हज़रत रामचंद्र जी महाराज, हज़रत कृष्ण...

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हज़रत रामचं जी महाराज, हज़रत कृष जी महाराज और वेद के समंध म अहमददया मुसम जमाअत के संापक हज़रत दमज़ा ाम अहमद कादयानी अैदहसाम के उपदेश संकलन कर मुहमद हमीद कौसर नज़िर दवर ए इलह शुमली ज़हंद (उर भरर) I

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  • हज़रत रामचंद्र जी महाराज, हज़रत कृष्ण जी महाराज और वेद

    के सम्ंध में अहमददया मुस्लिम जमाअत के सं््ापक हज़रत दमज़ा़ा ग़ुलिाम अहमद काददयानी

    अलिैदह्सलिाम के उपदेश

    संकलन कर्तामुहममद हमीद कौसर

    न्ज़िर द्वर ए इलल््ह शुम्ली ज़हंद (उत्तर भ्रर)

    I

  • नाम पु् तक : हिरर र्मचंद्र जी मह्र्ज, हिरर कृष्ण जी मह्र्ज और वदे के सम्धं में अहमज़दय् मसु्लम जम्अर के सं् ््पक हिरर ज़मि्ता ग़ुल्म अहमद क्ज़दय्नी अलैज़ह्सल्म के उपदेशसंकलिन कता़ा : मुहममद हमीद कौसर न्ज़िर द्वर ए इलल््ह शुम्ली ज़हंद (उत्तर भ्रर)अनुवादक : सययद मज़ुहयदु्ीन फ़रीद (एम ए ज़हनदी)टाइप, सैदटंग : नईम उल हक कुरैशी मुरब्ी ज़सलज़सल्सं्कर्ण : प्र्म सं्कर्ण (ज़हनदी) अप्रैल 2019 ई०संखया : 1000प्रकाशक : नि्रर नश्र-व-इश्अर, क्ज़दय्न, 143516 ज़िल्-गुरद्सपुर (पंज््)मुद्रक : फ़ज़ले उमर ज़प्रंज़िंग प्रेस, क्ज़दय्न, 143516 ज़िल्-गुरद्सपुर (पंज््)

    Compiler : Mohammad Hameed Kausar, Nazir Dawat-e-Ilallah North INDIATranslator : Syed Mohiuddin Farid (M.A. Hindi)Type Setting : Naeem Ul Haque Qureshi Murabbi SilsilaEdition : 1st Edition (Hindi) April 2019Quantity : 1000Publisher : Nazarat Nashr-o-Isha'at, Qadian, 143516 Distt. Gurdaspur, (Punjab)Printed at : Fazl-e-Umar Printing Press, Qadian 143516 Distt. Gurdaspur (Punjab)

    II

  • प्रकाशक की ओर सेसययदन् हिरर ख़लीफ़रुल मसीह ख़्ज़मस अययदहुल््ह रआल्

    की ओर से मस्लस-ए-शूर् भ्रर 2017 ई के ्वीकृर प्र्र्व के अंरगतार हिरर मसीह मौऊद अलैज़ह्सल्म की प्रज़सद्ध रचन्ओं में ज़हंदू धमता और उनके पेशव्ओं की प्रशंस् में प्र्रुर ज़कए गए आदेशों को एक ्््न पर एकज़रिर करके पुस्रक् के रूप में रैय्र करव् कर प्रक्ज़शर ज़कय् ज् रह् है।

    ''हज़रत रामचंद्र जी महाराज, हज़रत कृष्ण जी महाराज और वेद के सम्ंध में अहमददया जमाअत के सं््ापक हज़रत दमज़ा़ा ग़ुलिाम अहमद काददयानी अलिैदह्सलिाम के उपदेश" के शीरताक पर उदूता में यह पुस्रक् श्रीम्न मौल्न् मुहममद हमीद कौसर न्ज़िर द्वर ए इलल््ह शुम्ली ज़हंद (उत्तर भ्रर) ने पररश्रम से संकज़लर की है अल््ह रआल् उनको मह्न प्रज़रफल प्रद्न करे आमीन।

    मस्लस ए शूर् के प्र्र्व के अनुस्र इस पुस्रक् के प्रक्शन के पश््र ज़हंदु्र्न की ्््नीय भ्र्ओं में भी इसके अनुव्द प्रक्ज़शर ज़कए ज् रहे हैं। अल््ह रआल् प्रतयेक दृसटि से इस पुस्रक् को लोगों के ज़लए ल्भद्यक ्न्ए। आमीन

    न्ज़िर नश्र-व-इश्अर क्ज़दय्न

    III

  • शीऱाक संखया शीऱाक पृष्ठ

    1 प्र्कक्न 12 हिरर र्मचंद्र जी मह्र्ज और हिरर कृष्ण

    जी मह्र्ज 4

    3 श्री कृष्ण जी मह्र्ज क् धमता 104 श्री कृष्ण जी की गोज़पयों की व््रज़वकर् 135 वेद 156 श्री कृष्ण क् समरूप अ््तार कस्क अवर्र 20

    IV

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    बिस्मिल्लाबिर्रिमिलाबिर्रिीमिप्लाक्कथि

    एक बार हज़रत अबू ज़र रज़ज़ अल्ाहु अन्हु ने आंहज़रत सल्ल्ाहो अलैज़ह वसल्म से प्रशन ज़कया ज़क हे अल्ाह के रसूल सल्ल्ाहो अलैज़ह वसल्म! अब तक ज़कतने नबी (अवतार) संसार में आ चुके हैं? हुज़ूर सल्ल्ाहो अलैज़ह वसल्म ने फ़रमाया- एक लाख चौबीस हज़ार नबी इस संसार में पैदा हो चुके हैं।(तफ़सीरुल-क़ुआ्आन अलअज़ीम भाग प्रथम पृष्ठ 586 इमामुल जलील इसमाईल ज़बन कसीर अल कुर्शी अल दज़मशककी अल मुतवफ़फ़की 774 ज़हजरी तफ़सीर सूरह अन्निसा)अल्ाह तआला ने पज़वत्र क़ुआ्आन में फ़रमाया है :

    َو ۡن قََصۡصَنا َعلَۡیَک ّمَ ِمۡنُہۡ قَۡبِلَک ۡن ّمِ ُرُسًل َنا

    ۡاَۡرَسل لََقۡد َو

    (सूरह अल मु’ज़मन : 40/79) ۡن لَّۡم نَۡقُصۡص َعلَۡیَک ؕ ّمَِمۡنُہۡ

    अथा्आत : और ज़न:सन्देह हमने तुझसे पहले भी रसूल भेजे थे। उनमें से कुछ ऐसे थे ज़जनका वर्आन हमने तुझसे कर ज़दया है और कुछ उनमें से ऐसे थे ज़जनका हमने तुझसे वर्आन नहीं ज़कया।(सूरह फ़ाज़तर : 35/25) ٍۃ ِاّلَ َخَل ِفۡیَہا نَِذیٌۡر ﴿۲۵﴾ ۡن اُّمَ ّمِ ِاۡن َو अथा्आत : कोई उममत (क़ौम) ऐसी नहीं गुज़री ज़जसमें ख़ुदा ककी ओर से कोई सुधारक न आया हो।

