‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग...

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मधुबन लोगिन को पितयाइ मुख औरै , अंतरगित औरे , पितयाँ िलǔख पठवत जु बनाइ Ïयɋ कोइल-सुत काग ǔजयावै, भाव भगित भोजन जु खवाइ कु हǑक -कु हǑक ओएं बसंत ǐरतु , अंत िमलै अपने कु ल जाइ Ïयɋ मधुकर अंबुज रस चाÉयौ, बहǐर बूझै बातै आइ ÔसूरÕ जहाँ लिग याम गात हɇ , ितनसɋ कȧजै कहा सगाइ ।।184 मधुबन के लोगɉ का Èया भरोसा ? इनका कौन ǒवƳास करे इनके मुँह मɅ कु छ रहता है और मन मɅ कु छ और ये खूब बना-बनाकर िचÒटȣ भर िलखना जानते हɇ ये तो कोयल के उस बÍचɅ से है , ǔजÛहɅ कौआ बड़े ेम से खूब ǔखला-ǒपलाकर पालता-पोसता है और जो वसंत ऋतु आने पर Ôकु ह -कु ह Õ बोलते हए अÛत मɅ अपने कु ल वालɉ मɅ जाकर िमल जाते है वसुदेव देवकȧ के बेटे को नंद-यशोदा ने पाला, पर जब उससे सुख उठाने का अवसर आया, तो वह नंद-यशोदा को छोड़कर अपने कु ल मɅ जा िमला ये मधुबिनयाँ ऐसे हȣ हɇ जैसे भɋरा, जो कमल का सारा रस चूसकर उड़ जाता है और Ǒफर लौटकर बात भी नहȣं पूछता ǔजतने भी काले -कलूटे हɇ , उनसे Èया नेह संबंध Ǒकया जाय ? मधुबन सब कृ त£ धरमीले अित उदार, परǑहत डोलत हɇ , बोलत बचन सुसीले ।। थम आइ गोकु ल सुफलक-सुत, लै मधुǐरपुǑहँ िसधारे उहाँ कं स, हयां हम दȣनिन कɋ, दनौ काज सँवारे ।। हǐर कौ िसàबै, िसखावन हमकɋ, अब ऊधौ पग धारे हतां दासी रित कȧ कȧरित कै , इहाँ जोग ǒवःतारे ।। अब ितǑहँ ǒबरह समुि सबै हम, बड़ȣ चहँ तन हȣं 138

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Page 1: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoमधबन लोगिन को पितयाइ मख और अतरगित और

पितया िल ख पठवत ज बनाइ य कोइल-सत काग जयाव

भाव भगित भोजन ज खवाइ कह क -कह क ओए बसत रत

अत िमल अपन कल जाइ य मधकर अबज रस चा यौ

बह र न बझ बात आइ

OcircसरOtilde जहा लिग ःयाम गात ह ितनस क ज कहा सगाइ rdquo184

मधबन क लोग का या भरोसा इनका कौन व ास कर इनक मह म कछ रहता ह और मन म कछ और य खब बना-बनाकर िच ट भर िलखना जानत ह य तो कोयल क उस ब च स ह ज ह कौआ बड़ म स खब खला- पलाकर पालता-पोसता ह और जो वसत ऋत आन पर Ocircकह-कहOtilde बोलत हए अ त म अपन कल वाल म जाकर िमल जात ह वसदव दवक क बट को नद-यशोदा न पाला पर जब उसस सख उठान का अवसर आया तो वह नद-यशोदा को छोड़कर अपन कल म जा िमला य मधबिनया ऐस ह ह जस भ रा जो कमल का सारा रस चसकर उड़ जाता ह और फर लौटकर बात भी नह पछता जतन भी काल-कलट ह उनस या ःनह सबध कया जाय

ldquoमधबन सब कत धरमील अित उदार पर हत डोलत ह

बोलत बचन ससील थम आइ गोकल सफलक-सत

ल मध रप ह िसधार उहा कस हया हम द निन क

दनौ काज सवार

ह र कौ िस ब िसखावन हमक अब ऊधौ पग धार

हता दासी रित क क रित क इहा जोग वःतार

अब ित ह बरह समि सब हम बड़ चह तन ह

138

लीला सगन नाव ह सन अिल ित ह अवलब रह

अब िनरगिन ह गह जवती जन पार ह कहा गई

OcircसरOtilde अबर छपद क मन म ना ह ऽास दई rdquo185

राधा य य बाण छोड़ती हई कह रह ह - मधवन म तो सभी क सभी कत और धािमक ःवभाव क लोग ह वसदव दवक क कत ता दख लो क हया को पाला पोसा बड़ा कया नद यशोदा न अपना बटा बना बठ दवक और वसदव धमा मा दखना हो तो सफलक क सपत अबर को दख लो य अ यत उदार ह दसर क क याण क िलए घमत रहत ह शीतमयी वाणी बोलत ह पहल गोकल आए और हमार मधसदन ( वण-कण) को लकर चलत बन एक बार म इ ह न दो दो काम िस कर िलए वहा मथरा म कस का काम तमाम करा दया और यहा हम सब द न दःखी गो पय को ndash हम िचर बर हणी बना दया अब यह दसर धमा मा ऊ व जी पधार ह इ ह न पहल वहा मथरा म हमार सखा ह र को िसखाया पढ़ाया अब हम िसखान पढ़ान आए ह रह क हया वहा मथरा म कबड़ दासी म अनर होकर अपनी क ित फला रह ह और यहा उ व को भजकर योग का चार-सार कर रह ह अब हम उस वरह-सागर म चार ओर स एक दम डबी जा रह ह अब इस वरह-सागर स पार जान क िलए सगण भ क लीलाओ क नौका का सहारा रह गया ह अब उ व क िनगण क नाव पकड़कर भला कौन नवयवती इस वरह सागर क पार जा सकगी अबर और इस छ पर वाल भ र (उ व) क मन म भगवान का भी डर नह रह गया ह फर राधा य य म कहती ह क ETH

ldquoहमक नीक सम झ पर जन लिग हती बहत उर आसा

सोउ बात िनबर व सफलक-सत य स ख ऊधौ

पढ़ एक प रपाट उन वसी क ह इन ऐसी

रतन छो र दयौ माट ऊपर मद भीतर ज किलस सम

दखत क अित भ र जोइ जोइ आवत वा मथरा त

एक डार क तौर

139

यह म प हल ह क ह राखी अिसत न अपन हो ह

OcircसरOtilde का ट जौ माथौ द ज चल आपनी ग ह rdquo186

राधा न कहा- सखी अब मन भली भाित समझ िलया ह जनस हमन बहत -बहत आशा लगा रखी थी वह बात भी बीत गई उनस कोई आशा नह रह गई सफलक-सत व अबर और अपग-सत य उ व दोन न एक प ट पर एक ह पाठ पढ़ा ह उन अबर न तो वसा कया- हमार याम को फसला ल गए इन उ व न ऐसा कया योग का उपदश दए जा रह ह दोन न हमारा र छ नकर हम िम ट थमा द ह दोन ऊपर स अ यत कोमल ह पर भीतर स दोन बळ दय ह दखन म दोन बड़ भोल-भाल ह मथरा स जो भी ोज म आत ह सभी पड़ क एक ह डाल स तोड़ फल क समान एक ह प रग रस ःवाद क होत ह यह तो मन पहल ह कह दया था क काल-काल कभी अपन नह हो सकत भल ह इनक िलए अपना िसर कटा द जए पर य अपन ह मतलब स चलत ह फर सखी उ व स कहती ह क ETH

ldquoऊधौ यह अचभौ बाढ़ आप कहा ोजराज मनोहर

कहा कबर राढ़ ज ह िछन करत कलोल सग रित

िग रधर अपनी चाढ़ काटत ह परजक ता ह िछन

कध खोदत खाढ़ कध सदा बपर त रचत ह

ग ह-ग ह आसन गाढ़ OcircसरOtilde सयान भए ह र बाधत

मास खाइ गल हाड़ rdquo187

ह उ व हम तो भार अचभा इस बात का ह क कहा इतन सदर मनोहर जराज और कहा वह अधम कबड़ जस समय अपनी आतरता म व उस कबड़ क साथ रितरग करत ह ग तो या व कबड़ क नीच पलग क हःस को काट दत ह ग या धरती म कबड़ को सभा भर दन क िलए ग ढा खोद दत ह ग या कोक-कला क आसन क अनसार ःवय नीच लट जाकर कबड़ को उपर िलटाकर वपर त रित करत ह ग ह र ह तो बहत चतर फर भी मास खाकर ह ड गल म लटकाए फर रह ह मास खाना ःवय बरा ह पर ह ड गल म लटकाकर लोग को णाम दत फरना क मन मास खाया ह और भी बरा ह यह ह र क चतराई तो नह ह ह फर सव सखी िमलकर क जा और कण पर हाःय- य य करती हई बोली ETH

140

ldquoसिन सिन ऊधौ आवित हासी कह व ा दक क ठाकर

कहा कस क दासी इिा दक क कौन चलाव

सकर करत खवासी िनगम आ द बद जन जाक

सष सीस क वासी जाक रमा रहित चरनिन तर

कौन गन क बजा सी OcircसरदासOtilde भ ढ़ क र बाध

म-पज क पासी rdquo188

ह उ व हम यह सन-सनकर बड़ हसी आई जा रह ह कहा तो कण जो स कता जापित ा आ द क भी ःवामी ह और कहा वह कस क परानी दासी क जा इि आ द क कौन िगनती कर ःवय िशवशकर भई इन कण क सवा म रत रहत ह वद आ द इनक गण गायक बद जन (चारण भाट) यह शष नाग क िसर पर वास करन वाल ह ndash काली क िसर पर चढ़कर नाचत हए बासर बजान वाल ह और शष क श या बनाकर सोन वाल ह इनक चरण क सवा तो लआमी जी तक करती रहती ह क जा जिसय क तो वहा कोई िगनती ह नह ह पर उसी क जा न अपन म क फद म हमार भ को कसकर बाध िलया ह ह न आ य क बात आग कहती ह क ETH

ldquoतब त बह र दरस न ह द ह

ऊधौ ह र मथरा क बजा-गह वह नम ोत ली हौ

चा र मास बरषा क आगम मिनह रहत इक ठौर

दासी-धाम प वऽ जािनक ना ह दखत उ ठ और

ोजवासी सब वाल कहत ह कत ोज छा ड़ गए

OcircसरOtilde सगनई जात मधपर

िनगन नाम भए rdquo189

141

ह उ व जब स ह र मथरा म क जा क घर गए ह तब स उ ह न फर कर हम दशन नह दया मानो उ ह न वहा स न टलन का ोत ल िलया ह वषा क आगमन क साथ-साथ मिन लोग भी कोई अ छा ःथान चनकर चौमासा (अषाढ़ प णमा स आ न प णमा तक) बता दन का ोत धारण कर लत ह और उन चार मह न म अ यऽ कह नह जात उसी तरह हमार कण न दासी क जा क घर को परम प वऽ ःथान मान िलया ह और वहा स उठकर कसी दसर ःथान क ओर

पात तक नह कर रह ह उनक सखा सार जवासी वाल पछत रहत ह क कण ोज को छोड़ य गए उ ह या उ र दया जाय बड़ म कल ह जो क हया यहा सगण (गणवान) थ व ह उस मथरा म जात ह िनरगन (गणह न) हो गए आग गो पया कहती ह क ETH

ldquoऊधौ ज जाइ कहौ द र कर दासी

गोकल क नाग र सब ना र कर हासी हम काच हस काग ख र कपर जसौ

क बजा अ कमल-नन सग ब यौ ऐसौ जाित ह न कल वह न क बजा व दोऊ

ऐसिन क सग लग OcircसरOtilde तसौ सोऊ rdquo190

ऊधौ जी जाकर याम स कह द जएगा क व कबड़ दासी को अपन पास स दर हटा द यहा गोकल क सभी नविलया उनक भार हसी उड़ाए जा रह ह यह जोड़ तो ऐसी ह ह जस ःवण और काच क जोड़ जस हस और कौवी क जोड़ जस सफद ख ड़या िम ट और कपर क जोड़ क जा और कमलनयन कण दोन का सग भी ऐसा ह ह क जा और कण दोन जाित ह न ह कल- वह न ह ऐस क साथ जो हो वह भी ऐसा ह ह ऊ व तम उन दोन क साथी हो तम भी उ ह क समान जाितह न और कल वह न हो कछ पता नह कण नद क जाित और कल क ह या वसदव क इसी कार इस क जा क भी जाित और कल का भी कछ पता नह एक सखी दसर सखी स य य म बोली ETH

ldquoसखी र ःयाम सब इक सार मीठ वचन सहाए बोलत अतर जारनहार

भवर भजग काक अ को कल कप टन क चटमार कमलनन मधपर िसधार िमट गयौ मगलचार

सनह सखी र दोष न काह जो बिध िलखौ िलतार यह करतित उन ह क नाह परब ब बध बचार

कार घटा द ख बादर क सोभा दती अपार OcircसरदासOtilde स रता सर पोषत चातक करत पकार rdquo191

142

एक सखी न कहा- अर सखी सभी काल कलट एक स ह होत ह य बोलन को तो मीठ -मीठ बात बोलत ह पर होत ह दय जला दनवाल भ रा काला होता ह वह एक फल का रस लकर बारबार दसर फल पर जा मडराता ह भजग साप काला होता ह वह जस डसता ह वह बचता नह कोयल भी काली होती ह यह अपना ब चा कौए स पलवाती ह सयाना होन पर उस उड़ा ल जाती ह य काल कपट क एक ह यह शाला क व ाथ और एक ह ग क चल ह कमलनयन कण भी काल ह व हम छोड़कर मधपर चल गए उनक चल जान स ज का सारा मगलो सव समा हो गया

इस कार दसर सखी बोल उठ - अर सखी सनो इसम कसी का कोई दोष नह ह जो कछ वधाता न ललाट म िलख दया ह वह होता ह यह करतत इन काल क ह नह ह इसम परब क कम पर भी वचार कर लना चा हए आकाश म बादल क काली घटा कतनी शोभा दती ह यह नद और तालाब को पानी स भर दती ह पर बचारा चातक पकारता ह रह जाता ह उस एक बद भी पानी नह िमलता यह भा य ह भा य क जा वहा पटरानी हो गई हम यहा ताकती ह रह गई फर गोपी राधा स य य म कहती ह क ETH

ldquoमोहन मा यौ अपनौ प इ ह ोज बसत ऊच तम बठ

ता बन उहा िन प मरौ मन मर अिल लोचन

ल ज गए ध प धप ता ऊपर तम लन पठाए

मनौ धरयौ क र सप अपनौ काज सवा र OcircसरOtilde सिन

हम बतावत कप लवा-दइ बराब र म ह

कौन रग को भप rdquo192

िनगण िनराकार पर य य करती हई कोई गोपी राधा स कह रह ह - सखी यहा ज म रहत समय तमन मदनगोपाल का सारा प पी िलया था अतः मथरा म जाकर वह एकदम िनराकार हो गए ह उ ह न उ व जी को त हार पास अपना प वापस माग लान क िलए भजा ह उनका प लौटा दो

143

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

144

ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

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ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

160

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

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ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

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यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 2: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

लीला सगन नाव ह सन अिल ित ह अवलब रह

अब िनरगिन ह गह जवती जन पार ह कहा गई

OcircसरOtilde अबर छपद क मन म ना ह ऽास दई rdquo185

राधा य य बाण छोड़ती हई कह रह ह - मधवन म तो सभी क सभी कत और धािमक ःवभाव क लोग ह वसदव दवक क कत ता दख लो क हया को पाला पोसा बड़ा कया नद यशोदा न अपना बटा बना बठ दवक और वसदव धमा मा दखना हो तो सफलक क सपत अबर को दख लो य अ यत उदार ह दसर क क याण क िलए घमत रहत ह शीतमयी वाणी बोलत ह पहल गोकल आए और हमार मधसदन ( वण-कण) को लकर चलत बन एक बार म इ ह न दो दो काम िस कर िलए वहा मथरा म कस का काम तमाम करा दया और यहा हम सब द न दःखी गो पय को ndash हम िचर बर हणी बना दया अब यह दसर धमा मा ऊ व जी पधार ह इ ह न पहल वहा मथरा म हमार सखा ह र को िसखाया पढ़ाया अब हम िसखान पढ़ान आए ह रह क हया वहा मथरा म कबड़ दासी म अनर होकर अपनी क ित फला रह ह और यहा उ व को भजकर योग का चार-सार कर रह ह अब हम उस वरह-सागर म चार ओर स एक दम डबी जा रह ह अब इस वरह-सागर स पार जान क िलए सगण भ क लीलाओ क नौका का सहारा रह गया ह अब उ व क िनगण क नाव पकड़कर भला कौन नवयवती इस वरह सागर क पार जा सकगी अबर और इस छ पर वाल भ र (उ व) क मन म भगवान का भी डर नह रह गया ह फर राधा य य म कहती ह क ETH

ldquoहमक नीक सम झ पर जन लिग हती बहत उर आसा

सोउ बात िनबर व सफलक-सत य स ख ऊधौ

पढ़ एक प रपाट उन वसी क ह इन ऐसी

रतन छो र दयौ माट ऊपर मद भीतर ज किलस सम

दखत क अित भ र जोइ जोइ आवत वा मथरा त

एक डार क तौर

139

यह म प हल ह क ह राखी अिसत न अपन हो ह

OcircसरOtilde का ट जौ माथौ द ज चल आपनी ग ह rdquo186

राधा न कहा- सखी अब मन भली भाित समझ िलया ह जनस हमन बहत -बहत आशा लगा रखी थी वह बात भी बीत गई उनस कोई आशा नह रह गई सफलक-सत व अबर और अपग-सत य उ व दोन न एक प ट पर एक ह पाठ पढ़ा ह उन अबर न तो वसा कया- हमार याम को फसला ल गए इन उ व न ऐसा कया योग का उपदश दए जा रह ह दोन न हमारा र छ नकर हम िम ट थमा द ह दोन ऊपर स अ यत कोमल ह पर भीतर स दोन बळ दय ह दखन म दोन बड़ भोल-भाल ह मथरा स जो भी ोज म आत ह सभी पड़ क एक ह डाल स तोड़ फल क समान एक ह प रग रस ःवाद क होत ह यह तो मन पहल ह कह दया था क काल-काल कभी अपन नह हो सकत भल ह इनक िलए अपना िसर कटा द जए पर य अपन ह मतलब स चलत ह फर सखी उ व स कहती ह क ETH

ldquoऊधौ यह अचभौ बाढ़ आप कहा ोजराज मनोहर

कहा कबर राढ़ ज ह िछन करत कलोल सग रित

िग रधर अपनी चाढ़ काटत ह परजक ता ह िछन

कध खोदत खाढ़ कध सदा बपर त रचत ह

ग ह-ग ह आसन गाढ़ OcircसरOtilde सयान भए ह र बाधत

मास खाइ गल हाड़ rdquo187

ह उ व हम तो भार अचभा इस बात का ह क कहा इतन सदर मनोहर जराज और कहा वह अधम कबड़ जस समय अपनी आतरता म व उस कबड़ क साथ रितरग करत ह ग तो या व कबड़ क नीच पलग क हःस को काट दत ह ग या धरती म कबड़ को सभा भर दन क िलए ग ढा खोद दत ह ग या कोक-कला क आसन क अनसार ःवय नीच लट जाकर कबड़ को उपर िलटाकर वपर त रित करत ह ग ह र ह तो बहत चतर फर भी मास खाकर ह ड गल म लटकाए फर रह ह मास खाना ःवय बरा ह पर ह ड गल म लटकाकर लोग को णाम दत फरना क मन मास खाया ह और भी बरा ह यह ह र क चतराई तो नह ह ह फर सव सखी िमलकर क जा और कण पर हाःय- य य करती हई बोली ETH

