम:॥ (सौनदरननद 12:)

षिवदवानो का मानना ह षिक अशवघो/ बाहशरषितक ह। बाहशरषितक महासाधिघक की रशाखा ह। इसचि3ए य महादव की पा$ वसतओ को सवीकारत ह। इनम स $तथ क अनसार अहत परपरतयय स जञान 3ाभ करत ह। पर-परतयय क चि3ए शरदधा आवशयक ह।

जानसटन क अनसार अशवघो/ बाहशरषितक या कौककदिटक या कौककचि3क ह। तारानाथ क अनसार मात$ट अशवघो/ का दसरा नाम ह। मात$ट का सतोतर अतयनत 3ोकषिपरय था। जातकमा3ा क र$धियता आयरशर अशवघो/ क ऋणी ह। जातकमा3ा म 34 जातककथाओ का सगरह

ह, 3गभग सभी कथाए पाचि3 जातक म पाई जाती ह।

महायान क आ$ाय�बरज विडसकवरी, एक मR जञानको> सयहा जाईय: नषिवगरशन, खोज

नागाजन आ$ाय आयदव आ$ाय

बदधपाचि3त आ$ाय

भावषिववक आ$ाय

$नदरकीरतित आ$ाय

असग आ$ाय

वसबनध आ$ाय

सथिसथरमषित आ$ाय

दिदङनाग आ$ाय

�मकीरतित आ$ाय

बोधि��म आ$ाय

रशानतरततिकषत आ$ाय

कम3रशी3 आ$ाय

पदमसभव आ$ाय

रशानतिनतदव आ$ाय

दीपङकर शरीजञान आ$ाय

आ$ाय� नागाज�न / Acharya Nagarjun हरनसाग क अनसार अशवघो/, नागाजन, आयदव और कमार3बध (कमार3ात) समका3ीन थ। राजतरषिगणी और तारानाथ क मतानसार नागाजन कषिनषक क का3 म पदा हए थ। नागाजन क का3

क बार म इतन मत-मतानतर ह षिक कोई षिनतति�त समय चिसदध कर पाना अतयनत कदिठन ह, षिफर भी ई.प. परथम रशताबदी स ईसवीय परथम-षिदवतीय रशताबदी क बी$ कही उनका समय होना $ाषिहए। कमारजीव न 405 ई. क 3गभग $ीनी भा/ा म नागाजन की जीवनी का अनवाद षिकया था। य दततिकषण भारत क षिवदभ परदरश म बराहमण क3 म उतपनन हए थ। व जयोषित/, आयव´द, दरशन एव तनतर आदिद षिवदयाओ म अतयनत षिनपण थ और परचिसदध चिसदध तानतिनतरक थ।

परजञापारधिमतासतरो क आ�ार पर उनहोन माधयधिमक दरशन का परवतन षिकया था। कहा जाता ह षिक उनक का3 म परजञापारधिमतासतर जमबदवीप म अनप3बध थ। उनहोन नाग3ोक जाकर उनह परापत षिकया तथा उन सतरो क दरशन पकष को माधयधिमक दरशन क रप म परसतत षिकया।

असमिसततव का षिवशल/ण दरशनो का परमख षिव/य रहा ह। भारतव/ म इसी क षिवशल/ण म दरशनो का अभतपव षिवकास हआ ह। उपषिन/द-�ारा म आ$ाय रशकर का अदवत वदानत तथा बौदध-�ारा म आ$ाय नागाजन का रशनयादवयवाद चिरशखरायमाण ह। परसपर क वाद-षिववाद न इन दोनो �ाराओ क दरशनो को उतक/ की पराकाyा तक पह$ाया ह। यदयषिप आ$ाय रशकर का का3 नागाजन स बहत बाद का ह, षिफर भी नागाजन क समय औपषिन/दिदक �ारा क असमिसततव का अप3ाप नही षिकया जा सकता, षिकनत उसकी वयाखया आ$ाय रशकर की वयाखया स षिनतति�त ही ततिभनन रही होगी। आ$ाय नागाजन क आषिवभाव क बाद भारतीय दारशषिनक चि$नतन म नया मोड आया। उसम नई गषित एव परखरता का परादभाव हआ। वसतत: नागाजन क बाद ही भारतव/ म यथाथ दारशषिनक चि$नतन परारमभ हआ। नागाजन न जो मत सथाषिपत षिकया, उसका पराय: सभी बौदध-बौदधतर दरशनो पर वयापक परभाव पडा और उसी क खणडन-मणडन म अनय दरशनो न अपन को $रिरताथ षिकया।

नागाजन क मतानसार वसत की परमाथत: स�ा का एक 'रशाशवत अनत' ह तथा वयवहारत: अस�ा दसरा 'उचछद अनत' ह। इन दोनो अनतो का परिरहास कर व अपना अनठा मधयम माग परकाचिरशत करत ह। उनक अनसार परमाथत: 'भाव' नही ह तथा वयवहारत: या सवतति�त: 'अभाव' भी नही ह। यही नागाजन का मधयम माग या माधयधिमक दरशन ह। इस मधयम माग की वयवसथा उनहोन अनय बौदधो की भाषित परतीतयसमतपाद की अपनी षिवचिरशF वयाखया क आ�ार पर की ह। व 'परतीतय' रशबद दवारा रशाशवत अनत का तथा 'समतपाद' रशबद दवारा उचछद अनत का परिरहास करत ह और रशनयतादरशन की सथापना करत ह।

नागाजन क नाम पर अनक गरनथ उप3बध होत ह, षिकनत उनम

1. म3माधयधिमककारिरका, 2. षिवगरहवयावतनी, 3. यचिकत/धिFका, 4. रशनयतासपतषित,

5. रतनाव3ी और 6. वदलयसतर परमख ह।

इनम म3माधयधिमककारिरका रशरीर सथानीय ह तथा अनय गरनथ उसी क अवयव या परक क रप म मान जात ह। कहा जाता ह षिक उनहोन म3ामाधयधिमककारिरका पर 'अकतोभया' नाम की वतति� चि3खी थी, षिकनत अनय साकषयो क परकारश म आन पर अब यह मत षिवदवानो म मानय नही ह। इसक अषितरिरकत सहल3ख एव सतरसमचचय आदिद भी उनकी कषितया ह।

भारतीय बौदध आ$ाय� का कषितयो का षितबबत क 'तन-गयर' नामक सगरह म सक3न षिकया गया ह।

आ$ाय� आय�दव / Acharya Aryadev आयदव आ$ाय नागाजन क पटट चिरशषयो म स अनयतम ह। इनक और नागाजन क दरशन म कछ भी

अनतर नही ह। उनहोन नागाजन क दरशन को ही सर3 भा/ा म सपF रप स परषितपादिदत षिकया ह। इनकी र$नाओ म '$त:रशतक' परमख ह, जिजस 'योगा$ार $त:रशतक' भी कहत ह। $नदरकीरतित क गरनथो म इसका 'रशतक' या 'रशतकरशासतर' क नाम स भी उल3ख ह। हरनसाग न इसका $ीनी भा/ा म अनवाद षिकया था। ससकत म यह गरनथ पणतया उप3बध नही ह। सातव स सो3हव परकरण तक भोट भा/ा स ससकत म रपानतरिरत रप म उप3बध होता ह। यह रपानतरण भी रशत-परषितरशत ठीक नही ह। परशनो�र रश3ी म माधयधिमक चिसदधानत बड ही रो$क ढग स आयदव न परषितपादिदत षिकय ह। कछ परशन तो ऐस ह, जिजनह आज क षिवदवान भी उपसथिसथत करत ह, जिजनका आयदव न सनदर समा�ान षिकया ह।

[सपादिदत कर] हरनसाग क अनसार हरनसाग क अनसार य लिसह3 दरश स भारत आय थ। इनकी एक ही आख थी, इसचि3ए इनह काणदव

भी कहा जाता था। इनक दव एव नी3नतर नाम भी परचिसदध थ। कमारजीव न ई.सन 405 म इनकी जीवनी का अनवाद $ीनी भा/ा म षिकया था। 'चि$�षिवरशजिदधपरकरण' गरनथ भी इनकी र$ना ह- ऐसी परचिसजिदध ह। 'हसतवा3परकरण' या 'मधिFपरकरण' भी इनका गरनथ माना जाता ह। परमपरा म जिजतना नागाजन को परामाततिणक माना जाता ह, उतना ही आयदव को भी। इन दोनो आ$ाय� क गरनथ माधयधिमक परमपरा म 'म3रशासतर' या 'आगम' क रप म मान जात ह।

आ$ाय� बदधपाधिलत / Acharya Buddhapalit माधयधिमको की आ$ाय परमपरा म आयदव क बाद बदधपाचि3त ही ऐस आ$ाय ह जिजनहोन नागाजन की

परमख र$ना म3माधयधिमककारिरका पर एक पररशसत वयाखया चि3खी, जो 'बदधपाचि3ती' क नाम स परचिसदध ह। यह ससकत म उप3बध नही ह। भोटभा/ा म इसका अनवाद उप3बध ह। यदयषिप इनक और नागाजन क बी$ आयरशर और नागबोधि� आदिद आ$ाय समभाषिवत ह, षिकनत उनकी कोई भी र$ना उप3बध नही ह, अत: उनक बार म ठीक-ठीक षिनतति�त रप स कछ भी नही कहा जा सकता।