    (अर्रअद : 13/8) ﴾۸﴿٪ ّوَ لُِکّلِ قَۡوٍم َہاٍد अथा्आत : प्रतयेक क़ौम के ज़लए एक पथ प्रदर््आक होता है।

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    समसत नज़बयों के आने का उद्ेशय अल्ाह तआला ने यह वर्आन ज़कया ज़क :

    اۡجَتِنُبوا َو َ الّلٰ اۡعُبُدوا اَِن ُسۡوًل ّرَ ٍۃ اُّمَ ُکّلِ ِفۡ بََعۡثَنا لََقۡد َو َعلَۡیِہ ۡت َحّقَ ۡن ّمَ

    ِمۡنُہۡ َو ُ الّلٰ َہَدی ۡن ّمَ فَِمۡنُہۡ ۚ اُغۡوَت الّطَ

    َعاِقَبُۃ َکاَن َکۡیَف ۡوا ُ

    فَانُۡظر َۡرِض ۡ

    ال ِف ۡوا ُۡ

    فَِسی ؕ لَٰلُ الّضَ(अन-नहल : 16/37) ﴾۳۷﴿ َ

    ِۡبی ُمَکّذِ

    ۡال

    अथा्आत : और ज़नन्चित रूप से हमने प्रतयेक क़ौम में कोई न कोई रसूल यह आदेर् देकर भेजा ज़क हे लोगो! तुम अल्ाह ककी उपासना करो और हद से बढ़ने वालों से दूर हो जाओ। (तफ़सीर सग़ीर) कुछ मुसलमान ऐसे भी हैं जो कृषर जी महाराज और रामचंद्र जी महाराज को अल्ाह तआला का नबी मानने के ज़लए तैयार नहीं है। उन्हें ज्ात होना चाज़हए ज़क अल्ाह तआला ने प्रतयेक क़ौम में अपने नबी और रसूल भेजे हैं। वह सवयं फ़रमाता है ज़क संसार में कोई क़ौम ऐसी नहीं गुज़री है ज़जसमें ख़ुदा के नबी न आए हों। अथा्आत प्रतयेक क़ौम में ख़ुदा के नबी, माग्आदर््आक और सुधारक पैदा होते रहे हैं। इस आयत के अनुसार सवीकार करना पड़ता है और वासतव मे भी यही है ज़क अल्ाह तआला ने जैसा ज़क रबबुल आलमीन (समसत संसार का रब) ककी ज़वर्ेषताओं के अंतग्आत प्रतयेक देर् के ज़नवाज़सयों का उनककी आवशयकता के अनुसार भौज़तक प्रज़र्क्षर (तज़ब्आयत) ज़कया उसी प्रकार उसने प्रतयेक देर् और क़ौम को आधयान्तमक प्रज़र्क्षर से भी लाभान्न्वत ज़कया। ताज़क ज़कसी क़ौम को ज़र्कायत लगाने का अवसर न ज़मले और वह यह न कह सके ज़क अल्ाह तआला ने अमुक क़ौम पर तो कृपा ककी परन्तु हम पर नहीं ककी। हज़रत

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    कृषर जी महाराज और रामचंद्र जी अवतारों के उसी ज़वश्ववयापी क्रम से समबंध रखते हैं जो ज़हंदुओं ककी ओर से अवतररत हुए। कयोंज़क लाखों हृदय उन महान वयन्तियों के प्रेम से भरे हुए हैं और वे आपको अवतार मानकर आपककी बातों को बड़े सममान और आसथा ककी दृन्टि से देखते हैं। अतः यह इसलाम ककी ज़र्क्षा के ज़वरुद्ध होगा यज़द हम दोनों अवतारों को ٍۃ ِاّلَ َخَل ِفۡیَہا نَِذیۡر और ّوَ لُِکّلِ قَۡوٍم َہاٍد ۡن اُّمَ ّمِ ِاۡن के अनुसारَو ख़ुदा तआला ककी ओर से माग्आ ज़दखाने वाला और डराने वाले नहीं ठहराएंगे और यह ज़वचार करेंगे ज़क हज़ारों वषषों से एक क़ौम को ख़ुदा तआला ने माग्आदर््आक (अवतार) के ज़बना रखा। वत्आमान युग में अल्ाह तआला ने जमाअत अहमज़दया के संसथापक हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद अलैज़हससलाम (1250 ज़हजरी 1835 ई०-1908 ई०) को (م

    َل) हकम (ज़नरा्आयक) और (َحک अदल (इंसाफ) करने (َعدَ

    वाला बना कर भेजा। आपने सपटि रूप में फ़रमाया ज़क हज़रत कृषर जी महाराज और हज़रत रामचंद्र जी महाराज अल्ाह तआला के पैग़ंबर (अवतार) थे और जब वेद उतरा था वह ख़ुदा ककी वारी थी। इसके पचिात वह अपनी मूल अवसथा पर सथाज़पत नहीं रह सका। हज़रत मसीह मौऊद अलैज़हससलाम ने हज़रत कृषर जी और रामचंद्र जी और वेद के बारे में अपनी ज़वज़भनि पुसतकों और प्रवचनों के संग्रह में जो कुछ फ़रमाया है उनमें से कुछ उद्धररे पाठकों के समक्ष प्रसतुत हैं।

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    िज़रत रलामिचंद्र जी मििलारलाज औरिज़रत ्कृष्ण जी मििलारलाज

