दिव्य शिशु संस्कार · ाता-पिता के के...

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माता-पिता के करे सिने साकार दिय शिि संकार मा का गौरव कसी ने ठीक ही कहा ह जननी जणे तो भत जण, कां िाता कां ि र। 'हे जननी ! यदि त झे जम िेना है तो भत, िानी या वीर को जम िेना। संतान की थम शििका मा ही होती है। इततहास इस बात का सािी है क आििश माताए अपनी संतान को ेठ एवं आििश बना िेती ह। मा के जीवन और उसकी शििा का बालक पर सवाशधिक भाव पता है। मा संतान म बचपन से ही स संकार की नींव डाल सकती है।

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Page 1: दिव्य शिशु संस्कार · ाता-पिता के के सिने साका दिव् शििुसंस्का ााँ का गौव

माता-पिता के करे सिने साकार

दिव्य शििु संस्कार

मााँ का गौरव

ककसी ने ठीक ही कहा ह ैः जननी जणे तो भक्त जण, कां िाता कां िूर।

'हे जननी ! यदि तुझ ेजन्म िेना है तो भक्त, िानी या वीर को जन्म िेना।

संतान की प्रथम शिक्षिका मााँ ही होती है। इततहास इस बात का सािी है कक आििश माताएाँ अपनी संतान को शे्रष्ठ एवं आििश बना िेती हैं। मााँ के जीवन और उसकी शििा का बालक पर सवाशधिक प्रभाव पड़ता है। मााँ संतान में बचपन से ही सुसंस्कारों की नींव डाल सकती है।

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संतान की जीवन वादिका को सद्गुणों के फूलों से सुिोशभत करने से खिु माता का जीवन भी सुवाशसत और आनंिमय बन जायेगा। संतान में यदि िगुुशण के कााँिें पनपेंगे तो व ेमाता को भी चभुेंगे और शििु, माता एवं पूरे पररवार के जीवन को खखन्नता से भर िेंगे। इसीशलए माताओं का परम कतशव्य है कक संतान का िारीररक, मानशसक, नैततक, आध्यात्ममक संरिण और पोषण करके आििश माता बन जायें।

नन्हा सा बालक एक कोमल पौिे जैसा होता है। उसे चाहे त्जस दििा में मोड़ा जा सकता है। अतः बाल्यकाल से ही उसमें िुभ संस्कारों का शसचंन ककया जाय तो भववष्य में वही वविाल विृ के रूप में पररणत होकर भारतीय संस्कृतत के गौरव की रिा करने में सिम हो सकता है।

बालक िेि का भववष्य, ववश्व का गौरव और अपने माता-वपता की िान है उसके भीतर सामर्थयश का असीम भण्डार छुपा है, त्जसे प्रकि करने के शलए जरूरी है उत्तम संस्कारों का शसचंन।

प्रस्तावना ककसी भी िेि का भववष्य वहााँ की संस्कारी बाल पीढी पर तनभशर करता है। वास्तव में

खतनज, वन, पवशत, निी आदि िेि की सच्ची सम्पवत्त नहीं हैं अवपतु ऋवष-परम्परा के पववत्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी संतानों ही िेि की सच्ची सम्पवत्त हैं और वतशमान समय में िेि को इस सम्पवत्त की अमयन्त आवश्यकता है। शििु में संस्कारों की नीीँव मााँ के गभश में ही पड़ जाती है। इसशलए उत्तम संतानप्रात्तत के इच्छुक िम्पवत्तयों को चादहए कक वे ब्रह्मज्ञानी संतों के ििशन-समसंग का लाभ लेकर स्वयं सुववचारी, सिाचारी एवं पववत्र बनें। साथ ही उत्तम संतानप्रात्तत के तनयमों को जान लें और िास्त्रोक्त रीतत से गभशिान कर पररवार, िेि व मानवता का मंगल करने वाली महान आममाओं की आवश्यकता की पूतत श करें।

गभशस्थ शििु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उधचत पालन-पोषण की जानकारी िेने हेतु पूज्य संत श्री आिाराम जी बापू द्वारा प्रेररत 'मदहला उमथान मंडल' द्वारा यह पुत्स्तका लोकदहताथश प्रकाशित की गयी है। इसके अलावा वविषे रूप से मागशििशन िेने के शलए 'मदहला उमथान मंडल' द्वारा समय-समय पर वविषे बठैकों तथा 'दिव्य शििु संस्कार' शिववरों एवं सम्मेलनों का भी आयोजन ककया जाता है।

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मदहला उत्थान ट्रस्ट

संत श्री आिाराम जी आश्रम, साबरमती, अहमिाबाि-3800005

फोनैः 079-39877788/32, 32933336, 9157306313

Website: www.ashram.org Email: [email protected]

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अनुक्रमणणका

पवचारिक्क्त की गररमा ........................................................ 5

गभभस्थ शिि ुिर संस्कारों का प्रभाव ................................... 5

आधुननक पवज्ञान ने भी स्वीकारा..... ................................... 6

गभभ में ही बना िें बच्चों को सुसंस्कारी .............................. 7

इक्च्ित संतान प्राप्त करने के उिाय ................................... 8

गभाभधान िूवभ की सावधाननयााँ .............................................. 8

उत्तम संतानप्राक्प्त के शलए गभाभधान का समय ................... 9

गभभधारण के िूवभ के कतभव्य .............................................. 10

तेजस्वी संतान की प्राक्प्त के उिाय ................................... 11

मासानुसार गशभभणी िररचयाभ ............................................... 12

सगभाभवस्था के िौरान आचरण .......................................... 15

सगभाभवस्था में ननपिद्ध आहार ......................................... 15

गशभभणी का आहार .............................................................. 16

गभाभवस्था में सरल व उियुक्तैः अश्वत्थासन .................... 18

शिि ुकी सुरक्षा के शलए रक्षा-कवच ................................... 19

सुखिूवभक प्रसवकारक प्रयोग .............................................. 19

नवजात शिि ुका स्वागत .................................................. 20

प्रसूता की साँभाल ............................................................... 22

शिि ुव माता िोनों के शलए लाभकारीैः स्तनिान .............. 23

स्तनिान से शिि ुको होने वाले लाभ ............................... 23

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स्तनिान कराने से मााँ को होने वाले लाभ ........................ 24

स्तनिान कराने में सावधानी ............................................. 24

घरेलू साक्ववक शिि ुआहार (बेबीफूड) ................................ 25

िुहारे की िौक्टटक खीर ...................................................... 25

चमत्कारी अनुभव .............................................................. 26

गाय के गोबर के रस से सामान्य प्रसूनत ...................... 26

बािू जी ने िी युक्क्त, ऑिरेिन से शमली मुक्क्त ........... 26

िैुःख और िरेिानी से माता-पिता बच जायेंगे ................ 27

बच्चों को प्रभाविाली बनाने का राज ............................ 27

मदहला उत्थान मंडल के सेवाकायभ ..................................... 28

मदहला प्रनतभा पवकास सभाएाँ ........................................ 28

मदहला सवाांगीण पवकास शिपवर .................................... 28

तेजक्स्वनी जीवन पवकास शिपवर ................................... 28

दिव्य शिि ुसंस्कार अशभयान ........................................ 29

गभभिात रोको अशभयान .................................................. 29

क िी उत्थान कायभक्रम .................................................... 29

गौ-रक्षा अशभयान ........................................................... 29

आििभ माताओ ंकी महान संतानें ....................................... 30

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पवचारिक्क्त की गररमा ककसान अपने खेत में उत्तम प्रकार की फसल पिैा करने के शलए रात-दिन मेहनत करता

है। वषाश से पूवश जमीन जोतकर खाि डाल के तैयार करता है। वषाश आने पर खेत में बहुत साविानी से उत्तम प्रकार के बीज बोता है व फसल तैयार होने तक उसका खबू ध्यान रखता है परंतु ऐसा ध्यान सतंानप्रात्तत के संिभश में मनुष्य नहीं रखता।

कुम्हार शमट्िी को जैसा चाहे वैसा आकार िे सकता है परंतु आाँवे में पक जाने पर उसके आकार में चाहकर भी पररवतशन नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार मााँ के गभश में शििु के िरीर का तनमाशण हो जाने पर एवं उसके दिमाग की ववववि ित्क्तयों का उत्तम या कतनष्ठ बीज प्रस्थावपत हो जाने के बाि, उसके अतंःकरण में सद्गुण या िगुुशणों की छाप दृढता से स्थावपत हो जाने के बाि िारीररक-मानशसक उन्नतत में पाठिाला, महािाला एवं ववववि प्रकार के प्रशििण इत्च्छत पररणाम नहीं ला पाते।

मााँ के आहार-ववहार व ववचारों से गभशस्थ शििु पोवषत व संस्काररत होता है। इसशलए हो माताओ ! पूज्य बापू जी के बताये अनुसार अपनी सुषुतत आममित्क्त को जगाओ। जगत में कुछ भी असम्भव नहीं है। प्रमयेक मनुष्य अपन ेयहााँ श्रीरामचन्रजी, श्रीकृष्ण, अजुशन, महाममा बुद्ि, महावीर स्वामी, कबीरजी, तुलसीिास जी, गागी, मिालसा, मीराबाई, शिवाजी, गााँिी जी जैसी महान ववभूततयों को जन्म िे सकता है।

प्रमयेक िम्पवत्त को गम्भीरता से सोचना चादहए कक अपनी लापरवाही से अयो्य शिि ुउमपन्न करना समाज व राष्र के शलए ककतना अदहतकारी साबबत हो सकता है। आप अपने मन की भूशमका सच्च ेसंतों का सात्न्नध्य-लाभ लेकर उन्नत बनाइये एव ंदृढता से िास्त्रोक्त तनयमों का पालन कर उच्च आममाएाँ आपके यहााँ जन्म लें ऐसे शे्रष्ठ सद्गहृस्थ बन जाइये। इससे आपके यहााँ तेजस्वी, सिाचारी, उद्यमी, स्विमशपरायण, दहतैषी शििुओं का जन्म होगा।

अनुक्रम

गभभस्थ शिि ुिर संस्कारों का प्रभाव गभाशवस्था में शििु व माता का बहुत ही प्रगाढ संबंि होता है। माता के पेि में शििु 9

माह गुजारता है। इस अवधि में शििु को एक अतत कोमल नाल के द्वारा माता के श्वास से श्वास तथा भोजन से पोषण शमलता रहता है। इस िौरान स्वाभाववक ही माता के िारीररक, मानशसक व नैततक त्स्थतत का प्रभाव गभशस्थ शििु पर पड़ता है। कुछ ऐततहाशसक दृष्िांत इस प्रकार हैं-

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अशभमन्यु ने माता के गभश में रहते हुए ही चक्रव्यूह में प्रवेि करने की कला वपता द्वारा सुनी। गभशस्थ अशभमन्यु पर इस वववरण का इतना प्रभाव पड़ा कक 'महाभारत' के भीषण युद्ि में गभाशवस्था में जानी हुई ववद्या का उपयोग करके वह िभुेद्य चक्रव्यूह में प्रवेि कर गया। इस प्रकार जन्म के बाि भी उसे चक्रव्यूह में प्रवेि करने की युत्क्त याि थी।

रािसराज दहरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाि महान भक्त कैसे हुआ ? गभाशवस्था में िेववषश नारिजी ने माता कयािू को ज्ञान-भत्क्त का उपिेि दिया था। उसका प्रभाव गभशस्थ प्रह्लाि पर पड़ा। इसशलए वपता ईश्वररोही होते हुए भी पुत्र महान भक्त हुआ। दहरण्यकशिपु ने प्रह्लाि को अनेक प्रकार के भय दिखाये व सजाएाँ िीं ककंतु प्रह्लाि में समसंग के वे संस्कार इतने दृढ हो गये थे कक भयंकर सजाएाँ भी प्रह्लाि को ईश्वरभत्क्त के मागश से िडगा नहीं सकीं।

