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  • सर्वेक्षण परिर्वाि সর্বেক্ষন পরিবাি સરે્વક્ષણ પરિર્વાિ

    ಸರ್ವೇಕ್ಷನ್ ಪರಿರಾರ സര്വേഷ പവിവാർ

    सरे्व्हक्षण परीवार ସର୍ଭେକ୍ଷଣ ପରିବାର

    ਰਵੇਕ੍ਸ਼ਨ ਪਰਰਵਾਰ सवेक्षण् पररवारम्

    سارڀيڪسهان پارڳصارசர்வேக்ஷன் பரிோர்

    సర్వేక్షన్ పర్ివార్ سروکشن پریىار

    raSiraP aahsaSvraS

  • सर्वेक्षण परिर्वाि अंक – द्वितीय वर्ष – 2017

    बंगभूमि से प्रारम् भ ुआ 250 बसंत के पार ुआ

    भारत का पठारी प्रदेश या फिर हो हहिालय पहाड़ गंगा का िैदान या फिर विशाल िरू भूमि थार

    तटीय प्रदेश हो, या तंग दरे हिारे सिेक्षकों ने फकया सबका सिे

    विविधताओं से भरा हिारा देश सिेक्षण कायय आसां नहीं ‘शुभेश’

    फिर भी पग-पग का फकया सिेक्षण भारत भूमि का सुन् दर, सटीक िानमित्रण

    राष्ट र के सेिा िसत सततम सिवपह त हिारा ‘सवेक्षण परिवाि’ पफत्रका का फितीय अंक प्रस् तुत है आपको साभार

    भाितीय सवेक्षण द्ववभाग, कोलकाता य ह पफत्रका विभागीय िबेसाटट www.surveyofindia.gov.in पर उपलब् ध है

    http://www.surveyofindia.gov.in/

  • सर्वेक्षण परिर्वाि अंक – द्वितीय वषष – 2017

    श्री संजय कुमारअपर महासवेक्षक, पूवी क्षेत्र, कोलकाता

    श्री भरत कुम् भार अधीक्षक सवेक्षक, पश्चिम बंगाल व श्चसक्किम जीडीसी

    श्री शुभेश कुमार प्रवर शे्रणी श्चलद्वपक, पश्चिम बंगाल व श्चसक्किम जीडीसी

    पश्चिमी मुद्रण वगष, नई दिल् ली

  • भारतीय सरे्वक्षण वर्वभाग - शुभेश कुमार - 13 अंग्रेजी का बुखार - अनुपम बैरागी - 14 देश का वर्वकास - शुभेश कुमार - 15 समन् दर रर प् थर - शुभेश कुमार - 28 देशभवि बनाम अभभव् यवि - सीमा ममत्रा - 29 बाररशों का शहर - सुपणाा राय - 37 सरकारी बनाम वनजी प्रवतष् ठान - शुभेश कुमार - 38 जलियांर्वािा बाग में बसंत - सीमा ममत्रा (प्रस् तुवत) - 41 यूं ही सफर में - शुभेश कुमार - 44 आदमी का आकाश - कृष् ण कुमार शमाा(प्रस् तुवत) 49 ऐ मातृभूमम तेरी जय हो - उमेश रवर्वदास (प्रस् तुवत) 50 साथ रहो - शांवत दास - 58 यात्रा - सोहम मण् डि - 59

    मेरा पहिा फील् ड - रूप कुमार दास - 25 एक मुिाकात - लसबेन् दु ्रवरर्वती - 51 यादें - देबेश रॉय - 63

    अनोखा मन्दिर - अनुपम बैरागी - 23 पुत्र की समझदारी - कािी प्रसाद ममश्रा - 40 बािक की वर्वद्वता - रतन दे सरकार - 43

    नक् श ेपोटाि डडलजटि इण्डिया की ओर बढ़ते कदम - कृष् ण कुमार शमाा - 17 जीर्वन - ओमप्रकाश रॉय - 19 हहन् दी - भारत की अखण् डता का प्रतीक - शुभेश कुमार - 20 रथयात्रा - कृष् ण ्न् र दास - 32 सरकारी तंत्र को कैसे मजबूत बनाएं - मबष् णु रंजन ्रवरर्वती - 35 मुरण - पी. कुमार - 54 हहन् दी- कुछ मह् र्वपूणा त् य - राजा सरकार - 55 शंख - अररन कुमार द् ता - 60 संकल् प - देर्वनारायण लसिंह - 61 सीख - सजि कुमार घोष - 62

    मेरे राम - शुभेश कुमार - 36 प्राथाना - नब कुमार पाि - 45 शान्ति कहां से ममिेगी - रमनी रंजन दास - 57

    अनुशासन - नर्वनीत िाि कं्न - 30 स् र्वच् छता का मह् र्व - मबश् र्वनाथ नाग - 39

    उठ जाग री मेरी गुडऺडया - शुभेश कुमार - 34 भारत रर उसके राष् रीय प्रतीक(पेंरटिं ग) - शुभ् दास - 46 भ्त्रांकन - शुभ् दास - 47

    तन् रा-भंग - शुभेश कुमार - 42 गुदगुदी - सीमा ममत्रा - 22, 27

  • मेजर जनरल वी.पी. श्रीवास् तव भारतीय सवेक्षण ववभाग Maj Gen V. P. Shrivastava महासरे्वक्षक का कायाालय

    हाथीबड़कला एस् टेट, पोस् ट बॉ् स न . 37 देहरादून-248001(उत् तराख् ड), भारत

    भारत के महासरे्वक्षक Survey of IndiaSurveyor General of India Surveyor General’s Office

    Hathibarkala Estate, Post Box No.-37 Dehradun-248001 (Uttarakhand), India

    मुझे यह जानकर अतत प्रसन्नता हो रही है कक पश्चिम ब गाल र्व ससक्किम भू-स्थातनक आ कडा केन्द्र, पूर्वी मुद्रण र्वगा एर्व अपर महासर्वेक्षक का कायाालय, परू्वी क्षेत्र, स युक्त रुप में कोलकाता से राजभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु अपनी गृह पकत्रका ‘सरे्वक्षण पररर्वार ̓का कितीय स स्करण प्रकासित करने जा रहे हैं। राजभाषा हहन्दी एक ऐसी सिक्त और लोकतप्रय भाषा है जो देि के कोने-कोने में बोली र्व समझी जाती है। आर्वश्यकता इस भाषा के प्रयोग को बढानऺे की है। इस हदिा में कोलकाता में स्थस्थत कायाालयों के सलए यह आपका सराहनीय प्रयास है। मैं पकत्रका के प्रकािन से जुडे़ सभी अधधकाररयों, कमाचाररयों एर्व हर उस व्यतक्तयों सजनकी रचनाएँ प्रकासित हुई हैं, उन् हें बधाई देता । ँ। मुझे पूरा तर्वाास है कक भतर्वय य में भी इस तरह के प्रयास जारी रहेंगे। पकत्रका के सफल प्रकािन के सलए मेरी िुभकामनाए ।

    (र्वी.पी. श्रीर्वास्तर्व) मेजर जनरल

    भारत के महासरे्वक्षक

    Fax : 00-91-135-2744268/2743331 E-mail: [email protected] Tel : 00-91-135-2744268/2747051-58 Extn. 4350

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • भारतीय सवके्षण ववभाग Survey of India

    अपर महासर्वेक्षक का कायाालयसजंय कुमार Office of the Addl. Surveyor General Sanjay Kumar

