ोग शास्त्र की भूमिका...

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*यȪग शȡƸ कȧ भǗǓिकȡ* यȪग कȡ वणन वȯदɉ िɅ , Ǒिर उपǓनषदɉ िɅ और Ǒिर गȢतȡ िɅ Ǔिलतȡ हȰ , लȯǑकन *पतȲजǓल* और *गǕǽ गȪरखनȡथ* नȯ यȪग कȯ ǒिखरȯ ह Ǖ ए ȡन कȪ यवǔथथत Ǿप सȯ Ǔलǒपि Ǒकयȡ। यȪग ǑहदǗ धिण कȯ छह दशणनɉ िɅ सȯ एक हȰ। *यȯ छह दशणन हɇ *:-- 1.यȡय 2.वȰशȯǒषक 3.िȢिȡȲसȡ 4.सȡȲय 5.वȯदȡȲत और 6.यȪग।* आओ जȡनतȯ हɇ यȪग कȯ िȡरȯ िɅ वह सि कǕ छ जȪ आप जȡननȡ चȡहतȯ हɇ। *यȪग कȯ आठ िǕय अȲग*:-- *यि, Ǔनयि, आसन, ȡȡयȡि, यȡहȡर, धȡरȡ, यȡन और सिȡǓध।*

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  • *योग शास्त्र की भूमिका*

    योग का वर्णन वेदों िें, फिर उपमनषदों िें और फिर गीता िें मिलता है, लेफकन *पतंजमल* और *गुरु गोरखनाथ* ने योग के बिखरे हुए ज्ञान को व्यवस्थथत रूप से मलबपिद्ध फकया।

    योग फहन्द ूधिण के छह दशणनों िें से एक है। *ये छह दशणन हैं*:-- 1.न्याय 2.वैशबेषक 3.िीिांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग।*

    आओ जानते हैं योग के िारे िें वह सि कुछ जो आप जानना चाहते हैं।

    *योग के आठ िुख्य अंग*:-- *यि, मनयि, आसन, प्रार्ायाि, प्रत्याहार, धारर्ा, ध्यान और सिामध।*

  • इसके अलावा फिया, िंध, िुद्रा और अंग-संचालन इत्याफद कुछ अन्य अंग भी मगने जाते हैं, फकंतु ये सभी उन आठों के ही उपांग ( उप-अंग ) हैं।

    अि हि योग के प्रकार, योगाभ्यास की िाधाए,ं योग का इमतहास, योग के प्रिुख ग्रंथ की थोड़ी चचाण करेंगे।

    *योग के प्रकार:--* 1.राजयोग, 2.हठयोग, 3.लययोग, 4. ज्ञानयोग, 5.किणयोग और 6. भबियोग।

    इसके अलावा िफहरंग योग, नाद योग, िंत्र योग, तंत्र योग, कंुडमलनी योग, साधना योग, फिया योग, सहज योग, िुद्रायोग, और थवरयोग आफद योग के अनेक आयािों की चचाण की जाती है। लेफकन सभी उि छह िें सिाफहत हैं।

    *अष्ांग योग*

    1.*पांच यि*:-- अफहंसा, सत्य, अथतेय, ब्रह्मचयण और अपररग्रह।

    2.*पांच मनयि*:-- शौच, संतोष, तप, थवाध्याय और ईश्वर प्रास्र्धान।

    3. *आसन*:-- फकसी भी आसन की शरुुआत लेटकर अथाणत शवासन

  • (मचत्त लेटकर) और िकरासन (औधंा लेटकर) िें और िैठकर अथाणत दंडासन और वज्रासन िें, खड़े होकर अथाणत सावधान िुद्रा या निथकार िुद्रा से होती है।

    यहां सभी तरह के आसन के नाि फदए गए हैं। *कुछ आसनों के नाि*

    1.सूयणनिथकार, 2.आकर्णधनुष्ंकारासन, 3.उत्कटासन, 4.उत्तान कुक्कुटासन, 5.उत्तानपादासन, 6.उपधानासन, 7.ऊध्वणताड़ासन, 8.एकपाद ग्रीवासन, 9.कफट उत्तानासन 10.कन्धरासन, 11.कर्ण पीड़ासन, 12.कुक्कुटासन, 13.कुिाणसन, 14.कोर्ासन, 15.गरुड़ासन 16.गभाणसन, 17.गोिुखासन, 18.गोरक्षासन, 19.चिासन, 20.जानुमशरासन, 21.तोलांगुलासन 22.बत्रकोर्ासन, 23.दीर्ण नौकासन, 24.फिचफिकासन, 25.फिपादग्रीवासन,

  • 26.धु्रवासन 27.नटराजासन, 28.पक्ष्यासन, 29.पवणतासन, 30.पशबुवश्रािासन, 31.पादवतृ्तासन 32.पादांगुष्ासन, 33.पादांगुष्ठनासाथपशाणसन, 34.पूर्ण ित्थयेन्द्रासन, 35.पॄष्ठतानासन 36.प्रसतृहथत वसृ्िकासन, 37.िकासन, 38.िध्दपद्मासन, 39.िालासन, 40.ब्रह्मचयाणसन 41.भूनिनासन, 42.िंडूकासन, 43.िकण टासन, 44.िाजाणरासन, 45.योगमनद्रा, 46.योगिुद्रासन, 47.वातायनासन, 48.वकृ्षासन, 49.वसृ्िकासन, 50.शखंासन, 51.शशकासन 52.मसंहासन, 53.मसद्धासन, 54.सुप्त गभाणसन, 55.सेतुिंधासन, 56.थकंधपादासन, 57.हथतपादांगुष्ठासन, 58.भद्रासन, 59.शीषाणसन, 60.सूयण निथकार,

