93482601-योग

22
fo"k; lwph 1 पिरचय 2 योग का इितहास o 2.1 पतंजिल के योग सूत o 2.2 भगवद गीता o 2.3 हठयोग 3 अनय परंपराओं मे योग पथाओं o 3.1 बौद - धमर 3.1.1 योगकारा बौिदक धमर 3.1.2 ' अन ( िसओन / जेन ) बौद धमर 3.1.3 भारत और ितबबती के बौिदक धमर o 3.2 जैन धमर 3.2.1 जैन िसदांत और सािहतय के संदभर o 3.3 इसलाम o 3.4 ईसाई धमर o 3.5 तं 4 योग का लकय योग

Upload: satishgoswami2

Post on 29-Oct-2014

38 views

Category:

Documents


8 download

TRANSCRIPT

Page 1: 93482601-योग

fo"k; lwph

• 1 पिरचय • 2 योग का इितहास

o 2.1 पतंजिल के योग सतू o 2.2 भगवद गीता o 2.3 हठयोग

• 3 अनय परपंराओं मे योग पथाओं o 3.1 बौद - धमर

• 3.1.1 योगकारा बौिदक धमर • 3.1.2 छ ' अन ( िसओन / जेन ) बौद धमर • 3.1.3 भारत और ितबबती के बौिदक धमर

o 3.2 जैन धमर • 3.2.1 जैन िसदांत और सािहतय के सदंभर

o 3.3 इसलाम o 3.4 ईसाई धमर o 3.5 ततं

• 4 योग का लकय

योग

Page 2: 93482601-योग

पदासन के मुदा मे यौिगक धयान पदशरन करते हुए िशव के मूितर

योग भारत मे पारिंभक पारपंिरक शारीिरक और मानिसक शासो को सिूचत करता ह।ै यह शबद बौद धमर और िहदंू धमर मे धयानापिकया से समबिंधत ह।ै

पिरचययोग शबद भारत मे तो सवरत पचिलत है ही, बौद धमर के साथ चीन, जापान, ितबबत, दिकण पूवर एिशया और लकंा मे भी फैल गया है और इस समय तो सारे सभय जगत् ‌ मे लोग इससे पिरिचत ह।ै ऐसी अवसथा मे ऐसा पतीत होता है िक इसका वाचयाथर सपष होगा और इसकी पिरभाषा सुिनिशचत होगी। परतं ुऐसा नही ह।ै भगवदगीता पितिषत गंथ माना जाता ह।ै उसमे योग शबद का कई बार पयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सिवशेषण, जैसे बुिदयोग, सनंयासयोग, कमरयोग। वेदोतर काल मे भिकयोग और हठयोग नाम भी पचिलत हो गए ह।ै महातमा गांधी ने अनासिक योग का वयवहार िकया ह।ै पातंजल योगदशरन मे िकयायोग शबद देखने मे आता ह।ै पाशुपत योग और माहेशवर योग जैसे शबदो का भी चचार िमलता ह।ै इन सब सथलो मे योग शबद के जो अथर है वह एक दसूरे के िवरोधी है परतं ुइतने िविभन पयोगो को देखने से यह तो सपष हो ही जाता है िक योग की पिरभाशा करना िकतना किठन काम ह।ै पिरभाषा ऐसी होनी चािहए जो अवयािप और अितवयािप दोषो से मुक

Page 3: 93482601-योग

हो, योग शबद के वाचयाथर का ऐसा लकण बतला सके जो पतयेक पसंग के िलये उपयकु हो और योग के िसवाय िकसी अनय वसतु के िलये उपयकु न हो।गीता मे शीकृषण ने एक सथल पर कहा है 'योग: कमरस ुकौशलम् ‌' कमो मे कुशलता को योग कहते ह।ै सपष है िक यह वाकय योग की पिरभाषा नही ह।ै कुछ िवदानो का यह मत है िक जीवातमा और परमातमा के िमल जाने को योग कहते ह।ै इस बात को सवीकार करने मे यह बडी आपित खडी होती है िक बौदमतावलंबी भी, जो परमातमा की सता को सवीकार नही करते, योग शबद का वयवहार करते और योग का समथरन करते है यही बात सांखयवािदयो के िलए भी कही जा सकती है जो ईशवर की सता को अिसद मानते है पंतजिल ने योगदशरन मे, जो पिरभाषा दी है 'योगिशवतवृितिनरोध, िवत की वृितयो के िनरोध = पूणरतया रक जाने का नाम योग ह।ै इस वाकय के दो अथर हो सकते है: िचतवृितयो के िनरोध की अवसथा का नाम योग है या इस अवसथा को लाने के उपाय को योग कहते ह।ैपरतं ुइस पिरभाषा पर कई िवदानो को आपित ह।ै उनका कहना है िक िचतवृितयो के पवाह का ही नाम िचत ह।ै पूणर िनरोध का अथर होगा िचत के अिसतव का पूणर लोप, िचताशय समसत समृितयो और संसकारो का िन:शेष हो जाना। यिद ऐसा हो जाए तो िफर समािध से उठना सभंव नही होगा। कयोिक उस अवसथा के सहारे के िलये कोई भी ससंकार बचा नही होगा, पारबध दगध हो गया होगा। िनरोध यिद सभंव हो तो शीकृषण के इस वाकयो का कया अथर होगा: योगसथ: कुर कमारिण, योग मे िसथत होकर कमर करो । िवरदावसथा मे कमर हो नही सकता और उस अवसथा मे कोई ससंकार नही पड सकते, समृितयाँ नही बन सकती, जो समािध से उठने के बाद कमर करने मे सहायक हो।सकेंप मे आशय यह है िक योग के शासीय सवरप, उसके दाशरिनक आधार, को समयक्‌ रप से समझना बहुत सरल नही ह।ै ससंार को िमथया माननेवाला अदैतवादी भी िनिदधयाह के नाम से उसका समथरन करता ह।ै अनीशवरवादी सांखया िवदान भी उसका अनमुोदन करता ह।ै बौद ही नही, मुिसलम सफूी और ईसाई िमिसटक भी िकसी न िकसी पकार अपने संपदाय की मानयताओं और दाशरिनक िसदांतो के साथ उसका सामंजसय सथािपत कर लेते ह।ैइन िविभन दाशरिनक िवचारधाराओ ंमे िकस पकार ऐसा समनवय हो सकता है िक ऐसा धरातल िमल सके िजसपर योग की िभित खडी की जा सके, यह बडा रोचक पशन है परतं ुइसके िववेचन के िलये बहुत समय चािहए। यहा ँउस पिकया पर थोडा सा िवचार कर लेना आवशयक है िजसकी रपरखेा हमको पतंजिल के सूतो मे िमलती