    पूर्वी क्षेत्र Eastern Zone अपर महासरे्वक्षक, पूर्वी क्षेत्र 15, रु्वड स् रीट 15, Wood Street Addl. Surveyor General, Eastern Zone कोलकाता-16 Kolkata-16(WB)

    ई-मेल/E-mail: [email protected]

    धमत्रों, जरा सो चें यूरोप-मध् य एसिया- भारतीय प्रायिीप- ततब् बत-चीन स ेगुजरने र्वाले रेिम-मागों पर र्वाणणज् य-व् यापार कैसे सहदयों तक फलता-फूलता रहा, जबकक मागा या उसके आस-पास के देिों में परस् पर भाषायी समानता नह थी। अगर इस पुरानी बात को छोड़ भी दें, आज भाषायी असमानता के बार्वजूद हमारे देि में उत् तर से दसक्षण और पूर्वा से पश्चिम तक व् यापार सुगमता से चल रहा है। ् या आप में से ककसी ने, ककसी व् यापारी या रक-चालक से यह सुना कक उन् हें भाषायी हद् कतों के कारण काम-काज को तनपटाने में तकलीफ होती है। न ही ऐसा सुना गया कक भाषायी कारणों से राजमागों पर ढाबे बन् द हो गये हों या ककसी रक चालक ने अपना व् यर्वसाय बदलना चाहा हो। न ही ककसी स् र्वत त्रता स ्ाम सेनानी को आजादी की अलख जलाने के सलए या इसे र्वृहत-स् र्वरूपप प्रदान करने के सलए उन् हें भाषायी बाधा महसूस हुई, जबकक र्वे धमश्चश्रत भाषा-भाषी थे।

    र्वस् तुतज जापान से दसक्षण-पूर्वा एसियाई देिों तक में रह रहे प्रर्वासी भारतीय को एक-सूत्र में रखकर ‘आजाद हहन् द फजज’ का तनमााण सम् भर्व हो सका तो केर्वल इससलए कक हमारे बीच में एक सगुम सम् पका भाषा हहन् दी मजजदू रही है, सजस ेसबन ेगल ेलगाया। कारण, हहन् दी में यह तर्वलक्षण क्षमता है कक र्वह आसानी से समझ में आ जाती है, जो हर प्रकार के हार्व-भार्व, पररस्थस्थतत, मानर्वीय उद् गारों और ध् र्वतनयों को प्रकट करने के सलए िब् दार्वसलयों से पररपूणा है। जैसा कान में सुनाई देता है, र्वैसा ही िब् दों में उतारा जा सकता है और पुनज र्वापस र्वैसा ही बोला जा सकता है, जैसा मूलतज सुना गया था।

    अ ्ेजी या अन् य यूरोपीय भाषा की इस अप गता से आप सभी पररधचत हैं। सबसे महत् र्वपूणा यह कक इसे कभी अहहन् दी-भाषी क्षेत्र पर थोपा नह गया या ककसी द्रतर्वड़/आया मूल की भाषाओ पर इसे तरजीह नह दी गयी। र्वास् तर्व में इसे भारतीयों ने स् र्वमेर्व आत् मसात ककया

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • तनज भाषा उन् नतत अहै, सब भाषा को मूल । तबनु तनज भाषा ज्ञान के , धमटै न हहय को िूल ।।

    - भारतेन् दु हरर चन् द्र

    प्रान् तीय ईय याा– िेष को दूर करने में सजतनी सहायता इस हहन् दी प्रचार से धमलेगी, उतनी दूसरी ककसी चीज से नह धमल सकती।

    - सुभाष चन् द्र बोस

    है। तर्वभागीय काम-काज में राज-भाषा का दजाा प्राप् त हहन् दी के प्रोत् साहन का भी यही उयेशे य है कक सम् पका भाषा हहन् दी पूरे भारतर्वषा में लोगों को सामासजक, सा स् कृततक रूपप से जोड़ने में अपनी भूधमका बखूबी तनभाती रहे।

    इसी पृ य ठभूधम में भारतीय सरे्वक्षण तर्वभाग के कोलकाता िहर के कायाालयों के कधमियों, जोकक अधधका ितज बा ग् ला-भाषी हैं की ओर से पकत्रका ‘सर्वेक्षण-पररर्वार’ के दूसरे र्वातषिक अ क को जारी करना राजभाषा हहन् दी के प्रतत बा ग् ला-भातषयों के अगाध प्रेम और उत् साह को प्रदसिित करता है। आिा है पकत्रका के लेख आपको रोचक और ज्ञानर्वधाक लगेंगे।

    (स जय कुमार) अपर महासर्वेक्षक, पूर्वी के्षत्र कायाालय

    एर्वम् तनदेिक, पश्चिम ब गाल र्व ससक्क््ि भू-स् थातनक आ कड़ा केन् द्र

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • आशीष कौशल निदेशक ASHISH KAUSHAL

    DIRECTOR

    सन्देश

    प्रिय साथियों, यह गौरव एव ंिसन्नता का क्षण है कक भारतीय सवेक्षण प्रवभाग, कोलकाता के पवूी क्षते्र, पश्चिम पश्चिम बगंाल एव ं ससश्ककम भ ूबगंाल एव ं ससश्ककम भ ू ० ० स्िा स्िा ० ० आकंडा कें द्रआकंडा कें द्र एव ंपवूी मदु्रण वगग के परस्पर सामहूहक ियास से गहृ पत्रत्रका “ सवेक्षण पररवार “ के दसूरे अकं का िकाशन ककया जा रहा है. यह सवगप्रवहदत है कक राजभाषा हहदंी सरल, सबुोध व समधृ है और अपनी इन्ही प्रवशषेताओं की वजह से प्रवचव स्तर पर फल- फूल रही है. आज न केवल भारत में बश्कक पणूग प्रवचव में भारत का गणुगान हो रहा है. इस अकं में प्रवसभन्न प्रवषयों पर सलखी गयी रिनाएं, लेख, कप्रवताएं एव ंप्रवभागीय जानकाररयों का वहृद् समावेश हुआ है तिा अथधकाररयों व कमगिाररयों को अपनी लेखन कला को सामने रखने का अवसर िाप्त हुआ है. कायागलय के ‘ग’ क्षते्र में होने के सलहाज से हहदंी को सरकारी कामकाज में उपयोग करने हेत ुअथधकाररयों व कमगिाररयों को िोत्साहहत करना व बढ़ावा देना अततआवचयक है ताकक तनधागररत लक्ष्यों को िाप्त ककया जा सकें . पत्रत्रका के सफल िकाशन में सहयोगी सभी रिनाकारों व सपंादक मडंल को हाहदगक बधाई एव ंशभुकामनाएं व आशा करता हूूँ कक आने वाले वषो में पत्रत्रका का िकाशन अनवरत ्जारी रहेगा.

