वीर गाथा - ncertisbn 978-93-5292-153-9 सव व वधक र स रवष त प...

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  • वीर गाथा

    परम वीर चक्र ववजेताओ ंकी कहावियाँ

  • ISBN 978-93-5292-153-9

    सवावावधकार सरुवषित

    प्रकाशक की परू्व अनमुित के मबना इस प्रकाशन के मकसी भाग को छापना तथा इलैक्ट्रॉमनकी, िशीनी, फोटोप्रमतमलमप, मरक्रॉमर्डंग अथरा मकसी अन्य मरमि से पनु: प्रयोग पद्धमत द्ारा उसका संग्रहण अथरा प्रचारण रम््वत ह।ै

    इस पसु्तक की मबक्ी इस शत्व के साथ की गई ह ैमक प्रकाशन की परू्व अनमुित के मबना यह पसु्तक अपने िलू आररण अथरा म्ल्द के अलारा मकसी अन्य प्रकार से वयापार द्ारा उिारी पर, पनुमर्वक्य या मकराए पर न दी ्ाएगी, न बेची ्ाएगी।

    इस प्रकाशन का सही िलू्य इस पषृ्ठ पर िमुरित ह।ै रबड़ की िहुर अथरा मचपकाई गई पचची (मस्टकर) या मकसी अन्य मरमि द्ारा अमंकत कोई भी संशोमित िलू्य गलत ह ैतथा िान्य नहीं होगा।

    एि. सी. ई. आर. टी. के प्रकाशि प्रभाग के कायावालय

    एन.सी.ई.आर.टी. कैं पसश्ी अरमरंद िाग्व ियी वदलली 100 016 फ़ोि : 011-26562708

    108ए 100 फीट रोर्हलेी एक्सटेंशन, होस्रे्केरे बनाशकंरी III इस्टे्बेंगलुरु 560 085 फ़ोि : 080-26725740

    नर्ीरन टस्ट भरनर्ाकघर नर्ीरनअहमदाबाद 380 014 फ़ोि : 079-27541446

    सी.र्ब्ल्य.ूसी. कैं पसमनकट – ध्ानकल बस स्ट्रॉप मपनहटीक़ोलकाता 700 114 फ़ोि : 033-25530454

    सी.र्ब्ल्य.ूसी. क्रॉम्पलैक्सिालीगाँरगुवाहाटी 781021 फ़ोि : 0361-2676869

    प्रकाशि सहय़ोग

    अध्यक्ष, प्रकाशन प्रभाग : मो.सिराजअनवर

    िखु्य संपादक : शववेताउप्पल

    िखु्य उतपादन अमिकारी : अरुणसचतकारा

    िखु्य वयापार प्रबंध्ाक : सििाषकुमारदाि

    उतपादन सहायक : िनुीलकुमार

    प्रथम ससं्करण अगसत2019श्ावण1941

    PD 10T RPS

    © राष्ट्रीय शैिक्षक अनुसंधान और प्रिशक्षण पररषद्, 2019

    ` 100.00

    130 ्ी.एस.एि. पेपर पर िमुरित।

    प्रकाशन प्रभाग िें समचर, राष्टीय शैमक्षक अनसुंिान और प्रमशक्षण पररषद,् श्ी अरमरंद िाग्व, नयी मदल्ली 110 016 द्ारा प्रकामशत तथा रा् मपं्रटस्व, ए–9, सेक्टर बी–2, ट्रॉमनका मसटी इरं्मस्टयल एररया, लोनी, मज़ला गामज़याबाद – 201 102 (उ.प्र.) द्ारा िमुरित।।

    आवरणररतुटोपा

  • प्राक्कथि

    राष्टीय शैमक्षक अनसुंिान और प्रमशक्षण पररषद ्(एन.सी.ई.आर.टी.) ने वीरगाथा—परमवीरचक्रसवजवेताओंकीकहासनयाँ नािक यह पसु्तक उन परि रीर चक् मर्ेताओ ंके सम्िान िें म रकमसत की ह,ै म्न्होंने सभी कमठनाइयों से लड़कर अपने दशे की आन की रक्षा की।

    यह पसु्तक उन यदु्ध नायकों का संस्िरण ह,ै म्न्हें अपने अदम्य साहस, कर््ववयमनष्ठा और अपनी िातभृमूि के प्रमत कभी न मिटने राले पे्रि के मलए सदा याद म कया ्ाता रहगेा। इसिें भारतीय सशस्त्र सेना बलों के उन िहान नायकों की कहामनयों का संकलन ह,ै म्न्हें परि रीर चक् से अलंकृत मकया गया ह।ै यह सेना को मदया ्ाने राला सरवोच्च सम्िान ह,ै ्ो उच्चकोमट की रीरता, अदम्य साहस, नेततृर क्षिता, अनकुरणीय कर््ववयमनष्ठा और यदु्ध के दौरान आतिबमलदान के मलए मदया ्ाता ह।ै

    हि सभी को यह मरमदत ह ैमक यदु्ध ही रह सबसे बड़ी िानर-त्रासदी ह,ै म्सका प्रभार सिस्त िानर ्ामत पर पड़ता ह।ै पर इससे भी बड़ा प्रश्न यह ह ैमक क्या यदु्ध हिें छोड़ सकता ह?ै शायद इस प्रश्न का कोई मनमश्चत उर्र नहीं ह,ै लेमकन यमद यदु्ध शांमत का संदशे नहीं दतेे तो हिें उनका िमहिािरं्न तो नहीं ही करना चामहए। हिारे उन यदु्ध नायकों म्निें से अनेक ने एक िहान उद्शे्य के मलए अपने ्ीरन का बमलदान कर मदया, उनके प्रमत हिारी यही सच्ची श्द्धां्मल होगी मक हि यह समुनमश्चत करें मक शांमत और सौहाद्व सदा बना रह।े इन कहामनयों को पढ़कर, आपको इमतहास िें झाँकने और इस बात का मनण्वय करने का अरसर म िलेगा म क रत्विान िें क्या होना चामहए– यदु्ध या सदा के मलए शामंत!

    पसु्तक िें संकमलत साहमसक कहामनयाँ बेहद पे्ररणादायक तथा मशक्षाप्रद हैं। रे पाठक को हिारे परि रीरों, उनके अनशुामसत तथा दृढ़मनश्चयी चररत्राें और अपने दामयतराें के प्रमत अगाि सिप्वण की झलमकयाँ देंगी। हिें मरश्रास ह ैमक आप इन कहामनयों को पढ़कर उन रीरों के उतकृष्ट गणुों का अनसुरण करने और उनके द्ारा स्थामपत की गई िहान परंपरा को आगे बढ़ाने के मलए पे्रररत होंगे।

    हिें यह सदा याद रखना चामहए मक हि अपने मररादों का परस्पर सहिमत से मनराकरण करें और मरश्रबंितुर की ओर अग्रसर हों।

    सनदवेशकनयी मदल्ली राष्टीय शमैक्षक अनसुंिान और अगसत2019 प्रमशक्षण पररषद्

  • आमुख

    भारत के समंरिान के अनसुार हिारे राष्ट की अारे से मरश्रशांमत एर ंसरुक्षा को बनाए रखने, मरमभन्न दशेों के बीच न्यायपणू्व एरं सम्िाननीय ररश्ते रखने के साथ-साथ, अतंरराष्टीय काननू का अादर करते हुए अतंरा्वष्टीय मररादों का िध्यस्थता द्ारा मनराकरण करने का प्रयास मकया ्ाना चामहए।