षिवदवानो की राय म बदधपाचि3त क चिसदधानत नागाजन स षिबलक3 ततिभनन नही ह, षिफर भी व माधयधिमक परमपरा म अतयधि�क $रशि$त ह। म3माधयधिमककारिरका की वयाखया म उनहोन सवतर परसग-वाकयो का परयोग षिकया ह, सा�न वाकयो का नही, जस षिक बौदध नयाधियक सा�न वाकयो का परयोग करत ह। इसी को 3कर भावषिववक न उनका खणडन षिकया और आ$ाय $नदरकीरतित न भावषिववक का खणडन कर बदधपाचि3त क षिव$ारो का समथन षिकया।

आ$ाय नागाजन दवारा परषितपादिदत षिन:सवभावता (रशनयता) को सवतनतर हतओ स चिसदध करना $ाषिहए, अथवा नही - इस षिव/य को 3कर माधयधिमको म दो रशाखाए षिवकचिसत हो गई-

1. सवातनतिनतरक माधयधिमक एव 2. परासषिगक माधयधिमक।

सवातनतिनतरको का कहना ह षिक षिन:सवभावता को सवतनतर हतओ स चिसदध करना $ाषिहए,

जबषिक परासषिगको का कहना ह षिक ऐसा करना माधयधिमक क चि3ए उचि$त नही ह, कयोषिक व हत, पकष आदिद षिकसी की भी स�ा नही मानत।

इसचि3ए जो 3ोग सवभावस�ा की हतओ दवारा चिसजिदध करत ह, माधयधिमक को $ाषिहए षिक उनक हतओ म दो/ दिदख3ाकर यह चिसदध करना $ाषिहए षिक उनक हत षिकसी की भी सवभावस�ा चिसदध करन म सकषम नही ह। इस परकार दो/ दिदख3ाना ही 'परसग' का अथ ह। कव3 परसग का परयोग करन क कारण व परासषिगक कह3ात ह।

आग $3कर सवातानतिनतरको म भी दो रशाखाए षिवकचिसत हो गई-

1. सतरा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक एव 2. योगा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक।

परथम रशाखा क परवतक आ$ाय भावषिववक एव दसरी क आ$ाय रशानतरततिकषत ह।

आ$ाय� भावविववक / Acharya Bhavvivek माधयधिमक आ$ाय-परमपरा म आ$ाय भावषिववक या भवय का षिवचिरशF सथान ह। आ$ाय $नदरकीरतित न इनह परकाणड पसथिणडत एव महान तारतिकक कहा ह। आ$ाय नागाजन की म3माधयधिमककारिरका की टीका परजञापरदीप, मधयमकहरदय एव उसकी वतति�

तक जवा3ा तथा मधयमकाथसगरह आदिद इनकी परमख र$नाए ह। तक जवा3ा इनकी षिवचिरशF र$ना ह, जो षिवदवानो म अतयधि�क $रशि$त ह। इसम उनहोन बौदध एव बौदधतर सभी दरशनो की सपF एव षिवसतत आ3ो$ना की ह। दभागय स आज भावषिववक की कोई भी र$ना ससकत म उप3बध नही ह। भावषिववक परमाथत: रशनयवादी होत हए भी वयवहार म बाहयाथवादी ह- यह उनकी र$नाओ क

अनरशी3न स सपF ह।

आ$ाय� $नदरकीरतितG / Acharya Chandrakirti आ$ाय $नदरकीरतित परासषिगक माधयधिमक मत क परब3 समथक रह ह। आ$ाय भावषिववक न बदधपाचि3त

दवारा कव3 परसगवाकयो का ही परयोग षिकया जान पर अनक आकषप षिकय। उन (भावषिववक) का कहना ह षिक कव3 परसगवाकयो क दवारा परवादी को रशनयता का जञान नही कराया जा सकता, अत: सवतनतर अनमान का परयोग षिनतानत आवशयक ह। इस पर $नदरकीरतित का कहना ह षिक अस3ी माधयधिमक को सवतनतर अनमान का परयोग नही ही करना $ाषिहए।

सवतनतर अनमान का परयोग तभी समभव ह, जबषिक वयवहार म वसत की सव3कषणस�ा सवीकार की जाए। $नदरकीरतित क मतानसार सव3कषणस�ा वयवहार म भी नही ह। यही नागाजन का भी अततिभपराय ह। उनका कहना ह षिक परमाथत: रशनयता मानत हए वयवहार म सव3कषणस�ा मानकर भावषिववक न नागाजन क अततिभपराय क षिवपरीत आ$रण षिकया ह। $नदरकीरतित क अनसार भावषिववक नागाजन क सही मनतवय को नही समझ सक।

$नदरकीरतित परसगवाकयो का परयोजन परवादी को अनमान षिवरो� दिदख3ाना मातर मानत ह। परषितवादी जब अपन मत म षिवरो� दखता ह तो सवय उसस हट जाता ह। यदिद षिवरो� दिदख3ान पर भी वह नही हटता ह तो सवतनतर हत क परयोग स भी उस नही हटाया जा सकता, अत: सवतनतर अनमान का परयोग वयथ ह। सवतनतर अनमान नही मानन पर भी $नदरकीरतित परचिसदध अनमान मानत ह, जिजसक �मG, पकष�मता आदिद परषितपकष को मानय होत ह।

नयाय परमपरा क अनसार पकष-परषितपकष दोनो दवारा मानय उभयपरचिसदध अनमान का परयोग उचि$त माना जाता ह। अथात दFानत आदिद वादी एव परषितवादी दोनो को मानय होना $ाषिहए। षिकनत $नदरकीरतित यह आवशयक नही मानत। उनका कहना ह षिक यह उभय परचिसजिदध सवतनतर हत मानन पर षिनभर ह।

सवतनतर हत सव3कषणस�ा मानन पर षिनभर ह। सव3कषणस�ा मानना ही सारी गडबडी का म3 ह। अत: $नदरकीरतित क अनसार भवषिववक न सव3कषणस�ा मानकर नागाजन क दरशन को षिवकत कर दिदया ह। कव3 परसग का परयोग ही पयापत ह और उसी स परपरषितजञा का षिन/� हो जाता ह।

षिवदवानो की राय म $नदरकीरतित न आ$ाय नागाजन क अततिभपराय को यथाथरप म परसतत षिकया। आ$ाय $नदरकीरतित की अनक र$नाए ह, जिजनम नागाजन- परणीत म3माधयधिमककारिरका की टीका

परसननपदा, आयदव क $त:रशतक की टीका, मधयमकावतार और उसकी सववतति� परमख ह। इन र$नाओ क दवारा $नदरकीरतित न नागाजन क माधयधिमक दरशन की सही समझ पदा की ह।

आ$ाय� असङग / Acharya Asang आय असग, वसबनध एव षिवरिरसथिञ$वतस तीनो भाई थ। इनम आय असग सबस बड एव षिवरिरसथिञ$वतस

सबस छोट थ। गानधार परदरश क पर/पर म इनका जनम हआ था। य कौचिरशकगोतरीय बराहमण थ। एक अनय परमपरा क

अनसार असग और वसबनध की मा एक थी, षिकनत षिपता ततिभनन-ततिभनन थ। तारानाथ क अनसार माता बराहमणी थी और उनका नाम परकारशरशी3ा था। असग क षिपता कषषितरय थ

तथा वसबनध क षिपता बराहमण। इनक का3 क बार म अतयधि�क वाद-षिववाद ह, षिकनत सबका परिररशी3न करन क अननतर इनका का3

$तथ रशताबदी मानना उचि$त ह।

आ$ाय असग बौदध दरशन क योगा$ार अथात षिवजञानवाद परसथान क परवतक ह। परमपरा क अनसार अनागत बदध मतरय बोधि�सततव न तषि/त3ोक म आय असग को पा$ गरनथ परकाचिरशत

षिकय थ, जिजनका असग न 3ोक म परसार षिकया। इ�र षिवदवानो की यह �ारणा बनी षिक जिजन गरनथो क बार म ऐसी परचिसजिदध ह, व असग क गर षिकसी

मानवरपी मतरयनाथ की र$नाए ह। अत: अब यह समभावना वयकत की जा रही ह षिक योगा$ार परसथान क परवतक वसतत: मतरयनाथ ह।

योगा$ार (षिवजञानवाद) क षिवकास क इषितहास म असग अतयधि�क महतवपण आ$ाय ह। मतरयनाथ की समसत र$नाए षिवजञानवादषिव/यक ही ह, यह षिनतति�तरप स नही कहा जा सकता।

उ�रतनतर और अततिभसमया3ङकार तो षिन�य ही माधयधिमक गरनथ ह। असग क साषिहतय म षिवजञानवाद का बहत परषितपादन ह।

आ$ाय असग की रश3ी आगमो की तरह ह और उनहोन यचिकत स अधि�क आगमो का आशरय चि3या ह। आ$ाय असग की अनक कषितया ह, जिजनका ससकत म3 पराय: अनप3बध ह। भोटभा/ा म उनका अनवाद उप3बध होता ह। तथा व वहा क 'तन-गयर' सगरह म सकचि3त ह।

आ$ाय� सथिसथरमवित / Acharya Sthirmati आ$ाय सथिसथरमषित आ$ाय वसबनध क $ार परखयात चिरशषयो म स अनयतम ह। उनक $ार चिरशषय अतयनत

परचिसदध थ। य अपन षिव/य म अपन गर स भी बढ-$ढ कर थ, यथा- अततिभ�म म सथिसथरमषित, परजञापारधिमता म षिवमचिकतसन, षिवनय म गणपरभ तथा नयायरशासतर म दिदनाग। आ$ाय सथिसथरमषित का जनम दणडकारणय म एक वयापारी क घर हआ था।