नेपोशलयन बोनापािश को युद्ि की शििा गभाशवस्था में शमली थी। सगभाशवस्था में उसकी माता को घुड़सवारी व युद्ि करने पड़ते थे। कई बार तो घोड़ ेपर ही राबत्र-ववश्राम लेना पड़ता था। एक जगह से िसूरी जगह घोड़ ेपर ही भागत ेरहना पड़ता था।

सन ् 1804 में केबोि गााँव में एक छः वषीय बालक में असािारण स्मतृतित्क्त पायी गयी। वह पााँच अकंों का गणन तुरंत मुाँह जबानी कर िेता था। उसमें ऐसी ववलिण प्रततभा के जगने का कारण यह था कक उसकी माता को कपड़ों पर अलग-अलग आकृततयााँ बनाने के शलए तान-ेबाने बड़ी सूक्ष्मता से धगनने पड़ते थे। सगभाशवस्था के िौरान एक एक बार एक आकृतत बनाने के शलए उसकी दिन-रात की सब कोशििें तनष्फल हो गयीं। इस िौरान मत्स्तष्क को असािारण पररश्रम पड़ा। रात जगने पर भी सफलता न शमलने से वह तनराि होकर काम छोड़न ेही वाली थी, तभी अचानक उसके मन में हुआ कक कुछ ताने-बाने इस प्रकार बुनें तो यह आकृतत बन सकती है। उन ववचारों का गहरा असर गभशस्थ शििु पर पड़ा और उस बालक में असािारण िमता का ववकास हुआ। इस प्रकार माता-वपता के आचार-ववचार का असर गभशस्थ शििु पर पड़ता ही है। अतः गशभशणी माताएाँ अधिक-स-ेअधिक समसंग-श्रवण व भगवन्नाम-जप करते हुए भगवद्-धचन्तन करें।

अनुक्रम

आधुननक पवज्ञान ने भी स्वीकारा..... हमारे ऋवष-मुतनयों ने खोज करके अनादिकाल से यह बताया हुआ है कक बच्चे को

गभाशवस्था में त्जस प्रकार के संस्कार शमलते हैं, आगे चलकर वह वैसा ही बन जाता है। ऐसे कई उिाहरण इततहास में पाये जाते हैं।

इस युग में ये बातें लोगों के शलए आश्चयशजनक थीं लेककन अब वैज्ञातनकों ने िोिों के द्वारा इस बात को स्वीकार कर शलया है कक बच्चा गभाशवस्था से ही सीखने की िुरुआत कर

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िेता है, खासकर उसे िब्िों का ज्ञान हो जाता है। कुछ शििुओं पर जन्म के बात परीिण ककये गये व उनके मत्स्तष्क की कक्रया जााँची गयी तो पाया गया कक शििु के मत्स्तष्क ने गभाशवस्था के िौरान सुने हुए िब्िों को पहचानने के तंत्रकीय संकेत दिये।

िोि के मुताबबक गभाशवस्था के िौरान 7वें माह से गभशस्थ शििु िब्िों की पहचान कर सकता है और उन्हें याि रख सकता है। इतना ही नहीं, वह मातभृाषा के स्वरों को भी याि रख सकता है। हेलशसकंी ववश्वववद्यालय (कफनलैण्ड) के न्यूरोसाइंदिस्ि आयनो पािाशनेन व उनके साधथयों ने पाया कक 'गभाशवस्था में सुनी गयी लोरी को जन्म के चार महीने बाि भी बच्चा पहचानता है या याि रखता है।'

गभशस्थ शििु पर मााँ के खान-पान, कक्रयाकलाप, मनोभावों आदि भी प्रभाव पड़ता है और मााँ द्वारा की गयी हर कक्रया से बच्चा सीखता है। परंतु उसके सीखने की सीमा को ववज्ञान अभी पता लगाने में सिम नहीं हो पाया है।

अनुक्रम

गभभ में ही बना िें बच्चों को सुसंस्कारी वैज्ञातनक भले इस बात को अभी मान रहे हैं परंतु पूज्य बापू जी अपने समसंगों में वपछले

लगभग 50 वषों से यह बात बताते आये हैं। बापू जी का ब्रह्मसंकल्प है कक ये ही संस्कारी बालक आगे चलकर भारत को ववश्वगुरु के पि पर पहुाँचायेंगे।

पूज्य बापू जी कहते हैं- "वतशमान युग में कई माता-वपता ऐसा सोचते हैं कक हमें ऐसे पुत्र क्यों हुए ? उन्हें यह बात समझ लेनी चादहए कक आजकल स्त्री अथवा पुरुष गभाशिान के शलए उधचत-अनुधचत समय ततधथ का ध्यान नहीं रखत ेहैं। पररणाम में समाज में आसुरी प्रजा बढ रही है। बाि में माता-वपता फररयाि करते रहते हैं कक हमारे पुत्र हमारी आज्ञा में नहीं चलते हैं, उनका चाल-चलन ठीक नहीं है इमयादि। परंतु यदि माता-वपता िास्त्र की आज्ञानुसार रहें तो उनके यहााँ िैवी और संस्कारी संतानें उमपन्न होंगी, श्रीराम और श्रीकृष्ण के समान बालक जन्म लेंगे।"

जो मदहलाएाँ सगभाशवस्था में िीवी सीररयल व कफल्में िेखती हैं, अश्लील गाने आदि सुनती रहती हैं उनके शििुओं में वे संस्कार गभश में ही गहरे पड़ जाते हैं, त्जससे बड़ े होकर उनका स्वभाव चचंल, कामुक व आपराधिक होने की सम्भावनाएाँ बढ जाती हैं।

गभाशवस्था के िौरान समसंग, समिास्त्रों का अध्ययन, िेव-ििशन, संत-ििशन, भगवद्-उपासना करें और मन को सद्ववचारों से ओतप्रोत रखें। भगवन्नाम का अधिकाधिक मानशसक जप करें। इससे आपकी संतान िैवी सिगुणों से युक्त होगी।

अनुक्रम

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इक्च्ित संतान प्राप्त करने के उिाय संतान को भक्त, योगी या आममज्ञानी महापुरुष बनाने की इच्छा हो तो माता-वपता

हृियपूवशक गीता, भागवत, रामायण, श्रीयोगवाशसष्ठ जैसे सद्रन्थों का रसपूवशक श्रवण, पठन, मनन-धचतंन करें। प्राणायाम, ध्यान, आसन, कीतशन, जप आदि करें। आपस में भत्क्त, योग, आममज्ञान संबंिी चचाश करें। यदि माता की िमता ये सभी करने की न हो तो केवल मानशसक जप, भगवमकथा-श्रवण एवं आममज्ञान का श्रवण व ववचार करे, त्जससे मााँ के िरीर में उमपन्न हो रही िातुओं के अणु-प्रततअणु में ये संस्कार समा जायें व गभशस्थ शििु पर उसका प्रभाव पड़।े मााँ को खबू रूधचपूवशक भगवान की लीलाओं, संत-चररत्रों, भक्तकथाओं, आममज्ञानी महापुरुषों के समसंग-प्रवचनों को पढना-सुनना-िेखना चादहए। भगवान, सद्गुरुिेव – त्जनमें भी श्रद्िा हो, उनका सतत ध्यान-स्मरण करना चादहए।

महापराक्रमी हनुमानजी, अजुशन, भीम, शिवाजी जैसे वीर पुत्रों की इच्छा करने वाले माता-वपता इनके पराक्रमों का वणशन अमयंत रसपूवशक सनुें-पढें व उसका सतत धचतंन करें।

त्जन्हें त्जस प्रकार की संतान की इच्छा हो, उन्हें मन में उसी प्रकार के ववचारों का मंथन करना चादहए एवं उसके अनुरूप कक्रयाएाँ रसपूवशक करनी चादहए, त्जससे उनके यहााँ इत्च्छत संस्कारों से सम्पन्न संतान आ सके एवं सद्गणुों को इच्छानुसार गभशस्थ शििु में प्रस्थावपत ककया जा सके।

इततहास को िेखें तो िमशबल व नीततबल से रदहत रावण, दहरण्यकशिपु, कंस, ियुोिन, शसकंिर, दहिलर, औरंगजेब जैसी संतानों न े अपनी असािारण ित्क्त से जगत में तनरथशक लड़ाइयााँ करके समाज को सुख-िांततमय जीवन से वंधचत ककया। इसशलए िमशबल व नीततबल से युक्त उत्तम संतान की प्रात्तत के शलए माता-वपता पहले स ेही तैयार हो जायें तो उनका व ववश्व का मंगल होगा।

अनुक्रम

गभाभधान िूवभ की सावधाननयााँ उत्तम संतान प्रात्तत हेत ुसवशप्रथम पतत-पमनी का तन-मन स्वस्थ होना चादहए। वैद्यकीय

सलाह अनुसार िारीररक िुद्धि (िास्त्रोक्त िोिन कमश के द्वारा) आसन-प्राणायाम, आहार-ववहार से कम-से-कम तीन महीनों तक करें। क्योंकक नया वीयश 90 दिन में संस्काररत एवं पुष्ि होता है। मानशसक स्वस्थता के शलए पूज्य बापू के सात्न्नध्य में आयोत्जत 'ध्यानयोग-शिववर' में भाग लें अथवा शिववर की डीवीडी, एमपीथ्री आदि का लाभ लें। इसके साथ ही मंत्रजप, अनुष्ठान, ध्यान, योग व ब्रह्मचयश का पालन करें।

अनुक्रम

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उत्तम संतानप्राक्प्त के शलए गभाभधान का समय ऋतुकाल (रजोििशन के प्रथम दिन से 16वें दिन का काल) के प्रथम तीन दिन मैथनु के

शलए सवशथा तनवषद्ि हैं। साथ ही 11वीं व 13वीं राबत्र भी वत्जशत है।

उत्तरोत्तर राबत्रयों में गभाशिान होने पर प्रसववत शििु की आयु, आरो्य, सौभा्य, पौरूष, बल एवं ऐश्वयश अधिकाधिक होता है।

यदि पुत्र की इच्छा हो तो ऋतुकाल की 4, 6, 8, 10, 12, 14 या 16वीं राबत्र एवं यदि पुत्री की इच्छा हो तो ऋतुकाल की 5,7,9 या 15वीं राबत्र में से ककसी एक राबत्र का िुभ मुहूतश पसंि करना चादहए।

रजोििशन दिन को हो तो वह प्रथम दिन धगनना चादहए। सूयाशस्त के बाि हो तो सयूाशस्त से सूयोिय तक के समय की तीन समान भाग कर प्रथम िो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन धगनना चादहए। राबत्र के तीसरे भाग में रजोििशन हुआ हो तो िसूरे दिन को प्रथम दिन धगनना चादहए।

पूखणशमा, अमावस्या, प्रततपिा, अष्िमी, एकाििी, चतुिशिी, सूयशरहण, चन्ररहण, पवश या मयौहार की राबत्र श्राद्ि के दिन, चतुमाशस, प्रिोषकाल (त्रयोििी के दिन सूयाशस्त के तनकि का काल), ियततधथ (िो ततधथयों का समन्यवकाल) एवं माशसक िमश के तीन दिन समागम नहीं करना चादहए।

