ऴक्तिऩात या दैळी ऴक्ति का शॊक्रमण ·...

8
ऴिऩात या दैळी ऴि का शॊमण ऱेखक ऩ. ऩ . योगीराज ग ऱळणी मषाराज हषदी अन ळादक- ऩ.ऩ . बा

Upload: others

Post on 31-Oct-2019

7 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • ऴक्तिऩात या दैळी ऴक्ति का शॊक्रमण ऱेखक ऩ. ऩू. योगीराज गुऱळणी मषाराज

    हषन्दी अनुळादक- ऩ.ऩू. ’बा’

  • 1

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    (उऩरोि ऱेख आज शे करीबन 62 ळवष ऩषऱे योगीराज गुलळणी मषाराज द्वारा अऩने गुरु ऩ.ऩ.ऩ. ऱोकनाथतीथष स्ळामी मषाराज के ननदेऴ ऩर अॊग्रेजी में लऱखकर कल्याण मालशक ऩत्रिका, गोरखऩूर में उश शमय प्रकालऴत ककया गया था| जब ‘ऴक्तिऩात हदसा’ के शॊऩादक श्री. त्र्यॊबक भास्कर खरे ने १९३४ में कुॊ डलऱनी मषायोग ऩर ऱेख हदया था और उशमें स्ळामी ऱोकनाथ तीथष का उल्ऱेख था और श्री. ळामनराळजी गुलळणी, २0 नारायण ऩठे, इश प्रकार का ऩुरा ऩता हदया था । यष ऱेख स्ळामीजीने काऴी में ऩढा था और अधुरा ऱगने ऩर उन्षोंने अऩने लऴष्य ळामनराळ गुलळणी, ऩूना को शषी ऱेख लऱखकर कल्याण मालशक ऩत्रिका को भेजने का ननदेऴ हदया।)

    शच्च ेआध्यात्ममक गुरु अऩने लऴष्य को जो दैळी ऴक्ति शॊक्रमण (Transmission ) करते षै, उशके

    अऱग अऱग वळलऴष्ट प्रकार षैं, त्जशे ‘ऴक्तिऩात’ या ‘दैळी ऴिी का शॊक्रमण’ कषते षैं । ऐशे ऴक्तिऩात करने का शामर्थयष रखनेळाऱा शद्गरुु ‘शमय का हान’ एळॊ ‘ऩरमाममा शे एकरूऩ’ षोने का हान, शुयोग्य लऴष्य को त्रबना ककशी कष्ट के सण माि में दे शकता षैं । इतना षी नषीॊ, ळष अऩने लऴष्य को अऩने जैशा बना शकता षै । ’स्ळीयॊ शाम्यॊ वळधते्त ।‘ ऐशी घोवणा श्री आद्य ऴॊकराचायष ने अऩने ‘ळेदान्त केशरी’ इश मषान ग्रॊथ के ऩषऱे षी श्लोक में की षैं। मषाराष्ड के मषान शॊत श्री तुकाराम मषाराज ने अऩने एक भक्तिगीत में इन्षीॊ वळचारोंकी ऩुनराळतृ्ती की षै । उन्षोंने कषा षै - "आऩुल्या शाररखे कररती तामकाल, नाषी काल ळेल तयाॊ ऱागीॊ " ऐशे शद्गरुु का ळणषन करने के लऱए ऩारश की उऩमा भी कम ऩडती षै, एळॊ ळष शीमा शे ऩरे षैं। ‘भाळाथषदीवऩका’ इश भगळत ्गीताऩर टीका में शॊत लऴरोमणी श्री. हानेश्वर मषाराज अऩने ऴब्दों में कषते षैं-- "शच्च ेगुरु की मषानता इतनी षै कक त्जश व्यक्ति ऩर उशकी ृषष्टी ऩडती षै, एळॊ त्जशके मस्तक ऩर ळष अऩने कमऱ षस्त रखता षै ळष व्यक्ति ककतना भी ननकृष्ट एळॊ दजुषन भी षो उशे तमकाऱ ऩरमेश्वर का दजाष प्राप्त षोता षै ।त्जश ककशी को भी ऐशे शद्गरुु कक कृऩा ऩाने का शौभाग्य लमऱता षै ळष शारे द:ुखों शे मुि षोता षै और उशे आममहान की प्रानप्त षोती षै । गुरु “मॊि” देते षैं और लऴष्य तमकाऱ उशे स्ळीकार करता षै और उशी सण उशे मॊि का प्रमयस अनुभळ भी लमऱता षै । श्री. हानेश्वर मषाराज ने बताया षै की श्रीकृष्ण ने अऩने ऩरम भि अजुषन ऩर हदव्य ऴक्ति शॊक्रलमत कर उशे अऩने जैशा बनाया ।