अनय षिवदवानो क अनसार व मधयभारत क बराहमणक3 म उतपनन हए थ। परमपरा क अनसार सात व/ की आय म ही व वसबनध क पास पह$ गय थ। तारानाथ क अनसार तारादवी उनकी इF दवता थी। वसबनध क समान य भी द�/ रशासतराथG थ।

वसबनध क अननतर इनहोन अनक तरशिथको को रशासतराथ करक पराजिजत षिकया था। तारानाथ न चि3खा ह षिक सथिसथरमषित न आयरतनकट और म3माधयधिमककारिरका की वयाखया भी चि3खी थी तथा उनहोन म3माधयधिमकाकारिरका का अततिभपराय षिवजञनतिपतमातरता क अथ म चि3या था।

तारानाथ न आग चि3खा ह षिक अततिभ�मकोरश पर टीका चि3खन वा3 सथिसथरमषित कौन सथिसथरमषित ह? यह अजञात ह। इसका तातपय यह ह षिक उनह अततिभ�मकोरश एव वितरचिरशका की टीका चि3खन वा3 सथिसथरमषित क एक होन म सनदह ह। इनका का3 पा$वी रशताबदी का उ�रा� माना जाता ह।

[सपादिदत कर] कवितयाषितबबती भा/ा म सथिसथरमषित की छह र$नाए उप3बध ह। य सभी र$नाए उचचकोदिट की ह। (1) आयमहारतनकट �मपयायरशतसाहनधिसतरकापरिरवतकाशयपपरिरवत टीका। यह आयमहारतनकट की टीका ह, जिजसका उल3ख तारानाथ न षिकया ह। यह बहत ही षिवसतत एव सथ3काय गरनथ ह। (2) सतरा3ङकारवतति�भाषय- यह वसबनध की सतरा3ङकारवतति� पर भाषय ह। (3) पञ$सकनधपरकरण- वभाषय- यह वसबनध क पञ$सकनधपरकरण पर भाषय ह।

(4) मधयानतषिवभङग-टीका- यह मतरयनाथ क मधयानतषिवभङग टीका ह। (5) अततिभ�मकोरशभाषयटीका- यह अततिभ�मकोरश भाषय पर तातपय नाम की टीका ह। (6) वितरचिरशकाभाषय। इनक समसत गरनथ टीका या भाषय क रप म ही ह। इनका कोई सवतनतर गरनथ उप3बध नही ह। इनक माधयम स आ$ाय वसबनध का अततिभपराय पण रप स परकट हआ ह।

आ$ाय� दिदङनाग / Acharya Dinang

अनकरम[छपा]

1 आ$ाय दिदङनाग / Acharya Dinang 2 समय 3 यकतयनयायी सौतरानतिनतक 4 परमाणसमचचय

5 समबधि�त लि3क आ$ाय दिदङनाग का जनम दततिकषण भारत क काञ$ीनगर क समीप लिसहवकतर नामक सथान पर

षिवदया-षिवनयसमपनन बराहमण क3 म हआ था। उनहोन अपन आरसमिमभक जीवन म परमपरागत सभी रशासतरो का षिवधि�वत अधययन षिकया था और उनम पण पारगत पसथिणडत हो गय थ। इसक बाद व वातसीपतरीय षिनकाय क महासथषिवर नागद� स परवरजया गरहण कर बौदध ततिभकष हो गय। *'दिदङनाग' यह नाम परवरजया क अवसर पर दिदया हआ उनका नाम ह।

महासथषिवर नागद� स ही उनहोन समसत शरावक षिपटको एव रशासतरो का अधययन षिकया था और उनम परम षिनषणात हो गय थ। एक दिदन महासथषिवर नागद� न उनह 'रशमथ' और 'षिवपशयना' षिव/य को समझात हए अषिनव$नीय पदग3 की दरशना की।

दिदङनाग अतयनत तीकषण बजिदध क सवतनतर षिव$ारक पसथिणडत थ। उनह अषिनव$नीय पदग3 का चिसदधानत रचि$कर परतीत नही हआ। गर क उपदरश की परीकषा क चि3ए अपन षिनवास-सथान पर आकर उनहोन दिदन म सार दरवाजो-खिखडषिकयो को खो3कर तथा रात म $ारो ओर दीपक ज3ाकर कपडो को उतार कर चिसर स पर तक सार अगो को बाहर-भीतर सकषम रप म षिनरीकषण करत हए अषिनव$नीय पदग3 को दखना रशर षिकया। अपन साथ अधययन करन वा3 साचिथयो क यह पछन पर षिक 'यह आप कया कर रह ह'? दिदङनाग न कहा- 'पदग3 की खोज कर रहा ह'। सकषमतया षिनरीकषण करन पर भी उनहोन कही पदग3 की परानतिपत नही की। चिरशषय परमपरा स यह बात महासथषिवर गर नागद� तक पह$ गई। नागद� को 3गा षिक दिदङनाग हमारा अपमान कर रहा ह और अपन षिनकाय क चिसदधानतो क परषित उस अषिवशवास ह। गर न दिदङनाग पर कषिपत होकर उनह सघ स बाहर षिनका3 दिदया। षिनका3 दिदय जान क बाद करमरश: $ारिरका करत हए व आ$ाय वसबनध क समीप पह$। इस अनशरषित स यह षिनषक/ षिनक3ता ह षिक दिदङनाग पह3 वातसीपतरीय षिनकाय म परवरजिजत हए थ, षिकनत उस षिनकाय क दारशषिनक चिसदधानत उनह रचि$कर परतीत नही हए। इसक बाद आ$ाय वसबनध क समीप रहकर उनहोन समसत शरावक और महायान षिपटक, समपण बौदध रशासतर और षिवरश/त: परमाणरशासतर का गमभीर अधययन षिकया।

कहा जाता ह षिक आ$ाय वसबनध क $ार चिरशषय अपन-अपन षिव/यो म वसबनध स भी अधि�क षिवदवान थ। जस-

1. आ$ाय गणपरभ- षिवनय-रशासतरो म, 2. आ$ाय सथिसथरमषित- अततिभ�म षिव/य म, 3. आ$ाय षिवमचिकतसन- परजञापारधिमता रशासतर म तथा 4. आ$ाय दिदङनाग- परमाणरशासतर म।

कछ षिवदवानो की राय ह षिक आ$ाय षिवमचिकतसन दिदङनाग क चिरशषय थ, वसबनध क नही। भोटदरशीय षिवदवतपरमपरा तो उनह वसबनध का चिरशषय ही षिन�ारिरत करती ह।

भारतीय इषितहास क ममजञ भोटषिवजञान 3ामा तारानाथ का कहना ह षिक षितररतन दास और सघदास भी वसबनध क चिरशषय थ।

[सपादिदत कर] समय आ$ाय दिदङनाग क समय को 3कर षिवदवानो म षिववाद अधि�क ह। डॉ॰ सतीरश$नदर षिवदयाभ/ण उनका का3 ईसवीय सन 450 स 520 क बी$ षिन�ारिरत करत ह। डॉ॰ एस. एन. दास गपत उनह ईसवीय पा$वी रशताबदी क अनत म उतपनन मानत ह। डॉ॰ षिवनयघो/ भटटा$ाय मानत ह षिक व 345 स 425 ईसवीय व/� म षिवदयमान थ। पसथिणडत द3सखभाई मा3वततिणया इस मत का समथन करत ह। नयायसतरो क भाषयकार वातसयायन और पररशसतपाद क मतो की दिदङनाग न यचिकतपवक समा3ो$ना की

ह तथा नयायवारतितकार उदयोतकर न दिदङनाग क मत की समा3ो$ना दिदङनाग की र$नाओ का अनवाद $ीनी भा/ा म 557 स 569 ईसवीय व/� म समपनन हो गया था। इन सब साकषयो क आ�ार पर आ$ाय दिदङनाग का का3 ईसवीय पा$वी रशताबदी का पवादध मानना समी$ीन मा3म होता ह।

महापसथिणडत राह3 साकतयायन भी उनह 425 ईसवीय व/ म षिवदयमान मानत ह। आ$ाय दिदङनाग की अनक र$नाए ह। उनहोन षिवततिभनन षिव/यो पर गरनथो का परणयन षिकया ह।

[सपादिदत कर] यकतयनयायी सौ1ापतिनतक आ$ाय दिदङनाग क पराय: सभी गरनथ षिवरशदध परमाणमीमासा स समबदध तथा सवतनतर एव मौचि3क गरनथ

ह। इसीचि3ए व भारतीय तक रशासतर क परवतक महान तारतिकक मान जात ह। इन गरनथो म जिजन षिव/यो को आ$ाय न परषितपादिदत षिकया ह, व सौतरानतिनतक दरशन सममत ही ह। बाहयाथ की स�ा एव जञान की साकारता को मानत हए उनहोन षिव/य का षिनरपण षिकया ह। परमाणसमचचय क अव3ोकन स यह षिनतति�त होता ह षिक कव3 परमाणफ3 क षिनरपण क अवसर पर ही उनहोन षिवजञानवादी दधिFकोण अपनाया ह। परमाण और परमयो की सथापना उनहोन षिवरश/त: सौतरानतिनतक दरशन क अनरप ही की ह। दिदङनाग क इन षिव$ारो न सौतरानतिनतक षिनकाय क चि$नतन की एक अपव दिदरशा उदधादिटत की ह, जिजसस उकत षिनकाय क चि$नतन म नतन परिरवतन परिर3ततिकषत होता ह। दिदङनाग क इस परयास स तततवचि$नतन क कषतर म तक षिवदया की महती परषितyा हई और जञान की परीकषा क नए षिनयम षिवकचिसत हए तथा व षिनयम सभी रशासतरीय परमपराओ और समपरदायो म मानय हए। वासतव म दिदङनाग स ही षिवरशदध तक रशासतर