सभी पिों की अमावस्या, पूखणशमा, चतुिशिी और अष्िमी – इन सभी ततधथयों में स्त्री-समागम करने से नीच योतन एवं नरकों की प्रात्तत होती है।

(महाभारत, अनुिासन पवश, िानिमश पवशः 104.29-30) माता-वपता की ममृयुततधथ, स्वयं की जन्मततधथ, नित्रों की संधि (िो नित्रों के बीच का

समय) तथा अत्श्वनी, रेवती, भरणी, मघा व मूल इन नित्रों में समागम वत्जशत है।

दिन में समागम आयु व बल का बहुत ह्रास करता है, अतः न करें। गभाशिान हेतु सतताह की राबत्रयों के िुभ समय इस प्रकार हैं- रवववार सोमवार मंगलवार बुिवार गुरुवार िुक्रवार ितनवार

8 से 9 10.30 से 12 7.30 से 9 7.30 से 10 12 से 1.30 9 से 10.30 9 से 12

1.30 से 3 1.30 से 3 10.30से1.30 3 से 4 12 से 3

राबत्र के िुभ समय में से भी प्रथम 15 व अतंतम 15 शमनि का मयाग करके बीच का समय गभाशिान के शलए तनत्श्चत करें।

दिन में और िोनों संध्याओं के समय जो सोता है या स्त्री-सहवास करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और िररर होता है।

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(ब्रह्मवैवतश पुराण, श्रीकृष्णजन्म खण्डः 75.80) दिन में स्त्री समागम पुरुष के शलए बड़ा भारी आयु का नािक माना गया है।

(स्कन्ि पुराण, ब्राह्म खंड, िमाशरण्य माहामम्यः 6.35) अनुक्रम

गभभधारण के िूवभ के कतभव्य िम्पवत्त की त्स्थतत िारीररक थकान व मानशसक तनाव से मुक्त हो। पररवार में वाि-

वववाि या अचानक ममृयु की घिना न घिी हो। मन, िरीर व वातावरण स्वस्थ व स्वच्छ हो।

आध्यात्ममकता बढे इसशलए िोनों से लम्बे, गहरे श्वास लें। भगवमकृपा, आनंि, प्रसन्नता, ईश्वरीय ओज को भीतर भर के श्वास रोकें , मन में सद्ववचार लायें। भगवन्नाम जपते हुए मशलनता, राग-द्वेष आदि अपने मानशसक िोष याि कर फूाँ क मारते हुए उन्हें श्वास के साथ बाहर फें के। गभाशिान के पूवश 5 से 7 दिन रोज 7 से 10 बार यह प्रयोग करें। ियनगहृ हवािार, स्वच्छ, सात्ववक िपू के वातावरण से युक्त हो। कमरे में अनावश्यक सामान व कााँिेिार पौिे न हों। कमरे में अपने गुरुिेव, इष्ििेव या महापुरुषों के श्रीधचत्र लगायें तथा रेिडयो व कफल्मों से िरू रहें। िम्पवत्त सफेि या हलके रंगवाले वस्त्र पहनें एवं हलके रंग की चािर बबछायें। इससे प्रातत प्रसन्नता व सात्ववकता दिव्य आममाएाँ लाने में सहायक होगी।

कम से कम तीन दिन पूवश राबत्र व समय तय कर लेना चादहए। तनत्श्चत दिन में िाम होने से पूवश पतत-पमनी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन के सद्गुरु व इष्ििेव की पूजा करनी चादहए।

िम्पवत्त अपनी धचत्तववृत्तयों को परमाममा में त्स्थर करके उत्तम आममाओं को आह्वान करते हुए प्राथशना करें- 'हे ब्रह्माण्ड में ववचरण कर रहीं सूक्ष्मरूपिारी पववत्र आममाओ ! हम िोनों आपको प्राथशना कर रहे हैं कक हमारे घर, जीवन व िेि को पववत्र तथा उन्नत करने के शलए आप हमारे यहााँ जन्म लेकर हमें कृताथश करें। हम िोनों अपने िरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके यो्य बनायेंगे।'

पुरुष िायें पैर से स्त्री से पहले िय्या पर चढे और स्त्री बायें पैर से पतत के िक्षिण पाश्वश में िय्या पर चढे। तमपश्चात ्तनम्नशलखखत मंत्र पढना चादहए।

अदहरशस आयुरशस सवभतैः प्रनतटठाऽशस धाता त्वा िधातु पवधाता त्वा िधातु ब्रह्मववचभसा भव। ब्रह्मा बहृस्िनतपवभटणुैः सोमैः सूयभस्तथाऽक्श्वनौ। भगोऽथ शमत्रावरुणौ वीरं िितु मे सुतम।्

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'हे गभश ! तुम सूयश के समान हो, तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रततष्ठा हो। िाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रिा करें, वविाता (ववश्व के तनमाशता ब्रह्मा), तुम्हारी रिा करें। तुम ब्रह्म से यकु्त होओ। ब्रह्मा, बहृस्पतत, ववष्णु, सोम, सयूश, अत्श्वनीकुमार और शमत्रावरुण, जो दिव्य ित्क्तरूप हैं, वे मुझ ेवीर पुत्र प्रिान करें।' (चरक संदहता, िारीरस्थानम-् 8.8)

िम्पवत्त गभश-ववषय में मन लगाकर रहें। इससे तीनों िोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज को रहण करती है। ववधिपूवशक गभशिारण करने से इच्छानुकूल संतान प्रातत होती है।

अनुक्रम

तेजस्वी संतान की प्राक्प्त के उिाय िक्क्तिाली व गोरे िुत्र की प्राक्प्त के शलएैः गशभशणी पलाि के एक ताजे कोमल पते्त को

पीसकर गाय के ििू के साथ रोज ले। इससे बालक ित्क्तिाली और गोरा उमपन्न होता है। माता-वपता भले काले वणश के हों लेककन बालक गोरा होता है। इसके साथ आश्रमतनशमशत सुवणशप्राि की 2-2 गोशलयााँ लेने से संतान तेजस्वी होगी।

हृटट-िुटट व गोरी संतान िाने हेतुैः गशभशणी रोज प्रातःकाल थोड़ा नाररयल और शमश्री चबा के खाये तो गभशस्थ शििु हृष्ि-पुष्ि और गोरा होता है। (अष्िमी को नाररयल खाना वत्जशत है।)

सुंिर व तीव्रबुद्धध संतान प्राप्त करन ेहेतुैः गशभशणी गशमशयों में 100 शम.ली गाय के ििू में 100 शम.ली. पानी शमलाकर एक चम्मच गाय का घी शमला के वपये तो पेि में जो शििु बढ रहा है वह कोमल मवचा वाला, सुंिर, तेजस्वी व बड़ा बुद्धिमान होगा। ििू पीने के 2 घंिे पहले और बाि में कुछ न खायें।

त्वचा की कांनत के शलएैः 10-10 राम सौंफ सुबह-िाम खबू चबा-चबाकर तनयशमत रूप स ेखाने से मवचा कांततमय बनती है। गभशवती स्त्री यदि पूरे गभशकाल में सौंफ का सेवन करे तो शििु गोरे रंग का होता है। साथ ही जी शमचलाना, उल्िी, अरुधच जैसी शिकायतें नहीं होतीं और रक्त िुद्ि होता है।

गौर-वणभ संतान की प्राक्प्त के शलए गशभभणी प्रथम 3 मास तकैः जहााँ तक हो सके हरे नाररयल का पानी वपये।

िेिी बबूल के 2 राम कोमल पते्त रोज खाये।

आाँवले का अथवा केसरयुक्त ििू का सेवन जहााँ तक हो सके करे।

उपयुशक्त प्रयोगों के साथ यदि गशभशणी स्त्री समसंग की पुस्तकें पढती है तो शििु मेिावी व सुसंस्कारी होगा। ऐसे बालकों की ववश्व को जरूरत है।

अनुक्रम

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मासानुसार गशभभणी िररचयाभ हर महीने में गभश-िरीर के अवयव आकार लेते हैं, अतः ववकासक्रम के अनुसार हर महीने

गशभशणी को कुछ वविषे आहार लेना चादहए।

िहला महीनाैः गभशिारण का संिेह होते ही गशभशणी सािा शमश्रीवाला सहज में ठण्डा हुआ ििू पाचनित्क्त के अनुसार उधचत मात्रा में तीन घंिे के अतंर से ले अथवा सुबह िाम ले। साथ ही सुबह 1 चम्मच ताजा मक्खन (खट्िा न हो) 3-4 बार पानी से िोकर रुधच अनुसार शमश्री व 1-2 काली शमचश का चणूश शमलाकर ले तथा हरे नाररयल की 4 चम्मच धगरी के साथ 2 चम्मच सौंफ खबू िेर तक चबाकर खाये। इससे बालक का िरीर पुष्ि सुडौल व गौरवणश का होगा।

इस महीने के प्रारम्भ से ही मााँ को बालक में इत्च्छत िमशबल, नीततबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रद्िापूवशक सतत मनन-धचतंन करना चादहए। ब्रह्मतनष्ठ महापुरुषों का समसंग एवं उत्तम िास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन-धचतंन करना चादहए।

िसूरा महीनाैः इसमें ितावरी, वविारीकंि, जीवंती, अश्वगंिा, मुलहठी, बला आदि मिरु औषधियों के चणूश को समभाग शमलाकर रख लें। इनका 1 से 2 राम चणूश 200 शम.ली. ििू में 200 शम.ली. पानी डाल के मध्यम आाँच पर उबालें, पानी जल जाने पर सेवन करें।

तीसरा महीनाैः इस महीने में ििू को ठण्डा कर 1 चम्मच िुद्ि घी व आिा चम्मच िहि (अथाशत ्घी व िहि ववषम मात्रा में) शमलाकर सुबह िाम लें।

उलदियााँ हो रही हों तो अनार का रस पीने तथा 'ॐ नमो नारायणाय' का जप करने से वे िरू होती हैं।

चौथा महीनाैः इसमें प्रततदिन 10 से 25 राम मक्खन अच्छे से िोकर, छाछ का अिं तनकाल के शमश्री के साथ या गुनगुने ििू में डालकर अपनी पाचनित्क्त के अनुसार सेवन करें।

इस मास में बालक सुनने-समझने लगता है। बालक की इच्छानुसार माता के मन में आहार-ववहार संबंिी ववववि इच्छाएाँ उमपन्न होने से उनकी पूतत श युत्क्त से (अथाशत ्अदहतकर न हो इसका ध्यान रखते हुए) करनी चादहए।

यदि गभाशिान अचानक हो गया हो तो चौथे मास में गभश अपने संस्कारों को मााँ के आहार-ववहार की रुधच द्वारा व्यक्त करता है। आयुवेि के आचायों का कहना है कक यदि इस समय भी हम साविान होकर आरहपूवशक दृढता से शे्रष्ठ ववचार करने लगें और शे्रष्ठ सात्ववक आहार ही लें तो आने वाली आममा के खिु के संस्कारों का प्रभाव कम या ज्यािा हो जाता है अथाशत ्रजस, तमस प्रिान संस्कारों को सात्ववक संस्कारों में बिल सकते हैं एवं यदि सात्ववक संस्कारयुक्त है तो उस पर उमकृष्ि सात्ववक संस्कारों का प्रमयारोपण कर सकते हैं।

िााँचवााँ महीनाैः इस महीने से गभश में मत्स्तष्क का ववकास वविषे रूप से होता है, अतः गशभशणी पाचनित्क्त के अनुसार ििू में 15 से 20 राम घी ले या दिन में िाल-रोिी, चावल में