Page 4: 93482601-योग

ह।ै थोडे बहुत शबदभेद से यह पिकया उन सभी समुदायो को मानय है जो योग के अभयास का समथरन करते ह।ैपतंजिल को किपलोक सांखयदशरन ही अिभमत ह।ै थोडे मे, इस दशरन के अनसुार इस जगत् ‌ मे असंखया पुरष है और एक पधान या मूल पकृित। पुरष िचत् ‌ है, पधान अिचत् ‌। पुरष िनतय है और अपिरवतरनशील, पधान भी िनतय है परतं ुपिरवतरनशील। दोनो एक दसूरे से सदा पृथक है, परतं ुएक पकार से एक का दसूरे पर पभाव पडता ह।ै पुरष के सािनधय से पकृित मे पिरवतरन होने लगते ह।ै वह कुबध हो उठती ह।ै पहले उसमे महत्‌ या बुिद की उतपित होती है, िफर अहकंार की, िफर मन की। अहकंार से जानेिदयो और कमेिदयो तथा पाँच तनमाताओं अथारत् ‌ शबद, सपशर, रप, रस तथा गंध की, अंत मे इन पाँचो से आकाश, वायु, तेज, अप और िकित नाम के महाभूतो की। इन सबके सयंोग िवयोग से इस िवशव का खेल हो रहा ह।ै संकेप मे, यही सिृष का कम ह।ै पकृित मे पिरवतरन भले ही हो परतं ुपुरष जयो का तयो रहता ह।ै िफर भी एक बात होती ह।ै जसेै शवेत सफिटक के सामने रगं िबरगें फूलो को लाने से उसपर उनका रगंीन पितिबबं पडता है, इसी पकार पुरष पर पाकृितक िवकृितयो के पितिबबं पडते ह।ै कमश: वह बुिद से लेकर िकित तक से रिंजत पतीत होता है, अपने को पकृित के इन िवकारो से संबद मानने लगता ह।ै आज अपने को धनी, िनधरन, बलवान्‌ दबुरल, कुटंुबी, सखुी, द :ुखी, आिद मान रहा ह।ै अपने शदु रप से दरू जा पडा ह।ै यह उसका भम, अिवदा ह।ै पधान से बने हुए इन पदाथो ने उसके रप को ढँक रखा है, उसके ऊपर कई तह खोल पड गई ह।ै यिद वह इन खोलो, इन आवरणो को दरू फेक द ेतो उसका छुटकारा हो जायगा। िजस कम से बँधा है, उसके उलटे कम से बधंन टू टे गे। पहले महाभूतो से ऊपर उठना होगा। अंत मे पधान की ओर से मुँह फेरना होगा। यह बधंन वासतिवक नही है, परतं ुबहुत ही दढ पतीत होते ह।ै िजस उपयोग से बधंनो को तोडकर पुरष अपने शुद सवरप मे िसथत हो सके उस उपाय का नाम योग ह।ै सांखय के आचायो का कहना है: यदा तदा तदिुचछित: परमपुरषाथर:-जसेै भी हो सके पुरष और पधान के इस कृितम सयंोग का उचछेद करना परम पुरषाथर ह।ैयोग का यही दाशरिनक धरातल है: अिवदा के दरू होने पर जो अवसथा होती है उसका वणरन िविभन आचायो ं और िवचारको के िविभन ढंग से िकया ह।ै अपने अपने िवचार के अनसुार उनहोने उसको पृथक नाम भी िदए ह।ै कोई उसे केवलय कहता है, कोई मोक, कोई िनवारण। ऊपर पहँुचकर िजसको जैसा अनुभव हो वह उसे उस पकार कहे। वसतुत: वह अवसथा ऐसी हे यतो वाचो िनवतरते अपापय मनसा सह-जहा ँमन ओर वाणी की पहँुच नही ह।ै थोडे से शबदो मे एक और बात का भी चचार कर देना

Page 5: 93482601-योग

आवशयक ह।ै असंखय पुरषो के साथ पतंजिल के पुरष िवशेष नाम से ईशवर की सता को भी माना ह।ै सांखया के आचायर ऐसा नही मानते। वसतुत: मानने की आवशयकता भी नही ह।ै यिद योगदशरन मे से वह थोडे से सतू मे कोई अंतर नही पडता। योग की साधना की दिष से ईशवर को मानने न मानने का िवशेष महतव नही ह।ै ईशवर की सता को माननेवाले और न मानने वाले, दोनो योग मे समान रप से अिधकार रखते ह।ैिवदा और अिवदा, बधंन और उससे छुटकारा, सुख और द :ुख सब िचत मे ह।ै अत: जो कोई अपने सवरप मे िसथित पाने का इचछुक है उसको अपने िचत को उन वसतुओं से हटाने का पयतन करना होगा, जो हठात्‌ पधान और उसके िवकारो की ओर खीचती है और सुख द :ुख की अनुभूित उतपन करती ह।ै इस तरह िचत को हटाने तथा िचत के ऐसी वसतुओं से हट जाने का नाम वरैागय ह।ै यह योग की पहली सीढी ह।ै पूणर वरैागय एकदम नही हुआ करता। जयो जयो वयिक योग की साधना मे पवृत होता है तयो तयो वरैागय भी बढता है और जयो जयो वेरागय बढता है तयो तयो साधना मे पवृित बढती ह।ै जेसा पतंजिल ने कहा है: दष और अनशुिवक दोनो पकार के िवषयो मे िवरिक, गांधी जी के शबदो मे अनासिक, होनी चािहए। सवगर आिद, िजनका जान हमको अनशुुित अथारत् ‌ महातमाओ ंके वचनो और धमरगंथो से होता है, अनशुिवक कहलाते हे। योग की साधना को अभयास कहते ह।ै इधर कई सौ वषो से साधुओं मे इस आरमभ मे भजन शबद भी चल पडा ह।ैिचत जब तक इिंदयो के िवषयो की ओर बढता रहेगा, चंचल रहेगा। इिंदया ँउसका एक के बाद दसूरी भोगय वसतु से संपकर कराती रहेगी। िकतनो से िवयोग भी कराती रहेगी। काम, कोध, लोभ, आिद के उदीप होने के सकैडो अवसर आते रहेगे। सुखश् द :ुख की िनरतंर अनुभूित होती रहेगी। इस पकार पधान ओर उसके िवकारो के साथ जो बधंन अनेक जनमो से चले आ रहे है वे दढ से दढतर होते चले जाएँगे। अत: िचत को इिंदयो के िवषयो से खीचकर अंतमुरख करना होगा। इसके अनेक उपाय बताए गए है िजनके बयोरे मे जाने की आवशयकता नही ह।ै साधारण मनुषय के िचत की अवसथा िकप कहलाती ह।ै वह एक िवषय से दसूरे िवषय की ओर फेका िफरता ह।ै जब उसको पयतन करके िकसी एक िवषय पर लाया जाता है तब भी वह जलदी से िवषयंतर की ओर चला जाता ह।ै इस अवसथा को िविकप कहते ह।ै दीधर पयतन के बाद साधक उसे िकसी एक िवषय पर देर तक रख सकता ह।ै इस अवसथा का नाम एकाग ह।ै िचत को वशीभूत करना बहुत किठन काम ह।ै शीकृषण ने इसे पमािथ बलवत् ‌-मसत हाथी के समान बलवान् ‌-बताया ह।ै

