“ख़िलक़त का, क्या भरोसा?” · वह ददल में...

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` “ख़िलक़त का, या भरोसा...?” दिनेश चर प रोदित गाव बुछेटी से क़रीब आध फलिग दूर, वनर की ढणी है ! कई सलौ पहले, वहि नेक-ददल ठक र रणजीत सस िह गाव बुछेटी के रवले म रहते थे ! एक बर ठक र रणजीत ससिह अपने सथथयौ के सथ धड़ मरने गए थे, और वपस सिय तक लौटे वे नहीि ! ठक रइन सदहब रवले की मुिडेर पर खड़ी-खड़ी, उनक इततज़र कर रही थी ! बह त दूर अपनी नज़र दौड़ती ह ई वह घोड़ौ की टपौ से उड़े धूल के गुबर को देखने की असिलष सलए, न मलूम कब से खड़ी थी ? मगर ठक र सहब और उनके सथथयौ के घोड़ौ की टप सुनई नहीि दी, और न कहीि घोड़ौ की टपौ से उड़ते ह ए धूल के गुबर नज़र आये ! रफ़तह-रफ़तह, आख़िर सुयात हो गय ! नि म चतरम अपने ससतरौ रपी सथथयौ को सलए नज़र आने लगे ! धीरे-धीरे, ठक र के आने की सिवन कम होती गयी ! जससे ठक रइन सदहब के ददल म उथल-पुथल मचने लगी, वह फ़ करने लगी ‘बह त यद देर हो गयी, उनके आने म ! मतजी उनको रजी-िुशी रखे !’ उसक ददल ठक र सहब को शुि समचर देने के सलए िी, आक ल हो रह थ फ़क “कब ठक र सहब रवले पधर, और वह उनको अपने पाव िरी होने की िबर दे द अपने मुख से ?” वह पेड़ौ की तरफ़ अपनी नज़र दौड़ने लगी, शयद कहीि उसे शक न देने वली सोहन थचड़ड़य ददखई दे जय ? मगर, वह य जने ? अब इस रत म, सोहन थचड़ड़य क ददखई देन सिव नहीि ! फ़फर य ? वह ददल म उठ रहे बबछोव के ददा को बदात करती ह ई, ददील गने लगी “सोन थचड़ी ियली, सीली रत गवह ! है रतड़ली जगती, मदछ फ़कये री चह !! क रज क ण औगण कररय, क ण बबसरयो पीव ! िूय मरधर देस नै, बबसररय नैण-सीिव !!” न तो कहीि दूर से धूल के गुबर नज़र आये, और न सुनयी दी घोड़ौ की टप ! अब बेचरी ठक रइन सदहब ववरह म तड़पती, अपने इस कलेज़े को कै से ठिड कर ? बस, बेचरी अपने पतत ठक र रणजीत ससिह को यद करती ह आगे गने लगी “धरती दड़यि सब लखै, सूयि सरवर-पळ ! टुकड़ बहरण कळज़ो, फ़कण नै कह अहलव !!” इतने म फ़कसी के पिवौ की आहट उसे सुनई दी, “खम घणी ठक रइन सदहब ! जुहरजी ने हरकरे [सतदेश वहक] के सथ सतदेश िेज है फ़क, वे रत को आयगे नहीि ! वे कल तड़के पधरगे ! अत: आपसे अज़ा है, आप नीचे चलकर आरम कीजएग !” इतन कहकर, खवसन [नइन] ठक रइन सदहब को हथ क सहर देती ह ई उतह नीचे ले आयी ! यह वकय, कई वष पहले क है ! देश वततर होने के पहले, इस देश म ठौड़-ठौड़ रजवड़ौ और नवबौ क रज़ थ ! बैल-गडी, ऊिट, और घोड़ौ पर सवर होकर लोग यर करते थे ! उस वत अवम बुछेटी गाव के ठक र सहब रणजीत ससिह क नम, बह त समन के सथ सलय करती थी ! ग़रीबौ के तत वे दयवन रहे, इसी गुण के ितर उतहौने लोगौ क ददल जीत सलय ! उनसे फ़कसी ग़रीब क दुख, देख नहीि जत थ ! इन दीन-दुख़खयौ के सलए, उनक खज़न चौबीस घिटौ खुल थ ! इनके इस गुण के रहते, इनकी ज बह त सुखी थी ! मगर, इनके ईयालु

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    “ख़िलक़त का, क्या भरोसा...?”दिनेश चन्द्र परुोदित

    ग ाँव बुछेटी से क़रीब आध फल ांग दरू, व नर की ढ णी है ! कई स लों पहले, वह ां नेक-ददल ठ कुर रणजीत ससांहग ाँव बुछेटी के र वले में रहत ेथे ! एक ब र ठ कुर रणजीत ससांह अपने स थथयों के स थ ध ड़ म रने गए थे, और व पस सांध्य तक लौटे वे नहीां ! ठकुर इन स दहब र वले की मुांडरे पर खड़ी-खड़ी, उनक इन्ततज़ र कर रही थी ! बहुत दरू अपनी नज़रें दौड़ ती हुई वह घोड़ों की ट पों से उड़ ेधूल के गुब्ब र को देखने की असिल ष सलए, न म लूम कब से खड़ी थी ? मगर ठ कुर स हब और उनके स थथयों के घोड़ों की ट पें सुन ई नहीां दी, और न कहीां घोड़ों की ट पों से उड़त ेहुए धूल के गुब्ब र नज़र आये ! रफ़तह-रफ़तह, आख़िर सुय ास्त हो गय ! नि में चतरम अपने ससत रों रुपी स थथयों को सलए नज़र आने लगे ! धीरे-धीरे, ठ कुर के आने की सांि वन कम होती गयी ! न्जससे ठकुर इन स दहब के ददल में उथल-पुथल मचने लगी, वह फ़फ़क्र करने लगी ‘बहुत ज़्य द देर हो गयी, उनके आने में ! म त जी उनको र जी-िुशी रखे !’

    उसक ददल ठ कुर स हब को शुि स म च र देने के सलए िी, आकुल हो रह थ फ़क “कब ठ कुर स हब र वले पध रें, और वह उनको अपने प ाँव ि री होने की िबर दे दें अपने मुख से ?” वह पेड़ों की तरफ़ अपनी नज़र दौड़ ने लगी, श यद कहीां उसे शकुन देने व ली सोहन थचड़ड़य ददख ई दे ज य ? मगर, वह क्य ज ने ? अब इस र त में, सोहन थचड़ड़य क ददख ई देन सांिव नहीां ! फ़फर क्य ? वह ददल में उठ रहे बबछोव के ददा को बद ाश्त करती हुई, ददील ग ने लगी “सोन थचड़ी ि यली, सीली र त गव ह ! म्है र तड़ली ज गती, मदछ फ़कये री च ह !! कुरज कुण औगण कररय , कुण बबसर यो पीव ! िूल्य मरुधर देस नै, बबसररय नैण -सीांव !!”न तो कहीां दरू से धूल के गुब्ब र नज़र आये, और न सुन यी दी घोड़ों की ट पें ! अब बेच री ठकुर इन स दहब ववरह में तड़पती, अपने इस कलेज़े को कैसे ठांड करें ? बस, बेच री अपने पतत ठ कुर रणजीत ससांह को य द करती हुई आगे ग ने लगी “धरती दड़क्य ां सब लखै, सूक्य ां सरवर-प ळ ! टुकड़ बबहरण क ळज़ो, फ़कण नै कह अहल व !!”इतने में फ़कसी के प ांवों की आहट उसे सुन ई दी, “खम्म घणी ठकुर इन स दहब ! जहु रजी ने हरक रे [सतदेश व हक] के स थ सतदेश िेज है फ़क, वे र त को आयेंगे नहीां ! व ेकल तड़के पध रेंगे ! अत: आपसे अज़ा है, आप नीच ेचलकर आर म कीन्जएग !” इतन कहकर, खव सन [न इन] ठकुर इन स दहब को ह थ क सह र देती हुई उतहें नीच ेले आयी ! यह व कय , कई वषों पहले क है ! देश स्वततर होने के पहले, इस देश में ठौड़-ठौड़ रजव ड़ों और नव बों क र ज़ थ ! बैल-ग डी, ऊां ट, और घोड़ों पर सव र होकर लोग य र करत ेथे ! उस वक़्त अव म बछेुटी ग ाँव के ठ कुर स हब रणजीत ससांह क न म, बहुत सम्म न के स थ सलय करती थी ! ग़रीबों के प्रतत वे दय व न रहे, इसी गुण के ि ततर उतहोंने लोगों क ददल जीत सलय ! उनसे फ़कसी ग़रीब क दुुःख, देख नहीां ज त थ ! इन दीन-दख़ुखयों के सलए, उनक खज़ न चौबीस घांटों खुल थ ! इनके इस गुण के रहत,े इनकी प्रज बहुत सुखी थी ! मगर, इनके ईर्षय ालु