    ‘ब्रह्म की प्रानप्त केळऱ ऴास्त्र ऩढनेशे कभी नषीॊ षोती, उशे केळऱ शद्गरुु कृऩाशे षी प्राप्त ककया जा शकता षै।‘श्री शमथष रामदाश स्ळामी ऊॉ च ेस्ळर शे घोवणा करते षै,"शद्गरुु के त्रबना शच्चा हान प्राप्त षोना अशॊभळ षै ।“ ऴास्त्र भी उशशे शषमत षैं । केळऱ ऴब्द एळॊ बुवि एळॊ उऩननवद या उशऩर चचाषयें शुनकर तीक्ष्ण आममहान षो षी नषीॊ शकता ।" ळष लशर्ष शद्गरुु के कृऩा प्रशाद शे षी लमऱ शकता षैं । श्री. ऴॊकराचायष ने एक शुॊदर काव्य में

    ऴक्तिऩात या दैळी ऴक्ति का शॊक्रमण ऱेखक ऩ. ऩ.ू योगीराज गुऱळणी मषाराज

    हषन्दी अनुळादक- ऩ.ऩू. ’बा’

  • 2

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    श्री गुरु के अमतृमय ृषवष्टकटासशे ऴक्तिका ळणषन ककया षै-- त्जशकी तुऱना अळणषनीय षैं । तद् ब्रह्मैळाषमस्मीमयनुभळ उहदतो यस्य कस्यावऩ चदैे्व । ऩुॊश: श्रीशद्गरुुणामतुलऱतकरुणाऩूणषऩीयूवृषष्ट्या । जीळन्मुि: श एळ भ्रमवळधुरमना ननगषते नादु्यऩधौ । ननमयानन्दैकधाम प्रवळऴनत ऩरमॊ नष्टशॊदेषळवृत्त: ॥

    "मै ब्रह्म षूॉ” इशकी प्रानप्त शद्गरुु की अतुऱनीय कृऩाृषवष्टशे त्जशे प्राप्त षोती षै ळष ऴरीर में रषकर भी मन शे शारे शॊऴय एळॊ मोष शे मुि षो जाता षैं । और ळष चचरॊतन आनॊद के प्राॊगण में प्रळेऴ करता षैं।

    इश प्रकार शे ळेद, ऩुराण, तॊि, मॊि और शळष काऱ के शॊतोंने ऴक्तिशॊक्रमण मागष के स्ळानुभळ लऱख रखे षैं । योगळालऴष्ठ में ळलऴष्ठ ऋवीने स्ळत: श्री. रामचॊद्र ऩर ककये गये ऴक्तिऩात के शमय का ळणषन ककया षैं, त्जश ळजषशे शवळकल्ऩ शमाधी या ऩूणषब्रह्म त्स्थती तक उशे ऱे जाना शॊभळ षुआ। इश वळवय में स्ळयॊ वळश्वालमिने ळलऴष्ठ शे ऐशा कषा षै – “मषाममा ब्रह्मऩुि ळलऴष्ठमुनी आऩ शचमुच शे्रष्ठ षैं एळॊ आऩन ेअऩना मष्ळ सणभर में ऴक्ति- शॊक्रमण कर लशि कर हदया । " योगळालऴष्ठ में लऴष्यों में ऴक्तिशॊक्रमण करने के इश प्रकार की ऩिती का ळणषन इश प्रकार ककया षै ।