Page 6: 93482601-योग

िचत को वश मे करने मे एक चीज से सहायता िमलती ह।ै यह साधारण अनुभव की बात है िक जब तक शरीर चंचल रहता है, िचत चंचल रहता है और िचत की चंचलता शरीर को चंचल बनाए रहती ह।ै शरीर की चंचलता नाडीसंसथान की चंचलता पर िनभरर करती ह।ै जब तक नाडीसंसथान संकुबध रहेगा, शरीर पर इिंदय गाह िवषयो के आधात होते रहेगे। उन आधातो का पभाव मिसतषक पर पडेगा िजसके फलसवरप िचत और शरीर दोनो मे ही चंचलता बनी रहेगी। िचत को िनशचल बनाने के िलये योगी वसैा ही उपाय करता है जसैा कभी कभी यदु मे करना पडता ह।ै िकसी पबल शत ुसे लडने मे यिद उसके िमतो को परासत िकया जा सके तो सफलता की सभंावना बढ जाती ह।ै योगी िचत पर अिधकार पाने के िलए शरीर और उसमे भी मुखयत: नाडीसंसथान, को वश मे करने का पयतन करता ह।ै शरीर भौितक है, नािडया ँभी भौितक ह।ै इसिलये इनसे िनपटना सहज ह।ै िजस पिकया से यह बात िसद होती है उसके दो अंग है: आसन और पाणायाम। आसन से शरीर िनशचल बनता ह।ै बहुत से आसनो का अभयास तो सवासथय की दिष से िकया जाता ह।ै पतंजिल ने इतना ही कहा है: िसथर सखुमासनम्‌: िजसपर देर तक िबना कष के बठैा जा सके वही आसन शेष ह।ै यही सही है िक आसनिसिद के िलये सवासथय संबधंी कुछ िनयमो का पालन आवशयक ह।ै जैसा शीकृषण ने गीता मे कहा है-युकाहार िबहारसय, युक चेषसय कमरस ु।युकसवपनावबोधसय, योगो भवित दु:खहा।।खाने, पीने, सोने, जागने सभी का िनयतंण करना होता ह।ै पाणायाम शबद के संबधं मे बहुत भम फैला हुआ ह।ै इस भम का कारण यह है िक आज लोग पाण शबद के अथर को पाय: भूल गए ह।ै बहुत से ऐसे लोग भी, जो अपने को योगी कहते है, इस शबद के सबंधं मे भूल करते ह।ै योगी को इस बात का पयतन करना होता है िक वह अपने पाण को सषुुमना मे ले जाय। सुषुमना वह नाडी है जो मेरदडं की नली मे िसथत है और मिसतषक के नीचे तक पहँुचती ह।ै यह कोई गुप चीज नही ह।ै आखो से देखी जा सकती ह।ै करीब करीब कनषािि उँगली के बराबर मोटी होती है, ठोस है, इसमे कोई छेद नही ह।ै पाण का और सासँ या हवा करनेवालो को इस बात का पता नही है िक इस नाडी मे हवा के घुसने के िलये औरऊपर चढने के िलये कोई मागर नही ह।ै पाण को हवा का समानाथरक मानकर ही ऐसी बाते कही जाती है िक अमुक महातमा ने अपनी साँस को बहांड मे चढा िलया। साँस पर िनयंतण रखने से नाडीसंसथान को िसथर करने मे िनशचय ही सहायता िमलती है, परतं ुयोगी का मुखय उदेशय पाण का िनयंतण है, सासँ का नही। पाण वह शिक है जो नाडीसंसथान मे सचंार करती ह।ै शरीर के सभी अवयवो को और सभी धातुओं को पाण से ही जीवन और सिकयता

Page 7: 93482601-योग

िमलती ह।ै जब शरीर के िसथर होने से ओर पणयाम की िकया से, पाण सुषुमना की ओर पवृत होता है तो उसका पवाह नीचे की नािडयो मे से िखंच जाता ह।ै अत: ये नािडया ँबाहर के आधातो की ओर से एक पकार से शूनयवत् ‌ हो जाती ह।ैपाणयाम का अभयास करना और पाणायाम मे सफलता पा जाना दो अलग अलग बाते ह।ै परतं ुवरैागय और तीव सवेंग के बल से सफलता का मागर पशसत हो जाता ह।ै जयो जयो अभयास दढ होता है, तयो तयो साधक के आतमिवशवास मे वृिद होती ह।ै एक और बात होती ह।ै वह िजतना ही अपने िचत को इिंदयो और उनके िवषयो से दरू खीचता है उतना ही उसकी ऐंिदय शिक भी बढती है अथारत् ‌ इिंदयो की िवषयो के भोग की शिक भी बढती ह।ै इसीिलये पाणायाम के बाद पतयाहार का नाम िलया जाता ह।ै पतयाहार का अथर है इिंदयो को उनके िवषयो से खीचना। वरैागय के पसंग मे यह उपदेश िदया जा चकुा है परतं ुपाणायम तक पहँचकर इसको िवशेष रप से दहुराने की आवशयकता ह।ै आसन, पाणायाम और पतयाहार के ही समुचचय का नाम हठयोग ह।ै खेद की बात है िक कुछ अभयासी यही रक जाते ह।ै जो लोग आगे बढते है उनके मागर को तीन िवभागो मे बाँटा जाता है: धारणा, धयान और समािध। इन तीनो को एक दसूरे से िबलकुल पृथक करना असंभव ह।ै धारण पुष होकर धयान का रप धारण करती है और उनत धयान ही समािध कहलाता ह।ै पतंजिल ने तीनो को सिममिलत रप से संयम कहा ह।ै धारणा वह उपाय है िजससे िचत को एकाग करने मे सहायता िमलती ह।ै यहाँ उपाय शबद का एकवचन मे पयोग हुआ है परतं ुवसतुत: इस काम के अनेक उपाय ह।ै इनमे से कुछ का चचार उपिनषदो मे आया ह।ै विैदक वाडमय मे िवदा शबद का पयोग िकया गया ह।ै िकसी मंत के जप, िकसी देव, देवी या महातमा के िवगह या सयूर, अिग, दीपिशखा आिद को शरीर के िकसी सथानिवशेष जेसे ि्हदय, मूघार, ितल अथारत दोनो आँखो के बीच के िबदं ु, इनमे से िकसी जगह कलपना मे िसथर करना, इस पकार के जो भी उपाय िकए जायँ वे सभी धारणा के अंतगरत ह।ै जेसा िक कुछ उपायो को बतलाने के बाद पतंजिल ने यह िलख िदया है यथािभमत धयानादा-जो वसतु अपने को अचछी लगे उसपर ही िचत को एकाग करने से काम चल सकता ह।ै िकसी पुराण मे ऐसी कथा आई है िक अपने गुर की आजा से िकसी अिशिकत वयिक ने अपनी भसै के माधयम से िचत को एकाग करके समािध पाप की थी।धारणा की सबसे उतम पदित वह है िजसे पुराने शबदो मे नादानसुंधान कहते ह।ै कबीर और उनके परवती सतंो ने इसे सुरत शबद योग की संजा दी ह।ै िजस पकार चंचल मगृ वीणा के सवरो से मुगध होकर चौकडी भरना भूल जाता है, उसी पकार साधक का िचत नाद के पभाव से चंचलता छोडकर िसथर हो जाता ह।ै वह नाद कौन

