aitareyabrahmanawithsayanabhashyavolume3-satayvratasamasrami1896bis

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AitareyaBrahmanaWithSayanabhashyaVolume3-SatayvrataSamasrami1896bis

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This is a reproduction of a library book that was digitized by Google as part of an ongoing effort to preserve the information in books and make it universally accessible.

http://books.google.com

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cacrox c.Jagree Nores

Published by

TEE ASIATICSOCIETVfOP IBENGAIL.

Newseries.Nos. 874, 878,87g,88r,and 882.

THE AITAREYA, BHAHIMANA

OF THE RG-VEDA,

Wp"" "TEE

CommentaryofSayana.Acharya

EDITED EV

PANDIT SATYAVRATA SAMAsRAMI,

ctss०८22e 46e/2erofA4stz S०८227 oyfAeg22 420',

4:24/22,C/2/2e/222222,4z०22,CAGer, 22:29:42,

d".42%29/27 ८7472/222 12:42 A 6-2, 6-2,

WIL, IE.

CELLLtfft:

Printed by M, N. Sarkar, SATYA PREss

1896,

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॥ ऐतरयवाहमणमI

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भगवततायणाचारयकत-वदारथ परकाश'-नामभाषययतम।

वडदरशोयाखयायितिकसमितिरिनमतघा वययन 'च,

सामथमिौसतयवरतशबॉणा

यथाशमति सशीधय सणटोकय च सममादितम ।

॥ ढतौयभाग:॥

(पखमषषठपचिकातमक:)

कलिकाता-राजनवतयाम,

९०:१३-सवतसमाया सलधयानवण यढती मदरितम ॥

॥ समपादकोशि: ॥

अथहखल पचमषषठपचिकाइयातमक समकलपित ऐतरय

ढतौयभाग आदितशतरधयाया डादशाहविधि: समानात: ;

ततीधायनकन अगनिहोतरविधिबौधित:, परसइसइयानतती हव

वयाइतिबरहमतवविवकाधीपदिषट: ; ततः पचभिरधयाय: परधानती

हीढहचकगीचर शसतरादिरक वरणितम ।

तदताशवतरयकरयादितः पखविशलयधयायाः एकानहाईौनसच

लचणसरवविधयागविषया इतिपचपचिकातमकआदीयागकाणड,

तत एषा पखाधयायौी षषठपचिका त शासतरकाणड इति सवचम ।

इइ हिशासतरकाणड शिलयविधिपरकरण (३३८-३७६ य०)

वालखिखाना मसकचबत, ततः (३५-४०१ य०) कनता

पादोना भॉसनविधखावगमयत एवषा मननाणा मपि चकरसहि

तानतरगतलवम, किचारनाइट अटकपरिशिषट समपलबधपाठाना मषि

दवनौथपदाना मतझाझण परपतर विधानात ( ४०s य०)शाखा

नतरीयलव मवति। अधथ पकपदाविधादावपि(३२.य०)एव

मवासति किचिखिनीय मिति शम ॥

कलिवाता ॥ ) सामगधरमी गरीसतयवतशया ।

सवत १e५२ । 1 (सममादक:)

॥ अथ सडताचरसची।॥

अत० सव० •• अनपदसचम । | ल० • जहोलयादिः ॥

आप० धौ० आपसतमबशशरौतम । | ना० दव० नारायणछता दववततिः ॥

अार० अा० आरणयाशचिक: ॥ | प० अ०ख०पचिकाया: अ०रख०॥

ऋट० अन० चकटगवदानकरमाणी । | पशच० सय० • पाञचविधसमतरम ।

कट० प०‘ ऋटकपरिशिषट: । | महा०आ० मचडानानतरयाशरविक: ॥

बौ०ध०स० गौतमधरमसतरम ॥ | साझा०बरा०साझायनबराहमाणम ।

॥ अथ परिचछदसची॥

॥ चपरथ पषचमपजचिका ॥

( २१) अथ परथमाधयायः ......... (इादशाह पषठय: षडह:)· १

तच परथम: खणड:( ढटतीयाहनिररपाणमशः) ‘‘ ,

--- अथ हितिीय: खणडः( 9.9 ) • •• • • • ११

- अथ ढटतीयः खणडः (चतरथाहिनिरपणम) • १७

अथ चतरथ: खणड:( , ) ‘ · २५

अथ पचम: खणड:( .., ) ‘‘ • ३५

क. परथमदितीयाहयी: शसतरादिनिरपण माचात परवाधयाय।

[, २ ]

(६२) अथ दवितीयाधयायः · (डादशाह एव)

ततर परथम: खणडः(पचमाहनिरपणम )

अथ दवितीयः खणड:( , )‘‘

बच ढरतीय: खणड:( , ) ‘‘

अथ चतरथ : खणड:(षषठाहनिरपणम) “

अथ पखम: खणड: ( , ) ---

आय षषठ: खणड: ( ,

अथ सम: खणड:( ,

घाथ अषटमः खणड: ( ,

अथ नवम: खणड:( ,

अथदशम: खणड: ( , ) ‘

(२३)अथ ढतीयाधयायः(डादशाहछनदोमखाह:)

ततर परथम:खणडः(सपतमाहनिरपणम)

अथ दवितीय: खणडः( , )

अथ ढतीय: खणड: ( अषटमाइनिरपणम )

अथ चतरथ : खणड: ( , )

(२४)अथ चतथॉधयायः (दवादशाह एव)

तच परथम: खणड: ( नवमाहनिरपणम)

आय दवितीयः खणड: (छनदोमशष:)

अथ ढरतौय: खणड: ( दशमाहनिरपणम)

अथचतरथ: खणडः ( , )

अथपचम: खणड: ( , )

अथ षषठ: खणड: ( , )

[. ३ ]

( २५) अथ पचचमाधयायः• (अगनिहोतरयाग:) · १६३

ततर परथम: खणड:( अगनिहोतरहौतरम) ‘‘ ,

अथ दवितीय: खणडः (ततर वकखय परायशचिततम) १६७

अथ ढटतीय: खणड:(तच भावनाहोमः) ‘‘ १७१

अथ चतरथ: खणड:(तचानदितहोमनिनदादि)१७८

अथ पाशचमः खणडः( ततरिोदितहोमपरशसा ) १८२

अथ षषठ: खणड:(अगनिहोतरयागशष:) ‘‘ १e.१

अथ सपतम: खणडः (वयाऋतिरचषटिकथा ) ‘‘ १e.५

अथ अषटम: खणडः (बराहमाालवनिरणय:) ‘‘ २०२

अथनवम: खणडः (बराहमणः कतरतवयम) ‘ २०६

--------

॥ अथ षषठपचिका ॥

(२६)अथ परथमाधयायः . (यावखतसबरहमणवयीः)‘ २१३

( २९०) अथ

ततर परथम: खणड:( बरावसतसकितरतवयम ) · ’

अथ चितीय: खणड: ( अभिषटवगतव सङका ) २१८

अथ ढतीय: खणडः( सबरहमणयागनीशरयी:) २२४

ददितीयाधयायः( मतरावरणहादीनाम) · २३२

तातर परथम: खणड:( होतरकाणा शखाणि) 99

अथ हितिीय: खरड:(अहिरगणश सतोतरियानरपौ)२३७

अथ ढतीय: खणड: (आरमभगीया:) ·. २३e.

अथ चतरथ: खणडः ( परिधानीया:) · २४२

अथ पचम: खणड;( उभयच: परिधानौयाः) २४६

[ 8 ]

(२८)अथ ढतौयाधयायः .... (होतरानिरपणम) ‘‘ २५६

तातर परथम: खणड:(परातससवनउननौयमानसतानि),

अथ दितीयः खणड:(परातससव न परसथितयाजया:) २६१

अथ ढटतीय: खणड:( माधयनदिन सवन उबतरीय

मानसताम, परखितयाजथाव ) •• २६५

अथ चतरथः खणड:(ढतीयसवन उनतरीयमान

सताम, परखितयाजयाख) ·. २७०

अथ पाशचमः खणड:(सवनातरयसामयादिकथा )२७७

अथ षषठ: खणड: } (अगनिषटोमादिष हीतरकाणा

अथ ससम: रखरणड:

परयोगनिरणया: ) २८०-३००

अथ अषटम: रखरणड:

(२e.) अथ चतरथाधयायः ·. (विविधशसनकथा ) ... ३०१

ततर परथम: खणडः ( अहरगणष माधयनदिनीय

शसखलति:)·-३०१

अथ हितीयः खणडः(समयातसतविधिः) ३०४

अथ ढतीय: खणड:( सममाताना विधयः) ३११

अथ चतरथः खणडः (अहीनसतानि) · ३१६

अथ पचम: खणड: ( कहनतःपरगाथा:)* ... ३२२

चपराथ परछ: खरणड: (सलपरतिपद ) • ‘‘ ३२e

अथ सपतम: खणडः (यकति-विमकती ) ... ३३२

अथ अषटम: खणड:(शिलपखरपाणि ) ... ३३८

अथनवम: खणड: (दरोहणशसनम) • ३४७

अथ दशाम: खणड:( सशसनविचार:) ‘‘‘ ३५२

[ ५ ]

( ३० ) अथ पशचिमाधयाय: ......... (शिलपशसनादि) ·. ३६०

अथ परथमः खणडः (होटशिलपम) · ,

अथ हितीयः खणड: ( मचावरणशिलपम) ३६५

अथ ढटतीयः खणड: (बराहमणाचछसिशिलपम )३७२

अथ चतरथ: खणड: ( अचछावाकशिरपम) ३७४

अथ पजचम: खणड:( विशखजिति विचार:) ३८१

अथ षषठ: खणडः (कनतापादिशसनम) . ३८५

आथसपतम: खणड:( ऐतशपरलापादिशसनम) ३e-४

अथ अषटमः खणडः (दवनीथारयायिका ) ·. ४०२

अथनवम: खणड:(तदाखयायिकाशष:) ... ४०६

अथ दशम: खणड: (भतचछदादिरशसनम) ४१४

॥ अथ याजञिकशबदसची॥

-००

शए बद : पषठा | शवद: पषटा

अचरम (वकारादि) ‘‘ १९ | चयगनयइरणम• - • • १६8

-(ची। ) -- - १९८ | अङकानि ( हीचका:) • " २५1.8

अगरि: (नशटा ) २२९ | अचयतः • -,५२,९०२,१०३,११५,१२९र

अगरिहोतरसम * • • ००• १६५,२०० | अचगरता •• ८,१६,३९,५२,५६,७२,८९,

अगरिहीची १६८ १०२,१०७,११४,१२१,१२९,१३५

अगरौत २८३ | अचछा -'-- - -- - - २८३

अगरीतपरषणम " •• • २२९ | अचछावाक: •• -s - - २१५.,

अगरराय: - ३९ ई २८९,२३५,२8१,२४५,२8९,२५.२,

अगनयाधशयम • • •• २०० |tअचछावाकपरवरT: --- - ---- २८७

[। द. J

शष बद!

अचछावाकशासतरम

चपरचछावाकौया

अतिचकनदा: •

चतिजागतम•

अतिमरशम •

चअतिवाद: •••

चतिशसनम ••

चतिशसारथढटच:

अथरवचचवान.•

अधौतरसन •

अधयई कारम•

अधयायवान

चआधयास: •••

अधवरयः - - -

अधवरयपरतययम•

चपरनसयावततो नि

अनवानम

अनाराशरणसी: •••

अनिरतम, --- --- -

अनकथा: ••

अनचरवती .०००

अनदिताहीमी •••

अनदलय - ---- ---

अनरप: ०००

अनवषटकार:

अनसवनम ·

अनचानः •

प षठा

२३५,२९०९,२९ २,२१ ३

३०९

६८,६ '

३७५, ३९०-९

३७०

३८७,४०१

२५, २, ३३९०

२५७

२०३

२७३

५.१

५२

8४,५६

२१५,२८३

११९

३१०

२५.२,३४९

३००

१४,१०७,३२१,३६२

o a •

--- -- -

२७७,२७८

१८७

१८१

२००, २१०

२३०,३०२

२२ -

२७\9

१४८

शणवद : पषठा

अनतवदि ••• - - - २२ई

अनततईसतौनानि --- --- - ६४

अनतवत • • • • १४,१६,

७०,७४,५०६,८९,१२८,१३२,१३५

अनत: शषाणानि - - - २०१

अनय : -- --- - -- --- - ३००

अनडा: -- - ----- --- - - ३१४

अनवाहारय: - - - २० ०

अनवाहारयपचन: --- -- - २००

अभिजित • • • • ३१०

चभितषटीय : ••• - - - ३२२

अभितटौयम • • ३००,३३२

चअभितटरशवतय: -•• - - - २६८

अभिवत -- --- - ३२०

अभिषटव:( परातरशवनिक: )• २१५

(माधयनदिन: ) • २२२

चअभिपटवनीया: - - - २१९

अभिहिषत • - - - २५२

अभयावरतिन: • --- - - ३०९

अमधयनदिनासाचि ३७'

अयातयामम • ‘‘ ३०, १६, ३री ई

अईभाक • • • - -- - २०री'

अईरचविहार:• - - - ३६८

अरवदसनाम -- - - ---- ---- - *र १५.

अरवदीदासरपणी -- - - २,१६

अविजञाता ०००

अविवाकयम ·

-- -- - १e ९,३०९

‘‘• १४०,१६8

अनतरपम • ‘‘• ३४७,३५७अविहताः •

शाबदि : पषठा

अभव - • • --- -- - ई

अशववत - --- - - --- - ई

अमवाभिधानी 8१o

चाषटाचतवारिशण: १००

चपरसमायी • ३५.8,४१ ('

चपरसमपर धित: २२२

असतीमकनतचन · १०२

अहरइशखम • ००• ३१४,३३१

चाहरगण: ‘‘ २३७,२५.१

चपरहीन: २४८, ३०२,३३०, १३४

अहौनकरम • ३३६

चपरहीनगाता: ••• ३३६

अहीनपरिधानीधा: ३३६

चपरहौनसनतति: ००० •• ३०१,३०२

अहौनसतानि २४९,३०३.३०८,३१०,३११

अहौनसतानतम • २8९

अचहीढटभय: --- --- - --- - - २८५.

चपरागरीध: - - - -- --- - २१५.

आगरौघरयाग: - •०० --- --- - २२८

चपरागी भरतरीय: ००• • १९९,२१०

अागरीधीयार ‘• २८२,२८५

आगनयम ( परातरशवनम )• २३५

चाययणम. • “.. २००

अाजिजञाईसनया: ००० • ३८७,४००

चाजयपरउम ००० - - --- २७र

आजयम, ‘ ५.२८,१११,१२ई,२८२

शबद:

आधवरयवम •

आनषटभम

आयषयम

चपरारमभरणीया

अारमभ रणौधानि०००

चपरारति: --- -- -

चालविजयम,

आरभव: - - ->

(पवमान:)

आभवम

आरभवलवम

चशरावपबनौयानि •••

आवापाम

आशविनम •

आइनखम •

अाहनखवा: ०००

आहवनौषय:

अाहवानीया: ०००

अाहाव: '

दधटपर थमयजञा: ०००

इनदरगाथा : --- --- --

उकथम --- -

उकथससथ: •

उकथानि -- --- -

उकथिनय:

प षटर

११९,२०३

--- --- - २८

(१८

"२४०,३०३,३२४

२९२

११९,२०९

•• -२२६,४०५

• •• १०ई

• • • २७२

३८,७ई,१२०,१३४

२७२,२७ई

३१५

s - - ३१४

१६५,

४१ई

४१ई

• १११,२१०

२५७

•• • १५५

• •• २१५

•• ३८७,३९ ३

- • • * २८२

-- --- - २८८

४१९र

• २७७,२८२

चमा तान: ‘ ३२,४७, १८,११२,१२७-२२ईउतकर: --

[। य- ]

शश धद:

उदानयनम

उदिताहीमी

उटगा त ा

उदगाढपरषा:

उदगातणाम,

उदगीथ:

उदगौथम ...

उतरौयमानम --- - -

उदरौयमानानि

उतरता - - -

उपरिषटादायतना

उपरिषटाददक: •

उपविमीकम •

उपाश • • -

उपाछिात: -- --- -

उपावसट धटा

उभयय: --- --- -

ऊनातिरिकम •

ऊईवतवन •

ऋटकणवही

कढकपरिशिषट:( गरनय:)

चटरगावानसन ‘ •••

चकटमियम • • -5)

चकaबिवहार:

चटजीषम -- -a -

प षठ ा

- --- - २२९

• • • १८१

२१५

२८७

• • - २८ई

१४६

‘ १९९,२०३

•• २६६,२७१

- • - २५७

---- - - २१५

३ई४

- - - १६ई

३३ई

- - - २२८

२०४

-- -- - १६८

२४९,२५०,३३६

••• " २८

--- - --- १२०

o ५ र

-s oo २८३

- - -5) ३४३

- - - १०५

- - - ३६८

--- -- - २७३

शएवदा gपपा

कटलविज: (१६) • • • २१५,२२ई

चटषभवत - - - -- -- - ३१९

एकपदा -- --- - •• ३४१,३४२

एकपरषिा: - - - - - - २८३

एकातिथि: ••• ••. १८७,१८८

एकानतरिता: ••• • • - ३ई९

एकाचछटट: --- --- - *५.१, ३०२,३५८

एवयासरत •• ••• ३७५,४१९

ऐकाहिकम • - - - २५२

ऐकाहिका: ••• २४८,३३६,३८७

ऐतशएपरलाप-' ००० ३८७,३१६,३११

ऐनदर:( यजञ:) • २५८,२६३,२६७

––(दवषाकपि:) • • - ४१(र

ऐनदरम (ऐकाहिकम ) • ३५७

------------------------- ( दगधम) --- --- - १६५,

–-(भाधयनदिनसवनम )००० २६७

--(रपन ) -- - - २६३

------------------------------ (शसतरम ) - - --- २३8

ऐिनदरा, • • - * • • • २८e'

ऐनदरागर (शासतरम ) - - - २३५,

ऐनदराणि - - --- - - ---- २९२

ऐनदराबाईसयतयन , • २८९,४१८,४१९,४२०

एनदराबाईसपलया •• " • ४१९,४२०

ऐनदराभरव (शसतरम ) । • २७३

ऐनदरारभवय: • ••• २७१

कवत परषिा;ऐनदरावरणम क- - - * • • s २८८

५ ८ |

श[शवद :

ऐनदरावरणम (ऐकाहिकम )

ऐनदरएवरणी •-० --- --- -

ऐनदरावषणवम • --- --- -

ऐनटरा: ( वालखिलया:) --- - -

चओो --- - - • • •

चीकावत -- ------ -- -- -

शरीकरझारी - - 63

[ e. J]

पषठा

३५७

३५.८

२८९

३५७

१९८

१२७

• ३०२,३३१

चऔदसबरी -- -------- --- ------------ १५०

औौणिहम -- -------- --- -------- S)

वत: .. •• • ३२४

कइनत: (परगाथा:) ‘‘ ३०३,३२४

कयाशभौयम - --- .. • • • ('द

करिषयत ---- ------- • २८,१४

कवाय: ••• . . ••-० ३२१

कारवया •• ‘ ३८७,३९१

कनतापम , -- -------- - - - ३८७

कनतापाधयाय: •• • • • ३८७

करवित - - - • •• ४५,१११

छतम --- - •• 8,६१

छानतचम .. - - - -- -- - १०२

छरणशवासी • - - - प८३

कवलशण: --- --- - - - - २६१

कवलसकत ानि •• -- --- - २५९

कौणडपायिनामयनम • २००

शणबद : पषठा

चतिवत • १२६,१३२,१२५.

खिलासतानि ••• •• ३४७,३५१

खलिकम • -- - --- ३५२

गतवत - -- - ‘‘• १२ई,१३२.

गवानयनमलम -- -- - २५ १'

गाथा। -- -- - - -------- १८७

गायचढठतीयसवनः a - - १०६,

१२१,१२२,१३५.७१२६ई

गायचम, --- - - --- --- - २५ ८.

गातस मदम ‘‘ -- - ---- १३

गाईपतय: -- -------- • • • १११,२१०.

गईम • o 49 -- ------ ३५.८

गटनहपति: •• --- - -- २८२,

यह: ( समनतर: ) •• - - - १५७

शयावसतद • • • २१४,२१६,२१७ '

यावसती तरीया ••• -- - --- २२०

गरावारण: -9 --- - - - - २१५

चतरचतराभयास: ००० २९ ६,२९s

चतरविश: ( सतीम: ) (' (' -

चतरविशम( अह:) • •• ३१०

चतरविशणाह: . • • •• ३३५.

चतहौतार: १४०, १५७

चलवारिश: (सतीम: ) •-- १००

चमसीतरयनम - - - २९०१

च दसना: -- --- - - -- - ३५० चातमiसयानि - - - --- - - २००

शाशबद: पशट ा

छनदीगपरतययम ‘‘• १११ |

छनदीगा: १३

छहनदीम: ee,१३८

जगतपरातरवन: ••• २१

जगतपरासाहा २७ई,२७८

जनकलपा! २८७,३९३

जागतम ‘‘ ४,२८,३४,३८,९९,११८,

१३३,२१२,३५०, ३७५,३७१

जातवत २८,२४,३८,९८,१०६,१०७

जातवदसय' ( सताम) १६,१२१,१३५

उजातवदसया १२१,१३५

जयीतोषि ११७

तातोयसवनिकय: २७६

तिसतरीदवता: ••• २५ -

कटतौयसवनरा • २७३,२९२,२९८

चयसतरिश: ( सतीम:) ६७

चिणव:(सतीम:) ४ ३

तरिवत १३8,१३५

विवान •• ९,१०,१४,७७

चिटप २* ३

चिषटपपरातरशवनः १११,१२६,१२७

वषटभम ११३,११८,२६७

चपरचारम ११

शणमद:

दचिणा

दरश परणमासौ

दशराचम ·

दशरचम ५.५५

दशिशनी

दाचायणयजञ:

दाधिकरी •••

दिशातमय:•

दौचिता: ...

दरीहणम

दवचचम ·

दवनीथ :

दवपविचम •

दवशिलपानि •००

दयावापथिवौयम •

–(दगधम )

हिपदा: -- ---- -

हिहतवत •

हपद:( ढटच:)

हT गरी - - -

हाकथ:

धिषणाशसतर तमिसकतम •

धौतरसम •

पषठा

- - - २२९,४०९'

२००

३५८

३२२

११९

२० ०

--- --- - 8१७

• ३८७,३९२

- - - २४३

२४७,३४९,३५०

५७

२८७,४०३,४११

- - - 8१\o

२ई१

१०५,१२०,१३४

--- - १६५

१०६,१३8

१११

- - - ३५८

- - - १ ११

- - - २७९

३४०

- - - २७३

• यदयपयवातसडरहीतष सरवषववादरशपसतकष एव मवासतिपाठ, पर मष: खात लिपिकर

परमादपरवाहिज इतयलाकम, ; ‘शिलपशसतरकतिसकम'-इयवनयाठनवह भवितवय मिति

सधौभिराकलनौयम।

शबद:

चतः “.

नगरी -- -- -

नभाकम •

नवायातम •

नानादवतया: ०००

नाभाका: ०००

नाभानदिषठम

जाराशरणसम ०००

नाराशरणसय: ०००

नाराशरशसया ०००

निगद: ---- - -

निनई: •

निवततवत •

निविदधयाय: ०००

न --- - --

नचवटनम •

जषटा --- --- -

नयङका: oo- G)

[ ११ ]

पषठा

a a १ २२५

9 0 ) १८१

- - --- ३४१

- 0 (6) २४८

- - - २६४,२७६

oe)o - ३४१

६९,७१,३६२,8१९

• ई९,२१८,३६३

--- -------- ३८७,३८८

- - - ३८७

-- --- - २२५

••• २१९,३(१०

*) - (5) ८,७२

--- - - ३८७

9 ) - २८३

--- --- - २१ई

२१५,२२१,२८३

--- --- --> २८२

-------- - २८३

नयह : २१,२४,२९e,३७३,३७५,३९०,४१७

पडकतिः

पडकतिशस: •

पतरौभाजनम

पतरौशाला ०००

पदावगराहल,

‘‘• ३१४,३१९

o o ) ३७२

- - - २२९

- - - १४१

००० ३९१,४१३

शएबद: पषठा

पराचिष ••• •• ३०९,३१०

परिधानीया: • • • २४२,२५',

२५७,२१३,२९४,२९७

परिधानौयावलचणयम •• २५१

परयसतवान • o o। - ('

परयायकटच: • - - -- २४८

परयास: •• ४८,३३8

पवमानसतीचारिण - - - २०६ई

पशमत -- -- - --- - - ३१९

पाङतः ११४,११९,१२९,१३३,३७३

पाडताम • - - --- २१,५४

पातरौवत: ००० e o। • २२८

पादविहार: ००० --- - - - २६८

पारिचिततय: ‘‘ ३८७,३१०

पारचछ पम • --- - --- ६९

पाररचकपी ००० ००० ६१,३१४

पारचछपीयम , --- - - ६३

पावरमानय: ••• --- - --- ४१८

पिववान • - - --- १०२

पीतवत ००० --- - - २६३

पीतवतय: ००० २५७,२६६,२७१

पनरावतति सम •०० -- - - १४

पननिनततम •• -- - - १४,८९

पनरवत •• • a o १११

परसतादायतना a oo २६8

परसताददक:• s a o १६

परीगवी ००० --- -- - 8११

पनायम, ५००परी नवाकयाः •• e - I5 २५१

• २१३

[ १२ ]

शण कद :

परीरगधयाय: •••

पषठगर:( षडह, )

पी . --- --------

पीता - --- -

पीढटन टारी •

पीचीधा

पौणम -- --- -

पर - --- -

परउरग (शासतरम )

परकतिपवम ‘‘

परगाथा: ( कइनत: )

पर याचह सन •• •

परजापतिसतनव:

पररणव :

परणिता - - -

परणठमती •••

परतिरार’ •••

परतिजञानम •

परतिपद: ( अारमभरणीया: )

परतिपरसथय(ता •••

परतिरराध: •••

परतिषठा (एकाह:)

परतिषठितपदम

परतिहतरता •••

पतिहार: •

पतयचनभनाम •

पपषटरा

- - - ३८७

--- ---- - १३८

- - - २८३

‘‘• २१५,२८ ३

--- --- - २८५

२८२

--- --------- १६५

- - - २८३

- - - ९०,३१

8६,७०, १७, १११, १२६,

- - - २५, १

‘‘• ३०३,३२४

••• ३८१-३१२

--- - - १५.८,१५९

- - - ३४१

- -- - २8o

-- --- - २8०

-- --- - १५५.

- --- - 8०५.

३०३

- --- - २१५.,

••• . ३८७,४०१

*‘* २५१,२५.२

-- -- - ३३

-- -- - २१५,

•• १४०

--- -- - १०२

पवहनिका: ‘‘

पडताहति: ‘‘

परशिणासता •• •

परसरपणम •

पसताव: --- --- -

पसतीता -- - -

पसथितयाजया: •

पसथितसीमा: ---

पाजापतयम •

पाण:(हीता)

पाणा:(१०)

पातराहतय:•

पातरशवनम •

पातर नवाक:•

परातससवनिकच:

5-N

पर ष: - -- -

परषकतरता -- - -

परषसमाचाय:•

परषाधयाय: •

परषसकतम •

बर --- -- -

बहिरवदि •

बावचः • • • .

( मचावरण:) •

पषgrा

“ । २८७

३८७,३१९

-- - - २८७

•• २१०,२८७

२७७,२८७

---------- - १४१

• • - १४६ई

• • • २१०,२१५.

६१,२६२,२६ प८,२७ई

--- ---- - २६ ३,२६८

--- --- - ३२१.

- - - २५ 8

--- -- - ३२२

•• १९३,२८ई

- - - - १७७

--- --- - २५ c

• • • । २०४ ।

--- -- --- २७ई ।

२८३,२८४,२८ ई.

- - - २८६ ।

-- -- - २८५

• २८३,२८७

•-- २८३,२८७ '

--- --- - ३५०:

-- - - २२६ :

‘‘• १३,३०९ ’’

पतयवयामरत· ‘‘* १६-- -- - ३८० बहनभिवयाहनतम

[ १३ ]

शाशवद :

बाईतम, ‘‘*

–(अह:)

बाईसपतयम •

वहती थीनि: •

छहपषठम ‘‘

बर --- - --

बरहमखत - - -

बरहमलम •

बराहमा oo G)

बरहमाारण: ०००

बरहलीदागा। •‘

बराघराणाचईसिशसतरम

बराहमणाचकसिसताम

बराहमणाचछस ह। • •

भावनाहीसटर’ ०००

मिषघकी - - -

मतचदः •

महत - ---------

माइती: •••

उमधयायतना •••

मन:( गरावसतत )

मरतवतौय: •••

नरखतौयम ,

(शसतरम )

पषठा

- - - ४६,७२,१ २ द०

१८५

१६५,

११५

१०१,१२९

२८३

३१९

११९,२०३

*२१०,२१५

२०४

१५८,१६०

२३४,२७९

२१२

२१५,२३४,२४०,

२४३,२५०,२५२,२६२,२७७,२८५,२८९

१७३

२०९

३८७,४१६

8७,५४

२५७,२६६,२७१

३ई8

'रश९२

८,९

७१,२८२

११२,१२७

परण बद : पषठा

महहत • १११,११२,११३,१२०

सहावदा: ००० *- - - २०३

सहानासतरT:••० -- ------- ४९ ३४५

महातरालभिद ३४२, ३४४,३६८

महाबरतम ‘ • ३१०,३४५.

महासताम, ‘‘ ‘‘ ३५०

महापतीमानि * -- चs ३१प

साधयनदिनम -- --- - २६७

माधयनदिनौयशसतरकति: ‘‘ ३०१

माधयनदिनय: ••• - - -- २७ई

नानषशिलपम , -- ---- - ३६१

समारत: ••• - - - ३७ई

मारहवम •• ३१,१०७,१३५,१

माहानामनानि -- - - ३४५

मखयलिरवज: -- --- - - - --- २४८

मलपरछातिः• -- - --- २५१

मचम • - -------- १६४.

-sy

सवावरण: -- ------ २४५,२३३,२४०,२४३,

२४८,२५२,२५७,२८८

मचावरणशसतरम २३४,२४९,२७९

मचावरणसतम . - -------- २१२

यजषातय: • • •-9 --- -59 ----- १७८

यजञा: ---- -n --- --- - २०३

यजञगाथा ००० १८३,१८३,१८५, १०5६;

११२,'' ९४,२२८

यजञवशसम, ‘‘ - - - २३३

मकलवतीयनिषकवलय यथापरवततम ‘‘ - -- २८७२७९

[. १8 ]

शबद: पषठा शनट: पg श8T

याजया - - - - - --- - - २५९ | लीका: ••• - - -- ११९०

--( अचछावाकिसय ) २६४,२६९,१७५

-(आगरौतरसय ) २६8,२६९,२९७५ | वाखा: - - - " - - - २२५

––(नषट:) ‘‘ २६४,२६८,२७५ | वपषमत · - - - * ई

--(पीत) • २६३,२६८,२७8,२७५ | वरणा; -- --- - -- - - १९प८

-–(बराहमणाचछ'सिन: ) २६३,२६८ | वरतनि: ... - - - २०8

–-(मचावरणसय) • २६३,२६८ | वरतनयौ "२०४

––( होत) २७,२६३.२६८ | वरषि शठ: • - - - २२S

यकतवती --- -- - --- --- - ३३० .वषटकतरतार:• - - - २८९o

यकति: -- -- - - - - ३३३ | वहराविरणी •• • -- - - ५.

यीषा ( नषटा ) - - - २२९ | वजञिवत • - - - ३०९

वाक ( सबरहमणया ) • २२५

रतवत --- --- - --- - -- 8 वाच: कट: ‘‘ ‘‘ ३४१,३४४

रथनतरपषठम • - --- - १*९ | वाचधम: • • •• २०५.

रथनतरसय यानि: “ १*२' ** | वाचोरपम ... -- - - २८

रथवत -- - - ‘‘ (१९ वादयम • --- - - २८७

राजा •a o-o- •• •. २२५ | वायवयम • - - --- १६५

राथनतरम ‘‘ - -- --- १*२ | वारणम • - - - १६५

राथनतराणि ‘‘ ‘ S | वालखिलया: ३४१,३४२,३५७,३६७,४१९

राथनतरी (रातरि: ) ‘‘ १**.| वाशिशता •• - --- - ३११

बरपसजटङका: ••• २५७,२६६,२७१ | वासिषठ: ... --- --- - २०४

रत: - --- - --- --, -- २२८ वासिषठम --- -- - --- -- - ३२०

रवान ‘‘ A -.. - *N | विकतानि • -- - - २९८

रभय: • ‘ ३-9,२S° | विजञपति: ... -- --- - २९९

चवतम •• • •• ६-०६S | विततदरा: ... - - - ह3.8

रीहितम •• ‘‘ ६N | विचछनदा: • - a • २८,३८

रौदरम - - - ‘‘ १६ 3. | विपरधास: ००० - - - ३९७

विमकतिा; · --- - --- ३३३

[ १५ ]

शबद: पषटरा

विराज: ३१8

विरिफितम • २८

विवतत, च: २४३

विशवजित • ३१०,३७७,३८२

विषमा: २७८

विषविदया •... e a • २१५

विषवत --- - - • • •. ३१०

विषणनयङग: •.. ३८०

विहिरणम .......... । २१('

विहार: --- -- - ३४ ३,३४४

विहता: - ३५७,२६७

वौरयम( चिटप) २९8

वधनचात a - - -- -------- ५२,१२१

दवषखत - - - - - - , ५२

छाषखती a o। - २५७,२६६,२७१

इषा (अगरीत) २२९

छषाकपि: ---- ‘‘• ३७२,४१९

वदा: ao। - • • • १९७

वमदम ·. ‘* २८

वमदी - - - - - - - - ३१४

वराजम G- - -- o -- - २८

वरपलवम • --- - ----- ५.

वशवदवम • ‘ २८र,|

१५9 २८,७०,१२१,१३५,२९२

–(अहीराचम ) ... १६५

-–(ढतौयसवनम). २३६

––(दगधम) ध - - १६५

शएबद: प षठा

वशवामिचम • ‘‘ ३१८,३२१

वषणवम • a - •s " १६५

वयतिमरशम • ३४३

वयनवारमभणम , --- - - २५ १

' वयाहनसया ००० e o s 8१७

वयाऋहाव: ••• --- - - ३२७

वयाह तय: ••• - - -_ २०१

शसतम , व.a - -- २७९

शासतरम •• • • • २५३

शणाकरम, • - - - 8५,५०

शणानतानि ••• २२५.

शिलपखम • * - n. ३४३

शिलपम (बराहमणाचछसिन:) ३८७

--( मचावरणसय) ......... '' ३६७

--( होत:) - - - ३६१

शिलपानि (चतवारि) २१ ८,४१९'

शकरवत • ---०-- २८

शकरवाती ००० --- - २७३

शकराणि ००० - * 5 ११७

शकरियम • - -- - २७३

शचिवत. ००० ११५,१२६,१३४

शारज हवीया • --- --- - ३३१

यजाहीम: ••• o a (6) १७१

शययमाणदवता - - - - २८०

षडहसतीविया: ‘* ३०३,३०८

वशवदवागरिमारत ‘‘* २७९षीडशकलम, ‘‘• १६५

[ १६ ]

शबद: पषठा

सशसनम • •‘‘ ३५४,४१९

ससकार: ३८३

ससथा २२८

सजजञानम ‘ (१८

सतयवत १२५,१२६,१३२

सचपरिवषणम - - - प८.१

सचम • • • - २१४

सचायणम_ ३३०

सचासाहौयम , - --- ३५८

सनतनि • • • - - - Q -

सनधानम, ‘‘ --- -- - * २०१

सपत पदम J, ‘‘ -- --- - ६९

समसरपा ••• ३४७

सपतलिवज: •• २६०

सपतस त। *** ३५री

सपतानवचनम , २५९

ससनयाधपराषित: --- - - १५१

समयाविषित : ••• १५.१

ससमयासतमिषित: -- -- - १५१

ससमा: - - - - - - २७८

समानीदरकम १२५,१२८,१३६

सनचङकम . •• ००• - ३१९

ससट डा : --- -- - oo s २७८

समयातसतानि • •r- ३०६

-(अचछावाकसय ) •०० ३१३

--(नीधस:) (-- - - ३०८

-–(बराहमणाचछसिन: ) २१३

शाशबद: * पषठा

–(मतरावरणसय) ३१३

-(वसिषठसय ) ३०८

––(वामदवसय ) ३०ई

--( विशवामिचसय) ३०७

समपाददयमानदवता २५-२०

समपारिणया: ••• २8१

सरपराजञी -• • •• १8५,१४ई

सरवचार: ००० २१४

सरववयापढ • ००० १९९,२०९

सननकलपनम २३७

सदनीयपरषा :• --- --- - २८३

सहचरषपणि ••• -- - --- प८७,३७ई

सहखातमी २१६

सहखम ••• - ---- --- २९६ई

सासमपर गाथ: ••• १०२,११५,१२९

सायमाहतय: -- ---- १७७

सारपराजञानि •• - - - १8५,

साविचम १४,५५,१०५,११०,१३४,१६५

सिमा - --- - --- --- - ५.१

सिषासव: ००० --- -- - २४३

सकौकति': ००० - - --- ३७२

सत: --- --- - -- - - ३०२

सतवती ••• २५७,२६ई६,२७१

सबरनािरणय: ••• --- --- - ब२.१५.

सबरहयणया २२५,२ २६,२२&

सबरहमणयाहवानन - - - २२ ई

सकतपरतिपद: • ‘• ३२५,३२९

--(भरहाजख) ‘‘ ३०८ सतम (यजमानः) ‘‘. २६०

[ १७ ]

शबद: पषठा | शएबद: पषठा

सतानवचनम - - I- २५१ | इववत ••• - - - २८

सतानता: ••• - - - २५४ | हविरयजञसखया: - - - २००

सीमपौथ: ••• -- - - २५२ | इविरयजञा: •• • -- --- - २००

सौतरामणी ••• - -- - २०० | हविषमत • - - - ५६ई

सौपरणम • - - - ३५१ | ही • • -- - - - २८३

सौमयम • - - - १६५, | होता २१५,२६२,२७३,२७९,२८५

सतीचम • - - - २५३ | होचकशासतराणि - - (- २५७

सतीचिय: ••• • २३७,३५५ | हीचका: ‘‘• २३३,२४७,२४८,२७९,२-५

सतीचियानरपी • २८८,२८९ | हीचकौ •• - - - २८५,

२तीमाझागा: ••• --- --- - २०४ | हीवा - - - २१५,२२०,२७७, ''

सतीमछडिनियरम: - - - २५२ २७८,२८२,२८३,२८४,३५१ !

खगरयम • - --- - ३१९ | हीचाशरणसिन: * • • • २८६, ३२५.

खरवत --- --- - -- - --- १२८ | हौरिडनौ •.०० •• ३४४,३६८

- हौवम • • १९९,२०३

ईसवती --- - - -- --- - ३४९ हौचामरशा: -- --- - --- ---- - ११e'

मानसः(यहः) * १४१ (पद मिद मिडव १३प०१०पडङकाननतर निवशखम)

भी: - --- - १४० (पदमिद मि हव ॥५ प० २३पडताननतर निवशम)

• एष चहवागर षषठ खणड सवयकत:-‘त वा गरह मगटहनत’-इतयादिना (१५३,१५७प०)।

उदवीटिगय मानरस सतीरव त विहित मव सामबराहमण-‘परतयच: परपदय सपरा जञाया चकटनिभ:

सतवनति०–० मनसीपावरतयति, मनसा हिडरीति, मनसा परसतौति, मानसीढगायति,

मनसा परतिहरति, मनसा निधन मपयनयसमापतसय सममामगर’-दति ता० बरा० ४.९.९ ॥

मानससय दशमाहाङगताधिकरण च मौमासादरशन दरषटवयम (ज० स०१०अ० ६ पा°

२४-४४ स६ १३अधि०)। उडत च तत त०स०७.३.१ भाषय(ए० सी० स० ३२९प०)।

‘इतर: सतीववरगचिकी सतति: करियत, ‘ताभिः' सारपराजञीभिरच मानसगरहसय परवरतमान

लात मनसा सतति करय’-इतिचसा०भा० त चव (३२७प०)॥

[ १८ ]

प। ०

३०६

३३३

३४५.

३६१

‘ 8०१

४१७

॥ अथहालोचयखानमची।॥

--oCT> o। --------

प० प० प० पर० प० ए० प°

S) - ५७ २ ७७ १५ ८३ ३

१२ ... १३७० २ १४४ १० १४४ १९

१४ १७८ १२ १८३ १७ ११ १ ३

११ " ११ई ६ ११ ६ प८ १९७, ३

१७ २०७ ३ २१३ ६ २१३ १३

१ २५ई १० २७० ५. २१८ ४

83 . र७ १ई ३१७ १८ ३२३ ११

५ , ३३३ १० ३२९ १६ ३४२ १५

१ - ३४७ २२ ३५१ २४ ३४२ १४

cद ३६३ १ ३६8 १ ३८७ १४

२० 8०२ २ ४०२ १४ ४०२ १७

२१ ॥

प a

प८६

१8९

१(र १

२०२

२१९

३०४

३२३

३४२

३५९

३९४

४०६

११

१९

१९

१६ई

अशडम

अाहनान

उतमाश

तदषाभियजञगाथा

65

66

नतसनजञ विच०

पत

66

पालवT

वहरासिवणी

शिणशिणर

सतानवन

॥ शडिपचम ॥

शलहम

अाहनसरय

उत समाश,

तदषाभि यजञगाथा

55

66

नता सननविच०

ऽप त

6G

पकवा

वाहराविणी

शिणाथिर

सजञानवचन

g०

8१६

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१८३

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१८

१०

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११

१०

१२

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अथ।हापरारणयायव मकिचिलकराणखशडानि पदानि सय:, तानि

लवादरभो मनपचचव मतिमदधिरनायासशीधयानीति शम ॥

॥ ऐतरयबराहमणम । ।

॥अथ पञचमपञचिका॥ । - '

( तच )

॥ परथसमाधयायसय परथसमा; खणड: ॥

--------------०-cro----------

॥ ९ॐ॥ विशव व दवा दवता सततीय महरवहनति

सपतदश सतोमो वरप सारम जगती चछनदो यथादवत

मनन 'यथासतोम यथासाम'यथाचछनदस राधोति य

एव' वद' यही समानोदरकि ४० ततततौयखाजञो रप।'

यदशववढदयदनतवदाहपनरावतति यतयनरनिनदतत यदरत

वदयातपरयसतवदचिवदयदनतरप।' यदततम पद दवता

निरचयत यदसौ लोको ऽ यदितो'यईरप यजजागत

यत कात' मतानि व ढटतौयसयाजञडो रपारणि यचखा हि

दवहत मा अशवा अगनि + रथौरिवति ढतौयसयाह

आजय भवति दवा व ढतौयनाङगहा खरग लोक माय

सतानसरा रचासयनववारयनत त विरपा भवत विरपा

•‘समानीदक’ख, ड । . .

* ‘तमा अशवा अगरी’ क, ‘तमा अशवा२ अगरी’ ख, ‘तरमीs अशवा’ अगरी'ग,‘तमीश

अरथा३ अनदी’घ, ‘तमा अशराऽ अगर’ड ! ‘तना७/ अशवा५’(’ उ ।

२ ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

भवतति भवनत आरयसत यहिरपा भवत विरपा भव

तति भवनत आयसतई रपसामाभवतत वरपरख वरपलव

विरपः पापाना भवा पापान मप हत य एव'वद

तान हसमरानववागचछनति स मव सजयनत' तानशवा

भवा पहिरपातरत यदशवा भवा पबरिरपातरत तद

शवाना मशवतव मशरति यदयतकामयत य एव' वद

तचादशवः पशना जविषठसतखादशवः परतयड पदा

हिनसयप पापरान हत य एव' वद तचादतदशव

वदाजय भवति ढतौय Sहनि ढतौयखाजञडो रप।'

वायवायाहि वौतिय वायो याहि शिवा दिव इनदरशव

वायवषा सताना मा मिच वरणो वय' मशिवना

वह गचछत मा याहयादरिभिः सरत सजरविशवभिदवभि

रत नः मिया परियाखिलवाषणिह परउग' समानी

दरक। * ढतौय ऽहनि ढटतौयसचाजञडो रप' त त

मिदराध स मह'चय इनदरख सोमा इति मरतव

तौयख मतिपदनचरौ’ निनचततवत तरिवकततीय

sहनि ढटतौयखाजञडो रप' मिनदर नदीय एदिहोलय

चयतः परगाथः' पर नन बरहमाणसपतिरिति बराहमण

सपलथ।' निनचकतवासततौय sहनि ततीयखाजञो रप'

शरी सगानीदकी ख, ड !

॥ पखमपचिका | १ I १ ॥ ३

मनिरनता" व" सोम करतभि: पिनवनयप इति

धाया। अचयता"न किः मदासो ररथ' परयासनरौरम

दिति मरशरवरतौयः परगाथ: परयसतवासततीय शहनि

ततीयखाडी रप वारयमा मनषी दवतातति सत'

विततरतौय ऽहनि ततीयखाडी रप यद दाव इनदर

त शरत यदिनदर यावततव मिति वशय पछ भवति

राथनतरऽहनि ढतौय ऽहनि ततीयखाडो रप यडा

वानति धायाचयताभि दवा शर नोनम इति रथ

नतरख योनि मन निवरतयति'राथनतरर होतदह

रायातन ननदर विधातशरण मिति सामपरगारथ

खिवासततौय ऽहनि ततीयखाडो रप व मतर

वाजिन दवजत मिति ताचा चटतः॥१॥

॥ शरीगणशाय नम: ॥ .

भिननानयाहरदवतासतोमसामचनदासयजञसतसय तसथापि षणाम ।

विदयइाकचा दततर सयात समानरन खानतखाडीकानवितरिकोणशवहसय॥

सिडानि शसतरावि घडव वहौतराखाचन सतरडग तचाया।

मरखतौय परतिपततची चधायःपरगाथाब तथव सचम॥

निषकवखध सतीविय: यठबीनियॉनिरया न सव-ख-सामपरगाथ: ॥

तालातसहात परव मनच त निलखात खातमलाजजातवदसय मनधत

बदोगानावखदवात परसतादायाचीमाडभमतानि चव ॥

राथनतर मयगम सथाद छहलसामतराइवट l

वषपादि डितिौरय खात ततौयादिवकरमाता ॥

8 ॥ ऐतरयबराहमणमI

अथनदरपरवी निहव: परगाथी धायाघ ताल च समान मझाम।

खाता खात तथा जातवदय मरयाय इनदम आदखाइकिसततीय:॥

अथ डादशाहानतरगतय नवराचसय ततीय महरनिरपयति

"विखी वदवा दवतासततीय मडवजञनति, सदण खोमी वकय

साम जगतौचछनद"-इति । दवतास मधय विशखी दवा:, सतोमाना

मधय सासदण:, साना मधय वरगरय, छनदसा मधय जगती, तानच

तानि ढतीयसयाही निरवाहिकाणि । यदपि पछध घडह परथम

ढतीयपघमानयवहानि राथनतराणि, दवितीयचतरथषषठानधहानि

बाईतानि; तथापि रथनतर-इहसामसमबनध: साधारणश वरपादि

सामसमबनधी विशषसततीयहनि; सतयपि चिह रथनतरपल वरप

साम हितोयवन परयजयत, आती वरपरवतसिनहनि असाधा

रणवानिरवाइकलव मचत ॥ वदरन परासति–“यथादवत मनन

यथावतीम यथासाम यथाचछनदरस राधीति य एरव वद"-इति ॥

उकत टरवलादोना वदिता एतानयतिकरमय ततपरसादन समडी

भवति ॥ .

एतरयाजञः समबनधिय मवष परववजञिाइनि निरपयति

"य ह समानीदक तत ढरतौयसयाडरो रप,यदखवदयदतवदयत

पनराहन तरत यत पनरनिवतत"यदरतवदयत परयसतवदत तरिवदनत

रप, यदततमपद दवता निरचत, यदौो लोकोचयदिती यह

रप यजञागरत यत छत मतानि व ढतीयखवाडरी रपाणि"

इति । उदक:समापति, समान उदक: तलया समाधिसय मनतर

भागसय ततत ‘समानीदकम'; ताडरश यदवासति, "तत ढतौय

याडी 'रप' निरपकम, लिइ, मिलथः। अखशबदोपतम "अख

°s_

व', अनतशवदीपतम 'अनतवत', पठितलव पनः पाठ: "पन

॥ पखमपतरिका | १ । १ ॥ g

राइततम',पनरपि नितरा 'वत' नतरतरन "पनरनिवतत",खरविशष

णाचराणा पनःपनरावरतनन वा नरतनसाइणयम। पनराहतरत

पठितसवव पादसयाडकतिः, आच त खराचरमातरवति विशष: ।

'रनतवत’-इति धालवरथ मातर मातर विवचत । "परयसतवत'-इति

परयासशबदवत॥ "तरिवत -इति तरिशाबदीपतम । "अनतरपम'

इति अनतशबदोपतम ; परव मजरलवाय मनवाद:; अथवा पन

वचरन पराधानयपरतिपादनारथ तादौयारथपरिगरहारथ वा । उकतम

पाददवताया अभिधारन, खरगलोकासय कथन,वरपसामसमबनधिलरव,

जगतीचनदसमबनधिरव, भतारथपलयोपतः करीतिधातरधातमातर

वा, एतानि सरवाणि ढतीयसयाडरो रपाणि॥ :

इदानी माजथशासतर विधत-‘यचखा हि दवडतरमी अडी अन

रथौरिवति (स० प८.७५.)ढतौयसथाड आजरय भवति"-इति1

तदताचछतर. परशसित माखयायिका माह-"दवा व ढतीय

नाडा खग लीक मारयसतानसरा रचासयनचवारयत; त. विरपा

भवत विरपा भवतति भवनत आरयसत यददिरपा भवत विरपण भाव

तति भवनत आयसतईरप सामाभवततईरपसयवरपलवम'-इति।

यदा दवा: ढतीय महरनषठाय तन खग लोक गता, तदानी

मसरा रचसिच 'तान' दवान "अनगमय खरगपरवशी यथा न

भवति तथा "अवारयनत' निवारितवनत: । तत: "त' दवासतान

सरान परति "विरपा' विरइरपोपता भवतति शपिलवा ‘भवनतः'

खन रपणवाविरभवतः "आयन' खग परतयागचछन। . विरपा

भवतति वीफसा सरवदवीदिीतनारथ, असरशापलयनत मादराधो

वा। 'त' दवा: यसात कारणादसरान परति विरपलव'शारप दतत

वत:, तसमादसराणा 'तट' विरई रपि वरपाखय’ सामाभवत,

ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

विरपोलिसमबनधादव तय वरगरय नाम समयकतरम ॥ उतारथवदन

परशसति-"विरपःपापना भखा पापमान मप इतयएव वद"

-इति। वदिता परव कन चितयापना विरदधरपयकी भखापि

पधाडदनसामथरयाकरत पापमानम "अप हत' विनाशयति ॥

परासदधिक वरपशबदनिरवचन छतवा परकत नवोपाखयानशष

माह–"तानह समाचवागचछनति, स मव खजयनत : तानशखा

भलवा पझिरपातरत ;यदखा भसवा पझिरपातरत, तदखाना मख

लवम'-इति ॥ दवशापात करपलव परापता असराः पनरपि ‘तान'

दवान "अन' पशचादागचचव, न तपरितयजनित ॥ आगलथ च

दव: "सखयनत एव', न तदर तिषठनित । तदानो दवा: सरव

जयशखरपधारिणी भलवा ठत आगचछत: तानसरान पडि:

"अपाघरत' खकीयपादिताडनहतवनत:॥ यसमादव मणखा भलवा

पढिाईतवनत:, तबाइलीकजपि पादताडनकशलाना चतषपदाना

मखनाम समपननम॥ उतताथवदरन परॉसति-"अशलत यदयत

कामयत य एव वद"-डति ॥

दवरखवषकरत वयापार निदानौतनववय दरशयति

"तसआदख: पशना जविषठसतसरादख: परतयड पदा हिनसति"

-इति ॥ यरआदखरप: दववगन गमरन पबरिताडरन चावरितम,

तसराइलीकशपि पशना मधय sखीलयनतवगवान, "तसाद" तसमादव

कारणात लौकिकीषख: 'परतयड' पषठतः पादन पररष "हिनरित'

बताडयति ॥ उतारथवदनो परशसति-"अप पापमान इशतय एव

वद"-ईति ॥

यचखाईौति सरश परशसचाजयविधिरनिगमयति-"तसआदताद

खवदवजरय भवति ठतौय हनि खतौयसयाही रपम"-इति।

॥ पखमपचिका । १ | १ ॥ 3

यरआदखसय ईदशी महिमा, तसमात, "अखवत' अशखशबदोपत

"यचखा हि"-इति सची (स० ८.७५.) ढरतौय ऽहनधाजयशासतर

भवति। यदखवदिति परवलचणखोलवादिद मखशबदोपत

सत ढतीयसयाही रपकम॥

अथ परउगशाख विधत-"वायवा यातडि वीतिय, वायो याहि

शिवा दिव, इनदरव वायवषा सताना, मा मिव वरण वय, मशिख

नावह गचत, मा याचदरिभः सरत, सजरविडभिदवभि, रत नः

परिया परियानविचौषिणई परउरग समानीदको ढतौय हनि ढतौय

सवाडो रपम"-इति ॥ "वायवा याहि वौताय"-इलका (स०

५५१.५),"वायीयाहि शिवा दिव"-इतयादि क ई ऋचौ(स०

प२६.२३.२४.), मिलितवा सोय मकरदषचः ; "इनदरव वायवषा

सतानाम"-इतयादिक डॉ. ऋचौ (स० ५,५१.६७), ढचलवसमया

दनाय तयौरनघतरा हिरावरतनौया ,"आ मिव वरण वयम"

इतयादिकरदषचः(स० ५७२.१-३.);"अखिनावह गचतम"

इतयादिकलचः (स०५७५७-८);"आ याहयादरिभिः सतम"

इतयादिकखचः (स.०५४०.१-३.); "सजरविडभिदवभि"

इतयादिकसतच:(स.०५.५१.८-१०);"उत नः परिया परियास"

इतयादिकसच: (स.०६.६१.१०-१२.); त एत सन टचाः

उणिकनदरकाः। तलसरव मौणिई परउगशसतर करयात। ततर

समानीदकलव ढतौयसथाडो लिबम ॥ आ मिव वरण इति

सल तिखवदध "नि बईिौतयादि कानतिमः पाद एक

एव ॥ आशिखनावईति सकलपि "हसाविवततधादिकीsनतिम:

पाद एक एव | आ याहौति सकलपि "बषनिनटरतयनतिम:

पाद एक एव। सजरवडभिरित ढाचप "आ। याचल इतय

म ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

नतिम: पादएक एव। एव कतिपयषसमानोदकतव लिटठम31

अथ मरतवतौयशखसय ढचडय विधतती-"रत त मिटराध स

मह, वय इनदरसव सोमा इति मरलवरतौयसय परतिपदनचरी, निदर

कवत तरिवत दतौय हनि ढतौयसयाडो रपम"-इति । "त त!

मितयादिकलची मरतवतौयशखसथ परतिपत(स.०८.२२.६-८.);

तसथीपकरम ‘त त'-इति बरािहमतत: शबदो दकतगतताखानकरण

सडश, अतच"कटौना ढत-इति नरतनवाची शबद ययत :

तदि निनदरतवशिइम। "चय इनदरख"-इशय मनचरसतचः

(स० र.२.७-८.), तरयादौ तरिशबदधवणात इद तरिवशिडरम 1

अथ परगाथइय विधतत-‘इनदर नदीय एदिडौलयचतः

अगाथ: पर. नन बरहमणयतिरिति बराहमणसिलवो, निकतवॉरतती

य हनि ढतौयखाडी रपम"-इति। "इनदर नदीयः"-इतिपरगा

थसय (स० प.२३.५,६.) परवयोरयडोरविहिततवादचयततवम । अथ

परगरथनन ढचलव समपादयितचतरथ: पाद: षषठ: पादच निखि

रभयसत, तसय वकतसमानतवादरय परगाथी निदरतखिवान । एव

बराहमणसतयपरगाथपि (स० १.४०.५,६.)दरषटवयम । यहा यातरियो

'इनटरी वरणो मितरी आरयमा'-इचीकारसय विरमयासी दात

समान: ॥

अनयासतिसर चटची विधतता-"अगनिनता, लव सोम करतभि:,

पिनवनयप इति धाया। अचयता."-इति ॥ यदयपयचतलव डिरतौय

सयाडी लिडड', तथायितर वाचनिक: परयोगी दरषटवयः ॥

वायवा याहौलखा चचि, इनदरधति डचीथतिरम वाकवम'अभि परय’-इति समा

गनना उत न: परियदित ढाच त समानीदरकलव वचनारदव ।

f २भा० ४१०पर० १७प० दरषटवयम ।

॥ पचमपतरिका । १ । १ ॥ e.

अथानय परगारथ विधत-"न कि: सदासी रथ पयॉस नरौर

मदिति मरतवतीयः परगाथः, परयसतवाखरतौय हनि ढतौयसयाही

रपम'-इति । अखिन परगाथ ‘यसय मरत:'-इति ढतीयपाद

धवणादरय मरतवतीयः: आन 'परयास-इतियतलवादिय परयसत

लिकवान (स०७.३२.१०,९१.) ॥

सतरानतरर विधतत-"तरपरयमा मनषी दवतातति सॉ तरिवत

ततीयहनि ढतौयसवालडो रपम"-इति ॥ आदी. तरिशबदसय

यतलवात तरिवशिइमयन मिनद सतम (स० ५.२०.१,२.) ॥

अथ निवकवलथशासच खतौतरियानरपौ परगाथौ विधती-"यद

दबाव इनदर दत शरत, यदिलटर यावतसतव मिति वरप यट भवति

राथनतर हनि ढती य हनि ढरतौयसयाडो रपम"-इति । वरप

साखा नियाद' ढरतौय हानि पषठसतोतरम : तरयचसातर आधार

मती ‘यद दाव:"-इति (स० ८.७०.५,६.) परगाथ: सतीनतरिय,

"यदिदर"-इति (स० २३२.१८,१८.) परगाथी नरपः । तदभरय

रथनतरसामसमबनधिनि ढरतौय हनि यकम । परथमटतौयपदयमानय

हानि राथवराणि * ; रथतरसाना परसतावसय गातवयबात।

वरपसानापयतर परसतोतर गातवयम ;वरपणाझरयोः रथनतरपतर

वन ' तबदीयऽहनि यहलवात । तसमात ढतीय हनि एतत

परगाथददरय शासरनौयम,वरपसामसमबनधसय ढतीयदिवसलिङगसय

विदयमानलवात ॥

ऋगनतर विधतत-"यदधावानति (स० १०s8.ई.) धाया

चता"-इति। सरवशवजह खचयतलव सरवसयाय ही लिटट" भवतीति

दतौयऽहनतयपि तयकम॥

a Rभा° श७ पर. ‘+' दरषटवयम । . . भा०, ३२३,३९७ पषठधी: दरषटवयम ।

१० ॥ ऐतरयबराहमणम I

अपरर परगाथददरय विधतता-"अभि लवा शर नीनम इति

रथनतरसय योनि मन निवतरतयति ; राथनतर डरोतदरायतनन'

-इति । "अभि लवा शर"-इयषा (स.०७.३२.२२.) रथयातर

साजो योनि:अs; ता परवॉताया धायाया ‘अन' पशचात

'निवरतयति' घास दिलयरथ: । एतख ढतीय मह:"आयतनन'

सयानन ‘राथनतरम' आयषमाना मजञा रथनतरसमबनधिलवात ॥

अथानघिपरगारथ विधतती—"इनदर तरिधातशरण मिति साम

परगाथखिवाखरतौयलहनि ढतीयसयाडो रपम"-इति। अतरतयसय

वरपसान: समबनधी "इनदर चिधात"-इति (स० ६.४६.८,१०.)

परगाथ: . स च तरिशबदयलवात विवान । अती खिसझावात

ढतोय हनि योगय; ॥

खानतरर विधत-"य म य वाजिन दवजत मिति

(स० १०.१७८.) तालाचतः"-इति। ताडनान: सतरविश

षसयाचचतलव सरवदिनसमबनधि लिबरम॥ १॥

इति धीमठसायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचरमपॉखिकाया परधानाधयाय

(एकविशाधयाय) परथम: खणड ॥ १॥

॥ अथ दवितीयः खणड: ॥

यी जातएव परथमी मनखानिति सची" समा

नीदक ततीय ऽहनि ततौयखाडो रप तट सजनौय'

ह भाe ६९४ घ० १ प.०'' दरषटयम ।

॥ पचमपतरिका । १ । २. ॥ RR

मता इनदरलनदरिय यतवजनौय मतरियान वो शख

मान' इनदर मिनदरिय मा विशरति तडापयाहलझनदो

गासततौय शहनि बहची इनदरसनदरिय' शसनतौरति

तट गातमदमतनव गलसमद इनदरख परिय' धामी

पागचछत परम लोक मजयदपनदरख परिय' धाम

गचछति जयति परम लोक यएववद ततसवितब

गौमह'sदया नो दव सवितरिति वशखदवख परति

पदनचरी राथनतर ऽहनि ततीयऽहनि ततीयखाडी

रपम तडवख सवितरवाय महदिति सावितर मनती

व महदनतर ततीय महसततीय ऽहनि ततीयखाडी

रपम छतन दावापथिरवी अभौवत इरति ददयावापधि

वरय छतथिया छतपचा घतावधरति पनरावतति पन

रनिनतरत" ततीय हनि ततीयखाडो रप मनखी

जातो अनभौशरकषय इलयारभव रथखिचकर इति

चिवत ततीय जहन ततीयखाडो रपम परावती य

दिधिषनतआय मिति वशखदव मनती व परावती

नतसततीय मनह सततिौय ऽहनि ततीयखडी रपम

तट गाय मतन व गयःशातो - विशवषा दवाना

परिय धामोपागचछता परम लीक मजयदप विशवषा

g "परावी'घ, ड, भाषयसचतष l

१२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दवाना परिय धाम गचछति' जयति परम लोक या

एव वद वशवानराय धिषणा चतावध इतयागनि

मारतख परतिपदती व धिषणानतसततौय मह

सततीय ऽहनि ततीयखाडो रपम धारावरा मरती

धरषखोजस इति मारत' बाइभिवयाइव मनती व

बहनतसवतीय महततौय हनि वरतौयखाडो रपम

जातवदस सनवाम सोम मिति जातवदखाचयता

तव मन परथमी अडराि चटषिरिति जातवदव पर

सताददक - ततीय ऽहनि तरतौयखाडो रपम व तव

मितयतर चाह मभिवदति सनततव सनततखा ह

रवयवचिननरयनतिय एव विडासो यनित ॥ ३॥

अथ निविडारनौरय सरश विधतत-"यीजात एव परथमी मान

सबानिति सची समानीदरक ढतीयहनि ढतीयसयाही रपम’

इति । आसिन खल "दरमाणसथ मजञा स जनास इनटर"-इलघतिम:

पाद: सबौखद (१–१५.) समान: । तसमादिरद सची (स.०

२.१२. ) समानीदकॉलिडरोपतम ॥

एततसलो परशसति-"तद सजनीय मतडा इनदरखनदरिय यात

सजनीय मनतसिम व शसमान इनटरी मिनदरिय मा विशकति"-इति।

‘तद' तख सज 'सजनौरय' सजनशबदीपरत 'स जनास इनदर;"-इति

शतवात । बहजनयकततव मवक सकरषकारणम। किब यह

8 "ददक" ड।

॥ पचमपतरिका । १ । २.॥ १३

'सजनीय' सतर मसति, एतदवनदरखनदरिय सचत। करथ तत?

उचत-परा कदाचिदतरिकवव सल शखमान सति 'इनदरिय

चनदरादिपाटवम 'इटर" दव माविशाति । तसमादिनदरियपरवश

हतवादिद परशसतम ॥

शाखानतराधडपरसिडया परशासति-"तखायाडनदीगाद

तौय हनि बहचा इनदरवनदरिय शससतीति"-इति।‘तड' तखिल

बव सजनीयसल 'डबदोगा"इनदसि गायतीति सामवदन,पर

सर मव माह,–यठासय षडहसय ढतीयऽहनि ‘बछचा'अटव

दाधयायिनी होतार, इनदरव समबनधीनदरियरप सजनौयसरण मॉस

तीति। अतोय सतर बनदरियदखपरसिदधि महती ॥ .

चषिसमबनध मषजीवय परशसति-"तद गारसमद नतन व

सटसमद इनदरख परिरय घामोपागचछकस परम खोवा मजयत'

इति । यमदी नाम कबिइषरतन दषटवादिद सतर ‘गाली

मदम'। कथ मिति, तदचत-'एतनव' सजनीयसलन यतर

मदाखथी महरषि इनदर तोषघिलवा, तखनटरय परिरय खयाल आय,

ततःस तन दणातषटहीत उततम लीक जितवान ॥ वदनो परश

सति-"उपनदरसव परिरय धाम गचछति,जयति परारम लीक य एव

वद"-इति॥ ' ,

वशखदवसय शसख ढकचडरय विधाता-"ततसवितरवरणीमड दा

लो दव सवितरिति वखदवसथ परतिपदनचरी, राथनतरहनि

दतौयहनि ढतीयसयाही रपम"-इति । "तलवित"-ति

डच (स.: ५.पर.१-३) परतिपत, स च रथनतरसानः समबनधी ;

"अबथा नीदव सवित"-इति(५.८२.४-६.) अनचर:। तद

तदभरथ रखतरसमबनधिनघसिन योगयम ॥ :

१४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सविखदवतारक सनानतरर दरशयति-"त हवखय सवितरवारय

महदिति सावितरम'-इति । "तत' एतत 'साविच'सविढदवता

कम (स० ४.५३.)। ततर हिसवितरदवसय समबनधि 'वाय' वर

शौरय 'महतव अधिक तज इतय मरथ: ययत; अतः सविढसबबनध

धवणात साविचाम ॥

परवतर ढाच रथनतरसमबनधरप लिइ महम, अतर त लिझा

नतर दरशयति-"अनतीवमनहदतसततौय महसततीयहनि ढती

यरवाही रपम"-इति । अच परथमयाद महचबदोसति , महख

वख कायमानना वलना मतीभवति,-न खल माइतीय

धिक कनचित कचचित किचिदधिक कामयत: ताइशसयाभावात ।

तसमानहाइरववानती भवति । इदख ढरतौय मह: परथमसय चाह

सयानत: । "अनतः' अनततवसामयात ढरतौय हनि "तईवसय"-इतया

दिक योगयम । यदयमयनतशबदोच नासति, तथायशनौलथानत

शबदारथसय सदधावादनतवजञिपइ मसति ॥

टचानतर विधतती-"छतन दावापधिरवी अभि होत इति

(स० ६.७०.) दयावायथिरवीय घताधिया घटतपचा घटताखचति

पनराकरत पनरनिवतत' ढतीयऽहनि ढरतौयसथाईो रपम"

इति । दावापधिवीदवताकतरव विसपषटम । घटतवियतयादि

डितीय: पाद:; ततर छतशबदसय पनःपनराडकरिक खिम :

तया चाहतया वकतगततालानकरण परतौरत पनरनियकति

लिङगानतरम ॥

ऋभदवताक सझानतर विधतत-"अनखी जाती अनभौश

रकथय इतयाभरव(स० ४.३६.); रथखिचकर इति तरिवत, वरतौय

ऽहनि ढतीयखयाशी रपम"-इति। डिरतीयखा ऋचतरथपाद

॥ पचमपघिका। १। ६ ॥ १५

"कटभवी वदयामसि"-इतिशववरणात चमदवताकवम। परथमाया

ऋविी दवितीयपाद"रथसविचकर:"-इति विशबदोपल लिडम ॥

बडदवताक सझानतर विधतत-"परावती य दिधिषत

परापय मिति(स० १०.६३.)वखदवम; अनती व परावतोकतक

तौय महखतीय इनि ढतीयसवालडो रपम"-इति। दवितीयसया

ऋच: परवाड एव पठत-"विशखा हि वो नमसयानि वनदया ना

मानि दवा उत यझियानि व:"-इति । ततर दवा इति यद बह

वचनम, अनतर परथमाया ऋचतरथपाद "दवा आसत"-इति बह

वचनम , तन वशखदव बहदवताक मिदम । परावत इलधनन

शवदन दरदशोभिधीयत; स च निवासदशापचयातो भवति ;

वरतौय महाध बरहसयानत; अत: परववत अरथतोऽनतवशिजञ मसति ॥

तदतत वशडदवसली परशसति-"तद गाय मतन व गयः

धावी विशलषा दवाना परिरय धामोपागचछकस परम लोक साज

यत"-इति। ‘तद' तदतसल 'गारय" गयन दषरट पवनामकलय

सची गयनामकी महरषि: 'एतन'परावत इतयादिसलन विशडषा

दवाना परिय खयारन परापय तरनमटहीत उततरम लोक जितवान॥

वदरन परासति-"उप विशलषा दवाना परिया धाम गचछति,जय

ति परम लीक य एव वद"-इति ॥

शसतरानतरखय परतिपसल विधतत-"वखानराय धिषणा मत

इध इतयानिमारतसय परतिपद (स० ३.२.१.); अनती व धिष

पानतसततीय मइसततीयऽहनि ढतीयसयाही रपम"-इति ।

अतर धिषऐलयनतःकरणवाचकः ययत; अनत:करण च भया

दरल परा. शकरोति। तथा चानयतर धयत-"न वा इमा मड

रथी न वाशखतरीपरथ: सदय: परयाम मईति ;मनी वा इमा सदय:

१ई ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

परययाम महति’—इति । ‘अनतः’ सहसा भमयादानतपरापति हतलवात

‘धिषणा'-शबदोsनतसयीपलचक:। अनतसततीय मितयादि परववत॥

मरददवताक सत विधतत–“धारावरा मरतो धषखोजस

इति मारत बहाभिवयाहलय मनती व बहनतसततीय महसततीय

Sहनि ढटतीयसयाङगी ररपम’—इति । मारतलव मतर विसपरटम ॥

बहविधम ‘अभि वयाहरतयम' अभिवयाहरणीय परशसनीय मगजाति

यसमिनसल तद ‘बहाभिवयाहरतयम ’ ; अतर हिपचदशचौः शसनीया

इति बहलवम, बहना दवाना मभिवयाहरणीयाना विदयमानखा

इहलवम । तसय बाहलवसय अनकलवहिलवापचयानतलवम ; अती

sनतवलिङग मसति (स० २,३४.) ॥ ----

ऋटगनतर विधतत–“जातवदस सनवाम सोम मिति (स० १

e.e.) जातवदसयाचयता’–इति ॥ अचयतलरव सरवषा मजञा साधारण'

लिङगम ॥

जातवदोदवताक सरत विधतत –“ख मन परथमी अङगिरा

ऋटषिरिति (स० १.३१.) जातवदसय परसताददरक ढतीय ऽहनि

ढतीयसयाङगी रपम; लव लव मिलयततर तरियह मभिवदति सनतलब’–

इति । यदयपि लवमगन इलयगनिरव दवता परतीयत; तथायसीजात

वद-शबदवाचयी भवति ; जातसय सरवसय जगती वदिततवात।

तसमादततसरक ‘जातवदसयम' । तञच ‘परसताददरकम' उदरकशाबदी

sवसानवचन:; अवसानच विचछद: । सीsपि हिविध:,–पर

सतादपरिषटाच; उपकरमात परव शसनीयसयाभावात अरय परवका

लीनी विचछद:परसताददक इतयचयत । शसनात परवकालीनी

sविचछदः उपरिषटाददरक:। समानीदरकलवच ततीयसयाङगो लिङग

यकतम। तचीपरिषटाददरकसामरय सजनीयादिशदानदवतम (१२ प०);

॥ पशमपतरिका । १ । ३ ॥ " १s

अबपरसताददरवसामरय लिइवनीदडियत। तथा इन िसल

सरवाखयद"लव मन"-इति पदडय समाचातम, तदिद समा

नीदकतव मक लिइम। असकदभिधानादव पनराडकतलिङग'च

व शकधम॥ किब लीक कचितयररष समबोधयाभिमखौकलय

लव मिति वदनति : एव मनतरापि उततरवह मभिमखीकलव

परयच लव लव मितिशबद: परयजयत, तब परथमदवितीययोसयाहयोध

'सनतल' विचछदराहिलयाय भवति ॥ वदनपरवक मनषठान परशा

सति-"सनततखाईरवयवचिछवयनित य एव विददासी यनति"

इति। 'व' परषः परतयच ब-शबदः सचिरत चहयोः साततय

विददासी जनतिषठनति, त परषाः ‘सनतत." परसरसबबईः, अत :

एव विचछदरहितखाईरततिषठति, तषा विी न भवती

लियरथः॥ २ ॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पडरमापडिकाया परथमाधाय

(एकविशाधयाय) दवितीय: खणड: ॥ २ ॥

--------

व अधथ ढतीयः खणड: ॥

आपयनत व सतोमा आपयनत छनदासि ततौय

ऽहनवतदव तत उचिछषयत' वागिवव तदतदचर

० -4--s_ - - - ०.4- . I

चचरी वामितवक सचार सचार मिति चचर' स

१८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

एवष उततरखाही वागक गौरक दौरकी ततो व

वागव चतरथ महरवहरति तदयचतरथ महनडरयल

तदव तदचर मनयायचछनवतडरधयनवततवविभाव

विषयनति चतरथखाड उदयालयी अब व नयडरो. यदञवा

अभिगषणाघरनथयातरादय परजायत तदयचतरथ महनय

इयनतयतर मव ततपरजनयनतयवरादाख परजाल तखादयतरथ

महजॉतवद भवति चतरचरण नयइयदियाह

थतषयादा व पशवः पशना मवरध चचरण नयइय

दिखाडखयो वा इम चिवतिो लोका एषा मव

लोकाना मभिजिया एकाचरण नयइयदिति इ

चाह लाइलायनी बरहमा मौइलय एकाबरा व

वागष वाव समपरति नयई नयइयरतिय एकचरण

नयडरयतौति" डचरगव नयइयत।" मतिछाया एव

डिपरतिषठो व परषवतषयादाः पशवो'यजमान मव

तट डिगरतिषट चतषयातय पशष परतिषठापयति तखाद

इचरगव नयखय मखतः मातरनवा क नयखयति

मखतीव परजा अनन मदनति मखत एव तदननादयख

यजमान दधीति' मधयत आय नयखयरति मधयती

व परजा अतर' धिनोति मधयत एव तादवादख यज

मानदधीति'मखती मधयनदिन नयखयरति मखती

॥ पचमपचिका ॥ १ ॥ ३ ॥ १०

3s

परजा अलव मदनति मखतत एव तदननादाख यज

मान दधारति तदभयता नयड' परिगरहणति

सबनाया मननादयख परिरहौतव॥ ३॥

दवादशाहमधयवरतिनी नवराचसय"चयय वा एत चाहा,"-इति

यतपरव महम अ, तनतर परथमसखयही अभिहित:। सच यठाषडहसय

परवी भाग: , अनय तसयोततरी भागो नवराव मधयमसखयही वकतवय:,

तसिध यथम महसतत नवराव चतरथ महभवति ॥ तनतर शसतर

कसि मपरिटविधायत; आदी तावत नयडी ववयसतदरथ

परसतौति–"आपयनत व सलीमा आपयनत छनदासि टरतौय जहनच

तदव तात उचछियत वागिनधतदतदचर चचरी वागिलक सचार

मचर मिति वचरम"-इति। परवीलय वह य तरिडत

पखदशा-सादशाखया: "सतोमाः" "आपयनत' समापता इतयरथ: । तथा

गायतरी-विटरबजगतीलतानि 'छनदासि" "आयत'समापतानि।

तत ऊईम "एतदव'वचशमाणम "उचछियत' परव मनलालवात उतक

शणावशिषघत । तसववावशिषटसय 'वागिति' निरदश: । एवीकारत

परवोततदवतावयाडलरथ:।'अनिरवदवता'-'इदरी वदवता'-'विशख

व दवा दवता'-इलव तसय तरयातरी निरवाइक दवताचारय परव

सलवात' नावशिषटम ; वाग दवता परव मनवादवशिषटा।

तसय वाचक ‘वागिति एतत' शबदरप ‘तदतदचर" वकारादि

वरणातमक पनरपि "वचर"तरिभिरचररपतम ॥ कथि मतदिति १

तदतत सटोकरियत-वागियक सलकचर भवति ; वकार

* ६भा०६ प० दरषटवयम । ि२भा०, ४००,४१३प०अवच १०दरषटवयम । '

२० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥ :"ar

.

गकारामया यवायाकाराचरसय एकलवात ; तदवाचार मिति

वागदवतानाबोखारयमारण तराचार भवति ; आती वागदवताया

नामनि एकरपलव तरिरपलवच समयकतरम ॥

ततर रपचयसममततौ परयोजन माह-"स एवष उकतरखना ही

वागक गौरक दौरकम'-इति । वागदवताया आचराशावदन

वयवहर सति योगय मकारादौना तरयाणा समह:,स एष एव

"उततरसवाह' चतरथ-पचम-षषठाइरपीठभवत । उततरसवाइसखयसय

निरवाहिक दवतातरयसवरप सममच मिलचरथ ॥ ताव लोकतरय

परसिडा या वागदवता, तदरक खरपम; या च गौदवता, तहि

तीरय खरपम; यापि बौदवता, तनततीरय खरपम ॥

एव सति कि फलित मितयाशडय फलित दवॉयति-"तो

व वागव चतरथ महरवहति"-इति। यसाहवतातरय निषयतरम,

"तीव" तसमादव कारणाद वागव परथमदवता मधयसचाहसय

परथम नवराचापचिया चतरथ महरवहति ॥

एतचिनहनिनयख विधत-"तखतरथ महखयकतदव

तदनतर मधयायचनयतइडयनचतनपरविभावयिषनति चतरथसयाइ

उदल"-इति । यसमात कारणडागव चतरथसथाईो निरवाहिका ,

तसमात कारणादयादि चतरथ महरप तानि ‘ऊडयनति' ओका

रखय सतरोचयकारणीखारण विशष कच, तदनी मतदव वागि

लतदचरर दवताया वाचकम, "अभि'लच ‘आयचनति' उदयम

करवनति । नकवल मदयम: किशवतादचारी ‘वरधयनित', दडिपरकार

एव "परविभाषयिषति'-इतयनन सपरटी करियात, परभलरव विभलव

वाचरय कतल मिचनति । परभतव सामथरयम, विभव विशा

लतवम ॥

॥ पचमपचिका । १ । ३ ॥ ९१

कयखखरप माखलायनन वरणितम-"चतरथ इनि परातरन

वारक परतिपवईचौधी नयखी दवितीय खर मोकार विमान

मदात' तरिसतसय तसय चोपरिटादपरिमितान पतर वाडौकारानन

दतताततमय त बौन परवमचर निडचत नयखयमान"-इति

( चौ० e.११.१-५.)। असयाय मरथ:–"चतथहनि परास सति

परातरलवावसया यय सयकत परथमासति, तसया ऋची यौी इावईचा

तयोरचयौरयावादी, तयौराचीखः करतयः। नितरा मलत

विषमपरकारण 'जनम'उचचारण 'नयख"a। कथ मिति, तदव

सटोकरियत–"आपो रवती: चयथा"-इति (स० १०.३०.१२.)

परातरलवाकखय परतिपक । तखयाः परवावयादी योगय दवितीयखरः

धीकार:पकारादईभावी, त तरिमातरीपत मदततखरयज तरिवार

मखारधत ॥ त एत तरय औीडगरा: समपरदात । तबरककरची

कारयोपरि पनरमयीकारा आईखरपा इखमातरा अपरिमिता:

परख वोचचारणीया: । त चाडौकारा: सरवयनदातता: ॥ उततमसय

त, तरिमातरसवीकारवोपरि वीनडॉकारानखारयत ॥ तषवरड

कारष परथम मचाए"निहनधात' अलवनतरनीचखरणानदातत करया

दिति ॥ एरव सति उदातताखिमावासय ओकारा अडॉकारासतरयो

दश इलव मीकारा: बीडश समदधनत । परथमइितौययोसनिमाच

योरमध पखानदाकता अबॉकारा: ; दवितीयततीययोखिमातरयो

मध पखानदाकता अडौकारा: ; ढतीयसय तरिमावसयोपरिटा

दनदाकता अबॉकारातखयः;सोय मखारणविशषी नयख इतय

चत॥ सोय नयखचतरथयजञ: 'बल' उदयमनाय सरवखाद

लकषॉय भवति ॥

क"तदपि निदरशनारथीदाडरियान -"आपी ची ची ची ची ची ची ची ची चो

२२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

त मिम नयख परशसति–“अनतर व नयखो यदळवा अभि

गणायरनयथातरादय पर जायत, तदयचतरथ महनयखयनयनतर मव

ततगर जनयनयतराददयसय परजालध; तसमाचतरथ महजरगतवङकवति’—इति।

यीषय मकरो नयखी सति, तदतत ‘अव व' अनतरसाधनतवादवखरप

मव । कथ मतदिति, तदचयत—इक शबदोननवाची, तदोषा करष

काणा मसति, त करषका: ‘इकवा:’। त च वरषनत परजनयम

‘अभि'लचय ‘गषणाः' हरषण गायनती यदाचरनति, अथ तदानी

मतरादा' परजायत । सकालडषटिससटईि च दषटरा करषका हथनति ,

हषटाशव गायनतीति यदसति, तकसटग मिद चतरथऽहनि नयखरप

मचारणम । अती sननोचारणनातर सतपादयनति । तदव मातरा

दयसय ‘परजाल’ उतपादनारथ समयदात । ‘तसमात’ अतरगरजाति

यकतालवादव चतरथ मह: ‘जातिवदभवति' । जातवतव मतसमिातरहनि.

मनतरवचननीप रिषटाद वचयत ॥

नयखसय मनतरमधय सथानविशष विधतत—‘चतरचरण नयख

यदियाहखतषयादा व पशाव:पशना मवरईप’—इति । मनच यीsय

मादो चतरचरी भागसतन ‘नयखयत।' चलवरयचराणयचारय तदनत

यथोति नयख परयचचयादिति कचिदयाजञिका आहः। चतरमझाया

पादचतषटयोपताना पशना परापतिभवतीति तदभिपराय: ॥

पचानतर विधतत—‘चाचरण नयडयदिलयाहखयी वा इम

तरिखती लीका एषा मव लोकाना मभिजिल’—इति । परववद

वयाखययम ॥

शरी शरी३ ओी शरी शरी रवतौ: चयथा हिवख: करतष भदर' विधथाशचतञच । राधी३ ओी चो

शरी धो शरी शरी३ शरी शरी शरी शरी शरी शरी३ शरी शरी शरीथ ख: खपलख पवी: सरखती तद

गयणत वयीधी३ मापी३"–इति आ० औ०७.११.७। -

॥ पचमपतरिका । १ । ३ | २३

पचदय सझा ततीयपचो विधतत-"एकाचरण नयइयदिति

जह साह लाडलायनो बरहमा मौहलय एकाचरा व वागष वाव समय

ति नयड नयखयति यएकाचरण नयखयतीति"-इति। लाइन

लाखयउयमहरषि:पौची"ल,इलायन:"; महललाखयसय पतरी ‘मौहलथ..',

सच ‘बरहमा" इचतनतरामकी बराहमण: । स हक मचतर मखारय

यखयदिति। तकिम ? तवय सपपकति,-यय वागाहदवतति

परव सपता, चय मकाचरा; तथा सतियःपमानकचरय नयख

यति,एषएव समपरति समयक नयख मततिषठति। अचरसझाया

दवतानसारिलवादिति तय महरषरभिपराय: ॥

तदतत पचतरय मडीकलच सवाभिपररति पचरव विधतती-"इशचर

व नयइयतत परतिछाया एव; डिपरतिछी व परषधातषयादःपशवी

यजमान मव तद दिगरतिषरट चतषयाल पशश परतिषठापयति :

तखाद इचरगव नयइयत"-इति।एवकार: परवोततपचवयवयाड

चरथः। 'परतिषठाया एव'यजमानय परतिषठारथ मव डि दिसजञा;

दमया पादाभया मवखिततवात परषी "दिपरतिषठा'। सपषट मनघत॥

परातर नवाक विशषण सयान विधतती-"मखतः परातर नवाक

नयखयति ; सखतीव परजा अब मदनति, मखत एवतदननादसय

यजमान दधीति"-इति। परातरनवक मखत आईरचयादी दिती

यनिचर नयखयत। परजाना सरवासा मखनवातरादनात। तथा

सति यजमान मवादयसय 'मखत एव' समीप एव सथाप

यति ॥

आजथशव सथानविशष विधतत-"मधयत आचनयइयति ;

मधयतो व परजा अरव धिनीति, मधयत एव तदनतरादासय यजमान

दधीति"-इति । 'मधयतः' ततौयपाद इतयरथ:। तथाचायखला

२४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

यन आह-"आगनि'न खविभिरिलधाजयम *; तसवीरतमावज

ततीयश पादड नयज"-इति (धौ०७.१९.८०.)। अव हि

मधयभाग धतम ॥ ततर परजा 'धिनीति' परीणयति 1 तखतयाट

नावादगरसय मधयवरती धारण यजमानम अवसयापयति ॥

माधयनदिन सवनखानविशष विधतत-"मखती मधयनदिन

नययति, मखती व परजा अब मदनति, मखत एव तदननावसय

यजमारन दधाति"-इति । ‘मखतः' अईचादौ ॥ तथा चाख

लायनी मारतवतीया निषकवयजव निरय पखादिद माह

"शधीइवौयसय त ' तच आदशईचौदिख नयड"-इति(शरी

9.११.२८.)।॥

सवनदयगत नयख परासति-"तदभयती नयड परियडाति

सवनाभया मवादासय परिवहौलव"-इति॥ "उभयत:' परापतसरावन

माधयनदिनसवन च : ॥ ३ ॥.

इति शरीमततायणायविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पखमपबिकाया परथमाधयाय

(एकविगाभयाय)ततीयः खणडः॥ ३॥

g."आधि'नखतिभि:"-दति स० १०.९१-९ ॥

+"यघी इव मिनदर मलवा७, इनदर"-इति स०६.११.१ ॥

:"नश बीडश ओकाराततव कचिददशः कचिदादा"-ति पा ९९थ।

"नयन अधिपक आमिधि"-ति (स.: ९०३)चची वयाखयान ‘गणडयन

शबदविशष क. वनति'-इति सा० भा०1 साडा० बरा० २२.ई. २५-१६ I साइया० बौ० १०,

५.९१ ; १९.१३.१५,० । कातया० बौ० १.१९ । इनहायय पन: ई-१,९: I

1 पखसपचिका । ९ । ४ ॥ २५

॥ अथ चतरथः खणड:॥

वाव दवता चतरय महाशरवहितकविश तोमोवराज

सामानषटरिपछनदो यथादवत मनन यथासतोम यथा

सारम यथाचनदस राधोति य एव वद यडा एति च

परति च तखतरथखाडो रप"यदव परथम महसवद

तयनरयचतथ." यदयशवदानदरथवदयदाशमदयतयिबवदय

तपरथम पददवता निरचयत यदय लोको शमयदिती'

यजञातवदरडववदयचछकरवदयइाची रप यईमद यहि

रिफिरत यदिचनदा यदनातिरिॉयईरारजयदानयरभ

याकरिषयदायथमखाडी रप मतीनि व चतरथखाडी

रपाणधानि' न खवशिभिरिरति चतरथखाड आजव

भवति' वमद विरिफित" विरिफितख कषशतरथ

sहनि चतरथखाडो रप मटच पाइम पाटटी यजञ

पराइः पशव:पशना मवरबदय ताउदश जगलयो जगत

परातससवन एषचाहसतन चतरथखाडो रप"ता उ

पशदशानधरभ आनयरभ होतदहसतन चतरथखाडी

रप'ता उ विशतिगॉयच, यनः परायगौय होतदह

सतन चतरथखाडो रप तदतदनतत मशसत मयात

यामसतर यजञ एव साचाददतखतरथवाह आजव

२ई ॥ ऐतरयबराहमणम I

भवति'यहादव तदाज तनवत वाच मव ततयनरप

यनित सनतव सनततखा हरवयवचछिननरयनति य एव

विइॉसो यति वायो शकरो आयामि त' विहि होचा

अवौता वायो:शरत हरीणा मिनदरव वायवषा सीमा

नीमा चिकितान सकतआ नी विशवाभिरतिभिल!

लय मवो अपरहण' मप तय वजिनन रिप ममबित म

नदौतम इतयानषठभ परउग मति चपरतिचशकवाड

तरथ sहनि चतरथखाडी रप तो दवा यडभिरीमह

इति मरसवतीयख परतिपदोमह इतयभयायामय मिव

बतदहतन चतरथखाडो रप मिदवसी सत मध

इनदरनदय एदिईिमतबरहमणयति'रागिननता तव

सोम करतभि, पिनवनयप: मनव इनदराय बहत इति'

परथमनाडा समान आतानवतरथ sहनि चतरथखाडी

रप धौी इव मिनदर मा रिषय इतिसज'हववड

तरथsहनि चतरथखाडो रपो मररवा इनदर दषभी

रणायति सतरो मरग सहोदा मिनह त हवमरति इव

वॉचतरथ sहनि चतरथखाडो रप तट चषटरभ तन

परतिषठितपदरन सवन दाधारायतनादवतन न परचय

वरत *इम न, मायिन हवइतिपरयासो हववॉचतरथ

. क. *पराचावत' व 1

॥ पखमपतरिका । १ | ४ ॥ २७

sहनि चतरथखाईो रपता उ गायची गायची

वी एतख चाहख मधयनदिन वहनति तईतचनदो व

हति'यचिन निविडौयत तखाट गायचौष निविद

दधाति "पिबा सोम मिनदर मनदत वा यधी हव

विपिपानखादरिति वरारज पषट भवरति बाईत

ऽहनि चतरथ Sहनि चतरथखाडो रप यइावनति

धायाचयता वा मिडि, हवामह इरति बहतो योनि

मन निवतरतयरति बाईत धतदहरायतनन व मिनदर

परतरतिषविति सामागाथो परशसतिहा जनितति'

जातवाचतरथ शहनि चतरथखाडो रपो व मश

वाजिन दवजत मिति ताचा sचयतः॥४॥

चतरथ महविधत–"वागव दवता चतरथ मइव'इलकविश

सतीमो वराज सामानछप छनदी यथादवत मननयथासतीम यथा

साम यथाचछनदरस राधोति य एव वद"-इति। परववदयाखयम 1

चतरथसयाही गमकानि मनतरगतानि लिइगानि दरशयति

"यददा एति च परति च तखतरथसयाही ररप, यडव परथम मड

सवदततयनरयचतरथ यदयजञवदयदरथवदयदशमदातयिबवदयापरथम पद

दवता निरचत यदरय लोकोनयदिती यजञातवदयडववदयचछकर

वदयइची रप यहमद यडिरिफिरतयडिचनदायदनातिरिल यड

राज यदानयरभ याकरिथदयथमसयाडी रप मतानि व चतरथ

सयाही रपाषि"-इति । आकार: परशबदबति यदव परवतर परथम

२८ ॥ ऐतरयबराहमचशम ॥

रयाङगो निरपक सकताम शर, तदच चतरथसयाजञी निरपकम ॥ परथम

सयहापचया परधम मह: परव यदपताम, तदततपनरपि मधयम

चयहापचया परथम महरचयत ; अती नवरातरापचया यत चतरथ,

तरसय तराहापचया परथमलवातपरथमसयाङगो लिङगानयतर योगयानि :

तत एव तदयतवदितयारभयाय लोकोमयदित इतयनतानि परवीौता

नचवाभिहितानि ‘ॉ. । ‘जातवत'जानिधातयतम । ‘हववत’ इति

परदरयतिधातयकम । ‘शकरवत’ शकरशबदयपताम। ‘वाची रप।' वाक

परतिपादकशबदयपताम। ‘वमद’ विमदाखयन महरषिणा दषटम ।

रिफतिधातः लशाय वरततत ; विशष क शन नयझनोचारितम

‘विरिफितम’। ‘विचछनदाः’ इति विविधचछनदसा यकम । तदरन

चातिरिकत च ‘ऊनातिरिकतम' अचरजञासडाही इतयरथ:I वराजाखय

सामसमबई ‘वराजम’ । अनषटपछनदरसमबदम ‘आनछटभम'।

जातवदितयादीनि अच विशषलिङगानि । भविषयदरथवाचिपरतय

योपत धातरप ‘करिथत'-इतयचत। अतर यबतन यख परवीत

परथमसयाजञी रप मसति, तानि सरवाणखपि चतरथसयाही निर

पकाणि ॥

इदानी माजयशासतर विधतत-‘पराविरन न खडकतिाभिरिति

चतरथसयाजञ आजरय भवति ; वमद विरिफिरत विरिफितसय ऋषि

चतरथ sहनि चतरथसयाङगो रपम’-इति ॥ आगनि मितयादिक

(स० १०.२१.) सत ‘वमद’ विमदाखयन महरषिणा दषटम ।

‘विरिफित' नयलरपण विशष करशनोचारितम। अत एव ‘विरि

फितसय’ विशषढकशरपतया यकतिसय विमदाखयसय महरषि: सबबनधि ।

o श भा० ४०० प० प८ प० दरषटवयम ।

.. * २भा० ४०० प० ८-१० प। • दरषटवयम ।

॥ पखमपतरिका | १ I 8 I २८.

घाती विमादन इठलव विरिफिततववति लिङगइयसझावाडतरथ

चचतलज योगयम; तखादयतरथयातरी निरपकम॥ ,

चटकसहाछदबोपजोय सतरो परशसति-"अषटच पाइम :

पाइरी यजञ:,पाड:पशव,पशना मवरहय"-इति । चटकसडी

तरलोपबजघत । यत किचिचनदयोगात'पाइम'। परवोच

इविषयडयादिभि:अ यजञसय पाडरतवम। चतरभिःपादलखन च,

पखवयवः'पशव: पाड :'॥ तसनादताचसरन पशपालध भवति ॥ ,

जगतौझार पनः परासति-"ता उ. दशा जगलवी जगतपरात:

सवन एष वहलन चतरथयाडो रपम"-इति.। "ता उ' तासत

सझगता आटाइची‘दश जगतव' समपयनत। करथ समपततिरिति,

तदचत-सखादयनतयोचोखराइचा दवादश पठयी भव

नति ;पलिबकचलवादिशदचरा ; ताती मिलिलवा अरशीलचधिक

चतशताचराणि समपदनत । आषटाचलवारिशदचराणा जगतौना

दशमसलाकाना तावनववाचराणि ॥ एव जगतीसमयकति;।

जगतौचनदीयकत परापतसवान यसय मधयमय वहसय सोशय ‘जगत

आतवनः' ॥ परव मव इनदसा विवादो जगायाः परातरवन

बखान मझम "ि। अत: परातसवन जगतीसबबनधचतरथरवाडी

निरपक:I

अनषटपसबबनधन परशसति-"ता उ पचदशालयभ आलबरम

चतदहसतन चतरथसथाडी रपम"-इति ॥ तासत, दश जगलयः

'पचदशनषटम:" समबदधत । तवाहि,– अषटाचलवाशिदचरा

जगती; इरविशदचरातषटप; तथा सलकका जगतौ साडॉड

• १ ना-२३,६मा-ए-५ - दरषटयन ।

f R आ4 १५, १० ४ ख० दरषटयन ।

३० ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

/

भवति । अहवतदनषटभः समबनधि ; अनठभी निरवाहिकलवसयोकत

लवात शर, । तनद सत अनषटबहारा चतरथसयाजञो निरपकम॥

गायतरीहारा पररशसति–“ताउ विशातिगायातरा: पन: पराय

यीय होतदहसतन चतरथसयाङगो रपम’-इति। तारत, दश

जगतय: पनरपिा परतयक हधा विभाजयमाना चतरविशतयचारा

गायतरी विशतिरभवनति । गायतरीसमबनधशचानयच–“परायणीय

परथम महगायतरी वा ऐनदरवायवी गायतर परायषीय मह’-इति

शलय ततरात । इद चाहरमधय म तरय ह परथमलवात परायणौयम।

अती गायतरी इारा समबनधसय वल शकघलवा दततसत (स० १०.२१.)

चतरथसयाङगो निरपकम॥

सारयकतलवन पन: परशसति–“तदतदसतत मशसत मयात

यामसत' यजञ एव साचात तदयदतचतरथसयाजञ आजय भवति,

यजञादव तद यजञ' तनवत ; वाच मव ततयनरपयनतरि सनतलध’–

इति। ‘तदतत’ आगनि मिलयादि मतम (स०१०.२१.), उदरा

ढभिः परव मखत होटभिरपयशसतम ; तसमात ‘अयातयाम’

गतसार न भवतीति साचाद यजञ एव; यजञमधय सारलवात। तथा

सति यदी ततसत मतराजरय भवत, तदनो यजञरपादव सताद यतर

रप मह:‘तनचत’ विसतारयनति, किचाहदवता ‘वाच मव’- तन

सारयलन पन: पराझवनति ॥ तञच मधयमसय तरयहसय ‘सनतलध'

विचछदराहितयाय भवति ॥

वदनपरवक मनषठान परशसति—“सनततखा हरवयवचिवरयनति

-aय एव विइासी यानित’-इति । परववददाखगयम |

अथ परउगशासतर विधतत-‘वायी शकरी अयामि ति, विहि

क, ‘च तरथ मोहरवहति ०-० अनषटप. कनद’-इतापति: २५ प० २ प० दरइबया ॥

1 पचमपचिका । १ । ४ ॥ ३१

होतरा अवीता, वायी शरत इरोणा, मिनदराध वायवषा सोमाना,

मा चिकितान सकरत,आ नी विखाभिरतिभिस, लय म वी अगर

इण, मप लरष दजिन रिप, ममबित म नदीतम इलयानयरभ परउग

मति च परति च शकरवचतरथ tहनि चतरथ सथाईो रपम"-इति।

वायी शकर इतयादा" परतीकम (स०४.४७.१.) ॥ विहि होतरा इति

(स० ४.४८.१.) दवितीयम। वायी शत भिति (स० ४.४८,५.)

ढतौयम ॥ इनदरधति (स.०४.४७.२.)चतरथम । आ चिकिता

नति (स० ५.६६.१.)प चमम। आ नो विशखाभिरिति (स०

पट..१.)एवषठम ॥ लय मव दति (स० ई.88.8.) समम ।

आप लय मितयटमम (स.०६.११.१३.) । अमबितम इति (स.०

२.४१.१६.) नवमम। अतरादखिभिः परतौकरकसतच, इत:

षटपरतीक: षडचाः। एतसरव मनषटपछनदखॉ परजगशसतर कारयम।

आतर आकार,परशबद, शकरशबदबति लिङकानि दरषटवयानि । वायी

इतयतर शकरवशिकम । विहि होचतयसया मचि 'वायवा चनदरण"

इतयाकार:। वायो: शत मितवच "रथआ यात"-इतयाकार:॥

इनदरवलयतर हितौयसथा मचि "आ। यातम"-इतयाकारः। आ

चिकिता नलयतर,आ नी विशखाभिरिलयनतराकारी सटौ । लय म. वी

गरहण मिलयनतर पर-शबद:। अप लरथ इजिन मिलयनतर ढतौयसया मचि

"आ सगम"-इतयाकार: । अमबितम इतयतर "परशसति मबब"

इति परय शबद: ॥ आती लिडसइवन चतरथहानि योगयलवात इरद

सवचतरथयातरी निरपकम॥ .

मलवरतौयशसतरासय परतिपद विधतो-"रत लवा यालभिरीमइ

इति (स० प.६८.१०.) मरलवतीयसथ परतिपदोमह इतयभयायामय

मिवतदइसतन चतरथसथाईो रपम"-इति ॥ अतर यदतादीमड

३९ ॥ऐतरयबराहमणयम ॥

इति पद मसति, तदयाचामह इतयमितरथ वारतत ; याजञा च

दीरघकालन फलपरदा ; तरआदतदह: "अयायाय मिव' अभिशती

दौव कतरतवय मितव परयोगबाडचन इणखत। तन याजबारथवाचि

धातडारण दीरघवन सामयपरतौतिरिद महतवाकव चतरथ सयाही

निरपकमय॥ :

मननानतराषि विधत-"इद वसी सत मनध (म० र.

२.१,), इनदर नदय एदिहि(स० प.५३.५.), शत बरहमणयति

(स० १.४०.३.), रनिनता(स.०३.२०.४.), लव सीम करतभि:

(स० १.८१.२.), पिनचनतयप: (स०.१.३४.ई.), पर व इनदराय दहत

(८.८०.३.) इति परथमनाइा समान आतान चतरथ sहनि

चतरथयातरी रपम"-इति।‘आतान'शखबनिः। सा चद वसी

छतमिखादिका। आखिन चतथॉइनि परवलन परवमनाझा समय

नासामरय चक लि.इम॥ . . .

सजञानवर विधतव-"यधी इव मिनदर बना रि+ख इतति (स०

९.१०.) सत' हववचतरथ शहनि चतरथखाडरो रपम"-इति।

इवशदीपत मतसराइली विशषलिङग मिति परव महम ॥

अनयविपि सतर तशिश' दरशयति-"मरवा इनदर दषभी

एणयति (स.०३.४७.) सतर, सरय सहोदा सिह त डवमति

इववचतरथ sहनि चतरथसवाइो रपम'-इति ॥ मरलवानिलय ,

सखय"उगरम"-इतयादिरतिमःपाद; ततर "डवम"-इति इव

शबदारथवा चौी धातईखत; आती लिइसाझावादडी निरपकम॥

एतलब परशसति-"तद वदरभ तन परतिषठितपदन सवरन

दाधारायतनादवतन न परचवत"-इति ॥ "तद'तन सदा चिटप

इदखकम । परतिषठितानि पदानि परतिनियताचरसडाबजा: पादा:

॥ पखमपतरिका"। १ । ४ 3 इदर

बलियन सल ततसल 'परतिषठितपदम'। ताइगरन तन खलन 'सवन"

माधयनदिनसवनगरत मरलवतीयशख''दाधार'धारितवान भवति।

एतन सलन सवयम "आयतनात' खकीयरटहात कदाचिदपि न

परखधवत p

अनय ढरच विधतता-"इम न. मायितन डव इति पयासी इव

वाघतथ जहनि चतरथयाडो रपम"-इति। इरम नवितयादितच

विशष:( स० ८.७६.९-३.)परित: परवोतताना मतत परचपरणौय: ।

ततर "हव"-इति इवगबदारथो धातर सपति, अतचतरथ सथाईडी निर

पकसतचः ॥

तदताआशसति-"ता उ गायतरी गायतरी वा एतसय चाहरख

मधयनदिरन वाहनति"-इति । "ता उ' ता: सझगता कटव: गायतरी

चछनदरकाः गायतरयख ‘एतसय" मधयमसय वराइसय "मधयनदिरन'

सवरन वाहनति । परवॉश निरवाइकरमणजगतयाः परातरवनवाहितव'

गायतरा माधयनदिनसवनवाइिलव च दरशितरम I

असिन ढच निविडान विधतता-"तईतचहनदी वहति

यलिबरिविडीयत : तसमादवायतरीय निविद दधाति"-इति॥

"यसिमन' छनदसि "निवि त' पदसमहः परचियत, तदतत छनदी

'वइति' सवनसय निरवाइक भवति ॥ तसमाविहपाय ताल

गायचौघनिविद दधयात॥ .

अथ वराजसातमसमबई टचइरय विधततो-"पिबा सोम मिनदर

मनदत लवा, यधी हव विपिपानसथादरितिवराज छट भवति,

बाईत Sइनि चतरथ जहनि चतरथसयाही रपम"-इति । यठसतीच

साधनसय वराजसान: आधार: "पिबा सोमम'-इतयादि (स०

०९९.९-३.) सतौतरियखच,"धी इवम"-इतयाधनरपः (स.

td.

३४ . ॥ ऐतरयबराहमण म॥

७.९२.४-६.); अतो वराजसामसमबनधी लिबम 1 किच दह

बरतानी परयवराजसाम,इरदचाह मरपलवात डहतामसबबनधि;

बतीपि वारणात आसतरिहनि एतत ढचइरय यवा म ॥

ऋटगनतररविधतत—"यददावानति धायचयता"-इति। अचय

ततव सरवसबबनधि लिझा मितयझाम॥

वखातच ऊरष मनय' परगारथ विधतत-"वा मिवि हवामह

इति (स० ६.४६१,६.)बहती योनि मन निवरतयति; बाईरत

कषतदहरायतनन"-इति. । दवा मिईौलयखया मचि डाइनाम

उतपनन म ; तसमादरत योनिभरत परगारथ परवोततधायाम "अन' पशचात

अवर । ."एतदहरायतनन' यगमाइखरपखवानन "बाईरत'दह

बामसमबनरव खिला मितयजम॥ "

बराजसाबः समबनधिरन परगारथ विधतत-"व मिनदर परतति

बिति (स० जन.८.५,६.) सामपरगाथ."-इति।॥

तच लिड दरशयति-"अशखिहा जनिततिी जातवाचतरथ

जहनि चतरथयाडी रपम"-इति। उल परगाथ ढतीवषपादोयम।

आतर "अणसिहा जनिता"-इति ततोगय जातवान। ‘जनि’

घातयल जातवतव' चतसथाटटी लिबरम ॥

: लय मवितिलविशषखादयतलव लिटट' दशयति-"बध म

वाजिन दवजत मिति (स० १०.१७८.) तारवी चतः॥४॥

इति चौमसायणाचारयविरचित माधवौयवदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणख पचमपबिकाया परथमधयाय

(एकविशाधयाय) चतरथ: खणडः ॥ ४॥

4 -2 . . . . . -----

1 पखमपतरिका । १। ५| ई.

."

॥ अथपचमः खणडः॥ "

कह यत इनदर: करियाननदति सद वमद

विरिफिरत विरिफितख कषधातरथ ऽहनिचतरथवाही

रप" यधमख तदषभख खराज इति सची मखय

गभौर जनषायगर मिति जातवचतरथ ऽहनि चतरथ

खाडो रप' तट चषटरभ तन परतिषठितपदन" सवन

दाधारायतनादवतन न परचयवत वम वः सचासाह

मिति परयासो" विशवास गौषरवायत मिलयभयायालय

मिवतदहालन चतरथखाडो रप' ता उ. गायची

गायची वा एतख वाहख मधयनदिन वहनति तई

तनदी वहरति यसिननिविडौयत" तसाद गाय

चीय निविद दधारति विशवो दवख नतसॉ. ततसवित

रवरणयमा विशवदव सतयति मिति'वशवदवख परति

पदनचरी बाईत ऽहनिचतरथ इनि चतरथखाडी सहय

मा दवी यात सविता सरन इति साविच' मति

चतरव sइनि चतरथखाईो रपम. पर. दावा यदि

पराची नमोभिरिति दयावापथिवीरय परति चडरय

इनि चतरथचाइलडो रपम पर चटभथो दवत मितवचाच

मिया दलयाभव’ परति च वाच मिषय इतिच चतरथ

इनि चतरथखाईो रपम मशकरत दौ मौषति

३६ह ॥ ऐितरयबराहाणम ॥ा

वशवदव परति च शकवचतरथsहनि चतरथखानहडो रप"

ता उ विचछनदस: सनति धिपदा: सनति चतषयदासतान

चतरथखानहो रप'वशवानरख ममतौ सया मलयागनि

मारतसय परतिपदितो जात इति जातवचतरथsहनि

चतरथखानहो रप’क ई वयनता नर: सनौबsा इति

मारत'न कि छषा जनषि वदति' जातवचतरथ

ऽहनि चतरथखाजञडो रप' ता उ विचछ नदस: सनति

दिपदाः सनति चतषयदासतन चतरथसयाही रप'

जातवदस सनवामसोम मिति जातवदखाचयताननि'

नरो दौधितिभिररणयोरिति’जातवदख' हसताचयती

जनयनतति जातिवचतरथ ऽहनि' चतरथखाजञडो रप'

ता उ विचछनदस: सनति' विराज: सनति तरिषटरभ

सतन चतरथखाजञडो रप मनहो खपम॥५॥

|

॥ इवतरयबराहमाण पशचिमपशचिकाया परथमोsधयायः॥१॥

विमदन महरषिणा दषट' नयडसहित सवत' विधतत-“कह

शत इनदर: कसिमनतरदयति (स० १०.२२.) सरक वमरद विरिफिरत

विरिफितसय ऋटषखतरथ sहनि चतरथसयाङगो रपम’-इति। परव

वदटठ वयाखयायम ॥

सतानतर विधतत–“यधासय त छषभसय खराज इति सत

'मर' गभीर जतषाभयषय मिति जातवचतय sहनि चतरधसयाडी

॥ पखमपतरिका ॥ १ ॥ ५॥ ३७

रपम"-इति ॥ यधखति(स.०३.४६.) सल “उर'गभौरम"

-इति य: पाद:, ततर "जनषा"-इतिशरवणात ‘जातवत' जनि

धातयरश लिङग मसति ॥

सतरगरत छनदोवलमय परशसति-"तद वकरभ तन परतिषठित

पदन सवरन दाधारायतनादवतन न परचवत"-इति । परववद

वयाखचयम ॥

ढतीय ढरच विधतत-"सय म.व: सतरासाह मिति (स०

८.८१.७-c.) परयासी विखास गोषरवायत मिलयनयायामय मिव

तदइसतन चतरथसयाडी रपम"-इति । परित: परवपरणीय:

'परयास' अनतिमखव:। तसिन "विशखाषट"-इति यः पाद, तनतर

धायत मितिशबदो दीरघवाचकः यत। आइवतत 'अनया

यामय मिव' परयोगाधिकादतिदीरघ मिव; अतीsतर दीवलच

खिइम ॥ . . . . . . . .

छनदो दवारा परशसतिति-"ता ड गायतरी गायची वा एतय

चहसय मधयनदिन वहति; तईतचनदो वजहति यसिविविडीयत :

तसरादध गायबौश निविद दधाति"-इति । परववद वयाखशयम ॥

शसतरानतर विधतत-"विशखी दवसय नतस, ततसवितरवरणय,

मा विखदव सतपति मिति वशखदवसय परतिपदनचरी; बाईत इनि

चतरथsहनि चतरथसयाही रपम"-इति । "विशखी दवसय"-डति

(स० ५.५०.१.) ऋगका,“ततसवित:'-इति (स० ३.६२.१०,

११.) घी चरचौ । एष बची दहतसामसमबनधी, वशखदवसया

परतिपत । "आ विशखदवम"-इति (स० ५.८२७-८.) ढाची

चर:1 अडी यगमालवाद बाईततवम ; डाइतामसमबनध एव

मननलिजम p . . . . . .