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1-2 चम्मच घी, त्जतना हजम हो जाय उतना ले। रात को 1 से 5 बािाम ( अपनी पाचनित्क्त के अनुसार) शभगो िे, सुबह तछलका तनकाल के घोंिकर खाये व ऊपर से ििू वपये।

इस महीने के प्रारम्भ से ही मााँ को बालक में इत्च्छत िमशबल, नीततबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रद्िापूवशक सतत मनन-धचतंन करना चादहए। ब्रह्मतनष्ठ महापुरुषों का समसंग एवं उत्तम िास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन-धचतंन करना चादहए। तनम्नशलखखत 'हे प्रभु ! आनंििाता !....' प्राथशना आममसात ्करे तो उत्तम है।

हे प्रभु आनंि िाता हे प्रभु ! आनंि िाता !! ज्ञान हमको िीत्जये |

िीघ्र सारे िगुुशणों को िरू हमसे कीत्जये || हे प्रभ…ु

लीत्जये हमको िरण में हम सिाचारी बनें |

ब्रह्मचारी िमशरिक वीर व्रतिारी बनें || हे प्रभ…ु

तनिंा ककसीकी हम ककसीसे भूल कर भी न करें |

ईष्याश कभी भी हम ककसीसे भूल कर भी न करें || हे प्रभु ………

समय बोलें झूठ मयागें मले आपस में करें |

दिव्य जीवन हो हमारा यि तेरा गाया करें || हे प्रभु ………

जाये हमारी आयु हे प्रभ ु! लोक के उपकार में |

हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में || हे प्रभु ………

कीत्जये हम पर कृपा ऐसी हे परमाममा ! मोह मि ममसर रदहत होवे हमारी आममा || हे प्रभु ………

प्रेम से हम गुरुजनों की तनमय ही सेवा करें | प्रेम से हम संस्कृतत की तनमय ही सेवा करें || हे प्रभ…ु

योगववद्या ब्रह्मववद्या हो अधिक तयारी हमें | ब्रह्मतनष्ठा प्रातत करके सवशदहतकारी बनें || हे प्रभ…ु

िठा व सातवााँ महीनाैः इन महीनों में िसूरे महीन ेकी मिरु औषधियों में गोखरू चणूश का समावेि करे व ििू घी से ले। आश्रमतनशमशत तुलसी-मूल की माला कमर में िारण करे।

छठे महीने से प्रातः सूयोिय के पश्चात ्सूयशिेव को जल चढाकर उनकी ककरणें पेि पर पड़ें, ऐस ेस्वस्थता से बैठ के उाँगशलयों में नाररयल तेल लगाकर पेि की हलके हाथों से माशलि (बाहर से नाशभ की ओर) करते हुए गभशस्थ शििु को सम्बोधित करते हुए कहेः 'जैसे सूयशनारायण ऊजाश, उष्णता, वषाश िेकर जगत का कल्याण करते हैं, वैसे तू भी ओजस्वी, तेजस्वी व परोपकारी बनना।'

मााँ के स्पिश से बच्चा आनत्न्ित होता है। बाि में 2 शमनि तक तनम्न मंत्रों का उच्चारण

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करते हुए माशलि चालू रखें।

ॐ भूभुशवः स्वः। तमसववतुवशरेण्यं भगो िेवस्य िीमदह। धियो यो नः प्रचोियात।्। (यजुवेिः 36.3)

रामो राजमखणः सिा ववजयते रामं रमेिं भज े

रामेणाशभहता तनिाचरचमू रामाय तस्मै नमः।

रामान्नात्स्त परायणं परतरं रामस्य िासोऽस्म्यहं

रामे धचत्तलयः सिा भवतु मे भो राम मामुद्िर।। (श्रीरामरिास्तोत्रम-् 37) रामरिास्तोत्र के उपयुशक्त श्लोक में 'र' का पुनरावतशन होने से बच्चा तोतला नहीं होता।

वपता भी अपने प्रेमभरे स्पिश के साथ गभशस्थ शििु को प्रशिक्षित करे।

सातवें महीने में स्तन, छाती पर पेि पर मवचा के खखचंने से खजुली िुरु होने पर उाँगली से न खजुलाकर िेिी गाय के घी की माशलि करनी चादहए।

आठवााँ व नौवााँ महीनाैः इन महीनों में चावल को 6 गनुा ििू व 6 गुना पानी में पकाकर घी डाल के पाचनित्क्त के अनुसार सुबह िाम खाये अथवा िाम के भोजन में ििू िशलये में घी डालकर खाये। िाम का भोजन तरल रूप में लेना जरूरी है।

गभश का आकार बढने पर पेि का आकार व भार बढ जाने से कब्ज व गैस की शिकायत हो सकती है। तनवारणाथश तनम्न प्रयोग अपनी प्रकृतत के अनुसार करें-

आठवें महीने के 15 दिन बीत जाने पर 2 चम्मच एरण्ड तेल ििू से सुबह 1 बार ले, कफर नौवें महीने की िुरुआत में पनुः एक बार ऐसा करे अथवा बत्रफला चणूश या इसबगोल में स ेजो भी चणूश प्रकृतत के अनुकूल हो उसका सेवन वैद्यकीय सलाह के अनुसार करे। पुराने मल की िुद्धि के शलए अनुभवी वैद्य द्वारा तनरूह बत्स्त व अनुवासन बत्स्त ले।

चिंनबला लािादि तेल से अथवा ततल के तेल से पीठ, कदि से जंघाओं तक माशलि करे और इसी तेल में कपड़ ेका फाहा शभगोकर रोजाना रात को सोते समय योतन के अिंर गहराई में लख शलया करे। इससे योतनमागश मिृ ुबनता है और प्रसूतत सुलभ हो जाती है।

िंचामतृैः 9 महीने तनयशमत रूप से प्रकृतत व पाचनित्क्त के अनुसार पंचामतृ ले।

िंचामतृ बनाने की पवधधैः 1 चम्मच ताजा िही, 7 चम्मच ििू, 2 चम्मच िहि, 1 चम्मच घी व 1 चम्मच शमश्री को शमला लें। इसमें 1 चिुकी केसर भी शमलाना दहतावह है।

गुणैः यह िारीररक ित्क्त, स्फूततश, स्मरणित्क्त व कांतत को बढाता है तथा हृिय, मत्स्तष्क आदि अवयवों को पोषण िेता है। यह तीनों िोषों को संतुशलत करता है व गशभशणी अवस्था में होने वाली उलिी को कम करता है।

उपवास में शसघंाड़ ेव राजधगरे की खीर एवं फलों का सेवन करे।

अनुक्रम

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सगभाभवस्था के िौरान आचरण दिन में नींि व िेर रात तक जागरण न करे। िोपहर में ववश्रांतत ले, गहरी नींि वत्जशत

है।

सीिे व घुिने मोड़कर न सोये अवपतु करवि बिल-बिल कर सोये।

सख्त व िेढे स्थान पर बैठना, पैर फैलाकर और झुककर ज्यािा समय बैठना वत्जशत है।

गशभशणी अपानवायु, मल, मूत्र, डकार, छींक, तयास, भूख, तनरा, खााँसी, आयासजन्य श्वास, जम्हाई, अश्र ुइन स्वाभाववक वेगों को न रोके तथा यमनपूवशक वेगों को उमपन्न न करे।

इस काल में समागम सवशथा वत्जशत है।

सुबह की हवा में िहलना लाभप्रि है।

आयुवेिानुसार 9 मास तक प्रवास वत्जशत है।

चसु्त व गहरे रंग के कपड़ ेन पहने।

अवप्रय बात न सुने व वाि-वववाि में न पड़।े जोर से न बोले और गुस्सा न करे। मन में उद्वेग उमपन्न करने वाले वीभमस दृश्य, िीवी सीरीयल न िेखे व ऐसे सादहमय, नॉवेल आदि भी पढे-सुने नहीं। तीव्र ध्वतन एवं रेिडयो भी न सुने।

िगुशन्ियुक्त स्थान पर न रहे तथा इमली के विृ के नजिीक न जाय।

मैले, अपववत्र, ववकृत व्यत्क्त को स्पिश न करे।

िरीर के समस्त अगंों को सौम्य कसरत शमले इस प्रकार के घर के कामकाज करते रहना गशभशणी के शलए अतत उत्तम होता है।

सगभाशवस्था में प्राणवायु की आवश्यकता अधिक होती है अतः िीघश श्वसन (िीघश श्वास) वह हलके प्राणायाम का अभ्यास करे। पववत्र, कल्याणकारी, आरो्यिायक भगवन्नाम जप करे।

मन को िांत व िरीर को तनावरदहत रखने के शलए प्रततदिन थोड़ा समय िवासन (िव की नाईं पड़ ेरहना) का अभ्यास करे।

िांतत होम एवं मंगल कमश करे। िेवता, ब्राह्मण, वदृ्ि एवं गुरुजनों को प्रणाम करे।

भय, िोक, धचतंा, क्रोि को मयागकर तनमय आनंदित व प्रसन्न रहे। ऊपर िी गयी साविातनयों का गभश व मन से गहरा संबंि होता है। अतः गशभशणी दिये गये तनिेिों के अनुसार अपनी दिनचयाश तनिाशररत करे।

अनुक्रम

सगभाभवस्था में ननपिद्ध आहार गभश रहने पर गशभशणी ककसी भी प्रकार के आसव-अररष्ि (कुमारी आसव, ििमूलाररष्ि

आदि), उष्ण-तीक्ष्ण औषधियों, ििश तनवारक (पेन ककल्लर) व नींि की गोशलयों, मरे हुए जानवरों

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के रक्त से बनी रक्तविशक िवाइयों एवं िॉतनक्स तथा हातनकारक अरेंजी िवाइयों आदि का सेवन न करे।

इडली, डोसा, ढोकला जैसे खमीरयुक्त, वपत्तविशक तथा चीज, पनीर जैसे पचने में भारी पिाथश न खाये। ब्रेड, बबस्कुि, केक, नूडल्स (चाऊमीन), भेलपुरी, िही बड़ा, जैसी मैिे की वस्तुएाँ न खाकर िुद्ि घी व आिे से बने तथा स्वास्र्थयप्रि पिाथों का सेवन करे।

कोल्डिरकं्स व िडब्बाबंि रसों की जगह ताजा नींबू या आाँवले का िरबत ले। िेिी गाय के ििू, गुलकंि का प्रयोग लाभकारी है।

मांस, मछली, अडं ेआदि का सेवन किावप न करे।

आयुवेिानुसार सगभाशवस्था में ककसी भी प्रकार का आहार अधिक मात्रा में न लें। षडरसयुक्त आहार लेना चादहए परंतु केवल ककसी एकाि वप्रय रस का अतत सेवन िषु्पररणाम ला सकता है।

इस संिभश में चरकाचायशजी ने बताया हैः मधरुैः सतत सेवन करन ेसे बच्च ेको मिमुेह (डायबबिीज), गूाँगापन, स्थूलता हो सकती

है।

अम्लैः इमली, िमािर, खट्िा िही, डोसा, खमीर वाले पिाथश अतत प्रमाण में खाने से बच्च ेको जन्म से ही नाक में से खनू बहन, मवचा व आाँखों के रोग हो सकते हैं।

लवण (नमक)- ज्यािा नमक लेने से रक्त में खराबी आती है, मवचा के रोग होत ेहैं। बच्च े के बाल असमय में सफेि हो जाते हैं, धगरते हैं, गंजापन आता है, मवचा पर असमय झुररशयााँ पड़ती हैं तथा नेत्रज्योतत कम होती है।

