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1 तरंगिणी 2020 — भारतीय वियालय अल घुा भारतीय वियालय अल घ 2020-21

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  • 1

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    2020-21

  • 2

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    भारतीय विद्यालय अल घबु्रा के हिन्दी-विभाग द्िारा ‘तरंगगणी’ पत्रिका िर िर्ष प्रकाशित की जाती िै। इस कहिन दौर में भी हिदंी के विद्यागथषयों और शिक्षकों के अथक प्रयास के कारण पत्रिका का प्रकािन संभि िो पाया िै। इस पत्रिका के द्िारा नन्िें-मनु्ने रचनाकारों को अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने का अिसर शमलता िै। हिन्दी विभाग इन रचनाकारों को इस पत्रिका द्िारा एक मंच प्रदान करता िै। मैं हिन्दी विभाग के इस कायष की सरािना करता ि ूँ और ‘तरंगगणी’ के नए अंक के प्रकािन के शलए बधाई देता ि ूँ।

    िभुकामनाओं सहित, डॉ० पी मोिम्मद अली संस्थापक भारतीय विद्यालय अल घबु्रा ओमान

    संस्थापक की कलम से......

  • 3

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    ‘तरंगगणी’ के नए संस्करण के शलए ‘भारतीय विद्यालय अल घबु्रा’ के समस्त पररिार को बधाई देता ि ूँ । ‘तरंगगणी’ पत्रिका वपछले कई िर्ों से प्रकाशित की जा रिी िै। यि पत्रिका विद्यागथषयों को मौशलक लेखन के शलए प्रोत्साहित करती िै। आज के विद्याथी िी कल के रचनाकार िैं। इस मशु्ककल घड़ी में भी विद्यागथषयों ने बड़ ेिी उत्साि से इस पत्रिका की रचना में अपना योगदान हदया िै । 2020 एक अनोखा िर्ष रिा िै । तरंगगणी पत्रिका िर बार की तरि सभी के शलए कुछ न कुछ नया लेकर आई िै । आिा करता ि ूँ कक बच्च ेऔर बड़ ेसभी इसे पढेंगे और आनंद की अनभु तत करेंगे । िभुकामनाओं सहित, अिमद रईस अध्यक्ष भारतीय विद्यालय अल घबु्रा ओमान

    अध्यक्ष की कलम से......

  • 4

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मझु े ‘तरंगगणी’ के निीनतम संस्करण को आपके समक्ष प्रस्ततु करने में िाहदषक प्रसन्नता िो रिी िै। ‘भारतीय विद्यालय अल घबु्रा’ द्िारा प्रकाशित ‘तरंगगणी’ पत्रिका इस बार भी ढेर सारी कविताएूँ और किातनयाूँ लेकर आई िै। ये रचनाएूँ िमारे विद्यालय के छाि और छािाओं द्िारा रगचत या संकशलत िैं। मझु े बिुत गिष िै कक विद्यागथषयों न ेबढ़-चढ़ कर अपना योगदान हदया । तरंगगणी के प्रकािन का कायष हिन्दी- विभाग कई िर्ों से सचुारु रूप से करता आ रिा िै। इस कायष के शलए हिन्दी-विभाग बधाई का पाि िै। िभुकामनाओं सहित, पापड़ी घोर् प्रधानाचायाष भारतीय विद्यालय अल घबु्रा ओमान

    प्रधानाचायाा की कलम से......

  • 5

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    एक बार किर से ‘तरंगगणी’ का नया अंक बनकर तैयार िै। िमारे विद्यालय के विद्यागथषयों न ेबढ़-चढ़कर इस पत्रिका के शलए अपनी रचनाएूँ दीं और िमने सभी रचनाओं को इस पत्रिका में प्रकाशित करने का प णष रूप से प्रयत्न ककया िै। यि पत्रिका केिल विद्यागथषयों के रचना-कौिल में तनखार िी निी ंलाती बश्कक उनका ज्ञानिधषन भी करती िै। मैं चािता ि ूँ कक सभी विद्याथी इस पत्रिका का प रा लाभ उिाएूँ। इस पत्रिका के सिल प्रकािन के शलए हिन्दी विभाग का प्रयत्न सरािनीय िै।

    िभुकामनाओं सहित, जी. श्रीकुमार

    उप-प्रधानाचायष

    भारतीय विद्यालय अल घबु्रा

    ओमान

    उप प्रधानाचाया की कलम से......

  • 6

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    तरंगगणी पत्रिका का निीन संस्करण आपके समक्ष िै। ितषमान पररश्स्थतत जैसी िै िमने ऐसी कभी ककपना भी निीं की थी। ऐसे में तरंगगनी को छापना एक बिुत बड़ी चनुौती थी। िम इस िर्ष ‘तरंगगणी’ ‘ई’ पत्रिका के रूप में प्रकाशित करने का सािस कर रिे िैं। जो छािों और अध्यापकों के सतत प्रयासों की सरािनीय पररणतत िै। पत्रिका के निीन संस्करण को सामने लाने में श्जन्िोंने भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सिायता की मैं उनकी हृदय से आभारी ि ूँ।

    पत्रिका की बेितरी के शलए आपके सझुािों की िमें प्रतीक्षा रिेगी।

    सुनीता कुमार चौधरी हिन्दी विभागाध्यक्षा भारतीय विद्यालय अल घुब्रा ओमान

    विभािाध्यक्षा की कलम से......

