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- अनुमिणका अंक – दसवां अटूबर-िदसंबर, 2014 1. रेलवे बोड राजभाषा कायावयन सिमित की 118वᱭ बैठक के दृय 2. महादेवी वमा का जीवन पिरचय (लेख) 3. वात रोग – जोड़ो का दद (Rheumatic Pain) 4. सिदानंद हीरानंद वायान “अेय” 5. फणीवरनाथ रेणु 6. भवानी साद िम 7. पं. सोहनलाल िदवेी 8. अंतरराीय नारी िदवस (किवता) 9. रेल अंचलᲂ मᱶ राजभाषा से संबंिधत गितिविधयां 10. 10 और 11 माच, 2015 को बोड मᱶ आयोिजत कायशाला ए.के. िमतल अय, रेलवे बोड दीप कुमार िपता : राजभाषा िनदेशालय, रेल मंालय (रेलवे बोड), कमरा नं.544, रेल भवन, रेलवे बोड नई िदली - 110001. Email : [email protected] रािगनी यचुरी कायपालक िनदेशक (औ.सं.) के.पी. सयानंदन िनदेशक,राजभाषा नी पटनी उप िनदेशक,राजभाषा अमरीक लाल अनुभाग अिधकारी, राजभाषा िशव चरण गौड़, विरठ अनुवादक गौरव कालरा, किनठ अनुवादक असफलता केवल यह िस करती है िक सफलता का यन पूरे मन से नहᱭ आ

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    अनुकर्मिणका अंक – दसवां अक् टूबर-िदसंबर, 2014

    1. रेलव ेबोडर् राजभाषा कायार्न् वयन सिमित की 118व बठैक के दशृ् य 2. महादवेी वमार् का जीवन पिरचय (लखे) 3. वात रोग – जोड़ो का ददर् (Rheumatic Pain) 4. सिच्चदानदं हीरानदं वात् स् यान “अज्ञये” 5. फणीश् वरनाथ रेण ु

    6. भवानी पर्साद िमशर्

    7. प.ं सोहनलाल िदवे ी

    8. अतंरराष् टर्ीय नारी िदवस (किवता)

    9. रेल अचंल म राजभाषा स ेसंबिंधत गितिविधया ं10. 10 और 11 माचर्, 2015 को बोडर् म आयोिजत कायर्शाला

    ए.के. िमत् तल अध् यक्ष, रेलवे बोडर्

    पर्दीप कुमार सदस् य कािमक

    पता : राजभाषा िनदशेालय, रेल मंतर्ालय (रेलवे बोडर्),

    कमरा नं.544, रेल भवन, रेलवे बोडर् नई िदल् ली - 110001. Email : [email protected]

    रािगनी यचरुी

    कायर्पालक िनदशेक (औ.सं.)

    के.पी. सत्यानंदन िनदशेक,राजभाषा

    नीरू पटनी

    उप िनदशेक,राजभाषा

    अमरीक लाल

    अनुभाग अिधकारी, राजभाषा

    िशव चरण गौड़, विरष् ठ अनुवादक गौरव कालरा, किनष् ठ अनुवादक

    असफलता केवल यह िस करती ह ैिक

    सफलता का पर्यत् न पूरे मन से नह हुआ

     

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    रेलव ेबोडर् राजभाषा कायार्न् वयन सिमित की 118व बैठक के दशृ् य 

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    महादवेी वमार्

    महादेवी वमार् (26 माचर्, 1907-11 िसतंबर, 1987) िह दी की सवार्िधक प्रितभावान कवियित्रय म से ह। वे िह दी सािह य म छायावादी युग के प्रमुख तंभ ‘जयशकंर प्रसाद’, सूयर्कांत ित्रपाठी

    ”िनराला” और ‘सुिमत्रानंदन पंत’ के साथ मह वपणूर् तंभ मानी जाती ह। उ ह आधुिनक ‘मीराबाई ‘ भी कहा गया है। किव िनराला ने उ ह “िह दी के िवशाल मि दर की सर वती” भी कहा है। उ ह ने अ यापन से अपने कायर्जीवन की शु आत की और अंितम समय तक वे प्रयाग मिहला िव यापीठ की प्रधानाचायार् बनी रहीं। उनका बाल-िववाह हुआ परंतु उ ह ने अिववािहत की भांित जीवन-यापन िकया। प्रितभावान कवियत्री और ग य लेिखका महादेवी वमार् सािह य और संगीत म िनपुण होने के साथ साथ कुशल िचत्रकार और सजृना मक अनुवादक भी थीं। उ ह िह दी सािह य के सभी मह वपूणर् पुर कार प्रा त करने का गौरव प्रा त है। गत शता दी की सवार्िधक लोकिप्रय मिहला सािह यकार के प म व ेजीवन भर पजूनीय बनी रहीं। वे भारत की 50 सबसे यश वी मिहलाओं म भी शािमल ह।

    प्रारंिभक जीवन और पिरवार

    महादेवी वमार् का ज म 26 माचर् सन ् 1907 को प्रात: 8 बजे फ र्खाबाद, उ तर प्रदेश के एक संप न पिरवार म हुआ। इस पिरवार म लगभग 200 वष या सात पीिढ़य के बाद महादेवी जी के प म पुत्री का ज म हुआ था।

    अत: इनके बाबा बाबू बाँके िवहारी जी हषर् से झमू उठे और इ ह घर की देवी- महादेवी माना और उ ह ने इनका नाम महादेवी रखा था। महादेवी जी के माता-िपता का नाम हेमरानी देवी और बाबू गोिव द प्रसाद वमार् था। महादेवी वमार् की छोटी बहन और दो छोटे भाई थे। क्रमश: यामा देवी ( ीमती यामा देवी सक्सेना धमर्प नी- डॉ० बाबूराम सक्सेना, भतूपूवर् िवभागा यक्ष एवं उपकुलपित इलाहाबाद िव व िव यालय) ी जगमोहन वमार् एवं ी मनमोहन वमार्। महादेवी

    वमार् एवं जगमोहन वमार् शा त एवं ग भीर वभाव के तथा यामादेवी व मनमोहन वमार् चंचल, शरारती एवं हठी वभाव के थे।

    महादेवी वमार् के दय म शैशवाव था से ही जीव मात्र के प्रित क णा थी, दया थी। उ ह ठ डक म कँू कँू करते हुए िप ल का भी यान रहता था। पशु-पिक्षय का लालन-पालन और उनके साथ खेलकूद म ही िदन िबताती थीं। िचत्र बनाने का शौक भी उ ह बचपन से ही था।