३फ 1 ऐतरयबराहमयम

सविनदरदवतारक सतरो विधतत-"आ दवी यातसविता खरब

इति (स.०७.४५) सावितर मति चतरथ इनि चतरथवाइडो रपम"

-इति | आकारीsतर लिबरम ॥ :

परण दलिटटीपरत सरव विधत-"पर बावाय: अघिवी नमी

भिरिति स०७.५३,) दयावापधिवौरय; लति चतरथ शनि चतरथ

सयाही रपम'-इति ॥ , '

पर-शबदो वाकसमबनधबति विजञाइयोपत सरव विधत-"म

ऋभयीदत मिव वाचमिथ इतयाभव; परतिच वाच मिगध इति

च चतरथ sहनि चतरथ सयाडी रपम"-इति.।" कमदवतावलरव

खाषटम । पर-शबदो वाकसमबनधख परति चतयादिना परदरवत ॥

पर-श दन शक-शदनचपत सनानतरर विधतत-"पर शबत

दवी मनीषति (स.०७.३४.)वखदरव; परति च शकरवचतथ

जहनि चतरथ सयाडो रपम"-इति । अतर बहदवताकतवनदवशख

दवतवम ॥

नानाविधचनदोयजलवरप लिङगानतरर दरशयति-"ता ड

विचनदस: सनति हिपदा: सनति चतषपयदासतन चतरथसयाही

रपम"-इति । ‘ता उ' तात सझगता चचा ‘विचछनदस:'

विविधचनदीयवा:; तवकविशति: डिपदा: समित, अवशिषट

धतषयदाः सनति ;'तन' विचनदसवन आइडो निरपकम ॥ '

शसतरानतरख परतिपसल विधतत-"वखानरय समतौ खया म

तयारिनमारतसय परतिपट ; इती जात इति जाबतवखतरथ sहनि

चतरथसबाही रपम'-इति। तय लख(स० १०.) परध

माया ऋचसततीयपाद"इती जातः"-इविधवषाजञातवचनद

यरत लिब मसति ॥ " . . .

॥ परचमपचिका । १ । १५॥ ३८

मरददवतारक सरव विधत-"क ह यानर: सनीना इति

मारत;न किॉधाजलष वदत जातवदयतरथ इनिचतरथयातरी

रपम"-इति। असिन सल(स०७५.) छततीयखया मचि 4

"मरदधिरत"-इतिशरवणानमारतम। न किहॉतयादिकः परथ

मायाः किचलतीयः पादः। ततर "जलष"-इति ‘जनिधात

यवलरव लिङगम ॥

विविधचनदसवयज लिइगनर दरशयति-"ता उ विचछनदस:

सबति डिपदा: सनति चतषयदासतन चतरथयाडी रपम"-इति।

असिन सतरी एकादश डिपदा, इतराधतयदाः ॥ ,

अचतवलिझोपता मच' विधत-"जातवदस सनवाम

सोम मिति (स० १.c.)जातवदसयचयता"-इति॥

जातवददवताक मनवत सरव विधतत-"अगनि नरी दीधि

तिभिररखोरिति (स.०७.१.)जातवदव; हसतचयती जनयनतति

जातवखतरथ शहनि चतरथसयाडो रपम"-इति.। जातसय जगतो

वदिढलवात अगनिरव 'जातवदः' । हसताचयतीतयादि: दवितीय:

याद:; ततर"जनयनत"-इतिशववणाजनिधातयतर' लिइम॥

विविधचछनदोरपय लिडडगानतर दरशयति-"ता उ विचछनदस:

सहित विराज: सनति तरियभसतन चतरथसयाडी रप मडो रपम"

इति । अतराषटादश विराजः, इतराखिटभः ॥

० पखया मचौति वतर सचितम ।

चितौयाया इति वकतवयम,; न हि परथमा चक चतयदा ॥

कई बयता इतिपचविशयच सतम। ततच आदया एकादश विपदा, विशलयचरा

विराज: ; शिषटाचतरदश चिबभा । तदिड यदवा परसतात "वतीयखा चचि-ति,

यबीत 'परथमाया चच:-इति,तदभय मव भाषयकारबतख धम मावदयतौति सकटन ।

४० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अभयासोsधयाय समापतपरथ:॥ ५॥

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचरमपचिकाया परथमाधचाय

(एकविशाधयाय)पचम:खणड:॥ ९॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन।

पमरथधितरी दयाद विदयातीरथ महशखर:॥

इति शरीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

चौवीरबदधभपालसाबाजथधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवायणचायण विरचित माधवौय 'वदारथपरकाश नामभाय

ऐतरयबराहमाणसय पखमपघिकायाःपरथमीsधयायः॥

ll अथ दवितीयाधयाय: ॥

(तच.)

1 परथम: खणड: ॥

_2400

॥ ॐ॥ गौरव दवता पचम महरवहति चिणव सतोम:

शाकरसाम पटटिकनदो यथादवत मनन यथासतोम

यथासाम यथाचछनदरस राधोति य एववदयई नति

न पररति यतरिवतरत यतपशचमखाइडो रप'यडव डिरतौय

महसदततपनरयपचम यदरववदीवतिवदयदनतरवद

यडषखद यडधनवदनमधयम पद दवता निरचयत'

यदनतरिच मयदित यहगधवद यदधवद, यडनमद

यतयशमिद यनमबद, यतपशरप।" यदधयासवडिचदरा

इव चिहपशवो यजागरत जागता हि पशवोयडा

ईत बाईता हि पशवो यतपाई पाडा हिपशवो'

यददाम वारम हिपशवो यडविषडविईि पशवो यद

वयषद वयईिपशवोयचछकरयतपाई थिरकरवदयद

दितौयखाडी रप मतानि व पचमखाडो रपागौम

मश वो अतिथि मषडध मिरति पचमखाइड आजरय

4 "पतिचनदी"घ, ड: ।

४२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

भवति जागत मधयासवतपशरप पचम sहनि पचच

मखाडो रप मा नो यहा दिविसयश मा नी वायो

मह तन' रथन पयपाजसा बहवःसरचचासइमाउ

वा दिविषटय: पिबा सतरच रसिनो दव दव वो sवस

दव दव बहद गायिष वच इति बाईरत परजग पतर म

sहनि पचमखाइडो रप"यतपाञचजनयया विशति'

मरतवरतौयख परतिपतपाझजनययति" पचम sहनि

पकचमखाडी रप मिनदर इनसोमपा एक इनदर

नदय एदियकतिषठ बराहमणसत शनिनता व सोम

कतभि: पिनवनयपी' बहदिनदरय गायतति"धितौय

नाडा समान आतान: पतर म sहनि पचमखाडी

रप मवितासि सनवती वजबिईिष इति सतरो

मडतयाई पचचपद पचम शहनि पञचमखाडो रप

मितथा हि सोम इनमद इति सॉ मइतयाशी

पचचपद परकचशम sहनि पञचमखाइडो रप मिनदर पिब

डबथ सतो मदयति सॉ' मइत चयरभ तन परति

ठितपदरन सवरन दाधारायतनादवतन न मचयवत'

मरतरवा इनदर मौटव इति परयासी" नति न परति

पचमsहनि पकचमखाडी रप ता उ गायची

गायतरी वा एतखचाहख मधयनदिन वहनति' तई

॥ पालमपखिका । २. I १ 1 ४३

तबनदी वहति यसथितरिविडीयत' ताद गाय

चौष निविद दधाति ॥१(६)॥ !

अथ नवराचा यचनया परचम, मधयमतर ह। पचिया दवितीय

महविधततो -"गौरव दवता पकचम महरवहति चिणव सतीम:

शावरी साम पडिझनदी यथादवत मनन यथासतोरम यथासाम

यथाचछादरस राधीतिय एव वद"-इति । परवतर वागक गौरक

वीरक मिति दवताया रपवरय महम; ततर वागातमक रप

चतरथ शहनघलम,ि पचमसयाडी गौरवदवता निरवाहिका।सतोमाना

मधय दिनरणवी निरवाहिकः ॥ तसय तरिणवसव सतोमसय सवरप छनदी

मरव मानातम–"नवमयी हिडरीति स तिखभि: स पचभि:

स एकया, नवजयी हिडरोति स एकया स तिरवभि:सपजबभिः ,

नवभथी हिडरीति स पचभि:स एकया स तिखभि: , वजी

व तरिणव"-इति *। अनयाय मरथ: । एकलचखिभिः परयाव

रावरतनीय:; ततर परथमायासतरि: पाठ, डिरतौयाया: पछतव:

पाठ,ढतीयसया: सचदव पाठ: । डिरतौयपरयाय परथमाया: सचच

तपाठ, दवितीयखाः निःपाठ, ढतौयसयाः पछतव: पाठ: ।

ढतौयपरयाय परथमाया: पछतवःपाठ, चितौयसयाः सझतयाठ,

ढतौयसयातरिः पाठ: ॥ एव माइकताभि: सतविशातिसदधाकाभि

चमभसरिणव: सतोमी भवति। अनयतयरववद वयाखयम ॥

पखमसयाडी मननलिङगानि दरशयति-"यई नति न परति

यात सथित यातयाखमसयाही रपम"-इति । आकार; पर-शबदशा नाच

30 ता० बरा० रपर : ९, ९ख० ।

88 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

खिजञ मिति नकारइयन परतिषिधयत। यतत “खित' तिषठति

धालवथरप मपरचलित तत पचमसयाडी निरपकम॥

डितीयशsहनयॉ लि.इजारत पचमहनयतिदिशाति-“यडव

दवितीय महसतदतत पनरयतयचमम"-इति। नवराचापचया

यतयचम महरविदयत, तत परथड न भवति, किनत यदव डितीय

महसतदव पचमचन पन: करियत ; ताचलय' लिङगजात मतरान

सनधय मिलयारथी अ, ॥

तानि खिजञानि दरशयति-"यदवदयातिवदयदनतरवदद दष

खद यद दवधनवदयननधय म पद दवता निरचत यदनतरिच मयदि

बतम"-इति । परववद वयाखययम॥

अथ विशषलिङगानि दरशयति-"यडगधवद यदधवदयडन

मदयटपयटिवमदनमइदतपशरप यदधयासवद विददरा इव हि पशबी,

यजागरत जागता हिपशवी,यहाईरत बाईता हिपशवी,यतपाडर

पाडया हिपशवो, यद वारम वारम विहपशवी, यडविषडविईि

पशिवी, यडपषडपईि पशवी,यचछकरर यतपाड यलकरवद, यद

दवितीयखयाशी रप मतानि व पचमयाडी रपाणि"-इति।

दगधोधधनषयशिमचछहरपरत यदयदसति, तसव लिइम । तथाविध

पशरप यदसति, तदपि लिइम । पशरपसय बहविधतव मव यद

धासवदिलघादिना परपतर त ॥ अधिकपारदसय परचप: 'अधयास:" ॥

परवरतौो यावदसति, तावतोशयधिकपादीपतम ‘अधयासवत";

पशना मपि चतरथ:पादयीऽधिक मख मक परिगणखत ; आती

5धयासवत पशरगरय भवति । तदव "विलदरा इव-इतयनन सटी

करियत। विविधाः चदराः "विचदरा"; एकमादनयो नयन,

म ६भा०४१४पर० २प० दषटवयम ।

॥ परचमपतरिका | २ | १ ॥ ४५

तसादयनची नयन: ;-गजपचया अखः चदर, तदपचया

महिष: चदर, तती गौ, तती जलव पशष चदरव दरषटवयम ।

‘जागत' जगतौसबरड यदसति, तदपि पशरपम ; सोमाहिरण

परसल 8जगनधा: पशना मानीतलवाजागततवम । तथा ‘बाईत'

इहतीसमबई पशरपम : पशविषय छनदसा माजिधावन'

इहलया विजयन पशना बाईततवम । पडिचनदसमबड मपि

पशरपम ; पडिमखन पचावयव: उपता:पशवःपाडरा: । यत

'वारम' रमणौरय सॉ खरवणौदिभि: वाय भवति, तदप

पशरपम ; लीकजषि गवाशखादिपशव इति यदसति, तद 'वाम'

रमणीरथ इशयत । "हविषाद' हविसनतोपरत यदसति, तदपि पश

खरपम; पणवी डिदवतासबबइविखरपण लयत । ‘वपल

परद'वप:सतरोपल यदसति, तदपि पशखरपम : पाणवी हि वप :

पषटाझा भलवा दशयनत । "विदा मघवन"-इतयादिश महा

नाबीयपरव ‘शाकर" साम : ततसमबड मक लिइम। पाइ

मिति यत पनरवचन, तत पशसदधायज ; परवतर पडिचछनद

समबड मिति विशषः॥ "कवत'-इति वरतमानारथवाचिपरलचयोपरत

धातमाव विवचितम । एतव डितीयसयाही रप मिति परव

सझाम। एवच सति यानि डिरतीयहनयजञानि लिङगानि,यानि

चाच नतनानि, एतानि सरवाखपि पचमयाडी निरपकणि

दरषटवयानि ॥ "

a २. भा० १९६प० ९७प०-९९७पर.० १ई प० दरषटवयम ।

१ भा० २५०पर० १०प० दरषटवयम।

म सामरसटिहतास महानाबौसाम पथगव गरनय, तखारणयकाधययनातSधयापगरनति ।

8 २ भाव ४१३ पर. : प. दरषटवयम ।

४६ ॥ऐतरयबराझणम ॥

आजथशासतर विधतत-"इम मयवी अतिथि सषडध मिति

पचमसयाइड आजरय भवति ;जागत मधयासवतपशरप,पचम हानि

पखमयादी रपम"-इति। इम मवितयादि सल (स.०६.

१५.);जगतौचनदीयजञा आदया नवरच: झासरनौयाः अब ॥ ततर

ढतीयसया समचि जगतौचनदरकभय: चतरथपादभयोsधिकःपादी

"भारदवाजाय सपरथ:"-इतयष: समानायत । अतीऽधिकापादयला

लवादिद मधयासवशिषट' ततर पशसवरपम , पशोरपि पाद

चतषटयादधिक परय मखासय विदयमानवात ॥ तदतरविगायज पचम

जहनि विनियोल यक' योगयम; तरनादततपशचमसयालडो ‘रप"

निरपकम ॥

अथ परउगशासतर विधतत-"आ नो यहा दिविसयश, मा नी

वायी मह तन, रथन परयपाजसा, बहवः सरवचास, इमा उ वा

दिवषय,पिबा सलतसय रसिनी, दव दव वी वस दव दवग, बडद

गायिच वच इति बाईरत परउरग पचशम हनि पशमसयाशी रपम'

-इति ॥ आ नी यजञ मिति (स० ८.१०१.०,१०.) ड चरचौ,

आ। नी वायो इलका (स० ८.४६.९५.), सौषरय परथमखचः;रथ

नलयादि: (स० ४.४६.५-s.) दवितीय:, बाइव इतयादि: (सe e.

६६.१०-१२.) ढरतौय, इमा उ वा मितयादि: (स.०७.७४.१-३.)

चतरथी, पिबा सतखलयादि:(स० ८.३.१-३.)पचम:,दव दव

मिति(स० र.२७.१३-१५.) षषठ, डहदिति (स०se.cई.१-३.)

सम: । तदततसक इनहतीचनदोयोगद 'बाईतम' । अती

लिगसदधावायजञ महनि योगयतया तसव निरपकम ॥

क इम मट व इलकीनविशवारच सकम । तवादिती नवच. पवाच शासनौधा

भवनति, "इम मष वी अतिथि सषडधमिति नवाजयम'-इतिकरपी (७१९.)।

/"

H बादशमलीयचा यइणवारणायहपदाधिकमतौकयइणम।_

॥ पखमपतरिका | २ | १ ॥ 89

अथ शासतरानतरय परतिपद विधतती–"यतपाउचरजनधया तरिशति

मरतवतीयसय परतिपतयाचजनय'यतिपतर मजहनि पचमसयाइडोरपम"

-इति। अखिॉसलच परथमाया मचि (स० प.६३७.) पाचजनय

यति पद पचशबदयोगी लिगम ॥

अथ डिरतौयनाइा समानावलिगयकत' शसतरकरसि विधतत

"इनदर इनसोमपा एक (स० ८.२.४.), इनदर नदय एदिहि

(स० ८.५३.५.), उततिषठ बराहमणखत (स० १.४०.१.), sगिननता

(स० ३.२०.8,), लव सीम करतभि:(स० १.०१.२.), पिनचनतयपी

(स० १.६४.६.),छहदिनदराय गायतति (स० प८.ट.१.), डिरतौय

नाजञा समान आतान:,पचम जहनि पचमसयाडो रपम"-इति ॥

'आतान'शाखसिः ॥

अथ मदशबदलिगन पचपादपतपाइखलिगन चोपरत सत'

विधतत-"अवितासि सनचशती वजबिईिष इति(स० प८.३६.)

सत' मइत पाड पचपद, पचम जहनि पचमसयाडी रपम'

इति । आवर दवितीयपाद "षिबा सोरम मदाय"-इतिधवगत इरद

सत' मइवति। पचपादः विसटाः 8॥

ताइश मवानयवसत' विधत-"इतथा हि सोम इमद इति

सत' (स० १२०.) मइतयाई,पचपदपचशम Sइनि पचमसयाशी

रपम"-इति॥

पनरपि मदणदलिगपरत तरियपनदखॉ सत' विधतत

"इनदर पिब तभय सशती मदयति (स.०६.४०) सत' मदवडरभ;

क अवितसि सवती वकबईिष:, पिबा सोरस मदाय की शतकरती। वरष त भाग

मधारयन, विधा: सहान:पतना उर जय,समसजिन कवा७, इनदर सतपत"-इति।

88 - ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥ ।

तन परतिषठितपदन सवन दाधारायतनादवतन न परचवत’—

इति । परववद वयाखययम ॥

अाकार परशबदवजजितमरलवतीयशासतरसयानत परदपारणीय ढटच

विधतत—‘मरलरवा इनदर मीढव इति परयासो नति न परति पञचम

९हनि पचचमसयाङगो रपम’—इति । परिती परचपरणीय: परयास: ॥

तसिमसतच निविडान विधत—‘ता उ गायतरी गायतरी

वा एतसय तरिगरहसय मधयनदिन वहनति तईतचछनदी वहति, यासपसि

विविहीयत ; तसमाद गायचीष निविद दधाति’—इति । परव

वद वयाखययम ॥ १ ॥

इति शरीमतसायणारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराछणसय पचमपचिकाया दितीयाधयाय

( हाविशाधयाय) परथम: खणड: ॥ १ (६)॥

॥ चपरथ ददितीय: खणड: ॥

महानामनीषवच सतवत शाकारण सासतरा राथनतर

ऽहनि पञच म ऽहनि पचमखानहो रप'मिनदरो वा

एताभिरमहानातमान निरमिमौत तरवानमहानासनगरो'

sथो इम व लोका महानासतरा इम महानत

इमानव लोकानपरजापति: सटरद सरव मशकीदा

दिद कि च यदिमालोकान s, परजापति: सटरद

*‘यदिमान लीकान' क,ज,ठ;‘यदिमालोकान’ख,ग,ड,ज; ‘यदिमालीकान’

घ,ट;‘यदिमालीकान'-इतगरव वयवहारसममत: ।

पखमपतरिका ॥ ९ । २. I ate

सरव मशकरोदयदिरद किश'तचयाभरवसचकरीणा

शहरीतव ता जाधरवा: सौतरी जयराजत" यदधरवा:

सोमनी जयखजत" तलिमा अभवरसिमाना

सिमातव खादोरिथा वियवतउप नी हरिभिः सत'

मिनदर विशवा अववधचितयनरपी वषणवान पशचि

मानमडनवधनवान पतर म sहनि पखमखाडी रपि'

यडावानति धायाचयताभि वा शर नोनम इति'

रथनतरखध योनि मन निवरतयति रायतर लतदह

रायतनन" मो श दवा वाघतशनति सामागाथो'

ऽयासवान पशरप पतर म शहनिपचमखाडी रप लय

म य वाजिनदशवजत मिति ताचाचत:॥२(७)I

अथ शाकरसानमसमबनधन लिगन. यवा कची विधवकत

“महानाबीवतर सतवत शाकरट साबा राथनतर शहनि पहल

जहनि पचम सयाडी रपम"-इति । "विदा मघवन"-इतयादयी

नव ऋची महानाबोसककाः४। तासझातारः शाकराखन

साना "ि सतवत : अहलद मयगमलवादरोथनतरम ,शाझरी साम

च रथनतररपजनचलवाडाथानतरम : आतीsतर ता चटची योगया: ॥

"महानाबी'-शबद निरवनि-"इनदरो व एताभिमडाना

आन निरमिमीत, तसराहानाबनी थी इम व लोका। महा

----_---

शरई लाe महा० आ० ९-१. ऐ० आ० 8,१-१५ ।

G

तब साम चतथी गानगरनथभय: पथगवाकातम ।... " . 3, 4

५० 1ऐतरय बराहमणम ॥

नाब इम महानत:"-इति । परा कदाचिदिनटर: सवय मव ऐशख

यौदिगणशरमहान भविषधामीति विचाय"विदा मघवन"-इतयादि

भिचगभ: खामान गरगमडानत निरमितवान । तरआतमहतव

निरमाणसाधनतवागरहानाबौशबदवाचाः सममझाः । अपि च महा

नानो भरादिलोक तरयखरपा; लोकाध महानत: ; तबाद

बयासा महानाचौतवम ॥

नत शबरीषयपव साम शावर मिति वकतवय,–शकरी च

सतपादीपता; न चता ऋचसतथाविधा:, किनत पादचतषटयोपता

अनयभ:; तत कथ मासा शकरीतव मितयाशइशय शकतिपरदरवाच

करीव मिति निरवचन दरशयति-"इमाव लोकान परजापति:

खडटर सरव शमशाझीदादिद किच ; यदिमाझीकान परजापतिः

सटररड सरव मशकरोदयदिद किश, तचछकतया भवसतचकरीएि

शकरोलवम'-इति । परा परजापति: “विदा मघवन"-इतयादिका

महानाबौरनसनधाय, तदातमकान लोकान ( परजापति:) खटरा,

ताभिमहानाजीभिरनगरहोरत, पदमादष लोकष यत विचित

सथावरजाइमपराणिजारत सरषटवय मसति, ततसव खटर मशककोत

शकतिमान'भत अ3 ॥ यसमादरव परजापतिरकरोत, तसमाचनहित

कवात एता चटच:शबरीनामका: अभवन । आनन परकारण

तासा शबरीलव सममनतरम ॥

परकारानतरण महानाकी: परशसिति-"ता ऊना; सीखो

Sयखजत; यदरवा: सौजी भयखजत, तनिमा अभवसतलिसमाना'

सिमालवम"-इति। या एता महानाब: सनति, ताः'सीन उडा

अभयमजत'"अगनि मौल"-इतयारभय "यथा व: स साइासति"

* ‘शकतिमातराभत'-इति क, ख,घ ।

1 पखमपतरिका । १९। २. ॥ ५१

इतयनता दाशतयौना सौमा ; तसया: "सीनि:" उनईभाविनी: झलवा

परजापतिः अभितः सषटवान ; अत एवता: सहिता: सहिताया

नाजायनत किनत आरणयाकाणड 8 आकतरायनत 1 अथवा नवता

ऋचरितरवदय उपरि सथितवन परयजयनत । तथा चाणखालयन

शाह-"शावरी चयड महानाबः सतीनियसता अधचईकारर

- नव परचतथा तिरनी भवनति"-इति (सौ०७.१२.१०.)। असथाय

मरथ:॥ यदा शाकर सामना छठसतोच निषयाधत, तदानो मलहा

नाब कचः सतोचियखची भवति। तात 'परदयतया' खभावन

नवसलकासतथापि तिरन: करतवया । अधवरडकार मिति अतरीपाया

उदयत। अधिकनारडन यजञा मका मच मक मईच छलवयॉ.

भवति ॥ ततसतरयाणा मईचौना मकाईव सति तिरतर चटची

भवनतीति 1 सीटया सौन : उजञाइनपरकार: ॥ यसमालौभन: उनई:

सतीः परजापतिरसजत, तरआत ‘सिमी’-इलतवामका अभवन।

महानाबीना मनन परकारण सिमानामकलव विजयम "ि ॥

सतीनिय सझातरप ढरच विधतत-"खादोरिया वियवत,

उप नी हरिभि: सत, मिनदर विशखा अवीवधचितयनरपी वषणखात

परधिमानडानचधवान पचम जहनि पचमसयाददी रपम"-इति ॥

खादौरितयादिरधययनपरकारणकरलचः (स० १.४.१०.) उपन

इतयादिईितीयः (स० प.०३.३१.) इनदर विशखा इति (स.०

oचतरथ इति शष: ॥

अथ सामाबराहमणथी:-"इनदर: परजापति सपाधावत इच४, हनानौति, तरझा एत

चनदीय इनदरिरय वौरय निरमाय परायचदतन शतरहौति; तचछकरीणा, शकरीचन ।

सौमान मभिननत तत सिमा ॥ मझधा मकरीत तनमझा। महान घीष आसौतनवा

नाव:'-इति ता० बरा० १६.४॥ "ऐदरी मडानाम : परजापतवा विणीवा विवानिवख.

बा सिमा वा मइया वा शकरया वा'-इति आरष० बरा० ३९.1 . ''

५ ॥ ऐतरय बराहमणम ॥

९.११.१.) टरतौयः; एतनय मिलितवा परवोततसतीनियसाइया

दनरपसची भवति। ततर खादीरिलतसिन "वषणा मदति"

इति वषखलरव च दखत, "सीम वीणानति परय"-इति यटिव

मतवम, "इद विखा। अवीवधन"-इति वधनवतवम ; तानचतानि

पडन इनि योगयलवात पचमरव गमकानि ॥ " '

अचयततवलिडन धाया विधत-"यददवानति (स० १०. .

e४.६.)। धायाचयता"-इति ॥ . . .

ता धाया मन रथतरसामयीन: शासिन विधता-"आमि लवा

शर नीनम इति ( स०७.३२.२२) रथनतरसय योनि मन निवरत

यति :राथनतरर होतदहरायतनन"-इति। अयगमवादहो रथ

मतरायतनालव मनतिदव तशिडरम ॥

. . शालवरसामसमबनधि-सामपरगारथ विधतती-"मी य लवा वाघ

तबधनति (स० e.३२.१.)सामपरगाथी शयासवान ; पशरप, पतर म

ऽहनि पदमसयाडी रपम'-इति। ऋबदय मव सरवतर परगथयो

खरपम; अतर त, "रायखाम"-इतयषा (स.०७.३२.३.) हिप

दाधिकॉवन परचिनता 3 : तरआदरय परगाथी 5धयासवान । तख”

पशरपलवात पचम जहनि योगयम ॥ '

अचयतवलिगन सतरविरोधी विधत-"ब मड बाजिन

दवजत मिति (स० १०.१७८.) तखो परतयत"-इति॥ ६॥

इति धीमसायणाचारय विरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणासय पचरमपचछिकाया हितोयाधारी

(इविशाधयाय) दवितीय: खणड:॥ २(७)॥

2".

क तदरथ अगाथलच एवतिफलितम । "मी वा वाघतथनति सहिपद उपासन

1 पदमपतरिका | २ | ३ ॥ ५३.

॥ अथ ढतीय: खणड: ॥

मद बरहम चतरयषवविथति सफ पाइ' पचपद

पञचम sहनिपचमखाडी ररय मिनदरो मदाय वाडरध

इति सत'महतयाइ'पचपदपञचमऽहनि पञचम

खाडी रप सचा मदासतव विशवजनया इति सत'

मइटचछभतन परतिषठितपदन सवन दाधारायतना

दवतन न परचयवत त मिनदर' वाजयामसौति

परयास:स वषा वषभी भवदिति पशरप पतर म

sहनि पचमखाडी रप ता उगायची गायतरी वा

एतख चाहच मधयनदिन वहनति तईतचछनदी

वहति'यचितरिविडौयत'तखाद गायचौय निविद.

दधारति ततसवितईगौमह' sदा नोदव सवित

रिति'वशवदवख परतिपदनचरी राथनतर शहनि

पचम sहनि पचमखाडोरप'मट य दव:सविता

दमना इति साविरच मा दशष सवति भरि वाम

मिति वारम पशरप परचचम sहनि पञचमखाडो रप

मही दावापथिरवी इहजयल इति दावापथिौरय,

वडोचति पशरप"पचशम शहनि पचमखाडो रप

मभरविमा वाज इनदरो नो अचछलयारभव वाजीव)

खद विपदम'-ति आशव शरौ०७३। सामसहिताथा त (उ०आ० व २९९.९-7

दषच एवनयख सामगाथाख मनया इतनम। . . . . . . . ."

५४ ॥ऐतरय बराहमणम ॥

पशब:पशप"पतर म शहनि पञचमखाडो रप" तष

जन सवरत नवयसौभिरिति वशवदव मधयासवतपश

रप" पचम sहनि पञचमखाडो रप'हविषयानत

मजर खरविदौलधानिमाफतख परतिपदधविषातपनम

sहनि पचमखाडो रप" वप तचिकितष चिद

सविति मारत वपषतयकम sहनि पचमखाडी रप

जातवदसमनवाम सोम मितिजातवदखाचयतामिन

हाता गठहपतिः स राजति जातवदव मधयास

वतपशरप"पचचम sहनिपचमखाडो रपम ॥(३)८॥

पशपादपततया पाबवलिइयकत सतरो विधतत-"पररद बरहम

वकतयवाविथति (स० प.३७.) रल पाई; पचपद, पचशम

Sइनि पचमतसयाही रपम'-इति ॥

मदशबदन पाडवन च लिङगइयनीपरत सॉ विधतत

"इनदरी मदय वावध इति(स० १.८९.) सरज महतयाई ; पशच

पद,पखम जहनि पखमसयाही रपम"-इति ॥

मदिधातलिङगक तरिबपछनदख' सतरो विधतत-"सतरा मद

ससतव विखजनया इति(स.०६.३६.) सॉ मइत वशयरभ; तन

परतिषठितपदन सवरन दाधारायतनादवतन न परचयवत"-इति॥ !

शासतरानत परचपरणौरय ढरच विधत-"त मिनटर वाजयारमरसौति

(स० प८.८२७-०.) परयासः; स वषा वषभी मवदिति पशशरप,

पचम जहनि पदमसयाडो रपम"-इति। सवषतयादिखरतीयः

पाद: ; ततर वषभशबदधवणात पशरपलवम ॥ :

॥ पखमपतरिका | २ । ३ l. K.

तलिसतच निविदयारन विधतत-"ता उ गायतरी गायतरी

वा एतसय तरहसय मधयनदिरन वाहनित ; तईतचछनदी वहति,

यसिविविडीयत; तसमाट गायचीय निविद दधाति"-इति ॥

वखदवषणसय वचदरय विधतत-"ततसवितरणीमह, अदया

नीदव सवितरिति,वशखदवसय परतिपदनचरी ; राथरतरजहनि

पचम हनि पचमसयाडी रपम"-इति। "ततसवित"-इति (स०

५.८२.१-३.)ढच:परतिपत,"अदया न:"-इति(स.: ५.२.8-ई.)

चोइनचर:; ताबभौ रथतरसमबनधिनौी। अहधायगमावात राथ

नतरम ; एव लिइ’ सममादनीयम ॥ . . . . . .

रमणीयतववाचकन वामशबदलिगन यकी ढरच विधतत

"उदथदवःसविता दमना इति(स.०६७१.४-६)सावितरम:

आ दाश व सवति भरि वाम मिति वारम पशरप, पचम. जहनि

पशमसयाडी रपम"-इति ॥ सावितरलरव सपषटम । "आ दाशष'

-इति चतरथ: पाद: , तनतर "भरि वामम"-इति वामशबदररप

लिङग" पशरप मसति ॥

पशवाचकनीचशबदरपण लिगन यज चतषकटॉरच विधतती

"महिी दावायथिरवी इह जयषठ इति(स० ४.५६.१-४.) दावा

पथिवीय ; रवडी चति पशरप, पचम जहनि पचमसयाही

रपम"-इति । रवदितयादिचतरथ: पाद: ; तातरोचतिपडवाभि

धायक: शबदोSरित ॥ . .

ऋभदवतरक सतरो विधतत-"कभरविभा वाज इनदरी नी

अचछतयाभव (स० ४.३४.);वाजी व पशव: पशरप, पचम

इनि पचमसयाडो रपम"-इति | पशोईविदन दवतावलवा

दव वाज:; वाजशबद: पशरप खिइम ॥

५ई : - ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अधयासलिइक सरव विधतत-“सतव जन सतररत नवयसीमि

रिति(स.०६.४८.)वशखदव मधयासवतपशरप,पचम जहनिपतर

मसयाडी रपम"-इति। चियपझदख सल "विश आदवी"

-इयकःपादोsधिक: परचियत 8,सोशय मधयासी लिइम ॥

शसतरानतरखय परतिपद. सतरो विधत-"इविषयनत मजरी

खविदौलथागनिमारतसय परतिपदधविषमतयचम जहनि पचमसयाडी

रपम"-इति। हविःशबदोपततव मातर (स० १०.८८.) लि.इम॥

वषाशदीपरत मरहवतारक सतरो विधत-"वप तचिकितल

चिदसविति (स० ६.६६.) माररत ; वपषपरतयकम Sहनि पचम

सयाही कषम"-इति। "मरती वावधत"- इतिधवणानतपरव

मारतम ,वप:-शबदलिश" त सपषटम ॥

अचयततवलिइयनना मरच विधतत-"जातवदव सनवाम

सोम मिति (स० १.८८.१.) जातवदसय चता"-इति ॥

अधयासलिगन यॉ जातवदोदवताक ढरच विधतत

"अनिहाता टहपति: स राजति (६.१५.१३-१५.)जात

वदरा मधयासवतपशरप,पचमशहनि पदमसयाडी रपम"-इति।

तरियपछनदकखय ढचसयावसान "ता तरम"-इतयधिकः पादी

'sधयास: '' ॥ ३ ॥

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचमपतरिकाया दवितीयाधयाय

(इविशाधयाय) ढतौय:खणड: ॥ ३(८)॥

•"

‘ शर. "विश आ दवीरथवाम"-इति स० ६४९.१५।

"ता तरम तवावसा करम"-इति स०९.१५.५ । ''

॥ पचमपचिका । २. I ४॥ 93

दवलच वा एतदातषषठ महदवलच वाएतआग

छनति य षषठ महरागचछनति न वदवा अनयोनयख

रह वसनति" नॉरवतोगडि वसतौबाहददयथायथ

मविरज चतयाजानयजनयसमपरदाय तदयथतिईतन

कलपयनति यथायरथ जनतारतदाहरनल: परषितवय'

नतबरवषटकव वागवा चतषा आयत व वाक

षछ जहनौरति यडत पल: परथयरयडतरवषटकरबरवाच

मव तदाशा धानता कणवही वहराविगौ मचछय

रयडभितरन परवनयरयद भिरन वषटकयरचयतादयजञख

चथवरनयजञाचआणातमजञापत: पशभयो जिहमा ईय*

सखाडमशयएवधिमषितबय मगमशयो sधि वषट

कव त न वाच माझा शानता कणवही वाह

रासिवगौ मचछनति नाचयतादलखचवनत न यजञात

पराणात परजापत पशभयो जिहमायनतरति॥(8)e॥

अथ षषठ महरारभयत-"दववदव वा एतदयत षषठ महदव

वव वा एत आगचछनति, य षषठ महरागचनति"-इति ॥ इाद

शाह-मधय नवरातरानतरगत यठाषडह यात षषठ महरसति, तद

तत 'दवदव व" दवाना निवाससथान मव | एव सति ‘य'

यजमाना: षषठ महरनतिषठनित, एत दवाना निवासखान

मागचछनति 1

C

a 'इशय डी, भा०-घ I

५८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अथानघिवदन ऋतष ऋतयायासक कविदविशष

विधात परखौति-"न वदवा अनयोनयख टह वसति, नल

अतोगड वसतौलधाडसतबथायथ खतविज ऋतयाजान यजय

समगरदरय तथतकरपयनति यथायरथजनता"-इति। दवाः

सव पि अनयोनयाशरय ठह वास. नव करवनित ; किनत खख एव

रह। एवचसयतरनयतीरनधसय खान न वसति, किनत सरवॉपि

वसनताबयतः खख एव खान निवसति॥ तरआत कारणात

यथायरव खखखान मनतिकरमय सरवोयलिवजः ऋतयाजान

यजय: ; "आसमपरदायम" अनय औी अदलवा ॥ आय मरथ-चतय

डाणा परचारी यदा वतरतत, तदनो मचवरणः वसलगतन

मवण होनादोन परथति, अत च याजथया वषट करवनति ;

अधचयजमानौ त परषिरतौो खखयाजया होव परयचछतः। तदि

परकतावनषठानम । अतर त तौ होव न परयचछत:, किनतखय मव

याजया पठत इति। तथा सति‘यथत’ तो त मत मनतिकरमय

सरवाकयदधविजः'कखयति'खखपरयोजनसमरथन इरविति। ऋतना

तथा कखन सति'जनता'जनसमह: 'यथायरथ' ख ख सथान

मनतिकरमय वयवखिताः सखिनी भवनति। एव मतयाजा अनतर

परखताः। तबतबियत,–कि मतयाजय मषवषटकारी परजाति

वन कतरतवया वत करतवौ १ आहोखिपरकारानतरण करतवौ १

वति ॥

तच तावदकरणपच सपनधराति-"तदाडॉरनलव: परषि

तव नलवषटकलब, वागवा ऋतलषा आयत व वाक षडशह

नीति"-इति ॥ चतयाजथारथ मतरावरऐन पठितवया मनवा:

'ऋतषा'। त: मषम वजहाचादीन परति च न परषितचमम

॥ पखमपचिका । २ । ४ ॥ ५c.

"होता यचदिनदरम"-इतयादिभि: अ8 परषण न कतरतवयम ॥ होतरा

दिभिनध ऋतपरषमनवरन वषट करतवरय, याजथालवन न पठितवया

इयरथ:। तवय मपपतति:-यऋतपषः, त सरवपि 'वागव’

वयपव; वाकच षल परहनि 'आयत' समायत;न डि समा

माया वाचि मननगरयोगी यजथत इति निषधवादिना मभिपराय: ॥

तषा मव मत माथिलय विधिवादिना पल दीरष दरशियति

यदरतपव: परथयरयदवतरवषटकरवाच मव तदपता धानता मक

वही वहराविणी मचय"-इति। य ऋतषारतापरवकी

वषटकारधानशौयरन, तदानीम "आपता' समापता वाच मव

कचच यः। कौइरशी वाचम १ ‘कटकणवहीम'। 'वह' बालीवईसय

लाइलादिवइनपरदश:,‘कण'भनः,"इजी भच"-इति धातः।

वकणी भजनो वही वाहन परदशो यसया वाच:, सा 'कटकणवईौ',

वानतलवाद जञभार वोट मशाललयरथ: । ‘वहराविरणौम' अशकष

वहननिमितती रावी रोदनरपी धवनिरयसया:, सा ‘वहराविणी'

ताइौम ; उपदरवइययता छतवा वारच विनाशयय:॥ !

एव मनषठानपच दोष मददा निषधपच वयवसति सहित

विधिवादी सवाभिपरत मनषठान. इदि निधायनिषधपव बाध मप

चसपति-"यडभिरन परथयरयडभिनन वषट करचतादयशसतर

चवरनयजञातपराणावगरजापत: पशथी जिहमा ईय."-इति । "यद’

यदि वा ‘एभि:" मनवरन परथय:, यदि वा एभिमनवयालथामनवरन

वषटकट । तदनी मलिवजी यजञसय ‘अचचताल' अविनटागरयो

गात 'चवरन' विनलय, यजञपरयोगः साजो न भवदितयरथ: ।

किब तखादयजञात खकीय पराणात 'परजापत' खकौययजमाना

F २आ० ९३-९४.३ पर० एव १० ईटबय:।

६० ॥ऐतरयबराहमणम ॥

इवादिपशभवध "जिहमा ईय' चलविज: सरवलपि कटिला भखा

गचछय,यजञपराणयजमानपश यी चटा भवयरितयरथः॥

इसरथ विधिनिषधपचयीरभयोरपि बाध मददा परकारानतरख

अनषठान सिदधानतयति-"तसराइमशय एवधि परषितवय मम

थोधि वषटकरय; रत न वाच मासा धाता मकणवहीवहरा

विणी चनति; नाचघतादयजञख चवनत, न यजञापराणापरजापत:

यशभयो जिहमायतवि"-इति । यसआदनषठानपच धानता मिलधा

यशनदोष:, परितयागपच त, अचयतादितयायदोष, ‘तसराद'

दोषडयपरिहाराय परकारानतरणानवशयम । परवरतौी हि मतरावरणः

रत पषमनव पठिलवा होतारयजसवादिना परथति ; होनादयय तत

ऊरष' याजया पषरपा मव पठिखा, तदनत वौषडिति वषट

करवनति ; आतर त न तथा कतरतवयम । कि तईि : 'कटगमशय'

एव"अधि' चटकशिरखकयी होतरादिविषयपषभय एवोई' मतरा

वरणी होतारयजलयादिना परयत, होवाटयख तलव चम

थोधि वषटकतय "तभय हिचानः"-इतयायकशिरकः पव

योगय:। तथा सति परतिवदनषठानाभावाटवाच माता मितयादि

रनषठानपच परीतो दोषी न भवति; अनषठानपरितयागया

यभावात परतिषधपच परोतरोचयतादितयादिदोषीपि न भवि

थति j। ४ ॥

इति शीमततायणायविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पखमपबिकाया दवितीयाधयाय

(इविशाधयाय) चतरथ: खणडः॥ ४(०)॥

॥ पशचिमपचिका । २ । ५॥ ई.१

॥ पराथ पजवस: खणड: ॥

पारचछ पौरपदधति' परवयो: सवनयो:' परसता

तयखितयाजयाना रोहित व नामतनछनदो यतयार

चछप मतन वा इनदरः सपत खगौलोकानरोहदरोहति

सपत खगरगलोकान *य एव वद' तदाहरयतय ञचपदा

एव पञचमखानहो रप' षटपदा: षषठखाथ करवा

तसपतपदा: षछ Sहचछसयनत इरति षडभिरव पद: षषठ

महरामवनयपछिदोवतदहरयलसपतरम तदव सपतमन

पदनाभयारथय वसनति' वाच मव ततयनरपयनति

सनततव सतनतखTहरवयवचिछननरयनतियएव विददासो

यनति॥(५)१०॥

अथ सवनइय काशविदगविशषानविधतत-‘पारचछपीरप

दधति परवयो: सवनयो: परसतातपरसथितयाजयाना रोहित व नाम

तचछनदी यतयाररचछप मतन वा इनदर: सपत खगौलोकानरोहत’–

इति । परातससवन माधयनदिनसवन च या: ‘परखयितयाजथा:’

चीदकन परकातित: परापता:, तासा परसतात ‘पारचछपौः' परचछ

पाखयन महरषिणा ‘' दषटा ऋटचः उपदधय:;– एकका पार

चचपी मच सजञा पधादकका परखितयाजया पठत। “डष

क. इह सरवचव परववत(४८ प०‘* क. ’) पाठभदोsवगनतवय: ॥

१ ‘परचछप चषि: ; परववचछप:, परषिपरषि शपीsसवति वा’-इति निद० १०.

४.५। ‘पारचकपी दवीदासि:’-इति चकट० अन० ।

६२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

विदरदषयाणास इदव,"-इतयादया:(स० १.१३०.६.),"षिबा

सोम मिनदर सवान मनदरिभि:"-इतयादयाख (स० १.१३०.२.),

पारचछय:ऋच:8सचकारण विसपषट मदाइता: "ि । पारचछ

पौघल यचनदोसति, तदिद रोहितनामकम। कथ मिति,

तदचत-‘एतन' पारचछपौयन छनदसा परा कदाचिदिनदर:

'सपत खगॉन लोकान अरोइत' उततमाधमभौगावखयानविशषान

सपतसदधाकान खगान रोइतयनन छनदसति ‘रोहितरत' नाम

समयकतरम ॥ वदरन परशसति- "रोइति सपत खगौलीकान शय

एव वद"-इति ॥

तसिन छनदसि चोदय मददावयति-"तदाडरयतपशचपदा एव

पचमसयाडी ररप षटपदा: षषठसयाथ कसमालसपतपदा: षलजहच

सवनत इति"-इति ॥ सडासामयातपशचपदीपता चच: पचम जहनि

यजञा, पटपदीपताः षषठजहनि; पारचपयसत सपतपदोपता,

अतः षडलहनि तचचसन मयकत मिति चौदयवादिना मभिपराय:॥

ततवोततर माह-"षडभिरव पदः षषठ महरापवनवपकदिव

तदइरयसपतम, तदव समन पदनाथारभय वसति, वाच मव

ततयनरपयनति सनततव"-इति । एककसया सचय एत परथम

भाविन: षट पादासत: सवरयदा षषठ महरायवति, तदानी सप

रितारम यतततम महसतत "अपचछि दव' पथकवन तसय विचछद

कलव पराधोति; तसआटविचितरवसकषम महसतनसमनपादनाभि

मखचनीपकरमय वसति॥ तथा सति विचितरा वाच मव पनरपि

अ ता: सरवा: स० १.१९७-१३: सजागता: दरषटवया: ।

१ "घषठसय परातसवन परसथितयाजथाना परसतात"-इतपकरमय "कषचिनदर दवषपाणासी इनदव:'

०-०"पिबा सीन मिनदर सवान मनदरिभिव:'०-०पारचय:"-इति आध० चौ०,१.९-११ ।

पचमपशचिका । २ । ६ ॥ ‘ ई ३

परामवनति । तञच मधयमयोसतरगरहयोः सनतल समयदयनत ॥ वदनपरवक

मनषठान परशसति–“सनततसतरा हरवयवचिकवरयतित य एव विददासी

यनति’—इति ॥ परववद वयाखगयम ॥५॥

इति शरीमातसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐितरयबराहमणसय पाशचमपशचिकाया इितौयाधयाय

(इारविशाधयाय )पशचिम: खणडः ॥५(१०)॥

॥ चपराथ षषठ: खरणड: ॥

दवासरा वा लोकष एष, समयतनत'त वदवाः

षछनवाईयो ' लोकशयो ऽसरान पराणदनरत तषा

यानयनतरहसतौनानि वसनयाससतानयादरय समदर

परौषयनत त एतनव छनदसा ऽनहायानतरहसतौनानि

वसनयाददत' तढदततपद पन:पद स एवाडश

आसञजनाया ss धिषतो वस दतत निरन मथय:'

सरवथयो लोक थयो नदत य एव वद।॥(६)११॥

पारचछपौरय छनद उपाखयानन परशसति –“दवासरा वा एष

लोकष समयतनत; त व दवा: षछनवाईभयी लोकभयो sसरान

पराणदनत ; तषा यानधानताईसतीनानि वसनयाससतानयादाय समदर'

4-न|S= 1 1 1 s

६४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥ :

परौमयनत ; त एतनवछनदसा नहायानताईसतौनानि वसतरधाददत :

तबधदततयद पनः पदस एवाबश आसखानाय"-इति। दवाचा

सराख लोकविषय यदा 'समयतनत' सडराम मकवत, तदानी'त'

दवाः षषठ महरलटौय, तलसामथन असरान लीकभथी निसतारित

वनतः। तदनी 'तषाम असराणा समबनधीनि 'वसनि'धनानि

बडबासन । कौडणानि ? 'अनतईसतीनानि' इसतिना गजाना

सपरि भारवइनाय सथापितानि; यइा खकौयसय हसतसयानतरमध

गोपयवन सथापिततानि "अनतईसतौनानि'। तानि सवाखादाय

असरा 'समदरी परौमयनत' समदर"गतवझिरसरी: तखिन समदर

तानि धनानि परकरियानि ॥ "त'दवा: एततपशारचपौरय छनदी

नषठाय, तरमालसामथरयात "अनहाय'पषठती गतवा हसतिना सपरि

चितानि तदोयलहरत वरियतानि वा सरवागिण धनानि 'आददत'

सवीकतवनत: । समदर मधय सथिताना धनाना माकरषण कि साधन

मिति, तदचत-'तत' ततर पारचछपोयाख यदततपदपाठी

शसति कौइशम १ "पन:पद' षटस पादष समासय पन: पशचा

दचारयशमाणः 8 "समफीकी न आ गडि"-इलवविध: सम:

पादः"", स एव धनानाम "आसमबनाय' आसजञानि छलवा समा

करषणय अबणी भत; यथा लीक अबरीनाझथत, तडस

मन पादनासरधनानयाकटानि ॥

वदन परशसति-"आ डिषती वस दतत निरन मनयः सरवशयो

लोकभयो नदत य एव वद"-डति । वदिता "ददिषत:' शतरी:

क. "अभयास भयास मरथ मनवनत, यथाहिी दरशनीयाही दरशनौयति ; तत पशच

पखशलम"-इति निर० ९०.४.५।

fि "इशयबिनदर०—०सकौकी न आ गहि"-इति स० १.१३९.ई ॥ इागइिपदानयास: ।

॥ पशचिमपशचिका । २ । ७ ॥ ३५

समबनधि ‘वस' धन सरव मादतत; एव च ‘हिषनत' शक लोकभयो

‘निरणदत' निससारयति ॥ ६ ॥

इतिशरीमालसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमाणसय पाचमपशचिकाया हितोयाधयाय

(इाविशाधयाय) षषठ: खणड: ॥ ६(११)॥

॥ पराथ साससम: खणड: ॥

ढौरव दवता षषठ महरवहति' चयसविश शर, सतोमो

रवत सामातिचछनदाशकनदो यथादवत मनन' यथा

सतोम यथासाम' यथाचछनदस' राधनोति य एव वद'

यह समानोदरकि+ ततषषठखाजञडो रप'यडगाव ढतौय

महसतदततयनरयरषषठ' यदशववदयदनतवरददयतयनरावतत

यतयनरनिवतत' यदरतवढदयतपरयसतवढदयखिवढदयदनतरप'

यदततम पददवता निरचयत' यदसौ लोको sवय

दिती'यतपारचछप' यतमपनपद’यवराराशस यनतराभान

दिषठ यदरवत यदतिचछनदा यतकत यत ढटतौयखानहो

रप'मतानि व षषठसचाजञडो रपाणय जायत मनषी

धरीमणीति षषठखाहन आजय भवति पारकप मति

o ‘वयसतरिशर:’क ; वकलपिक: ।

* ‘समानीदक’ख, डा ;वकलपिक: । एव मततरवापि ।

(3

ईई ॥ ऐतरय बराहमणम ॥

चनदा: सपतपद8 घट शहनि षषठखाडो रप"सतौो

बईिरप नी याहि वौतरय आ वा रथो नियकवान

वचदवस सषमा यात मदरिभियवा तो मभिदवयनती

अशविना' अवरमाह इनदर वषचिनदरा परसत. चौषली

य गो अगन शगहि व-- मौलितो'य दवासी

दियकादश खय मददादरभस खणचयत मिति परजग

मारचछप मतिचनद: समापद धल Sहनि षषठखाडी

रप' स पया महाना मिरति मरतवरतौयख परतिप

दनतो व महदनत षषठ मह: षट शहनि षषठखाडी

रप'चय इनदरख सोमा, इनदर नदय एदिहिपर नन

बरहयणसपतिरगिननता दवि सोम करतभि: पिनव

नयपीनकिःसदासो रथ मिरति तरतौयनाहा समान

आतान:एशल ऽहनि षषठखाडो रप" य टव रथ मिनदर

मधसातय इति सच'परचलप मतिचनद: सपरद

षल शहनि षषठखाडो रप'स यो वषा वषणवभिः

स मोका इति सन' समानीदक षछ sहनि षषठ

खाडो रप मिनदर मरतव 8 इहपाहि सोम मिति

यज दतभिः सारक पिबतवचखादइतयनती खादोऽनरत

षषठ मह: षषठऽहनि षषठखाडो रप"तद चटरभ

* "सपतमपद"ड अशदध: ॥ - "तवा" का , अशड: ॥

"सीम"क, ग; अथवा । 3 "मरवा" का ; अशड:।

॥ पखमपचिका | २ | se ॥ ईs

तन परतिषठितपदन' सवन' दाधारायतनादवतन न

परचणवत'sय ह यन वा इद मिति परयास: खरमर

वता जित मियनती व जितत मनतःशषठ मह: षषठ

sहनि षषठखाडो रप' ता उ गायची गायची वा

एतरच चाहख मधयनदिन वहनतितई तचनदोवहति'

यचितरिविडौयत तसवाद गायबौष निविद दधाति'

रवतौरन: सधमादरवTa. इनदरवतखतोतति रवत पषठ

भवति'बाईत ऽहनि षषठ ऽहनि षषठखाडो रप"

यडावानति धायाचगता" तवा मिडि, हवामह

इरति बहती योनि मन निवरतयति बाईत होतदह

रायतननदर मिददवतातय इति साममगाथो निनद

कवान षषठ ऽहनि षषठखाडी रप व मषवाजिन'

दवजत मिति ताचा चरतः॥ ७(१२)॥

इदानो षषठ महरविधतत-"दौीरवदवता षषठ महरवहतिचय

सविश सटरीमी हवरत सामातिचनदाशछनदी यथादवत मनन यथा

सतीम यथाचनदरस राधोति य एववद"-इति। परवतर वागको

गरक दौरक मिति याततीरय दवताखरप सहम ,सय दवता

षषठ महरनिरवहति ॥ तथा सतोमाना मधय तरयसविशसतोमी निवा

इक: । तसय सतोमसया सवरप छनदोगरव माकनायत-"एका

दशभयो हिडडरीति स तिरवभि: स सपतभि: स एकया, एकादशभयो

a "रवा' क, ख, ग,घ, ट; वयावहारिक: ।

f १८,२० पछो दरषटवय ॥

ईट ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

हिजरीति स एकया स तिरवभि: स सपतभिरकादशभवी हिडडरीति

स सभिः स एकया स तिसभिरती व वयरिवश:" इति क

(ता बरा० ३.३-e.ख०) I असयाय मरथ:-एक एव ढाच

खिभिः परयायरावतरतनीय: ; ततर परथम परयाय परथमायासतरि

परयास, मधयमाया: सछालवी वयास, उततम या: सकतपाठ: ;

डिरतौयपयाय परथमायाः सछातमाठ:, मधयमायासतरिरभयास, उकत

मायाः सपतकलवीsयास: ; ढरतौयपयॉय परथमाया: सपतकलवी

ऽभयास:, मधयमाया: सझतपाठ, उततमायासतरियास ; एव चय

सतरिशसतीमनिधयकतिरिति । "रवतीरन: सधमाद"-डरघसया उचि

उतयरव, साम ‘हवतम'""॥ गायतरयादिभय: छनदीभयो चरधि

कलवाद"अतिचछनदा'-इति कलयचित छनदसी नामधयम। अनधत

परववद वयाखयम ॥

आतर शसतरगतमननलिजञानि दरशयति-"यई ससानीदरक

तरषषठयाडी रप ; यडव ढरतौय महसतदततपनरयषषट; यदख

वदयदनतवदयापनराडकत'यपनरनिवतत" यदरतवदयातपरयसतवदयकविदय

दनतरप यदकत न पद दवता निरचत यदरसौ लीकी यदितः"

इति 1'समानीदक' तखयसमासिक यदरित, तरषषठसयाडो रपम।

"यदधि एव' यदयनघत परवतर परथम ननह ढतीय महरसति, तत

पनरनतरानसनधयम :-यदिदनो पठ मह: परखयत, तत तदव

भवति; परवसिसततिीयहनि, यदयकति सज, ततत षलपि दरषटवय

मिलरथ:। यदशखवदितयादिना यदसौ लोकोनयदित इलयनतन

तानधतानि लिइगानि दरशितानि थढ॥

- वयसतरिशसतीमख विषटतय:परख ; कतचादया समच'शखया,सवशयम ।

f २ भा० ६१४ प०""दरषटवयम ॥ : ९ प० ९१प० दरषटवयम ॥

॥ पखमपतरिका | ३९ | se ॥ हc.

अथ विशषलिडानि दरशयति-"यतयारचछप यसपतपद यातरा

रोस यातराभानदिषट यडवरत यदतिचछनदा याकरत यत ढतीय

सवाइौ रप नतागनि व षषठसयाडो रपाणि"-इति ॥ परचछपन

इधरट 'पारचछोपम'। सपतभिः पादरपतरॉ 'सतपदम' ॥ नराशासाखय

समबनधि "नाराशॉसम'॥ नाभानदिलन दषरट "नाभानदिषठम' ।

हवतसातमसमबनधि ‘हवतम' । सपतमभयशनदीभयोजधिकाचरा ‘अति

चनदा'। भतारथवाचिपरतयययत' धातमारव ‘करत' तदनयत

मनज वा ढतौयसयाशी निरपकम। एतानि सरवाषिण परषठ

सयाडी निरपकाणि वदरितवयानि ॥

अथाजथशासतर विधत-"अरय जायत मनषी धरीमणीति

(स० १.१२८.) षषठसयाइ आजरय भवति,पारचछप मतिचछनदा:

सपतपद षछ जाइनि षषठयाडो रपम"-इति । परचछ पन दषटलव

मक लिङकम, अतिचछनदसव दवितीयम, सतपादोपतलरव ढरतौयम ;

एतन लिङगठनयण षषठसयाही निरपकम ॥

अथ परउगशासतर विधतता-"तीरण बईिरप नी याहि बीतय

आ वा रथी नियलवानचचदवस सषमा यात मदरिभियवा सतौम

भिदवयनती अखिनावरमह इनदर वषविनदरासत धौषबोल राणी आन

यशहिदवा मौबतिी य दवासी दियकादश खय मददाटभस

मणचयत मितिपरउग, पारचछप मतिचछनदा: सपतपद'घट इनि

षषठखाडी रपम"-इति। "सतीरण बईि"-इतयावरलचः(स.०

९.९३५.१-३.); "धा वा रथ:"-इति (स० १.१३५.४-६.)

डितीयः "सषमा यातम"-इति ( स० १.१३७१-३.)ढतीय:

यवा सलीमभि."-इति (स० १.१३८.३-५.) चतरथ:;"अवरमह:"

-इति (स० १.१३३.६-७.) व ऋचौ, "वषविनदर"-इलका

s० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

(स० १.१३८.६.), उभामया पचमकच:; "असत धौषल"

इलका (स.०१.१३८.१),"शरी य.य."-इलका (स.०१.१३०.७),

"य दवास"-इयका ( स० १.१३८.११.), एतकतिय: षषठ: ;

"इय मददात"-इति (स० ६.६१.१-३.)सम: । इलतलसरव

परउगशासतर कयात ; लिङगानि परववत ॥

शसतरानतरसय परतिपद ढरच विधतत-—"स पया महाना मिति

(स० ८.६३.१.) मरतवतीयसय परतिपदनती व महदनत: षषठ महः

षट हनि षषठसयाइडो रपम"-इति । अतर मनहाना मिति मह

चबद: पादरयानत दशयत, षषरट चाहः यठयाखथसय षडइसयानती

भवति, तसरादनततवलिलन वाल हनि योगयम ; यददा महततीय

धिकरयानसयाभावात महदनत इति अनतवलरव वयाखशयम ॥

ढतौयनाइा सह सममान शखबनियज'मनवजारत दरशयति

"तरय इनदरपरसथ सीमा( स० प.२.), इनदर नदीय एदिहि(स०

८.५३.), पर नन बराहमणखति (स० १.४०),रनिनता (स.०

३.२०.), लरव सीम करतभिः (स० १.८.१.), पिनचनतयपी ( स० १.

६४.), नकि: सदासी रथ मिति (स.०७.३२.) ढरतौयनाइा

समान आतानः; षडलहनि षषठखाडो रपम"-इति॥

परचछपन दषट' सतरो दरशयति-"य लव रथ मिनदर मधसातय

इति (स० १.१२.) खरश पारचछप मतिचछनदा: सपतपद घट

ऽहनि षषठसयाही रपम"-इति ॥

तचयावसानावलिटटीपत सतरो दरशयति-"स यो डषा इण

भिः समीका इति(स० १.९००.) सरण समानीदरक, षडहनि

षषठसयाही रपम"-इति ॥ "मरलवान नी भवत"-इतयसय चतरथ

पदसय सरवाखच विदयमानवासमानीदकतवम ॥

॥ पचमपतरिका ॥ २ ॥ se॥ ७१

बचानक सझानतर विधत-"इनदरमलव इहपाहि सीम

मिति (स.०३.५९s-e.) सत; तभिः सारक पिबत डवखाद

इलयनती व खादी त: षषठ मह:; चल जहनि षषठसयाडी रपम"

इति। असिन सल "तभिःसाकम'-इतयादिकखतीयखा मचि

टरतौयःपाद: । ततच दवच खादति भचायतीति "डनखाद', तन

भचणन डातरसयावसान मररण समपरदयत॥ तसमात खादी इतरसयानतः

षषठखयानततव' परव मवोलम; अतीतववलिइम। यदयपौद सरव

न भवति अ, तथापि सखानापनवातसल मियतम ॥

बगरत इनद, परशसति-"तद वदरभ; तन परतिषठितपदन

सवरन दाधारायतनादवतननपरचयवत"-इति। परववद वयाखशयम ॥

शसतरयानवितमरम ढरच विधतत-"अरय हयन वा इद मिति

(स० प८.६५.)पयास: ; सवमरतवता जित मितयनती व जित

मनत: शट मह:, एशल जहनि षषठसयाडी रपम"-इति ॥ "खाम

रतवता जितम"-इति दवितीय: पाद:, ततर भतारथवाचि-इन

परतययानती जयतिधातोरक लि.इम : किच जयसय यदधावसान

वाजित मिति शबदोनतपरतिपादक:, तदतदनतवतव मपरी

लिङगम ॥

आवावरिधतचनदपरशसाइारा निविडारन विधततो-"ता उ

गायतरी, गायतरी वा एतसय बरहसय मधयनदिरन वाहनति, ताई

तबदी वहति, यसथितरिविडीयत : तरमाद गायतरी निविद

दधाति"-इति । परववद वयाखशयम ॥

औ8 अति दाशतया ढतीयसय चतरथ चरषणौचत मिति दवादशरव चयोदय लाल :

तटीयावतीयढचसववाच गरहण मिषटान । तदतत "षड जहनि घशख-शाति खल

(८.१.) आचलायनन सटोकतम,–“इनदर मरतव इति तिख इति मखतौथम-ति।

७९ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

हवतसामसाधययठसतोचसयाधारभरत रती तरिरय डच मनरपच

ढरच विधता-"रवतीरन: सधमाद रवग इटरवत सतोतति रवरत पछ

भवति, बाईत हनि षछ जहनि षठसयाडी रपम"-इति । "रव

तौरन: सधमाद"-इति (स०१.३०.१३-१५.) खीनियरलच,

"रवान"-इतयनरप:(स० म.२.१३-१५.), हवरत साम डहलसाज

उतपबम अ8, अहश यगमलवाडाईतम "ि, सोया दहतसमबनधी भवति

लि.इम॥

अचततवलिङगोपता मरच विधतत-"यहावानति(स० १०.

e४.ई.) धायाचपता"-इति ॥

ता धाया मन दहसाबनी योनि भरत परगारथ विधतत-"तवा

मिवि हवामह इति (स.०६.४६.१,२.) इहती योनि मन निवरत

यति; बाईरत झतदहरायतनन"-इति। आइडी बाईतलव परव

मवोजम, तदवातर दहतसामसमबनधररष लिडम ॥

रवतसामसमबनधिन सामपरगारथ विधतती— "इनदर मिहव

बतातय इति (स० प८.३.५,६.) सामपरगाथी निदरततवान, षल

जहनि षषठसयाडी रपम"-इति। असय परगाथसय सरवशवपि पादष

'इनदर-शबदाडलसतालधवनिसदशलवानिवततवशिइम॥

अडततवतरिक सतरविशष विधतत-"ख मष वाजिन दव

जत मिति (स० १०.१०८.) ताखा जतः"-इति ॥७॥

इति शरीमततायणाचारयविरचित समाधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचरमपतरिकाया हितोयाधाय

(इविशाधयाय) सपतम: खणड:॥ se(१२)॥

---

क. भाe ९५पर० १०प०दरषटवयम ॥ 8भा०३९१प० टिपपणौ दरषटया ।

॥ पजचमपशचिका । २ । प८ ॥ ७३.’

॥ पराथ चपराषटम: खणड: ॥

एनदर याहयप नःपरावत इति सत'पारचछप

मतिचछनदाः सपतपद षछ sहनि षषठखानहो रप पर घा

नवख महतो महानौति सहा समानोदरकि षछ ऽहनि

षषठखाही रप' मभरको रयिपत रयौणा मिति

सत'रथ मातिषठ तविनचमण भौम मियनती व खित

मनत: षषठ मह: षछ Sहनि षषठखानडो रप तद चछभ'

तन परतिषठितपदन सवन दाधारायतनादवतन न

परचयवत'उप नो हरिभिः सत मिति परयासः समा

नोदरक: षछ sहनि षषठखानहो रप'ताउ गायतरी

गायचगरो वा' एतसय चाहख मधयनदिन वहनति तई

तवछनदो वहरति यसिमतरिविहौयत' तसपराद गायचौष

निविद दधालयभि तय दव सवितार मोणयोरिति’

वषखदवखय परतिपदतिचछनदा: षषठ ऽहनि षषठखाजञहो

रप' ततसवितरवरणय दोषो आगादितयनचरोsनतो व

गत मनतः षषठ मई:षछSहनि षषठखानही रप मद षय

दवः सविता सवायति साविच 'शशवततम तदपा

वकडिरखादितरयनतो व खित मनत: षषठ मह: षषठ

ऽहनि षषठखाङगडो रप' कतरा परवा कतरापरायो

रिति ढदयावापथिवौय समानोदरकि षषठ ऽहनि :षषठ

१०

e४ ॥ऐतरयबराहमणम ॥

खाडी रप"किम थषठः कि यविटी नआजगननप

नो वाजा अधवर परभचचा इतयाभव" नाराशस

तरिवत षल sहनि' षषठखाडी रप'मिद मितथा शटर

गरतवचा'य यालन दचिणया समझा इति वशव

दवम॥ प (१३)॥

पारचलपलवादिगलिाइवयोपरत सरव विधता-"एनदरयाशप नः

परावत इति(स० १.१३०) सरश,पारचछप मतिचछनदा: सपतपद

घट हनि षषठयाडो रपम'-इति ॥

तखसमासिकनवतरिीपरत सरव विधतत-"परघा वसतर महतो

महानीति(स.०९.१५.) सतर, समानीदक षडलहनि षषठयाडी

रपम"-इति । "सीमनसय ता मद इनदरधकार'-इतयसय चतरथ

पादसय बडषऋत अ3 विदयमानतवासमानीदकतवम ॥

तिषठतिधातरपलिकयल सॉ विधतत-"अभरकी रयिपत

रायीणा 'मिति (स.०९.३९.)। सतर, रथ मा तिट तविडमष भीम

मितधनती व सथित मनत: षषठ मह: शल Sहनि षषठयाडो रपम"

-इति। "अभरक"-इतयख सकरय पचमया मचि "रथ मा

तिषठ"-इति दवितीयःपाद: ; तब खितशबदारथवाची तिषठतिधात

विधत,सच गतिनिडकतिरपलवादनी भवति , षषठसथाईोsनतलव

परव सझामम; अतीनतवतव' लिबरम ॥

ततरतव' छनद:परशसति-"तदहयरभ तन परतिषठितपदन सवरन

दाधारायतनादवतन न परचयवत"-इति । परववद वयाखयम ॥

- पर घा चखति दशरच सकषम, तब चितौयादयटमसरववाखोष पाद: ।

॥ पखमपतरिका । २.। पतर ॥ ७५

निषकवलयरय शासतरयानतिरम ढरच विधतती-"उप नी इरिभि:

सत मिति परयास, समानीदक:, शल जाइनि षषठसथाईो रपम"

इति। तिरवयद "उप नी इरिभि"-इति पादरीकलवात

समानीदकतवम ॥

ततर निविडान विधती-"ता उ. गायतरी, गायतरी वा

एतरय वाहसय मधयनदिन वहनति ; तईतचनदी वहति, यतरि

विविडीयत; तबाहायतरीय निविद दधीति"-इति। परववद

वयाख बयम ॥

शसतरानतरसव परतिपदका मरच विधतत-"अभि लव दव सवि

तार मीणयोरिति 8 वशबदवसय परतिपदातिचनदा:, षड Sहनि

षषठसयाईो रपम"-इति 1 अतिचछनदरव मचा लिइम ॥

परतिपचछष मणडय मनचरढरचच विधतत-"ततसवितरवरणव;

दोषी आगादितयनचरोऽनती व गत मनत: षषठ मह: षल हानि

षषठसवाडी रपम'-इति ॥ "ततसवित"-इति (स० ३.६२.१०,

११.) डॉ.ऋची,परतिपकषमती;"दोषी आगात-इलष बच

पठितः' बची तचर:। अब भतारथवाची 'गमिधातयोखति,

तखारथ: आगादितिशबदनीचत। भतारथवाचिलवाहरत गमन

समासिरनती भवति ॥ तदतदनतवतव लिबरम । यसआदतर सतरकारो

भिलय मिलका मरच ततसवितरिति ड ऋचौ मिलिलवा परतिपल

चवनीजा दोषी आगादितयादिकालची नचर इलयलवान म,

तसआदखाभिसततसवितरिति वाकरव परवशषलन विचछदनौयम ।

तर सा कsआ०५.६-३.८ढयज० वा० स. 8- २.3 अनय स 0-- २ |

+ आध०भौ० ८,१.१ट ( सा०छ० आe २-९-a- २०) |

t "अभि तय' दव सवितार मीखी रियका, ततत सवितरवरणय मिति व ; दोषी

93 .॥ ऐतरयबराहमणम I

सविढदवतारक सटरॉ विधतत- "उद पथ दव: सविता सवा

यति (स० २.३८.) सावितरी, शशखतम, तदपा वइिरखयादितयनती

व सवित मनतः षषठ मह: षड जहनि षषठसयाही रपम"-इति।

शखततम मितयादि विततीयःपाद; ततरिखादित भतारथवाचि

परतययानतरितषठतिधात: यत:, तलख रिशवतलव गमनसवानतः ॥ तदिद

मनतवतव लिबरम ॥

.. तखसमासिकलपिक सतरी विधतत-"कतरा परवा कतरा

परायोरिति(स.०१.१८५) दावावधिवौय, समानीदरव, षडइनि

षषठसयाही रपम"-इति । दितौयसथा चटच: चतरथ पाद "दधावा

चरत यथिवी"-इयलवादिद खा दयावापथिवीयम ; ततर

'दयावा रचतम'-इतिपादिसय बहयऋटक विदयमानतवासमानीद

कतवम ॥

: ऋसदवतारक सतइरय विधत-"किस चटः कि यविडी न

आजगबप नी वाजा अधवर मभचचा इतयाभव, नाराशरस तरिवत,

झलजहनि षषठसवाइी रपम"-इति । "किस वषठ "-इतवसिन

(स० १.१९९.) सलचयोदशऋचः शॉसनौयाः; ततर चतरथ

ऋच: परथमपाद "चकवास अकटभव."-इतिशयतलवादिद मारभवम ।

"उप नः"-इति (स.०४.३७.) सल चतरनः; ताच परथम

पाद "चचा"-इतितलवादपि आरभवम । ऋभवी डिनर

अनथा: ; अत एव मनषथानानतः परवशयित मसहमाना अगनि

वखादयः सोमपानवाया सभभन नि:सारितवतः। एतलख "आरभरव

आगादबइद गाय शमडहाथरवण । खहि दव सवितारम॥ त सन छझनत: सिल

सन सतयख यवानम ॥ अदरीघवारच सशवम 1. सघा नी दवः सविता साविषद वस'

पति;। उझ सचिरती सघातरिति वचदवख मतिपढनचरौ"-इति आशव० चौ०प.११ |

परमपतरिका 1.२ | 2. ॥ aSa

नयभवी व दवनदर-इबाइपाखयानन० तब मवगमयत। नच

नर:चटभव: "शसत' कथयनत अखिन सल, त नारायॉसम,

तदक लिडम ; तयव "उप नी वाजाः"-इतिसचसय ढरतौयाया

मचि "बदायम"-इति तरिशबद: यतः; तदतचितरवतरव डितीरय

लि.इम ॥

अथबडदवतारक सतइय'विधतत-"इद मिया रोदर गरत

वचा, य यालन दचिणया समझा इति वशखदवम"-इति । "इद

मिथा"-इलरक सतम (स० १०६१.), "य यलन"-इलय

परम ( स० १०.६२.) ॥ I

इति धीमठसायणारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचमपतरिकाया दवितीयाधयाय

( इविशाधयाय) अषटम: खणडः॥ प(१३)॥

-_a.--

" ॥अथ नवमः खणडः॥ :

नाभानदिषठ'शसति नाभानदिषट व मानव बरहम

चय बसनत" धातरी निरभजनतरी शबवौदबव कि महा

मभालधत मरव निषठाव मववदितार मिखबव

सराडायतईि'पितरयचा निषठावो ऽववदितलवा

चचत स पितर मतयाबवौत वा 'ह वाव महा ताता

भाबरिति त पितालवौनया पवक तदाइथॉ अझिरसी

o २भाव १९१० रख० दरषटवय: । ।

७ec. ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

वा इम' खगाय लोकायसच मासत त षषठ षषठ

मवाहरागलय मकगरनति' तानत सक षछ ऽहनि

शसय 'तषा यतसहरव सतरपरिवषण ततत खरयनतो

दाखनतीति तथति'तानपतपरतिगटभणौत मानव सम

धस इरति त मजवान किडामी वदसौतौद मव वः

षषठ महः'परजञापयानौलयबरवौदथ यहा एततसहसतर सच

परिवषण ' तनम खरयनतो ९दततति तथति' तानत

सत षषठ Sहनय शसयत ततो व त पर यजञ मजानन

पर खरग लोक तदादत सक'षषठ sहनि शसति यजञख

परकतालय खरगख लोकखानखयालव' त खरयनतो sबर

वननतत बराहमण सहसर मिति'तदन समा करवाणी

परष: कषण शावासयततरत'उपोतथायाबरवौनम वा इद

ममव वासतह मिति सो sबरावोनमहरघ वा इद मद

रिति त मबरवीत ह नौ तवव पितरिमशर इति स

पितर मत त पिताबरवौनन त पचकाद३रियद

रव म इखयबरवौततत म परषः छषणशवाखततरत'

उपोदतिषठनरमम वा इद मम व वासतह मिलरयादि

तति त पिता बरवौतिलव पवक तततत स तभय

दाखतौतिक स पनरलयाबरवौततव ह वाव किल भगव

-------------- -

क 6 ‘तततभथ'स दासयतौति’ क ; ‘तत स तभय' दासयतौति’ ग,घ, जन ।>-9 -----

॥ पचमपतरिका | २. I e.॥ set:

इदमिति म पिताहति' सोsबवौतदह ततय सव

ददारमि य एव सतय मवादौरिति’ तसमादव विदषा

सतय मव वदितवरय स एष सहखसनिरमचो ऽय

नाभानदिषठ उपन सहसतर नामरति पर षषटनाइडाखग

लोक जानाति य एववद॥ ६(१४)॥

परवील सतइय लिटट' दरशयति-"नाभनदिषट शसति"

-इति ॥ नाभानदिषठाखय: कविनमहरषि, तन दषटम , परवोचच

(७७ पर. ६ प.०) सतइय 'नाभनदिकट' तचसत। अती महरषि

समबनध एवाच लिइम ॥

तदतलसतइरय परशसित मपाखयान माह-"नाभनदिषट व

मानरव बरहमचरय वसनत घातरी निरभजबसी बररवौदलय विरक मदय

मभाललत मव निषठाव मववदितार मिलबरवसतखाडायतईि

पितरर पतरा निषठावी ववदितलवाचचत"-इति । मनी: पची

नाभानदिठी नाम वालकी गरगटह ‘बरहमचरय वसति' उपनौत:

सनवद मधत ततर तिषठति; तदनो तसय जयषठचातरी मनोः

पितरधरन खारथ विभजनत: तरत वालरक "निरभजन’ भागरहित मक

वन। वालीबरय बरहमचारी वद मवाभयसथत कि तसय धननति मलवा

भारग न दततवनत;। तदानो ‘स:' नाभानदिछः 'एलय'वदानयास

कखा समागलय धातनिदमलवौत,- ह चातर ! मच "किल

अभाव'कि नाम वसत भागवन यरय यथवन छतवनत इति। त

व भबातर:"एत मव' मन पितर इसतन परदरय ह नाभानदिशच !

वय न जानीमसत मव छतवबवन । कौडॉ मनम ? ‘निषठाव'

८० ॥ ऐतरयबराहमणम॥

धनविभागादरधरमरहरव निःशषण खितिरनिरणयी निषठा, सा

यसिवसतिस निषठाव: , ताइवा धरमरहसयासय निरणतार मिलयरथ:॥

"आववदितार' जचठपतरसवतावत दवितीयसवतावदनचसवतावत इतय

वचिव वदित समयौववदिता ताइशम। अय मरथ-अय मन:

धरमशासतरकतरतवाडरमरहसयनिरणयवान पिटवन तवतावदितय

वचछिदय वल समरथध, तरआबदौयी भागः का इति मन मव

पछतयबवन । यरआदसय चातर एव मतवनतः, तसमादिदारनी

मपि पितर’ पतरा इतयनन परकारण आचचत ॥ कन परकार

ऐति,सोsभिधीयत-आरय पिता 'निषठाव:'निरणयवान, असवताव

दिलयवचछिनदा वदिताचति ॥

तत उधरव नाभानदिषठसय कलरध दरशयति-"स पितर मलघा

बररवोत,- तवा वह वाव महम' तताभादरिति; रत पिताबरवीनमा

पचक तदाइथा,-अबरिसी वा इम खगॉय लोकाय सतर

मासत, तषड षषठ मवाडरगलय सचति, तानत सन षल जहनि

शसय ; तषा यहसहसतर'सतरपरिवषण, ततत सवरयनती दारयनतीति :

तथति"-इति । "स' नाभानदिषठः घाढभिसतथीनः सन पिता

परयागवद मबररवोत,–ह पितरमझ'तवा ह वाव'लवा मव चातर:

सरव:पि "अभाल' भाग मका, अतो मदयी भागसवयसति,

रत म दहौतयभियाय: ॥ तत: "त' नाभानदिषट" "पिता' मनरव

मचौन-ड'सबक' वालक 1 धातणा वचन "मा आइथा'

तरिमनवचन आदरर माकारषो:। नारवव मडरत लवदीयी भाग:,

सरव मपि धन लवदधाढभिनरयहीतम । तव तधनपराशयरथ मकन

पारय कथायिथाभि,—आडरिरीनामका मडरषय: "दम" समीप

दवरतिनः खगौथ सतर मनतिषठति, त पन: पन: सतर सप

1 पचमपतरिका | २ | 2.॥ ८१

करामय, तदन तदा परास तततत षषठ मवाडरागतव तनतर ततर

मनतरबाहखय "मइति' बानता: सनतः सतरसमावि मपराय खवदा

झिशानति; ‘तान' महरषॉन षलहनि लव गलवा "इदमिथा'-इति,

"यन यजञ"-इति चत उम सक शसय; ततः"तषाम"चीख

'यत' सहसरसताक धरन "सतरपरिवषण' सतरारथ परित: सममा

दित मसति, तलव मनषठाना दरव मवशिषट धन'त'तय महि

रसी महरषयः खग परबवनती दासयनति इति । ‘तथा' आसविति

तत पिटव वन नाभा न दिलली डौचकार ॥

अलौकाराद' कि छतवनितयाशइस तइतनत दरशयति

"तानपदपरतियटभरणीत मानव समधस इति; त मबवन,किडरामी

वदरसौतौद मव व: षषठ मह: परजञापयारनौलधबररवौदथ यददा एतरत

इसर' सतरपरिवषण, तव खरयाती दततति; तथति; तानत सल

वाल इनवॉसयत,– ततो व त पर यजञ मजानन पर खग लीकम"

-इति। 'तान' अइिरसी महरषॉन "उपत' नाभानदिठसमौरय

परतवान, परामय च "परतिजठभरणौत"-इतयादिमनपादनव मह

पॉणा मय किचिडचन सतवान । तसय पादराय मरथ:-ह

'समधस:' शोभन मधायशा अडिगरस: 1. "मानव' मनी: परव

नाभनदिशाखव मा 'परतिषठभरणीत'यरय खोकरतति। तथा

बदलत नाभानदिषठ' परति मनय इद मबवन,–ह नाभानदिषठ !

'किइनम:' कौडगपचीया यवत: सनसान परचरव वदसि ? इति 1

तत: स नाभानदिलटी बररवोत- ह महरषिय: 1. "व:' यषाकत मिद

मव षषठ मह: 'अजञापयानि' परकरषण बीधयामोति, "अथ' बोध

नानतर‘सतरपरिवषण" भवडि: सतरारथ समयादित मनषठाना दरव

मवशिषरट यदतलसाहखसदधारकधन मसति, ततत सव यरय ‘म' मदय'

११

बद ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

खग परति गचनती दतति । 'तथति' मनिभिरडरीझत सति

'ताल' सनीन, 'एत' उम सल धल इनवरशसयत; तत एव'त'

बनयी यजञ' परकरषण 'अजाननद जञातवनतः; तदनषठानन खगो

लीक मपि पराजानन॥

सतइय परशसय तइिधि निगमयति-"तयदत सल (स.

१०.३१,६२.) षलSहनि घासति, यजञसथ परजञाच, खरगसथ लोक

खालखयाल"-इति। यरआतसतइयासननाझिरोभियशः खगशय

अजञातः, तरमाडोता तदभय पासत, तख यजञखरगयोरवगमाय

भवति ॥

पनरपि सयोरमचमान दरशयित मपाखयान मवाह-"त

खरयरती बववतनतत बराझणसहसर मिति, तदन समाकरवारण

परष:छणशवारयकतरत उपोथायाबरवौबम वाइरद मम व वासतह

मिति; सो बरवीनमझ'वा इद मदरिति; त मबररवोततह नौ तवव

पितरि परशन इति;स पितरमकत"पिताबवौल त पतरकादरिय

दरव म इतयबररवोततत म परष:छाएणशवायतरत उपोदतिषठमाम

वा इदममव वासतह मिलखादितति; रत पिताबरवीकतरबव यवक

नततत स तभय' दासयतीति :स पनरलयाबरवीकतव 'ह वावकिल

भगव इदमिति म पिताहति : सो जतरवीकतदह तभय मव ददामि

य एव सतय मवादौरिति"-इति ॥ 'त" नाभा नदिषट 'खरयनत:"

खग पराशवनतीsकरिसी बवन,–ह'बराहमण' नाभानदिषठ1‘एतदध

गोसहसर' यजञभमावशिषट'त" तरथ दतत मिति शषः। अतर

शाखानतरातसारण गोसहरन मिलयारथो लयत 1 शाखानतर चव

मानायत-"त सवरग लीक यनती य एषा पशव आसन तानसा

अबद:"-इति (त०स० ३.१.०.५.) 1."तद' गोसहसर 'समय

॥ पचमपचिका ॥ २ ॥ ८.॥ ८३

इबौण' समयगानसाकवतम "एन" नाभनदिकट" कलियषी

यशभलरतरतः"उपोयाय'समीप एवीथिती भवद मबरावीह,

कौडश: परषः ? ‘कणशवासी'अतिशयन छकषण' मलिरन वसतर

'झाएरश' तइसत आचछादयतीति छकषणशवासी 81 अवारय मलिन

बख: परष: पशखामौी रदर इतयवगनतवयम । तथाच शाखानतर

पवयत–“त पशभिखरनरत यजञवासतौ रदर आगचत"-इति (त.०

बस० ३.१.८.५.) । स रदर: कि मबरावोदिति, तदभिधीयत-ह

नाभानदिषठ ! ‘इद" पशसहरव ममव। खतनवय मषपतति.।

'वाखई' वासतौ यजञभसौ होरन करमानत परितयकत वासतहम,

ताइरण सव ममव ख मिति सरवतर समपरतिपबम । इलव पर

बणोश:स नाभानदिठ: पनरन मबररवोत,– ह रदर 1 मझ मवरद

सहसतर मडिगरसी दततवनत इति ॥ रत तथा वदनत नाभा नदिषट

पनः परषी जबरवौत,–ह नाभानदिषठ | 'ताई' ततरिवव लवदीरव

मदीय मिति सनदह सति 'नौ" आवशयो रमायोरशिप "त वव वितरि"

मनौ निरणयारथ परधोसविति । तत:"स:" नाभानदिठ: पितरो

परदम "ऐत' आगशतवात । स पिता तन यटसत मनवीत,– ह

'पतरक' वालका ॥ तमय मइिरसी महरषीय: ‘अद" नान दतवनतः

किम १ शतिः पराथौ । एव पितरा पषट:स नाभानदिी ‘म'

महमम 'अदरव' दततवनत एवलवबररवोत । तईि कासतव विचारः ?

इतयाशीडित स नाभानदिषठ एव मवाच,– त महरषयी दततवनत

एव किनत तहौसहरी कचित अरषी मलिनवसतर: सन यजञनयम

रततरत उतथाय,'इट" गोसाइरना' ममव सव, याजञवासतौ. हीनलवादि

• अचत त"कणशवासी-इतयसय वयाखयान कषण वरष: शवखादकष. कषशवाशी

कविनदनारय:, "टर:' भयानकाझाति: सयात ॥ सशषयोरक तव' छानदसम।

- 88 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥'

तयभिधाय ‘आदिता' आदान छातवान, अपहतवानिलयरथः॥ तथा

बवनत पतर परति पिता अबरवीत,– ह ‘पतरक’ शिशी ! ‘तद’

यजञवासतौ हीन गोसहसर' तसयव रदरसय खम, पशपतिलवात

यजञावशिषटखामिलवाच; किनत तथा सतयपि तव हानिनारित,

‘स:’ रदर:‘तद’ गीसहसरा' तभय दासयतीति ॥ यजञकाल तलसरव

मङगिरसा धन भवति, समाझ त यजञ यादवशिषट' तसय त रदर

एव खामीति नाङकिरसा दात मधिकारोsसतीलयभिपराय:। तथा

रदरवचन शणारखानतर एव मालतरायत-‘न व तसय त ईशत

इलधबरवीदयाजञवासती होयत मम व तादिति’-इति (त० स० ३.

१.e.६)। ततो दासयतीति वचन शलवा ‘स:’ नाभानदिषठःपनरपि

रदरसय समीप मलचद मबरवीत,- ह ‘भगवन' पजय ! रदर !

‘तव ह वाव किल’ तवव सरवम ‘इद' ख मिति मदीयः पिता

गराहति । तत:‘स' रदरी sबरवीत– ह नाभानदिषठ ! ‘तत’ सरव

तभय मव ददामि, यरव सतय मवावदी:, न लवनदत मकतावानसि ;

तसमातपरितोषात सतयवादिन तभय मव ददामि इति शरी ॥

इथ मपाखयान परिसमापय परसङगात परषारथवन सतयवदन

विधत–“तसमादव विदषा सलय मव वदितवयम’—इति । ‘एरव

विदषा’ सतयसय वयो हतलव जानता ॥

उपाखयानसय सरवसय तातपरय दरशयति-“स एष सहसरसनि

मरमनतरो sयातराभानदिषठ:’-इति । नाभानदिछन महरषिणा दवटी

यी मनतरसमह:, स एषः ‘सहसरसनि:’ सहसरसाझाकसय वसतन:

सनिलभिी यसमिनझनतरी सोsरय सहसरासनि: ॥

क। स० १०. ६१. ६२. सतायी: सीपकरम सायणौय भाषय' सरव निहालीचयम ।

सानया० बरा० २८,४। ता० बरा० २०,९,२ ।

॥ पखमपतरिका । २. । १० | ट५

वदरन परशसिति-"उपरन साइरना' नामति परय घटनाझा खग

लोक जानाति य एव वद"-इति । "एरन' वदितार सहसरसडाको

धनम "उपनमति' परापरीति, सच कालानतर षषठ महरनषठाय

तन खग परजानाति ॥ ०.॥

इति शरौमबतायणाचारय विरचित माधवौयवदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचमपतरिकाया दवितीयाधयाय

(इविशाधयाय.) नवम:खणडः॥ c.(१४)॥

॥ अधथ दशम: खणड: ॥

तानचतानि सहचरागौलयाचचत" नाभानदिषट

वालखिलया छकषाकपि मवयामरत 6 तानि सहव

शसट'यदषा मनतरियातरतदय जमानखानतरियाददि

नाभानदिषट रती ऽखानतरियाददि वालखिलयाः

पराणानखानतरियाददि वषाकपि मातमान मखानत

रियाददवयामरत - परतिषठाया एन चथावयद,

दव च मानधच नाभानदिषटनव रती ऽसिशकत-'

डालखिलधाभिवरयकरीत सकीरतिना काचौवतरन

योनि'वयहापयदरी यथा तवशरमन मदमरति तखा

. क, "०मारत"क, ड; अशदध:॥ "० माररत"डा. अयड: ॥ .

रई ॥ ऐतरयबराहमणम॥

जायानतसनन गरभ: कनीयास सनत योनि'न हिनसति

बरहमणा हिस कम"एवयामरशततव करोरति तनद

सरव मतवकत मति यदिद किचहिश कषण मह

रन'चतयानिमारतसय परतिपदहवाहवरति पन

रावतत पनरनिनतरत' षषठ sहनि षषठखाडी रप

मधवी वो नाम मारत यजचा इति मारत' बाइभि

वयाइतय मनतोव बहनतः धषठ मह: धषठ sहनि

षषठखाडो रप" जातवदस सनवाम सोम मिति

जातवदखाचयतास परनथा सहसा जायमान इति

जातवदख' समानीदरक षषठ ऽहनि षषठखाडी

रप धारयन धारयकविति शसति"परखसाडा अनतख

बिभारय तदयथा पनरागरनथ पनरनिरयनरथमनत'बौ

यानमयख वानती धारणाय निनयाताडदौडा

रयन धारयनविति शसति सनततव सनततखा ह

रवयवछिननरयनरति य एव विडासो यनरति॥ १०(१५)।

इतयतरयबराहमण पचमपतरिकाया हिरतौयोऽधयाय:IRI

अनय नाभानटरिीयन सतइयन सहपठितवयानि. मननानत

शराणि विधत-"ताबतानि सहचराणीलाचलत,-नाभनदि

वालखिया दवषाकपि मवयामररत तानि सहव भसद"-इति।

'तानधतानि' वचशमाणानि चतरविधमनतरजातानि 'सहचराणि'

॥ पचमपतरिका 1, २ 1 १० ॥ पre

परयोगकात सहव वरतनती इलधरव याचिका आचचत । ततर "नाभा

नदिकट' सतइरय यदसति(स० १०.६०.९९), वालखिचरमहरषिभि

टरटः"अभि परवः सराधसम"-इतयादया वालखिचनामका मनना

व सनति (स ८.४०-५c.), दषाकपिनाममहरषिणा दषरट."वि

हि सोतोरखचत"-इति(स० १०.६.) मल यदसति, एवया

मखाना महरषिणा इट""पर वी मह मतयो यनत विशव "-इति

सतरो (स.०५.मक.)यदखित; तानि चवारि सहव शसत ॥

सहरशसनाभाव बाध दरशयति-"यदषा मनतरियाकतदाजमा

नसयानतरियात"-इति । यदि कथखित"एषा'चतणा मधय एक

मपि 'अनतरियाद' अनतरिरत लरस कयाकतदानो यजमानसय

समबनधि थय: "अनतरियाद' विनाशयत। ॥

सामानयाकारण बाध मददा पनविशषाकरण बाध दरश

यति-"यदि नाभानदिषट, रती सथानतरियाद यदि वालखिया,

पराणानसयानतरियाद , यदि दवषाकपि, मालमान मरयानतरियाट

यवधवयामरत, परतिषठाया एन चावयईकय च मानध च"-इति |

यदयरय होता नाभान दिठमनतरानविलोपयतत, तदानौो मसय यज

मानसय पतरायतपादक रती विलोपयत। वासतखियाना मनतराय

यजमानवपराणविचछद:। इषाकपिसकरयानतराय यजमानव

‘आतमान" मधदई विचिछनदयात॥ एवशयामरतखानतराय यज

मारन दवया मानषयाय परतिषठाया: परचयावयत। अविलन करमसमा

सिदवी परतिषठा ; तलसाधनाभतधनादिसमपततिमॉनषी परतिषठा ॥

अनतराय बाध मददा, तदनषठान लाभ दरणयति–"नाभा

न दिलनवरती सिखततडालखितयाभिवरयकरोत, सकीरतिना काचौ

वतन योनि वयहापयदरी यथा तव शरमझदमति, तरमाज जथायी

८ि दि- ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

नतसन गरभ: कनीयास सनरत योनि न हिनसति ; बरहमणा हि स

ढकपत एवयामरततव करोति, तनद सरव मतव छत मति यदिद

किच"-इति। अतर मनतरसमहात यजमानसय नतन जनम

वखत; यहा पतरोतपादन वणरखत । यतराभानदिरड सतइय

मसति, तनव हीता रत: सितावान भवति । यासत वालखिलया

ऋटचसताभिसतदवती ‘वयकरीत' विकात गरभावार मकरोत।ि कचदीवा

नितयभिहितः कचिदषिः, तसय पतर: सकीतरतिनामक:; तन दषटम

“अप पराच इनदर"—इति (स०१०.१३१.) सता मपि तनतरामकम।

तच डषाकपिसतात ‘परागीव' समीप शसनीयम। तन सकी

ततिना होता योनि ‘वयहापयत' गरभनिरगमाय विडतत मकरीत ।

अत एव तसया ऋटवचतरथपाद ‘उरौ यथा’-इतयादिराबतरायत ॥

तसयाय मरथ:– ह। इनदर ! यथा जन:‘उरी' विसतीण ‘शरमन’

शरमणि सखहती गटड विस भण तिषठति, तथा तव परसादाद

वरय विसतीरण योनिपर दश ‘मदम' सङगीचाभावन हषयासम इतिशरy ।

एष पादी योनिविडतरगमक:। यसमादनन विवततिः छाता, तरमा

जञोक जायमानी गभो ‘जयायान सन’योनिददारापचियालयनत परौढ:

सतरपि, खापचया ‘कनीयासम’ अतयलरय सनरत योनि ‘न हिनसति'

न विनाशयति। यसमाद ‘बरहमणा' सकीरतिनामकन मनचण ‘स’

थीनिः‘कत’ निरमितः, तसमादविनाशी यतः । एवयामरतनाम

कन सझन यजमानम ‘एतव’ सरवच गनत समरथ करोति।‘यदिद

किच’जगदसति, तदिद सरव ‘तन’ सलन ‘एतव छत’गनत’ समरथ

छत सत, पदयाद ‘एति'गचछति; तसमादिद मव सरत यजमान

सथापि गमनसामथया’ परयचछति ॥

* एतनव भाषयकारणासय पादसय सहिताया मनयविधीsरथ: कात: ।

I पछमपतरिका 1 ९ | १० I at:

आलिमारतिशखासय परतिपयरव विधत-"अहब कष

महरन चलयानिमारतबा (स० १६.८.) परतिपदहचाइबति

सनरावतत' पनरनिदरत' वाल हनि षडखाडी रपम"-इति।

अह:शबदोsतर पन: पनःपवमानवात पनरावतति मितयचत;

तालधवननिसमानतवाब पनरनियकति मिति लिबरइयम ॥

मरहवताक मल विधत-"मधवी वी नाम माररत यजना

इति (स०७.५७.) मारवरत बाइभिवयाहलय मानती व बचनत: बट

मह: चल जहनि षषठखाडी रपम"-इति। अमिनसल बार

डिगषय मभिवाइरणीय मरथजारत बहसति,बहलव एकलवडिलवा

पचया, सडाया मवसानलवादती भवति, तदतदनतवतरव खिम ।

अचयततववि इतयशा खरच विधता-"जातवदस सनवाम

बोम मिति(स० १.cc.) जातवदसबाचयता"-इति (I

जातवददवतारक सरव विधत-"स परवरथा सहसा जाय

मान इति (स० १.८६.) जातवदसरय ससानीदरव धलSहलि धषठ

सयाडी रपम"-इति । "दवा अनिम"-इलचसय चतरथपादख

सरवाखमयच पठिततवात समानीदकतवम ।

घायविलतारपन: पनः पठितयानवादन तदभिपरारय सटट

इटानरत दरशयति-"धारयनधारयानविति शासति, परखसाडा अनतसय

बिभाय; तयथा-पनरायनरथ पनरनिरयनथ मन बीया मयख

वनती धारणाय निहनधावाइलदधबरयमवायबिलि . शासाहित

सतल"-इति। होताबिनसल चतरथव पटल "धारयन धार

यट"-इति पन:पन: पठिवाशसति ; नख कोधिपराय उवि,

सीभिधौयत- "अनतसय' शासतरखयावसानपरदशसतर ‘अवसाद'

परकरषण खासनात शधिखादव होता "बिभाय' भौरति परासवान ।

८०: ॥ ऐतरयबराहमणम॥

खासनपरिहारा थ दषटानती Sभिधौयत- तादयथा लोक रजज

निरमिमाण: परष: ‘पनरागरनथ'पनःपनरागरथयागरथय ‘पनरनिगरनथ'

पन: पनरनिरयधयनिरयथय तखया रजौरनत बीयात, दीरघीया रजा

अय' सची पनः छतः परतयावरथ वटरन छलवा अथरन नाम, तसव

इटोभावा निरयधन मकरोल॥ अनधीsपि दषटानतोऽभिधौयत

यथा वा खीक चरमकार; आईसय चरमण: सडरोचनिवारणीय भभौ

तगरसारय दढ माझथ चरषणोतर 'मयख'श चरमणी धारणाय

‘भसौ निहनधात' दई भमिपरविषट करयात ; होत: पनरधार

यविति भासरन यदखति, तदतनखादर परवोततदषटानतसमान दरषटवयम।

तदताचछसन यजञसय सनतलव भवति ॥ . .

वदनपरवक मनषठान परशासति- "सनततखाईरवयवचिव

रयनितय एव विझासी यनति"-इति परववद वयाखयम॥ अभयासो

sधयाय समापतपरथ: ॥ १० ॥

इतिखीमठतायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणय पशमपतरिकाया दवितीयाधयाय

(इविणाधयाय) दशमः खणड: ॥ १०(१५)॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

पमरथधितरी दयाद, विदयातीरथ महशखर:॥

इति शरीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

औौवीरवख भपालसाजबाजथधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवसायणाचायॉण विरचित माधवौय 'वदारथपरकाश'नागमभाव

ऐतरयबराहमणख पचमपचिकाया: दवितीयोधयायः ॥

| अथ ढरतौयाधयाय: ॥

(ब)

॥ अधथ परथम: बहगड: ॥

॥ ॐ॥यडा एतिच परति च"ततसमखाडी रप

यडव परथम महसदवततयनरयसम यदयइवदयदरथ

वढदशमदयतयिबवदरवगरथम पद दवता निरचयत'

यदरय लोको जयदिती यजञातवदयदनिरज' यातक

रिषयदतपथमखाडो रप' मतानि व समखाडी

रपाणि’ समदरादरमिरमधरमी उदारदरति सपतम

खाइडआजाय भवतयनिर'सम शहनि सपतमखाडी

रप वागव समदरी न व वाक चौयत"न समदर:

चौयत तदयदततसमखाइड आजय भवति यजञ

दव तद यह तनवत' वाच मव तयनरपयनति

सनतलसनततखालरवयवचछिननरयनति य एव विडासो

यनसथापयनत व सतोमा आपयबत छनदासिगषल जहनि'

तादयववाद आजयनावदानानि पनः परतयभिघार

यायियातयामताया एव मवतत सतोमाच छनदासि

च पनः परतयपयनतययातयामताव' यदततसमखाइ

आजय भवति तट चनयभ चिषटप, परात:सवन एषा

e.९ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

वाई आ वायो भषशचिया"उप नः परयाभियासि

दाशवास मचछी नी नियकति: शतिनौभिरधवरी पर.

सीता जौरो अधवरषवखाद" य वायव इनदर माद

नासी या वा शरत नियतीयाःसहसर म यडा मिचा

वरणा सपरधनवा गोमता नासलधा रथना नी दव

शवसा याहि शषिन. पर. वो यकष दवयनती

चरचन. पर. चौदसा धायसासख एषति परउग मति

च परति च समSहनि समखाइडो रपतदचटरभ

चिछषयटतससवन एष चाह: आवा ररथ यथोततय'

इदवसी सत मनध इनदर नदय एदिहिमत बराहमण

सपति'रागिननता टव सोम करतभि: पिनवनयप: पर

व इनदराय बहत इरति परथमनाडा समान आतान.

समsहनि समखाडो रप कया शभा सवयसः

सनौला इति सत'न जायमानी नशत न जात

इरति जाबतवत सपतम Sइनि समखाडो रप' तट

कयाशभौय मतल सबान' सनतनिसट यातकया

शभौरय मतन हवा इनदरी जगरयी मरत त सम

जानती तदातकयाशभौरय शसतिसचायाएव तड

यरथ तदोऽख परिय अ खालयॉदवाख कयाशभौरय

तरो *परिध:" वन, ट ॥

॥ परमपतरिका | ३ | १ I cर

बत टचषटरभ तन परतिषठितपदरन सवरन दाधारायतना

दवतन न परचयवत ब समरष मइया खरविद मिति

सक मतयवर वारज इवनखद रथ मिरति रथवशम

इनि समाचाडो रप तद जागरत जगठयी वा

एतखचाहख मधयनदिन'वहनति तईतचनदी वहति’

यचिविविडीयत' तसराजगतौश निविद दधीति'

मियनानि सझानि शखत वषटरभानि च जागता

नि च"मियन' व पशव: पशवशछनदोमा: पशगना

मवरड' तवा मिडि हवामह टव हहि चरव

इति-बहतयछ' भवति समsहनियदव षषठखा

इतदाई रथनतरतईप यदबहत तडराज यदरथनतरर

तचछाचारी यद बहततदवत' तद, यदबहतयछ भवति'

बहतव तद, बहपरतयततवनयसतौमकनतचारय यदर

थनतरर खालकनतरच खाकतचाद बहदव कतरतवय यहावा

नति धायचयताsभि दवा शर नीनम इति'रथनत

रख योनि मन निवरतयरति राथनतर छतदहराय

तनन"पिबा सततख रसिन इति सामअगाथः"पिब

वानसम इनसमखाडो रप'य मश वाजिरन

दवजत मिति ताचा sचयतः॥ ९(१६)॥ "

9 *दति च" क ।

c8 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

इादशाहगत नवराव वयसखयहा: । तनतर परथमडितोवो चाहा

चनौ थs; तावता पठःषऊहा समागम: । यसतढतीयखहसतरच

यानि दौणयहानि, तानि छनदोमनामकानि । तनतर परथम नव

रानापचिया ससम यदाहरसति, ततर मननलिल दरशयति-"यददा

एतिच परतिच ततसमसयाही रप; यडव परथम महसतदवतत

पनरयसपतमम"-इति ॥ नवरातर परथम महियादशलडरिोपतरत तदव

तत पनरनसनधौयमारन यसपतम महसतइवति ॥

तानयतिदिषटानि लिङगानि दरशयति-"यदयइवदयदरथ

वदयदाशमदयतयिबवद, यागरथम पद दवता निरचत, यदरय

लीकी यदितः"-इति । एतानि परथमादडोतरातिदिषटानि

लिडगानि स ॥

नतन मपि लिई दरशयति-"यजञातवदयदनिरहम"-इति।

'जातिवत''जनि'धातयतरम.॥ "अनिरहम' असपषटदवताकम ॥

अतिदिटन लिडरजातन सहसव लिङगजात सपरस हरति

"यकरिथदयथमसयाशी रपमतानि व समसयाडी रपाणि"

इति। भविषयदरथवाचिपरतययानरत धातमाव 'करिशथत' इतयचत।

एतखानवयथमसयाशी तरिजात मसति, तन सह सरवाषि

एतानि समसयाडो रपाणि ॥

आजथशासतर विधत-"ससदरादरमिरमधरमी उदारदिति सम

मसयाइड आजारव भवलयनिरज, सम हनि.समसयाडो रपम"

इति। नि:शषण सपषट मजी दवताखरप "निरहम', तडिपरीतम

'अनिरहम'। समदरादिसल (स०४.५८.) न काचिहवता

करई 5 मा० ४०००प०-३ भा० १० १० ।

F ६ भाe ४००० प० प प ।

4P

॥ पलामपतरिका | ३ । १ ॥ 2.५

विसटा ; तसमादिदशिडसङगावाटसन हनि योगयतया सपतम

सयाही निरपकम ॥

तदतलसडो परशसति-"वागव समदरी; नव वाक चीयत,न

समदर: चौयत; तादयदतससमसयाजञ आजव भवति,यजञदव तवजञ

तनवत;वाच मव तरपनरपयनति सनततव"-इति। समदरदरमि

रितयतर य: समदर: परोनन:, सोय वाकखरप एव ; तयोवॉकसस

दरयी रचयतवसामयादरककसय वसतनः कविभिरबहधा वरखमानतवात

नासति वाच:चय:, समदर:पि जल नशथति । तसमात समदरसथ

वायपलवादयदतसमदरादिति सज मचाजय शसतर भवति, तदानो

वाडनिषयादा मनतरातमकाद "यजञादव' अनषठानरप 'यजञ''तनवत'

विसतारयनति। तदविसतारच मननाणा बडना पठितयबात

पनपनरवाच मव पराबवनति । तलख यजञसनततव समपरदात॥ वदन

परवक मनटारन परशसति-"सनततसय हरवयवचिबरयनित य एव

विडासी यानित ॥ परववद वयाखयम ॥

असिखायशख य छतसय नाम गहय मिति यी घशतशबद

यतः, त मभिपरतय तइटानतपरवक माजथशासतर परशासति-"आपयनत

व सतीमा आपयनत छनदासि षल Sहनि, तदरथवाद आजयनावदा

नानि पनः परतयभिघारयानययातयामताया, एव मवतरसतोमाच

इनदासि च पन: परतयपयनययातयामताव यदततसमसयाजञ

आजरय भवति"-इति । तरिइतपजदशसपतदलकविश तरिणव

सनयरिवशाखया य सतीमा:, त सव पि षछ हनि 'आपयनत"

समासाः । गायबौतरियबजगतयनययडणयतिचछनदोभिधानि

सवाणि छनदासिच समापतानि । तथा सति "तववाद' वचनमारण

निदरशरन तवव समसयाजञ: परदयकतिईटवया। कि निदरशन मिति,

८ह ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

बतदचत-यथा दरशपरणमासादिय परीडशादिदरवयाखवदाय

पशचातानधवदानरथानानि आजयखयाखया आजधन पन: परतयभिचार

यनति । किमरथ मिति, तदचत-"अयातयामताव' गतसारसव

परिहाराय, पनरपि हविछयोगयतारथम॥ एव मवतसिन सम

ऽहनि सतोमानछनदासि च पनरपि 'परतयपयनति' परतिपादयान

तिषठनति । तथा सतयनषठितसय पनरनषठान चरवितशचरवसममान

मिति‘यातयामव"गतसारलव भवत। अती यदतसमदरदरमि

रितयादिरक समसयाइ आजरय भवति, तदताद‘अयातयामताव'

पनरपि सारसवसिधथ भवति। तखिचख "घतय नाम गलाम"

-इति (स.०४.५८.१.) घतशबदय विदयमानवात परतयभिघारण

सामय' भवति । यदयपि चिढदादय: खीमा: सपतम हनि पन

नॉनटीयनत, तथापि चतरविशारदयषकरनदोमनामका: अe. अनषठा

यनत । तसमादयातयामलरव सतीमलवसायनाभिहितम I

आयशसतरगरत छनद: परशसिति-"तदबछभ तरिछप-परातः

सवन एष वाह"-इति। "तद' तदपि "समदरदरमि "-इतया

दिक शसतर नियपछनदखम; परातरवन विदयपछनदी यलिॉ

खतौयबड सौदरय "तरिबपआतसवन'। यथा परधमय वाइख

आतससवन गायतरी, यथा वा मधयमय वाहसय परातसवन

जगती,एव मततमय वाहसय परतिससवन चिटए अवगनतवयाः।

एतचनदसा विवाह निरपितम "ि ॥

आथ परउगशासतर' विधत–“आ वायी भष शचिपा उप न:

परयाभियासि दाखा स मचछा नी नियदधि: शतिनीभिराधवी पर

क इडवाय करमाद वयतौभविषयनत ि।

's

f २ भा० ३पट प०५ख० ।

॥ पचमपतरिका । ३ । १ ॥ s

सीता जीरो अधवशरषवसयाट य वायव इनदर मादनासी या वा.शरत

नियती याः सहसर" पर यहा मितरवरणसरधवा गोमता नासलवा

रयना नो दव शवसा याहिशमिन पर वो यलय दवयननी अरचन

पर चौदसा धायसा सरच एगषति परउग मति च परति व ससम

हनि ससमसयाडी रप,तद वषटरभ तरियपआतसवन एषवाह"

-इति। “आ वायो भष"-इति (स० १२२.१.) परथम यतव

परतीक, तसिखाकारी लिङगम;"पर याभि:"-इति(स.०७.०२.३)

डितौरय, तनतर परशाबदी लिबम ;."आ नी नियदधि"-इति(स०

७८२.५.) ढतौरय, तखिलाकार: ; "पर सीता"-इति (स.०७.

थ२.२.)चतरथ परशबद: ;"य वायव इनदर"-इति.(स० ७२२.४.)

घबरम, तनच दवितीयषाद "आ दवास:"-इतयाकार:; "या वा

शतम"-इति (स.०७.०१.६.) षषठ, तसय ढतौयपादादौ आकार:

यत: , "पर याददाम"-इति सम (स.०६.६७.२-११.)। परशबद: ;

"आ। गोमता"-इतयटम (स.०७.७२.१-३) आकार:;"आ नी

दव"-इति (स.०७.३०,१-३) नवम ऽयाकार:,"म वी यलष."

-इति (स.०७.४३,१-३.) दशा म परशबद: , "पर चौदसा"-इल

कादशपि (स.०७.०५.१-३.) परशबद: । अनतराद : षडभिड

चौ*,इतरपच टचाः । तदतलसव परउगशाख मजञलिङगसझावात

सम इनि योगयम। अनयतपरववद वयाखयम ॥

शखबरिसमावलिङगकान मनवान विधतत-“आ लवा ररथ

यथीतय(स० ८.६८.१.) इरद वसी सत मनध (स० प.२.१.)

इनदर नदीय एदिहि(स० ८.५३.५.) पत बराहमणसति (स० १.

4 तथा चावलायन:-"आ वायी भष०-०सइच मितशकपातिबध."-शाति भ-२ |

१३

ge . ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

४०.३.)रविनता (स० ३.२०.४.) लव सीम करतभि: (स० १.

e२.२.) पिनवनयप:(स० १.६४.६.) पर व इनदराय इइत (स०

८.८८.३.) इति परथमनाझा समान आतान: सपतम हनि सात

इमरथाडी रपम"-इति ॥

अथ जातलिलक सकवॉ विधतती-"कया शभा. शवयस:

सनौका इति (स० १.१६५.) खरशी, न जायमानो नशात न

जात इति जाबतवतस न जहनि समसयाझी रपम"-इति 1 अनय

खखनवमया खचि "न जायमान"-इतयादिकखरतीयः पाद,

ततर 'जात'शबदोपतलव खिडरम ॥

एतसली परशसति-"तद कयाशभौच मतह सबजञान सनतनि

खरश, यतवयाशभोय मतन इ व इनदरी Sगरखी मरसतखत सम

जानत, तकयाशभौरय सिति सनतातया एव"-इति ॥ "तद

ततसल "कयाशभशबदोपतलवात कयाशभोयनामकम। असववम,

कि तत ? इति चतत, उचत-एतदव कनयाशरभोयनामक खरश

'सबजञानम'परसरकमतयसाधनम;कि बतपरव 'सनतनि' सनतान

कर पराणाना मविचछदन दीरघायषघकारणम । यदततवयाशभौय

सता मसति, एतदनषठानवदरगरयमरती व सनति,"त सव 'सम

जानत' सजञान परखलकमतय' पराशवन॥ तथा सलतचसरन

विपरतिपनाना मकमलधारथ समपरदात॥

परकारानतरणी परासति-"ताइयरथ तबीsसय परिय सयालक

यौदवासयकयाशभौयम"-इति। ‘तद' ततत सतरी मायकरम,

सनतरनौतिपरवसलवात । तथा सलवय यजमानख यः यवादि:

परियः रयात, तवायईडबथ कयाश भोयसरश इयॉदव॥

पनरपि छनदी इारत परशसति-"तद चषटरभ वन परतिषठित

॥ पपचसतपशचिका । ३ । १ ॥ ‘ee

पदन सवरन दाधारायतनादवतन नपरचवत’-इति । परववद

वयाखगयम ॥ ", . .''