  • 61.कफटचिासन, 62.पादहथतासन, 63.अधणचन्द्रासन, 64.ताड़ासन, 65.पूर्णधनुरासन, 66.अधणधनुरासन, 67.बवपरीत नौकासन, 68.शलभासन, 69.भुजंगासन, 70.िकरासन, 71.पवन िुिासन, 72.नौकासन, 73.हलासन, 74.सवाांगासन, 75.बवपरीतकर्ी आसन, 76.शवासन, 77.ियूरासन, 78.ब्रह्म िुद्रा, 79.पस्ििोत्तनासन, 80.उष्ट्रासन, 81.विासन, 82.अधण-ित्थयेन्द्रासन, 83.ित्थयासन, 84.सुप्त-वज्रासन, 85.वज्रासन, 86.पद्मासन आफद।

    4. *प्रार्ायाि :--* प्रार्ायाि के पंचक, पांच प्रकार की वायु:--- 1.व्यान, 2.सिान, 3.अपान, 4.उदान और

  • 5.प्रार्।

    *प्रार्ायाि के प्रकार:--* 1.पूरक, 2.कुम्भक और 3.रेचक।

    इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वबृत्त, थतम्भन वबृत्त और िाह्य वबृत्त कहते हैं। अथाणत श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आतंररक कुम्भक और िाहर रोकने को िाह्य कुम्भक कहते हैं।

    *प्रिुख प्रार्ायाि:--* 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्स्त्रका, 3.उज्जाई, 4.भ्रािरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कंुभक, 8.दीर्ण, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.िूछाण, 12.सूयणभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रर्व, 15.अस्ननसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र,

  • 18.प्लावनी, 19.मशतायु आफद।

    *अन्य प्रार्ायाि:--* 1.अनुलोि-बवलोि प्रार्ायाि, 2.अस्नन प्रदीप्त प्रार्ायाि, 3.अस्नन प्रसारर् प्रार्ायाि, 4.एकांड थतम्भ प्रार्ायाि, 5.सीत्कारी प्रार्ायाि, 6.सवणिारिि प्रार्ायाि, 7.सवाांग थतम्भ प्रार्ायाि, 8.सप्त व्याहृमत प्रार्ायाि, 9.चतुिुणखी प्रार्ायाि, 10.प्रच्छदणन प्रार्ायाि, 11.चन्द्रभेदन प्रार्ायाि, 12.यन्त्रगिन प्रार्ायाि, 13.वािरेचन प्रार्ायाि, 14.दस्क्षर् रेचन प्रार्ायाि, 15.शबि प्रयोग प्रार्ायाि, 16.बत्रिन्धरेचक प्रार्ायाि, 17.कपाल भामत प्रार्ायाि, 18.हृदय थतम्भ प्रार्ायाि, 19.िध्य रेचन प्रार्ायाि, 20.बत्रिन्ध कुम्भक प्रार्ायाि, 21.ऊध्वणिुख भस्स्त्रका प्रार्ायाि, 22.िुखपूरक कुम्भक प्रार्ायाि, 23.वायुवीय कुम्भक प्रार्ायाि, 24.वक्षथथल रेचन प्रार्ायाि, 25.दीर्ण श्वास-प्रश्वास प्रार्ायाि, 26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्रार्ायाि, 27.षन्िुखी रेचन प्रार्ायाि 28.कण्ठ वातउदा पूरक प्रार्ायाि, 29.सुख प्रसारर् पूरक कुम्भक प्रार्ायाि, 30.अनुलोि-बवलोि नाड़ी शोधन प्रार्ायाि व नाड़ी अवरोध प्रार्ायाि आफद।

    5. *प्रत्याहार:--* इंफद्रयों को बवषयों से हटाने का नाि ही प्रत्याहार है। इंफद्रयां िनुष्य को िाहरी बवषयों िें उलझाए रखती है।। प्रत्याहार के अभ्यास से साधक अन्तिुणस्खता की स्थथमत प्राप्त करता है। जैसे एक कछुआ अपने अंगों को सिेट लेता है उसी प्रकार प्रत्याहरी िनुष्य की स्थथमत होती है।

  • यि मनयि, आसान, प्रार्ायाि को साधने से प्रत्याहार की स्थथमत र्फटत होने लगती है।

    6.*धारर्ा*:-- मचत्त को एक थथान बवशषे पर कें फद्रत करना ही धारर्ा है। प्रत्याहार के सधने से धारर्ा थवत: ही र्फटत होती है। धारर्ा धारर् फकया हुआ मचत्त कैसी भी धारर्ा या कल्पना करता है, तो वैसे ही र्फटत होने लगता है। यफद ऐसे व्यबि फकसी एक कागज को हाथ िें लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।

    7. *ध्यान*:-- जि ध्येय वथतु का मचंतन करते हुए मचत्त तद्रपू हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थथमत िें फकसी अन्य वथतु का ज्ञान अथवा उसकी थिमृत मचत्त िें प्रबवष् नहीं होती।

    ध्यान के रूढ़ प्रकार:- थथूल ध्यान, ज्योमतध्याणन और सूक्ष्ि ध्यान।

    *ध्यान बवमधयां*:-- श्वास ध्यान, साक्षी भाव, नासाग्र ध्यान, बवपश्यना ध्यान,

    *ओशो िारा प्रदत्त*: -- सफिय ध्यान, नादब्रह्म ध्यान, कंुडमलनी ध्यान, नटराज ध्यान, िंडल ध्यान आफद 115 ध्यान बवमधयों का अभ्यास ओशो कम्यून िें फकया जाता है।

  • बवज्ञान भैरव तंत्र िें भगवान मशव ने उिा को 112 तरह की ध्यान बवमधयााँ िताई हैं।

    8. *सिामध*:-- यह मचत्त की अवथथा है स्जसिें मचत्त ध्येय वथतु के मचंतन िें पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दशणन सिामध के िारा ही िोक्ष प्रामप्त को संभव िानता है।