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    स थी िव सजी [न ई] को, इनक यह गुण अच्छ नहीां लगत थ ! क रण यह थ , उतहोंने बचपन में ग़रीबी बहुत नज़दीकी से देखी थी ! अत: बेफ़ लतू रुपये-पैसे िचा करन , उनको बबल्कुल िी अच्छ नहीां लगत ! अगर कोई दसूर रुपये-पैसे िचा करत , वह िी इतहें पसांद नहीां थ ! इनके सलए, रुपये ही म ई-ब प थे ! ज तत-स्व ि व से िव सजी ब तूनी ज़रूर थे, और उनको ब तों-ब तों में दसूरों को सल ह देने की आदत अलग से पड़ गयी ! पैसे न िचा करने की अपनी ब त रख ने के सलए, वे टसक ई से ठ कुर स हब को सल ह ददय करत े थे ! मगर, ठ कुर स हब को इनकी दी गयी एक िी सल ह अच्छी नहीां लगती थी ! िले इनकी सल ह ठ कुर स हब को पसांद नहीां आती, मगर िव सजी ह र म नने व ले प्र णी नहीां थे ! वे तो ठ कुर स हब को दसूरे ठ कुरों के रहन-सहन के तरीक़े बत य करत,े और स थ में उनको समझ ये िी करत ेफ़क, “ठ कुर स हब ! लक्ष्मी क आदर कीन्जये, इस तरह आप पैसे िचा करत ेरहे तो यह आपक क रू क खज़ न िी एक ददन ि ली हो ज येग ! यह धन-दौलत जब-तक आपके प स है, तब-तक ही लोग आपक सम्म न करेंगे ! इसके न रहने से, स्वजन िी आपसे मुांह मोड़ लेंगे ! आप ज नत ेनहीां, म य के तीन रूप है ! परस , परस और परस र म !” इस तरह वे ठ कुर स हब को कई तरह से समझ य करत,े मगर वे ठ कुर स हब के स्वि व को बदल नहीां प ए ! उल्टे ठ कुर स हब हांसी-हांसी में, इनको यह सल ह दे बैठते “िव सजी ! आप िी मेरी तरह द न-पुण्य फ़कय करो, अगले जतम में यह फ़कय हुआ द न-पुण्य ही क म आएग ! ज़र सोथचये िव सजी, मेरे ज ने के ब द पीछे ख ने व ल है कौन ? कौन है, िचाने व ल ? कदहये, मैं फ़कसके ि ततर पैसे बच ऊां ?” िव सजी को, ठ कुर स हब की दी गयी सल ह कैसे पसांद आती ? उनको तो इस जतम क िी िरोस नहीां, फ़फर वे अगले जतम के सलए द न-पुण्य की मदहम कैसे समझ प त े? उनको तो सपन ेआय करते थे फ़क, उनके च रों तरफ़ हीरे-पतने, म णक-मोती की बरस त हो रही है..और वे दोनों ह थ से इस धन-दौलत को इकट्ठी करत ेज रहे हैं ? उनक यह ख़्य ल थ फ़क, आदमी की इज़्ज़त ज़्य द रुपये-पैसे होने से होती है ! ठ कुर रणजीत ससांह असली न्ज़ांदगी में ध ड़ यती [डकैत] ठहरे, मगर वे किी अपने इल के में ड क नहीां ड ल करत ेथे ! व ेदसूरे ठ कुरों के इल के में ज कर, वह ां दरु्षट अमीरों के घर ड क ड ल करत ेथे ! व ेउतही दरु्षट अमीर सेठ-स हूक रों को लुट करत ेथे, जो ग़रीबों को सत य करत ेथे ! लुटे हुए म ल पर िव सजी की बुरी नीयत रहती थी, मगर उनके ददल पर ठ कुर स हब क िय इस क़दर छ य हुआ थ फ़क ‘वे सपने में िी उस म ल को प र करने की मांश पूरी न कर प त े! यह ाँ तो उनके ददल पर ठ कुर स हब क ऐस िय छ य रहत थ फ़क, वे जीववत ठ कुर स हब को स मने देखत ेही उनक बदन धूजने लगत ! तब वे कैसे उस म ल को, प र करने की दहम्मत जुट प त े ?’ दरु्षट अमीर और शैत न सूदखोर मह ज़नों के ज़ ल से ग़रीबों छुटक र ददल कर, ठ कुर स हब इन ग़रीब लोगों के मध्य मसीह के रूप में पूजे ज त ेथे ! इन दरु्षट सूदखोरों से लटेु हुए धन को, ठ कुर स हब इन गरीबों में ब ाँट देत ेथे ! ठ कुर रणजीत ससांह दसूरे ठ कुरों की तरह, ल ट के न म रैयत को लुट नहीां करत ेथे, मगर व ेक़ यदे के अनुस र र ज क दहस्स र ज को ज़रूर िेज ददय करत ेथे ! इस तरह र ज और रैयत, दोनों ठ कुर स हब से िुश रहत े! व नरों की ढ णी के ब हर, दजी तुलसी र म क घर थ ! उनके च र स ल की कतय थी, न्जसक न म थ तीज ब ई ! वह अपने वपत जी की तरह, सुबह तड़के उठ ज य करती थी ! तीज़ ब ईस थे बहुत िूबसूरत, र नी पदम वती की तरह सुतदर..मगर उनमें एक ि मी ऊपर व ले ने ड ल दी, आाँखों से उतहें ददख ई नहीां देत ..मगर फ़फर िी, थोड़ पलक ज़रूर पड़त थ ! मक़बूले आम ब त है, ‘ऊपर व ल एक कमी रखत है, तो दसूरी ऐसी ि ससयत उसमें ड ल देत है..जो उस कमी को पूर कर देत है !’ उनके आाँखों में जो ‘पलक ’ ज़रूर पड़त थ , इस पलके के सह रे वे ददम ग़ क इस्तमे ल करत ेहुए घर के कई क म वे चुटफ़कयों में पूर कर लेत ेथे ! क म करत-ेकरत,े इनको फ़कसी की मदद की ज़रूरत नहीां होती ! इस बचपन में उनको पूर िरोस थ फ़क, उन पर ‘तीज़ म त ’ तुर्षठम न हैं ! लोगों को िी पूर िरोस थ फ़क, ‘ब ईस तीज़ ब ई के मुख से तनकली िववर्षयव णी, हमेश सच्च हो ज य करती है !’