  • 7

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    हमारी रचनाएँ

  • 8

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    सिेरा

    स रज तनकला शमटा अूँधेरा

    देखो बच्चों िुआ सिेरा

    आया मीिी ििा का िेरा

    गचडड़यों ने किर छोड़ा बसेरा

    जागो बच्चों अब मत सो

    इतना सुंदर समय न खो

    आयुष्मान मश्कलक

    3 सी

    सुबि

    स रज तनकला , िुआ सिेरा ककरणें ि टी, शमटा अूँधेरा

    जागो बच्चों नींद भगाओ तककया कंबल द र िटाओ

    झटपट िो जाओ तैयार

    मम्मी पापा से कर लो प्यार

    देखो कुछ न जाना भ ल बस पकड़ो और जाओ स्क ल ।

    जुमाना मुस्तिा 6 एि

  • 9

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    रंग

    रंग-त्रबरंगी दतुनया में भांतत-भांतत के रंग,

    अलग-अलग प्रकार उसके अलग िी उसके ढंग,

    सात रंगों से बनता िै प्यारा इन्रधनुर्,

    सािन की िररयाली िै करती मन को खिु,

    आती िै जब िर्ाष नाच उिता िै मोर,

    िैलाकर अपने सतरंगी रंग घनघोर,

    रंगों में एक रंग िै सफ़ेद जो िै बड़ा कमाल,

    कभी िकके को गिरा कभी गिरे को िकका

    कर देता बेशमसाल,

    एक रंग बड़ा अजब किते िैं श्जसे काला, ककसी रंग में शमलता निीं अलग िी हदखता

    तनराला,

    काला रंग करता िै लोगों की सोच को तंग,

    न करो अपनी तुलना द सरों के संग,

    काला रंग िै ख बस रत न समझो इसे कलंक,

    सोच बदलो अपनी न कक त्िचा का रंग,

    काले गोरे का भेदभाि कटु सत्य िै समाज

    का,

    अतंमषन मनमोिक िै उसे सरािो, प्रकृतत के अनोखे रंगों को देखो और आनंद

    उिाओ।

    जुमाना बोिरा

    8 एफ़

  • 10

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    नन्िा-मुन्ना मेरा भाई

    छोटा सा िै मेरा भाई नन्िा–मुन्ना प्यारा सा।

    िूँसता िै िो, रोता िै िो सबको ख ब भगाता िै।

    प्यारा िै िो, न्यारा िै िो खेलता िै िो मेरे साथ।

    सबका िै लाडला िो

    नन्िा–मुन्ना मेरा भाई।।

    अतनकेत

    मैंने बनाया पिली बार केक बनाया

    आज मैंने पिली बार केक बनाया, सभी ने की मेरी बिुत बड़ाई मेरी मम्मी ने मुझ ेआटा हदया, और मैंने उसमें िक्कर शमलाई। अब मैंने बटर, बेककंग पाउडर, िनीला एसेंस और ट टी-फ्र टी शमलाई, किर उसे झटपट अिन में रखा। कुछ िी देर बाद बड़ी अच्छी खिुब आई, और मैंने मम्मी को ज़ोर से आिाज़ लगाई। केक बनकर िो गया तैयार। और देखने में लग रिा था बड़ा मजेदार।

    सोनाक्षी 5 जी

  • 11

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरी माूँ अपनी नींद को छोड़कर,

    सुलाया िमको अपने कंधों पर

    भीड़ में भी साथ चली,

    ना गगरने हदया किीं भी िमको।

    सफ़र ककतना भी कहिन िो श्ज़ंदगी में,

    साथ िोती िै मेरी माूँ,

    श्ज़ंदगी देने िाली भी िै माूँ

    और मेरी श्ज़ंदगी भी िै माूँ

    रूबन थॉमस

    4 बी

    भारतिासी मैं एक भारतिासी ि ूँ,

    उस पर अशभमान करने िाला,

    देि जो गणणत और िास्िों में अग्रण्य िै। देि जो िै ल डो, कबड्डी, ितरंज सभी खेलों

    का जनक।

    िम अनेकता में एकता पर यकीन रखने िाले

    सभी त्योिार साथ मनाते िैं।

    मुश्ककल चािे िों िज़ार,

    िम शमलकर करेंगे उनका सामना।

    मैं एक भारतिासी ि ूँ,

    उस पर अशभमान करने िाला।

    देिांक मुरली

    6 डी

  • 12

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरे शिक्षक

    िमारे प्यारे शिक्षक, सबका ज्ञान बढ़ाते िैं। सोिल सांइस, मैथ्स, इंश्ललि और हिन्दी िमें पढ़ाते िैं। म्य श्ज़क, आटष और पी टी पढ़ाकर िमें जीिन का आनंद हदलाते। पढ़ाना उनका िै एक गुण, श्जससे िमको गुणिान बनाते िैं। िमको सारे प्रकनों के उत्तर झटपट से बताते िैं।

    कोरोना के कारण िमारा स्क ल बंद िै , किर भी ऑनलाइन कक्षा के कारण िमारे शिक्षक िमारे संग िैं। पुराने हदन किर आएूँगे और िम सब स्क ल जाएूँगे।

    अक्षज काटके

    3 डी

    प्रकृतत

    ककतनी सुन्दर िै यि प्रकृतत

    यि िै ईकिर की अप िष सशृ्ष्ट

    आसमान में रंगों का खेला।

    पेड़-पौधों में िल-ि लों का मेला

    नहदयों में पानी की धारा

    पि-ुपक्षी के मधरु स्िर

    पिाड़ से आती झरने की धारा।

    जो िमारे मंन को प्यारा

    हदशिता शसन्िा

    5 डी

  • 13

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    स्क ल

    स्क ल िि जगि िै जिाूँ िम पढ़ते िैं।

    स्क ल िि जगि िै जिाूँ िम खेलते िैं। स्क ल िि जगि िै जिाूँ िम नए दोस्त बनाते

    िैं। स्क ल िि जगि िै जिाूँ िमें बिुत अच्छे अध्यापक और अध्यावपकाएूँ पढ़ाते िैं।

    इस समय िम सब अपने स्क ल को बिुत याद करते िैं और चािते िैं कक िि जकदी खलु जाए।

    मैं बिुत गिष से किता ि ूँ कक मैं भारतीय विद्यालय अल घुब्रा में पढ़ता ि ूँ।

    श्जष्नु टोपरानी

    4 एफ़

    माूँ

    माूँ भगिान का प्यारा तोिफ़ा िै, मेरी माूँ बिुत प्यारी िै और हदल की बिुत

    साफ़ िै।

    िि मेरे शलए बिुत अच्छा खाना बनाती िै।

    रोज़ पढ़ाई में मेरी मदद करती।

    मेरी माूँ मेरा आदिष िै।

    िि मुझ ेसमय का मित्त्ि समझाती िै।

    मेरी माूँ मेरी सबसे अच्छी दोस्त िै।

    अन प सोनी

    5 डी

  • 14

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    गोल तोता

    मेरा प्यारा तोता गोल

    बातें करता इतनी,

    क्या मैं बोल ूँ।

    िरी शमचष और अमरूद िै खाता

    हदन-भर टर–टर गाना गाता।

    हदन-भर घर में िुदक-िुदक

    इधर-उधर नाचता मूँडराता।

    घर में सबका प्यारा िो,

    मेरी आूँखों का तारा िो।

    िाततमा अतिर असंारी

    3 एफ़

    मम्मी–पापा की परी

    मैं ि ूँ मम्मी–पापा की प्यारी

    मैं ि ूँ सबकी राजदलुारी

    भाई िै मेरा बिुत ितैान

    पर बस्ती िै उसमें मेरी जान।

    मम्मी–पापा घ माने ले जाते

    ढ़ेर सारी आइसक्रीम णखलाते

    िमारी पसंद के णखलौने हदलाते

    ढेर सारा प्यार िम पर बरसाते।

    भगिान ने हदया प्यारा पररिार

    शमलें मम्मी–पापा यिी बार–बार

    ऐसा िै मेरा पररिार

    श्जसमें खशुियाूँ िैं बेिुमार

    मेरे जीिन का आधार

    मेरा प्यार मेरा पररिार।

    अततका श्रीिास्ति

    3 एफ़

  • 15

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मिात्मा गाूँधी मिात्मा गाूँधी एक मिान स्ितंिता सेनानी थे। उनका प रा नाम मोिनदास करमचदं गाूँधी था। मिात्मा गाूँधी सत्य और अहिसंा के पुजारी थे। उनका जन्म 2 अक्त बर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में िुआ था और मतृ्य ु30 जनिरी 1948 में िुई थी। गाूँधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनैततक गुरू मानते थे।