    *सिामध की भी दो श्रसे्र्यां हैं 1. *सम्प्रज्ञात* और 2. *असम्प्रज्ञात*।

    सम्प्रज्ञात सिामध बवतकण , बवचार, आनंद और अस्थितानुगत होती है।

    असम्प्रज्ञात िें सास्त्वक, राजस और तािस सभी वबृत्तयों का मनरोध हो जाता है।

    इसे िौद्ध धिण िें संिोमध, जैन धिण िें केवल्य और फहन्द ूधिण िें िोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सािान्य भाषा िें िुबि कहते हैं।

    पुरार्ों िें िुबि के 6 प्रकार िताएं गए है जो इस प्रकार हैं:--* 1. *साबष्ट्र*, (ऐश्वयण), 2. *सालोक्य* (लोक की प्रामप्त), 3. *सारूप्य* (ब्रह्मथवरूप),

  • 4. *सािीप्य,* (ब्रह्म के पास), 5. *साम्य* (ब्रह्म जैसी सिानता) 6. *सायुज्य*, या लीनता (ब्रह्म िें लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।

    *योग फियाएं जामनएं:--* प्रिुख 13 फियाए:ं- 1.नेती-- सूत्र नेमत, रॄ्त नेमत, 2.धौमत-- विन धौमत, वस्त्र धौमत, दण्ड धौमत, 3.गजकरर्ी, 4.िथती-- जल िस्थत, 5.कंुजर, 6.न्यौली, 7.त्राटक, 8.कपालभामत, 9.धौंकनी, 10.गर्ेश फिया, 11.िाधी, 12.लर्ु शखं प्रक्षालन और 13.शखं प्रक्षालन।

    *िुद्राएं कई हैं:--* *6 आसन र्:--* 1.बवरत िुद्रा, 2.अस्श्वनी िुद्रा, 3.िहािुद्रा, 4.योग िुद्रा, 5.बवपरीत करर्ी िुद्रा, 6.शाम्भवी िुद्रा।

    *पंच राजयोग िुद्राएं:-- 1.चाचरी, 2.खेचरी,

  • 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्िुनी िुद्रा।

    *10 हथत िुद्राएं:--* उि के अलावा हथत िुद्राओ ंिें प्रिुख दस िुद्राओ ंका िहत्व है जो मनम्न है: - 1.ज्ञान िुद्रा, 2.पथृबव िुद्रा, 3.वरुर् िुद्रा, 4.वायु िुद्रा, 5.शनू्य िुद्रा, 6.सूयण िुद्रा, 7.प्रार् िुद्रा, 8.मलंग िुद्रा, 9.अपान िुद्रा, 10.अपान वायु िुद्रा।

    *अन्य िुद्राएं :--* 1.सुरभी िुद्रा, 2.ब्रह्मिुद्रा, 3.अभयिुद्रा, 4.भूमि िुद्रा, 5.भूमि थपशणिुद्रा, 6.धिणचििुद्रा, 7.वज्रिुद्रा, 8.बवतकण िुद्रा, 9.जनाना िुद्रा, 10.कर्णिुद्रा, 11.शरर्ागतिुद्रा, 12.ध्यान िुद्रा,

  • 13.सुची िुद्रा, 14.ओि िुद्रा, 15.जनाना और मचन ्िुद्रा, 16.पंचांगुली िुद्रा 17.िहाबत्रक िुद्रा, 18.कुिेर िुद्रा, 19.मचत्त िुद्रा, 20.वरद िुद्रा, 21.िकर िुद्रा, 22.शखं िुद्रा, 23.रुद्र िुद्रा, 24.पुष्पपूत िुद्रा, 25.वज्र िुद्रा, 26. श्वांस िुद्रा, 27.हाथय िुद्धा िुद्रा, 28.योग िुद्रा, 29.गर्ेश िुद्रा 30.डॉयनेमिक िुद्रा, 31.िातंगी िुद्रा, 32.गरुड़ िुद्रा, 33.कंुडमलनी िुद्रा, 34.मशव मलंग िुद्रा, 35.ब्रह्मा िुद्रा, 36.िुकुल िुद्रा, 37.िहबषण िुद्रा, 38.योनी िुद्रा, 39.पुशन िुद्रा, 40.कालेश्वर िुद्रा, 41.गूढ़ िुद्रा, 42.िेरुदंड िुद्रा, 43.हाफकनी िुद्रा, 45.किल िुद्रा,

  • 46.पाचन िुद्रा, 47.बवषहरर् िुद्रा या मनबवणबषकरर् िुद्रा, 48.आकाश िुद्रा, 49.हृदय िुद्रा, 50.जाल िुद्रा आफद।

    *योगाभ्यास की िाधाएं* :-- आहार, प्रयास, प्रजल्प, मनयिाग्रह, जनसंग और लौल्य। इसी को सािान्य भाषा िें आहार अथाणत अमतभोजन, प्रयास अथाणत आसनों के साथ जोर-जिरदथती, प्रजल्प अथाणत अभ्यास का फदखावा, मनयािाग्रह अथाणत योग करने के कड़े मनयि िनाना, जनसंग अथाणत अमधक जनसंपकण और अंत िें लौल्य का ितलि शारीररक और िानमसक चंचलता।

    *राजयोग* :-- यि, मनयि, आसन, प्रार्ायि, प्रत्याहार, धारर्ा, ध्यान और सिामध यह पतंजमल के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्ांग योग भी कहा जाता है। यही राजयोग है।

    *हठयोग* :-- षट्किण, आसन, िुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और सिामध:-- ये हठयोग के सात अंग है,

  • लेफकन हठयोगी का जोर आसन एवं कंुडमलनी जागमृत के मलए आसन, िंध, िुद्रा और प्रार्ायि पर अमधक रहता है। यही फिया योग है।

    *लययोग* :-- यि, मनयि, थथूल फिया, सूक्ष्ि फिया, प्रत्याहार, धारर्ा, ध्यान और सिामध। उि आठ लययोग के अंग है।

    *ज्ञानयोग* :-- साक्षीभाव िारा बवशदु्ध आत्िा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।

    *किणयोग* :-- शास्त्र बवफहत किण करना ही किण योग है। इसका उद्येश्य है किों िें कुशलता लाना।