तीखाैः बच्चा कमजोर प्रकृतत का, िीण िुक्रिातुवाला व भववष्य में संतानोमपवत्त में असमथश हो सकता है।

कड़वाैः बच्चा िुष्क, कम वज़न का व कमजोर हो सकता है।

किायैः अतत खाने पर श्यावता (नीलरोग) आती है, उध्वशवायु की तकलीफ रहती है।

सारांि यही है कक स्वािलोलुप न होकर आवश्यक संतुशलत आहार लें।

अनुक्रम

गशभभणी का आहार आचायश चरक कहते हैं कक गशभशणी के आहार का आयोजन तीन बातों को ध्यान में रखते

हुए करना चादहए – गभशवती के िरीर का पोषण, स्तन्यतनशमशती की तैयारी व गभश की वदृ्धि। माता यदि सात्ववक, संतशुलत, पर्थयकर एवं सुपाच्य आहार का ववचारपूवशक सेवन करती है तो बालक सहज ही हृष्ि-पुष्ि होता है। प्रसव भी ठीक समय पर सुखपूवशक होता है।

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अतः गशभशणी रूधचकर, सुपाच्य, मिरु रसयकु्त, धचकनाईयुक्त एव ं जठरात््न प्रिीपक आहार ले।

िानीैः सगभाश स्त्री प्रततदिन आवश्यकता के अनुसार पानी वपये परंतु मात्रा इतनी अधिक न हो कक जठरात््न मंि हो जाय। पानी को 15-20 शमनि उबालकर ही लेना चादहए। सम्भव हो तो पानी उबालते समय उसमें उिीर (सुगंिीबाला), चिंन, नागरमोथ आदि डालें तथा िुद्ि चााँिी या सोने (24 कैरेि) का शसक्का या गहना साफ करके डाला जा सकता है।

िधूैः ििू ताजा व िुद्ि होना चादहए। किज का ठण्डा ििू यो्य नहीं है। यदि ििू पचता न हो या वाय ुहोती हो तो 200 शम.ली. ििू में 100 शम.ली. पानी के साथ 10 नग वायववडगं व 1 सें.मी. लम्बा सोंठ का िुकड़ा कूिकर डालें व उबालें। भूख लगने पर एक दिन में 1-2 बार ले सकते हैं। नमक, खिाई, फलों और ििू के बीच 2 घंिे का अतंर रखें।

िािैः सगभाशवस्था के अतंतम तीन-चार मासों में मस्से या पााँव पर सूजन आने की सम्भावना होने से मक्खन तनकाली हुई एक किोरी ताजी छाछ िोपहर के भोजन में तनयशमत शलया करो।

घीैः आयुवेि ने घी को अमतृ सदृि बताया है। अतः प्रततदिन 1-2 चम्मच घी पाचनित्क्त के अनुसार सुबह-िाम ले।

िालैः घी का छोंक लगा के नींबू का रस डालकर एक किोरी िाल रोज सुबह के भोजन में लेनी चादहए, इससे प्रोिीन प्रातत होते हैं। िालों में मूाँग सवशशे्रष्ठ है। अरहर भी ठीक है। कभी-कभी राजमा. चना, चौलाई, मसूर कम मात्रा में लें। सोयाबीन पचन ेमें भारी होने स ेन लें तो अच्छा है।

सक्जजयााँ- लौकी, गाजर, करेला, शभडंी, पेठा, तोरई, हरा ताजा मिर तथा सहजन, बथआु, सूआ, पुिीना आदि हरे पते्त वाली सत्ब्जयााँ रोज लेनी चादहए। 'भावप्रकाि तनघंिु' रंथ के अनुसार सुपाच्य, हृियपोषक, वात-वपत्त का संतुलन करने वाली, बलविशक एवं सततिातु-पोषक ताजी, मुलायम लौकी की सब्जी, कचमूर (सलाि), सूप या हलवा बनाकर रुधच अनुसार उपयोग करे।

िरीर में रक्तिातु लौह तवव पर तनभशर होने से लौहविशक काले अगंूर, ककिशमि, काले खजूर, चकंुिर, अनार, आाँवला, सेब, पुराना िेिी गडु़ एवं पालक, मेथी, हरा ितनया जैसी िुद्ि व ताजी पत्तों वाली सत्ब्जयााँ ले। लौह तवव के आसानी से पाचन के शलए वविाशमन सी की आवश्यकता होती है, अतः सब्जी में नींबू तनचोड़कर सेवन करे। खाना बनाने के शलए लोहे की कढाई, पतीली व तवे का प्रयोग करे।

फल- हरे नाररयल का पानी तनयशमत पीने से गभोिक जल की उधचत मात्रा बनी रहने में मिि शमलती है। मीठा आम उत्तम पोषक फल है, अतः उसका उधचत मात्रा में सेवन करे। बेर, कैथ, अनानास, स्राबेरी, लीची आदि फल ज्यािा न खाये। चीकू, रामफल, सीताफल, अमरूि, तरबूज कभी-कभी खा सकती है। पपीते का सेवन किावप न करे। कोई भी फल कािकर तुरंत खा

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ले। फल सूयाशस्त के बाि न खाये।

गशभभणी ननम्न रूि से भोजन का ननयोजन करे- सुबह 7-7.30 बजे नाश्त ेमें रात के शभगोए हुए 1-2 बािाम, 1-2 अजंीर व 7-8 मुनक्के

अच्छे से चबाकर खाये। साथ में पंचामतृ पाचनित्क्त के अनुसार ले। वैद्यकीय सलाह के अनुसार आश्रमतनशमशत ित्क्तविशक योग – सुवणशप्राि, रजतमालती, च्यवनप्राि आदि ले सकती है। सुबह 9 से 11 के बीच तथा िाम को 5 से 7 के बीच प्रकृतत-अनुरूप ताजा, गमश, सात्ववक, पोषक एवं सुपाच्य भोजन करे।

भोजन से पूवश हाथ पैर िोकर पूवश या उत्तर की ओर मुख करके सीिे बैठकर गीता के पन्रहवें अध्याय का पाठ करे और भावना करे कक 'हृियस्थ प्रभु का भोजन करा रही हूाँ।' पााँच प्राणों को नीच ेदिये मंत्रसदहत मानशसक आहुततयााँ िेकर भोजन करना चादहए।

ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उिानाय स्वाहा। ॐ समानाय स्वाहा।

अनुक्रम

गभाभवस्था में सरल व उियुक्तैः अश्वत्थासन इस आसन का अभ्यास गशभशणी स्त्री कर सकती है। जब शििु माता के गभश में होता है

उस समय माता को श्वास लेने में ककसी-ककसी समय कदठनाई भी महससू होने लगती है। यह तकलीफ अश्वमथासन करने वाली त्स्त्रयों को नहीं हो सकती। इसके अभ्यास से उनके िरीर में रक्तसंचार भलीभााँतत होने लगता है। उन्हें अधिक प्रसव-पीड़ा का भी भय नहीं रहता। इससे शसर से पैर तक के अनेक रोग अनायास ही िरू हो जाते हैं।

लाभैः इसके अभ्यास से िरीर के भीतर जो प्राण, अपान आदि िस प्रकार की वायु ववद्यमान हैं, उनका भलीभााँतत संचार होने लगता है। ऑक्सीजन ज्यािा मात्रा में िरीर के अिंर

जाती है और अधिक मात्रा में नाइरोजन बाहर तनकलती है। इसशलए इस आसन का अभ्यास करने वाले िीघ्र ही स्वस्थ एवं सुन्िर हो जाते हैं।

पवधध- िोनों पैर खड़ ेहोकर प्रथम िायें पैर को यथासाध्य पीछे ले जाकर ऊपर उठायें और िायें हाथ को िायें कंिे की तरफ फैला िें। कफर बायें हाथ को शसर के पास सीिा ऊपर फैला िें। कफर धचत्र में दिखाये अनुसार सीने को बाहर की तरफ तानते हुए खड़ ेहों। पैर बिलकर पुनः यही ववधि िोहरायें।

सावधानी- आसन ककसी अनुभवी वैद्य या प्रशििक के मागशििशन में ही करें।

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अनुक्रम

शिि ुकी सुरक्षा के शलए रक्षा-कवच माता यदि गभशकाल में रिा-कवच (आध्यात्ममक तरंगों का आभामंडल) बनाती है तो उस

पर बाह्य हलके वातावरण व भूत-प्रेत, बुरी आममाओं का प्रभाव नहीं पड़ता। साथ ही गभशस्थ शििु के आसपास भी सकाराममक ऊजाश से सम्पन्न आभामंडल ववकशसत होता है।

रक्षा-कवच धारण करने की पवधधैः प्रातः और सायं के संध्या-पूजन से पहले या बाि में उत्तर या पूवश दििा की ओर मुाँह करके कम्बल आदि गमश आसन पर सुखासन, पद्मासन या शसद्िासन में बैठे। मेरुिंड सीिा हो। आाँखें आिी खलुी, आिी बन्ि रखे। गहरा श्वास लेकर भीतर रोक के रखे। 'ॐ' या अपने इष्िमंत्र अथवा अपने गुरुमंत्र का जप करते हुए दृढभावना करे कक 'मेरे इष्ि की कृपा का ित्क्तिाली प्रवाह मेरे अिंर प्रवेि कर रहा है और मेरे चारों ओर सुििशन चक्र सा एक इन्रिनुषी प्रकाि घना होता जा रहा है, िभुाशवनारूपी अिंकार ववलीन हो गया है। सात्ववक प्रकाि-ही-प्रकाि छाया है। सूक्ष्म आसुरी ित्क्तयों से मेरी रिा करने के शलए वह रत्श्मल चक्र सकक्रय है। मैं पूणशतः तनत्श्चतं हूाँ।' ऐसा एक मानशसक धचत्र बना ले।

श्वास त्जतनी िेर भीतर रोक सके, रोके। मन-ही-मन उक्त भावना को िोहराये। अब िीरे-िीरे 'ॐ....' का िीघश उच्चारण करते हुए श्वास बाहर तनकाले और भावना करे कक 'मेरे सारे िोष, ववकार भी बाहर तनकल रहे हैं। मन-बुद्धि िुद्ि हो रहे हैं।' श्वास खाली होने के बाि तुरंत श्वास न ले। यथाित्क्त बबना श्वास रहे और भीतर-ही-भीतर 'हरर ॐ.... हरर ॐ....' या इष्िमंत्र का मानशसक जप करे। ऐसे 10 प्राणायाम के साथ उच्च स्वर से 'ॐ....' का गुंजन करते हुए इन्हीं दिव्य ववचारों-भावनाओं से अपने चहुाँओर इन्रिनुषी आभायुक्त प्राणमय सुरिा-कवच को प्रततत्ष्ठत करे, कफर िांत हो जाय, सब प्रयास छोड़ िे। कुछ सतताह ऐसा करने स े आपके रोमकूपों से जो आभा तनकलेगी उसका एक रिा-कवच बन जायेगा। जो आपके गभश को सुरक्षित रखेगा।

अनुक्रम

सुखिूवभक प्रसवकारक प्रयोग छठे महीने से तुलसी की जड़ें कमर में बााँिने से प्रसव वेिना कम होती है और प्रसूतत भी

सरलता से हो जाती है।

"सामान्य प्रसूतत यदि कहीं बािा जैसी लगे तो 10-12 राम िेिी गाय के गोबर का ताजा रस तनकालें, गुरुमंत्र का जप करके अथवा नारायण.... नारायण... जप करके गभशवती मदहला को वपला िें। एक घंिे में प्रसूतत नहीं हो तो वापस वपला िें। सहजता से प्रसूतत होगी। अगर प्रसव-