    जय हिन्द

    (आशीष कौशल) तनदेशक

    भारतीय सरे्वक्षण वर्वभाग पूर्वी मुद्रण र्वगग 14, र्वुड स्ट्रीट

    कोलकाता-700016 (पं०बं०) SURVEY OF INDIA

    EASTERN PRINTING GROUP,

    14 WOOD STREET,

    KOLKATA-700016 (W.B)

  • भारतीय सर्वेक्षण वर्वभाग ‘भारतीय सर्वेक्षण वर्वभाग’ 250 र्वर्षों का गौरर्वशाली इवतहास र्वैज्ञावनक वर्वभागों में सबसे पुरातन उत् कृष् ट, कममठ, अद्वितीय, अनुपम

    भारतीय भू-सम् पदा का मापक, पग-पग का संरक्षक सूत्र र्वाक् य ही सम् पूणमता का पचरयायक ‘हम राष् र के त्त् येक इंय से अर्वगत’

    पण्डित नैन ससिं ह, आर एन ससकदर कममठ सुयोग् य देश के कणमधार हहमालय की सर्वोच् य योटी सिनके नाम से सुशोभभत उन िािम एर्वरेस् ट के गुण से कौन नह पचरभयत

    वर्वश् र्व मानभयत्र पटल पर भारत को लाकर सर्वोच् य योटी की ऊंयाई बताकर िग में भारत की शोभा बढाई

    कन् याकुमारी से कश् मीर तक, और कच् छ से कामूपप तक हम एक हं हम एक हं, िग को बतलाई ....।।

    --श्री शुभेश कुमार प्रवर शे्रणी लिपिक

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • अंग्रेजी का बुखार अब सब पर अंग्रेिी का बुखार यढा है हर घर में इसका त्यार बढा है

    हैलो, हाय का दरबार है नमस् कार बेयारा हताश है

    कभी कृष् ण, कभी िॉन हुए अब हडस् को भगर्वान हुए

    भूल गये शुद्विया माफी आि सीखते हं थंक-यू, सॉरी

    दाल-भात से बयते हं अब वपज् िा बगमर खाते हं सब

    गीत-गिल कुछ समझ न आए माइकल िैक् सन सबको भाए

    दूध-दही से टूटा नाता केक टॉफी से हदल लग िाता

    अब सब ओर अंग्रेिी की बहार संस् कृवत पर हो रहा र्वार ।।

    --श्री अनुिम बैरागी अधिकारी िवेक्षक

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • देश का वर्वकास माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है ।

    घोटाला-भ्रष् टायार-दंगा मुक् त भारत आपने सलखी वर्वकास की नई ईबारत र्वैदेसशक सम् बंधों में बढी भमठास है..........। माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है....।।

    अमरीका, इिरायल, िममनी और िापान सबसे बनाए मधुर सम् बंध और वर्वकास को द्वकया गवतमान परंतु आंतचरक सम् बंधों में अब भी र्वही खटास है....। माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है...........।।

    नोटबंदी के यक् कर में परूा देश पस् त हो गया अच् छे हदन आएंगे यह सोय सब कष् ट सह गया भ्रष् टायारी सलाखों के भीतर होंगे और काला धन बाहर आर्वेगा िाने कब पूरी होगी यह आस है.....................। माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है वर्वकास है...।।

    रोिगार के अर्वसर कम हो रहे हं गरीबी तो नह , हां गरीब भमट रहे हं भारत के भवर्वष् य कर रहे रोिगार की तलाश हं....। माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है..........।।

    हमारे सच् ये पालक, त्वतपालक, भारतीय द्वकसान कोई क् या िानें मंहगाई के इस दौर में खेती नह आसान खेती के सलए भी किम में डूबे हुए हं इनका वर्वकास तो दूर की कौडी है, अपने ही खेत में बंधुआ मिदूर बने हुए हं

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • एक तो बाढ – सुखाड की त्रास है ऊपर से सरकारी नीवतयों ने भी द्वकया वनराश है.....। माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है............।।

    माननीय िी से वर्वनम्र वनर्वेदन, भार्षण-सम् भार्षण से ऊपर हो रोिगार सृिन ।

    हर हाथ को काम और हर पचरर्वार को आर्वास हो िन-िन की भागीदारी के वबना अधूरा हर वर्वकास है माननीय िी सुनेंगे सबकी आर्वाि, यही इक आस है....। माननीय िी देश का हो रहा वर्वकास है................।।

    --श्री शुभेश कुमार प्रवर शे्रणी लिपिक

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • नक् श े– पोर्टल डिजजर्ल इण्डिया की ओर बढ़ते कदम भू-स् थावनक क्षेत्र में भारत सरकार ने दो महत् र्वपूणम पॉसलसी लेकर

    आई - National Map Policy 2005 और National Data Sharing & Accessibility Policy (NDSAP - 2012)। राष् रीय मानभयत्र नीवत के पचरणामस् र्वूपप भारतीय सरे्वक्षण वर्वभाग ने 1:50K स् केल पर खुली रृंृंखला के मानभयत्रों को त्कासशत द्वकया िो द्वक देश के भीतर वर्वभभन् न वर्वकासोन् मुख गवतवर्वभधयों में सहायक ससद्ध होगी। इस हदशा में एक कदम आगे बढत े हुए सरकार ने सभी भारतीय नागचरकों को इसे सुलभता से उपलब् ध कराने हेतु NDSAP-2012 की सहायता से नक् शे पोटमल की शुूपआत की है। इसकी सहायता से कोई भी भारतीय नागचरक सिसके पास आधार संख् या उपलब् ध है, इस पर लॉग-इन कर उपलब् ध मानभयत्रों को त्ा् त कर सकता है। र्वतममान में इसकी पीडीएफ फॉमेट डाउनलोड करने हेतु उपलब् ध है। 55 अत्ैल, 2057 तक भारतीय सरे्वक्षण वर्वभाग िारा 4300 Open Series Maps िारी द्वकय े िा युके हं. इनमें स े3200 मानभयत्र ‘नक् शे’ पोटमल पर वन:शुल् क डाउनलोड हेतु उपलब् ध हं। भारतीय सरे्वक्षण वर्वभाग इस र्वर्षम अपनी स् थापना की 250र्व र्वर्षमगांठ मना रहा है। इसके िारा उठाया गया यह कदम वनश्चित ूपप से हडसिटल इण्डिया के वनमामण में सहायक ससद्ध होगा। नक् श ेपोटमल पर मानभयत्रों के डाउनलोड करने से पूर्वम आपको वनम् नसलिखत बातों को ् यान में रखना आर्वश् यक है :-

    1. आपके पास 12 अंकों र्वाली आधार संख् या का होना आर्वश् यक है। 2. आधार संख् या के साथ लॉग-इन करने के पश् यात पोटमल आपके आधार संख् या से िुडे मोबाईल संख् या पर एक OTP त्ेवर्षत करेगा, सिसके वनधामचरत फील् ड मे दिम करने के पश् यात आपकी पहयान सुवनश्चित की िाएगी।

    3. मानभयत्र के डाउनलोड करने हेतु सम् बंभधत मानभयत्र की शीट संख् या आपको ज्ञात होनी याहहए। यहद आपको शीट संख् या ज्ञात नह है, तो भयिं ता की कोई बात नह आप सम् बंभधत राज् य, सिला र्व वनकटर्वती स् थान की सूयना दिम कर इछित त मानभयत्र की सूयी त्ा् त कर सकते हं।

    4. मानभयत्रों के डाउनलोड करने से पूर्वम आपको इसके गोपनीयता नीवत (Privacy Policy) पर अपनी सहमवत त्दान करनी होगी।

    5. यहां से डाउन लोड कर त्ा् त द्वकये गए मानभयत्रों के िय-वर्विय को सर्वमथा त्वत बण्डित द्वकया गया है।

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • 6. इन मानभयत्रों का त्योग वर्वकासात् मक कायों के सलए, अ् ययन और अनुसंधान कायों के सलए तथा यात्रा एर्वम् पयमटन के सलए द्वकया िा सकता है।

    नक् श ेपोटमल का आभधकाचरक िाल स् थल : http://www.soinakshe.uk.gov.in/Home.aspx

    --श्री कृष् ण कुमार शमाा िहायक

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • जीर्वन वर्वसलयम शेक् सपीयर ने कहा था द्वक सिन् दगी एक रंगमंय है और हम