परारमभ हआ। फ3त: सौतरानतिनतक षिनकाय न आगम की परिरधि� स बाहर षिनक3 कर अभयदय और षिन:शरयस क सा�क दारशषिनक कषतर म पदापण षिकया।

दिदङनाग क बाद आ$ाय �मकीरतित न दिदङनाग क गरनथो म चिछप हए गढ तथयो का परकारशन करत हए सात गरनथो (सपत परमाणरशासतर) की र$ना की। उन गरनथो म नयायपरमशवर �मकीरतित न बदधव$नो की नयाथता और नीताथता का षिवव$न करत हए रशतसाहनधिसतरका परजञापारधिमता आदिद परजञापारधिमता सतरो को बदधव$न क रप म परमाततिणत षिकया। आ$ाय �मकीरतित क इस सतपरयास स दिदङनाग क बार म जो धिमथया दधिFया और भरम उतपनन हो गय थ, उनका षिनरास हआ। 3ोग कहत थ षिक दिदङनाग न कव3 वाद-षिववाद एव जय-पराजय म3क तक रशासतरो की र$ना की ह। उनम माग और फ3 का षिनरपण नही ह और ऐस रशासतरो की र$ना करना अधयातम पर�ान बौदध �म क अनयायी एक ततिभकष को रशोभा नही दता। �मकीरतित की वयाखया की वजह स दिदङनाग समसत बदध व$नो क उतकF वयाखयाता और महान रथी चिसदध हए। साथ ही, सौतरानतिनतको की दारशषिनक परमपरा का नया आयाम परकाचिरशत हआ। फ3त: इन दोनो क बाद सौतरानतिनतक दरशन क जो भी आ$ाय उतपनन हए, व सब 'यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतक' कह3ाए। इसी परमपरा म आग $3कर परचिसदध सौतरानतिनतक आ$ाय रशभगपत भी उतपनन हए।

यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतक दरशन-परसथान क षिवकास म षिन:सनदह आ$ाय �मकीरतित का योगदान रहा ह, षिकनत इसका पराथधिमक शरय आ$ाय दिदङनाग को जाता ह। यह सही ह षिक परमाणरशासतर और नयायपरषिकरया क षिवकास म आ$ाय �मकीरतित क षिवचिरशF मत और मौचि3क उदभावनाए रही ह, षिकनत सभी पारवतG आ$ाय और षिवदवान उनह दिदङनाग क वयाखयाकार ही मानत ह। �मकीरतित दवारा परणीत सभी गरनथो क षिव/य व ही रह ह, जो दिदङनाग क परमाणसमचचय क ह। यदयषिप �मकीरतित न परमाणवारतितक क परथम परिरचछद म परमयवयवसथा और परमाणफ3 की सथापना क सनदभ म षिवजञनतिपतमातरता की $$ा की ह और इस तरह षिवजञानवाद की परषितyा की ह, षिकनत इन थोड सथानो को छोडकर रश/ समपण गरनथ म सौतरानतिनतक दधिF स ही षिव/य की सथापना की ह। इसचि3ए आ$ाय दिदङनाग और �मकीरतित यदयषिप महायान क अनयायी ह, षिफर भी यह कहा जा सकता ह षिक य दोनो सौतरानतिनतक आ$ाय थ। यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतक दरशनपरमपरा का सवरप उसक दरशन क सवरप का षिनरपण करत समय आग षिववचि$त ह।

आ$ाय �मकीरतित क परमय समबनधी षिव$ार आ$ाय दिदङनाग क समान ही ह। �मकीरतित दवारा परणीत परमाणवारतितक, परमाणषिवषिन�य, नयायषिबनद, हतषिबनद, समबनधपरीकषा, सनताननतरचिसजिदध और वादनयाय सातो परचिसदध गरनथ परमाणसमचचय की टीका क रप म उपषिनबदध ह। यदयषिप इन गरनथो म परमयवयवसथा क अवसर पर यचिकत-अनयायी सौतरानतिनतक और यचिकत-अनयायी षिवजञानवादिदयो की षिव$ार�ारा क अनरप तततवमीमासा की षिवरश/ रप स $$ा की गई ह, तथाषिप य गरनथ मखय रप स परमाणमीमासा क परषितपादक ही ह।

[सपादिदत कर] परमाणसमचचययह गरनथ आ$ाय दिदङनाग की कषित ह। यह आ$ाय की अनक चिछटपट र$नाओ का समचचय ह और अतयनत महततवपण ह। यह महनीय भावी बौदध नयाय क षिवकास का आ�ार और बौदध षिव$ारो म नई उतकरानतिनत का वाहक रहा ह। इस गरनथ क परभाव स भारतीय दारशषिनक चि$नतन�ारा म नए एव षिवचिरशF परिरवतन का सतरपात हआ। जञान क समयकतव की परीकषा, पवागरहमकत तततवचि$नतन, परमाण क परामाणय आदिद का षिन�ारण आदिद व षिवरश/ताए ह, जिजनका षिवशल/ण दिदङनाग क बाद पराय: सभी भारतीय दरशनो म बह3ता स परारमभ होता ह। इस परकार हम षिवरशदध जञानमीमासा और षिनरपकष परमाणमीमासा का परादभाव दिदङनाग क बाद घदिटत होत हए दखत ह। इस गरनथ म छह परिरचछद ह, यथा-

1. परतयकष परिरचछद, 2. सवाथनमान परिरचछद,

3. पराथनमान परिरचछद,

4. दFानतपरीकषा, 5. अपोहपरीकषा एव 6. जातय�र परीकषा।

इन परिरचछदो क षिव/य उनक नाम स ही परकट ह। इनम सवसवदन परतयकष की ससपF सथापना, परमाणदवय का सपF षिन�ारण, जञान की ही परमाणता, सा�न और द/ण का षिवव$न, रशबदाथ-षिव/यक चि$नतन (अपोहषिव$ार), परमाण और परमाणफ3 की एकातमकता एव परसग क सवरप का षिन�ारण आदिद षिव/य षिवरश/ रप स $रशि$त हए ह।

आ$ाय� �म�कीरतितG / Acharya Dharmkirtiआ$ाय दिदङनाग न जब 'परमाणसमचचय' चि3खकर बौदध परमाणरशासतर का बीज वपन षिकया तो अनय बौदधतर दारशषिनको म उसकी परषितषिकरया होना सवाभाषिवक था। तदनसार नयाय दरशन क वयाखयाकारो म उदयोतकर न, मीमासक मत क आ$ाय कमारिर3 न, जन आ$ायाÒ म आ$ाय मल3वादी न दिदङनाग क मनतवयो की समा3ो$ना की। फ3सवरप बौदध षिवदवानो को भी परमाणरशासतर क षिव/य म अपन षिव$ारो को सवयवसथिसथत करन का अवसर परापत हआ। ऐस षिवदवानो म आ$ाय �मकीरतित परमख ह, जिजनहोन दिदङनाग क दारशषिनक मनतवयो का सषिवरशद षिवव$न षिकया तथा उदयोतकर, कमारिर3 आदिद दारशषिनको की जमकर समा3ो$ना करक बौदध परमाणरशासतर की भधिमका को सदढ बनाया। उनहोन कव3 बौदधतर षिवदवानो की ही आ3ो$ना नही की, अषिपत कछ गौण षिव/यो म अपना मत दिदङनाग स ततिभनन रप म भी परसतत षिकया। उनहोन दिदङनाग क चिरशषय ईशवरसन की भी, जिजनहोन दिदङनाग क मनतवयो की अपनी समझ क अनसार वयाखया की थी, उनकी भी समा3ो$ना कर बौदध परमाणरशासतर को परिरपF षिकया।

आ$ाय �मकीरतित क परमाणरशासतर षिव/यक सात गरनथ परचिसदध ह। य सातो गरनथ परमाणसमचचय की वयाखया क रप म ही ह। परमाणसमचचय म परषितपादिदत षिव/यो का ही इन गरनथो म षिवरश/ षिववरण ह। षिकनत एक बात असजिनदग� ह षिक �मकीरतित क गरनथो क परकारश म आन क बाद दिदङनाग क गरनथो का अधययन गौण हो गया।

[सपादिदत कर] कवितयाआ$ाय �मकीरतित क सात गरनथ इस परकार ह-

1. परमाणवारतितक, 2. परमाणषिवषिन�य,

3. नयायषिबनद,

4. हतषिबनद,

5. वादनयाय,

6. समबनधपरीकषा एव 7. सनतानानतरचिसजिदध।

इनक अषितरिरकत परमाणवारतितक क 'सवाथानमान परिरचछद' की वतति� एव 'समबनधपरीकषा की टीका' भी सवय �मकीरतित न चि3खी ह।