    हज़रत मसीह मौऊद अलैज़हससलाम फ़रमाते हैं : (1) “यह भी समरर रहे ज़क मेरा यह धम्आ नहीं है ज़क इसलाम के अज़तररति समसत धम्आ झूठे हैं। मैं यह ज़वश्वास रखता हूँ ज़क वह ख़ुदा जो सृन्टि का ख़ुदा है वह सब पर नज़र रखता है। यह नहीं होता ज़क वह एक ही क़ौम ककी परवाह करे और दूसरों पर नज़र न डाले। हाँ यह सच है ज़क बादर्ाह के सफर ककी तरह कभी ज़कसी क़ौम पर वह समय आ जाता है और कभी ज़कसी क़ौम पर। मैं ज़कसी के ज़लए नहीं कहता। ख़ुदा तआला ने मुझ इस प्रकार ही प्रकट ज़कया है ज़क राजा रामचंद्र और कृषर जी आज़द भी ख़ुदा के सच्े बंदे थे और उससे सच्ा समबंध रखते थे। मैं उस वयन्ति से ज़वमुख हूँ जो उनककी ज़नंदा या अपमान करता है उसककी उदाहरर कुएं के मेंढ़क के भांज़त है जो समुद्र ककी ज़वर्ालता से अवगत नहीं है। जहां तक उन लोगों ककी सही जीवज़नयाँ ज्ात होती हैं, उनमें पाया जाता है ज़क, उन लोगों ने ख़ुदा तआला के रासते में तपसयाएं कीं और प्रयतन ज़कया ज़क उस माग्आ को पाएं जो ख़ुदा तआला तक पहुंचने का वासतज़वक माग्आ है। अतः ज़जस वयन्ति का यह धम्आ हो ज़क वे सच्े न थे वह क़ुआ्आन र्रीफ़ के ज़वरुद्ध कहता है कयोंज़क इसमें फ़रमाया है :-

    (सूरह फ़ाज़तर : 35/25)﴾۲۵﴿ ٍۃ ِاّلَ َخَل ِفۡیَہا نَِذیٌۡر ۡن اُّمَ ّمِ ِاۡن َو अथा्आत : कोई ऐसी क़ौम नहीं ज़जसमें ख़ुदा तआला का कोई अवतार न आया हो।" (मलफ़ूज़ात भाग 4 पृष्ठ 163) (2) “और हम लोग दूसरी क़ौमों के अवतारों के समबंध में कदाज़प ग़लत र्बदों का प्रयोग नहीं करते। बन््क हम यही ज़वश्वास रखते हैं ज़क

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    संसार में ज़वज़भनि क़ौमों के ज़लए ज़जतने अवतार आए हैं और करोड़ों लोगों ने उनको मान ज़लया है और संसार के ज़कसी भाग में उनका प्रेम और प्रज़तष्ठा उतपनि हो गई है और एक लंबा समय उस प्रेम और ज़वश्वास पर वयतीत हो गया है तो बस यही एक प्रमार उनककी सच्ाई के ज़लए पया्आप्त है। कयोंज़क यज़द वे ख़ुदा ककी ओर से न होते तो यह मान्यता करोड़ों लोगों के हृदय तक नहीं फैलती ख़ुदा अपने मान्य पुरुषों का सममान दूसरों को कदाज़प नहीं देता और यज़द कोई झूठा उनककी कुसशी पर बैठना चाहे तो ज्द तबाह होता है और नटि ज़कया जाता है।"

    (पैग़ाम-ए-सुलह, रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 452- 453) (3) "अतः इस कसौटी ककी दृन्टि से ज़मीन पर जीज़वत धम्आ केवल इसलाम है यद्यज़प हम इसके बावजूद नहीं कह सकत ेहैं ज़क ज़हंदओुं के नबी और अवतार झूठे और कपटी थे (न-ऊज़ुज़बल्ाह) और न हम उनको गाज़लयां दते ेहैं। बन््क ख़ुदा न ेहमें यह ज़र्क्षा दी है ज़क कोई आबाद गांव और दरे् नहीं ज़जसमें उसन ेकोई अवतार न भेजा हो। जैसा ज़क वह सवयं फ़रमाता है:

    ٍۃ ِاّلَ َخَل ِفۡیَہا نَِذیٌۡر ﴿۲۵﴾ ۡن اُّمَ ّمِ ِاۡن َو अथा्आत कोई ऐसी क़ौम नहीं ज़जसमें ख़ुदा तआला का कोई अवतार न आया हो।" (4) "ज़हंदुओं में जो एक नबी गुज़रा है ज़जसका नाम कृषर था वह भी इस में सन्ममज़लत है। खेद ज़क जैसे दाऊद नबी पर दुटि लोगों ने वयज़भचार और दुराचार के आरोप लगाए। ऐसे ही आरोप कृषर पर भी लगाए गए हैं और जैसा ज़क दाऊद ख़ुदा तआला का पहलवान और बड़ा बहादुर था और ख़ुदा उससे पयार करता था। वैसा ही आय्आवत्आ में कृषर था अतः यह कहन उज़चत है ज़क आय्आवत्आ का दाऊद कृषर ही था और

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    इस्ाईली नज़बयों का कृषर दाऊद ही था। और यह ज़ब्कुल सही है ज़क हम कहें ज़क दाऊद कृषर था या कृषर दाऊद था। कयोंज़क युग अपने आप को दोहराता है। और पज़वत्र हो या दुटि हो बार-बार संसार में उनके उदाहरर पैदा होते रहते हैं।"

    (बराहीन अहमज़दया भाग पंचम, रूहानी ख़ज़ायन भाग 21 पृष्ठ 117) (5) "प्रतयेक क़ौम में डराने वाला (अवतार) आया है जैसे क़ुआ्आन से प्रमाज़रत है इसीज़लए रामचंद्र जी और कृषर जी आज़द अपने युग के नबी होंगे। " (मलफ़ूज़ात भाग 3 पृष्ठ 142) (6) "एक बार आँहज़रत सल्ल्ाहो अलैज़ह वसल्म से अन्य देर्ो के अवतारों के समबंध में प्रशन ज़कया गया तो आपने यही फ़रमाया ज़क प्रतयेक देर् में ख़ुदा तआला के अवतार गुज़रे हैं और फ़रमाया ज़क अथा्आत ज़हन्द में एक नबी اکن یف الھند نبیا اسود اللون امسہ اکھناगुज़रा है जो काले रंग का था और उसका नाम काज़हन था। अथा्आत कन्हैया ज़जसको कृषर कहते हैं।"

    (चशमा-ए-मा’ररफ़त, रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 382) (7) "एक प्रज़तन्ष्ठत अवतार जो इस देर् और बंगाल में एक बड़े प्रज़तष्ठा और सममान के साथ माने जाते हैं ज़जनका नाम श्ी कृषर है। वह अपने मु्हम (ख़ुदा से वाता्आलाप का सौभागय प्राप्त) होने का दावा करते हैं और उनके अनुयायी न केवल उनको मु्हम अज़पतु परमेश्वर करके मानते हैं। परन्तु इसमें संदेह नहीं ज़क श्ी कृषर अपने समय के नबी और अवतार थे और ख़ुदा उनसे वात्आआलाप करता था।"

    (पैग़ाम-ए-सुलह, रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 445) (8) "सपटि रहे ज़क ख़ुदा तआला न ेकशफ़की अवसथा में कई बार