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पीड़ा समय पर िुरु नहीं हो रही हो तो गशभशणी 'जम्भला... जम्भला....' मंत्र का जप करे और पीड़ा िुरु होने पर उसे िेसी गाय के गोबर का रस वपलायें तो सुखपूवशक प्रसव होगा।"

पूज्य संत श्री आिारामजी बापू इस प्रकार प्रमयेक गभशवती स्त्री को तनयशमत रूप से उधचत आहार-ववहार का सेवन करते

हुए नवमास धचककमसा ववधिवत ्लेनी चादहए ताकक प्रसव के बाि भी उसका िरीर सिक्त, सुडौल व स्वस्थ बना रहे, साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल, सुंिर और हृष्ि-पुष्ि शििु को जन्म िे सके। यह धचककमसा लेने पर शसजेररयन िडलीवरी की नौबत नहीं आयेगी। इस धचककमसा के साथ महापुरुषों के समसंग-कीतशन व िास्त्र के श्रवण पठन का लाभ अवश्य लें।

अनुक्रम

नवजात शिि ुका स्वागत अष्िांगहृियकार का कहना है कक बालक के जन्मते ही तुरन्त उसके िरीर पर धचपकी

उल्व को कम मात्रा में सेंिा नमक एवं ज्यािा मात्रा में घी लेकर हलके हाथ से साफ करें।

जन्म के बाि तुरन्त नाशभनाल का छेिन कभी न करें। 4-5 शमनि में नाशभनाल में रक्तप्रवाह बंि हो जाने पर नाल कािें। नाशभनाल में स्पंिन होता हो उस समय उसे कािने पर बालक के प्राणों में िोभ होने से उसके धचत्त पर भय के संस्कार गहरे हो जाते हैं। इससे उसका समस्त जीवन भय के साये में बीत सकता है।

बच्च ेका जन्म होते ही, मूच्छाशवस्था िरू होने के बाि बालक जब ठीक से श्वास-प्रश्वास लेने लगे, तब थोड़ी िेर बाि स्वतः ही नाल में रक्त का पररभ्रमण रुक जाता है। नाल अपने-आप सूखने लगती है। तब बालक की नाशभ से आठ अगंुल ऊपर रेिम के िागे से बंिन बााँि िें। अब बंिन के ऊपर से नाल काि सकते हैं।

कफर घी, नाररयल तेल, ितावरी शसद्ि तेल, बलादि शसद्ि तेल में से ककसी एक के द्वारा बालक के िरीर पर िीरे-िीरे मसाज करें। इससे बालक की मवचा की ऊष्मा साँभली रहेगी और स्नान कराने पर बालक को सिी नहीं लगेगी। िरीर की धचकनाई िरू करने के शलए तेल में चने का आिा डाल सकते हैं।

तमपश्चात ्पीपल या बड़ की छाल डालकर ऋत ुअनुसार बनाये हुए हलके या ज्यािा गमश पानी से 2-3 शमनि स्नान करायें। यदि सम्भव हो तो सोन ेया चााँिी का िुकड़ा डालकर उबाले हुए हलके गुनगुने पानी से भी बच्च ेको नहला सकते हैं। इससे बच्च ेका रक्त पूरे िरीर में सहजता से घूमकर उसे ित्क्त व बल िेता है।

स्नान कराने के बाि बच्च ेको पोंछकर मुलायम व पुराने (नया वस्त्र चभुता है) सूती कपड़ ेमें लपेि के पूवश दििा की ओर उसका शसर रखकर मुलायम िय्या पर सुलायें। इसके बाि

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गाय का घी एव ंिहि ववषम प्रमाण में लेकर सोने की सलाई या सोन ेका पानी चढायी हुई सलाई से नवजात शििु की जीभ पर 'ॐ' व 'ऐ'ं बीजमंत्र शलखें। तमपश्चात ्बालक का मुाँह पूवश दििा की ओर करके संत श्री आिाराम जी आश्रम द्वारा तनशमशत 'सुवणशप्राि' को घी व िहि के ववषम प्रमाण के शमश्रण के साथ अनाशमका उाँगली (सबसे छोिी उाँगली के पास वाली उाँगली) से चिायें। बालक को जन्मते समय हुए कष्ि के तनवारण हेत ुहलके हाथ स ेशसर व िरीर पर ततल का तेल लगायें। कफर बच्च े को वपता की गोि में िें। वपता बच्च े के िायें कान में अमयतं प्रेमपूवशक बोलेः 'ॐॐॐॐॐॐॐ अश्मा भव। त ू चट्िान की तरह अिडग रहना ! ॐॐॐॐॐॐॐ परिुः भव। ववघ्न बािाओं को, प्रततकूलताओं को ज्ञान के कुल्हाड़ ेसे, वववेक के कुल्हाड़ े से कािने वाला बन ! ॐॐॐॐॐॐॐ दहरण्यमयस्मवं भव। तू सुवणश के समान चमकने वाला बन ! यिस्वी भव। तेजस्वी भव। सिाचारी भव। तथा संसार, समाज, कुल, घर व स्वयं के शलए भी िुभ फलिायी कायश करने वाला बन !' साथ ही वपता तनम्नशलखखत मंत्र का उच्चारण भी करेः

अगंािंगामसम्भवशस हृियािशभजायसे। आममा वै पुत्रनामाशस सञ्जीव िरिां ितम।्।

ितायुः ितवषोऽशस िीघशमायुरवातनुदह। नित्राखण दििो राबत्रहश्च मवाऽशभरितु।।

'हे बालक ! तुम मेरे अगं-अगं से उमपन्न हुए हो और मेरे हृिय से साधिकार उमपन्न हुए हो, तुम मेरी ही आममा हो ककंतु तुम पुत्र नाम से पैिा हुए हो। तुम सौ वषों तक त्जयो। तुम ितायु होओ, सौ वषों तक जीने वाले होओ, तुम िीघाशयु को प्रातत करो। सभी नित्र, िसों दििाएाँ दिन-रात तुम्हारी चारों ओर से रिा करें।' (अष्िााँगहृिय, उत्तरस्थानम-् 1.3,4)

बालक के जन्म के समय ऐसी साविानी रखने से बालक की कुल की, समाज की और िेि की सेवा हो जायेगी।

आयुवेि के शे्रष्ठ रन्थ 'अष्िााँगहृिय' तथा 'कश्यप संदहता' में 16 संस्कारों के अतंगशत बालकों के शलए लाभकारी सुवणशप्राि का उल्लेख आता है। नवजात शििु को जन्म से एक माह तक रोज तनयशमत रूप से सुवणशप्राि िेने से वह अततिय बुद्धिमान बनता और सभी प्रकार के रोगों से उसकी रिा होती है। सुवणशप्राि मेिा, बुद्धि, बल, जठरात््न तथा आयुष्य बढाने वाला, कल्याणकारक व पुण्यिायी है। यह रहबािा व रहपीड़ा को भी िरू करता है।

6 मास तक सेवन करन ेसे बालक श्रतुतिर होता है अथाशत ्सुनी हुई हर बात को िारण कर लेता है। उसकी स्मरणित्क्त बढती है तथा िरीर का समुधचत ववकास होता है। वह पुष्ि व चपल बनता है। वविषे लाभ के शलए 5 या 10 वषश तक भी िे सकते हैं।

िांत स्वच्छ, पववत्र कमरे में बालक को रखें। वहााँ पूवश दििा की ओर िीपक जलायें एवं बालक की रिा के शलए गूगल, अगरू, वचा, पीली सरसों, घी तथा नीम के पत्तों को शमलाकर िपू करें। इससे वातावरण िुद्ि होता है और ित्क्तिाली प्राणवायु पैिा होती है।

नवजात शििु को लाइि के प्रकाि में तथा पखें एवं एयर कंडीिन वातावरण में नहीं

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रखना चादहए। बच्चे के जन्मने के बाि उसके मत्स्तष्क में सतृ्ष्ि की संवेिनाओं को रहण करन ेके शलए 24 घंिे के अंिर तनत्श्चत प्रकार की प्रकक्रयाएाँ चालू हो जाती हैं। इन 24 घंिों में बालक सहजता से जो संस्कार रहण करता है, व े पूरे जीवन में कफर कभी रहण नहीं कर सकता। इसशलए ऐसे प्रारत्म्भक काल की मत्स्तष्क की कक्रयािीलता व संवेिनिीलता का पूरा लाभ लेकर उसे सुसंस्कारों से भर िेना चादहए।

बच्च ेको सम्बोधित करते हुए कहना चादहए कक 'तू िुद्ि है, तू बुद्ि है, तू चतैन्य है, त ूअजर-अमर-अववनािी आममा है ! तू आनंिस्वरूप है, तू प्रेमस्वरूप है ! तेरा जन्म अपने स्वरूप को जानकर संसार के बंिनों से मुक्त होने के शलए ही हुआ है। इसशलए तू बहािरु बन, दहम्मतवान हो ! अपने में छुपी अपार ित्क्तयों को जारत कर, तू सब कुछ करने में समथश है।'

इस प्रकार के आममज्ञान, नीततबल व िौयशबल के संस्कार इस समय बालक को दिये जायें और उसके इिश-धगिश 'ॐॐ माियुश ॐ.... ॐॐ िुद्िोऽशस... ॐॐ चतैन्य... ॐॐ आनन्ि....' के मिरु उच्चारण या मानशसक जप के साथ मन-ही-मन रिा-कवच बनाया जाय तो वे संस्कार हमेिा के शलए उसके जीवन में दृढ हो जाते हैं।

बालक के जन्म के 30 या 31वें दिन से उसे सूयश की कोमल ककरणों का स्नान और रात को चन्र-ििशन कराना चादहए तथा चााँिनी में कुछ समय रखना चादहए।

वविषुी मिालसा की तरह आममज्ञान की लोररयााँ गाकर सुसंस्कारों का शसचंन करें। लोररयों सुनने से बालक के ज्ञानतंतुओं को पुत्ष्ि शमलती है।

अनुक्रम

प्रसूता की साँभाल प्रसूतत के तुरन्त बाि पेि पर रूई की मुलायम गद्िी रखकर कस के पट्िा बााँिने से वायु

प्रकोप नहीं होता है और पेि व पेडू अपनी मूल त्स्थतत में आते हैं। प्रसूतत के बाि थकान होने से प्रसूता को सूखे, स्वच्छ कपड़ ेपहनाकर कान में रूई डाल के ऊपर से रूमाल (स्काफश ) बााँिकर 4-5 घंिे एकांत में सुला िें। प्रथम 10 दिन उठन-ेबैठने में साविानी रखनी चादहए अन्यथा गभाशिय अपने स्थान से दहल जाने की व िसूरे अवयवों को नुकसान पहुाँचने की सम्भावना होती है। 10 दिन बाि अपने आवश्यक काम करे पर मेहनत के काम सवा महीने तक न करे। डढे महीने तक प्रसूता को ककसी प्रकार की पेि साफ करने या जुलाब की औषधि नहीं लेनी चादहए। आवश्यकता पड़ ेतो एतनमा का प्रयोग करना चादहए। सवा महीने तक प्रसूता को तेल-माशलि अवश्य करवानी चादहए।

प्रसव के बाि िसूरे दिन से लेकर कम-स-ेकम एक सतताह तक और हो सके तो सवा महीने तक माता को ििमूल क्वाथ वपलाया जाय तो माता और बच्च ेके स्वास्र्थय पर अच्छा

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असर होता है। यह क्वाथ आश्रम के सभी आयुवेदिक िवाखानों में भी उपलब्ि है।