    हालाँमक, पररमस्थमतरश स्रतंत्र भारत को पामकस्तान के साथ 1947–48, 1965, 1971, 1987, 1999 तथा चीन के साथ 1962 िें संघष्व तथा यदु्धों िें उलझना पड़ा ह।ै हिारी सशस्त्र सेनाओ ंका र्ी.आर.कांगो (1960–64) तथा श्ीलंका (1987–90) िें (पीस-कीमपंग ऑपरेशन) के दौरान अपनी सेराए ँदनेे के मलए भी आह्ान मकया गया। हिारी सेना की सभी सेराओ ंके वयमक्तयों ने न केरल आतंररक रूप से, बमल्क अतंरराष्टीय रूप से भी, राष्ट की सरुक्षा तथा सम्िान की रक्षा हते ुबडे़ बमलदान मदए। इस पसु्तक िें उन 21 ्ांबाज़ों की पे्ररणादायक कहामनयाँ हैं, म ् न्हें राष्ट के प्रमत उनकी मरमशष्ट सेराओ ंको ध्यान िें रखते हुए, यदु्ध के म लए मदए ्ाने राले भारत के सरवोच्च रीरता पदक ‘परि रीर चक्’ (पी.री.सी.) से सम्िामनत मकया गया। 1947 के बाद से अब तक केरल 21 यदु्धनायकों को ही परि रीर चक् से सम्िामनत मकया गया ह।ै उनिें से 14 सैमनकों को िरणोपरांत इस प्रमतमष्ठत परुस्कार से सम्िामनत मकया गया। इन सभी इक्कीस नायकों िें से 16 ने भारत-पामकस्तान यदु्धों/संघषषों िें ही भाग मलया था।

    ेय परि रीर चक् मर्तेा मरमरि प्रकार की सािाम्क, आमथ्वक तथा शमैक्षक पषृ्ठभमूियों से आते हैं। ्हाँ इनिें से कुछ तो रक्षा के क्षते्र से ्डेु़ परररारों के हैं, रहीं इनिें से अमिकतर आ्ीमरका के दसूरे क्षते्रों से ्डेु़ परररारों के हैं। यही नहीं, इनिें से कुछ रीर अमिकारी हैं तो कुछ ्.ेसी.ओ. या एन.सी.ओ. या ्रान हैं। ेय नायक मभन्न सिुदायों, क्षते्रों, सेराओ,ं रे्ीिेंट्स, इकाइयों, रैंकों, अायरुगषों तथा भारत के स्रतंत्र होने के बाद के इमतहास के अलग-अलग सिय के हो सकते हैं। मफर भी इन सब िें दशेभमक्त की भारना सिानरूप से मरद्यिान ह ैतथा इन सभी ने यदु्धभमूि िें एक सिान ही रीरता का प्रदश्वन मकया ह।ै कर््ववयमनष्ठा, एक्टु होकर काि करने की भारना, ईिानदारी, आतिसम्िान, भेदभार से रमहत ्ीरन तथा मन:स्राथ्व बमलदान की भारना ्सेै िलू्यों तथा आदशषों का प्रतीक बनकर ेय सब के मलए एक तथा एक के मलए सब के आदश्व को चररताथ्व कर गए। यही िलू बात इस पसु्तक की हर कहानी िें झलकती ह।ै

    यह पसु्तक इन िहान दशेभक्तों का पररचय दशेभर के यरुा पाठकों से कराती ह।ै इन पाठकों िें से जयादातर ‘कारमगल यदु्ध’ के बाद की पीढ़ी के हो सकते हैं। एक क्िबद्ध तरीके से यह पसु्तक इन ‘परि रीर चक्’ मर्तेाओ ंकी कहामनयों के साथ-साथ आज़ादी के बाद से अब तक के भारतीय सैन्य इमतहास की झलमकयाँ भी उपलब्ि करराती ह।ै प्रतेयक कहानी प्रशमस्त

  • vi

    पत्र के साथ सिापत होती ह,ै ्ो म क उस मर्तेा की रीरता का रण्वन करती ह।ै इन मर्तेाओ ंके ्ीरन, ततकालीन सिय, उन यदु्धों तथा आपॅरेशनों, म्निें इन्होंने भाग मलया और उस सिय के नेताओ ंआमद के बारे िें और अमिक ्ानकारी प्रापत करने के मलए पाठक िमुरित तथा दृश्य-श्वय सािग्री का पता लगा सकते हैं। इन कहामनयों के िाध्यि से हिारी िशंा न तो महसंा का िमहिा िरं्न करने की ह ैअौर न ही मरपक्षी को महसंक मदखाने की ह।ै

  • पुस्तक विमावाण सवमवत

    िीनाक्षी खार (3 कहामनयों का अनरुाद एरं अगं्रेज़ी संस्करण की 7–11 और 16 कहामनयाँ)एिोसिएटप्ावेफवे ़िर,एन.सी.ई.आर.टी., नयी मदल्ली

    सीिा शकु्ला ओझा (अगं्रेज़ी कहामनयाँ 18–21)असिसटेंटप्ोफवे ़िर,इमतहाससािाम्क मरज्ान मशक्षा मरभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी मदल्ली

    अिुवादकअपाला भाग्वरी (18 कहामनयाँ)सशसषिकासरदार पटेल मरद्यालय, नयी मदल्ली

    सदस्य समन्वयकएि.री.एस.री. प्रसाद* (अगं्रेज़ी संस्करण) (अगं्रेज़ी कहामनयाँ 6, 12–15, 17)असिसटेंटप्ोफवे ़िर,रा्नीमतशास्त्रसािाम्क मरज्ान मशक्षा मरभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी मदल्ली

    संध्या मसंह (महंदी संस्करण) (अगं्रेज़ी संस्करण की 1–5 कहामनयाँ)प्ोफवे ़िर एरं अध्यषिभाषा मशक्षा मरभागएन.सी.ई.आर.टी., नयी मदल्ली

    * र््रॉ एि.री.एस.री. प्रसाद का मनिन फरररी 2019 िें हुआ।

  • आभार (अंगे्जी ससं्करण)

    राष्टीय शमैक्षक अनसुंिान और प्रमशक्षण पररषद ्उन सबकी आभारी ह,ै म्न्होंने प्रतयक्ष अथरा परोक्ष रूप से इस पसु्तक के मरकास िें योगदान मदया ह।ै

    पररषद,् िानर संसािन मरकास ितं्रालय, भारत सरकार की भी हि आभारी ह,ै म्सने एन.सी.ई.आर.टी. को इस िहतरपणू्व प्रकाशन को मनकालने का दामयतर सौंपा।

    पररषद,् बी.के. मत्रपाठी, प्ोफवे िर एरं िंयकु्तसनदवेशक, एन.सी.ई.आर.टी. के इस काय्वक्ि के प्रारंभ करने की पहल तथा सतत रूप से मनिा्वण समिमत का िाग्वदश्वन करने के मलए, साथ ही इन 21 यदु्ध नायकों के बारे िें अौर अमिक ्ानने का अरसर प्रदान करने के मलए आभारी ह।ै नीर्ा रमश्ि, प्ोफवे िर एरं अध्यषि, सािाम्क मरज्ान मशक्षा मरभाग तथा के.सी. मत्रपाठी, प्ोफवे िर एरं अध्यषि, भाषा मशक्षा मरभाग के प्रोतसाहन के मलए पररषद ्उनका आभार वयक्त करती ह।ै

    रक्षा ितं्रालय के पसु्तकालय के कि्वचाररयों तथा ितं्रालय के इमतहास के कि्वचाररयों को भी पररषद् ्िन्यराद ज्ाामपत करती ह।ै भारतीय सशस्त्र बलों (थलसेना, नौसेना तथा रायसुेना) की रेबसाइट्स के साथ-साथ एनर्ीए तथा अन्य रक्षा संस्थानों की रेबसाइट्स के प्रमत भी पररषद ्आभारी ह।ै गज़ट ऑफ़ इमंर्या, पत्र सचूना काया्वलय तथा अन्य सरकारी ए्ेंमसयों द्ारा ऑनलाइन तथा प्रकामशत सािग्री के साथ-साथ, मन्ी संस्थानों तथा अखबारों के प्रमत भी पररषद् ्िन्यराद ज्ामपत करती ह।ै

    यह पसु्तक िखु्यत: सहायक स्ोतों पर अािाररत ह।ै बहुत-सी संस्थाओ ंतथा लेखकों के काय्व पसु्तक के म लए काफ़ी उपयोगी रह।े िे् र ्नरल इयान कारदोज़ो (सेरामनररृ्) तथा रचना मबष्ट रारत के द्ारा मदए गए परि रीर चक् मर्ेताअों के रोचक ररृ्ांत के म लए पररषद ्उनकी आभारी ह।ै