    ‘दऴषनामस्ऩऴषनाच्छब्दामकृऩया लऴष्यदेषके ।‘ (शद्गरुु के कृऩायुि ृषवष्ट, कटासशे, स्ऩऴषशे एळॊ प्रेमभरे ऴब्द शे ऴक्तिशॊक्रमण षोता षैं। ) ‘स्कॊ द ऩुराण’ के ‘शूतशॊहषता’ में ऴक्तिशॊक्रमण की ऩिनतकी वळस्ततृ जानकारी दी गयी षैं। तॊि ग्रॊथ में भी ऴक्तिशॊक्रमण शे कुण्डलऱनी जागतृ षोने की वळस्ततृ जानकारी षै| ऴक्ति शॊक्रमण द्वारा लऴष्यों में शुप्त ऴक्ति जागतृ करने के बारे में शभी ग्रॊथों में नाथशॊप्रदाय के ग्रॊथ ज्यादा प्रलशि षैं । यष ग्रॊथ अध्याममहान एळॊ योगऴास्त्र प्राचीन षैं । आजकऱ इश दैळी ऴक्ति को शॊक्रालमत करनेळाऱे शद्गरुु बषुतषी कम रष गये षै । ऩर ळे त्रबल्कुऱ नषीॊ षैं ऐशा भी नषीॊ। इश प्रकार के कुछ मषाममा शॊशार में गुप्त रूऩ शे ऴक्ति का शॊचार करते षैं, और जब उनकी भेंट ऱायक लऴष्यशे षोती षै, उश ळि ळे अऩनी ऴक्ति लऴष्य में शॊक्रालमत करते षैं ।

    इश तरष शे हान ळ ऴक्ति शॊक्रमण कर लऴष्य की कुण्डलऱनी जागतृ करने का शामर्थयष रखनेळाऱे गुरु कषीॊ- कषीॊ, कभी कभी लमऱते षैं । ऐशे षी एक मषाममाशे मेरी भेंट और उनशे प्राप्त अनुभळ षी मेरे इश ऱेखका मूऱ कारण षैं।

    1) यद्यवऩ यष ऩढकर शभी ऩाठकों को र्ायदा न भी षो तो ऐशे मषाममा ऩूणषमळ प्राप्त ककये षुए भी षो शकते षैं। उनशे ऴक्ति शॊक्रमण द्वारा उनकी कृऩा शॊऩादन करके लऴष्य को अऩना कल्याण कर षी ऱनेा चाहषये । इतना भी अगर लऴष्य को वळश्वाश षो गया तो भी मैं शमझूॊगा की मेरा प्रयाश शाथषक षुआ । क्योंकक ककशी शाधक की ऐशे ऩूणष मषाममा शे भेंट षोगी या लमऱन षोगा और ळष कृऩा शॊऩादन कर शकता षैं तो ळष शाधक ळास्तळ में मनुष्य जीळन को शाथषक करेगा ।

    2) योग का मुख्य षेतु शमाधीतक ऩषुॉचना षी षैं। त्जश त्स्थती में मन की शारी अळस्था ळ भाळ नष्ट षोते षै एळॊ ऴाॊत षोते षैं, ळष शाध्य षोने के लऱये अनुभळी शद्गरुु के मागषदऴषन में लऴष्य को ऐशे आठ प्रकार की कहठन योग की लशवियों शे जाना ऩडता षैं । इश अभ्याश में जरा शी भी गऱती षुई तो यष शाधना लऴष्य के लऱये कष्टदायक षो शकती षैं । इश धोखे के डरशे बषुतशे लऴष्य इश मागष को नषीॊ ऩकडते । क्योंकक इश मागष

  • 3

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    में आशन, प्राणायाम, मुद्राओॊ का अभ्याश, कुण्डलऱनी ऴक्तिकी जागनृत का शमाळऴे षोकर उशके बाद ऩषृ्ठळॊऴरज्जूतॊतू में जानेळाऱी मध्यळती नाडीका प्रळेऴद्वार खुऱता षैं और उशमें शे प्राण को उऩर मत्स्तष्क में जाने का मागष खुऱता षै | ऩरॊतु ऴक्तिऩात मागष शे ऊऩर की शारी बातें त्रबना प्रयाश के जल्दी प्राप्त की जा शकती षैं। जो लऴष्य ननरोगी, तरुण षैं और त्जशका मन एळॊ इॊत्न्द्रयों ऩर ळऴ षैं और जो ळणाषश्रमधमष के ननयम ऩाऱन करता षैं, त्जशकी भगळान ळ शद्गरुु ऩर ऩूरी श्रिा षै ऐशे शाधक ऩर ऴक्ति शॊक्रमण के ऩररणाम तुरॊत षोते षैं । शबशे मष्ळऩूणष बात अगर कुछ षैं तो ळष शद्गरुु की प्रामाकणक शेळा (तन, मन, धन त्रबना स्ळाथषश)े कर उनकी कृऩा शॊऩादन करना षी षैं ।