    *भबियोग* : -- भि श्रवर्, कीतणन, थिरर्, पादसेवन, अचणन, वंदन, दाथय, सख्य और आत्िमनवेदन रूप- -इन नौ अंगों को नवधा भबि कहा जाता है। भबि योगानुसार व्यबि सालोक्य, सािीप्य, सारूप्य तथा सायुज्य-िुबि को प्राप्त होता है, स्जसे िििद्ध िुबि कहा जाता है।

    *अंग संचालन:--* 1.शवासन, 2.िकरासन, 3.दंडासन और

  • 4. निथकार िुद्रा िें अंग संचालन फकया जाता है स्जसे सूक्ष्ि व्यायाि कहते हैं। इसके अंतगणत आखंें, कोहनी, र्ुटन,े किर, अंगुमलया,ं पंज,े िुंह आफद अंगों की एक्सरसाइज की जाती है।

    *प्रिुख िंध:--* 1.िहािंध, 2.िूलिंध, 3.जालन्धरिंध और 4.उस्डडयान िांध।

    *कंुडमलनी योग* :-- कंुडमलनी शबि सुषुम्ना नाड़ी िें नामभ के मनचले फहथसे िें सोई हुई अवथथा िें रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चिों से गुजरती हुई सहस्रार चि तक पहंुचती है।

    ये चि 7 होते हैं:- िूलाधार, थवामधष्ठान, िस्र्पुर, अनाहत, बवशबुद्ध, आज्ञा और सहस्रार।

    72 हजार नाफड़यों िें से प्रिुख रूप से तीन है: इड़ा, बपंगला और

  • सुषुम्ना।

    इड़ा और बपंगला नामसका के दोनों मछद्रों से जुड़ी है जिफक सुषुम्ना भकुृटी के िीच के थथान से।

    थवरयोग इड़ा और बपंगला के बवषय िें बवथततृ जानकारी देते हुए थवरों को पररवमतणत करने, रोग दरू करने, मसबद्ध प्राप्त करने और भबवष्यवार्ी करने जैसी शबियााँ प्राप्त करने के बवषय िें गहन िागणदशणन होता है।

    दोनों नामसका से सांस चलने का अथण है फक उस सिय सुषुम्ना फियाशील है। ध्यान, प्राथणना, जप, मचंतन और उत्कृष् कायण करने के मलए यही सिय सवणश्रषे्ठ होता है। इस सिय फदया हुआ आशीवाणद या अमभशाप के िमलत होने की संभावना अमधक होती है।

    *योग का संस्क्षप्त इमतहास (History of Yoga) :* योग का उपदेश सवणप्रथि फहरण्यगभण ब्रह्मा ने सनकाफदकों को, पिात बववथवान (सूयण) को फदया। िाद िें यह दो शखाओ ंिें बवभि हो गया। एक ब्रह्मयोग और दसूरा किणयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कबपल, आसुरर, वोढु और पच्चंमशख नारद-शकुाफदकों ने शरुू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के िीच िें ज्ञान, अध्यात्ि और सांख्य योग नाि से प्रमसद्ध हुआ।

    दसूरी किणयोग की परम्परा बववथवान की है। बववथवान ने िनु को, िनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजबषणयों एवं प्रजाओ ंको योग का उपदेश फदया। उि सभी िातों का वेद और पुरार्ों िें उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की

  • प्रथि पुथतक िाना जाता है स्जसका उत्पबत्त काल लगभग 10,000 वषण पूवण का िाना जाता है।

    पुरातत्ववेत्ताओ ंअनुसार योग की उत्पबत्त 5000 ई.प.ू िें हुई। गुरु-मशष्य परम्परा के िारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दसूरी पीढ़ी को मिलता रहा। भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पबत्त भारत िें लगभग 5000 वषण से भी अमधक सिय पहले हुई थी। योग की सिसे आियणजनक खोज 1920 के शरुुआत िें हुई। 1920 िें पुरातत्व वैज्ञामनकों ने 'मसंधु सरथवती सभ्यता' को खोजा था स्जसिें प्राचीन फहंद ूधिण और योग की परंपरा होने के सिूत मिलते हैं। मसंधु र्ाटी सभ्यता को 3300-1700 िी.सी.ई. पुरानी िाना जाती है।

    *योग ग्रंथ*-- (Yoga Books) : वेद, उपमनषद्, भगवदगीता, हठयोग प्रदीबपका, योगदशणन, मशव संफहता, बवज्ञान भैरव तंत्र और बवमभन्न तंत्र ग्रंथों िें योग बवद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार िनाकर पतंजमल ने योग सूत्र मलखा। योग पर मलखा गया सवणप्रथि सुव्यव्यवस्थथत ग्रंथ है-- *योगसूत्र।* योगसूत्र को पतंजमल न े 200 ई.पूवण मलखा था। इस ग्रंथ पर अि तक हजारों भाष्य मलखे गए हैं, लेफकन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख करते हैं।

  • *व्यास भाष्य* : व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूवण का िाना जाता है। िहबषण पतंजमल का ग्रंथ योगसूत्र योग की सभी बवद्याओ ंका ठीक-ठीक संग्रह िाना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के 'व्यास भाष्य' को योग सूत्र पर मलखा प्रथि प्रािास्र्क भाष्य िाना जाता है। व्यास िारा िहबषण पतंजमल के योगसूत्र पर दी गई बवथततृ लेफकन सुव्यवस्थथत व्याख्या। *तत्त्ववैशारदी* : पतंजमल योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रािास्र्क व्याख्याकार के रूप िें वाचथपमत मिश्र का 'तत्त्ववैशारदी' प्रिुख ग्रंथ िाना जाता है। वाचथपमत मिश्र ने योगसूत्र एव ं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पिात िाना जाता है।

    *योगवामतणक* : बवज्ञानमभक्षु का सिय बविानों के िारा 16वीं शताब्दी के िध्य िें िाना जाता है। योगसूत्र पर िहत्वपूर्ण व्याख्या बवज्ञानमभक्षु की प्राप्त होती है स्जसका नाि ‘योगवामतणक’ है।