    संिक्षप् त जीवनी

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    इस शौक की पूित र् वे पृ वी पर कोयले आिद से िचत्र उकेर कर करती थीं। उनके यिक्त व म जो पीडा, क णा और वेदना है, िवद्रोहीपन है, अहं है, दाशर्िनकता एवं आ याि मकता है तथा अपने का य म उ ह ने िजन तरल सू म तथा कोमल अनुभिूतय की अिभ यिक्त की है, इन सब के बीज उनकी इसी अव था म पड़ चुके थे और उनका अकुंरण तथा प लवन भी होने लगा था।

    िशक्षा

    महादेवी जी की िशक्षा 1912 म इंदौर के िमशन कूल से प्रार भ हुई साथ ही सं कृत, अगें्रजी, सगंीत तथा िचत्रकला की िशक्षा अ यापक वारा घर पर ही दी जाती रही। 1916 म िववाह। िववाह के कारण कुछ िदन िशक्षा थिगत रही। िववाहोपरा त महादेवी जी ने 1919 म बाई का बाग ि थत क्रा थवेट कॉलेज इलाहाबाद म प्रवेश िलया और कॉलेज के छात्रावास म रहने लगीं। महादेवी जी की प्रितभा का िनखार यहीं से प्रार भ होता है।

    1921 म महादेवी जी ने आठवीं कक्षा म प्रा त भर म प्रथम थान प्रा त िकया और किवता यात्रा के िवकास की शु आत भी इसी समय और यहीं से हुई। वे सात वषर् की अव था से ही किवता िलखने लगी थीं और 1925  तक जब आपने मिैट्रक की परीक्षा उ तीणर् की थी,  एक सफल कवियत्री के प म प्रिसद्ध हो चुकी थीं। िविभ न पत्र-पित्रकाओं म आपकी किवताओं का

    प्रकाशन होने लगा था। पाठशाला म िहदंी अ यापक से प्रभािवत होकर ब्रजभाषा म सम यापूित र् भी करने लगीं। िफर त कालीन खड़ी बोली की किवता से प्रभािवत होकर खड़ीबोली म रोला और हिरगीितका छंद म का य िलखना प्रारंभ िकया। उसी समय माँ से सनुी एक क ण कथा को लेकर सौ छंद म एक खंडका य भी िलख डाला। कुछ िदन बाद उनकी रचनाएँ त कालीन पत्र-पित्रकाओं म प्रकािशत होने लगीं। िव याथीर् जीवन म वे प्रायः रा ट्रीय और सामािजक जागिृत सबंंधी किवताएँ िलखती रहीं, जो लेिखका के ही कथनानुसार “िव यालय के वातावरण म ही खो जाने के िलए िलखी गईं थीं। उनकी समाि त के साथ ही मेरी किवता का शैशव भी समा त हो गया।” मिैट्रक की परीक्षा उ तीणर् करने के पूवर् ही उ ह ने ऐसी किवताएँ िलखना शु कर िदया था, िजसम यि ट म समि ट और थूल म सू म चेतना के आभास की अनुभिूत अिभ यक्त हुई है। उनके प्रथम का य-सगं्रह ‘नीहार’ की अिधकांश किवताएँ उसी समय की है।

    पिरिचत और आ मीय

    महादेवी जैसे प्रितभाशाली और प्रिसद्ध यिक्त व का पिरचय और पहचान त कालीन सभी सािह यकार और राजनीितज्ञ से थी। व ेमहा मा गाधंी से भी प्रभािवत रहीं। सुभद्रा कुमारी चौहान की िमत्रता कॉलेज जीवन म ही जुड़ी थी। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सिखय के बीच म ले जाती और कहतीं  - “सुनो, ये

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    किवता भी िलखती ह।” प त जी के पहले दशर्न भी िह द ूबोिडर्ंग हाउस के किव स मेलन म हुए थे और उनके घुँघराले बड़ े बाल को देखकर उनको लड़की समझने की भ्रांित भी हुई थी। महादेवी जी गभंीर प्रकृित की मिहला थीं लेिकन उनसे िमलने वाल की सखं्या बहुत बड़ी थी। रक्षाबंधन, होली और उनके ज मिदन पर उनके घर जमावड़ा सा लगा रहता था। सयूर्कांत ित्रपाठी िनराला से उनका भाई बहन का िर ता जगत प्रिसद्ध है। उनसे राखी बधंाने वाल म सपु्रिसद्ध सािह यकार गोपीकृ ण गोपेश भी थे। सिुमत्रानंदन पंत को भी राखी बांधती थीं और सिुमत्रानंदन पंत उ ह राखी बांधते।   

    इस प्रकार त्री-पु ष की बराबरी की एक नई प्रथा उ ह ने शु की थी। वे राखी को रक्षा का नहीं नेह का प्रतीक मानती थीं। वे िजन पिरवार से अिभभावक की भांित जड़ुी रहीं उसम गगंा प्रसाद पांडये का नाम प्रमखु है,  िजनकी पोती का उ ह ने वय ं क यादान िकया था। गगंा प्रसाद पांडये के पुत्र रामजी पांडये ने महादेवी वमार् के अिंतम समय म उनकी बड़ी सेवा की। इसके अितिरक्त इलाहाबाद के लगभग सभी सािह यकार और पिरिचत से उनके आ मीय सबंधं थे।

    वैवािहक जीवन

    नवाँ वषर् पूरा होते होते सन ्1916 म उनके बाबा ी बाँके िवहारी ने इनका िववाह बरेली के पास नबाव गजं क बे के िनवासी ी व प नारायण वमार् से कर िदया, जो उस समय दसवीं कक्षा के िव याथीर् थे। महादेवी जी का िववाह उस उम्र म हुआ जब वे िववाह का मतलब भी नहीं समझती थीं। उ हीं के अनुसार- “दादा ने पु य लाभ से िववाह रच िदया, िपता जी िवरोध नहीं कर सके। बारात आयी तो बाहर भाग कर हम सबके बीच खड़ ेहोकर बरात देखने लगे। त रखने को कहा गया तो िमठाई वाले कमरे म बैठ कर खूब िमठाई खाई। रात को सोते समय नाइन ने गोद म लेकर फेरे िदलवाये ह गे, हम कुछ यान नहीं है। प्रात: आँख खुली तो कपड़ ेम गाँठ लगी देखी तो उसे खोल कर भाग गए।”

