कविता तरंग - karnatakapost.gov.in · ते संघर्ष जीवन...

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1 ईबुक (ईपुिका) (नगर राजभाषा काा ावन समिमि (काा ाल-2), बगलू के िवावधान ि मिनाक 10.01.2018 को अिरमवभाग, इसरो िाल, बगलू ारा आोमजि का गोठीि िुि कुछ वरमिि कमविाओ का सकलन) नगर राजभाषा काा ावन समिमि (काा ाल-2), बगलू संोजक : ि पोटिाटर जनरल काा ाल कना ाटक समकाल, बगलू 560001

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  • 1

    ईबुक (ईपुस्तिका)

    (नगर राजभाषा कार्ाान्वर्न समिमि (कार्ाालर्-2), बेंगलूरु के

    ित्वावधान िें मिनाांक 10.01.2018 को अांिररक्ष मवभाग, इसरो

    िुख्र्ालर्, बेंगलूरु द्वारा आर्ोमजि ‘काव्र् गोष्ठी’ िें प्रस्िुि कुछ

    स्वरमिि कमविाओां का सांकलन)

    नगर राजभाषा कार्ाान्तवर्न समिमि (कार्ाालर्-2), बेंगलूरु

    संर्ोजक : िुख्तर् पोतटिातटर जनरल कार्ाालर्

    कनााटक समका ल, बेंगलूरु – 560001

  • कविता तरंग

    ईबुक (ईपुस् तका) (नगर राजभाषा कार्ाान् टर्न मिति (कार्ाालर्-2), बेंगलूरु के त् टाटनान तें

    दिनाांक 10.01.2018 को अां ररक्ष वटभाग, इमरो तुख् र्ालर्, बेंगलूरु द्टारा आर्ोजज ‘काव् र् गो् ी.’ तें प्रस् ु कुस स् टरित कवट ांां का मांकलन)

    नगर राजभाषा कार्ाान् िर्न समितत (कार्ाालर्-2), बेंगलूरु संर्ोजक : िुख् र् पो् 8िा् 8र जनरल कार्ाालर्

    कनाा8क सर्का ल, बेंगलूरु – 560001

    08.08.2018

    पुस् तका पररिार

    संरक्षक : संपादक : डॉ. चार्ल सा लोबो डॉ. दीपा के. तुख् र् ोोस् ्तास् ्र जनरल, कनाा्क मर्का ल महार्क ि निेशक (राजभाषा) एटां एटां अध् र्क्ष, नराकाम (का-2), बेंगलूरु मिस् र् मितट, नराकाम (का-2), बेंगलूरु

    उप संपादक : श्री सुशील कुिार गोर्ल क. अनुटािक, तुख् र् ोोस् ्तास् ्र जनरल कार्ाालर् कनाा्क मर्का ल, बेंगलूरु – 560001

    संपादन िंडल : (1) श्री अब दलु कारदर दहांिी आशुिलवोक, तुख् र् ोोस् ्तास् ्र जनरल कार्ाालर् कनाा्क मर्का ल, बेंगलूरु – 560001

    (2) श्रीिती िाधुरी राि डाक महार्क, प्रौद्र्ोिगकी अनुभाग, तुख् र् ोोस् ्तास् ्र जनरल कार्ाालर् कनाा्क मर्का ल, बेंगलूरु - 560001

    ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ईबुक तें प्रकािश लेखों तें व् र्क् वटतार एटां ृषज् ्कोस मांबांिन लेखक के ह। ोुजस् का ोररटार एटां मांोािन तांडल का उममे महत होना आटश र्क नहीां है ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ि न:शुल् क वट रस के िलए

  • अनुक्रमणिका

    उद्बोधन - अध् रक्ष, नराकास (का-2), बेंगलूरु 1 संपादकीर - सदस् र सिव , नराकास (का-2), बेंगलूरु 2 हहदंी भाषा की महत् ाा कब बारब में क म महान य रक् ारक कब च वार 3

    क्र.सं. कविता का शीर्षक रचयिता का नाम पषृ् ि सं् िा 1. जननी आललरा ाैय्रबा 4 2. भ्रष् ाावार अन पमा एम. ी. 6 3. भ्रष् ाावार बलराम प्रसाद 8 4. भ्रष् ाावार डॉ. डी.पी.लसहं 14 5. भ्रष् ाावार दब प्रकाश ग प ाा 19 6. भ्रष् ाावार जी.वन्द् यशबखर 21 7. जननी ककरण अय्रर ी. 22 8. जननी महबश वंद बंसल 24 9. जननी मीरा रू. हास् रगार 25 10. भ्रष् ाावार राजभ न 27 11. भ्रष् ाावार रकम म काक र 28 12. जननी कचपला 30 13. जननी शलैजा कृष् णामूता ि 32 14. जननी श्ररांश शकंर नाचपा 34 15. जननी ाई.स बह्मण् रम 35 16. जननी बदानन्द् द पाण् डबर 37

  • ह िंदी भाषा की म त् ाा कब रा ब मक क म ान व् रक् ारक कब चारा इस प्रका ैं :- “राष्ट्रीय व्यवहार में हहन्दी को काम में

    लाना देश की उन्नति के ललए आवश्यक है” - म ात्मा गािंधी

    “जिस देश को अपनी भाषा और साहहत्य का गौरव का अनुभव नहीीं है, वह उन्नि नहीीं हो सकिा” - डॉ. ाजकद्र प्रसाद