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    एक ब र ऐस हुआ की, मांगल की वेळ [तड़के] सुबह च र बजे, घर के दरव जे पर दस्तक हुई ! तीज़ ब ई ने ज कर, सटे हुए दरव ज़े को खोल ! आगांतुक के प ांवों की आहट प कर, वह उतहें ह थ जोड़कर कहने लगी “म सलक ! चौक में पलांग रख है, आप उस पर बैदठये..तब-तक मैं द त [वपत ] को बुल ल ती हूाँ !” तीज़ ब ई ने इतन कहकर, आगांतुक को प ाँव-धोक दी, और फ़फर वे घर के अतदर अपने वपत तुलसी र म को इतल देने चली गयी ! चौक में बबछ ए गए पलांग पर ठ कुर स हब आकर बैठ गए, और उनके स थी ब हर उनक इन्ततज़ र करत ेरहे ! पलांग पर बैठे ठ कुर स हब सोचने लगे फ़क, “ऐस क्य क रण है ? इस कतय की आाँखों में रौशनी न होत ेहुए िी, यह कतय लोगों को कैसे पहच न लेती है..? इस कतय में तुलसी र म ने ऐसी तहज़ीब ससख ई है, जो त रीफ़े-क़ बबल है ! व ह, इस छोरी को फ़कतने बदिय सांस्क र ददए हैं तुलसी र मजी ने..?” थोड़ी देर ब द, तुलसी र म ठ कुर स हब क तैय र फ़कय हुआ कमीज़ लेत ेआये ! उनके नज़दीक आकर उतहोंने प ाँव-धोक दी, फ़फर वे उनसे कहने लगे “खम्म घणी, अतनद त ! मैं िुद आपके र वले में ह न्ज़र हो ज त , हुकूम ने क हे क कर्षट उठ य ?” “तुलसी र मजी ! मैं तो िुद इधर से अपनी पलटन के स थ गुज़र रह थ , और मुझ ेय द आ गय कमीज़..जो आपने अपने ह थों से ससल ई करके तैय र फ़कय है ! जब मैं यह ाँ से गुज़र ही रह थ , तब मुझ ेआपके घर से ससल हुआ कमीज़ ल ने में क हे की शमा ? फ़फर क्यों इस छोटे से क म के सलए, फ़कसी क मद र को कर्षट देत ? मुझ ेतो कोई शमा आती नहीां, अपन क म करने में !” ठ कुर स हब बोले ! इतने में, तीज़ ब ईस लकड़ी के ग्ल स में ठांड तुलसी जल लेकर आ गए ! ठ कुर स हब ने अांजली में थोड़ प नी लेकर, अपने ह थ स फ़ फ़कये, फ़फर तीज़ ब ई से ग्ल स लेकर ऊपर से प नी पीय ! फ़फर ग्ल स व पस तीज़ ब ई को थम कर, तुलसी र म से ससल हुआ कमीज़ लेकर उठे ! तीज़ ब ई के सर पर ह थ फेरत ेहुए, ठ कुर स हब तीज़ ब ई से बोले “ब ईस ! आपको बहुत तक़लीफ़ दी, अब आप हम र एक और क म कर दीन्जयेग !” “फ़रम इए, हुज़ूर ! आपक हुक्म मेरे सर पर, अतनद त !” तीज ब ई नम्रत से बोले ! “आप तीज़ म त क स्मरण करत ेहुए, हम रे सलए शगुन बत इये !” ठ कर स हब बोले ! तीज़ ब ई ने आले में ग्ल स रखकर, अपने दोनों ह थ जोड़े आक श की तरफ दोनों ह थ ले ज कर तीज़ म त क स्मरण करत ेहुए, बोले “म त जी की कृप से आपकी हवेली में ि नद न क थचर ग रौशन होग ! मगर, कुां वर स हब क जतम....” आगे कहते-कहत ेतीज़ ब ई की ज़ब न रुक गयी, और उनके शरीर के रोम-रोम खड़ ेहो गए ! तब ठ कुर स हब ने त ली बज यी, उनकी त ली बजने की आव ज़ सुनकर ससप ही की वेश-िूष में उनक ितीज र म ससांह अतदर तशरीफ़ ल य ! अतदर द ख़िल होकर वह सीध झट ठ कुर स हब के प स चल आय , और बोल ! “हुक्म कीन्जये, क क जी !” र म ससांह बोल ! “कुां वर स हब, ज़र िव सजी के स थ कलद रों की थैली सिजव इये !” ठ कुर स हब ने, र म ससांह से कह ! र म ससांह के ज त ेही, थोड़ी देर ब द िव सजी कलद रों की थैली सलए ठ कुर स हब के नज़दीक आये ! ठ कुर स हब को कलद रों की थैली थम कर, िव सजी प स खड़ ेतुलसी र म को ज़हरीली नज़रों से देखने लगे ! उनको अखरने लग , ‘अिी इस न म कूल को च ांदी के कलद र देने के सलए, यह थैली खुल ज येगी..? क्यों नहीां ठ कुर स हब थैली खोलत े हैं, मुझ े कलद र देने के सलए ?’ उनको इस तरह तुलसी र म को टकटकी लग ए देखकर, ठ कुर स हब मुस्कर त ेहुए कहने लगे “यह क्य कर रहे हो, िव सजी ? क्य छीपोजी को पूर गटकने क इर द है, आपक ?” ठ कुर स हब क यह कथन सुनत ेही, िव सजी झेंप गए और उनको ऐस लग म नों ठ कुर स हब के मुख से यह जुमल नहीां तनकल ..बन्ल्क उनके मुख से कई स ांप तनकल आये हो ? बस, यह ख़्य ल उनके ददम ग में आत ेही िव सजी डरकर च र क़दम पीछे हटे ! सहस उनके मुांह से, ये बोल तनकल पड़ े“मर गय , मेरी म ां !” तिी उनको, ठ कुर स हब क ठह क सुन यी ददय ! और वे चतेन हो गए, चतेन होत ेही ठ कुर स हब की आव ज़ उनके क नों में पड़ी..वे हांसत ेहुए कह रहे थे “यों कैसे डर रहे हो, िव सजी ? कहीां आप, सपन तो नहीां देख रहे हैं कोई ? मुझ ेतो ऐस लगत है, आपने अपने बदन पर कई स पों को सलपटत ेदेख सलय हो ? अब सुतनए, िुशी की

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    ब त ! सुनत ेही, आपक स र डर ित्म हो ज येग ! अब सुतनए, तीज़ ब ईस ने अिी र वले में कुां वर स हब के जतम होने की िववर्षयव णी की है !” सुनत ेही, िव सजी ने खांख रत ेहुए अपन गल स फ़ फ़कय ! मगर, इस तरह उनके खांख रने से क्य फक़ा पड़ ? सच्च तो यही थ , यह िुश-िबरी सुनकर उनको ददल में ल व उमड़त हुआ नज़र आने लग ! ददल में आये इन ि वों को तछप न िी उनके सलए ज़रूरी हो गय , तब वे बन वटी मुस्क न अपने लबों पर ल कर बोल उठे “म सलक, शुि क म होंगे अब तो ! र वले में, कुां वर स हब की फ़कलक ररय ां गूांज़ेगी !” इतन कहकर, िव सजी झट ब हर चले गए ! उनके ज ने के ब द, ठ कुर स हब ने झट थैली में ह थ ड लकर मुट्ठी िर कलद र ब हर तनक ले ! फ़फर उन च ांदी के कलद रों को मुट्ठी में थ मे, तीज़ ब ई से बोले “ब ईस ! पल्ल म ांड़डये !” उनक हुक्म म नकर, तीज़ ब ई ने अपने ओिने क पल्ल फैल कर आगे फ़कय ! उनके पल्ल म ांडत ेही, ठ कुर स हब ने मुट्ठी-िर च ांदी के कलद र उनकी झोली [पल्ले में] में ड ल ददए !” फ़फर वे तीज़ ब ई से पूछ बैठे “ब ईस ! आप कुछ और आगे कह रहे थे, न ..? आप तनिाय होकर कदहये, फ़कसी से डरने की कोई ज़रूरत नहीां !” मगर तीज़ ब ई इस ब त को ट लत ेरहे, मगर ठ कुर स हब के ज़्य द ज़ोर देने पर आख़िर तीज़ ब ई को कहन पड़ “अतनद त ! कुां वर स हब क जतम होने के ब द, मुझ ेआपके जीवन की डोर पर ितर मांडर त हुआ ददख ई दे रह है ! क्य कहूां, आपक ददल-दररय व होने क स्वि व छुपे हुए दशु्मनों को आप पर व र करने क मौक़ देत रहेग ! मेरी आपसे प्र थान है, आप फ़कसी कुप र पर दय न करें !” यह सुनकर, ठ कुर स हब ख़खल-ख़खल कर हांसने लगे...फ़फर फ़कसी तरह अपनी हांसी पर क़ बू प कर, उतहोंने आगे कह “ब ईस ! शरण गत आदमी पर, दय रखनी पड़ती है ! यह तो र जपूतों क धमा है, बस मैं तो म त जी से यही प्र थान करत हूाँ ‘वे मेर धमा बन ए रखें !’ बस, एक ब र हवेली कुां वर की फ़कलक ररयों से गूांज़ उठे..यही मेरी इच्छ है, िले ब द में मेर कुछ िी हो !” क फ़ी वक़्त बीत ज ने के ब द, ब हर खड़ ठ कुर स हब क घोड़ दहनदहन ने लग ! उसक दहनदहन न सुनकर, ठ कुर स हब ने तुलसी र म से ववद लेनी च ही ! झट तुलसी र म से ससल हुआ कमीज़ लेकर, उतहोंने मुट्ठी िर च ांदी के कलद र उतहें थम ये ! फ़फर, वे रुख़्सत हो गए ! ठकुर इन स दहब ने जैसे ही प ाँव ि री होने के शुि सम च र ठ कुर स हब को ददए, और यह शुि सम च र पूरे र वले में फ़ैल गए..फ़फर क्य ? र वले में िुसशय ाँ छ गयी ! ठौड़-ठौड़, गुल ब के पुर्षपों की वांदन-ह र लटकत ेनज़र आने लगे ! र वले की द ससय ाँ नए वस्र और गहने पहनकर, र वले की स ज़-सज वट में लग गयी ! र वले में आये मेहम नों को, ये द ससय ां आदर-सत्क र से आसनों पर बैठ कर िोजन कर ने लगी ! उन मेहम नों क मनोरांजन करती हुई, ढोलतनय ां मीठे सुर में मांगल गीत ग ती हुई ढोलकी पर थ प देती ज रही थी ! थोड़ी देर ब द, जन नी ड्योडी की ज़ लीद र ज फ़ररयों के पीछे ठकुर इन स दहब को गद्दे पर सम्म न के स थ बैठ य गय ! उनके आस-प स खड़ी द ससय ां चांवर डुल ने लगी ! ठकुर इन स दहब के आस-प स गद्दों पर, ठ कुर स हब के मेहम नों की बहू-बेदटय ाँ बैठी नज़र आ रही थी ! कई द ससय ाँ, उनकी सेव में वह ां खड़ी थी ! थोड़ी देर ब द ठ कुर स हब और उनके मेहम न दीव न ि ने में तशरीफ़ ल ये, और आकर अपने-अपने आसनों पर आकर बैठ गए ! उनके आने के ब द नौकर-च कर उनको ठांड केवड़ जल वपल ने लगे, कई स की द खों क बन द रु च ांदी की सुर ही में सलए खड़ ेथे ! उन मेहम नों को, व ेद रु के ज़ म थम रहे थे ! ठ कुर स हब क इश र प त ेही स ज़ बज ने व लों ने अपने स ज़ छेड़ ददए, स ज़ से तनकले मीठे सुर पर त ल-मेल समल ती हुई ग ाँव बोडूांद की मुतनी प तुर घूमर लेकर न चने लगी...और स थ में, मीठे सुर में “र तड़ल्य ां रांग चुनरी” क गीत इस तरह ग ने लगी – “र त फूल रांग कोई, धोळ जी ज यळ र फूल ! र तड़ल्य ां रांग-चुनरी !१! घर आय सूरजजी पूछे, गोरी ए थ नै व्ह लो कुण ? र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !२! घर आय चांदरम जी पूछे, गोरी ए थ नै व्ह लो कुण ? र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !३! घर आय ववरम जी पूछे, गोरी ए थ नै व्ह लो कुण ? र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !४! घर आय गज ननजी पूछे, गोरी ए थ नै व्ह लो कुण ? र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !५! घर आय सगळ देवत पूछे, गोरी ए थ नै व्ह लो कुण ? र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !५! घर आय पीवजी पूछे, गोरी ए थ नै व्ह लो कुण ? र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !६! ब ळपणे म्ह री म यड़ प्य री, पीछे