    मुझ े गिष िै कक मैंने गाूँधी जी के देि में जन्म शलया।

    लक्षण्याश्री

    3 एि

    सच्चाई से ना डरो

    गाूँधीजी के पथ पर चलो ।

    सच्चाई िमारा वििरे् गुण िै ।

    झ ि का सिारा न लो।

    सच्चाई से ना डरो ।

    जीतना िै िमें सच्चाई पर चल कर ।

    परीक्षा पररभावर्त निीं करती कक

    आप कौन िैं ।

    यि चररि िी िै जो िमें पिचान देता िै ।

    सच्चाई से ना डरो ।

    खदु पर विकिास रखो ।

    और किहटनाइयों से ना डरो । एक झ ि को तछपाने के शलए िज़ार झ ि बोलने से बेितर िै, सच्चाई के रास्ते पर चलो, सच्चाई से कभी न डरो।

    िौयष कराट

    5 डी

  • 16

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    गचडड़याघर

    बाबा गचडड़याघर ले जाना

    िाथी, चीते, िरे हदखाना ||

    प्यारी गचडड़यों का सुन्दर गाना

    ििाूँ ले जाकर िमें सुनाना |

    यि लंग र िै, यि िै बन्दर

    सभी बंद िैं वपजंड़ ेके अन्दर

    िमको िै इनसे बततयाना

    बाबा गचडड़याघर ले जाना ||

    यि हिरन िै प्यारा-प्यारा

    लेककन लगता िै दणुखयारा

    िम चािते उसे मनाना

    बाबा गचडड़याघर ले जाना ||

    हदव्यश्री

    6 ई

    मज़ेदार सिाल और उनके जिाब

    प्रकन – कफ़कमी शसतारों को क ल क्यों माना जाता िै?

    उत्तर – क्योंकक उनके बिुत से िैन िोते िैं |

    प्रकन – त्रबना पानी िाला समुर किाूँ िै?

    उत्तर – नक़्ि ेमें | प्रकन – यहद आप काले पानी में सफ़ेद टोपी िें कते िैं तो क्या िोता िै?

    उत्तर – टोपी गीली िो जाती िै | प्रकन – परेड की िुरुआत में आप क्या देखते िैं?

    उत्तर – अक्षर ‘प’ | प्रकन – यहद एक मुगाष छत पर अडंा देता िै तो क्या िोता िै? उत्तर – कुछ निीं िोता क्योंकक मुगाष अडं ेनिीं देता |

    आदिष राज

    6 ई

  • 17

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    जीिन कभी रुक निीं सकता

    चािे ककतनी भी कहिन डगर िो चािे काूँटे और ि ल रािों में त्रबखरे िो

    ओ मेरे िीर सेनानी ! त थककर कभी बैि निीं सकता चलते रिना िै रीत जीिन की , जीिन कभी रुक निीं सकता।

    चला था त अकेला अपने सपनों को लेकर बढ़ते िी जाना िै प्रगतत के इस पथ पर

    ओ मेरे िीर सेनानी ! त अपने कदम कभी रोक निीं सकता

    चलते रिना िै रीत जीिन की , जीिन कभी रुक निीं सकता।

    मन में दृढ़ तनकचय िो तो क्या िो निीं सकता खड़ ेिुए पत्थर से झरना भी िै बि सकता

    ओ मेरे िीर सेनानी ! त अपने लक्ष्य का पथ कभी छोड़ निीं सकता

    चलते रिना िै रीत जीिन की , जीिन कभी रुक निीं सकता।

    कौन िै ऐसा जो कभी चलते - चलते गगरा निीं

    पर तनश्कचत िार उसी की िै जो गगरकर कभी उिा निीं

    ओ मेरे िीर सेनानी ! पराजय का डर तुझ ेकभी डरा निीं सकता

    चलते रिना िै रीत जीिन की , जीिन कभी रुक निीं सकता।

    आिाओं की ककरणों को लेकर आगे त बढ़ता चल

    जीिन की इस राि पर कभी ध प कभी छाूँि को लेकर चला चल

    ओ मेरे िीर सेनानी ! त अपने अटल विकिास को कभी हिलने निीं दे सकता

    चलते रिना िै रीत जीिन की , जीिन कभी रुक निीं सकता।

    अनीि सेि 9 बी

  • 18

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    माूँ िमारी िर मुश्ककल की दिा िोती िै माूँ

    मारकर उन्िीं िाथों से गले लगा लेती िै माूँ !

    िमारी आूँखों के आूँस को

    अपनी आूँखों में समा लेती िै माूँ !

    अपने िोिों की िूँसी को

    िम पर लुटा देती िै माूँ !

    िमारी खिुी में िाशमल िोकर

    अपने सारे गम भ ल जाती िै माूँ !

    जब िमें िोकर लगे

    तुरंत आ जाती िै माूँ !

    चािे ककतनी भी थकी िो

    िर-पल ध्यान रखती िै माूँ !

    अपने प्यार भरे िाथों से

    िमें खाना णखलाती िै माूँ !

    ऐसी िी िोती िै माूँ

    इतनी अच्छी िोती िै माूँ !

    ऐसी माूँ को ित - ित नमन !

    किेता

    7 सी

    गचडड़या रानी

    गचडड़या रानी, गचडड़या रानी

    तुम िो पेड़ों की रानी ।

    सुबि सिेरे उि जाती िो

    न जाने क्या - क्या गाती िो ।

    क्या तुम भी पढ़ने को जाती िो

    या नौकरी करने को जाती िो ।

    िाम से पिले आ जाती िो

    बच्चों के शलए दाना लाती िो ।

    भर - भर चोंच णखलाती दाना

    च ूँ - च ूँ चिक सुनाती गाना ।

    ज़ुनेरा फ़ाततमा

    4 ए

  • 19

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरे वपताजी

    मुझ ेखिुी िै कक आप मेरे वपता िैं, आप करोड़ों में एक िैं। आप िमेिा मुझ ेअच्छी बातें बताते िैं, और मुझ ेिमेिा समझाते िैं, मेरे प्यारे वपताजी। मुझ ेखिुी िै कक आप मेरे वपता िैं, यि मेरी खिुनसीबी िै कक आप मेरे साथ िैं, आप िमेिा मेरा ख्याल रखते िैं। आप िी िैं जो तनकछल प्रेम मुझसे करते िैं, मेरे प्यारे वपताजी। मुझ ेखिुी िै कक आप मेरे वपता िैं, मेरी खिुी का आप ख्याल रखते िैं, मैं बड़ा िो कर किीं भी चला जाऊूँ , कुछ भी बन जाऊूँ , आप िमेिा मेरे साथ िोंगे मेरे प्यारे वपताजी। आपके मागषदिषन से िी मैं सिी राि चनु पाऊूँ गा, आपके त्रबना कुछ भी निीं बन पाऊूँ गा। मुझ ेखिुी िै कक आप मेरे वपता िैं, जीिन में आगे बढ़ने का सपना निीं देख पाता। मेरे प्यारे वपताजी। मुझ ेखिुी िै कक आप मेरे साथ िैं, आपके प्यार में िल-ि ल कर मेरा जीिन

    सुधरेगा, आप जैसा कोई और निीं िै इस दतुनया में, जीिन में आगे बढ़ना मैंने आप से िी सीखा िै, मेरे प्यारे वपताजी और मैं ि ूँ आपका प्यारा बेटा। रोहित रामचरंन 7 ई

  • 20

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    माता- वपता जो िमें शसखाते िैं और िमें सिषशे्रष्ि बनाते