    “हहींदी हमारे राष्ट् र की अलभव् यजत ि का सरलिम स्त रोि है” - स ममत्रानिंदन पिंा

  • 4

    म ाँ- तू मेरी जननी

    कह ाँ गए वो ह थ जो मेरे सर को सहल ते थे,

    हमेश वो मेरे ललए दआु में उठ ज ते थे|

    स्कूल ज ते वक़्त म ाँ वो तेर मेरी चुटिय बन न ,

    चुटिय बन ते बन ते कई अच्छी बुरी ब तें समझ न ,

    य द है म ाँ, मुझे ककसी गंतव्य पर पहुाँच ने के ललए

    तेर संघर्ष भर जीवन बबत न ,

    देख म ाँ मैं पहुाँच गयी उस मंजजल पर जह ाँ तू मुझ ेदेखन च हती थी,

    लेककन कह ाँ हो तुम म ाँ, अब तो तुम्हे आर मद यक जीवन देने की मेरी ब री थी|

    खो टदय मैंने तुम्हे इस जजंदगी की जद्दोजहद में,

    मंजजल पर पहुाँचने की होड़ में,

    क्यों बुल ललय उस खुद ने म ाँ तुम्हे इतनी जल्दी,

    अभी तो मैंने दनुनय की भीड़ में चलन सीख थ ,

    अभी तो मुझ ेखव बों के परों के स थ उड़न सीखन है म ाँ,

    य द है म ाँ, जजस टदन तूने वफ त प ई थी,

    उस टदन मेरी खुद से हुई लड़ ई थी,

    कक बबन म ाँ मैं जजउंगी कैसे,

  • 5

    बुल ले मुझ ेभी अपने प स ठीक वैसे,

    उसी टदन ख्व ब में, मेरी दआु क़ुबूल कर खुद ने मुझ ेटदखल य ,

    के भेज फ़ररश्त मुझ ेअपने प स बुलव य ,

    मैं झि तैय र हुई खुशी खुशी उसके स थ ज ने के ललए,

    कक तभी पीछे से आव ज़ आई “म ाँ” बेि बोल “भूल गयी तू मुझ”े

    ककतनी दआु की थी तूने मुझे प ने के ललए,

    ब त उसकी सुन टदल गय पसीज़ मेर म ाँ,

    पड़ गयी कफर पैरो में बेड़ड़य ाँ,

    म ाँ, तू मेरी जननी थी, कैसे मैं भूल गयी कक,

    मैं भी तो हूाँ जननी ककसी की,

    ककसी को मुझ ेभी तो चलन सीख न है,

    और जजंदगी ने अगर स थ टदय तो उसे ख्व बों के परो के स थ उड़न भी सीख उंगी,

    लेककन म ाँ उसके ब द ज़रूर तुझसे लमलने आउंगी|

    म ाँ मैं ज़रूर तुझसे लमलने आउंगी|

    आललय तैय्यब ननजससड संक य

    (टहदंी संपकष अधिक री)

  • 6

    भ्रष ि च र

    भ्रष ि च र ने कर टदय है कम ल। बन गय हर कोई इसक लशक र।

    भ्रष ि च र ने कर टदय है कम ल। बन गय हर कोई इसक लशक र।

    बोफोसष तोप, हव ल क ंड, च र घोि ल , पन म क ंड न म अलग-अलग है,

    भ्रष ि च र ने कर टदय है कम ल। बन गय हर कोई इसक लशक र।

    लोगों के पैसों से

    नेत -अलभनेत खेल रहे हैं।

    स् कूल, अस् पत ल, सरक री अफसर, दकु न खोलकर बैठे हैं,

    बोली लग कर जजंदधगयों से

    खेल रहे हैं।

    भ्रष ि च र ने कर टदय है कम ल। बन गय हर कोई इसक लशक र।

  • 7

    भ्रष ि च र रूपी अजगर सबको ननगल रह है।

    हमें लमलकर स् वयं संकल् प लेन होग । भ्रष ि च र को जड़ से लमि न होग ।

    भ्रष ि च र से हम नहीं बचे, लेककन आने व ली पीढी को इससे बच न है।

    भ्रष ि च र से हम नहीं बचे,

    लेककन आने व ली पीढी को इससे बच न है।

    भ्रष ि च र ने कर टदय है कम ल। बन गय हर कोई इसक लशक र।

    अनुपम एम.वी., ड क सह यक मुख् य पोस् िम स् िर जनरल क य षलय कन षिक सककष ल, बेंगलूरु-560001

  • 8

    भ्रषि च र (!...वह आ रह है) :

    आव ज गंूज रही है गणिक एं स्व गत की थ ल ललए कत र में खड़ी हैं।

    टदश -टदश टदग-टदगंत दुंदलुभ बज रही है

    कक वह आ रह है!.... उसके आने की खबर पक्की है। और वे सब भ्रम म न रहे हैं,

    वे जो तंत्र से भ्रषि हैं, वे जो मन से कलुषर्त हैं, वे जो ऊपर से रंगे हैं, वे जो कीचड़ से सने हैं, वे जो खून से नह ए हैं, वे जो जगह -जगह खड़ ेहैं ,

    वे जजनके टदख ने के द ंत और हैं, वे जजनके नछप ने के द ंत और हैं,

    वे जो चलती बस में आबरू लूिते हैं, कफर भी त मझ म रखते हैं, वे जो स रे ननयम तोड़ते हैं, और क नून जेब में रखते हैं।

    समय बदल है समय बदल रह है वे ह ंफ रहे हैं,

    अपन रहनुम खोज रहे हैं, उनक शक दरू हो गय है

    उनक पक्क यकीन हो गय है

  • 9

    अब नहीं चलेग क्योंकक वह आ रह है...