    आगे के श्लोकों में ऴक्तिशॊक्रमण की चार ऩिती बताई षै । वळवि स्थूऱॊ शूक्ष्मॊ शूक्ष्मतरॊ शूक्ष्मतममवऩ क्रमत: । स्ऩऴषन- भावण - दऴषन- शॊकल्ऩजने मळतश्चतुधाष तत ्॥

    इश प्रकार 1) स्ऩऴषद्वारा 2) ऴब्दोच्चारद्वारा 3) ृषवष्टकटासद्वारा 4) शॊकल्ऩद्वारा शॊक्रलमत की गयी ऴक्ति क्रमत् स्थूऱ, शूक्ष्म, शूक्ष्मतर एळॊ शूक्ष्मतम रषती षैं ।

    यथा ऩसी स्ळऩसाभ्याॊ लऴऴून ्शॊळधषयेच्छनै: । स्ऩऴषदीसोऩदेऴस्तु ताृषऴ: कचथत: वप्रये ॥ स्ळाऩमयानन यथा कूमी ळीसणेनैळ ऩोवयेत ्। ृषग्दीसाख्योऩदेऴस्तु ताृषऴ: कचथत: वप्रये ॥ यथा ममस्यी स्ळतनयान ्ध्यानमािणे ऩोवयेत ्। ळेधदीसोऩदेऴस्तु मनश: स्यात्तथावळध: ॥

    उऩर शे श्लोकों में दीसा की तीन ऩिती का ळणषन ककया गया षै। 1) स्ऩऴषदीसा - त्जशकी तुऱना ऩसी के बच्च ेके अऩने ऩॊख के नीच ेकी गरमी शे उशको बढानेशे की

    गयी षै । 2) ृषवष्टदीसा - त्जश तरष कछुळा अऩने बच्चोंऩर शतत ृषवष्ट रखकर उशे बड़ा करता षैं । 3) ळेध दीसा - त्जश प्रकार मछऱी अऩने बच्चों का ऱाऱन ऩाऱन केळऱ चचॊतन करके करती षैं । इश

    ऩिती में ऴब्ददीसा का उल्ऱेख नषीॊ षैं । इश ऩिती में मॊिोच्चार के द्वारा या मुख शे आऴीळाषद देकर लऴष्य में ऴक्ति शॊक्रमण की जाती षैं ।

    आगे के श्लोक में लऴष्यों ऩर ऴक्तिशॊक्रमण षोने के ऱसणों का ळणषन ककया षैं । देषऩातस्तथा कम्ऩ: ऩरमानन्दषवषणे । स्ळेदो रोमाञ्च इमयेच्छक्तिऩातस्य ऱसणम ्॥

    ऴरीर का चगरना, कॊ ऩन, अनतआनॊद, ऩशीना आना, कॊ ऩकॊ ऩी आना यष ऴक्तिशॊचारण के ऱसण षैं। प्रकाऴ हदखना, अॊदर शे आळाज शुनाई देना, आशन शे ऴरीर ऊऩर उठना इमयाहद बातें भी षैं । ळैशे षी

    कुछ शमय ऩश्चात प्राणायाम की अऱग अऱग अळस्था अऩने आऩ ऴुरु षोती षैं । शाधकों को ऴक्ति मूऱाधार चक्रशे ब्रह्मरॊध्र तक जानेका अनुभळ तुरॊत षोता षैं और मन को ऩूणष ऴाॊती लमऱती षैं । ळैशे षी शाधक को उशके