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    जी म्ह र जळहर ब प ! र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !६! इण ब त ां सें गोरी ि र ल गौ, देस्य ां ए थ नै पीहर पुग य ! र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !७! िर जोबन केसररय प्य र , गोद्य ांजी जडूलौ पूत ! र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !८! आणे-ट णे बीरौजी प्य र , ि वजजी लुळ ल गै प ाँव ! र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !९! इण ब त ां सूां गोरी प्य र ल गौ, लेस्य ां थ नै दहवड़े लग य ! र तड़ल्य ां-रांग चुनरी !१०! र वले के ब हर घोड़ दहनदहन य , ब हर खड़ पहरेद र र वले के अतदर द ख़िल हुआ ! और उसने ग ाँव गांग णी सेठ मुल्त न मल की हवेली से, हरक र आने की इतल दी ! ये सेठजी, ठकुर इन स दहब के धमा ि ई ठहरे ! इस क रण हरक रे को, मेहम नों के कमरे में बैठ य गय ! थोड़ी देर ब द ठ कुर स हब क हुक्म प कर, वह हरक र ठ कुर स हब के स मने ह न्ज़र हुआ ! ह थ जोड़कर, उसने सेठ स हब क ित ठ कुर स हब को थम य ! फ़फर वह, ज़व ब प ने के इन्ततज़ र में खड़ रह ! ित पित ेही ठ कुर स हब के चहेरे की रांगत उतर गयी, न च-ग नें बांद करव कर उतहोंने पलटन को ग ाँव गांग णी की और कूच करने क हुक्म दे ड ल ! जब-तक ठ कुर स हब सेठ स हब की हवेली न पहुांच,े तब-तक वह हरक र उनकी हवेली पहुाँच गय ...और ज कर सेठ स हब को सतदेश दे ड ल फ़क, बुछेटी से ठ कुर स हब के रव न हो चुके हैं ! सम च र प कर, सेठ स हब के चहेरे पर सांतोष छ ने लग ! इस तरह िबर प कर, वे अब बेखौफ़ हो गए ! आख़िर ब त यह थी, सेठ मुल्त न मल की दोनों छोररय ां कमल और ववमल ववव ह-योग्य हो गयी थी ! उन दोनों बहनों की सग ई, बबर ई ग ाँव के सेठ मख्तूर मल और उनके अनुज सुगन मल के पुर श्य म ल ल और घनश्य म ल ल के स थ तय की गयी ! सेठ स हब की दोनों लड़फ़कय ां बहुत सुतदर और समझद र थी, इनके रूपवती होने की चच ा, अड़ोस-पड़ोस के ग ाँवों में चलती रहती थी ! ददल्ली सल्तन के सूबेद र सैय्यद अनवर अली क ि णज रमज न ख ां, इसी इल के में रहत थ ! इस इल के में गुांड -गदी और शैत नी हरक़तें करत , वह क फ़ी कुख़्य त हो गय थ ! लोगों के बीच उसने ि री आांतक मच रख थ , इस क रण लोग उसक न म सुनकर धूजत ेथे ! बह दरु आदमी िी इस ग ाँव में रहे होंगे, वे िी इसके म मू सैय्यद अनवर अली के ररश्त ेसे खौफ़ ख त ेथे ! सेठ स हब के दिु ाग्य की ब त है, फ़कसी कुटनी ने रमज न ख न के प स ज कर सेठ स हब की दोनों िूबसूरत छोररयों की सुतदरत की बहुत त रीफ़ कर ड ली ! फ़फर क्य ? झट उसने छोरी कमल से श दी करने की मांश से, सेठ स हब की हवेली में न ररयल सिजव ददय ! मगर सेठ स हब थे, कड़ ेतनयम व ले ! वे कैसे ववधमी के स थ, अपनी पुरी क ववव ह होने देत े? फ़फर क्य ? न ररयल व पस लौट आय , अब वह इस अपम न को बद ाश्त नहीां कर प य ! वह शैत न इन दोनों छोररयों क ज़ोर-ज़बरदस्ती से, अपहरण करने की योजन बन ने लग ! कहत ेहैं, िले आदसमयों के मध्य दोस्ती सहजत से नहीां हो प ती..मगर, एक स थ द रु पीने और तव यफ़ों क नतृ्य देखने व लों के बीच दोस्ती हो ज न स्व ि ववक है ! रमज न ख ां और गांग णी सेठ लेख र ज क कपूत पुर तज़े र ज रोज़ बोडूांद ग ाँव की तव यफ़ मुतनी ब ई के कोठे पर ज कर उसक नतृ्य देख करत ेथे, वहीीँ बैठकर वे दोनों समलकर द रु के ज़ म ि ली करत ेथे ! इस तरह दोनों दोस्त बन गए, और एक ददन वे दोनों कहीां बैठकर आपस में अपने दुुःख-सुख की ब तें करने लगे ! ब तों के ससलससले में, वे दोनों कमल और ववमल की सतुदरत पर चच ा कर बैठे ! रमज न ख ां ने तज़े र ज को बत य फ़क, ‘फ़कस तरह उसक िेज गय सग ई क न ररयल, सेठ मुल्त न मल ने लौट य ?’ फ़फर क्य ? दोनों शैत न कुबदी च लें चलने पर ववच र करने लगे फ़क, ‘इन दोनों छोररयों को, उनकी श दी के पहले कैसे उठ य ज य ?’ दोनों कुबदी समरों ने आपस में यह िी तय कर सलय फ़क, बड़ी लड़की कमल के स थ रमज न ख ां तनक ह करेग और छोटी ववमल के स थ तज़े र ज श दी करेग ! ब त यह िी थी, सेठ लेख र ज क स र धन-म ल, उसके कपूत पुर तज़े र ज ने द रु और तव यफ़ों के कोठे पर उड़ ददय ! इस तरह सेठ लेख र ज हो गए, कां ग ल ! इधर सेठ स हब उस छोरे की ग़लत हरक़तों के क रण, वे फ़कसी को मुांह ददखल ने ल यक नहीां रहे ! छोरे की गांदी आदतों के क रण, उतहोंने घर से ब हर तनकलन बांद कर ददय ! एक ददन ऐस िी आय , इस छोरे की हरक़तों से परेश न होकर वे अपन म नससक सांतुलन खो बैठे और