    मसीह , उध्द रक ह थ में अदृश्य छ्ड़ी ललए हुए अंिक र लमि ने के ललए।

    भ्रषि च र की दीव र ढह ने के ललए सबक खेवनह र होने के ललए

    वह आ रह है... उसके आगमन की प्रतीक्ष में सभी पलके बबछ ए खड़ ेहैं।

    भ्रषि च र ) :गीत सुरीली गुनगुन (

    तुन तुन तुन तुन तुन तुन छुन छुन छुन छुन छुनछुन

    देश में फैले भ्रषि लसस्िम उसको लमि ने के ख नतर ददष -ए-टदल कोई गीत गुनगुन

    कुछ सकुच कर ज्यूरी बोल

    भ्रषि की लदनी र्ड्यंत्र क गदह

    ब ब न ग जुषन क गढ -पोखरव होई में सबको डुबो -डुब ।

    जर स नेकी जर सी जजंदगी

    जर स झूम मन स्वदेशी जर स िड़के िक -िक िड़कन

  • 10

    नेत क मन, जनत क तन बजे सद च र क झुनझुन जन -गि गहरी नींद में सोए

    टदन दपुहररय बेचैन र तें

    सेन - सम्मुख मुजश्कल तें कथ कह नी ऊंची ब तें

    इस मिुमय देश से सुन सुन । स द जीवन ऊाँ च षवच र हो हरेक कमषच री ईम नद र हो

    छुक छुक छुक छुक चले रेल की इंजन

    षवक स की ग ड़ी दौड़ ेसरपि खोख -खीखी मुखन -मुननय

    तुन तुन तुन तुन तुन तुन गीत सुरीली

    गुनगुन ..ह ं गुनगुन । तुम गुनगुन ।

    भ्रषि च र :2 वह जब आवेग

    संग अच्छे टदन ल वेग भ्रषि च र की जड़ क ि ड लेग

    पेड़ स बुत खड़ पसर तब भी रहेग

  • 11

    उतरेग गहरे तल नछछ्ले जल मैली गंग

    उजली -उजली सद नीर कर देग जब अच्छे टदन आएग ।

    क ल टहरि, धचकं र , 2जी , कोयल , अलकतर , कॉमनवेल्थ, च र , लमट्टी, रेत आटद घोि ल

    सबक ननपि र करके दम म रेग ग जे -ब जे के स थ

    जब अच्छे टदन आएग क्यों?

    कोई शक है, कोई सुबह है कक अच्छे टदन नहीं आएंगे।

    आएंगे जरूर आएंगे अच्छे टदन ककसी -न-ककसी टदन

    अच नक वे िड़ म से धगरेंगे आकर! अभ गो! देख लेन !

    भ्रषि च र :3

    अच्छे टदनों में क्य -क्य अच्छ होग ? क्य भ्रषि च री अच्छे से भ्रषि च र ककय करेग , क्य झपिम र अच्छे से झसप ि म र करेग ,

    क्य जेबकतर अच्छे से जेब स फ ककय करेग ,

  • 12

    अच्छे टदनों में। जजसक भी गल रेत ज एग ,

    अच्छे से रेत ज एग अच्छे टदनों में, जजसकी भी यौन -शोर्ि ककय ज एग , अच्छे से ककय ज एग अच्छे टदनों में,

    कजष में डूबे ककस न अच्छे से आत्महत्य ककय करेग , अच्छे टदनों में।

    क्य हम बदल ज एंगे, हम री आत्म पषवत्र हो ज एग , हम र इर द नेक हो ज एग ,

    हम रे टदल -ओ-टदम ग से नफरत लमि ज एगी , भेदभ व की टदव रें ढह ज एगी,

    ज नत -प ंनत की न ली प ि दी ज एगी , हम र शक्ल -ओ-सूरत बदल ज एगी ,

    क ल -भभुक खुरदर चेहर मखमल की तरह मुल यम हो ज एगी गंग , यमुन , सरस्वसती, क वेरी, गोग वरी आटद नटदयों में

    कल -क रख नों क कचरे अच्छे से ड ल ज एग अच्छे टदनों में।

    हम र ह जम कैसे होग अच्छे टदनों में क्य हम च र , अलकरत , कोयल , लमट्टी, रेत आटद सब कुछ हजम कर प एंगे

    अच्छे टदनों में। क्य हम र भ र् भी बदल ज एग

    क्य हम र षरभ र् में क यष करने लगेंगे और प्र ंत के सभी भ र् ओं को ससम्म न अपन एंगे, बढ व देंगे और अंगे्रजी को स दर बििेन को लौि देंगे

    अच्छे टदनों में क्य आसम न क रंग बदल ज एग त रे जमीन पर बबछ ज येग और च ंद क

    मंुह िेढ हो ज एग अच्छे टदनों में

  • 13

    आणखर अच्छे टदनों में अच्छ क्य होग ! और तब बुरे टदन कह ं ज एग ।

    क्य बुरे टदन हम रे आस -प स तब भी रहेग य

    बुरे टदन क्य मर ज एग नकली देशी ठर ष पीकर

    ककसी भीड़ -भ ड़ गंदे न ले में उसकी ल श सड़ रह होग हे !साजनह र परवरटदग र

    अब तू ही बत : अच्छे टदनों में बुरे टदनों क क्य होग ।

    क्योंकक.... हम बोलेग तो लोग बोलेग कक बोलत है।

    बलर म प्रस द

    कननषठ टहखदी अनुव दक र षरीय जन सहयोग एवं ब ल षवक स संस्थ न, मटहल एवं ब ल षवक स मंत्र लय, भ रत सरक र

  • 14

    भ्रषि च र

    आच र-भ्रषि है, जो व्यवह र, उसे कह सकते, “भ्रषि च र” । भ्रषि च री ही करत है, रोज-रोज नए भ्रषि च र ।1। ललखे-पढों को तो सब देख , अनपढ भी हो गए लशक र । कैस भ्रषि च र है छ य , हर कोई, कुछ-कुछ ल च र ।2। अब तक तो सबने देख है, दनुनय द री को परख है । पर-उपदेश कुशल बहु-तेरे, खुद प्रक्िीकल, कर देख है ।3। खोिे-नोि की ही, ब त नही, ररश्वत की भी ब त रही है । लेन-देन को घि -बढ कर, न प-तोल में कमी करी है ।4। ख न-प न में करी लमल वि, दिू में कर दी बडी धगर वि । च वल–अण्ड ेका बत्रम बन गए, और्धिय ं में भी आज लमल वि ।5। पैरोल में कैरोसीन छ य , दिू में भी प उडर-स प य । पपीत -बीज, पेसपर में प य