Page 8: 93482601-योग

सा है िजसमे िचत की वृितयो को लय करने का पयास िकया जाता है और यह पयास कैसे िकया जाता है, ये बाते तो गुरमुख से ही जानी जाती ह।ै अंतनारद के सकूमतम रप को पवल, ओंकार, कहते ह।ै पणव वसतुत: अनुचचाययर ह।ै उसका अनुभव िकया जा सकता है, वाणी मे वयंजना नही, नादिवंदपूिनषद् के शबदो मे:बह पणव संयानं, नादो जयोितमर य: िशव:।सवयमािवभर वेदातमा मेयापायेऽश ुमािनव।।पणव के अनसुंधान से, जयोितमरय और कलयाणकारी नाद उिदत होता ह।ै िफर आतमा सवयं उसी पकार पकट होता है, जेसे िक बादल के हटने पर चंदमा पकट होता ह।ै आिद शबद आंकार को परमातमा का पतीक कहा जाता ह।ै योिगयो मे सवरत ही इसकी मिहमा गाई गई ह।ै बाइिबल के उस खंड मे, िजसे सेट जानस गासपेल कहते है, पहला ही वाकय इस पकार है, आरभं मे शबद था। वह शबद परमातमा के साथ था। वह शबद परमातमा था। सूफी सतं कहते है हफै दर बदं ेिजसम दरमानी, न शनुवी सौते पाके रहमानी दु:ख की बात है िक तू शरीर के बधंन मे पडा रहता है और पिवत िदवय नाद को नही सनुता।िचत की एकागता जयो जयो बढती है तयो तयो साधकर को अनेक पकार के अनुभव होते ह।ै मनुषय अपनी इिंदयो की शिक से पिरिचत नही ह।ै उनसे न तो काम लेता है और न लेना चाहता ह।ै यह बात सनुने मे आशचयर की पतीत होती है, पर सच ह।ै मान लीिजए, हमारी चकु या शोत इिंदया की शिक कल आज से कई गुना बढ जाय। तब न जाने ऐसी िकतनी वसतुएँ दिषगोचर होने लगेगी िजनको देखकर हम काँप उठेगे। एक दसूरे के भीतर की रासायिनक िकया यिद एक बार देख पड जाय तो अपने िपय से िपय वयिक की ओर से घणृा हो जायगी। हमारे परम िमत पास की कोठरी मे बठेै हमारे संबधं मे कया कहते है, यिद यह बात सुनने मे आ जाय तो जीना दभूर हो जाय। हम कुछ वासनाओ ंके पुतले ह।ै अपनी इदंयो से वही तक काम लेते है जहा ँतक वासनाओ ंकी तृिप हो। इसिलये इिंदयो की शिक पसुप रहती है परतं ुजब योगाभयास के दारा वासनाओं का नयूनािधक शमन होता है तब इिंदया ँिनबारध रप से काम कर सकती है और हमको जगत् ‌ के सवरप के वासतिवक रप का कुछ पिरचय िदलाती ह।ै इस िवशव मे सपशर, रप, रस और गंध का अपार भडंार भरा पडा है िजसकी सता का हमको अनुभव नही ह।ै अंतरमुरख होने पर िबना हमारे पयास के ही इिंदया ँइस भडंार का दार हमारे सामने खोल देती ह।ै सुषुमना मे नािडयो की कई गंिथया ँहै, िजनमे कई जगहो से आई हुई नािडयाँ िमलती ह।ै इन सथानो को चक कहते ह।ै इनमे से िवशेष रप से छह चको का चचार योग के गंथो मे आता ह।ै सबसे नीचे मुलाधार है जो पाय: उस जगह पर है जहा ँसुषुमना का आरभं होता ह।ै और

Page 9: 93482601-योग

सबसे ऊपर आजा चक है जो ितल के सथान पर ह।ै इसे तृतीय नेत भी कहते ह।ै थोडा और ऊपर चलकर सषुुमना मिसतषक के नािडसंसथान से िमल जाती ह।ै मिसतषक के उस सबसे ऊपर के सथान पर िजसे शरीर िवजान मे सेरबेम कहते है, सहसारचक ह।ै जसैा िक एक महातमा ने कहा है:

मलूमंत करबंद िवचारी सात चक नव शोधै नारी।।

योगी के पारिंभक अनुभवो मे से कुछ की ओर ऊपर सकेंत िकया गया ह।ै ऐसे कुछ अनुभवो का उलेख शवेताशवर उपिनषद् मे भी िकया गया ह।ै वहा ँउनहोने कहा है िक अनल, अिनल, सयूर, चंद, खदोत, धूम, सफुिलंग, तारे अिभवयिककरािन योगे हशै् यह सब योग मे अिभवयक करानेवाले िचह है अथारत् ‌ इनके दारा योगी को यह िवशवास हो सकता है िक मै ठीक मागर पर चल रहा हँू। इसके ऊपर समािध तक पहँुचते पहँुचते योगी को जो अनुभव होते है उनका वणरन करना असंभव ह।ै कारण यह है िक उनका वणरन करने के िलये साधारण मनुषय को साधारण भाषा मे कोई पतीक या शबद नही िमलता। अचछे योिगयो ने उनके वणरन के संबधं मे कहा है िक यह काम वसैा ही है जैसे गूँगा गुड खाय। पूणारग मनुषय भी िकसी वसतु के सवाद का शबदो मे वणरन नही कर सकता, िफर गूँगा बेचारा तो असमथर है ही। गुड के सवाद का कुछ पिरचय फलो के सवाद से या िकसी अनय मीठी चीज के सादशय के आधार पर िदया भी जा सकता है, पर जसैा अनुभव हमको साधारणत: होता ही नही, वह तो सचमुच वाणी के परे ह।ैसमािध की सवोचच भूिमका के कुछ नीचे तक अिसमता रह जाती ह।ै अपनी पृथक सता अहम्‌ अिसम = मै हँू = यह पतीित रहती ह।ै अहम्‌ अिसम = मै हँू की संतान अथारत िनरतंर इस भावना के कारण वहा ँतक काल की सता ह।ै इसके बाद झीनी अिवदा मात रह जाती ह।ै उसके शय होने की अवसथा का नाम असंपजात समािध है िजसमे अिवदा का भी कय हो जाता है और पधान से किलपत संबधं का िवचछेद हो जाता ह।ै यह योग की पराकाषा ह।ै इसके आगे िफर शासाथर का दार खलु जाता ह।ै सांखय के आचायर कहते है िक जो योगी पुरष यहा ँतक पहँुचा, उसके िलये िफर तो पकृित का खेल बदं हो जाता ह।ै दसूरे लोगो के िलये जारी रहता ह।ै वह इस बात को यो समझाते ह।ै िकसी जगह नृतय हो रहा ह।ै कई वयिक उसे देख रहे ह।ै एक वयिक उनमे ऐसा भी है िजसको उस नृतय मे कोई अिभरिच नही ह।ै वह नतरकी की ओर से आँख फेर लेता ह।ै उसके िलये नृतय नही के बराबर ह।ै दसूरे के िलये वह रोचक ह।ै उनहोने कहा है िक उस अजा के साथ अथारत िनतया के साथ अज एकोऽनुशेते =