140

ldquoसिन सिन ऊधौ आवित हासी कह व ा दक क ठाकर

कहा कस क दासी इिा दक क कौन चलाव

सकर करत खवासी िनगम आ द बद जन जाक

सष सीस क वासी जाक रमा रहित चरनिन तर

कौन गन क बजा सी OcircसरदासOtilde भ ढ़ क र बाध

म-पज क पासी rdquo188

ह उ व हम यह सन-सनकर बड़ हसी आई जा रह ह कहा तो कण जो स कता जापित ा आ द क भी ःवामी ह और कहा वह कस क परानी दासी क जा इि आ द क कौन िगनती कर ःवय िशवशकर भई इन कण क सवा म रत रहत ह वद आ द इनक गण गायक बद जन (चारण भाट) यह शष नाग क िसर पर वास करन वाल ह ndash काली क िसर पर चढ़कर नाचत हए बासर बजान वाल ह और शष क श या बनाकर सोन वाल ह इनक चरण क सवा तो लआमी जी तक करती रहती ह क जा जिसय क तो वहा कोई िगनती ह नह ह पर उसी क जा न अपन म क फद म हमार भ को कसकर बाध िलया ह ह न आ य क बात आग कहती ह क ETH

ldquoतब त बह र दरस न ह द ह

ऊधौ ह र मथरा क बजा-गह वह नम ोत ली हौ

चा र मास बरषा क आगम मिनह रहत इक ठौर

दासी-धाम प वऽ जािनक ना ह दखत उ ठ और

ोजवासी सब वाल कहत ह कत ोज छा ड़ गए

OcircसरOtilde सगनई जात मधपर

िनगन नाम भए rdquo189

141

ह उ व जब स ह र मथरा म क जा क घर गए ह तब स उ ह न फर कर हम दशन नह दया मानो उ ह न वहा स न टलन का ोत ल िलया ह वषा क आगमन क साथ-साथ मिन लोग भी कोई अ छा ःथान चनकर चौमासा (अषाढ़ प णमा स आ न प णमा तक) बता दन का ोत धारण कर लत ह और उन चार मह न म अ यऽ कह नह जात उसी तरह हमार कण न दासी क जा क घर को परम प वऽ ःथान मान िलया ह और वहा स उठकर कसी दसर ःथान क ओर

पात तक नह कर रह ह उनक सखा सार जवासी वाल पछत रहत ह क कण ोज को छोड़ य गए उ ह या उ र दया जाय बड़ म कल ह जो क हया यहा सगण (गणवान) थ व ह उस मथरा म जात ह िनरगन (गणह न) हो गए आग गो पया कहती ह क ETH

ldquoऊधौ ज जाइ कहौ द र कर दासी

गोकल क नाग र सब ना र कर हासी हम काच हस काग ख र कपर जसौ

क बजा अ कमल-नन सग ब यौ ऐसौ जाित ह न कल वह न क बजा व दोऊ

ऐसिन क सग लग OcircसरOtilde तसौ सोऊ rdquo190

ऊधौ जी जाकर याम स कह द जएगा क व कबड़ दासी को अपन पास स दर हटा द यहा गोकल क सभी नविलया उनक भार हसी उड़ाए जा रह ह यह जोड़ तो ऐसी ह ह जस ःवण और काच क जोड़ जस हस और कौवी क जोड़ जस सफद ख ड़या िम ट और कपर क जोड़ क जा और कमलनयन कण दोन का सग भी ऐसा ह ह क जा और कण दोन जाित ह न ह कल- वह न ह ऐस क साथ जो हो वह भी ऐसा ह ह ऊ व तम उन दोन क साथी हो तम भी उ ह क समान जाितह न और कल वह न हो कछ पता नह कण नद क जाित और कल क ह या वसदव क इसी कार इस क जा क भी जाित और कल का भी कछ पता नह एक सखी दसर सखी स य य म बोली ETH

ldquoसखी र ःयाम सब इक सार मीठ वचन सहाए बोलत अतर जारनहार

भवर भजग काक अ को कल कप टन क चटमार कमलनन मधपर िसधार िमट गयौ मगलचार

सनह सखी र दोष न काह जो बिध िलखौ िलतार यह करतित उन ह क नाह परब ब बध बचार

कार घटा द ख बादर क सोभा दती अपार OcircसरदासOtilde स रता सर पोषत चातक करत पकार rdquo191

142

एक सखी न कहा- अर सखी सभी काल कलट एक स ह होत ह य बोलन को तो मीठ -मीठ बात बोलत ह पर होत ह दय जला दनवाल भ रा काला होता ह वह एक फल का रस लकर बारबार दसर फल पर जा मडराता ह भजग साप काला होता ह वह जस डसता ह वह बचता नह कोयल भी काली होती ह यह अपना ब चा कौए स पलवाती ह सयाना होन पर उस उड़ा ल जाती ह य काल कपट क एक ह यह शाला क व ाथ और एक ह ग क चल ह कमलनयन कण भी काल ह व हम छोड़कर मधपर चल गए उनक चल जान स ज का सारा मगलो सव समा हो गया

इस कार दसर सखी बोल उठ - अर सखी सनो इसम कसी का कोई दोष नह ह जो कछ वधाता न ललाट म िलख दया ह वह होता ह यह करतत इन काल क ह नह ह इसम परब क कम पर भी वचार कर लना चा हए आकाश म बादल क काली घटा कतनी शोभा दती ह यह नद और तालाब को पानी स भर दती ह पर बचारा चातक पकारता ह रह जाता ह उस एक बद भी पानी नह िमलता यह भा य ह भा य क जा वहा पटरानी हो गई हम यहा ताकती ह रह गई फर गोपी राधा स य य म कहती ह क ETH

ldquoमोहन मा यौ अपनौ प इ ह ोज बसत ऊच तम बठ

ता बन उहा िन प मरौ मन मर अिल लोचन

ल ज गए ध प धप ता ऊपर तम लन पठाए

मनौ धरयौ क र सप अपनौ काज सवा र OcircसरOtilde सिन

हम बतावत कप लवा-दइ बराब र म ह

कौन रग को भप rdquo192

िनगण िनराकार पर य य करती हई कोई गोपी राधा स कह रह ह - सखी यहा ज म रहत समय तमन मदनगोपाल का सारा प पी िलया था अतः मथरा म जाकर वह एकदम िनराकार हो गए ह उ ह न उ व जी को त हार पास अपना प वापस माग लान क िलए भजा ह उनका प लौटा दो

143

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

144

ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

150

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

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यह म प हल ह क ह राखी अिसत न अपन हो ह

OcircसरOtilde का ट जौ माथौ द ज चल आपनी ग ह rdquo186

राधा न कहा- सखी अब मन भली भाित समझ िलया ह जनस हमन बहत -बहत आशा लगा रखी थी वह बात भी बीत गई उनस कोई आशा नह रह गई सफलक-सत व अबर और अपग-सत य उ व दोन न एक प ट पर एक ह पाठ पढ़ा ह उन अबर न तो वसा कया- हमार याम को फसला ल गए इन उ व न ऐसा कया योग का उपदश दए जा रह ह दोन न हमारा र छ नकर हम िम ट थमा द ह दोन ऊपर स अ यत कोमल ह पर भीतर स दोन बळ दय ह दखन म दोन बड़ भोल-भाल ह मथरा स जो भी ोज म आत ह सभी पड़ क एक ह डाल स तोड़ फल क समान एक ह प रग रस ःवाद क होत ह यह तो मन पहल ह कह दया था क काल-काल कभी अपन नह हो सकत भल ह इनक िलए अपना िसर कटा द जए पर य अपन ह मतलब स चलत ह फर सखी उ व स कहती ह क ETH

ldquoऊधौ यह अचभौ बाढ़ आप कहा ोजराज मनोहर

कहा कबर राढ़ ज ह िछन करत कलोल सग रित

िग रधर अपनी चाढ़ काटत ह परजक ता ह िछन

कध खोदत खाढ़ कध सदा बपर त रचत ह

ग ह-ग ह आसन गाढ़ OcircसरOtilde सयान भए ह र बाधत

मास खाइ गल हाड़ rdquo187

ह उ व हम तो भार अचभा इस बात का ह क कहा इतन सदर मनोहर जराज और कहा वह अधम कबड़ जस समय अपनी आतरता म व उस कबड़ क साथ रितरग करत ह ग तो या व कबड़ क नीच पलग क हःस को काट दत ह ग या धरती म कबड़ को सभा भर दन क िलए ग ढा खोद दत ह ग या कोक-कला क आसन क अनसार ःवय नीच लट जाकर कबड़ को उपर िलटाकर वपर त रित करत ह ग ह र ह तो बहत चतर फर भी मास खाकर ह ड गल म लटकाए फर रह ह मास खाना ःवय बरा ह पर ह ड गल म लटकाकर लोग को णाम दत फरना क मन मास खाया ह और भी बरा ह यह ह र क चतराई तो नह ह ह फर सव सखी िमलकर क जा और कण पर हाःय- य य करती हई बोली ETH

140

ldquoसिन सिन ऊधौ आवित हासी कह व ा दक क ठाकर

कहा कस क दासी इिा दक क कौन चलाव

सकर करत खवासी िनगम आ द बद जन जाक

सष सीस क वासी जाक रमा रहित चरनिन तर

कौन गन क बजा सी OcircसरदासOtilde भ ढ़ क र बाध

म-पज क पासी rdquo188

ह उ व हम यह सन-सनकर बड़ हसी आई जा रह ह कहा तो कण जो स कता जापित ा आ द क भी ःवामी ह और कहा वह कस क परानी दासी क जा इि आ द क कौन िगनती कर ःवय िशवशकर भई इन कण क सवा म रत रहत ह वद आ द इनक गण गायक बद जन (चारण भाट) यह शष नाग क िसर पर वास करन वाल ह ndash काली क िसर पर चढ़कर नाचत हए बासर बजान वाल ह और शष क श या बनाकर सोन वाल ह इनक चरण क सवा तो लआमी जी तक करती रहती ह क जा जिसय क तो वहा कोई िगनती ह नह ह पर उसी क जा न अपन म क फद म हमार भ को कसकर बाध िलया ह ह न आ य क बात आग कहती ह क ETH

ldquoतब त बह र दरस न ह द ह

ऊधौ ह र मथरा क बजा-गह वह नम ोत ली हौ

चा र मास बरषा क आगम मिनह रहत इक ठौर

दासी-धाम प वऽ जािनक ना ह दखत उ ठ और

ोजवासी सब वाल कहत ह कत ोज छा ड़ गए

OcircसरOtilde सगनई जात मधपर

िनगन नाम भए rdquo189

141

ह उ व जब स ह र मथरा म क जा क घर गए ह तब स उ ह न फर कर हम दशन नह दया मानो उ ह न वहा स न टलन का ोत ल िलया ह वषा क आगमन क साथ-साथ मिन लोग भी कोई अ छा ःथान चनकर चौमासा (अषाढ़ प णमा स आ न प णमा तक) बता दन का ोत धारण कर लत ह और उन चार मह न म अ यऽ कह नह जात उसी तरह हमार कण न दासी क जा क घर को परम प वऽ ःथान मान िलया ह और वहा स उठकर कसी दसर ःथान क ओर

पात तक नह कर रह ह उनक सखा सार जवासी वाल पछत रहत ह क कण ोज को छोड़ य गए उ ह या उ र दया जाय बड़ म कल ह जो क हया यहा सगण (गणवान) थ व ह उस मथरा म जात ह िनरगन (गणह न) हो गए आग गो पया कहती ह क ETH

ldquoऊधौ ज जाइ कहौ द र कर दासी

गोकल क नाग र सब ना र कर हासी हम काच हस काग ख र कपर जसौ

क बजा अ कमल-नन सग ब यौ ऐसौ जाित ह न कल वह न क बजा व दोऊ

ऐसिन क सग लग OcircसरOtilde तसौ सोऊ rdquo190

ऊधौ जी जाकर याम स कह द जएगा क व कबड़ दासी को अपन पास स दर हटा द यहा गोकल क सभी नविलया उनक भार हसी उड़ाए जा रह ह यह जोड़ तो ऐसी ह ह जस ःवण और काच क जोड़ जस हस और कौवी क जोड़ जस सफद ख ड़या िम ट और कपर क जोड़ क जा और कमलनयन कण दोन का सग भी ऐसा ह ह क जा और कण दोन जाित ह न ह कल- वह न ह ऐस क साथ जो हो वह भी ऐसा ह ह ऊ व तम उन दोन क साथी हो तम भी उ ह क समान जाितह न और कल वह न हो कछ पता नह कण नद क जाित और कल क ह या वसदव क इसी कार इस क जा क भी जाित और कल का भी कछ पता नह एक सखी दसर सखी स य य म बोली ETH

ldquoसखी र ःयाम सब इक सार मीठ वचन सहाए बोलत अतर जारनहार

भवर भजग काक अ को कल कप टन क चटमार कमलनन मधपर िसधार िमट गयौ मगलचार

सनह सखी र दोष न काह जो बिध िलखौ िलतार यह करतित उन ह क नाह परब ब बध बचार

कार घटा द ख बादर क सोभा दती अपार OcircसरदासOtilde स रता सर पोषत चातक करत पकार rdquo191

142

एक सखी न कहा- अर सखी सभी काल कलट एक स ह होत ह य बोलन को तो मीठ -मीठ बात बोलत ह पर होत ह दय जला दनवाल भ रा काला होता ह वह एक फल का रस लकर बारबार दसर फल पर जा मडराता ह भजग साप काला होता ह वह जस डसता ह वह बचता नह कोयल भी काली होती ह यह अपना ब चा कौए स पलवाती ह सयाना होन पर उस उड़ा ल जाती ह य काल कपट क एक ह यह शाला क व ाथ और एक ह ग क चल ह कमलनयन कण भी काल ह व हम छोड़कर मधपर चल गए उनक चल जान स ज का सारा मगलो सव समा हो गया

इस कार दसर सखी बोल उठ - अर सखी सनो इसम कसी का कोई दोष नह ह जो कछ वधाता न ललाट म िलख दया ह वह होता ह यह करतत इन काल क ह नह ह इसम परब क कम पर भी वचार कर लना चा हए आकाश म बादल क काली घटा कतनी शोभा दती ह यह नद और तालाब को पानी स भर दती ह पर बचारा चातक पकारता ह रह जाता ह उस एक बद भी पानी नह िमलता यह भा य ह भा य क जा वहा पटरानी हो गई हम यहा ताकती ह रह गई फर गोपी राधा स य य म कहती ह क ETH

ldquoमोहन मा यौ अपनौ प इ ह ोज बसत ऊच तम बठ

ता बन उहा िन प मरौ मन मर अिल लोचन

ल ज गए ध प धप ता ऊपर तम लन पठाए

मनौ धरयौ क र सप अपनौ काज सवा र OcircसरOtilde सिन

हम बतावत कप लवा-दइ बराब र म ह

कौन रग को भप rdquo192

िनगण िनराकार पर य य करती हई कोई गोपी राधा स कह रह ह - सखी यहा ज म रहत समय तमन मदनगोपाल का सारा प पी िलया था अतः मथरा म जाकर वह एकदम िनराकार हो गए ह उ ह न उ व जी को त हार पास अपना प वापस माग लान क िलए भजा ह उनका प लौटा दो

143

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

144

ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 4: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoसिन सिन ऊधौ आवित हासी कह व ा दक क ठाकर

कहा कस क दासी इिा दक क कौन चलाव

सकर करत खवासी िनगम आ द बद जन जाक

सष सीस क वासी जाक रमा रहित चरनिन तर

कौन गन क बजा सी OcircसरदासOtilde भ ढ़ क र बाध

म-पज क पासी rdquo188

ह उ व हम यह सन-सनकर बड़ हसी आई जा रह ह कहा तो कण जो स कता जापित ा आ द क भी ःवामी ह और कहा वह कस क परानी दासी क जा इि आ द क कौन िगनती कर ःवय िशवशकर भई इन कण क सवा म रत रहत ह वद आ द इनक गण गायक बद जन (चारण भाट) यह शष नाग क िसर पर वास करन वाल ह ndash काली क िसर पर चढ़कर नाचत हए बासर बजान वाल ह और शष क श या बनाकर सोन वाल ह इनक चरण क सवा तो लआमी जी तक करती रहती ह क जा जिसय क तो वहा कोई िगनती ह नह ह पर उसी क जा न अपन म क फद म हमार भ को कसकर बाध िलया ह ह न आ य क बात आग कहती ह क ETH

ldquoतब त बह र दरस न ह द ह

ऊधौ ह र मथरा क बजा-गह वह नम ोत ली हौ

चा र मास बरषा क आगम मिनह रहत इक ठौर

दासी-धाम प वऽ जािनक ना ह दखत उ ठ और

ोजवासी सब वाल कहत ह कत ोज छा ड़ गए

OcircसरOtilde सगनई जात मधपर

िनगन नाम भए rdquo189

141

ह उ व जब स ह र मथरा म क जा क घर गए ह तब स उ ह न फर कर हम दशन नह दया मानो उ ह न वहा स न टलन का ोत ल िलया ह वषा क आगमन क साथ-साथ मिन लोग भी कोई अ छा ःथान चनकर चौमासा (अषाढ़ प णमा स आ न प णमा तक) बता दन का ोत धारण कर लत ह और उन चार मह न म अ यऽ कह नह जात उसी तरह हमार कण न दासी क जा क घर को परम प वऽ ःथान मान िलया ह और वहा स उठकर कसी दसर ःथान क ओर

पात तक नह कर रह ह उनक सखा सार जवासी वाल पछत रहत ह क कण ोज को छोड़ य गए उ ह या उ र दया जाय बड़ म कल ह जो क हया यहा सगण (गणवान) थ व ह उस मथरा म जात ह िनरगन (गणह न) हो गए आग गो पया कहती ह क ETH

ldquoऊधौ ज जाइ कहौ द र कर दासी

गोकल क नाग र सब ना र कर हासी हम काच हस काग ख र कपर जसौ

क बजा अ कमल-नन सग ब यौ ऐसौ जाित ह न कल वह न क बजा व दोऊ

ऐसिन क सग लग OcircसरOtilde तसौ सोऊ rdquo190

ऊधौ जी जाकर याम स कह द जएगा क व कबड़ दासी को अपन पास स दर हटा द यहा गोकल क सभी नविलया उनक भार हसी उड़ाए जा रह ह यह जोड़ तो ऐसी ह ह जस ःवण और काच क जोड़ जस हस और कौवी क जोड़ जस सफद ख ड़या िम ट और कपर क जोड़ क जा और कमलनयन कण दोन का सग भी ऐसा ह ह क जा और कण दोन जाित ह न ह कल- वह न ह ऐस क साथ जो हो वह भी ऐसा ह ह ऊ व तम उन दोन क साथी हो तम भी उ ह क समान जाितह न और कल वह न हो कछ पता नह कण नद क जाित और कल क ह या वसदव क इसी कार इस क जा क भी जाित और कल का भी कछ पता नह एक सखी दसर सखी स य य म बोली ETH

ldquoसखी र ःयाम सब इक सार मीठ वचन सहाए बोलत अतर जारनहार

भवर भजग काक अ को कल कप टन क चटमार कमलनन मधपर िसधार िमट गयौ मगलचार

सनह सखी र दोष न काह जो बिध िलखौ िलतार यह करतित उन ह क नाह परब ब बध बचार

कार घटा द ख बादर क सोभा दती अपार OcircसरदासOtilde स रता सर पोषत चातक करत पकार rdquo191