  • 15

    भ्रषि च र हर-कहीं सम य ।6। ब लक और ब ललक मध्ये, आज भी घर-घर भेद सम य । प्र थलमकत को लेकर घर में, ब लक को आगे ठहर य ।7। खय य-नीनत बहु-षवरले हो गए, हर-कहीं, भ्रषि च र क स य । म ं-बेटियों की इज्जत ख नतर, मर-लमिने को कोई-कोई आय ।8। अपने देश में कपड बनत , चीन-ज प न में बन , बत य । कैस भ्र्षषि च र है आय , देश क गौरव नही बढ य ।9। क्य स म जजक, क्य ि लमषक, क्य र जनीनत, क्य ज नतव द । स म्प्रद नयकत क त ण्डव, मनुषयत क कहीं-कही न द ।10। वेद-पुर िों में, हम प य , वह ं भी भ्रषि च र सम य । ढोर-गव ंर-शूद्र- पशु –न री, प्रत डन-अधिक री ग य ।11। एकलव्य क दोर् तो देखो, अजुषन से भी आगे आय ।

  • 16

    द्रोि च यष ने गुरुदक्षक्षि में, अंगूठ ही म ंग धगर य ।12। क्य हम, र मक र ज न देख , शूद्रक को भी म र धगर य । गर यह भ्रषि च र नही तो, और कौन स न म िर य ? ।13। भीषम-षपत को म रि ख नतर, जब अजुषन कुछ कर न प य । लशखण्डी को आगे करके, भीषम-षपत को म र धगर य ।14। “अश्वत्थ म ” म र गय ”, ह ,ं भीम ने उस को म र धगर य । ”द्रोि” को म रि ख नतर, वह ं भी, एक तरह, छल-स ही प य ।15। मैं ने भी, “गीत ” में गोत , रोज – रोज तो नही लग य । गीत मनन कर, जब देख मैं, वह ं भी कुछ छल-स ही प य ।16। ओ झूठे ! तेर व द झूठ , कह ं गय , कह ं नछपकर बैठ । कह ं गय वो तेर व यद , जो गीत षवच तु कर बैठ ? ।17।

  • 17

    “पडते हैं जब-जब प प िरती पे, प प लमि ने आत हंू । मैं हंू “एक”, मेरे रूप “अनेक”, मैं नए-नए-रूपों में आत हंू” ।18। जब-जब िमष की ह नन होती, मैं भी चुप नहीं रहत हंू । तब-तब िमष-स्थ पन ख नतर, न न रूप प्रकित हंू ।19। दषुिों क न श करंू आकर, सज्जनों की रक्ष करत हंू। मैं ब र-ब र, इस भू पर, हर साँभव रूप प्रकित हंू ।20। किष भी इक प ंडव-पुत्र, जब, रथ के नीचे वह ननहत्थ । कैस िमष-युद्ध, गीत क ? ननहत्थे पे ही, व र ककय थ ? ।21। क्य यह भ्रषि च र नही है ? ज नत पर आरक्षि प य ! ननज वोि-बैंक बढ ने ख नतर, स म्प्रद नयकत फैल य ।22। भ्रषि च र को सहन , करन , ककसी को शोभनीय नही, य र ! “डी.पी.लसहं” गर गलत कह तो, आप तो, हर-कोई नही ल च र ।23।

  • 18

    जह ं “सच” न चल,े वह ं “झूठ” सही, जह ं “हक” न लमले, वह ं “लूि” सही । जो “अच्छ ” लगे, उसे, अपन लो, जो “बुर ” लगे, उसे तज दो, वहीं ।24।

    “डी.पी.लसहं”, ननज अनुभव ग य , जग में कुछ भी बुर न प य । उिक-पिक कर, जब टदल झ ंक , मुझ-स बुर , नही कोई प य ।25। “डी.पी.लसहं”, कोई कषव नही है, जो ब ंि , ननज अनुभव, स र ! अपनी-अपनी सोच है, सय रे ! कुछ भी गलत नही, संस र ।26।