    लोग इस रंगमंय के कलाकार। सभी लोग िीर्वन को अपने-अपने निचरए से देखते हं। कोई कहता है िीर्वन एक खेल है, कोई कहता है िीर्वन ईश् र्वर का हदया हुआ उपहार है। कोई कहता है िीर्वन एक यात्रा है, कोई कहता है िीर्वन एक दौर है और बहुत कुछ। मं आि यहां पर ‘िीर्वन’ के बारे में अपने वर्वयार शेयर कर रहा हं और बताने की कोसशश कूंपगा द्वक िीर्वन क् या है।

    मनुष् य का िीर्वन एक त्कार का खेल है और मनुष् य इस खेल का मखु् य िखलाडी। यह खेल मनुष् य को हर पल खेलना पडता है। इस खेल का नाम है वर्वयारों का खेल। यहां मनुष् य को दशु् मनों से बयकर रहना पडता है और मनुष् य अपने दशु् मनों से तब तक नह बय सकता िब तक मनुष् य के भमत्र उसके साथ नह हं। मनुष् य का सबस ेबडा भमत्र वर्वयार है और उसका सबसे बडा दुश् मन भी वर्वयार ही है। मनुष् य के भमत्रों को सकारात् मक वर्वयार कहते हं और मनुष् य के दशु् मनों को नकारात् मक वर्वयार कहा िाता है। िीर्वन ूपपी खेल का मूल-मंत्र यही है द्वक र्वह िैसे िखलाडी का ययन करता है उसे उसी का साथ लेकर आग ेखेल पूरा करना पडता होता है। अथामत हम सकारात् मक वर्वयार ूपपी भमत्रर्वत् िखलाडी का ययन करते हं तो इस खेल में हमें सर्वमथा वर्विय त्ा् त होती है। यहद वर्वियरृंी गले नह भी आती तब भी हार को सामना करने की शवि उसे भमलती है। र्वह यहद शत्रुूपपी नकारात् मक वर्वयारों को अपनाते हं तो हमें हर कदम पर ठोकरें खानी पडती है। यहद भूले से वर्वियरृंी त्ा् त भी हो िाती है तो र्वह अपने संग-संग अहंकार ूपपी कांटे को भी साथ लाती है सिसके कारण वर्वियरृंी का हार अभधक समय तक धारण योग् य नह रहता।

    इससलए हमें अपने िीर्वन में सदैर्व सकारात् मक वर्वयारों का ययन करना याहहए। --श्री ओमप्रकाश रॉय

    िटिधित्रक (िररवीक्षािीन) िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • हिन् दी - भारत की अखण् िता का ्रततीक हहन् दी हमारी रािभार्षा है। ‘रािभार्षा’ अथामत् रािकीय त्योग के सलए

    अभधकृत भार्षा। वर्वभभन् न कायामलयों में इसका त्योग मिबूरीर्वश रािभार्षा वर्वभाग के हदशा-वनदेशों के अन् तगमत वनधामचरत न् यूनतम लष् य की त्ावति हेतु द्वकया िाता है। र्वर्षम में एक बार हहन् दी हदर्वस अथर्वा हहन् दी पखर्वाडे के आयोिन में हर बार संकल् प सलया िाता है द्वक हहन् दी के वर्वकास में बढार्वा देंगे और यथासम् भर्व हहन् दी में कायम करेंगे, परंतु अगले ही हदन द्वफर से र्वही ‘ढाक के तीन पात’। हहन् दी के सलए इससे अभधक दहुदि न और क् या हो सकता है द्वक िब उसे अपने ही हहन् दसु् तान में केर्वल हहन् दी पखर्वाडों में याद द्वकया िाए। दूसरी ओर हहन् दी को छोड अंग्रेिी में बात करना स् टेटस ससम् बल बन िाए। इतना ही नह हहन् दी में बात करना, हहन् दी मा् यम में अ् ययन-अ् यापन करना आपके वनम् न सामासिक स् त् ार को दशामए, द्वफर आप हहन् दी के सम् मान की क् या कल् पना कर सकते हं।

    वर्ववर्वधताओं से भरे इस भारतर्वर्षम में हहन् दी एक भार्षा से बढकर है। कन् याकुमारी स ेकाश् मीर तक और पूर्वोत् तर भारत के दगुमम पर्वमतीय त्देश से कच् छ के रन तक हहन् दी पूरे भारतर्वर्षम को िोडने का कायम करती है। हहन् दी हमारी अखण् डता का त्तीक है। इससलए यहद भारतर्वर्षम की अखण् डता को अक्षुण् ण रखना है तो हहन् दी के वर्वकास पर ् यान देना होगा। उसे कायामलयीन त्योगमात्र से आगे लाकर िन-िन तक पहुंयाना होगा। सरकार इस हदशा में महत् र्वपूणम कदम उठा सकती है। हमने अंग्रेिों की गुलामी से भले ही 1947 में ही मुवि पा ली, परंतु भार्षायी तौर पर हम आि भी अंग्रेिी दासता के सशकार हं। सिस अंग्रेिों ने र्वर्षों इस देश को लूटा और हमारे पूर्वमिों पर अत् यायार द्वकये उसी की भार्षा को आि इतना सम् मान हदया िा रहा है। इतना ही नह साथ-साथ हमारी राष् रभार्षा का अपमान भी द्वकया िा रहा है, िो कतई स् र्वीकायम नह है। अंग्रेिी के पक्ष में हमारे आधुवनक त्बुद्ध र्वगम तकम देते हं द्वक यह अंतरामष् रीय भार्षा है, इसमें अभधक अर्वसर हं इससलए इसे अर्वश् य सीखनी याहहए। सीखने में कोई बुराई नह लेद्वकन देश के भीतर इसकी अवनर्वायमता क् यों?

    द्वकतने लोग वर्वदेश िाते हं, सिसके कारण इसकी अवनर्वायमता की आर्वश् यकता आन पडी। द्वफर र्वही त्बुद्ध र्वगम हमें इस त्श् न का उत् तर भी देते हं द्वक अपने देश में वर्वभभन् न हहस् सों

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • यथा- दसक्षण भारतीय त्देशों में िाने पर हमें अंग्रेिी भार्षा सहायता करती है। तो हमारे सलए इससे बडी शमम की बात और क् या हो सकती है द्वक हमें अपने ही देश में अभभ यवि के सलए अंग्रेिी का सहारा लेना पडे। सम् पूणम भारत में हहन् दी भार्षा को सरकार िारा अवनर्वायम बनाकर इस समस् या का वनदान द्वकया िा सकता है। हम बहुत सौभाग् यशाली हं द्वक हमारी हहन् दी इसमें पूरी तरह से सक्षम है। द्वकसी भी स् र्वाभभमानी यवि के सलए अभभ यवि का मा् यम वर्वदेशी भार्षा नह हो सकती, खासकर र्वो भार्षा सिसने हमारे देश और पूर्वमिों पर अत् यायार पूणम कृत् य द्वकये हों।