    महादेवी वमार् पित-प नी स बधं को वीकार न कर सकीं। कारण आज भी रह य बना हुआ है। आलोचक और िव वान ने अपने-अपने ढँग से अनेक प्रकार की अटकल लगायी ह। गंगा प्रसाद पा डये के अनुसार- “ससरुाल पहँुच कर महादेवी जी ने जो उ पात मचाया, उसे ससरुाल वाले ही जानते ह… रोना, बस रोना। नई बािलका बहू के वागत समारोह का उ सव फीका पड़ गया और घर म एक आतंक छा गया। फलत: ससरु महोदय दसूरे ही िदन उ ह वापस लौटा गए।”

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    िपता जी की मृ यु के बाद ी व प नारायण वमार् कुछ समय तक अपने ससरु के पास ही रहे, पर पुत्री की मनोविृ त को देखकर उनके बाबू जी ने ी वमार् को इ टर करवा कर लखनऊ मेिडकल कॉलेज म प्रवेश िदलाकर वहीं बोिडर्ंग हाउस म रहने की यव था कर दी।

    जब महादेवी इलाहाबाद म पढ़ने लगीं तो ी वमार् उनसे िमलने वहाँ भी आते थे। िक तु महादेवी वमार् उदासीन ही बनी रहीं। िववािहत जीवन के प्रित उनम िवरिक्त उ प न हो गई थी। इस सबके बावजूद ी व प नारायण वमार् से कोई वैमन य नहीं था।

    सामा य त्री-पु ष के प म उनके स बंध मधुर ही रहे। दोन म कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा ी वमार् इलाहाबाद म उनसे िमलने भी आते थे। एक िवचारणीय त य यह भी है िक ी वमार् ने महादेवी जी के कहने पर भी दसूरा िववाह नहीं िकया।

    महादेवी जी का जीवन तो एक सं यािसनी का जीवन था ही। उ ह ने जीवन भर वेत व त्र पहना,  तख्त पर सोया और कभी शीशा नहीं देखा। 

    कायर्क्षेत्र

    महादेवी का कायर्क्षेतर् लेखन, सपंादन और अ यापन रहा। उ ह ने इलाहाबाद म प्रयाग मिहला िव यापीठ के िवकास म मह वपूणर् योगदान िकया।

    यह कायर् अपने समय म मिहला-िशक्षा के क्षेत्र म क्रांितकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचायर् एवं कुलपित भी रहीं। 1932 म उ ह ने मिहलाओ ंकी प्रमखु पित्रका ‘चाँद’ का कायर्भार सभंाला। 1930 म नीहार, 1930 म रि म, 1934 म नीरजा, तथा 1936 म सां यगीत नामक उनके चार किवता सगं्रह प्रकािशत हुए।

    1939 म इन चार का य सगं्रह को उनकी कलाकृितय के साथ वहृदाकार म यामा शीषर्क से प्रकािशत िकया गया। उ ह ने ग य, का य, िशक्षा और िचत्रकला सभी क्षेत्र म नए आयाम थािपत िकये। इसके अितिरक्त उनकी 18 का य और ग य कृितयां ह िजनम मेरा पिरवार, मिृत की रेखाएं, पथ के साथी, ृंखला की किड़याँ और अतीत के चलिचत्र प्रमखु ह।

    सन 1955 म महादेवी जी ने इलाहाबाद म सािह यकार ससंद की थापना की और पं. इलाचंद्र जोशी के सहयोग से सािह यकार का सपंादन सभंाला। यह इस सं था का मखुपत्र था। उ ह ने भारत म मिहला किव स मेलन की नीव रखी। इस प्रकार का पहला अिखल भारतवषीर्य किव स मेलन 15 अप्रैल 1933 को सभुद्रा कुमारी चौहान की अ यक्षता म प्रयाग मिहला िव यापीठ म सपं न हुआ।

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    वे िहदंी सािह य म रह यवाद की प्रवितर्का भी मानी जाती ह। महादेवी बौद्ध धमर् से बहुत प्रभािवत थीं। महा मा गांधी के प्रभाव से उ ह ने जनसेवा का त लेकर झसूी म कायर् िकया और भारतीय वतंत्रता सगं्राम म भी िह सा िलया। 1936 म नैनीताल से 25 िकलोमीटर दरू रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव म महादेवी वमार् ने एक बँगला बनवाया था। िजसका नाम उ ह ने मीरा मिंदर रखा था। िजतने िदन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की िशक्षा और िवकास के िलए काम करती रहीं।

    िवशेष प से मिहलाओ ं की िशक्षा और उनकी आिथर्क आ मिनभर्रता के िलए उ ह ने बहुत काम िकया। आजकल इस बंगले को महादेवी सािह य सगं्रहालय के नाम से जाना जाता है। ृंखला की किड़य म ि त्रय की मिुक्त और िवकास

    के िलए उ ह ने िजस साहस व ढ़ता से आवाज़ उठाई है और िजस प्रकार सामािजक िढ़य की िनदंा की है उससे उ ह मिहला मिुक्तवादी भी कहा गया। मिहलाओ ंव िशक्षा के िवकास के काय और जनसेवा के कारण उ ह समाज-सधुारक भी कहा गया है। उनके सपंूणर् ग य सािह य म पीड़ा या वेदना के कहीं दशर्न नहीं होते बि क अद य रचना मक रोष समाज म बदलाव की अद य आकांक्षा और िवकास के प्रित सहज लगाव पिरलिक्षत होता है।

    उ ह ने अपने जीवन का अिधकांश समय उ तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर म िबताया। 11 िसतंबर, 1987 को इलाहाबाद म रात 9 बजकर 30 िमनट पर उनका देहांत हो गया।

    पुर कार व स मान

    उ ह प्रशासिनक, अधर्प्रशासिनक और यिक्तगत सभी सं थाओँ से पुर कार व स मान िमले। 1943 म उ ह ‘मगंलाप्रसाद पािरतोिषक’ एवं ‘भारत भारती’ पुर कार से स मािनत िकया गया। वाधीनता प्राि त के बाद 1952 म वे उ तर प्रदेश िवधान पिरषद की सद या मनोनीत की गयीं।

    1956 म भारत सरकार ने उनकी सािहि यक सेवा के िलये ‘पद्म भषूण’ की उपािध दी। 1979 म सािह य अकादमी की सद यता ग्रहण करने वाली वे पहली मिहला थीं। 1988 म उ ह मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म िवभषूण उपािध से स मािनत िकया गया। सन 1969 म िवक्रम िव विव यालय, 1977 म कुमाऊं िव विव यालय, नैनीताल, 1980 म िद ली िव विव यालय तथा 1984 म बनारस िहदं ूिव विव यालय, वाराणसी ने उ ह डी.िलट की उपािध से स मािनत िकया।