    पररषद,् कन्वल के.एस. गे्रराल एरं एमर्शनल र्ायरेक्टरेट ्नरल ऑफ़ पमब्लक इन्फ्रॉरिेशन, (ए.र्ी.्ी.पी.आई.) एि.ओ.र्ी. की िे्र िरमयन एंटनी; इंद ुक्षेत्रपाल, प्ाचायाया, सालरान पमब्लक स्कूल, रा्ेन्रि नगर, नयी मदल्ली (तथा उनकी मशक्षकों/मशमक्षकाओ ंकी सिमप्वत टीि), इंद ु राय, फ्ीलांिएसिटर, नयी मदल्ली; पी.सी.मसंह एरं रा्लु मतरारी, ्े.आई.एि.एि.सी., नोएर्ा उर्र प्रदशे; एरं रािेश्रर मसंह, एिोसिएट प्ोफवे ़िर, अंगे्रज़ी मरभाग, सतयरती क्रॉले् (सांय काल) मदल्ली मरश्रमरद्यालय का 25–26 अगस्त 2015 को हुई सिीक्षा बैठक िें ड्ाफ़ट सािग्री के अलग-अलग महस्सों पर दी गई उनकी प्रभारशाली मटपपमणयों के म लए पररषद ्उनका आभार वयक्त करती ह।ै

    इस पसु्तक के मनिा्वण िें बहुत से वयमक्तयों तथा ससं्थाओ ंद्ारा मभन्न-मभन्न तरीकों से मिले बहुिलू्य सहयोग के मलए पररषद ्उनकी प्रशसंा करती ह।ै मरषयरस्त ुिें संशोिन के म लए पररषद् ्भारतीय सेना के अमिकाररयों की म रशषे रूप से आभारी ह।ै नंगुसगंलेम्बा, एओ, सनदवेशक

  • ix

    (पी.आर.), र्ायरेक्टरेट ऑफ़ पमब्लक ररलेश्नस (र्ी.पी.आर.), रक्षा ितं्रालय; िे् र री.के. मसंह, फ़ोटो मर्मरज़न, र्ी.पी.आर., रक्षा ितं्रालय; लेमफ़टनेंट किांर्र मशब ूदरेामसया, एन.र्ी.ए.; तथा स्क्राड्न लीर्र राणा टी.एस. छीना (सेरामनररृ्), सेंटर फ़्रॉर आम्र््व फ़ासे्व महस्ट्रॉररकल ररसच्व, यनूाइटेर् समर्वस इसं्ट्ीटयशून आफॅ़ इमंर्या; सगत पी. शौमनक, शोधछात्र, आई.आई.टी. िुबंई; तथा आर.एस.चौहान, लाइब्वेररयन, द ल्रॉरेन्स स्कूल, सनारर का बहुिलू्य सलाहों तथा दलु्वभ तस्रीरों और िे् र िकेुश कमपला एरं र्ब्ल्य.ूओ. ता्मसहं राठौर, सेना र्ाक सेरा का ए.पी.एस. स्पेशल करर के मलए िन्यराद करती ह।ै

    कुशल रमशष्ठ, सनदवेशक (र्ाक संग्रह), र्ाक मरभाग, भारत सरकार के र्ाक मटकटों की तस्रीरों तथा उन्हें प्रयोग िें लाने की अनिुमत प्रदान करने के मलए पररषद ्उनकी आभारी ह।ै

    लेमफ़टनेंट कन्वल मरनीत ओहरी, प्ाचायया, राष्टीय मिमलटी स्कूल, चलै; लेमफ़टनेंट कन्वल भपूेन्रि कुिार, प्ाचायया तथा िे् र पी. रे्मरर्सन, एओ, आरएिएस, बेंगलरूु; लेमफ़टनेंट कन्वल एल.के. िमुन, एओ तथा सिीर सरकार, राष्टीय इमंर्यन मिमलटी क्रॉले् दहेरादनू; तथा िे् र रमर कुिार, आई.एि.ए., का इन संस्थानों के दौरे के दौरान मदए गए सहयोग के म लए पररषद ्िन्यराद दतेी ह।ै

    परि रीर चक् मर्ेताओ ं तथा उनके ररश्तेदारों से संपक्व करने के प्रयास मकए गए। यदा-कदा सफल भी हुए और पररषद ्कई तरह से िददगार होने के म लए सबेूदार योगेन्रि मसंह यादर (पी.री.सी.), नायब सबेूदार सं्य कुिार (पी.री.सी.), सतनाि मसंह, पमूण्विा थापा, संध्या एक्का, िकेुश क्षेत्रपाल, कन्वल रा्कुिार दमहया और प्रमतभा मिश्ा के प्रमत अपनी गहरी कृतज्ता वयक्त करती ह।ै

    पररषद्,् ररत ुटोपा का इस सुंदर अमभकल्प तथा लेआउट मर्ज़ामनंग के मलए भी िन्यराद करती ह।ै ्हाँ तक हिें ज्ात ह,ै क्रॉपीराइट का ध्यान रखने के भरपरू प्रयास मकए गए हैं। भलू से छूटी हुई मकसी बात की अोर यमद हिारा ध्यान लाया गया तो आगािी ससं्करण िें संशोिन की सभंारना ह।ै

  • वहंदी ससं्करण के बारे में...

    वीरगाथा—परमवीरचक्रसवजवेताओंकीकहासनयाँके िाध्यि से हिारा प्रयास नई पीढ़ी के पाठकों को उन रास्तमरक नायकों से पररमचत कराना ह,ै म्न्होंने दशे के गौरर की रक्षा के मलए, उसकी नींर को िज़बतू करते हुए ही अपने को न्यौछारर कर मदया। ऐसे रीर सिय-सिय पर हिारे सािने आए, म्न्होंने दशे पर आए संकट का र्टकर सािना मकया। भारत यू ँतो एक अतंयत ही शांमत मप्रय दशे ह ैऔर उसका प्रयास रमैश्रक सौहाद्व को बनाए रखने का ही रहा ह,ै मकंत ुसकंट के सिय अपनी संप्रभतुा और अमस्ततर की रक्षा के मलए तथा कई बार शांमत के म लए ही उसे यदु्ध करना पड़ा। ऐसे सिय िें हिारे दशे की आन के म लए इन रीर सैमनकों ने अपने प्राणों की बा्ी लगा दी। आ् के यरुा-िानस िें, सिा् के मलए आरश्यक हर म रषय को लेकर कुछ ऐसे प्रश्न उठते हैं म्नका उर्र उनके मलए आरश्यक तो होता ह,ै परंत ुपररमस्थमतरश र ेदमुरिा िें होते हैं और जयादातर र ेप्रश्न ्ीरन िलू्यों से ्डेु़ हुए होते हैं। इन यरुाओ ंको दशे पे्रि तथा दशेभमक्त का एहसास कराने तथा उसका सही अथ्व सिझाने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता ह।ै हिारे स्रतंत्रता सेनामनयों के बारे िें तो मरद्यामथ्वयों को यथासभंर ्ानकारी दी ्ाती ही ह।ै इसीमलए हिारा प्रयास ह ैम क इस पसु्तक के िाध्यि से ऐसे रीर सैमनकों के बारे िें उन्हें बताए,ँ ्ो बहुत अमिक पहले नहीं हुए और इसी कारण म्नकी इच्छाओ ंतथा पराक्ि से खुद को ्ोड़ लेना, बहुत कमठन नहीं ह।ै इन सबसे इतर र ेहिारे एक अक्षय पे्ररणास्ोत तथा िाग्वदश्वक का काि भी बखबूी मनभाते हैं।