रथलिङगक सरक विधतत—‘ख। समरष माहया खरविद मिति

(स० १.५२.) सत मलयतर वाज हवनसयद रथ मिति रथवतसत म

sहनि सपतमसवाङगी रपम’–इति । ‘तय समषम' '—इतिसतसय

“अतरय न वाजम’—इति दवतीय: पाद:, तच रथशबद: धयत॥

तचिन मझ निविजान विधतत–“तदजागत, जगलयी वा

एतसय तरयहसय मधयनदिन वहनित ; तहत चचछनदी वहति, यसमितरि

विडीयत ; तसमाजजगतीष निविद दधाति’-इति । असय ललाखा

जगतीचछनदखकालवाजजागतलवम ; ताशव विवाहिकर मणीततर तरमा ह

माधयनदिन सवन निरवाहिकलवादसिमनमाधयनदिनसवनगत शतख ;

ततसवननिरवाहिकतया जगतीचनदखताखतत निविदपरचिपत॥

परवोती तरिषटपछनद:, इदानी सचयमान जगतौचछनदच

मिलिलवा परशसति-‘मिथनानि सजञानि शासयनत, वटभानि च

जागतानि च; मिथन व पशव:, पशवनछनदोमा:, पशना मव

रहr’-इति । यथा परसमरविलचणयो: सतरी परषयो म लान मिथन

भवति, एव छनदोइयमलन मिथनालवम; गवाशखादिपशवशय मिथन

रपा:,–चतरविशाशवतशवतवारिशाषटाचलवारिरशाखयानछनदोमा:, पश

साधनलवातपशरपा: ; तसमाचछनदोमयझ sसमिसतरा ह छनदोइया

तषठान पशपरामया भवति ॥ . ‘छनदोभिः' गायतरी तरिछटबजगतीभि

रचरसङकाइारण उपमौयनत इति चतरविशणादयसतरय:‘छनदोमा:’॥

ततर गायतरया चतरविशलयचरया सदशी यचतरविशसतोम:, तसय

परतिपादक मटभयी हिङकरीतीलयादिक छनदीगबराहमण चतरविश

मतदहरपयनतौलयारभणीय मितव चवीदानदरतम (२भा० ३०६षट०)।॥

२०० . ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

बचतयलवारिशसतोमसय निरपरक छानदोगबराहमणम, तदव

मानायत—"पछदशभवी हिडरीति स तिरछभि: स एकादशभि:

स एकया, चतरदशयी डरीिति स एकया स तिसभिः स

दशाभि:, पचदशमयो चिहडडमरीति स. एकादशॉभिः स एकया स

तिसभि:"-इति (ता०बरा०३.०-११ ख०)॥ असाय मरथ

चिमिः परयायतचसयावततौो परथम परयाय। परथमाया ऋचरितर

रभयास:, मधयमाया चटच एकादशकलवी जयास:, उततामाया ऋचः

सछतपाठ: ; डिरतौयपरयाय परथमायाः सझतपाठ, मधयमायासतरि

परयास:, उततमाया दशकलवीयास: ढतौय परयाय परथमाया

एकादशकलवी Sनयास:, मधयमाया: सडयाठ, उततमयाखिल

रभयास: सोशयरय चतबलवारिश: सतीम इतिशर ॥

अथा.टाचलवारिशसतीमय बराहमणा मव माइनायत-*वोड

शभयो डरोिति स तिसभिः स इशादणभिः स एकया, षोड

शभयो डिगरीति स एकयास तिमभिःस इशादणभि, षोडशयो

हिडरोति स. इादशाभि: स एकया स तिसभिरती. वा टी

चलवारिश"-इति (ता० बरा० ३.१२,१३.)। असयाय मरथ—

परथम पयाय परथमायासतरिरभयास:, मधयमाया इादशकलवी

5यास, उततमयः सतयाठ; दितौयपरयाय परथमायाः सतर

तयाठ, मधयमायासतरिभयास, उततमाया ददिशकलवी sभयासः;

वरतौयपरयायपरथमाया ददिशकलबोपनयास, मधयमायःसतरयाठ,

उततरमायासनिरभयास इति 1 एव मटाचलवाहिश: सतीम इति "ि ॥

" एव तरयमबदमा अवगनतवया:॥ . .

--ca-P

" * चतधवारिशखासय सतीनमसय तिखी विटतय: तवादथम ।

' ' अधटाचवाशिखासय तोमसयई विदयती: तवायादवयम । .

॥ पचमपचिका ॥ ३ ॥ १ ॥ १०१

अथ इहसामसाधयपठसतीचियसयाधारभत सतोबिय परगारथ

तदनरपइ विधत–“लवा मिडि हवामह, लव टरडि चरव इति

डहतपरड भवति सम जहनि"-इति। लवा मिडीलकः (स.

६.४६-१,२.) परगाथ, लव चहौति (स० प८.६१.७८.) दिरतीय,

तदभरय सपतम जहनि निषकवखयशाल शॉसनीयम । नन तब

यगम सह:सरम, तथा सति रथततरपट परितयजय इहतपरड कि

मियपादोयत ? इति चत, वचनबलादिति बमः; "कि हि

वचरन न करयावासति वाचनसयातिभार"-इतिनयायात ॥ :

डरपठखौकर काचचिदपति माह-"यदवषषठखाइराद"

-इति ॥ परवसय षषठसयाडी यदव पषठसतोतर, तदवातर छातरत भवति।

तसय परयोजन तपरिटाडचत । नन षटशयहनि रवरत परट,न त

हदिति चत, नष दोष: ; दहदवतयोः कारयकारणाभाव

नकलवादियभिपरलिया दवाइव वा इद मय रथयातरा चासता मिलघाटन

परतिपादितम अ3 ॥ . . .

-'. कारयकारणभाव मिनह समारयति-"यह रथनतर, ताई

रप ; यद इहत, तडराज ; यदरथनतर, तचछाचारी; यद डहत

तटरवतम"-इति । वरपशाकरयी: रथनतरजनयतवोततदयतवम,

वराजरवतयोहजनयवातदपलवम, एव चसति षटलहनि रव

वतसय डहतव' वयवहा शकत॥ . . . . . .

इदानी मतरसम हनि डहतयषखीकार परयोजन माह

"तदयद डहतपरड भवति, डहतव तद डबलयतबवनयखतीमकनत

वाय"-इति। "तत' तसमात षलहनि छकतसय हवतखध डहदप

वात कारणात'यदध'यतर सम हनि डहरपरव करियत। तदि

क. २ भा० २९५ पर० ९प० दरषटवयम । . . . .

१०२, ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दानी घल शहनधनषठितन इतवासिन सम हनि'तद’ इतपरड

'परतयतबवति'। अतौतचन नषटखय पनरदधारण परतयतताधनम।

एतब ‘असतीमकनततराय' समपढत। सतोमाना चिइतपषदणादोना

छनतरव छनतन छद, तनदराहितयम "असतीमकनततर", तदरथ मातर

सवीकार: ॥

विपचबाधोपनयासमखनव तदव सपषटयति- "यदरथमतद

सयालकतव सवात"-इति। कषतरहनधनषठितख इहतोहसिन सम

जहननचतरति परितयजय यगमदिनतव माचितय रथनतरपट खौकरियत,

तदारनो घटसपतमयोरनलयभावात 'इनततर' विचछदरन सयात ।

शल दहत छातरत,सम तब छातम, विनत रचनतरर छत मिति

विचछद; ॥

विपचबाध सपानयतरय सवपच मपरसइरति-—"तखमाट इनहदव

कतरतवयम'-इति ॥. यखाट इति छात विचछद: परिडियत,

तसमादितयरथ: ॥ ,

अचयततवलिङगयनना खरच विधतत-"यइावानति (स० १०.

७४.६.) धायाचचता"-इति ॥

. अथायगमदिनतव सपजीवय रथनतरसबबनधाततदीया मरच विघत

-"अभि वा शर. नोलम इति (स.०७.३२.२२.) रथनतरखय

योनि मन निवरतयति, राथनतरर चतदहरायतनन"-इति.1 नितरा

वरतन अनषठान निवरत, न तपरितयाग:। "आयतनन' अयमतव

यानन रचनतरसमबनध: ji

. पिबशबदलिङगक परगाथानतरर विधतत-"पिबा खशतसय रसिन

इति (स० ८.३.१,२.) सामपरगाथ:, पिबवानसन शहनि सपतम

खाडी रपम"-इति॥

॥ पखमपतरिका । ३। २ ॥ १०३

अचयतवलकि सतरविशरष विधतत-"य म य वाजिरन

दवजत मिति(स०१०.१७८.) ताखा चयतः"-इति॥ १ ॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणसय पखमपतरिकाया ढतौयाधयाय

(ढनयोविशाधयाय) परथम: खणड:॥ ९ (१६) I

॥ अथ दवितीय: खणड: ॥

इनदरखा नवयणि पर वॉच मिति सज" मति

सम Sहनि समखाडी रप तद चछरभ दतन परति

ठितपदन" सवरन दाधारायतनादवतन न मचयवत'

भि व मरष परबत खमिय मिति सॉयडाव परति

बतदभौति समsहनि सपतमखाडी रप तद जागत

जगलयो वा'एतख वाहख मधयनदिन वहनति तई

तचछनदी वहति "यसिबरिविडौयत' तसराजगतौष

निविद दधाति'मिथनानि सझानि शखनत"चध

भानि च जागतानि च'मियन व पशव:पशवछ

दोमाः पशना मवईध' ततसवितईगौमड उदया नी

दव सवितरिति’वशखदवख परतिपदनचरी"राथनतर

ऽहनि सपतम शहनि सपतमसवाही रप' मभि वादव

९०४ 1 ऐतरयबराहमण म ॥

सवितरितिसाविच यडावपरति तदभौतिसमऽहनि

समखाइडो रप परता यजञख शमभवति दावापथि

वशौय परति सम शहनि सपतमखाडो रप मय दवाय

जन इतयाभव जातवत सपतम ऽहनि सपतमखाडी

रप' मा याहि वनसा सहति डिपदा: शसति'

डिपाई परषवतषयादाः पशव पशवझनदोमाः

पशना मवफलध तदयद डिपदःशसति यजमान मव

नतद डिपरतिषठ चतषयातय पशय परतिषठापयवभिरन

टवो गिर इति वशवदव मति समऽहनि सपत

मखाइडो रप तानय गायचाणि गायचततौयसवन

एष चाहा वशवानरो अजौजनदियानिमारततख

परतिपजातवत सम शहनि सपतमखाडो रप पर

यदखिषटभ मिष मिति मारत' परति सम sहनि

समखाडी रप जातवदस सनवाम सोम मिति

जञातवदखचयता दरत वो विशववदस मिति जात

वदख मनिरल'सम ऽहनि समखाइडो रप तानय

गायचाणि गायचढतौयसवनएष वाह:॥२(१)

परशबदलिङगक सतरो विधतत-"इनदरय त वीरयाशिए परवीच

मिति (स० १.३२.) सतरो ; परति सम जहनि समसयाही

रपम"-इति ॥

॥ पखमपचिका । ३। १९॥ ९०५.

-*

ततरतरय इनद: परॉसति-"तद वकरभ तन परतिषठितपदन

सवन दाधारायतनादवतन न परचघवत"-इति 1 . .

अभिशबद-परशबदयोरपसरगलवसायनारथकतव मभिपरलव, ताइा

शदकब मपयारोयाभिपरयदलिङगक सतरो विधत-"अभि व

मष सरदत ममिय मिति (स०१.५९.) सतर : यददाव परति

तदभौति सपतम शहनि सपतमसयाडो रपम"-इति l

असिन सत निविदयान विधतत-"तद जागरत जगली वा

एतसय वाहसय मधयनदिरन वाइनित ; तईतचछनदी वहति, यतरिपवितर

विडौयत; तखमाजगतीष निविद दघाति"-इति ॥

छनदोइय मिखिवा परशसति-"मिथनानि सहानि शसत,–

बटरभानि च जागतानि ‘च , मियन व पशवः पशवचछनदोमा:

पशना मवरड."-इति ॥

शासतरानतरसय परतिपदनचरौ विधतता-"ततसवितरवरणीमह

(स० ५.८२.१-३.), उदया नी दव सवितरिति (स० ५.८२.

8-६.)वशखदवसय परतिपदनचरी ; राथनतरजहनि सपतम जहनि

ससमसयाईो रपम'-इति । ततसवितरिलयाद: झचिदरयनतपरसा

बनाधारलव मभिपरलय राथनतरलव लिङका मलम I

अभिशबदपरशबदयी: परववदकोव मारोगय परशबदलिङगक ढाचा

अक सरव विधत-"अभिव दव सवितरिति (स० १२४.)

सावितरी, बददाव परति तदरभीति, सपतम जहनि समसयाटटी रपम"

-इति p

आरोपित-परशबदलिङगक सझा मखय-परशबदलिइक टचालक

सरव विधतत-"परता यजञसय शमयवति (स० २.४१.) धावा

शधिवौय ; परति सपतम जइनि समरवाडी रपम"-इति। हितौ

१० ॥ ऐतरयबराझणम ॥

यखा मच"बावा नः परधिवी"-इतयलवादिरद सरव वयावाटथिवी

दवताकाम in

जाततरिक ढाचानक सरव विधतत-"अरय दवाय जन

इलधाभरवि (स० १.२०.) जातवतसमsइनि समसयाही रपम"

-इति। अब सतरो. चतथी मचि "कटभवी विटाकत"-इतिशत

वात आय मपि ढच आरभवः; "जन"-इतयतवाजातव

तरिम ॥

बध पादददयीपता चनदरची विधाय परशसति-'आ। याहि

वनसा सहति (स० १०.१७२.)डिपदा: सिति ; डिपारड परष

चतषयादाः पशव, पशवनदोमा, पयना सवरलया: तद यदद

डिपढ: परॉसति, यजमान मव तद डिपरतिषट चतषयाल पश

परतिषठापयति"-इति। इनदोमाना परवोचतरविणादौना पश

परासिसाधनालवात पशतवम ॥

आकारलिइकबडदवतारक सरव विधत-"ऐभिरमन दवी

गिर चति (स० १.१४.)वशवदव मति सधम sहनि समसया हो

रपम"-इति 1

बलष सलष इनदः परशसति-"तानय गायतराणि गायतर

ढतीयसवन एष बरह"-इति.। 'तानय' तानि त सनानि

"अया नो दव सवितर"-इलयारय मधय डिपदा वरजयिलवा

"ऐभिरन"-इतयनतानि (१०५-९०६प०)गायबीचनदखानि

वशखदवशाख जभिहितानि ॥ एश चोततमसवाही "गायतरढतीय

सवन' गायतरी चनदखरतौयसवन यसय बरहसय सीषय गायतर

ढरतौयसवन: 1 तदताचछनदोविवाह.परसतावशनसनधयम *॥L-a

- 4भा. इपट,३क पe ३,५,ख० दवटबयम।

॥ पचमपतरिका | ३ | २ ॥ १०

शसतरानतर सय जनिधातलितबयलॉ परतिपरद विधाता—"वशखानरी

अजीजनदितयागनिमारतसय परतिपजञातवत 3, सपतम ऽइनि सपत

मसयाडी रपम'-इति ॥

परणबदखिडकी सॉ विधतत-"म यडखियभ मिष मिति

(स० र.e.) माररत ; परति सम हनि समसयाशी रपम"

इति । दवितीयपाद "मरती विपरा:"-इतिशयतलवादिदई खल

मरईवताकतम ॥ ,

अचयतवलिइयनना खरच विधत-"जातवदस सनवाम

सोम मिति(स०१.०८.१.)जातवदवाकयता"-इति॥

परसटदवतारक सतरो विधत-"दरति वी विखवदस मिति !

(स० ४.८.) जातवदसय मनिरल' सम जहनि समसयाशी

रपम'-इति 1 जातवद:शबदसथानिवाचिलवSपि सपषटदवतावाच

कलवसथाभावादनिरतवम ॥

"वखानरी अजीजनल"-इतयादिय"दत व"-इखतष मलय

(९०६-१०७प०)जातवदस इलतइरजितष विदयमान. छनद: परशा

सति-"तानय, गायतराणि गायतरढतीयसवन एष बरह"

इति ॥ २ 1 . "

इति धीमठतायणारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणय पखमपबिकाया ढतीयाधयाय

(कतरयोविशाधयाय) दवितीयःखणडः॥ ९(१३)॥

क वशवानरीयढचसनखादया चातरमाख कलपजञा, उतर लवबव पठित। ‘स विशवम

ति, ‘इषा पावक'-इति चा। आध०_औ०फ,e, 9, दरवयमI . . . . . . .

९• 1 ऐतरयबराहमणमय॥

1 पथ ढतौयः खणड: ॥

यह नति न परति'यतयित तदषटमखाडो रप'

यडव खितौय महदवतनयनरयदषटम" यदधरववद

यआतिवद यदनतरवदयदवषखद यदवधनवदयन

धयम पददवता निरचयत यदनतरिच मयदित'यद

दनि यनतरदरद० यद विदयतवदयतयनरवदयटकरवद

यद चितौयसवालडो रप" मतानि वा अषटमखाइहो

रपाणथगिन'वो दव मनिभि: सजीषा इतयटमखाइ

आजाय भवति"इधगयटम sहनयषटमखाडी रप' तद

बषटरभ चिषटपरातससवन एषचाह:कविद नमसा

य वधास: पौवो अनना रविवधः समधा उचद

षस: सदिना आरिपरॉी उशनता दता न दभाय गोपा

यावतररतनवीयावदोज: परति वा सर उदित सकए

धन:परख कामय'दहाना' बरहमा रण इनदरोप याईि

विडानधा अगनिः समरति वखो चथद तखा नः

सरखती जषागति परजग' परतिवदनतरवद डिडतव

दधरववदषटम sहनयषटमखाडो रप तट चषटरभ चिषट

एआतससवन एष चाही’ विशवानरख वसपति'

मिनदर इनसोमपा एक इनदर नदय एदियकतिछ

क, "धनवनद"ड॥

॥पचमपचिका । ३. I ३ ॥ ९०e

बरहमणसत'sनिरनता'व सोम करतभि: पिनवनयपी'

बहदिनदरय गायतति दवितीयनाडा समान आतानी'

ऽटम sहनयषटमखाडो रप"शसा महा मिनदर यचिन

विशवा इति सन' महददटम शहनयषटमखाडो रप'

मइधितवमिनदरयत एतानिति सकषम व महददषटम

sहनयषटमखाडो रप पिबा सोम मभिय मगर तह

इति सकत मव गबरय महि गयणान इनदरति महइ

दटम शहतयटमखाइडो रप' मईश इनदरो नवदचरष

शिपरा इति सत" महबदषटम ऽहनयषटमखाइडो रप

तद चषटरभ तन परतिषठितपदन "सवन दाधारायत

नादवतन न परचयवत"त मख दावापथिरवौ सचत

सति सज"यदतकखानी महिमान मिनदरिय मिरति

माइददषटम sहनधषटमखाडो रप तद जागत जगलयो

वा एतख वाहख मधयनदिन वहनति तईतचनदी

वहति' यचिविविहौयत' तसमाजगतौय निविद

दधारति मियनानि सफानि शखतचषटरभानिच

जागतानि च मियन व पशव पशवचछनदोमाः

पशना मवई महदनत सझानि शखनना"माइडा

चनतरिच मनतरिचखाल पच सतानि शखती

७ ‘एतानि सलतानि" की ।

, " .

११० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

पशचपदा पङगि: पाङगो यजञ: पाङगा: पशव: पशिव

अछनदोमा: पशना मवरहiा sभि तवा शर नोनमो'

sभि तवा परवपौतय इति' रथनतर पषठ भवयषटम

sहनि यदवानति धाययाचयता 'तवा मिहि हवा

महइति बहतो योनि मन निवरतयरति बाईत होत

दहरायतननो भयशणवचन इति सामपरगाथो यचद

मढदय यद च ऋगर आसोदिति बाईत ऽहनयषटम ऽह

नयषटमखानही रप' लय म ष वाजिन दवजत मिति

ताचरयो sचात:॥ ३(१८)॥

सपतम महरभिधायाषटमसयाङगही मनतरलिगिानि दरशयति

‘यई नति न परति, यतखित, तदषटमसयाङगी रपम’—इति ।

अाकारसय च परशबदसय चालिगलरव नकारइयन निषिधयत । ‘यात

रियतम'. अचयतलवन नियत तिषठतिधातयकत' वा, तदषटमसयाङगो

निरपकम ॥

हितीयसिमनदरहनि परीपतिानि लिगानधशटम Sहनयतिदिशाति

‘यडाव हितीय महसतदवतरपनरयदषटमम’–इति ॥ यलिङगक मव

हितिीय महसतलिङगक मवततपनरपि भवति ॥

यदषटम महसततपरवीतलिगकम; तानि लिगानधपनयखति–

‘यदरववदयापरतिवदयदनतरवदयद छषखदयद छधनवदयकाधय न पद,

दवता निरचतयदनतरिच मभयदितम’-इति ॥

अथ नतनानि लिङगानि दरशयति–“यद इयननि यकाहदद

॥ पालमपतरिका | ३ | ३ ॥ १११

यडिलवदयतयनरववत इरवित"-इति। अगनिशबदयोपरत दशली

यचत। मडबदीपरतमहत।इयोदवतयोई तमाशान यलिन

ताइरश डिड वित। अनःशबद'परत सनरवत । दवितीयडनि वतरत

मानारथवाचिपरतययानरत करवचबदनोलम॥

तन सह सरवाचिट लिगानयपसहरति-"यद दवितीयसया हो

कष नतानि वा अषटमसयाईो रपाणि'-इति ॥

तीवराजथशाख विधवकत-"अगनि वो दव मनिवभि: सजीषा

इलयषटमसयाइड आजरय भवति (स.०७.३.) , इधगनयषटम जहनधषटम

सयाही रपम"-इति। इवनिशबद यलिनसल विधत, ततसल

झरिन ; आती 5षटम जहनि योगयवादतदषटमसयाही निरपकम ॥

तबलव इनद: परशसति–“तद वटरभ बिषटपआतसवन एष

चड:"-डति ॥

अथ परउगणरतर विधतत-"कविदग नमसा य दधास:,पीवी

अरवी रयिडध: समधा, उचचषसः सदिना आरिपरा, उशनता दता

नदभाय गोपा, यावकतरसतनची यावदोज, परति वा सर उदित

सतर, घत: परढखय कारय दहन, बरा ए इनदरोप यदि विदय

नतरो अनिः समति वखी अधदत खया न: सरखती जषाणति

परउरग परतिवदनतरवद, डिडतवदववदटम जहनयथमसयालडो रपम"

इति । "कविदग"-इति (स०s.८१.१.)परथम परतीकम,"पौवी

अननान"-इति (स.०७.८९.३.) डिरतौयम, उचवषस:"-इति

(स.०७.८०.४.) ढतौयम, "उशानताः"-इति (स.०७.८१.२.)

चतरथम, "यावततर'-इति (स.०७.८१.४,५.) पचमम, "परति

बाम"-इति (स.०७.६५.१-३.) षषठम, "धनः परढसय"-इति

(स० ३.५.१-३,) समम,"बरझा रण:"-इतयटमम (स० s,

१ १२, ॥ ऐितरयबराहमणम ॥

२८.१-३.), ‘उधवो अगनिः’-इति (स० ७.३e.१-३.)नवमम,

‘उतसया नः’—इति (स० ७.९५,४-६.) दशमम । अतरादखिभि:

परतीकरकसतचः; चतरथी चका, पचम ड, तदभय मिलिलवा

हितोयसतचः; इतर पाच ढचाः; एततसरव परडगम । ततर दशम

परतीक ‘पर ति सतोमम’–इति परतिशबदोपत लिग मसति, धन:

परढतरसयतयसय हितोयपाद ‘अनत: पच:’-इति अनतःशबदोपत

लिगम, ऊधरवो अनिरितयसमिवलशबदोपत लिगम ; अवशिषटष

इयोरानदरान लिगम,-– कचिदिनदरवारयोः कचिचिमतरावरणयोरिति

दरषटवयम ॥

उततमनतरगरत छनद:परशसति-‘तद वटभ तरिछटपपरातससवन

एष तरयाह:’-दति ॥

अथ मरतवतीयशख तखयशखतकतियाखयन लिगनोपतान

मनतरान विधत–“विशखानरसय वरयति (स० ८,६८.४.) मिनदर

इलसोमपा एक (स० ८.२.४.) इनदर नदौय एदि- (स० ८,

५३.५.) झकतिठ बराहमणखान (स १.४०.१.)sगनिनता (स० ३.

०.१.२.) लरव सोम करतभि:( स० १.e-१.२.) पिनवनतयपी (स० १.

२०.४. ) छहदिनदराय गायतति (स० ८.८e.१.) हितौयनाहा

समान परापतानोsषटम ऽहनयषटमसयाङगी रपम’—इति ॥

महचछबदलिगक सत' विधतत—‘शसा महा मिनदर यचिमन

विशखा इति मरत (स०३.४e.) महहदषटमहनधषटमसयाजञी रपम’

-इति । अतर ‘महाम’—इतयष एव महचछबद:॥

पनरपि मह चचछबदयकत' सलानतर' विधतत–“पिबा सोम

मभिय मय तई’-इति (स० ६.१७.) सता मरव गवय' महि

नटणान इनदति महइदषटमहनयषटमसयाङगी रपम’–दति । पिबा ।

॥ पखमपचिका I : ॥ ३ ॥ १९३

लीम मिलवादिसचसय "उरव गवयम"-इति डिरतौयः पादः। ततर

*महि"-डचष महचबद: ॥

सनरप मइचदयरव सनानतर विधत-"मइधितव मिनदर

थत एतानिति(स० १.१६०.) सतर, महदषटम जहनधषटमखाडी

रपम"-इति ॥ अच "मह:"-इलष एव माइचबद थ 1

सनरपि महबदयरव सरत विधतत-"मई म इनदरी कवद

चरषविपरा इति (स.०६.१०.) सरय, मइडदटम शहचटमखाइडरो

बरपम"-इति ॥ अचतर "महान"-इलष मइचछबद: ॥

उलय चतरवपि महचदयअनतसय वखचाखयादिभागवक

विधालवात म माइचबदवतव' दरषटवयम I

एतसचतषटयगरत इनदः परॉसति-"तड वदरभ तल परति

ठितपदन सवरन दाधारणयतनादवतन ब परचवात"-इति ॥

अथावाचहचदीपरतखल विधत-"तमख दावाधवी

चचतसति(ब० १०.१९३.) सद, यदव झडानी महिमा

मिनदरिय मिति, महढदषट म इनवषटमसयाही रपम"-इति । तो

मखतियशय "यदत छाणखान:"-इति ढतीय: पाद: । तच

"महिमान मदमडि"-इति महचछबद: ययत ।

तखिनसल निविदा विधतत-"तद जागरत जगलवी वा

एतसय बरहसय मधयनदिरन वाहनति ; तईतचनददी वहति, चरितरवि

विडीयत ; तसराबगरतौल निविद दधाति"-इति :

क एवतपडजिच १९पर० ९पड बनचार पाबवम, इनह त चनात यकम ि1

H- "दोचादटिसमानपाद"-इति(पा० ८, ३,३.) एलब जलनासिकलव ( परा० प, २.

६, 8.)च रपम । तदच'महा-इति,"मडा'-इति, ‘महा-वि च लिपिपरकार भद

अनाचम; उचचारण वकविघ मव वयवजियत।

‘महाम’,‘माही’,‘महि, ‘महान"इति (स० ३४,१९९.९०-९-11

११.

१११ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

इनदरयमिलिखा परशसति-"मिथनानि सहानि शखत,

–वटभानि जागतानि ‘च ; मिथन व पशव,पशवझदोमा,

पशना मवरईया"-इति ॥

उल सबड मचदपरशसति-"महइवि सतानिशखत;

महददा अनतचितर मनतरिचसयामच"-इति 1 अनतचिसय माइकव'

विसतौरणतव परसिदधम ।

मचयताना सझाना सडा परशसति-"पचसनानि

णयलत ; पचपदा पडि, पाटरी यजञ:, पाडरा: पशव:,पशव

खदीमा:, पशना मवरदय"-इति। शॉपसा महा मिति (स० ३.

४८.१.) परथम सल महचबद, महवितव मिति (स० १.१६.

१.) दवितीय, महि यणान इति (स.०६.१७.१.) ढरतौय,

मईश इनदर इति (स० ६.१०.१.) चतरथ, महिमान मिति

(स० १०.११३.१.)पचम; एवपचसतानि मइचदयतानि

शासत।पशसहायोगातपषपादीपता'पडि'छनदोरपा भवति;

यजञध हविषयडयादिना 'पाड',पशव पडरिमखन 'पाडन:"";

इदोमानाबपशसाधनावातपशवम। अनन समबनधन सझपचक

पशपरा सनय समपरदात ॥

अथ निषकवलयशसवसथ रथनतरसारमसाधययठसतोचसय आधार

भरत सतोतरिय मनरपरव विधत--"अभि लवा शर नीलमी (स.०

म.३९.२९.२३.)sभि लवा परवौतय इति (स० १.१०e,१०.)

रथनतरर परव भवलयषटमशइनि"-इति ॥ यदयपि यगमदिनलवात

नयायतीबहरपट परापतम, तथापि वचनबालादरथनतरठलव दरषटवयम ॥

अचयतवलिलयदरा खरच विधतत-“यइावानति (स० १०,

७४.६.) घाययाचयता"-इति ॥

॥ पशचमपचिका। ३ । ३ ॥ ११५

तसया उपरि बहसामयीनः शसरन विधतत–“वा मिदि

हवामह इति (स० ६.४६.) बहती योनि मन निवरतयति ;

बाईत होतदहरायतनन’—इति। अषटमसय यगमदिनलवात बह

तसरबबनधिसयानलवम ॥

तरवव छहलसमबनधिन सामपरगारथ विधतत-‘उभय पण

वच न इति (स० ८.६१.१,२.) सामपरगाथी यचद मदय यदच

हदय अासीदिति बाहत ऽहनयाषटम ऽहनच षटमसयाङगी रपम’

इति ॥ उभयशबदसय तातपरय यचद मितयादिनोचत । अथ

‘यदिद' कारयय मासीत,‘हयशच' परवदपरपि ‘यद’ यदव कारय

मासौत, तदतदभय मपि शणत मिति तसय पादसयारथ:* ॥

यगमरप बाईत Sहनि छहतसामसमबच:परगाथो यकत एव ॥

अचयतलवलिङगक सतविशष विधतत—‘लय मष वाजिन दव

जत मिति (स०१०.१७८.) तालो यतः’—इति॥ ३॥

इति शरीमालसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाशह

ऐितरयबराहमाणसय पाशचमपचिकाया ढटतीयाधयाय

( तरयोरविशाधयाय ) ढतीय: खणड:॥ ३(१८) ॥

* ‘उभय-तीचालक शसतरातमक च’-दरति सहिताभाथी इयनव सायण;।

११ई ॥ ऐतरयबराहमणम I

, ॥ अथ चतरथ: खणड: 1

अपया परतमनवचा इति सत'मह वीराय

तवस तरायति महइदषटम ऽहनवषटमरचाईो रप'

ता स त कौति मघवन महि वति सज महददषटम

ऽहनचषटमखाइडो रप" व मई ० इनदर यो ड शषो

रिति यह" महददशम इनयषटमखाडी रप" तरव

मईश इनदर दषय' वह चा इति सत" महददषटम

ऽहयषटमखाइडो रप" तद चषटरभ दतन परतिषठित

पदन'सवरन दाधारायतनादवतन न परचयवत दिव

चिदख वरिमा वि मपथ इति सत' मिनदर न'

महरति महइदषटम sहनवषटमखाडो रप" तट

जागरत जगलो वा एतख चाहख मधयनदिरन वाहनति

तईतचकनदी वहरति यचिविविडीयत तराजगरतौष

निविद दधाति मियनानि सझानि शखत'चषट

भानि च जागतानि चमिथन व पशव: पशवषक

दोमा: पशना मवरईय'महइनित सझानि शखनत'

महददा अनतरिच मनतरिचखालध'परशन पतर सलतानि

शखनती पचपदा पटटिःपाईो यज: पाइः पशरव:

पशवचनदोमाःपशना मवरई तानि डधा पखा

नयानि पचानयानि दश समपदनत सा दशिरनी विरा

a "नही" ख;"माइ"िय,घ,ड। एव परवोततरव च सरवव।

॥ पखमपतरिका । ३ । ४ | ११9

ञच' विराऊतर' पशव: पशवशइनदोरमाः पशना

मवरईध' विशवी दवरच नतस, ततसवितरवरणय मा

विशवदव सतपति मिति"वशवदवख परतिपदनचरी'

बाईत ऽहनयटम sहनयषटमखाडी रप हिरणय

पाणि मतय इति साविच मईवदषटम Sहनयषट

मखाडो रप महिी दौः पथिवीच न इति' दावा

पथिवौय महदषटम शहनयषटमखाडी रप यवाना

पितरा पनरितयाभव पनरवदषटम शहनयषटमखाइडो

रप मिमा न कवना सौषधामति डिपदाःशसति'

डिपाई परषधातषयादा: पशव: पशवषकनदोमा:

पशना मवरई'तदयद डिपदाः शसति"यजमान

मरव तद दिषपरतिछ चतयाय पश परतिषठापयति

दवाना मिदवी महदिति वशवदव"महददटम5

वयटमखाडो रप' तानय गायतराणि गायचढतौय

सवन एषचाहचटतावारन वशवानर मिलयानिमार

तख परतिपदगनिवशवानरो महानिति महदषटम

इनवषटमखाही रप" करीक व शही मारत, मिति

मारत जनम रसख वावध इति इधनवदषटम sइनयथ

मखाइडो रप जातवदस सनवाम सोम मिति जात

वदखाचयरता न मलक मई। अरसौति जञातवदव

११८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

महददटम शहरयटमचाडो रप'तानय गायचाणि

गायतरततौयसवन एष चाहएष वह ॥४(१९)॥

इवतरयबाहमण पचमपतरिकाया ततौयोऽधयायः॥३॥

महबदयल' सतचतषटय विधत-"अपवयो परतमानधरआ

इति (स.०६.३६)सतर, मह वराय तवस तरायति महडदषटम

जहनधषटमसयाडी रप ; ता स त कौकति मघवनहिवति (स.०

१०.५४.)सज, महडदषट न शहनधषटमसयाडी रप . ल महा इनदर

यी ह शमरिति(स०१.६३.) सरश, महदददषटम sहनधषटमसयाडी

रप; लव मईो इनदर तषय'ह चा इति(स०४.१७)सत; मइड

दषटम जहनधषटमखाइडो रपम"-इति। अपवतिसचसय दवितीय

पाद"मह वीराय"-इति महबद छतः; इतरसिन सतर य

परथमपादएव महचबदः सपषटः॥

सतचतषटयगत इनद, परशसति-"तद वषटरभ तन परतिषठित

पदन सवरन दाधारायतनादवतन न परचवात"-इति ॥

यथा मरतवतीयणख मइचदयरव विदयपछनदख सचतषय

सजञा पतरधाजजगतीचनदख' महबदयल सनानतर सझाम, एव

मातर निषकवखाप चियपछनदख' सतचतषटय मभिधायजगती

चनदख' सरव विधत-"दिवधिदसय वरिमा वि पथ इति

(स०१.५५.) सतर मिनईन मडति महडदषटम जहनधषटमखाडी

रपम"-इति । "दिवधिदसय"-इतिसचसय इनदर मिति दवितीय

पाद "मडा"-इति महचकबद: यत; ॥

तसिन सल निविदयारन विधतत-"तदजागरत जगलवी वा

॥ पखमपचिका | ३ | 8 ॥ ११c.

एतरय वाहसथ मधयनदिन वहनति तईतचछनदी वहति,यासिमनतरि

विडौयत: तसमाजगतीष निविद दधाति"-इति ॥

छनदोइया मिलितवापरशसति-"मिथनानि सजञानि शासयनत,–

वछभानि च जागतानि च ; मियरन व पशव,पशवमहनदीमा:,

पशना मवरहय"-इति ॥

सलब महचछबदपखसझाच परववतपरासति-"महडनति सतानि

शासयनत; महददा अनतरिच मनतरिचरयासय ; पतर पच सजञानि

शासत;पचपदा पडि:,पाडडी यजञ,पाडरा: पशव:, पशवषक

नदीमा:,पशना मवरईय"-इति ॥

शसतरइयगतानि महचछनदयजञानि मिलिलवापरासति-"तानि

डधा पचानयानि पचानयानि दशा समपरदात; सा दशनी विरा

ऊतर, विरातर पशव,पशवचछनदोमाः, पयना मवरईय"-इति ।

परवॉलानि मइचयतानि सरवाषि सनानि डधा वियतानि।

कध मिति, तदचत-‘पचानयानि' मरतवतीयशसतरगतानि पतर

सधाकानि पथगवावरियतानि ;पनरपि ‘पचानधानि' निषकवलय

शखगतानि पदमसडाकानि यथगवावरियतानि , तानि सरवाणि

मिलिबादशसजञाकानि समपदयनत । सा'दशिरनौ'दणसखासमह

रपा विराड भवति;"दशाचरा विराट"-इतित: । अवसाधन

खाडिराषटछनदोतरम; तखाव चौरादिरगरय पशययबलवातपषणव

एव; तच पशवमढदो मखतरविशादिभिः सतीमसतयलरहोभिवा

सममादगरलवाचनदोमाखरपा: , आनन समबनधन ततपचकददरय पश

परावध भवति ॥

शसतरानतर सय परतिपदनचरी विधतत-"विशखी दवसय नतस,

नततसवितरवरणय, मा विखदव सतयति मिति वशखदवसव परतिपद

२२० ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

नचरौ; बाईत हतयटम जहनघषटमसयाडो रपम"-इति । "विशखी

दवसथ"-इलका (स ५.५०.१.), "ततसवितरवरणयम"-इति (स०

३.६२.१०,११.) इ; एतवय डहलसामसमबनधी ढाच: शासतर, सय परति

पत,“आ विखदवम"-इति (स०५.८२.s-e.) ढचीनचर: ;

तदभरय दहतसामसमबनधाद ‘बाईरत' यगमवन बरहलसामसमबनधि

नघटन हनि योगयम ॥

ऊरलिबरीपरत सविढदवतारकसखानीयचतरच: विधत

—"डरिखपाणि मतय इति(स० १.२२.५-८.) सावितर मरव

वदषटम हनधषटमसयाडो रपम"-इति । दवितीयपाद "सवितार

सपइय"-इतिशववणात सविनददवतारक सतम। जवशबदया

वरी:पि सविदरमणडलसयोपरिदशवरतिलवादरथत जीईवतवम ॥

मचछरदीपरत सदखानौरय ढरच : विधत-"मडी बी.

यधिवी च न इति (स० १.२२.१३-१५.) दावापधिवौरय, महदद

टरटम जहनघाटमसयाडी रपम"-इति ॥ "माही"-इतयषि एव

माह छबद: It

सनशनदापरत सदखानीय खरच म विधतत-"दवाना पितरा

रितयाभवम (स० १.२०.४-६.),पनरवदषटमsहनयषटमसयालडो रपम"

-इति । ढतीयपाद "कटभवी विचकरत'-इतिशरवणात ऋभ

दवतारक सचम ॥

हिपदा चनदरची विधाय परशसति–"इमा न कम भवना सौष

घामति दिपद: शति: दिपाई परषबतथाद:पणव:पशब

* आतईजयदिक मकविशयच सकम, तलवपचमयादौनाचतखणा मिड गरहणम ।

परात जयदिक मकविशवारच सकरम. तसव चयीदाबादौनातिखणा मिड गरइम ।

अय दववयटरच सतम तलवचतयादीना तिरणा मिड यहणम ।

I पचमपतरिका । ३ । ४॥ १२१

महनदीमा:, पशना मवरबध ; तादयद डिपदाःधौसति, यजमान

मव तद डिपरतिषरड चतषयायपशष परतिषठापयति"-इति ॥

मइचबदीपरत बहदवतारक सतर' विधत-"दवाना निदवी

महदिति (स० ८.८३.) वशखदरव महदषटम जहनधषटमरवाही

रपम"-इति | महचबदोतर विसपषट: ॥ . . . . . . ."

दविपदावयतिरिझाना ततसवितरवरणय मितयारभय, दवाना

मिदवी मइदितयनताना इनद: परशसति-"तानय गायचाणि

नयायबढतीयसवान एव दशह:*-इति a r. . .

शसतरानतरसय परतिपद विधता-"ऋतावारन वशखानर मिलधा

बिमारतसय परतिपदलिवशखानरी महानिति महढदषटम जह

बटमखाडी रपम'-इति। चतावन मितयादिव सतगत -

बचच हितोयसया सचि,"अगनिवशखानर:"-इतति दवितीय; पाद: ।

ततर "महान "-इति महबद: ययत :

डधशबदपरत सरव विधत-"चौक व शही मारत मिति

मारवरत;. जाव ससय वाइबध इति इधनवनदषटम जहनघटनासयाडी

रपम"-इति। करीक' व इति (स० १.३७.) लख पचमबा

मचि "जतथ रसख"-इतिपाद यत। तब"वहथ"-इति

इधिधातमनतवम ॥

अचयततवलिझा मरच विधतत-"जातवदस सनवाम सोम

मिति (स० १.c.)जातवदसयाचषयता"-इति ॥

मचदयॉ जातवदीदवतारक सरव विधत-"अनन मल

e खबवव भाथपसतकय 'सलगत'इति पाठी दशल, परस नल लिपिकर परमाद

गाज: सहिताया कबिबिदप तो जख बचखादरशनात, सचतथायशाखातरीयलच

जयसची-"कतावान०–०विराजति"-इति( आशव० चौ० ८.१०.३.)।

९ई

१२९ ॥ ऐतरयबराहमणम॥

मईा असौति (स० ४.०)जातवदसरव महइदषटमशइनवषटमसया

शी

रपम"-इति ॥

आलिमारतिशखगतय, सलख छनद परशसति-"त

ानयगाय

वाणिा गायचढतौयसवन एन वहएष वाह:"-इति 1 अभयासी

ऽधयायसमानारथ: ॥ ४॥

इतिथीमसायणाचारय विरचित माधवीय वदारथपरका

ऐतरयबराहमणय पाइमपचिकाया ढोयाधीश .

. . ( वयोविशाधयाय)

चतरथ: खणड: ॥ ४(१०.)॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

पमरथधितरी दयाद विदयातीरथमहखर:॥

इति धीमदराजाधिराजपरमशखरव

दिकमारगपरवरतक

शौरवौरवखभपाखसानाजय

धरनधरमाधवाचारयादशत

भगवसायणाचायॉण विरचित माधवौय "वटरारथ परकाश'नामभाथ

ऐतरयबराहमणसय पखमपतरिकाया: ढरतौयीsधया

य: ॥

॥ अथ चतरथाधयाय:॥

( तिच )

॥ अथ परथसम: खरणड: ॥

-e-c-s-------------

॥ ९ॐ॥यह समानोदरकि ततरवमखाही रप'यडगाव

ततीय महसतदवतत पनरयननवम 'यदशववदयदनतवढरयत

पनरावतत यत पनरनिनचतत '' यदरतवदयत परयसतवरददयत

चिवढदयदनतरप' यदततम पददवता निरचयत यदसौ

लोको sयदितो यचछचिवदयातसलयवदयत चतिवदयद

गतवरददोकवदयत कत यतततौयखाडो रप' मतानि

व नवमखाजञडो रपारणयगनम महा नमसा यविषठ मिरति

नवमखाजञड आजय भवति गतवननव म sहनि नव

मखानडो रप' तद चषटभ विषटपपरातससवन एष

चगरह: पर वौरया शचयो ददरिर त'त सलयन मनसा

दौधयाना। दिवि चयनता रजसः पथिवया मा विशव

वाराशिना गत नो, sय सोम इनदर तभय सनरव चा।

त पर बराहमाणो अङगिरसो नचनत सरखती दवयनती

इवनरतआ नो दिवो बहतः परवतादा'सरखलयभि नो

नषि वख इति मउग'शचिवत सतयवत चतिवङकतव

१२8 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दोकवननवम ऽहनि नवमखाजञडो रप' तट चछटरभ

चिछटपपरातससवन एष चाहसत त मिदराध स मह।

चय इनदरख सीमा'इनदर नदौय एदिहि'पर नन बरहम

गसपतिरगनिरनता' लव सोम करतरभि: पिनवनयपो'

न किः सदासो रथ - मिरति ढतौयनाजञडा समान

आतानी' नवम Sहनि नवमखाडो रप' मिनङक: खाहा

पिबत यखसीमइति सत'मनतो व खाहाकारोsनती'

नवम महरनवन sहनि' नवमरचाजञो रप' गायतझाम

नभनव. यथावरिति स मरचाम तधावधान खरव

दिलवनतो व खररनतो नवम माईरनवम ऽहनि नवम

खाडो रप’तिषठा हरी रथ आ यजयमानति सत'

मनतो व सथित मनतो नवम महरनवम ऽहनि नवम

खाही रप मिमा उ लवा परतमख कारीरिति सरक

धियो रथषठा' मिलयनतो व सथित मनतो'नवम मह

नवम Sहनि नवमखाजञढो रप' तद चषटभ तन परति

छितपदन सवन दाधारायतनादवतन न परचयवत 'पर

मनदिन पितमदरचता वच इति सक' समानोदरवो

नवम ऽहनि नवमखाजञडो रप' तट जागत जगतयो

वा'एतख चाहख मधयनदिन वहनति तईतचछनदी

वइति' यसिवा बरिविडीयत' तसपराजगतीष निविदई

॥ पचमपचिका । 8 । १ ॥ १२१

दधाति मिथनानि सतानि शखनत चषटभानि च

जागतानि च'मिथनवपशिव:पशिवशछनदोमा:पशना

मवरचr' पशच सतानि शखनत' पशचपदा पङगि:

पाङगो यकत: पाङका: पशिव: पशवशछनदोमा: पशना

मवरडगा तवा मिडि हवामह' तरव होहि चरव इति'

बहतपषठ भवरति नवम ऽहनि यहावानति धायया

चयता'sभि तवा शर नोनम इति रथनतरख योनि

मन निवरततयति राथनतर होतदहरायतन' ननदर

तरिधात शरण मिति सामपरगाथसतरि वातरवम ऽहनि

नवमखाहो रप' लय म ष वाजिन' दवजत मिति

ताचरयो sचयत:॥ १(२०)।॥

नवमऽहनि मनतरलिङक' दरशयति-‘यह। समानोदरक तवव

मसयाङगी रपम’–इति । ‘समानीदरक’ तखयसमापतिकम॥

ढटतौय sहनयतानि लिङगानधसिमरतरवम sहनधतिदिशाति

‘यचगाव ढतीय महसतदवतत पनरयकतरवमम’—इति । ढवतीय

महरयाडशलिङगोपत पनरमयतर यबवम महसतदपि तादवशलिङगी यत

दरषटवयम ॥-

-

तानि लिङगानयपनयासयति–“यदखवदयदनतवदयत पनराडतत'

यत पनरनिटत' यदरतवदयत परयसतवदयकतरिवदयदनतरय यदततन पद

दवता निरचत यदसी लीको इभयदितः’—इति ॥ ’ - -

अथ नतनानि लिङगानि दरशयति-“वचकचिवदयातसलयवदयत

१२ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

चतिवदयइतवदयदीकवत"-इति

॥ शचिपसलघचतिगरतौकशबदा

नव

मऽहनि लिबरपा: ॥ भतारथवाचिपरतययानतधातरप

यदरित, तन

सहित ढतीय हनि विदयमान खिडरम ॥

अनयानिच सरवाणि विजञानि उपरसइरति-"यकरत यततती

यसयाही रप मतानि व नवमसयाडी रपाणि"-दति ॥

आजथशासरव विधतती- "अगनम महा नामसT यविट नितिन

नवमसयाइ आजरय भवति; गतवशवम जहनि नवमसयाडी

रपम"-इति । ‘गतवद' गमिधातयतर मितयजम। आवर (स.०

७१२.)च"अगल"-इति गमिधातः ययत ॥ :

खगरत छनद: परॉसति-"तद बकरभ नियपआतसवन एष

बाह:'-इति ॥

परउगशसरव विधतत-"पर वौरया शचयी ददरिरत, तसचन

मनसा दोधयाना, दिवि चयनता रजस: यथिवया, मा विशखवारा

शिखना गतनतरी, परय सोम इनदर तचरय सनच,आ त पर बरहमाणी आडि

रसी नचनत, सरखती दवयनती हवनत, आ नी दिवी इहत:

परवतादा, सरखलाभि नी नषि वसव इति परउग; शचिवतसलय

वरदकविटतवदीकवचवमजहनि नवमसयाडो रपम'-इति। अब

'ददधिर त'-इतिपरयोगपाठ:3,"पर वौरया"-इति (स०s.c०.९-३.)

परथम परतीकम, तनतर "शचय"-इतिशचिशबदीपरत लिबरम ; "त

सलन"-इति (स.०७.००.५-s.) डिरतौय पररतौकम, तनतर सलय

शबदो लिइम :.."दिवि चयनता"-इति (स.०७.६४.१-३.)

दवतीयम, तनतर चतिधातरतिइम; "आ विखवारा'-इति (स०

ss०.१-३.)चतरथम, ततर गशतशाबदी लिबरम ; "अरय सीम"

4 शतपाल,"दरबा-ति 'वॉनट-तिभावभाव बी-st इ’ ।

1 पछमपतरिका | 8 | १ ॥ २२e

इति (स.०७.२०.१-३.) पधमम, तसिन "धा त. पर याशि

बरिशवरलटोका:"-इति दवितीय: पाद, तखिल अधीकणबदी

खिइम, "पर बरहमाण"-इति (स.०७.४२.९-३) षषठम, "सर

खतीम"-इति (स.०१०.१७.s.)समम ;,"आ। नी दिव."-इति

(स.०५.४३.११.)अषटमम, अनतर डिरतौयपाद“यजता गनत"-इति

गमिधात: यत: ; "सरसवतयभि न:"-इति (स० ई.६१.१४.)

नवमम, ततर चतरथपाद "अरणानि गनमा"-इति गमिधात:

यत:।। परवोततयो: षषठसपतमयीः सटलिगाभावऽपि छचिणी गचछा

नतीति नचायनतरसाहचयॉलिगवतव"दरषटवयम। अतराकविमरिनभि:

परतीकरकसतचः; इतर षट ढचाः॥ तदतसव परउगशखम॥

तरलय छनद: परशासति-"तद वशभ तरियपआतसवन एष

चाह:"-इति | . . . .

मरखतीयशख कसिलिग' दरशयति-"रत त मिदराधस मह

(स० र.ईट, \, वरय इनदरसव सीमा (स० प.२.)इनदर नदीय

एदिडि(स० १५३.), पर नन बरहमाणसपतिए (स० १.४०.),

अगनिनता (स.०३.२०.), लव सीम करतभिः (स० १.८१.),

पिनवनयपी (स १.६४.), न कि: सदासी रथ मिति (स०s,

३९.) ततौयनाइा समान आतानी नवम जहनि नवमखाइी

रपम"-इति ॥ . .

अनतलिगीयरत रखी विधतत-"इनदर: खाददा पिबत यख

सोम इति(स.०३.५०.) सतर मनती व खाहाकारोती नवम

माडरनवम इनि नवमखाही रपम"-इति। अतर खडा

शादी दखत,सच होममननसवानतः; नवम महरनवरातरसधानत: ;

अतो लिगसढावात नवम इनवतायकम ॥..:*

१२ट ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

नरयततलिगीपरत सद विधतत-"गायतत साम नमथ

यथा वरिति(स.०९.१७३.) सत मचौम तडधान खरव

दितयनती व खरती नवम माइनवम जहनि नवमरवाही रपम"

इति। गायदितिसकरय "अचॉम"-इति दवितीयः पादः। ततर

"खरवत"-इति खरगवाचीशबद धयत; खरगध लोकतरयखयातः॥

परकारानतरणानतवसल विधतत-"तिषठा हरी रथ आ यवय

मानति (स० ३.३५.) सतर मनती व खित मनती नवम मह

नवम हनि नवमखाडो रपम"-इति । तिलशति खितिखचरणो

धाबरथ यत; स च गमनखयातः ॥ '

पनरपि तथाविरध तजिईोपरत सत' विधतत-"इमा उ

वा परतमय कारोरिति (स० ६.९९.) सतर, धियो रथठा

मिलयनती व खित मनती नवम माइनवन हनि नवमसयाहो

रपम"-इति। "इमा उवा"-इतिसख "धियी रथटिाम'

इति ढरतीय: पाद: ॥ ततर खधा मिति खितिधालवथा गमनसयानत:

नययत ॥ !

एतवनतवस सकष छनदः परशसति-"तद वदरभ तन परति

टितपदन सवरन दाधारायतनादवतन न परचवत"-इति ॥-

तलसमासिक सरव विधत-"अ मनदिन पितमदचता वच

इति (स० १.१०१) सरव समानीदरक, नवम sहनि नवमखाडो

रपम"-इति। अतर सरवाखत "मरलवनत सखयाय हवामड"

इति चतरथपादरवकलिवालसमानोदकतवम ॥ "

तखिनसल निविदयारन विधत-"तद जागरत जगवी वा

एतख वाहसय मधवनदिरन वहनति; तडतनछनदी वहति, यसविनि

?

विोयत; तसमाजगतोष निविरद दधाति"-इति 1 - *

nपखमपचिका । ४। १ ॥ ९९c.

इनदौडय मिलविा परशसति-"मिथनानि सतानि शखत,

बटभानि चजागतानिच;मियरन व पशव,पशवचनदोमा,

पशना मवरहय"-इति। मियनरलकलशयि बहवचन पजारथम॥

डिविधसतगतसइया परशसति-"पख सानि 5 शसत;

पचपदा पडि, पाडरो यजञ:, पाडा: पशव, पशवनदीमा,

पयना मवरदव"-इति 1 .

निषकवखयशाल दहतसामसाधययठसतोतरसयाधारभत सतोनिरय

ढरच तदनरपदम विधतता-"तवा मिडि हवामह(स० ६.४६.),

लव बहिचरव इति (स.०८.६१.)बहतयट भवति नवम इनि"

-इति ॥ अयमसया हो राथनतरवपि बहतमबनधसय वाचनि

कलबाबवव न हनि ततवोचघता 1

. वतौयइनि विहितानि अतर पनरविधीय त-"यदवानति

(स० १०७४.६.)धायडता, भिवा यर नीतम इति (स०

७३२.२२.) रथनतरखय योनि मन निवरतयति ; राथनतरर चत

दोहरायतनननदर तरिधातशरण मिति ( स० ६.४ई.c,१०.) साम

परगाथखिवातरवन हनि नवमरवाडी रप; लय मश वाजिरन

दवजत मिति (स० १०.९७८.) ताखा चपत"-इति ॥ ९ ॥

इति शरीमततायणाचारय विरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचमपबिकाया चतथौधयाय

(चतरविशाधयाय) परथमःखणडः॥ १(२०)॥

1

.."

० ‘इनद: खाडा','गाथलाम","तिषठा हरी","इमा उ. लव-इति'चलवारि दभानि,

"अ महिन-इतयक जागतम; सडखनयापरख(२७,९ घ.)।

9

१३० ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥ '

॥ अथ डिरतौय: खणड: ॥

स'च व जगमरगिर इनदर परवॉरति सरश गत

वकवम sहनि नवमखाडो रप कदा भवन रथच

याणि बहति सरव चतिवदनतरप" चतीव वा

नरत गवा नवम ऽहनि नवमखाडी रप "मा सलयो

यात मघरवश चटरजीरषौति यह' सखवननवम जहनि

नवमखाडो रप ततत इनदरिरय पररम पराचरिति सची

मनती व पर मनती" नवम महनवम शहनि नवम

खाडो रप'तटचषटरभ दतन परतिषठितपदरन सवन'

दाधारायतनादवतन न परचयवत' sई भरव वसनः

परयसपतिरितिसॉमई धनानि सचयामि शखत

इतयनतो व जित मनतो नवम महरनवम sहनि

नवमखाडो रप' तट जागरत जगयी वा"एतख

चाहच मधयनदिन' वहनरति तईतचनदी वहरति

यझिनिविडीयत 'तखाबगरतीश निविदई दधाति'

मियनानि सनानि शखत'चषटरभानि च जाग

तानि च’ मियरन व पशरव: पशवचछनदोमाः पशना

मवध"पच पच सखानि शखत"पचपदा

पडि:"पाटटी यजञ:' पाइः परशव:' पशवशकबदोमा:

पशजा मवरईया" तानि वधा पचानयानि पशचा

॥ पशचिमपशचिका । ४ । २ ॥ १३१

नयानि दश समपरदानत'सा दशिनी विराळकनदर'विरा

वsनन' पशव: पशवचछनदोमाः पशना मवर हi ततय

वितरटणीमाह'ऽढदया नो दव सवितरिति वशवदवख

परतिपदनचरी' राथनतर ऽहनि नबम ऽहनि नवम

खाडो रप' म वा महि दावी अभौति दावापथि

वौय शची उप परशसतय इति'शचिवननव म sहनि

नवमखाजञडो रप मिनदर इष ददात नसतनो रतरानि

धततनलयारभव तरिरासापतानि सनवत इति'चिवननवम

sहनि नवमखानहो रप' बधरको विष णः सनरी

यवति' दिपदाः शसति' हिपाई परषारवतषयादा:

पशवः' पशवशछनदोमा: पशना मवर हi तदाद

हिपदा:शसति'यजमान मव'तद हिपरतिषठ चत

यातस पशष परतिषठापयरति य चिशाति चयसयर इति

वशवदवचिवबनवम Sहनि नवमखाडो रप' तानय

गायचाणि गायचढटतौयसवन एषचाहोवशवानरो न

उतय इतयामनिमारतख परतिपदा पर यात परा

वत इतयनतो व परावतोsनतो नवम महरनवम Sहनि

नवमखाजञडो रप'मरतो यख हि चय इति माररत

चतिवदनतरप'चतौव वा अनत गतवा नवम sहनि

नवमखाही रप' जातवदस सनवाम सोम मिति

१३९ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

जातवदखाचयत परानय वाच मौरयति जातवदखल

समानीदक नवमऽहनि नवमखाडो रप'सनः परष

दति डिरष:स नःपरषदति डिष इति शासति बह

वा एतचिननवराच' किच किच वारण करियत'

शानया एरव तदातत नःपरषदति हिषद स नः परष

दति दिष इति शसति'सरवचादवनॉरतदनसः म

मनचरति तानय गायचाणि गायचततौयसवन एष

चाह:॥(२) २१॥

अथ गमिधातयतर सरण विधतत-"रस च व जमरगिर

इनदर परवॉरति(स.०९.३४.) सतर,गतववम इनि नवम

खाईो रपम"-इति।जगसरिति गमिधात: ॥

चतिधातलिङगक सॉ विधत-"कद भवन रथचयायि

बरीति(सe .३५.) सतर, चतिवदनतरप ; चतीव वा अनत

गलवा नवम हनि नवमसयाडी रपम"-इति। कदा सवविलवच

"चयणि"-इति चतिधातरप यत। चतिधातरपबात

रपम॥ कथि मतदिति, तदचत-मारगसयानरत गलवा "वरतौव व’

झचिविसलव, अती निवासारथवाचिनी चतिधातोरनतरपलवम 1

सबलकि सट विधत-"आ सली यात मघरवीट चटरजी

धीति (स.०९.१६.) सट, सलववम इनि नवमखानी

रपम"-इति । सतयशबदोतर विसपषट: 1 -

अनतलिबरीपरत सत' विधत-"ततत इनदरिरय परम पर

रिति(स.०९.१०३.) सतरी मतीवपरम मनती नवम माइनकम

॥ परमपतरिका | ४ | २ ॥ १३३

शनि नवमसयाडो रपम"-इति। "तत"-इतिसली परम

शबद: उतकरषवाची विदयत; उतकषौदधिकरय कसयचिदभावात

परमशबदसयानतवाचिलवम ॥

"सब व"-इतयादिसचतषटयगरत इनदः परशसति-"तद

बछरभ, तन परतिषठितपदन सवरन दाधारायतनादवतन न परच

वत"-इति I

अनतलिङगक मनयत सत' विधतत-"अई भरव वसनः परव

सतिरिति(स० १०.४८.) सतर मई घनानि सचयामिशखत

इयनती वजित मनती नवम माइरनवम जहनि नवमसयाडी रपम'

-इति।"अई भवम"-इतिसकरय"अईधनानि"-इति दवितीय,

पादः॥ ततर "जयामि"-इति शययत; जयब यडवानतः

तखिन सन निविदयान विधतत-"तदजागत,-जगली वा

एतसय बरहसय मधयनदिरन वाहनित ; तहतचनदी वहति,यतिन

विविडीयत ; तसआजगतौष निविद दधाति"-इति ॥

मलगरत इनदौडय ससाझाखपरशसति-"मियनानि सहानि

शसयनत,–वटभानि च,जागतानि च; मियरन व पशव,पशव

चनदमा,पटना मवय:पतरपच सतानि शखत;पचपदा

पडि, पाडडी यजञ:, पाडरा:पशव:, पशवनदीमा:, पशना

मवरहया; तानि हधा पचानयानि पचानयानि दशा समपरदयनत : सा

दशिरनौी विराठब; विरातर पशव, पशवनदीमा,पशना

मवरद"-इति॥ मरतवतीयनिषकवखशखडयगतसनापचया'पच

पषट" इति डिरति:..j। *

ढतीय जहनि विहिरतौी वशखदवसय परतिपदनचरावतरापि

विधत–"ततसवितईरणीमह (स० ५.८२.१-३.), sदा नी दव'

१३४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सवितरिति (स० ५.८२.४-६.) वशखदवसय परतिपदनचरी ,

राथनतर इनि नवम Sइनि नवमसयाडी रपम'-इति ॥

अनतलिबरक टचानक सत'विधती-"दोषी आगादितिa

सावितर मनती व गत मनती नवम महरनिवम शहानि नवमसयाईो

रपम"-इति । "आगात"-इति गसिधालवरथ: ; गमनच खित

रनतः अतीनतवतव' लिइम॥ ,

शचिलिक सखानौरय ढरच विधत -"म वा मतडि

वधवौी अभौति (स० ४,५६.५-s.), दयावापधिवीरय ;शचौी उप

परशसतय इति शचिवनवम हनि नवमसयाडी रपम"-दति ॥

"महि दयवी"-इतिशरवणादिद दयावापधिवौयम | तय ढतौथ

पाद"ची उप"-इति शचिशबदः ययत 4

चिशदीपरत सदखानीरय ढरच विधत-"इनदरइव ददात

लखतनी रबानि धततनलयाभव, चितरा सापतानि सवत इतिचिव

वम हनि नवमसयाडी रपम"-इति॥ "इनदर इष"-इयगका

(स० ८.०३.३४.), "तनी खाति"-इति(स० १.९०७.८.)

ब, चितरय मिलिखा ऋभदवतारक सचम ;"चमचरण मसन"

इतिशववरणात(स० ८.०३.३४.)॥ "विरा सापतानि"-इतिपाह

(स० १.२०.e,.) तरिशबद: यत: ॥

. पादडयोपता चनदरची विधाय परशसति-"बाबरकी विश ण:

यनरी कवति (स. 55०.१-१०.) दिपदः सखति : तरिपाई

परषचतषयादा: पशव:, पशवखदीमा,पशता मवय,2 नाबाद

दिपदा: शसति, यजमान मव तद डिपरतिरट चतथार यदध

परतिषठानययाति'*-इति ॥. . .

t og sy,प टीएमया मनतरपाठादिक दरषटवयम,। .

॥ पचमपतरिका । ४ । २ | १३५

तरिशदीपरत बडदवतारक सरव विधतत-"य दिशाति वय

सरइति (स० ८.२८.)वशखदरव तरिवचवन 5इनि नवमसयाही

रपम'-इति ॥ "तरिशति"-इतिधवणाद बहदवताकतवम ।

"कय:*-इति विशाबदी विखट: 1. "

तसतरगरत इनद: परशसति-"तानय गायतरावि गायतरढतीय

सवनएष चाह"-इति ॥ 'तानब' वशखदवशाख ओजञानि तानयपि

यनानि 1 :

शखानतरसव परतिपाद विधतता-"वशखानरी न उतय इलधा

निमारतिख परतिपदा पर यातपरावत इतयनती व परावती नती

नवम माइनवम जहनि नवमयाजञी रपम"-इति॥ अतर सच

पठित as ढाच "परावत:"-इति शबदो दरदशवाची;सचदगी

मारगखान इतयनतवतव लिबम ॥ .

परकारानतरणानतखिक सरव विधत-"मरतीयख चि

चय इति (स० १.८६.) मारत, चतिवदनतररव ; चतीव वा

अनरत गलवा नवन हनि नवमसयाईो रपम"-इति । "मारत:"

-इतिथवणात 'मारतम', "चय:"-इतिशववणात 'चतिवत’

चयतिधातबशम ॥ स ‘च घावथौजन सवरपम । कथमतदिति,

तदचत-सवा हि परषी मारगयानत गतवा "चरतौव व"कचि

विशवसचव , सोशय मनती खिइम ॥

अचतलवलिङगयनना मरच विधतत—'जातवदस सनवाम सोस

मिति (स० १.०८.१.)जातवदपरचाचयता"-इति.। '

जातवदोवाचकानिशबदोपरत सरव विधत-"आगनय वाच

e आध०भौ०८.११.४1 तच. "वशवानरी न ऊतय"-इति परथमा, "वशवानरी न

आगमत"-इति चिततौथा,"वशवानरी परकरीिय"-इति ढतौया।

१३ ६ ॥ ऐतरयबराहाणम ॥

मीरयति (स०१०.१८७.) जातवदसय समानीदक, नवम Sहनि

नवमखाजञी रपम’-इति । एतदीयाखछ ‘स नः परषदति

हिषः’–इतिपादन समापतिदरशनात समानीदरकलवम॥

तसय पादसय पन:पनराडकति दरशयति-‘स न: पारषदति

हिष:,स नः परषदति हिष इति शसति ;बह वा एतसिमनतरवरात,

किच किच वारण करियत, शानया एव;तदातस न: परषदति हिष:,

स नः परषदति हिष इति शासति, सवरमादवनासतदनस: पर

मशचति"—इति । ‘स नः’—इलयादिपादसय सरवासवच पठितसय

सङकहारथ वीपसारपण दिरति: । एत मव पाद पनः पन:

भरणसतीलयतर को sभिपराय इति, सोभिधीयत-एतसिमनतरवरातर

तरिविधचाहसमषटिरप .परयोगाधिकयाकतदा तदा विसमतय कि

मपि ‘वारण' वारणीय निषिदयानषठान ‘बह व’ परभत मव

करियत, अत: खसय शानयरथ मव पन: पन:शासयत। तन स न

इतयाद: पन: पन: शसनन, तसमात सरवसमात निषपरिचाचरणात

‘एनान’ ऋटलविगयजमानान परमीचयति । तसय पादसयाय

मरथ– यसयानः सततिरपा वागीरयत, सोननिः पापरपान

शतनतिकरमय ‘न’ असमान ‘परषद' वितरपरिहारण करमपार

नयालविति ॥

एतचछसतरगतसझष छनद: परशसति-“तानय गायतराणि

बगायतरढटतीयसवन एष तरयाह:’–इति ॥ २ ॥

इति शरीमतसायणाचारय विरचित माधवौयवदारथपरकारी :

ऐतरयबराहमणसय पचमपचिकाया चतरथाधयाय

(चतरविशाधयाय) हितौय: खणड:॥ २(२१) ॥

--------------------------------------------------------------- ---

‘ ... -

in परचमपतरिका | ४| ३ ॥ ९३S

॥ अधथ ढरतीयः खणड: ॥

पध षळह मपयनित यथा व मख मव पषयः

षऊहसतदाथानतरर मखख जिहा ताल दनत एव

छनदोमा' अथ यनव वाच वयाकरोति यन खाट

चाखाटच वि जानारति तदशम महरथिथा व नासिक

एव पछः षऊहसतदयथानतरर नासिकयोरव छनदोमा'

अथ वनव गनधानवि जानाति तहशम महरयथा वा

अचव पठः शबई तदथानतर मचण: कषण मव

छनदोमा अथ वव कनौनिका यन पशयति।"तहशम

महरयथा व करण एव पषयः षबठहसतादयथानतर करण

बव छनदोमा अथ यनव शगोरति तहशम मह:'

थौव दशम मह: थिरय वा एतआगचछनति य दशम

महरागचछनरति ततवाइशम मह रविवाकॉ भवति मा

थियो ऽववादिषोति दरववई हि व घसस ततः

सरपनरति त मारजयत" दत पतरौशाला समापदनत'

तषा य एता माहरति विदयालय बयात समनव

रभधव मिरति स जहयादह रमह रमधच मिनह

धतिरिह खधतिरगन 5वाट, खाहावाछिति'स

यदिह रमतयाहचिननवनासतखोक रमयतौह रामधव

मिति यदाई मजा मवध तनदरमयतोह धतिरिह

१६

९३८ ॥ ऐतरयबराहमणम॥

खधरति रिति यदाई परजा चव तइरचच"यजमानब

दधालन जवानविति रथनतर खाहावाऊिरति बहह

वाना वा एतनियन यद बहदरथनतर दवाना मव

नतनियनन मियन मवरनधत दवाना मियनन

मिथन पर जायनत' परजाच मय जायत' परजया पश

भिषरय एव वद त तत: सरयनति त मारजयनत" त

आगनौध समपदनत तषायएता माहति विदात’

स बरयात समनवारभबध मिति स जहयादप खजन,

धररण मतरधरणो धयन'रायसटोष मिष मरज

मचास दौधरखाहतिरायसटोषमिष मलमवरध

आलमनच यजमानशयरथ यदव' विडानता माहति

जहोरति ॥ ३(२२)॥

दयाल परायीयोदयनीयरप आयत व अजनी, तवी

मशय दणरातरीशसति ; तसिध वयी भागाः,–यठः षडह एकी

भाग,छनदोमनामकासतरयोऽहरविशषाः डितीयो भाग,दशम मड

खरतीयो भागः। तरय भागसय विधयतया परशसा कतरतवया।

इतरभागयोरपि अचतर या परशसा परातीयत, साषि विधयरव दशा

मखाइ: परशसारथ मव , तखिमचनहनि परशासातिशयसव गमयमान

वात॥ ततर चलवारो दषटानता विवचिताः॥ तषा मध परथमन

दषटानतन परशसति-“यटी पनाह सपयनति; यथा व मख मव

छठय: शलाहसतादयथानतर मखासय जिददा ताल दतता, एव छनदोमा:;

अब यनव वारच वयाकरोति, यन खादचाखादशच विजाताति,

॥ पषचमपशचिका । ४ । ३ ॥ १३e.

तहशाम मह:’–इति । याजञिका दशएरात पषठा' घळकह मन

तिषठनति, स मखखयानौय:; मखासयाभयनतर जिनहवा ताल दनता

चति तरयीवियवासतिषठनति, ततखानीयाखयनछनदोमाः। अध तद ।

‘चन’ विलचणन यनव वागिनदरियगण ‘वारच वयाकरोति’ शयबट

मचारयति । यन च रसननदरियण खाइखादविभाग जानाति,

तदिनदरियाइयखथानीय मतइशणम मह: ॥ -

हितोयन दषटानतन परपरणसति—-‘यथा व नासिक एव' पषठय:

षकहसतदयथानतर नासिकायीरव छनदोमा, अथ यनव गनधानवि

जानाति तइशम माह:’—इति । छिदरइययतालवन भागइय

विवचया ‘नासिक’इति हिवचनम । तयी: ‘अनतर’ मधयवकति'

छिदरम ; गनधगराहकघराणनदरियसथानीय दशम मह:॥

ढटतीयन दषटानतन परशसति-‘यथा वा अकयवा पषठाः षक

हसतदयथानतर मचणःछाषण मव छनदोमा, अथ बव कनीनिका,

यन पशखाति, तहशम मह:’-इति । अचिशणबदन शलमरणडलसहित

सव गोलवरक विवचितम। ततर भागचय मारणयाकाणड वचयत—

‘तरिखदिव व चत: शढरक छाषरण कनीनिका’-इति (२आ० ७.५.

५.)। शकमणडलमधय छाषणमणडल, तसय मधय खखया वरतलाकारा

कनौनिका, ततरावसथितन चतरिनटरियण जनो रप पशखति। तच

शलमणडलरकपगोलकखानौय: पषठाः षनकह:, छाषणमणडलखया

नीया: छनदोमाः, कनीनिकागतनदरियसथानीय दशम मह: ॥

चतरथदषटानतन परशसति-‘यथा व करण एव पषठय: षळकह

सतदाथानतर करण वव छनदोमा, अथ यनव शणोति, ताइशम

मह’–इति । करणशबदन. शषकखयाकार गोलक मचत ।

ततसथानीय: पषठा: षकह: । तसय करणसय ‘अनतर’ यकमधयवकति'

R8० ॥ ऐतरयबराहमणम.in

कटरि' तातयारनीया: कनदीमा: । तचिनदरावयितननटरियण जन:

शबद' यणाति, तदिनटरियखथानीय दशम मह:॥

अथ तखिन दशमहनि कविवियरम विधत-"थरीवदशम

मह,--बधिया वा एत आ गचछनति, य दशाम महरागचछनति

बतसमाइशम महरविवाकरच भवति, मा चियी ववादिपति दरववरद

डिचयस"-इति।यदतइशम मह,सा ‘धोव" भीगयवसतसयडि

खरपमव;"चटनीति यो डादशाहन यजति"-इतिशयतयनतरात थ9।

आतीय दशाम मह: "आगचछनति' अनतिषठनति, त बधिय मव

परयवति; यरआत धीरप मतदह, तरआडिवाकघरहितरत भवति;

यदि परमादातमनतरी जयनतर वा कघिकिचिडिरड माचरत, तदारनो

तडिरख मनधन ‘वाच" वकतवयम,– अतर तवया विरदध मनटिरत,

तदव समयगततिललयभिलन कमातर वकतवयम : इह त तसय

विरदधमानवचनसय निषिडलवादिद मह:'अविवाकयम' ॥ तथा

चाशखलायन आह-"नासिआनाइनि कनचितकारयचिडिवाच मवि

वाकय मिल.तदाचचत ; सशय बहिरवदि सवाधयायपरयोगो नत

वदीलक"-इति (धौ० र.१२.१०-१२.)॥

परण परयजयमारन विररव दइपि तनतर बयादितिनियमखोप

वयकतिरचत—"बधियी माववादिषमति"-इति। दशमसयाड: चीख

पलवातसय यादववादन तन विया एव भवति । अवमतसय विरड

वदनम "आववादन" निनदा ; यदि दशम महः"अववादिश" निनद

करमी, तईिधिया एव निनदा समझत ; आती वषरय विधायी 'माव

वादिन' निनदा मा करमः इति विवाचरथ परितयजीता मभिपराय:

लोकपि चयसी विदखरयादिनाधिकशय परषसयाचरण ‘दरववई

क- "बादशाह परिसय सरवा मवि माधौत"-इति ३९ परe ।

॥ पषमपतरिका ॥ ४ ॥ ३ ॥ १४१

हि' आववादन निनदया रडितम । अत एव पितराचारयादौना

निनदा न करवनित,डषिभिः करियमाण मपि न यणखनित । तदव

मविशवाचलवधरमॉव विहित: ॥ यददा वाकचइय मिदम,–दशम

महरागचनतीलवनती दशमसयाडी विधि, तरमादितयादिरविवाकय

लवनियमविधि:। सोऽपि शाखानतर गयव मानायत-"तरमाइश म

ऽहनधविवावच उपहताय न वयचम"-इति (त० स०७.३.१.२)॥

अवतसिन दशमहनि मानसगरहाय परसरपण विधत

"त ततः सरपति"-इति । "त' अनषठातार:,"तत:' पढोरसयाजा

नतानषठाननादई' पराचः उदशय मानसाय परसपयः। परसरपण नाम

तदरथ : परयढः। सरववहरगणष करमस अनतिमादजञ: इतराखहानि

पढौसयाजानतानि, अनतिरम वक नवीदवसानौयानम । तथा

चाखलायन आइ-"परातरनवाकाददवसानौयानतानय नयानि :

पढोरसयाजानतानीतराणि"-इति (धौ०७. १. ४, ५.) । तथा

सचवि वालसवतरतवनघायन पढौरसयाजानतलव परास वचनन तत

उधव मानसगरही विधतत । तदरथ 'परसरपॉनति'सदसी विनिरगव

यथायरथ मागण गचछय: ॥

गताना तषा तीरथदशी मारजोरन विधता-"त मारजयत"

इति ॥

मारजनाद' होमारथ खानविशषारसि विधतत-"त पढी

शाला समरपदनत"-इति ॥ पढी हि गाईपलचसय समौपवतिषठत

इति सव 'पढौशाला'; ततर गचलय: ॥ '

गताना तषा होम विधता-"तषाय एता माहरति विदयालय

बयासमनचारभधव मिति,स जहयात"-इति॥ "तषा' होमारथ

गाईपलयसमौरप गतताना मधय "य:'पमान"एता'वदयमाणा माडरति

१8२ ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

जानाति, ‘स’ पमानितरान परति ‘समनवारभधरव' यरय सवपि

मा सटशतति बरयात। तः समनचारबधः ‘स:’ पमानाहति जहयात॥

ततर मनतर दरगयति–“इह रमह रमधव मिह धतिरिह

सवधतिरन sवाट खाहावाकिति’—इति ॥ ह यजमाना: ! ‘इह'

असमिन लोक ‘रम’ रमण करत ।। ह पतरपोचादिका: परजा: !

‘इह' एतष यजमानष ‘रमधव’ करीडत,‘इह’ यजमानष ‘धतिः'

अपलयाना परजाना धारण मसत। ‘इह’ यजमानष ‘खधति'

वदशाखादिरपाया: वाच: खाधीनलवन धारण मसत ॥ ह अमन !

‘अवाट' रथनतररपण यजञसय वहन कर ।। ह ‘खाहा’ दवि!

अगनिजाय ! ‘अवाट’छहसामरपण यजञसय वहन कर ।। ‘इति’

शबदी मनतरसमापतपरथ: ॥

यथीरति मनतरारथ मभिपरलय करमण मनतरावयवाना सरवषा तातपरय

दरशयति–“स यदिह रमलधाहासिमववनासतशलोक रमयतीह

रमधव मिति यदाह परजा मवष तादरमयतीह धतिरिह खधति

रिति यदाहपरजा चव तदाच च यजमानष दधालयनन sवाकिति

रथनतर रखाहावाकिति छहद’-इति । ‘स:’ मनतरः इह रमति

भाग माहति यदसति, तनासिमवव लोक ‘एनान’ यजमानान

रमयति । एव मततरभागा अपि योजयाः ॥

छहटरथनतररप भागइरय विशषण परशएसति- “दवाना वा

एतमिथन यवहदरथनतर, दवाना मव तनमिथनन मिथन मव

रनधत ; दवाना मिथनन मिथन पर जायनतपरजाल’–इति ।यद

तत अनयमनतरइय छहदरथनतररप मजञाम, तदतहवाना समबनधि

मिथनम। अतसतङकागइयपाठन दवसमबनधनव मिथनन मानव

मिथन पराशवनति ॥ ततो दवसमबनधिमिथनानगरहण मानषमियन

॥ पचसपचिका । ४ । ३ ॥ १४३

मतपादयनित । ततः सोय मनतरो यजमानसय परजोतपादनाय

समयदयनत ॥ वदन परशसति–‘पर जायत परजया पशभिरय एव

वद’—इति ॥

गाईपलच यथा होमी विहित:,' तथवागनीधीय कचिडोम

विधतत–“त तत: सरपनति,त मारजयनत, त आगनौध समगरपदयनत ;

तषा य एता माहति विदयातस बरयातसमनवारभधव मिति, स जह

यात’–इति । गाईपलयाखयानाद बहिरनिगतय माजन छलवा

आगनीधौरयपरामय, तच परववजजहयात॥

तसिमन होम मनतर माह–“उप सवजन धरण मातर धरणो

धयन, रायखोष मिष मज’ मसमास दौधरखाहति"-इति ॥

अतर दवताया असमाषटलवात ‘अनिरत: परजापतिः'—इतिशशलय

नतरण परजापतिदवता । तसय मनतरसयाय मरथ:–“धरण:' सरवसय

जगती धारयिता परजापति: ‘धररणम' असमाक धतरता र पितर

मातर च ‘उप सटजन’ असमिाभि: सयीजयन, अनिषटाइा वियो

जयवरसमाभिहत माजय ‘धयन’ पिबन, ‘रायसयीष' धनपषटिम,

‘इषम’ अतरम ‘ऊज’ चीरादिरस चासमास ‘दौधरत’ धारयत

समयादयत ॥ तसय परजापतरिद सखाहत मसत ॥ ‘इति'-शबदो

मनतरसमापतपरथ: ॥

आहरति परशसति–“रायखीष मिष मज' मवरनध आलमन च

यजमानभयशव यतरव विहानता माहति जहोति’-इति। ‘आलमन’

होतर ॥ ३ ॥

इतिशरीमतसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐितरयबराहमण सय पा चमपचिकाया चतरथाधयाय

(चतरविशाधयाय) ढतीय: खणड: ॥ ३(२२)॥

१४४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

॥ अथ चतरथ: खणड: ॥

त ततः सरयनति' त सद: समपरपदयनत' यथायथ

मनय ऋतविजो वयतसरपविरत सासरपनयझातारत सरप

राचया चटलसतवत इय व सरपराजौरय हि सरयती

राचीय वा अलौमिकवाय आरसौलत मनतर मपशचा

दारथ गौःपधिरकरमौदिति'ता मरय पशरविरग आवि

शतरीनारपी जय य काम मकामथत यदिद किचौष

धयो वनसप तय: सरवागिण रपाणि'पशविरन वरण आ

विशरति नानारपी जय य काम कामयतय एववद

मनसा परसतौति" मनसोटटायति'मनसा परतिहरति’

वाचा शसरति वाक च व मनचन दवाना मिथन'

दवाना मव तनमियनन मियन मवरधत" दवाना

मियनन मियरन पर जायनत परजाल पर जायतपरजया

पशभिरथ एव वदाथ चतईौतन होता वयाचट" तदव

बतत सतत मन शसति' दवाना वा एतदयचिवय

गड नाम' यदयतहॉतारतदाचतहातन होता

वयाचट दवाना मव तदयचिवय गहा नाम"परकाश

गमयति तदन परकाश गरत परकाश गमयति गचछति

परकाश यएव वरद य बराहमण मनचान यशी नई

दिति वहसमाहरणय परलय दभसतमबानदशय दचि

॥ पचमपतरिका | 8 | 8 i R83

पाती बराहमाण मपवशरव चतहॉतन वयचचौत'

दवाना वा एतदचितय गड नाम यचतहातारसतद

यचतहातन वयाचचीत दवाना मव तदाचारय गध

नाम परकाश गमयति'तदरन परकाश गरत परकाश

गमयति गचछति परकाश य एववद॥ ४(२३)॥

आगनौधोय होमादड कतरतवयानि दरशयति-"त ततः

सरपॉनति ; त सद: समयपदयनत; ययायथ मनतय ऋतविजो वयतसरपॉनति

ससरपनयझातारत सरपराजञा ऋत सतवत’-इति। 'त'छात

हीमा: सरव 'तत:" आसनीधीयादौन: ‘सरपॉनति' निरगचकिता ॥

निरगतारत सद:परविशयः। परवश वलाया मददाढशयोनय चलिवजी

‘वथायरथ' खमारग मनतिकरमय 'यसपनति' विविध गचछनति;

उहातारख 'ससरपति' समभय गचछयः। गताशत सामगाः सरप

राजञाः समबनधिनीष चत, "आरय गौः"-इतयादिष सतोतर

कय:अ। सरपराजञीति भमरवतार'खरपा काचिडवता ; तया

दषटा मनतरा अपि सरपराजञीशबदनोचत । अच त ‘कटद-इति

धथगपादानात, 'सरषराजञा:'-इतिषषठानतलवाख दवतावाचवारय

शबद: "ि ॥

० धार० धा०५.४- चबआर०ग० ई. ९. म-१० सारयराजञानि (योनि

सामानि) उ5 आ5 र. १.५५ बचच जहा गाev,१९(याम खीचर)। "अजा

पतखि: सरपराशा:सपौणा व दसय वा सरपख"-इति आरष० बरा०३.६ । "तिवभि:

खटवनिव०-० सरपराधा ऋभि: तवति०-० रतत मनशसति"-इति ता०बरा७९. य. I

"आयशौरित-० सरपराजीनामरषिका, सव दवता सयो वा"-इतिचगभ थ

खायण:(१०१):"सपराली नाम बरहमवादिनी"-इति त ताणडवभाषय (ए.पs)।

१e:

१४a. ॥ ऐतरयबराहमणम ।

एतदवाभिपरलघ तलसबबडा: चटचसताख दवता परशसति

"इरय व सरपराजखीरय विह सपरती राजौरय वा अलीमिकवाय आरसौत

सरत मनतर मपशबदारय गौ: परविरकरमौदिति ; ता मरय परविशरवरण

आविशबानारपी यरथ यरथ काम मकामयत, यदिई किचौषधयी

वनसयतय: सरवाणिा रपाणि"-इति । या भमिगरसित,सय मव

दवताशरीर धलवा बरहमवादिनी भलवा 'सरपराजौ'-शबद नोचत॥

यरआदिघी पधिवौी 'सरपत:' सखरती जइसमसय मनषधाद: 'राइौ'

खामिनी , सवषा मनषयादौना तदातरवणावखानात ; अत:

सरपराजीलयचत अ। इय मव "अगर' चनदरगपतता: परव मव

"अलौमिकव' रोमरहितशवारसौत,; तती रोमीतपचरथ सा भमि:

साधनाभतम "आरय गौ."-इति ‘मनतरम' अपशत। तन

परसादन "ता' भमि मय दशयमान: 'यनिवरण आविशत'। परशि

शबदसय वयाखयान "नानारप:' इति, नीलपोतादिरियरथ: ॥

किच खोव ओषधयी वनसतय; सवाणि अनघानि रपाणि

ढणादौनि यदिदई किचिनत खावररप मसति, तबध य काम

मसौ भमि मकामयत,स सवॉपयना पराविशाल ॥

वदरन परॉसति-"पशविररन वरण आ विशाति, नानारपी रथ

य काम कामयत य एव वद"-इति ॥ वरणशबदन नीखपौतादि

वाचिना सरव मपि भोगयजात मपलबधत॥

सतीवरशसखयी: परकार विशष विधतत-"मनसा परसतौति,

मनसीहायति, मनसा परतिइरति,वाचा शॉसति"-इति। उट

गातष| मध परसतोत परसतावभाग, उहातरहीथभागः परतिहत

० "सपसबबनधबबारा एतबाम"-इतयादयावयभारथी सायणः(३.६९.)॥

f निर०१२, १, ९ ;१०, 8,भ९, एतदभायखणडावव दरषटवयौ ।

1पखमपतरिका| 8 | 8 ॥ १४s

परतिहारभाग: अ। तान भागवान मनसव त अनतिलय: ; होता त

वाचा बॉसत ॥ '

डिविध मपि विधि पररशसति-"वाक च व मनच दवाना

मिथन, दवाना मव तबियनन मियन मवरनधत, दवाना मिय

नन मियरन पर जायत परजाल, पर जायत परजया पशभिरथ एव

वद"-इति॥ छहदरथनतरमियनवइयाखयम(१४९पर०)॥

होत: सरपराजयाः भॉसनादई चतईॉढमवान विधत

"अथ चतईोतन होता वयाच,-तदवतत खत मन शसति"

इति ॥ चतईॉडमनतरासतइयाखयानपरकारवोपरिटात अभिधायत ।

तन वयाखयानन यदहावभि: खत:, तदव सरव मनशसत भवति ॥

त मरत मनतरसमई परॉसति-"दवाना वा एतदयातरियो गहा

नाम यचतहॉतारखतहतिन होता कयाचल, दवाना मव तादय

बियरथ गरझ' नाम परकाश गरमायति"-इति ॥ य एत चतहॉढमनना:

सनति, तदतनमनखरगरय दवाना समबनधि यजञयोगयरथ नाम; ताती

हीढवयाखया न दवसमबनधि योगय' नाम परकाशित करोति ॥ वदरन

परशसति-"तदरन परकाश गरत परकाश गमयति, गचछति परकाश

य एव वद"-इति। यदनारथवदिता होता "एरन' हीतार"तत'

दवाना गड' नाम,खरय परकाश गरत सत पशचातपरकाश गमयति ।

तती वदिता 'परकाश गचछति' तन नाबानटाईौत: परखयाती

भवतीचरथ: । यइा तदन मिलधादि: परवशषः। "तद'दवाना

गड नाम खया परकाश गरत सत पशचात 'एरन' होताए परकाश

गमायति : गचतीतयादिकव विइआशसा ॥

तदरव करावइवन चतईॉढवयाखयारन विधाय ताअरशपसा काल

० १भा १२ पर. 1 टी दव: । पच० र. १११.६। श: उप २१-१७।

१४८ ॥ऐतरयबराहमणम ॥

करतनिरपचलौकिककामयफलसिडवरथ चतहॉटवयाखधारन विधत

“य बराहमण मनचान यणी नचदिति ह समाहरख परलव

दरभखमबाटयय दचिणती बरहमाण सपवय चतहातन वयाच

चीत"-इति। साइवदाधययन-तदरथातठानशील: "अनचान"।

ताइरश कविद बराहमण सभामधय वामिवन रहितरत यदि "यशी

नचत' विदयानय मिति कीतति न पराययात, तदानी मरय

बराहमणी गरामाविरगलथ विजन मरणयदरश परापय तचच दरभसतरबाना

मगर मईमखलवन गरथिलवा खसय दचिणपाणड कविडदविद विपर

मपवशय ततसविधौ चतईॉढनामकाजनतरान वयाचचौत। उल

रखारण "वयाखयानम'। "इति' एतवगरयोरग कविद बरहमवादयानह

सतयनवय: ॥

त मिरम यजञ सयकत परयोग परववतरशसति-"दवाना वा एत

वजिय गतर नाम यचतहॉतारसतयचतहोतन वयाचचीत दवाना

मव तट यातरियो गटटा' नाम परकाश गमयति ; तदरन परकाश गरत

परकाश गमयति, गचछति परकाश य एव वद"-इति.। परववद

वयाखशयम ॥ ४ ॥ !

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराझणसय पालमपतरिकाया चतरथाधयाय

(चतरविशाधयाय) चतरथ: खणड:॥ 8 (२३) l

1 अथ "पचास: खणड: I

चोटबरीी समनवारभनत'इष मरज मनवारमभ

-- -----=म अपन सवा मण स नमभ

बयबा अननादय मदमबरो यतहवा इष मल बम

॥ पचमपतरिका | 8 | ५॥ १.82

जनत तत उदमबर: समभवततरातस चि: सवत

रख पचयत तदादोटमबरौी समनवार भनत" इष मव

तदज महादा समनवारमभत वरचयचनति'वागव

यतरी यजञ मव तदयचछनतयहरनियचनतयोहव खगो

लोक:खरग मव तखोरकa. नियचनति न दिवा वारच

विसजरनयइिवा वारच विजरहवाटवयाय परि

शियन नरक वारच विमजरनयतरक वारच विसजरनट

राची धाढबयाय परिशिषय: समयाविषितः सरय -

खादथ वारच विजरसतौवनत मव तदधिषत लोरक

परिशिषनयथोखलवसतमित एव वारच विजरतमी

भाज मव तद, डिषनत' धाढवय करवनयौहवनौरय

परीय वारच विसजरनयजो वा आहवनीय: खगो

लोक आहवनौयो'यनव ततखरगण लीकन खग

लोक यरतियदि होन मकरम यदायरीरिचारम मजा

पति तपितर मयतविति वारच विसजनत' परजापति

व परजा अन पर जायत’ परजापतिनातिरिकयो:

पतिछी ननानन' नातिरिक' हिनसति परजापति

मवोनातिरिझानयाभयवरजनति'य एव" विदॉस एतन

वारच विसजनत' तसनादव' विदयॉस एतनव वरच

विसजरन ॥५(२४)।॥

क, "त लीक"क,ग,च,जन.। . . 3 "सरय" की ।

१५० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अथ चतहॉटवयाखयानसय परकार यजञाड' साकचनाभिधात

उपकरमत-"अथौदबरीी समनचारभनत"-इति । चतडॉढ

वयाखयानोवोगाननतर यय मौदबरीशाखा सदसयनतरनिहिता,

ता शाखा सव सभयोपसटोयः॥

तर मनव दरशयति-"इष मरज मनचारभ इति"-इति ॥

अवरपा रसरपा व ता मौदबरीम "अनचारभ'इसतन सटशामि ॥

'इति'-शाबदी मननसमानारथ:॥

मनतरारथ मौदबरया दरशयति-“ऊगरवा अखादय मदबर"

इति ।यीय मदमबरडच, सीषरय रसरपीsवरपगध ॥

त मत मरथ मपषपादयति-"यदवतहवा इष मज वयभजनत,

तत उदमबर: समभवत, तसमात चिः सवतसरसव पचत"-इति ॥

दवः परा यदतदव रसररष वख कचित भमाबपविशव "यभजनत'

एतावदरवतावदखति विभाग छतवनतः। तदनो तखाबभौ

पतितादवरसभदईौजीभतादय सदबरखचः समतयवः; तरआत

सवतसरख मधभोलषा मतरसिदधारथ सडचः "तरि:पचत'तरिरितयप

खचणम,बहलव:फल यहाति ॥

औदमबरीसरष मपरसइरति–"तबदौदबरीो समनवारभात,

इषमव तदरव मवाद' समनचारभनत"-इति॥

औदमबरीसवा दई मौरन विधता-"वारच यचछनति;

वागव यातरी यजञ मव तदनछनति"-इति | यजञसथोचारयशमाण

मनसाधयवाडायपवन; अती वाडनियमन यजञसवव नियमी

भवति p

मौनसय कालविशष विधतत-"अहरनियचतयहव खगो

लोक, खरग मव तलोक नियचनति"-इति। सरयासतमयादवॉक

॥ पखमपतरिका । 8 ।५| १५१

खरगवपरकाशसझावनाइः खरगवम। तखिनहनि वाडनियमन

सवरग एव नियत: सवाधौनी भवति ॥

विधिसिडवरथ महानि कतिपयल चणयवारच नियमय पशचात

मौनपरितयागपरापौो निषधति-"न दिवा वारच विजरन

यहिवा वारच विजरखहचौडचायपरिशिय"-इति ॥ अहनि

वाविसग सति यजमाना: सव पयाह: समबनध परिवजय शतरव

तदह:'परिरशिय" दयरियरथः ॥

आइनि निषिडसय वाविसरगसय राचौी पराचौो सतया तदपि निव

धति-"न नही वारच विजरन; यवॉ वारच विसजरन रावी

धाढयाय परिशिॉय"-इति। परववद वयाखशयम॥

यदयहनिरादौचनिषध:, कदा तईिवाविसरग इतयाशडराइ

-"समयाविषितः सरय खादथ वारच विसजररसतावनत मव तद

हिषत लीक परिषिति"-इति । यदा सरयध: "समयाविषितः'

असतमयसमय' परापत, अडासतमितः 8 सयात, तदानो वानिव

सरग: ॥ तथा सति समपरणौसतमयपरयनत मरप मव काल ‘डिषत

लीक"शची: राधान "परिशिषति" परयचछनति 1 अही रातरिकषति

कालइय खारथ मव भवति ॥

पचानतरर विधतती-"अथी खखसतमित एव वारच विसजर

सतमीभाज मव तद ढिषनरत बाढव करवनति"-इति। ‘अरथी

ह समयाधधषित-समयाविषितशबदौ सधिकालपरौ ॥ तच समसयाधाषित: परात:

सधिकाल:, समयाविषितखत सारयसनधिकाल इति विशष:॥ कातया० बौ० ४.१५.१ 1

आवc गट० ९-१३॥ म० स० २,१५॥ त० स० ई.६.११.ई. वयाखयारन च तख १४.

ak.५। घट० व २६। "समयावमिति"त- आम सा भा (एसी

म०४९१ १०प०)। " ""

१५२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

खल' अथवलयरथ: । सरय साकलचसतमित सलव पचाहाविसगण

शाल‘तमीभाजम' अनधकारमगन' करवनति ॥

वाविसरगसय दशविशष विधतव- "आहवरनीय" परीलय वारच

विजरन,यजञो वा आहवनीयः,खगालोक आहवनीयो,यलनव

तत खगण लीकन खग लोक यनति"-इति । सदसी निरगलय

आइवरनौरय परितः परदचितरणौकलय ततर वाविसरगः करतबय:। आह

वरनौयसय यजञनिषपादकहारा खरगहतवन तदभयामकलव सति

यजञखगौतमक चाहवरनौयन यजमानाः खग परायवनति ॥

वाविसग मनतरविशष विधतत-"यदिईोन मकरमयदतरी

रिचाम परजापरति तपितर मयलविति वारच विखजत"-इति।

‘इड" कररती 'यत' अइम 'ऊनम' असमयरणम, यदप "अकरम

खरपरीव तदइ' न छतम,"यत' अययडरम "अतयरीरिचाम' अति

रिल डिवार चिवार वा वय मनचितवनतः; 'तत' सव दोषकर

मझजात "पितरम' आसमाक पालक परजापतिम "अयत' परापरीत ॥

'इति' आनन मलवण वाविसरग: कतरतवय; ॥

उजञमनव परासति-"परजापति व परजा अनपर जायनत, परजा

पतिरनातिरिलायीः परतिषठा, ननानन नातिरिल हिनसति"-इति।

सरवा: परजाः परजापति मवानपरजायत; तसय खटरवात तदन

रपव सरवोतपततिः। अतः खटा परजापतिरव नयनीतिरिदोषयो:

'परतिजञा' आधय: समाधानहत: । तसआदतनमनतरपाठन "एनाट'

यजमानान नयनातिरिकडयदोषी न बाधत ।

वदनपरवक मनषठान परशसति-"परजापति मवोनातिरिझा

नधभयलपरजनति य एव विडास एतन वारच विसजत"-इति।

मलण वाविसरग करवाणा यजमाना ऊनातिरिझाड' छतरत दोष

॥ पशचिमपचिका। ४। ६॥ ११३

मभिलचय परजापति मव ‘अभयतयरजनति' अतिशयन परामवनति,

स एव समादधातौलयरथ: ॥

मनवण वागविसरग मपसहरति– “तसमादव विहास एतनव

वारच विसजरन”-इति 1 ५॥

इति शरीमालसायणाचारय विरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पाशचमपचिकाया चतरथाधयाय

(चतरविशाधयाय) पचम:खणडः॥ ५(२४) ॥

॥ चाथ षषठ: खरणड: ह।

अधवरयो इतयाहयत'चतहौढष वदिषयमाणसत

दाहावख रप' मो होतसतथा होतरितरयधवरय: परति

गटणालयवसित ऽवसित' दशस पदष तषा चितति:

सगासौ३त चितत माजय मासौ३त वागवदिरा

सौ३त आधौत बईिरासौ३रत कतो अगनिरासौ३त

विजञात मगनौदासौ३त पराणी हविरासौ३त सामा

धवरयरासौ३त वाचसयतिहौतासौ३त मन उपवता

सी३त त वा एत गरह ० मगयहणत वाचसयत विध #

नामान विधम त नाम विधसव मसाक नासतरा दा

रगचछ’या दवाः परजापतिगहपतिय कटडि मराधवसता

चहि रातखामो sथ परजापतसतनरनदरवरति बरहमोदयa **‘बटइ’ ख, च, उन, ट ॥ 4 ‘‘विधा’ क, ड: ।

२०

१५8 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

चाझादाचाननपतनीचाननादा तादनिरननपढी तदा

दिलथो भदरा च कलयाणीचौ भदरा तटसोम:कलयाणी

ततपशवोsनिलयाचापभया चानिलया ताइयरन झष

कदा च नलयातरयपभया तनमतय: सरव धतवाद,

बौभाया नाशता चानापया चौनापता तयथिवयनाया

तट दौरनाधषया चापरतिधषया चानाधषया तद

निरपरतिधषया तदादिलधी'sपरवा चाधाढवया चा

परवा तबमनो 5धातवया ततसवतसर एता वाव

इादश परजापतसतनव'एष करख: परजापतिसततक

दल परजापति माधोति दशम महरथ बरहमोद िवद

नवनिगहपतिरिति हक आह, सो Sख लोकख

गहपरतिवॉयगहपतिरिति हक आहई सीनतरिच

लोकाच-गहपतिरसौ व गहपतिया सौ तरपयष

पतिकरटतवी गठहा: यषा व गठहपरति दव विदयान गह

पतिरभवति राधोतिस गरहपतौ राधवनति त यज

माना: यषा वा अपहतपापान'दरव विदयान. गह

पतिरभवतयप स गहपतिः'पापमान' हत पत यज

मानाःपाणमान'छत sधवयाअराखारातम"Iई(२५)

॥ इवतरयबाहमण पखमपचिकाया चतरथशयायः॥ध॥

न "बिभाया"का ॥ f, "नतरिचय लीकस"का | . 1. "स इ गटइपती"ग ।

॥ पचमपतरिका | 8 ॥ ह. ॥ १५५

चतहॉढमनवयाखयानारथ माहारव विधतती—-"आधवया इलधा

इयत चतरहाढय वदिथमाणसतदाहावसय रपम"-इति । चत

हौढनामकश मवयडरखारण कतल मदही होता"ह अधचयो।"

इलथाटटारन कयात ॥ यथा शसतरादौ "शोसावोम"-इतयाहान'

करोति, ताइदतरापि सबबोधन मवाडरावसय सवरपम ॥

चतहॉढवयाखयानकाल आधवया: परतिगरविशष विधतत

" होतखतथा होतरिलाधवय: परतियणालयवसित 5वसित दशस

पदब"-इति। ह होतः1 "3" तदभिलाषित मल, ह होतः!

'तथा' करियता मितयधयाहार:। अनन मवणाधव: परतिगर'

बरयात॥ डोतरपसाहजनक परतिवरन 'परतिगर'। वदयमाऐश

होचा परयोजयष दशसडकश पदष मधय एककतरिन पद "अव

सित'समाससति तदा तदा पनःपनरधवयोरो होतरितयादिमनतरण

परतिगरी बरयात। अवसितशबदख वीसा परतिपद परतिगरपयो

गारथम ॥ !

ततर परथरमपददरशयति-"तषा चिततिः खगासी३त"-इति॥

दवकलीक सव परजापतिरयोहपतिर य दवा यजमानासत च

मनतरानतर वचनत । त एवातर तषामितितचदन परागय लत ॥ :

"तषा' परजापतिरपठहपतियलताना दवतालमना यजमानाना

मानस करमणि "चिततिः खगासी३त'। "चती सबजञान"-इति

(वाe ३०.) धातोधिकतिशबदनिधयकतिः ॥ इद वसवौइश मव न

वनयथति या समयगजञानरपा मनीइकःि, सा "चिकति:'॥ सव

एतषा होमसाधनभतडखानीयारसील । अमतरतायाचिलडड

रपलव माचरय मिति दयोतयित शतिः। एव सततरवापि दरषटवयम॥

डितौरय पद दरशयति-"चितत माजय मारसोशत"-इति।

१६ई ॥ ऐतरय बराहमणम r

परवॉतायाचितिरपायाः इततराधारभत यदतःकरण तत"चिततम'

तदवातराजयखानीय मासीदिति ॥

टतौय पाई दरशयति-"वाग वदिरारसीइत"-इति। यद

“वाग" इनदरियम, तहदिखानीय मासीदिति ॥

चतरथ पददरशयति-"आधौरतबईिरासीइत"-इति।"आ'सन

बताद"धौरत"मनसा धयारत यइसत, तदवबईिखानीय मासीदिति a

परबरम पई दरशयति- “कती अनिरासोशत"-इति।

"कित जञान"-इति (सवा.०८.८३.)धातः। "चिति' समयक

जञानम, "कत:' जञानमातर मिति विशष: ॥स चवतोsनिखानीय

बासौदिति ॥

- शरटपद दरशयति-"विजञात मनौदासीइत"-इति । "विजञात'

विशषण निधित यडसत, तनत "अनौत' आलोचनामक ऋलिव

मारसौत ॥

सरमपद दरशयति-"पराणी इविरारसीइत"-इति । योगय

पराणवाय:,स इवि:सथानीय आरसौदिति ॥

अषटमी परद दरशयति-"सामाधचरयरासीकय"-इति। यद

मीयमारन"साम', तदधवखथानीय मारसौदिति ॥

नवम पद दरशयति -"वाचसपति'हौतासीइत"-इति । यीशवरय

'वाचसपति'दहसपतिः,सीयरय हीढखानीय आरसौदिति 1

दशरम पददरशयति-"मन उपवासौ३त"-इति । यदय

थक मवानत:करण चिकतशाबदन मन:शबदन चाभिधौयत,

नधानयवयाविशषी दरषटवय: ॥ चिकतिकतादिकतिजनकलवाकारण

"चिनतम"; इकतिरहितखारपावसयानाकारण 'मन'; तबाढ

"उपवा' डोलः समीपखी वहा मतरावरण आरसौदिति ॥

॥ पशचिमपचिका | ४ | ई ॥ १५se

एतषा दशाना पदाना मककसिन पद अवसित सतयधवयदध

"' होतः, तथा होतः"-इति परतिगर बयात। सोशय दश

. पदाठमाका: चतहाढसचकी मनतरसडडरात: 8 ॥

अथ गरहसनक मनव दरशयति-—"त वा एरत गरह मटहत ;

वाचसत विध नामन, विधम त नाम, विधसव मसआरक नाना

वा गच, या दवाःपरजापतिगटइपतय ऋडि मराधरवसता खईि

राखणयाम:"-इति ॥ तषामितिपदनीजञा: परजापतिटइपतियजञा

दवरपा य यजमाना: सनति, त एव ‘एरत' मानस यह मजहत 1

गरहणकाल वाचसपरति समबोधय बवत- ह‘वाचसत' दहसत ।

ह"विध'जगती विधात: 1 ह"नामन' सरवसय नामयित:1 सरव

वरशीकारयललयरथी: । ताइशसयशत "नाम विधम' खयातरति करवाम ।

यददा ‘नाम'अब इविलचरण "विधम' सममादयामः। लव मय

समारक परजापतियताना दवाना विधि:, कौकति मकख समपादय ॥

तनासाइलन 'नाना' इविलरतचणनावन कौनया वा यवती वहा खग

गचछ । परजापतिटहपतियषिा दवाना दत 'परजापतिटइपतय:'

ताइणा दवा याम 'चडिम' ऐखरयम अराधवन, ‘ता मईि'

ताइश मखरय वय मपि यजमाना रायाम: । इवष गरह

मनतर: म त मपि हीता पटत॥

मनतरानतराषि विधतत-"अथपरजापतखनरदरवति बरीच

थ6 हतिरोधबाझलपि दवितीयाटकीधी दवितीय:परपाठकः समय एवतविषथक: I

तततिरीयारणय क विनदश मनतरा: समाखाता: (३.१.) किचितपाठभदन | ताथ या

सायणीयवयाखयानानि सशटतराणीव गायत॥ "चयादयी दशए शरीरगता: पद

विशषा, चगादयत दशा पदारथा होमनियादका"-इलव तलवार निति सडवप: ।

: दतिरीशयारणय क तएष एव यइमनतर: किचिदविभिनत:(३. ९.) ॥ . . . .

१५८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

च’-इति । चतहॉढटगरहिमनतरपाठानानतर होता परजापतितन

सऊतकान मनतरान बरहमोदयसवजञक मनतरोचच ‘अनदरवति’ अनकरमण

बरयात॥

हादशसडङकाका: परजापतितनसञजञका: ॥ अनतरादा चति च

शबदानतानि हादशपदानि परजापतसतनच:। ततर ह ह पद उपादीय

करमण पररशसयत ॥

तातर परथम पदयगम माह–‘अनतरादा चावपढतरी चानतरादा

तदगनिरनतरपढतरी तदादितय:’-इति ॥ अनतरादादयः परजापतरमतति

विशषसय वाचका: शबदाः॥ अनतरादति यदसति, तदय मननिः;

अतरपढतरीति यदसति, तदसावादितय: ; एतदभय परजापतितन

रपम ॥

हितीरय यगम माह-‘भदरा च कलयाणी च ; भदरा तलसोम:,

कलयाणी। ततपशव:’–इति । परववद वयाखगयम ॥

ढटतीय यगम माह–“अनिलया चापभया चानिलया तददा

यरन झष कदा च नलयलयपभया तनमतय: सरव छीतसमाद बौभाय’

–इति । एष वायःकदाचिदपि नलयतीति न हि॥ इलयतिः

गतिकरमा (च० १२७.) ।‘नलयाति'न गचछतीति न हि, किनत

सदा गचलव । अस मरथ मनिलयतिशबदो बत। निलयी

निवासः,स नासति यसया वायरम त: सयम ‘अनिलया'। अप

गरत भय यसया मतयमत: सयम ‘अपभया'; सरव मपि जगत

‘एतसमात’ मलयीः ‘बीभाय’ भीरति परापरोति, तादशो मतय: करमा

दसमादनयासमाजञीरति पराझयात ॥

अनन नयायन परवोताना मपि मरतीना निरतयो दरषटवयाः ।

अवपतरौतयचावादागनिमततिः; अवसय पतरी परालयितरी सरय

॥ पचमपचिका ॥ ४ ॥ ई ॥ १५०

मकति:। "आदितयाजायत दषटि"-इतिनयायन (म० स०३.