    *भोजवबृत्त* : भोज के राज्य का सिय 1075-1110 बविि संवत िाना जाता है। धरेश्वर भोज के नाि से प्रमसद्ध व्यबि ने योगसूत्र पर जो 'भोजवबृत्त' नािक ग्रंथ मलखा है वह भोजवबृत्त योगबविजनों के िीच सिादरर्ीय एवं प्रमसद्ध िाना जाता है।

  • कुछ इमतहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ िानते हैं। ।। ॐ ।। सादर निथते ।। ॐ ।।*योग शास्त्र की भूमिका*

    योग का वर्णन वेदों िें, फिर उपमनषदों िें और फिर गीता िें मिलता है, लेफकन *पतंजमल* और *गुरु गोरखनाथ* ने योग के बिखरे हुए ज्ञान को व्यवस्थथत रूप से मलबपिद्ध फकया।

    योग फहन्द ूधिण के छह दशणनों िें से एक है। *ये छह दशणन हैं*:-- 1.न्याय 2.वैशबेषक 3.िीिांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग।*

    आओ जानते हैं योग के िारे िें वह सि कुछ जो आप जानना चाहते हैं।

    *योग के आठ िुख्य अंग*:-- *यि, मनयि, आसन, प्रार्ायाि, प्रत्याहार, धारर्ा, ध्यान और सिामध।*

  • इसके अलावा फिया, िंध, िुद्रा और अंग-संचालन इत्याफद कुछ अन्य अंग भी मगने जाते हैं, फकंतु ये सभी उन आठों के ही उपांग ( उप-अंग ) हैं।

    अि हि योग के प्रकार, योगाभ्यास की िाधाए,ं योग का इमतहास, योग के प्रिुख ग्रंथ की थोड़ी चचाण करेंगे।

    *योग के प्रकार:--* 1.राजयोग, 2.हठयोग, 3.लययोग, 4. ज्ञानयोग, 5.किणयोग और 6. भबियोग।

    इसके अलावा िफहरंग योग, नाद योग, िंत्र योग, तंत्र योग, कंुडमलनी योग, साधना योग, फिया योग, सहज योग, िुद्रायोग, और थवरयोग आफद योग के अनेक आयािों की चचाण की जाती है। लेफकन सभी उि छह िें सिाफहत हैं।

    *अष्ांग योग*

    1.*पांच यि*:-- अफहंसा, सत्य, अथतेय, ब्रह्मचयण और अपररग्रह।

    2.*पांच मनयि*:-- शौच, संतोष, तप, थवाध्याय और ईश्वर प्रास्र्धान।

    3. *आसन*:-- फकसी भी आसन की शरुुआत

  • लेटकर अथाणत शवासन (मचत्त लेटकर) और िकरासन (औधंा लेटकर) िें और िैठकर अथाणत दंडासन और वज्रासन िें, खड़े होकर अथाणत सावधान िुद्रा या निथकार िुद्रा से होती है।

    यहां सभी तरह के आसन के नाि फदए गए हैं। *कुछ आसनों के नाि*

    1.सूयणनिथकार, 2.आकर्णधनुष्ंकारासन, 3.उत्कटासन, 4.उत्तान कुक्कुटासन, 5.उत्तानपादासन, 6.उपधानासन, 7.ऊध्वणताड़ासन, 8.एकपाद ग्रीवासन, 9.कफट उत्तानासन 10.कन्धरासन, 11.कर्ण पीड़ासन, 12.कुक्कुटासन, 13.कुिाणसन, 14.कोर्ासन, 15.गरुड़ासन 16.गभाणसन, 17.गोिुखासन, 18.गोरक्षासन, 19.चिासन, 20.जानुमशरासन, 21.तोलांगुलासन 22.बत्रकोर्ासन,

  • 23.दीर्ण नौकासन, 24.फिचफिकासन, 25.फिपादग्रीवासन, 26.धु्रवासन 27.नटराजासन, 28.पक्ष्यासन, 29.पवणतासन, 30.पशबुवश्रािासन, 31.पादवतृ्तासन 32.पादांगुष्ासन, 33.पादांगुष्ठनासाथपशाणसन, 34.पूर्ण ित्थयेन्द्रासन, 35.पॄष्ठतानासन 36.प्रसतृहथत वसृ्िकासन, 37.िकासन, 38.िध्दपद्मासन, 39.िालासन, 40.ब्रह्मचयाणसन 41.भूनिनासन, 42.िंडूकासन, 43.िकण टासन, 44.िाजाणरासन, 45.योगमनद्रा, 46.योगिुद्रासन, 47.वातायनासन, 48.वकृ्षासन, 49.वसृ्िकासन, 50.शखंासन, 51.शशकासन 52.मसंहासन, 53.मसद्धासन, 54.सुप्त गभाणसन, 55.सेतुिंधासन, 56.थकंधपादासन, 57.हथतपादांगुष्ठासन, 58.भद्रासन, 59.शीषाणसन,

  • 60.सूयण निथकार, 61.कफटचिासन, 62.पादहथतासन, 63.अधणचन्द्रासन, 64.ताड़ासन, 65.पूर्णधनुरासन, 66.अधणधनुरासन, 67.बवपरीत नौकासन, 68.शलभासन, 69.भुजंगासन, 70.िकरासन, 71.पवन िुिासन, 72.नौकासन, 73.हलासन, 74.सवाांगासन, 75.बवपरीतकर्ी आसन, 76.शवासन, 77.ियूरासन, 78.ब्रह्म िुद्रा, 79.पस्ििोत्तनासन, 80.उष्ट्रासन, 81.विासन, 82.अधण-ित्थयेन्द्रासन, 83.ित्थयासन, 84.सुप्त-वज्रासन, 85.वज्रासन, 86.पद्मासन आफद।

    4. *प्रार्ायाि :--* प्रार्ायाि के पंचक, पांच प्रकार की वायु:--- 1.व्यान, 2.सिान, 3.अपान,