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    इससे पूवर् महादेवी वमार् को ‘नीरजा’ के िलये 1934 म ‘सक्सेिरया पुर कार’, 1942 म ‘ मिृत की रेखाएँ’ के िलये ‘ िववेदी पदक’ प्रा त हुए। ‘यामा’ नामक का य सकंलन के िलये उ ह भारत का सव च सािहि यक स मान ‘ज्ञानपीठ पुर कार’ प्रा त हुआ। वे भारत की 50 सबसे यश वी मिहलाओं म भी शािमल ह। 1968 म सपु्रिसद्ध भारतीय िफ़ मकार मणृाल सेन ने उनके सं मरण ‘वह चीनी भाई’ पर एक बांग्ला िफ़ म का िनमार्ण िकया था िजसका नाम था नील आकाशेर नीचे।

    16 िसतंबर 1991 को भारत सरकार के डाकतार िवभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके स मान म 2 पए का एक युगल िटकट भी जारी िकया है।

    महादेवी वमार् का योगदान

    सािह य म महादेवी वमार् का आिवभार्व उस समय हुआ जब खड़ी बोली का आकार पिर कृत हो रहा था। उ ह ने िह दी किवता को बजृभाषा की कोमलता दी, छंद के नए दौर को गीत का भंडार िदया और भारतीय दशर्न को वेदना की हािदर्क वीकृित दी। इस प्रकार उ ह ने भाषा सािह य और दशर्न तीन क्षेत्र म ऐसा मह वपूणर् काम िकया िजसने आनेवाली एक पूरी पीढ़ी को प्रभािवत िकया।

    शचीरानी गटूुर् ने भी उनकी किवता को ससुि जत भाषा का अनुपम उदाहरण माना है उ ह ने अपने गीत की रचना शैली और भाषा म अनोखी लय और सरलता भरी है, साथ ही प्रतीक और िबबं का ऐसा सुदंर और वाभािवक प्रयोग िकया है जो पाठक के मन म िचत्र सा खींच देता है। छायावादी का य की समिृद्ध म उनका योगदान अ यंत मह वपूणर् है।

    छायावादी का य को जहाँ प्रसाद ने प्रकृितत व िदया, िनराला ने उसम मकु्तछंद की अवतारणा की और पतं ने उसे सकुोमल कला प्रदान की वहाँ छायावाद के कलेवर म प्राण-प्रित ठा करने का गौरव महादेवी जी को ही प्रा त है। भावा मकता एवं अनुभिूत की गहनता उनके का य की सवार्िधक प्रमखु िवशेषता है। दय की सू माितसू म भाव-िहलोर का ऐसा सजीव और मतूर् अिभ यंजन ही छायावादी किवय म उ ह ‘महादेवी’ बनाता है।

    वे िह दी बोलने वाल म अपने भाषण के िलए स मान के साथ याद की जाती ह। उनके भाषण जन सामा य के प्रित सवेंदना और स चाई के प्रित ढ़ता से पिरपूणर् होते थे। वे िद ली म 1986 म आयोिजत तीसरे िव व िहदंी स मेलन के समापन समारोह की मखु्य अितिथ थीं।

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    इस अवसर पर िदए गए उनके भाषण म उनके इस गणु को देखा जा सकता है। य यिप महादेवी ने कोई उप यास, कहानी या नाटक नहीं िलखा तो भी उनके लेख, िनबंध, रेखािचत्र, सं मरण, भूिमकाओं और लिलत िनबंध म जो ग य िलखा है वह े ठतम ग य का उ कृ ट उदाहरण है। उसम जीवन का सपंूणर् वैिव य समाया है। िबना क पना और का य प का सहारा िलए कोई रचनाकार ग य म िकतना कुछ अिजर्त कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है।

    उनके ग य म वैचािरक पिरपक्वता इतनी है िक वह आज भी प्रासिंगक है। समाज सधुार और नारी वतंत्रता से सबंंिधत उनके िवचार म ढ़ता और िवकास का अनुपम सामजं य िमलता है। सामािजक जीवन की गहरी परत को छूने वाली इतनी ती ि ट, नारी जीवन के वैष य और शोषण को तीखेपन से आंकने वाली इतनी जाग क प्रितभा और िन न वगर् के िनरीह, साधनहीन प्रािणय के अनूठे िचत्र उ ह ने ही पहली बार िहदंी सािह य को िदए। मौिलक रचनाकार के अलावा उनका एक प सजृना मक अनुवादक का भी है िजसके दशर्न उनकी अनुवाद-कृत ‘स तपणार्’ (1960) म होते ह। अपनी सां कृितक चेतना के सहारे उ ह ने वेद, रामायण, थेरगाथा तथा अ वघोष, कािलदास, भवभिूत एवं जयदेव की कृितय से तादा य थािपत करके 39 चयिनत मह वपणूर् अशं का िह दी का यानवुाद इस कृित म प्र तुत िकया है। आरंभ म ‘अपनी बात’ म उ ह ने भारतीय मनीषा और सािह य की इस अमू य

    धरोहर के सबंंध म गहन शोधपूणर् िवमषर् िकया है जो केवल त्री-लेखन को ही नहीं िहदंी के समग्र िचतंनपरक और लिलत लेखन को समदृ्ध करता है।

    प्रिसिद्ध के पथ पर

    1932 म इलाहाबाद िव विव यालय एम.ए. करने के बाद से उनकी प्रिसिद्ध का एक नया युग प्रारंभ हुआ। भगवान बुद्ध के प्रित गहन भिक्तमय अनुराग होने के कारण और अपने बाल-िववाह के अवसाद को झलेने वाली महादेवी बौद्ध िभकु्षणी बनना चाहती थीं। कुछ समय बाद महा मा गांधी के स पकर् और पे्ररणा से उनका मन सामािजक काय की ओर उ मखु हो गया। प्रयाग िव विव यालय से सं कृत सािह य म एम० ए० करने के बाद प्रयाग मिहला िव यापीठ की प्रधानाचायार् का पद सभंाला और चाँद पित्रका का िनःशु क सपंादन िकया।

    प्रयाग म ही उनकी भट रवी द्रनाथ ठाकुर से हुई और यहीं पर ‘मीरा जयंती’ का शुभार भ िकया। कलक ता म जापानी किव योन नागचूी के वागत समारोह म भाग िलया और शाि त िनकेतन म गु देव के दशर्न िकये। यायावरी की इ छा से बद्रीनाथ की पैदल यात्रा की और रामगढ़, नैनीताल म ‘मीरा मिंदर’ नाम की कुटीर का िनमार्ण िकया। एक अवसर ऐसा भी आया िक िव ववाणी के बुद्ध अकं का सपंादन िकया और ‘सािह यकार ससंद’ की थापना की।