Page 10: 93482601-योग

एक अज शयन करता है और जहातयेनाम्‌ भुकभोगाम्‌ तथानय:-उसके भोग से तृप होकर दसूरा तयाग देता ह।ैअदैत वेदांत के आचायर सांखयसंमत पुरषो की अनेकता को सवीकार नही करते। उनके अितिरक और भी कई दािशनरक संपदाय है िजनके अपने अलग अलग िसदांत ह।ै पहले कहा जा चकुा है िक इस शासाथर मे यहा ंपडने की आवशयकता नही ह।ै जहा ंतक योग के वयवहािरक रप की बात है उसमे िकसी को िवरोध नही ह।ै वेदांत के आचायर भी िनिदरधयासन की उपयोिगता को सवीकार करते है और वेदांत दशरन मे वयास ने भी असकृदभयासात् ‌ ओर आसीन: सभंवात्‌ जैसे सतूो मे इसका समथरन िकया ह।ै इतना ही हमारे िलये पयारप ह।ैसाधारणत: योग को अषांग कहा जाता है परतं ुयहा ँअब तक आसन से लेकर समािध तक छह अंगो का ही उलेख िकया गया ह।ै शेष दो अंगो को इसिलये नही छोडा िक वे अनावशयक है वरन्‌ इसिलए िक वह योगी ही नही पतयतु मनुषय मात के िलए परम उपयोगी ह।ै उनमे पथम सथान यम का ह।ै इनके सबंधं मे कहा गया है िक यह देश काल, समय से अनविचछन ओर सावरभौम महाबत है अथारत् ‌ पतयेक मनुषय को पतयेक सथान पर पतयेक समय और पतयेक अवसथा मे पतयेक वयिक के साथ इनका पालन करना चािहए। दसूरा अंग िनयम कहलाता ह।ै जो लोग ईशवर की सता को सवीकार नही करते उनके िलये ईशवर पर िनषा रखने का कोई और नही ह।ै परतं ुवह लोग भी पाय: िकसी न िकसी ऐसे वयिक पर शदा रखते है जो उनके िलये ईशवर तुलय ह।ै बौद को बुददेव के पित जो िनषा है वह उससे कम नही है जो िकसी भी ईशवरवादी को ईशवर पर होती होगी। एक और बात ह।ै िकसी को ईशवर पर शदा हो या न हो, योग मागर के उपदेषा गुर पर तो अननय शदा होनी ही चािहए। योगाभयासी के िलये गुर का सथान िकसी भी दिष से ईशवर से कम नही। ईशवर हो या न हो परतं ुगुर के होने पर तो कोई सदंेह हो ही नही सकता। एक साधक चरणादास जी की िशषया सहजोबाई ने कहा है:

ग ुरचरनन पर तन-मन वारँ, ग ुर न तजूँ हिर को तज डारँ।

आज कल यह बात सनुने मे आती है िक परम पुरषाथर पाप करने के िलये जान पयारप ह।ै योग की आवशयकता नही ह।ै जो लोग ऐसा कहते है, वह जान शबद के अथर पर गंभीरता से िवचार नही करते। जान दो पकार का होता है-तजजान और तिदषयक जान। दोनो मे अंतर ह।ै कोई वयिक अपना सारा जीवन रसायन आिद शासो के अधययन मे िबताकर शककर के सबंधं मे जानकारी पाप कर सकता ह।ै शककर के

Page 11: 93482601-योग

अणु मे िकन िकन रासायिनक ततवो के िकतने िकतने परमाणु होते है? शककर कैसे बनाई जाती है? उसपर कौन कौन सी रासािनक िकया और पितिकयाएँ होती है? इतयािद। यह सब शककर िवषयक जान ह।ै यह भी उपयोगी हो सकता है परतं ुशककर का वासतिवक जान तो उसी समय होता है जब एक चुटकी शककर मुँह मे रखी जाती ह।ै यह शककर का ततवजान ह।ै शासो के अधययन से जो जान पाप होता है वह सचचा आधयाितमक जान है और उसके पकाश मे तिदषयक जान भी पूरी तरह समझ मे आ सकता ह।ै इसीिलये उपिनषद् के अनसुार जब यम ने निचकेता को अधयातम जान का उपदेश िदया तो उसके साथ मे योगिविध च कृतसनम्‌ की भी दीका दी, नही तो निचकेता का बोध अधरूा ही रह जाता। जो लोग भिक आिद की साधना रप से पशंसा करते है उनकोश ्भी यह धयान मे रखना चािहए िक यिद उनके मागर मे िवत को एकाग करने का कोई उपाय है तो वह वसतुत: योग की धारणा अंग के अंतगरत ह।ै यह उनकी मजी है िक सनातन योग शबद को छोडकर नये शबदो का वयवहार करते ह।ैयोग के अभयास से उस पकार की शिकयो का उदय होता है िजनको िवभूित या िसिद कहते ह।ै यिद पयारप समय तक अभयास करने के बाद भी िकसी मनुषय मे ऐसी असाधारण शिकयो का आगम नही हुआ तो यह मानना चािहए िक वह ठीक मागर पर नही चल रहा ह।ै परतं ुिसिदयो मे कोई जादू की बात नही ह।ै इिंदयो की शिक बहुत अिधक है परतं ुसाधारणत: हमको उसका जान नही होता और न हम उससे काम लेते ह।ै अभयासी को उस शिक का पिरचय िमलता है, उसको जगत् ‌ के सवरप के सबंधं मे ऐसे अनुभव होते है जो दसूरो को पाप नही ह।ै दरू की या िछपी हुई वसतु को देख लेना, वयवहत बातो को सुन लेना इतयािद इिंदयो की सहज शिक की सीमा के भीतर की बाते है परतं ुसाधारण मनुषय के िलये यह आशचयरश् का िवषय है, इनको िसिद कहा जायगा। इसी पकार मनुषय मे और भी बहुत सी शिकयाँ हे जो साधरण अवसथा मे पसुप रहती ह।ै योग के अभयास से जाग उठती ह।ै यिद हम िकसी सडक पर कही जा रहे हो तो अपने लकय की ओर बढते हुए भी अनायास ही दािहने बाएँ उपिसथत िवषयो को देख लेगे। सच तो यह है िक जो कोई इन िवषयो को देखने के िलये रकेगा वह गनतवय सथान तक पहँुचेगा ही नही ओर बीच मे ही रह जायगा। इसीिलये कहा गया है िक जो कोई िसिदयो के िलये पयतन करता है वह अपने को समािध से वंिचत करता ह।ै पतंजिल ने कहा है:

ते समाधाव ुपसगा रवयुतथाने िसदय:

Page 12: 93482601-योग

अथारत्‌ ये िवभूितयाँ समािध मे बाधक है परतं ुसमािध से उठने की अवसथा मे िसिद कहलाती ह।ै

योग का इितहास

विैदक सिंहताओ ंके अंतगरत तपिसवयो ( तपस ) के बारे मे (( कल | बाहण ) )पाचीन काल से वेदो मे (९०० से ५०० बी सी ई)उलेख िमलता है, जब िक तापिसक साधनाओं का समावेश पाचीन विैदक िटपपिणयो मे पाप है. कई मूितरयाँ जो सामानय योग या समािध मुदा को पदरिशत करती है, िसधंु घाटी सभयता (सी.3300-1700 बी.सी. इ.) के सथान पर पाप हुई ं है. पुराततवज गेगरी पोससेह के अनुसार," ये मूितरयाँ योग के धािमरक ससंकार" के योग से समबनध को सकेंत करती है. यदिप इस बात का िनणरयातमक सबूत नही है िफर भी अनेक पंिडतो की राय मे िसधंु घाटी सभयता और योग-धयान मे समबनध है. धयान मे उचच चैतनय को पाप करने िक रीितयो का िवकास शमािनक परमपराओ ंदारा एवं उपिनषद् की परपंरा दारा िवकिसत हुआ था.बुद के पूवर एवं पाचीन बिहिनक गंथो मे धयान के बारे मे कोई ठोस सबूत नही िमलता है,बुद के दो िशकको के धयान के लकयो के पित कहे वाकयो के आधार पर वयन यह तकर करते है की िनगुरण धयान की पदित बिहन परपंरा से िनकली इसिलए उपिनषद् की सृिष के पित कहे कथनॉ मे एवं धयान के लकयो के िलए कहे कथनो मे समानता है. यह संभािवत हो भी सकता है, नही भी.उपिनषदो मे बहाणड संबधंी बयानॉ के विैशवक कथनो मे िकसी धयान की रीित की समभावना के पित तकर देते हुए कहते है की नासदीय सूक िकसी धयान की पदित की ओर ऋग वेद से पूवर भी इशारा करते है.

