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Sample Copy. Not For Distribution.

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  • Sample Copy. Not For Distribution.

  • i

    अंतर्मन की आवाज

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  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2018, Dr. Dhananjay Pandey

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    ISBN: 978-81-936181-6-5

    Price: ` 140.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

    Sample Copy. Not For Distribution.

  • iii

    अंतर्मन की आवाज

    डॉ. धनंजय पाणे्डय

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • iv

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  • v

    दो शब्द

    जीवन की भागदौड़ में आजकल हमने खुद के साथ समय

    बिताना, खुद से िातें करना छोड़ बदया है. मुझे ऐसा लगता है,

    की ये खुद से खुद की दोस्ती और िातें कई सारी समस्यायोों से

    हमें िचाती है और बवषम पररस्थथयोों में हमें रास्ता बदखाती है.

    वैसे भी आध्यास्िक उन्नबत के बलए और परमािा से जुड़ने के

    बलये अपने आप से जुड़ना प्राथबमक शतत है. इसे पाने के बलए

    कई िार हम एकाोंत की तलाश में दूर बहमालय या जोंगल की

    तरफ पलायन करते है. परों तु इस सोंसार में रहकर सोंसार की

    समस्याओों और खूिसूरती से दो-चार होते हुए भी यबद हमारी

    खुद से दोस्ती है, हमारी अोंतरािा हमसे िात करती है, कुछ

    करने या ना करने की सलाह देती है और हम खुद का

    साक्षात्कार कर पाते है, तो मुझे लगता है की िेहतरीन जीवन

    की यही ों पहचान है. कबवताएँ बवबभन्न साोंसाररक/प्राकृबतक

    अनुभूबतयो से खुद के हृद्यास्पोंदन के िाद बनकले भाव होते है

    बजन्हें सोंपे्रषण के बलए कुछ प्रचबलत शब्ोों की आवश्यकता

    होती है. प्रसु्तत पुस्तक ऐसे ही हृद्यास्पन्दनो से उत्पन्न भावोों का

    शब्ोों के रूप में सोंकलन है. परों तु यह कहना आवश्यक है की

    ये कबवताएँ बकसी भी व्यस्िबवशेष से जुड़ी नही ों है और ना ही

    अबभव्यि शब्ोों से बकसी की भी भावनाओों को ठेस पहँुचाने

    का उदे्दश्य है. आशा है आप इसे पढ़कर आनोंबदत होोंगे.

    डॉ. धनंजय पाणे्डय

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  • vi

    कववता-सूची

    क्र. ववषय पषृ्ठ

    1. अभी स ाँझ नही ीं 1

    2. आज के नेत 3

    3. कर्म की र्श ल 6

    4. भ रत की र जनीतत 7

    5. र्ैंने ख़ुद को खो तदय है? 9

    6. ज ने क्ोीं हर् बदल गये 10

    7. सह र च तहए 11

    8. हौसल र्त ह र 12

    9. अभी है दम इतना 14

    10. एक ब र तिर से 16

    11. करन होग प्रलय क वरण 17

    12. कल य द आ रह है 19

    13. तकसी गर् को श यद छ़ु प ये हुए हो 20

    14. क़ु छ है कर्ी 22

    15. कोई न रह अपन 23

    16. क् प न है? 24

    17. चल रे र ही 25

    18. तचींत 27

    19. जग के ज ल र्ें 29

    20. ज नत हाँ र्ैं 31

    21. जब भी देख ाँ त़ुझे भगवन 32

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  • vii

    22. जब वो हर्सफ़र थे 33

    23. तजनरे् उनकी ख़ुशी हो 34

    24. जीवन के पथ पर आगे बढ़न होग 36

    25. जीवन के रींग 37

    26. द़ुसरोीं की ख ततर 38

    27. नई पहच न बन ने हाँ चल 40

    28. प्रभ़ु आने दे अपने सर्ीप 41

    29. तफ़क्र करते रहे 42

    30. तिर से इक स़ुींदर सींस र बन ओ 43

    31. तिर से उठ लो 45

    32. अन्य य नही ीं है क् ? 46

    33. र् ाँ की र्र्त 46

    34. वो क् ज ने 48

    35. सचऱ्ुच द र हो गये 50

    36. सीख तलय है 51

    37. सोींचत हाँ 53

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  • viii

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  • 1

    1

    अभी सााँझ नही ं अभी साँझ नही जीवन का,

    जो मान बलया खुद को थका हारा.

    मज़िूत िना कों धोों को अपने,

    देना है कइयोों को सहारा.

    अभी साँझ नही जीवन का,

    जो मान बलया खुद को थका हारा.

    कोई और ना देगा सोंिल तुझको,

    क्यो बफरता करके खुद को िेचारा.

    क्यो मन बवचबलत और,

    तन दुितल तू करता है,

    तेरा कोई नही जग में,

    तेरे खुद के अोंतमतन से प्यारा.

    अभी साँझ नही जीवन का,

    जो मान बलया खुद को थका हारा.

    तू देख जरा,

    तू देख जरा,

    तेरे इस दुबदतन में भी

    कुछ सोंदेश बछपा है.

    गहरे सागर का भी,

    होता एक बकनारा.