थ६.) पालयितवम। सोममत: शलहतवात, दषटिपरियवादय

भदरवम । पशमत: चौरादिषपरदानन कखयाणतव मिति तासा

निरकशाय: j

चतरथ पदयगम माह-"अनासा चानापया चानासा ततय

धिवयनाया तद दौ."-इति। दरखासय गरामादः सयोग सति

परसिरिनयचत; पथिवया मवोतपननसय मनथादः दरवरतितव

परवक: यधिवौसयोगी नासति, तसमादसयोगपरवसय सयोगसय

परापतिशबदारथवखयाभावात 'अनासा' भमिः। उपरि दरदशवतति

वन पराय मयोगयलवातदौ:'अनाया'॥

पचरस यगम माह–"अननाधथा चापरतिधथा चानाधषया तद

निरपरतिधथा तदादितय"-इति। आगलय समीरष परापय इसत

सॉन धरषित मभिभवित मशकयोरिन:॥ आदितथी यथा न परका

शत तथा कवित परतिबनध' छतवा धरषित मभिभवित मशकघः

आदिलध: ॥

ष यगम माह-"अपरवाचाधाढयाचापरवा तमननी चा

ढया तलवसर"-इति। न विदयत परव परथमडत मिनदरिरय

यखया मनीमत:सयम, 'अपरवा"; सरव मपौनदरियजनत मनसा

सडित विषय पधायवरतत, अतो नासयनधख परवगरडकतिः।

'सवतसर' कालाना सव जगजरयति, नच रत काल जरयिल

समरथ:कघिदयोटसति; तसरासवतसरमरति चौवयरहिता दवादश

पदकपा ॥

परजापतितनपसहरति-"एता वाव डादश परजापतसतनच

एष छतरबन: परजापतिसतवततर परजापति माओीति दशम मह"

१६० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

इति। अबादवारय अधातयलयनता दवादशसजञाका मरतयी

या: परीजञाः, एता एव परजापतिजगविरवाहिकारतनचः। "एष:'

डादणभिखनभवतः परजापतिः "झारख" समपरणः। तथा सल

ततपदपाटन छातरो परजापतिरप दशम मह: परायोति ॥

बरोदयमनतरविधि मनध तनखरप दरशयति-"अथ

बरहमोदय' वदनतयनियहपतिरिति हक आड:, सी शसय लोकपरिय

टाइपतिवॉयगटइपतिरिति हक आह:,सीनतरिचालीकासय टह

पतिरसौ व गठहपतिया सौ तपलष पतिचतवो यहाः यषिा

व यहापरति दव विदयान टाइपतिभवति, राधोति स टाइपती,

राधवति त यजमानाः; यषा वा अपहतपापमान दरव विदयान

टाइपतिरभवतयप स टहपतिःपापमान हत पत यजमाना: पापमान

घत शवया अरातसारातम"-इति ॥ "अथ' इादशषपदानदरवणा

ननतरी बरहमोदयनामक मनतरी वदय: ॥ बराहमणाना मदय' सवादी

'बरहमोदयम'। अनिरितयादिकसतान: ॥ "एक'बराहमणा अनि:

"टहपति:"खामीलधाड: । सीनसचलयादिना तबमत मनचबराझाए

ईधत,-‘स'अनि:"अखयलोकख भलोकमाचख यडपति,

न त सरवलोकवति दषणवादिनामपरितोषः। तचबवा अपर

बराझणा वायरयोहपतिरियाड:। तदपि मत मवबौझोईथत,

–स वायरनतरिचालोकमातरसय गठहपति:, न त सरवसय ॥ यी

sसावादितयसतपति सोसावव यहपतिरिति सवरडरोकारय मतम ।

कॉरथ टहपतितव मिति, तदचत-‘एषा'परकाशमान आदितयः

पतिः, तन निषयादा वसनतादयतवी यहाः; तसमाइतलचणाना

यहाणा पतिरिलय मथा नानिवयौरति, आदिल त विदयत,

तसचराइतनिषयत:। किब "यषाम' चतना यहरपाणा

॥ पचमपतरिका | 8 | ई ॥ ९ई१

खामिन मादितय दव टहपतिवन विदयान परष:खय मपि

सटइपतिरभवति, सच यइपतिः 'राधीति' सवभॉग: समची

भवति ॥ ताइरीन टाइपतिना यझात यजमानाःसवsपि ‘राध

वनति' समईिपरयवति। तषा मतगरडाणा खासिलवादादितयसय

यहपतिलव यवा मिलयरथ:॥ सव दोचिता: सरव:पि यजमाना,

तय मखयी टहपतिरिति विवकः। किच यषा मतना खामिन

मादितयदवम ‘अपहतपापमान' सरवपापरहिरत विदवान परष: खरय

टहपतिरमवति, स यहपति: पापमान मययपाहत । य लवनय

यजमानासतपि पापमान मपननत। ताइशाना मतना खामिनी

यहपतिलवयवम। ह अधवया! वयम "अराख'समडा अभमध॥

अधयासीऽधयायसमापयारथ:॥ ६ ॥

इति धीमठसायगणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचरमपविकाय चतथोधयाय

(चतविशाधयाय) षषठः खणडः॥ ६(२५)॥

अ, "परजापतिरकामयत"-इलयारथ ( २भा० ३ईईg०), एतावान बचचो स पविध

तो दादशाहोदरपरयोगविषय: समारवात: ॥ कप त 'सचाणान-पनव. (१-९-९-0

१तावत सारच हीढकरमानधव महातरतात'-इतयत:(फ-१६-२१-) क सचिवय डला:3

बाइपरोगा अपि तदनतरगता एव। तवापि "गाईपलव यवति"-इतयादिघवयाख

( e.१६.१-२९.), "त पतरौशाखा समपदयत"-इलयदिखडचयख ( १२०-५६घ॰9

rrनशानवाद इवति॥ सामबराझण त 'अधिना घथिवयौषधिभि:"-इवादि:C *

a..y, "दवतामवा एषपरतिषठित "-इतयनतथ (९५-९६)विसतयची बादशाहौझाव

विधायक धामात:। कातयायनौतसवऽपि इदशाधयायौयबरष एव चादरणधी चरषित: 1

समानपतख तदाशचरयव शतपथसामानयत:, वशतिरीयसडिवायाब सन कालड वितीय

परपाठकौयसमादानवाकोविति ॥

१६२ ॥ ऐितरयबराहमाणम ॥

वदारथसय परकाशन तमो हाई निवारयन।

पमरथाधतरी दयाद विदयातीरथमहशखरः॥

इति शरीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

शरीवीरवकभपालसाकतराजयधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवकसायणाचायण विरचित माधवीय ‘वदारथपरकाश’नामभाय

ऐितरयबराहमणख पचमपशचिकाया: चतरथाधयायः ॥

॥ अथ पचचमाधयाय: ॥

( तच )

॥ि चपराथ परथसम: खरणड: ॥

---------------scce --------------

॥७ॐ॥उडराहवनौय मिलयपराहण आह'यद

वानहा साध करीति' तदव ततपराडबलय' तदभय ।

निधतरत उडराहवनीय मिति परातराह यदव रालया ।

साध करोरति तदव ततपराडडलय' तदभय निधतत'

यजञो वा आहवनौरय: खगो लोक आहवनौयो'यचत

एव ततखग लोक'खरग लोक निधतत य एव वद

यो वा अगनिहोरच'वशखदव षोळझशकल पशष परति

षठित वद वषखदवनागनिहोचण षोळकशकलन' पशष

परतिषठितन राधोति रौदर' गविसईायवय मपावसट

माशिवन ददयमान' सौथय दगध वारण मधिधित'

पौषण समदयनत" मारत विषयनदमान'वशवदव

बिनदमनमरच शरोगयाहौत' दावापथिवीय मडासित'

साविरच परकरानत' वषणव करियमाण।' बाईसयालय

मपसतर मगनः परवाहति: परजापत रततरनदर' हत'

मतहा अगनिहोरच वशवदव षोकरशकल' पशष परति

९६8 ॥ ऐतरयबराझणमr

ठित 3 वशवदवनागनिहोचण षोडशकलरन पशश

परतिषठितन'राधोतिय एववद॥ १(२६)॥

दशम महरविवाकय मभिधाय दवादशाह: समापित: ; अथा

गनिहोतर मभिधीयत। ततराधवय' परति यजमानोगयडरणकतरतवयता

बयात । तदाहापासतव:-"उडरयव साय माह यजमान उड

रति परातः"-इति(चौ० ६.१.४.)॥

ततर सायडलौन यजमानकतरतवरय विधाता-"उडराइव

नीय मिलयपराह आह; यदवाइा साध,करोति, तदव तवा

डडच तदभय निधत"-इति। अगनिडौचसयाधवरयरक एवचतवि

गभवति। तथाचशाखानर धयत-"तखादगनिहोतरय यजञ

करतीरक ऋतविक"-इति (त० बरा० २.३.ई.)। त मधवय' यज

मानः परथति । ड आधवया 1 आहवनीयाखय"वइि मडरति :

जवलनत मलि गाईपलयादहलय पराख मानीयाहवनीयखान निध

होतचरथ: । तथा चायखलायन आइ-"गाईपलचादाइवनीय

जवलनत मडरत"-इति(चौ०२.२.१.)। "उडर आहवनौयम'

-'इति' अम. मषम "अपराह" सायइाल खयासतमयात पराग

यजमानी बरयात। एव सति आजञा सरवणापि यदव पख यज

मानः करोति, तसव पराडधलय भयरहित आहवनीयखान

निहितवान भवति '॥

परात:कालीन यजमानकतरतवरय विधतत- "उडरानहवनीय

मितिपरातराइ; यदव रावा साध करोति, तदव तथाडधलय

तदभय निधतती"-इति । परववद वयाखधयम ॥

० "परतिषठितपद" की।

" " उडरणपरकारीडरणमनतरादिरक सरव माधला यरनौयौतसकवय दरषटवयम (२, २-) 1

॥ पञचमपजचिका । ५ । १ ॥ १६५

आहवनीयोहरण परशसति–‘यजञो वा आाहवनौय:, खगो

लोक आहवनीय:’–इति । आहवनीयसय यजञानिधयादनन खरग

हतलवादभयरपलवम॥। वदन परशसति–‘यजञ एव तत खग

लोक सवरग लोक निधतत य एव वद’–इति । आहवनीयो

उरणसय वदिता खगसाधनयजञालम क खान खरग लोक सथापित

वान भवति ॥

अथागनिहोचहोमदरवय चौरादिरप परशसित मपकरमत—‘यी

वा अगनिहोतर वशखदव षोकशकल पशष परतिषठित वद,वशख

दवनागनिहोतरण षोठकशाकलन पशष परतिषठितन राधनीति’—इति ॥

‘य:’ ममानगनिहोतरशाबदन करमवाचिनोपलचित' होमदरवरय वद,

स पमानगनिहोतरकरमणा ‘राधोति' सममढो भवति। कीदश मननि

होतरदरवयम ? ‘वशखदव’ वचयमाणा रदरादयी विपर खदवा:, तषा

समबनधि ;‘षीकशकल’ षोडशावसथम। त चावखयाविशषा रौदर

गरवीतयादिना वचयनत । गावि सथितलवादव पशष ततपरतिषठितम ।

अगनिहोचणलयतरापि विशषणातरय दरवयहारा योजनीयम ।॥

होमदरवयसय बहदवतासमबनध षोडशावसथोपतलरव च दरश

यति–“रौदर गविसद, वायवय मपावसषट माषखिन दछमान,

सौमय दगध, वारण मधिधित, पौषण' समदयनत, माररत विथनद

मारन, वशखदव बिनदमन, मतर शरीगटहीत, दयावापथिवीय महा

सिरत, सावितर परकरानरत, वषणव जञियमाण, बाहसपरतय सपसनतर

मनः परवाहतिः, परजापत रततरनदर डतम’-इति। हीमदरवय चीर

‘गवि सत’ गोशरीर यदा तिषठति, तदा ‘रीटर’ रदरदवताक

वदितवयम ; ‘उपावसषट’ वसन ससषट' परसतरत यदा भवति, तदा ।

वायदवताकम; : दहामानलवदशाया मशिखदवताकम ; दगधलक

१६६ ॥ऐतरयबराहमणम ॥

दशाया सोमदवताकम; "अधिधित" पाकारथ मनौ खपिरत

वरणदवताकम;"समदयनरत' पातरमध रियलवा सनतापवशन समय

गरवदशाया पषदवताकम; "विथनदमानम' उधरव मइतसय

पातराद बहिरविशषण सवनदनदशापव मरदवताकम; "बिनदमत'

बडदवत विखषा दवाना समबनधि ; 'शरोटईौरत" सारपरचय

भावापवअ३ मितरदवताकम;'उडासितम' अनिरयानाद बहि

रवसथापिरत दावापथिरवौदवताकम; "परकरानरत' होत" इरणायोप

करानरत सविढदवताकम; "झियमाण' होमसया न नौयमान विषण

दवताकम ; 'उपसनन' नीलवा वदया मासादित दहसपतिदवता

कम; तन दरवण या परवाडरति, सानिसबबनधिनौी; उततरा

हतिसत परजापतिसमबनधिनी; 'हरत' होमोततरकालीन मिनदर

दवताकम॥ एव इविष: षोडशावसयाः तततहवतासबबनधाश

दरशिता: "ि ॥

तलसरव सपसहरति-"एतददा अगनिहोतरी वशखदव षोडशकल

पशष परतिषठितम'-इति । अगनिहोतर तदरथचौरम ॥

बतडदरन परासति-"वपडदवनागनिहोवण पीठशकलन

पशषपरतिषठितन राधोति य एव वद"-इति ॥ १॥

इति शोमबतायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणसय पचमपतरिकाया पचमाधयाय

(पखविशाधयाय) परथम: खणड: ॥ १(२६) ॥

भs 'चोरमच घनीमरत यचर:सार तनिचसय परियम'-इति त. बरासा भाe २.११ ।

3 लततिरीयबराहमणsधता एव षोडशावरखासततईवतावानाता: ( २.१9.) ।

॥ पखमपतरिका | ५। २ ॥ १६se

॥ अथ डिरतौय: खणड: ॥

यखागनिहोचषपावसषटादहमानोपविशतका तच

परायबिकति रिरति ता मभिमनवयत "यलॉद भौषा

निषौदसि ततो नी अभय छधि पशवर: सरवान

गोपारयनमो रदराय मौळहष इतिशता मतथापय

दरदयाडयदितिरायरयजपतारवधात, इनदराय करखती

भारग मितराय वरणायचलथाखा उदपाव' मधसि

च मख चोपहगौयादवना बराहमणाय ददयातसा

तच परायशचितितरयखागनिहोचषपावसटा दझमाना

वाशवत का तच परायशिकतिरियशनाया हवा एरषा

यजमानख परतिखयाय वाशयत' ता मनन मपयादय

चानव' शानतिरवा अनन सयवसाझगवती हि भया

इति' सा ततच परायशचितरतिरयखागनिहोचषपावसटी

टबरहममाना सपनदत का ततव परायबिकतिरिति"सा

यातचe खनदयतरतदभिमख जपढददय दगध पधिवी

मस.यदीरषधौरधसपदयदीपः'पयो गई पायी

अचायामपयो वलष पयो अत, तनमयोरति तच

यतपरिशिषट खातन जहयादाद ल होमाय खादयदय

व सरव सिहा खादथानया माडय ता दगधवा तन

3 "सा तच" की।

१६८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

जहयादा लवव शरडाय होतवय सा ततर परायशचिकति:'

सरव वा अख बईिषरय सरव परिगहीत’य एव विदयान

गनिहोरचजहोति॥२(२७)॥

अथागनिहोतर वकखयनिमितत' परशापरवक परायशचितत' विधतत—

‘यसयागनिहोतरषपावसकषटा दहयमानोपविशखका तच परायशचिततिरिति,

ता मभिमनतरयत’–इति । अरिनहोतरारथ समपरादिता गौ: ‘अगनि

होतरी’ सा च ‘उपावसषट' दोहनारथ वतसन सयोजिता, ऊरधव दछ

माना सती, दोहनमधय यदयपविशत, तदानो शासतरीयसय दोह

नसय विनषटलवाद ‘यसय'यजमानसय ‘ततर' अगनिहोतरपवशन

परायशचिततिरपचिता, सा च कौडशी ? इति परशन: । ‘ताम’ अगनि

होतरो वचयमाणन मनतरणाभिमनतरयतति परायशचिततविधि: ॥

तच मनव दरशयति–‘यसमाद भीषा निरषीदसि, तती नी

अभय छधि ; पशन न: सरवान गोपाय, नमो रदराय मीळहष

इति’—इति ।। ह अगनिहोचि ! लव ‘यसमाद' विरोधिन:शङका

मानानझनसा समरयोमाणाद वयाघराद: ‘भीषा’ भयन ‘निरषीदसि’

उपविशसि, ‘ततः’ भयहतो: सकाशात ‘न:’ असमाकम अभिय

‘छधि'कर । तथा ‘न:’ असमाक सरवान पशन ‘गोपाय’ रच ।

‘मीळहष’ सचनसमरथाय रदराय पशखामिन नमोऽसत ॥ ‘इति’

शयबदी मनतरसमापतषयरथ: ॥

अभिमनतरणादई' तसया अगनिहोतरया मनतरानतरणोशथापन

विधतत–“ता मथापयत’—इति ॥

तसिमवथापन मनतर माह–‘उदसथा हवयदितिरायरयजञपता

वधात, इनदराय छगवती भाग मितराय वरणाय चति’-इति I

॥ पखमपतरिका । ५। २ ॥ ९ईe

'अदिति:" अदीना दवी दवतारपा अगनिहोतरी "उदयथात'

उसथितवरती | उतथाय च 'यजञपरतौ' यजमान आय:‘अधात' समया

दिनतवरती ॥ कोइशयनिहोतरी क’ इनदरसिचवरणाना मपचिरत हवि

भौरग 'करखती'सममादयनती । "इति'-शबदो मननसमानारथ: ॥

उतथापनाननतर कतरतवय दरशयति-"अथासया उदपातर मधसि

च मख चीपगयहीयादवना बराहमणाय दयासा तनतर परायशचितति:"

-इति । 'असया:' अगनिहोतरया:,ऊधसि उदकपाचगरहण नाम

जखखोलपण, मख गठहीलवा जल पाययितवा, ताइवा बराहम

णाय दारन यदरित,सा 'ततर'वकलयि परायशिकतिरवगनतवथा ॥

अषय टीइनकाल धवनिकरशरी परायशचित' विघटती-'यरिया

निईोकपावमटा दझमाना वागवत, का ततर परायशचिति रिय

शनाया ह वा एषा यजमानसय परतिखवाय वाशयत, ता मातर माथा

दयचानच : शानतिरवा अब सयवसाइयवरतौी हि भया इति ; सा

ततर परायधिकतिः"-इति । "वाशवत' हलधारव कवत, तदाजी मवा

गनिहोतरी खकीयाम 'आशनाया"चधा यजमानसय ‘परतिखयाय'

परखयापनाथ 'वाशत' धवनि करीति। तसमात 'ताम' अगनिहोतरो

वाशमाना मवम 'अययादयत' अपिशबदात ढणादिक मणि । तब

भचारण चधाशाल समपरदात। अरव शानतिहतरिति परसिदधम ।

"सयवसाद"-इतयादिमन: ह अगनिहोतरि1."भगवती' पजथा व

'खयवसात' भयः सययवरस टरण सयवस, तदकति भचायतौति

खयवसात ; ताइशी भवति मनतरारथ: । मनतरणाब मादयदिति

बदरित,सव "तातर' घबरनौ परायशचिकतिईटवया ॥

दौदयमानखय चौरयागनिहोचा: सथानचलनन भभौ पतन

परायशचितत' विधतत-"यखागनिहोवषपावसटा दहममाना सनदल,

ऐ3० ॥ ऐतरयबराहमणम ।

का ततर परायशचितिरिति;सा तनतर रकनदयकतदभिशय जपत"

इति। 'खदत' किचिखलत,'सी'चलतीयदि"तन'भमी

'सकनदयत' ईषत चौरी पातयत,"तत'चौर इसतन सटरा मनव

जपत ॥

रत मनतर दरशयति-"यददय दगध परथिवी ममम, यदोषधीरतय

मपयदापः;पयी गहव पयी अययाम, पयो वलष पयी अख

तनमयौति"-इति । आयदनो यद 'दगध'चीर परधिवीम ‘अखास'

आशोत, यश‘ओषधी'पतित ढखजातम "अलवसपत’ अतिशयन

परापरीत, यदपि 'तत' चोर बिनदरपम 'आप' भमिठ'जल

परापरोत;आपइति डितीयाथ परथमा ; सरव मखदीयष गहय

'अययाम' असदीयाया धनवा, वलष असदीयश,"मयि' मद

दर वा 'अत' तिनत । पथगनचयारथ "पय:'-शबदाडकति: । ‘इति'

-शबदो मननसमानारथ: ॥

उपरायशचिततादध होरम विधतत-"ततर यतपरिशिषरट यात,

तन जइयादवदयल डोमाय सयाद"-इति।‘ततर' दोहनपाव‘यत'

चोर भमी पतिबा परिशिषट खात, तयदि डोमाय'धली

थयॉस भवत, तदानो तन जडयात॥

अपरयावसावपायानतर माह-"यदय,व सव सिज यादथानया

माडय ता दगधवा तन शइयादा वव वडाय डोतवरध: सा तब

परायशचिति:"-इति। "यदव’यदिच‘सव'दझमान चौर"सिल'

भमी पतिरत खात, तदनौम 'अनय' कोचिहम"आडय'आनीय,

ता दधचा तदोयनचौरण जहयात। यदयनयापि न लमत, तदानौ

मधयगनिहोच' न परितयाजरय किनत‘आ धडाव होतवयम';आडो

वाभिविधररथ,– आ चबाया, वासडिरत सव वसतजात

॥ पखमपतरिका ॥ ५, ॥ ३ ॥ १७१

"होतवय' होमयोगयम ॥ आय मरथ:- दधियवारवादौना अ3 मध

यन कनापि दरयण होतवयम, सरवालाभ वनततः धडा मपि जड

यात ॥ "आई वडा जहीमि"-इति सडडलय धडाहीम:1 अगनि

होचसय नितयलवात सरवातमना परितयागी न यन: इति ॥

वदनपरवक मनषठान परॉसति-"सव वा असय बईिरथ,

सव परिगडीरत य एव विदवानगनिहोतरी जहीति"-इति। विदिलवा

अनषठातः'असतर' परषसय‘सरवम'अपि दरवयरथ ‘बईिरथ' यजञयोगयम ॥

अतः सव दरवयम अनन होमाथ परिगहोरत भवति॥ २॥

इति चौमतायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पखमपतरिकाया पचमाधयाय

(यशविशाधयाय ) डिरतौय: खणडः॥ २(२७)॥

- ॥अथ ढतीय: खणड:॥

चरसी वा अखादिली यप: पथिरवी वदिरीषधयी

बईिरवनसयतय इधमा आपः ओचणयो' दिश:परि

धयो"यड वा अख किशन नशचति यन चियत यद

थ "पयसा नितयहीमः। यवागरीदनी दधि सरपिरयामकामाबादकामनदरियकाम

तजखानानाम"-इतयादिकलपसवाणौहालचानि (आब० औ० ९२१.२.)। "इयो:

पथसा लहयातपषकामख०-०आजथन जयात तजखामख०-०दधनदरिय कामख

यबाबा शयामकामख०-3"-ति त. - २१५दर ।

१७२ ॥ ऐतरयबराहमणमr

पाजनति"सव हवन तदमषिाखोक ४० यथा बईिषि

दतत मागवदव मागछति’य एव विडानगनिहोतरी

जहोलयभयानवा एष दवमनषयान विपरयास दचिणा

नयति' सव चद यदिद किशॉ मनषयानवा एष

साय माहचा दवभयो दचिणा नयति सव चद

यदि किचत एत परलौना नचोकस इव शर'

मनषया दवयो दचिणा नौरता दवानवा एष परात

राहलचा मनषययी दचिणा नयति सव चद यदिरद

किच त एत विविदना इवोतपातनतरयदो ऽह' करिषय'

दो जह' गमिषयामौति वदनतो यावनरत हव सरव

मिद दतता लोक जयरति तावनत वहलोक जयरति य

एव विदयाननिहोरच जहोलनय वा एष साय

माहवाशविन मपाकरोति'तलाक, मतिगणाति'

वागवागिलधनिना हाख राचाशिवन शसरत भवति'

या एव विदवाननिहोरच जडीवादितथाय वा एष

परातराहया "महावरत मपाकरोति ततपराय: परति

गणातयवर मवर मितयादितयन हाखाडा महावरत

शसत भवति यएव विदानगनिहोरच जहीति तख वा.

एतखागनिहोतरखासचशतानि विशतिवरष सवतसर

l -s 4- 4-० 4- '

साय माहतय: सतर चो एव शतानि विशतिबध'

a "तदसपिलीक"ख,ग,टp"तदनमधिडीक"घ । '

॥ पचमपशचिका । ५। ३ ॥ ‘ . १७३

सवतसर परातराहतयसरतावलयो sगनरयजपरतय इषटका:

सवतसरण हाखागनिना चिलथनषरट भवति'य एव

विदानगनिहोरच जहोरति॥ ३(२८)।॥

यथा धडाहोम: परव मत:, तथा भावनारपो होमोगनिहोतर

परशसारथ मव परदशरखत—‘असी वा असयादियी यप, पथिवी वदि

रोषधयी बहिरवनसमतय इधया, आप:परीचरखी, दिश: परिधयः’

इति । ‘असय' भावनारप यजञ करवतः परषसयासावादियी यप

सथानीय:,पथिवी वदिखानीया, ओीषधयो बहि:खानीया:, वन

सयतय इधाखानीया:, भमौ विदयमाना आपः सरवा अपि सखकत

गरोचाणीरखानीया:, पराचया दिश: परिधिरथानौया:॥ ईदशी भाव

नवागनिहोतरहीम: ; इतरसमयतयभाव:पि एतादशी वा होम:

कतरतवय: ॥

ईदगभावनाया फल दरशयति—‘यड वा असय किच नशखति,

यन चियत,यदपाजनति, सरव हवन तदमशिजञोक यथा बईिषि

दतत मागचछदव मागचछति य एरव विहानगनिहोतर जहीति’

इति । यः पमानादियी यप इतयादिक विदान भावयतरगनिहोरच

जहोति,‘एन’परषम ‘अमशिन' खग लो क ततसरव मागचछति ।

कि कि मिति, तदचयत-‘असय'परषसय ‘यड व किञच' असिरमजञोक

यत कि मपि वसत नशखाति, याच पचादिक कतरियत, यदणयनयद

‘अपाजनति' अपगचछति, खसमाददियकत भवति ; ततसव परापय त ।

ततर दषटानत:- यथा ‘बहिषि’ यजञ दतत' वसत खग यजमान

मागचछत, एव नरट मत मपगरत च सरव मागचछति • ॥

क। ‘बराहमवादिनी वदनति०-०बईिषरथ दतत भवति’-इति त०बरा०२.१.५.१,२दर० ॥

१s8 , ॥ ऐतरयबराहमण म। ॥

यीशवरय धडाहीम, परव मन, तसलव पनरपि यवदयादिभावना

रप मनषठान महम, इदानो भावनारपा दचिहणा माह—"उभ

यान वा एष दवमनषयान विपरयास दचिणा नयति, सव चरद

यदिषटर करिश"-इति 1, "एष:' धडाहीमसय कतरता, "दवाननन

धाश, उभयविधान "विपरयाशरस" विपरयसय दचिणाः छतवा ‘नयति'

ऋलविगभयः समरपयति । यतर दवाना दचिणारपलव, न तच

मनयाणा तदखम: यतर त मतथाणा दचिणाव, न तनतर

दवाना मिलव विपरयासः; आनन विपरयासन दवश मनषयष

च, दचितरणालवसङखय: कतरतवयः॥ न कवल दवमनथाणा मव दचि

णालवम, कि तईि १ "यकिशन इद'जगदसति, तलसरव मिद धडा

डोमोयदचिणा नयति; सवसिन जगति दचिगय मिति सडखय:

कतरतवय: ॥

मनथाणा कतर दचितरणालव मितयाशडय तइरशयति-"मन

धानचा एष सायमाहलया दवशयी दचिणा नयति सव चरड यदिद

किच , त एत परलौना नयोकस इव शर, मनषथा दवभयी दचितरणा

नीता:"-इति।य परय धडा होन सायमाडति:,तया'आडवा'तदा

हतिनिमितत "दवशया' चटलिवकखथानीयशयो 'मनषयान' गौसवरण

सथानीयान दचिणा:छलवा ‘नयति'समरपयति ॥ न कवल मन

थान, किनत यत किविदिई जगदसति, ततसव दचिणा: छलवा

समरपयति। कथ मनथाणा रादौ दचिणालव मिति,तदचत

'एत' मनषया: यरआतसारय दवशयी दचिणा नौता:, तसमादवाचौी

'परलौना:' रख-रख-वयापाररहिता: "नचोकस इव' नियकत समीक:

बारन सटाहरपि यषा त नथोकस:,मदीरय यहमितवभिमानरहिता

एव सनत:'शर'वरत, सबरसि गचछनतीलयरथः॥ यथा ऋतविगभय:

॥ पखमपतरिका | ५| ३ ॥ *१७५

समरपित गवादिक दचिणादरव पराधीन भवति, एव राचौी

मनषया दवाधौनलवात खवयापाराचमा: ; तदिद पारवशय' दचिन

रणालव लिइम ॥

अथ दवाना दचितरणालरव दॉयति-—"दवानवा एष परातरा

हलया मनथथी दचिणा नयति सव चद यदिरद किच; त एत

विविदाना इवोतपातनयदो Sई करिल दो पतड गमिषधामोति

वदतः"-इति।'एषः' धडाहीमोगय 'परातराहलधा' निमिततभतया

‘मनथथ' ऋतविकखथानीयशयो "दवान' गवादिदरवयखयानौयान

दचिणा: छतवा समरपियति । यत कितरिदिरद जगदसति, तदपि

सव दचिणावन समरययति । अत:"त एत" दवा: दचिणा

रपण मनषयपारवशरव गता: "विविदाना इवोतपातति' सवखामि

भताना मनषयाणा मभिपरायविशष जानत एवोदयोरग करवनचि ।

कि करवनत: सनत:१ 'असतर' मनषयसय "अद:' कारय मई करिय,

तसमात "अद' मनषय सय समीप मह गमियामीति वदनत:।

अहनि दवा मनध: पजयमानासतासमीप गतवा तदीय मिद माय

रारोगयादिरप कारय करियाम इति वदनतो मनषथाधीना अव

तिषठित ; तदिद दवाना दचितरणालवम । अथवा ‘त एत' इति

वारच मनषयपरवन योजनीयम। "त एत' मनषया: परात:काल

निदरापारवशय परितयजय दवतानयहरषपा दचिणा टहौलवा"विवि

दाना इव'विशषण ख-ख-कारयो जाननत एव ‘उतपातति'शयना

दचितषठनति ; उतथायचाह मिद सनधयावनदन करिथ sह मिद

राजठाई गमिथामीलव वदनती वतरतत । तदव मनषथाणा

सवातनवय दवतारपदचितरणापरतिगरहसय लिइम ॥

उतारथवदनपरवक मनिहोतरानषठान परशसति-"यावनरत वह

१eई* ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

व सरव मिरद दवा लीक जयति, तावनरत ह लोरक जयति य

एव विदवानगनिहोरच जहीति"-इति। "इट सरव" खकीरय धरन

दवा तइनफलरप यावनत' लोक परष: परापरीति, तावनत मव

लीक धबराहीमवदनपरवकागनिहोतरानषठायी परीति 8॥

तदव वडाहोमादिरपणागनिहोतरी परशसयाथ गवामयनसमया

दनन परॉसति-"अगनय वा एष सायमाहलधाखिन मपाकरोति,

तडाक परति टणाति वाग वागिति"-इति । यय मनिहोतरसय

सायमाहतिरगनिदवताथी, तया अगनिहोतरी गवामयनसमबदध

माखिन'शसतर मपाकरोति ; साय होम: शासतरीपकरम इतयरथ: ।

असथाः सायमाहतरनिरदवता, आखिनशखयादवपि "अगनि

जहाता गठहपति'-इति (स० ६.१५.१३.१.) मवनिः यत:,

तदिरद साइणयम। तबाहतिरगरय शसतर 'वाक परतियणति' यथा

शखख परतिगर, एव मातर वाक शबद परयजयत। तथागनि

होचीडरणमनव"वाचा लवा होतरा"-इति वाक शबद: परयजयत,

तदिद परतिगरसदशमए। वागवागिति वीसा परयोगबाहखधापचा ।

गवामयनसय परायणीव माही तिरातरसखधम ; अतिराव चाखिरन

शसतर शशखत , तन सारय'होमसय गवामयनपरारमभसाइशचरय परति

पादित भवति "ि ॥

उननारथवदनपरवक मनषठान परासति-"अगनिना हासय रातरा

शिखरन शसतरत भवतिय एव विदयाननिहोतर जहीति"-इति । 'असतर'

विदिवानषठात: सायमाहति: दवनानिना रादौो विहित माखिन

शसतर शसतर भवति ॥

* ‘यत सारय जहीति०-०हत मव तत'-इति त० बरा० ९.१५२.९दर० ॥

f a प०, २९ अग. १ ख०(भ९ भा० २७८-९८२ प०) ।

I पखमपतरिका ॥ ५॥ ३ ॥ १se

सायमाहरति परायणीयातिराचरपण परशसय परातराहरति

गवामयनागतमनहातरतरपण परशासति-"आदितयाय वा एष

परातराहलया महावरत मपाकरोति, तनमाण: परतिषठणालयनतर मनन

मिति"-इति। आदितवाथ डयमाना यरय परातराहति, तया

"एष:' अगनिहीचौो महातरताखरष गवामयनारथीपानतिम महःपरार

भत; "तदिदास"-इतयादितयदवताकन मनतरण(स० १०.१२०.१.)

तखिचहनि निषकवखणखयारथात। तखाडतिरप शसतर पराणः

परतियटणाति । कध मतदिति, तदचत-"अरव पयी रती

असमास"-इलयनिहोव भचणमनतर:; तन "अनन मिति परति

यणति'-इतयचत॥ अनतर पराणलवन ससततम; "अरव पराण

मनन मपानम"-इतिशयतः। अनन मतर मिति वीफसा परयोगबाडखया

पचा । तसनादरित महातरतरव परातराहतिगातादितय समबनध:अ91

उननारथवदनपरवक मनषठान परॉसति-"आदिलन हासयाइा

महावरत शसत भवति य एव विदयानगनिहोतरी जहीति"-इति ।

परववद वयाखयम ॥

परकारानतरण गवामयनसामथरय समादय परशासति- "कया

वा एतयागनिहोतरसय सात च शतानि विशोतिशव सवतसर साय

माहतय, सपत ची एवशतानि विशोतिष सवतसर परातराहतय

सतावलधी जनशयजषमतय इषटका:"-इति ॥ एककरिया राची ई दी

आहरती ; तथा सति षधवधिकशततरयसजञाकास सवतसरसय

रातरि, तसचचाईगसखन विशलयधिकसपतशतसदधाकाः सायमाड

बतयः समपरदयत। परातराहतयापि सवतसरसवतावलय एव। ‘सत

ची-इतयकारी निपाती वाकघोपनयासारथ: । मिलिलवा सरवाडतीना

क ४प० ९प,(९ भा० २१७-२९०१)दर० । . .

२३

१ec ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

चलवाशिदधिकन शतचतषटयन यवा सहसरसाझा सममढत; गवा

मयन चितयसवागनरयजबली मनयजञा इषटका अपि तावलय:8

अतीsगनिहोतरचषटकासडाडारा गवामयनसाइशखम ॥

एतदददनपरवक मनषठान परशसति-"सवतसरण हासयानिना

चिलनट भवति या एरव विदवानगनिहोव जहीति"-इति 1 तसय

विदिखा अनषठात: सवतसरसवण चितयागनियलनट'भवति ॥३ ॥

इति शरीमतसायणाचारय विरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचरमपडिकाया पछमाधचाय

(पखविशाधयाय) ढतौय: खणड:॥ ३(२८) ॥

॥अथ चतरथ: खणड:॥

वषशायी ह वातावत उवाच जातकखा'वजञा

खो वा इद दवबयो" यदतदगनिहोरच मभयदयरडय

तानयदयरवाव' तदतहि डयत इतयतद हवीवच

कमारी गनधरवगहौता'वा सभी वा इद पिटायी

यहतदगनिहोच मभयदयरडयतानयदयरवाव तदतईि

डयत इतयतदा अगनिहोच"मनयदयईयत" यदत

मित सारय जहोतरयनदित परापतरथतदगनिहोच मभय

"चबचषय-दरभची लीक: शकरपरषद कषी खची खल

माढा दरवषटका बियज रत सचौ विशवजयोतिरवतनय अषाढ"-इतयादयः त- बरा० १०,

४.६.१४-६० ॥ "पयी यजमनत'-ति निर० १९, ४, ५॥ - "

॥ पशचिमपशचिका । ५ । ४ ॥ १ee.

दयईयत'यदसतामित साय जहीरयदित परातसतचा

ददित होतवरय चतरविश हव सवतसर ऽनदितहोमी

गायचौलोक मामरोति' इादश उदितहोमी'स यदा

ईौ सवतसरावनदित जहोतयथ हारलको चहतो

भवतयथ य उदित जहोति' सवतसरगव सवतसर

मापरोति’य एव विधानदित जहोति 'तचाटदित

होतवरय मष हवा अहोराचयोसतजसि जहोरति यो

sसतमित साय जहोतरयदित परातरगनिना व तजसा

राचिसतजखतयादितयन तजसा ऽहसतजखद होरातर

योहाख'तजसि हत भवति'य एव विदयानदित

जहोरति तचाददित होतवयम ॥४(२०)।॥

अथानदितहोमनिनदोदितहोमसततिशव परारभयत-‘डषशशी

ह वातावत उवाच जातकखो वजञा समो वा इद दवभयो याह

तदगनिहोतर मभयशयरहयतानयशयरवा व तदतईि हयत इति’

इति। वतावतनानतरी महरषरपलय ‘वातावतः’जतकरणय पौची.

‘जातकरख’, सच ‘डषशशः’ डषभखव शशी बल यसय महरषः

सीsय डषशषा: । तादवशी महरषि: कदाचिदरिनहीतरिणा मय परस

ङगादिद मवाच– ह अगनिहोचिणः! भवदीयम ‘इदम’ आचरण

दवभयो ‘वजञा सम:’ वय वचयामः॥ कि तदाचरणम ? इति, तद- '

चत–‘एतद’ अगनिहोतर' परातनरमहरषिभिः ‘उभयदयरहयत'

दिनहय चत मासौत। पवदिनसय राचावगनि महिशख होम:,

१८० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

पर दिनखय परात: सरय मईिशव होम:; इलरव दिनइयानषठान परव

छातम ; तदजञडय इदानो मतदगनिहोच' मनरथ: "अबदः'

अनघतरविवव दिवस डयत;- असतमयादई मननय डोम,

पनरपि सयॉदयात परागव सरयाय होम: , इलयव म कसबा

मव राची होमडय मनचित करियत। ‘इति' एतदाचरण

शाखविरईदवताना मय कथायिधारमीति इडसय महॉवॉकयम शरs ॥

अविववारथ कमारीवाकय मयदाहरति-"एतद डवीवाच

कमारी गनधरवट होता वहा सो वा इरद पिटभथी यहतदगनि

चीन मभयदरडयतायदरवाव तदतईि डयत इति"-इति।

चटवः पची काचिडाला, तडहखामिना गनधरवण कदाचिइौता

सरती, परसइगदतदव वाकय मनिहोतरिणा मय उवाच। 'वतास

-इतयादिक मतडाकघम ; पिढभय इलतावानव विशष: ॥

चटव:कमायॉश वाकघतातपरय दरशयति-"एतददा अगनि- '

डोतर मनचदईयत यदखामित सारय जडोलयनदित आतरचतदलित

डोतर सभयशयईयत, यदखामित साय जडोलयवदित आत"

-इति। इदानीनतनी यदगनिहोतरी सरयासतमित सारय जहीति,

पनः सरयनदित परातोडोति, एव सति एतदवागनिहोचहोम

डयम "अबदः"त एकतरिवव दिन डबत; रातरि मध एव दिविध

होमनिषयत: ॥ अवतहपरीलन परातनाना शासतरजञाना यदकनि

होतर सतयनसतमित धव: सारय जहीति,परदः परातरदित सरय

पचाजजडीति; एतदगनिहोतर ‘उभयदः'दिनइय एव डयत।

०"एक एकब. परबयादिति वहखाह जातकणयॉ:"-इति आर० ५२३-ई॥ "जात

कणवी भारदवाजात"-इतिशत०बरा०१४.५.५.६१, ७.३३७। कारतौयबौतिसबSपि जात,

'ए'

करषसह,नतपारथकयानि उललिखितानि ४.१.३७; १०.२-१७, ९५७३४ ॥ . . .

॥ पखमपतरिका | ५। 8 ॥ १८१

एव मिदानीनतनाना मकदिनानषठानरपा निनदाम, परा

तनाना दिनइयानषठानरपा सतरति च परदरय, उदित होरम परात:

काल विधता-"तसआददित होतवयम"-इति॥

परकारानतरणोदित होरम परशसिति-"चतविश ह व सव

सरशानदित होमी गायचीलीक मागरीति : डादश उदित होरमी

सयदा ईौ सवतसरावनदित जहोलयथ हारवकी चहती भवलवथ व

उदित जडीति, सवतसररीव सवतसर माओोति, य एव विदयानदित

जहीति ; तसराददित हीतवयम'-इति । यः परषी जनभिजञ:

इदानौनतनोननदित होमी, स परषचतरविशातिसदधापरक सवतसर

गायचीदवताया लीक माझीति : तावडि: सवतसरी : गायतरचार

सहमानिषयत: । उदित होरमी त डादणसदधापरक एव सवतसर

रत गायतरीलोक परापरीति : तावतवोलसजलानियतती: । कथ मत

दिति, तदचत-‘स'अनदितडोमी यदा ईौ सवतसरी अनदित

सतय परातडीति, ‘अथ' तदनी तरयानदित होमिन एक एव

सवतसरी डती भवति ; असतमयाद' पनरदयात पवच काल

कचन होमइयनिषयतवभावात । अथ तडलचरलन "य'शाखा

भिजञः उदयाद'परात होति, तरय कालडयानषठानसिड: सव

सरइयम इतरणानषठित फल मकनव सवतसरणासय सिधयाति I

तसाद दवादशी सवतसर हिगणसडया गायतरीलोकपराभिरपपढत ।

"सवतसरण"-इतयादिक वाकरव विदढपरशसारथम पनरमयावरतनौयम ;

–यी विदयान जडीति, स कालडयानषठानात सवतसरमावष

सवरडयफल लभत। तरमाददत सय सति पदयादव

होतवयम ॥

पनरपि परकारानतरणीदिताहोरम परासति-"एष वह व

१८२ ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

अहोराचयीसतजसि जहीति, यीसतीमित साय जहीयदित परात

रनिना व तजसा रातरिसतजसवतयादिचन तजसाहसतिजखात"

इति। 'यः' सायमातहॉमी कालभदन जहोति, ‘एष'पमान

अहोरातरयोःसमबनधिनि विविधतजसि जहोति।कथ मतदिति,

तदचत-यरय रातरि:, सय मनिनव तजसा यवा सती तजसविनी

भवति ॥ यदिद महसतदतदादिचन तजसा तजखट भवति ।

बतसआत साय परात: कालइय जइतखतजोइय होमसिडिः॥

वदनपरवक मनषठान होरम परशसति-"अहोरातरयोइौख

तजसि हरत भवतिय एव विडानदित जहीति"-इति ॥

उपपादित मथ निगमयति-"तसतराददित होतवयम"

इति : ॥ ४ ॥

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणसय पचरमपचिकाया पदयमाधयाय

(पखविशाधयाय) चतरथ: खणड: ॥ 8(२८)॥

॥ अथ परम: खणड: ॥

एत ह व सवतसरख चक यदहोराच' तानया

मव तसवतसर मतिस योजनदित जहरति यवक

' व "अशवसाय लटत, सरयाय परातः। आपरथी व राचि, ऐनदर मह:। यदलदत

सरय परापत हयात, उभय सवाशरय खात । उदित सरय परातजहीति"-इतयादि चतनतर

खणडानतम त० बरा० २.९-३, दर० ॥

॥ पखमपचिका । ५। ५॥ १८३

तघकण यायातादलदथ य उदित जहीति'यथो

भयतखतरण यान चिपर मधवान समधरवौत ताड

तरतदषाभियजञगाथा गौयत' बहदरथनतराया मिद

मति यकत यह तो भविषयवापिसव"ताया मिया

दनौनाधाय' धौरो दिववानयजजहयावरत मनय

दिरति राथनतरी व राचहबॉईरत मनिव रथनतर

मादियो बईदत ह वा एन' दवत बधख विषटप

खग लोक गमयतीय एव विदवानदित जहीति'

तखाटदित होतवय" तदषाभियनतगाथा गौयत'

यथा वह वासयरिगकन यायादकतवानवदपयोज

नारय एव यनित त बहवी जनास: परोदयाजजहति

य शनिहोच मिरति ता वा एता दवता परयती सरव

मिद मन पति यदि किनवतल हौद दवताया

अनचर सव यदि किव सषानचरवरतौो दवता'

विनदत हवा अनचरम, भवतयखानचरीय एव वद'

स वा एष एकातिथिःस एष जहरस वसति तद

ददी गाथा भवलरवननस मनसा सी ऽभिशखतादन

खती वापइरादन एकातिथि मप सारय रणदि

3s

बिसानिसतनी अपसो जहारलवष 'ह व स एक

तिथि स एष जइतस वसचतावावसदवता मप

१८g I ऐतरयबराहमणम ॥

रणईि योsल मनिहोचाय सवरानिहोरच जहोति'

त मषा दवतापरडापरणडासगालव लोकादमषमाडो

भाधया यो Sल मनिहचाय सहानिहोरच जहीति'

बतखादी Sल मगनिहोचाय खाजहयाकतवादाहरन

साय मतिथिरपरधय इतयतड व व तडडिान नगरी

जानतय उदिताहोमिन मकादशच'मानतनतवय

मवाच परजाया मन विजञाता सधो यदि विदवानवा

जहोलयविडानवति' तखो हकादशाच' राषटर मिव

परजा बभव राषटर मिव हवा अख परजा भवरति

य एव विदवानदित जहीति'तलाददत होत

वयम ॥ ५(३०)॥

दषटानतपरवक सदिताहोरम सनः परशसति-"एत ह व सव

बसरसव चल यदहीराल, ताभया मव तत सवतसर मति ,सयी जल

दित जहति, यरथकतावलण यायातताइवदथ य उदित जहीति,

यथोभयतधककण यान चिदमर मधवान समयरवौत ताडनात"-दति I

यएव आहोरातरी विदत,एत एव रथखानीयसय सवतसरसय चकर

सथानीय; एरव सति स परषी लौकिकसताभया मवाहोरातर

चकराभिया सवतसरररथ परापरीति । एव महोरातरयी: सवतसर परापति

साधनव खित सति, यः यमानदयाआगव परात: होति, तब

इटाती भिधीयत-यथा लीक रथसय 'एकता' एकतरितव

याई खितन चकरण "यायात' माग गचछदा, ताइव.. "त

॥ पाजचमपशचिका । ५ I ५॥ १८५

चनषठान सयात । एक चकर यथा गमनचारम नभवति, तथवान

दितहीम: ; एककालमातरवतरतिसवादितयरथ: । अथोजञवलतचाखन

बः पमानदित जहीति, तसय दषटानती sभिधौयत–यथा पाशरड

इयचकरधझन रथन ‘यान’ गचछनपरष: ‘चिपरि’ शीघर' मारग परापरीति,

पताटटकत ‘तत’ काखइयानषठान मवितरन फलपरद मिलयरथ:॥

उतारथदावरयाय गाथा मदाहरति–“तदषाभियतरगाथा

बीयत’-इति । ‘तत’ तसमिन कालइयहीमविषय काचिदयजञ

परतिपादिका गाथा सरवरभितो नीयत । सभाषितलन सरवगाय

समाना ‘माशचा’ |

ता गाथा मदाहरति-‘डहदरथनतराभया मिद मति यति,

अजत भविथचावि सरवम ; ताभबा मियादनीनाधाय धौरो दिव

वानधबजहयानबत मनयदिति”-इति। ‘यङकरत' जगदसति, यशय भवि

थरह, इद सरव मपि छहदरथनतराभया सामभया यकत सत‘एति'परव

रच ल। तसराद ‘धीर’ बदविमानननीनाधाय पशचात ‘ताभया’ छह

दरथनतराभवा पषठ सतोतरबिषयादकाभयाम ‘इयात’ सोमयाग मन

तिछत । परतिदिन च दिवव ‘अनयद’ सरयदवताक मगनिहोतर'

जहयात, ‘नता' रातरी ‘अनयतव’ अगनिदवताक मगनिहोतर जह

यात॥ ‘इति’-शाबदी गाथासमापतपरथ: ॥

दिवाहोरम रातरिहोम च छहदरथनतरसमबनधन परशसवदित

होस निगमयति-“दराथनतरी व बरातरिपरहबीईत मनिव रथनतद

मादिलयी छहदत ह वा एन दवत बरधासय तरिषटय खरग लीकर गम

यती य एव विदवानदित जहाति ; तसमाददित होतवयम’–इति ॥

सरवख जगती छहदरथनतराधीनतवादहीरातरियीरपि ततसमबनधी

sसति। ततर रातरिौ रचनतरसामसमबनधिनी; परहसत छहलामसमबनधि I

२8

.१८ह , ॥ ऐतरयबराहमणम ।

तयो: कालयोरभिमानिनौ य उभ "दवत' अनधादितयरय, तयी:

रथनतरडहदपाब, तलवामाभिमानिखादवगनतवयम । एव सति'य'

समान शाखरहसरय विदयान साय मनिहोतर डवा पधावधात

रदित जहीति, एव मदिताहोमिरन दहदरथनतराभिमानिलौ

दवत 'बरधख' आदितयसय ‘विषटप" सथान खग लोक परापयतः।

तसतरात कारणात परातरदित होतवयम ॥

उदित'होम परशसयानदिताहीम निनदित गाथा मदाहरति

"तदषाभियजञगाथा गोयत"-इति ॥ ‘तत' तसिकनदितडीम

निनदारप थ ‘एषा'वचमाणा गाथा याजञिकः सरवः गीयमाना

सभाषितरपा अभित: सरवती ‘गीयत' वचत॥

ता गाथा मदाहरति-“यथाह वासयरिकन याया

दझलवानचदपयोजनाय, एव यनित त बहवी जनास, परोदया

जददति य अगनिहोतर मिति"-इति। "अखधरि-नामाखी रव

वाजी।यथा लीक कविनदबडि:‘उपयोजनाय'रथ योजयितम,

'अनयदलवा' अखानतर मसमयादय एकनव ‘असयरिणा' अडन

रथयलन "यायात' माग गचछत, एव मव ‘य' शाखरहरयान

भिजञाः सयॉदयात परा अगनिहोवजति, तबहवी 'जनस'

परषा: "यनति' गचछनति॥ एकाणखयली रथी यथा मारगपार नत

मसमरथ, एव रातरिरप एकतरिवव काल छत मनिहोव फल

परद न भवरतीलचरथ: । "इति'-शबदो गाथासमापतपरथ: ॥ . . . .

उदित होमोतकरषारथ मादितयदवता परासति-"ता वा एता

दवता परयतो सरव मिद मन पति यदिई कि वशतसय . हौद दव

ताया अनचर सव यदि किश, सषानचरवती दवता"-इति ॥

यह विचितरदिरद , खावर' जडमरगरय जगदलित, तदिदई सरवम, "ता

॥पशमपतरिका । ५॥ ५॥ १es

मताम' आदितयदवता 'परयरतौम' उदयासतमयौ गचछनरतौम "अन'

पशचात १ति" परवरतित। तथाचशाखानतर यत-"योरसौ .

तपकदति,स सरवषा भताना पराणानादायोदति ; असौ योऽसत :

मति,स सरवषा भताना पराणानदयासत मति"-इति। सरयोदय

मत सरवषा मिनदरियोदयाइिवा सव चषटत, सरयासतमय मन

सरवषा मिनदरियाणा मसतमयादरादौ सव निदरा करवनति । अनन

परकारण यत किचिजगदसति, ततत सरव मतसथा आदितय

दवतायाः "अनचरम' भलयखथानीयम।अतः"सषी' आदितयदवता

'अनचरवरती' बहधलधोपता ॥

वदरन परासति-"विनदत ह वा अनचर भवलयसयानचरी या

एव वद"-इति । वदिता खरय धनिकी भलवा जीवितपरदानन

अनचर लभत। अतोशरय सरवदा"अनचर" भलयवरग भवलव॥

परकारानतरणादितयदवता परशसति-"स वा एष एका

तिथि, स एषजइल वसति"-इति । ‘एष' आदितय: खयम'

‘एकातिथि',यथा लीक कविडदशिकी बनधरहित: खय मक

एव अतिथि भखा यह गचछति, एव “स एषा' आदिलली

'जझतस' अगनिहोतरिय परातः समागतय तिषठति ॥

आखिबरथ काविहाथा मदाहरति-"तदाददी गाथा भवति"

-इति॥ यदिद मादितय सवकाहिथिलरव ‘तत' ततरि थ काचिट

'गाथा' सवगौत" योगया गीतिरविदलत ॥

ता गाथा मदालहरीति-"आननस मनसा सीभिशासता दन

खती वाप इरादन:, एकातिथि मप साय रणडि, विसानिसतनी

अप सी जहीरति"-इति । परा कदाचित सपतरषिोणा सवादपरसटट'

""A--

कबधियरषी बिसलनयलचण मपवाद परापय ततपरिहारारथ मवीणा

एमस ॥ ऐतरयबराहमाणयम I

मय शपरथ चकार, तदीयशपथोझिरकपयो गाथा । "बिसानि' पदम

मलानि तधा मपहतरता, परतयवायपरमपरा परीत:-पापरहित

परब विषसलनय मपवाद छातवती य: परतयवाय:, पापिन: परषसय

समबनधि पाप सवीकरवती य: परखवायः,सायडगाल टहसमागचछत

एकातिथवदशिकसयापरोधन यः परतववाय:; सया परतयवायपरमपरा

बिससटनच सति मम भयादिलरवशपथः। अचरारथसत परसिदध: 8,

–माइशःपरष: "सतनः'चोरी भलवा बिसnनयपजहार चत,'स:'

पमान,आननसम'पापरहिरत पररष शरोतरियम"एनसा अभिशपतात’

यापनाभिशसन मपवाद कयात ॥ तावष "स:' बिसापहारी

"एनखत:" पापयकख यत'एन' पाप मसति, ततत "अपहरात'

खोकरयात। तथा स बिसापलहारी सायइाल रहसमागत

मकातिथिम "अपरणडि' भोजन मदवा नि:सार यतत ; यडा

अगनिहोतरारथ सारय समागतम "एकातिथि' दवम "अपरणडि'

हीमराहियन निरालकरयात । "इति'-शबदो गाथासमानारथ: ॥

अरवा गाथाया मकातिथि मप सारय रणईौलघसय भागरव

परचतोपयकतालवात तसय तातपरय दरशयति-"एष हव स एका

तिधि,सएषजझसवसलता वावसदवता माप रणडि, यी इल

मनिहोतराय सवागनिहोतरी जहीति ; त मषा दवतापरडापर

णडासमाख लोकादमआडीभाभया यी ल मनिहोतराव सखालिन

होरच जडीति"-इति॥ "एषा' दशयमान आदितय एव गाथाया

मत:'एकातिथिः' ॥"स एष'दव: परात: काल समागलय ‘जडबल

अगनिहोतरिय तिषठति । एव सति "य' पमान अगनिहोतराय

'अली' समरथ: सननिहोव न जडीति, 'स' पमान'एताम'

क "असिड"-इति घ,ड।

॥ पखमपतरिका | ५| ५1 २-e:

अगनिहोतरहीमाथ मागता दवताम "अपरणडि' निराकरीति ।

"एषा' च दवता तनापरला सतो "रत" नासतिक भलीवाख ग

लोकाया मभाभयाम"अपरणडि" निःसारयति । योएल मिलयाद

पनरतरिरपसहाराथॉ;–यी नजहीति, तरयारय दवतादरोह.॥

विपच बाधक मददा खपच दरशयति-"तसआदी Sल मनि

होतराय सयाजजहयात"-इति । अगनिहोतराय 'अलम' आहि

तानिलवन समथा भवत, सीवशरव जहयात ॥

अगनिहोतरसयावशयकलव इषटानतरपविवचाया समाज शासतरारथ

दरशयति-"तसादाहरन साय मतिथिरपरधय इति"-इति । यसा

हवसय मनथसव च अतिथरपरोध परलयवायोजसति, तसआचारवा

एव माह: –सारय काल समागती तिथि; 'नापारध:" न निरा

करणौय इति। आती लौकिकातिथिवत दवतातिथव हीतवय

मितयारथ:॥ !

अगनिहोतरसयावशयकतरतवयता मददा पनरपि परकारानतरणी

दिताहोरम परॉसति-"एतड सम व तहिददावरगरी जानयकतय

उदिताहोमिन मकादशारच मानतनतवय मवाच,–परजाया मरन

विजञाता सतरी यदि विदयानचा जडोलयविदयानचति; तरयो हकादशच

राषटर मिव परजा बभव; राषटर मिव हवा अनय परजा भवतिय एव

विदवानदित जहीति; तरमाददत होतवयम'-इति।जनवयताखयसय

करवचितयहरष: पतरी 'जान'यतयः'अ8॥ सच राजपरोहितलवात

निलरव नगर वसतीति ‘नगरी'॥ स महरषि: तदतददितमाहारमय

विदवान राजपतर कबित 'उदितहमिनम'उदिख खमनखव

•"उपविजॉनयकय"-इति ९ भा० ९६१ पर०९ प०।"जानयविईपौवायण"

इति झा उपe४.११ । "औपाविनवजानधतयन"-इतिशत०बरा०५.१.९५७॥

१८० ॥ऐतरयबराहमणम ॥

मवाच ॥ कौडशा मदित होमिनम १ "ऐकादशाचम' एकादणाच

नामकसय राजञ: पतरम, ‘मानतनवय' मनतनत नामकनसय राजञ:

पौचम। त महिश मनसि कि मवाचति, तदभिधौयत-आय

मकादशाचो राजपतरी यदि विदयान जहाति,यदि वा शासतरारथ

मविदयानिति मम सशयीजायत। तथा सति "परजायाम' एतदीय

पतरपौतरादिसनतरतौ परयालच 'एनम' ऐकादशारच"विजञाता सन'

विशषण जञाखयामः। यदि परजा वडत, तदानौी मय विदयान,

अनयथालवविदयानिति। एव निधितव,यदा तदीया परजा मपखत,

तदानो तसथापि राजपतरसय 'परजा' पतरपौतरादिरपा ‘राषटर मिव

बभव' यथा राषटर' बडजनाकीरण तडदिति सचचा परजारसोत।

ऐकादशाचसथापतय मकादशयाचिरिकारानत: शबदसतसय षधीयम

'ऐकादशव'-इति॥ "य'पमानरव विदयान परातरदित जहाति,

असय राषटर मिव बहला परजा भवति' ॥ तरमाददत हातवय

मिति ॥ ५.j

इति चौमझायणाचारयविरचित माधवीयवदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणखय पचमपतरिकाया पचमाधाय

(पचविशाधयाय)पचमः खणडः॥ ५(३०)॥

भ, "इति चहखाइत,सीमापौ मानतनतवयौ*-इतिशत०बरा० ९३.५.६.९॥ "चिकित

गालवकालबवमनतनतकशिकानाम"-इति आध० बौ० १९-१४.३।

ाि शत,० बरा ० २-२.8.१ट, दर० ।

॥ पखमपतरिका । ५। ई ॥ १०.१

॥ अथ श: खणड: ॥

उदयनन खल वा आदितय आहवनौयन रशसौ

नतसनदधातिस यो ऽनदित जहोरतियथा कमाराय

वा वलसाय वा जाताया सतन परतिदधयाताडतदय

य उदित जहीति" यथा कमाराय वा वलसाय वा'

जाताय सतन परतिदधयानरताडनात त मसम परतिधौय

मान मभयोलॉकयोरखादय मनपरतिधौयत समाचs

लोकादमझावोभाभया स योऽनदित जहोति यथा

परषाय वा हसतिन वा sपरयत 'हत आदधयातादन

दथ य उदित जहोरति यथा परषाय वा हसतिन वा'

परयत इसत आदधयातादलत मष एतनव हलशनोई

इलवा खग लोक आदधाति"य एव विदवानदित

जहोरति तसमाददत होतवय मदयनन खल वा

आदितय, सरवाणि भतानि परणयति तसमादन' पराण

इतयाचचरत पराण हाख समपरति हरत भवति यएव

विदवानदित जहोरति तसमाटदित होतवरय मष हव

सलव वदनतसय जहोरति योऽसतमित सारय जहोलय

दित मातभरभवः खरो मरिन जियॉरतजयोतिरागनि

रिति साय जहीति' भरभवः खरो: सरया जयोरति

क"बाब" का। ि"खरी मिति अगरि"क, "खरीइमगरि"ख 1 .."खरी"ख।

१०.९ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

जयौतिः सरय इति परातः सरव हासय वदतःसच हरत

भवति'य एव विदयानदित जहोरति तसमाटदित

होतवयतदषाभियजञगाथा गौयत परातः परातरनरत

त वदनति परीदयाजइति यSनिहोरच' दिवाकौव

मदिवा कौरतयनत: सरयो जयोतिन तदा जयोति

रषा मिरति ॥ ६(३१)॥

परकारानतरणानदितहमिनिनदा मदितहमपरशसा चाह

"उदयद खल वा आदितय आहवनौयन रशमीनसनदधाति :

स या जनदित जहति,-यथा कमाराय वा वसाय वा जातीय

सटरन परति दधयाततादवादथय उदित जहीति,–यथा कमाराय

' वा वसाय वाजाताय सतन परति दधयातताइवात; त मरल परति

धौीयमान मभयालौकायीरननादय मन परतिधौयत समाख लोका

दमषमाडोभाभयाम"-इति । आदितय: खय मदयवव इवयारथोf.

सवाहवनीयन सहखकीयान रशौन "सनदधाति' सयोजयति ॥

एव सति ‘य' पमान सरयोदयात पव जडीति, स मढइति

लषः। ततर दषटानतः-यथा लोक कलचित 'अजाताय' अन

यबाय 'सतन परति दधयात'पात समरपयत, ताइगव तद दरषटवयम ।

अथ तडलचरखन 'य'यमानदयादई' जडीति,स विवकी। तचारय

दषटानत:– उतपनवाय सतनपरदान याइया भवति, ताइगीव तदिति ।

एव सति 'असतर' सरयाय परति धीयमारन इवि: समरपयत। ‘तम'

अनिईचिण मनलकइयनयवाद"समयदत। लोकयोरिलय व

वयाखयानम "असाइड"-इतयादि; समयरथ पचमी । अखिच

मनिरमवशभयोलॉकयोरितयरथ:॥

॥ पचमपचिका।५। ६॥ १e-३

पनरमयानयन दषटानल नानदितहोमनिनदा मदितहोमपररशसा

च दरशयति–“स यो एनदित जहोति, यथा परजाव वा'

हसतिन वा sपरयत हसत आदधयाततादतादथ य उदित जहीति,

यथा परषाय वा हसतिन वा परयत हसत आदधयाततादवतत; त मष

एतनव हसतनीङक हलवा खग लोक आदधाति,य एव विददान

दित जहीति; तसमाददित होतवघम'—इति । ‘य:’ अनदित

होमी, स मढ: । यथा लोक परषसय हसतिनी वा गरासारथम

‘अपरयत' अपरसारितहरत गरास परचिपत, तादगव तत। उदित

होमनत परसारितहसत गरासपरच पसमान ‘यः’ पमान विदिलवी

दितहोमी सयात, ‘रत’ पमासम ‘एष:’ आदितय: ‘एतनव’ हवि:

सवीकारारथ परसारितन हसतनवीङक’ ‘हलवा’ नीलवा खग लीक

खापयति । तसराददयादई' हीतवयम ॥

परकारानतरणोदितहीम पररश सति-“उददयव खल वा आदितयः

सरवादि भतानि परणयति, तसमादरन पराण इतवाचचत ; पराण हासव

खमपरति हरत भवति य एव विददानदित जहीति; तसराददित

होतवयम’-इति । अादितय: खया सदावव सरवाणि परादिन: ‘परण

यति' चषटयति ; तसमातपरणयतौतिवयतपतचिादितयसय पराण इति

बाम ॥ एव सतबदितहोमी योसति, तसय पराणरय आदितय

‘समगरति’ समयगदरवरय हरत भवति ॥ तसमाददयादई' होतवयम ॥

पनरपि यकतचनतरण उदितहोम परशसति-“एष हव सलरध

वदनसल जहीति,यी खामित सारय जहोलयदित परातर; भरभवः

खरो मगनिजयोतिजयौतिरननिरिति साय जहीति, भरभव: खरी

सयो जचीतिजयोति: सरय इति परात:; सलव हासय वदत:

खली हत भवति य एव विददानदित जहोति; तसराददित हीत

२४,

१०8 ॥ऐतरयबराहमणम ॥

वयम"-इति।सायइालीन मनिहीच मसतमयादई, परातःकालीन

च खयादयादई' जहीति,'एष:' पमानचाचा 'सतय' यथारथवादिन

मव मनव बवन,‘सल' परमाथ दव जहीति । कथ मिति, तद

चत-"भवः ख"-इतयादिकः सायडालौनी मननः। तरयाय

मरथः-भरादयखयी लोकाः मदीयाहोमम ""अननौकरवित:

य:'अगनि'दव:, स एव 'जयोति' दीपादिरप:परकाश:,यदय

'जयोति' दीपादिरपः परकाशः, स एव 'अगनि'दव:, तसल दवाय

खाडत मिद मसत इति ॥ एव परात:कालौनमनवलपि दरषटवयम ॥

भरादयी लोक मदीरय डोम खोबरवनत; यः'सवरय"दव, स एव

'जयोति' दिवसगरत परभारपम; यवद परभारप "जयोतिः' स एव.

‘सरयध:" दव:; तसौ खाडत मिद मसत । तब यी विदयानशव.

जडीति, तसय सायइालीन जयोतिरनिः, परातःकालीन

जयोति: सरय:, इलधरव 'सतय'परमारथ ‘वदत:' परषसय "सतय'

परमारथरप नौ रपय च डरत भवति। तसराचातरदयादई

होतवयम 3॥

उदित होरम परशसवानदित होरम निनदित' गाथा मदाहरति

"तदषाभियावगाथा गोयत"-इति ॥

ता गाथा माह-“परातः-परातरढरत त वदनति, परीदयाजज

इति य निहोतर : दिवाकीलरथ मदिवा कीरतयनत: सरयो जयोति न

तदा जयोतिरषा मिति"-इति ॥ 'य' अगनिहोतरिणः उदयात

परव मनिहोतर जहति, "त' परषाः"दिवाकीलधम' अहनि कीरत

क य० वा० स० ३.e-९९ अगरिहोतराहीमामना; तवाददयाविनौ ॥ *परदीपता मनि

जहोलयपरिजथॉतिरिति"-इति कालया० बौ० ४.१३.१४ । त० बरा० ९.१.९ अन.० होममनतरी,

बवतपरव नव(९ धन.) तयीवरयाखयानानि दरषटवयानि '

॥ पखमपतरिका 1 ५| Se ॥ १०.५

नीरय सरयम, "आदिवा' रावी कीरतयनतः 'परातः परात" परतिदिन

परात:काल 'अदतम' असतय वदनति । कथ मसलधतव मिति,

तदचत–"सया जयोति"-इति हिमननपाठ,"तदा'उदयातयरा

"एषाम' अगनिहोतरिणा सरयगरप जयोतिनॉसति ; तखादसतय

वादिन: 8 । "इति-शाबदी गाथासमानारथ:॥ ६ ॥

इति धीमसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पचमपतरिकाया पञचमाधयाधि

(पखविशाधयाय) षषठः खणडः॥ ६(३१)॥

॥ अधथ सस: खणड: |

परजापतिरकामयरत मजायय भयानखा मिति'

स तपो ऽतयत स तपसतमाडो कनखजत'

पथिवी मनतरिच दिव ताबीकानभयतपतयो sभि

तलयरीणि जयोतीयजायनरतागनिरवपथिवया अजा

यरत वायरनतरिचादादिली दिवसशनि जयोतीषय

बयतपतथो ऽभितलशवखयो वदा अजायनरत चटवद

एवागनरजायत'यजरवदी वायो: सामवद आदितथात'

*वलवगनना उदयमानयबाल-तल-ब-६०

अत एवानदितहोमिना मनतवादिव वीधयम ॥ १० प० २९ परय० अपौहदर० ॥

"माही"ग,ट;"०मॉली"घ ॥ एव मिईोततरवापि नखयीःसौ।. . .

१ca. It ऐतरयबराहमणम ।

बतानवदानबथतपतथो sभितलभयखौणि शकराणय

जायनरत भरियव चटवदादजायत भव इति यज

रवदात खरिति सामवदात तानि शकराणयय तपती

तथो sभितलशयखयो वणा अजायनरताकार उकारो

मकार इति' तानकधा समभरतदतदो३मिति'

तबादी मी मिति परगौलधो मिति व खगा लोकचो

मितयसौ यो जरसौ तपति स परजापतिरयात मतनशत'

त माहरातनायजत सचटचव हौच मकरोद जषा

धवरयरव"सालोईौथयदतत चयी विदयाव शकर तन

बरहमतव मकरोत स परजापतिरयई दवशय: समपराय

चलत दवा यच मतनवत त माहरनत तनायजनत'त

चटचव. हौच मकरवनयजषाधवरयव साबोईौरथयदव

तत चयी विदयाव शक"तन बरहमतव मकवत दवा

अबवनद परजापति' यदि नी यजञ कटहल आरति:

खादौदि यजटा यदि सामतो, यदयविजञाता सरव

वयापडी का परायविततिरिरति स परजापतिरबवौ

हवान 'यदि वो यजञ का आरतिरभवति' भरिति

गाईपव जहवारथ यदि यजटी भव इतथानौधौय.

ऽनवाहारयपचन वा हविरयचष'यदि सामतःखरि

याहवरनौय" यदयविजञाता सरववयापड भरभव:

॥ पशचिमपशचिका । ५ । ७ ॥ १e.9

•-s l->५

खरिति सरवा अनदरतयाहवनौय एव जहवाथ य

तानि हव वदाना मनतःशषणानि यदता वयाहत

यसरतदाथातमनातमान सनदधयादगरथा परवणा परव यथा

शषाणा चरमणरय वानयद। विशिषट सशषय दव मव

ताभिरयजञाख विलिषट' ४० सनदधाति सषा सरवपराय

चिकतिरयदता वयाहतयसतसमादषव यही परायशचिततिः

करततवया ॥ ७(३२)।॥

अथागनिहोतरमनतरपरसङगाद बदिखसय सरवपरायशचिततसमयादकसय

वयाहतिचयसय रचषटि' वल सपकरमत–‘परजापतिरकामयत पर

जायय भयानखा मिति; स तपी sतमयत; स तपसत धमा

झोकानसचजत,- पथिवी मनतरिचरत दिव ; तालोकानभयतपत ;

तभयोsभितसभयसतरीणि जयोतीथजायनतरारिनरव पधिवया अजायत,

वायरनतरिचादादितयी दिवसतानि जयोतीथभयतपत तभयोभित

सभयसतरयी वदा अजायनत,– ऋटगवद एवानरजायत, यजरवदी

वायो:, सामवद आदितयाात ; तानवदानभयतपत तभयोsभितसमय

खीणि शकराखजायनत,–भरिखव कटगवदादजायत, भव इति

यजरवदात, खरिति सामवदात’–इति । परा परजापतिरकी

भवा परजोतपादनन बहविधः सया मिति कामयिलवा तकषिदमारथ

‘तप:’ परयालोचनम ‘अकरीत' इद वसवीदश मिति पयालोचन

रप तपः छलवा, परयालोचितपरकारणीतयदयता मिति सडलया,

शर ‘विशिषट”क, ड, ट।

१८ -॥ ऐतरयबराहमणम ॥

वन सडखयन लीकचय मखजत | 'तान' लीकान पनरमयभित:

परयालोचितवान,-कि मटर लीकश सारभत समपादनीय मिति

परयालोचनम। तथा पयालीचितभयो लीकय: परजापतिसडखया

नसरणागिनवायदियरपाणि 'जयोतषि" अजायनत। ततरापि

सार परयालीच तरिभयो जयोतिभया वदतरय मखयादितवान 8॥

तभयव वदथी वयाइतिवयरपाणि 'यकराणि' जयोतीतरि पापाखय

तमीनिवारणसमथॉनि अजायनत ।

एव वयाहतिचयसयोतयकति मददा परणवखोतपतति माह–"तानि

शकराखभयतपत; तशयोभितसनयखयी वरषा अजायनताकार

उकारी मकार इति; तानकधा समभरकतदतदाशमिति, तरआदा

ना मिति पररणौलधी निति व खगो लाकओी मिलवरसौ या सौ

तपति"-इति । "तानि शकराणि' वयाहतितरयरपाणि उचीतोषि

सारातयादनाय परयालचितवान । "तभय:' परयथालचितय: परजा

पतिसडखयाडरणतरय मजायत । तख वय मकधा सयाजितवान ॥

तदकीभरत वरणकय मा मिलव समयकतरम । 'तरमाल' सरवसारवात

होता य; परयागमध अी मिति परणारव कराति [ सरव परयागसडर

हाथौ वीसा],साजय माकार: खरगपरासिहतलवात तदातमकः1 तथा

य: "अरसौ' आदिलचसतपति असावनयोङकारसवरप: , आदितयपरास

राजयोडरसाधनलवात । ओडरसय सरवफलहतलव कठा आमननति

-"एतडयवाच' चनालवा धा। यदिचछति तय तत"-इति ( उप०

१.२, १ई-) ॥

अथ परायशचितत' विधात सपयकत मपाखयान माह–"स परजा

पतिरयजञ मतनशत ; त माहरत , तनायजत ; सचटचव हौतर

क. सन२० स १.९३- दर० ॥

॥ पचमपतरिका ॥ ५ ॥ ७॥ १2

मकरड 3,यजषाधचरयव., साजोईोरथ भ,यदतत तरयी विदयाय

शकर,तन बरहमतव मकरात"-इति। परा परजापति: सवचछया यजञम

"अतनशत' विसतारितवान । कन परकारणति, साभिधौयत

'त'यजञसाधनसमहम आइतय तन साधनन याग छतवान ।

वदतरयगतरमनव: करमण हौतराधवरयवौहावाणि निषयादय, तत:‘चरय

विदयाव' वदवयरपाया विदयाया यदतत 'शकर' सारी वयाइति

कयादिरप,तन सारण बरहमतरव छतवान ॥

अथ बरहमयजञवहवतायजञ दरशयति-"स परजापतियई दवशय:

समायचत, त दवा यजञ मतनचत, त माहरनत, तनाजयनत, त

ऋचव ईौतर मकरवन, यजषा 5धवरयव, साजीददीरथ, यदवतत

वरय विदयाव शकर, तन बरहमतव मकरवन'-इति । परववाकयवद

वयाखथशयम ॥ '

अथ परवीकतराभया परायशचितत विधतता-"त दवा अबवन

परजापरति,-यदि नता यजञ ऋहत आतरति: सयादयादि यजटी यदि

सामता यदयविजञाता सरववयापडा,का परायशिकतिरिति ,स परजा

पतिरबवीहवान,-यदि व यजञ ऋहत आचरतरमवति, भरिति

गाईपयजहवाथ; यदि यजटी, भव इतयागनौधीय इनचाहारयप

चनवा हवियलय; यदि सामत:, खरितयाहवनीय 8;, यदय

* एलबरियममलकानवद माचलायनसचम—"तदवयकचन छानदोगय वाsधचरयव

वा हौचामरश: समाजवाता न तान कयादकतखलवाडौचसतर"-इति शरौ० प८.१३.३९॥

f "अधचरयपरतययन वयाखयान कामकालदशदचणाना दीचीपसपरसवसखीथानाना

नतावलव'इविषा मबरपाशतया इविषा चनपरवम"-इति आवe औ०८.१२.३४ ॥

"इनदीगपरतयरय तीमा: खीवियः पषठ' सखति"-इति आवe चौ०८.१३.३६ ॥ -

9 बानदीयsयव मव दरषटवयम ( उप०४.१७.३.)।

२०० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

विजञाता, सरववयापडा भलवः खरिति सरवा अनदयाइवनीय एव

जडवाथति"-इति॥ त दवा: परजापरति परलव मठचन,–“न'

असदीय यातरी यदि कदाचित 'कली:' ऋइचात‘आकति'

नाणा भवत, तथा यजरमनतरिाताममानवाडा कदाचिदकति: यात,

एता: सरवा आतरतया समाभिरविजञाता:; यदि कदाचिदविजञाता

काचिदारतिरभवत, यदि वा सरवथा यडदतरयमनतरनिमितता आ

भिरजञाता च सरवायातरतिरभवत, इदानो परायबिकतिरवजञवति दव

परशनः ॥ चटखननवकखध गाईपल भरिति हाम:,यजरमनववकखयो

सतयागौधौय धिणिय भव इति हामः। साजयो सामयाम दषटवय:

इवियाग आलौधीयाभावात॥ अमबाघय मनिहच दरशपरण

मासा वायवरणचातरमासवानि दाचायणयजञ:, कौणडपायिनामपयारन

सौतरामणौी वा सपतमौी; त एत इविरयजञा: 8॥ तषवामीधीया

भावात"अनचाहारयपचन'दचिणाली 'जडवाथ'ह यरय जहत।

सामगव खरिलयाइवरनौय हाम: । यदयविजञाता चष:, यदि

वा वदचयचषससबय, तवभयनतरापि भवः खरिलताखिलश

वयाडरतौः सरवा:'अतदतव' उखारय आहवनीयएवजहत भा ॥

अननारथवादन परायशचिततविधि मखीय वयाइतिपरशसापरवक

रत विधि मपसडरति-"एतानि हव वदाना मनतःकषषणानि

यदता वयापइतयसतदाथाननानारन सनदधयादयथा परवणा परव यथा

3 "अगराधय मगरिहोरच दरशपरणमासा वायरष चातरमाखानि निरदधपशबनध: सौचा

मणौति सपत इविवजञासखया:"-इति गौत० घ० स० पर. १e I

3 "एता दरशपरणमासयीरदचणा मकरपयन यदचाहारयम'-इति शत० बरा० १९-२५।

'अनवाइरति यजञसबबनधि दोषजारतपरिहरयननति अनचाहाया नाम कविगथी दयघीदन'

-इतिच तच साeभा० ॥*अनचाइारय दचिणायावघियति"-इति कातयाeचौ०९.५-२o I

3."भवी सवरिति सरवपरायधिशानि"-इति त. आeथ४६०१सभा ।

I पचमपतरिका1 ५.1 Se॥ ३०१."

लषणा चरमणव वानयडा विशिषट सलषयदव मवताभियजञसय

विशिषट सनदधाति;सषा सरवपरायधिकरयिदता वयाइतयसतरमादवव

यल परावविततिः करतवय"-इति। या एता घाइतयः सति,

"एतानि वह व' चौरखव वयाइतिरपाणि, वदाना सबबनधीनि

'अतःशषणानि' अनतरबनधनसाधनाचिी। तब इटाती Sभिधीय दत

—वथा लीक ‘आदमनातमान सनदधयात' आकरमशबद: खरपमातर

वाचिलवात सरवदरवयपर; एकन दरयण दरवयानतरर सनधीयत 4 एतख

चनदागरविसधट माशचातम-"तदयथा लवणन सवरण सनदधयात,

सवरणन रजत,रजतन वय, चपणा सौरस, सीसन लाई,लाहन

दार, दारणा चरम"-इति (छा० उप० ४.१७.७.)। चारादिना

सवरयादौबा सनधारन सवरणकारादिब. परसिदधम । तदतदभिपरलिया

बनाआन सनदधयादियझाम a। यथा ‘च इसतपादादिवकशव

धरवरा परवॉनतरर सशिषटम, यथा च चलषणा धातवनतर सशिषटम,

चरमणा 'चमख'पादनाणादिकम, "अनयइा'शकटादिप किचचि

विशिषट मइम, चरम अपि रजचा सशषयत; अननव परकारण

"एताभि:" वयावदधतिभिवजञसय विशिषट मड' सकषिपट" भवति ॥

या एता वयाइतय:, सषा सरवसव वकलिचसय परायशचिति: ; तसराद

वाल वकबयपरिहारारथ मबव परायशचिकतिः कतरतववा ॥ e॥

इतति चौबतायणाचारयविरचित माधवीव वदारथपरकाश

रवरयबराहमणसय पचमषचिवाया पचमाधाय

(पइविशाधयाय) सम: खणड:॥ e(३२) I

-ब-"

a "सधा वास: बनदधदियात"-इत ि२ आe bई ' td* 1 .

२०९." ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

I अधथ घटिस: खणड: ॥

बतदाहरमहावदाई: यडचव हौरच करियत यजषा

sधवरयरव साबोइौरथ" वयारबधा चौी विदया भवलथ

कन बरहमातव कियत इरति वयया विदययति बयारदरय व

यजो योजय पवत तख वाकच मनव वरतनौवाचा

च हि मनसा च यजी वरतत'इरय व वागदी मन

सतइचा चयया विदयबक पचा ससकरवनति' मनसव

बरहमा ससकरोति त हक बराहमाण उपाकत आतरन

वाक तोमभागान जषितवा भाषमाणा उपासत'

बतईतदवाच बराहमण उपाझत परातर नवाक बराहमाण

भाषमारण दषटरा परी मखयजञखानतरगरिति'तदय

वकपालयरषो" यवकतवको वा रथो वरतमानी

वष नयरीयव मव स यतो वष नयति यजञख चष

मन यजमानो वष नयति" तखाद, बरहमोपाकत

परातर नवाक" वारचयम: खादीपाशखनतयामयोहामा

टपाकतष पवमानषचोडचोsथ यानि सतोचाणिसश

खाखा दतषा वषटकाराइचयम एव खात तदयथो

भयतःपायरषो यह भयतघको वा रथी'वरतमानी

न रियदयव मव स यततो न रिषयति' यजञखारिषटि

मन यजमानो न रियति॥ ८(३३)॥

॥ पखमपबिका | ५1 व ॥ १९०इट

वया इतिहमपरसडन बरझाबदिखः; तय तबकवात a।

तथाचाखलायन आह-"जहीति-जपतौति परायशचितत बराहमाणम"

-इति( धौ० १.१.१६)। अत: परशनोततराभया बरहमलरव निरणत सप

करमत-"तदाहरमहावदा३: यइचव हौव करियत,यजषा 5धवरयव,

साजोईौरथ, वयारबधा तरयी विदया भवलयथकन बराझलरव करियात इति,

चयया विदयायति बयात"-इति। 'तत' ततर परायशचितत परसईन

"महावदा:" बरहमवादिनः"आह:' चोदयनति । माइत परौढ वद

वदनतीति महावदाः। शातिरतषा परशसाधौ । "यद यखात

कारणाइगयजखामति हौतराधवरयवौहातराणा "तरयो' वदचयरपा

विदया "वयारबधा' विविच हगवादिभि: खोकता भवति ॥ अथरव

वदव नातर मिनवयित शकधत; आहवनीयादिकरतवयसथ ततर

भावात । अथ तसआत कारणात कन साधनन बराझलरव करियत ?

इति चोदाम । तरय 'चया'वदचयरपया विदयया। बरहमालव करतवय

मियकतर परतिबयात। अत एव समपरदायविदः

"अथरववतरवान बरहमा वदवचष भागवान ।

तखाद बरहमारण धरमिषठ मिति म झारखक घतम"-इति॥

बराहमणा मनसा वकखधराहितघानसनधारन विधतता-"अरयव

यबोयी जय पवत, तसय वाकच मनव वरतनचौ; वाचा च ददि

मनसा च यातरी वरतत, इय व वागदी मनसतढाचा कया

विदयवक परच ससकरवनति, मनसव बरहमा सखकरीति"-इति। यः

"अरय" वायः "पवत" अनतरिच सबरीति, आय मव यजञखरपो वाय

सइशीयजञ: ;यथा वायो:सखारमागौ,तथा 'तसय' यजञसय वाक

क. वयाइतिहीमकलवादिति यावत ।

*झझिषठ चिति"घ ॥

९०४ ॥ ऐतरयबराहमणम।r

च मनच 'वरतनचौ' परदयकतिभारगो । यसबाट 'वाचा" मनवरपया

'मनसा'च परयोगानसनधावा यातरी वरतत, तसरादरभो मागी.तब

बाग 'हरब व" भमिखरपव, मनत"अद'खरगरपम;‘तत'तथा

खति बायपया नया विदयया डोचादयी रथखानीयखयशवक

'पद' भारग ‘ससकरवति' समयक समपादयनित 1 बराझा अनलव

'सखकरीति' समयक समयादयति ; अनरव भाग निति शष:। होवा

दिभिवाचानडीयमानषवलब वकलियराहितरय बराझा अनसनदधयादि

वयरथः॥ छनदोगावत मरथ मानननति-"एष एव यजञसतसय मनयन

वाक च वरतनी ; तयौरनघतरा मनसा सखकरोति बरहमा ; वाच

होताधवय रदवतानयतराम"-इति (इनदौ० उप०४.९६.अ.) i

अथ बरहमाणी मौरन विधात' वागवावहर बारध दरशयति-"त

हक बराहमाण उपाझत परातर नवाक सतीमभागान जपिलवा भाष

माणा उपासत तो हतदवाच बराहमण उपाझत आतरनवाक बराहमाणो

भाषमाण दा शव मसय यशसवानतरणरिति; तादयवकपापरषी

यवकातचकरी वा रथी वरतमानी वरष चचव मव स यातरी बरष

बति,-यजञखय सचष मन यजमानी बरष चति"-इति। कबचि

दशगरयोगश वरतमानाः ‘त' वदचयाभिजञवन परसिदधाः "एक

बरहमाण' कचिदध बरहमसकका चलतविजो होना पठित य परातरत

वाक वणा "उपाझत' अनजञात सति, ततऊरष" "एशिवरातरि

चयाय लव"-इतयादिॉरतीमभागसबजञकामनतरान (ता० बरा० ९.

०.९.)जपिलवा "ि मौन मछतवा ‘आषमाणाः' वानवयवहार करवनत:

ई. "स यचीपाकत परातर नवाक परा परिधानौयाया बरछा वयववदति, अनयतरा मव

बनिो ससकरीति, हौयत उनघतरा"-इतयादिसतरखणडशष: समय एवतदरथक: ।

बगमभागमनवाख ब.०स० ४.४.१.९, आवाताः "वदयावासिधी झा कारय, मक

॥ पखमपतरिका । ५। प | २०५

"उपासत'समीप तिषठति । तदानो कोविचाराभिवी बराहमण

आगलय कसिधिदयजञ परातरनवाकोपाकरणादल 'भाषमाण'

वागबयवहार करवनरत बरहमारण दढा वाकय मतदवाच -"अरययजञसथाई

- मनतरग"-इति , चटलविगधजमाना एक यवभाग मनतरिरत छात

वनत इति। तथा सति यथालोक कबधिदकपालपरषी दितीरय

पाई सदचिरत छलवा परसारितनकनव पादन ‘यन' माग गचछन

चष' भमौो पतन "चति' नितरा मति; यथा वा कबिदरव

एकचकरी भमीपरवरतमानी वरषपरीति;एवमव मौनरहितन

बराहमाणा यवा: स यतरी वरष नधति; तब यजञधषम "अन' पखाद

यजमानो चष' नधति 8 I

इसरथ वागवयवहार बाध मकला मौरन विधतता-"तसाद बरहमो

पाझत परातर नवाक वरचयमः खादीपाशखनतरयामयीईॉमादपा

छतषपवमानवोइची "ि जथ यानि सतोतराणि सशखाखा तषा

वषटकाराइचयम एव सथात ; तबथीभयतःपात परषी यवभय

तचकरीवा रथी वरतमानी न रिधलव मव स यजली न रिषथति,—

यजञसयारिषटि मन यजमानी न रियति"-इति । यसमाझाषण

बाधीशसति,"तखाद' बरहमा परातरनवाकोपाकरणादई''वरचयम'

मौनी सयात। कियानरत कालमिति, तदचत-उपाशखनतरयामयी'

गरहयः "आ। हमादध' डोमसमापतिपरयनतम; तथा पवमान

जायतg रशिमरसि चयाय लवा चारय जिनचतयाह"-इतयादिभिवयौखाता: त० रस० ३.५-२.९ 1

पन: पखन जसट रशियारसिमनवय."रशिरियवादितय मसजत"-इतयादिवसटिपरतया

वयाखयानखाखातम (५.३.ई.१.)॥ वा० स० १५.ई. दर० I .

"इनदरी इ०-• बराझा वरचवली बभवत"-इति घड० बरा० १५दर० । १९-प, 6 दव• 1

आ-उल-च:= शरीदषचः॥ . .

२०ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

खतीवय : विशवपयधवरयणा ‘उपाझतय' अनजञातष सय'ओइच:"

उततमा समासिकालौना यय खगसति, ततसमापतिपरयनतम, वारच

यम: सयादितयनवरतत । "अथ' आननतर यानधनयानि आजथादि

सतौचाणि शासतर सहितानि सनति, तषाम "आ वषटकाराद"वष

डितिमनतरोचचारणपरयनतरम ; ततततरतोच परारमभाद' तदा तादा

वारचयम एव सयात ॥ तथा सति ‘यथीभयत:पात'पादयापत:

परष: "यन' माग गचछन ‘न रिथति'न विनशयति ; तथा च

"उभयनतचकर :'चकरइयापती रथी माग परवरतनमानी न विनशचति :

एव मव मौनिना बराहमण यवतःस यजली न विनशयति। यजञसय

'अरिरटि' विनाशाभाव मन यजमानTपि "न रिचति" न विन

शयति ॥ पट ॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीध वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय पखमपतरिकाया पचचमाधयाय

(पखविशाधयाय) अषटम:खणडः॥ प (३३)॥

_"

॥ घाथ नवस: खणड: ॥

तदाहरयदयाहान - म sगराहौदआचारीनम आह

तौम Sहौरषौदिलाधवरयवदचिणा नौयनरत उदगासौनम

. क वहिपवमानम, माधयनदिनपवनानम, आरमवपवमान मिति चौषि पवमानतीवाधि।

"गडाल"घ॥

॥ परचमपतरिका 1 ५,1 c.. I २०3

इतयढाच जववीचनम शसौनम ऽयाचौन म इति

होच"कि खिदव चष'बरहमण दचिणा नौयत'

ऽकतवाहोखिदव हरता इति"यजञसय हष भिषग,

यद बरहमी यजञापव तलषज छतवा इरथीय

यिनव बराहमणा छनदसा रसनातरविजरथ करोति यद

बरहमा तरनाद बरहमाईभागघवा एरष इतरषा मविजञा

मय आस यदबहमाई मव बराहमण आसाई मित

रषा मविज तखादयदि यजञ चल आतरति:- खाद’

यदियजटी यदि सामतो' यदयविजञाता सरवबया

पडा बराहमण एव निवदयनत' तखादयादि यजञ चल

आरतिरभवति'भरिति बरहमा गाईपय जहयाददि

यजटी भव इतयागनौधौय ऽनवाहारयपचन वा हवि

रयकष यदिसामतः खरियाहवरनौय" यदयविजञाता

सरववयापडा भवः खरिति सरवा अनदवरयहवनौय

एव जहयाल परसतोतोपाकत खोचआह बरहमनतती

शयामः परशाखरितिस भरति बरहमा मातससवन

बरयदिनदरवनत -- सतधव मिति भवइति माधयनदिन

सवन बरयदि दरवनत सतधव मिति'खरिति ढरतौय

सवन बयादिनदरवनत सतशव मिरति भरभवः खरियकथद

वाsतिराच व बयादिनदरवनत सतधव मिरति स

• "आति"ख,ग,घ। १ "इनदरवत:"का। एवमिहीलरचापि

९०८ " ॥ ऐतरयबराहमणम॥

यदाहनदरवनत सतधव मिचनदरी व यह इनदरी यजख

दवता, सनदर मव तदईौरथ करोतिौनदरानमा गादिनदर

वनत सधव मितववनातदाह तदाह ॥६(३४)॥

॥इटौतरय बराहमण पखमपतरिकाया पचमोऽधयायः॥g॥

अथ बराहमणः कावित करतवयविशषाचिधात चोदय मदधाव

यति-"तदाडरयट यहाव याहौलपराचारीच आहतीम लहौरषी

दियधवरयव दचिया नीयत उदगासीन इतयहाव चवीचन म

शॉसीबी याचीन म इति हव, किॉखिदवचकब बराहमण दचितरणा

नीयत कतवाईखिदव इरता इति"-इति।"तत' तखिन बरहमणि

चोदय माडः। कि चोदय मिति, तदचत-यजमाननाधवरयव यदा

दचिणा "नौयनत'परदौयनत, तदानी यजमानसयाय मभिपराय:–

असावधव:'म' मदथ 'गरहान ऐनदरवायवादौनगरहीत, तथा ‘म'

मदय 'पराचारीत' गरहपरचार छातवान, तथा ‘म' मदरथ माहरतौ:

"अहीरषीत' बतवानिति॥ यदोददाव दचिणा नीयनत, तदानौी मय

मभिपरायः- अरसौ उझाता "म' मदरथम "उदगासौत' औौहारव

इतवानिति 1 यदा ईातरी दचितरण नौयनत, तदानौी मय मभि

पराय:- अरय हाता "म' मदरथम ‘अनचवोचत' परोनवाकयादौना

मनवचन छतवान, तथा 'म' मदरथम "अशॉरसील' शॉसन छतवान,

तथा ‘म' मदरथम "अयाचौद' याजया पठितवानिति। एव तन

तन छत कारय यवायरआददचिणा ददाति, तसरादध बरहमणशप

ततकरव कारय सवा दचिणा दातवया। तथा सति"किखिदव'

कि नाम काय' 'चाइव"हातवत बराहमण यजमानन दकषिणा

in पखमपतरिका I s, i e.॥ ३०e

जीयनत, 'आईखिदकवव' अथवा कि मपि कारय माइकवव

"हरत' बरहमा दचिणा इरल : एतवायजञ मिति चौदयम ॥

तसवोततर माइ-"यजञसय हष भिषगयदबरझा; यजञावब

तईषरज छतवा इरति"-इति ॥ बी बरहमासति, एष यजञख "भिशकट'

चिकितसक: । "तत' तसराबल कारणाद "यजञाधव मषज छलव'

बजञसवाइवकखरोच शमविलवा, दचितरण इरवि तखाबोचादिव

दपकारिवादरय दचिणाया।यागय एव ॥

पचानतररपण बराहमण दचिणाधिकव दरशवति-"अरथी यद

ययिलनव बराहमणाछनदसॉ रसबालविजय करोतियद बरहमा; तसराद

बरझाईभागघ वा एष इतरषा मलविजा मयआसयद बरहमाई मव

बराहमण आसाई मितरषा खतविजाम"-इति । अपि या बरहमारित,

"भयिलनव'आतिबाहलनव "इनदसा रसन'वदसारभतन वाइति

परणवरपण 'बराहमणा' मालरीव "यद' यसात कारणादारविजरच

करोति, तरआत कारणदपकारबाहलधादरव बरति विशिषटन

जवाचा वयवडरियत इति शषः। किच या बरहमासति, एष: "अगर'

अथम मवतरषा मलविजाम "आईभागघव" आईपयॉग भजलव;

वदवव यरवान परयागी वितारित, स सरवॉयौतचटविभि

रवाचालडीयत, बरहमणा त मनसलतावनवविशष, परतयगलभयब

खमानव एव j आय मवाधाई मवलयादिना खटौकरियत । बराहमणो

यजञखाई मव मनसानदीयमानम, "इतरषा मतविज'हवादौन

चाचातषटीयमान मलम; तसमादपकारबाहख सिह परववत ॥

या इतिपरायशचितत सलो तक ब बरझषी विधतत-“तबाद

यदि यजञ चत आति: खादयदि यजटी यदि सामती यदय

विजञाता सरववयापद, बराहमण एव निवदयत; तसरावदि यजञ चल

ब0

२१० ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

आरतिरभवति, भरिति बरहमा गाईपलय जहयाद; यदि यजटी भव

इतयागनीधीय sनचाहारयपचन वा हविरय शष ; यदि सामतः, खरि

तधाहवनीय ; यदयविजञाता सरववयापहा भरभव: खरिति सरवा अन

दरलयाहवनौय एव जहयात’-इति । यसमाद बरहमा यजञभार मरथ

वहति, भिषजञन यजञवकखय' परिहतच शकरीति, तसमादययगा

दिमय: किचित वकखय’ भवत, तदानी मितर सरवत तसल बराहमण

एव ताईकखय’ निवदयनत ;‘तसमाद’ इतररनिवदितलवात सबरहमा

परवीतपरकारण तततत परायशचितत' जहयात ॥

बरहमण: करतवयानतर दरशयति–“स परसतोतीपाछत सतोतर

आह बरहमनतसतोषथाम: परशासतरिति, स भरिति बरहमा परात

सझवन बरयादिनदरवनत खधव मिति; भव इति माधयनदिन सवन

बयादिनदरवनत सतधव मिति; ख रिति ढतौयसवन बरयादिनदर

वनत सतधव मिति; भरभवः खरियकयय वा sतिराव वा बरयादिनदर

वनत सतधव मिति’—इति । अधवरयणा सतोतर ‘उपाछत’ परारबध

मनजञात सति ‘परसतोता’ सतोतरसाधन सालितर परथमसया परसताव

भागसय माता परसतीढटनामक ऋटलविक, बरहमारण परतयनजञा मनन

मनतरण परारथयत । ‘बरहमन’–इतयादिरमनतर:। ह ‘परशासतः’ असमाक

परशातनसय आजञापनसय कतत:! ह बरहमन! लवदनजञया वय

सतीथाम इति। ततसतन परारथिती बरहमा ‘भ’—इलता परथमा

वयाहति सजञा, ह उहातारः! ‘इनदरवनतः’ इनदरविषयसततिपराः

सनतः ‘सतधव’ सतोतर करतति बरयाद। एव मितरतरापि योजयम॥

बरहमणा परयजञासयानजञानमनतरासयाभिपराय दरशयति-“स यदाह

नदरवनत सतधव मिलचनदरी व यजञ, इनदरी यजञसय दवता, सनदर मव तद

हीरथ करोतीनटरानझा गादिनदरवनत सतधव मिरयवनासतदाह तदाह’

॥ पचरमपतरिका 1 ५.1 e. ॥ २.११

-इति ॥ 'सी' बरहमा "इनदरवनत सतधव मिति'यइाकय माह, तरया

भिपराय उचत-'यजञ'सीमयाग: 'ऐनदरी व" इनटरसबबई एव,

इनदरी हि तसय यजञसय दवता ; अत:"तदददीरथ' सामग: करिय

माण महान 'सनदरम' इनदरसहित मव करोति; ऐनदर मईौतम,

इनदरत ‘मा गात'मापगचत। तरात ड उहातारः1 ययम

'इनदरवनतः' इनदर विषयता परयवचनतः, एव भलवा सतधवम॥ "इति'

अननव परकारण 'एनान' उदगातन बरहमा ‘तद' वाकय माह ॥

अभयारसीऽधयायपरिसमापसयरथ: 8 ॥ c.॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीय वदारयपरकाश

ऐतरयबराहमण सय पचमपतरिकाया परमाधाव

(पखविशाधयाय) नवम: खणड: ॥ ८.(३४)॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

पमरथधितरी दयाद विदयातीरथ महशखरः॥

इति शरीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

सौवीरवकलभपालसाचाजयधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवततायणाचायण विरचित माधवौय 'वदारथपरकाश'नामभाथ

ऐतरयबराहमणख पचमपतरिकाया: पचमाधयाय: ॥

a अखिननधयाय नव खणडा: सनति; तवादी य षटस अधिगरहीच मामातम, तत उततर

बलविदयनाथॉपरदशपरकरण मारबध सिति सपतमाषटमथी: खणडयी: बरहमारविकशयापदशा उता:

आवासतदादीना कारयाणयपि परताइचयनित ॥ आशचलायरनौयचितौयाधयायसथ परथमकडिकाया

मगराधान सझा दवितीयादिश चतरवपत महिीबाग. झकॉयोपदशखा,"अथ बरायः

-'

(११९.१.)"-इतयादवपकरयत: परखादवीत इतिशम॥

२१९ 1 ऐतरयबराहमणम r

विशवव पतर (9)। गौरव दश)। यडा एति च

परति च चटवारि॥ यई समानोदरकि षटर ॥

उडराहवरनौरय नव ॥ g.8 ॥

विशव व दवा, दवासरा व,सच बव जगम,

खादयनन खलवा चटवारि॥ ५." ॥

I इतति परमपबयिबा समीकषा 1

- क. १७aRe Ga २३, १२ प०(१५-१०-8-ई-९-=३४ख०)॥

f १,६३.१९९, १९ घ०(१०-११-१०-१-९४ ख०)९आ०६६०fइ०I

॥ ऐतरयबराहमणम |

| अथ षषठपिवा I

( तनच )

I परथमाधायखय अथ:: खरणड: p

aPPPSo-a

॥3॥ दवा हव सरवोचरी सरच निषदशतह

पाणमान नापजघिर तानहीवाचारबद: कादरवय, सरप

चटषिरमनदकाव वो होचा ऽकता ता वी शईकर

वारथपाणमान मपहनिषयधव इरति त ह तथय

चसतषा वह सय स मधयनदिन"मधयनदिन एवीपीदा

सरपद'गराखी Sभिटौति तखान मधयनदिन मधय

नदिन एव गरावणोsभियवनति तदनकररति स ड रम

यनोपीदासरपतडायतहॉबदोदासरयगी नाम परप

दशिरत तान वह राजा मदयाञचकारत होचराशी

विरषो व नी राजान मवचत 'हनताखोवणौषणाचा

वपिनझामति तथति' तख होणीपरणाचयावपि

नयरवचाटशौष मव परय यावणो Sभियवनति'

तदनकरति तान ह राजा मदया। मवचकारत होच:'

बन व नी मवण गरावणी sभिटौति'हनताखानया

२१४ ॥ ऐतरयबराहमण म ॥

भिकरटगभिमन मा पणचामरति तथरति तख हानया

भिटगभिरमन मापपचसती हना न मदयाञचकार'

कतददखानयाभिकीरिभरमन मापजबनरति शानया एव'

त हपापमान मप जघिर' तषा मनवपइति सपा

पापयान मप जघिर' त एत ऽपहतपाणमानी"हितवा

परवी जीरण वचनववव परयतरयप पापान 'हतय

एववद॥ १॥

॥ थीगणशाय नम: ॥

अथागनिहोतरी पयसः परशसा तईोहनापततिविनिषकतिखा।

तसय परशसायदितच होमी बरहमरविजी वयाइतयोपयधौताः॥१u

बरहमण: कतरतवयविधानन गरावलदबडिय: तयागनिषटोम

कतरतवरष 8 विधात मपाखयान माह-"दवा वहव सरवोचरी सरच

निषदशत वह पाषान नापजघिर; तानहीवाचारबद: कादरवयः सरप

ऋषिरमनवचछ दका व वो हातरा 5झता, ता वो जई करवाखथ

पापमान मप इनिथशव इति; त इ तथयचलषा इसस

मधयनदिन मधयनदिन एवीपीदासरपद आवणी भिटौति"-इति।

मरा कदाचिददवाः "सरवोचर नामक दश विशब - 'सच'किचि

दनषठितवनत: । ‘त"दवारतन सतरण रखकोरय 'पापमान" दारिदर

हत’ ‘नापजघिर' न नाशितवनतः॥ "तान'पापचयरहितान

दवान ‘आईद' तबामकःकविइषिरागलयोवाच।कीडगोईद: ?

क, "एतखिन काल यावसतत परपदयत"-इतयादिआव० चौ०५.१९ख" दर: I "

. . साझा बरा० २,१-दरवयम । -

॥ षषठपतरिका1 १ 1 १ ॥ २१५

'काइदरवय' कदनामधारिणया: सतरियाः पतर: 9,"सरप'सरपजातीय

दहधारी,'ऋषि', अतौनदरियारथदरषटा "मनतरत' [ करोतिधात

सवतर दरशनारथ] मनसय"पत वदनत पर वय वदाम"-इतयादि

खासय(स० १०.०७.१.) दरषटा ॥ तनाई दन कि सत मिति,

बतदचत-हदवा: । "एकाव वो होतरा' एकव हीढवदतयनना

करिया 'व'यषाकाम 'अदयता' नामचिता, तहकबधन पापचया

नारसौत.। "ता' करिया 'व' यषशदरथ मई करवाणि, अननतर

पापमान यय मपहनिथव। "इति' एतदषिवाकरव दवाः अडीचक।

ततः'स' अरबद: "तषा' दवाना सव परतिदिन मधयनदिनसमय

एव"उप'समौपम उतसकः सबागचत ॥ आगलयच य सीमा

भिटवाथौ: 'गरावाण" पाषाणा: " सनति, तान परवॉलन सलन

"अभिटौति' अभित: सतरति छतवान ॥

इदानो आवखत ऋबिजः भ, तलन यावणा मभिनटरव

विधतत-"तमान मधयनदिन मधयनदिन एव गरावणो अभियववि

तदनऋति"-इति। यरआददनाभिषटरतिःछाता, तरमालसोमपरय

गश सवय तकत नमधवनदि न काल एव "मत वदनत"-इतिसलन

यावणा मभिटव मविजःकय। ‘तदनकति-इति करियाविश

षणम।'तय'अरबदसय"अनचति'अनरप यथा भवति तथलयरथ: ।

क "अद: कादरवयी राजयाह तख सपाविश"-इति शत० बरा० १३,४, ३.९ ।

"अरबद:कादरवयसतख सपा विशः०-०विषविदया निगदत"-इतिचाव० चौ० १०.७.५1

f निरs ९.९,प, e. दरषटवयम,॥

t."तसयविज:। चलवारसिबपरषा: ॥ तसय तसवीतर वय: ॥ डीता मचावरणी Sचछावाकी

गरावसतदव, परतिपखाता न टोलता बरझा बराझणाचखापौधःपीतीझता परसतोता परतिहतरता

सबरहमणय इति ॥ एत जहीनकाईयाजथति॥ एत एवाहितागरथ इषटपरथमयजञा गटइपति

सपतदशा:"-इति आशव० शरौ० ४.१- ३-प ।

२१ई ॥ ऐतरयबराहमणयम ॥

अरबदसय इततानरत लोकपरिसिदमा दढयति-"स 'ह सम यनपी

दासरपततडायतई ददासरपणी नाम परपदसति"-इति।‘स ह'स

त अरबदाखयः सरपदही महरषि, यन मागशय ‘उपीदासरपत' तत

समौरय परति विलादइमयागचत, "तड' तखिलवव दव "एतईि'

इदानी मपि "अरबदीदासरपणी'-इतनन नामधयन यवा ‘परपत'

मागौसित ॥ परपदयति गमयत अनवति परपत ॥

अथाभिषटवकाल अथावसतत उषणीषण नचवटरन विधचत

"तान वह राजा मदयालबकार; त होचराशीविषी व नी राजान

मवचत, हननासयीणोषणादयावपिनाहमामति ; तथति ; तख

होणोषणादयावपिनझसतसादरणीष मव परयसथ गरावणी ऽभिषटर

वति तदनऋति"-इति। गरावणा मभिषवारथ मदाखय सरपगरप

महषासमागत सति तबदीयविषइटावलोकितः सोमी "राजा"

वखातमक:,खय मपि विषयवत: सल, ‘तान'समीपवरतिनी दवान

"मदयाचकार' उततान परवशानछतवान ॥ तादानी 'त' दवाः

परखर मिद मल,-‘आरशीविषा' सरपरपीय मदी "ना"

असारक राजारन विषदषटया अवचत "हनत' कषट मतासमयकतरम;

आतसततपरिहाराय कनचित 'उषणीषण' शिरीवटनसाधननाख

वखणासयाईदसय 'अदयावपिनाहमाम'चकषीरबनधरन करवाम इति

विचारय दिनः परदचितरण तसय सख मणौषण वटयिलवा तदीय

चनदषीरबनधरन छतवनत: 8॥ यसमाहशवररव छातम, तसमाइलिव

जीपि उषणीष मव "परयस' परितो मख वटयिलवा 'गरावण'

क, "अथवा अब शीरष परयचति। तदवलिना परतियच, चिः परदचरण शिरः

समख वटधितव, यदा सीमाशनभिषवाय वयपीइतयथ गरावणीभिटयात'-इति आवe

बी-१५-१९-६,७। श- ९ भा• १८ पर. 1 दरषटयमन ।

I धषठापचिका । १ । १॥ २१७

सीमाभिषवाथॉन पाषाणानभियवति। 'तय'अरबदसय 'अत

छति' सादशड यथा भवति तथलवननाभिपरायण वटनम in .

अथ थावसततः परवोततसतरादनया अययची विधतत-"तानह

रजा मदया। मवचकार;त होच:-खनव नी मवण थावो

sभिटौति, हनतासयानधाभिकटगभिमनतर मय परणचामति ; तथति :

तसय हानयाभिकरटगभिमनतर मापषयचसतती ईना न मदयाचकार:

तबधदसयानधाभिकटगभिमनतर मायचनतिशानबा एव'-इति। पन

रपि सीमी 'राजा''तान'दवान परववत 'मदयालबकोव' ; ततः

तदवःपरसर मच,-दषटिविषयपरिहारपयप सपदह ऋषि,

रखकीयनव सलरपण मवण गरावणी भिटौति ॥ आती मनन

समबनधन विषणासाक मआदा जायत,"इनत' कषट मतत । अती

मनतरगतविषपरिहाराय 'असतर' आईदसय 'मनव" सतम ‘अनधाभि'

*आयायख समतत"-इतयादिभिकटविभ: अs"आषणचाम'["यची

समयक"-इति (रधा० २५.) धात:] सरवतः समयॉ करवाम ॥

तदतत सरव दवा अडडरीकलच तथव चः।"ततः'चटगनतरसमयकॉट

ततसलगतयव सति 'एतान दवान सीमा राजा 'न मद

यातकार'' उनमाद नाकरतत । तरआत कारणाददसय ‘मनतर'

सचम "अनधाभि" "आयायख"-इतयादिभि:(स० १०१.१६

२.) अभिठवकाल समयल इय:तब शायरथ मव भवति 1

दवाना मभिटवकता पापशानरति दरशयति-"त ह पापमान

मष जघिर, तषा मनवपइरति सरपः पापमान मप जघिर, त एत

पडतपापानी डिलवा परवी जीण खरच नवयव परयनति"-इति।

'त" दवा: आईदानषठितनाभिटवन दारिदरयादिलततम 'पापमान'

क सचालनलाभ-होत बची 301."

३१६- ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥ -

नाशितवनत:। * ‘तषा' दवानाम। ‘अपहरति' पापविनाशम ‘अन'

पवाद अबदसमबनधिनः सपरग: सवsपि खकीरय पाभारन नाशित

वनतः । त सपरणा: खशरीरगता परवसिहा जौरणा सवरच। हिलवा

‘नवयव' नतनयव लचा बजञाः ‘परयनति' सरवतः परसरषनित । ‘एत'

नतनतवगयताः सरवा अपहतपामान इतयचयनत ॥ वदन पररशसति

‘अफ पाघमान 'हत य एव वद’-चति ॥ १ ॥

इति धीमलसायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकारी

ऐितरयबराहमाणसय घषठपचिकाया परथमाधयाय

(षडविशाधयाय) परथमः खणडः॥१॥

---------------------------------------------------------------------

॥ अथ चितीयः खख, iी

तदाहः कियतौभिरभिषटयादिति शतनतयाह!

शतायरव परष: शतवीरय: शतनदरिरय आयषयवन

तहौरय इनदरिय दधाति' चयरिखशलया वलयाहखय

खिशतो व स दवाना' पापानी sपाहखयसविशव

तखतर दवा इलपरिमिताभिरभिषटयारदपरिमिखी व

परजापति: परजापतवरग एषा होचा' यद गरावसती

तरीया तखा सरव कामा अवरधयानत'स यदपरि

मिताभिरभिटौति सरवषा कामाना मवर हग'सरवान

कामानवरनध य एव वरद तखादपरिमिताभि

रवाभिषटयारतदाहः कथ मभिषटयादिलचरशाश:

॥ पराषठपचिका । १। २ ॥ *११e.