    (डॉ.डी.पी.लसहं) सह . मुख्य तकनीकी अधिक री एवं प्रभ री अधिक री, टहखदी अनुभ ग

    आई.वी.आर.आई, बेंगलूरु-560024

  • 19

    भ्रषि च र

    नेत जी को आय ह िष अिैक ,सदमें में आय पररव र I

    नेत जी की पत्नी को भी आय ह िष अिैक ,दोनों गये अस्पत ल II

    दखुी मन से वे बोले ,रेड ड ली है इनकम िैक्स और सीबीआई ने I

    रख थ जो सोन -रूपय दब दब कर नतजोरी में, सब भर ले गये वे बोरी में II

    झूठे व दे कर के जनत से करते हैं भ्रषि च र I

    आज उनकी नजर में यह बन गय है लशषि च र II

    कहते हैं कक मैं खज ने क हूाँ चौकीद र I

    लमल ब ंि कर ख ने में बनते हैं टहस्सेद र II

    आरक्षि ,गरीबी हि ओ क कई वर्ों से दे रहे हैं न र I

    भ्रषि च ररयों नें लमल कर ख ली कर टदय खज न स र II

    आतंकव द ,ज नतव द ,भ ई भतीज व द से जनत है परेश न I

    भ्रषि ललसत नेत चल रहे हैं स्वच्छ भ रत अलभय न II

    शौच लय तो बन गये ल खों क गजों पर I

    मगर उनमे प नी नही ंपहंुच प ए बूाँद भर II

    मनरेग की हो गयी है ह लत पतली I

    लोग कटिय फंस कर जल ते हैं बबजली II

  • 20

    बेिी बच ओ बेिी पढ ओं क न र है चहुाँ ओर I

    बेटियों को नोच रहे हैं भेड़ड़ये हर गली छोर II

    षवक स षवक स क न र दे देकर गल गय है सूख I

    ककस नों ,मजदरूों, ग़रीबों की नहीं लमिी है भूख II

    भय-भूख -भ्रषि च र मुक्त क न र देते I

    ककतने स ल गुजर गये कफर भी नहीं चेते II

    श इननगं इंड़डय ,भ रत उदय छ य थ चहुाँओर I

    जनत ने टदखल टदय अपन पूर जोर II

    च ल -चररत्र-चेहर बदलने की ब तें करते हैं पुरज़ोर I

    चेहरे ज़रूर बदल गए पर उसी च ल -चररत्र से ह ल-बेह ल जनत हो गई बोर II

    गरीबी, मंहग ई, बेरोजग री ,बीम री, घोि लों से जनत है त्रस्त I

    भ्रस्ि च री नेत मस्त, अधिक री व्यस्त, देश हो गय है पस्त II

    सरे आम क नून क उड़त है मज क ,बबन पैसे के नहीं होत क म ख क I

    नेत , दल सब कुछ बदल ललय पर नहीं लमल कोई उपच र II

    स त दशक तो बीत गये पर अब संकल्प लें हम नहीं करेंगे भ्रषि च र I

    अब हम नहीं करेंगे, नहीं सहेंगे भ्रषि च र II

    देव प्रक श गुसत ,व .टह.अ मह लेख क र(स .व स . क्षे.ले.पे.)

  • 21

    भ्रष ि च र

    जजसक हो भ्रष ि आच र वह सहज ही हुआ भ्रष ि च र ।।

    मगर पहले होत है सोच-षवच र दषूर्, कलुषर्त व कुषवच र ।।

    अगर कोई अभ य स करें और रखें सुषवच र, वह क बू कर सकत है अपने कुषवच र ।।

    कफर जरूरत ककसे होती र म-अख न की हर कोई जब बन ज ए देव हज र ।।

    जब कोई बनन च हे स बू और खो है अपने पर क बू ।।

    किे अपने चररत्र क व् य प र और प न च हे पैसे अप र

    तब सहज खो देत है अपन आप र सुषवच र

    आओ हम सब प्रि लें, रहें शुद्ध सुषवच र और आवश् यकत ही न सहे य बने भ्रष ि च र

    कहें हम सब लमलकर यह ब र ब र कक रखें हम शुद्ध अपने सोच- शुद्ध षवच र

    और जरूरत ही न रहें हमें र म-अख न जब हम सब बन ज ए देव हज र

    रखें हम दरू भ्रष ि च र, रहे हमसे दरू भ्रष ि च र यही रहे हम र हर हम सोच-षवच र

    रहे हमसे दरू भ्रष र च र जी चख द्रशेखर

    प्रि न, क व स प्रश सन, इस् रैक, बेंगलूरु-58

  • 22

    जननी तू ककतनी सय री है

    आ .........आ ...........आ .........आ...........

    ओ ......... ओ ...........ओ .........ओ...........

    जननी तू ककतनी सय री है

    तू सय री दलु री तू सबसे खय री है

    स ाँसे हम री है ।।

    आ .........आ ...........आ .........आ...........

    ओ ......... ओ ...........ओ .........ओ...........

    तेरे बबन प ऊाँ मैं क्य तेरे बबन क्य है जह ाँ

    मटहम तेरी ग ऊाँ मैं क्य तुझमें है स र जह ाँ

    प्रीनत के अलमय से ममत की गोद में भरी है तू ।।

    जननी तू ककतनी सय री है

    पीड़ प्रसव की ये सहे देवत की मूरत हैं ये

    आशीर्ों की है ये ननधि सबसे सय री सूरत हैं ये

    तुझसे शुरू हुई तेरे कदमों में बीतें जज़ंदगी

    जननी तू ककतनी सय री है

  • 23

    दआुओं से भरी हुई त्य ग क ग गर है तू

    आश ओं सींचती जो ममत मयी स गर है तू

    प ए तुझसे खुशी करते हैं हम तेरी यूाँ बंदगी ।।

    जननी तू ककतनी सय री है

    तेरी खुशी में वो हाँसे तेरे पे रोती है वो

    स ाँसो की हर म ल में बस तेरी सफलत च हे है वो

    ब ाँहों क जो ह र भी तुझकों लमले तो इसको भूलो न ।।

    जननी तू ककतनी सय री है

    िह्म षवषिु लशव ने भी की इस देवी की वखदन

    ध्य न रहे कभी न हो इस म ई की वंचन

    पलकें बबछ के हम आओ कर ले अब इसकी वंदन ।।

    जननी तू ककतनी सय री है

    तू सय री दलु री तू सबसे खय री है

    स ाँसे हम री है ।।

    आ .........आ ...........आ .........आ...........

    ओ ......... ओ ...........ओ .........ओ...........

    ककरि अय्यर वी )कननषठ अनुव दक( प्रि न ननदेशक व णिजज्यक लेख परीक्ष

    एवं पदेन सदस्य लेख परीक्ष बोडष क क य षलय,बेंगलूरू .

  • 24

    मॉ ंतझुे सल म...

    जजतन मैं पढत ,उससे ज्य द मेरी मॉ ंपढती। मेरी स री ककत बे भी सहेज कर रखती॥ मॉ ंतुझ ेसल म...

    मेरे पढने की मेज़, उस पर रखे पेन और ककत बें।

    मुझसे ज्य द रखती न म य द, संभ लती मेरी ककत बें॥ मॉ ंतुझ ेसल म...