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    मुझे इस बात पर सूचन दी है ज़क आय्आ क़ौम में कृषर नाम का एक वयन्ति जो गुज़रा है वह ख़ुदा के प्रज़तन्ष्ठत और अपन ेसमय के नज़बयों में स ेथा और ज़हंदओुं में अवतार का र्बद वासतव में नबी के ही अथ्आ में हैं।(हाज़र्या दर हाज़र्या तहुफ़ा गोलड़ज़वया, रूहानी ख़ज़ायन भाग 17 पषृ्ठ 317) (9) "अब सपटि हो ज़क राजा कृषर, जैसा ज़क मझु पर प्रकट ज़कया गया है वासतव में एक ऐसा पूर्आ वयन्ति था ज़जसका उदाहरर ज़हंदओुं के ज़कसी ऋज़ष और अवतार में नहीं पाया जाता। और अपन ेसमय का अवतार अथा्आत नबी था ज़जस पर ख़ुदा ककी ओर से रूहुल क़ुदसु (पज़वत्र आतमा) उतरती थी। वह ख़ुदा ककी ओर स े ज़वजय प्राप्त और भागयर्ाली था। आय्आवत्आ ककी धरती को पाप स ेसाफ़ ज़कया। वह अपन ेयुग का नबी था ज़जसककी ज़र्क्षा को पीछे स ेबहुत बातों में ज़बगाड़ ज़दया गया। वह ख़ुदा के प्रमे से पूर्आ था और नकेकी स ेदोसती और बरुाई स ेदशुमनी रखता था। ख़ुदा का वादा था ज़क अज़ंतम युग में उसके समरूप अथा्आत अवतार पदैा करे। अतः यह वादा मरेे आन ेसे परूा हुआ।" (लके्चर ज़सयालकोट, रूहानी ख़ज़ायन भाग 20 पषृ्ठ 228) (10) "यह बात सपटि है ज़क ज़नरंतरता एक ऐसी चीज़ है ज़क यज़द अन्य क़ौमों के इज़तहास ककी दृन्टि से भी पाया जाए तो तब भी हमें सवीकार करना ही पड़ता है जैसा ज़क ज़हंदुओं के प्रज़तन्ष्ठत रामचंद्र और कृषरा जी का अन्सततव ज़नरंतरता के द्ारा ही हमने सवीकार ज़कया है। यद्यज़प ऐज़तहाज़सक घटनओ ककी जांच पड़ताल में ज़हंदू लोग बहुत कच्े हैं। परन्तु इतनी ज़नरंतरता के बावजूद जो उनके ज़नरंतर लेखों से पाया जाता है कदाज़प यह क्पना भी नहीं ककी जा सकती ज़क राजा रामचंद्र और राजा कृषर यह सब मनगढ़त ही नाम हैं।" (इज़ाला औहाम, रूहानी ख़ज़ायन भाग 3 पृष्ठ 399)

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    (11) "और यह तो सच है ज़क राजा रामचंद्र और राजा कृषर वासतव में परमेश्वर नहीं थे। परन्तु इस में कया संदेह है ज़क वे दोनों महापुरुष ख़ुदा तक पहुंचे हुए और अवतार थे। ख़ुदा का नूरानी प्रकार् उन पर उतरता था। इसज़लए वह अवतार कहलाएं।"(सनातन धम्आ, रूहानी ख़ज़ायन भाग 19 पृष्ठ 475, हाज़र्या) (12) "हज़रत मूसा अलैज़हससलाम और हज़रत ईसा अलैज़हससलाम और दूसरे नबी सब के सब पज़वत्र, प्रज़तन्ष्ठत और ख़ुदा के चुने हुए थे। ऐसा ही ख़ुदा ने ज़जन महान वयन्तियों के द्ारा आया्आवत्आ में पज़वत्र ज़र्क्षाएं उतारीं और दूसरे बाद में आने वाले जो आयषों के पज़वत्र महापुरुष थे जैसा ज़क राजा रामचंद्र और कृषर यह सब के सब पज़वत्र लोग थे और उनमें से थे ज़जन पर ख़ुदा ककी कृपा होती है।

    (रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 383) (13) "हमें खेद है ज़क आय्आ साज़हबान भी पदा्आ न करने पर बल देते हैं और पज़वत्र क़ुआ्आन के आदेर् का ज़वरोध चाहते हैं जब ज़क इसलाम का यह बड़ा उपकार ज़हंदुओं पर है ज़क उसने उनको सभयता ज़सखलाई और उसका ज्ान ऐसा है ज़जस से उपद्रवों का दरवाज़ा बंद हो जाता है कहावत प्रज़सद्ध है

    خر بستہ بہ گرچہ دزد آشنا است (अथा्आत : गधा यज़द चोरी के काम से पररज़चत है तो उसे बांध कर रखना उज़चत है।) यही अवसथा मज़हलाओं और पुरुषों के समबंध ककी है ज़क यद्यज़प कुछ ही कयों न हो परन्तु ज़फर भी कुछ सवभाज़वक आवेग और इचछाएं इस प्रकार ककी होती हैं ज़क जब उनको थोड़ी सी प्रेररा हुई तो तुरंत न्याय

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    ककी सीमा से इधर उधर हो गए। इसज़लए आवशयक है ज़क मज़हलाओं और पुरुष के समबंध में पूर्आ आज़ादी इतयाज़द में कदाज़प हसतक्षेप न ज़कया जाए। थोड़ा अपने ज़दलों पर धयान दो ज़क कया तुमहारे ज़दल रामचंद्र और कृषर आज़द ककी भांज़त पज़वत्र हो गए हैं? ज़फर जब वह पज़वत्र ज़दल तुमको प्राप्त नहीं हुआ तो पदा्आ न करने को प्रचज़लत करके बकररयों को र्ेरों के आगे कयों रखते हो।" (मलफ़ूज़ात भाग 4 पृष्ठ 105)

    श्ी ्कृष्ण जी मििलारलाज ्कला धमि्म हज़रत मसीह मौऊद अलैज़हससलाम से ज़दनंक 5 माच्आ 1908 ई० को मौलवी अबू रहमत साज़हब ने कहा ज़क हुज़ूर कृषर जी महाराज का धम्आ जैसा ज़क सवयं उनके र्बदों से ज्ात होता है उनके युग के साधारर ज़हंदू धम्आ के लोगों से अलग था? हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने फ़रमाया : यह ज़वश्वस्ीय और सही बात है ज़क महापरुुषों ककी ज़र्क्षा पर अज़धक समय वयतीत होन ेपर बाद के लोग उनककी ज़र्क्षाओ को भूल जात ेहैं और उनककी सच्ी ज़र्क्षाओं में बहुत कुछ अनज़ुचत पररवत्आन कर ज़लया करत ेहैं। और समय के वयतीत हो जान ेस ेउनककी असली ज़र्क्षा पर सैंकड़ों पददे पड़ जात ेहैं और वासतज़वकता दुज़नया ककी नज़रों स ेछुप जाती है। मलू बात यही सच है ज़क उनका धम्आ इस समय के ज़हंद ू धम्आ के मानने वाल े लोगों से ज़ब्कुल ज़भनि और एकेश्वरवाद ककी सच्ी ज़र्क्षा पर आधाररत था। हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने इस सथान पर अपने दो इ्हामों (ख़ुदा ककी वाज़रयों) का वर्आन ज़कया। प्रथम यह है ज़क :