जननािौच (संतान जन्म के समय लगने वाला अिौच सूतक) के िौरान प्रसूततका (माता) 40 दिन तक माला लेकर जप न करे एवं वपता 10 दिन तक।

अनुक्रम

शिि ुव माता िोनों के शलए लाभकारीैः स्तनिान आयुवेि व आितुनक ववज्ञान – िोनों के अनुसार नवजात शििु के शलए मााँ का ििू ही

सबसे उत्तम व सम्पूणश आहार है। स्तनपान से शििु को पौत्ष्िक आहार के साथ-साथ मााँ का प्रेम व वामसल्य भी प्रातत होता है, जो उसके संतुशलत ववकास के शलए अतत आवश्यक होता है। नवजात शििु की वदृ्धि के शलए सभी आवश्यक पोषक तवव जैसे प्रोिीन, वसा, काबोहाइरिे, कैत्ल्ियम, फॉस्फोरस तथा वविाशमन्स मााँ के ििू में उधचत मात्रा में होते हैं। मााँ के ििू में केसीन नामक प्रोिीन तथा पोिैशियम का अिं भी पाया जाता है जो गाय के ििू में नहीं पाया जाता। मााँ का ििू बच्च ेके शलए वास्तव में कवच-कंुडल ही हैं।

परंतु वतशमान में यह मान्यता बन गयी है कक स्तनपान कराने से िारीररक सुंिरता कम हो जाती है। इस डर से कुछ माताएाँ बच्च ेको स्तनपान नहीं करातीं, बोतल से ििू वपलाती हैं। पररणामस्वरूप बच्च ेका पूणश ववकास नहीं होता और साथ ही उन माताओं को स्तन कैं सर जैसी जानलेवा बीमाररयों का शिकार होने की सम्भावना बढ जाती है। ववशभन्न प्रयोगों के बाि अब वैज्ञातनक भी तिस्थता से स्वीकार करने लगे हैं कक 'स्तनपान कराने से मााँ व बच्च ेिोनों को लाभ होता है।'

प्रथम बार स्तनपान कराते समय मााँ पूवश दििा की ओर मुख करके बैठे। स्तन पानी से िो के थोड़ा सा ििू तनकलने िेवे। कफर बच्च ेको पहले िादहने स्तन का पान कराये।

अनुक्रम

स्तनिान से शिि ुको होने वाले लाभ मााँ के ििू में रोगप्रततकारक तवव भरपूर होत ेहैं, जो शििु की मोिापा, मिमुेह, िमा एव ं

अन्य कई रोगों से सुरिा करते हैं।

जॉय कोसक के अनुसार 'यह शसद्ि हो चुका है कक स्तनपान से शििु की एलजी से सुरिा होती है तथा रोग-संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।'

मााँ के ििू में पाये जान ेवाले प्रततरिी तववों के कारण स्तनपान करन ेवाले बच्चों में रोग-सकं्रमण की सम्भावना 50 से 95 प्रततित कम होती है।

बच्चों की बौद्धिक िमता बढती है।

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मााँ और शििु के बीच भावनाममक ररश्ता मजबूत होता है।

एक महीने से एक साल की उम्र तक शििु में 'अचानक शििु ममृयु संलिण' का खतरा रहता है। मााँ का ििू शििु को इससे बचाता है।

पाचन संस्थान के रोग जैसे – िस्त लगना, पेि फूलना, कब्ज होना कम हो जाते हैं।

शििुओं को छूत की बीमारी कम होती है क्योंकक मााँ में एन्िीबॉडीज कण होने के कारण ििू के जररये ये शििु में भी पहुाँच जाते हैं।

अनुक्रम

स्तनिान कराने से मााँ को होने वाले लाभ अनतररक्त क लोरी नटट व उत्साह में वदृ्धधैः स्तनपान कराना प्राकृततक ढंग से वज़न कम

करने और मोिापे से बचने में मिि करता है। इससे प्रसव के बाि पेि का लिकाव भी नहीं होता है।

एशलजाबेथ डले के अनुसार 'स्तनपान कराते समय मााँ के िरीर में ऑक्सीिोशसन हामोन स्राववत होता है, जो गभाशिय को शसकोड़कर प्रसूतत से पूवश के आकार का कर िेता है। यह हामोन तनावमुत्क्त तथा सुख-बोि की अनुभूतत भी प्रिान करता है।'

रोगों से बचावैः त्जतने लम्बे समय तक मााँ शििु को अपना ििू वपलाती है, उतनी अधिक अडंािय व स्तन के कैं सर जैसे गम्भीर रोगों से उसकी रिा होती है। साथ ही हृियरोग, मिमुेह तथा ऑत्स्ियोपोरोशसस (हड्िडयों की कमजोरी) के खतरे कम हो जाते हैं।

मानशसक रोगों से बचावैः जॉय कोसक के अनुसार 'जो मदहलाएाँ स्तनपान नहीं करातीं यह जल्िी बंि कर िेती हैं, उनके मानशसक अवसाि से रस्त होने की सम्भावना अधिक होती है।'

अतः यदि कभी बच्चा बीमार हो तो भी बच्च ेको मााँ अपना ििू जरूर वपलाये। यदि ककसी कारणवि कभी मदहलाओं को स्तनपान के शलए समय तथा सुवविा न हो तो व ेअपना ििू स्वच्छ किोरी में तनकालकर चम्मच से वपलाने का प्रबंि कर सकती हैं। मााँ का ििू भी बोतल से नहीं वपलाना चादहए।

अनुक्रम

स्तनिान कराने में सावधानी प्रथम 24 घंिे में मााँ के स्तन में ििू न आये तो बाहर का ििू वपलाने की भारी किावप

न करे। उससे बच्च ेकी पाचन-कक्रया बबगड़ जाती है। उस समय बच्चा थोड़ा भूखा रहे तो चलेगा। इस िौरान उबला पानी, िहि, ्लूकोज अथवा आश्रमतनशमशत सुवणशप्राि िहि के साथ िें।

अरक्षद्िािुिे गयम।् 'वे परमेश्वर िानिील व आममसमपशक उपासक को उत्तम संतान,

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उत्तम िन, उत्तम गहृ और उत्तम प्राणित्क्त प्रातत कराते हैं।' (सामवेि) अनुक्रम

घरेलू साक्ववक शिि ुआहार (बेबीफूड) आजकल बालकों को ििू के अलावा बाजारू बेबीफूड (फरेक्स आदि) खखलाने की रीतत चल

पड़ी है। बेबीफूड बनाने की प्रकक्रया में अधिकांि पोषक तवव नष्ि हो जाते हैं, कई बार कृबत्रम रूप से वापस शमलाये जाते हैं, त्जसे बालकों की आाँतें अविोवषत नहीं कर पातीं। बेबीफूड का मुख्य घिक अततिय महीन वपसा हुआ गेहूाँ का आिा है, जो धचकना होने के कारण आाँतों में धचपक जाता है। आिा पीसने के बाि एक हफ्ते में ही गुणहीन हो जाता है जबकक बेबीफूड तैयार होने के बाि हाथ में आने तक तो कई हफ्ते गजुर जाते हैं। ऐस ेहातनकारक बेबीफूड की अपेिा शििुओं के शलए ताजा, पौत्ष्िक व सात्ववक खरुाक परम्परागत रीतत से हम घर में ही बना सकत ेहैं।

पवधधैः 1 किोरी चावल (पुराने हों तो अच्छा), 2-2 चम्मच चना, तुअर व मसूर की िाल, 6-6 चम्मच मूाँग की िाल व गेहूाँ – इन सबको साफ करके िोकर छााँव में अच्छी तरह से सुखा लें। िीमी आाँच पर अच्छे से सेंक लें। शमक्सर में महीन पीस के छान लें। 3-4 माह के बालक के शलए िुरुआत में आिा कप पानी में आिा छोिा चम्मच शमलाकर पका लें। थोड़ा सा सेंिा नमक डालकर पाचनित्क्त अनसुार दिन में एक या िो बार िे सकते हैं। िीरे-िीरे मात्रा बढाते जायें। बालक बड़ा होने पर इसमें उबली हुई हरी सत्ब्जयााँ, वपसा जीरा, ितनया भी शमला सकते हैं। हर 7 दिन बाि ताजा खरुाक बना लें।

यह स्वादिष्ि व पचने में अततिय हलका होता है। यह िारीररक ववकास के शलए जरूरी प्रोिीन्स, खतनज व काबोहाइरिेस की उधचत मात्रा में पूतत श करता है।

अनुक्रम

िुहारे की िौक्टटक खीर लाभैः यह खीर बालकों के िरीर में रक्त, मांस, बल तथा रोगप्रततकारक ित्क्त बढाती है।

िी.बी., कुक्कर खााँसी, सूखारोग आदि से बच्चों का रिण करती है। गशभशणी स्त्री यदि तीसरे महीने से इसका तनयशमत सेवन करे तो गभश का पोषण उत्तम होता है। कुपोवषत बालकों व गशभशणी त्स्त्रयों के शलए यह खीर अमतृतुल्य है।

पवधधैः 1 से 3 मीठे छुहारे रात को पानी में शभगो िें। सुबह गुठली तनकालकर पीस लें। एक किोरी ििू में थोड़ा पानी, वपसे छुहारे व शमश्री शमला के उबाल लें। खीर तैयार।

अनुक्रम

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चमत्कारी अनुभव

गाय के गोबर के रस से सामान्य प्रसूनत 16 अक्तूबर 2001 को मेरी पुत्री प्रसव-पीड़ा से अमयधिक परेिान थी। लगभग िो घंिे के

प्रयास के बाि भी प्रसव नहीं हो पा रहा था। वह तनढाल सी हो गयी थी। हमारे पाररवाररक डॉक्िर भी परेिान हो गये तथा ऑपरेिन की तयैारी करने लगे। हमने पजू्य बाप ूजी के समसंग में िेसी गाय के गोबर के रस से सामान्य प्रसूतत के बारे में सुन रखा था। मैंने िेिी गाय के गोबर का रस तनकालकर पुत्री को वपलाया उससे चममकाररक लाभ हुआ और कुछ ही शमनिों में सामान्य प्रसव होकर पुत्ररमन की प्रात्तत हुई।

शिवकुमार राजपाल, खडंवा (म.प्र.) अनुक्रम

बािू जी ने िी युक्क्त, ऑिरेिन से शमली मुक्क्त मेरी पमनी को प्रसूतत के समय इतनी अधिक तकलीफ हुई कक उसे रात को 2 बजे

कल्याण (महा.) में डॉक्िर मस्कर हॉत्स्पिल' में भती कराना पड़ा। डॉक्िर ने कहाः "आज और अभी प्रसूतत होने की सम्भावना है।" लेककन सुबह 7 बजे तक बहुत प्रयमन करने पर भी वे असफल रहे तो बोलेः "बच्च ेका शसर और िोनों हाथ अिक (फाँ स) गये हैं। इस त्स्थतत में बच्च ेके बचने की सम्भावना बहुत कम है लेककन मााँ को बचाने के शलए ऑपरेिन करना ही पड़गेा।" मैंने कहाः "आप मुझ ेएक घंिे का समय िीत्जये।"

मैं आठ दिन पहले ही होली शिववर में सूरत गया था, वहााँ गुरुजी (पूज्य बापू जी) ने कहा था कक "त्जसको डॉक्िर बोलें कक ऑपरेिन के शसवाय प्रसूतत नहीं हो सकती, ऐसी मदहला को यदि िेिी गाय के ताजे गोबर का एक चम्मच रस भगवन्नाम का जप करके वपला दिया जाय तो बबना ऑपरेिन के, बबना अधिक पीड़ा के प्रसूतत जल्िी हो जाती है।"