चतरचरशा३: पचछा३: अईशरवशाई: कटकशा३: इति'

तढदय डकशो न तदवकलपत'sथ यत पचछो नो एव

तदवकलपत Sथ यदचरशचतरचरशो वि तथा ।

छनदासि लयरन'बहनि तथाचराणि हौयरनदरईरचश

एवाभिषटयारवपरतिषठाया एव हिपर तिछी व परषारच

तषयादा:पशवो'यजमान मव तद डिपरतिषठ' चत

अयातस पशष परतिषठापयति' तखादईरचश एवाभि

षटथारतदाहरयनमाधयनदिन मधयनदिन एव' गरावणो

sभिटौति'कथ मखतरयोः सवनयोरभिषटत भव

तौति ''यदव गायचौभिरभिटौति' गायरच व परात

ससवनी तन परातससवन'sथ यजजगतौभिरभिटौति'

जागत व ढटतौयसवन तन ढटतौयसवरनएव म हारखा

मधयनदिन मधयनदिन एव' गरादणो sभिषटवत:'

सरवष सवनषवभिषटरत भवति य एव वद तदाहरय

दधवरयरवानयानचतविजः समगरषयलथ कचादष एता'

मसमपरषितः परतिपढात इति'मनो व गरावसती

चीया ऽसमपरषिरत वा कद मनसतसमादष एता मस

सपरषितः मतिपदयत'॥ २॥ । -- -

अथ परशोततराभया मभिषटवगताना सटचा सझा विधतत

“तदाहः कियतीभिरभिछयादिति, शतनलयाडः; शतायरव परषः

६२० ॥ ऐतरयबराहमणम।

शतवीरय:शतनदरिय आयबवरन तडीय इनदरिय दधीति"-इति॥

शतसजञाकास नाडीश सबबारादिनदरियाणा तदयवीरयसय च

शतसदधालवम ; तसदधाकाना मचा पाठन 'एन' यजमान

दीघौयधादिगणयल करीति॥

पचानतर विधती-"तरयसविशलया वलयाहसनयरिवशती व स

दवाना पापानी पाईसखयसविशई तसय दवा इति"-इति।

अथवा "चयसतरिशलया' चटचा वयतरिशलसबया अभिटव इतयाड: |

तर हतरचत-दवाना समबनधिनी या वयरखिशादसति, असया:

सरकाशात 'स' अरबद: पापानि "अपाहन' विनाशितवान ॥"तख'

'अईदसय' सरमौपखया दवाः"नयरिवशई'अटौी वसव:, एकादश

रदरा, डादशादिया, परजापतिव, वषटकारवलरव दवसाझा

दरषटयाआ । "

पचानतरर विधतत-"अपरिमिताभिटभिययादपरिमिती व

परजापतिः ; परजापतवा एषा होतरा यद गरावसतीढीया, तसवा सरव

कामा अवरधयनत; स यदपरिमिताभिरभिटौति, सरवषा कामान

मवर. ह."-इति ॥ एतावलवति सलानिबनधराहिता: "अपरि

मिता:'॥ परजापतरपरिमितमहिमलवाद गरावसतीचसमबनधिनया

हटवदतयनायाः करियाया: परजापतिसमबडलवात अपरिमितलरव

यवम; तरवाच करियाया सरव कामा: खाधीना भवनति : अती

परिमिताभिरभिटव: सरवकामपरावध समपरदात॥ वदरन पररश

सति-सरवान कमानवरनध य एव वद"-इति 1 - 2

* श: १ भा० ६५.४५ पर०दर० । "तिख एव दवता इति नरझा अधि: पथिवी

वाली बचची बालरिबखान: सयो दवाचनवासी नाभासवादचखा औष चना

नामवयानि"-इतयादि निर6७.२, ९.1 . . . . . . . ."

॥ षषठपतरिका ॥ १ । २ ॥ २२१

वरतीयसथ पचसय मखयालरव दरशयति-"तसमादपरिमिताभि

रवाभिययात"-इति ॥ . . . .

अधीकतराभया मभिटव परकार विशशरव विधतत-"तदाह: कथा

मभिययादितयचरशा३, चतरचरशा३, पचछा३: अवशा३,

चटकशा३: इति; तदयढकशी न तदवकखत5थ यतपचछी नी

एव तदवकालत थ यदचरशचतरचरशी वि तथा छनदासिल

लयरन, बडनि तथाचराणि होयरवडरवश एवभिययागरति

छाया एव"-इति ॥ "तत' ततराभिटव बरहमवादिन: परशन माड:,

कन परकारणाभिययादिति। कियनतः परकाराः समभावयनत इति'

खाकाइया त परकारा उपनयासत,– अचरणोभिषटयादिलक

परकारः; परतयचार मवसायावसायाभिषटयादितयरथ:॥ अचरचतषटय

5वसारनडितीय: परकार: ॥ पादवसारन ढतीय: परकार: । आईई

5वसारन चतरथ: ॥ ऋचि समापसाया मवसारन पचम:॥ शतयः

सवा विचाराधा: । कि परतयाचार मवसानम, उताचरचतषटयशव

सानम, उत पाद पाद वसानम, आहोखिदईई वसानम,

अथवा छातरखाया मचयवसानम ? इति सशयः॥ ततरपचान

राणिदषयितवाईपच एव खौकारयः। कथ मिति, तदचत

यदि अटकण इति पचः सयात १ ततत ‘नावकखत'न समभवतिg

अधययनवपरीलयपरसनहात,– अधययनकाल जई वसारन करवनति,

न त छातरखा मरच मध वसानरहिता पठनति॥ पादावसान

पवपि सट'एव दोषः। एककाचर-चतरचर-पचयोदोषानतर

मणयरित,— तथा पचडयाईलकार छनदासि विलपयरन ॥ कथ

विलीप इति, तदचत-तथा सलचरावसानपच बडयचराणि

‘हयरनट विनशवय: सहिताकालीनसय दिलबादरभावात; तत

२२२ ॥ ऐतरयबराहमणम॥

खनदीभइ :। आईईपव त यथाधययन मवाभिटवात न कीपि

दोषः; तसमादय मव पचः सिडानतः। आईईयीः डिलवात पशच

इयसाइलन परतिषठारथ मतत समबढत ॥

इम मईचपचरव परशसति–"डिपरतिषठी व परषधातषयादा:

परशवी यजमान मव तट डिपरतिव चतषयालपश परतिषठापयति :

तसादईरवश एवाभिययात"-इति। आईरचयईिलवावधजमान

सायम,चा पादचतषटयोपतलवात पशसागयम I

अथ माधयनदिनकालौन मभिटव परवीकतराओया परशासति

"तदाहरयवधवनदिन मधयनदिन एव गरावणी भिटौति,कचच माल

तरयोः सवनयोरभियत भवतौति; यदव गायचीभिरभिटौति,

गायतरी व परातसावरन तन परातसवन, sथ यजगतौभिरभिटौति

जागरत व ढतीयसवन तन ढतीयसवन"-इति 1‘तत' ततराभिटव

चोदय माड: । यसात कारणादय गरावतत तवययोगसबबनधिनि

'मधयनदिन' एव सवन गरावणा मभिटव करोति, एव सति कन

परकारण'अख'आवखतः पराततवनबतौयसवनयोरभिटव सिधय

हौति परनय: 1 चहल यहायतरी जगती छनदोबरय तइरानधयोरशिप

सवनयोरभिटवसिविरितयततरम। वदरन परॉसति-"एव म हासय

मधदिन मधयनदिन एव गरावणी भिटबतः सरवश सवनशव

भियरत भवतिय एव वद"-इति। "एव य इ'अनव गायतरी

जगतौचनदरोददारण It . .

अथ थावतत: खमषनिरपचव परवीकतराजया दरशयति

"तदाडरयदघारयरवानधानदरविजः सपरथलयथ कसमादष एता मस

परषित: परतिपदयात इति ; मनीव गरावसतीकौया समषितरत बी

इद मनरनतसादष. एता मसरमपरषित: परतिपादयत"-इति । "तट

॥ षषठपचिका । १ । ३ ॥ २२३

तच गरावसतहिषय परशन माहः। यसमात कारणादधवरय: सरवाननया

वलिजः सनगरथलव, न तदाख, तथा सलयलविगनतरवत गराव

खदपयधवरयणा समपरषणीय: १ तञच नासति । कसमात कारणात

असनगरषित ‘एष:’ गरावसतत ‘एताम’ ऋच परारभत इति परटरणा

मभिपरायः॥ ततरद मततरम–यय मग गरावसतोतरसमबनधिनी

विदत, सरय मनःखरपा, मनवद मिनदरियानतरण कनचिदपि

असरमपरषित मव परवतरतत ; तसमात ‘एष:’ गरावसतत सयषनिरपच

एव ‘एता’ सतोतरीया मरच परतिपदात ॥२॥

इति औसलसायरणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐितरयबराहमणसय षषठपचिकाया परथमाधयाय

(षडविशाधयाय) हितौयः खणडः॥२॥

-------------= =----------------------

॥ अथ ढटतीय: खणड: ॥

वागव सबहमणरया तल सोमो राजा वतस: सोम

राजनि करौत सबरहमणया माहनयनरति यथा धन

सपहियत। तन वतसनयजमानाय सरवानकामान दह'

सरवान हासी कामान वाग दहय एव वद'तदाहः

कि सबरहमणयाय सबरहमणयातव मिति वागवति बरया

धरागव बरहम च सबरहम चति' तदाहरथ करमादन

२२.8 ॥ ऐितरयबराहमाणम ॥

पमास सनत सतरी मिवाचचत इति' वागघि सबरहम

रयति बरयात तनति तदाहरयदनतरवदीतर कटतविज

आतरविजय करवनति'० बहिरवदि सबरहमणरया कथ मसया

नतरवदातरविजय छत भवतौरति वदवरग उतकर मत

किरनति'यदवोतकर तिषठवराहयतौति बरयात तनति

तदाहररथ कलादतकर तिषठनसबरहमणया माहयतौ

लधषयो व सच मासत तषा यो वरषिषठ आसौततमब

वनसबरहमाणया माहय तव नो नदिषठाद दवान हरयि

धयसौति' वरषिषठ मवन तत करवलयथो वदि मव

तत सवरग परौणारति तदाह: करहमादखा चटषभ

दचिणा मथयाजनतौति'वषा वा कटषभो योरषा सबर

हमणया तनमिथन तख मिथनख परजालया इतय

पारश पातरीवतखागनीधो यजति'रतो व पातरीवत'

उपाशिखव व रतस: सिकतिनानवषट करोति'सखा

वा एषा यदनवषटकारो' नदरतः सखापयानौलय

सखित व रतसः समख' तरवानदरानवषटकरोति

नषटरपख आसौनो भचयति' पतरीभाजन व नषटा

sगनि: पतरीष रतो दधाति परजालया अगनिनव तत'

पतरीष रतो दधाति परजालय 'पर जायत परजया पश

भिरय एव वदरद दचिणा अन सबरहमणया सनतिषठत'

' - बर- ‘‘करवननीति’ का । - -

iषषठपतरिका I १.1 ३ ॥ ३३५

वागव सबरहमणयातरी दचिणावाद एव तडचि यजञ

मनततः परतिषठापियनति परतिषठापयनित 1 ३1 .

व इवतरय बराहमण षषठपतरिकाया परथमीऽधयायः॥१

थावलतचटलविज: कतरतवय मभिधाय सबरहमखाखसय ऋतविजः

कतरतवरष निरपयति-"वाब सबरहमखा, तरब सोमी राजा वन:;

बीमराजनि कीत सबरहमणखा मालयनति, बथा बत सपइयत तज

वलन:यजमानाय सरवान कामानडह"-इति।"सझखा-पनदब

"इनदरमचछ इरिव आगचछ"-इतयादिरनिगद उचत थ8 ॥ सा च

बझखा वालव, भदरपब सती चतसदधौ तखाः सबझखाया:

चनी: सोमी राजा वनखानीयः॥ तरआत सोमकरयादईय

चबिजः तततआयोगय बझखा माइय, उनिमाई पटल

रिचरथः। यथा खीक दोहनाथ काबिडन तदयवसपरदरशनन

चमीप परतयाहयत, तददतव दरषटयम। एतमाइनन यजमानाथ

खरवान कामान, "दह" समपादयति॥ वदव परौदयति-"सरवाब

डाल कामान वागइडय एव वद"-इति 1 .

परशरोततराभया सबरहमखा परशसति-"तदाइ कि सबरहमखाव

सबझखालव मिति; वाबवति बयाद-वाव बरहम ‘च सबह

चति"-इति। 'तत' ततर सबरहमणयाखध निगदरल "मनव नाम

अ, "बचचा-बाना निगदीच यजञरविशष एव मौमासाया तबव सिबतिखाब

{ज० व १० १९.१.६-४५.)1 शतपथबराझप पठित, सामानयती वयाखयाताव (२-२०

६.)। सामवदौयषडविशबाइऐ खरष समगर: पठिती जबरशी वयाखयान, साकवि व

निईिट:(११,९.)॥ तथा सामकलष खाबावनक पयय परपतर किहित:(-३-)

बझझना-सामवदीयलिजा गौवतप, वयायाशिक खानविच वयपदिखत। तब

२२ ह ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

निमितत' टचनति; वागवति तदततरम; ‘वागव’—इलयादि तदप

पादनम। ‘बरहम' वदी ‘वाव'वागातमक मव ॥ तसमिनतरपि वद

सध बरहमा सारभत वदवाकयम, तदपयम वाग दवता : तसमात

सारभतसय निगदसय सबरहमणखति नामधयम । पलिङगशबदाभि

धयसय निगदसय सबरहमणखति सतरीलिङगशबदनाभिधान वाडयपलव

विवचयति ॥

एत मरथ परशशरोततराभया दरशयति–“तदाहरथ कसमादन

ममास सनत सतरी मिवाचचत इति ? वानघि सबरहमणखति बरयात,

तनति’–इति ॥

पनरपि परशरोततराभया सबरहमणयाहवानसय दशविशष निरप

यति-‘तदाहरयदनतरवदीतर ऋटलविज आलरविजय करवनति, बहि

वदि सबरहमणया ; कथ मसयानतरवदयालिरवजय छत भवतीति १ वदवा

उखकर मलकिरनति, यदवोलकर तिषठवाइयतीति बरयात, तनति’

इति। अधवरयहीढपरशटतयः सवsगयलिवजो वदिमधय एवालविजरय करवनति,

‘सबरहमणखा' * वदरबहिरभाग सबरहमखाखान कलविजा डयत; तथा

सति कन परकारण ‘असय' सबरहमणख-नानतर ऋलविज: वदिमधय

आरविजय छत सयादिति परश: । तरयद मततरम,–वद: सकाशात

‘उतकरम’ उडरतवरय पासम ‘उलकिरनति’ उडरतय बहिरदश वदरततर

पाठसलववम– ‘सबरहमणवीश३ म ॥ सबरहमणखी३म। सबरहमणवीश३म॥ इनदरागचछ हरिव शरा

गचछ मधातिथ मष दवषणशवसय मन । गौरावसकनदितरहलयाय जार कौशिक बराहमण गौतम

.शवाण ॥ अह सतया मागचछ मघवन दवा बरहमाण आगचछतागचछतागचछत’-इति ॥ तततिरी

यारणख क ऽयय ‘बवाण:'-इतयनती sधौयत (१.१२.३,४.)। असय च वयाखानानतरर मौमासो

भाषथवारतिकयी: दरषटवयम( ज० स०९.१.४२–४४; अधि० १५.)। . . 1 : --

क* ‘सबरहमाणया'-इति सपा सलग (पा०७. ३.३९.) इतयालव रपम॥ xअपिवा आव

भतीजयरय दषखत,–“सबरहमणख सबरहमणया नाहय’-इति कातया० शरौ० ८, ५,१४ ।- - -.2

. ..’

॥ पटपविका | १ । ३ ॥ ३२७

भाग परविपतति ; ततर छातरत सबरहमणयाहारन वदिमधय एव छात

भवत। यरआदव करणादरय सबरहमख उतकरदश तिषठन सबरखा

माइयति,"तन'कारणनतयततरवादिनी वचनम 81

सबरहमणयाहानरवोलकर दरश विधाय पन: परीततराभिया परशा

सति-"तदाडरथ करमादलार तिटनसबरहमणखा माइयतील

थयोव सब मासत, तषा यो वरषिठ आरसौतत महवनसबरहमणया

माझय व नी नदिषठाद दवान इयिधसीति ; वरषिठ मवन तनत

करवनयथी वदि मव तसवी औराति"-इति। आइवनीयदशान

परितयजथ सबरहमणखादवानखोलकरदशखीकार कि कारणम १ इति

परशन: 1 तवद मततरम–ऋषया हि परा सतर मासत, ‘तषाम'

कटौणा मधययो'वरषिठ:'अतिशयन दड आसीत, तरत परलव मब

वन,- ह महरषि 1. सबरहमणया माइय,‘न:' अखलाको मध लव मव

'नदिषठात' वयोडडलवन दवलीकापरास: परतयासबव सतयनतिकतम

वात दवान"इयिथासि" आदवाल समथॉसि । एव खधिभिरजञा

वादतराणयलकरदश तिषठनरत सबरहमणखाददानकततौर मरन 'वरषिठ मव'

अतिशयन दवड मव करवनति ॥ उतकरसय वदिगतपासरपलवात

ततामीथ सति वदि"सरवॉ" निरवशषा 'ओणाति'तीषयति ॥

अथ सबरहमणयाखयरशयलिज: समौप दचिणावन दषभानयरन

परटरोकतराभया निरपयति-"तदाह:कसनादरमाऋषभ दचिण

मयाजनतीति; दषा वा ऋषभीयौषा सबरहमणखा, तन मिथन,

तसय मिथनसय परजालया इति"-इति। 'तत’ तखिन सबरहमणयसथ

विषय परशन माड: । 'अरस' सबरहमणयाय 'ऋषभ'पशव दचिणा

झलवा "अयाजनित' समीप मानयति 1 ‘तचा कि कारण मिति

* "शाखाया. परसादतवदिश पबौयजमानयीरवारबधयीरभवति"-इति खाया।०स०१,९.१.1

३३दर- . .॥ ऐितरयबराहमणम ॥

जशनाभिपराय: । तरवद मततरम- योsय :दचिवणालवन नीयमानg

चटषभ:, सोrय ‘डषा व’ सचनसमरथ:परषखरप एव; सबरहमखा

त सतरीलिङगशबदाभिधयलबादयोषिदरपा; तदभय। मिथन भवति।

ननय मिथनसय ‘परजाल' परजोतपादनारथ चषभानयन मिलबततर

कादिनी sभिपरायः॥

सबरहमणखरासय करतवय मकला आागनीधरासवलिरवज: करचवरय विधतत

‘उपाश पाढतरीवतरयागनीशरी यजति; रती व पातरीवत उपाशखिव

व रतस: सिकति:’-इति । पाढतरौवताखयो यो गरहविशषः, तसय

मनव ‘उपाश'शनरचारय आयनीघरी यजत। योsय ‘पाढतरीवतः' गरहः

स रतस: खरपम ; लोक:पि रतसः‘लिति:’ सचनम ‘उपाशिखव

व’ धवनि मनतरण रहसयव करियत। अतसततसामयारथ मपाशलव

यताम ॥

अतर पाढतरीवतगरह ‘सोमसयागन वोहि’-इतयत मनवषटकार क

निषधति–‘नानवषट करोति; सखा वा एषा यदनवषट

कारी न टरतः सखयापयानीलयसखित व रतस: समई; तसमाचात

वषट करीति’-इति । सरवतर गरहष वषटकारानवषटकाराभया

डयत; अतर त पातरीवतयाह वषटकारहोम एक एव, न

लिवतरः ॥ ततर हत: ‘सखया व’–इतकादि:। योrय मनवषटवारी

sरित, सोsय ‘सखवा व’ गरहसय समापतिरव। तथा सति स पाढतरी

वतगराहरप रत: ‘नत सखापयानि' सरवथा समासि न करवा

चीति अभिपरलय तकसमास भीती भवत। ‘असखितम' असमापत

मतपररत रतसः सचरन अपलयोतपचया समरड भवति; तसमादव

नानवषट कयरयात । तथाच यजञगाथा पठनित

' . .23. १. भा० १६२ प० १४ प०,२ भा० २२प० १७ प०. ॥ आशव० ५.५. १९.1

॥ षषठपचिका। १ । ३॥ २२e.

‘ऋतयाजान हिदवलयानयध पाढतरीवती गरह: ।

आदितयागरहसाविचौ तानतसम मानवषटकथा:’–इति शरः ॥

अथ पातरौवतगरहभचण दरश विधतत–‘नछटरपसथ आसीनी

भचयति ; पढतरीभाजन व नषटा sगनि: पढीष रती दधाति

परजालया अगनिनव तत पतरीष रती दधाति परजाल"–इति ।

योsय मागनीधर: पातरौवत यजति, सोय नछटः ‘उपसय’ समीप

आसीनः शरष भचयत। नटरनामक ऋलविक ‘पतरीभाजन व’

पतरीखानीय:; “नटः पतरी मदानय”—इलवरव ‘’ नटरपतरगोरान

यनहारा समबनधधवणात॥ अतसततसमीप भचण सतयरिनरप

अागनीधर: पढतरीष रत: खापयति ; ताच परजननाय समपरदात ।

‘तत' तनानषठानन यजमानोsपि ‘अगनिनव’ अमनधनगरहणव

पढतरौष रती sवखयापयति । तदपि ‘परजाल’ समयदवात ॥ वदन

परशसति-‘पर जायत परजया पशभिरय एव वद’—इति ॥

अथ सबरहमणखाविषय कचिहिशरष विधतत-‘दचिणा अन

सबरहमणखा सनतिषठत; वागव सबरहमणखाव दचिणावादय एव तदाचि

यजञ मनततः परतिषठापयनति परतिषठापयनित’-इति ॥ दचितरणास

नौतास ता दचिणाः‘अन’ पशचात सबरहमखा ‘सनतिषठत' समा

मयत। सबरहमखाया वाडयपलवात दचिणायाखानतररपलवात ‘अनततः'

समापतिवलाया मिरम यजञ’ ‘परवादी वाचि’ इयोरवतयी: ‘परतिषठा

पयनति' परतिषठित करवनित ॥

क आशव० शरौ० ५.५.२१. दर० ॥

t त० स० ६.५. ८, ६ । ‘अथ सनगरषयति- अगरौतरछटरपख मासौद, नट: पबी

झदानय, उझाचा सडयापय ०-०दवषा वा अगरौढ, यीषा नटा, मिथन न वतत परजनन

कियत; उदानयति नषटा पबो, ता मदवाचा सङघयापयति’-इति शत० बरा० ४.४.२.१७,१८ ॥

3०a.

॥ ऐतरय बराहमणम ॥

अभयासोऽधयायसमापतथ:॥ ३॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीय वटरारयपरकाश

ऐतरयबराहमण सय षषठपतरिकाया परथमाधयाय

(षडरविशाधयाय) ढतीय: खणडः॥ ३॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

पमरथधितरी दयाद विदयातीरथमहशखर:॥

इति धीमटराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

सौवीरवक भपालसाबाजयाधरनधरमाधवाचारयादशती

, भगवसायणाचायॉण विरचित माधवौय 'वदारथ परकाश'नामभाय

ऐतरयबराहमणसय बचपचिकाया: परथमाधयाय: ॥

॥ अथ चिततौयाधयाय; ॥

( ततच )

॥ अथ परथमः खणडः॥ 1.

e-AEa

॥9 ॥ दवा व यजञ मतनवत तातनवानानमरा

धयायनवचवशस मषा करिषयाम इति'तान दचि

णत उपायन,यत एषा यजञख तनिषठ ममनयनरत त

दवाः परतिबधय" मितरावरणौ दचिणतः परयौहस

मिचवरणाभया मव दचिणतः परातःसवन सर

रचाखपातरत' तथवतदाजमाना मिचावरणाभया

मव दखिणत: परातः सवन' सररचाखपघत' तखान

मचवरण मचTवरण: परात:सवन शसति मिचा

वरणाभया हिदवी दचिणतः परात: सवनशsसरारचा

खपाघत त व दचिणती sपहता असरा मधयती

यहा पराविशसत दवाः परतिबधयनदर मधयतीsदधसत'

इनदरणव मधयतः परातःसवन". Sसररचाखपातरत'

बत वतदयजमानो इनदररगव मधयतः परातः सवन'sसर

रचाखपघत." तसनादनदर बराहमणाच सौ परात:

सवन शसतीनदरण हि दवा मधयतः परातःसवनी"

ऽसररचाखपाघत दत व मधयतोsपहता असरा उतत

२३२, u ऐतरयबराहमणम ॥

रातोयह पराविशसत दवा: परतिबधवनदरानी उततरतः

परयाईरत इनदरानिया मवोततरतःपरातःसवन'sमर

रचाखपाघरत तथवतदाजमाना इनदरानिया मवी

तरतः परात:सवन sसररचाच पधत'तसमादनदरान

मचछवाक परातः सवननी शासतौनदरानिधया हिदवा

उततरतः परातःसवन'sसररचाखपाधत त वा उतत

रतोsपहता चामराद परसतातपरयदरवनतमनौकतरत

दवाः परतिबधयौगनि' परसतात परातःसवन परयौहसत

ऽनिनवपरसतात परातःसवन मररचाखपाघत तथ

वततदयजमाना अनिनव परसतात परातःसवनऽमर

रचीखपननत तसनादागनय मातःसवन' मपपाणमान

हतयएव वरद त वपरसतादपहता असराः पचातय

रौलथ पराविशतदवाः परतिबधरय विशवान दवानातमान

पधाततीयसवन परयौहसत विशवरव दवरातपभि:

'पशचात ढतौयसवन जमरारचाखपाधत" तथवतदयाज

माना"विशवरव दवरातपभि: पधाततौयसवनशsसर

रचाखपघत' तखाद, वशवदव वरतौयसवन' मप

पापान हत य एव वरद त वदवा असरानव सपा

'घत सरवखादव यजञात तती वदवा अभिवन पर

मण भवधारमना पराख बषिन. पाणमा खातबी

I पठपचिका । २ ॥ १॥ 3३३

भवतिय एव वद तदवा एव कशनॉयचनापास

3s "T '

रान, पापान मघताजयनतखग लोक मप हव

दिषनरत पापमान'धातवरय हत जयति'खग लोक य

एव वदयशव विइनतसवनानि कलपयति। १(४)I

गरावसतीतीषणीष समावषटितमहो

मनवरनधर बदसतर विषणति :

कियची वाभिटवरनोया: कथि मता;

सबरहमणखादयानन मितौह परवदनति॥ १ 1

बयावलत-सबरहमखाखययोरचलिवजीः कतरतवय सझा मतरावरण

:बराहमणाचसयचछावाकनामा हीवकाणा शसतराणि विधात माखया

यिका माह–"दवाव यजञ मतनचत; तासतनवानानसरा अनयायब

यजञवशस मषा करिथाम इति; तान दचित उपायन :यत

एषा यजञसय तनिषठ ममनवनत ; त दवाः परतिबधय मिनावरलौ

दचिणतःपयहसव मितरावरणाभया मव दचिणत: परातसवब

सररचासपाघत; तवतदयजमाना मितरावरणाभया मव दॉच

णतःपरातसबन सररचासयपझत; वसतरान मतरावरण मचवरदध

आतसवन शॉसति ; मिचावरणाभया हिदवा दचिणतः परात

सवन सररचाखयपातरत"-इति। यदा दवा यजञ मकरवत, तद

तान' करवाणान दवान आसराः अभित आगचछन । असर

शवदन रचाखययपलखत।'एषा' दवाना ‘यजञवश स'यजञ'विघारत

करिधाम इतयसराणा मभिपराय: । "एषा'दवानो समबनधिन

यबोपखाचितसय दवयजनदशसय "यतः'यसमिन दचिवणदशभाग

९३४ ॥ऐतरयबराहमणम,॥

'तनिषटम'अतिशयन तानरप मलयनतदरबल खान मिद मिलयासरा:

'अमनयनत' सरवषा मलविजा माहवनौयादिदशववसथितवन सदसी

दचिवभाग रचकाभावात दरबलखधान मितयसराणा बदधिरासौत 1

"दकणित:' तसमिन सदसी दचिवणभाग, "तान'दवान असराः

"उपायन'परासवनत:॥ "त'दवाः तखकररपण समागतान असरान

परतिबधय तसिन दचिणत: "मितरावरल' ईौ दवौो ‘परयॉइनट'

खकनवनावसथापितवनत:1 ततः"त' दवा: मितरावरणाभया मव

धानषकाभया मलयनतशराभिया दचिवणदरी परापतसवनकाल तान

सरान रचासि चापसारयनित । तसमादपसारणारथी मितरावरण

दवताक शासतरम"आ नी मितरावरण"-इतयादिक (स० ३.६२.

१६-१८.) मचवरणाखय:ऋतविक परातसवन टॉसतत। यसआ

हवा मिचावरणाभया मपसारितवत, तरआत मनावरण शसतर

यतम कषतर It . . . .

उपाखयानमखन मनावरणसय शसतर विधाय तथव बराहमणा

चोसिन:शसतर', विधतत-"तव दचिणतो पहता असरा मधय

ती यजञ पराविशसति दवा: परतिबधनई मधयाती दधत इनटररीव

मधयतःपरातसवन सररचासयपाघत ; तथवतदाजमाना इनटररीव

मधयतः आतसवन असररवासपघत; तसराटनई बराझणाचसी

आतसवन वॉसतौनटररणा हिदवा मधयत: परापतसरावन सरचासय

पाशत"-इति॥ "त' दचिणदशदपसारिता असरा:, पराचीन

वशय सदसध मधय यजञ भमि पराविशन॥ "आ।यहिसषमा

हि त"-इतयादिरक (स० र.१२.९-३.)इनदरदवताक शासतरम"" ॥

अचलपरववद वयाखशयम ॥ . . . . . . . . .

क, f आशव बौ० ५, १०, ६,दर०1 . . . . . . . . ...

॥ पठपतरिका1 २.1 १ 1 २३५,

: इदारनी मचछावाकखय शासतर'विधता-"तव मधयवरती पडता

असरा उततरती यजञ' पराविॉरत दवाः परतिबधवनदरानी उततरतः

परयॉईसत इनदरानिया मवोततरतः परातसवन सररचासपाघत ;

तथवतदाजमाना इनदरानिया मवोततरतः परातसवन sसररचाख

पचत ; तसराटनदरासन मचवाक: परातसवन भासतीनदरालिया

डिदवा उततरतः परातरवन सरवाखपाघत"-इति॥ "इनदराबी

आगरत सतम"-इतयादिकम (स.०३.१२.१-३.) ‘ऐनदराज'

शसतरम *। अनधत परववद वयाखयम ॥

परातसवनाभिमानी दवी निरिचत मरथ दरशयति-"त वा

उततरती पहताअमराःपरसतात परयदरवनसमरनीकतरत दवा परति

बधानिपर तात परातरवनपयाईखत sनिनव परसतात परात

सवन सररचाखपाघत; तववतवजमाना अनिनव सरसतात

परातसवन सररचासयपघत; तखादानशय परातससवनम"-इति।

'त'इनदरनिभया मततरती Sपसारिता असराः‘समरनौकतः'सडा

मारथ समीचीनलवा, "परसताद" यशभमः परवखा दिणि

'परयदरवनद परितः परासाः। "त' दवा, परतिबधवतयादि परववत ।

यरआत परवखा दिश रचकोगनिसतरादिरद परातसवन मनि

समबई दरषटवयम ॥ वदरन परशसति-"आप पापमान. 'हतया एरव

बड"-इति ॥ . . . . . .

परातसवनाभिमानिन माजिरन परशसय ढतौयसवनाभिमानिनी

विशखान दवान परासति-"त व परसताद'पहता असरा:पशचा

तरीय परविसति दवाः परतिबधय विषखान दवनानारनपधात

ढतौयसवन पयाईसत विशडरव दवरानभिः पशचात ढतौयसवन

म आशव बौ० ५, ९०.२,दव० ॥ . . .

३३६ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सररचासयपातरत ; तववतदाजमाना विशडरव दवरालभि:

पशचात ढतीयसवन सररवासवपननत; तआदध वशखदव ढतीय

सवनम"-इति। अनिना पराचा दिशी पसारिता: असरा'

रचासि च परतौचया दिशि परिशती गलवा यजञभमि पराविशन ।

दवाश परतिबधय विणखान दवान ढतीयसवनवललाया परतीचद

दिश रचारथि परषितवतः ॥ आतमान मिति विशलषा दवानहा

विशषणम; य पररका दवः तषा मामभतन खशरीरवदतयनत

मासान विषखान दवानिवरथ 8। तरविडदवरितरदवानभत

रसराणा ढतीयसवन अपहतलवादिद ढतौयसवरन वखदवम॥

वदरन परॉसति-"आप पापमान हलय एववद'-इति ॥ "

पनरपि परदशानतर परवशशडॉ वारयित मसराणासरवानना"

विनाश दरशयति-"त व दवा असरानव मपाघरत सरवसममादव

यजञात, तती व दवा अभवन परासरा"-इति । उतकरमणट

सरवती परसारितशवसरष दवाः शतररहिता अभवन, असराध परा

भताः॥ वदरन परॉसति-"भवतथामना परासय हिषन पापा

बाढवधी भवति य एव वद'-इति । "आदमना' खनव रपण

शकरहितन सखी भवति ; डषी त,पामापराभवति॥

उपाखयान सपसहराति-"त दबा एव कसन यल नापास

रान पापमान मझताजयनतखग लीकम'-इति। 'एव"परवोतत

परकारण कलन मितरावरणदिभिदचणादिदशविरोवल रचितो

वी यजञसतन पापरशनसरानपहलयदवाः खग लोक परापवन ।

वदन ततपरवक मनषठानखपरशसति-"अप इव डिबषनरत पापमान

बाढवय हत : जयति खग लीक य एववद, यशव विदयानसव

- "आरआनम-इवि पदश स;(पा० ७,३,२.)स: दरषटवयम।

॥ षषटपतरिका 1 ९ । २ | २३er

नानि कलयति"-इति। सवनगताना होतरकाणा मनावर

रणदिशसतरसममादन मव सवानकलपननम ॥ १ ॥

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणासय षषठपतरिकाया दवितीयाधयाय

(सपतविशाधयाय)परथम: खणड: ॥ १(8)॥

॥ आथ दवितीय: खणड: r

सतीचिरय तोचियखानरप करवनति परातससवन

sहरव तदडी शनरप करवनवयवरगव तदइॉपर,

महरयारभतत 5थ तथा न मधयनदिन शरीव पठानि

तानि तरल न तातयानानियत सतोविय सतोचियखा

नरप कयसतवव विभला ततौयसवन न सोचिरय

सतोचियखानरप करवानरत ॥ २(५)॥ '

अथ तषा होतरकाणा महरगणष शखष. परकार विशष विधतत”

-"सतोचिरय सतोतरियरधानरप करवनति ; परातससवन हरव

तदडी जनरप करवयवरणव तदडरापर महरभधारभनत"-इति 1

छाषडडादिवाहरगणय बडवहानि विदयत; तज परातसवन

डितौयसयाशीयःसतोबियसतच, त ढरच परथमडनि खीचियख

टचसयानरप इगल। सामगायलिसतच सतौच कवत, स वॉच

‘सतोचियः'; तसय सतोबियसय छनदोदवतादिना सदशोनयी

२३८ ॥ ऐतरयबराहमणम॥ .

यसतच,स:'अनरपः' 8॥ तथा सति सरवशवइय एवकलिॉसकच

सामगा: सतीरव करवनति, त. सरव ढचाः सतीचिया: ॥ ताच सरवतर

उततरदिनगरत सोवियम परवोदन सतोबियसथानानतरभाविन मड

रपरय करयात । आरय च नियमी होतरकाणा शसलष परातसवन

दरषटवयः। एव सतयततर महरव परवसयाही तरप इरविति। ‘तत’

तथा सति'अवररीव" अतौतनव परवणाजञा "अपरम' उततरमई

राभिमखौछातय "आरभनत' उपकरमनत ।॥

माधयनदिनसवनशयखय नयायसय परसनहौ त निषधति-"अथ

तथा न मधयनदिन, बीव छानि ; तानि तल न तातयानानि,

यत सतोनिरय सतीनियसवानरप कय."-इति॥ "अध' परातरवना

ननतर माधयनदिन 'तथा न' तन परवोतरकारण न इयौदिति

शषः। ततर हत-अवीव छठानीति॥ यानि मधयनदिनसवन

धठरतोचाणि, तानि'थोव" समबदपारोव; धीरपवन सामग:

सततलवात । न हि धीरपाणा खतनतराणा मनयालडकतितवलाचरण

मनरपरव यहम; तसमात 'तानि' छठखतीवाणि’ ‘तल' तसिन

माधयनदिन सवन 'तखानानि' परातरवनखानानि न भवनति,

बततसइणानि न भवनतीलयरथ:। परातरवन झकतरदिनगरत सतोनिरय

यरवदिन'गतसतीचियपयानरप करवनति । "यत' यसमात कारण

दवापि तथा कय, ताइरण कारण नासति; तरवचनदरवादौना

मभावात । 'तनाव' परसतोतराणा परवोततरदिनश साइखा

भावात परातसवन नयायोऽच न घटत ॥ . . . . .

माधयनदिनसवननघारय ढतीयसवनतिदिशाति-"तयवविभचा

दतौयसवन न सतीचितरय सतीवियसयानरप करवनति"-इति ।

.. * ९भाe s०,१९, ९१९,१९९१ दर- 1 . . . . . .

॥ षषठपचिका 1 २.। ३ ॥ २३c

विभाजिशबद: परकारवाची ;तनव माधयनदिनीशपरकारण ढतीय

सवनशयततरदिनगरत सतोनिरय परवोदनगत शय खीचियरधानरप न

करवनति ॥ २ ॥

इति चौमतायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकारी

ऐतरयबराहमणसय षषटपबिकाया दवितीयाधयाय

(सरविणाधयाव) दवितीयः खणड ॥ २(५) ॥

॥ अथ ढरतौयः खणडः॥

. अथात आरकषणौया एरव ऋजनौति नो वरण

इति मचवरगख मिचो नयत विदयानिति परणता

वा एष होच काणा' यन मचवरणसरतसमादषा

परोढमती भवतीनदर' वो विशवतसपरीति बराहमणा

चडसिनी हवामह जनशय इतौनदर मवतयाहर

हरनिइयनत' न हषा विहव ऽनय इनदर' वई'यचब

विदयान बराहमणाचखरता महरह: शसति यत सोम

आ सत नर इलयचवाकखनदरानौ अजोहबरिशती

नदरानौी एवतयाहरहरनिडयनत न हषा विहव नय

इनदरावती बझ चचरव विदनचछावारक एता महरह:

२४० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

शसति' ता वा एताःखरगख लोकख नाव: समया

रिणयःखरग मवताभिलॉक मभिसनतरनतिीI ३(ई)॥

होतरकाणा सतोचियानरप सझा आरकषणीयाऋची विधत

--"अथात आरकषणौया एव"-इति ॥ "अथ' सतीतरियानरपा

ननतरम, यरआतशासतरयोततरभाविन आरमभी यवा:,'अत:'असाल

कारणात"आरमणीया'ऋचो विधायत। "एवीकारी हरगणष

चोदकपरापताया चाची वयाइचरथ: ॥

ततर मतरावरणाखयसय होतरकखय आरभणीया दरशयति

"चटजनीरती नी वरण इति मचावरणसय, मितरी नयत विदया

निति: परणता वा एष होतरकाणा यनमतरावरणसतसमादषा परणढ

मती भवति"-इति।"ऋजनौती"-इतयसया खच(स० १.८०.

१.) मिलवी नयनविति दवितीयः पादः॥ ततर नयनविति परणड

वाचक परद इशत, मनावरणध होतरकाणा परणता 'परवतरतक'

तसराइगषा परणतरवाचकशबदवरती भवति॥ तब यश मियरथः॥

अनधरय आरमभगोया विधतत-"इनदर' वो विशखतखमरीति

बाझणाचसिनी हवामह जनशय इतौनदर मवतयाहरहरनिइयनत'

-इति। "इनदर व:"-इतयसय सचि (स० १.७९०.) हवामह

इति दवितीय: पाद: 1 तनतराइानवाचिनःशबदसय विदयमानतवात

'एतया'ऋचा परतिदिन मिनदर नितरा माडयनत॥ वदरन पररश

सति-"न हषा विहव जनय इनटर दवडर,यदव विदवान बराहम

णाचसवता महरह: शसति"-इति। 'एरव विदयान' इनदरा

इानपरतिपादिकय यगिति विदवान, यतर शासति, तसिन 'एषा'

यजमानाना समबनधिनि "विहव' विशषणाहानयल यजञ "अनय:"

॥ षषठपचिका । २ | ३ ॥ २8१

कविचचः इनटर ‘न ह’ नव ‘डङक’ वजयति, एतदौय यातर

इनदरागमन निराकतरत, न शकीतीतयरथ:॥

अनयसयारमभणीया विधतत- ‘यत सीम अा सत नर इतय

चछावाक सयनदरागनी अजोहवरितीनदरासनी एवतयाहरहनिदवयनत :

न हषा विहव $नय इनदरागनी डङक यवव विहानचचावाक एता

महरहः भसति’-इति । ‘यलसीम:’-इतयसया मचि (स०७,

e-४.१०.) इनदरागनी इति दितीयःपादः। अजीहवरिति हीमारथ

चाहवानाथो वा धात: शर8 । अनयत परववद वयाखलयम ॥

उजञाना मारभणीयाबा मचा तरय परशसति–“ता वा एताः

खरगसय लोकसय नाव: सममारिणशः, खरग मवताभिलौक मभि

सनतरनति’-इति । ‘ता:’ परवोजञा: “ऋटजनीती’, “इनदर वी’,

‘यत सोम’–इतयतासतिसर: खरगपरापत य नौरथानौयाः, समयक

पार बयनतीति ‘समबारिणयः’। यथा नावा नदो तरति, तथा

‘एताभिः’ ऋगभि: खरगम ‘अभि'-लकय नदीखानीय औौढ मारगो

समयक वरनति ॥ ३॥

इति शरीमलायणाचारयविरचित माधवी व वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमाणसय षषठपचिकाया हितौयाधयाय

(सपतविशाधयाय) ढतीय: खणडः॥ ३( ई)॥

•‘हज सयदधाया शबद च’-इति भ०१००८,‘ह दानादान थी:”-इति श० १ ॥

३१

२ 8-शर, ॥ ऐितरयबराहमरणम ॥

.- * - •

॥ अथ चतरथ: खणड: ॥ ।

अथात: परिधानौया एव त खाम दव वर

शरति मचावरणलष खच धीमहौलवय व लोक

डष मितयसौ लोक: खरियभाववतया लोकावा

'भनत' वयनतरिच मतिरदिति बराहमाणाचछसिनो'

विवकतरच खरग म वभय एतया लोक विवणोरति मद

सोमख रोचना इनदरो यदभिनइल मिति सिषा

सवो वा एत याददौचितासतहादषा वलवती भव

यदवा आजदङगिरोवय आविषकखन गहा सतौः

अवाञच तनद वल मिति'सनि मवशय एतयाव

रनध' इनटरण रोचना दिव वति खगो व लोक

इनटरण रोचना दिवो दळहानि इहितानि च’

खिराणिन पराणद इति' खरग एवतया लोक ऽह

रह:परतितिषठनतो यनयाह सरसवतीवतोरितयचछावा

कख' वागव सरसवती वागवतोरिति हतदाहिनदरासनयी

रवी वण इतयतड वा इनदरागनी: परिय धाम यहा

गिरति परियणवनौ तडासना समईयति''परियण धामना

समडात य एव वद॥४(७)।॥

होतरकाणा शासतरारमभणसाधनाभता ऋची विधाय समापति

साधनभता ऋचो विधतत-‘अधातःपरिधानीया एव’-इति।

I छापचिका| २ | 8 ॥ २8३

"अथ'शखपरारबथानानतरर यरआत 'परिधारन'समापन मपचितम,

तसमात परिधारनौयाचवी विधीय त;एवकार:परकतवयाइतयरथ:॥

एकरय होचकसय परिधानोौया विधवकत-"त खयासन दव वर

ऐति मतरावरणसवष रखध धीमहीयरय व लीक इष मितचरसौ

लोकः खरितयभाववतया लोकावारभनत"-इति। "त खाम"

इतयसया मचि(स.०७.६६.८.)इरष खबति ढतौयःपादः। तच

इष मिलयनन पदनाभौषटिवादरय लोकी विवचितः, खरिलयनन

पदन 'असौ' खगा लीक: ॥ तथा सति लोकडय "धौमहि"

धयायमति मनल Sभिधानात,"एतया'ऋचा इावपि लीकौो'आर

भतत' परायवति ॥

अनचसय परिधानौया विधतत-*'वयनतरिच मतिरादिति

बराहमणाचसिनी विवततरच खरग मवशय एतया लोरक विडरणीति"

इति । यबिदच "वयनतरिचम"-इयगषा (स० ८.१४.७.)

यत,सोय विणदयवातत, "ववतच' शबदनाभिधीयत। तन

ढचन साधवी यः खगो लोक, तम "एतया' वयनतरिच मितयचा

यजमानभयो "विडपोति' विडतडार करोति। तखया मचि डिरतौय

ढरतौयपादौ पठति-"मद सीमनसय रोचना, इनदरी यदभिनइल

मिति"-इति ॥ तरया चची जय मरथ:- इनटरी दव: सोमख

'रोचना' रचि परायति शषः। तती 'मद' इव सति अनतरिरच

'वयतिरत' विशषण यजमानाना गमनयोगय मकरोत ि। "यद'

यरआत कारणात वलनामान मसरम ‘अभिननत' विदारितवान,

तसतरादनतरिचमारग: सगम: ॥

आवर वललभदन मसिपरलव ता खरच परशासति-—"सिषासवी व

एत यद दोचितासतसरादषा वखवरतौी भवति"-इति 1 य

९४४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दीचिताः सनति, त "सिषासव'लबधकामा: फलारथिनः। तसआत

कारणइगषा "वलवरतौ' वलनामकासरभदपरतिपादिका कतरतवय

भवति। यदयपीय मक परिधानीया न भवति, तथापि एत

दादिक ढाचजतिमाया ऋच:परिधानीयलवात ततपरदरशनाय ढाच

डयादवानत: p

तसिन परथमा मव मनध वयाखयाय, डितीया मव मनय

वयाचट-"उहा आजदकरोिशय आविषकखन गहा सती, अरवाची

लदवल मिति (स० र.१४.८.); सनि नवशय एतयावरध"

इति। "अडिगरीभय:' महरषिभय:‘सती:' विदयमाना: गा:"उदा

जात' उनई' पररितवान ॥ कि करवन १ ‘गहा' वखासयासरसत

समबनधि मरड खानम "आविषकखन' परकटीकवन "अरवाचम'

अतिनीच वलनामक मसरर "ननद'विनाशितवान। अनय मरथ

वलनामा कबिदसरो महरषीणा गा: अपइतय कसिधिद बिल

sवसथागय पाषाणन बिलहार माचछादावरियत: 1. तो इततानत

मिनदरी जवगतय, गलहाडार सझावय, वखानामान मसर मपलदध,

ततरावखिता। महरषोणा गाः बिलादहलय, महरषियो दततवा

निति ॥.आय मरथ; शाखानतर विसपषट मानायत –"इनदरी वलसय

बिल मरयौणीत, सय उततम:पशरारसीत, रत परव परति सधी

दकखिदत, तसइल पशवी नदायनस उवतोभवत"-इति(त•

रस ० २. १. ५. १.)अ। "एतया' ढचमतया डिरतौयचौ ‘सनि

नव" लाभ नवध: 'अवरध' समादयति "ि ॥

अथ ढतीया मरच परिधानीया विवड: परथमपाद मनचा

*"असराणा व वजसतमसा पराइती sशमापिधान आसौत"-इति ता० बरा० १e. O:-1.1

- 3 इह वलबिलशबदबभाववानयखयादि: खगपखकयो:वगरयादि:घ-परतिव 1

॥ षषठपतरिका ॥ २ ॥ ४ ॥ २४५

वयाचोट-"इनटरण रीचना दिव इति ( स० ८. १४.e.); खगौ

व लोक इनटरण रोचना दिव:"-इति । "दिव:' खरगविशषा:

'इनटरण" दवन 'रीचना' रोचमाना: दीसियला:,छाता इतिशष: ॥

आनन पादन सवरगलोक वरणरन विशवचितम ; इनटरणलयादिवसया

रथसय ततर विदयमानवात॥

डितीयढतीयपादावनवदति-"इबहानि दहितानि च,

खिचराणिनपराषणद इति"-इति। तसिनखग यानि'इबहानि'

परकाशरपाणि नचतराणि, यानिच परव मदढानयपि "दहितानि'

इनदण दढौछतानि, तानि सवॉणयपि सचिराणि छलवा "न परा

एवद' इनटरी न विनाशितवान । "खरग एवतया लोक जहरह:

परतितिषठनती यनति"-इति। असया मचि खिराणा खरगखानाना

नाचतरादिशरीराणा ययमाणलबादतयची परिधान सति परतिदिन

खरग एवलीक परतिषठा परवनती 'यनति' वतरतत ।

अनघसय परिधानोौया विधतती—"आई सरसवतीवततीरिय

चछावाकसय ; वागव सरसवती, वागवतोरिति हतदाहनदरानघीरवी

इण इलतड वा इनदरासनधी: परिरय धाम यइागिति, परियणशवनौ तट

धातरा समईयति"-इति । आह मितयादि: परथम: पाद, इनदरा

बोरितयादि: डिरतौय: पादः ॥ तरयाईईसयाय मरथ:-'अहम'

अनषठाता 'सरसवतीवती:'सरखतीयकयोरिनटरारचोदवयो: समबनधि

यत"अव' सरचिरतसथान मसति, तत "आइण'सरवत: परारथयति।

अनतर परथमपादसरखतीशबदन वदशासतरखरपा वागव विशवचिता

अत:'सरसवतीवतोरिति'एवरपी मनतरी"वासवतीरिति" एत नवारय

माह। डितीयपाद लववशवदन सरचित मिनदरागनिदवतयो:

यात परिय धाम विवचित, तद वाय मव; वागयवहार तय

२8६ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

रतयनतरपरीतिमतवात । तसमादता सटच। शर% पठवव लिवनटरानी

परियणव ‘धानतरा' खाननव ‘समईयति’ समही करोति ॥ वदरन

परशसति–“परियण धानतरा समइातय एव वद’—इति॥ ४॥

इति शरीमालायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐितरयबराहमणसय षषठपशचिकाया हितौयाधयाय

( सपतविशाधयाय) चतरथ: खणडः॥ ४(७)॥

I। पराथ पपचसमा: खणड: ॥

उभययः परिधानौया भवनति होचकाणा'परात:

सवन च माधयनदिन चाहोनाचकाहिकाध तत

ऐकाहिकाभिरव मचावरण: परिदधाति'तनासता

लोकातर परचयवत'sहौनाभिरचछावाक: खरगख लोक

सचापताा उभयोभिबररबाहमणाचछ सी' तनो स उभौ

वयनवारभमाण एतौम चाम च लोक' मथो मचा

वरण चाचछावाक चाथो अहौन चकाह चाथो सव

तसर चागनिषटोम’ चव स स उभौ वयनवारभमाण

एलरयथ तत ऐकाहिका एरव ढटतौयसवन होचकारणा

परिधानौया भवनति परतिषठा वा एकाह:'परतिषठाया

मव तदाजञ मनतत: परतिषठापयनरयनवान परातःसवन

: “आईसरखतौवतोरिनदरापरीरवी इण । याभया गायतर मचयत'-इति स० 5.३८.१०।

॥ षषठपशचिका। २। ५ ॥ २४७

थजदका दद न सतोम मतिशसत तदाथाभिहिषत शर,

पिपासत' चिम परयचछततादतारदथो चिम दवसयो

sनदराद'सोमपौथ परयचछानौति चिम हाचिलीक +

परतितिषठलरधपरिमिताभिरततरयो: सवनयोरपरिमिती

व खगो लोक: खरगख लोकसयाला' काम तडोता

शसरदडोचकाः परवदय: शसयरयधा होता तडोचका:'

पराणी व होताङगानि होतरकाः समानोवा अय पराण

ऽङगानयन सञचरति’ तसआत ततकाम होता शसद'

यडोचकाः परवदयः शसयरयददा होता तडीचका:

सतानत हाता परिदधदलयथसमानय एव ततौयसवन

होचकाणा परिधानीया भवनयातमा व होताङगानि

होचकाः'समाना वा इमऽङगाना मनतासतचआतसमानय

एरव ततीयसवन होतरकाणा' परिधानौया भवनति

भवनरति॥५(८)।॥

॥ दलवतरय बराहमण षषठपशचिकाया हितौयोsधयाय:॥२॥

-:

अथ परिधानीया सतोत सपकरमत-‘उभययः परिधानीया

भवनति हीचकाणा,-परातससवन च माधयनदिन चाहीनाव

काहिकाशव’–वदरति । ‘होतरकाणा’ मतरावरणबराहमणाचईसय

शर* ‘हषत’गा ।

’ी ‘चाचिलीक’, ‘हाविानलीक’, ‘हाविजञीक'-दवति पाठाथ परवपरववत ।

९४य 1 ऐतरयबराहमणम ॥

चछावाकाना 3सवनइयपरिधानोया दिविधा भवनति ॥ कथिम १

ददचत-'अहौना:' अहरगणय विहिता:,"ऐकाहिका:' एकाह

परदयतिरप विहिता:; इलव डविधयम "ि॥

ततर होचकविशषसय परिधानीयविशष दरशयति-"तत

ऐकाहिकाभिरव मतरावरण:परिदधाति;तनासमाजञीकानत परच

वत"-इति। ततसताखभयविधास मनावरणाखयरविगकाहिका

भिरव परिदधयात । "त सयाम दव वरण"-इति(स.०७.६६.८.)

परकरतौ परातसवन मतरावरणसय परिधानोया विहिता थी... माधय

नदिनसवन "नयत इनदर नगणन"-इलषा (स.०४.१६२१.)

विहिता 8.1 अहीन विशवतिरय Sपि सवनइय तदव परिधानो

याइया मतवावरणसय दरषटवयम । कथ मिति, तदचत—अहग

खसय परातसवन हि मतरावरणसय "परति वा सर उदित"

इलयख(स०७.६६s-e.) परयायचसयानधा, "त खामदव

वरण"-इलषा(स.०७.६६.c.)परिधारनौया ; ऐकाहिकापि

शव परिधारनीया भवति ॥ तथाहि परछातौ मतरावरणसय "पर

मितरयीरवरणयोरिति नवायारत मितरावरणति याजथा"-इति

.. 'धविनशसतर सखवरजिता दवादशरबिजी हीचका इशयचत-ति आशव बौ० t

६.९ई.इ०॥ मखयासतचलवार:-होता, अधवरय, बरहमा, उदवता चति(आब० धौ० ४०

g,४.)॥ एव आध० चौ० ५, ई,१७. दरषटवय ॥ तच च हीचकय चय: शखिण:॥

९ भा० ४४९ प० १९ प०, ९ भा० २४३ प०१९प०, आवe चौ०१.१०- ९०- दर० I

+ "यचिनतवौरन स खीचिय:। यबिजचछ: सीऽलरपः॥ एकसतोचियचाहस

बी शबी sनतर सी sनरपी न चत सवा sहरषण:षडही वा ॥ ऐकाहिकारतथा सति"-हति

, आय०यौ० ई. २.१-२ ।

आवe चौ०७.९, १२॥ २४३ १०, ३प० ॥

9 आध० औ०७. २. 6 ॥

in पठषचिका ॥ ३९ 1 ५, 1 २.82

खतरकारवचनात (आशख० चौ० ५, १०. २८.) नवाना मनतय

लवति ऐकाहिकाभिरव मचावरणः परिदधातीलतदपरव

अवति ॥ तथा माधयनदिनसबनपि "आ सलधी बात"-इलाहीब

रवल मिति (स० ४. १६.१.) वचति आ । याहौनसखाबा,

साहौनसयतनतर परिधानोया । अहीनसझानरत हि माधयनदिनसिवल

मतरावलशखम । तय "नयत इनदर न टणान"-इलषानय

(स० 8. १०- ११.)। तथा परकतावषि सव परिधानीय :

तथाहि–"कया नचितर आ भवत, कया व न उलबा, कसतत

मिनदर लवा वस,सदी 'ह जात, एवा लवा मिनटरीश दब एःसनना

उचाक इति याजथा"-इतिसतरकारबचनात (आशख० पौ० ५.

९६.२.) "एवा लवा मिनदर वचितर"-इलतसवकादशईसय (स.०

8- १०-१-११.) अनया "च बत इनदर न यान"-इलव

वति "ि मतरावरणख परातसबन माधयमिदनसावन च ऐकतराहि

काभि: परिधान मपपरव भवति ॥ रकाहिकाभिवचबकारी

इनघतर शडयवयाहचरथ: 1 या ऐकाहिका: परिधानौयाखा एव

बाहरगरी मतरावरणख बरिधाबीया, न वनधा इतयरथ: । यदयपि

मतरवरणसय परकत सवनयीरभयो: ड एव परिधानोय, तथापि

अयीनबहलवापच मकाहिकाभिरिति बहवचनम ॥

मतरावरणसय परकतिविदयालधी: परिधनौया नका मददा,

बचछावावसय परदयोतिविखचण सवनइय परिधाजौयाददरय दरशायति

-"अहौनाभिरचोवाक: 'खरगसय खीकरयाननप"-इति । योगय

अचछावाक:, सीsय महौनगताभिचटरिभ:परिदधयात ; न वका

हिकाभि:1 तथाहि-"आई सरसवतीवतोरियचछावाकय"-इति

क. 8घ०९ख०(आब- चौ०१७,४,९) 4 f ऋगमषा बहप सकय बतवि धबयम,

९५० ॥ ऐतरयबराहमणम॥

परवसिन खड(२४९प०) विहितलवात परातरवन एषा अह

गणसमबनधिनी परिधानौया ॥ ऐकाहिक त"गोमडिरणवट"

इलव (स.०७.८४.८.)परिधानौया अ8॥ माधयनदि न लवचछा

वाकय"नन सा त"-इतयाहरगणगता (स.०६.११.२९.) परि

धारनौया "", एकाह त"शन हवम"-इति(स० ३.३०.२२.)

माधयनदिन परिधानौया थ । एरव सति अचछावाकर काहिक

परिधानौयापरितयागनोपरितनसयाहगीणसय समबनधिनघा: परि

धारनौयायाः सवीकार, उपरिच सवरगलोकपरावध समपरदत 1 :

अथ बराहमणाचछासिनः परिधानौया दरशयति-"उभयोभि

बरॉझणचसी; तनीसउभौी वयनचारभमाण एतौरम चामच लोक

मथी मतरावरण चाचछावाक चाथी आईौरन चकाईचाथी सवतसर

चामिनटोरम चव मस उभौ वयनचारभमाण एति"-इति॥ यी

य बराहमणाचसी, सीऽय मभयाविधाभिररकाहिकाभिरडौन

गताभिनध चमभि: परिदधयात ॥ परातसवन परचतौो "स न इनदर:

शिव: सखा"-इति(स० प. ८३,३.)परिधानौया 3 , विछतौ

त"इनदरण रोचना दिव"-इति परवखणड Sभिहिता (२४२ य०)।

माधयनदिनसवन परझातौ विकररतौच "एवदिनदर दवषरण वजबाहम'

इलरकीव (स०७, २३. ई.) परिधारनौया | | एव च सतयसय

बराहमणाचडसिन; परातसवन चावाकसारमय माधचनदिन सवन

-"य वामख मन इति नव(स० se४.१-९)"-इति आशव० औ०५.१०.६८॥

"ल सा त इतयनत सकषमम"-इति आशवe धौ० ७.४.१०। -

"इचछनति लवा ( स० ३.३०, १-२२. )"-इति आध० चौ० ७.५, ९० ॥

3 "उचदभौति तिख:( स० प. ९३. १-३.)"-इति आशव० चौ० ५.१०, २८ ॥ "

'

|"खदबराणि (स० १९३.१-६,)"-इति आध०औ०७,४, ९ ॥ . . .

॥ षषठपचिका । २९ । ५ ॥ ९५१

मतरावरणसामरय समयकतरम॥ "तनी"तनव, ऐकाइिकाईोनगती

भयविधारशसननव 'सी' बराहमणाचसी भलोकः खरगलोक:'उभौ’

अपि 'वयनचारभमाणः' विविध सयशन "एति' गचछति, वरतित

इतयरथ: ॥ परातरावन परकतिविदयालची: परिधानोयाविलचणलवात

लीकइयसथ यथगव सपरश:: माधयनदिनसवन परकतिविकलची: परि

धारनौवकयाजञीकइयसव सहसवरग : ; इलव विविधसपरशो "वयनचा

रामधण'-शबदन विशवचित: । 'आधी' आपि चाय बराहमणाचसौ

मतरावरण चाचछावाकम,"उरभौ'चटलविजौ "वयनचारभमाण एति'

विविध सपयशनवतरतत॥ कथि मिति, तदचत-यथा मचा

वरणसय परकचतिविझलची: परिधानोवकयम, तथा बराहमणाच

सिनोपि माधयनदिनसवन तटकतरम । यथाचछावाकसय परदयोति

विकलघीःपरिधारनीया-वलचणयम, एव बराहमणाचसिन: परापतसरावन

ठतईलचणय मिति ॥ यथा मतरावरणाचछावाकोविषयारय विविध

सरण:, तथवाहिीनकाइविषयपि विविधःसौ उनहनीय:॥ कथि

मिति, तदचत-परातसवन अहोनकाहयावलचरलन सपरश,

माधयनहिन सवन साइलन सॉ,इति उभयविधतवम । तथा

सवतसरर गवामयनमल परकतिपरव मनिषटोरमच विविध सवशाति ;

अहीनकाहसशवदतदभयसपरशसय याजनीयलवात॥ . . .

इयरथ होतरकाणा सवनदयगता: परिधारनीया: परशसय ढतीय

सवनगताः परिधानोयाः परशसिति-"अथ तत ऐकाहिका.

एव ढरतीयसवन होतरकाणा परिधानौया भवनति, परतिषठा वा

एकाह:, परतिषठाया मव तादयजञ मनतत: परतिषठापयनति"-इति ॥

एकाड मलझतौो जयोतिटोम डोतरकाणाया एव परिधानीया,

ता एवाइरगण ढतीयसवन दरषटवया: । तथाहि-"आवा राजाना

२५टर ऐतरयबराहमाणम ॥ा।

विति नितय मकाहिकम’–इतिवचनात मतरावरणख ‘आवा

राजानौ’-इति- (स० ०. ८४. १.) -सझासयानया परिधानीया

भवति । तथा बराहमणाचछलसिनी sपि ‘अचछवाम इनदर मिति

निलय मकाहिकम’–इतिवचनात ( आशख० वी० ८.३.३8.)

“अचछाम इनदरम’–इति-(स० १०.४३.१.)-सतासयानया परि

धानीया भवति । तथाचहावाकसय “ऋतरजनितरीति निलयानचका

हिकानि”—इतिवचनात(आशख० धौ० ८.४.३) “स वा करमणा”

–इति-( स० ६. ६e.१.) -सतासयानया परिधानीया भवति ।

यषय मकाह, स मलपरछातिलवात ‘परतिषठा’ सरवासा विछतीना

माधार:। अतसतनकाहिकापरिधानीयारशसनन यजञम ‘अनतत:’

अवसानकाल ‘परतिषठाया’ सकीधार परतिषठापियनित ॥

इशय परिधानीया: परशपासय परातसदधवनगताना याजथादौना मधव

अवसानाभारव विधतत–“अनवान परातससवन यजद"–इति।

‘अनवानम' अनचछासम, उचछासी मधय यथा न भवति तथा

याजया पठत शर. ॥

सतीमडईौ नियमविशषरष विधकतरि-‘एका इद' न सतोम मति

असत; तदयथाभिहषत पिपासत चिगर परयचचत, तादतादथी चिारय

दवभयी sवादरय सीमपीथ परयचचानीति ; चिपर हासिमजञोक परति

तिषठति’–इति । . चिडतपशचदशसपतदशकविशपतरिणवचयसतरिशादय:

बसतीमा विहिता: ॥ विहितसय सासदशसतोमसया विटटोहा अषटादशा

दय: सतोमा निषयादयानत ॥ तथाहि विहितरबकविशपसय विडहगा

दयाविशादय: सतोमाः सममादवानत । अन नव दषटानतन शरसनrपया

* १ भा० ३६७ प०, २भा० १६० प०। आशच० शरौ०५.१.४,५।

॥ षषठपचिका | २ | ५, ॥ २५३

धिकरव परसनशम ,"यथा वाव सतोतर मरव शासतरम"-इतिनयायात 8.।

सनति ततर पराकता: सतीमा:; सती म वईमान सति तf सतीमगता

नकसटटा मतिकरमय शासरन तदतिशॉसिरन यदा करियत, तदानी

मकसया इयोवो चचीरभयानजञा न तवधिकाना बचा थ3 अ9 अ।

अवरारथसत–यदा'सतीम मतियासत' सतोमसडा मतिकरमय शासरन

करयात, तदानी मका डीनातिकरमय शॉसत,कि वकयव वा इाभया

मव वातिशॉसत। तथाचसतरकार आह-"अतिशॉसन मकया

इामया वा परातसवन"-इति (आख० चौ० ई. १२.४.)' ॥

ततोगधिकाना शासनाभाव यकटरिटातसखनीचत, आचारय दषटानती

वगनतवय: 1 यथा खीक 'अभिईषत" घासारथ माभिमडशन

"हषा'-शबद कवत खाय वा,"पिपासत' अलयनवढषाततॉयपरषाय

वा "अननादन"पारनौरय चितर परयचछत, ताइगव 'तत'चटगबाडलय

भावनातियासनम। "अरथी' अपिच चितय मव दवशय: सोमपानरप

मखादय' परयचछरतौलयभिपरतय चटगबाहलयन विलमब मझलवा एकया

डाभया वा आतिशॉनसरन करयधात। तथा सति "चिगर"शतर मवा

सिन लीक परतिषठिती भवति ॥ . . . .

सवनानतरयोजवपरीलरध विधत-"अपरिमिताभिरततरयो:

सवनयोरपरिमिता व खगो लीक: सवरगीय लोकखालया"-इति न

इयतव एवलरव नियमरहिताभिवहीभिकटविभपरतिशॉनसरन सवन

इय करयात; खरगलोकवयततारहितलवात, तसय लीकसव पराचारय

मिद मतिशॉनसरन समदत ।

e १ भा० ४५५पर०१प०। "यडाव सतौच तचसतर, यास चव खवत बता पा"

जसति"-इति शतeबरा० ८.१.३,४। "सतीतर मगर शासतरात"-इतिच आवe चौ१५-१-१l

- "अपरिनिवाभिरतरियी:सवनयी:"-इतिचवदलारसन । साइया-चौ-१९.२.11

२५8 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

यनतरातिशसिरन कतरतवरय भवति, तनतर तदरथ मचा मागमन करत,

वयम ; तासा मचा दश विशष दरशयति-"काम तडौता शीलवाडी

तरका: परवदयः शॉनसयरयडा होता तडोतरकाः;पराणा व होताडरानि

होतरका: ; समानी वा आरयपराणाइगनधनसशरति ; तसआकतकारम

होता शॉनसडतरका: पवद: शॉनसयरयडा होता तडौचकाः"-इति।

अहरगणष वरतमानदिनात 'पवदः"मतरावरणादयी 'होतरकाः''यत'

खा शसय, तदवसद परदबईौता "कामम' अविशडयवशसत ;

-यदि होतरतिशॉसिरन परसम, तदारनो परवदलहौतरक: शासतात

सझाइच आनतनयाः; यदित हीकाणा मतियासरन परसाम,

तदनो परवदयहॉता यत सॉ शसति, तरआत सझाडोतरकरप

चिता चटच आनतवधा:॥ होत: पराणपरधानौयलवाडोतरकाणी

हसतपादादयवयवसथानीयलवात परसपरसझाडगानयन सलयरय पराण

सरवशववयवष पचपात मनतरण तलय एवानसाझरति । "तसाकत

कामम"-इति उजञाथौपसहारः॥

इध परिधानोयापरसडन बडिसचयाजथाया अनवानलव मति

शसरन च निरणय,अथ परकत मव परिधानोयासतति मनसरति

"सलातहौता परिदधदलयथ समानय एवढतीयसवन होतरकाणा

परिधानौया भवनयातमा व होताइवनि होतरकाः. समाना वा

इमजङकाना मनतासतसमात, समानघ एव ढतौयसवन होतरकाणी

परिधानीया भवनति भवनति"-इति। सझाना मनतिमा ऋचः

'सनानता" ताभिचरिभईौता ‘परिदधत’ शखसमापन इवन

अतिवतरतत । ‘अथ' होतरननतररर होचकाणा सचत,—तषा

ढरतौयसवन परिधानोया: "समानय:" तलया एव भवनति 1 एकाह

याःपरिधानौया,ता एवाहरगऐष भवनति । तथाच परव मलम

I। धषठापचिका ॥ २.। ५॥ २५५

*रीकाहिका एव ढतीयसवन'-इति (२५१ य०), तदवातर

हचा सहपरशसारथ मनचात। यषरय होता, सोयम ‘आतमा व'

दह एव ; डोनकासत हसतपादा दवयवाः, तषा च हसतादौना

ममता: 'समाना:" तखथा एव दशयनत ॥ दचितरणहसतसयानती

याइश:, पचालयपत, ताइशएव वामहसतसयानतीsपि ॥ एव

पादया:, सतनकणोदियगमयौतसयानतलव दरषटवयम । "तसमात

समानय एव"-इतयपसहार: ॥

पदयासोशयायसमागरथ ॥ ५॥ .

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया दवितीयाधयाय !

(सरविशाधयाय)पचम:खणड: ॥ ५(ट)॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

पमरथधितरी दयाद विदयातिीरथमहशखरः॥

इति धीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

मौरवौरवकभपालसाबाजथधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवसायणाचायॉण विरचित माधवीय 'वदारथ परकाश'नामभाय

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया: दवितीयाधयायः ॥

II अथ ठतौयाधयाय:॥

(व)

॥अथ परथमः खणडः॥ . . .

."

॥औ॥आ वावहत हरयइति परात: सवरन उदीय

मानशयो इनवाह' वषरखती: पौतवरतीः' सतवरतौ

रमइतौ रपसमडा ऐनदरौरनवा हनदरो वयची गायचौ

रनवाई गायरच व मातःसवन'नव नयनः परातःसवन

जवाह नयन व रतः सिचयत दश मधयनदिन जनवाह'

नयन वरतः सिह मधरथ खिवsपरापयखविट भवति'

नव नयनासततौयसवन इनवाह" नयनाई परजाः

पर जायत तबददतानि कवलसझानयनवाह यजमान

मव तइरभ भरत म जनयति यजञडवयोवशत हक

स-सपतानवाह सपत मातःसवन"

सत माधयनदिनी'

सपत तरतौयसवनी'यावयोव परोनवाकचासतावसथी

याजयाःसन व-पराची यजनति सात वषटकरवनति'

नतासा मताः परोनवाकया इति वदनतसतत तथा न

करयादाजमानख ह तरती विलमपनथो यजमान

मव यजमानो हिसझ नवभिवा एत मचवरणो

a "सविय" का ॥ + "व" क-पसतक नासति ।

1 घटपतरिका| ३ । १॥ २५७

ऽखाडोकादनतरिचालोक मभि पर वहति’ दशभिरनत

रिचलोकादम' लोक "मधयनतरिचालोको हि जयषठी'

नवभिरमषाडोकात खग लोक मरभि न ह व

त यजमान खग लोक ममि वोटबह महानति य

स-सनमानवाहलतचात कवलश एव सझानयन

बरयात ॥ १(६)I

परातसवन हातरकशखाणयनरपो

यरितरवव सतवत सतीचितय एष: ।

आरमभादा आहवरनौया: परिधानौया

इड खीम सयादतिशॉसारथढचव ॥ १ ॥

अथौबीयमानसहानि 33 विधात सपकरमत–"आ दवा वहनत

चहरय इति परापतसावन उदीयमानशयीsनचाइ; कषणखतीःपीतवरती:

सतवरतीरमडती रपसमडा"-इति। यदा चमसा "उननौयनत'

सोमन परयनत, तदानौी मधवीणा परषिती मतरावरणः "आ दवा

वहनत"-इति(स० १.१६.१-२,)सतर मनबयात । तसिन

सन खिता। ऋचीकषशदन पौतशबदन सतशबदन मदणदनच

यला: । तनतर दवितीयपाद ‘बषरण सीमपीतय"-इति दवषशबद

पौतशबदौी विदत : चतथयो सचि "सत हि लवा हवामह"

इतिधवणात सतशबदो विदयत; अषटमाया मचि "इनदरी मदाय

गचछति"-इति मदशबदो विदयत। यदययित शबदाः सरवाखच न

नई "उदीयमानयी Sनवाहा लवा वहनवसावि दव मिहीपयातलयनसवनम"-इवि

घाव चौ०५.५.१.। तानि चसतानौह परथमठतौयचतरथखणडरविचौथत 4

वर

१५et ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सनति, तथापि कचिचछवणात सरवा अपि छतरिनयायन तः शबदयता

भवनित । वरषगणचम इनदर: सीम पीलवा मा दयतीलधरसयारथसयोकता

शबदचतषटयन परतीयमानतवात विवचितारथानकलयन रप

समहतवम ॥

दवताहारा ता ऋटच: परापरणसति- ‘ऐनदरीरनचाहनदरी व यजञ:’

—इति। ‘इनदर लवा सरचचस’—‘इनटर सखतम रथ’—इति

शरवणात शरी इनदरदवतावा कच:; सीमयागवनदरदवताक: ‘';

अतसतच ता यजयनत ॥

छनदोहारा पररशसति-‘गायतरीरनचाह ; गायतर व परात

ससवनम"—इति । परातससवनसय गायतरीचछनदसकलवात तचछनदखका

ऋटच: ततर यागया: ॥

ऋटकसडङकाददारा परशसति-‘नव नयनाः परातससव न sनचाह ;

नयन व रतः सिचत"—इति । मधयनदिनसवन दशसडढाका

वचछनत(३ख०); ता सडङका मपचयाच या नव सङकावासता एक

यरचा नयनाः; लाकपि ‘नयन’ खलपी गरभखान रत: सिचयत।

अती नयनलव मतर यकताम ॥

अथ माधयनदिन सवन “असावि दवङगीचकटजीक मनध:’-इतच

ततसलगता दशसङकाका ऋटची (स० ७.२१. १–१०.) विधतत

–“दश मधयनदिन नवाह ; नयन व रतः सिरक मधय सतरिय परापय

खयविरट भवति’–इति । लोक सखलय गरभसथान सिक रत: सतरी

शरीरसय #ः मधयखान परापय गरभरपण ‘खविषटम’ अतिखरख

* स०१.१६. १, २ ॥ ‘हि दवतवशवरनति’-इतयादि: आशव० औ० ५, ५, १. दव० ॥ -

iी ‘इनदर: सीमखय काणका'-दति स० ८,७७, ४ ॥ निर०५, २, ई ।

म न ल ‘सतरिय'-दति पद मसति; तसयवाथॉशयम । षषठपरथ। चतरथी (पा० २, ३, ई २, वा०)|

॥ षषठपचिका ॥ ३ ॥ १ ॥ ९५c

भवति | आती रतसकखालीयाया: चाची गरभखारनौयाया:

साइनाधिकव यजमम ' ॥ ,

ढतीयसवन "होपयात शवसी नपात"-इलततसलगता

नबसडाका चची (स.०४,३५. १-c.) विधतत-"नव

यनाखरतीयसवन इनचाइ; नयनाई परजाः पर जायनत"-इति 1

परववद दशसदधापचयान नयनलवम ॥ लीक डि"यनाद' अखपाल

योनिडारात थौढा: परजा उतपावत : आती गभातपादनारथसच

नयनलव यवा म""॥

एत सल मतदवय मसति। समपरणखातवन मिलक मतम,

परतिसल ससाना मवचा मनवचनव मिति दवितीय मतम । तच

परथम मत परशसति-"तवदतानि ववसलानयवाह,यजमान

मव तहम भरत पर जनयति यजञाहवयनव"-इति । "कवल’-शबद

समपरणवाची। तदनवचनन समपरणग म परारस यजमान जव यजञ

रपाद दवयोवदवसमबनधियोनिखानादतपादयति। अतः समय

एॉनवचन यकता म. ॥

इितौरय मरत दरशयति-"त ह व सपत-सपतानबाह,-सम परात

सावन, सभी माधयनदिन, सपत ढतीयसवन,यावली व परोनवाकया

सतावलधी याजथा:; सपत व पराची यजनति,सात वषटकरवनति,

तासा मता: परीनवाकया इति बदलत:'-इति ॥ "त" परसिदधा

ऋखिजः'एक"कचित तततवाल यथोलगताऋचःपरतिसल

ससखाका एवानवाइ, न त समपरणसहानि। तलव वयाखयान

"सत परातसवन"-इतयादि। "यावलय"-इतयादिना तदीया

० चितौयवतीयची: खणडवी: दरषटवयम (आध० औ4५.५, १४.)।

म चितौयचतरथयो: खणडयो: दरवय (आब० बी०५,५,१४.)। .

९ई० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

यविरथत । परोनवाकयाना याजथाना च सडडा परायण समानव

दशखत I तथा सतयनतर "सपत' सपतसइलाका चकटलविज:– होता,

मचावरण,बराहमणाचसी, नट,पीता, आगनौध:,अचछावाकल

चत शरी पराडसखाः "यजनित' याजया: पठनति। तलव वयाखयान

"सस वषटकरवनति"-इति 1."तासा' सपतभि:पठशमानाना याजथा

नाम 'एतः' सझगताः ससइयाका ऋचः परनवाकया भवन

नतीति । एक ताइरशी यलिॉ वदनत: सास-सपतानचाहरिलयनवयः॥

तदिद मरत दषयति–“तत तथा न करयाद ;यजमानसय

इत रती विलमपनयथी यजमान मव; यजमानी डिसजम"

इति । सपत-ससति यमतम, तततथा न कयात । "त' सास

सडयावादिनः समपरणसझाभावादजमानसय परजोतपादक "रत'

विनाशयकति ॥ 'आधी' अपिच यजमान वव विनाशयकति J

सकरय यजमानरपवन समपरणसतरविलप एवयजमानविलपः॥

परमत दारष दरशयिलवा खमत गरण दरशयति-"नवभिवो

एरत मतरावरणो एसआशीकानदनतरिचलाक मभि पर वहति , दशा

भिरनतरिचलाकादम लोक मभयनतरिचालोकी हि जयटो नवभि

रसआजञीकात खग लक मभि"-इति। परथमसझगताभिचभि:

‘नवभि''एरत'यजमारन भलाकादनतरिचलाकम ‘अभि"खादय

नयति। दवितीयसलगताभिः"दशभि' म ऋगभिरतरिचलाकाद

क. "आपौवीरय परव मन । सिकताधोपरि रौदरणति सरवच। घट सदस। परतयड

लखीचार मपरण होतः। दचिणपरवणौदषवरीो मचवरणसय। हीढधिषण मकत रणचतर:

बनानतरान तरावणालसि-पीव-नडचछावाकानाम"-इति कातया० चौ० ८, ई, १ई-६१ ॥

आतससवन "शरा लवा वहन"-इति नवरच सतरो विडितम परथमखड(६५७०)॥

3 माधयनदिनसबन "असाविदवम'-इति दशरच सतरो विधासत ढतीयखरडी।

॥ षषठपतरिका | ३ | २. It २६१

'अम लक" नाकषठाखरथ लकम ‘अभि'लच नयति। अनत

रिचसय य: समीपवततो खरगभाग:, स नाकषठाखथी लाक: ;

सचपरडडादनतरिचाद थ ‘जवट' अतिगरडड:; रत दशभिः पराय

तसरावाकषठाखयानद, "अमआत' सवगावीकादपरितरन बहभोग

यक'खगलक"ढतीयमहगताभिः‘नवभि'' ऋगभिरयजमान

सभि वहति ॥

खमत गणान दरशयिलवा तदराइितय परमत दरशयति-"न

हव त यजमान खग लाक मभि वबह मईनति,य सास-सा

वाड."-इति॥ 'य' परवपचणः परतिसॉ ससझाका एव

वाड, 'त' सझानयनलवात परवोततरौलया खग परति यजमान वट

नाईनित ॥

खमरतनिगमयति-"तलातकवलणपबसझानयतबयात"

-इति। "कवलश' परतिसली समपरण मवलयरथः॥ १॥

इति चौमसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया ढरतीयाधाय

(अषटाविशाधयाय) परथमः खणड:॥१(८)

॥ अथ डिरतौय: खणड: ॥

अथाह यदनदरो व यहतो 5थ कसबाद, इवव

परात: सवन परयिताना परतयचादनदरौमया यजती'

• अनतरिचशबदऋह सवच दीरघमधयःखग सखकयोः।

: वतीयखन "डीपयात-ति नवच एव विधायत चरथखी। .

२६२ " ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

होता चव बराहयणाचलरसी'चद दत सौमय' मधविति

होता यजरतौनदर दवा वषभ वय मिति बराहमणा

चछीसी" नानादवलथाभिरितर कथ तषा मनदरी

भवनतौरति मिरच वय हवामह इति मचवरगगी

यजति वरण सोमपौतय इति यई कखि पौतवत

पद तदनदर रप तननदर भौणति' मरतोयख हि

चय इति पोता यजरति स सगोपातमी जन

ईतौनदरो व गोपालदनदर’ रप तननदर' भौणावगन

पचौरिहावहति नषटा यजति तवषटारर सोमपौतय

ईतौनदरो व तवषटा तदनदर' रप तननदर' पौणाध

चाझाय वशाझाययानौधी यजति सोमपछाय

वधस इतौनदरो ववधासत दनदर रप तननदर भौणति'

परतयॉरवभिरागरत दवभिजनयावस'इनदरानी सीम

पौतय इरति खरय समडाचछावाकलवमहता ऐनदरी

भवनरति यजञानादवलथातनानया दवताः परौणाति'

यट गायचrसनागनय एतदहताभिखय मपा

शोतिi॥२(१०)॥

व गलियावाला बाध लबाल-"अगर

यदनटरी व यजञी थ करमाट इवव परातसवन परसिदध ताना परतय

चादनदरीभया यजत हाता चव बराझणाचौो चद त सोमव

॥ षषठपशचिका । ३। २ ॥ २ई३

मधविति हाता यजतीनदर लवा डषरभ वय मिति बराहमणाचछसी,

नानादवलधाभिरितर ; करथ तषा मनदरयो भवनतीति १’—इति ।

‘अथ' उनतरीयमानसकनिरणयाननतर कविद बरहमवादी चादयमाह।

यसमात कारणात यजञः ‘ऐटरो व’ इनदरदवताक एव । तयव सति

सवषा सटलविजा मिनदरदवताका एव याजया अपचिता: ; अतरि त

पररिशवतसीमाना याग परा तससावनकालौन हीढबराहमणाचकसिनी

इावव ‘परतयचात’ थीचपरसयचण वा शरयमाणाभया मिनदर दवता

कामया सटगभयाि यजत:;न लिवतर। ‘इद त सीमयम'-इति (स०

८.६५. ८.) होतरयाजया । तरयासततीयपाद ‘जषाण इनदर”–

इति परतयच एवनदरशबद: धयत ; ‘इनदर खा डषभ वयम"-इति

(स० ३. ४०, १.) बराहमणाचछसिनो याजथा ; तातर सपषट एवनदर

शबद: । ‘इतर' पजचलिरवजो ‘नानादवतयाभि:’ चकटगभिरयजनति ;

तषा मलविजा ता ऋचः कथ मिनदरदवताका भवनति ? इति

चोदयम । ततर पचाना मतविजा याजधाखिनदरदवता कलव सममाद

नीयम ॥ ------ ------

तवकसया याचयाया तत समयादयति-‘मितरि वरय हवामह

इति मतरावरणा यजति ; वररण सीमपीतय इति, यद किच

पौतवत पद, तदनटर रप, तननदर परीणाति’—इति । मतरावरणसय

‘मितर वयम’–इति (स० १.२३. ४.) यरय याजया, तसया

हितौयपाद वरण मितयादिक ‘पीतवत’ पिबतिधातयरत यत

किचितपद मसति, तदिनदरसमबनधि रपम ; इनदरसय सोमपान

परियलवात ॥ ‘तन’ हि पीतवतपदननटर परितोषयति ॥

पीतरयाजथाया ऐनदरलरव दरशयति-‘मरती यसव हिचाय इति

पीता यजति; स सगीपातमी जन इतीनदरी व गोपासतदनटर रप,

२६४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

तजनदरी परीणाति"-इति । "मरत:"-इतयसया (स० १.६.१.)

याजथाया ढतीयपाद "गोपा'श दननदरो अभिधीयत॥ गोमलव

रचकलव मिनदरसबबनधि रपम, तननदर सय परौतिः ॥

नटरयाजथाया ऐनदरव समपादयति-"आन पढीरिहावहति

नटा यजति ; लवटर' सीमपीतय इतौनदरी व तवषटा, तदनई रप,

तजनटर परीणाति"-डति 1. "आपन पढो:"-इतयसया याजयाया:

(स० १.२२.८.) ढतौयपाद यरवटा, स एवनदर, शबबरण

तनकरणदिदरयवटरवम॥

आगरनौधसय याजयाया ऐनदरव सममादति-"उचानीय वणा

बरावलयालीधी यजति ; सोमषठाय वधस इतीनदरो व वधासतदनटर

रप, तननदर परोणाति"-इति । "उचानाय"-इतियाजथाया:

डितीयपादयी वधाः : स एवनदर, इनदरसय जगदवयवखयाविधा

यकवनवधशबदवाचलवात ॥

अचछावाकसय याजयाया: ऐनदरलरव समपादयति-—"परातयाव

भिरागरत दवभिजनधावस, इनटराजी: सोमपीतय इति खरय सम

डाचछावाकसय'-इति 1‘ह इनटरारनौी | 'जनधावस" जनरव जतवरथ वास

धरन ययोसतौी ताइौ भलवा 'परातयावभि:' परातसवनगामिभि:

"दवभि:'दव: सह "सीमपीताय' सोमपानारथम "आगतम'आग

चतम। असया मचि‘इनदरासनी-धवणयपि इनदरशबदसय परतयचसव

विदयमानवात खय मवदरबाय 'समदधा' समयरण ; न वदरव

समपादनौय मसति (स० र. ३८,७.)॥

अचा समपादित मनदरलरव निगमयति-"एव म. हता ऐनटरी

भवति'-इति j

- १. ताखच दवतानतरणीरति दरशयति-"यखानादवलयासतनानधा

I राषषठपचिका । ३ । ३ ॥ २६५

दवता: परौणाति"-इति ॥ मितरावरदौी मारती निरवधा इनटरानी

इलताभि: ‘नानादवताभि:' यजञा ऋच:इवि यदसति, तननदर

वयतिरिकशा दवतासतीषयति j

बततरतव छनद: परॉसति-"यद गायतरसतनालनयः"-इति 1

अनिगायतरी: परजापतिमखजतवसमबनधाट शa. गायतरीचनदस

ताखा मनिदवताकलव समपरदायत 1

उता परशसा निगमयति-"एतद हताभिखय मपाओीति"

-इति। ‘एताभि: ऋविभ:""एतद इ" परवोततर मव "तरय" तरिविध

बदवतासमबनधरव परापरीति 1 तनतर ततर पररतौयमाननानाविधदवता

कतरव, परवॉशरीतया समपादित मनदरव, गायतरीददरणा लयतव चति'

बरथ वदितवयम ॥ २. I

इति धीमलवायणाचारयविरचित माधरवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपबिकाया ढतौयाधयाय

(अषटाविशाधयाय) दवितीयःखणडः॥ २(१०) ॥

" . ----

I अथ वरतौय: खणड: ॥

आसावि दव गोचकटजौक मगध इति मधयनदिन

उदीयमानभयो नवाई वषरखतीः पौतवती, सत

वतीरमइती रपसमडा' ऐनदौरवाहनदरी व यजञ

बिषटभो जवाह चटररभ व माधयनदिरन सवनतदा

I

.. - त• स० १-१.४(१ भा० ९९ध3) 1 . . . . .

२ई ह. " i ऐतरयबराहमणम ॥ "

हरयनततीयसवनलव रपि"मडदथ कसान मधयनदिन

मदतोरनचाह यजनति चाभिरिरति मादयतौव व

मधयनदिन दवत: स मव ढतौयसवन मादयनत'

वतसरान मधयनदिन मदतौरनचाहयजनति चाभिसत

व खल सरव एव माधयनदिन' परखिताना परतयचा

दनटरोभिरयजनवभिढसवरतौभिरक "पिबा सोम मभि

य मगर तरद इति होता यजति' स ई पाहि या

कटजिरषी तरच इति" मचवरणो यजलवा पाहि

मतथा मदनत दवति बराहमणाचसी यजलरयवॉडहि

सोम काम वाहरिति पोता यजति'तवारयसोमरतव

महमवॉडिति नषटा यजतीनदराय सोमा: पर दिवो

विदाना इलयचछावाको यजतापगा अख कलशः

खाहलथानौधी यजरति तासा मता अभितरावली

भवनतॉनदरो व परातः सवन न वयजयरत स एताभिरव

माधयनदिरन सवन मयतणदादमयतणकतवादता

अभितबवलधी भवनति॥ ३(११)।॥

अथ माधयनदिन उबीयमानसॉ विधतत-"असावि दव

गौचटजीक मनध इति मधयनदिन उदीयमानभयो नचाह; दषणखरती:

पीतवती: सतवतीरमडती रपसमडाः "-इति ॥ माधयनदिन सवन

अधलणा परषिती "असावि दवम"-इतयादिक (स. 9.६९.९.)

सता मनषयया। तवलया ऋचः इष-पीत सत-मद-शबदीपताः।

॥ अषटपतरिका ॥ ३ | ३ ॥ २६e

परवीच "दश मधयनदिन नचाह"-इति सईवोला,न त सरय दरशि

तम (२५८पर.); अतर लवसावि दव मिति सतर परदरशत। अख

सखडिरतौयसवामचि"बषणी बषा च"-इति डषखचछदयतः।

दवतीयखा मचि "रथी धना"-इति धनाशबद: पिबतिधालवरथ,

तन पीतवतवम , "धट पान"-इति (भवा०८०२.)हि धातः।

"असावि"-इति सनीतिधातः(खा०१.) नयमाणखात, सत

वतवम ॥ परथमाया ऋची 5वसान "अनधसी मदय"-इति माइतव'

यतम। रपसमडरव परववदयीयम ।

दवताददारा छनदोडारा च ता चटच: परॉसति-"ऐनदरौरनचा

हदीव यइसतरियभोनवाह चटरभ व माधयनदिरन सवनम'-इति ॥

दवितीय पाद"अनधसिविनदर"-इतिघवणारदनदरलवम। एव मगल

रवयदाहररणीयम ॥ . .

.. माधयनदिनसवनसय वटभतरव परसिडम, मइतौरिति यदरग, तरया

चप मदधावयति–"तदाहरयत ढतौयसवनखव रप मइदथ कसमान

बधनदिन मइतौरतचाइ यजनित चाभिरिति"-इति ॥ ढतौय

सवन सरवषा दवानf सीमपानादई' हरषसधवान महतव'ढतौय

सवनसलव रपम॥ तथा सति मधयनदिन सवन मडतीना मचा मन

वचनम'आभि:'मइतीभियजरन च करआत कारणादिति चौदयम।

तसवीतर माह-"मादयनतीव व मधयनदिन दवता: बस मव

ढतौयसवन मादयत; तसरान मधयनदरिन मइतौरतचाह यजनित

चाभि:"-इति ॥ माधयनिदन सवनSपि दवाना सोमपालसटटा

वातता: मादयनतयव : ढरतौयसवन त निरवशषाणा दवाना सीम

पानसममतथा 'सचादयत' सभय इथनतीलतावानव विशषः।

बतसमात ‘मोदसय' हरषय माधयनदिनसबनऽपि साझावात, तनतर

२ईट ' ॥ ऐतरयबराहमणम ।

'मइतौ.'अवचा मतरावरणीनचाह॥ डीवादयसपतरविजः'आभि:"

मडरतौभिनरयजनित ॥ "

अथ ताः परसथितयाजथा विधत-"त व खलसरव एक माधय

दिन परयिताना परतवचाटनटरोभियोजनित'-इति ॥ 'त' होवाटरय:

सरविज:सरवपि ‘माधयनदिन' सवन परखितसीमाना समबनधि

नौभि:'परतयचात' परतयचण पठशमाननवनदरशदन परयकताभिरिनदर

दवताकाभिः ऋगभिरयजयः। तष सरखद मधय डोड-मनावरण

बराहमणाचसिना चयाणा समबनधिनौय याजघास नकवल मनदरलरव

किनत अभिढसवतवम ॥

अपर विशष टरॉयति-"अभिढसवतीभिरक"-इति । अभि

यरवसय ढदिधाती ररष याखरित, ता:"अभिदरसवतय'॥

ततर होतरयाजया दरशयति-"पिबा सोम मभि या मखय तरद

इति (स.० ई.१es. १.) होता यजति"-इति । ततराभिशबदरय

तरदशबदय च विदयमानवात अभिढशवतवम ॥ .

मतरावरणसय याजया दॉयति-"स ईमपराहि य काटजीरषो

तरतर इति. (स० ई. १७. १.) मतरावरणी यजति"-इति ॥

"स ईमपाहि"-इतयसयाचतरथपादअभिढशवतवम॥

बराहमणाचौसिनी याजघा दरशयति-"एवा पाहि परखणथा

मनदत लवति (स.०६.१s. ३.) बराहमणाचरसी बजति"-इति 1

*एवा पाडि"-इतथरया यचि चतरथपाद "अभि मा इनदर ढनधि"

-ईतिवणादभिदरसवतवम ॥ एतासतौडलिवजी Sभिपरतयाभिटस

वरतौभिरक इतयजम(१०परय०)॥ ि

पीतयोजया दरशयति- "अरवाडहिसीम कारम लवाहरितिक

(स० १. १०४.८.)पोता यजति"-इति 1 .

॥ षषठपचिका । ३ । ३॥ २६८

नदयौजया दरशयति-"तवारय सोमसव मझावौडिति (स.०

३.३५.६.) नषटा यजति"-इति॥

अचछावाकखय याजया दरशयति-"इनदराय सीमाः पर दिवी

विदाना (स० ३.३३. २.) इतयचछावाकी यजति"-इति ॥

आगनौधसय याजया दरशयति-"आ। परणा असथ कलश:खाड

तयागनौधी (स० ३.३२. १५.)यजति"-इति ॥ .

उठाना ससाना याजथाना मधय "पिबा सीमम", "स

ईमपाहि","एवा पाहि"-इति तिरन चटची Sभिढसवतवन परशा

सति-"तासा मता अभिढणवतथी भवनतौनदरी व परातसवन न

वयजयत ; स एपताभिरव माधयनदिरन सवन मधयढणदयदयढण

तरनादता अभिडबवली भवनति"-इति। अभिपरवतरदनधात,

यनलवादभिदरसवतव' यथा भवति तथव धालवरथसमभवादणयभिढख

वतव' दरषटवयम । कथि मतदिति, तदचत- इनदर: परा परात

सवन समास सति तावता "न वयजयत' विजय न परापतवान

माधयनदिनसवनख गरबन गलितलवात । तदनी मिनदरसतख

माधयनदिनसवनखय खितिसिडवरथम "पिबा सोम"-इतयादिभि

सतिखभिः ऋभिमाधयनदिनसवनम"अभित" परथमढतीययोरमध

"आढसत' तरदन मकरोत, दढबनधन यिरति छकतवानिलघरय: j

'तसमात 'तरदनसवारथसय यनलवादतासातिरणा मभिढसवतवम ॥३

इति शौसढतायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणसव एवषपबिकाया ढरतौयाधयाय

(अषटाविशाधयाय) ढतीय:खणड:॥३(११) I

२७० ॥ऐतरयबराहमणम ॥ .

॥ अथ चतरथः खणड: ॥

इहोपयात शवसी नपात इति वरतौयसवन

उलौयमानभयो नवाह वषखतीः पौतवरतौ. सत

वरतौरमडती रपसमडासता ऐनदराभवयो भवनति तदा

हरयनाभवौष सतवत जयकनयादाभवः पवमान इलया

चचत इति'परजापतिव पित कटभन’ मलरयानती

मलयॉन कवा' ततौयसवन आभजत’ तखाझाभ

वौष सतवत'sथाभवः पवमान इतयाचचत 5थाह

यदयथाचनदस परवयोः सवनयोरनवाई गायचौः परातः

सवन 'तरिशभो माधयनदिन sथ करवाजागत सति

ततौयसवन चिषटरभोsनवाहति'धौतरसव ततीय

सवन" मथतदधौतररस शकरिय छनदी यत चिषटप’

सवनख सरसताया इति बयादथो इनदर मवततर

वन नवा भजतौयथाह यदनदराभव व तरतौयसवन'

मथ कचआदष एव ततौयसवन परखिताना परतयाचा

दनदराभवया यजतौनदर कटभभिवाजववि: समचित

मिति होतव नानादवलधाभिरितर कथ तषा मनटरा

भवयो भवनतौतौनदरावरणा सतपाविम सशत मिति

मतरावरणो यजति' यवी रथी अधवरी दववीतय

इति' बबन वा ह तडभगा रप मिनदरव सोम

॥ षषठपचिका । ३। 81 ३७१

पिबरत बहसपत इति बराहमणाचलसी यजतावा

विशविनदवः खाभव इति’ बहनि वा वह तड

भणा रप मा वो वाहत सयो रघयद इति

पोता यजति'रघपरवानः म जिगत बाहभिरिति

बददन वा इ तदभणा रप ममव नः सहवा आ

हिगननति नषटा यजति"गनतनति बडन वा जह

तदभणा रप'मिनदराविषय पिबत मधवी अचय

चढावाको यजता वा मनधासि मदिराणयगम

दविति' बडनि वा इ तदभगा रप" मिम तोम

मईत जातवदस इतयानौधो यजरति रथ मिव सब

हमा मनीषयति बडन वा ह तदभगा रप मव

म. हता ऐनदराभवयो भवनति' यजञानादवलथासतनानया

दवताः भीणारति यद जगननासाही जागतव ततीय

सवनततीयसवनव समल। थ(१)। ../

अथ वरतौयसवन उदीयमारन सतरो विघतत-"इनहीपयात

शवसी नपात इति (स० ४. ३५. १-८.) ढरतौयसवन उतपीय

मानथी शनवाह; दषरखती: पौतवरतीः सतवरतीरमडरती रपसनद

डासता ऐनदराभवी भवनति"-अधचणा चमसोबयनकालपरषित

मचवरणः"इनहीपयात"-इति सकत मनबयात। ततरलयाची

दष-पौत-सत-मद-शबदोपता:। "आ तचत दषण:'-इति "डशन

शबद: । "स बतसयपीति"-इति मनीतिधातना पिबतिधातना

२७२ ॥ऐतरयबराहमणम ॥

च योग: I "अन वो मदास:"-इति मदिधातयोगः॥ तावलया

ऋच:'ऐनदरभय' इनदरव ऋभव तासा दवतः; "सौधनवना

चटभव"-"गविनदरम"-इति तनतर धवणात॥

चकटभदवतापरसडन ढतौयसवनगत पवमानसतीव किचिवोदय

जझावयति-"तदाहरयवाभवौय सतवत Sथ करआदाभव:पवमान

इतयाचचीत इति"-इति। 'तत’ तखिबभसमबनधविषय चौदय

माड: । यसमात कारणादभदवताखच सामगारदरतौयसवन

पवमानसतीवण न खवत, किनत "खादिया मदिया।"-इतयनध

दवताकाखव खवत *। अथरव सति करआत कारणत पवमान

सतौचसयाभवलव माचचीत 3 इति चौदयम ॥ !

तरयोततर माह-"परजापतिरव पित ऋभन मलरयानसती

मलरयान छलवा ढतीयसवन आभजनत, तरमाननाभवौष खवत ऽथा

भव:पवमान इतयाचची त"-इति । परा परजापतिः पिता भलवा

"मतवॉनट' मनषयान सतःऋटभन "अमतरयान' दवान छलवा ढरतौय

सवन"आभजत' भागिन: अकरोत। तदिद सपाखयानम "आरभव

शसति"-इतयतर परदरशितम' । एवच सतिऋमणा सतोतरदवता

वाभावाद "आरभवी'ऋल उझातारी न खवत; "अथ' अपि

चटभणा ढरतौयसवनसमबनधसझावात ढतौयसवनगतयपवमान

चीनसयाधयाभवलरव वयवहरनति ॥ . . . . . . .

परासबकि परिसमापय परदयोत एव सत चोदय मदधावयति

"अथाहयदयथाचनदस परवयो: सवनयारवाह,—गायतरी: परात

सवन तरियभो माधयनदिन,sथ कसआजागत सति ढतीयसवन

* ड आ ९, १ १५3 ता० बरा० प८.४,५ (२, भाa ई. प.)। . . . .

." प र १ (६भ०१५६)1 . .-..

.* ""

in पटपबिका। ३| 8 ॥ २१३

तरियभी इनचाहति"-इति ॥ "अनय" उनहोयमानसनविधानाननतरर

ततर कविनद बरहमवादी चौदय माह॥ ‘यद' यसात कारणात "यथा

चनदस' तब-ततरोचिरत छनदोननतिकरमय सवनइय गायतरी: निय

भवच करमणानवाह, टरतौयसवन तजागतम 1 तथा सति जगती

मतिकरमय "इहोपयात"-इतयादाखिटभः कसनादनबत ? इतरि

चीदगम 1

ततवोततर दरशयति-"धौतररस व ढतीयसवन मवतदधीति

रस शकरिय इनदो यत नियप, सवनसय सरसताया इति बयादवी

इनदर मवतसवन Sनवाभजनतीति"-इति। वदतत ढतौयसकरन,

तदतनद 'धोतररस' तबदीया एसी गायतरा पौत: सीमाहरणकाल

पइया सवनडरय मखन ढतौयसवन च सटहीलवा तनतरतरव स यायतरी

यौतवरती। तथवाचानयतर नययत-"पझाड सवन समगभणान,

सलक ; यन सखन समगटभणात, तदधयत; तरआद ड सवन

शकरवरती परतिरवन माधयनदिनच, तरसनात ढतीयसवन चाजीव

मभिषणखनित ; धीत मिव हि मचनत"-इति (लe स० ई.

.९.७.४.)। तथव तरिछप छनदी यदखि, एतद 'अधौतरसम'

आपौतरसम; माधयनदिनसवनसमबनधितवात । घतएतत शकरिया

चरसः तदपरत "शकरियम'। अतो जखय ढतीयसवनसथ सरसलवारथ

नियभोनचाहशयतर बचात । "अबो' अपिच तल सरसवननदर

मव ढतीयसवन भागवनत करगति; बरियपछनदसः ऐनदरवत ।

तीननदराभवलरव यकम ।I - '

उज चीदा समाधाय परखितयाजथाविषय चीदा,मइवयति

- "अथाह यरदनदराभव व ढतीयसवन मथ कसमादष एवढतौयसवन

अखिताना परतवचादनदराभवया यजतौनदर ऋभिवॉजवझिःसम

२eg ॥ ऐतरयबराहमणम ॥ा

चिता मिति हीतव, नानादवलधाभिरितर; करथ तषा मनदरा

भवयी भवनतौति’—दवति ॥ ‘अथ’ उतरीयमानसतकथनाननतर'

कविद बरहमवादी चोदय माह। ‘यद’यसमात कारणात ढटतीय

सवनम ‘ऐनदरारभवम', तञच परव मपपादितम(२७१ प०); एव

सतयक एव होता परसथितसोमाना ‘परतयचात’ परतयच ण, मखम

नवनदरशबदन ऋटभशबदन च यकतयचरग यजति । ‘इनदर ऋटभभि:’

इतयादया (स० ३. ६०.५.) सय मगवगनतवया। होतव तया

यजति ; न लिवतर षडलिवजः; त त नानाविधदवताकाभिरवचच

माणाभिचारटगभिरयजनति । तसमात कारणादतत कथ सममनतरम १

किच तषा षखा मलविजा समबनधिनयी याजया: कथ मनदरारमवयो

दिविधदवताका भवनित १ इति चीददयम ॥ --

ततर होतरया जयाया मनटरारमवलवन परितोषातता तथवाङगौकलच

तरषा याजयास करमण ऐनदरारमवलव' दरशयित' कामःपरथमती

मतरावरणसय याजयाया तइरशयति–“इनदरावरणा सतपाविम

सत मिति मतरावरणो यजति; यवो रथी अधवर दववीतय इति

बहनि वा ह तडभणा रपम'-इति। “इनदरावरणा’-इतयखा

याजयाया (स० १.१७. ८.)‘यवी रथी’–इतयसमिन पाद ‘दव

वोतथि।"–इति पदटर विदयत । दवाना वीति: परापति: दवरवीतिरिति

तसय समासः॥ तसय समास षषठीबहवचनानतन शबदन बह यव

रपाणि परतौयनत। ततर बहतव मभणा खरपम; मनथरपाणा

मभशबदवाचाना महरषीणा बहवात । तसमादरथतः कटभसदभावा

दिनदरशबदसय च साचात शरवणादिय मनदरारमवी ॥

बराहमणाचलसिनी याजयाया मारमवलरव सममादयति-‘इनदरध

सोम पिबत छहसमत इति बराहमणाचछसी यजलधा वा विशानिवनदव:

॥ षषठपतरिका | ३ | ४ ॥ ३sg

खाभव इति बहनि वा इ तडभणा रपम"-इति। "इनदरम'

इतयादियाजथायाम ( स० ४. ५०, १०.)"आ वा विशनत"-इतय

सिन पाद"विशनत"-इतयादीनि बहवचनानतानिपदानि ययत,

तरभिधय बहख ममणा खरपन॥

पोतरयाजथाया मारमवलरव दरशयति-"आ। वी वजहनत समयी

रघगधद इति पीता यजति ; रघपवान:पर जिगात बाहभिरिति

बडन वा इ तइमणा रपम"-इति। "आ वो वहनत"-इति

याजथाया (स० १. ८५. ई.)"रघपलवान:"-इतयसमिन पाद बह

वचनानतः पाटरभिधरय बहव ममणा खरपम ॥

नयरयाजथाया मारमवलरव दरशयति-"अमव नः सहवाआ हि

गतनति नषटायजति; गतनति बहनिव ह तडमरण रपम"

-इति ।"अमव नः"-इतियाजथाया (स.०२.३६. ३.) तसिवव

पाद "गनतन"-इतिपदसय गचलततयरथ सति लोणमधयमपरष

बहवचनानतन परतौरत बडव ममणा खरपम॥ .

अचवाकखा याजघया मारमवव दरशयति-"इनदरविषण

पिबरत मधवी असवतचचावाकी यजलधा वा मानधासि मदिरारथ

मविति बडनि वा इ तडमरण रपम"-इति। "इनदरा विषण’

इतयसया याजथायाम (स० ई. ६०.७.) "आ। वाम"-इतयसिन

पाद बहवचना त: "अनधासि"-इतयादिभिःपदः परतीत बहव

ममणा खरपम ॥

आरोधसय याजथाया मारमिवलरव दॉयति-"इरम सटरीम महत

जातवदस इतयारनीधी यजति : रथ मिव सनईमा मनीषयति

बडन वा ह तडभणा रपम"-इति। "इम खोमम"-इतरया

याजथाया(स० १.८४.१.)"रथ मिव"-इतयसिन पाद"महमा"

रSह ॥ ऐतरयबराहमणम r.

-इतयततमपरषबहवचनातन पदन परतीयमान बहव ममरण

सवरपम॥ - . . . "

उन मरथ मपरसइरति-"एव म. हता ऐनदरारमयी भवनति"

इति। उलन परकारण याजथाखभसमबनधसमपादनोदिनदरसमबनधसय

च साचादव यतवादता ऋच ऐनदरामवयः समबदयनत॥

इनदरया चीनसमबनधन परीत सिडबादितरदवताना मपि

ताभियाजयाभि: परीरति टरॉयति-"यवानादवलधारतनानधा दवता:

शरोणति"-इति ॥ इनदरवरणहडसयादिनानाविधदवतायजञा चकटच

इति यदसति,"तन" कारणन "अनया:' इनटराइभमयख वयतिरिकशा

दवतासतोषयति ॥ '

याजथाखवसियरत छनद:परॉसति-"यद जगतपरासाहा जागरत

व ढतीयसवरन ढतीयसवनसलव समह."-इति । जगचछादन

जगतौचनदी भिधीयत, परासाइशबदी बाहखवाची; जगलय:

परासाहः बहला यासझाम परखतियाजघास ता 'जगतपरासाहा:':

वरतौयसवनचजागत मिति परसिडम। अती"यद'यदव जगती

बाहलय',तन ढतीयसवनसय सरयडिभवतिव ॥ ४ ॥ :

इति धीमसायणाचारय विरचित माधवीय वदारथपरकाश !

ऐतरयबराहमणय षषटपकिया ततीयाधयाय

" (अषटाविशाधयाय)चतरथ: खणड: ॥ ४(१२)॥

a "इदत सौमरय०—० उचाझाय वशाझायति परातससवजिकय: परसथितयाजथा: (२ख०),

. पिघा सीम मभि ०-०आ परणा असय कलश: खाहति माधयनदिनया (३ख०), इनदर

चभि:०-० इरम तीस मईत जातवदस इत ितालायसवनकयि:(४ख०)"-इति आवe

॥ षषठपचिका ॥ ३ ॥ ५ ॥ २७७

॥ अथ पचम: खणड:॥ । -

* अथाह यदकथिनयी sनया होरचा अनकथा

अनया: कथ मलता उकथिनय: सरवाः समाः समडा

भवनतीरति यदवनाः समगरगौरय' होचा इतयाचचत

तन समा यदकथिनछो sनया होतरा'अनकथा अनया

सतनो विषामा एव म हालता उकथिनरय: सरवा:

समाः समडा भवनरयथाह शसनति मातःसवन'

शसनति माधयनदिन होचकाःकथ मषा ततौयसवन

शसत भवतौति'यदव माधयनदिन छ ई सक शस

नतौति बरयातनतरयथाह यद छडाकयो होता कथ

होचका हाकथा भवनतौति 'यदव हिदवतयाभिरयज

नतौति बरयातनरति॥ ५(१३)।॥ r

होतरकाणा परखितयाजयाः सवनचय sभिधाय परखर सामरय

वषमयच विवत परशन मदभावयति—‘अथाह यदकविनधी नया

होतरा, अनकथा अनया:, कथ मसयता उकथिनयः सरवाः समा:

सचदा भवनतीति"-इति। होतरकाणा याजयाकथनाननतर कविद

बरहमवादी चोदय माह। होतरकाणा करिया: ‘हीतरा'शबदन विव

चिता: ॥ तास ‘अनया:’ काचित करियाः ‘उकथिनय:’ शसतरयजञा:,

औ०५.५.१८,१९ ॥ इहचता: २६३-२७६ पषठष विहिता दरषटवया:॥ ता एवता:

‘परखितयाजया:-इतयचन।‘हीता यचत०–०इति परषितः परषिती हीतानसवन परखित

- याजयाभिरयजति, नामादश मितर, परशासता बराहमणाचरसी पीता नषटा ऽऽऔौतरी sचावाकय’

-दरति आशव० शरौ०५.५.१५-१७। ..