    एक स् र्वाभभमानी भारतीय होने के नाते मेरे यविगत वर्वयार में सरकार िारा सम् पूणम भारत में दसर्व कक्षा तक हहन् दी भार्षा को अवनर्वायम बनाना याहहए। द्वितीय भार्षा के ूपप में अवनर्वायम ूपप से अन् य क्षेत्रीय भारतीय भार्षा यथा- तेलुगु, तभमल, कन् नड, बांग् ला, भमिो, आहद भार्षाओं के ययन का वर्वकल् प देना याहहए। साथ ही अ् ययन का मा् यम हहन् दी अथर्वा अन् य भारतीय भार्षा होनी याहहए। र्वह अंग्रेिी को चछित क भार्षा घोवर्षत करनी याहहए। िो भी यवि अपने अंतरामष् रीय भवर्वष् य को ् यान में रखकर अ् ययन करना याहें र्वे अंग्रेिी भार्षा का ययन कर सकते हं। सरकार को दूसरा कदम हहन् दी भार्षा के र्वचरष् ठ भार्षावर्वदों से भमलकर लेनी याहहए सिसमें भार्षा की िचटलताओं (िचटल कायामलयीन शब् दों के त्योगो को दूर कर उसे सरल और िनमानस में लोकवत्य बनाने में सहयोग करनी याहहए।

    सिस देश की अभभ यवि का मा् यम यहद उसकी अपनी भार्षा न होकर वर्वदेशी भार्षा हो, उसका सर्वाांगीण वर्वकास सम् भर्व नह । आपको शायद ज्ञात हो, यीनी भार्षा दवुनया की सबसे कचठन भार्षा है। आि यीन-िापान हमारे सामने दो त्मुख उदाहरण हं िो अपनी भार्षा की कचठनताओं के बार्विूद अंग्रेिी के त्भुत् र्व को उन् होंने स् र्वीकार नह द्वकया है और पचरणाम आपके सामने है। िनमानस की भार्षा को त्ोत् साहन देने से ही हम उनके अंदर छुपी सभी संभार्वनाओं को उभार कर बाहर ला सकते हं, उनकी ऊिामओं का सम् पूणम उपयोग कर सकते हं। हमारे वनदेशक महोदय ने हहन् दी कायमशाला में एक ष्ष् टांत का उल् लेख द्वकया –

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

    हिन् दी िह ि र्वतन िै, हिन् दोस तां ि ािा

  • एक बार िब रृंीमती वर्वियालष् मी पण्डित ूपस के आभधकाचरक दौरे पर गयी तो र्वहां र्वे स् टासलन से भमल । उन् होंने अपना पचरयय पत्र हदया िो द्वक अंग्रेिी भार्षा में था और बताया द्वक र्वे भारत से आई हं। तब स् टासलन ने उत् तर हदया द्वक ‘ये पचरयय पत्र पर क् या सलखा है- ये तो न आपकी भार्षा हहन् दी में है और न मेरी भार्षा ूपसी में है।’ यह छोटी सी घटना द्वकसी भी देश के सलए उसकी मातृभार्षा के महत् र्व को समझाने के सलए पयाम् त है।

    --श्री शुभेश कुमार प्रवर शे्रणी लिपिक

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    गुदगुदी-१

    बेटे के घर देर से आने पर : मााँ – कहां था सारी रात ? बेटा – इमोशनल द्वफल् म देखने गया था ‘् यारी मााँ ’। मााँ – अन् दर तेरे पापा इन् तिार कर रहे हं। अब र्वो हदखाएंगे एक् शन द्वफल् म – ‘िासलम बाप’।

    पापा – हदन भर फेसबुक पर बैठा रहता है, ये तुझे रोटी नह देनेर्वाली। बेटा – पापा मुझे भी पता है, रोटी नह देगी पर रोटी बनाने र्वाली तो यह भमलेगी।

    पवत-पत् नी में लडाई हुई और पवत घर से यला गया। पवत – (रात को फोन परो खाने में क् या बना है? पत् नी – िहर पवत – मं देर से आऊंगा, तुम खाकर सो िाना पत् नी – बेहोश।

    --श्रीमती िीमा धमत्रा भण् डारिाि (िररवीक्षािीन)

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • अनोखा मन्दिर राज् य की अपेसक्षत तरक् की नह होने से रािा धीरसेन भयन्तित रहने लगे।

    उनका पडोसी राज् य उनसे अभधक सम् पन् न था। एक हदन संत र्वासु पूज् य उनके रािमहल में पधारे। धीरसेन ने उनसे अपनी समस् याबताई तो उन् होंने कहा तुम् हारी भयन् ता का वनदान अत् यन् त आसान है। मंने तुम् हारे राज् य को घूमकर देखा है। तुम् हारे राज् य के गांर्व और नगरों में अच् छे मदिर र नह हं इसीसलए अपेसक्षत तरक् की नह हो पा रही है। अगर िगह-िगह कुछ अद् भुत मदिर रों का वनमामण हो पाए तो त्िा की बुभद्ध वर्वकससत होगी और यापार बढेगा।

    यह सुनकर धीरसेन ने मुनादी करर्वा दी द्वक र्वासु पूज् य महाराि ने कहा है द्वक िगह-िगह अद् भुत मदिर रों का वनमामण होगा तभी तरक् की होगी, ज्ञान बढेगा और यापार बढेगा। तीन माह के अन् दर सिन गांर्वो के लोग इनका वनमामण कर लेंगे उन् हें पुरस् कृत द्वकया िाएगा। रािा की मुनादी सुनकर पूरे राज् य में िगह-िगह अद्भतु मदिर र के वनमामण की होड सी मय गयी। देखते ही देखते तीन माह बीत गए। संत र्वासु पूज् य और धीरसेन राज् य का दौरा करन ेलगे। िगह-िगह लोगों ने एक-से-एक सुन् दर मदिर र बनाये थे। धीरसेन ज् यों ही पुरस् कार देने की बात सोयते, बाबा कहते- यह तो कोई अद् भुत मदिर र नह है। यह तो बस एक साधारण सा मदिर र है। घूमत-ेघूमते रािा धीरसेन परेशान हो गए, मगर बाबा को एक भी मदिर र अद् भुत और पुरस् कृत करने लायक न लगा।

    आिखर धीरसेन हताश होकर र्वापस लौटने का मन बनाने लगे। तभी उनके राज् य की सीमा से लगे गांर्व स े कुछ लोग उनके पास आए और बोले महाराि, हमारे गांर्व में भी पधाचरए। क् या पता हमारा मदिर र को आपको पसन् द आ िाए। धीरसेन ने सोया द्वक इतना छोटा सा गांर्व है र्वहां तो र्वैसे ही सुवर्वधाएं कम है। इन् होंने क् या अद् भतु मदिर र बनाया होगा। द्वफर भी गांर्व र्वालों का मन रखने के सलए र्वे संत बाबा के साथ यल पडे।

    संत बाबा और धीरसेन गांर्व में पहुंये और मदिर र में घूमें तो संत बाबा बोल पडे, र्वाह !! यही है अद् भतु मदिर र। धीरसेन ने अयरि से यारों ओर निर घुमायी, उन् हें मदिर र कह निर नह आया। र्वहां एक मकान अर्वश् य था सिसमें एक छोटा सा साधारण मदिर र था। कुछ कमरों में बच् ये पढ रहे थे। एक कमरे के बाहर कुछ मरीि खडे थे और एक भयद्वकत् सक बारी-बारी से िांय करके मुफ्त में दर्वा दे रहा था। धीरसेन कुछ समझ नह पाये। उन् होंने बाबा की ओर देखा। बाबा बोले- धीरसेन यही तरक् की हदलाने र्वाला अद् भुत मदिर र है।

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • िब तक त्िा को सशक्षा नह भमलेगी, र्वह स् र्वस् थ नह रहेगी, तब तक तुम् हारे राज् य की तरक् की नह हो सकती। तुम् हारे पडोसी राज् य में चसे मंहदर नगर-नगर में डगर-डगर में है।