142

एक सखी न कहा- अर सखी सभी काल कलट एक स ह होत ह य बोलन को तो मीठ -मीठ बात बोलत ह पर होत ह दय जला दनवाल भ रा काला होता ह वह एक फल का रस लकर बारबार दसर फल पर जा मडराता ह भजग साप काला होता ह वह जस डसता ह वह बचता नह कोयल भी काली होती ह यह अपना ब चा कौए स पलवाती ह सयाना होन पर उस उड़ा ल जाती ह य काल कपट क एक ह यह शाला क व ाथ और एक ह ग क चल ह कमलनयन कण भी काल ह व हम छोड़कर मधपर चल गए उनक चल जान स ज का सारा मगलो सव समा हो गया

इस कार दसर सखी बोल उठ - अर सखी सनो इसम कसी का कोई दोष नह ह जो कछ वधाता न ललाट म िलख दया ह वह होता ह यह करतत इन काल क ह नह ह इसम परब क कम पर भी वचार कर लना चा हए आकाश म बादल क काली घटा कतनी शोभा दती ह यह नद और तालाब को पानी स भर दती ह पर बचारा चातक पकारता ह रह जाता ह उस एक बद भी पानी नह िमलता यह भा य ह भा य क जा वहा पटरानी हो गई हम यहा ताकती ह रह गई फर गोपी राधा स य य म कहती ह क ETH

ldquoमोहन मा यौ अपनौ प इ ह ोज बसत ऊच तम बठ

ता बन उहा िन प मरौ मन मर अिल लोचन

ल ज गए ध प धप ता ऊपर तम लन पठाए

मनौ धरयौ क र सप अपनौ काज सवा र OcircसरOtilde सिन

हम बतावत कप लवा-दइ बराब र म ह

कौन रग को भप rdquo192

िनगण िनराकार पर य य करती हई कोई गोपी राधा स कह रह ह - सखी यहा ज म रहत समय तमन मदनगोपाल का सारा प पी िलया था अतः मथरा म जाकर वह एकदम िनराकार हो गए ह उ ह न उ व जी को त हार पास अपना प वापस माग लान क िलए भजा ह उनका प लौटा दो

143

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

144

ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

150

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 5: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ह उ व जब स ह र मथरा म क जा क घर गए ह तब स उ ह न फर कर हम दशन नह दया मानो उ ह न वहा स न टलन का ोत ल िलया ह वषा क आगमन क साथ-साथ मिन लोग भी कोई अ छा ःथान चनकर चौमासा (अषाढ़ प णमा स आ न प णमा तक) बता दन का ोत धारण कर लत ह और उन चार मह न म अ यऽ कह नह जात उसी तरह हमार कण न दासी क जा क घर को परम प वऽ ःथान मान िलया ह और वहा स उठकर कसी दसर ःथान क ओर

पात तक नह कर रह ह उनक सखा सार जवासी वाल पछत रहत ह क कण ोज को छोड़ य गए उ ह या उ र दया जाय बड़ म कल ह जो क हया यहा सगण (गणवान) थ व ह उस मथरा म जात ह िनरगन (गणह न) हो गए आग गो पया कहती ह क ETH

ldquoऊधौ ज जाइ कहौ द र कर दासी

गोकल क नाग र सब ना र कर हासी हम काच हस काग ख र कपर जसौ

क बजा अ कमल-नन सग ब यौ ऐसौ जाित ह न कल वह न क बजा व दोऊ

ऐसिन क सग लग OcircसरOtilde तसौ सोऊ rdquo190

ऊधौ जी जाकर याम स कह द जएगा क व कबड़ दासी को अपन पास स दर हटा द यहा गोकल क सभी नविलया उनक भार हसी उड़ाए जा रह ह यह जोड़ तो ऐसी ह ह जस ःवण और काच क जोड़ जस हस और कौवी क जोड़ जस सफद ख ड़या िम ट और कपर क जोड़ क जा और कमलनयन कण दोन का सग भी ऐसा ह ह क जा और कण दोन जाित ह न ह कल- वह न ह ऐस क साथ जो हो वह भी ऐसा ह ह ऊ व तम उन दोन क साथी हो तम भी उ ह क समान जाितह न और कल वह न हो कछ पता नह कण नद क जाित और कल क ह या वसदव क इसी कार इस क जा क भी जाित और कल का भी कछ पता नह एक सखी दसर सखी स य य म बोली ETH

ldquoसखी र ःयाम सब इक सार मीठ वचन सहाए बोलत अतर जारनहार

भवर भजग काक अ को कल कप टन क चटमार कमलनन मधपर िसधार िमट गयौ मगलचार

सनह सखी र दोष न काह जो बिध िलखौ िलतार यह करतित उन ह क नाह परब ब बध बचार

कार घटा द ख बादर क सोभा दती अपार OcircसरदासOtilde स रता सर पोषत चातक करत पकार rdquo191

142

एक सखी न कहा- अर सखी सभी काल कलट एक स ह होत ह य बोलन को तो मीठ -मीठ बात बोलत ह पर होत ह दय जला दनवाल भ रा काला होता ह वह एक फल का रस लकर बारबार दसर फल पर जा मडराता ह भजग साप काला होता ह वह जस डसता ह वह बचता नह कोयल भी काली होती ह यह अपना ब चा कौए स पलवाती ह सयाना होन पर उस उड़ा ल जाती ह य काल कपट क एक ह यह शाला क व ाथ और एक ह ग क चल ह कमलनयन कण भी काल ह व हम छोड़कर मधपर चल गए उनक चल जान स ज का सारा मगलो सव समा हो गया

इस कार दसर सखी बोल उठ - अर सखी सनो इसम कसी का कोई दोष नह ह जो कछ वधाता न ललाट म िलख दया ह वह होता ह यह करतत इन काल क ह नह ह इसम परब क कम पर भी वचार कर लना चा हए आकाश म बादल क काली घटा कतनी शोभा दती ह यह नद और तालाब को पानी स भर दती ह पर बचारा चातक पकारता ह रह जाता ह उस एक बद भी पानी नह िमलता यह भा य ह भा य क जा वहा पटरानी हो गई हम यहा ताकती ह रह गई फर गोपी राधा स य य म कहती ह क ETH

ldquoमोहन मा यौ अपनौ प इ ह ोज बसत ऊच तम बठ

ता बन उहा िन प मरौ मन मर अिल लोचन

ल ज गए ध प धप ता ऊपर तम लन पठाए

मनौ धरयौ क र सप अपनौ काज सवा र OcircसरOtilde सिन

हम बतावत कप लवा-दइ बराब र म ह

कौन रग को भप rdquo192

िनगण िनराकार पर य य करती हई कोई गोपी राधा स कह रह ह - सखी यहा ज म रहत समय तमन मदनगोपाल का सारा प पी िलया था अतः मथरा म जाकर वह एकदम िनराकार हो गए ह उ ह न उ व जी को त हार पास अपना प वापस माग लान क िलए भजा ह उनका प लौटा दो

143

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

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ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

154

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

157

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

161

ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 6: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

एक सखी न कहा- अर सखी सभी काल कलट एक स ह होत ह य बोलन को तो मीठ -मीठ बात बोलत ह पर होत ह दय जला दनवाल भ रा काला होता ह वह एक फल का रस लकर बारबार दसर फल पर जा मडराता ह भजग साप काला होता ह वह जस डसता ह वह बचता नह कोयल भी काली होती ह यह अपना ब चा कौए स पलवाती ह सयाना होन पर उस उड़ा ल जाती ह य काल कपट क एक ह यह शाला क व ाथ और एक ह ग क चल ह कमलनयन कण भी काल ह व हम छोड़कर मधपर चल गए उनक चल जान स ज का सारा मगलो सव समा हो गया

इस कार दसर सखी बोल उठ - अर सखी सनो इसम कसी का कोई दोष नह ह जो कछ वधाता न ललाट म िलख दया ह वह होता ह यह करतत इन काल क ह नह ह इसम परब क कम पर भी वचार कर लना चा हए आकाश म बादल क काली घटा कतनी शोभा दती ह यह नद और तालाब को पानी स भर दती ह पर बचारा चातक पकारता ह रह जाता ह उस एक बद भी पानी नह िमलता यह भा य ह भा य क जा वहा पटरानी हो गई हम यहा ताकती ह रह गई फर गोपी राधा स य य म कहती ह क ETH

ldquoमोहन मा यौ अपनौ प इ ह ोज बसत ऊच तम बठ

ता बन उहा िन प मरौ मन मर अिल लोचन

ल ज गए ध प धप ता ऊपर तम लन पठाए

मनौ धरयौ क र सप अपनौ काज सवा र OcircसरOtilde सिन

हम बतावत कप लवा-दइ बराब र म ह

कौन रग को भप rdquo192

िनगण िनराकार पर य य करती हई कोई गोपी राधा स कह रह ह - सखी यहा ज म रहत समय तमन मदनगोपाल का सारा प पी िलया था अतः मथरा म जाकर वह एकदम िनराकार हो गए ह उ ह न उ व जी को त हार पास अपना प वापस माग लान क िलए भजा ह उनका प लौटा दो

143

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

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ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

154

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

157

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

160

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

161

ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

163

प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 7: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

इस पर राधा उ व स बोली- ह भ र मरा मन और मर लोचन ह र दौड़-छपकर चटक-मटक दखाकर अपन साथ मथरा लत चल गए ह उसक ऊपर उ ह न त ह मर पास सप लकर भजा ह क जो कछ भी बचा रह गया ह उस भी तम कटक कर पछोर कर उनक पास लत जाओ इ ह न अपना मतलब साध िलया अब हम कआ झका रह ह कए म िगरकर मर जान क िलए कह रह ह लनदन म धर-पकड़ म कोई छोटा-बड़ा नह होता न तो कोई राजा होता ह न रक दोन प बराबर क होत ह य द क हया अपना प वापस चाहत ह तो हमारा मन और हमार लोचन भी वापस भज द लौटा द लन-दन बराबर हो जाय फर गोपी ऊ व स कहती ह क ETH

ldquoपठवत जोग कछ जय लाज न सिनयत जऽ तात त जानी कपट राग िच बाजन

जय ग ह लई बर क िसखऐ मोह होत न ह राजन सब सिध पर बचन कन टोए ढकक रहौ मख भाजन

यह नप-नीित रह कौनह जग नह होत जस-आजन ताह तजी सरित न ह आवत दःख पाए जन माजन

क र दासी दल हिन भए दलह फरत याह क साजन OcircसरOtilde बड़ भव-भप कस हत वा क बजा क काजन rdquo193

गोपी उ व स कह रह ह- क हया को योग का यह सदश भजत समय लाज भी नह आई त हार वा -यऽ (योग) क तार क झकार को सनत ह हमन समझ िलया क तम मपवक कौन सी कपट-रािगनी बजान जा रह हो जसा उस बर िनदनीय क जा न क हया को िसखाया उ ह न वसा ह अपन मन म मान िलया राजाओ को मोह माया नह होती जस बरलोह क एक ह चावल क कण को टटोलन स पता चल जाता ह क सार चावल चर गए ह या नह एक पका ह तो सब पक गए ह उसी कार त हार बात का एक चावल टटोल कर हमन सबका पकना जान िलया त हार एक बात स ह हम त हार सार बात जान गई अब कपा करक अपन मख पी पाऽ का मह ढक लो अब आग और कछ मत कहो अपना मह बद कर लो कसी यग म राजाओ क नीित हआ करती थी क म यश क नऽ को योित दान करनवाला आजन होता ह क हया न उस नीित को छोड़ दया और उस म को तो याग ह दया उ ह अब हमार याद भी नह आती जस कार मछली को वषा क पहल पानी स उ प न फन (माजा) को खा लन स क और याकलता उ प न हो जाती ह वस ह याकलता यहा उनक जन को होती जा रह ह वहा व दासी को दल हिन बनाकर ःवय दलह बन गए ह और याह का साज सजाए हए आनदपवक घम फर रह ह हम तो लगता ह क क हया न इसी क जा दासी को पान क िलए इतन बड़ राजा कस को मारा ह

144

ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

150

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

154

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 8: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoऊधौ धिन त हरौ यौहार धिन व ठाकर धिन तम सवक

धिन हम वतनहार काटह अब बबर लगावह

चदन क क र बा र हमक जोग भोग क बजा कौ

ऐसी समझ त हा र तम ह र पढ़ चातर व ा

िनपट कपट चटसार पकरौ साह चोर कौ छाडौ

चगलिन कौ इतबार सम झ न पर ितहार मधकर

हम ोज ना र गवार OcircसरदासOtilde ऐसी य िनबह

अध-धध सरकार rdquo194

गो पया य य करत हए बोली - ह उ व त हारा यवहार ध य ह व ठाकर (ःवामी) कण ध य ह उनक सवक तम ध य हो योग क इस दःख को सहनवाली हम भी ध य ह तम आम काटकर बबल लगाए जा रह हो और उस बबलवन क रखवाली क िलए चार ओर चदन क बाड़ लगाए जा रह हो यह त हार समझदार ह तमन भोग क सार स वधा क जा को कर द और हमार हःस म योग ल आए हो तमन और ह र न पण कपट क पाठशाला म चातर सीखी ह तम साह को पकड़त हो चोर को छोड़ दत हो और चगलखोर का व ास करत हो ह मधकर हम जागनाए तो िनपट गवार ह और त हार बात एकदम नह समझ रह ह ऐसा अधा-धध करनवाली अ यायी सरकार कस चल सकती ह

ldquoऊधौ कछक सम झ पर तम ज हमकौ जोग याए भली करनी कर

इक बरह ज र रह ह र क सनत अित ह जर जाह जिन अब लोन लावह द ख तम ह डर

जोग पाती दई तमक बड़ चतर हर आिन आस िनरास क ह OcircसरOtilde सिन हहर rdquo195

गोपी य य वचन बोली- ऊ व अब हमन कछ-कछ समझ िलया ह तम जो हमार िलए योग लाए हो बहत अ छा कया ह एक तो हम ह र क वरह म य

145

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

146

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

150

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

154

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 9: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ह जली जा रह थी अब त हार योग क बात सनकर हमारा वरहानल और भी धधक उठा ह अब तम अपन मथरा वापस चल जाओ अब हमार जल पर और नमक मत िछड़को हम तो त ह दखत ह डर गई ह ह र बड़ चट ह व ःवय नह आए त हार हाथ योग क िच ठ भजवा द तमन आकर हमार आशा को िनराशा म बदल दया ह हम तो इस योग क सदश को सनकर हहर उठ ह काप उठ ह फर गो पया कण और क जा पर य य करती हई बोली ETH

ldquoह र ह राजनीित प ढ़ आए समझी बात कहत मधकर क समाचार सब पाए

इक अित चतर हत प हल ह अब ग मथ पढ़ाए बढ़ ब जानी जो उनक जोग-सदस पठाए

ऊधौ भल लोग आग क पर हत डोलत धाए अब अपन मन फर पाइह चलत ज हत चराए

त य अनीित कर आपन ज और अनीित छडाए राज-धरम तो यह OcircसरOtilde जो जा न जा ह सताए rdquo196

ह र अब ग क जा स राजनीित भी पढ़ आए ह मधकर क कहत ह हमन सब बात जान ली और सब समाचार पा िलए क हया एक तो पहल ह स बड़ चतर थ अब तो उन ग जी न उ ह पोिथया भी पढ़ा द ह उ ह न जो योग का सदश हमार पास भज दया ह उसी स हमन जान िलया क उनक ब अब बहत बढ़ गई ह और व भार व ान हो गए ह ह ऊधौ पहल क कण जस लोग कतन भल थ व दसर क क याण क िलए डोलत फरा करत थ क हया न यहा स जात समय हमार मन जो चरा िलय थ अब ऐसा लगता ह क हम अपन चोर गए मन फर वापस पा लगी ज ह न दसर को अ याय करन स वरत कया ह व ःवय अनीित कस कर सकत ह राजधम तो यह ह क जा को सताया न जाय उ ह सख ह दया जाय दःख नह

362 जायसी जायसी का परा नाम मिलक मह मद जायसी ह इनका सबस बड़ा एव

िस मथ ह Ocircप ावतOtilde Ocircप ावतOtilde यह एक मगाथा ह इसम वरह सयोग आ द का वणन कया ह ल कन इनम बहत सी ऐसी जगह ह जहा एक राजा दसर राजा क साथ य य करत ह तथा र सन क रानीया प ावती एव नागवती दोन जब िमलती ह तो दोन एक-दसर पर य य करती ह जब र सन प ावती क साथ ववाह करक महल म लात ह तभी सभी स खया िमलकर र सन पर हाःय य करती हई िचढ़ाती ह ऐस बहत सी जगह पर हाःय - य य दखन को िमलता ह

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एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

147

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

154

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 10: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

एक बार राजा र सन िशकार खलन क िलए गय उनक रानी नागवती ौगार करत समय दपण म अपन आप को दखती ह और अपन मन म गव करक कहती ह क इस ससार म मझस भी यादा सदर और कोई भी हो सकता ह उस समय तोता प ावती का ःमरण करत हए नागवती क मख क ओर दखकर हसा और य य म बोला ETH

ldquoसिम र प प ावित करा हसा सआ रानी मख हरा

ज ह सरवर मह हस न आवा बगला त ह सर हस कहावा

दई क ह अस जगत अनपा एक-एक त आग र प

क मन गरब न छाजा काह

चाद घटा औ लागउ राह

लोिन बलोिन तहा को कह लोनी सोनी कत ज ह चह

का पछह िसघल क नार

दन ह न पज िनिस अिधयार पहप सवास सो ित ह क काया

जहा माथ का बरनौ पाया

गढ़ सो सोन स घ भर सो प भाग सनत स ख भई रानी हय लोन अस लाग rdquo197

नागमती क यह गव और सन तोता प ावती क प का ःमरण कर रानी नागमती क मख क ओर दख हस पड़ा और बोला क- यह कहावत स य ह क जस सरोवर म हस ब ड़ा करन नह आत उस सरोवर म बगल को ह हस कहा जाता ह वधाता न इस जगत को ऐसा अनपम बनाया ह क इसम एक स एक बढ़कर प भर पड़ ह अपन मन म गव करना कसी को भी शोभा नह दता च िमा न अपन प पर गव कया था प रणाम ःव प वह दन-ित दन ीण होता चला जाता ह और उस राह म स लता ह (महण लग जाता ह) ऐस इस ससार म स दर और अस दर कस कहा जाय स दर वह ह जस उसका ःवामी चाह तम िसहल क ना रय क वषय म या पछती हो जस कार अ धकार स भऱ रा ऽ उ जवल काश स प रपण दवस क समता म नह ठहर सकती उसी कार ससार क अ य ना रया िसहल प क ना रय क स मख सदरता म नह ठहर सकती िसहल क उन ना रय क शर र स पप क सग ध आती ह (पिधमी नार

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क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

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मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

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ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

160

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

161

ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

163

प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 11: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

क शर र स कमल क सग ध आती ह ऐसा लोक- व ास ह) जहा मःतक का वणन हो रहा हो वहा म पर का या वण क अथात िसहल क ना रया मःतक क समान ौ तथा अ य ना रया उनक तलना म पर क समान हय ह