  • भारतीय रचनाकार को आपस म जोड़ने के िलये ‘अिखल भारतीय सािह य स मेलन’ का आयोजन िकया और रा ट्रपित राजद्र प्रसाद से ‘वाणी मिंदर’ का िशला यास कराया। वाधीनता प्राि त के प चात इलाचंद्र जोशी और िदनकर जी के साथ दिक्षण की सािहि यक यात्रा की। िनराला की का य-कृितय से किवताएँ लेकर ‘सािह यकार ससंद’ वारा अपरा शीषर्क से का य-सगं्रह प्रकािशत िकया। ‘सािह यकार ससंद’ के मखु-पत्र सािह यकार का प्रकाशन और सपंादन इलाचंद्र जोशी के साथ िकया।

    प्रयाग म ना य सं थान ‘रंगवाणी’ की थापना की और उ घाटन मराठी के प्रिसद्ध नाटककार मामा वरेरकर ने िकया। इस अवसर पर भारतद ु के जीवन पर आधािरत नाटक का मचंन िकया गया।

    अपने समय के सभी सािह यकार पर पथ के साथी म सं मरण-रेखािचत्र- कहानी-िनबंध-आलोचना सभी को घोलकर लेखन िकया। १९५४ म वे िद ली म थािपत सािह य अकादमी की सद या चुनी गईं तथा 1981 म स मािनत सद या। इस प्रकार महादेवी का सपंूणर् कायर्काल रा ट्र और रा ट्रभाषा की सेवा म समिपर्त रहा।

    यिक्त व - महादेवी वमार् के यिक्त व म सवेंदना ढ़ता और आक्रोश का अद्भतु सतंुलन िमलता है। वे अ यापक, किव, ग यकार, कलाकार, समाजसेवी

    और िवदषुी के बहुरंगे िमलन का जीता जागता उदाहरण थीं। वे इन सबके साथ-साथ एक प्रभावशाली याख्याता भी थीं। उनकी भाव चेतना गंभीर, मािमर्क और संवेदनशील थी। उनकी अिभ यिक्त का प्र येक प िनता त मौिलक और दयग्राही था। वे मंचीय

    सफलता के िलए नारे, आवेश , और स ती उ तेजना के प्रयास का सहारा नहीं लेतीं। गंभीरता और धैयर् के साथ सुनने वाल के िलए िवषय को सवंेदनशील बना देती थी,ं तथा श द को अपनी संवेदना म िमला कर परम आ मीय भाव प्रवािहत करती थीं। इलाचंद्र जोशी उनकी वक्तृ व शिक्त के संदभर् म कहते ह – ‘जीवन और जगत से संबंिधत महानतम िवषय पर जैसा भाषण महादेवी जी देती ह वह िव व नारी इितहास म अभूतपूवर् है। िवशदु्ध वाणी का ऐसा िवलास नािरय म तो क्या पु ष म भी एक रवी द्रनाथ को छोड़ कर कहीं नहीं सुना। महादेवी जी िवधान पिरषद की माननीय सद या थीं। वे िवधान पिरषद म बहुत ही कम बोलती थीं, परंतु जब कभी महादेवी जी अपना भाषण देती थीं तब पं . कमलापित ित्रपाठी के कथनानुसार - सारा हाउस िवमुग्ध होकर महादेवी के भाषणामतृ का रसपान िकया करता था। रोकने-टोकने का तो प्र न ही नहीं, िकसी को यह पता ही नही ंचल पाता था िक िकतना समय िनधार्िरत था और अपने िनधार्िरत समय से िकतनी अिधक देर तक महादेवी ने भाषण िकया।

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    वात रोग

    जोड़ का ददर् (Rheumatic Pain)

    शरीर म अ ल त व बढ़ जाने से यह रोग होता है. इस अ ल त व के कारण रक् त दिूषत हो जाता है. शरीद म वायु का प्रकोप बढ़ जाने से दिूषत पदाथर् जोड़ म कने लग जाते ह, िजनसे ददर् पैदा होता है और शरीर म अकड़न आ जाती है. 

    रक् त के दिूषत होने से शरीर का िवषाक् त पदाथर् पूरे शरीर म सचंािरत होता है, िजससे वर भी रहने लगता है. साथ-साथ जोड़ म सजून भी हो जाती है. धीरे-धीरे यह रोग परेू शरीर के जोड़ म फैल जाता है, िजससे रोगी का चलना, उठना, बैठना आिद मिु कल हो जाता है. 

    रोग का कारण : कोई भी रोग बाहर से नहीं आता. रक् त के दिूषत होने से ही रोग होता है. जो कारण वास-तंत्र के रोग के ह, वे ही कारण इस रोग के भी ह. इसम रक् त के अ ल त व से ऑक् जेिलक एिसड अिधक बनने लगता है, जो शरीर के जोड़ म एकत्र होकर सजून, ददर् तथा अकड़न पैदा करता है. यही इस रोग का प्रधान कारण है. 

    उपचार : एिनमा से या ित्रफला पाउडर से पेट साफ करना पहली आवश ् यकता है.  

    नान करने वाले बड़ े टब म 100 ग्राम मगै् नेिशया नमक (Epsum  Salt), जो दवा िवके्रताओं से िमल जाता है तथा 100 ग्राम खाने वाला नमक गमर् पानी म डालकर आधा घंटा रोगी को उसम िलटाना और सभी जोड़ तथा शरीर पर तौिलए से पानी म मािलश करनी चािहए. जब तक रोगी टब म रहे, िसर पर गमर् पानी नहीं डालना चािहए. उसके बाद गमीर् हो तो ठंड ेपानी से नान करवाएं.  

    सदीर् हो तो ह के गमर् पानी से नान करवाकर शरीर को सखुाएं और कपड़ ेपहनाकर स ् नानघर से बाहर िनकाल. उसके बाद आधे घंटे या एक घंटे के िलए रोगी को सलुा द. सलुाने से पहले जोड़ को थोड़ा यायाम द, तािक जोड़ म जमा हुआ िवकार अपना थान छोड़.े 

    यिद बाथ टब न हो तो 15 िमनट का वा प नान या गमर् पांव का नान द. आधे घंटे का धूप नान द और धूप म शरीर तथा जोड़ की िकसी आयुवद औषिध युक् त तेल से मािलश कर या लाल रंग की बोतल म नािरयल के तेल को 20-25 िदन तक धूप म रख. तब यह तेल भी जोड़ की मािलश करने योग् य बन जाएगा. जब शरीर धूप म पूरी तरह गमर् हो जाए तो जोड़ को खोल, बंद कर व उ ह पूरा यायाम द. कंुजल, जल नेित व सतू्र नेित का अ यास कर शरीर को शुद्ध कर. 