  • 4

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    ऴरीर में बषुत बडा र्कष मषशूश षोता षैं । ऩषऱे हदन आनेळाऱे शभी अनुभळ ककतनभेी घॊटे रष शकते षैं । ककशी को लशर्ष आधा घॊटा तो ककशी को तीन घॊटे तक भी षोकर बाद में ठषरते षैं । जब तक ऴक्ति कायष करती षैं, तब तक शाधक की आॉखे बॊद रषती षैं और उशे आॉखे खोऱने की इच्छा षी नषीॊ षोती । अगर स्ळप्रयत्न शे आॉख खोऱने का प्रयाश ककया तो आऩत्ती षो शकती षैं । ऩरॊतु ऴक्ति का कायष रुकन ेऩर अऩने आऩ आॉखे खुऱ जाती षै । आॉख का खुऱना और बॊद षोना आहद बातें ‘ऴक्ति का कायष चाऱू षैं’ या ‘रुक गया षै’ ये बताती षैं । शाधक की आॉखे बॊद षोते षी अऩने ऴरीर में अऱग अऱग प्रकार की षऱचऱ ऴुरु षोने जैशा अषशाश षोने ऱगता षैं । उशे अऩने आऩ षोनेळाऱी षऱचऱ का वळरोध करना नषीॊ चाहषये । या कर्र उशके मागष में बाधा ना ऱाये । उशे लशर्ष ननरीसक की भाॉती बठैकर कक्रयाओॊ को ननयॊत्रित करने की जबाबदारीशे दरू रषना चाहषए । क्योंकक यष कक्रयाएॉ दैळी ऴक्ति द्वारा वळळेक बवुिशे अॊदरशे स्ळत: प्रेररत षोती षैं । इश त्स्थती में उशे अध्यात्ममक शमाधान लमऱेगा और उशका वळश्वाश त्स्थर एळॊ प्रबऱ षोगा ।

    एकबार जो शद्गरुु कृऩाशे लऴष्य की योगऴक्ति जागतृ षोती षैं तो शाधक की ृषवष्ट में आशन, प्राणायाम, मुद्रा इमयाहद योग के प्रकारों का मष्ळ नषीॊ रषता । यष आशन, प्राणायाम ळ मुद्रा इमयाहद कक्रयाएॉ जागतृ ऴक्ति को ब्रह्मरॊध्र की ओर जाने में मदद करते षैं । ऊऩर चढनेळाऱी ऴक्ति को एक बार ब्रह्मरॊध्र में जाने का मागष खुऱ जाये तो कर्र उशे कक्रयाओॊ की जरूरत नषीॊ रषती और मन धीरे धीरे ऴाॊत षोता चऱा जाता षैं ।

    अलऴक्षसत और त्जशे आशन, प्राणायाम इनकी कुछ भी जानकारी नषीॊ षो तो ऐशे शाधक में गुरु के ऴक्तिशॊक्रमण के कुछ शाऱों बाद योग- लऴसण अनुशॊधान, योग्यतानुशार योग के आशन आहद ऴास्त्रानुशार ृषवष्टगोचर षोने ऱगते षैं और शाधक योगीकी तरष हदखने ऱगता षै । एळॊ शमय त्स्थती तो यष षैं की उऩरोि बातें कुण्डलऱनी ऴक्ति स्ळत: षी शाधक की प्रगती उश शाधक शे आळश्यकतानुशार अऩने आऩ करळा ऱेती षैं ।

    योग की कई कक्रयाएॉ त्रबना ककशी प्रयत्न शे अऩने आऩ षोती षै । ऩूरक, रेचक और कुॊ भक आहद प्राणायाम कक्रयाएॉ अऩने आऩ षोती षैं । दो लमनट का कुॊ भक एक-दो शप्ताष में षी शाध्य षो जाता षैं । यष शारी बातें शाधकों को त्रबना ककशी भी प्रकार की रुकाळट शे षोती रषती षैं । क्योंकक जागतृ षुई ऴक्ति शाधक को ककशी प्रकार का कष्ट न षो इशकी चचॊता ळष स्ळत: करती षैं । अऩने आऩ षोनेळाऱी कक्रयाओॊकी ळजषशे शाधक की शाधना में प्रगनत त्रबना रुकाळट षी षोती रषती षैं ।

    शद्गरुु द्वारा लऴष्य में ऴक्तिऩात करने के बाद कुण्डलऱनी ऴक्ति जागतृ षोने ऩर उशमें ऴक्तिऩात का शामर्थयष बढ़ता षैं। क्योंकक ळष भी गुरु जैशा बन जाता षै । इशी तरष शे ऴक्तिऩात करने की ऩरॊऩरा गुरु शे लऴष्य तक अखॊड रूऩ में चाऱू रषती षैं । ऴक्ति के बीज गुरु लऴष्य में बोते षी षैं । इशलऱए गुरुकी आहा षोते षी लऴष्य भी ऴक्तिऩात करके दशूरे लऴष्य तैयार कर शकता षै और इश प्रकार शे यष क्रम अखॊड रूऩ शे चाऱू रषता षैं । ऩरॊतु यष अळशर प्रमयेक लऴष्य को नषीॊ लमऱता । ककशी ककशी के बारे में लऴष्य उश ऴक्ति का स्ळत: अनुभळ ऱे शकता षैं । ऩरॊतु आगे हदये श्लोक में बताये अनुशार दशूरों में ऴक्तिशॊक्रमण नषीॊ कर शकता।