    --श्री अनुिम बैरागी

    अधिकारी िवेक्षक िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • मेरा पिला फील् ि त्त् येक मनषु् य के िीर्वन में कुछ घटनाएं चसी होती है िो द्वक उसके मानस

    पटल पर पत् थर की लकीर की भांवत अभमट छाप छोड िाती है। मेरे िीर्वन में एक चसी घटना घट युकी है िो द्वक मुझे हमेशा रोमांभयत करती है। 1993 में टी.टी.टी.ए. कोसम समा् त होने पर मेरी पोन्तटिंिं ग देहरादून में हुई। नई िगह, नई पचररे्वश, नई सिन् दगी और नये काम, सामंिस् य स् थावपत करने में कुछ समय लग गया। दगुामपूिा का समय आ गया। मं और मेरा साथी वत्यव्रत घोर्ष दोनों ने देहरादून एक् सत्ेस से चटकट कटर्वाए। हम दोनों साथ-साथ घर गए। घर से र्वावपस आ कर िब कायामलय में उपस्थित हुए तो त्भारी महोदय ने हमें बुलाकर कहा द्वक डी.पी.एस. माटा िी की अयानक तवबयत खराब होन ेस ेउनका काम पूरा करने के सलए आपको िाना पडेगा। दो हदन के अन् दर हमें िाने का आदेश हुआ। एक यारपाई, एक बेहडिं ग तथा कुछ िूपरी सामान के साथ 3 नर्वम् बर 1993 को सुबह 4 बिे देहरादून से टनकपुर को िाने र्वाली बस में सर्वार होकर यल पडे। हचरिार, निीमाबाद, मुरादाबाद होते हुए शाम 4 बिे टनकपुर पहुंये। अंधेरा यारों तरफ बढता िा रहा था। सोय रहे थे द्वक अगर माटािी से न भेट हुई तो क् या होगा। उस समय आि की तरह हर हाथ में मोबाईल नह था। केर्वल टेलीफोन के िारा ही काम यलता था। माटा िी तथा कायामलय के कुछ कममयारी मेरा इंतिार कर रहे थे। िब कैम् प पर पहुंये तो अन् धेरा हो युका था। मुझे पता यला द्वक टेंट िंगल के एक कोने में लगा हुआ था। उस समय कडाके की ठंढ पड रही थी। पूरे हदन की थकार्वट के कारण िल् द ही हम दोनों एक ही टेंट में सो गए। सिन् दगी का पहला त्ोडछितटिवर्व फील् ड होने से उस रात को थकार्वट के बाद भी न द िल् द ही खुल गयी। ठंढ बहुत ज् यादा थी। दो-दो कम् बल था, द्वफर भी ठंढ लग रही थी। करीब यार बिे मच् छरदानी के अंदर से माटा िी ने सुत्भात द्वकया। बाहर में भयडऺडयों के यहकने की आर्वाि आ रही थी। िब उिाला हुआ तो देखे द्वक तम् बू एक बडे से शाल के पेड के नीये लगा हुआ था। यारों तरफ शाल, सागर्वान, आम, बांस, महुआ इत् याहद पेड लगे हुए थे। बीय में एक साफ सुथरा तालाब भी था। यारों ओर मनोहारी ष्श् य था। फील् ड कायम त्ात: 8 बिे से त्ारम् भ होता था। स् र्वतंत्र ूपप से यह मेरा पहला कायम था, इससलए मं भी उत् साह और रोमांय से भरा हुआ था। मं शीघ्र ही तैयार होकर

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • माटा िी के साथ वनकल पडा। शहर से वनकलकर पहाडी रास् तों से होते हुए हम िंगल के भीतर से गुिर रहे थे। यहां यीड, पाइन आहद के घने पेडों के बीय स ेगुिरते हुए आहदम काल की अनुभूवत हो रही थी। वपथौरागढ तक पहले हदन एक क् लोि लूप बना था। शाम में र्वावपस तम् ब ू में आने पर माटािी ने फील् ड कायम से िुडे वर्ववर्वध द्वियाकलापों यथा- कैश बुक में त्वर्वभि, किििेंट वबल, मस् टर रोल तैयार करना आहद एक-एक कर अच् छी तरह से ससखाया।

    अगले हदन कैम् प सशछितटिंिं ग था। आधे रास् ते िाने के बाद हमारी िीप खराब हो गयी। पहाड पर ही आधा टेन् ट लगाकर हमें रात गिुारनी पडी। त्त् यके बी.एम. में ग्रवैर्वटेशन र्वलै् य ूवनकालना था। सुबह से शाम तक बी.एम. ढंूढ-ढंूढकर ग्रैवर्वटीमीटर से ऑब् िर्वेशन करना था। हदन भर काम करत-ेकरते कैसे शाम हो िाती पता ही नह यलता था। तीन हदन बाद माटािी देहरादून र्वापस यले गए। सफेद बफम की छटा और हदन की धूप के साथ उसके बदलते रंग को देखकर त्कृवत की खूबसूरती का अहसास होता था और इससे हमारी हदन भर की थकान पल भर में भमट िाती।

    हम टनकपुर से काम शुूप करते हुए वपथौरागढ, लोहाघाट, यम् पाहाट, आसकट, उगला, धारयुला, बैिनाथ होते हुए रानीखेत पहुंये। अब तक मेरे पास कंचटिेन् ट मनी केर्वल 70 ूपपया बया था। पैसे की कमी, और काम की थकान और वबना अनुभर्व के अकेले बाहर फील् ड कायम, मं उस कष् ट को अभी शब् दों में बयां नह कर सकता। 10 हदनों के बाद कूचरयर से 3000 ूपपये भमले। अगले हदन काम को देखने और ससखाने के सलए आर.एस. मौयम िी आए। र्वे मेरे साथ सात हदनों तक रहे। उन सात हदनों में मंन ेिो कुछ सीखा र्वह मेरी अमूल् य वनभध है। यह आगे के कायामलयी िीर्वन में बहुत उपयोगी सावबत हुआ। ूपडकी के पास की एक घटना अभी तक िेहन में है। ूपडकी के पास बालार्वली एक छोटा सा रेलरे्व स् टेशन है। र्वहां से गंगा वनकलती है। काम करते-करते सब लोग गंगा द्वकनारे पहुंय गए थे। शाम होने को थी आग ेसडक पर िल-िमार्व के कारण रास् ता निर नह आ रहा था। ऊपर से हमारे राइाइर्वर को ठीक से हदखाई नह पडता था। बडी मुण्डिल थी यहद घूम कर िाते तो काफी रात हो िाती। द्वफर तय हुआ द्वक एक आदमी पैदल आगे बढेगा उसके पीछे-पीछे िीप आएगी।

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • परंतु इस ठंढ में पानी में कौन िाए। आिखरकार मं ही आगे बढा। पानी में उतरते ही पुरा शरीर ठंढ से ससहर गया। िीप मुझे ओर्वरटेक करते हुए मेरे बगल से वनकल गई। मं र्वही िडर्वत हो गया। द्वफर गांर्व र्वालों ने मुझे गरम-गरम याय वपलाई द्वफर मेरी िान में िान आई।

    िनर्वरी का महीना था, यारों ओर बफम की यादर वबछ युकी थी उपर की ओर आने स ेकाम बन् द हो युका था। मंने ओ.सी., पाटी को तार भेिा। उन् होंन ेकाम बन् द कर देहरादून आने का वनदेश हदया।