     

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    सलाद पर एक-दो च मच जतैून का तेल डालकर खाने से िवटािमन ए तथा डी दोन ही प्रा त होते ह. 

    इन बात का यान रखते हुए, जो आहार यव था दमा रोग म बताई गई है, उसे ही चलाएं. धैयर् से काम ल, क् य िक रोग समय पर ही जाएगा. 

    जब आप रोग का उपचार तथा आहार पिरवतर्न करगे, तब शु म ददर् तथा सजून बढ़ सकती है, बुखार भी तेज हो सकता है. योग वारा िचिक सा करने से अक् सर रोग म उभार आ जाता है क् य िक रोग को शरीर से बाहर िनकालना होता है, दबाना नहीं.  

    इसिलए घबराने की आव यकता नहीं. उपचार को कम कर द या दो-तीन िदन के िलए बंद कर द. भोजन को पूरे परहेज से चलाते रह. जब बुखार कम हो, तो उपचार को िफर शु कर द.  

    द्धा तथा िव वास से लगकर उपचार व परहेज करने से लाभ िमलना िनि चत है. उभार के समय पूरा आराम कर, योग-िनद्रा करके शरीर को िशिथल कर. उभार वयं ही समा त हो जाएगा और रोग म भी लाभ होगा. 

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    जसेै ही ददर् तथा सजून कम हो और जोड़ खुलने लग तो थोड़ा योगासन का अ यास जसेै – सयूर् नम कार, कमर चक्रासन, वज्रासन, मकरासन, पवनमकु् तासन का अ यास कर.  

    योग-िनद्रा का प्रितिदन आधे घंटे तक अ यास करके शरीर को िशिथल कर. 

    यिद ददर् तथा सजून घटुन म, कलाइय म, कुहनी या कंध म हो तो थानीय 3 िमनट गमर्, 2 िमनट ठंडा सेक द, उनकी मािलश कर और उन जोड़ को यायाम द. 

    आहार : इस रोग म आहार- यव था ऐसी होनी चािहए, िजसम िवटािमन ए तथा िवटािमन डी की मात्रा अिधक हो, परंतु टमाटर तथा पालक का साग या रस नहीं लेना चािहए, क् य िक इनम ऑक् जेिलक एिसड होता है. 

    इस रोग म क ची सि जय के जसू, िवशेषकर गाजर, खीरा, पेठा, लौकी, अदरक तथा फल के रस, सतंरा, मौसमी, सेब, अनार, अगंरू आिद लेने से जोड़ के ददर्, सजून तथा अकड़न थोड़ ेही िदन म कम की जा सकती है. 

    इस रोग म लहसनु तथा अदरक का उपयोग खुलकर कर. लहसनु के एक च मच रस म आधा च मच मधु िमलाकर िदन म दो बार लेने से वाय ुका प्रकोप कम होता है. स जी म भी इ ह डाल. 

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    फणी वरनाथ रेणु  

    (04 माचर्, 1921 – 14 अप्रैल, 1977) 

    आजादी के बाद के कथा सािह य म फणी वरनाथ रेणु जी भाव, शलैी और "ठेठ देशीयता" का िविश ट रंग ढंग िलए अलग धरातल पर खड़ ेिदखाई देते ह. रेण ु के उप यास म ग्रामीण जन-जीवन की वा तिवक हलचल , पिरवित र्त ि थितय , टकराव , तनाव और जिटलताओं तथा िवडबंनाओं का िजस प्रकार उजागर हुआ उससे व े िहदंी कथा सािह य म पे्रमचंद के असली वािरस कहे जाने लगे. उ ह ने िजस ि थित को िजया, भोगा उस पर प्रितिक्रया की.  उ ह ने िलखने की प्रिक्रया म कभी अपने को खोजा तो कभी अपने को खोजने की प्रिक्रया म िलखा. एक कलाकार की हैिसयत से उनकी प्रितबद्धता आम आदमी के प्रित रही. िरपोतार्ज लेखक के प म भी रेण ु ने उ लेखनीय सािह य रचा. रेण ुकी कहािनय ने ग्रामीण आंचिलक पिरवेश के साथ-साथ शहरी जीवन की िविभ न ि थितय को भी अपने व तु िव यास म समेटा. िहदंी िसनेमा के पहले पद पर आई रेण ुकी "तीसरी कसम" कहानी ने उनकी लोकिप्रयता को भरपरू उठान दी. उनकी प्रमुख रचनाएं ह:- मैला आंचल, ठुमरी, आिदम रात की महक, अिग्नखोर, अ छे आदमी तथा पलटू बाबू रोड.

     

    सि चदानंद हीरानंद वा यायन "अज्ञेय"   

    (7 माचर्, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) 

    "अज्ञेय" 20वीं शता दी के िहदंी सािह य के नवोदय के सूत्रधार ह. किव और ग यकार दोन ही प म उ ह ने नई िदशाओं का आिव कार और पिर कार िकया. उ ह ने किवता को छायावादी अितशय भावुकता और प्रगितवाद एकांगी मानिसकता से अलग कर एक नई का य भूिम की ओर ले जाने की बीड़ा उठाया. "अज्ञेय" वभाव से िवद्रोही थे. उ ह ने अपने जीवन को अपने ढंग से, जगह बदल-बदलकर तरह-तरह से जाना और जीया. इससे उ प न पिरतोष को किवता म उ ह ने इस तरह यक् त िकया – म म ं गा सुखी/ क् य िक तुमने जो जीवन िदया था/ उससे म िनिवर्क प खेला हंू/ खुले हाथ से मने उसे वारा है/ म म ं गा सुखी/ मने जीवन की धि जयां उड़ाई ह. अज्ञेय जी के लेखन के के द्र म िनिहत यिक्त मुक् त है, मू य सजर्क है और िज मेदारी के अहसास से भरा हुआ भी. दसूरे तक मू यबोध को पहंुचाना अज्ञेय सािह यकार का दािय व मानते ह. यही उनकी सामािजक प्रितबद्धता है. उनकी प्रमुख रचनाएं ह : िकतनी नाव म िकतनी बार, भग् नदतू, िचतंा, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, िवपथगा, परंपरा, नदी के वीप, सबरंग और कुछ राग, िलखी कागद कोरे तथा आलवाल. 