    “िे ्कृष्णला रुद्र गोपलाल तेरी मिबिमिला गीतला मिें बलखी गई िै”

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    और दूसरा इ्हाम यह बयान फ़रमाया ज़क :एक बार यह इ्हाम हुआ था ज़क “आर्यों ्कला िलादशलाि आर्ला।"

    एक और सवपन हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने वर्आन फ़रमाया ज़क : एक बार हमने कृषर जी को देखा ज़क वह काले रंग के थे और पतली नाक चौड़े माथे वाले हैं। कृषर जी ने उठकर अपनी नाक हमारी नाक से और अपना माथा हमारे माथे से ज़मला कर जोड़ ज़दया। एक और घटना इसी ज़वषय से संबंज़धत हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने इस प्रकार वर्आन ज़कया ज़क अवतारों में से एक कशफ़की अवसथा में एक बार अयोधया में पहुंचे। वहां पहुंचकर मन्सजद में लेट गए। देखते कया हैं ज़क कृषर जी आए हैं और सात रुपए उनको भेंट के रूप में ज़दए हैं ज़क हमारी और से ज़नमंत्रर के रूप में सवीकार ज़कये जाएं। कयोंज़क वह अल्ाह के वली (महातमा) मुसलमान थे उन्होंने कहा ज़क तुम लोग काज़फ़र हो। हम तुमहारा माल नहीं खाते। इस पर कृषर जी ने फ़रमाया ज़क कया आप वत्आमान ज़हंदुओं से हमारी हालत और ईमान का अनुमान लगाते हैं। हम उनमें से हरज़गज़ हरज़गज़ नहीं हैं। बन््क हमारा धम्आ एकेश्वरवाद है और हम आप लोगों के ज़ब्कुल ज़नकट हैं। अन्यथा इसके इबने अरबी अपनी पुसतक में ज़लखते हैं ज़क-

    کان ف الہند نیب اسود اللون اسمہ کاہن अथा्आत ज़हंदुसतान में एक अवतार गुज़रा है ज़जसका रंग काला था और नाम उसका काज़हन था। बाहरवीं सदी के मुजन्द्द सरज़हंदी साहब फ़रमाते हैं ज़क ज़हंदुसतान में कुछ क़बरें ऐसी हैं ज़जनको मैं पहचानता हूँ ज़क यह नज़बयों ककी क़बरें हैं।

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    इन सब घटनओं के सारांर् और प्रमारों से और अन्यथा पज़वत्र क़ुआ्आन से सपटि रूप में प्रमाज़रत होता है ज़क ज़हंदुसतान में भी नबी गुज़रे हैं। इसीज़लए पज़वत्र क़ुआ्आन में आया है ज़क-(सूरह फ़ाज़तर : 35/25) ٍۃ ِاّلَ َخَل ِفۡیَہا نَِذیٌۡر ﴿۲۵﴾ ۡن اُّمَ ّمِ ِاۡن َو

    और हज़रत कृषर भी उन्हीं अवतारों में से एक थे जो ख़ुदा तआला ककी ओर से आदेज़र्त होकर अल्ाह तआला के समसत लोगों के पथ प्रदर््आक और एकेश्वरवाद को सथाज़पत करने के ज़लए अल्ाह तआला ककी ओर से आए। इससे सपटि ज्ात होता है ज़क प्रतयेक क़ौम में अवतार आए हैं। यह बात अलग है ज़क उनके नाम हमें ज्ात न हों। ۡن لَّۡم نَۡقُصۡص َعلَۡیَک ؕ ّمَ

    ۡن قََصۡصَنا َعلَۡیَک َو ِمۡنُہۡ ّمَ ِمۡنُہۡ

    (सूरह अलमु'ज़मन : 40/79) लबंा समय वयतीत होने के कारर लोग उन ज़र्क्षाओं को भूलकर कुछ और का और ही उनककी ओर संलगन करन ेलग जात ेहैं। (म्फ़ूज़ात हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह मौऊद व महदी मा’हद अलैज़हससलाम भाग 5 पृष्ठ 458)

    श्ी ्कृष्ण जी ्की गोबपर्ों ्की वला्तबव्कतला मौलवी अबू रहमत साहब ने कहा ज़क हुज़ूर! कृषर के अथ्आ उनके

    र्बदकोर् के अनुसार हैं- वह प्रकार् जो धीरे-धीरे संसार को प्रकाज़र्त करता है। अज्ानता के अंधकार को दूर करने वाले का नाम कृषर है। हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने फ़रमाया ज़क- उनके ज़वषय में जो गोज़पयों ककी प्रचुरता प्रज़सद्ध है वसतुतः हमारा ज़वचार यह है ज़क उममत (क़ौम) ककी उपमा सत्री से भी दी जाती है। अतः पज़वत्र क़ुआ्आन से भी

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    इसका उदाहरर ज़मलता है जैसा ज़क फ़रमाता है-اََت ِفۡرَعۡوَن ۘ

    َیَۡن ٰاَمُنوا اۡمر ِ َمَثًل لِّّلَ ُ

    َب الّلَٰ

    َو َضر(सूरह अत्तहरीम 66/12) यह एक अतयंत गूढ़ और रहससयपूर्आ रुपक होता है। उममत (क़ौम) में प्रज़तभा ककी क्षमता होती है और नबी और उममत (क़ौम) के अधयातम ज्ान और दानर्ीलता के बड़े बड़े स्ोत फूटते हैं और नबी और उममत (क़ौम) के सच्े समबंध से वे पररराम पैदा होते हैं ज़जनसे ख़ुदा को दानर्ीलता और दया ककी ओर आकष्आर होता है। अतः कृषर और गोज़पयों ककी कहाज़नयों के रहसय में हमारे ज़वचार में यही भेद छुपा है। मौलवी अबू रहमत साज़हब ने बताया ज़क गोज़पयों का अथ्आ इस प्रकार भी है ज़क गो कहते हैं पृथवी को और पी पालनहार को। अथा्आत कृषर जी के सच्े अनुयाई ऐसे लोग थे जो सदाचारी और लोगों का पालन पोषर करने वाले थे। हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने फ़रमाया ज़क इसमें भी कोई दोष नहीं, कयोंज़क मनुषय को पृथवी से भी समानता दी गई है जैसा ज़क पज़वत्र क़ुआ्आन में वर्आन है ज़क-