२७८ i॥ ऐतरयबराहमणम ॥

‘अनया:' इतरा: करिया: ‘अनकथाः' शसतररहिता: । मतरावरणा

बराहमणाचररसयचचावाक इलतषा तरियाणा शासतरसङगावादतदौया:

करिया: ‘उकथिनयः', नटरपीतरादौना शाखराहिलयात तदीया: करियाः

‘अनकथा:’ शर: । एव वषमय सपषट सति ‘परसय’ यजञसय यजमानसय

वा समबधिनयः ‘एता:' होतराः सरवाः ‘उकथिनय' शसतरयकता मवा

‘समा:’वषमयरहिता: अत एव ‘समहाः' समपरणाः करथ भवनति ?

इति चोदयम ॥

तसयीततर माह–“यदवना: समगरगीरय होतरा इतयाचचत,

तन समाः’–इति । ‘यदव' यसमादव कारणात ‘एनाः’ मतरा

वरणादिकरियाः पीढनटरादिकरियाध ‘समगरगौरय’ समभय परकरषणीजञा

‘होचा'—इतिश बदन याजञिका आचचत, तन समा:। यथा

लीक इतरयजञान तदरहिताध सनभय कतरिण इल कनव शदन

वयवहनियनत, एव मचापि शसतरयकता मचावरणादय:,शासतररहिताः

पीढनटरादयय समभय एक नव हीतराशबदन वयवजञियनत। अतः

शखिभिः समभिवयाहारात अशासतरिणा मपयपचरित शखिलवम;

‘तन' वयवहारकचन समा भवनति ; न चतावता खाभाविक

शखिलवाशखिलववषमय मपगचछति ॥

तदतद वषमय दरशयति-“यदकथिनयो नया होचा अन

कथा अनयासतनी विषमा:’-इति । ‘उ’-शबदोsपिशबदारथ: ॥ ‘तन'

उकथिलवानकथिलवधरमइयन विषमा अपि भवनति ॥

सतयपि वषमय औपचारिकोवकथिलन सामय यदपपादितम,

तदपसहरति–“एव म हासयता उकथिनय: सरवा: समा: समदा

भवनति’—इति ॥ ---------

शर १ भा०४४९ प०, आशव० शरौ०५, १०.१० । मतरावरण:=परशणासता।

॥ पषषठपतरिका 1 ३ । ५. I २e.

हिचकब चोदयानतर मझावयति-"अथाह शॉसनति परात

सवन, सिनति माधयनदि न हीचकाः : कथ मषा ढतीयसवन

शसत भवरतौति'-इति। अगनिषटोम मतरा वरणबराहमणाचसवचछवा

काना सवनइय सिरन विहितम, तददधषटानतन ढतौयसवनSघि

शॉसन मपचितम ; तलख न विहितम । तथा सति कथा मषा

ढतौयसवन'शसत भवति'शॉनसन सिधयति १ इतिचौदयम॥

बतसतरयोततर दशयति-"यदव माधयनदिन ड ड सलशॉनसनतीति

बयातनति"-इति॥ मचवरणसय "सदी हो जाती दषभः

करनौनः"-इतयक (स०३.४८.) सचम,"एवा लवा मिनदर वजिन"

-इति (स० ४, १०.) डिरतौयम ; बराहमणाचसिनः "इनदर:

परभिद"-इलक (स० ३.३४.) सतम, “उद बरहमाणि"-इति

(स.०७, २३.) दवितीयम; अचछावाकय "भय"-इयकम

(स० ६.३०.),“इम म य"-इति (स० ३.३६.) डिरतौयमन ।

एव मत वयो माधयनदिन सवन परलकड ई सल भॉसति थ।

तबक माधयनदिनसवनाथ दवितीयनतढतीयसवनारथ मियपचारण

ततरापि भासरन सिधयतौयकतर बरयात ॥

तवव चौदयानतर मझावयति-"अथाह यद डकथी होता,

करथ होतरका दकथा भवनतीति"-इति। 'अथ'ततौयसवन

शसनसमपरादनाननतर' पनरपि बरहमवादी चादयानतर माह । "यद

यसात कारणाडोता ‘हकथ' बी उकथ शख यसयारौ

बकथ: ॥ परातरवन आजथ-परउग डो, माधयनदिनसवन मर

लवतीय-निषकवलय ई, ढरतौयसवन वशखदवागनिमारत डो । एव

खित हीढडठातन होतरकाणा मपि उकथदयपतब मप

क सचित वतसरव माधवजायनन हीचकाणा मिति कॉरिडकायाम ( ५.१ई-) 1

२० Iऐतरयबराहमाणम ॥ ,

चितम, न चाकथइरय विहित मसति : अतसततकन परकारण

सिधयाति 3 इति चीदगम अ ॥

तरयोततर माह–“यदव तरिदवतवाभिरयजनतीति बयात,

तनति"-इति। परखितयाजथाना यथमाणदवतया समयादयमान

दवतया च दविदवलयतवम "; ताइरशौभिकटगभिरयसआत यजनति,

तन डिशखतवम ; तलका दवता याजयाथो, इतरा दवितीया शसतर

थ यव सततर बयात॥५॥ "

इति थोमसायणाचारय विरचित माधवीय वदारथपरकाश -

- ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया ढरतौयाधयाय '

(अषटाविशाधयाय) पखम: खणड:॥५(१३)॥ !

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॥अथ घट:खणड:॥ ,

अथाह यदतातिख उकथिनयो होचा कथ

मितरा उकथिनयो भवनतौतयजथ मवागनौौयाया'

उनध मरवतीरय पचौयाव वशवदव नटीयाव'ता

वा एता होची एव नयइाएव भवसथा व दक

वषा अनय रोचक अनय कवाद डिपरषः पीता दिन

भ३ आयडगदान घटशखणि परसताद दरषटवयाशि- ९प भ" ख". "

'९अ०१ख, प०६ध रख०,३प०६थ १ख० रप ३ध भड'. इप" इम"*व

.. C(भा ४४५, ६-२आ०१ ६०)। " "

म इनदरः यनागदवता,ऋभवध समपावताना:(२०-९७६ प* इ“ I

॥ षषठपशचिका । ३ । ई ॥ २८१.

मषी नषटरति यचादो गायची सपगो भतवा सोम

माहरततदतासा होचाणा मिनदर उकथानि परि

लषय' होच परदरदौ'यय माभयाहयधव' यय मखावदि

षटति ' त होचरदवा वाच म होच' परभावयामति'

तलात दिपरष भवत कटचागनौधौयाम परभावया

चकरसतकात तलकयचरग भयखी याजया भवनरय

थाहयडोता यचडोता यचदिति मतरावरणो होच

परषयतयथ कसवादहोटभय: सदवयो होचाशसिसयो

होता यचडोता यचदिति मषयतौति पराणी व होता'

पराण: सरव कटलविज: परागो यचात पराणी यचदिलयव

तदाहाथाहासतयजञातणा मषा३: ना३ इति’*"

असतौति बयादा दवततपशासता जप जपितवा सतधव

मितयाह' स एषा परषो ऽथा।हासतयचछावाकख

मवरा३: न३ि इति'- असतौति बयादादवन मधवरय

राहाचछावाक वदख यतत वादा मिलयषो sसय परवरी'

sथाह यदनदरावरण मचावरणसततौयसवन शस

तयथ कसपरादखागनयौ 'सतोचियानरपौ भवत इतय

गनिना व मखन . दवा' असरानकथबयी निरजघ

सतसमादखागनथौ’ सतोचियानरपौ भवतो sथाह

यदनदराबाईसयतय बराहमणाचछसौ’ ततौयसवन शस-.

* , ' ‘ना इति’ख, ग,घ,ड ;‘ना इति’च । - - - - - - *

२६

२८२९ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

तयनदर वषणव मचछावाक: कथ मनयोरनदरा: अ सतोचि

यानरपा भवनतौतीनदरो ह चा। वा असरानकथशय:

परजिगाय सो sबरावौत कशवाहञचतयहञचाहञचति'

ह सम दवता अनववयनति'स यदिनदः परव: परज

गारय तसमादनयोरनदरा:+ सतोतरियानरपा भवनति'

यहहचाहकचति' ह सम दवता अनववयसतसमादरा

नादवतयानि शसतः'॥ ६(१४)।॥ ।

सरवतर होतरकशबदसय वयवहारसागयन शासतररहिताना मपयप

चरित सकथिलव मिलयतम ; इदानो परकारानतरण तषा मक.

थिलव समयादयित परशन मदभावयति–“अथाह यदतासतिसर उक.

थिनयो होतरा:,कथ मितरा उकथिनया भवनतीति’—इति । ‘अथ'

हितीयशसतरसमपादनाननतर बरहमवादी चीदा माह । ‘यद'यसात

कारणात ‘एता:’ परवोतताः ‘होतरा:’ मतरावरणादौना करियासतिसर:

‘उकथिनय’ शसतरोपताः, तददषटानतन ‘इतराः'पोचादौना करिया

अपि शासतरयकता इति वकतवयम ॥ न चातर शासतर विहितम, अत:

कथ मता उकथिनय: १ इति परशन: ॥

ततरोततर माह—‘आजय मवागनीशरीयाया उकरथ, मरखतौरय

पोतरीयाय, वशखदव नटरीयाय; ता वा एता होचा एव नयजञा एव

भवनति’—इति । होत: परातससवन यत परथमम ‘आजय'गलो

तदव ‘आगनीधीयाय' आगनौधण करियमाणाया: करियाया: ‘ठकषय'

शसतरम । एव मरलवतीयवशखदवयोरपि योजयम। तथा सति ता:

•, ' ग-ड-च-पसतकषविह विसगो नासति । .

॥ षषठपचिका । ३ । ई ॥ ६८ई

एवता: "हचा:' होतरकाणा करिया: "एवम" उलन परकारण

‘नय इला:' तततखिझा एव भवनति । अगनि मानीधी यजति 3,

आजथशासरव चायनयम : पीता मरती यजति १० मरतवतीय च

मारतानि सतानिशसति; "आनपढीरिहावड"-इति(स.

१. २२.४.) नषटा यजति थ, तच "दवाना मशती:"-इतयनतर

"दवानाम"-इति शवण मसति ॥ एव तरयाणा मपि आरोध

पोडनटणा मालयतव-मारततव-वखदवतव-चिजञानि विदयत।

बतसनादाजयादिभिरकवरितरषा मकथितवम॥

तषा मव होतरकाणा सनतयाजष ३ कसयचिद विशषसय परध

मवतारयति-"अथाह यदकपषा अच होतरका अथ करमाट

डिपष: पोता डिपषीनटति"-इति। पषसक । य य वषा उजञा:,

तष मषष एकक एव पषी नछ-पीत-वयतिरिझाना होतरकाणम;

पीतनटरच ह ईौ मषौी। तथा च यजञसमपरदायविद: पठनति

"डो-पौन नीदबर-पर-ही-पो-न-अचछा-धव-सटइपतीतिच"-इति।

असथाय मरथ:- ततर नाना मादयचररीत करतपरषा निईिशयनत ।

तथाच होता,पीता,नषटा, आगनीध:, बराहमणाचरसौ, परशासता,

होता,पीता, नट,अचछावाक:, अधचरयोहपतिच करमणीताः॥

एतष करषसक हादण परषः करमण सति। तथा सतिपोतईि

a, f, '. नरदर, २६४ व१ : I

8 २ भा० २४९पर०"चतयाजा: षटकच'-इति दरषटवयन ।

| अति पचाधयाथानक चकपरिशिषट: ॥ ताव पचम: पषाधयाय:1 स पव "मष

समाचाय-इति,"औषगरय-इति चोचत । तबिध पच सलानि । तदीयपवन तल

सयाय सवनीय परधा उझा:। तवयरथ:॥ तदल माबजायलन-"बयावरण

तघा परौधा, पचरम परौधसकरम"-इति आध० शरौ०५.१०.१-३.1 ‘भषसनाव या

मचरम परषासतर तदषा ऑषा भवनति-इति तदवगि: ।

२८४ ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

तीयोछटमख ही परषी ; नटसततीयो नवमख ही परषी । ‘होता

यचन मरत: पोतरात’—इतयक:(प०५.५. १०.) परष:, ‘‘हीता

यचाहव दरविणोदा पोतराइटतभि:’-इति (प० ५. ५. १६.)

दवितीयः; एतौ ईौ पोत: परषी ॥ ‘होता यचद गरावो न टा’

इति ( प० ५.५. ११.) एक:, ‘‘होता यचददव दरविणीदा

नटटात’–इति (प०५. ५.१७.) दवितीय:; एतौ ईी नछट:

परौरषौ । इतरषा मागनीधाचछावाकादीना मकक एव परष: ।

तथा सति पीतनटरीः दिः-परषल कि कारणम ? इति परशनः॥ >

तसयोततर माह-‘यातरादो गायची सपरणो भलवा सीम माह

रत, तदतासा होतराणा मिनदर उकथानि परिलपय होत परददी ;

यरय माभयतरयधरव, यय मसयावदिटति; त होचरदवा वाचम हीव

परभावयामति ; तरमात दि पष भवत चटचागनीधीया परभावयाच

कसतसमात तसयकयचरग भयसयो याजया भवनति'–इति । ‘यच’

यसमिन काल अदी गायतरी तरिषवपि छनदःस या शरययताभत

[. असी गायतरी सपरणो भवा दलीकात सोम माहरत,– सोारय

डततानत: परव मवानतरातः शर% ], ‘तत’ तसमिन काल कनापि,

निमिततन कड: इनदरः ‘एतासा’ हीतराणाम ‘उकथानि'शसतराणि

परिलषय होत . परददी । होतराशबद: सतरीलिङगोsपि परषान

होतरकानभिधतत ॥ पीतनटरागनौधराणा होचकाणा माजय-मर

खतीय-वखदव-शसतराणि परव मासन, तानि कड इनदरसतभयी

निवारय होत दततवान। तती होता परतिसवरन शसतरइययती

बभव। गायतरया सोम पडत सति शोकाभिभत मिनदर सानख

यित नमलविजाभिमानिनयो दवता: सरवा उपतरियर, पोलटनटरा

•SE

-- -

* ३. प० ३अ० १,२ ख०(२ भा० ११५-१२२ प०)। . -f

॥ षषठपचिका । ३. 1 ह, ॥ २८५

गरनौधदवात नागाता: ; तादिरद कोपकारणम ।स च कपित इनदर:

शसतराणि. निवारय पनरयव मवाच,–ह गरवाधिका: पीवादयश

यय ‘मा आभयडयधवम""शोसावोम"-इतयाहान मपि मा करत,

दर यषमारक शखाणि; यती ययम ‘असतर' मम सानतवन ‘मा

अवदिषट' न जञातवनत: ॥ निषधाथा मा-शबदोतरानवरतनीय:1

'इति' एव मिनदरणील सति ततसमीपवरतिन: "त' दवा इनटर समया

थव मल,-‘इम डोव' एरती पोतनटरी शसतरशयावतभीतो

यन कनायि परकारणानगरहणीयौी । तसमाचसतराभाव पि "वाचा'

अधिकपषरपया 'परभावशयाम' परकरषण भावितोौ तोषितौ करवा

मति । "तसनात' कारणात"त होव डिगरष भवत:' तो होनाको

पीतनटरी पषडययवी भवतः। तथव "आरमीधीयाम' आलौध

करियाम 'ऋचा' कयाचिदधिकया 'परभावयाचक'परभता छात

वनत: । यसनादव ‘तसआत','तय'आगनोधसय एकयचा याजथा

'भख' अतयनत मधिकाभवति। ससाना मपि डोकाण

परखतियाजथापतिसर एव भवति, आरनोधसय "ऐभिरन सर

थम"-इलषा (स.०३.६.८.) अधिका। सा च पाढौवत:

अहवरतिनी 8 । तथा च समपरदायविद आह:

"तिरन: परखतियाजथासत ससाना मभवन,खल । ''

अगोधसतिखभि: साई मभिरन चतरथ भत॥"-इति ॥

यदययारनौधविषय बरहमवादिना परथी न छत:, तथापि पीट-"

नधया समानयागचमलन तदखततानतीऽयभिहितः॥

हगवकविषय परानतर मङकावयति-"अथाह यडीता यच

चीता यचदिति मतरावरणा हाव परगयतयथा कसनादहाढसथय:

* "पाबौबतखयजवभिरथ सरथ याजञवडितपोलव-ति आशव बौभ५९७1

२८ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सदभयो हातरावॉसिझयो ईोता यचडीता यचटरिति परषतौीति"

इति । "अथ' हिलषतवनिमिततकथनानतररर बरहमवादिना परध

माह ॥ ‘मतरावरणः' सरवषा ह.चादोना परषकतरता 8सच

पषभझगतष सरववषि मालब आदौ "हगता यचनट"-इतयव तनतर

ततर पठति "ि । ततर "नहोव' हीढकायॉरथ तन मवण यात परथति,

तदहम; मनतरादाववखितसय होतशबदसय ताइचकलवात;य त

"अहतार' होतषयतिरिलाःसनतो ‘होतरारशसिन' होना होता त

मारशसनति तषा हीढनामराहिताना परलष ततर ततर "होता

यचनद"-इति ‘कसआत' कारणाडौढशबद परयई ?इति परशन: ॥

बतसयोततर माह-"पराणा व हाता, पराण: सरव ऋतविज,

माण यचआणा यचदितयव तदाह"-इति। याषरय मखयी

होता,स पराणखरप एव ; सतदहसय होटलवाभावात ॥ तथा

चषा मयि सरवषा सलविजा पराणसवरप एव 1 तथा सति पराण

विवचया परयली हीढणद: सरवयपवत। "डोता यचीता

यचनद"-इशयल 'पराणा यचआणी यचनद"-इतयव मनावरणा

छत। तरमादललः सरवष हीढशबदपरयागः॥ :

उहाटविषय परशरोततर दरशयति-"अथाहमासयहातणा पषा३

नश इति १ असतीति बयाद; यदवतपरशासता जरप जपिलवा

सतधव मिलयाह, स एषा पष:"-इति । हीवादया मतरावरणन

क, "तन तनव परषित; परषित: सस यथाओघ" यजति"-इति आध० शरौ०५.८४ ॥

P तदाथा-"होता यचद०-०हीतयज ॥ होता यदयद०-०पीतीरथज । होता

बचद०-० नटरधज। होता यचद०-० अपरौदयज । होता यचनद-—० बराझनधज ॥

डीता यचन०-० परशसतवरषज। होता यचद०-० होतारयज॥ हीता याददe-e

मौत व 1 होता बढ- नवज 1 जीता यदयद-चालाक व 1 होगा।

बचद०-०धव यजञतन । होता यदयद-० गटइपतयज"-विप०५-५ ६-९-।

॥ षषठपचिका ॥ ३ । ६ ॥ २८3

परषिता: रख-ख-वयापार करवनतीति तदढषटानतनादरातणा समापिा

परषिततव यताम, न चाजञाढपरषा: परष सक समानतराताः ;

तरमादषा परषाsसति न वति सशय:। शतिहय विचारारथम ।

नकारसय साननासिकलव’ छानदसम * । अतर परषासतौलव

मकतर बरयात। परकरषण सरवानटलविजः ‘शासति' परषमनवण तततद

वयापार परवतरतयतीति ‘परशासता’ मचावरण: ‘*; स च ‘तत

दवन सवितरा’-इतयादिमनतरजप शर: जपिलवा, अननतर ‘सतधवम’

–“इति'यदवतइचन पराह,सएव ‘एषाम' उहातणा गरषः॥ -

आ चचछावाकोविषय परशरोततर दरशयति-‘आथा।हासयचछावा

कसय परवरा३: रना३ इति ? असतौति बरयाद; यदवन मधवय

राहाचछावाक विदख यतत वाददय मिलषा ऽसय परवर..’–चति [।

अचछावाकवयतिरिताना वषटकतणा ‘परवर’ परकरषण वरण

भसति । तथा च सचकार आह–“परडताहतीलहति वषट

कतरतारीनयSचछावाकात’–इति(आशख० धौ० ५,३.१२)। सचतरा

नतर यव मतम-“यथापरदयत 8 परखतहोमौ जहरति’–इति

(कालया० शरौ० e. ८. १६. )॥ अतीनधषा परवरसदभावाsवगत:,

अचछावाकासय नावगत: ; नयायन लिवतरदषटानतन परवरा sपचिशत:;

अतो sसति नवति सशय:। ततरासतौलयततर बरयात। यदयपयनयषा--------------------------

नर ‘अरणी Sपरगटहमासयाननासिक:’-दति पा० प८, ४. ५७ ।

+ ‘मिचावरणौ परशासतारौ पराशसतरात’-इति कालया० औ० ९. ८, १० ॥ अत

एव कचखिडनामपरिगणनसचष परशसतति न दशयत, दशखत मचावरण इति ( आशव० धौ०

४.१. ६ ; कातया० शरौ० ७.१. ६ ; आप० धौ० १०. १.९.)I

i. ‘मनव जपन”-इति दशखमानसरवभाषथपसतकष ।

8 ‘यथापरढत मिति । परथम हीता, तती sधवरय:, ततः परतिपरखयाता, परणासता,

बराहमणाचईसी, पीता, नषटा, आगरौभर, यजमान इति च तईौकाया याजिक दव: I ,

२८ . ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

मिव सपषट: परवरी नासति, तथापि परीडशशकल परकत मिड

मिवशदधमयारसौन मचछावाकम, अचछावाक | यतत 'वादो' वकतवय

मसति, ताइदसव इति 8, सीऽय मचछावाकसमबोधनन परवरसमा

नदवात परवर इतयचत॥

इथ मनिषटोमससथ हातरकविषयवयापारी परिसमापयाधना

उकथसखशवहसय परटरीततर दरशयति-"अथाह यदनदरवरण

मतरावरणखतीयसवन टॉसतयथ कसनादयानौ सतोचियानरपौ

भवत इतयलिना व मखन दवा असरानकथमयो निरजघसतसा

दयानशयौ सतीचियानरपौ भवत:'-इति ॥ "अथ'अचछावाक

परवरसमपादनाननतरर बरहमवादी परय माह। मतरावरणसततीयसवन

"इनदरवरणा यवम"-इतयादिक मनदरवरण (स०७, ८२.)सरश

शसति। तय शखादी "एय श"-इतयागनयः(स.०६.१२.

१६-१८.) सतीनिय:, "आरिनरगामि"-इतयागनयी नरपः(स०

३,१६.१८-२१.), तदतद वयधिकरणलवाद अयशम; ऐनदरा

वरणाभया सतोनियानरपाभया भवितवयम ? इति परशः। अगनि

नलयादिना तरयोततरम ॥ यदा दवा असरानकथथी ‘निरज'

निःशषण हतवनत,दर अपसारितवनतः; तदानी मनिः‘मख'

परधानभरत छलवा तनमखन निसतारितवनतः। एतलख "अगनिधीम

व दवा अथयत"-इतयादी विसपषट सदौरितम ' ॥ ‘तसात'

असरनिसतारणनभखयलवादानौ सतोनियानरपौ यवौ ॥

" बराहमणचसवचछावाकविषयपरटरोततर दरशयति-"अथाह

• तथाडि सचम–“परोडशदगल परल मिडा निवदमयाचवाक बदखसली

sचवी अगरि मवस इति तच मनवाह"-इति आशव० औ०५.७,२ ॥

f Rप"भय १ख० (२भा०२३५ य०) ॥

in पठपतरिका 1 ३। ह. ॥ ९८

यादनदराबाईसलव बराहमणाचसी ढतीयसवन शासलनदरावषणव

मचछावाक:,कथ मनयोरदर: सतोवियानरपा भवनतीतौनदरी जह

रम व असरानकथभय: परजिगाय ; सा बरवीत,-कचाहवलय

जहचाइलति ह समर दवता अनववयनति;स यदिदर: परवः परजिगाय,

तसादनयीरनदरा: सतोनियानरपा भवनति ; यडहचानहवति जह

रम दवता अनचवयसतसराबानादवलथानि शॉसित:'-इति ॥ ढतौय

सवन बराहमणाचसिनः"पर महिठाय"-इवनदराबाईसतय (स० ९.

५s.)शसतरम ॥ तसखादौ सतोनियानरपावनदर,–"वय म लवा"

इति (स० र. २. १६-१८.) सतोतरिय, "यी न इदम"-इलथत

रपः(स० र. २१,८, १०.)। तथा अचछावाकसय "कटतरज

निठी"-इतयादिक मनदरावषणरव (स० २, १३.)शखम ॥ तसया

दावनटरी सतोचियानरपौ,–"अधाईौनदर गिरवणः"-इति (स० पर.

८८.७-४.) सतोतरिय,"इयनत इनदर गिरवण"-इतयनरपः(स.०

८.१३.४-६.)। तदतदधवयधिकरख सपजीवय परववत परश:॥

इनदरी हलयादिक मततरम । इनदर: खयम "उकथभय' शखशय:

सकाशादसरन ‘परजिगाय' परकरषण जितवान, परादरवदितयरथः॥

तदानी मिनदर इतरान दवान परति सहाय मपचशमाणी यषाक

मधय कदयाहचीभौ यदधारथ गचछाव इतयबररवोत ॥ तदानोदवान

मधय एकका जईचाईच तव सहायभत इयवा दवतासत मिनदरम

'अचवयनति' तसय पषठती गचछनति । यसमात स इनदर: सरवषा

दवाना मधय खय परवगामी सतर सरान परजिगाय, ‘तरमाल'

'एनयो" बराहमणाचसवचछवाकशखयोरलनदरा सतोनियानरपा

यजयनत। ‘यद" यदयतदलित, अईचाहब तवसहायमत इति

बवलथी दवता इनदरम "अनचवय' अनचगचछन,‘तसआत" कारणाद

३७

२e-4, ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दवतानतराणा मपीनदरवतपजयलवात नानादवताकानि सचतानि

बराहमणाचलसयचछावाकौ पररणसतः॥ ६ ॥

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतररयबराहमाणसय षषठपचिकाया ढटतौयाधयाय

(अषटाविशाधयाय) षषठः खणडः॥ ६ (१४)॥

--------------------------------------------------------------------------------

॥ परथा समसमा: खरणड: ॥

अथाहयईशखदवव ढटतौयसवन मथ करकादता

नवनदराणि जागतानि सतानि ततौयसवन आरक

रणौयानि शखनत इतौनदर मवतरारभय यनतौति बरया

दथो यजजागत व ततौयसवन' तजजगतकामयरव

तदात किशचातऊई छनद: शखत'तब सरव जागत

भरवतयतानि चदनदराणि जागतानि सजञारनि ततीय

सवन आरझगौयानि शखनत' sयतत * चषटभ

मचछावाकोsनतत: शसति स वा करमणरति यदव

पनायय करम तदतदभिवदतिस मिषतयतर वा इषो:

sदराददयखावरडा अरिषटरन: पथिभि: पारयनतति'

खासतिताया एवतदहरह: शसलयथाह यजजागत व

---

•‘शखनथ’ का। 1- ‘डठाकी’ का ॥

॥ षषठपचिका । ३। शeI ३८१

बततौयसवरन मथ कचचादषा चिषटभः' परिधानीया

भवनतौरति वौय व चिषटबबौरय एव तदनतत: परति

तिषठतो यनतीय मिनदर वरण मटम गौरिति मचा

वरणरख बहसपतिरन: परिपात पदयादिति बराहमण

चसिन उभा जिगययरिलवचछवाकखोभौ हि तौ

जिगयतन पराजयथ न पराजिगय इरति न हि तयो:

कतरबधन पराजिगय इनदराध विषणो यदपसपधथा'

चधा सहरव वि तदरयथा मितौनदरव हव विषण

चासरयधात' तान हसम जितवोचत" कलया

महा इति त ह तथ.तयमरा ऊच: सीबवौदिनदरो

यावदवारय विषणखिरविकरमत तावदरमाक' मथ

यषाक मितरदिरतिस इमाडोकान * विचकर म थी

वदानथो वारच"तदाह: कि तत सहसतर मितौम

लोका। इम वदा अथो वागिति बरयादरयथा मर

यथा मिलचछावक उकथयSबयखति सहि तचानयो

भवचननिषटोम होता ऽतिराचचस हि तचानधी

भवलशयखत-- धोळशिनीई नाथवत इति'

अधयखदियाह कथ मनयषवह खययराति कथ मतर

नाबयखदिति तसरादनय खत 8 ॥७(१५)॥

क, "इनान लीकान"क, "इमाहीकान"च॥ 4 "भवलययसयरत"क ॥

."चौकशिनी." ख,ग, "वीकशनी"घ,च। 8 "ववादगरसपशत" की।

३८दर ॥ ऐतरयबराहमणम ।

अथतषा मव शाखाणा इनददवतविषय परटरोकर दरणयति

"अथाह यद वशखदरव व ढतीयसवन मथ कसआदतानचनदरावि

जागतानि सहानि ढतीयसवन आरकषणीयानि शयनत इतौनदर

मवतरारमय यनतीति बयादथी यजागरत व ढतीयसवरन तजग

कामबव ; तदनत किचात उनई' छनद:शखत, तड सवजागत

भवचतानि चरदनदराणि जगतानि सफानि ढतीयसवन आरमभ

एौयानि शासयनत"-इति । "अथ' ऐनटरोवरणदिशसवषवनदरतीतरि

यानरपवरणनाननतरम, बरहमवादी परश माह। ढतीयसवरन वख

दव बडदवतारक यरआत, तरमादध वखदवायव सतानि तनतरी

चितानि , अरथव सति तानि परितयजय कसमात कारणादता

नधारवरणीयानि सझालनदराणि शखत १ सति चदरव तरिदभी

यलवात ततपरितयागन जागतानि कसमात,शसयनत १ "चरषरणी

घतम"-इति(स० ३.५१.) मतरावरणसय सतम, "पर महि

ठाय"-इति (स०१.५२.) बराहमणचसिनः सतम, "ऋतरज

नितरी"-इतयचवाकय(स० २.१३.) सचम। एत सलबनदर

परटरीततर मचयत। ऐनदरव सलतः सरिनदर मवारय परवकता

भवनति, इनदरो डिपरारबधसयाविलन समासिकरीनयततरी बरयात 1

"अथ' अपिच विदपरितयागन जागतसल मिति यदति, तत

ढतीयसवनसय जागततवात ‘जगलकारयव' जगलकामनवव परदयकतिः

छकता भवति । अपिच तथा सतयत ऊडरॉ मनघदपि यत किबित

इनद: शसयत, तत सव जगतौचछनदरक मव समपरदत ॥

आरकषणौयाना मनदराणा सझाना जागतलवादयय छनदी

नतरसथ जागतलव समपरदात, तचछनदोनतररर दरशयति-"अरथतनत

वधभ मचछावाकोनतत:शॉसति,स वा करमऐति; यदव पनारय

॥ षषठपतरिका । ३ | e॥ २०:३

करम, तदतदभवदति"-इति। आरकषणीयशसनादई मचछावाक:

‘अततः'शखरयात "रस वा करमणा"-इलतत सरश (स. ६.३०)

बिषटपछनदखॉ शॉलत। अवनदरविण समबोधय"वा' यवा मनन

करमणा 'सहिनोमि' समयक बौणयामि,इलतदचयत। तसय च

कामशबदसयाथा यदवघादिना अभिधौयत । पनतिधाततलयथ

वरतत; "पण वयवहार खरतौ च, पन च"-इति (भ०ि४३८,

४४०.)वयाकरणधातष पठशमानलवात॥ तथा सति ‘पनाय'

सतलय' सोमपानाखध करम , तदरय मनतरी जभिवदति 3॥

स वा करमणलततवथमपादसय परवभारग वयाखयायीततरभाम

मनय वयाचट-"स मिचलयव वा इषोखादयखववरदव"-इति।

"इषा'अवन 'यवाम' इनदराविण,'सहिनोमि-इतयनवयः। अनतराव

मवलचसय शबदसथारथ: ॥ इषशबदयषा इति परथमाबहवचनम1

तबादनवाचिलव सति एतचसन मनतरादासय परापत य भवति ॥ -

अरवा चतरथपाद मनदम वयाचट-"अरिटरन पथिभिः

पारयततति खसतिताया एवतदहरह:शासति"-इति । स: असमान

'आरिट' हिसारहितः "पथिभि" खरगमॉरग:‘पारयता' करमण:

पारी फखरप नयती,इनदरविषणइयरथ । एतसयपादख शासन

"सवसतिताया एव' चरमारथ मव भवति । तरमादचछावाक: "एतबद

वचन अहरगणष परतिदिन शासति ॥ . .

परिधानीयाना छनदसि परोततर दरशयति-"अथाइ यजजा

गरत व दतौयसवन मथकसमादषा तरिछभ: परिधानीया भव

नौति;वीरय व विटब वीरय एव तदनतत: परतितिषठती यनित"

* "स वा करमणा स मिषा इिनीमीदरविय आपसखार अखा।

उपथा यजञ, दरविरणच धशत मरिरटन पथिभि: पारयनता I"-इति स० ई. ई९, ५1

२४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

-इति ॥ ढरतौयसवनसय जागतलवन परिधानोौया अपि जगतय एव

यवाः; एततपरितयागन तरिशभा खौकर परतिदिन कि कार

णम ? इति परशन: । वीरय मितयायकतरम। चिछभी वौरयखर

पलवात तया परिधान सति शासतर सयानत वौरय एवपरतिषठिता: सनतो

"यकति' बतरतगत ॥

होतरकाणा चयाणा मजञसविटभ: परिधानीया उदाइलय

परदरशयति–“इय मिनदर वरण मटम गौरिति (स.०७.८४.५.)

मनावरणसय, बरहसपतिरन: परिपात पदयादिति (स० १०. ४२.

९१.)बराहमणाचसिन, उभा जिगयथरिलवचछवाकसय (स० ६.

ईe. म.)"-इति ॥

तदिद मनतिमीदाहरण वयाचट-"उभौो हितौ जिगयत:"

इति। याविनदरविण,'ताबभौ''जिगयत' यड जय परापतरिति

परसिडम॥

चटचः परवारड"उभा जिगयय."-इशतयममण वयाखयायाशानतर

वयाखयारन पठति-"न पराजयथ न पराजिगय इति'-इति ॥

तसवाईसय "कतरव ननी"-इलवय शषी बराझणनानदाइतीऽणय

थावबोधाय दरषटवय: *। तसय च सरवसयाय मरथ:- ह ‘इनदरा

विषण यवा"न पराजय थ'कदाचिदपि पराजय न परासवनती।

"एनी:' एनयी: इनटराविषणखीमोध "कतरधन' एवIपि "न परा

जिगव' पराजयन पराप । एककसयापि यदा पराजयी नासति,

बतदानी मभायीरमिलितयानॉरतीति किल वातावय मिति ॥

उतखयाईसय तातपरय दरशयति-"न हि तया: वतरबधन परा

जिगध"-दति p

". व "उभा जिगवथन परा जयथ न परा जिगय कतरथननी"-विचवपॉ.

॥ षषठपचिका ॥ ३ ॥ se॥ २29

उततराई पठति-"इनदरदय विषणीरयदपसयधोथा चधा सहसतर वि

तदरयथा मिति"-इति। "यत" यदा ह विषणी 1 लवश इनदरध

यवा उरभौ "अपसटरधथा' सईदा मसरी:सह यई छतवनरतौ,"तत'

तदानो सहसतरा "वधा' विभाजय "ऐरयथा" तरत त भाग तसौ तसली

खामिन समरपितवनरतौो ॥

तसय तातपरय दरशथित मितिहास माह-"इनदरव ह व

विषणखासरयधात; तान वह समय जिलवोचत,-कयामहा इति ;

त ह तथलयसरा ऊन:; सीकवोदिनदरो यावदवारय विषणखिरवि

करमत तावदसनाक मथ यषमाक मितरदिति ; स इमडीकानवि

चकर म 5थी वदानथी वारच ; तदाडः कि तत सहसर मिरती म

लका इम वदा अथी वागिति बयाद"-इति। योगय मिनदरो

यध विषणसताबभावस: सह‘ययधात'यई छतवनरतौ ॥ तत

सतावसरान जिलवा तः सहद मचत,-ह असराः1 वय सरव

'कयाम ह" विभाग करवामहा इति॥ असरासतथलयौचतर:॥

तदानी मसरः सह इनदर एव मबरवीत,-'आय' विषण:‘यावद'

वखहिषय "निरविकरमत'वखजात पादचारय परचिपति,'तावद वसतर

सरव मखमारक भवत; अथ "इतरत' अवशिषरट यषमाका मसविति ॥

एव मसर:सहसमरय छलवा स विषण: ‘इमान लीकान'चौनपि

एकन पादन "विचकराम' विकरानतवान, लोकचयसथोपरि एक मव

पाद परचिसवान ॥ "अथो' तदननतर "वदान विचकराम' सरवषा

वदाना सपरि एक पाद परचि मवान । "अथो' तदननतरर "वारच

विचकराम' सरवसया वाच उपरि ढतीय पाद परचिसवान ॥ एव

पादनयणाकरानरत सरव मिनदरविषखीभौग आसीत । एव विभाग

वयवसथित सति 'तत' तमननारथबरहमवादिन: परय माड: । वधा

२cई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सहसर मिति मव यदल, तनतर सहसतराबदन कि सचत 3 इति।

इम मितयादिक तदततरम । य इम तरयी लोका:,यचम वदा:,

या चरय वाक, तदतदपरिमिततवासयोपलचकण सहसरशबदन

विवचित मियकतर बयात। यदयपयय मनवनदकरीियाणा सम

काणड Sतिरातरसय याग ध8 दचितरणारपगीसहसतरविषयवन उदा

इत:', तथायतर सहसरशबद: सरवजगदविषयवन यवव वयाखया

यत इतयभयारथीव मसत ॥ . . . . .

यदजञ माशवलायनन उततम शख परिधानीयाया. उततम बचन

उततरम चतरचर डिबरजञा परगयादिति भ, त मव चतरचरामयास

विधतत-"ऐरयथा मरयथा मितवचवाक उकथय sभयसथति ;

स हि तचानधी भवति"-इति। उकथयनामक करतावचछावाकः

"ऐरयथाम'-इति चतरचरभारग डिरमयरधत ॥ "स हि' भाग:

'ततर' अचवाकशखजयी भवति॥ .

अचछावाकसयाभयारस विधाय होतरझवारस विधतत-"अगनि

टीम होतातिराच च ; स हि तनतरानची भवति"-इति । अह

रगणयकथयससथाया यथा अचछावाकरयानतिम शख पयासः।

तथाननिषटोमरसयाया मतिरातरसखथाया हीताति म शसतर निरम

क"चघा विमझा."व चिराच"-इति (ए.सी. म.त०स० ई. भा० १४प० ९प०)

शरवणातखवगमयत चिराचयाग इति ; तदिह लखक परमाद वाडन भवितवयम, अपिवाचा

तिरादपरकरम इति अतिरावसयतवागमकखनधी सायणरयति 1 . . .

"सीमी व सहल मविनद-उभा जिगयधरन पराजवथ०-साइल' वि तदरय

थाम०-०सहखतमया व यजमान: सवरग लीक मति०—० ता मगौध वा बराहमण वा हीव

वीदवाची वाधवरयव वा ददयात, सहख समसय सा दतता भवति०-०दवान गचछति"-इति त•

स ७.९-१, ७ अत-। '

"उगमायकम,चतरचराणि लवचवाक:"-इवि ततवम(३,४,५, ई-)1

I बचपचिका । ३ 1 Se ॥ २es

चतरचरभाग मझयसवत ॥ 'स हि' होता ‘तच' उभयतर 'अनतय:*

शॉसिता भवति । अगनिषटोम "यजरिव-यजजरितरीम"-दति

चतरचराभयास: ध: ;अतिराव त"धहि चितर-धहि चिचोम"

इति चतरचराभयासः "ि ॥

षीडशिसखयाया विचारपरवक चतरचराभयारस विधत

"अभयावत कषीझशिनॉ३ नाभयवट इति १ अभयरवदितथाड:;

कथ मानय वहसखभययति, कशय मातर नाभयरवदिति, तसआदभय

यत"-इति ॥ विचारारथ शतिडयम । तवाभयवदिति निरणय

माह:। तवय सपपतति:-इतरषवहसय चतरचरभाग मधय

सवावव परितयाग कारण नासतीति । तसमादियपसहारः।"सखय

यद-सखय:पदम"-इति चतरचराभयासी दरषटवयः म ॥ er

इति थोमसायणाचारयविरचित माधवौयवदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपबिकाया ढरतौयाधयाय

(अषटविशाधयाय) ससम: खणड: ॥ e(१५) ॥

g---=

, a "एवा न इनदरी मचवा०-० लाहिन यजवरिब(स°8-89. २१-)"-इतयवकवॉ.

अधिषटोमीयशसवपरिघानीथा I अतीऽसया अनयाचरचतषटयसथानयास: 1 'एवा न नही

मघवा विरपरशीकलमया परिदधाति"-इतयाचारत परसतात(२भा ९७३ एव १६पP ) ।

“एवा न इनदरी मघव विरपशॉीति परिदधयात"-इतिच आव. चौ. ५- ९१. ई ।

4 °इसस अति०-०दरविरॉ धविह चिचम"-इति स० २, ९३.१५। "बरहसपति

अति आदरश चनहादिलवतया परिदधयात"-इतिप० ९आ० २ee० व पe I "चाहखत०-०

दविति परिधानोौथा।"-इति च आवe चौ० ई,५.१९ ।

: "उदयदबरधख०–० सापत सखय: पद"-इति स० र. ईर- 9॥ उदयद बरामय विकटव

नितयततमथा परिदघाति"-इतिप०६भा० ९०प० र पe I "उदयद-०मितिपरि

चौथा।"-इतिच आब० चौ०e- ९- ९२ ।

३e

२८८ ॥ ऐतरयबराहमणम I

॥ अथ, अषटम: खणड: l

अथाह यवाराशस व ढतौयसवन मथकराद

चढावाकोनतरत: शिलयषवनाराशसौ:शसितौति विक

तिव नाराशस’ कि मिव च व कि मिव च रती

विकरियत तकतदा विकत परजात भवलरथतन मडिव

चनदशिथिररयवराराशस मथषोऽनधी यदचछावाक

सतद डबहतारय दलह परतिषठाखाम इरति तसमाद

चछावाकोऽनतरत: शिलयषवनाराशरसौःशसति' दबह

वताव दलह परतिषठाखाम इति दलह परतिषठाखाम

इति॥ प (१ई)॥

॥ इवतरयबराहमण षषठपबिचकाया ढतौयोऽधयायः॥३॥

अचछावाकोविषय पनरपि परशन मखथापयति-"अथाह यनतरा

.राशॉरस व टतौयसवन समथ कसमादचछावाकोsनवत: शिलपवनारा

शौसी: शसतीति "-इति। 'अथ' चतरचराभयासकथनाननतर

बरहमवादी परशन माह । "यद' यसमात कारणात ढरतौयसवन

‘नाराशरस व' नरा मनथाःचटभवोझिरसी वा यतर शसयनत, तत

नाराशसिम; ततसमबनधिनि ढतौयसवन सति कासात कारण

दचलवाकीsतत: दतौयसवरन शिलपाखयष शर, शसलष नाराशास

क "धतऊरव मनषपथी विकरतानि शिलपानि शसव"-इति आध०औ०८, ६, ६।

,

‘वालखिलधादौनि शिलपसशकानि-इति तदधतौ नारायण;। तानि च शिलपानि डिवि

॥ षषठपतरिका | ३ | पट ॥ २2

समबनधिरहिता ऋच: शॉसति,-"चतरजनिटी"-इतयादिकम

(स० २.१३.१-१३.) मचछावाक: सिति "ि, नच तनतर नरा:

शासयत, ततत कथ मपषपादितम ? इति परध: ॥ . . .

बतसयोततर माह-"विकतिव नाराशॉरस, कि मिव च व कि

मिव च रता। विकरियत, तत तादा विकत परजात भवलयवतन यटिव

चनद, शिशिरयवाराशस मयषोननयो यदचछावाकसतद दबह

नताय दनह परतिषठासयाम इति"-इति। गरभाशय निषिकरय

रतसो ‘विकतिव" विकारपरिणामव "नाराशरस' सवनम, अड

परिणामकरमणव भवति । लीकजषि निषिरक रत:"कि मिव च

व कि मिव च' करमण किशचित कितरिदव विकरियत ॥ तथा व

गभापनिषदि-"एकरातरोषिरतकलाल भवति,ससरातरोषित बद

बरद भवति,अईमासाभयनतरण पिणडी भवति"-इतयादि। ‘तत'

तादवशाकरमण विकरियमाण रती यदा साकलधन ‘विकत' विलरड

भवति, तदा 'परजारत भवति'पतरादिरपणीतयदयदत । तसमात नारा

शस खतौयसवन विकारखानीया अनतिमी भागः, तनतर समपरण

तयोतपतयरथ मनाराशसिौना समचा शासिन मिलयभिपराय: । अथा

नधदपि कारण मसति। ‘यत नाराशस छनद' मनथशसनसमबनधि

छनदोसति, तत 'यटिव' माईवोपत मिव । तरबव वयाखयान

धान, विनीत विननदान किया, बाबादव

विझतानि ॥ एततसव विकरताना मव गरहणम विकरतानौतिवचनात। इत उतरम

*"ऊडरॉ नारायणीधाभय: परकया शिलपानि शासपय:( ४, ७,)"-इति सचf Sविताना नव ;

अकतयतिवचनात । "नितयशिलपनविद मह. (४.५,)"-इतयादौ तभयविघशियाना

यहरण भवति; विशषती निईशाभावात॥

"ऋतरजनिचौति नितयानचकाहिकानि"-इति आध० बौ० प, ४.३1

३०a ॥ ऐतरयबराहमणम।॥

‘शिथिरम'-इति, शिथिल मदढ मिलयरथ: ॥ असयायि च यीsचछा

वाकोsसति, ‘एषीनय:’ ऋटलिवक ; न होतदीयशसनसयोपरि

किचिदनयचछसन मसति ॥ अतिानतिमलवात दढ: । तसमात

‘डबहताय' दावरयारथ ‘दबह’ खान परतिषठासयामः ‘इति' अन

नाभिपरायण तासा मनाराशसीना मचा शसन मिलयरथः॥

उपपादित मरथ सपसहरति—‘तसमादचछावाकोनतित: शिख

धवनाराशएसी: शसति दळहताय, दक ह परतिषठासयाम इति,दळह

परतिषठासयाम इति’–इति ॥ अभयासोधयायपरिसमापयरथ: ॥ ८ ॥

इति शरौमातसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाशह

ऐतरयबराहमाणसय षषठपचिकाया ढटतौयाधयाय

( अषटाविशणाधयाय) अषटम: खणडः ॥ ८(१६)॥

वदारथसय परकाशन तमो हाई निवारयन।

पमरथाधतरी दयाद विदयातीरथमहशखर:॥

इति शरीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरततक

धौवीरवकभपालसारचाजयधरनधरमाधवाचारया दशती

भगवतसायणाचायण विरचित माधवीय ‘वदारथपरकाश'नामभाध

. ऐितरयबराहमणसखा षषठपचिकाया: ढटतीयाधयायः ॥

॥ अथ चतरथाधयाय: II

( तिच )

| अथा। परथम : खणड: I।

------------- ----->o co e-C-a---------------

॥ औ'॥यः* शव:ॉ-सतोचियसत मनरप करवनति परात:

सवन sहौनसनतलय यथा वा एकाहः सत एव महौ

नसतदाथकाहख सतरय सवनानि सनतिषठमानानि

नतयव मवाहिीनखाहानि सनतिषठमानानि यनति'

तदाचछ::: सतोतरिय मनरप करवनति परातखावनsहौन

सनतलया अहीन मव ततसनतनवनति ति व दवाच चटष

यशवादरियनत समानन यचरत सनतनवामति'त एतत

समान यजञखापशयनतसमानान परगाथानतसमानी:

परतिपद: समानानि सझानयोकससारी वा इनदरो'

यच वा इनदरः परव गचछलव तचापर गचछरति यजञ

चव सनदरताय ॥ १ (१७)।॥ ---

उनतरौयमानसतानि तथा परसथितयाजयकाः।

परशनोततराभया समगरोकता: परयागसय च निरणयः॥ १ ॥

अथाहरगणष होतरकाणा माधयनदिनीयशखतकसिरवजञवया; तच

परथम तावत सरवच विहित मरथ मनय परशसति–“यः खः

सतोचियसत मनरप करवनति परातससवन Sहौनसनतल’–इति ॥-------------------------

*', f, j. ग-ड-च-पसतकषवि हह विसगो नासति ।

३०२, ॥ ऐतरयबराहमण म। ॥

अहरगणष 'ख' परदरयसिसतच सामगाः सतीरव करवति, त

सतोनिरय परवदयहातारःशालवनरप कवनति । एतलख परातसवन

एवअs। तखानरपकरण महौनसय सनतव समपरदत ॥ अजञा

समहरपः करतरहीन:, स चककसिनहनि विचचिी मा

भदिलयाहईयसनधानाथ भविषयलय हनि सतोतरियसय भतजहनि अन

रपलवकरण महा मदपि फलकचात समहपरयाग एक एव; ततः

सनततिरपचिता । अनय समरथ: सपतविशाधयाय वयाखयात:–

"सतीचिय सतोतरियसयानरप करवनति परातसवन हरव तदडरोन

रपकरवनति'-इति( २३७ य०)। तसय वयाखयान मिदम–"शखः

सतीचिय:'-डति 1

अभिपरतविशषसय विधानानदहम टरषि परयागकोन सानतलव

दषटानतनीपपादयति-"यथा वा एकाह: सशत एव महौनसतदारथ

काहसय सशतसय सवनानि सननिषठमानानि यनधव मवाहौनसया

हानि सनतिषठमानानि यनति; तदचछः सतौतरिय मनरप चरवनति,

परातसवन जहीनसनतलया अहीन मव तत सनतनचनति"-इति ॥

एकतरिववाहिनि निषयतरी जयोतिटोम:"एकाह'। स यथा'सतः'

सोमाभिषवण छातखी निषयादितः, एवम 'अहोन:" अहरगणोपि

सोमाभिषवण निषयादात ॥ तावव दषटानतटराषटॉनतिकौी ताद थ

तयादिना सटौकरियत । "तत' तरबकाइसय 'सतसय' सोमाभिषव

यलरवसतः करतोरवयवभतानिपरातमौधयनदिनबतीयसवनानि

'सतिनमाननि' पथक पथक समासियदानि ‘यनति यजमाना

•"हचकणाम"-इतयपकरयाघलायनौय शरौत सोवियतरपाणा दश बगानि अद

शॉनम-"तोचियानरपाणा यदयनरप रतवीरनतसतोचियीऽलरप "-इति 9,8-8.IS'

सतादपि ( २४पट प०) सतीकरियादिकथा दरषटवया 1

॥ षषठपतरिका | ४ | १ ॥ ३०३

अनतिषठानति; एव मवाडोनरयाहरगणसय एक वव सतः ऋती

रवयवभतानि आहानि पथक पथक समासियतानि यजमाना

अनतिषठनति । तथा सतियदयततरदिनसमबनधिरन 'सतीचिय' ढरच

परवदिन परातसवन"अनरप' ढरच करवनति, तदनी महरगणब

करय करतT: "सनतति:" मधय विचछदराहिलरथ भवति | तसमादनय

दिन गतरयानघदिन परयागण ‘अहौन' करत सनतरत करवनति ॥

अथ माधयनदिनीयशसतरकरसि विधातमाखयायिका माह-"त

वदवाय चटषयधादरियनत समानन यजञ सनतनवामति ; त एततत

समान यजञसयापशयनसमानान परगाथानसमानी: परतिपद: समा

नानि सजञानि"-इति । "त व' परसिडा, वखादया ‘दवाश',

विखामितरपरमतयः 'कषयध’,‘आदरियनत' मनसयव मादर मक

शरवत ॥ कीडश आदर: १ सीsभिधीयत–'समानन' सरवकवक

विधानन परयागण "यजञम' अहीन "सनतनिवाम' सनतवरत कारवास

'इति' मनसि विचाय "त" हिविधा दवा ऋषयश ‘एतट' वनय

मारण मनतरजारत "यजञसय' अहीनसय ‘समान' सरवशवहसय सइण

मपशचन । कि कि सदश मिति, उचत-य कडसजकाः

परगाथा:,यादय ‘परतिपद:' आरभणीया ऋच:, यानि चाहीन

सजञानि 8; तषा सरवषा महससरवष समानतव मपशचन ॥

साय ततवाजरन दषटानतन दॉयति–"ओकसारी वा इनटरी

यचवा इनदर: पव गचलव ततरापर गचछति यजञसवसनदराताव"

इति ॥ "ओकासि" सथानानि टहणि,तष सरति सरवदा सबर

तौति "ओकसारी' माजॉर:। "व-शबद उपमारथ: । यथा माजॉर:

•"ऊल सतीचियानरपभय:०-०कइनत:परगाथा: । ०-० कइदय: आरकषणौथा: । उड'

मारभगौयाय:५-०अहौनमतानि षडहसतीचियानावपतस"-इतिआध०ओ०७४.६-११.1

३०४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

परवसिन, दिन यश पटहय सशरति, तषवव पटहय परयरषि

सचरति;एव मय मिनदरोपयवगनतवयः। स चनदरी 'यतर व' यष

खानय 'परवम' अइः गचछति,"ततर' तघवव खानय 'अपरम'

अहरागचचव ; आती जहीनसय 'यजञसय' सरवसयापि सनदरलवारथ

परवोचॉ समानतव मादररणीयम ॥ १ ॥

इति धीमलसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया चतथाधयाय

(एकीनदिवशाधयाय) परथम: खणड: ॥ १(१७)॥

॥ अथ दवितीय: खणड: ॥

तानवा एतानसमयातान "विशवामितर: परथम

मपशचात तान विशवामिचण दषटान वामदवीजाज

तवी लवा मिनदरवचचि यतर इनदरी जजष यच

वषटिकथा महा मवधत कख होतरिति तान चितर

समपतदात, चिम समयततत." तत, समयाताना

समपाततवस हचाचक विशवामिचो यान,वा अह

समयातानपशच' तान,वामदवी जसट' कानि नवाई

सझानि" समपातातवतिमानयजयति स एतानि

सझानि समपातासतव परतिमानखजत'सदी ह जाती

m पठपतरिका ॥ ४ । २. ॥ ३०

वषभः करनौन'इनदर: परभिदातिरहास मकरिमा म

य परभति सातय धा इचछनति वा सोमयासःसखायः"

शासडकटरिहितरनमाईदभि तटव दौधया मरनौषा

मिरति या एक इडवयवरषगौना मिति भरडाजी'

बसतिगमयझो वषभी न भौरम उट बरहमाणवरत थव

खति वसिषठीऽला इट परप तवस तरायति नोधासत

एत परातससवन" शबहसतोनियाचकसवा माधयनदिन

ऽहौनसझानि शसलि तानवतानयाहौनसतानया

सलयो यात मघरवा कटजौरषौरति सतयवन, मचवरणो'

Sला इद पर तवस तररा यनदरीय बरहमाणि राततमा

इनदर बरहमाणि गोतमासी अकरबरिति बराहमणखद

बाहमणाचसी शासदहिनियनतवडि मिति वदधि

वदचछावाकरदाह: कसमादचछावाको वडिवदततव

सल मभयच शसति परविश चवाह:खभयावरविय

चति' बौरयवान वा एष बहची वडिवदतत सतरो

वहति ह व वईिधरो यास यजयत' तबादचछा

वाकोविडिवदतत सत'मभयच शसतिपरातरि

चवाह:खभयावरतिश च तानि पचखहम भवनति'

चतरविश ऽभिजिति विषवरति विखजिति महावरत'

sहौनानि हवा एतानयाहारनि नचय किचन हौयत'

३९

३०६ ॥ ऐतरयबराझणम॥

परालौनि 'ह वा एतानयाहानयनभयावतॉरन तसमा

दनानयतषवह स शसनति यदनानि शसनरयहीना

-----------------------’

लखगडोकानविरपानसरवसमडानवापरवामति य

दवनानि शासतीनदर म वतरनिहियनत यथकटषभ वाशि

ताय'यडवनानि शसिनहौनख सनतलया अहौन मव

तत सनतनवनति॥ २(१२)॥

अथ समातनामकानि सझानयाखयायिकयादरशयति-"तान

वा एतानसमातान विशखामितर: परथम मपशचात ; तान विषखा

मिलण दषटान वामदवी जखजतवा लवा मिनदर वचितर, यतर इनदरो

जजष यदय वषटि, कथा महा मडधत कसय होतरिति; तान चितरो

समपतट; यत चिपर समपतत; तत सममाताना समपातलवम"

-इति। ‘तान व" शासतरपरसिडानव ‘एतान' अववीदाहरिय

माणान समयातनामकान सतराविशषान "विखामितर' महरषि

'अथरम" खषयादौ ईशखरानगरहण 'अपशबद' मनसा वदमधय

जञातवान । विशखामिचण खटा य सतर विशषा:, तानधौलय

'वामदव:' महरषि: ‘अखजत'खकोयलवन लोक परकटोकतवान ।

त सझाविशषा उदाइियनत । "एवा लवाम'-इलक (स० ४.१८.)

सजम, "यनतर इनदर:"-इति (स० ४. २२.) हितौयम,"कथा

महाम"-इति (स.०४.२३.) ढतीयम। ‘तान' वीन सझ

विशषान वामदव:'चि समपतत' कालविलमब सति विशखामितर

आगतय सखकौयलरव परकटीकरियतौति भौलिया सवय शीघर मव 'सम

पत' समयगधतन शिथानपरासवान, खकौयलवपरसिदधारथ बडन

॥ षषठपचिका। 8। २.॥ ३०s

शिथान सहसाधयापयामासलयरथ: । 'ताल' तय सक 'यदध'ययात

कारणत चितर समपतत, "तत' तसमात कारणात,समयक पतन

परकटीकरण मषा सझाना मिति वयतपला समयात नामसमबम॥

अथ सतरानतराणा खषटिदरशयति-"सईचाव क विखामितरी

यानचा अई सममातानपशय, तान वामदवी सट, कानि नचई

सहानि समपातासतबबतिमानलजयति;स एतानिसतानि समयाता

सतबबतिमानखजत;सदी हजाती दषभ:कनीन,इनदर: परभिदा

तिरहास मक, रिमा मश परमरति सातय धा, इचछनति लवा

सौमयासः सखाय, शासडकटरिहितरनसाझा, दभितव दौधया

मनौषा मिति"-इति ॥ वामदववरततानत मवगलच स विशखामितर:

'ईचावल' मनसयव विचारितवान,"यान' सममातानह मौशखरा

नगरहण दषटवानसिम, तान अरय वामदव:"अखट' गरदरोहभीति

रहितः सन खकौयवन लीक परकटोकतवान। इतःपर कषा

चित सझाना मदीयलवपरसिडिरपचिता ; अतोवह कानि नाम

सतानि "तबबतिमान परवससढणान, समयातान छलवा 'बजय'

लीक परकटीकरावाणिा 3 "इति' विचाय विशखामितर: 'एतानि'

वदयमाणनि सझानि परवसझसदशान समयातान छलवा ‘अखजत'

परकटौकतवान । तष ‘सदी हजातः'-इचक (स० ३.४८.)

सतम,"इनदर परभित’-इति (स.०३.३४.)हितौयम,"इमा

म य'-इति(स.०७.८३.) ढतीयम, "इचछनति खा"-इति

(स० ३.३०.)चतरथम , "शासइइि’"-इति (स.०३. ३९.)

पचमम,"अभितटव-इति (स० ३. ३८.) षषठम अ9 । एतानि

सजञानि विशखामितरसमबनधिवन परसिदधानयभवन॥

आवe चौ० ७,५.२० दरषटवयम ।

३०८ ॥ ऐतरयबराहमणम ा

अथ भरइाजवसिठनोधसा तरयाणा यषोणा समबनधीनि

सहानि दरशयति-"य एक इवयचरषणीना मिति भरडाजी,य

सितमझो दषभी न भीम, उद बरहमाणखरत धवसयति वसिटी,

समा इदपर तवस तरायति नीधा:"-इति। भरडाजी "य एक

इद"-इति(स.०६.२२.)एक सतर मखजत। वसिषठी "यसति

गमझ "-"उद बरहमाणि"-इति सतइयम(स.०७.१.२३.)

अखजत ॥ नोधा: "असमा इद पर तवस"-इलक (स० १.६१.)

सतर मखजत।एतषा सरवषा सझाना ततर ततर विनियोगी वकत॥

इदानी महीनसजञानि विधत-"त एत परातरवन

षजइसतोतरियाचखवा माधयनदिनजहीनसहानि शसनति"-इति॥

"त' परसिडा: "एत" परयोगकाल सननिहिता होतरका:, अहरगणय

आतसवन षठहसमबनधिनः ‘सतोतरियान' ढचान, "आ नी

मितरवरणा "-"मिरव वयम"-इतयादीन सचकारपठितान

बचान 8शसबा, 'माधयनदिन' सवन वडोनसहानि सय ॥

कानवहीनसझानीलयाणडीदाहरति-" तानचतानयाहीन

खझानया सलधी यात मघरवी ऋटजीरषौति सतयवान मनावरणी, रमा

इद पर तवस तरायनदरीय बरहमाणि राततमा इनदर बरहमाणि गीत

मासी अकरविति बरहमखदबराहमणाचसी,शासइडिजॉनयनत वइि

मिति वइिवदचछावाक:"-इति । "तानि' परववाकच विहि

तानि अहीनसझानवतानयदाइियनत,–"आ सलवी यात"-इति

(स.०४.१६.)‘सतयवत' सतयशदीपरत सॉ मतरावरणः शसत ॥

क "आ नी मिववरणा, मिरच वय हवामह, मितर' हव पतदच,मय वा निचवरणा,

बरणा चिडगरसित, परति वा सर उदित इति षडहसतीचिघा मचवरणसय"-इति आशe

धौ० ७, २, २॥ 'षडइशबदन पषठधाभिशवौ उचत-इति तचच ना० इ० ।

॥ षषठपतरिका 18 | २ 1 २१e

"अनना इत"-इति(स० १.६१.)सचम । तसव. "इनदराय बचचा

शि"-इति चतरथ:पादः॥ ततर बरहमाणीतिषठततवातत इद सतरो

'बरहमखत' बरहमशबदोपतम॥ तथा तलव सल "इनदर बरहमाणि"

-इतिशयतवादिदरबरहमणणखत। तदतदभय बराहमणाचरसौ शॉसत ।

"शासददधि:"-इति (स० ३.३१.) सरश ‘वजञिवत' वडिशबदो

पतम; तसिन सल"जनयनत वइिम"-इतिशयततवात । तदत

दचछावाक: शासत ॥

अथाचछावाकोविषरय पराध मइवयति–"तदाह:कसनादचछा

वाकी वजञिवदतत सझ मभयनतर शसति,–पराविष चवाहिरख

अयावरतियचति१"-इति। गवामयन हि दविविधानचहानि,

आहकतिरहितानि ततसहितानि च ॥ ततर वाचमाणानि चत

विशादौनचाइकतिरहितानि; अभिशवषडइगतानि पषघषडह

गतानि चाइकतिसहितानि , तयो: षडहयोरसदनषठानसय

विहितलवात । एव सति 'पराविदय' आइततिरहितष चतरविशणादि

वहसवदरिवत सतर मचछवाकः सिति, तथव ‘अभयावरतिय'

षडगतशवहसस चत सतरी शासिति । ततर उभयच भासन कि

कारणम १ इति परध: ॥

तरयोततर माह-"वीरयवानवा एष बहची वइिवदतत

सॉ, वहतिइव वझिरीयासयजयत; तबादचवाकीवइिवद

तत सद मभयतर शसति-पराचियचवाइसखभयावरतियच"

इति। "एष'अचछावाकी "बचचा" बबना बचचा मननाधी

बतलवातत ताइश:॥ अचछावाकलव परववव माखातम-"तसरावो

बराहमणी वौरयवानसयात,सोऽसयाचवाकीयाकरयात"-इतिअ।

म १भा० ४४ई प० १ई पe I

३१० 1 ऐतरयबराहमणम ॥ :

बबचवादवारय 'वीरयवान शकतिमान, यजञभारी वोटशः; सतरो

चतडइिशदीपतलवात तसय योगयम ; लोक.पि ‘वडि' वोढाखी

वलौवदो वा ‘यास' रथशकटसमबनधिनौष ध 'यजयत' वधयत,

बता धरी वहयव । ‘तसराद' यजञभार वीट समरथवादचछावाकः

'उभयतर' डिविधवषयहसस वझिवत सतरो शसति ॥

ततरहतिरडितवहर, परवोततसताना भासन परशसति

"तानि पचखहसम भवनति,-चतरविश जभिजिति विषवति विख

जिति महावरत ; जहीनानि हवा एतानयहानि,न डोय किचन

होयत; पराजीनि चह वा एतानयाहानधनभयावरतॉनि , तसरा

दनाचतषवहसस शसिनति"-इति। गवामयनचतरविशाखय मा

रभणीय हितौय मह:, महाबरताखय मपानय मह:, विय

वदाखय मधयवरति परधानमह:, अभिजिडिशखजिदाखय विश

वत उभयभागवतरतिनी ड अहौी। एतश'पचखहसय' ‘तानि'

परवोतनानि अहौनसहानि होतरकाः शसनति। एतषा मजञा मही

नावाततानि सझानि ततर योगयानि। यमदतशवहसय,कि मपयक’

न होयत, तखमादतानयाहीनानि, किबतानयाहौनानि ‘पराजौनि'

सचदवपरयोजयवात। तषवहसय, सामरथयातिशयाय तानि सहानि

धासय:॥

परकारानतरण सझानि परशासति-"यदनानि सिनहौना

उतखगडोकानसरवरपानसरवसमडानवाशवामति"-इति। 'य खरग

लोका:"अहीना." भोगवशरवसतभिडॉना न भवनति, अत एव'सरव

समदधा:", उततममधयमाधमकरमफलरपलवात'सरवरपा' बहविधा

भवनति; ताबीकान परापरवा मलवननाभिपरायण तानि(३०य० )

सहानि सय: ॥ . .

॥। षषठपजचिका ॥ 8 । ३ ॥ ३११

पनरपि परकारानतरण परशएसति-‘‘यदवनानि शसनतीनदर

मवतरनिहवयनत यथऋटषरम वाशिताय’—इति । ‘एनानि' मतानि

यदा परणसनति, तदानी म तरिनदर मव ‘निहलयनत' नितरा माहल

यनति, गरम गरहण मिचछनती धन: ‘वाशिता’, तदरथ नचषम पङगव

यथाहनयति तहदिनदराहवान दरषटवयम ॥

पनरपि परकारानतरण सजञानि परशसति– “यददवनानि

शसनयहीन पय सनतलया, अहीन मव तत सनतनवनति’—इति ।

‘यद उ एव' यसमादव कारणात ‘एनानि' सतानि सवषवहसर,

शसनति, तसमादव कारणा दतत शसनम ‘अहीन सय' अहरगणसय

सनततयरथ समयदात । ‘तत' तन परशसनन ‘अहीन मव' अहरगण

मव ‘सनतनचनति' सनतत करवनति ॥ २ ॥

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमाणसय षषठपजचिकाया चतरथाधयाय

(एकीनचिशाधयाय) हितीय: खणडः॥२(१८)॥

----------------------- \----------------------------------------

॥ अथ ढटतीय: खणड: ॥

ततो वा एताखौनतसवपातान' मतरावरगो

विपरयास' मकक महरह: शसलयवा लवा मिनदर

वजतरिातरचति परथम ऽहनि यनतर इनदरो जजष यच

वाटौति वितीय' कथा महा मवधत कसय होतरिति

ढतौय'चौनव सवयातान बराहमणचछसी' विपरयास

३१२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

मकक महरह: शसतीनदर: परभिदातिरहास मक

रिति परथम ऽहनि य एक इडवयवरषगौना मिति

डितौय यतिगमयझो वषभी न भौम इति ढतौय

चौनव समपातानचछावाको विपरयास मकक मह

रहःशसतौमा मष परभरत सातय धा इति परथम

शहनौचनति दवा सौमयासः सखाय इति चितौय'

शासडकटरिहितरनव गादिति ततौय' तानि वा

एतानि नव चौणि चाहरदहशखानि तानि दवादश

समपदयति दादश व मासाः सवतसर:" सवतसर

परजापतिः" परजापतिरयचचसतत सवतसरी परजापति

यज मापवरति तत सवतसरपरजापतौ यच जहरह:

परतितिषठती यनति तानयनतरणावाषप मावपरवीनयइया

विराजी वशमदीशतरथ sहनिपटटी:पचम पारचछपौः

षट'sथ यानय हानि मनहासतोमानि खद को अदय

नया दवकाम इति' मचवरण आवपत वनन

वा यो नयधायि चावलकविति बाहणाचछीखायाझबॉ

डप बनधरठा इतयचावारक एतानि वा आवपनानच

तवा आवपनरदवा: खरग लोक मजयचतषकरटषयसत थ

वतद, यजमाना एतरावपन: खग लोक जय

नित॥ ३(१८)॥

I। अषटपचिका | 8 । ३ ॥ ३१३

अथ परवोतताना समयात सझाना विनियोग दरशयति-"तती

वा एताखौनसमपरातान मचवरणी विपरयास मकक महरह:

शसति"-इति॥ "तती व" तसमादव परवोततात चतविशादरह

पशकादनयतर षडहनविति शष:॥ तष मतरावरणः वीन सममाता

खयान सतरविशषान "विपरयास.' विपरयय शसतत । स एव

विपरयास एकक महरहइवनन सटोकरियत ॥ परतिदिन मरकक

सतर मिलयरथ: ।

तदवीदाइलध परदरशयति- *'एवा लवा मिनदर वचितरतति

(स० 8, १८.) परथम जहनि, यवर इनदरी जजष याख वरटीति

(स० ४. २२.) दवितीय, कनया महा मडधत का परय होतरिति

( स० ४. २३.)ढरतौय"-इति 1

मचवरणवदध बराझणाचसिनोपि सचयसय विपरयासन

शसरन दरशयति-"बीनव सममातान बराहमणाचसी विपरयास

मकक महरह: शॉसतौनदर: परभिदातिरइस मकरिति(स.०३.३४)

परथमऽहनि, य एक इवयवरषणीना मिति (स० ई. २२.) दि

लीय, यरितमयईो दषभी न भौम इति (स० 9. १०-3)

ढतीय"-इति p

तथाचवाकरयायि सचयसय विपरयासन थापसन दरशयति

"बीनव सभयतानचछावाकी विपरयास मकक महरह: शसितौला

म य परभरत सातयधा इति(स.०३.३६) परथम इनौचकति व

सौमयासःसखाय इति(स.०३.३०.) डिरतौय, शासदहिईडित

नस गादिति (स० ३, ३१.) ढरतौय"-इति ॥ . .

उठाना सझाना मिलिखा साझा दरशयति–“तालि गए

एतानि नव"-इति ॥

Ele

इ१४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दिनविशषण सतरविशषान विधाय परतिदिन शसनीयानि

सहानि विधतत-"बीणि चाइरडशखयानि"-इति। यानि

परतिदिन शसनीयानि वीणि सहानि, तानयपरितनखणड"सदी

जह जातः इतयादिना (३१६य० ) सटौकरिषयनत ॥

दिनविशषगशतानि परतिदिनगतानि च मिलिलवा परासति

"तानि दवादश समपदयनत; दवादश व मासा:सवतसर, सवतसर: परजा

पति, परजापतिरयजञसतत सवतसरी परजापति यजञ मावनति ; तत

सवतसर परजापतौ यज हरह: परतितिषठनती यति'-दति । "तानि'

परवॉजञानि नव दीणि च मिलिलवा दवादश समपदनत । अतो मास

सवतसर-तविमाढपरजापति-दवारा परजापतिरटलवन परजापतिरपो

यी यजञसताइरश सवतसरातमक परजापतिरप यजञ मनषठातार: पराश

वनित । "तत’तन शॉसिनन सवतसरातमक परजापतिरप यातरी परति

दिरन परतिठिता; सनतो नतिषठति I

अथ परयषडहध उततरासिसबाह कासाचिटठचा मावाप

विधतत-"तानयतरणावापा मावपरनट"-इति । यानि विपरया

लन शसनीयानि नवसाझाकानि सझानयकानि, यानिच परति

दिरन शॉसनीयानि टौणयतानि, "तानवनतरण' तषा सभयविधान

मनतरालखान किचिदावपनौय लकसमह मावपरन॥

कतरिन दिन का कच आवपननीया इतयाशडय तत सव

विविदय दरशयति-"अयझा विराजी वशमदीदयत थ इनि,पटटीः

पचशम,पारचछपी: षल"-इति ॥ उखारणविशषीपता: ओकारा;

‘नयजा’, त च परव मव"मखती मधयनदिन नययकति"-इतयतर

भिडिताः(२४ प) : ता अनईतीति'अयबा"; 'विराज'

E L

विराटनदरनाअच:; ता: यठाषडहसय चतथनयावयनीया: 1

1पठपबिका। ४। ३॥ ३५

"नतगिरो पपि मथ"-इतयादयाधतसर ऋच:(स.०७.३.५-e)

"य वी मह महिडध भरधवम"-इतयादयासतिसर:(स० 3. 53,

९-९९.): एतःसस विराजः बयाणा डीवकाणा वयसकचा

भवति। परथमा मार बकसतचो मतरावरणसय, ढतीया आरभ क

बडी बराहमणचसिन, पदयमी मारवरयकरची चलवाकस।

तदव सबझ वयसतचा विभजथ परचपणीया:।। सीरिया विराज

परदीप एक: पद: । वशमदीरावपनविति पचातरम ॥ विमटा

खधन महरषिण दटा वमदयः॥ तादय "यजामह इनदरम"-इतया

दधा: सरच (स० १०.२३.१-२.)। ता अपि परववत तरय

खचाः कतरतवयाः। पचम जहनि "यबिडि सलय सोमपा."

-इतयादयाःपशचिनदखाः सरच:(स० १.२८.१-s.)परववदाव

पनौया: । तथा षछSहनि परचछपन डटा "इनटराय हि दी."

-इतयाधा सरच (स० १.९३१.१-s.)परववदावपनीयः॥

सतीमडावतिशसनाथॉनधावपनीयानि सहानि दरशयति

"अथ यानयवहानि मनहासतोमानि य, की अदय नया दवकाम

इति मतरावरण आवपत: वन न वायी अ8 नयधायि चाकानविति

बराहमचाचसयायाझरवाडप वनधरठा इलयचछावाक"-इति ।"अथ'

परवोतरविराडाढावाषपकथनानतरम, अनय आवशप उदयत इति

शष: ॥ यानचहानि "मझासतोमानि' सदलकविशादिसती मभयी

Sधिकधतविशादिसतीमरयजञानि य, तषवहसतर, सतोमसाझा मति

करमयाधिकाना मचा शसन कतरतवयम। ततच मतरावरणः "की

अदय"-इति(स.०४.२५.) सत मावपतJ। बराहमणाचसी

a 'वाय:–व: पच: ।०-०॥ वतिच य इति च चकारशाकलय, उदातत लवव

यात मभविषयदससमापतधारथ:'-इति निर० ई.५.५.।

३१ई ॥ऐतरयबराहमणम ॥

"वन न"-इति(स०.१० २८.) सतर मावपत। अचछोवाक

"आयातडि"-इति (स ३.४३.) सतर मावपत ॥

तषा सझाना परशसा दशयति-"एतानि वा आवपनानच

तवो आवपनदवा: खग लीक मजयचतकईषयसतववतदयजमाना

एतरावपन: खग लीक जयनति"-इति । कीअदलधादीनि

सहानि ‘आवपनानि'आवापयोगयानि, एतरदवाना खरगजयादाज

मानाना मपि त: खरगजयी भवति ॥ ३ ॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीय वदारयपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया चतथॉधयाय

(एकीनदिवशाधयाय) ढतौय: खणडः॥ ३(१८)I

॥ अथ चतरथ: खणड: ॥

सदी हजाती वषभः कनौनइति मचवरण:'

परसतात सझाना महरह:शसति तदतत, सतरो

e f-s-s- ३ --s. -s. १० - - - -s I

खगरय'मतन व सलन दवाः खग लोक मजयनन

तन ऋषयरतवतदाजमाना एतन सकरन खगलोक

जयनरति तटवशवामिरच" विशवख हव मिरव विशवा

मिच आस' विशरव हाली मिरच भवतिय एव वद ि

यषा चव विदनतन मचवरणः'परसतात सझान

॥ षषठपतरिका | 8 । ४ ॥ ३१9

महरह: शसरति तदषभवत पशमझवति पशना मव

रड’ ततत पञचव भवति पञचपदा पझि पटटिया

अमन मननादखावडा"उदबरहमाणयरत थकवति

बराहमणाचसी" बराहमणवत समई सत" महरह:

शसति तदतत सरक खगरय" मतन व सकन'दवाः

खग लोक मजयननतन ऋषयसतथवतदाजमाना

एतन सलरन खग लोक जयनति तट वासिठ मतन

व वसिषठ इनदरख परिय धामोपागचछतसपरमलोक

मजयदपनदरख परिय धाम गचछति जयतिपरमलोक

यएववद तई षच षडरा ऋतव चटतना माल

तदपरिटात समयाताना शसलयारीव तत खग लोरक

यजमाना आसिमझोक अ परतितिषठबभि तषटव

दौधया मनीषा मितथकावाको sहरह: शसलव

भिवत ततव रप मभि परियाणि मरमशत पराणौति'

यानयव पराणयहारनि तानि परियारणि तानयव तदभि

ममशती यनतयभयारभमाणाः परी वा अखाडो

काल खगा लोकत मव तदभिवदति कवॉरि

चामि-सनइश समधा इरति य व तनचटषय: परव

e "असिन लीक"ख, "अखिीक"ग, "अविॉलीक"घ,ड, ‘च ॥

"ऋचारिन"ड,च ।

३१८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

परतासत व कवयसतानव तदनयतिवदरति तद वशखा

मिरच' विशवख हव मिरच विशवामिचआस विशरव

हासी मिरच भवति य एव वद तदनिरहा पराजापव

शसथनिरतीव परजापति, परजापतराल सकरदिनदर

निराई तननदरादपतर परचयवत तई दशव दशाचरा

विराऊहा विराऊहादखावरल| यदव दशचॉइमs

दश व पराणा: पराणानव तदापवति पराणानातमन

दधत " तदपरिटात समयाताना शसलरथाथव तत

खग लोक" यजमाना आखिोक - परतिति

छनति ॥४(२०)॥

एव तावत परसजञानपरसॉ परिसमापयाधना परसतत मारभत

"सदी हजातीदषभ: कनौन इति (स० ३.४८.) मतरावरण:

परसतातसझाना मइरड: सिति"-इति। परवच (३१४ पर.)

वीणिचाहर इशासयानौति यदल, तसववतद वयाखयान सदयौह

जात इतयादिकम । मतरावरणः खकौयसथ सतरसय परसतात

अतिदिन शसत। सचना मिति बडवचरन वयलयन दरषटयम॥

उचच सतरो परशसति-"तदतत सॉ खरय मतन व सलन

दवाः खग लीक मजयबतन ऋषयसत वतवजमाना एतन सलन

खग लोक जयनति"-इति । ‘खगय" खगाय हितम ॥ अनयत

परववद वयाखयम ॥

ऋषिसमबनधन पन: परशसति-"तद वशखामिरव विशखासय जह

* "दशरची" क,दशचॉइ"ड,च। " "अखिन जीक"क,ड,च॥

॥ षषठपतरिका1 ४। ४ ॥ ३१e.

व मितर विखामितरआस"-इति। "तद' तन सॉ. विशवामिवण

दषटवात "वखामितरम'। विखसय मितर मिति निरतरघा विखा

मितरशबदोsभति अ9 ॥

वदन ततपरव मनषठान व परशसति-"विशड हाल मितर

भवति य एव वद, यषा चव विहानतन मनावरणः परसतात,

सझाना महरह:शासति"-इति॥

दषभ: कनौन इति यीशय दषभशबदसतदनतरगत वकारयति

रित कषभशबद मशपजीवय परशसति-"तदषभवत पशमझवति

पशना मवरदव"-इति। 'तत' सतर मषभशबदपतम,ऋषभसय

च पशवात सॉ पशमझवति। अतः पशना परावध समपढत ।

ऋटकसटटा सपजौवय परशसति-"तत पचच भवति,पतर

पदा पडि:,पडिवा अब मवादसयावरलया"-इति । ऋगगतया

पशसइया पादपखकोपतपडि अनदसवरपलबम; अवशय पतर

सटटोपतलवात पडरिव,-पराणय, परय, खादय, लड, निरगीरय

मिति ॥ एव मनपरामनय समपरदात 1

बराझणाचसिनः सरव विधतत-"उद बरहमाणशरत धव

यति(स.०७.२३.)बराहमणचसी बरझखतसमईसत महरह:

भरासति"-इति। बरझाणीति बरहमणबदयोगादि सॉ. बरहमखत

‘समडम'समडिकारणम ॥

तसय परशसा दरशयति-"तदतत सल खगरय मतन व सलन

दवा: खग लीक मजयवतन ऋषयसतथवतट यजमाना एतन

सलन खग लोक जयनति"-इति ॥ -

क, "विशवामिच चषिः सदास:पजवनसय परीहितो बमव ; विशवामितर: सरवमितर:"

-ति निरe ६, ७, ६। "मिच चरषो"-ति पाe ..,१२० । ''

३२० It ऐतरयबराहमणम ॥

पनरयषसमबनधन परशसति-"तद वासिठ मतन व वसिषठ

इनदरसय परिरय धामोपागचछत,स परम लीक मजयत"-इति ॥

वदरन परासति–"उपनदरसय परिय धाम गचछति, जयति

परम लीक य एव वद'-इति ॥

ऋकसाझा सपजौवय परशसति-"तई षच षडरा ऋतव

चलतना मातरय"-इति॥ . .

तसय सख खान विधतत-"तदपरिटात समयाताना शास

नधाधव तत सवरग लोक यजमानाअसिडीक परतितिषठनति"-इति ।

समयातसचसयोपरिटात तत सॉ शसत। तन शसनन 'खरगलोक

मालव' दहपातादडरभाविनी खरगपरारसि समपादोवदानी मखिन

लोक यजमाना;परतिषठिता भवनति ॥

अचछावाकखय सतरो विधतत-"अभितटव दौधया मनीषा

मिलयचछावाकी जहरह: शासलयभिवनत ततव रपम"-इति । अभि

तलयादिक (स.०३.३८.) सतर मचछवाकः परतिदिन भोलतत ।

बतख ‘अभिवत' अभिशबदोपतम। अभिशबदसय चभितः सरवत

इतयरितरारथ वरतमानदवात सतरो "तल' सनतल, विचछदराहितय

सवरप भवति ॥

तरया ऋचसततीयपाद मनदय वयाचट-"अभि परियायि

मरमणत पराणीति;याचवपराणवहानि, तानि परियाणि; तानचव

तदभिममशती यनतयमयारभमाणाः;परो वा असमाजञीकात खगो

लीकसत मव तदभिवदति"-इति । अनया ऋचा (स.०३.३८.१.)

विशखामितर: परजापरति तषटीव ॥ तथा सतयसय पादसयाय मरथ

'पराणि’ उततराणि करमाणिपरजापत: परियाणि "अभि मरमशत’

वत: पन: पन: सशनई वकत इति॥ यानचवलयादिक तद

I)। छपतरिका ॥ ४ | 8 ॥ ३२१

वयाखयानम । वतरतमानादइ: "पराणि' उततराणि यानचवाचहानि

सनति, तानि दवसय परियाणि ; आतखतन पादपाटन तानधव

‘अभिममणत:'अभितः पन: पनः सयशनतः। तसवव वयाखयान

मयारभमाणा इति । ताइशा यजमाना "यकति' वतरतनत 1

किचासमाजीकात पर: खगा लीक:, त मव लीक ‘तत' तन

परशदनाभिवदति ॥

चतरथपाद मनवदति-"कवो रिचामिसनडरी समधा इति"

-इति। ‘समधा:' शोभनया मधया यवती वह 'सनदरश' समयग

दरशनाय ‘कवीन' महरषिोन इचछामि ॥

त मव पाद वयाचट-“य व त न ऋषय: परव परतासत व

कनवयसतानव तदभयातिवादति"-इति | ‘न:' अखबाक समबनधिन:

परव ऋषय:य,‘त'परसिडाः ‘परता:'परलोक गता:, त एवातर

‘कनवय' कविशवदन विवचिता:। अत तानव ‘अभि'लच तन

पादन 'अतिवदति' अतिशयन बत ॥

ऋषिसमबनधन परशसिति-“तद वशखामितव , विशखसय चहव

मितर विशखामितर आस ; विशड हारस मितर भवति य एव वद"

इति । परववद वयाखययम ॥

असपषटदवताक मपजौवय परशसति-"तदानिरतव' पराजापलबध

शसलवनिरती व परजापति, परजापतराय"-इति। 'तत' सतम

'अनिरझाम' न हि तनतर काचिहवता विसरट निरचत , अत:

परजापतिदवताकम, तत शसत। परजापतिघ मट : परव मकति

राहिलयात 'अनिरत, अतः सतरी परजापतिपरासय समपदत॥

सतख परजापलयव सलनदरव परचवततयाशइयाह-"सकरदिनदर

निराह, तननदरदषाव परचवत"-इति। कसयाचिइच "शन

a १

३२२ 1 ऐतरयबराहमणम ॥

इवम मधवानमिनदरम'-इति सतरदिदर निईत, तन कार लननदर

समबनधिखरपादपि परचयतिनॉसति॥

चटकसटटा सपजौवय परशासति-"तई दशरच, दशाचरा

विशरादध विराटखादयखावर ह."-इति ॥

पनरनयकसाझा सपजौवय परशासनि-“यदव दशचॉइम,

दशव पराणा,पराणानव तदवनि,पराणानातमन दधत"-इति ।

‘यदव' यरआदव करणदिरदसज'दशचशम' [तिः पराणसाइव

नाशयॉथो॥ पतर जञाननदरियाणि, पच कमनदरियायि, इनदरिय

रपः पराण दरशव॥ यडा परादयपानादयःपच वायवी नागकम

दयश पतर वायव इति दण पराणा: । ] अतखतचसनन पराणा

नव परामय, तान पराणान खातमचव खापयनित ॥

तसय सख खान विधत-"तदपरिटात समयातना

असलवालव तत खग लीक यजमाना असिडीक परतितिषठति"

इति ॥ ४ ॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणय षषठपबिकाया चतथौधाय

(एकीनविशाधयाय) चतरथ: खणड:॥ ४(२०)॥

॥ अधथ पाडा : लहणड: I

कसत मिनद वा वस'कनवयो अतरसोना कद

नवखा छत मिति कइनतः परगाथा"आरकषणीया

n षषठपचिका । ४। ५ ॥ ३२३

अहरह: शखनरत की व परजापति, परजापतरालगी

यदव कइनता३: अनन व क महादखावरलi यवव

कदलताई: अहरहवा एत शानतानबईौनसकावयप

यचाना यनति'तानि कडडि: परगाथ: शमयनित

तानयशय: शानतानि की भवनरति तानचनाबझानतानि

खग लोक मभि वहनित चिषटभः सतर परतिपद: शस

यलता हक परसतावगाथाना शसनति'धाया इति

वदनततत तथा न कयात चरच व होता विशो

हचाशसिनःचवावव तद विश परयदयामिनी क.'

पापवखस विषटभो म इमाः सतमतिपद इलव

विदयाततदाथा समदर मझवरनव हव त परशवत य

सवतर वादादशाई वासत तदयथा सरावती नारव

पारकामाःसमारोह रव मवताखिषटभः समारो

हरनित न ह वा एतवछनदो गमयितवो सवरग लोक

मपावतरतत' वौरयवततम हि' ताथी न बयाहयौरत

समान हि चछनदो ऽयोनडायाः करवागौरति यदनाः

शसति परजञाताभिः सतर परतिपकति सझानि समा

रोहामति यदवना: शसनतोनदर मवताभिरनिहियनत'

यथकटषभ वाशिताय" यडवनाः शसनलयहीनख

सनतया अहौन मव ततत सनतनवनति ॥ g(२१)॥

क, " "काइलाइट"ख। -

३२४ ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

अथ तरौन परगाथान विधतत–“कसत मिनदर लवा वस, कनतरवयो

अतिसौना, कद नव सया छत मिति कहनत:परगाथा आरभणीया

अहरह:शसयनत'-इति ॥ ‘कसतम"—इतयादिरक: (स० ७. ३२.

१४, १५.) परगाथः, ‘कतरवयः’-इति (स० ८. ३, १३, १४.)

हितौय:, ‘कद न’–इति (स० ८. ६६. e.., १०.) ढतीय: ।

यदयपि परथम कचछबदी नासति, तथापि छतरिनयायन साहचरयाहा

सव कहनतः, ‘परगाथा:’ कटगइयातमका: ;तच वछातारमभ हतलवात

‘आरमभ णौया:’ त च परतिदिन परणसनीया: ॥

परथम परगाथ शसति–‘को व परजापतिः, परजापतरामप’

इति । परथमसयादौ धयमाणसय क-शबदख परजापतिररथ:; अती

ऽय परजापतिपरा मया समपरदात। ॥ -s"

सरवान परगाथान परशसति-‘यदव कइनता३: अव व क

मतरादयसयावर ह’—इति। ‘यदव' यसमादव, कारणादत परगाथा:

कहनताः [ मतिः परशसाथरग ]; कचछबदक दशरप यातक, तदनतर

मव ; कशबदसय सखवाचिलवादनतरसयापि सख ह तलवात ; अती

९नतरपरा मगर तत समपरदायत। ॥

पनरपि परकारानतरण परशसति—‘यददव कददनता३: अहर

हवी एत शानतानयहीनसतानयपयचाना यनति ; तानि कइजिः

परगाथ: शमयनति ; तानयभय: शानतानि क भवनति ; तानच

नाउकानतानि खरग लोक मभि वहनति’–इति । ‘यददिव’पनरपि

यसमादव कारणात एत परगाथा: कदनतः शासयनत [ शति: परव

वत ] , तसमादव कारणात परतिदिनम ‘एत' यजमानाः

‘शानतानि' सरवोपदरवशमकरणानि अहीनसकानयपयचचानाः

‘यनति' वतरतनत । कथ मताना शानतलव मिति, तदचयत-‘तानि'

॥ षषठपतरिका । ४ । ५॥ ३२५

सतानि 'कहडि' सखवाचकणदीपत: परगाथयजमानाः "शम

यति'शानतानि करवति । "तानि'च सतानि शानतानि भलवा

'एय'यजमानभयः‘क भवति'सखकारणनि भवति। ‘तानि'

सतानि शानतानि भलवा ‘एनान'यजमानान खग लीकम, "अभि

वहकवि' परापयनित 1

कडनत-परगाथशय उनई भ "अप पराच इनदर"-इतयादा: तरियप

इनदखा ऋच: (३२८ पर०) परतिदिन शसनीयसलादिवन

विधतत-"तरियभः सखागरतिपद: शलनय, "-इति॥

अचव कशचित परवपच सझावयति-"ता हक परसतात परगा

थाना शासिनति, धाया। इति वदनतः"-इति । यथा होतरनिषकवलय

शख परगाथात परसतात धानया भवनति, तडत,"अप पराच"

इलयावासतरियभोजपि धानयासतसात परवोतताना कडत अगाथाना

परसतात शॉसित योगया इति वदनतः क चिदयाजञिकाः ‘ता:'अटव:

तषा परसतात सिनवि ॥ . . . .

त परवपचरव निराचट-"तत तथा न कयात"-इति ॥

तसिन पच दीरष दरशयति-चतर व होता, विशी होतरा

शासिन:; चतरायव तद विशरण परयदयामिनो क: पापवसयसम"

इति । निषकवलयसय शासको यो होतासति, अरसौ ‘चतर व' चचियी

राजव। होढव समतपवाः करिया होचाः, ताःशसतीति मतरा

वरणादयी "हीचारशसिन:', त च "विशः' राषटरवतरतिनय: : परजा:

'तत" तथा सति, हीढदरषटानतन परगाथशय: पव तरिशभ: सिन सति,

ता "विश" परजा "चतरावव' राजञ एव 'परययामिनी' परतिकली

दयोगयका कः। तलख 'पापवसयसम' अतिशयन पापरपम;

खामिना राजञा सह मातसयशय खामिदरीहरपलवात॥

६२६ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

परपच दषयिलवा खपचरव निगमयति-"बिदभी मइमा: सझ

परतिपद इलव विदयात"-इति। . "इमाः""अप पराच"-इतयादयाः

(३६०पर०) चियभचः‘म'मम शॉसित:‘सलपरतिपद' अह

रहशसनीय सतर परारमभरपाः इलव निबियाल ; न पन: परग

थभय: परसतात तरियभा मवखान यवम ॥

सतमतिपतच गरग दरशयति-"तथा समई परवरवव

हव त परवत,य सवतसरी इादशाई वासत,; तादयथा सरावतो नाव

पारकामाः समारोडयरव मवताखियभ: समारोहनति"-इति ॥

'तत' तखिखभिहितरथ दषटानतीsभिधौयत,-यथा लीक समदर

परवशरन । "परव:'परतौरगमननम । सवपरय नदीतडागादिय

घरतौरगमन सशक भवति, समदरसथ त तहशकम; तथा सव

सरसबसय डादशाहख वदषठातणा'परशव' पारगमन समापन

मलयनवदशकम; परयोगयातिबहलवात। ‘तत' तथा सति,

यथा लोक समदरसथ परतौरगमनकामा: परषा: ‘सरावतो नारव

समारोहय' इरा अवम, तसमह:ऐरम, तन सह वारतत इति

'सर' नौखव वसतजातम, ताइवा सर’ यदयाि नवयरित, लयरथ नौ:

सरावती ॥ समदरपारगमनसय चिरकालसाधयवात, तावतः

करालसव पयासनाबन सह सरव मपचिरत वसतजारत तसवा नावि

समादय पदयातरा विकासता नाव मारोईय:, एव मवानषठातार:

तथाविध-नौसदशणा एताखिषटभः समारोहतति । सरववखसबबा

नौरिवताबिछभः पाशरर नत समरथा इतयरथ:॥ . . .

बतदव सामथरय खटीकरीति-"न ह वा एतचछनदी गम

यितवा सवरग लोक मपावतरतत; वीरयवततम हि’-इति। समदर

बाडया मडपन वाशवन पारगमनचरमन भवति, सरावलया त

॥ षषठपतरिका | ४ | ५॥ ३२s

नावा पार मवशरव परापयत; एव मव चिषटरपछनदी यजमानान

खग लीक गमयिलवा नवोपावरतत, किनत सरवथा खग गम

यलव।यसआदतचसन मतिशचन वीरयवत, तसनादज पारगम

यिढखम।एव विधाखिषटभी यदिसकषतिपदसय, तदनो सट

चनदसौदपि तरिषटपलवात, तलसाहायन वौरयवतमलव मपपदयति ।

परगाथाना त विषटधाभावात तयः परसतात शसन वीरयवततमलव

न सिधयदितयभिपराय: ॥

एतानय सतरिषटबथः पव शॉसावी मिति वयावहाव मितरदषटानतन

परसॉ परतिषधति-"ताथी न वयाइयौत; समान हि चछनदी

थो नडाया: करवारणीति"-इति। तानयसतरिषटबयः पव शॉसावी

मिति वयाहाव नकरयात अ।यरआत सल:सईतासाछनद:समा

नम, तमात सतरानतरमताना वगतराणा मिवतासा वयाडावी

नासत ि। यदि धायाइषटानतन वयाहाव: करियत, तदानी मता

अषि घायाः करियरन, आई त तासा धायालव""नत करवाणि’

सरवथा न करवाणौतयभिपरलय धायारपाईौतः सन वयाहारव न

बयौत ॥

उझासतरिषटपछलदखता ऋचः परशसति-"यदनाः शॉसनति,

परजाताभिः सतरपरतिपदधि: सझानि समारोडामति"-इति।'एन'

कची यदा शासिनति, तदानो महारनौखानौयाना चिषटिपछनद

रकाना समारोहणम 'एनाभि' सकषतिपझिः परजञाताभिरमविथ

तीति शसितणा मभिपरायः। यथा परौढायाः नावः समारोहण

यतर वापि क'न शकत, किनत निवखादिसाधननव कतल

शकचत, तडदवापि दरषटवयम ॥ '

क. भा. प प० २३ प० वयाहाववयाखयान छत दरषटवयम ।

३२८ ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

पनरपि परकारइयन परशसति–‘‘यदवना: परशसनतीनदर म व

ताभिरनिहनियनत यथऋटषभ। वाशिताय, यदद वना: शसनयहीनसख

सनततया अहीन मव तत सनतनवतति’—इति ॥ ‘अप पराच इनदर’—

इतिशतलवादिनदराहरान भवति। अनयत परववद वयाखययम॥५।

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमाणसय षषठपचिकाया चतरथाधयाय

(एकोनचिशाधयाय) पाशचम: खणड: ॥५(२१ ) ॥

॥ पराथ षषठ: खणड: ॥

अप पराच इनदर विशरवा अमितरानिति मतरा

वरणः परसतात सकाना महरहः शसलरयपापाची

अभिभत नदसव अपीदीचो अप'शराधराच’ उरौ

यथा तव शरमन मदमलयभयख रप मभय मिव हि

' यतरितौचछति बराहमणा त बरहलायजा यनजमौति बराहम

णाचछखहरह: शसति'यनजमौति यकतवती' यकत

इव ऋगरहौनो ऽहौनख रप' मर नो लोक मन नषि

विहानितयचछावाको sहरहः शसलरथन नषीलयतौव

हगरहौनो Sहौनख रप नषीति सचायणरप ता वा

एता अहरहःशखनत' समानीभि: परिदशयरीक

॥ धठपघिका। 8। ई ॥ ३२c

सारी हषा मिनदरी यजञ' भवरती ३० यथकटषभी

वाशिता यथा वा गौ: परचवातरत गोषठी मरव हषा मिनटो

यजञ मव गचछति न शनहवौययाहौनखपरिदधयात

चचियो 'ह राषटराचावत" यो हव परो भवरति त

मभि इयरति ॥ ६(२२)॥

यदव विषटभ: सखागरतिपद:शासयरिति (३२५पर०), तनतरखया

खिदआ: उदाइलथ परदरशयति-"आप पराच इनदर विशरवा आमि

बानिति मतरावरण: सरसतात सहाना महरह:शसति"-इति।

"आप पराच:"-इतयता बच (स० १०. १३९. १.) मतरावरण:

परतिदिन खकीयसहादौ शॉसत। ह इनदर ! "विशखान अमितरान'

सरवानपिशबन ‘पराच' पराडमखान छलवा ‘अप तदख-इतिवदय

माणनानवय: ॥ सीयरथ परथमपादसथारथ: ॥

अवशिषट' पादनरय पठति-"अपापाची अभिभत लदसव,

अपोदीची अप शराधराच, उरी यथा ततव शरमझदमति"-इति ।

ह"अभिभत'शब मभिभविल समरथ! ‘अपाच'दविणान शबन

अलयडमखाध छलवा अप लदखा। तथव ‘उदीच ' उदडमखान,

इवा आप नदख ॥ ह शर ! 'अधराच:" अधोमखाल बचा। आप

नदख । "उरौ' विसतौए "तव शरमन' लवलसबबनधिनि गटह 'यथा

मदम'यन परकारण इषटा भवशम तथा करविति शष: ॥

चटचसतातपरय दरशयति-"अभयसय रप मभय मितव विह

यबितौचछति"-इति । एतत मनतरवाकय मभयसय खरपम ; शबद

8.

म "भवती.३" ख,घ, चा।

३३० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

निराकरणसय सखकौयहरषसयचाच पराथरयमानलवाट ॥ भयरहित मव

खान मय मतरावरणो ‘यन'परावन, ‘इचछति' परास मपचत ॥

तसमादयोगयय यक ॥

कटगनतर बराहमणाचसिनी विधतती-"बराहमण त बरहमयजा

यनजरमनीति बराहमणाचसयहरह: शासति ; यनजरमौोति यवती ;

यतइव होनी जहीनसथ रपम"-इति। असया मचि (स०

३.३५.४.)यनजमोतिशववणदिय मग यजिधालवरथवती। अहोनी

हरगणध ‘यवा इव' अजञा परसरसबबनधवानव ,अती यजिधालवरथ

यवा" मनतरवाकय महौनय रपम ॥

अनकल मगनतर मचछवाकसव विधत-"उर' नी लीक

मननषि विहानिलघचछावाकी जहरह: शॉसतयननरषौचतौीव झहोनी

हीनसय रपम'-इति । अनतर (स० ई. ४३. य.) यदतदन

नषीति पद मसति, तसयारथ: एतौीव डरहीन इलधननोचत । अय

महरगण: 'एतौव' परवरतत एव ॥ "अनबति' अनकरमण ‘नया'

परवरतयति । एव मचघमानतवात परवरतमानसयाहीनसयनदर वाकय मन

रपम॥

अननरषौतिपदसथाभिपराय मददा तबधयगतसय नरषौचतरयारथ

माह-"नषीति सतरायणरपम"-इति । सतरसयायन मनषठान

‘सतरायण’,‘नषि'नय, अनषठापयति तयारथः; अत एतत परद

सचायणयानकलम ॥

उदाहतातिख कटच उपसहरीति- *ता वT एना अहरह:

शासयनत"-इति शर ॥

अथ परिधानोया चकच: सतोतमपकरमत—"समानौभि: परि

- ‘अप पराच: ०-०कइदयआरअणौथा."-इति आध4 औ०७,४, ७।

॥ पटपचिका। ४ । ६॥ ३३१

दधय:"-इति. । 'समानीभि:' एकविधाभि: अटरिभमचावरणादयी

होतरकाः "परिदय'शसतरसमरसि कय। "न षटत"-इति मतरा

वरणसय परिधारनौया (स० ४. १८. ११.) ॥ "एवदिनदरम"

इति ( स० १७.२३.६.) बराझणाचडसिनःपरिधानोया।"नन

सा त"-इति (स० २.११.२१.)आचछावावसय परिधानोौया 3 ॥

अनन खशसामानयादता: समानय इतयचत ॥

इटानतइयन परिधानीयाः शासति-"औीकसारी हषा

मिनदरी यजञॉ भवरती"३ यथऋषभी वाणिता यथा वा गौ: परजञारत

मोठ मवव ईषा मिनदरी यजञ मव गचति"-इति । "ओीकसारी

इ' माजौर इवनदर: "एषा' यजमानाना यजञ' 'भवरती"" पन. पन:

परापरीति । साननासिका छति: पजाथो। यथा ‘वाशि ता'

गरभारथिनी गा मषभी गचछति ; यथावा गौः'परजञात' परतिदिन

गमननालधनरत परिजञारत गोषरड परापरीति ; एव मवाय मिनदर: ‘एषा'

यजमानाना यजञ मागचछचव । अतखतदागमनारथ समानय: परि

धारनीया इतयरथ: ॥

समानीभि:परिदधयरिति यदहम ततर "अभितटव"-इतय

छावाकसयाहरह:शसरय सचम (स० ३, ३८. १-१०.) "ि, तसिन

अनया "यन हवम"-इतयषा ( १०.) , तया परिधानापरासौ निष

धति–"न शननडरवौययाहीनसय परिदधयात ; चचियी ह राषटरा

खावत यी हव परो भवति त मभि इयति"-इति। यन डव

मति यखया मचि बयत सा 'शरनडवीया'; अहरगणरय शख तया

न परिदधयात । परिधान हि'चचिय' राजा खकीयाटराषटरीत

चधवत, यत 'पर' तदोयःशवरमवति, तम"अभिलच "हयति'

, िपतर २४६-२५५ प० ६, ९.५; आध4 चौ० ०.४, ६-१०।

३३२, ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

आदरान करीति ; चहवमलघनचाहानसय परातीयमानवातत ॥ अत एव

खतरकारी बराहमणानतर माथिलय"नन सा त"-इलता (स० २.

११, २१.)परिधानौया मलवान अ6 ॥ ६॥

इति चौमातसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया चतथॉधयाय

( एकोनविशाधयाय) षषठ: खणडः॥ ६(२२)॥

-------

1 अनय का नाम: डीएड: I

अथातोsहौनख यकिध विमचि'वयनतरिचा

मतिरादितयहीन यदध एवदिनदर मिति विमचलवाई

सरसवतौवतीनन सा त इतयहीन यई त खाम

दव वरण न षटत इति विमचलष हवा

अहौन तनत महतिय एन'यो च विमोच

वद तदचतरविश ऽहन यजयनत' सा यति रथ यात

क "उद बरहमाणयभितटवतीतरावहरहशल, नरन सा त इतयनत सलतमम"-इति

आध० चौ०७.४.९, १०। यदयौहबराहमण यनहवौयाया: परिधानोौथावनिवधमाच'

यत, न त, "न सा त"-इतयखा विघिरपि3 तथापि तविघिडॉकणनरादवावगमय

इवभिपराय: । तलख बराहमणानतर मिईवोततरखणड दरषटवयम"न सा त इतयाहौरन यडतो"

इत। किब अभितटीय सतर यदयपि सहिताय दशरब मावातम, पर मिनह नल मिय

तरणा आगामाटकादशचौबन तचसनविधि समपनन: । अत एवाचावलायनइततौ नारायण

/

आह-‘कवागास पयलाराभावादघिकय भवति-पाति,

॥ पठपतरिका | 8 । 9 ॥ ३३३

परसताददयनौयखातिराचख विमचयत' सा विम

विसतदयचतरविश ऽहवकाहिकाभि: परिदशयरचा हव

यह ससथापययनॉहौनकरम कररथ यदहौनपरिधा

नौयाभिः परिदशयरयथा थानती विमचयमान उतक

व तव" यजमाना उतकलरननभयौभि: परिदशयसत

दयथा दीघौधव उपविमोक यायात ताडनातत सनततो

हषा यातरी भवरती ३ बयमञचनत एका ड न इयोः

सवनयो: सतोम मतिशसईौघॉरणयानि हव भवनति'

यतर बलहौभिः सतोमो इतिशखत परिमिताभिसततीय

सवनSपरिमितो व खगालोक:खरगख लोकखालया'

सनततो हाखधाभयारबधो विखसतो शहौनी भवरति य

एव विदयाननहौन तनत॥ ७(२३)॥

एव तावत शासतरिणा चहोतरकाणा परापतसवन माधयनदिन च

शसतराणि उदयानि ;तषा च परिधानौया: परव मव "उभय:परि

धानीयाः"-इलयतर (२४६पर०)ऐकाहिका अहौनादय विमटाः।

आथदानो कोतमा ता इति विविनति-"अथाती Sहीनसथ यलिश

विमचि"-इति।"अथ'परिधानोयाकथनाननतररयतसतविवकी

पचित४, अत: कारणात 'अहीनसय'अहरगणरय यविधा विमकतिध

विवकायोम, वचत इति शष: । ‘यति' योग:, खाधौनलवन

करतीः समपादनम , "विमकति' विमोचन, खाधीनतया निरबनध

परितयाग: तदतदभरयपरिधानीयावशन समपदत॥

३३४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

तच बराहमणाचछसिन: परिधानौया मपजौवय करतोयौग

विमीकौ दरशयति -"वयनतरिच मतिरादितयहीन यड एवदिनदर

मिति विमइति'-इति 1 परातखवन बराहमणाचलसिनी "वयकत

रिचम"-इति(स० र. १.७-८)परयासखचःअ, तसय "इनदरण

रोचना दिव:'-इति चटगततमा (८.); तया यत परिधान,तन

‘अहीन' करत, "यडड' सवाधीनतया निबधवाति । माधयनदिन सवन

त"एवदिनदरम"-इति (स० ७. २३. ई.)परिधारनौया "ि; तया

"विमखति'खाधीनतया नियहीत महीनाकरत' विखभवयवहाराय

निगरहपरितयागन विमखति , खाधौनी हि करतरवशरव फल दासय

तौति यजी बनधविमोक: ॥

अथाचछावाक सय परिधानोयया योगविमीकौ दरशयति

'आई सरखतीवतीन सा त इतयहीन यई"-इति। अय योगी

विमोकसचायपलचणारथ: । "आहम"-इति (स० ८.३८.१०)

परातरवन परिधानोया भ: तया करतोयोगी भवति।"नन सा

त"-इति (स० २.११.२१.) माधयनदिन सवन परिधानीया 8;

तया करतोविमीकी भवति ॥

अथ मतरावरणसय परिधारनौयया योगविमोको टरॉयति—

"त सयाम दव वरण, न,छत इति विमवति"-इति। अब

विमोकी योगसयायपलचणारथ: । "त सयाम"-इति (स.०७.