आ$ाय �मकीरतित क इस गरनथो का पर�ान और परक क रप म भी षिवभाजन षिकया जाता ह। तथा षिह- 'नयायषिबनद' की र$ना तीकषणबजिदध पर/ो क चि3ए, 'परमाणषिवषिन�य' की र$ना मधयबजिदध पर/ो क चि3ए तथा 'परमाणवारतितक' का षिनमाण मनदबजिदध पर/ो क चि3ए ह- य ही तीनो पर�ान गरनथ ह।, जिजनम परमाणो स समबदध सभी वकतवयो का सषिवरशद षिनरपण षिकया गया ह। अवचिरशF $ार गरनथ परक क रप म ह। तथाषिह-सवाथानमान स समबदध हतओ का षिनरपण 'हतषिबनद' म ह। हतओ का अपन साधय क साथ समबनध का षिनरपण 'समबनधपरीकषा' म ह। पराथानमान स समबदध षिव/यो का षिनरपण 'वादनयाय' म ह अथात इसम पराथानमान क अवयवो का तथा जय-पराजय की वयवसथा कस हो- इसका षिवरश/ परषितपादन षिकया गया ह।

आ$ाय �मकीरतित दततिकषण क षितरम3य म बराहमण क3 म उतपनन हए थ। उनहोन परारसमिमभक अधययन वदिदक दरशनो का षिकया था। तदननतर वसबनध क चिरशषय �मपा3, जो उन दिदनो अतयनत वदध हो $क थ, उनक पास षिवरश/ रप स बौदध दरशन का अधययन करन क चि3ए व ना3नदा पह$। उनको तक रशासतर म षिवरश/ रचि$ थी, इसचि3ए दिदङनाग क चिरशषय ईशवरसन स उनहोन परमाणरशासतर का षिवरश/ अधययन षिकया तथा अपनी परषितभा क ब3 स दिदङनाग क परमाणरशासतर म ईशवरसन स भी आग बढ गय। तदननतर अपना अग3ा जीवन उनहोन वाद-षिववाद और परमाणवारतितक आदिद सपत परमाणरशासतरो की र$ना म षिबताया। अनत म कलि3ग दरश म उनकी मतय हई।

[सपादिदत कर] समयषितबबती परमपरा क अनसार आ$ाय कमारिर3 और आ$ाय �मकीरतित समका3ीन थ। कमारिर3 न दिदङनाग का खणडन तो षिकया ह, षिकनत �मकीरतित का नही, जबषिक �मकीरतित न कमारिर3 का खणडन षिकया ह। ऐसी सथिसथषित म कमारिर3 आ$ाय �मकीरतित क वदध समका3ीन ही हो सकत ह। आ$ाय �मकीरतित न तक रशासतर का अधययन ईशवरसन स षिकया था, षिकनत उनक दीकषा गर परचिसदध षिवदवान एव ना3नदा क आ$ाय �मपा3 थ। �मपा3 को वसबनध का चिरशषय कहा गया ह। वसबनध का समय $ौथी रशताबदी षिनतति�त षिकया गया ह। �मपा3 क चिरशषय रशी3भदर ईसवीय व/ 635 म षिवदयमान थ, जब हरनसाग ना3नदा पह$ थ। अत: यह मानना होगा षिक जिजस समय �मकीरतित दीततिकषत हए, उस समय �मपा3 मरणासनन थ। इस दधिF स षिव$ार करन पर �मकीरतित का का3 550-600 हो सकता ह।

आ$ाय �मकीरतित क मनतवयो का खणडन वरशषि/क दरशन म वयोमचिरशव न, मीमासा दरशन म रशाचि3कनाथ न, नयाय दरशन म जयनत और वा$सपषित धिमशर न, वदानत म भी वा$सपषित धिमशर न तथा जन दरशन म अक3ङक आदिद आ$ाय� न षिकया ह। �मकीरतित क टीकाकारो न उन आकषपो का यथासमभव षिनराकरण षिकया ह। �मकीरतित क टीकाकारो को तीन वग म षिवभकत षिकया जाता ह।

1. परथम वग क परसकता दवनदरबजिदध मान जात ह, जो �मकीरतित क साकषात चिरशषय थ और जिजनहोन रशबद पर�ान वयाखया की ह। दवनदर बजिदध न परमाणवारतितक की दो बार वयाखया चि3खकर �मकीरतित को दिदखाई और दोनो ही बार �मकीरतित न उस षिनरसत कर दिदया। अनत म तीसरी बार असनतF रहत हए भी उस सवीकार कर चि3या और मन म यह सो$कर षिनरारश हए षिक वसतत: मरा परमाण रशासतर यथाथ रप म कोई समझ नही सकगा। रशाकयबजिदध एव परभाबजिदध आदिद भी इसी परथम वग क आ$ाय ह।

2. दसर वग क ऐस आ$ाय ह, जिजनहोन रशबद पर�ान वयाखया का माग छोडकर �मकीरतित क तततवजञान को महततव दिदया। इस वग क परसकता आ$ाय �मp�र ह। �मp�र का कायकषतर कशमीर रहा, अत: उनकी परमपरा को कशमीर-परमपरा भी कहत ह। वसतत: �मकीरतित क मनतवयो का परकारशन �मp�र-परमपरा भी कहत ह। वसतत: �मकीरतित क मनतवयो क परकारशन �मp�र दवारा ही हआ ह। धवनया3ोक क कता आननदव�न न भी �मp�र कत परमाणषिवषिन�य की टीका पर टीका चि3खी ह, षिकनत वह अनप3बध ह। इसी परमपरा म रशकराननद न भी परमाणवारतितक पर एक षिवसतत वयाखया चि3खना रशर षिकया, षिकनत वह अ�री रही।

3. तीसर वग म �ारमिमक दधिF को महततव दन वा3 �मकीरतित क टीकाकार ह। उनम परजञाकर गपत पर�ान ह। उनहोन सवाथानमान को छोडकर रश/ तीन परिरचछदो पर 'अ3कार' नामक भाषय चि3खा, जिजस 'परमाणवारतितका3ङकार भाषय' कहत ह। इस शरणी क टीकाकारो म परमाणवारतितक क परमाणपरिरचछद का अतयधि�क महततव ह, कयोषिक उसम भगवान बदध की सवजञता तथा उनक �मकाय आदिद की चिसजिदध की गई ह। परजञाकर गपत का अनसरण करन वा3 आ$ाय हए ह। 'जिजन' नामक आ$ाय न परजञाकर क षिव$ारो की पधिF की ह। रषिवगपत परजञाकर क साकषात चिरशषय थ। जञानशरीधिमतर भी इसी परमपरा क अनयायी थ। जञानशरी क चिरशषय यमारिर न भी अ3कार की टीका की। कणगोमी न सवथानमान परिरचछद न $ारो परिरचछदो पर टीका चि3खी ह, षिकनत उस रशबदाथपरक वयाखया ही मानना $ाषिहए।

�मकीरतित क गरनथो की टीका-परमपरा कव3 ससकत म ही नही रही, अषिपत जब बौदध �म का परसार एव षिवकास षितबबत म हो गया तो वहा क अनक भोट षिवदवानो न भी षितबबती भा/ा म सवतनतर टीकाए परमाणवारतितक आदिद गरनथो पर चि3खी तथा उनका अधययन-अधयापन आज भी षितबबती परमपरा म पर$चि3त ह। इस परकार हम दखत ह षिक दिदङनाग क दवारा जो बौदध परमाणरशासतर का बीजवपन षिकया गया, वह �मकीरतित और उनक अनयाधिययो क परयासो स षिवरशा3 वटवकष क रप म परिरणत हो गया।

आ$ाय� रशानतरणिकषत / Acharya Shantrakshit आ$ाय रशानतरततिकषत सपरचिसदध सवातनतिनतरक माधयधिमक आ$ाय ह। उनहोन 'योगा$ार सवातनतिनतरक

माधयधिमक' दरशनपरसथान की सथापना की। उनका एक मातर गरनथ 'तततवसगरह' ससकत म उप3बध ह। उनहोन 'मधयमका3ङकार कारिरका' नामक माधयधिमक गरनथ एव उस पर सववतति� की भी र$ना की ह। इनही म उनहोन अपन षिवचिरशF माधयधिमक दधिFकोण को सपF षिकया ह। षिकनत य गरनथ ससकत म उप3बध नही ह, षिकनत उसका भोट भा/ा क आ�ार पर ससकत रपानतरण षितबबती-ससथान, सारनाथ स परकाचिरशत हआ ह, जो उप3बध ह।

आ$ाय कम3रशी3 और आ$ाय हरिरभदर इनक परमख चिरशषय ह। आ$ाय हरिरभदर षिवरचि$त अततिभसमया3ङकार की टीका 'आ3ोक' ससकत म उप3बध ह। यह अतयनत षिवसतत टीका ह, जो अततिभसमया3ङकार की सफटाथा टीका भी चि3खी ह, जो अतयनत परामाततिणक मानी जाती ह। षितबबत म अततिभसमय क अधययन क परसग म उसी का पठन-पाठन पर$चि3त ह। उसका भोटभा/ा स ससकत म रपानतरण हो गया ह और यह कनदरीय उचच षितबबती चिरशकषा ससथान, सारनाथ स परकाचिरशत ह।

आ$ाय रशानतरततिकषत वङगभधिम (आ�षिनक बग3ादरश) क ढाका मणड3 क अनतगत षिवकरमपरा अनमणड3 क 'जहोर' नामक सथान म कषषितरय क3 म उतपनन हए थ। य ना3नदा क षिनमनतरण पर षितबबत गय और उनहोन बौदध �म की सथापना की। अससी स अधि�क व/� तक य जीषिवत रह और षितबबत म ही उनका दहावसान हआ। आठवी रशताबदी पराय: इनका का3 माना जाता ह।