Page 13: 93482601-योग

यह बौद गंथ शायद सबसे पाचीन गंथ है िजन मे धयान तकनीको का वणरन पाप होता है. वे धयान की पथाओं और अवसथाओ ंका वणरन करते है जो बुद से पहले अिसततव मे थी और साथ ही उन पथाओं का वणरन करते है जो पहले बौद धमर के भीतर िवकिसत हुई ं. िहदं ु वांगमय मे,"योग" शबद पहले कथा उपािनषद मे पसतुत हुआ जहा ँजानेिनदयो का िनयतंण और मानिसक गितिविध के िनवारण के अथर मे पयकु हुआ है जो उचचतम िसतिथ पदान करने वाला मन गया है. महतवपूणर गनथ जो योग की अवधारणा से समबिंधत है वे मधय कालीन उपिनषद्, महाभारत,भगवद गीता 200 BCE) एवं पथांजिल के योग सूत है.

पतंजिल के योग सतूभारतीय दशरन मे,षड् दशरनो मे से एक का नाम योग है. योग दाशरिनक पणाली,सांखय सकूल के साथ िनकटता से सबंिनधत है. ऋिष पतंजिल दारा वयाखया िकया गया योग सपंदाय सांखय मनोिवजान और ततवमीमांसा को सवीकार करते है,लेिकन सांखय सकूल के तुलना मे अिधक आिसतक है, यह पमाण है कयोिक सांखय के वासतिवकता के पचचीस ततवो मे ईशवरीय सताओं को जोडी गई है. योग और सांखय एक दसुरे से इतने िमलझुलते है िक मेकस मयलुर कहते है,"यह दो दशरन इतने पिसद थे िक एक दसुरे का अंतर समझने के िलए एक को पभु के साथ और दसुरे को पभु के िबना माना जाता है....." सांखय और योगा के बीच घिनष संबधं हेरीच िजममेर समझाते है:

इन दोनो को भारत मे जुडवा के रप मे माना जाता है,जो एक ही िवषय के दो पहल ूहै.Sāṅkhya यहाँ मानव पकृित की बुिनयादी सदैांितक का पदशरन,िवसतृत िववरण और उसके ततवो का पिरभािषत,बधंन ( बधंा ) के िसथित मे उनके सहयोग करने के तरीके,सुलझावट के समय अपने िसथित का िवशलेषण या मुिक मे िवयोजन मोक का वयाखया िकया गया है.योग िवशेष रप से पिकया की गितशीलता के सुलझाव के िलए उपचार करता है और मुिक पाप करने की वयावहािरक तकनीको को िसदांत करता है अथवा 'अलगाव-एकीकरण'(कैवलय) का उपचार करता है.

पतांजिल, वयापक रप से औपचािरक योग दशरन के संसथापक मने जाते है. पतांजिल के योग, बुिद का िनयतंण के िलए एक पणाली है,राज योग के रप मे जाना जाता है. पतांजिल उनके दसूरे सतू मे "योग" शबद का पिरभािषत करते है, जो उनके पूरे काम के िलए वयाखया सतू माना जाता है:

Page 14: 93482601-योग

योग: िचत-व ृित िनरोध:

तीन संसकृत शबदो के अथर पर यह ससंकृत पिरभाषा िटका है. अई . के . तमैनी इसकी अनुवाद करते है की,"योग बुिद के संशोधनो का िनषेध ह"ै योग का पारिंभक पिरभाषा मे इस शबद nirodha का उपयोग एक उदाहरण है िक बौिधक तकनीकी शबदावली और अवधारणाओ,ंयोग सूत मे एक महतवपूणर भूिमका िनभाते है; इससे यह संकेत होता है िक बौद िवचारो के बारे मे पतांजिल को जानकारी थी और अपने पणाली मे उनहे बुनाई. सवामी िववेकानंद इस सूत को अनुवाद करते हुए कहते है,"योग बुिद (िचत) को िविभन रपो (वृित) लेने से अवरद करता है.

इस , िदली के िबरला मंिदर मे एक िहदंू योगी का मूतीपतांजिल का लेखन 'अषांग योग"("आठ-अंिगत योग") एक पणाली के िलए आधार बन गया.29th सतू के दसूरी िकताब से यह आठ-अंिगत अवधारण को पाप िकया गया था और वयावहािरक रप मे िभनरप से िसखाये गए पतयेक राजा योग का एक मुखय िवशेषता है.आठ अंग है:

Page 15: 93482601-योग

• यम (पांच "पिरहार"): अिहसंा, झठू नही बोलना,गरै लोभ, गरै िवषयासिक, और गरै सवािमगत.• िनयम (पांच "धािमरक िकया"): पिवतता, सतंुिष, तपसया, अधययन, और भगवान को आतमसमपरण.• आसन :मूलाथरक अथर "बठैने का आसन", और पतांजिल सूत मे धयान

सीट का मतलब है बठैा िसथित को के िलए उपयोग िकया जाता है.1. पाणायाम ("सांस को सथिगत रखना"): पाणा ,सांस, "अयामा ", को िनयंितत करना या बदं करना. साथ ही जीवन शिक को िनयंतण करने की वयाखया की गयी है.1. पतयहार ("अमूतर"):बाहरी वसतुओं से भावना अंगो के पतयाहार.1. धारणा ("एकागता"): एक ही लकय पर धयान लगाना.2. धयान ("धयान"):धयान की वसतु की पकृित

गहन िचंतन.1. समािध ("िवमुिक"):धयान के वसतु को चैतनय के साथ िवलय करना.

इस सपंदाय के िवचार मे,उचचतम पािप िवशव के अनुभवी िविवधता को भम के रप मे पकट नही करता. यह दिुनया वासतव है. इसके अलावा,उचचतम पािप ऐसा घटना है जहा ँअनेक मे से एक वयिकतव सवयं, आतम को आिवषकार करता है, कोई एक सावरभौिमक आतम नही है जो सभी वयिकयो दारा साझा जाता है.

भगवद गीताभगवद गीता (पभु के गीत),बडे पमैाने पर िविभन तरीको से योग शबद का उपयोग करता है. एक पूरा अधयाय (ch. 6) सिहत पारपंिरक योग का अभयास को समिपरत,धयान के सिहत, करने के अलावा इस मे योग के तीन पमुख पकार का पिरचय िकया जाता है.

कमर योग : काररवाई का योग, भिक योग : भिक का योग, जाना योग : जान का योग.

मधुसूदना सरसवती (b. circa 1490)ने गीता को तीन वगो ं मे िवभािजत िकया है,जहा ँपथम छह अधयायो मे कमर योग के बारे मे, बीच के छह मे भिक योग और िपछले छह अधयायो मे जाना(जान)योग के बारे मे गया है.अनय िटपपणीकारो पतयेक

Page 16: 93482601-योग

अधयाय को एक अलग 'योग' से संबधं बताते है, जहा ँअठारह अलग योग का वणरन िकया है.