    पढते पढते अगर मैं सो ज त ,वो ज गती रहती। अगर मैं र त भर पढत ,तो भी वो ज गती रहती॥ मॉ ंतुझे सल म...

    परीक्ष के टदन मेरे, भयभीत उसे करते थे।

    रहप्रनतटदन कर रह-, भ्रलमत करते थे॥ मॉ ंतुझ ेसल म..

    मेरे परीक्ष के पररि म को, खोजती मुझसे ज्य द अखब र में।

    असफल होने पर भी छुप लेती थी, अपने सय र दलु र में॥ मॉ ंतुझ ेसल म...

    मॉ ंके ब रे में आगे कहन च हंूग :

    मॉ ंकी ममत देख मौत भी, आगे से हि ज ती है।

    गर मॉ ंअपम ननत होती है, तो िरती की छ ती फि ज ती है॥

    घरहो पूज की मॉ ंमें घर-, ऐस संकल्प उठ त हंू।

    मैं दनुनय की हर मॉ ंके चरिों में ये शीश झुक त हंू॥

    महेश चंद बंसल,क.अनुव दक कमषच री भषवषय ननधि संगठन, क्ष ेपीण्य .क ., बेंगलुरु

  • 25

    जननी

    म ं तुम तो हो जननी जखम देने व ली

    बहती सररत क ननश्चल प नी जजसको पीकर बुझ ज ती है

    मेरी हर सय स पुर नी म ं तुम तो हो जननी, जखम देनेव ली

    नन:स्व थष है ममत तेरी बहुत ही ख स बेलमस ल भोले मुख से मीठी बोली कर देती हो तुम कम ल

    म ं तुम तो हो जननी, जखम देने व ली

    तेर सय र है तपती िूप में ब ररश की बूंद कर देती है मेरी जज़ंदगी

    सब षवपद ओं से दरू म ं तुम तो हो जननी, जखम देनेव ली

    रहती हो तुम बनके मेर स य

    जैसे िूप में लमले छ य आकर गोद में तेरी

    प ललय मैंने जग क दलु र स र

    म ं तुम तो हो जननी, जखम देने व ली

  • 26

    न ज नू कोई मंटदर न कोई भगव न

    तेरी चरि ंमें ही है मेरे च रो ि म

    म ं तुम तो हो जननी, जखम देने व ली

    भगव न क दसूर रूप हो तुम मेरी म ं तुम बबन कैसे करू मैं

    इस जीवन रूपी नदी क प र ककतनी ही बड़ी ह ज ऊं तेरे ललये मैं बच्ची ही हूाँ

    म ं तुम तो हो जननी,जखम देने व ली

    देखी मैंने हर ररश्ते मे लमल वि कच्चे रंगों की सज वि लेककन म ं दॆखी नहीं

    तुम्ह रे चेहरे पे कभी थक वि न ममत मे क ई लमल वि

    म ं तुम तो हो जननी,जखम देने व ली म ं तुम तो हो जननी,जखम देने व ली …….

    मीर यू. ह स्यग र, ड क सह यक मुख्य प स् िम स्िर जनरल क य षलय

    कन षिक सककष ल, बेंगलूरु - 560 001

  • 27

    भषि च र एक रोग

    भषि च र क्य है मेरे दोस्त पैस कम ने क है एक रोग,

    इस रोग में नींद न आए, ऐस पैस कह ं छुप एं।

    भषि च र से पैस तो आए, पर बददआुं से टिक न प ए।

    आओ भषि च र लमि एं, अपने को ईम नद री बन एं।

    आओ आज हम एक कसम ख एं न ककसी से एक अन लेकर आएं न ककसी को एक अन देकर आएं

    यटद भषि च र लमि न है तो खुद में पररवतषन ल न है।

    यटद हम लोग स्वयं दरुुस्त, तो भ रत होग भषि च र मुक्त।

    र जभवन टहखदी अनुव दक

    केखद्रीय षवननम षिक री प्रौद्योधगकी संस्थ न )सीएमिीआई( बेंगलूरु-560022

  • 28

    “भ्रषि च र मुक्त भ रत”

    बने भ रत एक समाद्ध देश उभरे बनकर आत्मननभषर देश है यह सपन हर भ रतीय क रहे ऊाँ च सद नतरंग देश क षवश्व पिल पर हो ि क हम री सबसे सुदृढ हो स ख हम री।

    प्रका नत से लमल अनंत भंड र हर संस िन है यह ाँ अप र

    म नवशजक्त की भी कोई न कोत ही देशप्रेम की भ वन भी है ही

    िमष,आध्य त्म,ज्ञ न-षवज्ञ न,तकनीक हर षवि की है यह ाँ सीख।

    कफर भी क्यों है देश षपछड़ ? क्योंकक मनुषय लसद्ध ंतों से बबछड़ । नीनत, आचरि,मूल्य हुए गौि पैसे के आगे है ककसक कौन?