    ये तीन महीना कैसे बीत गया कुछ पता ही नह यला। लेद्वकन यह मरेे िीर्वन में एक अभमट छाप छोड गया।

    --श्री रूि कुमार दाि

    अधिकारी िवेक्षक िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    गुदगुदी-२

    िो अमृत पीते हं, उन् हे देर्व। िो वर्वर्ष पीते हों उन् हें देर्वों के देर्व ‘महादेर्व’ कहते हं। लेद्वकन वर्वर्ष पीकर भी िो अमृत िैसा मुंह बनाये उसे पवतदेर्व कहते हं।

    प् पू – मम् मी मं टीर्वी देखत-ेदेखते पढाई कर लंू। मम् मी – हां क् यूं नह , पर टीर्वी भूलकर भी यालू मत करना।

    दूल् हा – पण्डित िी दलु् हन को बांयी तरफ वबठाना है या दांयी तरफ। पण्डित – देख लो, िैसा ठीक लगे, बाद में तो सर पर ही बैठेगी।

    --श्रीमती िीमा धमत्रा भण् डारिाि (िररवीक्षािीन)

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • समन्दरररत् ्ार समन्दरतररे करर, ममलरेाषाणस जारर करतुमेाषाणतुमजड़वत, करतुमनादानमैंअवगत।। जोगुजर ेासस होरर, वहरइरमारताठोरर

    रहींकनानहींजाना म र हरर तर भरतर, हैतुमरोदफनहोजाना

    मुझ द खोमैंबलखातर ऊफनतरहूंमचलतरहूं, लहरोंे गरतमैंगातर गगनस झूमररममलतर, मगनमैंनाचतर-कफरतर म र सूंगतूभरचलकरर, उस बोलरतरसखारर।।

    सुनररर समन्दरर , मदभररबातेंऔरतान ेाषाणयूूंबोला, तरसमतखातूमुझेर औरनद रोईमुझ तान जगतमेंमैंहर, रहाशाश्वत मचरूंतनरालस अबतर।।

    मैंहरचक्र हूंजो, ेरसररतुम्हाराे हहूंभरता खुदतोक्षरणहोताहूं, मुूंहस ऊफभरनररता।। अगरतुमेूजत मझुरो मैंशाललग्रामहोताहूं अगरतुमचाहत मुझरो मरबर -ताजहोताहूं।।

    अगरतुमजौहररहो, मुझरोतराशो कफरहरराहूं, करस्मतधनरे्थर अगरतुमठोररेंमारो कफरे्थरहूं, बसे्थर।।

    यहाूंेरनाररयाूंअबलाबनर प्रताडऺि़तहोतरहै औरब रहयाूंतोजन्मस ेहल हरमरतरहैं।।

    दगुाा, सरस्वतर, लक्ष्मररा गुणगानहोताहै यहाूंेाषाणमुर्तियोंराहर सम्मानहोताहै...।।

    --श्री शुभेश कुमार प्रवर शे्रणी लिपिक

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षणतररर्व्ार-अंक2

  • देशभक्तिबन्ामअभभव्यक्ति

    द शभर्िर जज्ब रो, मततौलोतराजूमें। शहरदोंर शहादतरो मतब चोबाजारोंमें।। बहसहोर्ववादोंमें, लजरहहोमजहबोंमें। ेरजबमुल्रर बातहोतरहो, तोअदबहोलहजोंमें।। बड़ाफरा होताहै खुदरुशरऔरशहादतमें। क्योंमातममनात हो गद्दारोंर फाूंसरमें।। जबरोईअमनर लुह रोंरो ‘हररो’बनाजय-जयराररर । तोबड़रशरमसरहोतरहै इनलसरकफरोंर बगावते ।। करसरर फाूंसरर सजास , ददलहोतातोकहतहै। ेरक्याररेंउनरालजन्हें मुल्रर बबाादरर चाहतहै।।

    क्षमाऔरअदहिं सार हमब सरेुजाररहैं। ेररैस भुलाय ‘ेृथ्वर’ गोररर दास्ताूं। लजसन क्षमार बदल ददलमेंखूंजरउताररहै।।

    ब सरमतभ दहैहममें मुल्रर रईमुद्दोंे । ेरउसराहलक्यूूंढूूंढ दशु्मनोंर अड़न े ।।

    ‘अमभव्यर्ि’र कजादररो हरकरसररोइजाजतहै। ेरक्योंनइलाजहोउनरा लजन्हेंमुल्ररोगालर द न र कदतहै।।

    --श्रीमती िीमा ममत्रा भण् डारिाि रिवरवीषाधानी )

    िलिम बंगाि व लिक्किम जीडीिी

    सरे्वक्षणतररर्व्ार-अंक2

  • अनुशासन (हिन्दीसंवर्गकेननबंधप्रनियोनर्िामेंप्रथमस्थान रनयननि)

    अनुशासन शब् द िह् दी द दश शब् दों द साथम दे सद बना है-अनु+शासन।

    अथामत शासन द पीछद चेना। ह ें अपनद हर ार्यों ें अनुशासन श ान र चेना हशता है। चाहद वश ार्यम ुछ भी हश। सही रणनीतत ही तवजर्य ेक्ष् र्य श प्राप् त रनद ें सहार्य हशती है रर सही ेक्ष् र्य र्या रणनीतत द िे अनुशासन बुतत ही जूररी है। ह ें दैतन ार्यम सद ेद र रात ें सशनद त अनुशासन ा पाेन रना चािह । जैसद- तनर्यत स र्य सद उठना, रास् तद ें चेना, क सी सद वातामेाप रना, क सी ार्यम श सुचाूर ूरप सद सम् प् न रना इ् र्यािद।

    सफेता प्राप् त रनद द िे ेशगों श अनुशासन श अवश् र्य ही अपनाना चािह । अनुशासन द अनुूरप ार्यम रनद सद बडद सद बडद र्या जटिे सद जटिे ार्यम भी सुग हश जातद हैं। ह ें अनुशासन ें रह र अपनद सद बडों र्या छशिद सद व् र्यवहार रना चािह ताक वद ह ारद आचरण सद प्रभातवत हश स ें । अपनद सद बडों ा आदर-सम् ान भी अनशुासन ा अ छा उदाहरण है।

    अगर ह ार्यामेर्य ें ार्यम रतद हैं तश ह ें अपनद सद बडद र्या छशिद स् तर द मचाटरर्यों सद आदर-भाव सद तवचार प्र ि रना चािह , र्यद अनुशासन ा अ छा उदाहरण हशगा। ह ारद हर तवचार ें अनुशासन ा हशना ही ह ारी प्रगतत रर तदज श तनखारता हैं। दतुनर्या द हर प्राणी जैसद अपनी छार्या श अपनद सद अेग नहीं र स तद, ठी उसी प्र ार अनुशासन द तबना दतुनर्या द शई भी व् र्यति भी व् र्यति सम् ान वस सफेता श प्राप् त नहीं र स तद अथामत दूसरद शब् दों ें र्यद भी ह स तद हैं क अनुशासन रर सफेता ही िसक द द दश पहेू हैं िजसद अेग नहीं क र्या जा स ता है। तवश् व प्रिस्ध भारतीर्य वै्ातन ॉ. पी जद अब् दूे ेा नद अनुशासन द ऊपर अपनद तवचारों श व् र्यक त रतद स र्य र्यह हा था क –―आ ाश ें उडता पक्षी भी अनुशासन श पाेन रतद ुत भ्र ण रतद हैं तश ह नुष् र्य िजस द पास ईश् वर ्ारा प्राप् त हर गुण जजदू है तश ह ें भी अनुशासन श पाेन रना चािह ।‖