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    गले में फां द ड लकर उतहोंने अपनी जीवन-लील सम प्त कर ड ली ! इनकी मौत के ब द तो छोर तज़े र ज पूरी तरह से आज़ द हो गय , जो थोड़ी-बहुत वपत की आाँख की शमा थी वह िी उनकी मौत से ित्म हो गयी ! अब तो सोत-ेउठत ेग ाँव की जव न बहू-बेदटयों के ददल में, उनकी इज़्ज़त ज ने क खौफ़ पैद हो गय ! यह इज्ज़त ज ने क खौफ़ उनके ददल में इस क़दर छ गय फ़क, व ेघर से ब हर अकेली पनघट पर ज ने की दहम्मत नहीां जुट प ती थी ! फ़कदवांती है, ‘िले आदसमयों क समलन सयोग से होत है, मगर बुरे आदसमयों के बीच दोस्ती झट हो ज य करती है !’ इस तरह, ठ कुर स हब के आतांररक दशु्मन िव सजी िी आकर इन दोनों से समल गये ! अब इन तीनों की दोस्ती रांग ज़म ने लगी ! फ़फर क्य ? ये तीनों समलकर, सेठ मुल्त न मल की छोररयों को उठ ने की योजन बन ने लगे ! यह छोररयों को उठ ने की िबर जैसे ही सेठ स हब को समली, वे फ़फक्रमांद हो गए ! उतहोंने झट हरक र ठ कुर स हब के प स िेजकर मदद के सलए गुह र लग ई, त फ़क इन दोनों छोररयों की सग ई क सम रोह श न्तत से तनपट ज य ! इस तरह सेठ स हब की चतुर ई क म आ गयी, और इन दोनों को ठ कुर स हब के आने की सूचन न समल प यी ! अत: ये दोनों पवूा क याक्रम के अनुस र इन दोनों छोररयों के अपहरण की योजन को फ़क्रय न्तवत करन ेके उद्धेश्य से हरजी ब के खेत में ब तें कर रहे थे, जह ां इनके नए समर िव सजी िी मौजूद थे ! जग में यह फ़कदवांती है फ़क, वपयक्कड़, आदतन-बदम श, वहशी रससक और ल लची आदसमयों के बीच दोस्ती जल्द हो ज य करती है ! ग ाँव नगररय के ब हर न्स्थत र म पीर के मांददर के प स सतन ट छ य हुआ थ , वह ां च रों तरफ़ खेतों में लगी ब ज़रे की फ़सल हव के झोंकों से लहर रही थी ! मांददर के स मने आये हरजी ब के खेत में कहीां दरू, दहलत ेहुए ब ज़रे के पौधे इांस न य ज नवरों की उपन्स्थतत दजा कर रहे थे ! मांददर के ब हर नीम के चबूतरे पर बैठे दो कृषक सुरज र म और खेत र म, बठेै हफ्व त ह ांक रहे थे ! “कौन देख रह है आदमी के अतदर, इस धरती को कड़ी नज़रों से ? स मने हरजी ब के खेत में ब ज़रे के पौधे य तो हव के झोंके से दहल रहे हैं, य फ़फर इन पौधों के बीच आदमी य ज नवर अपनी मौज़ूदगी बत रहे हैं ?” सुरज र म ने, खेत र म से सव ल फ़कय ! “श यद कोई बुरे इांस न ग़लत नीयत से खेत के अतदर द ख़खल हो गए हों, य फ़फर और कोई...?” खेत र म ने, ज़व ब ददय ! “फ़फर क्य ? तू ज कर म लूम कर खेत ि ई, इस खेत में आख़िर द ख़िल हुआ कौन है ?” सुरज र म कहने लग ! “मुझ ेबत , खेत ि ई ! तूझ ेक्य नज़र आ रह है ?” सुरज र म ने ज़व ब न देकर, व पस खेत र म से सव ल फ़कय ! कुछ सोचत हुआ, खेत र म बोल “मुझ ेतो इांस न चररर से थगर हुआ नज़र आ रह है, र क्षसी प्रवतृत बिती ज रही है और धरती पर ववपद अपने प ांव पस रती नज़र आ रही है !” “ह ाँ ि ई, तू सच्च कह रह है ! इस ब र धरती ह र ज येगी, क्योंफ़क बुरे लोगों की बुरी तनग़ ह इस धरती पर जमती ज रही है ! इन बुरे लोगों को नज़र-अांद ज़ करत हुआ, यह सांस र अांध हो चुक है !” सरुज र म लम्बी स ांस लेत हुआ बोल ! तिी उसकी नज़र स मने से आत ेहुए हरजी ब पर पड़ी, जो ददश मैद न ज कर इधर ही ह थ-मुांह धोने आ रहे थे ! चबूतरे के प स आत ेही उतहोंने ददश -मैद न तनपटने क डब्ब नीम के नीच ेरख , फ़फर उतहोंने सुरज र म को लोटे में प नी ल ने क कह ! सुरज र म झट उठकर, मटकी में लोट डूब कर प नी ले आय ! फ़फर उनके ह थ-मुांह धुल कर, लोट यथ -स्थ न रख ददय ! हरजी ब ने कां धे पर रखे अांगोछे से, अपने ह थ-मुांह पोंछ ड ले, और फ़फर चबूतरे पर आकर बैठ गए ! फ़फर, वे बोले “सत्य ब त कह रहे हैं, आप दोनों ! अब तो यह आदमी इस दतुनय को ख ज ने में तुल हुआ है, अब कह ाँ रह ईम न ? देखो खेत र मजी, एक ही ग ाँव के जव न छोरे और छोरी के बीच क्य ररश्त होत है..बोसलए ? तह ररश्त ि ई और बहन क हुआ य नहीां, बोलो खेत र मजी ! मगर, कहूां क्य ? ि ई, अब तो कलयुग आ गय !”

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    “ब ’स ! कोई नयी ब त सुनकर आ गए, क्य ?” चबूतरे पर बैठे खेत र म ने, हरजी ब से सव ल फ़कय ! “इन आाँखों से देख , और अिी-अिी इन क नों से सुनकर ही आय हूाँ ! कहने में मुझ ेलज्ज आती है, व ह ि ई व ह..क्य ज़म न आय है ?” हरजी ब बोले ! “कह दीन्जये, ब ’स ! वैसे िी आपके पेट में ब त छुपती नहीां, न कहने पर आपके पेट में ददा होग ..और मरोड़ ेपैद होंगे आपके पेट में ! फ़फर क्य ? डब्ब लेकर ब र-ब र आप ददश -मैद न ज त,े िूांड े लगोगे ! फ़फर, कह ही दो न ब त...आख़िर ब त क्य है ?” खेत र म मुस्कर कर, बोल ! तिी हरजी ब की मज़ह क़ उड़ त हुआ सुरज र म बोल पड़ “यह क्य ब ’स , िरी दोपहरी में ब र-ब र आपको ददश -मैद न ज त ेदेखकर लोग आपके ब रे में न म लुम क्य -क्य ब तें बन येंगे ? फ़फर क्य ? स री ब त कहकर, म मले को यहीां तनपट दीन्जये न ! आख़िर, बेच रे हरजी ब को कहन ही पड़ “क्य कहूां, आपको ? ऐसी ब त कहने में, प प लगत है ! इन हर मखोरों की ब त, क्य कहनी ? कहने से केवल अपनी ज़ब न ही िर ब होती है, और क्य ?” इतन कहकर हरजी ब ने अपने अांगोछे से मुांह व पस स फ़ फ़कय , और फ़फर बोले “लीन्जये सुतनए, ऐसी ब त सुनने के पहले मेरे ये प पी क न फूटे ही क्यों नहीां ? ब त यह सुनी, जैसे ही मैं शौच ज ने के सलए खेत में बैठ ही थ ...और ये तीनों लांगूर आ गए वह ां ! एक तो थ सेठ लेख र ज क कपूत बेट तज़े र ज, दसूर थ यह कमबख़्त रमज तनय और तीसर इन कमीनों क ब प..यह ठ कुर स हब क िव स ! यह कमबख़्त िव स तो ऐस कमीन तनकल , यह न्जस थ ली में ख त है उसी में छेद करत है ! यह प पी उन दोनों को, ठ कुर स हब को म रने की योजन समझ रह थ !” इतन कहकर, हरजी ब ने लम्बी स ांस ली ! पूरी ब त सुने बबन सुरज र म से रह नहीां गय , वह झट उचक-लट्टू की तरह बीच में बोल पड़ “ब ’स ! पहले आप यह ब त तो समझ इये फ़क, यह रमज न ख ां और तज़े र ज वह ां इकट्ठे हुए ही क्यों ? इस िव स को क्य पड़ी, जो इन प वपयों क स थ देने के सलए वह तैय र हो गय ? ववस्त र से समझ कर कदहये, ब ’स !” “ठ कुर स हब तो है, सेठ मलु्त न मलजी के रक्षक ! ठ कर स हब मर ज ए तो, सेठ स हब अपने-आप मर ज येंगे..ठ कुर स हब के ब द, उनको बच ने व ल रहेग कौन ? फ़फर क्य ? सेठ स हब की दोनों छोररय ां, कमल और ववमल ..” इतन कहकर, हरजी ब ने लम्बी स ांस लेकर थोड़ ववश्र म फ़कय ! फ़फर, वे आगे बोले “कमल को तो ले ज येग , यह रमज न ख ां..और, यह ववमल इस कपूत तज़े र ज के ह थ लग ज येगी !” “यह ब त तो समझ में आ गयी, ब ’स ! मगर मेरे समझ में न आय फ़क यह िव स क्यों नमकहर मी कर रह है, ठ कुर स हब के स थ ?” खेत र म बोल ! “बबन स्व था कौन करत है, क म ? ठ कुर स हब की दौलत पर, इस कुबदी की बुरी नज़र है ! और तुम दोनों को यह तो ध्य न है फ़क, ठ कुर स हब की कोई औल द नहीां है ! फ़फर ठ कुर स हब के मरने के ब द, यह ज गीर फ़कसकी होगी ? बोल, खेत र म !” यह ाँ तो हरजी ब ने खुद ने पूछ सलय सव ल, खेत र म से ! इतने में घोड़ े दहनदहन ये, थोड़ी देर ब द ब ज़रे के पौधे दहलत े नज़र आये ! यह मांज़र देख रहे हरजी ब बोले “लीन्जये, ये तीनों हर मी ज रहे हैं ! िगव न ज नें, अब ये तीनों कह ाँ ज येंगे अपन मुांह क ल कर ने ?” तीनों कृषक खांख रकर मुस्कर ने लगे, थोड़ वक़्त बीत ही होग ...स मने के म गा में, घोड़ो की ट पों से धूल उड़ती नज़र आयी ! इस नीले आसम न में, इस उड़ रही धूल छ ज ने से वह पील नज़र आने लग ! कुछ ही वक़्त ब द, घोड़ों पर सव र ठ कुर रणजीत ससांह और उनकी पलटन स मने से आती नज़र आने लगी ! कुछ ही देर ब द, व ेलोग मांददर के प स आकर घोड़ों से उतरे ! ठ कुर रणजीत ससांह के घोड़ ेसे उतरत ेही उनक एक स थी उनके प स आय , और उनके घोड़ ेको प नी वपल ने के सलए उसे अव ले के प स ले गय ! ठ कुर स हब को देखत ेही तीनों कृषकों ने