    िैं,

    िमारे माता-वपता सबसे अच्छे िैं,

    जो िमारा ध्यान रखते िैं और,

    िम पर अपना प्यार लुटाते िैं।

    िमारे माता वपता सबसे अच्छे िैं,

    जो िमें सुधारने के शलए डाूँटते िैं और

    िमें अच्छा इन्सान बनात ेिैं।

    िमारे माता-वपता सबसे अच्छे िैं,

    जो िमारे प्रथम शिक्षक िैं,

    और श्जन्िें िम सबसे अगधक सम्मान देते िैं।

    िमारे माता वपता सबसे अच्छे िैं।

    अक्षज आदिष उन्नी

    6 ई

    माूँ

    स रज ड ब रिा िै,

    रात तघर आई िै,

    तारे चमक रिे िैं,

    अूँधेरा बढ़ रिा िै,

    माूँ और मैं साथ पुल पर खड़ ेिैं।

    मैं नीच ेदेखती ि ूँ,

    िमारी परछाईं धुधंली िोती जा रिी िै,

    माूँ का िाथ मेरे िाथों में िै,

    उन िाथों की कोमलता सुक न हदलाती िै,

    मैं सुरक्षक्षत ि ूँ यि एिसास हदलाती िै।

    कौथर

    7 एफ़

  • 21

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    पेड़

    मैं पिु पक्षक्षयों का घर ि ूँ ।

    मैं िररयाली देने िाला ि ूँ ।

    मैं तुम्िें ि ल और िल देता ि ूँ ।

    मैं िी तुम्िें स रज की

    किोर ककरणों से बचाता ि ूँ ।

    मैं तुम्िारा दोस्त ि ूँ और मुझ ेआिा िै

    कक तुम मुझ ेकभी निीं काटोगे ।

    िंशसनी प्राणेि राि

    4 ए

    नया सिेरा

    स रज तनकला , रोिनी छाई

    द र िुई रात अूँगधयारी ।

    पिषत बादल नहदयाूँ झरने

    सब पर छाई स रज की ककरणें ।

    पंछी चिचिाकर बोले

    आलस छोड़कर तरोताज़ा िोले ।

    नया सिेरा नई सुबि यि

    आिा की नई ककरण यि ।

    नए हदन की िुरुआत करें िम

    प रा िर एक काम करें िम ।

    स रज की ककरणों से िी तो

    चलती िै यि सशृ्ष्ट सारी ।

    देखो - देखो िल - ि ल सारे

    कैसी छाई िररयाली प्यारी ।

    िेदांत संदीप

    7 डी

  • 22

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    छोटी गचडड़या

    आई-आई गचडड़या आई

    मेरी णखड़की पे की, उसने ख ब ढींटाई ।

    तभी ककसी ने

    ज़ोर से आिाज़ लगाई

    गचडड़या रानी तब गचगचयाई।

    पंख िैलाए जकदी भागी ।

    अब सोच में ड बी मैं

    क्या करूूँ जो गचडड़या आये ?