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    पं. सोहनलाल ि वदेी

    (4 माचर्, 1906 – 1 माचर् 1988)

    पं. सोहनलाल ि वेदी के सािह य ने रा ट्रीय और सां कृितक किव के साथ-साथ ग्रा य जीवन के कुशल िचतेरे तथा बाल सािह य के िनमार्ता के प म भी उ ह प्रितपािदत िकया. देशपे्रम की अटूट और अंतिरम भावना उनकी रा ट्रीय किवता का मूल और मुख् य आधार बनी तथा रा ट्रो थान उनके गीत का सव च वर. ि वेदी जी ब च के महाकिव और बाल सािह य के जनक के प म चिचर्त हुए. उनका सािह यमय जीवन ही बालकिव के प म प्रारंभ हुआ.

    बाल सािह य हो या बाल पत्रकािरता, उ ह ने ब च की भाषा, ब च के दय और ब च की क पना को हू-ब-हू उतार िदया. ि वेदी जी ने जन साधारण को ही अपना स चा पाठक और ोता माना और इसीिलए उ हीं की भाषा म िलखा. प्रमुख रचनाएं – िकसान, भैरवी, कुणाल, पूजा गीत, दधू-बताशा, झरना, बाल भारती तथा हंसो-हंसाओ.

     

    भवानीप्रसाद िम  

    (23 माचर्, 1913 – 20 फरवरी, 1985) 

    भवानीप्रसाद िम जी ने श द को ही सावर्जिनक ताकत माना है. उनका मानना था िक "श दकार को अगर ज रत पड़ ेतो उसे अपने श द पर मरना चािहए." बोलचाल की भाषा को किवता म साधकर उ ह ने सहजता और संपे्रषणीयता का नया प्रितमान गढ़ा. उनकी भरसक कोिशश यही रही िक दशर्न म अ वैत और तकनीकी म सहज ल य ही उनके बन जाएं. अपनी रचनाधिमर्ता के तहत िम जी कभी प्रकृित के सौ दयर् के गायक बनकर उभरते ह, कभी अना था के बीच आ था का दीपक जलाते ह, कभी चेतना के नए वर को उ घािटत करते ह तो कभी िचतंन के नए आयाम को छूते ह. िम जी का का य गांधी जी के जीवन दशर्न से अनुप्रािणत है. उ ह ने गांधीवाद को किवता की अंतधार्रा के बीच से उपजाया. पे्रम, क णा, अिहसंा, सव दय जैसे मू य उनकी किवताओं ने थािपत िकए. उनकी प्रमुख रचनाएं ह – गीतफरोश, अंधेरी किवताएं, गाधंी पंचशती, बुनी हुई र सी, इदं न मम,् शरीर किवता, फसल व फूल, मानसरोवर िदल तथा तूस की आग. 

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    नारी ही शिक्त है नर की  नारी ही है शोभा घर की

    जो उसे उिचत स मान िमले घर म खुिशय के फूल िखल

    नारी सीता नारी काली   नारी ही पे्रम करने वाली

    नारी कोमल नारी कठोर नारी िबन नर का कहां छोर

    नर सम अिधकािरणी है नारी  वो भी जीने की अिधकारी

    कुछ उसके भी अपने सपने क् य र द उ ह उसके अपने

    क् य याग करे नारी केवल क् य नर िदखलाए झठूा बल

    नारी जो िज पर आ जाए अबला से चंडी बन जाए

    उस पर न करो कोई अ याचार तो सखुी रहेगा घर पिरवार

    िजसने बस याग ही याग िकए जो बस दसूर के िलए िजए

    िफर क् य उसको िधक् कार दो उसे जीने का अिधकार दो

    नारी िदवस बस एक िदवस  क् य नारी के नाम मनाना है

    हर िदन हर पल नारी उ तम मानो, यह नया जमाना है

    अतंरार् ट्रीय नारी िदवस “िवशेष”

    नारी िदवस का नारा जब नारी म शिक्त सारी 

    िफर क् य नारी हो बेचारी नारी का जो करे अपमान जान उसे नर पशु समान

    हर आंगन की शोभा नारी उससे ही बसे दिुनया सारी

    राजाओं की भी जो माता क् य हीन उसे समझा जाता

    अबला नहीं नारी है सबला करती रहती जो सबका भला

    नारी को जो शिक्त मानो सखु िमले बात स ची जानो

    क् य नारी पर ही सब बधंन   वह मानवी, नहीं यिक्तगत धन

    सतुा बहु कभी मॉ ंबनकर सबके ही सखु-दखु को सहकर

    अपने सब फजर् िनभाती है तभी तो नारी कहलाती है

    आंचल म ममता िलए हुए नैन से आसं ुिपए हुए

    स प दे जो पूरा जीवन िफर क् य आहत हो उसका मन  

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    म नारी सिदय से

    व अि त व की खोज म िफरती हंू मारी-मारी

    कोई न मुझको माने जन सबने समझा यिक्तगत धन

    जनक के घर म क या धन दान दे मुझको िकया अपर्ण

    जब ज मी मुझको समझा कजर् दानी बन अपना िनभाया फजर्

    साथ म कुछ उपहार िदए अपने सब कजर् उतार िदए

    स प िदया िकसी को जीवन क या से बन गई प नी धन

    समझा जहा ंपैर की दासी अवांिछत य कोई खाना बासी

    जब चाहा मुझको अपनाया मन न माना तो ठुकराया

    मेरी चाहत को भुला िदया

    काटं की सेज पे सुला िदया मार दी मेरी हर चाहत

    हर क्षण ही होती रही आहत मॉ ंबनकर जब मने जाना

    थोड़ा तो खदु को पहचाना िफर भी बन गई म मातधृन

    नही ंरहा कोई खुद का जीवन  चलती रही पर पथ अनजाना

    बस गुमनामी म खो जाना कभी आई थी सीता बनकर

    पछताई मगेृ छा कर कर लांघी क् या इक सीमा मने

    हर युग म िमले मुझको ताने राधा बनकर म ही रोई

    भटकी वन वन खोई खोई 

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    पूव तर रेलवे मखु् यालय, गोरखपुर म िदनांक 14.11.14 को आयोिजत क्षेत्रीय रेलवे राजभाषा कायार् वयन सिमित की बैठक को सबंोिधत करते हुए महाप्रबंधक ी मधुरेश कुमार उनके दाएं मखु्य राजभाषा अिधकारी ी ज्ञान द त पा डये एवं उप मखु्य राजभाषा अिधकारी/ मखु्यालय ी सजंय यादव तथा बाएं ी अिमत िसहं, महाप्रबंधक के सिचव एवं विर ठ उप महाप्रबंधक ी पी.एन.राय 