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    उठकर, उतहें धोक लग ई ! फ़फर वे तीनों, ह थ ब ांधकर खड़ े हो गए ! हरजी ब ने झट प स पड़ी खदटय को बबछ कर, ठ कुर स हब को बैठ य ! फ़फर ह थ जोड़कर, ठ कुर स हब से पूछने लगे “हुकूम ! कैसे पध रे, म सलक ?” “सेठ मुल्त न मलजी ने बुल य थ , चौधरीजी ! पहले आप मुझ ेयह बत एां, आप तीनों यह ाँ कैसे बैठे हैं ? फ़कस मुद्दे पर, आप चच ा कर रहे हैं ?” इतन कहकर, ठ कुर स हब ने अपने अांग-वस्र से लल ट क पसीन पोंछ ड ल ! हरजी ब बोले “म सलक आप हैं बड़ ेज गीरद र, और हम ठहरे ग़रीब कृषक..हम री कह ाँ दहम्मत, जो आपके फ़कसी मज़ीद न आदमी के ख़खल फ़ आपसे सशक यत करें ? और कह ाँ है हममें, आपको सल ह देने की योग्यत ? मगर म सलक, हमने इन प पी क नों से सुन है फ़क...” इतन कहकर, हरजी ब हो गए चुप ! मगर ठ कुर स हब के मन में वहम के कीड़ ेको रेंगने क मौक़ समल गय , अब बबन पूछ-त छ फ़कये ठ कुर स हब से रह नहीां गय ! उनको ऐस लगने लग फ़क, ये कृषक उनसे कोई ब त छुप रहे हैं ! आख़िर उनक िय दरू करत ेहुए, ठ कुर स हब बोले “ब ’स ! आप तनिाय होकर कदहये, वैसे आप तो ज नत ेही हैं फ़क..तय य की तर ज़ू सिी सम न है, कोई छोट -बड़ नहीां ! आप उस आदमी के ख़खल फ़, तनसांकोच सशक यत कर सकत ेहैं...िले वह आदमी, मेर फ़कतन ही मज़ीद न हो ?” “तब सुतनए, म सलक ! आपके ि स मज़ीद न िव सजी, आपके स थ छल कर रहे हैं ! उतहोंने रमज न ख ां और लेख र ज के कपूत बेटे तज़े र ज के स थ ह थ समल कर, आपको म रने की पूरी योजन बन ली है !” हरजी ब बोले ! “हुज़ूर ! अिी-अिी ये तीनों कपटी लोग, अपने स थथयों के स थ गांग णी ग ाँव की ओर गए हैं !” खेत र म ने कह ! “म सलक ! इन तीनों ने समलकर ऐसी योजन बन यी, न्जसे सुनकर मुझ ेबहुत अचरच हुआ !” इतन कहकर, हरजी ब ने नज़दीक आकर ठ कुर स हब के क न में फुसफुस कर पूरी योजन उनको बत ड ली ! फ़फर क्य ? पूरी ब त सुनत ेही, ठ कुर स हब के बदन के रोम-रोम खड़ ेहो गए ! फटके से उतहोंने, पलटन को गांग णी की ओर कूच करने क हुक्म दे ड ल ! थोड़ी देर में ठ कुर रणजीत ससांह की पलटन गांग णी की तरफ़ कूच करती नज़र आने लगी, अब घोड़ों की ट पों से उड़ी धूल से आसम न पील-पील ददख ई देने लग ! सेठ स हब की हवेली के तनकट जैसे ही ठ कुर स हब की पलटन पहुाँची, वह ां च रों ओर घेर ड ले रमज न ख ां के आदमी अस्र-श स्र सलए खड़ ेथे ! फ़फर क्य ? अच नक ठ कुर स हब की पलटन ने, ध व बोल ददय ! रमज न ख ां के कई आदमी लड़ ई में म रे गए, और कई आदसमयों को बांदी बन सलय गय ! मगर, मौक़ समलत ेही, रमज न ख ां और तज़े र ज ज न बच कर ि ग खड़ ेहुए ! दशु्मन की ह र हो गयी, मगर दिु ाग्य से ये दोनों िबती इनके ह थ आने से रह गए ! फ़फर क्य ? ‘जय म त जी’ क ववजयन द करती हुई, ठ कुर स हब की पलटन सेठ स हब की हवेली में घुसी ! ववजयन द सुनत ेही, सेठ स हब ने आगे बिकर ठ कुर स हब क स्व गत फ़कय ! िव सजी तो इस हवेली में पहले से मौज़ूद थे, और यह ाँ आकर वे सेठ स हब को उल्टी पट्टी पि रहे थे फ़क, आप लुग ई-ट बरों को स थ लेकर पीछे के दरव ज ेसे ब हर तनकल ज ओ ! और, उधर उनके ददल में प प सम य हुआ थ फ़क, ‘जैसे ही सेठजी अपने पररव र सदहत वपछव ड़ ेके दरव जे से ब हर तनकलेंगे..उसी वक़्त वह ां खड़ रमज न ख ां और उसके आदमी इन लोगों को अपने क़ब्ज़े में ले लेग !’ मगर, सेठजी ने िव सजी की कोई सल ह नहीां म नी, इससे िव सजी की योजन धरी रह गयी ! अब अपने स मने यमर ज-सम न ठ कुर स हब को खड़ ेदेखकर, बेच रे िव सजी की थगग्गी बांध गयी ! उनके ह थ-प ाँव, डर के म रे धूजने लगे ! अब वक़्त क फेर देखकर, िव सजी ठ कुर स हब को प ाँव-धोक देने लगे ! फ़फर क्य ? हमेश की तरह, वे अपनी-थचकनी-चुपड़ी ब तों से ठ कुर स हब को लुि ने की कोसशश करने लगे ! उनक कहन थ फ़क, ‘उतहोंने सबसे पहले यह ाँ आकर, सेठ स हब की मदद की है !’ मगर ठ कुर स हब, कह ाँ उनकी थचकनी-चुपड़ी ब तों में आने व ले ? वे तो िव सजी क िेद पहले से ही ज नत ेथे, उनको िव सजी कैसे बरगल सकत ेथे ? ठ कुर स हब रहे, चतुर ! उतहोंने ब हर से यह बबल्कुल िी नहीां जत य फ़क, ‘वे िव सजी के स रे िेद ज न गए हैं !’