    रुआूँसा सा मुूँि बनाये

    लौट रिी थी मैं

    तभी गचडड़यां चिचिायी

    आई-आई गचडड़या आई ।

    सुन्दर-सुन्दर पंख िैं इसके

    इंरधनुर् के जैसे णझलशमल

    अब न जाने द ूँगी उसको

    बातें करूूँ गी उससे हिलशमल।

    अहदतत कंि

    7 डी

    मेरी टीचर

    मेरी टीचर प्यारी-प्यारी बातें करती न्यारी-न्यारी ll

    पाििाला जब भी मैं जाता l उनको देखकर मन मेरा िर पल मुस्काता ll

    मुझ ेशसखाती अगें्रज़ी भार्ा l िर पल जगती मन में नई आिा ll

    िोर करें िम बच्च ेतो प्यार से डाूँटती िै l थोड़ी देर में किर ख ब िूँसाती िै ll

    मेरी टीचर प्यारी-प्यारी l लगती िि जैसे माूँ िो मरेी II

    फ़लक परमार

    5 ई

  • 23

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरा देि

    एक देि िै मेरा देि श्जसका नाम िै भारत,

    यि देि िै अनोखा किलाता िीरों का देि,

    मुझ ेजान से भी प्यारा िै, अपना देि |

    ततरंगे झंड ेकी आन-बान और िान सदा रख ूँगा,

    दकुमन की बुरी नज़र से सदा बचा के रख ूँगा,

    मुझ ेजान से भी प्यारा िै अपना देि |

    खिुिाल रिें सब लोग यिाूँ,

    दुुःख से ककसी का नाता न िों जिाूँ,

    मुझ ेजान से भी प्यारा िै अपना देि |

    तनहिलेि

    5 ई

    मेरा बाग

    मेरे बाग में ि ल णखले िैं

    कली कली मुसकाई

    रंग त्रबरंगी तततशलयाूँ देखो

    ि लों पर मूँडराई,

    गीत गुनगनुाती ििा मंद बिती,

    धनु मधरु मन भाई,

    आनंद िन घन बरसत,

    चारों ओर बिार िै छाई,

    डाल-डाल पर क के कोयल,

    गाए मैना और गौराई,

    भांतत-भांतत की रस-धार यिाूँ,

    तन-मन को िरर्ाई ।

    आयाष अशमत पराड़कर

    6 एि

  • 24

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरी माूँ

    माूँ मेरी, त ककतनी प्यारी

    ककतनी सुंदर ककतनी न्यारी

    सुबि सिेरे मुझ ेउिाती

    शििम कि कर, मुझ ेजगाती

    स्िाहदष्ट भोजन रोज़ कराती

    गिृ कायष भी प रा करिाती

    ििद से मीिे बोल िैं तेरे

    शमची से तीख़ी तेरी डाूँट

    अच्छा-बुरा मुझ ेबताती

    सबकी मदद करना शसखलाती

    भालयिाली ि ूँ मेरे पास िै त

    ईकिर का कीमती िरदान िै त

    शििायाष ििांक

    4 सी

    जल का मित्ि

    मैं ि ूँ पानी की एक ब ूँद

    मुझसे िी तो जीिन िै।

    त्रबन पानी कोई जी ना पाए

    किर क्यों पानी व्यथष बिाये।

    किता ये धरती का भ गोल िै

    िर ब ूँद पानी की अनमोल िै।

    एक बार सोच के देखो ज़रा

    क्या जल त्रबन तुम जी पाओगे

    जीिन का आधार जल िै

    जल िै तो कल िै।।

    प्रीिा गुजराती

    4 जी

  • 25

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरी बिन

    देखो आई, देखो आई

    मेरे घर एक परी िै आई

    आसमान से आई िै

    छोटी सी और प्यारी सी

    िूँसती-रोती और सो जाती

    मुझ ेदेख िि सदा मुस्काती

    िम सब की िै प्यारी गुडड़या

    परीस्तान से उतरी जैसे एक परी

    देखो आई, देखो आई

    मेरे घर एक परी िै आई।

    अनन्या मकिाणा

    3 ए

    बाररि

    बाररि आई, बाररि आई

    गमी से मुश्क्त पाई।

    सब बच्च ेबाररि में खेलने आए

    रंग त्रबरंगी ख बस रत छतररयाूँ लाए।

    आकाि में बादल छाए

    त्रबजली चमकी, आूँधी-त िान आए।

    बाररि में मेढक टराषए

    गरम-गरम पकौड़ े खाए।

    बाररि सब बच्चों के मन को भाए

    यि खशुियाूँ िी खशुियाूँ लाए।

    अतनका प्रिान्त

    3 ए

  • 26

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    िीर शसपािी

    िम भारत के िीर शसपािी

    िम ना ककसी से डरत े

    आूँधी िो, त फ़ान िो,

    बाररि िो या आग िो

    सीमा पर डटे रिते

    दकुमन िो ककतना भी ताकतिर

    िम उस को ध ल चटाएूँगे

    शमट्टी में शमलाएूँगे

    ना झुके िैं, ना झुकें गे

    आगे बढ़ते जाएूँगे

    भारत की िान बढ़ाएूँगे ।

    कतनकका

    4 सी

    मेरा प्यारा टीिी

    मेरा प्यारा टीिी, मेरा प्यारा टीिी िमें बिुत कुछ शसखलाता और मनोरंजन भी करिाता िै

    लॉकडाउन के चक्कर में घर में िूँ स गए िम

    अब तो बािर की दतुनया यि टीिी िी हदखलाता िै

    मेरा प्यारा टीिी, मेरा प्यारा टीिी यि ना केिल मुझ ेपढ़ाता

    अवपतु नई-नई चीजें भी शसखलाता िै

    मेरा प्यारा टीिी, मेरा प्यारा टीिी

    वप्रिा डोगरा

    3 ए

  • 27

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    क्यों

    क्यों िै इस देि में इतनी नाइंसाफ़ी,

    क्यों िम एक द सरे को समझते िैं अलग।

    क्यों िम एकता और प्यार से निीं रिते,

    क्यों िम एक द सरे को धनी और गरीब किते।

    क्यों िम िैं लड़ते जंग एक द सरे के साथ,

    क्यों िैं िम निीं समझत ेएकता का पाि।

    क्यों िैं िमने ज़मीनों को बाूँटा,

    क्यों िैं िमने एक द सरे से ककया भेद-भाि।

    क्यों न आज िम इन सभी बातों का जिाब खोजें,

    क्यों न आज िम इस समस्या का िल तनकालें।

    क्यों न आज िम इस देि को

    एकता और भाईचारा का पाि पढ़ाएूँ,

    क्यों न आज िम एक िपथ लें,

    कक रिेंगे िमेिा, एकता और प्यार से

    और बनाकर रखेंगे इस देि को िमेिा आबाद।

    कबीर सेिी

    8 डी

    पेड़ लगाओ

    पेड़ लगाओ, पेड़ लगाओ िरा भरा जीिन बनाओ

    छाया ये िमको देते िैं िल ये िमको देते िैं

    बाढ़ से िमको बचाते प्रद र्ण को द र भगात े

    आओ िम पेड़ लगाएूँ जीिन को खिुब से मिकाएूँ

    अनुिा पररिार

    3 सी

  • 28

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    जीिन रुक निीं सकता

    काूँटे त्रबछे िों भले रािों में िे िीर! त डरना मत जीिन की इस कहिन डगर पर चलते रिना, रुकना मत।

    भीड़ न शमले तो अकेला चल सपनों को संग लेता चल बाधाओं से मत घबराना चलते रिना, रुकना मत।

    गगर-गगर के त संभलता चल िार को जीत बनाता चल डर-डर के त जीना छोड़ चलते रिना, रुकना मत।

    आिा का दीपक जलाए रख संघर्ष की आग में तपता चल खदु पर अटल विकिास रख चलते रिना, रुकना मत।

    युद्ध-भ शम में श्जस तरि तनडर निीं झुक सकता युग आये या युग जाए यि जीिन निीं रुक सकता |

    ऋतु श्रीिास्ति

    अध्यावपका

    शमिता

    आपका हदल सोने से बना िै,

    िि न कभी ब ढ़ा िोगा न मरेगा।

    आप िमेिा मेरे शलए बशलदान देते िैं,

    और मुझसे बिुत प्यार करते िैं।

    मैं आिा करती ि ूँ कक,

    िमेिा आपकी उम्मीद पर खरी उतरूूँ ,

    आपको िमेिा प्रसन्न देखने की

    प्राथषना मैं करती ि ूँ ।

    िवर्षता

    8 एफ़

  • 29

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    ग्रीष्म ऋतु

    देखो ध प िै कस के आई

    देखो गमी किर से लाई

    शमली आइसक्रीम भी खाने को

    तोड़ा किर भी गमी ने िमको

    बच्च ेख ब दौड़ लगाते

    उनके मन किर भी ना भर पात े

    गमी की ध प िै बड़ी कहिन

    किर भी लगती िै बड़ी िसीन

    खेल-क द और बिुत सारा खाना

    ग्रीष्म ऋतु िर साल आना

    अश्न्िता आदिष

    5 बी

    झंडा

    तीन रंग का अपना झंडा इसे ततरंगा किते िैं

    झंड ेके नीच ेहिलशमल िम सब बच्च ेरिते िैं

    हदल में खिुी मनाते िैं िम

    इसका गाना गाते िैं

    इस झंड ेपर बशल बशल जाते इसको िीि झुकाते िैं

    पागथषि

    3 ए

  • 30

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरी शमि ‘कलम’ आज मैंने अपनी कलम से प छा- क्या तुम मेरी शमि बनोगी, मेरे सुख-दखु बाूँटोगी

    िि बोली - िाूँ, बस एक िी ितष पर बन ूँगी, यहद तुम सच-सच बोलोगी और मन का सारा भेद खोलोगी

    मैंने भी किर िामी भर दी और बोली - िादा करती ि ूँ कभी न कुछ तछपाऊूँ गी हदल का राज़ बताऊूँ गी ।

    दोनों के बीच किर कोई न आया

    पर एक हदन, जब मैं कुछ शलख रिी थी कक अचानक सकुचा गई और शलखते-शलखते थम गई

    मेरी शमि ये भाूँप गई कक कोई तो बात िै जो उससे मैं कि निीं पा रिी ि ूँ

    िि बोली – “क्या तुम अपना िादा तोड़ रिी िो

    सािन

    ररमणझम-ररमणझम, टप-टप टप-टप,

    बरसा िै बाररि का पानी,

    बादल गरजा त्रबजली चमकी,

    यिी िै सािन की किानी ।

    छप-छप, छप-छप,

    बच्चों के पैरों की आिट,

    छतरी, बरसाती, मोजे, ज ते,

    िो गए गीले आ गया मज़ा ।

    तन्िी पािक

    6 ए

    मुझसे तुम कुछ तछपा रिी िो”

    मैंने किर खोला िर एक राज़

    जो तछपा रखा था हदल के अदंर और िाूँ … किर मैं शलखती चली गई, शलखती चली गई... और किर िम दोनों का साथ कभी ना छ टा।