ईई.c.) परातसवन परिधानौया | ; तया अहौनसय करातीयॉग: ।

". : | 5." ई- २-४ । "जरव नावापात परति वा सर उदित (स.०७.६,७.),

वयरिदा नतिरत (स.: प. १४, 9.),शखावाचसय सनवतः( स० प, ३८, ८.)इति चt:

परयासा"-ति आध: चौ. 9, ९.१२। सताना परयासाना वा अतया एव परिधानोया:।

"38 गाव और ७, ४, ९ । प3 ई. २,५, ६४८ पर०दर०।

॥ षषठपतरिका | 8 | se ॥ ३३५

"न षटत"-इति (स.०४.१६, २१.)माधयनदिन सवन परिधा

नीया अ, तया करतोरविमीकः ॥

यदयपि ढतौयसवन विमोकी व यवतः, तथायनिषटोमसखथ

ऽहनि होतरकाणा ढतौयसवन शसतराभावात सरवशवहसयअनगलथ

माधयनदिन सवन विमीकी Sभिहित: ॥

यथोलियोगविमोकाशान परासति-"एष चह वा अहोरन तनत

मईतिय एरन यीश च विमोल"च वद"-इति। ‘य:'पमानजञा

परकारण'एनम' अहौरनपरातसवनपरिधानीययायीज माधयदिन

परिधानौयया विमोजब जानाति, एष एव पमानइरगरण तनत

विसतारयित मईति । यथीतपरिधा नौयानभिजञसय नासति तनतरा

धिकार इतयरथ: । एव मरकक मजहरपच योगविमीकावलौ ॥

अथाहसमह मपचयोगविमोकौ दरशयति-"तदखतरविश

ऽहन यजयनत, सा यतिरथ यत परसताददयनीयसथतिरातरसय

विमचत, सा विमकति'-इति ॥ गवामयनसथ सवतसरसचसय

आदानत अचइजी अतिरातरसखथ । तनतरीपकरमगतसय परायणीयाति

रावसयाननतरभाविनि चतविशखय आरमभरणौय sहनिपरिधानी

याभि; सव हविशषा यजयनत । सीऽय गवामयनसय योग: I

अथोदयनीयसयातिरातरसय परसताद वतरतमान महावरतौय Sहनि

परिधानोयाभि: सरवशयहरविलषा विमचनत इति यदसति, सरय

गवामयनसय विमनिः॥

ततर योगविमोकहतना परिधानीयाना मवकविधतव

निनदिवा उभयविषयलव दरशयति-"तदाइतरविरो हलकाहि

काभि:परिदधियरतराईव यरश ससथापययनौहीनकरम करथयद

3 आवe चौ० ७, ४, ९० । प० ई, २.५, २४ पर. दर० ।

३३ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

हौनपरिधानीयाभिः परिदशयरयथा धानतो विमदयमान उतकल

तरव यजमाना उतकलरवभयोभि: परिदशय"-इति। "अइन'

अहनि चतरविशाखय यदि 'ऐकाहिकाभि:' परकति भत एकानह

जयोतिटोम विदयमानाभिः परिधानौयाभिःपरिदशय, तदानीम

"अवव'चतविशाखिय डिरतीयसिन आइनवव यजञ' गवामयरन‘सखया

पयय' समारसि कय :। अचाहतयहशबद: खद; कषट मतत ।

अवव समाधौ ‘अहौनकरम" छतरबाहरगणकरतवरय न कः। एत

दव कषटम। ‘अथ"परवोतवपरीलन ऐकाहिका: परिधानौया:

परितयजय यदयहीनपरिधानोयाभिरव सरव होतरकाः परिदशय,

इदानो यथा लोक रथशकटादौ यको जखवालीवदादि: कियद दरी

गलवा धानतः सन यदि न विमचत, तदानीम, ‘उतकलत' उचचि

दत; तथवयजमाना 'उतकलरन विनखयः। सरवषा होतरकाणा

मकानहिकसवीकार समापतपरभाव:, अहोनगतखौकार यजमानो

छद, इति दोषडयपरिहारारथम ‘उभरयौभि' ऐकाहिकाभि

रहीनगताभिय परिधानोयाभि: परिदशय:। ततर परकार विशष:

परव मवोजञ:,- मतरावरण ऐकाहिकाभिरव सवनइय परि

दधयात ; अचछावाकी शहौनगताभिरव सवनइय परिदधात ;

बराझणाचटरसौी त। परातसवन अहोनगताभि: परिदधात, माध

नदिनसबन चकहिकाभिरित निरणयः। अब निरणय परव नब

सिडवऽपि ( २४e,२५० य०)परकारानतरण परॉसारथ मातर पल

रभिधानम ॥

बतदतदभरयौभि: परिधान दषटानतन परासति-"तदयथा

दीघौधव उपविमीक यायात ताइकवात"-इति। लीक यथा वा

‘दौघौव' दरमाग गचछन परष: "उपविमोक' रथशकटादी

॥ षषठपतरिका | ४ । Se I ३३e

योजित मशखबॉलीवदौदिक ताच तच उपविमचीपविमच 'यायावत'

धानतिपरिहारण शनरगचत, ताडगव ‘तत"उभयविधपरिधानी :

यथा माग वाहनधाम: विमोकन निवरतत, एव महौनगशताभि

राषपादित: बम: रीकाहिकाभिरनिवरतत ॥

उभयविधपरिधान दीरष परिहाय गरण दरशबबति-"सनततो

हषा यातरी भवतो'३वयसखनत"-इति। 'एषाम'उभयविधपरि

धानयहाना परषाण यजञ: 'सनततः' विचछदरहितो भवति ॥

साननासिका शतिः परशसाथी। विशबदादपरितन उकार एव

कारारथ, तसय दीरघझानदसः । यजमानाः धरम विमचनत एव ॥

अथ सतोमातिशसन कचिडिशष" दरशयति-"एका ड न

इयो: सवनयो: सतोम मतिशासट"-इति। यदा सामगविदर:

सतीम: करियत, तदानो हीचका: सतोमसाझा मतिलइय घासनौ

यम, ततर ‘डयो:' परातमाधयनदिनयी: सवनयो: "एकाम' कवच वा

'डी'ऋटौ वातिकरमय न शसत, किनवकया डामबा वातिशसतत ।

पवचारय नियमः परातसवन एवोल, उततरयोख सवनयोरपरि

मिताभिः अतिशसन महम 8; तथा सति माधयनदिन सवन परवी

तरविरोध:परसचतति चत, तईि तवकया इामया मपरिमिता

भिरविकलपोसत "ि ॥

बहभिरतियासन बाध माह-"दौघौरणदयानि हव भवनति,

यतर बडौभि: सतीमी Sतिशसवत"-इति ॥ यथा दोघवरचब

गचछत: परषसय विधामखथानाभावात महापरयास:, तथा बडौ

भिरतिशॉसिरन द:खहतरिलयरथः ॥

क "एका ही न सतीम मतिशासत०-०अपरिमितभिरतरथी"-इति ९५२,६५३.पर.०५

"यतिलध त यतर सथात तव धरमावभावपि"-इति म० स० ६.१४ ॥

a ह

३३८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥\'

माधचनदिनसवन इव ढरतौयसवन पचानवर मसतीति शाबरग

वारयित परवोत मवापरिमिततलव पनरयभिधतत-"अपरिमिता

भिखतीयसवन परिमितो व खरग लोकःखगशय लोकायमच"

-इति । "अपरिमिताभिः' नियतपरिमाणरहिताभि: । सवरगीय

भीगबाहलयादपरिमिततवम ॥

वदनापरवक मनषठान परशसति-"सनतती हासयाभयारबधी

विनसती होनी भवति य एव विदवानहीन तनशत"-इति ॥ "य:"

मानशपरकारणातियासन जानन अहीन मनतिषठति,"असतर" पर

षय "अभयारबध' आभिमखनीपकरानतोsहरगण:"सनततः' नरतयण

वरतमान:,कदाचिदपि ‘अविखसतः' विनाशरहिती भवति।Isl

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधरवोय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणय षषठपतरिकाया चतथॉधयाय

(एकीनतरिशपाधयाय) सम: खणड: ॥७(२३)॥

1 अथ आइटम: खएड: I

दवा व वल गा: परयपाशरवसता यचननवपॉरतt:

षलनाडापवस परापतससवन नभाकरन वल मनभरय

सरत ० यदनभया३न अशवथयोवन तत त उ ढतौय

सवन वण" वालखिलधाभिवाच कटनकपदया।

वल. विरजच गा उदाजरत थवतदाजमाना' परात

क, "मनभरयसत"ख,ग,ड।

॥ अटपचिका ॥ ४ ॥ I ३३e.

सवन नाभाकन वल नभयनति त यहभयनतो ई.4

वथयनव वन तततसराईोचका: परातससवन नाभा

कासटचाबलसनति यः ककभो निधारय इति मतरा

वरण: परवॉट इनदरप मातय इति बराहमणाचसी"

बता हि मधयभराणा मिलयचछावाकसत उ ढतौय

सवन वतरण वालखिलघाभिवाच कटनकपदयावल

विरजथ गा चआयवनति "पचछः परथम षड, वाल

खिलघाना' सझानि विहरचईरचगो डितीय मक

शसततौरय स पचछी विहरन परगाथ परगाथ एवकपदा

दधयातम वाचकटसता एतःपलकपदारधतखीदश

मादई एका महावरतादथाषटचराणि माहानाम

नानि पदानि तषा यावझि: सययदत' तावनति

शस नतराणयादरियताथाईरचशी विहरसताववकपदाः

शसकॉनि चवाषटचराणि माहानामनानि पदानवथ

चटकाशी विहरसताव वकपदा: शॉनसलानि चवाषटच

राणि 'माहानामनानि पदानि स यत परथम षड

वालखिलयाना सलतानि विहरति'पराणच तडचच

विहरति यदडिरतौय चबध तननध विहररति यत

ढतौरय बीचच तदातमान च विहरति "तटपाली

विहार कारम उपशी वजब वालखिखयाभपाली

- क. "यकभयनती." ग, च ।

३४० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

वाचकट एकपदाया मपाल: पराणकपया मविइता

नव चतरथ परागाथाबसति पशवोव परगाथाः पशना

मवरईध' नाचकपदा वयवदधयाददचकपदा वयव

दधयादवाचकटन यजमानातपशचिईणयादय एन

तच बरयाद वाचकटन यजमानातपशकरिवधौर पश

मन मकरिरति शशखत तथा सवाततखाततचकपदाइव

वयवदधयादडवोततम सक परयचतिसएव तयोरविहार

सरतदतत सौबलाय सरयिरवासि: शशस स होवाच

भयिठानईयजमान पशन परयगर हष मकनिषठा उ

मा मागमिषयनतौति, तसौ हयथा महझ चटविगय'

एव निनाय" तदततपशवयकच खगरयच शख' तसरा

दतचसति॥ (२४)॥

अथ यठखय षडहसय षलहनि धिषणयाखयशसतरवसिसटो

विधात माखयायिका माह–"दवाव वल गा: परयपाशरवसता यल

नवपरससताः षलनाइयरवल परातसवन नभाकन वल मनभयसत

यदनभया३न अशवथयचवरन तत, त उ ढतीयसवनवचण वाल

खिखयाभिरवाचकटनकपदया। वल विरजय गा उदजन"-इति।

वलनामक: कविनदरपरभ, तदोयमलयाः इहसथतिपरमखाना

दवाना गा अपहदय वलसय गठह सथापितवनत: 1. दवाशव कन

चितरतसखन 'वल' वलसय यह अवखथापिता गाः'परयपाबनद

जञातवनतः । जञालवा च साममददीन लौकिकोपायान परितयजध

॥ षषठपचिका । 8 | प ॥ ३४१

‘यलनव' उपायन "ऐसन' आस मिचछा छतवनतः।। छतवा च

पछाषडहसय यात पशषठ मह:, तदाहरनषठाय तलसामथधन ‘ता:' गा:

पराबवन। "त' दवा:परातसवन नभाकनाना महरषिणा, तद

इलन मनतरण वा,वलनामक मसरम "अनभयन' [, नभतिधातईि

सारथ:] ताडितवनत इलयरथ:॥ ‘रत' परतिबनधकाररण वलनामान

मसर यदयपि‘अनभयन' ताडितवतः [शतिसताडनपरशसाथौ ]

तदारनी मव गौगरहण ‘अशवथयवव' रचणारथपराकारहारोइाटनन

निरोधी शिथिलौकतवनत: ; यडा वलनामान मसर मव वलचय

मापादय शिथिलीकतवनत: ॥ "त उ' पनरपि दत दवा: ढरतीय

सवन वचरपणावखिताभिः'वालखियाभि'ऋगभिः 'वाचकट

नकपदया।' वल "विरजय' विशषण भवन छलवा खकीया गा:

'उदजन' तदीयाद दरगादहमितवनतः। वाचकटणदन विइती

मनविशष उचत इतयपरिटाद दरशायथति;स एववाचकट

एकपदा भवति ॥

अथ नभाकन इटान ढचान विधतता-"तववतदयजमाना:

परातरवन नभाकनवल नभयनित; रत यनतभयनती ३ धथयनतयवरन

तत; तसआडोतरकाः परातसवन नाभाकासतचाबसनति"-इति।

यथा दवा नभाकन वल ईिसितवनत:, तथवतसिन षलजहनि

यजमानाः परातरवन नभाकनाना महरषिणा दटन मवण ‘वल'

वसतरनामाकासरवत परतिबनधक पापमान "नभायनति' ईिसनति ॥ "रत'

वरल'यदध" यदा नभयनति (शतिः परववत 1, ‘तत तदन ‘वथ

यनित' शिथिल करवनति। ‘तसलात' कारणात मचावरणादियो

"होतरका"परातरवन ‘नाभाकान नभाकन इयान चान शसय॥

ताखचानदाहरति-"यः कडभी निधारय इति मतरा

३४२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

वरण, परवॉट इनदरप मातय इति बराझणाचरसी, ता डि मधय

भराणा मिलयचवाक"-इति।"यः कचभ"-इलकरदषचः(स०

८.४१.४-६),"परवॉरट"-दति(स०प.४०.०-११.)डितीय,

"ता हि"-इति (स० र. ४०. ३-१.) ढतौय: ; मनावरणादयः

करीमण घासय: अ8॥

ताखचान विधाय शिखाखरप विधतत-"त उ ढतीयसवल

ववण वालखिखयाभिवाच कटनकपदया वसतर विरजथ गा आश

वनित"-इति ॥ "त उ"दत त मचावरणादिय: "वखा" परतिबनधक

पापमान वरिरण वचरपण वालखिलधन विनाशय गीगरामौी विघन

रहिता: सनती गा: पराशवनति । "वाखखिखयाभिवॉच कटनक

पदया-इति, एतावता शिखपखरप मभिहितगम ा 1

नतदतडिशादयति-“पछ: परथम वषड वालखिलथाना खजञानि

विहरलाईरचशी डिबतौय रकशसततीय, स पची विहरनपरगाथ

परगाथ एवकपदा दधयात सवाचकट"-इति ॥वालखितयनामाका:

क वन महरषीयः, तषा समबनधीनघटसजञानि विदयनत ; तानि वाल

खिलधनामक गरनथ समाचायत थ। तवादी यानि षट सझानि,

*"महावाखभिद चचनसदरव मनषपथ आर अणीयाभथी वा नाभाकातचानावपरन

गायबौकारम"-इतयादि आध० औ० ७, २. ९,१७॥ F पce २९८प० "a" दरषटवयम 1

: अधयापक-मीचनमलर सदरितपसतक अधटममणडलौय-षषठालवाकातपरतात वाजखिलव

नामकाचकादश सलतानि मदरितानि दखत। वसततल यखा: सहिताया मणडलझती

विभाग:, न तल वालखिलधाना मचा सतरिवशः ता नव सहिता मवलमबसायणाचारयण

भIध नकारिए | अतएवहीज *"वालखिलधनासक गरनथ*-इति 1 अपटकविभकतसहिताय

त षषठाटकसय चतथौधयाय चतरदशदया: सदश वगा वालखिलचौया एवति न तच वाल

खियाखय: कथन पथक यनय इति ॥ अथयदशत मारणयकभाध ‘सहिताया मातरातानि'

अति(५, ६,४, ६),तदप वालखियरस'हतति पथक गरनथ इवभिपरायरीव।

॥ षषठपतरिका | ४ । ट ॥ ३४३

तानि परथरम 'पच:'पादशी विहरत.। ताती हितौयसथा माददतता

वईरचशी विहरतत । ढतीयसथा माइततौ चकणी विहर त । यदा

पचछी विइरति, तदानी मरककसिन परगाथ एकका मकॉपदा

दधयात । स परगाथकपदयोः समडी 'वाचकट'-इतयननशदना

भिधौयत। त मिरम विहार परकार माखलायन आइ-"षट

खजञानि वयतिमश पचौी विहरद, वयतिमशो मईरचशी, वयतिमरश

बकश, परगाथातष चानपसनतान लगावान मकपदा: शसत"

इति (चौ० पर. २, १८, २० ) । तय षटसलष परथमसदादा

डगडय मव माखातम—

"अभि पर वः सराधस मिनदर मरच यथा विद।

वो जरिडयो मघवा परवम: सहलणव शिचतिअ( ९)

शतानौवव पर. जिगति धणया हलिव इतराणि दाशरषि।

गिर रिव पर रसा असय पिनिचर दचाणिपरभोजसः "(२)"-इति ।

डिरतौयसललपि चटगङय मव माचचातम

"पर स यरत सराधस मचा शकर मभिषटय ।

य:सचत खवत कामरय वस सहलणव महत थ (१)

शतानीका हतयी अनय दषटरा इटरसय सभिषो मही: ।

गिरिरन भजमा मघव पिनचत यदोसता अमनदिय:३ (२)"-इति।

तच परथमसतगत मक पारदच सयोजयत। सीषरय विहार:।

असिन विहार"वयतिमरश' नाम कचिडिशष: । स च यथाकररम

परितयजघ परकारानतरण योजन सति समपरदयत। परथमसकरय

परथमाया यचि परथमपाद सला दवितीयमलय डिरतौयाया मचि

(यद) दवितीयपाद तन। सयोजवत। तदयथा

थ, 3, t, 8 एब सयान 'ओम'-इति अनतपरद भाषयपसतक ।

३88 ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

‘परभि पर व: सराधस मिनटरसय समिषो मही:’-'इति ॥ ।

हितोयमतसय हितीयलया मचि परथमपाद मका परथमसताख

परथमाया मचि (यत) हितीयपाद तन सयोजयत। तदयथा–

‘शतानोका हतयो असय दटरा इनदर मिरच यथा विदोम’-इति।

अथ परथमसतासय परथमाया मचि ढतीयपाद सजञा हितौय

सतसय दितीयसया चचि(यत) चतरथपाद तन सयीजयत। तदयथा–

‘यी जरिटभयो मघवापरवसरयदो सता अमनदिषः”-इति।

हितौयसतसय दितीयसया मचि ढतीयपाद सजञा परथमसाख

परथमाया मचि (यत) चतरथपाद तन सयोजयत। तदयथा–

‘गिरिरन भजमा मघवस पिनवत सहलणव शिचातोम’–इति।

तदिद पादयोरविहित मगहय मकः परगाथः सममदयत। तख

परगाथासयानत ‘इनदरी विपखसय गोपति:’-इलता मकपदा सनद

धयात। सीारय समही वाच कटसञजञक: । अननव नयायन सरवष

सझष सरवाखच बदधिमता पादशी वयतिमरशविहरण सवयम।

अथाईरचशी विहार उचयत। परथमसतसय परथमाया मचि परध

माईरच सझा हितोयसासय दितीयसया मचि (यत) उततराई

तन सयोजयत।। तदयथा– -

: .. * ‘अभि पर व:सराधस मिनदर मिरच यथा विद ।

गिरिरन भजमा मघवतस पिनवत यदो सता अमनदिषोम’–इति।

एव सरव मवशयम । -

कतरकशी विहरत। ततर परथमसतसय परथमा चच सजञा तया सह

दितीयसलसय हितौया मच योजयत। एव सरवचोहनीयम s।

• एष विहारी महावलभिवरामक: ; अनयविधावपि विहारौ आशचलायननवाभिहितौ

''अथ वालखिलया विहरत ०-०इति न हौणडिनौ’-इति( ८, २. ३-१७,)।

॥। षषठप चिका । 8 । प८ ॥ ३8५,

अथ परगाथानतष परचपणौया एकपदा दरशयति-‘ता एताः

प चकपदाशवतसतरी दशमा दङग एका महातरताद’–इति । या

एकपदा ऋटचःपरचपतवया:, ता एता एकपदा: पशचसडङकाकाः । तास

चतसतर एकपदाः शलयनतरष दश महनि पठिता: *। त आइशमा

दङकह मताशवतसतर अानतवया:। तास ‘इनदरी विशख सय गोपति:’–इतयषि ा

परथमा, ‘‘इ दरो विशखासय भपति:’—इचषा हितौया, ‘इनदरी विशखासय

चतति'—इतयषा ढटतीया, ‘इनटरी विशखासय राजति’–इलचषा

चतरथी; अथावशिषटा शलयनतरष महावरत शता ‘', सा च ‘इनदरी

विपरख विराजति’–ईलचतादशो ; तनमात महातरतादा नतवया । ता

एता: प च एकपदा: प चास परगाथष पराचित प त ॥ ------

अवशिषटष परगाथष परच पणीयान पादान दरशयति–‘अथा

षटाचराणि माहानामनानि पदानि; तषा यावदधि: समपदगरत,

तावनति भा सवतराणयादरियत’—इति। अथ पचचास परगाथष प डचाना

मकपदाना परचपादननतर ‘माहानामनानि’ महानामशाबदन

‘विदा मघवन’–इतयादयी महानानतरौसञजञका:( ऐ० अा• ४.)

विधौयनत, तिषा महानानतरा मचा समबनधीनयषटाचराणि पदानि

“पर चतन परा चतया’–इचवमादीनि यानि सनति, तषा मधय यावदधिः

अषटाचरः पादरवशिषटष परगाथष परचप: समपरदोत, तावनयषटा

चराणि पदानि शासत भ: ; इतराणशषटाचराणि पदानि महानाम

समबनधीनि ‘नाटरियत' न परचि पत ॥

• एताशवतख: शाखानतरीया इति कलप परपाठय विहित। :( आशव० थी० ८,२.२१.) ।

f ऐ० आL० ५. ३. १. २ । "“इतयता सकपदा शाखानतरगता पठत'-इति तच ससा 6

भा०। ‘एका महावरतादाहरत’-इति आशव० शरौ० ८.२. २२।

j; ‘चयोविशति मषटाचरानपादान महानाचौमय: सपरीषाभय:'-इति आशव० शरौ० ८.२.२३ !

883

३8ई ॥ ऐतरयबराहमणम ।

एव पचछ: सिन परचपणौय मभिधायाईचशी विडराण परकरिय

एौरय दरणियति- "अथाईरचशी विइरसतालबकपदाः शॉसत

तानि चवाटचतराणि माहानामनानि पदानि'-इति । यथा

पचछी विहारण परगाथात परचपः, एव मईरचशी विइरण पि

योजनीयम॥

तडडकणी विहरणsपि परचप विधतत-"अथ चटकशी विहर

सताववकपदा: शासत , तानि चवाटचराणि माहानामनानि

पदानि'-इति । परववतपरगथात परचपः॥

यदॉ पचछी जडरच'श ऋकण इति परयायवयण विविध विह

रणम, तदतनत परशसति-"स यपरथम षड वालखियाना सजञानि

विहरति, पराण जब तडरच च विहरति ; यद हितोय, चचघ

तनय विहरति; यत ढतौरय, धीच च तदातमान च विहरति ;

तदपामी विहार काम उपासो वनव वालखिलयासपासी वाचकट

एकपदया। मपाम: पराणलसाम"-इति। 'स' अनषठाता 'परथम'

परथम परयाय वालखिलयाना षट सजञानि विहरतौति यदसति,

तन परथमन पचछी विहरणन पराण वारच "विहरति' मिथौ

करोति । दवितौयपाधयॉय आईरचशी विहरणन चतरमनसोरमिझौ

करणम। ढतौयपयाचऋकशी विहरऐन धोवनदरियजीवाशमनी

रमियीकरणम । "तत' तथा सति विहरण य;‘काम:'फख

विशषः, स ‘उपापत:' परवासी भवति। तथा वजवरपानस वालखिलधास

यः काम, सोलपि परापतः। तथा वाचकटरपाया मकपदयायः

काम:,सोलपि परापतः। तथा पराणवागादौना कसया विहरणयः

काम:, सीपि परासी भवति ॥

चतरथपयधाय विहार मनतरण यथापारट टरासरन विधतती

॥ पाठपालिका । 8 । सन ॥ ३४s

"अविहतानव चतरथ परगाथाबसति; पशवो व परगाथा:, पशना

मवरदव"-इति । परगाथाना पशगरापति हतलवात पशलवम ॥

विहिरणासनावदतरायकपदागरोपपरसनहौ निशधति –"नाल

व पदf वयवदधयाद"-इति I एकपदाया: परवय परय गाधडयो न

वयवधान सयात, तनतर कयौत ॥

ततवरण बाध दरशयति -“यदवकपदा वयवदधयाद, वाच:

कटनयजमानतपशविदखाद;यएन ततर बयाद, वाचकटन

यजमानातपशविरवधौरपश मन मकरिति शशखत तथा सयात"

इति । यदि‘आतर'चतरथपयाय एकपदावयवधान कयीत, तदनो

वाचकटरपण एकपदासहितपरगथन ववण पव विदयमानान

पशन यजमानादसआत "निईणयात' निःशषण विनाशयत। एव

सति य: कोऽपि विरोधी समागलय "एन" शॉसितार तनतर शासिन

काल ‘बयात शपत। कौडश:शाप इति सोभिधीयत-ह

शॉसितः! लव वाचकटन ववण यजमानात पशन"निरवधी'

नि:साय हतवानसि ॥ "एन'यजमानम ‘अप' पशरहितम

"अकः' छतवानसौति। तदानी‘शखत' अवशरव ‘तथा सयात'

पशरहित एव सयात ॥

विपच बाध मददा खपच मपसइरति-"तसमात तवकपद

न वयवदधयात"-इति ॥

वालखिलयाना षटसलष विहार मददा अवशिषटयो: समाषट

मयीः सतरयो: विपरयासन शासरन विधतत-"डवोततम सन परय

3 मदरित शाकलयसहितापसतक त. वालखिलयाना मकादशए सकरानित दशयनत । विरी

धसवष शाखाभदककत इतयपनतवय: । अपि वा अषटावव वालखिलधानि, तदितराणि चीणि

त खिलसकानयवति सयात समाधशयम ।

३४८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सथति, सएव तयोरविहार"-इति। य ह उततम सक, त विप

रयवदव ; न त विहरत। अषटम सत मादी पठिवा पशचात

समसय पाठी विपरयासः। ‘तयो:' इयोः सतरयोः(स० १८.६.

५५, ५६.) 'स' एष विपयसतपाठ एवविहारसथानीय: ॥

शिखयनामक शसरव निरय परशसति-"तदततौबलाय सरषि

वॉसि:शशास;स होवाच-भयिषठानईयजमानपशन परयगरडष

मकनिषठा उ मा मागमियनतीति; तरसब हयथामहझ ऋतविजय

एव निनाय; तदततपशवयतर खगरयशव शसतर ; तसआदतचबसति"

इति।'सौबलनामक: कविदयजमान:, तल वतससय पतर: 'सरषि'

-इलतनतरामक ऋतविक,"तदतत' शिखयशसतर शशास च ॥ सिना

दई मव मवाच,-अह मलिन सौबलनामक ‘यजमान" 'भयि

छान’ अतिशयन परभतान पशन "परयगर हषम' परितः समपादित

वानसिम ॥ तसमाट, "आकनिषठा उ' पठा एव पशवी मा माग

मिथति | तत: सौबली यजमान: यथा "महटटा कटालविमभय:'

हचशवढाबझथी दचिणा दततवान, अथापि शिखरशसिन

हीबकायापि बही उकतमा: गा: दकणिावन निनाय । तसरा

दतत शिखयशसतर मिनह लीक पशसाधन परलीक खरगसाधनख ।

बतसआत ‘एतत' शिखरय शसत॥ प ॥

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपचिकाया चतथॉधयाय

(एकीनचिशाधयाय) अषटम: खणड:॥ प(२४)॥

॥ षषठपतरिका | 8| 2. ॥ ३४c.

॥ अथ नवम: यएड: ॥

टरोहण रोहरति तखोज बराहमण मनद पशका

मच रोह दनदरा व पशवसतजञागत खाजागता व

पशवसतबमहासरक खायिछवव तत पश यज

मान परतिषठापयरति वरी रोहततनमहासतर'च जागरत

चनदरवरग परतिषठाकामख रोहदतद दवता वा

एषा होचततपरतिषठा यदनदरवरगा तदनटखाया मव

परतिषठायी मनततः परतिषठापयति"यदवनदरवरणा३इ’

एषा हवा अच निवितरिविदा व कामा आपयनतस

यदौनदरवरण रोहतत सौपरण रोहकटपात ऐनटरोवरग'

काम उपायःसौप॥ ६(२५)॥

शिखरणसन मभिधाय शसनानतर मभिधत-"दरीइण

रोहति, तसयोॉ बराहमणम'-इति। दशक रोहण मखारण यसय

शसनसय, ततत 'दरोहणम, तत'रीइति' शसदियरथ: । 'तय'

दरोहणसय विधायक बराहमण परव मव विशवदह परसल"आडय

दरोहणम"-इतयनाभिहितम अ। अत एव परवाचारया आड:

"खगो व लोक इतयादि पव विषवति कररतौी।

दरोहणाबराहमणनत परागवीचाम व सकटम।

सरपा हसवती दरीहण मितौरितम"-इति।

हसवती पचछ, अईरचश, चिपदया, ऋकशी नवानम,

व २ भा५ ३५ई प० ४, ६,७,दरषटवयम।

३५० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

पनरपि चिपदया, अईरचश:, पचछ इति सपतभि: परकार: पटन

मिति दरीइणम । तदतत "परव' तालसक भिडितम १,

इदानी फलविशषाय ऐनह सक तद विधतत-"ऐनड पश

कामय रोहदनदरा व पशव"-इति। इनदरदवताक कसिघित

सनपशपासथ दरोहरण ‘रोहत शसत। इनदरपरय दषटिदवारा पश

पोषकतवातपशव ऐनदरा: ॥

तसिन सल छनदोविशष विधतत-“तजागत सयाजागता

व पणव."-इति। सोमाहरणपरसइ जगलया पयना मानी

तलवात भी 'तत' सॉ 'जागतम'।

तसय सचसय कचिहिशरष विधत-"तनहासॉ सवाद भयिछ

वव तत पश यजमान परतिषठापयति"-इति 1 दिविध सतरो

इदरमइच। अत एवारखकणड वचति-"त दरसतादयाभवन

महासझाध"-इति ( २. २. २.५.)। महासलचण परवाचारय

रहम-"दशरचताया अधिक महासॉ. विदधाः"-इति। तन

महासलन ‘भयिलष' अतयनतपरभतषटवव पशष यजमान परतिषठा

पयति ॥

विवचित सतरविशरष दरशियति-"बरी रोहततआहामली च

जागतजञा"-इति। बरनौम कधित महरषि, तन दषरट सतर मपि

बरशदनोचत। तखिनसल 'रीहत’ दरोहण शौसत । "य

त मह"-इतयादिरक(स० १०.८६.) बरनामक मवम। तब

वयोदशरचवामहास, जगतीचनदख ॥ :

4 "इस चिघदिति पचकोई वॉशसतरियदया चतरथ मनवान मदरा पराणतयावशयप, 3

सविपदयाईईश: पचछएव सपतम मतददरीहणम'-इति आशव० बौफ- २.१४, ९६t

f २ भा०३४ईge ४.३. ई. दरषटवयम ।

4 २भा० ११५-१६०प० सीमाहरणकथा, तब ११9go दरषटवयम ।

फलातरायसझानतर विधतत-"ऐनदरवरण परतिषठाकामय

रीहदतडवता वा एषा होवततपरतिषठा यदनदरावरणा ; तदनतरखाया

सनतत: परतिषठापियति"-इति । यथा पशकामय सरकपहिस

वनयातमक दरीइणम ऐनदरसक रोवव, तथव परतिषठाकामसनदर

वरणक सक शसत। शॉसितमतरावर णसय होचकसय करिया "होतरा'

एषा चतनहवताका ‘एतरपरतिषठा' इनदरावरणदवताकसमापतियला ।

यसआरदनदराबरणा, याजयति शष: । "इनदरवरणा मधमतमसय'

इति (स ६. इट. ११.) याजयाशया इनदरावरणदवताकलवात समा

सरिनदरवरणसमबनधः। तथा सति 'एनड' दरोहण 'खाया मव

परतिषठाया" सवसथोचिताया मव समापौ ‘अतत:' शासतरानत

परतिषठापयति ॥

पनरपि मॉ परशसति-"यदवदरवरणा३इ एवा हवा अतर

निविनिविदा व कामा आपयनत, स यदवनदरवरण रोहत, सौपण

रोहततदपात ऐनदरवरण काम उपात: सौपण"-इति । "यद'

यआत कारणोददरवरण सक दरोहण रोहति, तरआत खाया

मव परतिषठापयतौति परववालचयः। यददा ऐनदरवरण सक दरोहण

मिति यदसति, एलव दरोहणकरिया अनतर "निवित' [ इवशबदोतर

लसी दरषटवयः] निविसढशौलयरथ:। तथाचदरीहणरपया"निविदा'

सरव कामः परापयनत। "सोपण सक दरीडरण रीहदितिपचा

नतरम | खिलष शs समानातम "इमानि वा भागधयानि'-इति

ल. "यइा उरवरधीरसविनदर भवति,खिल इति व तदाचचत"-इति शरत० बरा०

८.६.४, १ । "परवचानक वकतवयवन परिशिषरट खिलमिति हि खिललचणम"-ऋति

शत-० बरा० १४.एन. १. १. म२० पर. १० I

मदितशाकलासहिताशवा मतत मला वालखिलधवनय नकादश I

३५२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

( स० ८.५e. 4.) सरक सौपरणम ;‘इमानि वति सपतरच सौपरण

रखलिक शर% विदः"—इति । यहा ‘पर धारा यानविति (आशख०

गट० ३.१२.१४.) गटदयोति मत' सौपरणम। ऐनदरावरण सौपण

वा दरोहणशसनन तचीभयच यः कामः सनभावितः, सः ‘उपास'

परापसी भवति ॥ e. ॥

इति शरीमातसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपचिकाया चतरथाधयाय

(एकोनातरिशाधयाय) नवम: खणडः॥ e.(२५) ॥

-- ॥ अ शथ दशणम: खरणड: ॥

तदाहः सशसत षछ ऽहा३न न सशस३त इति'

सशस दिलयाह: कथ मनयषवहसस सशसति'कथ मतर

न सशसदितयथो खलवाहनव सशसत खगो व लोकः

षषठ महरसमायी व खगो लोक:'कचि ह सवरग लोक

समतौति' स यतसशसतसमान ततकरयादथ यतर

सशसता३+ ततखरगख लोकख रप।' तरातर सश

सद यदवन सशसतो ई: आतमा व सतोतरिय: पराणा

वालखिलया: स यतसशसदताभया दवताभया यजमा

नख माणान वौयाददय एन तचबरयदताभया दवताभा

यजमानख पराणान वयगातमाण एन हाखतौति

** वालखिलयसतानयपि खिलविशषाणखव । शत० बरा० ८, ३.४. १. दर० ॥

1, : '‘०तो’ क, ग, घ, च ।

। शपचिका | ४ | १० ॥ ३५३

शपरवकतथा खातचान सशसतत स यदौचताशसिरष

वालखिया हत परताद दरोहणख सशसानीति'

नो एव तखाशा मियातरत यदि दरय एव विनददपरि

टादरोहणखापि बहनि शतानि शसदखी तत

कामाय तथाकयादवव तदपात मनदरी वालखिलया

सतासा इादशाचराणि पदानि'तच स काम उपायो

या ऐनदरजागत थद मनदरवरगा सज मनदरावसतगी

परिधानौया'तखान सशसकतदाहरयथा वाव सतोच

मरव शसव विडरता वालखियाः शखनत विहता

सतोचाई अविइरता३ इति विडत मिति बयादषट

चरण इदशाचर मिति तदाहरयथा वाव शख मध

याजथा तिखो दवताः शखत' sनिरिनदरो वरण

इतयथनदरवरणया यजति कथ मनिरननतरित इति

यो वा अगनिः स वरणसवदयतदषिगोल व मगन

वरगो जायस यदिति तादयदवदराबवरपया यजति'

दनानिरननतरितो ननतरितः॥ १०(२६)॥

Iइवतरयबाहमण षषठपतरिकाया चतथौधयायः॥४॥

अच किजिदविचार सझावयति-"तदाह: सशसत षल

डाइनन सत इति"-इति। 'तत ततर सोपो मल दरीड स

परख सति पधाद बराहदमवादिनी विचार साह: । यानचकतालिकानिव

d l.

३५४ ॥ ऐतरयबराहमणम ।

तदई शमनीयानि सति, तानयतर षछहनि अचल:सबयय कि

शसत, किव सभय न शसदिति विचारः। शतिरविचाराथी।

ततर परथम परच दरशयति-"सशसदियाड"-इति। समय

शसदिलरव कचिदयाजञिका इलघाडः । ततरोपपतति' परचति

"कथम १"-इति ॥ उततर माह-"अनवषवहसय सशसिति, कथ

मतरनसशसदिति"-इति। इतरष पचरखह समचवरणःसनधय

शसिति । तथा सलयह सामानयादचापि कथ न सपरॉसत १ ततपरि

तयागी न यवा :, किनत तदनषठान मव यवा मिलक: पचः ॥

पचनानतरव दरशयति-"अथी खलवाडनव सरश सत"-ईति ।

आइरनतरवतसमय सरन कतरतवय मितयपर कथयनति ॥

ततरोपपतति माह-"खगाव लीक: षषठ महरसमायी व

खगो लोक: कविड. खग लीक समतौति ; स यत ससकसमारन

ततकयादथ यनतर सघरषसतौ"३ तखरगसय लोकासय रप : तरमान

सवासदवदव न सचासती'३"-इति ॥ यदिद षषठ मह:, तदतत

सवरगलोक एव ; परयोगबाडचन दसाधनतवात । तदवासमायो

वादिना खटौकरियत। बइभिः सममः 'ए' गत योगय:

‘समायो'["इण गरतौ"-इतयसआडातीरय शबदो निषयनतर:] उचच

विपरीती बहभिरगनत मशकचः "असमायी"; ताइणी विहखगा

लीक: । "कबधिदव'पणयकत सवरग लोक "समति' समीचीन भोग

परापरीति,न त सव: ; खरग हती: पणयसय दलभलवात । एव सति

मतरावणीयदिषलहनि शिवनानयानि सलानि समभय शसत,

तदानौी मीइरण खरगरप मकतम षषठ महरितररहाभि: समान

करयात; तष शसनीयाना मसिवपि शॉसनात। अथ तड

परीलनयदिषछहनिनसशसति [पजाशरधा शतिः| 'तत'एतद

I पठपतरिका | 8 1 १० ॥ ३९

सशसरन सवरगलोकरपलवात,पचम , तसमात, सममय न ससत।

न सचासतीति यदवासति, तदवातिपजयतवम । पजारथरय शति: ॥ !

इरथ दवितीयपच मपपादय पनरपि परथमपच दोषानतर माह

"आतमा व सतोचियः पराणा वालखिलया: स यतरसशा सदताभया दव

ताभया यजमानय पराणानचीयाद य एन ततर बयादताभया दव

ताभया यजमानसय पराणान वयगाढगराण एरन हासयतौीति शशखतथा

यात; तसराव सशासत"-इति । आवर सशसिनवादी परषटवय:,–

कि वालखिलयाभयःपरव मकाहिकसय शासन, कि वोपरिटात ?

इति। ततर परथमपच दषण मचत,-योगय मतर शिरपशसन

‘सतोतरिय" सामसाधयखय सतरोतरसयाधारभतखचोवसति, सोयम

"आतमा व' जौवखथानीय एव । ‘वालखिलया:'चटच: पराणसथा

नौया: । तथा सति 'स' मतरावरणी यदि 'सरशसत' तदानौम

'एतानयाम' इनदरवरणदवता या ‘यजमानसय' सतोतरियसथानीयसय

'पराणान' वासतखियखथानीयान "वौयात' विगतान करयात,

इनदरवरधौ कचौ यजमानसय पराणान विनाशयताम । एव सति

"य' कशचित मतरावरणसय विरोधी समागतय ‘एन’ मतरावरण

'तच' तखिन ससन 'बयात' शॉपत। कन परकारणति, तदचत

—'एताथाम' इनदरावरणदवताभया यजमानसय पराणानसौ मतरा

वरणो ‘वयगात" विगतान छतवान। तरमावाण: "एरन' मतरा

वरण यजमान वा "हासयति' परिधजतौति ॥ तटरानो तस

शापन 'शखत' अवशय ‘तथा सयात पराणवियोगी भवत। तसमात

मतरावरणो न सशसत ॥

एव वासतखियायः पवशसन दोष मभिधायोई मपि तत

सशसन दोष माह-"सयदौचताशसिरष वालखिया इनत मर

३५ई ॥ ऐतरयबराझणम॥

खताबरीहण’यसशसानौति,नो एव तसयाशा मिया"-इति।'सी'

मनावरणी यदि मनसयवम "ईवत' विचारयत॥ कथ मिति,

तदचत -"वालखिलथाः' अतयनतदसाधयाः, अहम ‘अरशसिरष'

शॉसितवानसिम, ‘इनत'' महानहरषः समयकतर:; इत:पर दरीइणय

परसतात ऐकाडिरक सममय शासानीति । तदनीतयभासनसय

परववत पराणवियोगहतलवात ‘तसय'पचसयाशा मॉपि ‘नो एवयात

सरवथा न पराशलयादव, मानसी विचारापि न कतरतवय, दर

बततसशसन मिलयारथ: ॥ . . . .

इदानो सथानविशषण ततसशसिन मौकरीति-"रत यदि

दरय एव विनददपरिटददरोइणसथापि बडनि शतानि सवखो

ततकामाय तथा करयाद बव तदपTसम"-इति.। त मतरावरण यदि

'दरप एव विनदत' गवावशव खमत [ अतयनत दशॉरस शिलप माह

मशॉसिरष, कि नाम माया शॉसित मशकघ मिलताइशो दरप: ]

तदानो तसय मतरावरणसयौमकयानसारण दरोहणसवोपरिटाद

बददघपि शसतराणा शतानि शसत। अलव तदनो भौसनखया

नजञा । "यसबो' यरवव फलसय ‘कामाय' परासव "तबद' बहविशरव

शसनम "अवव' खान तथा करयात, ‘तत' फखम 'उपास'

आरस भवति | एव तावदकाहिकाना सझाना मशसरन झासरन

वति पचतडया सयभिहितरत भवति ॥ . . . . . .

तच कसय शासिन मडौछातरत, कसव वा निषिडम ? इतयपचवाया

मभरय विविच दरशयति-"ऐनदरयी वालखिलयासतासा डादशा

चराणि पदानि ; ततर स काम उपासी य ऐनटर जागत थद

मनदरवरण सतर, मनदरिावरणी परिधानौया ; तसमान सरशसत"

इति 1 ."चरषणौ धतम"-इतयादिरक(स.०३.५१.), यदतदनदर

॥ षषठपचिका । ४ । १० ॥ ३५७

सत मकाहिकम, तदतनतरिराछातय यसलानतरम “परा वा राजानौ’

-इति ( स० ७. ८४.), ऐनदरावरण मकाहिकम, तदतदङगी

करियत । या:‘वालखिलयाः’ . चकटचसता: ‘ऐनदरय:’ इनटरदवताका: ।

तासा मधय यानि इादशाचराणि ‘पदानि' पादा विदयनत,

छहती-सतोखहतीइयातमकष परगाथष छहलयासततीयपादी ही

हादशाचरी, सतीखहलया आदयसततीययोभी पादौ इादशाचरौ;

तिषा पादाना मचचारसडङघया जागतलव मसति । एव सलचकाहिक

जागत “चरषणी धतम’-इतयसमिवनदर समति ‘यः' कामी पचितः,

स काम:‘ततर' तषविनदरदवतावावालखिलयागतष दादशाचरपादष

‘उपापतः’ लबधी भवति । तसमाचरषणी धत मिलतदकाहिक मनटर

सता मातर परितयाजयम । अा वा राजानावियतदनदरावरण सकलाम;

ततयम “इनटर वरणम’-इति (स०७.८४.५) परिधानीयावनदरा

वरणी। तथा सतयतसय सतरयानकलतया तदव श सत, तसमा

दनधत न सशसत। अनयशबदोsतराधयाहतरतवय:। अत एव सतरकारः

ऐनदरावरण सत मङगीचकार–“आ वा राजानाविति नितय

मकाहिकम'-इति ( आपरख० शरौ० ८.२.१६.)॥ इशय शिलपाखय

शसतर वयवखापय तसयोपरि सतानतर मपयङगीछातम ॥

इदानी शासतर मवोपजीवय सतोतर कचिहिचार मजञावयति

‘तदाहरयथा वाव सतोतर मव शासतर ; विहता वालखिलया: शसयनत,

विहतासतोला३ अविहता३ १ इति’-इति । सतोतरशासतरयो: साटट

शखासयापचितलवात शखगतास वालखिलयनामकाखच विहरण

दछटटा सामगाना सतोतरSपि सशया जायत, कि मिद सतोतर विहत

माहोखिद अविहतम ? इति। झतिदरय विचारारथम॥

तसझिन विचार निरणय माह-‘विहत मिति बयादषटाच

३५ . ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

रण इादशाचर मिति"-इति ॥ "आन लव' नी अनतम:"-इलधा

दिय डिपदास सामगा:सतवत अ। तनतर चादया: पादा अषटाचरा:,

डितीया:पादा डादशाचराः; एव ततर छनदी विदवत मितयततर

बययात ॥

अथ शसतर लपजौवय याजथाया चीदा मझावयति-"तदा

डरयथा वाव शसतर मव याजथा ; तिखी दवता: शासयनत ऽबिन

रिनदरो वरण इतयथनदरवरणया यजति,कथ मनिरननतरित इति'

-इति । ‘तत' तनतर शसतरयाजथाया चादय माड: । शाखसय तदीय

याजथायाधव साइश मपचितम । शसख च तिखी दवता: शासयनत,

-अनिरिनदो वरणधति । तनतर सतोनियानरपयारनिरदवता,

वालखिखयाखिनदरोदवता, ‘आ वा राजानौ"-इति सक (स०

s. 58.) इनदरी वरणध । एव सति याजथाया मपि दवतादवय

मपचितम, तनत नासति ; "इनदरवरणा मधमकतमसय"-इति

याजथाया सिनदरावरणयारभधारपि परतिपादितलवनान: परितयकता

लवात। कथा मनतराबिन: "अननतरित:'परितयाशी भवदिति चादय म॥

तसवोततर माह-"या वा अनिःस वरणसतादयतिदधषि

णाली,—लव मनवरणा जायसयदिति , तदधरदनदरवरणया यजति,

तनाजिरनानतरितश ननतरित:"-डति ॥ ओलिवरण धारचनतमदT

नासति; परसपर मतिपरियवनकलवोपचारात। "तत' एकतवम

• ‘अगर लव' न:"-इति दी,‘त वा शीचिठ"-इतयका (स० ५.६४.१,६६४.),

एव मिलतीहपदकच: सीवियः (उ० आ०४.१, २६.)। अच ही सामनौ अधौयत

(ऊ०ग० ३. २.१, १२, ९.१५.)। तयीरादय 'गई" नाम दशराब, अपर‘सचा

साईौरय" कवकड इति विशष ॥ इहखल गईसबव गरहणम "गही भवति"-इतयादि विह

तबाहरणम ( ता० बरा० १३, १२,४, ५,)।

॥ षषठपचिका ॥ 8 ॥ १० ॥ ३५.

'कषिणा' मलणायकम। "तव मगन"-इतयादि का मनतर:(स.

५. ३. १,३)। ह आन ! लव वरणा भवा 'जायस' परादरभवसी.ति

मनतरारथ: ॥ तथा सवनटरवरणया यजीतीति यदवासति, "तन' आन

रवरण एवानतभौवात आय मनिः "अननतरित:' अपरितयकत: ॥

अभयासrsधयायसमापतधारथ: ॥ १० ॥

इति चौमासायणाचारयविरचित माधवोय वदारथपरकारी

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया चतयौधयाय

(एकीनविशाधयाय) दगम: खणड: ॥ १०(२६)॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

समरथधतरी दयाद विदयातिीरथमहखरः॥

इति धीमटराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

यौवीरवकभपालसाबाजथधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवततायणाचायण विरचित माधवौय 'वदारथपरकाश'नामभाय

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया: चतथॉधयायः ॥

* सहिताया मतनावसय वयाखयान सायणाचायबरीषा यतितचीडपता,—"त दवा बिशय

तीगनि पराविशन (त० स० ई.९.६.c)"-इति ॥ वसततीऽगर: सरवदवताकतव मनकव विदय

तम। निर०'अथापि बराहमण भवति,–अगरि:सरवा दवता इति (१भा० २५९ पर०९ईरष०)।

बतसवीतरा भयस निवचनाथ,-इनदर मिरच वरण मगरि माह:०-०(च० स० १ई४.४ई.)।

इम मवाधि' महानत मातमान मक मातमान बहधा मधाविनी वदनति"-इतयादि३भा०३-०

–३९०प० । तत:४१३,४२९ प० ॥ ४भा०v४प०"॥" टिपपरनौ चतदरथिका ॥ पन

खतपरिशिषटऽपि ४भा०४.०८ पर० । "अगरि: सरवा दवता इति। तसवीतरा भस निरवच

नाय,-जातवदस सनवाम ०-०(च०स० १.९९,१.)"-इति ४भा० ४०प-४१०१ |

॥ अथ पञचमाधयाय:॥ ।

( तच )

I। अ था। परथम: रहाणड: ॥

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॥ ॐ॥ शिलयानि शसनति दवशिलयानयतषा व

शिलयाना मनषकतौह शिलय मधिगमयत' हसतौ

कसो वासो' हिरणय मशवतरीरथ: शिलय शिलय

हाचितरधिगमयत'य एव वद" यदव शिलपानो ३'s

आतमससकतिरवाव शिलयानि 'कनदोमय वा. एत

रयजमान' आतमान' ससकरत 'नाभानदिषठ शसति

रतो व नाभानदिषठी 'रतसतत सिचरति त मनिरतता'

शसलयनिरहा व रतो गहा योनया सिचयत'स रती

मिथधी भवति'चमया रत: सकतरगमानो निषिञचदिति'

रतः समदमा एव' तस नाराशस' शसरति परजा व

नरो वाक शस:परजाखव तइाच दधाति तसचा

दिमा: परजा वदतयो जायनत'त ह क परसताचलसनति

परसतादायतना वागिति वदनत 'उपरिषटादक उप

रिटादायतना वागिति वदनतो मधय एव शसन

मधयायतना वा इय वाग परिषटातर दौयसौवोपरि--------------

*S

‘शिलपानी’ क, ग, घ,च ।

॥ षषठपचिका | ५। १ ॥ ३६१

टानदयसीव वा इय वारक होती रतीभत सिदधा

मचावरणाय समयकछ यतख तव पराणान कलय

-4- I

थति ॥ १(२७)॥

सतोतरियसयानरपलव समयाताध परगाथकाः।

तरियभोऽथाहीनयजिमौकौ शिखयश वरणितम ॥

अथ यठाषडहय कषSहनि शिलपनामकानि शासतराणि विधतती

'शिलपानि परासति'-इति श ॥

शिलपलव लौकिकनिदशीनन परासति-"दवशिलपाचतषा व

शिलपा ना मनकतोौह शिलप मधिगमयत,– हसती कसी वासी

हिरणय मणखतरीरथ: शिलपम'-इति ॥ शिलपशबदशा आशचरयकारी

करम बत। तब शिलप' डिविधम-दवशिलप' मानषशिलप चति ।

नाभानदिषठादोनि यानि शिलपानि सनति, तानि दवाना परीति

डतवाहवश पानीयचयत । "एतषाम' एव दवशिलयानाम अन

छति' सदषणरपम "इह' मनघलीक शिलपम "अधिगमयत' पररती

यत। इसतीतयादिना तदवीदाइियत। लीक शिखिन: करमकाराः

यहावॉदिभि: हसतिसदश माकार' निरमिरमीत॥ तथाध:शिलपिभि:

'कॉस" दरपणादि निमॉयल। अपरवौसी विविध निरमॉयत ।

अधि: सवरणमय कटकमकटदि निरमॉयशत । अपरयाखतरीरथी

निरमॉयत ॥ गईभाखानया सतयनतरी खतरजाति, तयतो रथी

Sखतशरीरय:। तदतलसरव मसाभिरधिगमयमारन मानषशिलप मताद

दा नाभनदिठादि"शिलम'आधारयकरमिति निवतवयम ॥

8 वालखिलाना मटसकाना मव पाठपरकारी: शिलपव मभिहितम ( २०२-९४-१४) I

४ई

३६२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

वदरन परशसति-"शिलरय हासिबबधिगमयत य एव वट"

इति । "आखिन'वदितरि ‘शिलप"कौशल नानाविध पराचयत ॥

साननासिकशतन शिखपाना पजयतव दरशयति-"यदव

शिलपानी ३"-इति । यसमानतराभानदिषठादीनि शिखपशबदवाचयानि,

तसमात सवरणाभरणदिवत पजथानीलयरथ: ॥

परकारानतरण। शिलपानि परशसति-"आतमससकतिवाव

शिखयानिछनदमय वा एतरयजमान आतमान ससकरत"-इति।

वचशमाणानि नाभानदिठादिशिलपानि 'आतमससकति:" जीवा

समन: ससकरणानि ; तसमादतरयजमानो जीवातमान 'छनदोमरय"

वदमयी यथा भवति तथा ससकरत ॥

होत: शिख' विधतता-"नाभानदिषट शासति"-इति ॥

नाभानदिषठाखयन महरषिणा दषटम "इद मिथा"-इतयादि सतरो

"नाभानदिषठम'(स० १०.६१.१-२s.) ; तडोता शासत 3 ॥

कनत परासति -"रती व नाभा न दिलली रतसततिजवति"

इति ॥ एत: सलरयजमानसयातमससकारी वदमयजमारपो यी

Sभिहित:, स एवकरमणोपवणरवत । ततर नाभानदिठाखय: खतर

विशषी यजमानोतादकरत;सथानीय; : "तत' तन सलन होता

तसिन सलदवताविशषवाचिन: पदसय विसपषटपरतौलयभा

वादनिरतव मसति, ततपरशसति-"त मनिरल शॉसतयनिरला व

रती गडा योनधा सिचत"-इति । "रत' नाभानदिषट सतरविशर

षम ‘अनिरझाम' असपषटदवताक शासत । लीक ततः "अगनि

रझाम' असपषट मव 'गडडा' गोपय अनत:खया न धानधा सिचत ॥

"उडलयचीतम सतरो चौणि"-इतयादौनि आध० चौ. वी. १, ११-६४ ॥

॥ षषठपतरिका ॥ ५| १ ॥ ३३३

नाभानदिशाखयन सिकरतसा यजमानसय समबनध" मननलिडर

दरशनन दढयति-"सरती मिधी भवतिचया रत: सलमानो

निविइदिति रत:समडा एव"-इति ॥ "स:' यजमानो नाभान

दिलन रतसा मिशरितो भवति । तसिबथ "चया"-इतयादिक

खसतगतः कधिडकपादः परमाणम। परजापतिरयदा खा दहि

तरर दिव मषरस वा ‘अधिषकट' अधयसकनदत, तदानौी मव ‘चाया'

भसया खदडिचा ‘सखगमानः' सइ' परासीsसिडीक रोहिती

भती खो भतो 'रती निषिचत' रती निषिकवाचिति ०.।

अतःसल रतसलकलिइ मसति ॥ तरमादिरद खला रत:सवारथ

मव समपरदायत ॥

तसय नाभान दिलचसय सजञानतरसाहितरय विधाता-"रतस नारा

शस शासति; परजा व नरो वाक शनस,परजाखव तडरच दधाति ;

तसमादिमा: परजा वदलची जायनत"-इति॥ "त' नाभानदिठाय'

सतरविशरष नाराशसाखयससहित होता शॉलत। "नरा' अडि

रसी महरषय, मनषथजातावतयनतरतवात; त. शासयनत यसमिन "य

यलन"-इतिसनविशष(स० १०.६२.१-११.) सोशय ‘नारा

शस', तन सहितम"इद मिया रौदरम"-इलतनाभनदिषट सतरो

शसत "ि ॥ ततर मनषयरपा: परजा एव नरशदनाभिधौयनत,

शसशबदन च वागचयत; तथा सति नराशासशबदन परजाखव वाच

मवखथापयति; तसआत कारणादिमा: परजा:‘वदलथः"वागवयवहार

करवनय उतपदनत ॥

आवद चिनतनीयम-कि मिद नाराशसिमल नाभानदिठ

मकरय परसतात पठनीयम, उतोपरिटात,अथवा मधय ? इति॥

क. ९ भा० १४९प०३.३, ९. दर० ॥ आवe थौ० प, १. २५।

३६४ ॥ ऐतरयबराहमणम r

तच परथमपच दरशयति-“रत हक परसताचछसनति,परसता

दायतना वागिति वदनत:"-इति । मनषय शरीरसय 'परसतात'

परवभाग "आयतन' खान यसथा वाच, सय वाक 'परसतादायतना'

"इति' एव लपपकति' वदनत: कचिट याजञिका नाभा नदिठसय

यएसतानाराघास शासिनति ॥

डितौय पच दरशयति-"उपरिटादक उपरिटादायतना

वागिति वदनत"-इति। शरीरय परवभागदपि 'उपरिटात

मईनि "आयतन' वहादिरप सथान यसथा वाच:, सयम "उप

रिटादायतना वाक" इति यकि वदनत: कचिदच याचिका:

नाभानदिठसयोपरिटाखाराशॉरस शासिनतरि ॥

ढरतीय पाच दरशयति-"मधय एव शासमधयायतना वा इरय

वाग"-इति। शरीरसयाधोभाग:पादरपोटपि वाच आयतन न

भवति,ऊईभाग: ललाटादिरपि वाची नायतनम, किनवा

धारादिरवजञानती मधयभाग: आयतन यसया वाच:, सव 'मधयाय

तना'; तरयातराभानदिवसतरीय मधय एव नाराशससन भलत।

एवकारण परवोतरी पचौो वयावतत॥

मधयभागदपि सथानविशष दरशयति-" उपरिटावदौयसौी

वोपरिटाबदीयसीव वा इरय वाग"-इति । उपरिटाखाआनदिठ

सदखोवसानभागी 'नदीयान अतयनतसमीपवतता यजयसख

मधयभागसय, स मधयभाग: "उपरिटाबदीयान' ‘इव"शबद एवका

रारथ, तथाविध एव मधयभाग नाराशस ससत । .."इद

मिया"-इलरत नाभानदिषट सतरो सविशलयगातमकम, तवावसान

ड ऋचाववशिषय पखविशव ऊई मव नाराशरस सॉ शौसत 1 तथा

चशखलायन आइ-"इद मिथा रोदर मिति परागपोतमाया य

॥ षषठपॉखिका | ५। २. ॥ ३६५

यलनतयावपत"-इति ( थौ० ८. १. २१, २२.)। वागपि ‘उप

रिटावदोयसि" अतयनतसमीपवरतिनचव शरीरमधयभाग तालवी

छादौ वरतत। तसमात सचसयोहाखान यहम 81 .

होत: शासिन सपसहरन मतरावरणशासतर परसतौति-"रत होता

रतीभरत सिझा मचवरणाय समयचचतसय व पराणान करप

यति"-इति । उतशसनन होता 'त' यजमान "रतीभत'

दतःपराची यथा भवति तथा सिकका तरस मतरावरणाय समय

चछति । तदा कनाभिपरायणति सीभिधीयत- ह मतरावरण ।

लवम ‘एतसय' यजमानसय रतौरपसय पराणान समयादय "इति'

अननाभिपरायण यजमारन तसौ परयचछति ॥ १ ॥

इति शीमठतायणाचारयविरचित माधवीय वटरारयपरकाश

ऐतरयबराहमणय षषठपतरिकाया पचमाधयाय

(विशाधयाय) परथम: खणड: ॥ १(२७)॥

॥ आथ दवितीय: खणड: ॥ म

वालखिलयाः शसरति पराण व वालखियाः"

पराणानवाख ततकालपयति' ता विइताः शसति'

नाभाननदिरय वरणन परसताद दरषटवयम ( 99-फ )।

३६ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

विइता वा इम पराणा: परागनापानी ऽपानन वयान:"

स पचछः परथम मल विहरचरचशी दवितीय कक

शसततौय स यत परथम सत विहररति पराणख तडरच

च विहरति यद डिरतौय"चचघ तनमनाश विहरति'

यतततौय' थोरचच तदातमानच विहररति त हक

सह बहलौ'सह सतोबहलौ विहरनति तदपाली

विहार कामो"नत परगाथाः कलयनत'sतिमश मव

विहरतथा व परगाथा: कलयनत' परगाथा व वाल

खिलासतखयादतिमश मव विहरददवातिमश"िई

आतमा व बहती पराणाः सतोवहतो स वहती

मशसौत स आतमाथ सतीबहतो त पराणा अथ

बहतीमथ सतोवहतो" तदातमान'पराग: परिबह

ननति' तसमादतिमश मव विहरदाडवातिमरश३'

आतमा व बहतीपशवः सतीबहरतौ सबहती मश

सौतस आतमथ सतोबहती त पशवोथ बहती'

मथ सतोबहती' तदातमान पशभिः परिबहननति'

तबादतिमश मव विहरद डवोततम सक परयचति'

स एव तयोरविहारसतख मचवरण: पराणान कलय

यितवा बराहमणाचसिन समपरयचचत टव परजन

यति ॥ २(२८)॥

॥ षषठपचिका । ५। २ ॥ ३s

होत: शिरपशसतर मददा मतरावरणसय शिलपणसव विधतो

"वालखिलथा: शासति; पराणा व वालखिलया:, पराणानवासय

तकखयति"-इति। वालखियाखनभिटरटः "अभिपर व:

सराधसम"-इतयादिक (स.०६ अषट० ३अ०)अटक परियता चटची

वालखिखयाभिधा: ; ता एव वालखिलयाखय गरनथ समानाता:8

ता: सवो मचावक एण: शॉ स त । वालखिलयाना शिलपाना पराण

रपवन तचछस न सति 'आय' रतौरपय यजमानसय परा एणानशव

समादयति ॥

इतरशसतरविदतरापि यथापाठयासनपरसझौ विशष विधतती-"ता

विहता: शासिति , विदवता वा इम पराणा:, पराणनापानी पषपा

नन वयान:"-इति । "ता:'वालखिया ऋचो ‘विहताः' परसपर

वयतिषाः शसत: पराणवम शरीर"विहता व' परसरयतिषा

एव वरतनती । ऊरईगामिना पराणवायना। निरोधात अपानवाय

वरयतिषजञ:, तन चापानवायना तडायडयमधयवतरतवयानी वयतिषत:

"अथयः पराणापानयः सनधिः स वयानः"-इतिशयतयनतरात(छा०

उप० १. ३, ३. ) ॥

वयतिषजञपरकार विधत-"सपचछः परथम सक विहरलाई

चशी हितौयऋटकशखतीय"-इति। वालखिलयाना मटस सलल

समाषटम सक परितयजय यानयवशिषटानि षट सनानि, तल

वीणि यगमानि। तच परथमयमिगत ड सक 'सी' मतरावरण

'पचछी विहरत परथमसतगरत पाद डिरतौयसलगतन पदन

योजयत। दवितीययगमगत ई सक"आईचणी विहरत तखिन

8 अषटाषटकविभकाया वाकलसहिताया वालखिलथाना षषठाटकानतरगतवऽपि सायण

वयाखयाताया दाशतयाशाकलसहितायातषा मननतभावादयनथानतरसथतवम ।

३६८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

यम एकसतगत मईच दवितीयमझगतनालचन योजयत।

खतौययगमगत ड सतरो 'कटकणी, विइरत’ तसिन यगम एक

सतरगता खरच डिरतौयसलागतयचौ योजयतत । तदल माख

लायनन-"अथवालखिया विहरत, तदज पीडशिना; सझाना

परथमडितौय पचसततीय चतरथ ईरचण ऋकशः पचमषल"

इति (थौ० र. २. ३-६.)। यदयपि परवाधयाय "पचछ: परथरम

षडलिखियाना सझानि विहरतयईरचगी दवितीय चकशाखतीयम"

-इति विहारी Sभिहित:(३४२ पर०), तथायचारित विशष: ॥

लच डि षसा मपि सताना पादविहार,अरचविहार;ऋग

विहार इति तरिराइकतिरभिहिता ; अतर त परथमयर म पादविहार,

डितीययगम डरचविहार, ढतीययगम ऋविहारइति । तचापि

सकदव पादादिविहार:, न लवादयकति: , तथा वाच: सहभावा

भावानया मणयकति विशष: । अनत एवीभयतर नामभदीSसति,–

महावालभिडिहार इतिपरवसव नामधयम, हौणडिनी विहार इति

एतसय नामधयम। अत एव सचकारी नामधयडय दरशयति

"इति न, हौणडिनावथ महावालभिट-इति (आशख० पौ० र.

२. १७,१८.) हणडिनाखगन महरषिणा इटौ ईौ विहारी, महा

वालभिदाखधन महरषिणा दषट एकी विहार: अ8 ॥

अचीकी ईौणडिनविहारी परशसति-"सयथम सक विइ

रति पराण व ताइारचच विहरति, यद दवितीय चतच तनाव

विहरति, यतततीय धोतर तदातमानच विइरति"-इति। परव

वाद वयाखगयम (३४ई प० ) ॥

याजय मनतरीको हौणडिनविहार तसथापि मतमदन ईौी परकारी :

क. प4 ३४४पर०' क. "टिमनी दरषटवया ।

॥ षषठपीचिका । ५। २ | ३६८.

तीवर परथम परकार मपनयासय, ततर विचिदपरितारष दरशियति

"त हक सहहलचौो सह सतीइइलधौ विहरनति, तदपाती विहार

कामो नततपरगाथा: कलयनत"-इति।याः[षटतरिगदचरा इहरती,

चलवारिशदचरा सतोबहरतौी | वालखियसलल परथमा डहरती

दवितीया सतोहती, ढतीया दहती,चतरथो सतीहतौ, इलरव

मणिगरवालनचायन एकानतरिता: पठिता:, तनतर परथमादगरयजी

इय, डितीयचतयौदियजः सतडहतयः। एव सति परथमसल

डितीयसन चादिभत ड बडचौी सह विडरत, तदननतरभा

विनधौ दो सतोहलधौ सह विहर त । इध विहार "त' परसिदधा:

याचिका: कचिदिचछति । तझिन पच विहारसव विदयमानवात

विहारनिमितती य:कामः स उपामी भवदव, किनत परगाथाः

"नत कलयनत' नव समपरदानत इति । परिभवदीतनाथो नचछबद: ।

छनदीइरय मिलिलवा एक: परगाथी भवति ॥ खाधयायपाट परशन

थाना विदयमानवात विहारोऽपि परगाथानत एवापचित: । त

न कवल बहतौमया कवलसतइहतीभया वा समयदयनत, किनत

झदोइयन समपदयात। परगरयनन इयचचवा बहतौलवसममाद

नाथ परगाथापचयणम ॥ तलख छनदोइय सकरम । तथाहि-परथमा

बहती यथापाठ मव पठितवया, ततोषटचरचतरथपारद हिरा

वरचच सतीबहतयाः परथमाईगतन डादशाचारपादनाषटचरपादन

"च डिबीया दहतौी समपावत : त मययटचरपाद हिरनयासय सती

:हतया उततराईगतन इादशाचरापादनाइषटाचारपादना च ढतीया

-इशहरती समयदात । अत: परगाथष छनदोदय मपचितम ; कवखयो

हतयो: सताडइचीरवा यथोलोगरथनासभावात ॥

इध हौणडिनविहारपरथमपरकार निरालय दवितीय च परकार'

8.9

३ 8० ॥ ऐतरयबराहमणम I

विधत -"अतिमरशमव विकरत; तथाव परगाथा: कलयनत; परगाथा

व वालखियासतसादतिमारी मव विहरदवदवातिमॉी."-इति ॥

'अतिमरशम'अतिशयातिनय, परथमसतरसय परथमाया मचि परथम

पाद मनना तदननतरभावि सरव मतिलबध डिरतीयसन दवितीयसबा

मचि डिरतौयादन याजयत;सोय मतिलबध मणयमानवादति

मरी इतयचत । ततर इहरतीपाद-सतोडाहतीपादयारमिवणरपी

विहारो भवति । एवकारण परवोतरविहारी वयावतत । स त

कवलढहची: कवलसतोहलची: समपरदात, न त मिलितियाः ;

अतोन ततर परगाथभावः। इह त'तथा' सति,अतिमणय मलन

सति, छनदोइयसमबनधात परगाथा: समपरदानत ॥ या वालखिखया

चकच आनातारत: परगाथरपादय एव , तसमाडिहारऽपि परगाथ

रपलरव यकम । तरमादितयपसहार: । यदवातिमणख विहरण तत

पजय मिति शतररथ:॥

अथ छनदोडय तदोय मतिमरशरन च परशसिति-‘आतमा व

इती,पराणा: सतोडहरतौ,सइइती मशसोत,सआतमाथ सती

इहरतो दत पराण अथ बराहती मथ सतीढहरतो तदातमान परारी,

परिहवति ; तसमादतिमरश मव विडरत"-इति । परवॉदाहरत

यदवति वाकय मतर यजनौयम। अतिमशवातिमशय पजरय विहरण

यदसति, तसमिन विहरण सा दहती ‘आतमाव" मधयदहएव :

या त सतीखहरतौ, सा पराणा: ; तथा सति "स:' मतरावरणी यदादो

इहरतीः "अरशसौत' शासरन छतवात, "स:' ढहतीशसिनरपः

'आतमा' मधयदह: समपरदात ॥ "अथ' अननतर सतीइहतो मा

सीत, "त' सतीखहतौरपाः पराणाः समपरदयनत । "अथ' पनरपि

डहरतो, तत उड सतीढहतो बडकलव: शॉसिपति । "तत' तन

॥ पटपतरिका | ५। २ ॥ ३७१

जयोतिषजञशसिनन 'आतमान' मधयदई 'पराण' वायविशब: "परि

ढहन'परितो वडयन "एति' गचछति ॥

सनरपि वयतिषजञ मनदध परकारानतरण परणसति- ‘यड

वातिमॉ३ आतमा व इहतो,पशव:सतोहती स दहती मश’

सीत; स आतमाथ सतोडहतो त पशवो 5थ इहती मथ सती

ढहती, तदातमान पशभि: परिहवति; तसनादतिमरश मव विइ

रत"-इति। यदवातिमणखातिमणय परव शासिन मसति, ततर डहती

यजमान:, सतोडहरती पशरपा । अनयत सव परववद वयाखशयम ॥

इथ' षषटी सताना विइरण सझा समाधमयरविपरयारस

विधतत-"डवोततम सक परयसथति,सएव तयोरविहार"-इति।

अटरम सतर मादी पठिवा पशचात सतरम सरश पठदियव मनतिम

मल विपरयवदव, न त पादाईचौदिवयतिषई कयौत,'स'विप

यौस एव तयोरविहार इतयचयत ॥

मचवरणसय शसतर मपसइरन बराहमणाचरवसिन: शसतर

परसतौति-"तब मतरावरणः पराणान कतययितवा बराहमणाच

सिन समगरयचछचरत लव परजनयति"-इति | ‘तसय' होटशपरवण

निधयवखरतीरपय यजमानदइयमतरावरणःखकौयनशलश

पराणवायन समपाद, त पराणविशिषट यजमानदईबराहमणाचसिन

समगरयचछति । ई बराहमणाचछसिन 1‘एत'यजमानदई व 'भाज

नय"उतपादयति तयाभिपरायः॥ २॥

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधवौय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपचिकाया पचचमाधयाय

(चिशाधयाय) डिरतौय:खणडः॥ २(२८)। ॥

३१९ ॥ ऐतरयबराझणय ॥

॥ अथ ढरतीय: खणड: ॥

सकीरति शसतिदवयोनिव सकीरति सतदाचा

ईवयोवयजमान'परजनयति वषाकपि शसलथातमा

व वषाकपिरातमिान. मवाख तत कलपयरति त

नयइयचनन व नयड तदरस जातायातरादय परति

दधारति यथा कमाराय सतनस पाटटो भवति पटटी

ऽय परष: पखधा विहितो, लोमानि वड मास

मखिया मजी सयावानव परषसतविनरत यजमान

ससकरीति" तरत बराहमणाचछरसौ जनयितवfsचछावाकाय

समपरयोचचतख टव परतिषठा करपयरति॥३(२)

बराहमणाचछसिन: शासतर विधतत-"सकीरति सिति; दवयो

निरव सकीरतिसतदधाजञाहशवयोनध यजमान परजनयति'-इति । "आप

पराच"-इतयादि सॉ (स० १०.१३९.१-२.) सकौतरतिश दनी

चत। ततसल बराझणचरसी भलता था। सकौतदवपरियावत

दवयोनितवम । तसय दवयोनिरपात सकौतयॉलमकलवात, यजञावशय

वादाजमारन बराझणाचलरसौ ‘परजनयति'उतपादयति ॥

तखव सझानतर विधतत-“डषाकरयि शसलवातमा व इषा

कषिरातमान नवासय ततत करपयति"-इति | "वि हि सीतो

रखचत"-इतयादिक सॉ(स० १०.म.१-२३.) बषाकपिना

इटवात तचदनाभिधौयत'। तसय डषाकपिसख जौवाब

* ‘सकीति बराहमणाचसौ"-इति आध० चौ० पर. ४.९।

"कषाकपिच परकिस-ति भाव घौ-ब, ४२)। ..

॥ षषठपतरिका | ५| ३ ॥ ३१३

सथानौयलवात । तन "असय' यजमानदहसय जीवातमान मव

समपादयति ॥

तखध सकरय मधय नयड विधतत-"त नयडयतयरव वनयड

सतदरस जातायातरादा परतिदधाति,यथा कमाराय सतनम"-इति।

'त" इषाकपि 'यङयति' नयइयज कयौत। इवसतरयोदशभि

रोकारवा दीघौखयओकारा मिलिलवा नयडा भवनति। एतब

परव मवोतरम(२१, २४घटe) नयइयाननसाधनवनाबरपलवात

तन गयलन "अल' यजमानायीतपवाय अवारथ समरपयति :

यथोतपवाय कमारायमाता सतन परयचछति, तहत॥ !

सझगत छनद:परॉसति-“स पाडरो भवति ; पाडरी जय

परष:,-पचधा विडिती लीमानि वड मास मखि मजजा ;स

यावानव परषसततावन यजमारन ससकरोति"-इति ॥ 'स:" दष

कपिनामकः सतरविशषः पबदिोयकी भवति, परषोतप

लीमादिभि: पदमधा खटलवात पदमसझायोगन 'पाड' I तथा

सति "स'परष:खाकीवरवयवयौवानव भवति, तावनरत सरव

मपियजमान मननसखरीति॥

बराहमणाचछ सिन:शसतर मपसहरनअचछवकासय शाखा परसतौति

"रत बराहमणाचरसौी जनयितवTचछावाकाय. समपरयचचतसय तव

परतिषठा करपयति"-इति । 'त' यजमान बराहमणाचछरसी खकन

यनशरवणीतयादा परतिषठासमादनारथ मचछावाकाय समयचति,॥

ह अचछावाक !"एतसय'यजमानसयलव परतिषठा सममादयति ॥३॥

इति शौमनसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथ परकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपघिकाया पखमाधयाय

(विशाधयाय) बतौय: खणड: ॥ ३(२०) ॥

३88 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

॥ अथ चतरथ: खणड:॥

एवशयामरत शसति परतिषठा वा एवशयामरपरतिषठा

मवासय ततत कलपयरति त नयइयधनन व नयडरो जवादय

मवाविसतइधति स जागतो वातिजागतो वा'सव

वा इद जागत वातिजागरत वी सउ मारत आपोव

मरत आपी जन मभिपरव मवाचिसतदनादा दधारति

तानयतानि सहचरागौलयाचचत" नाभानदिषट वाल

खिलया वषाकपि मवयामररत तानि सह वा शसत'

सहवा नशसदयदनानि नाना शसदाथा परष वा

रती वा विचिछनदातत, ताइकवाखादनानि सहवा

शसत सहवा नशसतस हबलिलआशखतरआशिव

वशवजितो होतासवौचाचकर एषा वा एषाशिलपाना

विशवजिति सावतसरिकड मधयनदिन मभि परलती

ईनताह मिलरथ मवयामरत शसियानौरति तड तथा

शसयाचकार तड तथा शखमान' गौशल आज

गाम स हौवाच होत: कथा त शख विचकर शवत

इति' कि झभदवयामरदय मततरतःशखतइति

स होवाचनदरो व मधयनदिन कथनदर मधयनदिनाननि

नौषसोति' ननदर मधयनदिनाननिनौषामौति होवाच

छनदसविद ममधयनदिनसाचरथय जागती वाति

॥ षषठापचिका । १. ॥ 8 ॥ ३ex

जागती वा"सव वा इद जागत वातिजागरत वा

सउ मारतिो मव शासिषटति' स होवाचारमाचा

-s I - css-sI

वाकबथ हासिवनननशासन मौष' स होवा वनदर

"- "- “ “-'- -- - -------- '

मष विषण नयइ’ शसतवथ व मरत होतरपरिटा

* -—— '------------- =नन

दौढी धायाव "परसतानमारतखधापयखाथा इति

तड तथा शसियाञचकार" तदिद मयतईि तरथव

--'- - " - \ - '

शखत॥ ४(३०)॥

अचछावाकसय शसतर विधतती-"एवशयामररत सिति ; परतिषठा

वा एवशयामरपरतिषठा मवासय तत कलपयति"-इति। “पर वो मह

मतय"-इतयादिक (स.०५.८७.१-८.)सचम 'एवयामरत

शवदनोचत। ततसल मचवाकः शसत। तब 'परतिषठा व'

परतिवारपलवात। तन यजमानसय परतिषठा मव समपादयति अ॥

तखिन मल नयड विधतत-"त नययलयव व नयली वादय

मवासिसतइधाति"-इति ॥ परववद वयाखशयम ॥

सतरगरत छनद: परशासति-“स जागती वातिजागती वा,

सव वा इद जागत वातिजागरत वा"-इति । सतरविशषी हाद

शाचारपादिलवात जगतौचछनदसकी भवति, चतरथपाद षोडशाचर

वात अतिचछनदसवादतिजगतीचनदखकोऽपि भवति ॥ 'सरवम'

आयतत पराणिजारत जगचबदाभिधयलवात जागत मतिजागरत वा

भवति । अत:सरवरपवन छनदोडय परशसतम ॥

दवताडरण सतरो परशसति-"सउ मारत आपी व मारति

क "एवथामरदली इषाकपिना"-इति आध० चौ० प, ४, २॥

३७६ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

आपो व मभिपरव मवासिॉरतदननाद' दधाति"-इति ॥ "स उ'

सोgपि सझविशषी 'मारत:' मरददवताक: । मारतबध दषटिइारण

"आपी व' आप एव । अपा चावईतलवाददातवम "अभिपरव

मव' उझानपरवव वायसमपादितजलददारा यजमान अवाद'

सथापयति ॥

होतरादिभि: परयोचयाना महाना चतरणा शिलपाना मकसतरि

हनि परयोगसहभारव विधत-"तानधतानि सहचराणौतयाचलत,

-नाभानदिशरडवालखिया बषाकपि मवयामररत; तानि सहवा

शसत,सह वा न शसत"-इति । नाभानदिठादीनि चलवारि

शिखयानि यानयजञानि, तानि एतानि ‘सहचराणि' एकमिनन

इनि सह वरतत ‘इति' एव मभिजञा आचचत 8। तखादयखिनन

हनिशासनीयानि, तसिन चलवायपि शॉनसत; यसितर शासिनौ

यानि, तसिशलवायषि परिचजत ॥

विपचवाधक सबरा खपच मपसडरति-"यदनानि नाना

झासद यथा पररष वारती वा विचिछनदात, ताइकवात : तसराद

नानि सहवा शॉनसत, सह वा न शॉसत’-इति । तदकसिन

अहनि "एनानि' चलवारि शिलपानि "नाना शॉसत' नाना

विचिछदय विचिदय अवशिषट महरनतर शॉसत, तदानी लोक

यथा समयएगभौदपरव पररष वा, तसकरण "रती वा", "विचितर

नदिाद' विवासयत, ताइरण तबवत। 'तसमात' कारणोदतया

चतरणा साहितय मव ; न तपरसपरवियोग: करतवय: ॥

अथ शिखपवव कचिडिशष वल माखयायिका माह-"सह

बखिल आशखतर आखिवशखजिती होता सौवाचकर एषा वा

* "तवrतानि सहचराणौतयाचचत"-इयन परसतादपि (प५य०)।

॥ षषठपचिका ॥ ५। 8 ॥ ३ss

एषा शिलपानॉ विशवजिति सावतसरिक ह माधयनदिन मभि परचती

ईजताहमिथ मवयामरतरत शॉसयानौति ; तड तथा बॉसयाचकार"

इति । "ह-शबद ऐतिहदयीतानारथ: श। 'सः' परसिड: बललिनातमकी

महरषि,"आशखतर:' अशखतरनाकी महरषगाचसमतपब,"आशिख'

अखनाजी महरषः पतर: f,कदाचित "वशखजितः"विशखजिदयाग

समबनधी होता सन,खमनसि "ईचाचकर' विचारितवान । साव

बसरिक गवामयनाखयसवतसरसनसबबनधिनि "विखजिति' विषवती

इः उनई मततरपचगत विशखजिबामकश चतरथशहनि "एषा'

हीटमतरावरणादोना समबनधीनि शासतराणि शिलपनामकानि

चलवारि सकति, "एषा शिलपाना' मधच दिशिखप मतरावरण-बराहम

णाचसिनो: समबनधिनौ, मधवनदिनसवनम "अभि"लबध "परलती'

परलत, कशलोसॉीति शष:॥ "हनत' इटोह मवयामररत

शसियानौलव महरषिरविचारितवान । आय मरथ: ॥ ढतीयसवन

गतानचतानि शिलपशासतराणि तानयचषवहसय समभवनति, विशख

जिति लवनिषटोम ढतौयसवन होतरकाणा शसतराभावात मतरा

वरण-बराहमणाचसिनी: समबनधि शासतरइरय माधयमिदन सवन

समानत तावदचछावाक मसिमन मधयनदिन एवशयामररत शॉस

यानि । तथा सति तत: परवभाविनी: मतरावरणबराहमणाचछसि

3 "इतिह’-इति निपातसमदाय:, तती चय रपम,ऐतिहमम (पा० ५.४.६६.)॥

"तरति: परतयच मतिहम मनमानचतषटयम'-इति त•आ०१, ९,१ । ‘ऐविदयम-इति

हासपराणमहाभारत.बराहमाणादिकमय-इति तझाथ साथण:I

+ बडिल इति वाजसनथिकानदोगयबराझणयो: पाठ (शत० बरा० ४. ई.१.९, १०,

ई. १, १ ; ९४. प. १५- १९ छा& उप० ३- ११- १ t

8:

विशवजितपरिचय: परवीच विसपषट:( ३१०प०)।

३e८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

शसतरयोरयात माधयनदिन सवन समाकरषण भवति । "इति'

इरथ बलिल: खमनसि विचाथ "तड' तसिन एव माधयनदिन

सवन, तथा खविचारितकरमण ‘एवयामररत' सझम अचछावाक

'सियाशकार'बलादाजञानय सिन कारितवान ॥

ततर दीरष — कथामखनीडावयति-"तड तथा शसयमान

गौश आजगाम: स होवाच,– होत: कथा त शसतर विचकर झवत

इति 3"-इति । "तड' ततरिवव माधयमिटन सवन "तथा"तन

करमण बलिलपररितनाचछावाकनवयामरनामक शख शसमान

सति, तदानो गोयनामक: कशचित 8 महरषिरागलय बलिल

नामक हीतारो परवव मवाच ॥ ह होत: 1 ‘त"लवदीय मचछा

वाकगरयकत मवयामरतरामक शसतर ‘शवत' विनशयति। ततर

दषटानत-"विकर' चकररडिरत शकट मिव। अयमाणोप

इवशबदोचाधयाहतरतवय: । अत: ‘कथा' तदतत सव करथ घटत ?

इतयाचोप: ॥

तत ऊडरॉ बलिखिसय वचन दरशयति-"कि झाभदिति १"

इति। अचाचछावाकन शसमान सति कि वा दषण मभत १

नासति कविनदपि दोष इतयरथ: ॥

तत उड' गौशनोक दीरष दरशयति-"एवशयामरदय मकत

रात:शासयत इति ; स हौवाचनदरी व मधयनदिन: ; कथनटर मधय

नदिनानिनीषसीति "-इति । हतधिषणादकतरती हमचड

वाकखय धिषणथम, ततसमौप 5वखितनाचछावाकनवयामरखामकी

० गौश: गौव: अवभिनन: । साइयाc बरा० १६.९, ३३.४ ॥ सच गनधरपतयम 1

बधि:कधि खादभिनन:॥ स लवक: ‘कशविरयजञवचस:"-इति शत०बरा०१०.६.५.९,

अथापर "डविवाजयवस"-इतिशत० वरा० १४,९.४.३३;१०.५.४.१ ।

॥ षषठपीचिका | ५| 8 ॥ ३e.

यःशखविशष, सपठनीय इति तसयाशय इतयजञा, पनरपि 'सी'

गौश एव मवाच।‘मधयनदिनः'तसवनौयः "ऐनदर;"इनदरदवताक:

बतथा सति ड होतः1 त मत मिनदर मसात माधयनदिनसवनात

"कथा निरनीषसि" कन परकारणापनत मिचसि 3 सव मापन

यनचछव लवदीयाचछावाकरशसन दोष इति गौशसवाभिपराय: ।

त मभिपराय माजानती बखिलसय वाकव दरशयति- “ननदर

मधयनदिनानिवरनौषाभौति हीवाच"-इति । असमात माधयनदिन

सवनात ततखामिन मिनदर मापनत मई नचछामि ; तडिरडसय

कसवचिदपि अननषठितलवात ॥ 'इति'एव बलिल उततवान ।

तती विरदधारथातषठान परदरशनारथ गौशसय वाकरव दॉवति

"छनदसविद ममधयनदिनसचय जागती वातिजागती व सव

वा इद जागरत शवातिजागरत वा ;स उ मारतो मव घसिटति"

इति । ड होतः1 लव खमनसदर मपनत नचछसि, किनविनद

छनदी Sचावलवन परयजयमान शसतरगतम ‘अमधयनदिनासाचि"

मधयनदिनसवनसबबनधानह न भवति। कथ मिति चत, तदचत

"अरथ" सतरविशषी 'जागती वाति'जागतो वा' इादशाचारपादन

षोडशाचरषपादन चोपतलवात। सव चद जागत मतिजागरतच

मनतरजात जागत ढतौयसवन एवयोगयम, न तवयम मधयनदिन

सवन;'स उ" सोप सद विशषो 'मारतः' मरहवताको' न

चनदर:। अतीऽपि कारणात ढतीयसवन एव योगयम । तसमादय

मचछावाको 'मव शासिट" शासरन सरवथा मा करोतविति दीरष

दरशितवान॥

बतत ऊरड' बखिलझतय दरशयति-"स होवाचारमाचछावाक

तयथ हासिलवानशासन औष"-इति । ह अचछवाक | तवम

३८० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

‘आरम'शसनादपरती भव ॥ ‘इति' एव बलिल उवाच। ‘अथ'

अननतर मिद मयवाच–“हा' कषट सममनतरम ! इत: पर महम

‘असिमन’ गौश गरी ‘अनशासनम' अनछयोपदशनम ‘इष'

इचछामि । एतसमादवगतय सरव मनषठासयामीति तसयाभिपराय: ॥

अथ गौशासयोपदशवाकय दरशयति–“स होवाचनदर मष विषण

नयङग' परशसलवथ लवमत हातरपरिटादरौदवय धाययाय परसतानमारत

सयापयसयाथा इति’–इति ॥. ‘स:’ गौशश एव मवाच,– ‘एष:'

अचछावाकः ‘ऐनदरम' इनदरदवताक ‘विषणनयङग' शर’ विषणलिङगी पत

शसत। एवयामरत तयाजञा ‘दौरन य इनदर’—इति परलचवयामर

नतरामक ‘’ यदनदर सचता मसति ( स० ६. २०. १–१३.), तसमिन

सत दितीयसया मचि चतरथपाद एव मातरायत—‘हवजीषिन

विषणना सचान:”–इति; अत इद विषणचिजञोपत सत'

शसत ।। ह ‘हीत:’बलिल ! लवम ‘एतम' एवयामरत भ: लवदीय

शसख ‘असयाथाः'परचिप: ॥ ततर खानविशष उचयत– ढतीय

सवन “शनतर: करति”–इति (स० १.४३. ६.) रदरदवतावा

यय धायया, तसया उपरिषटात, मारतसतासय 8 परसतात, तया

रभयारमधय परचपखानम। एव गौशउपदशः॥।

अथानषठान दरशयति–‘तड तथा शसयाचकार; तादिद

मययतहि तथवशासयत’–इति ॥ ‘तड’ गौशन यदलरक तत सरव,

तथव बलिलः ‘शसयाचकार' माधयनदिनसवन sचछावाक परति

क। ‘विणनयइम"-इति ख-पाठ एव भाथसचाती गनयत।

+ ‘‘परतयवयानरवदितपरतदाचचत’-इति अाशव० धौ० प८.४. ११ ।

ji. एवयामरल= परति यवयामारति । -

s“म वी सह’-इतयवयामरतसत नव मारत सतम। ३७५प० २१प० दर०।

॥ षषठपतरिका । ५। ५| र १

एवशयामरचसन परषितवान, खय ढतीयसवन आगनिमारतिशसतर

मध धागयामारतसकयोरमशय एवयामरतपरचय शासन छतवान ।

० P० --s .. नs LPN_ 38

तसआदिदवानी मपि तदिद सव होटनकसतरथव शसयत ॥४॥

इति चौमासायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया पशचिमाधयाय

(दिवशाधयाय) चतरथ: खणड: ॥ ४(३०)॥

॥ आथ पर म: खरएड: ॥

तदाहरयदसिन विशवजितयतिरातर एव षछ

हरनि करपत यजञ:" करपत यजमानख मजाति:

कथ मचाशसत एव नाभानदिषठी भवलरथथ मचवरणो

वालखिलयाःशसति त पराणारतोवो आय sथ पराणा

एव बराहमणाचखशसत एव नाभानदिचछी भवसाथ

वषाकपि.शसति स आतमारती वा अय ऽथातमा'

कथ मतर यजमानख परजातिः करथ माणा अविकशा

भवनतौति यजमान हवा एतन"सरवण यजञ कतना

ससकरवनतिसयथा गरमी योनया मतरव सतरवकत

न व सचदवाय सरव: सरववकरक वा अई सतयवतः

समभवरतौरति सरवाणि चलसमान ऽहन कियरन कलपत

एव यजञ: कलयत यजमानख परजातिरथरत होतवया

३८२ ॥ऐतरयबराहमणम ॥

मरत ढतौयसवन शसति" तदयाख परतिषठा तखा

मवरन तदनततः परतिषठापयरति ॥५(३१)॥

सवतसरसव यदहरगनिषटोमसखव विशखजिदाखय मसति, ततर

शिलपाना शसतराणा बलसि: परववाभिहिता (३०-३८० य०);

तचव किचिडौदय मदधावयति-"तदाडरयदसिन विशखजिलयतिरातर

एव षछ जहनि कलपत यजञ:, कलपत यजमानसय परजाति: : कथ

मातराशसत एव नाभान दिलटी भवलघथ मतरावरणी वालखिलया:

शसति ; त पराणा, रती वा अगर एथ पराणा एव बराहमणाच

यशसत एव नाभानदिी भवलयथवषाकरयिशसति;स आतमा,

रती वा अय थामा : कथ मतर यजमानसय परजाति,कथा पराणा

अविकसा भवनतीति"-इति। डिविधी डि विखजित,–अति

रातरससथी निषटोमसखथव 1 तीवरातिरातरसखथ: सवतनतर एकाह: ।

ततर ढतौयसवन हीचकाणा शसतराणि विदयनत । तथा सति

परवोतकरमण होता नाभानदिषट शसवा रत: सिबबति, मचावरणश

वालखिखयाः शखवा पराणानवखापयति बराहमणाचछीसी सकौरति

शसवा परजनयति, अचछावाक एवशयामरल शसवा परतिषठा करी

तौलथरय करम उपपतर: ॥ एव यठयषकराइसय यदह: शट मसति,

तसयायकतसखलवन ढतीयसवन होतरकशखसदधावात परवोतता

यजमानीतयकतिरपपदयात ॥ यथा विशखजिनदतिरातर एशल हनि 'च

शासतररपी यजञ: "कलयत' उपपदधत, तदनसारण यजमानसय

'परजाति'जनन मपयपपदत। तथा सवतसरसचगत शनिटोम

सच विखजितयहनि तदपपादयित' न शकयत। तथाहि

तचागनिषटोमसखथ विशखजिति होतरा नाभा न दिलटो माधयनदरिनसवन

॥ षषठपतरिका | ५ | ५॥ ३२३

शरत एव भवति : ढतीयसवन वखदवशरख शसय मानवात ।

अवरव सति मतरावरगगी वालखिखया: परथम शासिति ; टरतौयसवन

होतरकाणा शसतराभावgपि माधयनदिन सवन तषा शाखाणा

बखिलाखयन महरषिणा समाझटलवात। ‘त'च वालखियामका:

पराणा इतयजम (३६५प०)। लीक त रत एव ‘अगर'

परथम सिहा भवति, पशचात सिल रतसि पराणाना परदयकतिरिति

करम: । इजह त नाभानदिठराहियन रत:सकी नासति, वाल

खिखधाना सदभावन पराणा विदयनत, कथ मतदपपदयति ? इलरक

चौदयम। एव चौदयानतरमसति। बराहमणाचसी मधयनदिन दषाकपि

शसति ।'स'दषिाकपिरयजमानसय परजायमानसय ‘आतमा'दह: ।

आचापि नाभानदिलटी शसत एव भवति, अतो रती नारित ॥

लीक तरत एवाय सिचत, "अथ' पशचादादमदडी जायत : आती

लीकवपरील सति कथ मच यजमानसय "परजाति:' जनम 3 इति

डितौरय चोदयाम.। यजमानसय जनमसमभाव वालखिलथरपा: 'पराणा:"

'अविकसा' विशषण खानकसिरडिताः"कथ भवति' कन

परकारण वतरतगत ? "इति' एव बरहमवादिनचोदय माह: ॥

तसय परिहार दरशयति-"यजमान वह वा एतन सरवण यजञ

करतना सखरवनति; सयथा गभा योनया मनतरव समनवचछति

न व सचदवाल सरव: समभववकक वा अडर' समभवत: समभव

तौति"-इति। इड'यजञकरतणदन तहसाधनभतःशिखपसमडी

विवचितः।'एतन' सरवणापि शिखपसमहनयजमान 'सखबनति'

पराण परापत ईता ससकार, स एवचातर करियत : न त यजमानसय

मरणजमबहभि: शिबली: करमण ससकार दषटानत: । यथा योनयाम

"अनतः' मध "स' परसिडी गरभा भवति, एव मरय यजमान:

३८४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

करमण 'सभवन’ सखकताकारणीतयदयमान: "शोत" अवतिषठत।

लोकपि गरम 'आय' परथम रतककाल एव 'सरव" समयणौड

सकदव ‘न व समभवति' नवोतपदनत ; किनत"समभवत:" उतयदा

मानसय परषसय एकीक माइ' करमण 'समवति' निषयदयत। तथा

च गभापनिषदयामाजञातम–"एकरातरोषिरत कलाल भवति,

सराबोषिरत बइद भवति"-इतयादि। अती गरभवतकरमण

ससकारी यवा इतयरथ: ॥

उझ मवोततर’पनरपि विसटयति-"सरवाणिचलसमान ऽइन

करियरन, करपत एव यजञ:, कलयत यजमानसय परजातिर वत

होतवयामररत ढतौयसवन सिति , तदासय परतिषठा, तसया मवरन

तदनतत: परतिषठापयति"-इति ॥ "सवॉणि' शिलपशाखारवक

सिलवाइनि करियरन । तदनो तावतवाय यही यजमान

सखवार हत: शिलपसमह उपपदयत। यजमानसय 'परजाति'

जननीपचार उपपदाशत । अत: सरवशसतरानषठान मव ससकार

साधनम, न त होत: शासतरसथ परथमभावितवादिकरमविशष: ससका

रोपयागी ॥ ननचच सरवशासतरानषठान नासति माधयनदिनसवन :

एवशयामरननान: सचसयाचलवाकोनानतषठानात । नारय दोष: ।

ततर तदभावदपि ढरतौयसवन होतरवयामरचसतर मसति,"तत'

तथा सति यजमानसय सरवशासतरानषठानन या परतिषठा अपचिता,

तसथा मव परतिषठायाम, "एन" यजमान तत "अनतत:'शाखाणा

मनत परतिषठापियति ॥ ५ ॥

इति शरीमततायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणासय षषठपतरिकाया पचमाधथाय

(विशाधयाय)पचम: खणड: ॥ ५(३१) ॥

-- - - ॥ षषठपचिका । ५ । ६ ॥ ३८.

॥ अाथ षषठ: खणड: ॥

छनदसा व षछनाजञहापताना'रसो ऽलय नदतस परजा

पतिरबिभ त पराडय कनदसा' रसो लोकानलयषय

तौति ' त परसताचछनदोभि: परयगटहणातराराशखा

गायचा रभया चिषटभ: पारिचिलया जगतयाः'कार

वययानषटभ ततपनशछनदसस रस मदधात सरसहरगख '

' ' * कनदोभिरिषरट भवरति सरसशकनदोभिरयचत तनत य

एववद नाराशसो:शसति परजाव नरो वाक शस:०

परजाखव तहाच दधाति तसमादिमा: परजा वदतयो'

I जायनत य एव वद' यदव नाराशसौ३: शसनतो व

। दवाशव कटषयशव’ खरगो लोक मायसतथवतदाजमाना:'

शसनत एव खरग लोक यनति ताः परगराह शसरति यथा

वषाकपि वाषाकप हि' वषाकपसतनयाय मरति तास

न नयङकयतरौवीव नरदत िस हि तासा नयङगो रभौः

शसति रभनतो व दवाच कटषयशव खरग लोक माय

सतयवतदाजमाना रभनत एव खरग लोक यनति ताः

परगराह शसति'यथा वषाकपि वाषरगकप ईि वषा

! कपसतनयायमति तास न नयङकयदरौवौव नरदत स हि

", तासा नयङकः पारिचितोः शसतयगनिव परिचिदमनअ ‘वाककस:” ड ।

।1

8 (3

३८ई ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

हॉमा: परजाः परिचलथगनि हौमाः परजाः परिचयनध

गनरव सायजय सरपता सलोकता मशनत य एव

वद यदवपारिचितौ३:सवतसरोव परिचिततसवतसरी

होमा: परजा: परिचति'सवतसर हौमा: परजा: परि

चियनति' सवतसरबव सायजय सरपता सलोकता

मधतय एव वद ताः परयाई शसरति यथा वषाकरषि

वाषाकप हि"वषाकपसतनयाय मति तास न नयइ

य नौवीव नरदल स हितासा नयइ कारवयाःशसति"

दवा व यतकिच कलयाण करमाकवततकारवयाभिर

वापरवसथवतदाजमाना'यतकिच कलयाण करम

करवनति ततकारवयाभिरायवनति" ताः परगराह शसति

यथा वषाकरषि वाषाकारयईि वषाकपतनयाय मति'

तास न नयइयननौवीव नरदत स डि तासा नयखी

दिशाकशी: शसति दिश एव तत कलपयति ता:

पतर शसिति'पच वा इमा दिशधतखतिरधा। *

एकोडा'तास न नयखवव च निनरदनदिमा

दिणो नयखयानीति ता आईरचश: शसति पति

ठाया एव जनकलयाः शसति परजञा व जनकलया

दिश एव ततत कलययितव तास परजाः परतिषठापयरति

क '०सतिरथ" क,ख, ग ।

॥ पाठपतरिका | ५| ई ॥ ३e

तास न नयखयईववच निनरदनदिमाः परजञा नयख

यारनौति' ता अईरचश: शसति परतिषठाया एवनदर

गाथाः शसतौनदरगाथाभिव दवा असरानभिगाया

थनानतथायस वतदाजमाना इनदरगाथाभिरवापरिय

धावय मभिगायाथन मति यनति ता अईरचशः

शसति परतिषठाया एव॥ ६(३२)॥

परवीच बराहमणाचछसिन: शिलप शाल ‘सकीरति शॉ.सति", "बषा

कपि शॉसति' इति यासतइरय विहितम (३७२ य०), तत ऊडरॉ

कनतापाखरथ सरश खिल कततापनामक गरनथ समानानरत विशटरच 83

वकतवय मिति तदितिहास माह-"कनदसा व षलनाइासान

रसी ऽलयनदत, स परजापतिरबिमतयराडय छनदसा रसो लोका

नवषधरतौति ; त परसताचछनदोभि: परयटहानाराशासया गायतरया,

हया तरिशभ, पारिचिलया जागलया, कारययानयभसततयन

क अनतिचतरधयायामकः खिलरपचकपरिशिषटी यथ:॥ तचादी निविदधयाय:,

कनतापाधयायी हितौय:, परीखगधयायसवतौय:, तत: परषिाधयायी sनतिम: । तचि कनतापाधयाय

वादी नाराशखयसतिसर:, अथ रथतिसर:, अथ पारिचितयथतख, अथ कारवयाधतख:, अथ

दिशषय:पच, अथ जनकपःषट, अथनदरगाथाः पवति चिशवयाकाच:सति :

एतावदव कनतापसकम; ततलतशपरलापनामपदसति:, धथ परवडिका च:षट, अथ

चआजिजञासनधा चकचशवतख:,अथ पदचयातमक: अतिराधि:, अधातिवाद एक:, अथ सपतदशा

पदातमकी दवरनौथ:, अथ मतचदसतिसर:, अथाहनसया चटच अषटाविति पखदशविधा मनचा:

समाबाता:॥ त एवहत आरयाधयायसमासि यावत पखत खणडय कमाढ विघौयनत ॥

बतचाखिन खडतिनदरगाथानताना कनतापलकौयाना मवरचो विधानम, अत उचतविशडच

निति।

३य ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

दल एस मदधाता"-इति ॥ पछाषडस समबनधिन श

नाहा परासाना गायतरयादौना छनदसा "रस" सार:"अलवनदत’

अतिकरमयागचछत । तदनो'स'परजापतिः'अबिमत' भीतवान।

कनाभिपरायणति, सोsभिधौयत- अय छनदसा रस: 'पराड

घराडतय लीकान ‘आयथति'अतिकरमय गमिषयति'इति'आननाभि

परायण । तती भीत: परजापति: "रत' स ‘परसतात' परभान

‘छनदोभिः' गायतरादिभिः "परयटहात' परिती निरडवान ।

गायतरधादौना मधय कसया: समबनधि रस कया पथटिहादिति,

तदचत-गायतरया: सबबनधि ररस नाराशसया परयटहातI-नरा

शसशबदो यसया उगजातावसति,सरय ‘नाराशरसौ'। तथा तरिशभ:

सार "रभया' रभशबदोपशतया चटगजालया परयटहात। जगतया:

सारी "पारिचिलया' परिचिचबदीपतया चटगजातया परयटहात।

अनषटभः सार ‘कारवयया' कारशदीपतया ऋगजालया परय

गठहात॥ "तत तसआतपरियलहादई पनः'छनदय' गायतरयादिष

"त' रसम"अदधात' अवसथापितवान ॥

वदन परशसिति-—"सरसहॉसय छनदोभिरिषट' भवति, सरस

मझनदोभिवजञ तनशत, य एव वद"-इति । ‘असय' वदित: दरश

यरणमासादिक सारयलगॉयनादिभिरिषट भवति, अथ अगनिटी

आदिक परौढयजञ वदिता सारयलनदोभि:"तनत' विसतारयति॥

इदानो कनतापसझमता ऋटची विधत–"नाराशसीः शासिति;

परजा व नरी वाक शनस, परजाखव ताइारच दधाति ; तसआदिमा:

परजा वदलयी जायनत य एव वद, यदव नाराचासी:"-इति ।

"इदजना:'-इतयादासतिखचा नाराशसवि: (कट०प.०२.१.१-३.);

ततर "नराशसिसतवियत"-इति नराशासशबदसय धतलवात। तासति

॥ षषठपतरिका | ५, | ई ॥ २नe.

खचा बराहमणाचसी शसत 8। ततर नर इतयनन परजा विव

चिता,शास इवनन वाक विशवचिता । अतसताचरवसनन परजाखव

वाच मवखापयति। "तसमात’ कारणदिमा: परजा खोलन

'वदतय:' वागवयवहारयजञा उतपदनत । य एव वद, तसय वाच

वयवहारचमा: परकाशयनत इति शष:। नारायॉरसौरिति यदिवासिह,

तत पजय मिति शतरभिपरायः ॥

ताचचःपन: परशसिति-"शसिनती व दवाध खग लीक

मारयसतववतदाजमानाः शॉसनत एव सवरग लोक यनति"-इति ॥

सपरटी थ: ॥

तचसन किचिहिशष विधतता-"ता: परगाई शासति, यथा

बषाकपि; वाषौकप डि बषाकपसतनयाय मति"-इति ॥‘ता.'

नारायॉरसोसतिखरच: ‘परगाह' पादपाद परगठझा, अवसाय शॉसत ;

यथा दवषाकपिसल पाद पाद विटहा शासति, ताडदतत ' ।

वषाकपिल क परहविधिररथसिडी दरषटवयः। "हि'यरआत वार

णात इद चा शासन 'वाषौकप' वषाकपिसमबनरव कतरतवयम,

‘तत' तसमालकारणात 'वषाकप' एतनामकसय सवासय ‘नयाय'

परकारम "एति'परापरीति ॥ विगरह एवातर तनयायः थ।॥

नाराशखादौना मिनदरगाथावताना चिशडचाकततापरक मितिसमाखया।"तबाद

( इषाकप:)ऊई कनतापम"-इति आशव० धौ०प८.६.७।

f ‘तख( कनतापसय) आदितथतईशा (कारवयानता:)वियाह निनई शसित"-इति

आध० बौ० र. ३. प ॥ इह वित उततर मव निनद विधायति ॥

"अथइषाकपि शसद यथा होताजयादाचतरथ"-इति आशव० औ० ८.६.४।

आयायधरमात अचशसनम,वियाह,बिरयास, नयड, निनरद, परतिगरधति षट(०

११.१-२१)। अवचशसनातिदरश वारथित' तत उततम "पतरिशसलविह"-इति (५)।

३० ॥ ऐतरयबराझणम ॥

वषाकपिरल यनिनदौवपि विदत, अतीतरापि तदभय

पराभिी नयड निराकलय इतर विधतत-"तास न नयइयनीवीव

नरदल, स डि तासा नयड"-इति। 'ताल' नाराशसीड नयड

नकयौत,किनत‘नीवीव नरददव' विशषण निनारद मव करयात ।

'सी'एव निनरद: 'तासा' नाराशसौना नयखानीयः॥ ढतीय

पारदसय दितौयखर तरयोदशाभिरोका रसततर चावसान छलवा

वयाणा विमातराण मोकाराणा सखारण नयह (२१,२४ य०)।

ढरतौयपादसय परथमाचार मनदाततवन दवितीयाचार मदराकतवनी

चारयदिति यदसति,सोय निनरद: 8 ॥

चटगनतराणि विधतता-"रभी: शासति"-डति ॥ रभशबदो

पता ऋची रशय.। "वचख रभ वचख"-इलधादयासतिसर:(ऋ०

प० २. २.१-३.), ता: शॉसत ॥

ता ऋच:परशासति-"रभरती व दवादय ऋषयकष खग लीक

मारयसतववतदाजमाना रभनत एव खग लीक यनित"-इति ।

"रभनत:' शबद करवानत:, कीरति करवत इलयरथ: ॥

विगरहादिक विधतत—"ताः परगारड शसति,यथा वषाकपि;

वाषौकॉरप डि वषाकपसतनयाय मति; तास न नयइयौवौव

नरदस डि तासा नयड"-इति ॥

परववत ऋगनतराणि विधतत-"पारिचिशती: शसिति"-इति ॥

परिचिचबदीपिता: "राजञी विशखजनौनसय"-इतयादाशवतख चच:

• "वतीयष पादयटरानत मनदानतपर यत परथम तनिरदत॥ तदप निदरशनायो

टराइरिधाम:-'इद जाना उपयत ॥ नराशासिसतवियत॥ पटि सहखा नवतिबध कौरम

आरश नब दझहोशम-इति"-इति आशव० शरौ० प, ३, ९, ११ । इरड घकारी शदाणा,

टिकार उदातत:, अनयदकति: ।

1 षषठपतरिका | ५| ई ॥ ३०:१

पारिचितय:; तास "परिचित:चम मकरत"-इतिपरिचि बदसय

यततवात । ता चच: सासत ॥

ता: परशसिति-"अनिरव परिचिदगनिहोमा: परजा: परि

चलयकति हीमा: परजाः परिचियनति"-इति। ताख परिचि

चबदनानिरवाभिधीयत । अगनिहोमा: सरवा: परजा: दाहपाका

दिना परिपालयन "चति' निवसति, परजालमा अगनि' परित:

सवमाना: "चियनित' निवसनति ; आत: कतरत रि, करमणि वा

वयतपतया अनय मनिःपरिचिइवति॥

वदरन पररश सति-"अनरव सायजय सरपतासलीकता मधत

या एव वद'-इति । सहवास-समानरप-समानलोकलवानि

वदिता परापरीति ॥

तासा चा शतन पजथलरव दरशयति–"यदवपारिचिशतीश:"

-इति ॥

परकारानतरण ताः परशसति-"सवतसरी वपरिचित,सव

तरी हीमा: परजा: परिचति ; सवतसरर होमा: परजा: परिचिव

यनित"-इति । अगनिवाकयवाद वयाखययम ॥

वदनपरशसा परतयाहविधि च दरशयति -"सवतसरसबव सायजय

सरपता सलोकता मधतय एववद; ताःपरयाई शासति, यथा

वषाकपि; वरषाकरप डिवषाकपसतनयाय मति; तास न नयख

यबौवीव नदस डि तासा नयड"-इति। परववद वयाखयम ॥

चटगनतराणि विधतती-"कारवया; शसति"-इति 1 कार

शबदोपताः "कारया:',"इनदर, कार मबधद"-इलवादयाधतसरः

(च०प० २. ४. ९-४.), ता: सत ॥

ता: परॉसति-"दवा व यत किज कलयाण करमाकव

३८२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

सतत कारवयाभिरवावसतथवतदाजमाना यदिकध कलयाण करम

करवनति, ततकारवयाभिरापवति"-इति | 'कलयाण' कामयफलाथ

करम छकतवता कारवयाभिचटमिसततफलपरापतिभवति ॥

विगरहादिक विधत-"तः परगाईशसति,यथा वषाकरषि;

वाषौकप डिवषाकपसतनयाय मति; ताश न नययनीवीवनदस

हि तासा नयड"-इति। परववद वयाखयम 8॥

ऋगनतराणि विधतत-"दिशाकरसीः शसति; दिशा एव

ततकालपयति"-इति ॥ "य: सभयी विदथय:'-इतयादा ऋच;

(ऋ०प० २.५.१-५)दिशाकसीःशसत। पराचादिदिवलवात,

“त दवाः परागकरपयन"-इति कपिधातशवणड दिशाकसिलवम;

बतचसनन दिशण एव 'कलपयति' सवपरयोजनचमा: करोति j

तासा सचा सटटा दरशयति–“ता: पतर शासति ; पतर वा

इमा दिशधतखासतरिय एकीडरा"-इति। दिशासिसककारता

चकच: पच शासत ॥ अरयमा उपलभयलधादया दिश: पचासडाका

एव; ऐनदरी, यामौ, वारणी,सौमी, चलरव "तिरयः' तिरयग

वरियता दिशधतसर:, उनई’ चका; इरथ पाच साझा परपदयति ॥

नयइनिनदो निषधति-"तास न नयइयववव च निन

दवदिमा दिगगी नयखयानीति"-इति। 'तार' दिशाकमिड

नयख न करयात, तथा निनरद मपि नव करयात। "एव", "च’

इति पदडय विषययोः समइयारथम। नयखवारजन की अभिपराय,

सोभिधीयत-इमा दिशी "नत नयखयानि' नवचालयानि

'इति' अननाभिपरायण। नयखनिनरदयोरभिधानादव वरजनसिौ

निषधी नितयानवाद, परवमनवदषटानतन शकतियोरनिषधारथी वा॥

*"चतरदशयाम,( कारय चतथयॉम) एकन इाभयाच विगरह"-इतिआध० शरौ० व ३.१६ ।

॥ पठपतरिका | ५। ई | ३e.३

शसन निवध दरशयति-"ता आईरचशः शॉसति, परतिषठाया

एव"-इति। परवासा मचा पाद पाद अवसाय शसन सनाम,

ताल, दिशाकरसौरईच डच वसाय भलत। आईरचसय परतयच

डिलवातताचछस न परतिषठाय सामपरदात ध:॥

चटगनतराणि विधतत-"जनकलयाः सिति ;परजा व जन

कलया, दिशा एव ततकखययितवा तास परजाः परतिषठापयति"

इति। "यौनाहमाचः"-इतयादाःषडची जनकलयाभिधाः(ऋ०

प० २. ई. १-३.), ता: शासत । अनाजाच इतयादिना परष

विशषानपचसयत , ता: कलयष श: कलपशबदाभिधानादव 'जन

कनयाः "; तासा परजारपलवात, परवौहदिययाभिचरिभरदश समयादा

‘तपस' दित परजा: परतिषठापियति ॥

परववत नयड निनरदनिषध मचवसानच दरशयति-"तास

ननयइयववच निनदवदिमाः परजा नययारनौति; ता आई

चश: सिति परतिषठाया एव"-इति ॥

ऋगनतराणि विधीयनत-"इनदरगाथाः झासतीनदरगाथाभिव

दवा असरानभिगायाथनानतयायसतथवतदाजमाना इनदरगाथाभि

रवापरिय आढवय मभिगायावन मति यनित"-इति ॥ "यदिनदरो

दाशराजञ"-इतयादा: पचरच इनदरगाथाभिधा: (चकट० प० २.s.