    ـا لَُکـُم ّنَ َۡرَض بَۡعـَد َمۡوِتَہـا ؕ قَـۡد بَّیَۡ

    َ یُـۡیِ الا اَّنَ الّلٰ

    ِاۡعلَُمـۡوۤ(अल-हदीद : 57/18) ٰیِت لََعّلَُکۡم تَۡعِقلُۡوَن ﴿۱۸﴾ ٰ

    ۡال

    पृथवी को जीज़वत करने से तातपय्आ पृथवी पर रहने वाले लोगों से है। ज़फर मौलवी अबू रहमत साज़हब ने बताया ज़क यह भी समभव है ज़क कृषर जी ने अपनी ज़र्क्षा को न्सत्रयों के द्ारा ही फैलाया हो। कयोंज़क उनके पुरुष तो साधाररतः खेती के कामों में जंगलों, वनों में रहते थे और उनको धम्आ के प्रचार के ज़लए कम समय ज़मलता था। न्सत्रयां ही यह काय्आ करती होंगी।

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    हज़रत अक़दस अलैज़हससलाम ने फ़रमाया ज़क हमें एक बार ज़वचार आया ज़क कृषर जी को दाऊद के साथ पूर्आ समानता ज्ात होती है। कयोंज़क राग, रंग, नृतय, न्सत्रयों ककी भीड़ और बहादुरी में ख़ुदा जाने कया बात है। (म्फ़ूज़ात हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह मौऊद-व-महदी मा’हद अलैज़हससलाम भाग 5 पृष्ठ 461)

    वेद (1) "हमारा पूर्आ ज़वश्वास है ज़क वेद गढ़ा हुआ नहीं है। मनुषय के गढ़े हुए में यह र्न्ति नहीं होती ज़क करोड़ों लोगों को अपनी ओर खींच ले।" (पैग़ाम-ए-सुलह, रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 453) (2) लज़ेकन ज़फर भी सभंव और ज्ानगमय है ज़क इस ज़कताब में पररवत्आन ज़कया गया हो और ज़कसी युग में यह सही हो और ख़ुदा ककी ओर से हो। ज़फर अज्ाज़नयों के हसतके्षप और पररवत्आन स े ज़बगड़ गई हो और वे श्ज़ुतयां उस में से ज़नकाल दी गई हों ज़जनमें यह वर्आन था ज़क तमु सरूज, चादँ, हवा, आग, पानी, आकार् और ज़मट्ी आज़द ककी पजूा मत करो। यद्यज़प रद्ोबदल और पररवत्आन स ेयह पसुतक ख़तरनक और हाज़नकारक हो गई लेज़कन ज़कसी समय में वयथ्आ न थी। जो वयन्ति ज़हंदओुं के इज़तहास से पररज़चत है वह खबू जानता है ज़क वदे पर बडे़-बडे़ बदलाव आए हैं और एक समय में वेदों को ज़वरोज़धयों न ेआग में जला ज़दया था और लंबे समय तक वे ऐसे लोगों के पास रहे जो पचंततव (धरती, आकार्, हवा, पानी, आग) और मूज़त्आपूजा के समथ्आक थे।

    (नसीम दावत, रूहानी ख़ज़ायन भाग 19 पषृ्ठ 405)

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    (3) वेद ककी दृन्टि से तो सवपनों और इ्हामों पर मुहर लग गई है। (हक़कीक़तुल-वह्ी पृष्ठ 5, रूहानी ख़ज़ायन भाग 22)بَٰل (4) قَالُوا بُِّکْم َ

    ِبر पृष्ठ 229 (अनुवाद : कया मैं أَلَْسُت तुमहारा रबब नहीं हूँ? उन्होंने कहा कयों नहीं) रुहों ककी र्न्तियां ज़जनमें ख़ुदा तआला का प्रेम पैदा हुआ है सवयं अपनी गवाही दे रही हैं जो वे ख़ुदा के हाथ से पैदा हुई हैं। यज़द यह प्रशन उतपनि हो ज़क हम ज़कस प्रकार पज़वत्र क़ुआ्आन पर ईमान लाए? कयोंज़क दोनों ज़र्क्षाओं के मधय ज़वरोधाभास है इसका उत्तर यह है ज़क कोई ज़वरोधाभास नहीं। वेद ककी श्ुज़तयों ककी हज़ारों प्रकार ककी वयाखयाएं ककी गई हैं और उन सब के अज़तररति एक वयाखया वह भी है जो क़ुआ्आन के अनुसार है। (याद्ाशतें पृष्ठ 420 रूहानी ख़ज़ायन भाग 21) (5) इसी आधार पर हम वेद को भी ख़ुदा ककी ओर से मानते हैं और उसके ऋज़षयों को महान और पज़वत्र समझते हैं यद्यज़प हम देखते हैं ज़क वेद ककी ज़र्क्षा पूर्आ रूप से ज़कसी क़ौम को एकेश्वरवादी नहीं बना सककी और न बना सकती थी। और जो लोग इस देर् में मूज़त्आपूजक अथवा अन्गनपूजक ........... पाए जाते हैं। वे समसत लोग अपने धम्आ को वेद ही ककी ओर संबंज़धत करते हैं। (पैग़ाम-ए-सुलह, रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 453-454) (6) यह अवशय समरर रखो ज़क वह्ी और इ्हाम के बारे में ख़ुदा तआला ने पज़वत्र क़ुआ्आन में अतयज़धक सथानों पर वचन ज़दए हैं और यह इसलाम ही से ज़वज़र्टि है। अन्यथा ईसाइयों के ज़नकट भी मोहर लग चुककी है। वे अब कोई वयन्ति ऐसा नहीं बता सकते जो अल्ाह तआला