    इस पसु्तक िें सभी 21 परिरीर चक् मर्ेताओ ंके बारे िें बताया गया ह ैसाथ ही उनके प्रशमस्त पत्र भी मदए गए हैं। इनिें से पीरू मसंह, अरुण क्षेत्रपाल, ्दनुाथ मसंह, िन मसंह थापा, सबेूदार ्ोमगन्दर मसंह, राइफलिैन सं्य कुिार, िे्र रािास्रािी परिेश्ररन, बाना मसंह, राि राघोबा राण,े अब्दलु हिीद, अददेशीर बरुज़ोर्ी तारापोर, िे्र होमशयार मसंह, शैतान मसंह, अलबट्व एक्का, योगेन्रि मसंह यादर के प्रशमस्त पत्र िलू महन्दी रूप िें मदए ्ा रह ेहैं ्ो मक आई.एि.ए. की रेबसाइट http://gallantryawards.gov.in से मलए गेय हैं। सोिनाथ शिा्व, करि मसंह, गरुबचन मसंह सलाररया, मनि्वल ्ीत मसंह सेखों, िनो् कुिार पांरे्, मरक्ि बत्रा के प्रशमस्त पत्र, एन.सी.ई.आर.टी. द्ारा प्रकामशत वीरगाथासटोररज़ऑफपरमवीरचक्रअवॉसियाज़ अगें्रज़ी प्रमत से अनमूदत हैं। इसके साथ ही सभी परि रीर चक् मर्ेताओ ंके प्रशमस्त पत्र अगें्रज़ी र महंदी दोनों िें मदए गए हैं। इस पसु्तक िें सेना तथा इन रीरों के बारे िें कुछ अमतररक्त ्ानकामरयाँ भी दी ्ा रही हैं। महंदी सैन्य शब्द संदभ्व सचूी िें नेय शब्द र्ाले गेय हैं। ्सेै अरुण क्षते्रपाल के बारे िें कुछ अमतररक्त सचूनाए ँभी दी गई हैं।

    कुछ वयमक्त मर शषे तथा स्थानों के नाि मलखने िें महंदी के िलू प्रशमस्त पत्र को आिार िाना गया ह ैएर ंिलू रूप िें ही मदया गया ह।ै उच्चारण भेद के कारण इनके मभन्न-मभन्न मलमखत रूप मिलते हैं। आशा ह ैयह पसु्तक मरद्यामथ्वयों को रुमचकर लगगेी तथा इसके सृ् न का उद्शे्य भी सफल हो सकेगा।

  • xi

    पररषद,् अकादमिक सहयोग के मलए िािरी कुिार, एिोसिएटप्ोफवे ़िर(सेरामनररृ्), एन.सी.ई.अार.टी.; श्याि मसंह सशुील,सवतंत्रपत्रकार; शमि्वला घोष, अध्यासपका, (सेरामनररृ्) सेंट िरेी स्कूल, सेक्टर 9, द्ारका; पल्लर,असिसटेंटप्ोफवे ़िर, महंद ूकाॅले्, मदल्ली मरश्रमरद्यालय; सरेुश पंत, भाषामरद;् शारदा कुिारी, एिोसिएट प्ोफवे ़िर, र्ायट, नयी मदल्ली; अनरुािा, अध्यासपका, सरदार पटेल मरद्यालय, नयी मदल्ली; नरेश कोहली, एिोसिएट प्ोफवे ़िर, एन.सी.ई.आर.टी. एरं नीलकण्ठ कुिार, असिसटेंट प्ावेफवे ़िर, एन.सी.ई.अार.टी. का आभार वयक्त करती ह।ै

    पररषद,् सरेुन्रि कुिार, िी.टी.पी.आॅपरवेटर, रेखा, िी.टी.पी.आॅपरवेटर, कीमत्व शकु्ला, िी.टी.पी.आॅपरवेटर (संमरदा) एरं िीनाक्षी, िहायकिंपादक (संमरदा) प्रकाशन प्रभाग का आभार वयक्त करती ह।ै इसके साथ ही प्रकाशन प्रभाग से मिले सहयोग की पररषद ्सराहना करती ह।ै

  • आपके देश की सुरक्षा, सम्षान और कल्षाण हर बषार और ह्ेशषा पहली प्षाथम्कतषा होनी चषाहहए।

    आपके संरक्ण ्ें जो व््ह्त है उसकषा सम्षान, कल्षाण अौर आरषा्, इसके बषाद आनषा चषाहहए।

    अषापकी ननजी सुनिधषा, आरषा् और सुरक्षा सबसे अनंत् प्षाथम्कतषा होनी चषाहहए।

    –के्डो-भषारती् सैन्् अकषाद्ी (आई.ए्.ए.)

  • परम वीर चक्र के बारे में

    रक्षा सेनाओ ंके मलए उच्चति शौय्व सम्िान परि रीर चक् (पी.री.सी.) की स्थापना हिारे प्रथि गणतंत्र मदरस 26 ्नररी 1950 को की गई। यह सम्िान ्ल, थल एरं राय ुिें शत्र ुपक्ष का सािना होने पर मदखाई गई मरमशष्ट रीरता या आति बमलदान के साहमसक अथरा िहत्तरपणू्व कायषों के मलए प्रदान मकया ्ाता ह।ै यह सम्िान िरणोपरांत भी मदया ्ाता ह।ै रैिामनक रूप से यह 15 अगस्त 1947 से प्रभारी िाना गया।

    परि रीर चक् का शामब्दक अथ्व ह ै‘रीरों’ िें सरवोर्ि को मदया ्ाने राला चक् या अलंकार। संस्कृत िें परि का अथ्व ह ैसरवोकृष्ट, रीर का अथ्व ह ैसाहसी और चक् का अथ्व ह ैपमहया।

    पदक की बिावटपदक—गोलाकार, कांस्य मनमि्वत, 1.38 इचं का वयास और अग्रभाग पर कें रि िें उभरे हुए राष्ट मचह्न के साथ इन्द्र के वज्र की चार प्रमतकृमतयाँ होती हैं। इसके पषृ्ठभाग पर दो किल के फूलों के साथ म हंदी और अगं्रेज़ी दोनों िें परि रीर चक् उभरा हुआ अमंकत होता ह।ै इसकी मफ़मटंग घिुाऊ उभार यकु्त होती ह।ै

    भारत िें परि रीर चक् ‘यनूाइटेर् मकंगर्ि’ के मरक्टोररया क््रॉस तथा ‘यनूाइटेर् स्टेट्स अ्रॉफ़ अिरेरका’ के पदक ऑफ़ ऑनर के बराबर ह।ै

    स्ोत— http://indianairforce.nic.in http://knowindia.gov.in

  • xiv

    परम वीर चक्र पदक की अवभकलपक (विजाइिर)

    श्ीिती सामरत्री बाई खानोलकर ने परि रीर चक् पदक की अमभकल्पना की। उनका ्न्ि 20 ्लुाई 1913 को मस्रट्ज़रलैंर् िें, ईरारोन मलंर्ा िेद ेद ेिारोस के रूप िें हुआ। रे कैरे्ट मरक्ि राि्ी खानोलकर से तब मिलीं, ्ब र ेसैन्र्हस्ट्व, यनूाइटेर् मकंगर्ि की र्रॉयल मिमलटी एकेर्िी की छुरटियों के दौरान मस्रट्ज़रलैंर् की यात्रा पर गए थे। उन्हें एक दसूरे से पे्रि हो गया और बाद िें उन्होंने मरराह कर म लया। आग ेचलकर उन्होंने अपना नाि सामरत्री बाई खानोलकर रख मलया।

    श्ीिती खानोलकर को उनके कला-कौशल और भारतीय संस्कृमत के बारे िें गहरा अनरुाग और ्ानकारी रखने के कारण, पदकों की अमभकल्पना के मलए चनुा गया। परि रीर चक् की अमभकल्पना के अलारा उन्होंने यदु्ध और शांमत दोनों के म लए प्रिखु रीरता पदकों की अमभकल्पना की, म्निें अशोक चक्, िहा रीर चक्, कीमत्व चक्, रीर चक् एरं शौय्व चक् भी शामिल हैं। इसके साथ ही इन्होंने ्नरल समर्वस पदक—1947 की अमभकल्पना की, म ् सका उपयोग 1965 तक हुआ। यह ्ानना रोचक ह ैमक इनकी बेटी श्ीिती कुिमु दनी श्ािा्व के दरेर िे् र सोिनाथ शिा्व को 1947 की बर्गाि की लड़ाई के बाद, िरणोपरांत, भारत के पहले परि रीर चक् से सम्िामनत मकया गया। श्ीिती खानोलकर का मनिन 26 नरबंर 1990 को हुआ।

    IA421,मवेजरजनरलसवक्रमरामजीखानोलकरऔरश्ीमतीिासवत्रीिाईखानोलकर,अपनवेसववाहकवे सदनलखनऊमें।