    स्थूऱॊ हानॊ हद्ववळधॊ गुरुशाम्याशाम्यत्ळभदेेन । दीऩप्रस्तरयोररळ शॊस्ऩऴाषत्स्नग्धळमयषयशो: ॥

    दो प्रकार के गुरु षोते षैं और उनमें रषस्य के अनुकुऱ ऴक्ति शॊक्रालमत करने की ऩिनत षैं । एक ऩिनत ऐशी षैं जैशे एक दीऩ उशके शात्न्नध्य में आनेळाऱे दशूरे दीऩक को तमकाऱ प्रज्ळलऱत करता षैं । और उश

  • 5

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    दीऩक को दशूरे दीऩक को प्रज्ळलऱत करन ेकी ऴक्ति देता षैं और यष ऩरॊऩरा अखॊड चाऱू रषती षैं । दशूरी ऩिनत मतऱब ऱोष ऩारश जैशी षैं । उशमें ऩारश ऱोषे को स्ऩऴष करते षी शोने में ऩररळनतषत करता षै उश ऱोषे को ( नया शोना ) अगर दशूरे ऱोषे के टुकड ेका स्ऩऴष ककया जाय तो ळष शोना नषीॊ बनता । दशूरी ऩिनत में ऩरॊऩरा नषीॊ रषती यष कमी षैं । ऩषऱे प्रकार में गुरु का लऴष्य, स्ळत: का जीळन शाथषक करने का कारणीभूत षोता षैं । ऩरॊतु दशूरे गुरु का लऴष्य लशर्ष खुदका उिार कर ऱेता षैं, ऩरॊतु दशूरों का उध्दार कर नषीॊ शकता ।

    ऴब्द दीसा के दो प्रकार षैं । तद्वद् हद्ववळधॊ शूक्ष्मॊ ऴब्दश्रळणेन कोककऱाभ्युदययो: । तमशुतमयूरयोररळ तहद्वहेयॊ यथाशॊख्यम ्॥

    त्जश तरष कौंळे के घोशऱे में कोयऱ का छोटा बच्चा कोककऱा का ऴब्द शुनतेषी बोऱने ऱगता षै और आगे तो कोयऱ षी दशूरे बच्चों में जागनृत ऱा कर कॊ ठ स्ळर दे शकती षैं । इश तरष शे ऴब्द के माध्यम शे यष क्रम ऴुरु रषता षैं। ऩरॊतु जो मोर बादऱ के गरजनेशे नाच उठता षै ळष मोर अऩनी आळाज शे दशूरे मोर को नषीॊ नचा शकता । और इश तरष यष क्रम आगे नषीॊ चऱता षैं |

    इमथॊ शूक्ष्मतरमवऩ हद्ववळधॊ कूम्याष ननरीसणात्तस्या। ऩुत्र्यास्तथैळ शवळतुननषरीसणात ्कोकलमथुनस्य ॥

    शूक्ष्मतर दीसा जो ृषवष्टसेऩद्वारा दी जाती षैं उशके भी दो प्रकार षैं । एक ऩिती में जैशे कछुळा अऩने बच्च ेऩर ऱगातार ृषवष्ट रखकर उशका ऩाऱन ऩोवण करता षैं और उश बच्च ेमें भी आगे जरूरत ऩड़ने ऩर ऴक्ति उमऩन्न करके उशे चऱा शकता षैं । ऩरॊतु उन बच्चों को उश ऴक्ति का एषशाश उनके बच्च ेषोने तक नषीॊ षोता । इश प्रकार लऴष्य भी ळशैेषी उशके गुरु शे दी गयी ऴक्ति के बारे में जागरुक नषीॊ रषता षैं और जब लऴष्य गुरु के शात्न्नध्य में नषीॊ आता तब तक ळष उशे ऴक्तिऩात दीसा नषीॊ देता । ऩसी, ऱाऱ षॊश के जोड ेशूयषदऴषनशे आनॊहदत षोते षैं , ऩर ळष स्ळत: स्ळजातीय षॉशों को आनॊहदत नषीॊ कर शकते ।