१-५.), ता: भोसत । इनदरी गायत कथयत याख ताः‘इनदर

गाथा", ताभिदवा असरानभिगाय यौड माभिमखपन परापय

यडननान ‘अलयायन' अतिकरानतवनतः,जय परापता इतयरथ: । दववद

यजमाना आपि एताभिवरिरण जयनति ॥

औ5 "शषीईरचश:"-इति आशव० चौ० र. ३. १३॥

ग, 1 जनकलपाभिधास चटक दरषटवयम ।

३e.8 ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

परववदईचsवसान विधतत–“ता अईरचश: परासति, परति

छाया एव’-दवति ॥ द ॥

इति शरीमतसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपशचिकाया पचचमाधयाय

(चिगाधयाय) षषठ: खणडः॥ ६(३२)॥

I। आथ ससम: खणड: ॥

ऐतशमलाप शसलवतशो हव मनिरगनराय

रददशा' यजञखायातयाम मिति हक आह: सो

sबरवौतयचान पचका' अगनरायरदरशी' तदभिलपि

षयामि यत किञच वदामि' तनम मा परिगातति'स

परतयपदा तता चशखा आशवनत' परतौप मातिसलवन

मिति' तखाभयगनिरतशायन एतयाकाल sभिहाय'

मख मपयगरहणाददपनदर: पितति' त होवाचापहा

लसो sभरयो म वाच मवधीः' शताय गा मकरिषय'

सहसराय परष' पापिषठा त परजा करीरमि यो मतय

मसकथा इति तसमादाहरभयमनय ऐतशायना'

चौरवाणा पापिषठा इति त हक भयास शसनरति स न

निषधदावतकाम श सलयव बरयादायरवा ऐतशपरलाप'

’?

-----------

॥ पठपॉखिका ॥ ५॥ ७०॥ ३c.

आयरव तदाजमानख"मतारयति य एववद यद

वतरशपरलापा३:"इनदसा हष रसी' यदतशमलाप

छनदसखव तदरस०दधाति सरसहाख छनदोभिरिषट

भवति' सरसनदोभिरयच तनशत य एव वद यडव

तशपरलापा३:" अयातयामा वा अचितिरतश

लापो'sयातयामा म यच Sसदचितिरम यच sस

दिति "त वा एत मतशपरलाप शसति'पदावगराह

यथा निविद तखोकतमन पदरन परगति यथा निविद:'

मवडहिकाः शसति"पवडहिकाभिव दवा असरान

परवहॉरथ नानलयारयरत थ.वतदाजमानाः "परविहकाभि

रवामिय धाढवय परवडालन मतियनतिता अई

चशः शसति" परतिछाया एवजिजञासनयाः शास

लधाजिजञासनयामिरव दवा अमरानाझायावनान

दयारयरत ववतदाजमाना आजिजञासनवाभिरवभिय

धाढवय मातरायवन मति यनतिता आईरचशःशसति'

परतिषठाया एव' परतिराध शासति" परतिराधन व

दवी असरा परतिराधयौथनानाचारयसथवतदयजमाना

पतिराधनरवािय धावय पतिराधयाथन मति

यनतातिवाद शसलरथतिवादन व दवा असरानय

दावनानायारयसववतदाजमाना' अतिवाद नवापिरय

क, "तडरच" की।

रeई ॥ ऐतरयबराहमणम ।

धाढचय मतयदाथन मति यनति त मईरचश: शसति'

परतिषठाया एव॥ ७(३३)॥

कनतापनामक विशाइरच सॉ विधायतशपरलापनामक सपतति

सडक पदसमई( अकट० प० २. पर. १-२०.) विधततो—"ऐतश

परलाप शासति"-इति । ऐतशाखयन मनिना इषटः "ऐतश:",

अननचिताना मथौना वचसा लापः ‘परलापः'; त बराहमणाचसी

झासत ॥ , '

त मतशपरलाप सतोत माखचायिका माह-"ऐतशी ह व

मनिरतनरायरददारश, यजञसयायातयाम मिति हक आह:, सो

sबररवोत पतरान,- पतरका आनरायरदरश, तदभिलपिषधामि,

यलिकजव वदामि, तबस मा परिगातति, स परतयपदाशतता अशखा

आसवनत, परतौप परातिसलवन मिति'-इति 1 ऐतशनामक:

कशचित मनि ‘अनराय'-इशचतनामक मनतरकाणड ददरयी। परव

बदलन: परियलवात तसय काणडसयानरायरिति नाम समबनम ॥

'एक' याजञिका: "यजञसयायातयामम'-इति तसय मनतरकाणडसय

नामधय माह: । पनः-पनः-पठित: सारथरकरमनतरजातरलसी यातरी

गतसारीSभत, तसय यजञसयालसयपरिहारण सारोतपादनादस

बडपरलापरप सय मनतरकाणडसय "अयातयामम'-दति नाम समय

नतरम । ‘स'मनिरतश: खकौयान 'पतरान' परतयव मबररवोत,–

ह "पतरका:' कतसिता: पतराः ! अह मनरायरितयतनामक मनतर

काणडइटवानसिम, तदनह भवता मय अभिलपिषयामि । तसिन

सइतारथसय कसयापयभावात यत किचिडाडमारव वदमि,‘तत' म

वचन यय 'मा परिगाता' असय वनसय निनदा मा करत। एव

॥ षषठपतरिका | ५ | ७॥ ३८२

पतरान, मनवयितवा ‘स' मनिः "परतयपदयत' परलाप परारबधवान ।

सतिसडकपदरप तसिन"एता अशखा आशवनत"-इति परथम

पदम,"परतीपमातिसवनम"-इति दवितीय पदम । "इति'शबद

परदरणनाथ, इतयादिक सतिपदसमह मवान 8 ॥

तदोयपतरवततानत दरशयाति-"तसथायमिनरतशायन एलया

वाल भिरहाय मख मपयगटहादटरपनन: पितति'-इति । तसय

मख मितयनवयः॥ ऐतणसय पतर:"ऐतशायन',सच‘अभयनि:'

-इति एतनामक, एताइशः सः परतयपालपनरत पितर दटरा सहसा

समलथ, तदानीम ‘अकाल' परलापसमासिकालाभावदपि ‘अभि

'हाय' आभिसखनीयाय तसय पितरमख मषि ‘अगटहात' हसत

नाचछादितवान । कनाभिपरायणति, सोऽभिधौयत-‘नः' असआक

पिता तदानौम "आइपत' दप परातः, उनमतत इतयाभिपरायण ॥

अथ मनततान माह-"रत होवाचापहलसी परभयो म वाच

मवधौः,शताय' गा मकरिषय, सहसराय'पररष, पापिषठा त परजा

करोमि,यो मथ मसकथा इति"-इति। "तम' अभयनिनामक

परव मखपिधान परडकरव पिता एव मवाच । ह पतर! तवम ‘अपनडि'

असाद दशदपागचछ,"अलसीरभ" मददकी थोतत मालसययननासव

मभ.। यरव म मदीया वाचम ‘अवधी' मखपरिधानन विना

शितवानसि; अह मअतत इति तवबडिः; न तवह मआतत,

किनत मननकाणड मौदशम। सामथरयनत मदौरय श,–अतया

यरथ गा ‘शताय' शतसवतसरायषकम "अकॉरिषरय"कशकीमि,

तथा शताय पररष ‘सहसतराय" सहसरसवतसरायषक कतल

म "एता अथवा आशवनत इति सकषतिपदानि"-इतयादौनि आशव० यौ०प.३.१४–१७।

'सतिपदशखानर कचित षटसतिपदानि सतौति परदरशनारथम-इति तइतौ ।

३८८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

शककीमि । अतो समा मवजानतसत ‘परजा' पतरादिकपा "पापि

छाम' अतिशयन दारिदरयादिहतयता करोमि । यसव मा

मियम'असकथा:' अभिभतवानसि, तरआततवशापी यवा इलव

पितोवाच ॥

पित:शाप लोकपरिसिडधा दढयति-"तसआदाहरधयानय ऐत

शायना औवॉणा पापिषठा इति"-इति ॥ यरआत पिचा शापी

दततः, 'तरयात’ कारणात तडततारताभिजञा जना एव माड

'औवॉणाम' औरवगोतरीतयवाना परषाणा मधय "ऐतशायना'

ऐतशसय मन: समबनधिनः "अमयानयः' अमयनिपरमखाः परषाः

"पापिषठा:' अतयनतपापयवा इति अ8 ॥ .

ऐतशपरलापसय बाहखव विधतता-"रत हक भयारस शॉपसनति'

-इति । "तम'ऐतशपरलाप मभिजञा: कचिदयाजञिका: अतिशयन

बहला सिनति ॥ तथाचाखलायन आह–"सपतरति पदानघटा

दश वा"-इति ( चौ० प. ३. १४, १५.)॥ . .

ततर किचिबरियम विधततो-*स न निषधदावलकारय शाल

लव बयादयरवा ऐतशपरलापः"-इति ॥ ‘सः'यजमान औसच

लतशपरलाप सिनरत बराहमणाचसिन "न निषधत' माभभदय परलाप

इति निषध न करया, किनत ‘यावलकारम'लवदीय अचछानसारण शॉपस

इलव बयात। अय मतशपरलापः आय:खरपः; तसआदतर परवकत

मानसय निषधन न यकम ॥

वदरन परासति-"आयरव तदयजमानसय परतापरयति व एरव

वद'-इति ॥

शतन पजयतव दरशयति-"यदवतशपरलापा३."-इति ॥

०"तबादतशायना आजानया: सनती भगणा पापिया"-तिसाझा बरा ३०५

॥ षषठपतरिका | ५।9॥ ३cc.

परकारानतरण परशासति-"कवनदसा हष रसी यदतशपरलाप

झनदरसखव तटरस दधाति"-इति । यीय मतशपरलापः, स एष:

'छनदसा' वदाना मधय ‘रस' सार: , अत एव तचसनन

'छनदय'वदवव रस मवखथापयति॥

वदरन परासति-"सरसहॉसय छनदोभिरिट' भवति, सर

सनदोभियोजञॉ तनशत य एववद"-इति । परववद वयाखशयम ॥

पनरषि शतन पजथलरव दॉयति-"यडवतशपरलापा३"

इति | "उ' आपिचरघरथ: ॥

परकारानतरण परशासति-"अयातायामा वा अचितितश

परखतापी यातयामा म याल सदचितिम यह सदिति"-इति ।

योऽय मतशपरलाप, स ‘यातयामतवम' असारलव, तडपरीलथात

"अयातयाम:" सारयकत इयरथ: । अत एव "अचिति:" आचय

फलहत: । तरमान यजञ परयोगयम "अयातयामा' सवत:

सरस: अत, तथा म यह परयोगोsयम "अचितिः' रसवदचय

फलहतलव मभिपरलघ घासत ॥

तलकसमिन पद वसान विधतत-"रत वा एत मतशपरलाप

झासति, पदावयाई यथा निविदम"-इति । पदपद अवशयही

यथा निविदशॉ.सति, तथवतशपरलारथ पद पद अवगटहावरटहा

झासत ॥

अनत परणव विधतती- "तसयोकतमन पदन परणौति, यथा

निविद:"-इति 1 निविद: पदाना शासनचरम पद यथा परणव

करीति । तडदतरायकत म पद परणव करयात ॥

रीताशपरलाय विधाय परविडकाखया कची विधत-"परव

विकाः शासति : परवचिकाभिव दवान असरान परवइयाधना

४०० ॥ऐतरयबराहमणम ॥

नयारयसतथवतदाजमाना: परविडकाभिरवापरिय धाढवरय परवइया

वन मति यनति"-इति । "विततौ किरणौ ईौ"-इतयादाः षड

नयभः(चक प. २.२.१-६.) परविडकाखयाः ॥ परा किलताभिः

चारट गभिदवा: असरान "परवइय' अमनखल परिय महा, ततसतान

सरानतिकरमयागचछन । परवइन निईदरयसानववचन मितयइवान ।

अमनःपरवकण परियवचनन विरोधिनी सरान वयिलवा तदीय

दश मतिकरमय गतवनत इतयरथ: ॥ दवइषटानतन यजमानाना मषि

तथव भवति भ8 ॥

ताखच अच अवसान विधतत-"ता आईरचशः शसति,

परतिषठाया एव"-इति । आईरचयोईिलवात पादइयसागयन परति

छातवम ॥

शाखानतरगता: परविडकारखया ऋचो विधाय तथव शाखा

करमाता आजिचवासना कची विधततो-"आजिजञासनथा: शास

तयाजिजञासनयाभिवदवा असरानाजञायाथनानतथायसथवतवज

माना आजिजञासनधाभिर वापरिय अवाकय माजञायाथन सति

यनित ; ता अवचश:शासति, परतिषठाया एव"-इति। आकारी व

अवशबदारथ वरतत , आजञात मवजञात मिचछा "आजिजञासा', 'ता

मईतौति तलसाधनौभता ऋचः‘आजिजञासनयाः' आजञायामराणा

मवजञा छलयरथ:। अनयतयरववद वयाखयम । "इहलथ परागपाण

दग"-इति शाखानतरपठिताशवतरन चटच आजिजञासनयाः(ऋ०

प० २. १०.१-8.) ॥

तासा शासरन विधाय परतिरराधाखयसय मनसय घासरन विधत–

"परतिरारधशसिति ; परतिराधन व दवा असरान परतिराधयाथना

e___g

क, "आश० चौ० ८, ३.१८।

॥ षषठपशचिका। ५।७॥ 8०१

नतथायसतथवतदाजमाना: परतिरराधनवापरिय भतराढटवय परतिराधया

थन मति यनति’—इति । सतर ‘मगिलयभिगत इति तरीणि

पदानि’–इतयादिना (आशख० शरौ० ८,३.२२.) योएरय मनतर

उता:, सीsय ‘परतिराधः'(ऋट० प० २.११.१.)। विरोधिना

राध सनटईि परतिबभराति, परतिराधलवम ; ‘असरान परतिराधव'

तदौया समटईि परतिबधयलयरथ: ॥ ----

परतिराधाखय’ शाखानतरगरत मनतर विधाय ४, अतिवादाखय’

शाखानतरगत मव ‘' मनव विधतत–“अतिवाद परण सतयतिवादन

व दवा असरानतयदयाथनानलयारयसत थवतदयजमाना अतिवादनवा

परिय शचातटय मतयददयाधन मति यनति ; त मईरचश: परासति परति

ठाया एव’-इति। ‘वीम दवा आकरसत’—इतयादानछप शाखानतर

यठिता अतिवाद इतयचयत (ऋट० य० २.१२.१.)। विरो

धिना सतकार मतिलङघयाधिचपरपी वादः‘अतिवाद', ततसा

मरथसाधनलवात कटगमयतिवाद इतयचयत। ‘अलयदय’ अतिकरमयोजञा,

अधिचि यलयरथः। अनयत परववद वयाखशयम # ॥ ७ ॥

इति धीमसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपचिकाया पशचिमाधयाय ।

(लिशाधयाय) ससम: खणड:॥ ०(३३)॥ ।

−---------------------- 2

•, " शाखानतरगतमनतरख विधान ततखरपजञानायतदबामराण एव ततपठखायौचितयम,

तथा पठयत चह सरववव ॥ दशखत चानयी:पाठ: परिशिषटगरनथ कनतापाधयाय ॥ आशवखाय

. ननापि नाय परपठा। विहित:, परतयत परतिौकयहणत एव ( आशव० शरौ० प८. ३. २२, २३.) ॥

तदिमौ मनचौ न शाखानारीयावितयखाकम । - -

t ‘वौन दवा अकरसतयनषटप'-इति आशव० शरौ० ८, ३.२२, २४ ॥

५१

8• शर ॥ ऐतरयबरानागहम ॥

Iी चमथ अधटम: खणड: ॥

दवनौरथ शसलवादिखाशय ह वा अङगिरसव खग।

खो क sसपाईनरत वय परव एषयामो वय मिरति त हाडि

रसः परव' शख: सबया खरगख लोकख ददशति Sगनि

पजिघगरहिरसा वा एकी sगनि: पर हयादिवभय:' '

इवः सतया खरगख लोकख मबहौतिति हादितया

अबिन मव दषटरा सदय: सबया खरगच लोकचच दद

शसतानतयातरवचछ: सतया वः खरगख लोकाखा परबम

इरति त होचरथ वय तवरथ सडयः सटया खरगख

लोकख परबमसववव वय होचा’* खरग लोक मषयाम

इति' स तथतयतjा परतयतः पनराजगाम’ति होचः

आवोचा३: इति मावोच मिति हीवाचाथो म परति

परावोचतरिति' नो हि न परतयजञाखा३: इरति परति

वा अजञास मिति होवारच यशसा वा एषी s-वति

य आतरविजयन त यः पतिक वदरदधशः स परतिरनधत ।

तसमातर परतयरौतसौति यदि खचादपोजजिगासढाई

नाचादपोदियात।'यदि तवयाजय:+ खय मपोदित

तसरात॥ ८(३४)॥

शर* ‘‘हीचा:’-इति सविसरगपाठ; क-ख-ड-पसतकय ।

१ अच विसगौभाव: कादिष षटर पसतकष !

in पठपतरिका I ५,। यह ॥ श०३

चव दवनीथायी सदणानापदना समई विघत-"दव

चौथ मासति"-इति । सतरकारख *आदितया इ जरिएतराहि

रोधी दखिया मनायविति सदशा घदाति"-इति (आशख०

चौ० र. २, ९५.) बीयरथ पदसमडी अभिहित, स "दवगौध'

( ऋई० प० २. ९३. १-९e.); दवलोकनयन हतवाल 1

व परशसतित खाबयाथिवा माइ-"आदिवाख ह’ वा ओडि

एसख खग खोव खत,-वय परव एथामी वय मिति ; त.

डाडगिरसः परव श: सवा खरगव तोकरय दडशत जटिल परजि

घवर झिरसा व एवी गनिः परझादिवभवः ख:सखो खरणख

खोवरख अबडीति; त हादिचा अवनि मव दढा सच:यवी

खरगख लोकख दइयसतानलयातरवचः सखा व: खरगीयलोकब

गरलम इति , त हीचरच वरष तरव सद: सखा खरणख लोकसव

परबनखवव वय' होना खग लोक मथाम इति; स तवनयला

अलतः पनरजगाम"-इति। आदितःपतराः "चादिलवा'दवा,

"अडिगरस:" महरषियः त डिविधा: खग खोव सति परखर मख

ईत। तहदिखाव सझावत,–ववनव ‘यव"परवरम परडताः

लीमयाण अनषठानय खरग लघाम इति । तथा बडगिरोsपि वय

मव 'परव'परवरम परडकताः खग गमिधाम इलबीचन । तदनो

"ल" अहिरसी मडरषवः "परव"परधरम परडकताः सनतः खरगय लोकख

निमितत भता 'सधा' खोलाभिषरव ‘खी दड'परड करिधाम

दशत निशचितवनत:॥ निधितव व "त'आखिरसः आदिवाना समौच

खकीय मवि 'परजिय' परहितवनत इतयरथ: । अडगिरसा

लव महावीणा मधव अविनातमकी महरषिरकीsसति, त परवव

मखवत:1. ह आन 1 लव "परटि"परागचछ । आदितयाना सौप

8o83 ॥ ऐतरयबराहमाणम ॥

मलवा ‘शखः सलया’ परयरखाभिः करिथमारण सीमयारग, खरगसय

लोकसव निमिततमतम, आदिलमयः परबहि। ह आदितयाः!

परदयरडगिरसः सलया करिथनति, यय मागतयालिरवजय .करतति

कथवलयरथः॥ ‘त' लवादितया दरादागचछनत मनरनि दछव तदभि

पराय मवगलय भविधतसतदीययजञात परव मव खरगसय लोकसय

साधनभता ‘सदय: सलयाम' चपदयातनसोमयाग करमविशषरष ‘ददश:’

निशचितवनतः । तदानी मननि: ‘तान' आदितयान ‘एलध’ परायद

वचन मबरवीत,– ह आदितयाः! खरगसय लोकसख साधनभता

मङगिरोभिः करिथमाणा शखः सलया ‘व’यअभव ‘परबम:' अह परडबर

वीमि–यय मागलयारविजरथ करतति। ततः ‘त' आदितया अगनि

मचः॥ ‘अथ' तहचनधवणाननतर वय' तभय बम:,– खरगसव

लोकासय साधनमता सलया असतराभिः सदयः करियत; तसमादिदानौ

मागतन लवयव ‘हचा' आलिरवजरघ करव ता सहवय'परथमत: खरगो

लोक मथाम इति ॥ सोsगनिसतथलयला ‘परतयत:’ तरादिलरति

परतिवचन परापतः, खकीयाना मडगिरसा समीप माजगाम ॥

अडगिरसा मनशच परसपर सवाद दरशयति-‘त होच:-परावी

चा३: इति; परावीच मिति हीवाचाथी म परति परावीचतरिति ; नी

हि न परतयजञारखा३: इति ;. परति वा अजञास मिति हीवाच’—

इति । ‘त’ चाझिरसखत मननि मच:,–ह अन! लव मादितयाना

मय कि मलादौय मभिपराय परावोचाः ? इति। शति: परतरारथा।

सोsगनिसत मभिपराय परावोच मितयका पनरमयतदवाच,-‘‘अथ'

अननतर ‘म' मम ‘परति परावोचन’त आदितया: परतयततर मव

मतवनत इति। तदौया सतिा मनदितवान। ता सतरिी शलवा

ति sजिारस एव पपरचछ:,– ह अन ! ‘नो हिन परतवजञाखा३: ?'

॥ षषठपतरिका| ५, | पद ॥ 8०५

परतिजञान मालिवजथाईोकार:, तनिषधी नडरोकार, तसयापि

निषध: अवखाडगीकार:;कि मदीयमारविजय परिहलय अडगौ

छतवानसि १ शतिः पराथी। ततोमिनःआई तत 'परतयजञास

मव'परतिजञा मडगौकाएछतवानवलयलवान ॥

अडागिरसा मनभीटसथापि खकीयालविजयसयाडगीकारयति

दरशयति-"यशसा वाएषी भयति,य आलविजयन; त य:परतिरनधद

यश:स परतिरनधत ; तसतराव परतयारोौतौति"-इति । "यः' समाना

लरविजयन चारति, एष परषो यशसव यवत: "अभयति' अभित: सचच

रति ॥ आलिरवजथ मलयनत यशसकर मिलयारथ: ॥ "य:' पमान परण

परारथित मालिवजरय परितयजय 'त' तदोययागा 'परतिरनधत' यागसय

परतिरोध करयात, स मान खकीय यणएव 'परतिरचत’ विना

शयत। "तलमात' कारणादई 'न परतयरौिलसि' तदोययजञसय परति

रोध"न छतवानसिम,किचालविजरय मयाडगौकत मिति॥ .

तईिकौडण विषय परिहरतवय मालविजथ मितयाशडय परि

हारयोगरध विषरय दरशयति-"यदि लवसादपीजिगासदालनासमा

दपोदियाद,यदितवयाजय:, खय मपदितरत तसआत"-इति ॥ परव

वारविजरय परिहमशकब मियकम, तडलचरखारथ:'त-शबद।

यदिकथविद"असाद'आलरविजथात 'अपोजिगासत' अपलधोइनत

मिचत, तदनी "यलन'खकीयन निमितत भतन "अलाद

आरविजयाद ‘अपोदियात' आपकरमयोइचछद। यसमिन दिन लरव

यज करिथसि, ततरिववाड मपि करिथामीयझा तदोलरविजरय

परिहल शकच म। एककालीनखकीयानषठान मरक परिहार

निमिततल। निमिततानतर मनयनधत-'यदित'यदि कथॉबद

'अयाजथ' यागाथो परष: शासतरनिषधादयषटर, मयोगयः यात,a.

8०६ ॥ ऐतरयबराहमादम ॥

ताडयादयाजथात परषात रकीय जालिवजरय ‘खय मचोदित'

शारलचव निषिादम; तादश विषय नारबालिवजबयरिहार दोष

इतयरथ: ॥ ८ ॥

इति शरीमतसायणाचारयविरचिति माधवोस वदारथीपरवाई ह।

ऐतरथबराहाखसथ शिषठषपविकाथा पहरमाधवाशररव

(विशाधयाय) अषटम: खणड:॥ ८ (३४)॥

॥ चर व नवम: खरखड: ॥

त हादितथानङगिरसो ऽयाजयररतभवो याजथङका'

इमा पथिवी परणी दचिणाना मददसतानिय परति

यहौतातपततानयवचनतरया (हि •) सिही भवा विज

भनती जनानचरतरतखा: शोचतया इम परदरा: परादौ

रवनत' य sखा इम परदर: समव हव तत: परा

तसपरादाहरन निवततदचिणा परतिषटहणौयातरिी नमा शचा

विडा शचा विधयादिति' यदि लवना परतिगहणी

वारदपरियायना भाढवयाय ददयातपरा हव भवलरथथ

योsसौ तपतो ३ एषो sशवः शवतो रप छातवाशवा

भिधानयपिहितनारमना परतिचकरम इम वो नयाम

इति'स एष दवनौथो sनथत आदितया ह जरित

* ‘हि” नासति क-पशतकादथन ।

॥ पठपविका । ५| e. It 8०७

रकरीिभवी दचिव मनयन । ता वह जरितरन अखा

यदविति न हि त इमा परतयायसता म यहजरितः

परतयायवरिति" परति हि त म. मायसता हजरितरन

परतयगभणहिति न डि त इमा परतयगभरणखा म यह

जरित: मयगयभपबरिति परति हिदत sम. मययण

इशहा नतसवर विचतनारनौदयष हवा चइॉ विचता

वित"जजञा नतसवर परीगवास इति'दचिणा व

यजञाना परीगवो यथा हवा इद मनी"परोगरव

रियदरयव हव यलो परदचिणो रियति तिसादाह

दात वव यल दचिणा भवनयपयालियकायत शवत

चाल पटवा॥ जटी पदाभिचरविछ:। उतमाश

मान पिपरति ॥ आदिया। रदरा वसवटवलत।

इद राधः परतिरकषणौदयझिर इति'परतियह मव

तदराधस ऐशवविद राधी बचयय दवाददखा वरम

तईो अखसचतनरमयल अख दविव दिव। परतयव

यभायतति परतयवन मतदजयमरष त वा एरत दव

नच शसिति पदवियाई यथा निविद ततवोततमन

पदन परौतियथा निविद:॥ 8(३५)॥

योगय दवनीचः परव मन, तरय खतयरथकथापि परव कियायपि

दरशिता; तकवाशिीरषदबनौधपरतिपाखवागतिकामाब, दरशयति

*त हदिवानडिगरी याजयरतची याखयदभय इमा यचिो

४०८ ॥ ऐतरयबराहमणम॥

परण दचिणना मददसतानिरय परतियडीतातपततानयडचनता

सिही भवा विजभती जनानचरत; तरयाः शीचनधा इमपरदराः

परादीरयनत ; य Sया इम परदरा:, समव हव तत:परा"-इति ॥

अडरिसॉ मध य एकीSनि:, सीsय मादितयाना याग आलिवजघ

मडगौचकार। तमौकार मनसरनतरत सव अहिरसी गवा

तानादितयानयाजयन ॥ याजयझा: 'तरय:" आखिरीभय चहलविमभव:

आदियाः इमा पथिवी 'परण'चत:सागरपरिवषटिताम "अदद:'

दततवनत: । कदा १ दचिणाकाल इति शषः॥ मधयनदि न हि सवन

दचिणा नीयत, तसिन काल दचिणारथ दतता च 'डरय’ परघिवी

तरकरोिभिः परतियडीता सती, "तान परियईौतन "अतपत’

तापयझानकरोत। तदनी मकरिसः ‘ता' यथिवी 'बचचन'

नितरा वरजितवनत: ॥ तरडिगरीभिः परिचा सा परधिवी सिडर

रपयवा भखा "विजभनती' शिरः कमपयनती, वगन धनवनती,

सरतीवखितान ‘जनान'अचरत' अभचयत । तदनोभीलवा

सव जनय पलाधितष ‘शोचलया' दधानिना सनतापयचायः

'तय' भम: 'इम" अननाभिदखमान: 'परदरा' रखाकारा

विदरणविशषः "परदरयनत' परकरषणभवन । "अख’ मम सब

निधनी य इम परदरा, सवरजनसतर ततर दशयत : त सरव परिशती

ममरपरि विदरणन नियतरा:'तत"शीकात परा भमिःसम

तलवरसौत । ‘इव-इ-एव-इति निपातचयसमडी इवधार

णारथ:॥ तादवानो समतलवन 'परदर'बिदारणरपः कढिदरविशषी न

कोशयारसौदियरथ:1

आखिरसा भमिपरितयागपरसलन किचिखजञान वचन

बदाइरति- "तसराबदाडरन निकतदकविणा परतिषठझौयाववा

॥ षषठपचिका | ५ | &:- ॥ 84c.

शाचा विदया शचा विधयादिति"-इति। यादविरोभिरप

दचिवणया सरवाटसना परितयकता, तरमादनयऽपि शासतरजञा एव माह:

"निझतबदचितरणा' कनापि कारणन परितयकता दचिवणा पनरन परति

यहीया । गोमतडरख रपादिदचिणा यविभि: खीझतासती

यदि किशिददोरष इटरा परियोजत, तदानो पनरपि दरवयलोमन

तबबतिगरई न करयात । कनाभिपरायणति, सीsभिधौयत- इय

दचिणा "शचा' शोकोपलचिीन दोषण विडा सरतौ, मा मणि

'शचा' शीकोपखचितदोषण विधयात ; मव' विधयातविति भौती

ब परतिषठहौयात॥

परमादतयन: परतिगरड कतरतवय दरशयति-"यदि वना परति

बटहीयादपरियावना बाढवयाय ददयातरा हव भवति"-इति ।

पन: परतिगरहपच परतिषटिहीता दषटा दचिणा मलयनतविरोधिन

शतरव छदमना ददयात । ततःशब: पराभवचव ॥

परासककि परिसमापय दचिवणानतरर दरशयबयाखयानख दव

चौथोपयोम माह -'आथ यीsसौ तपती ३. एबी शख: पती रप

छतवाशखाभिधानयपि हितनातमना परतिचकरम इरम वी नायाम इति ;

सएष दवनौथी नचत"-इति। ‘अथ'आझिरोभिः यथिवीरप

दचिणाया परितयाशाया ततीनानतरम, अदितिपतराणा यज

मानाना सइयवणाद 'योरसौ' मणडलमधय सरयासतपति, एषः

'परतिचकर म' सयख माजगमलयरथः। सातनासिका शतिः

पजाथौ । "अरसौ' मणडलवतो परष: तजसा तपनपि भमिववितत

पौडरातलय' सनताप न करोति, तसमादसय. पजयतवम । सथ:

कन रपणागचतीति, तदप मचत-खीक खतीखी यादध

यपवान, तादरण रपकलवा, ततः‘अखाभिधानयपिडितन' अखख

५२

४१०. ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

बनधनाथॉ रजज: 'अखाभिधानी, तया अपिडित आचछादित

आतमा अखदह:,तन दईन यन: सननागत इतयरथ: । सवसइलिपरत

त मखरप सरय ददधा, त आदितया एव मबवन, ह अझिरस: !

"व' यषमाकम "इमम' अपड नयामः दचिणावन समरथयामः ॥

'इति' यसयf कथाया यी दततानती Sभिहित:, स एष दवनौथी

भवा वदनानचत ।

तसय दवनीथय सदण पदानि ; तष परथम पद माह–

"आदिवधा इजरितरडरिरोधी दचितरणा मनयन'-इति । आदि

तयाखया यजमानाःपरा 'जरिदशय’ सतौडयः अशिरोभयः भरप

दचिणाम ‘अनयन' दततवनत: ॥

डितौरय पद मनदम वयाचट-"ता डजरितरन परतयायचिति :

न हि त इमा परतयायन"-इति । 'जरित:।' जरितार: सतोतारी

अझिरमः 'ता ह' ता त छथिवीरपा दचिया ‘नपरतयायन’ नव

परतियडीतवनतः। असिन पद ओझाः 'त' अकरिसः "इम'

भमि न परतियहीतवनत इतयरथ: । परसिदध इति "ह-शबदन

दयोतयति ॥

ढतौरय पदमनचा बयाचछ-"ता स इ जरितः परतयायनविति ;

परति हि त. म मायन'-इति । "ता म. इ' ता मादितयरपा

दचिणा 'जरितः परतयायन सतोतार परतियहीतवनतः। अखिल

(तसिन १) पद परोजञाः "त' अइिरस: "अमम' आदितय परतया

यन । निषधोइथरथ: परसिड: ( भपरतिगरहनिषधोइथरथसिड: ?)॥

डितौयपदारथवषणदयाय परदतत चतरथ पद मनध वयाच-"ता ,

इ जरितरन परतयटभणानविति ; न हितइमा परतयटभणन"-इति।

परववद वयाखयानयोररथी; सट: ॥

॥ घोषठपतरिका | ५। 6. ॥ 8११

वतीयपदारथवणयाय पचरम पदमनध वयावल-"ता मइ

जरितः पर यरटभणनिति ; परति हितsम मसटमएन'-इति :

परवपदवद वयाखयानयोरथा विसपषट: ॥

ष पदमलध वयाचट-"अनहा नत सतरविचतनानीलष

जहवा आइा विचतयिता"-इति । ह आझिरसः! अय सरय: सन

यषमाक समीपशसति, तसआद "आविचतनानि' विशषपरकाशराहि

तानि"अह' तमीयलानचहानि ‘नत'न गबत । "एषः'आदि

लधोइॉ विचतयिता ॥

सरम पद मनध वयाचट-"जजञा नत सबपरोगवासइति;

दकषिणा व यजञाना परोगवौ,यथा ह वा इद मनी परोगव रिषय

यव ईव यजञी दचिवणी रियति; तसमादा हदातवव याल दकषिणा

भवनयाययिकापि'-इति 1 ह'जजञा:' जञानयशा:, आडरिस;)

अनय मादितयः सनभवतमौप वरतत, तसरादध'अपरोगवास" मारग

परदरशवन परोगामिना रहिता यरय 'नत'न गचछत। असिन

पद परीगनतररथपचा दरशिता । यजञाना त दचिरीव परोगवी ।

अनतर दषटानतः-यथा हवा इदम"अनी परोगव’ वलोवरदरहित

शकरट "रिषथति' विनशयति । "एव ईव' आननव परकारण "अद

चिवण'दचणिरहिती यजञ: "रिषचति' विनशयति। तसमालकारणाद

याचिका एव माह–दरवयहीननाषि यजमानन "अलपिकापि'

अतयनतखतयापि दचितरणा यह दातवया भवति ॥

अषटमी पद माह-"उतपखतआशपकवा"-इति 1, "उत' अपि

तमह आडरिस.। यषमाक मय शडतरपोऽख आदितय: ‘आशपततव'

शीघरगामी ; तसमादसति परोगतलयरथ: ॥

नवमपद माह-"उती पदयाभिरजविठ"-इति। "उतती'

8१२ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अपि च ‘पदयाभिः' पादविलपहतभि: "जविठ:' अय सयॉीति

शायन वगवान ॥

दशरमपद माह-"उत रमाश मान पिपकति*-इति । "उत'

अपिच'ईम' ईदरश 'मान' सकारम ‘आशा, पिपरति' अरसौ सरय:

शौच परयति ॥

एकादरश पद माह–"आदितथा रदरा वसवसवजत"-इति 1

ह सरयध 1 आदितथादया दवगण:"तवा' वाम 'ईजत'सतवनति ॥

डादरश पदमनध वयाचट-"इद राधः परति टमरणीझझिर

इति; परतिगरह मव तदवाधस ऐचछिन"-इति। ह"आडरि*जाता

वकवचनम;अझिरोभिधमहरषिजात!"इदम' असमाभिदायमान

'राधा' सरवसखसाधक मादितयरप धनम "परति टमरणौडि'

दचिणारपण परतिबटहाणति यदसति, तन पदन 'राधस:' सख

साधनसयादिलचसय 'परतिगरह मव' सवीकार मव "ऐचछन' अइिरस

इचछनति सम I

तरयोदशा पद माह-"इद राधी डहतय"-इति । ‘इदम'

'असमाभिदॉयमान 'राधा' सखसाधक मादितथरप ‘डहद' गण:

परढडम,"य' खरपण विसतम॥

चतईरश पद माह-"दवा ददलवा वरम"-इति 1 ‘दवा:'

इनटरादया: "आ' समनताद 'वर" वषठ मादितयरप "ददत'

परयचछनत ॥

पडटश पद माह-"तबदी असत सचतनम'-इतिI ई अगनि

स: । "व:' यषारक "तत' आदितयखरप ‘सचतन" सक परकाशक

मसत ॥

घोडो पद माइ-"यल असत दिव-दिव"-इति। ह

॥ षषठपतरिका ॥ १ ॥ 2.॥ 8१३

अबरिस: ! ‘दिव-दिव'परतिदिन तदादिलचखरप ‘यषम'यषमा

सवव तिठिताम ॥

समदरशपद मनदय वयाचट-"अलव गयभायतति; परलवन

मतादजगरमषम"-इति 8 । ह अङकिर म: । 'परतिगटभायतव' अवशय

मादितयरपा दचिवणा परतिषठहौतति यतपद मसति,"एतत' एतन

पदन अडिगरस: एत मदिव दरविणारप "परतयायमषवव' अवशय

परतयाहौष: ॥

दवनोथाखयसय पदसमहसय सदणानि पदानि वयाखयाय

तचसनपरकारविशष विधतत-"त वा एरत दवनौरथ सिति,

पदावयाई यथा निविद; तरयोकतमन पदन परणौति यथा

निविद"-डति ॥ "रत वा' आदिवाह जरितरियाटरिक परवव

यभायततयनतम, 'एतम' इदानौी मझ "दवनीरथ' निविइषटानतन

'पदावधाई परासति' यथा निविद: पद-पदवगटडरावरटाइल शॉस

नम, ताइदतरायवगनतवयम ॥ यथा च निविद उततमन पदन

'परणव:' कार:,एव मतरापि अनतिम पद पराणवी दरषटवयः ॥८.॥

इति चौमतायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया पछमाधयाय

(दिवशाधयाय) नवम:खणडः॥ c(३५)॥

७ आदि हमागनि दवनीथाखयसतदशपदानि परपाठय विहितानि, तहती sवगमयत यसया:

शाखाया एतदवाचण मतरयक नाम, न तखया मिमानि पठिवानौति: अखबटसहिता

परिशिषट त पठितानाधव ॥ आधलायननापिा परतौकगरइणमाबरीवमानि विहितानि

0 चौ०एम. क. २५.)।

४१४ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

॥ अथ दशम: खणड: ॥

भतद:शसति भतचछकविदवा असरानपास

चनतोतव यडनोतव मायया तषावदवा असराणा'

भतचहिरव भत छादयितवथनानसथायसव

तदयजमाना" भतचछकरिवपरियख धावयख'भरत

छादयितवोथन मति यनित ता आईरचशःशसतिपरति

छाया एवाहनखाः शसलधाहनखाह रत: सिचयत'

रतस: परजाः पर जायत"परजाति मव तइधारति ता

दश शसति दशाचरा विराठनन विराऊननादरतः

सिचयत'रतसः परजाः मय जायनत परजाति मव तह

धाति ता नयइयचनन व नयडरो' जननादरतः सिचयत'

रतस: परजाः पर जायनत परजाति मव तइधारतिदधि

करावगो अकारिष मिति दाधिकी शसतिदवपविच

व दधिकॉ इद वा इद वयाहनखा वाच मवादौत’

तहवपविचण वारच पनौत सानषटब भवति वागवा

अनषटप ततखन छनदसा वारच पनौत सतासो मध

मततमा इति पावमानौ: शसति दवपविरच व पाव

मानय" इद वा इद वयाहनखा वाच मवादौतहव

पविचरगव वारचपनौत"ता अनषटभो भवनति वागवा

अनषटप ततखनव छनदसा वारच पनौत’शव दरपो

॥ पषषठपतरिका । ५। १० 1 ४१५

अशमती मतिषठदिवनदराबाईसयतय टच' शसति

विशो अदवौरअयाचरनतौबईहसपतिना यजनदर: ससाह

इतयसरविश हवदवनियदाचारय आसौत स इनदरो

वहसपतिनव यजासव वरण मभि दासनत मपाह

सथवतदाजमाना इनदराबहसपतिया मव यरजामरय

वरण मभि दासनत मप छतत तदाह: सशसत षट

sहा३न न सशस ३त इति सशसदितयाह: कथ

मनयषवहस सशसति'कथ मच न सशसदितयथो

खलवाडनव सशसत खगावलोकःषषठ महरसमायी

व खगो लोक:"कविई खग लोक समतौरति स

यलॉसतसमान ततकरयादथ यनन सशसतीई तत

खरगख लोकख रप' तसरानन सशसददव न सश

सतौ ई एतानि वा आचोकयानि नाभानदिषटो वाल

खिलय वषाकपिरवयामरतस योसशसदपव स

एतष काम राधरयादनदरो वषाकरपिः सरवागि छनदा

खतशपरलापततर सकाम उपाया यऐनह जागत'

sथनदर मनदराबाईसवय सज मनदराबाईसयालया परि

धानौया तखान सशसन सशसत॥१०(३६)।॥

॥ इलतरयबराहमण षषठपतरिकाया पचमीsधयाय:॥gl

४१६ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अथलव मिनदर शरमण यादयासतिसरोनयमी विधत--"मत

चनदः शसति"-इति। 'भत' भतिवरिणा मखरय छदयति

तिरखरवनतौयदइता अनयभो 'भतचछद'॥

ता: परशसति-"मत चकवि दवा असरानपासचनतोतव

यडनतव मायया, तषा व दवा असराणा भतशचचबरिव

मरत छादयितवाथनानतयारयसतयवतदय जमाना भत चडिरवापरियसय

चढवयसय भत छादयितवाथन मति यति"-इति.। भतचवा

मधयाभिरनषटबभिदवा असरान यडनच मायया च ‘उपासचनत'

समौप समवता:॥"उतव-इति निपातसमह: समखियारथ: । छदम

बडनासरान विनाशयित समागता इतयरथ:। आगलय च दवाः

'तषाम' असराणा ‘भतम' ऐखय एताभिचलगभिराचछादय,

अननतरम "एनाम' अतिकरमयागचछन । तथवतदाजमाना आपि

करवनति 3 ॥

तासा सचा मईचावसान विधतता-"ता आईरचश: शासति,

परतिषठाया एव""-इति |

अथ शाखानतर समानाताः"यदसया अडमधाः"-इतयादा

ऋच:(चट०प० २.१५.१-८.)विधतत—"आहनसया: शासति"

-इति । "आहनसया:' आइनारन सतरौपरषयो: परसपरसयोग:, तड

वजोतयकति ह.तलवात ऋट चोपयाइनसया: "ि ॥

ता चकच: परशसिति-"आहनसयाई रतः सिचत, रतस:

परजा: पर जायनत, परजाति मव तडधाति"-इति ॥ आहनसय'

मियन मितयजम, सपषट मानयत ॥

क."त मिनदरशरमरिणति मतचदसतिसर एता अन टभ:"-इति आशव० चौ० प, ६- २ot

"यदसया अड भदया इतय इनसय।:"-इति आशव० बी० ए. ई. २।

॥ षषठपचिका| ५। १० ॥ 8१७

चटकसटटा परशसति–“ता दणशासति ; दशाचरा विराऊव

विराऊवादत: सिचत ; रतसःपरजा: पर जायत : परजाति मव

तहधाति"-इति 1 सटरोथ:*॥ !

षोडशौकारान विधतत-"ता नययलयव वनयडी एवदतः

fसिचत,रतस:परजा: पर जायनत; परजाति मव ताइडधाति"-इति।

'ताः'ऋची ‘नययति' औकारविशिषटः करवति ' ॥ नयड

सयान हतवादववम ॥

चटगनतरर विधतत-‘दधिकरावणी अकारिष मिति (स०

8. ३०.६.) दाधिकरो शॉसति ; दवपवितर व दधिकरा, इद वा

इद वयाहनसवा वाच मवादीत, तहशवपविवण वारच पनौत"

इति । दधिकरतिशबदयलवादियो "दाधितरी' ॥ दधिकराखया

दवता । "दवपवितर" दवाना शोधक वाकय म ॥ तथा सति

'वयाह नरया वाच" विशिषटमयनयजञा तदइमभता वारच यदवादीत

[. इदमिति तसथ गरामयवाकवजातसय विसटलवनाभिधानम],"तत'

सव गरामयवाकचजात मसतय मपि "वाच' वाचोवारित मनन दव

पवितरण "पनीत' शई करोति ॥

बतरया यचि छनद: परॉसति-"सानषटब, भवतिथ;वावा

अनषटप, ततत खन छनदसा वारच पनौत"-इति। वागदवताया

• यदययबदपट चकपरिशिषट शाववाइनखा,पर नतरयक नाम बराहमण यखाः

सहिताया, तखया दशव सयः। आशचलाथनन त आहनसयाना विधान सचचा तनत उततरी

ताभि: सह शासनीय जपरSपि चौ विहित( ८.३.२९,३०.), त एव नवमदशाम

आधलायनसहितादौना मितिघायम।

आध० शरौ० पर. ३.३९ स० दरषटवयम ॥

"दघिकाबगी अकरष मिखदषट-इति आध० और ६-३, ६९।

१.र

8१८ ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

अशपइनदोभिमानिलवाडाची नgपतवम। अतरतचनदो वाच:

सखकौरय, तन वारच शीधयति ॥

चटगनतराणि विधतत-"सतासी मधमनततमा इति पाव

मानी: सिति"-इति। "सतास"-इतयादयासतिसरः (स.०८.

१०१.४.) शचिहतवाल, पावमानच: शa ॥ '

ता,ऋच: परॉसति-"दवपविशरव व पावमानय इरद वा इट

वाइनया वाच नयवादौततहवपविचरोव वारच पनीत;ता अनषठभी

भवनति ; वागवा अनषटप, ततखनव छनदसा वारच पनीत"

इति ॥ परववाद वयाखयम ॥ . . . . . . . .

अनयासा चा ढरच विधत-"अव दरसी अशमती मतिषठ

दिवनदराबाईसलॉ ढरच(स० प८.८६.१३.१)शसति"-इति ॥.

इनदरादधहसपतिदवताकतरव दॉयित ढचसथानतिम मईचपठति

–"विशो अदवीर याचरनतौरबहसपतिना बजनदरः ससाहइति"

इति । "अदवी:'दवविरझा:"अभि' सरवत:“आचरती;","विशः"

आसरी: परजाः सवाः "यजा' सहकारिणT 'बरहसपतिना' यन:

‘इनदर''ससाह' तिरकतवनितयरथ ॥

असयाईरचसयाथ परशसति-"असरविरश हव दवानयदराचारय

आसौत;स इनदरी इहसथति नव यजासरय वरण मभि दासनत मपाई

सत थवतदाजमाना इनदरादधहसपतिभया मव यजासय वरण मभिदासत

मप घनत"-इति। "असरविशम' असरपरजाः सनयरपा: ‘दवान'

इनदरादौन "अभि' लदय 'उदाचारय" उलडरनरप माचरण छलवा

तिरसकय"आसीत'दवसमीप अवखिता। तदानी'स' इनदरो

ल ‘सतासी मधमतमा इतिच तिख:'-इति आध० शौ० र. ३, ३३ ।

"धव दरासी अशमती मतिषठदिति तिख:"-इतिआशs थी ०.६,३३ ।

॥ षषठपबिका।५। १०॥ ४१८

दहसतिनव"यजा' सहकारिणा यवत: सन, "असरयम' असरसनय

'वरण" विचितरपताकादियजम, "अभिदासनरत' दवीपचयहतम

'अपाहन' विनाशितवान ॥ दववदयजमाना आपि ढचपरतिपादया

भयाम ‘इनदरादधहसरतिभयाम' एव यझाः"असयी वरण' बाधक विचि

टनम ‘अभिदासनतम' उपचयहत पाप विनाशणयकति ॥

"अथातरय म डिठाय.तयादिना (स० १.५s. १.) पराझतन

वजञताना सभयशासरन विचारय, परवोततरपचाभया निधिनीति

"तदाड: सपरॉसत षलनहा३न, न सरश स३त १ इति ; सशोल

दियाड:;कथ मचषवहसयसशसिति,कथ मतर न सरश सदितयथो

खलवाहरनव सशसत, खगो व लोक: षषट महरसमायी व खगा

लीक:, कबधिई खग लोक समतौति ; स यतसशसकसमारन ततत

कयादथ यनतर सगरासतौ'३, तत सवरगसय लोकसव रप ; तसमातर

सशसदवदव न सशसिरती'३"-इति । परवाधयाय सयानतिमखणडवद

वयाखयशयम अ3 ॥

सशसनपव दोषानवर दरशयति-"एतानि वा अतरोकथानि

नाभानदिठी वालखिया दवषाकपिरवयामरत स यतरसशसदपव

स एतष कारम राधयात"-इति । नाभानदिषठादोनि चलवारि

शिलयानि यानि सनति, एतानचवातर षछहनि ‘उकथानि'परधान

शसतराणि। तथा सति'स'पमानयदि पराकतन ‘पर महिठाय"

इलनन सबयय सत, तदनो 'स' परषः 'एतश' परधानशालय

‘कारम' फलम"अप राधयाद' विनाशयत।॥

परव तईि पर महिषठाचलतसिवनह लमय: कामोतरन लभथ

ततयाशडराइ-"ऐनटरी दवषाकपि:,सरवाणि छनदासपतशपरलापसततव

क प‘ई.अ०४.ख०१०.३५२, ३५२, ३५४ घ० दर० ।

४२० ॥ ऐतरयबराहमणम ॥

स काम उपासीय ऐनह जागत जरथनदर मनदराबाईसलव सज मनदरा

बाईसतया परिधानीया : तसराव सशसवर सशोलत"-इति ।

बराहमणाचछसिनाशॉसितवयो यीय'बषाकपिः'सोय मनदर:,ऐतश

परलापश सरवचछनदरखथानीय: ; तथासति "पर महिठाय"-इतया

दिक इनदरदवताक जगतौचछनदसक य: कामोऽसति,स काम:"ततर'

बषाकरषौो ऐतशपरलाप च परासी भवति । "अथ' अपि चदम "अव

दरपस:"-इतयादिक (स० प, २६. १३.) खला मनदराबाईसलयम,

अनतिमा शeपरिधानीया चनदराबाईसपलया म तनतरीभयवनदरनिमिततः

काम उपासी भवति। तसमात कारणत पराकत मतर सबयय न

सचासत ॥ अभयासीsतराधयाय समापतपरारथ: ॥ १० ॥

इति धीमलसायणाचारयविरचित माधवीय वदारथपरकाश

ऐतरयबराहमणसय षषठपतरिकाया पचचमाधयाय

(चिशाधयाय) दशम: खणड: ॥ १०(३६)॥

वदारथसय परकाशन तमी हाई निवारयन ।

पमरथधितरी दयाद विदयातीरथ महशखर: ॥

इति धीमदराजाधिराजपरमशखरवदिकमारगपरवरतक

सौवीरवकभपालसाचाजयधरनधरमाधवाचारयादशती

भगवसायणाचायॉण विरचित माधवौय "वदारथपरकाश'नागमभाव

ऐतरयबराहमणसय पटपडिकाया: पचमाधयाय: ॥

a *"तचतथानतिमा" भत ।

t “अचछा न इनदर मिति (स० १०.४३.१.) नितय मकाइिकम"-इति आशव०

चौ० प, ३, ३४॥

॥ शषठपचिका ॥ ५ । १० ॥ ; 8२ १

दवा हव वौणि(t)। दवा व यच पाकच (२) ।

अा तवा वाहनवटौ९) । य: परख: सतोचियो दश(0) ।

शिलपानि दश(५)॥ ६ s, ॥

दवा ह वा, असावि दव, कसत हिनदर, तदाह

रयदाखिान, विशखजिति षट॥ ६+॥

॥ इति षषठपशचिका समाना ॥

* २t३, ९९१, २५७, ३०१, २९० ए०(३–५-८–१०-१०=३५ ख.)।

i २११, २६५० १२९, ३८१ घ°( १०-१०-१०-६-३६ ख०)१भा० २३२g०५, इ...।

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NEw SERTEs, No. 874.

----- ॥ ऐतरयबराहमणम ।

I। सायणाचारयकतवदारथपरकाशाखयभाधसहितम ।

THE ATTAREYA BRAHMANA ।

OF THE Brt-WEPA.

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C0MMENTARY0R SAYANAACHARYA.

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PAs prr. SATYAvRATA SAMAsia.Anaf..

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TASC1CTLUS 1- -

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Ar TEE sATYA PREss, 10/1 GHosia's LANE,

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गागी---------- ।

1396. | --

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IF"ast

Parisishtan

1Nyayavartika, (Text) Ease... 1-3 C9 /0/each। ------------

--- ------------- ------------------------------- - - - - -----------

Asrarre PoerBr: IC F। IEEas e----

INo. 5’, 1-AR--- ST-R-E-E---- |-----------------------------

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THE S001-TTY's AGENTS- IMEles Rs. ------------e ... Ce ।

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HAr.RAssowrnz, BoorsELLER, LErrzare, CEEnr-as---

Complete contes of those "ta narted ":" or t-te". " - "" . . . a - "r -------------------- -

Dr the -drsctcrtt-tetrt, on-r or st---- -

Br 1:1,10TH Int,1-1 N prt t,1

Sanskrit Series :

Katha. Sarit. Sagara, (English) Fase- 1-14 C9 /12/ each

KirmaPurana, (Text) Pase- 1-9 C9 /6/ each -

-Lalita Wistara, (Text) Faso- 3-0 (2 /6/ each

101tho (English) Pase, 1-3 C9 /12/ each।

Madama Pariiata, (Text) Rase, 1-11 C9 /6/ each।

In1anutitka. Sai.graha, (1axt) 1 asc... 1-3 C9 /6/each । --------------

-Marikandeya Purana, (Text)-Pasc. 4-7 (9 /6/ each। ------------

IMarkandeya Purana (English) Fase, 1-4 (2./12/ each . , ।

-Mtimainsa Darsama, (Text) F"ase-3-19 (2 /6/ eath - - । ----

IN :trada Smriti (18-t) Rase. 1-3 C9-/6/ eaeh - - --- - --- -

|---- --

|

|

Adwaita Brahma Siddhi, (Text) Fase. 1-4 C9 /6/ each -- ----- - -

-Agni Purana, 11-ext) Ease 2-14 C9 /6/ each। --- - - - - --------

Aitareya Aranyaka of the Rig Veda. (Text) Easo- 1-5 C9 /t:/ aacr 1, 1--- -

Aitareya Brahmana ofthe Rig Veda (1"ext) Wol, 1-Ease- 1---- -

Wo1, 11, 1."ase, 1-5 : Wol... 111. Fase. 1 C9 /6/ each ----------- - - - -

Anu Bhashyam IText) Fasc... 1-2 . - - - - ----------- - - - - -

Aphorisms of sandilwa, (English) -Ease---- -------- - ------------ - - -

Ashtasahasrika Prajifaparamita, (Text) Fase, 1-6 (2 /6/ each। -- -

Agviw aidyaka, (1axt) -1 aso. 1-5-C2/0/ each - । - - - - - - - - - -

Avadama Kalpalat:- (Sans, and Tibetan) Wol... 1- Fase, 1-a- - wol। |------

Fasc.-1-4 (29 1/- - - --- - - - - - । - - - - - 3 ... ।

-Bhaimati.., (Text) Rasc, 2-8 C9 /6/ each ------------ --- - - - - - - -

IBrahma Sttra, (-English) -Easo. 1. . .। - - - - - - - - - ---

IBrihadaranyaka. Upanishad (English) Fase. 2-3 C9 /6/ each [0 1---

Brihaddevata, C10ext) Rase. 1-4 C9 /6/ each --- ------------ - - - - -

IBrihaddharma Purana, (Text) Fase, 1-5 Q2 /6/ each | - - - --------

IChaitanya-Chandrodaya Natalka, Text) Raso. 2-3 (2 /6/ each ----- t, 1-2

| Chaturvarga Chintaimani, (Text) Wols. 11, 1-25 : 11-1, Pa-t. T

IPasc, 1-18, Part 11-Ease... 1--10 C9 /6/ each। --- - - 1- ।

-Chhandogya. Upanishad, (English) Faso... 2 ------------- ----------- - - - ।

-Hindin Astronomy, (English) -Easo 2-3 C9 /6/ each। ------------- - - - ।

IKala. Madhava, (16xt) Fase. 1-4 C9 /6/ each .. - - - 1

K:tantra, (1cxt) Faso, 1-6 C9 /12/ eath ------------- - - - ।

|

- ।

-

- ।

1

---

|

|---

| ।

-Niituitta,(Text) Wol. 11-1, Pase. 1-6 ; Wol, 1 W. Easo. 1 -8 । It: ----- -

-Nitisara,or The Eleaments of Polity, By Kamandakt(Sams.)। ::: । ----------

| C9 /6/ each - - - - ------------- - - ----------- - - - -

Ny:.yahindutfik:- (Text) : - -------------- - - ------------ -------------

INy arya Kusurnatiiai Prakaran: (-1 ext) Wol... L, Pase, 1-5 . w..., 1-1

Fase... 1-3 C9 /6/ each ------------ --- - --- --- a ..

Earisishta Parvan, (10ext, Raso. 1-5 (2 /6/ aaaH। ----- - - - - -----

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|---n thir:i Ra sau., (Text) Part 1, Rase-1, Eart Ir, Raso.1-5 Q2 /6/ Rs, 2 -

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P-------a sariti, tText) wol. 1, Fase, 1-8 ; Wol. 11, Fase, 1-6 : Wol.

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I W-, 1-6 : W- 1-8, (9 /0/ each Fase ------------ | --- - - ---- 1-2

sain Hahya Sttra writti (1.axt) Fase, 1-4 (9 /6/ each --- - - - 1

1-)1 t, to (English) Fase... 1-3 - - -- - - - -2

-sankara W1.iaya, (Text)-Fase- 2, and 3 (2 /6/ eat -- - - - 0

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Ener Phy it. Wol... 1- Pase. 1- 5 : Wol- 11, Fase- 1-3 : vol... ------- -

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Intrtt-at-Shan. Watidt (Text) Pase. 1-9 C9 /6/ each - - - -3

IPitto --॰7adt, (-1.ext) Faso. 1-4 (2) /6/ each --- - --- -

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Lt baia anah-i-Jah:ngirt, (-1.axt) i"ast... 1-3 (9 /0/ each ... । - -1।

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Tia:sir-in-timaria, wol... T, Fas: 1-9 ; wol. fi, i-9 : voi, TTi, 1-it।

|-nde-- to Wol. 1, Faso. 10 A. 11 & 1ndex to Wol... 11-1, 1Pase, FXIt 6: >x11

IC /6/ each . . --- - - - - ----- - - 1-2

-1aghazi of Wadidt, (Text) Fasc, 1-6 (2 /6/ each --- - - - 1

|- The othar 1"asoioulhi of

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12

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These works are out of stock, and conaplet

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PHuntakhabrul 1awarikh, (English) Yol. 1, Has-1 : Wol-1, East- 1-----

C9 /1-- -aci। -- - ----------- । - - - ---

-1untakhab-ul---mbai. (-1 text)-Pase- 1-19 C9 /t, aata ... - -- -

-1u’-sir-i--langiri- (1)ext), Pase, 1-6 C9 /6, each ------ - - - - -

Noichbat-u1-Fikr, 1-1-ext) Fa-c- 1 --- - ---------------- - - - - - - - |

-Nian-s 1xhiradrtnah-i-1-kard-ri- '1- t) - frso. 1 ant 2 C /1-2, ea ch -- ---

Biya.८u-s-Salatin (Text -----se, 1---- C9 /67 each - - - - - - - - ---

-stay ity's 1td an- on the Exegetic Sciences of the Koran, with smpple

-nen .., (-1.ext) is a se- 7-10 (C 1.7 -a el। --- - ---- - - - - - -

--abadat-i-------ir 1, 11-ext-) 1----to- -------- -29 , t, each। _ - - - - - - -----

D11----- 1English) Pa-st- 1-14 (29/12/ each। I- - - - - - - - I

Tarikh-i-Firtz Shahi of Zia-a-din Parni, (1."ext) Fase, -------- C/6, each 2 -----

1"artkh-1-Baihat11- (1"ext) Pase, 1-9 C /6/ each ------------ - - - -

1arikh-i-Firoz shahi of Sharus-i-Sirai-Ait, Pase- 1-t C ,/6/ each - ---- -

Ten Ancient -Arabie Poems-Ease. 1. 3-2 C- 1/8/ each- - - । - - -3 t

Tuzuk----ahangi-1, ( Eng-) Easc, 1 - - । --- - --- - | .)। 1

Wis o it-anin, (10--t) Easo- 1-5 (2 /6/ each - - - - - 1 --------

zaffarnanah, Wo1. 1- 1 aso- ----9 , \" ol... 1-1- East. 1-e C/t, each - - t: -

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1858 (51, 1861 (1), 1862 (5), 180- (-), 1866 (T ), 18t:- ( t-) , 1 St---

(6), 18t:9 (8), 1870 (8), 1871 (7) 1872 (8), 1873 (8), 187- 18)

187a (-)- 1876 (7), 1877 (81, 18-18 (8), 1879 (7), 1880 (8."

1881 (7), 1882 (0), 1883 (5), 1884 (6), 1885 (0), 188t te) -------

1887 (7) 1888 (7), 1889 (10), 1890 (11), 1891 "T). 1892 (e)- - |- ।

1893 (11), 1894 (8), (9 1/8 per No. to 11embers and C2 27 per |

No, to Nom-01-cmbers. - - ------

w.. ----, The rtgrres eactosed in brtcifers g tre t7te 7-r -r t:- -"os-- -r e-c- -o--------

4, Centenary Review of the Researches of the Society from 17-8----1883-3 -

General Cunningham s Archaeological Survey -3eport for - St:3-0- ----

(Extra No... J- A. S. B.- 1861) - - - ------------------------ । - - - - - ।

Theobald's Catalogue of 1Reptiles in the 1.... aiseum of the Asia-tic ---------

society (Extra No. a- -A... s. E..., 18te) - - । -------------- | -- - |0 ।

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No. ... ... A... S. E- 1.87-5) - - - ----- --- - --------- |

1nHroduction to the Miaithilf 1-anguage of North Bihtr, by G. ---- -

Grierson, Part 11.. Charestomathy and Wocabulary tExtraN6,-1. A-S.B...,1882) -- I---------------- - - - - ------------- - - - -

E, Anis-th-Mitisharrahin --- --- - ------------- --- - - - - -

6. Catalogrtre-of Fossil Wertebrata --- -------------- - - । E ) ।

r catalo:te of the 1-ibrary ofthe Asiatie Society, Bengal E --

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0. 1.iityah, a Commentary 9t Ithe Hidayah,Wols.. 1-1 and 1 W,671.6/ each 32 t

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11. Khi7:inat-u1-ilm --- - ------------ --- - ------------- ------------- | - - - -0

13- Tr h: biharaia, Wols. 111 and ----C2, 20/- eael। -- - - - - - 0 -- ।

13. Modern Wernaoular 1-iteraturt of Hindustani by G-, A.... Griersor

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11-M:56re ana Hewitson's Pescriptions of New 1ndian Erepidoptera.|Parts 1-1-11, with 8 coloured Plates, 4to- G2 t:/ each। - - 1-3 o।

15, sharaya-ool-1sian | -- - --- - --- - ---------- - - - - - ।

T:... Tibetaia Dictionary by Csoma de Koros ------------- ----------- - - 1-0 -

T------- D11-to, C-ran-a-mar .., ---------------- - - - - --- - - - - - -

13. w uttoaaya, edited by 1-rt-col... G-P- 1-y er ---- | - - - -

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OF THE H:1G-WEPA.

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Aar-ard sociarx, 57, F-a a smraar.

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1896

LIsr0r Enuks Fur smu5 ।

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Br 1,1,r t,TH Hic,1- 1 N Di C, -

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Adwaita Brahma Siddhi, (Text) Fase... 1-4 (2 /a, aati- - -

-Agni Purana- "Text) F"ase 2-14 C9 /6/ each ।

Aitaraya. Atany alka of the ltig Wedia. (-1 ---t) in a t:- 1-: C | 6 Eae

Aitareya Brahman-a of the Rig Weda- (1-ext) w-ol... -- -Ease- -----------

woi. 11, Faso.-1-5: Wol. 11-1, Faso. 1-2 C /6,” aadm

Ant Ehashyam- 1-1 ext) -faso-------------- - --- - ---

Aphorisms of sandiya, (English Paso- 1

Ashta s:hasrika Prajiaaparanita- 11-xt) Fast 1-t. C9 /6, ------ | । 1-1

Agwiavaityaka, t1 axt) - ase-1-5 Q2, 0/ each - -

Aradana Kalpalat:- (Sans, and Tibetan) Wol. 1, H"ase, -------- 1 . .)। Ii.IPaso, 1-4- C9 1- --- - --- - - -

--Bharmati. (Text) Paso- 2-8 C9 /6/ each। --- - ----------------

Brahma Sttra. (English) Fa5o. 1 -- ------------- - -

Brihadaranyaka Upanishad (English) Fasc, 2-3 Q2 /6/ each

Brihaddevata, (Text) Fas0-1-4 C9 /6/ each - - -----------

IBrihaddharma Purana, (Text) Fase... 1-5 C9 /6/ each -

IChaitanya-Chanditodaya Natalka, "1."ext) it asc, 2-3 39 /t) each।

Chaturvarga Chintatnani.-11text) Wols.-11, 1-2.5 : 1---- -art 1.

Fase, i----18-Part ri, Fase, 1-10 C /6/ eaci। - -

--Chhandogya. Upanishad, (English) Fasc, 2 --- - [---- -

-Hindt Astronomy, (English) Fase 2-3 Q2 /6/each ---

1r-atla. Madhawa, (1"exti-Faso- 1-4: C9 /6/ each- - - । ।

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IRatha. Sarit. Sagara, (English) Fase- 1-14 (2 /12/ each

|- - ।

Kirma Purana, 11-ext) Fase-1-9 C9 /6/ each . . - - -

-Lalita Wistara, (Text) Rase...3-6 C9-76/ each | ------

1D11-to- (English) Faso-1-3 C9 /12/ each ---------

Madama, Pariatta, (1axt) in ase, 1-11 C9 /6/ eadh। --- -

Mianuttka Saingraha- (13ext) Fase. 1-3 Q2 /6/each - - -

--Maritandeya Purana, (Text) -Pase. 4-7 (2 /6/ aadi। ---------

Markandeya Purana GEnglish) Fase, 1-4 (9 /12/ each . .

-Mimairis i... Darsana. (text) Easo- 3-19 (2 /6/ eaah -- -

N :1:ada smriti (-1 ext) 1 ase... 1-3 C9 /ty each। --- - | --- -

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Prititr:i B :sau, (Text) Part r, Faso.1, Part Tr, Faso.1-5 C) /6/ Rs. 2 4 ।

1-2 ।

[0]।

1D1tt, o। (1English) Part 11, 1 ase, 1 .. ... । - - - --- - ..

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IParasara. Smriti, tTex)। Wol... L, IEase. 1-8 : Wo1, 11, Ease 1-6 - Wol.

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| । IEW - 1-6 : W, 1-8, (2 /0/ each fase. ----------- --- - - - 1-2 :

| sankhya Siftra Writi.i (Text) ira:- 1-1 (9)/6/ each ------------- - - 1- -

| । 1-1tio। (English) Fase... 1-3 .. | - - - - - -2 ---

| । -sailkara Wiaya, (Texi), Pase... 2 a Hत 3 (2) /0/ each। - - - - - 0 1-3

| । * Sankhya Prav aohana Bihashya, if ast:, 3 ( English preface only) । --- 0 -

| । :tt-Ph fshyam, (Tex) Fase... 1-3 6-76 aa:ी ... - - - - - - |- - -

Er truta Saniit:, Eng.)। Fas6. 1 . 2 (2) /12/ each - - - - 1 :

-1 aittiriya Aranya, (Text) Pas6, 2-11 (2) /6/ each - - - - , 3 -1-2

- Ditto Sainlhit:- (Teदi), P, . 0-:) 29 /6/ each। --- - - , 1-1- 1 -

- -a andya Brahmana, (Text) Pasa,1-19 (2) /0/- teach - - - - . 7 -2

Eattva Chintaimaiai, (Text) wol i, Taa, 1-g 1. Yol. 11. Faso. 1-10,

01-1-11, it ase... 1-2, Woll, Ir W. Hise. I, w6l. W,F:. :-3 (2/6/- each 9 :

tuisi sat'sai, (1.exa) Hase. 1-1 (2) /6/ each .. - ---- - - 1- 3

। : " a as adas:0. (Sanskrit and English f Pae, 1-6 (2) /12/ each . , 4 :

| \ ar:ia Ptrana, (Text) Pase. 1-1-4 C9-/6, each। - - - - - - - 5, 4

------------------------------------------------------------------ - :y t, tt rana, (1.ext) Wol. It, Fase, 2-6 : \' ,ो. 11. Fase. 1-7, @ /6/Each 1r a se. --------------- - - । | --- । --- - - . 4- 3

| --ishn t. Sriti, (Text) Fase... 1-2 (2) /6/-each। 10 1 ----

| । w-w:daratma kara (1.ex) Fasa...1-7 (2) / 0./ each। - . 2 1 (]।

." ihanntraditya Purana. (1c-t) Rasc... 1-t C2 /6/ each - - -2 -1.

Wriliat Soayainbht Puran, Fasa.1-4 --- - -------- ------------ 1 8

| । ---- - -7t e/a.7 Se) :e5.

| - -as San Thi Si... Fase... 1-4 (2, 1/ 6ael। --- - --- - - - 4

| । -3: ".iod dpag ... Rhri Sin (Ti b, 3. Sans.) w.6i. 1, Fase- 1-5 :

| । | - 01-11- Pasc: 1-4 (2 1/ eaeh ........। - - - - - - - - - 3

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Ditto A.7:d11 (-1-ext) Easc... 1-4 (2) /t/ each - - - 1. 3

Haft Asman, History of Hia P :ी:ी। Miansawi, (1axt) Fasa, 1। - - 0 1-2

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Muntakhab-ut-Tawarflkh, (Text) Fasc... 1-15 (2 /6/ aadH- - ----------- 10

Muntakhab-ulTawarikh, (English) Yol... T, Fase, 1-4 - "o1- 1-1-Ease

-------- C9 /12/ each - - - - - ----------- -------- - - -

A1untakhab-tal---ubab, (-1'ext) Fase- 1-19 (2 /t:/ each - | - - -

Mu"asir-i-Alangiri, (Text), Fase, 1-6 (9 /ty each। -- - --- -

Nolkhbat-u1-Fikr, 1-1-ext-) Fa-c- 1 --- --- - - - - - -

Ni-ani's Khiradramalt-i-1skandari- 11-t)-----aso-ant - C /-2, aaor -

-Riya.4m-s-Salatin (Text) -East, 1------ C-/t, each - - - - - - - -

-sty tity's 1td an- on the Exegetic scien oes of the ---oran, with supple

aeat., (Text) Fa-o. 7-10 C 17-eaa-11 --- - --------- --- -

11abadat-i-->t-air 1, 1-1-ext-) 1."as c- --------- 1-2 , t, each। | - - - - - -

1-1 t, to (English) Fasc... 1-1- C9/12/ eadi। -- - - - 10 ।

--arikh-i-Firia Shahi of Zia-a-din Earni, (Text) Pasc, 1- C,"t, each 2 -

1-arikh-1-Bajihad i, (10-----) 1"ast... 1-: C /6/ each। | - - - - -3 -- -

1atrikh-i-Firoz Shahi of Sians-i-Sirai-ait, 1"aso. 1-t C9 /6/ each -- -

Ten Ancient Arahic Poems. Ease... 1. A. 2 C, 1/8/ each ----------- - - -t t..।

--t.7t k-i-lahangiri, (-1.in--) 1 a-t... 1- - - -- - --- -- - 0 1-2

W1s - 1t-anim- (1"ext) Pase- 1-5 (9 /ty each - - - ----------- - - - - --

Zatananaam, Wol. 1, Fase- 1-3 : Wol- 11, 1-a-st- 1-s C/ty each -- t, t

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1- -AsrArrc RasaAn-ca. Es. Yol. W11- Wols-----111 and XW1--- - -----------

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2---ProcEEDrses of the Asiatic Society from 18ta to 18tta tinel-) e/t,

per No. : and from 18-0 to date C9 /8/ ner No- _

3, Jot nax--- of the Asiatic Society for 1-3: 1-2), 18--- --2), 18-- (-) ।

1840 (5), 18-17 (12), 18-18 (12), 1850 (7), 1851 (7), 13-7 (6),

1858 (5),1861 (4), 1802 (5), 186- (-), 1-stat: (-), 18t:- tt). 18te

(6), 18t:9 (8), 1870 (8), 187-1 (7)- 1.87-2 (8), 1-8-3 (8), 187- 18)

1875 (T), 1870 (T), 1877 (8), 18-18 (8), 1879 (7), 1880 (8).

1881 (7), 1882 (6), 1883 (5), 1884 (6), 1885 (6), 1886 (8),

1887 (7)- 1.8-88 (7), 1889 (10), 1890 111), 1891 (7), 1892 (8)- ।

1893 (11), 180-1 (8), C9 1/8 per No. to uembers and C, 2/ pe

No, to Nom-Members - । ------

rw, E. The fi.ggres en-ctosed an brc ckara gire-t-a--------------------"os-- -----------------------------

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General Cummingham s. Archaeological survey Beport for 18t:3-t- -

(Extra No. . . .A... S. B... -180-1) - - - - - - - - --------- [0]।

Theobald's Catalogue of Reptiles in the Museum af the Asiatic ।

society (Extra No... J--A-s. B... 18t8)। - - - ----------- ------------- | th ।

catalogte of Maunmals and Ends of Eurnaan-by -E-By th t---- traNo..., -----A-S. B- 1875) - --------- ---------- ------------- --------------- It ।

11, 11-6, 1notion to the Maithilf--anguage of North Bihar, by G------

Grierson, Part 11, Chrestomaathy anta Wooabulary t19xt a। -------

INo- --.A...S.B..,1882)। --- - --- - -------- -------- -------- |4 ।

E-----Anis-ul-Musharrahin------------ - - - ------------ - -- - --- -

6. Catalogue of Fossi1 Wertabrata --- - - - - ------------ -- 3

:- catalogue of the Library ofthe Asiatie society- Bengal ... । - - -

8. istilahat-us-stfiyah, edited by 12r--A-8prenger, 8vo- - - -

9. 1.i:yah, aConnmentary 9t Ithe Hidayah, Wol-- -1 and1-V-C2-13/ each 3

10.... aiawani-ul-itn ir-riyaai, 168pages with 17 plates, 4to- Part - *

11.. Rhi7:tnat-ul-ilma -- --------- - - - --- - ---- - - - - ।

13. Mahabharata, wols-111 and 1W- 9.30/each -------- - - -0

13. Madarn Wernaqular 19iteratura of Hindustani by Gr, A- Grierson ।(1tixtra No.. -- A-S- B, 1888)। -------- ------- -------- - --- - -

11. Mrobra and Hewitson's Descriptions of New 1ndian 1-epidoptara- -----------

Parts 1-1-11, with 8 oploured Elates, 4to: (9 0/eadh। -- 1-3

1-5, sharaya-ool-1sian --- --- - - - - --- - - - - - -

T B. Tibetin Diotionary by Csonaa tie Koros --------- --------- - - - -0

1-T- IDitto 1-1-a-man-aa--- - ----- - । - - । -- - |--- - 3

18, w attoday a, edited by Et--Cola G-E.. Frore - - - - - - - - - - -

Notides of Sanskrit Manuscripts, Faso.1-26 C9 1/ each - - -20

Nepalese Buddhist. Sanskrit Literature, by Dr. R. E- 111tra -- -

N- E-----sh Cheques. Nioney Orders co, must ba maia paw albi-10 :- -

|

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ICaमममममroxt er: parasr. । WoRRs--- 1-1-1s1-1n, T, 13 -- -----------

-ASTATTC SOC--ET-7 OF 1EENG-A-----

----- NEw SEntr-Es, No. 879.

I। ऐतरयबराहमणम ।

सायणाचारयकतवदारथपरकाशणालयभाषयसहितम ।

-----

THE ATTAREY A BRAHMANA.IOF THE- E-G-WEPA.

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>011MENTA-B.Y 0.R SAYANA ACHARYA.

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No. 57, -------------- s---------------------- C-------C-----------------

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THE soorErt"s AGENrs. MEssas Lt ZAC & Co. -

46 CitnAr RussEn. SritiEET, LoNnox, W- C. As ap -M---- Orro ।

IHAnai.Assownz, Eoorsitr.1.. ER, LEIP21 c, C-En.r-s ... ।

Connt-a contes of those aror's m-a-ted actr/- tra catar is/- -------------rct te s""------------ - | ।

Aavaita Brahma Siddhi, (Text) Fase... 1-4- (2 /6/ each -- : । _

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BrBL10THECA rxpre-a- । | ।

IStrs:-rt7 Series ।

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| -Agni iPur fina, 11-ext) -1"aso-------------- C9 -----------at-h। - । -- 1- 1- ।

Airareya -ranyalka of the 1tig Wedia. (-1---- -) 1 a st- 1-: C-/t) ea t-a. 1 ---

Aitareya Brahman. ... ct the 1ti--V ada . 1 --- .) voi, 1-, in a se... ----------- - । -

Woi, 11, 1"ase, 1-5: Wol... 11.1- Fase, 1-: C ,'6/ each- - - - - - - -

Anu Bhatshyan, (-1 ext) Rase. 1-2------ ----------------------------- ------------ - - .)। 1

Authorisms of sandiya tEngli-11) it as t... - | - - - - - - - - - t, t:

Asht:asthasrika Prajiaapatarnita- (1text) Easo 1-6 (9-/t:/ each - - - - - -

Asw avaidyaka-t-13: t) -Pase------5 (2, t:/ each --- - -- - 1- 1

Aw adana-1Gailpaiata. (Sans, and Tibetan) wol. Ir, Fase, 1-5 : Wol... 1-1.. ।Fase, 1-4- C9 1 / - - - ------------ - - । - - - - 3 ) । I

-Bharmati., (10ext) Fase. 2-8 C9 /6/ each - - । - - --- -2 1 t)।

IBrahma Sttra, t-English) -r aat. - - - । ------------ |------------- - - t) 1

Brihadarany aka. Upamishad (English) -Ease. 2-3 C9 /6/- each- - - 0 1---- -

Brihaddevata, (1.axt) East------- C9 /ti, each - - - | ----- - - - - 3 ।

| 1Brihaddharma Purana, (Text) Fase. i-5 C9 /ty each ------------ . 1 -11

IChaitanya-Chandrodaya Nataka, "1 axi) hasc, 2-3 32 /t, ea...h - 0 -12 ।

...haturvarga Chirtant ani. (1axi) Wols, 1-1, 1-22 : 1-1, Pari. 1. |

Ease, 1-18, Part 11-1 aso.-1-10 C )/0/ each ---- - . 1 : 1- ।

-0hhandogya. Upanishad, (English) Pase. 2 - - - - - --------- - - 0 - ।

-Hindith Astronoray. (English)-Pase-2-3 C ,/6/each --- -- 0 1--- -

1r-aia ML:dha..wa, (-13-t) -m ase------------ C9-/6/- cach - - ---------------------------------------- - - - - -: ।

| 1र :aiatra, "1"ext) Fast, 1-0 (C9 /12/ eadh ........। | - - - - - - - - -

Katha. Sarit. Sagara. (Eaglish) -Ease... 1-1-C9 /12/ each -- - - - - - -

Ratrina iPurana, (1ext) Ease. 1-9 C9 /6/ each --- - - - - 3 -: ।

--Lalia Wistara, t:1 ext) : ast:- 3-0-C2 /t, eaci... - - - - - - - - |IDit to (English) Pase. 1-3 C9-/12/ each. --- - --- ---- -

Madama, Pariiata, (1ext) Fase, 1-11 (29 /6/ each - । ----------- - - - - --- ---

Mranutfika. Sahgraha, tailext) if asc: 1-3 C9 /6/tach --- --- 1- - -

-Matitandeya Purana, (-1.a-t)-1"as0: 4-7 (9 /t:/ each. ---------- - - - - --------

Mi airkandeya Pura. H.a (8:ng lish) -East, 1-4 (9-71.27-each - -- 3 0 ।

-MHimattisi... Dar5ama, taexp). Ji ast: :-19 C, /t:// :- | -------- -- 3 - I।

---- N:tradia. Smriti-(18-ct) Ease- 1-3 C9 /ty each - - - - - - - 1- - |

- 1Nyayaw trtika, (18-st) East-1-3 (9 /t:/ each ---- - --- - - - - - -

--s italkta, (-1.8- t) W-ol------------ East- 1-0-1 Wol... 1-w, E"ase-1-3 C9/6/each a- - |

-Nitisara.or the Pleaaeats of Polity, By Kannandalki (Sams.) 1ta-6, 2----- | ।

(29 /6/ each। --- - --- - 1--------------- ------------ --- 1- - - -

ीि:------, f..., .., , - - - - - - - -Nyawa---Kuautna H-13:1: ------------at-an "- (-ext) Yol. T, Fasc, 1-6 .. --- ------ I

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IParisishta Pavaua (Re-t, Rasc, 1-- (9 /6/ eaa-------------------------------------- -------------

E UBLrsian p BY THE । | ।

AS1-A-TTC, SOC1-ET--- O1E 1EENC----------

Ninw SEntrns, No. 881.. । -----------

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THE ATTAREY A BRAHMAN A.

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ooMMENTARY On SAYANA ACHARY A.

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IPAs prn SArvAvRATA SAMAsi.Airf

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Entrs rnn, By Mr... N, sAnar-n...,

-r raa sArvA PREss, 1.6/1 GHosE-s LAN E..

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Aer-ntrc socLEn.r, 5-7, 1-.aa sTia.EEa.

1896.

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Asrarre PoerEr: IC1- EEa----- | ।

No. 57, 1-AR--- ST-R-EE---- C--------------------------

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46 GitEAr RussEr. Sritaar, LoNnoN, W- C. AND M-R- Crro।

IH-Ar.RAssowrrz, BooksELLEF., --E11-7re, C En.................s --- -

Complere contes or those zorts-rarted azith a cstarts- - ca7-not te-orppt-a-to--- -

-/ 17a Pa scr.cr': 0-7 , a ar :- ..........................।

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15071.577 :/ Series.

Adwaita Brahma Siddhi, (Eaxt) Fase... 1-4 (29 /6/ each- - - -Es, - - -

-Agni Purina, ttext) Fasc... 2-14 (9 /6/ aach --- - - - - - - - -

Aniareya Aranyaka of-the fig Weda- (-1."ext) Fast----------- C9 /6/ each 1 ---

Aitareya Brahman-a- o-he Rig Wata, ttext) wo1, 1, Fase- 1------

wai. 11, Fasc, 1-5; Wol, 11-1, Fase... 1-4 (2 /6/ each- - - - - - -

Ann Bhashyam (1 --at) 1taec... 1-:- - - -- । --- - - , t) 1-2

Althorisms of stindiya. (English) hasc: 1 - - --- - - t) t

Ashtasahasrika Prajifaparammita. (1"ext) Fase. 1-t: G9 /6/ each 2 ---

Agwavaidyaka, (1."ext) -Easo- 1-5 C9/6/ each - - - ------------- --- 1- 1

Awadama r-aipalat:- (Sans, and Tibetan) Wol. 1- - aso, 1-5 : Wol... ------- I

Pasc, 1-4- C9----- -------------------- ------------ --- - ------------- - - - I...। -

-Bharmati., (Text) Fase, 2-8 C9 /6/ each ---- - --- - - - 2- 1. ।

Brahma stitra, I(-English) Eaac... 1. . . -------------- --- - - - - - --

Brihaddranyalia Upanishad (English) Fast. 2-3 (2 /6/ each - - 0 12:- ।

Brihaddevata, (Text) Pase. 1-4 C9 /0/ each -- - - --- ---- 3

Brihaddharma. Eurana, (Fext) Fase... 1-5 C9 /6/ each - - - - - - - - - - --------

IChaitanya-Chandrodaya Natalka, t18-i) -Easc, 2-3 39 /6/ each - . 0 12

I-Ghaturvarga Chintarmani, (1ext) Wols.-11, 1-25 : 11.i, Part 1, ।

Faso. 1-18, Part 1-1-Ease... 1-10 C9 /6/ each । - - - - 1-3, 1

-Chhandogya. Upanishad. (English) -Easc, 2 - - - | ---- - - - - 0 -

-Hindu Astronomy, (English) -Pase. 2-3 C9 /6/each - - - - 0 12

Rala Mt:idhawa, (10exth-East-1-4 (9 /6/- each ---- | - - - - - 1- - -

Kattantra, (Text) Fasc... 1-0 C9 /12/ each ------------- - - - - 1 -

Katha. Sarit. Sagara, (English)-East- 1-1- (2 /1:2/ each . - - - -10 :

Kitnaa Purana, t1ext) Raso. 1-9 (9-/0/ each . . - - -- 3 :

-Lalita Wistara, (18xt)-East. 3-6 (9-)/0/ each । - - - - - -

101ti fo (English) -Easc... 1-3 C9 /12/ each , - - - - 2 4

M:adana Parijifta, (1ext)-Ease, 1-11- C9 /6/ each। -- - - - - - -

Manutika. Sahgraha, (Pext) Ease. 1-3 C9 /6/each - - - - - 1- 2

। Eurana, (text) Fase. 4-7 (9 /6/ each - - --- 1. 8

Jaitiandeya Purana GEnglish) -Ease, 1-4 (9/12/ each . . . . 3 t।

--Minainisi, Dargana, (Text) Eas0-3-19 (2 /6/ each - ... । -- 3 -

IN :raata smriti (18-t) H"asc------3 C9-/6/-seach। ------------- ----------- - - - -

Nyayavartika, (1lext) Base- 1-3 C { each। -------- --------------- ----- 1- -

-Nitiata...(Te-t) Yol. 11.1- Ease- 1-6 : Wol. 1W,Fase-1-8 C9/6/each 5- 4

* :i):- [।"" Elements of Polity, By -samandiakf(Sans.) - ast, 2-5 । |

16/- eac. ------------ --------------- ------------ | - - --- - - --

s,- :{i, tr...। -------------- - - -। ---- - -------------------------- - - ह। 11

INyaya Kustiumatiali Prakarana, (Text) Wol.-1, Fas6, 1-6 . 17,1, 11- । -

- Fase, 1-3 C9 /6/ each --- - - - - - - .... a ।

IParisishta Parwan. (He-t) -Easo.. ------C2-/6/ eaah - --- -- - - --------

1-1:1)hir: R:sam, (Text) Part r, Faso.1, Part 11. Faso.1-5, 9 /07R.., 2 ..

|I-------|

1--------

-- -

Ditt,o (English) Part 11, Rasc. 1

IPrailarita Lakshanan, (-10ext) Easc- - ---

P:ी : :ara Sariti, (Tex) Wol. 1, Ease, 1-8 ; Wol. 11, Faso. 1-0 : W"

11-1, 1."ase. 1-4 (29 /6/ each - - - -- -

Parasara, 1nstitutes of (English)

| srat ta Sitira of Apastanba, (1.

- 101-t i o।

| Ditto

---

|ext) P. 1-1 : 3 /6/ each।

Lify iyana (1.ext1 Fase. 2-3 (9 /0/ each --

S:takht :yana Text i Wol. 1, Fase... 1-7 : Wol. 11

IFase, i-1 : W ol.. 1.11, H"aso. 1 & 3. C2 /0/ each

-Sanja Wedia. Salmhit..., (18xt) Wols. 1, Rasc. 5-10 : 1-1, 11

| 1 W, 1-6 : W, 1-8, (9 /6/ each Fase... -

saialthya Sttra Writti (1.ext) if asc... 1-ai C9 /0/ each

1-)1 i, to (English) Fasc... 1-3 -- -

-saialkara Wiaya, (-1.cxt) Fase- 2, and 3 Q2 /9/ eag

sri Bh:siyam, (Tex) Pase. 1-3 (2 )/0/ each -- -

Sin situta Sanhit:, । jbng.) Fasc... 1. .0. 2 (9 /12/ each ।

-1-aittirty a .Aranya, (Text) 1"ase-2-11 (2 /9/ each

- Ditto Sanahita, (1."ext) F"ase 9-39 39 /67 each।

|1 :ndiya. Erthmana, (-1, 6-t) Easc... 1-1 9 C9 , 0/- teach।

Tat i wa, Chintainmani, (Text) Wo1, 1, F"ase. 1-3 : Yol. 11. F

Wol. 11-1, Fase, i-2, Wol. 1 W, F"aso. 1, Wol. W,Fase --3 (2.,

Tul'si Sat'sai, (1ext) Pase... 1-4 (29 /6/ each - ।

-Sanidhya Prav achana Bh:shya, Rase. 3 (English Preface 5nly) --- -

IU wasagadas:o, (Sanskrit and English) Fase-------6 (9 /12, eat-h।

w ariha Ptrana, (Text) Fasc.- 1-14 (9 /6/ each।

each 1-as t: । --- - ------------- ।

Vishnu Sinriti, (Text) Fase. 1-2 (9 /6/ each।

Wiर :daratm:ikara (1"ext) Raso. 1-7 C9-/ty each

-Waty u Purana, (1.ext) Wol-1, Fasc, 2-6 : Wol- 11, Fasc. 1-7, C9 /6)

Wrihat Soayanabhu Puran, Fase. 1-5 -

| । _ -70/2/d in Series.... ।

IPag-Sam Thi Siti, Fase- 1-4 (9 1,/ each -- -

Wol... 11. Fasc- 1-4 (29 1,´ each - - -

Easo 1 C9 1/ each ------------------ ----------- -------------

-1"d, typic a.7:/1, 1-2e7-5:t:7, Series.....।

Aim-1-Akbahi, (Text) Fast, 1-22 (69 1./ each ... ।

D1tto

Wol... 11-1, it also, 1-5 C2 1/12/ each

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Faithang--Rashidi (Texi), Paso.1-14 C9 1y each

Fihrish--1' tist, or, 10tsy's,list of Shyah Eooks, (Text) Fas.......। 1-----

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shar Pi, in, Wai. r, Fक.-1- 5 . Wo. 11, rasa:- 1-3 , w

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| Aiajariaiah, it i iाी:, (13) if sa, 1-37 @ 1/aaah ... ।

E: हीanarriai, लiि, inities, (Tex, f:. 1-10 C) /6/ eaaji

| Catalogue of the Persian books and Manuscripts in the Library of th

It ift:-i-shaa Waiai, (Tex) fas a... 1-0 6/6/ eaah -1Diftt, A.2:di, (Text) Rasc... 1-4 C9 /6/ each

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-sabar, with supplement, (Text) 51. Faso... C9 /12/- each

wia asir-ti-tima". Wai, i, P:: 1-ह) : W) - fi, i- : wal, imi,11ndex to Wol. 1, Fasc. 10 & 1-1 & 1ndex to Wol... 1-11, H"asc, xit & x11

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Maghaziof Waqidf, (Text) Pase,1-5 C9 /6/ each

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-History e-f the Caliphs, (English) Easc, 1-0 (9 /12/ each

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- -s ry tt y's 1td an- on the E----getic scienc---------- the Koran, wit-a supple

। ----------, "1--xt) -Past- 7-10 (29 1/ -ch। | - - । --- - | - - " ---

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Tar-1-in-i-Firtz si-lhi of Zia-a-din Earni, (1"ext-) 1."ase, 1-7 C/t, each - 1t ।

1-friti--Bajihadi. (1"e-t) Ease... 1-9 (2 /0/ each। - - - - - -

। ----ri-1-h-1-Firoz Shahi of sians i-s-r-i-air, Pase- 1-t: C9 /6/ each a - I

--en Ancient Arabie-oem- Ease, 1 c, 2 C 1, s, each । - - - । | ।

-1-2, 11-----ahangiri, (Eng ) Fase, 1 - - । --- - --- - | - - - ---

- W 1. 6, 1t-a-nn, t-1.e-t) 1 as t... 1-5 (2) /t, each ... । |--- - | - - - ---

-at-a-naaaah, w-ol... 1- Pasc- 1-3 : Wol. 11, 1-a----------s C/t, each - t t |

- - AsrATFC socr ET-s PUBL1CAT ON S... ।

---- -Asr.rrc --EsEAn-ca-T-s- \ ol. W 11- W-ols-- ---------- and .x w---- - | । | ।

। and Wols... X1-x and .xx-C 10/ -a-ch। IR - - - - -

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। T s-t: (5), 13-17 (12), 18-18 (12), 1850 ( 1 ), 18-1 (7), 13-7 (t - ।

। -8as (51, 18t-1 (1). 1802 (5), 1-st- (E), 1866 (-), 1-st- (0)- 1-st

(t:1. 1809 (8), 1870 (3), 187-1 (7). -1872-13), 1873 (8), 18- *) ।

it: 5 (1-1, 187 (7), 1877 (3), is7 3ि, 157: (ी . i : ... ।

1881 (7), 18e2 (t'), 1888 --), 1884 (t), 188 : (0), 1-set te)

1ss7 (7)- 1see (7), 1889 (10), 1890 (11), 1891 -0. 18-2 (e- I

। 1993 (11), 1804 (8), (9 1/8 per No. Ito auembers and C 2-1 a ।

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1y. E. The fi.g res e-ctosed in trackars gire tte r-nte" or -"os. Pr-at-c"- * o--------

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General Cunninghara's Archaological Survey Report for 18t-a-t

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। । x 6-1. A, S. B... 1875) । - - । |- - | - ----- - - -

| । 1ntroduction Ito the Maithili Language of North Bihar, by cr, a... ।

| । (----terson, Part 1-1-, Chrestornathy and Wocabulary (Extra | ।

| । | । । No... J.-A-S.B.188:) | - - । - - । | । | - ... । | ---- - - - - ।

- 5. Anis-in-uu sharraitin- - - | । - - - - - - - - -: t

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: Cat-aio3tne of the Library ofthe Asiatie Society, Bengal - - 3 -

--- । : 1-Hiai:t-us-stffiyah, edited by 12r. A sprenger, swo.. । - - 1- -

। ii :- a, a Commentary on the Hidayah.Yois 11 and 1W- (21t:- each 32 t

. . . तami-ul-in-in-riyazi, 108 pages with 17 plates, 4to Part 1 2 tी ।

। - । - fi.7:111 at-al-ilm ------------ --- - ------------------- - - - - - --------- ---- । --- ।

1-3, 11-1a. bharata, V ols- 1111 and 1. W- 32 20/ each | -------- - - - * । It ।

1 : Mr, aern Wernatular Literature of Hindustani by G- A... Grierson ।| - Pxtra No... J.-3-3-3- 1:88) - । - - - - - - - - J।

। 11 Mi 56-a and Hewitson's Pescriptions of New 1ndian --epidoptera,

। Pa---- 1-1-11, with 8 coloured Plates, 4to- G2 t:/ each । 1 - 1-3 -

_ 15 s;arat a-co-s1:- | ---- - । -- - । | * - - - - - a t

1 :... Tibetan Lictionary by Csonaa de Esoros I | - । | - - - - -10 t

| 17. Dit to crauar.1ar - - - - - - - - - - - - - 3 ..।I8..। 18., w it today a- edited |by 1-"-col। IG- E Fryer । - - - - । , -: ... ।

| Notices of san sirit Manuscripts, Fasa...1-26 C, 1/ each - 2t t.।

--- - | । । Nepulesa P"thist. Sanskrit --terature by Dr. R.. --- -Mitia - - - -। |---------------------

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| - । A-STATI-IC, SOC1-ET OF 1EENC-A---

|- I। एदारथ बरालमरा- 1।

| । । सायणाचारयकतवदारथपरकाषणाखयभाषथसहितम ।

THE A1TAREYA PRAHM-ANA.

IOF THE Brt-WEPA. ------------ | -

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COMMENTARY 0F SAYANA ACELARYA. ।

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1896.

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INy:ryabinduttka:- (Text)। ----- --- - । - - । ----------- --- -

Ny itya Kusunnfijali Prakarana. (Text)। Wol. 1, Pas6, 1-6 Wol... 1-1

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Asrarre PoerEPr or IEExe----No- 5-7, ---A-R---- ST-R-E-E----- CA------------------

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Aiiiareya Aranyaka of the fig Weda t-1"axi) 1."asd- 1- C | 6 --- ।

Aitareya. Erthimin of the Rig ' taia, (1.a-t) wol... 1- Past... 1--- -

| Woi. I-1, Hase, 1-------- V ol---------- 1 .. se... 1- (2 , t, aaah -- -

Anu Bhashyam, t-1 ext) Rase... 1---------- - --- -

Aphorisms of sandiya, (English) it ast-- - - - -------------

Ashtabahasrika Praif aparamit:- (1’ext) Pat t:- 1-0 C-/0/ each।

Agwawaidyaka, (13.t)-1 asc- 1-5 (2/t/ each। _ ।

A-adana 1-aipalata, team

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| -Bi aiी :ai, (Tex) fa a. 3-8 @, /6, 3---- - ।

Brahma Sttra, t.ibnglish) -r aso. 1 - - --- - - -

Brihadaranyalra. Upanishad (English) -1 aso. 2-3 C) /t, a ch।

1Brihaddevata, CText) Pase. 1-4 C9 /t:/ each --- --- -

Brihaddharma Purana, (Pext) Fase. 1-5 (29 /ty each - - ।

Chaitanya-Chandrodaya Natalka.., "1---t) in asc, 2-3 39 /t:/ ea...।

| Chaturvarga Chintarnani, (18xt) Yols. 11, 1-25 : 11-1, Part 1.

। H"asc... 1-18-Part 11-Ease-1-10 C9 /6/- each । | -- ।

| --Chhandogya. Upanishad. (English) Fase. 2- - - - - -

| -Hindith Astromonny. (English) -East, 2-3 (29 /6/each -- -

1r-aia. Madhawa, (-1 a-t । -r asc... 1---- C9 /6/ each --- - -

K:itantra, 11"ext) Fase... 1-0 C9 /12/ each ... । ---------------

IKatha. Sarit. Sagara, (English) -Rase... 1-1-: C9 /12/ each -

Riftrma Pura-ma, t-1a-t) :r ase. 1-9 C9-/0/- -ach , - --- -

--Lalita Wistara, t1 e-t) -East. :-6 (9-7ty each। | ----

- Ditio। (English) Finse, 1-3-C9 /12/ each -- -

Madama Pari1:ta, (-1.axt) -Easc-1-11- C9 /6/ each। -------------

Mifantitica. Saing raha... '1axt) 1 as t... 1-3 C9 /6/each। [------------------------

- Mi arltandeya Purana, (te-t) :"ast- 4-7 (2-70/ each -

1warkandeya. Furana GEnglish) -Ease, 1-4 (9 /12/ each ।

-y1.inninsti... Dar5ana- (Te-t) Easc-8-19 (2) /6/ each । -

|INyayawatika, (Text) base- 1-3 C9 /6/ eaah -

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-Nitistra.or the Eler ants of Polity, Py 1-airmandia-t sans.), Ha-ta, 2-: ।

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Prakrita Lakshanam, 'Texti), Paso, 1 ------------- ------------ - - - 3

IPata gara. Smriti, t.18xt) Woi... 1- Raso. 1-8 : Wol. 1-1, 1n asc, 1-6 : Wol... ।

--------- Fasc- 1-4 C9 /6/ each। ----------- ---------- - - - - - - - 6, 12

-arasara, 1nstitutes of (English) - - - - - - - 0 1

Israuta. Sitra of Apastamba (Te-t) 1t ast... 1-13 C9 /-/ each। | - - -4- 1

-- -- 1---o। Liftyayana (Text-1 Fase. 2-3 (2 /6/ each --- - | - 3. 0

101t,to । )- ITe-t) wo1.- 1, Ease, 1-7 - Wol. I----- -

IFaso, 1-4, 1 Wol. 11-1, Fase. 1 & 3 C9 /6/ each --- 5- ---

--sama weda Sarahit:t. (Te-t) Wols. 1, Fase-a-10 : 11, 1-6 : 11-T- 1-7 - ।

1. Y, 1-0 : W- 1-8, (-2 /6/ each Fase. - - - --- - - - 1-2 - ।

SEakhya Sttra Writti (1.ext) East, 1-4 C9 /0/ each - - - - - - - -

Ditto । (English) -r asc... 1-3 - - --- - - - - 2 --

-sainikara Wiay a, (Text) Fase- 2and 3 C2 /0/ each -------------- --- 0 1-2

-Sanidhya Prawadhama Bhaishya, Rase, B. (IEnglish preface only) - - 0 6

Eri Bhashyam, (Texा) Pasc... 1-3 (9 /6/ each - - - - - 1- ---

Ea Erata Sanhitai, I htng.) Paso. 1 A. 2 (9-/12/ each - - - - - 1 -

-1 aittiriya. Aranya, (Te-t) Easc, 2-11 (9 /0/ each। --- - --- -3, 1-2

- Ditto Sanhita, (1"ext) Faso 9-39 (29 /6/ each। --- - - 1-1 10

- andya Brahmana, (Text) East, 1-19 C9 /0/ each - - । 1- - T -2

Latt ए a... Chintainaini, (Text) Wol... 1. Fasc, 1-9 : Yol, 11- Pa sc, 1-1 0.

Wo1-11-1, 1-ase... 1-2, Wol- 1.W, Fasc, 1. Yol- W-Easc- --3 (2/6-each 9 :

Tu1-si Sat'sai, I(-1 axi) Fasc... 1-1 C9 /ty each - - ---- - - 1 :

U wasagadas:o, (Sanskrit and English l, Fasc... 1-t C9 /12/ each - 3

| Waraha -- trana, (Text) Faso. 1-14 C9 /07 each - - । - - -5 - - -

-Way u turana, (Text) Wol. 1, Fase. 2-t i Wol. 11, Rasc. 1-7, C9-/6/

| each F"ase --- - । -- - - ----- ---------- - - 4. 8 ।

Wishnn Smriti, (Text) Fast:-1-2 ta9 /6/ each। --------- - - 0 12

Wivataratm:Rait, (1.exi), Past... 1-7 (@ 76/ each --- - -- 2 - 10

Wrihannfradiya Purana, (Textil Fase... 1-0 (2 /6/ each --- | - - 2 4

"triai. Soayambht Puran, Easc, 1-5 --- - - - - - -1- 1-4

------------------------- 1 :/12//71 Ser her, |- -

| Pag-Sam Thi Sift, Faso. 1-4 (2 1/ each। -- - -- - I - 4- 01

-ttogs trioa dpag 7khri Sin (Tim. ... Sams) Wol.1, Pase, 1-5, 1

W ol- 1-1- Fase- 1-4 (29 1/ each -- - --- - - - - 9 t

Eher Plbyin-Wol... 1- Fase, 1- 5- W ol. 11, Fase... 1-3 ; wol... 1-11- । -

Easo. 1-C9 1/ each ------ --------- -------------------------- -- - - - -3

- I- --rtrtyic 77td... Pers:rr/ -Series.... - ---- ।

1-1.iating triitmai, with Index, (1"t) Fase, 1-1: (2./0/ eadi - 2, 14--in-i-Akbart, (1cxi), Past... 1-22 (9 1./ each .. - - - - - - -22- 0

EPitto------------ (English) Wol. 1, Fast... 1-T - Wol, 11, Ease, 1-5, 1

Yol, 111, Faso. 1-5 (2 1/12/aadh। -- - - - - - -----23, 1-2

Akbarntrnah, with 1ndex, (1"ext) Rasc, 1-37 (2), 1/each --- - - -37- 0

Arabie Bipliograpity, by Dit, A... sprenger ........। -- - --------0 t: ।

-E:dsliananah, with 1ntiex, (Text) F"as6. 1-19 C-/6/ eaah - - - - -

Eatalogue of the Persian books and Mantisoripts in the Library of the ।

---siatic Society of Bengal, Fast, 1 .3. 3 C) 1./ each। - - - -3, 0

Pictionary of Arabic 1.achnical Terms and Appendix, Fasc, 1-21 (2) ।

|-/ each. - - --- - -- - --------- --------21 t,

Eathang-i-Rashidf tText), H"ase, 1-14 C, 1/ each। --- - - - 1- 0

- itsli - -1 tist, or, 11tsy-s list of Shy ah Books, (Text) Fasd, 1-4, C

1/12/ each। -------------- - --- - - ------------- -- - --- - 3 -0।

| -:utt-t:-sham, Watidt, (Text) Pase, 1-9 C) /6/ each , ' , , 3 :

| Ditto Azrtdi, (Text) Fase, 1-4 C9-/6/ eich --- - - - - - 8

Haft-asman, History of the Persian Mians-wi, I(-1."ext) Faso. 1 ---- 0 -1-2

History of the Calipis, I English) H"asc- 1-6 (2 /12/ each - - - - - - -

t1:in ttnah-i-lai:ngiri, (Text) Pat o... 1-a C) /6/ each , । - - 1- - -

:ab:i... with suppliement, Text) 51 Past... C, /12/- eaah ... । -- 38 4

:asit-ul-Umara) wol. 1, hasc... 1----9 : Wol. 11-1-3 : Wol... 11-1, 1--10

Inde oि Wo. i, Pa. 10. 3. i .... itie aि Wai. i,ri-' :-Xit ।C ,/6/ each - - - - - --- - -------------- - - 1- t

11aghaziof Watiai, Text) Faso. 1-5 C, /6/ each --- - - - 1- 1-4

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| -- -1he other 1n ascicti ot these worl-s are ont or stoa- --- -------------

11untakhat-a-Tawarikh, (Text) Faso. 1-15 (2 /6/ aaan - - । ---* --10

-1.nntak.iat-a---aw art-h, (English) Wol... 1- ----------------- -: W ol... 1-1- Easc.

--------- C9 /-----------ch- - - | - - --- - --- - -- -

.1nntalkhab-ti-t-bab- (-ext) Fast- -----19 C9 /t, each। ---------- - - " -2

-1u----------------lan-airi- "Text), Pasc, 1-6 (9-/t, each - - - - - -

. .1-hb-----tal-r ikr, 1-1-ext-) 1r a so. 1 --- - | - - - ---- - - - - - --

Ni-ani's Khiradnamai------skandari- (Text) F"ase, 1 and 2C-/12/ each- 1. 8

-aiya-m-s-salatin (Text- -Paso. --------- (2 /t, each - । --- - - 1- 3

-stry t-t:- - - - - - -- - - - - --------- -tic Sciences of the ---o ran, with supple

Inent, (---------t) -------- 7-10 C 1,- -------- --- - --- - - - 4- 0।

-1abar-at-i N-si---- ------t) Fase- 1-5 (2 /t:/ each। - - - - 1- 1----

1-1 ----- (English) -East- 1-1- C9 /12/ eadi - - - 1-0 3

-"artich-i-Firtz Sh-hi of -ia-a-din Earni, (1"ext) Ease, 1-7 (2/6/ each 2 ---

Tarikh-1-Bajihad - (1----t) it ase... 1-9 C: /t:/ each। --------------- - - - -

-arikh-i-Firoz Sh-i1i of Sharas-i-Sir-i-air, F"as c... 1-t C9 /6/ each -- -

1."an -oncient --rabi... -------------------- c, 1 .. 2 C 1, 8, eaci। - - 3 .)।

-uzu------ah-------------- (En---) Faso-- - --- - --- - --- - - - t) 1----

W1- - 1-tain, t-1"--t) Eas-- ---------- (-9 /3, aa-ch - - --- - |- - - 1 ----

Zaiananaam, Wo1. 1- East- ---------9 : W ol... 1-1, 1n as t... 1-3 C/t, each - - t, t: ।------------------------------

Asi...Tic socr ETw s PU pr, o... Ti ON:..1- -A--------- EasE-----ca. Es- W ol. W1-1, Wols... X- 1-1 and -- W1---

and Wols... X1-x and xx (e 1.0/ each। ३ s,- -10 0।

-- 1-aoo Errors es of the --sia-tio Society from 1 Sta to 1-st3 incl-) C/t, ---

Iner No. : and from 1870 to date Q2 /s, per No..

*- Jorn-s---- of the Asiatie Society for 1-s-3 -12), 18--- |12), 1845 (12),

। 18-6 (5), 18-17 (12), 18-18 (12), 18-0 ( 1 ), 185-1 (7), 13-5-7 (6---

185s (5-1, 1-st-1 (-) 1.852 (-5), 1-st- (-), 1 st, t: T), 1-st- (6) - 1-st e ।

I(6), 18t:- (8), 1370 (81, 187-1 (71 187-2 (-1, 1-73 (8), 1874, 18).

187 5 (T )- 1.87t: (T), 1877 (81, 1818 8 , 187 9 (7), 1880 ( 81.

1881 (-), 1882 (f)- 1883 5), 188-1 (6), 1 sea (6), 18et (8).

18-7 (7) 1888 (7), -1889 (10), 1890 11.), 1891 -9, 18-2 (8)

1893 (11), 183-1 (8), (2 1/8 per No. to Meaibers and C, 2/ per

INo. to Nom-Members _

-w, E- 2"e Jfigures e-ctosed fr brorefers gire t"e " "ergr AYo----- e-e "- -2"""

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e-rierson, Part 1-1, Chrestouathy and Wooabulary (Extra ------

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E... Anis-a-n1usharrahin - - --------- |-------------- - -------- -- 3

5, Catalogue of Fossil Wertebrata - । - - - --- - --- -3

17 Catalogue of the Library of the Asiatie Society, Bengal -3

3. 13tiliah at-us-sti fiyah, adited by 121. A sprenger, swo... - - - -

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10. .Taw anai-tai-ilna ir-riy azi, 168 pages with 17 plates, 4to- 1-art - 2

11. Kinizanat-ul-ilm - - - - --------------- - - - --- - - - -

13, Mr.a in-bharata, Wols- 1-1 and 1-W- Q2 20/ each 1- - - - - -10

1 :- Miodern Wermacular Literature of Hindustani by G- -A-Grierson

Extra No... J.- A- 3-B- 1838) - - ---- - - - - -

11.. Mr.561- and Hewitson's Descriptions ofNew 1ndian 1-epidoptera

Pats 1-1-11, with a coloured Plate:- -to- G9 t:/ eati। - - 1-3

15, sharay a-oo-rsla। - - - । । --- - - - - - - - ।

|ा ,... Th, at an Dictionary by C: on-a de 1-0ro- --------- ------ - - - - -

-------- ID it to G-aaaaaa- ------- ------------ - -- - -------- - - -3

18, w uttodaya, edited by -t--Col. G-- -E... Pry ar - - ------------ - - -

TS otices of Sanskrit Manmserints, F"ase- 1-26 C9 1/ each -- -20

Nepaless Euddhist. Sanskrit Literature, by Dr. R--- Mitra --- -

-------- 1-Credit e--------------------de-s-----a-must be made paw abia - ----

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