आ$ाय रशानतरततिकषत न अपनी र$नाओ म बाहयाथ� की स�ा मानन वा3 भावषिववक का खणडन षिकया और वयवहार म षिवजञनतिपतमातरता की सथापना की ह। उनकी राय म आय नागाजन का यही वासतषिवक अततिभपराय ह।

यदयषिप आ$ाय रशानतरततिकषत बाहयाथ नही मानत, षिफर भी बाहयाथरशनयता उनक मतानसार परमाथ सतय नही ह, जस षिक षिवजञानवादी उस परमाथ सतय मानत ह, अषिपत वह सवषित सतय या वयवहार सतय ह। भावषिववक की भाषित व भी 'परमाथत:' षिन:सवभावता' को परमाथ सतय मानत ह। वयवहार म व साकार षिवजञानवादी ह। षिवजञानवाद का रशानतरततिकषत पर अतयधि�क परभाव ह। व $नदरकीरतित की षिन:सवभावता को परमाथसतय नही मानत। भावषिववक की भाषित व सवतनतर अनमान का परयोग भी सवीकार करत ह। व आ3यषिवजञान को नही मानत। सवसवदन का परषितपादन उनहोन अपनी र$नाओ म षिकया ह, अत: व सवसवदन सवीकार करत ह।

[सपादिदत कर] कवितया आ$ाय रशानतरततिकषत भारतीय दरशनो क परकाणड पसथिणडत थ। यह उनक 'तततवसगरह' नामक गरनथ स सपF होता ह। इस गरनथ म उनहोन पराय: बौदधतर भारतीय दरशनो को पवपकष क रप म परसतत कर बौदध दधिF स उनका

खणडन षिकया ह। इस गरनथ क अनरशी3न स भारतीय दरशनो क ऐस-ऐस पकष परकाचिरशत होत ह, जो इस समय पराय:

अपरिरचि$त स हो गय ह। वसतत: यह गरनथ भारतीय दरशनो का महाकोरश ह। इनकी अनय र$नाओ म मधयमका3ङकारकारिरका एव उसकी सववतति� ह। इसक माधयम स उनहोन योगा$ार सवातनतिनतरक माधयधिमक रशाखा का परवतन षिकया ह। व वयावहारिरक सा�क और परचिसदध तानतिनतरक भी थ। तततवचिसजिदध, वादनयाय की षिवपसथिञ$ताथा वतति� एव हत$करडमर भी उनक गरनथ मान जात ह।

आ$ाय� कमलरशील / Acharya Kamalshil आ$ाय कम3रशी3 आ$ाय रशानतरततिकषत क परमख चिरशषयो म अनयतम थ। यदयषिप आ$ाय क जनम आदिद

क बार म षिकसी षिनतति�त षितचिथ पर षिवदवान एकमत नही ह, षिफर भी भोट दरश क नररश दिठसोङ दउ$न* क रशासनका3 म 792 ईसवीय व/ क आसपास षितबबत पह$ थ। आ$ाय ना3नदा क अगरणी षिवदवानो म स एक थ। उनकी षिवदवता का परमाण उनकी गमभीर एव षिवरशा3 कषितया ह।

भोट दरश म उनका पह$ना तब होता ह, जब समसत भोट जनता $ीनी ततिभकष हररशङग क कदरशन स परभाषिवत होकर दिदगभरधिमत हो रही थी और भारतीय बौदध �म क षिव3ोप का खतरा उपसथिसथत हो गया था। मन की षिव$ारहीनता की अवसथा को हररशङग-बदधतव-परानतिपत का उपाय बता रह थ। उस समय रशानतरततिकषत की मतय हो $की थी और आ$ाय पदमसमभव षितबबत स अनयतर जा $क थ। यदयषिप राजा दिठसोङ दउ$न भारतीय बौदध �म क पकषपाती थ, षिकनत हररशङग क नवीन अनयाधिययो का समझा पान म असमथ थ। तब आ$ाय रशानतरततिकषत क षितबबती चिरशषय न उनह आ$ाय रशानतरततिकषत की भषिवषयवाणी का समरण कराया, जिजसम कहा गया था षिक जब षितबबत म बौदध �म क अनयाधिययो म आनतरिरक षिववाद उतपनन होगा, उस समय आ$ाय कम3रशी3 को आमनतिनतरत करक उनस रशासतराथ करवाना।

तदनसार राजा क दवारा आ$ाय कम3रशी3 को षितबबत ब3ाया गया और व वहा पह$। उनहोन $ीनी ततिभकष हररशङग को रशासतराथ म पराजिजत षिकया और भारतीय बदधरशासन की वहा पन: परषितyा की। भोट

नररश न आ$ाय कम3रशी3 का सममान षिकया और उनह आधयानधितमक षिवदया क षिवभाग का पर�ान घोषि/त षिकया तथा $ीनी ततिभकष हररशङग को दरश स षिनका3 दिदया। इस तरह आ$ाय न वहा आय नागाजन क चिसदधानत एव सवासमिसतवादी षिवनय की रकषा की।

[सपादिदत कर] कवितयाउनकी परमख कषितया षिनमनचि3खिखत ह, जिजनह भोटदरशीय तन-गयर सगरह क आ�ार पर परसतत षिकया जा रहा ह : (1) आय सपतरशषितका परजञापारधिमता टीका, (2) आय वजरचछदिदका परजञापारधिमता टीका, (3) मधयमका3ङकारपसथिञजका,(4) मधयमका3ोक, (5) तततवा3ोक परकरण, (6) सव�मषिन: सवभावताचिसजिदध,(7) बोधि�चि$�भावना, (8) भावनाकरम, (9) भावनायोगावतार, (10) आय षिवकलपपरवरश�ारणी-टीका, (11) आयरशाचि3सतमब-टीका, (12) शरदधोतपादपरदीप, (13) नयायषिबनद पवपकषसकषप, (14) तततवसगरहपसथिञजका, (15) शरमणपञ$ारशतकारिरकापदाततिभसमरण, (16) बराहमणीदततिकषणामबाय अFद:खषिवरश/षिनदरश, (17) परततिण�ानदवयषिव�ा।

आ$ाय� पदमसभव / Acharya Padmsambhav भारत क पतति�म म ओषिÓयान नाम एक सथान ह। इनदरभषित नामक राजा वहा राजय करत थ। अनक

राषिनयो क होन पर भी उनक कोई सनतान न थी। उनहोन महादान षिकया। या$को की इचछाए पण करन क चि3ए सवणदवीप म सथिसथत नागकनया स चि$नतामततिण रतन परापत रकन क चि3ए उनहोन महासमदर की यातरा की। 3ौटत समय उनहोन एक दवीप म कम3 क भीतर सथिसथत 3गभग अFव/Gय बा3क को दखा। उस व अपन साथ 3 आए और उसका उनहोन राजयाततिभ/क षिकया। राजपतर का नाम सरोरहवजर रखा गया। राजय क परषित अरचि$ क कारण उनहोन षितररश3 और खटवाङग 3कर, असथिसथयो की मा3ा �ारण कर 3ग वदन होकर वरता$रण आरमभ कर दिदया। नतय करत समय उनक खटवाङग स एक मनतरी क पतर की मतय हो गई। दणडसवरप उनह वहा स षिनषकाचिसत कर दिदया गया। व ओषिÓयान क दततिकषण म सथिसथत रशीतवन नामक शमरशान म रहन 3ग। वहा रहत हए उनहोन मनतर$या क ब3 स कम-डाषिकषिनयो को अपन वरश म कर चि3या और 3ोगो न उनह 'रशानतरततिकषत' नाम दिदया।

वहा स व जहोर परदरश क आननदवन नामक शमरशान म गए और षिवचिरशF $या क कारण डाषिकनी मारजिजता दवारा अततिभ/क क साथ अधि�धिyत षिकय गए। तदननतर वहा स पन: उस दवीप म गय, जहा व पदम म उतपनन हए थ। वहा उनहोन डाषिकनी क सकतानसार गहयतनतर की सा�ना की और वजरवाराही का दरशन षिकया। वही पर उनहोन समदरीय डाषिकषिनयो को वरश म षिकया और आकारशीय गरहो पर अधि�कार परापत षिकया। डाषिकषिनयो न इनका नाम 'रौदरवजरषिवकरम' रखा।

एक बार उनक मन म भारतीय आ$ाय� स बौदध एव बौदधतर रशासतरो क अधययन की इचछा उतपनन हई। तदनसार जहोर परदरश क ततिभकष रशाकयमषिन क साथ आ$ाय परहषित क पास पह$। वहा उनहोन वरजरजया गरहण की और उनका नाम 'रशाकयलिसह' रखा गया।

तदननतर व म3य पवत पर षिनवास करन वा3 आ$ाय मञजशरीधिमतर क पास गए। उनहोन उनह ततिभकषणी आननदी क पास भजा। ततिभकषणी आननदी न उनह अनक अततिभ/क परदान षिकय। उनक साषिनधय म उनह आयरतिवदया एव महामदरा म अधि�कार परापत हआ। तदननतर अनय आ$ायाÒ स उनहोन परजरकी3षिवधि�, पदमवाखिगवधि�, रशानत-करो� माया �म एव उगर मनतरो का शरवण षिकया।