    विनीता गौतम अध्यावपका

  • 31

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    गचडड़या रानी

    गचडड़या रानी, गचडड़या रानी

    किाूँ चली तुम किाूँ चली

    आई उड़कर पास मेरे तुम

    बोली गाना सुनाओ

    गाना सुनकर मेरा

    ची-ंची ं करके नाच उिीं

    नीले आसमान में किर

    अपने घर उड़ चली

    सानिी 3 सी

    काि मैं बड़ा भाई िोता

    काि मैं बड़ा भाई िोता तो भैया को मेरी सब बात माननी पड़ती

    और मैं भैया पर िुकुम चलाता ।

    काि मैं बड़ा भाई िोता तो मुझ ेिी नई साइककल शमलती

    और भैया को मेरी िी इस्तेमाल करनी पड़ती ।

    काि मैं बड़ा भाई िोता तो मुझ ेमोबाइल जकदी शमलता

    और भैया को मोबाइल देर से शमलता काि में बड़ा भाई िोता

    तो मुझ ेिी मम्मी के शलए चाय बनाने को शमलती

    और भैया को च किा छ ने की इजाजत निीं िोती ।

    काि मैं बड़ा भाई िोता तो भैया से ज़्यादा ताकतिर िोता

    और भैया को िर बार लड़ाई में िरा देता

    अतं में मैं यिी कि ूँगा कक

    काि मैं बड़ा भाई िोता तो मुझ ेभी भैया को दलुार करने का मौका

    शमलता ।

    अनीि मािेकिरी

    3 सी

  • 32

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    चंदा मामा

    चदंा मामा, चंदा मामा

    प्यारे-प्यारे चदंा मामा

    गोल-मटोल चंदा मामा

    सबको भाते चदंा मामा

    रात िोते िी आ जात े

    साथ तारे भी णझलशमलाते

    सुबि िोते िी चले जात े

    बोलो किर किाूँ तछप जाते

    मीिा-मीिा द ध देंगे

    आओ मेरे साथ खेलो

    तुम िूँस ेतो िम भी िूँसते

    तुम रोए तो िम रो देते

    चदंा मामा, चंदा मामा

    प्यारे-प्यारे चदंा मामा

    जेडन

    3 सी

    तततली रानी

    तततली रानी, तततली रानी

    मेरी प्यारी तततली रानी ।

    रंग-त्रबरंगी लाल, गुलाबी

    नीली-पीली, नीली-पीली ।

    पंख िैलाकर तुम लिराती

    बाग-बगीच ेमें उड़ती जाती ।

    ि ल-ि ल पर जाती िो

    गुनगुन-गुनगुन गाती िो ।

    मीिे रस को पीती िो

    मन को बिुत लुभाती िो ।

    पास मेरे आओ तुम

    दोस्त मेरी बन जाओ तुम ।

    तततली रानी, तततली रानी

    मेरी प्यारी, तततली रानी ।

    जेतनिा

    3 ए

  • 33

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मेरी प्यारी बिना

    हदखती िैं प्यारी पर िै बड़ी िैतान,

    जबसे मेरे जीिन में आयी िै कर हदया मुझ ेिैरान।

    एक आइसक्रीम के शलए प रे गाूँि से लड़ जाती िै, लेककन पानी का एक गगलास देने में उसकी जान

    तनकल जाती िै ।

    सलाि माूँगने के शलए पैर पकड़ लेती िै,

    पर मदद करने के शलए ख ब नखरे करती िै ।

    तेज़ आूँखें उसकी जेम्स बॉन्ड िै घर की,

    आते जाते सब के ऊपर नज़र रिती िै उसकी ।

    िै तो िरारती पर प्यार उसी पर आता

    िै तो धमाल पर उसके त्रबना मज़ा निीं आता।

    च िे से डर जाती िै पर मेरे शलए प रे जिाूँ से लड़ जाती िै,

    आलस कर जाती िै पर मेरे शलए हदन-रात एक कर देती िै ।

    बिना मेरी सीधी-सादी पर हदमाग से आइंस्टीन िै,

    एक पल में रोती तो द जे पल में िूँसती-

    िूँसाती िै । िम दोनों की जोड़ी बहढ़या मानो टॉम एंड

    जेरी िों , एक द जे के त्रबना रि निीं पाते एक जान िैं

    िम ।

    ये प्यार का बंधन िै गिरा, िै जन्म-जन्मांतर का ररकता ,

    एक द जे का साथ न छोड़ ेयिी प्राथषना ईकिर से रोज िैं करते ।

    िीरल कोटेचा

    10 ए

  • 34

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    मैं क्या बनना चािती ि ूँ

    पंछी बन कर आसमान में उड़ना चािती ि ूँ, क्षक्षततज को छ कर परखना चािती ि ूँ,

    मछली बन सागर की गिराई पाना चािती ि ूँ, मत रोको मत टोको मुझको,

    क्योंकक मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ।

    द सरों के ददष को समझना चािती ि ूँ, खदु अपनी गलततयों से सीखना चािती ि ूँ, गगरते को िाथ बढ़ा कर उिाना चािती ि ूँ,

    और इसमें कुछ गलत निीं, क्योंकक मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ।

    प्यार के दो िब्दों को मरिम बनाना चािती ि ूँ, मुसीबत के मारों के काम आना चािती ि ूँ, बिते िुए आूँसुओं को रोकना चािती ि ूँ, ककसी को ये िक निीं कक मुझ ेरोके,

    क्योंकक मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ।

    मज़िब के बंधनों को तोड़ना चािती ि ूँ, मानिता को अपनाना चािती ि ूँ,

    हदलों से निरत को शमटाना चािती ि ूँ, मत रोको मुझ ेआगे बढ़ने दो,

    क्योंकक मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ।

    मैं बसंत बनना चािती ि ूँ,

    प्रद र्ण मकु्त सगुश्न्धत पिन बनना चािती ि ूँ, पतझड़ों का अतं बनना चािती ि ूँ,

    मैं श्जस राि पर चल पड़ी ि ूँ न मोड़ो उसे, क्योंकक मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ।

    विकि को िांतत का सन्देि देना चािती ि ूँ, भाईचारे की एक शमसाल बनना चािती ि ूँ, िसुधिै कुटुम्बकम का मंि बनना चािती ि ूँ,

    मुझ ेउड़ने दो खलेु आकाि में, क्योंकक मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ। िाूँ, मैं एक नेक तनिान बनना चािती ि ूँ।

    जुमाना बोिरा

    8 एफ़

  • 35

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    जीिन निी ंरुक सकता

    घर की छत पर खड़ी िुई मैं स याषस्त को तनिार रिा थी । मन िी मन कुछ गुन रिा थी सपनों को मैं बुन रिा थी ।

    नभचरों की रेखा, ध शमल िोती जाती थी

    इंरधनुर्ी नभ में , काशलमा िैलती जाती थी। तभी आकाि में, हटमहटमाए तारे णझलशमल

    बीच उनके झाूँक रिा था िशि , ककतना सौम्य ककतना िीतल।

    ( तभी अतंमान से एक आिाज़ आती है )

    इस कोरोना के आने से लॉकडाउन के िोने से

    क्या जीिन कभी रुक सकता िै ? जीिन निीं रुक सकता िै, जीिन तो चलता रिता िै।

    ( रात बीतती है , सूरज की ककरणें सुबह का आिाज़ करती हैं )

    स योदय के िोने पर नील गगन में पक्षी उड़त ेउनके मीिे-मीिे स्िर, चारों ओर िैं ग ूँजत ेछत पर आते, दाना खाते, पानी पीत े

