श्री गुरुगीता · ूतजी ने का : े िव...

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गुगीता अनुम ाˑाविक भगिान शंकर और दे िी पािवती के संिाद कट यह 'ीगुरगीता' सम 'ˋ Ƚपुराण' का वनʺहै इसके हर एक ʶोक सूत जी का सचोट अनुभि ʩ होता है जैसे मुखˑʁकरं चैव गुणानां ववधनम् दुʺमधनाशनं चैव तथा समधवसȠदम् "इस गुरगीता का पाठ शु का मुख बȽ करने िला है , गुणों की िȠ करने िला है , दुʺृ ȑों का नाश करने िला और समव वसȠ दे ने िला है" गुरगीतारैके कं मंराजवमदं विये अɊे वा मंा कलां नाधȶषोडशीम् "हे वये ! ीगुरगीता का एक एक अर मंराज है अɊ जो विविध मं िइस का सोलहिा भाग भी नहीं" अकालमृȑुंी सवध संकटनावशनी यरासभूतावद चोरʩाववघावतनी

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शरी गरगीता

अनकरम

परासताविक

भगिान शकर और दिी पािवती क सिाद म परकट हई यह शरीगरगीता समगर सकनदपराण का वनषकरव ह इसक हर एक शलोक म सत जी का सचोट अनभि वयकत

होता ह जसः

मखसतमभकर चव गणाना च वववरधनम

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम

इस शरी गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करन िाला ह गणो की िदधि करन िाला ह दषकतो का नाश करन िाला और सतकमव म वसदधि दन िाला ह

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधिषोडशीम

ह वपरय शरीगरगीता का एक एक अकषर मतरराज ह अनय जो विविध मतर ह ि इस

का सोलहिाा भाग भी नही अकालमतयरतरी च सवध सकटनावशनी

यकषराकषसभतावद चोरवयाघरववघावतनी

शरीगरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और शर आवद का घात करती ह

शवचभता जञानवतो गरगीता जपदधि य

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत

जो पवितर जञानिान परर इस शरीगरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता इस शरीगरगीता क शलोक भिरोग-वनिारण क वलए अमोघ औरवध ह साधको क वलए परम अमत ह सवगव का अमत

पीन स पणय कषीण होत ह जबवक इस गीता का अमत पीन स पाप नषट होकर पर

म शावत वमलती ह सवसवरप काभान होता ह

तलसीदास जी न ठीक ही कहा हः

गर विन भववनवर तरवर न कोई

जो विरवच सकर सम रोई

आतमदि को जानन क वलए यह शरीगरगीता आपक करकमलो म रखत हए ॐॐॐ

परम शावत

विवनयोग ndash नयासावद

ॐ असय शरीगरगीतासतोतरमालामतरसय भगिान सदावशिः ऋवर विराट छनदः शरी गरप

रमातमा दिता ह बीजम सः शदधकतः सोऽहम कीलकम शरीगरकपापरसादवसदधयरथ ज

प विवनयोगः

अरथ करनयासः

ॐ ह सा सयावतमन अगषठाभा नमः

ॐ ह सी सोमातमन तजवनीभा नमः

ॐ ह स वनरजनातमन मधयमाभा नमः

ॐ ह स वनराभासातमन अनावमकाभा नमः

ॐ ह स अतनसकषमातमन कवनवषठकाभा नमः

ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः

इवत करनयासः

अरथ हदयावदनयासः

ॐ ह सा सयावतमन हदयाय नमः

ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा

ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट

ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम

ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट

ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट

इवत हदयावदनयासः

अरथ धयानम

नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम

वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1

िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम

वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2

िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम

ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3

तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम

ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4

तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः

पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5

इवत धयानम

मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा

ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरदिाय नमः पवरथवयापक गध समपवया

वम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः आकाशातमक पषप

समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमनशरीगरदिाय नमः िापवातमक ध

प आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः तजातमक दीप दशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः अपातमक न

िदयक वनिदयावम ससिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः सिावतमका

न सिोपचारान समपवयावम

इवत मानसपजा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| अथ िथमोऽधयायाः||

अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |

समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||

पहला अधयाय

जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका

र हो | (1)

ऋषयाः ऊचाः

सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |

गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||

ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह

म सनाओ | (2)

यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |

यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||

यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |

तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||

वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)

गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ

पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप

णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर

िा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क

लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ

हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-

बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प

छा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर

त ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप

होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत

म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर

कार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137

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शरीगरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और शर आवद का घात करती ह

शवचभता जञानवतो गरगीता जपदधि य

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत

जो पवितर जञानिान परर इस शरीगरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता इस शरीगरगीता क शलोक भिरोग-वनिारण क वलए अमोघ औरवध ह साधको क वलए परम अमत ह सवगव का अमत