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    बस, वे मुस्कर त ेहुए िव सजी से बोले “िव सजी ! मैं आपको एक बड़ इन म ज़रूर दूांग , आप र वल पहुाँचने पर इस इन म को लेन िूलन मत !” िव सजी तो ठहरे तनरे बेवकूफ, वे समझ न सके ‘इसके कहने के पीछे, ठ कुर स हब की ब त क क्य अथा है ?’ बस, वे मूखा की तरह बोल उठे “खम्म घणी, ब बजी ! आप देत ेरहें, और यह आपक द स आपकी दय से लेत रहेग ! मेर तो अहोि ग्य है, आप जैसे म सलक की दय मुझ ग़रीब पर बनी हुई है ! मगर एक सत्य ब त आपसे ज़रूर कहूाँग , आख़िर मैंने आपक नमक ख य है हुज़ूर ! अगर आप नहीां आत ेतो, मैं अब-तक इस प पी रमज तनय क म थ क टकर आपके चरणों में रख देत हुज़ूर ! अब िले आप पध र ही गए, तो अब...” िव सजी की थचकनी-चुपड़ी ब त को सुनकर ठ कुर स हब हांस पड़,े और कहने लगे “कुछ नहीां, िव सजी ! मैंने युद्ध फ़कय , य आपने फ़कय ..ब त तो एक ही है ! बस, अब आप र वल चसलए..वह ां एक बड़ इन म आपक इन्ततज़ र कर रह है !” ठ कुर स हब क ददल तो दय से िर होने से, यह ब त ‘आयी-गयी ब त’ बनकर रह गयी ! लम्बे वक़्त से, िव सजी की लुग ई ठकुर इन स दहब की सेव -च करी मन लग कर कर रही थी ! अब गिावती होने के दौर में, उनको सेव की बहुत ज़रूरत थी ! इस क रण ठकुर इन स दहब ने बीच में पड़कर, िव सजी को म फ़ी ददलव दी ! िव सजी के ये दो रूप, िोले इांस नों को कैसे समझ में आत े? उतहें क्य म लमु, घ व ख ए हुए स ांप को यों खुल छोड़ नहीां ज त ..अगर छोड़ िी ददय ज य, तो वह आदमी को डसे बबन नहीां रहत ! ठ कुर स हब के स मने हमेश वफ़ द र बने रहने क व द करके, िव सजी ने व पस ठ कुर स हब को अपनी थचकनी-चुपड़ी ब तों में ठ कुर स हब को फां स कर उनकी पुर नी बीती य दें िूल दी ! फ़फर क्य ? उनक व पस पहले की तरह, ठ कुर स हब के स थ उठन -बैठन शुरू हो गय ! कई महीने बीत गए, ठकुर इन स दहब को नम मदहन लग गय ! उनक गज ननी पेट उिरकर, ब हर आ गय ! िव सजी की पन्त्न ने द वे के स थ उनको कह रख थ फ़क, ‘ठकुर इन स दहब ! आप कुां वर स हब को ही, जतम देंगी !’ वक़्त बीतत गय , एक ददन सेठ मुल्त न मल के िेज ेगए सम च र ठ कुर रणजीत ससांह को समले ! ित में सलख थ फ़क, ‘छोररयोँ क ववव ह आख तीज को तय हुआ है, आपको कतय द न के वक़्त गांग णी आन है !’ अब यह आख तीज तो, च र ददन ब द ही आने व ली..और इधर ठकुर इन स दहब पूरे ददनों में...न ज ने किी िी, वह अपने सांत न को जतम दे सकती थी ! ऐसी न्स्थतत में, उनको गांग णी स थ ले ज न ितरे से ि ली नहीां ! ठकुर इन स दहब को यह ाँ छोड़कर गांग णी ज न , ठ कुर स हब क ददल नहीां म न रह थ ! इसी उधेड़बुन में फां से, ठ कुर स हब कोई तनणाय कर नहीां प रहे थे ! आख़िर, ठकुर इन स दहब ने उनको अपनी कसम देकर उनको गांग णी ज ने के सलए तैय र फ़कय ! ववव ह के पहले सेठ स हब के प स िबर आयी फ़क, ‘ववव ह के वक़्त रमज न ख ां और तज़े र ज ववव ह-स्थल पर आकर रांग में िांग ड लेंगे !’ अत: उतहोंने हवेली की सुरुक्ष हेतु, आठ-दस लठैतों को हवेली के आस-प स तैन त कर ददय ! यह इांतज़ म करने के ब द िी उनको आशांक रही फ़क, ‘ये लठैत युद्ध-कल में तनपुण नहीां है, कहीां हमें पर जय क मुख तो न देखन पड़ े? अगर ऐस हो गय तो, स री कम ई हुई इज्ज़त धूल में समल ज येगी !’ ऐसी न्स्थतत में उनको केवल ठ कुर स हब पर ही िरोस थ , आख़िर उतहोंने अपन हरक र िेजकर उतहें कहल ददय फ़क, गांग णी आत ेवक़्त वे अपनी पलटन स थ लेत ेआयें !’ इस तरह ठ कुर स हब ने सेठ स हब की ब त क म न रखत ेहुए, उतहोंने अपनी पलटन के स थ गांग णी की और कूच फ़कय ! म गा में ग ाँव नगररय के प स उतहें एक हरक र समल , उसने इनको वह ां रोककर सूचन दे ड ली फ़क, ‘ठ कुर स हब ! रमज न ख ां के आदसमयों ने सेठ स हब की हवेली को च रों ओर से घेर रख है, अत: सेठ स हब ने कहल य है फ़क आप पलटन के स थ शीघ्र हवेली की ओर कूच करें !’ हरक रे द्व र ददए गए सतदेश को सुनकर, ठ कुर स हब को कतई सांदेह नहीां हुआ फ़क यह हरक र सच्च है य दशु्मन क िेज हुआ झूठ आदमी है..जो उनको

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    म गा से िटक कर सही जगह ज ने से रोक रह है..?’ बस, फ़फर क्य ? बबन सोच-ेसमझ ेठ कुर स हब सरवरे-प ल व ले म गा को छोड़कर, वे पलटन सदहत हवेली की ओर बि गए ! हवेली में पहुांचत ेही, उतहोंने क्य देख ? हवेली पूरी तरह सुरुक्षक्षत है, और उनको कहीां िी रमज न ख ां के आदमी नज़र नहीां आये ! केवल आठ-दस सेठ स हब के लठैत, हवेली की सुरुक्ष में तैन त ज़रूर नज़र आये ! सेठ स हब को ठ कुर स हब के आने की इतल समलत ेही, वे झट उनके स्व गत हेतु ब हर आये ! तब ठ कुर स हब ने, सेठ स हब से पूछ “सेठ स हब ! आज़कल आप मज़ह क़ क फ़ी कर सलय करत ेहैं ? कदहये, कह ाँ है रमज न ख ां के आदमी ?” इसके ब द, उतहोंने हरक रे की कही हुई स री ब त ववस्त र से कह ड ली ! सुनकर, सेठ स हब को बहुत अचरच हुआ ! उतहोंने कह “हुज़ूर ! मैंने फ़कसी हरक रे को आपके प स नहीां िेज , और ि स तौर उस हरक रे को तो िेज ही नहीां..न्जसने रमज न ख ां द्व र हवेली घेरे ज ने की ब त, आपसे कही है..? मझु ेतो लगत है, यह रमज न ख ां की कोई सोची-समझी च ल है !” सेठ स हब की ब त सुनकर, ठ कुर स हब को फ़फ़क्र होने लगी ‘श यद यह सच्च हो, यह रमज न ख ां की सोची-समझी च ल हो..?’ व ेफ़फ़क्र करत ेहुए, वहम समट ने के सलए, झट सेठ स हब से सव ल कर बैठे “सेठ स हब ! दोनों छोररय ां कह ाँ है ? जह ां कहीां िी है, उनके स थ रक्षकों को स थ िेज य नहीां ?” “दोनों छोररय ां अपनी सहेसलयों के स थ, मांददर गयी है ! ग़लती हो गयी हुज़ूर, फ़कसी एक िी लठैत को िी स थ िेज नहीां मैंने !” सकुच त ेहुए, सेठ स हब बोले ! “यह आपने क्य कर ड ल , सेठ स हब ? आप ज नत ेनहीां, वह सरवरे-प ळ व ल मांददर सुनस न जगह पर आय हुआ है ! उनको वह ां ज ने की इज ज़त, आपने कैसे दे ड ली ? उनकी सुरुक्ष में आपने एक िी आदमी स थ नहीां िेज , ऐसी मूखात कैसे कर ड ली आपने ?” ठ कुर स हब झुांझल त े हुए बोले ! अब सेठ स हब अपनी ग़लती पर पछत ने लगे फ़क, ‘आख़िर उतहोंने बबन पहरेद र, उनको कैसे ज ने ददय ?’ फ़फर क्य ? वे तनग़ हें नीची करके, चुपच प खड़ ेरहे ! उन दोनों को फ़फक्रमांद प कर, ठ कुर स हब के प स खड़ ेिव सजी िुश नज़र आने लगे ! मगर उतहोंने अपने ददल में छ ई िुशी ज़ दहर नहीां होने दी, और ऊपर से ठ कुर स हब को सल ह देत े हुए कहने लगे “म सलक ! आप क हे फ़फ़क्र कर रहे हैं, हुज़ूर ? अब आप ऐस कीन्जये हुज़ूर फ़क, कुां वर र म ससांहजी को पूरी पलटन के स थ यहीां हवेली में रोक दीन्जये, और फ़फर अपुन दोनों चलत ेहैं सरवरे-प ळ !” ठ कुर स हब को ऐस लग , ‘व स्तव में िव सजी को िी, उन दोनों छोररयों की फ़फ़क्र है !’ मगर उनके ददल के अतदर तछपे कपट को, कौन ज न सकत थ ? फ़फर क्य ? ठ कुर स हब ने उनके स थ सरवरे-प ळ चलने की मांजूरी दे ड ली, और व पस घोड़ ेपर सव र होकर वे िव सजी से बोले “चसलए, चसलए िव सजी ! अब क हे की देर करनी !’ मगर सेठ स हब तनकले चतुर, उतहोंने झट घोड़ ेकी लग म पकड़कर ठ कुर स हब को रोकत ेहुए कह “ज़म न िर ब है, आप अकेले कैसे ज रहे हैं ठ कुर स हब ? इस रमज न ख ां की कुच लों को, कौन समझ सकत है ? आप तो म सलक पांरह-बीस हथथय र-बांद स थथयों को स थ लेकर ज एाँ, न म लुम क्य मुसीबत आ ज य ?” अपन क म बबगड़त ेदेख, िव सजी सेठ स हब को ज़हरीली नज़रों से देखने लगे, वे होठों में ही सेठ स हब के सलए ग सलयों की पची तनक लने लगे ‘न म लुम कह ाँ से आ गय , यह खोड़ड़ल -ख म्प ? न ल यक मेरी मेहनत पर प नी ड लत ज रह है ?’ फ़फर क्य ? अपन स्व था स धत े हुए, िव सजी मीठे सुर में ठ कुर स हब से कहने लगे “म सलक ! इस पलटन को क्यों तक़लीफ़ देते हैं, आप ? हमल होग , तो हवेली पर होग ! उस मूखा गांव र रमज तनये को क्य पत्त , श दी के पहले वधु पूज के सलए मांददर ज य करती है ? अपुन तो झट चलत ेहैं, सरवरे-प ळ ! अगर दशु्मन आ गए तो अपुन-दोनों क फ़ी हैं, उनसे लोह लेने के सलए !” ठ कुर स हब ने तो िव सजी की दी गयी सल ह म न ली, मगर उनक ितीज र म ससांह म न नहीां ! उसने ज़बरदस्ती दस-पांरह हथथय र-बांद स थथयों को, उनके स थ िेज ददए ! वह ां से ये लोग रव न हुए, म गा में पेट पकड़कर िव सजी ठ कुर स हब से बोले “ठ कुर स हब ! आत ेवक़्त ब सी र बोड़ी के स थ ब ज़रे की रोटी ख कर आय हुज़ूर, अब इस पेट में मरोड़ ेउठ रहे हैं ! हुज़ूर, अब क्य करूाँ ? बद ाश्त नहीां होत ..दीघा-शांक रोकी न ज रही