हठयोगहठयोग योग, योग की एक िवशेष पणाली है िजसे 15 वी सदी के भारत मे हठ योग पदीिपका के सकंलक, योगी सवतमरमा दारा विणरत िकया गया था.हठयोग पतांजिल के राज योग से काफी अलग है जो सतकमर पर केिनदत है,भौितक शरीर की शुिद ही मन की, पाण की और िविशष ऊजार की शुिद लती है.[62] [63] केवल पथांजिल राज योग के धयान आसन के बदले,,[64] यह पूरे शरीर के लोकिपय आसनो की चचार करता है. हठयोग अपनी कई आधुिनक िभनरपो मे एक शलैी है िजसे बहुत से लोग "योग" शबद के साथ जोडते है.

अनय परंपराओं मे योग पथाओंबौद-धमर

बुद पदासन मुदा मे योग धयान मे.पाचीन बौिदक धमर ने धयानापरणीय अवशोषण अवसथा को िनगिमत िकया. बुद के पारिंभक उपदेशो मे योग िवचारो का सबसे पाचीन िनरतंर अिभवयिक पाया जाता है. बुद के एक पमुख नवीन िशकण यह था की धयानापरणीय अवशोषण को पिरपूणर अभयास से संयकु करे. बुद के उपदेश और पाचीन बहिनक गंथो मे पसतुत अंतर िविचत है.बुद के अनुसार, धयानापरणीय अवसथा एकमात अंत नही है,उचचतम धयानापरणीय िसथती मे भी मोक पाप नही होता. अपने िवचार के पूणर िवराम पाप करने के बजाय,िकसी पकार का मानिसक सिकयता होना चािहए:एक मुिक अनुभूित, धयान जागरकता के अभयास पर आधािरत होना

Page 17: 93482601-योग

चािहए. बुद ने मौत से मुिक पाने की पाचीन बहिनक अिभपाय को ठुकराया. बिहिनक योिगन को एक गरैिदसंकय दषृगत िसथित जहा ँमृतयु मे अनुभूित पाप होता है, उस िसथित को वे मुिक मानते है. बुद ने योग के िनपुण की मौत पर मुिक पाने की पुराने बिहिनक अनयोक("उतेजनाहीन होना,कणसथायी होना")को एक नया अथर िदया; उनहे, ऋिष जो जीवन मे मकु है के नाम से उलेख िकया गया था.

योगकारा बौिदक धमरयोगकारा(ससंकृत:"योग का अभयास" शबद िवनयास योगाचारा,दशरन और मनोिवजान का एक संपदाय है, जो भारत मे वी से वी शताबदी मे िवकिसत िकया गया था.योगकारा को यह नाम पाप हुआ कयोिक उसने एक योग पदान िकया,एक रपरखेा िजससे बोिधसतव तक पहँुचने का एक मागर िदखाया है. जान तक पहँुचने के िलए यह योगकारा संपदाय योग िसखाता है.

छ'अन (िसओन/ जेन) बौद धमर

जेन (िजसका नाम संसकृत शबद "धयाना से" उतपन िकया गया चीनी "छ'अन"}के माधयम से महायान बौद धमर का एक रप है. बौद धमर की महायान सपंदाय योग के साथ अपनी िनकटता के कारण िवखयात िकया जाता है. पिशचम मे,जेन को अकसर योग के साथ वयविसथत िकया जाता है;धयान पदशरन के दो संपदायो सपष पिरवािरक उपमान पदशरन करते है. यह घटना को िवशेष धयान योगय है कयोिक कुछ योग पथाओ ंपर धयान की जेन बौिदक सकूल आधािरत है. योग की कुछ आवशयक ततवो सामानय रप से बौद धमर और िवशेष रप से जेन धमर को महतवपूणर है. भारत और ितबबती के बौिदक धमरयोगा ितबबती बौद धमर का केद है. िनयनगमा परपंरा मे,धयान का अभयास का रासता नौ यानाओं , या वाहन मे िवभािजत है,कहा जाता है यह परम वयूतपन भी है. अंितम के छह को "योग यानास" के रप मे विणरत िकया जाता है,यह है:िकया योग ,उप योग (चयार ) ,योगा याना ,महा योग , अनु योग और अंितम अभयास अित योग . सरमा परपंराओं नेमहायोग और अितयोग की अनतुारा वगर से सथानापन करते हुए

Page 18: 93482601-योग

िकया योग,उपा(चयार)और योग को शािमल िकया है. अनय तंत योग पथाओं मे 108 शारीिरक मुदाओं के साथ सासं और िदल ताल का अभयास शािमल है. अनय तंत योग पथाओं 108 शारीिरक मुदाओं के साथ सासं और िदल ताल का अभयास को शािमल है. यह िनयनगमा परपंरा यंत योग का अभयास भी करते है. (ितब. तरल खोर ),यह एक अनशुासन है िजसमे सासं कायर (या पाणायाम),धयानापरणीय मनन और सटीक गितशील चाल से अनसुरण करनेवाले का धयान को एकािगत करते है. लुखंग मे दलाई लामा के सममर मंिदर के दीवारो पर ितबबती पाचीन योिगयो के शरीर मुदाओ ंिचितत िकया जाया है.चागं (1993)दारा एक अदर ितबबती योगा के लोकिपय खाते ने कनदली (ितब.तुममो )अपने शरीर मे गमी का उतपादन का उलेख करते हुए कहते है की "यह सपूंणर ितबबती योगा का बुिनयाद है". चांग यह भी दावा करते है िक ितबबती योगा पाना और मन को सुलह करता है,और उसे तंितसम के सैदांितक िनिहताथर से सबंिंधत करते है. जैन धमर

तीथरकर पासवर यौिगक धयान मे कयोतसगार मुदा मे.

Page 19: 93482601-योग

महावीर के केवल जान मलुाबधंासना मुदा मेदसूरी शताबदी के सी इ जैन पाठ ततवाथरसूत , के अनसुार मन, वाणी और शरीर सभी गितिविधयो का कुल योग है. उमासवती कहते है िक असावा या कािमरक पवाह का कारण योग है साथ ही- समयक चिरत - मुिक के मागर मे यह बेहद आवशयक है. अपनी िनयामसरा मे, आचायर कंुडाकुणडने योग भिक का वणरन- भिक से मुिक का मागर - भिक के सवोचच रप के रप मे िकया है. आचायर हिरभद और आचायर हेमचनद के अनुसार पाँच पमुख उलेख सनंयािसयो और 12 समािजक लघु पितजाओं योग के अंतगरत शािमल है. इस िवचार के वजह से कही इनदोलोिगसटस जसेै पो रॉबटर जे जयीडेनबोस ने जैन धमर के बारे मे यह कहा िक यह अिनवायर रप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूणर धमर के रप मे बढी हो गयी. डॉ.हेरीच िजममर सतंुष िकया िक योग पणाली को पूवर आयरन का मूल था,िजसने वेदो की सता को सवीकार नही िकया और इसिलए जैन धमर के समान उसे एक िवधिमरक िसदांतो के रप मे माना गया थाजैन शास, जैन तीथरकरो को धयान मे पदासना या कयोतसगार योग मुदा मे दशारया है. ऐसा कहा गया है िक महावीर को मलुाबधंासना िसथित मे बठेै केवला जान "आतमजान" पाप हुआ जो अचरगंा सतू मे और बाद मे कलपसूत मे पहली सािहितयक उलेख के रप मे पाया गया है. पतांजिल योगसूत के पांच यामा या बाधाओं और जैन धमर के पाँच पमुख पितजाओं मे अलौिकक सादशय है,िजससे जैन धमर का एक मजबूत पभाव का संकेत करता है.लेखक िविवयन वोिथरगटन ने यह सवीकार िकया िक योग दशरन और जैन धमर के बीच पारसपिरक पभाव है और वे िलखते है:"योग पूरी तरह से जैन धमर को अपना ऋण मानता है और िविनमय मे जैन धमर ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक िहससा बना िलया".