  • सवंषिप्त रूप

    1. 2nd/ले 2/लेमफ़टनेंट (सेकें र् लेमफ़टनेंट)2. आई ए एफ़ इमंर्यन एयर फ़ोस्व3. आई एि ए इमंर्यन मिमलटी एकेर्िी4. आई पी के एफ़ इमंर्यन पीस कीमपंग फ़ोस्व5. आरई्ीटी रेम्िेंट6. आरईटीर्ी ररटायर््व7. आर एि एस राष्टीय मिमलटी स्कूल8. आर सी एल ररक्रॉयललेस9. ओ बी ई ऑर्र ऑफ़ द मरिमटश अम्पायर

    10. ए कंपनी अल्फ़ा कंपनी11. एच एि ्ी हरेी िशीनगन12. ए अो सी-इन-सी एयर ऑमफ़सर किांमरं्ग इन चीफ़13. एच क्य ू हरे्क्राट्वर14. ए र्ी ्ी पी आई एमर्शनल र्ायरेक्टरेट ्नरल ऑफ़ पमब्लक इफं़्रॉरिशेन15. एन ई एफ़ ए न्रॉथ्व ईस्ट फं्मटयर ए्ेंसी16. एन र्ी ए नेशनल मर्फ़ेन्स एकेर्िी17. एन सी अो न्रॉन किीशन्र् ऑमफ़सर18. एन सी सी नेशनल कैरे्ट कोर19. ए पी एस आिची पोस्टल समर्वस20. एफ़एलटी एलटी फ़लाइट लेमफ़टनेंट21. एफ़ ओ सी-इन-सी. फ़लैग ऑमफ़सर किांमरं्ग इन चीफ़22. एफ़्ी ऑफ़र फ़लाइगं आमॅफ़सर23. एि एि ्ी िीमर्यि िशीनगन24. एि अो र्ी मिमनस्टी ऑफ़ मर्फ़ेन्स25. एल/एनके लांस नायक26. एल एि ्ी लाइट िशीनगन27. एल ओ सी लाइन ऑफ़ कंटोल28. एलटी लेमफ़टनेंट29. एल टी टी इ मलबरेशन टाइगस्व ऑफ़ तमिल इलि30. एलटी ्ीईएन लेमफ़टनेंट ्नरल31. एलटी सीओएल लेमफ़टनेंट कन्वल32. कैपट कैपटन

  • xvi

    33. ्ी आर गोरखा राइफ़ल्स34. ्ी ई एन ्नरल35. ्े ए के आर आई एफ़ ्म्ि ूएण्र् कश्िीर राइफ़ल्स36. ्े ए के-एल आई ्म्ि ूएण्र् कश्िीर लाइट इनफ़ेन्टी37. ्ी ओ सी-इन-सी ्नरल ऑमफ़सर किांमरं्ग इन चीफ़38. ्े सी अो ्मूनयर किीशरं् ऑमफ़सर39. र्ी कंपनी रे्ल्टा कंपनी40. पी ए एफ़ पामकस्तान एयर फ़ोस्व41. पी अो र्ब्ल्य ू मप्रज़नर ऑफ़ र्रॉर42. पी री सी परि रीर चक्43. बी कंपनी रिारो कंपनी44. मरिग मरिगेमर्यर45. बीएन बटामलयन46. बीर्ीई मरिगेर्47. िे् िे् र48. िे् ्ीइएन िे् र ्नरल49. य ूएन यनूाइटेर् नेशसं50. सी कंपनी चालची कंपनी51. सी एच एि कंपनी हरलदार िे् र52. सी ए पी क्रॉम्बैट एयर पेटोल53. सी ओ किांमरं्ग ऑमफ़सर54. सीअोएल कन्वल55. सीअोराई कंपनी56. सी क्य ूएि एच कंपनी क्राट्वर िास्टर हरलदार

  • अिुक्रम

    प्ाक्कथन iiiआमखु vपरमवीरचक्रकवे िारवेमें... xiii

    भारत-पावकस्ताि युद्ध, 1947–48 1 1. सोिनाथ शिा्व 4 2. ्दनुाथ मसंह 13 3. राि राघोबा राण े 19 4. पीरू मसंह 27 5. करि मसंह 34

    कांग़ो ऑपरेशि, 1961 41 6. गरुबचन मसंह सलाररया 43

    भारत-चीि युद्ध, 1962 51 7. िन मसंह थापा 53 8. ् ोमगन्दर मसंह 61 9. शतैान मसंह 67

    भारत-पावकस्ताि युद्ध, 1965 75 10. अब्दलु हिीद 77 11. अददेशीर बरुज़ोर्ी तारापोर 83

    भारत-पावकस्ताि युद्ध, 1971 91 12. अल्बट्व एक्का 95 13. मनि्वल ्ीत मसंह सेखों 100 14. अरुण क्षेत्रपाल 105 15. होमशयार मसंह 115

    वसयावच ि सघंरवा, 1987 121 16. बाना मसंह 124

    श्ीलंका ऑपरेशि, 1987 131 17. रािास्रािी परिशे्ररन 133

  • xviii

    कारवगल सघंरवा, 1999 139 18. िनो् कुिार पांरे् 144 19. योगेन्रि मसंह यादर 149 20. सं्य कुिार 155 21. मरक्ि बत्रा 160

    ररीयता का क्ि 167भारतीय सेना के रैंक एरं रमद्वयाँ 170भारतीय सेना की संरचना 171सैन्य-मशक्षण एरं प्रमशक्षण संस् थानों पर 172अािाररत ्ारी मकए गए र्ाक-मटकटसैन्य शब्द संदभ्व सचूी 173संदभ्व-ग्रंथ सचूी 175दृश्य-श्वय सािग्री 176रेबसाइट्स 178तस्रीरों के म लए आभार 180

  • भारत-पाकिसतान युद्ध 1947–48

    एक शौर्य गाथा...

    1947–48 के यदु्ध के दौरान भारतीय सैननक

  • 2

    वीर गाथा

    1947–48 का यदु्ध अनेक मायनों में उल्ेखनीय रहा। ्ंबे संघर्ष के बाद आजादी मम्ने के साथ ही दशे का मिभाजन हो गया। जैसे-जैसे सिाधीनता प्ामतत का उतसाह क्ीण होने ्गा, मिभाजन के फ्सिरूप ्ोगों के घाय् मद्ों को राहत पहुचँाने का मस्मस्ा शरुू हुआ ही था मक सहसा यदु्ध की चौंकाने िा्ी आहट सनुाई दनेे ्गी।

    आजादी के समय ्गभग 550 ररयासतों के सामने यह पेशकश हुई मक िे मकसी एक मलुक को चनुकर उसमें शामम् होने की सोच सकते हैं। अमधकतर शासकों ने अपने-अपने नजदीकी दशे के साथ हो जाने का और कुछ ने सितंत्र रहने का फैस्ा मकया। जमममू और कशमीर के राजा हरर मसंह ने सितंत्र रहने का फैस्ा मकया। सटैंडमसट् एग्ीमेंट के नाम से एक ऐसी व्यिसथा की गई, जो नया कोई समझौता होने तक ित्षमान प्शासमनक व्यिसथा को कायम रखने को समुन मशचत करती थी। दोनों दशेों को यह भी अपी् जारी हुई मक ररयासतों पर कोई प्शासमनक दबाि न डा्ा जाए जब तक मक जनता अपनी राय जामहर न कर द।े ्ेमकन समझौते पर दसतखत के बािजमूद, कशमीर पर कब्जा करने की कोमशश में पामकसतान ने, आजादी के कुछ ही महीनों बाद से पठान कबाइम्यों, भमूतपमूि्ष सैमनकों, सेना के भगोडे मसपामहयों तथा पामकसतानी फौमजयों के साथ सितंत्र कशमीर के महससे में घसुपैठ शरुू कर दी।

    1947 के अकतमूबर महीने में छापामारों ने सीमा से ्गे गाँिों पर हम्ा कर मदया। ररयासत की सेना ने शरुू में जमकर मकुाब्ा मकया, पर जलद ही उनहें इस बात का एहसास हो गया मक उनकी तादाद बहुत कम थी। जब राजा हरर मसंह ने भारत से मदद माँगी, तो ततका्ीन प्धानमंत्री पंमडत जिाहर्ा् नेहरू ने इस शत्ष के साथ मदद करना सिीकार मकया मक पह्े ररयासत के मि्य पर दसतखत हों, कयोंमक कानमूनी तौर पर भारतीय सेना जमममू और कशमीर में तभी दामख् हो सकती थी। यह घमासान और खमूनी ्डाई ्ंबी च्ी। उस दौरान सैमनकों ने कशमीर के कुछ महससोंे पर कब्जा कर म्या। झांगर, रजौरी, मटथिा्, कारमग् तथा कुछ अनय जगहों को दोबारा हामस् मकया गया। बाद में संयकुत राष्ट्र संघ के हसतक्ेप से 1949 में औपचाररक रूप से यदु्ध मिराम की घोरणा कर दी गई।