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    है हुज़ूर ! मैं तो अब तनपटकर ही आ ज ऊां ग , सरवरे-प ळ ! आप आगे चसलए, म सलक !” इतन कहकर, िव सजी ने घोड़ रोककर, उसे पेड़ से ब ाँध ददय ! फ़फर थैली तनक लकर, उसमें से लोट ब हर तनक लने क असिनय करने लगे ! ददश -मैद न ज ने की तैय री करत ेदेख, ठ कुर स हब और उनके स थथयों ने अपने घोड़ ेआगे बि ददए ! पीछे से उन घोड़ों के ट पों से उड़ी धूल को देखकर, िव सजी मुस्कर ने लगे ! फ़फर क्य ? उनको कह ाँ ज न थ , ददश -मैद न ? झट लोटे को थैली में रखकर उस थैली को उतहोंने व पस यथ स्थ न रख दी, फ़फर पेड़ से रस्सी खोलकर व ेझट घोड़ ेपर सव र हो गए ! फ़फर वे मुस्कर त ेहुए कहने लगे “मैं वह बोरटी क क ाँट हूाँ, जो पूरी चमड़ी को लेकर ही ब हर तनकलत हूाँ ! अरे ए ठ कुर, तू मुझ ेक्य ज नत है ? मैं तो हूाँ, ससय सती शतरांज क बेत ज़ ब दश ह ! अब देखन , मेरी ससय सती शतरांज की नयी च ल !” इतन कहकर, िव सजी ने अपने मुांह से बज यी ज़ोर से सीटी ! सीटी सुनकर पेड़ों पर बैठे रमज न ख ां और उसके दो-च र स थी पेड़ों से कूद-कूदकर उनके प स आने लगे ! “िव सजी, मुज़रो स ! क्य ह ल हैं, आपके ?” इतन कहकर, रमज न ख ां ने थैले से बतदकू ब हर तनक लकर उसे िव सजी को थम यी ! िव सजी ने उस बतदकू को ह थ में लेकर, उसके कल-पूजों की ज ांच करने लगे ! ज ांच करते-करत,े वे रमज न ख ां से बोले “मेरे ह ल तो ठीक है, ख ां स हब ! मुझ ेतो इस बतदकू की ह लत देखनी होगी, क म पड़ ेतब यह गोली द गेगी य नहीां..य ट ांय-ट ांय फ़फस्स होकर रह ज येगी ?” “ल होल ववल कूव्वत ! कैसी ब त कर रहे हो, िव सजी ? क्य आपको मुझ पर, इतन िी िरोस नहीां ? अरे जन ब, ि सलस म ल है ! फ़फरांगी से िरीदकर ल य हूाँ !” रमज न ख ां बोल ! “इस ब त को आप ज नत ेहैं, ख ां स हब ! आपको ऐसी चीज़ें इस्तेम ल करने क अच्छ -ि स तुज़ुब ा ठहर ! मैं बेच र िोल जीव क्य ज नूां ?” खांख रकर, िव सजी आगे बोले “आपको क्य म लुम, मैं तो बेच र दोनों तरफ़ से म र ज ऊां ग ? पोल खुल गयी तो यह ठ कुर ब ज़ की तरह एक ही झपट्ट म रकर, मुझ ेबेमौत म र ड लेग ! नहीां तो, ठ कुर के मरने के ब द इसक ितीज र म ससांह मुझ ेफ़कसी ह लत में छोड़ने व ल नहीां !” “अब इन ब तों को दोहर ने से कोई मतलब नहीां, िव सजी ! आपको म लुम नहीां फ़क, मैंने कई च ांदी के कलद र आपको नज़र फ़कये हैं, मुफ़्त में मैं आपसे क म नहीां करव रह हूाँ ! अब चसलए, यह ाँ से ! मांददर अगर देरी से पहुांचे तो, यह ठ कुर इन छोररयों को सेठ की हवेली में पहुांच देग !” इतन कहने के ब द, रमज न ख ां मुांह से लम्बी सीटी बज ई ! सीटी की आव ज़ सुनकर झ ड़ड़यों के पीछे घ स च र रहे घोड़ े दौड़कर नज़दीक आ गए, और दहनदहन ने लगे ! फ़फर क्य ? सिी घोड़ों पर सव र होकर, सरवरे-प ळ ज ने व ली पगदांडी पर अपने घौड़ ेदौड़ ने लगे ! सरवरे-प ळ पर बने मांददर की घांदटय ाँ बज रही थी ! मांददर के ब हर न्स्थत पेड़ों पर बैठी कोयलें कुहुक-कुहुक के मीठे सुर तनक लती हुई, इस श ांत व त वरण को सांगीत-मय बन रही थी ! कोयलों के मीठे सरुों के स थ, मांददर में पूज करने आयी जव न छोररयों की फ़कलक ररय ां गूांज़ रही थी ! छोररयों के ह थ में थ मे पूज के थ ल लेकर पुज री ने देवत की पूज की, फ़फर उसने उनके थ ल में प्रस द ड लकर थ ल व पस छोररयों को लौट ए ! पुज री ने सिी छोररयों को आशीव ाद देकर, उतहें रुख़्सत दी ! मांददर की सीदिय ां उतरत ेवक़्त, कमल और ववमल की सहेसलय ां उनसे मज़ह क़ करती ज रही थी ! व ेउन दोनों को छेड़ती हुई गीत ग ने लगी “लोग कैवै स सरो जैळ हुव े! पण म्ह र स सर म यां म्ह री स स म ां जैड़ी हेज़ करै ! म्ह र ससुरोजी म्हने देख’र, घण र ज़ी होवै ! म्हने कदेई बेट कैवै, नै कदेई घर री सलछमी ! बीांद, म्ह री जीवन री जोत घणो ई ल ड करै ! म्ह री जेठ णी, म्हने बैन ज्यूां समझे स गै न्जम वे, कव देवै ननांद म्ह री सखी री ज्यूां, स गै रमै हांसे नै हांस वै ! सगळ आस-पड़ोसी घण ई आससरवचन देवै मै तौ कैवूां, म्ह रो स सररयो जैळ नहीां ल गै, सुरग ल ग ै!” मांददर की आख़िरी सीिी उतरत े ही उन छोररयों को ऐस लग फ़क, ‘प स पेड़ पर बैठ कोई इांस न य ज नवर, ड सलयों के पत्तों को कोई झकझोड़ रह है !’ तिी उनको बड़ी ड ली पर बैठ , तज़े र ज नज़र आय ! वह उन पेड़ के

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    पत्तों से मुांह ब हर तनक लकर, छोररयों को सुन त हुआ ज़ोर से वहशी ब त कहने लग “ससुर ल स्वगा लगत है..तो आ ज रमकूड़ी-झमकूड़ी मेरे घर, तूझ ेगहनों से ल द दूांग !” ये वहशी सुर सुनत ेही इन छोररयों की आाँखें गुस्से से ििकत ेअांग रे की तरह ल ल हो गयी, वे सिी तज़े र ज को घणृ से देखने लगी ! मगर इन सुनस न स्थ न पर इस कमबख़्त के बोल सुनकर, उनके ददल में वहम क कीड़ रेंगने लग ! व े सिी छोररयें सोचने लगी ‘अब हम अबल न ररय ां, इस सुनस न में इस कुदीठ र क्षस से अपनी इज्ज़त की रक्ष कैसे कर प येंगी ? यह सुतदर ब ल ओां क न्ज़ांद म ांस नोचने व ल गीद अकेले इस जगह आने पर व ल नहीां, ज़रूर यह प पी रमज न ख ां और उसके शैत न स थथयों के स थ आय होग ?’ सोचती-सोचती थचांत में डूबी इन छोररयों की आाँखें न म हो गयी, और आांसू उनके रुिस रों पर बहने लगे ! फ़फर वे दहम्मत करके, उन आांसूओां को पल्ले से पोंछती हुई म त र नी को य द करती हुई गुह र करने लगी “ए म त र नी ! हम री रक्ष करती हुई, इस दशु्मन को म र थगर ! हम सिी अबल