तदननतर व जहोर परदरश गय और वहा की राजकमारी को वरश म करक पोत3क पवत पर $3 गए। उस पवत की गफा म उनहोन अपरिरधिमताय मणड3 का परतयकष दरशन करक आय:सा�ना की और तीन माह की सा�ना क अननतर वरो$न अधिमताय बदध का साकषात दरशन षिकया। इसक बाद व जहोर और ओषिÓयान गए और वहा क 3ोगो को सदधम म परषितधिyत षिकया। उनहोन अनक तरशिथको को रशासतराथ म परासत षिकया तथा नपा3 जाकर महामदरा की चिसजिदध की।

[सपादिदत कर] वितबबत म बौदध�म� की सथापना भोट दरश म बौदध �म को परषितधिyत करन म आ$ाय पदमसभव की महततवपण भधिमका रही ह। यदयषिप

भारतीय आ$ाय रशानतरततिकषत न ततका3ीन भोट- समराट दिठसोङ द$न की सहायता स भोट दरश म बौदध �म का पर$ार षिकया, षिकनत पदमसभव की सहायता क षिबना व उसम सफ3 नही हो सक। उनकी ऋजिदध क ब3 स राकषस, षिपरशा$ आदिद दF रशचिकतया षितबबत छोडकर $ामर दवीप $3ी गई।

षितबबत म उनकी चिरशषय परमपरा आज भी कायम ह, जो समसत षिहमा3यी कषतर म भी फ3 हए ह। पदमसभव की बीज मनतर 'ओ आ: ह वजरगर पदम चिसजिदध ह, का जप करन म बौदध �माव3मबी अपना कलयाण समझत ह। आय अव3ोषिकतशवर क बीज मनतर 'ओ मततिण मदम ह' क बाद इसी मनतर का षितबबत म सवाधि�क जप होता ह। परतयक दरशमी क दिदन गर पदमसभव की षिवरश/ पजा बौदध �म क अनक समपरदायो म आयोजिजत की जाती ह, जिजसक पीछ यह मानयता षिनषिहत ह षिक दरशमी क दिदन गर पदमसभव साकषात दरशन दत ह।

जञात ह षिक आ$ाय रशानतरततिकषत न लहासा म 'समयस' नामक षिवहार बनाना परारमभ षिकया, षिकनत दF रशचिकतयो न उसम पन:-पन: षिवघन उपसथिसथत षिकया। जो भी षिनमाण काय दिदन म होता था, उस राषितर म धवसत कर दिदया जाता था। अनत म आ$ाय रशानतरततिकषत न राजा स भारत स आ$ाय पदमसभव को ब3ान क चि3ए कहा। राजा न दत भजकर आ$ाय को षितबबत आन क चि3ए षिनमनतिनतरत षिकया। आ$ाय पदमसभव महान तानतिनतरक थ। षितबबत आकर उनहोन अमान/ी दF रशचिकतयो का षिनगरह षिकया और काय-योगय वातावरण का षिनमाण षिकया। फ3त: महान 'समयस' षिवहार का षिनमाण सभव हो सका, जहा स $ारो दिदरशाओ म �म का परतयक मास की दरशमी षितचिथयो म परतयकष दरशन दन का व$न दिदया। करर 3ोगो को षिवनीत करन क चि3ए व यावत-ससार 3ोक म सथिसथत रहग- ऐसी बौदध शरदधा3ओ की मानयता ह।

आ$ाय� रशापतिनतदव / Acharya Shantidev माघयधिमक आ$ाय� म आ$ाय रशानतिनतदव का महतवपण सथान ह। इनकी र$नाए, अतयनत पराञज3 एव

भावपरवण ह, जो पाठक क हदय का सपरश करती ह और उस परभाषिवत करती ह। माधयधिमक दरशन और महायान �म क परसार म इनका अपव योगदान ह।

[सपादिदत कर] दारश�विनक मानयता

माधयधिमको म सदधानतिनतक दधिF स सवातनतिनतरक एव परासषिङगक भद अतयनत परचिसदध ह। सवातनतिनतरक माधयषितको म भी सतरा$ार सवातनतिनतरक और योगा$ार सवातनतिनतरक य दो भद ह। आ$ाय रशानतिनतदव परासषिङगक मत क परब3 समथक ह। षिव$ारो और तक� म य आ$ाय $नदरकीरतित का पणतया अनगमन करत ह। उनकी र$नाओ म बोधि�$यावतार परमख ह। इसम दस परिरचछद ह। नौव परजञापरिरचछद म इनकी दारशषिनक मानयताए परिरसफदिटत हई ह। इस परिरचछद म सवषित और परमाथ इन दो सतयो का इनहोन ससपF षिनरपण षिकया ह। इस षिनरपण म इनका $नदरकीरतित स कछ भी अनतर परतीत नही होता।

म3 सदधानतिनतक आ�ार पर ही माधयधिमको क दो वग ह। परथम वग म व माधयधिमक दारशषिनक आत ह, जो पदाथ� की सव3कषणस�ा सवीकार करत ह और परमाथत: उनकी षिन:सवभावता मानत ह, जिजस व 'रशनयता' कहत ह। दसर वग म व दारशषिनक परिरगततिणत होत ह, जो सव3कषणस�ा कथमषिप सवीकार नही करत और उस षिन:सव3कषणा को ही 'रशनयता' कहत ह। इनम परथम वग क माधयधिमक दारशषिनक सवातनतिनतरक तथा दसर वग क माधयधिमक परासषिङगक कह3ात ह। इन दोनो की मानयताओ म यह आ�ारभत अनतर ह, जिजसकी ओर जिजजञासओ का धयान जाना $ाषिहए, अनयथा माधयधिमक दरशन की षिनगढ अथ परिरजञात नही होगा। वयवहार म षिकसी �म का असमिसततव या उसकी स�ा को सवीकार करना या न करना म3भत अनतर नही ह, अषिपत उस षिन/धय क सवरप म जो म3भत अनतर ह, वह महततवपण ह, जिजस (षिन/धय) का षिन/� रशनयता कह3ाती ह तथा जिजसक षिन/� स सारी वयवसथाए समपनन होती ह। वसतत: सवतनतर अनमान या सवतनतर हतओ का परयोग या अपरयोग भी इसी षिन/धय पर आततिशरत ह। रशनयता क समयक परिरजञान क चि3ए उसक षिन/धय को सवपरथम जानना परमावशयक ह, अनयथा उस (रशनयता) का अभरानतजञान असमभव ह। षिबना षिन/धय को ठीक स जान रशनयता का षिव$ार षिनरथक होगा और ऐसी सथिसथषित म रशनयता का अथ अतयनत तचछता या षिनतानत अ3ीकता क अथ म गरहण करन की समभावना बन जाती ह। इसचि3ए आ$ाय नागाजन न भी आगाह षिकया ह। षिवनारशयषित ददFा रशनयता मनदम�सम। सपp यथा दगहीतो षिवदया वा दषपरसाधि�ता॥*

जब सवभावस�ा या सव3कषणस�ा का षिन/� षिकया जाता ह तो उसका यह अथ कतई नही होता ह षिक सव3कषण स�ा कही हो और सामन सथिसथत षिकसी �म म, यथा- घट या पट म उसका षिन/� षिकया जाता हो। अथवा रशरश (खरगोरश) कही हो और शरङग (सीग) भी कही हो, षिकनत उन दोनो की षिकसी एक सथान म षिवदयमानता का षिन/� षिकया जाता हो, अषिपत सभी �म� अथात वसतमातर म सव3कषणस�ा का षिन/� षिकया जाता ह। कहन का आरशय यह ह षिक घट सवय (सवत:) या पट सवय सव3कषण�ावान नही ह। इसी तरह कोई भी �म सवभावत: सत या सवत: सत नही ह। इसका यह भी अथ नही ह षिक वसत षिकसी भी रप म नही ह। सवभावत: सत नही होन पर भी वसत का अप3ाप नही षिकया जाता, अषिपत इसका सापकष या षिन:सवभाव असमिसततव सवीकार षिकया जाता ह और उसी क आ�ार पर काय-कारण, बनध-मोकष आदिद सारी वयवसथाए स$ारतया समपनन होती ह। यदयषिप सभी �म सव3कषणत: या सवभावत: सत नही ह, षिफर भी व अषिवदया क कारण सवभावत: सत क रप म दधिFगो$र होत ह और सवभावत: सत क रप म उनक परषित अततिभषिनवरश भी होता ह। �म जस परतीत होत ह, वसतत: उनका वसा असमिसततव नही होता। उनक यथादरशन या परतीषित क अनरप असमिसततव म तारशिथक बा�ाए ह, अत: अषिवदया क षिव/य को बाधि�त करना ही षिन/� का तातपय ह।

इस तरह षिन:सवभावता क आ�ार पर आ$ाय रशानतिनतदव न जनम-मरण, पाप-पणय, पवापर जनम आदिद की वयावहारिरक स�ा का परषितपादन षिकया ह। इसी तरह अतयनत सर3 एव परसाद गणयकत भा/ा म उनहोन सवसवदनपरतयकष क षिबना समरण की उतपतति�, वयवहताथ का अनव/ण करन पर उसकी अनप3समिबध तथा अषिव$ारिरत रमणीय 3ोकपरचिसजिदध क आ�ार पर सारी वयवसथाओ का सनदर षिनरपण

षिकया ह। वयावहारिरक स�ा पर उनका सवाधि�क जोर इसचि3ए भी ह षिक जागषितक वयवसथाए स$ार रप स समपनन हो सक ।