पीन स पणय कषीण होत ह जबवक इस गीता का अमत पीन स पाप नषट होकर पर

म शावत वमलती ह सवसवरप काभान होता ह

तलसीदास जी न ठीक ही कहा हः

गर विन भववनवर तरवर न कोई

जो विरवच सकर सम रोई

आतमदि को जानन क वलए यह शरीगरगीता आपक करकमलो म रखत हए ॐॐॐ

परम शावत

विवनयोग ndash नयासावद

ॐ असय शरीगरगीतासतोतरमालामतरसय भगिान सदावशिः ऋवर विराट छनदः शरी गरप

रमातमा दिता ह बीजम सः शदधकतः सोऽहम कीलकम शरीगरकपापरसादवसदधयरथ ज

प विवनयोगः

अरथ करनयासः

ॐ ह सा सयावतमन अगषठाभा नमः

ॐ ह सी सोमातमन तजवनीभा नमः

ॐ ह स वनरजनातमन मधयमाभा नमः

ॐ ह स वनराभासातमन अनावमकाभा नमः

ॐ ह स अतनसकषमातमन कवनवषठकाभा नमः

ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः

इवत करनयासः

अरथ हदयावदनयासः

ॐ ह सा सयावतमन हदयाय नमः

ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा

ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट

ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम

ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट

ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट

इवत हदयावदनयासः

अरथ धयानम

नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम

वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1

िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम

वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2

िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम

ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3

तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम

ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4

तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः

पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5

इवत धयानम

मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा

ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरदिाय नमः पवरथवयापक गध समपवया

वम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः आकाशातमक पषप

समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमनशरीगरदिाय नमः िापवातमक ध

प आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः तजातमक दीप दशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः अपातमक न

िदयक वनिदयावम ससिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः सिावतमका

न सिोपचारान समपवयावम

इवत मानसपजा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| अथ िथमोऽधयायाः||

अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |

समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||

पहला अधयाय

जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका

र हो | (1)

ऋषयाः ऊचाः

सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |

गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||

ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह

म सनाओ | (2)

यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |

यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||

यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |

तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||

वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)

गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ

पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप

णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर

िा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क

लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ

हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-

बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प

छा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर

त ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप

होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत

म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर

कार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः

इवत करनयासः

अरथ हदयावदनयासः

ॐ ह सा सयावतमन हदयाय नमः

ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा

ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट

ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम

ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट

ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट

इवत हदयावदनयासः

अरथ धयानम

नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम

वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1

िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम

वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2

िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम

ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3

तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम

ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4

तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः

पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5

इवत धयानम

मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा

ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरदिाय नमः पवरथवयापक गध समपवया

वम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः आकाशातमक पषप

समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमनशरीगरदिाय नमः िापवातमक ध

प आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः तजातमक दीप दशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः अपातमक न

िदयक वनिदयावम ससिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरदिाय नमः सिावतमका

न सिोपचारान समपवयावम

इवत मानसपजा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| अथ िथमोऽधयायाः||

अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |

समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||

पहला अधयाय

जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका

र हो | (1)

ऋषयाः ऊचाः

सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |

गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||

ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह

म सनाओ | (2)

यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |

यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||

यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |

तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||

वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)

गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ

पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप

णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर

िा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क

लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ

हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-

बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प

छा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर

त ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप

होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत

म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर

कार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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इवत मानसपजा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| अथ िथमोऽधयायाः||

अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |

समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||

पहला अधयाय

जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी दखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसका

र हो | (1)

ऋषयाः ऊचाः

सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |

गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||

ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िद-िदागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप ह

म सनाओ | (2)

यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |

यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||

यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |

तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||

वजसको सनन मातर स मनषय दःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)

गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ

पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप

णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर

िा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क

लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ

हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-

बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प

छा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर

त ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप

होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत

म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर

कार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

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गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आ

पकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवप

णी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शर

िा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर क

लपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मवदर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ

हए शक आवद मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततवका बोध दत हए भगिान शकर को बार-

बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प

छा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर

त ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप

होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत

म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर

कार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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बार नमसकार करत दखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर प

छा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप दिो क दि शरषठो क शरषठ ह जगदगरो आपको परणाम हो | दि दानि और मानि सब आपको सदा भदधकतपिवक परणाम कर

त ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवद क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप

होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उतत

म गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती दिी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महादि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस पर

कार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महादि जी न कहा ह दिी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत दखकर िह र

हसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह दिी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा य

ह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | दोनो म जो अनतर मानता ह ि

ह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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ह वपरय िद शासतर पराण इवतहास आवद मतर यतर मोहन उचचाटन आवद विदया श

ि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तपवरत तीरथव यजञ दान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका वि

शलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरदि क पादसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता

ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरदि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक

उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

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Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरदि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरदि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरदि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरदि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरदि का पादोदक गगाजी ह | गरदि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरदि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरदि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरदि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तदाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरदि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत

हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सदा वचत

न करती ह उसी परकार सदा गरदि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावद) जावत कीवतव (पदपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरदि का ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरदि क मख म रहती ह और िह गरदि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म दि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह

| (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको दर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह

lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

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गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवद गणो का परकाशक ह और दसरा अकषर र

कार माया की भरादधनत स मदधकत दनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और िदानत क अरथव क पर

िकता ह | इसवलय शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमदम

वद) समपदारप ह | अतः शरी गरदि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरदि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरदि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

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ससार रपी अरणय म परिश करन क बाद वदगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव न

ही वदखाई दता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव वदखाया उन शरी गरदि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरदि ही एक

मातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरदिजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरदि क चरणामत क एक वबनद क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवद वशिजी नारज़ हो जाय तो गरदि बचानिाल ह वकनत यवद गरदि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरदि को सपरापत करक सदा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य दोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो दत ह उनको गर क

हत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (दो नतर िाल) साकषात वशि ह दो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

दि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरस

िा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िवदक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवद गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और दिता आवद भी मकत न

ही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानदसवरप ह परम सख दनिाल ह जो किल जञानसवरप ह

(सख दःख शीत-उषण आवद) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस

आवद महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो

क साकषी ह भािना स पर ह सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सदगरदि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरदि क दवारा उपवदषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवन

त िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए

| (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयादा कहन स का लाभ शरी गरदि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो

स भी वचतत की विशरावत दलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय दया भय सकोच वन

नदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनद दनिाल को सदग

र कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करताह िह (मनषय) जब तक

सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह दिी दह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरदि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाद भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरदि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरदि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा

वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरदि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरदि को त कहकर जो बो

लता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सदा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरदि क सारथ अदवत की भािना कदावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरदि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपद की परदधपत होती ह इसक वि

परीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवद गर का ताग कर द तो मत क समय उस महान विकषप अि

शय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह दिी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपदश नही दना चावहए | इ

स परकार उपदश दनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | दीकषा दना वयाखया

न करना परभतव वदखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए

(गरदि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

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गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए |

रात और वदन गरदि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म दास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरदि न नही वदया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरदि क वदय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत

हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पादका आसन वबसतर आवद जो कछ भी गरदि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरदि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना

चावहए | गरदि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवद धारण नही करन चावहए

| (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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गरदि की वननदा करनिाल को दखकर यवद उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा दना चावहए | यवद िह ठहर तो सवय उस सरथान का

पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और दिताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरदि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरदि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच

सनयासी ह अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध दत हए जस एक दीपक दसर दीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरदि की कपा स अपन भीतर ही आतमानद परापत करक समता और मदधकत क

मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

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Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा दपवण म दपवण वदख सकता ह उसी परकार

आतमा म जो वचत और आनदमय वदखाई दता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हदय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भा

ि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवद नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचदाननद हा म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी

अगमय अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबदजानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावद म गनधतव

(अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म

शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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वजस परकार कटक कणडल आवद आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सदा गरदि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म र

हता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरदि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही दि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

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अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता

ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

िदो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरद

ि क कपापरसाद क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरदि क शरी चरणो म जो िदानतवनवदवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषण

ि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरि

ती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरदि क दवा

रा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरदि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आ

िशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जातीह और उसी कष

ण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरदि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बर

हमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरदि का) दशवन पाकर उनक कपापरसाद स सिव परकार की आसदधकत छो

ड़कर एकाकी वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनदमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जी

ि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

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ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह दिी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िद पढ़ ल िद क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवद

अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरदि की दीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरदि की सपरादधपत रपी प

रम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गर

दि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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जञानरवहत वमथया बोलनिाल और वदखािट करनिाल गर का ताग कर दना चावहए

कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह दसरो को का शावत द सकगा |

(102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खद तरना

नही जानता िह दसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन दशवन स (वदखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणा

म नही करना चावहए | इतना ही नही दर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भदबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट दराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल

कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाद करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करनाचावहए | ऐसा विचार करक ऊप

र वदय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए |

(105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह

| समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह |

(108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा

| ह दिी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए |

(109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससारर

पी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह क

मव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह दिी इस गरगीता को वनत भािपिवक हदय म धारण करो | महावयावधिाल दः

खी लोगो को सदा आनद स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही |

(113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह दिी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िा

ली और सिव दाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत

चोर और बाघ आवद का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और दषट रोगो और दोरो का वनिारण करनिा

ली ह | शरी गरदि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ

करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध दर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए |

(117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह दिराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह |

(118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह

दषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि दनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह दःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत

करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परदान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर दनिाली सधिा सतरी क िधववय का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवद िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब दःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत

कराता ह | इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह |

(126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137

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यवद कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हदय म सिवदा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह

| (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिादी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सदह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर

क (वशषयक) सिव कायव वसि होत ह इसम सदह नही ह | (129 130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह दसर क नही | दीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय दया भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन

क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

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क वलए गरगीता रपी गगा म सदा सनान करत रहत ह |सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म दिता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार

जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक दशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह दिी कश और दिाव क आसन पर सिद कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर

एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिद आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह

वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स दाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रो

ग भवम पर बठकर जप करन स दःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय ह

ए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और दभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव प

र जप करन स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की त

रफ दशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर वदशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव वदशा की ओर िशीकरण

दवकषण वदशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम वदशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या न

दी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या दिी क मवदर म ग शाला म सभी श

भ दिालयो म िटिकष क या आािल क िकषक नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल

सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना

चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल

म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स

वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह दिी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब

गरदि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपदश को नही मानत ि घोर

नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरदि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह|

ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अदर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय

ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरदि ही ह | इसम सशय नही ह |

(151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही दि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ न

ही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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वजस परकार सागर म पानी दध म दध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अ

वभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सदा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-वदन आनदविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरदि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह दिी गरदि की कपा

स िह अवणमावद वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी वदन म या रात म सदा सिवदा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी

अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह दिी गरदि क चरणकमल

सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

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ह दिी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लो

गो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावद को यह गरगीता कहन का मन म सोच

ना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हदय का सताप ह

रनिाला एक गर भी दलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम

गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सदाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवद भद स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार कर

क ततववनषठ सदगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137

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वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह दिी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो

िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन

करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवद मतरो का उपदश दनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम

दो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवद तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततवदशी पवडत वनवरि

गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और दःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बता

त ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

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ह पािवती ततवमवस आवद महािाको का उपदश दनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिा

रण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो

विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सदगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय प

नः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर

का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवद दियोग स वनवरि गर

का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

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बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय दषट सकलपो स दवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही हो

ता पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह दिी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कह

लाता ह ऐसा उपवनरद कहत ह | अरथावत दि योग स गर परापत होन की बात अलग ह

और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अदर ही वदखात ह ि ही गर हो

न चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम

गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावद दोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और

विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

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सिव काल और दश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही स

चमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छदन

िाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक दशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम

गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी

और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ दो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन दोनो म

स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर

को पार करान म समरथव होत ह | कोवकशासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सश

यो का छदन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

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पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह दिी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमा

तर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतदार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरदि ही उस स

मय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरदि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरदि क तपव

ण स बरहमा आवद सब दि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह दिी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावद सब कछ नही वकय हए क बराबर ह बालक क बकिाद क समान (वयरथव) ह |

(188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरदीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच प

श क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

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इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वब

ना मढ लोग उस परम पद को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरदि की कपा स हदय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह

और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िद और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स

भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

दजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ दन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन दखा जाता

ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन

ताग वकया ह उसक वलए गरदीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उ

सक वलए गरदीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

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अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह दिी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव स

दा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक क

हनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन दभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता कदावप नही कहनी

चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनदक को गरगीता वबलकल नही क

हनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपदश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर

वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

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गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स दररदरता आती ह और गर एि म

तर दोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरदि रकषण करत ह लवकन गरदि क करोध स वशिजी रकषण नही कर

त | अतः सब परयतन स गरदि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का दो

अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह दिी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गर

गीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भिदःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरदीकषाविहीन मनषय क आग कभी

नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो

क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

रप शरी सदगरदि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

जञान का परकाश दकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

Sandra Ramdoelare Pandy Ashram Shri Dutcheswar Dhaam

Oukoop 12 3626 AW Nieuwersluis

Navigatieadres Ter Aaseweg 5 te Nieuwersluis Hier

aangekomen de weg inrijden 2 km lang tot u bij Ashram aankomt

Info 06-47988086 06-36588825 06-47334747 Email

sanatanhotmailnl srpsanlivenl website wwwmuhurtanl

Stichting Shri Sanatan Dharma Nederland

Bankreknummer NL16 INGB 0001 7261 38

httpswwwgeefnlnldoneercharity=3137

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सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सदगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय स

िव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरदि क चरणामत का पान करना चावहए गरदि क भोजन म स बचा हआ खाना ग

रदि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरदि म समाविषट ह | गरदि स अवधक और क

छ भी नही ह इसवलए गरदि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरदि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपद वमलता ह | गर क मागव पर

चलनिालो क वलए गरदि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाद स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय

करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह दिी गर यह दो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िद और परा

णो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसव

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अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

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ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको

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