    अब शॊकल्ऩ दीसा के बारे में वळचार करें । शूक्ष्मतममवऩ हद्ववळधॊ ममस्या: शॊकल्ऩतस्तु तद्दहषतु:। तनृप्तनषगराहदजननमाषत्न्िकशॊकल्ऩतश्च भुवळ तद्वत ्॥

    शूक्ष्मतम दीसा के प्रकार में शॊकल्ऩ दीसा षैं ळष भी दो प्रकार की षोती षैं । उशमें शे एक प्रकार ऐशा -त्जश तरषशे मछऱी अऩना मन एकाग्र करके अऩने बच्च ेका चचॊतन करके अऩने बच्चोंका ऱाऱन ऩाऱन करती षैं । और दशूरा प्रकार जैशे जादगूर माया शे ऴषर एळॊ गाॉळ तैयार कर हदखाता षैं । ऩषऱे प्रकार में मछऱीद्वारा बच्चों को ऴिी लमऱती षै ऩर दशूरे प्रकार में उमऩन्न षोने ळाऱा आभाश नळीन आभाश उमऩन्न कर नषीॊ शकता।

    ऊऩर हदये गये उदाषरणों में ऴक्ति शॊक्रमण करने की ऩरॊऩरा को चाऱू रखने की ऴक्ति ननशगषने गुरुमाता में दी षैं ऐशा देखने में आता षैं । इशलऱए गुरु को ‘गुरु माॉ’ यष नाम प्राप्त षुआ षैं ।

    एकबार जो गुरुने अऩने लऴष्यऩर ऴक्तिऩात कर दैळी ऴक्ति का शॊक्रमण ककया, तो लऴष्य अऩने आऩ षी आशन, प्राणायाम, मुद्रा, प्रमयाषार, धारणा और ध्यान यष बात शषज आममशात करता षैं । यष करते शमय उशे ककशीका मागषदऴषन ऱेना नषीॊ ऩडता और ककशी भी प्रकार की मेषनत या तकऱीर् करनी नषीॊ ऩडती,

  • 6

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    क्योंकक ऴक्ति स्ळत: शाधक को उऩरी बाते करने में शषायता एळॊ मागषदऴषन करती षैं । इश शाधना का ळैलऴष्ट्य यष षैं कक इशमें शाधक को ककशी भी प्रकार की चोट या कष्ट षोने का भय नषीॊ

    रषता। जो शाधक अन्य ककशी प्रकार की शाधना शे योगका अभ्याश करता षैं, उशे अऱग अऱग आऩवत्तयों का शामना करना ऩडता षैं और आखरी में अऩना ऩरम कल्याण षोगा इश आऴा में बषुतषी कठोर ननयमानुशार जीळन त्रबताना ऩड़ता षैं । ऩरॊतु इश शाधना में ऩरमानॊद प्राप्त षोता षी षैं, ककॊ तु शाधक में कुण्डलऱनी ऴक्ति जागतृ षोते षी ळष उशे आममप्रचीती देते जाती षैं। शाधक को ऩरमोच्च ब्राह्मी त्स्थती में ऩषुॉचने तक ऴक्तिका कायष ऴुरु रषता षी षैं । बीचमें षी शाधक को अऩळादाममक ऩररत्स्थनतयों में अनेक जन्म ऱेना भी ऩड गया तो यष ऴक्ति शो नषीॊ जाती और अऩना उदे्दश्य ऩूरा कर ऱेती षैं । इश प्रकार के शाधन मागष में शद्गरुुने वळश्वाश हदया षैं ।