    सब लोग हैं भौनतकत की दौड़ में ज़रुरत से ज्य द जुि ने की होड़ में।

    देश की प्रगनत में हैं कई अवरोि बेईम नी,घूसखोरी,भ्रषि च र क है प्रकोप सत्त और शजक्त क हो रह दरुूपयोग

    जजससे नहीं बन प रह प्रगनत क सुयोग भ्रषि च री कर रहें हैं सब कुछ त र-त र

    इससे मच रह है देश में भीर्ि ह ह क र।

  • 29

    र जनीनत, उद्योग,मनोरंजन य हो अथषव्यवस्थ हर ओर है ननयमों की कुव्यवस्थ ।

    नहीं पूर होत है कोई क म समय से बढती नहीं है कोई फ इल एकदम से

    पैसे और पहच न की जुग ड़ लग नी पड़ती है ईम नद रों को भी इसकी म र सहनी पड़ती है।

    भ्रषि च र को न केवल कमष से हि ओ मन, षवच र और व िी से भी भग ओ।

    अपनी कथनी और करनी को सम बन ओ कर लो प्रि इससे खुद को बच ओ

    घूस लेन -देन ही म त्र नहीं है भ्रषि च र दसूरों क शोर्ि करन भी है भ्रषि आच र

    अब समय आ गय है बदल व क , समय रहते ही स्वयं को साँभ लने क

    आत्म संतुजषि और संयम को मज़बूत करें खुद और देश के सम्म न की रक्ष करें।

    आओ! सब लमल-जुल कर अब यह तय करें भ्रषि च र रूपी कैद से स्वयं को मुक्त करें।।

    रजश्म ठ कुर क. टहदंी अनुव दक

    इसरो मुख्य लय

  • 30

    जननी

    'जननी-जखमभूलमश्च स्वग षदषप गरीयसी' अथ षत ्जननी म त और जखमभूलम क स्थ न स्वगष से भी शे्रषठ एवं मह न है!

    इसललए कह ज त है म ाँ स िन , सम्वेिन एवं भ वन क एहस स है !

    म ाँ त्य ग, तपस्य एवं सेव है हम जैसे बच्चों की मेव है

    म ाँ पाथ्वी है, िूरी है,

    म ाँ बबन इस साजषि की कल्पन अिूरी है क्योंकक म ाँ जगत की जननी है..

    म ाँ तेरे आाँचल के स ए में, लसमिी दनुनय स री

    जखनत प य तेरी आाँखों में हमेश यह तेरी दलु री

    कभी न च ह औरों क द मन

    प कर तेर प लन पोर्ि

    मैंने कषि टदय कभी तुझको, क्षि में गुस्स , पल में सय र कफर बहल य -फुसल य मुझको

  • 31

    बिव रे की नौबत जब आई ककसी को बंगल , ककसी को ग ड़ी

    मैंने च ह तेरी स य , स री खुलशय ाँ जीवनभर प ई !

    मैंने प य सय र तुम्ह र , कभी नहीं बदु्दआ प ई

    जननी मेरी तू मेर जग है, तुझमे मेरी दनुनय सम ई मेरी म ाँ !

    कषपल , सह यक क लमषक अधिक री परम िु खननज ननदेश लय, दक्षक्षिी क्षेत्र क य षलय

  • 32

    जननी

    दनुनय में सबसे अच् छी, सबसे स य री कौन ?. वही है जननी, मॉ ं। जो भूलम से भ री ।

    प्रथम पूजजत षवन यक, स् वयम् भू नहीं, बजल्क, मॉ ंगौरी से ही उत् पख न हुई ।

    साजषि, जस्थनत, लय कत ष, बत्रमूनतष, िह्म, षवष िु, महेश् वर छोिे बच् चे बन कर मॉ ंअनुसूय क दिू - अमात षपय ।

    र म यि के पुरूर्ोत् तम श्री र म, मॉ ंकौसल्य की गोद में खेल ,

    इसललय पहले कहल त कौसल् य सुप्रज र म, ब द में दशरत नख दन।

    गीत च यष, जो का ष िम ्वंदे जगद्गुरूम कहल त है,

    गोषवदं की, अपनी मॉ ंयशोद के स थ की हुई अिखेललयों को क् य कोई भी भूल सकत है ?

    अपने पूज् य गुरू के स मने सभी लोग सर झुकते हैं

    लेककन वो गुरू भी अपनी मॉ ंके चरिों में सर झुककर खड रहत है।

    इसललए कहते हैं पहले, म ता देवो भव, ब द में षपता देवो भव, और ब द में आच यष देवो भव, अनत धथ देवो भव आटद / इत् य टद ।

    जख म के ब द बच् चे की पहली बोली होगी म ाँ । जजस से ही उत् पख न होगी उसकी म ताभ र् ।

  • 33

    मॉ ंमैं तेरे शरीर क एक अंश हूाँ, तेरे रक् त, मॉसं और हड़ड्डयों से उत् पख न ।

    तेर दृढ षवश् व स से ही सीख मैंने, इस षवश् व क स मने करने के ललए । इसललय मैं तेरी परछ ई हूाँ ।

    रसोई घर ही तेरी प्रयोगश ल , अपने पररव र को स् वस् थ रखने के ललए स् व टदष ि भोजन से ।

    और अपने पररव र के टहत के ललए

    ल लन, प लन, व्रत, पूज , उपव स, धचतंन करते हो। लेककन अपने ललए बहुत कम।

    अगर अपने दैनजखदन क मक ज के ललए पग र लेती तो हज़ रो रूपयों तक होगी

    मगर, हमेश आपकी वेतन रटहत ननस् व थष सेव ।

    इसललय वेदों में कह गय है – य देवी सवष भूतेर्ु म ता रूपेि संजस्थत , नमस् तय्यै, नमस् तय्यै

    नमस् तय्यै नमो नम: ।

    जननी जख म भूलमश् ्च स् वग षदपी गरीयसी ।

    क् य हम कभी मॉ ंसे श्रुि मुक् त हो सकते हैं 9 और इस पूजनीय, पषवत्र व् यजक्त के स थ हम ककसी की भी तुलन नहीं कर सकते ।

    अत: मॉ ंतुम् ह री चरि रषवदंों में मेर कोटि कोटि प्रि म ।

    शलैज का ष ि मूनत ष, इसरो मु.