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    के संबोधन और संवाद से सममाज़नत हो। और वेदों पर तो पहले ही मोहर लगी हुई है। उनका धम्आ ही यही है ज़क वेदो में इ्हाम के पचिात ज़फर सदा के ज़लए यह ज़सलज़सलः (परमपरा) बंद हो गया। मनो ख़ुदा तआला पहले कभी बोलता था परन्तु अब गूंगा है। मैं कहता हूँ ज़क यज़द वह इस समय संवाद नहीं करता और कोई उसके उपकार से लाभान्न्वत नहीं तो इसका कया प्रमार है ज़क वह पहले बोलता था और या अब वह सुनता और देखता भी है। (मलफ़ूज़ात हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह मौऊद-व-महदी मा’हद अलैज़हससलाम भाग 4 पृष्ठ 413-414) (7) हमारी यही ज़वश्वास है ज़क यद्यज़प वत्आमान ज़र्क्षा वेद ककी एक गुमराह करने वाली ज़र्क्षा है। परन्तु ज़कसी समय में वह उन वयथ्आ ककी ज़र्क्षाओं से पज़वत्र होगा। (रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 372) (8) इसके अज़तररति र्ांज़तज़प्रयों के ज़लए यह एक प्रसनिता का सथान है ज़क ज़जतनी इसलाम में ज़र्क्षा पाई जाती है वह ज़र्क्षा वैज़दक ज़र्क्षा ककी ज़कसी न ज़कसी डाल में मौजूद है। उदाहररतः यद्यज़प नवोज़दत धम्आ आय्आ समाज का यह ज़सद्धांत रखता है ज़क वेदों के पचिात ख़ुदा के इ्हाम पर मोहर लग गई है परन्तु जो ज़हन्दू धम्आ में समय-समय पर अवतार पैदा होते रहे हैं ज़जन के मानने वाले करोड़ों लोग इसी देर् में पाए जाते हैं उन्होंने उस मोहर को अपने इ्हाम के दावे से तोड़ ज़दया है। जैसा ज़क एक प्रज़तन्ष्ठत अवतार जो इसी देर् और बंगाल में बड़ी प्रज़तष्ठा और सममान के साथ माने जाते हैं, ज़जनका नाम श्ी कृषर है, वह अपने ख़ुदा से संवाद प्रान्प्त का दावा करते हैं और उनके अनुयायी न केवल उनको ख़ुदा, बन््क परमेश्वर करके मानते हैं परन्तु इस में संदेह नहीं ज़क श्ी

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    कृषर अपने समय के नबी और अवतार थे और ख़ुदा उन से वाता्आलाप करता था। (पैग़ाम-ए-सुलह, रूहानी ख़ज़ायन भाग 23 पृष्ठ 445) (9) जो वत्आमान में ज़हंदू साज़हबों के हाथ में वेद हैं ज़जनको वे ऋगवेद और यजुवदेद और साम वेद और अथव्आ वेद से नाज़मत करते हैं और ऋच और यजुस और सामन और अथव्आन भी बोलते हैं। उनका ठीक-ठीक हाल कुछ ज्ात नहीं होता ज़क वे ज़कन महापुरुषों पर अवतररत हुए थे। कोई कहता है ज़क अन्गन और वायु और सूरज को ये इ्हाम हुआ था जो पूर्आतः ज़नरथ्आक बात है। और ज़कसी का यह दावा है ज़क ब्रह्ा के चार मुख से यह चारों वेद ज़नकले थे। और ज़कसी का यह ज़वचार है ज़क यह अलग-अलग ऋज़षयों के अपने ही वचन हैं। अब इन बातों में यहां तक संदेह है ज़क कुछ पता नहीं ज़मलता ज़क इन वयन्तियों का वसतुतः कुछ अन्सततव भी था या केवल का्पज़नक नाम हैं। और वेद पर दृन्टि डालने से तीसरी राय सही ज्ात होती है कयोंज़क अब भी वेद के अलग-अलग मंत्रों पर अलग-अलग ऋज़षयों के नाम ज़लखे हुए पाए जाते हैं। और अथव्आ वेद के समबंध में तो अज़धकतर ज़वद्ान पंज़डतो ककी इसी पर सहमज़त है ज़क वह एक मनगढ़ंत वेद अथवा ब्राह्र पुसतक है, जो पीछे से वेदों के साथ ज़मलाया गया है और यह राय सच्ी भी ज्ात होती है। (रूहानी ख़ज़ायन भाग 1 पृष्ठ 98-99 हाज़र्या संखया 8) (10) पज़वत्र क़ुआ्आन ने जो कहा है ِاِع -अल) اُِجۡیُب دَۡعَوَۃ ادّلَबक़रः 2/187) इससे सपटि ज्ात होता है ज़क दुआ का उत्तर ज़मलता है। अतः वेद ककी दुआएं कोई फलदायक नहीं हैं ज़जनका कोई उत्तर नहीं ज़मलता बन््क समसत दुआएं उलटी ही पड़ती हैं।

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    (मलफ़ूज़ात हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह मौऊद-व-महदी मा’हद अलैज़हससलाम भाग 2 पृष्ठ 294) (11) ईसाईयों ककी ही बात नहीं है बन््क उन से पूव्आ कई असहाय वयन्ति ख़ुदा ठहरा ज़दए गए। कोई कहता है रामचंद्र ख़ुदा है, कोई कहता है नहीं कृषर ककी ख़ुदाई उससे र्न्तिर्ाली है। इसी प्रकार कोई बुद्ध को, कोई ज़कसी को, कोई ज़कसी को ख़ुदा ठहराता है। इसी प्रकार अंज़तम युग के उन भोले भाले लोगों ने भी पहले (अनेकेश्वरवाज़दयों) का अनुसरर करके मररयम के पुत्र को भी ख़ुदा और ख़ुदा का पुत्र ठहरा ज़लया.............. ऐसा ही अज़धकतर ज़हंदू और आय्आ भी इन सच्ाइयों से ज़वमुख हैं। कयोंज़क उनमें से जो आय्आ हैं वे तो ख़ुदा तआला को स्टिा ही नहीं समझते और अपनी रूहों का रबब उसको नहीं ठहराते। और जो उनमें से मूज़त्आपूजक हैं वे पालन पोषर ककी ज़वर्ेषता को उस समसत लोकों के रबब से ज़वज़र्टि नहीं समझते और 33 करोड़ देवताओं को पालन-पोषर के कारोबार में ख़ुदा तआला का भागीदार ठहराते हैं और उनसे मनितें मांगते हैं। और यह दोनों पक्ष ख़ुदा तआला ककी दया के भी इंकारी हैं। और अपने वेद ककी दृन्टि से यह आसथा रखते हैं ज़क दया ककी ज़वर्ेषता कदाज़प ख़ुदा तआला में नहीं पाई जाती। और जो कुछ संसार के ज़लए ख़ुदा ने बनाया है यह सवयं संसार के पज़वत्र कायषों के कारर ख़ुदा को बनन पड़ा। अन्यथा परमेश्वर सवयं अपनी इचछा से नेककी नहीं कर सकता और न कभी ककी। इसी प्रकार ख़ुदा तआला को वयापक दयाज़नज़ध भी नहीं समझते कयोंज़क उन लोगों ककी आसथा है ज़क कोई पापी चाहे ज़कतनी ही सचे् ज़दल से क्षमायाचना करे और चाहे वषषों तक क्षमायाचना करे और रो-रो कर ज़गड़ज़गड़ाये और पज़वत्र कायषों के

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    करने में वयसत रहे ख़ुदा उसके गुनाहों को जो उससे हो चुके हैं कदाज़प क्षमा नहीं करेगा जब तक वह कई लाख योज़नयों को भुगत कर अपन दणड न पा लें।(रूहानी ख़ज़ायन भाग 1 पृष्ठ 468-470, ब्राहीन अहमज़दया भाग चतुथ्आ र्ेष हाज़र्या संखया 11)