िसहल क ना रय को वधाता न सग धत सोन स गढ़ा ह और व स दय और सौभा य स भरपर ह तोत क इन वचन को सन रानी नागमती ःप हो गई और उस ऐसी जलन हई जस दय म नमक लग गया हो अथात कसी न घाव पर नमक िछड़क दया हो जब राजा र सन िसहल प जान को िनकल उस बीच उ ह बहत सी क ठनाईय का सामना करना पड़ा और र सन तो योगी होकर तपःया करन लग थ उस समय सा ात िशवजी उनक सामन आत ह और राजा र सन िशवजी पर य य करत हए बोल ETH

ldquo कहिस मो ह बात-ह बलमावा ह या क र न डर तो ह आया

जर दह दख जरौ अपारा

िनःतर पाइजाउ एक वारा जस भरथर लािग पगला

मो कह पदमा वत िसघला म पिन तजा राजा औ भोग

सिन सो नाव ली ह तप जोग ए ह मढ़ सएउ आइ िनरासा

गई सौ प ज मन प ज न आसा म यह जउ डाढ़ पर दाधा

आधा िनकिस रहा घट आधा जो अधजर सो वलब न लावा

करत वलब बहत दःख पावा

एतना बोल कहत मख उठ वरह क आिग

ज महस न बझावत जाित सकल जग लािग rdquo198

िशव क बात को सनकर राजा र सन ब होकर उनस कहन लगा क- त मझ बात म य बहला रहा ह या तझ ह या का डर नह लगता भाव यह ह क तझ पर दो ह याय पहल स ह सवार ह फर त मर ह या य करना चाहता ह तर रोक दन स म जीवन भर तड़प-तड़प कर म गा और मर उस भयकर मौत क ह या तझ ह लगगी इसिलए मझ चन क साथ मर जान द

148

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

150

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

154

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

157

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

160

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

161

ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 12: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

मरा शर र जल रहा ह म अपार दःख म जला जा रहा ह इसिलए चाहता ह क एक बार ह जलकर इस भयकर वरा ह न क दाह स सदव क िलए छटकारा पा जाउ जस भतह र क िलए रानी पगला वरह का कारण बनी थी उसी कार मर िलए िसहल प क प ावती वरह का कारण बनी ह मन उसक िलए रा य और भोग- वलास सब याग दए और उसका नाम सनत ह उसक िलए तपःया और योग का माग अपनाया मन कसी मठ म आकर उस आशाह न अथात िनिल को ा करन क िलए दवता क सवा क वह यहा आई और पजन करक चली भी गई पर त मर मन क आशा पर न हो सक मन वरहा न म जलत हए अपन इस ाण को इसी कारण िचता म डाल कर और जलाया यह ाण आधा िनकल गया ह और आधा अभी शर र म ह ह जो य आधा जल जाता ह वह परा जलन म और अिधक वलब नह लगाता य क य द वह वलब करता ह तो उस बहत दःख उठाना पड़ता ह राजा र सन न अपन मख स इतनी बात कह ह थी क उसम स वरह क अ न िनकलन लगी य द िशव उस अ न को न बझात तो वह सार ससार म लग जाती

िसहलगढ़ क राजा गधवसन क पऽी प ावती को ा करन क िलए योगी बना ह ऐसा जब गधवसन क दत सनत ह तो कहत ह - त हार यह बात हमन राजा को कह तो त हार साथ हमी भी मार जायग और फर र सन पर बोध करत ह और उसका हाःय करत हए बोल ETH

ldquoसिन बसीठ मन अपनी र सा जौ पीसत घन जाइ ह पीसा

जोगी अस कह कह न कोई

सो कह बात जोग जो होई

वह बड़ राज इि कर पाटा धरती परा सरग को चाटा

जौ यह बात जाइ तह चली छट ह अब ह ह ःत िसघली

और औ छट ह वळ कर गोटा वस र ह भगित होइ सब रोटा

जह कह द ःट न जाइ पसार

तहा पसारिस हाथ िभखार आग द ख पाव ध नाथा

तहा न ह टट जह माथा

वह रानी त ह जोग ह जा ह राज औ पाट

स दर जाइ ह राजघर जोिग ह बादर काट rdquo199

149

राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

150

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

153

जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

157

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

160

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

161

ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

162

समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

163

प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

164

सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

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राजा र सन क बात को सन दत क मन म बोध उ प न हआ और उ ह न राजा स कहा क- जौ पीसत समय उनक साथ घन भी पस जाता ह अथात य द हम त हार बात राजा स जाकर कहग तो त हार साथ हम भी मार जायग कोई भी योगी कभी और कह भी ऐसी बात नह कहता इसिलए तम वह बात कहो जो त हार यो य हो अथात छोट मह बड़ बात मत कहो वह राजा बहत बड़ा ह उसका रा य और िसहासन इ ि क समान बड़ा और ऐ यशाली ह धरती पर पड़ा हआ कोई य या कभी आसमान को चाट सकता ह अथात बौ ना या खाकर आसमान तक पहच सकगा यह तो वह कहावत हई क - ldquoरह भईऔ चाट बादराrdquo अगर त हार यह बात वहा राज दरबार म पहच जायगी तो तर त िसहली हाथी त हार उपर छोड़ दय जायग और जब ोज क समान भयकर गोल छटग तो तम सार िभ ा मागना भल जाओग और उनक मार स पसकर रोट क समान बन जाओग जहा पर कसी क तक नह जा पाती वहा तम िभखार होकर उस ा करन क िलए हाथ पसार रह हो अथात जस प ावती क कोई दशन तक नह कर पाता उस ह तम जसा िभखार ा करना चाहता ह इसिलए ह नाथपथी योगी तम आग दखकर अथात सभल कर आग कदम बढ़ाओ उस तरफ िनगाह मत उठाओ जहा दखन स त हारा िसर फट जाय

वह रानी प ावती तो उसक यो य ह जसक पास रा य और िसहासन हो अथात जो कसी दश का राजा हो वह स दर कसी राज घरान म ह जाय गी तम जस योिगय क भा य म तो ब दर ारा काटा जाना ह बदा ह

आग फर बोलत ह क ETH

ldquoज जोगी सत बादर काटा एक जोग न दस र बाटा

और साधना आव साध जोग-साधना आप ह दाध

स र पहचाव जोिग कर साथ

द ःट चा ह अगमन होइ हाथ त हर जोर िसघल क हाथी

हमर ह ःत ग ह साथी अ ःत ना ःत ओ ह करत न बारा

परबत कर पाव क छारा जोर िगर गढ़ जावत भए

ज गढ़ गरब कर ह त नए

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अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

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ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

157

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 14: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

अत क चलना कोइ न ची हा जो आवा सो आपन क हा

जोिग ह कोइ न चा हय तम न मो ह रस लािग जोग तत य पानी काह कर त ह आिग rdquo200

राजा गधवसन क दत क य य और बोध भर बात सनकर राजा र सन उनक एक एक बात का उ र दता हआ कहता ह - य द योगी को सौ बदर भी काट खाय तो भी उसक िलए एक योगमाग को छोड़ अ य कोई भी दसरा माग नह रह जाता अथात योगी वफल मनोरथ होकर भी अपन माग स कभी वचिलत नह होता अ य कार क साधनाए तो उनक साधना करन स ह ा होती ह पर त योग-साधना ःवय अपन को तपा कर द ध करक ह क जाती ह अथात मझ माथा फटन का कोई भय नह य क अपन को जलान स अिधक क उसम नह होता (तमन जो यह कहा क वह राजा इ ि क समान ह ) तो योग योगी को उस राजा क समान ह तजःवी और ऐ यशाली बना दता ह (और तम जो यह कहत हो क उस तक कसी क भी नह पहच पाती तो उसका उ र यह ह क - योगो क हाथ उस

स आग पहचन क श रखत ह त हार पास िसहली हािथय का बल ह तो मर पास मर ग का बल ह जो सदव मर साथ रहत ह (तम जो यह भय दखात हो क त हार गोल हम पीस डालग तो उसका उ र यह ह क) मर ग को कसी को भी बनात और बगाड़त जरा सी भी दर नह लगती व पवत को पीसकर पर क नीच पड़ िम ट क समान बना दत ह (तम जो गढ़ आ द क बात कहत हो तो उसका उ र यह ह क) कतन गढ़ गव करन क कारण धरती पर िगर तहस-नहस हो गए जो गढ़ गव करत ह व अ त म नीच िगर िम ट म िमल जात ह इसिलए राजपाट का गव करना यथ ह अ त म म य आन पर जब यहा स चला जाना पड़गा उस समय क ःथित या होगी यह कोई भी नह जानता अथात सब को अ त म खाली हाथ ह यहा स जाना पड़ता ह पर त फर भी जो य इस ससार म आता ह वह यक वःत को अपना बना लना चाहता ह और बना लता ह

योगी को बोध नह करना चा हए इसिलए त हार बात सनकर मझ बोध नह आया ह अथात त हार सार बात म स कवल यह एक बात स ची ह योग का मम तो पानी क समान अथाह और शीतल ह भला अ न उसका या बगाड़ सकती ह अथात त हार राजा का बोध मरा कछ भी नह बगाड़ सकगा

जब िशव (महादव) दस धी भाट का प धारण करक आग उस समय गधवसन य य वचन बोल ETH

151

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

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फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

162

समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

163

प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 15: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoभइ अ ा को भाट अभाऊ बाए हाथ दइ बर हाऊ

को जोगी अस नगर मोर जो दइ सिध चढ़ गढ़ चोर

इ ि डर िनित नाव माथा जानत कःन सस जइ नाथा

बर हा डर चतर-मख जास औ पातार डर बिल बास

मह हल औ चल सम चाद सर औ गगन कब

मघ डर बजर ज ह द ठ क प डर धऱित ज ह पीठ

चहौ आज मागौ ध र कसा और को क ट पतग नरसा

बोला भाट नरस सन गरब न छाजा जीउ कभकरन क खोपर बड़त बाचा भीउ rdquo201

उस दस धी भाट क वचन को सनकर राजा गधवसन क आ ा हई क - यह कौन अिश (अभि) भाट ह जो बाय हाथ उगकर आशीवाद दता ह मर इस नगर म ऐसा कौन सा योगी ह जो गढ़ म सध लगाकर चोर स उसक उपर चढ़ता ह मझस इ ि डरता ह और िन य मर सामन आकर शीश झकाता ह मझ वह कण भी जानता ह जसन शषनाग को नाथ डाला था वह ा भी मझस डरता ह जसक चार मख ह और पाताल म रहन वाल बिल और वास क नाग भी मझस डरत ह मर भय क कारण प वी कापन लगती ह और सम डगमगान लगता ह आकाश म रहन वाल च ि सय और कबर तक मझस भय खात ह बजली जस योितपण नऽ वाल मघ मझस भयभीत रहत ह (यहा बजली को मघ क कहा गया ह ) मझस वह क छप भी आत कत रहता ह जसक पीठ पर यह प वी टक हई ह य द म चाह तो आज इन सबको बाल पकड़ कर यहा बलवा ल फर क ट-पितग क समान अ य राजाओ क मर सामन या हःती ह

राजा गधवसन क उपय गवभर तथा य यभर बात को सन उस भाट न कहा क- ह राजा मर बात सन मनय को गव करना शोभा नह दता य क जब भीमसन न गव कया था तो वह क भकण क खोपड़ म डबन स बचा था अथात उसका अपन बल का सारा गव चर -चर हो गया था

152

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

155

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 16: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

फर भी गधवसन अपन गव म चर होकर बोलता ह तो भाट (महादव) उ ह य य वाणी म बोलत ह क ETH

ldquoरावण गरब वरोधा राम आह गरब भएउ समाम

तव रावन अस को ब रबडा ज ह दस सीस बीस भजदडा

स ज ज ह क तप रसोई िनित ह बसदर धोती धोई

सक समता सिस मिसआरा पौन कर िनित बार बोहारा

जम ह लाइ क पाट बाधा रहा न दसर सपन काधा

जो अस बळ टर न ह हारा सोउ मवा दइ तपसी मारा

नाती पत को ट दस अहा रोवनहार न कोई रहा

ओछ जािन क काह ह जिन कोइ गरब करइ ओछ पर जो दउ ह जीित-पऽ तइ दइ rdquo202

भाट राजा गधवसन को सलाह दत हए उसक स मख रावण का उदा रखत हए आग कहता ह ETH

रावण न गव करक राम का वरोध कया था उसक उसी गव क कारण राम-रावण का समाम हआ था उस रावण क समान और कौन बलवान था जसक दस शीश और बीस भजाय थी सय जसक रसोई पकाता था और अ न िन य जसक धोती धोता था जसक शबाचाय जसा मऽी और च िमा जसा मशालची था पवन िन य जसक ार पर झाड लगाता था ऐस उस रावण न यमराज को पकड़कर अपन पलग क पाट स बाध िलया था ऐस उस रावण न अपन सामन ःव न म भी कसी दसर को कोई मह व नह दया था वह रावण वळ क समान द ष और अटल बना रहन वाला था जस कोई वचिलत नह कर सका था ऐस उस रावण को भी कवल दो तप ःवय (राम और लआमण) न मार डाला था उस रावण क दस करोड़ नाती-पोत थ फर भी म य क प ात उसक िलए रोन वाला कोई भी न बच सका अथात रावण का वश नाश हो गया

कसी को छोटा समझकर गव नह करना चा हए छोट पर दव क कपा रहती ह जो वजय-पऽ को दन वाला ह अथात ई र छोट क सहायता कर उ ह वजयी बना दता ह

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

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जब राजा र सन का ववाह होता ह उसक बाद भोजन परोसकर खलात समय गधवसन क प क प डत हाःय- य य भर बात करत हए कहत ह क ETH

ldquoजवन आवा बीन न बाजा बन बाजन न ह जब राजा

सब कवर ह पिन खचा हाथ ठाकर जब तौ जब साध

बनय कर ह प डत व ाना काह न ह जव ह जजमाना

यह क बलास इि कर बास जहा न अ न न माछ र मास

पान-फल-आसी सब कोई त ह कारन यह क ह रसोई

भख तौ जन अमत ह सखा धप तौ सीअर नीबी खा

नीद तौ भइ जन सज सपती छाटह का चतराई एती

कौन काज क ह कारन बकल भएउ जजमान होइ रजायस सोई विग द ह हम आप rdquo203

यौनार क साममी तो परोस द गई पर त र सन न भोजन करन स हाथ खीच िलया जायसी इसीका वणन करत हए कहत ह क - भोजन तो आ गया पर त बीन बाजा नह बजा और राजा र सन तब तक भोजन नह करता था जब तक बाज नह बजाय जात थ इसिलए र सन न भोजन करना ारभ नह कया यह दख उसक साथी सार राजकमार न भी भोजन करन स अपन हाथ खीच िलए और कहन लग क य द हमार ःवामी (र सन) भोजन करग तो हम भी करग यह दख राजा गधवसन क प क प डत और व ान राजा र सन स ाथना करत हए कहन लग क- ह यजमान तम भोजन य नह करत यह तो इ ि का िनवास ःथल ःवग ह जहा न अ न खाया जाता ह और न मछली का मास यहा तो हम लोग पान-फल क ह आधार पर रहत ह अथात पान -फल का सआम भोजन कर जी वत रहत ह यह इतनी सार भोजन-साममी तो कवल त हार ह कारण बनवाई गई ह य द भख होती ह तो उस समय खा-सखा भोजन भी अमत क समान मधर और ःवा द लगता ह धप म तपत याऽी को नीम का व ह पण शीतलता दान करन वाला होता ह और य द नीद आ रह होती ह तो धरती ह उ जवल त श या क समान सख दन वाली बन जाती ह फर तम इतनी चतराई य छाट रह हो भाव यह ह क योगी लोग खा-सखा खान वाल नीम क तल वौाम करन

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वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

157

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

158

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

160

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 18: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

वाल और धरती पर सोन वाल होत ह फर इतन ःवा द भोजन तथा इतन ठाठ-बाठ क होत हए भी व भोजन य नह करत (यहा क या प क लोग वर-प क लोग क साथ य य भर बात कहकर मजाक कर रह ह जो िनता त ःवाभा वक ह

फर प डत न राजा र सन स पछा क- ह यजमान तम कस कारणवश याकल हो रह हो आ ा होत ह हम त हार मन पसद वःत तरत लाकर ःतत कर दग

फर आग र सन न जवाब दया ETH

ldquoतम प डत सब जानह भद

प हल नाद भएउ तब बद

आ द पता जो विध अवतारा नाद सग जउ ान सचारा

सो तम बर ज नीक का क हा जवन सग भोग विध द हा

नन रसन नािसक दइ ःववना

इन चारह सग जव अवना

जवन दखा नन िसरान जीभ ह ःवाद भगित रस जान

नािसक सब बासना पाई वन ह काह करत पहनाई

त ह कर होइ नाद स पोखा तब चा रह कर होइ सतोषा

औ सो सन ह सबद एक जा ह परा कछ स झ प डत नाद सन कह बरजह तम का ब झ rdquo204

राजा गधवसन क प डत क य यपण प रहासा मक बात को सन राजा र सन न भी उसी कार चतरतापण उ र दत हए कहा क ETH

तम लोग प डत हो सार रहःय को जानन वाल हो पहल नाद उ प न हआ था और उसक उपरा त उसी नाद स वद क उ प हई थी (यहा नाद ा स ता पय ह ) ई र न जस आ द पता ( ा) को उ प न कया था उसक दय म नाद क साथ ान का सचार कया था भाव यह ह क नाद ह ान का वाहक होता ह ान का सार नाद अथात वाणी ारा ह होता ह सो तमन ऐस नाद को न करन क आ ा दकर या अ छा कया ह भाव यह ह क जब नाद अथात

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बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

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कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 19: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

बाणी का इतना मह व ह तो तमन उस पर ब धन लगाकर आ खर कौन सा भला काम कया अथात तमन हमार भोजन क समय बा ज क साथ गाई जान वाली गािलय पर रोक य लगाई वधाता न भोजन क साथ अ य इ िय को ति भी आवयक ह हम प वी वासी नऽ ज ा नािसका तथा दोन कान क साथ भोजन करत ह अथात हमार इन चार इ िय को भी साथ -साथ भोजन ा होना चा हए इनक सत होनी चा हए इस भोजन साममी को दख हमार नऽ त हो गए ज ा भोजन क ःवाद का आन द ा करगी नािसका इस भोजन स आती सग ध को सघकर सत हो गई अब यह बताओ क तम लोग इन कान का अितिथ स कार कस कार करोग य कान तो नाद स ह सत होत ह तभी इन चार को सतोष ा होगा अथात हमार कान तभी त ह ग जब व त हार यहा क य ारा गाई जान वाली गािलय का मधर सगीत सनग

और एक श द अथात अनहद नाद को वह लोग सनत ह जो िस होत ह ज ह कछ ान ा हो जाता ह अथात हम योगी लोग अनहद नाद क ःवर -स दय का आन द उठान वाल ह इसिलए हम इसी क समान स दर मधर सगीत सनन को िमलना चा हए ह प डत तमन या समझकर हमार ारा नाद (सगीत) सनन पर ब धन लगा दया ह

जब र सन का ववाह होता ह और वह थम बार प ावती स िमलन जाता ह वस ह उसक स खया उस िछपा दती ह और फर र सन स हाःय करती हई बोली ETH

ldquoअस तप करत गएउ दन भार चा र पहर बीत जग चार

पर साज पिन सखी सो आई चाद रहा अपनी जो तराई

पछ ह ग कहा र चला

बन सास र कस सर अकला धात कमाय िसख त जोगी

अब कस भा िनरधात बयोगी कहा सो खोएह बरवा लोना

ज ह त होइ प औ सोना का हरतार पार न ह पावा

गधक काह करकटा खावा

156

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 20: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