मैंने यह प्रयोग श्रद्िा और ववश्वास से ककया। गाय के गोबर के रस में थोड़ा गंगाजल शमलाया और गुरुमंत्र जपकर पमनी को वपला दिया। लगभग 25-30 शमनि में सामान्य प्रसूतत हो गयी। यह िेखकर डॉक्िर आश्चयशचककत होकर बोलेः "15-20 साल में मैंने कभी नहीं िेखा कक बच्चा इस तरह से फाँ स गया हो और बबना ऑपरेिन के सामान्य प्रसूतत से पैिा हुआ हो।" सिगुरुिेव की कृपा का मैं सिैव ऋणी रहूाँगा।

अिोक चिंनमल, उल्हासनगर (महा.) अनुक्रम

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िैुःख और िरेिानी से माता-पिता बच जायेंगे 2008 में ऋवष प्रसाि पबत्रका में उत्तम संतानप्रात्तत का योग छपा था। उसमें बताये गये

तनयमों का हमने पालन ककया और गुरुिेव से उत्तम संतानप्रात्तत हेतु प्राथशना की। मई 2009 में बापू जी की कृपा से हमारे घर पर एक बच्च ेका जन्म हुआ, हमने उसका नाम 'ॐ' रखा। एक बार हम उसे ले के बापू जी के ििशन करने गये तो उसे िेखते ही बापू जी बोलेः "यह पूवश जन्म में योगी था।"

'ॐ' के शििक बोलते हैं- "हम अपनी किा के चचंल स्वभाव वाले बच्चों को एक सतताह तक ॐ की बगल में बठैाते हैं तो उन बच्चों का भी स्वभाव बिल जाता है।" इस अनुभव स ेमुझ ेपूरा भरोसा हो गया है कक यदि िास्त्रों की बातों और संतों के वचनों का आिर करें, उन पर अमल करें तो जीवनभर संतानों के कारण होन े वाले िःुख और परेिानी से माता-वपता बच जायेंगे।

इसशलए सभी से अनुरोि है कक ववश्वमानव का भला चाहने वाले पूज्य बापू जी द्वारा बताये मागश पर चलकर आप भी सुख-िांततमय, प्रभुमय जीवन का आनिं लें और जीवनिाता के ज्ञान को पाने में सफल हो जायें।

िीतल मयागी, गात्जयाबाि (उ.प्र.) अनुक्रम

बच्चों को प्रभाविाली बनाने का राज 18 से 21 नवम्बर 2010 तक बड़ौिा (गुज.) में पूज्य बापू जी का समसंग कायशक्रम हुआ

था। वहााँ मेरी बेिी वषृाली की सतकश ता, कक्रयािीलता स्फूततश एवं फोिो खींचने की कुिलता आदि िेखकर पूज्य बापू जी बहुत प्रसन्न हुए और बोलेः "बेिा ! तू कौन सी किा में पढती है ?"

वषृाली ने कहाः "छठी किा में।"

बापू जी ने चककत होकर पूछाः "तेरी उम्र ककतनी है ?"

उसने कहाः "्यारह साल।"

इतनी छोिी आयु में मेरी बेिी की अच्छी-खासी लम्बाई और कायशकुिलता िेखकर बाप जी आश्चयशचककत हो गये। बापू जी ने मुझसे पूछाः "्यारह साल की बच्ची इतनी चपल, होशियार और प्रभाविाली कैसे ?"

मैंने कहाः "बापू जी ! मैंने आपके समसंग में सुना था कक नवजात शििु का स्वागत कैसे करना चादहए। इसके जन्म के समय वैसा ही ककया था। यह सब बाप ूजी की कृपा का ही फल है।"

मेरी बेिी का नाशभ छेिन और त्जह्वा पर ॐ शलखना आदि सभी प्रयोग बापू जी के

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तनिेिानुसार हुए थे। वषृाली को 6 साल की उम्र में सारस्वमय मंत्र की िीिा दिला िी थी। इन्हीं वजहों से मेरी बेिी तेजस्वी, बुद्धिमान हृष्ि-पुष्ि, सुसंस्कारी एवं आज्ञाकारी है। (11 साल की उम्र में वषृाली की ऊाँ चाई 5 फुि 9 इंच तथा वज़न 49 ककलो था।)

लता एम. भाशलया, बड़ौिा (गुज.) आप भी अपने अनुभव हमें पषृ्ठ 34 पर दिये गये पते पर भेज सकते हैं।

अनुक्रम

मदहला उत्थान मंडल के सेवाकायभ िेि तथा समाज की उन्नतत में नारी की भूशमका महववपूणश होती है। मदहलाओं की

िारीररक, बौद्धिक, चाररबत्रक अथाशत ् सवाांगीण उन्नतत हो तथा केवल भौततकता में ही नहीं, आध्यात्ममकता में भी अरसर होकर नारीित्क्त अपनी भूली हुई गररमा से अवगत हो – इस हेत ुलोकदहतैषी पूज्य सतं श्री आिाराम जी बापू की पावन प्रेरणा एवं मागशििशन से 'मदहला उमथान मंडल' द्वारा िेिभर में ववशभन्न सेवाकायश ककये जा रहे हैं-

मदहला प्रनतभा पवकास सभाएाँ मदहला प्रततभा ववकास सभाओं के माध्यम से हर एकाििी को बहनों की सािना-स्नेह

बैठक होती है। इसमें बहनें 'हरर ॐ' के गुंजन, प्राथशना, प्राणायाम, योगासन, समसंग-श्रवण, जप-ध्यान आदि द्वारा आध्यात्ममकता में तो आगे बढती ही हैं, साथ में सिगुण चचाश, ज्ञानविशक प्रश्नोत्तरी, शििाप्रि खेलों आदि द्वारा व्यवहाररक जीवन में भी उन्नतत करती हैं।

मदहला सवाांगीण पवकास शिपवर समय-समय पर एक अथवा िो दिवसीय मदहला सवाांगीण ववकास शिववरों का आयोजन

ककया जाता है। इनमें बहनों को हाँसते-खेलते शििाप्रि प्रसंगों के लाने, बच्चों को संस्कारवान बनाने तथा व्यवहार कुिल होकर घर-पररवार को उन्नत करने की सीख िी जाती है।

तजेक्स्वनी जीवन पवकास शिपवर पाश्चामय कल्चर की ओर किम बढा रही युवततयों, खासकर महाववद्यालयों की युवततयों

के समि इस अशभयान के अतंगशत प्रेजेंिेिन, वक्तव्य तथा योगाभ्यास के प्रमयि प्रयोगों के माध्यम से उन्हें छुपी ित्क्तयों को जागतृ करने की, ओजस्वी-तेजस्वी बनने की तथा तनावरदहत जीवन जीने की कंुत्जयााँ िी जाती हैं। साथ ही उन्हें भारतीय संस्कृतत की परम्पराओं से अवगत करा के उनके लाभ बताये जाते हैं।

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दिव्य शििु संस्कार अशभयान ककसी भी िेि का भववष्य वहााँ की संस्कारी बाल पीढी पर तनभशर करता है। वास्तव में

शििु में संस्कारों की नींव मााँ के गभश में ही पड़ जाती है। अतः गभश से ही शििु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उधचत पालन-पोषण की जानकारी िेने हेतु समय-समय पर 'दिव्य शििु संस्कार' सम्मेलनों का भी आयोजन ककया जाता है, त्जसमें अनुभवी वविषेज्ञों द्वारा मागशििशन ककया जाता है।

गभभिात रोको अशभयान गभशपात व शसजेररयन िडलीवरी के िषु्पररणामों को समाज तक पहुाँचाने तथा उनको रोकने

के शलए गभशपात रोको सेशमनार आयोत्जत ककये जाते हैं। इनमें अनुभवी डॉक्िरों तथा वविषेज्ञों द्वारा गभशपात से होने वाली हातनयों तथा उससे बचने के उपायों की जानकारी िी जाती है।

क िी उत्थान कायभक्रम कैिी भाइयों में उच्च चररत्र-तनमाशण के िुभ भाव से मदहला उमथान मंडल की बहनें कई

वषों से िेि के ववशभन्न कारागहृों में जाकर रिासूत्र बााँिती हैं। साथ ही भगवन्नाम कीतशन करवा के शमठाई, समसादहमय आदि भेंि भी िेती हैं।

गौ-रक्षा अशभयान पूज्य बापू जी की प्ररेणा एवं मागशििशन से गौ-हमया की कुपरम्परा को समातत करने के

शलए बहनें गायों का पूजन करती हैं और गौ-रिा हेतु रैली का आयोजन करती हैं। गौ-रिा के फ्लैक्स, बैनर लगाकर गौ-मदहमा के पच ेबााँि के समाज को जागतृ करती हैं तथा अपन-ेअपने िेत्र के मुख्य अधिकाररयों को गौ-रिा हेतु ज्ञापन िेती हैं। ये सेवाकायश गोपाष्िमी के दिन वविषे रूप से ककये जाते हैं।

अधिक जानकारी के शलए सम्पकश करें- मदहला उमथान मंडल, अखखल भारतीय श्री योग वेिान्त सेवा सशमतत,

संत श्री आिाराम जी आश्रम, साबरमती, अहमिाबाि – 380005

िरूभाषः 079-39877827, 9157306313

Website: http://www.mum.ashram.org Email: [email protected]

अनुक्रम

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आििभ माताओ ंकी महान संतानें महारानी मिालसा कहती हैं- 'एक बार जो मेरे उिर (गभश) से गुजरा वह यदि िसूरी स्त्री

के उिर में जाय, मुक्त न होकर िसूरा जन्म ले तो मेरे गभश-िारण को धिक्कार है !' इसी कथनानुसार उन्होंने अपनी सभी संतानों को ब्रह्मज्ञान करा दिया।

माता कंुती ने पांडवों को िमश पर दृढ रहते हुए िात्रिमश और प्रजा-पालन करने का उपिेि दिया था, त्जसके अनुसार चलकर वे अपने कतशव्यों के पालन में सिा सफल हुए।

छत्रपतत शिवाजी जब पालने में थे, तब से माता जीजाबाई उन्हें िूरवीरतापूणश गीत सुनाती थीं। त्जतनी ऊाँ ची त्स्थतत में बच्च ेकी मााँ होती है, बच्चा भी उतनी ही महानता के पथ पर आगे बढता है। जैसी माता वैसी संतान, जैसी भूशम वैसी उपज।

संत ववनोबा भाव ेकी मााँ बचपन से ही उनमें वेिांत के ऊाँ च ेसंस्कारों का शसचंन करते हुए कहा करती थीं- "िही भले अपने-आप जमता हुआ दिखता है परंतु वह त्जसकी सत्ता से जमता है, उस (परमाममा) का स्मरण कर हमें उसके प्रतत कृतज्ञता व्यक्त करनी चादहए।"

लाला लाजपत राय जी की मााँ स्नेह करने के साथ ही सिा सचते रहती थी कक 'कहीं मेरा बेिा गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहा है !' तयार और ममता के साथ शमली अनुिासन की कड़ी शििा ने लाला जी के जीवन को 'पंजाब केसरी' के रूप में चमका दिया।

हे भारत की माताओ ! आप भी अपने बच्चों में ऐसे दिव्य संस्कारों का शसचंन करो कक वे आगे चलकर स्वयं का, तुम्हारा और िेि का नाम अवश्य रोिन करें। उनके कमों में भत्क्तरस आयेगा तो तनवाशसतनक नारायण के सुख में उनको प्रततत्ष्ठत कर िेगा

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