  • 34

    जननी

    स गर की गहर ई और आक श क षवस् त र जजसके प्रेम में सम य है । वह तो हम री जननी, के ऑचल क स य है ।।

    जननी ही तो हमें, अपने शरीर के अंश से नवजीवन देती है । और बदले में हमसे श यद, कुछ भी नहीं लेती है ।।

    जननी तो बच् चे के संस् क रों की यज्ञश ल है । जननी ही तो बच् चें की पहली प ठश ल है ।।

    जननी तो जीवन की, एक अबूझ पहेली है । और जननी ही तो घर में, अकेली लडकी की सहेली है ।।

    जननी ही तो, पररव र की अथषव् यवस् थ है । जननी ही तो, जीवन की अपर जेय सत् त है ।।

    मैंने जननी के ह थों को, कभी रूकते नहीं देख । मैंने जननी को कभी क म के आगे, थकते नहीं देख ।।

    मैंने जननी की ब तों में, प्रेम और आखों में धचतं को देख है । अपने कष ि में खुद से ज् य द , जननी को रोते देख है ।।

    जननी ही तो षपत के जीवन क , आि प्र ि है । जननी ही तो षपत की सफलत क , अलभम न है ।।

    जननी ही तो िरती पर, ईश् वर क रूप है । जननी ही तो स क र, व त् सल् य क स् वरूप है ।।

    सच कह ू तो जननी ही हम रे जीवन की सीढी क पहल प यद न है । अरे जननी ही तो हम रे ललये जीवन क सबसे बड़ वरद न है ।।

    श्रयॉश शकंर न षपत, वरर. सह यक (तदथष)

    इस् रैक बेंगलूर- 560 058

  • 35

    जननी

    मेर प्रथम नमन आपके ललए है जननी

    मेर अंनतम नमन भी आपही को है जननी

    मुझ ेजनम देने के ललए ल ख़ नमन है जननी

    हर जनम में आप ही हो मेरी जननी

    मुझ ेप लने में ककतन कष ि उठ एं जननी

    मेरे बच् चों को भी आपक आशीव षद लमल है जननी

    आपसे कोसों दरू रहत हूाँ अब जननी

    कफर भी-2 आपक ननमषल मन मेरे प स है जननी

    भगव न से ब र-ब र प्र थषन है जननी

    कक आप ही बने, लसफष आपही बने हर जनम में जननी

    उस भगव न को करोड़ों नमन है जननी

    जजख होंने जननी के रूप में आपको टदए हैं जननी

    मेरे हर लगू में दौड है रही आप ही जननी

    क्षि-क्षि, हर क्षि सॉसं ले रह हूाँ आपकी ही है जननी

    स य र आपक है अनंत मेरी जननी

    उस स य र को न पन ककसी की बस की ब त नहीं है जननी

    मैं कहत हूाँ जननी, मैं कहत हूाँ जननी

    कक आक श के उस प र भी जननी

    उसक अंत नहीं लमलेग जननी

    हे जननी इस कषवत में मैं जननी

  • 36

    मेर स य र को भरने की पूिष कोलशश ज़रूर की है मैंने जननी

    परंतु हज़ रों पाष ठ भी आपके ब रे ललखूाँ जननी

    कफर भी कम पड़त है जननी

    आपके कदमों में ख यौछ वर कर जननी

    नमन करते हुए इन स य र भर पुष पों को है जननी

    रखत हूाँ जननी, रखत हूाँ जननी

    व ई.सुबह्मण् यम, कननष ठ अनुव दक कें द्रीय कर प्रि न मुख् य आयुक् त क क य षलय, बेंगलूरु

  • 37

    जननी

    हे जननी तू जगत ननयखत

    तू प लन ह र तू दखु हरखत ।

    तूने मुझ ेइस दनुनय मे ल य

    मेरे जग को उजजय र बन य ।

    उठते धगरते कब खड़ हुआ

    न ज ने कब चलन लसख य ।

    वो िुंिली य दे अब भी है

    न मुमककन को भी मुमककन बन य ।

    च ाँद म ंगत थ खेलने के ललए

    है न मुमककन पर म न ललय ।

    ये शोहरत ये दौलत कुछ भी नहीं

    ये आलशय ाँ भी तूने बन य ।

    ये आलशय ाँ भी बेज न लग

    जब तेरे आाँचल क छ ंव प य ।

    जब ब री आती है तेरे इब दत की

    तब दनुनय को इससे जूद प य ।

    जननी एकफजष नहीं एक कजष है

    जग जननी को क्यो न समझ प य ।

  • 38

    ईश्वर जब ज न सक हर घर

    प्रनतननधि बन य तब जननी को ।

    इस जग को तुम उजजय र करो

    यही फजष टदय तब जननी को ।।

    वेद नखद प ण्डेय व॰ लेख क र

  • वर्ष 2017 की दिन ांक 10 अगस् त 2017 को आयोजित नर क स(क -2), बेंगलूरु की प्रथम बैठक की कुछ झलककय ां

    वर्ष 2017 की दिन ांक 29 िनवरी 2018 को आयोजित नर क स(क -2), बेंगलूरु की द्ववतीय बैठक की कुछ झलककय ां

  • नर क स(क -2), बेंगलूरु के तत व वन न में मयु य ोोस् 敶म स् 敶र िनरल क य षलय, कन ष敶क सककष ल, बेंगलूरु द्व र दिन ांक 27 नवांबर 2017 को आयोजित सांयुक् त ददांिी दिवस की कुछ झलककय ां

  • नर क स(क -2), बेंगलूरु के तत व वन न में प्रन न मयु य आयकर आयुक् त क य षलय, बेंगलूरु द्व र दिन ांक 21 दिसांबर 2017 को आयोजित तकनीकी सेममन र की कुछ झलककय ां

  • नन् यव ि

    नर क स(क -2), बेंगलूरु के तत व वन न में अांतररक्ष ववभ ग, इसरो मुय य लय, बेंगलूरु द्व र दिन ांक 10 िनवरी 2018 को आयोजित ववश् व ददांिी दिवस ोर क व् य गो् ठी की कुछ झलककय ां

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