कहा छपाए चाद हमारा ज ह बन रिन जगत अिधयारा

नन कौ ड़या हय समि ग सो त ह मह जोित मन मर जया न होइ पर हाथ न आव मोित rdquo205

इस पद म प ावती क स खया स या समय र सन क पास आकर उसस प रहास करती ह अथात हाःय करती ह ETH

इस कार प ावती क वयोग म त होत हए या तपःया करत हए र सन का सारा दन बड़ क ठनाई क साथ यतीत हआ दन क चार पहर उस चार यग क समान ल ब लग फर स या हई और वह सखी वहा आई च िमा तो िछपा ह रह गया और तार कट हो गए अथात प ावती तो नह आई और उसक स खया आ गई स खय न आकर र सन स पछा क ह िशय तरा ग (प ावती) कहा ह (जायसी न सवऽ प ावती को ग और र सन को उसका िशय कहा ह ) ह सय त च िमा क बना अकला ह कस दखाई पड़ रहा ह ह योगी तन धात का कमाना अथात वीय का सचय करना सीखा था पर त अब वयोगी क समान िनवीय अथात का तह न (उदास) य हो रहा ह तन स दर लता क समान उस प ावती को कहा खो दया जसक साथ तझ प-स दय और सख क ाि होगी योगी प म इसका यह अथ होगा क तन उस अमलोनी नामक घास को कहा खो दया जसस चाद और सोना बनाया जाता ह या त हड़ताल का पार स िमलन नह करवा पाया या तझ वह ग धक नह िमला जो कण प म बखर हए पार को खा जाता ह और उस ब कर लता ह भाव यह ह क या त हड़ताल अथात ह रत या रजोधम य प ावती क रज क साथ अपन पारद अथात वीया का िमलन नह करवा पाया अथात उसक साथ सभोग न कर सका या त उस पीतवण वाली प ावती को ा न कर सका जो तन उस पाकर भी खो दया तन उस सग धत शर र वाली प ावती को छोड़ कर ठडा भात य खाया अथात उसक वयोग म ठड सास य भर तन हमारा यह चाद अथात प ावती गहा िछपा रखी ह जसक बना हम यह ससार अ धर रात क समान लग रहा ह

तर नऽ कौ ड़ ला प ी क समान ह दय समि क समान तथा उसम रहन वाला काश ग प ावती ह जब तक मन गोताखोर बन उस समि क भीतर नह घसगा तब तक उस मोती कस ा हो सकगा भाव यह ह क तर नऽ प ावती क दशन क िलए कौ ड़ ला प ी क समान समि क सतह पर बार-बार टटत ह पर त वहा तो मझ कवल मछली ह िमल सकगी प ावती उस समि क तह म रहन वाल मोती क समान ह उस त तभी ा कर सकगा जब अपन मन को गोताखोर

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क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 21: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

क समान समि क अथात दय क गहराई म उतारगा अथात अपन दय म ःथत उस ग पी काश को तो तभी ा कर सकगा जब त पनः अपन जीवन को खतर म डालगा

प ावती क स खया र सन स हाःय करती ह तो र सन उ ह उ र दत ह क ETH

ldquoका पछह तम धात िनछोह जो ग क ह अतर पट होई

िसिध-ग टका अब मो सग कहा भएउ राग सत हय न रहा

सो न प जास मख खोल गएउ भरोस तहा का बोल

जह लोना बरवा क जाती क ह क सदश आन को पाती

क जो पार हरतार कर ज गधक द ख अब ह जउ द ज

त ह जोरा क सर मयक पिन बछो ह सो ली ह कलक

जो ए ह घर िमलाव मोह सीस दउ बिलहार ओह

होइ अबरक गर भया फ र अिगिन मह द ह काया पीतर होइ कनक जौ तम चाहह क हा rdquo206

प ावती क स खय क प रहास-य बात को सन र सन उ ह उ र दता हETH

ह िन र अब तम मझस धात क वषय म या पछती हो य क तमन मर उस ग (प ावती) को परद म िछपा रखा ह अब मर पास िस ग टका कहा ह अब तो म उस खोकर राग क समान अथात स वह न हो गया ह मर का त जाती रह ह मर दय म अब तज (स य का बल) नह रहा ह अब मर सामन वह प (प ावती का स दय) ह नह रहा ह जसस म कछ कह सकता जब सारा भरोसा ह टट गया तो म अब या कह जहा वह स दय क बट प ावती ह उसक पास जाकर कौन मरा उसस स दश कह और उसस मर िलय पऽ लाए य द पार और हड़ताल का अथात मर वीय और प ावती क रज का सयोग हो सकता तो म

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उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

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दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 22: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

उस प ग धी प ावती क दशन करन क बदल म अभी अपन ाण का याग कर दता तमन सय और च िमा का एक बार िमलन कराया था और फर उन दोन का वछोह करवा कर अपन उपर कलक ल िलया ह य द कोई इसी ण उसस मरा िमलन करवा द तो म उस पर बिलहार हो अपना शीश यौछावर कर दगा

जो अक अ न म तपकर िस दर बन गया था - उस तमन पनः अ न म डाल दया ह य द तम चाहो तो मर यह पीतल क काया पनः सोना बन सकती ह भाव यह ह क म प ावती क वयोग म तप कर गर क समान श बन गया था पर त तमन मझ पनः उसी वयोग न म तपन को बा य कर दया ह जसस मरा शर र पीतल क समान िनःतज और स वह न बन गया अब यह अपनी पव का त तभी ा कर सकगा जब इसका प ावती स िमलन होगा आग र सन उनक स खय स कहत ह क ETH

ldquoका बसाइ जौ ग अस बझा चकाबह अिभमन य जझा

वष जो द ह अमत दखराई त ह र िनछोह को पितयाई

मर सोइ जो होइ िनगना पीर न जान बरह बहना

पार न पाव जो गधक पीया सो ह यार कहौ किम जीया

िस -गट का जा पह नाह कौन धात पछह त ह पाह

अब त ह बाज राग भा डोल होइ सार तौ वर क बोल

अबरक क पिन गर क हा सो तन फ र अिगिन मह द हा

िमिल जो पीतम बछर ह काया अिगिन जराइ क त ह िमल तन तप बझ क अब मए बझाइ rdquo207

य द मर ग (प ावती) न मर सबध म ऐसा ह सोच रखा ह तो मरा या बस चल सकता ह ग िोणाचाय ारा िनिमत चब यह को तोड़न का य करन वाला अिभम य जस कार उसी म िघर कर मारा गया था वसी ह मर दशा होगी अथात म उसक वरह स य करता हआ (उस सहता हआ ) मर जाऊगा जो अमत

159

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 23: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

दखाकर वष द द उस िन र का कौन व ास कर सकता ह जो गणह न होता ह अ त म वह मरता ह जसन कभी वरह का अनभव नह कया वह उसक पीड़ा को या जान जस पार को ग धक पी जाता ह वह िमल नह सकता अथात जसन प गधा प ावती क शर र क सग ध का पान कर िलया ह वह कभी पार नह पा सकता त नह हो सकता ऐसा वह ह यारा आ बर कस जी वत रह सकता ह इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क जो पि नी ी स म करता ह वह य ह पार नह पा सकता जसक पास वह िस ा करन वाली प ावती पी ग टका नह रह उसस यह पछना यथ ह क उसक पास कौन सी धात ह भाव यह ह क जस साधक का रत िस न हआ उसस अ य शार रक धातओ क बात पछना यथ ह अब उसक बना म राग क समान का तह न बना घमता फरता ह य द मर पास कछ सार होगा तभी म बलपवक कछ कह सकगा भाव यह ह क जस कार िस -ग टका क खो जान स योगी यथ हो उठता ह उसी कार प ावती क बना म िनःतज हो उठा ह अक बनाकर तमन पनः गर बना दया ह और इस तन को पनः अ न म डाल दया ह भाव यह ह क म प ावती क वरह म द ध होकर अक क समान िनमल बन गया था मझ पर कसी भी कार क दःख का भाव नह होता था पर त तमन प ावती स मरा वयोग करवा कर मझ पनः उसक वरह क अ न म द ध होन क िलए छोड़ दया ह

य द यतम िमलकर बछड़ जाय तो शर र वयोग क अ न म जलन लगता ह उस शर र क तपन या तो यतम क िमलन स ह शा त हो सकगी या फर मन जान स ह

र सन अपन म को प ावती क सामन कट करत ह तो प ावती र सन क योग पर य य और हाःय करती हई बोली ETH

ldquoजोग ह बहत छद न ओराह

बद सवाती जस पराह पर ह भिम पर होइ कच

पर ह कदिल पर होइ कप पर ह समि खार जल ओह

पर ह सीप तौ मोती होह पर ह म पर अमत होई

पर ह नागमख वष होइ सोई जोगी भ र िन र ए दोऊ

क ह आपन भए कह जो कोऊ

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एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

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ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

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यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 24: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

एक ठाव ए िथर न रहाह रस लइ खिल अनत कह जाह

होइ गह पिन होइ उदासी अत काल दवौ बसवासी

त ह स नह को दढ़ कर रह ह न एकौ दस जोगी भ र िभखार इ ह स दर अदस rdquo208

र सन क म-साधना क बात सन प ावती पनः उसक योगी प पर कटा एव य य करती हई कहती ह ETH

योगी लोग बड़ छलछ द अथात धोखबाज होत ह य इतनी तरह क चाल चलत ह क उनक स या बताना क ठन ह जस कार ःवाित न ऽ क बद िभ न-िभ न ःथान पर पड़न पर अपना िभ न-िभ न भाव दखाती ह उसी कार योगी भी िभ न-िभ न ःथान पर िभ न-िभ न कार क चाल चलत ह अतः इनका व ास नह कया जा सकता जब ःवाित क बद प वी पर पड़ती ह तो कचर नामक पौध उ प न होत ह और व ह जब कल क प पर पड़ती ह तो कपर बन जाता ह समि म िगरन पर उ ह क कारण जल खारा हो जाता ह और सीप क मख म पड़ती ह तो मोती बन जात ह पवत पर इनक िगरन स अमत पदा होता ह और यह बद जब साप क मख म िगरती ह तो वष बन जाता ह योगी और भ र- दोन ह िन र होत ह य दोन कसक अपन होत ह कौन इ ह अपना कह सकता ह य दोन एक ःथान पर ःथर होकर नह रहत रस लकर और खल कर कह अ यऽ चल जात ह पहल गहःथ बनत ह और फर उदासी साध बन जात ह और अ त म दोन ह व ासघाती िस होत ह

ऐस इन योिगय स कौन म को ढ़ कर अथात कौन स चा म कर य लोग कभी एक ःथान पर जमकर नह रहत योगी मर और िभखार - इन तीन को तो दर स ह णाम कर लना चा हए य क य घमत रहन वाल ाणी ह इसिलए इनस ःनह नह बढ़ाना चा हए

नागमती स खय स हत अपनी फलवार म ब ड़ा कर रह थी र सन भी वह जा पहचा और नागमती क साथ ब ड़ा करन लगा दितय न यह बात जाकर प ावती स जड़ द प ावती बोध स भर नागमती क वा टका म आ जाती ह और दोन उपर स हसती ह और अ दर स एक-दसर स जलती ह ल कन प ावती स न सहन होन क कारण वह नागमती स य य वाणी म कहती ह क ETH

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ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

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ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

184

प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 25: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoसिन प ावित रस न सभार स ख ह साथ आई फलवार

दवौ सवित िमिल पाट बईठ

हय वरोध मख बात मीठ बार द ःट सरग सो आई

प ावित हिस बात चलाई बार सफल अह तम रानी

ह लाई प लाइ न जानी नागसर औ मालित जहा

सगतराव न ह चाह तहा रहा जो मधकर कवल- पर ता

लाइउ आिन कर ल ह र ता जह अिमली पाक हय माहा

तहन भाव नौरग क छाहा फल-फल जसफर जहा दखह हय बचा र

आब लाग ज ह बार जाब काह त ह बा र rdquo209

जब प ावती न दितय ारा यह समाचार सना क राजा नागमती क साथ उसक वा टका म म-ब ड़ा कर रहा ह तो वह अपन बोध को न सभाल सक और अपनी स खय क साथ वह फलवार म जा पहची वहा दोन सौत एक साथ िमलकर आसन पर बठ ग उन दोन क दय म एक-दसर क ित शऽता का भाव था पर त व मख स मीठ बात करन लगी जब प ावती न नागमती क रग बरग पप स भर स दर वा टका को दखा तो उसन हस कर वा टका क सबध म ह बात छड़ द और बोली क- ह रानी त हार वा टका तो फल स भर पर ह तमन वा टका लगाई तो ह पर त तमको ढग स लगाना नह आया जस वा टका म नागकसर और मालती जस स दर और कोमल पप लग ह वहा सगतरा नीब जस काटदार और ख ट फल वाल व नह लगान चा हए भाव यह ह क वहा नागमती (नाग कसर) और प ावती (मालती) साथ-साथ बठ बात कर रह ह वहा राजा का साथ नह रहना चा हए अथात राजा र सन को यहा स चला जा ना चा हए इसका दसरा अथ यह भी हो सकता ह क राजा र सन नागमती और प ावती का एक साथ रहना पस द नह करता जो मर कमल स म करता था उस लाकर तमन कर ल क पऽह न नीरस व स अटका दया ह अथात प ावती कमल क

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

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प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

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समान स दर सग धत और कोमल ह तथा नागमती कर ल क समान शोभाह न काटवाली अथात ककशा और नीरस ह जहा पर इमली क पक जान क दय म चाहना भर हो वहा नारगी क छाया अ छ नह लगती अथात पक हई इमली का मी नारगी को पस द नह करता य क पक हई इमली म ख ट और मीठ दोन कार क ःवाद होत ह पर त नारगी ख ट होती ह अथवा जहा दय म अिमली अथात व ष का भाव पक रहा हौ वहा नए आमोद -मोद मनाना अ छा नह लगता अथवा वर हणी नार का दय पित वयोग क कारण पक फोड़ क समान होता ह ऐसी दशा म उस नए आमोद-मोद मनाना अ छा नह लगता भाव यह ह क तम तो यहा पित क साथ आन द मना रह हो और म वरहणी बनी हई ह इसिलए यह सब मझ अ छा नह लगता

तम अपन दय म वचार कर दखो क जस वा टका म जस फल-फल रह ह वहा वस ह फल वाल व लगान चा हए जस वा टका म आम क व लग ह वहा जामन क व का या काम अथात जहा फल म सवौ आम लग हो वहा काली-कलट जामन का या काम भाव यह ह क जहा मझ जसी सवौ स दर वहा तम जसी काली कलट का या काम

ldquoअन तम कह नीक यह सोभा प फल सोइ भवर ज ह लोभा

सम जाब कःतर चोवा आब ऊच हरदय त ह रोवा

त ह गन अस भर जाब पयार लाई आिन माझ क बार

जब बाढ़ ब ह इहा जो आई ह पाक अिमली ज ह ठाई

त कस पराई बार दखी

तजा पािन धाई मह-सखी उठ आिग दइ डार अभरा

कौन साथ तह बर करा जो दखो नागसर बार

लग मर सब सआ सार जो सरवर जल बाढ रह सो अपन ठाव त ज क सर औ कडह जाइ न पर अबराव rdquo210

163

प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

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त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 27: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

प ावती क य य भर बात को सन नागमती भी य य म उ र दती हई कह रह ह क- ह प ावती अनकल हो तमन मर वा टका क शोभा क जो शसा क वह ठ क ह पर त फल तो वह ौ होता ह मर जस पर ल ध हो उसक पास जाता ह भाव यह ह क स दर ी तो वह होती ह जो अपन पित को यार हो अथात तम भल ह मझस अिधक स दर हो पर त पित तो मझ ह यार करता ह इसिलए म त हार िच ता य क जामन काली होती ह पर त उसम कःतर और चोवा क सी सग ध रहती ह अथवा जामन कःतर और चोवा जस सग धत पदाथ क समान काली होती ह और उ ह क समान सग धत भी आम ऊचा होता ह अथात जामन स ौ फल माना जाता ह पर त उसक भीतर रश होत ह जो खात समय दात म अटक कर खान वाल को क दत ह जामन म रश नह होत जामन क इसी गण क कारण ह वह अिधक यार बन गई ह और इसीिलए उस वा टका क बीच म ःथान दया गया ह अथात म अपन पित को रसभोग करत समय कसी कार का क नह दती जामन क समान तर त घल जाती ह इसी कारण पित न मझ मख ःथान दान कया ह

नागमती कहती ह क मन तो इमली को यहा नह लगाया था वह तो जब पानी क बाढ़ आइ थी तब उसी क साथ बहकर यहा आ गई थी और अब पककर खड़ हई ह अथात मन तो त ह यहा नह बलाया था जब त हार दय म म क बाढ़ उ प न हई थी अथात तम र सन क म म उ म हो गई थी तब ःवय ह राजा क साथ यहा आई थी और अब पित स वय होकर दय म ष क आग लगन स पक अथात द ध हो रह हो तम पराई वा टका को दखकर मन म य दखी होती हो जब जल कमल का साथ छोड़ दता ह तो कमल मरझा जाता ह अथात राजा न त हारा साथ छोड़ दया ह इसिलए वरह क कारण त हारा मख सख रहा ह और तम दौड़ -दौड़ मर पास दौड़ आई हो

जब व क दो शाखाए आपस म रगड़ उठती ह तो अ न उ प न हो जाती ह अथात य द दो सौत म कलह हो ती ह तो पित उस कलह स दःखी हो बरबाद हो जाता ह जस कार दो शाखआओ क रगड़ स उ प न अ न व को जला दती ह इसिलए उ ह मर साथ कलह नह करना चा हए बर क व और कल क प को फाड़ डालत ह अथात य द तम मर साथ कलह करोगी तो त हा रा वनाश िन त ह

जब तोता और मना नाककसर क वा टका को फलता हआ दखत ह तो उस पर म ध हो उस पर अपन ाण यौछावर करन लगत ह अथात तमन मर फलवार को फलता-फलता हआ दखा तो तम भी उस पर म ध हो उठ और उसम रहन क िलए अपन ाण को यौछावर करन को ःतत हो गई भाव यह ह क तम मर

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सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

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इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 28: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

सख-सौभा य को दखकर ःवय भी उस ा करन क िलए याकल हो उठ इसका दसरा अथ इस कार भी कया गया ह क जसन नागकसर क वा टका को दखा वह ःपधा स मरन लगा क यहा अनक तोत और मनाय भर हई ह