    अभी साँझ नही जीवन का,

    जो मान बलया खुद को थका हारा.

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  • 2

    िेशक़ िाधाओों ने िहुत रुलाया है,

    पर आज खड़ा बजस मोंबज़ल पे,

    पाने बक शस्ि पायी है

    िाधाओों के ही द्वारा.

    अभी साँझ नही जीवन का,

    जो मान बलया खुद को थका हारा.

    कष्ोों से, राहोों की

    क्यो इतना घिराता है.

    अभी तो तुझको जीना है

    जीवन अपना सारा.

    अभी साँझ नही जीवन का,

    जो मान बलया खुद को थका हारा.

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  • 3

    2

    आज के नेता

    आज के नेता, बकतने िेईमान हो गये.

    बहोंदुओ की गली में बहन्दू,

    मुसलमानोों की गली में,

    मुसलमान हो गये.

    वषों से था भाईचारा जहाँ,

    वि जि आया चुनाव का

    तो, नेताओ के भाषण सुन

    जोंग के ऐलान हो गये.

    और बफर नफ़रत की आग में,

    सि कुरिान हो गये.

    इन नेताओ की िदौलत ही,

    शहर में कई शमशान हो गये.

    आज के नेता,

    बकतने िेईमान हो गये.

    बहोंदुओ की गली में बहन्दू,

    मुसलमानोों की गली में,

    मुसलमान हो गये.

    कल तक होती थी जहाँ, दुआ-सलाम.

    आज आदमी के रूप में,

    सि शैतान हो गये.

    इन नेताओ की िदौलत ही,

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  • 4

    शहर में कई, कबिश्तान हो गये.

    पढ़ के देखे सभी ने,

    एक ही िात बलखी है,

    इन चोंद लोगोों के कारण,

    गीता अलग,

    अलग कु़रान हो गये.

    कल तक न था भेद,

    दोनोों की खुशी में.

    आज एक की बदवाली,

    तो दूजे के, रमजान हो गये.

    इन नेताओ की िदौलत ही,

    शहर में कई शमशान हो गये.

    आज के नेता,

    बकतने िेईमान हो गये.

    बहोंदुओ की गली में बहन्दू,

    मुसलमानोों की गली में,

    मुसलमान हो गये.

    िहुत अरसा नही ों िीता, भारत एक था.

    कुछ नेताओ की िदौलत ही,

    बहोंदुस्तान और पाबकस्तान हो गये.

    कौन है ये कुछ लोग,

    जो तय करते हमारे फैसले.

    बहन्दुओ और मुसलमानोों ने चाहा ही नही ों,

    और वो हमारे, कद्रदान हो गये.

    इन्हें क्या खिर,

    कइयो के आँशु अि सुखेंगे ना.

    कइयोों के अरमान सो गये.

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  • 5

    गरीिोों की बचता पर भी

    रोटी सेकने वाले.

    दो भाईयो के िीच,

    दरिान हो गये.

    आज के नेता,

    बकतने िेईमान हो गये.

    बहोंदुओ की गली में बहन्दू,

    मुसलमानोों की गली में,

    मुसलमान हो गये.

    सत्ता खाबतर बकया ऐसा काम की,

    दो धमत, हमेशा के बलए,

    िदनाम हो गये.

    आज के नेता,

    बकतने िेईमान हो गये.

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  • 6

    3

    कर्म की र्शाल

    कमत की मशाल, अनवरत जलाये चलो.

    है अँधेरी रात तो क्या,

    है कबठन राह तो क्या,

    कदम पगडोंबडयोों पर ही

    िढ़ाये चलो.

    करेगा न कोई मदद,

    स्वयों के िल पे चलो,

    उचाईयोों को छू लो,

    हार गये, कोई िात नही ों,

    हाथ अपना न मलो, वरन

    जीत की आग़ में बफ़र जलो.

    झुको नही ों, तन कर , कष्ोों से लड़ो.

    है भबवष्य तुम्हारा,

    तुम्हारे हाथ में,

    इसे उज्वल िनाए चलो.

    कमत की मशाल,

    अनवरत जलाये चलो.

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  • 7

    4

    भारत की राजनीतत

    भारत की राजनीबत,

    बकतनी गन्दी होती जा रही है.

    सभी दल सत्ता के लोभ में,

    अन्धी होती जा रही है.

    बकस दल को कहें अच्छा, बकसे िुरा,

    सि तो ‘िापू’ के सीख को भुला रही है.

    क्या करेगी वो सरकार?

    जो बकसी भी शतत पे कुसी िचा रही है.

    काम से बकस दल को है मतलि,

    िस, इक दूसरे पे आरोप-प्रत्यारोप लगा रही है.

    अरिोों रूपये खचत कर,

    सोंसद में केवल शोर मचा रही है.

    भारत की राजनीबत,

    बकतनी गन्दी होती जा रही है.

    सभी दल सत्ता के लोभ में,

    अन्धी होती जा रही है.

    बकस दल को कहें अच्छा, बकसे िुरा,

    सि तो, जनता के अरमानोों को दिा रही है

    एक वोट के बलये, जाबत-धमत के नाम पर

    देश को सुलगा रही है.

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