    ऴक्तिऩात मागष के द्वारा शाधक को एक बार हदऴा लमऱ गई कर्र ळष स्ळत: योग के ककशी भी मागष का अळऱम्बन नषीॊ कर शकता अथळा ऐशा करनेशे उशे शुख भी प्राप्त नषीॊ षोगा । ळष लशर्ष अॊदर शे लमऱने ळाऱे ऴक्ति के आदेऴ का षी ऩाऱन कर शकता षैं । ऐशे आदेऴों की अगर ळष अळहा करेगा तो उशके ऊऩर आऩवत्त आये बगैर रषेगी नषीॊ। जैशे मनुष्य को नीॊद आने ऱगे तो उशे नीॊद शे षी ऴाॊती और शुख लमऱेगा । उशी प्रकार जब शाधक आशनऩर बैठता षै तो उशे अॊदर शे ऴक्ति के आदेऴ लमऱने ऱगते षैं कक उशे क्या - क्या करना षै अथळा अमुक प्रकार की कक्रया (षऱचऱ ) करना षै और उश प्रकार की उशे कक्रया करनी षी ऩडती षैं । ळष अगर ळैशा नषीॊ करेगा तब उशे अस्ळस्थता षोगी और तकऱीर् षोगी । ऩरॊतु अगर ळष खुऱे मन शे अॊदर शे लमऱनेळाऱे आदेऴ का ऩाऱन करेगा, तो ऴाॊती ळ शुख षी लमऱेगा । खुद के प्रयत्नों ऩर श्रिा रखनेळाऱे शाधक इश प्रकार की शाधना में कम वळश्वाश रखते षैं और ळे अॊत:ऴक्ति ऩर ननभषर न षोकर खुद बाषर की ऴक्ति ऩर आधाररत रषेगा । ऩरॊतु ऴक्ति शॊक्रमण का मागष ऩूणष शमऩषण एळॊ ऴक्ति ऩर आधाररत रषने का षी षैं । त्जशे इश प्रकार की दीसा लमऱी षोगी उशे इश जनम में अऩनी ककतनी प्रगती षोगी इशका वळचार नषीॊ करना चाहषए । ऴक्ति जषाॉ ऱे जायेगी, ळषाॉ जाने के लऱये उशे तैयार रषना चाहषए और ऴक्ति शभी प्रकार के शॊकट शे उशका रसण करती रषती षैं। ळषी उशे ऩरमोच्च ऩद ऩर ऱे जाती षै । त्जनकी आज के इश युग में योग के बारे में उमशुकता षोगी उशे ऴक्तिऩात मागष जैशा कोई भी दशूरा शरऱ मागष नषीॊ षैं ।

    ऴक्ति -शॊक्रमण करने ळाऱे अचधकारी मषाममा के शात्न्नध्य में जो कोई भी आयेगा, उशे उनकी मजी शॊऩादन करके अऩने जीळन को शाथषक करने के सण को खोना नषीॊ चाहषये । इश कलऱयुग में यष ऩरॊऩरा याने ममृयुऱोक में मनुष्य के लऱए स्ळगष शे ऱाये गये अमतृ जैशे षैं । इशके लशळाय शरऱ ळ ज्यादा ऩररणामकारी दशूरा कोई शाधन नषीॊ । यष शाधक को शभी दखुों शे और दवूवत मन, गऱत प्रळवृत्तशे मुि कर उशे ऩरमऴाॊनत देती षै । षम शभी ऴॊकराचायष के लऴळानॊदऱषरी के इश श्लोक को ऩढकर ऩरमेश्वर श ेआखरी प्राथषना करे :-

    मळमऩादाम्बुजमचषयालम ऩरमॊ मळाॊ चचन्तयाम्यन्ळषम ्। मळामीऴॊ ऴरणॊ व्रजालम ळचशा मळामेळ याच ेवळभो ॥ दीसाॊ मे हदऴ चासुवीॊ शकरुणाॊ हदव्यत्श्चरॊ प्राचथषताॊ ऴम्भो ऱोकगुरो मदीयमनश: शौख्योऩदेऴॊ कुरु ॥

  • 7

    http://vageeshwaree.wordpress.com/

    षे शळषशे्रष्ठ ! मैं तेरे चरणकमऱों की ऩूजा करता षूॉ और तेरा ध्यान करता षूॉ । मैं तरेी ऴरण में आता षूॉ ( तेरा आश्रय ऱेता षूॉ ) और षे ऩरमेश्वर, मधुर ऴब्दों शे प्राथषना करता षूॉ की, तू मुझे स्ळीकार करके, तेरी करुणाऩूणष ृषवष्टशे मुझऩर ऴक्तिऩात कर मुझे ऐशी दीसा दें की, त्जशका ध्याश देळऱोकों में भी ऱगा षुआ षैं । षे ऴॊभो, जगद्गरुो, मेरे मनको शच्च ेशुख का मागष लशखा ।

    ॐ ऴाॊनत: ऴाॊनत: ऴाॊनत: ।