[सपादिदत कर] जीवन परिर$य आ$ाय रशानतिनतदव सातवी रशताबदी क मान जात ह। य सौराषटर क षिनवासी थ। बसतोन क अनसार य वहा

क राजा कलयाणवमा क पतर थ। इनक ब$पन का नाम रशानतिनत वमा था। यदयषिप व यवराज थ, षिकनत भगवती तारा की पररणा स उनहोन राजय का परिरतयाग कर दिदया। कहा जाता ह षिक सवय बोधि�सततव मञजशरी न योगी क रप म उनह दीकषा दी थी और व ततिभकष बन गए।

[सपादिदत कर] र$नाए परचिसदध इषितहासकार 3ामा तारानाथ क अनसार उनकी तीन र$नाए परचिसदध ह, यथा- बोधि�$यावतार,

चिरशकषासमचचय एव सतरसमचचय। बोधि�$यावतार समभवत: उनकी अनतिनतम र$ना ह, कयोषिक अनय दो गरनथो का उल3ख सवय उनहोन बोधि�$यावतार म षिकया ह। सवपरथम बोधि�$यावतार का परकारशन रसी षिवदवान आई.पी. धिमनायव न षिकया। तदननतर म.म. हरपरसाद रशासतरी न बजिदधसट टकसट सोसाइटी क जनर3 म इस परकाचिरशत षिकया। फर $ अनवाद क साथ परजञाकर मषित की टीका '3ा व3ी पस' न षिबसथिब3ओचिथका इसथिणडका म सन 1902 म परकाचिरशत की। नाजिजयो क कट3ाग म बोधि�$यावतार की एक ततिभनन वयाखया ह, उसम तीन ता3पतर उप3बध हए, जिजनम रशानतिनतदव का जीवन $रिरत दिदया हआ ह। इसक अनसार रशानतिनतदव षिकसी राजा क पतर थ। राजा का नाम मञजवमा चि3खा हआ ह, षिकनत तारानाथ क अनसार व सौराषटर क राजा क पतर थ। भोट भा/ा म बोधि�$यावतार का पराञज3 एव हदयावजक अनवाद ह।

आ$ाय रशानतिनतदव पारधिमतायान क साथ-साथ मनतरनय क भी परकाणड पसथिणडत थ। इतना ही नही, व महान सा�क भी थ। $ौरासी चिसदधो म इनकी गणना की जाती ह। तनतररशासतर पर इनकी महतवपण र$नाए ह। हमरशा सोत एव खात रहन क कारण इनका नाम 'भसक' पड गया था। वसतत: 'भसक' नामक समाधि� म सवदा समापनन रहन क कारण य 'भसक' कह3ात थ। ससकत म इनक 'शरी गहयसमाजमहायोगतनतर-बचि3षिवधि�' नामक तनतरगरनथ की स$ना ह। $या$यषिवषिन�य स जञात होता ह षिक भसक न वजरयान क कई गरनथ चि3ख। बगा3ी या अपभररश म इनक कई गान भी पाए जात ह। य गीत बौदध �म क सहजिजया समपदराय म पर$चि3त ह।

रशानत, मौन एव षिवनोदी सवभाव क कारण 3ोग उनकी षिवदवता स कम परिरचि$त थ। ना3नदा की सथानीय परमपरा क अनसार जयy मास क रशक3 पकष म परषितव/ �म$या का आयोजन होता था। ना3नदा क अधयता यवको न एक बार उनक जञान की परीकषा करन का कायकरम बनाया। उनका खया3 था षिक आ$ाय रशानतिनतदव कछ भी बो3 नही पाएग और अचछा मजा आएगा। व आ$ाय क पास गए और �मासन पर बठकर �मpपदरश करन का उनस आगरह षिकया। आ$ाय न षिनमनतरण सवीकार कर चि3या। ना3नदा महाषिवहार क उ�र पव म एक �मागार था। उसम पसथिणडत एकतर हए और रशानतिनतदव एक ऊ$ लिसहासन पर बठाए गए। उनहोन ततका3 पछा- 'म आ/ (भगवान बदध दवारा उपदिदF) का पाठ कर या अथा/ (आ$ाय� दवारा वयाखयाधियत) का पाठ कर? पसथिणडत 3ोग आ�य$षिकत हए और उनहोन अथा/ का पाठ सनान को कहा। उनहोन (रशानतिनतदव न) सो$ा षिक सवरचि$त तीन गरनथो म स षिकसका पाठ कर? अनत म उनहोन बोधि�$यावतार को पसनद षिकया और पढन 3ग। सगतान ससतान स�मकायानपरततिणपतयादरतोऽखिख3ा� वनदयान*यहा स 3कर-यदा न भावो नाभावो मत: सनतिनतyत पर:।

तदानयगतयभावन षिनरा3मबा पररशामयषित॥*तक पह$ तब भगवान सममख परादभत हए और रशानतिनतदव को अपन 3ोक म 3 गए। यह वणन उपयकत ता3पतरो स परापत होता ह। पसथिणडत 3ोग आ�य$षिकत हए तदननतर उनकी पढ-कटी ढटी गई, जिजसम उनह उनक तीनो गरनथ परापत हए।

आ$ाय� दीपङकर शरीजञान / Acharya Dipankar Shrigyanअषिदवतीय महान आ$ाय दीपङकर शरीजञान आयदरश क सभी षिनकायो तथा सभी यानो क परामाततिणक षिवदवान एव चिसदध पर/ थ। षितबबत म षिवरशदध बौदध �म क षिवकास म उनका अपव योगदान ह। भोट दरश म '3ङ दरमा' क रशासन का3 म बौदध �म जब अतयनत अवनत परिरसथिसथषित म पह$ गया था तब 'ङारीस' क 'लहा 3ामा खबोन' दवारा पराणो की परवाह षिकय षिबना अनक कFो क बावजद उनह षितबबत म आमनतिनतरत षिकया गया। 'ङारीस' तथा 'वइस $ङ' परदरश क अनक कषतरो म षिनवास करत हए उनहोन बदधरशासन का अपव रशदधीकरण षिकया। सतर तथा तनतर की समसत �मषिवधि� का एक पदग3 क जीवन म कस यगपद अनyान षिकया जाए- इसक सवरप को सपF करक उनहोन षिहमवत-परदरश म षिवम3 बदधरशासनरतन को पन: सयवत परकाचिरशत षिकया, जिजनकी उपकारराचिरश महामहोपाधयाय बोधि�सततव आ$ाय रशानतरततिकषत क समान ही ह।

[सपादिदत कर] जीवन परिर$यवतमान बग3ा दरश, जिजस, 'जहोर' या 'सहोर' कहत ह, परा$ीन समय म यह एक समदध राषटर था। यहा क राजा कलयाणशरी या रशभपा3 थ इनक अधि�कारकषतर म बहत बडा भभाग था। इनका मह3 सवणधवज कह3ाता था। उनकी रानी शरीपरभावती थी। इन दोनो की तीन सनतान थी। बड राजकमार 'पदमगभ' मझ3 राजकमार '$नदरगभ' तथा सबस छोट 'शरीगभ' कह3ात थ। आ$ाय दीपङकर शरीजञान मधय क राजकमार '$नदरगभ' ह, जिजनका ईसवीय व/ 982 म जनम हआ था।

बो�गया सथिसथत मषितषिवहार क महासधिघक समपरदाय क महासथषिवर रशी3रततिकषत स 29 व/ की आय म इनहोन परवरजया एव उपसमपदा गरहण की। 31 व/ तक पह$त-पह$त इनहोन 3गभग $ारो समपरदायो क षिपटको का शरवण एव मनन कर चि3या। साथ ही, षिवनय क षिव�ानो म भी पारङगत हो गए। अपनी अषिदवतीय षिवदव�ा क कारण व अतयनत परचिसदध हो गए और अनक जिजजञास जन �म, दरशन एव षिवनय स समबदध परशनो क समा�ान क चि3ए उनक पास आन 3ग।

षितबबत म उनक अनक चिरशषय थ, षिकनत उनम 'डोम' परमख थ। अपन जीवन क अनतिनतम समय म उनहोन डोम स कहा षिक अब बदध रशासन का भार तमहार हाथो म सौपना $ाहता ह। यह सनकर डोम को आभास हो गया षिक अब आ$ाय बहत दिदन जीषिवत नही रहग। उनहोन आ$ाय की बात भारी मन स मान 3ी। इस तरह अपना कायभार एक सयोगय चिरशषय को सौपकर व महान गर दीपङकर शरीजञान 1054 ईसवीय व/ म रशरीर तयाग कर तषि/त 3ोक म $3 गय।

[सपादिदत कर] र$नाए षितबबती क-गयर एव तन-गयर क अव3ोकन स आ$ाय दीपङकर षिवरचि$त गरनथो की स$ी बहत बडी ह। 3गभग 103 गरनथ उनस समबदध ह। ससकत म उनका एक भी गरनथ उप3बध न था।

षिकनत इ�र कनदरीय उचच षितबबती चिरशकषा ससथान, सारनथ स भोट भा/ा स ससकत म पनरदवार कर कछ गरनथ परकाचिरशत षिकय गय ह।

उनम बोधि�पथपरदीप, एकादरश 3घगरनथो का एक सगरह तथा उनक पा$ 3घगरनथो का एक सगरह उल3खनीय ह।

साथ ही षितरसकनघसतरटीका क अनतगत दीपङकर का कमावरणषिवरशो�नभाषय भी परकाचिरशत ह।