  • 4.उदान और 5.प्रार्।

    *प्रार्ायाि के प्रकार:--* 1.पूरक, 2.कुम्भक और 3.रेचक।

    इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वबृत्त, थतम्भन वबृत्त और िाह्य वबृत्त कहते हैं। अथाणत श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आतंररक कुम्भक और िाहर रोकने को िाह्य कुम्भक कहते हैं।

    *प्रिुख प्रार्ायाि:--* 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्स्त्रका, 3.उज्जाई, 4.भ्रािरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कंुभक, 8.दीर्ण, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.िूछाण, 12.सूयणभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रर्व, 15.अस्ननसार, 16.उद्गीथ,

  • 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.मशतायु आफद।

    *अन्य प्रार्ायाि:--* 1.अनुलोि-बवलोि प्रार्ायाि, 2.अस्नन प्रदीप्त प्रार्ायाि, 3.अस्नन प्रसारर् प्रार्ायाि, 4.एकांड थतम्भ प्रार्ायाि, 5.सीत्कारी प्रार्ायाि, 6.सवणिारिि प्रार्ायाि, 7.सवाांग थतम्भ प्रार्ायाि, 8.सप्त व्याहृमत प्रार्ायाि, 9.चतुिुणखी प्रार्ायाि, 10.प्रच्छदणन प्रार्ायाि, 11.चन्द्रभेदन प्रार्ायाि, 12.यन्त्रगिन प्रार्ायाि, 13.वािरेचन प्रार्ायाि, 14.दस्क्षर् रेचन प्रार्ायाि, 15.शबि प्रयोग प्रार्ायाि, 16.बत्रिन्धरेचक प्रार्ायाि, 17.कपाल भामत प्रार्ायाि, 18.हृदय थतम्भ प्रार्ायाि, 19.िध्य रेचन प्रार्ायाि, 20.बत्रिन्ध कुम्भक प्रार्ायाि, 21.ऊध्वणिुख भस्स्त्रका प्रार्ायाि, 22.िुखपूरक कुम्भक प्रार्ायाि, 23.वायुवीय कुम्भक प्रार्ायाि, 24.वक्षथथल रेचन प्रार्ायाि, 25.दीर्ण श्वास-प्रश्वास प्रार्ायाि, 26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्रार्ायाि, 27.षन्िुखी रेचन प्रार्ायाि 28.कण्ठ वातउदा पूरक प्रार्ायाि, 29.सुख प्रसारर् पूरक कुम्भक प्रार्ायाि, 30.अनुलोि-बवलोि नाड़ी शोधन प्रार्ायाि व नाड़ी अवरोध प्रार्ायाि आफद।

    5. *प्रत्याहार:--* इंफद्रयों को बवषयों से हटाने का नाि ही प्रत्याहार है। इंफद्रयां िनुष्य को िाहरी बवषयों िें उलझाए रखती है।। प्रत्याहार के अभ्यास से साधक अन्तिुणस्खता की स्थथमत प्राप्त करता है। जैसे एक कछुआ अपने अंगों को सिेट लेता है उसी प्रकार प्रत्याहरी िनुष्य

  • की स्थथमत होती है। यि मनयि, आसान, प्रार्ायाि को साधने से प्रत्याहार की स्थथमत र्फटत होने लगती है।

    6.*धारर्ा*:-- मचत्त को एक थथान बवशषे पर कें फद्रत करना ही धारर्ा है। प्रत्याहार के सधने से धारर्ा थवत: ही र्फटत होती है। धारर्ा धारर् फकया हुआ मचत्त कैसी भी धारर्ा या कल्पना करता है, तो वैसे ही र्फटत होने लगता है। यफद ऐसे व्यबि फकसी एक कागज को हाथ िें लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।

    7. *ध्यान*:-- जि ध्येय वथतु का मचंतन करते हुए मचत्त तद्रपू हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थथमत िें फकसी अन्य वथतु का ज्ञान अथवा उसकी थिमृत मचत्त िें प्रबवष् नहीं होती।

    ध्यान के रूढ़ प्रकार:- थथूल ध्यान, ज्योमतध्याणन और सूक्ष्ि ध्यान।

    *ध्यान बवमधयां*:-- श्वास ध्यान, साक्षी भाव, नासाग्र ध्यान, बवपश्यना ध्यान,

    *ओशो िारा प्रदत्त*: -- सफिय ध्यान, नादब्रह्म ध्यान, कंुडमलनी ध्यान, नटराज ध्यान, िंडल ध्यान आफद 115 ध्यान बवमधयों का अभ्यास ओशो कम्यून िें फकया जाता है।

  • बवज्ञान भैरव तंत्र िें भगवान मशव ने उिा को 112 तरह की ध्यान बवमधयााँ िताई हैं।

    8. *सिामध*:-- यह मचत्त की अवथथा है स्जसिें मचत्त ध्येय वथतु के मचंतन िें पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दशणन सिामध के िारा ही िोक्ष प्रामप्त को संभव िानता है।

    *सिामध की भी दो श्रसे्र्यां हैं 1. *सम्प्रज्ञात* और 2. *असम्प्रज्ञात*।

    सम्प्रज्ञात सिामध बवतकण , बवचार, आनंद और अस्थितानुगत होती है।

    असम्प्रज्ञात िें सास्त्वक, राजस और तािस सभी वबृत्तयों का मनरोध हो जाता है।

    इसे िौद्ध धिण िें संिोमध, जैन धिण िें केवल्य और फहन्द ूधिण िें िोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सािान्य भाषा िें िुबि कहते हैं।

    पुरार्ों िें िुबि के 6 प्रकार िताएं गए है जो इस प्रकार हैं:--* 1. *साबष्ट्र*, (ऐश्वयण), 2. *सालोक्य* (लोक की प्रामप्त), 3. *सारूप्य* (ब्रह्मथवरूप),