    जीिन तो चलता रिता िै , जीिन निीं रुक सकता िै।

    तुलसी के पौधे से, माटी की खिुब आती िै

    माूँ प्यार से मुझ ेजगाती, कानों में रस घुलता िै

    माूँ की रसोई की गंध, मुझको ललचा जाती िै

    घर सारा सुगश्न्धत िोता िै, तब लगता िै जीिन निी ंरुक सकता िै।

    घर में शििुओं की ककलकारी किीं ल डो, किीं साूँप सीढ़ी किर ग ूँजती िूँसी-हििोली

    घर सारा आनंहदत िोता िै , तब लगता िै जीिन निीं रुक सकता िै।

    मोबाइल की घंटी जब बजती, वप्रयजनों से

    बातें िोतीं । माूँ की आूँखों में ममता छलकती, स्पिष में

    गरमािट िोती। िर्ष का अनुभि तब िै िोता , अपनों का

    प्रेम जब िै शमलता । तब लगता िै जीिन निी ंरुक सकता िै।

    माूँ से जब िरमाइि करते

    घर में स्िाहदष्ट व्यंजन पकते मात-वपता प्रेम से िमें णखलाते

    आनंद िी आनंद िोता िै, तब लगता िै जीिन निीं रुक सकता िै।

    सब सुबि- सुबि योगासन करते ऑनलाइन िम पाि िैं पढ़ते

    कोई सुंदर गचि बनाता , कोई गाता, कोई

  • 36

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    पर लोगों का चलना निीं रुकता जगि-जगि लंगर िैं लगत े, कोई भ खा निीं िै रिता दखु-सुख सब अनुभि िोता िै , तब लगता िै जीिन निीं रुक सकता।

    अमािस्या जब आती िै, अंधकार छा जाता िै प णणषमा के आते िी, उश्जयारा िो जाता िै जब इस कयामल नभ पर, चाूँद चाूँदनी िैलाता िै देख प्रकृतत की यि गतत , तब लगता िै जीिन निीं रुक सकता िै। जब तक धमतनयों में रक्त िै बिता सांसों का स्पंदन माल म िै देता मानि दुुःख-ददष से िै तड़पता हदल तेज़ धड़कता िै, तब लगता िै जीिन निीं रुक सकता िै। विपदा ककतनी भी आए, मनुष्य न िार मानते िैं 'िसुधैि कुटंुबकम' के स्िर गुंजायमान िोते िैं पररितषन सशृ्ष्ट का तनयम िै , सब आगे बढ़ते जाते िैं तब लगता िै जीिन न रुका िै , न रुक सकता िै। जीिन तो चलता रिता िै, जीिन तो चलते िी रिता िै।।

    रीता अग्रिाल अध्यावपका

    अनब झ पिेली

    श्ज़ंदगी एक अनब झ, अनकिी पिेली िै, लोग उसको तरािने की चाित रखते िैं, तभी ििा का एक झोंका झटके से सब ले

    जाता िै।

    कुछ पाने का सपना त्रबखर सा जाता िै और अपने साथ सब कुछ बिा ले जाता िै।

    हदन-ब-हदन कुछ पाने की िोड़ में लोग लगे

    रिते िैं पर श्जंदगी का एक त फ़ान सब बबाषद कर

    जाता िै, िे! मानि त छोड़ सब मोि और श्जंदगी को

    खिुनुमा बना ले।

    रूपाली सक्सेना अध्यावपका

  • 37

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    दोस्त

    दोस्तों के त्रबना श्जंदगी में, कुछ कमी तो िमेिा लगी, पर जब देख लेते िैं उन्िें ऑनलाइन कक्षाओं में

    मन में किर से खिुी की लिर उमड़ उिती िै ।।

    याद आते िैं हदन जब,

    िम साथ-साथ बैिकर खाना खाते थे कुछ तुम खाते थे कुछ िम खाते थे

    मध्यांतर की यिी किातनयाूँ िोती थी ।।

    खेलों के मैदान में जब, दौड़ने की प्रततयोगगता िोती थी

    कभी मैं दौड़ती थी कभी तुम दौड़ते थे गगरत-ेकिसलते ककसी न ककसी तरि

    पिुूँच जाते थे गंतव्य तक ।।

    लेककन उस समय भी िमने कभी भी िाथ ना छोड़ा एक द सरे का, जो खिुी उस समय थी

    िि आज भी िै जब देखते िैं एक द सरे को लैपटॉप के पटल पर ।।

    प्रेयिी सािा 5 जी

    काि मेरे पास पंख िोत े

    काि मेरे पास पंख िोते तो मैं नीले आसमान को छ लेता,

    तततशलयों से बातें करता, पंतछयों संग गुनगुनाता,

    भूँिरों की तरि ि लों पर झ लता, खलेु आसमान में उड़ कर सारी दतुनया देख

    लेता ।

    काि मेरे पास पंख िोते तो पिषत पर अपना घर बनाता ।

    बादलों पर बैि कर स रज की ककरणों के संग खेलता ।

    चाूँद की रोिनी में पेड़ों पर बैि कर पिन के संग गाने गाता।

    रात तारों संग लुका-छुपी खेलता। काि मेरे पास पंख िोते...

    अरमान धशुलया

    6 बी

  • 38

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    उम्मीदों का सिेरा

    िै काली रात गिराती तनरािा का अूँधेरा िै

    चाूँद की चांदनी पर भी अिसादों का पिरा िै

    मगर त बैिना न थक के आगे बढ़ते िी रिना

    गिन रातों के आगे िी उम्मीदों का सिेरा िै|

    हदए की लौ िै थराषती ििाएूँ तेज़ बिती िैं

    आूँगधयों की िै आिंका राि में ध ल उड़ती िै मगर त बन जा हदनकर द र कर जो तम

    घनेरा िै

    गिन रातों के आगे िी उम्मीदों का सिेरा िै|

    ये माना मुश्ककलों ने आज िमको आके घेरा िै

    निीं हदखता िै कुछ भी साफ़ नाकामी का

    िेरा िै

    बाद पथरीली रािों के खुशियों का बसेरा िै

    गिन रातों के आगे िी उम्मीदों का सिेरा िै|

    पाूँि में कांटे िैं चभुते ह्रदय में उि रिी पीड़ा

    िै आिा की ककरण ध शमल िेदनाओं ने

    िै जकड़ा

    मगर ये िेदना तुझको तपाकर स्िणष

    कर देगी

    न डर ऐ मन तेरा जीिन कंचन सा

    सुनिरा िै।

    गिन रातों के आगे िी उम्मीदों का सिेरा िै|

    प णणषमा शसिं

    अध्यावपका

  • 39

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    जीिन निी ंरुका करता िै

    आगे बढ़ने की चाि ले मन में सपनों की दतुनया सजा के आूँखों में यहद समय की आूँधी सब नष्ट कर दे तब ििीं रुककर उसका िोक निीं करते क्योंकक एक सपने के ट ट जाने से आूँखें िीरान निीं िोती िैं तब जीिन निीं रुका करता िै, जीिन निीं रुका करता िै । जब परीक्षा की घड़ी आती िै िमें हदन-रात जगाती िै पररणाम कुछ ऐसा आता िै हदल मुूँि को आ जाता िै तब सोच-सोच रोया निीं करते क्योंकक एक असिलता के कारण जीिन निीं असिल िोता िै तब जीिन निीं रुका करता िै, जीिन निीं रुका करता िै । जीिन के सफ़र में साथी कोई छ ट जाता िै जीिन में चारों ओर अधंकार छा जाता िै तब उस गम में ड ब-ड ब कर पत्थर पर शसर निीं पटकते क्योंकक अमािस्या की काली रात के बाद प नम का चाूँद चमकता िै तब जीिन निीं रुका करता िै,