नागमती आग कहती ह क- जो कमल सरोवर क जल म बढ़ता ह वह अपन ःथान पर ह रहता ह वह सरोवर और कड को याग पराई अमराई अथात पराई वा टका म कभी नह जाता अथात तम अपन िनवास ःथान िसहल को छोड़ या अपन महल को छोड़ मर इस वा टका म य आई हो जस कार कमल सरोवर को याग वा टका म जा पहच तो सख जायगा उसी कार तम मर इस वा टका म आकर मझस कलह कर सफल नह हो सकती य क त हारा ःथान यहा न होकर त हार अपन महल म ह ह इस पद म य य और वबो का स दय दशनीय ह

ldquoतइ अबराव ली ह का जर काह भई नीम वष-मर

भई ब र कत क टल कटली तद टट चा ह कसली

दा रउ दाख न तो र फलवार द ख मर ह का सआ सार

औ न सदाफर तरज जभीरा आग कटहर बड़हर खीरा

कवल क हरदय भीतर कसर त ह न स र पज नागसर

जह कटहर ऊमर को पछ वर पीपर का बोल ह छछ

जो फल दखा सोई फ का गरब न कर ह जािन मन नीका

रह आपिन त बार मो स जझ न बाज मालित उपम न पज वन कर खझा खाज rdquo211

नागमती क य य भर और कटतापण बात को सन प ावती कहन लगी क- तन अपनी इस वा टका म इक ठा ह या कया ह (जो तझ इस पर इतना गव ह) तन इसम वष क मल अथात जहर क समान कडवा नीम य लगाया ह और साथ ह टढ़-मढ़ और कट ल बर क व तथा कसल तद और टट (कर ल का फल) क झा ड़या य लगाई ह कारण यह तीत होता ह क त इ ह ह पसद करती ह भाव यह ह क त ःवय ःवभाव स कड़वी क टल झगडाल और कसली ह

165

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

166

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

184

प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 29: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

इसीिलए तन अपन ःवभाव जस इन फल वाल व को लगाया ह तर वा टका म अनार और अगर जस फल दन वाल व और लताए नह ह फर यह बता क तोता और मना या दखकर तर वा टका पर मरग ( पछल पद म नागमती न कहा था क- Ocircजो दखी नागसर बार लग मर सब सआ आर Otilde (यहा प ावती इसी का उ र द रह ह ) तर वा टका म सदाफल तरज और जभीर जस सःवाद स दर और मनोरम फल नह लगत ब क कटहल बड़हल और खीरा जस बड़ भ और जहर ल मख वाल फल लगत ह (खीरा का िसर काट उसका जहर िनकाल कर तब उस खाया जाता ह कटहल क ऊपर काट होत ह इसी कारण प ावती उ ह बरा कह रह ह ) तन जो यह कहा था क कमल अपन ःथान को छोड़ अ यऽ नह जाता उसका उ र यह ह क कमल अथात म अपन गण क कारण ह यहा आई ह य क कमल क दय म अथात कोश म कसर भर रहती ह अथात मरा दय कसर क समान म-रस स लाल सग धत और मधर भावनाओ स ओत-ोत ह नागकसर का फल ऐस कमल क या समानता कर सकगा अथात त मर या बराबर कर सकगी जहा कटहल होता ह वहा गलर को कौन पछता ह और कटहल क सामन बड़ और पीपल या बोल सकत ह जो फल क स छछ होत ह अथात जनक फल का कोई मह व ह नह होता मन तर वा टका म जस फल को भी दखा वह फ का लगा अतः त अपन मन म यह समझ कर क तर वा टका बहत अ छ ह गव न कर

प ावती फर खीझ कर आग कहती ह क- त अपनी वा टका म रह त मझस य झगड़ती ह मझस मत लड़ य क वन क नीरस फल मालती क कभी भी बराबर नह कर सकत भाव यह ह क त भल ह अपन प पर गव कर अपनी दिनया म म न रह पर त त कभी भी मर बराबर नह कर सकती

ldquoजो कटहर बड़हर झड़बर तो ह अिस नाह कोकाबर

साम जाब मोर तरज जभीरा क ई नीम तौ छाह गभीरा

न रयर दाख ओ ह कह रखौ गलगल जाऊ सवित न ह भाख

तोर कह होइ मोर काहा फर ब रछ कोई ढल न बाहा

नव सदाफर सदा जो फरई दा रउ द ख का ट हय मरई

जयफर ल ग सोपा र छोहारा

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िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

167

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

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कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 30: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

िम रच होइ जो सह न झारा ह सो पान रग पज न कोई

बरह जो जर चन ज र होई लाज ह ब ड़ मरिस न ह ऊिभ उठाबिस बाह

ह रानी पय राजा तो कह जोगी नाह rdquo212

प ावती क कट बात को तथा य य भर बात को सनकर नागमती उ र दती हई कहती ह य द मर वा टका म कटहल बड़हल और झरबर जस फल वाल व लग ह तो यह तो बड़ पन क बात ह य क मर यह वा टका तर समान नह ह जो कवल कमिलनी क ह समान ह जसम कवल छोट-छोट फल ह लगत ह और फल एक भी नह लगता इसिलए य फल तझस अिधक उपयोगी ह य क त तो कवल दखन भर भी वःत ह जब क य फल खान क काम आत ह य द मर वा टका म कड़वा नीम लगा ह तो उसक उपयोिगता यह ह क वह घनी छाया दान करता ह मन अपनी वा टका म ना रयल और अगर कवल अपन ःवामी को दखान क िलए ह सर त रख ह म भल ह गलगल कर मर जाऊ पर त अपनी सौत को उनका पता कभी नह बताऊगी भाव यह ह म अपन उरोज (ना रयल) और अगर (अधर) को कवल अपन ःवामी क िलए ह सर त रखती ह फर तर इस कार बकन स मरा या बन- बगड़ सकता ह फलवान व पर कोई भी भला आदमी ढल नह फकता अथात त द ह इसी कारण मझ फलवान अथात अपन यतम क या दख ष क कारण मर उपर वाक-हार कर रह ह सदव फलन वाला सदाफल का व जब फलता ह तो फल-भार क कारण झक जाता ह और जब अनार का व उस सदव फलत हए दखता ह तो ष क कारण उसका दय फट जा ता ह (अनार पकन पर फट जाता ह ) भाव यह ह क म तो सदव ह पित क या रह ह इसी कारण म तर साथ वनता क साथ पश आ रह ह पर त मर इस सख को दख तरा दय अनार क समान फट रहा ह वद ण हो रहा ह जायफल सपाड़ ल ग छहारा िमच आ द व क लगान स या लाभ य क जायफल कसला ल ग कड़वी सपार कठोर छहारा सखा हआ होता ह और िमच तो इतनी चरपर (तीखी) होती ह क उसक चरपराहट को सहन नह कया जा सकता फर म ऐस व को अपनी वा टका म य लगाऊ म तो उस पान क समान ह जसक रग क कोई भी समानता नह कर सकता अथात जस कार पान खान स मह लाल हो जाता ह उसी कार मर म म रग कर मरा यतम पण पण म क रग म शराबोर हो गया ह जो य वरह म जलता ह वह उसी कार चना बन जाता ह जस कार ककड जलकर चना हो जाता ह अथात त पित - वरह म जलकर चना हो रह ह

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त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

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ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 31: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

त ल जा स डब नह मरती य ष म भर अपनी भजाए उठा -उठाकर मझस लड़ रह ह म रानी ह और राजा र सन मरा ःवामी ह तर िलए तो योगी ह ःवामी बनन क यो य ह अथात त कसी योगी क प ी बन त राजा क प ी बनन क यो य नह ह फर नागमती क बात को सन प ावती उ र दती हई कहती ह क ETH

ldquoहौ पदिमिन मानसर कवा भवर मराल कर ह मो र सवा

पजा-जोग दई ह ह गढ़ और महस क माथ चढ़

जान जगत कवल क कर तो ह अस न ह नािगिन वष-भर

तइ सब िलए जगत क नागा कोइल भस न छाड़िस कागा

त भजइल ह हसिन भो र मो ह-तो ह मोित पोित क जोर

कचन-कर रतन नग बाना जहा पदारथ सोह न आना

त तौ राह ह सिस उ जयार दन ह न पज िनिस अिधयार

ठा ढ़ होिस ज ह ठाई मिस लाग त ह ठाव त ह डर राध न बठ मक साव र होइ जाव rdquo213

म मानसरोवर म खलन वाली कमिलनी ह मर और हस मर सवा करत ह हम वधाता न पजा क यो य अथात दवता पर चढ़ान यो य बनाया ह अतः हम महादव क उपर चढ़ाया जाता ह सारा ससार कमल क कली क मह व को जानता ह म तर समान वष-भर नािगन नह ह त ससार क सार नाग (सप ) स सबध रखती ह भाव यह ह क त नािगन ह इसिलए सप क समान क टल प ष स तरा सबध ह अथात त भी क टल ह त उपर स कोयल का वश धारण कए रहती ह पर त फर भी कौओ का साथ नह छोड़ती (कोयल को OcircपरभतOtilde कहा जाता ह य क कौए उसक ब च का पालन-पोषण करत ह ) भाव यह ह क त मख स तो कोयल क समान मीठ वाणी बोलन वाली ह पर त कौओ क अवगण को नह छोड़ पाई ह अथात चोर और नीचता करना तन नह छोड़ा ह त भजगा प ी क समान काली ह और म हिसनी क समान गोर और भोली ह मरा और तरा साथ वसा ह

168

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 32: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ह जसा क मोती और काच क ग रया का होता ह अथात म मोती क समान म यवान और त काक क समान दो कौड़ क ह र ःवण-किलका क साथ ह शोभा दता ह जहा ह रा होता ह वहा अ य कोई भी र शोभा नह दता भाव यह ह क म ःवण-किलका क समान ह और र सन उसम ज रत नग क समान अथात र सन मर साथ ह शोभा दता ह न क तर साथ म ह र क समान ह और त साधारण र ह इसिलए त मर बराबर नह कर सकती त राह क समान काली और अशभ ह और म च िमा क समान काशमान और शा त दान करन वाली ह रा ऽ का अ धकार दन क काश को समानता नह कर सकता अथात म दन क काश क समान गोर ह और त रा ऽ क अ धकार क समान काली

त जस ःथान पर खड़ होती ह वह तर शर र क काल च लग जाती ह म इसी डर क मार तर पास नह बठती क कह काली न हो जाऊ पछल पद म प ावती न अपन आप को कोमल कहा तो नागमती भी उस य यवाणी म कमल क बराई करती हए बोली ETH

ldquoकवल सो कौन सोपार रोठा ज ह क हय सहस दस कोठा

रह न झाप आपन गटा सो कत उधिल चह पगरटा

कवल-पऽ तर दा रऊ चोली दख सर दिस ह खोली

उपर राता भीतर पयरा जार ओ ह हर द अस हयरा

इहा भवर मख बात ह लाविस उहा स ज कह हिस बहराविस

सब िनिम त प त प मरिस पयासी भोर भए पाविस पय बासी

सजवा रोइ रोइ िनिस भरसी त मोस का सरव र करसी

स ज- क रन बहराव सरवर लह र न पज भवर हया तोर पाव धप दह तो र भज rdquo214

नागमती कहती ह क य द त कमल ह तो इसम कौन बात हई य क कमल का ग टा सपाड़ क समान कड़ा होता ह जसक भीतर हजार छद अथात बीज कोश होत ह त अपन ऐस कमलग ट को िछपा कर नह रखती त उस उघाड़

169

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

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जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

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ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 33: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

कर सबको य दखाना चाहती ह अथात त िनल ज क समान अपन कमलग ट जस कड़ और बदसरत ःतन को उघाड़ कर य दखाना चाहती ह त अपन कमल-पऽ क समान चोली क नीच उ ह िछपाकर सबको धोखा दना चाहती ह जब सय तर ओर दखता ह तो त िनल ज बन अपन उन ःतन को उसक सामन खोल दती ह तर ःतन उपर स लाल और भीतर स पील ह मन तर ऐस ःतन वाल दय को जला-जलाकर ह द क समान पीला बना दया ह अथात त ष म जल -जल कर पीली पड़ गई ह त इतनी म कार ह क एक तरफ तो मर स बात करती हई उस फसलाती रहती ह और दसर ओर सय क ओर दखकर हसती हई उस बहलाती ह त कमल क समान सार रात अपन यतम सय क दशन क यास म तड़प-तड़प कर मरती रहती ह और सबह होन पर बासी सय को ा करती ह अथात र सन रातभर भोग- वलास करन क उपरा त वह सबह होन पर तर पास जाता ह इस कार त भोग हए पित को ा करती ह अथात बासी जठन खाती त रात को रो-रोकर अपनी याय को आसओ स तर करती रहती ह ऐसी त मर बराबर या कर सकगी

त समझती ह क सय तझस म करता ह पर त वाःत वकता यह ह क वह अपनी करण क ःपश ारा कवल तरा मन बहलाता रहता ह और त इसी स इतनी गव म भर जाती ह क सरोवर क लहर म नह समाती अथात उपर उठ जाती ह मर तर दय को बध डालता ह और सय तर शर र को अपनी त करण स भन दता ह भाव यह ह क त जो इस म म ह क मर और सय तर मी ह यह तरा म ह ह अथात इस म म मत रह क (र सन) तझस म करता ह वह तो कवल तरा मन बहलाता ह स चा म तो वह मझस ह करता ह

इस तरह प ावती कमल क बराई क जान पर उस य य म बोली ETH

ldquoम ह कवल स ज क जोर जो पय आपन तौ का चोर

ह ओ ह आपन दरपन लख कर िसगार भोर मख दख

मोर बगास ओ हक परगास त ज र मरिस िनहा र अकास

ह ओ ह स वह मोस राता ितिमर बलाइ होत परभाता

कवल क हरदय मह जो गटा ह र हर हार क ह का घटा

170

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 34: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

जाकर दवस त ह पह आवा का र रिन कत दख पावा

त ऊमर ज ह भीतर माखी चाह ह उड़ मरन क पाखी

धप न दख ह वषभर अमत सो सर पाव ज ह नािगिन डस सो मर लह र स ज क आव rdquo215

मर और र सन क जोड़ तो कमल और सय क जोड़ क समान ह अथात जस कार कमल सय को दख खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन पित क दशन कर स न हो उठती ह य द ःवामी अपना ह तो उसक स मख अपन अग को उघाड़ कर दखान म या चोर अथात या ल जा क बात ह म उस अपन दपण क समान ह समझती ह अथात मझ इस बात का पण व ास ह क जस कार मरा दपण िनमल और ःव छ रहता ह उसी कार मरा पित भी मर पास आत समय पण श रहता ह म जस कार ातः काल अपन दपण म अपना मख दखती हई अपना शगार करती ह उसी कार ातः काल जब पित मर पास आता ह तो म उसका मख दख-दखकर उसी क सामन अपना शगार करती ह इसम िनल जता क या बात ह जस कार सय क उदय होत ह कमल खल उठता ह उसी कार म ातः काल अपन ःवामी को स न दख आन द स खल उठती ह और त आकाश क ओर (च िमा क ती ा म) दखती हई कढ़ -कढ़ कर मरती रहती ह य क पित तर पास रा ऽ होन पर ह जाता ह म उसस और वह मझस म करता ह जस कार भात होत ह अ धकार न हो जाता ह उसी कार मर पास आत ह पित पर स तरा सारा भाव जाता रहता ह कमल क दय म जो कमलग टा होता ह उसक कारण उसक कोई भी हािन नह होती य क कमल उस कमलग ट क रहत हए भी वण और िशव क गल का हार बन जाता ह इसी कार य द मर ःतन कड़ ह तो या हआ म जब अपन पित क दय स लग जाती ह तो मर य ःतन उसक दय म हार क समान शोभा दत ह म दन क समान उ जवल अथात गोर ह इसिलए यतम मर पास दन क समय ह आता ह दन क काश म काली रात उस कस दख पायगी अथात त रात क समान काली ह इसिलए दन क उ जवल काश म पित का सा न य कस ा कर सकगी त तो कलर क फल क समान ह जो उपर स तो स दर दखाई पड़ता ह पर त जतन भीतर क ड़ भर रहत ह अथात त दय स क ड़ क समान िघनौनी ह बर भावनाय रखनवाली ह जस कार जब क ड़ क म य समय क पख िनकल आत ह तो व उड़न लगत ह उसी कार तर मौत आ गई तीत होती ह जसस त इतनी बढ़-बढ़कर बात कर रह ह

171

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 35: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ह वष भर स पणी त धप को नह दखती अथात दन क उ जवल काश को त सहन नह कर पाती पर त म तो सरोवर म खलन वाली कमिलनी ह जसम अमत भरा रहता ह नािगन जस डस लती ह वह सय करण क लहराती लहर क समान वष क भाव स लहराता हआ मर जाता ह अथात तरा म वष क समान ाण-घातक और मरा म अमत क समान ाण-दायक ह

363 कबीर म ययगीन वचारक म कबीर का ःथान अ तीय ह उनका िच तन ःवतऽ

वचार िनप तथा वाणी सहज भावापन ह उनक वाणी म मऽम ध कर लन क श ह कबीर क का य म क ऽमता नह ह उनक दय क अनभित और म ःतक क धारा क सहज और सरल अिभ यजना उनक वाणी म हई अनभित क सरलता और ःवाभा वकता ह उनक का य क वशषता ह उ ह न जन चिलत का य प और छ द क मा यम स अपन दय और व य का सफल कट करण कया ह भाव और वचार क इस भावपण कट करण म कबीर क का य प का विश योग ह कबीर काल क पव म राजनितक और धािमक दशा अ यत शोछनीय थी शासक वग अपन अनीितपण आचरण स इक ठा कय हए अमाप स प क बल पर ऐ य एव वलास म उ मत हो चका था ऐस वातावरण म जा भी दकिमत बन गयी थी

स प म कह सकत ह क समाज पतनो मख हो गया था कनक और कािमनी का कोप समाज पर बढ़ गया उसक दप रणाम सत क व दख रह थ अतः उ ह न इसका डटकर वरोध कया यह ितशोध वदिशय क धमचार का मकाबला करन क िलए आवयक था मसलमान शासक वग स सबिधत थ अतः व अपन आपको ौ समझत थ तथा ह दओ को हय स दखत थ दसर ओर ह द मसलमान को वधम तथा अ याचार होन क कारण घणा क स दखत थ दोन जाितय क आचार- वचार म विभ नता थी म ःलम समाज म अिधक र ऐस लोग थ जो पहल ह द थ और बाद म धमा तरण स मसलमान बन थ श म ह दओ का इःलाम म प रवतन बलपवक कया गया था

यह सभी शोषण को कबीर न अपन पद म हाःय- य य क मा यम स समाज पर गहरा हार कया ह जस व ास और आःथाओ क पोली या क ची भिमका थी कबीर उनका वरोध करत थ जो पर पराए ढ़या बनकर समाज म जम गई थी कबीर न उनक उ छदन क िलए भी भरसक य कया काशी म मरन स ःवग ा होता ह इस अ ध व ास क उ मलन क िलए उ ह न कहा ETH

172

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

184

प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 36: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoचरन वरद कासी क न दह कह कबीर भल नरक ह जह rdquo216

कबीर न अपनी आलोचना मक आवाज कवल धािमक अध व ास क उ मलन क िलए ह नह उठाई थी वरन सामा जक कर ितय और कथाओ क िनवारण क िलए भी उ ह न इसका उपयोग कया था घघट था क वरोध म उ ह न कहा ETH

ldquoरह रह रो बह रया घघट जिन काढ़

घघट का ढ़ गई तर आग उनक गल तो ह जिन लाग rdquo217

बगार क था कबीर क समय म भी चिलत थी वह ौमजी वय क िलए बड़ घातक थी कबीर न बगार क स ब ध म भी अपना वरोध य कया ह क त आ या मक प रवश म ETH

ldquoब ठ बग र बराई थाक अनभ पद परकासा rdquo218

अपन जीवन म कबीर को जो सघष करना पड़ा था उसन कबीर क आलोचक को खर बना दया था काजी म ला ा ण पजार स तान आ द अनक लोग न कबीर क स यो ाटन का वरोध कया था क त उनक ःथर ःवभाव और अटट य व न उनक ितभा का परा साथ दया इस वरोध का प रणाम यह हआ क धम और समाज क ऽ म कबीर क अनक बर हो गय थ यह बात उनक इस उ स मा णत होती ह ETH

ldquoजस तार र ण क तत बर म धड सली कगर तऊ न वसार तझ rdquo219

भ ह न ा ण स तथा खदा क राह पर न चलन वाल का जय स कबीर न ऐितहािसक ट कर ली थी जो कवदितय क प म आज तक याद क जाती ह कसी ा ण क साथ कबीर क मठभड़ का एक उदाहरण इन प य म ि य ह ETH

ldquoकाह मर ा न ह र न कह ह राम न बोल ह पाड दोजक भर ह

आपन ऊच नीच घ र भोजन

हठ करम क र उदर भर ह चौदस अमावस रिच रिच माग ह

कर दपक ल कप पर ह

173

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

174

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 37: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