  • 4. *सािीप्य,* (ब्रह्म के पास), 5. *साम्य* (ब्रह्म जैसी सिानता) 6. *सायुज्य*, या लीनता (ब्रह्म िें लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।

    *योग फियाएं जामनएं:--* प्रिुख 13 फियाए:ं- 1.नेती-- सूत्र नेमत, रॄ्त नेमत, 2.धौमत-- विन धौमत, वस्त्र धौमत, दण्ड धौमत, 3.गजकरर्ी, 4.िथती-- जल िस्थत, 5.कंुजर, 6.न्यौली, 7.त्राटक, 8.कपालभामत, 9.धौंकनी, 10.गर्ेश फिया, 11.िाधी, 12.लर्ु शखं प्रक्षालन और 13.शखं प्रक्षालन।

    *िुद्राएं कई हैं:--* *6 आसन र्:--* 1.बवरत िुद्रा, 2.अस्श्वनी िुद्रा, 3.िहािुद्रा, 4.योग िुद्रा, 5.बवपरीत करर्ी िुद्रा, 6.शाम्भवी िुद्रा।

    *पंच राजयोग िुद्राएं:-- 1.चाचरी, 2.खेचरी,

  • 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्िुनी िुद्रा।

    *10 हथत िुद्राएं:--* उि के अलावा हथत िुद्राओ ंिें प्रिुख दस िुद्राओ ंका िहत्व है जो मनम्न है: - 1.ज्ञान िुद्रा, 2.पथृबव िुद्रा, 3.वरुर् िुद्रा, 4.वायु िुद्रा, 5.शनू्य िुद्रा, 6.सूयण िुद्रा, 7.प्रार् िुद्रा, 8.मलंग िुद्रा, 9.अपान िुद्रा, 10.अपान वायु िुद्रा।

    *अन्य िुद्राएं :--* 1.सुरभी िुद्रा, 2.ब्रह्मिुद्रा, 3.अभयिुद्रा, 4.भूमि िुद्रा, 5.भूमि थपशणिुद्रा, 6.धिणचििुद्रा, 7.वज्रिुद्रा, 8.बवतकण िुद्रा, 9.जनाना िुद्रा, 10.कर्णिुद्रा, 11.शरर्ागतिुद्रा, 12.ध्यान िुद्रा,

  • 13.सुची िुद्रा, 14.ओि िुद्रा, 15.जनाना और मचन ्िुद्रा, 16.पंचांगुली िुद्रा 17.िहाबत्रक िुद्रा, 18.कुिेर िुद्रा, 19.मचत्त िुद्रा, 20.वरद िुद्रा, 21.िकर िुद्रा, 22.शखं िुद्रा, 23.रुद्र िुद्रा, 24.पुष्पपूत िुद्रा, 25.वज्र िुद्रा, 26. श्वांस िुद्रा, 27.हाथय िुद्धा िुद्रा, 28.योग िुद्रा, 29.गर्ेश िुद्रा 30.डॉयनेमिक िुद्रा, 31.िातंगी िुद्रा, 32.गरुड़ िुद्रा, 33.कंुडमलनी िुद्रा, 34.मशव मलंग िुद्रा, 35.ब्रह्मा िुद्रा, 36.िुकुल िुद्रा, 37.िहबषण िुद्रा, 38.योनी िुद्रा, 39.पुशन िुद्रा, 40.कालेश्वर िुद्रा, 41.गूढ़ िुद्रा, 42.िेरुदंड िुद्रा, 43.हाफकनी िुद्रा, 45.किल िुद्रा,

  • 46.पाचन िुद्रा, 47.बवषहरर् िुद्रा या मनबवणबषकरर् िुद्रा, 48.आकाश िुद्रा, 49.हृदय िुद्रा, 50.जाल िुद्रा आफद।

    *योगाभ्यास की िाधाएं* :-- आहार, प्रयास, प्रजल्प, मनयिाग्रह, जनसंग और लौल्य। इसी को सािान्य भाषा िें आहार अथाणत अमतभोजन, प्रयास अथाणत आसनों के साथ जोर-जिरदथती, प्रजल्प अथाणत अभ्यास का फदखावा, मनयािाग्रह अथाणत योग करने के कड़े मनयि िनाना, जनसंग अथाणत अमधक जनसंपकण और अंत िें लौल्य का ितलि शारीररक और िानमसक चंचलता।

    *राजयोग* :-- यि, मनयि, आसन, प्रार्ायि, प्रत्याहार, धारर्ा, ध्यान और सिामध यह पतंजमल के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्ांग योग भी कहा जाता है। यही राजयोग है।

    *हठयोग* :-- षट्किण, आसन, िुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और सिामध:-- ये हठयोग के सात अंग है,

  • लेफकन हठयोगी का जोर आसन एवं कंुडमलनी जागमृत के मलए आसन, िंध, िुद्रा और प्रार्ायि पर अमधक रहता है। यही फिया योग है।

    *लययोग* :-- यि, मनयि, थथूल फिया, सूक्ष्ि फिया, प्रत्याहार, धारर्ा, ध्यान और सिामध। उि आठ लययोग के अंग है।

    *ज्ञानयोग* :-- साक्षीभाव िारा बवशदु्ध आत्िा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।

    *किणयोग* :-- शास्त्र बवफहत किण करना ही किण योग है। इसका उद्येश्य है किों िें कुशलता लाना।

    *भबियोग* : -- भि श्रवर्, कीतणन, थिरर्, पादसेवन, अचणन, वंदन, दाथय, सख्य और आत्िमनवेदन रूप- -इन नौ अंगों को नवधा भबि कहा जाता है। भबि योगानुसार व्यबि सालोक्य, सािीप्य, सारूप्य तथा सायुज्य-िुबि को प्राप्त होता है, स्जसे िििद्ध िुबि कहा जाता है।