    भारतीय सेना ने बडी मद्ेरी से इसे ्डा, मजसके म्ए उनहेे ंिीरता के पदकों से सममामनत मकया गया। इसी यदु्ध में अपनी बहादरुी और जान जोमखम में डा्कर दशे पर ममटने िा्े साहसी पाँच िीरों को परम िीर चक्र से सममामनत मकया गया। यह सममान भारत में िीरता के

    1947–सवतंत्रता िा आगमन, जो सीमाओ ंपर लोगों एंव ज़मीनों िा भारत और पाकिसतान िे रूप में क वभाजन िे घाव िा कनशान छोड़ गया।

  • 3

    भारत-पाकिसतान यदु्ध, 1947–48

    म्ए मदया जाने िा्ा सिवोचच सममान था। इस यदु्ध में मेजर सोमनाथ शमा्ष, नायक जदनुाथ मसंह और कंपनी हि्दार मेजर पीरू मसंह ्डते हुए शहीद हुए। उनहें मरणोपरांत यह परम िीर चक्र प्दान मकया गया। 2/्ेम्टटनेंट राम राघोबा राण ेतथा ्ांस नायक करम म संह ये दो ऐसे सैमनक थे, मजनहोंने सियं यह परुसकार प्ातत मकया।

    आज हम मजस दशे में हैं और जैसा दशे हमारे सामने ह,ै इसे ऐसा बनाए रखने में दशे के बहुत से अज्ात सैमनकों और सामानय ्ोगों की जानें गई हैं। अगर धयान से सनुें तो आज भी दशे की हिा और ममट्ी में उनकी कहामनयाँ गमूँज रही हैं। ये िो ्ोग थे, मजनहोंने अपनी हर साँस को ितन के नाम कुबा्षन कर मदया, तामक हम आजाद दशे में शांमत से रह सकें । आप जानते हैं िो कौन थे? आइए, उनकी मजंदगी के कुछ एहसासों को हम भी अपने भीतर तक महसमूस करें... कुछ प् इनके साथ मजए,ँ ्ाड्ष अलेफड टेमनसन की इन पंमकतयों के साथ —

    “ह ैउनके निए नहीं निरह करनाह ैनसर्फ़ इतना

    कर गजु़रना और मर नमट िाना।”

  • सघंर्ष सरूज िे चढ़ने से ढलने ति िा – 3 नंवबर 1947

    खदंक के मकनारे अपने त्ासटर चढे हाथ को मटकाए धीरे से मजेर सोमनाथ शमा्ष ने मसर ऊपर उठाया, उनकी आखँों में चमक थी। उनहोंने समूरज को दखेा, जो धीरे-धीरे पमशचम की ओर जा रहा था। अब उनके सामने हर प् को यमुकतबद्ध ढंग से जी ्ेने की चनुौती थी। िह समूरज से होड ्गा चकेु थे। अब उनके चहेरे पर कोई तनाि नहीं था। उनहोंने उगते हुए समूरज का सिागत म कया। अब उनके चहेरे पर दशे पर मर म मटने का जजबा साफ झ्क रहा था।

    इस बात की खमुफया समूचना मम्ने पर मक पामकसतानी सेना की अगिुाई में ्गभग एक हजार पठानों का ्शकर श्ीनगर की तरफ बढ रहा ह,ै सबुह ही मजेर सोमनाथ के नेततृि में 4 कुमाऊँँ की ‘ए’ और ‘डी’ कंपनी के ्डाकमू दसते और कैतटन रोनालड िडु के नेततृि में 1 पैरा कुमाऊँंँ की कंपनी को बडगाम की ओर रिाना कर मदया गया था।

    बडगाम, श्ीनगर एयरफीलड से 3– 4 मी् की दमूरी पर मसथत एक छोटा सा गाँि ह।ै रपट में कहा गया था मक उन पठानों का मकसद, मजनका नेततृि पामकसतानी सेना के सैमनक कर रह ेथे, श्ीनगर एयरफीलड पर कब्जा करना ह,ै तामक सत्ाई ्ाइन काट कर इमंडयन आममी को बेअसर बनाया जा सके। मजेर सोमनाथ शमा्ष के नेततृि िा्े इस ्डाकमू दसते को यह मजममदेारी सौंपी गई मक िे छापामारों को ढमूँढकर उनहें िहीं बडगाम में उ्झाए रखें।

    तडके सबुह ही मजेर शमा्ष ने ररपोट्ष मकया मक उनकी कंपनी ने गाँि के पमशचम में एक पहाडी पर पोजीशन ्े ्ी ह ैऔर उनहोंने िहाँ खदंकें खोद ्ी हैं। 1 पैरा कुमाऊँँ ने भी गाँि के दमक्ण-पमूि्ष में पोजीशन ्े ्ी थी और उनकी ररपोट्ष के मतुामबक गाँि में चुतपी और शांमत थी। गाँििासी अपने-अपने काम में ्गे हुए थे, ्ेमकन बहुत डरे-सहम ेनजर आ रह ेथे। उनहोंने दखेा मक कुछ गाँििा्े पास ही एक ना्े के समीप एकमत्रत हो गए थे, जैसे उनहोंने िहाँ शरण ्े रखी हो। चमूमँक, बडगाम शांत नजर आ रहा था इसम्ए 1 पैरा कुमाऊँँ को पमूि्ष का चककर ्गाने तथा त्ाशी के बाद और 1 पंजाब से संपक्ष साधने

    1

    सोमनाथ शमा्ष

  • 5

    भारत-पाकिसतान यदु्ध, 1947–48

    के बाद एयरफीलड ्ौटने का आदशे मदया गया। उनहें जैसा कहा गया था, उनहोंंने िैसा ही मकया और दोपहर एक बजे तक श्ीनगर िापस ्ौट आए। बडगाम की मसथमत अब म नयंत्रण में थी, इसम्ए मजेर सोमनाथ को िहाँ से अपनी कंपनी को हटाने का आदशे मदया गया, हा्ाँमक िे शाम तक इस कंपनी को बडगाम में ही रखना चाहते थे।

    इस बीच सीमा के दमूसरी ओर ्शकर छोटी-छोटी टुकमडयों में जमा हो रहा था, तामक मकसी को शक-शबुहा ना हो। एक पामकसतानी मजेर उनकी अगिुाई कर रहा था। िह गाँि में गशत ्गाती भारतीय सेना के जिानों को चकमा दनेे की एक समुनमशचत योजना बना रहा था। यह एक बडी भारी याेजना थी। दोहपर दो बजे के करीब जब ‘ए’ कंपनी बडगाम छोड चकुी थी, पामकसतानी मजेर ने फैस्ा मकया मक दोपहर के बाद इतंजार नहीं करना ह ैअौर जैसे ही उसके पास 700 के करीब छापामार घसुपैमठए जमा हुए, उसने हम्ा बो् मदया। दोपहर ढाई बजे के करीब मजेर सोमनाथ यह दखेकर हरैत में पड गए मक उन पर गाँि की तरफ से गोम्याँ च्ने ्गी हैं। मरिगेड कमांड को इत्त्ा द ेदी गई मक उनकी पोजीशन पर हम्ा बो् म दया गया ह।ै पर िे जिाबी हम्ा करने से कतरा रह ेहैं कयोंमक इसमें मासमूम गाँििा्ों के, म जनमें औरतें अौर बचच ेभी शामम् हैं, म नशाना बनने का अदंशेा था। तब तक एक पहाडी की तरफ से और घसुपैमठए आ चकेु थे। म जंदा ्ौटे म सपामहयों ने बताया मक मजेर सोमनाथ अपनी सरुक्ा की परिाह मकए बगैर एक खदंक से दमूसरी खदंक में भागते हुए अपने मसपामहयों का हौस्ा बढा रह ेथे और उनहें बहादरुी से ्डने के म ्ए पे्ररत कर रह ेथे। मसपामहयों के साहस और संकलप की िजह से ही शत्र ुपक् की तरफ से हो रह ेशरुुआती हम्ों को सफ्तापमूि्षक नाकाम कर मदया गया था।