Page 20: 93482601-योग

िसधंु घाटी महुरो और इकोनोगफी भी एक यथोिचत साकय पदान करते है िक योग परपंरा और जैन धमर के बीच सपंदाियक सदश अिसततव है. िवशेष रप से,िवदानो और पुराततविवदो ने िविभन ितथरनकरो की महुरो मे दशारई गई योग और धयान मुदाओ ंके बीच समानताओं पर िटपपणी की है: रषभ की "कयोतसगार"मुदा और महावीर के मलुबनधासन मुहरो के साथ धयान मुदा मे पको मे सपो ं की खदुाई पाशवरनाथ की खदुाई से िमलती जुलती है. यह सभी न केवल िसंधु घाटी सभयता और जैन धमर के बीच किडयो का सकेंत कर रहे है, बिलक िविभन योग पथाओं को जैन धमर का योगदान पदशरन करते है.

जैन िसदा ंत और सािहतय के संदभरपाचीनतम के जैन धमरवधैािनक सािहतय जैसे अचरगंासुत और िनयमासरा, ततवाथरसूत आिद जसेै गंथो ने साधारण वयिक और तपसवीयो के िलए जीवन का एक मागर के रप मे योग पर कई सदंभर िदए है.बाद के गंथो िजसमे योग के जैन अवधारणा सिवसतार है वह िनमनानुसार है:

पुजयपदा (5 वी शताबदी सी इ) o इषोपदेश

आचायर हिरभद सरूी (8 वी शताबदी सी इ) o योगिबदं ुo योगिदिसतसमुचकायाo योगसताकाo योगिविमिसका

आचायर जोद ु(8 वी शताबदी सी इ) o योगसारा

आचायर हेमाकानद (11 वी सदी सी इ) o योगसस

आचायर अिमतागित (11 वी सदी सी इ) o योगसरापभरता

इसलामसफूी संगीत के िवकास मे भारतीय योग अभयास का काफी पभाव है, जहा ँवे दोनो शारीिरक मुदाओं(आसन)और शवास िनयतंण (पाणायाम) को अनकूुिलत िकया है.

Page 21: 93482601-योग

[60] 11 वी शताबदी के पाचीन समय मे पाचीन भारतीय योग पाठ,अमृतकंुड,("अमतृ का कंुड")का अरबी और फारसी भाषाओं मे अनुवाद िकया गया था.सन 2008 मे मलेिशया के शीषर इसलािमक सिमित ने कहा जो मसुलमान योग अभयास करते है उनके िखलाफ एक फतवा लग ूिकया,जो काननूी तौर पर गरै बाधयकारी है,कहते है िक योग मे "िहदंू आधयाितमक उपदेशो" के ततवो है और इस से ईश - िनदंा हो सकती है और इसिलए यहहराम है.मलेिशया मे मुिसलम योग िशकको ने "अपमान" कहकर इस िनणरय की आलोचना िक. मलेिशया मे मिहलाओ ंके समूह,ने भी अपना िनराशा वयक की और उनहोने कहा िक वे अपनी योग ककाओं को जारी रखेगे. इस फतवा मे कहा गया है िक शारीिरक वयायाम के रप मे योग अभयास अनुमेय है,पर धािमरक मतं का गाने पर पितबधं लगा िदया है, और यह भी कहते है िक भगवान के साथ मानव का िमलाप जसेै िशकण इसलामी दशरन के अनरुप नही है. इसी तरह,उलेमस की पिरषद ,इडंोनेिशया मे एक इसलामी सिमित ने योग पर पितबधं,एक फतवे दारा लाग ूिकया कयोिक इसमे "िहदंू ततव" शािमल थे.[66] िकनतु इन फतवो को दारल उलूम देओबदं ने आलोचना की है,जो देओबदंी इसलाम का भारत मे िशकालय है. सन 2009 मई मे,तुकी के िनदेशालय के धािमरक मामलो के मंतालय के पधान शासक अली बदारकोगलू ने योग को एक वयावसाियक उदम के रप मे घोिषत िकया- योग के सबंधं मे कुछ आलोचनाये जो इसलाम के ततवो से मेल नही खाती.

ईसाई धमरसन 1989 मे, विैटकन ने घोिषत िकया िक जेन और योग जैसे पूवी धयान पथाओ ं"शरीर के एक गुट मे बदजात" हो सकते है.विैटकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोिलक उनके आधयाितमक पथाओ ंमे योगा, बौद धमर और िहदंू धमर के ततवो का पयोग िकया है.

तंतततं एक पथा है िजसमे उनके अनसुरण करनेवालो का संबधं साधारण, धािमरक, सामािजक और तािकर क वासतिवकता मे पिरवतरन ले आते है.तांितक अभयास मे एक वयिक वासतिवकता को माया, भम के रप मे अनुभव करता है और यह वयिक को मुिक पाप होता है. िहनदू धमर दारा पसतुत िकया गया िनवारण

Page 22: 93482601-योग

के कई मागो ं मे से यह िवशेष मागर ततं को भारतीय धमो ं के पथाओ ंजैसे योग,धयान,और सामािजक संनयास से जोडता है,जो सामािजक सबंधंो और िविधयो से असथायी या सथायी वापसी पर आधािरत है. तांितक पथाओ ंऔर अधययन के दौरान, छात को धयान तकनीक मे, िवशेष रप से चक धयान ,का िनदेश िदया जाता है. िजस तरह यह धयान जाना जाता है और तांितक अनयुािययो एवं योिगयो के तरीको के साथ तुलना मे यह तांितक पथाओ ंएक सीिमत रप मे है, लेिकन सतूपात के िपछले धयान से जयादा िवसतृत है.इसे एक पकार का कंुडिलनी योग माना जाता है िजसके माधयम से धयान और पूजा के िलए "हदय" मे िसथत चक मे देवी को सथािपत करते है.

योग का लकययोग का लकय सवासथय मे सधुार से लेकर मोकश पाप करने तक है. जैन धमर,अदैत वेदांत के मोिनसट सपंदाय और शवैतव के अनतर मे योग का लकय मोकश का रप लेता है,जो सभी सासंािरक कष एवं जनम और मृतयु के चक ( ससंार ) से मुिक पाप करना है,उस कण मे परम बहण के साथ समरपता का एक एहसास है. महाभारत मे,योग का लकय बहा के दिुनया मे पवेश के रप मे विणरत िकया गया है,बहण के रप मे,अथवा बहण या आतमन को अनुभव करते हुए जो सभी वसतुएँ मे वयाप है. भिक संपदाय के वषैणवतव को योग का अंितम लकय सवयं भगवन का सेवा करना या उनके पित भिक होना है, जहा ंलकय यह है की िवषणु के साथ एक शाशवत िरशते का आनंद लेना.