    िसकंदराबाद मडंल, दिक्षण म य रेलवे म िदनांक 27.10.2014 को आयोिजत सभुद्रा कुमारी चौहान की जयंती समारोह का य  

     

    िसकंदराबाद मडंल, दिक्षण म य रेलवे म िदनांक 27.10.2014 को आयोिजत सभुद्रा कुमारी चौहान की जयंती समारोह का य  

     

    रेल अंचल म राजभाषा से सबंिंधत गितिविधया ं

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    पूव तर रेलवे मखु् यालय, गोरखपुर म िदनांक 14.11.2014 को आयोिजत क्षेत्रीय रेलवे राजभाषा कायार् वयन सिमित की बैठक म उपि थत प्रमखु िवभागा यक्ष 

    पूव तर रेलवे मखु् यालय, गोरखपुर म 22.01.15 को आयोिजत मखु्यालय राजभाषा कायार् वयन सिमित की बैठक को सबंोिधत करते हुए मखु्य राजभाषा अिधकारी ी ज्ञान द त पा डये उनके दाएं उप मखु्य राजभाषा अिधकारी/मखु्यालय ी सजंय यादव तथा बाएं राजभाषा अिधकारी ी ध्रुव कुमार ीवा तव 

    राजभाषा पखवाड़ा उदघाटन समारोह के अवसर पर दाई ओर से ी ए. बी. मढ़ेकर, अपर मडंल रेल प्रबंधक, ी िविपन पवार, विर ठ राजभाषा अिधकारी तथा ी गौरव झा, विर ठ मडंल वािण य प्रबंधक

    रेल अंचल म राजभाषा से सबंिंधत गितिविधया ं

     

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    पि चम रेलवे, राजकोट मडंल, राजभाषा िवभाग वारा 19.10.2014 को आयोिजत सां कृितक कायर्क्रम एवं पुर कार िवतरण समारोह का य

    राजकोट मडंल वारा 07.01.2015 को आयोिजत सां कृितक कायर्क्रम एवं पुर कार िवतरण समारोह म मडंल रेल प्रबंध क से पुर कार प्रा त करती हुई न हीं कलाकार.

    14.01.2015 को संसदीय राजभाषा सिमित की दसूरी उप सिमित वारा इरीन सं थान म िहदंी म हो रहे कायर् का िनरीक्षण.

    रेल अचंल म राजभाषा से सबंिंधत गितिविधया ं

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    म य रेलवे के नागपुर मडंल म राजभाषा िफ म के िवमोचन के अवसर पर म य रेलवे के महाप्रबंधक तथा अ य अिधकारी-गण  

    म य रेलवे के नागपुर मडंल म आयोिजत भाषाई सदभ्ावना िदवस का य

    म य रेलवे के नागपुर मडंल म िव व िहदंी िदवस के उपल य म आयोिजत सां कृितक कायर्क्रम का

    रेल अंचल म राजभाषा से सबंिंधत गितिविधया ं

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    उ तर म य रेलवे मखु् यालय म क्षेत्रीय  राजभाषा कायार् वयन  सिमित  की  बैठक  म  सद य   को  सबंोिधत करते हुए महाप्रबंधक,  ी प्रदीप कुमार

    मखु् यालय  वारा प्रकािशत राजभाषा पित्रका ''रेल सगंम'' के  लेखा  िवभाग  िव शेषांक  का  िवमोचन  करते  हुए महाप्रबंधक,  ी प्रदीप  कुमार,  उनके  दाईं ओर  ह मखु् य राजभाषा अिधकारी,  ी ओम प्रकाश 

    26.12.2014 को उ तर म य रेलवे म आयोिजत क्षेत्रीय राजभाषा कायार् वयन सिमित की बैठक का

    रेल अंचल म राजभाषा से सबंिंधत गितिविधया ं

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    नगर राजभाषा कायार् वयन सिमित, िवजयवाड़ा के सभी उपि थत सद य का हािदर्क वागत करते हुए ी िचरंजीवी, सद य सिचव

    नगर राजभाषा कायार् वयन सिमित, िवजयवाड़ा की 51वीं बैठक म उपि थत सद य

      नगर राजभाषा कायार् वयन सिमित, िवजयवाड़ा की 51वीं बैठक का य  

    रेल अंचल म राजभाषा से सबंिंधत गितिविधया ं

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    19.01.2015 को अनुवाद सरलीकरण पर आयोिजत िहदी कायर्शाला के दशृ् य 

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    रेल मंत्रालय (रेलवे बोडर्) म िदनांक 10 और 11 माचर्, 2015 को िहदंी म काम करने वाले/करने के इ छुक कमर्चािरय के िलए िहदंी म िट पण एवं प्रा प लेखन का अ यास कराने के िलए िहदंी कायर्शाला का आयोजन िकया गया, िजसम बोडर् कायार्लय के कमर्चािरय ने बढ़-चढ़ कर िह सा िलया. 

    िहदंी म िट पण एवं प्रा प लेखन, अिधिनयम, अनुवाद सरलीकरण पर ी जगत िसहं नगरकोटी, संयुक् त िनदेशक/राजभाषा, ी सुधीर कुमार शमार्, उप िनदेशक/राजभाषा, ीमती नी पटनी, उप िनदेशक/राजभाषा और ी िरसाल िसहं,

    उप िनदेशक/राजभाषा ने अपने-अपने याख् यान से कमर्चािरय को लाभाि वत िकया.

    अंत म िनदेशक, राजभाषा ने कमर्चािरय को िहदंी म काम करने के िलए पे्रिरत िकया और भाग लेने वाले कमर्चािरय को एक-एक िहदंी श द कोश एवं सहायक सािह य प्रदान िकया. 

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    10 और 11.03.2015 को बोडर् कायार्लय के कमर्चािरय के िलए

    आयोिजत कायर्शाला की िरपोटर् 

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    10 और 11.03.2015 को रेलव ेबोडर् कमर्चािरय के िलए आयोिजत िहदी कायर्शाला के दशृ् य 

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    10 और 11.03.2015 को रेलव ेबोडर् कमर्चािरय के िलए आयोिजत िहदी कायर्शाला के दशृ् य