त ा न म कासी का जलहा मोह तो ह बराबर कस क बन ह

हमर राम नाम क ह उबर बद भरोस पाड डब मर ह rdquo220

कबीर न ह दओ और मसलमान क बीच म बढ़त हए वष को बड़ वकलता स दखा व शकर क भाित उस पी सक यत सामा जक लय क य दखकर उ ह न बर धमा धता क वरोध म ता डव ित बया क य तो कबीर न कसी धम क क पता और दबलता क ओर स आख ब द नह क क त समाज क दो बड़ टकड ह द और मसलमान उनक स कभी ओझल नह हए ह द -धम म घस दभ और पाखड क िनदा कबीर न बड़ तीो श द म क ह क त ह द-धम क मल पर उ ह न कोई ऐसा हार नह कया जसा तक धम पर

ldquoतरक धरम बहत हम खोज बह बजगार कर ए बोघा

गा फल गरब कर अिधकाई ःवारथ अरिथ बध ए गाई rdquo221

इसस यह सकत महण कर लना भी अनितहािसक न होगा क गोवध क पीछ परधम पीडन क भावना एव ःवधमशासन का गव िन हत था तक क इस दभावना क भ सना करत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoजाको दध धाइ क र पीज ता माता क वध य क ज लहर थक द ह पीया खीरो ताका अहमक भख सर रो ब अकली अकली न जानह भख फर ए लोई दल द रया द दार बन िमःत कहा थ होई rdquo222

आड बर और पाखड का जसा बोलबाला ह द धम म था वसा ह इःलाम म भी था य द धम क वाःत वकता OcircजनऊOtilde म नह थी तो Ocircस नतOtilde म भी नह थी इस धािमक क ऽमता को कबीर न बड़ ोभ स दख कर कहा ETH

ldquoकतम सिन य और जनऊ ह द तरक न जान भउ

मन मसल क जगित न जान मित भल द न बखान rdquo223

OcircजनऊOtilde क पीछ क ऽम धािमकता थी क त Ocircस नतOtilde क पीछ क ऽम धािमकता क साथ-साथ यौन-भावना भी थी धािमक खोखलापन उस समय भी व मान था और कबीर जस अनक साध लोग उसस प रिचत थ जस धम म सावजनीनता न हो जो अखड मानव-समाज क साथ लाग न हो सक कबीर उस ःवाभा वकता स विचत ह मानत ह जस धम म िनसग का आधार नह ह जसम जीवन का सहज प ितफिलत नह होता वह धम ःप तः अःवाभा वक और

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खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

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ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

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यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 38: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

खोखला ह धम क यह वड बना ह क उसस प ष ह भा वत हो ी असप रह य द Ocircस नतOtilde को धम का एक ल ण मानकर ी स सबध नह कया जा सकता ह तो ी धम क पणता स विचत ह अतएव Ocircस नतOtilde का सबध धम स जोड़ना अ ववक माऽ ह कबीर क इन श द म Ocircस नतOtilde क आलोचना द खय ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह बद र भाई

और षदाइ तरक मो ह करता तो आप क ट कन जाई ह तो तरक कया क र सनित औरित स का क हय अरध सर र ना र न छट आधा ह द द खय rdquo224

इसस क ऽम धम क वरोध म कबीर यह िनकष िनकालत ह क OcircOcircस नतOtilde क अभाव म ी मसलमान नह हो सकती Otilde य द तक का स ब ध तकानी स ह तो OcircखतनाOtilde मा क पट स ह होकर आता और यह ःवाभा वक भी होता ETH

ldquoज त तरक तरकनी जाया तो भीतर ह खतना य न कराया rdquo225

वग-भद मसलमान म भी था क त वह धम-सब नह था पीर मीर काजी म ला शख आ द अिधकाशतः पद-भद ह य सभी मसलमान ह काजी म ला और शख का आचरण उनक अिभ ा क अन प न दखकर उनको कम क िश ा दत हए कबीर उनक त कालीन ःथित को सामन लात ह और कहत ह क ETH

ldquoकाजी सो जो काया वचार तल द प म बाती जार तल द प म बाती रह जोित द ह ज काजी कह मलना बग दई सर जानी आप मसला बठा तानी आपन म ज कर िनबाजा जो मलना सरबत र गाजा सष सहज म महल उठावा चद सर बच तार लावा अध उध बिच आिन उतारा सोई सष ितह लोक पयारा rdquo226

कबीर क यग म ह द और मसलमान म भयकर भद था जसका आधार तथाकिथत धम था कबीर न इस भद क बड़ ध जया उड़ाई ह Ocircमितभल द न बखानOtilde कहकर कबीर न Ocirc ह द व Otilde और OcircइःलामOtilde क बीच क खाई क ओर सकत कया ह Ocirc ह द तरक दह नह नरा Otilde म भी ह दओ और मसलमान क भद क इितहास पर काश पड़ता ह म ःजद और म दर भी धम क तीक बनकर दोन धम क बीच म खाई बन रह थ अ लाह क िनवास को म ःजद म और परमा मा क िनवास को म दर म मानना भी तो धािमक खाई का माण था कबीर न इस धािमक सक णता पर हार करत हए कहा ETH

175

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

184

प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

185

सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 39: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoअ लह एक मसीित बसत ह अवर मलक कसकरा हद मरित नाम िनवासी दहमित तत न हरा rdquo227

प डत और म लाओ क धािमक बा ाचार म कबीर को धम-भद क दग ध आती थी अतएव उ ह न दोन क चगल स म पात हए कहा ETH

ldquoहमारा झगरा रहा न कोऊ प डत म ला छाड़ दोऊ rdquo228

यह तो पहल ह कहा जा चका ह क कबीर क समय म धािमक पाखड दभ क ऽमता और क टरता न सीमा का उ लघन कर दया था इःलाम क कठोरता भिम पर जतन अ याचार फल-फल रह थ ह द व क उदार एव उवरा धरा पर उतन ह पाखड अक रत हो रह थ इनक अितव स धममल जजर हो रहा था कबीर को वदाचार और मताचार म भी कोई त य दखायी नह दया और उ ह न झझलात हए कहा ETH

ldquoचा रवद चह मतका व

इ हिम भिल परबो ससार rdquo229

ा ण को अपन उ चवण पर गव था क त कसी नीच कम स उ ह हचक नह थी भोजन का लोभ उ ह कसी भी घर ल पहच सकता था उदर पोषण क िलए व कोई भी काम कर सकत थ कबीर न ा ण क इस व को बड़ ोभ स दखकर कहा ETH

ldquoआपन ऊच ध र भोजन हठ करम क र उदर भर ह rdquo230

य उदाहरण न कवल ा ण क रस लोलपता को ह सामन लात ह वरन ा ण क ित बया मक ोभ को ज म दन वाल ा ण और अा ण क बीच क समाज वसक अ तर को भी सामन ल आत ह ा ण क कम म हसा धम क आवरण म व हो गयी थी और ा ण लोग उसका समथन करक अपन व आलोचना को उ जत करत थ पढ़-गन ा ण स समाज सामा यतया स कम क अप ा करता था जस ा ण व को धम क दशा म रत करन म वधा भी वफल हो गई थी उसक ित रोष य करत हए क ववर य य वाणी म बोलत हETH

ldquoवद प या का यह कल पाड सब घ टदख रामा

जीव बधत अ धम कहत ह अधम कहा ह भाई rdquo231

176

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 40: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

यहा कबीर का सकत सभवतः मासाहार ा ण क ओर ह ऐस आचरणह न ा ण क ित ब सामा जक क ौ ा नह थी वणव लोग तो इनस घणा करत थ उनक मन म शा ा ण क अप ा चाडाल वणव क ित कह अिधक ौ ा थी कबीर क नीच िलखी साखी म यह भाव ःप तः प रल त होता ह ETH

ldquoसाकत बासण मित िमल बसन िमल चडाल अकमाल द भ टय मान िमल गोपाल rdquo232

भय भ सना और भ कबीर क ऐस अ थ जनका उपयोग व सामा जक वषमताओ क िनराकरण क िलए कर रह थ जस वभव क गहर नीव डालन क िलए मनय इतन अ याचार करता ह वह भगर ह वह प रवतन क लहर का णक बदबदा ह मानव शर र भी उतना ह अ ःथर ह वह िम ट का पतला

कभी भी बगड़ सकता ह यक मनय को यहा स कच करना ह चाह कोई रग हो चाह राव और चाह कोई सलतान ह य न हो सबका जीवन अःथायी ह कसी का ऐ य साथ नह जाता ह इन वर ो य क मा यम स कबीर न उस समय क ऐ यिल सा स रत राजनीित पर तीआण हार कया ह कबीर न एक ओर तो जनता को पी डत दखा और ऐस लोग भी दख जनक यहा नौबत बजती थी ार पर मःत हाथी झमत थ और जनको दिनया क दःख क तिनक िच ता नह थी उनक िलए कबीर क मह स िनकल पड़ा ETH

ldquoकबीर नौबित आपणी दन दस लह बजाइ

ए पर प टन ए गली बह र न दख आर rdquo233

दप और दभ स पी ड़त मानस को सधारन क िलए कबीर न भ क भिमका पर सवसाधारण स िमलन का सझाव दत हए कहा ETH

ldquo जनक नौबित बाजती मगल बधत बा र एक ह र क नाथ बन गए ज म सब हा र rdquo234

कबीर सलतान क ह अ याचार स प रिचत नह ह वरन व राजा राणा आ द क अिभमान स भी प रिचत ह और उसको पराःत करन क िलए व उस वरा य क मदान म उतारन का य करत ह ETH

ldquoइक दन ऐसा होइगा सबस पड़ बछोह राजा राणा छऽपित सावधान कन होइ rdquo235

सामा यतया लोग क पास धन का इतना अभाव था क व महग बार क व को भी नह खर द सकत थ इसिलए महग व का उपयोग करन वाल क एक अलग ह ौणी थी और उनम राज-प रवार क लोग क ह धानता थी िन निल खत साखी स कछ-कछ ऐसा ह भाव सकितत हो रहा ह ETH

177

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

178

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 41: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoना हा काती िच व महग मोिल बकाइ गाहक राजा राम ह और न नड़ा आइ rdquo236

आिथक वष य क अनक कारण म वण और धम का भद तथा समान अवसर का अभाव मख थ पजीवाद और शोषण दोन का बोलबाला था पजी ायः मह त साम त राजा राव राणा सलतान आ द क घर म िनवास करती थी या फर बड़-बड़ यापार सठ-साहकार पजीपित होत थ ऊच-ऊच ःवण कलश स सशोिभत आवास-भवन लआमी क िनवास का प रचय दत थ ःवण कलश राज-म दरो पर ह नह वरन पजीपितय क वशष आवास और वशष दवालय पर भी होत थ धिनय क ऊच-ऊच आवास पर ःवण-कलश पर कबीर य य वाणी म उ लख करत हए कहत ह क ETH

ldquoऊचा महल बणाइया सौवन कलस चढ़ाइ rdquo237

वःतओ क अित र मनय पशओ और प य का भी बय- वबय होता था सामा य आवयकता अथवा दिनक उपयोग क वःतए तो गाव और कःब क सा ा हक हटवाड़ो म ह िमल जाती थी क त वशष एव थोकमाल बड़ -बड़ म डय या बाजार म िमलता था लोग बय- वबय क िलए हटवाड़ और बाजार म एकऽ होत थ बड़-बड़ यापार को बड़-बड़ ःथान पर ह मखता िमलती थी गलाम और य का बय- वबय मख-मख ःथान पर ह होता था दास-दािसय क था ाचीन भारत म भी थी क त गलाम और य क बय- वबय क था म ःलम शासन क जड़ जम जान पर ह अिधक वकिसत हई गलाम क उपर मािलक का पण अिधकार होता था उसक इ जत कसी वःत स अिधक नह थी उसको मािलक कह कभी और कसी क हाथ बच सकता था इस पर य य करत हए कबीर जी कहत ह क ETH

ldquoआिन कबीरा हा ट उतार सोई गाहक सोई बचन हारा rdquo238

कबीर न जस कार भद-भाव क िन दा क ह उसी कार छ और पाखड क िन दा क ह िम याचार कबीर को बलकल िचकर नह ह अतएव जहा कह िम याचार का सग आता ह कबीर क वाणी अद य हार करती द ख पड़ती ह भला कोई मनय ितलक-छाप स वणव बन सकता ह इसी कार भोली पऽ वभित बटवा वण आ द क योग स कोई योगी नह हो सकता ऐस लोग को दखकर कबीर को कहना पड़ता ह ETH

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ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

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ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 42: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoसो जोगी जाक मन म मिा राित दवस न करई िनिा मन म आसण मन म रहणा मन का जप तप मन स कहणा मन म षपण मन म सीगी अनहद चन बजाव रगी पच परजा र भसम क र भका कह कबीर सो लहस लका rdquo239

मनय क आचरण और साधना क ह नता तथा वश-भषा क ित सतकता कबीर-वाणी को उ जत कय बना नह रह सकती ऐस ह मनय को दखकर कबीर क इस कार क श द िनकल पड़त ह ETH

ldquoमाला पहरया कछ नह य मवा इ ह भा र बाह र ढो या ह गल भीत र भर भग र अथवा कस कहा बग डया ज मड सौ बार मन क काह न म डय जाम बष बकार rdquo240

कबीर-वाणी क सामा जक उ स म एक बहत बड़ा योग त कालीन यवसाय सःकार एव थाओ का ह इनक सबध म कबीर-वाणी का सामा जक उ स दो धाराओ म वभ द ख पड़ता ह- एक धारा म कबीर क सामा जक आलोचक का प कट हआ ह और दसर म उनका क व प कसी न कसी पहल स य हआ ह कथाओ क भ सना या आलोचना इतन य य ढग स ःतत क ह इसक एक झाक दखी जा सकती ह ETH

ldquoसकित स नह पक र क र सनित यह न बद र भाई जौर खदाइ तरक मौ ह करता तो आप क ट जाई rdquo241

इसी कार मरन क बाद पड भरन क था क आलोचना को द खय ETH

ldquoजीवन पऽक अन न वाव मवा पाछ यड भराव rdquo242

इसी कार घघट क था को भी कबीर न स मान नह दया ldquoरह रह र बह रया घघट जिन काढ rdquo कह कर कबीर म आ या मक प रपा म घघट था का ितरःकार ह कया ह घघट ी क आचरण का छ हो सकता ह वह उसक सती व का प रचायक नह ह इसिलए कबीर कहत ह ETH

ldquoघघट का या सती न कोई rdquo243

कबीर न शायद ह कसी कथा अथवा अ ान-ज य था को मा कया हो अ यथा उ ह न हर एक क कसी न कसी कार स खबर ली ह बड़ आ य क बात तो यह ह क कबीर-वाणी म उस कह िन ष नह माना गया वरन उस आदर और स मान क स दखा गया ह नीच क उदाहरण म द खय ETH

179

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

180

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

181

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

182

ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

184

प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 43: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

ldquoसती बचार सत कया काठ सज बछाइ ल सती पव आपणा चह दिस अगिन लगाइ rdquo244

कबीर-यगीन धािमक वातावरण कबीर-वाणी को रत करन म बहत मह वपण ःथान रखता ह सामा जक वषमता का बहत बड़ा कारण धम क व वधता म खोजा जा सकता ह अ यऽ कहा जा चका ह क कबीर क यग म अनक मत और सदाय चिलत थ उनक वकास म आय-धम क वकितय अनाय धम क ढ़य तथा सादाियक भद-व य क अित र धम-ग अथवा मत-वतक बनन क लालसा का भी योग था इस समय ा ण धम कम-का ड क पाख ड म फसा हआ था बौ और शव क पतन न िस कापािलक और कौल क क साओ का प धारण कर िलया था धम क आड़ म यिभचार एव दराचार पो षत हो रह थ नाथ-सदाय न भी अपन प वऽतावाद क लआय को बा ाडबर म वस जत कर दया था गोरखनाथ का OcircमनोयोगOtilde कबीर तक आत-आत Ocircआड बर-योगOtilde बन गया था योिगय क ऐसी ःथित दख कर ह कबीर को यह कहना पड़ा था क ETH

ldquoजोिगया तन को जऽ बजाइ य तरा आवागवन िमटाई तत क र ताित धम क र डाड सत कर सा र लगाइ मन क र िनहचल आःणी िनहचल रसना रस उपजाइ िचत क र वटवा तचा मषली भसम भसम चढ़ाइ त ज पाषड पाच क र िनमह खो ज परम पद राइ हरद सीगी यान ग ण बाधौ खो ज िनरजन साचा कह कबीर िनरजन क गित जगित बना यड काचा rdquo245

जस ित ा क साथ नाथ-पथ का ादभाव हआ था वह ित ा कबीर-काल तक वःत हो गई थी मन और आचरण क वह श ता जो गोरखनाथ न योगी क िलए िन द क थी उसक बा ाचार म उलझ गयी थी य प अब िस का यग नह रहा था क त उनक साधना क शावशष अब भी िमलत थ उनक आचरण क ददशा का मल कारण कबीर को उनक ाित म िमला

कबीर आचरण क बड़ भार समथक ह व आचरण क दशन को नह चाहत वरन व चाहत ह ऐसा आचरण जो मन स रत हआ हो इसिलए कबीर उस क तनी स कहत ह जो मन क रणा स क तन नह करता ह उस पर य य करत हए कहत ह क ETH

ldquoकरता द स क रतन ऊचा क र क र तड जाण बझ कछ नह य ह आधा ड rdquo246

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मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 44: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