    श्ी ्कृष्ण ्कला समिरूप अथला्मत ्कस््क अवतलार

    हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह मौऊद-व-महदी मा’हद अलैज़हससलाम फ़रमाते हैं : (1) ज़जस पर ख़ुदा ककी ओर से रूहुल क़ुदुस (अथा्आत ज़जब्राईल) उतरता था वह ख़ुदा ककी ओर से ज़वजयी और प्रतापी था। ज़जसने आय्आवत्आ ककी धरती को पाप से साफ़ ज़कया वह अपने युग का सच्ा नबी था। ज़जसककी ज़र्क्षा को पीछे से बहुत बातों में ज़बगाड़ ज़दया गया वह ख़ुदा के प्रेम से पूर्आ था और नेककी से दोसती और बुराई से दुशमनी रखता था। ख़ुदा का वादा था ज़क अंज़तम युग में उसका प्रज़तरूप अथा्आत अवतार पैदा करे। अतः यह वादा मेरे आने से पूरा हुआ। मुझे इन सब इ्हामों के अज़तररति अपने समबंध में एक यह भी इ्हाम हुआ था ज़क ‘हे कृषर रुद्र गोपाल तेरी मज़हमा गीता में ज़लखी गई है’। इसज़लय मैं कृषर से प्रेम करता हूँ कयोंज़क मैं उसका द्योतक हूँ। और इस सथान पर एक और रहसय है ज़क जो ज़वर्ेषताएं कृषर ककी ओर मंसूब ककी गई हैं (अथा्आत पापों को नटि करने वाला, और ग़रीबों ककी सांतवन करने वाला, और उन को पालने वाला।) यही ज़वर्ेषताएं मसीह मौऊद ककी हैं। इसज़लए आधयान्तमकता ककी दृन्टि से

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    कृषर और मसीह मौऊद एक ही हैं।(लेक्चर ज़सयालकोट पृष्ठ 228-229, रूहानी ख़ज़ायन भाग 20)

    (2) और ज़हंदुओं ककी पुसतकों में एक भज़वषयवारी है और वह यह है ज़क अंज़तम युग में एक अवतार आएगा जो कृषर ककी ज़वर्ेषताओं पर होगा और उस का प्रज़तरूप होगा। और मेरे पर प्रकट ज़कया गया है ज़क वह मैं हूँ। कृषर ककी दो ज़वर्ेषताएं हैं, एक रुद्र अथा्आत दररंदों और सूअरों का वध करने वाला अथा्आत प्रमार और ज़नर्ानों से, दूसरा गोपाल अथा्आत गायों को पालने वाला अथा्आत अपने हृदय से सदाचाररयों ककी मदद करने वाला, और यह दोनों ज़वर्ेषताएं मसीह मौऊद ककी ज़वर्ेषताएं हैं। और यही दोनों ज़वर्ेषताएं ख़ुदा तआला ने मुझे प्रदान ककी हैं। (हाज़र्ए का हाज़र्या तोहफ़ा गोलड़ज़वया, रूहानी ख़ज़ायन भाग 17 पषृ्ठ 317) (3) मुझे और भी नाम ज़दए गए हैं और हर एक नबी का मुझे नाम ज़दया गया है। यद्यज़प जो ज़हन्द में कृषर नाम का एक अवतार गुज़रा है ज़जसको रुद्र गोपाल भी कहते हैं। (अथा्आत नर् करने वाला और पालन पोषर करने वाला) उसका नाम भी मुझे ज़दया गया है। अतः जैसा ज़क आय्आ क़ौम के लोग कृषर के प्रकटन का इन ज़दनों में प्रतीक्षा करते हैं वह कृषर मैं ही हूँ। और यह दावा केवल मेरी ओर से नहीं है बन््क ख़ुदा तआला ने बार बार मेरे पर प्रकट ज़कया है ज़क जो कृषर अंज़तम युग में प्रकट होने वाला था वह तू ही है। आयषों का बादर्ाह और बादर्ाहत से तातपय्आ केवल आसमानी बादर्ाहत है। एसे र्बद ख़ुदा तआला ककी वारी में आ जाते हैं। परन्तु अथ्आ आधयान्तमक होते हैं।(तज़तममा (पररज़र्टि) हककीकतलु वह्ी, रूहानी ख़ज़ायन भाग 22 पषृ्ठ 521) (4) 20 अतिूबर 1930 र्ाम के समय हज़रत अक़दस ने

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    ज़नमनज़लज़खत सवपन का वर्आन ज़कया ज़क :एक बड़ा तख़त चौकोर आकृज़त का ज़हंदुओं के मधय ज़बछा हुआ है

    ज़जस पर मैं बैठा हुआ हूँ। एक ज़हंदू ज़कसी ककी ओर इर्ारा करके कहता है ज़क कृषर जी कहां हैं? ज़जससे प्रशन ज़कया गया वह मेरी और इर्ारा करके कहता है ज़क यह हैं। ज़फर समसत ज़हंदू रूपया आज़द भेंट के रूप में देने लगे। इतनी भीड़ में एक ज़हंदू बोला -

    ‘िे ्कृष्ण जी रुद्र गोपलाल’ (मलफ़ूज़ात हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह

    मौऊद-व-महदी मा’हद अलैज़हससलाम भाग 3 पृष्ठ 444) (5) फ़रमाया, ज्ात होता है ज़क इस ज़वश्ववयापी तूफ़ान, महामारी में यह ज़हंदुओं ककी क़ौम भी इसलाम ककी ओर धयान दें। जबज़क हमने बाहर घर बनवाने का ज़नर्आय ज़कया था तो एक ज़हंदू ने हमको आकर कहा था हम तो क़ौम से अलग होकर आप ही के ज़नकट बाहर रहा करेंगे। तथा दो बार हमने सवपन में देखा ज़क बहुत से ज़हंदू हमारे आगे सजदा करने ककी तरह झुकते हैं और कहते हैं ज़क यह अवतार हैं और कृषर हैं। और हमारे आगे भेंटें देते हैं। और एक बार भज़वषयवारी हुई है ‘कृषर रुद्र गोपाल तेरी मज़हमा हो, तेरी सतुज़त गीता में मौजूद है’ र्बद रुद्र का अथ्आ डराने और गोपाल का अथ्आ र्ुभ सूचन देने वाला के हैं।

    (मलफ़ूज़ात हज़रत ज़मज़ा्आ ग़ुलाम अहमद साज़हब क़ाज़दयानी मसीह मौऊद-व-महदी मा’हद अलैज़हससलाम भाग 2 पृष्ठ 201)

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