    जीिन निीं रुका करता िै । जीिन का जब लक्ष्य िो ऊूँ चा पथरीला भले िी मागष िो नंगे पाूँि िी सिी मन में आत्मविकिास िो सौ-सौ बार किसलने पर भी आगे बढ़ना िी पड़ता िै तब जीिन निीं रुका करता िै, जीिन निीं रुका करता िै । ड बने के डर से मछशलयाूँ निीं छोड़ती तैरना आूँगधयों के डर से पक्षी निीं छोड़ते उड़ना कष्टों से डर कर मनुष्य छोड़ता निीं िै जीना तब जीिन निीं रुका करता िै, जीिन निीं रुका करता िै । आहदत्य नारायण शमश्र 11

  • 40

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    ि ल

    सबके मन को भाते ि ल

    हदल को बिुत लुभाते ि ल

    खिुब खींच ेअपनी ओर

    सािन में जैसे नाच ेमोर

    ि ल जैसे तुम बन जाओ

    इस धरती को स्िगष बनाओ

    भश्क्त प्रिीण

    3 ए

    जीत

    िक्त बादल जाता िै, त चलना तो सीख।

    त िानों में ककती तैरती िै, त तैराना तो सीख।

    दखु-सुख तो जीिन की दो आूँखें िैं,

    त दोनों आूँखों से एक समान देखना तो सीख।

    क्या पता क्या अच्छाई तछपी िै इस पल में, त िर पल में मुसकराना तो सीख।

    िक्त ििरता किाूँ िैं िमारे चािने से,

    उसकी कितरत िै आगे बढ़ना, त िक्त के साथ आगे बढ़ना तो सीख।

    रात के बाद सिर आती िी िै, पतझड़ के बाद बिार भी आएगी,

    त बिारों का इंतज़ार करना तो सीख।

    बीते िक्त के बारे में सोच कर क्या करेगा, जो बीत गया उससे क्या शमलेगा, त बीती बातों से सीख लेकर,

    श्ज़ंदगी के इश्म्तिान को जीतना तो सीख।

    अजंली सक्सेना अध्यावपका

  • 41

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    श्ज़ंदगी रुकने का नाम निीं अपनी अध री सी िसरतों को प रा करने का

    नाम िै श्ज़ंदगी, प्रततहदन जुड़ता िै श्जसमें एक नया पन्ना ऐसी

    ककताब िै श्जंदगी।

    आज किजाओं में कुछ ज़िर घुला- घुला सा िै

    सिम कर रुक गई रफ्तार श्जंदगी की िर िख्स कुछ डरा -डरा सा िै।

    कर रिे िैं िम संभलने की कोशिि लेककन बिुत कुछ अभी त्रबखरा-त्रबखरा सा िै।

    कभी-कभी बदलने से ििाओं का रुख नदी का प्रिाि क्या कभी रुकता िै। तछटकती िै रोज य ूँ िी िीतल चाूँदनी

    धकेल अधंकार के साये स यष य ूँ िी चमकता िै।

    िै साक्षी इततिास पिले भी िमने ऐसे प्रिार झलेे िै,

    गगर कर किर उि खड़ ेिुए निीं मानी कभी िार िै ।

    बने युग सषृ्टा ककया नि तनमाषण िर बार िै। जीिन य ूँ िी सतत चलता, जैसे गंगा की धार

    िै ।

    िक्त करिट लेगा नयी भोर िोगी, मानिता पर आए संकट से जंग में विजय

    िमारी जरूर िोगी। रखना िै धयैष, संयम, निीं करना विश्राम िै। क्योंकक श्जंदगी रुकने का नाम निीं आगे

    बढ़ने का नाम िै

    क्योंकक श्जंदगी रुकने का नाम --------------------------------

    अनुपमा शसिं अध्यावपका

  • 42

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    ितामान समय में करोना एक िैश्विक महामारी बन चुकी है, और ननश्वचत तौर पर िह भी मानि मन पर लघुकाललक एिं दीघाकाललक प्रभाि छोड़ जाएिी। कुछ लोिों का जीिन तो सदैि के ललए ही बदल जाएिा। करोना के प्रभाि केिल स्िास््य तक सीलमत नहीं हैं। यह प्रभाि सामाश्जक, मनोिैज्ञाननक, राजनीनतक और सबसे प्रमुख आगथाक तक विस्ततृ हो िए हैं। तो किर इसके प्रभाि से हमारा साहहत्य कैसे अछूता रह सकता है। इस िर्ा के तरंगिणी के संस्करण में आप देखेंिे कक विद्यागथायों द्िारा रगचत बहुत से लेख और कविताएँ इससे प्रभावित हैं। प्रस्तुत हैं करोना िाइरस पर रगचत कुछ और कविताएँ और लेख।

    - संपादक मंडल

  • 43

    तरंगिणी 2020 — भारतीय विद्यालय अल घुब्रा

    क्या िै यि करोना

    करोना, करोना, करोना

    क्या िै यि करोना?

    कुछ अच्छाई के रंग िोना

    कुछ बुराई भी संग िोना

    मम्मी पापा का प्यार िोना

    दादा-दादी का दलुार भी िोना

    धरती माता का खलुकर साूँस लेना

    पि-ुपक्षक्षयों का वपजंरे से बािर िोना

    लोगों का य ूँ घबरा-घबरा कर जीना

    लेककन किर भी हिम्मत की कमी न िोना

    पररिार जनों का अलग िोकर भी

    ऑनलाइन संग िोना

    करोना, करोना, करोना

    सोचती ि ूँ मैं क्या िै यि करोना

    आन्या समीर त्रििेदी

    5 एि

    मेरे लॉकडाउन के हदन

    क्योंकक आजकल मिामारी का खतरा िै, मैं घर से निीं तनकलता ि ूँ, स्क ल िो या खेल नाच िो या गाना सब कंप्य टर पर कर लेता ि ूँ ।

    कमरे की णखड़की से दतुनया देखता ि ूँ, सुबि-िाम सब हदन एक जैसा हदखता ि ूँ

    वपजंरे की गचडड़या सा लगता ि ूँ यि सोच कर उदास िो जाता ि ूँ ।

    दादा-दादी की याद जब आती िै उन्िें शमलने को हदल बिुत चािता िै इंटरनेट पर उनसे बात कर लेता ि ूँ और किर मैं खिु िो जाता ि ूँ।

    लेककन मैंने इतना तय कर शलया िै, िर हदन कुछ नया सीख ूँगा

    रसोई में मम्मी की मदद करूूँ गा एक हदन भी बबाषद ना िोने द ूँगा।

    अच्छे हदन के इंतजार में ि ू