    ्ेमकन पामकसतानी पठानों की ताकत बडी तादाद में थी और इसी ताकत का इसतेमा् करते हुए उनहोंने दबाि बढाना शरुू कर म दया। जलद ही उनहोंने ‘डी’ कंपनी को तीन तरफ से घरे म्या और पहाडी पर चढने ्गे, जहाँ खदंकें मौजमूद थीं। मजेर सोमनाथ जानते थे मक दशुमन संखया में उनसे कहीं जयादा हैं। उनहोंने अपने मरिगेड कमांडर से हमथयार, गो्ा-बारूद और अमतररकत सैमनक भजेने को कहा। मदद पहुचँने तक शत्र ुपक् को िहीं उ्झाए रखना एक बडी चनुौती थी। उनहें पता था मक अगर एसेा नहीं म कया गया तो छापामार मबना मकसी रोकटोक के एयरफीलड तक पहुचँ कर श्ीनगर एयरबेस पर कब्जा कर सकते थे। उनहें यह भी पता था मक उनकी कंपनी मिपक्ी को जयादा दरे नहीं रोक पाएगी, अत: उनके सामने चनुाैती थी म क िे अपने मसपामहयों का आतममिशिास बनाए रखें। इसी कारण अपनी सरुक्ा की परिाह मकए बगैर िे ख्ेु मदैान में आकर अपने मसपामहयों की हौस्ा अफजाई कर रह ेथे।

  • 6

    वीर गाथा

    इस तरह उनहांनेे ्डाई को पाँच घटंों तक जारी रखा। यह भारतीय सेना के म्ए बेशकीमती िकत था कयोंमक ि ेहम्ािरों को उ्झाए रखने में कामयाब हो रह ेथे, मजससे भारतीय िायसेुना को और अमधक सैमनकों की मदद भजे पाने का िकत मम् रहा था।

    आमखरकार उनका गो्ा-बारूद ख़तम होने ्गा। जब मरिगेड मखुया्य को इसकी समूचना दी तो उनहें पीछे हटने के म्ए कहा गया। आदशे मम्ने के बाद मजेर सोमनाथ शमा्ष एक मसपाही को गन ्ोड करने में मदद करने के म्ए दमूसरी खदंक में गए। इसी बीच एक मोटा्षर श्े गो्ा-बारूद के बकसे पर आ म गरा और एक जोरदार धमाका हुआ। मजेर सोमनाथ शमा्ष के साथ उनका अद्ष्ी और एक जमूमनयर कमीशडं ऑमफ़सर (जेसीअो) भी शहीद हो गए।

    भारतीय सेना ने पमूरी ताकत से जिाबी हम्ा बो् कर 5 निंबर की सबुह बडगाम पर कब्जा कर म्या। पर इस ्डाई में 4 कुमाऊँ ने अपने बहादरुों — मजेर सोमनाथ शमा्ष, समूबेदार पे्म मसंह महेता और बीस मसपामहयों को खो मदया। मजेर सोमनाथ शमा्ष को उनके अभमूतपमूि्ष नेततृि और अदमय साहस द्ारा भारतीय पोसट को पनु: प्ातत कर ्ेने के म ्ए परम िीर चक्र से सममामनत मकया गया।

    िभी न भुलाए जाने वाले पल

    त्ासटर िा्ी जखमी बाँह की परिाह मकए मबना मजेर सोमनाथ शमा्ष ने कशमीर

    मोचचे पर जाने की मजद्द की। शायद भाग्य को ््कारते हुए िे मतृय ुसे होड ्े

    रह ेथे। मतृय ुऔर म िनाश के बीच ‘डी’ कंपनी के ्ांस नायक ब्िंत मसंह ने

    एक बहुत ही साहसपमूण्ष काय्ष मकया। जब अमधकांश मसपामहयों के पास आमखरी

    एक-दो राउंड के म्ए ही गो्ा-बारूद बचा था, ऐसे समय में उनहोंने अपने

    सामथयों को आगे बढने और दमूसरे आक्रमण के म्ए तैयार रहने को कहा।

    ब्िंत मसंह ने अपनी जान को जोमखम में डा्कर प्मतपमक्यों पर हम्ा कर

    मदया। ‘डी’ कंपनी की इस बमुद्धमत्तापमूण्ष काय्ष के कारण हम्ािरों को 6 घटें

    तक रोके रखा जा सका। यह समय भारतीय सेना के म्ए पोजीशन ्ेने और

    उनहें हिाई पट्ी तक पहुचँने से रोकने के म्ए काफी था। दसतों को हिाई जहाज

    से भी ्गातार मदद पहुचँाई जा रही थी। अब िे म कसी भी हम्े का सामना

    करने के म ्ए तैयार थे।

  • 7

    भारत-पाकिसतान यदु्ध, 1947–48

    सोमी से मेजर साेमनाथ िा सफ़र

    मजेर सोमनाथ शमा्ष का जनम कांगडा म ज्े में 31 जनिरी 1923 को हुआ था। उनके मपता अमरनाथ शमा्ष एक ममेडक् कोर के ऑमफ़सर थे, जो बाद में मजेर जनर् के पद तक पहुचँ।े सोमनाथ को बचपन में ‘सोमी’ नाम से पकुारा जाता था। उनके एक भाई, सरुरंद्र नाथ शमा्ष थे, मजनहें आममी सक्ष लस में ‘मटंडी’ के नाम से जाना जाता था। जब मटंडी चार सा् के थे, उनके मपता को ममेडक् कोस्ष करने के म्ए इगं््ैंड भजेा गया। सोमी और मटंडी को, मजनकी उम्र में महज एक सा् का अतंर था, मसमूरी के हैंपटन कोट्ष कॉनिेंट भजे म दया गया। सीमनयस्ष उनहें बहुत तंग करते थे, ऐसे में सोमी, मटंडी के रक्क बन जाते थे। िे उनसे कद में ्ंबे और चौडे भी तो थे। सामानय ज्ान और इमतहास को छोडकर सोमी का मन पढाई-म्खाई में कम ही ्गता था। दोनों में इस बात पर आपसी समझौता था मक सोमी धौंस जमाने िा्े बचचों से म टंडी की महफाजत करेगा और मटंडी उसका सारा होमिक्ष कर मदया करेगा, जो सबुह सोमी अपनी कॉपी में ंउतार ्ेता था।

    आगे की पढाई भी दोनों ने साथ-साथ की। िे शरेिडु सकमू ्, नैनीता् में साथ में पढे। फौज में भतमी की इचछा के कारण उनहें मपं्स ऑफ िेलस ममम्टरी कॉ्ेज (अब राष्ट्रीय इमंडयन ममम्टरी कॉ्ेज), दहेरादमून में दामख्ा मद्ाया गया। िहाँ से परीक्ा पास करने के बाद मई 1941 में उनहोंने इमंडयन मम म्टरी अकादमी (आई.एम.ए.) जिाइन की। तब तक यदु्ध आरंभ हो चकुा था तो उनहें आईएमए की टे्रमनंग को बीच में ही खतम करना पडा। नौ महीने की जोरदार टे्रमनंग के बाद सोमनाथ शमा्ष फरिरी 1942 में 8/19 हदैाराबाद रेमजमेंट, मजसे अब 4 कुमाऊँँ के नाम से जाना जाता ह,ै में कमीशडं ऑमफ़सर बन चकेु थे। उस समय िे मात्र 19 सा् के थे।

    4 कुमाऊँँ में बतौर एडजटुेंट (सहायक सैमनक अमधकारी) भारत ्ौटने पर सोमी पंजाब के कई म हससों में आतंररक सरुक्ा की ड्यमूटी करने ्गे और 1947 की अशांमत को मनयंमत्रत करने के म ्ए भी पमु्स और प्शासन की मदद के काम में जटु गए। जब 1947 में कशमीर मं ेअशांमत फै् गई और भारत ने पामकसतानी छापामारों से कशमीर को बचाने के म्ए सेना भजेने का फैस्ा मकया तो इनहीं खमूमबयों के च्ते उनहोंने इस दौरान अपनी कंपनी का नेततृि मकया। पह्े तो 4 कुमाऊँ के कमांमडंग ऑमफ़सर सोमी को भजेने के म ्ए तैयार नहीं थे, ्ेमकन उनकी ्गन को दखेते हुए कमांमडंग ऑमफ़सर ने आमखरकार उनहें भजेने पर हामी भर दी और उनहें 4 कुमाऊँँ की दो कंपनीज के नेततृि का भार सौंपा गया। यह कहानी अकसर मकताबों और आममी मसेों में सनुाई जाती ह—ैसाहस अौर गौरि की कहानी।