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • अत: उपरशक त व्णतत त् र्यों ा सारासश र्यह है क अनुशासन व् र्यति रर ददश द तव ास ें ह् वपूणम भूि ा तनभाती है।

    --श्री नवनीत लाल कंचन लेखाकार

    क्षेत्रीय वेतन एवम् लेखा कायाालय, कोलकाता

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • रथयात्रा ओिॉसा राज् र्य ें ्थितत जग् नाथ धा िह् द ुध म द चार धा ों ें सद

    है। जग् नाथ धा ―पुरी‖ ी रथर्यात्रा तवश् व प्रिस्ध है। र्यह र्यात्रा आषा शुक े क्तीर्य ततिथ ें प्रततवषम नार्या जाता है। पजरा्ण थाओस द अनुसार राजा इसद्रघुम्न भगवान जगन्नाथ श शबर राजा सद र्यहास ेद र आर्यद थद। 65 ीिर ऊस चद सिदर ा तन ामण 12वीं शताब्दी ें चशेगसगददव तथा अनसगभी ददव नद रार्या था। सिदर ें थितातपत, ूतततर्यास नी ी े डी ी बनी ुतई है तथा इन्हें प्रत्यद 14 सद 15 वषम ें बदे िदर्या जाता है। सिदर ी 65 फुि ऊस ची अद् भुत तपराि ड ससरचना, भगवान ृष्ण द जीवन ा िचत्रण रतद स्तसभ, सिदर ी शशभा श चार-चााँद ेगातद ुत प्रतीत हशतद हैं। हर साे र्यहााँ ेाखों भि रर तवददशी पर्यमि , पतवत्र उत्सव ―जगन्नाथ रथ र्यात्रा‖ ें िहस्सा ेदनद द िे आतद हैं। ददश द ुछ भागों ें इस पतवत्र रथ र्यात्रा श 'गुण्डीर्य र्यात्रा' द ना सद भी जाना जाता है। जगन्नाथ रथर्यात्रा दस िदवसीर्य हशत्सव हशता है। र्यात्रा ी तैर्यारी अक्षर्य तृतीर्या द िदन श्री ृष्ण, बेरा रर सुभद्रा द रथों द तन ामण द साथ ही प्रारम् भ हश जाती है।

    र्यद सभी रथ नी ी पतवत्र रर पटरपक्व े िडर्यों सद बनार्यद जातद है, िजसद ―दारु‖ हतद हैं। इस द िे नी द स्वथित रर शुभ पदड ी पहचान ी जाती है, िजस द िे जगन्नाथ सिदर खास सि तत ा गठन रती है।

    इन रथों द तन ामण ें क सी भी प्र ार द ीे र्या ासिद र्या अन्य क सी धातु ा प्रर्यशग नहीं हशता है। रथों द िे ाष्ठ ा चर्यन बससत पसच ी द िदन सद शुूर हशता है। र्यह े िड र्यास दसपल् े ा रर नर्याग द जसगेों सद सगार्या जाता है।

    भगवान बेभद्र द रथ श ―ताेध् वज‖ हा जाता है िजस ें १४ पिहर्यद हशतद हैं। र्यह ेाे रर हरद रसग द पॉद रर 763 े डी द िु डों सद बना हशता है। भगवान जग् नाथ द रथ श न् दीघशष हा जाता है, इस ें १६ पिहर्यद ेगद हशतद हैं। र्यह ेाे रर पीेद रसग द पॉद सद बना हशता है। इस रथ पर ध्वज भी थितातपत क र्या जाता है िजसद ―कत्रेशक्य वािहनी‖ हा जाता है। ाता सभुद्रा द रथ श ददवदेन हा जाता है। र्यह ेाे रर ाेद पॉद रर े िडर्यों द 593 िु डों सद बनार्या जाता है, िजस ें १२ पिहर्यद ेगद हशतद हैं। स् नान पु्णत ा द

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • िदन तीनों तवग्रहों जग् नाथ, बेभद्र रर सुभद्रा श 108 घडद द पानी सद नहेार्या जाता है। तवग्रहों द स् नान पवम श ददखनद द िे बुतत सस र्या ें ेशग आतद हैं। आषाढ़ ाह ी शुक्लपक्ष ी क्तीर्या ततिथ श रथर्यात्रा आरम्भ हशती है। शे, नगाडों, तुरही रर शसखध्वतन द बीच भि गण इन रथों श खींचतद हैं।

    जगन्नाथ सिदर सद रथर्यात्रा शुूर हश र पुरी नगर सद गुजरतद ुत र्यद रथ गुसॉीचा सिदर पुतसचतद हैं। र्यहास भगवान जगन्नाथ, बेभद्र रर ददवी सुभद्रा सात िदनों द िे तवश्रा रतद हैं। गुसॉीचा सिदर ें भगवान जगन्नाथ द दशमन श ―आडप-दशमन‖ हा जाता है। गुसॉीचा सिदर श 'गुसॉीचा बाडी' भी हतद हैं। र्यह भगवान ी जसी ा घर है।

    आषाढ़ ाह द दसवें िदन सभी रथ पुन: ुख्य सिदर ी ओर प्रथितान रतद हैं। रथों ी वापसी ी इस र्यात्रा ी रस्म श बुतडा र्यात्रा हतद हैं। जगन्नाथ सिदर वापस पुतसचनद द बाद भी सभी प्रतत ा स रथ ें ही रहती हैं। ददवी-ददवताओस द िे सिदर द ्ार अगेद िदन ादशी श खश दे जातद हैं, तब तविधवत स्नान रवा र वैिद सत्रशच्चार द बीच ददव तवग्रहों श पुनः प्रततिष्ठत क र्या जाता है। इसद तनेािद्रतवजर्य हतद हैं। इस द उपरासत रथर्यात्रा ी स ाति हश जाती है।

    रथर्यात्रा सा ुदािर्य पवम है। इस अवसर पर घरों ें शई भी पूजा नहीं हशती है रर न ही क सी प्र ार ा उपवास रखा जाता है। रथर्यात्रा द दजरान र्यहास क सी प्र ार ा जाततभदद ददखनद श नहीं ि ेता है।

    --श्री कृष् ण च् र दास अधीक्षक सवेक्षक

    पश्चिम बंगाल व श्चसक्किम जीडीसी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • िह् दी ह ारद राष् र ी अिभव् र्यति ा सरेत ्शत है। - सुि त्रान् दन पसत

    उठ जाग री मेरी गुड़िया उठ भशर भई, उठ भशर भई, अब जाग री दरी गुिडर्या । जग गई सारी दतुनर्या । म्मी—पापा जागद, जग ग ा ा— ा ी, दादा—दादी जागद रर जग ग नाना—नानी । अरद खुिे ग सारद क विडर्या, अब जाग री तू भी गुिडर्या ।। उठ भशर भई चसदा ा ा जा , सूरज दादू आ , धूप सुनहरी छार्यी, हर ेी ुस ा । खदेन चेी र्यद दतुनर्या, अब जाग री तू भी ुतनर्या ।। उठ भशर भई उठ भशर भई, उठ भशर भई अब जाग री दरी गुिडर्या । जग गई सारी दतुनर्या ।।

    --श्री शुभेश कुमार प्रवर शे्रणी श्चलपपक

    पश्चिम बंगाल व श्चसक्किम जीडीसी

    सरे्वक्षण परिर्वाि - अंक 2

  • सरकारी तंत्र को कैसे मजबूत बनाया जाए �