मन क श पर जोर दत हए कबीर कहत ह क यह मन आ मदपण ह जब तक यह िनमल नह होता तब तक आ मदशन नह होता आ मदशन क िलए मन क Ocircद वधा Otilde िमटा दनी चा हए ETH

ldquo हरदा भीत र आरसी मख दषणा न जाइ मख तो तोप र द खए ज मन क द बधा जाइ

मन गोरस मन गो बदो मन ह औघड़ होइ ज मन राख जतन क र त आप करता सोइ rdquo247

कबीर तीथ को वष ब लर क अिभधा दान करत ह सार जगत म यह ब लर छाई हई ह कबीर न तो इसका मलो छदन कर दया ह य क व इस हलाहल को जो तीथ स िमलता ह ःवीकार नह करत इन तीथ म जन भावनाओ का उदय होता ह उनस सक णता और अनौदाय का प रपोषण होता ह धािमक ईया और वमनःय यह पर पलत ह भगवान क स च ःव प क वगहणा इ ह म छाय हए अधकार म होती ह अतएव तीथ क मा यता को वःत करत हए कबीर अपन मन को मथरा दल को ा रका और काया को काशी बतलात ह व कसी शर र म आ म- योित को जलती हई दखन क बात करत ह ETH

ldquoमन मथरा दल ा रका काया कासी जा ण दसवा ारा दहरा ताम जोित पछा ण rdquo248

कबीर का कोण म यमाग य ह कबीर न ह द ह न मसलमान ह न काबावाद ह न काशीवाद व काबा और काशी को एक समान दखत ह उसी कार राम और रह म को भी कबीर का राम और रह म सब बधन और सीमाओ स म ह वह मनय माऽ का आरा य ह सबका भ एव स ा ह जस कार कबीर न काबा और काशी को थोथा समझा ह उसी कार हज और तीथयाऽा को व इनको अ ान क स मानत ह एक य को जान लन पर फर कछ ात य नह रहता कबीर का यह कोण उनक अनभितय का प रणाम ह उ ह न इन तीथ म- काशी और काबा म जो वषा वातावरण अथा हा दक सक णता दखी उसस उनका दय ितलिमला गया इसिलए उ ह न दखा क काबा और काशी व ःथान नह ह जहा स अख ड मानवता उ घो षत क जा सक हज क समय पीर क सक णता का उदाहरण दत हए कबीर कहत ह ETH

ldquoहज काब व व गया कती बार कबीर मीरा मझ म या खता मखा न बोल पीर rdquo249

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म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

Page 45: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

म यकाल म जाितवाद का बोलबाला था जाितभद का जतना भयकर ःव प ह द समाज म गोचर होता था उतना मसलमान म नह बौ और जन समाज तो जाितवाद क उ छद क भिमका पर ह ित त थ ह दओ क जाितवाद न न कवल ह द व क ःवःथता को विप बना दया था वरन दश क श को भी ीण कर दया था जाितगत ऊच-नीच क भद न िनबलता और िनराशा को रत करक वदिशय को दश म जमन क िलए ो साहन दया था अनक धम गह-कलह क कारण बन रह थ अपन समय म इस सामा जक ददशा क विप य को दखकर कबीर न इस कारण क मल पर हार करन का सक प कर िलया इस ःप दशा म कबीर क रणा क भिमका पहल ह बन चक थी इसिलए कबीर क उ साह को माग िमल गया उ ह न अपन वचार म जाितवाद क बड़ िन दा क वण- यवःथा को मह व दन वाल ा णवाद को उ ह न खली चनौती द और ा ण व का गव करनवाल तथा अपन को ऊचा मानन वाल ा ण को खर -खर सनात हए कबीर न कहा ETH

ldquoजो त ा ण ा णी जाया तो आन बाट काह नह आया rdquo250

ldquoतम कत ा ण हम कत शि हम कत लोह तम दध

कह कबीर जो वचार

सो ा ण क हयत ह हमार rdquo251

कबीर क म उ च कम क अभाव म उ चकल का कोई मह व नह ह जो मनय ऊच कल म ज म लकर अधम कम करता ह कबीर उसस घणा करत ह नीच कम करन वाला ा ण कबीर क नजर म ऊचा कदा प नह ह कबीर कहत ह क जस कार सरा-पण ःवण-कलश साधओ ारा शिसत नह होता वरन िन दत होता ह उसी कार नीचकमा ा ण भी िन दनीय ह ETH

ldquoऊच कल या जनिमया ज कारण ऊच न होई सौवन कलस सर भरया साध िन ा सौइ rdquo252

कबीर कहत ह क य और अ य सब िम या एव न र ह जगत क यह ःथित ह अ य ःवतऽ भी ह और परतऽ भी ह जो परतऽ ह वह माया ह और जो ःवतऽ ह वह राम या परमा मा ह माया का सबध राम और जगत दोन स ह आपन अ य प म वह राम क श अना द और अन त ह तथा य प म वह न र ह कबीर न य माया को ःप तः झठ कहा ह ETH

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

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समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

186

बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

187

बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

192

बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

193

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ldquoऐसा तरा झठा मीठा लागा ताथ साच स मन भागा झठ क घ र झठा आया झठा खान पकाया

झठ सहन क झठा बा झठ झठा रवाया झठा उठण झठा बठम झठ सब सगाई

झठ क घ र झठा राता साच को न प याई कह कबीर अलह का पगरा साच स मन लावौ

झठ कर सगित यागौ मन-वािछत फल पावौ rdquo253

bull िनकष वा मीक रामायण म मयादा प षो म भगवान ौीरामच ि का य व यग-यग स

भारतीय जनता को कत य एव धम क ऽ म अनमा णत करता आ रहा ह भगवान क च रऽ क र मय म वह द य श एव अलौ कक आभा स न हत ह जो पाप-पक-िनम जत दय को भी पिनत कर दन का साम य रखती ह उ ह भ क नाम म भी अितम श व मान ह

अत म कहा जा सकता ह क रामायण म जन सकड़ कथा पाऽ क स क गई ह व सभी कसी न कसी प म अपन गण-विश य स सामा जक को नई दशा दत ह इस कार मह ष वा मीक न रामायण क रचना करक जनमानस का वचन िनभान और मयादाओ का पालन करन का पाठ पढ़ाया ह

महाभारत ऐितहािसक दाशिनक धािमक और व ािनक मह व का मथ ह यह ह द-सःकित और जीनवम य स आक ठ पण कोश ह जसका ह द पण ौ ा और आःथा क साथ पठन-पाठन करत ह ऐसी मा यता ह क इस वशालकाय मथ म जो अा य ह वह व म अ यऽ कह नह िमल सकता इसक वःतार वषय-बहलता को दखकर कोई भी य ौ ापण आ य क सागर म डब बना नह रह सकता

इन सभा षत जस र को छोड़कर जो प थर को टकड क र क पीछ दौड़त ह उ ह मख कहा गया ह इसका कारण यह ह क र जो कवल बाहर अलकार क वःत होत ह पर त सभा षत मनय क च रऽ का िनमाण करत ह और अ यदय तथा िनःौयस दोन का उपाय बतात ह सभा षत को स अथात स दर वचन भी कहत ह स या बोलचाल म वाणी क शोभा बढ़ाती ह

महाप ष क उपदश नीित-शा क विध-िनषध क वय क स या और व ान क वचन मनय को जीवन याऽा म माग दखात ह भल-भटक को सह राःत पर लात ह इसिलए मनय को चा हए क इन उपदश स य वचन आ द को जगह-जगह स बीन कर इक ठा करता रह क त कवल सचय करना ह काफ नह ह इस समह को रोज नह तो

183

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

184

प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

188

बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

189

बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

190

बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

191

बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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Page 47: ‘रामचरितमानस’ में प्रतिबिंबित योग शास्त्रshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/9142/10/10_chapter 3.1.pdf ·

समय-समय पर पढ़ता रह और जो पढ़ उस पर मनन और िच तन करता रह ऐसा करन स उसक अनक वकार दर हो सकत ह और च रऽ िनमल बन सकता ह उपदश स या आ द वष क अनभव का िनचौड़ होत ह जस कार औषिधया शर र को ःवःथ बनाती ह उसी कार स य ब च क ान म व करन का सवौ मा यम ह उसी कार स या म ःतक को ःवःथ बनाती ह

य स या ायः क व क जीवन क अनभव का सार होती ह स य का लआय मनोरजन ह नह ब क इहलौ कक और पारलौ कक जीवन का स य उ घाटन करना होता ह व मानव कित क साथ उसक विभ न सामा जक और आ या मक सबध म विश य लान वाली होती ह बा यवःथा म पठन-पाठन सबधी पचतऽ तथा हतोपदश जस मख मथ ह इसका अिभाय यह ह क मन को शा त और मन को रणा िमली साराश यह ह क पचत ऽ क नीित-वा य म सासा रक ान का जो कोष ह वह समय और ःथान क दर होन पर भी सदव उपयोगी ह पचत ऽ क यक कहानी आज भी मानव-च रऽ का स चा िचऽण करती ह और उसम िलख गए दो-तीन हजार वष क नीित-वा य आज भी मानव माऽ का पथ-दशन कर सकत ह आज भी उनका वचन घर व िगरजाघर म हो सकता ह

इस कार कहा जा सकता ह क व वधता सर क पद-रचना क मख वशषता ह शर क पद सगीत क इतन राग स बध ह क शा ीय सगीत क िस गायक भी इतन अिधक राग क क पना नह कर सकत राग और ताल क व वधता पद-रचना म आकषण और मनोरमता उ प न होती ह इस कार सर न घोषणा क क ससार वधाता क लीला ह और इस लीला का आनद ह सव क आनद ह इस आनद लोक म वश करन वाल सार वजातीय हःत प का सर न अपनी क वता ारा मकाबला कया और इस कार अपन क व कम ारा एक ऐस कालजयी का य ितमान का सकत दया जसक सगित आज क सा ह य चनौित क साथ भी दखाई पड़ती ह और भ वय म भी इसक मह ा कायम रहगी कहन का साराश यह ह क मनाम क मनोव का जसा वःतत और पण प र ान सर को था वसा और कसी क व को नह इनका सारा सयोगवणन तथा वयोगवणन जसम दःख और आन दो लास क न जान कतन ःव प का वधान ह

Ocircप ावतOtilde एक मगाथा ह ल कन इनम भी बहत सी जगह पर दःख -सख का उतार-चढ़ाव आय ह Ocircप ावतOtilde एक ऐसा मथ ह क उस पढ़त जाओ-पढ़त जाय ल कन उसका अत नह आता Ocircप ावतOtilde का एक पद पढ़न क बाद तरत उ कठा होगी क दसर पद म या होगा इतन रोमािचत तर क स Ocircप ावतOtilde को िलखा गया ह क हर कोई पढ़न म िच लता ह Ocircप ावतOtilde म बहत स सग ऐस ह जहा हाःय बना नह रहा जा सकता जस तोता क ारा नागमती का गव तोड़ना र सन का योगी बनना तथा िशव क ारा र सन का सवाद तथा र सन और प ावती क ववाह क समय स खय ारा वातालाप और नागमती-

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

185

सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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प ावती दोन का सवाद आ द जगह पर बहत अ छ तरह हाःय - य य ःतत हआ ह इस कार जायसी न Ocircप ावतOtilde क मा यम स न कवल आ या मक म क यजना क ह न कवल म वदना का मािमक वणन ग भीर िनर ह िनमल एव िनरावरण ःव प अ कत कया न लोको र स दय का िचऽण कया हाःय- य य ारा लोग को जतान का यास कया ब क इन सभी क मा यम स म सबस बड़ा िस बल ह स य सहायक ह दान साथी एव िमऽ ह वरह दय को प वत करन वाला ह वरा य वासनाओ का वनाशक ह दा रिय अहकार को न करन वाला ह आ म सयम जड़ आ मा पर िनयऽण करन वाला ह धय चचलता को दर करता ह सतोष शात भाव जामत करता ह ई र- व ास साधना म ढ़ता एव ःथरता लाता ह रहःय साधना उस अगम-अगोचर यतम स िमलन क रणा दान करती ह और साधक म-माग क सभी शऽओ पर वजय पाता हआ अत म पण अ तावःथा अथवा आ म-परमा मा क OcircएकमकOtilde अवःथा को ा कर इसी जीवन म म हो जाता ह

िनकष प म यह कहा जा सकता ह क कबीर अपन समय क स च ितिनिध थ उनका वाःत वक प साधक का था व एक ह साथ नीिभक ःप वाद और वनीत थ द भ और पाख ड उनको अ िचकर थ अहकार और अनाचार को व शऽ मानत थ भीत और पी ड़त को भ का आकषण दकर व उ ह रणा और ो साहन दत थ व लोक-जीवन क अित िनकट थ सामा य य को उनका च रऽ अित सामा य तीत होता था वःततः वह बहत ऊचा था उनक ःवभाव सह OcircसतOtilde श द स ह दया जा सकता ह बा ाडबर क ित उनक वाणी न जो ित बया मक प महण कया व ढ़य क वरोधी क त धमभी य थ अध व ास क ित घणा ह और स व और सदाचार क ित उनका आःथा ह व वद और करान क अध-पाठ म कबीर का बलकल व ास नह ह रोजा और ोत म कबीर को दभ द खता ह स चा रोजा और ोत तो मन क प वऽता ह अतः कबीर जी न इन सभी बात को अपन पद क मा यम स लोग तक पहचान का यास कया ह उ ह न ऐस-ऐस य य हार कय ह क चाह वह ह द हो या मसलमान दोन क छ क छड़ा दय

अब अगल चतथ अ याय म शोधिनबध क सखद याऽा स गजरन क बाद म OcircOtildeतलसीदास जी क का य मथ म हाःय- य य योजनाOtilde क वःतत समालोचना क गी

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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सदभ सकत

बम कित कता प न 1 ह द क हाःय य यमयी क वता का

साःकितक ववचन

डॉ ान काश 04

2 वह वह 05

3 ह द सा ह य म हाःय रस डॉ बरसानलाल चतवद 62 4 ाचीन एव अवाचीन व दक सा ह य

म भ त व बी क तनजा 120

5 रामायण का व यापी य व ल लन साद यास 05 6 वा मीक रामायण डॉ रामच ि वमा शा ी 37 7 वह वह 39 8 वह वह 40 9 वह वह 43 10 वह वह 44 11 वह वह 73 12 वह वह 83 13 वह वह 84 14 वह वह 95 15 वह वह 113 16 वह वह 114 17 वह वह 134 18 रामायण मलकथा डॉ राहल 242 19 वा मीक रामायण डॉ द नदयाल ग 05 20 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 225 21 वह वह 226 22 वह वह 227 23 वह वह 230 24 वह वह 241 25 वह वह 242 26 वह वह 252 27 वह वह 252 28 वह वह 253

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 29 महाभारत (आर यक पव) डॉ प ौीपाद सातवलकर 254 30 महाभारत चबवत राजगोपालाचाय 06 31 महाभारत आचाय उमश शा ी 15 32 सभा षत द प च िग वाणय 03 33 वह वह 34 34 वह वह 35 35 वह वह 36 36 वह वह 45 37 वह वह 51 38 वह वह 52 39 वह वह 53 40 वह वह 86 41 वह वह 131 42 सभा षत तर डगी म कराज शमा 10 43 वह वह 11 44 वह वह 12 45 वह वह 13 46 वह वह 82 47 वह वह 89 48 वह वह 124 49 वह वह 138 50 वह वह 258 51 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 02 52 वह वह 14 53 वह वह 19 54 वह वह 20 55 वह वह 21 56 वह वह 22 57 वह वह 25 58 वह वह 25 59 वह वह 27 60 वह वह 28

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 61 पचतऽ और हतोपदश च िग वाणय 35 62 वह वह 36 63 वह वह 42 64 वह वह 44 65 वह वह 45 66 वह वह 47 67 वह वह 48 68 वह वह 50 69 वह वह 51 70 वह वह 64 71 वह वह 67 72 वह वह 72 73 वह वह 76 74 वह वह 78 75 वह वह 84 76 वह वह 85 77 वह वह 120 78 वह वह 132 79 वह वह 145 80 वह वह 236 81 वह वह 237 82 वह वह 251 83 वह वह 270 84 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 136 85 वह वह 178 86 वह वह 178 87 वह वह 179 88 वह वह 179 89 वह वह 180 90 वह वह 180 91 वह वह 181 92 वह वह 181

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

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249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 93 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 182 94 वह वह 196 95 वह वह 198 96 वह वह 199 97 वह वह 276 98 वह वह 276 99 वह वह 277 100 वह वह 304 101 वह वह 306 102 वह वह 307 103 वह वह 329 104 वह वह 330 105 वह वह 331 106 वह वह 332 107 वह वह 333 108 वह वह 336 109 वह वह 336 110 वह वह 337 111 वह वह 338 112 वह वह 339 113 वह वह 339 114 वह वह 340 115 वह वह 340 116 वह वह 344 117 वह वह 346 118 वह वह 348 119 वह वह 363 120 वह वह 364 121 वह वह 365 122 वह वह 366 123 वह वह 367 124 वह वह 387

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 125 स पण सरसागर सरदास डॉ कशोर लाल ग 387 126 वह वह 388 127 वह वह 392 128 वह वह 430 129 वह वह 440 130 वह वह 490 131 वह वह 493 132 वह वह 502 133 जायसी सा ह य और िस ा त ौी मक द 41 134 वह वह 68 135 वह वह 90 136 वह वह 102 137 वह वह 222 138 वह वह 321 139 वह वह 333 140 प ावत ौी वासदव शरण अमवाल 25 141 वह वह 30 142 वह वह 35 143 वह वह 40 144 वह वह 96 145 वह वह 99 146 वह वह 105 147 प ावत क का य सःकित और दशन डॉ ा रका साद 549 148 वह वह 550 149 वह वह 554 150 वह वह 558 151 वह वह 560 152 वह वह 580 153 वह वह 590 154 वह वह 592 155 वह वह 599 156 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 19

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

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249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 157 का य का साःकितक अ ययन डॉ भीमिसह 24 158 वह वह 35 159 वह वह 50 160 वह वह 90 161 वह वह 95 162 वह वह 96 163 जायसी मथावली राजनाथ शमा 118 164 वह वह 258 165 वह वह 276 166 वह वह 289 167 वह वह 290 168 वह वह 339 169 वह वह 340 170 वह वह 364 171 वह वह 371 172 वह वह 376 173 वह वह 378 174 वह वह 379 175 वह वह 395 176 वह वह 552 177 वह वह 553 178 वह वह 555 179 वह वह 556 180 वह वह 557 181 वह वह 558 182 वह वह 560 183 वह वह 561 184 कबीरणक ववचन डॉ भीमिसह 09 185 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 93 186 वह वह 94 187 वह वह 95 188 वह वह 136

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 189 कबीर य व कित व एव िस ात डॉ सरनामिसह शमा 137 190 वह वह 138 191 वह वह 139 192 वह वह 140 193 वह वह 141 194 वह वह 162 195 वह वह 163 196 वह वह 167 197 वह वह 168 198 वह वह 172 199 वह वह 173 200 वह वह 203 201 वह वह 204 202 वह वह 205 203 वह वह 212 204 वह वह 216 205 वह वह 245 206 वह वह 297 207 वह वह 298 208 वह वह 299 209 वह वह 328 210 वह वह 371 211 सत कबीर का समाज दशन डॉ रजनीवाला अमवाल 146 212 वह वह 148 213 वह वह 153 214 वह वह 163 215 वह वह 166 216 वह वह 167 217 वह वह 168 218 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 26 219 वह वह 40 220 वह वह 46 221 वह वह 56

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

249 वह वह 62 250 वह वह 63 251 वह वह 252 वह वह 90 253 वह वह 91

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बम कित कता प न 222 कबीर और अखा का जीवन दशन डॉ व स 60 223 कबीर क का य प डॉ हजीर मह मद 01 224 वह वह 12 225 वह वह 16 226 वह वह 20 227 वह वह 28 228 वह वह 48 229 वह वह 58 230 कबीर और तकाराम का सामा जक दशन डॉ ऽवणी नारायण सोनोन 16 231 वह वह 17 232 वह वह 514 233 वह वह 520 234 वह वह 522 235 वह वह 523 236 वह वह 526 237 कबीर मथावली डॉ यामस दरराज 23 238 वह वह 28 239 वह वह 44 240 वह वह 48 241 वह वह 55 242 कबीर क आलोचना डॉ धमवीर 25 243 वह वह 50 244 वह वह 66 245 वह वह 72 246 वह वह 77 247 वह वह 92 248 म यकालीन ह द का य म भारतीय

सःकित मदन गोपाल ग 50

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