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    वीर गाथा

    एि बार सैकनि, सदा िे कलए सैकनि

    सोमनाथ अराकान में थे, जहाँ जापान के साथ अराकान तट पर मद्तीय मिशि

    यदु्ध की सबसे खतरनाक ्डाई ्डी गई। इसमें तीन भारतीय बटाम्यनों ने

    मरिमटश कमांडो की बटाम्यन के साथ महससा म्या था। यहीं पर सोमनाथ ने

    एक बार एक कुमाऊँनी मसपाही को जखमी हा्त में पेड के सहारे बैठे दखेा था।

    जब सोमनाथ ने उससे भागने को कहा तो उसने जिाब म दया मक चोट के कारण

    िह खडा नहीं हो सकता। सोमनाथ ने उसे अपनी पीठ पर ्ादा अौर जापानी

    गो्ाबारी के बीच से होते हुए उसे सरुमक्त जगह पर पहुचँाया।

    मिेर सोमनाथ शमाफ़, राष्टीय इनंियन न मनिटी कॉिेि (आर.आई.एम.सी.), दहेरादनू के छात्र थे।

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    प्रशस्ति पत्र

    मेजर सोमनाथ शमामा(अाई सी – 521), 4 कुमाऊँँ

    3 नवबंर 1947 को मेजर सोमनाथ शमामा की कंपनी को कशमीर घाटी के बडगाम में मोरामा सभंालने का आदशे ददया गया था। 3 नवबंर को पौ फटने के साथ ही, वे अपने लक्षय तक पहुरँ गए अौर 11 बजे बडगाम के ददषिण में अपना मोरामा सभंाल द लया। लगभग 500 की सखंया में दशुमनों ने तीन ओर से इनकी सेना पर हमला द कया, द जसके कारण कंपनी को भारी षिदत उठानी पडी।

    पररद्थदत की गभंीरता को पूरी तरह समझते हुए, जो दक हवाई अड्डे और श्ीनगर दोनों के दलए सीधा खतरा हो सकती थी, शत् ुके हमले को अदतररक्त सहायता आ जाने तक तथा हमहमा से श्ीनगर तक ले जाने वाली जगह को बदं दकए जा सकने तक, मेजर शमामा ने अपनी कंपनी से दृढ़तापूवमाक शत्ओु ंसे लडने का आग्रह दकया। अतयतं बहादरुी के साथ वे खलेु मैदान में इधर-उधर अपनी टुकदडयों के पास दौडते हुए उनसे डटे रहने का आग्रह करते रहे। इस सबके दौरान उन्हें भारी तथा अरूक गोलाबारी का सामना करना पडा।

    अपना साहस बरकरार रखते हुए उन्होंने कुशलतापूवमाक अपनी टुकदडयों द्ारा की जा रही गोलीबारी को लगातार आगे बढ़ रहे दशुमन की ओर मोड ददया। उन्होंने बार-बार पूरी भयावहता के साथ दशुमन की ओर से हो रही गोलीबारी का सामना दकया और उनके सामने ही अपने हवाई जहाजों को उनके लक्षय तक पहुरँने के दलए कपडे की परटिया ँदबछाइइं।

    इस बात को समझते हुए दक षिदतयों के कारण उनके हलके ्वरादलत हदथयार उतने प्रभावी नहीं रह गए थे, इस अदधकारी ने दजसके बाए ँहाथ में पला्टर लगा हुआ था, खदु ही गोदलया ँभरना और उन्हें हलकी मशीनगन रलाने वालों को दनेा आरभं कर ददया। एक मोटामार शेल हदथयारों के ठीक बीर में अा द गरा, दजसके फल्वरूप हुए द व्फोट ने उनकी जान ले ली।

    मेजर शमामा की कंपनी अपनी जगह पर डटी रही अौर शेष सैदनक तभी पीछे हटे, जब वे लगभग पूरी तरह से द घर गए। उनके पे्ररक उदाहरण ने दशुमन को 6 घटें तक रोके रखा और इस तरह हमार ेअदतररक्त सैन्य बलों को हमहमा में मोरामा सभंाल लेने और तेजी से बढ़ते दशुमन को रोकने के दलए समय द मल गया।

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    उनकी नेतृतव षिमता, वीरता तथा कुशल प्रदतरषिण षिमता इस प्रकार की थी द क उनके सैदनक सबुह सात बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक, इस बहादरु अदधकारी की मृतय ुके 6 घंटे बाद तक, प्रदतपषिी का सामना करते रहे।

    उन्होंने साहस तथा अन्य गणुों का ऐसा उदाहरण प्र्ततु दकया है, दजसका सानी भारतीय सेना के इदतहास में दवरले ही दमलता है। अपनी मौत से कुछ ही षिणों पहले, दरिगेड-हेडक्वाटमार को उनका आदखरी सदंशे था — “दुश्मन हमसे केवल 50 गज की दूरी पर है। हम सखं्या में उनसे बहुत कम हैं। हमें ि वध्वसकं गोलीबयारी कया सयामनया करनया पड़ रहया है। मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटँूगया, बि्क आििरी िसपयाही और आििरी वयार तक लडँ़़गया।”

    गजट अॉफ़ इंदडया नोदटदफ़केशन स.ं 2–पे्रसी./50

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    CitationMajor Somnath Sharma(IC-521), 4 Kumaon

    On 3 November 1947, Major Somnath Sharma’s company was ordered on a fighting patrol to Badgam in the Kashmir Valley. He reached his objective at first light on 3 November and took up a position south of Badgam at 1100 hours. The enemy, estimated at about 500 attacked his company position from three sides, the company began to sustain heavy casualties.

    Fully realising the gravity of the situation and the direct threat that would result to both the aerodrome and Srinagar if the enemy attack was not held until reinforcements could be rushed to close the gap leading to Srinagar via Humhama, Major Sharma urged his company to fight the enemy tenaciously. With extreme bravery, he kept rushing across the open ground to his sections exposing himself to heavy and accurate fire to urge them to hold on.

    Keeping his nerve, he skilfully directed the fire of his sections into the ever-advancing enemy. He repeatedly exposed himself to the full fury of enemy fire and laid out cloth strips to guide our aircraft onto their targets in full view of the enemy.

    Realising that casualties had affected the effectiveness of his light automatics, this officer whose left hand was in plaster, personally commenced filling magazines and issuing them to the light machine gunners. A mortar shell landed right in the middle of the ammunition resulting in an explosion that killed him.

    Major Sharma’s company held on to its position and the remnants withdrew only when almost completely surrounded. His inspiring example resulted in the enemy being delayed for six hours, thus gaining time for our reinforcements to get into position at Humhama to stem the tide of the enemy advance.

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    His leadership, gallantry and tenacious defence were such that his men were inspired to fight the enemy by seven to one, six hours after this gallant officer had been killed.

    He has set an example of courage and qualities seldom equalled in the history of the Indian Army. His last massage to the Brigade Headquarters a few moments before he was killed was, “The enemy are only 50 yards from us. We are heavily outnumbered. We are under devastating fire. I shall not withdraw an inch but will fight to the last man and the last round.”

    Gazette of India NotificationNo. 2–Pres./50

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    जदुनाथ क सहं

    वीरता िी कवरासतयह कहानी एक ऐसे मसपाही की ह,ै जो अपने दशे के म्ए ही मजया और मरा। जदनुाथ मसंह का जनम उत्तर प्दशे के एक छोटे से गाँि खजमूरी में 21 निंबर 1916 को हुआ था। उनके माता-मपता बीरब् मसंह राठौर तथा जमनुा कंिर गरीब मकसान थे। आठ बचचों िा्ा उनका एक बडा पररिार था। जदनुाथ ने अपने गाँि के म िद्ा्य से ही चौ थी कक्ा तक क