    *अंग संचालन:--* 1.शवासन, 2.िकरासन, 3.दंडासन और

  • 4. निथकार िुद्रा िें अंग संचालन फकया जाता है स्जसे सूक्ष्ि व्यायाि कहते हैं। इसके अंतगणत आखंें, कोहनी, र्ुटन,े किर, अंगुमलया,ं पंज,े िुंह आफद अंगों की एक्सरसाइज की जाती है।

    *प्रिुख िंध:--* 1.िहािंध, 2.िूलिंध, 3.जालन्धरिंध और 4.उस्डडयान िांध।

    *कंुडमलनी योग* :-- कंुडमलनी शबि सुषुम्ना नाड़ी िें नामभ के मनचले फहथसे िें सोई हुई अवथथा िें रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चिों से गुजरती हुई सहस्रार चि तक पहंुचती है।

    ये चि 7 होते हैं:- िूलाधार, थवामधष्ठान, िस्र्पुर, अनाहत, बवशबुद्ध, आज्ञा और सहस्रार।

    72 हजार नाफड़यों िें से प्रिुख रूप से तीन है: इड़ा, बपंगला और

  • सुषुम्ना।

    इड़ा और बपंगला नामसका के दोनों मछद्रों से जुड़ी है जिफक सुषुम्ना भकुृटी के िीच के थथान से।

    थवरयोग इड़ा और बपंगला के बवषय िें बवथततृ जानकारी देते हुए थवरों को पररवमतणत करने, रोग दरू करने, मसबद्ध प्राप्त करने और भबवष्यवार्ी करने जैसी शबियााँ प्राप्त करने के बवषय िें गहन िागणदशणन होता है।

    दोनों नामसका से सांस चलने का अथण है फक उस सिय सुषुम्ना फियाशील है। ध्यान, प्राथणना, जप, मचंतन और उत्कृष् कायण करने के मलए यही सिय सवणश्रषे्ठ होता है। इस सिय फदया हुआ आशीवाणद या अमभशाप के िमलत होने की संभावना अमधक होती है।

    *योग का संस्क्षप्त इमतहास (History of Yoga) :* योग का उपदेश सवणप्रथि फहरण्यगभण ब्रह्मा ने सनकाफदकों को, पिात बववथवान (सूयण) को फदया। िाद िें यह दो शखाओ ंिें बवभि हो गया। एक ब्रह्मयोग और दसूरा किणयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कबपल, आसुरर, वोढु और पच्चंमशख नारद-शकुाफदकों ने शरुू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के िीच िें ज्ञान, अध्यात्ि और सांख्य योग नाि से प्रमसद्ध हुआ।

    दसूरी किणयोग की परम्परा बववथवान की है। बववथवान ने िनु को, िनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजबषणयों एवं प्रजाओ ंको योग का उपदेश फदया। उि सभी िातों का वेद और पुरार्ों िें उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की

  • प्रथि पुथतक िाना जाता है स्जसका उत्पबत्त काल लगभग 10,000 वषण पूवण का िाना जाता है।

    पुरातत्ववेत्ताओ ंअनुसार योग की उत्पबत्त 5000 ई.प.ू िें हुई। गुरु-मशष्य परम्परा के िारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दसूरी पीढ़ी को मिलता रहा। भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पबत्त भारत िें लगभग 5000 वषण से भी अमधक सिय पहले हुई थी। योग की सिसे आियणजनक खोज 1920 के शरुुआत िें हुई। 1920 िें पुरातत्व वैज्ञामनकों ने 'मसंधु सरथवती सभ्यता' को खोजा था स्जसिें प्राचीन फहंद ूधिण और योग की परंपरा होने के सिूत मिलते हैं। मसंधु र्ाटी सभ्यता को 3300-1700 िी.सी.ई. पुरानी िाना जाती है।

    *योग ग्रंथ*-- (Yoga Books) : वेद, उपमनषद्, भगवदगीता, हठयोग प्रदीबपका, योगदशणन, मशव संफहता, बवज्ञान भैरव तंत्र और बवमभन्न तंत्र ग्रंथों िें योग बवद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार िनाकर पतंजमल ने योग सूत्र मलखा। योग पर मलखा गया सवणप्रथि सुव्यव्यवस्थथत ग्रंथ है-- *योगसूत्र।* योगसूत्र को पतंजमल न े 200 ई.पूवण मलखा था। इस ग्रंथ पर अि तक हजारों भाष्य मलखे गए हैं, लेफकन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख करते हैं।

  • *व्यास भाष्य* : व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूवण का िाना जाता है। िहबषण पतंजमल का ग्रंथ योगसूत्र योग की सभी बवद्याओ ंका ठीक-ठीक संग्रह िाना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के 'व्यास भाष्य' को योग सूत्र पर मलखा प्रथि प्रािास्र्क भाष्य िाना जाता है। व्यास िारा िहबषण पतंजमल के योगसूत्र पर दी गई बवथततृ लेफकन सुव्यवस्थथत व्याख्या। *तत्त्ववैशारदी* : पतंजमल योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रािास्र्क व्याख्याकार के रूप िें वाचथपमत मिश्र का 'तत्त्ववैशारदी' प्रिुख ग्रंथ िाना जाता है। वाचथपमत मिश्र ने योगसूत्र एव ं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पिात िाना जाता है।

    *योगवामतणक* : बवज्ञानमभक्षु का सिय बविानों के िारा 16वीं शताब्दी के िध्य िें िाना जाता है। योगसूत्र पर िहत्वपूर्ण व्याख्या बवज्ञानमभक्षु की प्राप्त होती है स्जसका नाि ‘योगवामतणक’ है।

    *भोजवबृत्त* : भोज के राज्य का सिय 1075-1110 बविि संवत िाना जाता है। धरेश्वर भोज के नाि से प्रमसद्ध व्यबि ने योगसूत्र पर जो 'भोजवबृत्त' नािक ग्रंथ मलखा है वह भोजवबृत्त योगबविजनों के िीच सिादरर्ीय एवं प्रमसद्ध िाना जाता है।

  • कुछ इमतहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ िानते हैं। ।। ॐ ।। सादर निथते ।। ॐ ।।